UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi राष्ट्रीय भावनापरक निबन्ध

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Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Name राष्ट्रीय भावनापरक निबन्ध
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi राष्ट्रीय भावनापरक निबन्ध

राष्ट्रीय एकता

सम्बद्ध शीर्षक

  • राष्ट्रीय एकीकरण और उसके मार्ग की बाधाएँ
  • राष्ट्रीय एकता और अखण्डता
  • राष्ट्रीय एकता के पोषक तत्त्व
  • वर्तमान परिवेश में राष्ट्रीय एकता का स्वरूप
  • राष्ट्रीय एकता एवं सुरक्षा

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देश की प्रगति में विद्यार्थियों की भूमिका

सम्बद्ध शीर्षक

  • राष्ट्र निर्माण में युवा-शक्ति का योगदान
  • राष्ट्रीय विकास एवं युवा-शक्ति
  • वर्तमान युवा : दशा और दिशा
  • छात्र जीवन तथा राष्ट्रीय दायित्व.
  • छात्र-संघों का गठन : वरदान या अभिशाप
  • समय नियोजन और विद्यार्थी जीवन
  • भारत की सुरक्षा और युवा पीढ़ी

प्रमुख विचार-बिन्दु–

  1. प्रस्तावना,
  2. विद्यार्थी जीवन का महत्त्व,
  3. कुप्रथाओं का उन्मूलन एवं ग्रामोत्थान,
  4. शहरी सभ्यताओं का मोह-त्याग,
  5. भ्रष्टाचार व दुराचार का उन्मूलन,
  6. काले धन की समाप्ति हेतु प्रयास,
  7. चरित्र-निर्माण से ही देश की उन्नति सम्भव,
  8. उपसंहारी

प्रस्तावना-विद्यार्थी राष्ट्र का भावी नेता और शासक है। देश की उन्नति और भावी विकास का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व उसके सबल कन्धों पर आने वाला है। वास्तव में राष्ट्र की उन्नति और प्रगति के लिए वह मुख्य धुरी का काम कर सकता है। जिस देश का विद्यार्थी सतत जागरूक, सतर्क और सावधान होता है वह देश प्रगति की दौड़ में कभी पीछे नहीं रह सकता। विद्यार्थी एक नवजीवन का सशक्त संवाहक होता है। उसमें रूढ़ियों और परम्पराओं के अटकाव नहीं होते, पूर्वाग्रह से उसकी दृष्टि धूमिल नहीं होती, वरन् वह नये विचारों एवं योजनाओं को क्रियान्वित करने की भरपूर क्षमता से ओतप्रोत होता है।

विद्यार्थी जीवन का महत्त्व-बिद्यार्थी शब्द की संरचना है-‘तिद्या + अर्थी’ अर्थात् जो विसर्जन में सदा संलग्न रहने वाला हो। विद्या प्राप्त करने के लिए परिश्रम और लगन की आवश्यकता होती है। जिस विद्यार्थी को विद्योपार्जन की सच्ची लालसा हो, उसे सभी सुख-सुविधाओं का त्याग करना पड़ता है। चाणक्य ने ठीक ही कहा है, “सुख चाहने वाले को विद्या कहाँ और विद्या चाहने वाले को सुख कहाँ ? सुख चाहने वाला विद्या को छोड़ दे और विद्या चाहने वाला सुख छोड़ दे।” विद्यार्थी के जीवन में आत्म-संयम, इन्द्रिय-निग्रह, सद्-असद् का विवेक, दया, प्रेम, क्षमा, औदार्य, परोपकार आदि सद्गुण होने चाहिए। शास्त्रों में आदर्श विद्यार्थी को एकाग्रचित्त, सजग, चुस्त, कम भोजन करने वाला और चरित्रसम्पन्न बताया गया है–

काकचेष्टा वकोध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च।
अल्पाहारी सदाचारी विद्यार्थी पञ्चलक्षणम् ॥

