UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 14 Respiration in Plants 

UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 14  Respiration in Plants (पादप में श्वसन)

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अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
इनमें अन्तर करिए
(अ) साँस (श्वसन) और दहन
(ब) ग्लाइकोलिसिस तथा क्रेब्स चक्र
(स) ऑक्सी श्वसन तथा किण्वन
उत्तर :
(अ) साँस (श्वसन) तथा दहन में अन्तर
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(ब) ग्लाइकोलिसिस तथा क्रेब्स चक्र में अन्तर
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(स) ऑक्सीश्वसन तथा किण्वन में अन्तर
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प्रश्न 2.
श्वसनीय क्रियाधार क्या है? सर्वाधिक साधारण क्रियाधार का नाम बताइए।

उत्तर :
वे कार्बनिक पदार्थ जो एनाबोलिक विधि से संश्लेषित हों अथवा संचित भोजन के रूप में संग्रह किए जाएँ और ऊर्जा के विमोचन के लिए उनका विघटन हो उन्हें श्वसनीय क्रियाधार कहते हैं। सर्वाधिक साधारण क्रियाधार है ग्लूकोज (मोनोसैकेराइड कार्बोहाइड्रेट)।

प्रश्न 3.
ग्लाइकोलिसिस को रेखा द्वारा बनाइए।
उत्तर :
ग्लाइकोलिसिस ग्लाइकोलिसिस को EMP मार्ग (Embden Meyerhoff Parnas Pathway) भी कहते हैं। यह कोशिकाद्रव्य में सम्पन्न होता है। इसमें ऑक्सीजन का प्रयोग नहीं होता; अतः ऑक्सी तथा अनॉक्सीश्वसन दोनों में यह क्रिया होती है। इस क्रिया के अन्त में ग्लूकोस के एक (UPBoardSolutions.com) अणु से पाइरुविक अम्ल (pyruvic acid) के 2 अणु बनते हैं। ग्लाइकोलिसिस में 4 ATP बनते हैं, 2 ATP खर्च होते हैं; अत: 2 ATP अणु का लाभ होता है। इन अभिक्रियाओं में मुक्त 2H+ आयन्स हाइड्रोजनग्राही NAD से अनुबन्धित होकर NAD.2H बनाते हैं। ये क्रियाएँ विभिन्न चरणों में पूर्ण होती हैं। ग्लाइकोलिसिस से कुल 8 ATP अणु ऊर्जा प्राप्त होती है।
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प्रश्न 4.
ऑक्सीश्वसन के मुख्य चरण कौन-कौन से हैं ? यह कहाँ सम्पन्न होती है?

उत्तर :

ऑक्सीश्वसन के मुख्य चरण

जीवित कोशिका में ऑक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोस (कार्बनिक पदार्थ) के जैव-रासायनिक  ऑक्सीकरण को ऑक्सीश्वसन कहते हैं। इस क्रिया के अन्तर्गत रासायनिक ऊर्जा गतिज ऊर्जा के रूप में ATP में संचित हो जाती है।
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ऑक्सीश्वसन निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होता है
(क)
ग्लाइकोलिसिस अथवा ई० एम० पी० मार्ग (Glycolysis or E.M.P. Pathway) :

यह क्रिया कोशिकाद्रव्य में सम्पन्न होती है। इसमें ग्लूकोस के आंशिक ऑक्सीकरण के फलस्वरूप पाइरुविक अम्ल के दो अणु प्राप्त होते हैं। ग्लाइकोलिसिस प्रक्रिया में कुल 8 ATP अणु प्राप्त होते हैं।

(ख)
ऐसीटिल कोएन्जाइम-A का निर्माण (Formation of Acetyl CoA)

यह माइटोकॉन्ड्रिया के मैट्रिक्स में सम्पन्न होती है। कोशिकाद्रव्य (सायटोसोल) में उत्पन्न पाइरुविक अम्ल माइटोकॉन्ड्रिया में प्रवेश करके NAD+ और कोएन्जाइम-A से संयुक्त होकर पाइरुविक अम्ल का ऑक्सीकीय CO2 वियोजन (Oxidative decarboxylation) होता है। (UPBoardSolutions.com) इस क्रिया में CO2 का एक अणु मुक्त होता है और NAD.2H बनता है और अन्त में ऐसीटिल कोएन्जाइम-A बनता है। पाइरुविक अम्ल + CoA + NAD
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(ग) क्रेब्स चक्र या ट्राइकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र (Krebs Cycle or Tricarboxylic Acid Cycle) :
यह पूर्ण क्रिया माइटोकॉन्ड्रिया के मैट्रिक्स में सम्पन्न होती है। क्रेब्स चक्र के एन्जाइम्स मैट्रिक्स में पाए जाते हैं। ऐसीटिल कोएन्जाइम-A माइटोकॉन्ड्रिया के मैट्रिक्स में उपस्थित ऑक्सेलोऐसीटिक अम्ल से क्रिया करके 6-कार्बन यौगिक सिट्रिक अम्ल बनाता है। सिट्रिक अम्ल का क्रमिक निम्नीकरण होता है और अन्त: में पुनः ऑक्सेलोऐसीटिक अम्ल प्राप्त हो जाता है। क्रेब्स चक्र में 2 अणु CO2  के मुक्त होते हैं। चार स्थानों पर 2H+ मुक्त होते हैं जिन्हें हाइड्रोजनग्राही NAD यो FAD ग्रहण करते हैं। क्रेब्स चक्र में 24ATP अणु ETS द्वारा प्राप्त होते है। ऐसीटिल कोएन्जाइम
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(घ) इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र (Electron Transport System) :
यह माइटोकॉण्ड्रिया की भीतरी सतह पर स्थित F कण या ऑक्सीसोम्स पर सम्पन्न होता है। क्रेब्स चक्र की ऑक्सीकरण क्रिया में डिहाइड्रोजिनेस (dehydrogenase) एन्जाइम विभिन्न पदार्थों से हाइड्रोजन तथा इलेक्ट्रॉन के जोड़े मुक्त कराते हैं। हाइड्रोजन तथा इलेक्ट्रॉन कुछ मध्यस्थ संवाहकों के द्वारा होते हुए ऑक्सीजन से मिलकर जल का निर्माण करते हैं। हाइड्रोजन परमाणुओं के एक इलेक्ट्रॉनग्राही से दूसरे इलेक्ट्रॉनग्राही पर स्थानान्तरित होते समय ऊर्जा मुक्त होती है। यह ऊर्जा ATP में संचित हो जाती है।

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प्रश्न 5.
क्रेब्स चक्र का समग्र रेखाचित्र बनाइए।
उत्तर :
क्रेब्स चक्र या ट्राइकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र

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प्रश्न 6.
इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र का वर्णन कीजिए।

उत्तर :
इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र ग्लाइकोलिसिस तथा क्रेब्स चक्र के विभिन्न पदों में अपघटन के फलस्वरूप उत्पन्न हुई ऊर्जा के अधिकांश भाग का परिवहन हाइड्रोजनग्राही करते हैं; जैसे-NAD, NADP, FAD आदि। ये 2H+ (हाइड्रोजन आयन) के साथ मिलकर अपचयित (reduce) हो जाते हैं। इन्हें वापसे ऑक्सीकृत (oxidise) करने के लिए विशेष तन्त्र, इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण तन्त्र (ETS = Electron Transport System) की आवश्यकता होती है। यह तन्त्र इलेक्ट्रॉन्स (e) को एक के बाद एक ग्रहण करते हैं। तथा उन पर उपस्थित ऊर्जा स्तर (energy level) को कम करते हैं। इस कार्य का मुख्य उद्देश्य कुछ ऊर्जा को निर्मुक्त करना है। यही निर्मुक्त ऊर्जा ATP (adenosine triphosphate) में संगृहीत हो जाती है। इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र एक श्रृंखलाबद्ध क्रम के रूप में होता है जिसमें कई सायटोक्रोम एन्जाइम्स (cytochrome enzymes) होते हैं। इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र के एन्जाइम माइटोकॉन्ड्रिया की अन्त:कला (inner membrane) में श्रृंखलाबद्ध क्रम से लगे रहते हैं। सायटोक्रोम्स लौह तत्त्व के परमाणु वाले वर्णक हैं, जो इलेक्ट्रॉन मुक्त कर ऑक्सीकृत (oxidised) हो जाते हैं
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साइटोक्रोम्स की इस श्रृंखला में प्रारम्भिक साइटोक्रोम ‘बी’ (cytochrome ‘ b’ = cyt ‘b’ Fe3+) उच्च ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन (e) को ग्रहण करता है तथा अपचयित हो जाता है। इलेक्ट्रॉन का स्थानान्तरण हाइड्रोजन आयन्स से होता है, जो पदार्थ से NAD या NADP के द्वारा लाए गए थे। बाद में ये FAD को दे दिए गए थे और यहाँ से स्वतन्त्र कर दिए गए। इलेक्ट्रॉन्स के Cyt ‘b’ Fe+++ पर स्थानान्तरण में सम्भवत: सह-एन्जाइम ‘क्यू’ (Co-enzyme ‘Q’ = Co ‘Q’ = ubiquinone) सहयोग (UPBoardSolutions.com) करता है। इस प्रारम्भिक सायटोक्रोम के बाद श्रृंखला में कईऔर सायटोक्रोम रहते हैं। ये क्रमश: इलेक्ट्रॉन को अपने से पहले वाले सायटोक्रोम से ग्रहण करते हैं तथा अपने से अगले सायटोक्रोम को स्थानान्तरित कर देते है।

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श्रृंखला के अन्तिम सायटोक्रोम से दो इलेक्ट्रॉन्स, ऑक्सीजन के एक परमाणु से मिलकर उसे सक्रिय कर देते हैं। अब यह ऑक्सीजन परमाणु उपलब्ध दो हाइड्रोजन आयन्स के साथ जुड़कर जेल का एक अणु (H2O) बना लेता है। श्वसन से सम्बन्धित यह सायटोक्रोम तन्त्र माइटोकॉन्ड्रिया की अन्त:कला (inner membrane) में स्थित होता है।

ए०टी०पी० का संश्लेषण

श्वसन क्रिया दो क्रियाओं ग्लाकोलिसिस (glycolysis) तथा क्रेब्स चक्र (Krebs Cycle) में पूर्ण होती है। इन क्रियाओं के अन्त में कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल बनते हैं। जबकि दो अणु काम में आ जाते हैं। अतः केवल दो ATP अणुओं को लाभ होता है। ग्लाइकोलिसिस तथा क्रेब्स चक्र में मुक्त 2H+ (हाइड्रोजन आयन) को NAD, NADP या FAD ग्रहण करते हैं। इनसे मुक्त परमाणु हाइड्रोजन अणु हाइड्रोजन में बदलकर ऑक्सीजन के साथ मिलकर जल बनाते हैं। इस क्रिया में मुक्त 2e (इलेक्ट्रॉन) इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण तन्त्र (ETS) में पहुंचकर धीरे-धीरे अपना ऊर्जा स्तर (energy level) कम करते हैं। इस प्रकार निष्कासित ऊर्जा ADP को ATP में बदलने के काम आती है। इस प्रकार प्रत्येक जोड़े 2H+ से तीन ATP अणु बनते हैं। FAD पर स्थित 2H+ से केवल दो ATP अणु ही बनते हैं। इस प्रकार ग्लाइकोलिसिस से लेकर पूर्ण ऑक्सीकरण होने तक कुल ATP अणुओं की संख्य निम्नलिखित हो जाती है

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(a) ग्लाइकोलिसिस की अभिक्रियाओं में
(कुल चार अणु बनते हैं तथा दो प्रयुक्त हो जाते हैं)। = 2 ATP

(b) ग्लाइकोलिसिस में ही बने दो NAD.H,
(ETS में जाने के बाद) = 6 ATP

(c) क्रेब्स चक्र के पूर्व पाइरुविक अम्ल से ऐसीटिल को-एन्जाइम ‘ए’ बनते समय NAD.H2 बनने तथा ETS में जाने के बाद
(दो अणु पाइरुविक अम्ल से दो NAD.H2) बनते हैं। = 6ATP

(d) क्रेब्स चक्र में बने 3NADH2 के ETS में जाने पर [दो बार यही चक्र पूरा होने पर ध्यान रहे, दो ऐसीटिल को-एन्जाइम ‘ए’
(acetyl Co ‘A’) अर्थात् एक ग्लूकोस के अणु से दो क्रेब्स चक्र में 6NADH2 की प्राप्ति होती है। ATP के 9 अणु बनाते हैं।]
9x 2 = 18 ATP

(e) क्रेब्स चक्र में ही FAD.H2 से (ETS में जाने पर) दो अणु ATP बनते हैं
(इस प्रकार, एक पूरे ग्लूकोस अणु से चार अणु ATP बनते हैं।) = 2 x 2 = 4 ATP

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(f) क्रेब्स चक्र में ही सक्सीनिक अम्ल (succinic acid) बनते समय जी० टी० पी०
(GTP = (guanosine triphosphate)) का निर्माण होता है जो बाद में एक ADP को ATP में बदल देता है।
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इस प्रकार कुल योग

ग्लिसरॉल फॉस्फेट शटल (Glycerol Phosphate Shuttle)
की कार्य क्षमता कम होती है। इसमें दो अणु NADH,, जो ग्लाइकोलिसिस में बनते हैं, उनसे कभी-कभी 6 ATP के स्थान पर 4 ATP की ही प्राप्ति होती है। ये NADH, माइटोकॉन्ड्रिया के बाहर जीवद्रव्य में बनते हैं। NADH2 का अणु माइटोकॉन्ड्रिया के भीतर प्रवेश नहीं कर पाता, (UPBoardSolutions.com) यह अपने H+ माइटोकॉन्ड्रिया के भीतर भेजता है। मस्तिष्क तथा पेशियों की कोशिकाओं में प्रत्येक NADH2 के H+ के भीतर प्रवेश में 1 ATP अणु खर्च हो जाता है; अतः अन्त में कुल 36 ATP अणुओं की प्राप्ति होती है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित के मध्य अन्तर कीजिए
(अ) ऑक्सीश्वसन तथा अनॉक्सीश्वसन
(ब) ग्लाइकोलिसिस तथा किण्वन
(स) ग्लाइकोलिसिस तथा सिट्रिक अम्ल चक्र
उत्तर :
(अ)
ऑक्सीश्वसन तथा अनॉक्सीश्वसन में अन्तर

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(ब)
ग्लाइकोलिसिस तथा किण्वन में अन्तर

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(स)
ग्लाइकोलिसिस तथा सिट्रिक अम्ल चक्र में अन्तर

क्रेब्स चक्र या ट्राइकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र को सिट्रिक अम्ल चक्र (Citric Acid Cycle) भी कहते हैं। अन्तर के लिए प्रश्न 1 (ब) का उत्तर देखिए।

प्रश्न 8.
शुद्ध ए०टी०पी० के अणुओं की प्राप्ति की गणना के दौरान आप क्या कल्पनाएँ करते हैं?
उत्तर :

ए०टी०पी० अणुओं की प्राप्ति की कल्पनाएँ।

  1.  यह एक क्रमिक, सुव्यवस्थित क्रियात्मक मार्ग है जिसमें एक क्रियाधार से दूसरे क्रियाधार का निर्माण होता है जिसमें ग्लाइकोलिसिस से शुरू होकर क्रेब्स चक्र तथा इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र (ETS) एक के बाद एक आती है।
  2. ग्लाइकोलिसिस में संश्लेषित NAD माइटोकॉन्ड्रिया में आता है, जहाँ उसका फॉस्फोरिलीकरण (UPBoardSolutions.com) होता है।
  3. श्वसन मार्ग के कोई भी मध्यवर्ती दूसरे यौगिक के निर्माण के उपयोग में नहीं आते हैं।
  4. श्वसन में केवल ग्लूकोस का उपयोग होता है। कोई दूसरा वैकल्पिक क्रियाधार श्वसन मार्ग के किसी भी मध्यवर्ती चरण में प्रवेश नहीं करता है।

वास्तव में सभी मार्ग (पथ) एकसाथ कार्य करते हैं। पथ में क्रियाधार आवश्यकतानुसार अन्दर- बाहर आते-जाते रहते हैं। आवश्यकतानुसार ATP का उपयोग हो सकता है। एन्जाइम की क्रिया की दर विभिन्न कारकों द्वारा नियन्त्रित होती है। श्वसन जीवन के लिए एक उपयोगी क्रिया है। सजीव तन्त्र में ऊर्जा का संग्रहण तथा निष्कर्षण होता रहता है।

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प्रश्न 9.
“श्वसनीय पथ एक ऐम्फीबोलिक पथ होता है।” इसकी चर्चा कीजिए।
उत्तर :

श्वसनीय पथ एक ऐम्फीबोलिक पथ

श्वसन क्रिया के लिए ग्लूकोस एक सामान्य क्रियाधार (substrate) है। इसे कोशिकीय ईंधन (cellular fuel) भी कहते हैं। कार्बोहाइड्रेट्स श्वसन क्रिया में प्रयोग किए जाने से पूर्व ग्लूकोस में बदल दिए जाते हैं। अन्य क्रियाधार श्वसन पथ में प्रयुक्त होने से पूर्व विघटित होकर ऐसे पदार्थों में बदले जाते हैं, जिनका उपयोग किया जा सके; जैसे—वसा पहले ग्लिसरॉल तथा वसीय अम्ल में विघटित होती है। वसीय अम्ल ऐसीटाइल कोएन्जाइम बनकर श्वसन मार्ग में प्रवेश करता है। ग्लिसरॉल फॉस्फोग्लिसरेल्डिहाइड (PGAL) में बदलकर श्वसन मार्ग में प्रवेश करता है। प्रोटीन्स विघटित होकर ऐमीनो अम्ल बनाती है। ऐमीनो अम्ल विऐमीनीकरण (deamination) के पश्चात् क्रेब्स चक्र के विभिन्न चरणों में प्रवेश करता है।

इसी प्रकार जब वसा अम्ल का संश्लेषण होता है तो श्वसन मार्ग से ऐसीटाइल कोएन्जाइम अलग हो जाता है। अतः वसा अम्ल के संश्लेषण और विखण्डन के दौरान श्वसनीय मार्ग का उपयोग होता है। इसी प्रकार प्रोटीन के संश्लेषण व विखण्डन के दौरान भी श्वसनीय मार्ग का उपयोग होता है। इस प्रकार (UPBoardSolutions.com) श्वसनी पथ में अपचय (catabolic) तथा उपचय (anabolic) दोनों क्रियाएँ होती हैं। इसी कारण श्वसनी मार्ग (पथ) को ऐम्फीबोलिक पथ (amphibolic pathway) कहना अधिक उपयुक्त है न कि अपचय पथ।
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प्रश्न 10.
साँस (श्वसन) गुणांक को परिभाषित कीजिए, वसा के लिए इसका क्या मान है?
उत्तर :
साँस (श्वसन) गुणांक एक दिए गए समय, ताप व दाब पर श्वसन क्रिया में निष्कासित CO2 व अवशोषित O2 के अनुपात को श्वसन (साँस) गुणांक या भागफल (R.Q.) कहते हैं। श्वसन पदार्थों के अनुसार श्वसन गुणांक भिन्न-भिन्न होता है।
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वसा (fats) :
का श्वसन गुणांक एक से कम होता है। वसीय पदार्थों के उपयोग से निष्कासित CO2की मात्रा अवशोषित O2 की मात्रा से कम होती है। वसा का R.Q. लगभग 0.7 होता है।
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प्रश्न 11.
ऑक्सीकारी फॉस्फोरिलीकरण क्या है?

उत्तर :
ऑक्सीकारी फॉस्फोरिलीकरण ऑक्सीश्वसन क्रिया के विभिन्न चरणों में मुक्त हाइड्रोजन आयन्स (2H+) को हाइड्रोजनग्राही NAD या FAD ग्रहण करके अपचयित होकर NAD.2H या FAD.2H बनाता है। प्रत्येक NAD.2H अणु से दो इलेक्ट्रॉन (2e) तथा दो हाइड्रोजन परमाणुओं (2H+) के निकलकर (UPBoardSolutions.com) ऑक्सीजन तक पहुँचने के क्रम में तीन और FAD.2H से दो ATP अणुओं का संश्लेषण होता है। ETS के अन्तर्गत इलेक्ट्रॉन परिवहन के फलस्वरूप मुक्त ऊर्जा ADP + Pi→ ATP क्रिया द्वारा ATP में संचित हो जाती है। प्रत्येक ATP अणु बनने में प्राणियों में 7:3 kcal और पौधों में 10-12 kcal ऊर्जा संचय होती है। यह क्रिया फॉस्फोरिलीकरण (phosphorylation) कहलाती है, क्योंकि श्वसन क्रिया में यह क्रिया O2 की उपस्थिति में होती है; अतः इसे ऑक्सीकारी फॉस्फोरिलीकरण (oxidative phosphorylation) कहते हैं।

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प्रश्न 12.
सॉस के प्रत्येक चरण में मुक्त होने वाली ऊर्जा का क्या महत्त्व है?

उत्तर :
(क)
कोशिका में जैव रासायनिक ऑक्सीकरण के दौरान श्वसनी क्रियाधार में संचित सम्पूर्ण रासायनिक ऊर्जा एकसाथ मुक्त नहीं होती, जैसा कि दहन प्रक्रिया में होता है। यह एन्जाइम्स द्वारा नियन्त्रित चरणबद्ध धीमी अभिक्रियाओं के रूप में मुक्त होती है। मुक्त रासायनिक ऊर्जा गतिज ऊर्जा के रूप में ATP में संचित हो जाती है।

(ख)
श्वसन प्रक्रिया में मुक्त ऊर्जा सीधे उपयोग में नहीं आती। श्वसन प्रक्रिया में मुक्त ऊर्जा का उपयोग ATP संश्लेषण में होता है।

(ग)
ATP ऊर्जा मुद्रा का कार्य करता है। कोशिका की समस्त जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा ATP के टूटने से प्राप्त होती है।

(घ)
विभिन्न जटिल कार्बनिक पदार्थों के संश्लेषण में भी ATP से मुक्त ऊर्जा उपयोग में आती है।

(ङ)
कोशिकाओं में खनिज लवणों के आवागमन में प्रयुक्त ऊर्जा ATP से ही प्राप्त होती है।

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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कोशिकीय श्वसन में ग्लूकोज से पाइरुविक अम्ल का बनना कहलाता है।
(क) ग्लाइकोलिसिस
(ख) हाइड्रोलिसिस
(ग) क्रेब्स चक्र
(घ)C3 चक्र
उत्तर :
(क) ग्लाइकोलिसिस

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सी अभिक्रिया शुद्ध रूप में ऑक्सीश्वसन को प्रदर्शित करती है?
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उत्तर :
(ग) C6H12O6 + 6O2  → 6CO2+ 6H2O + 673 k.cals

प्रश्न 3.
क्रेब्स चक्र के एक बार चलने में NADPH बनते हैं।
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) छः
उत्तर :
(ख) तीन

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
किण्वन क्रिया को प्रदर्शित करने वाले उपकरण का नाम लिखिए।
उत्तर :
फर्मेन्टर या बायोरिएक्टर।

प्रश्न 2.
उस रासायनिक यौगिक का नाम लिखिए जो ग्लाइकोलिसिस और क्रेब्स चक्र के बीच की कड़ी है।
उत्तर :
ऐसीटिल-कोएन्जाइम-A

प्रश्न 3.
ग्लूकोस के एक अणु के पूर्ण ऑक्सीकरण से ATP व CO2 के कितने अणु प्राप्त होते हैं?
उत्तर :
ग्लूकोस के एक अणु के पूर्ण ऑक्सीकरण से 38 ATP एवं 6 CO2 अणु प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 4.
पाइरुविक अम्ल का ऑक्सी-ऑक्सीकरण कोशिका के किस भाग में होता है?
उत्तर :
माइटोकॉण्ड्रिया के अन्दर मैट्रिक्स में होता है।

प्रश्न 5.
श्वसन को प्रभावित करने वाले दो कारक लिखिए।
उत्तर :

  1. तापक्रम
  2. ऑक्सीजन

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प्रश्न 6.
बीज भरे भण्डारों को खोलने पर गर्मी निकलती है। कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
बीज भरे भण्डारों को खोलने पर गर्मी निकलती है, क्योंकि बीज श्वसन की क्रिया में 0, को ग्रहण करके CO2, H2O ऊर्जा उत्पन्न करते हैं जिसके कारण भण्डार गृह का तापमान बढ़ जाता है।

प्रश्न 7.
श्वसन गुणांक को प्रदर्शित करने वाले उपकरण का नाम लिखिए।
उत्तर :
गैनांग श्वसनमापी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
किण्वन की परिभाषा लिखिए। यह अनॉक्सी श्वसन से किस प्रकार भिन्न है? समझाइए। या अनॉक्सी श्वसन और किण्वन में अन्तर स्पष्ट कीजिए। या किण्वन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। या अवायवीय श्वसन तथा किण्वन में अन्तर बताइए।
उत्तर :

किण्वन 

प्रत्येक प्रकार का श्वसन (अनॉक्सी या ऑक्सी श्वसन) ग्लूकोज से प्रारम्भ होता है और इसमें ग्लाइकोलिसिस (glycolysis) क्रिया के द्वारा पाइरुविक अम्ल (pyruvic acid) का निर्माण होता है। निम्न श्रेणी के अनेक जीवों; जैसे-कुछ जीवाणुओं, यीस्ट (yeast) अन्य कवकों (fungi) आदि अवायव जीवों (anaerobs) में अनॉक्सीश्वसन के द्वारा ही ऊर्जा उत्पन्न होती है। चूंकि इस क्रिया में प्रायः
ऐल्कोहॉल (alcohol) उत्पन्न होता है, अत: इस (अनॉक्सीश्वसन) को ऐल्कोहॉलिक किण्वन (alcoholic fermentation) भी कहते हैं। किण्वन का अध्ययन सबसे पहले सन् 1870 में पाश्चर (Pasteur) ने किया था। अधिकतर उन सूक्ष्म पौधों में जिनमें श्वसन होता है इससे (UPBoardSolutions.com) सम्बन्धित सभी एन्जाइम एक जटिल समूह के रूप में रहते हैं; जैसे—यीस्ट में यह जाड़मेज (ymase) कहलाता है। दूसरे जीवों में अन्य एन्जाइम की उपस्थिति के कारण अन्य प्रकार की अभिक्रियाओं के फलस्वरूप एथिल एल्कोहॉल के स्थान पर अन्य यौगिक बनते हैं; जैसे-ऐसीटिक अम्ल, लैक्टिक अम्ल, ब्यूटाइरिक अम्ल, साइट्रिक अम्ल, ऑक्सेलिक अम्ल आदि। ये सम्पूर्ण क्रियाएँ किण्वन (fermentation) कहलाती हैं तथा उत्पाद के नाम पर जानी जाती हैं। उच्च श्रेणी के पौधों तथा जन्तुओं में अनॉक्सीश्वसन केवल थोड़े
समय के लिये ही होता है। इसके पश्चात् कम ऊर्जा उत्पन्न होने तथा विषैले पदार्थ इत्यादि एकत्र होने के कारण कोशिकाओं की मृत्यु होने लग जाती है।

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किण्वन व अनॉक्सी श्वसन में अन्तर

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प्रश्न 2.
कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन तथा कार्बनिक अम्लों के श्वसन गुणांक ज्ञात कीजिए।
उत्तर :
1. कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates) :
मण्ड, सुक्रोज, माल्टोज, ग्लूकोज, फ्रक्टोज आदि अनेक कार्बोहाइड्रेट्स श्वसन आधार की तरह प्रयोग किये जाते हैं। इनमें से ग्लूकोज तथा फ्रक्टोज सीधे ही काम आ जाते हैं जबकि सुक्रोज, माल्टोज आदि डाइसैकेराइड्स (disaccharides), तथा मण्ड जैसे पॉलिसैकेराइड्स (polysaccharides) की पहले हाइड्रोलिसिस होती है तथा ग्लूकोज या फ्रक्टोज अथवा दोनों पदार्थ बनते हैं। कार्बोहाइड्रेट्स के इस प्रकार, ऑक्सी श्वसन में आधार होने से आयतन से जितनी ऑक्सीजन (O2) काम आती है उतनी ही कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्पन्न होती है।
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अत: कार्बोहाइड्रेट्स के लिए समीकरण के अनुसार
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इस प्रकार सामान्यतः कार्बोहाइड्रेट्स (मण्डयुक्त अनाजों; जैसे-गेहूं, चावल आदि) के लिए श्वसन गुणांक इकाई में आता है, किन्तु कुछ कारणों से यह इकाई से भिन्न दिखायी पड़ता है। जब

  1. श्वसन आधार का ऑक्सीकरण पूर्ण रूप से न हो सके; जैसे–नागफनी (Opuntia) आदि सरस पौधों या पौधे (UPBoardSolutions.com) के भागों में उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कम हो जाती है अथवा बिल्कुल नहीं होती है; क्योंकि मैलिक अम्ल आदि बन जाते हैं, अतः श्वसन गुणांक इकाई से कम हो जाता है।
  2. उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड किसी अन्य कार्य; जैसे—प्रकाश संश्लेषण में प्रयुक्त हो जाए।
  3. अवशोषित ऑक्सीजन किसी अन्य कार्य में प्रयुक्त हो जाए।
  4. किसी अन्य अभिक्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न हो जाए।

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2. प्रोटीन्स (Proteins) :
इनका ऑक्सीकरण (oxidation) तथा डीएमीनेशन (deamination) होता है। इस प्रकार बने हुए कार्बनिक अम्ल (organic acids) ऑक्सी श्वसन के बाद की क्रियाओं (क्रेब्स चक्र) में सम्मिलित हो जाते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल में विघटित हो जाते हैं। वसाओं की तरह प्रोटीन्स के सम्पूर्ण ऑक्सीकरण के लिए बाहर से अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ने के कारण, इनका श्वसन गुणांक (RQ) भी इकाई से कम (0.8-0.9) होता है।

3. कार्बनिक अम्ल (Organic acids) :
कार्बनिक अम्लों में ऑक्सीजन अधिक मात्रा में होने के कारण इनका श्वसन गुणांक (RQ) इकाई से अधिक होता है। श्वसन गुणांक, अनॉक्सी या अवायव श्वसन (anaerobic respiration) में सदैव ही एक से अधिक (सामान्यतः 2) होता है क्योंकि यहाँ ऑक्सीजन बाहर से उपयोग में नहीं लायी जाती, फिर भी कार्बन डाइऑक्साइड तो निकलती ही है।। श्वसन गुणांक को मापन गैनांग श्वसनमापी
(Ganong’s respirometer) द्वारा किया जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ए०टी०पी० का महत्व समझाइए।
उत्तर :

