UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 1 कर्मवीर भरत (खण्डकाव्य)

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 1 कर्मवीर भरत (खण्डकाव्य)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 1 कर्मवीर भरत (खण्डकाव्य).

प्रश्न 1
‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए। [2010, 12, 14, 17]
या
‘कर्मवीर भरत’ के कथानक का सारांश अथवा कथासार लिखिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16]
या
‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य में वर्णित प्रमुख घटनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
या
‘कर्मवीर भरत’ की किसी प्रमुख घटना का उल्लेख कीजिए। [2017]
उत्तर
कर्मवीर भरत खण्डकाव्य की कथावस्तु अत्यन्त रोचक तथा प्रेरणादायक है। इसका कथानक चिर-परिचित रामकाव्य का एक लघु, किन्तु महत्त्वपूर्ण अंश है। इसमें भरत को मानव-सेवा की साकार मूर्ति के रूप में प्रस्तुत कर कैकेयी के युग-युग से अभिशप्त रूप को उज्ज्वल मानवीय आदर्शों से सँवारा गया है। इसकी प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं

(1) आगमन-इसमें अयोध्या से दूत के ननिहाल पहुँचने से लेकर भरत के अयोध्या आने तक का वृत्तान्त वर्णित है और अयोध्या में व्याप्त शोकपूर्ण वातावरण के साथ-साथ तत्कालीन संस्कृति पर भी प्रकाश डाला गया है।

(2) राजभवन–इस सर्ग में भरत-कैकेयी मिलन के साथ-साथ (UPBoardSolutions.com) राम-वन-गमन की संक्षिप्त कथा के अतिरिक्त यह अभिव्यक्त किया गया है कि कैकेयी ने राम को जन-सेवा तथा व्यक्तित्व के विकास के लिए वन भेजा था किसी लोभ या कठोरता के कारण नहीं। सर्ग के अन्त में अपनी नीति-कुशल माता की बुद्धि भ्रष्ट हुई जानकर मन में शोक का भार लिए भरत, शत्रुघ्न के साथ कौशल्या माता से मिलने के लिए चले जाते हैं।

(3) कौशल्या-सुमित्रा मिलन-इस सर्ग में भरत माता कौशल्या और सुमित्रा से मिलते हैं और दोनों माताएँ उनकी आत्म-ग्लानि को दूर कर उन्हें सच्चे जीवन-पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। सर्ग के अन्त में सुमित्रा भरत से कहती है कि “तुम अपने मन के क्षोभ का त्याग कर दो और हम सबके पथ-प्रदर्शक बनकर अपने कर्तव्य का निर्वाह करो।

UP Board Solutions

(4) आदर्श वरण—इस सर्ग में गुरु वशिष्ठ भरत को संसार की नश्वरता के सम्बन्ध में बताते हुए कहते हैं कि इस जीवन के रंगमंच पर हम सभी अभिनय करते हैं। ईश्वर ही सूत्रधार तथा संचालक होता है। बाद में भरत पिता के भौतिक शरीर का दाह-संस्कार करके श्रद्धापूर्वक दान करते हैं। गुरु वशिष्ठ की उपस्थिति में एक सभा में सुमन्त भरत के राजतिलक का प्रस्ताव रखते हैं। अयोध्या के राजसिंहासन पर आरूढ़ होने के स्थान पर भरत राम को वन से वापस ले आने का संकल्प लेकर वन की ओर प्रस्थान करते

(5) वन-गमन–इस सर्ग में भरत के वन-प्रस्थान का वर्णन है। इसमें निषादराज की रामभक्ति एवं सेवा-भावना का भी सुन्दर वर्णन हुआ है। निषादराज द्वारा सबको नदी के पार ले जाने के बाद भरत प्रयाग में भरद्वाज ऋषि के आश्रम में पहुँचते हैं। रार्म’ के चित्रकूट (UPBoardSolutions.com) में निवास का समाचार जानकर भरत और शत्रुघ्न पैदल ही वहाँ के लिए प्रस्थान कर देते हैं।

(6) राम-भरत-मिलन–इस सर्ग में राम से भरत का मिलन होता है। भरत और कैकेयी राम से अयोध्या लौटने का आग्रह करते हैं। राम पिता के वचनों का पालन करने के लिए वन में ही रहना चाहते हैं, तब भरत उनकी चरण पादुका लेकर अयोध्या लौटते हैं, स्वयं नन्दिग्राम में कुटी बनाकर रहते हैं तथा शत्रुघ्न की सहायता से राम के नाम पर अयोध्या का शासन चलाते हैं।

प्रश्न 2
‘कर्मवीर भरत’ खण्डकोष के प्रथम (आगमन) सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए।।[2010]
या
कर्मवीर भरत के आधार पर संक्षेप में बताइए कि भरत के अयोध्या लौटने पर उन्हें अयोध्या | किस रूप में दिखाई दी ? [2009]
उत्तर
‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य का प्रारम्भ मंगलाचरण से होता है। चौदह वर्ष के लिए राम के वन-गमन और दशरथ की मृत्यु के पश्चात् दूत द्वारा भरत को ननिहाल से बुलाये जाने की घटना से कथा का आरम्भ होता है।

दूतों का ननिहाल पहुँचना एवं भरत की शंका–गुरु वशिष्ठ के आदेश से अयोध्या के दूत कैकेयराज के यहाँ पहुँचकर, भरत को गुरु के द्वारा शीघ्र बुलाये जाने का सन्देश देते हैं। दूतों के मुख से शीघ्र बुलाये जाने का गुरु-आदेश सुनकर भरत का मन व्याकुल हो जाता है। उनके मन में बार-बार यह शंका उठती है कि ऐसी क्या आवश्यकता आ पड़ी जो राम-लक्ष्मण के रहते मुझे बुलाया जा रहा है ? भरत दूतों से पुरवासियों, गुरु वशिष्ठ, पिता (UPBoardSolutions.com) दशरथ, माता कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा, भाई राम और लक्ष्मण की कुशलक्षेम पूछते हैं। दूतों ने दशरथ-मृत्यु और राम के वन-गमन की बात को छिपाकर सभी का कुशल समाचार सुनाया।

भरत का प्रस्थान–शंकालु और चिन्तित भरत ने अपने मामा से गुरु का आदेश बताकर उनकी अनुमति से अयोध्या-प्रस्थान की तैयारी की। वे पर्वत, नदी और वनों को पार करते हुए सात दिन में अयोध्या के सालवन में पहुँचे। मार्ग में भरत को प्रकृति भी उदास दिखाई देती है। उन्हें उषाकाल में भी सूनापन, हरियाली में भी सूखापन तथा आलोक में भी तम दिखाई दे रहा था।

अयोध्या-प्रवेश नगर में प्रवेश कर अयोध्या के सूनेपन को देखकर भरत का मन व्याकुल हो गया। उन्हें भवन वन्दनवारों से रहित, गलियाँ सूनी और घरों के आँगन बिना बुहारे हुए दिखाई दिये। उन्होंने गायों को व्याकुलता से सँभाते और वायु को साँय-साँय करते हुए कुछ अजीब-सा अनुभव किया।

अयोध्या का सूनापन-भरत ने अयोध्या को वैभवहीन, शंख-ध्वनिविहीन, यज्ञ को धूम से रहित देखा। अयोध्या पर गिद्धों को मँडराते एवं मार्गों को आवागमन से रहित, बाजारों को अस्त-व्यस्त, देवमन्दिरों के द्वार बन्द और भवनों को पताकारहित देखकर भरत के मन में अत्यधिक चिन्ता हुई। उनके बायें अंग फड़कने लगे और हृदय में शंका छा गयी। उदास पुरवासी मौन संकेतों से बातें कर रहे थे। उन्होंने राजद्वार पर द्वारपालों को मौन ठगे-से खड़ा देखा।

UP Board Solutions

राजगृह की दशा-राजगृह में बन्दी-सूत यशोगान नहीं कर रहे थे। उन्हें कोई मन्त्री नहीं दिखाई दिया। मंगल गीत न गाये जाने से राजभवन सोया-सोया-सा लग रहा था। उन्हें पिता दशरथ का कक्ष भी सूना दिखाई दिया। अब उन्हें किसी अनिष्ट की आशंका (UPBoardSolutions.com) सताने लगी। चिन्तामग्न भरत, कैकेयी के कक्ष की ओर चले गये।

प्रश्न 3
‘कर्मवीर भरत’ के द्वितीय सर्ग अथवा राजभवन सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए। [2010, 11, 12, 13]
या
‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के दूसरे सर्ग में कैकेयी द्वारा राम को वन भेजने के कौन-से कारण प्रस्तुत किये गये हैं ? उन्हें स्पष्ट कीजिए। [2010, 12]
या
‘कर्मवीर भरत खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग ‘राजभवन में वर्णित घटनाओं पर प्रकाश डालिए। [2018]
उत्तर
कर्मवीर भरत के राजभवन’ नामक द्वितीय सर्ग में कैकेयी द्वारा राम को वन भेजने का कारण एवं भरत की आत्मग्लानि व्यक्त हुई है। कैकेयी ने भरत को देखकर प्रेम से गले लगाया और अपने मातापिता का कुशलक्षेम पूछा। भरत उनके पितृ-गृह का कुशलक्षेम बताकर उनसे अयोध्यापुरी की विकलती को कारण पूछते हैं। |

दशरथ की मृत्यु का कारण-कैकेयी ने भरत को बताया कि राम अयोध्या में रहकर युगों से अभिशप्त व अभावों से पूर्ण वनवासियों की रक्षा न कर सकेंगे; अत: तुम्हारे पिता से तुम्हारे लिए अयोध्या को राज्य माँगकर और राम को वन में भेजकर मैंने अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ का परिचय दिया था, लेकिन तुम्हारे पिता ने तुमको अयोध्या का राज्य देने की मेरी पहली बात तो मान ली, परन्तु राम-वन-गमन की दूसरी माँग सुनकर प्राण-त्याग दिये।

राम को वन भेजने के कारण-कैकेयी कहती है कि यद्यपि लोग मुझे नीच, झूमर और स्वार्थी कहकर कलंकित करेंगे, परन्तु मैंने जन-जीवन को सुखमय बनाने के लिए ही राम को धम भेजने का वर माँगा था। राम में पौरुष और प्रतिभा है तथा मानवमात्र का (UPBoardSolutions.com) कल्याण करने की उदात्त भावना है। उन्हें सिंहासन का मोह नहीं है, यही सोचकर मैंने असभ्य, अशिक्षित एवं अभावग्रस्त वनवासियों के कल्याण हेतु राम को चौदह वर्ष के लिए वन भेजने का वर माँगा था। यह सुनकर तुम्हारे सत्यनिष्ठ पिता ने अपने प्राण त्याग दिये। जब मैंने पाषाण-हृदय बनकर, ममता को त्यागकर राम को उनके वनवास की बात बतायी तो वे प्रसन्न होकर, वल्कल पहनकर सीता और लक्ष्मण के साथ तत्काल वन को चल दिये।

UP Board Solutions

भरतं को शोक-अपनी माता के मुख से यह करुण कहानी सुनकर भरत स्तब्ध रह गये और उनके नेत्रों से अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी। वे ‘हाय पिता! हाय राम!’ कहकर भूमि पर गिर पड़े तथा खिन्न होकर अपने आभूषण उतार फेंके। अपने हाथों से घर में आग लगाने वाली अपनी माता की नीति उन्हें अच्छी न लगी। तीनों लोकों में उन्हें ऐसी रानी नहीं दिखाई पड़ी, जिसने एक साथ अपने पति को मृत्युलोक और पुत्र को वन भेज दिया हो। भरत ने कैकेयी से कहा-“तुम्हारे द्वारा मेरे लिए राज्य माँगने के पीछे सभी लोग उसे मेरी ही इच्छा बताएँगे। हमारे वंश में बड़े पुत्र का राजतिलक होने की परम्परा है। यदि तुम चारों पुत्रों को वन में भेज देतीं तो तुम्हारा त्याग अमर हो जाता। तुम भरत को राज्य दिलाकर और राम को वन में भिजवाकर अपने कार्य-कौशल व बुद्धिमत्ता की दुहाई दे रही हो।”

राम में अलौकिक शक्ति-अन्त में कैकेयी ने समझाया कि तुम राम की असीम शक्ति पर विचार न करके मात्र वन की भयंकरता से डर रहे हो। उन्होंने वीर क्षत्राणी का पय-पान किया है; विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा के लिए सुबाहु और ताड़का जैसे राक्षसों का (UPBoardSolutions.com) वध किया है तथा जनकपुर में रावण के गर्व को चूर कर और सीता का वरण करके अपनी शक्ति की महिमा स्थापित की है। अत: तुम शोक न करके जनहित के कार्य में लग जाओ।

अपनी नीति-कुशल माता की बुद्धि भ्रष्ट हुई जान मन में शोक का भार लिये भरत शत्रुघ्न के साथ कौशल्या माता से मिलने के लिए चले जाते हैं।

प्रश्न 4
‘कर्मवीर भरत’ के ‘कौशल्या-सुमित्रा-मिलन’ शीर्षक तृतीय सर्ग का सारांश लिखिए। [2011, 12, 13, 15]
या
‘कर्मवीर भरत’ के आधार पर भरत के कौशल्या तथा सुमित्रा से हुए वार्तालाप का वर्णन संक्षेप में कीजिए। [2009]
उत्तर
भरत और कौशल्या-मिलन–कौशल्या के भवन में जाकर दोनों भाइयों ने माता के चरणों की वन्दना की और उनसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद प्राप्त किया। उस समय माता कौशल्या के केश बिखरे हुए, वस्त्र मलिन, तन आभूषणरहित और आँखों में आँसू भरे हुए थे। उन्होंने दोनों पुत्रों को गले लगाकर बिलख-बिलखकर रोते हुए, मन के विषाद को कम किया।

भरत ने माता कौशल्या से कहा कि मैं अपने पापों का प्रायश्चित्त करना चाहता हूँ। यदि पिता जीवित रहते तो मेरे सौ-सौ अपराध क्षमा कर देते। मैं अपनी माता की नीति नहीं समझ पाया। अयोध्या का राज्य मेरे । लिए शूल बना हुआ है। यह कभी नहीं हो सकता कि राम वन में रहें और भरत राज्य-सुख भोगता रहे। यह कहकर भरत ने माँ कौशल्या के चरण पकड़ लिये।।

माता कौशल्या ने भरत को गले लगाकर कहा कि इसमें न तो तुम्हारा (UPBoardSolutions.com) कोई दोष है और न ही कैकेयी का। कैकेयी तो हमेशा राम का हित चाहती थी। राम भी उसका ही सर्वाधिक आदर करते थे। उसने भी अपना हृदय कठोर बनाकर ही जीवन-दीक्षा के लिए राम को वन भेजा है। अतः तुम अपने मन में किसी प्रकार का हीन भाव न लाओ।,

UP Board Solutions

कौशल्या ने पुन: कहा कि यह तो सभी जानते हैं कि भरत को राज्य का लोभ नहीं है। तुम अपने मन की शंका और ग्लानि को दूर कर आत्मविश्वासपूर्वक अपने कर्तव्य का पालन करो। जब तक सरयू की धारा है, तब तक तुम्हारा सुयश रहेगा। इस प्रकार माता कौशल्या ने अपने स्नेह-सिक्त वचनों से भरत का उत्साह बढ़ाया तथा उन्हें समझाया कि अन्त:करण को शुद्ध रखने वाले साहसी पुरुष कभी परनिन्दा पर ध्यान नहीं देते। जो निन्दा व अपयश के भयजाल में फंसे रहते हैं वे जीवन में कभी महान् कार्य नहीं कर सकते।

भरत और सुमित्रा-मिलन–राजभवन में भरत के आने का समाचार सुनकर सुमित्रा उनसे मिलने दौड़ीं और भाव-विह्वल होकर उन्होंने पुत्रों को गले से लगाया। भरत ने सुमित्रा से कहा-“हे माँ! तुमने श्रीराम को वन जाने से क्यों नहीं रोका? मेरी माता ने मुझे राज्य का लोभी जानकर मेरे सिर पर राजमुकुट रख दिया और राम के सिर पर जटा-मुकुट। यही शूल हृदय में चुभ रहा है। काश! वह मुझे वन भेज देतीं तो आज राम अवध का शासन करते।’

भरत की बात सुनकर सुमित्रा ने कहा- “बेटा, तुम्हारी शिक्षा अयोध्या तक सीमित रही है और राम ने पहले भी विश्वामित्र के साथ रहकर राक्षसों का वध किया है। वे वन के कष्टों से भली-भाँति परिचित हैं। मुझे तुम्हारा मलिन मुख देखकर रोना आता है। मैंने वैधव्य तो सहन कर लिया, परन्तु तुम्हें दुःखी देखकर मैं जीवित नहीं रह सकती। नववधू उर्मिला, जिसने हँसते-हँसते पति लक्ष्मण को वन भेजा है, वह भी अपने अन्तर के दु:ख को प्रकट (UPBoardSolutions.com) नहीं होने देती, लेकिन तुम्हें विकल देखकर वह भी धैर्य धारण नहीं कर सकेगी। उधर वधू माण्डवी भी तुम्हें दु:खी देखकर अपने आँसू नहीं रोक पाएगी। अतः तुम अपने मन का क्षोभ त्यागकर हमारे पथ-प्रदर्शक बनकर अपने कर्तव्य को निभाओ।” इस प्रकार सुमित्रा ने दोनों पुत्रों को प्रेम से गले लगाकर गुरु के पास भेज दिया।

प्रश्न 5
‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के चतुर्थ सर्ग ‘आदर्श वरण’ का सारांश लिखिए। [2011, 12]
या
“चतुर्थ सर्ग ‘आदर्श वरण’ में सच्चे अर्थों में भरत की कर्मवीरता व्यक्त हुई है। उदाहरण सहित इस कथन की सत्यता की पुष्टि कीजिए। [2010]
या
‘कर्मवीर भरत’ के चतुर्थ सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए। [2017]
उत्तर
गुरु का समझाना–भरत और शत्रुघ्न गुरु के पास पहुँचे और उनके चरणों में नमन कर संकोच के कारण कुछ भी कह न सके। गुरु ने आशीर्वाद देकर भरत को उनके वर्तमान कर्तव्य का निर्वाह करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि दशरथ सत्य का पालन करने के कारण मरकर भी अमर हो गये; अतः अब तुम चिन्ता को छोड़कर पिता के शरीर का विधिवत् संस्कार करो। पिता के निर्जीव शरीर को देखकर भरत मूर्च्छित हो गये। चेतना लौटने पर वशिष्ठ ने (UPBoardSolutions.com) भरत का हाथ पकड़कर उन्हें संसार की नश्वरता समझायी और कहा कि “नाश और विकास, सुख और दुःख, मृत्यु और जीवन साथ-साथ चलते रहते हैं। इस जीवन के रंगमंच पर हम सभी अभिनय करते हैं। केवल ईश्वर ही सूत्रधार तथा संचालक होता है।”

UP Board Solutions

दशरथ का अन्तिम संस्कार-दशरथ के मृत शरीर को एक पालकी में रखकर सरयू-तट पर लाया गया। पुरवासी विकल होकर पीछे-पीछे चल रहे थे। भरत ने पिता के भौतिक शरीर का दाह-संस्कार किया और श्रद्धापूर्वक स्वर्ण-मणियों का दान दिया।

