UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 8 Transport and Communication

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 8 Transport and Communication (परिवहन एवं संचार)

UP Board Class 12 Geography Chapter 8 Text Book Questions

UP Board Class 12 Geography Chapter 8 पाठ्यपुस्तक से अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए
(i) पार महाद्वीपीय स्टुअर्ट महामार्ग किनके मध्य से गुजरता है
(क) डार्विन और मेलबोर्न
(ख) एडमंटन और एकॉरेज
(ग) बैंकूवर और सेंट जॉन नगर
(घ) चेगडू और ल्हासा।
उत्तर:
(क) डार्विन और मेलबोर्न।

(ii) किस देश में रेलमार्गों के जाल का सघनतम घनत्व पाया जाता है
(क) ब्राजील
(ख) कनाडा
(ग) संयुक्त राज्य अमेरिका
(घ) रूस।
उत्तर:
(ग) संयुक्त राज्य अमेरिका।

(iii) बृहद् ट्रंक मार्ग होकर जाता है
(क) भूमध्यसागर हिन्द महासागर से होकर
(ख) उत्तर अटलाण्टिक महासागर से होकर
(ग) दक्षिण अटलाण्टिक महासागर से होकर
(घ) उत्तर प्रशान्त महासागर से होकर।
उत्तर:
(ख) उत्तर अटलाण्टिक महासागर से होकर।

(iv) ‘बिग इंच’ पाइप लाइन के द्वारा परिवहित किया जाता है
(क) दूध
(ख) जल
(ग) तरल पेट्रोलियम गैस (LPG)
(घ) पेट्रोलियम।
उत्तर:
(घ) पेट्रोलियम।

(v) चैनल टनल जोड़ता है
(क) लन्दन-बर्लिन
(ख) बर्लिन-पेरिस
(ग) पेरिस-लन्दन
(घ) बार्सिलोना-बर्लिन।
उत्तर:
(ग) पेरिस-लन्दन।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए
(i) पर्वतों, मरुस्थलों तथा बाढ़ सम्भावित क्षेत्रों में स्थल परिवहन की क्या-क्या समस्याएँ हैं?
उत्तर:
सड़क मार्गों के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि भूमि समतल तथा ऊबड़-खाबड़ नहीं होनी चाहिए, लेकिन पर्वतीय और मरुस्थलीय क्षेत्रों में सड़क निर्माण की उपयुक्त दशाएँ नहीं मिलतीं; इसीलिए इन क्षेत्रों में इसके निर्माण की समस्या आ जाती है। बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में भी सड़क निर्माण आर्थिक दृष्टि से उपयोगी नहीं है, क्योंकि प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ . सड़क तथा पुलों को बहाकर ले जाती है। इसी कारण इन क्षेत्रों में सड़क निर्माण की समस्या है।

(ii) पार महाद्वीपीय रेलमार्ग क्या होता है?
उत्तर:
महाद्वीप के आर-पार बनाए गए तथा इसके दो सिरों को जोड़ने वाले मार्गों को ‘पार महाद्वीपीय रेलमार्ग’ कहते हैं। ऐसे रेलमार्ग हैं-ट्रांस-साइबेरियन रेलमार्ग, कनाडियन पैसेफिक रेलमार्ग तथा ट्रांस-ऑस्ट्रेलियन रेलमार्ग।

(iii) जल परिवहन के क्या लाभ हैं?
उत्तर:
जल परिवहन के लाभ जल परिवहन के निम्नलिखित लाभ हैं

  • जल परिवहन में किसी प्रकार के मार्ग निर्माण की आवश्यकता नहीं होती है।
  • जल परिवहन यातायात का सस्ता माध्यम है।
  • जल परिवहन में एक साथ अधिक माल ढोया जा सकता है।
  • जल परिवहन के रखरखाव पर बहुत कम खर्च होता है।

प्रश्न 3.
नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर 150 शब्दों से अधिक न दें
(i) “एक सुप्रबन्धित परिवहन प्रणाली में विभिन्न एक-दूसरे की सम्पूरक होती है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक सुप्रबन्धित परिवहन प्रणाली में यातायात के सभी साधन एक-दूसरे के सम्पूरक होते हैं। सभी यातायात साधनों का उद्देश्य यात्रियों और माल का आवागमन करना है। सुप्रबन्धित परिवहन प्रणाली की सार्थकता परिवहित की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के प्रकार, परिवहन की लागत और उपलब्ध परिवहन लागत पर निर्भर होती है। विभिन्न परिवहन के साधन इस प्रकार कार्य करते हैं

  • वस्तुओं का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार या वितरण भारवाही जलयानों द्वारा किया जाता है। .
  • कम दूरी और एक घर से दूसरे घर की सेवाएँ प्रदान करने के लिए सड़क परिवहन सस्ता एवं तीव्रगामी होता है।
  • किसी देश के आन्तरिक भाग में स्थूल पदार्थों के विशाल परिणाम को लम्बी दूरियों तक परिवहन करने के लिए रेल सबसे अनुकूल साधन है।
  • उच्च मूल्य वाली हल्की तथा नाशवान वस्तुओं का वायुमार्गों द्वारा परिवहन सर्वश्रेष्ठ होता है। अत: सुप्रबन्धित परिवहन तन्त्र में परिवहन के विभिन्न साधन एक-दूसरे के सम्पूरक होते हैं।

(ii) विश्व के वे कौन-से प्रमुख प्रदेश हैं जहाँ वायुमार्ग का सघन तन्त्र पाया जाता है?
उत्तर:
विश्व में सघन वायुमार्ग वाले क्षेत्र हैं

  • पश्चिमी यूरोप।
  • पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका।
  • दक्षिण-पूर्वी एशिया।

संयुक्त राज्य अमेरिका अकेला ही विश्व के 60% वायु परिवहन का प्रयोग करता है। न्यूयॉर्क, लन्दन, पेरिस, एमस्टरडम, फ्रेंकफर्ट, रोम, बैंकॉक, मुम्बई, कराँची, नई दिल्ली, लॉस एंजिल्स आदि ऐसे केन्द्र हैं जहाँ से वायु परिवहन भिन्न देशों को जाता है अथवा इन केन्द्रों पर आता है।

(iii) वे कौन-सी विधाएँ हैं जिनके द्वारा साइबर स्पेस मनुष्यों के समकालीन आर्थिक और सामाजिक स्पेस की वृद्धि करेगा?
उत्तर:
साइबर स्पेस इण्टरनेट-साइबर स्पेस इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटरराइज्ड स्पेस की दुनिया है। यह ‘वर्ल्ड वाइड वेबसाइट’ (www) जैसे इण्टरनेट द्वारा घेरा हुआ है। यह इलेक्ट्रॉनिक डिजीटल है जो कम्प्यूटर नेटवर्क द्वारा सूचना भेजने के लिए होता है जिसमें प्रेषक और प्राप्तकर्ता को कोई भौतिक गति नहीं करनी होती। साइबर स्पेस सभी स्थानों पर होता है। यह कार्यालय नाव, वायुयान तथा अन्य सभी स्थानों पर होता है।

प्रगति – इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क की गति जिस पर यह कार्य करता है असामान्य होती है जो मानव इतिहास में अद्वितीय है। सन् 1955 में इण्टरनेट के उपयोगकर्ता संख्या में 5 करोड़ थे जो सन् 2000 में 40 करोड़ और सन् 2010 में 200 करोड़ हैं। पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक उपयोगकर्ताओं का संयुक्त राज्य अमेरिका से विकासशील देशों में स्थानान्तरण हुआ है। संयुक्त राज्य अमेरिका में उपयोगकर्ताओं का प्रतिशत अंश सन् 1995 में 66 प्रतिशत रह गया। अब विश्व के अधिकांश उपयोगकर्ता संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, चीन और भारत में हैं।

भविष्य – साइबर स्पेस समकालीन, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में ई-मेल, ई-कॉमर्स लर्निंग आदि द्वारा परिवर्तन लाएँगी। फैक्स, टी०वी०, रेडियो के साथ इण्टरनेट प्रत्येक व्यक्ति की पहुँच में हो जाएगा। यह आधुनिक संचार प्रणाली है।

UP Board Class 12 Geography Chapter 8 Other Important Questions

UP Board Class 12 Geography Chapter 8 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
परिवहन से आप क्या समझते हैं? सड़क परिवहन के लाभों पर प्रकाश डालिए। अथवा सड़क परिवहन के गुण/महत्त्व/उपयोगिता/लाभ का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
परिवहन का अर्थ-वस्तुओं और यात्रियों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने-ले जाने को ‘परिवहन’ कहते हैं।
सड़क परिवहन के महत्त्वपूर्ण लाभ निम्नलिखित हैं

  • सड़क परिवहन, रेल परिवहन की तुलना में सस्ता है। इसकी लागत, मरम्मत और देखभाल तुलनात्मक दृष्टि से कम है।
  • सड़कें उपभोक्ताओं के घर तक पहुँचती हैं। उत्पादक और व्यापारी, सड़क परिवहन को इसलिए पसन्द करते हैं कि इसमें माल को जगह-जगह उतारना नहीं पड़ता। कच्चा माल, मशीनें आदि सीधे कारखानों में और तैयार माल सीधे उपभोक्ताओं तक सुरक्षित पहुँच जाता है।
  • कम दूरी के लिए उत्तम है। व्यक्ति और सामान जल्दी पहुँच जाते हैं।
  • शीघ्र नष्ट होने वाली सब्जियों, फलों, दूध के लिए अत्यन्त उपयोगी है। ट्रक कृषि का आधार ही सड़कें हैं।
  • कहीं भी; कभी भी समय और स्थान की पाबन्दी नहीं। व्यक्ति और सामान कहीं से भी. किसी भी समय ढोया जा सकता है।
  • स्थायी व्यय नहीं रेलों की तरह स्टेशनों, प्लेटफार्मों, रेलमार्गों आदि के रखरखाव पर कर्मचारियों की अधिक संख्या में आवश्यकता नहीं पड़ती।
  • दुर्गम, तीव्रढाल वाले पहाड़ी क्षेत्र, बीहड़ों आदि में सड़कें बनाना और उपयोग में लाना कठिन, लेकिन सम्भव है।
  • पैकिंग आदि की औपचारिकता नहीं। फल-सब्जियाँ आदि सीधे ट्रकों में बिना पैकिंग के लाद दिए जाते हैं।

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प्रश्न 2.
रेल परिवहन के गुणों व अवगुणों का वर्णन कीजिए। अथवा रेल परिवहन के गुण/लाभ/महत्त्व/उपयोगिता का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
सड़क परिवहन के गुण/लाभ/महत्त्व/उपयोगिता रेल परिवहन के गुण/लाभ/महत्त्व/उपयोगिता निम्नलिखित हैं

  • रेल परिवहन लम्बी दूरियों के यात्रियों और सामान के लिए सस्ता साधन है।
  • लम्बी दूरियों के लिए यह तीव्रगामी परिवहन है।
  • वातानुकूलन, शायिका व्यवस्था और खान-पान की सुविधा से रेलयात्रा सुखद हो गई है।
  • भारी और बड़े परिमाण का सामान अधिक मात्रा में लम्बी दूरियों तक आसानी से ले जाया जाता है।
  • रेल कृषि उत्पादों को उपभोक्ताओं तक और कच्चे माल को कारखानों तक पहुँचाने में सुविधाजनक है।
  • शीघ्रनाशी वस्तुओं के परिवहन के लिए प्रशीतित डिब्बों का उपयोग किया जाता है।
  • रेलों द्वारा किसी क्षेत्र के आर्थिक विकास में काफी मदद मिलती है। रेल परिवहन के अवगुण/दोष/सीमाएँ/कमियों

रेल परिवहन के अवगुण/दोष/सीमाएँ कमियाँ निम्नलिखित हैं

  • रेलमार्गों, स्टेशनों, प्लेटफार्मों, डिब्बों आदि के बनाने और रख-रखाव के लिए भारी पूँजी और कर्मचारियों की आवश्यकता होती है।
  • पर्वतीय व मरुस्थलीय क्षेत्रों में रेलमार्गों का निर्माण करना और चालू रखना कठिन है।
  • अधिक वर्षा व हिमपात वाले क्षेत्रों में रेल परिवहन लगभग असम्भव है।
  • रेलमार्गों के विभिन्न गेजों के कारण रेल परिवहन में कठिनाई होती है और व्यय बढ़ता है।

प्रश्न 3.
अन्तःस्थलीय जलमार्ग किसे कहते हैं? अन्तःस्थलीय जलमार्गों के लिए आवश्यक दशाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अन्तःस्थलीय जलमार्ग-परिवहन के उपयोग में आने वाली नदियों, झीलों और नहरों को ‘अन्तःस्थलीय जलमार्ग’ कहा जाता है।
अन्तःस्थलीय जलमार्गों के लिए आवश्यक दशाएँ

  • नदियाँ सदानीरा अर्थात् पूरे वर्ष निरन्तर प्रवाह वाली होनी चाहिए। बरसाती नदियाँ जल परिवहन के अयोग्य होती हैं।
  • जलप्रपातों और क्षिप्रिकाओं वाली नदियों में जल परिवहन नहीं हो सकता।
  • नदियों, झीलों और नहरों का पानी शीत ऋतु में जमना नहीं चाहिए।
  • नदियों के मुहानों पर रेत, मिट्टी आदि जमा नहीं होनी चाहिए। इससे जल की गहराई कम हो जाती है।
  • अत्यधिक मोड़दार नदियों में परिवहन में अधिक समय लगता है।
  • नदियाँ बाढ़ के समय मार्ग बदलने वाली नहीं होनी चाहिए।

प्रश्न 4.
अन्तःस्थलीय जलमार्गों के गुणों व अवगुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अन्तःस्थलीय जलमार्गों के गुण
अन्तःस्थलीय जलमार्गों के गुण निम्नलिखित हैं

  • भारी और बड़े परिमाण वाले सामान का परिवहन सस्ता और आसान होता है। कोयला, विभिन्न अयस्क तथा भारी-भरकम निर्मित सामान जल परिवहन के लिए अधिक उपयुक्त हैं।
  • नदियाँ और झीलें प्राकृतिक मार्ग हैं। इनके बनाने और रख-रखाव पर व्यय नहीं करना पड़ता।
  • सघन और भारी वर्षा वाले वनों में नदियाँ ही परिवहन का अकेला साधन हैं।
  • इसमें दुर्घटनाओं का खतरा अपेक्षाकृत कम होता है।

अन्तःस्थलीय जलमार्गों के अवगुण
अन्त:स्थलीय जलमार्गों के अवगुण निम्नलिखित हैं

  • धीमी गति से समय की बर्बादी होती है।
  • शीघ्र खराब होने वाले फल-सब्जियों और दूध एवं उसके उत्पादों के परिवहन के लिए अनुपयुक्त है।
  • अधिकतर नदियाँ परिवहन की माँग वाले सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों से दूर बहती हैं अत: अनुपयोगी हैं।
  • मौसम के अनुसार नदियों के जल में कमी होने से परिवहन में बाधा आती है।
  • नदियों, नहरों और झीलों की गहराई बनाए रखने के लिए रेत, मिट्टी निकालने में व्यय होता है और . परिवहन बाधित होता है।

प्रश्न 5.
स्वेज नहर व पनामा नहर की तुलना कीजिए।
उत्तर:
स्वेज नहर व पनामा नहर की तुलना (अन्तर)
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प्रश्न 6.
वायु परिवहन की विशेषताओं व दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायु परिवहन की विशेषताएँ (गुण/महत्त्व/लाभ/उपयोगिता) वायु परिवहन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • वायुयान पूर्व-निर्धारित समय-सारणी के अनुसार उड़ान भरते हैं।
  • सुरक्षा कारणों से वायुयान विभिन्न देशों के ऊपर से निर्धारित गलियारों से ही गुजर सकते हैं।
  • लम्बी दूरी के लिए परिवहन का सबसे उपयुक्त साधन है।
  • यह परिवहन का सबसे तीव्रतम लेकिन महँगा साधन है।
  • हल्की, लेकिन कीमती और जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं जैसे फूल, कुछ विशेष प्रकार के फल और सब्जियाँ, आभूषण, हीरे जवाहरात के परिवहन के लिए उपयुक्त है।
  • प्राकृतिक आपदाओं के समय कहीं भी राहत पहुँचाई जा सकती है।
  • दुर्गम क्षेत्रों में वायुयान परिवहन उपयुक्त है।

वायु परिवहन के दोष
वायु परिवहन के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं

  • वायु परिवहन महँगा परिवहन साधन है। इसका लाभ केवल सम्पन्न वर्ग ही ले सकता है।
  • छोटी/कम दूरियों के लिए वायु परिवहन उपयोगी नहीं है।
  • खराब मौसम में वायु परिवहन में बाधा आती है।
  • सस्ती व भारी वस्तुओं के परिवहन में यह उपयोगी नहीं है।
  • वायु दुर्घटनाएँ कई बार भयंकर रूप ले लेती हैं।

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प्रश्न 7.
परिवहन का चयन कैसे किया जाए? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
परिवहन का चयन
परिवहन के प्रत्येक माध्यम का अपना महत्त्व होता है। किसी भी विधा की सार्थकता ढोई जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के प्रकार, परिवहन की लागत तथा उपलब्ध विधा पर निर्भर करती है।

  • स्थूल तथा भारी-भरकम सामानों का परिवहन आमतौर पर जलमार्गों द्वारा सस्ता पड़ता है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय-स्तर पर वस्तुओं का परिवहन सामान्यत: समुद्री मालवाहक जहाजों द्वारा किया जाता है। जलमार्गों द्वारा परिवहन में पत्तनों से आन्तरिक गन्तव्यों तक माल पहुँचाने की कुछ सीमाएँ हैं तथा इस प्रकार का परिवहन धीमा होता है।
  • छोटी दूरियों के लिए सड़क परिवहन अपेक्षाकृत सस्ता पड़ता है और इसकी गति भी तेज होती है। इसके अलावा यह द्वार-से-द्वार तक भी सेवा प्रदान करता है।
  • लेकिन यदि किसी को बड़ी मात्रा में स्थूल सामान देश के सुदूर स्थानों पर ले जाना हो तो इसके लिए रेलमार्ग सबसे अच्छा साधन है।
  • इसके विपरीत उच्च मूल्य वाली हल्की तथा नाशवान वस्तुओं का परिवहन वायुयान द्वारा सबसे अच्छा रहता है।
  • तरल तथा गैसीय पदार्थों का परिवहन आजकल पाइप लाइनों द्वारा फायदेमन्द रहता है।

एक सुप्रबन्धित परिवहन प्रणाली में परिवहन की विभिन्न विधाएँ एक-दूसरे के पूरक और सहयोगी होती हैं।

प्रश्न 8.
पाइप लाइन परिवहन के गुण व दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पाइप लाइन परिवहन के गुण
पाइप लाइन परिवहन के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं

  • पाइप लाइनों को ऊबड़-खाबड़ भू-भागों तथा पानी के नीचे भी बिछाया जा सकता है।
  • पाइप लाइन बिछाने की आरम्भिक लागत अधिक जरूर होती है, लेकिन एक बार बिछ जाने के बाद संचालन और रख-रखाव में लागत कम आती है।
  • पाइप लाइनें पदार्थों की निरन्तर आपूर्ति को सुनिश्चित करती हैं।
  • पाइप लाइनों को बिछाने के लिए भूमि अधिग्रहण नहीं करना पड़ता। इसमें किसी और प्रकार की बर्बादी भी नहीं होती।
  • इससे ऊर्जा का उपयोग भी कम मात्रा में होता है और समय भी नष्ट नहीं होता।
  • पाइप लाइनें परिवहन का सस्ता, तीव्र, सक्षम और पर्यावरण-अनुकूल तरीका हैं।

पाइप लाइन परिवहन के दोष
पाइप लाइन परिवहन के दोष निम्नलिखित हैं

  • एक बार पाइप लाइन बिछा देने के बाद उसकी क्षमता में वृद्धि नहीं की जा सकती, अत: यह परिवहन का लोचदार साधन नहीं है।
  • कई बार पाइप लाइन की सुरक्षा भी नहीं की जा सकती।
  • भूमिगत पाइप लाइन की मरम्मत करना भी कठिन हो जाता है।
  • पाइप लाइन का रिसाव हो जाने की स्थिति में रिसाव-स्थान का पता लगाना कठिन हो जाता है।

प्रश्न 9.
पनामा नहर के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पनामा नहर का महत्त्व
पनामा नहर के महत्त्व के प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं
(1) पनामा नहर संयुक्त राज्य अमेरिका के हितों का पोषण और संरक्षण अधिक करती है।
(2) इस नहर के बन जाने से उत्तरी व दक्षिणी-अमेरिका के पूर्वी व पश्चिमी तटों के बीच दूरी कम हो गई है।
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(3) इस नहर के कारण यूरोपीय पत्तनों और संयुक्त राज्य अमेरिका के पश्चिमी तट पर स्थित बन्दरगाहों के बीच की दूरी कम हो गई है।

(4) संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए इस नहर का सामाजिक महत्त्व है। इसी नहर के द्वारा वह अपने जंगी बेड़ों को अटलाण्टिक महासागर से प्रशान्त महासागर या इसके उलट तुरन्त भेज सकता है।

(5) पश्चिमी द्वीप समूह, जो अमेरिका के लिए सुरक्षात्मक कवच का निर्माण करते हैं, की देख-रेख व वहाँ सैनिक अड्डों की स्थापना इस नहर के कारण आसान हो गई है।

(6) ब्रिटेन को भी पनामा नहर से लाभ हुआ है। उसे न्यूजीलैण्ड, उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी . तटों तक पहुँचने का छोटा मार्ग मिल गया है।

(7) इस मार्ग द्वारा अटलाण्टिक महासागर से पैट्रोलियम, चाँदी, पारा, सिनकोना, गन्ना, केला, ऊन, मांस, अयस्क, लकड़ी, दुग्धोत्पाद, रबड़ का निर्यात प्रशान्त महासागरीय क्षेत्रों को होता है तथा मशीनें, ताँबा, नाइट्रेट, . इस्पात की वस्तुएँ, टिन, मछली व निर्मित वस्तुएँ प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र से निर्यात की जाती हैं।

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प्रश्न 10.
स्वेज नहर के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वेज नहर का महत्त्व स्वेज नहर के महत्त्व के प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं
(1) इस मार्ग के खुल जाने से यूरोप के देशों, पूर्वी अफ्रीका, एशिया व ऑस्ट्रेलिया के बीच मार्ग छोटा हो गया है। इससे यात्रा में लगने वाले समय और पैसे की बचत हुई है। पहले जहाजों को अफ्रीका के दक्षिण से लम्बा चक्कर काटकर आशा-अन्तरीप मार्ग से जाना पड़ता था लेकिन अब भूमध्यसागर से नहर स्वेज होते हुए लाल सागर और फिर अरब सागर में छोटे मार्ग से जल्दी पहुँचा जाता है। उदाहरणत: आशा-अन्तरीप मार्ग की तुलना में स्वेज मार्ग से लन्दन और मुम्बई के बीच 9600 किमी तथा न्यूयॉर्क और अदन के बीच 10,720 किमी की दूरी कम हुई है।
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(2) इस नहर के बनने से यूरोपीय देशों विशेष रूप से ब्रिटेन को बहुत लाभ हुआ। इस जलमार्ग के द्वारा ब्रिटेन अपने सुदूर-पूर्व स्थित उपनिवेशों से सस्ता कच्चा माल मँगाता था तथा उन्हें निर्मित माल निर्यात किया करता था। इसीलिए इस नहर को ‘ब्रिटिश साम्राज्य की स्नायु नाड़ी’ कहा जाता था।

(3) इस नहर से न केवल पश्चिमी देशों को ही लाभ हुआ है, बल्कि पूर्वी संसार को भी इससे व्यापारिक लाभ हुआ है। पूर्वी देश पश्चिमी देशों को इसी नहर मार्ग द्वारा पटसन, चाय, रेशम, चीनी, रबड़, गर्म मसाले, मांस, ऊन, टिन, हैंप इत्यादि का निर्यात करते हैं जबकि पश्चिमी देश पूर्वी अफ्रीका, एशिया व ऑस्ट्रेलिया को मशीनें, दवाइयाँ, रासायनिक उत्पाद तथा कपड़ा इत्यादि भेजते हैं। खाड़ी क्षेत्र में घटने वाले राजनीतिक घटनाक्रम के अनुसार इस मार्ग का प्रयोग घटता-बढ़ता, बन्द होता और खुलता रहता है फिर भी यह निश्चित है कि स्वेज नहर निर्माण के द्वारा भौगोलिक परिवर्तन करके राष्ट्रों के भाग्य बदलने वाला इससे बड़ा अकेला मानवीय उद्यम पिछली शताब्दियों में और कोई नहीं हुआ।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
परिवहन के प्रकार को वर्गीकृत कीजिए।
उत्तर:
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प्रश्न 2.
महामार्ग की विशेषताओं को समझाइए।
उत्तर:
महामार्ग की विशेषताएँ
महामार्ग की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