ए०टी०पी० का महत्त्व

जीवित कोशिकाओं में ऊर्जा उत्पन्न करने वाली (energy yielding) तथा ऊर्जा का उपभोग करने वाली (energy consuming) क्रियाएँ निरन्तर होती रहती हैं। एक पदार्थ (उदाहरणार्थ-ग्लूकोज) में संचित ऊर्जा के निष्कासन से दूसरे पदार्थों का निर्माण होता है। उदाहरणार्थ-प्रोटीन का। अब इन दूसरे पदार्थों में संचित ऊर्जा के निष्कासन से कोशिका में दूसरे कार्य किए जा सकते हैं। कोशिका में अस्थाई रूप से ऊर्जा संचय का एक साधन होता है। यह पदार्थ एडिनोसीन ट्राइफॉस्फेट (Adenosine Tri-Phosphate = ATP) है। यह पदार्थ जीवित कोशिकाओं के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। श्वसन क्रिया में कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन और वसा के (UPBoardSolutions.com) ऑक्सीकरण द्वारा निष्कासित ऊर्जा, तुरन्त ही ADP और अकार्बनिक फॉस्फेट (iP) से ATP के संश्लेषण मेंप्रयोग हो जाती है। इस प्रकार से श्वसन द्वारा ATP में ऊर्जा संचित हो जाती है। इस प्रकार ATP के संश्लेषण की क्रिया को ऑक्सीकीय फॉस्फोरिलीकरण (oxidative phosphorylation) कहते हैं।

विभिन्न जैविक क्रियाओं, जैसे-कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन तथा वसा पदार्थों का संश्लेषण तथा परासरण (osmosis), सक्रिय अवशोषण (active absorption), खाद्य-पदार्थों के स्थानान्तरण (translocation of food); जीवद्रव्य प्रवाह (streaming of protoplasm), वृद्धि (growth) इत्यादि में ऊर्जा की आवश्यकता होती है, इसके लिए ATP का ADP वे iP में विखण्डन हो जाता है और ऊर्जा मुक्त हो जाती है, यह ऊर्जा ही जैविक क्रियाओं में प्रयुक्त होती है। इस प्रकार ATP एक पदार्थ से ऊर्जा लेकर तथा दूसे पदार्थ को ऊर्जा देकर एक मध्यस्थ यौगिक (intermediatory compound) के रूप में कार्य करता है। इस कारण से ATP को जैविक संवर्ध ऊर्जा के आदान-प्रदान की मुद्रा (monetary system of energy exchange in living organisms) भी कहा जाता है।

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प्रश्न 2.
श्वसन क्रिया को प्रभावित करने वाले बाह्य तथा आन्तरिक कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
श्वसन क्रिया को प्रभावित करने वाले कारक-श्वसन की क्रिया को प्रभावित करने वाले कारकों को निम्नलिखित दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है

A. बाह्य कारक

1. तापक्रम (Temperature) :
श्वसन पर प्रभाव डालने वाले कारकों में तापक्रम सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। 0 से 30°C तक तापक्रम बढ़ने पर श्वसन क्रिया की दर लगातार बढ़ती रहती है। वांट हॉफ (Vant Hoffs) के नियमानुसार 0°C से अधिंक 30°C तक प्रत्येक 10°C तापक्रम बढ़ने पर श्वसन की दर 2 से 2.5 गुना बढ़ जाती है, अर्थात् श्वसन का तापक्रम गुणांक (Q 10°C) 2 से 2.5 के बीच होता है। श्वसन क्रिया की सर्वाधिक दर 30°C पर होती है। 30°C से ऊपर तापक्रमों पर आरम्भ में श्वसन दर बढ़ती है, परन्तु शीघ्र ही दर घट जाती है। और जितना अधिक तापक्रम होगा उतनी ही अधिक प्रारम्भ में देर बढ़ेगी और उतनी ही शीघ्र तथा अधिक समय के साथ दर घटेगी।

सम्भवतः ऐसा इसलिए होता है कि श्वसन में कार्य करने वाले विकर (enzymes) अधिक तापक्रम पर विकृत (denatured) हो जाते हैं। 0°C से कम तापक्रम पर श्वसन दर बहुत कम हो जाती है इसीलिए फलों एवं बीजों को कम तापक्रम पर संरक्षित किया जाता है। यद्यपि कुछ पौधों में -20°C तापक्रम पर भी श्वसन क्रिया होती रहती है। सुषुप्त बीजों को यदि -50°C तापक्रम पर रखा जाए तो वे जीवित रहते हैं। जिसका अर्थ है कि उनमें इस तापक्रम पर भी श्वसन होता है।

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2. ऑक्सीजन (Oxygen) :
ऑक्सीजन (O2) की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति पर श्वसन को क्रमशः ऑक्सी -श्वसन (aerobic respiration) तथा अनॉक्सी श्वसन (anaerobic respiration) में विभाजित किया जाता है। वायु में 20.8% ऑक्सीजन (0%) होती है। वातावरण में ऑक्सीजन (O2) की मात्रा को एक निश्चित सीमा में घटाने या बढ़ाने पर भी श्वसन क्रिया की दर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वायु में ऑक्सीजन (O2) की मात्रा को लगभग 2% तक घटाने पर श्वसन क्रिया की दर बहुत कम हो जाती है। (UPBoardSolutions.com) ऑक्सीजन की सान्द्रती अत्यधिक कम हो जाने पर अनॉक्सी-श्वसन के कारण एथिल ऐल्कोहॉल (ethyl alcohol) और कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) अधिक मात्रा में निष्कासित होते हैं।

3. जल (Water) :
जल की कमी होने पर श्वसन की दर घटती है। सूखे बीजों में (प्रायः 8 से 12% जल होता है। बहुत कम श्वसन होता है और बीज द्वारा जल का अन्तःशोषण (imbibition) करने पर श्वसन की दर बढ़ जाती है। गेहूँ के बीजों में जल की मात्रा 16 से 17% बढ़ने पर श्वसन दर बहुत अधिक बढ़ जाती है। यद्यपि जिन ऊतकों में पहले से ही जल। की मात्रा काफी होती है, जल की मात्रा के घटाने-बढ़ाने से श्वसन दर पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। बीज को जीवनकाल जल की मात्रा कम रहने से बढ़ता है। श्वसन विकरों (enzymes) के कार्य में जल आवश्यक होता है।

4. प्रकाश (Light) :
श्वसन रात्रि में भी होता रहता है। इसके लिए प्रकाश का होना आवश्यक नहीं है, किन्तु प्रकाश में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया होने के कारण शर्कराओं का संश्लेषण होता है जिससे उनकी सान्द्रता बढ़ती है और श्वसन-प्रयुक्त पदार्थों (respiratory substrates) की मात्रा अधिक होने से श्वसन दर बढ़ती है। अत: प्रकाश श्वसन को परोक्ष रूप से प्रभावित करता है।

5. कार्बन डाइऑक्साइड ( CO2) :
वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड ( CO2) की सान्द्रता सामान्य रूप से अधिक होने पर श्वसन दर कम हो जाती है। बीजों का अंकुरण एवं वृद्धि दर कम हो जाते हैं। हीथ (Heath, 1950) ने सिद्ध किया है कि कार्बन डाइऑक्साइड ( CO2) से पत्ती पर स्थित रन्ध्र (stomata) बन्द हो जाते हैं। इससे ऑक्सीजन ( O2) पत्ती में प्रवेश नहीं करती जिससे श्वसन दरें घट जाती है।

6. क्षति (Injury) :
घायल ऊतक में सामान्यतः श्वसन दर तीव्र हो जाती है। सम्भवतः क्षतिग्रस्त भाग में कुछ कोशिकाएँ विभज्योतकी (meristematic) होकर तेजी से विभाजित होने लगती हैं। वृद्धि कर रही कोशिकाओं में, परिपक्व कोशिकाओं की अपेक्षा श्वसन दर अधिक होती है। हॉपकिन्स (Hopkins) के अनुसार पौधे के क्षतिग्रस्त भागों में स्टार्च का शर्करा में परिवर्तन तेजी से होने लगता है, जिसके कारण भी क्षतिग्रस्त भागों की श्वसन दर बढ़ जाती है।

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B. आन्तरिक कारक

1. श्वसन में प्रयुक्त पदार्थों की सन्द्रिता (Concentration of Using Substrates in Respiration) :
श्वसन में प्रयुक्त होने वाले पदार्थों की सान्द्रता बढ़ने पर श्वसन दर बढ़ जाती है।

2. जीवद्रव्य की दशा (Age of Protoplasm) :
पौधों की वृद्धि करने वाले भागों; जैसे—प्ररोहों एवं जड़ के अग्रस्थ स्थित युवा कोशिकाओं का जीवद्रव्य (UPBoardSolutions.com) अत्यधिक सक्रिय होता है जिससे इन भागों में, श्वसन दर अधिक होती है जबकि ऊतकों एवं पौधों के विभिन्न भागों की वृद्ध कोशिकाओं में श्वसन दर घट जाती है।

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UP Board Solutions for Class 11 English Poetry Long Poem Chapter 1 The Light of Asia

UP Board Solutions for Class 11 English Poetry Long Poem Chapter 1 The Light of Asia

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Introduction : The Light of Asia’ is an epic on the life of Lord Buddha. It is one of the best works of Sir Edwin Arnold. Through this poem the poet has described the life and teachings of Lord Buddha. He has described in it the birth of Buddha, his early experiences of life, his renunciation and his teachings.

The book had been divided into eight cantos. In the first seven cantos the birth, life and the early experiences of Buddha have been described. In the eighth and last canto, we find the message of Lord Buddha. The poem is long and narrative. Its beautiful diction and figures of speech add to the charm of the poem. The style is very interesting and charming.

(“The Light of Asia’ भगवान् बुद्ध के जीवन पर एक महाकाव्य है। यह Sir Edwin Arnold की सर्वोत्तम रचनाओं में से एक है। इस कविता के माध्यम से कवि ने भगवान् बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं को वर्णन किया है। उन्होंने इसमें बुद्ध का जन्म, उनके जीवन के प्रारम्भ के अनुभव, उनका संन्यास तथा उनकी शिक्षाओं का वर्णन किया है।

पुस्तक को आठ काण्डों में बाँटा गया है। पहले सात काण्डों में बुद्ध के जन्म, उनके जीवन तथा उनके आरम्भ के अनुभवों का वर्णन किया है। आठवें तथा अन्तिम काण्ड में हमें भगवान् बुद्ध का सन्देश मिलता है। कविता लम्बी तथा वर्णनात्मक है। इसका ढंग तथा अलंकारों का प्रयोग इसकी सुन्दरता को और अधिक बढ़ाता है। इसकी भाषा बहुत रोचक तथा सुन्दर है।)

POEM at a Glance

Childhood of the Prince : The Prince, Siddhartha lived in the palace in an atmosphere of peace and love. All the pleasures and luxuries of life were provided to him. He had no clear knowledge of pains, diseases, old age and death. Sometimes he awoke from his sleep and cried, “I shall come….”. At this, his wife became sad and worried. Then he ordered to let the Veena be sounded to please her.

Message of Veena : One day Veena sounded. The devas were playing on it. They were saying to him, “There are pains in the whole world. Nowhere there is joy. You have taken birth to save the man and to relieve him of his miseries. So you should see their pains and should try to bring deliverance for them.” After sometime Chitra, a maid servant, was singing an ancient tale of love in a wonderful land. Hearing it the Prince was reminded of the message of Veena.

First Visit of the Prince to the City: The Prince desired to go to the city and ordered his “ charioteer, Channa to make the chariot ready. When the king knew it, he ordered that the city should be decorated much. No painful or ugly sight should come on the way of the Prince. So the old men, sick people and handicapped, all were restricted to come out.

At various places a warm welcome was given to the Prince. The city was so much decorated that it looked like a city of magic. When the Prince passed through a gate, he saw a very weak and old man begging. The people were pushing him out of the road. But the Prince stopped them and asked Channa about him. Channa told him, “He is an eighty years old man. Long age has made him so.” The Prince asked, “Does the old age come to everybody ?” Channa replied, “It happens with all.” The Prince was very sad. He at once ordered to go back home. He had seen more sufferings than he hoped. So the Prince came back home. He was so sad that he remained restless the whole night. He remained thinking how love should be defended from time.

The Dream of Shuddhodana : That night the king saw a fearful dream in which he saw seven visions. By the first vision the king saw a beautiful flag which was torn and thrown down into the dust by a strong wind. By the second vision, he saw ten huge elephants. The earth moved when they walked. The Prince was sitting on the leading elephant. By the third vision, he saw Prince sitting in a chariot which was drawn by four fearful horses. By the fourth vision, he saw a moving wheel made of jewels. By the fifth vision, he saw the Prince beating a drum. By the sixth vision, he saw a tower reaching the clouds. The Prince was standing on it and was scattering jewels. The people were collecting them. By the last vision, he saw six men weeping and lamenting.

The Meaning of the Dream : With a great difficulty an old man came and told him the meaning of the seven visions seen by the king. The first vision meant that new faiths would take place of the old ones. Ten elephants were the ten gifts of wisdom by which the Prince would shake the world. Four horses were the four virtues, with the help of which the Prince would get knowledge. The wheel was the wheel of perfect law by which the Prince would save the humanity from sorrow. The stormy sound of the drum meant that the Prince would teach his principles in a loud voice. The tower meant that his principles would grow like the tower. The sixth vision meant that the Prince would scatter the treasure of the perfect law and people would accept them. Lastly there were six men whom the Prince would give knowledge. Then the old man told the king that it all would happen in seven days. Then he went away.

The Second Visit of the Prince to the City : The Prince wanted to see the life as it was. He wanted that the people should not recognise him when he would go to the city. The king also thought that the condition might improve if he allowed him to go to the city again. So, he allowed him. The Prince entered the city as a merchant and Channa as his accountant. So nobody could recognise them.

In the city the Prince saw a sick man moaning and crying for help. He put his head on his knees and solaced him. Then he asked Channa about him. Channa said, “This man has been suffering from any fearful disease. The disease has deserted him of his strength. In the last he will die. Then this disease will attack any other man. So please leave him lest the disease should attack you.” Channa further told the Prince that the disease comes all of a sudden. All pains end.into death. Then the Prince said that this life is full of fears. There is no hope of joy and health.

After this the Prince saw some people carrying a dead body. They were saying, Ram, Ram, O Ram….” They put it on a heap of wood and burnt it to ashes. When the Prince asked Channa about it, he told that all must die one day. The man enjoys his life and dies. He again takes birth and again dies. This cycle of life goes on.

Siddhartha was very sad. He saw towards the sky and thought for a while. Then he said, “The world is caught in the net of woes and death. The pleasures of life are false. They end into sorrow. In our life youth is delightful, old age is painful and then the end is death.” Then he said to Channa, “I have seen more than enough. Now take me home.” The king also was very much worried. When the Prince had reached the palace, the king arranged three times guards at the gate. He banned everybody to see the Prince for seven days because the old man had told that all would happen in seven days.

कविता पर एक दृष्टि

राजकुमार का बचपन- राजकुमार सिद्धार्थ महल में शान्ति, प्रेम और सुख के वातावरण में रहते थे। उन्हें जीवन के समस्त सुख एवं ऐश्वर्य उपलब्ध थे। उन्हें मनुष्य के कष्टों, रोग, बुढ़ापे और मृत्यु का स्पष्ट ज्ञान नहीं था। कभी-कभी वे सोते से चौंक जाते थे और कहते थे, “मैं आऊँगा, मैं आऊँगा।” इस पर उनकी पत्नी यशोधरा चिन्तित एवं दुःखी हो जाती थी। तब वे उसे प्रसन्न करने के लिए वीणा बजाने की आज्ञा देते थे।

वीणा का सन्देश- एक दिन खिड़की पर रखी हुई वीणा बजी। वीणा को देवगण बजा रहे थे। वे उससे कह रहे थे कि संसार में चारों ओर कष्ट ही है। कहीं सुख नहीं है। तुम्हारा जन्मं मनुष्य की रक्षा के लिए तथा उसको उसके दुःखों से मुक्त करने के लिए हुआ है। तुम मनुष्यों के कष्टों को देखो और उन्हें मोक्ष दिलाने का प्रयत्न करो। कुछ समय बाद एक दासी चित्रा एक अद्भुत देश की प्रेम की कहानी गा रही थी। उसे सुनकर राजकुमार को पुन: वीणों के सन्देश का स्मरण हो गया।

राजकुमार का नगर में पहला भ्रमण- राजकुमार ने नगर में जाने की इच्छा प्रकट की। अपने साथी चन्ना को रथ तैयार करने को कहा। जब राजा को इस विषय में पता लगा तब उसने आदेश दिया कि नगर को खूब सजाया जाए। राजकुमार के सामने कोई भी अप्रिय घटना या कष्टदायक दृश्य न आए। अत: नगर के सभी रोगी, वृद्ध और अपाहिज लोगों पर बाहर आने की पाबन्दी लगा दी गई।

स्थान-स्थान पर राजकुमार का खूब स्वागत हुआ। नगर इतना सजा हुआ था कि जादू का सा नगर लगता था। जब राजकुमार एक द्वार से निकले तब उन्हें एक अत्यन्त दुर्बल एवं बूढ़ा मनुष्य भिक्षा माँगता हुआ दिखाई दिया। लोग उसे सड़क से धकेल रहे थे, किन्तु राजकुमार ने उन्हें रोका और चन्ना से उसके विषय में पूछा। चन्ना ने बताया कि वह अस्सी वर्ष का बूढ़ा है और लम्बी आयु ने उसे ऐसा बना दिया है। राजकुमार ने पूछा कि क्या ऐसा बुढ़ापा सभी को आता है ? चन्ना ने उत्तर दिया कि सभी के साथ ऐसा होता है। राजकुमार अत्यन्त दु:खी हुए। उन्होंने तुरन्त घर लौटने की आज्ञा दी। उन्होंने आशा से अधिक दुःख देख लिया था, अत: राजकुमार घर लौट आए। वे इतने उदास थे कि पूरी रात बेचैन रहे। वे सोचते रहे कि प्रेम की समय से रक्षा कैसे की जाए।

राजा शुद्धोदन का स्वप्न- उसी रात राजा ने एक भयानक स्वप्न देखा जिसमें उसने सात दृश्य देखे। सबसे पहले उसने एक बड़ा सुन्दर झण्डा देखा जिसे हवा ने फाड़कर मिट्टी में मिला दिया था। दूसरे दृश्य में उसने दस बड़े हाथी देखे जिनके चलने से पृथ्वी हिलती थी। सबसे आगे वाले हाथी पर राजकुमार बैठा हुआ था। तीसरे दृश्य में राजा ने राजकुमार को एक रथ में बैठा हुआ देखा, जिसे चार भयानक घोड़े खींच रहे थे। चौथे दृश्य में उसने एक सोने और हीरों का बना हुआ घूमता हुआ चक्र देखा। पाँचवें दृश्य में उसने नगर के बीच राजकुमार को जोर-जोर से एक ढोल पीटते हुए देखा। छठे दृश्य में उसने राजकुमार को एक बादलों को छूती हुई मीनार पर खड़े देखा और वे चारों दिशाओं में हीरे-जवाहरात बिखेर रहे थे और लोग उन्हें इकट्ठा कर रहे थे। अन्त में उन्होंने छः व्यक्तियों को रोते हुए और विलाप करते हुए देखा।

स्वप्न का अर्थ- बड़ी कठिनाई से राजा के पास एक बूढ़ा व्यक्ति आया जिसने उसके स्वप्न के सात दृश्यों का अर्थ बताया। पहले दृश्य का अर्थ था कि पुराने विश्वासों के स्थान पर नये विश्वास आ जाएँगे। दस हाथी बुद्धिमानी के दस उपहार थे जिनसे राजकुमार संसार को हिला देंगे। चार घोड़े चार सद्गुण थे जिनसे राजकुमार को ज्ञान प्राप्त होगा। चक्र वह सम्पूर्ण नियम था जिससे राजकुमार मानव जाति को दु:खों से बचाएँगे। ढोल की आवाज यह प्रदर्शित करती थी कि किस प्रकार राजकुमार ऊँची आवाज में अपने सिद्धान्तों का उपदेश देंगे। ऊँची मीनार का अर्थ था कि उसके उपदेश आकाश तक फैलेंगे। छठे दृश्य का अर्थ था कि राजकुमार रनों के समान अपने बहुमूल्य उपदेश देंगे और लोग उन्हें स्वीकार करेंगे। छ: व्यक्ति वे व्यक्ति थे जिन्हें राजकुमार सर्वप्रथम ज्ञान एवं उपदेश देंगे। तपस्वी ने यह भी बताया कि यह सब कुछ सात दिन में हो जाएगा। इसके पश्चात् वह तपस्वी चला गया।

राजकुमार का नगर में दूसरा भ्रमण- राजकुमार चाहते थे कि वे लोगों के जीवन को वास्तविक स्थिति में देखें। वह चाहते थे कि जब वे नगर को भ्रमण करें तो लोग उन्हें पहचाने नहीं। राजा भी सोचते थे कि यदि उन्हें नगर को पुनः जाने की स्वीकृति दे दी जाए तब शायद इससे स्थिति सुधर जाए। अतः उन्होंने राजकुमार को नगर में जाने की स्वीकृति दे दी। राजकुमार ने नगर में एक व्यापारी के रूप में प्रवेश किया और चन्ना उनका मुनीम बना। अतः कोई भी व्यक्ति उन्हें पहचान नहीं सका।

नगर में राजकुमार ने एक बीमार आदमी को सहायता के लिए कराहते हुए देखा। उन्होंने उसका सिर अपने घुटने पर रखा और सान्त्वना दी। फिर उन्होंने उसके विषय में चन्ना से पूछा। चन्ना ने कहा, “यह आदमी किसी भयानक रोग से पीड़ित है। रोग ने उसकी शक्ति को नष्ट कर दिया है। अन्त में यह व्यक्ति मर जाएगा। तब यह रोग इसे छोड़कर किसी अन्य व्यक्ति पर आक्रमण करेगा। अतः आप इसे छोड़ दें कहीं यह रोग आप पर आक्रमण न कर दे।’ चन्ना ने राजकुमार को आगे बताया कि रोग अकस्मात् आता है। सभी कष्टों का अन्त मृत्यु है। तब राजकुमार ने कहा कि जीवन भय से भरा हुआ है। सुख तथा स्वास्थ्य का कोई भरोसा नहीं।

इसके पश्चात् राजकुमार ने कुछ लोगों को एक शव को ले जाते हुए देखा। वे कह रहे थे, “राम नाम सत्य है…….” उन्होंने उसे नदी के किनारे चिता पर रखकर फेंक दिया। शीघ्र ही वह जलकर राख हो गया। इस विषय में राजकुमार के पूछने पर चन्ना ने बताया कि एक दिन सभी को मरना है। मनुष्य जीवन के सुख भोगता है और मर जाता है। वह पुनः जन्म लेता है और पुनः मर जाता है। यही चक्र चलता रहता है।

सिद्धार्थ बहुत दु:खी हुए, उन्होंने आकाश की ओर देखा और कुछ सोचा, फिर उन्होंने कहा, “यह संसार कष्टों और मृत्यु के जाल में फंसा है। जीवन के सुख मिथ्या हैं। उनका अन्त कष्ट है। जीवन में यौवन आनन्दमय होता है, फिर बुढ़ापा कष्टमय और अन्त मृत्यु है।” उन्होंने चन्ना से कहा, “मैंने बहुत कुछ देख लिया है। अब मुझे घर ले चलो।” राजा भी बहुत चिन्तित थे। राजकुमार के महल में पहुँचने के बाद राजा ने तीन गुना पहरा लगा दिया और किसी के भी राजकुमार से मिलने पर सात दिन की पाबन्दी लगा दी, क्योंकि साधु ने बताया था कि सात दिन में सभी कुछ हो जाएगा।

Long Answer Type Questions

Answer One of the following questions in about 150 words :

Question 1.
What disturbed the calm of Siddhartha’s mind even among the pleasures and luxuries of the palace ? [M. Imp.]
(राजमहल के आनन्दों एवं ऐश्वर्यों के बीच भी कौन-सी बात सिद्धार्थ के मन की शान्ति को बाधा पहुँचाती थी ?)
Or
Why did Prince often become sad even in the midst of all pleasures ?
(सभी प्रकार के सुखों के बीच भी राजकुमार बहुधा दु:खी क्यों हो जाते थे ?)
Or
Why was the Prince Siddhartha unhappy even among the pleasures and luxuries of the
palace ?
(महलों के सुख और ऐश्वर्यों के बीच सिद्धार्थ क्यों खुश नहीं थे ?)
Or
Why was Siddhartha unhappy even among the pleasures and luxuries of the world?
(संसार के सुख और ऐश्वर्यों के बीच सिद्धार्थ क्यों खुश नहीं थे ?)
Answer:
1. Siddhartha’s life in the palace with his wife: Prince Siddhartha was the son of king Suddhodana, the ruler of a mighty empire. The Prince passed a life of kingly pleasures and luxuries. He was living in an atmosphere of perfect bliss. He knew nothing about pains, sufferings, diseases, old age, death, etc. because he never went out of the palace. His wife Yashodhara was very beautiful and gentle. She always shared his pains and sufferings.

2. Message of Gods: But Siddhartha was a very thoughtful man. So he had no mental peace, He often used to cry, “My world! Oh world! I hear! I hear! I knew ! I come !” Once he heard a message of gods on Veena. The gods told him, “Leave your personal love and attachments. Life is but an empty show. It is full of miseries. This worldly love is for the ordinary people. You have some higher spiritual mission to fulfil in life. You have to save the entire humanity from the miseries of life. You have to be the saviour of mankind.”.

Conclusion : So Prince Siddhartha was always restless. Whenever he thought of this message, he desired to see the miseries of the world with his own eyes. He wanted to see the sufferings of mankind. Thus the message of the wind about the miseries of the world disturbed the calm of Siddhartha’s mind. The kingly pleasures were of no use for him.

[ 1. महल में अपनी पत्नी के साथ सिद्धार्थ का जीवन- राजकुमार सिद्धार्थ एक शक्तिशाली राज्य के शासक राजा शुद्धोदन के पुत्र थे। राजकुमार ने राजसी आनन्दों एवं ऐश्वर्यों का जीवन व्यतीत किया। वह पूर्ण आनन्द के वातावरण में रह रहे थे। वह दु:खों, कष्टों, बीमारी, बुढ़ापा, मृत्यु आदि के विषय में कुछ भी नहीं जानते थे, क्योंकि वह मेहल के बाहर कभी नहीं गए थे। उनकी पत्नी यशोधरा भी बहुत सुन्दर और सुशील थी। वह सदा उनके दुःखों तथा कष्टों में हिस्सा बंटाती थी।

2. देवताओं को सन्देश- किन्तु सिद्धार्थ अत्यन्त विचारशील व्यक्ति थे। इसलिए उन्हें मानसिक शान्ति न थी। वह बहुधा चिल्लाया करते थे, “मेरा संसार ! अरे संसार ! मैं सुन रहा हूँ ! मैं सुन रहा हूँ! मैं जानता हूँ ! मैं आया !” एक बार उन्होंने वीणा पर देवताओं का एक सन्देश सुना। देवताओं ने उन्हें बताया, “अपने व्यक्तिगत प्रेम और आसक्ति को त्याग दो। जीवन केवल एक दिखावा है। यह दु:खों से भरा हुआ है। यह भौतिक प्रेम साधारण व्यक्तियों के लिए है। तुम्हें अपने जीवन में एक महान् आध्यात्मिक कार्य को पूरा करना है। तुम्हें सम्पूर्ण मानव जाति को जीवन के दुःखों से बचाना है। तुम्हें सम्पूर्ण मानव जाति का रक्षक बनना है।”

3. निष्कर्ष- इसलिए राजकुमार सिद्धार्थ सदा बेचैन रहते थे। जब भी वे इस सन्देश के विषय में सोचते थे, तभी वे संसार के दुःखों को अपनी आँखों से देखने की इच्छा करते थे। वे मानव जाति के कष्टों को देखना चाहते थे। इस प्रकार संसार के दुःखों के विषय में हवा के सन्देश ने सिद्धार्थ के मस्तिष्क की शान्ति को भंग . कर दिया। राजसी सुख उनके लिए व्यर्थ थे।]

Question 2.
Write in short the message which the music of the wind sang in the Prince’s ears.
(वायु के संगीत ने जो सन्देश राजकुमार के कानों में गाया उसे संक्षेप में लिखिए।)
Or
What does the Prince say about life and the world in the poem ‘The Light of Asia’?
(“The Light of Asia’ नामक कविता में राजकुमार जीवन और संसार के विषय में क्या कहते हैं?)
Or
What message did the wind-music convey to the Prince Siddhartha ?
(वायु के संगीत ने राजकुमार सिद्धार्थ को क्या सन्देश दिया?)
Answer:
1. Introduction : The Prince Siddhartha was passing a life of kingly pleasures and luxuries. He was living in an atmosphere of perfect bliss. One day the veena was placed on the window still. The wind touched its strings and it produced random wild music. The people around it heard only this music but could not understand it. It was the message of Devas (Gods) to the Prince’s ear. So only Siddhartha could understand it.

2. About Devos, this world and life: The gods said, “O Prince, we wander on the whole earth. We see pains and sufferings everywhere. Nobody is happy. Life is a struggle. It is like the wind. Man does not know from where he has come. Why has he come here and where will he go ?”

3. About worldly love : They again said, “Leave all your personal love and attachment. You have a spiritual mission to fulfil in your life. This worldly love is not for you but for the ordinary people. Love is not lasting and life is only an empty show. You are surrounded with pleasures. But these are all false and they end into sufferings.”

4. About the mission of his life: In the end, the gods again said to the Prince, “You are not an ordinary man. You have been sent into this world with a special purpose. It is your duty to save the mankind from sufferings. Now the proper time has come. So stand up and see the sufferings of mankind with your own eyes. Then find the ways to make them free from these sufferings.”

