UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 27 साहस

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 26
Chapter Name साहस
Number of Questions Solved 15
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 27 साहस

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
उद्यमी होता है।
(a) वैतनिक कर्मचारी
(b) अवैतनिक कर्मचारी
(c) सरकारी कर्मचारी
(d) केवले उपभोक्ता
उत्तर:
(b) अवैतनिक कर्मचारी

प्रश्न 2.
जोखिम उठाने का कार्य है।
(a) पूँजीपति का
(b) उद्यमी का
(c) संगठनकर्ता का
(d) ये सभी
उत्तर:
(b) उद्यमी का

प्रश्न 3.
साहसी का कार्य मुख्यतः होता है।
(a) मानसिक
(b) शारीरिक
(c) ‘a’ और ‘b’ दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) मानसिक

प्रश्न 4.
उत्पादन के किस साधन का पुरस्कार ऋणात्मक हो सकता है? (2010, 09)
(a) पूँजी
(b) उद्यम
(c) श्रम
(d) संगठन
उत्तर:
(b) उद्यम

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निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
साहस उत्पत्ति का सक्रिय साधन है/नहीं है।
उत्तर:
सक्रिय साधन है।

प्रश्न 2.
उद्यमी व्यापार का जोखिम उठाता है/नहीं उठाता है।
उत्तर:
उठाता है।

प्रश्न 3.
उद्यमी व्यवसाय का वेतनभोगी कर्मचारी/स्वामी होता है।
उत्तर:
स्वामी होता है।

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प्रश्न 4.
उद्यमी के पुरस्कार को लाभ/ब्याज कहते हैं।
उत्तर:
लाभ कहते हैं।

प्रश्न 5.
लाभ ऋणात्मक हो सकता है/नहीं हो सकता है। (2010)
उत्तर:
हो सकता है।

प्रश्न 6.
साहसी का पारिश्रमिक ऋणात्मक हो सकता है।नहीं हो सकता है। (2009)
उत्तर:
हो सकता है।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
उद्यमी या साहसी से आप क्या समझते हैं? (2012)
उत्तर:
उद्यम से आशय हानि तथा लाभ को वहन करने की क्षमता से है (UPBoardSolutions.com) तथा जो व्यक्ति यह क्षमता रखता है, वह ‘साहसी’ या ‘उद्यमी’ कहलाता है। दूसरे शब्दों में, उद्यमी अपने उद्यम का एक अवैतनिक कर्मचारी होता है एवं वह व्यवसाय का स्वामी होता है।

प्रश्न 2.
प्रो. जे. के. मेहता के अनुसार उद्यमी या साहसी को परिभाषित कीजिए। (2012)
उत्तर:
प्रो. जे. के. मेहता के अनुसार, “उत्पादन में सदैव कुछ-न-कुछ जोखिम रहता है। इस जोखिम से उत्पन्न होने वाली हानियों को सहन करने के लिए किसी-न-किसी व्यक्ति की आवश्यकता होती है। जो व्यक्ति इन हानियों को सहन करता है, उसे साहसी या उद्यमी कहते हैं।”

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लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
संगठनकर्ता व साहसी में अन्तर बताइए।
उत्तर:
संगठनकर्ता (प्रबन्धक) तथा साहसी में अन्तर

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प्रश्न 2.
कुशल साहसी के गुणों का वर्णन कीजिए। उत्तर कुशल साहसी के गुण निम्नलिखित हैं-

  1. नेतृत्व का गुण एक कुशल साहसी में नीति-निर्धारण करने व निर्णय लेने का गुण होना चाहिए। साहसी में प्रोत्साहित व प्रेरित करने की योग्यता भी होनी चाहिए।
  2. अच्छी साख साहसी की बाजार में अच्छी साख होनी चाहिए, जिससे कि उसे सरलता से पूँजी उपलब्ध हो सके।
  3. व्यावसायिक ज्ञान साहसी को व्यवसाय के प्रत्येक पहलू के बारे में पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए।
  4. नैतिक शिक्षा एक साहसी में आत्मविश्वास, ईमानदारी, सहचरित्रता, (UPBoardSolutions.com) आदि नैतिक गुणों का होना आवश्यक है।
  5. दूरदर्शिता साहसी को पूर्वानुमान लगाकर भावी परिवर्तनों के लिए होने वाले जोखिमों के लिए तैयार रहना चाहिए।
  6. निर्णय लेने की योग्यता साहसी में व्यवसाय से सम्बन्धित विवेकपूर्ण निर्णय लेने की योग्यता होनी चाहिए।
  7. साहस, धैर्य व दृढ़ता एक साहसी में जोखिम व अनिश्चितता का सामना करने के लिए साहस, धैर्य व दृढ़ता का गुण होना आवश्यक है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
उद्यमी किसे कहते हैं? एक उद्यमी के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए। (2016)
उत्तर:
द्यमी से आशय साहस या उद्यम उत्पादन का पाँचवाँ उपादान है। अमेरिकन अर्थशास्त्रियों ने सर्वप्रथम उत्पादन के ‘उद्यम’ (पाँचवाँ उपादान) को महत्त्व दिया है। प्रत्येक व्यवसाय में किसी-न-किसी प्रकार का छोटा या बड़ा जोखिम होता है। ‘साहस’ उत्पत्ति का सक्रिय साधन है। उद्यम से आशय हानि तथा लाभ को वहन करने की क्षमता से है तथा जो व्यक्ति यह क्षमता रखता है, वह साहसी या उद्यमी कहलाता है। डॉ. मार्शल के अनुसार, “साहसी साहस का कार्य करता है और जोखिम उठाता है।”

प्रो. जे. के. मेहता के अनुसार, “उत्पादन में सदैव कुछ-न-कुछ जोखिम रहता है। इस जोखिम से उत्पन्न होने वाली हानियों को सहन करने के लिए किसी-न-किसी व्यक्ति की आवश्यकता होती है। जो व्यक्ति इन हानियों को सहन करता है, उसे साहसी या उद्यमी कहते हैं।” प्रो. नाइट के अनुसार, “उद्यमी वह व्यक्ति है, जो दो कार्य करता है-व्यापार के जोखिम उठाना और उस पर नियन्त्रण रखना।” उद्यमी/साहसी के कार्य एक साहसी (UPBoardSolutions.com) या उद्यमी द्वारा किए जाने वाले कार्यों को निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा जा सकता है

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1. निर्णय सम्बन्धी कार्य साहसी के निर्णय सम्बन्धी कार्य निम्न हैं-

  • व्यवसाय का चुनाव साहसी को यह निर्णय लेना पड़ता है कि कौन-सा व्यवसाय प्रारम्भ किया जाए तथा किस व्यवसाय में अधिक लाभ कमाया जा सकता है। इस प्रकार इन बातों को ध्यान में रखकर उचित व्यवसाय का चुनाव किया जा सकता है।
  • उत्पादन के स्थान का चुनाव उद्योग की स्थापना किस स्थान पर की जाए, यह निर्णय भी साहसी को ही लेना पड़ता है। साहसी यह निर्णय लेते समय कच्चे माल व शक्ति के साधनों की उपलब्धता, यातायात के साधनों की व्यवस्था, बाजार, बैंक, आदि सुविधाओं को ध्यान में रखता है।
  • वस्तु का चुनाव साहसी को उत्पादन कार्य प्रारम्भ करने से पहले वस्तु (UPBoardSolutions.com) के चुनाव सम्बन्धी निर्णय भी लेने पड़ते हैं।
  • उत्पादन की इकाई के आकार का निर्णय व्यवसाय, स्थान व वस्तु का चुनाव करने के पश्चात् उत्पादित वस्तु के आकार सम्बन्धी निर्णय भी साहसी द्वारा लिए जाते हैं। यह घटक उत्पादित वस्तु की माँग पर निर्भर करता है।

2. वितरण सम्बन्धी कार्य वर्तमान युग में संयुक्त साधनों के द्वारा ही उत्पादन किया जा सकता है। प्रत्येक साधन को उसके द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं के बदले उचित प्रतिफल दिया जाता है अर्थात् व्यवसाय में प्राप्त आय में से भूमिपति को लगान, पूँजीपति को ब्याज, श्रमिकों को मजदूरी व प्रबन्धक को वेतन दिया जाता है। शेष बचे लाभ को साहसी अपने पास रखता है।

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3. जोखिम सहन करने सम्बन्धी कार्य प्रत्येक प्रकार के व्यवसाय में जोखिम पाए जाते हैं। बिना (UPBoardSolutions.com) जोखिम के उत्पादन कार्य नहीं किया जा सकता है। साहसी द्वारा ही व्यवसाय के जोखिम व अनिश्चितता को वहन किया जाता है।

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 22 उत्पादन (उत्पत्ति) के साधन : आशय, विशेषताएँ एवं महत्त्व

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 22
Chapter Name उत्पादन (उत्पत्ति) के साधन : आशय, विशेषताएँ एवं महत्त्व
Number of Questions Solved 17
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 22 उत्पादन (उत्पत्ति) के साधन : आशय, विशेषताएँ एवं महत्त्व

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
उत्पादन का/के साधन है/हैं। (2013)
(a) भूमि
(b) श्रम
(c) पूँजी
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 2.
उत्पादन का सक्रिय साधन है।
(a) पूँजी
(b) श्रम
(c) भूमि
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) श्रम

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा उत्पादन का साधन नहीं है?
(a) भूमि
(b) श्रम
(c) वितरण
(d) पूँजी
उत्तर:
(c) वितरण

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निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
उपयोगिता का सृजन ही उत्पादन/उपभोग है। (2010)
उत्तर:
उत्पादन है

प्रश्न 2.
अर्थशास्त्र में चिकित्सकों को उत्पादक माना/नहीं माना जाता है। (2011)
उत्तर:
माना जाता है

प्रश्न 3.
धन सदैव उत्पादक होता है/नहीं होता है। (2009)
उत्तर:
नहीं होता है

प्रश्न 4.
उत्पादन के पाँच/चार साधन होते हैं। (2008)
उत्तर:
पाँच साधन होते हैं।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
उत्पादन के साधनों से आप क्या समझते हैं? (2013)
उत्तर:
उत्पादन के साधनों (Factors of Production) (UPBoardSolutions.com) का तात्पर्य उन वस्तुओं व साधनों से है, जो उपयोगिता अथवा मूल्य के सृजन में सहायक होते हैं। बेन्हम के अनुसार, “कोई भी वस्तु या सेवा, जो किसी भी स्तर पर उत्पादन कार्य में सहयोग प्रदान करती है, उत्पादन का साधन कहलाती है।”

प्रश्न 2.
उत्पादन की दो रीतियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
उत्पादन की दो रीतियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. रूप-परिवर्तन द्वारा उत्पादन जब किसी वस्तु के रंग, रूप अथवा आकार में परिवर्तन करके उसे पहले की तुलना में अधिक उपयोगी व लाभदायक बना दिया जाता है, तो इसे रूप-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कहा जाता है।
  2. स्थान-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कई बार वस्तु का स्थान परिवर्तित करने से भी उपयोगिता का सृजन होता है या उपयोगिता में वृद्धि होती है, उसे स्थान-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कहा जाता है।

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प्रश्न 3.
उत्पत्ति के साधनों के नाम लिखिए। (2017)
उत्तर:
उत्पत्ति के निम्नलिखित पाँच साधन हैं-