भरत के अभिषेक का प्रस्ताव तथा भरत का राम को लौटा लाने का संकल्प-स्नानादि से शुद्ध होकर गुरु वशिष्ठ की उपस्थिति में एक सभा बुलायी गयी। सुमन्त ने भरत के राज्याभिषेक को शास्त्रसम्मत, लोकसम्मत और पिता की आज्ञा बताते हुए उनके राजतिलक का प्रस्ताव रखा। सुमन्त की बात सुनकर भरत ने विनय सहित कहा कि रघुकुल की युगों से रीति रही है कि बड़ा पुत्र ही शासन का अधिकारी होता है। अतः परम्परा-निर्वाह के लिए त्यागपूर्वक सिद्धान्तों की रक्षा करना ही उचित है। राम संन्यासी होकर वन में चले गये, जिसके कारण पिता स्वर्ग सिधार गये। फिर वही राज्य मैं ग्रहण करू, यह कैसे सम्भव है? मैं वन में । जाकर, राम के चरण पकड़कर उनको लौटाकर लाऊँगा और माँ के द्वारा लगाये गये कलंक को मिटाऊँगा

वन में राम रहें, मैं बैर्दै सिंहासन पर,
शोभा देता नहीं मुझे आज्ञा दें गुरुवर ।
वन में जाकर चरण पकड़कर उन्हें मनाऊँ,
जैसा भी हो सके राम को लौटा लाऊँ ॥

भरत के वचन सुनकर दु:ख के समुद्र में डूबते हुए सबको मानो जीने का सहारा मिल गया। भरत के दृढ़ संकल्प को सुनकर शत्रुघ्न, कैकेयी सहित सभी माताओं, पुरवासियों और वशिष्ठ ने राम को अयोध्या लौटाने के लिए वन की ओर प्रस्थान किया। कुछ दूर तक तो भरत पैदल (UPBoardSolutions.com) ही चले किन्तु माता कौशल्या के कहने पर रथ पर बैठ गये। दिन-भर चलने के पश्चात् सभी ने तमसा नदी के तट पर विश्राम किया और प्रात: गुरु वशिष्ठ की आज्ञा लेकर नदी को पार करके आगे बढ़े।

UP Board Solutions

प्रश्न 6
‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के ‘वन-गमन’ शीर्षक पंचम सर्ग का सारांश लिखिए। [2016, 18]
उत्तर
निषादराज की शंका-श्रृंगवेरपुर में गंगा के तट पर भरत के पहुँचने का समाचार पाकर और रथ पर इक्ष्वाकु वंश की पताका लहराती देखकर निषादराज के मन में शंका उत्पन्न हो गयी कि कहीं राम को वन में अकेले जानकर राजमद में चूर भरत सेना सहित वन में विघ्न डालने के लिए तो नहीं आ रहे हैं। उसने सभी निषादों के साथ मिलकर निश्चय किया कि हम किसी को भी गंगा पार न जाने देंगे। उसी समय एक वृद्ध निषाद ने कहा कि पहले उनके आने का रहस्य जान लेना चाहिए, क्योंकि गुरु वशिष्ठ और माता कौशल्या भी उनके साथ हैं।

भरत का सम्मान–वृद्ध की बात सुनकर बिना विचारे अपने वीरभाव दर्शाने पर लज्जित निषादराज ” ने भरत के सत्कार हेतु कन्द-मूल-फल मँगाये। गुरु वशिष्ठ की बातों से तो निषादराज गद्गद हो गये तथा भरत के समीप पहुँचने व उनके अपार स्नेह से अत्यधिक पुलकित हो गये। (UPBoardSolutions.com) उनका यथोचित सत्कार करके नावों द्वारा सबको पार ले गये। यहाँ भरत भरद्वाज ऋषि के आश्रम में प्रयाग पहुँचे। वहाँ से चित्रकूट में राम के निवास का समाचार प्राप्त कर तथा चित्रकूट को समीप जानकर भरत और शत्रुघ्न दोनों भाई पैदल ही आगे की ओर चल दिये।

प्रश्न 7
‘कर्मवीर भरत’ के षष्ठ सर्ग ‘राम-भरत-मिलन’ का सारांश लिखिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 18]
या
‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के षष्ठ सर्ग (अन्तिम सर्ग) की कथा लिखिए।
उत्तर
सेना सहित भरत को सहसा वन में आते देखकर एक भील ने रामचन्द्र जी को भरत-आगमन का समाचार सुनाया। लक्ष्मण को मन कुछ शंकित हुआ, परन्तु भरत का नाम सुनकर पुलकित होकर राम चरण-पादुका के बिना ही कुटी के बाहर आ गये। उन्होंने धूल-धूसरित (UPBoardSolutions.com) भरत को अपने चरणों में नत देखा तो भरत को स्नेह सहित उठाकर गले से लगा लिया। शत्रुघ्न ने राम और लक्ष्मण के चरण स्पर्श किये। इसके बाद दोनों भाइयों ने सीता के चरणों में शीश झुकाकर ‘सदा सुखी जीवन जीने का आशीर्वाद प्राप्त किया।

गुरु का आगमन सुनकर राम उनके रथ के पास गये और आदर सहित उन्हें आश्रम में ले आये। माताओं के चरण छूकर और सुमन्त से भेंट करके राम अति हर्षित हुए। गुरु वशिष्ठ से पिता की मृत्यु की बात सुनकर व्याकुल होकर ‘हाय पिता’ कहकर पृथ्वी पर गिर पड़े तथा गुरु के समझाने पर तर्पणादि कार्य करके निवृत्त हुए।

UP Board Solutions

चित्रकूट में राम के प्रेम में विभोर हुए सभी के कई दिन बीत गये। चित्रकूट के वन-उपवनों की प्राकृतिक सुषमा ने उनका मन मोह लिया था। भरत संकोचवश कुछ कह नहीं पा रहे थे। तब वशिष्ठ ने कहा कि हमको यहाँ आये बहुत दिन बीत गये हैं, अब हमें लौटना चाहिए। तब अवसर पाकर भरत ने कहा कि मैं राम को छोड़कर अयोध्या नहीं जाऊँगा। मैं उनका प्रतिनिधि बनकर वन में निवास करूंगा। हम सबकी विनती स्वीकार कर राम अयोध्या जाएँ, सिंहासन सूना पड़ा है। तत्पश्चात् कैकेयी ने राम से कहा-“पुत्र! मैं इस दु:खमय नाटक की सूत्रधारिणी हूँ। तुम भरत के कहे अनुसार राज्य प्राप्त करके मेरे ऊपर लगे कलंक को (UPBoardSolutions.com) मिटाओ।” गुरु ने भी कैकेयी का समर्थन किया। कैकेयी के वचन सुनकरे राम ने कहा-“माता! इसमें तुम्हारा दोष नहीं है। काल की गति ही वक्र है। मैं विवश हूँ, लौटकर नहीं जा सकता। भरत को राज्य का मोह नहीं है, फिर भी मैं अयोध्या जाकर राज्य नहीं कर सकता। भरत धर्मनिष्ठ होकर भी प्रेम-सिन्धु में डूब रहा है। यदि वह कहे तो मैं पिता की आज्ञा का उल्लंघन कर अयश के सागर में डूब सकता हूँ, परन्तु कुल के आदर्शों को तो निबाहना ही चाहिए।’ |

भरत ने कहा–“हे प्रभु! मैं नन्दिग्राम में कुटी बनाकर सिंहासन पर आपकी चरण-पादुकाएँ रखकर चौदह वर्ष तक वनवासी की तरह निवास करूंगा और आपका प्रतिनिधि बनकर जनसेवा करता रहूंगा। मैं आपकी पादुकाएँ लिये बिना नहीं जा सकता। आप मुझे चौदह वर्ष की अवधि बीतने पर लौट आने का आश्वासन दीजिए।’ यह कहकर भरत राम के चरणों पर गिर पड़े।

‘राम ने अपनी चरण-पादुकाएँ दे दीं और सबको प्रेम सहित विदा किया। भरत ने अयोध्या न जाकर नन्दिग्राम में कुटी बनायी और सिंहासन पर राम की चरण-पादुकाएँ रख दीं। शत्रुघ्न भरत की आज्ञा से राज्य का कार्य चलाने लगे। इस प्रकार भरत ने अपने चरित्र का आदर्श स्वरूप प्रस्तुत किया।

प्रश्न 8
‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के आधार पर उसके नायक (प्रधान पात्र) भरत का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2009, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
या
‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए। [2009, 14]
या
‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के आधार पर भरत के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए। [2009, 11, 13, 16, 18]
या
‘कर्मवीर भरत’ के आधार पर भरत के चरित्र की किन्हीं चार विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
या
‘कर्मवीर भरत’ में भरत को कर्मवीर क्यों कहा गया है ? स्पष्ट कीजिए। [2009, 10, 11, 12, 14]
या
“भरत तप, त्याग और शील पर दृढ़ रहने वाला उदात्त चरित्र है।” ‘कर्मवीर भरत खण्डकाव्य के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए। [2009]
या
भरत को कर्मवीर की उपाधि क्यों दी गयी ? स्पष्ट कीजिए। [2015]
उत्तर
श्री लक्ष्मीशंकर मिश्र ‘निशंक’ द्वारा रचित ‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य का नायक (UPBoardSolutions.com) भरत है। काव्य में आदि से अन्त तक उनके कार्य एवं चरित्र का विकास हुआ है। उनके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

(1) आज्ञाकारी-भरत अपने मामा के यहाँ गये हुए थे। दूतों के द्वारा अयोध्या लौट आने की गुरु की आज्ञा पाकर वे तुरन्त अयोध्या लौट आते हैं। अयोध्या लौटने से पूर्व वे मामा की आज्ञा प्राप्त करना भी उचित समझते हैं।

UP Board Solutions

(2) राज्य के लोभ से रहित-भरत को राज्य-वैभव को लोभ नहीं है। कैकेयी से यह जानकर कि राम को वनवास और उन्हें राज्य मिला है, वे अत्यन्त दु:खी होकर माता से कहते हैं-

भरत करेगा राज्य, राम को भेज विजन में ।
जानें क्यों तुमने ऐसा सोचा था मन में।

वे जीवन के सिद्धान्तों की रक्षा के लिए राज्य को तुच्छ समझते हैं। कौशल्या भी भरत को सर्वथा राज्य-लोभ से रहित मानती हैं। यद्यपि सभी माताएँ, गुरु वशिष्ठ, सुमन्त आदि सभी एक मत से भरत से राजा बनने का आग्रह करते हैं फिर भी वे राज्य को स्वीकार न करके राम को वन से लौटा लाने और स्वयं वन में रहने का प्रस्ताव करते हैं। वन से लौटकर नन्दिग्राम में कुटी बनाकर; वनवासी का जीवन व्यतीत करना राज्य के प्रति उनकी अनासक्ति का परिचायक है।

(3) मर्यादा एवं कर्त्तव्य के पालक–भरत को अपने जीवन से भी अधिक अपने कुल की मर्यादा (UPBoardSolutions.com) और कर्त्तव्य की रक्षा का ध्यान है। रघुकुल में ज्येष्ठ पुत्र ही राज्य का अधिकारी होता है, इस मर्यादा की रक्षा के लिए वे राज्य को ही नहीं, जीवन के समस्त सुखों को भी न्योछावर कर देते हैं। वे कहते हैं-

किन्तु ज्येष्ठ को राजतिलक की परम्परा है।।
राजा दुःख से नहीं, अनय से सदा डरा है।।

भरत चौदह वर्ष तक नन्दिग्राम में वनवासी की तरह रहकर सिंहासन पर राम की पादुकाएँ रखकर सेवक बनकर राम के राज्य की देखभाल स्वीकार करते हैं। वे कुल की मर्यादा और नीति की रक्षा के लिए बड़े-से-बड़ा त्यागकर कर्तव्य का पालन करने में गौरव मानते हैं।

(4) भ्रातृ-प्रेमी-भरत के चरित्र में राम के प्रति भ्रातृ-प्रेम कूट-कूटकर भरा हुआ है। सबके द्वारा एक मत से उनके लिए राजतिलक का प्रस्ताव करने पर भी वे कहते हैं-

UP Board Solutions

वन में राम रहें, मैं बैटू सिंहासन पर,
शोभा देता नहीं मुझे आज्ञा दें गुरुवर
वन में जाकर चरण पकड़कर उन्हें मनाऊँ,
जैसा भी हो सके राम को लौटा लाऊँ ॥

वे राम को लौटाने का दृढ़ संकल्प कर पैदल चलने के लिए तैयार हो जाते हैं। काव्य में आदि से अन्त तक वे राम-वन-गमन की चिन्ता से व्यथित रहते हैं।

(5) सच्चे योगी-भरत सच्चे योगी हैं। वे राजभवन में रहकर भी वनवासी का जीवन बिताते हैं तथा राजसुख को ठुकराकर अपने योगी होने का परिचय देते हैं। राम वन में रहकर योगो का जीवन बिताते हैं, वे राजभवन में रहकर भी योगी बने हुए हैं। वे नन्दिग्राम में कुटी बनाकर कुश-आसन पर बैठकर राज्य-कार्य का संचालन करते हैं।

इस प्रकार भरते आज्ञाकारी, कर्तव्य और मर्यादापालक, राज्य-लोभ से दूर, भ्रातृ-प्रेमी और (UPBoardSolutions.com) सच्चे कर्मयोगी हैं। साथ ही उनमें पितृ-भक्ति, गुरु-निष्ठा, निश्छलता, स्पष्टवादिता, विनम्रता आदि गुण निहित हैं। वे त्याग की साक्षात् मूर्ति, शील और संयम के साक्षात् अवतार तथा आदर्श महापुरुष हैं। उनका चरित्र महान् और अनुकरणीय है।

प्रश्न 9
‘कर्मवीर भरत’ के आधार पर कैकेयी का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2009, 10, 11, 12, 14, 15, 17, 18]
या
” ‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य में कैकेयी के चरित्र को उज्ज्वल बनाकर भारतीय नारी को गौरव प्रदान किया गया है।” खण्डकाव्य के आधार पर कैकेयी के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए। [2010, 11]
या
‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के आधार पर कैकेयी के चरित्र की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। [2010]
या
‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के आधार पर किसी प्रमुख नारी-पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर
‘कर्मवीर भरत’ के स्त्री पात्रों में कैकेयी का चरित्र सर्वोपरि है। उसमें साहस, दृढ़ता, राजनीतिक कुशलता, विवेकशीलता, जनहित भावना, पुत्र-प्रेम आदि आदर्श भारतीय नारी के गुण विद्यमान हैं। इस खण्डकाव्य में उसके चरित्र को उज्ज्वल दर्शाकर भारतीय नारी को गौरव प्रदान किया गया है। उसके चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं.

(1) युद्ध-निपुण वीरांगना–कैकेयी का चरित्र एक वीरांगना का चरित्र है। वह अपने हृदय पर पत्थर रखकर जनहित के लिए अपने पुत्र को चौदह वर्ष के लिए वन में भेज देती है। उसने नारी होकर भी अबला बनना नहीं सीखा है। युद्ध-भूमि में भी वह अपने पति के साथ गयी थी और संकट में उनके प्राणों की रक्षा की थी। उसे जो कार्य उचित जान पड़ता है, लोकमत के विरुद्ध होने पर भी वह उसे करके ही छोड़ती है। निम्नलिखित पंक्तियों से उसका वीरत्व प्रकट होता है—

UP Board Solutions

असि अर्पण कर मैंने रण कंकण बाँधा है,
रणचण्डी का व्रत मैंने रण में साधा है ।
मेरे बेटों ने पय पिया सिंहनी का है,
उनका पौरुष देख इन्द्र मन में डरता है ।।

(2) आदर्श माता–कैकेयी स्वाभिमानी होने के साथ-साथ आदर्श माता भी है। वह अपने पुत्रों को केवल सुखी ही नहीं देखना चाहती, अपितु उनके गौरव को भी बढ़ाना चाहती है। वह प्रत्येक पुत्र के जीवन का विकास उसकी सामर्थ्य के अनुसार करना चाहती है, जिससे वे समाज, राष्ट्र और मानवता की अधिकाधिक सेवा कर सकें। वह राम और भरत में भेद नहीं मानती-

राम-भरत में भेद ? हाय कैसी दुर्बलता,
आगे चलते राम, भरत तो पीछे चलता।

वह राम को इसलिए वन में भेजती है, जिससे वह वन में जाकर दुष्टों और आततायियों का विनाश कर मानवता का कल्याण कर सके। उसने राम को वन में भेजकर मानवीय और राष्ट्रीय कर्तव्य का पालन करते हुए अपने मातृत्व धर्म की दृढ़ता से रक्षा की है।

(3) राष्ट्रीय और समाजवादी दृष्टिकोण अपनाने वाली आदर्श नारी-कैकेयी के (UPBoardSolutions.com) चरित्र की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता उसका राष्ट्रीय और समाजवादी दृष्टिकोण है। उसकी विचारधारा केवल अपने पुत्रों और परिवार तक ही सीमित नहीं है, अपितु वह सम्पूर्ण राष्ट्र और मानवता का भी कल्याण सोचती है। उसे केवल अयोध्यावासियों के ही कल्याण का ध्यान नहीं है, अपितु पिछड़े हुए अशिक्षित वनवासियों के उत्थान का भी वह ध्यान रखती है। उसका मानवीय दृष्टिकोण अत्यधिक उदार है-

जिन्हें नीच पामर कहकर हम दूर भगाते ।
वे भी तो अपने हैं मानवता के नाते ॥
उन्हें उठाना क्या राजा का धर्म नहीं है।
गले लगाना क्या मानव का कर्म नहीं है।

(4) राजनीति में कुशल-कैकेयी नारी होकर भी राजनीति में पूर्ण कुशल है। वह राजनीति के दाँव-पेच समझती है और समय के अनुसार उनका प्रयोग करना भी जानती है। राम को वन भेजने में भी उसकी राजनीतिक सूझ-बूझ का प्रमाण मिलता है। वनवासियों को अनुशासन सिखाना भी एक राजनीतिक दायित्व है।

UP Board Solutions

(5) अपराध स्वीकार करने वाली-खण्डकाव्य के कथानक के अनुसार कैकेयी ने जो कुछ भी किया उसके पीछे उसका कोई भी स्वार्थ नहीं था और न कोई बुरा भाव ही था। परन्तु जब परिस्थितियाँ बदल जाती हैं तथा परिणाम बुरे निकलने लगते हैं तो कैकेयी अपने आपको अपराधिनी स्वीकार कर लेती है तथा । स्वयं ही अपने विषय में कह उठती है

इस दुःखान्त नाटक की मैं हूँ सूत्रधारिणी।
हरे-भरे रघुकुल में प्रलय-विनाशकारिणी ॥

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रस्तुत खण्डकाव्य में कैकेयी आदर्श माता, वीर (UPBoardSolutions.com) स्त्री तथा समाजवादी दृष्टिकोण को अपनाने वाली आदर्श नारी है। उसमें साहस, दृढ़ता, सूझ-बूझ और उदारता है। निशंक जी ने कैकेयी के युग-युग से अभिशप्त चरित्र को आधुनिक परिवेश में सँवारने का सफल प्रयत्न किया है।

प्रश्न 10
‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के नायक (प्रमुख पात्र) के अतिरिक्त किस पात्र के चारित्रिक गुणों से आप प्रभावित हैं ? उन गुणों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
या
‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के आधार पर राम के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। [2010, 14]
या
‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के किसी प्रमुख पात्र का चरित्रांकन कीजिए। [2013]
उत्तर
कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के राम, मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। उनका चरित्र-चित्रण अन्तिम सर्ग में (UPBoardSolutions.com) हुआ है, किन्तु उससे पूर्व कैकेयी, सुमित्रों आदि के कथन भी उनके चरित्र पर प्रकाश डालते हैं।

UP Board Solutions

(1) संकल्पवान् राम सिद्धान्तप्रिय हैं। वे एक बार जो संकल्प कर लेते हैं, उसे पूरा करके ही मानते हैं। इसीलिए वे भरत और परिजनों के अत्यधिक आग्रह करने पर भी अपने संकल्प से पीछे नहीं हटते और अयोध्या वापस नहीं लौटते। वे स्पष्ट रूप से कह देते हैं

क्षमा करें सब लोग, विवशता मेरे मन की,
अपनायी है कठिन राह मैंने जीवन की ।
इतना होने पर भी अब मैं पुर को जाऊँ ?
राज्य करू या पुत्रधर्म आदर्श मिटाऊँ ?