अर्थात् विद्यार्थी कौवे के समान चेष्टा वाला, बगुले के समान ध्यान वाला, कुत्ते के समान नींद वाला, भूख से कम भोजन करने वाला और सदाचार का पालन करने वाला होता है। इसके साथ विद्यार्थी में नम्रतो, अनुशासन, परिश्रम, संयम और अनासक्ति भाव होना चाहिए।

उपर्युक्त गुणों से युक्त विद्यार्थियों को कला, साहित्य, चिकित्सा, अभियान्त्रिकी आदि का पूर्ण अध्ययन-अभ्यास.करके अपने विषय का विशेषज्ञ बनना चाहिए। एक अच्छा साहित्यिक विद्यार्थी सत् साहित्य का सृजन कर देशवासियों में देशभक्ति की भावना उजागर कर सकता है। देश की एकता व संगठन की भावना को सबल बनाकर भावात्मक एकता को पुष्ट कर सकता है। एक सच्चा चिकित्सक देश को स्वस्थ व नीरोग बनाने के लिए अपनी सेवाएँ समर्पित कर सकता है। एक सच्चा अभियन्ता राष्ट्र-निर्माण के अनेक कार्यों को निष्ठापूर्वक सम्पन्न कर देश की महान् सेवा कर सकता है।

कुप्रथाओं का उन्मूलन एवं ग्रामोत्थान-आज देश में कई अन्धविश्वास, रूढ़ियाँ तथा कुप्रथाएँ प्रचलित हैं। इससे देश की यथोचित प्रगति नहीं हो पा रही है। विद्यार्थियों को इन रूढ़ियों और कुप्रथाओं के उन्मूलन के लिए बीड़ा उठाना होगा। आज भी गाँवों में बाल-विवाह, अशिक्षा व अज्ञान का बोलबाला है। गाँव के लोग ऋणग्रस्त और शोषण के शिकार हैं। भारत की अधिकांश जनता गाँवों में रहती है; अतः जब तक ग्रामोत्थान का बिगुल नहीं बजाया जाता, तब तक भारत प्रगति नहीं कर सकता। विद्यार्थियों को गाँवों में जाकर साक्षरता, सहकारिता आदि कार्यक्रम चलाने में सहयोग करना चाहिए। गाँवों में लघु और कुटीर उद्योगों के प्रचलन के लिए प्रयत्न करना चाहिए। पशुधन व गोपालन को लोकप्रिय बनाना चाहिए। इसके लिए डेयरी उद्योग, कपड़ा बुन्ना, मधुमक्खी-पालन आदि का महत्त्व ग्रामीण भाइयों को समझाकर उनके विकास के लिए प्रोत्साहित कर इस कार्य में मार्गदर्शन किया जा सकता है। विद्यार्थियों को ग्रामोत्थान की ओर आकर्षित करने के लिए उन्हें आवश्यक रूप से वहाँ कुछ सुविधाएँ; जैसे—आवागमन के साधन, विद्युत उपकरण, सरकारी अनुदान आदि उपलब्ध कराने चाहिए। साथ ही उन्हें पर्याप्त प्रशंसा, प्रोत्साहन व सम्मान भी देना चाहिए, अन्यथा यह केवल एक आदर्श स्वप्न बनकर ही रह जाएगा।

‘शहरी, सभ्यताओं का मोह-त्याग-आज के अधिकांश शिक्षित व्यक्ति, शिक्षक, चिकित्सक, अभियन्ता गाँवों में सेवा देने से कतराते हैं। यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है। युवाओं को शहरी जीवन की सुख-सुविधाओं को त्यागकर देश की प्रगति और उत्थान को लक्ष्य में रखकर काम करना है।

