UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 2 Wildlife and Ecosystem

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 2 Wildlife and Ecosystem (वन्य जीवन एवं पारिस्थितिक तन्त्र) are part of UP Board Solutions for Class 12 Geography. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 2 Wildlife and Ecosystem (वन्य जीवन एवं पारिस्थितिक तन्त्र).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Geography
Chapter Chapter 2
Chapter Name Wildlife and Ecosystem (वन्य जीवन एवं पारिस्थितिक तन्त्र)
Number of Questions Solved 19
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 2 Wildlife and Ecosystem (वन्य जीवन एवं पारिस्थितिक तन्त्र)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
पारिस्थितिक-तन्त्र (Ecosystem) से आप क्या समझते हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं ?
या
टिप्पणी लिखिए-पारिस्थितिकी-तन्त्र। [2008, 09, 10, 13, 14]
या
पारिस्थितिक-तन्त्र की व्याख्या कीजिए। [2013]
उत्तर

पारिस्थितिकी Ecology

‘पारिस्थितिकी’ शब्द की व्युत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द ‘OIKOS’ से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- ‘घर’ अथवा ‘आवास’। अतः इस आधार पर पारिस्थितिकी का अर्थ हुआ-जीव का घर या आवास। इस प्रकार जीव विज्ञान का वह भाग जिसके अन्तर्गत जीवों तथा उनके पर्यावरण की पारस्परिक क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, पारिस्थितिकी विज्ञान कहलाता है। जीव और पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्धों के अध्ययन को वातावरणीय जीव विज्ञान (Environmental Biology) भी कहा जाता है। एच० रेटर (H. Reiter) ने ‘इकोलॉजी’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1868 ई० में किया था। जीव और उसका पर्यावरण प्रकृति के जटिल एवं गतिशील घटक हैं। पर्यावरण अनेक घटकों का समूह है। ये घटक जीवों को पारस्परिक क्रियाओं द्वारा प्रभावित करते रहते हैं। पारिस्थितिकी को अनेक विद्वानों ने परिभाषित किया है, जिनमें से कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं –

ओडम (Odum) के अनुसार, “इकोसिस्टम पारिस्थितिकी की वह आधारभूत इकाई है जिसमें जैविक और अजैविक वातावरण एक-दूसरे पर अपना प्रभाव डालते हुए पारस्परिक अनुक्रिया से ऊर्जा और रासायनिक पदार्थों के निरन्तर प्रवाह से तन्त्र की कार्यात्मक गतिशीलता बनाये रखते हैं।’
“पारिस्थितिकी प्रकृति की अर्थव्यवस्था तथा प्राणियों के अपने अजैविक तथा जैविक पर्यावरण के साथ समस्त सम्बन्धों का अध्ययन है।”– हैकल
“पारिस्थितिकी पर्यावरण के सन्दर्भ में जीवों के अध्ययन का विज्ञान है।’                -वार्मिग
इस प्रकार उपर्युक्त परिभाषाओं से निष्कर्ष निकलता है कि पारिस्थितिकी जैविक तथा पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन है। वास्तव में पृथ्वीतल पर पाये जाने वाले प्राणियों तथा जैविक एवं अजैविक पर्यावरण की सम्मिलित क्रिया-प्रतिक्रिया पारिस्थितिक-तन्त्र कहलाती है।

पारिस्थितिक-तन्त्र Ecosystem

‘इकोसिस्टम’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम सन् 1935 में ए०जी० तांसले द्वारा किया गया था। उनके अनुसार, “पारिस्थितिक-तन्त्र पर्यावरण के सभी जीवित एवं निर्जीव कारकों के सम्पूर्ण सन्तुलन के परिणामस्वरूप बनी हुई प्रणाली है।”
विभिन्न विद्वानों द्वारा पारिस्थितिकी एवं पारिस्थितिक-तन्त्र (Ecosystem) के पर्याय शब्दों का प्रयोग –
UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 2 Wildlife and Ecosystem 1
UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 2 Wildlife and Ecosystem 2
कोई भी जैविक तत्त्व पर्यावरण के बिना जीवित नहीं रह सकता। उसका एक निश्चित पारिस्थितिक-तन्त्र होता है। स्वयं में हमारी पृथ्वी एक बहुत बड़ा पारिस्थितिक-तन्त्र है, जिसमें समस्त जीव समुदाय सूर्य से ऊर्जा प्राप्ति पर निर्भर करता है तथा भौतिक पर्यावरण जो भूतल पर पाया जाता है; अर्थात् स्थलमण्डल, वायुमण्डल एवं जलमण्डल में जीवनोपयोगी समस्त तत्त्वों की प्राप्ति करता है। जलवायु जैविक तत्त्वों- प्राणी एवं पौधों के विचरण तथा उनकी क्रियाओं को नियन्त्रित करती है। प्राणी एवं पौधे स्वयं पारस्परिक रूप से पर्यावरण को भी प्रभावित करते हैं। इस प्रकार पर्यावरण और उसमें निवास करने वाले जीवधारी आपस में एक-दूसरे को प्रभावित करते हुए एक तन्त्र बना लेते हैं। यही तन्त्र’ पारिस्थितिक-तन्त्र’ (Ecosystem) कहलाता है।

प्रकृति में कोई भी जीवधारी एवं उसका समुदाय अकेले रहकर अपनी क्रियाओं का सम्पादन नहीं कर सकता, बल्कि प्रकृति में पाये जाने वाले एवं विचरण करने वाले सम्पूर्ण जीव-जन्तु एवं पेड़-पौधे एक साथ मिलकर कार्य करते हैं तथा एक-दूसरे पर प्रभाव डालते हैं। इस प्रकार किसी क्षेत्र में कार्य करने वाले जैविक एवं अजैविक अंशों का सम्पूर्ण योग ही ‘पारिस्थितिक-तन्त्र’ कहलाता है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि “पारिस्थितिक-तन्त्र प्रकृति की एक क्रियात्मक इकाई है।” इस प्रकार किसी क्षेत्र या प्रदेश विशेष में कार्यरत जैविक एवं अजैविक अंशों का पूर्ण योग ही पारिस्थितिक-तन्त्र कहलाता है। पारिस्थितिक-तन्त्र को वैज्ञानिकों ने निम्नलिखित प्रकार परिभाषित किया है –

“पारिस्थितिक-तन्त्र पर्यावरण तथा समुदाय की क्रियात्मक समक्रिया है।’      -क्लार्क
‘‘पारिस्थितिक-तन्त्र मूल क्रियात्मक इकाई है, जिसमें जैविक तथा अजैविक पर्यावरण सम्मिलित हैं जो परस्पर प्रभावित करते हैं जिससे ऊर्जा प्रवाह-तन्त्र में निश्चित एवं स्पष्ट जैविक विविधता का चक्र बनता है।  -ओडम
इस प्रकार पारिस्थितिक-तन्त्र जैविक एवं पर्यावरण के सभी भागों में तथा उसके बीच पारस्परिक क्रिया का योग है। पारिस्थितिक-तन्त्र में जीवधारियों का समुदाय अनेक प्रकार के जीवों (पेड़-पौधे एवं जीव-जन्तु) से मिलकर बनता है। पारिस्थितिक-तन्त्र स्थायी अथवा अस्थायी दोनों प्रकार का हो सकता है।

पारिस्थितिक-तन्त्र का वर्गीकरण
Classification of Ecosystem

पारिस्थितिक-तन्त्र को अनेक छोटी इकाइयों में वर्गीकृत किया जा सकता है जिससे उनको आकारिकी, कार्यिकी एवं गति सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त हो सके। इस वर्गीकरण का आधार जलवायु, निवास स्थान एवं पौधों का समुदाय होता है। पारिस्थितिक-तन्त्र निम्नलिखित दो प्रकार का होता है –
1. प्राकृतिक पारिस्थितिक-तन्त्र (Natural Ecosystem) – यह तन्त्र प्रकृति द्वारा सम्पन्न किया जाता है। प्राकृतिक आवास निम्नलिखित दो प्रकार का होता है –

  1. स्थलीय (Terrestrial) – वन, घास के मैदान, मरुस्थलीय आदि।
  2. जलीय (Aquatic) – जलीय पारिस्थितिक-तन्त्र दो प्रकार का होता है –
    1. स्वच्छ जलीय (Fresh Water) – इसके अन्तर्गत, नदी, झील एवं तालाब आदि सम्मिलित किये जाते हैं।
    2. समुद्र जलीय (Sea Water) – इसके अन्तर्गत खारे जल के क्षेत्र अर्थात् महासागर, सागर एवं खारे पानी की झीलें सम्मिलित की जाती हैं।

2. कृत्रिम अथवा मानव-निर्मित पारिस्थितिक-तन्त्र (Artificial Ecosystem) – यह तन्त्र : मानव एवं उसकी क्रियाओं द्वारा सम्पन्न होता है। मानव अपने क्रिया-कलापों एवं तकनीकी-प्राविधिक ज्ञान द्वारा प्राकृतिक सन्तुलन में गड़बड़ कर देता है; अर्थात् असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। मानव बड़े-बड़े क्षेत्रों को काटकर कृषि-योग्य भूमि, औद्योगिक क्षेत्रों तथा बड़ी-बड़ी बस्तियों का निर्माण करता है। यह मानव द्वारा निर्मित भूदृश्य कहलाता है। मानव भौतिक पर्यावरण को नियन्त्रित करने का प्रयास करता है, परन्तु नियन्त्रण के स्थान पर इसमें असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसे कृत्रिम अथवा अप्राकृतिक पारिस्थितिक-तन्त्र कहा जाता है।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 2 Wildlife and Ecosystem

प्रश्न 2
पारिस्थितिक-तन्त्र में असन्तुलन की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
या
पारिस्थितिक-तन्त्र के असन्तुलन की समस्या की विवेचना कीजिए तथा उसके निराकरण के उपायों को प्रस्तावित कीजिए।
या
टिप्पणी लिखिए-पारिस्थितिक असन्तुलन।
या
टिप्पणी लिखिए-पारिस्थितिक असन्तुलन की समस्या।
या
पारिस्थितिक असन्तुलन की समस्या व उसके निराकरण के किन्हीं दो उपायों का सुझाव दीजिए। [2009]
उत्तर