(2) संवेदनशील सिद्धान्तों के प्रति दृढ़ होते हुए भी वे भरत के शील और भक्ति के सम्मुख भाव-विह्वल हो जाते हैं। उनके मन में भरत के प्रति अपार प्रेम उमड़ रहा है। वे भरत के आग्रह से प्रसन्न होकर कह उठते हैं-

भाई जो भी कहो वही मैं आज करूंगा।
तुम कह दो तो अयश सिन्धु में कूद पड़ेंगा ॥

(3) मर्यादा पुरुषोत्तम-राम ने भरत की बात मानकर उन्हें अपनी खड़ाऊँ दे दी और सबको (UPBoardSolutions.com) ससम्मान विदा किया। उन्होंने कहीं भी मर्यादा की सीमा-रेखा नहीं लाँघी। वे रघुकुल की मान-मर्यादा की पूर्णत: रक्षा करते हैं तथा अपने माता-पिता व गुरुजनों की हर आज्ञा को शिरोधार्य करते हैं। उनके इन्हीं गुणों के कारण ननिहाल में भरत दूत से पूछते हैं-

रघुकुल के आदर्श जिन्हें लगते हैं प्यारे ।
कहो कुशल से तो हैं भ्राता राम हमारे।

UP Board Solutions

(4) द्वेषभाव से रहित–यद्यपि राम को वन भेजने में कैकेयी का ही प्रमुख हाथ रहा है, फिर भी राम को कैकेयी के प्रति कहीं तनिक भी रोष नहीं है, अपितु वे कैकेयी की प्रशंसा करते हुए कहते हैं

माँ ने नारी को अमरत्व प्रदान किया है।
मोड़ा है इतिहास, नया आदर्श दिया है ।

(5) शक्ति-शील-सौन्दर्य समन्वित-राम शक्तिशाली होने के साथ-साथ शील और सौन्दर्य (UPBoardSolutions.com) से युक्त एक ऐसे महामानव हैं, जिन्होंने अपनी सारी शक्ति जन-सेवा के लिए ही समर्पित कर दी है, तभी तो . कैकेयी उनके सम्बन्ध में कहती है

राम हमारा शक्ति, शील, सौन्दर्य समन्वित
उसका जीवन ही जन-सेवा हेतु समर्पित।

(6) दीन-रक्षक और दुष्ट संहारक—राम दीन-हीन व्यक्तियों की सदैव सहायता करते हैं, उनकी रक्षा करते हैं। जहाँ वे असहायों की सहायता हेतु सदैव तत्पर रहते हैं वहीं दुष्टों के लिए वे काल के समान हैं। उनके इस रूप को कैकेयी निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त करती है-

दुःखी जनों को देख नयन उनके भर आते,
देख दुष्ट को लाल वही लोचन हो जाते ॥

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि ‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के राम एक आदर्श और (UPBoardSolutions.com) मर्यादापुरुषोत्तम चरित्र के धारक हैं।

We hope the UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 1 कर्मवीर भरत (खण्डकाव्य) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 1 कर्मवीर भरत (खण्डकाव्य), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 1 वाराणसीः (संस्कृत-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 1 वाराणसीः (संस्कृत-खण्ड)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 1 वाराणसीः (संस्कृत-खण्ड).

अवतरण का ससन्दर्भ हिन्दी अनुवाद

प्रश्न 1.
वाराणसी सुविख्याता प्राचीना नगरी। इयं विमलसलिलतरङ्गायाः गङ्गायाः कूले स्थिता। अस्याः घट्टानां वलयाकृतिः पङक्तिः धवलायां चन्द्रिकायां बहु राजते। अगणिताः पर्यटकाः सुदूरेभ्यः देशेभ्यः नित्यम् अत्र आयान्ति, अस्याः घट्टानांचशोभां विलोक्य इमां बहु प्रशंसन्ति। [2010, 14, 16]
उत्तर
[ सुविख्याता = बहुत प्रसिद्ध विमलसलिलतरङ्गायाः = स्वच्छ जल की लहरों से युक्त। कूले = किनारे पर। घट्टानाम् = घाटों की। वलयाकृतिः = घुमावदारै आकार वाली। चन्द्रिकायां= चाँदनी में। राजते = सुशोभित होती है। विलोक्य = देखकर।]

सन्दर्भ–प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘संस्कृत-खण्ड’ के ‘वाराणसी’ पाठ से उधृत है।

प्रसंग-इस गद्यांश में वाराणसी की ऐतिहासिकता तथा (UPBoardSolutions.com) अवस्थिति के विषय में बताया गया है।

अनुवाद-वाराणसी बहुत प्रसिद्ध प्राचीन नगरी है। यह स्वच्छ जल की तरंगों से युक्त गंगा के किनारे स्थित है। इसके घाटों की घुमावदार पंक्ति श्वेत चाँदनी में बहुत सुन्दर लगती है। असंख्य यात्री भ्रमण करने के लिए दूर देशों से प्रतिदिन यहाँ आते हैं और इसके घाटों की शोभा देखकर इसकी बहुत प्रशंसा करते हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 2.
वाराणस्यां प्राचीनकालादेव गेहे-गेहे विद्यायाः दिव्यं ज्योतिः द्योतते। अधुनाऽपि अत्र संस्कृतवाग्धारा सततं प्रवहति, जनानां ज्ञानं चे वर्धयति। अत्र अनेके आचार्याः मूर्धन्याः विद्वांसः वैदिकवाङ्मयस्य अध्ययने अध्यापने च इदानीं निरताः। न केवलं भारतीयाः अपितु वैदेशिकाः गीर्वाणवाण्याः अध्ययनाय अत्र आगच्छन्ति, निःशुल्कंचविद्यां गृह्णन्ति।अत्र हिन्दूविश्वविद्यालयः, संस्कृतविश्वविद्यालयः, काशीविद्यापीठम् इत्येते त्रयः विश्वविद्यालयाः सन्ति, येषु नवीनानां प्राचीनानां च ज्ञानविज्ञानविषयाणाम् अध्ययनं प्रचलति। [2010, 12, 16]
उत्तर
[ प्राचीनकालादेव (प्राचीनकालात् + एव) = प्राचीन काल से ही। गेहे-गेहे = घर-घर में। द्योतते = प्रकाशित है। संस्कृतवाग्धारा = संस्कृत वाणी का प्रवाह। वर्द्धयति = बढ़ाता है। मूर्धन्याः = उच्चकोटि के। निरताः = संलग्न रहते हैं। गीर्वाणवाण्याः = देववाणी के, संस्कृत के] |

सन्दर्भ-प्रसंग-पूर्ववत्।।

अनुवाद-वाराणसी में प्राचीनकाल से ही घर-घर में विद्या की अलौकिक ज्योति प्रकाशित होती रही हैं। आज भी यहाँ संस्कृत वाणी की धारा निरन्तर प्रवाहित रहती है और लोगों का ज्ञान बढ़ाती है। यहाँ पर अनेक आचार्य, उच्चकोटि के विद्वान् (UPBoardSolutions.com) वैदिक साहित्य के अध्ययन और अध्यापन में इस समय भी लगे हुए हैं। केवल भारतवासी ही नहीं, अपितु विदेशी भी संस्कृत भाषा के अध्ययन के लिए यहाँ आते हैं और नि:शुल्क विद्या ग्रहण करते हैं। यहाँ पर हिन्दू विश्वविद्यालय, संस्कृत विश्वविद्यालय, काशी विद्यापीठ–ये तीन विश्वविद्यालय हैं, जिनमें नवीन और प्राचीन ज्ञान-विज्ञान के विषयों का अध्ययन चलता रहता है।

UP Board Solutions

प्रश्न 3.
एषा नगरी भारतीयसंस्कृतेः संस्कृतभाषायाश्च केन्द्रस्थली अस्ति। इत एव संस्कृतवाङ्मयस्य संस्कृतेश्च आलोकः सर्वत्र प्रसृतः। मुगलयुवराजः दाराशिकोहः अत्रागत्य भारतीय-दर्शन-शास्त्राणाम् अध्ययनम् अकरोत्। स तेषां ज्ञानेन तथा प्रभावितः अभवत्, यत् तेन उपनिषदाम् अनुवादः पारसी-भाषायां कारितः। [2014, 16, 18]
उत्तर
[इत एव = यहीं से। संस्कृतेश्च = संस्कृति का। आलोकः = प्रकाश। प्रसृतः = फैला। कारितः = कराया। ]

सन्दर्भ-प्रसंग--पूर्ववत्।।

अनुवाद—यह नगरी भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा की केन्द्रस्थली है। यहीं से संस्कृत साहित्य और संस्कृति का प्रकाश सभी जगह फैला है। मुगल युवराज दाराशिकोह ने यहाँ आकर भारतीय दर्शन-शास्त्रों का अध्ययन किया था। वह उनके (UPBoardSolutions.com) ज्ञान से इतना प्रभावित हुआ था कि उसने उपनिषदों का अनुवाद फारसी भाषा में कराया।

प्रश्न 4.
इयं नगरी विविधधर्माणां सङ्गमस्थली। महात्मा बुद्धः, तीर्थङ्करः पाश्र्वनाथः, शङ्कराचार्य, कबीरः, गोस्वामी तुलसीदासः अन्ये च बहवः महात्मानः अत्रागत्य स्वीयान् विचारान् प्रासारयन्। ने केवलं दर्शने, साहित्ये, धर्मे, अपितु कलाक्षेत्रेऽपि इयं नगरी विविधानां कलानां, शिल्पानां च कृते लोके विश्रुता। अत्रत्याः कौशेयशाटिकाः देशे-देशे सर्वत्र स्पृह्यन्ते।।

UP Board Solutions

अत्रत्याः प्रस्तरमूर्तयः प्रथिताः। इयं निजां प्राचीनपरम्पराम् इदानीमपि परिपालयति–तथैव गीयते कविभिः [2010, 11, 13, 15, 17]
उत्तर
[ सङ्गमस्थली = मिलने का स्थान। अत्रागत्य (अत्र +आगत्य) = यहाँ आकर। स्वीयान् = अपने। प्रासारयन् = फैलाया। कृते = के लिए। विश्रुता = प्रसिद्ध। अत्रत्याः = यहाँ की। कौशेयशाटिकाः = रेशमी साड़ियाँ। स्पृह्यन्ते = पसन्द की (UPBoardSolutions.com) जाती हैं। प्रस्तरमूर्तयः = पत्थर की मूर्तियाँ। प्रथिताः = प्रसिद्ध।]

सन्दर्भ-प्रसंग-पूर्ववत्।

अनुवाद-यह नगरी विविध धर्मों के मिलन का स्थान रही है। महात्मा बुद्ध, तीर्थंकर पाश्र्वनाथ, शंकराचार्य, कबीर, गोस्वामी तुलसीदास और दूसरे बहुत-से महात्माओं ने यहाँ आकर अपने विचारों को फैलाया, अर्थात् अपने विचारों का प्रसार किया। केवल दर्शन, साहित्य और धर्म में ही नहीं, अपितु कला के क्षेत्र में भी यह नगरी विविध कलाओं और शिल्पों के लिए संसार में प्रसिद्ध है। यहाँ की रेशमी साड़ियाँ देशविदेश में सभी जगह पसन्द की जाती हैं। यहाँ की पत्थर की मूर्तियाँ प्रसिद्ध हैं। यह अपनी प्राचीन परम्परा का इस समय भी पालन कर रही है। उसी प्रकार कवियों के द्वारा गाया जाता है—

प्रश्न 5.
मरणं मङ्गलं यत्र विभूतिश्च विभूषणम्।
कौपीनं यत्र कौशेयं सा काशी केन मीयते ॥ [2014, 15]
उत्तर
[ विभूतिः = भस्म विभूषणम् = आभूषण है। कौपीनं = लँगोटी। कौशेयं = रेशमी वस्त्र। मीयते = मापी जा सकती है।]

सन्दर्भ-प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘संस्कृत-खण्ड के वाराणसी’ पाठ से उद्धृ त है।

प्रसंग-इस श्लोक में वाराणसी की पुण्य ख्याति का वर्णन किया गया है।

UP Board Solutions

अनुवाद-जहाँ पर मरना कल्याणकारी समझा जाता हैं, जहाँ (शरीर पर) भस्म धारण करना आभूषण हैं, जहाँ कौपीन (लँगोटी ही) रेशमी वस्त्र है, वह काशी किसके द्वारा मापी जा सकती है ? अर्थात् उसकी समता किससे की जा सकती है ? (UPBoardSolutions.com) तात्पर्य यह है कि किसी से भी नहीं।

अतिलघु-उतरीय संस्कृत प्रश्नोतर

प्रश्न 1
वाराणसी नगरी कुत्र स्थिता अस्ति ? [2010, 11]
उत्तर
वाराणसी नगरी गङ्गायाः तटे स्थिता अस्ति।

प्रश्न 2
वैदेशिकाः पर्यटकाः कस्याः शोभाम् अवलोक्य वाराणसी प्रशंसन्ति ? । [2012]
उत्तर
वैदेशिकाः पर्यटका: गङ्गायाः घट्टानां शोभां विलोक्य वाराणसी प्रशंसन्ति।

प्रश्न 3
वैदेशिकाः किमर्थम् (केन हेतुना) वाराणसीम् आगच्छन्ति ?
उत्तर
वैदेशिका: संस्कृतस्य अध्ययनाय (UPBoardSolutions.com) वाराणसीम् आगच्छन्ति।

UP Board Solutions

प्रश्न 4
वाराणस्यां कति विश्वविद्यालयाः सन्ति ? के च ते ? या वाराणस्य कति विश्वविद्यालयः सन्ति ? [2010]
उत्तर
वाराणस्यां हिन्दू विश्वविद्यालयः, संस्कृत विश्वविद्यालयः, काशीविद्यापीठम् इति एते त्रयः विश्वविद्यालयः सन्ति।

प्रश्न 5
वाराणसी कस्याः भाषायाः केन्द्रम् अस्ति ? [2015]
या
वाराणसी नगरी कस्य केन्द्रस्थली अस्ति ?
या
वाराणसी कस्य केन्द्रस्थलम् अस्ति ?
या
वाराणसी नगरी केषां संगमस्थली अस्ति? [2016]
उत्तर
वाराणसी भारतीयसंस्कृते: संस्कृतभाषायाश्च केन्द्रम् अस्ति।

प्रश्न 6
कः मुगलयुवराजः वाराणस्याम् आगत्य भारतीय दर्शनशास्त्राणाम् अध्ययनम् अकरोत् ?
उत्तर
मुगलयुवराज: दाराशिकोह: वाराणस्याम् (UPBoardSolutions.com) आगत्य भारतीय दर्शनशास्त्राणाम् अध्ययनम् अकरोत्।

UP Board Solutions

प्रश्न 7
दाराशिकोहः कुत्र गत्वा भारतीयशास्त्राणाम् अध्ययनम् अकरोत् ? [2009]
उत्तर
दाराशिकोह: वाराणस्यां गत्वा भारतीयशास्त्राणाम् अध्ययनम् अकरोत्।

प्रश्न 8
दाराशिकोहः कस्यां भाषायाम् उपनिषदाम् अनुवादम् अकारयत् ? [2012, 13]
उत्तर
दाराशिकोह: पारसीभाषायाम् उपनिषदाम् अनुवादम् अकारयत्।।

प्रश्न 9
वाराणसी नगरी केषां सङ्गमस्थली अस्ति ? [2009, 12, 16, 17]
या
का नगरी विविधधर्माणां सङ्गमस्थली अस्ति ?
या
वाराणसी कस्य सङ्गमस्थली अस्ति ?
उत्तर
वाराणसी नगरी विविधधर्माणां (UPBoardSolutions.com) सङ्गमस्थली अस्ति।

प्रश्न 10
वाराणसी किमर्थं प्रसिद्धा ? [2013]
या
वाराणसी कथं प्रसिद्धा अस्ति ?
उत्तर
वाराणसी विविधानां शिल्पानां कलानां, संस्कृतभाषायाः संस्कृतेश्च कृते प्रसिद्धा अस्ति।

UP Board Solutions

प्रश्न 11
कुत्र मरणं मङ्गलं भवति ? [2009, 15, 16, 17, 18]
उत्तर
वाराणस्यां मरणं मङ्गलं भवति।

प्रश्न 12
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालयः कस्यां नगर्यां विद्यते ? [2017]
उत्तर
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालयः (UPBoardSolutions.com) वाराणस्यां नगर्या विद्यते।

प्रश्न 13
दाराशिकोहः किमर्थम् अत्रागतः ?
उत्तर
मुगलयुवराजः दाराशिकोहः भारतीय दर्शनशास्त्राणाम् अध्ययनाय अत्र आगच्छत् ।

प्रश्न 14
दाराशिकोहः वाराणसी आगत्य किमकरोत् ?
उत्तर
दाराशिकोह: वाराणसीं आगत्य भारतीय दर्शनशास्त्राणाम् अध्ययनम् अकरोत्।

UP Board Solutions

प्रश्न 15
वाराणस्याः कानि वस्तूनि प्रसिद्धाः सन्ति ? [2010]
उत्तर
वाराणस्याः कौशेयशाटिका: प्रस्तरमूर्तयः च प्रसिद्धाः सन्ति।

प्रश्न 16
वाराणसी नगरी कस्याः कूले स्थिता ? [2009, 11, 12, 15]
उत्तर
वाराणसी नगरी गङ्गायाः कूले स्थिता।

प्रश्न 17
वाराणसी नगरी केषां कृते लोके विश्रुता अस्ति ?
उत्तर
न केवलं दर्शने, साहित्ये, धमें अपितु (UPBoardSolutions.com) कलाक्षेत्रेऽपि विविधानां कलानां शिल्पानां च कृते वाराणसी नगरी लोके विश्रुता।

UP Board Solutions

प्रश्न 18
कस्याः शोभां विलोक्य पर्यटकाः बहु प्रशंसन्ति ?
उत्तर
गङ्गायाः घट्टना शोभां विलोक्य पर्यटका: बहु प्रशंसन्ति।

प्रश्न 19
वाराणस्यां गेहे-गेहे किं द्योतते ? [2010]
उत्तर
वाराणस्यां गेहे-गेहे विद्यायाः दिव्यं (UPBoardSolutions.com) ज्योति: द्योतते।

अनुवादाक

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिएवर-
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 1 वाराणसीः (संस्कृत-खण्ड) img-1

UP Board Solutions

व्याकरणात्मक

प्रश्न 1
निम्नलिखित वाक्यों में काले छपे शब्दों की विभक्ति और उसके प्रयोग का कारण बताइए
(क) अगणिताः पर्यटका: सुदूरेभ्यः देशेभ्यः नित्यम् अत्र आयान्ति।
(ख) वैदेशिका: गीर्वाणवाण्याः अध्ययनाय अत्र आगच्छन्ति।
(ग) महात्मानः अत्रागत्य स्वीयान् विचारान् प्रासारयन्।
(घ) धर्मे, अपितु कलाक्षेत्रेऽपि इयं नगरी विविधानां कालानां कृते लोके विश्रुता।
उत्तर
(क) पर्यटक अपने देशों से अलग होकर आते हैं। अलग होने के अर्थ में पञ्चमी विभक्ति होती है।
(ख) “हेतु’ के अर्थ में चतुर्थी विभक्ति होती है।
(ग) कर्म कारक में द्वितीया विभक्ति होती है।
(घ) आधार में सप्तमी विभक्ति होती है।