भ्रष्टाचार व दुराचार का उन्मूलन–आज देश में सर्वत्र भ्रष्टाचार व्याप्त है। एक साधारण चपरासी से लेकर बड़ा अफसर, कर्मचारी, नेता तथा मन्त्री सभी इसमें लिप्त हैं। कोई भी कार्य रिश्वत के बिना नहीं चलता। पुलिस व न्यायालय-कर्मचारी खुले रूप में रिश्वत माँगते हैं। रक्षक ही भक्षक बन गये हैं। व्यापारी वर्ग भी खाद्य-पदार्थों में मिलावट करते हैं। मुनाफाखोरी की प्रवृत्ति बढ़ गयी है। इस भ्रष्टाचार से लड़ना कोई सामान्य बात नहीं है। इसके लिए निर्भीक विद्यार्थियों को आगे आकर इस भ्रष्टाचाररूपी दानव से लड़ना होगा। जब तक देश से भ्रष्टाचार दूर नहीं होगा, देश की प्रगति होना मुमकिन नहीं है। इसके लिए विद्यार्थियों को सूझ-बूझ, धैर्य और साहस के साथ संघर्ष करने के लिए तत्पर होना होगा। “

देश में दुराचार की विभीषिका भी बढ़ती जा रही है। लूटपाट, हत्याएँ और बलात्कार की घटनाओं से । समाचार-पत्रों के पृष्ठ के पृष्ठ रँगे रहते हैं। प्रजातन्त्र की व्याख्या करते हुए कहा जाता है कि प्रजा द्वारा प्रजा के लिए प्रजा का शासन, किन्तु लगता है कि देश में प्रचलित शासन-व्यवस्था भले और ईमानदार आदमियों के हाथों में न रहकर भ्रष्ट, बदमाश, सफेदपोश लोगों के हाथों में चली गयी है। इस विषम काल में हर आदमी सन्त्रस्त और दु:खी है। इससे लोहा लेने के लिए विद्यार्थी वर्ग ही तत्पर हो सकता है। स्वच्छ और सुन्दर प्रशासन के लिए नि:स्वार्थ सेवाभाव रखने वाले और कार्यकुशल व्यक्तियों की आवश्यकता है। इस अभाव की पूर्ति विद्यार्थी वर्ग ही कर सकता है। उसे इस महामारी से लड़कर इसका उन्मूलन करना होगा, तब ही देश को प्रगति की राह पर आगे बढ़ाया जा सकता है।

काले धन की समाप्ति हेतु प्रयास-काला धन अथवा काला बाजाररूपी महादानव भी बड़ा शक्तिशाली, दुर्धर्ष और महा भयंकर है। आज काले धन वालों की समानान्तर सरकार शासन-सत्ता को दबोचे हुए है। करोड़ों की हेरा-फेरी करने वाले आबाद हो रहे हैं। उनको कोई आँख नहीं दिखा सकता। दो रुपये की चोरी करने वालों पर कहर बरसाया जाता है। महँगाई हनुमान जी की पूँछ की तरह बढ़ती जा रही है। ईमानदारीरूपी सोने की लंका जलती जा रही है। ऐसी विकराल परिस्थिति में सबकी बुद्धि पर पत्थर पड़ गये हैं। जनता किसी ऐसे सहयोग व नेतृत्व की आकांक्षा रखती है, जो इस विषम स्थिति से देश की रक्षा कर सके। इससे लोहा लेने के लिए भी विद्यार्थी वर्ग ही तत्पर हो सकता है।

चरित्र-निर्माण से ही देश की उन्नति सम्भव-बड़े-बड़े कल-कारखाने खोलने से तथा बड़े-बड़े बाँध बनाने से राष्ट सच्चे अर्थों में विकास नहीं कर सकता। हमें आने वाली पीढ़ियों के चरित्र-निर्माण की ओर विशेष ध्यान देना है। चरित्र-निर्माण ही शिक्षा का मुख्य व पवित्र उद्देश्य होना चाहिए। जिस देश में चरित्रवान् लोग रहते हैं, उस देश का सिर गौरव से सदा ऊँचा रहता है। आज के विद्यार्थी को राष्ट्र-भक्ति की भावना से भी ओत-प्रोत होना चाहिए। उसे स्वयं को राष्ट्रीय गौरव का आभूषण बनाये रखना चाहिए। उसे कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए, जिससे देश की मान-मर्यादा को ठेस पहुँचती हो। राष्ट्र-निर्माण ही उसका लक्ष्य होना चाहिए। अपने जीवन के उत्थान के लिए उसे भौतिकता की ओर उन्मुख न होकर आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख होना चाहिए। इतिहास भी इस बात का साक्षी है कि विश्व के किसी भी क्षेत्र में भौतिक शक्ति आध्यात्मिक शक्ति के सम्मुख ठहर नहीं सकी है।

