UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 19 देशी बैंकर्स

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 19
Chapter Name देशी बैंकर्स
Number of Questions Solved 18
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 19 देशी बैंकर्स

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
भारत में देशी बैंकर्स के कार्य हैं
(a) जमा स्वीकार करना
(b) ऋण देना
(c) हुण्डियों का व्यवसाय करना
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 2.
देशी बैंकर्स पर नियन्त्रण होता है
(a) केन्द्रीय सरकार का
(b) भारतीय रिज़र्व बैंक का
(c) भारतीय स्टेट बैंक का
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
देशी बैंकर्स का कार्यक्षेत्र केवल शहरों/गाँवों तक ही सीमित रहता है।
उत्तर:
गाँवों तक

प्रश्न 2.
क्या देशी बैंकर्स की ब्याज दर ऊँची होती है?
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 3.
सभी देशी बैंकर्स की कार्यप्रणाली समान होती है/भिन्न-भिन्न होती है।
उत्तर:
भिन्न-भिन्न होती है

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प्रश्न 4.
क्या देशी बैंकर्स के पास पूँजी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती है?
उत्तर:
नहीं

प्रश्न 5.
देशी बैंकर्स भारतीय रिज़र्व बैंक के नियन्त्रण में हैं,नहीं हैं।
उत्तर:
नहीं हैं

प्रश्न 6.
क्या भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का महत्त्वपूर्ण स्थान है?
उत्तर:
हाँ

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
देशी बैंकर्स से क्या आशय है?
उत्तर:
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का (UPBoardSolutions.com) महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण देते हैं। देशी बैंकरों को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

प्रश्न 2.
देशी बैंकर्स की चार विशेषताएँ लिखिए। (2018)
उत्तर:
देशी बैंकर्स की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. सरल कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स के कार्य करने का तरीका सरल होता है। इससे ऋण लेने की प्रक्रिया भी सरलता व शीघ्रता से पूर्ण हो जाती है।
  2. भारतीय बहीखाता प्रणाली देशी बैंकर्स अपने हिसाब-किताब का लेखा भारतीय बहीखाता प्रणाली के अनुसार करते हैं।
  3. गोपनीयता देशी बैंकर्स अपने ग्राहकों के लेन-देन के (UPBoardSolutions.com) विवरणों की गोपनीयता बनाए रखते हैं, जिससे इनकी प्रतिष्ठा बनी रहती है।
  4. सीमित क्षेत्र इनके कार्य करने का क्षेत्र प्रायः गाँवों तक ही सीमित होता है।

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प्रश्न 3.
देशी बैंकर्स के दो कार्य बताइए।
उत्तर:
देशी बैंकर्स के दो कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. देशी बैंकर्स आवश्यकतानुसार जमाएँ स्वीकार करते हैं।
  2. देशी बैंकर्स ऋण प्रदान करते हैं।

प्रश्न 4.
देशी बैंकरों के चार गुण लिखिए। (2017)
उत्तर:
देशी बैंकरों के गुण निम्नलिखित हैं-

  1. बिना जमानत के ऋण प्रदान करना।
  2. उचित बीज एवं यन्त्रों की आपूर्ति करना।
  3. अनुत्पादक कार्यों हेतु ऋण प्रदान करना।
  4. सरल विधि द्वारा लेन-देन।

प्रश्न 5.
देशी बैंकर्स के चार दोष लिखिए। उत्तर देशी बैंकर्स के चार दोष निम्नलिखित हैं

  1. इनके द्वारा ऋणियों का शोषण किया जाता है।
  2. ये धोखापूर्ण कार्य-प्रणाली से कार्य करते हैं।
  3. इनकी कार्यप्रणाली दोषपूर्ण होती है।
  4. इनके पास पूँजी का अभाव रहता है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
देशी बैंकर्स क्या हैं? इनके दो दोषों का वर्णन कीजिए। (2012)
उत्तर:
देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स (UPBoardSolutions.com) को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए अल्पकालीन साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोष देशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

प्रश्न 2.
देशी बैंकर्स के कार्यों का वर्णन कीजिए। (2012, 08)
उत्तर:
देशी बैंकर्स के कार्य देशी बैंकर्स के कार्य निम्नलिखित हैं-

1. जमा स्वीकार करना देशी बैंकर्स आवश्यकता के अनुसार जनता से जमा के रूप में धन स्वीकार करते हैं। ये इन जमाओं पर 9% से 15% तक ब्याज भी देते हैं। इस जमा राशि का भुगतान ग्राहक को माँगने पर तुरन्त कर दिया जाता है।

2. ऋण प्रदान करना देशी बैंकर्स का मुख्य कार्य ऋण प्रदान करना (UPBoardSolutions.com) होता है। ये किसानों, कारीगरों, मजदूरों, व्यापारियों, आदि को प्रत्येक प्रकार की जमानत पर ऋण देते हैं। ये उत्पादन कार्यों के साथ उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं। ये प्रतिज्ञा-पत्रों के आधार पर भी ऋण उपलब्ध करवाते हैं। इनकी ब्याज की दर जमानत के आधार पर तय की जाती है। इनकी ब्याज की दर 14% से 50% तक हो सकती है।

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3. हुण्डियों का व्यवसाय करना देशी बैंकर्स हुण्डियों को खरीदने, बेचने व भुनाने की कार्य भी करते हैं। जिन देशी बैंकर्स की बाजार में अधिक प्रतिष्ठा होती है, उनकी हुण्डियाँ बाजार में अधिक बिकती हैं।

4. अन्य कार्य करना ये उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त अन्य कार्य भी करते हैं

  • आयात-निर्यात में सहायता ये आयात-निर्यात के माल को बन्दरगाहों से देश में लाने तथा ले जाने के व्यय वहन करते हैं।
  • धन हस्तान्तरण में सुविधा एक स्थान से दूसरे स्थान पर धन भेजने में देशी बैंकर्स सहायक होते हैं।
  • परिकल्पना व्यापार करना ये परिकल्पना व्यापार अर्थात् सट्टा व्यापार करना; जैसे-सोना, चाँदी एवं शेयर्स, आदि में भी अपना धन लगाते हैं।
  • अन्य वस्तुओं में व्यापार करना देशी बैंकर्स अनाज, घी, आदि कई वस्तुओं का व्यापार भी करते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
देशी बैंकर्स के कार्यों, गुण एवं दोषों का वर्णन कीजिए। (2008)
उत्तर:
देशी बैंकर्स के कार्य

देशी बैंकर्स के कार्य निम्नलिखित हैं-

1. जमा स्वीकार करना देशी बैंकर्स आवश्यकता के अनुसार जनता से जमा के रूप में धन स्वीकार करते हैं। ये इन जमाओं पर 9% से 15% तक ब्याज भी देते हैं। इस जमा राशि का भुगतान ग्राहक को माँगने पर तुरन्त कर दिया जाता है।

2. ऋण प्रदान करना देशी बैंकर्स का मुख्य कार्य ऋण प्रदान करना होता है। ये किसानों, कारीगरों, मजदूरों, व्यापारियों, आदि को प्रत्येक प्रकार की जमानत पर ऋण देते हैं। ये उत्पादन कार्यों के साथ उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं। ये प्रतिज्ञा-पत्रों (UPBoardSolutions.com) के आधार पर भी ऋण उपलब्ध करवाते हैं। इनकी ब्याज की दर जमानत के आधार पर तय की जाती है। इनकी ब्याज की दर 14% से 50% तक हो सकती है।

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3. हुण्डियों का व्यवसाय करना देशी बैंकर्स हुण्डियों को खरीदने, बेचने व भुनाने की कार्य भी करते हैं। जिन देशी बैंकर्स की बाजार में अधिक प्रतिष्ठा होती है, उनकी हुण्डियाँ बाजार में अधिक बिकती हैं।

4. अन्य कार्य करना ये उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त अन्य कार्य भी करते हैं

  • आयात-निर्यात में सहायता ये आयात-निर्यात के माल को बन्दरगाहों से देश में लाने तथा ले जाने के व्यय वहन करते हैं।
  • धन हस्तान्तरण में सुविधा एक स्थान से दूसरे स्थान पर धन भेजने में देशी बैंकर्स सहायक होते हैं।
  • परिकल्पना व्यापार करना ये परिकल्पना व्यापार अर्थात् सट्टा व्यापार करना; जैसे-सोना, चाँदी एवं शेयर्स, आदि में भी अपना धन लगाते हैं।
  • अन्य वस्तुओं में व्यापार करना देशी बैंकर्स अनाज, घी, आदि कई वस्तुओं का व्यापार भी करते हैं।

देशी बैंकर्स के गुण एवं दोष

देशी बैंकर्स के गुण देशी बैंकर्स के प्रमुख गुण निम्नलिखित होते हैं-

  1. बिना जमानत के ऋण प्रदान करना ये किसानों, कारीगरों, व्यापारियों, आदि को व्यक्तिगत जमानत के आधार पर ऋण प्रदान करते हैं। ये उन्हें अपने पास किसी वस्तु को धरोहर के रूप में रखने के लिए बाध्य नहीं करते हैं।
  2. कार्य-प्रणाली सरल और लचीली इनकी कार्यप्रणाली सरल और (UPBoardSolutions.com) लचीली होती है, जिससे अशिक्षित व्यक्ति भी इससे सरलतापूर्वक लेन-देन कर सकता है।
  3. बीज, खाद व यन्त्र, आदि की सुविधा देना देशी बैंकर्स किसानों के लिए बीज, खाद व कृषि यन्त्रों, आदि को उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाते हैं व उन्हें आवश्यक ऋण भी प्रदान करते हैं।
  4. गोपनीयता इनके द्वारा किए गए लेन-देन को गोपनीय रखा जाता है।
  5. अनुत्पादक कार्यों के लिए ऋण देना देशी बैंकर्स निर्धन, गरीब किसानों व कारीगरों को उनके सामाजिक उत्सवों; जैसे-विवाह, मुण्डन, श्राद्ध, मृत्यु भोज, आदि अनुत्पादक कार्यों के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।
  6. कुटीर उद्योगों के लिए ऋण ये कुटीर उद्योगों; जैसे-मछलीपालन, मुर्गीपालन, आदि के लिए भी ऋण प्रदान करके इनके विकास में सहायक होते हैं।
  7. किस्तों में भुगतान स्वीकार करना देशी बैंकर्स ऋण का भुगतान ऋणी की सुविधानुसार सरल किस्तों में प्राप्त करते हैं।
  8. माल का क्रय करना ये किसानों की फसल उचित मूल्य पर क्रय करके उन्हें मण्डी या बाजार में जाने की परेशानी से बचाते हैं।
  9. घरेलू उद्योगों को पूँजी प्रदान करना ये घरेलू उद्योगों को चलाने हेतु ऋण प्रदान करते हैं।

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देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ निम्नलिखित हैं

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऊँची ब्याज दर इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक एवं चक्रवृद्धि ब्याज दर होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।
  3. धोखापूर्ण कार्य-प्रणाली इस कार्य-पद्धति में धोखेबाजी की सम्भावना अधिक रहती है, क्योंकि इसमें लेन-देन करने वाले सभी ग्राहक अशिक्षित होते हैं। देशी बैंकर्स ऋण देते समय अनुचित व्यवहार करते हैं।
  4. दोषपूर्ण कार्य-प्रणाली यह प्रणाली शोषण एवं धोखेबाजी के कार्यों से (UPBoardSolutions.com) भरपूर है। इसमें ऋण लेने वालों के साथ अनुचित व्यवहार किया जाता है।
  5. पूँजी का अभाव इनके पास पर्याप्त पूँजी का अभाव पाया जाता है, जिससे किसानों को उनकी आवश्यकता के समय पर्याप्त मात्रा में ऋण उपलब्ध नहीं हो पाता है।
  6. सामाजिक बुराइयों को बढ़ावा ये उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं, जिससे लोगों में अपव्ययिता व फिजूलखर्ची में वृद्धि होती है। अत: इससे सामाजिक बुराइयों को भी बढ़ावा मिलता है।
  7. मजदूरी लेना ये किसानों व अन्य ऋणियों से विवाह आदि के अवसर पर मजदूरी या बेगार भी लेते हैं।
  8. परिकल्पना अथवा सट्टे का कार्य करना इनके द्वारा सट्टे का कार्य करने से इनकी बैंकिंग कार्यक्षमता में कमी होती है।
  9. खातों का अप्रकाशन देशी बैंकर्स खातों का नियमित रूप से अंकेक्षण नहीं करते हैं व खातों की सूचनाओं का प्रकाशन भी नहीं करते हैं, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है।
  10. परम्परागत कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स द्वारा परम्परागत आधार पर कार्य किया जाता है, जिससे इनका निरीक्षण भी नहीं किया जा सकता है।
  11. जमाओं को प्रोत्साहन प्रदान न करना ये लोगों की बचत को जमा कराने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं।
  12. सरकारी अनियन्त्रण देशी बैंकर्स पर सरकारी नियन्त्रण नहीं होने के कारण ये मनमानी करते हैं।

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प्रश्न 2.
देशी बैंकर्स कौन होते हैं? भारत में देशी बैंकरों के गुण व दोषों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2011)
उत्तर:
देशी बैंकर्स से आशय
देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार (UPBoardSolutions.com) करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए अल्पकालीन साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोषदेशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

देशी बैंकर्स के गुण देशी बैंकर्स के प्रमुख गुण निम्नलिखित होते हैं-

  1. बिना जमानत के ऋण प्रदान करना ये किसानों, कारीगरों, व्यापारियों, आदि को व्यक्तिगत जमानत के आधार पर ऋण प्रदान करते हैं। ये उन्हें अपने पास किसी वस्तु को धरोहर के रूप में रखने के लिए बाध्य नहीं करते हैं।
  2. कार्य-प्रणाली सरल और लचीली इनकी कार्यप्रणाली सरल और लचीली होती है, जिससे अशिक्षित व्यक्ति भी इससे सरलतापूर्वक लेन-देन कर सकता है।
  3. बीज, खाद व यन्त्र, आदि की सुविधा देना देशी बैंकर्स किसानों के लिए बीज, खाद व कृषि यन्त्रों, आदि को उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाते हैं व उन्हें आवश्यक ऋण भी प्रदान करते हैं।
  4. गोपनीयता इनके द्वारा किए गए लेन-देन को गोपनीय रखा जाता है।
  5. अनुत्पादक कार्यों के लिए ऋण देना देशी बैंकर्स निर्धन, गरीब किसानों व कारीगरों को उनके सामाजिक उत्सवों; जैसे-विवाह, मुण्डन, श्राद्ध, मृत्यु भोज, आदि अनुत्पादक कार्यों के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।
  6. कुटीर उद्योगों के लिए ऋण ये कुटीर उद्योगों; जैसे-मछलीपालन, मुर्गीपालन, आदि के लिए भी ऋण प्रदान करके इनके विकास में सहायक होते हैं।
  7. किस्तों में भुगतान स्वीकार करना देशी बैंकर्स ऋण का भुगतान ऋणी की (UPBoardSolutions.com) सुविधानुसार सरल किस्तों में प्राप्त करते हैं।
  8. माल का क्रय करना ये किसानों की फसल उचित मूल्य पर क्रय करके उन्हें मण्डी या बाजार में जाने की परेशानी से बचाते हैं।
  9. घरेलू उद्योगों को पूँजी प्रदान करना ये घरेलू उद्योगों को चलाने हेतु ऋण प्रदान करते हैं।

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देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ निम्नलिखित हैं

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऊँची ब्याज दर इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक एवं चक्रवृद्धि ब्याज दर होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।
  3. धोखापूर्ण कार्य-प्रणाली इस कार्य-पद्धति में धोखेबाजी की सम्भावना अधिक रहती है, क्योंकि इसमें लेन-देन करने वाले सभी ग्राहक अशिक्षित होते हैं। देशी बैंकर्स ऋण देते समय अनुचित व्यवहार करते हैं।
  4. दोषपूर्ण कार्य-प्रणाली यह प्रणाली शोषण एवं धोखेबाजी के कार्यों से भरपूर है। इसमें ऋण लेने वालों के साथ अनुचित व्यवहार किया जाता है।
  5. पूँजी का अभाव इनके पास पर्याप्त पूँजी का अभाव पाया जाता है, जिससे किसानों (UPBoardSolutions.com) को उनकी आवश्यकता के समय पर्याप्त मात्रा में ऋण उपलब्ध नहीं हो पाता है।
  6. सामाजिक बुराइयों को बढ़ावा ये उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं, जिससे लोगों में अपव्ययिता व फिजूलखर्ची में वृद्धि होती है। अत: इससे सामाजिक बुराइयों को भी बढ़ावा मिलता है।
  7. मजदूरी लेना ये किसानों व अन्य ऋणियों से विवाह आदि के अवसर पर मजदूरी या बेगार भी लेते हैं।
  8. परिकल्पना अथवा सट्टे का कार्य करना इनके द्वारा सट्टे का कार्य करने से इनकी बैंकिंग कार्यक्षमता में कमी होती है।
  9. खातों का अप्रकाशन देशी बैंकर्स खातों का नियमित रूप से अंकेक्षण नहीं करते हैं व खातों की सूचनाओं का प्रकाशन भी नहीं करते हैं, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है।
  10. परम्परागत कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स द्वारा परम्परागत आधार पर कार्य किया जाता है, जिससे इनका निरीक्षण भी नहीं किया जा सकता है।
  11. जमाओं को प्रोत्साहन प्रदान न करना ये लोगों की बचत को जमा कराने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं।
  12. सरकारी अनियन्त्रण देशी बैंकर्स पर सरकारी नियन्त्रण नहीं होने के कारण ये मनमानी करते हैं।

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प्रश्न 3.
देशी बैंकर्स से क्या आशय है? देशी बैंकर्स व आधुनिक बैंकर्स में क्या अन्तर है? देशी बैंकर्स के महत्त्व का भी वर्णन कीजिए। (2012)
उत्तर:
देशी बैंकर्स से आशय
देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए अल्पकालीन साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोष देशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

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देशी बैंकर्स एवं आधुनिक बैंकर्स में अन्तर
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ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का महत्त्व देशी बैंकर्स की भूमिका को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया गया है