पारिस्थितिकीय असन्तुलन की समस्या
Problem of Imbalance Ecology

मानव द्वारा पारिस्थितिक-तन्त्र का शोषण किया जाता है। इनमें प्राकृतिक वनस्पति, वन्य जीव-जन्तु, मत्स्य आदि प्रमुख हैं। अधिकतम खाद्यान्नों की प्राप्ति के लिए पारिस्थितिक-तन्त्र में अनेक
परिवर्तन हुए हैं जिससे सामान्य पारिस्थितिक-तन्त्र का विकास हुआ है। पारिस्थितिकीय असन्तुलन को पर्यावरण प्रदूषण भी कहा जा सकता है। मानव प्राकृतिक संसाधनों का शोषण करता है; जैसे-खानों से
खनिजों का शोषण, भूगर्भ से खनिज तेल, वनों से लकड़ी की कटाई कर तथा अपने मनोरंजन के लिए। वन्य जीवों का आखेट कर पारिस्थितिकीय सन्तुलन को बिगाड़ता रहता है। पालतू पशुओं से दूध, मांस, ऊन तथा अन्य पदार्थ प्राप्त होते हैं जिससे उसकी भोजन-श्रृंखला छोटी हो गयी है। इससे इन पालतू पशुओं की संख्या में भी कमी होने लगी है तथा पारिस्थितिकीय असन्तुलन की समस्या ने जन्म ले लिया है।

“पारिस्थितिक-तन्त्र के किसी भी घटक का वांछित एवं आवश्यक मात्रा से कम हो जाना अथवा अधिक हो जाना ही पारिस्थितिकीय असन्तुलन’ कहलाता है तथा प्रत्येक घटक को उस अनुपात में रहना। जिससे इस तन्त्र के अन्य घटकों पर कोई हानिकारक प्रभाव न पड़े’पारिस्थितिक सन्तुलन’ कहलाता है।”
पारिस्थितिक-तन्त्र में असन्तुलन की स्थिति तभी उत्पन्न होती है जब किसी सम्पूर्ण पोषण-स्तर का विनाश हो जाता है। यह स्थिति जीवों की कमी के कारण अथवा वैकल्फ्कि साधनों की कमी के कारण अथवा प्रदूषण के कारण हो सकती है।

1. प्रदूषण की समस्या – कृषि उत्पादन की सफलता फसलों द्वारा अपने पारिस्थितिक-तन्त्र के अनुकूलन पर निर्भर करती है। स्थानीय जलवायु दशाएँ फसलों का निर्धारण करती हैं। रासायनिक उर्वरकों द्वारा पोषक तत्त्वों में वृद्धि कर उत्पादन में भी वृद्धि के प्रयास किये गये हैं तथा अधिक उत्पादन देने वाली फसलें खोज ली गयी हैं। ‘हरित क्रान्ति’ ने खाद्यान्न उत्पादन में तो वृद्धि की है, परन्तु उर्वरकों के उत्पादन से प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो गयी है। मानव ने फसलों के क्षेत्रफल में वृद्धि की है जिसके कारण प्रेयरी, टैगा एवं स्टेप्स घास के मैदानों में प्राकृतिक वनस्पति में कमी हो गयी है। पादपों को कीटनाशकों से बचाव के लिए कीटनाशक दवाओं का अधिकाधिक उपयोग किया जाने लगा है, परन्तु । इनका अधिक उपयोग मानव के लिए हानिकारक है। इनसे मानव को दूषित खाद्य सामग्री प्राप्त होती है। इन कीटनाशकों के उत्पादन काल में प्रदूषण की अनेक समस्याएँ जन्म लेती हैं। भोपाल गैस त्रासदी इसका एक मुख्य उदाहरण है जिससे मानवता में अपंगता ने जन्म लिया है।

2. जैव-प्रदूषण की समस्या – आदि काल से लेकर आज़ तक वनों का बड़ी निर्ममता से शोषण किया जाता रहा है। इससे वन-क्षेत्रों का ह्रास हुआ है। प्रारम्भ से ही विश्व के अनेक भागों में स्थानान्तरित अथवा झूमिंग कृषि पद्धति प्रचलित है। इस पद्धति के अन्तर्गत उर्वर भूमि को प्राप्त करने के लिए मानव वन-क्षेत्रों का शोषण कर उस पर कृषि करता है। जब इस भूमि की उर्वरता समाप्त हो जाती है तो इसे परती छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार वनों के निर्दयतापूर्वक शोषण से पर्यावरण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हुई है तथा पारिस्थितिक-तन्त्र भी असन्तुलित हुआ है। वनों की कमी के कारण भू-अपरदन, अनावृष्टि, बाढ़ आदि समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं। अतः आज मानव के समक्ष अनेक प्रदूषण सम्बन्धी समस्याएँ विकराल रूप धारण कर गयी हैं। इसी कारण विश्व में वन-संरक्षण के प्रयास किये जा रहे हैं।

जलीय जीवों के प्राणों की रक्षा करना भी अति आवश्यक है। मत्स्य व्यवसाय पर ध्यान दिया जाना अति आवश्यक है। मछली से मानव को प्रोटीन की प्राप्ति होती है। यदि मत्स्य व्यवसाय का विकास सुचारु रूप से नहीं हुआ तो खाद्यान्न में प्रोटीन की कमी हो जाएगी। विश्व में 3% मानव का भोजन पूर्ण रूप से मछली पर निर्भर करता है, जबकि नॉर्वे, न्यूफाउण्डलैण्ड एवं जापान सदृश देशों में 10% मानव मछली के ऊपर ही निर्भर करते हैं। इनकी कमी से खाद्य समस्या उत्पन्न हो सकती है। अतः इस ओर ध्यान दिये जाने की, नितान्त आवश्यकता है।

3. जनाधिक्य की समस्या संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार – सन् 2010 में विश्व की जनसंख्या 6.9 अरब हो गयी है। सन् 2050 तक इसके 9.10 अरब हो जाने का अनुमान है। जनसंख्या की इस अतिशय वृद्धि के कारण वन क्षेत्रों एवं चरागाहों की कमी होती जा रही है। भोजन की समस्या के समाधान के लिए कृषि-क्षेत्रों का विस्तार किया जा रहा है जिस कारण वन एवं घास क्षेत्रों का विनाश किया जा रहा है जिससे पारिस्थितिक-तन्त्र में अन्तर उपस्थित हुआ है। इसके साथ ही आवास समस्या उत्पन्न हो गयी है। बस्तियों के विकास के लिए उत्पादक भूमि का अधिग्रहण होता जा रहा है।

इस प्रकार जनसंख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि के कारण अनेक समस्याएँ विकराल रूप धारण कर चुकी हैं। भोजन, वस्त्र एवं आवास जैसी प्राथमिक आवश्यकताओं का अभाव होता जा रहा है। इससे प्रदूषण की अनेक समस्याओं ने जन्म लिया है। वायु, जल व मृदा प्रदूषण वर्तमान युग की सबसे बड़ी समस्याएँ हैं। यह पारिस्थितिकीय असन्तुलन की स्थिति है। इससे आज मानव समुदाय को अनेक विषमताओं का सामना करना पड़ता है।

पारिस्थितिकीय असन्तुलन की समस्या का निवारण
Solution of the Problem of Imbalance Ecology

पारिस्थितिक-तन्त्र में असन्तुलन की समस्या के निवारण के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए –
1. जनाधिक्य पर नियन्त्रण – आधुनिक युग में विश्व की जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि होती जा रही है जिस पर नियन्त्रण किया जाना अति आवश्यक है। यदि जनसंख्या-वृद्धि उपलब्ध संसाधनों के अनुसार हो तो अधिक उपयुक्त रहेमा।

2. वन क्षेत्रफल में वृद्धि तथा उनका संरक्षणे – प्रदूषण से बचाव के लिए वन क्षेत्रफल में घृछि किया जा अति आवश्यक है। भारत में सामाजिक वानिकी तथा वन महोत्सव आदि कार्यक्रमों द्वारा वन क्षेत्रफल में वृद्धि के प्रयास किये जा रहे हैं। उत्तराखण्ड में श्री सुन्दर लाल बहुगुणा का ‘चिपको आन्दोलन भी इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।
वन एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक स्रोत है। यह वन्य जीवन के लिए अति आवश्यक है। पर्यावरणीय सन्तुलन को बनाये रखने के लिए वनों को महत्त्वपूर्ण योगदान है। पौधे पर्यावरण से कार्बन डाइऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन नि:सृत करते हैं जिसका उपयोग जन्तुओं द्वारा श्वसन क्रिया में किया जाता है।

3. जल संसाधनों में वृद्धि एवं उनका संरक्षण – जल संसाधनों में वृद्धि किया जाना अति आवश्यक है। जेब जल में अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ, कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थों तथा गैसों के एक निश्चित अनुपात में अधिक अथवा कम अनावश्यक एवं हानिकारक पदार्थ घुले होते हैं, तब जल का प्रदूषण हो जाता है। प्रदूषित जल का उपयोग करने से प्राणी समुदाय में अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं; अतः ऐसे प्रयास किये जाने चाहिए कि जल का प्रदूषण न होने पाये।

जल संसाधनों में वृद्धि के लिए मत्स्य उत्पादक क्षेत्रों में जलं प्रदूषणरहित होना चाहिए। जल-क्षेत्रों में जिन मछलियों की प्रजाति की कमी है, उनके पकड़ने पर रोक लगा देनी चाहिए; जैसे- सील, खेल आदि। ऐसे प्रयास किये जाने चाहिए कि मछलियों की भोज्य-सामग्री वनस्पति एवं प्लैंकटन पर्याप्त मात्रा में पनपती रहे। इसके लिए इन क्षेत्रों में शुद्ध जल की प्राप्ति होना अति आवश्यक है। यह जल प्रदूषणरहित होना चाहिए। ऐसे क्षेत्र मछलियों के अक्षय भण्डार हो सकते हैं। मछली पकड़ने की विकसित तकनीक होनी चाहिए तथा उन्हें नियमित रूप से ही पकड़ा जाना चाहिए।

4. वन्य-प्राणियों का संरक्षण – वन्य जीवों में लगभग 350 जातियाँ स्तनधारियों की तथा 2,100 पक्षियों की होने के साथ-साथ लगभग 20,000 प्रजातियाँ कीटों की वन्य अवस्था में पायी जाती हैं। अतः पारिस्थितिक-तन्त्र में सन्तुलन बनाये रखने के लिए वन्य प्राणियों का संरक्षण अति आवश्यक है। वन्य जीवों के संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपायों को कार्यरूप में परिणत किया जाना चाहिए –