[ 1. परिचय- राजकुमार सिद्धार्थ राजसी सुख एवं ऐश्वर्य का जीवन व्यतीत कर रहे थे। वे पूर्ण आनन्द के वातावरण में रह रहे थे। एक दिन वीणा खिड़की की देहली पर रखी थी। हवा ने इसकी डोरियों को छुआ और अचानक तेजे संगीत पैदा हुआ। इस वीणा के चारों ओर जो व्यक्ति थे उन्होंने इस संगीत को सुना, किन्तु वे इसे समझ नहीं सके। यह राजकुमार के कानों में देवताओं का सन्देश था। इसलिए केवल सिद्धार्थ ही इसे समझ सके।

2. देवताओं, संसार तथा जीवन के विषय में- देवताओं ने कहा, “ऐ राजकुमार, हम पूरे संसार में घूमते हैं। हम सभी स्थानों पर कष्टों और दुःखों को देखते हैं। कोई भी व्यक्ति प्रसन्न नहीं है। जीवन एक संघर्ष है। यह हवा के समान है। मनुष्य यह नहीं जानता कि वह कहाँ से आया है ? वह यहाँ क्यों आया है और कहाँ जाएगा ?”

3. सांसारिक प्रेम के विषय में- उन्होंने पुन: कहा, “अपने व्यक्तिगत प्रेम तथा आकर्षणों को त्याग दो। तुम्हें अपने जीवन में एक आध्यात्मिक लक्ष्य को पाना है। सांसारिक प्रेम तुम्हारे लिए नहीं है, बल्कि साधारण व्यक्तियों के लिए है। प्रेम स्थायी नहीं होता है और जीवन केवल एक दिखावा मात्र है। तुम आनन्दों से घिरे हुए हो, किन्तु यह सभी झूठे हैं और उनका अन्त कष्टकारी है।”

4. उसके जीवन के उद्देश्य के विषय में- अन्त में देवताओं ने पुनः राजकुमार से कहा, “तुम एक साधारण मनुष्य नहीं हो। तुम्हें इस संसार में एक विशेष उद्देश्य के लिए भेजा गया है, अत: तुम्हारा यह कर्तव्य है कि मानव जाति को कष्टों से बचाओ। अब उचित समय आ गया है। इसलिए उठ खड़े होओ और मानव जाति के कष्टों को अपनी आँखों से देखो। फिर इन कष्टों से उन्हें मुक्त करने के उपाय ढूँढ़ो।”]

Question 3.
Why was the king worried about the prince ? What did he do to divert his mind to the life and pleasures of the palace ?
(राजा, राजकुमार के विषय में क्यों चिन्तित थे ? उन्होंने उसके मस्तिष्क को जीवन तथा महल के आनन्दों की ओर मोड़ने के लिए क्या किया ?)
Answer:
The Prince Siddhartha was the only son of king Shuddhodana. So the king was very happy and loved him very much. He provided the Prince all pleasures and luxuries of the palace. But one day a hermit prophesied that the prince Siddhartha would be a great king or saint. He would forsake worldly life and would embrace a religious life. At this thought the king was much troubled. Whenever he recalled the prophecy of the saint, he was worried.

So the king did his best to divert the Prince’s mind to the life and pleasures of the palace. The king did not want that the Prince should leave the world. He wanted to see him a great king. So, he arranged his marriage with the most beautiful princess Yashodhara.

One day the Prince desired to go to the city. The king allowed him. He made proper arrangements and ordered his charioteer channa to go with the Prince. He also ordered that the city should be decorated. There should be no painful sight on the way of the Prince, no ailing or old man should come on his way. He did all this to keep the Prince away from the pain and suffering of the world.

But all the attempts of the king failed. The Prince wanted to go out again quite unknown to the people. He saw those sights that changed his mind. Thus the king could not shut out the fate.

[ राजकुमार सिद्धार्थ, राजा शुद्धोदन के इकलौते पुत्र थे। इसलिए राजा बहुत प्रसन्न थे और उन्हें अत्यधिक प्यार करते थे। उन्होंने राजकुमार को महल के सभी सुख और विलासिताएँ प्रदान कीं। किन्तु एक दिन एक साधु ने भविष्यवाणी की कि राजकुमार सिद्धार्थ या तो एक महान् राजा बनेंगे या साधु। वे सांसारिक जीवन का त्याग कर देंगे और धार्मिक जीवन को अपना लेंगे, इस विचार से राजा बहुत परेशान थे, जब भी उन्हें साधु की भविष्यवाणी याद आती थी, वे परेशान हो जाते थे।

अत: राजा ने राजकुमार के मन को महल के आनन्दों और जीवन की ओर मोड़ने का भरसक प्रयास किया, राजा ये नहीं चाहते थे कि राजकुमार संसार का त्याग करें, वे उन्हें एक महान् राजा देखना चाहते थे, अतः उन्होंने एक अत्यन्त सुन्दर राजकुमारी यशोधरा से उनका विवाह निश्चित कर दिया।

एक दिन राजकुमार ने नगर में जाने की इच्छा प्रकट की। राजा ने उन्हें स्वीकृति प्रदान कर दी। उन्होंने उचित प्रबन्ध किए और आदेश दिया कि उनका सारथी चन्ना उनके साथ जाए। उन्होंने यह भी आदेश दिया कि नगर को सजाया जाए। राजकुमार के रास्ते में कोई भी दु:खदायी दृश्य न आए। कोई भी रोगी या बूढ़ा व्यक्ति उनके मार्ग में न आए। उन्होंने यह सभी कुछ राजकुमार को संसार के दु:खों और कष्टों से दूर रखने के लिए किया।

किन्तु राजा की सभी कोशिशें विफल हो गईं। राजकुमार ने जनता के बिना जाने, चुपचाप पुनः बाहर जाना चाहा। उन्होंने वे दृश्य देखे जिन्होंने उनके मन को बदल दिया। इस प्रकार राजा भाग्य के लिखे को मिटा नहीं सके।]

Question 4.
Why did king Shuddhodana send words to his people to decorate the city and make it look gay and happy for the Prince’s visit ? [M. Imp.]
(राजा शुद्धोधन ने अपनी प्रजा के पास यह समाचार क्यों भेजा कि वे राजकुमार के दौरे के समय नगर को सजाएँ और इसे आनन्द से भरपूर एवं सुखमय बनाएँ ?)
Or
Why did the king try to keep the Prince away from the pain and sufferings of the world?
(राजा ने यह कोशिश क्यों की कि राजकुमार संसार के कष्टों और दु:खों से दूर रहे ?)
Answer:
1. King’s efforts to make the Prince interested in worldly life : The king Shuddhodana loved the Prince very much because his mother had died when he was only seven days old. He was the only son of his father. The Prince was a born thinker. He had no interest in worldly life since his childhood. The king tried his best that the Prince should become interested in worldly life. The dream readers also had predicted him that the Prince would be either the king of kings or a great preacher and he would renounce the world.

2. Desire of the Prince to see the outside world: One day the Prince heard the music on Veena.. In reality it was the message of gods for him. So he desired to go to the city. He sought permission of the king to go round the city and see the outside world. The king gave him permission to see for himself the kingdom and its subjects. He made proper arrangements and ordered his charioteer Channa to go with the Prince.

3. Precautions made by the king : The king remembered of dream readers and he was doubtful of the Prince. So he ordered that the city should be decorated. There should be no painful sight on the way of the Prince. No ailing man or old man should come on his way. The aim of the king in doing so was that the Prince should be away from the pain and sufferings of the world.

[ 1. राजकुमार को सांसारिक जीवन में रुचि लेने के प्रति राजा के प्रयत्न- राजा शुद्धोदन राजकुमार को बहुत प्यार करते थे, क्योंकि उनकी माता का स्वर्गवास उसी समय हो गया था जब वे केवल सात दिन के थे। वे अपने पिता के एकमात्र पुत्र थे। राजकुमार जन्म से ही विचारशील थे। उन्हें सांसारिक जीवन में बचपन से ही कोई रुचि नहीं थी। राजा ने पूरी चेष्टा की कि राजकुमार सांसारिक जीवन में रुचि लेने लगें। सपना पढ़ने वालों ने भी भविष्यवाणी की थी कि या तो राजकुमार राजाओं का राजा बनेगा या एक महान् उपदेशक । तथा वह संसार को त्याग देगा।

2. बाह्य जगत को देखने की राजकुमार की इच्छा- एक दिन राजकुमार ने वीणा पर संगीत सुना। वास्तव में यह उसके लिए देवताओं का सन्देश था। इसलिए उन्होंने नगर में जाने की इच्छा की। उन्होंने राजा से नगर में जाने तथा बाहरी संसार को देखने की स्वीकृति माँगी। राजा ने उन्हें स्वयं राज्य तथा उसकी प्रजा को देखने की स्वीकृति दे दी। उन्होंने उचित प्रबन्ध भी कराये तथा चन्ना नामक सारथी को राजकुमार के साथ जाने की आज्ञा दी।

3. राजा के द्वारा की गई सावधानियाँ- राजा को सपना पढ़ने वालों की भविष्यवाणी याद थी और उन्हें राजकुमार पर सन्देह था। अत: उन्होंने आदेश दिया कि नगर को खूब सजाया जाए। कोई भी दु:खदायी दृश्य राजकुमार के रास्ते में न आए। कोई बीमार या बूढ़ा आदमी उनके रास्ते में न आए। ऐसा करने में राजा का यह उद्देश्य था. कि राजकुमार संसार के कष्टों और दु:खों से दूर रहें। ]

Question 5.
Describe the city of Kapilvastu as it looked like on the Prince’s first visit.
(राजकुमार के प्रथम दौरे के समय कपिलवस्तु नगर जैसा लग रहा था, उसका वर्णन कीजिए।)
Or
What were the preparations made in Kapilvastu for the visit of the Prince and why ?
(राजकुमार के दौरे के समय कपिलवस्तु में क्या-क्या तैयारियाँ की गईं और क्यों ?)
Or
How was the city decorated on the Prince’s first visit to it ? How did the – people welcome the Prince ?
(राजकुमार के पहले दौरे पर नगर को कैसे सजाया गया ? लोगों ने राजकुमार का स्वागत कैसे किया ?)
Or
Describe the preparations made in Kapilvastu to welcome Prince • Siddhartha on his maideu visit ?
(राजकुमार सिद्धार्थ के प्रथम दौरे के समय कपिलवस्तु में की गयी तैयारियों का वर्णन कीजिए।)
Answer:
1. Effect of king’s dream: The Prince had no interest in wordly life. The king had dreamt that the Prince would renounce the world and he would become a preacher. So the king ordered that the city should be decorated so that it might look gay and happy. In doing this the aim of the king was that the Prince should be attracted towards the world.

2. Cleanliness and decoration in the city : The whole of the city was cleaned and decorated. The water carriers sprinkled water on the streets. The house-wives scattered fresh red powder before their houses. The flower garlands were hanging on the doors. There were beautiful paintings on the walls. The sun was shining and the sunlight was making the crossings very beautiful. The city looked like an enchanted city.

3. Warm welcome of the Prince in the city: There was no evil sight on the street. No blind, sick, weak or old man was allowed to walk on the road. Many people were beating drums. They were welcoming the Prince in different ways. Some people offered rice, cake, etc. to the Prince at different places. They were crying “Jai ! Jai! for our noble Prince.” Thus whole of the way was full of pleasant scenes. The Prince was very glad to see all this.

[ 1. राजा के स्वप्न का प्रभाव- राजकुमार को सांसारिक जीवन में कोई रुचि नहीं थी। राजा ने स्वप्न देखा था कि राजकुमार संसार को छोड़ देंगे और साधु बन जाएँगे। इसलिए राजा ने आदेश दिया कि नगर को सजाया जाए जिससे वह आनन्ददायक दिखाई दे। ऐसा करने में राजा का उद्देश्य था कि राजकुमार संसार की ओर आकर्षित हो जाएँ।

2. नगर में सफाई और सजावट- पूरे नगर की सफाई की गई और उसे सजाया गया। भिश्तियों ने सड़क पर पानी छिड़का, औरतों ने अपने दरवाजों के सामने लाल सिंदूर छिड़का। दरवाजों पर फूलों की मालाएँ। लटकाई गईं। दीवारों पर सुन्दर चित्र लगाए गए। सूर्य चमक रहा था और धूप चौराहों को सुन्दर बना रही थी। नगर एक जादू की नगरी के समान दिख रहा था।

3. नगर में राजकुमार का भव्य स्वागत- सड़क पर कोई भी अप्रिय दृश्य नहीं था। किसी भी अन्धे. बीमार, कमजोर या बूढ़े मनुष्य को सड़क पर आने की स्वीकृति नहीं थी। बहुत-से लोग ढोल बजा रहे थे। वे भिन्न-भिन्न प्रकार से राजकुमार का स्वागत कर रहे थे। बहुत-से लोगों ने राजकुमार को भिन्न-भिन्न स्थानों पर चावल, केक, आदि भेंट किए। वे जोर-जोर से कह रहे थे, हमारे अच्छे राजकुमार की जय हो।’ इस प्रकार पूरा मार्ग आनन्ददायक दृश्यों से भरा हुआ था। राजकुमार इन सभी को देखकर प्रसन्न हुए।]

Question 6.
What did the Prince think when he saw an old man during his first visit to the city?
(जब राजकुमार ने अपने प्रथम भ्रमण के समय बूढ़े मनुष्य को देखा तब उन्होंने क्या सोचा?).
Answer:
1. Appearance of an old man : The Prince was very happy to see the beautiful scenes of the city during his first visit. It was the order of the king that no painful sight should come before the Prince. But all of a sudden an old man came out on the road before the Prince. His clothes were dirty and torn. His skin was dry and burnt brown by the sun. He had no flesh on his bones and no teeth in the mouth. He balanced himself on an old stick with great difficulty. He was feeling a great trouble in breathing also. He was begging alms. Although he could not speak due to cough yet he continued begging and spreading his hand. He was winking his eyes. His condition was so pitiable that it melted the heart of the Prince.

2. Channa’s statement about his condition: The Prince asked Channa about that man. Channa replied that he was an old man of 80 years of age. In his young age he was quite handsome and healthy. But the old age has made his life miserable. He is about to die now. He also advised the Prince not to look at him.

3. Condervation between the Prince and Channa: The Prince was very much disturbed again. He asked Channa, “Does it happen to all ?” Channa replied that th people who live long meet the same end. Again the Prince said, “If I and Yashodhara live long, shall we also meet the same end?” Channa said, “It is a must.” At this the Prince was so much disturbed that he asked Channa to return as he had never thought to see such things.

[ 1. एक बूढ़े आदमी का प्रकट होना- नगर में अपने प्रथम भ्रमण के समय सुन्दर दृश्यों को देखकर राजकुमार बहुत प्रसन्न थे। राजा को यह आदेश था कि कोई भी दुःखदायी दृश्य राजकुमार के सामने न आए। किन्तु अचानक एक बूढ़ा आदमी जकुमार के सामने सड़क पर आ गया। उसके कपड़े गन्दे और फटे हुए थे। उसकी त्वचा खुश्क तथा सूर्य की धूप से जलकर भूरी हो गयी थी। उसकी हड्डियों पर मांस न था और न मुँह में दाँत। वह बड़ी कठिनाई से अपने आपको एक छड़ी के सहारे साधे हुए था। साँस लेने में भी उसे बड़ी कठिनाई हो रही थी। वह भीख माँग रहा था। यद्यपि खाँसी एवं बलगम के कारण वह बोल नहीं सकता था फिर भी वह भीख माँगता रहा और हाथ फैलाता रहा। वह अपनी आँखें झपका रहा था। उसकी दशा इतनी दयनीय थी कि उसने राजकुमार के हृदय को भी पिघला दिया।

2. उसकी दशा के विषय में चन्ना का कथन- राजकुमार ने चन्ना से उस मनुष्य के विषय में पूछा। चन्ना ने उत्तर दिया कि वह 80 वर्ष का बूढ़ा है। अपनी युवावस्था में वह अत्यन्त सुन्दर एवं स्वस्थ था। किन्तु बुढ़ापे ने उसके जीवन को दु:खदायी बना दिया है। वह अब मरने वाला है। उसने राजकुमार को यह भी सलाह दी कि वे उसे न देखें।

3. राजकुमार और चन्ना के बीच वार्तालाप- राजकुमार पुनः अत्यन्त विचलित हो गए। उन्होंने चन्ना से पूछा, “क्या ऐसा सभी के साथ घटित होता है ?’ चन्नी ने उत्तर दिया कि जो व्यक्ति अधिक दिनों तक जीते हैं उन सभी का यही अन्त होता है। राजकुमार ने पुन: कहा, “यदि मैं और यशोधरां अधिक दिनों तक जीवित रहे तो क्या हमारा भी यही अन्त होगा ?’ चन्ना ने कहा कि यह अवश्यम्भावी है। इस पर राजकुमार इतने विचलित हो गये कि उन्होंने चन्ना से लौटने के लिए कहा, क्योंकि ऐसी बातें देखने का विचार भी उनके मन में कभी नहीं आया था। ]

Question 7.
Narrate in short the conversation that took place between the Prince and Channa while the Prince was holding the sick man. [M. Imp.]
(राजकुमार और चन्ना के बीच की बातचीत का संक्षेप में वर्णन कीजिए जबकिं राजकुमार बीमार आदमी को सँभाले हुए थे।)
Or
What did Channa tell the Prince about the sick man ? Hearing it what were the feelings of the Prince ?
(चन्ना ने उस बीमार व्यक्ति के विषय में राजकुमार को क्या बताया ? यह सुनकर राजकुमार की क्या भावनाएँ थीं ?)
Or
What does the Prince say to Channa when he sees the sick man ?
(जब राजकुमार ने बीमार आदमी को देखा तब उन्होंने चन्ना से क्या कहा ?)
Answer:
1. Appearance of a sick man : The Prince visited the city second time as a merchant. Channa was disguised as his clerk. They saw different types of people crying and moaning. They were passing over a river bridge when the Prince saw a very sick man. He was crying for help. The Prince took pity on him and lifted him. He put his head on his knees. The sick man felt some relief.

2. Channa’s reply to the Prince about his condition : Then the Prince asked Channa, “Why is his condition so pitiable ?” Channa’answered, “This man is suffering from any fatal disease. His blood is hot. His heart is not beating properly. His strength has gone. He will die soon. Then the disease would go and attack some other person.” He advised the Prince also not to hold him lest the disease should strike him.

3. Old age and death are inevitable : Then the Prince asked if other people also suffered like that. Channa answered, “The disease comes to all in one form or the other.” In reply to various questions of the Prince, Channa told him that the diseases come secretly and suddenly. All men live in fear and none can say that he would wake up as he had slept. Channa told him that the men who live long enough grow old and in the end they die.

[ 1. बीमार आदमी का प्रकट होना- राजकुमार ने नगर का दूसरी बार भ्रमण, एक व्यापारी के रूप में किया। चन्ना ने मुनीम का भेष बदल लिया था। उन्होंने भिन्न-भिन्न प्रकार के लोगों को कराहते हुए और चिल्लाते हुए सुना। वे नदी के एक पुल पर से गुजर रहे थे जब राजकुमार ने एक अत्यन्त बीमार आदमी को देखा। वह सहायता के लिए चिल्ला रहा था। राजकुमार ने उस पर दया की और उसे उठा लिया। उन्होंने उसका सिर अपने घुटनों पर रख लिया। बीमार आदमी ने अत्यन्त आराम का अनुभव किया।

2. उसकी दशा के विषय में चन्ना का राजकुमार को उत्तर- फिर राजकुमार ने चन्ना से पूछा, “इसकी दशा इतनी दयनीय क्यों है ?” चन्ना ने उत्तर दिया, “यह आदमी किसी प्राणघातक बीमारी से पीड़ित है। उसका रक्त गर्म है। उसके हृदय की धड़कन ठीक नहीं है। उसकी शक्ति समाप्त हो गई है। वह शीघ्र ही मर जाएगा। फिर बीमारी चली जाएगी और अन्य किसी व्यक्ति पर आक्रमण करेगी।” उसने राजकुमार को यह भी सलाह दी कि वह उस बीमार आदमी को न पकड़े, कहीं ऐसा न हो कि बीमारी उसके ऊपर आक्रमण कर दे।

3. बुढ़ापा और मृत्यु अटल- फिर राजकुमार ने पूछा कि क्या अन्य लोग भी उसके समान कष्ट उठाते हैं। चन्ना ने उत्तर दिया कि बीमारी किसी-न-किसी रूप में सभी को आती है। राजकुमार के भिन्न-भिन्न प्रश्नों के उत्तर में चन्ना ने उन्हें बताया कि बीमारी चुपचाप और अचानक आती है। सभी व्यक्ति भय में रहते हैं और कोई भी नहीं कह सकता कि वह जैसी सोया है वैसा ही उठेगा। चन्ना ने उन्हें बताया कि जो व्यक्ति अधिक दिनों तक जीते हैं, बूढ़े हो जाते हैं और अन्त में वे मर जाते हैं।]

Question 8.
“Is this the end which comes to all who live ?” who says it and what was the reply ?
(“जो व्यक्ति जीवित रहते हैं क्या उन सभी का यही अन्त होता है ?” ये शब्द कौन कहता है और उसे क्या उत्तर मिला ?)
Answer:
Prince Siddhartha said these words when he saw the dead body burning on the pyre. In a very short time it was burnt to ashes. This scene moved the Prince deeply. He asked Channa if that was the fate of every living being. Channa told him that this is the fate of every man. None is immortal in the world.

He further told the Prince that the flesh of a dead body is useless. Even the hungry crows do not eat it. The life of a man is very short. He lives, eats, drinks, laughs, loves and likes life well. Then death comes to him in any form and makes him dead. After death man feels nothing. He has no sense of smell, taste, hearing, sight or touch. His near and dear ones cry for him but there is no reply. Even his dearest ones hate to touch his dead body. It becomes impious for everybody. So this is the fate of every human being.

Hearing this, the eyes of Siddhartha were full of tears. He saw towards the sky and thought for a while. Then he said, “The world is caught in the net of woes and death. The pleasures of life are false. They end into sorrow. In our life youth is delightful, old age is painful and then the end is death.” Then he said to Channa, “I have seen more than enough. Now take me home.”

[ राजकुमार सिद्धार्थ ने ये शब्द उस समय कहे जब उन्होंने एक चिता पर एक लाश को जलते हुए देखा। बहुत थोड़े समय में यह जल कर राख हो गई। इस दृश्य ने राजकुमार को बहुत प्रभावित किया। उन्होंने चन्ना से पूछा कि क्या प्रत्येक जीवित प्राणी का यही अन्त होता है। चन्ना ने उन्हें बताया कि प्रत्येक व्यक्ति का यही अन्त होता है। संसार में कोई भी व्यक्ति अमर नहीं होता है।

उन्होंने राजकुमार को पुनः बताया कि एक मृत व्यक्ति का मांस बेकार होता है। भूखे कौवे भी इसे नहीं खाते। एक मनुष्य का जीवन बहुत छोटा होता है। वह जीवित रहता है, खाता है, पीता है, हँसता है, प्यार करता है। और जीवन को अच्छी प्रकार पसन्द करता है। फिर उसे किसी-न-किसी रूप में मृत्यु आ जाती है और उसे निर्जीव कर देती है। मृत्यु के बाद मनुष्य कुछ भी अनुभव नहीं करता, उसे पूँघने, स्वाद चखने, सुनने, देखने या स्पर्श करने का भी ज्ञान नहीं होता। उसके सगे-सम्बन्धी उसके लिए चिल्लाते हैं किन्तु कोई उत्तर नहीं मिलता। उसके सबसे प्रियजन भी उसके मृत शरीर को छूने से घृणा करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के लिए उसका मृत शरीर अपवित्र हो जाता है। अत: प्रत्येक प्राणी का यही अन्त होता है।

यह सुनकर सिद्धार्थ की आँखों में आँसू आ गए। उसने आकाश की ओर देखा और कुछ देर सोचा, फिर उन्होंने कहा, “संसार विपत्तियों और मृत्यु के जाल में फंसा हुआ है। जीवन के सुख झूठे हैं, उनका अन्त दुःख होता है। हमारे जीवन में युवावस्था आनन्द से भरपूर होती है, बुढ़ापा दुःखदायी होता है और फिर अन्त मृत्यु होती है। फिर उन्होंने चन्ना से कहा, “मैंने आवश्यकता से अधिक देख लिया है, अब मुझे घर ले चलो।”]

Question 9.
What were the seven visions that king Shuddhodana saw in his dream?
(राजा शुद्धोदन ने स्वप्न में कौन-कौन से सात दृश्य देखे ?) [M. Imp.]
Answer:
One night king Shuddhodana saw very awful visions in his dream which made him very upset. He lost all peace of mind. The same night the Prince Siddhartha was restless. He was lost in thinking about the old age and its sufferings. The seven visions dreamt by king Shuddhodana are given below :

  1.  He saw a beautiful broad flag. The sun was shining on it. It was making it bright. A strong wind tore it. It threw the flag into dust. A group of shadowy persons came and took away the flag. They went towards the east.
  2.  Then the king saw ten huge elephants. They had long white tusks. When they walked, the earth moved. The Prince was sitting on the leading elephant. They came on the southern road.
  3.  Then he saw a chariot. The Prince was sitting in it. Four fearful horses were drawing it. White smoke came out of their nostrils and foam came out of their mouth.
  4.  Then he saw a moving wheel. It was bright gold. There were jewels on its spokes. Something was written on tyres. It produced sweet music.
  5.  Then he saw a drum. It was placed between the city and hills. The Prince was beating it with an iron rod. It produced loud sound like thunder.
  6.  Then he saw a tower reaching the clouds. The Prince stood on its top. He was scattering jewels in every direction. The people from the whole world came to collect them.
  7.  Lastly the king saw six men weeping. They had closed their mouths with their hands. They looked very sad.

[ एक रात राजा शुद्धोदन ने अपने सपने में सात भयानक दृश्य देखे जिन्होंने उन्हें बहुत परेशान कर दिया। उनके मन की शान्ति समाप्त हो गई। उसी रात को राजकुमार सिद्धार्थ बहुत बेचैन थे। वे बुढ़ापे के विषय में तथा उसके कष्टों के विषय में सोचने में खोये हुए थे। राजा के द्वारा देखे गये सात दृश्य निम्नलिखित हैं

  1.  उन्होंने एक सुन्दर चौड़ा झण्डा देखा। सूर्य इस पर तेजी से चमक रहा था। यह उसे सुन्दर बना रहा था। एक तेज हवा ने इसे फोड़ दिया। उसने झण्डे को धूल में फेंक दिया। अदृश्य व्यक्तियों का एक समूह आया और झण्डे को ले गया। वे पूर्व की ओर चले गए।
  2.  फिर राजा ने दस बड़े हाथी देखे। उनके सफेद लम्बे-लम्बे दाँत थे। जब वे चलते थे तब पृथ्वी हिलती थी। राजकुमार आगे वाले हाथी पर बैठे थे। वे दक्षिण दिशा की सड़क पर आए।
  3.  फिर उन्होंने एक रथ देखा। राजकुमार इसमें बैठे थे। चोर भयानक घोड़े इसे खींच रहे थे। उनके नथुनों में से सफेद धुआँ और मुँह से झाग निकल रहे थे।
  4.  फिर उन्होंने एक घूमते हुए पहिए को देखा। यह चमकीले सुनहरे रंग का था। इसकी तीलियों पर गहने लटक रहे थे। इसके टायरों पर कुछ लिखा हुआ था। इसमें से मधुर संगीत निकल रहा था।
  5.  फिर उन्होंने एक ढोल देखा। यह नगर और पहाड़ियों के बीच रखा था। राजकुमार एक लोहे की छड़ से इसे बजा रहे थे। यह गरज के समान तेज आवाज पैदा कर रहा था।
  6.  फिर उन्होंने आकाश को छूती हुई एक मीनार देखी। राजकुमार इसकी चोटी पर खड़े थे। वे हर दिशा में हीरे-जवाहरात फेंक रहे थे। पूरे संसार से लोग उन्हें इकट्ठा करने आए।
  7.  अन्त में राजा ने छः आदमियों को रोते हुए देखा। उन्होंने अपने मुँह, अपने हाथों से बन्द कर लिए थे। वे बहुत दुःखी दिखाई दे रहे थे।]

Question 10.
Write in your own words the interpretation of the seven visions as given by the
hermit. [M. Imp.]
(स्वप्न के सातों दृश्यों की साधु के द्वारा बताई गई व्याख्या का वर्णन कीजिए।)
Or
Who interpreted the seven visions of king Suddhodana ? How did he interpret them?
(राजा शुद्धोदन के सात सपनों की व्याख्या किसने और कैसे की ?)
Or
What was the effect of the hermit’s prediction about the future of the Prince on the king of Kapilvastu ?
(राजकुमार के भविष्य के विषय में साधु की भविष्यवाणी का कपिलवस्तु के राजा पर क्या प्रभाव पड़ा?)
Or
What did the old man in robes of deer skin tell the king about his seven fears?
(हिरण की खाल के वस्त्र पहने हुए बूढ़े आदमी ने राजा को सात भय के विषय में क्या बताया ?)
Answer:
The dream was very fearful. So the king was much worried. Nobody in his kingdom could tell him the meaning of the visions. Then an unknown old man came to the king. He was clad in robes of deer skin. He told him the clear meanings of the seven visions.
First vision of flag means that the old faith will change and new faiths will take their place.

The second vision of ten elephants means that the Prince would gain ten gifts of * wisdom. He will shake the world. The four horses of the third vision signify four fearless virtues. These virtues will help the Prince to gain knowledge. This knowledge will make the Prince wise and happy. The wheel of the fourth vision was the wheel of perfect law. The Prince would turn this wheel. Thus he would save the humanity from sorrow.

The stormy sound of the drum in fifth vision means that the Prince would teach his principles in a loud voice.

The tower of the sixth vision means that his principles will grow like the tower. The Prince would scatter the treasure of the perfect law. The people of the world would accept them and follow them.

Lastly there were six men. The Prince would show them the follies of man’s life and would give them knowledge. Thus these six disciples of the Prince will become the teachers. They will preach to the man.

In the end the hermit told the king that all of it would happen in seven days and nights. The Prince would be greater than a king. He would be a great hermit.