  1. कृषि विकास में सहायक देशी बैंकर्स मुख्य रूप से किसानों को ऋण प्रदान करते हैं। इस ऋण के माध्यम से किसान अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं को सरलता से प्राप्त कर लेते हैं, जिससे कृषि विकास सुलभ हो जाता है।
  2. जमाएँ स्वीकार करना ये बैंकर्स जनता की जमाओं को भी स्वीकार करते हैं। ये किसानों की बचतों को जमा करके उन्हें सुरक्षित रखते हैं। साथ ही ये इन जमाओं पर ब्याज भी देते हैं।
  3. सरल कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स की कार्यप्रणाली को एक साधारण व्यक्ति भी समझ सकता है। इससे किसानों को ऋण लेने में शीघ्रता व सुलभता प्राप्त होती है।
  4. आपत्तिकाल में सहायक देशी बैंकर्स किसानों की आवश्यकता के समय हमेशा ऋण देने को तत्पर रहते हैं। इससे किसानों के आवश्यक कार्य समय पर पूर्ण हो जाते हैं।
  5. उपभोग हेतु ऋण की सुविधाएँ देशी बैंकर्स किसानों को दैनिक जीवन व सामाजिक कार्यों हेतु भी ऋण की सुविधा प्रदान करते हैं।
  6. उदार ऋण नीति देशी बैंकर्स किसानों को ऋण प्रदान करने में अनावश्यक (UPBoardSolutions.com) औपचारिकताएँ नहीं करते हैं। ये किसानों को बिना जमानत के ऋण प्रदान कर देते हैं।
  7. आधुनिक बैंकों की सुविधाएँ ये बैंकर्स अन्य व्यापारिक बैंकों से भी लेन-देन का कार्य करते हैं, जिससे इनके ग्राहकों को आधुनिक बैंकों की सुविधाएँ सरलता से प्राप्त हो जाती हैं।
  8. कुटीर उद्योगों को सहायता देशी बैंकर्स कुटीर उद्योगों को संचालित करने व उनका विकास करने के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।

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प्रश्न 4.
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स की भूमिका का परीक्षण कीजिए। (2007)
अथवा
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत एक कृषिप्रधान देश है। भारत के अधिकतर किसान गरीब होते हैं। यहाँ के किसान वित्त व्यवस्था के लिए साहूकारों पर निर्भर रहते हैं। भारत में प्राचीनकाल से ही उधार लेन-देन की प्रथा प्रचलन में थी। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आधुनिक बैंकों का विकास नहीं होने के कारण (UPBoardSolutions.com) किसानों को देशी बैंकर्स पर ही निर्भर रहना पड़ता है। भारत में कृषि साख की 20% पूर्ति देशी बैंकरों द्वारा की जाती है। ये बैंकर्स किसानों को बीज, खाद, कृषि उपकरण, आदि को खरीदने के लिए ऋण प्रदान करते हैं। ये बैंकर्स या संस्था किसानों को उनकी आवश्यकतानुसार समय-समय पर ऋण उपलब्ध करवाते हैं।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स की भूमिका (महत्त्व)

देशी बैंकर्स से आशय

देशी बैंकर्स एवं आधुनिक बैंकर्स में अन्तर
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ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का महत्त्व देशी बैंकर्स की भूमिका को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया गया है

  1. कृषि विकास में सहायक देशी बैंकर्स मुख्य रूप से किसानों को ऋण प्रदान करते हैं। इस ऋण के माध्यम से किसान अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं को सरलता से प्राप्त कर लेते हैं, जिससे कृषि विकास सुलभ हो जाता है।
  2. जमाएँ स्वीकार करना ये बैंकर्स जनता की जमाओं को भी स्वीकार करते हैं। ये किसानों की बचतों को जमा करके उन्हें सुरक्षित रखते हैं। साथ ही ये इन जमाओं पर ब्याज भी देते हैं।
  3. सरल कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स की कार्यप्रणाली को एक साधारण व्यक्ति भी समझ सकता है। इससे किसानों को ऋण लेने में शीघ्रता व सुलभता प्राप्त होती है।
  4. आपत्तिकाल में सहायक देशी बैंकर्स किसानों की आवश्यकता के समय हमेशा (UPBoardSolutions.com) ऋण देने को तत्पर रहते हैं। इससे किसानों के आवश्यक कार्य समय पर पूर्ण हो जाते हैं।
  5. उपभोग हेतु ऋण की सुविधाएँ देशी बैंकर्स किसानों को दैनिक जीवन व सामाजिक कार्यों हेतु भी ऋण की सुविधा प्रदान करते हैं।
  6. उदार ऋण नीति देशी बैंकर्स किसानों को ऋण प्रदान करने में अनावश्यक औपचारिकताएँ नहीं करते हैं। ये किसानों को बिना जमानत के ऋण प्रदान कर देते हैं।
  7. आधुनिक बैंकों की सुविधाएँ ये बैंकर्स अन्य व्यापारिक बैंकों से भी लेन-देन का कार्य करते हैं, जिससे इनके ग्राहकों को आधुनिक बैंकों की सुविधाएँ सरलता से प्राप्त हो जाती हैं।
  8. कुटीर उद्योगों को सहायता देशी बैंकर्स कुटीर उद्योगों को संचालित करने व उनका विकास करने के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।

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प्रश्न 5.
‘देशी बैंकर’ पर एक लेख लिखिए। (2017)
उत्तर:
देशी बैंकर्स

देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए अल्पकालीन (UPBoardSolutions.com) साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोषदेशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

देशी बैंकर्स के कार्य

देशी बैंकर्स के कार्य देशी बैंकर्स के कार्य निम्नलिखित हैं-

1. जमा स्वीकार करना देशी बैंकर्स आवश्यकता के अनुसार जनता से जमा के रूप में धन स्वीकार करते हैं। ये इन जमाओं पर 9% से 15% तक ब्याज भी देते हैं। इस जमा राशि का भुगतान ग्राहक को माँगने पर तुरन्त कर दिया जाता है।

2. ऋण प्रदान करना देशी बैंकर्स का मुख्य कार्य ऋण प्रदान करना होता है। ये किसानों, कारीगरों, मजदूरों, व्यापारियों, आदि को प्रत्येक प्रकार की जमानत पर ऋण देते हैं। ये उत्पादन कार्यों के साथ उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं। ये प्रतिज्ञा-पत्रों के आधार पर भी ऋण उपलब्ध करवाते हैं। इनकी ब्याज की दर जमानत के आधार पर तय की जाती है। इनकी ब्याज की दर 14% से 50% तक हो सकती है।

3. हुण्डियों का व्यवसाय करना देशी बैंकर्स हुण्डियों को खरीदने, बेचने व भुनाने की कार्य भी करते हैं। जिन देशी बैंकर्स की बाजार में अधिक प्रतिष्ठा होती है, उनकी हुण्डियाँ बाजार में अधिक बिकती हैं।

4. अन्य कार्य करना ये उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त अन्य कार्य भी करते हैं

  • आयात-निर्यात में सहायता ये आयात-निर्यात के माल को बन्दरगाहों से देश में लाने तथा ले जाने के व्यय वहन करते हैं।
  • धन हस्तान्तरण में सुविधा एक स्थान से दूसरे स्थान पर धन भेजने में देशी बैंकर्स सहायक होते हैं।
  • परिकल्पना व्यापार करना ये परिकल्पना व्यापार अर्थात् सट्टा व्यापार करना; जैसे-सोना, चाँदी एवं शेयर्स, आदि में भी अपना धन लगाते हैं।
  • अन्य वस्तुओं में व्यापार करना देशी बैंकर्स अनाज, घी, आदि कई वस्तुओं का व्यापार भी करते हैं।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

देशी बैंकर्स के गुण व दोष

देशी बैंकर्स से आशय
देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के (UPBoardSolutions.com) लिए अल्पकालीन साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोषदेशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

देशी बैंकर्स के गुण देशी बैंकर्स के प्रमुख गुण निम्नलिखित होते हैं-

  1. बिना जमानत के ऋण प्रदान करना ये किसानों, कारीगरों, व्यापारियों, आदि को व्यक्तिगत जमानत के आधार पर ऋण प्रदान करते हैं। ये उन्हें अपने पास किसी वस्तु को धरोहर के रूप में रखने के लिए बाध्य नहीं करते हैं।
  2. कार्य-प्रणाली सरल और लचीली इनकी कार्यप्रणाली सरल और लचीली होती है, जिससे अशिक्षित व्यक्ति भी इससे सरलतापूर्वक लेन-देन कर सकता है।
  3. बीज, खाद व यन्त्र, आदि की सुविधा देना देशी बैंकर्स किसानों के लिए बीज, खाद व कृषि यन्त्रों, आदि को उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाते हैं व उन्हें आवश्यक ऋण भी प्रदान करते हैं।
  4. गोपनीयता इनके द्वारा किए गए लेन-देन को गोपनीय रखा जाता है।
  5. अनुत्पादक कार्यों के लिए ऋण देना देशी बैंकर्स निर्धन, गरीब किसानों व कारीगरों को उनके सामाजिक उत्सवों; जैसे-विवाह, मुण्डन, श्राद्ध, मृत्यु भोज, आदि अनुत्पादक कार्यों के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।
  6. कुटीर उद्योगों के लिए ऋण ये कुटीर उद्योगों; जैसे-मछलीपालन, मुर्गीपालन, आदि के लिए भी ऋण प्रदान करके इनके विकास में सहायक होते हैं।
  7. किस्तों में भुगतान स्वीकार करना देशी बैंकर्स ऋण का भुगतान ऋणी की सुविधानुसार सरल किस्तों में प्राप्त करते हैं।
  8. माल का क्रय करना ये किसानों की फसल उचित मूल्य पर क्रय करके उन्हें मण्डी या बाजार में जाने की परेशानी से बचाते हैं।
  9. घरेलू उद्योगों को पूँजी प्रदान करना ये घरेलू उद्योगों को चलाने हेतु ऋण प्रदान करते हैं।

देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ निम्नलिखित हैं-

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  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऊँची ब्याज दर इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक एवं चक्रवृद्धि ब्याज दर होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।
  3. धोखापूर्ण कार्य-प्रणाली इस कार्य-पद्धति में धोखेबाजी की सम्भावना अधिक रहती है, क्योंकि इसमें लेन-देन करने वाले सभी ग्राहक अशिक्षित होते हैं। देशी बैंकर्स ऋण देते समय अनुचित व्यवहार करते हैं।
  4. दोषपूर्ण कार्य-प्रणाली यह प्रणाली शोषण एवं धोखेबाजी के कार्यों से भरपूर है। इसमें ऋण लेने वालों के साथ अनुचित व्यवहार किया जाता है।
  5. पूँजी का अभाव इनके पास पर्याप्त पूँजी का अभाव पाया जाता है, जिससे किसानों को उनकी आवश्यकता के समय पर्याप्त मात्रा में ऋण उपलब्ध नहीं हो पाता है।
  6. सामाजिक बुराइयों को बढ़ावा ये उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं, जिससे लोगों में अपव्ययिता व फिजूलखर्ची में वृद्धि होती है। अत: इससे सामाजिक बुराइयों को भी बढ़ावा मिलता है।
  7. मजदूरी लेना ये किसानों व अन्य ऋणियों से विवाह आदि के अवसर पर मजदूरी या बेगार भी लेते हैं।
  8. परिकल्पना अथवा सट्टे का कार्य करना इनके द्वारा सट्टे का कार्य करने से इनकी बैंकिंग कार्यक्षमता में कमी होती है।
  9. खातों का अप्रकाशन देशी बैंकर्स खातों का नियमित रूप से अंकेक्षण नहीं करते हैं व खातों की सूचनाओं का प्रकाशन भी नहीं करते हैं, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है।
  10. परम्परागत कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स द्वारा परम्परागत आधार पर कार्य किया (UPBoardSolutions.com) जाता है, जिससे इनका निरीक्षण भी नहीं किया जा सकता है।
  11. जमाओं को प्रोत्साहन प्रदान न करना ये लोगों की बचत को जमा कराने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं।
  12. सरकारी अनियन्त्रण देशी बैंकर्स पर सरकारी नियन्त्रण नहीं होने के कारण ये मनमानी करते हैं।

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 14 बैंक ; जन्म, परिभाषा, कार्य एवं महत्त्व

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 14
Chapter Name बैंक ; जन्म, परिभाषा, कार्य एवं महत्त्व
Number of Questions Solved 19
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 14 बैंक ; जन्म, परिभाषा, कार्य एवं महत्त्व

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
बैंक एक संस्था है, जो
(a) मुद्रा में लेन-देन करती है
(b) धन का निवेश करती है।
(c) ऋण प्रदान करती है
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 2.
औद्योगिक बैंक निम्नलिखित में से किसके विकास के लिए ऋण प्रदान करते हैं? (2014)
(a) उद्योग
(b) भूमि
(c) ‘a’ और ‘b’ दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) उद्योग

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा बैंक को दायित्व है?
(a) ऋण
(b) निवेश
(c) जमाराशि
(d) भुने तथा खरीदे बिल
उत्तर:
(c) जमाराशि

प्रश्न 4.
बैंक का सामान्य कार्य कौन-सा है?
(a) साधारण ऋण
(b) पत्र-मुद्रा का निर्गमन करना
(c) नकद साख
(d) ऋण के रूप में उधार देना
उत्तर:
(b) पत्र-मुद्रा का निर्गमन करना

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निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
आधुनिक ढंग का बैंक सबसे पहले कहाँ स्थापित हुआ? (2014)
उत्तर:
1401 ई. में स्पेन के बारसिलोना (UPBoardSolutions.com) नगर में

प्रश्न 2.
बैंकिंग कम्पनी अधिनियम सन् 1949/1956 में लागू किया गया।
उत्तर:
सन् 1949 में

प्रश्न 3.
आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंक का एक उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
बचत की आदत को प्रोत्साहित करना।

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प्रश्न 4.
बैंक से चैक/पे-इन-स्लिप द्वारा रोकड़ निकाली जा सकती है। (2007)
उत्तर:
चैक

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
बैंक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 की धारा 5(b) के अनुसार, “बैंक उस कम्पनी को कहते हैं, जो बैंकिंग कार्य करती है। बैंकिंग का अर्थ जनता को ऋण देने अथवा विनियोग करने के लिए उन निक्षेपों (जमाओं) को प्राप्त करना है, जो (UPBoardSolutions.com) माँगने पर इसका भुगतान चैक, ड्राफ्ट, ऑर्डर अथवा किसी अन्य रूप से करती है।”

प्रश्न 2.
एक बैंक के चार कार्य बताइए। (2017)
उत्तर:
बैंक के कार्य निम्नलिखित हैं

  1. जमाएँ प्राप्त करना।
  2. ऋण देना।
  3. प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करना।
  4. साख-पत्रों का निर्गमन करना।

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प्रश्न 3.
समाशोधन-गृह को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
प्रो. टॉजिंग के अनुसार, “समाशोधन-गृह (Clearing House) किसी एक स्थान के बैंकों का ऐसा सामान्य संगठन है, जिसका मुख्य उद्देश्य बैंकों द्वारा निर्मित परस्पर दायित्व का चैकों द्वारा निपटारा या भुगतान करना होता है।”

प्रश्न 4.
“बैंकों में जमा धन पूँजी है।” टिप्पणी कीजिए। (2018)
उत्तर:
जब व्यवसायी व्यवसाय आरम्भ करता है, तो वह कुछ धन (UPBoardSolutions.com) व्यवसाय के चालू खाते में जमा करता है। इस धन की प्रयोग व्यवसायी आवश्यकता पड़ने पर करता है। अतः हम यह कह सकते हैं कि बैंक में व्यवसायी का जमा धन पूँजी है।

प्रश्न 5.
किन्हीं चार निजी बैंकों के नाम बताइए। (2018)
उत्तर:
चार निजी बैंकों के नाम निम्नलिखित हैं

  1. आई सी आई सी आई बैंक
  2. येस बैंक
  3. एक्सिस बैंक
  4. एच डी एफ सी बैंक

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लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
नकद साख पर टिप्पणी लिखिए। (2008)
उत्तर:
भारत में बैंकों द्वारा ऋण देने की यह एक महत्त्वपूर्ण विधि है। इसमें बैंक ग्राहक को एक निश्चित मात्रा तक ऋण प्राप्त करने का अधिकार देता है। ग्राहक अपनी सीमा तक बैंक से कभी भी ऋण ले सकता है। बैंक इस प्रकार का ऋण देने के लिए ग्राहक (UPBoardSolutions.com) का माल, चल सम्पत्ति या प्रतिभूतियों को जमानत के रूप में अपने पास रखता है तथा बैंक ग्राहक को एक खाता अपने यहाँ खोल देता है। और ऋणी उसमें से अपनी आवश्यकतानुसार लेन-देन करता रहता है। बैंक ग्राहक से उतनी ही राशि पर ब्याज वसूलता है, जितनी राशि ग्राहक बैंक से ऋण के रूप में निकालता है। इस प्रकार यह सुविधा पर्याप्त जमानत के आधार पर दी जाती है। वर्तमान समय में भारत में यह पद्धति लोकप्रिय है।

प्रश्न 2.
बैंक द्वारा साख का सृजन किस प्रकार किया जाता है? (2008)
उत्तर:
बैंक द्वारा साख का सृजन निम्न प्रकार से किया जाता है-

1. नोटों के निर्गमन द्वारा साख का निर्माण बैंक नोटों का निर्गमन करके साख का निर्माण करते हैं। प्रारम्भ में अनेक बैंकों द्वारा नोट निर्गमन की व्यवस्था प्रचलित थी, इसलिए सभी बैंक नोट निर्गमन द्वारा साख सृजन करते थे। किन्तु आधुनिक समय में देश का केन्द्रीय बैंक नोट निर्गमन का कार्य करता है। व्यापारिक बैंकों को नोट निर्गमन का अधिकार नहीं होता है। केन्द्रीय बैंक निश्चित मात्रा में धातुकोष रखकर नोट निर्गमन करता है।

2. विनिमय बिलों की कटौती द्वारा साख सृजन व्यापारिक बैंक विनिमय बिलों, प्रतिज्ञा-पत्रों, हुण्डियों, प्रतिभूतियों, आदि की कटौती एवं क्रय-विक्रय द्वारा भी साख का निर्माण करते हैं।

3. नकद जमा तथा साख जमा द्वारा साख निर्माण व्यापारिक बैंक नकद जमाओं एवं साख जमाओं के द्वारा भी साख का निर्माण करते हैं। बैंक अपने पास जमा राशि से ऋण देते हैं और जमाएँ उत्पन्न करते हैं।