  1. वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए अभयारण्यों की स्थापना की जानी चाहिए।
  2. वन्य जीवों के आवासीय स्थलों को संरक्षण दिया जाना चाहिए।
  3. वन्य जीवों की विभिन्न जातियों को संरक्षण दिया जाना चाहिए।
  4. नवीन वन्य जातियों को वन-क्षेत्रों में पालन-पोषण के प्रयास किये जाने चाहिए।
  5. सभी देशों में वन्य जीवों के आखेट पर प्रतिबन्ध लगा दिये जाएँ तथा इनके अनुपालन के लिए कठोर नियम एवं कानून होने चाहिए। इनका कठोरता से अनुपालन किया जाना चाहिए।

इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों से निष्कर्ष निकलता है कि प्राणी-समुदाय के कल्याण एवं उसके पर्यावरण को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए पारिस्थितिक-तन्त्र को सन्तुलित बनाये रखना अति आवश्यक है।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 2 Wildlife and Ecosystem

प्रश्न 3
पर्यावरण प्रदूषण क्या है? प्रदूषण-नियन्त्रण के उपाय बताइए। [2014]
या
पर्यावरण प्रदूषण के नियन्त्रण हेतु उपायों का वर्णन कीजिए। (2016)
उत्तर

पर्यावरण प्रदूषण Environmental Pollution

प्रदूषण का साधारण अर्थ किसी भी वस्तु की भौतिक गुणवत्ता में किसी अवांछित तत्त्व द्वारा होने वाले ह्रास से है। मिट्टी, भूमि, जल, वायु, प्राकृतिक वनस्पति आदि प्राकृतिक संसाधन ऐसे ही पदार्थ हैं जो अनेक प्राकृतिक तथा मानवीय कारणों से अपनी स्वाभाविक गुणवत्ता खो देते हैं तथा प्रदूषित हो जाते हैं। प्रदूषण,पाँच प्रकार का होता है –

  1. स्थल प्रदूषण
  2. जल प्रदूषण
  3. वायु प्रदूषण
  4. ध्वनि प्रदूषण तथा
  5. आणविक प्रदूषण।

प्राकृतिक कारणों से होने वाले प्रदूषण का प्रभाव बहुत धीमे तथा सीमित स्तर पर होता है और प्रकृति काफी हद तक उसका सन्तुलन भी कर देती है, किन्तु मानवीय कार्यों से इन पदार्थों या संसाधनों में इस प्रकार ह्रास होता है कि उसकी भरपाई सम्भव नहीं होती। उदाहरणार्थ- निरन्तर एकही प्रकार की फसल एक क्षेत्र में बोते रहने से मिट्टी की उर्वरता का ह्रास होता है। यह एक प्रकृतिक-परिघटना है। मानव द्वारा अतिशय सिंचाई, रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग, पर्वतीय ढालों पर स्थानान्तरी कृषि आदि कारणों से मिट्टियाँ अनुर्वर हो जाती हैं।

इसी प्रकार जल में अनेक मानवीय क्रिया-कलापों से’या मानव द्वारा अशुद्धियाँ मिला दी जाती हैं जिससे जल संदूषित (contaminated) हो जाती है तथा सेवन योग्य नहीं रहता। ज्वालामुखी के विस्फोट से सीमित स्तर पर वायु का प्रदूषण होता है, किन्तु मानव द्वारा औद्योगिक कारखानों, वाहनों आदि के धुएँ द्वारा व्यापक स्तर पर वायु प्रदूषण होता है जिसके भयंकर दुष्परिणाम हो रहे हैं। इससे वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि हो रही है जिससे वायुमण्डल में तापमान में वृद्धि हो रही है। इस कारण वैश्विक ऊष्मन’ (global warming) बढ़ रहा है। जो भविष्य में विश्वव्यापी संकट का कारण हो सकता है।

कृषि में रसायनों के प्रयोग से विषैले रसायन जल तथा भूमि के माध्यम से भोजन द्वारा मानव शरीर में पहुँचकर मानवीय जीवन को संकटग्रस्त कर देते हैं। यही नहीं, ये विषैले रसायन वायुमण्डल में पहुँचकर ‘अम्ल वर्षा’ (acid rains) का खतरा पैदा कर रहे हैं, जिसका प्रभाव उत्पत्ति के स्रोत तक सीमित न होकर विश्वव्यापी हो गया है। रेफ्रिजरेटरों के प्रयोग से क्लोरो-फ्लोरो कार्बन तत्त्व वायु में मिलकर उसे प्रदूषित कर रहे हैं जिससे वायुमण्डल की ओजोन परत का क्रमशः क्षय हो रहा है। ओजोन गैस की कमी से मानब तृथा समस्त प्राणियों का जीवन संकटग्रस्त हो जायेगा।

महानगरों में कारखानों के कारण भारी शोर होता है। परिवहन के साधन, लाउडस्पीकर आदि भी शोर पैदा करते हैं। इसे ध्वनि प्रदूषण’ कहा जाता है। मनुष्य एक निश्चित सीमा तक ही शोर सहन कर सकता है। जब यह (शोर) सहन-शक्ति से बाहर हो जाता है तो मनुष्य के लिए कष्टप्रद होता है। इससे बहरेपन तथा अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं पैदा हो जाती हैं।

आधुनिक युग में परमाणु ऊर्जा का प्रयोग दिनोंदिन बढ़ रहा है। यही नहीं, परमाणु अस्त्र बनाने की होड़ भी जारी है। परमाणु ऊर्जा का भयंकर रूप द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति पर जापान के नागासाकी तथा हिरोशिमा नगरों पर बम प्रहार के रूप में अनुभव किया जा चुका है। यही नहीं, परमाणु संयंत्रों से होने वाले रिसाव से भी भयंकर हानि होती है। पूर्व सोवियत संघ के ‘चर्नोबिल संयंत्र में इसी प्रकार की दुर्घटना से भारी दुष्परिणाम हुए थे। यदि अनजाने में या भूलवश भी इन परमाणु संयंत्रों का दुरुपयोग हो जाये तो इससे सम्पूर्ण मानवता का अस्तित्व संकटग्रस्त हो जायेगा।

पर्यावरण का बढ़ता हुआ प्रदूषण किसी एक क्षेत्र या देश की समस्या नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व के लिए गम्भीर चिन्ता का विषय है। इसीलिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस विषय पर विचार-विमर्श तथा इस संकट से उबरने के प्रयास किये जा रहे हैं। अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन तथा एजेन्सियाँ इस दिशा में कार्यरत हैं।

नियन्त्रण के उपाय Measures of Control

निम्नलिखित उपायों द्वारा पर्यावरण प्रदूषण को रोका जा सकता है –

  1. नगरों तथा महानगरों में मल-मूत्र, गन्दगी, कूड़े-कचरे के निस्तारण (disposal) की उचित व्यवस्था करनी चाहिए, उसे नालों व नदियों में नहीं मिलाना चाहिए। इस कचरे के लिए उपचार संयन्त्र (treatment plants) लगाने चाहिए जिससे ऊर्जा तथा उर्वरक बनाये जा सकते हैं तथा ऐसे जल का सिंचाई में प्रयोग किया जा सकता है।
  2. कृषि में अन्धाधुन्ध रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों तथा अन्य घातक रसायनों के प्रयोग को नियन्त्रित करना चाहिए जिससे भूमि तथा जल का प्रदूषण कम हो। नियन्त्रित सिंचाई पद्धति अपनानी चाहिए जिससे भूमि का अपरदन तथा उर्वरता ह्रास कम हो।
  3. बस्तियों के निकट कारखानों तथा भट्टों को हटाकर अन्यत्र स्थापित करना चाहिए जिससे वायु प्रदूषण का नियन्त्रण हो सके।
  4. कारखानों में वायु प्रदूषण को रोकने वाले संयंत्र लगाने चाहिए।
  5. वाहनों से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए वाहनों में उपयुक्त उपकरणों की व्यवस्था होनी चाहिए।
  6. परमाणु संयंत्रों को प्रदूषण मुक्त प्रणाली’ (pollution free devices) से जोड़ना चाहिए।
  7. जनता को प्रदूषण के प्रति सचेत करना तथा पर्यावरण रक्षा की शिक्षा देना आवश्यक है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
एक पारिस्थितिक-तन्त्र के रूप में जैवमण्डल की विवेचना कीजिए।
उत्तर
जैवमण्डल से तात्पर्य पृथ्वीतल के उस संकीर्ण क्षेत्र से है जहाँ स्थलमण्डल, जलमण्डल और वायुमण्डल परस्पर सम्पर्क में आते हैं तथा जहाँ समस्त प्रकार का जीवन पाया जाता है। यहाँ जीवन का आशय समस्त जीवधारियों से है, चाहे वे प्राणी (जीव-जन्तु, कीड़े-मकोड़े, पशु-पक्षी आदि) हों या पादप (पेड़-पौधे इत्यादि)। सभी जीवधारियों के लिए पारिस्थितिक-तन्त्र आवश्यक होता है जो उनके जन्म तथा विकास के लिए उत्तरदायी होता है। स्थिति के अनुसार पारिस्थितिक-तन्त्र भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। इस तन्त्र में भौतिक तथा जैविक घटक परस्पर प्रतिक्रिया करते हैं।

जैवमण्डल पृथ्वी का विशालतम पारिस्थितिक-तन्त्र है। इसमें सूर्य से प्राप्त ऊर्जा समस्त जीवधारियों के लिए प्राणदायी होती है। इस विशाल तन्त्र के भौतिक घटकों में जलवायु के समस्त तत्त्व, धरातल, जलराशियाँ, खनिज पदार्थ आदि सम्मिलित हैं। जैविक घटकों में उत्पादक (पेड़-पौधे) तथा उपभोक्ता (प्राणी-जीव-जन्तु) सम्मिलित हैं, जो शाकाहारी, मांसाहारी तथा सर्वाहारी (मानव) होते हैं।