  1. भूमि
  2. श्रम
  3. पूँजी
  4. संगठन
  5. उद्यम या साहस

प्रश्न 4.
उत्पादन के साधन के रूप में संगठन की भूमिका बताइए। (2018)
उत्तर:
संगठन उत्पादन का चौथा महत्त्वपूर्ण साधन संगठन है। संगठन का अभिप्राय उत्पादन के विभिन्न साधनों में अनुकूलतम संयोग स्थापित कर इन्हें उत्पादन कार्य में संलग्न करने की कला व विज्ञान से है। दूसरे शब्दों में, संगठन वह विशिष्ट श्रम है, जो उत्पादन (UPBoardSolutions.com) के साधनों श्रम, पूँजी व भूमि को एकत्रित करके उनमें आदर्शतम् समन्वय स्थापित करता है। उनके कार्यों का निरीक्षण करता है अथवा आवश्यक परिवर्तन करता है। इसके अभाव में कुशलता का अभाव रहता है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
उत्पादन के कौन-कौन से साधन हैं?
अथवा
उत्पादन के किन्हीं पाँच साधनों का उल्लेख कीजिए। (2006)
उत्तर:
उत्पादन के साधनों से आशय उत्पादन के साधनों से हमारा तात्पर्य उन वस्तुओं व साधनों से है, जो उपयोगिता अथवा मूल्य के सृजन में सहायक होते हैं। बेन्हम के अनुसार, “कोई भी वस्तु या सेवा, जो किसी भी स्तर पर उत्पादन कार्य में सहयोग प्रदान करती है, उत्पादन का साधन कहलाती है।” उत्पादन के साधन आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने उत्पादन के साधनों को निम्नलिखित पाँच भागों में बाँटा है

1. भूमि यह उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण, किन्तु निष्क्रिय साधन है। साधारण बोलचाल में, भूमि (Land) का अर्थ केवल भूमि की ऊपरी सतह से लगाया जाता है, परन्तु अर्थशास्त्र में भूमि का बहुत ही व्यापक अर्थ होता है। प्रो. मार्शल के अनुसार, “भूमि का अर्थ (UPBoardSolutions.com) केवल पृथ्वी की ऊपरी सतह से नहीं वरन् उन सभी वस्तुओं एवं शक्तियों से है, जिन्हें प्रकृति ने भूमि, वायु, प्रकाश, आदि के रूप में मानव की सहायता के लिए नि:शुल्क प्रदान किया है।” अर्थशास्त्र में भूमि का अभिप्राय उन समस्त प्राकृतिक उपहारों से है, जिसके अन्तर्गत भूमि की सतह, वायु, नदी, पहाड़, प्रकाश, खनिज, जल, आदि प्रकृतिदत्त पदार्थ सम्मिलित हैं।

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2. श्रम श्रम (Labour) उत्पादन का दूसरा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं सक्रिय साधन है। इसका महत्त्व इसलिए अधिक है, क्योंकि यह समस्त आर्थिक क्रियाओं को आदि और अन्त (साधन और साध्य) दोनों हैं। अर्थशास्त्र में श्रम से मनुष्य के उन सभी शारीरिक और मानसिक प्रयत्नों का बोध होता है, जो धनोपार्जन के उद्देश्य से किए जाते हैं। धनोत्पादन के उद्दश्य से किए गए मानव के सभी शारीरिक एवं मानसिक प्रयत्नों का भी श्रम में समावेश होता है, परन्तु मनोरंजन, देश प्रेम, पारिवारिक स्नेह, आदि के लिए किए गए कार्यों को श्रम में सम्मिलित नहीं किया जाता है।

3. पूँजी उत्पादन का तीसरा महत्त्वपूर्ण साधन पूँजी (Capital) है। आज की आधुनिक जटिल उत्पादन अवस्था में पूँजी का महत्त्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है। पूँजी उत्पादन का एक निष्क्रिय साधन होते हुए भी इसकी बढ़ती हुई स्वयं संचालिता, इसे और भी महत्त्वपूर्ण (UPBoardSolutions.com) बनाती जा रही है। प्रो. मार्शल के अनुसार, “पूँजी मनुष्य द्वारा उत्पादित धन का वह भाग है, जिसे अधिक सम्पत्ति के उत्पादन में प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रकार पूँजी के अन्तर्गत केवल नकदी ही नहीं आती वरन् मशीनें, कच्चा माल, बीज, आदि भी आते हैं।’

4. संगठन उत्पादन का चौथा महत्त्वपूर्ण साधन (Organisation) संगठन है। संगठन का अभिप्राय उत्पादन के विभिन्न साधनों में अनुकूलतम संयोग स्थापित कर इन्हें उत्पादन कार्य में संलग्न करने की कला व विज्ञान से है। दूसरे शब्दों में, संगठन वह विशिष्ट श्रम है, जो उत्पादन के साधनों श्रम, पूँजी व भूमि को एकत्रित करके उनमें आदर्शतम् समन्वय स्थापित करता है। उनके कार्यों का निरीक्षण करता है अथवा आवश्यक परिवर्तन करता है। इसके अभाव में कुशलता का अभाव रहता है।

5. उद्यम या साहस आधुनिक उत्पादन प्रक्रिया में अनेक जटिलताओं के कारण जोखिम में वृद्धि हुई है। जो व्यक्ति इन जोखिमों को वहन करता है, उसे साहसी या उद्यमी (Enteprise) कहते हैं। पहले साहसी को उत्पादन का महत्त्वपूर्ण साधन नहीं माना जाता था, किन्तु आधुनिक उत्पादन अवस्था में विभिन्न प्रकार के जोखिमों की प्रधानता के कारण साहसी को महत्त्वपर्ण साधन माना जाने लगा है। संयुक्त पूँजी कम्पनियों की स्थापना में साहसी ही आगे आते हैं।

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प्रश्न 2.
उत्पादन तथा उपभोग में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2016, 09, 08)
उत्तर:
उपभोग से आशय उपभोग का अर्थ साधारण रूप से वस्तुओं के खाने-पीने से लगाया जाता है, जबकि अर्थशास्त्र में इस शब्द का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है। अर्थशास्त्र में उपभोग को अर्थ मानव द्वारा की जाने वाली उन समस्त क्रियाओं से है, (UPBoardSolutions.com) जिनसे उसकी आवश्यकता की पूर्ति होती है। उपभोग द्वारा किसी वस्तु के तुष्टिगुण को कम या समाप्त किया जा सकता है अर्थात् वस्तुओं द्वारा आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष सन्तुष्टि की क्रिया को उपभोग कहते हैं।

उत्पादन तथा उपभोग में अन्तर

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 22 उत्पादन (उत्पत्ति) के साधन : आशय, विशेषताएँ एवं महत्त्व
उत्पादन का महत्त्व उत्पादन का महत्त्व निम्नलिखित है-

  1. आवश्यकताओं की पूर्ति उत्पादन के परिणामस्वरूप ही मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। उत्पादन के साधन उत्पादन प्रक्रिया से अपनी आय प्राप्त करते हैं तथा उस आय से अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ एवं सेवाएँ क्रय करते हैं।
  2. राष्ट्रीय आय में वृद्धि राष्ट्रीय आय पर उत्पादन का गहरा प्रभाव पड़ता है। जब अर्थशास्त्र के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन से वृद्धि होती है, तो इससे देश की राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि होती है।
  3. जीवन-स्तर में सुधार किसी देश के लोगों का जीवन-स्तर उत्पादन की मात्रा व प्रकृति पर निर्भर करता है।
  4. रोजगार में वृद्धि देश में उत्पादन में वृद्धि से रोजगार पर अनुकूलतम प्रभाव पड़ता है। उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होती है।
  5. व्यापार में वृद्धि उत्पादन वृद्धि का व्यापार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ आन्तरिक व्यापार एवं विदेशी व्यापार का विकास होता है।
  6. आर्थिक विकास का आधार किसी राष्ट्र का आर्थिक विकास उसके (UPBoardSolutions.com) उत्पादन की मात्रा, स्वरूप, वृद्धि स्वरूप एवं वृद्धि की दर पर निर्भर होता है।
  7. परिवहन के साधनों का विकास उत्पादन वृद्धि से परिवहन के साधनों का भी विकास होता है। उत्पादन वृद्धि के लिए कच्चा माल व मशीनों, आदि को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाना व ले जाना पड़ता है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
उत्पादन की परिभाषा दीजिए। विभिन्न प्रकार के उत्पादन का उल्लेख कीजिए। (2014)
अथवा
अर्थशास्त्र में उत्पादन से क्या आशय होता है? उत्पादन के प्रकारों की विवेचना कीजिए। (2006)
उत्तर:
उत्पादन से आशय उत्पादन (Production). से आशय वस्तुओं व सेवाओं में उपयोगिता सृजन के साथ-साथ उनके मूल्य या विनिमय शक्ति में वृद्धि करना होता है। अत: वस्तुओं व सेवाओं द्वारा आर्थिक उपयोगिता के सृजन को उत्पादन कहा जाता है। फेयरचाइल्ड के अनुसार, “सम्पत्ति को अधिक उपयोगी बनाना ही उत्पादन है।” टॉमस के अनुसार, “वस्तु के मूल्य में वृद्धि करना अथवा आर्थिक उपयोगिता में वृद्धि करना ही उत्पादन है।” डॉ. बसु के अनुसार, “उत्पादन का अर्थ तुष्टिगुण सृजन करना है।” ए. एच. स्मिथ के अनुसार, “उत्पादन वह प्रक्रिया है, जिससे वस्तुओं में उपयोगिता का सृजन होती है।” प्रो. एली के अनुसार, “आर्थिक उपयोगिताओं का निर्माण ही उत्पादन है।”

उत्पादन के प्रकार या उपयोगिता वृद्धि की रीतियाँ उत्पादन के प्रकार या उपयोगिता वृद्धि की रीतियाँ निम्नलिखित हैं

1. रूप-परिवर्तन द्वारा उत्पादन किसी वस्तु के रूप को परिवर्तित करके उपयोगिता का सृजन किया जा सकता है। जब किसी वस्तु के रंग, रूप अथवा आकार में परिवर्तन किया जाता है, तो वह पहले से अधिक उपयोगी एवं लाभदायक बन जाती है। इसे रूप-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कहा जाता है; जैसे-लकड़ी का रूप बदलकर मेज व कुर्सी बनाना।

2. स्थान-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कई बार वस्तु का स्थान परिवर्तित करने से भी उपयोगिता का सृजन होता है या उपयोगिता में वृद्धि होती है, उसे स्थान परिवर्तन द्वारा उत्पादन कहा जाता है। जब कोई वस्तु किसी विशेष स्थान पर अधिक उत्पादित होती है, तो उस विशेष स्थान पर उस वस्तु की उपयोगिता कम होती है।

3. समय-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कुछ वस्तुएँ ऐसी भी होती हैं, जिनकी उपयोगिता समय-परिवर्तन के साथ बढ़ती है। कुछ वस्तुएँ ऐसी भी होती हैं, जिनकी समय बीतने के साथ उपयोगिता में वृद्धि होती है। उदाहरणस्वरूप, संग्रह करने से भी कुछ वस्तुओं की उपयोगिता व मूल्य में वृद्धि होती है; जैसे-शराब तथा चावल जितने पुराने होते जाते हैं, उनकी उपयोगिता भी बढ़ने लगती है।

4. अधिकार-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कभी-कभी वस्तु का अधिकार परिवर्तित करने पर अर्थात् एक व्यक्ति द्वारा वस्तु के स्वामित्व को दूसरे व्यक्ति को प्रदान करने पर भी उपयोगिता का सृजन होता है। इसे अधिकार-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कहा (UPBoardSolutions.com) जाता है। उदाहरण के लिए, एक पुस्तक, पुस्तक विक्रेता हेतु अधिक उपयोगी नहीं होती है। वह उसके लिए लाभ कमाने की एक वस्तु मात्र होती है, जिसे वह बेचकर अपनी आय प्राप्त करता है, परन्तु जब यह पुस्तक एक विद्यार्थी द्वारा खरीद ली जाती है, तो वस्तु की उपयोगिता बढ़ जाती है।

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5. सेवा द्वारा उत्पादन किसी सेवा या किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत गुणों के कारण भी उपयोगिता का सृजन होता है, उसे सेवा द्वारा उत्पादन कहा जाता है; जैसे-डॉक्टर, वकील, अध्यापक, न्यायाधीश, नौकर, गायक, इत्यादि अपनी सेवाओं के द्वारा उपयोगिता का सृजन करते हैं।