उपसंहार–किसी देश की वास्तविक उन्नति उसके परिश्रमी, लगनशील, पुरुषार्थी और चरित्रवान् पुरुषों से ही सम्भव है। भारत के विद्यार्थी भी चरित्रशील बनकर देश में वर्तमान में व्याप्त सभी बुराइयों का उन्मूलन कर देश की प्रगति में सच्चा योगदान कर सकते हैं। आज का विद्यार्थी वर्ग राजनैतिक पार्टियों के चक्कर में उलझकर अपने भविष्य को अन्धकारमय बना रहा है। घटिया किस्म के नेता इनके द्वारा अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में आज के विद्यार्थी को इन सबसे अलग रहकर अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। उसकी भावना राष्ट्र को उन्नति की ओर अग्रसर करने की होनी चाहिए। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने ‘द्वापर’ काव्य में युवा-शक्ति का आह्वान करते हुए लिखा है

रखते हो तो दिखलाओ कुछ आभा, उगते तारे,
आओ तेज, साहस के दुर्लभ दिन हैं यही हमारे।
X                          X                              X
एक एक, सौ सौ अन्यायी कंसों को ललकारो।
अपनी पुण्यभूमि पर धन-जीवन सब वारो॥

स्वदेश-प्रेम

सम्बद्ध शीर्षक

  • जननीजन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

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फाँसी के फन्दे को चूम लिया। ऐसे ही वीरों के बलिदान को ध्यान में रखकर कवि ने कहा है

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यदि मैं शिक्षामन्त्री होता

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi पत्रों के प्रकार या भेद

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Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Name पत्रों के प्रकार या भेद
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi पत्रों के प्रकार या भेद

कौन, किसको, किस विषय पर, किन परिस्थितियों में पत्र लिख रहा है, इस आधार पर पत्रों के अनेक भेद होते हैं, जिनमें से मुख्य इस प्रकार हैं—