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4. अधिविकर्ष सुविधा द्वारा बैंक द्वारा अच्छी साख वाले एवं विश्वसनीय ग्राहकों को अधिविकर्ष की सुविधा दी जाती है। इस सुविधा के अन्तर्गत अधिविकर्ष की राशि पर निकाली गई अवधि तक का ब्याज लिया जाता है। इस आधार पर भी बैंक साख का सृजन करते हैं।

प्रश्न 3.
आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंकों का महत्त्व बताइए। (2008)
उत्तर:
आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंकों का महत्त्व बैंक आधुनिक अर्थव्यवस्था का आधार है। किसी भी देश की व्यापारिक अथवा औद्योगिक समृद्धि सुदृढ़ बैंकिंग व्यवस्था पर ही निर्भर करती है। आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंक के महत्त्व अथवा लाभ को निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है

  1. आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंक का मुख्य उद्देश्य बचत की आदत को प्रोत्साहित करना होता है।
  2. बैंक लोगों की छोटी-छोटी बचतों को जमा करके (UPBoardSolutions.com) देश में पूँजी का निर्माण करते हैं।
  3. बैंक द्वारा चैक व ड्राफ्ट के माध्यम से भुगतान शीघ्रता व सरलता से किया जा सकता है।
  4. बैंक किसानों को कृषि यन्त्र, खाद, बीज, आदि खरीदने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करके देश के विकास में योगदान देते हैं।
  5. बैंक साख की मात्रा में कमी या वृद्धि करके मुद्रा की पूर्ति को सन्तुलित बनाए रखते हैं।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
बैंक की परिभाषा दीजिए। बैंक के प्रमुख कार्यों का भी वर्णन कीजिए। (2007,06)
अथवी
बैंक के कार्यों को संक्षेप में समझाइए। (2012, 07)
उत्तर:
बैंक का अर्थ बैंक से तात्पर्य उस संस्था से है, जो जनता से जमा के रूप में धन प्राप्त करती है और ऋण के रूप में अथवा जमाकर्ताओं की माँग पर धन उधार देती है। इस प्रकार बैंक वे संस्थाएँ हैं, जो धन का लेन-देन करती हैं। आधुनिक युग में बैंकिंग विकास के साथ-साथ बैंकों के कार्यों में भी वृद्धि हुई है। बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 की धारा 5(b) के अनुसार, “बैंक उस कम्पनी को कहते हैं, जो बैंकिंग कार्य करती है। बैंकिंग का (UPBoardSolutions.com) अर्थ जनता को ऋण देने अथवा विनियोग करने के लिए उन निक्षेपों (जमाओं) को प्राप्त करना है, जो माँगने पर इसका भुगतान चैक, ड्राफ्ट, ऑर्डर अथवा किसी अन्य रूप से करती है।” वेब्सटर शब्दकोश के अनुसार, “बैंक वह संस्था है, जो मुद्रा में व्यवसाय करती है। यह एक संस्थान है, जहाँ धन का संग्रहण, संरक्षण एवं निर्गमन होता है, ऋण की तथा बिलों की कटौती की सुविधाएँ दी जाती हैं और मुद्रा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने की व्यवस्था की जाती है।”

बैंक की सेवाएँ या कार्य मुख्य रूप से बैंक के कार्यों को निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

I. मुख्य कार्य बैंक द्वारा किए जाने वाले मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

1. जमा के रूप में धन प्राप्त करना बैंक जनता से विभिन्न प्रकार के खातों के माध्यम से धन प्राप्त करने का महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। बैंक मुख्य रूप से चालू खाता, बचत  खाता, सावधि निक्षेप खाता, आवर्ती जमा खाता, आदि खातों के माध्यम से धन प्राप्त करता है।

2. ऋण के रूप में धन उधार देना बैंक का दूसरा प्रमुख कार्य जनता को धन उधार देना है। बैंक अपने पास जमा कुल धनराशि का एक निश्चित भाग नकद कोष में रखकर शेष धनराशि को उधार देता है। ऋण देते समय बैंक व्यक्ति की आवश्यकता, साख वे जमानत का भी ध्यान रखता है। यह निम्नलिखित प्रकार से ऋण प्रदान करता है

  1. साधारण ऋण इस प्रकार का ऋण जमानत मिलने पर एक निश्चित समयावधि के लिए दिया जाता है। साधारण ऋण (Simple Loan) पर ब्याज उसी दिन से प्रारम्भ हो जाती है, जिस दिन से ग्राहक के खाते में ऋण राशि जमा की जाती है।
  2. अधिविकर्ष बैंक अपने विश्वसनीय ग्राहकों को उनके खाते में जमा धनराशि से भी अधिक धनराशि निकालने की सुविधा देता है, जिसे अधिविकर्ष (Overdraft) कहते हैं।
  3. नकद साख बैंक चल अथवा अचल सम्पत्ति की जमानत पर एक निश्चित मात्रा में ग्राहक को ऋण लेने का अधिकार प्रदान करता है। बैंक इस धनराशि पर ब्याज भी वसूल करता है।
  4. विनिमय-विपत्रों को भुनाना बैंक विनिमय-विपत्रों, हुण्डियों और व्यापारिक विपत्रों को बट्टे पर भुनाकर भी अल्पकाल के लिए ऋण देता है विनिमय-विपत्रों को भुनाने में (Discounting of Bills of Exchange) बैंक मितीकाटा ब्याज लेता है।

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II. सामान्य बैंकिंग कार्य बैंक के सामान्य कार्य निम्नलिखित हैं

  1. साख-पत्रों का निर्गमन बैंक ग्राहकों के लिए बैंक ड्राफ्ट, (UPBoardSolutions.com) यात्री चैक, हुण्डी व साख-पत्र, आदि के निर्गमन की सुविधा देता है, जिससे वर्तमान समय में धनराशि एक स्थान से दूसरे स्थान पर सरलतापूर्वक भेजी जा सकती है।
  2. पत्र-मुद्रा का निर्गमन बैंक द्वारा पत्र-मुद्रा का निर्गमन भी किया जाता है। यह कार्य वर्तमान में रिज़र्व बैंक ही करता है।
  3. विदेशी विनिमय का क्रय-विक्रय बैंक ग्राहकों की सुविधा के लिए विदेशी मुद्रा भी उपलब्ध करवाता है।

III. एजेन्सी सम्बन्धी कार्य बैंक के एजेन्सी सम्बन्धी कार्य निम्नलिखित हैं

  1. ग्राहक की ओर से भुगतान करना ब्याज, बीमा किस्त व ऋण, आदि का भुगतान भी बैंक द्वारा ग्राहक की ओर से किया जाता है।
  2. अभिगोपन का कार्य करना बैंक औद्योगिक एवं व्यापारिक इकाइयों के अंश एवं ऋणपत्रों के अभिगोपन का कार्य भी करते हैं।
  3. ग्राहकों की ओर से भुगतान संग्रह करना बैंक अपने ग्राहक के लिए किराया, ब्याज, ऋण की किस्त, आदि की वसूली का कार्य भी करते हैं।
  4. प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करना बैंक अपने ग्राहक की ओर से उसके आदेशानुसार प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय का कार्य भी करते हैं। बैंक अपने ग्राहक के लिए चैक, बिल व हुण्डी, आदि की वसूली का कार्य भी करते हैं।
  5. धन का स्थानान्तरण बैंक अपने ग्राहकों के लिए धन के स्थानान्तरण की सुविधा एक स्थान से दूसरे स्थान पर उचित माध्यम से शीघ्र व सस्ते माध्यम से प्रदान करता है।

IV. अन्य कार्य बैंक द्वारा किए जाने वाले अन्य कार्य निम्नलिखित हैं

  1. समाशोधन-गृह का कार्य करना बैंक अपने ग्राहकों की सुविधा के लिए समाशोधन-गृह का कार्य भी करता है।
  2. सरकार को आर्थिक सहायता देना बैंक सरकार को आवश्यकता होने पर ऋण प्रदान करते हैं।
  3. व्यापारिक आँकड़ों का प्रकाशन बैंक व्यापार एवं उद्योगों (UPBoardSolutions.com) से सम्बन्धित आँकड़ों का प्रकाशन करते हैं।
  4. बहुमूल्य वस्तुओं की सुरक्षा बैंक ग्राहकों को लॉकर्स की सुविधा प्रदान करके उनकी बहुमूल्य वस्तुओं की सुरक्षा करते हैं।
  5. व्यापारिक सूचना प्रदान करना बैंक अनेक आवश्यक सूचनाएँ अपने ग्राहकों तक पहुँचाकर उनकी व्यापार वृद्धि में सहायता करते हैं।

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प्रश्न 2.
समाशोधन-गृह से आप क्या समझते हैं? समाशोधन-गृह के गुण व दोषों को बताइए। (2015)
उत्तर:
समाशोधन-गृह से आशय समाशोधन-गृह का तात्पर्य उस संस्था से है, जो बैंकों को पारस्परिक लेन-देन की सुविधा प्रदान करती है। यह एक बड़ा बैंक होता है, जो अनेक बैंकों के पारस्परिक लेन-देन को लेखा करता है, जिससे लेन-देन में कम-से-कम नकद मुद्रा का प्रयोग होता है, इन्हें ‘निकासी-गृह’ (Clearing House) भी कहा जाता है। प्रो. टॉजिंग के अनुसार, “समाशोधन-गृह किसी एक स्थान के बैंकों का एक ऐसा सामान्य संगठन है, जिसका मुख्य उद्देश्य बैंकों द्वारा निर्मित परस्पर दायित्व का चैकों द्वारा निपटारा या भुगतान करना होता है।”

समाशोधन-गृह के गुण या लाभ समाशोधन-गृह के लाभ/गुण निम्नलिखिते हैं-

  1. बैंकों की कार्यक्षमता में वृद्धि समाशोधन-गृह के कारण बैंकों के समय व व्यय में कमी आती है, जिससे बैंकों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
  2. जोखिम से मुक्ति इनके उपलब्ध होने के कारण धन को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने व ले जाने का जोखिम समाप्त हो जाता है।
  3. भुगतान में सुविधा इनकी सहायता से बैंकों के पारस्परिक भुगतान शीघ्र व सरलता से किए जा सकते हैं।
  4. नकद कोष में कमी इनके कारण बैंकों को अधिक मात्रा में नकद (UPBoardSolutions.com) कोष रखने की आवश्यकता नहीं होती है।
  5. बैंकों के पारस्परिक सहयोग में वृद्धि समाशोधन-गृहों से बैंकों के पारस्परिक सहयोग की भावना में वृद्धि होती है।
  6. मुद्रा के उपयोग में मितव्ययिता समाशोधन-गृह के कारण बैंकों के आपसी लेन-देन नकद में न होकर सीधे खाते में नाम या जमा होते हैं। इससे मुद्रा के प्रयोग में मितव्ययिता आती है।

समाशोधन-गृह के दोष समाशोधन-गृह के दोष निम्नलिखित हैं-

  1. समाशोधन-गृहों की संख्या कम होना समाशोधन-गृहों की संख्या कम होने के कारण लेन-देन करने में परेशानी होती है।
  2. सदस्यता नियमों में कठोरता होना समाशोधन-गृह में सदस्य बनने के नियमों का कठोरता से पालन किया जाता है।
  3. सभी समाशोधन-गृहों के नियमों में भिन्नता होना सभी समाशोधन-गृहों के नियम अलग-अलग होते हैं, जिससे इनके द्वारा लेन-देन करने में कठिनाई होती है।

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प्रश्न 3.
बैंकिंग क्षेत्र में आधुनिक प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए। (2018)
उत्तर:
पिछले एक दशक में बैंकिंग क्षेत्र में बहुत तेजी से आधुनिकीकरण हुआ है, जिससे बैंकिंग प्रणाली में सरलता व विश्वसनीयता की वृद्धि हुई है। इसके लिए बैंकों द्वारा कुछ आधुनिक विधियाँ अपनाई गई हैं, जिन्हें निम्न शीर्षकों द्वारा समझा जा सकता है

1. साख-पत्र साख-पत्र वह पत्र है, जिसके आधार पर साख-पत्र धारी देश-विदेश में विभागीय भण्डारों, होटलों तथा अन्य प्रमुख संस्थानों से बिना रकम दिए माल अथवा सेवा प्राप्त कर सकता है। इस पत्र का स्पष्ट अर्थ है कि ग्राहक या साख-पत्र धारी को कहीं भी किसी भी परिस्थिति में कोई भी अधिकृत विभागीय भण्डार, होटल या अन्य संस्था उधार माल या सेवा प्रदान कर सकती है और इसका भुगतान बैंक द्वारा ग्राहक के खाते से कर दिया जाता है। इसके लिए बैंक ग्राहक से उस धनराशि पर कुछ दर से ब्याज वसूलता है।

2. यन्त्रीकरण एवं आधुनिकीकरण बैंक अपनी वर्तमान कार्य प्रणाली में सुधार करने, बेहतर व शीघ्र सेवा प्रदान करने के दृष्टिकोण से यन्त्रीकरण व कम्प्यूटरीकरण पर अधिक ध्यान दे रहे हैं, जिससे ग्राहक तथा बैंक कर्मचारियों के समय व श्रम की बचत होती है।

3. यन्त्रीकृत चैक एवं समाशोधन-गृह 1 जुलाई, 2013 से सभी बैंक CTS-2010 मापदण्ड के चैक जारी कर रहे हैं। इन चैकों का महत्त्व यह है कि यह चैक सम्बन्धित बैंक की किसी भी शाखा से भुनाए जा सकते हैं। इसके लिए बैंकों के प्रतिनिधि दो दिन में एक (UPBoardSolutions.com) बार एक अधिकृत व सुरक्षित स्थान पर इन चैकों का बैंकों के अनुसार आपस में आदान-प्रदान करते हैं। जिस स्थान पर इन चैकों का आदान-प्रदान किया जाता है, उसे समाशोधन-गृह कहते हैं।

4. सभी भाषाओं को प्रोत्साहन वर्तमान में बैंक के कर्मचारी व बैंक के उपकरण या यन्त्र सभी भाषाओं (हिन्दी, अंग्रेजी एवं उर्दू) का प्रयोग करते हैं, जिससे ग्राहक की उसकी स्वयं की भाषा में कर्मचारी व उपकरण कार्य कर सकें। इसका महत्त्व अधिक इसलिए है, क्योंकि जिन लोगों को हिन्दी या अंग्रेजी नहीं आती थी तो वे बैंक में रुचि नहीं रखते थे, परन्तु अब ग्राहक की भाषा के अनुसार बैंक कार्य करता है।

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5. दूरसंचार नेटवर्क वर्तमान में सभी बैंकों ने अपने दूरसंचार नेटवर्क को मजबूती व तीव्र गति प्रदान की है, जिससे जो कार्य पहले दो या तीन दिन में हुआ करता था, वर्तमान में वह कार्य कुछ ही मिनटों में हो जाता है। जैसे-रकम का खाते से खाते में हस्तान्तरण, डिमाण्ड ड्राफ्ट का भुनाना, इत्यादि।

6. बैंकिंग एप्लीकेशन्स वर्तमान में प्रत्येक बैंक द्वारा अपनी एक एप्लीकेशन लॉन्च की गयी है, जिसके माध्यम से ग्राहक कहीं भी कभी भी अपने खाते से राशि/रकम दूसरे व्यक्ति के खाते में हस्तान्तरित कर सकता है और अपने खाते की स्थिति विवरण प्राप्त कर सकता है। इस (UPBoardSolutions.com) एप्लीकेशन के माध्यम से ग्राहक/खाताधारक मोबाईल रिचार्ज व बिलों का भुगतान कर सकता है, खरीदारी के साथ-साथ अन्य कार्य भी कर सकता है।
बैंकिंग एप्लीकेशन ऑनलाइन बैंकिंग का आधुनिक स्वरूप है।

7. ऑटोमेटिड टेलर मशीन (ए. टी. एम.) ए. टी. एम. को एनी टाइम मनी के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इस मशीन से 24 घण्टे जब चाहे पैसा निकाला जा सकता है। ए. टी. एम. से ग्राहक पैसा निकाल सकते हैं, जमा कर सकते हैं, एक खाते से दूसरे खाते में हस्तान्तरण करा सकते हैं, नई चैक बुक जारी करा सकते हैं और बैंक खाते का विवरण ले सकते हैं।

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 12 फुटकर व्यापार

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 12
Chapter Name फुटकर व्यापार
Number of Questions Solved 22
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 12 फुटकर व्यापार

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
मध्यस्थों की श्रृंखला की अन्तिम कड़ी है
(a) उत्पादक
(b) थोक व्यापारी
(c) फुटकर व्यापारी
(d) ये सभी
उत्तर:
(c) फुटकर व्यापारी

प्रश्न 2.
फुटकर व्यापारी की विशेषता है
(a) थोड़ी-थोड़ी मात्रा में क्रय
(b) थोड़ी-थोड़ी मात्रा में विक्रय
(c) कम पूँजी
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

UP Board Solutions

प्रश्न 3.
विभागीय भण्डार को प्रारम्भ सबसे पहले हुआ था
(a) अमेरिका में
(b) फ्रांस में
(c) जर्मनी में
(d) लन्दन में
उत्तर:
(b)फ्रांस में

प्रश्न 4.
स्वयं सेवा पद्धति अपनायी जाती है
(a) विभागीय भण्डार में
(b) श्रृंखलाबद्ध भण्डार में
(c) सुपर बाजार में
(d) इन सभी में
उत्तर:
(c) सुपर बाजार में

निश्चित उतरी्य प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
उस फुटकर व्यापारी को क्या कहते हैं, जो जगह-जगह माल बेचता है?
उत्तर:
फेरी वाला

प्रश्न 2.
बड़ी मात्रा में फुटकर व्यापार करने वाली दो संस्थाओं के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. विभागीय भण्डार
  2. बहुसंख्यक दुकानें

UP Board Solutions

प्रश्न 3.
बहुसंख्यक दुकानें किसके द्वारा खोली जाती हैं? (2011)
उत्तर:
उत्पादकों द्वारा।

प्रश्न 4.
विभिन्न वस्तुओं व सेवाओं का लेन-देन करने वाले बाजार का नाम लिखिए। (2013)
उत्तर:
सुपर बाजार