  • महामार्गों का निर्माण इस तरह किया जाता है ताकि उन पर वाहन निर्बाध गति से दौड़ सकें।
  • इन महामार्गों में यातायात की अलग-अलग लाइन होती है।
  • महामार्ग आने और जाने वाले वाहनों के लिए दो भागों में बँटे होते हैं।
  • पुल और उपरिसेतु यातायात को सुचारु बनाते हैं।

प्रश्न 3.
ट्रांस-साइबेरियन रेलमार्ग के भौगोलिक महत्त्व को समझाइए।
उत्तर:
ट्रांस-साइबेरियन रेलमार्ग का भौगोलिक महत्त्व ट्रांस-साइबेरियन रेलमार्ग का भौगोलिक महत्त्व निम्नवत् है

  • इस मार्ग के खुल जाने से कभी उपेक्षित तथा अत्यन्त पिछड़ा हुआ पूर्वी साइबेरिया, जिसे ‘काला पानी’ कहा जाता था, आज प्राकृतिक सम्पदाओं का खजाना माना जा रहा है।
  • इस मार्ग के कारण ही मध्य एशिया और साइबेरिया के पशु, वन, मिट्टी, खनिज, जल एवं कृषि सम्पत्ति का दोहन सम्भव हो सका है।
  • इस मार्ग पर खाद्यान्नों, कोयला, धातुओं, लकड़ी, लुगदी, समूर, चमड़ा, मक्खन व सूखा दूध इत्यादि का परिवहन पश्चिम की ओर तथा मशीनरी और औद्योगिक उत्पाद पूर्व की तरफ भेजे जाते हैं।

प्रश्न 4.
पार-कैनेडियन रेलमार्ग के भौगोलिक महत्त्व को समझाइए।
उत्तर:
पार-कैनेडियन रेलमार्गका भौगोलिक महत्त्व पार-कैनेडियन रेलमार्ग का भौगोलिक महत्त्व निम्नलिखित है

  • इस रेलमार्ग के कारण ही कनाडा के पूर्वी भागों में उद्योग पनप सके व पश्चिमी भाग में कृषि में प्रगति हुई।
  • प्रेयरी प्रदेशों का गेहूँ इसी मार्ग द्वारा पूर्वी बन्दरगाहों को भेजा जाता है, जहाँ से उसे यूरोपीय बाजार में निर्यात कर दिया जाता है।
  • इसी रेलमार्ग के कारण ही कनाडा में जनसंख्या का सघन बसाव आरम्भ हुआ। कनाडा के अधिकांश बड़े नगर इसी रेलमार्ग के किनारे स्थित हैं।
  • कनाडा के आन्तरिक भागों में सीधा सम्पर्क जोड़ देने के कारण इस रेलमार्ग का प्रशासकीय एवं राजनीतिक महत्त्व है।

प्रश्न 5.
परिवहन तथा संचार में अन्तर को समझाइए।
उत्तर:
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प्रश्न 6.
संसार में रेलमार्गों के विकास में सहायक प्रमुख कारक बताइए।
उत्तर:
संसार में रेलमार्गों के विकास में सहायक कारक

  • समतल भूमि – समतल मैदानों में रेलमार्गों का विकास अधिक सम्भव है। यूरोप और उत्तरी अमेरिका के मैदानों में रेलमार्गों का जाल बिछा हुआ है।
  • सघन जनसंख्या – सघन जनसंख्या के कारण भी अधिक रेलमार्ग बिछाए जाते हैं। उदाहरण—भारत का उत्तरी मैदान।
  • औद्योगीकरण तथा समृद्ध कृषि – उद्योगों के विकास तथा समृद्ध कृषि क्षेत्रों में भी रेलों का विकास होता है। उदाहरण-यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका।

प्रश्न 7.
संचार सेवाओं के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संचार सेवाओं का महत्त्व
संचार सेवाओं का निम्नलिखित महत्त्व है

  • आधुनिक समय में संचार के साधनों ने सम्पूर्ण विश्व को एक वैश्विक ग्राम बना दिया है।
  • रेडियो, दूरदर्शन, फैक्स और इण्टरनेट ने इस क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है। हम फैक्स/इण्टरनेट से थोड़े-से समय में दूर तक सन्देश भेज सकते हैं।
  • अंकीय सूचना संचार कम्प्यूटर प्रणाली में मिश्रित हो गया है। कम्प्यूटर के द्वारा विश्व के किसी भाग से भी हम सूचना एकत्र कर सकते हैं।
  • आज के समय में इण्टरनेट का इलेक्ट्रॉनिक जाल संचार का सबसे बड़ा साधन है, जिसके द्वारा एक अरब लोग एक साथ जुड़ सकते हैं।

प्रश्न 8.
समुद्री जल यातायात के क्या लाभ हैं? अथवा महासागरीय मार्गों के लाभों को समझाइए।
उत्तर:
समुद्री जल यातायात/महासागरीय मार्गों के लाभ
समुद्री जल यातायात/महासागरीय मार्गों के निम्नलिखित लाभ हैं

  • महासागर सभी महाद्वीपों को एक-दूसरे से मिलाते हैं।
  • खनिज तेल अथवा गैस आदि को ढोने के लिए विकास टैंकरों का उपयोग किया जा सकता है।
  • पत्तनों पर कण्टेनरों के प्रयोग से सामान को उतारना या चढ़ाना आसान है।
  • समुद्री परिवहन द्वारा जिनता सामान एक साथ जलयानों द्वारा ढोया जा सकता है वह किसी अन्य साधन द्वारा सम्भव नहीं है।

प्रश्न 9.
उत्तरी अटलाण्टिक समुद्री मार्ग की विशेषताएँ समझाइए।
उत्तर:
उत्तरी अटलाण्टिक समुद्री मार्ग की विशेषताएँ उत्तरी अटलाण्टिक समुद्री मार्ग की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

  • यह मार्ग औद्योगिक दृष्टि से विकसित विश्व के दो प्रदेशों उत्तर-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोप को मिलाता है।
  • विश्व का एक-चौथाई विदेशी व्यापार इस मार्ग द्वारा परिवहित होता है।
  • यूरोप के देश जो कृषि व उद्योग में विकसित हैं वस्त्र, रसायन, मशीनें, उर्वरक आदि संयुक्त राज्य अमेरिका व कनाडा को निर्यात करते हैं।
  • इस मार्ग के दोनों तटों पर पत्तंन और पोताश्रय की उन्नत सुविधाएँ उपलब्ध हैं।

प्रश्न 10.
ट्रांस साइबेरियन रेलमार्ग पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
ट्रांस साइबेरियन रेलमार्ग एशिया का सबसे महत्त्वपूर्ण और विश्व का सर्वाधिक लम्बा (9,322 किमी) दोहरे पथ से युक्त विद्युतीकृत पार महाद्वीपीय रेलमार्ग है। रूस का यह प्रमुख रेलमार्ग पश्चिम में सेंट पीटर्सबर्ग से पूर्व में प्रशान्त महासागर तट पर स्थित ब्लाडीवोस्टक तक जाता है। इस मार्ग ने एशियाई प्रदेश को पश्चिमी यूरोपीय बाजारों से जोड़ा है। इस रेलमार्ग को दक्षिण में जोड़ने वाले योजक मार्ग भी हैं।

प्रश्न 11.
राइन जलमार्ग की विशेषताओं को समझाइए।
उत्तर:
राइन जलमार्ग की विशेषताएँ राइन जलमार्ग की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • यह नदी समृद्ध कोयला क्षेत्र से गुजरती है, अत: इस नदी का सम्पूर्ण बेसिन एक समृद्ध औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित हो चुका है।।
  • इस नदी के व्यापार में कोयले की महत्ता के कारण इसे ‘कोयला नदी’ भी कहा जाता है।
  • यह जलमार्ग स्विट्जरलैण्ड, जर्मनी, फ्रांस, बेल्जियम तथा नीदरलैण्ड के औद्योगिक क्षेत्रों को उत्तरी अटलाण्टिक समुद्री मार्ग से जोड़ता है।
  • यह जलमार्ग यूरोपीय साझा बाजार के व्यापार की धुरी है।

अतिलघ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
परिवहन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वस्तुओं और यात्रियों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने-ले-जाने को परिवहन’ कहते हैं।

प्रश्न 2.
संचार क्या है?
उत्तर:
उद्गम स्थल से लक्ष्य तक किसी माध्यम के द्वारा सूचनाओं का प्रेषण ही संचार है। टेलीफोन सूचना प्रेषण का एक माध्यम है।

प्रश्न 3.
महामार्ग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
महामार्ग दूरस्थ स्थानों को जोड़ने वाली पक्की सड़कें होती हैं। इनका निर्माण इस प्रकार किया जाता है कि अबाधित रूप से यातायात का आवागमन हो सके।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 8 Transport and Communication

प्रश्न 4.
परिवहन जाल क्या है?
उत्तर:
अनेक स्थान जिन्हें परस्पर मार्गों की श्रेणियों द्वारा जोड़ दिए जाने पर जिस प्रारूप का निर्माण होता है, उसे ‘परिवहन जाल’ कहते हैं।

प्रश्न 5.
परिवहन की प्रमुख विधाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
परिवहन की प्रमुख विधाएँ हैं

  • स्थल परिवहन
  • जल परिवहन
  • वायु परिवहन, तथा
  • पाइप लाइन परिवहन।

प्रश्न 6.
परिवहन विधा की सार्थकता किस पर निर्भर करती है?
उत्तर:
परिवहन विधा की सार्थकता परिवहित की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के प्रकार, परिवहन की लागतों और उपलब्ध विधा पर निर्भर करती है।

प्रश्न 7.
उच्च मूल्य वाली, हल्की तथा नाशवान वस्तुओं का परिवहन किससे सर्वश्रेष्ठ होता है?
उत्तर:
उच्च मूल्य वाली, हल्की तथा नाशवान वस्तुओं का वायुमार्गों द्वारा परिवहन सर्वश्रेष्ठ होता है।

प्रश्न 8.
प्रथम सार्वजनिक रेलमार्ग कब और कहाँ प्रारम्भ हुआ?
उत्तर:
प्रथम सार्वजनिक रेलमार्ग सन् 1825 में उत्तरी इंग्लैण्ड के स्टॉकटन और इर्लिंग्टन स्थानों के मध्य प्रारम्भ हुआ।

प्रश्न 9.
पाइप लाइनों से किसका परिवहन व्यापक रूप से किया जाता है?
उत्तर:
पाइप लाइनों से जल, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि का परिवहन किया जाता है।

प्रश्न 10.
साइबर स्पेस क्या है?
उत्तर:
साइबर स्पेस विद्युत द्वारा कम्प्यूटरीकृत स्पेस का संसार है। यह वर्ल्ड वाइड वेबसाइट (www) जैसे इण्टरनेट द्वारा आवृत्त है।

प्रश्न 11.
पार साइबेरियन रेलमार्ग के अन्तिम स्टेशनों के नाम बताइए।
उत्तर:
सेंट पीटर्सबर्ग तथा ब्लाडीवोस्टक।

प्रश्न 12.
ओरिएण्ट एक्सप्रेस रेलमार्ग के अन्तिम सिरों के स्टेशनों के नाम बताइए।
उत्तर:
पेरिस तथा इस्तमबूल।।

प्रश्न 13.
पार कनाडियन रेलमार्ग के अन्तिम स्टेशनों के नाम लिखिए।
उत्तर:
बैंकूवर तथा हैलीफैक्स।

प्रश्न 14.
विश्व का सबसे व्यस्त समुद्री मार्ग कौन-सा है?
उत्तर:
उत्तर अटलाण्टिक महासागरीय मार्ग।

प्रश्न 15.
एशिया और यूरोप दोनों महाद्वीपों के लिए वाणिज्य द्वार के रूप में सेवा करने वाली नौगम्य नहर का नाम बताइए।
उत्तर:
स्वेज नहर।

प्रश्न 16.
जर्मनी के सबसे महत्त्वपूर्ण आन्तरिक जलमार्ग का नाम बताइए।
उत्तर:
राइन जलमार्ग।

प्रश्न 17.
स्वेज नहर के प्रत्येक सिरे के समुद्री पत्तनों के नाम बताइए।
उत्तर:
पोर्ट सईद उत्तर में तथा स्वेज पत्तन दक्षिण में स्थित है।

प्रश्न 18.
इण्टरनेट क्या है?
उत्तर:
इण्टरनेट एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली है जिसके द्वारा प्रयोगकर्ता माइक्रो कम्प्यूटर और मोडेम के माध्यम से साइबर स्पेस से जुड़ जाता है और इससे सम्बन्धित.विविध निम्नतम जानकारी प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 19.
कनाडा के प्रमुख रेलमार्ग का नाम बताइए।
उत्तर:
पार कैनेडियन रेलमार्ग। .

प्रश्न 20.
पार महाद्वीपीय रेलमार्ग किसे कहते हैं?
उत्तर:
महाद्वीपों के आर-पार अथवा एक छोर से दूसरे छोर तक बनाए गए रेलमार्गों को ‘पार महाद्वीपीय रेलमार्ग’ कहते हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
इंग्लैण्ड में स्थित यूरो टनल ग्रुप द्वारा प्रचालित सुरंग मार्ग किन दो शहरों को जोड़ता है
(a) लन्दन-बर्लिन
(b) बर्लिन-पेरिस
(c) पेरिस-लन्दन
(d) बार्सीलोना-बर्लिन।
उत्तर:
(c) पेरिस-लन्दन।

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प्रश्न 2.
कैनेडियन-पैसेफिक रेलमार्ग स्थित है
(a) यूरोप में
(b) दक्षिण अमेरिका में
(c) एशिया में
(d) उत्तरी अमेरिका में।
उत्तर:
(d) उत्तरी अमेरिका में।

प्रश्न 3.
विश्व का सबसे लम्बा रेलमार्ग कौन-सा है
(a) ट्रांस-साइबेरियन रेलमार्ग
(b) कैनेडियन-पैसेफिक रेलमार्ग
(c) ऑस्ट्रेलियाई अन्तर्महाद्वीपीय रेलमार्ग
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(a) ट्रांस-साइबेरियन रेलमार्ग।

प्रश्न 4.
स्थूल और भारी भरकम सामानों के परिवहन के लिए कौन-सा मार्ग अधिक उपयुक्त रहता है.
(a) जलमार्ग
(b) वायुमार्ग
(c) रेलमार्ग
(d) सड़क मार्ग।
उत्तर:
(a) जलमार्ग।

प्रश्न 5.
संसार का सबसे व्यस्ततम जलमार्ग कौन-सा है
(a) वोल्गा जलमार्ग
(b) मिसीसिपी जलमार्ग
(c) राइन जलमार्ग
(d) सोन जलमार्ग।
उत्तर:
(c) राइन जलमार्ग।

प्रश्न 6.
जर्मनी में महामार्गों को किस नाम से जाना जाता है
(a) मोटर वेज
(b) ऑटोवान
(c) हाइवेज
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) ऑटोवान।

प्रश्न 7.
स्वेज नहर जोड़ती है
(a) अटलाण्टिक महासागर और प्रशान्त महासागर को
(b) भूमध्यसागर और लाल सागर को
(c) भूमध्यसागर और कैस्पियन सागर को
(d) काला सागर और लाल सागर को।
उत्तर:
(b) भूमध्यसागर और लाल सागर को।

प्रश्न 8.
पनामा नहर जोड़ती है
(a) भूमध्यसागर और लाल सागर को
(b) भूमध्यसागर और कैस्पियन सागर को
(c) अटलाण्टिक महासागर और प्रशान्त महासागर को
(d) हिन्द महासागर और प्रशान्त महासागर को।
उत्तर:
(c) अटलाण्टिक महासागर और प्रशान्त महासागर को।

प्रश्न 9.
वायु परिवहन का उपयोग किया जाता है
(a) कीमती वस्तुएँ तथा यात्रियों के लिए
(b) लकड़ी के लिए
(c) कम कीमती तथा भारी सामान के लिए
(d) भारी खनिज के लिए।
उत्तर:
(a) कीमती वस्तुएँ तथा यात्रियों के लिए।

प्रश्न 10.
पाइप लाइन ‘बिग इंच’ का सम्बन्ध किस देश से है
(a) जर्मनी
(b) कनाडा
(c) ब्राजील
(d) संयुक्त राज्य अमेरिका।
उत्तर:
(d) संयुक्त राज्य अमेरिका।

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi शैक्षिक निबन्ध

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 8
Chapter Name शैक्षिक निबन्ध
Category UP Board Solutions

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1. शिक्षा और छात्र राजनीति (2016)
संकेत विन्दु भूमिका, शिक्षा और राजनैतिक गतिविधियाँ, शिक्षण संस्थानों में राजनीतिक विचारधारा, उपसंहार।।

भूमिका विद्यार्थी जीवन मानव जीवन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समय होता है। इस काल में विद्यार्थी जिन विषयों का अध्ययन करता है अथवा जिन नैतिक मूल्यों को वह आत्मसात् करता है वही जीवन मूल्य उसके भविष्य निर्माण का आधार बनता है। विद्यार्थियों का मुख्य उद्देश्य शिक्षा ग्रहण करना है और उन्हें अपना पूरा ध्यान इसी ओर लगाना चाहिए।

लेकिन राष्ट्रीय परिस्थितियों का ज्ञान और उसके सुधार के उपाय सोचने की योग्यता पैदा करना भी शिक्षा में शामिल होना चाहिए ताकि वे राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सके। शिक्षा ही व्यक्ति का सर्वागीण विकास करती हैं। अतः प्रत्येक विद्यार्थी को पूरे मनोयोग से विद्याध्ययन करना चाहिए, परन्तु आज हमारे विद्यार्थियों का व्यवहार इसके बीच विपरीत ही नज़र आ रहा है।

आज वे अध्ययन की प्रवृत्ति को त्यागकर सक्रिय राजनीति की दलदल में धंसने के लिए तैयार बैठे प्रतीत होते हैं, इसी के परिणामस्वरूप हमारे देश की लगभग सभी शिक्षण संस्थाएँ गन्दी राजनीति का अखाड़ा बनती जा रही हैं।

शिक्षा और राजनैतिक गतिविधियाँ शिक्षा पद्धति की रूपरेखा बनाने वालों को स्वयं अपने अन्दर झाँकना चाहिए और सोचना चाहिए कि क्या उसमें मूलभूत परिवर्तन की जरूरत है। आज हम रत्नाकार छात्र पैदा कर रहे हैं, लेकिन वैचारिक रूप से स्वतन्त्र और परिपक्व छात्र नहीं, क्या यही हमारा उद्देश्य है?

विद्यार्थियों का मूल उद्देश्य शिक्षा प्राप्त करना होता है, जिसमें उन्हें पूरी लगन के साथ लगे रहना चाहिए, वरना उनके ज्ञानार्जन के कार्य में व्यवधान पड़ जाता है। वे कहते हैं कि एक सजग एवं प्रबुद्ध नागरिक होने के नाते, उन्हें निश्चित ही राजनैतिक नीतियों और गतिविधियों के प्रति जागरूक अवश्य रहना चाहिए, परन्तु सक्रिय राजनीति में प्रवेश करना किसी भी प्रकार उचित नहीं है। यदि छात्र सक्रिय और दलगत राजनीति में फंस जाते हैं, तो शिक्षा के श्रेष्ठ आदर्श को भूलकर वे अपने मार्ग से भटक जाते हैं। सक्रिय राजनीति में प्रवेश से पहले उन्हें अपनी शिक्षा पूरी करनी चाहिए। जहाँ तक सक्रिय राजनीति की शिक्षा प्राप्त करने का प्रश्न है, जो तिलक, गोखले और गाँधी जैसे अनेक नेताओं के उदाहरण हमारे सामने हैं, जिन्हें ऐसी किसी शिक्षा की आवश्यकता कभी नहीं पड़ी।

गाँधी और जयप्रकाश नारायण द्वारा किए गए छात्रों के आह्वान के सन्दर्भ में कहा जाता है कि जहाँ गाँधी ने स्वतन्त्रता संघर्ष के निर्णायक दौर में देश की सम्पूर्ण शक्ति को लगा देने की दृष्टि से ही ऐसा किया था, वहीं जयप्रकाश नारायण ने भी छात्रों को विषम परिस्थितियों में क्रियाशील बनाने की नीयत से ही उन्हें ललकारा था। वास्तव में उपरोक्त दोनों नेताओं सहित अन्य बड़े-बड़े नेताओं ने देश के विद्यार्थी समुदाय को यही परामर्श दिया है कि वे पूर्ण निष्ठा व लगन के साथ अपनी पढ़ाई करें तथा नई-नई ऊँचाइयों को छुएँ।

शिक्षण संस्थानों में राजनीतिक विचारधारा शिक्षण संस्थानों में राजनीति के बीज बोने का काम राजनीतिक दल करते हैं। ये राजनीतिज्ञ छात्रों की विशेषताओं से भली-भाँति परिचित होते हैं। वे जानते हैं कि युवा विद्यार्थी प्रायः आदर्शवादी होते हैं। और उन्हें आदर्श से ही प्रेरित किया जा सकता है। उन्हें यह पता होता है कि संगठित छात्र-शक्ति असीम होती है। उन्हें यह भी ज्ञान होता है कि विद्यार्थी वर्ग एक बार किसी को अपना नेता मान लेने के बाद उस पर पूर्ण निष्ठा रखने लगता है। वे इस तथ्य से भी परिचित होते हैं कि सामान्यत: छात्र समुदाय राजनीतिक की टेही चालों तथा उनके पीछे छिपे स्वार्थों को ताड़ पाने की परिपक्व बुद्धि से युक्त नहीं होते।।

इन्हीं बातों को देखते हुए राजनीतिज्ञ अपनी स्वार्थ पूर्ति के उद्देश्य से उनको सक्रिय राजनीति में घसीटने के कुत्सित प्रयास करते हैं। यह स्पष्ट है कि राजनीति में विद्यार्थी स्वयं नहीं जाते, बल्कि स्वार्थी राजनीतिज्ञ ही उन्हें उसमें खींचने का यत्न करते रहते हैं। इसकी पूरी सम्भावना है कि राजनीतिज्ञ छात्र-शक्ति को अपने हित साधन का माध्यम बनाते ही रहेंगे।

उपसंहार अतः कहा जा सकता है कि छात्र शक्ति को सही मार्गदर्शन देते हुए राष्ट्रहित में उसका योगदान सुनिश्चित करना जरूरी है। छात्रसंघों के चुनाव अनेक राज्यों में प्रतिबन्धित हैं। छात्रसंघों से राजनीति और सत्ता को घबराहट होती है। यहां तक कि जो राजनेता छात्रसंघों के माध्यम से राजनीति में आए, वे भी छात्रसंघों के प्रति उदार नहीं हैं। होना यह चाहिए कि छात्रसंघ विद्यार्थियों के सांस्कृतिक, वैचारिक और राजनीतिक रुझानों के विकास में सहायक बनें ताकि छात्र नेतृत्व और उसकी गम्भीरता को समझकर अपने व्यक्तित्व का विकास कर सके। छात्रसंघ और छात्र राजनीति कहीं-न-कहीं इस भूमिका से जुड़ी हुई है, इसलिए देश के राजनेताओं व अन्य प्रशासकों को इनका गला दबाने का अवसर मिला।

2. शिक्षा में आरक्षण (2016)
संकेत बिन्दु भूमिका, शिक्षा में आरक्षण की व्यवस्था, निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण, आरक्षण के नाम पर राजनीति, उपसंहार।।

भूमिका स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में दलितों एवं आदिवासियों की दशा अत्यंत दयनीय थी। इसलिए हमारे संविधान निर्माताओं ने काफी सोच-समझकर इनके लिए संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की और वर्ष 1950 में संविधान के लागू होने के साथ ही सुविधाओं से वंचित वर्गों को आरक्षण की सुविधा मिलने लगी, ताकि देश के संसाधनों, अवसरों एवं शासन प्रणाली में समाज के प्रत्येक समूह की उपस्थिति सुनिश्चित हो सके। उस समय हमारा समाज ऊँच-नीच, जाति-पांति, छुआछूत जैसी कुरीतियों से ग्रसित था।

हमारे पूर्व प्रधानमन्त्री श्री लालबहादुर शास्त्री ने एक बार कहा भी था-“यदि कोई एक व्यक्ति भी ऐसा रह गया जिसे किसी रूप में अछूत कहा जाए, तो भारत को अपना सर शर्म से झुकाना पड़ेगा।” वास्तव में, आरक्षण वह माध्यम है, जिसके द्वारा जाति, धर्म, लिंग एवं क्षेत्र के आधार पर समाज में भेदभाव से प्रभावित लोगों को आगे बढ़ने का अवसर प्राप्त होता है, किन्तु वर्तमान समय में देश में प्रभावी आरक्षण नीति को उचित नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि आज यह राजनेताओं के लिए सिर्फ चोट बटोरने की नीति बनकर रह गई है। वंचित वर्ग आरक्षण के लाभ से आज भी अछूता है।

