UP Board Solutions for Class 10 Hindi धातु-रूप

UP Board Solutions for Class 10 Hindi धातु-रूप

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धातु-रूप

ध्यातव्य-अनुवाद में सहायक होने के कारण पाठ्यक्रम में निर्धारित (पठ्, हस, दृश्, पच्) धातुओं के अतिरिक्त कुछ अन्य धातुओं के रूप भी यहाँ दिये जा रहे हैं।

(1) पठ् धातु (पढ़ना) के रूप
लट् लकार (वर्तमानकाल)

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लुट् लकार (भविष्यत्काल)

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लङ् लकार (भूतकाल)

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लोट् लकार (‘आज्ञा’ अर्थ में)

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विधिलिङ् लकार (‘चाहिए’ अर्थ में)

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(2) हस् धातु (हँसना) के रूप
लट् लकार (वर्तमानकाल)

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लुट् लकार (भविष्यत्काल)

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लङ् लकार (भूतकाल)

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लोट् लकार (आज्ञा’ अर्थ में)

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विधिलिङ् लकार (‘चाहिए’ अर्थ में)

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(3) गम् धातु (जाना) के रूप
लट् लकार (वर्तमानकाल)

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लृट् लकार (भविष्यत्काल)

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लङ् लकार ( भूतकाल)

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लोट् लकार (आज्ञा’ अर्थ में)

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विधिलिङ् लकार (‘चाहिए’ अर्थ में)

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(4) कृ धातु (करना) के रूप
लट् लकार (वर्तमानकाल)

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लृट् लकार (भविष्यत्काल)

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लङ् लकार ( भूतकाल)

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लोट् लकार (आज्ञा’ अर्थ में)

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विधिलिङ् लकार (‘चाहिए’ अर्थ में)

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(5) पच् धातु (पकाना) के रूप
लट् लकार (वर्तमानकाल)

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लृट् लकार (भविष्यत्काल)

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लङ् लकार ( भूतकाल)

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लोट् लकार (आज्ञा’ अर्थ में)

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विधिलिङ् लकार (‘चाहिए’ अर्थ में)

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(6) दृश् धातु (देखना) के रूप
लट् लकार (वर्तमानकाल)

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लृट् लकार (भविष्यत्काल)

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लङ् लकार ( भूतकाल)

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लोट् लकार (आज्ञा’ अर्थ में)

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विधिलिङ् लकार (‘चाहिए’ अर्थ में)

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अभ्यास

प्रश्न 1
निम्नलिखित धातुओं के निर्देशानुसार रूप लिखिए
उत्तर
(क) दृश्लृ ट् लकार (मध्यम पुरुष, एकवचन, बहुवचन) ।
(ख) दृश्, पच्-लोट् लकार (उत्तम पुरुष, एकवचन, द्विवचन)
(ग) पठ्, दृश्-विधिलिङ् लकार (मध्यम पुरुष, एकवचन व बहुवचन)
(घ) भू, पठ्ल ङ् लकार (मध्यम पुरुष, एकवचन तथा द्विवचन) ।
(ङ) दृश्, पच्-नृट् लकार (उत्तम पुरुष, एकवचन तथा बहुवचन)
(च) हस्, पच्–लुट् तथा लङ् लकार (उत्तम पुरुष, द्विवचन, बहुवचन)
(छ) हस्-लोट् लकार (उत्तम (UPBoardSolutions.com) तथा मध्यम पुरुष, बहुवचन)
(ज) पठ्, हस्, दृश्लृ ट् लकार (उत्तम पुरुष, एकवचन तथा बहुवचन)
(झ) पठ्, हस्, दृश्-लङ् लकार (मध्यम पुरुष, एकवचन तथा बहुवचन)
(ञ) हस्, पच्–लङ् लकार (द्विवचन तथा बहुवचन)
(ट) पठ्, हस्तृ ट् लकार (मध्यम पुरुष, एकवचन तथा बहुवचन),

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प्रश्न 2
निम्नांकित में से किसी एक के धातु, लकार, पुरुष और वचन लिखिए- [2011]
उत्तर
पक्ष्यथ, पश्यानि, हस, पठिष्यावः, द्रक्ष्यसि, पच, द्रक्ष्यामि, पठानि, पक्ष्यसि, पश्यथ, पठानि, पठेयुः, पठेयम्, अहसन्, अपठ, हसानि, भवेतम्, पठसि, अहसत्, पश्येत्, पठामि, हसिष्यति, पचेव, अपश्य, हंसथः, पठतः, हसेत।

प्रश्न 3
निम्नलिखित में से किसी एक धातु के रूप लिखिए [2012]
उत्तर
लृट् लकार के उत्तम पुरुष के बहुवचन–

  1. पठ्,
  2. हस्,
  3. दृश्।।

लोट् लकार के मध्यम पुरुष के एकवचन–

  1. पच्,
  2. पठ्,
  3. हस्।

प्रश्न 4
निम्नलिखित में से किसी एक धातु के रूप लिखिए [2013]
उत्तर
लट् लकार में–

  1. दृश्,
  2. पठ्,
  3. हँस।।

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प्रश्न 5
निम्नलिखित में से किसी एक के धातु, लकार, पुरुष तथा वचन का उल्लेख कीजिए– [2014]
उत्तर
पठाम:, हसन्तु, पश्याम:, हसतु, पश्यन्ति, पठामि, (UPBoardSolutions.com) अपचताम्, अहसाम, हससि, द्रक्ष्यसि, पचति, पठेः, अपचतम्, हसत, द्रक्ष्यामः, पठानि, पचेयुः पश्येताम्, पठत, अहसः, पश्यामि।

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi शब्द-रूप

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शब्द-रूप

ध्यातव्य–अनुवाद में सहायक होने के कारण हम पाठ्यक्रम में निर्धारित (फल, मति, मधु एवं नदी) शब्दों के अतिरिक्त भी कुछ शब्दों के रूप यहाँ दे रहे हैं।

1. अकारान्त नपुंसकलिङ्ग संज्ञा शब्द : फल

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[संकेत–वन, कमल, पुष्प, कुसुम, जल, मित्र, पुस्तक, ज्ञान (UPBoardSolutions.com) आदि अकारान्त नपुंसकलिङ्ग शब्दों के रूप फल के समान ही होते हैं।]

2. आकारान्त स्त्रीलिङ्ग संज्ञा शब्द : रमा

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[ संकेत–लता, बाला, विद्या, छाया, कन्या, निशा आदि आकारान्त स्त्रीलिङ्ग शब्दों के रूप रमा के समान ही होते हैं। ]