6. ज्ञान वृद्धि द्वारा उत्पादन विज्ञापन द्वारा किसी वस्तु-विशेष से सम्बन्धित ज्ञान का प्रसार करने से उपयोगिता का सृजन होता है; जैसे-जब तक किसी उपभोक्ता को किसी वस्तु-विशेष से सम्बन्धित पूरा ज्ञान नहीं होता। वह वस्तु उसके लिए ज्यादा उपयोगी नहीं होती है, परन्तु यदि विज्ञापन के माध्यम से उपभोक्ता को उस वस्तु की जानकारी प्रदान की जाए, तो उसे उपभोक्ता की उस वस्तु के सन्दर्भ में उपयोगिता बढ़ जाएगी।

प्रश्न 2.
उत्पादन क्या है? उत्पादन के साधनों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2016)
अथवा
उत्पादन के साधनों से आप क्या समझते हैं? उत्पादन के विभिन्न साधनों की व्याख्या कीजिए। (2015)
अथवा
अर्थशास्त्र में उत्पादन का क्या अर्थ है? उत्पादन के विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उत्पादन से आशय
उत्पादन से आशय उत्पादन (Production). से आशय वस्तुओं व सेवाओं में उपयोगिता सृजन के साथ-साथ उनके मूल्य या विनिमय शक्ति में वृद्धि करना होता है। अत: वस्तुओं व सेवाओं द्वारा आर्थिक उपयोगिता के सृजन को उत्पादन कहा जाता है। फेयरचाइल्ड के अनुसार, “सम्पत्ति को अधिक उपयोगी बनाना ही उत्पादन है।” टॉमस के अनुसार, “वस्तु के मूल्य में वृद्धि करना अथवा आर्थिक उपयोगिता में वृद्धि करना ही उत्पादन है।” डॉ. बसु के अनुसार, “उत्पादन का अर्थ तुष्टिगुण सृजन करना है।” ए. एच. स्मिथ के अनुसार, “उत्पादन वह प्रक्रिया है, जिससे वस्तुओं में उपयोगिता का सृजन होती है।” प्रो. एली के अनुसार, “आर्थिक उपयोगिताओं का निर्माण ही उत्पादन है।”

उत्पादन के साधनों से आशय उत्पादन के साधनों से हमारा तात्पर्य उन वस्तुओं व साधनों से है, जो उपयोगिता अथवा मूल्य के सृजन में सहायक होते हैं। बेन्हम के अनुसार, “कोई भी वस्तु या सेवा, जो किसी भी स्तर पर उत्पादन कार्य में सहयोग प्रदान करती है, उत्पादन का साधन कहलाती है।” उत्पादन के साधन आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने उत्पादन के साधनों को निम्नलिखित पाँच भागों में बाँटा है

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1. भूमि यह उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण, किन्तु निष्क्रिय साधन है। साधारण बोलचाल में, भूमि (Land) का अर्थ केवल भूमि की ऊपरी सतह से लगाया जाता है, परन्तु अर्थशास्त्र में भूमि का बहुत ही व्यापक अर्थ होता है। प्रो. मार्शल के अनुसार, “भूमि का अर्थ केवल पृथ्वी की ऊपरी सतह से नहीं वरन् उन सभी वस्तुओं एवं शक्तियों से है, जिन्हें प्रकृति ने भूमि, वायु, प्रकाश, आदि के रूप में मानव की सहायता के लिए नि:शुल्क प्रदान किया है।” अर्थशास्त्र में भूमि का अभिप्राय उन समस्त प्राकृतिक उपहारों से है, जिसके अन्तर्गत भूमि की सतह, वायु, नदी, पहाड़, प्रकाश, खनिज, जल, आदि प्रकृतिदत्त पदार्थ सम्मिलित हैं।

2. श्रम श्रम (Labour) उत्पादन का दूसरा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं सक्रिय साधन है। इसका महत्त्व इसलिए अधिक है, क्योंकि यह समस्त आर्थिक क्रियाओं को आदि और अन्त (साधन और साध्य) दोनों हैं। अर्थशास्त्र में श्रम से मनुष्य के उन सभी शारीरिक (UPBoardSolutions.com) और मानसिक प्रयत्नों का बोध होता है, जो धनोपार्जन के उद्देश्य से किए जाते हैं। धनोत्पादन के उद्दश्य से किए गए मानव के सभी शारीरिक एवं मानसिक प्रयत्नों का भी श्रम में समावेश होता है, परन्तु मनोरंजन, देश प्रेम, पारिवारिक स्नेह, आदि के लिए किए गए कार्यों को श्रम में सम्मिलित नहीं किया जाता है।

3. पूँजी उत्पादन का तीसरा महत्त्वपूर्ण साधन पूँजी (Capital) है। आज की आधुनिक जटिल उत्पादन अवस्था में पूँजी का महत्त्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है। पूँजी उत्पादन का एक निष्क्रिय साधन होते हुए भी इसकी बढ़ती हुई स्वयं संचालिता, इसे और भी महत्त्वपूर्ण बनाती जा रही है। प्रो. मार्शल के अनुसार, “पूँजी मनुष्य द्वारा उत्पादित धन का वह भाग है, जिसे अधिक सम्पत्ति के उत्पादन में प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रकार पूँजी के अन्तर्गत केवल नकदी ही नहीं आती वरन् मशीनें, कच्चा माल, बीज, आदि भी आते हैं।’

4. संगठन उत्पादन का चौथा महत्त्वपूर्ण साधन (Organisation) संगठन है। संगठन का अभिप्राय उत्पादन के विभिन्न साधनों में अनुकूलतम संयोग स्थापित कर इन्हें उत्पादन कार्य में संलग्न करने की कला व विज्ञान से है। दूसरे शब्दों में, संगठन वह विशिष्ट श्रम है, जो उत्पादन के साधनों श्रम, पूँजी व भूमि को एकत्रित करके उनमें आदर्शतम् समन्वय स्थापित करता है। उनके कार्यों का निरीक्षण करता है अथवा आवश्यक परिवर्तन करता है। इसके अभाव में कुशलता का अभाव रहता है।

5. उद्यम या साहस आधुनिक उत्पादन प्रक्रिया में अनेक जटिलताओं के कारण जोखिम में वृद्धि हुई है। जो व्यक्ति इन जोखिमों को वहन करता है, उसे साहसी या उद्यमी (Enteprise) कहते हैं। पहले साहसी को उत्पादन का महत्त्वपूर्ण साधन नहीं माना जाता था, किन्तु आधुनिक उत्पादन अवस्था में विभिन्न प्रकार के जोखिमों की प्रधानता के कारण साहसी को महत्त्वपर्ण साधन माना जाने लगा है। संयुक्त पूँजी कम्पनियों की स्थापना में साहसी ही आगे आते हैं।

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प्रश्न 3.
उत्पादन क्या है? यह उपभोग से कैसे भिन्न है? इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए। (2008)
अथवा
उपभोग क्या है? उत्पादन व उपभोग में क्या अन्तर है?
उत्तर:
उत्पादन से आशय
उत्पादन से आशय उत्पादन (Production). से आशय वस्तुओं व सेवाओं में उपयोगिता सृजन के साथ-साथ उनके मूल्य या विनिमय शक्ति में वृद्धि करना होता है। अत: वस्तुओं व सेवाओं द्वारा आर्थिक उपयोगिता के सृजन को उत्पादन कहा जाता है। फेयरचाइल्ड (UPBoardSolutions.com) के अनुसार, “सम्पत्ति को अधिक उपयोगी बनाना ही उत्पादन है।” टॉमस के अनुसार, “वस्तु के मूल्य में वृद्धि करना अथवा आर्थिक उपयोगिता में वृद्धि करना ही उत्पादन है।” डॉ. बसु के अनुसार, “उत्पादन का अर्थ तुष्टिगुण सृजन करना है।” ए. एच. स्मिथ के अनुसार, “उत्पादन वह प्रक्रिया है, जिससे वस्तुओं में उपयोगिता का सृजन होती है।” प्रो. एली के अनुसार, “आर्थिक उपयोगिताओं का निर्माण ही उत्पादन है।”

उपभोग से आशय उपभोग का अर्थ साधारण रूप से वस्तुओं के खाने-पीने से लगाया जाता है, जबकि अर्थशास्त्र में इस शब्द का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है। अर्थशास्त्र में उपभोग को अर्थ मानव द्वारा की जाने वाली उन समस्त क्रियाओं से है, जिनसे उसकी आवश्यकता की पूर्ति होती है। उपभोग द्वारा किसी वस्तु के तुष्टिगुण को कम या समाप्त किया जा सकता है अर्थात् वस्तुओं द्वारा आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष सन्तुष्टि की क्रिया को उपभोग कहते हैं।

उत्पादन तथा उपभोग में अन्तर

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 22 उत्पादन (उत्पत्ति) के साधन : आशय, विशेषताएँ एवं महत्त्व

उत्पादन का महत्त्व उत्पादन का महत्त्व निम्नलिखित है-

  1. आवश्यकताओं की पूर्ति उत्पादन के परिणामस्वरूप ही मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। उत्पादन के साधन उत्पादन प्रक्रिया से अपनी आय प्राप्त करते हैं तथा उस आय से अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ एवं सेवाएँ क्रय करते हैं।
  2. राष्ट्रीय आय में वृद्धि राष्ट्रीय आय पर उत्पादन का गहरा प्रभाव पड़ता है। जब अर्थशास्त्र के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन से वृद्धि होती है, तो इससे देश की राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि होती है।
  3. जीवन-स्तर में सुधार किसी देश के लोगों का जीवन-स्तर उत्पादन की मात्रा व प्रकृति पर निर्भर करता है।
  4. रोजगार में वृद्धि देश में उत्पादन में वृद्धि से रोजगार पर अनुकूलतम प्रभाव (UPBoardSolutions.com) पड़ता है। उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होती है।
  5. व्यापार में वृद्धि उत्पादन वृद्धि का व्यापार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ आन्तरिक व्यापार एवं विदेशी व्यापार का विकास होता है।
  6. आर्थिक विकास का आधार किसी राष्ट्र का आर्थिक विकास उसके उत्पादन की मात्रा, स्वरूप, वृद्धि स्वरूप एवं वृद्धि की दर पर निर्भर होता है।
  7. परिवहन के साधनों का विकास उत्पादन वृद्धि से परिवहन के साधनों का भी विकास होता है। उत्पादन वृद्धि के लिए कच्चा माल व मशीनों, आदि को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाना व ले जाना पड़ता है।

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प्रश्न 4.
अर्थशास्त्र में उत्पादन का क्या अर्थ है? उत्पादन को प्रभावित करने वाले छः कारकों का उल्लेख कीजिए। (2007)
अथवा
उत्पादन क्षमता से क्या आशय है? उत्पादन क्षमता को प्रभावित करने वाली बातों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
उत्पादन से आशय
उत्पादन से आशय उत्पादन (Production). से आशय वस्तुओं व सेवाओं में उपयोगिता सृजन के साथ-साथ उनके मूल्य या विनिमय शक्ति में वृद्धि करना होता है। अत: वस्तुओं व सेवाओं द्वारा आर्थिक उपयोगिता के सृजन को उत्पादन कहा जाता है। फेयरचाइल्ड के अनुसार, “सम्पत्ति को अधिक उपयोगी बनाना ही उत्पादन है।” टॉमस के अनुसार, “वस्तु के मूल्य में वृद्धि करना अथवा आर्थिक उपयोगिता में वृद्धि करना ही उत्पादन है।” डॉ. बसु (UPBoardSolutions.com) के अनुसार, “उत्पादन का अर्थ तुष्टिगुण सृजन करना है।” ए. एच. स्मिथ के अनुसार, “उत्पादन वह प्रक्रिया है, जिससे वस्तुओं में उपयोगिता का सृजन होती है।” प्रो. एली के अनुसार, “आर्थिक उपयोगिताओं का निर्माण ही उत्पादन है।”