शिक्षा में आरक्षण की व्यवस्था शिक्षा आज एवं आने वाले भविष्य का सबसे महत्त्वपूर्ण विषय है। प्राचीन काल में शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले भेदभाव को देखते हुए शिक्षा में आरक्षण की व्यवस्था की गई। प्राचीन समय में सभी को शिक्षा के समान अवसर प्राप्त न होने के कारण जाति, लिग, जन्मस्थान, धर्म के आधार पर शिक्षा के क्षेत्र में भी भेदभाव होता था। देश की उन्नति के लिए शिक्षा को बढ़ावा देने की बहुत अधिक आवश्यकता थी, जिसके लिए सभी को समान शिक्षा के अधिकार देने की ज़रूरत थी, इसलिए संविधान में इसके लिए प्रावधान किया गया।

भारतीय संविधान में वंचित वर्गों के उत्थान के लिए विशेष प्रावधान का वर्णन इस प्रकार है-अनुच्छेद-15 (समानता का मौलिक अधिकार) द्वारा राज्य किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी एक के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा, लेकिन अनुच्छेद-15 (4) के अनुसार इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद 29 के खण्ड (2) की कोई बात राज्य को शैक्षिक अथवा सामाजिक दृष्टि से पिछड़े नागरिकों के किन्हीं वर्गों की अथवा अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के लिए कोई विशेष व्यवस्था बनाने से नहीं रोक सकती अर्थात् राज्य चाहे तो इनके उत्थान के लिए आरक्षण या शुल्क में कमी अथवा अन्य उपबन्ध कर सकती है। कोई भी व्यक्ति उसकी विधि मान्यता पर हस्तक्षेप नहीं कर सकता कि यह वर्ग-विभेद उत्पन्न करते हैं।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय से ही भारत में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए सरकारी नौकरियों एवं शिक्षा में आरक्षण लागू हैं। मण्डल आयोग की संस्तुतियों के लागू होने के बाद वर्ष 1993 से ही अन्य पिछड़े वर्गों के लिए नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था कर दी गई। वर्ष 2006 के बाद से केन्द्र सरकार के शिक्षण संस्थानों में भी अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू हो गया। इस प्रकार आज समाज के अत्यधिक बड़े तबके को आरक्षण की सुविधाओं का लाभ प्राप्त हो रहा है, लेकिन इस आरक्षण नीति का कोई उचित परिणाम नहीं निकला।

अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए आरक्षण लागू होने के लगभग छः दशक बीत चुके हैं और मण्डल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के भी लगभग दो दशक पूरे हो चुके हैं, लेकिन क्या सम्बन्धित पक्षों को उसका पर्याप्त लाभ मिला? सत्ता एवं सरकार अपने निहित स्वार्थों के कारण आरक्षण की नीति की समीक्षा नहीं करती।

अन्य पिछड़े वर्गों के लिए मौजूद आरक्षण की समीक्षा तो सम्भव भी नहीं है, क्योंकि इससे सम्बद्ध वास्तविक आँकड़ों का पता ही नहीं है, चूंकि आँकड़े नहीं हैं, इसलिए योजनाओं का कोई लक्ष्य भी नहीं हैं। आंकड़ों के अभाव में इस देश के संसाधनों, अवसरों और राजकाज में किस जाति और जाति समूह की कितनी हिस्सेदारी है, इसका तुलनात्मक अध्ययन ही सम्भव नहीं है। सैम्पल सर्वे (नमूना सर्वेक्षण) के आँकड़े इसमें कुछ मदद कर सकते हैं, लेकिन इतने बड़े देश में चार-पाँच हज़ार के नमूना सर्वेक्षण से ठोस नतीजे नहीं निकाले जा सकते।

निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण सरकार ने 104वें संविधान संशोधन के द्वारा देश में सरकारी विद्यालयों के साथ-साथ गैर-सहायता प्राप्त निजी शिक्षण संस्थानों में भी अनुसूचित जातियों/जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के अभ्यर्थियों को आरक्षण का लाभ प्रदान कर दिया है। सरकार के इस निर्णय का समर्थन और विरोध दोनों किए गए हैं। वास्तव में, निजी क्षेत्रों में आरक्षण लागू होना अत्यधिक कठिन है, क्योंकि निजी क्षेत्र लाभ से समझौता नहीं कर सकते, यदि गुणवत्ता प्रभावित होने से ऐसा होता हो। ‘तुलियन सिविजियन’ ने कहा था-“जब आप पर खोने के लिए कुछ भी न होगा, तब आप अद्भुत आविष्कार करेंगे, आप बिना डर या आरक्षण के बड़ा जोखिम लेने हेतु तैयार रहेंगे।”

आरक्षण के नाम पर राजनीति पिछले कई वर्षों से आरक्षण के नाम पर राजनीति हो रही है, आए दिन कोई-न-कोई वर्ग अपने लिए आरक्षण की माँग कर बैठता है एवं इसके लिए आन्दोलन करने पर उतारू हो जाता है। इस तरह, देश में अस्थिरता एवं अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

आर्थिक एवं सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर निम्न तबके के लोगों के उत्थान के लिए उन्हें सेवा एवं शिक्षा में आरक्षण प्रदान करना उचित है, लेकिन जाति एवं धर्म के आधार पर तो आरक्षण को कतई भी उचित नहीं कहा जा सकता, क्योंकि एक ओर तो इससे समाज में विभेद उत्पन्न होता है, तो दूसरी ओर आरक्षण पाकर व्यक्ति कर्म क्षेत्र से भी विचलित होने लगता है।

कार्लाइल के अनुसार, “तुम किसी समुदाय को निष्क्रिय बनाना चाहते हो, तो उसे अतिरिक्त सुविधाएँ दे दो, सुविधाओं के व्यामोह में समुदाय कर्मपथ से विरत हो जाएगा।” ऊँची डाली को छूने के लिए हमें ऊपर उठना चाहिए न कि डाली को ही झुकाना चाहिए। उसी तरह, कमजोर को योग्य बनाकर उसे कार्य सौंपे न कि आरक्षण से कार्य को ही झुका दें |

उपसंहार वर्ष 2014 के प्रारम्भ में कांग्रेस पार्टी के महासचिव श्री जनार्दन द्विवेदी ने कहा था कि देश में आरक्षण जाति आधार पर नहीं, बल्कि आर्थिक आधार पर किया जाना चाहिए।

वास्तव में, द्विवेदी जी की कही बात पर गम्भीरतापूर्वक विचारने का समय आ गया है, क्योंकि आज प्रश्न गरीबी का है और गरीबी की कोई जाति या धर्म नहीं होता। आज समाज के हर वर्ग के उत्थान हेतु आरक्षण के अलावा अन्य विकल्प भी खोजा जाना चाहिए, ताकि समाज में सबके साथ न्याय हो सके और सभी वर्गों के लोग एक साथ उन्नति के पथ पर अग्रसर हो सकें।

3. छात्र जीवन में अनुशासन का महत्त्व (2014, 13, 12)
अन्य शीर्षक विद्यार्थी और अनुशासन (2011), छात्रों में अनुशासन की समस्या।।
संकेत बिन्दु अनुशासन का तात्पर्य, अनुशासनहीनता के दुष्परिणाम, घर- समाज से अनुशासन की शिक्षा, अनुशासन सफलता की कुंजी, उपसंहार।

अनुशासन का तात्पर्य अनुशासन शब्द का अर्थ है-‘शासन के पीछे चलना’ अर्थात् सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक सभी प्रकार के आदेशों और नियमों का पालन करना। ‘शासन’ शब्द में दण्ड की भावना छिपी हुई है, क्योंकि नियमों का निर्माण लोक कल्याण के लिए होता है। चाहे वे किसी भी प्रकार के नियम हों, उनका पालन करना उन सब व्यक्तियों के लिए अनिवार्य होता है। जिनके लिए वे बनाए गए हैं। पालन न करने पर दण्ड का विधान होता है, ताकि कोई भी मनमाने ढंग से नियम का उल्लंघन न कर सके।

अनुशासनहीनता के दुष्परिणाम बाल्यकाल में जिन बच्चों पर उनके माता-पिता लाड़ प्यार के कारण नियन्त्रण नहीं रख पाते, वे आगे चलकर गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं। अनुशासन के अभाव में कई प्रकार की बुराइयाँ समाज में अपनी जड़े जमा लेती हैं। नित्य-प्रति होने वाले छात्रों के विरोध-प्रदर्शन, परीक्षा में नकल, शिक्षकों से बदसलूकी अनुशासनहीनता के ही उदाहरण हैं, इसका कुपरिणाम उन्हें बाद में जीवन की असफलताओं के रूप में भुगतना पड़ता है, किन्तु जब तक वे समझते हैं, तब तक देर हो चुकी होती है। अत: विद्यार्थी जीवन में अनुशासित रहना नितान्त आवश्यक है। यदि परिवार के मुखिया का शासन सही नहीं है तो परिवार में अव्यवस्था व्याप्त रहेगी ही। यदि किसी स्थान का प्रशासन सही नहीं है, तो वहाँ अपराध का ग्राफ स्वाभाविक रूप से ऊपर रहेगा। यदि राजनेता कानून का पालन नहीं करेंगे तो जनता से इसके पालन की उम्मीद नहीं की जा सकती।

यदि खेल के मैदान में कैप्टन स्वयं अनुशासित नहीं रहेगा, तो टीम के अन्य सदस्यों से अनुशासन की आशा करना व्यर्थ है और यदि टीम अनुशासित नहीं है। तो उसकी पराजय से उसे कोई नहीं बचा सकता।

इसी तरह, यदि देश की सीमा पर तैनात सैनिकों का कैप्टन ही अनुशासित न हो तो उसकी सैन्य टुकड़ी कभी अनुशासित नहीं रह सकती। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के शब्दों में—”अनुशासन के बिना न तो परिवार चल सकता है और न संस्था या राष्ट्र ही।

घर-समाज से अनुशासन की शिक्षा एक बच्चे का जीवन उसके परिवार से प्रारम्भ होता है। यदि परिवार के सदस्य गलत आचरण करते हैं, तो बच्चा भी उनका अनुसरण करेगा। परिवार के बाद बच्चा अपने समाज एवं स्कूल से सीखता है। यदि उसके साथियों का आचरण खराब होगा, तो उससे उसके भी प्रभावित होने की पूरी सम्भावना बनी रहेगी। यदि शिक्षक का आचरण गलत है तो भला बच्चे कैसे सही हो सकते हैं? इसलिए वही व्यक्ति अपने जीवन में अनुशासित रह सकता है, जिसे बाल्यकाल में ही अनुशासन की शिक्षा दी गई हो।

अनुशासन सफलता की कुंजी किसी मनुष्य की व्यक्तिगत सफलता में भी उसके विद्यार्थी जीवन की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। जो विद्यार्थी अपना प्रत्येक कार्य नियम एवं अनुशासन का पालन करते हुए सम्पन्न करते हैं, वे अपने अन्य साथियों से न केवल श्रेष्ठ माने जाते हैं, बल्कि सभी के प्रिय भी बन जाते हैं। महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानन्द, सुभाषचन्द्र बोस, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, दयानन्द सरस्वती जैसे महापुरुषों का जीवन अनुशासन के कारण ही समाज के लिए उपयोगी और सबके लिए प्रेरणा स्रोत बन सका। अतः अनुशासन सफलता की कुंजी हैं।

उपसंहार रॉय स्मिथ ने ठीक ही कहा है-“अनुशासन वह निर्मल अग्नि है, जिसमें प्रतिभा क्षमता में रूपान्तरित हो जाती हैं। अतः हम सभी विद्यार्थियों को जीवन में अनुशासन को महत्त्व देते हुए अपने कर्तव्य पथ पर ईमानदारीपूर्वक चलने और अपने देश की सेवा करने का संकल्प लेना होगा, तभी हम सच्चे | अर्थों में अपनी मातृभूमि और भारतमाता का कर्ज चुका पाएँगे।

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UP Board Solutions for Class 12 Maths Chapter 6 Application of Derivatives

UP Board Solutions for Class 12 Maths Chapter 6 Application of Derivatives (अवकलज के अनुप्रयोग) are part of UP Board Solutions for Class 12 Maths. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Maths Chapter 6 Application of Derivatives (अवकलज के अनुप्रयोग)

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Maths
Chapter Chapter 6
Chapter Name Application of Derivatives
Exercise Ex 6.1, Ex 6.2, Ex 6.3, Ex 6.4, Ex 6.5
Number of Questions Solved 109
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Maths Chapter 6 Application of Derivatives

प्रश्नावली 6.1

प्रश्न 1.
वृत्त के क्षेत्रफल के परिवर्तन की दर इसकी त्रिज्या r के सापेक्ष ज्ञात कीजिए, जबकि
(a) r = 3 सेमी है
(b) r = 4 सेमी है।
हल-
(a) माना वृत्त का क्षेत्रफल A है, तब
UP Board Solutions for Class 12 Maths Chapter 6 Application of Derivatives image 1
अत: क्षेत्रफल के परिवर्तन की दर 6π सेमी²/सेकण्ड है।
(b) उपरोक्त की भाँति स्वयं हल कीजिए।[उत्तर : 8π सेमी²/से]

UP Board Solutions

प्रश्न 2.
एक घन का आयतन 9 सेमी3/से की दर से बढ़ रहा है। यदि इसकी कोर की लम्बाई 10 सेमी है तो इसके पृष्ठ का क्षेत्रफल किस दर से बढ़ रहा है?
हल-
माना घन की कोर = x सेमी, घन का आयतन = V तथा पृष्ठ क्षेत्रफल = S
तब V = x3 तथा S = 6x2. जहाँ x समय t को फलन है।
UP Board Solutions for Class 12 Maths Chapter 6 Application of Derivatives image 2
अतः पृष्ठ क्षेत्रफल 3.6 सेमी²/से की दर से बढ़ रहा है।

प्रश्न 3.
एक वृत्त की त्रिज्या समान रूप से 3 सेमी/से की दर से बढ़ रही है। ज्ञात कीजिए की वृत्त का क्षेत्रफल किस दर से बढ़ रहा है जब त्रिज्या 10 सेमी है?
हल-
मानी वृत्त की त्रिज्या r सेमी है, तब वृत्त का क्षेत्रफल A = πr² सेमी²
प्रश्नानुसार, [latex ]\frac { dr }{ dt }=3[/latex] सेमी/से …(i)
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अत: क्षेत्रफल के परिवर्तन की दर 60π सेमी²/सेकण्ड है।

प्रश्न 4.
एक परिवर्तनशील घन का किनारा 3 cm/s की दर से बढ़ रहा है घन का आयतन किस दर से बढ़ रहा है जबकि किनारा 10 cm लम्बा है?
हल-
माना घन का आयतन = V तथा भुजा = a है, तब V = a3
ज्ञात है
[latex ]\frac { da }{ dt }=3[/latex] सेमी/से, a = 10 सेमी
∴ समय के सापेक्ष आयतन के परिवर्तन की दर
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अतः जब घन का किनारा 10 cm लम्बा हो तब घन का आयतन 900 cm2/s की दर से बढ़ रहा है।

प्रश्न 5.
एक स्थिर झील में एक पत्थर डाला जाता है और तरंगें वृत्तों में 5 सेमी/से की गति से चलती है। जब वृत्ताकार तरंग की त्रिज्या 8 सेमी है तो उस क्षण घिरा हुआ क्षेत्रफल किस दर से बढ़
हल-
दिया है- [latex ]\frac { dr }{ dt }=5[/latex] सेमी/से, r = 8 सेमी
माना तरंगों से बने वृत्त का क्षेत्रफल A सेमी² है।
तब A = πr²
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अतः जब तरंग की त्रिज्या 8 सेमी हो तब तरंगों द्वारा घिरा हुआ क्षेत्रफल 80 π सेमी²/से की दर से बढ़ रहा है।

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प्रश्न 6.
एक वृत्त की त्रिज्या 0.7 सेमी/से की दर से बढ़ रही है। इसकी परिधि की वृद्धि की दर क्या है। जब r = 4.9 सेमी है?
हल-
माना वृत्त की त्रिज्या r सेमी है, तब परिधि C = 2πr
प्रश्नानुसार,
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अत: वृत्त की परिधि 1.4π सेमी/से की दर से बढ़ रही है।

प्रश्न 7.
एक आयत की लम्बाई x, 5 सेमी/मिनट की दर से घट रही है और चौड़ाई y, 4 सेमी/मिनट की दर से बढ़ रही है। जब x = 8 सेमी और y = 6 सेमी है। तब आयत के
(a) परिमाप
(b) क्षेत्रफल के परिवर्तन की दर ज्ञात कीजिए।
हल-
ज्ञात है- [latex ]\frac { dx }{ dt }=5[/latex] सेमी/मिनट
तथा [latex ]\frac { dy }{ dt }=4[/latex] सेमी/मिनट
माना आयत का क्षेत्रफल = A सेमी², परिमाप = p सेमी
लम्बाई = x सेमी, चौड़ाई = y सेमी
(a) परिमाप p = 2(x + y)
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अत: आयत का क्षेत्रफल 2 सेमी2/सेमी की दर से बढ़ रहा है।

प्रश्न 8.
एक गुब्बारा जो सदैव गोलाकर रहता है, एक पम्प द्वारा 900 सेमी3/सेकण्ड की दर से फुलाया जाता है। गुब्बारे की त्रिज्या के परिवर्तन की दर ज्ञात कीजिए जब त्रिज्या 15 सेमी है।
हल-
माना गुब्बारे की त्रिज्या = r तथा आयतन = V
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प्रश्न 9.
एक गुब्बारा जो सदैव गोलाकार रहता है कि त्रिज्या परिवर्तनशील है। त्रिज्या के सापेक्ष आयतन के परिवर्तन की दर ज्ञात कीजिए जब त्रिज्या 10 सेमी है।
हल-
माना गुब्बारे का आयतन = V तथा त्रिज्या = r
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अतः जब त्रिज्या 10 सेमी हो तब गुब्बारे का आयतन 400 π सेमी3/सेमी की दर से बढ़ता है।

प्रश्न 10.
एक 5 मी लम्बी सीढी दीवार के सहारे झुकी है। सीढ़ी का नीचे का सिरा जमीन के अनुदिश दीवार से दूर 2.0 मी/से की दर से खींचा जाता है। दीवार पर इसकी ऊँचाई किस दर से घट रही है जबकि सीढ़ी को नीचे का सिरा दीवार से 4 मी दूर है?
हल-
माना दीवार OC है तथा किसी क्षण सीढ़ी AB की स्थिति इस प्रकार है कि OA = x और OB = y
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अत: दीवार पर सीढ़ी की ऊँचाई 8/3 मी/से की दर से घट रही है।

प्रश्न 11.
एक कण वक्र 6y = x3 + 2 के अनुगत गति कर रहा है। वक्र पर उन बिन्दुओं को ज्ञात कीजिए जबकि x निर्देशांक की तुलना में y निर्देशांक 8 गुना तीव्रता से बदल रहा है।
हल-
दिया है-
6y = x3 + 2 और [latex ]\frac { dy }{ dt } =8\frac { dx }{ dt } [/latex]
t के सापेक्ष अवकलन करने पर,
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प्रश्न 12.
हवा के बुलबुले की त्रिज्या, [latex ]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] सेमी/सेकण्ड की दर से बढ़ रही है। बुलबुले का आयतन किस दर से बढ़ रहा है जबकि त्रिज्या 1 सेमी है?
हल-
माना बुलबुले की त्रिज्या = r तथा बुलबुले का आयत
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अत: बुलबुले का आयतन 2π सेमी3/से की दर से बढ़ रहा है।

प्रश्न 13.
एक गुब्बारा जो सदैव गोलाकार रहता है, का परिवर्तनशील व्यास [latex ]\frac { 3 }{ 2 }(2x+1)[/latex] है। x के सापेक्ष आयतन के परिवर्तन की दर ज्ञात कीजिए।
हल-
प्रश्नानुसार गोलाकार गुब्बारे का व्यास = [latex ]\frac { 3 }{ 2 }(2x+1)[/latex]
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प्रश्न 14.
एक पाइप से रेत 12 सेमी3/से की दर से गिर रही है। गिरती रेत जमीन पर एक ऐसा शंकु बनाती है जिसकी ऊँचाई सदैव आधार की त्रिज्या का छठा भाग है।रेत से बने शंकु की ऊँचाई किस दर से बढ़ रही है जबकि ऊँचाई 4 सेमी है?
हल-
माना किसी क्षण t है पर शंकु की त्रिज्या r, ऊँचाई h तथा आयतन V है।
[latex ]h=\frac { r }{ 6 }(2x+1)[/latex]
⇒ r = 6h
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प्रश्न 15.
एक वस्तु की x इकाइयों के उत्पादन की कुल लागत C (x) Rs में
C(x) = 0.007x3 – 0.003x2 + 15x + 4000
से प्राप्त होती है। सीमान्त लागत ज्ञात कीजिए जबकि 17 इकाइयों का उत्पादन किया जाता है।
हल-
प्रश्नानुसार, C(x) = 0.007x3 – 0.003x2 + 15x + 4000
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= 6.069 – 0.102 + 15
= 20.967
अतः 17 इकाइयों के उत्पादन की सीमान्त लागत Rs 20.967 है।

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प्रश्न 16.
किसी उत्पाद की x इकाइयों के विक्रय से प्राप्त कुल आय R(x) Rs में R(x) = 13x2 + 26x + 15 से प्राप्त होती है। सीमान्त आय ज्ञात कीजिए जब x = 7 है।
हल-
प्रश्नानुसार, R(x) = 13x2 + 26x + 15
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(MR)x=7 = 26 x 7 + 26
= 182 + 26
= 208
अत: अभीष्ट सीमान्त आय Rs 208 है।

प्रश्न 17.
एक वृत्त की त्रिज्या r = 6 सेमी पर r के सापेक्ष क्षेत्रफल में परिवर्तन की दर है :
(a) 10 π
(b) 12 π
(c) 8 π
(d) 11 π
हल-
मानी वृत्त का क्षेत्रफल = A तथा त्रिज्या = r
क्षेत्रफल A = πr²
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अत: विकल्प (b) सही है।

प्रश्न 18.
एक उत्पाद की x इकाइयों के विक्रय से प्राप्त कुल आय रुपयों में R(x) = 3x² + 36x + 5 से प्रदत्त है। जब x = 15 है तो सीमान्ते आये है :
(a) 116
(b) 96
(c) 90
(d) 126
हल-
दिया है- R(x) = 3x² + 36x +5
सीमान्त ।
सीमान्त आय =
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अब, x = 15, सीमान्त आय = 6 × 21 = Rs 126
अत: विकल्प (d) सत्य है।

प्रश्नावली 6.2

प्रश्न 1.
दिखाइए कि दिया गया फलन f, f(x) = x3 – 3x² + 4x, x ∈ R, R पर निरन्तर वृद्धिमान फलन है।
हल-
दिया गया फलन
f(x) = x3 – 3x² + 4x
f ‘(x) = 3x² – 6x +4
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= 3(x – 1)² + 1 > 0, ∀ x∈R
∵ f ‘(x) > 0, ∀ x∈R
∴ f(x), R पर निरन्तर वृद्धिमान फलन है।

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प्रश्न 2.
सिद्ध कीजिए कि R पर f(x) = 3x + 17 निरन्तर वृद्धिमान फलन है।
हल-
दिया गया फलन f(x) = 3x + 17
f ‘(x) = 3 > 0, ∀ x∈R
f ‘(x) > 0, ∀ x∈R
∴ f(x), R पर निरन्तर वृद्धिमान फलन है।

प्रश्न 3.
सिद्ध कीजिए कि f(x) = sin x द्वारा दिया गया फलन
(a) (0, π/2) में निरन्तर वृद्धिमान है।
(b) (π/2, π) में निरन्तर ह्रासमान है।
(c) (0, π) में न तो वृद्धिमान है और न ह्रासमान।
हल-
(a) f(x) = sin x
⇒ f ‘(x) = cos x
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अन्तराल (0, π/2) में निरन्तर वृद्धिमान तथा अन्तराल (π/2, π) में निरन्तर ह्रासमान है।
∴ फलन अन्तराल (0, π) में न तो वृद्धिमान है और न ह्रासमान,

प्रश्न 4.
अन्तराल ज्ञात कीजिए जिनमें f(x) = 2x² – 3x द्वारा दिया गया फलन
(a) निरन्तर वृद्धिमान है,
(b) निरन्तर ह्रासमान है।
हल-
(a) दिया गया फलन f(x) = 2x² – 3x
f ‘(x) = 4x – 3 > 0, ∀ x > [latex ]\frac { 3 }{ 4 }[/latex]
∴ f(x), अन्तराल (3/4, ∞) पर निरन्तर वृद्धिमान है।