प्रश्न 2
निम्नलिखित क्रिया-रूपों में धातु. लकार, वचन तथा पुरुष बताइए-
आयान्ति, वर्द्धयति, गृह्णन्ति, अकरोत्, स्पृह्यन्ते, परिपालयति, आगच्छन्ति, प्रवहति।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 1 वाराणसीः (संस्कृत-खण्ड) img-2
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 1 वाराणसीः (संस्कृत-खण्ड) img-3

UP Board Solutions

प्रश्न 3
निम्नलिखित शब्दों के विभक्ति व वचन बताइए-
इयम्, गङ्गायाः, देशेभ्यः, अध्ययनम्, स्वीयान्, विचारान्।।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 1 वाराणसीः (संस्कृत-खण्ड) img-4

प्रश्न 4
निम्नलिखित शब्दों की सन्धि कीजिए और सन्धि का नाम लिखिए-
वलय + आकृतिः, इति + एते, अत्र + आगत्य, विभूतिः -+ च।।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 1 वाराणसीः (संस्कृत-खण्ड) img-5

We hope the UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 1 वाराणसीः (संस्कृत-खण्ड) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 1 वाराणसीः (संस्कृत-खण्ड), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

 

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 (Section 4)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 आर्थिक विकास हेतु राजस्व की आवश्यकता (अनुभाग – चार)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 आर्थिक विकास हेतु राजस्व की आवश्यकता (अनुभाग – चार)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजस्व किसे कहते हैं ? इसके महत्त्व को लिखिए।
उत्तर :

राजस्व

राजस्व सार्वजनिक वित्त अथवा लोक-सत्ताओं के आय-व्यय से सम्बन्धित बातों का अध्ययन है। डाल्टन के अनुसार, “राजस्व के अन्तर्गत लोक-सत्ताओं के आय-व्यय तथा उनके पारस्परिक समायोजन । और समन्वय का अध्ययन किया जाता है।”

राजस्व का महत्त्व

आज के युग में राज्यों एवं सरकारों (UPBoardSolutions.com) के कार्यों में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है; अतः सार्वजनिक राजस्व का महत्त्व भी बढ़ रहा है। सार्वजनिक राजस्व के महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है –

1. आर्थिक विषमता को दूर करना – प्रत्येक देश की सरकार करों के माध्यम से देश की आर्थिक विषमता को कम करने का प्रयास करती है। सरकार धनी वर्ग पर अधिक कर लगाकर तथा करों से प्राप्त आय को निर्धनों के कल्याण के कार्यों पर व्यय करके राष्ट्रीय आय का समान वितरण करती है, जिससे समाज में धनी व निर्धन वर्ग में गहरी खाई न बन सके।

2. देश की आर्थिक विकास – आर्थिक नियोजन के माध्यम से देश का आर्थिक विकास किया जाता है। आर्थिक नियोजन को सफल बनाने के लिए ही राजस्व की आवश्यकता होती है। यदि सरकार के आय के स्रोत अधिक हैं और सरकार को आय निश्चित समय पर उचित मात्रा में प्राप्त होती रहती है तब सरकार आर्थिक नियोजन के द्वारा देश का आर्थिक विकास तीव्र गति से कर सकती है; अत: देश के आर्थिक विकास में राजस्व की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

3. अधिकतम सामाजिक कल्याण – वह सरकार देश के नागरिकों का अधिक कल्याण कर सकती है, जिस देश की सरकार के आय के स्रोत अधिक होंगे तथा सरकार की आय अधिक होगी। सरकार सार्वजनिक राजस्व से प्राप्त आय को जनता के सामाजिक कल्याण पर व्यय करती है; अतः शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, मनोरंजन आदि की व्यवस्था के लिए सार्वजनिक आय का अधिक होना आवश्यक

UP Board Solutions

4. उपभोग की हानिकारक वस्तुओं पर नियन्त्रण – सरकार करों की मात्रा में वृद्धि करके इस प्रकार की उपभोग की वस्तुओं के प्रयोग को हतोत्साहित कर सकती है, जिनका समाज पर कुप्रभाव पड़ता है; जैसे-शराब, गाँजा, अफीम आदि मादक पदार्थों पर अधिक कर लगाकर इनके उपभोग को कम किया जा सकता है।

5. आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन को प्रोत्साहन – आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार उद्योगों को संरक्षण प्रदान करती है, उनके करों को समाप्त करती है। तथा उन्हें आर्थिक सहायता भी देती है। इससे उत्पादन तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।

6. देश में आर्थिक स्थिरता – सरकार राजस्व के द्वारा मन्दी और तेजी की अवस्था में देश को आर्थिक स्थिरता प्रदान करती है। सरकार तेजी के समय अधिकं कर लगाकर या ऋण लेकर मूल्यों में स्थिरता लाने का प्रयास करती है तथा मन्दी के समय (UPBoardSolutions.com) सार्वजनिक व्यय में वृद्धि करके क्रय-विक्रय को बढ़ाती है।

7. सामरिक क्षेत्र में महत्त्व – आज विश्व में अशान्ति के बादल मँडरा रहे हैं। प्रत्येक देश युद्ध के लिए नये-नये वैज्ञानिक अस्त्र-शस्त्र तैयार करने में लगा हुआ है। बाह्य आक्रमणों से देश की सुरक्षा के लिए सैन्य शक्ति व हथियारों पर व्यय करना आवश्यक है। आज वही सरकार सामरिक क्षेत्र में सबल है, जिसकी सार्वजनिक आय अधिक है; अतः राजस्व का महत्त्व आज और भी बढ़ गया है।

प्रश्न 2.
केन्द्रीय सरकार की आय के स्रोतों का वर्णन कीजिए। [2014]
          या
केन्द्र सरकार द्वारा लगाये जाने वाले किन्हीं तीन करों का वर्णन कीजिए। [2013, 17, 18]
उत्तर :

केन्द्रीय सरकार की आय के स्रोत

केन्द्रीय सरकार की आय के स्रोतों को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जा सकता है – (i) कर राजस्व अर्थात् कर क्षेत्र से प्राप्त आय तथा (ii) कर भिन्न राजस्व अर्थात् गैर-कर क्षेत्र से प्राप्त आय। इसके अतिरिक्त केन्द्र सरकार की आय के स्रोतों में पूँजी प्राप्तियाँ भी हैं। पूँजी प्राप्तियों के अन्तर्गत ऋणों की वसूलियाँ, अन्य प्राप्तियाँ (विदेशी सहायता), उधार व अन्य देयताएँ, हुण्डियाँ आदि सम्मिलित रहती हैं। प्रस्तुत प्रश्न के अन्तर्गत कर व गैर-कर से प्राप्त आय का ही वर्णन किया जाएगा –

कर राजस्व से प्राप्त आय कर राजस्व के अन्तर्गत आने वाले प्रमुख करों का विवरण निम्नलिखित है –

1. आयकर – आयकर केन्द्र सरकार की आय का महत्त्वपूर्ण स्रोत है, परन्तु वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार इसका एक निश्चित भाग राज्य सरकारों में वितरित किया जाता है। भारत में सर्वप्रथम 1950 ई० में आयकर लगाया गया था। कर की छूट सीमा उस समय र 2,000 वार्षिक थी। वर्ष 2012-13 के बजट में है 2,00,000.00 तक की वार्षिक आय को कर-मुक्त रखा गया है।

2. निगम कर – कम्पनियों पर लगे आयकर को ‘निगम कर’ कहते हैं। निगम कर में आय की भाँति छूट की कोई सीमा नहीं होती। इसके अतिरिक्त इसकी दरें प्रायः समानुपातिक होती हैं। वर्ष 2012-13 के लिए यह दर 30% है तथा इस पर 10 प्रतिशत अधिभार भी देय होगा।

3. केन्द्रीय उत्पादन कर – ये कर केन्द्र सरकार द्वारा देश में उत्पादित वस्तुओं पर लगाये जाते हैं। यह सीमेण्ट, कपड़ा, बिजली का सामान, मिट्टी का तेल, पेट्रोल, डीजल, रेफ्रीजरेटर, टेलीविजन, तम्बाकू, चाय, कॉफी, जूट व रेशम के सामान (UPBoardSolutions.com) आदि के उत्पादन पर लगाया जाता है। वर्तमान समय में यह केन्द्रीय सरकार की आय का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है। इस कर-प्रणाली के अन्तर्गत पहले केवल 15 वस्तुओं पर कर लगाया जाता था, परन्तु वर्तमान समय में 1,300 से अधिक वस्तुओं को इस करे-व्यवस्था के अन्तर्गत लाया गया है।

4. सीमा-शुल्क – सीमा शुल्क में आयात-कर व निर्यात-कर आते हैं। आयात-कर विदेशों से मँगाये गये माल पर तथा निर्यात-कर अपने देश से बाहर वस्तु को भेजने पर लगाया जाता है। सीमा-शुल्क केन्द्र सरकार की आय का महत्त्वपूर्ण स्रोत होता है।

UP Board Solutions

5. सम्पत्ति कर – भारत में यह कर प्रो० कॉल्डर की सिफारिश पर 1 अप्रैल, 1957 ई० में लगाया गया था। सम्पत्ति कर का प्रशासन आयकर विभाग द्वारा ही चलाया जाता है। यह कर व्यक्तियों की है 10 लाख से अधिक की सम्पत्ति पर लगाया जाता है। इस कर से कृषि भूमि, धार्मिक स्थानों की सम्पत्ति, बीमा व विकास बॉण्ड, प्रॉविडेण्ट फण्ड आदि को मुक्त रखा गया है।

6. सेवा कर – यह कर विभिन्न प्रकार की प्रत्त सेवाओं पर लगाया जाता है। इसकी दर 12% है। वर्ष 2006-07 के बजट में चार लाख रुपये तक के वार्षिक टर्न ओवर को इससे मुक्त रखा गया है। उपर्युक्त मुख्य करों के अतिरिक्त केन्द्रीय सरकार को –

  1. ब्याज कर
  2. व्यय कर
  3. आस्ति कर या मृत्यु कर (सन् 1953 में आरोपित और 1985-86 ई० में समाप्त)
  4. उपहार कर (सन् 1958 में आरोपित और 1999-2000 ई० में समाप्त, वर्तमान में प्राप्तकर्ता की आय में सम्मिलित)
  5. अन्य कर और शुल्क
  6. संघ-राज्य क्षेत्रों के कर से भी आय प्राप्त होती है।

गैर – कर राजस्व से प्राप्त आय – इनके अन्तर्गत आने वाले प्रमुख करों का विवरण निम्नलिखित है –

1. ब्याज प्राप्तियाँ – केन्द्र सरकार राज्यों, केन्द्रशासित प्रदेशों एवं केन्द्रीय प्रतिष्ठानों को ऋण देती है। इन ऋणों पर ब्याज की प्राप्ति होती है, जो उसकी आय का एक स्रोत है।

2. मुद्रा, सिक्का ढलाई एवं टकसाल – केन्द्र सरकार को नोट छापने एवं सिक्का ढलाई का एकाधिकार प्राप्त है। इससे भी उसको आय प्राप्त होती है।

3. लाभांश व लाभ – इसके अन्तर्गत भारतीय रिजर्व बैंक, अन्य राष्ट्रीयकृत (UPBoardSolutions.com) व्यापारिक बैंक व केन्द्र सरकार के व्यावसायिक उपक्रमों से प्राप्त लाभ को सम्मिलित किया जाता है।

4. सामान्य सेवाओं से आय – इस मद के अन्तर्गत लोक सेवा आयोग, पुलिस, रेल, रक्षा-सेवाएँ आदि | मदों से प्राप्त आय सम्मिलित की जाती है।

5. सार्वजनिक उपक्रमों से आय – इसमें सार्वजनिक प्रतिष्ठानों से प्राप्त आय सम्मिलित होती हैं; जैसे–इण्डियन ऑयल, प्राकृतिक तेल एवं गैस आयोग, राज्य व्यापार निगम, डाक तार, रेल आदि से प्राप्त आय।

UP Board Solutions

6. सामाजिक एवं सामुदायिक सेवाएँ – सामाजिक व सामुदायिक सेवाओं में मुख्य हैं – शिक्षा, चिकित्सा, परिवार नियोजन, सफाई व जल आपूर्ति, आवास, नगर विकास, सूचना एवं प्रसार, सामाजिक सुरक्षा व कल्याण आदि। इनसे भी केन्द्र सरकार को आय प्राप्त होती है।

7. आर्थिक सेवाएँ – इनमें मुख्य रूप से सहकारिता, कृषि, लघु सिंचाई, भू-संरक्षण, पशुपालन, डेयरी विकास, मत्स्य उद्योग, ग्रामोद्योग व लघु उद्योग, खनन व खनिज पदार्थ, बहुउद्देशीय नदी-घाटी योजनाएँ, विद्युत विकास सेवाएँ, सड़कें, पुल आदि आते हैं। इन सेवाओं से भी केन्द्र सरकार को आय प्राप्त होती है।

प्रश्न 3.
केन्द्रीय सरकार के व्यय की मुख्य मदों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :

केन्द्रीय सरकार के व्यय की मदें

स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सरकार के व्यय में पर्याप्त वृद्धि हुई है। केन्द्रीय सरकार के व्यय को मुख्यत: दो भागों में बाँटा जा सकता है –

  1. विकास व्यय तथा
  2. गैर-विकास व्यय।

1. विकास व्यय – इनमें मुख्य हैं—शिक्षा, वैधानिक सेवाएँ, अनुसन्धान, कला, संस्कृति, चिकित्सा, परिवार कल्याण तथा स्वास्थ्य, श्रम एवं रोजगार, प्रसारण, कृषि एवं सम्बद्ध सेवाएँ, उद्योग व खनिज, विदेशी व्यापार व निर्यात प्रोत्साहन, जल व (UPBoardSolutions.com) शक्ति का विकास, परिवहन एवं संचार, राज्यों को विकास अनुदान, सामान्य सेवाएँ व अन्य व्यय आदि। इन्हें आयोजना व्यय भी कहा जाता है।

2. गैर-विकास व्यय – इनमें मुख्य हैं—सुरक्षा व्यय, प्रशासनिक सेवाएँ, राज्यों को गैर-विकास
अनुदान, स्थानीय संस्थाओं को क्षतिपूर्ति, अन्य देशों के साथ तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग, ऑडिट, करों व शुल्कों के एकत्रीकरण पर व्यय, करेन्सी, टकसाल एवं ब्याज भुगतान आदि। इन्हें आयोजना-भिन्न व्यय भी कहा जाता है।

संक्षेप में, केन्द्र सरकार की व्यय की मुख्य मदों का विवरण निम्नलिखित है –

1. सुरक्षा या प्रतिरक्षा व्यय – इसके अन्तर्गत जल सेना, थल सेना व वायु सेना पर किया जाने वाला व्यय सम्मिलित होता है। गत वर्षों में सुरक्षा व्यय में तेजी से वृद्धि हुई है। देश की एकता व अखण्डता को बनाये रखने के लिए सरकार इस मद में पर्याप्त राशि व्यय करती है।

2. विकास योजनाओं पर व्यय – आर्थिक विकास के विभिन्न कार्यक्रमों को चलाने के लिए केन्द्र सरकार को बहुत अधिक व्यय करना पड़ता है। व्यय की मुख्य मदें हैं—शिक्षा, कला, संस्कृति, अनुसन्धान, चिकित्सा, परिवार कल्याण एवं स्वास्थ्य, श्रम व रोजगार, उद्योग व खनिज, विदेशी व्यापार व निर्यात, जल व शक्ति विकास, राज्यों को अनुदान, रेलें, डाक व तार, कृषि व सम्बद्ध सेवाएँ आदि

UP Board Solutions

3. प्रशासनिक सेवाएँ – प्रशासनिक व्यय के अन्तर्गत केन्द्र सरकार के प्रशासनिक कर्मचारियों के वेतन, भत्ते, विभिन्न मन्त्रालयों के खर्चे, सामान्य प्रशासन, पुलिस, न्याय इत्यादि क्षेत्रों पर किये जाने वाले व्यय सम्मिलित किये जाते हैं। विभिन्न देशों में (UPBoardSolutions.com) स्थित भारतीय दूतावासों के व्यय भी इसी के अन्तर्गत आते हैं। इस मद में केन्द्रीय सरकार को बड़ी राशि व्यय करनी पड़ती है।

4. ऋण सेवाएँ – केन्द्र सरकार विभिन्न देशी व विदेशी ऋणों पर ब्याज का भुगतान करती है।

5. राज्यों के अनुदान – केन्द्र सरकार राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों को विकासात्मक एवं गैर-विकासात्मक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अनुदान देती है। संघ राज्य क्षेत्रों के विकास के लिए जो योजनाएँ निर्मित की जाती हैं, उनके क्रियान्वयन के लिए भी केन्द्र सरकार ही अपने वित्तीय साधनों से व्यय करती है।

6. करों व शुल्क-संग्रह पर व्यय – केन्द्र सरकार को करों व शुल्कों की वसूली हेतु भी पर्याप्त व्यय करना पड़ता है।

7. करेन्सी व टकसाल – केन्द्र सरकार करेन्सी के छापने व सिक्कों को ढालने पर भी बहुत अधिक व्यय करती है।

8. स्थानीय निकायों की सहायता – केन्द्र सरकार स्थानीय निकायों, नगर निगम, नगर महापालिका, नगरपालिका, जिला प्रशासन आदि की सहायता हेतु भी पर्याप्त धनराशि का व्यय करती है।

9. पेंशन तथा आकस्मिक व्यय – केन्द्र सरकार अवकाश प्राप्त कर्मचारियों, अधिकारियों एवं स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों की पेंशन पर पर्याप्त व्यय करती है। इसके अतिरिक्त सरकार को कभी-कभी ऐसे आकस्मिक व्यय भी करने पड़ते हैं, जिनका उसे पहले से पता नहीं होता। उपर्युल्लिखित मदों के अतिरिक्त केन्द्र सरकार–

  1. विज्ञान-प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण
  2. परिवहन
  3. ग्रामीण विकास
  4. राज्यों को अंशदान
  5. सरकारी उद्यमों को ऋण
  6. विदेशी सरकारों को अनुदान
  7. किसानों को ऋण-राहत
  8. आर्थिक सहायता आदि के व्यय की मदें हैं। इन मदों पर (UPBoardSolutions.com) भी सरकार पर्याप्त राशि का व्यय करती है।

UP Board Solutions

प्रश्न 4.
प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करों को परिभाषित कीजिए एवं उनके गुण-दोष लिखिए।
          या
अप्रत्यक्ष करों के चार गुणों का वर्णन कीजिए। [2011]
          या
परोक्ष कर क्या है ? इनके तीन दोष लिखिए।
          या
प्रत्यक्ष कर को परिभाषित कीजिए तथा उसके गुण एवं दोषों की समीक्षा कीजिए। [2016]
उत्तर :
‘कर’ सरकारी अधिकारियों द्वारा वसूल किये जाने वाले वे अनिवार्य अंशदान हैं, जो सार्वजनिक व्यय को पूरा करने के लिए किये जाते हैं। ये (कर) दो प्रकार के होते हैं—

  1. प्रत्यक्ष कर तथा
  2. अप्रत्यक्ष कर।

प्रत्यक्ष कर

प्रत्यक्ष कर जिस व्यक्ति पर लगाये जाते हैं, उसका भुगतान उसी व्यक्ति द्वारा किया जाता है; अर्थात् जो कर व्यक्तियों पर सीधे लगाये जाते हैं, उन्हें प्रत्यक्ष कर कहते हैं। करदाता इसका भार दूसरों पर नहीं टाल सकता। ये परोक्ष कर भी कहलाते हैं।