[ स्वप्न बहुत भयानक था। इसलिए राजा बहुत चिन्तित था। राज्य में कोई भी व्यक्ति उसे इन दृश्यों का अर्थ न बता सका। तब एक अज्ञात बूढ़ा व्यक्ति राजा के पास आया। वह हिरण की खाल के कपड़े पहने हुए था। उसने उसे सातों दृश्यों के स्पष्ट अर्थ बताये।

झण्डे के पहले दृश्य का अर्थ था कि पुराने विश्वास या आस्थाएँ बदल जाएँगी और नयी उनका स्थान ले लेंगी।

दस हाथियों के दूसरे दृश्य का अर्थ था कि राजकुमार बुद्धि के उपहार प्राप्त करेंगे। वह संसार को हिला देंगे। तीसरे दृश्य के चार घोड़ों का अर्थ था, चार भयरहित गुण। ये गुण राजकुमार को ज्ञान प्राप्त करने में सहायता करेंगे। यह ज्ञान राजकुमार को बुद्धिमान् एवं प्रसन्न बनाएगा।

चौथे दृश्य का चक्र सम्पूर्ण नियमों का चक्र था। राजकुमार इस चक्र को घुमाएगा। इस प्रकार वह मानव जाति को दुःख से बचाएगा।

पाँचवें दृश्य में ढोल की तेज आवाज का अर्थ था कि राजकुमार अपने सिद्धान्तों को जोर की आवाज में सिखाएगा।

छठे दृश्य की मीनार का अर्थ है कि उसके सिद्धान्त मीनार के समान दूर तक फैलेंगे। राजकुमार सम्पूर्ण नियमों के रत्नों को बिखेरेगा। संसार के लोग उन्हें स्वीकार करेंगे और उनका अनुसरण करेंगे।

अन्त: में उसने छ: व्यक्ति देखे। राजकुमार उन्हें मनुष्य के जीवन की मूर्खताओं को दिखाएगा और उन्हें ज्ञान देगा। इस प्रकार राजकुमार के ये छः शिष्य गुरु बन जाएँगे। वे मनुष्य को उपदेश देंगे।

अन्त में साधु ने राजा को बताया कि यह सभी कुछ सात दिन में हो जाएगा। राजकुमार एक राजा से भी महान् होगा। वह बड़ा साधु होगा। ]

Question 11.
Describe in short, the procession of the dead body and its cremation as seen by the Prince.
(राजकुमार ने जो शवयात्रा तथा दाह-संस्कार देखा उसका संक्षेप में वर्णन कीजिए।)
Or
Describe the scene that moved Siddhartha the most.
(उस दृश्य का वर्णन कीजिए जिसने सिद्धार्थ को हिला दिया।)
Answer:
1. Second visit of the Prince to the city: The Prince Siddhartha wanted to see the city as it was. He put on the dress of a merchant and went to the city with Channa. It was his second visit. Nobody could recognise him. The Prince saw different sights in the city. Channa explained him why it all happened.

2. Procession of the dead body and other people : In the mean-time the Prince saw a dead body. Four men were carrying it on a bier on their shoulders. Some people were going behind it. They were lamenting. One of them had an earthen bowl in his hand. There were lighted coals in it. They were going to a river bank crying “Ram, Ram, o Ram, etc.”

3. Pyre and cremation of the dead body : On the river bank there was a heap of wood. They laid the dead body on it. Then they put some heavy and thick twigs of wood on it. Then they lit fire on the four corners of the pyre. Soon the whole of the heap of wood turned into ashes. Only some white bones were there in the ashes. The Prince saw this scene and lamented very much. Channa told him that this is the end which every living man meets. The scene moved Siddhartha the most.’

[ 1. राजकुमार का नगर में दूसरा भ्रमण- राजकुमार सिद्धार्थ, नगर को उसके वास्तविक रूप में देखना चाहते थे। उन्होंने एक व्यापारी के कपड़े पहने और चन्ना के साथ नगर को चले गए। यह उनका दूसरा भ्रमण था। उन्हें कोई भी व्यक्ति पहचान नहीं सका। राजकुमार ने नगर में भिन्न-भिन्न दृश्य देखे। चन्ना ने उन्हें समझाया कि ऐसा क्यों होता है।

2. शवयात्रा तथा अन्य व्यक्ति- इसी बीच राजकुमार ने एक लाश देखी। चार आदमी इसे एक बाँस की अर्थी पर अपने कन्धों पर ले जा रहे थे। कुछ व्यक्ति इसके पीछे जा रहे थे। वे विलाप कर रहे थे। एक के हाथ में मिट्टी का एक कटोरा था। इसमें सुलगते हुए कोयले थे। वे राम-राम कहते हुए एक नदी के किनारे की ओर जा रहे थे।

3. चिता तथा शवदाह- नदी के किनारे लकड़ियों का ढेर था। उन्होंने लाश को उस पर रख दिया। फिर उन्होंने उस पर लकड़ी के कुछ मोटे और भारी लट्ठे रखे। फिर उन्होंने इस चिता के चारों कोनों पर आग लगा दी। शीघ्र ही लकड़ियों का पूरा ढेर जलकर राख हो गया। राख में केवल कुछ सफेद हड्डियाँ ही बचीं। राजकुमार ने इस दृश्य को देखा और बहुत दु:खी हुआ। चन्ना ने बताया कि यही अन्त है जिसे प्रत्येक जीवित प्राणी को प्राप्त करना है। इस दृश्य ने सिद्धार्थ को हिला दिया।]

Question 12.
Reproduce in your own words the feelings of the Prince after he saw the sick, the old and dead men.
(संक्षेप में राजकुमार की उन भावनाओं को लिखिए जो उसके मन में बीमार, बूढ़े तथा मृत व्यक्तियों को देखकर आईं।)
Or
Describe briefly what the Prince saw during his two visits to the city of Kapilvastu.
(संक्षेप में उन बातों का वर्णन कीजिए जो राजकुमार ने कपिलवस्तु नगर के अपने दोनों भ्रमण के समय देखीं।)
Answer:
1. Feelings during first visit: On his first visit Prince Siddhartha saw an old man. He was very weak. He could hardly walk. His condition was very pitiable. Channa told him, “Age makes everybody weak. A man who lives long must grow weak.” The Prince was very sad. He remained thinking throughout the night. He wanted to know how love might save its sweetness from the time that makes man old.

2. Feelings during second visit : On his second visit he saw a man who was suffering from a fatal disease. He had lost all his energy. Channa said to him, “Diseases come to a man secretly and suddenly.” The Prince wanted to know the final end of man.

3. Feelings on seeing the dead body: In the mean time he saw a dead body. He saw it burning on a pyre. The eyes of the Prince were full of tears. He saw from the sky towards the earth and again towards the sky. He said, “Pleasures are false and miseries of life are true because all pleasures end into misery. Death is certain to all and it is the end of life.” He thought that he was also cheated. So he ordered Channa to return to the palace.

[ 1. पहले भ्रमण के समय की भावनाएँ- अपने प्रथम दौरे के समय राजकुमार सिद्धार्थ ने एक बूढ़े मनुष्य को देखा। वह बहुत कमजोर था। वह मुश्किल से ही चल पा रहा था। उसकी दशा दयनीय थी। चन्ना ने। उसे बताया, “आयु प्रत्येक व्यक्ति को कमजोर बना देती है। वह मनुष्य जो अधिक दिनों तक जीता है अवश्य कमजोर होता है। राजकुमार बहुत दुःखी था। वह पूरी रात सोचता रही। वह यह जानना चाहता था कि प्रेम अपनी सुन्दरता को उस समय से कैसे बचा सकता है जो मनुष्य को बूढ़ा बना देता है।

2. दूसरे भ्रमण के समय की भावनाएँ- अपने दूसरे दौरे के समय उसने एक ऐसा आदमी देखा जो किसी घातक बीमारी से पीड़ित था। उसने अपनी सारी शक्ति खो दी थी। चन्ना ने उसे बताया, “बीमारियाँ मनुष्य को चुपचाप आती हैं और अचानक आती हैं।” राजकुमार जानना चाहते थे कि मनुष्य का अन्त क्या होता है।

3. मृतक को देखने पर भावनाएँ- इसी बीच उन्होंने एक लाश देखी। उन्होंने इसे चिता पर जलते हुए देखा। राजकुमार की आँखों में आँसू भर आये। उन्होंने आकाश से पृथ्वी की ओर देखा फिर आकाश की ओर। उन्होंने कहा, “आनन्द झूठे हैं और जीवन के दु:ख सच्चे हैं, क्योंकि सभी सुखों का अन्त दु:ख है। मृत्यु सभी को निश्चित रूप से आती है और यही जीवन का अन्त है।” उसने सोचा कि उसे भी धोखा दिया गया है। इसलिए उसने चन्ना को महल में वापस चलने की आज्ञा दी।]

Question 13.
Narrate in short the conversation that took place between Prince Siddhartha and Channa at the sight of a dead body being burnt beside the stream.
Or
What did the Prince learn from the sights he saw and the conversation he had with Channa during his first visit to the city? How did it effect his life?
(संक्षेप में उस बातचीत का वर्णन कीजिए जो राजकुमार सिद्धार्थ तथा चन्ना के बीच उस समय हुई जब उन्होंने नदी के किनारे एक मृतक को जलते हुए देखा।)
Answer:
At the end of his second visit, the Prince saw some people carrying a dead body on a bier. They were saying ‘Ram, Ram, O Ram.’ They put it on a heap of wood and burnt it to ashes.

In a very short time all was burnt to ashes. This scene moved the Prince deeply. He asked Channa about it. Channa told him that this is the fate of every man. Every man has to meet this fate again and again.

The eyes of Siddhartha were full of tears. He saw towards the sky and thought for a while. Then he said, “The world is caught in the net of woes and death. The pleasures of life are false. They end into sorrow. In our life youth is delightful, old age is painful and then the end is death.”

Then he said to Channa, “I have seen more than enough. Now take me home.”

[ अपने दूसरे दौरे के अन्त में राजकुमार ने देखा कि कुछ लोग एक अर्थी पर एक मृतक शरीर को ले जा रहे हैं। वे कह रहे हैं, “राम नाम सत्य है,” उन्होंने इस शव को एक लकड़ी के ढेर पर रख दिया और जलाकर राख कर दिया।

थोड़े समय में सभी कुछ राख हो गया। इस दृश्य ने राजकुमार को बहुत प्रभावित किया। उन्होंने चन्ना से इसके विषय में पूछा। चन्ना ने उन्हें बताया कि प्रत्येक व्यक्ति का यही परिणाम होता है। प्रत्येक व्यक्ति को बार-बार यही परिणाम भुगतना पड़ता है।

सिद्धार्थ की आँखें आँसुओं से भर गयीं। उसने आकाश की ओर देखा और थोड़ी देर सोचा, फिर उसने कहा, ‘संसार दुःखों और मृत्यु के जाल में फंसा हुआ है। जीवन के सुख झूठे हैं। उनका अन्त दु:खों में होता है। हमारे जीवन में जवानी आनन्ददायक, बुढ़ापा दुःखदायी तथा अन्त मृत्यु है।”

फिर उन्होंने चन्ना से कहा, “मैंने आवश्यकता से अधिक देख लिया है। अब मुझे घर ले चलो।”]

Question 14.
Why did the sight of the old, the sick and the dead man move the Prince so deeply ? [M. Imp.]
(बूढ़े, बीमार तथा मृत व्यक्ति के दृश्य ने राजकुमार को इतना दु:खी क्यों किया ?)
Or
What were the three sights that made the Prince sad and sorrowful ?
(वे कौन-से तीन दृश्य थे जिन्होंने राजकुमार को दु:खी और उदास कर दिया ?)
Or Describe the three sights that made the Prince sad.
(उन तीन दृश्यों का वर्णन कीजिए जिन्होंने राजकुमार को दु:खी कर दिया।)
Or What were the three sights that made the Prince extremely sad ?.
(वे कौन-से तीन दृश्य थे जिन्होंने राजकुमार को अत्यधिक दु:खी कर दिया ?)
Answer:
1. Mission of his life: The Prince was a born thinker. He was sent in this world to save the mankind from pains and sufferings. It was the mission of his life to see the world as it was and to know its miseries. So he was very sensitive, pitiful and sympathetic.

2. Disturbed to see the old man : The Prince was passing a life of luxuries in the palace. During his first visit the Prince saw the city very beautiful and decorated. The king had ordered that no painful sight should come on the way of the Prince. But by chance a very old and weak man came before the Prince. When the Prince asked. Channa told him, “Old age has made the life of this man miserable. He is about to die now. All people will meet the same end.” At this the Prince was so much disturbed that he asked Channa to return home.

3. Moved to see the sick man : During his second visit the Prince saw a sick man. Channa told him that he was suffering from an infectious disease. He had lost all his strength. Channa told him, “Disease may come to anybody at any time.” On seeing this sight the Prince’s heart was filled with sorrow and despair.

4. Moved to see the funeral of a dead body: Then the Prince saw a procession of a dead body and its funeral. This was the most pitiable and miserable condition of man. The Prince realized that all the pleasures of life end into miseries. Death is the end of our life. Thus the sight of the old, the sick and the dead man moved the Prince deeply.

[ 1. उनके जीवन का उद्देश्य- राजकुमार जन्मजात विचारक थे। उन्हें इस संसार में मानव जाति को दु:खों एवं कष्टों से बचाने के लिए भेजा गया था। उनके जीवन का उद्देश्य था संसार को उसके वास्तविक रूप में देखना और दुःखों को जानना। इसलिए वह बहुत भावुक, दयालु और सहानुभूतिपूर्ण थे।

2. बूढ़े आदमी को देखने पर परेशान- राजकुमार महल में सुख-ऐश्वर्य का जीवन व्यतीत कर रहे थे। अपने पहले भ्रमण में राजकुमार ने नगर को अत्यन्त सुन्दर एवं सजा हुआ देखा। राजा ने यह आदेश दिया था कि कोई भी दुःखदायी दृश्य राजकुमार के रास्ते में न आए। किन्तु संयोग से एक बहुत बूढ़ा और कमजोर मनुष्य राजकुमार के सामने आ गया। पूछने पर चन्ना ने राजकुमार को बताया, “बुढ़ापे ने इस मनुष्य के जीवन को इतना दु:खदायी बना दिया है। वह अब मरने वाला है। सभी व्यक्तियों का यही अन्त होगा। इस पर राजकुमार इतने परेशान हो गए कि उन्होंने चन्ना से घर लौटने के लिए कहा।

3. बीमार आदमी को देखकर दुःखी- अपने दूसरे भ्रमण के समय राजकुमार ने एक बीमार आदमी को देखा। चन्ना ने उन्हें बताया कि वह एक संक्रामक रोग से पीड़ित है। उसकी शक्ति समाप्त हो गई है। चन्ना ने उन्हें बताया, “बीमारी किसी भी व्यक्ति को किसी भी समय आ सकती है।” इस दृश्य को देखकर राजकुमार का हृदय दुःख और निराशा से भर गया।

4. शव का अन्तिम संस्कार देखकर दुःखी- फिर राजकुमार ने एक शव यात्रा तथा उसका दाह-संस्कार देखा। यह मनुष्य की अत्यन्त दयनीय एवं दु:खी दशा थी। राजकुमार ने अनुभव कर लिया कि जीवन के सभी आनन्दों का अन्त दु:ख है। हमारे जीवन का अन्त मृत्यु है। इस प्रकार बूढ़े व्यक्ति, बीमार व्यक्ति तथा मृत व्यक्ति के दृश्यों ने राजकुमार को अत्यन्त दु:खी किया।]

Question 15.
“It is enough, my eyes have seen enough.” who says this and why?
(“यह पर्याप्त है, मेरी आँखें पर्याप्त देख चुकी हैं। यह बात कौन कहता है और क्यों ?)
Or
“It is enough, my eyes have seen enough”. What is the significance of this statement ?
(“यह पर्याप्त है, मेरी आँखें पर्याप्त देख चुकी हैं। इस कथन का क्या महत्त्व है ?)
Answer:
1. Who says this? Its significance: “It is enough, my eyes have seen enough” is spoken by the Prince Siddhartha at the end of his second visit to the city. The sentence is very significant because it points out how a change in the outlook of the Prince took place. This sentence shows the mental agony of the Prince. He had realized everything and did not want to see anything more.

2. Effect of different sights during his visits : The Prince Siddhartha was living in the pleasures and luxuries of the palace. But he keenly desired to see the outside world. During his first visit he saw a very old man. He was so much pained to see him that he at once returned home. During his second visit he saw a man suffering from an infectious disease. Then he saw a dead body and its funeral. So these were the most pitiable and miserable conditions of man’s life.

3. Changes in his outlook of life : He realized that all the pleasures of life end into miseries. Death is the end of our life. He came to know that all men-born, live, suffer row old and die. His early life was full of comforts, ease and joy. But now he knew the reality of life. Now for him life was false, full of sorrow and despair. His ideas about life changed. He was unable to see anything more. So he asked his charioteer, Channa, to return home.

[ 1. यह बात कौन कहता है ? इसका महत्त्व- “यह पर्याप्त है, मेरी आँखों ने पर्याप्त देख लिया है” नगर के अपने दूसरे भ्रमण के अन्त में राजकुमार सिद्धार्थ कहते हैं। यह वाक्य बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह बताता है कि राजकुमार के दृष्टिकोण में परिवर्तन कैसे आया। यह वाक्य राजकुमार के मस्तिष्क के दु:ख को भी बताता है। उन्होंने समस्त बातों का अनुभव कर लिया था तथा वह और अधिक कुछ नहीं देखना चाहते थे।

2. उनके भ्रमण के समय भिन्न- भिन्न दृश्यों का प्रभाव-राजकुमार सिद्धार्थ महल के ऐश्वर्यों में रह रहे थे। किन्तु बाह्य संसार को देखने की भी उनकी प्रबल इच्छा थी। अपने प्रथम भ्रमण के समय उन्होंने एक बहुत बूढ़े व्यक्ति को देखा। उसे देखकर उन्हें इतना दुःख हुआ कि वे तुरन्त अपने घर को लौट पड़े। अपने दूसरे भ्रमण के समय उन्होंने संक्रामक रोग से पीड़ित एक मनुष्य को देखा। फिर उन्होंने एक मुर्दे को तथा उसके दाह-संस्कार को देखा। ये मनुष्य के जीवन की सबसे अधिक दयनीय एवं दु:खी अवस्थाएँ थीं।।

3. जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण में अन्तर- उन्होंने अनुभव कर लिया कि जीवन के समस्त सुखों का अन्त दुःखों में होता है। मृत्यु हमारे जीवन का अन्त है। उन्हें पता लग गया कि सभी मनुष्य जन्म लेते हैं, जीवित रहते हैं, कष्ट भोगते हैं, बूढ़े होते हैं और मर जाते हैं। उनका आरम्भ का जीवन आराम, चैन एवं सुख से भरपूर था। किन्तु अब उन्हें जीवन की वास्तविकता का पता लग गया। अब जीवन उनके लिए झूठा तथा दु:ख एवं निराशा से भरपूर था। जीवन के विषय में उनके विचार बदल गये। वह अब और अधिक देखने में असमर्थ थे। इसलिए उन्होंने अपने सारथी चन्ना से घर लौटने के लिए कहा।]

Question 16.
Attempt a critical appreciation of the poem.
(कविता की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।)
Or
why do you like the poem “The Light of Asia”?
(“The Light of Asia’ कविता को आप क्यों पसन्द करते हैं ?)
Answer:
1. Introduction: The Light of Asia’ is an epic on the life of Lord Buddha. The book is divided into eight cantos. The poet has described the life and teachings of Lord Buddha. The eighth canto of this book gives the message of Lord Buddha. Arnold himself says about this poem, “I have sought to depict the life and character and indicate the philosophy of that noble hero and reformer Prince Gautam of India, the founder of Buddhism.”

2. Language and style : The poem is written in blank verse which is most suited for epic poetry. The style of the poem is interesting and charming. The language of the poem is not very simple but it is dignified. The poet has used here and there some Hindi words also which give grace to the poem. The poet has aptly used similes and metaphors.

3. Theme : The theme of the poem is very noble. It is the life of a great Prince who sacrifices his own luxuries for the cause of mankind. He looks the realities of worldly life with his own eyes. He is moved by pitiable sights. He resolves to relieve mankind from these sufferings.

4. Description : The description of the poem is real and living. When we read the poem, we feel as if all incidents are taking place before our own eyes. The description of the palace, city, conversation between Prince and King, Prince and Channa, Prince and his wife, etc. are also real and interesting. Our interest from the beginning up to the end continues.

5. Lesson which we learn : From the poem we learn that all the pleasures of life are vain and temporary. They end into misery. We should love all the mankind. These are the reasons why I like this poem The Light of Asia’.

[ 1. परिचय- The Light of Asia’ भगवान् बुद्ध के जीवन पर एक महाकाव्य है। पुस्तक को आठ काण्डों में बाँटा गया है। कवि ने भगवान् बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं का वर्णन किया है। इस पुस्तक का आठवाँ काण्ड:भगवान् बुद्ध का सन्देश देता है। इस कविता के विषय में आनल्ड स्वयं कहता है, “मैंने उस श्रेष्ठ नायक के जीवन और चरित्र का वर्णन करने की चेष्टा की है और उस समाज-सुधारक एवं भारत के राजकुमार की विचारधारा को प्रकट करने की चेष्टा की है जो बौद्ध धर्म का संस्थापक है।”

2. भाषा एवं शैली- कविता ब्लैंक वर्स (गद्य) में लिखी हुई है जो महाकाव्य के लिए सबसे उपयुक्त है। कविता की शैली रोचक एवं सुन्दर है। कविता की भाषा बहुत सरल नहीं है किन्तु यह सारगर्भित है। जहाँ-तहाँ कवि ने कुछ हिन्दी के शब्द भी प्रयोग किए हैं जो कविता को सुन्दरता प्रदान करते हैं। कवि ने उचित ढंग से उपमा और रूपक अलंकारों का प्रयोग किया है।

3. कथावस्तु- कविता की कथा बहुत श्रेष्ठ है। यह एक महान् राजकुमार का जीवन है जिसने अपने सारे सुखों का मानव जाति के लिए बलिदान कर दिया। वह अपनी आँखों से सांसारिक जीवन की वास्तविकताओं को देखता है। वह दयनीय दृश्यों से प्रभावित हो जाता है। वह मानव जाति को इन कष्टों से छुटकारा दिलाने का निश्चय कर लेता है।

4. वर्णन- कविता का वर्णन वास्तविक एवं सजीव है। जब हम कविता को पढ़ते हैं तब हमें ऐसा लगता है मानो सारी घटनाएँ हमारी आँखों के सामने हो रही हों। महल तथा नगर का वर्णन, राजकुमार तथा राजा में, राजकुमार और चन्ना में, राजकुमार तथा उसकी पत्नी में वार्तालाप भी वास्तविक और रोचक हैं। आरम्भ से अन्त तक हमारी रुचि बनी रहती है।

5. शिक्षा, जो हम सीखते हैं- इस कविता से हम सीखते हैं कि जीवन के सभी आनन्द व्यर्थ और क्षणिक हैं। उनका दुःखों में अन्त होता. है। हमें सभी मानव जाति से प्रेम करना चाहिए।
यही कारण हैं कि मैं ‘The Light of Asia’ कविता को पसन्द करता हूँ।]

Question 17.
Give a character sketch of Prince Siddhartha on the basis of the text read. [M. Imp.]
(पाठ्य-पुस्तक के आधार पर राजकुमार सिद्धार्थ का चरित्र-चित्रण कीजिए।).
Or
Describe the qualities that the Prince had on the basis of the text.
(पाठ्य-पुस्तक के आधार पर राजकुमार के गुणों का वर्णन कीजिए।)
Answer:
Prince Siddhartha was the only son of king Shuddhodana. The king loved him very much. He provided him all the luxuries of the palace. The astrologers had told the king that the Prince would be a great hermit. In the end he came to be known as Lord Buddha. We find in him the following qualities :

1. A born thinker: The Prince was not an ordinary man. He was very thoughtful from his childhood. He was born in a royal family. His life was full of luxuries and comforts. Yet he always thought about the life outside the palace. He wanted to see the realities of life. So he visited the city twice.

2. Loving, merciful and sympathetic : When the Prince saw an old man, a sick man and a dead body, he was very much grieved. He said, “The world suffers from fear. Love is short lived. Life ends into hateful death. So I shall do my best not to let anyone cry with pain.” When he saw the sick man crying for help, he lifted him up and * comforted him. Thus he was loving, merciful and sympathetic.

3. A good son and a good husband : The Prince was a good son. He obeyed his father and always sought permission to go to the city. He was a loving and true husband also. He could never bear the tears in the eyes of his wife, Yashodhara.

4. Curious for knowledge : The Prince was very curious to get the knowledge of the world and its sufferings. He asked Channa many questions and got knowledge about different happenings.

5. A super human : The Prince had an extraordinary understanding. He got knowledge very soon. He sacrificed all his kingly pleasures and left home. He gave valuable advice to the people. So he became known by the name of Gautam Buddha.

[ राजकुमार सिद्धार्थ, राजा शुद्धोदन का एकमात्र पुत्र था। राजा उसे बहुत अधिक प्यार करता था। उसने उसे महल के सभी सुख प्रदान कर दिये थे। ज्योतिषियों ने राजा को बताया था कि राजकुमार एक बहुत बड़ा साधु बनेगा। अन्त में वे भगवान् बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए। हम उनमें निम्नलिखित गुण पाते हैं-

1. एक जन्मजात व्रिचारक- राजकुमार एक साधारण व्यक्ति नहीं थे। वे बचपन से ही अत्यन्त विचारशील व्यक्ति थे। वे एक शाही परिवार में पैदा हुए थे। उनका जीवन विलासिता एवं सुखों से भरपूर था। फिर भी वे सदा महल के बाहर के जीवन के विषय में सोचते थे। वे जीवन की वास्तविकताओं को देखना चाहते थे। इसलिए उन्होंने दो बार नगर को देखा।

2. प्रिय, दयावान एवं सहानुभूतिपूर्ण- जब राजकुमार ने एक बूढ़े, एक बीमार आदमी तथा एक लाश को देखा तब उन्हें बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने कहा, “संसार, भय से पीड़ित है। प्रेम का जीवन बहुत छोटा है। जीवन का अन्त घृणा से भरपूर मृत्यु में होता है। इसलिए मैं पूरा प्रयत्न करूंगा कि कोई भी व्यक्ति दु:ख में न रोए।” जब उन्होंने एक बीमार आदमी को सहायता के लिए चिल्लाते हुए देखा तब उन्होंने उसे उठा लिया और सान्त्वना दी। इस प्रकार वे प्रिय, दयावान एवं सहानुभूतिपूर्ण थे।

3. एक अच्छा बेटा और एक अच्छा पति- राजकुमार एक अच्छे पुत्र थे। उन्होंने अपने पिता की आज्ञा मानी और प्रत्येक बार नगर को जाते समय उनकी स्वीकृति माँगी। वे एक प्यारे एवं सच्चे पति भी थे। वे अपनी पत्नी यशोधरा की आँखों में आँसू सहन नहीं कर पाते थे।

4. ज्ञान के लिए उत्सुक- राजकुमार संसार एवं उसके कष्टों का ज्ञान पाने के लिए बहुत उत्सुक थे। उन्होंने चन्ना से बहुत-से प्रश्न किए और भिन्न-भिन्न घटनाओं के विषय में ज्ञान प्राप्त किया।

5. एक सर्वोच्च मनुष्य- राजकुमार में विलक्षण बुद्धि थी। उन्होंने बहुत जल्दी ज्ञान प्राप्त कर लिया। उन्होंने अपने समस्त राजसी आनन्दों को त्याग दिया और घर भी छोड़ दिया। उन्होंने लोगों को अत्यन्त उपयोगी शिक्षा दी। इसलिए वे गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हो गए। ]

Question 18.
who is Channa ? Discuss his role and importance in the poem.
(चन्ना कौन है ? कविता में उसकी भूमिका एवं महत्त्व को बताइए।) [M. Imp.]
Or
Elucidate the character of Channa.
(चन्ना के चरित्र पर प्रकाश डालिए।)
Or
“Channa was not only a charioteer but also a guide of prince Siddhartha.” Comment on it.
(“चन्ना राजकुमार सिद्धार्थ का केवल सारथी नहीं था, बल्कि पथ-प्रदर्शक भी था। इस पर टिप्पणी कीजिए।)
Answer:
1. Introduction : Channa is the charioteer of Prince Siddhartha. But he is his friend, philosopher and guide too. Wherever the Prince goes, he accompanies him. We always find him with the Prince.

2. As an obedient servant: Channa is the obedient servant of the king Shuddhodana as well as Prince Siddhartha. The king ordered him to go to the city with the Prince two times. Every time Channa obeyed him and fulfilled his duty sincerely. During the Prince’s visit to the city, Channa obeys him also. Whatever the Prince asks him, he answers it very intelligently. Whenever the Prince asks him to return to the palace, he obeys him willingly.

3. As a philosopher and guide : Channa is very intelligent and knows the realities of life very well. The Prince asks him many questions about sickness, old age, death, life and this world. Channa answers them very wisely and properly. So  the Prince is satisfied with him. He has the knowledge of human life and the causes of human sufferings. Channa never misguides the Prince. He serves him as a true guide. Therefore the Prince also regards him most.

4. Importance of his role: The role of Channa in the poem is very important. Channa guides the Prince very honestly and intelligently. No other man could have done so. It is the advice and guidance of Channa that the Prince resolved to leave the world and relieve man from pains. Without Channa this epic would have been something else. “‘o Channa is the most important character of this epic.