3. इकारान्त पुंल्लिङ्ग संज्ञा शब्द : हरि

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[ संकेत-मुनि, कपि, विधि, रवि, गिरि, कवि आदि इकारान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों के रूप हरि के समान ही होते हैं।]

4. इकारान्त स्त्रीलिङ्ग संज्ञा शब्द : मति

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[ संकेत–बुद्धि, भक्ति, शक्ति, श्रुति, स्मृति, नीति, रीति, जाति, रात्रि आदि (UPBoardSolutions.com) इकारान्त स्त्रीलिङ्ग शब्दों के रूप मति के समान ही होते हैं।]

5. ईकारान्त स्त्रीलिङ्ग संज्ञा शब्द : नदी

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[ संकेत-गौरी, पार्वती, जानकी, सावित्री, गायत्री, पृथ्वी आदि ईकारान्त स्त्रीलिङ्ग शब्दों के रूप नदी के समान ही होते हैं।]

6. उकारान्त नपुंसकलिङ्ग संज्ञा शब्द : मधु

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[ संकेत–वस्तु, अश्रु, जानु, तालु, सानु, अम्बु, वसु आदि उकारान्त नपुंसकलिङ्ग शब्दों के रूप मधु के समान ही होते हैं।]
संज्ञा के स्थान पर जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, वे सर्वनाम (UPBoardSolutions.com) कहलाते हैं; जैसे-तद् (वह), युष्मद् (तुम), अस्मद् (मैं) आदि।

1. युष्मद् (तुम) शब्द के रूप

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[ संकेत–सर्वनाम शब्दों के सम्बोधन में रूप नहीं होते हैं।]

2. अस्मद् (मैं) शब्द के रूप

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3. तद् (वह) शब्द के रूप

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4. तद् (वह) शब्द के रूप

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[ संकेत–शेष रूप पुंल्लिङ्ग के समान ही होंगे।]

5. तद् (वह) शब्द के रूप (स्त्रीलिङ्ग)

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अश्यास

प्रश्न 1
निम्नलिखित में से किन्हीं दो शब्दों के रूप लिखिए [2010]
उत्तर
(क)
चतुर्थी विभक्ति, एकवचन-

  1. मति,
  2. नदी,
  3. मधु,
  4. युष्मद्।

(ख) तृतीया विभक्ति, एकवचन-

  1. मधु,
  2. नदी,
  3. फल,
  4. युष्मद्।

(ग) चतुर्थी विभक्ति , द्विवचन–

  1. मति,
  2. युष्मद्,
  3. फल,
  4. मधु।

(घ) पञ्चमी विभक्ति, द्विवचन-

  1. मति,
  2. मधु,
  3. फल,
  4. युष्मद्।

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(ङ) पञ्चमी विभक्ति, एकवचन–

  1. अस्मद्,
  2. नदी,
  3. मधु,
  4. मति।

प्रश्न 2
निम्नलिखित शों के रूप लिखिए [2011]
उत्तर
(क)
तृतीया विभक्ति, एकवचन–

  1. ‘फल’ अथवा ‘मधु’ तथा
  2. तद् अथवा ‘युष्मद् ।

(ख) तृतीया विभक्ति के सभी वचनों में–

  1. फल,
  2. मति तथा
  3. नदी।।

(ग) द्वितीया विभक्ति, बहुवचन–

  1. ‘मति’ अथवा ‘नदी’ तथा
  2. युष्मद् अथवा ‘तद्’।

(घ) तृतीया विभक्ति, बहुवचन-

  1. ‘फल’ अथवा ‘नदी’ तथा
  2. तद् अथवा युष्मद् ।

(ङ) तृतीया विभक्ति के एकवचन में—

  1. ‘फल’ अथवा ‘नदी’ तथा
  2. युष्मद् अथवा तद्’ (पुंल्लिग)।

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(च) चतुर्थी विभक्ति के एकवचन में–

  1. ‘फल’ अथवा ‘मधु’ ।

(छ) षष्ठी विभक्ति के एकवचन में–

  1. ‘मधु’ अथवा ‘फल’ तथा ‘तद् अथवा ‘युष्मद्’।

प्रश्न 3
निम्नलिखित शब्दों के रूप लिखिए [2012]
उत्तर
(क)
पञ्चमी विभक्ति के एकवचन में–

  1. ‘मधु’ अथवा ‘नदी’,
  2. तद् (स्त्रीलिङ्ग) अथवा युष्मद।।

(ख) पञ्चमी विभक्ति के एकवचन में–

  1. ‘नदी’ अथवा ‘फल’,
  2. ‘युष्मद्’ अथवा ‘तद्’ (पुंल्लिग)।

(ग) पञ्चमी विभक्ति के बहुवचन में–

  1. ‘मति’ अथवा ‘मधु’,
  2. ‘तद्’ अथवा ‘युष्मद्

(घ) पञ्चमी विभक्ति के बहुवचन में–

  1. नदी,
  2. मति,
  3. तद् (पुं०),
  4. मधु। ५.

(ङ) चतुर्थी विभक्ति के सभी वचनों में–

  1. फल,
  2. नदी,
  3. मति।।

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(च) पञ्चमी विभक्ति के एकवचन में—

  1. ‘मति’ अथवा ‘नदी’,
  2.  ‘युष्मद् (पुं०) अथवा ‘तद्’ (स्त्री०)।

(छ) षष्ठी विभक्ति के द्विवचन में–

  1. ‘नदी’ अथवा ‘मधु’,
  2.  ‘फल’ अथवा ‘मति’।

प्रश्न 4
निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं दो के रूप लिखिए [2013]
उत्तर
(क)
षष्ठी विभक्ति, एकवचन में-

  1. (i) मति,
    (ii) फल,
    (iii) मधु,
    (iv) नदी।

(ख) पञ्चमी विभक्ति, बहुवचन में–

  1. ‘मधु’ अथवा ‘मति’,
  2. ‘फल’ अथवा ‘नदी।

(ग) तृतीया विभक्ति, एकवचन में–

  1. ‘मधु’ अथवा ‘नदी’
  2. ‘मति’ अथवा ‘युष्मद्’।

(घ) सप्तमी विभक्ति, बहुवचन में-

  1. ‘फल’ अथवा मति’
  2. ‘तद् (पुं०) अथवा युष्मद् ।

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(ङ) द्वितीया विभक्ति, एकवचन में–

  1. ‘मति’ अथवा ‘नदी’,
  2. युष्मद् अथवा ‘तद् (स्त्री०)। ।।

(च) चतुर्थी विभक्ति, एकवचन में–

  1. ‘मधु’ अथवा ‘नदी’,
  2. ‘तद्’ (स्त्री०) अथवा ‘युष्मद्’।।

प्रश्न 5
निम्नलिखित शब्दों के रूप लिखिए [2014]
उत्तर
(क)
चतुर्थी विभक्ति, बहुवचन में–