(1) निजी/व्यक्तिगत/घरेलू या पारिवारिक पत्र—परिवार के विभिन्न सदस्यों, निकट सम्बन्धियों या घनिष्ठ मित्रों को भिन्न-भिन्न उद्देश्यों से विभिन्न अवसरों पर लिखे जाने वाले पत्र इस वर्ग में आते हैं।
(2) सामाजिक पत्र—निमन्त्रण-पत्र, बधाई-पत्र, शोक-पत्र, सान्त्वना-पत्र, परिचय-पत्र, संस्तुति-पत्र, आभार या धन्यवाद-पत्र आदि प्रायः सामाजिक सम्बन्धों के कारण लिखे जाते हैं; अतः ये सामाजिक पत्रों की श्रेणी में आते हैं।
(3) व्यापारिक या व्यावसायिक पत्र—विभिन्न व्यापारिक या औद्योगिक संस्थानों के पारस्परिक पत्र, व्यापारिक संस्थाओं की ओर से समाज के किसी व्यक्ति को और समाज के किसी व्यक्ति की ओर से व्यावसायिक संस्थाओं को लिखे गये उद्योग-व्यापार सम्बन्धी पत्र इसी श्रेणी में आते हैं।
(4) सरकारी शासकीय/प्रशासकीय या आधिकारिक पत्र–इस वर्ग में विभिन्न सरकारी कार्यालयों के पत्र आते हैं, जिनके दशाधिक उपभेद हैं।
(5) आवेदन-पत्र—किसी विशेष उद्देश्य से लिखे गये प्रार्थना-पत्र आवेदन-पत्र (Application) कहलाते हैं। प्रवेश लेने, शुल्क मुक्ति कराने, विद्यालय छोड़ने के कारण अपनी धरोहर-राशि वापस माँगने, चरित्र प्रमाणपत्र आदि लेने के लिए विद्यार्थियों द्वारा प्राचार्य को आवेदन-पत्र लिखे जाते हैं। कहीं भी नौकरी/पदोन्नति पाने, अवकाश माँगने या बैंक/बीमा निगम आदि से ऋण लेने के लिए भी आवेदन करना पड़ता है। इस प्रकार आवेदन की आवश्यकता के अनुसार इसके अनेक उपभेद भी होते हैं।
(6) शिकायती-पत्र—किसी व्यक्तिगत या सामाजिक समस्या के लिए हमें अनेक बार सम्बन्धित अधिकारियों को शिकायती पत्र लिखने पड़ते हैं।
(7) सम्पादक के नाम पत्र—वर्तमान युग में समाचार-पत्रों की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है। समस्याओं के उचित समाधान के लिए समाचार-पत्र के माध्यम से आवाज उठाना विशेष प्रभावकारी होता है; अत: समाज की विभिन्न समस्याओं के लिए सम्पादक के नाम पत्र लिखना एक विशेष कला है। सभी दैनिक समाचार-पत्रों में विभिन्न शीर्षकों से सम्पादक के नाम पत्र छपते हैं, जिससे उच्चाधिकारियों तक बात पहुँचती है और समाधान शीघ्र हो जाता है।
(8) विविध पत्र—उपर्युक्त श्रेणियों के अतिरिक्त जो पत्रे बचते हैं, उन्हें इसी वर्ग में रखा जाता है।

अच्छे पत्र के गुण

(1) सरलता—पत्र की भाषा सरल व सुबोध होनी चाहिए। जिस प्रकार सरल और निष्कपट व्यक्ति के व्यवहार का बहुत असर होता है, उसी प्रकार सरल, सुबोध पत्र भी पाठक के मन पर अत्यधिक प्रभाव डालते हैं।
(2) स्पष्टता—पत्र में अपनी बात स्पष्ट तथा विनम्रता से कहनी चाहिए, जिससे पाने वाला उसका आशय सही-सही समझ सके।
(3) संक्षिप्तता—जहाँ तक हो पत्र संक्षेप में लिखना चाहिए, पत्र में कोई ऐसी बात नहीं लिखनी चाहिए, जिससे पत्र पढ़ने में रुचि ही न रहे।
(4) शिष्टाचार—पत्रलेखक और पाने वाले के बीच में कोई-न-कोई सम्बन्ध तो होता ही है। आय और पद में बड़े व्यक्तियों को आदरपूर्वक, मित्रों को सौहार्दपूर्वक और छोटों को स्नेहपूर्वक लिखना चाहिए।
(5) केन्द्र में मुख्य विषय—औपचारिक अभिवादन के बाद सीधे मुख्य विषय पर आ जाना चाहिए।

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi छन्द

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Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 3
Chapter Name छन्द
Number of Questions 3
Category UP Board Solutions

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4. कुण्डलिया
लक्षण (परिभाषा)-कुण्डलिया एक विषम मात्रिक छन्द है जो छ: चरणों का होता है। दोहे और रोले को क्रम से मिलाने पर कुण्डलिया बन जाता है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। प्रथम चरण के प्रथम शब्द की अन्तिम चरण के अन्तिम शब्द के रूप में तथा द्वितीय चरण के अन्तिम अर्द्ध-चरण की तृतीय चरण के प्रारम्भिक अर्द्ध-चरण के रूप में आवृत्ति होती है; यथा—