गुण – प्रत्यक्ष करों के गुण निम्नलिखित हैं

1. न्यायपूर्ण – प्रत्यक्ष कर न्यायपूर्ण होते हैं, क्योंकि ये व्यक्तियों की करदान क्षमता के आधार पर लगाये जाते हैं। इन करों का भार धनी वर्ग पर अधिक तथा निर्धन पर कम पड़ता है।

2. मितव्ययता – प्रत्यक्ष करों में मितव्ययता पायी जाती है, (UPBoardSolutions.com) क्योंकि इन करों को वसूल करने में राज्य को अधिक व्यय नहीं करना पड़ता है। करदाता इन्हें सीधे राजकोष में जमा करता है।

3. निश्चितता – प्रत्यक्ष करों में निश्चितता का गुण भी पाया जाता है, क्योंकि इन करों के सम्बन्ध में करदाता को पूर्ण जानकारी रहती है कि उसे कितनी मात्रा में कर देना है।

4. लोचता – प्रत्यक्ष कर लोचदार होते हैं। सरकार इन करों में आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर सकती है।

5. नागरिक चेतना – प्रत्यक्ष कर नागरिक स्वयं जमा करता है। अतः वह यह जानने का प्रयास करता है कि दिये गये कर का उपयोग सार्वजनिक हित के कार्यों में हो रहा है अथवा नहीं। इस प्रकार कर का भुगतान करने से व्यक्ति में आदर्श नागरिकता एवं कर्तव्यपरायणता की भावना जाग्रत होती है।

6. उत्पादकता – प्रत्यक्ष कर उत्पादक होते हैं। करों की मात्रा में थोड़ी-सी वृद्धि से ही अधिक आय प्राप्त हो जाती है, जिसका उपयोग देश के आर्थिक विकास में किया जा सकता है।

7. समानता – प्रत्यक्ष कर आर्थिक असमानता को दूर करने का प्रयास करते हैं।

UP Board Solutions

दोष – प्रत्यक्ष करों के दोष निम्नलिखित हैं –

1. करों की चोरी – प्रत्यक्ष करों का भुगतान व्यक्ति ईमानदारी के साथ नहीं करते। समाज में अधिक आय प्राप्त करने वाले वर्ग झूठे हिसाब-किताब बनाकर व अपनी आय कम प्रदर्शित करके करों से बचने का प्रयास करते हैं।

2. असुविधाजनक – प्रत्यक्ष कर असुविधाजनक व कष्टप्रद होते हैं। करदाता को आय-व्यय का विवरण तैयार कर अधिकारी के सम्मुख प्रस्तुत करना पड़ता है तथा उसे पूर्णरूप से सन्तुष्ट करना पड़ता है।

3. बेईमानी को प्रोत्साहन – प्रत्यक्ष कर का भार सच्चे व ईमानदार व्यक्तियों पर (UPBoardSolutions.com) अधिक पड़ता है, क्योंकि बेईमान व्यक्ति झूठे हिसाब-किताब व रिश्वत द्वारा इन करों से बच जाते हैं इस प्रकार इन करों से बेईमानी व भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन मिलता है।

4. करों की मनमानी दरें – प्रत्यक्ष करों की दरें सरकार स्वेच्छापूर्वक निर्धारित करती है। इन करों के निर्धारण में किसी प्रकार का वैधानिक आधार नहीं होता है। राज्य या सरकार द्वारा करारोपण की उच्च दरों से प्रभावित होकर लोग अपने उत्पादन-कार्य को सीमित कर देते हैं।

5. प्रत्यक्ष कर निर्धन वर्ग पर नहीं लगाये जा सकते – प्रत्यक्ष कर सभी नागरिकों के ऊपर नहीं लगाये जाते। एक निश्चित सीमा से कम आय वाले लोग इन करों से मुक्त रहते हैं  नैतिक दृष्टि से यह उचित नहीं है, क्योंकि इससे समाज धनी एवं निर्धन वर्ग में विभक्त हो जाता है।

6. सीमित क्षेत्र – प्रत्यक्ष कर कुछ व्यक्तियों से लिया जाता है। इस प्रकार आय के लिए समाज के कुछ थोड़े-से व्यक्तियों (धनी वर्ग) पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

7. अफसरशाही – प्रत्यक्ष करों के सम्बन्ध में अधिकांश निर्णय अधिकारियों द्वारा (UPBoardSolutions.com) लिये जाते हैं। निर्णय करने में अधिकारीगण भ्रष्ट तरीके अपनाते हैं, जिससे समाज में भ्रष्टाचार का बोलबाला हो जाता है।

अप्रत्यक्ष कर

अप्रत्यक्ष कर वे कर होते हैं, जिनका कराधान एक व्यक्ति पर तथा कर भार दूसरे व्यक्ति पर पड़ता है; अर्थात् सरकार द्वारा जिस व्यक्ति पर कर लगाया जाता है, वह केर के भार को दूसरे व्यक्ति के ऊपर टाल देता है। ये अपरोक्ष कर भी कहलाते हैं।

गुण – अप्रत्यक्ष करों के गुण निम्नलिखित हैं –

1. सुविधाजनक – अप्रत्यक्ष कर सुविधाजनक होते हैं, क्योंकि करदाता को भुगतान करते समय इस बात का आभास नहीं होता कि वह कर का भुगतान कर रहा है। ये वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य में ही सम्मिलित रहते हैं। सरकार के लिए भी ये सुविधाजनक रहते हैं, क्योंकि वह इन करों को उत्पादकों या व्यापारियों से एकमुश्त सरलतापूर्वक प्राप्त कर लेती है।

2. करवंचन कठिन होता है – करदाता अप्रत्यक्ष करों की चोरी नहीं कर पाता, क्योंकि ये वस्तुओं के मूल्य में सम्मिलित होते हैं। जब कोई उपभोक्ता वस्तुएँ खरीदता है, तो उसे ये आवश्यक रूप से देने पड़ते हैं।

3. न्यायपूर्ण – ये कर न्यायपूर्ण होते हैं, क्योंकि समाज का प्रत्येक व्यक्ति इन (UPBoardSolutions.com) करों का भुगतान करता है। जो व्यक्ति अधिक वस्तुओं एवं सेवाओं का उपयोग करता है, उसे अधिक तथा जो वस्तुओं एवं सेवाओं का कम प्रयोग करता है, उसे कम भुगतान करना पड़ता है।

4. सामाजिक हित की दृष्टि से उत्तम – अप्रत्यक्ष कर सामाजिक लाभ की दृष्टि से उत्तम होते हैं, क्योंकि सरकार करों की मात्रा में वृद्धि करके उस प्रकार की उपभोग वस्तुओं के प्रयोग को हतोत्साहित करे सकती है, जिनका समाज पर कुप्रभाव पड़ता है।

UP Board Solutions

5. लोचदार – अप्रत्यक्ष करों की प्रकृति लोचदार होती है। आवश्यक वस्तुओं पर कर में थोड़ी-सी वृद्धि करके सरकार अपनी आय में वृद्धि कर सकती है।

6. विस्तृत आधार – अप्रत्यक्ष करों का आधार विस्तृत होता है, क्योंकि सरकार अनेक मदों पर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कर लगाकर अधिक आय प्राप्त करने में सफल होती है।

दोष – अप्रत्यक्ष करों के दोष निम्नलिखित हैं

1. कर-भार परिवर्तन से हानि – अप्रत्यक्ष करों में कर का भार एक-दूसरे पर टालने का प्रयास किया जाता है, जिसके कारण अन्तिम व्यक्ति पर इन करों का भार अधिक पड़ता है उदाहरण के लिएबिक्री-कर फर्म देती है। फर्म इसका भार थोक व्यापारियों पर, थोक व्यापारी फुटकर व्यापारी पर तथा फुटकर व्यापारी मूल्य-वृद्धि करके उपभोक्ताओं पर टाल देता है।

2. मितव्ययिता का अभाव – इन करों को वसूल करने में सरकार को अधिक व्यय करना पड़ता है। इस कारण ये मितव्ययी नहीं होते।

3. न्यायसंगत नहीं – अप्रत्यक्ष कर प्रायः वस्तुओं एवं सेवाओं के उपभोग पर (UPBoardSolutions.com) लगाये जाते हैं। इसलिए इनको भार निर्धन वर्ग पर अधिक पड़ता है।

4. ये कर अनिश्चित होते हैं – परोक्ष करों से होने वाली आय अनिश्चित होती है, क्योंकि अप्रत्यक्ष कर वस्तुओं की बिक्री की मात्रा पर निर्भर होते हैं। उपभोक्ताओं की माँग का पूर्वानुमान प्राय: लगाना कठिन होता है; अतः यह कहा जा सकता है कि अप्रत्यक्ष कर अनिश्चित होते हैं।

5. करों की चोरी का प्रयास – अप्रत्यक्ष करों की चोरी का प्रयास भी किया जाता है। उदाहरण के लिए–सरकार बिक्री-कर लगाती है। विक्रेता वस्तुओं की बिक्री का झूठा लेखा-जोखा रखता है तथा बिक्री-कर को राजकोष में जमा नहीं करता है, जब कि उपभोक्ताओं से यह वसूल कर लिया जाता है।

6. नागरिकता की भावना का अभाव – करदाताओं को अप्रत्यक्ष करों का भुगतान करते समय कर-भार अनुभव नहीं होता है। इसलिए उन्हें इस विषय में किसी प्रकार की रुचि नहीं होती है कि कर का उपभोग जनहित की दृष्टि से हो रहा है या नहीं।

UP Board Solutions

7. प्रभावपूर्ण माँग में कमी – अप्रत्यक्ष करों की दरों में वृद्धि करने से वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिनके कारण वस्तुओं की माँग में कमी आती है। माँग में कमी का प्रभाव उत्पादन एवं राष्ट्रीय आय दोनों पर पड़ता है, जिससे राष्ट्र के विकास में बाधा पड़ती है।

प्रश्न 5.
राज्य सरकार की आय के मुख्य स्रोत क्या हैं ? [2014, 15, 17, 18]
उत्तर :
राज्य सरकार को विभिन्न मदों से प्राप्त होने वाली आय को मुख्य रूप से दो भागों में विभक्त किया जा सकता है –

  1. कर-राजस्व तथा
  2. गैर-कर राजस्व। प्रदेश की आय में गैर-करे राजस्व की अपेक्षा कर राजस्व का अधिक योगदान है।

राज्य सरकार की आय की मदों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है –

1. भू-राजस्व या मालगुजारी – यह एक अति प्राचीन कर है। सन् 1948 ई० तक कुल आय का लगभग आधा भाग भू-राजस्व या मालगुजारी से प्राप्त होता था। जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के बाद इस मद से प्राप्त होने वाली आय में धीरे-धीरे कमी होने लगी। इसका भुगतान फसल के समय किया जाता है। सूखा, बाढ़ या अन्य प्राकृतिक विपदा से फसल नष्ट होने पर भू-राजस्व में उदारतापूर्वक छूट भी दी जाती है। वर्तमान में 6.5 एकड़ से अधिक भूमि पर भू-राजस्व लिया जाता है।

2. व्यापारकर या बिक्री कर – ‘बिक्री कर’ या व्यापार कर राज्य सरकार की आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। यह एक अप्रत्यक्ष कर है, जिसे 1948 ई० में उत्तर प्रदेश में लागू किया गया था। यह विभिन्न वस्तुओं की बिक्री पर लगाया जाता है, किन्तु विक्रेता इसके भार को मूल्य में वृद्धि करके क्रेताओं पर टाल देते हैं।

3. राज्य उत्पादन शुल्क – ‘राज्य उत्पादन शुल्क राज्य की आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। यह एक परोक्ष कर है, जिसे सामान्यतः ऊँची दरों में मादक वस्तुओं; जैसे-शराब, गाँजा, अफीम, चरस, ताड़ी आदि पर लगाया जाता है। प्रदेश सरकार को इस मद से पर्याप्त आय प्राप्त होती है।

UP Board Solutions

4. स्टाम्प व पंजीयन शुल्क – ‘स्टाम्प शुल्क’ प्राय: दो प्रकार का होता है –

  • न्यायिक स्टाम्प एवं
  • व्यापारिक स्टाम्प।

न्यायिक स्टाम्प न्यायालय में मुकदमा या अन्य कार्यवाही के लिए लगाया जाता है, जब कि व्यापारिक स्टाम्प सम्पत्ति के हस्तान्तरण, उपहार अथवा व्यापारिक सौदों पर लगाया जाता, है इसी प्रकार पंजीयन शुल्क (रजिस्ट्री शुल्क) भी राज्य सरकार की आय का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।

5. कृषि आयकर – कृषि आयकर राज्य सरकार की आय का प्रमुख स्रोत है। भारत के अनेक राज्यों में कृषि को आयकर से मुक्त रखा गया है, किन्तु उत्तर प्रदेश सरकार कृषि क्षेत्र पर कर लगाती है। जमींदारी उन्मूलन के बाद से कृषि आयकर से प्राप्त आय में पर्याप्त कमी (UPBoardSolutions.com) हुई है और अब यह नाममात्र का स्रोत रह गया है। जिन व्यक्तियों की आय आयकर अधिनियम के अन्तर्गत न्यूनतम सीमा से कम होती है, उन्हें कृषि-आय पर कर नहीं देना पड़ता, परन्तु जिनकी आय अधिक होती है उन्हें कृषि आयकर देना पड़ता है।

6. केन्द्र सरकार से अनुदान या सहायता – केन्द्र सरकार आयकर, केन्द्रीय उत्पाद कर, सम्पदा शुल्क आदि से प्राप्त आय का कुछ भाग वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्यों में वितरित करती है। केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों को आर्थिक विकास कार्यों के लिए भी सहायता दी जाती है। इसके अतिरिक्त राज्यों को कभी-कभी बाढ़, सूखा या अन्य प्राकृतिक विपदाओं से निपटने के लिए भी केन्द्र द्वारा विशेष सहायता प्रदान की जाती है। ये राज्य सरकार की आय के प्रमुख स्रोत होते हैं।

7. वाहन कर – मोटर, ट्रकों इत्यादि परिवहन वाहनों पर राज्य सरकार द्वारा कर लगाया जाता है। यह राज्य सरकारों विशेषकर उत्तर प्रदेश सरकार की आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

8. मनोरंजन कर – राज्य सरकार द्वारा मनोरंजन स्थलों, सिनेमाघर आदि पर मनोरंजन कर लगाया जाता | है। यह भी राज्य सरकारों विशेषकर उत्तर प्रदेश सरकार की आय का एक अच्छा स्रोत है। उपर्युक्त करों के अतिरिक्त राज्य सरकार को माल एवं यात्रियों पर कर, विद्युत कर और शुल्क आदि से भी पर्याप्त आय प्राप्त होती है। ये सभी राज्य सरकार की कर राजस्व की मदे हैं। निम्नलिखित मदें राज्य सरकार की गैर-कर राजस्व प्राप्ति की मदें हैं

9. सरकारी उपक्रमों से आय – राज्य सरकारों (उत्तर प्रदेश सरकार) को सरकारी उपक्रमों; जैसे—वन, सिंचाई, बिजली, सार्वजनिक निर्माण, सार्वजनिक उद्योगों से भी आय प्राप्त होती है। सड़क परिवहन व जल परिवहन भी राज्य की आय के मुख्य स्रोत हैं।

10. सामान्य प्रशासन – सामान्य प्रशासन के अन्तर्गत न्यायालय, जेल, पुलिस, शिक्षा, चिकित्सा, कृषि, सहकारिता इत्यादि क्षेत्र आते हैं। इनसे भी राज्य सरकार को आय प्राप्त होती है।

11. ब्याज प्राप्तियाँ, लाभांश और लाभ – प्रदेश सरकार को अपने द्वारा दिये गये ऋणों पर ब्याज तथा सरकारी क्षेत्र के उद्यमों से लाभांश व लाभ प्राप्त होता है। इस प्रकार ब्याज प्राप्तियाँ, लाभांश और लाभ द्वारा भी प्रदेश सरकार को आय होती है।

12. मूल्य संवद्धित कर – यह वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान के प्रत्येक बिन्दु पर प्राथमिक उत्पादन से लेकर अन्तिम उपभोग पर लगाया जाता है। यह उत्पाद की बिक्री और उनमें प्रयुक्त आदाओं की लागतों के अन्तर पर लगाया जाता है। इक्कीस राज्य एवं सभी केन्द्रशासित प्रदेश 1 अप्रैल, 2005 ई० से इसे लागू करने पर सहमत हुए। उत्तर प्रदेश में इसे कुछ समय पहले ही लागू किया गया है।

UP Board Solutions

प्रश्न 6.
उत्तर प्रदेश सरकार की व्यय की मदों का उल्लेख कीजिए।
          या
राज्य सरकार की व्यय की किन्हीं तीन मदों का उल्लेख कीजिए। [2013]
उत्तर :
उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व व्यय को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है

(अ) आयोजनागत व्यय – इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से करों की वसूली का व्यय, प्रशासनिक सेवाओं पर व्यय एवं सामाजिक, सामुदायिक तथा आर्थिक सेवाओं पर हुए व्यय सम्मिलित किये जाते हैं।
(ब) आयोजनेतर व्यय – इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से करों की वसूली, ब्याज को भुगतान, ऋण सेवा, सामान्य प्रशासनिक सेवाएँ एवं सामाजिक, सामुदायिक तथा आर्थिक सेवाओं पर किये जाने वाले व्यय सम्मिलित किये जाते हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार की व्यय की मुख्य मदें निम्नलिखित हैं –

1. कर-शुल्क व अन्य राजस्वों की वसूली – इस मद के अन्तर्गत कृषि आयकर, भू-राजस्व, राज्य उत्पादन कर, वाहन कर, बिक्री कर, स्टाम्प, रजिस्ट्री शुल्क, मनोरंजन कर इत्यादि की वसूली में होने वाले व्ययं सम्मिलित किये जाते हैं। सरकार को इन्हें वसूल करने (UPBoardSolutions.com) में पर्याप्त व्यय.करना पड़ता है।

2. सार्वजनिक या सामान्य प्रशासन पर व्यय – सार्वजनिक प्रशासन के अन्तर्गत न्याय, जेल, पुलिस, चिकित्सा इत्यादि विभागों के प्रशासनिक व्यय सम्मिलित होते हैं। सामान्य प्रशासन में विधानमण्डल, राज्यपाल, मन्त्रिपरिषद् के निर्वाचन एवं वेतन-भत्ते के व्यय, सचिवालय, लोक सेवा आयोग, जिला प्रशासन, कोषागार, सार्वजनिक निर्माण कार्य पर होने वाले मदों को सम्मिलित किया जाता है। पेंशन तथा प्रकीर्ण सेवाओं पर होने वाले व्ययों को भी इसी मद में रखा जाता है।

3. ब्याज भुगतान व ऋण सेवा – सरकार समय-समय पर अपने अतिरिक्त व्ययों की पूर्ति के लिए ऋण लेती है। इन ऋणों के भुगतान एवं ब्याज के भुगतान पर भी सरकार को प्रति वर्ष व्यय करना पड़ता है। उपर्युक्त व्यय प्रदेश सरकार द्वारा गैर-योजनागत मद के अन्तर्गत किये जाते हैं। प्रदेश सरकार द्वारा किये गये अग्रलिखित व्यय योजनागत मदों के अन्तर्गत किये जाते हैं –