(b) पुनः f ‘(3) = 4x – 3< 0, ∀ x < [latex ]\frac { 3 }{ 4 }[/latex]
∴ f(x), अन्तराल (-∞,3/4) पर निरन्तर ह्रासमान है।

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प्रश्न 5.
अन्तराल ज्ञात कीजिए जिनमें f(x) = 2x3 – 3x2 – 36x + 7 से दिया फलन f (a) निरन्तर वृद्धिमान है, (b) निरन्तर ह्रासमान है।
हल-
(a) दिया गया फलन f(x) = 2x3 – 3x2 – 36x +7
f ‘(x) = 6x2 – 6x – 36 = 6(x2 – x – 6).
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प्रश्न 6.
अन्तराल ज्ञात कीजिए जिनमें निम्नलिखित फलन निरन्तर वर्धमान अथवा हासमान है
(a) f(x) = x² + 2x + 5
(b) f (x) = 10 – 6x – 2x²
(c) f (x) = – 2x3 – 9x2 – 12x + 1
(d) f(x) = 6 – 9x – x²
(e) f(x) = (x + 1)3 (x – 3)3
हल-
(a) ज्ञात है- f (x) = x2 + 2x + 5
f ‘ (x) = 2x + 2 = 2 (x + 1)
f ‘ (x) = 0 ⇒ 2 (x + 1) ⇒ x = – 1
x = – 1 संख्या रेखा को दो भागों में बांटता है। यह भाग अन्तराल (-∞ , -1) तथा (-1, ∞ ) है।
(- ∞ , – 1) में f ‘ (x) = – ऋणात्मक
अत: अन्तराल (-∞ , -1) में फलन f निरन्तर ह्रासमान है।
(-1, ∞ ) में f ‘ (x) = + धनात्मक
अतः अन्तराल (-1, ∞ ) फलन f निरन्तर वर्धमान है।
(b) ज्ञात है. f (x) = 10 – 6x – 2x²
f ‘ (x) = – 6 – 4x = – 2 (3 + 2x)
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प्रश्न 7.
सिद्ध कीजिए कि
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अपने सम्पूर्ण प्रान्त में एक वृद्धिमान फलन है।
हल-
दिया गया फलन
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प्रश्न 8.
x के उन मानों को ज्ञात कीजिए जिनके लिए y = [x(x – 2)]² एक वर्धमान फलन है।
हल-
ज्ञात है- y = [x (x – 2)]² = x² (x + 4 – 4x)
= x4 – 4x3 + 4x2
x के सापेक्ष अवकलन करने पर,
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∴ x = 0, x = 1, x = 2 से वास्तविक संख्या रेखा के चार भाग अन्तराल (-∞, 0), (0, 1), (1, 2), (2, 2) बनते हैं।
अन्तराल (- ∞, 0) में f ‘ (x) = (-) (-) (-) = – ve (ऋणात्मक)
अतः फलन f निरन्तर ह्रासमान है।
अन्तराल (0, 1) में f ‘ (x) = (+) (-) (-) = + ve (धनात्मक)
अतः फलन f निरन्तर वर्धमान है।
अन्तराल (1, 2) में f ‘ (x) = (+) (+) (-) = – ve (ऋणात्मक)
अतः फलन f निरन्तर ह्रासमान है।
अन्तराल (2, ∞) में f ‘ (x) = (+) (+) (+) = +ve (धनात्मक)
अतः फलन f निरन्तर वर्धमान है।
इस प्रकार (0, 1) ∪ (2, ∞) में फलन f वर्धमान है तथा (-∞, 0) ∪ (1, 2) में फलन ह्रासमान है।

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प्रश्न 9.
सिद्ध कीजिए कि [0, π/2] में
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θ का एक वृद्धिमान फलन है।
हल-
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प्रश्न 10.
सिद्ध कीजिए कि लघुगणकीय फलन (0,∞) में निरन्तर वर्धमान फलन है।
हल-
ज्ञात है– f (x) = log x, x > 0
f ‘(x) = [latex ]\frac { 1 }{ x }[/latex] = धनात्मक, x > 0 के लिए
अतः लघुगणकीय फलन अन्तराल (0, ∞) के लिए निरन्तर वर्धमान है। इति सिद्धम्

प्रश्न 11.
सिद्ध कीजिए कि (-1,1) में f (x) = x² – x + 1 से प्रदत्त फलन न तो वर्धमान है। और न ही ह्रासमान है।
हल-
दिया है | f (x) = x² – x + 1
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इस प्रकार (-1, 1) में f ‘(x) का चिह्न एक नहीं है।
अतः इस अन्तराल में यह फलन न तो वर्धमान है और न ही ह्रासमान है। इति सिद्धम्

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में कौन से फलन (0,[latex]\frac { \pi }{ 2 } [/latex]) में निरन्तर ह्रासमान है?
(A) cos x
(B) cos 2x
(C) cos 3x
(D) tan x
हल-
(A) माना f (x) = cos x, ∴ f ‘ (x) = – sin x
अन्तराल (0, π/ 2) में, sin x = + धनात्मक ⇒f ‘ (x) = – ऋणात्मक
अतः फलन f निरन्तर ह्रासमान है।
(B) माना f (x) = cos 2x
∴ f ‘(x) = – 2 sin 2x
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प्रश्न 13.
निम्नलिखित अन्तरालों में से किस अन्तराल में f (x) = x100 + sin x – 1 द्वारा प्रदत्त फलन f निरन्तर ह्रासमान है ?
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हल-
UP Board Solutions for Class 12 Maths Chapter 6 Application of Derivatives image 40

प्रश्न 14.
a का वह न्यूनतम मान ज्ञात कीजिए जिसके लिए अन्तराल [1, 2] में f(x) = x² + ax + 1 से दिया गया फलन निरन्तर वृद्धिमान है।
हल-
दिया गया फलन
f(x) = x² + ax + 1
f ‘(x) = 2x + a
अन्तराल [1, 2] में f ‘(x) का न्यूनतम मान f ‘(1) = 2 + a होगा
∵ f(x) अन्तराल [1, 2] में निरन्तर वृद्धिमान है ∴ f ‘(x) ≥ 0
∴ 2 + a ≥ 0
⇒ a≥ -2
अत: a का न्यूनतम मान -2 है।

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प्रश्न 15
माना[-1, 1] से असंयुक्त एक अन्तराल I हो तो सिद्ध कीजिए कि I में f(x) = [latex]x+\frac { 1 }{ x }[/latex] से दिया गया फलन f निरन्तर वृद्धिमान है।
हल-
दिया गया फलन f(x) = [latex]x+\frac { 1 }{ x }[/latex]
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∴ (x – 1)(x + 1) > 0
∴ f ‘(x) > 0
⇒ f(x) निरन्तर वृद्धिमान है जब x∈ (1, ∞)
अतः f(x), I पर निरन्तर वृद्धिमान है।

प्रश्न 16.
सिद्ध कीजिए कि फलन f(x) = log sin x,(0,[latex]\frac { \pi }{ 2 } [/latex]) में निरन्तर वर्धमान और ([latex]\frac { \pi }{ 2 } [/latex],π) में निरन्तर ह्रासमान है।
हल-
दिया है- f(x) = log sin x
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प्रश्न 17.
सिद्ध कीजिए कि फलन f(x) = log | cos x|; (0, π/2) निरन्तर ह्रासमान और (π/2, π) में निरन्तर वृद्धिमान है।
हल-
दिया गया फलन f(x) = log cos x
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प्रश्न 18.
सिद्ध कीजिए कि R में दिया गया फलन f(x) = x3 – 3x2 + 3x – 100 वर्धमान है।
हल-
ज्ञात है- f (x) = x3 – 3x2 + 3x – 100
∴f ‘(x) = 3x2 – 6x + 3 = 3 (x2 – 2x + 1) = 3(x – 1)2
∀x∈ R, f ’(x) = धनात्मक
अतः फलन f वर्धमान है। इति सिद्धम्

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प्रश्न 19.
निम्नलिखित में से किस अन्तराल में y = x2e-x वर्धमान है?
(a) (-∞, ∞)
(b) (-2, 0)
(c) (2, ∞)
(d) (0, 2)
हल-
दिया है- f (x) = x2e-x
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प्रश्नावली 6.3

प्रश्न 1.
वक्र y = 3x4 – 4x के x = 4पर स्पर्श रेखा की प्रवणता ज्ञात कीजिए।
हल-
दिया है, वक्र का समीकरण y = 3x4 -4x
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= 4[3 x 64 – 1]
= 4[192 – 1]
= 4 x 191
= 764
∴स्पर्श रेखा की प्रवणता = 764

प्रश्न 2.
वक्र [latex ]y=\frac { x-1 }{ x-2 }[/latex],x ≠ 2 के x = 10 पर स्पर्श रेखा की प्रवणता ज्ञात कीजिए।
हल-
दिया है, वक्र का समीकरण [latex ]y=\frac { x-1 }{ x-2 }[/latex],x ≠ 2
दोनों पक्षों का x के सापेक्ष अवकलन करने पर
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प्रश्न 3.
वक्र y = x3 – x + 1 की स्पर्श रेखा की प्रवणता उस बिन्दु पर ज्ञात कीजिए जिसका x-निर्देशांक 2 है।
हल-
दिया है, वक्र का समीकरण y = x3 – x + 1
UP Board Solutions for Class 12 Maths Chapter 6 Application of Derivatives image 48

प्रश्न 4.
वक्र y = x3 – 3x + 2 की स्पर्श रेखा की प्रवणता उस बिन्दु पर ज्ञात कीजिए जिसका x – निर्देशांक 3 है।
हल-
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प्रश्न 5.
वक्र x = a cos3θ, y= a sin3θ के θ = [latex]\frac { \pi }{ 4 } [/latex] पर अभिलम्ब की प्रवणता ज्ञात कीजिए।
हल-
दिया है, वक्र को समीकरण x = a cos3θ तथा y = a sin3θ
दोनों पक्षों का θ के सापेक्ष अवकलन करने पर,
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प्रश्न 6.
वक्र x = 1 – a sin θ, y = b cos² θ के θ = [latex]\frac { \pi }{ 2 } [/latex] पर अभिलम्ब की प्रवणता ज्ञात कीजिए।
हल-
दिया है, वक्र का समीकरण x = 1 – a sin θ तथा y = b cos² θ
दोनों पक्षों का θ के सापेक्ष अवकलन करने पर,
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प्रश्न 7.
वक्र y = x3 – 3x– 9x + 7 पर उन बिन्दुओं को ज्ञात कीजिए जिन पर स्पर्श रेखायें x-अक्ष के समान्तर हैं।
हल-
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प्रश्न 8.
वक्र y = (x – 2)² पर एक बिन्दु ज्ञात कीजिए जिस पर स्पर्श रेखा बिन्दुओं (2,0) और (4,4) को मिलाने वाली रेखा के समान्तर है।
हल-
दिया है, वक्र का समीकरण y = (x – 2)²
दोनों पक्षों का x के सापेक्ष अवकलन करने पर,
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प्रश्न 9.
वक्र y = x3 – 11x + 5 पर उस बिन्दु को ज्ञात कीजिए जिस पर स्पर्श रेखा y = x – 11 है।
हल-
दिया है, वक्र का समीकरण y = x3 – 11x + 5
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प्रश्न 10.
प्रवणता -1 वाली सभी रेखाओं का समीकरण ज्ञात कीजिए जो वक़ [latex ]y=\frac { 1 }{ x-1 }[/latex],x ≠ -1 को स्पर्श करती है।
हल-
दिया है, वक्र का समीकरण [latex ]y=\frac { 1 }{ x-1 }[/latex]
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प्रश्न 11.
प्रवणता 2 वाली सभी रेखाओं का समीकरण ज्ञात कीजिए जो वक्र [latex ]y=\frac { 1 }{ x-3 }[/latex],x ≠ 3 को स्पर्श करती है।
हल-
दिया है, वक्र का समीकरण [latex ]y=\frac { 1 }{ x-3 }[/latex]
दोनों पक्षों का x के सापेक्ष अवकलन करने पर,
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प्रश्न 12.
प्रवणता 0 वाली सभी रेखाओं का समीकरण ज्ञात कीजिए जो वक्र
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को स्पर्श करती है।
हल-
दिया है, वक्र का समीकरण
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दोनों पक्षों को x के सापेक्ष अवकलन करने पर,
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प्रश्न 13.
वक्र
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पर उन बिन्दुओं को ज्ञात कीजिए जिन पर स्पर्श रेखाएँ
(i) x-अक्ष के समान्तर हैं,
(ii) y-अक्ष के समान्तर हैं।
हल-
दिया है, वक्र का समीकरण
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दोनों पक्षों का x के सापेक्ष अवकलन करने पर,
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प्रश्न 14.
दिए वक्रों पर निर्दिष्ट बिन्दुओं पर स्पर्श रेखा और अभिलम्ब के समीकरण ज्ञात कीजिए
(i) y = x4 – 6x3 + 13x2 – 10x + 5 के (0, 5) पर
(ii) y = x4 – 6x3 + 13x2 – 10x + 5 के (1, 3) पर
(iii) y = x3 के (1, 1) पर .
(iv) y = x² के (0, 0) पर
(v) x = cost, y = sin t के [latex]t=\frac { \pi }{ 4 } [/latex] पर
हल-
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प्रश्न 15.
वक्र y = x² – 2x + 7 की स्पर्श रेखा का समीकरण ज्ञात कीजिए, जो
(a) रेखा 2x – y + 9 = 0 के समान्तर है।
(b) रेखा 5y – 15x = 13 पर लम्ब है।
हल-
दिया है, वक्र का समीकरण y = x² – 2x + 7
दोनों पक्षों का x के सापेक्ष अवकलन करने पर,
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प्रश्न 16.
सिद्ध कीजिए कि वक्र y = 7x3 + 11 के उन बिन्दुओं पर स्पर्श रेखाएँ समान्तर हैं जहाँ x = 2 तथा x = – 2 है।
हल-
दिया है, वक्र का समीकरण y = 7x3 + 11
दोनों पक्षों का x के सापेक्ष अवकलन करने पर, [latex ]\frac { dy }{ dx }[/latex] = 21 x²
जब x = 2, तब स्पर्श रेखा की प्रवणता = 21 x 2² = 21 x 4 = 84
जब x = -2, तब स्पर्श रेखा की प्रवणता = 21 x (-2)² = 84
x = 2 तथा x = -2 पर स्पर्श रेखा की प्रवणता समान हैं।
अतः इन बिन्दुओं पर स्पर्श रेखाएँ समान्तर हैं। इति सिद्धम्

प्रश्न 17.
वक्र y = x3 पर उन बिन्दुओं को ज्ञात कीजिए जिन पर स्पर्श रेखा की प्रवणता बिन्दु के y-निर्देशांक के बराबर है।
हल-
दिया है, वक्र की समीकरण y = x3
दोनों पक्षों का x के सापेक्ष अवकलन करने पर, [latex ]\frac { dy }{ dx }[/latex] = 3x²
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प्रश्न 18.
वक्र y = 4x3 – 2x5, पर उन बिन्दुओं को ज्ञात कीजिए जिन पर स्पर्श रेखाएँ मूलबिन्दु से होकर जाती हैं।
हल-
दिया है, वक्र का समीकरण y = 4x3 – 2x5
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प्रश्न 19.
वक्र x² + y2 – 2x – 3 = 0 के उन बिन्दुओं पर स्पर्श रेखाओं के समीकरण ज्ञात कीजिए जहाँ पर वे x-अक्ष के समान्तर हैं।
हल-
दिया है, वक्र का समीकरण x² + y² – 2x – 3 = 0
दोनों पक्षों का x के सापेक्ष अवकलन करने पर,
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प्रश्न 20
वक्र ay2 = x3 के बिन्दु (am2, um3)पर अभिलम्ब का समीकरण ज्ञात कीजिए और m का मान बताइए जिसके लिए अभिलम्ब बिन्दु (a, 0) से होकर जाता है।
हल-
वक्र ay2 = x3 ….(1)
समीकरण (1) का x के सापेक्ष अवकलन करने पर,
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प्रश्न 21
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हल-
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प्रश्न 22.
परवलय y² = 4ax के बिन्दु (at², 2at) पर स्पर्श रेखा और अभिलम्ब के समीकरण ज्ञात कीजिए।
हल-
दिया है, वक्र का समीकरण y² = 4ax
दोनों पक्षों का x के सापेक्ष अवकलन करने पर,
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प्रश्न 23
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हल-
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प्रश्न 24.
अतिपरवलय [latex ]\frac { { x }^{ 2 } }{ { a }^{ 2 } } -\frac { { y }^{ 2 } }{ { b }^{ 2 } } =1[/latex] के बिन्दु (x0, y0) पर स्पर्श रेखा तथा अभिलम्ब के समीकरण ज्ञात कीजिए।
हल-
दिया है, वक्र का समीकरण [latex ]\frac { { x }^{ 2 } }{ { a }^{ 2 } } -\frac { { y }^{ 2 } }{ { b }^{ 2 } } =1[/latex]
दोनों पक्षों का x के सापेक्ष अवकलन करने पर,
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प्रश्न 25.
वक्र [latex ]y=\sqrt { 3x-2 } [/latex] की उन स्पर्श रेखाओं के समीकरण ज्ञात कीजिए जो रेखा 4x – 2y + 5 = 0 के समान्तर है।
हल-
दिया है, वक्र का समीकरण [latex ]y=\sqrt { 3x-2 } [/latex] …(1)
दोनों पक्षों का x के सापेक्ष अवकलन करने पर,
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प्रश्न 26.
वक्र y = 2x2 + 3sin x के x = 0 पर अभिलम्ब की प्रवणता है
(A) 3
(B) [latex ]\frac { 1 }{ 3 }[/latex]
(C) 3
(D) [latex ]-\frac { 1 }{ 3 }[/latex]
हल-
दिया है, वक्र का समीकरण y = 2x² + 3 sin x
दोनों पक्षों का x के सापेक्ष अवकलन करने पर, [latex ]\frac { dy }{ dx }=4x+3cosx[/latex]
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अतः विकल्प (D) सही है।

प्रश्न 27.
किस बिन्दु पर y = x + 1, वक्र y² = 4x की स्पर्श रेखा है?
(A) (1,2)
(B) (2,1)
(C) (1,- 2)
(D) (-1, 2)
हल-
दिया है, वक्र का समीकरण y² = 4x …(1)
दोनों पक्षों का x के सापेक्ष अवकलन करने पर,
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प्रश्नावली 6.4

प्रश्न 1.
अवकल का प्रयोग करके निम्नलिखित में से प्रत्येक का सन्निकट मान दशमलव के तीन स्थानों तक ज्ञात कीजिए
(i) [latex ]\sqrt { 25.3 } [/latex]
(ii) [latex ]\sqrt { 49.5 } [/latex]
(iii) [latex ]\sqrt { 0.6 } [/latex]
(iv) (0.009)1/3
(v) (0.999)1/10
(vi) (15)1/4
(vii) (26)1/3
(viii) (255)1/4
(ix) (82)1/4
(x) (401)1/2
(xi) (0.0037)1/2
(xii) (26.57)1/3
(xiii) (81.5)1/4
(xiv) (3,968)3/2
(xv) (32.15)1/5
हल-
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प्रश्न 2.
f(2.01) का सन्निकट मान ज्ञात कीजिए जबकि f(x) = 4x² + 5x + 2
हल-
माना x = 2 और x + ∆x = 2.01 तब ∆x = 0.01 = dx (∵∆Y = dx)
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प्रश्न 3.
f(5.001) का सन्निकट मान ज्ञात कीजिए जहाँ f(x) = x3 – 7 x² + 15
हल-
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प्रश्न 4.
x मी भुजा वाले घन की भुजा में 1% की वृद्धि होने के कारण घन के आयतन में होने वाला सन्निकट परिवर्तन ज्ञात कीजिए।
हल-
माना घन का आयतन V = x3
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घन के आयतन में सन्निकट परिवर्तन 0.03 x3 मी है।

प्रश्न 5.
x मी भुजा वाले घन की भुजा में 1% ह्रास होने के कारण घन के पृष्ठ क्षेत्रफल में होने वाला सन्निकट परिवर्तन ज्ञात कीजिए।
हल-
घन का पृष्ठ क्षेत्रफल S = 6x2
[latex ]\frac { dS }{ dx }=12x[/latex]
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घन के आयतन में सन्निकट परिवर्तन -0.12 x2 मी2 है।

प्रश्न 6.
एक गोले की त्रिज्या 7 मी मापी जाती है जिसमें 0.02 मी की त्रुटि है। इसके आयतन के परिकलन में सन्निकट त्रुटि ज्ञात कीजिए।
हल-
ज्ञात है- गोले की त्रिज्या = 7 मी ।
∆r = त्रिज्या में अशुद्धि = 0.02 मी
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प्रश्न 7.
एक गोले की त्रिज्या 9 मी मापी जाती है जिसमें 0.03 मी की त्रुटि है। इसके पृष्ठ क्षेत्रफल के परिकलन में सन्निकट त्रुटि ज्ञात कीजिए।
हल-
ज्ञात है- r = गोले की त्रिज्या = 9 मी
∆r = त्रिज्या में अशुद्धि = 0.03
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प्रश्न 8.
यदि f (x) = 3x² + 15x + 5 हो तो f (3.02) का सन्निकट मान है–
(A) 47.66
(B) 57.66
(C) 67.66
(D) 77.66
हल-
f (3.02) = f (3) + df (3) [3.02 = 3 + 0.02]
यदि f (x) = 3x² + 15x + 5 …(1)
f ‘(x) = 6x + 15
समी० (1) में x = 3 रखने पर,
f (3) = 3 x 9 + 15 x 3 + 5 = 27 + 45 + 5 = 77
df (x) = f ‘(x) x ∆x = (6x + 15) x ∆x
= (6 x 3 + 15) x 0.02 [∴ x = 3, ∆ x = 0.02]
= (18 + 15) x 0.02
= 33 x 0.02 = 0.66
∴ f (3.02) = f (3) + df (3) = 77 + 0.66 = 77.66
अत: विकल्प (D) सही है।

प्रश्न 9.
भुजा में 3% वृद्धि के कारण भुजा x के घन के आयतन में सन्निकट परिवर्तन है
(A) 0.06 x3 मी3
(B) 0.6 x3 मी3
(C) 0.09 xमी3
(D) 0.9 xमी3
हल-
चूँकि घन का आयतन V = x3 (∵ भुजा = x मी)
भुजा में वृद्धि, ∆x = 3% = x का
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अत: विकल्प (C) सही है।