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नीचे लिखे पद्यों में निहित छन्द का नाम और परिभाषा (लक्षण) लिखिए
(क) बरबस लिये उठाइ उर, लायहु कृपानिधान ।
भरत राम को मिलनि लखि, बिसरे सबहि अपान ||
(ख) अब मया दिस्टि करि, नाह निठुर! घर आउ ।
मंदिर, ऊजर होत है, नव कै आड़ बसाउ ।।
(ग) नील सरोरुह स्याम, तरुन अरुन बारिज नयन |
करउ सो मम उर धाम, सदा छीर सागर सयन ।।
(घ) राम नाम मनि दीप धरि, जीह देहरी द्वार।।
तुलसी भीतर बाहिरौ, जो चाहसि उजियार ।।
(ङ) मंगल सगुन होहिं सब काहू। फरकहिं सुखद बिलोचन बाहू ।।
भरतहिं सहित समाज उछाहू। मिलिहहिं रामु मिटहि दुख दाह ।।
(च) निरखि सिद्ध साधक अनुरागे। सहज सनेह सराहन लागे ।।
होत न भूतल भाउ भरत को। अचर सचर चर अचर करत को ।।
(छ) राम सैल सोभा निरखि, भरत हुदन अति प्रेम् ।।
तापस तप फलु पाह जिमि, सुखी सिख नेम् ।।
(ज) सकल मलिन मन दीन दुखारी ।।
देखीं सानु आन अनुसारी ।।
(झ) समुझि मातु करजब सकुचाही। करत कुतरक कोटि मन माही।
रामु लखनु सिय सुनि मन जाऊँ। उठि जनि अनत जाहिं ताजिठाऊँ।।
(ञ) मंगल भवन अमंगलहारी। उमा सहित जेहिं जपत पुरारी ।।
उत्तर:
(क) दोहा
(ख) दोहा
(ग) सोरठा
(घ) दोहा
(ङ) चौपाई
(च) चौपाई
(छ) दोहा
(ज) चौपाई
(झ) चौपाई
(ज) चौपाई।
[संकेत–छन्दों की परिभाषा (लक्षण) के लिए ‘छन्द’ प्रकरण के अन्तर्गत सम्बन्धित छन्द का अध्ययन करें।]

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन-सा छन्द है ? मात्राओं की गणना करके अपने कथन की पुष्टि कीजिए- :
(i) नील सरोरुह स्याम, तरुन अरुन वारिज नयन |
करहु सो मम उर धाम, सदाछीर सागर सयन ||
(ii) जून होत जग जनम भरत को। सकल धरम धुर धरनि धरत को।
(iii) मो सम दीन न दीन हित, तुम समान रघुवीर ।
अस बिचारि रघुबंस मनि, हरहु बिषम भवभीर ।।
(iv) यह वर माँगउ कृपा निकेता
बसहुँ हृदय श्री अनुज समेता ।।
(v) मंत्री गुरु अरु बैद जो, प्रिय बोलहिं भय आस ।।
राज, धरम, तन तीनि कर, होई बेगिही नास ।।
(vi) करौ कुबत जग कुटिलता, तर्जी न दीन दयाल ।
दुःखी होहुगे सरल हिय, बसत त्रिभंगीलाल ।।
(vii) श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि ।
बरनउ रघुवर, विमल जस, जो दायक फल चारि ।।
(vii) सुनि केवट के बैन, प्रेम लपेटे अटपटे ।
बिहँसे करुणा ऐन, चितै जानकी लखन तन ।।
(ix) रकत दुरा आँसू गरा, हाड़ भएउ सब संख।
धनि सारस होइ गरि मुई, पीउ समेटहि पंख
(x) बतरस-लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय ।
सिह करै भौहनि हँसै, दैन कहें नटि जाय ।।
उत्तर:
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(क) सोरठा, दोहा और चौपाई छन्दों में से किसी एक का उदाहरण लिखकर उसका लक्षण बताई।
(ख) दोहा और सोरठा का अन्तर स्पष्ट करते हुए सोरठा का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi परिचयात्मक निबन्ध

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एक महापुरुष की जीवनी (राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी)