[ 1. परिचय- चन्ना, राजकुमार सिद्धार्थ का सारथी है। किन्तु वह एक मित्र, दार्शनिक और पथ-प्रदर्शक भी है। जहाँ कहीं राजकुमार जाते हैं वह उनके साथ जाता है। हम सदा उसे राजकुमार के साथ पाते हैं।

2. एक आज्ञाकारी सेवक- चन्ना, राजा शुद्धोदन का भी और राजकुमार सिद्धार्थ का भी आज्ञाकारी सेवक है। राजा ने उसे राजकुमार के साथ नगर में जाने की दो बार आज्ञा दी। प्रत्येक बार चन्ना ने उनकी आज्ञा का पालन किया और अपने कर्तव्य को ईमानदारी से निभाया। राजकुमार के नगर में भ्रमण के दौरान चन्ना उनकी भी आज्ञा का पालन करता है। जो कुछ भी राजकुमार उससे पूछते हैं, वह बहुत समझदारी से उसका उत्तर देता है। जब कभी राजकुमार उससे महल में वापस चलने को कहते हैं, वह उनकी आज्ञा मानता है।

3. एक दार्शनिक और मार्गदर्शक के रूप में- चन्ना बहुत समझदार है और जीवन की वास्तविकताओं को भली प्रकार जानता है। राजकुमार उससे बीमारी, बुढ़ापे, मृत्यु, जीवन और इस संसार के विषय में अनेक प्रश्न पूछते हैं, चन्ना उनका उत्तर बहुत बुद्धिमानी और उचित ढंग से देता है। इसलिए राजकुमार उससे सन्तुष्ट हो जाते हैं। उसे मानव जीवन तथा मनुष्य के कष्टों के कारण का ज्ञान है। चन्ना राजकुमार को कभी भी पथभ्रष्ट नहीं करता है। वह उनकी एक सच्चे मार्गदर्शक के रूप में सेवा करता है। इसीलिए राजकुमार भी उसका अत्यधिक सम्मान करते हैं।

4. उसकी भूमिका का महत्त्व- कविता में चन्ना की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है। चन्ना बड़ी ईमानदारी और समझदारी से राजकुमार का मार्गदर्शन करता है। और कोई अन्य व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता था। चन्ना की शिक्षा और मार्गदर्शन का ही यह परिणाम है कि राजकुमार को संसार का परित्याग करने और मनुष्य को उसके कष्टों से मुक्ति दिलाने का दृढ़ निश्चय करना पड़ा। चन्ना के बिना यह महाकाव्य कुछ और ही होता। इसलिए चन्ना इस महाकाव्य का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पात्र है।]

Question 19.
Elucidate the character of Yashodhara and Shuddhodana.
(यशोधरा एवं शुद्धोदन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।)
Answer:
Character of Yashodhara : Yashodhara is the wife of Prince Siddhartha. She is young and beautiful. She is very tender-hearted. We see her in this poem only in the beginning. This is the reason that much about her character is not known.

She is a faithful wife. She loves her husband most. She becomes restless to see her husband worrying and thinking. She makes him sleep in her lap and fans him. She gives him as much comfort as she can. So she is an ideal Hindu lady.

Character of Shuddhodana : Shuddhodana is the king of Kapilvastu. He has only one son named Siddhartha. The king is a very important character of this poem.

The king dreamt seven visions. So he was very much afraid. He wanted to know the meaning of these visions. An old man told him the true meaning of the dream. The king was very much worried. So this thing shows that the king was superstitious.” The king is a loving father. He cannot bear that his only son should renounce home and become a hermit. So he provides all the comforts and luxuries to the Prince. He .. does not want that the Prince should know about the worldly pains. So he arranges guards at the gate.

But the king is very liberal also. When the Prince desired to visit the city, he agreed. But he announced that no evil sight should come on his way.

The king had a great respect for the hermits and his ministers. When the old hermit told him the meaning of his dream, he sent him gifts. From time to time he consults his ministers also.

[ यशोधरा को चरित्र- यशोधरा, राजकुमार सिद्धार्थ की पत्नी है। वह नवयुवती एवं सुन्दर है। वह बहुत कोमल हृदय वाली है। हम उसे इस कविता के केवल आरम्भ में ही देखते हैं। इसलिए उसके चरित्र के विषय में अधिक ज्ञात नहीं है।

वह एक वफादार पत्नी है। वह अपने पति से बहुत प्यार करती है। वह अपने पति को चिन्तित तथा विचारों में डूबा हुआ देखकर बेचैन हो जाती है। वह उसे अपनी गोद में सुलाती है और पंखा झलती है। वह उसे जितना आराम दे सकती है, देती है। इसलिए वह एक आदर्श हिन्दू स्त्री है।

शुद्धोदन का चरित्र- शुद्धोदन कपिलवस्तु का राजा है। उसका सिद्धार्थ नाम का केवल एक पुत्र है।

राजा इस कविता का मुख्य पात्र है। राजा ने सपने में सात दृश्य देखे। इस कारण वह बहुत भयभीत था। वह इन दृश्यों के अर्थ जानना चाहता था। एक बूढ़े आदमी ने उसे सपने का सच्चा अर्थ बताया। राजा बहुत चिन्तित था। इस कारण यह बात बताती है। कि राजा अन्धविश्वासी था।

राजा एक प्रिय पिता है। वह यह सहन नहीं कर सकता कि उसका इकलौता बेटा घर छोड़ दे और साधु बन जाये। इसलिए वह राजकुमार को सभी सुख-सुविधाएँ प्रदान करता है। वह नहीं चाहता कि राजकुमार सांसारिक दु:खों के विषय में जाने। इसलिए वह दरवाजे पर रक्षक नियुक्त कर देता है।

किन्तु राजा उदार भी है। जब राजकुमार ने नगर को देखने की इच्छा प्रकट की तब वह सहमत हो गया। किन्तु उसने यह घोषित कर दिया कि उसके रास्ते में कोई अप्रिय दृश्य न आए।

राजा साधुओं तथा मंत्रियों को बहुत सम्मान करता था। जब बूढ़े साधू ने उसे सपने का अर्थ बताया तब उसने उसे बहुत से उपहार भेजे। समय-समय पर वह अपने मन्त्रियों की राय भी लेता है।]

Question 20.
what was the effect of Chitra’s story on the mind of the Prince ?
(चित्रा की कहानी का राजकुमार के मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ा ?)
Or
Who is Chitra ? Narrate in short the conversation that took place between the Prince and Chitra.
(चित्रा कौन है ? राजकुमार और चित्रा के बीच के वार्तालाप का वर्णन कीजिए।)
Or
Describe Prince Siddhartha’s restlessness as depicted in his conversation with Yashodhara and Chitra in the court scene. (राजकुमार सिद्धार्थ की बेचैनी का वर्णन कीजिए जो उसे दरबार के दृश्य में उस समय हुई जब वह यशोधरा और चित्रा से बात कर रहा था।)
Answer:
One evening Prince Siddhartha was sitting with his courtiers and his wife Yashodhara. Chitra was a maid servant. She was singing a sweet song. All of a sudden she stopped and began to tell them a story of olden days. This story was about love, a magic horse and wonderful countries. She told that the pale people lived there. When it was night, the sun sank into the sea.

Hearing this story, the Prince was reminded of the song of Veena. The Prince was restless. He sighed and asked Yashodhara many questions. Some of those important questions are given below:

  1.  Is the world so wide?
  2.  Is there a country where the sun is seen sinking into the sea ?
  3.  Are there many unknown and sad people whom we can help ?
  4.  Who welcomes, the first beam of the sun at the edge of the world ?
  5.  How are the people at another edge of sky where the sun sinks into the sea ?

Thus the Prince desired to see the people at both of these edges, in the East as well as in the West. He requested Chitra to tell him where the magic horse was tied. He wanted to ride on it to see the whole world. Besides this so many other ideas about the world struck his mind. He had an earnest desire to see things outside the palace.

[ एक दिन सायंकाल राजकुमार सिद्धार्थ अपनी पत्नी यशोधरा तथा दरबारियों के साथ बैठे हुए थे। चित्रा उनकी नौकरानी थी। वह बहुत सुन्दर गीत गा रही थी। अचानक वह रुक गई और उन्हें पुराने दिनों की एक कहानी सुनाने लगी। यह कहानी प्रेम, जादू के घोड़े तथा अद्भुत देशों के विषय में थी। उसने बताया कि वहाँ पीले अर्थात् दुःखी लोग रहते हैं। जब रात्रि हो जाती है तब सूर्य समुद्र में डूब जाता है।

यह कहानी सुनकर राजकुमार को वीणों के गीत की याद आ गयी। राजकुमार बहुत बेचैन थे। उन्होंने आह भरी और यशोधरा से अनेक प्रश्न पूछे। कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्न नीचे दिये गये हैं–

  1.  क्या संसार इतना विस्तृत है ?
  2.  क्या कोई ऐसा देश है जहाँ सूर्य समुद्र में डूबता हुआ दिखायी देता है ?
  3.  क्या संसार में बहुत से अज्ञात और दु:खी लोग हैं जिनकी हमें सहायता कर सकते हैं ?
  4.  संसार के किनारे पर सूर्य की पहली किरण का स्वागत कौन करता है ?
  5.  आकाश के दूसरे सिरे पर जहाँ सूर्य समुद्र में डूबता है वहाँ कैसे मनुष्य हैं ?

इस प्रकार राजकुमार ने दोनों किनारों पर पूर्व में भी और पश्चिम में भी मनुष्यों को देखने की इच्छा प्रकट की। उसने चित्रा से यह बताने की प्रार्थना की कि जादू का घोड़ा कहाँ बँधा हुआ है। वे इस पर सवार होकर पूरे संसार को देखना चाहते थे। इसके अतिरिक्त संसार के विषय में अन्य अनेक विचार उनके मस्तिष्क में आये। उनकी प्रबल इच्छा थी कि वे महल के बाहर की वस्तुओं को देखें। ]

Question 21.
Whatlesson doyou get from the story The LightofAsia’? .
(“The Light of Asia’ की कहानी से आपको क्या शिक्षाएँ प्राप्त होती हैं ?)
Answer:
“The Light of Asia’ describes the story of Buddha’s birth, his early experiences of life, his renunciation and his teachings. From what Lord Buddha observed and taught, we learn the following lessons :

We should accept the realities of life as they are. Life is not what we want it to be. It is full of sufferings, diseases and its end is death.

We should not forget that old age comes to everybody and makes us weak. With no power left to work, one may have even to beg for his bread.

We should also accept that disease takes everybody in its fold. It takes away joy and health from us. People leave the sick to die. We should also accept that the end of life is death.

The man takes birth, enjoys his life and dies. He again takes birth and again dies. This cycle of life goes on.

The gist of life is that the world is caught in the net of woes and death. The pleasures of life are false. They end in sorrow. In our life youth is delightful, old age is painful and the end is death.

[The Light of Asia’ में बुद्ध का जन्म, उनके प्रारम्भिक अनुभव, उनकी विरक्ति और उनकी शिक्षाओं का वर्णन किया गया है।

महात्मा बुद्ध ने जिनका अवलोकन किया तथा शिक्षा प्रदान की, उससे हम निम्न पाठ सीखते हैं-

हमें जीवन की वास्तविकताओं को उनके मूल रूप में स्वीकार कर लेना चाहिए। जीवन वैसा नहीं है जैसा कि हम चाहते हैं। यह तो दु:खों, बीमारियों से भरा हुआ है तथा इसका अन्त मृत्यु, ही है।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम में से प्रत्येक वृद्धावस्था को प्राप्त करता है तथा कमजोर हो जाता है। हममें कार्य करने की शक्ति नहीं रहती तथा अपनी जीविका के लिए हमें भीख भी माँगनी पड़ सकती है।

हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि बीमारी सबको पकड़ती है। यह हमारे जीवन से प्रसन्नता एवं स्वास्थ्य को दूर ले जाती है।

हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए की जीवन का अन्त मृत्यु है। मनुष्य जन्म लेता है, जीवन का आनन्द लेता है तथा मर जाता है। वह जन्म लेता है तथा पुनः मरता है। जीवन को यह चक्र चलता रहता है।

जीवन का सारांश यह है कि सम्पूर्ण संसार दु:ख एवं मृत्यु के जाल में फंसा हुआ है। जीवन के आनन्द झूठे हैं। सबका अन्त दु:ख ही है। हमारे जीवन में युवावस्था प्रसन्नतादायक, बुढ़ापा दुःखदायक और अन्त मृत्यु है।]

Question 22.
Why was king Suddhodana not in favour of permitting the Prince move out in the city without prior preparation ? What preparations did he ensure before permitting the Prince to visit the city ?
(राजा शुद्धोदन बिना पूर्व तैयारी के राजकुमार को नगर में भ्रमण करने के लिए आज्ञा देने के पक्ष में क्यों
नहीं थे ? राजकुमार के नगर भ्रमण की आज्ञा देने से पहले उन्होंने कौन-सी तैयारियाँ करने का आदेश दिया ?)
Answer:
King Suddhodana was the ruler of Kapilvastu. Prince Siddhartha was his only son. He was brought up with all the luxuries which could be bought by money. He wanted to keep Prince away from pains and sufferings of the world. At the time of Prince’s birth great pandits foretold, “The fortune of my Lord, the Prince, is more than Kingdom.”

At the growing up the Prince’s strange behaviour made the king more worried to him. Though the Prince loved his wife Yashodhara, he would startle in sleep and utter strange words. King dreamt seven visions that irritated him badly and then the hermit described the meaning of these seven visions.

Due to all the above incidents King feared very much about the future of the Prince. So he was not in favour of permitting the Prince to move out the city.

Seeing the strong desire of the Prince to visit the city, king ordered to decorate the city. He ordered that weak, old and sick persons should not come before the Prince.

[ राजा शुद्धोदन कपिलवस्तु के शासक थे। राजकुमार सिद्धार्थ उनके इकलौता पुत्र था। उन्हें हर प्रकार की वे सुविधाएँ जिन्हें धन से खरीदा जा सकता था, के बीच पाला गया था। वह राजकुमार को सांसारिक दुःख-दर्दो से दूर रखना चाहते थे। राजकुमार के जन्म के समय पंडितों ने भविष्यवाणी की थी, “राजकुमार का भाग्य राज्य से बढ़कर है।” बड़े होकर राजकुमार के अद्भुत व्यवहार ने राजा को और अधिक चिन्तित कर दिया। हालाँकि राजकुमार अपनी पत्नी यशोधरा को बहुत प्यार करते थे, लेकिन फिर भी वह सोते समय चौंक जाते थे और अजीब शब्दों को बड़बड़ाते थे। राजा ने स्वप्न में सात दृश्यों को देखा, जिनके कारण वह बुरी तरह घबरा गये और फिर साधु ने भी इन सात दृश्यों के अर्थ का वर्णन कर दिया था।

उपर्युक्त सभी घटनाओं ने राजा को राजकुमार के भविष्य के बारे में बहुत अधिक डरा दिया। इसलिए वह राजकुमार को शहर में घूमने की आज्ञा देने के पक्ष में नहीं थे।

राजकुमार की नगर-भ्रमण की तीव्र इच्छा को देखकर राजा ने नगर को सजाने का आदेश दिया। उन्होंने यह भी आदेश दिया कि कमजोर, बूढ़ा और बीमार व्यक्ति राजकुमार के सामने नहीं आना चाहिए।]

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UP Board Solutions for Class 11 English Poetry Figures Of Speech

UP Board Solutions for Class 11 English Poetry Figures Of Speech

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Figures of Speech यो ‘अलंकार’ शब्दों का ऐसा असाधारण प्रयोग है जो भाषा में सुन्दरता को पैदा करता है और उसके प्रभाव को और अधिक बढ़ाता है। मुख्य Figures of Speech की परिभाषाएँ एवं उदाहरण नीचे दिए गए हैं-

1. SIMILE (उपमा)

इसमें दो भिन्न-भिन्न समुदायों की दो.भिन्न-भिन्न वस्तुओं में किसी समान गुण की तुलना की जाती है। इसमें like, such as, just as, as….. as, so……as आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
Definition : A simile expresses comparison between two unlike objects or events. Usually the comparison is expressed by using like, such as, just as, as….. as, so ….. as.

Examples :
1. I wandered lonely as a cloud.
2. Childhood is like a swiftly passing dream.
3. Rana Pratap was as brave as a lion.
4. The lake was clear as a crystal.
5. Errors like straws, upon the surface flow.
6. I could lie down like a tired child, and weep away the life of care.

उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि Simile को पहचानने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

1. Simile कभी भी एक ही जाति या समुदाय के दो व्यक्ति या वस्तुओं में नहीं होती, अपितु वे दोनों वस्तुएँ भिन्न-भिन्न जाति या समुदाय की होनी चाहिए। जैसे उदाहरण 1 में I की उपमा cloud से दी गई है। यदि I की उपमा किसी व्यक्ति से दी जाती, तब वह Simile नहीं होती।
2. उन दोनों वस्तुओं में समान गुण की तुलना की जानी चाहिए।
3. समानता बताने के लिए so, as, like, so…. as या as … as शब्दों का प्रयोग होना चाहिए।
Note : ध्यान रखें एक ही जाति या समुदाय के दो व्यक्तियों या वस्तुओं की तुलना Simile नहीं होती।

2. METAPHOR( रूपक)

इसमें भी दो भिन्न-भिन्न समुदायों के प्राणी अथवा वस्तुओं में किसी समान गुण की तुलना तो की जाती है, किन्तु तुलना करने के लिए like, so, as …..as यो so…. as शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता है।
Definition : A Metaphor is an implied Simile.
 or 
In a Metaphor, two things are compared but the words of comparison are not used.
Childhood is like a swiftly passing dream. (Simile)
Childhood is a swiftly passing dream (Metaphor)

उपर्युक्त उदाहरणों में स्पष्ट होता है कि Metaphor मेंso, as, like आदि शब्दों का प्रयोग करके उसे Simile में बदला जा सकता है।

Note : Metaphor का प्रयोग Noun, Adjective या Verb में से किसी भी रूप में हो सकता है।

1. Noun के रूप में-
1. The camel is the ship of the desert.
2. The fire of passion made him blind.
3. A ray of hope is very valuable in the clouds of despair.
4. My son is the star of our family.
5. Lala Lajpat Rai was the lion of the Punjab.

2. Adjective के रूप में-
1. It is a golden opportunity for you.
2. My principal has iron courage.
3. It is a lame excuse.
4. A terrorist has a stony heart.
5. In winter the people don’t like piercing wind.

3. Verb के रूप में-
1. The waves thundered on the shore.
2. You are fond of blowing your own trumpet.

Note: ध्यान रखें यदि उपमा (Simile) वाले वाक्यों में से so, as, like जैसे शब्दों को हटा दें तब वह वाक्य रूपक (Metaphor) में बदला जा सकता है तथा so, as, like आदि शब्दों का प्रयोग करके उसे उपमा (Simile) में बदलता जा सकता है; जैसे-

1. Life is like a dream. (Simile)
Life is a dream. (Metaphor)
2. Rana Pratap was a lion in the fight. (Metaphor)
Rana Pratap fought like a lion. (Simile)

3. PERSONIFICATION (मानवीकरण)

जब किसी अदृश्य वस्तु या विचार को व्यक्ति के समान सजीव मान लेते हैं, तब वह मानवीकरण होता है; जैसे-
Opportunity knocks at the door but once.
‘अवसर केवल एक ही बार दरवाजा खटखटाता है। इस वाक्य में अवसर अदृश्य वस्तु है और वह खटखटाने का कार्य कर रहा है जो एक जीवित प्राणी का कार्य है, अतः यह मानवीकरण अलंकार हुआ।
Definition : In Personification lifeless objects and abstract ideas are thought of as living beings.

Examples:
1. Let not Ambition mock their useful toil.
2. Experience is the best teacher.
3. Authority forgets a dying king.
4. Death lays his icy hands on kings.
5. Anxiety is sitting on her face.

4. APOSTROPHE ( सम्बोधन)

इसमें किसी निर्जीव, अदृश्य वस्तु या विचार को या किसी मृत प्राणी को जीवित, दृश्य या उपस्थित मानकर सम्बोधन किया जाता है तथा उस वस्तु या व्यक्ति के पश्चात् कौमा (,) या सम्बोधन का चिह्न (!) भी अवश्य होता है या उससे पूर्व को लगा होता है; जैसे-

1.  O Death! Where is thy sting ?
2. O Liberty! What crimes have been committed in thy name ?
3. Milton! Thou should’st be living at this hour.

उपर्युक्त वाक्य 1 में मृत्यु को तथा वाक्य 2 में स्वतन्त्रता को सम्बोधन किया गया है जो दोनों वस्तुएँ निर्जीव . एवं अदृश्य हैं तथा वाक्य 3 में Milton को सम्बोधन किया गया है जो मृत प्राणी है। अत: इन वाक्यों में Apostrophe अलंकार का प्रयोग है।
Definition : In Apostrophe, we address a dead person or some lifeless thing or an abstract idea as a living person.

Examples:
1. Frailty! Thy name is woman.
2. Roll on, thou deep and dark blue ocean ………… Roll !
3. O Luxury! Thou ………… by heaven’s decree. (Goldsmith)
4. O Grave! Where is thy victory.
5. O Wild West Wind, thou breath of Autumn’s being. (Shelley)

Note: Personification और Apostrophe में केवल इतना भेद है कि Personification में निर्जीव वस्तुओं तथा विचारों को जीवित मान लिया जाता है और वे जीवित के से कार्य भी करते हैं, जबकि Apostrophe में मृत व्यक्ति, वस्तुओं या विचारों को जीवित के समान सम्बोधन करते हैं।

5. HYPERBOILE ( अतिशयोक्ति )

इस अलंकार में किसी व्यक्ति या वस्तु के गुणों को आवश्यकता से अधिक बढ़ाकर या घटाकर वर्णन किया जाता है; जैसे-
Belinda smiled and all the world was gay.
अर्थात् जब Belinda मुस्कराई तब पूरा संसार प्रसन्न हो गया। इससे स्पष्ट है कि Belinda के मुस्कराने से काफी लोग प्रसन्न हुए होंगे, किन्तु इस बात को इतना बढ़ा दिया गया कि पूरा संसारं प्रसन्न हो गया।
Definition : In Hyperbole, a statement is made emphatic by overstatement.

Examples:
1. She wept oceans of tears.
2. Rivers of blood flowed in the battle.
3. They build a nation’s pillars deep and lift them to the sky.
4. Ten thousand saw l at a glance.
5. They were swifter than eagles and stronger than lions.

Note: प्रायः जब कोई व्यक्ति कवि या नाटककार, साहित्यकार अपने कथन में किसी व्यक्ति या वस्तुओं को इतना अधिक बढ़ा-चढ़ाकर या घटाकर कहे जो सम्भव न हो तब उसे Hyperbole figure of speech कहते हैं।

6. OxYMORON ( विरोधाभास)

इसमें एक ही व्यक्ति या वस्तु में दो विरोधी गुण एक साथ दिए जाते हैं; जैसे-
James I was the wisest fool.
जेम्स प्रथम सबसे बुद्धिमान मूर्ख था अर्थात् जेम्स प्रथम में बुद्धिमानी तथा मूर्खता दोनों परस्पर विरोधी गुण बताए गए हैं।
Definition : In Oxymoron, we find the association of two words or phrases having opposite meanings.

Examples:
1. He is regularly irregular in the class.
2. She is feeling sweet pain.
3. The more haste, the less speed.
4. This is an open secret.
5. Our sweetest songs are those that tell of saddest thoughts.

Note: इस अलंकार में प्राय: एक ही वस्तु या व्यक्ति में दो परस्पर विरोधी गुण दर्शाए जाते हैं और उन्हें अधिकतर जोड़े में प्रयोग करते हैं; जैसे-regularly irregular, bitter sweet, pleasing pain आदि।

7. ONOMATOPOEIA( ध्वनि अलंकार)

इसमें शब्द की ध्वनि से ही अर्थ स्पष्ट हो जाता है। प्रायः जानवरों, पक्षियों या कुछ प्राकृतिक वस्तुओं की ध्वनि के लिए अलग शब्दों का प्रयोग होता है जिनसे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह ध्वनि किसकी है; जैसे-
1. I hear the humming of bees. (भिनभिनाहट)
2. The snakes hiss. (फुंकार मरना )
Definition : An Onomatopoeia consists in using a word similar to the sound.

Examples:
1. Urgent drum beat of destiny calls.
2. Get thee on boughs and clap thy wings.
3. I chatter, chatter as I flow. (Tennyson)
4. I heard the water lapping on the crag.
5. Cooing of doves is very pleasant.
6. A murmuring whisper through the nunnery ran.

Note: इस अलंकार को पहचानने के लिए Animals तथा Birds की आवाजों (Cries) का ज्ञान सहायक होगा क्योंकि उससे Animal या Bird की जानकारी हो जाती है; जैसे-
1. Cattle low.
2. Elephant trumpets.
3. A peacock screams.
4. A horse neighs.
5. A sheep bleats.

EXERCISE 1

Pick out the Figures of Speech in the following sentences:

1. I could lie down like a tired child,
And weep away the life of care.
2. The war of Love against folly and wrong.
3. He sneezed and cloud would break.
4. The news is dagger to my heart.
5. That in black ink my love may still shine bright.
6. O Wild West Wind, thou breath of Autumn’s being.
7. Whose conscience is his strong retreat.
8. O Grave! Where is thy victory.
9. Life is but a walking shadow.
10. Great lord of all things yet a prey to all.
11. She wept oceans of tears.
12. Hope is the poor man’s bread.
13. This is an open secret.
14. He is the moon of the family.
15. Errors like straws upon the surface flow.
16. Ethereal minstrel! pilgrim of the sky!
17. Life is like a dream.
18. The curfew tolls the knell of parting day.
The lowing herd winds slowly over the lea.
19. As shines the moon in clouded skies,
She in her poor attire was seen.
20. Rivers of blood flowed in the battle field.
21. A murmuring whisper through the nunnery ran.
22. Revenge is a kind of wild justice.
23. But such a Tide as moving seems asleep.
24. The quality of mercy is not stained,
It droppeth as the gentle rain from heaven.
25. O Captain! My Captain! Our fearful trip is done.

Answers :
1. Simile,
2. Personification,
3. Hyperbole,
4. Metaphor,
5. Oxymoron,
6. Apostrophe,
7. Metaphor,
8. Apostrophe,
9. Metaphor,
10. Oxymoron,
11. Hyperbole,
12. Metaphor,
13. Oxymoron,
14. Metaphor,
15. Simile,
16. Apostrophe,
17. Simile,
18. Onomatopoeia,
19. Simile,
20. Hyperbole,
21. Onomatopoeia,
22. Metaphor,
23. Oxymoron,
24. Simile,
25. Apostrophe.

EXERCISE 2

Point out the Figures of Speech in the following sentences:

1. A load of learning lumbering in his head.
2. A pleasing pain is love.
3. A fleet of planes whirred above our heads.
4. Cowardly brave ! Yes, that describes him, because he fights only when he cannot
run away.
5. Cowards die many times before their death.
6. For death had illuminated the land of sleep,
And his lifeless body lay.
7. Frailty ! Thy name is woman.
8. Grunt, grunt, goes the hog.
9. He is a man of iron will.
10. He saw within the moonlight in his room,
An angel-like a lily in bloom.
11. Hitler’s mad policy let loose the dogs of war.
12. He sneezed and cloud would break.
13. His words pierced like an arrow.
14. He got a golden opportunity to pass the examination.
15. In the sunset of his days, Sir Winston Churchill was a pathetic figure. Or He is now in the sunset of his days.
16. I see a lily on thy brows.
17. I heard the rippling of water.
18. I heard buzzing of bees.
19. I am the daughter of earth and water.
20. King James I was known as the wisest fool in Christendom.

Answers :
1. Hyperbole,
2. Oxymoron,
3. Onomatopoeia,
4. Apostrophe,
5. Hyperbole
6. personification,
7. Apostrophe,
8. Onomatopoeia,
9. Metaphor,
10. Simile,
11. Personification,
12. Hyperbole,
13. Simile,
14. Metaphor,
15. Metaphor,
16. Metaphor,
17. Onomatopoeia,
18. Onomatopoeia,
19. Metaphor,
20. Oxymoron.

EXERCISE 3

Point out the Figures of Speech in the following sentences:

1. O.Solitude ! Where are thy charms.
2. Revenge is a kind of wild justice.
3. Rome, thou hast seen much better days.
4. The sea (waves) rose mountains high.
5. Truth sits upon the lips of a dying man.
6. The man in the cave had the strength of a thousand elephants.
7. That cowardly fellow had the heart of chickens.
8. Errors like straw upon the surface flow.
9. There is dagger in thy words.
10. The chair collapsed under the weight of mountainous philosopher.
11. The Himalayas wear frowning look which threatens a storm.
12. The sky shrunk upward with unusual dread.
And trembling Jamuna dived beneath its bed.
13. There rolls the sea where grew the tree.
O Earth, what changes hast thou seen.
14. That in black ink my love may still shine bright.
15. The murmuring of innumerable bees.
16. The glorious lamp of heaven, the sun.
17. The whispering waves were half asleep.
The clouds were gone to play.
18. The river glideth at its own sweet will.
19. Thus idly busy rolls their world away.
20. The moon veiled her face.

Answers :
1. Apostrophe,
2. Oxymoron,
3. Apostrophe,
4. Hyperbole,
5. Personification,
6. Hyperbole,
7. Metaphor,
8. Simile,
9. Metaphor,
10. Hyperbole,
11. Personification,
12. Hyperbole,
13. Apostrophe,
14. Oxymoron,
15. Onomatopoeia,
16. Metaphor,
17. Personification,
18. Personification,
19. Oxymoron,
20. Personification.