प्रश्न 5.
‘बिग बाजार’ किस क्षेत्र से सम्बन्धित है?
उत्तर:
फुटकर व्यापार

प्रश्न 6.
बहुमूल्य धातुओं अर्थात् सोना एवं चाँदी का लेन-देन करने वाले बाजार का नाम लिखिए। (2014)
उत्तर:
सर्राफा बाजार

प्रश्न 7.
अंशों का लेन-देन करने वाले बाजार का नाम बताइए। (2012)
उत्तर:
शेयर बाजार

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
फुटकर व्यापार क्या है? फुटकर व्यापार के दो गुणों को लिखिए। (2014)
उत्तर:
फुटकर व्यापार से आशय ऐसे व्यापार से है, जिसमें व्यापारी थोक व्यापारी से माल क्रय करके थोड़ी-थोड़ी मात्रा में उपभोक्ताओं को बेचता है। फुटकर व्यापारी वितरण श्रृंखला की अन्तिम एवं महत्त्वपूर्ण कड़ी होती है। फुटकर व्यापार के दो गुण निम्नलिखित हैं-

  1. फुटकर व्यापारी उपभोक्ताओं को उनकी (UPBoardSolutions.com) आवश्यकतानुसार वस्तुएँ उपलब्ध करवाते हैं।
  2. फुटकर व्यापारी अपने ग्राहकों को उधार माल बेचकर साख सुविधाएँ प्रदान करते हैं।

प्रश्न 2.
फुटकर व्यापारी द्वारा प्रदान की जाने वाली किन्हीं दो सेवाओं का वर्णन कीजिए। (2015)
उत्तर:
फुटकर व्यापारी द्वारा प्रदान की जाने वाली दो सेवाएँ निम्नलिखित हैं

  1. फुटकर व्यापारी उपभोक्ताओं को उनकी रुचि, फैशन व रीति-रिवाज, आदि के आधार पर माल का विक्रय करते हैं।
  2. फुटकर व्यापारी अपने नियमित ग्राहकों को उधार माल बेचकर साख सुविधाएँ प्रदान करते हैं। इससे उपभोक्ताओं को अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं।

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प्रश्न 3.
डाक द्वारा व्यापार से क्या तात्पर्य है? इसकी दो विशेषताएँ बताइए। (2015)
उत्तर:
डाक द्वारा व्यापार में ग्राहकों से डाक द्वारा आदेश प्राप्त करके डाक द्वारा ही माल भेजा (विक्रय किया जाता है। इसमें क्रेता और विक्रेता एक-दूसरे से अनजाने रहते हैं। इस पद्धति को प्रोत्साहन देने में विज्ञापन का विशेष महत्त्व होता है। डाक द्वारा (UPBoardSolutions.com) व्यापार की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. इसमें माल का क्रय-विक्रय डाक द्वारा किया जाता है।
  2. इस पद्धति में ग्राहकों से व्यक्तिगत सम्पर्क करने की आवश्यकता नहीं होती है।

प्रश्न 4.
सुपर बाजार किसे कहते हैं?
उत्तर:
सुपर बाजार का प्रारम्भ सर्वप्रथम अमेरिका में हुआ था। सुपर बाजार एक ऐसे फुटकर व्यापार का संगठन है, जहाँ विभिन्न प्रकार की दैनिक उपयोग की वस्तुएँ नकद एवं स्वयं सेवा के आधार पर बेची जाती हैं। यह सहकारिता के सिद्धान्तों पर आधारित फुटकर व्यापार को आधुनिक संगठन होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
थोक एवं फुटकर व्यापारी से आप क्या समझते हैं? इनके मध्य चार अन्तर लिखिए। (2016)
अथवा
थोक व्यापार व फुटकर व्यापार में अन्तर कीजिए। (2011)
अथवा
फुटकर व्यापार से आप क्या समझते हैं? फुटकर एवं थोक व्यापार में क्या अन्तर है? (2007)
उत्तर:
थोक व्यापारी यह ऐसे व्यापारी होते हैं, जो उत्पादकों व निर्माताओं से भारी मात्रा में माल का क्रय करते हैं और उसे आवश्यकतानुसार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में फुटकर व्यापारियों को बेचते हैं। प्रो. हलें के अनुसार, “थोक व्यापारी वे विपणन व्यक्ति होते हैं, (UPBoardSolutions.com) जो फुटकर व्यापारी तथा निर्माता या उत्पादक के मध्य का स्थान ग्रहण करते हैं।” फुटकर व्यापारी यह थोक व्यापारियों से बड़ी मात्रा में माल खरीदते हैं तथा उपभोक्ताओं को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बेचते हैं। यह मध्यस्थों की श्रृंखला की अन्तिम कड़ी होती है। स्टीफेन्सन के अनुसार, “फुटकर व्यापारी उपभोक्ताओं सम्बन्धी वस्तुओं के वितरण में लगा वह व्यापारिक मध्यस्थ होता है, जिसका अन्तिम उपभोक्ताओं से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।”

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थोक व्यापारी व फुटकर व्यापारी में अन्तर अन्तर
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प्रश्न 2.
फुटकर व्यापारी द्वारा प्रदान की जाने वाली चार सेवाओं का वर्णन कीजिए। (2016)
उत्तर:
फुटकर व्यापारी द्वारा प्रदान की जाने वाली चार सेवाएँ निम्नलिखित हैं

  1. उपभोक्ताओं की रुचि व माँग के अनुसार सूचना देना फुटकर व्यापारी, उपभोक्ताओं की रुचि, फैशन वे रीति-रिवाज, आदि से सम्बन्धित जानकारी थोक व्यापारियों व उत्पादकों को देते हैं। इससे नवीनतम वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है।
  2. माँग उत्पन्न करना फुटकर व्यापारी, थोक व्यापारी से प्राप्त माल को बेचकर अधिकाधिक माल की माँग उत्पन्न करते हैं। यह माल के विक्रय में भी सहायता प्रदान करते हैं।
  3. ग्राहकों को आवश्यकतानुसार माल का विक्रय करना फुटकर व्यापारी उपभोक्ताओं को उनकी रुचि, फैशन व रीति-रिवाज, आदि के आधार पर माल का विक्रय करते हैं।
  4. क्षेत्र की माँग के अनुसार वस्तुओं की पूर्ति करना फुटकर व्यापारी (UPBoardSolutions.com) अपने क्षेत्र के उपभोक्ताओं की माँग के अनुसार वस्तुओं की पूर्ति करते हैं।

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प्रश्न 3.
खुदरा व्यापारियों के महत्त्व को बताइए।
उत्तर:
खुदरा व्यापारियों के महत्त्व को निम्नलिखित तक से स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. ग्राहकों की सन्तुष्टि पर ध्यान फुटकर व्यापारी उपभोक्ता की सेवा और सन्तुष्टि पर पर्याप्त ध्यान देते हैं।
  2. सीमित पूँजी फुटकर व्यापारी को अपना व्यवसाय (दुकान) चलाने के लिए अपेक्षाकृत कम पूँजी की आवश्यकता होती है।
  3. उधार व नकद खरीद ये थोक व्यापारियों और उत्पादकों से माल, उधार तथा नकद दोनों प्रकार से खरीदते हैं।
  4. थोड़ी मात्रा में विक्रय फुटकर व्यापारी, थोक व्यापारियों से माल खरीदकर उपभोक्ताओं को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बेचते हैं।
  5. थोड़ी मात्रा में क्रय फुटकर व्यापारी, थोक व्यापारियों व उत्पादकों से थोड़ी-थोड़ी मात्रा में वस्तुएँ क्रय करते हैं।
  6. सजावट फुटकर व्यापारी बिक्री को बढ़ाने के उद्देश्य से दुकान में सजावट पर अधिक ध्यान देते हैं। ये वस्तुओं का प्रदर्शन भी करते हैं।
  7. ग्राहकों से सीधा सम्पर्क फुटकर व्यापारी और उपभोक्ता के (UPBoardSolutions.com) बीच में सीधा और निकटतम सम्बन्ध होता है।
  8. स्थान का महत्त्व फुटकर व्यापारी दुकान ऐसे स्थान पर लगाता है, जहाँ अधिक मात्रा में लोग आते-जाते हों।
  9. विभिन्न वस्तुओं में व्यापार फुटकर व्यापारी अनेक प्रकार की वस्तुओं को क्रय-विक्रय करते हैं। ये किसी विशिष्ट वस्तु का व्यवसाय नहीं करते हैं।
  10. मध्यस्थों की अन्तिम कड़ी मध्यस्थों की अन्तिम कड़ी फुटकर व्यापारी होते हैं। इनका ग्राहकों से व्यक्तिगत सम्पर्क होता है।
  11. चयन की सुविधा ये उपभोक्ता को विभिन्न वस्तुओं की विभिन्न किस्मों के चयन की सुविधा प्रदान करते हैं।
  12. प्रायः नकद विक्रय ये उपभोक्ताओं को अधिकतर नकद माल बेचते हैं। कुछ ग्राहकों को उधार भी दे देते हैं।

प्रश्न 4.
ऑनलाइन व्यवसाय को परिभाषित कीजिए। इसके गुणों को बताइए। (2018)
उत्तर:
यदि व्यवसाय का स्वामी अपने व्यवसाय को चलाने हेतु इण्टरनेट का उपयोग करता है, तो सम्बन्धित व्यवसाय को ‘ऑनलाइन व्यवसाय’ कहा जाता है। अन्य शब्दों में, ऑनलाइन व्यवसाय में क्रय तथा विक्रय ऑनलाइन होता है तथा इसके अन्तर्गत व्यवसायी अपने ग्राहकों को ऑनलाइन सेवाएँ प्रदान करता है।

ऑनलाइन व्यवसाय के गुण

  1. लागत की बचत होती है।
  2. बेहतर कार्यक्षमता होती है।
  3. पूरे विश्व में ग्राहक इसकी सुविधा किसी (UPBoardSolutions.com) भी समय प्राप्त कर सकता है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
फुटकर व्यापारी की सेवाओं का वर्णन कीजिए। (2008)
उत्तर:
फुटकर व्यापारियों की सेवाएँ फुटकर व्यापारी उत्पादकों, थोक व्यापारी, उपभोक्ताओं अथवा समाज के प्रति विभिन्न महत्त्वपूर्ण सेवाएँ प्रदान करते हैं। ये सेवाएँ निम्नलिखित हैं

I. उत्पादकों व थोक व्यापारियों के प्रति सेवाएँ
फुटकर व्यापारी उत्पादकों व थोक व्यापारियों के प्रति निम्नलिखित सेवाएँ प्रदान करते हैं

  1. उपभोक्ताओं की रुचि व माँग के अनुसार सूचना देना फुटकर व्यापारी, उपभोक्ताओं की रुचि, फैशन वे रीति-रिवाज, आदि से सम्बन्धित जानकारी थोक व्यापारियों व उत्पादकों को देते हैं। इससे नवीनतम वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है।
  2. माँग उत्पन्न करना फुटकर व्यापारी, थोक व्यापारी से प्राप्त माल को बेचकर अधिकाधिक माल की माँग उत्पन्न करते हैं। यह माल के विक्रय में भी सहायता प्रदान करते हैं।
  3. स्थानीय विज्ञापन से मुक्ति फुटकर व्यापारी अपने स्थानीय स्तर पर किसी वस्तु का विज्ञापन स्वयं कर लेते हैं। इसके लिए थोक व्यापारियों को विज्ञापन की आवश्यकता नहीं रहती है।
  4. वितरण के झंझटों से मुक्त करना फुटकर व्यापारियों के उपलब्ध होने पर थोक व्यापारियों को माल के वितरण की समस्या नहीं होती है।
  5. नए माल का प्रचार फुटकर व्यापारी अपने व्यक्तिगत सम्पर्क और प्रभाव (UPBoardSolutions.com) से थोक व्यापारी या उत्पादकों के लिए बाजार में नए माल का प्रचार करके अधिक बिक्री हेतु प्रयास करते हैं।
  6. वितरण लागत में कमी उत्पादक या थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारी को उपभोक्ताओं की तुलना में अधिक माल बेचते हैं। इससे वितरण लागत में कमी आती है।
  7. आँकड़ों को एकत्रीकरण फुटकर व्यापारी माल की माँग व मूल्य आदि से सम्बन्धित आँकड़ों का संग्रहण करके उत्पादकों व थोक व्यापारियों को उपलब्ध करवाते हैं।

II. समाज या उपभोक्ताओं के प्रति सेवाएँ

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फुटकर व्यापारी समाज तथा उपभोक्ताओं के प्रति निम्नलिखित सेवाएँ प्रदान करते  हैं-

  1. ग्राहकों को आवश्यकतानुसार माल का विक्रय करना फुटकर व्यापारी उपभोक्ताओं को उनकी रुचि, फैशन व रीति-रिवाज, आदि के आधार पर माल का विक्रय करते हैं।
  2. क्षेत्र की माँग के अनुसार वस्तुओं की पूर्ति करना फुटकर व्यापारी अपने क्षेत्र के उपभोक्ताओं की माँग के अनुसार वस्तुओं की पूर्ति करते हैं।
  3. साख सुविधाएँ प्रदान करना फुटकर व्यापारी अपने नियमित ग्राहकों को माल उधार बेचकर साख सुविधाएँ प्रदान करते हैं। इससे उपभोक्ताओं को अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ सरलता से उपलब्ध हो जाती हैं।
  4. ताजी वस्तुएँ प्रदान करना फुटकर व्यापारी अपने ग्राहकों को ताजी व शुद्ध वस्तुएँ उपलब्ध करवाते हैं, इसलिए ग्राहक आवश्यकता के अनुसार कभी भी माल खरीद सकते हैं।
  5. माल वापसी की सुविधा देना फुटकर व्यापारी उपभोक्ता को कोई माल पसन्द न आने पर उसे वापस लेने की सुविधा भी प्रदान करते हैं।
  6. माल को घर पहुँचाना फुटकर व्यापारी ग्राहकों के व्यक्तिगत सम्बन्धों के कारण उनके घर पर माल की सुपुर्दगी की सुविधा भी प्रदान करते हैं।
  7. माँग के अनुसार वस्तुएँ उपलब्ध कराना फुटकर व्यापारी अपनी दुकान में मौसम के अनुकूल अलग-अलग प्रकार की वस्तुएँ खरीदकर एकत्र कर लेते हैं, जिससे उपभोक्ताओं को आवश्यकतानुसार उनकी पसन्द की वस्तुएँ सरलता से मिल जाती हैं।
  8. निःशुल्क परामर्श देना फुटकर व्यापारी अपने ग्राहकों से व्यक्तिगत सम्पर्क होने के कारण उनको वस्तुओं के उचित चयन व उपयोगिता के विषय में नि:शुल्क परामर्श देते हैं।
  9. ग्राहकों को चुनाव की सुविधा फुटकर व्यापारी ग्राहकों को उनकी आवश्यकता के (UPBoardSolutions.com) अनुसार वस्तु के उपयुक्त चुनाव की सुविधा देते हैं।
  10. ठगे जाने का भय नहीं फुटकर व्यापारी ग्राहकों के निकट व स्थायी रूप से होने के कारण ग्राहकों से धोखा नहीं करता है। उपभोक्ताओं को फुटकर व्यापारी पर पूर्ण विश्वास होता है।

प्रश्न 2.
फुटकर व्यापारी से आप क्या समझते हैं? यह थोक व्यापारी से किस प्रकार भिन्न है? एक फुटकर व्यापारी की समाज के प्रति सेवाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फुटकर व्यापारी से आशय 
थोक व्यापारी यह ऐसे व्यापारी होते हैं, जो उत्पादकों व निर्माताओं से भारी मात्रा में माल का क्रय करते हैं और उसे आवश्यकतानुसार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में फुटकर व्यापारियों को बेचते हैं। प्रो. हलें के अनुसार, “थोक व्यापारी वे विपणन व्यक्ति होते हैं, जो फुटकर व्यापारी तथा निर्माता या उत्पादक के मध्य का स्थान ग्रहण करते हैं।”

फुटकर व्यापारी यह थोक व्यापारियों से बड़ी मात्रा में माल खरीदते हैं तथा उपभोक्ताओं को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बेचते हैं। यह मध्यस्थों की श्रृंखला की अन्तिम कड़ी होती है। स्टीफेन्सन के अनुसार, “फुटकर व्यापारी उपभोक्ताओं सम्बन्धी वस्तुओं के वितरण में लगा वह व्यापारिक मध्यस्थ होता है, जिसका अन्तिम उपभोक्ताओं से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।”

समाज या उपभोक्ताओं के प्रति सेवाएँ
फुटकर व्यापारी समाज तथा उपभोक्ताओं के प्रति निम्नलिखित सेवाएँ प्रदान करते  हैं-

  1. ग्राहकों को आवश्यकतानुसार माल का विक्रय करना फुटकर व्यापारी उपभोक्ताओं को उनकी रुचि, फैशन व रीति-रिवाज, आदि के आधार पर माल का विक्रय करते हैं।
  2. क्षेत्र की माँग के अनुसार वस्तुओं की पूर्ति करना फुटकर व्यापारी अपने क्षेत्र के उपभोक्ताओं की माँग के अनुसार वस्तुओं की पूर्ति करते हैं।
  3. साख सुविधाएँ प्रदान करना फुटकर व्यापारी अपने नियमित ग्राहकों को माल उधार बेचकर साख सुविधाएँ प्रदान करते हैं। इससे उपभोक्ताओं को अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ सरलता से उपलब्ध हो जाती हैं।
  4. ताजी वस्तुएँ प्रदान करना फुटकर व्यापारी अपने ग्राहकों को ताजी व शुद्ध वस्तुएँ उपलब्ध करवाते हैं, इसलिए ग्राहक आवश्यकता के अनुसार कभी भी माल खरीद सकते हैं।
  5. माल वापसी की सुविधा देना फुटकर व्यापारी उपभोक्ता को कोई माल पसन्द न आने पर उसे वापस लेने की सुविधा भी प्रदान करते हैं।
  6. माल को घर पहुँचाना फुटकर व्यापारी ग्राहकों के व्यक्तिगत सम्बन्धों के कारण उनके घर पर माल की सुपुर्दगी की सुविधा भी प्रदान करते हैं।
  7. माँग के अनुसार वस्तुएँ उपलब्ध कराना फुटकर व्यापारी अपनी दुकान में मौसम के अनुकूल अलग-अलग प्रकार की वस्तुएँ खरीदकर एकत्र कर लेते हैं, जिससे उपभोक्ताओं को आवश्यकतानुसार उनकी पसन्द की वस्तुएँ सरलता से मिल जाती हैं।
  8. निःशुल्क परामर्श देना फुटकर व्यापारी अपने ग्राहकों से व्यक्तिगत सम्पर्क होने के कारण उनको वस्तुओं के उचित चयन व उपयोगिता के विषय में नि:शुल्क परामर्श देते हैं।
  9. ग्राहकों को चुनाव की सुविधा फुटकर व्यापारी ग्राहकों को उनकी (UPBoardSolutions.com) आवश्यकता के अनुसार वस्तु के उपयुक्त चुनाव की सुविधा देते हैं।
  10. ठगे जाने का भय नहीं फुटकर व्यापारी ग्राहकों के निकट व स्थायी रूप से होने के कारण ग्राहकों से धोखा नहीं करता है। उपभोक्ताओं को फुटकर व्यापारी पर पूर्ण विश्वास होता है।

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प्रश्न 3.
विभागीय भण्डार से क्या आशय है? विभागीय भण्डार एवं श्रृंखलाबद्ध दुकानों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विभागीय भण्डार विभागीय भण्डार का विकास सर्वप्रथम फ्रांस में सन् 1852 में हुआ था। विभागीय भण्डार के अन्तर्गत एक ही भवन की छत के नीचे वस्तुओं का पृथक्-पृथक् विभागों में विक्रय किया जाता है। इन भण्डारों में उपभोक्ताओं की आवश्यकता की सभी वस्तुएँ अर्थात् सुई से लेकर कार तक एक ही स्थान पर मिल जाती हैं।

इन वस्तुओं के बिल एक ही छत के नीचे अलग-अलग विभागों में बनते हैं। क्लार्क के अनुसार, “विभागीय भण्डार एक फुटकर संस्था है, जिसमें एक ही छत के नीचे बहुत-सी वस्तुओं का व्यापार होता है। ये वस्तुएँ निश्चित विभागों में विभाजित होती हैं। इनका (UPBoardSolutions.com) केन्द्रीय प्रबन्ध होता है और ये मुख्य रूप से स्त्री ग्राहकों की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं।” जेम्स स्टीफेन्सन के अनुसार, “विभागीय भण्डार एक ही छत के अन्तर्गत एक बड़ा भण्डार है, जो विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का फुटकर व्यापार करते हैं।”

विभागीय भण्डार व श्रृंखलाबद्ध दुकानों में अन्तर
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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 12 फुटकर व्यापार

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 18 सहकारी बैंक

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 18 सहकारी बैंक are the part of UP Board Solutions for Class 10 Commerce. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 18 सहकारी बैंक.

Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 18
Chapter Name सहकारी बैंक
Number of Questions Solved 21
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 18 सहकारी बैंक

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
भारत में सहकारी समिति अधिनियम कब पारित हुआ? (2014)
(a) सन् 1901 में
(b) सन् 1904 में
(c) सन् 1903 में
(d) सन् 1905 में
उत्तर:
(b) सन् 1904 में

प्रश्न 2.
केन्द्रीय सहकारी बैंक किस स्तर पर होते हैं?
(a) ग्राम स्तर पर
(b) प्रदेश स्तर पर
(c) जिला स्तर पर
(d) मण्डल स्तर पर
उत्तर:
(c) जिला स्तर पर

UP Board Solutions

प्रश्न 3.
केन्द्रीय सहकारी बैंक कितने प्रतिशत लाभ का वितरण करते हैं?
(a) 25%
(b) 30%
(c) 75%
(d) 40%
उत्तर:
(c) 75%

प्रश्न 4.
केन्द्रीय सहकारी बैंक का मुख्य कार्य होता है।
(a) जननिक्षेप प्राप्त करना
(b) क्षेत्रीय व्यवस्था को प्रोत्साहित करना
(c) ग्रामीण साख-सुविधा प्रदान करना
(d) उपभोक्ताओं को ऋण देना
उत्तर:
(c) ग्रामीण साख-सुविधा प्रदान करना

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
केन्द्रीय सहकारी बैंक का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर:
जिला सहकारी बैंक

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प्रश्न 2.
केन्द्रीय सहकारी बैंक की स्थापना गाँव/शहर में की जाती हैं।
उत्तर:
शहर

प्रश्न 3.
केन्द्रीय सहकारी बैंकों का प्रबन्ध किसके द्वारा किया जाता है?
उत्तर:
संचालक मण्डल

प्रश्न 4.
केन्द्रीय सहकारी बैंक अल्पकालीन/दीर्घकालीन ऋण देते हैं।
उत्तर:
अल्पकालीन

प्रश्न 5.
राज्य सहकारी बैंक का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर:
शीर्ष बैंक

प्रश्न 6.
भारत के सहकारी साख आन्दोलन में सरकारी हस्तक्षेप कम/अधिक होता है।
उत्तर:
अधिक

UP Board Solutions

प्रश्न 7.
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना सन् 1975/1980 में की गई। (2014)
उत्तर:
सन् 1975 में

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
सहकारी बैंकों के दो लक्षण बताइए।
उत्तर :
सहकारी बैंक के दो लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. प्रबन्ध इन बैंकों के प्रबन्ध का कार्य लोकतान्त्रिक आधार पर किया जाता है।
  2. स्थापना का उद्देश्य सहकारी बैंकों की (UPBoardSolutions.com) स्थापना व्यक्तियों द्वारा स्वयं के कल्याण अर्थात् स्वयं की सहायता के उद्देश्य से की जाती है।

प्रश्न 2.
सहकारी बैंक के प्रकार बताइए।
उत्तर:
सहकारी बैंक निम्नलिखित निम्न प्रकार के होते हैं

  1. केन्द्रीय सहकारी बैंक
  2. राज्य सहकारी बैंक

प्रश्न 3.
केन्द्रीय सहकारी बैंक से क्या आशय है?
उत्तर:
केन्द्रीय सहकारी बैंक को ‘जिला सहकारी बैंक (District Co-operative Bank) भी कहते हैं। इन बैंकों का प्रमुख उद्देश्य जिले की प्राथमिक समितियों से सम्पर्क स्थापित करना, उनका निरीक्षण करना व उन्हें सहयोग प्रदान करना होता है। यह प्रत्येक (UPBoardSolutions.com) जिले में एक ही होता है तथा इसकी स्थापना शहर में की जाती है।

UP Board Solutions

प्रश्न 4.
सहकारी बैंक के चार कार्य लिखिए। (2018)
उत्तर:
सहकारी बैंक के चार कार्य निम्नलिखित हैं

  1. ये बैंक सहकारी शिक्षा को बढ़ावा देते हैं।
  2. ये बैंक सम्पूर्ण प्रादेशिक सहकारी आन्दोलने के लिए वित्त की व्यवस्था ए करते हैं।
  3. ये बैंक केन्द्रीय सहकारी बैंक के मार्गदर्शक होते हैं।
  4. ये बैंक प्रदेश के अनेक केन्द्रीय बैंकों के मध्य सन्तुलन बनाए रखते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
सहकारी बैंक के बारे में आप क्या जानते हैं? वर्णन कीजिए। (2010)
उत्तर:
सहकारी बैंक (को-ऑपरेटिव बैंक) व्यक्तियों के ऐसे संगठन, जो समानता, स्वयं सहायता व प्रजातान्त्रिक आधार पर सभी के हित के लिए बैंकिंग सम्बन्धी सभी कार्य करते हैं, सहकारी बैंक कहलाते हैं। सहकारी बैंक, सहकारी समितियों का एक संगठन होता है। इन बैंकों की स्थापना सन् 1904 में सहकारी साख अधिनियम के पारित होने के बाद हुई। हेनरी वोल्फ के अनुसार, “सहकारी बैंकिंग एक ऐसी एजेन्सी है, जो छोटे वर्ग के व्यक्तियों से व्यवहार करने की स्थिति में है तथा जो अपनी शर्तों के अनुसार उनकी जमाओं को स्वीकार करती है व ऋण प्रदान करती है।

सहकारी बैंक कृषकों को वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन उधार देते हैं। सहकारी बैंक कषकों को बीज व खाद खरीदने, मजदरी का भगतान करने, भमि में सधार करवाने, कृषि उपकरणों को खरीदने के लिए किसानों को ऋण देते हैं। सहकारी बैंक किसानों (UPBoardSolutions.com) को सस्ती ब्याज दर एवं सरल शर्तों पर ऋण प्रदान करते हैं। भारत में सहकारी बैंक का ढाँचा त्रि-स्तरीय है। सहकारी बैंक निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

  1. जिला स्तर पर केन्द्रीय सहकारी बैंक इनके द्वारा प्राथमिक साख समितियों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूर्ण किया जाता है।
  2. राज्य स्तर पर शीर्ष बैंक ये बैंक राज्य में सहकारी आन्दोलन के विकास हेतु उत्तरदायी होते हैं।

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प्रश्न 2.
सहकारी बैंकों के दोषों का वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर:
सहकारी बैंकों के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-

  1. सरकार को अधिक नियन्त्रण इन बैंकों पर सरकार का अधिक नियन्त्रण रहता है, इसलिए जनता इन्हें अपना सहायक न मानकर सरकारी संस्थाएँ मानती है।
  2. अकुशल संचालक ग्रामीण क्षेत्रों की समितियों के संचालक बैंकों का प्रबन्ध सुव्यवस्थित प्रकार से नहीं कर पाते हैं।
  3. पूँजी की कमी भारतीय सहकारी बैंकों के पास पूँजी का अभाव पाया जाता है, इसलिए ये बैंक कुशलता से कार्य करने में असमर्थ होते हैं।
  4. ऋण वसूल करने में देरी सहकारी बैंकों द्वारा दिए गए ऋणों की राशि समय (UPBoardSolutions.com) पर वसूल नहीं हो पाती है। इससे उनकी कार्यप्रणाली प्रभावित होती है।
  5. अधिक ब्याज दर इन बैंकों के पास पर्याप्त मात्रा में नकद कोष नहीं होता है, इसलिए ये समितियाँ दूसरों के ऋण पर निर्भर रहती हैं। अत: इनके ब्याज की दर अन्य संस्थाओं से अधिक होती है।
  6. सहकारिता के सिद्धान्तों का ज्ञान न होना भारतीय ग्रामीण जनता व इन समितियों के कर्मचारियों को सहकारिता के सिद्धान्तों का ज्ञान नहीं होता है। इससे ये संस्थाएँ सफल नहीं हो पाती हैं।

प्रश्न 3.
वाणिज्यिक बैंक व सहकारी बैंक में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2009,07)
उत्तर:
वाणिज्यिक व सहकारी बैंकों में अन्तर
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 18 सहकारी बैंक

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
को-ऑपरेटिव बैंक (सहकारी बैंक) क्या है? इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
अथवा
ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास में सहकारी बैंकों की भूमिका की विवेचना कीजिए। (2011, 06)
अथवा
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सहकारी बैंक का महत्त्व बताइए। (2008)
अथवा
सहकारी बैंकों के गुणों का वर्णन कीजिए। (2007)
उत्तर:
को-ऑपरेटिव बैंक से आशय

सहकारी बैंक (को-ऑपरेटिव बैंक) व्यक्तियों के ऐसे संगठन, जो समानता, स्वयं सहायता व प्रजातान्त्रिक आधार पर सभी के हित के लिए बैंकिंग सम्बन्धी सभी कार्य करते हैं, सहकारी बैंक कहलाते हैं। सहकारी बैंक, सहकारी समितियों का एक संगठन होता है। इन बैंकों की स्थापना सन् 1904 में सहकारी साख अधिनियम के पारित होने के बाद हुई। हेनरी वोल्फ के अनुसार, “सहकारी बैंकिंग एक ऐसी एजेन्सी है, जो छोटे वर्ग के व्यक्तियों से व्यवहार करने की स्थिति में है तथा जो अपनी शर्तों के अनुसार उनकी जमाओं को स्वीकार करती है व ऋण प्रदान करती है।

सहकारी बैंक कृषकों को वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन उधार देते हैं। सहकारी बैंक कषकों को बीज व खाद खरीदने, मजदरी का भगतान करने, भमि में सधार करवाने, कृषि उपकरणों को खरीदने के लिए किसानों को ऋण देते हैं। सहकारी बैंक किसानों को सस्ती ब्याज दर एवं सरल शर्तों पर ऋण प्रदान करते हैं। भारत में सहकारी बैंक का ढाँचा त्रि-स्तरीय है। सहकारी बैंक निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

  1. जिला स्तर पर केन्द्रीय सहकारी बैंक इनके द्वारा प्राथमिक साख समितियों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूर्ण किया जाता है।
  2. राज्य स्तर पर शीर्ष बैंक ये बैंक राज्य में सहकारी आन्दोलन के विकास हेतु उत्तरदायी होते हैं।

भारत में सहकारी बैंकों को महत्त्व व गुण या भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सहकारी बैंकों की भूमिका सहकारी बैंक देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के प्रमुख कर्णधार हैं। इन बैंकों की व्यवस्था से समाज की आर्थिक स्थिति उन्नत हुई। है व कृषि क्षेत्र में अनेक लाभ हुए हैं। इसके प्रमुख लाभों या महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट कर सकते हैं

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  1. कृषि कार्यों के लिए ऋण सहकारी बैंक किसानों को खाद, बीज, कृषि यन्त्रों, आदि के लिए सस्ती ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध करवाते हैं।
  2. कुटीर उद्योगों का विकास सहकारी बैंकों द्वारा कुटीर उद्योगों को सहायता प्रदान किए जाने से इनका विकास हुआ है।
  3. ग्रामीणों के रोजगार में वृद्धि सहकारी बैंकों द्वारा ऋण देने से कृषि कार्यों का विकास होता है, जिससे ग्रामीण जनता को अधिक रोजगार प्राप्त होता है।
  4. महाजनों के प्रभाव में कमी कृषि विकास बैंकों की स्थापना के बाद से यह बैंक किसानों को आवश्यकतानुसार ऋण प्रदान करते रहते हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में साहूकारों का प्रभाव कम हुआ है।
  5. कृषि उपज के विपणन में सहायता इन बैंकों के द्वारा कृषि विपणन समितियों की स्थापना से किसानों को फसल का उचित दाम मिल जाता है।
  6. सामाजिक गुणों का विकास इन बैंकों व समितियों के सक्रिय रूप से कार्य करने के कारण लोगों में सहयोग, मित्रता, आदि सामाजिक गुणों का विकास होता है।
  7. सहयोग की भावना में वृद्धि सहकारी बैंकों से जनता में परस्पर सहयोग (UPBoardSolutions.com) की भावना में वृद्धि हुई है।
  8. बचत की आदत का विकास ये समितियाँ प्रजातान्त्रिक सिद्धान्त पर कार्य करती हैं। इससे किसानों में बैंक के प्रयोग व उनमें बचत करने की आदत को प्रोत्साहन मिलता है।

प्रश्न 2.
हमारे देश में सहकारी बैंकों की असफलता के क्या कारण हैं? इन्हें उपयोगी बनाने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए? (2016)
उत्तर:
सहकारी बैंकों की असफलता के प्रमुख कारण

  1. सहकारी बैंकों पर सरकार का अत्यधिक नियन्त्रण सरकार ने इन बैंकों पर अनेक प्रकार के नियन्त्रण लगाए हैं। इससे जनता इन्हें सरकार का बैंक समझती है।
  2. उचित प्रबन्ध का न होना इन बैंकों में कुशल व्यक्तियों का अभाव होता है। फलस्वरूप इनको लाभ के स्थान पर हानि अधिक होती है।
  3. पर्याप्त पूँजी का अभाव इन बैंकों के पास पूँजी की कमी होती है, क्योंकि इनके अधिकांश सदस्यों के पास धन नहीं होता है।
  4. ऋण वसूली करने में देरी सहकारी बैंक ऋण राशि को सही समय पर वसूल करने में असफल रहते हैं। परिणामस्वरूप, जिन्हें आवश्यकता होती है, उन्हें धन नहीं मिल पाता।
  5. अपूर्ण ज्ञान सहकारी बैंकों को ग्रामीण जनता व समितियों के सिद्धान्तों का ज्ञान नहीं होती है।

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भारत में सहकारी बैंकों के सुधार के लिए सुझाव

  1. पूँजी में वृद्धि इन समितियों को अपने रक्षित कोषों में वृद्धि करनी चाहिए।
  2. सरकारी नियन्त्रण में कमी सहकारी संगठन पर सरकारी नियन्त्रण में कमी कर देनी चाहिए, जिससे कि समिति के सदस्यों पर उत्तरदायित्व का भार डाला जा सके।
  3. सहकारिता के सिद्धान्तों का प्रचार इन बैंकों में सहकारिता के सिद्धान्तों की शिक्षा प्रदान करने की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए।
  4. समन्वय एवं सहयोग इन बैंकों का व्यापारिक बैंकों के साथ सहयोग और समन्वय (UPBoardSolutions.com) होना चाहिए, जिससे ये बैंक अधिक सुविधाएँ प्रदान कर सकें।
  5. कर्मचारियों के लिए उचित प्रशिक्षण सहकारी बैंकों में अनेक स्थानों पर उचित प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे योग्य कर्मचारियों की सेवाएँ बैंकों को उपलब्ध हो सकें।
  6. ब्याज की दर इन समितियों को ब्याज की दर में कमी करनी चाहिए।

प्रश्न 3.
सहकारी बैंक क्या है? इसके गुण वे दोषों का वर्णन कीजिए। (2013)
उत्तर:
सहकारी बैंक से आशय

सहकारी बैंक (को-ऑपरेटिव बैंक) व्यक्तियों के ऐसे संगठन, जो समानता, स्वयं सहायता व प्रजातान्त्रिक आधार पर सभी के हित के लिए बैंकिंग सम्बन्धी सभी कार्य करते हैं, सहकारी बैंक कहलाते हैं। सहकारी बैंक, सहकारी समितियों का एक संगठन होता है। इन बैंकों की स्थापना सन् 1904 में सहकारी साख अधिनियम के पारित होने के बाद हुई। हेनरी वोल्फ के अनुसार, “सहकारी बैंकिंग एक ऐसी एजेन्सी है, जो छोटे वर्ग के व्यक्तियों से व्यवहार करने की (UPBoardSolutions.com) स्थिति में है तथा जो अपनी शर्तों के अनुसार उनकी जमाओं को स्वीकार करती है व ऋण प्रदान करती है।