सम्बद्ध शीर्षक

  • मेरा प्रिय राजनेता
  • मेरा आदर्श पुरुष
  • वर्तमान युग में गाँधीवाद की प्रासंगिकता
  • हमारे आदर्श महापुरुष

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मेरे प्रिय कवि : तुलसीदास

सम्बद्ध शीर्षक

  • तुलसी का समन्वयवाद
  • हमारे आदर्श कवि : तुलसीदास
  • रामकाव्यधारा के प्रमुख कवि : तुलसीदास
  • लोकनायक तुलसीदास
  • कविता लसी पा तुलसी की कला

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मेरे प्रिय साहित्यकार  (जयशंकर प्रसाद)

सम्बद्ध शीर्षक

  • अपना (मेरा) प्रिय कवि
  • मेरा प्रिय लेखक
  • मेरे प्रिय कहानीकार

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi अलंकार

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Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 2
Chapter Name अलंकार
Number of Questions 2
Category UP Board Solutions

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काव्य में स्थान—मनुष्य स्वभाव से ही सौन्दर्य-प्रेमी है। वह अपनी प्रत्येक वस्तु को सुन्दर और सुसज्जित देखना चाहता है। अपनी बात को भी वह इस प्रकार कहना चाहता है कि जिससे सुनने वाले पर स्थायी प्रभाव पड़े। वह अपने विचारों को इस रीति से व्यक्त करना चाहता है कि श्रोता चमत्कृत हो जाए। इसके साधन हैं उपर्युक्त दोनों अलंकार। शब्द और अर्थ द्वारा काव्य की शोभा-वृद्धि करने वाले इन अलंकारों का काव्य में वही स्थान है, जो मनुष्य (विशेष रूप से नारी) शरीर में आभूषणों का।

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( काव्यांजलि: आँसू)

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(iii) श्रुत्यनुप्रास–जहाँ कण्ठ, तालु आदि एक ही स्थान से उच्चरित वर्गों की आवृत्ति हो, वहाँ श्रुत्यनुप्रास होता है; जैसे—रामकृपा भव-निसा सिरानी जागे फिर न डसैहौं ।

( काव्यांजलि:विनयपत्रिका)

स्पष्टीकरण-इस पंक्ति में ‘स्’ और ‘न्’ जैसे दन्त्य वर्गों (अर्थात् जिह्वा द्वारा दन्तपंक्ति के स्पर्श से उच्चरित वर्गों) की आवृत्ति के कारण श्रुत्यनुप्रास है।

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(काव्यांजलिः छत्रसाल प्रशस्ति)

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उत्प्रेक्षा और रूपकं अलंकारं में अन्तर–जहाँ पर उपमेय (जिसके लिए उपमा दी जाती है) में उपमान (उपमेय की जिसके साथ तुलना की जाती है) की सम्भावना प्रकट की जाती है, वहाँ अप्रेक्षा अलंकार होता है; जैसे-‘मुख मानो चन्द्रमा है। जहाँ उपमेय और उपमान में ऐसा आरोप हो कि दोनों में किसी प्रकार का भेद ही न रह जाए, वहाँ रूपक अलंक्रार होता है; जैसे-‘मुख चन्द्रमा है।

4. भ्रान्तिमान

लक्षण (परिभाषा)-जहाँ समानता के कारण भ्रमवश उपमेय में उपमान का निश्चयात्मक ज्ञान हो, वहाँ भ्रान्तिमान अलंकार होता है; जैसे-रस्सी (उपमेय) को साँप (उपमान) समझ लेना।

कपि करि हृदय बिचार, दीन्हें मुद्रिका डारि तब।
जानि अशोक अँगार, सीय हरषि उठि कर गहेउ ॥

स्पष्टीकरण-यहाँ सीताजी श्रीराम की हीरकजटित अँगूठी को अशोक वृक्ष द्वारा प्रदत्त अंगारा समझकर उठा लेती हैं। अँगूठी (उपमेयं) में उन्हें अंगारे (उपमान) का निश्चयात्मक ज्ञान होने से यहाँ भ्रान्तिमान अलंकार है।