  1. ‘युष्मद् अथवा ‘तद्’ (पुं०),
  2. ‘मति’ अथवा ‘नदी।

(ख) पञ्चमी विभक्ति, बहुवचन में–

  1. ‘मधु’ अथवा ‘मति’,
  2. ‘तद्’ अथवा ‘युष्मद्’।।

(ग) पञ्चमी विभक्ति, एकवचन में–

  1. ‘फल’ अथवा ‘नदी’,
  2. ‘युष्मद् अथवा ‘तद्’।

(घ) सप्तमी विभक्ति, बहुवचन में–

  1. नदी’ अथवा ‘युष्मद्’।

(ङ) सप्तमी विभक्ति, एकवचन में–

  1. ‘मति’ अथवा ‘नदी’,
  2. ‘युष्मद् अथवा ‘तद्’ (पुं०)।

(च) पञ्चमी विभक्ति, बहुवचन में–

  1. ‘नदी’ अथवा ‘मधु’,
  2. ‘तद्’ (स्त्री०) अथवा ‘युष्मद् ।

(छ) षष्ठी विभक्ति, द्विवचन में—

  1. ‘मति’ अथवा ‘मधु’,
  2. युष्मद्।

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प्रश्न 6
निम्नलिखित शब्दों के रूप लिखिए [2015]
उत्तर
(क)
तृतीय विभक्ति, बहुवचन में–

  1. मधु अथवा नदी,
  2. तद् (स्त्रीलिंग) अथवा युष्मद्।।

(ख) षष्ठी विभक्ति, एकवचन में–

  1. मति अथवा नदी,
  2. युष्मद् अथवा तद् (पुंल्लिग)।

(ग) तृतीय विभक्ति, एकवचन में–

  1. नदी अथवा मति,
  2. युष्मद् अथवा तद् (स्त्रीलिंग)।

(घ) द्वितीया विभक्ति, बहुवचन में–

  1. मति अथवा मधु,
  2. युष्मद् अथवा तद् (स्त्रीलिंग)।

(ङ) षष्ठी विभक्ति, द्विवचन में-

  1. युष्मद् अथवा तद् (स्त्रीलिंग),
  2. फल अथवा (UPBoardSolutions.com) नदी।

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(च) तृतीया विभक्ति, एकवचन में–

  1. मति अथवा फल,
  2. युष्मद्।।

(छ) पंचमी विभक्ति, बहुवचन में–

  1. नदी अथवा मधु,
  2.  तद् (पुंल्लिग) अथवा युष्मद्।

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 2 अन्योक्तिविलासः (संस्कृत-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 2 अन्योक्तिविलासः (संस्कृत-खण्ड)

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अवतरणों का ससन्दर्भ हिन्दी अनुवाद

प्रश्न 1.
नितरां नीचोऽस्मीति त्वं खेदं कूप ! कदापि मा कृथाः ।। अत्यन्तसरसहृदयो यतः परेषां गुणग्रहीतासि ।। [2009, 16]
उत्तर
[नितरां = अत्यधिक। नीचोऽस्मीति (नीचः + अस्मि + इति) = मैं नीचा (गहरा) हूँ। खेदं = दु:ख। कदापि (कदा + अपि) = कभी भी। मा कृथाः = मत करो। यतः = क्योंकि। परेषां = दूसरों के। ” गुणग्रहीतासि (गुणग्रहीता + असि) = गुणों को ग्रहण करने वाले हो, रस्सियों को लेने वाले हो।]

सन्दर्भ-प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के संस्कृत-खण्ड’ के अन्योक्तिविलासः’ पाठ से उधृत है।

(विशेष—इस पाठ के अन्य सभी श्लोकों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग-इस श्लोक में कुएँ के माध्यम से सज्जनों (UPBoardSolutions.com) को यह सन्देश दिया गया है कि उन्हें अपने आपको तुच्छ नहीं समझना चाहिए।

अनुवाद–हे कुएँ! (मैं) अत्यन्त नीचा (गहरा) हैं। इस प्रकार कभी भी दु:ख मत करो; क्योंकि (तुम) अत्यन्त सरस हृदय वाले (जलयुक्त) और दूसरों के गुणों (रस्सियों) को ग्रहण करने वाले हो।

भाव–हे गम्भीर पुरुष! मैं अत्यन्त तुच्छ हूँ ऐसा समझकर तुम मन में खेद मत करो; क्योंकि तुम सरस हृदयं वाले और दूसरों के गुणों को ग्रहण करने वाले हो। भाव यह है कि व्यक्ति कितना ही छोटा क्यों न हो यदि वह सरस हृदय और दूसरों के गुणों को ग्रहण करने वाला है तो वह किसी से भी कम नहीं है।

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प्रश्न 2.
नीर-क्षीर-विवेके हंसालस्यं त्वमेव तनुषे चेत् ।
विश्वस्मिन्नधुनान्यः कुलव्रतं पालयिष्यति कः ॥ [2009, 11, 13, 15, 18]
उत्तर
[नीर-क्षीर-विवेके = दूध और पानी को अलग करने में। हंसालस्यं (हंस + आलस्यम्) = हंस आलस्य को (करोगे)। तनुषे = करते हो। चेत् = यदि। विश्वस्मिन्नधुनान्यः (विश्व + अस्मिन् + अधुना + अन्यः) = अब इस विश्व में दूसरा। कुलव्रतं = कुल के व्रत को। पालयिष्यति = पालन करेगा। कः = कौन।]

प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक में हंस के माध्यम से लोगों को अपने कर्तव्यों के प्रति आलस्य न करने के लिए कहा गया है।

अनुवाद-हे हंस! यदि तुम्हीं दूध और पानी को अलग करने में (UPBoardSolutions.com) आलस्य करोगे तो इस संसार में दूसरा कौन अपने कुल की मर्यादा का पालन करेगा ? ।

भाव-हे गुणग्राही पुरुष! यदि तुम ही गुण और दोषों को समझने में आलस्य करोगे और उचितअनुचित का निर्णय नहीं करोगे तो इस संसार में दूसरा कौन अपने कुलव्रत का पालन करेगा ? भाव यह है कि कुलीन वृत्ति के लोगों को अपने कुलव्रत; अर्थात् उचित-अनुचित का विवेक; करने में कभी आलस्य नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 3.
कोकिल ! यापय दिवसान् तावद् विरसान् करीलविटपेषु ।
यावन्मिलदलिमालः कोऽपि रसालः समुल्लसति। [2010, 11, 13]
उत्तर
[ यापय = बिताओ। विरसान् = नीरस। करीलविटपेषु = करील के पेड़ों पर। यावन्मिलदलिमालः (यावत् + मिलद् + अलिमाल:) = जब तक भौंरों की पंक्ति से युक्त। रसालः = आम। समुल्लसति = सुशोभित होता है।