प्रश्नावली 6.5

प्रश्न 1.
निम्नलिखित दिए गए फलनों के उच्चतम या निम्नतम मान, यदि कोई हो तो ज्ञात कीजिए
(i) f (x) = (2x – 1)² + 3
(ii) f (x) = 9x² + 12x + 2
(iii) f (x) = -(x – 1)² + 10
(iv) g(x) = x3 + 1
हल-
(i) दिया गया फलन f(x) = (2x – 1)² + 3
(2x – 1)² का कम-से-कम मान = 0,
⇒ f(x) ≥ 3; ∀ x∈R
∴ f (x) का निम्नतम मान = 3
(ii) दिया गया फलन f (x) = 9x² + 12x + 2 = 9x² + 12x + 4 – 2
= (3x + 2)² – 2
(3x + 2)² का निम्नतम मान = 0,
⇒ f (x) ≥ -2; ∀ x∈R
∴ f (x) का निम्नतम मान = -2
(iii) दिया गया फलन f (x) = – (x – 1)² + 10
– (x – 1)² का उच्चतम मान = 0
⇒f (x) ≤ 10; ∀ x∈R
∴f का उच्चतम मान = 10
(iv) यहाँ g(x) = x3 + 1.
g ‘(x) = 3x² जो x ∈ R के लिए धनात्मक है।
g ‘(x) = 3x² ≥ 0; ∀ x∈R
अत: g एक वर्धमान फलन है।
∴ इसका कोई न्यूनतम तथा अधिकतम मान नहीं है।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित दिए गए फलनों के उच्चतम मान या निम्नतम मान, यदि कोई हो तो ज्ञात कीजिए
(i) f(x) = |x + 2| – 1
(ii) g(x) = -|x + 1| + 3
(iii) h(x) = sin (2x) + 5
(iv) f(x) =|sin 4x + 3|
(v) h(x) = x + 1, x∈(-1,1)
हल-
(i) दिया गया फलन f(x) =|x + 2| – 1, f (x)≥ -1; ∀ x∈R
|x + 2| को निम्नतम मान 0 है।
∴ f का निम्नतम मान = -1
|x + 2| कर उच्चतम मान अनन्त हो सकता है।
अत: उच्चतम मान का अस्तित्व नहीं है।
(ii) दिया गया फलन g(x) = -|x + 1| + 3; g (3) ≤ 3∀ x∈R
-|x +1| का उच्चतम मान = 0
g(x) = -|x + 1| + 3 का उच्चतम मान = 0 + 3 = 3
तथा निम्नतम मान का अस्तित्व नहीं है।
(iii) दिया गया फलन h(x) = sin (2x) + 5
हम जानते हैं कि -1 ≤ sin 2x ≤ 1
⇒ 4 ≤ 5 + sin 2x ≤ 6
sin 2x का उच्चतम मान = 1
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प्रश्न 3
निम्नलिखित फलनों के स्थानीय उच्चतम या निम्नतम, यदि कोई हो तो ज्ञात कीजिए तथा स्थानीय उच्चतम या स्थानीय निम्नतम माने, जैसी स्थिति हो, भी ज्ञात कीजिए।
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हल-
(i) दिया गया फलन f(x) = x²
⇒ f ‘(x) = 2x
यदि f ‘(x) = 0 तब 2x = 0 या x = 0
f ‘(x) जैसे ही x = 0 से होकर आगे बढ़ता है तब इसका चिह्न ऋणात्मक से धनात्मक में बदल जाता है।
∴x = 0 पर f स्थानीय मान निम्नतम है।
स्थानीय निम्नतम मान = f (0) = 0
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प्रश्न 4
सिद्ध कीजिए कि निम्नलिखित फलनों को उच्चतम या निम्नतम मान नहीं है–
(i) f (x) = ex
(ii) g(x) = log x
(iii) h(x) = x3 + x2 + x + 1
हल-
(i) दिया गया फलन f ‘(x) = ex
∴f ‘(x) = ex
f ‘(x), x∈R कभी भी शून्य के समान नहीं है।
अत: f का कोई उच्चतम या निम्नतम मान नहीं है। इति सिद्धम्
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प्रश्न 5
प्रदत्त अन्तरालों में निम्नलिखित फलनों के निरपेक्ष उच्चतम मान और निरपेक्ष निम्नतम मान ज्ञात कीजिए
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हल-
(i) दिया गया फलन f(x) = x3, अन्तराल [-2, 2]
f ‘(x) = 3x2
यदि f ‘(x) = 0, तब 3x² = 0
⇒ x = 0
x = -2 पर, f(-2) = (-2)3 = – 8
x = 0 पर, f(0) = (0)3 = 0
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प्रश्न 6
यदि लाभ फलन p(x) = 41 – 72x – 18x² से प्रदत्त है तो किसी कम्पनी द्वारा अर्जित उच्चतम लाभ ज्ञात कीजिए।
हल-
दिया गया फलन लाभ p(x) = 41 -72x – 18x² …(1)
p’ (x) = – 72 – 36x = – 36 (2 + x)
p ” (x) = – 36
यदि p ‘(x) = 0, तब – 36 (2 + x) = 0 ⇒ 2 + x = 0 ∴ x = -2
p ‘(x) = – ve
अतः x = -2 पर p(x) उच्चतम है।
∴उच्चतम लाभ = p(-2)
[समी० (1) में x  = -2 रखने पर]
= 41 – 72 (-2)2 – 18 (-2)²
= 41 + 144 – 72
= 43 इकाई

प्रश्न 7
अन्तराल [0, 3] पर 3x4 – 8x3 + 12x2 – 48x + 25 के उच्चतम मान और निम्नतम मान ज्ञात कीजिए।
हल-
माना f (x) = 3x4 – 8x3 + 12x2 – 48x + 25
f ‘(x) = 12x3 – 24x2 + 24x – 48
= 12 [x3 – 2x2 + 2x – 4] = 12 [x² (x – 2) + 2 (x – 2)]
= 12 (x – 2) (x2 + 2)
यदि f ‘(x) = 0, तब x – 2 = 0 ⇒ x = 2
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प्रश्न 8
अन्तराल [0, 2π] के किन बिन्दुओं पर फलन sin 2 x अपना उच्चतम मान प्राप्त करता है।
हल-
माना f (x) = sin 2x, अन्तराल [0, 2π]
f ‘(x) = 2 cos 2x
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प्रश्न 9.
फलन sin x + cos x का उच्चतम मान क्या है?
हल-
माना f (x) = sin x + cos x, अन्तराल [0, 2π]
f ‘(x) = cos x – sin x
उच्चतम व निम्नतम मान के लिए,
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प्रश्न 10.
अन्तराल [1,3] में 2x3 – 24x + 107 का महत्तम मान ज्ञात कीजिए। इसी फलन का अन्तराला [-3,-1] में भी महत्तम मान ज्ञात कीजिए।
हल-
माना
f (x) = 2x3 – 24x + 107, अन्तराल [1, 3]
f ‘(x) = 6x² – 24
उच्चतम व निम्नतम मान के लिए, f ‘(x) = 0
⇒ 6x2 – 24 = 0 ⇒ 6x2 = 24 ⇒ x2 = 4 ⇒ x = ±2
अन्तराल [1, 3] के लिए f(x) = 2x3 – 24x + 107 में x के मान रखने पर,
x = 1 पर, f(1) = 2(1)3 – 24 (1) + 107 = 2 – 24 + 107 = 85
x = 3 पर, f (3) = 2(3)3 – 24 (3) + 107 = 54 – 72 + 107 = 89
x = 2 परे, f(2) = 2(2)3 – 24(2) + 107 = 16 – 48 + 107 = 75
इस प्रकार अधिकतम मान f (x) = 89,
x = 3 पर, अन्तराल [-3,-1] के लिए हम x = – 3, – 2, – 1 पर f(x) का मान ज्ञात करते हैं।
x = – 3 पर, f(-3) = 2(-3)3 – 24 (-3) + 107
= – 54 + 72 + 107 = – 54 + 179 = 125
x = – 1 पर f(-1) = 2 (-1)3 – 24 (-1) + 107 = -2 +24 + 107 = 129
x = – 2 पर f(-2) = 2(-2)3 – 24 (-2) + 107 = -16 + 48 +107 = 139
इस प्रकार अधिकतम मान f (x) = 139, x = -2 पर।

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प्रश्न 11.
यदि दिया है कि अन्तराल [0,2] में x = 1 पर फलन x4 – 62x2 + ax + 9 उच्चतम मान प्राप्त करता है तो a का मान ज्ञात कीजिए।
हल-
माना f(x) = x4 – 62x2 + ax + 9
f ‘(x) = 4x3 – 124x + a
उच्चतम व निम्नतम मान के लिए, f ‘(x) = 0
⇒ 4x3 – 124x + a = 0
दिया है, x = 1 पर, f उच्चतम है ⇒ f (1) = 0
4x3 – 124x + a = 0 में x = 1 रखने पर
4 x 1 – 124 x 1 + a = 0 ⇒ 4 – 124 + a = 0 ⇒ – 120 + a = 0
a = 120
इसलिए a का मान 120 है।

प्रश्न 12.
[0,2π] पर x + sin 2x का उच्चतम और निम्नतम मान ज्ञात कीजिए।
हल-
माना f(x) = x + sin 2x
f ‘(x) = 1 + 2 cos 2x
उच्चतम व निम्नतम मान के लिए, f ‘(x) = 0
⇒ 1 + 2 cos 2x = 0 ⇒ cos2x = [latex]-\frac { 1 }{ 2 }[/latex]
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प्रश्न 13.
ऐसी दो संख्याएँ ज्ञात कीजिए जिनका योग 24 है और जिनका गुणनफल उच्चतम हो।
हल-
माना पहली संख्या = x तब दूसरी संख्या = 24 – x है।
प्रश्नानुसार, उनका गुणनफल p = x(24 – x) = 24x – x² …(1)
उच्चतम व निम्नतम मान के लिए, [latex]\frac { dp }{ dx }=0[/latex]
समी० (1) का x के सापेक्ष अवकलन करने पर,
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प्रश्न 14.
ऐसी दो धन संख्याएँ x और y ज्ञात कीजिए ताकि x + y = 60 और xy3 उच्चतम हो।
हल-
दिया है,
x + y = 60
x = 60 – y …(1)
माना xy3 = P …(2)
समीकरण (1) से x का मान समीकरण (2) में रखने पर,
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प्रश्न 15.
ऐसी दो धन संख्याएँ x और y ज्ञात कीजिए जिनका योग 35 हो और गुणनफल x2y5 उच्चतम हो।
हल-
दो धन संख्याएँ x, y हैं।
दिया है, x + y = 35
⇒ y = 35 – x …(1)
प्रश्नानुसार, माना गुणनफल p = x2y5 …(2)
समीकरण (1) से y का मान समीकरण (2) में रखने पर,
p = x2 (35 – x)5
दोनों पक्षों का x के सापेक्ष अवकलन करने पर,
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प्रश्न 16.
ऐसी दो धन संख्याएँ ज्ञात कीजिए जिनका योग 16 हो और जिनके घनों का योग निम्नतम हो।
हल-
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प्रश्न 17.
18 सेमी भुजा के टिन के किसी वर्गाकार टुकड़े से प्रत्येक कोने पर एक वर्ग काटकर तथा इस प्रकार बने टिन के फलकों को मोड़कर ढक्कन रहित एक सन्दूक बनाना है। काटे जाने वाले वर्ग की भुजा कितनी होगी जिससे सन्दूक का आयतन उच्चतम होगा?
हल-
माना वर्ग की प्रत्येक भुजा x सेमी काटी गई है।
∴ सन्दूक के लिए,
लम्बाई = 18 – 2x
चौड़ाई = 18 – 2x
ऊँचाई = x
आयतन V = ल० × चौ० × ऊँ०
= x(18 – 2x) (18 – 2x)
= x(18 – 2x)x² …(1)
दोनों पक्षों का x के सापेक्ष अवकलन करने पर,
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प्रश्न 18
45 सेमी लम्बी और 24 सेमी चौड़ी आयताकार लोहे की एक चादर के चारों कोनों से समान भुजा का एक वर्गाकार निकालने के पश्चात् खुला हुआ एक सन्दुक बनाया जाता है। वर्गों की भुजा की माप ज्ञात कीजिये जिसके काटने पर बने सन्दूक का आयतन महत्तम होगा।
हल-
माना अभीष्ट वर्ग की भुजा x है तब ।।
सन्दूक की लम्बाई = (45-2x)
तथा सन्दूक की चौड़ाई = (24-2x)
सन्दूक की ऊँचाई = x
∴ सन्दूक का आयतन
V = (45 – 2x) (24 – 2x) x
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∴x = 5 पर V का मान महत्तम होगा।
∴ वर्ग की भुजा 5 सेमी होगी।

प्रश्न 19.
सिद्ध कीजिए कि एक दिए वृत्त के अन्तर्गत सभी आयतों में वर्ग का क्षेत्रफल उच्चतम होता है।
हल-
माना a त्रिज्या के वृत्त के अन्तर्गत आयत की लम्बाई x तथा चौड़ाई y है।
चित्र ABC में,
AC = व्यास = 2a
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प्रश्न 20.
सिद्ध कीजिए कि दिए हुए सम्पूर्ण पृष्ठ और महत्तम आयतन के लम्बवृत्तीय बेलन की ऊँचाई , उसके आधार के व्यास के बराबर है।
हल-
माना बेलन की ऊँचाई h तथा आधार की त्रिज्या r है।
पुनः माना बेलन का सम्पूर्ण पृष्ठ S और आयतन V है, तब
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प्रश्न 21.
100 सेमी3 आयतन वाले डिब्बे सभी बेलनाकार (लम्ब वृत्तीय) डिब्बों में से न्यूनतम पृष्ठ क्षेत्रफल वाले डिब्बे की विमाएँ ज्ञात कीजिए।
हल-
माना बेलनाकार डिब्बों की त्रिज्या r और ऊँचाई h है।
आयतन = πr²h = 100 सेमी3
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प्रश्न 22.
28 मीटर लम्बे तार के दो टुकड़े करके एक को वर्ग तथा दूसरे को वृत्त के रूप में मोड़ा जाता है। दोनों टुकड़ों की लम्बाई ज्ञात कीजिए यदि उनसे बनी आकृतियों को संयुक्त क्षेत्रफल न्यूनतम है।
हल-
तार की लम्बाई l = 28 मी
माना वर्ग की भुजा x तथा वृत्त की त्रिज्या r है, तब
l = वर्ग का परिमाप + वृत्त की परिधि = 4x + 2πr = 28 …(1)
माना संयुक्त क्षेत्रफल A है।
A = वर्ग की क्षेत्रफल + वृत्त का क्षेत्रफल = x² + πr²
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प्रश्न 23.
सिद्ध कीजिए कि R त्रिज्या के गोले के अन्तर्गत विशालतम शंकु का आयतन गोले के आयतन का [latex ]\frac { 8 }{ 27 }[/latex] होता है।
हल-
माना V, AB गोले के अन्तर्गत विशालतम शंकु का आयतन है। स्पष्टतया अधिकतम आयतन के लिए शंकु का अक्ष गोले की ऊँचाई के साथ होना चाहिए।
माना ∠AOC = θ,
∴ AC, शंकु के आधार की त्रिज्या = R sin θ, जहाँ R गोले की त्रिज्या है।
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प्रश्न 24.
दर्शाइये कि एक निश्चित आयतन के शंक्वाकार डेरे के बनाने में कम-से-कम कपड़ा लगेगा जब उसकी ऊँचाई आधार की त्रिज्या के √2 गुना होगी।
हल-
माना शंकु की ऊँचाई h, त्रिज्या r तथा तिरछी ऊँचाई l है।
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प्रश्न 25.
सिद्ध कीजिए कि दी हुई तिर्यक ऊँचाई और महत्तम आयतन वाले शंकु का अर्द्ध शीर्ष कोण tan-1√2 होता है।
हल-
माना शंकु की त्रिज्या = r, अर्द्धशीर्ष ∠BAM = θ
ऊँचाई = h; तिर्यक ऊँचाई = l
ऊर्ध्वाधर ऊँचाई, h = AM = l cos θ
शंकु की त्रिज्या, r = MC = l sin θ
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प्रश्न 26.
सिद्ध कीजिए कि दिए हुए पृष्ठ और महत्त्म आयतन वाले लम्बवृत्तीय शंकु का अर्द्धशीर्ष कोण [latex ]{ sin }^{ -1 }\left( \frac { 1 }{ 3 } \right) [/latex] होता है।
हल-
माना शंकु की त्रिज्या r, तिरछी ऊँचाई l सम्पूर्ण पृष्ठ S तथा आयतन V है।
सम्पूर्ण पृष्ठ S = πr (r + l) या πrl = S – πr²
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प्रश्न 27.
वक्र x² = 2y पर (0, 5) से न्यूनतम दूरी पर स्थित बिन्दु है
(A) (2√2, 4)
(B) ( 2√2 , 0)
(C) (0, 0)
(D) (2, 2)
हल-
माना वक्र x² = 2y पर कोई बिन्दु P(x, y) है।
दिया हुआ बिन्दु A (0, 5) है।
PA² = (x – 0)² + (y – 5)² = z (माना)
Z = x² + (y – 5)² …(1)
तथा वक्र x² = 2y …(2)
x² का मान समी० (1) में रखने पर,
Z = 2y + (y – 5)² =2y + y² + 25 – 10y = y² + 25 – 8y
दोनों पक्षों का y के सापेक्ष अवकलन करने पर, [latex ]\frac { dZ }{ dy }=2y-8[/latex]
उच्चतम व निम्नतम मान के लिए, [latex ]\frac { dZ }{ dy }=0[/latex]
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प्रश्न 28.
x के सभी वास्तविक मानों के लिए!
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का न्यूनतम मान है–
(A) 0
(B) 1
(C) 3
(D) [latex]\frac { 1 }{ 3 }[/latex]
हल-
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प्रश्न 29.
[x (x – 1) + 1]1/3,0≤x≤1 का उच्चतम मान है
(A) [latex]{ \left( \frac { 1 }{ 3 } \right) }^{ \frac { 1 }{ 3 } }[/latex]
(B) [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex]
(C) 1
(D) 0
हल-
माना y = [x (x – 1) + 1]1/3
दोनों पक्षों का x के सापेक्ष अवकलन करने पर,
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उच्चतम मान = 1
अत: विकल्प (C) सही है।

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi संस्कृत शब्दों में विभक्ति की पहचान

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi संस्कृत शब्दों में विभक्ति की पहचान are part of UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi संस्कृत शब्दों में विभक्ति की पहचान.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 5
Chapter Name संस्कृत शब्दों में विभक्ति की पहचान
Number of Questions 41
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi संस्कृत शब्दों में विभक्ति की पहचान

संस्कृत शब्दों में विभक्ति की पहचान

नवीनतम पाठ्यक्रम के अनुसार परीक्षा में रेखांकित शब्दों में लगी विभक्ति अथवा दिये गये शब्दों में प्रयुक्त विभक्ति से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। इसके लिए 2 अंक निर्धारित हैं। ये प्रश्न बहुविकल्पीय भी हो सकते हैं। विभक्ति का निर्देश करते समय छात्र से उससे सम्बन्धित सूत्र का उल्लेख करने की अपेक्षा भी की जाती है।

(1) सूत्र-अभितः परितः समया निकषा हा प्रतियोगेऽपि।
अभितः (चारों ओर या सभी ओर), परितः (सभी ओर), समया (समीप), निकषा (समीप), हा (शोक के लिए प्रयुक्त शब्द), प्रति (ओर, तरफ)–शब्दों के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।
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(2) सूत्र-येनाङ्गविकारः
जिस अंग में विकार होने से शरीर विकृत दिखाई दे, उस विकारयुक्त अंग में तृतीया विभक्ति होती है।
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(3) सूत्र-सहयुक्तेऽप्रधाने
साथ अर्थ वाले सह, साकम्, सार्धम्, समम् शब्दों के योग में अप्रधान (जिसके साथ जाने वाला जाये) में तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है।
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(4) सूत्र-साधकतमं करणम्
जिसकी सहायता से कार्य पूर्ण होता है, उसमें तृतीया विभक्ति होती है।
उदाहरण–प्रकृत्या साधु। प्रकृति से साधु।।

(5) सूत्र_नमःस्वस्तिस्वाहास्वधाऽलंवषट योगाच्च
नमः (नमस्कार), स्वस्ति (कल्याण), स्वाहा (आहुति), स्वधा (बलि), अलम् (समर्थ, पर्याप्त), वषट् (आहुति)-इन शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है।
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(6) सूत्र-ध्रुवमपायेऽपादानम्
स्वयं से अलग करने वाले अर्थात् ध्रुव (मूल) में पंचमी विभक्ति होती है; जैसे-वृक्ष से पत्ते गिरते हैं। इस वाक्य में पत्तों को स्वयं से अलग करने वाला वृक्ष है; अतः वृक्ष में पंचमी विभक्ति होगी।
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(7) सूत्र-आख्यातोपयोगे
नियमपूर्वक विद्या ग्रहण करने में जिससे विद्या ग्रहण की जाती है, उसमें पंचमी विभक्ति होती है।
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(8) सूत्र-भीत्रार्थानां भयहेतुः
‘भय’ तथा ‘रक्षा’ अर्थ वाली धातुओं के योग में जिससे डरा जाता है या रक्षा की जाती है, उसमें पंचमी विभक्ति होती है।
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(9) सूत्र-षष्ठी शेषे
छह कारकों के अतिरिक्त सम्बन्ध अर्थ शेष बचता है। सम्बन्ध अर्थ में षष्ठी विभक्ति होती है।
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(10) सूत्र-यतश्च निर्धारणम्
जहाँ बहुतों में से किसी एक को छाँटा जाये, वहाँ जिसमें से छाँटा जाये, उसमें षष्ठी अथवा सप्तमी विभक्ति होती है।
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विशेष-संस्कृत शब्दों में विभक्ति की पहचान से सम्बन्धित प्रश्नों के चार सम्भावित प्रारूप हो सकते हैं। विभिन्न परीक्षा प्रश्न-पत्रों में इन चारों प्रारूपों के पूछे गये प्रश्न दिये जा रहे हैं-

प्रश्न (क)
निम्नलिखित शब्दों के शुद्ध विभक्ति रूप की पहचान कीजिए-
या
दिये गये विकल्पों में जो सही विकल्प है, उसे बताइए-
प्रश्न 1.
‘राजन्’ शब्द का चतुर्थी विभक्ति एक वचन का रूप होता है
(क) राजानम्
(ख) राजभिः
(ग) राज्ञे।
(घ) राज्ञः

प्रश्न 2.
‘सरित्’ शब्द का पंचमी विभक्ति द्विवचन का रूप होता है
(क) सरिते
(ख) सरित्सु
(ग) सरिभ्याम्
(घ) सरिति

प्रश्न 3.
‘आत्मन्’ शब्द का तृतीया एकवचन का रूप होता है–
(क) आत्मनि
(ख) आत्मने
(ग) आत्मना
(घ) आत्मनः

प्रश्न 4.
‘इदम्’ शब्द का षष्ठी विभक्ति बहुवचन का रूप होता है|
(क) अस्मिन्
(ख) एषाम्
(ग) अस्मै
(घ) अस्य

प्रश्न 5.
‘सर्व’ शब्द (पुं० ) द्वितीया विभक्ति, बहुवचन का रूप होता है
(क) सर्वेभ्यः
(ख) सर्वस्य
(ग) सर्वान्
(घ) सर्वम्

प्रश्न 6.
‘जगत्’ का पंचमी एकवचन में रूप होता है—
(क) जगती
(ख) जगतोः
(ग) जगति
(घ) जगत:

प्रश्न 7.
‘नदी’ का सप्तमी बहुवचन में रूप होता है
(क) नदीभ्यः
(ख) नद्यो:
(ग) नदीषु
(घ) नद्याः

प्रश्न 8.
‘सरित्’ का तृतीया विभक्ति एकवचन में रूप होता है
(क) सरितेन
(ख) सरितौ
(ग) सरितो:
(घ) सरिता

प्रश्न 9.
‘जगत्’ का सप्तमी बहुवचन में रूप होता है
(क) जगति
(ख) जगत्सु
(ग) जगताम्।
(घ) जगद्भिः

प्रश्न 10.
‘पितृ’ का षष्ठी एकवचन में रूप होता है
(क) पितुः
(ख) पित्रे
(ग) पितरः
(घ) पित्रोः

प्रश्न 11.
‘सर्वै’ (पुं० ) तृतीया बहुवचन का रूप है-
(क) सर्वो
(ख) सर्वयोः
(ग) सर्वैः
(घ) सर्वस्य

प्रश्न 12.
‘आत्मन्’ का चतुर्थी, एकवचन का रूप होता है
(क) आत्मनः
(ख) आत्मना
(ग) आत्मने
(घ) आत्मनोः

प्रश्न 13.
पुत्र’ शब्द का तृतीया एकवचन में रूप होता है
(क) पुत्रेषु
(ख) पुत्रान्
(ग) पुत्रेण
(घ) पुत्रैः

प्रश्न 14.
‘राजन्’ शब्द का षष्ठी एकवचन में रूप होता है
(क) राज्ञाम्
(ख) राज्ञः
(ग) राज्ञा
(घ) राज्ञोः

प्रश्न 15.
‘राजन्’ शब्द का तृतीया बहुवचन में रूप होता है
(क) राज्ञः
(ख) राजभिः
(ग) राजान्ः
(घ) राजभ्यः

प्रश्न 16.
‘जगत्’ शब्द का सप्तमी द्विवचन में रूप होता है
(क) जगते
(ख) जगन्ति
(ग) जगतोः
(घ) जगति

उत्तर-
1. (ग), 2. (ग), 3. (क), 4. (ख), 5. (ग), 6. (घ), 7. (ग), 8. (घ), 9. (ख), 10. (ग), 11. (ग), 12. (ग), 13. (ग), 14, (ख), 15. (ख), 16. (ग)।

प्रश्न (ख) निम्नलिखित शब्दों की विभक्ति और वचन के सही विकल्प को चुनकर लिखिए-
प्रश्न 1.
रामाय
(क) चतुर्थी एकवचन
(ख) सप्तमी एकवचन
(ग) तृतीया द्विवचन
(घ) द्वितीया एकवचन

प्रश्न 2.
हस्तेन
(क) प्रथमा बहुवचन
(ख) पञ्चमी एकवचन
(ग) तृतीया एकवचने
(घ) चतुर्थी द्विवचन

प्रश्न 3.
रामानाम्
(क) चतुर्थी एकवचन
(ख) षष्ठी एकवचन
(ग) षष्ठी बहुवचन
(घ) द्वितीया बहुवचन

प्रश्न 4.
शिश्वोः
(क) तृतीया द्विवचन
(ख) द्वितीया द्विवचन
(ग) द्वितीया बहुवचन
(घ) सप्तमी द्विवचन