5. सन्देह

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार का नाम लिखिए
(क) मनो चली आँगन कठिन तातें राते पाय ।।
(ख) मकराकृति गोपाल के, सोहत कुंडल कान ।।
धरयो मनौ हिय धर समरु, इयौढ़ी लसत निसान ।।
(ग) तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये ।।
(घ) उदित उदयगिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग ।
(ङ) घनानंद प्यारे सुजान सुनौ, यहाँ एक से दूसरो आँक नहीं ।
तुम कौन र्धी पाटी पढ़े हौ कहौ, मन लेह पै देहु छटाँक नहीं ।।
(च) का पूँघट मुख मूंदहु अबला नारि ।।
चंद सरग पर सोहत यहि अनुहारि ||
(छ) पच्छी पर छीने ऐसे परे पर छीने वीर,
तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के ।।
(ज) अनियारे दीरघ दृगनि, किती न तरुनि समान ।
वह चितवनि औरै कछू, जिहिं बस होत सुजान ।।
(झ) चरण कमल बंद हरिराई ।
उत्तर
(क) उत्प्रेक्षा।
(ख) उत्प्रेक्षा।
(ग) अनुप्रास।
(घ) रूपक।
(ङ) श्लेष।
(च) रूपक।
(छ) यमक।
(ज) अनुप्रास।
(झ) रूपक।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
(क) उत्प्रेक्षा और उपमा अलंकार में मूलभूत अन्तर बताइए और उत्प्रेक्षा अलंकार का एक उदाहरण अपनी पाठ्य-पुस्तक से लिखिए।
(ख) श्लेष अलंकार का लक्षण लिखकर उदाहरण दीजिए।
(ग) सन्देह और भ्रान्तिमान अलंकारों में अन्तर स्पष्ट करते हुए उदाहरण दीजिए।
(घ) सन्देह और भ्रान्तिमान अलंकारों का अन्तर स्पष्ट कीजिए और दोनों में से किसी एक का उदाहरण लिखिए।
(ङ) उत्प्रेक्षा और रूपक अलंकार में मूलभूत अन्तर स्पष्ट कीजिए और अपनी पाठ्य-पुस्तक से उत्प्रेक्षा अलंकार का एक उदाहरण लिखिए।
(च) रूपक अलंकार के भेद लिखिए और किसी एक भेद का लक्षण और उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
(छ) सन्देह और भ्रान्तिमान में अन्तर बताइए। अपनी पाठ्य-पुस्तक से भ्रान्तिमान अलंकार का एक उदाहरण लिखिए।
(ज) ‘यमक’ अथवा ‘श्लेष अलंकार का लक्षण लिखिए और एक उदाहरण दीजिए।
(झ) “रूपक’ तथा ‘उपमा’ अलंकारों में मूलभूत अन्तर बताइए और दोनों में से किसी एक अलंकार का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
(ञ), ‘उपमा’ अथवा ‘उत्प्रेक्षा’ अलंकार का लक्षण लिखकर एक उदाहरण दीजिए।
(ट) अनुप्रास’ अथवा ‘उत्प्रेक्षा अलंकार का लक्षण लिखिए तथा उस अलंकार का एक उदाहरण दीजिए।
(ठ) ‘लेष’, ‘उपमा’ तथा ‘सन्देह अलंकारों में से किसी एक अलंकार की परिभाषा देते हुए उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
[संकेत इन सभी प्रश्नों के उत्तर के लिए इन अलंकारों से सम्बन्धित सामग्री का अध्ययन ‘अलंकार’ प्रकरण के अन्तर्गत प्रश्न 1 व 2 से करें। “पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ से उदाहरण’ शीर्षक के अन्तर्गत सभी अलंकारों (पाठ्यक्रम में निर्धारित) के उदाहरण दिये गये हैं।]

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