सहकारी बैंक कृषकों को वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन उधार देते हैं। सहकारी बैंक कषकों को बीज व खाद खरीदने, मजदरी का भगतान करने, भमि में सधार करवाने, कृषि उपकरणों को खरीदने के लिए किसानों को ऋण देते हैं। सहकारी बैंक किसानों को सस्ती ब्याज दर एवं सरल शर्तों पर ऋण प्रदान करते हैं। भारत में सहकारी बैंक का ढाँचा त्रि-स्तरीय है। सहकारी बैंक निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

  1. जिला स्तर पर केन्द्रीय सहकारी बैंक इनके द्वारा प्राथमिक साख समितियों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूर्ण किया जाता है।
  2. राज्य स्तर पर शीर्ष बैंक ये बैंक राज्य में सहकारी आन्दोलन के विकास हेतु उत्तरदायी होते हैं।

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सहकारी बैंकों के गुण

भारत में सहकारी बैंकों को महत्त्व व गुण या भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सहकारी बैंकों की भूमिका सहकारी बैंक देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के प्रमुख कर्णधार हैं। इन बैंकों की व्यवस्था से समाज की आर्थिक स्थिति उन्नत हुई। है व कृषि क्षेत्र में अनेक लाभ हुए हैं। इसके प्रमुख लाभों या महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट कर सकते हैं

  1. कृषि कार्यों के लिए ऋण सहकारी बैंक किसानों को खाद, बीज, कृषि यन्त्रों, आदि के लिए सस्ती ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध करवाते हैं।
  2. कुटीर उद्योगों का विकास सहकारी बैंकों द्वारा कुटीर उद्योगों को सहायता प्रदान किए जाने से इनका विकास हुआ है।
  3. ग्रामीणों के रोजगार में वृद्धि सहकारी बैंकों द्वारा ऋण देने से कृषि कार्यों का विकास होता है, जिससे ग्रामीण जनता को अधिक रोजगार प्राप्त होता है।
  4. महाजनों के प्रभाव में कमी कृषि विकास बैंकों की स्थापना के बाद से यह बैंक किसानों को आवश्यकतानुसार ऋण प्रदान करते रहते हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में साहूकारों का प्रभाव कम हुआ है।
  5. कृषि उपज के विपणन में सहायता इन बैंकों के द्वारा कृषि विपणन समितियों की स्थापना से किसानों को फसल का उचित दाम मिल जाता है।
  6. सामाजिक गुणों का विकास इन बैंकों व समितियों के सक्रिय रूप से कार्य करने के कारण लोगों में सहयोग, मित्रता, आदि सामाजिक गुणों का विकास होता है।
  7. सहयोग की भावना में वृद्धि सहकारी बैंकों से जनता में परस्पर सहयोग की भावना में वृद्धि हुई है।
  8. बचत की आदत का विकास ये समितियाँ प्रजातान्त्रिक सिद्धान्त पर कार्य करती हैं। इससे किसानों में बैंक के प्रयोग व उनमें बचत करने की आदत को प्रोत्साहन मिलता है।

सहकारी बैंकों के दोष

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सहकारी बैंकों के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-

  1. सरकार को अधिक नियन्त्रण इन बैंकों पर सरकार का अधिक नियन्त्रण रहता है, इसलिए जनता इन्हें अपना सहायक न मानकर सरकारी संस्थाएँ मानती है।
  2. अकुशल संचालक ग्रामीण क्षेत्रों की समितियों के संचालक बैंकों का प्रबन्ध सुव्यवस्थित प्रकार से नहीं कर पाते हैं।
  3. पूँजी की कमी भारतीय सहकारी बैंकों के पास पूँजी का अभाव पाया जाता है, इसलिए ये बैंक कुशलता से कार्य करने में असमर्थ होते हैं।
  4. ऋण वसूल करने में देरी सहकारी बैंकों द्वारा दिए गए ऋणों की राशि समय पर वसूल नहीं हो पाती है। इससे उनकी कार्यप्रणाली प्रभावित होती है।
  5. अधिक ब्याज दर इन बैंकों के पास पर्याप्त मात्रा में नकद कोष नहीं होता है, इसलिए (UPBoardSolutions.com) ये समितियाँ दूसरों के ऋण पर निर्भर रहती हैं। अत: इनके ब्याज की दर अन्य संस्थाओं से अधिक होती है।
  6. सहकारिता के सिद्धान्तों का ज्ञान न होना भारतीय ग्रामीण जनता व इन समितियों के कर्मचारियों को सहकारिता के सिद्धान्तों का ज्ञान नहीं होता है। इससे ये संस्थाएँ सफल नहीं हो पाती हैं।

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 3 बैंक समाधान विवरण

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 3 बैंक समाधान विवरण are the part of UP Board Solutions for Class 10 Commerce. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 3 बैंक समाधान विवरण.

Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 3
Chapter Name बैंक समाधान विवरण
Number of Questions Solved 25
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 3 बैंक समाधान विवरण

बहुविकल्पीय प्रश्न ( 1 अंक)
                   

प्रश्न 1.
बैंक समाधान विवरण किसके द्वारा बनाया जाता है?
(a) व्यापारी
(b) बैंक
(c) देनदार
(d) लेनदार
उत्तर:
(a) व्यापारी

प्रश्न 2.
बैंक समाधान विवरण तैयार किया जाता है?
(a) रोकड़ पुस्तक के बैंक कॉलम शेष से
(b) रोकड़ पुस्तक के रोकड़ कॉलम शेष से
(c) रोकड़ पुस्तक के बैंक कॉलम शेष यो पास बुक के शेष से
(d) पास बुक के शेष से
उत्तर:
(c) रोकड़ पुस्तक के बैंक कॉलम शेष या पास बुक के शेष से

प्रश्न 3.
बैंक समाधान विवरण तैयार किया जाता है
(a) व्यापारी की इच्छानुसार
(b) अन्तिम खाते बनाने से पूर्व
(c) अन्तिम खाते बनाने के पश्चात्
(d) छमाही
उत्तर:
(d) व्यापारी की इच्छानुसार

प्रश्न 4.
बैंक अधिविकर्ष होता है।
(a) जब ग्राहक का रुपया बैंक में जमा होता है।
(b) जब बैंक ग्राहक को उसकी जमा राशि से अधिक रुपया ऋण के रूप में दे देता है।
(c) जब ग्राहक खाता बन्द कर देता है।
(d) उपरोक्त तीनों कथन सत्य हैं।
उत्तर:
(b) जब बैंक ग्राहक को उसकी जमा राशि से अधिक रुपया ऋण के रूप में दे देता है।

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निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
रोकड़ पुस्तक और पास बुक के शेषों का मिलान करने के लिए तैयार किए जाने वाले विवरण का नाम लिखिए। (2014)
उत्तर:
बैंक समाधान विवरण

प्रश्न 2.
बैंक समाधान विवरण में कितने खाने होते हैं?
उत्तर:
तीन खाने

प्रश्न 3.
रोकड़ बही में ओवरड्राफ्ट (अधिविकर्ष) से क्या तात्पर्य है?
उत्तर;
रोकड़ बही का क्रेडिट शेष

प्रश्न 4.
बैंक पास बुक का कौन-सा शेष अधिविकर्ष कहलाता है?
उत्तर:
ऋणी शेष

प्रश्न 5.
रोकड़ बही का डेबिट शेष क्या दर्शाता है?
उत्तर:
नकद रोकड़

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न  (2अंक)

प्रश्न 1.
बैंक समाधान विवरण क्या है?
उत्तर:
बैंक द्वारा ग्राहक के लिए प्रकट की गई बाकी और ग्राहक की रोकड़ पुस्तक में आई हुई बाकी का मिलान करने के लिए जो विवरण-पत्र बनाया जाता है, उसे बैंक समाधान विवरण’ कहा जाता है।

प्रश्न 2.
रोकड़ बही एवं बैंक पास बुक में अन्तर के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर:
रोकड़ बही एवं बैंक पास बुक में अन्तर के दो कारण निम्नलिखित

  1. चैक निर्गमित किए गए, परन्तु (UPBoardSolutions.com) भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं हुए।
  2. चैक बैंक में वसूली के लिए भेजे, जो अभी तक वसूल नहीं हुए।

लघु उत्तरीय प्रश्न  (4 अंक)

प्रश्न 1.
बैंक समाधान विवरण क्या है? यह क्यों तैयार किया जाता है? (2016, 11)
अथवा
बैंक समाधान विवरण से आप क्या समझते हैं? एक व्यापारी के द्वारा यह विवरण बनाया जाना क्यों आवश्यक है? (2007)
अथवा
बैंक समाधान विवरण बनाने के मुख्य उद्देश्यों को बताइए। (2008)
उत्तर:
बैंक समाधान विवरण का अर्थ
1. बैंक समाधान विवरण से आशय बैंक द्वारा ग्राहक के लिए प्रकट की गई बाकी और ग्राहक की रोकड़ पुस्तक में आई हुई बाकी का मिलान करने के लिए जो विवरण-पत्र बनाया जाता है, उसे बैंक समाधान विवरण’ कहा जाता है। रोकड़ पुस्तक की बैंक शेष तथा पास बुक की बैंक शेष में अन्तर के कारण व्यवसायी की रोकड़ पुस्तक के बैंक शेष एवं पास बुक के बैंक शेष में अन्तर के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं1. अस्वीकृत चैक या विपत्र बैंक चैक या विपत्र की राशि अन्तिम रूप से खाते में तब ही जमा करता है, जब राशि लेनदारों से वसूल हो जाती है, लेकिन व्यापारी इस प्रकार के चैकों तथा विपत्रों की राशि को रोकड़ पुस्तक की बैंक बाकी में तभी लिख देता हैं, जब वह बैंक को चैक वसूली के लिए भेजता है, जिसके कारण दोनों शेषों में अन्तर आ जाता है।

2. पास बुक में की गई अशुद्धि कई बार बैंक भूल से ग्राहक के खाते में कोई अशुद्ध प्रविष्टि कर देता है, जिसके कारण पास बुक व रोकड़ बही के शेषों में अन्तर आ जाता है।

3. चैक निर्गमित किए गए, परन्तु बैंक समाधान विवरण बनाने के समय तक भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं हुए जिस समय व्यापारी अपने किसी लेनदार को चैक काटकर देता है, तो वह उसी समय इसकी प्रविष्टि अपनी रोकड़ बही के बैंक खाते के धनी पक्ष में (UPBoardSolutions.com) कर देता है। यदि बैंक समाधान विवरण की तिथि तक वह लेनदार इस चैक को बैंक में भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं करता है, तो पास बुक में ऐसे चैकों की कोई प्रविष्टि नहीं हो पाती है, जिसके कारण व्यापारी की रोकड़ बही का शेष कम हो जाता है, परन्तु पास बुक का शेष कम नहीं होता है।

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4. ग्राहक के आदेशानुसार भुगतान करना बैंक अपने ग्राहक के आदेश के बिना कभी-कभी कुछ भुगतान कर देता है; जैसे—बीमा की किस्त, चन्दा, देय बिल, आदि। इनको लेखा बैंक भुगतान करते समय ही पास बुक में कर देता है, परन्तु ग्राहक इसको लेखा अपनी रोकड़ बही में सूचना प्राप्त होने पर ही करता है।

5. कुछ लिपिकीय अशुद्धियाँ रोकड़ बही या पास बुक में रकम लिखने या शेष निकालने में कोई लिपिकीय अशुद्धि हो जाती है, तो ऐसी दशा में भी दोनों पुस्तकों की बाकियों में अन्तर हो जाता है।

6. क्रेडिट शेष पर बैंक द्वारा दिया गया ब्याज जब बैंक अपने ग्राहक को जमा राशि पर ब्याज देता है, तो वह नकद न देकर यह राशि उसके खाते में जमा कर देता है। इस तरह बैंक पास बुक का शेष बढ़ जाता है, जबकि ग्राहक/व्यापारी को इसका पता बाद में ही चल पाता है।

7. चैक निर्गमित किए, लेकिन रोकड़ बही में उनका लेखा होने से छूट गया कभी-कभी व्यापारी अपने लेनदार को चैक काटकर दे देता है, लेकिन वह रोकड़ बही में चैक का लेखा करना भूल जाता है। अत: चैक का भुगतान होने के पश्चात् रोकड़ बही और पास बुक के शेषों में अन्तर आ जाता है।

8. वसूली के लिए चैक जमा किए गए, परन्तु अभी तक वसूल नहीं हुए व्यापारी को जब भुगतान में या अपने देनदार से चैक प्राप्त होते हैं, तो वह इसे वसूली के लिए बैंक में भेज देता है तथा बैंक का शेष उतनी ही रकम से बढ़ा लेता है, लेकिन वास्तव में बैंक अपने ग्राहक के खाते अर्थात् पास बुक का शेष उस समय तक नहीं बढ़ाती जब तक कि वह उन चैकों का भुगतान वसूल नहीं कर लेता है। इस प्रकार, रोकड़े बही के बैंक खाने का शेष बढ़ जाता है, जबकि पास बुक में यह उतना ही बना रहता है।

9. विनियोगों पर प्राप्त ब्याज एवं लाभांश समय-समय पर बैंक अपने ग्राहकों से विनियोगों पर ब्याज व लाभांश वसूल करता रहता है, लेकिन ग्राहकों को इसकी सूचना नहीं होती है, जिसके कारण इसकी रोकड़ बही में प्रविष्टि नहीं हो पाती है

10. अवधि से पूर्व विपत्र के भुगतान पर छूट जब व्यापारी के पास देय बिल की अवधि से पहले ही धनराशि की व्यवस्था हो जाती है, तो वह बैंक को अपने द्वारा स्वीकृत बिल का भुगतान कर सकता है। इस स्थिति में बैंक अपने व्यापारी को इस अवधि के लिए कुछ छूट प्रदान करता है, जिससे व्यापारी का खाता धनी कर दिया जाता है। अत: रोकड़ बही एवं पास बुक के शेषों में अन्तर आ जाता है।

11. रकम जो बैंक द्वारा वसूल की गई बैंक ग्राहकों की ओर से कुछ भुगतान प्राप्त कर लेता है; जैसे-ब्याज, लाभांश एवं प्राप्य बिल, आदि। इनका लेखा बैंक द्वारा पास बुक में तो रकम प्राप्त होते ही कर दिया जाता है, लेकिन ग्राहक बैंक से कोई सूचना प्राप्त न होने के (UPBoardSolutions.com) कारण रोकड़ बही में इसको लेखा नहीं कर पाती है।

12. व्यापारी या ग्राहकों द्वारा सीधे चैक या धनराशि बैंक में जमा करना ग्राहकों द्वारा अपने लेनदारों के खातों में धनराशि को जमा कर दिया जाता है, परन्तु इसकी सूचना व्यापारी को देर से हो पाती है। जिसके कारण पास बुक का शेष तो बढ़ जाता है, परन्तु रोकड़ बही का शेष पूर्ववत् ही रहता है।

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बैंक समाधान विवरण के उद्देश्य

बैंक समाधान विवरण का अर्थ  बैंक समाधान विवरण की उपयोगिता/उद्देश्य बैंक समाधान विवरण का बनाया जाना वैसे तो आवश्यक या अनिवार्य नहीं है, परन्तु फिर भी निम्नलिखित उपयोगिताओं/उद्देश्यों/महत्त्व के लिए इसे बनाया जाता है|

1. रोकड़ बही में उचित संशोधन रोकड़ बही तथा पास बुक का मिलान करने से रोकड़ बही में उपयुक्त संशोधन करना सम्भव हो जाता है। यदि बैंक की पास बुक में ब्याज, बैंक-व्यय, ग्राहकों से रकम तथा चैकों की सीधी प्राप्ति, आदि के लेखे किए हुए हैं, तो रोकड़ बही में इनकी प्रविष्टियाँ करके संशोधित रोकड़ बही तैयार की जाती है।

2. त्रुटि को दूर करना यदि रोकड़ बही या पास बुक में लेखा करते समय कोई भूल या त्रुटि हो गई है, तो दोनों पुस्तकों का मिलान करके त्रुटि को ज्ञात करना और उसे दूर करना सरल हो जाता है।

3. भविष्य में चैक जारी करना बैंक समाधान विवरण तैयार करने से व्यापारी को बैंक शेष की सही जानकारी प्राप्त हो जाती है, जिससे उसे भविष्य में चैक जारी करने में सुविधा होती है।

4. भूल-चूक का ज्ञान यदि व्यापारी और बैंक के द्वारा लेन-देन का लेखा करने में कोई भूल-चूक हो गई है, तो इसका ज्ञान बैंक समाधान विवरण द्वारा हो जाती है।

5. चैक वसूली में अनावश्यक देरी का ज्ञान बैंक समाधान विवरण से बैंक द्वारा चैकों की वसूली करने में हुई अनावश्यक देरी की जानकारी प्राप्त हो जाती है।

6. अन्तर के कारणों का ज्ञान होना पास बुक और रोकड़ पुस्तक के शेष में अन्तर के कारण भी बैंक समाधान विवरण द्वारा ज्ञात हो जाते हैं।

बैंक समाधान विवरण बनाने की विधि/बैंक समाधान विवरण तैयार करना बैंक समाधान विवरण निम्नलिखित दो प्रकार के शेषों को लेकर बनाया जा सकता है

1. रोकड़ बही के शेष द्वारा रोकड़ पुस्तक के बैंक खाते का शेष दो प्रकार का हो सकता है-एक ऋणी शेष, जो बैंक में धनराशि जमा होने की दशा में होता है तथा दूसरा धनी शेष, जो अधिविकर्ष की स्थिति बताता है।

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(i) रोकड़ बही के ऋणी शेष द्वारा बैंक समाधान विवरण बनाना जब बैंक समाधान विवरण रोकड़ बही का ऋणी शेष (Debit Balance) लेकर बनाया जाता है, तो निम्नलिखित मदों को उस शेष में जोड़ दिया जाता है

  1. चैक निर्गमित किए गए, लेकिन भुगतान के लिए बैंक में प्रस्तुत ही नहीं किए गए।
  2. बैंक द्वारा व्यापारी को दिया गया ब्याज।
  3. बैंक द्वारा ग्राहक की ओर से प्राप्त किया गया कोई भुगतान।
  4. किसी ग्राहक द्वारा सीधे बैंक में धनराशि जमा (UPBoardSolutions.com) कर देना।
  5. चैक, जो रोकड़ बही में बिना लेखा किए बैंक में भेज दिए गए।