प्रश्न 5.
नदीषु
(क) सप्तमी बहुवचन
(ख) चतुर्थी बहुवचन
(ग) पञ्चमी एकवचन
(घ) सप्तमी एकवचन

प्रश्न 6.
आत्मने [2011,12,15,17]
(क) द्वितीया बहुवचन
(ख) चतुर्थी एकवचन
(ग) षष्ठी द्विवचन
(घ) सप्तमी द्विवचन

प्रश्न 7.
नामसु [2010,17]
(क) तृतीया एकवचन
(ख) द्वितीया बहुवचन
(ग) पञ्चमी द्विवचन
(घ) सप्तमी बहुवचन

प्रश्न 8.
भानून्|
(क) षष्ठी बहुवचन
(ख) सप्तमी एकवचन
(ग) द्वितीया बहुवचन
(घ) चतुर्थी एकवचन

प्रश्न 9.
राज्ञि [2013]
(क) तृतीया बहुवचन
(ख) सप्तमी एकवचन
(ग) षष्ठी द्विवचन
(घ) पञ्चमी एकवचन

प्रश्न 10.
जगता (2015)
(क) द्वितीया बहुवचन
(ख) चतुर्थी द्विवचन
(ग) तृतीया एकवचन
(घ) षष्ठी एकवचन

प्रश्न 11.
आत्मनि [2011, 13, 15]
(क) सप्तमी एकवचन
(ख) षष्ठी द्विवचन
(ग) पञ्चमी बहुवचन
(घ) प्रथमा द्विवचन

प्रश्न 12.
आत्मनाम् [2015]
(क) द्वितीया एकवचन
(ख) चतुर्थी द्विवचन
(ग) षष्ठी बहुवचन
(घ) सप्तमी एकवचन

प्रश्न 13.
नामभिः
(क) प्रथमा बहुवचन
(ख) तृतीया बहुवचन
(ग) चतुर्थी बहुवचन
(घ) सप्तमी बहुवचने

प्रश्न 14.
रामात्
(क) द्वितीया एकवचन
(ख) पञ्चमी एकवचन
(ग) तृतीया द्विवचन
(घ) सप्तमी एकवचन

प्रश्न 15.
सरिते [2011,17]
(क) चतुर्थी एकवचन
(ख) तृतीया द्विवचन
(ग) प्रथम बहुवचन
(घ) षष्ठी बहुवचन

प्रश्न 16.
मतीनाम्
(क) सप्तमी बहुवचन
(ख) चतुर्थी द्विवचन
(ग) तृतीया एकवचन
(घ) षष्ठी बहुवचन

प्रश्न 17.
नयः
(क) प्रथमा बहुवचन
(ख) षष्ठी एकवचन
(ग) तृतीया एकवचन
(घ) द्वितीया बहुवचन

प्रश्न 18.
वानराः
(क) तृतीया एकवचन
(ख) सप्तमी द्विवचन
(ग) प्रथमा बहुवचन
(घ) द्वितीया एकवचन

प्रश्न 19.
हरिभिः
(क) तृतीया एकवचन
(ख) द्वितीया द्विवचन
(ग) तृतीया बहुवचन
(घ) प्रथमा द्विवचन

प्रश्न 20.
जगत्सु [2010, 11, 12]
(क) पंचमी एकवचन
(ख) षष्ठी एकवचन
(ग) द्वितीया बहुवचन
(घ) सप्तमी, बहुवचन

प्रश्न 21.
आत्मानम् [2010]
(क) षष्ठी बहुवचन
(ख) द्वितीया एकवचन
(ग) सप्तमी द्विवचन
(घ) चतुर्थी एकवचन

प्रश्न 22.
राज्ञाम् [2010,11,12,16]
(क) पंञ्चमी द्विवचन
(ख) द्वितीया एकवचन
(ग) षष्ठी बहुवचन
(घ) चतुर्थी एकवचन

प्रश्न 23.
रमायाम्
(क) पंचमी बहुवचन
(ख) चतुर्थी एकवचन
(ग) षष्ठी द्विवचन
(घ) सप्तमी एकवचन

उत्तर-1. (क), 2. (ग), 3. (ग), 4. (घ), 5. (क), 6. (ख), 7. (घ), 8. (ग), 9. (ख),10. (ग), 11. (क), 12. (ग), 13. (ख), 14. (क), 15. (क), 16. (घ), 17. (क), 18. (ग), 19. (ग), 20. (घ), 21, (ख), 22. (ग), 23. (घ)।

प्रश्न (ग)
इन संस्कृत शब्दों में से काले अक्षरों में छपे शब्दों में विभक्ति को पहचान कर लिखिए-
(1) राज्ञः पुत्रः
(2) पुत्रेण सह
(3) वृक्षात् पतति
(4) पादेन खञ्जः
(5) छात्रेभ्यः स्वस्ति
(6) ग्रामं निकषी
उत्तर
(1) षष्ठी एकवचन,
(2) तृतीया एकवचन,
(3) पञ्चमी एकवचन,
(4) षष्ठी/सप्तमी द्विवचन,
(5) चतुर्थी बहुवचन,
(6) द्वितीया एकवचन।

प्रश्न (घ)
निम्नांकित शब्दों में प्रयुक्त विभक्ति और वचन का उल्लेख कीजिए-
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उत्तर
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ध्यातव्य–यद्यपि पाठ्यक्रम में शब्द-रूप निर्धारित नहीं हैं, फिर भी विद्यार्थियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए विभक्तियों से सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर देने के लिए कुछ शब्दों के रूप दिये जा रहे हैं-
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UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 18 Co-operation and Rural Society

UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 18 Co-operation and Rural Society (सहकारिता एवं ग्रामीण समाज) are part of UP Board Solutions for Class 12 Sociology. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 18 Co-operation and Rural Society (सहकारिता एवं ग्रामीण समाज).

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Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Sociology
Chapter Chapter 18
Chapter Name Co-operation and Rural Society (सहकारिता एवं ग्रामीण समाज)
Number of Questions Solved 38
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 18 Co-operation and Rural Society (सहकारिता एवं ग्रामीण समाज)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
सहकारिता का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। इसके सिद्धान्तों का विवरण देते हुए भारत में कार्यरत सहकारी समितियों का उल्लेख कीजिए।
या
सहकारिता का क्या तात्पर्य है? सहकारी समितियों का सामाजिक जीवन में महत्त्व बताइए। [2013]
उत्तर:
सहकारिता का अर्थ एवं परिभाषाएँ
सहकारिता का सामान्य अर्थ पारस्परिक सहयोग द्वारा कार्य करना है। अकेला व्यक्ति जिस कार्य को करने में सक्षम नहीं होता, वह दूसरों की सहायता से उस लक्ष्य को पाने में सफल हो जाता है। सहकारिता शब्द ‘सहकारिता’ शब्दों से मिलकर बना है। ‘सह’ का अर्थ है साथ-साथ, जब कि ‘कारिता’ कार्य करने का बोधक है। अतः सहकारिता का शाब्दिक अर्थ हुआ-‘साथ-साथ मिलजुल कर कार्य करना।’

इस प्रकार सहकारिता एक ऐसा संगठन है जिसमें व्यक्ति स्वेच्छा से आत्म-उन्नति के लिए सम्मिलित होते हैं। सहकारिता एक ऐच्छिक संगठन है जिसका निर्माण प्रजातान्त्रिक आधार पर किया जाता है। भारत में सहकारिता आन्दोलन का प्रारम्भ 1904 ई० में हुआ था, परन्तु इसकी प्रगति अत्यन्त मन्द थी। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् इस आन्दोलन में तेजी आयी है। स्वेच्छा से समान हितों की पूर्ति के लिए मिलजुल कर कार्य करने की भावना सहकारिता कहलाती है।

सहकारिता का ठीक-ठीक अर्थ जानने के लिए हमें उसकी परिभाषाओं पर दृष्टि निक्षेप करना होगा। विभिन्न समाजशास्त्रियों ने सहकारिता को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है
सहकारी नियोजन समिति के अनुसार, “सहकारिता एक ऐसा संगठन है जिसमें लोग स्वेच्छा के आधार पर अपनी आर्थिक उन्नति के लिए सम्मिलित होते हैं।’
सी० आर० फे के अनुसार, “सहकारिता मिलजुलकर कार्य करने की एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें किसी विशिष्ट उद्देश्य को लेकर सामूहिक हित के लिए स्वेच्छा से प्रयास किया जाता है। सहकारिता का मूल मन्त्र है – सब एक के लिए और एक सबके लिए।
होरेस प्लंकेट के अनुसार, “सहकारिता संगठन के द्वारा बनाया गया प्रभावपूर्ण स्वावलम्बन है।”
हेरिक के शब्दों में, “सहकारिता स्वेच्छा से संगठित उन दुर्बल व्यक्तियों की क्रिया है जो संयुक्त शक्तियों और साधनों का आपसी प्रबन्ध के द्वारा उपयोग करते हैं तथा जिनका उद्देश्य सामान्य लाभ प्राप्त करना होता है।”
इस प्रकार सहकारिता ऐसे व्यक्तियों का ऐच्छिक संगठन है, जो समानता, स्व-सहायता तथा प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के आधार पर सामूहिक हित के लिए कार्य करता है।

सहकारिता के मुख्य सिद्धान्त

सहकारिता कुछ मूलभूत सिद्धान्तों पर आधारित है। सहकारिता के मुख्य सिद्धान्त निम्नलिखित

  1.  ऐच्छिक संगठन – सहकारी समितियों की सदस्यता अनिवार्य न होकर ऐच्छिक होती है। स्वेच्छा से इनकी सदस्यता को प्राप्त किया जा सकता है।
  2.  प्रजातान्त्रिक नियन्त्रण – इसमें प्रत्येक सदस्य को एक ही मत देने का अधिकार है, चाहे उसकी कितनी ही पूँजी या भूमि संगठन में क्यों न लगी हो।।
  3. लाभ के वितरण का सिद्धान्त-सहकारी समितियों के लाभ को सदस्यों की पूँजी के अनुपात में बाँटा जाता है।
  4. एकता व भाई-चारे का सिद्धान्त – सहकारिता सदस्यों में भाई-चारे की भावना उत्पन्न करती है। इस संगठन में सभी के साथ समानता का व्यवहार होता है।
  5. पारस्परिक तथा आत्म-सहायता – सहकारी संस्थाएँ प्रायः अपने साधनों पर निर्भर करती हैं, जिसे आत्म-सहायता कहते हैं। सहकारिता का मुख्य उद्देश्य पारस्परिक हित और सामूहिक
    लाभ होता है।
  6. समानता – समानता सहकारिता का मुख्य सिद्धान्त है। सहकारिता में प्रत्येक के अधिकार समान होते हैं। अंशों की अधिकता होने पर भी सदस्य को केवल एक ही मत देने का अधिकार
  7. सहानुभूति – सहकारिता में सभी सदस्य परस्पर मिलजुलकर अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में जुटे रहते हैं। एक सदस्य दूसरे के प्रति सहानुभूति से ओत-प्रोत रहता है।
  8.  एकता – सहकारिता का आधारभूत सिद्धान्त एकता है। इसमें सभी सदस्य एकजुट होकर लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हैं। इसमें एक सबके लिए तथा सब एक के लिए’ कोआदर्श रहता है।
  9. मितव्ययिता – सहकारिता कम व्ययसाध्य होती है। एक साथ सामूहिक प्रयास होने पर कार्य कम समय में ही पूरा हो जाता है। सदस्य-संख्या में वृद्धि के साथ-साथ सहकारिता में
    मितव्ययिता में भी वृद्धि होती चली जाती है।
  10.  आय का समान रूप से वितरण – सहकारिता आय के समान और उचित वितरण के सिद्धान्त पर टिकी हुई है। सहकारिता के उत्पादन का वितरण अंशों के अनुरूप, उचित और न्यायपूर्ण ढंग से किया जाता है। सदस्यों को श्रेष्ठ और उचित मूल्य पर वस्तुएँ उपलब्ध कराना सहकारिता का मुख्य ध्येय है।

सहकारिता की विशेषताएँ

सहकारिता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. सहकारिता स्वैच्छिक संगठन है। व्यक्ति अपनी इच्छा से इस संगठन का सदस्य बन जाता है।
  2. सहकारिता की कार्यप्रणाली लोकतान्त्रिक होती है। सहकारिता के सभी सदस्यों को एकसमान अधिकार प्राप्त होते हैं। वे अपने मध्य से कुछ प्रतिनिधियों को संगठन के पदाधिकारी चुन लेते हैं।
  3. सहकारिता का लक्ष्य सदस्यों को विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक सुविधाएँ प्रदान कर उनमेंआत्मनिर्भरता उत्पन्न करना है।
  4.  सहकारिता सबके लाभ का संगठन है। ‘संयुक्त लाभ पद्धति’ सहकारिता की प्रमुख विशेषता है।
  5. सहकारिता में कम व्यय द्वारा सदस्यों को अधिक-से-अधिक लाभ उपलब्ध कराया जाता है।
  6. सहकारिता संयुक्त दायित्व वाला संगठन है। संयुक्त दायित्वों की पूर्ति संयुक्त प्रयास द्वारा की जाती है।
  7. सहकारिता की भावना ‘एक सबके लिए तथा सब एक के लिए प्रमुख है।
  8. सहकारिता न्याय और समानता पर आधारित है।
  9.  सहकारिता की सदस्यता सबके लिए उपलब्ध है।
  10. सहकारिता का संचालन नियमबद्ध ढंग से किया जाता है।

भारत में कार्यरत सहकारी समितियाँ

भारत सरकार ने 1904 ई० में ग्रामीण ऋणग्रस्तता समाप्त होने के उद्देश्य से सरकारी ऋण समितियाँ अधिनियम’ पारित किया। इसके पश्चात् 1912 ई० में ‘सहकारिता समितियाँ अधिनियम पारित करके देश में सहकारी समितियों का संगठन किया गया। वर्तमान समय में भारत में 3.56 लाख सहकारी समितियाँ कार्य कर रही हैं। इनमें से 67% समितियाँ ग्रामीण विकास में लगी हैं। इन समितियों की सदस्य-संख्या 16.1 करोड़ तथा इनकी कार्यशील कुल पूँजी 62,570 करोड़ रुपये है।

भारत में इस समय निम्नलिखित सहकारी समितियाँ कार्य कर रही हैं

1. प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ – यह एक सहकारी साख समिति है, जिसका प्रमुख कार्य किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार करने के लिए उन्हें ऋण उपलब्ध करवाना है। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि इन समितियों की कुल संख्या लगभग 94 हजार है तथा 9.20 करोड़ से भी अधिक कृषक इनके सदस्य हैं। ऋण का भुगतान केवल कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाता है। ठीक प्रकार से कार्य निष्पादन न कर पाने के कारण इन समितियों की संख्या निरन्तर घट रही है। गोरवाला समिति के सुझाव के अनुसार बड़े आकार वाली सहकारी समितियाँ स्थापित की जानी चाहिए।

2. सहकारी भूमि विकास बैंक – यह भी एक सहकारी साख समिति है, जिसका उद्देश्य कृषकों को लम्बी अवधि के लिए कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध करवाना है। इसकी 1,707 से अधिक शाखाएँ हैं तथा सहकारी भूमि विकास बैंक कृषकों की आर्थिक स्थिति, ऋण की उपयोगिता तथा भूमि की दशा और विकास की सम्भावनाओं को देखते हुए ऋण प्रदान करते हैं। इसके अन्तर्गत (1) केन्द्रीय विकास बैंक तथा (2) प्राथमिक भूमि विकास बैंक किसानों की भूमि रहन रखकर ऋण उपलब्ध कराते हैं।

3. सहकारी कृषि समितियाँ – ये उत्पादन व वितरण से सम्बन्धित सहकारी समितियाँ हैं, जिनका उद्देश्य कृषि की दशा में सुधार करना तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि करना है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित कृषि समितियाँ कार्यरत हैं

  1. सहकारी संयुक्त कृषि समितियाँ,
  2.  सहकारी उत्तम कृषि समिति,
  3. सहकारी काश्तकारी कृषि समिति,
  4. सहकारी सामूहिक कृषि समिति,
  5.  सहकारी चकबन्दी समितियाँ,
  6.  सहकारी सिंचाई समितियाँ तथा
  7. दुग्ध वितरण सहकारी समिति।

सहकारी सिंचाई समितियाँ कुएँ खोदने तथा नलकूप लगाने इत्यादि के लिए ऋण देती हैं, जबकि चकबन्दी समितियाँ बिखरे टुकड़ों को एक ही बनाने का कार्य करती हैं।

4. सहकारी औद्योगिक समितियाँ – इन सहकारी समितियों का उद्देश्य गाँवों में लोगों को लघु एवं कुटीर उद्योग लगाने की सुविधाएँ तथा रोजगार के अवसर प्रदान करने में सहायता देना है। कच्चे माल तथा प्रशिक्षण भी इन समितियों द्वारा उपलब्ध कराये जाते हैं। 54 हजार से भी अधिक ऐसी औद्योगिक समितियाँ अनेक प्रकार के उद्योगों के विकास में तथा सामान को बेचने व निर्यात करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। चमड़ा रँगने, फल व सब्जियों को डिब्बों में बन्द करने, मिट्टी के बर्तन बनाने, तेल, गुड़, साबुन और ताड़ उद्योगों से सम्बन्धित सहकारी समितियाँ भी स्थापित की गयी हैं।

5. सहकारी दुग्ध-आपूर्ति समितियाँ – इनका कार्य दुग्ध एवं डेयरी उद्योग को प्रोत्साहन देना है। पशुओं की नस्ल सुधारने तथा दुग्ध उत्पादन में वृद्धि करने में इन समितियों का विशेष योगदान है। आज 31 हजार से भी अधिक प्राथमिक दुग्ध-पूर्ति समितियों की स्थापना हो चुकी ै और अधिक-से-अधिक लोग इनसे लाभान्वित हो रहे हैं।

6. सहकारी विपणन समितियाँ – इन समितियों की स्थापना का उद्देश्य किसानों को दलालों के शोषण से बचाना तथा उनकी उपज का सही मूल्य दिलवाना है। ये समितियाँ किसानों से सीधे अनाज खरीदती हैं तथा बाजार मूल्य पर किसानों को तुरन्त भुगतान भी कर दिया जाता है।

7. बह-उद्देशीय सहकारी समितियाँ – आर्थिक विकास के लिए गठित इन समितियों का उद्देश्य लोगों के जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं से सम्बन्धित वस्तुएँ प्रदान करना है। ऋण देने के साथ-साथ ये समितियाँ जंगलों से प्राप्त पदार्थों के विक्रय तथा कृषि उपकरणों को भी प्रबन्ध करती हैं।

8. सहकारी उपभोक्ता समितियाँ – इनका उद्देश्य गाँवों तथा नगरों में उपभोक्ताओं को उचित कीमत पर वस्तुएँ प्रदान करना है। ऋण देने के साथ-साथ ये समितियाँ जंगलों में पदार्थों के विक्रय तथा कृषि उपकरणों का भी प्रबन्ध करती हैं।

9. सहकारी आवास समितियाँ – इनका मुख्य उद्देश्य सदस्यों को आवास की सुविधाएँ उपलब्ध कराने और गृह-निर्माण के लिए भिन्न प्रकार के ऋण उपलब्ध कराना है। ऐसी समितियाँ रोशनी, सड़कों का निर्माण तथा पीने के पानी की व्यवस्था करने का कार्य भी करती हैं।

अतः विभिन्न प्रकार की समितियाँ लोगों को भिन्न प्रकार की सुविधाएँ प्रदान करके उनके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। भारत में राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय सहकारी संघ की भी स्थापना की गयी है। विभिन्न सहकारी समितियों के विकास तथा क्रियान्वयन के लिए सहकारी राष्ट्रीय संघ भी बनाये गये हैं।

प्रश्न 2
ग्रामीण क्षेत्रो के पुनर्निर्माण में सहकारिता का क्या महत्त्व है? [2009]
या
ग्रामीण क्षेत्रों पर सहकारी समितियों के प्रभावों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सहकारिता ग्रामीण अर्थव्यवस्था की प्रगति का रहस्य है। भारत जैसे कृषि-प्रधान और विकासशील राष्ट्र के लिए सहकारिता सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आन्दोलन है। सहकारी आन्दोलन ग्रामीण जीवन की आधारशिला है। भारत की 75% ग्रामीण जनसंख्या के उत्थान में सहकारिता की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रही है। लोकतन्त्र की शक्ति के रूप में चलाया गया सहकारी आन्दोलन ग्रामीण जीवन को सुखी और सम्पन्न बनाने में अहम् भूमिका निभा रहा है। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों के पुनर्निर्माण में सहकारिता के महत्त्व को निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है ।

1. पशुओं की दशा में सुधार – पशु भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के आधार स्तम्भ हैं। सहकारी दुग्ध उत्पादक समितियों ने पशुओं की दशा सुधारने में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है, जिससे कृषकों की आय में तो वृद्धि हुई ही है, साथ ही दुग्ध उत्पादन में भी पर्याप्त वृद्धि हुई है। सहकारिता ग्रामीण क्षेत्रों में श्वेत क्रान्ति लाने में सफल हो रही है। इसी ने राष्ट्र में ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम को सफल बनाया है।

2. आवास-व्यवस्था में सुधार – गृह – निर्माण से सम्बन्धित सहकारी समितियों ने ग्रामीण समाज तथा नगरों में नये मकान बनाकर आवासीय समस्या को सुलझाने में पर्याप्त सहायता की है। इन समितियों द्वारा प्रकाश, सड़कों का निर्माण और पानी की व्यवस्था भी की गयी

3. बिचौलियों से मुक्ति – सहकारी समितियों के माध्यम से क्रय-विक्रय करने से किसानों को बिचौलियों के शोषण से मुक्ति मिल गयी है। उन्हें कम ब्याज पर पैसा ऋण के रूप में ही नहीं मिल जाता, अपितु उत्पादन की ठीक कीमत भी मिल जाती है। बिचौलियों का अन्त होने से कृषकों की आर्थिक दशा में गुणात्मक सुधार आया है। अब ग्रामीण जीवन में खुशहाली दिखाई पड़ने लगी है।

4. स्वच्छता एवं सड़कों की व्यवस्था –  सहकारिता ने ग्रामीण क्षेत्र में युगों से व्याप्त गन्दगी को दूर करने में सहायता प्रदान की है तथा सड़कों का निर्माण कराकर गाँवों में विकास के
द्वार खोल दिये हैं।

5. बचत तथा विनियोग में वृद्धि – सहकारी समितियों ने कृषकों में कम व्यय की आदत डाली है, जिससे वे बचत करने लगें तथा उनका विनियोग डाकखानों तथा सहकारी बैंकों में होने लगे।

6. ग्रामीण विकास – सहकारी समितियों ने कुटीर तथा लघु उद्योगों का विकास करके, नौकरी के अवसर प्रदान करके तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि करके ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में तीव्रता प्रदान की है। ग्रामीण विकास के क्षेत्र में सहकारिता का सर्वाधिक योगदान रहा है। सहकारिता ने ग्रामीण विकास के नये द्वार खोल दिये हैं।

7. सामाजिक व राजनीतिक चेतना – सहकारिता का सिद्धान्त सहयोग है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक चेतना में वृद्धि हुई है। लोकतान्त्रिक प्रणाली पर आधारित होने के कारण सहकारी समितियाँ ग्रामवासियों को लोकतन्त्र की शिक्षा भी स्वत: प्रदान करती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में नेतृत्व का विकास हुआ है, जिसने ग्रामवासियों का ठीक प्रकार से मार्गदर्शन करना प्रारम्भ कर दिया है।

8. उत्तरदायित्व की भावना का विकास – सहकारिता में प्रत्येक सदस्य प्रत्येक कार्य के लिए जिम्मेदार होता है, जिसके कारण सभी अपना उत्तरदायित्व ठीक प्रकार से समझने लगते हैं।

9. नैतिक गुणों का विकास –  सहकारिता ग्रामवासियों में नैतिक गुणों के विकास में भी सहायक है। आत्मविश्वास, आत्म-सहायता, ईमानदारी तथा मितव्ययिता जैसे गुणों का विकास करने में
सहकारिता सहायक है।

10. जीवन को श्रेष्ठ बनाने में सहायक – सहकारिता ने ग्रामवासियों के जीवन को श्रेष्ठ बनाने में सहायता प्रदान की है। ऋण की सुविधाओं तथा क्रय-विक्रय की सुविधाओं के कारण वे शोषण से बच गये हैं। सहकारिता से मिलने वाली अनेक सुविधाओं ने ग्रामवासियों का जीवन श्रेष्ठ बनाने में सहायता प्रदान की है।