प्रसंग—प्रस्तुत श्लोक में कोयल के माध्यम से विद्वान् पुरुषों को सान्त्वना दी गयी है कि एक-न-एक दिन उनका अच्छा समय अवश्य आएगा। उन्हें धैर्यपूर्वक अपने बुरे दिनों को काट लेना चाहिए।

अनुवाद–हे कोयल! तब तक अपने नीरस दिनों को करील के पेड़ों (UPBoardSolutions.com) पर बिता लो, जब तक भौंरों की पंक्ति से युक्त कोई आम का वृक्ष विकसित नहीं होता है।

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भाव-हे विद्वान् पुरुष! तब तक अपने विपत्ति के दिनों को किसी भी प्रकार बिता लो, जब तक कि तुम्हें किसी गुणग्राही व्यक्ति का आश्रय नहीं मिलता है (अर्थात् तुम्हारे अच्छे दिन अवश्य आएँगे)।

प्रश्न 4.
रे रे चातक ! सावधानमनसा मित्र ! क्षणं श्रूयतम् ।
अम्भोदा बहवो हि सन्ति गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः ॥
केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधां गर्जन्ति केचिद् वृथा।
यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः ॥ [2010, 13, 17]
उत्तर
[सावधानमनसा = सावधान चित्त से। श्रूयताम् = सुनिए। अम्भोदा = बादल। नैतादृशाः (न + एतादृशाः) = ऐसे नहीं हैं। वृष्टिभिरार्द्रयन्ति (वृष्टिभिः + आर्द्रयन्ति) = वर्षा करके गीला कर देते हैं। वृथा = व्यर्थ। यं यं = जिस-जिसको। मा ब्रूहि = मत कहो। दीनं वचः = दीनता भरे वचन।]

प्रसंग–प्रस्तुत श्लोक में चातक के माध्यम से विद्वानों को यह सन्देश दिया गया है कि व्यक्ति को किसी के भी सामने याचक बनकर हाथ नहीं फैलाना चाहिए।

अनुवाद–हे मित्र चातक! तुम क्षणभर सावधान चित्त से मेरी बात सुनो। आकाश में बहुत-से बादल रहते हैं, किन्तु सभी ऐसे (उदार) नहीं हैं। उनमें से कुछ ही पृथ्वी को वर्षा से भिगोते हैं और कुछ व्यर्थ में गरजते हैं। तुम जिस-जिस बादल को (UPBoardSolutions.com) (आकाश में) देखते हो, उस-उसके सामने अपने दीनतापूर्ण वचन मत कहो।

भाव-हे विद्वान् पुरुष! तुम क्षणभर मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनो। संसार में अनेक धनवान् एवं समर्थ हैं, परन्तु सभी उदार नहीं होते। उनमें कुछ तो अधिक उदार होते हैं और कुछ अत्यन्त कृपण। अत: तुम प्रत्येक से आशा करते हुए उसके सामने अपना हाथ मत फैलाओ।

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प्रश्न 5.
न वै ताडनात् तापनाद् वह्निमध्ये,
न वै विक्रयात् क्लिश्यमानोऽहमस्मि ।
सुवर्णस्य मे मुख्यदुःखं तदेकं ।
यतो मां जनाः गुञ्जया तोलयन्ति ॥ [2008, 12, 14, 17]
उत्तर
[ ताडनात् = पीटने से। वह्निमध्ये तापनाद् = आग में तपाने से। विक्रयात् = बेचने से। क्लिश्यमानोऽहमस्मि (क्लिश्यमानः + अहम् + अस्मि) = मैं दु:खी नहीं हूँ। तदेकं (तत् + एकम्) = वह एक है। गुञ्जया = रत्ती से, गुंजाफल से। तोलयन्ति = तौलते हैं। ]

प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक में स्वर्ण के माध्यम से विद्वान् और स्वाभिमानी पुरुष की व्यथा को अभिव्यक्ति दी गयी है।

अनुवाद-मैं (स्वर्ण) ने पीटने से, न आग में तपाने से और न बेचने (UPBoardSolutions.com) के कारण दु:खी हैं। मुझे तो बस एक ही मुख्य दु:ख है कि लोग मुझे रत्ती (चुंघची) से तौलते हैं।

भाव-विद्वान् स्वाभिमानी पुरुष विपत्तियों से नहीं डरता है। उसका अपमान तो नीच के साथ उसकी तुलना करने में होता है। तात्पर्य यह है कि शारीरिक कष्ट उतना दु:ख नहीं देते, जितनी पीड़ा मानसिक कष्ट पहुँचाते हैं।

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प्रश्न 6.
रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातं,
भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पङ्कजालिः ।।
इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे, हा हन्त !
हन्त ! नलिनीं गज उज्जहार ॥ [2012, 14, 16]
उत्तर
[ रात्रिर्गमिष्यति (रात्रिः + गमिष्यति) = रात्रि व्यतीत हो जाएगी। भविष्यति = होगा। सुप्रभातं = सुन्दर प्रभात। भास्वानुदेष्यति (भास्वान् + उदेष्यति) = सूर्य उदित होगा। हसिष्यति = खिलेगा। पङ्कजालिः = कमलों का समूह। इत्थं = इस प्रकार से। विचिन्तयति = सोचते-सोचते। कोशगते = कमल-पुट में बैठे हुए। द्विरेफे = भौरे के। नलिनीं = कमलिनी को। उज्जहार = हरण कर लिया।]

प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक में कमलिनी में बन्द भ्रमर के द्वारा जीवन की अनिश्चितता के विषय में बताया गया है।

अनुवाद—(कमलिनी में बन्द भौंरा सोचता है कि) ‘रात व्यतीत होगी। सुन्दर प्रभात होगा। सूर्य निकलेगा। कमलों का समूह खिलेगा।’ इस प्रकार कमल पुट में बैठे हुए भौरे के ऐसा सोचते-सोचते हाय! बड़ा दु:ख है कि हाथी उसी कमलिनी को (उखाड़कर) ले गया। |

भाव-मनुष्य तो सुख की आशा में अपने दु:ख के दिन काटता (UPBoardSolutions.com) है, परन्तु उसका वह दु:ख समाप्त भी नहीं हो पाता कि उसे मृत्यु ग्रस लेती है। तात्पर्य यह है कि मनुष्य चाहे कितनी भी मधुर कल्पनाएँ क्यों न कर ले, किन्तु उसके ऊपर कुछ भी निर्भर नहीं है। होता वही है जो ईश्वर चाहता है।