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UP Board Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics chapter 1 Introduction

UP Board Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics chapter 1 Introduction (परिचय)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित कथन सही हैं अथवा गलत? इन्हें तदनुसार चिह्नित करें

(क) सांख्यिकी केवल मात्रात्मक आँकड़ों का अध्ययन करती है।
(ख) सांख्यिकी आर्थिक समस्याओं का समाधान करती है।
(ग) आँकड़ों के बिना अर्थशास्त्र में सांख्यिकी का कोई उपयोग नहीं है।

उत्तर :

(क) गलत,
(ख) सही,
(ग) सही।

प्रश्न 2.
उन क्रियाकलापों की सूची बनाएँ जो जीवन के सामान्य कारोबार के अंग होते हैं। क्या ये आर्थिक क्रियाकलाप हैं?
उत्तर :
उन क्रियाकलापों की सूची जो जीवन के सामान्य कारोबार के अंग होते हैं, निम्नलिखित हैं|

  1. आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए वस्तुओं को क्रय करना।
  2. लाभ कमाने के लिए वस्तुओं का उत्पादन करना।
  3. किसी अन्य व्यक्ति के लिए कार्य करना और बदले में पारिश्रमिक लेना।
  4. पारिश्रमिक (वेतन/मजदूरी) पाने के लिए दूसरे व्यक्ति को सेवा प्रदान करना।
  5. लाभ कमाने के लिए वस्तुएँ बेचना (विक्रेता का कार्य)।

उपर्युक्त सभी क्रियाएँ आर्थिक हैं क्योंकि ये सभी धन सम्बन्धी क्रियाएँ हैं और मौद्रिक लाभ कमाने के उद्देश्य से की जाती हैं।

प्रश्न 3.
सरकार और नीति निर्माता आर्थिक विकास के लिए उपयुक्त नीतियों के निर्माण के लिए
सांख्यिकीय आँकड़ों का प्रयोग करते हैं। दो उदाहरणों सहित व्याख्या कीजिए।
अथवा सरकार एवं नीति-निर्माताओं के लिए सांख्यिकीय आँकड़ों के प्रयोग का महत्व बताइए।
उत्तर :
1. सरकार द्वारा सांख्यिकीय आँकड़ों का प्रयोग देश में पूर्ण रोजगार के स्तर को बनाए रखने के लिए सरकार को अपनी व्यय नीति, कर नीति, मौद्रिक नीति आदि में समायोजन करना पड़ता है, परन्तु यह समायोजन सांख्यिकीय तथ्यों के आधार पर ही हो सकता है। सरकारी बजट का निर्माण भी सांख्यिकीय आँकड़ों के आधार पर किया जाता है। सरकार द्वारा नियुक्त आयोगों, समितियों आदि के प्रतिवेदनों का आधार भी समंक ही होते हैं। वास्तव में, सांख्यिकीय आँकड़े एक ऐसा आधार है जिसके चारों ओर सरकारी क्रियाएँ घूमती हैं।

2. नीति-निर्माताओं द्वारा सांख्यिकीय आँकड़ों का प्रयोग-सांख्यिकीय आँकड़े नीति निर्माण की आधारशिला हैं। योजनाएँ बनाने, उन्हें क्रियान्वित करने तथा उनकी उपलब्धियों/असफलताओं का मूल्यांकन करने में पग-पग पर सांख्यिकीय आँकड़ों का सहारा लेना पड़ता है। नीति-निर्माता समंकों का प्रयोग निम्नलिखित बातों के लिए करते हैं

  • अन्य देशों की तुलना में अपने देश के आर्थिक विकास की स्थिति को जानने के लिए; .
  • आर्थिक विकास के निर्धारक तत्त्वों के प्रभाव, तकनीकी प्रगति व उत्पादकता की स्थिति जानने के लिए;
  • अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में प्राथमिकताएँ निर्धारित करने के लिए;
  • विभिन्न क्षेत्रों के निर्धारित लक्ष्यों व वित्तीय साधनों का अनुमान लगाने के लिए;
  • विभिन्न परियोजनाओं के कार्यकरण का मूल्यांकन करने के लिए

प्रश्न 4.
आपकी आवश्यकताएँ असीमित हैं तथा उनकी पूर्ति करने के लिए आपके पास संसाधन सीमित हैं। दो उदाहरणों द्वारा इसकी व्याख्या करें।
उत्तर :
उदाहरण 1 – माना हमारे पास केवल १ 10 हैं। हम इससे फल, सब्जियाँ, पुस्तक, खेल का सामान आदि खरीदना चाहते हैं, सिनेमा भी देखना चाहते हैं। क्या हम ऐसा कर सकते हैं? नहीं। क्योंकि हमारे पास साधन सीमित अर्थात् मात्र 10 हैं। अतः हम इन आवश्यकताओं को वरीयता के क्रम में रखकर सर्वाधिक आवश्यक उन वस्तुओं को खरीद पाएँगे जिनका मूल्य र 10 तक होगा।

उदाहरण 2 – माना एक व्यक्ति के पास मात्र १ 10,000 की पूँजी है। वह इसे अनाज को संग्रह करने, अंश पत्रों व ऋण पत्रों में लगाने, कम्प्यूटर लगाकर जॉब वर्क करने आदि कार्यों में लगाना चाहता है। वह ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि उसके पास पूँजी सीमित (मात्र १ 10,000) है। अत: वह वही कार्य कर पाएगा जिसमें अधिकतम पूँजी की आवश्यकता मात्र १ 10,000 हो।

प्रश्न 5.
उन आवश्यकताओं का चुनाव आप कैसे करेंगे जिनकी आप पूर्ति करना चाहेंगे?
उत्तर :
जिन आवश्यकताओं की हम पूर्ति करना चाहेंगे उनका चुनाव निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर किया जाएगा

  1. विभिन्न आवश्यकताओं की तीव्रता देखकर, अधिक तीव्रता वाली आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के लिए चुनाव किया जाएगा।
  2. यह देखा जाएंगा कि हमारे पास उन आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के लिए कितने साधन उपलब्ध हैं।
  3. यह भी देखा जाएगा कि उपलब्ध संसाधनों के कितने वैकल्पिक प्रयोग हो सकते हैं। संक्षेप में, साधनों की उपलब्धता उनके वैकल्पिक प्रयोगों के आधार पर, अधिक तीव्रता वाली आवश्यकताओं की क्रमानुसार सन्तुष्टि की जाएगी।

प्रश्न 6.
आप अर्थशास्त्र का अध्ययन क्यों करना चाहते हैं? कारण बताइए।
उत्तर :
हम अर्थशास्त्र का अध्ययन निम्नलिखित कारणों से करना चाहते हैं

  1. अर्थशास्त्र के अध्ययन से ज्ञान में वृद्धि होती है, तर्क शक्ति बढ़ती है और दृष्टिकोण विस्तृत एवं वैज्ञानिक हो जाता है।
  2. अर्थशास्त्र के अध्ययन से चुनाव योग्यता में वृद्धि होती है और हम आवश्यक तथा अनावश्यक आवश्यकताओं में भेद करने में समर्थ हो जाते हैं।
  3. पारिवारिक बजट बनाकर हम विवेकपूर्ण ढंग से व्यय करना सीख जाते हैं। इससे हमें अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त होती है।
  4. न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन कैसे किया जाए, इसको ज्ञान हमें, अर्थशास्त्र के अध्ययन से प्राप्त होता है।
  5. अर्थशास्त्र के अध्ययन से हमें देश में जन-कल्याण हेतु चलाई जा रही विभिन्न परियोजनाओं का ज्ञान होता है।
  6. अर्थशास्त्र के अध्ययन से हमारी कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
  7. हमें देश में प्रचलित विभिन्न कुरीतियों एवं समस्याओं का ज्ञान होता है; जैसे–निर्धनता, बेरोजगारी, जनसंख्या में वृद्धि, अल्प-पोषण, जाति प्रथा, दहेज प्रथा, बाल-विवाह आदि। अर्थशास्त्र के अध्ययन से हमें इन समस्याओं के समाधान में सहायता मिलती है।

प्रश्न 7.
सांख्यिकीय विधियाँ सामान्य बुद्धि का स्थानापन्न नहीं होतीं।’ टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
सांख्यिकीय विधियाँ सामान्य बुद्धि का स्थानापन्न नहीं होतीं यह बात सर्वथा सत्य है। अत: इसका प्रयोग विशेष सावधानी के साथ उसकी सीमाओं को ध्यान में रखते हुए एक उपयुक्त व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए अन्यथा उससे निकाले गए निष्कर्ष भ्रामक होंगे। इसे निम्नलिखित उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
उदाहरण – एक बार चार व्यक्तियों का एक परिवार (पति-पत्नी तथा दो बच्चे) नदी पार करने निकला। पिता को नदी की औसत गहराई की जानकारी थी। अतः उसने परिवार के सदस्यों के औसत । कद का हिसाब लगाया। चूँकि परिवार के सदस्यों का औसत कद नदी की औसत गहराई से अधिक था, इसलिए उसने सोचा कि वे सभी सुरक्षित रूप से नदी पार कर सकते हैं। परिणामस्वरूप नदी पार करते समय बच्चे पानी में डूब गए। स्पष्ट है कि उस व्यक्ति ने ‘औसत’ का दुरुपयोग किया था। स्पष्ट है कि सांख्यिकी का प्रयोग पूर्ण योग्यता तथा ज्ञान के साथ, अत्यधिक सावधानी बरतते हुए तथा उसके विज्ञान की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए, एक उपयुक्त व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए ताकि निकाले गए निष्कर्ष सही तथा स्पष्ट हों।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जो मानव व्यवहार का अध्ययन साध्यों एवं सीमित तथा वैकल्पिक प्रयोगों वाले साधनों के बीच संबंध के रूप में करता है।” यह कथन किसका है?
(क) जे०के० मेहता
(ख) मार्शल
(ग) रॉबिन्स
(घ) पीगू
उत्तर :
(ग) रोबिन्स

प्रश्न 2.
आवश्यकताविहीनता की संकल्पना का प्रतिपादन किया था
(क) मार्शल ने
(ख) जे०के० मेहता ने
(ग) रोबिन्स ने
(घ) ए०के० सेन ने।
उत्तर :
(ख) जे०के० मेहता ने

प्रश्न 3.
अर्थशास्त्र के जनक कहे जाते हैं
(क) एडम स्मिथ
(ख) रिकाडों
(ग) प्रो० रोबिन्स
(घ) प्रो० मार्शल
उत्तर :
(क) एडम स्मिथ

प्रश्न 4.
प्रो० रोबिन्स के अनुसार अर्थशास्त्र है
(क) केवल आदर्श विज्ञान
(ख) केवल वास्तविक विज्ञान ,
(ग) वास्तविक व आदर्श विज्ञान
(घ) विज्ञान व कला दोनों
उत्तर :
(ख) केवल वास्तविक विज्ञान

प्रश्न 5.
सुख की प्राप्ति ही मानव-जीवन का लक्ष्य है, किस भारतीय विचारक से संबंधित है।
(क) जे०के० मेहता
(ख) एम०के० गाँधी
(ग) ए०के० सेन
(घ) रवीन्द्रनाथ टैगोर
उत्तर :
(क) जे०के० मेहता

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्थशास्त्र क्या है?
उत्तर :
अर्थशास्त्र वह सामाजिक विज्ञान है जिसके अंतर्गत सामाजिक, वास्तविक व सामान्य मनुष्यों की आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए किए जाने वाले प्रयत्नों का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 2.
अर्थशास्त्र की धन केन्द्रित परिभाषा दीजिए तथा उसकी दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
“अर्थशास्त्र राष्ट्रों के धन के स्वरूप तथा कारणों की खोज से संबंधित है।”
विशेषताएँ–

  • ‘धन’ ही अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री का केन्द्र-बिन्दु है।
  • व्यक्तिगत समृद्धि के द्वारा ही राष्ट्रीय धन एवं सम्पत्ति में वृद्धि संभव है।

प्रश्न 3.
अर्थशास्त्र की कल्याण केन्द्रित परिभाषा दीजिए एवं उसकी दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
“अर्थशास्त्र मानव जीवन के सामान्य व्यवसाय का अध्ययन है; इसमें व्यक्तिगत तथा सामाजिक क्रियाओं के उस भाग की जाँच की जाती है जिसका भौतिक सुख के साधनों की प्राप्ति और उपयोग से बड़ा ही घनिष्ठ संबंध है।”
विशेषताएँ-

  1. अर्थशास्त्र में सामान्य, सामाजिक तथा वास्तविक मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
  2. अर्थशास्त्र मानव के जीवन के साधारण व्यवसाय’ का अध्ययन करता है। इसका आशय मनुष्य की उन क्रियाओं से लगाया जाता है, जिनका संबंध दैनिक जीवन से है।

प्रश्न 4.
प्रो० रोबिन्स द्वारा दी गई अर्थशास्त्र की परिभाषा लिखिए।
उत्तर :
“अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जिसमें साध्य तथा सीमितता और अनेक उपयोग वाले साधनों से संबंधित मानव व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।”

प्रश्न 5.
रोबिन्स की परिभाषा अन्य परिभाषाओं से श्रेष्ठ है।’ इस कथन के पक्ष में उपयुक्त तर्क दीजिए।
उत्तर :

  • रोबिन्स की परिभाषा अधिक वैज्ञानिक है क्योंकि यह ‘आर्थिक समस्या’ अर्थात् चुनाव करने के पहलू की बात करते अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री को मजबूत आधार प्रदान करती है।
  • रोबिन्स की परिभाषा तर्कपूर्ण है।
  • यह परिभाषा अर्थशास्त्र के क्षेत्र को अधिक व्यापक करती है।

प्रश्न 6.
उपभोक्ता किसे कहते हैं?
उत्तर :
जब एक व्यक्ति अपनी आवश्यकता की प्रत्यक्ष संतुष्टि के लिए किसी वस्तु को खरीदता है तो वह ‘उपभोक्ता’ कहलाता है।

प्रश्न 7.
विक्रेता किसे कहते हैं?
उत्तर :
जो व्यक्ति वस्तुओं को स्वयं के लाभ के लिए दूसरों को बेचता है तो वह विक्रेता’ कहलाता है।

प्रश्न 8.
उत्पादक किसे कहते हैं?
उत्तर :
उत्पादक वह व्यक्ति है जो अपने लाभ के लिए वस्तुओं का उत्पादन करता है।

प्रश्न 9.
सेवाधारी किसे कहते हैं?
उत्तर :
वह व्यक्ति जो नौकरी करता है अर्थात् दूसरों के लिए कार्य करता है जिसके लिए उसे पारिश्रमिक दिया जाता है, ‘सेवाधारी’ कहलाता है।

प्रश्न 10.
सेवा प्रदाता किसे कहते हैं?
उत्तर :
वे व्यक्ति जो, भुगतान लेकर अन्य व्यक्तियों को सेवा प्रदान करते हैं (जैसे–डॉक्टर, वकील, बैंकर, अध्यापक आदि) सेवा प्रदाता’ कहलाते हैं।

प्रश्न 11
 आर्थिक क्रियाओं का अर्थ लिखिए।
उत्तर :
वे सभी क्रियाएँ जो धन प्राप्त करने के लिए की जाती हैं, “आर्थिक क्रियाएँ’ कहलाती हैं।

प्रश्न 12.
आर्थिक समस्या क्या है?
उत्तर :
असीमित आवश्यकताओं, सीमित साधनों एवं उनके वैकल्पिक प्रयोग के कारण उत्पन्न चुनाव की समस्या ही ‘आर्थिक समस्या है।

प्रश्न 13.
सांख्यिकी शब्द का एकवचन में क्या अर्थ है?
उत्तर :
एकवचन में सांख्यिकी शब्द से आशय ‘सांख्यिकी विज्ञान’ से है। ए०एल० बाउले ने इसे ‘गणना का विज्ञान’ कहा है।

प्रश्न 14.
बहुवचन में सांख्यिकी का क्या अर्थ है?
उत्तर :
बहुवचन में सांख्यिकी का अर्थ समंकों या आँकड़ों से है जो किसी विशिष्ट क्षेत्र से संबंधित संख्यात्मक तथ्ये हो सकते हैं; जैसे—राष्ट्रीय आय समंक, कृषि समंक आदि।

प्रश्न 15.
समंकों की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :

  • समंक तथ्यों के समूह होते हैं।
  • समंक संख्या में व्यक्त किए जाते हैं।

प्रश्न 16.
सांख्यिकी की एक उपयुक्त परिभाषा दीजिए।
उत्तर :
सांख्यिकी एक विज्ञान और कला है जो सामाजिक, आर्थिक, प्राकृतिक व अन्य समस्याओं से संबंधित समंकों के संग्रहण, सारणीयन, प्रस्तुतीकरण, संबंध स्थापन, निर्वचन और पूर्वानुमान से संबंध रखती है ताकि निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति हो सके।

प्रश्न 17.
सांख्यिकीय रीतियों से क्या आशय है।
उत्तर :
सांख्यिकीय रीतियों के अंतर्गत उन सिद्धांतों एवं तकनीकों का समावेश होता है जिनका व्यवहार समूहों को संकलन, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण और निर्वचन में किया जाता है और महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

प्रश्न 18.
विवरणात्मक सांख्यिकी से क्या आशय है?
उत्तर :
विवरणात्मक सांख्यिकी से आशय समंकों के विधियन, वर्गीकरण, सारणीयन एवं केन्द्रीय प्रवृत्ति के मापन आदि से हैं। इनके द्वारा संख्यात्मक तथ्यों की मौलिक विशेषताओं को प्रदर्शित किया जाता है।

प्रश्न 19.
सांख्यिकी की प्रकृति क्या है?
उत्तर :
सांख्यिकी विज्ञान व कला दोनों हैं क्योंकि इसका प्रयोग केवल ज्ञान प्राप्त करने के उद्देश्य से ही नहीं किया जाता अपितु तथ्यों को समझने तथा उनसे महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकालने के उद्देश्य से भी किया जाता है।

प्रश्न 20.
सांख्यिकी के दो कार्य बताइए।
उत्तर :

  • तथ्यों को सूक्ष्म तथा सरल रूप में प्रस्तुत करना,
  • तथ्यों को तुलनात्मक रूप में प्रस्तुत करना।

प्रश्न 21.
सांख्यिकी की दो सीमाएँ बताइए।
उत्तर :

  • सांख्यिकी समूहों का अध्ययन करती है, व्यक्तिगत इकाइयों का नहीं।
  • सांख्यिकी केवल संख्यात्मक तथ्यों को ही अध्ययन करती है, गुणात्मक तथ्यों का नहीं। |

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्थशास्त्र क्या है?
उत्तर :
मनुष्य की आवश्यकताएँ असीमित हैं किंतु इनकी तीव्रता में अंतर पाया जाता है। इनमें से कुछ आवश्यकताएँ अधिक तीव्र होती हैं जिनको संतुष्ट करना अत्यधिक आवश्यक होता है। समाज के सभी सदस्य इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयत्नशील रहते हैं; उदाहरण के लिए वकील न्यायालय में बहस करता है, डॉक्टर व नर्स अस्पताल में मरीजों की देखभाल करते हैं, अध्यापक विद्यालय में पढ़ाता है, किसान खेत जोतता है और मजदूर पत्थर तोड़ता है इत्यादि। ये सभी क्रियाएँ आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही की जाती हैं। मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए किए गए ऐसे सभी प्रयत्नों का अध्ययन अर्थशास्त्र के अंतर्गत किया जाता है।

अर्थशास्त्र की सामान्य परिभाषा–
“अर्थशास्त्र वह सामाजिक विज्ञान है जिसके अंतर्गत सामाजिक वास्तविक व सामान्य मनुष्यों की आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए किए जाने वाले प्रयत्नों का अध्ययन किया जाता है।”

प्रश्न 2.
अर्थशास्त्र की धन संबंधी परिभाषाओं के प्रमुख दोष बताइए।
उत्तर :
प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र को धन का विज्ञान माना और उन्होंने धन के अंतर्गत केवल भौतिक वस्तुओं को ही सम्मिलित किया। उन्होंने एक ऐसे आर्थिक मनुष्य का अध्ययन किया जिसका उद्देश्य केवल धन कमाना होता है। इन परिभाषाओं के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं

  1. धन संबंधी परिभाषाओं में धन पर, जो कि साधन है, आवश्यकता से अधिक बल दिया गया है। और मानव, जो कि साध्य है, की उपेक्षा की गई है। वास्तव में, धन तो केवल ‘साधन’ है जिसकी सहायता से मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, ‘साध्य’ (end) नहीं।
  2. प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने एक ऐसे आर्थिक मनुष्य की कल्पना की थी, जो केवल धन कमाने के लिए आर्थिक क्रियाएँ करता है। आर्थिक मनुष्य की उनकी धारणा पूर्णतः काल्पनिक थी।
  3. धन संबंधी परिभाषाओं में केवल धनोत्पादन एवं धन संग्रह पर ही बल दिया गया था, उनके न्यायपूर्ण वितरण एवं मानव कल्याण में वृद्धि पर कोई ध्यान नहीं दिया गया था।

प्रश्न 3.
रोबिन्स की अर्थशास्त्र की परिभाषा दीजिए और इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
रोबिन्स की परिभाषा-“अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जिसमें साध्यों तथा सीमितता और उनके उपयोग वाले साधनों से संबंधित मानव व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।” परिभाषा की विशेषताएँ-प्रो० रोबिन्स द्वारा प्रतिपादित अर्थशास्त्र की परिभाषा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं|

  1. प्रो० रोबिन्स के अनुसार, अर्थशास्त्र प्रत्येक क्रिया के आर्थिक पक्ष का अध्ययन करता है। इस प्रकार यह परिभाषा अर्थशास्त्र को आर्थिक-अनार्थिक क्रियाओं, भौतिक-अभौतिक कल्याण एवं साधारण-असाधारण व्यवसाय आदि के बंधन से मुक्त कर देती है।
  2. प्रो० रोबिन्स ने सामाजिक व्यवहार के स्थान पर मानव व्यवहार को अर्थशास्त्र का विषय-क्षेत्र माना है। इसलिए इस विज्ञान का कार्य-क्षेत्र अपेक्षाकृत अधिक व्यापक है।
  3. प्रो० रोबिन्स ने अर्थशास्त्र को केवल वास्तविक विज्ञान (Positive Science) माना है। उनकी दृष्टि में अर्थशास्त्र उद्देश्यों के प्रति तटस्थ है। दूसरे शब्दों में, अर्थशास्त्री का क्या होना चाहिए से कोई संबंध नहीं है।
  4. यह परिभाषा सार्वभौमिक है। यह सभी देशों एवं सभी आर्थिक प्रणालियों (चाहे वह पूँजीवादी व्यवस्था हो, समाजवादी व्यवस्था हो अथवा साम्यवादी) के सम्बन्ध में लागू होती है।
  5. आर्थिक समस्या का जन्म आवश्यकताओं की असीमितता एवं साधनों की दुर्लभता के कारण होता है। यह आर्थिक समस्या ही अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री है।।
  6. यह परिभाषा तार्किक दृष्टि से खरी एवं वैज्ञानिक है।

प्रश्न 4.
मार्शल तथा रोबिन्स द्वारा प्रतिपादित अर्थशास्त्र की परिभाषाओं की तुलना कीजिए।
उत्तर :
मार्शल व रोबिन्स की परिभाषाओं की तुलना

  1. मार्शल की परिभाषा श्रेणी-विभाजक है। उन्होंने मानवीय क्रियाओं को भौतिक-अभौतिक, आर्थिक-अनार्थिक तथा साधारण-असाधारण व्यवसाय के रूप में वर्गीकृत किया है। इसके विपरीत, रोबिन्स की परिभाषा विश्लेषणात्मक है। उनके अनुसार अर्थशास्त्र ‘चुनाव का विज्ञान’ है।
  2. मार्शल के अनुसार, अर्थशास्त्र में केवल ‘धन’ से सम्बन्धित क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। जबकि रोबिन्स के अनुसार, अर्थशास्त्र प्रत्येक क्रिया का चुनाव करने की दृष्टि से अध्ययन करता
  3. मार्शल अर्थशास्त्र को सामाजिक विज्ञान’ मानते हैं, जबकि रोबिन्से उसे ‘मानव विज्ञान मानते हैं।
  4. मार्शल के अनुसार, अर्थशास्त्र मनुष्य की केवल आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता है। इसके विपरीत, रोबिन्स के विचार में अर्थशास्त्र के अन्तर्गत मनुष्य की सभी प्रकार की क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
  5. मार्शल के अनुसार, अर्थशास्त्र ‘मानव कल्याण’ का शास्त्र है, जबकि रोबिन्स के अनुसार अर्थशास्त्र का कल्याण से कोई सम्बन्ध नहीं है। अर्थशास्त्र उद्देश्यों के प्रति तटस्थ है।
  6. मार्शल के अनुसार, अर्थशास्त्र विज्ञान तथा कला दोनों है, जबकि रोबिन्स के अनुसार अर्थशास्त्र केवल वास्तविक विज्ञान है।
  7. मार्शल आर्थिक विश्लेषण के लिए निगमन तथा आगमन दोनों ही प्रणालियों का प्रयोग करते हैं, जबकि रोबिन्स आर्थिक विश्लेषण के लिए केवल निगमन रीति का ही प्रयोग करते हैं।
  8. मार्शल की परिभाषा सरल तथा व्यावहारिक है, जबकि रोबिन्स की परिभाषा वैज्ञानिक तथा सैद्धान्तिक है।

प्रश्न 5.
अर्थशास्त्र की एक विकास केन्द्रित परिभाषा दीजिए और इसकी विशेषताएँ बताइए। अथवा प्रो० सेमुअल्सन द्वारा प्रतिपादित अर्थशास्त्र की परिभाषा दीजिए और इसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
आर्थिक विकास की समस्या आज की ज्वलन्त समस्या है। अतः आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र की परिभाषा में ‘आर्थिक विकास की समस्या को विशेष महत्त्व दिया है।

प्रो० सेमुअल्सन द्वारा प्रतिपादित अर्थशास्त्र की परिभाषा –
“अर्थशास्त्र इस बात का अध्ययन करता है कि व्यक्ति और समाज अनेक प्रयोग में आ सकने वाले उत्पादन के सीमित साधनों का चुनाव एक समयावधि में विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में लगाने और उनको समाज में विभिन्न व्यक्तियों और समूहों के उपभोग हेतु वर्तमान व भविष्य में, बाँटने के लिए किस प्रकार करते हैं, ऐसा वे चाहे मुद्रा का प्रयोग करके करें अथवा इसके बिना करें। यह साधनों के आवंटन के स्वरूप में सुधार करने की लागतों व उपयोगिताओं का विश्लेषण करता है।”

परिभाषा की विशेषताएँ – उपर्युक्त परिभाषा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. साधन सीमित तथा वैकल्पिक प्रयोग वाले हैं जिनको विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयोग किया जाता है।
  2. ‘आर्थिक विकास की प्रकृति प्रावैगिक है। अत: इस समस्या को शामिल करने से यह परिभाषा ‘प्रावैगिक हो गई है।
  3. प्रो० सेमुअल्सन ने चुनाव की समस्या’ या ‘साधनों के वितरण की समस्या’ को ‘वस्तु विनिमय प्रणाली’ और ‘मुद्रा विनिमय प्रणाली’ दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं में लागू किया है। फलस्वरूप अर्थशास्त्र का क्षेत्र व्यापक हो गया है।
  4. यह परिभाषा सार्वभौमिक है और सभी प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं (पूँजीवादी, समाजवादी, साम्यवादी) में लागू होती है।
  5. अर्थशास्त्र के क्षेत्र में आय, उत्पादन, रोजगार व आर्थिक विकास आदि की समस्याओं का समावेश करके यह परिभाषा अर्थशास्त्र के क्षेत्र को विस्तृत कर देती है।

प्रश्न 6.
अर्थशास्त्र के विज्ञान होने के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर :
अर्थशास्त्र के विज्ञान होने के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं।—

  1. इसमें तथ्यों का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। यह अध्ययन वैज्ञानिक रीति पर आधारित होता है।
  2. इसमें ‘कारण’ एवं परिणाम के सम्बन्ध पर आधारित नियमों का प्रतिपादन किया जाता है।
  3. भावी घटनाओं के सम्बन्ध में पूर्वानुमान लगाए जाते हैं।
  4. अनेक नियम सर्वव्यापकता को गुण रखते हैं; जैसे—उपयोगिता ह्रास नियम, माँग का नियम आदि।

प्रश्न 7.
“अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान के साथ-साथ आदर्श विज्ञान भी है। इस सम्बन्ध में विभिन्न अर्थशास्त्रियों के विचार बताइए।
उत्तर :
अर्थशास्त्र एक विज्ञान है, यह सर्वसम्मति सेस्वीकार किया जाता है किन्तु अर्थशास्त्रियों में इस बारे में मतभेद है कि यह वास्तविक विज्ञान के साथ-साथ आदर्श विज्ञान है अथवा नहीं। सीनियर, केयरनीज, रोबिन्स, सेमुअल्सन व बोल्डिग अर्थशास्त्र को केवल वास्तविक विज्ञान मानते हैं। रोबिन्स के अनुसार-“अर्थशास्त्र उद्देश्यों के प्रति तटस्थ है।” प्रो० बोल्डिग के अनुसार—अर्थशास्त्री चुनाव का अध्ययन करता है, उनका मूल्यांकन नहीं।” इसके विपरीत, वर्तमान समय में अधिकांश अर्थशास्त्री अर्थशास्त्र को वास्तविक विज्ञान के साथ-साथ आदर्श विज्ञान भी मानते हैं वे यह स्वीकार करते हैं-“अर्थशास्त्री का कार्य केवल व्याख्या या खोज करना ही नहीं अपितु समर्थन तथा निंदा करना भी है।”

प्रो० पीगू के अनुसार – 
“इसका (अर्थशास्त्र का) प्रमुख महत्त्व तो इस बात में है कि वह नीतिशास्त्र से अलग नहीं किया जी सकता।” इस प्रकार अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान के साथ-साथ आदर्श विज्ञान भी है।

प्रश्न 8.
अर्थशास्त्र कला है।’ इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अर्थशास्त्र कला है क्योंकि अर्थशास्त्र की अनेक शाखाएँ व्यावहारिक समस्याओं का हल बताती हैं; उदाहरण के लिए अर्थशास्त्री बताता है कि ब्याज की उचित दर क्या होनी चाहिए, आदर्श मजदूरी व पूर्ण रोजगार के स्तर पर कैसे पहुँचा जाए, किन करों के द्वारा बजट के घाटे को पूरा किया जाए। कीन्स, मिल, मार्शल व पीगू आदि अर्थशास्त्री अर्थशास्त्र को कला मानते हैं। उनके अनुसार, कला व्यावहारिक समस्याओं को सुलझाने का एक साधन है। प्रो० पीगू के अनुसार-“हमारा मनोवेग एक दार्शनिक जैसा नहीं होता जो ज्ञान के लिए ही ज्ञान प्राप्त करता है बल्कि वह एक शरीर विज्ञाता (डॉक्टर) के दृष्टिकोण की भाँति होना चाहिए, जो ज्ञान इसलिए प्राप्त करता है क्योंकि वह रोग तथा पीड़ा को दूर करने में सहायता करता है।”

प्रश्न 9.
अर्थशास्त्र की सीमाएँ बताइए।
उत्तर :
विभिन्न अर्थशास्त्रियों के अनुसार, अर्थशास्त्र की प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं

  1. अर्थशास्त्र केवल मानवीय क्रियाओं का अध्ययन करता है, पशु-पक्षी अथवा जीव-जन्तुओं की क्रियाओं का नहीं।
  2. अर्थशास्त्र में वास्तविक मनुष्यों की क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है काल्पनिक मनुष्यों की क्रियाओं का नहीं।
  3. अर्थशास्त्र में केवल सामान्य मनुष्य के कार्यों का अध्ययन किया जाता है; पागल, कंजूस, शराबी आदि के कार्यों का अध्ययन नहीं।
  4. अर्थशास्त्र केवल सामाजिक मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता है और धन आर्थिक क्रिया का मापदण्ड है।
  5. अर्थशास्त्र के नियम प्राकृतिक विज्ञानों की तुलना में कम निश्चित होते हैं।