11. तनाव एवं संघर्ष से मुक्ति – सहकारी आन्दोलन के फलस्वरूप ग्रामवासियों में सहयोग, प्रेम और एकता का संचार हुआ है। ग्रामीण क्षेत्रों में संघर्ष तथा मुकदमेबाजी कम होने से तनाव घट गया है। ऋणों से छुटकारा, कृषि उपजों को उचित मूल्य तथा भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल जाने से कृषकों में आत्म-सन्तोष उत्पन्न हो गया है। तनाव तथा संघर्ष से मुक्त होकर ग्रामवासी अब समाज तथा राष्ट्र के नव-निर्माण में भरपूर सहयोग देने लगे हैं।

12. ग्रामीण पुनर्निर्माण का आधार – सहकारिता आन्दोलन ग्रामीण पुनर्निर्माण की आधारशिला कहलाता है। वर्तमान समय में लगभग 16 करोड़ सदस्य सहकारिता के गुणों से सम्पन्न होकर गाँवों के नव-निर्माण में अपना पूरा-पूरा सहयोग दे रहे हैं। सहकारी आन्दोलन ने ग्रामीण क्षेत्रों , की अर्थव्यवस्था, सामाजिक दशी, कृषि, पशुपालन तथा जीवन-यापन को नवीनतम आयाम दिये हैं। प्रगति की डगर पर ग्रामीण लोग अब राष्ट्र के अन्य लोगों के साथ कदम-से-कदम मिलाकर आगे बढ़ रहे हैं। सहकारी आन्दोलन वह सुदृढ़ आधार है, जिस पर ग्रामीण विकास
एवं पुनर्निर्माण का भव्य भवन टिका हुआ है।

13. विकास योजनाओं में सहयोग – भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी आन्दोलन के माध्यम से विकास योजनाएँ लागू की गयी हैं। सहकारी समितियों ने इन्हें सुधरे हुए बीज, रासायनिक खाद, कीटनाशक दवाएँ तथा नवीनतम कृषि यन्त्र देकर हरित-क्रान्ति की सफलता में प्रमुख भूमिका निभायी है। अनेक विकास योजनाओं ने ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक असमानता को समूल नष्ट कर दिया है।
इस प्रकार सहकारी समितियों ने ग्रामीण समाज को धन-धान्य से भरपूर करके सभी ओर समृद्धि बिखेर दी है। इसने अच्छे और चरित्रवान नागरिकों के निर्माण में सहायता देकर लोकतन्त्र की सफलता की आधारशिला रख दी है। शोषण पर रोक लगाकर ग्रामीण लोगों को आदर्श एवं सुखी जीवन व्यतीत करने योग्य बनाया है। वास्तव में, सहकारी समितियाँ ग्रामीण समाज के पुनर्निर्माण की कुंजी सिद्ध हो रही हैं। सहकारी आन्दोलन को गति प्रदान करके ग्रामीण क्षेत्रों की प्रगति और सम्पन्नता की नींव रखी जा सकती है। भारत सरकार सहकारी आन्दोलन को नया स्वरूप देने के लिए प्रयासरत है।

प्रश्न 3
ग्रामीण विकास में सहकारी समितियों का महत्त्व व योगदान बताइए।
या
ग्रामीण विकास समितियों के महत्त्व पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए। [2016]
या
ग्रामीण समाज में सहकारी समितियों के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
ग्रामीण समाज में सहकारी समितियों का महत्त्व व योगदान
ग्रामीण समाज की काया पलटने में सहकारी समितियों का सहयोग बहुत महत्त्वपूर्ण रहा है। इन समितियों ने ग्रामीण ऋणग्रस्तता, कृषि के पिछड़ेपन, बँधुआ मजदूरी आदि समस्याओं का निराकरण करके ग्रामीण जीवन को सुख और समृद्धि से पाट दिया है। सहकारी समितियाँ ग्रामीण समाज के लिए कल्पवृक्ष सिद्ध हो रही हैं। इन्होंने ग्रामीण समाज का नव-निर्माण करके उसे एक सुधरा रूप दिया है। ग्रामीण समाज के उत्थान में सहकारी समितियों के महत्त्व को निम्नलिखित शीर्षकों के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है

1. पुराने ऋणों से मुक्ति – भारतीय गाँवों की मुख्य समस्या ऋणग्रस्तता थी। कहा जाता था कि भारतीय कृषक ऋणों में जन्म लेता है और ऋणों में ही मर जाता है। एक बार लिया हुआ ऋण पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता था। साहूकार तथा जमींदार ग्रामीण समाज के शोषण में आकण्ठ डूबे थे। सहकारी समितियों ने किसानों को उचित ब्याज की दर पर सुगमता से ऋण उपलब्ध कराकर उन्हें उनके प्राचीन ऋणों से मुक्ति दिलवा दी।

2. आर्थिक विकास में गति – सहकारी समितियों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक विकास में गति आ गयी है। अर्थव्यवस्था में सुधार आने से ग्रामीण समाज में खुशहाली की लहर दो से है। तीव्र गति से हुए आर्थिक विकास ने भारतीय कृषकों को कृषि, पशुपालन तथः कुटीर उद्योग-धन्धों के क्षेत्र में पर्याप्त निर्भरता प्रदान कर दी है।

3. सामाजिक चेतना का विकास – सहकारी समितियों ने ग्रामीण समाज के सदस्यों में परस्पर सहयोग, एकता, सामुदायिकता, सहानुभूति तथा प्रेम का भाव जाग्रत कर सामाजिक चेतना के विकास में अद्वितीय योग दिया है। ग्रामीण समाज के सभी सदस्य एकजुट होकर समाज के नव-निर्माण के लिए प्रयत्नशील हो उठे हैं।

4. झगड़ों और मुकदमेबाजी में कमी – सहकारी समितियों ने हम की भावना जगाकर ग्रामीण समाज में अपनत्व का भाव जगा दिया है। ग्रामीण समाज के सदस्य सामूहिक हित को ध्यान में रखकर तथा वैर-भाव छोड़कर तन-मन-धन से सहकारिता के कार्यों में सहयोग दे रहे हैं। सहयोग के कारण झगड़ों का अन्त हो गया और मुकदमेबाजी में कमी आ गयी है। इस प्रकार सामाजिक सनाव और संघर्ष में भी गिरावट आ गयी है।

5. पारस्परिक सहयोग का विकास – सहकारी समितियों का आधार पारस्परिक सहयोग है। सभी लोग इन समितियों के सदस्य बनकर एकता और सहयोग का प्रदर्शन करते हैं। सहयोग और एकता, प्रगति और शक्ति की आधारशिला है। सहयोग के कारण मित्रता, भाई-चारा, समानता और स्वतन्त्रता आदि गुणों का उदय होता है, जो राष्ट्रीय एकता को बल प्रदान करते हैं।

6. लोकतन्त्र का प्रशिक्षण – सहकारी समितियों का संगठन और संचालन लोकतान्त्रिक व्यवस्था के अनुरूप होता है। सहकारी समितियों के सदस्य बनकर ग्रामीण समाज के लोग स्वतन्त्रता, समानता व भाई-चारे का पाठ पढ़ते हैं तथा कर्तव्य और अधिकारों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। इस प्रकार सहकारी समितियाँ लोकतन्त्र के लिए प्रबुद्ध और जागरूके नागरिकों का सृजन करने में बहुत सहयोग देती हैं।

7. सामाजिक कल्याण में अभिवृद्धि – सहकारी समितियाँ और इन समितियों के सदस्य सामूहिक हित को ध्यान में रखकर कार्य करते हैं। इस प्रकार सहकारी समितियाँ सामाजिक कल्याण में अभिवृद्धि करने का सशक्त माध्यम हैं।

8. ग्रामीण समाज का पुनर्निर्माण – सहकारी समितियाँ ग्रामीण जीवन के पुनर्निर्माण में बहुत सहायक होती हैं। इनसे सहभागिता प्राप्त कर ग्रामीण समाज का जीर्ण-शीर्ण कलेवर पुनः तरुणाई प्राप्त कर लेता है। ग्रामवासियों को नया सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवेश मिल जाता है। वे स्वयं को राष्ट्र की मुख्य धारा का एक अभिन्न अंग समझने लगते हैं। सहकारी समितियों ने ग्रामीण समाज के सदस्यों को सम्मानित और सुखी जीवन प्रदान करा दिया है।

इस प्रकार सहकारी समितियों ने ग्रामीण समाज को धन-धान्य से भरपूर करके सभी ओर समृद्धि बिखेर दी है। इसने अच्छे और चरित्रवान् नागरिकों के निर्माण में सहायता देकर लोकतन्त्र की सफलता की आधारशिला रख दी है। इसने शोषण पर रोक लगाकर ग्रामीण लोगों को आदर्श एवं सुखी जीवन व्यतीत करने के योग्य बनाया है। वास्तव में, सहकारी समितियाँ ग्रामीण समाज के पुनर्निर्माण की कुंजी सिद्ध हो रही हैं।

प्रश्न 4
भारतीय समाज में सहकारी आन्दोलन की धीमी गति होने के कारण बताइए तथा इन्हें प्रभावशाली बनाने के उपाय सुझाइए। [2010]
या
भारत में सहकारिता आन्दोलन पर अपने विचार (लेख, निबन्ध) लिखिए। [2007, 11, 15]
या
भारत में सहकारी आन्दोलन को और अधिक प्रभावी कैसे बनाया जा सकता है? [2007]
या
सहकारी आन्दोलन की धीमी (मन्द) गति अथवा इसकी असफलता के कारणों का उल्लेख कीजिए। [2011]
या
भारत में सहकारी आन्दोलन की सफलता के लिए आवश्यक उपायों को सुझाइए। [2013]
या
भारतीय समाज में सहकारिता आन्दोलन पर प्रकाश डालते हुए इसकी असफलता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारत में सहकारिता आन्दोलन का इतिहास

स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पहले सहकारी आन्दोलन – सहकारिता का जन्म उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में हुआ था। सर्वप्रथम सहकारी समितियों का संगठन जर्मनी में हुआ तथा वहाँ इन्हें पर्याप्त सफलता प्राप्त हुई। जर्मनी में इनकी सफलताओं से प्रभावित होकर 1901 ई० में भारत सरकार ने सर एडवर्ड ला की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की। इस समिति की सिफारिश के आधार पर 1904 ई० में ‘सहकारी साख समिति अधिनियम’ (Co-operative Credit Societies Act, 1904) पारित हुआ। 1908 ई० तक सहकारिता आन्दोलन ने पर्याप्त प्रगति की। 1912 ई० में ‘सहकारी साख अधिनियम’ पारित हुआ। इस अधिनियम के अधीन सहकारिता के गैर-साख रूपों अर्थात् उत्पादन, क्रय-विक्रय, बीमा, मकानों आदि के निर्माण के लिए सहकारी समितियों की स्थापना की गयी 1914 ई० में भारत सरकार ने मैकलेगन की अध्यक्षता में एक सहकारी समिति की नियुक्ति की।

1919 ई० में माउण्ट-फोर्ड सुधारों (लॉर्ड माउण्टबेटन तथा लॉर्ड चेम्सफोर्ड द्वारा किये गये सुधार) के अन्तर्गत सहकारिता को एक राजकीय विषय बना दिया गया। 1925 ई० में बम्बई (मुम्बई) सरकार ने अपना ‘सहकारी समिति अधिनियम’ पारित किया। बम्बई के पश्चात् 1932 ई० में मद्रास (चेन्नई) में, 1934 ई० में बिहार में तथा 1943 ई० में बंगाल की प्रान्तीय सरकारों ने सहकारी समितियों से सम्बन्धित कानूनों का निर्माण किया। 1929 ई० तक सहकारी समितियों की संख्या 1 लाख तक बढ़ गयी। 1939 ई० में दूसरा महायुद्ध छिड़ा, जिसके परिणामस्वरूप कृषि उपज में पर्याप्त वृद्धि हुई।

अत: किसानों की आर्थिक दशा में सुधार हुआ। इससे सहकारिता आन्दोलन में और तीव्रता आयी और उनकी संख्या में 1945 ई० तक 41% की वृद्धि हुई। 1942 ई० में एक ‘सहकारिता योजना समिति’ (Co-operative Planning Committee) की नियुक्ति की गयी। इस समिति ने सिफारिश की कि प्राथमिक साख-समितियों का निर्माण किया जाए। साथ ही ऐसा प्रयास किया जाए जिससे कि दस वर्षों में देश में कम-से-कम 50% गाँवों व 30% शहरों के लिए समितियाँ बनायी जाएँ। रिजर्व बैंक से इस बात के लिए अनुरोध किया गया कि वह सहकारी समितियों को सफल बनाने के लिए अधिक-से-अधिक सहायता दे।।

स्वतन्त्रता के पश्चात सहकारी आन्दोलन–स्वतन्त्रता के पश्चात् देश के आर्थिक विकास से कार्यक्रमों में सहकारिता को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। पंचवर्षीय योजनाओं में भी सहकारिता के विकास पर अधिक बल दिया गया है और उसकी सफलता के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाये गये हैं। वर्ष 1950-51 में प्राथमिक साख-समितियों की कुल संख्या 1.05 लाख थी। वर्ष 1960-61 में इन समितियों की संख्या 2.10 लाख तक जा पहुँची। 1965 ई० में हैं 10 करोड़ की प्रारम्भिक पूँजी से ‘राष्ट्रीय कृषि साख दीर्घकालीन कोष’ (National Agricultural Credit Long-term Operation Fund) की स्थापना की गयी। इस कोष का मुख्य कार्य राज्य सरकारों को सहकारी संस्थाओं के विकास के लिए ऋण प्रदान करना था। सहकारिता आन्दोलन से सम्बन्धित अधिकारियों को प्रशिक्षित करने के लिए ‘सहकारिता प्रशिक्षण की केन्द्रीय समिति’ (Central Committee for Co-operative Training) की स्थापना की गयी।

वर्ष 1977-78 में सहकारी समितियों की संख्या 3 लाख, प्राथमिक समितियों की सदस्य संख्या 193 लाख, हिस्सा पूँजी १ 1,812 करोड़ तथा कार्यशील पूँजी र 16,691 करोड़ थी। वर्ष 1982-83 में यह संख्या क्रमशः 2.91 लाख, 1,208 लाख, * 2,305 करोड़ तथा १ 21,857 करोड़ थी। जून, 1983 ई० के अन्त तक 94,089 प्राथमिक कृषि साख समितियाँ कार्य कर रही थीं तथा 96% व्यक्ति इनके अन्तर्गत थे। 1989 ई० में ये समितियाँ ग्रामीण क्षेत्र के 98% भाग में फैल चुकी थीं लेकिन वर्तमान में भारत में विभिन्न प्रकार की सहकारी समितियों की संख्या 5.04 लाख ही पहुँच पाई है, जिनकी सदस्य संख्या 22 करोड़ है। आज भारत में अनेक प्रकार की सहकारी समितियाँ कार्य कर रही हैं। इनमें साख सहकारी समितियाँ (प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ तथा सहकारी भूमि विकास बैंक), सहकारी उत्पादन समितियाँ (सहकारी कृषि समितियाँ, सहकारी औद्योगिक समितियाँ व सहकारी दुग्धपूर्ति समितियाँ), सहकारी विपणन समितियाँ, बहु-उद्देशीय जनजातीय सहकारी समितियाँ, सहकारी उपभोक्ता समितियाँ तथा सहकारी आवास समितियाँ प्रमुख हैं।

भारत में सहकारी आन्दोलन की धीमी गति (असफलता) के कारण

भारत में सहकारी आन्दोलन बहुत ही महत्त्वपूर्ण और उपयोगी सिद्ध हुआ है। इसने ग्रामीण क्षेत्रों की युगों-युगों से व्याप्त गरीबी, बेरोजगारी, ऋणग्रस्तता और संघर्षों को समाप्त कर दिया है। भारत में सहकारिता के 100 वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी इसकी प्रगति मन्द रही है। कुछ क्षेत्रों में तो सहकारी आन्दोलन असफल ही हो गया है। ग्रामीण विकास की यह सर्वोच्च आशा मन्द गति से आगे बढ़ रही है। भारत में सहकारी आन्दोलन की मन्द गति होने के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हैं

1. अशिक्षा – सहकारिता की धीमी प्रगति का प्रमुख कारण ग्रामवासियों में व्याप्त अशिक्षा है। अशिक्षा के कारण ग्रामवासी सहकारिता के महत्त्व को नहीं समझ पाते तथा न ही विभिन्न समितियों के अधिनियमों को ही समझ पाते हैं। प्रभुतासम्पन्न लोग इसमें कोई रुचि नहीं लेते, क्योंकि इनसे उन्हें कोई लाभ नहीं पहुँचता। अत: अशिक्षित लोग सहकारिता का पूरा लाभ नहीं
उठा पाते जिससे सहकारी आन्दोलन की गति मन्द रहती है।

2. अकुशल प्रबन्ध – सहकारिता की धीमी प्रगति का दूसरा कारण प्रबन्ध की अकुशलता है। सहकारी समितियों में मितव्ययिता की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जाता है, अपितु ऋण की वसूली पर भी कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। साथ ही अनेक सही व्यक्तियों को ऋण प्राप्त नहीं हो पाते हैं, जिससे इनका लाभ सीमित लोगों को ही मिल पाता है।

3. जन-सहयोग का अभाव – सहकारिता को सामान्य ग्रामवासियों ने अपने विकास से सम्बन्धित कार्यक्रम न मानकर इसे एक सरकारी आन्दोलन माना है। सरकार ने इसका प्रचार भी इसी ढंग से किया है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक जनता इस ओर आकर्षित नहीं हो पायी है। जनसामान्य का भरपूर सहयोग न मिल पाने के कारण यह आन्दोलन असफल रहा है।

4. अपर्याप्त साधन – सहकारी समितियाँ वित्तीय साधनों की कमी के कारण अपने सदस्यों को पूर्ण सहायता भी नहीं दे पायी हैं। अपर्याप्त साधनों के कारण कृषकों को समय पर ऋण नहीं मिल पाता तथा उन्हें साहूकारों के चंगुल में फंसना पड़ता है। साधनों की अपर्याप्तता के कारण सहकारी आन्दोलन पिछड़ जाता है।

5. ब्याज की विभिन्न दरें – विभिन्न राज्यों में सहकारी समितियों द्वारा दिये जाने वाले ऋणों की दर में भिन्नता (6 प्रतिशत से लेकर 12 प्रतिशत) के कारण भी इनकी सफलता प्रभावित
हुई है। निर्धन किसान अधिक ब्याज अच्छे उत्पादन के दिनों में भी सहन नहीं कर सकता है।

6. लाल फीताशाही – सहकारी आन्दोलन की धीमी प्रगति को एक अन्य कारण सहकारी आन्दोलन से सम्बन्धित सहकारी विभागों में असामंजस्य तथा लाल फीताशाही को पाया जाना है। प्राथमिक, प्रान्तीय तथा केन्द्रीय समितियों में सहयोग का अभाव है तथा ऋण वितरण इत्यादि में अधिकारी भ्रष्ट तरीके अपनाते हैं। अतः जनसाधारण इनका लाभ नहीं उठा पाता है।

7. जनता की उपेक्षापूर्ण दृष्टिकोण – सहकारी समितियों में होने वाले पक्षपात, जातिगत भावना, भ्रष्टाचार आदि के कारण जनसाधारण ने इनके प्रति उपेक्षापूर्ण नीति अपना ली है। धन का अनुचित उपयोग, फर्जी ऋण तथा गबन आदि का अखाड़ा बनती जा रही इन समितियों में ग्रामवासियों का विश्वास ही नहीं रहा।

8. व्यापारिक सिद्धान्तों की अवहेलना तथा पक्षपात – सहकारी समितियों की असफलता का एक अन्य कारण व्यापारिक नियमों की अवहेलना है। केवल ब्याज लेकर ऋण का नवीनीकरण कर देना, आवश्यकतानुसार ऋण न देना, ऋण देने में पक्षपात करना इत्यादि कारण जनता को इन समितियों के प्रति उदासीन बना देते हैं।

9. दलबन्दी – सहकारी आन्दोलन की मन्द गति का प्रमुख कारण दलबन्दी है। दलबन्दी के कारण जो संघर्ष उत्पन्न होते हैं उनसे सहकारी आन्दोलन की गति मन्द पड़ जाती है।

10. अन्य कारण – जातिवाद, स्वार्थपरता, व्यापक भ्रष्टाचार, नियन्त्रण तथा मार्गदर्शन का अभाव, प्रतिस्पर्धा व अकुशल प्रबन्ध के कारण भी भारत में सहकारी आन्दोलन की गति मन्द रही है।

भारत में सहकारी आन्दोलन को सफल बनाने के लिए सुझाव

सहकारी आन्दोलन को सफल बनाने में निम्नलिखित सुझाव सहायक हो सकते हैं

  1.  जनसाधारण में सहकारिता के सिद्धान्तों के प्रति जागरूकता उत्पन्न की जानी चाहिए, जिससे वे स्वत: उनके सदस्य बनकर इनसे लाभान्वित होने लगे।
  2.  सहकारी समितियों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया जाना चाहिए, जिससे वे अपने कार्य-क्षेत्र का विस्तार कर सकें।
  3. शिक्षा द्वारा जनता को सहकारिता लाभों से परिचित कराया जाना चाहिए।
  4.  सहकारी समितियों में व्याप्त भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद तथा जातिवाद समाप्त किया जाना चाहिए।
  5. इसकी नीतियाँ अधिक व्यावहारिक रूप से बनायी जानी चाहिए, जिससे उन्हीं लोगों को इनका लाभ मिल सके, जिन्हें उसकी आवश्यकता है।
  6. सहकारिता से सम्बन्धित सरकारी विभागों में समन्वय रखा जाए और लालफीताशाही समाप्त की जाए।
  7. सरकारी हस्तक्षेप कम किया जाना चाहिए जिससे इनकी प्रगति आशातीत हो सके।
  8. कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे सहकारी समितियाँ प्रभावी हो सकें।
  9.  सहकारी समितियों में दलबन्दी को समाप्त किया जाए, जिससे वे स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य संचालन कर सकें।
  10.  सहकारिता की कार्य-विधि को ठीक से सुधारा जाए, जिससे जनता को इस आन्दोलन का पूरा-पूरा लाभ मिल सके।
  11. सहकारिता का प्रशिक्षण देकर जनसामान्य को इस आन्दोलन में सहभागी बनने के लिए प्रेरित किया जाए।
  12. सहकारी समितियों के लेखे-जोखे की समय-समय पर जाँच करायी जाए।
  13. अलाभकारी समितियों को समाप्त कर दिया जाए, जिससे अपव्यय पर रोक लग सके।
  14. प्रचार तथा जनसामान्य से सम्पर्क करके लोगों की अभिरुचि इस आन्दोलन के प्रति जगायी जाए।
  15. महिलाओं में सहकारिता के प्रति लगाव पैदा किया जाए, जिससे उनकी उत्पादक प्रवृत्ति का लाभ इस आन्दोलन को प्राप्त हो सके।

निष्कर्ष – भारत में सहकारिता की धीमी गति तथा असफलताओं को देखते हुए यह नहीं समझ लेना चाहिए कि यह आन्दोलन व्यर्थ है। भारत जैसे कृषि-प्रधान देश के लिए सहकारिता बहुत आवश्यक है। मोरारजी देसाई के शब्दों में, “सचमुच का सहकारिता आन्दोलन प्रजातन्त्र की शक्ति बन सकता है।” सहकारिता पूँजीवाद और समाजवाद की अति को समाप्त करने वाला अमोघ अस्त्र है। यह मानव-समाज को सुधार कर सुखी तथा सम्पन्न जीवन प्रदान करने में पूर्णतः सक्षम है।

इससे ग्रामीण समाज में शोषण और अन्याय पर अंकुश लगेगा तथा समूचे समाज में खुशहाली और समृद्धि की लहर फैल जाएगी। श्री फखरुद्दीन अली अहमद के शब्दों में, भारत जैसे विकासशील राष्ट्रों में सामाजिक परितोष से युक्त आर्थिक संगठन के रूप में सहकारिता का एक विशेष महत्त्व है।’ यह शोषण से बचाव का सशक्त माध्यम है। मिर्धा समिति के शब्दों में, “सहकारी आन्दोलन निर्धन व्यक्ति की शक्तिशाली और सम्पन्न वर्ग द्वारा किये जाने वाले शोषण से रक्षा करने का अति उत्तम संगठन प्रस्तुत करता है। भारत में इस महान आन्दोलन को सफल बनाने की आवश्यकता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
सहकारिता के चार मुख्य उद्देश्य बताइए। या सहकारिता के कोई दो लाभ बताइए। [2016]
उत्तर:
सहकारिता के चार मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं

1. ग्रामीण पुनर्निर्माण – भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार ग्राम हैं। अत: ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के उद्देश्य से सहकारिता आन्दोलन का शुभारम्भ किया गया। प्रारम्भ में सहकारिता का क्षेत्र केवल साख-समितियों तक ही सीमित था, किन्तु बाद में यह उद्योग, कृषि, बाजार, उपभोग आदि के क्षेत्रों में भी अपनाया गया।