उत्पादन क्षमता उत्पादन की कुशलता (Efficiency of Production) से तात्पर्य किसी उत्पादन संस्था की उस योग्यता से है, जिसके द्वारा वह एक निश्चित समय में अन्य उत्पादक संस्थाओं से कम लागत पर अधिक मात्रा में व उच्च स्तर का माल उत्पादित करती है। उत्पादन की कुशलता को प्रभावित करने वाले तत्त्व उत्पादन की कुशलता को प्रभावित करने वाले तत्त्व निम्नलिखित हैं

1. आन्तरिक तत्त्व आन्तरिक तत्त्वों का सम्बन्ध उत्पादन संस्था के आन्तरिक प्रबन्ध और कार्य संचालन से होता है। ये दशाएँ निम्नलिखित हैं

  • साधनों का उचित अनुपात में नियोजन उत्पादन के विभिन्न साधनों को अनुकूलतम अनुपात में लगाने पर उत्पादन की कुशलता में वृद्धि होर? है।
  • उत्पादन साधनों की कुशलता उत्पादन के साधन अधिक कुशल होने से उत्पादन अधिक मात्रा में व श्रेष्ठ होता है। यदि उत्पादन-कार्य में उच्च कोटि का कच्चा माल, नवीनतम मशीनें व योग्य श्रमिकों का प्रयोग किया जाता है, तो उत्पादन उच्च-स्तर का होता है।

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2. बाह्य तत्त्व बाह्य तत्त्वों का सम्बन्ध किसी एक उत्पादन संस्था से न होकर एक उद्योग या एक स्थान पर स्थापित सभी प्रकार की संस्थाओं से होता है। ये दशाएँ निम्नलिखित हैं

  • प्राकृतिक घटक किसी देश की उत्पादन कुशलता उसके प्राकृतिक तत्त्वों; जैसे-जलवायु, खनिज सम्पदा, भूमि का उपजाऊपन, आदि पर – निर्भर करती है।
  • तकनीकी ज्ञान व वैज्ञानिक शोध किसी राष्ट्र की उत्पादन कुशलता उस देश (UPBoardSolutions.com) के तकनीकी ज्ञान व वैज्ञानिक शोध पर निर्भर करती है।
  • यातायात की सुविधाएँ उत्पादन कुशलता यातायात के साधनों पर भी निर्भर करती है।
  • सरकारी नीति उत्पादन कुशलता पर सरकारी नीतियों का प्रभाव भी पड़ता है।

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 26 संगठन

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 26 संगठन are the part of UP Board Solutions for Class 10 Commerce. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 26 संगठन.

Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 26
Chapter Name संगठन
Number of Questions Solved 19
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 26 संगठन

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
“उत्पादन के विभिन्न साधनों को एकत्र करना तथा उन्हें संगठित एवं नियन्त्रित करने को ही संगठन कहते हैं।” परिभाषा है।
(a) प्रो. हैने की
(b) प्रो. वाटसन की
(c) प्रो. मार्शल की।
(d) प्रो. चैपमैन की
उत्तर:
(b) प्रो. वाटसन की.

प्रश्न 2.
बड़े कारखानों में श्रमिकों का प्रत्यक्ष सम्पर्क होता है,
(a) उद्यमी से।
(b) संगठनकर्ता से
(c) पूँजीपति से
(d) इन सभी से।
उत्तर:
(b) संगठनकर्ता से

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प्रश्न 3.
संगठनकर्ता उद्योग का ” कहलाता है।
(a) सैनिक
(b) सेनापति
(c) श्रमिक :
(d) ये सभी
उत्तर:
(b) सेनापति

प्रश्न 4.
संगठनकर्ता के गुण हैं।
(a) साहसी
(b) चरित्रवान
(c) शिक्षित
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

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निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
संगठन उत्पादन का एक साधन है/साधन नहीं है।
उत्तर:
साधन है।

प्रश्न 2.
संगठन उत्पादन का एक गतिशील/अगतिशील उपादान है।
उत्तर:
गतिशील उपादान है।

प्रश्न 3.
संगठनकर्ता व्यवसाय का जोखिम उठाता है/नहीं उठाता है।
उत्तर:
नहीं उठाता है।

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प्रश्न 4.
तैयार माल की बिक्री का प्रबन्ध श्रमिक/संगठनकर्ता करता है।
उत्तर:
संगठनकर्ता करता है।

प्रश्न 5.
संगठनकर्ता का प्रतिफल ब्याज/वेतन होता है।
उत्तर:
वेतन होता है।

प्रश्न 6.
लघु स्तर के उद्योगों में संगठनकर्ता कम/अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।
उत्तर:
कम महत्त्वपूर्ण होता है।

प्रश्न 7.
श्रमिकों के कार्य का निरीक्षण संगठनकर्ता द्वारा किया जाता है। (सत्य/असत्य) (2012, 10)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 8.
संगठनकर्ता का कार्य मुख्यतः मानसिक/शारीरिक होता है।
उत्तर:
मानसिक होता है।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
संगठन का अर्थ स्पष्ट कीजिए। (2012)
उत्तर:
संगठन उत्पादन का महत्त्वपूर्ण साधन है। संगठन का अभिप्राय उत्पादन के विभिन्न साधनों में अनुकूलतम संयोग स्थापित करके उन्हें उत्पादन कार्य में संलग्न करने की कला और विज्ञान से है। दूसरे शब्दों में, संगठन वह विशिष्ट श्रम है, (UPBoardSolutions.com) जो उत्पादन के विभिन्न साधनों; जैसे-श्रम, पूँजी एवं भूमि को एकत्रित करके उनमें आदर्शतम समन्वय स्थापित करता है, उनके कार्यों का निरीक्षण करता है तथा आवश्यक परिवर्तन करता है। इसके अभाव में कुशलता का अभाव रहता है।

प्रश्न 2.
संगठन की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
प्रो. वाटसन के अनुसार, “उत्पादन के विभिन्न साधनों को एकत्र करना तथा उन्हें संगठित एवं नियन्त्रित करने को ही संगठन कहते हैं।’ प्रो. होने के अनुसार, “संगठन उत्पादन का ऐसा साधन है, जो भूमि, श्रम और पूँजी को उचित मात्रा और अनुपात में एकत्रित करके उत्पादन कार्य करवाता है।”

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प्रश्न 3.
संगठन के कोई दो उद्देश्य बताइए। (2012)
उत्तर:
संगठन के दो उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. उत्पादन के विभिन्न साधनों; जैसे-भूमि, श्रम व पूँजी, आदि की व्यवस्था करना।
  2. देश में उपलब्ध विभिन्न साधनों का सर्वोत्तम उपयोग करना।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
संगठन से क्या आशय है? उत्पादन में इसका क्या महत्त्व है? वर्णन कीजिए। (2009)
अथवा
संगठन के महत्त्व की विवेचना कीजिए। (2007)
अथवा
उत्पादन के साधन के रूप में संगठन की भूमिका बताइए।
उत्तर:
संगठन से आशय संगठन उत्पादन का महत्त्वपूर्ण साधन है। संगठन का अभिप्राय उत्पादन के विभिन्न साधनों में अनुकूलतम संयोग स्थापित करके उन्हें उत्पादन कार्य में संलग्न करने की कला और विज्ञान से है। दूसरे शब्दों में, संगठन वह विशिष्ट श्रम है, जो उत्पादन के विभिन्न साधनों; जैसे-श्रम, पूँजी एवं भूमि को एकत्रित करके उनमें आदर्शतम समन्वय स्थापित करता है, उनके कार्यों का निरीक्षण करता है तथा आवश्यक परिवर्तन (UPBoardSolutions.com) करता है। इसके अभाव में कुशलता का अभाव रहता है। संगठन का महत्त्व संगठन बड़े पैमाने पर किए जाने वाले उद्योगों के लिए विशेष महत्त्व रखता है। कम लागत पर अधिकतम उत्पादन करने के लिए उत्पादन के विभिन्न साधनों को एक उचित अनुपात में मिलाकर उत्पादन कार्य किया जाता है, जिससे उत्पादन के साधनों में सहयोग व सामंजस्य बना रहे। यह सब कार्य संगठनकर्ता द्वारा ही किया जाता है।

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आधुनिक उत्पादन व्यवस्था में संगठन के अत्यधिक महत्त्व को ध्यान में रखकर ही टॉमस ने संगठनकर्ता को ‘उद्योग का सेनापति’ कहा है। संगठन के महत्त्व को प्रसिद्ध प्रबन्ध विशेषज्ञ पी. एफ. डुकर ने बड़े ही सुन्दर ढंग से व्यक्त किया है। उनके अनुसार, “प्रबन्धक प्रत्येक व्यवसाय का गतिशील एवं जीवनदायक तत्त्व होता है। उसके नेतृत्व के अभाव में उत्पादन के अन्य साधन केवल साधन ही रह
जाते हैं, कभी उत्पादक नहीं बन पाते।’

प्रश्न 2.
संगठनकर्ता की कार्यकुशलता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
संगठनकर्ता की कार्यकुशलता निम्नलिखित गुणों पर निर्भर करती है-

  1. संगठने योग्यता संगठनकर्ता में विभिन्न साधनों को एक आदर्श व उचित अनुपात में मिलाकर उनको परस्पर संगठित करने की योग्यता होनी चाहिए।
  2. व्यवसाय का विशिष्ट ज्ञान संगठनकर्ता को अपने व्यवसाय के बारे में विशेष ज्ञान होना चाहिए। इससे व्यवसाय में किसी प्रकार का धोखा होने की सम्भावना नहीं रहती है।
  3. उच्च शिक्षा प्रबन्धक को सभी विषयों; जैसे—अर्थशास्त्र, सांख्यिकी व वाणिज्य, आदि का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए।
  4. साहस और आत्मविश्वास संगठनकर्ता में साहस व आत्मविश्वास का गुण होना चाहिए, जिससे वह संकटों व अनिश्चितताओं का सामना सरलता से कर सके।
  5. चरित्रवान एक संगठनकर्ता में नैतिकता के सभी गुण होने चाहिए, जिससे वह (UPBoardSolutions.com) श्रमिकों में अपने प्रति विश्वास उत्पन्न कर सके।
  6. व्यवहारकुशलता संगठनकर्ता को सभी श्रमिकों व अधिकारियों के प्रति उचित व्यवहार करना चाहिए।
  7. दूरदर्शिता संगठनकर्ता में भविष्य में होने वाले गुणात्मक व संख्यात्मक परिवर्तनों का अनुमान लगाने की योग्यता होनी चाहिए।
  8. साख बनाए रखने की योग्यता आज का युग साख का युग है। बड़े पैमाने पर उत्पादन कार्य करने के लिए उधार लेन-देन की आवश्यकता होती है, इसलिए संगठनकर्ता में अपनी फर्म के प्रति साख बनाए रखने की योग्यता का होना अत्यन्त आवश्यक है।
  9. श्रम-विभाजन व श्रम संगठन की योग्यता श्रमिकों को उनके कार्य के अनुसार नियुक्ति प्रदान करके उनसे अधिकतम कार्य करवाना भी संगठनकर्ता का ही कार्य होता है।

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प्रश्न 3.
संगठनकर्ता की कार्यक्षमता किन-किन तत्त्वों से प्रभावित होती है? (2007)
उत्तर:
संगठनकर्ता की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले घटक/तत्त्व एक संगठनकर्ता की कार्यक्षमता को निम्नलिखित दो घटक/तत्त्व प्रभावित करते हैं या एक संगठनकर्ता में निम्न गुणों का होना आवश्यक है