प्रश्न 2
पर्यावरण की समग्रता की विवेचना कीजिए।
उत्तर
फिटिंग ने पर्यावरण की जिस समग्रता का उल्लेख किया है वह पर्यावरण के चारों क्षेत्रों का ही मिला-जुला प्रभाव है। सभी जीवधारी जीवनयापन के लिए प्रकृति पर आश्रित हैं। मानव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्यावरण का दोहन करता है। पर्यावरण के तीनों क्षेत्र सामूहिक रूप से जैवमण्डल पर अपना प्रभाव डालते हैं। मनुष्य अजैव, जैव एवं सांस्कृतिक पर्यावरण के साथ अनुकूलन करने का प्रयास करता है। कहीं उसे प्रकृति का कोपभाजन भी बनना पड़ता है तो कहीं वह पर्यावरण को अपने अनुरूप बदलने का प्रयास करता है। यह बदलाव पर्यावरण का रूपान्तरण कहलाता है। रूपान्तरण में वह प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक कारकों में परिवर्तन लाता है।

कहीं-कहीं उसे प्रकृति के साथ समायोजन (समझौता) भी करना पड़ता है। यह समायोजन मानवे अपनी प्रगति एवं आर्थिक विकास के लिए करता है। इस समायोजन के लिए उसे अपनी क्षमता, कौशल और सूझ-बूझ का प्रयोग करना पड़ता है। पर्यावरण मानव की छाँट के लिए परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है और मानव उनका उपयोग एक क्रियाशील जीव के रूप में करता है। पर्यावरण के चारों क्षेत्रों के पारस्परिक अन्तर्सम्बन्धों द्वारा ही नवीन भौगोलिक तथ्य जन्म लेते हैं। इन्हीं तथ्यों द्वारा मानव विनाशकारी और सृजनकारी क्रियाओं को जन्म देती है। भू-क्षरण, बाढ़ तथा प्रदूषण आदि समस्याएँ मानव की विनाशकारी क्रियाओं का ही परिणाम हैं, जो मनुष्य की प्रकृति के प्रति शोषणात्मक प्रवृत्ति का द्योतक है। प्रकृति की ओर से पर्यावरण के सभी क्षेत्र पारस्परिक अन्तर्निर्भर और सन्तुलित हैं, परन्तु मानव अपने लाभ के कारण इनकी निर्भरता और सन्तुलित स्थिति को भंग करने का प्रयास करता रहता है।

प्रश्न 3
पारिस्थितिक तन्त्र के असन्तुलन की समस्या के निराकरण हेतु कोई दो सुझाव दीजिए। (2015)
उत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 2 के अन्तर्गत ‘पारिस्थितिकीय असन्तुलन की समस्या का निवारण’ शीर्षक देखें।

प्रश्न 4
पारिस्थितिक तन्त्र में असन्तुलन के किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए। [2014, 15]
उत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 2 के अन्तर्गत पारिस्थितिकीय असन्तुलन की समस्या’ शीर्षक में देखें।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
पारिस्थितिक-तन्त्र को परिभाषित कीजिए। [2008, 09, 10, 14, 16]
उत्तर
पारिस्थितिक-तन्त्र धरातल की एक ऐसी इकाई है जिसमें पर्यावरण के सभी भौतिक तथा अभौतिक (जैविक) घटक परस्पर अन्त:क्रिया करते हुए एक विशिष्ट तन्त्र का निर्माण करते हैं।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 2 Wildlife and Ecosystem

प्रश्न 2
पारिस्थितिक तन्त्र की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2012]
उत्तर

  1. पारिस्थितिक तन्त्र एक क्रियाशील इकाई है, जिसमें जैव तथा अजैव तत्त्व परस्पर एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। इस तन्त्र की सक्रियता से ही जैव तत्त्व उत्पादित होते हैं।
  2. पारिस्थितिक तन्त्र ऊर्जा (सूर्य ऊर्जा) द्वारा संचालित होता है तथा अपनी कार्यप्रणाली द्वारा अन्य तत्त्वों में ऊर्जा का प्रवाह करता है।

प्रश्न 3
पारिस्थितिकी तन्त्रों के दो प्रमुख घटकों के नाम लिखिए। [2007, 11, 12, 13, 14, 16]
उत्तर
पारिस्थितिकी तन्त्र के दो प्रमुख घटकों के नाम हैं –

  1. अजैविक घटक
  2. जैविक घटक।

प्रश्न 4
स्थलीय पारितन्त्र के घटकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
स्थलीय पारितन्त्र में वन, घास के मैदान, मरुस्थल आदि आते हैं।

प्रश्न 5
स्वच्छ जलीय एवं सागरीय पारितन्त्र में क्या अन्तर है।
उत्तर
स्वच्छ जलीय पारितन्त्र नदी, झील, तालाब आदि से मिलकर बनता है, जो प्राय: मीठे जल को धारण करते हैं। इसके विपरीत सागरीय पारितन्त्र खारे पानी से युक्त सागरों एवं महासागरों से मिलकर बना होता है।

प्रश्न 6
पारिस्थितिक असन्तुलन को परिभाषित कीजिए।
या
पारिस्थितिकीय असन्तुलन क्या है ? [2008, 16]
उत्तर
पारिस्थितिक-तन्त्र के किसी भी घटक का वांछित एवं आवश्यक मात्रा से कम हो जाना। अथवा अधिक हो जाना पारिस्थितिक असन्तुलन कहलाता है। प्रत्येक घटक का उस अनुपात में रहना जिससे इस तन्त्र के अन्य घटकों पर कोई हानिकारक प्रभाव न हो, पारिस्थितिक सन्तुलन कहलाता है।

प्रश्न 7
पारिस्थितिकी को परिभाषित कीजिए। [2012]
उत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 के अन्तर्गत पारिस्थितिकीय शीर्षक में दखें।

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1
पारिस्थितिक-तन्त्र के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है –
(क) यह एक संवृत तन्त्र है
(ख) सम्पूर्ण जैवमण्डल एक पारिस्थितिक तन्त्र है।
(ग) मानव द्वारा निर्मित कार्यात्मक तन्त्र है।
(घ) प्रदूषण वृद्धि तन्त्र है।
उत्तर
(ख) सम्पूर्ण जैवमण्डल एक पारिस्थितिक तन्त्र है।

प्रश्न 2
निम्नलिखित में से सर्वोच्च या अन्तिम उपभोक्ता है –
(क) चीता
(ख) शेर
(ग) बाज
(घ) ये सभी
उत्तर
(घ) ये सभी

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 2 Wildlife and Ecosystem

प्रश्न 3
निम्नलिखित में अपघटक जीव है – (2007)
(क) कवक
(ख) जीवाणु
(ग) मृतोपजीवी
(घ) ये सभी
उत्तर
(घ) ये सभी

प्रश्न 4
निम्नलिखित में से कौन-सा युग्म सुमेलित नहीं है –
(क) हैकल-इंकोलॉजी
(ख) ई०पी० ओडम-इकोटोन
(ग) चार्ल्स एल्टन-वैज्ञानिक
(घ) क्लीमेण्ट-समुदाय विज्ञान
उत्तर
(ख) ई०पी० ओडेम-इकोटोन

प्रश्न 5
पारिस्थितिक तन्त्र की कार्यप्रणाली निर्भर करती है – [2014]
(क) उपभोक्ता पर
(ख) स्वपोषित पर
(ग) वियोजक पर
(घ) ऊर्जा प्रवाह पर
उत्तर
(क) उपभोक्ता पर।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 2 Wildlife and Ecosystem (वन्य जीवन एवं पारिस्थितिक तन्त्र) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 2 Wildlife and Ecosystem (वन्य जीवन एवं पारिस्थितिक तन्त्र), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास अन्य प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँ

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास अन्य प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँ are part of UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास अन्य प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँ.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 6
Chapter Name गद्य-साहित्यका विकास अन्य प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँ
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास अन्य प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँ

अन्य प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँ


UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास अन्य प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँ img 2
UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास अन्य प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँ img 3
UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास अन्य प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँ img 4
UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास अन्य प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँ img 5
We hope the UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास अन्य प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँe help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास अन्य प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँ, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास ‘गद्य गरिमा’ में संकलित लेखक

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास ‘गद्य गरिमा’ में संकलित लेखक are part of UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास ‘गद्य गरिमा’ में संकलित लेखक.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 5
Chapter Name गद्य-साहित्यका विकास ‘गद्य गरिमा’ में संकलित लेखक
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास ‘गद्य गरिमा’ में संकलित लेखक

‘गद्य गरिमा’ में संकलित लेखक

ध्यातव्य-गद्य गरिमा’ में संकलित सभी लेखकों की प्रमुख रचनाओं और रचना-विधाओं का उल्लेख नीचे किया जा रहा है। प्रथम प्रश्न-पत्र के अन्तर्गत पूछे जा रहे बहुविकल्पीय प्रश्नों के उत्तर हेतु इनका अध्ययन आवश्यक होगा। विद्यार्थियों को चाहिए कि वे गद्य गरिमा’ और ‘कथा- भारती पाठ्यपुस्तकों में दी गयी भूमिका, लेखक-परिचय आदि का भी सम्यक् अध्ययन करे। इनमें भी आपको बहुविकल्पीय प्रश्नों से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण सामग्री प्राप्त होगी। 

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास ‘गद्य गरिमा' में संकलित लेखक img 1
UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास ‘गद्य गरिमा' में संकलित लेखक img 2

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास ‘गद्य गरिमा’ में संकलित लेखकe help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास ‘गद्य गरिमा’ में संकलित लेखक, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 1 Natural Vegetation

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 1 Natural Vegetation (प्राकृतिक वनस्पति) are part of UP Board Solutions for Class 12 Geography. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 1 Natural Vegetation (प्राकृतिक वनस्पति).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Geography
Chapter Chapter 1
Chapter Name Natural Vegetation (प्राकृतिक वनस्पति)
Number of Questions Solved 28
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 1 Natural Vegetation (प्राकृतिक वनस्पति)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
प्राकृतिक वनस्पति से आप क्या समझते हैं? उसके प्रकारों पर प्रकाश डालिए।
या
संसार में कोणधारी वनों का वितरण बताइए तथा उनकी आर्थिक उपयोगिता का वर्णन कीजिए। [2007]
या
विश्व के प्रमुख वन प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर

प्राकृतिक वनस्पति Natural Vegetation

विश्व के प्रत्येक भाग में किसी-न-किसी प्रकार की वनस्पति अवश्य ही पायी जाती है, चाहे वह झाड़ियों या घास के रूप में हो अथवा सघन वनों के रूप में हो। ये सभी प्राकृतिक रूप से उगते हैं। वास्तव में यह प्रकृति द्वारा मानव को दिये गये अमूल्य उपहार हैं। भूतल पर पेड़-पौधे आदिकाल से ही उगते आ रहे हैं; अतः तभी से मानव का सम्बन्ध उनसे स्थापित हुआ है। मानव प्राचीन काल से ही इनका शोषण करतो आयो है।
प्राकृतिक वनस्पति के प्रकार – सामान्यतया धरातल पर तीन प्रकार की प्राकृतिक वनस्पतियाँ पायी जाती हैं-

  1. वन,
  2. घास के मैदान तथा
  3. झाड़ियाँ।

उपर्युक्त तीनों में से वन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। विश्व के कुल क्षेत्रफल के 25,620 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर वनों का विस्तार है जिनमें से 59% पहुँच योग्य हैं, जिन्हें काटकर लकड़ियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। शेष वन मानव की पहुँच से बाहर हैं। ये वन रूस के भीतरी भागों, कनाडा, अलास्का, एशिया तथा दक्षिणी अमेरिका के अनेक भागों में विस्तृत हैं।

विश्व में वनों के प्रकार
Types of Forests in World

वनों को उनमें पाये जाने वाले वृक्षों एवं उनकी जातियों के आधार पर निम्नलिखित पाँच प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है –
(1) उष्ण कटिबन्धीय चौड़ी पत्ती वाले सदापर्णी वन (Tropical Evergreen Forests) – इन वनों का विस्तार विषुवत् रेखा के दोनों ओर 5°उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के मध्य है। उष्ण कटिबन्धीय भागों में अत्यधिक वर्षा एवं भीषण गर्मी पड़ने के कारण सघन वन आसानी से उग आते हैं। इन प्रदेशों में शीत एवं ग्रीष्म काल का तापान्तर बहुत ही कम होता है, जिससे वृक्षों में पतझड़ का कोई निश्चित समय नहीं होता।

इसी कारण वृक्षों में हर समय नयी पत्तियाँ निकलती रहती हैं जिससे इन्हें सदाबहार वन कहा जाता है। इनकी औसत ऊँचाई 60 से 100 मीटर तक होती है। इनके नीचे लताओं एवं झाड़ियों के फैले रहने के कारण सदैव अन्धकार छाया रहता है तथा सूर्य का प्रकाश भी धरातल तक नहीं पहुंच पाता जिससे यहाँ दलदल मिलती है। इन वनों की लकड़ी बड़ी कठोर होती है; अतः इन्हें काटने में भी बड़ी असुविधा रहती है। इन वनों के वृक्षों में आबनूस, महोगनी, बाँस, रोजवुड, लॉगवुड, रबड़, नारियल, केला, ग्रीन हार्ट, सागौन, सिनकोना, बेंत आदि मुख्य हैं।

वितरण – धरातल पर इन वनों का विस्तार 145 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर है। इनमें से 54.5% दक्षिणी अमेरिका में, 20% अफ्रीका में, 18% एशिया में, 7.5% ऑस्ट्रेलिया में तथा अन्य देशों में पाये जाते हैं। ये वन विशेषतः अमेजन बेसिन, अफ्रीका के पश्चिमी भागों तथा दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों में मिलते हैं, जहाँ वर्ष भर तापमान काफी ऊँचे तथा वर्षा का औसत 200 सेमी से अधिक रहता है।

(2) उष्ण कटिबन्धीय चौड़ी पत्ती के पर्णपाती वन (Tropical Deciduous Forests) – विश्व के जिन भागों में 100 से 200 सेमी वार्षिक वर्षा का औसत रहता है, वहाँ सदाबहार वनों के स्थान पर मानसूनी वनों की अधिकता पायी जाती है। इन वनों से बहुमूल्य लकड़ी प्राप्त होती है जो फर्नीचर एवं इमारती कार्यों में प्रयुक्त की जाती है। इन वनों के प्रसिद्ध वृक्ष सागवान, बॉस, साल, ताड़, चन्दन, शीशम, आम, जामुन, नारियल आदि हैं।

वितरण – इन प्रदेशों में इस प्रकार के वन भारत, उत्तरी म्यांमार, थाईलैण्ड, लाओस, उत्तरी वियतनाम, मध्य अमेरिकी देशों, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया, पूर्वी अफ्रीका, मलेशिया आदि देशों में मिलते हैं। इन वनों के वृक्ष की पत्तियाँ ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ में गिर जाती हैं। केवल ग्रीष्म ऋतु में ही वर्षा होने के कारण विताने वाले वृक्ष उत्पन्न होते हैं जो वर्षा एवं शीत ऋतु में तो हरे रहते हैं, परन्तु ग्रीष्मकाल के प्रारम्भ में भीतरी जल का विनाश रोकने के लिए अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं।

(3) शीतोष्ण कटिबन्धीय चौड़ी पत्ती वाले शुष्क सदापर्णी वन (Temperate Deciduous Dry Forests) – ये वनं उत्तरी गोलार्द्ध में 30° से 45° अक्षांशों के मध्य महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में 40°अक्षांश से सुदूर दक्षिण तक पाये जाते हैं। इस प्रदेश की वनस्पति को मुख्य रूप से दो कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है- शीत ऋतु में ठण्ड तथा ग्रीष्म ऋतु में जल का अभाव। इसी कारण केवल वसन्त ऋतु में ही यहाँ की वनस्पति भली-भाँति वृद्धि कर सकती है। ऐसा भूमध्यसागरीय जलवायु वाले प्रदेशों में होता है।

इन प्रदेशों में सदैव हरे-भरे रहने वाले वृक्ष मिलते हैं जो कम वर्षा तथा अनुपजाऊ मिट्टी के कारण कँटीली झाड़ियों में बदल गये हैं। यहाँ वृक्षों के हरे-भरे रहने का कारण शीतकाल की नमी का होना है जिससे इनकी पत्तियाँ झड़ नहीं पातीं। ग्रीष्म ऋतु की गर्मी से बचने के लिए इन वृक्षों में कुछ विशेषताएँ होती हैं। इन वृक्षों की जड़े लम्बी, मोटी, तने मोटे और खुरदरी छाल वाले होते हैं जिनमें काफी जल भरा रहता है। इनकी पत्तियाँ मोटी, चिकनी तथा लसदार होती हैं जिससे इनका जल वाष्प बनकर नहीं उड़ने पाता। इन वनों के मुख्य वृक्षों में ओक, जैतून, अंजीर, पाइन, फर, साइप्रस, कॉरीगम, यूकेलिप्टस, चेस्टनट, लारेल, शहतूत, वालनट आदि हैं। यहाँ पर रस वाले फलदार वृक्षों में नींबू, नारंगी, अंगूर, अनार, नाशपाती, शहतूत आदि मुख्य हैं।

वितरण – पृथ्वी पर इस प्रकार के वनों का विस्तार 47 केरोड़ हेक्टेयर भूमि पर है, जिसमें से 47.5%एशिया महाद्वीप में, 14.1% उत्तरी अमेरिका में, 16.2% यूरोप में, 9.6% दक्षिणी अमेरिका में, 9.4% अफ्रीका में तथा 1.2% ऑस्ट्रेलिया में पाये जाते हैं। इन वनों का विस्तार चीन, जापान, कोरिया, मंचूरिया, पश्चिमोत्तर यूरोप, पश्चिमी कनाडा, पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा के सेण्ट लॉरेंस प्रदेश में विशेष रूप से है।

(4) शीतोष्ण कटिबन्धीय चौड़ी पत्ती वाले पर्णपाती वन (Temperate Deciduous Forests) – भूतल पर सामान्यतया ये वन शीत-प्रधान, सम-शीतोष्ण या पश्चिमी यूरोप तुल्य जलवायु वाले प्रदेशों में उगते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इनका विस्तार भीतरी महाद्वीपीय शुष्क भागों के पूर्व में 40°से 60° अक्षांश तथा दक्षिणी गोलार्द्ध के पूर्वी तटीय भागों में 35° अक्षांश से तथा पश्चिमी तटीय भागों में 40° अक्षांशों से सुदूर दक्षिण तक है।

ग्रीष्म ऋतु में साधारण गर्मी, शीत ऋतु में कठोर सर्दी तथा वर्ष भर अच्छी वर्षा के कारण कठोर लकड़ी वाले वृक्ष उगते हैं। इनकी पत्तियाँ कड़ी ठण्ड से बचने के लिए शीत ऋतु में झड़ जाती हैं। इनके मुख्य वृक्ष ओक, मैपिल, बीच, एल्म, हैमलॉक, अखरोट, चेस्टनट, पॉपलर, एश, चेरी, हिकोरी, बर्च आदि हैं। ये वृक्ष इमारती लकड़ियों के भण्डार माने जाते हैं। कुछ क्षेत्रों में इन वनों को काटकर अबे कृषि की जाने लगी है।

वितरण – पृथ्वी पर इस प्रकार के वनों का विस्तार 47 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर है, जिसमें से 47.5% एशिया महाद्वीप में, 14 1% उत्तरी अमेरिका में, 16.2% यूरोप में, 9.6% दक्षिणी अमेरिका में, 9.4% अफ्रीका में तथा 12% ऑस्ट्रेलिया में पाये जाते हैं। इन वनों का विस्तार चीन, जापान, कोरिया, मंचूरिया, पश्चिमोत्तर यूरोप, पश्चिमी कनांडा, पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा के सेण्ट लॉरेंस प्रदेश में विशेष रूप से है।

(5) शीत कटिबन्धीय शंकुल सदापर्णी वन या टैगा वन (Temperate Coniferous Forests or Taiga Forests) – इन्हें टैगा या बोरियल वनों के नाम से जाना जाता है। एशिया महाद्वीप में इनकी दक्षिणी सीमा 55° उत्तरी अक्षांश है, जब कि उत्तरी पश्चिमी यूरोप में 60° उत्तरी अक्षांश तक है। उत्तरी अमेरिका महाद्वीप के पूर्व में इन वनों की दक्षिणी सीमा 45° उत्तरी अक्षांश तक है, जब कि दक्षिणी गोलार्द्ध में ये वन अधिक नहीं मिलते हैं।
उत्तरी गोलार्द्ध में इन वनों का विस्तार शीतोष्ण कटिबन्ध के उत्तरी भागों में है। ग्रीष्म ऋतु में 10° सेग्रे तापमान तथा जल का अभाव वृक्षों की पत्तियों को नुकीली बना देता है जिससे पत्तियों के द्वारा वायु के साथ अधिक जल वाष्प बनकर नहीं उड़ पाता।