2. साधनों एवं शक्तियों का सम्मिलित उपयोग – सहकारिता की क्रिया को दुर्बल और निर्धन व्यक्तियों ने इस उद्देश्य से अपनाया जिससे कि वे अपनी संयुक्त शक्तियों और साधनों का आपसी प्रबन्ध के द्वारा उपयोग कर सकें तथा लाभ प्राप्त कर सकें। इस प्रकार सहकारिता ऐसे व्यक्तियों का ऐच्छिक संगठन है जो समानता, स्व-सहायता तथा लोकतान्त्रिक व्यवस्था के आधार पर सामूहिक हित के लिए करता है।

3. बिचौलियों तथा सूदखोरों से मुक्ति – किसानों को अपनी फसल को बेचने तथा कृषि के लिए खाद, बीज, ट्रैक्टर आदि खरीदने के लिए बिचौलियों का सहारा लेना पड़ता था। . इसके अतिरिक्त धनाभाव में वे सूदखोरों से भारी ब्याज पर ऋण लेते थे। सहकारिता का उद्देश्य कृषकों को इन बिचौलियों तथा सूदखोरों से मुक्ति दिलाना है। अब ये कार्य वे सहकारी समितियों के माध्यम से करते हैं तथा बिचौलियों और सूदखोरों के शोषण से बच जाते हैं।

4. उत्तरदायित्व की भावना का विकास – सहकारिता में प्रत्येक सदस्य प्रत्येक कार्य में साझीदार होता है तथा अपने कार्य के प्रति उत्तरदायी होता है। उसमें उत्तरदायित्व की भावना
का विकास होता है तथा वह एक जिम्मेदार नागरिक बनता है।

प्रश्न 2
सहकारिता के चार आर्थिक लाभों को समझाइए। [2009]
उत्तर:
सहकारिता से मिलने वाले निम्नलिखित आर्थिक लाभों के कारण भारत में सहकारिता को व्यापक रूप से अपनाना अत्यन्त लाभदायक होगा

  1. कम ब्याज पर ऋण – सहकारी साख समितियाँ किसानों एवं कारीगरों को कम ब्याज पर ऋण प्रदान करके उन्हें महाजनों के शोषण से बचाती हैं।
  2. मध्यस्थों का अन्त – कई राष्ट्रों में सहकारी आन्दोलन ने उत्पादकों तथा उपभोक्ताओं की सहकारी समितियों को परस्पर सम्बद्ध करके विपणन-प्रणाली से मध्यस्थों को पर्याप्त सीमा
    तक हटा दिया है।
  3.  कृषि का विकास – बहु-उद्देशीय सहकारी समितियाँ कृषकों के लिए उत्तम बीज, यन्त्र तथा उर्वरकों की व्यवस्था करके उनकी कृषि-उपज में वृद्धि करने में सहायक होती हैं। इसी प्रकार
    चकबन्दी समितियाँ तथा कृषि समितियाँ कृषि के विकास में सहायक सिद्ध होती हैं।
  4. निवास की समस्या का समाधान – सहकारी गृहनिर्माण समितियाँ अपने निर्धन तथा निस्सहाय सदस्यों के लिए निवास की व्यवस्था करती हैं।

प्रश्न 3
सहकारी कृषि समितियों पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
गाँवों की कृषि सम्बन्धी एक बहुत बड़ी समस्या यह है कि खेत छोटे-छोटे टुकड़ों में बँटे हुए हैं। भूमि-विभाजन की इस समस्या का समाधान करने के लिए जिन चार प्रकार की सहकारी समितियों की स्थापना की गयी, वे हैं
(i) सहकारी संयुक्त कृषि समिति,
(ii) सहकारी उत्तम कृषि समिति,
(iii) सहकारी काश्तकारी कृषि समिति तथा
(iv) सहकारी सामूहिक कृषि समिति।।

  1. सहकारी संयुक्त कृषि समिति में कई लोगों की भूमि के छोटे-छोटे टुकड़ों को एक बड़े कृषि फार्म के रूप में एकत्रित कर दिया जाता है। इस संयुक्त फार्म पर सभी लोग सामूहिक रूप
    से कृषि करते हैं और लाभ को सभी साझेदारों में उनकी भूमि के अनुपात में बाँट दिया जाता है। भूमि सामूहिक होते हुए भी प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी भूमि का मालिक बना रहता है।
  2.  सहकारी उत्तम कृषि समिति किसानों के लिए उत्तम किस्म के बीज, खाद एवं कृषि-यन्त्र जुटाती है, जिससे अधिक फसल पैदा हो सके।
  3. सहकारी काश्तकारी कृषि समिति गाँव की सारी भूमि को खरीद लेती है, उस पर ग्रामीणों से खेती करवाती है और बदले में उन्हें वेतन एवं लाभांश देती है।
  4. सहकारी सामूहिक कृषि समिति भी उत्पादन बढ़ाने के लिए सामूहिक रूप से कृषि करने को प्रोत्साहन देती है।

प्रश्न 4
सहकारी भूमि विकास बैंक पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भूमि सुधार, पुराने ऋणों को चुकाने एवं सिंचाई की सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए किसानों को ब्याज पर दीर्घावधि ऋण जुटाने हेतु सहकारी भूमि विकास बैंकों की स्थापना की गयी है। प्रारम्भ में इनका नाम ‘भूमि बन्धक बैंक’ था। सहकारी भूमि विकास बैंक भी निम्नलिखित दो प्रकार के हैं

  1. केन्द्रीय भूमि विकास बैंक – ये राज्य स्तर पर होते हैं। ये बैंक ऋण-पत्र जारी करते हैं। वर्तमान में इनकी संख्या 1,707 है।
  2. प्राथमिक भूमि विकास बैंक – ये बैंक गाँवों में कार्यरत् हैं जो किसानों को पम्पिंग सेट खरीदने, बिजली लगाने, भारी कृषि-यन्त्र खरीदने तथा गिरवी भूमि को छुड़ाने के लिए दीर्घकालीन ऋण देते हैं। ये बैंक किसानों की भूमि रेहन (गिरवी) रखकर उन्हें ऋण देते हैं। इस प्रकार इन बैंकों ने किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

प्रश्न 5
सहकारिता से उपभोक्ताओं को होने वाले लाभों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सहकारी संस्थाओं से सबसे अधिक लाभ उपभोक्ताओं को प्राप्त होते हैं। सहकारी आन्दोलन से उपभोक्ताओं को मुख्यतया निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं

1. उचित कीमत पर अच्छी किस्म की वस्तुओं की प्राप्ति – सहकारी भण्डार सीधे उत्पादकों से थोक मूल्य पर वस्तुएँ खरीदते हैं जिस कारण वे अपने सदस्यों को कम मूल्य पर वस्तुएँ देने में समर्थ होते हैं। साथ ही ‘सहकारी वितरण प्रणाली’ कम तोल, मिलावट, व्यापारियों द्वारा उपभोक्ताओं का शोषण आदि बुराइयों को दूर करने पर अपना ध्यान केन्द्रित करती है।

2. बचत में वृद्धि – उपभोक्ताओं को वस्तुओं के उचित कीमत पर उपलब्ध होने के कारण उनकी बचत में वृद्धि होती जाती है। अपनी बचतों को उपभोक्ता अन्य उपयोगी कार्यों में लगा सकते हैं।

3. मध्यस्थों द्वारा शोषण में कमी – सहकारी उपभोक्ता भण्डारों की स्थापना से उपभोक्ताओं तथा उत्पादकों के मध्य सीधा सम्बन्ध स्थापित हो जाने के कारण मध्यस्थों (दुकानदारों) द्वारा उपभोक्ताओं के किये जाने वाले शोषण में कमी हो जाती है।

4. सदस्यों में लाभ का वितरण – सहकारी भण्डारों को जो शुद्ध वार्षिक लाभ होता है उसके एक भाग को संचित कोष में डालकर शेष लाभ को सदस्यों में बाँट दिया जाता है। इससे सदस्यों की आय में वृद्धि होती है।

5. रहन-सहन के स्तर का उन्नत होना – उपभोक्ताओं को अच्छी वस्तुएँ उपलब्ध होने तथा उनकी बचत एवं आय में वृद्धि होने से उनका रहन-सहन का स्तर उन्नत हो जाता है।

6. महाजनों से छुटकारा – सहकारी साख समितियाँ अपने सदस्यों को कम ब्याज पर ऋण प्रदान करके उनकी महाजनों व साहूकारों के शोषण से रक्षा करती हैं।

7. सहकारी तथा सेवा – भावना का विकास-सहकारी संस्थाएँ अपने सदस्यों को संगठित करके उन्हें लोकतन्त्रीय ढंग से कार्य करने की शिक्षा प्रदान करती हैं। फिर इन संस्थाओं का प्रमुख उद्देश्य अपने सदस्यों की सेवा करना होता है न कि लाभ कमाना। इस दृष्टि से ये संस्थाएँ अपने सदस्यों में सेवा-भावना का विकास करती हैं।

8. सार्वजनिक हित के कार्य – सहकारी संस्थाएँ अपने संचित कोषों का पर्याप्त भाग पुस्तकालय, वाचनालय, क्लब आदि की स्थापना पर व्यय करती हैं। इससे सदस्यों (उपभोक्ताओं) के सामाजिक-कल्याण में वृद्धि होती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
सहकारिता के पाँच आधारभूत सिद्धान्तों के नाम बताइए।
उत्तर:
सहकारिता के पाँच आधारभूत सिद्धान्तों के नाम हैं

  1. ऐच्छिक संगठन,
  2. लोकतन्त्रीय प्रबन्ध,
  3. पारस्परिक सहायता द्वारा आत्म-सहायता,
  4. एकता व भाई-चारे का सिद्धान्त तथा
  5. लाभ के न्यायोचित वितरण का सिद्धान्त।

प्रश्न 2
सहकारिता की पाँच विशेषताएँ बताइए। उत्तर सहकारिता की पाँच विशेषताएँ हैं

  1.  ऐच्छिक संगठन,
  2.  आर्थिक हितों की रक्षार्थ गठन,
  3.  लोकतन्त्रीय सिद्धान्त के आधार पर संचालन,
  4. सामूहिक प्रयासों द्वारा सामूहिक कल्याण तथा
  5. न्यायपूर्ण आधार पर लाभों का वितरण।।

प्रश्न 3
सहकारिता को परिभाषित कीजिए तथा उसकी चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
सहकारिता ऐसे व्यक्तियों का ऐच्छिक संगठन है, जो समानता, स्व-सहायता तथा लोकतान्त्रिक व्यवस्था के आधार पर सामूहिक हितों के लिए कार्य करता है। सहकारिता की चार विशेषताएँ हैं

  1. यह एक ऐच्छिक संगठन है,
  2. यह लोकतन्त्रात्मक संगठन है,
  3. इसका प्रमुख उद्देश्य सेवा है न कि लाभ कमाना तथा
  4. यह समानता को बढ़ावा देती है।।

प्रश्न 4
पाँच प्रकार की सहकारी समितियों के नाम बताइए।
या
किन्हीं दो सहकारी समितियों के नाम लिखिए।
उत्तरं:
पाँच प्रकार की सहकारी समितियाँ निम्नलिखित हैं

  1.  सहकारी साख समितियाँ,
  2. बहु-उद्देशीय सहकारी समितियाँ,
  3. सहकारी बुनकर समितियाँ,
  4. सहकारी औद्योगिक समितियाँ तथा
  5. सहकारी उपभोक्ता समितियाँ (भण्डार)।।

प्रश्न 5
सहकारी उद्योग समितियों के बारे में आप क्या जानते हैं ? [2007]
उत्तर:
ग्रामीण कुटीर उद्योग एवं अन्य उद्योगों को बढ़ावा देने, उनसे सम्बन्धित कच्चा माल एवं मशीनें उपलब्ध कराने आदि की दृष्टि से भी सहकारी समितियों की स्थापना की गयी है। 30 जून, 1997 तक देश में कुल 67,449 औद्योगिक सहकारी समितियाँ थीं जिनकी सदस्य संख्या 54.12 लाख थी। वर्ष 1996-97 में इन समितियों ने ₹ 2,532.27 करोड़ का कारोबार किया। जुलाहों एवं बुनकरों के लिए माल की सुविधाएँ जुटाने एवं बिक्री के लिए सहकारी बुनकर समितियाँ बनायी गयी हैं। चमड़ा रेंगने, मिट्टी के बर्तन बनाने, फल व सब्जी को डिब्बों में बन्द करने एवं साबुन, तेल, गुड़ और ताड़ उद्योगों से सम्बन्धित सहकारी समितियाँ भी स्थापित की गयी हैं। सन् 1966 में राष्ट्रीय औद्योगिक सहकारी संघ की स्थापना हुई। इसका उद्देश्य सहकारी समितियों के उत्पादों की बिक्री में सहायता करना है।

प्रश्न 6
दुग्ध वितरण सहकारी समितियों के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
दूध, मक्खन और घी की सुविधाएँ जुटाने के लिए सहकारी डेयरी समितियों की स्थापना की गयी है। ये समितियाँ किसानों को अधिक दूध उत्पन्न करने और आय बढ़ाने की सुविधाएँ प्रदान करती हैं। 30 जून, 1997 में 67,121 प्राथमिक दुग्ध आपूर्ति सहकारी समितियाँ थीं, जिनकी सदस्य-संख्या 84.5 लाख थी। सन् 1970 में डेयरी सहकारी समितियों का एक राष्ट्रीय परिसंघ बनाया गया, जिसका मुख्यालय आनन्द में है।

प्रश्न 7
सहकारी विपणन समितियों पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने की दृष्टि से सहकारी विपणन समितियों की स्थापना की गयी है। भारतीय किसानों को उनकी अज्ञानता एवं गरीबी के कारण उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता। वे न तो माल के गुण जानते हैं और न ही मण्डियों तक ले जाने में सक्षम होते हैं। उनकी इस कमजोरी का फायदा उठाते हुए दलाल एवं महाजन उनसे कम कीमत पर माल खरीद लेते हैं। सहकारी विक्रय समितियों की स्थापना इस ओर एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जो किसानों की दलालों से रक्षा करती हैं और उन्हें उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाती हैं। ‘सहकारी विपणन निगम इस प्रकार की समितियों को कई सुविधाएँ भी उपलब्ध कराता है।

प्रश्न 8
सहकारी उपभोक्ता भण्डारों के क्या उद्देश्य होते हैं ? [2009]
उत्तर:
सहकारी उपभोक्ता भण्डारों के उद्देश्य हैं

  1.  उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर शुद्ध वस्तुएँ उपलब्ध कराना,
  2. मध्यस्थों के अनावश्यक लाभ समाप्त करना,
  3.  उचित वितरण प्रणाली स्थापित करना,
  4. मूल्य वृद्धि को रोकने में सहायता देना तथा
  5. उपभोक्ताओं में एकता की भावना उत्पन्न करना।

प्रश्न 9
ग्रामीण समाज में सहकारी समितियों के दो कार्यों को लिखिए। [2007, 10]
या
ग्रामीण भारत में सहकारी समितियों के किन्हीं दो उपयोगी योगदानों को बताइए। [2009, 10, 11]
उत्तर:
ग्रामीण समाज में सहकारी समितियों के निम्नलिखित दो कार्य हैं

1. ग्रामीण कृषि व्यवसाय में सुधार करना – सहकारी संयुक्त कृषि समितियों, सहकारी सामूहिक समितियों तथा सहकारी काश्तकार समितियों आदि के द्वारा ग्रामीण कृषि व्यवसाय में सुधार करने के प्रयास किये जाते हैं।

2. कारीगरों, श्रमिकों एवं उपभोक्ताओं को लाभ पहुँचाना – सहकारी समितियाँ केवल कृषकों को लाभ नहीं पहुँचाती, अपितु इनसे कारीगरों, श्रमिकों तथा उपभोक्ताओं को भी लाभ होता है।

प्रश्न 10
साख सहकारिताओं से आप क्या समझते हैं ? [2007, 14]
उत्तर:
ग्रामीण ऋणग्रस्तता को समाप्त करने के लिए ‘सहकारी ऋण समितियाँ अधिनियम पारित किया गया। इस समय विभिन्न प्रकार की सहकारी समितियाँ देश में कार्यरत हैं, जिनमें सहकारी साख समितियों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनमें निम्नलिखित मुख्य हैं

  1. प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ – ये प्रमुख सहकारी साख समितियाँ हैं, जिनका मुख्य कार्य किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार करने के लिए उन्हें ऋण उपलब्ध कराना है। लगभग
    10 करोड़ कृषक इन समितियों के सदस्य हैं।
  2. सहकारी भूमि विकास बैंक – यह भी एक सहकारी साख समिति है, जिसका उद्देश्य कृषकों को लम्बी अवधि के लिए कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराना है। इसकी लगभग 1,700 शाखाएँ हैं। इसके अन्तर्गत केन्द्रीय विकास बैंक तथा प्राथमिक भूमि विकास बैंक किसानों की भूमि रहन रखकर ऋण उपलब्ध कराते हैं।

प्रश्न 11
सहकारी समितियों के असन्तोषजनक कार्यों के चार कारकों को लिखिए। [2013]
उत्तर:
सहकारी समितियों के असन्तोषजनक कार्यों के चार कारक निम्नलिखित हैं

  1. सहकारी समितियों के प्रबन्धकों ने अधिक कुशलता से कार्य नहीं किया है।
  2. सहकारी आन्दोलनों को सफल बनाने के लिए सरकार ने पर्याप्त वित्तीय सहायता उपलब्ध नहीं करायी है।
  3. सरकार के विभिन्न विभागों में सहकारिता आन्दोलन को सफल बनाने के लिए जरूरी सामंजस्य का अभाव रहा है।
  4.  सहकारी समितियों के चुनावों ने ग्रामीणों में गुटबन्दी को उत्साहित कर इसके प्रभावशाली ढंग से कार्य करने में बाधा डाली है।

प्रश्न 12
भारत में सहकारी आन्दोलन की मन्द गति के दो कारण बताइए। [2016]
उत्तर:
भारत में सहकारी आन्दोलन की मन्द गति के दो कारण निम्नलिखित हैं

  1.  भ्रष्टाचार – यह सहकारी समितियों की प्रमुख समस्या है। इन समितियों के सदस्य निजी स्वार्थों की पूर्ति के कारण अपनी जिम्मेदारियों का सही प्रकार से निर्वहन नहीं करते हैं।
  2.  सदस्यों में बचत की आदत का अभाव – जब तक सदस्यों में बचत की आदत को विकसित नहीं किया जाएगा, तब तक सहकारी आन्दोलन सफल नहीं हो सकता है।

प्रश्न 13
साख समितियों से आप क्या समझते हैं? [2012]
उत्तर:
सहकारी साख समितियाँ – सहकारी साख समितियों का गठन ग्रामवासियों को ऋणग्रस्तता से छुटकारा दिलाने के लिए किया गया है। इन समितियों द्वारा ग्रामवासियों को ऋण, चिकित्सा इत्यादि की सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं। सहकारी साख समितियों अनेक प्रकार की होती हैं, जिनमें प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ तथा सहकारी भूमि विकास बैंक प्रमुख हैं। कृषि ऋण समितियाँ किसानों को ऋण उपलब्ध कराने का कार्य करती हैं, जबकि विकास ऋण पुराने ऋण चुकाने, कृषि में सुधार करने, अतिरिक्त सिंचाई साधन जुटाने हेतु दीर्घकालीन ऋण उपलब्ध कराती है। सहकारी भूमि विकास बैंक दो प्रकार के होते हैं केन्द्रीय भूमि विकास बैंक तथा प्राथमिक भूमि विकास बैंक। पहले प्रकार के बैंक राज्य स्तर पर गठित किए जाते हैं, जबकि द्वितीय प्रकार के बैंक ग्राम स्तर पर होते हैं।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
सहकारिता का मुख्य आधार क्या है? [2012, 14]
उत्तर:
पारस्परिक जन सहयोग।

प्रश्न 2
भारत में सहकारी समितियाँ अधिनियम (को-ऑपरेटिव सोसाइटीज ऐक्ट) कब पारित हुआ था ? [2007]
उत्तर:
भारत में सहकारी समितियाँ अधिनियम 1912 ई० में पारित हुआ था।

प्रश्न 3
सहकारी साख-समितियाँ कितने प्रकार की होती हैं ? उनके नाम बताइए।
उत्तर:
सहकारी साख-समितियाँ दो प्रकार की होती हैं

  1. अल्पावधि ऋण देने वाली; जैसे‘प्राथमिक कृषि ऋण-समिति’ तथा
  2.  लम्बी अवधि के लिए ऋण देने वाली; जैसे ‘सहकारी भूमि विकास बैंक’।

प्रश्न 4
बहु-उद्देशीय सहकारी समितियाँ क्या होती हैं ?
उत्तर:
जो सहकारी समितियाँ अपने सदस्यों के साथ कई उद्देश्यों या आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं, वे बहुउद्देशीय सहकारी समितियाँ कहलाती हैं; जैसे – सदस्यों के हितार्थ ऋण, विपणन, खाद, बीज आदि की व्यवस्था।

प्रश्न 5
कृषि के क्षेत्र में सहकारिता के दो लाभ बताइए।
उत्तर:
कृषि क्षेत्र में सहकारिता के दो लाभ ये हैं

  1. खेती करने की विधियों में सुधार तथा
  2. कृषि-वस्तुओं की बिक्री-व्यवस्था में सुधार।

प्रश्न 6
कृषि-कार्यों के लिए नलकूप तथा कुएँ लगाने के लिए ऋण कौन-सी समितियाँ देती
उत्तर:
कृषि-कार्यों के लिए नलकूप तथा कुएँ लगाने के लिए ऋण सहकारी सिंचाई समितियाँ देती हैं।

प्रश्न 7
सहकारी आन्दोलन की सफलता किस बात पर निर्भर है ?
उत्तर:
सहकारी आन्दोलन की सफलता जन-सहयोग पर निर्भर है।

प्रश्न 8
किसानों को उनकी उपज का समुचित मूल्य दिलवाने का काम कौन-सी सहकारी समितियाँ करती हैं ?
उत्तर:
किसानों को उनकी उपज का समुचित मूल्य दिलवाने का काम सहकारी विपणन (विक्रय) समितियाँ करती हैं।

प्रश्न 9
सहकारी भूमि विकास बैंक किसानों को किन कार्यों के लिए ऋण उपलब्ध कराते हैं ?
उत्तर:
सहकारी भूमि विकास बैंक किसानों को भूमि-सुधार, पुराने ऋणों को चुकाने एवं सिंचाई की सुविधा प्राप्त करने के लिए ऋण उपलब्ध कराते हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
भारत में सहकारिता का प्रारम्भ निम्नलिखित में से किस वर्ष में हुआ ?
(क) सन् 1902 में
(ख) सन् 1904 में
(ग) सन् 1905 में
(घ) सन् 1907 में

प्रश्न 2
निम्नलिखित में से किसका सम्बन्ध सहकारिता से नहीं है ?
(क) सामाजिक संगठन
(ख) ऐच्छिक संगठन
(ग) लाभ का वितरण
(घ) सदस्यों का आर्थिक कल्याण

प्रश्न 3
किसानों के लिए अच्छे बीजों और उपकरणों की सुविधा कौन-सी समिति द्वारा दी जाती है?
(क) विक्रय समिति
(ख) औद्योगिक समिति
(ग) कृषि समिति
(घ) उपभोक्ता समिति

प्रश्न 4
सहकारी भूमि विकास बैंक किसानों को कौन-सा ऋण देने का कार्य करते हैं ?
(क) आवश्यकतानुसार
(ख) मध्यकालीन
(ग) अल्पकालीन
(घ) दीर्घकालीन

प्रश्न 5
प्रत्येक सबके लिए तथा सब प्रत्येक के लिए यह किसका मूल मंत्र है? [2012]
(क) श्रम दान का
(ख) भूदान का
(ग) सहकारिता का
(घ) इन सभी का

प्रश्न 6
ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक आवास प्रदान करने के लिए ‘समग्र आवास योजना’ कब प्रारम्भ की गयी।
(क) 1998 ई० में
(ख) 1999 ई० में
(ग) 2000 ई० में
(घ) 2001 ई० में

प्रश्न 7
भारत में सहकारी आन्दोलन का प्रमुख दोष है
(क) सरकारी सहायता पर निर्भरता
(ख) मूल्यों में वृद्धि
(ग) मध्यस्थों का अन्त
(घ) लाभ का समान वितरण

उत्तर:
1. (ख) सन् 1904 में,
2. (क) सामाजिक संगठन,
3. (ग) कृषि समिति,
4. (घ) दीर्घकालीन,
5. (ग) सहकारिता का,
6. (ख) 1999 ई० में,
7. (क) सरकारी सहायता पर निर्भरता।

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