  1. संगठनकर्ता की व्यक्तिगत (निजी) कुशलता एक संगठनकर्ता के उपरोक्त वर्णित व्यक्तिगत गुण उसकी कार्यक्षमता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। यदि किसी संगठनकर्ता द्वारा उत्पादन के साधनों का प्रबन्ध ठीक प्रकार से नहीं किया जाता है, तो कम लागत पर अधिक उत्पादन सम्भव नहीं है।
  2. उत्पादन के अन्य साधनों (उपादानों) की कुशलता एक संगठनकर्ता की कार्यकशलता (UPBoardSolutions.com) उसके व्यक्तिगत गुणों के अतिरिक्त उत्पादन के अन्य साधनों पर भी निर्भर करती है, क्योकि यदि भूमि, श्रम व पूँजी अपर्याप्त या अकुशल होंगे, तो एक संगठनकर्ता योग्य होने के बाद भी कम लागत पर अधिक उत्पादन नहीं कर पाएगा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1. संगठनकर्ता या प्रबन्धक के कार्यों एवं आवश्यक गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संगठनकर्ता या प्रबन्धक के कार्य संगठनकर्ता या प्रबन्धक के कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. नई तकनीक का प्रयोग उत्पादन की नई तकनीक को खोजकर उसे प्रयोग में लाना संगठनकर्ता का ही कार्य होता है, जिससे उत्पादन की कुशलता में निरन्तर वृद्धि होती रहती है।
  2. मूल्य नीति का निर्धारण संगठनकर्ता माँग व पूर्ति के अनुसार तैयार माल का मूल्य निर्धारण करते हैं।
  3. उत्पादन की योजना तैयार करना संगठनकर्ता द्वारा ही यह निर्णय लिया जाता है कि किस प्रकार के उत्पादन से लाभ होगा व उत्पादन कितनी मात्रा में करना है। इस प्रकार के निर्णय संगठनकर्ता अपनी कुशलता एवं देश-विदेश की परिस्थितियों के आधार पर करता है।
  4. बिक्री की व्यवस्था करना संगठनकर्ता माल की बिक्री के लिए विज्ञापन, नए बाजार की खोज, आदि तकनीकें अपनाता है। उत्पादित माल की बिक्री की व्यवस्था करना भी संगठनकर्ता का ही दायित्व है। माल को मण्डियों तक भेजने हेतु सस्ते व शीघ्रगामी यातायात के साधनों की व्यवस्था करना भी संगठनकर्ता का ही कार्य होता है।
  5. कच्चे माल, यन्त्र व औजारों का प्रबन्ध करना संगठनकर्ता ही उत्पादन (UPBoardSolutions.com) के लिए कच्चे माल, यन्त्र, औजारों, आदि की व्यवस्था करता है। मशीनों को क्रय करते समय लागत, मॉडल व चलाने में श्रमिकों की योग्यता का ध्यान रखना भी संगठनकर्ता का ही कार्य होता है।
  6. श्रमिकों को उनकी योग्यतानुसार कार्य सौंपना संगठनकर्ता श्रमिकों को उनकी रुचि व योग्यता के अनुसार ही कार्य सौंपता है।
  7. निरीक्षण कार्य संगठनकर्ता उद्योग के सभी कार्यों का समय-समय पर निरीक्षण करता है। इससे अव्यवस्था व अनुशासनहीनता पर उचित रूप से नियन्त्रण किया जा सकता
  8. श्रमिकों को संगठित करने की योग्यता संगठनकर्ता ही श्रमिकों की योग्यता के अनुसार कार्य विभाजित करके उन्हें संगठित करता है।

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संगठनकर्ता या प्रबन्धक के गुण
संगठनकर्ता की कार्यकुशलता निम्नलिखित गुणों पर निर्भर करती है-

  1. संगठने योग्यता संगठनकर्ता में विभिन्न साधनों को एक आदर्श व उचित अनुपात में मिलाकर उनको परस्पर संगठित करने की योग्यता होनी चाहिए।
  2. व्यवसाय का विशिष्ट ज्ञान संगठनकर्ता को अपने व्यवसाय के बारे में विशेष ज्ञान होना चाहिए। इससे व्यवसाय में किसी प्रकार का धोखा होने की सम्भावना नहीं रहती है।
  3. उच्च शिक्षा प्रबन्धक को सभी विषयों; जैसे—अर्थशास्त्र, सांख्यिकी व वाणिज्य, आदि का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए।
  4. साहस और आत्मविश्वास संगठनकर्ता में साहस व आत्मविश्वास का गुण होना चाहिए, जिससे वह संकटों व अनिश्चितताओं का सामना सरलता से कर सके।
  5. चरित्रवान एक संगठनकर्ता में नैतिकता के सभी गुण होने चाहिए, जिससे वह श्रमिकों में अपने प्रति विश्वास उत्पन्न कर सके।
  6. व्यवहारकुशलता संगठनकर्ता को सभी श्रमिकों व अधिकारियों के प्रति उचित व्यवहार करना चाहिए।
  7. दूरदर्शिता संगठनकर्ता में भविष्य में होने वाले गुणात्मक व संख्यात्मक (UPBoardSolutions.com) परिवर्तनों का अनुमान लगाने की योग्यता होनी चाहिए।
  8. साख बनाए रखने की योग्यता आज का युग साख का युग है। बड़े पैमाने पर उत्पादन कार्य करने के लिए उधार लेन-देन की आवश्यकता होती है, इसलिए संगठनकर्ता में अपनी फर्म के प्रति साख बनाए रखने की योग्यता का होना अत्यन्त आवश्यक है।
  9. श्रम-विभाजन व श्रम संगठन की योग्यता श्रमिकों को उनके कार्य के अनुसार नियुक्ति प्रदान करके उनसे अधिकतम कार्य करवाना भी संगठनकर्ता का ही कार्य होता है।

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 21 व्यय एवं बचत

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 21
Chapter Name व्यय एवं बचत
Number of Questions Solved 23
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 21 व्यय एवं बचत

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
“आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से सन्तुष्ट करने के लिए आये का उपयोग करना ही व्यय कहलाता है।” यह कथन है।
(a) प्रो. बसु का
(b) प्रो. केन्ज का
(c) प्रो. पेन्सन का
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) प्रो. बसु का

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से व्यक्तिगत व्यय कौन-कौन से है?
(a) भोजन पर व्यय
(b) स्वास्थ्य पर व्यय
(c) बच्चों की शिक्षा पर व्यय
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 3.
सम्पत्ति का जो भाग उत्पादन में लगाया जाता है, उसे कहते हैं (2012)
(a) बचत
(b) संचय
(c) पूँजी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) बचत

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प्रश्न 4.
पूँजी का निर्माण निर्भर करता है
(a) व्यय पर
(b) आय पर
(c) बचत पर
(d) ये सभी
उत्तर:
(c) बेचत पर

प्रश्न 5.
अधिक बचत करने से आय
(a) बढ़ती है
(b) घटती है
(c) सामान्य रहती है
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) बढ़ती है

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
व्यय से वर्तमान/भावी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि होती है।
उत्तर:
वर्तमान

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प्रश्न 2.
क्या व्यय आवश्यकता की सन्तुष्टि प्रत्यक्ष रूप से करता है।
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 3.
क्या व्यय तथा बचत दोनों आय के भाग होते हैं।
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 4.
क्या बैंक में धन को जमा करना बचत कहलाता है।
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 5.
क्या बचत समाज के लिए लाभदायक होती है।
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 6.
बचत करने से पूँजी में कमी/वृद्धि होती है।
उत्तर:
वृद्धि होती है

प्रश्न 7.
बचत से रहन-सहन का स्तर घटता/बढ़ता है।
उत्तर:
बढ़ती है

प्रश्न 8.
क्या निःसंचय का पूँजी के निर्माण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
उत्तर:
हाँ

UP Board Solutions

प्रश्न 9.
व्यय तथा बचत दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं,नहीं होते हैं।
उत्तर:
होते हैं।

प्रश्न 10.
अधिक बचत से देश में पूँजी का निर्माण होता है/नहीं होता है।
उत्तर:
होता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
व्यय कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
व्यय निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-

  1. व्यक्तिगत व्यय
  2. सामाजिक व्यय

प्रश्न 2.
बचत का सामाजिक महत्त्व बताइए। (2017)
अथवा
समाज में बचत के महत्व का वर्णन कीजिए। (2015, 11, 09, 08)
उत्तर:
बचत (संचय) करने वाले व्यक्ति समाज में प्रतिष्ठित (UPBoardSolutions.com) व्यक्ति माने जाते हैं। निरन्तर बचत (संचय) करने से व्यक्ति को संकट के समय समाज में किसी दूसरे व्यक्ति के सामने अपनी व्यथा रखने की आवश्यकता नहीं होती, जिससे  उसको एक सकारात्मक परिणाम मिलता है तथा उसकी प्रतिष्ठा समाज में बनी रहती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि समाज में बचत का अत्यधिक महत्त्व है।

UP Board Solutions

प्रश्न 3.
बचत से होने वाली दो हानियाँ बताइए।
उत्तर:
बचत से होने वाली दो हानियाँ निम्नलिखित हैं

  1. पैतृक रूप में मिली सम्पत्ति भावी पीढ़ी को निकम्मा बना देती है।
  2. भविष्य के लिए अधिक धन बचाने के स्वार्थ में वर्तमान की आवश्यकता सन्तुष्ट नहीं हो पाती है, जिससे व्यक्ति के जीवन-स्तर में विकास नहीं हो पाता है।

प्रश्न 4.
बचत एवं निःसंचय में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2016)

बचत एवं नि:संचय में अन्तर

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 21 व्यय एवं बचत

UP Board Solutions

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
व्यय किसे कहते हैं? व्यय कितने प्रकार के होते हैं? (2007)
उत्तर:
व्यय से आशय व्यय, आय का वह भाग होता है, जिसे मनुष्य अपनी वर्तमान आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु उपयोग में लेता है। सरल शब्दों में, आय का वह भाग, जो तात्कालिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु उपभोग में लिया जाता है, व्यय (Expenditure) (UPBoardSolutions.com) कहलाता है। प्रो. बसु के अनुसार, “आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से सन्तुष्ट करने के लिए आय का उपभोग करना ही ‘व्यय’ कहलाता है।”
व्यय के प्रकार व्यय के निम्नलिखित प्रकार होते हैं

1. व्यक्तिगत या निजी व्यय आय का वह हिस्सा, जिसे मनुष्य द्वारा अपनी वर्तमान आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए प्रयोग में लिया जाता है, ‘व्यक्तिगत व्यय’ या ‘निजी व्यय’ (Personal Expenses) कहलाता है, जैसे-बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, मकान का किराया, आदि पर किया जाने वाला व्यय।

2. सामाजिक व्यय मनुष्य एक सामाजिक प्राणी होने के कारण समाज में रहकर कुछ सुविधाएँ व संम्मान प्राप्त करता है। मनुष्य की आय का वह भाग, जो सामाजिक आवश्यकताओं या समाज के ऊपर खर्च किया जाता है, ‘सामाजिक व्यय’ (Social Expenses) कहलाता है।
सामाजिक व्यय निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-

  • अनिवार्य सामाजिक व्यय मनुष्य की आय का वह भाग, जिसे समाज के लिए अनिवार्य रूप से खर्च करना पड़ता है, ‘अनिवार्य सामाजिक व्यंय’ कहलाते हैं। इन व्ययों से समाज का हित होता है; जैसे-केन्द्रीय या प्रादेशिक कर।
  • ऐच्छिक सामाजिक व्यय मनुष्य की आय का वह भाग, जिसे मनुष्य अपनी इच्छा से समाज के लिए खर्च करता है, ‘ऐच्छिक सामाजिक व्यय कहलाते हैं; जैसे–मन्दिर, अस्पताल या धार्मिक संस्थाओं को चन्दा देना।