उपयोगिता – इन वनों में झाड़-झंखाड़ नहीं मिलते हैं। अत: इनका शोषण सरलता से किया जा सकता है। ये कोमल एवं उपयोगी होते हैं।
वितरण – इन वनों का विस्तार लगभग 106 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र पर है। इसमें से 30.5% उत्तरी अमेरिका में, 40% एशिया में, 215% यूरोप में, 5% दक्षिणी अमेरिका में तथा 3% अफ्रीका में हैं। ये वन मुख्यत: उत्तरी अमेरिका तथा यूरेशिया के उत्तरी भागों में पाये जाते हैं। पूर्व सोवियत संघ में साइबेरिया के वनों को टैगा कहते हैं, जो बहुत बड़े क्षेत्र पर विस्तृत हैं।
इन वनों में चीड़, स्पूस, हेमलॉक, फर, लार्च, सीडर, साइप्रस आदि उपयोगी वृक्ष उगते हैं, जो वर्ष भर हरे-भरे रहते हैं। ये हिम्न, पाला एवं कठोर शीत को सहने में सक्षम होते हैं। हिमावरण के कारण इने वनों का पूर्ण शोषण नहीं हो पाया है।

कोणधारी वनों की आर्थिक उपयोगिता – कोणधारी वन आर्थिक दृष्टि से बहुत उपयोगी होते हैं। हिमावरण एवं कठोर शीत में उगने के पश्चात् भी प्रकृति ने इन वनों को आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण बनाया है। कोणधारी वनों का आर्थिक महत्त्व निम्नवत् है –

  1. उपयोगी मुलायम लकड़ी की प्राप्ति – कोणधारी वनों से उपयोगी तथा मुलायम लकड़ी प्राप्त होती है। इस लकड़ी से कागज की लुग्दी, पेटियाँ तथा अन्य फर्नीचर बनाये जाते हैं। दियासलाई बनाने का उद्योग भी इन्हीं वनों पर निर्भर है। उपयोगी लकड़ी की दृष्टि से ये वन प्राकृतिक वरदान हैं।
  2. उपयोगी पशुओं की उपलब्धि – इन वनों में लम्बे बाल और कोमल खाल वाले समूरधारी पशु पाये जाते हैं। ये समूरधारी पशु उपयोगी खाल प्रदान करते हैं। इस खाल से मानवोपयोगी वस्त्र तथा मूल्यवान वस्तुएँ बनायी जाती हैं।
  3. मांस की प्राप्ति – कोणधारी वनों में रहने वाले पशु, आखेटकों को स्वादिष्ट मांस उपलब्ध कराते हैं। मांस यहाँ के निवासियों के जीवन का आधार है। ये लोग इन पशुओं को मारकर उनका मांस बर्फ में दबा देते हैं तथा समय-समय पर इसे निकालकर अपनी उदर-पूर्ति करते रहते हैं।
  4. उद्योग-धन्धों का आधार – इने वनों से अनेक उद्योग-धन्धों को कच्चे माल प्राप्त होते हैं। ये वन कागज उद्योग, फर्नीचर तथा दियासलाई उद्योग को पर्याप्त मात्रा में लकड़ी प्रदान करते हैं, जब कि खाल के वस्त्र बनाने वाले उद्योग के लिए ये समूर वाली खाले प्रदान करते हैं। इस प्रकार कोणधारी वन अनेक उद्योगों को कच्चा माल जुटाकर उन्हें सुदृढ़ आधार प्रदान करते हैं।

वनों का आर्थिक महत्त्व
Economic importance of Forests

वन प्रकृति प्रदत्त निःशुल्क उपहारों में सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। मानव का नाता वृक्षों से चिर-प्राचीन है। पं० जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, “उगता हुआ वृक्ष, प्रगतिशील राष्ट्र का प्रतीक होता है।” वृक्षों की उपयोगिता को के० एम० मुंशी ने निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया है, ”वृक्षों का अर्थ है-जल, जल का अर्थ है-रोटी और रोटी ही जीवन है।” मत्स्यपुराण में वृक्षों का महत्त्व इस प्रकार व्यक्त किया गया है, “एक पौधा रोपना दस गुणवान पुत्र उत्पन्न करने के समान है।”
वास्तव में वन किसी भी राष्ट्र की अमूल्य निधि होते हैं, जो मानव की तीनों प्राथमिक आवश्यकताओं-भोजन, वस्त्र एवं आवास की आपूर्ति करते हैं। वन राष्ट्र की समृद्धि की नींव हैं।

इनसे प्रति व्यक्ति आय एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। वन राष्ट्रीय सौन्दर्य में भी वृद्धि करते हैं। वर्तमान पर्यावरण-प्रदूषण की समस्या का हल वनों द्वारा ही सम्भव है। वनों से ढकी भूमि तथा प्राकृतिक वनस्पति युक्त पर्वतीय ढाल बड़े ही रमणीक तथा सुरम्य प्रतीत होते हैं। वनों के आर्थिक महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है –
(1) वनों के प्रत्यक्ष लाभ – इसके अन्तर्गत वनों के वे लाभ सम्मिलित हैं जिनका अनुभव हमें प्रत्यक्ष रूप से होता है। इसके अन्तर्गत वनों के आर्थिक लाभों को सम्मिलित किया जाता है, जो निम्नलिखित हैं –

  1. बहुमूल्ये लकड़ी की प्राप्ति –
    • फर्नीचर बनाने के लिए,
    • ईंधन के लिए,
    • व्यावसायिक उपभोग के लिए; जैसे-कागज, दियासलाई तथा पेटियाँ बनाने के लिए,
  2. विभिन्न उद्योग-धन्धों के लिए कच्चे मालों की प्राप्ति,
  3. पशुपालन एवं पशुचारण के लिए उत्तम चरागाह,
  4. फल-फूलों की प्राप्ति,
  5. वन्य पशुओं की प्राप्ति तथा उनका आखेट,
  6. जड़ी-बूटियों एवं ओषधियों की प्राप्ति,
  7. भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि,
  8. राष्ट्रीय आय में वृद्धि,
  9. वनों से प्राप्त निर्यातक वस्तुओं द्वारा विदेशी मुद्रा का अर्जन।

(2) वनों के अप्रत्यक्ष लाभ – वनों से हमें निम्नलिखित अप्रत्यक्ष लाभ भी होते हैं –

  1. वर्षा कराने में सहायक,
  2. बाढ़ों की रोकथाम में सहायक,
  3. मरुस्थल के प्रसार पर रोक,
  4. मिट्टी का अपक्षय एवं अपरदन रोकने में सहायक,
  5. भूमिगत-जल का स्तर ऊँचा बनाये रखने में सहायक,
  6. वायुमण्डल को प्रदूषण मुक्त करने में सहायक,
  7. प्राकृतिक सौन्दर्य का भण्डार,
  8. कृषि-कार्यों में सहायक,
  9. वन्य पशु-पक्षियों को आश्रय स्थल,
  10. वायुमण्डल की आर्द्रता में वृद्धि तथा
  11. पारिस्थितिक तन्त्र को सन्तुलित बनाये रखना।

प्रश्न 2
जीव-जन्तुओं, वनस्पति एवं जलवायु के पारस्परिक सम्बन्धों की समीक्षा कीजिए।
या
वनस्पति पर जलवायु कारकों के प्रभाव की विवेचना कीजिए। [2012, 15]
या
जलवायु तथा वनस्पति के जीव-जन्तुओं से सह-सम्बन्ध की सोदाहरण विवेचना कीजिए। [2012, 13]
उत्तर
पृथ्वी पर जलवायु एकमात्र ऐसा तत्त्व है जिसके व्यापक प्रभाव से पेड़-पौधों से लेकर छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े तथा हाथी जैसे विशालकाय पशु भी नहीं बच पाते। जलवायु का जीव पर समग्र प्रभाव पारिस्थितिकी तन्त्र कहलाता है। पारिस्थितिकी तन्त्र जैव जगत् के जैवीय सम्मिश्रण का ही दूसरा नाम है। ओडम के शब्दों में, “पारिस्थितिकी तन्त्र पौधों और पशुओं की परस्पर क्रिया करती हुई वह इकाई है जिसके द्वारा ऊर्जा का मिट्टियों से पौधों और पशुओं तक प्रवाह होता है तथा इस तन्त्र के जैव व अजैव तत्त्वों में पदार्थों का विनिमय होता है।”

हम जानते हैं कि प्रत्येक जीवोम अपने पारिस्थितिकी तन्त्र का परिणाम होता है। सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर आज तक जैव विकास की एक लम्बी कहानी है। सृष्टि के प्रारम्भ में जो जीवधारी उत्पन्न हुए प्राकृतिक पर्यावरण के साथ-साथ उनका स्वरूप भी बदलता गया। रीढ़विहीन प्राणी बाद में रीढ़ वाले प्राणी के रूप में विकसित हुए। डायनासोर से लेकर वर्तमान ऊँट और जिराफ तक सभी प्राणी जलवायु दशाओं के ही परिणाम हैं।

वनस्पति जगत् के जीवन-वृत्त में झाँकने से स्पष्ट हो जाता है कि अब तक पेड़-पौधे जलवायु दशाओं के फलस्वरूप नया आकार, प्रकारे और कलेवर धारण करते रहे हैं। काई से लेकर विशाल वृक्षों के निर्माण में लम्बा युग बीता है।

आइए निरीक्षण करें कि पेड़-पौधे और जीव-जन्तु जलवायु के साथ किस प्रकार के सह-सम्बन्ध बनाये हुए हैं –
(1) वनस्पति पर जलवायु को प्रभाव अथवा पेड़ – पौधों और जलवायु का सह-सम्बन्ध – प्राकृतिक वनस्पति अपने विशिष्ट पर्यावरण की देन होती है। यही कारण है कि पेड़-पौधों और जलवायु के मध्य सम्बन्धों की प्रगाढ़ता पायी जाती है। विभिन्न जलवायु प्रदेशों में विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों का पाया जाना यह स्पष्ट करता हैं कि जलवायु और वनस्पति का अटूट सम्बन्ध है। टुण्ड्रा प्रदेश में कठोर शीत, तुषार और हिमावरण के कारण वृक्ष कोणधारी होते हैं। ढालू वृक्षों पर हिमपात का कोई प्रभाव नहीं होता। इन प्रदेशों में स्थायी तुषार रेखा पायी जाने तथा भूमि में वाष्पीकरण कम होने के कारण पेड़-पौधों का विकास कम होता है। टुण्ड्रा और टैगा प्रदेशों में वृक्ष बहुत धीरे-धीरे बढ़ते हैं। इनकी लकड़ी मुलायम होती है।