जब बैंक समाधान विवरण रोकड़ बही का ऋणी शेष (Debit Balance) लेकर बनाया जाता है, तो निम्नलिखित मदों को उस शेष में से घटा दिया जाता है

  1. चैक जो वसूली के लिए जमा किए गए, परन्तु अभी वसूल नहीं हुए।
  2. बैंक चार्जेज या बैंक व्यय।
  3. बैंक द्वारा ग्राहक की ओर से किया गया कोई भुगतान।
  4. संग्रह के लिए भेजे गए चैक या बिल जो तिरस्कृत हो गए।
  5. चैक जो रोकड़ बही में लिख दिए गए, लेकिन बैंक में वसूली के लिए भेजने से रह गए।

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(ii) रोकड़ बही के धनी शेष द्वारा बैंक समाधान विवरण बनाना रोकड़ बही के धनी शेष द्वारा विवरण तैयार करने में ऋणी शेष में जुड़ने वाली ” मदों को घटाया जाता है और घटाई जाने वाली मदों को जोड़ा जाता है।

2. पास बुक के शेष द्वारा रोकड़ बही की भाँति पास बुक का शेष भी दो प्रकार का हो सकता है-एक धनी शेष, जो बैंक में धन जमा होने की दशा में होता है तथा दूसरा ऋणी शेष, जो अधिविकर्ष की स्थिति को बताता है। जब बैंक समाधान विवरण पास बुक के धनी शेष द्वारा बनाया जाता है, तो उपरोक्त विधि के अन्तर्गत जोड़ी जाने वाली मदों को घटाकर दिखाते हैं। तथा घटाई जाने वाली मदों को जोड़ते हैं। इसके विपरीत जब पास बुक के ऋणी शेष (UPBoardSolutions.com) या अधिविकर्ष द्वारा बैंक समाधान विवरण तैयार किया जाता है, तो उपरोक्त जोड़ी जाने वाली मदों को इसमें जोड़कर तथा घटाई जाने वाली मदों को घटाकर दिखाया जाता

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दावलियों की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।

  1. अधिविकर्ष
  2. पास बुक (2007)

उत्तर:
1. अधिविकर्ष बैंक अपने चालू खाताधारकों को एक विशेष सुविधा प्रदान करता है कि यदि वे चाहें तो आवश्यकता के समय अपनी जमा की हुई धनराशि से अधिक धनराशि बैंक से निकाल सकते हैं। यह सुविधा बैंक अधिविकर्ष’ कहलाती है। इसमें व्यापारी बैंक का ऋणी और बैंक व्यापार का ऋणदाता बन जाता है। उदाहरण-यदि बैंक में ₹ 2,00,000 जमा हों और व्यापारी ₹ 2,50,000 निकाल लेता है, तो ₹ 2,50,000 – ₹ 2,00,000 = ₹ 50,000 का अधिविकर्ष कहलाता है।

2. पास बुक यह एक छोटी-सी पुस्तक होती है, जिसमें ग्राहक व बैंक के बीच हए सभी लेन-देनों का लेखा किया जाता है। यह बैंक की पुस्तकों में खुले ग्राहक के खाते की प्रतिलिपि होती है। इसमें बैंक में धनराशि जमा कराने, धनराशि निकालने तथा ब्याज, आदि का तिथि के साथ विवरण दिया जाता है। उदाहरण-

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 3 बैंक समाधान विवरण 1

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न  (8 अंक)

प्रश्न 1.
बैंक समाधान विवरण क्या है? रोकड़ शेष और पास बुक के शेष में अन्तर के आठ कारणों का उल्लेख कीजिए।  (Imp 2007)
अथवा
किसी निश्चित तिथि पर पास बुक तथा रोकड़ पुस्तक के शेषों में अन्तर होने के क्या-क्या कारण होते हैं? वर्णन कीजिए। (2011)
उत्तर:
1. बैंक समाधान विवरण से आशय बैंक द्वारा ग्राहक के लिए प्रकट की गई बाकी और ग्राहक की रोकड़ पुस्तक में आई हुई बाकी का मिलान करने के लिए जो विवरण-पत्र बनाया जाता है, उसे बैंक समाधान विवरण’ कहा जाता है। रोकड़ पुस्तक की बैंक शेष तथा पास बुक की बैंक शेष में अन्तर के कारण व्यवसायी की रोकड़ पुस्तक के बैंक शेष एवं पास बुक के बैंक शेष में अन्तर के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं1. अस्वीकृत चैक या विपत्र बैंक चैक या (UPBoardSolutions.com) विपत्र की राशि अन्तिम रूप से खाते में तब ही जमा करता है, जब राशि लेनदारों से वसूल हो जाती है, लेकिन व्यापारी इस प्रकार के चैकों तथा विपत्रों की राशि को रोकड़ पुस्तक की बैंक बाकी में तभी लिख देता हैं, जब वह बैंक को चैक वसूली के लिए भेजता है, जिसके कारण दोनों शेषों में अन्तर आ जाता है।

2. पास बुक में की गई अशुद्धि कई बार बैंक भूल से ग्राहक के खाते में कोई अशुद्ध प्रविष्टि कर देता है, जिसके कारण पास बुक व रोकड़ बही के शेषों में अन्तर आ जाता है।

3. चैक निर्गमित किए गए, परन्तु बैंक समाधान विवरण बनाने के समय तक भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं हुए जिस समय व्यापारी अपने किसी लेनदार को चैक काटकर देता है, तो वह उसी समय इसकी प्रविष्टि अपनी रोकड़ बही के बैंक खाते के धनी पक्ष में कर देता है। यदि बैंक समाधान विवरण की तिथि तक वह लेनदार इस चैक को बैंक में भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं करता है, तो पास बुक में ऐसे चैकों की कोई प्रविष्टि नहीं हो पाती है, जिसके कारण व्यापारी की रोकड़ बही का शेष कम हो जाता है, परन्तु पास बुक का शेष कम नहीं होता है।

4. ग्राहक के आदेशानुसार भुगतान करना बैंक अपने ग्राहक के आदेश के बिना कभी-कभी कुछ भुगतान कर देता है; जैसे बीमा की किस्त, चन्दा, देय बिल, आदि। इनको लेखा बैंक भुगतान करते समय ही पास बुक में कर देता है, परन्तु ग्राहक इसको लेखा अपनी रोकड़ बही में सूचना प्राप्त होने पर ही करता है।

5. कुछ लिपिकीय अशुद्धियाँ रोकड़ बही या पास बुक में रकम लिखने या शेष निकालने में कोई लिपिकीय अशुद्धि हो जाती है, तो ऐसी दशा में भी दोनों पुस्तकों की बाकियों में अन्तर हो जाता है।

6. क्रेडिट शेष पर बैंक द्वारा दिया गया ब्याज जब बैंक अपने ग्राहक को जमा राशि पर ब्याज देता है, तो वह नकद न देकर यह राशि उसके खाते में जमा कर देता है। इस तरह बैंक पास बुक का शेष बढ़ जाता है, जबकि ग्राहक/व्यापारी को इसका पता बाद में ही चल पाता है।

7. चैक निर्गमित किए, लेकिन रोकड़ बही में उनका लेखा होने से छूट गया कभी-कभी व्यापारी अपने लेनदार को चैक काटकर दे देता है, लेकिन वह रोकड़ बही में चैक का लेखा करना भूल जाता है। अत: चैक का भुगतान होने के पश्चात् रोकड़ बही और पास बुक के शेषों में अन्तर आ जाता है।

8. वसूली के लिए चैक जमा किए गए, परन्तु अभी तक वसूल नहीं हुए व्यापारी को जब भुगतान में या अपने देनदार से चैक प्राप्त होते हैं, तो वह इसे वसूली के लिए बैंक में भेज देता है तथा बैंक का शेष उतनी ही रकम से बढ़ा लेता है, लेकिन वास्तव में बैंक अपने ग्राहक के खाते अर्थात् पास बुक का शेष उस समय तक नहीं बढ़ाती जब तक कि वह उन चैकों का भुगतान वसूल नहीं कर लेता है। इस प्रकार, रोकड़े बही के बैंक खाने का शेष बढ़ जाता है, जबकि पास बुक में यह उतना ही बना रहता है।

9. विनियोगों पर प्राप्त ब्याज एवं लाभांश समय-समय पर बैंक अपने ग्राहकों से विनियोगों पर ब्याज व लाभांश वसूल करता रहता है, लेकिन ग्राहकों को इसकी सूचना नहीं होती है, जिसके कारण इसकी रोकड़ बही में प्रविष्टि नहीं हो पाती है

10. अवधि से पूर्व विपत्र के भुगतान पर छूट जब व्यापारी के पास देय बिल की अवधि से पहले ही धनराशि की व्यवस्था हो जाती है, तो वह बैंक को अपने द्वारा स्वीकृत बिल का भुगतान कर सकता है। इस स्थिति में बैंक अपने व्यापारी को इस अवधि के लिए कुछ (UPBoardSolutions.com) छूट प्रदान करता है, जिससे व्यापारी का खाता धनी कर दिया जाता है। अत: रोकड़ बही एवं पास बुक के शेषों में अन्तर आ जाता है।

11. रकम जो बैंक द्वारा वसूल की गई बैंक ग्राहकों की ओर से कुछ भुगतान प्राप्त कर लेता है; जैसे-ब्याज, लाभांश एवं प्राप्य बिल, आदि। इनका लेखा बैंक द्वारा पास बुक में तो रकम प्राप्त होते ही कर दिया जाता है, लेकिन ग्राहक बैंक से कोई सूचना प्राप्त न होने के कारण रोकड़ बही में इसको लेखा नहीं कर पाती है।

12. व्यापारी या ग्राहकों द्वारा सीधे चैक या धनराशि बैंक में जमा करना ग्राहकों द्वारा अपने लेनदारों के खातों में धनराशि को जमा कर दिया जाता है, परन्तु इसकी सूचना व्यापारी को देर से हो पाती है। जिसके कारण पास बुक का शेष तो बढ़ जाता है, परन्तु रोकड़ बही का शेष पूर्ववत् ही रहता है।

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प्रश्न 2.
बैंक समाधान विवरण क्या है? इसकी क्या उपयोगिता है? इसको बनाने की विधि का वर्णन कीजिए। (2009)
उत्तर:
बैंक समाधान विवरण का अर्थ इसके लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 देखें। बैंक समाधान विवरण की उपयोगिता/उद्देश्य बैंक समाधान विवरण का बनाया जाना वैसे तो आवश्यक या अनिवार्य नहीं है, परन्तु फिर भी निम्नलिखित उपयोगिताओं/उद्देश्यों/महत्त्व के लिए इसे बनाया जाता है|

1. रोकड़ बही में उचित संशोधन रोकड़ बही तथा पास बुक का मिलान करने से रोकड़ बही में उपयुक्त संशोधन करना सम्भव हो जाता है। यदि बैंक की पास बुक में ब्याज, बैंक-व्यय, ग्राहकों से रकम तथा चैकों की सीधी प्राप्ति, आदि के लेखे किए हुए हैं, तो रोकड़ बही में इनकी प्रविष्टियाँ करके संशोधित रोकड़ बही तैयार की जाती है।

2. त्रुटि को दूर करना यदि रोकड़ बही या पास बुक में लेखा करते समय कोई भूल या त्रुटि हो गई है, तो दोनों पुस्तकों का मिलान करके त्रुटि को ज्ञात करना और उसे दूर करना सरल हो जाता है।

3. भविष्य में चैक जारी करना बैंक समाधान विवरण तैयार करने से व्यापारी को बैंक शेष की सही जानकारी प्राप्त हो जाती है, जिससे उसे भविष्य में चैक जारी करने में सुविधा होती है।

4. भूल-चूक का ज्ञान यदि व्यापारी और बैंक के द्वारा लेन-देन का लेखा करने में कोई भूल-चूक हो गई है, तो इसका ज्ञान बैंक समाधान विवरण द्वारा हो जाती है।

5. चैक वसूली में अनावश्यक देरी का ज्ञान बैंक समाधान विवरण से बैंक द्वारा चैकों की वसूली करने में हुई अनावश्यक देरी की जानकारी प्राप्त हो जाती है।

6. अन्तर के कारणों का ज्ञान होना पास बुक और रोकड़ पुस्तक के शेष में अन्तर के कारण भी बैंक समाधान विवरण द्वारा ज्ञात हो जाते हैं।

बैंक समाधान विवरण बनाने की विधि/बैंक समाधान विवरण तैयार करना बैंक समाधान विवरण निम्नलिखित दो प्रकार के शेषों को लेकर बनाया जा सकता है

1. रोकड़ बही के शेष द्वारा रोकड़ पुस्तक के बैंक खाते का शेष दो प्रकार का हो सकता है-एक ऋणी शेष, जो बैंक में धनराशि जमा होने की दशा में होता है तथा दूसरा धनी शेष, जो अधिविकर्ष की स्थिति बताता है।

(i) रोकड़ बही के ऋणी शेष द्वारा बैंक समाधान विवरण बनाना जब बैंक समाधान विवरण रोकड़ बही का ऋणी शेष (Debit Balance) लेकर बनाया जाता है, तो निम्नलिखित मदों को उस शेष में जोड़ दिया जाता है

  1. चैक निर्गमित किए गए, लेकिन भुगतान के लिए बैंक में प्रस्तुत ही नहीं किए गए।
  2. बैंक द्वारा व्यापारी को दिया गया ब्याज।
  3. बैंक द्वारा ग्राहक की ओर से प्राप्त किया गया कोई भुगतान।
  4. किसी ग्राहक द्वारा सीधे बैंक में धनराशि जमा कर देना।
  5. चैक, जो रोकड़ बही में बिना लेखा किए बैंक में भेज दिए गए।

जब बैंक समाधान विवरण रोकड़ बही का ऋणी शेष (Debit Balance) लेकर बनाया (UPBoardSolutions.com) जाता है, तो निम्नलिखित मदों को उस शेष में से घटा दिया जाता है

  1. चैक जो वसूली के लिए जमा किए गए, परन्तु अभी वसूल नहीं हुए।
  2. बैंक चार्जेज या बैंक व्यय।
  3. बैंक द्वारा ग्राहक की ओर से किया गया कोई भुगतान।
  4. संग्रह के लिए भेजे गए चैक या बिल जो तिरस्कृत हो गए।
  5. चैक जो रोकड़ बही में लिख दिए गए, लेकिन बैंक में वसूली के लिए भेजने से रह गए।

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(ii) रोकड़ बही के धनी शेष द्वारा बैंक समाधान विवरण बनाना रोकड़ बही के धनी शेष द्वारा विवरण तैयार करने में ऋणी शेष में जुड़ने वाली ” मदों को घटाया जाता है और घटाई जाने वाली मदों को जोड़ा जाता है।

2. पास बुक के शेष द्वारा रोकड़ बही की भाँति पास बुक का शेष भी दो प्रकार का हो सकता है-एक धनी शेष, जो बैंक में धन जमा होने की दशा में होता है तथा दूसरा ऋणी शेष, जो अधिविकर्ष की स्थिति को बताता है। जब बैंक समाधान विवरण पास बुक के धनी शेष द्वारा बनाया जाता है, तो उपरोक्त विधि के अन्तर्गत जोड़ी जाने वाली मदों को घटाकर दिखाते हैं। तथा घटाई जाने वाली मदों को जोड़ते हैं। इसके विपरीत जब पास बुक के ऋणी शेष या अधिविकर्ष द्वारा बैंक समाधान विवरण तैयार किया जाता है, तो उपरोक्त जोड़ी जाने वाली मदों को इसमें जोड़कर तथा घटाई जाने वाली मदों को घटाकर दिखाया जाता

प्रश्न 3.
बैंक समाधान विवरण क्या है? यह क्यों बनाया जाता है? रोकड़ बही के शेष और पास बुक के शेष में अन्तर के किन्हीं छः कारणों का उल्लेख कीजिए। (2008)
उत्तर:
बैंक समाधान विवरण का अर्थ
बैंक समाधान विवरण से आशय बैंक द्वारा ग्राहक के लिए प्रकट की गई बाकी और ग्राहक की रोकड़ पुस्तक में आई हुई बाकी का मिलान करने के लिए जो विवरण-पत्र बनाया जाता है, उसे बैंक समाधान विवरण’ कहा जाता है। रोकड़ पुस्तक की बैंक शेष तथा पास बुक की बैंक शेष में अन्तर के कारण व्यवसायी की रोकड़ पुस्तक के बैंक शेष एवं पास बुक के बैंक शेष में अन्तर के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

1. अस्वीकृत चैक या विपत्र बैंक चैक या विपत्र की राशि अन्तिम रूप से खाते में तब ही जमा करता है, जब राशि लेनदारों से वसूल हो जाती है, लेकिन व्यापारी इस प्रकार के चैकों तथा विपत्रों की राशि को रोकड़ पुस्तक की बैंक बाकी में तभी लिख देता हैं, जब वह बैंक को चैक वसूली के लिए भेजता है, जिसके कारण दोनों शेषों में अन्तर आ जाता है।

2. पास बुक में की गई अशुद्धि कई बार बैंक भूल से ग्राहक के खाते में कोई अशुद्ध प्रविष्टि कर देता है, जिसके कारण पास बुक व रोकड़ बही के शेषों में अन्तर आ जाता है।

3. चैक निर्गमित किए गए, परन्तु बैंक समाधान विवरण बनाने के समय तक भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं हुए जिस समय व्यापारी अपने किसी लेनदार को चैक काटकर देता है, तो वह उसी समय इसकी प्रविष्टि अपनी रोकड़ बही के बैंक खाते के धनी पक्ष में कर देता है। (UPBoardSolutions.com) यदि बैंक समाधान विवरण की तिथि तक वह लेनदार इस चैक को बैंक में भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं करता है, तो पास बुक में ऐसे चैकों की कोई प्रविष्टि नहीं हो पाती है, जिसके कारण व्यापारी की रोकड़ बही का शेष कम हो जाता है, परन्तु पास बुक का शेष कम नहीं होता है।

4. ग्राहक के आदेशानुसार भुगतान करना बैंक अपने ग्राहक के आदेश के बिना कभी-कभी कुछ भुगतान कर देता है; जैसे—बीमा की किस्त, चन्दा, देय बिल, आदि। इनको लेखा बैंक भुगतान करते समय ही पास बुक में कर देता है, परन्तु ग्राहक इसको लेखा अपनी रोकड़ बही में सूचना प्राप्त होने पर ही करता है।