प्रश्न 10.
अर्थशास्त्र में सांख्यिकी के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अर्थशास्त्र में सांख्यिकी का महत्त्व – आर्थिक विश्लेषण में समंक अत्यधिक उपयोगी होते हैं। मार्शल के अनुसार-“समंक वे तृण हैं, जिनसे मुझे अन्य अर्थशास्त्रियों की भाँति ईंटें बनानी हैं।” अर्थशास्त्र की प्रत्येक शाखा में सांख्यिकीय रीतियों का प्रयोग किया जाता है|

  1. उपभोग के क्षेत्र में – उपभोग समंक यह बताते हैं कि विभिन्न आय-वर्ग किस प्रकार अपनी आय को व्यय करते हैं, उनका रहन-सहन का स्तर तथा उनकी करदान क्षमता क्या है।
  2. उत्पादन के क्षेत्र में – उत्पादन समंक माँग एवं पूर्ति में समायोजन करने में सहायक होते हैं। ये समंक देश की उत्पादकता के मापक होते हैं।
  3. विनिमय के क्षेत्र में – समंकों के माध्यम से बाजार माँग व पूर्ति की विभिन्न दशाओं पर आधारित मूल्य निर्धारण के नियम व लागत मूल्य का अध्ययन किया जाता है।
  4. वितरण के क्षेत्र में – समंकों की सहायता से ही राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है, इसीलिए कहा जाता है-“कोई भी अर्थशास्त्री सांख्यिकीय तथ्यों के विस्तृत अध्ययन के बिना उत्पादन या वितरण संबंधी निष्कर्ष निकालने का प्रयत्न नहीं करेगा।”

प्रश्न 11.
सांख्यिकी की सीमाएँ बताइए।
उत्तर :
सांख्यिकी की प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं

  1. सांख्यिकी समूहों का अध्ययन करती है, व्यक्तिगत इकाइयों का नहीं।
  2. सांख्यिकी केवल संख्यात्मक तथ्यों का ही अध्ययन करती है, गुणात्मक तथ्यों को नहीं।
  3. सांख्यिकी के परिणाम असत्य सिद्ध हो सकते हैं, यदि उनका अध्ययन बिना संदर्भ के किया जाए।
  4. सांख्यिकीय समंकों में एकरूपता व सजातीयता होनी आवश्यक है, विजातीय समंकों से सार्थक निष्कर्ष नहीं निकाले जा सकते।
  5. सांख्यिकी के नियम दीर्घकाल में तथा औसत रूप से ही सत्य होते हैं।
  6. सांख्यिकी की रीति किसी समस्या के अध्ययन की विभिन्न रीतियों में से एक रीति है, एकमात्र रीति नहीं।
  7. सांख्यिकी विश्लेषण को साधन मात्र है, समस्या का समाधान नहीं।

प्रश्न 12.
सांख्यिकी के प्रमुख कार्य बताइए।
उत्तर :
सांख्यिकी के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं

  1. सांख्यिकी का कार्य तथ्यों को सूक्ष्म तथा सरल रूप में प्रस्तुत करना है।
  2. सांख्यिकी समंकों के बीच तुलनात्मक अध्ययन के लिए आधार प्रस्तुत करती है।
  3. सांख्यिकी का महत्त्वपूर्ण कार्य सामान्य वितरणों को संक्षिप्त एवं निश्चित रूप में प्रस्तुत करना है।
  4. सांख्यिकी का एक कार्य व्यक्तिगत ज्ञान व अनुभव की वृद्धि करना है।
  5. सांख्यिकी सरकार का नीति-निर्माण में पथ-प्रदर्शन करती है।
  6. सांख्यिकी समंकों की सहायता से अन्य विज्ञानों के नियमों की सत्यता की जाँच की जाती है।
  7. सांख्यिकी नीति प्रभावों के मापने में सहायता करती है।
  8. सांख्यिकी दो या अधिक तथ्यों के मध्य संबंधों का अध्ययन करती है।
  9. सांख्यिकी द्वारा वर्तमान तथ्यों व परिस्थितियों के आधार पर भविष्य के बारे में भी अनुमान किया जा सकता है।

दीर्घ उतरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो धन की विवेचना करता है।” इस कथन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
अथवा प्रो० एडम स्मिथ व उसके अनुयायियों द्वारा प्रतिपादित अर्थशास्त्र की परिभाषाओं की म आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
अथवा अर्थशास्त्र की ‘धन-केन्द्रित परिभाषाओं को लिखिए तथा इनकी आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
उत्तर :
अर्थशास्त्र की धन सम्बन्धी परिभाषाएँ
प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र को ‘धन का विज्ञान माना है। प्रो० एडम स्मिथ, जिन्हें ‘अर्थशास्त्र को जनक’ कहा जाता है, ने अपनी पुस्तके An Enquiry into the Nature and Causes of wealth of Nations’ में अर्थशास्त्र को इन शब्दों में परिभाषित किया है-

“अर्थशास्त्र राष्ट्रों के धन के स्वरूप तथा कारणों की खोज से सम्बन्धित है।” उपर्युक्त परिभाषा के समर्थन में स्मिथ के समर्थकों द्वारा दी गई कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नांकित हैं
(i) जे०बी० से के अनुसार –“अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो धन की विवेचना करता है।”
(i) एफ०एल० वाकर के अनुसार –“अर्थशास्त्र ज्ञान की वह शाखा है जो धन से सम्बन्धित है।” धन सम्बन्धी परिभाषाओं की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. ‘धन’ ही अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री का केन्द्र-बिन्दु है।
  2. मनुष्य की अपेक्षा धन अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि मानवीय सुख का एकमात्र आधार धन ही है। धन के अभाव में मानवीय सुख की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
  3. ‘धन’ के अन्तर्गत केवल भौतिक वस्तुओं को शामिल किया जाता है, सेवाओं को नहीं।
  4. व्यक्तिगत समृद्धि द्वारा ही राष्ट्रीय धन एवं सम्पत्ति में वृद्धि सम्भव है।
  5. मनुष्य केवल स्व:हित (Self-interest) की भावना से प्रेरित होकर आर्थिक क्रियाएँ करता है।

अतः वह ‘आर्थिक मनुष्य’ (Economic Man) की भाँति है। उसका उद्देश्य मात्र धन कमाना होता

धन सम्बन्धी परिभाषाओं की आलोचना
धन सम्बन्धी परिभाषाएँ दोषपूर्ण थीं। अतः इनकी निम्नलिखित आधारों पर तीव्र आलोचनाएँ की गईं–

  1. मनुष्य की अपेक्षा धन पर अधिक बल-धन सम्बन्धी परिभाषाओं में धन पर जो कि साधन है, आवश्यकता से अधिक बल दिया गया है और मानव, जो कि साध्य है, की उपेक्षा की गई है। वास्तव में, धन तो केवल ‘साधन है जिसकी सहायता से मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, ‘साध्य’ (end) नहीं।।
  2. अर्थशास्त्र का संकुचित क्षेत्र-धन सम्बन्धी परिभाषाओं ने अर्थशास्त्र के क्षेत्र को संकुचित कर दिया है क्योंकि प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने धन के अन्तर्गत केवल भौतिक पदार्थों को ही शामिल किया था, सेवाओं (डॉक्टर, वकील, अध्यापक आदि की सेवाएँ) को नहीं। यह अनुचित था।
  3. आर्थिक मनुष्य की कल्पना प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने एक ऐसे आर्थिक मनुष्य (Economic Man) की कल्पना की थी, जो केवल धन की प्रेरणा और अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर कार्य करता है तथा जिस पर देशप्रेम, धर्म, परोपकार आदि भावनाओं को कोई प्रभाव नहीं पड़ता। आर्थिक मनुष्य की यह धारणा पूर्णतः कल्पित थीं।
  4. धन के न्यायपूर्ण वितरण की उपेक्षा-इन परिभाषाओं में केवल धनोत्पादन एवं धन संग्रह पर ही बल दिया गया है तथा धन के उचित वितरण तथा प्रयोग द्वारा मानव-कल्याण में होने वाली वृद्धि पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

उपर्युक्त दोषों के कारण कार्लाइल (Carlyle), रस्किन (Ruskin), विलियम मॉरिस (William Morris) आदि विद्वानों ने अर्थशास्त्र को ‘कुबेर की विद्या’, ‘घृणित विज्ञान’, ‘रोटी और मक्खन का विज्ञान’ कहकर इसकी कड़ी आलोचना की।

प्रश्न 2.
“राजनीतिक अर्थव्यवस्था अथवा अर्थशास्त्र मानव के सामान्य व्यवसायं का अध्ययन है। यह व्यक्तिगत तथा सामाजिक क्रिया के उस भार्ग का अध्ययन करता है जो सुख के भौतिक साधनों की प्राप्ति तथा प्रयोग से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है।” अर्थशास्त्र के इस दृष्टिकोण का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
अथवा अर्थशास्त्र मानव के भौतिक कल्याण का अध्ययन है।” इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। अथवा मार्शल द्वारा प्रतिपादित अर्थशास्त्र की परिभाषा को समझाइए।
उत्तर :
मार्शल द्वारा प्रतिपादित अर्थशास्त्र की परिभाषा
मार्शल की परिभाषा ‘मानव कल्याण पर केन्द्रित है। धन तो मानव कल्याण में वृद्धि का साधन मात्र है। मार्शल ने अपनी परिभाषा को अन्तिम रूप इस प्रकार दिया है अर्थशास्त्र मानव जीवन के सामान्य व्यवसाय का अध्ययन है; इसमें व्यक्तिगत तथा सामाजिक क्रियाओं के उस भाग की जाँच की जाती है जिसका भौतिक सुख के साधनों की प्राप्ति और उपयोग से बड़ा ही घनिष्ठ सम्बन्ध है।”

मार्शल द्वारा प्रतिपादित अर्थशास्त्र की परिभाषा की विशेषताएँ

  1. मार्शल ने अर्थशास्त्र को ‘राजनीतिक अर्थशास्त्र’ से अलग करके एक स्वतन्त्र विषय ‘अर्थशास्त्र का नाम दिया।
  2. मार्शल ने धन के स्थान पर मनुष्य को प्रमुख स्थान दिया, क्योंकि धन ‘साधन’ है और मनुष्य ‘साध्य’। इस प्रकार उन्होंने मानव को अर्थशास्त्र का प्रमुख अंग माना।
  3. अर्थशास्त्र में सामान्य, सामाजिक तथा वास्तविक मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
  4. अर्थशास्त्र मानव के जीवन के साधारण व्यवसाय’ का अध्ययन करता है। इसका आशय मनुष्य की उन क्रियाओं से लगाया जाता है, जिनका सम्बन्ध दैनिक जीवन से है।
  5. अर्थशास्त्र में मनुष्य की क्रियाओं के केवल उस भाग का अध्ययन होता है, जिसका सम्बन्ध धन कमाने व खर्च करने से होता है।
  6. अर्थशास्त्र के अन्तर्गत केवल उन्हीं आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, जो आर्थिक कल्याण में वृद्धि करती हैं।
  7. अर्थशास्त्र केवल ऐसे मनुष्य की क्रियाओं का अध्ययन करता है, जो समाज में रहता है, समाज से प्रभावित होता है और समाज को प्रभावित करता है।
  8. अर्थशास्त्र एक विज्ञान है और उसका अध्ययन वैज्ञानिक आधार पर किया जाना चाहिए।

मार्शल द्वारा प्रतिपादित अर्थशास्त्र की परिभाषा की आलोचना
रोब्रिन्स ने कल्याण केन्द्रित परिभाषाओं की कटु आलोचना की है। मुख्य आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं

  1.  ये परिभाषाएँ श्रेणी विभाजक हैं, विश्लेषणात्मक नहीं-

    • मार्शल ने अर्थशास्त्र के अध्ययन को केवल भौतिक साधनों की प्राप्ति तथा उपयोग तक ही सीमित रखा है, परन्तु साधन अभौतिक भी होते हैं; जैसे-डॉक्टर, वकील, अध्यापक, मजदूर आदि की सेवाएँ। ये सेवाएँ धन-प्राप्ति में सहायक होती हैं।
    • मार्शल के अनुसार, अर्थशास्त्र में मनुष्य की केवल आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। रोबिन्स के अनुसार, क्रियाओं को आर्थिक एवं अनार्थिक–इने दो भागों में बाँटना अनुचित है; क्योंकि एक ही प्रकार की क्रिया एक समय आर्थिक हो सकती है और दूसरे समय अनार्थिक।
    • मार्शल के अनुसार, अर्थशास्त्र में मनुष्य के ‘साधारण व्यवसाय का अध्ययन’ है, परन्तु क्रियाओं को ‘साधारण व्यवसाय’ और ‘असाधारण व्यवसाय में बाँटना सम्भव नहीं है।
  2. अर्थशास्त्र को कल्याण से सम्बद्ध करना अनुचित – प्रो० रोबिन्स के अनुसार, अर्थशास्त्र र्को कल्याण से सम्बद्ध करना अनुचित है, क्योंकि मानव कल्याण एक मनोवैज्ञानिक धारणा है जिसकी सही-सही माप सम्भव नहीं है।
  3. अर्थशास्त्र उद्देश्यों के प्रति तटस्थ है – रोबिन्स के अनुसार, अर्थशास्त्र उद्देश्यों के प्रति तटस्थ है। उद्देश्य अच्छे हों अथवा बुरे, अर्थशास्त्र का इनसे कोई सम्बन्ध नहीं है।
  4. अर्थशास्त्र एक मानव विज्ञान है – प्रो० मार्शल ने अर्थशास्त्र को ‘सामाजिक विज्ञान’ बताया है, परन्तु प्रो० रोबिन्स इसे मानव विज्ञान’ मानते हैं।
  5. अर्थशास्त्र का संकुचित क्षेत्र – कल्याण प्रधान परिभाषाओं ने अर्थशास्त्र के क्षेत्र को संकुचित कर दिया है क्योकि इनके अनुसार अनार्थिक, अभौतिक तथा असामान्य क्रियाओं का अध्ययन अर्थशास्त्र के अन्तर्गत नहीं किया जाता है।
  6. अर्थशास्त्र एक वास्तविक विज्ञान है – मार्शल की परिभाषा के आधार पर अर्थशास्त्र एक आदर्श विज्ञान बन गया है, जबकि रोबिन्स के अनुसार, अर्थशास्त्र एक वास्तविक विज्ञान है, आदर्श विज्ञान नहीं। निष्कर्ष–उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि मार्शल ने अर्थशाग्र की धन सम्बन्धी परिभाषाओं में व्यापक सुधार करके अर्थशास्त्र को एक सम्मानजनक स्थान टि… आज भी मार्शल की परिभाषा सरल एवं व्यावहारिक मानी जाती है।

प्रश्न 3.
“अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जो मानव व्यहार का अध्ययन साध्यों एवं सीमित तथा वैकल्पिक प्रयोगों वाले साधनों के बीच सम्बन्ध के रूप में करता है”-रोबिन्स। अर्थशास्त्र की इस परिभाषा की आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
अथवा प्रो० एल रोबिन्स द्वारा दी गई अर्थशास्त्र की परिभाषा लिखिए और उसका आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर :
रोबिन्स द्वारा प्रतिपादित अर्थशास्त्र की परिभाषा प्रो० रोबिन्स ने अपनी पुस्तक ‘An Essay on the Nature and Significance of Economic Science में अर्थशास्त्र की परिभाषा एक नए दृष्टिकोण से दी जो इस प्रकार है अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जिसमें साध्यों तथा सीमितता और अनेक उपयोग वाले साधनों से सम्बन्धित मानव व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।”

रोबिन्स की परिभाषा के मूल तत्त्व
प्रो० रोबिन्स द्वारा प्रतिपादित अर्थशास्त्र की परिभाषा के मूल तत्त्व निम्नलिखित हैं

  • मनुष्य की आवश्यकताएँ असीमित होती हैं और जैसे ही एक आवश्यकता की पूर्ति हो जाती है, वैसे ही दूसरी आवश्यकता सामने आ जाती है।
  • मनुष्य के पास साधन सीमित होते हैं।
  • साध्यों (आवश्यकताओं) की तीव्रता में अन्तर होता है।
  • साधनों के वैकल्पिक प्रयोग सम्भव हैं अर्थात् आवश्यकता पूर्ति के एक ही साधन का अनेक प्रकार से प्रयोग हो सकता है।

असीमित आवश्यकताओं तथा वैकल्पिक प्रयोग वाले सीमित साधनों के कारण मनुष्य के सामने चुनाव की समस्या आती है और आर्थिक समस्या का जन्म होता है। यही आर्थिक समस्या आर्थिक जीवन (अर्थशास्त्र) का आधार है।

परिभाषा की आलोचना
अनेक अर्थशास्त्रियों; जैसे—डरबिन, वूटन, फ्रेजर आदि ने रोबिन्स की परिभाषा की कड़ी आलोचना की है। कुछ प्रमुख आलोचनाएँ अग्रलिखित हैं

  1. अर्थशास्त्र उद्देश्यों के प्रति पूर्णतः तटस्थ नहीं है-प्रो० रोबिन्स की यह धारणा कि अर्थशास्त्र उद्देश्यों के प्रति पूर्णतः तटस्थ है, गलत है। व्यवहार में अर्थशास्त्र को कल्याण की भावना से पूर्णत: मुक्त नहीं किया जा सकता। स्वयं रोबिन्स की परिभाषा में ‘कल्याण’ भावना का समावेश
  2. इस परिभाषा से अर्थशास्त्र का क्षेत्र एक-साथ अत्यन्त विस्तृत’ एवं ‘अत्यन्त संकुचित’ हो गया है-प्रो० रोबिन्स ने अर्थशास्त्र के अन्तर्गत सभी प्रकार के मनुष्यों की सभी प्रकार की क्रियाओं के अध्ययन का समावेश करके उसके क्षेत्र को अत्यधिक व्यापक बना दिया है। दूसरी
    ओर, प्रो० रोबिन्स की परिभाषा ने अर्थशास्त्र के क्षेत्र को अत्यधिक संकुचित भी कर दिया है। इसका कारण यह है कि रोबिन्स का अर्थशास्त्र ‘साधनों की दुर्लभता से उत्पन्न समस्याओं का तो अध्ययन करता है किन्तु ‘प्रचुरता से उत्पन्न होने वाली समस्याओं का अध्ययन नहीं करता।।
  3. अर्थशास्त्र केवल वास्तविक विज्ञान नहीं है-रोबिन्स ने अर्थशास्त्र को ‘विशुद्ध वास्तविक विज्ञान माना है। इसके विपरीत, वास्तविकता यह है कि अर्थशास्त्र में केवल वास्तविक विज्ञान है। वरन् यह आदर्श विज्ञान और कला भी है।
  4. ‘साध्यों’ एवं ‘साधनों के बीच अन्तर स्पष्ट नहीं है—प्रो० रोबिन्स ने अपनी परिभाषा में ‘साध्यों एवं ‘साधनों के मध्य अन्तर को स्पष्ट नहीं किया है।
  5. ‘सीमित’ एवं वैकल्पिक प्रयोग’ शब्दों का प्रयोग अनावश्यक–साधन सदैव सीमित होते हैं। एवं उनका वैकल्पिक प्रयोग किया जा सकता है। अत: परिभाषा में इन शब्दों का प्रयोग अनावश्यक है।
  6. अन्य शास्त्रों से अन्तर स्पष्ट करना सरल नहीं-यदि रोबिन्स की परिभाषा का व्यवहार में पालन किया आए तो अर्थशास्त्र एवं अन्य शास्त्रों में अन्तर करना सरल नहीं होगा, क्योंकि उन्होंने . अर्थशास्त्र के अन्तर्गत सभी प्रकार के मनुष्यों की सभी प्रकार की क्रियाओं को शामिल किया है।
  7. केवल निगमन प्रणाली का प्रयोग-प्रो० रोबिन्स ने अपने आर्थिक विश्लेषण में केवल निगमन प्रणाली का ही प्रयोग किया है, जबकि सन्तुलित निष्कर्षों की प्राप्ति के लिए आगमन तथा निगमन दोनों ही प्रणालियों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  8. स्थैतिक परिभाषा-प्रो० रोबिन्स द्वारा प्रतिपादित अर्थशास्त्र की परिभाषा की प्रकृति स्थैतिक है, क्योंकि यह ‘आर्थिक विकास एवं उससे उत्पन्न समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं देती।
  9. मानव व्यवहार सदैव विवेकपूर्ण नहीं—प्रो० रोबिन्स की मान्यता है कि मानव व्यवहार सदैव विवेकपूर्ण होता है, जबकि वास्तविक जीवन में हम ऐसा नहीं पाते।
  10. सामाजिक पक्ष की उपेक्षा-प्रो० रोबिन्स ने समाज के अन्दर तथा बाहर रहने वाले सभी प्रकार के मनुष्यों को अर्थशास्त्र का विषय माना है। यह गलत है, क्योंकि जब तक आर्थिक समस्याएँ सामाजिक रूप नहीं ले लेतीं, उन्हें अर्थशास्त्र के अन्तर्गत शामिल नहीं किया जा सकता।
  11. सैद्धान्तिक पक्ष की प्रधानता–रोबिन्स की परिभाषा सैद्धान्तिक अधिक और व्यावहारिक कम है। इस कारण यह सामान्य लोगों के लाभ एवं उपयोग का शास्त्र नहीं रह गया है। इसके सैद्धान्तिक स्वरूप ने विषय को जटिल बना दिया है।

प्रश्न 4.
“अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो आवश्यकताविहीन अवस्था प्राप्त करने में मानव व्यवहार का एक साधन के रूप में अध्ययन करता है।” प्रो० जे०के० मेहता द्वारा प्रस्तुत अर्थशास्त्र की इस परिभाषा का आलोचनात्मक अध्ययन कीजिए।
अथवा ‘अर्थशास्त्र आवश्यकताविहीनता का शास्त्र है।’ आलोचनात्मक टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
प्रो० जे० के० मेहता द्वारा प्रतिपादित अर्थशास्त्र की परिभाषा
अर्थशास्त्र एक विज्ञान है जो आवश्यकताविहीन अवस्था प्राप्त करने में मानव, व्यवहार का एक साधन के रूप में अध्ययन करता है।”
परिभाषा की व्याख्या – उपर्युक्त परिभाषा मूलतः भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के अनुरूप है.तया भारतीय धर्म, दर्शन एवं परम्परा से प्रेरित है। प्रो० मेहता के अनुसार, अर्थशास्त्र का प्रमुख उद्देश्य ‘वास्तविक सुख’ को अधिकतम करना है, जो आवश्यकताओं को न्यूनतम करके ही प्राप्त किया जा सकता है। वे सादा जीवन उच्च विचार के आदर्श में विश्वास रखते हुए आवश्यकताओं को न्यूनतम करके अन्ततः उन्हें समाप्त कर देने पर बल देते हैं। जे०के० मेहता के शब्दों में-“आवश्यकता से मुक्ति पाने की समस्या ही आर्थिक समस्या है।”

प्रो० मेहता के अनुसार, सुख वह अनुभव है, जो मनुष्य को उस स्थिति में प्राप्त होता है जब उसे आवश्यकता का अनुभव ही न हो। प्रो० मेहता के अनुसार, इच्छारहित अवस्था में जबकि मानव का मस्तिष्क पूर्ण सन्तुलन में होता है, जो अनुभव प्राप्त होता है, उसे ‘सुख’ कहते हैं। अर्थशास्त्र का उद्देश्य इसी सुख को अधिकतम करना है।

सुख की स्थिति प्राप्त करने के निम्नलिखित दो उपाय हैं

  • बाह्य शक्तियों का, जो असन्तुलन की अवस्था उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी हैं, इस प्रकार से समन्वये किया जाए कि वे मस्तिष्क के साथ मेल खाएँ।
  • मस्तिष्क को ऐसी अवस्था में रखा जाए जिससे वह बाह्य शक्तियों से प्रभावित न हो। इस हेतु मस्तिष्क को दबाने की नहीं बल्कि उसे ‘शिक्षित करने की आवश्यकता है।

ऐसी स्थिति को एकदम प्राप्त करना मनुष्य के लिए असम्भव है। अतः उसे धीरे-धीरे अपनी आवश्यकताओं को कम करना चाहिए।

परिभाषा की विशेषताएँ
प्रो० मेहता द्वारा प्रतिपादित अर्थशास्त्र की परिभाषा की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं–

  • यह परिभाष ‘मनोविज्ञान तथा नैतिकता’ पर आधारित है।
  • प्रो० मेहता ‘सन्तुष्टि के स्थान पर ‘सुख की प्राप्ति को मानव जीवन का लक्ष्य मानते हैं।
  • अर्थशास्त्र एक आदर्श विज्ञान है।
  • यह परिभाषा ‘साम्यवादी अवस्था’ का समर्थन करती है।
  • प्रो० मेहता के अर्थशास्त्र की प्रकृति स्थैतिक है।

परिभाषा की आलोचना
प्रो० मेहता की परिभाषा की निम्नवत् आलोचना की गई है

  1. प्रो० मेहता की परिभाषा अर्थशास्त्र को अनावश्यक रूप से धर्म, दर्शन तथा नीतिशास्त्र से सम्बन्धित कर देती है और इस प्रकार अर्थशास्त्र को अव्यावहारिक बना देती है।
  2. प्रो० मेहता अर्थशास्त्र को केवल आदर्श विज्ञान मानते हैं, जबकि यह आदर्श विज्ञान होने के साथ-साथ वास्तविक विज्ञान भी है।
  3. प्रो० मेहता को दृष्टिकोण काल्पनिक तथा अव्यावहारिक है।
  4. प्रो० मेहता की परिभाषा भौतिक विकास की विरोधी है, क्योंकि सभ्यता के विकास से मनुष्य की आवश्यकताएँ बढ़ती हैं न कि घटती हैं।
  5. प्रो० मेहता की परिभाषा को स्वीकार कर लेने पर अर्थशास्त्र का महत्त्व ही समाप्त हो जाता है।

वास्तव में, जब मनुष्य आवश्यकताविहीनता की स्थिति में पहुँच जाता है तो उसके लिए अर्थशास्त्र का अध्ययन ही व्यर्थ हो जाता है। अत: इस परिभाषा का कोई व्यावहारिक महत्त्व नहीं है।

प्रश्न 5.
अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री क्या है? विवेचना कीजिए।
उत्तर :

अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री

अर्थशास्त्र मानव के व्यवहारों का अध्ययन है। मानव के आर्थिक व्यवहारों को अग्रलिखित पाँच भागों में बाँटा जा सकता है। ये विभाग ही अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री माने जाते हैं

1. उपभोग – उपभोग समस्त आर्थिक क्रियाओं का आदि तथा अंत है। इसके अंतर्गत मानवीय आवश्यकताओं, उनकी विशेषताओं, उनका वर्गीकरण, तुष्टिगुण व उससे संबंधित नियमों एवं सिद्धांतों, माँग का नियम व माँग की लोच आदि का अध्ययन किया जाता है।

2. उत्पादन –
वस्तुओं में आर्थिक उपयोगिता का सृजन ही उत्पादन है। अर्थशास्त्र के इस विभाग के अन्तर्गत उत्पादन का अर्थ, उत्पादन के विभिन्न नियम, उत्पादन प्रणालियाँ तथा उत्पादन के उपादानों एवं उनसे संबंधित समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।

3. विनिमय –
उत्पादित वस्तुओं का विनिमय किया जाता है, जिसके द्वारा प्रत्येक मनुष्य अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ प्राप्त करता है। अर्थशास्त्र के इस विभाग के अन्तर्गत विभिन्न बाजार दशाओं में मूल्य निर्धारण, उत्पादन लागत तथा मुद्रा एवं बैंकिंग की विभिन्न प्रणालियों एवं समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।

4. वितरण – 
आधुनिक युग में उत्पादन-कार्य उत्पत्ति के सभी साधनों के परस्पर सहयोग द्वारा किया जाता है और उत्पादित धन उत्पत्ति के विभिन्न साधनों में वितरित किया जाता है, यही वितरण है। अर्थशास्त्र के इस विभाग के अन्तर्गत राष्ट्रीय आय, उत्पत्ति के साधनों के पारिश्रमिक—लगान, मजदूरी, ब्याज, लाभ आदि के निर्धारण सम्बन्धी सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता है।

5. लोक वित्त या राजस्व – 
राजस्व अर्थशास्त्र का एक नया किंतु अत्यधिक महत्त्वपूर्ण विभाग है। इसके अन्तर्गत कर निर्धारण के सिद्धांतों, सार्वजनिक आय, सार्वजनिक व्यय, सार्वजनिक ऋण तथा इनसे संबंधित सिद्धांतों, कल्याणकारी राज्य की स्थापना आदि महत्त्वपूर्ण विषयों का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 6.
अर्थशास्त्र की प्रकृति की विवेचना कीजिए। अथवा अर्थशास्त्रविज्ञान है अथवा कला अथवा दोनों? स्पष्ट कीजिए।
अथवा ‘अर्थशास्त्र उद्देश्यों के प्रति तटस्थ है। क्या आप रोबिन्स के इस तर्क से सहमत हैं? यदि नहीं, तो क्यो
उत्तर :
अर्थशास्त्र की प्रकृति से आशय यह जानने से है कि अर्थशास्त्र विज्ञान है अथवा कला। अर्थशास्त्र विज्ञान है तो उसका स्वरूप क्या है अर्थात् अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान है अथवा आदर्श विज्ञान।

विज्ञान का अर्थ – विज्ञान ज्ञान का एक क्रमबद्ध अध्ययन है, जो कारण तथा परिणाम के मध्य पारस्परिक संबंध स्थापित करता है। विज्ञान में विषय विशेष का नियमबद्ध एवं क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। किसी भी शास्त्र को ‘विज्ञान’ होने के लिए उसमें निम्नांकित बातें होनी चाहिए

  • ज्ञान का अध्ययन क्रमबद्ध होना चाहिए।
  • तथ्यों के विश्लेषण के फलस्वरूप कुछ नियमों एवं सिद्धांतों का प्रतिपादन होना चाहिए।
  • इन सिद्धांतों का निर्माण कारण और परिणाम के संबंधों के आधार पर होना चाहिए।
  • इन नियमों में सर्वव्यापकता का गुण होना चाहिए।
  • विज्ञान द्वारा एक निश्चित भविष्यवाणी की जानी चाहिए।