उष्ण मरुस्थलीय भागों में वर्षा की कमी तथा उष्णता के कारण वृक्ष छोटे-छोटे तथा काँटेदार होते हैं। वृक्षों की छाल मोटी तथा पत्तियाँ छोटी-छोटी होती हैं। अनुपजाऊ भूमि तथा कठोर जलवायु दशाएँ वृक्षों के विकास में बाधक बन जाती हैं।
मानसूनी प्रदेशों में वृक्ष ग्रीष्म ऋतु की शुष्कता से बचने के लिए अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं। वर्षा ऋतु में यहाँ वृक्षों का विकास सर्वाधिक होता है।
भूमध्यसागरीय प्रदेशों में जाड़ों में वर्षा होती है; अतः वृक्ष लम्बी गाँठदार जड़ों में जल एकत्र करके ग्रीष्म की शुष्कता से अपना बचाव कर लेते हैं। जाड़ों की गुलाबी धूप तथा हल्की ठण्ड ने यहाँ रसदार फलों के उत्पादन में बहुत सहयोग दिया है।
घास बहुल क्षेत्रों में वर्षा की कमी के कारण वृक्ष नहीं उगते। यहाँ लम्बी-लम्बी हरी घास उगती है। घास ही यहाँ की प्राकृतिक वनस्पति होती है।
भूमध्यरेखीय प्रदेशों में अधिक गर्मी तथा अधिक वर्षा के कारण घने तथा ऊँचे-ऊँचे वृक्ष उगते हैं। इन वृक्षों को काटना सुविधाजनक नहीं है। वृक्षों के नीचे छोटे वृक्ष तथा लताएँ उगती हैं। ये वृक्ष सदाबहार होते हैं।

पर्वतीय क्षेत्रों में ऊँचाई के साथ जलवायु में बदलाव आने के साथ ही वनस्पति के प्रकार एवं स्वरूप में भी अन्तर उत्पन्न होता जाता है। उच्च अक्षांशों एवं पर्वतीय क्षेत्रों में जहाँ बर्फ पड़ती है, वहाँ नुकीली पत्ती वाले कोणधारी वन पाये जाते हैं।
इस प्रकार स्पष्ट है कि किसी स्थान की जलवायु ही वहाँ की वनस्पति की नियन्त्रक होती है। इसके विपरीत जलवायु पर वनस्पति जगत् का प्रभाव भी पड़ता है। वनस्पति जलवायु को स्वच्छ करती है। पेड़-पौधे भाप से भरी पवनों को आकर्षित कर वर्षा कराते हैं। वृक्ष वायुमण्डल में नमी छोड़कर जलवायु को नम रखते हैं। वृक्ष पर्यावरण के प्रदूषण को रोककर जलवायु के अस्तित्व को बनाये रखते हैं। इस प्रकार पेड़-पौधे तथा जलवायु का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। जहाँ पेड़-पौधे जलवायु को प्रभावित करते हैं, वहीं जलवायु पेड़-पौधों पर अपनी अमिट छाप छोड़ती है।

(2) जीव-जन्तुओं और जलवायु का सह-सम्बन्ध – किसी भी स्थान के जैविक तन्त्र की रचना जलवायु के द्वारा ही होती है। जीव-जगत् जलवायु पर उतना ही निर्भर करता है जितना वनस्पति जगत्। जीव-जन्तुओं के आकार, प्रकार, रंग-रूप, भोजन तथा आदतों के निर्माण में जलवायु सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
टुण्ड्रा और टैगी प्रदेश में शीत-प्रधान जलवायु के कारण ही समूरधारी जानवर उत्पन्न होते हैं। प्रकृति द्वारा दिये गये उनके लम्बे तथा मुलायम बाल ही उन्हें हिमपात तथा कठोर शीत से बचाते हैं। ये पशु इस क्षेत्र के पौधों के पत्ते खाकर जीवित रहते हैं। रेण्डियर, श्वेत ‘भालू तथा मिन्क इस क्षेत्र की जलवायु की ही देन हैं।

उष्ण मरुस्थलीय क्षेत्रों में ऊँट तथा भेड़-बकरियाँ ही पनप पाती हैं। ये पशु शुष्क जलवायु में रह सकते हैं। ऊँट रेगिस्तान का जहाज कहलाता है। ये सभी पशु मरुस्थलीय क्षेत्रों में उगी वनस्पतियों के पत्ते खाकर जीवित रहते हैं। ऊँची-ऊँची झाड़ियों के पत्ते खाने में भी ऊँट सक्षम है। मरुस्थलीय प्रदेशों में दूरदूर तक पेड़-पौधों तथा जल के दर्शन तक नहीं होते। यही कारण है कि यहाँ का मुख्य पशु ऊँट बगैर कुछ खाये-पिये. हफ्तों तक जीवित रह सकता है। इन क्षेत्रों के जीवों को पानी की कम आवश्यकता होती है।
मानसूनी प्रदेश के वनों में शाकाहारी तथा मांसाहारी पशुओं की प्रधानता है। शाकाहारी पशु वृक्षों के पत्ते खाकर तथा मांसाहारी पशु शाकाहारी पशुओं को खाकर जीवित रहते हैं।

घास बहुल क्षेत्रों में घास खाने वाले पशु ही अधिक विकसित हो पाते हैं। जेबरां तथा जिराफ सवाना तुल्य जलवायु के मुख्य पशु हैं। जिराफ ऊँची-से-ऊँचीं डाल की पत्तियाँ खाने का प्रयास करता है; अतः उसकी गर्दन लम्बी हो जाती है।
विषुवतेरेखीय प्रदेश की उष्ण एवं नम जलवायु में मांसाहारी पशुओं से लेकर वृक्षों की शाखाओं पर रहने वाले बन्दर, गिलहरी तथा साँप एवं जल में पाये जाने वाले मगरमच्छ तथा दरियाई घोड़े पाये जाते हैं। उष्ण जलवायु ने यहाँ के मक्खी और मच्छरों को विषैला बना दिया है।
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि किसी भी स्थान पर पाये जाने वाले जीव-जन्तु उस स्थान की जलवायु का परिणाम हैं। जलवायु का प्रभाव जीव-जन्तुओं के आकार, रंग-रूप, भोजन, स्वभाव आदि सभी गुणों पर देखने को मिलती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
जैवमण्डल का अर्थ एवं उसके मुख्य तत्त्व बताइए। [2009, 16]
उत्तर
जैवमण्डल का अर्थ जैवमण्डल में पृथ्वी के निकट का वह कटिबन्ध सम्मिलित है जो किसी-न-किसी रूप में जैव विकास के लिए अनुकूल पड़ता है। इसका निर्माण स्थलमण्डल, जलमण्डल और वायुमण्डल तीनों के सम्पर्क क्षेत्र से होता है। इन तीनों के संयोग से ऐसा पर्यावरण बन जाता है जो वनस्पति जगत, जीव-जन्तु और मानव शरीर के विकास के लिए अनुकूल दशाएँ प्रदान करता है। पृथ्वी तेल के निकट स्थित यह क्षेत्र ही जैवमण्डल (Biosphere) कहलाता है। विद्वानों ने जैवमण्डल को तीन पर्यावरणीय उपविभागों में बाँटा है-

  1. महासागरीय,
  2. ताजे जल एवं
  3. स्थलीय जैवमण्डल।

इनमें स्थलीय जैवमण्डल अधिक महत्त्वपूर्ण है।
जैवमण्डल के तत्त्व जैवमण्डल के तीन प्रमुख तत्त्व हैं-

  1. वनस्पति के विविध प्रकार,
  2. जन्तुओं के विविध प्रकार,
  3. मानव समूह।

वनस्पति – जगत में समुद्री पेड़-पौधों से लेकर पर्वतों की उच्च श्रेणियों तक पाए जाने वाले वनस्पति के विविध प्रकार सम्मिलित हैं। जन्तु-जगत में समुद्रों में पाए जाने वाले विविध जीव, मिट्टियों को बनाने वाले बैक्टीरिया और स्थल पर पाए जाने वाले विविध जीव-जन्तु सम्मिलित हैं। जैवमण्डल के तत्त्व-वायु, जल, सूर्य के प्रकाश और मिट्टियों पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर होते हैं। जैवमण्डल के तत्त्वों में परस्पर गहरा सम्बन्ध होता है। किसी तत्त्व में कमी या अवरोध उत्पन्न होने पर जैवमण्डल पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 1 Natural Vegetation

प्रश्न 2
वनों के संरक्षण से आप क्या समझते हैं? [2016]
उत्तर
वन किसी भी देश की अमूल्य सम्पदा होते हैं। ये प्राकृतिक संसाधन ही नहीं, भौगोलिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण होते हैं। वनों को जलवायु का नियन्त्रक’ कहा जाता है। ये तापमानों की वृद्धि रोकते हैं तथा वर्षा कराने में उपयोगी होते हैं। ये बाढ़ों की आवृत्ति तथा भूमि अपरदन को भी रोकते हैं। वनों में अनेक प्रकार के जीव-जन्तु रहते हैं जो पारिस्थितिकीय सन्तुलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यही नहीं, वनों में अनेक मानवे वर्ग (जनजातियाँ) भी निवास करते हैं। इन सब कारणों से वन बहुत उपयोगी हैं।

इनके विनाश को रोकना अनिवार्य है। विभिन्न देश वनों के संरक्षण के अनेक उपाय अपनाते हैं, जिनमें-अतिशय कटाई । पर नियन्त्रण, वैज्ञानिक विधि से लकड़ी काटना, वनों का वैज्ञानिक प्रबन्धन, वन-रोपण आदि प्रमुख उपाय हैं। वनों के संरक्षण के लिए विभिन्न देश अनेक कार्यक्रम अपनाते हैं। विश्व के प्राय: सभी देशों में वर्ष के किसी-न-किसी दिन या सप्ताह में वृक्षारोपण उत्सव (वन महोत्सव) मनाया जाता है। संयुक्त राज्य, फिलीपीन्स तथा कम्बोडिया में ‘ArborDay’, जापान में ‘Green Week’, इजराइल में ‘NewYear’s Day of Tree’, आइसलैण्ड में ‘Student’s Afforestation Day’ तथा भारत में ‘वन महोत्सव मनाया जाता है। देशों के स्तर पर ही नहीं अपितु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी वनों का संरक्षण एक चिन्तनीय विषय है।