UP Board Solutions

4. सामाजिक, सामुदायिक एवं आर्थिक सेवाएँ तथा सहायक अनुदान – इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से शिक्षा, कला, संस्कृति, चिकित्सा, सार्वजनिक स्वास्थ्य व परिवार कल्याण, श्रम और सेवायोजन, सहकारिता, कृषि, सिंचाई, भू-संरक्षण, क्षेत्र विकास, पशुपालन, वन, सामुदायिक विकास, उद्योग व खनिज, जलविद्युत, परिवहन एवं संचार, विशेष व पिछड़े हुए क्षेत्र आदि मदें सम्मिलित की जाती हैं। इन मदों पर सरकार द्वारा पर्याप्त व्यय किया जाता है।

5. शिक्षा, कला एवं संस्कृति – शिक्षा के अन्तर्गत प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च शिक्षा, तकनीकी, प्रावैगिक व चिकित्सा शिक्षा आते हैं। इसके अतिरिक्त सांस्कृतिक विकास पर भी सरकार पर्याप्त व्यय करती है।

6. कृषि-सम्बन्धी विकास – कृषि विकास कार्यक्रमों के अन्तर्गत मुख्य रूप से कृषि, पशुपालन, सहकारिता, लघु सिंचाई, भू-संरक्षण, मत्स्यपालन, डेयरी उद्योग इत्यादि मदों को सम्मिलित करते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार इन मदों पर प्रति वर्ष अरबों रुपये व्यय करती है।

7. चिकित्सा, सार्वजनिक स्वच्छता, स्वास्थ्य व परिवार कल्याण – उत्तर प्रदेश सरकार चिकित्सा, परिवार नियोजन व सार्वजनिक स्वच्छता एवं स्वास्थ्य व परिवार कल्याण पर प्रति वर्ष पर्याप्त धनराशि व्यय करती है।

8. सामुदायिक विकास सेवाएँ – राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर सामाजिक व आर्थिक असमानताओं को कम करने के लिए अनेक कल्याणकारी कार्यक्रम संचालित किये जाते हैं, जिन पर उसे अत्यधिक धनराशि का व्यय करना पड़ता है।

9. उद्योग व खनिज – उद्योग व खनिज विकास पर उत्तर प्रदेश सरकार प्रति वर्ष करोड़ों रुपये व्यय करती है।

10. जल-विद्युत एवं विकास – राज्य द्वारा ग्रामीण विद्युतीकरण की नीति को लागू करने हेतु तथा पेयजल समस्या को दूर करने के लिए अनेक कार्यक्रम चलाये गये हैं। नदी-घाटी योजनाएँ, नलकूप निर्माण, ताप बिजलीघरों की स्थापना आदि विकास-कार्यक्रमों पर सरकार द्वारा अत्यधिक व्यय किया जाता है।

11. परिवहन व संचार – तार, वायरलेस, राजकीय परिवहन व संचार की मदों पर भी उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पर्याप्त व्यय किया जाता है।

12. विशेष एवं पिछड़े हुए क्षेत्र – प्रदेश के विशेष रूप से पिछड़े या विशेष क्षेत्रों पर भी सरकार अत्यधिक व्यय करती है। इन क्षेत्रों के विभिन्न विकास-कार्यक्रमों पर राज्य सरकार द्वारा अतिरिक्त धनराशि का व्यय किया जाता है।

UP Board Solutions

प्रश्न 7.
उत्तर प्रदेश में जिला परिषदों की आय के स्रोतों एवं व्यय की प्रमुख मदों का वर्णन कीजिए।
          या
जिला परिषदों के व्यय की तीन मदें लिखिए।
उत्तर :
जिला परिषदों के कार्य-क्षेत्र के अन्तर्गत जिले का सम्पूर्ण ग्रामीण क्षेत्र आता है। इन परिषदों के मुख्य कार्य सड़कों का निर्माण व मरम्मत, शिक्षा की व्यवस्था, मानव, व पशु चिकित्सालयों की व्यवस्था, दुर्भिक्ष निवारण कार्य, विश्रामगृहों की स्थापना, प्रशिक्षण व्यवस्था, (UPBoardSolutions.com) मेलों पर नियन्त्रण, बाजार आदि की व्यवस्था, सफाई आदि हैं।

जिला परिषद् की आय के स्रोत

जिला परिषद् की आय के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं –

1. भूमि उप-कर – जिला परिषदों की आय का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत भूमि उप-कर है। यह मालगुजारी पर अधिभार होता है, जिसको राज्य सरकारें स्थानीय संस्थाओं के लिए एकत्रित करती हैं। उत्तर प्रदेश में इस उप-कर को मालगुजारी में विलीन कर दिया गया है और इसके बदले में राज्य सरकार जिला परिषदों को क्षतिपूर्ति अनुदान देती है।

2. सम्पत्ति कर – यह मनुष्य की कुल सम्पत्ति अथवा आय के आधार पर लगाया जाता है। इस कर की प्रकृति प्रगतिशील होती है।

3. महसूल या मार्ग शुल्क – जिला परिषद् नदी के घाट, पुल, सड़क एवं तालाबों पर कर (महसूल) | लेती है। जो व्यक्ति अपने पशु अथवा वाहन से इन पुलों, सड़कों या घाटों से आते-जाते हैं, उन्हें यह मार्ग शुल्क देना पड़ता है।

4. काँजी हाउस – आवारा पशुओं को पकड़ने के लिए जिला परिषद् कॉजी हाउस की व्यवस्था करती | है। इसमें आवारा घूमने वाले पशुओं को बन्द कर दिया जाता है और पशु मालिकों से जुर्माना लेकर ही पशुओं को छोड़ा जाता है।

5. किराया व शुल्क – जिला परिषद् सराय, हाट, डाक बंगले, मकान, दुकान आदि से किराये के रूप में तथा संस्थाओं व चिकित्सालयों से फीस के रूप में आय प्राप्त करती है।

6. अनुज्ञा-पत्र शुल्क – जिला परिषद् कसाइयों से, गोश्त की दुकानों से, वनस्पति घी की दुकानों से, आटे की चक्की आदि से अनुज्ञा-पत्र जारी करके शुल्क प्राप्त करती है।

7. मेलों, प्रदर्शनियों व बाजारों से आय – जिला पंचायतों के क्षेत्र में जिन प्रमुख मेलों व प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाता है, उसका प्रबन्धन जिला पंचायत को करना पड़ता है। इसके आयोजन से जो आय प्राप्त होती है, वह जिला परिषद् को मिल जाती है।

8. कृषि उपकरणों की बिक्री से आय – जिला परिषद् खाद, बीज, कृषि-यन्त्र आदि की बिक्री की भी व्यवस्था करती है। इनकी बिक्री से भी लाभ के रूप में उसे कुछ आय प्राप्त होती है।

9. सरकारी अनुदान – राज्य सरकार जिला परिषदों को पर्याप्त मात्रा में आर्थिक अनुदान (UPBoardSolutions.com) (Grant) शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा आदि के विकास के लिए देती है। यह जिला परिषदों की कुल आय का40% तक होता है।

UP Board Solutions

जिला परिषद की व्ययं की मदें

जिला परिषदों के व्यय की प्रमुख मदें निम्नलिखित हैं –

1. शिक्षा – जिला परिष0द् ग्रामीण क्षेत्रों में प्राइमरी तथा जूनियर हाईस्कूल तथा वाचनालयों की व्यवस्था करती है। इस मद पर जिला परिषद् की आय का एक बड़ा भाग व्यय हो जाता है।

2. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य पर व्यय – जिला परिषद् ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सालयों एवं जच्चा- बच्चा गृहों की व्यवस्था करती है तथा संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए नि:शुल्क टीके लगवाती है।

3. पशु चिकित्सालय – जिला परिषद् पशुओं की चिकित्सा के लिए पशु चिकित्सालयों की स्थापना | करती है।

4. सार्वजनिक निर्माण कार्य – जिला परिषद् घाटे व गाँवों में सड़कें बनवाने, तालाब व कुएँ खुदवाने, वृक्ष लगवाने, पुलों का निर्माण करने तथा इन सबकी मरम्मत कराने में पर्याप्त व्यय करती है।

5. प्रशासन व कर वसूली – जिला परिषद् अपने कार्यालय की व्यवस्था करने, अपने कर्मचारियों को वेतन देने व कर वसूलने में पर्याप्त व्यय करती है।

6. पंचायतों को सहायता – जिला परिषद् अपने क्षेत्र की ग्राम पंचायतों तथा क्षेत्रीय समितियों के कार्यों का निरीक्षण करती है तथा उनके विकास के लिए आर्थिक अनुदान देती है।

7. मेले व प्रदर्शनियाँ – जिला परिषद् अपने क्षेत्र में मेले व प्रदर्शनियों की व्यवस्था पर पर्याप्त व्यय करती है।

8. अन्य मदें – जिला परिषद् दीन-दु:खियों तथा अपाहिजों की सहायता करती है, जन्म-मृत्यु का विवरण रखती है, कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करती है तथा पशुओं के रोगों की रोकथाम की व्यवस्था करती है। जिला परिषद् कभी-कभी जिले के आर्थिक विकास (UPBoardSolutions.com) के लिए ऋण भी ले लेती है, जिस पर उसे ब्याज भी देना पड़ता है।

प्रश्न 8.
उत्तर प्रदेश के नगर निगम या नगरपालिका की आय के स्रोतों तथा व्यय की प्रमुख मदों का वर्णन कीजिए।
          या
नगरपालिका की आय के स्रोत लिखिए।
          या
नगरपालिकाओं के व्यय की तीन मुख्य मदें लिखिए।
          या
नगरनिगमों की आय के स्रोत लिखिए।
उत्तर :
नगर निगम उत्तर प्रदेश के महानगरों (जैसे-लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, आगरा, इलाहाबाद, गोरखपुर, मुरादाबाद, बरेली व मेरठ) की व्यवस्था करते हैं। ये प्राय: वही कार्य करते हैं, जो पूर्व में नगर महापालिकाएँ किया करती थीं; अन्तर केवल इतना ही है कि ये अधिक शक्तिशाली होते हैं, इनका कार्य-क्षेत्र अधिकं विस्तृत होता है, इन्हें कर लगाने तथा वसूल करने के अधिक अधिकार प्राप्त होते हैं तथा इन पर राज्य सरकार का उतना नियन्त्रण नहीं होता जितना नगर महापालिकाओं पर होता है।

UP Board Solutions

नगर निगम या नगरपालिका की आय के स्रोत

नगर निगम या नगरपालिका की आय के दो प्रमुख साधन हैं –

  • (अ) कर आगम एवं
  • (ब) गैर-कर आगम।

(अ) कर आगम – नगर निगम को निम्नलिखित करों से आय प्राप्त होती है

1. सम्पत्ति कर – यह नगर निगम की आय का प्रमुख स्रोत है। यह कर उसकी सीमा में स्थित भूमि, मकान तथा सम्पत्तियों के स्वामियों पर लगाया जाता है। ये निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं

  1. गृह व भूमि-कर – यह कर मकान व भूमि की वार्षिक आय पर लगाया जाता है और उसके स्वामी से वसूल किया जाता है।
  2. सुधार कर – यह कर नगर सुधार योजनाओं के कारण शहरी भूमि के मूल्य में होने वाली वृद्धि पर लगाया जाता है।
  3. सेवा कर – नगर निगम सेवाओं पर भी कर लगाते हैं; जैसे-जल-कर, माल-वाहन कर, विद्युत व अग्नि कर आदि।

2. चुंगी – नगर निगमों की सीमा में प्रवेश करने वाले माल पर जो कर लगाया जाता है, उसे चुंगी कहते हैं। नगर निगम की आय का यह सबसे बड़ा स्रोत है। चुंगी वस्तुओं की तोल पर या मूल्यानुसार लगायी जाती है। उत्तर प्रदेश में चुंगी समाप्त कर दी गयी है।

3. सीमा कर – यह कर रेल द्वारा किसी स्थानीय क्षेत्र में आने वाले पदार्थों पर लगाया जाता है।

4. मार्ग-कर – यह कर किसी स्थान, पुल या सड़क पर से गुजरने वाले प्रत्येक व्यक्ति, पशु, घोड़ागाड़ी आदि वाहनों से निश्चित दर (भार अथवा संख्या) पर वसूल किया जाता है।

5. तहबाजारी – यह कर अस्थायी अर्थात् ऐसे दुकानदारों से वसूल किया जाता है, (UPBoardSolutions.com) जो सड़क की पटरियों पर रखकर अपना सामान बेचते हैं; जैसे-खोमचेवाले, फेरीवाले, हॉकर्स आदि।

6. शुल्क या अनुज्ञा-पत्र – इसके अन्तर्गत निम्नलिखित प्रकार के शुल्क सम्मिलित हैं

  1. नगर निगमों द्वारा प्रदान की गयी विशेष सेवाओं का शुल्क; जैसे-नोटिस शुल्क, नकल लेने का शुल्क आदि।
  2. विलासिता की सामग्री पर लगाये गये शुल्क; जैसे—मोटरगाड़ियों तथा कुत्ते रखने पर अनुज्ञा-पत्र शुल्क, ताँगा, इक्का, बैलगाड़ी, ठेली-रिक्शा आदि पर अनुज्ञा-पत्र शुल्क।
  3. अन्य मदों पर अनुज्ञा-पत्र।

(ब) गैर-कर आगम – नगर निगम की गैर-कर आगम से प्राप्त आय के प्रमुख साधन निम्नलिखित हैं

  1. भूमि का लगान तथा मकानों, विश्रामगृहों एवं डाक बँगलों का किराया।
  2. भूमि-कंर तथा भूमि की उपज से प्राप्त आय।
  3. बाजारों तथा बूचड़खानों से प्राप्त आय।
  4. विनियोगों पर प्राप्त आय।
  5. वाणिज्य व्यवसायों (जैसे—ट्राम सेवाओं, मोटरगाड़ियों, बिजली व गैस पदार्थों, जल-आपूर्ति सेवाओं आदि) से प्राप्त आय।
  6. राज्य सरकारों से प्राप्त अनुदान। ये दो प्रकार के होते हैं-
    (i) आवर्ती अनुदान, जो प्रति वर्ष दिये जाते हैं तथा
    (ii) अनावर्ती अनुदान, जो किसी विशेष कार्य को सम्पन्न करने के लिए दिये जाते हैं।

UP Board Solutions

नगर निगम या नगरपालिका की व्यय की प्रमुख मदें

नगर निगम या नगरपालिका की व्यय की प्रमुख मदों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है –

1. शिक्षा – नगर निगम प्राथमिक शिक्षा, जूनियर शिक्षा व कभी-कभी माध्यमिक शिक्षा का भी प्रबन्ध करती है। स्कूलों का निर्माण करना, उनके संचालन के लिए आवश्यक सामग्री जुटाना, अध्यापकों को वेतन देना आदि व्यय इस मद में सम्मिलित होते हैं।

2. जन-स्वास्थ्य सेवाएँ – इस मद में ये व्यय सम्मिलित होते हैं-शुद्ध जल की व्यवस्था करना, गन्दे पानी की निकासी की व्यवस्था करना, सफाई का प्रबन्ध करना, महामारियों की रोकथाम करना, टीका लगवाना, खाद्य पदार्थों में मिलावट को रोकना, चिकित्सालयों की व्यवस्था करना आदि। नगर निगमों का पर्याप्त धन इन मदों पर व्यय होता है।

3. सार्वजनिक सुरक्षा – इस मद में ये व्यय आते हैं—आग बुझाने के लिए (UPBoardSolutions.com) फायर ब्रिगेड का प्रबन्ध करना, गलियों में प्रकाश की व्यवस्था करना, हानिकारक पशुओं से रक्षा करना, सड़कों के चौराहों पर पुलिस के खड़े होने के लिए चबूतरे बनवाना, सार्वजनिक स्थानों पर बिजली व प्रकाश का प्रबन्ध करना आदि।

4. जनसाधारण की सुविधा – इस मद में ये व्यय सम्मिलित किये जाते हैं-सड़क, पुल व नाली बनवाना; पुस्तकालय या वाचनालय का प्रबन्ध करना; सड़कों पर पानी छिड़कवाना; सड़कों के दोनों ओर छायादार वृक्ष लगवाना; बाजार, मेले व प्रदर्शनियों आदि का आयोजन करना।

5. प्रशासन और कर-संग्रह पर व्यय – इन्हें अपने प्रशासन हेतु कार्यालयों की व्यवस्था करनी होती है। अत: कार्यालयों के कर्मचारियों के वेतन तथा सामग्री पर व्यय करना पड़ता है। करों को वसूल करने में भी आय का पर्याप्त भाग व्यय हो जाता है।

6. सार्वजनिक निर्माण-कार्य – नगरपालिकाओं को उद्यानों व पार्को की व्यवस्था करनी पड़ती है, खेल के मैदान एवं व्यायामशालाओं आदि का निर्माण भी करना पड़ता है तथा अपने क्षेत्र की टूटी-फूटी सड़कों का निर्माण एवं मरम्मत भी करानी पड़ती है। इन सभी कार्यों को सम्पादित करने में उसे प्रति वर्ष पर्याप्त धन व्यय करना पड़ता है।

7. पेयजल की व्यवस्था पर व्यय – नागरिकों के पीने के लिए शुद्ध जल की व्यवस्था करने के लिए नगरपालिकाएँ नलकूपों का निर्माण कराकर टंकियों के माध्यम से पेयजल की व्यवस्था करती हैं तथा सार्वजनिक स्थानों पर नल भी लगवाती हैं। इस मद पर भी इन्हें धन व्यय करना पड़ता है।

प्रश्न 9.
ग्राम पंचायतों की आय के स्रोत एवं व्यय की प्रमुख मदों का वर्णन कीजिए।
          या
ग्राम पंचायत के किन्हीं दो आय के साधनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
भारत की शासन-प्रणाली प्रजातान्त्रिक है। प्रजातन्त्र को गाँवों तक पहुँचाने के (UPBoardSolutions.com) उद्देश्य से हमारे संविधान में पंचायती राज की व्यवस्था की गयी है। इस दृष्टि से उत्तर प्रदेश सरकार ने सन् 1947 ई० में पंचायती राज अधिनियम पारित करके ग्रामों में तीन प्रकार की संस्थाओं की स्थापना की-

  1. ग्राम सभा
  2. ग्राम पंचायत तथा
  3. न्याय पंचायत।

इस प्रकार ग्राम पंचायत ग्रामीण स्वशासन की दूसरी इकाई है। ग्राम पंचायत ग्राम सभा द्वारा निर्धारित नीतियों को लागू करती है।

UP Board Solutions

ग्राम पंचायत की आय के स्रोत

ग्राम पंचायतों की आय के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं –

1. अनिवार्य कर –

  1. सम्पत्ति हस्तान्तरण पर चुंगी
  2. सवारी कर
  3. भूमि कर
  4. पेशा (उद्यम) कर।

2. महसूल –

  1. व्यापारिक फसलों के क्रय-विक्रय पर शुल्क
  2. भूमि उपकर एवं
  3. कृषि योग्य भूमि पर कर।

3. अन्य शुल्क –

  1. बाजारों पर शुल्क
  2. जमीन पर रोजगार शुल्क
  3. दलालों व एजेण्टों पर लाइसेन्स शुल्क
  4. अन्य कार्यों की स्वीकृति पर शुल्क
  5. बूचड़खानों पर शुल्क
  6. बैलगाड़ी ठहरने के स्थानों पर शुल्क
  7. सड़क व सार्वजनिक स्थानों पर शुल्क।

4. जिला बोर्ड से सहायता –

  1. प्राथमिक विद्यालय के व्यय के एक भाग की पूर्ति करना
  2. ग्रामीण बाजारों की व्यवस्था हेतु धनराशि प्राप्त करना
  3. घाटे की व्यवस्था करने पर आय-व्यय का अन्त।