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अतिलघु-उतरीय संस्कृत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1
कूपः किमर्थं दुःखम् अनुभवति ? [2011, 13]
उत्तर
कूप: नितरां नीचः अस्ति; अतः सः दु:खम् अनुभवति।

प्रश्न 2
अत्यन्तसरसहृदयो यतः किं ग्रहीतासि ?
उत्तर
अत्यन्तसरसहृदयो यतः परेषां गुणग्रहीतासि।

प्रश्न 3
कविः हंसं किं बोधयति ?
उत्तर
कवि: हंसं नीर-क्षीर-विभागे आलस्यं न कर्तुं बोधयति।

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प्रश्न 4
कविः कोकिलं किं कथयति (बोधयति) ?
उत्तर
कवि: कोकिलं कथयति (बोधयति) यत् वसन्तकालं यावत् (UPBoardSolutions.com) कोऽपि रसालः न समुल्लसति तावत् करीलविटपेषु एव सन्तोषं कर्त्तव्यम्।

प्रश्न 5
कविः चातकं किम् उपदिशति (शिक्षयति) ? [2010, 12]
उत्तर
कविः चातकम् उपदिशति (शिक्षयति) यत् स: सर्वेषां पुरतः दीनं वचः न ब्रूयात्।

प्रश्न 6
सुवर्णस्य किं मुख्यदुःखम् अस्ति ? [2009, 11, 12, 13, 14, 16, 18]
उत्तर
जनाः सुवर्णं गुञ्जया सह तोलयन्ति इति सुवर्णस्य मुख्यदु:खम् अस्ति।

प्रश्न 7
भ्रमरे चिन्तयति गजः किम् अकरोत् ? [2010]
उत्तर
भ्रमरे चिन्तयति गज: नलिनीम् उज्जहार।

प्रश्न 8
कोशगतः भ्रमरः किम् अचिन्तयत् ?
उत्तर
कोशगत: भ्रमरः अचिन्तयत् ‘रात्रि: गमिष्यति, सुप्रभातं (UPBoardSolutions.com) भविष्यति, सूर्यम् उदेष्यति, कमलं विकसिष्यति।।

प्रश्न 9
हंसस्य किं कुलव्रतम् अस्ति ? [2013]
उत्तर
हंसस्य कुलव्रतम् नीर-क्षीर-विवेकम् अस्ति।

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प्रश्न 10
कीदृशाः अम्भोदाः गगने वसन्ति ?
उत्तर
गगने सर्वे नैतादृशाः अम्भोदा: वसन्ति। केचिद् वसुधां वृष्टिभि: आर्द्रयन्ति केचिद् वृथा गर्जन्ति।

प्रश्न 11
गजः काम् उज्जहार ? [2010]
उत्तर
गजः नलिनीम् उज्जहार।

प्रश्न 12
नीर-क्षीर-विषये हंसस्य का विशेषता अस्ति? [2014, 16]
उत्तर
नीर-क्षीर-विषये नीर-क्षीर-विवेकम् एव (UPBoardSolutions.com) हंसस्य विशेषता अस्ति।

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अनुवादक

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों को संस्कृत में अनुवाद कीजिए-
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 2 अन्योक्तिविलासः (संस्कृत-खण्ड) img-3

प्यारात्मक

प्रश्न 1
पाठ में आयी समस्त अन्योक्तियाँ अन्योक्ति अलंकार का उदाहरण हैं। इस अलंकार का लक्षण बताते हुए किसी एक अन्योक्ति को उदाहरणस्वरूप लेकर उसका स्पष्टीकरण
दीजिए।
उत्तर
जब किसी उक्ति में साधर्म्य के कारण कथित वस्तु के माध्यम (UPBoardSolutions.com) से किसी अन्य को कोई उपदेश, शिक्षा अथवा सन्देश दिया जाता है तो उसे अन्योक्ति अलंकार कहते हैं; जैसे–पाँचवें श्लोक में सोने और गुंजा के माध्यम से गुणवान, स्वाभिमानी व्यक्ति की उस मानसिक पीड़ा को व्यक्त किया गया है, जो उसको नीच व्यक्ति के साथ अपनी तुलना किये जाने पर होती है।

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प्रश्न 2
पाठ की अन्योक्तियों में विभिन्न वस्तुएँ प्रतीक रूप में ली गयी हैं, ये वस्तुएँ जिनका प्रतीक हैं, उन्हें लिखिए
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 2 अन्योक्तिविलासः (संस्कृत-खण्ड) img-2
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 2 अन्योक्तिविलासः (संस्कृत-खण्ड) img-1

प्रश्न 3
निम्नलिखित पदों में सन्धि-विच्छेद कीजिए-
अस्मीति, अत्यन्त, नैतादृशाः, कदापि, अधुनान्यः, तदेकम्।।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 2 अन्योक्तिविलासः (संस्कृत-खण्ड) img-4

प्रश्न 4
बादल, कमल एवं हाथी के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर
बादल — जलदः, नीरदः।
कमल — पुण्डरीकः, जलजः।
हाथी — हस्ती, करी।

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi सन्धि

UP Board Solutions for Class 10 Hindi सन्धि

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संस्कृत व्याकरण व अनुवाद

सब्धि

‘सन्धि’ का शाब्दिक अर्थ है-‘मेल’। जब पास-पास आये हुए दो वर्ण आपस में मिलकर एक नया रूप धारण करते हैं तो उस एकीकरण को सन्धि कहते हैं। सन्धि करने पर निकट के दो वर्ण मिलकर एक हो जाते हैं; जैसे-
हिम + आलयः = हिमालयः
सूर्य + उदयः = सूर्योदयः।
सु + आगतम् = स्वागतम् ।

सन्धि तीन प्रकार की होती हैं—

  1. स्वर सन्धि,
  2. व्यंजन सन्धि तथा
  3. विसर्ग सन्धि। ध्यातव्य-पाठ्यक्रम में (UPBoardSolutions.com) केवल स्वर सन्धि के ‘यण’ एवं ‘वृद्धि’ भेद ही निर्धारित हैं।

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स्वर सन्धि

जहाँ दो स्वरों के मेल से परिवर्तन होता है, वहाँ स्वर सन्धि होती है (स्वर + स्वर = स्वर सन्धि)। स्वर सन्धि के भी अनेक भेद हैं, जिनमें प्रमुख भेदों का नियमसहित विवरण नीचे दिया जा रहा है-