प्रश्न 2.
व्यय क्या है? व्यय और बचत के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए। (2014)
अथवा
व्यय से क्या आशय है? व्यय का बचत से क्या सम्बन्ध है? (2006)
अथवा
व्यय और बचत में क्या सम्बन्ध है? (2018)
उत्तर:
व्यय से आशय व्यय, आय का वह भाग होता है, जिसे मनुष्य अपनी वर्तमान आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु उपयोग में लेता है। सरल शब्दों में, आय का वह भाग, जो तात्कालिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु उपभोग में लिया जाता है, व्यय (Expenditure) (UPBoardSolutions.com) कहलाता है। प्रो. बसु के अनुसार, “आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से सन्तुष्ट करने के लिए आय का उपभोग करना ही ‘व्यय’ कहलाता है।”
व्यय के प्रकार व्यय के निम्नलिखित प्रकार होते हैं

UP Board Solutions

1. व्यक्तिगत या निजी व्यय आय का वह हिस्सा, जिसे मनुष्य द्वारा अपनी वर्तमान आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए प्रयोग में लिया जाता है, ‘व्यक्तिगत व्यय’ या ‘निजी व्यय’ (Personal Expenses) कहलाता है, जैसे-बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, मकान का किराया, आदि पर किया जाने वाला व्यय।

2. सामाजिक व्यय मनुष्य एक सामाजिक प्राणी होने के कारण समाज में रहकर कुछ सुविधाएँ व संम्मान प्राप्त करता है। मनुष्य की आय का वह भाग, जो सामाजिक आवश्यकताओं या समाज के ऊपर खर्च किया जाता है, ‘सामाजिक व्यय’ (Social Expenses) कहलाता है।
सामाजिक व्यय निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-

  • अनिवार्य सामाजिक व्यय मनुष्य की आय का वह भाग, जिसे समाज के लिए अनिवार्य रूप से खर्च करना पड़ता है, ‘अनिवार्य सामाजिक व्यंय’ कहलाते हैं। इन व्ययों से समाज का हित होता है; जैसे-केन्द्रीय या प्रादेशिक कर।
  • ऐच्छिक सामाजिक व्यय मनुष्य की आय का वह भाग, जिसे मनुष्य अपनी इच्छा (UPBoardSolutions.com) से समाज के लिए खर्च करता है, ‘ऐच्छिक सामाजिक व्यय कहलाते हैं; जैसे–मन्दिर, अस्पताल या धार्मिक संस्थाओं को चन्दा देना।

व्यय और बचत को पारस्परिक सम्बन्ध व्यय और बचत दोनों हमारे जीवन के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग होते हैं। इन दोनों में परस्पर गहरा सम्बन्ध होता है। व्यय के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से आवश्यकताओं की सन्तुष्टि होती है, जबकि बचत में परोक्ष रूप से धन का प्रयोग किया जाता है। व्यय में धन के द्वारा वस्तुएँ एवं सेवाएँ प्राप्त करके आवश्यकताओं की सन्तुष्टि प्रत्यक्ष रूप से की जाती है, जबकि बचत में धन के द्वारा वस्तुओं व सेवाओं की प्राप्ति धन उत्पादन के लिए की जाती है। मार्शल ने व्यय और बचत की कैंची के दो फलकों से तुलना की है। जिस प्रकार कपड़े काटने के लिए कैंची के दो फलकों की आवश्यकता पड़ती है, उसी प्रकार समाज की उन्नति के लिए व्यय और बचत दोनों ही आवश्यक होते हैं। ये एक-दूसरे के विरोधी न होकर पूरक होते हैं। प्रो. मेन्सन के अनुसार, “व्यय तथा बचत दोनों ही मनुष्य की (UPBoardSolutions.com) आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।”

प्रश्न 3.
व्यय और बचत में अन्तर बताइए। (2016)
उत्तर:
व्यय और बचत में अन्तर

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 21 व्यय एवं बचत

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
व्यय तथा बचत से आप क्या समझते हैं? व्यय व बचत के महत्त्व का वर्णन कीजिए। (2015)
अथवा
व्यय से क्या आशय है? आर्थिक विकास में व्यय के महत्व का वर्णन कीजिए। (2007)
उत्तर:
व्यय से आशय व्यय, आय का वह भाग होता है, जिसे मनुष्य अपनी वर्तमान आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु उपयोग में लेता है। सरल शब्दों में, आ का वह भाग, जो तत्कालिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु उपभोग में लिया जाता है, व्यय (Expenditure) कहलाता है। प्रो. बसु के अनुसार, “आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से सन्तुष्ट करने के लिए आय का उपभोग करना ही ‘व्यय’ कहलाता है।”

व्यय का महत्त्व मनुष्य को आय कमाने की अपेक्षा व्यय करना कठिन होता है। मनुष्य को अपनी आय सोच-समझकर खर्च करनी चाहिए। व्यय के महत्त्व निम्नलिखित हैं

1. जीवन-स्तर में वृद्धि व्यय करने से मनुष्य के उपभोग स्तर में वृद्धि होती है, जिससे लोगों का जीवन-स्तर उच्च होता है। उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। इससे देश का आर्थिक विकास होता है।
2. रोजगार के अवसरों में वृद्धि अधिक उत्पादन किए जाने से रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जा सकती है, इससे बेरोजगारी की समस्या का अन्त किया जा सकता है।
3. वस्तुओं की माँग में वृद्धि अधिक व्यय किए जाने से उपभोग स्तर में वृद्धि होती है, फलस्वरूप वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है, जिनके लिए अधिक धनोत्पादन किया जाता है।
4. आय में वृद्धि व्यय से देश के प्रत्येक क्षेत्र की आर्थिक प्रगति होती है व साथ ही (UPBoardSolutions.com) समाज के सभी वर्गों की आय में भी वृद्धि होती है।
5. आर्थिक विकास में सहायक व्यय के कारण व्यक्ति का उपभोग स्तर ऊँचा होता है, जिससे माँग में वृद्धि के फलस्वरूप उद्योगों की स्थापना होती है, जो देश के सर्वांगीण आर्थिक विकास में सहायक है।

बचत से आशय प्रत्येक व्यक्ति अपनी सम्पूर्ण आय को वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति करने में व्यय नहीं करता है। वह अपनी आय का कुछ भाग भविष्य की आवश्यकताओं के आकस्मिक व्ययों के लिए बचाकर रखता है, जिसे बचत (Savings) कहते हैं अर्थात् मनुष्य की आय का वह भाग जो भावी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए रखा जाता है, बचत कहलाता है। इसे बैंक या डाकघर में जमा करा सकते हैं या इससे किसी कम्पनी के अंश या ऋणपत्र क्रय कर सकते हैं। केन्ज के अनुसार, “बचत एक निश्चित समय की आय में से उसी समय होने वाले व्यय का अन्तर होता है।” डॉ. बसु के अनुसार, “उत्पादन कार्यों के लिए धन का पूँजी में परिवर्तन करना बचत कहलाता है।

बचत का महत्त्व बचत के महत्त्व को दो दृष्टिकोणों में विभक्त किया जा सकता है

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1. व्यक्तिगत दृष्टिकोण व्यक्तिगत दृष्टिकोण से बचत निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की जाती है

  • आय वृद्धि के लिए बचत करने से व्यक्ति की आय बढ़ती है। बचत के पुरस्कार के रूप में ब्याज, लाभांश, आदि की प्राप्ति होती है।
  • पारिवारिक दायित्वों को निभाने के लिए बचत के द्वारा ही पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन किया जा सकता है; जैसे-बच्चों की शिक्षा, सामाजिक कार्य, आदि।
  • मितव्ययिता के लिए बचत करने से व्यक्ति में मितव्ययिता की भावना उत्पन्न होती है। बचत करने से अनावश्यक व्ययों पर नियन्त्रण किया जा सकता है। इससे अपव्ययिता पर रोक लगती है।
  • सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए बचत करने से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, जिससे व्यक्ति समाज के विकास के लिए योगदान दे सकता है। इससे व्यक्ति का समाज में सम्मान प्रतिष्ठा बनी रहती है।
  • वृद्धावस्था के लिए वृद्धावस्था के समय व्यक्ति के लिए बचत ही सबसे (UPBoardSolutions.com) महत्त्वपूर्ण सहारा होती है। पर्याप्त बचत होने पर व्यक्ति वृद्धावस्था में सरलता से जीवन-निर्वाह कर सकता है।
  • आकस्मिक अवसर के लिए मनुष्य के जीवन में अनेक ऐसे आकस्मिक अवसर आते हैं, जब सामान्य व्यय से अतिरिक्त आवश्यक व्यय की आवश्यकता होती है; जैसे-बीमारी, बेरोजगारी, मृत्यु, विवाह, आदि।

2. सामाजिक दृष्टिकोण सामाजिक दृष्टिकोण से बचत निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की जाती है

  • बैंकिंग व बीमा व्यवसाय का विकास बचत की राशि को लोग बैंकों में जमा कराते हैं या बीमा व्यवसाय में इसका निवेश करते हैं। इससे देश में बैंकिंग व बीमा व्यवसाय का विकास एवं विस्तार होता है।
  • देश की आर्थिक विकास बचत से पूँजी का संचय होता है, जिससे औद्योगिक विकास, जन-जीवन का विकास, रोजगार के अवसरों में वृद्धि, सामाजिक क्षेत्र का विकास (रेल, तार, सड़कें, स्कूल, अस्पताल, आदि का निर्माण) होता है। इससे देश के आर्थिक विकास में वृद्धि होती है।
  • पूँजी में वृद्धि पूँजी, बचत का ही परिणाम है। जितनी अधिक बचत होगी, उतनी ही पूँजी में वृद्धि होती है। अधिक पूँजी होने पर बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है।
  • जीवन-स्तर में वृद्धि बचत करने से पूँजी का निर्माण होता है। पूँजी निर्माण से उत्पादन कार्यों में वृद्धि होती है। इससे लोगों को रोजगार मिलता है व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है। प्रति व्यक्ति आय बढ़ने से राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि होती है और लोगों के रहन-सहने का स्तर भी ऊँचा होता है।
  • राष्ट्र का शक्तिशाली होना बचत के द्वारा देश के आर्थिक विकास को गति मिलती है। इससे देश की राजनीतिक व सैनिक शक्ति में वृद्धि होती है। वर्तमान में आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न देश को शक्तिशाली राष्ट्र माना जाता है। आर्थिक दृष्टिकोण से देश की रक्षा-शक्ति भी बढ़ती है।

प्रश्न 2.
व्यय क्या है? बचत के सामाजिक महत्त्व का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2013)
अथवा
समाज में बचत के महत्त्व का वर्णन कीजिए। (2011)
अथवा
बचत से क्या आशय है? बचत के सामाजिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए। (2010)
अथवा
बचत क्या है? बचत के सामाजिक महत्त्व का वर्णन कीजिए। (2009)
अथवा
बचत का क्या अर्थ है? बचत के सामाजिक महत्त्व का वर्णन कीजिए। (2008)
अथवा
व्यय और बचत से आप क्या समझते हैं? बचत के सामाजिक महत्त्व का वर्णन कीजिए। (2006)
उत्तर:
व्यय से आशय व्यय, आय का वह भाग होता है, जिसे मनुष्य अपनी वर्तमान आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु उपयोग में लेता है। सरल शब्दों में, आ का वह भाग, जो तत्कालिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु उपभोग में लिया जाता है, व्यय (Expenditure) (UPBoardSolutions.com) कहलाता है। प्रो. बसु के अनुसार, “आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से सन्तुष्ट करने के लिए आय का उपभोग करना ही ‘व्यय’ कहलाता है।”

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व्यय का महत्त्व मनुष्य को आय कमाने की अपेक्षा व्यय करना कठिन होता है। मनुष्य को अपनी आय सोच-समझकर खर्च करनी चाहिए। व्यय के महत्त्व निम्नलिखित हैं