‘अर्थशास्त्र विज्ञान है, के पक्ष में तर्क – ‘अर्थशास्त्र विज्ञान है, इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं

  • इसमें तथ्यों का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है। यह अध्ययन वैज्ञानिक नीति पर आधारित होता है।
  • कारण एवं परिणाम के संबंध पर आधारित नियमों का प्रतिपादन किया जाता है।
  • भावी घटनाओं के संबंध में पूर्वानुमान लगाए जाते हैं।
  • अनेक नियम सर्वव्यापकता का गुण रखते हैं; जैसे—उपयोगिता ह्रास नियम, माँग का नियम आदि।

विज्ञान के स्वरूप – विज्ञान दो प्रकार के होते हैं–
(अ) वास्तविक विज्ञान,
(ब) आदर्श विज्ञान।

(अ) वास्तविक विज्ञान – वास्तविक विज्ञान किसी विषय की वास्तविक रूप में अध्ययन करता है। इसमें क्या है? (What is?) का अध्ययन किया जाता है। यह ‘वस्तुस्थिति कैसी है?’, का उत्तर देता है। यह वस्तुस्थिति का अध्ययन करके कारण एवं परिणाम में संबंध स्थापित करता है।

अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान है – अर्थशास्त्र एक वास्तविक विज्ञान है, क्योंकि इसमें वास्तविक आर्थिक घटनाओं के कारण तथा परिणामों का विवेचन किया जाता है और इन संबंधों को नियमों के द्वारा व्यक्त किया जाता है; उदाहरण के लिए माँग को नियम यह बताता है कि कीमत में वृद्धि होने पर माँग में कमी और कीमत में कमी होने पर माँग में वृद्धि होती है। यहाँ कीमत में परिवर्तन ‘कारण’ और माँग में परिवर्तन परिणाम है।

(ब) आदर्श विज्ञान – आदर्श विज्ञान का मुख्य कार्य मानवीय आचरण के लिए आदर्श प्रस्तुत करना है। यह ‘क्या होना चाहिए? (What ought to be?) का उत्तर देता है और बताता है कि हमें किन आदर्शों का पालन करना चाहिए। दूसरे शब्दों में, यह हमें वांछनीय और अवांछनीय का ज्ञान कराता है।

अर्थशास्त्र एक आदर्श विज्ञान है – अर्थशास्त्र एक आदर्श विज्ञान है, क्योंकि यह हमें मानवीय कल्याण को अधिकतम करने के लिए आर्थिक आदर्शों का ज्ञान कराता है; उदाहरण के लिए एक अर्थशास्त्री केवल मजदूरी निर्धारण के विभिन्न सिद्धांतों का ही अध्ययन नहीं करता अपितु वह यह भी बताता है कि उचित मजदूरी क्या होनी चाहिए। इसी प्रकार अर्थशास्त्र में हम केवल इस बात का ही अध्ययन नहीं करते कि लगान कैसे निर्धारित होता है। अपितु इस बात का भी अध्ययन करते हैं कि लगान की आदर्श मात्रा क्या होनी चाहिए।

इस प्रकार अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान के साथ-साथ आदर्श विज्ञान भी है।

कला – कला का आशय ‘किसी उद्देश्य को प्राप्त करने की विधियों से है। वास्तव में, कला ‘आदर्श को प्राप्त करने के सर्वोत्तम तरीका बतलाती है। यह वास्तविक विज्ञान और आदर्श विज्ञान के बीच पुल का कार्य करती है। कोसा के अनुसार–एक विज्ञान हमें जानने के संबंध में बतलाता है और कला करने के संबंध में बतलाती है। दूसरे शब्दों में–‘विज्ञान व्याख्या तथा खोज करता है, कला निर्देशन करती है।”

अर्थशास्त्र कला है – अर्थशास्त्र कला है, क्योंकि अर्थशास्त्र की अनेक शाखाएँ व्यावहारिक समस्याओं का हल बनाती हैं; उदाहरण के लिए, अर्थशास्त्री बताता है कि ब्याज की उचित दर क्या होनी चाहिए, आदर्श मजदूरी व पूर्ण रोजगार के स्तर पर कैसे पहुंच जाए, किन करों के द्वारा बजट के घाटे को पूरा किया जाए? कींस, मिल, मार्शल व पीगू आदि अर्थशास्त्री अर्थशास्त्र को कला मानते हैं। उनके अनुसार, कला व्यावहारिक समस्याओं को सुलझाने का एक साधन है।

निष्कर्ष – प्रो० पीगू के अनुसार-“अर्थशास्त्र न केवल विज्ञान है अपितु कला भी है।” वे अर्थशास्त्र के व्यावहारिक पक्ष को अधिक महत्त्वपूर्ण मानते हैं। वास्तव में, अर्थशास्त्र केवल प्रकाशदायक ही नहीं अपितु फलदायक भी है। प्रो० चैपमैन के शब्दों में–“अर्थशास्त्र आर्थिक तथ्यों के वांछित रूपों के बारे में जिज्ञासा करता हुआ एक आदर्श विज्ञान है तथा वांछित उद्देश्यों को प्राप्त करने के तरीकों को ज्ञात करते हुए एक कला है।’ संक्षेप में, अर्थशास्त्र विज्ञान एवं कला दोनों है।

प्रश्न 7.
आधुनिक युग में अर्थशास्त्र के अध्ययन का क्या महत्त्व है? अथवा अर्थशास्त्र के अध्ययन का सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक लाभ बताइए।
उत्तर :

अर्थशास्त्र के अध्ययन का महत्त्व

मार्शल के शब्दों में-“अर्थशास्त्र के अध्ययन का उद्देश्य प्रथम तो ज्ञान के लिए ज्ञान प्राप्त करना है। तथा दूसरे व्यावहारिक जीवन में मार्गदर्शन करना है।” नि:संदेह अर्थशास्त्र केवल ज्ञानवर्द्धक ही नहीं बल्कि फलदायक भी है। अर्थशास्त्र के अध्ययन से प्राप्त होने वाले लाभों को दो भागों में बाँटा जाता है
(I) सैद्धांतिक लाभ तथा
(II) व्यावहारिक लाभ।

(I) अर्थशास्त्र के अध्ययन के सैद्धांतिक लाभ
सैद्धांतिक दृष्टि से अर्थशास्त्र के अध्ययन से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं|

  1. ज्ञान में वृद्धि–अर्थशास्त्र के अध्ययन से मनुष्य के ज्ञान में वृद्धि होती है। मनुष्य को बेरोजगारी, अति-जनसंख्या, निर्धनता, तेजी व मन्दी आदि विभिन्न आर्थिक समस्याओं का ज्ञान हो जाता है।
  2. तर्कशक्ति में वृद्धि–ज्ञान में वृद्धि होने से मनुष्य की तर्कशक्ति बढ़ती है। मनुष्य पहले की | अपेक्षा कहीं अधिक संतुलित मत व्यक्त कर सकता है।
  3. चुनाव योग्यता में वृद्धि–अर्थशास्त्र के अध्ययन से मनुष्य की चुनाव-योग्यता में वृद्धि हो जाती है। वह आवश्यक तथा अनावश्यक आवश्यकताओं में भेद करने में समर्थ हो जाता है।
  4. विस्तृत दृष्टिकोण-अर्थशास्त्र के अध्ययन से मनुष्य को दृष्टिकोण विस्तृत तथा वैज्ञानिक हो जाता है क्योंकि अर्थशास्त्र ज्ञान का क्रमबद्ध अध्ययन है।

(II) अर्थशास्त्र के अध्ययन के व्यावहारिक लाभ
अर्थशास्त्र के अध्ययन से प्राप्त होने वाले प्रमुख व्यावहारिक लाभ निम्नलिखित हैं

1. गृहस्वामियों तथा उपभोक्ताओं को लाभ-

  • सम-सीमांत उपयोगिता नियम का पालन करके उपभोक्ता अधिकतम संतुष्टि प्राप्त कर सकता है।
  • गृहस्वामी पारिवारिक बजट बनाना और उसके अनुसार व्यय करना जाने जाते हैं। इससे अति व्यय नहीं होता।।
  • मनुष्य परिवार नियोजन के महत्त्व को जान जाता है।

2. उत्पादकों तथा व्यापारियों को लाभ-

  • उत्पादकों को उत्पादन (प्रतिफल) के नियमों, श्रम विभाजन के लाभों, आन्तरिक व बाह्य बचतों, व्यापार-चक्रों आदि की जानकारी हो जाती है।
  • उत्पादकों तथा व्यापारियों को बाजार की गतिविधियों, बाजार में पाई जाने वाली प्रतियोगिता, वस्तु की माँग व पूर्ति में होने वाले परिवर्तन, विज्ञापन, बैंक व बीमा कम्पनियों की कार्यप्रणाली आदि बातों की जानकारी होती है।
  • उत्पादकों को भूमि, श्रम, पूँजी तथा संगठन के पारिश्रमिक का निर्धारण करने में सहायता मिलती है।

3. कृषकों को लाभ-

  • किसानों को इस बात की जानकारी हो जाती है कि कृषि-उत्पादन में वृद्धि करने के लिए कौन-से उपादानों का अधिक प्रयोग किया जाए, खेती की कौन-सी विधि अपनाई जाए इत्यादि।
  • अर्थशास्त्र के अध्ययन से किसानों को यह निश्चित करने में सहायता मिलती है कि उन्हें उपज कब और कहाँ बेचनी चाहिए ताकि उन्हें उचित कीमत प्राप्त हो सके।
  • किसानों को विभिन्न प्रकार की सहकारी समितियों के महत्त्व का ज्ञान हो जाता है।
  • किसानों को विभिन्न कृषि समस्याओं तथा उनके समाधान के उपायों की जानकारी मिलती

4. राजनीतिज्ञों को लाभ-

  • अधिकांश समस्याएँ आर्थिक कारणों से उत्पन्न होती हैं। अत: विभिन्न समस्याओं को समझने हेतु अर्थशास्त्र आर्थिक मामलों में राजनीतिज्ञों को विशेष जानकारी प्रदान करता है।
  • अच्छा सरकारी बजट बनाने हेतु वित्तमंत्री के लिए अर्थशास्त्र का ज्ञान परमावश्यक है।
  • आर्थिक योजनाएँ बनाने के लिए राजनीतिज्ञों को वर्तमान आर्थिक समस्याओं के बारे में जानकारी प्राप्त हो जाती है।
  • चुनाव संबंधी प्रभावशाली घोषणा तैयार करने के लिए राजनीतिज्ञों को आर्थिक समस्याओं की जानकारी हो जाती है।

5. श्रमिकों को लाभ-

  • अर्थशास्त्र के अध्ययन से श्रमिकों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
  • श्रमिकों को श्रमसंघों के महत्त्व की जानकारी हो जाती है; श्रमसंघ श्रमिकों की मजदैरी में वृद्धि, काम की दशाओं में सुधार आदि के लिए प्रयत्न करते हैं; अत: यह संगठित होने लगता है।

6. समाज सुधारकों को लाभ – अर्थशास्त्र का अध्ययन करके समाज सुधारक विभिन्न आर्थिक तथा सामाजिक समस्याओं को सुलझा सकते हैं। जनसंख्या-वृद्धि, निर्धनता, बेकारी आदि समस्याओं के समाधान के लिए अर्थशास्त्र का ज्ञान अनिवार्य है। इसी प्रकार, जाति प्रथा, दहेज प्रथा तथा संयुक्त परिवार प्रथा के आर्थिक पहलुओं पर भी ध्यान देना आवश्यक होता है।

निष्कर्ष – माल्थस के विचार में–“अर्थशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जिसके बारे में यह कहा जा सकता है कि इसकी अज्ञानता केवल भलाई से ही वंचित नहीं करती बल्कि भारी बुराइयाँ भी उत्पन्न कर देती है।”

प्रश्न 8.
सांख्यिकी को परिभाषित कीजिए। अथवा एकवचन तथा बहुवचन के रूप में सांख्यिकी की परिभाषाएँ दीजिए।
उत्तर :
अंग्रेजी भाषा के STATISTICS’. (सांख्यिकी) शब्द को दो रूपों में प्रयोग होता है
(I) एकवचन में और
(II) बहुवचन में।

बहुवचन में स्टैटिस्टिक्स शब्द का अर्थ समंकों या आँकड़ों से है, जो किसी विशिष्ट क्षेत्र से संबंधित संख्यात्मक तथ्य होते हैं, जैसे—कृषि के समंक, जनसंख्या समंक, राष्ट्रीय आय समंक आदि। एकवचन में ‘स्टैटिस्टिक्स’ शब्द का अर्थ सांख्यिकी विज्ञान से है।

(I) एकवचन के रूप में सांख्यिकी की परिभाषाएँ

स्टैटिस्टिक्स शब्द का एकवचन में अर्थ सांख्यिकी विज्ञान से है। सामान्य रूप में सांख्यिकी विज्ञान की परिभाषाओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है
(अ) संकीर्ण परिभाषाएँ
1. ए०एल० घाउले
ने सांख्यिकी की तीन परिभाषाएँ दी हैं

  • “सांख्यिकी, गणना का विज्ञान है।”
  • “सांख्यिकी को उचित रूप से औसतों का विज्ञान कहा जा सकता है।”
  • “सांख्यिकी वह विज्ञान है, जो सामाजिक व्यवस्था को सम्पूर्ण मानकर सभी रूपों में उसका मापन करता है।”

2. बोडिंगटन के अनुसार-“सांख्यिकी अनुमानों और सम्भाविताओं का विज्ञान है।”

(II) बहुवचन के रूप में सांख्यिकी की परिभाषाएँ

  1. ए० एल० बाउले के अनुसार-“समंक अनुसंधान के किसी विभाग में तथ्यों के संख्यात्मक विवरण हैं, जिनका एक-दूसरे से संबंधित रूप में अध्ययन किया जाता है।”
  2. यूल तथा केण्डाल के अनुसार-“समंक से तात्पर्य उन आँकड़ों से है, जो पर्याप्त सीमा तक | अनेक प्रकार के कारणों से प्रभावित होते हैं।”
  3. होरेस सेक्राइस्ट के अनुसार-“समंक से हमारा अभिप्राय तथ्यों के उन समूहों से है, जो अगणित कारणों से पर्याप्त सीमा तक प्रभावित होते हैं, जो संख्याओं में व्यक्त किए जाते हैं, एक उचित मात्रा की शुद्धता के अनुसार गिने या अनुमानित किए जाते हैं, किसी पूर्व निश्चित उद्देश्य के लिए एक व्यवस्थित ढंग से एकत्र किए जाते हैं और जिन्हें एक-दूसरे से संबंधित रूप में प्रस्तुत किया जाता है।”

(ब) व्यापक परिभाषाएँ
1. प्रो० किंग के अनुसार – “गणना तथा अनुमानों के संग्रह को विश्लेषण के आधार पर प्राप्त परिणामों से सामूहिक, प्राकृतिक अथवा सामाजिक घटनाओं पर निर्णय करने की रीति को सांख्यिकी विज्ञान कहते हैं।”

2. सैलिगमैन के अनुसार – 
“सांख्यिकी वह विज्ञान है, जो किसी विषय पर प्रकाश डालने के उद्देश्य से संग्रह किए गए आँकड़ों के संग्रहण, वर्गीकरण, प्रदर्शन, तुलना और व्याख्या करने की रीतियों का विवेचन करता है।”

3. क्रॉक्सटन व काउड्डेन के अनुसार – 
“सांख्यिकी को संख्या संबंधी समंकों के संग्रहण, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण और निर्वचन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर सांख्यिकी की एक उपयुक्त परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है-“सांख्यिकी एक विज्ञान और कला है, जो सामाजिक, आर्थिक, प्राकृतिक व अन्य समस्याओं से संबंधित समंकों के संग्रहण, सारणीयन, प्रस्तुतीकरण, संबंध स्थापन, निर्वचन और पूर्वानुमान से संबंध रखती है ताकि निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति हो सके।”

प्रश्न 9.
आधुनिक युग में सांख्यिकी के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। अथवा “सांख्यिकी प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करती है तथा जीवन के अनेक बिन्दुओं को स्पर्श करती है।” समीक्षा कीजिए।
उत्तर :

सांख्यिकी का महत्त्व

सांख्यिकी के बारे में सत्य ही कहा गया है-“संख्यिकी प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करती है तथा जीवन के अनेक बिन्दुओं को स्पर्श करती है।” सांख्यिकी के कारण ही अनेक क्षेत्रों में तीव्र गति से प्रगति हुई है। एफ०जे० मोरोने के अनुसार-आधुनिक जीवन का शायद ही कोई छेद या कोना हो, जिसमें; सांख्यिकीय सिद्धांतों का व्यवहार, चाहे वह सरल हो या न हो; परिणाम लाभपूर्ण न हो।” सेक्राइस्ट के अनुसार-“व्यापार, सामाजिक नीति तथा राज्य से संबंधित शायद ही कोई समस्या हो, जिसको समझने के लिए समंकों की आवश्यकता न पड़ती हो।”

एडवर्ड जे० कैने के अनुसार-“आज सांख्यिकीय रीतियों का प्रयोग ज्ञान एवं अन्वेषण की लगभग प्रत्येक शाखा–बिन्दुरेखीय कला से लेकर नक्षत्र भौतिकी तक और प्रायः प्रत्येक प्रकार के व्यवहार–संगीत रचना से लेकर प्रक्षेपास्त्र निर्देशन तक में किया जाता है।”

1. अर्थशास्त्र में सांख्यिकी का महत्त्व-आर्थिक विश्लेषण में समंक अत्यधिक उपयोगी होते हैं। मार्शल के अनुसार-“समंक वे तृण हैं, जिनसे मुझे अन्य अर्थशास्त्रियों की भाँति ईंटें बनानी हैं।” अर्थशास्त्र की प्रत्येक शाखा में साख्यिकीय रीतियों का प्रयोग किया जाता है

  • उपभोग के क्षेत्र में – उपभोग समंक यह बताते हैं कि विभिन्न आय-वर्ग किस प्रकार अपनी आय को व्यय करते हैं, उनका रहन-सहन का स्तर तथा उनकी करदान क्षमता क्या
  • उत्पादन के क्षेत्र में – उत्पादन समंक माँग एवं पूर्ति में समायोजन करने में सहायक होते हैं। ये समंक देश की उत्पादकता के मापक होते हैं।
  • विनिमय के क्षेत्र में – समंकों के माध्यम से बाजार माँग व पूर्ति की विभिन्न दशाओं पर आधारित मूल्य निर्धारण के नियम व लागत मूल्य का अध्ययन किया जाता है।
  • वितरण के क्षेत्र में – समंकों की सहायता से ही राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है, इसीलिए कहा जाता है-“कोई भी अर्थशास्त्री सांख्यिकीय तथ्यों के विस्तृत अध्ययन के बिना उत्पादन या वितरण संबंधी निष्कर्ष निकालने का प्रयत्न नहीं करेगा।”

2. आर्थिक नियोजन में सांख्यिकी का महत्व – समंकों की आधारशिला पर ही योजना का भवन बनाया जाता है। योजनाएँ बनाने, उन्हें क्रियान्वित करने तथा उनकी सफलताओं का मूल्यांकन करने में पग-पग पर समंकों का सहारा लेना पड़ता है। आर्थिक नियोजन में समंकों का प्रयोग निम्नलिखित बातों के लिए किया जाता है

  • अन्य देशों की तुलना में अपने देश के आर्थिक विकास की स्थिति जानने के लिए।
  • आर्थिक विकास के निर्धारक तत्त्वों के प्रभावे, तकनीकी प्रगति व उत्पादकता की स्थिति जानने के लिए।
  • अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में प्राथमिकताएँ निर्धारित करने के लिए।
  • विभिन्न क्षेत्रों के निर्धारित लक्ष्यों व वित्तीय साधनों का अनुमान लगाने के लिए।
  • योजना की सफलता का मूल्यांकन करने के लिए।

3. राज्य के लिए सांख्यिकी को महत्व – ठीक ही कहा गया है कि समंक शासन के नेत्र हैं। कल्याणकारी राज्य की धारणा के साथ समंकों का महत्त्व और अधिक बढ़ गया है। देश में पूर्ण रोजगार के स्तर को बनाए रखने के लिए सरकार को अपनी व्यय नीति, कर नीति, मौद्रिक नीति आदि में समायोजन करना पड़ता है, परन्तु समायोजन संख्यात्मक तथ्यों के आधार पर ही हो सकता है। सरकारी बजट का निर्माण भी समंकों के आधार पर ही किया जाता है। सरकार द्वारा नियुक्त आयोगों, समितियों आदि के प्रतिवेदनों के आधार भी समंक ही होते हैं। वास्तव में, समंक एक ऐसा आधार है, जिसके चारों ओर सरकारी क्रियाएँ घूमती हैं।

4. वाणिज्य तथा उद्योगों में सांख्यिकी का महत्त्व – व्यापार तथा उद्योगों में सांख्यिकीय रीतियों का महत्त्व लगातार बढ़ रहा है। प्रो० बोर्डिंगटन के अनुसार-“एक अच्छा व्यापारी वह है, जिसका अनुमान यथार्थता के बहुत निकट हो।” यह उसी दशा में सम्भव है, जबकि सांख्यिकीय रीतियों तथा समंकों को अनुमान का आधार बनाया जाए। विपणि तथा उत्पादन शोध, विनियोग नीति, गुण नियन्त्रण, कर्मचारियों के चुनाव, आर्थिक पूर्वानुमान, अंकेक्षण आदि अनेक व्यापारिक क्रियाओं में सांख्यिकीय रीतियों का प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक व्यापारी को मूल्यों की प्रवृत्ति व क्रियाओं की गति आदि का अनुमान करने के लिए सांख्यिकीय रीतियों का सहारा लेना पड़ता है। बीमा, व्यवसायी, बैंकर, स्टॉक व शेयर दलाल, सट्टेबाज, निवेशकर्ता आदि सभी के लिए सांख्यिकीय रीतियाँ समान रूप से उपयोगी हैं।

सांख्यिकी क सार्वभौमिक उपयोगिता है।
आधुनिक युग में सांख्यिकी को प्रयोग सर्वत्र होता है। सामान्य मनुष्य के दैनिक जीवन से लेकर उच्च ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में सांख्यिकी का प्रयोग होता है। लगभग सभी विज्ञानों के सिद्धान्तों के प्रतिपादन तथा पुष्टीकरण के लिए सांख्यिकीय रीतियों को प्रयोग में लाया जाता है। अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, शिक्षाशास्त्र, मनोविज्ञान, भौतिक विज्ञान, रसायनशास्त्र, चिकित्साशास्त्र सभी में सांख्यिकीय विवेचन नितान्त आवश्यक है।

UP Board Solutions for Class 11 English Poetry Short Poem Chapter 10 The Palanquin Bearers

UP Board Solutions for Class 11 English Poetry Short Poem Chapter 10 The Palanquin Bearers

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 11 English. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 English Poetry Short Poem Chapter 10 The Palanquin Bearers.

About the Poetess : Sarojini Naidu was born in 1879. She was educated in London and Cambridge. She started writing poetry at an early age. She was the first Indian woman of Indian National Congress. She was also the Governor of U.P. She was called The Nightingale of India. She died in 1949.

About the Poem : This poem is a song of palanquin bearers. In this poem Sarojini Naidu describes the action of the palanquin bearers. Its main characteristic is that the poem is not about the bride inside the palanquin but it is about the palanquin itself. The poetess has glorified the poem by using beautiful similes.

Central Idea
The poem is the song of palanquin bearers composed by Sarojini Naidu. These people are very simple and innocent. Their work is very hard and dull. Yet they do it very carefully and cheerfully. The movement of these people is very slow. The palanquin also moves gently and in different ways. Its movements are compared to different movements of starlight, beam of a ship, flower swinging in the wind, etc. [M. Imp.]

(यह कविता पालकी ले जाने वालों का सरोजिनी नायडू द्वारा रचित गीत है। ये लोग बहुत सीधे-सादे और नासमझ होते हैं। उनका कार्य बड़ा कठिन और नीरस है। फिर भी वे इसे सावधानीपूर्वक और प्रसन्नता से । करते हैं। ये लोग बहुत धीरे-धीरे चलते हैं। पालकी भी धीरे-धीरे हिलती है और भिन्न-भिन्न ढंग से इसके हिलने की भिन्न-भिन्न वस्तुओं से तुलना की गयी है; जैसे—सितारों के प्रकाश की गति, जहाज के शहतीर का हिलना, फूलों का, हवा में हिलना आदि।)

EXPLANATIONS (With Meanings & Hindi Translation)

1. Lightly, O lightly, we bear her along,
She sways like a flower in the wind of our song;
She skims like a bird on the foam of a stream,
She floats like a laugh from the lips of a dream.
Gaily, O gaily we glide and we sing,
We bear her along like a pearl on a string.

[ Word-meanings : lightly = धीरे-धीरे softly; bear = ले जाना carry; sways = इधर-उधर हिलना
moves to and fro; skins = हवा में धीरे-धीरे उड़ना glides along in the air; foam = झाग; stream = veoer river; gaily = आनन्दपूर्वक joyfully; glide = धीरे-धीरे चलना move along smoothly; string = डोरी; pearl = मोती।]

भावार्थ- पालकी ले जाने वाले किसी स्त्री को पालकी में लेकर जा रहे हैं और गीत गा रहे हैं। वे आपस में एक-दूसरे से कहते हैं धीरे-धीरे चलो, हम पालकी को लेकर आगे जा रहे हैं। वे गीत गाते हैं और उनके गीत को सुनकर वह पालकी इस प्रकार हिलती है जैसे हवा में कोई फूल हिलता है। जिस प्रकार नदी के झागों पर कोई चिड़िया फुदकती है उसी प्रकार पालकी भी उनके कन्धों पर धीरे-धीरे फुदक रही है। जिस प्रकार कोई बच्चा सपना देखते समय मुस्कराता है उसी प्रकार वह भी गीत को सुनकर प्रसन्न होती है। पालकी ले जाने वाले कहते हैं कि हम प्रसन्नतापूर्वक धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं और गीत गा रहे हैं। वे उस सुन्दर पालकी को इस प्रकार सावधानी से ले जा रहे हैं जैसे किसी डोरी पर मोती।)

Reference: This is the opening stanza of the poem ‘The Palanquin Bearers’
composed by Sarojini Naidu.

Context: In these lines the poetess describes how the ordinary people are satisfied with their ordinary work. They work hard and get joy in it. This poem is about the four men who are carrying a palanquin and singing a song with joy

Explanation : The palanquin bearers are carrying a palanquin very softly. They are singing a song very joyfully. When the four palanquin bearers sing, it moves gently like a flower moving in the wind. It moves to and fro as a bird moves on the foam of a river. It smiles like a child in dream. Thus the palanquin bearers are very happy. Simile used in every line makes the poem sweet and simple.

(पालकी ले जाने वाले पालकी को धीरे-धीरे लेकर आगे जा रहे हैं। वे बड़े आनन्द से गीत गा रहे हैं। जब चार कहार आनन्द से गीत गाते हैं तब पालकी धीरे-धीरे इस प्रकार हिलती है जैसे हवा में फूल हिलता है। वह दाएँ-बाएँ हिलती है जैसे एक पक्षी नदी के झागों पर हिलता है। यह उस बच्चे के समान मुस्कराती है जो सपने में मुस्कराता है। इस प्रकार पालकी ले जाने वाले बहुत प्रसन्न हैं। इस पंक्ति में प्रयोग की हुई उपमा इसे सुन्दर और सरल बना देती है।)

2. Softly, 0 softly we bear her along,
She hangs like a star in the dew of our song;
She springs like a beam on the brow of the tide,
She falls like a tear from the eyes of a bride.
Lightly, O lightly we glide and we sing,
We bear her along like a pearl on a string.            [Imp.]

[Word-meanings : hangs = लटकती है; dew = ओस की बूंदें dew drops; springs = अचानक कूदती है, jumps suddenly; beam = शहतीर horizontal cross timber in a ship;brow = भौंह eyebrows.]

भावार्थ- इस पद्यांश में पालकी ले जाने वाले कहते हैं कि वह पालकी को बहुत धीरे-धीरे ले जा रहे हैं। वह लटकी हुई इस प्रकार सुन्दर लगती है जैसे ओस की बूंदों में किसी सितारे की परछाईं। समुद्र में ज्वार-भाटे के समय जहाज में लगा हुआ शहतीर नीचे-ऊपर उछलता है, इसी प्रकार पालकी भी हिलती-डुलती है। वे उसे धरती पर इतनी धीरे से रखते हैं जैसे दुल्हन की आँखों से आँसू गिरता है। वे गाना गाते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं और वे पालकी को इतनी कोमलता से ले जाते हैं जैसे एक डोरी पर मोती।)

Reference : This is the second or concluding stanza of the poem ‘The Palanquin Bearers’
composed by Sarojini Naidu.

Context : In these lines the poetess describes how the ordinary people are satisfied with their ordinary work. They work hard and get joy in it. This poem is about the four men who are carrying a palanquin and singing a song with joy.

Explanation : The palanquin bearers say that they are going on their journey very joyfully and are singing a song. The palanquin is looking beautiful like a star in the dew drops. It appears shining like a ray of the light shining on the dancing waves of the sea. They put it on the ground very gently as the tears fall from the eyes of a bride. They carry it along gently like the pearls on a string. Thus by singing a song, the palanquin bearers want to escape from the weariness of the journey.

(पालकी ले जाने वाले कहते हैं कि वे अपनी यात्रा पर बड़े आनन्दपूर्वक जा रहे हैं और गीत गा रहे हैं। पालकी ओस की बूंद में सितारे के समान सुन्दर दिखायी दे रही है। यह प्रकाश की उस किरण के समान चमकती हुई दिखायी देती है जो समुद्र की नाचती हुई लहरों पर चमकती हुई दिखायी देती है। वे इसे पृथ्वी पर इतने धीरे से रखते हैं जैसे एक दुल्हन की आँखों से आँसू गिरते हैं। वे इसे इस प्रकार आगे ले जाते हैं जैसे एक डोरी पर मोती। इस प्रकार पालकी ले जाने वाले गीत गाकर यात्रा की थकावट से बचना चाहते हैं।)

Comments : The poetess has beautifully used similies to describe different images.

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