1. दीर्घ सन्धि (सूत्र–अकः सवर्णे दीर्घः)
नियम-यदि अ, इ, उ, ऋ, ले (ह्रस्व या दीर्घ) के बाद समान स्वर हो तो दोनों के स्थान पर उस वर्ण का दीर्घ; अर्थात् आ, ई, ऊ, ऋ, ऋ (लू नहीं) हो जाता है;
उदाहरण-
UP Board Solutions for Class 10 Hindi सन्धि img-2

2. गुण सन्धि (सूत्र-आद्गुणः)
नियम–यदि अ या आ के बाद इ, उ, ऋ, लू (ह्रस्व या दीर्घ) आएँ तो उनके स्थान पर क्रमशः ए, ओ, अर् और अल् हो जाते हैं;
उदाहरण-
UP Board Solutions for Class 10 Hindi सन्धि img-3

3. वृद्धि सन्धि (सूत्र-वृद्धिरेचि)
नियम-यदि अ या आ के बाद ए-ऐ तथा ओ-औ आएँ तो उनके स्थान पर क्रमश: ऐ तथा औ अर्थात् वृद्धि हो जाती है;
उदाहरण-
UP Board Solutions for Class 10 Hindi सन्धि img-4
UP Board Solutions for Class 10 Hindi सन्धि img-5

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4. यण् सन्धि (सूत्र–इको यणचि)
नियम–यदि इ, उ, ऋ, लू (ह्रस्व या दीर्घ) के बाद असमान स्वर आते हैं तो उनके स्थान पर क्रमशः य, व, र, ल् हो जाता है;
उदाहरण-
UP Board Solutions for Class 10 Hindi सन्धि img-6
UP Board Solutions for Class 10 Hindi सन्धि img-7
UP Board Solutions for Class 10 Hindi सन्धि img-1

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अभ्यास

प्रश्न 1.
नीचे लिखे पदों का सन्धि-विच्छेद कीजिए और सन्धि का प्रकार भी लिखिए-
उत्तर
(I)
महौत्सुक्यम्, शुद्धौषधम्, गंगौघः, महैश्वर्यम्, समयौचित्यम्, तत्रैव, मतैक्य, तदैव, रामौदार्यम्।
(II) मात्राज्ञाः, प्रत्युत्तरम्, अत्यन्तम्, करोम्यहम्, ग्रामेष्वपि, यद्यपि, गुर्वाज्ञा, (UPBoardSolutions.com) अभ्युदयः, अन्वेषणम्, दध्यानय, स्वागतम्, पित्राकृतिः, प्रत्युपकार, देवेन्द्रः, हरिश्चन्द्रः, वाग्जाल, नमस्कार।

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प्रश्न 2.
नीचे लिखे पदों में सन्धि कीजिए-
उत्तर
(I)
कृष्ण + औत्कण्ठम्, महा + ऐक्यम्, अद्य + एव,
बाला + ओदनम्, अत्र + एव, रामस्य + एकः, अत्र + एव।
(II) लू + आकृतिः , इति + आदिः, वस्त्राणि + अपि, इति + उक्त्वा ,
मधु + अत्र, धातृ + अंशः, जाति + उपकारः, काष्ठ + ओषधिः।

प्रश्न 3.
यण् अथवा वृद्धि सन्धि की परिभाषा लिखिए तथा उदाहरण भी दीजिए। [2012]

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi पर्यायवाची शब्द

UP Board Solutions for Class 10 Hindi पर्यायवाची शब्द

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पर्यायवाची शब्द

पाठ्यक्रम में केवल पर्यायवाची (समानार्थी) शब्द ही निर्धारित हैं।
नवीनतम पाठ्यक्रम के अनुसार प्रस्तुत प्रकरण से कुल 2 अंकों के प्रश्न पूछे जाएँगे।

एक ही अर्थ को प्रकट करने वाले एकाधिक शब्द पर्यायवाची कहलाते हैं। यद्यपि किसी भाषा में कोई दो शब्द समान अर्थ वाले नहीं होते, उनमें सूक्ष्म-सा अन्तर अवश्य होता है तथापि अर्थ के स्तर पर अधिक निकट होने वाले शब्दों को समानार्थी कहा जाता है; उदाहरणार्थ-अश्व, हय और तुरंग-तीनों घोड़े के लिए प्रयुक्त होते हैं। अत: ये पर्यायवाची शब्द हैं।-