1. जीवन-स्तर में वृद्धि व्यय करने से मनुष्य के उपभोग स्तर में वृद्धि होती है, जिससे लोगों का जीवन-स्तर उच्च होता है। उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। इससे देश का आर्थिक विकास होता है।
2. रोजगार के अवसरों में वृद्धि अधिक उत्पादन किए जाने से रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जा सकती है, इससे बेरोजगारी की समस्या का अन्त किया जा सकता है।
3. वस्तुओं की माँग में वृद्धि अधिक व्यय किए जाने से उपभोग स्तर में वृद्धि होती है, फलस्वरूप वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है, जिनके लिए अधिक धनोत्पादन किया जाता है।
4. आय में वृद्धि व्यय से देश के प्रत्येक क्षेत्र की आर्थिक प्रगति होती है व साथ ही समाज के सभी वर्गों की आय में भी वृद्धि होती है।
5. आर्थिक विकास में सहायक व्यय के कारण व्यक्ति का उपभोग स्तर ऊँचा होता है, जिससे माँग में वृद्धि के फलस्वरूप उद्योगों की स्थापना होती है, जो देश के सर्वांगीण आर्थिक विकास में सहायक है।

बचत से आशय प्रत्येक व्यक्ति अपनी सम्पूर्ण आय को वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति करने में व्यय नहीं करता है। वह अपनी आय का कुछ भाग भविष्य की आवश्यकताओं के आकस्मिक व्ययों के लिए बचाकर रखता है, जिसे बचत (Savings) कहते हैं (UPBoardSolutions.com) अर्थात् मनुष्य की आय का वह भाग जो भावी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए रखा जाता है, बचत कहलाता है। इसे बैंक या डाकघर में जमा करा सकते हैं या इससे किसी कम्पनी के अंश या ऋणपत्र क्रय कर सकते हैं। केन्ज के अनुसार, “बचत एक निश्चित समय की आय में से उसी समय होने वाले व्यय का अन्तर होता है।” डॉ. बसु के अनुसार, “उत्पादन कार्यों के लिए धन का पूँजी में परिवर्तन करना बचत कहलाता है।

बचत का सामाजिक महत्त्व

बचत का महत्त्व बचत के महत्त्व को दो दृष्टिकोणों में विभक्त किया जा सकता है

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1. व्यक्तिगत दृष्टिकोण व्यक्तिगत दृष्टिकोण से बचत निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की जाती है

  • आय वृद्धि के लिए बचत करने से व्यक्ति की आय बढ़ती है। बचत के पुरस्कार के रूप में ब्याज, लाभांश, आदि की प्राप्ति होती है।
  • पारिवारिक दायित्वों को निभाने के लिए बचत के द्वारा ही पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन किया जा सकता है; जैसे-बच्चों की शिक्षा, सामाजिक कार्य, आदि।
  • मितव्ययिता के लिए बचत करने से व्यक्ति में मितव्ययिता की भावना उत्पन्न होती है। बचत करने से अनावश्यक व्ययों पर नियन्त्रण किया जा सकता है। इससे अपव्ययिता पर रोक लगती है।
  • सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए बचत करने से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, जिससे व्यक्ति समाज के विकास के लिए योगदान दे सकता है। इससे व्यक्ति का समाज में सम्मान प्रतिष्ठा बनी रहती है।
  • वृद्धावस्था के लिए वृद्धावस्था के समय व्यक्ति के लिए बचत ही सबसे महत्त्वपूर्ण सहारा होती है। पर्याप्त बचत होने पर व्यक्ति वृद्धावस्था में सरलता से जीवन-निर्वाह कर सकता है।
  • आकस्मिक अवसर के लिए मनुष्य के जीवन में अनेक ऐसे आकस्मिक (UPBoardSolutions.com) अवसर आते हैं, जब सामान्य व्यय से अतिरिक्त आवश्यक व्यय की आवश्यकता होती है; जैसे-बीमारी, बेरोजगारी, मृत्यु, विवाह, आदि।

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2. सामाजिक दृष्टिकोण सामाजिक दृष्टिकोण से बचत निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की जाती है

  • बैंकिंग व बीमा व्यवसाय का विकास बचत की राशि को लोग बैंकों में जमा कराते हैं या बीमा व्यवसाय में इसका निवेश करते हैं। इससे देश में बैंकिंग व बीमा व्यवसाय का विकास एवं विस्तार होता है।
  • देश की आर्थिक विकास बचत से पूँजी का संचय होता है, जिससे औद्योगिक विकास, जन-जीवन का विकास, रोजगार के अवसरों में वृद्धि, सामाजिक क्षेत्र का विकास (रेल, तार, सड़कें, स्कूल, अस्पताल, आदि का निर्माण) होता है। इससे देश के आर्थिक विकास में वृद्धि होती है।
  • पूँजी में वृद्धि पूँजी, बचत का ही परिणाम है। जितनी अधिक बचत होगी, उतनी ही पूँजी में वृद्धि होती है। अधिक पूँजी होने पर बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है।
  • जीवन-स्तर में वृद्धि बचत करने से पूँजी का निर्माण होता है। पूँजी निर्माण से उत्पादन कार्यों में वृद्धि होती है। इससे लोगों को रोजगार मिलता है व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है। प्रति व्यक्ति आय बढ़ने से राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि होती है और लोगों के रहन-सहने का स्तर भी ऊँचा होता है।
  • राष्ट्र का शक्तिशाली होना बचत के द्वारा देश के आर्थिक विकास को (UPBoardSolutions.com) गति मिलती है। इससे देश की राजनीतिक व सैनिक शक्ति में वृद्धि होती है। वर्तमान में आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न देश को शक्तिशाली राष्ट्र माना जाता है। आर्थिक दृष्टिकोण से देश की रक्षा-शक्ति भी बढ़ती है।

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 25 पूँजी

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 25 पूँजी are the part of UP Board Solutions for Class 10 Commerce. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 25 पूँजी.

Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 25
Chapter Name पूँजी
Number of Questions Solved 28
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 25 पूँजी

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
सम्पत्ति का जो भाग उत्पादन में लगाया जाता है, उसे कहते हैं (2012)
(a) बचत
(b) संचय
(C) पूँजी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) पूँजी

प्रश्न 2.
पूँजी उत्पत्ति का :साधन होती है।
(a) सक्रिय
(b) अनिवार्य
(C) गतिशील
(d) अनुत्पादक
उत्तर:
(c) गतिशील

प्रश्न 3.
पूँजी में शुद्ध लाभ दिखाया जाता है।
(a) जोड़कर
(b) घटाकर
(c) जोड़कर या घटाकर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) जोड़कर

प्रश्न 4.
पूँजी संचय के लिए ……… आवश्यक है।
(a) बचत
(b) संचय बाजारे
(C) व्यय
(d) ये सभी
उत्तर:
(b) संचय बाजार

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निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक )

प्रश्न 1.
क्या समस्त धन पूँजी है? (2017)
उत्तर:
नहीं

प्रश्न 2.
समस्त सम्पत्ति पूँजी है/नहीं है।
उत्तर:
पूँजी नहीं है।

प्रश्न 3.
गड़ा हुआ धन पूँजी है/नहीं है।
उत्तर:
नहीं है।

प्रश्न 4.
पूँजी उत्पादन का सक्रिय/निष्क्रिय साधन है।
उत्तर:
निष्क्रिय साधन है।

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प्रश्न 5.
पूँजी सदैव उत्पादक होती है/नहीं होती है।
उत्तर:
उत्पादक होती है।

प्रश्न 6.
पूँजी नाशवान/अविनाशी होती है। (2010)
उत्तर:
नाशवान होती है।

प्रश्न 7.
पूँजी गतिशील/अगतिशील होती है।
उत्तर:
गतिशील होती है।

प्रश्न 8.
पूँजी उत्पादन का अनिवार्य/गौण साधन है।
उत्तर:
अनिवार्य साधन है।

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प्रश्न 9.
पूँजी का निर्माण व्यय/बचत पर निर्भर करता है।
उत्तर:
बचत पर निर्भर करता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
प्रो. टॉमस द्वारा दी गई पूँजी की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
प्रो. टॉमस के अनुसार, “पूँजी, भूमि को छोड़कर, व्यक्ति और समाज की सम्पत्ति का वह भाग है, जिसका प्रयोग और अधिक धन उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।”

प्रश्न 2.
उत्पादन के साधन के रूप में पूँजी की चार विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2016)
उत्तर:
उत्पादन के साधन के रूप में पूजी की चार विशेषताएँ निम्नलिखित

  1. पूँजी उत्पत्ति का निष्क्रिय साधन होती है। सम्पत्ति का वह भाग, जो उत्पादन के कार्य में सहयोग देता है, पूँजी कहलाता है।
  2. पूँजी मानव-निर्मित साधन है। यह मानव (UPBoardSolutions.com) द्वारा संचित किए गए श्रम का परिणाम होती है।
  3. पूँजी का प्रयोग करके अधिक मात्रा में उत्पादन किया जा सकता है। अत: पूँजी में उत्पादकता होती है।
  4. पूँजी को शीघ्र नष्ट नहीं किया जा सकता है। यह नाशवान प्रकृति की होती है।

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प्रश्न 3.
पूँजी की कार्यक्षमता का अर्थ बताइए। इसे प्रभावित करने वाले तीन घटक लिखिए।
उत्तर:
पूँजी की कार्यक्षमता (Efficiency of Capital) से आशय न्यूनतम पूँजी के उपयोग से अधिकतम तथा उच्च-स्तर के माल का निर्माण करना है। पूंजी की कार्यक्षमता को निम्न घटक प्रभावित करते हैं

  1. देश में शान्ति एवं सुरक्षा की स्थिति पूँजी की कार्यक्षमता को बढ़ाती है।
  2. किसी उत्पादन कार्य को करने के लिए लगाई गई पूँजी की मात्रा पर्याप्त होनी चाहिए।
  3. उत्पादन की अच्छी व आधुनिक व्यवस्था पूँजी की कार्यक्षमता को बढ़ाती है।

प्रश्न 4.
उत्पादन तथा उपभोग पूँजी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2014)
उत्तर:
जिन वस्तुओं का प्रयोग उत्पादन कार्य में प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है, उन्हें उत्पादन पूँजी में सम्मिलित किया जाता है; जैसे-कच्चा माल, औजार, आदि तथा जिस पूँजी का प्रयोग मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के लिए किया जाता है, (UPBoardSolutions.com) उसे उपभोग पूँजी कहते हैं; जैसे-भोजन, वस्त्र, आदि पर किया गया व्यय।

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लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
पूँजी क्या है? सम्पत्ति व पूँजी में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2008)
उत्तर:
पूँजी से आशय साधारण बोलचाल में, पूँजी (Capital) का अर्थ ‘रुपये-पैसे’ या ‘धन-सम्पत्ति’ से लगाया जाता है। अर्थशास्त्र में मनुष्य द्वारा उत्पादित धन के उस भाग को पूँजी कहते हैं, जो अधिक धन उत्पादन के लिए। प्रयुक्त किया जाता है।

सम्पत्ति व पूँजी में अन्तर

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 25 पूँजी

प्रश्न 2.
पूँजी की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पूँजी की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. पूँजी उत्पत्ति का निष्क्रिय साधन है भूमि की तरह पूँजी भी स्वयं उत्पादन करने में सक्षम नहीं होती है। पूँजी श्रम के सहयोग से ही उत्पादन क्रिया में भागीदार बनती है।

2. पूँजी मानव-निर्मित साधन है पूँजी उत्पादन का मानव-निर्मित साधन है। पूँजी का संचय बचत के साधन से होता है। बचत मनुष्यों द्वारा की जाती है। अतः यह संचित श्रम का परिणाम होती है।