UP Board Solutions

ग्राम पंचायत की व्यय की मदें

ग्राम पंचायतों की व्यय की मुख्य मदें निम्नलिखित हैं –

  1. सफाई एवं प्रकाश की व्यवस्था पर व्यय।
  2. चिकित्सालय की व्यवस्था एवं संक्रामक रोगों की रोकथाम पर किये जाने वाले व्यय।
  3. शवों के दाह-संस्कार की व्यवस्था पर व्यय।
  4. शिक्षा व्यवस्था पर व्यय।
  5. सार्वजनिक सुविधाएँ; जैसे-तालाब, पोखर, (UPBoardSolutions.com) कुओं आदि उपलब्ध करने पर व्यय।
  6. शुद्ध पेयजल की व्यवस्था पर व्यय।
  7. खेल-कूद व्यवस्था पर व्यय।
  8. बाजार, हाट व मेलों आदि के प्रबन्धं पर व्यय।
  9. पुस्तकालयों एवं वाचनालयों की व्यवस्था पर व्यय।
  10. बंजर एवं चरागाह भूमि के विकास पर व्यय।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कर किसे कहते हैं ? एक अच्छी कर-प्रणाली के लक्षण लिखिए।
उत्तर :

कर

कर एक अनिवार्य अंशदान है, जो करदाता को देना होता है। करदाता को इसके बदले में प्रत्यक्ष लाभ का कोई आश्वासन नहीं दिया जाता, करों का उपयोग सार्वजनिक हित में किया जाता है। डाल्टन के अनुसार, “कर किसी सार्वजनिक सत्ता द्वारा प्राप्त किया हुआ (UPBoardSolutions.com) एक अनिवार्य अंशदान है, चाहे करदाता को बदले में उतनी राशि की सेवा प्राप्त हो या न हो और न यह किसी कानूनी अपराध के लिए दण्डस्वरूप लगाया जाता है।”

अच्छी कर-प्रणाली के लक्षण (विशेषताएँ)

एक अच्छी कर-प्रणाली में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए –

  1. कर-प्रणाली सरल एवं सुविधाजनक होनी चाहिए जिससे करदाता को कर का भुगतान करने में मानसिक कष्ट न हो।
  2. एक अच्छी कर-प्रणाली अधिकतम सामाजिक लाभ के सिद्धान्त पर आधारित होती है।
  3. कर-प्रणाली प्रगतिशील होनी चाहिए अर्थात् कर-प्रणाली ऐसी हो जिससे कर या भार धनी वर्ग पर अधिक व निर्धन वर्ग पर कम पड़े।
  4. एक अच्छी कर-प्रणाली में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों करों का समावेश होता है।
  5. एक अच्छी कर-प्रणाली में लोच का गुण पाया जाता है, जिससे (UPBoardSolutions.com) आवश्यकतानुसार करों की मात्रा में वृद्धि व कमी की जा सके।
  6. कर-प्रणाली मितव्ययी होनी चाहिए।
  7. एक अच्छी कर-प्रणाली विलासिता एवं मादक वस्तुओं के उपभोग को हतोत्साहित करती है।
  8. बचत एवं पूँजी निर्माण को प्रोत्साहित करना अच्छी कर-प्रणाली का गुण है।
  9. अच्छी कर-प्रणाली आर्थिक विकास को गति प्रदान करती है।
  10. अच्छी कर-प्रणाली में उत्पादकता का गुण होता है।
  11. अच्छी कर-प्रणाली में करों का भार समाज पर कम पड़ता है।
  12. कर-प्रणाली में निश्चितता का गुण होना चाहिए।

UP Board Solutions

प्रश्न 2.
सार्वजनिक वित्त और निजी वित्त में अन्तर लिखिए।
उत्तर :
सार्वजनिक वित्त और निजी वित्त में निम्नलिखित तीन अन्तर हैं –

  1. व्यक्ति अपना व्यय अपनी आय के अनुसार निर्धारित करता है, जबकि सरकार अपने व्यय के अनुसार आय-प्राप्ति के साधन खोजती है।
  2. व्यक्ति की आय के साधन सीमित होते हैं, जब कि सरकार के पास आय के साधनों की प्रचुरता होती है।
  3. व्यक्ति अपनी आय-व्यय के हिसाब को प्राय: गुप्त रखता है, जबकि सार्वजनिक वित्त का विस्तृत विवरण प्रकाशित किया जाता है।

प्रश्न 3.
प्रत्यक्ष कर वे अप्रत्यक्ष कर में अन्तर स्पष्ट कीजिए। या प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों का अन्तर बताइए। प्रत्यक्ष कर के तीन स्रोत बताइट। [2015]
उत्तर :
प्रत्यक्ष कर वह कर है, जिसका भुगतान करदाता प्रत्यक्ष रूप से नकद रूप में कर अधिकारी को करता है। ऐसे करों का भार उन व्यक्तियों द्वारा ही वहन किया जाता है, जिन पर ये लगाये जाते हैं; जैसे-आयकर, निगम कर, मृत्यु कर आदि। इसके विपरीत अप्रत्यक्ष कर वे कर हैं, जिनके भार को करदाता दुसरों पर टालने में सफल हो जाते हैं। इन करों का तात्कालिक एवं अन्तिम भार अलग-अलग व्यक्तियों पर पड़ता है; जैसे–बिक्री कर, उत्पादन कर, सीमा,कर आदि।

प्रश्न 4.
कर के अर्थ एवं महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। या ‘कर’ क्या है ? [2010]
उत्तर :
अर्थ – कर एक अनिवार्य अंशदान है, जो करदाता को देना होता है। करदाता को कर के बदले में प्रत्यक्ष लाभ का कोई आश्वासन नहीं दिया जाता। करों का उपयोग सार्वजनिक हित में किया जाता है। महत्त्व-प्रत्येक देश की सरकार करों के माध्यम से देश की (UPBoardSolutions.com) आर्थिक विषमता को कम करने का प्रयास करती है। सरकार धनी वर्ग पर अधिक कर लगाकर तथा करों से प्राप्त आय को निर्धनों के कल्याण-कार्यों पर व्यय करके राष्ट्रीय आय को समान वितरण करती है, जिससे समाज में धनी व निर्धन वर्ग में गहरी खाई न बन सके।

प्रश्न 5.
आर्थिक विकास हेतु सरकार को कर लगाने चाहिए।’ इसके पक्ष में कोई दो तर्क लिखिए।
उत्तर :
वर्तमान युग लोकतन्त्रीय युग है। आज विश्व के अधिकांश देशों में प्रजातन्त्रीय शासन है। प्रजातन्त्रीय शासन में सरकार देश की रक्षा, शान्ति-व्यवस्था की स्थापना, न्याय प्रदानार्थ एवं देश के विकास के अनेक कार्य करती है, जिसके लिए उसे बड़ी मात्रा में धन की आवश्यकता होती है। धन एकत्र करने का एक स्रोत कर है। आर्थिक विकास के लिए सरकार को कर लगाने चाहिए, इसके पक्ष में दो तर्क निम्नलिखित हैं

  • सरकार देश में आर्थिक विकास, कृषि व उद्योगों के विकास, व्यापार के विकास तथा परिवहन के साधनों के विकास के लिए योजनाएँ बनाकर करोड़ों रुपये व्यय करती है। इस आर्थिक विकास का लाभ प्रत्येक नागरिक तथा पूरे देश को प्राप्त होता है; अतः सरकार को कर लगाकर आर्थिक विकास के लिए धन एकत्र करना चाहिए।
  • देश में आर्थिक विकास के लिए धन एकत्र करने के अन्य स्रोत हैं-देश-विदेशों से ऋण प्राप्त करना। इन ऋणों पर एक तो ब्याज देना पड़ता है और दूसरे, ये ऋण कभी-कभी ऐसी शर्तों पर दिये जाते हैं। कि इन शर्तों का पालन देश-हित में नहीं होता। अत: यह तर्कसंगत होगा कि विदेशों से ऋण प्राप्त करने के स्थान पर देश के नागरिकों, व्यापारियों आदि पर ही कर लगाकर धन एकत्र किया जाए।

UP Board Solutions

प्रश्न 6.
राजस्व की एक उचित परिभाषा दीजिए।
उत्तर :
राजस्व राज्य के वित्तीय पक्ष का विधिवत् अध्ययन करता है। आज राजस्व के विस्तृत एवं गहन दोनों ही प्रकार के कार्यों में तेजी से वृद्धि हो रही है। इन कार्यों के संचालन के लिए धन की आवश्यकता होती है। अत: धन कैसे जुटाया जाए और इसका व्यय कैसे किया जाए-इन सभी आय और व्यय से सम्बन्धित प्रक्रियाओं एवं व्यवस्थाओं का अध्ययन राजस्व के अन्तर्गत किया जाता है। संक्षेप में, ‘‘राजस्व अर्थ-विज्ञान का वह अंग है, जिसमें सरकार की आय (UPBoardSolutions.com) और व्यय तथा आय-व्यय सम्बन्धी प्रशासन का अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत मात्र विधियों का अध्ययन’ ही काफी नहीं है, वरन् उन सिद्धान्तों का पर्यवेक्षण भी आवश्यक है, जिनके अनुसार ये विधियाँ अपनाई जाती हैं।”

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजस्व से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
“राजस्व अर्थशास्त्र का वह अंग है, जिसमें सरकार की आय तथा व्यय और आय-व्यय सम्बन्धी प्रशासन का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 2.
जिला परिषद् की आय के दो साधन लिखिए।
उत्तर :
जिला परिषद् की आय के दो साधन हैं—

  1. हैसियत या सम्पत्ति कर तथा
  2. राज्य सरकार से अनुदान।

प्रश्न 3.
इस प्रदेश की जिला परिषद् की व्यय की दो प्रमुख मदों को लिखिए।
उत्तर :
उत्तर प्रदेश की जिला परिषद् की व्यय की दो प्रमुख मदें हैं—

  1. शिक्षा पर व्यय तथा
  2. करों की प्राप्ति पर व्यय।

प्रश्न 4.
जिला परिषद् के दो प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए। उत्तर जिला परिषद् के दो प्रमुख कार्य हैं –

  1. शिक्षा तथा
  2. सार्वजनिक स्वास्थ्य और चिकित्सी।

UP Board Solutions

प्रश्न 5.
नगर निगम की आय के दो साधन लिखिए। [2018]
उत्तर :
नगर निगम की आय के दो साधन हैं—

  1. सम्पत्ति-कर या गृह-कर तथा
  2. जल-कर।

प्रश्न 6.
नगरपालिकाओं की व्यय की दो प्रमुख मदों को लिखिए।
उत्तर :
नगरपालिकाओं की व्यय की दो प्रमुख मदें हैं-

  1. शिक्षा तथा
  2. सार्वजनिक स्वास्थ्य व चिकित्सा।

प्रश्न 7.
राज्य सरकार कौन-कौन से कर लगाती है ?
उत्तर :
राज्य सरकार द्वारा लगाये जाने वाले करों के नाम हैं-

  1. भू-राजस्व
  2. व्यापार कर
  3. राज्य उत्पादन कर तथा
  4. मनोरंजन कर।

प्रश्न 8.
प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर के दो-दो उदाहरण दीजिए। या प्रत्यक्ष कर के दो उदाहरण लिखिए। [2013]
उत्तर
प्रत्यक्ष कर के दो उदाहरण-आयकर और निगम कर। अप्रत्यक्ष कर के दो उदाहरण–बिक्री कर और उत्पादन कर।

UP Board Solutions

प्रश्न 9.
प्रत्यक्ष कर से आप क्या समझते हैं ? [2010]
उत्तर :
जो कर व्यक्तियों पर सीधे लगाये जाते हैं, उन्हें प्रत्यक्ष कर कहते हैं; जैसे-आयकर (UPBoardSolutions.com) व सम्पत्ति कर। प्रत्यक्ष करों का भार करदाता दूसरे व्यक्तियों पर नहीं डाल सकता।

प्रश्न 10.
आयकर किसे कहते हैं ?
उत्तर :
व्यक्तियों की आय (Income) पर जो कर लगाया जाता है, उसे आयकर कहते हैं। यह एक प्रत्यक्ष कर है।

प्रश्न 11.
नगर महापालिकाओं की आय के चार स्रोत लिखिए।
उत्तर :
नगर महापालिकाओं की आय के चार स्रोत हैं-गृह कर, सम्पत्ति कर, भूमि कर तथा जल कर।

प्रश्न 12.
ग्राम पंचायत की आय के दो स्रोत लिखिए।
उत्तर :
ग्राम पंचायत की आय के दो स्रोत हैं—

  1. अनिवार्य कर; जैसे—सवारी कर, भूमि कर, पेशा (उद्यम) कर।
  2. जिला पंचायत तथा राज्य सरकार से अनुदान।

प्रश्न 13.
ग्राम पंचायत के व्यय की दो मदें लिखिए।
उतर :
ग्राम पंचायत के व्यय की दो मुख्य मदें हैं—

  1. सफाई एवं प्रकाश की व्यवस्था तथा
  2. चिकित्सालय की व्यवस्था एवं संक्रामक रोगों की रोकथाम।

प्रश्न 14.
राज्य सरकार की आय के दो साधनों का उल्लेख कीजिए। [2014]
उत्तर :

  1. भू-राजस्व की मालगुजारी
  2. व्यापार कर।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. निम्नलिखित में से कौन-सा कर केन्द्र सरकार द्वारा लगाया जाता है?

(क) व्यापार कर
(ख) मनोरंजन कर
(ग) यात्री कर
(घ) निगम कर

2. आयकर सम्मिलित किया गया है [2014]

(क) संघ सूची में
(ख) राज्य सूची में
(ग) समवर्ती सूची में
(घ) इनमें से किसी में भी नहीं

3. संघीय सूची में कुल कितने विषय रखे गये हैं?

(क) 95
(ख) 96
(ग) 97
(घ) 98

4. समवर्ती सूची में कुल कितने विषय रखे गये थे?

(क) 50
(ख) 49
(ग) 52
(घ) 47

UP Board Solutions

5. निम्नलिखित में से कौन-सा प्रत्यक्ष कर है? [2011, 12]

(क) व्यापार कर
(ख) उत्पादन कर
(ग) आयकर
(घ) मनोरंजन कर

6. निम्नलिखित में से कौन-सा अप्रत्यक्ष कर है? [2011]

(क) आयकर
(ख) कॉपोरेशन कर
(ग) सीमा शुल्क
(घ) उपहार कर

7. अप्रत्यक्ष कर का उदाहरण है

(क) आयकर
(ख) बिक्री कर
(ग) सम्पत्ति कर
(घ) उपहार कर

8. ‘आयकर’ एक

(क) अप्रत्यक्ष कर है।
(ख) प्रत्यक्ष कर है।
(ग) प्रतिगामी कर है।
(घ) इनमें से कोई नहीं

9. कर है –

(क) अनिवार्य भुगतान
(ख) ऐच्छिक भुगतान
(ग) आर्थिक भुगतान
(घ) गैर-आर्थिक भुगतान

10. ग्राम पंचायत की स्थापना होती है

(क) महानगरों में
(ख) ग्रामीण क्षेत्रों में
(ग) ब्लॉक में
(घ) छोटे शहरों में

UP Board Solutions

11. निम्नलिखित में से कौन स्थानीय निकाय की आय का स्रोत है?

(क) आयकर
(ख) उत्पादन कर
(ग) चुंगी कर
(घ) व्यापार कर

12. निम्नलिखित में से कौन-सा कर राज्य सरकार लगाती है? [2009]

(क) आयकर
(ख) सेवा कर
(ग) व्यापार कर
(घ) निगम कर

13. इनमें से कौन-सा कर नगर निगम लगाती है?

(क) निगम कर
(ख) उत्पाद कर
(ग) बिजली व पानी कर
(घ) सम्पत्ति कर

14. निम्नलिखित में से कौन-सा कर केन्द्र सरकार द्वारा लगाया जाता है? [2015]

(क) आयात कर
(ख) मनोरंजन कर
(ग) यात्रा करे।
(घ) मार्ग कर

UP Board Solutions

15. आयकर लगाने का अधिकार किसे है? [2015, 17]

(क) राज्य सरकार को
(ख) केन्द्र सरकार को
(ग) महापालिका को
(घ) नगरपालिका को

16. ‘बिक्रीकर’ आय का साधन है [2016]

(क) केन्द्र सरकार का
(ख) राज्य सरकार का
(ग) जिला पंचायत का
(घ) ग्राम पंचायत का

17. भू-राजस्व आय का साधन है [2017, 18]

(क) केन्द्र सरकार का
(ख) राज्य सरकार का
(ग) ग्राम पंचायतों का
(घ) नगरपालिकाओं का

उत्तरमाला

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 (Section 4)

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 are helpful to complete your homework.

If you have any doubts, please comment below. UP Board Solutions try to provide online tutoring for you.

UP Board Solutions for Class 10 Hindi पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि और उनकी रचनाएँ

UP Board Solutions for Class 10 Hindi पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि और उनकी रचनाएँ

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि और उनकी रचनाएँ.

पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि और उनकी रचनाएँ

रचना           –         रचयिता

सूरसागर – सूरदास
सूर-सारावली – सूरदास
साहित्य-लहरी – सूरदास
श्रीरामचरितमानस – गोस्वामी तुलसीदास
विनयपत्रिका – गोस्वामी तुलसीदास
कवितावली – गोस्वामी तुलसीदास
गीतावली – गोस्वामी तुलसीदास (UPBoardSolutions.com)
दोहावली – गोस्वामी तुलसीदास
रामाज्ञा प्रश्न – गोस्वामी तुलसीदास
रामलला नहछु – गोस्वामी तुलसीदास
बरवै रामायण – गोस्वामी तुलसीदास
जानकी मंगल – गोस्वामी तुलसीदास
वैराग्य-संदीपनी – गोस्वामी तुलसीदास
पार्वती मंगल – गोस्वामी तुलसीदास
श्रीकृष्ण गीतावली – गोस्वामी तुलसीदास
UP Board Solutions
सुजान रसखान – रसखान
प्रेमवाटिका [2009, 12] – रसखान
बिहारी सतसई – बिहारी
वीणा – सुमित्रानन्दन पन्त
पल्लव – सुमित्रानन्दन पन्त
रश्मिबन्ध – सुमित्रानन्दन पन्त
गुंजन – सुमित्रानन्दन पन्त
युगान्त [2011, 14] – सुमित्रानन्दन पन्त
युगवाणी – सुमित्रानन्दन पन्त
ग्राम्या – सुमित्रानन्दन पन्त
उत्तरा – सुमित्रानन्दन पन्त
लोकायतन [2012, 14] – सुमित्रानन्दन पन्त
कला और बूढ़ा चाँद – सुमित्रानन्दन पन्त
स्वर्णधूलि ग्रन्थि (2009, 11] – सुमित्रानन्दन पन्त
चिदम्बरा [2012, 13, 17] – सुमित्रानन्दन पन्त
स्वर्ण-किरण – सुमित्रानन्दन पन्त
युगान्तर – सुमित्रानन्दन पन्त
शिल्पी – सुमित्रानन्दन पन्त
सौवर्ण – सुमित्रानन्दन पन्त
वाणी – सुमित्रानन्दन पन्त
किरण-वीणा – सुमित्रानन्दन पन्त
पल्लविनी – सुमित्रानन्दन पन्त
युगपथ [2018] – सुमित्रानन्दन पन्त
आधुनिक कवि – सुमित्रानन्दन पन्त
समाधिता – सुमित्रानन्दन पन्त
गीत-हंस – सुमित्रानन्दन पन्त
UP Board Solutions
पतझर : एक भावक्रान्ति – सुमित्रानन्दन पन्त
गन्धवीथी – सुमित्रानन्दन पन्त
सत्यकाम – सुमित्रानन्दन पन्त
नीहार – महादेवी वर्मा
नीरजा (2016) –  (UPBoardSolutions.com) महादेवी वर्मा
अग्निरेखा (2018) – महादेवी वर्मा
सान्ध्य-गीत [2013] – महादेवी वर्मा
दीपशिखा [2012, 16] – महादेवी वर्मा
यामा – महादेवी वर्मा
रश्मि – महादेवी वर्मा
सप्तपर्णा – महादेवी वर्मा
पथिक[2015] – रामनरेश त्रिपाठी
मिलन [2018] – रामनरेश त्रिपाठी
स्वप्न – रामनरेश त्रिपाठी
मानसी – रामनरेश त्रिपाठी
ग्राम्य गीत – रामनरेश त्रिपाठी
कविता-कौमुदी (2012) – रामनरेश त्रिपाठी
हिमकिरीटिनी [2018] – माखनलाल चतुर्वेदी
हिमतरंगिणी [2017, 18] – माखनलाल चतुर्वेदी
माता – माखनलाल चतुर्वेदी
युगचरण [2012] – माखनलाल चतुर्वेदी
समर्पण – माखनलाल चतुर्वेदी
वेणु लो पूँजे धरा – माखनलाल चतुर्वेदी
मुकुल [2014, 15] – सुभद्राकुमारी चौहान
त्रिधारा [2015] – सुभद्राकुमारी चौहान
साकेत [2014] – मैथिलीशरण गुप्त
नहुष – मैथिलीशरण गुप्त
विष्णुप्रिया – मैथिलीशरण गुप्त
भारत भारती (2013, 14, 15) – मैथिलीशरण गुप्त
यशोधरा – मैथिलीशरण गुप्त
द्वापर – मैथिलीशरण गुप्त
रंग में भंग – मैथिलीशरण गुप्त
जयद्रथ-वध [2012] – मैथिलीशरण गुप्त
किसान – मैथिलीशरण गुप्त
शकुन्तला – मैथिलीशरण गुप्त
त्रिपथगा – मैथिलीशरण गुप्त
शक्ति – मैथिलीशरण गुप्त
अंजलि और अर्थ्य – मैथिलीशरण गुप्त
जय भारत – मैथिलीशरण गुप्त
पंचवटी – मैथिलीशरण गुप्त
सिद्धराज – मैथिलीशरण गुप्त
अनघ – मैथिलीशरण गुप्त
चन्द्रहास – मैथिलीशरण गुप्त
UP Board Solutions
तिलोत्तमा – मैथिलीशरण गुप्त
अकाल में सारस – केदारनाथ सिंह
अभी बिलकुल अभी – केदारनाथ सिंह
जमीन पक रही है – केदारनाथ सिंह
यहाँ से देखो – केदारनाथ सिंह
बाघ – केदारनाथ सिंह
टाल्स्टॉय और साइकिल – केदारनाथ सिंह
जीने के लिए कुछ शर्ते – केदारनाथ सिंह
प्रक्रिया – केदारनाथ सिंह
विष्णुप्रिया  –  मैथिलीशरण गुप्त
भारत भारती (2013, 14, 15)  –  मैथिलीशरण गुप्त
यशोधरा  –  मैथिलीशरण गुप्त
द्वापर  –  मैथिलीशरण गुप्त
रंग में भंग  –  मैथिलीशरण गुप्त
जयद्रथ-वध [2012]  –  (UPBoardSolutions.com) मैथिलीशरण गुप्त
किसान  –  मैथिलीशरण गुप्त
शकुन्तला  –  मैथिलीशरण गुप्त
त्रिपथगा  –  मैथिलीशरण गुप्त
शक्ति  –  मैथिलीशरण गुप्त
अंजलि और अर्थ्य  –  मैथिलीशरण गुप्त
जय भारत  –  मैथिलीशरण गुप्त
पंचवटी  –  मैथिलीशरण गुप्त
सिद्धराज  –  मैथिलीशरण गुप्त
अनघ  –  मैथिलीशरण गुप्त
चन्द्रहास  –  मैथिलीशरण गुप्त
तिलोत्तमा  –  मैथिलीशरण गुप्त
अकाल में सारस  –  केदारनाथ सिंह
अभी बिलकुल अभी  –  केदारनाथ सिंह
जमीन पक रही है।   –  केदारनाथ सिंह
यहाँ से देखो  –  केदारनाथ सिंह
बाघ  –  केदारनाथ सिंह
टाल्स्टॉय और साइकिल –   केदारनाथ सिंह
जीने के लिए कुछ शर्ते  –  केदारनाथ सिंह
प्रक्रिया   –  केदारनाथ सिंह
सूर्य – केदारनाथ सिंह
एक प्रेम-कविता को पढ़कर – केदारनाथ सिंह
आधी रात – केदारनाथ सिंह
शहर अब भी सम्भावना है। – अशोक वाजपेयी
तत्पुरुष – अशोक वाजपेयी
बाहरी अकेला – अशोक वाजपेयी
इबारत से गिरी मात्राएँ – अशोक वाजपेयी
उम्मीद का दूसरा नाम – (UPBoardSolutions.com) अशोक वाजपेयी
विवक्षा – अशोक वाजपेयी
UP Board Solutions
एक पतंग अनन्त से 2012] – अशोक वाजपेयी
रिमझिम – श्री श्यामनारायण पाण्डेय
माधव – श्री श्यामनारायण पाण्डेय
हल्दीघाटी – श्री श्यामनारायण पाण्डेय
जौहर – श्री श्यामनारायण पाण्डेय
जय हनुमान – श्री श्यामनारायण पाण्डेय
तुमुलं – श्री श्यामनारायण पाण्डेय
रूपांतर – श्री श्यामनारायण पाण्डेय
आरती – श्री श्यामनारायण पाण्डेय

We hope the UP Board Solutions for Class 10 Hindi पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि और उनकी रचनाएँ help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Hindi पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि और उनकी रचनाएँ, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

 

UP Board Solutions for Class 10 Hindi प्रमुख काव्य-ग्रन्थ और उनके रचयिता

UP Board Solutions for Class 10 Hindi प्रमुख काव्य-ग्रन्थ और उनके रचयिता

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi प्रमुख काव्य-ग्रन्थ और उनके रचयिता.

प्रमुख काव्य-ग्रन्थ और उनके रचयिता

रचना            –        रचयिता
खुमान रासो – दलपति विजय
बीसलदेव रासो – नरपति नाल्ह
हम्मीर रासो – शारंगधर
रमाल रासो (आल्हा खण्ड) – पजगनिक
पृथ्वीराज रासो [2009] – चन्दबरदाई
विजयपाल रासो – नल्लसिंह
कीर्तिलता – विद्यापति
सन्देशरासक – अब्दुल रहमान
भरतेश्वर बाहुबली रास – शालिभद्र सूरि
पउमचरिङ – स्वयम्भू
रचना – रचयिता
जयचन्द प्रकाश – केदार भट्ट
जयमयंक जस-चन्द्रिका – मधुकर भट्ट
मृगावती – कुतुबन
मधुमालती – मंझन
UP Board Solutions
माधवानल कामकंदला – गणपति
रूपमंजरी – नन्ददास (अष्टछाप)
रसरतन – (UPBoardSolutions.com) पुहकर
नलदमन – सूरदास लखनवी
अनुराग बाँसुरी – नूर मुहम्मद
इन्द्रावती – नूर मुहम्मद
यूसुफ जुलेखा – शेख निसार
चित्रावली – उस्मान
ज्ञानदीप – शेख नबी
हंसजवाहिर – कासिमशाह
बीजक – कबीरदास
पद्मावत [2009] – मलिक मुहम्मद जायसी
अखरावट – मलिक मुहम्मद जायसी
आखिरी कलाम – मलिक मुहम्मद जायसी
नरसीजी का मायरा – मीराबाई
रागगोविन्द – मीराबाई
गीतगोविन्द की टीका – मीराबाई
राग सोरठ के पद – मीराबाई
सुदामाचरित – नरोत्तमदास
ध्रुवचरित – नरोत्तमदास
UP Board Solutions
विचारमाला – नरोत्तमदास
रहीम सतसई – रहीम
श्रृंगार सतसई – रहीम
रहीम रत्नावली – रहीम
बरवै नायिका भेद – रहीम
मदनाष्टक – रहीम
रास पंचाध्यायी – रहीम
रामचन्द्रिका [2012] – केशवदास
रसिकप्रिया [2015, 16] – केशवदास
कविप्रिया – केशवदास
नखशिख – केशवदास
रतनबावनी – केशवदास
वीरसिंह देव चरित – केशवदास
जहाँगीर जस-चन्द्रिका – केशवदास
विज्ञान गीता – केशवदास
शिवराजभूषण – भूषण
शिवाबावनी (2015) – भूषण
छत्रसाल दशक – भूषण
कवित्त रत्नाकर – चिन्तामणि
कवि कल्पतरु – चिन्तामणि
UP Board Solutions
श्रृंगार मंजरी [2014] – चिन्तामणि
पिंगल – चिन्तामणि
मतिराम सतसई – मतिराम
अलंकार पंचाशिका – मतिराम
रसराज – मतिराम
ललित ललाम [2012, 15] – मतिराम
भाव-विलास – देव
रस विलास – देव
देव-चरित्र – देव
अंगदर्पण – सैयद गुलाम नबी
रस प्रबोध – सैयद गुलाम नबी
श्रृंगार बतीसी – मानसिंह ‘द्विजदेव’
श्रृंगार लतिका – मानसिंह ‘द्विजदेव’
हिम्मतबहादुर बिरुदावली – पद्माकर
जयसिंह बिरुदावली – पद्माकर
गंगालहरी – पद्माकर
जगद्विनोद (2015) – पद्माकर
प्रबोधिनी – भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
प्रेम फुलवारी – भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
सतसई श्रृंगार –  (UPBoardSolutions.com) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
प्रेम-प्रलाप – भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
प्रेम-माधुरी – भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
प्रेममालिका – भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
प्रेमाश्रुवर्णन – भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
प्रेमतरंग – भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
UP Board Solutions
प्रेमघनसर्वस्व – बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’
काव्य-मंजूषा – महावीरप्रसाद द्विवेदी
सुमन – महावीरप्रसाद
द्विवेदी कश्मीर सुषमा (2013) – श्रीधर पाठक
स्वर्गीय-वीणा – श्रीधर पाठक
वनाष्टक – श्रीधर पाठक
जगत् सच्चाई सार – श्रीधर पाठक
भारतगीत – श्रीधर पाठक
हेमन्त – श्रीधर पाठक
मनोविनोद – श्रीधर पाठक
शृंगारलहरी – जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’
गंगालहरी – ‘रत्नाकर
विष्णुलहरी – ‘रत्नाकर
गंगावतरण – रत्नाकर
उद्धव-शतक – ‘रत्नाकर
पारिजात – अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
वैदेही वनवास – ‘हरिऔध’
प्रियप्रवास [2011, 14, 15] – ‘हरिऔध’
प्रेमाम्बु वारिधि – ‘हरिऔध’
प्रेमप्रपंच – ‘हरिऔध’
प्रेम-प्रश्रवण – ‘हरिऔध’
प्रेमाम्बु प्रवाह – ‘हरिऔध’
रस कलश – ‘हरिऔध’
चोखे चौपदे – ‘हरिऔध’
चुभते चौपदे – ‘हरिऔध’
रुक्मिणी-परिणय – ‘हरिऔध’
प्रद्युम्न-विजय – ‘हरिऔध’
धरती – त्रिलोचन
गुलाब और बुलबुल – त्रिलोचन
दिगन्त – त्रिलोचन
ताप के ताए हुए दिन – त्रिलोचन
शब्द – त्रिलोचन
उस जनपद का कवि हूँ – त्रिलोचन
अरधान – त्रिलोचन
तुम्हें सौंपता हूँ। – त्रिलोचन
जीने की कला – त्रिलोचन
कामायनी – जयशंकर
प्रसाद आँसू [2018] – जयशंकर
प्रसाद लहर – जयशंकर
UP Board Solutions
प्रसाद झरना 2017 – जयशंकर
प्रसाद प्रेम-पथिक – जयशंकर
प्रसाद चित्राधार [2009] – जयशंकर
प्रसाद कानन कुसुम – जयशंकर
प्रसाद करुणालय [2012, 13] – जयशंकर
प्रसाद महाराणा का महत्त्व – जयशंकर
प्रसाद शोकोच्छ्वास – जयशंकर
प्रसाद अनामिका (2012) – सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’
आराधना – ‘निराला’
परिमल – ‘निराला’
गीतिका – ‘निराला’
कुकुरमुत्ता – ‘निराला’
अणिमा – ‘निराला’
अर्चना – ‘निराला’
अपरा तुलसीदास [2012] – ‘निराला’
नये पत्ते – ‘निराला’
गीत-गूंज – ‘निराला’
सरोज-स्मृति – “निराला’
राम की शक्ति-पूजा – ‘निराला’
अंजलि – रामकुमार वर्मा
अभिशाप – रामकुमार वर्मा
रूपराशि – रामकुमार वर्मा
जौहर – रामकुमार वर्मा
एकलव्य – रामकुमार वर्मा
उत्तरायण (2016) – (UPBoardSolutions.com) रामकुमार वर्मा
तुलसीदास [2012] – रामकुमार वर्मा
चित्ररेखा – रामकुमार वर्मा
UP Board Solutions
चन्द्रकिरण – रामकुमार वर्मा
रत्नराशि – रामकुमार वर्मा
संकेत – रामकुमार वर्मा
आकाशगंगा (2016) – रामकुमार वर्मा
उर्मिला – बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’
प्राणार्पण – ‘नवीन’
कुंकुम – ‘नवीन’
रश्मिरेख – ‘नवीन’
अपलक – ‘नवीन’
देश-प्रेम – ‘नवीन’
क्वासि – ‘नवीन’
विनोबा-स्तवन – ‘नवीन’
हम विषपायी जनम के – ‘नवीन’
रेणुका – रामधारी सिंह ‘दिनकर’
हुंकार [2015] – ‘दिनकर’
कुरुक्षेत्र – ‘दिनकर
उर्वशी (2014) – ‘दिनकर’
रश्मिरथी – ‘दिनकर’
रसवन्ती [2014, 18] – ‘दिनकर’
सामधेनी – ‘दिनकर’
हारे को हरिनाम [2014] – ‘दिनकर
द्वन्द्वगीत – ‘दिनकर’
परशुराम की प्रतीक्षा (2011, 15) – ‘दिनकर’
धूप और धुवाँ – ‘दिनकर’
इतिहास के आँसू – ‘दिनकर’
नील कुसुम – ‘दिनकर’
भैरवी – सोहनलाल द्विवेदी
पूजागीत – सोहनलाल द्विवेदी
प्रभाती – सोहनलाल द्विवेदी
चेतना – सोहनलाल द्विवेदी
युगाधार – सोहनलाल द्विवेदी
वासन्ती – सोहनलाल द्विवेदी
दूध बताशा – सोहनलाल द्विवेदी
बच्चों के बापू – सोहनलाल द्विवेदी
झरना – सोहनलाल द्विवेदी
कुणाल – सोहनलाल द्विवेदी
वासवदत्ता – सोहनलाल द्विवेदी
विषपान – सोहनलाल द्विवेदी
चित्रा – सोहनलाल द्विवेदी
बाँसुरी – सोहनलाल द्विवेदी
बिगुल – सोहनलाल द्विवेदी
आँगन के पार द्वार [2013] – सही० वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
तार सप्तक – ‘अज्ञेय
सुनहरे शैवाल – ‘अज्ञेय
हरी घास पर क्षण भर – ‘अज्ञेय
इन्द्रधनु रौंदे हुए ये । – “अज्ञेय
भग्नदूत – ‘अज्ञेय
चिंता  –  ‘अज्ञेय’
इत्यलम् – ‘अज्ञेय’
बावरा अहेरी – ‘अज्ञेय’
अरी ओ करुणा प्रभामय – ‘अज्ञेय’
कितनी नावों में कितनी बार – ‘अज्ञेय
सागर मुद्रा – ‘अज्ञेय
UP Board Solutions
महावृक्ष के नीचे – ‘अज्ञेय
नदी के बाँक पर छाया – ‘अज्ञेय
पूर्वा – ‘अज्ञेय’
मधुकलश – हरिवंशराय बच्चन
सतरंगिणी – बच्चन
मधुबाला – बच्चन
मधुशाला [2013, 15] – बच्चन
निशा-निमन्त्रण – बच्चन
मिलन-यामिनी – बच्चन
एकान्त-संगीत – बच्चन
बंगाल का अकाल – बच्चन
प्रणय पत्रिका – बच्चन
आकुल अन्तर – बच्चन
हलाहल – बच्चन
त्रिभंगिमा – बच्चन
चार खेमे चौंसठ बँटे – बच्चन
सूत की माला युगधारा – नागार्जुन
भस्मांकुर – नागार्जुन
सतरंगे पंखों वाली – नागार्जुन
तालाब की मछलियाँ – नागार्जुन
तुमने कहा था – नागार्जुन
खिचड़ी विप्लव देखा हमने – नागार्जुन
हजार-हजार बाहों वाली – नागार्जुन
प्यासी पथरायी आँखें – नागार्जुन
खून और शोले – नागार्जुन
जीवन के गान। – शिवमंगल सिंह ‘सुमन
प्रलय सृजन – ‘सुमन’
विश्वास बढ़ता ही गया – ‘सुमन’
हिल्लोल – ‘सुमन’
पर आँखें भरी नहीं – ‘सुमन’
विन्ध्य हिमालय – ‘सुमन’
मिट्टी की बलात् – ‘सुमन
युग की गंगा – केदारनाथ अग्रवाल
नींद के बादल – केदारनाथ अग्रवाल
लोक और आलोक – केदारनाथ अग्रवाल
आग का आइना – केदारनाथ अग्रवाल
पंख और पतवार – केदारनाथ अग्रवाल
हे मेरी तुम – केदारनाथ अग्रवाल
कनुप्रिया [2013] – धर्मवीर भारती
सात गीत वर्ष – धर्मवीर भारती
अन्धी युग (2009) – धर्मवीर भारती
ठण्डा लोहा (2015) – धर्मवीर भारती
UP Board Solutions
भूरी भूरी खाक धूल – गजानन माधव मुक्तिबोध’
चाँद का मुँह टेढ़ा – ‘मक्तिबोध’
प्रेम-पथिक – वियोगी हरि
प्रेमशतक – वियोगी हरि
प्रेमांजलि – वियोगी हरि
वीर सतसई – वियोगी हरि
धूप के धान (2012) – गिरिजाकुमार माथुर
मंजीर – गिरिजाकुमार माथुर
नाश और निर्माण – गिरिजाकुमार माथुर
छाया मत छूना – (UPBoardSolutions.com) गिरिजाकुमार माथुर
भीतरी नदी की यात्रा – गिरिजाकुमार माथुर
साक्षी रहे वर्तमान – गिरिजाकुमार माथुर
पृथ्वीकल्प – गिरिजाकुमार माथुर
शिलाखण्ड चमकीले – गिरिजाकुमार माथुर
गीत फरोश [2015, 18] – भवानीप्रसाद मिश्र
खुशबू के शिलालेख – भवानीप्रसाद मिश्र
चकित है दुःख – भवानीप्रसाद मिश्र
UP Board Solutions
अँधेरी कविताएँ – भवानीप्रसाद मिश्र
बुनी हुई रस्सी – भवानीप्रसाद मिश्र
फसलें और फूल – भवानीप्रसाद मिश्र
सम्प्रति – भवानीप्रसाद मिश्र
कर्णफूल [2014] – नरेन्द्र शर्मा

We hope the UP Board Solutions for Class 10 Hindi प्रमुख काव्य-ग्रन्थ और उनके रचयिता help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Hindi प्रमुख काव्य-ग्रन्थ और उनके रचयिता, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.