5. कुछ लिपिकीय अशुद्धियाँ रोकड़ बही या पास बुक में रकम लिखने या शेष निकालने में कोई लिपिकीय अशुद्धि हो जाती है, तो ऐसी दशा में भी दोनों पुस्तकों की बाकियों में अन्तर हो जाता है।

6. क्रेडिट शेष पर बैंक द्वारा दिया गया ब्याज जब बैंक अपने ग्राहक को जमा राशि पर ब्याज देता है, तो वह नकद न देकर यह राशि उसके खाते में जमा कर देता है। इस तरह बैंक पास बुक का शेष बढ़ जाता है, जबकि ग्राहक/व्यापारी को इसका पता बाद में ही चल पाता है।

7. चैक निर्गमित किए, लेकिन रोकड़ बही में उनका लेखा होने से छूट गया कभी-कभी व्यापारी अपने लेनदार को चैक काटकर दे देता है, लेकिन वह रोकड़ बही में चैक का लेखा करना भूल जाता है। अत: चैक का भुगतान होने के पश्चात् रोकड़ बही और पास बुक के शेषों में अन्तर आ जाता है।

8. वसूली के लिए चैक जमा किए गए, परन्तु अभी तक वसूल नहीं हुए व्यापारी को जब भुगतान में या अपने देनदार से चैक प्राप्त होते हैं, तो वह इसे वसूली के लिए बैंक में भेज देता है तथा बैंक का शेष उतनी ही रकम से बढ़ा लेता है, लेकिन वास्तव में बैंक अपने ग्राहक के खाते अर्थात् पास बुक का शेष उस समय तक नहीं बढ़ाती जब तक कि वह उन चैकों का भुगतान वसूल नहीं कर लेता है। इस प्रकार, रोकड़े बही के बैंक खाने का शेष बढ़ जाता है, जबकि पास बुक में यह उतना ही बना रहता है।

9. विनियोगों पर प्राप्त ब्याज एवं लाभांश समय-समय पर बैंक अपने ग्राहकों से विनियोगों पर ब्याज व लाभांश वसूल करता रहता है, लेकिन ग्राहकों को इसकी सूचना नहीं होती है, जिसके कारण इसकी रोकड़ बही में प्रविष्टि नहीं हो पाती है

10. अवधि से पूर्व विपत्र के भुगतान पर छूट जब व्यापारी के पास देय बिल की अवधि से पहले ही धनराशि की व्यवस्था हो जाती है, तो वह बैंक को अपने द्वारा स्वीकृत बिल का भुगतान कर सकता है। इस स्थिति में बैंक अपने व्यापारी को इस अवधि के लिए कुछ छूट प्रदान करता है, जिससे (UPBoardSolutions.com) व्यापारी का खाता धनी कर दिया जाता है। अत: रोकड़ बही एवं पास बुक के शेषों में अन्तर आ जाता है।

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11. रकम जो बैंक द्वारा वसूल की गई बैंक ग्राहकों की ओर से कुछ भुगतान प्राप्त कर लेता है; जैसे-ब्याज, लाभांश एवं प्राप्य बिल, आदि। इनका लेखा बैंक द्वारा पास बुक में तो रकम प्राप्त होते ही कर दिया जाता है, लेकिन ग्राहक बैंक से कोई सूचना प्राप्त न होने के कारण रोकड़ बही में इसको लेखा नहीं कर पाती है।

12. व्यापारी या ग्राहकों द्वारा सीधे चैक या धनराशि बैंक में जमा करना ग्राहकों द्वारा अपने लेनदारों के खातों में धनराशि को जमा कर दिया जाता है, परन्तु इसकी सूचना व्यापारी को देर से हो पाती है। जिसके कारण पास बुक का शेष तो बढ़ जाता है, परन्तु रोकड़ बही का शेष पूर्ववत् ही रहता है।

बैंक समाधान विवरण बनाने के उददेश्य

बैंक समाधान विवरण का अर्थ इसके लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 देखें। बैंक समाधान विवरण की उपयोगिता/उद्देश्य बैंक समाधान विवरण का बनाया जाना वैसे तो आवश्यक या अनिवार्य नहीं है, परन्तु फिर भी निम्नलिखित उपयोगिताओं/उद्देश्यों/महत्त्व के लिए इसे बनाया जाता है|

1. रोकड़ बही में उचित संशोधन रोकड़ बही तथा पास बुक का मिलान करने से रोकड़ बही में उपयुक्त संशोधन करना सम्भव हो जाता है। यदि बैंक की पास बुक में ब्याज, बैंक-व्यय, ग्राहकों से रकम तथा चैकों की सीधी प्राप्ति, आदि के लेखे किए हुए हैं, तो रोकड़ बही में इनकी प्रविष्टियाँ करके संशोधित रोकड़ बही तैयार की जाती है।

2. त्रुटि को दूर करना यदि रोकड़ बही या पास बुक में लेखा करते समय कोई भूल या त्रुटि हो गई है, तो दोनों पुस्तकों का मिलान करके त्रुटि को ज्ञात करना और उसे दूर करना सरल हो जाता है।

3. भविष्य में चैक जारी करना बैंक समाधान विवरण तैयार करने से व्यापारी को बैंक शेष की सही जानकारी प्राप्त हो जाती है, जिससे उसे भविष्य में चैक जारी करने में सुविधा होती है।

4. भूल-चूक का ज्ञान यदि व्यापारी और बैंक के द्वारा लेन-देन का लेखा करने में कोई भूल-चूक हो गई है, तो इसका ज्ञान बैंक समाधान विवरण द्वारा हो जाती है।

5. चैक वसूली में अनावश्यक देरी का ज्ञान बैंक समाधान विवरण से बैंक द्वारा चैकों की वसूली करने में हुई अनावश्यक देरी की जानकारी प्राप्त हो जाती है।

6. अन्तर के कारणों का ज्ञान होना पास बुक और रोकड़ पुस्तक के शेष में अन्तर के कारण (UPBoardSolutions.com) भी बैंक समाधान विवरण द्वारा ज्ञात हो जाते हैं।

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रोकड़ बही के शेष और पास बुक के शेष में अन्तर के कारण

बैंक समाधान विवरण बनाने की विधि/बैंक समाधान विवरण तैयार करना बैंक समाधान विवरण निम्नलिखित दो प्रकार के शेषों को लेकर बनाया जा सकता है

1. रोकड़ बही के शेष द्वारा रोकड़ पुस्तक के बैंक खाते का शेष दो प्रकार का हो सकता है-एक ऋणी शेष, जो बैंक में धनराशि जमा होने की दशा में होता है तथा दूसरा धनी शेष, जो अधिविकर्ष की स्थिति बताता है।

(i) रोकड़ बही के ऋणी शेष द्वारा बैंक समाधान विवरण बनाना जब बैंक समाधान विवरण रोकड़ बही का ऋणी शेष (Debit Balance) लेकर बनाया जाता है, तो निम्नलिखित मदों को उस शेष में जोड़ दिया जाता है

  1. चैक निर्गमित किए गए, लेकिन भुगतान के लिए बैंक में प्रस्तुत ही नहीं किए गए।
  2. बैंक द्वारा व्यापारी को दिया गया ब्याज।
  3. बैंक द्वारा ग्राहक की ओर से प्राप्त किया गया कोई भुगतान।
  4. किसी ग्राहक द्वारा सीधे बैंक में धनराशि जमा कर देना।
  5. चैक, जो रोकड़ बही में बिना लेखा किए बैंक (UPBoardSolutions.com) में भेज दिए गए।

जब बैंक समाधान विवरण रोकड़ बही का ऋणी शेष (Debit Balance) लेकर बनाया जाता है, तो निम्नलिखित मदों को उस शेष में से घटा दिया जाता है

  1. चैक जो वसूली के लिए जमा किए गए, परन्तु अभी वसूल नहीं हुए।
  2. बैंक चार्जेज या बैंक व्यय।
  3. बैंक द्वारा ग्राहक की ओर से किया गया कोई भुगतान।
  4. संग्रह के लिए भेजे गए चैक या बिल जो तिरस्कृत हो गए।
  5. चैक जो रोकड़ बही में लिख दिए गए, लेकिन बैंक में वसूली के लिए भेजने से रह गए।

(ii) रोकड़ बही के धनी शेष द्वारा बैंक समाधान विवरण बनाना रोकड़ बही के धनी शेष द्वारा विवरण तैयार करने में ऋणी शेष में जुड़ने वाली ” मदों को घटाया जाता है और घटाई जाने वाली मदों को जोड़ा जाता है।

2. पास बुक के शेष द्वारा रोकड़ बही की भाँति पास बुक का शेष भी दो प्रकार का हो सकता है-एक धनी शेष, जो बैंक में धन जमा होने की दशा में होता है तथा दूसरा ऋणी शेष, जो अधिविकर्ष की स्थिति को बताता है। जब बैंक समाधान विवरण पास बुक के धनी शेष द्वारा बनाया जाता है, तो उपरोक्त विधि के अन्तर्गत जोड़ी जाने वाली मदों को घटाकर दिखाते हैं। तथा घटाई जाने वाली मदों को जोड़ते हैं। इसके विपरीत जब पास बुक के ऋणी शेष या अधिविकर्ष द्वारा बैंक (UPBoardSolutions.com) समाधान विवरण तैयार किया जाता है, तो उपरोक्त जोड़ी जाने वाली मदों को इसमें जोड़कर तथा घटाई जाने वाली मदों को घटाकर दिखाया जाता

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क्रियात्मक प्रश्न  (8 अंक)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित सूचना से एक बैंक समाधान विवरण 31 मार्च, 2016 को बनाइए।

  1. इस तिथि को रोकड़ बही में बैंक खाते का शेष ₹ 3,000 था।
  2. ₹ 200 का चैक बैंक में जमा किया गया था, परन्तु बैंक खाते में अभी तक जमा नहीं हुआ।
  3. लेनदारों को ₹ 1,800 के दो चैक दिए थे, उनमें से बैंक के पास ₹ 800 का एक चैक ही भुगतान के लिए प्रस्तुत किया गया।
  4. निम्नलिखित प्रविष्टियाँ पास बुक में की गई थी, परन्तु रोकड़ बही में उस तिथि तक नहीं लिखी गई थी।
  • बैंक व्यय ₹ 40
  • ₹ 200 का बीमा प्रीमियम बैंक द्वारा चुकाया गया था।
  • एक ग्राहक द्वारा बैंक में ₹ 500 सीधे जमा कर दिए गए। (2017)

हल
बैंक समाधान विवरण
(31 मार्च, 2016 को)
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प्रश्न 2.
निम्न से बैंक समाधान विवरण-पत्र तैयार कीजिए।

  1. दिनांक 31-12-2014 को रोकड़ बही के अनुसार बैंक शेष ₹ 3,200 है।
  2. बैंक व्यय ₹ 20 था।
  3. बैंक ने ₹ 100 लाभांश एकत्रित किया।
  4. ₹ 1,780 के चैक जारी किए गए, लेकिन भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं किए गए।
  5. ₹ 860 के बैंक बैंक में जमा कराए, किन्तु अभी क्रेडिट नहीं हुए। (2016)

हल
बैंक समाधान विवरण
(31 दिसम्बर, 2014 को)

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प्रश्न 3.
निम्न विवरण से 31 मार्च, 2015 को बैंक समाधान विवरण-पत्र बनाइए।

  1. रोकड़ बही के बैंक खाते का क्रेडिट शेष (अधिविकर्ष) ₹ 14,400 हैं।
  2. ₹ 6,160 के चैक बैंक में जमा कराए गए, परन्तु राशि जमा नहीं हुई।
  3. देनदारों को ₹ 2,880 के चैक जारी किए गए, किन्तु भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं किए गए।
  4. बैंक ने ₹ 200 अपना बैंक व्यय लगाया।
  5. ₹ 4,000 एक ग्राहक ने व्यापारी के बैंक खाते में सीधे जमा करवाए। (2016)

हल
बैंक समाधान विवरण
(31 मार्च, 2015 को)
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प्रश्न 4.
निम्नलिखित विवरण से रनवीर सिंह, मुम्बई का 31 दिसम्बर, 2013 का बैंक समाधान विवरण बनाइए।

  1. 31 दिसम्बर, 2013 को पास बुक का क्रेडिट शेष ₹ 6,225 था।
  2. ₹ 2,375 का चैक संग्रह हेतु बैंक भेजा गया था, किन्तु संग्रह नहीं हुआ।
  3. 1,750 और ₹ 1,500 के दो चैकों को निर्गमित किया गया, किन्तु भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं किए गए।
  4. बैंक द्वारा ₹ 225 ब्याज के क्रेडिट किए गए।
  5. ग्राहक की ओर से ₹ 1,200 का बीमा प्रीमियम का बैंक द्वारा सीधे भुगतान किया गया।

हल
बैंक समाधान विवरण
(31 दिसम्बर, 2013 को)
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प्रश्न 5.
निम्नलिखित विवरण से श्यामनन्दन, कानपुर का 31 दिसम्बर, 2012 का बैंक समाधान विवरण बनाइए।

  1. 31 दिसम्बर, 2012 को रोकड़ बही के अनुसार ₹ 5,000 डेबिट शेष था।
  2. संग्रह हेतु भेजा गया, ₹ 1,000 के चैक का बैंक द्वारा संग्रह नहीं हुआ।
  3. ₹ 500 का एक निर्गमित चैक भुगतान हेतु प्रस्तुत नहीं किया गया।
  4. बैंक द्वारा ब्याज के पास बुक में हैं  ₹ 125 क्रेडिट किए गए, किन्तु रोकड़ । पुस्तक लेखा नहीं हुआ।
  5. बैंक द्वारा बीमा प्रीमियम के ₹ 500 का भुगतान सीधे कर दिया गया।

हल
बैंक समाधान विवरण
(31 दिसम्बर, 2012 को)
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प्रश्न 6.
निम्नलिखित विवरण से मै, अमर चन्द्र, कुँवर चन्द्र, वाराणसी का 31 दिसम्बर, 2011 को बैंक समाधान विवरण बनाइए।

  1. 31 दिसम्बर, 2011 को रोकड़ बही के अनुसार ₹ 6,023 का डेबिट शेष था।
  2. बैंक में संग्रह हेतु ₹ 1,420 का चैक भेजा गया था जिसका संग्रह नहीं हुआ था।
  3. ₹ 3,000 के चैक निर्गमित किए गए थे, किन्तु भुगतान हेतु प्रस्तुत नहीं किए गए।
  4. ₹ 1,850 बैंक द्वारा बीमा प्रीमियम के लिए सीधे भुगतान किए गए।
  5. ₹ 120 बैंक ने ब्याज के क्रेडिट किए। (2012)

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हल
बैंक समाधान विवरण
(31 दिसम्बर, 2011 को)
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प्रश्न 1.
निम्नलिखित सूचनाओं से 31 दिसम्बर, 2010 को एक बैंक समाधान विवरण तैयार कीजिए।

  1. रोकड़ पुस्तक के अनुसार शेष ₹ 8,000 था।
  2. ₹ 11,000 का चैक संग्रह हेतु बैंक भेजा गया, किन्तु संग्रह नहीं हुआ।
  3. ₹ 12,000 के चैक निर्गमित किए गए, किन्तु भुगतान के लिए केवल ₹ 10,000 के चैक प्रस्तुत किए गए।
  4. एक ग्राहक द्वारा सीधे बैंक में ₹ 4,000 जमा कर दिए गए।
  5. बैंक द्वारा ब्याज के लिए हैं ₹ 500 क्रेडिट किए गए।
  6. बैंक द्वारा ₹ 1,500 बीमा प्रीमियम के लिए भुगतान किया गया। (2011)

हल
बैंक समाधान विवरण
(31 दिसम्बर, 2010 को)
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प्रश्न 9.
निम्नलिखित सूचनाओं के आधार पर 31 दिसम्बर, 2005 को बैंक समाधान विवरण तैयार कीजिए।

  1. पास बुक के अनुसार क्रेडिट शेष ₹ 9,000 था।
  2. ₹ 7,000 के चैक वसूली के लिए भेजे गए, किन्तु वसूल नहीं हुए।
  3. बैंक व्यय के ₹ 60 डेबिट किए गए, किन्तु रोकड़ पुस्तक में लेखा नहीं हुआ।
  4. ₹ 9,600 के चैक निर्गमित किए गए, किन्तु भुगतान हेतु उन्हें प्रस्तुत नहीं किया गया।
  5. पास बुक में गलती से ₹ 3,000 डेबिट हो गए।  (2006)

हल
बैंक समाधान विवरण
(31 दिसम्बर, 2005 को)
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प्रश्न 10.
निम्नलिखित सूचनाओं के आधार पर बैंक समाधान विवरण तैयार कीजिए। 31 दिसम्बर, 2004 को मोहन की पास बुक में ₹ 8,000 का डेबिट शेष था। रोकड़ बही से मिलान करने पर निम्नलिखित अन्तर ज्ञात हुए

  1. बैंक में जमा किया गया ₹ 1,000 का चैक अभी तक वसूल नहीं हुआ।
  2. ₹ 1,000 के चैक निर्गमित किए गए, परन्तु भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं किए गए।
  3. ग्राहक ने ₹ 1,000 सीधे मोहन के खाते में जमा कर दिए।
  4. ₹ 500 विनियोग पर ब्याज बैंक ने वसूल किया।
  5. बैंक द्वारा लिया गया ब्याज ₹ 1,000।

हल
बैंक समाधान विवरण
(31 दिसम्बर, 2004 को)
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प्रश्न 11.
निम्न से बैंक समाधान विवरण-पत्र तैयार कीजिए।

  1. दिनांक 31.12.2017 को पास बुक के अनुसार बैंक शेष (जमा) ₹ 6,428 था।
  2. बैंक व्यय ₹ 120 था।
  3. बैंक ने ₹ 1,000 लाभांश एकत्रित किया।
  4. ₹ 2,600 के चैक जारी किए गए, लेकिन भुगतान के लिए प्रस्तुत नहीं किए गए।
  5. ₹ 1,600 के चैक बैंक में जमा कराए, किन्तु अभी तक क्रेडिट नहीं हुए। (2018)

हल
बैंक समाधान विवरण
(31 दिसम्बर, 2017 को)
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