3. पूँजी में उत्पादकता होती है पूँजी उत्पादक होती है। पूँजी का प्रयोग करके श्रमिक अधिक मात्रा में उत्पादन कर सकता है। उद्योगपतियों द्वारा पूँजी की उत्पादकता के कारण ही इसकी माँग की जाती है।

4. पूँजी नाशवान है भूमि के समान पूँजी भी उत्पादन का स्थायी साधन नहीं है। मशीन, औजार, इत्यादि निरन्तर प्रयोग के कारण नष्ट हो जाते हैं। अत: इसे नई पूँजी से प्रतिस्थापित किया जा सकता है।

5. पूँजी की पूर्ति में शीघ्र परिवर्तन सम्भव है पूँजी की पूर्ति में शीघ्र परिवर्तन किया जा (UPBoardSolutions.com) सकता है। व्यक्तिगत व सामाजिक बचतों में वृद्धि करके पूँजी की पूर्ति को शीघ्र बढ़ाया जा सकता है।

6. पूँजी अत्यन्त गतिशील होती है पूँजी को सरलता से एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाया व ले जाया जा सकता है।

7. पूँजी उत्पादन का महत्त्वपूर्ण व अनिवार्य साधन है प्रत्येक उत्पादन कार्य के लिए पूँजी की आवश्यकता होती है। जितने बड़े स्तर पर उत्पादन होता है, उतनी ही अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है।

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8. पूँजी बचत का परिणाम है मानव अपने द्वारा कमाए गए पूरे धन को व्यय नहीं करता, वरन् कुछ धन को बचाकर रखता है। इस बचत को मानव द्वारा विनियोग किया जाता है तथा इनसे पूँजी का निर्माण होता है।

9. पूँजी आय का स्रोत मानी जाती है पूँजी का संचय या बचत इसलिए की जाती है, ताकि भविष्य में उससे और अधिक आय प्राप्त हो सके।

10. पूँजी अस्थायी होती है पूँजी को समय-समय पर पुनरुत्पादित करना पड़ता है।

प्रश्न 3.
श्रम व पूँजी में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2008)
उत्तर:
श्रम और पूँजी में अन्तर

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 25 पूँजी

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
पूँजी क्यों है? व्यवसाय में पूँजी के महत्त्व का वर्णन कीजिए। (2012, 10)
अथवा
उत्पादन के साधन के रूप में पूँजी के महत्त्व पर प्रकाश डालिए। (2007, 06)
अथवा
पूँजी क्या है? अन्य उत्पादन के साधनों की तुलना में पूँजी अधिक महत्त्वपूर्ण है। विवेचना कीजिए। (2006)
उत्तर:
पूँजी से आशय साधारण बोलचाल में, पूँजी का अर्थ ‘रुपये-पैसे’ या ‘धन-सम्पत्ति से लगाया जाता है। अर्थशास्त्र में मनुष्य द्वारा उत्पादित धन के उस भाग को पूँजी कहते हैं, जो अधिक धन उत्पादन के लिए प्रयुक्त किया जाता है। सामान्यतः ‘पूँजी’ शब्द का अर्थ धन, (UPBoardSolutions.com) द्रव्य या सम्पत्ति से लगाया जा सकता है। प्रो. मार्शल के अनुसार, “प्रकृति की नि:शुल्क देन के अतिरिक्त वह सब सम्पत्ति, जिससे आय प्राप्त होती है, पूँजी कहलाती है।”

प्रो. चैपमैन के अनुसार, “पूँजी वह धन है, जिससे आय प्राप्त होती है अथवा जो आय का उत्पादन करने में सहायक होती है।” प्रो. टॉमस के अनुसार, “पूँजी, भूमि को छोड़कर, व्यक्ति और समाज की सम्पत्ति का वह भाग है, जिसका प्रयोग और अधिक धन उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।” एडम स्मिथ के अनुसार, “पूँजी, किसी मनुष्य के भण्डार का वह भाग है, जिससे वह आय प्राप्त करने की आशा करता है।”

पूँजी के कार्य एवं महत्त्व वर्तमान में पूँजी का अत्यधिक महत्त्व है। इसकी सहायता से ही बड़े पैमाने पर उत्पादन यातायात व संचार के साधनों का विकास, उच्च जीवन-स्तर, देश को आर्थिक विकास, नई मशीनों व यन्त्रों का निर्माण, आदि किया जा सकता है। इससे राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होती है।

अन्य साधनों की तुलना में पूंजी के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है

1. बिक्री की व्यवस्था करना उत्पादक को अपनी वस्तुएँ बेचने के लिए विज्ञापन के विभिन्न साधनों का सहारा लेना पड़ता है; जैसे-रेडियो, टेलीफोन, समाचार-पत्र या पत्रिकाएँ, टेलीविजन, आदि। इन सभी प्रकार के विज्ञापनों के लिए पूँजी की आवश्यकता होती है।

2. उत्पादन में निरन्तरता बनाए रखना पर्याप्त पूँजी के उपलब्ध होने पर उत्पादन लगातार चलता रहता है। अतः उत्पादन की निरन्तरता में पूँजी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

3. जीवन-निर्वाह की व्यवस्था करना पूँजी के द्वारा ही श्रमिकों को भोजन, कपड़ा व आवासीय सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं। श्रमिक अपने जीवन का निर्वाह पूँजी के माध्यम से ही करता है। मजदूरी के लिए पूँजी की आवश्यकता होती है।

4. कच्चे माल की व्यवस्था करना पूँजी के द्वारा ही उद्योग को संचालित करने के लिए कच्चा माल, कोयला, लोहा, बिजली, आदि की व्यवस्था करनी पड़ती है। अतः पूँजी का कच्चे माल की व्यवस्था करने में अत्यन्त महत्त्व होता है।

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5. देश के आर्थिक विकास में सहायक पूँजी की पर्याप्त मात्रा होने से उत्पादन शक्ति (UPBoardSolutions.com) में वृद्धि होती है, जिससे प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है। अतः पूँजी राष्ट्र के आर्थिक विकास में सहायक होती है।

6. मशीन, यन्त्र, आदि की व्यवस्था करना पूँजी के द्वारा ही आधुनिक मशीनों व यन्त्रों को खरीदा जा सकता है।

7. श्रम की उत्पादकता में वृद्धि करना श्रम की उत्पादकता बढ़ाने में पूँजी को महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। पूँजी के द्वारा क्रय किए गए यन्त्रों एवं औजारों के प्रयोग से श्रमिक की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।

8. साख की व्यवस्था करना वर्तमान युग साख का युग है। आजकल उद्योग व व्यापार के क्षेत्र में हर जगह उधार लेन-देन की आवश्यकता होती है। व्यापारियों में अधिकांश लेन-देन उधार ही होते हैं। पूँजी के बल पर ही सभी उधार लेन-देन किए जाते हैं। पूँजी निर्माण से ही साख निर्माण होता है।

9. प्राकृतिक संसाधनों के उचित उपयोग में सहायक पूँजी के द्वारा ही किसी राष्ट्र के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जा सकता है; जैसे–सिंचाई सुविधाओं का विस्तार, खनिज उद्योग का विस्तार, आदि पूँजी के द्वारा ही सम्भव होते हैं।

10. आर्थिक ढाँचे को सुदृढ़ बनाने में सहायक पूँजी के द्वारा ही किसी देश की ऊर्जा के स्रोतों; जैसे-बिजली, पेट्रोलियम, अणु शक्ति, जल शक्ति, आदि का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है। पूँजी से परिवहन व संचार के साधनों का भी विकास किया जा सकता है। अतः पूँजी किसी राष्ट्र के आर्थिक ढाँचे को मजबूत बनाने में सहायक होती है।

प्रश्न 2.
पूँजी निर्माण से आप क्या समझते हैं? यह किन तत्त्वों पर निर्भर है? (2016)
अथवा
पूँजी संचय क्या है? पूँजी संचय के प्रमुख तत्त्वों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
पूँजी निर्माण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पूँजी निर्माण से आशय पूँजी संचय या निर्माण (Accumulation of Capital) बचत के द्वारा ही किया जाता है। बचत आय के उस भाग को कहा जाता है, जिसे भविष्य की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के लिए बचाकर रखा जाता है। बचत का वह भाग, (UPBoardSolutions.com) जिसका प्रयोग और अधिक धन-उत्पादन के लिए किया जाता है, उसे पूँजी कहा जाता है। पूँजी संचय का निर्माण बचतों को

संग्रह करके किया जाता है। पूँजी संचय के लिए निम्नलिखित दो बातें महत्त्वपूर्ण हैं

  1. धन की बचत
  2. उत्पादन कार्य में निवेश करना

पूँजी संचय को प्रभावित करने वाले तत्त्व पूँजी संचय के निम्नलिखित तीन प्रमुख तत्त्व या आधार हैं

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1. संचय करने की शक्ति मनुष्य द्वारा बचत को संचय करने की शक्ति निम्नलिखित तत्त्वों पर निर्भर करती है

  • धन का वितरण देश में धन को समान वितरण होने से पूँजी संचय किया जा सकता है।
  • प्राकृतिक साधन प्राकृतिक साधनों की पर्याप्त मात्रा होने पर आय बढ़ती है और आय बढ़ने पर बचत भी की जा सकती है।
  • आर्थिक विकास की स्थिति किसी राष्ट्र को आर्थिक विकास अधिक होने पर उसकी राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि होती है, फलस्वरूप पूँजी संचय का निर्माण होता है।
  • व्यय करने की सूझ-बूझ पूँजी संचय करने के लिए व्यय सूझ-बूझ व सोच-समझकर करना चाहिए।
  • आय की मात्रा बचत किसी व्यक्ति की आय पर निर्भर करती है। जिस व्यक्ति की जितनी अधिक आय होगी, वह उतनी ही ज्यादा बचत करेगा।

2. संचय करने की इच्छा पूँजी संचय करने की इच्छा निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है|

  • सामाजिक प्रतिष्ठा की इच्छा समाज में प्रतिष्ठा व सम्मान प्राप्त करने के लिए पूँजी संचय किया जाता है, इससे मनुष्य को समाज में सम्मान मिलता है।
  • दूरदर्शिता मनुष्य भविष्य में होने वाले कार्यों; जैसे-बच्चों की शिक्षा, (UPBoardSolutions.com) बीमारी, लड़कियों का विवाह, बेरोजगारी, आदि के लिए भी पूँजी संचय करता है।
  • पारिवारिक प्रेम मनुष्य अपने परिवार की सभी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए या उन्हें सुखी रखने के लिए पूँजी संचय करता है।
  • धार्मिक प्रवृत्ति मनुष्य धार्मिक प्रवृत्ति के लिए; जैसे–मन्दिर, धर्मशाला, गौशाला, आदि में दान करने के लिए पूँजी संचय करता है।
  • सामाजिक सुरक्षा पूँजी संचय से सामाजिक सुरक्षा प्राप्त हो जाती है।

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3. संचय करने की सुविधाएँ पूँजी संचय के लिए निम्नलिखित सुविधाएँ होना आवश्यक है

  • व्यापारियों या उद्योगपतियों की योग्यता कुशल व योग्य व्यापारियों द्वारा व्यवसाय संचालन करने पर अधिक मात्रा में पूँजी संचय किया जा सकता है।
  • शान्ति व सुरक्षा देश में शान्ति व सुरक्षा की व्यवस्था स्थापित करने के लिए पूँजी संचय करना चाहिए।
  • मूल्यों में स्थिरता देश में मुद्रा के मूल्य में स्थायित्व रखने पर भी पूँजी संचय किया जा सकता है।
  • पूँजी-विनियोग की सुविधाएँ धन जमा कराने की संस्थाएँ; जैसे-डाकखाने, बैंक या बीमा (UPBoardSolutions.com) कम्पनियों की अधिक मात्रा में स्थापना करने पर पूँजी संचय अधिक मात्रा में किया जा सकता है।

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