हिन्दी भाषा के कुछ शब्दों के पर्यायवाची निम्नवत् हैं-

अमृत [2011, 12, 13, 15]-अमिय, सुधा, पीयूष, अमी।
अतिथि [2014, 18]-अभ्यागत, मेहमान, पाहुना, आगन्तुक।
असुर-दनुज, दानव, दैत्य, राक्षस, निशाचर, खल, रजनीचर।
अग्नि [2011, 12, 13, 15, 16]–हुताशन, वह्नि, अनल, पावक, आग, दहन, ज्वाला।
अनुपम-अद्भुत, अद्वितीय, अनोखा, अपूर्व, अनूठा।
अधर्म-पतित, भ्रष्ट, नीच, निकृष्ट, खल, (UPBoardSolutions.com) पामर, दुर्जन।
अपमान-अनादर, उपेक्षा, तिरस्कार, निरादर।।
अन्धकार—तम, तिमिर, तमिस्र, तमिस, तमर, तारीक।
अश्व [2013, 15]-घोड़ा, वाहन, हय, बाजी, घोटक, सैंधव, तुरंग।
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अहंकार-अभिमान, गर्व, घमण्ड, मद, दर्प।
आकाश [2011, 13, 14, 15, 16, 17] – अन्तरिक्ष, अम्बर, आसमान, व्योम, नभ, गगन।
आँख [2011, 12, 14, 16]-दृग, लोचन, चक्षु, अक्षि, नेत्र, नयन।।
आनन्द–प्रसन्नता, हर्ष, उल्लास, खुशी।
आम [2017]-आम्र, रसाल, सहकार, अमृतफल।
आभूषण--गहना, भूषण, अलंकार, जेवर इनाम-पुरस्कार, पारितोषिक, प्रीतिकर, आनन्दकर।
इच्छा-अभिलाषा, चाह, मनोरथ, कामना, आकांक्षा, लालसा।
इन्द्र [2011, 15, 17, 18]-देवेन्द्र, सुरेन्द्र, सुरपति, पुरन्दर, देवराज, शचीपति।
ईश्वर-ईश, परमात्मा, परमेश्वर, प्रभु, भगवान, जगदीश।
उषा—प्रभात, सवेरा, अरुणोदय, निशान्त।
उदर—पेट, जठर।
उत्पन्न–पैदा, उद्भूत, आविर्भाव, प्रादुर्भूत।
उन्नति–उदय, वृद्धि, उत्कर्ष, उत्थान।
उद्देश्य-अभिप्राय, आशय, लक्ष्य, ध्येय, इष्ट, तात्पर्य।
उद्यान [2012, 13]-उपवन, कुसुमाकर, बगीचा, बाग, वाटिका।
कोयल [2013, 18]-पिक, कोकिल, परभृत, वसन्तदूत।
किरण—-मरीचि, मयूख, कर, रश्मि, अंश।
कामदेव [2011, 13, 15]-मदन, मनसिज, रतिपति, पंचशर, अतनु, कन्दर्प, मन्मथ, मनोज, अनंग।
कमल [2011, 12, 13, 14, 15, 17, 18]-शतदल, पुण्डरीक, (UPBoardSolutions.com) उत्पल, वारिज, कोकनद, सरसिज, पद्म, नलिन, राजीव, सरोज, पंकज, अरविन्द, अम्बुज, जलज, सरोरुह, कंज, नीरज।
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कपड़ा [2016, 18]–वस्त्र, पट, वसन, चीर, अम्बर।।
किनारा-तट, तीर, कगार, कूल।
कृष्ण [2016]–घनश्याम, मोहन, केशव, माधव, वासुदेव, गिरिधर, गोपाल, मुरारि कथा-कहानी, आख्यान, गल्प, आख्यायिका।।
कलह–झगड़ा, विवाद।
कान-कर्ण, श्रोत्र, श्रवण।
कृपा–अनुग्रह, मेहरबानी, दया, अनुकम्पा।
क्रोध-गुस्सा, रोष, कोप, अमर्ष।
खग [2016]-पक्षी, पखेरू, विहंग, द्विज, चिड़िया
गणेश [2011, 12]-गणपति, भालचन्द्र, लम्बोदर, गजानन, विनायक।
गंगा [2015, 16, 17]-भागीरथी, देवनदी, सुरसरि, मंदाकिनी, नदीश्वरी।
गाय [2012, 13, 15, 16]–गौ, सुरभि, धेनु।
गोद-अंक, क्रोड, उत्सर्ग।।
घर (2011, 14, 15, 16)-सदन, धाम, गेह, आयतन, आलय, आगार, भवन, गृह, निकेतन।
चाँदनी—ज्योत्स्ना, कौमुदी, चन्द्रिका, चन्द्रमरीची।
चाँद [2011, 12, 13, 14, 15, 18]–निशाकर, हिमांशु, राकेश, निशिपति, कलानिधि, सुधाधर, चन्द्र, चन्द्रमा, विधु, सोम, शशि, शशांक, मयंक, इन्दु, रजनीश।
जल[2012, 14, 15, 16, 17, 18]-पय, सलिल, पानी, जीवन, तोय, अम्बु, वारि, उदक, नीर।
जंगल [2013, 17]-विपिन, कानन, अरण्य, वन।।
जीभ-जिह्वा, रसना, रसज्ञा, रसा।
जूता-चरणदास, जूत, जोड़ा, पदत्र, पादत्राण।
झण्डा-ध्वज, पताका, निशान, केतु।
तलवार-खड्ग, कृपाण, असि, शमशीर, करवाल।
तरंग-लहर, उर्मि, वीचि, हिलोर।
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तालाब [2011, 13, 14, 15, 17]-सर, सरोवर, तड़ाग, जलाशय, ताल, पोखर।
तारा-नक्षत्र, तारक, ऋण, नखत। तीर [2012]-बाण, शर, सायक, शिलीमुख।
दुष्ट-खल, दुर्जन, पामर, शठ।।
दूध [2017]–पय, दुग्ध, गोरस, क्षीर।
दन्त-दाँत, दर्शन, रद, द्विज, दंश।
दास—भृत्य, नौकर, सेवक, अनुचर, परिचारक।
दिन [2012, 16]-दिवस, वार, वासर, अहन्।
देवता–सुर, अमर, देव, त्रिदिव, गीर्वाण, आदित्य।
दुर्गा – भवानी, देवी, कालिका, (UPBoardSolutions.com) अम्बा, चण्डिका।।
दुःख-पीड़ा, कष्ट, व्यथा, विषाद, यातना, वेदना।
धनुष-धनु, कोदण्ड, चाप, कमान, कार्मुक, शरासन।
धन-द्रव्य, अर्थ, वित्त, सम्पत्ति, लक्ष्मी।
नदी [2011, 12, 15, 16, 18]-सरिता, तरंगिणी, जलमाता, नद, तटिनी।
नरक–दुर्गति, संघात, यमपुर, यमलोक, यमालय।
नेत्र [2016]–नयन, लोचन, चक्षु, आँख, दृग।।
नारी [2011]-स्त्री, कामिनी, महिला, अबला, वनिता, भामिनी, ललना, वामा, कान्ता, रमणी।
रात [2012,16]–निशा, यामिनी, रात्रि, रजनी, शर्वरी।।
नौका-नाव, तरिणी, जलयान, बेड़ा, पतंग, तरी।।
पण्डित [2014]–विद्वान, प्राज्ञ, बुद्धिमान, धीमान, वीर, सुधी।
पक्षी [2013]-खग, नभचर, विहग, विहंगम, पतंग, शकुंत, अण्डज, शकुनि, पखेरू, खेचर।
पत्नी [2015]-वधू, गृहिणी, स्त्री, प्राणप्रिया, अर्धांगिनी, वल्लभा, तिय, भार्या।।
पति-स्वामी, नाथ, वर, कान्त, प्राणनाथ, आर्य, ईश।।
पत्ता [2017]-पात, दल, पत्र, किसलय, पर्ण, पल्लव।
पराग-पुष्परज, कुसुमरज, पुष्पधूलि।
पर्वत [2012, 14, 16, 18]–गिरि, पहाड़, शैल, नग, अचल, महीधर, धराधर, अद्रि, भूधर।
पुत्र-सुत, बेटा, लड़का, पूत, तनय, पुत्र, आत्मज, तनु।
पुत्रीसुला, बेटी, लड़की, नन्दिनी, तनया, तनुजा, (UPBoardSolutions.com) दुहिता, आत्मजा।
पत्थर [2014, 15, 16]-पाषाण, वज्र, पाहन, उपल, शिला।
पुरुष-मनुज, आदमी, मर्द, जन, नर, मनुष्य।
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पृथ्वी [2011, 13, 14, 17, 18]-वसुन्धरा, वसुधा, अवनि, मेदिनी, धरती, धरा, भूमि, मही, वसुमति।।
पुष्प [2012, 13, 15] कुसुम, सुमन, फूल, पुहुप, मंजरी, प्रसून।
प्रकाश-उजाला, ज्योति, प्रभाव, विभा, आलोक।।
प्रसन्नता–हर्ष, खुशी, आह्लाद, मोद।
फल-रसाल, सस्य, पीलांक।
फूल [2016, 17, 18]-पुष्प, सुमन, कुसुम, मंजरी।
बादल [2012, 13, 14, 16, 17]-मेघ, जलद, नीरद, घन, वारिद, पयोद, धराधर, अम्बुद।
बन्दर–कपि, मर्कट, शाखामृग, हरि, वानर।
बिजली [2018]-दामिनी, सौदामिनी, विद्युत, चंचला, चपला, तड़ित।
बाल-अलक, कच, चिकुर, केश, कुन्तल।।
ब्राह्मण-भूसुर, द्विज, भूदेव, विप्र।।
बर्फ़-तुषार, हिम, तुहिन।
भ्रमर [2012, 17]-मधुप, मधुकर, भौंरा, भुंग, द्विरेफ, अलि, षट्पद।
भयानक–डरावना, भयजनक, विकट, गम्भीर
भिक्षा–भीख, याचना, माँगना, खैरात।
भूख-क्षुधा, बुभुक्षा, अन्नलिप्सा, आहारेच्छा।
भाई (2015)-भ्राता, सहोदर, बंधु, प्रियजन।
मछली-अण्डज, मीन, मत्स्य।
मदिरा-शराब, सुरा, मद्य, (UPBoardSolutions.com) वारुणी।
माता (2013, 14, 15)-जननी, माँ, मात, मैया, अम्बा।
मित्र-सखा, सहचर, साथी, मीत, दोस्त।
मुख-मुँह, मुखड़ा, आनन, वदन।
मृत्यु-निधन, देहान्त, अन्त, मौत।।
मनुष्य-मनुज, नर, आदमी, मानव, पुरुष।
मोर [2016]-मयूर, शिखी, शिखण्डी, कलापी।
मूर्ख-अज्ञ, अबोध, गॅवार, मूढ़।।
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मल्लाह–नाविक, माँझी, खेवट, कर्णधार, केवट।
महादेव-शिव, शम्भू, शंकर, महेश, त्रिलोचन, त्रिनेत्र, पशुपति, उमापति, कैलाशपति, रूद्र, भूतनाथ, नीलकण्ठ, पिनाकी।
यत्न-उद्यम, प्रयास, उद्योग, प्रयत्न, पुरुषार्थ।
यमुना [2014]-यम की बहन, नदी, कालिन्दी, दुर्गा।
यौवन-जवानी, युवावस्था, जीवन, शिरोमणि, तरुणाई।
युवक-जवान, युवा, तरुण।।
युद्ध-रण, संग्राम, लड़ाई, समर, संगर।
रात्रि [2012, 15, 16]–यामिनी, विभावरी, निशि, क्षपा, रात, रजनी, निशा।।
राजा-नरेश, भूपति, भूपाल, नरेन्द्र, महीपाल. नृप, नृपति, महीप।।
लक्ष्मी-इन्दिरा, कमला, रमा, हरिप्रिया, श्री।
लंहू-रक्त, खून, शोणित, रुधिर।।
लता [2016]-बेल, शोरा, वल्ली, आरोही, द्राक्षा।
वायु 2011, 12, 13, 15]-अनिल, वात, मारुत, पवमान, समीरण, हवा, पवन, प्रकम्पन, समीर।
वृक्ष [2017]-रुख, विटप, द्रुम, पादप, तरु, पेड़।
वज्र [2014, 18]-अश्मि, पवि, कुलिश।
वन [2011, 12, 13]-विपिन, जंगल, कानन, अटवी, अरण्य।
वर्ष-अब्द, साल, बरस, संवत्।।
वसन [2017]-वस्त्र, आवरण, चीर।
वानर [2018]–बन्दर, कपि, हरि, मर्कट, शाखामृग।
वर्षा (2016)–बारिश, बरसात, बौछारे, (UPBoardSolutions.com) वृष्टि।
विष्णु [2016, 18]-नारायण, जनदिन, चक्रपाणि, माधव, केशव।
व्यर्थ-निरर्थक, अर्थहीन, फ़िजूल।
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शत्रु-रिपु, दुश्मन, विपक्षी, अरि, वैरी, अराति।
शरीर-देह, काया, कलेवर, तन, वपु।।
शहद [2014]–मधु, अमृत, सुधा, घी।
शोभा–छवि, दीप्ति, कान्ति, सुषमा, आभा, छटा।
शिव [2017]–महादेव, शंकर, शम्भू, त्रिलोचन, महेश।
सेना –अनी, दल, चमू, कटेक, फौज।
सोना [2014]–हेम, हिरण्य, कंचन, स्वर्ण, कनक, कुन्दन।।
सूरज [2012, 13, 14, 16, 17, 18]–भानु, भास्कर, सूर्य, दिनेश, दिनकर, आदित्य, प्रभाकर, रवि, दिवाकर।
सूर [2017]-देवता, वसु, आदित्य।।
समुद्र [2012, 13, 14]-सागर, सिन्धु, रत्नाकर, उदधि, जलधि, जलनिधि, पारावार, अम्बुधि।
सिंह-हरि, शेर, केसरी, शार्दूल, व्याघ्र, केहरि, मृगेन्द्र, मृगराज, पंचानन।
स्वर्ग-द्युलोक, बैकुण्ठ, सुरलोक, देवलोक।
सवेरा–सूर्योदय, अरुणोदय, प्रातः, उषा, भोर।
साँप [2012, 14, 17]–नाग, फणि, व्याल, सर्प, अहि, भुजंग, पन्नग, विषधर।
संसार [2013]–विश्व, जगत, जग, दुनिया, (UPBoardSolutions.com) भव, भुवन।
सुगन्धि–सौरभ, सुरभि, महक, खुशबू।
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सरस्वती-शारदा, भारती, गिरा, वाणी।
सन्तान-सन्तति, अपत्य, प्रजा, प्रसूति, औलाद।
हंस [2014]–मराल, कलहंस, मानसौकस।
हाथ [2016]-हस्त, कर, पाणिः ।
हिरण [2014, 18]–कुरंग, सारंग, मृग।
हाथी [2014, 17, 18]-दन्ती, कुंजर, द्विरद, द्विप, मतंग, हस्ती, गज, करी।
हनुमान-अंजनीनन्दन, कपीश्वर, पवनसुत, वज्रांगी, महावीर, बजरंगबली।

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