प्रश्न 3
वनों से होने वाले प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष लाभ बताइए। [2011, 15, 16]
उत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 1 के अन्तर्गत ‘वनों का आर्थिक महत्त्व’ शीर्षक देखें।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
जैवमण्डल को परिभाषित कीजिए। [2008, 09, 10, 11, 16]
उत्तर
जैवमण्डल धरातल से ऊपर कुछ ऊँचाई तक तथा समुद्रों, महासागरों एवं अन्य जलराशियों में कुछ गहराई तक विस्तृत वह संकीर्ण परत है जिसमें समस्त प्रकार का जीवन (वनस्पति, जीव-जन्तु, प्राणी, मानव, कीड़े-मकोड़े, पक्षी आदि) पाया जाता है।

प्रश्न 2
विश्व में वनों के विस्तार का कुल क्षेत्रफल कितना है और उसमें से कितना मनुष्य की पहुँच के योग्य है?
उत्तर
विश्व में वनों के विस्तार का कुल क्षेत्रफल 25,620 लाख हेक्टेयर है, जिसमें से 59% मनुष्य की पहुँच के योग्य है।

प्रश्न 3
वनस्पति को प्रभावित करने वाले मुख्य घटक कौन-कौन से हैं?
उत्तर
वनस्पति को प्रभावित करने वाले मुख्य घटक हैं-

  1. तापमान
  2. जल-पूर्ति
  3. प्रकाश
  4. पवन और
  5. मिट्टी।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 1 Natural Vegetation

प्रश्न 4
दक्षिण अमेरिका के दो घास के मैदानों के नाम लिखिए।
उत्तर
दक्षिण अमेरिका के दो घास के मैदानों के नाम हैं-

  1. मानोज एवं
  2. सवाना।

प्रश्न 5
पृथ्वी पर ऐसा कौन-सा तत्त्व है जिसके प्रभाव से कोई नहीं बच सकता?
उत्तर
पृथ्वी पर जलवायु एकमात्र ऐसा तत्त्व है जिसके व्यापक प्रभाव से पेड़-पौधे से लेकर : छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े तथा हाथी जैसे विशालकाय पशु भी नहीं बच पाते।

प्रश्न 6
प्राकृतिक वनस्पति के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
प्राकृतिक वनस्पति तीन प्रकार की होती हैं-

  1. वन
  2. घास के मैदान तथा
  3. झाड़ियाँ।

प्रश्न 7
भूमध्यरेखीय प्रदेशों में घने तथा ऊँचे-ऊँचे वृक्ष क्यों उगते हैं तथा इन वृक्षों की क्या विशेषता होती है?
उत्तर
भूमध्यरेखीय प्रदेशों में अधिक गर्मी तथा अधिक वर्षा के कारण घने तथा ऊँचे-ऊँचे वृक्ष उगते हैं। ये वृक्ष सदाबहार होते हैं।

प्रश्न 8
मानसूनी प्रदेशों में वृक्ष अपनी पत्तियाँ क्यों गिरा देते हैं? इनका विकास किस ऋतु में सर्वाधिक होता है?
उत्तर
मानसूनी प्रदेशों में वृक्ष ग्रीष्म ऋतु की शुष्कता से बचने के लिए अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं। वर्षा ऋतु में इनका विकास सर्वाधिक होता है।

प्रश्न 9
सवाना तुल्य. जलवायु के मुख्य पशु कौन-से हैं?
उत्तर
सवाना तुल्य जलवायु के मुख्य पशु हैं—जेबरा तथा जिराफ।

प्रश्न 10
सिनकोना का महत्त्व लिखिए। यह कहाँ पाया जाता है?
उत्तर
सिनकोना नामक वृक्ष की छाल से कुनैन बनाया जाता है। यह वृक्ष 200 सेमी से 300 सेमी वर्षा वाले भागों में भारत, श्रीलंका, मैलागासी और जावा में पाया जाता है।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 1 Natural Vegetation

प्रश्न 11
वन-संरक्षण हेतु कोई दो उपाय सुझाइए। [2013, 14]
उत्तर

  1. व्यापक वृक्षारोपण और सामाजिक वानिकी कार्यक्रमों के द्वारा वन और वृक्ष के आच्छादन में महत्त्वपूर्ण बढ़ोतरी की जाए।
  2. वन उत्पादों के उचित उपयोग को बढ़ावा देना और लकड़ी के अनुकूलतम विकल्पों की खोज की जाए।

प्रश्न 12
शंकुल सदापर्णी वनों के प्रमुख वृक्षों के नाम लिखिए।
उत्तर
शंकुल सदापर्णी वनों के प्रमुख वृक्षों के नाम हैं-चीड़, स्पूहै, हैमलॉक, लार्च, सीडर, फर, साइप्रस आदि।

प्रश्न 13
चिपको आन्दोलन का उद्देश्य क्या है?
उत्तर
भारत में वनों की अन्धाधुन्ध कटाई को रोकने के लिए उत्तराखण्ड में श्री सुन्दरलाल बहुगुणा द्वारा चिपको आन्दोलन वनों की सुरक्षा के लिए एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।

प्रश्न 14
वन-विनाश के किन्हीं दो कारणों की विवेचना कीजिए। [2012]
या
वनों का संरक्षण क्यों आवश्यक हो गया है? दो कारण बताइए [2016]
उत्तर

  1. जनसंख्या वृद्धि के कारण भूमि की बढ़ती हुई माँग को पूरा करने के लिए वनों का अधिक मात्रा में काटा जाना।
  2. प्राकृतिक कारणों, जैसे भूस्खलन एवं वृक्षों को परस्पर घर्षण से वनाग्नि के कारण वनों का विनाश होना।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1
जैव-प्रदूषण समस्या का कारण है –
(क) झूमिंग कृषि
(ख) वनों का कटान
(ग) जलीय जीवों का संहार
(घ) ये सभी
उत्तर
(घ) ये सभी।

प्रश्न 2
सामान्यतया धरातल पर प्राकृतिक वनस्पति पायी जाती है –
(क) वनों के रूप में
(ख) घास के रूप में
(ग) झाड़ियों के रूप में
(घ) इन सभी रूपों में
उत्तर
(घ) इन सभी रूपों में।

प्रश्न 3
प्रेयरी घास के मैदान निम्नलिखित में से किस महाद्वीप में पाये जाते हैं? [2007]
(क) दक्षिणी अमेरिका
(ख) उत्तरी अमेरिका
(ग) अफ्रीका
(घ) यूरोप
उत्तर
(ख) उत्तरी अमेरिका।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 1 Natural Vegetation

प्रश्न 4
निम्नलिखित में से किस जलवायु प्रदेश में कोणधारी वन पाए जाते हैं ? [2008, 10]
(क) मानसून
(ख) भूमध्यसागरीय
(ग) भूमध्यरेखीय
(घ) टेगा
उत्तर
(घ) टैगा।

प्रश्न 5
निम्नलिखित में से पतझड़ वन किस जलवायु प्रदेश में पाये जाते हैं –
(क) भूमध्यरेखीय जलवायु प्रदेश
(ख) टैगा जलवायु प्रदेश
(ग) टुण्ड्रा जलवायु प्रदेश :
(घ) मानसूनी जलवायु प्रदेश
उत्तर
(घ) मानसूनी जलवायु प्रदेश।

प्रश्न 6
सदाबहार वन निम्नलिखित में से किस प्रदेश में पाये जाते हैं?
(क) भूमध्यसागरीय जलवायु प्रदेश
(ख) विषुवत्रेखीय जलवायु प्रदेश
(ग) रेगिस्तानी जलवायु प्रदेश
(घ) टैगा जलवायु प्रदेश
उत्तर
(ख) विषुवत्रेखीय जलवायु प्रदेश।

प्रश्न 7
लानोज घास के मैदान निम्नलिखित में से किस महाद्वीप में पाये जाते हैं? [2009]
(क) अफ्रीका
(ख) दक्षिणी अमेरिका
(ग) ऑस्ट्रेलिया
(घ) उत्तरी अमेरिका
उत्तर
(ख) दक्षिणी अमेरिका।

प्रश्न 8
वेल्ड्स घास के मैदान कहाँ पाए जाते हैं? [2013, 14, 15]
(क) ब्राजील में
(ख) दक्षिण अमेरिका में
(ग) ऑस्ट्रेलिया में
(घ) मध्य एशिया में
उत्तर
(ख) दक्षिण अमेरिका में

प्रश्न 9
सवाना घास के मैदान कहाँ पाए जाते हैं? [2015, 16]
(क) अमेजन बेसिन में
(ख) सूडान में
(ग) मध्य एशिया में
(घ) टैगा प्रदेश में
उत्तर
(ख) सूडान में

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 1 Natural Vegetation (प्राकृतिक वनस्पति) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 1 Natural Vegetation (प्राकृतिक वनस्पति), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास मिश्रित बहुविकल्पीय प्रश्न

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास मिश्रित बहुविकल्पीय प्रश्न are part of UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास मिश्रित बहुविकल्पीय प्रश्न.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 4
Chapter Name गद्य-साहित्यका विकास मिश्रित बहुविकल्पीय प्रश्न
Number of Questions 108
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास मिश्रित बहुविकल्पीय प्रश्न

मिश्रित बहुविकल्पीय प्रश्न

[ध्यान दें: नीचे दिए गए बहुविकल्पीय प्रश्नों के विकल्पों में सामान्य से अधिक काले छपे विकल्प को उचित विकल्प समझे।]

उचित विकल्प का चयन कीजिए-

(1) ‘साहित्यालोचन’ और ‘हिन्दी साहित्य निर्माता’ इनकी प्रमुख रचनाएँ हैंया’साहित्यालोचन’ के रचनाकार हैं [2016]
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(ग) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(घ) श्यामसुन्दर दास

(2) ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ की स्थापना में इनका सराहनीय योगदान रहा है–
या
‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ की स्थापना किसने की ? [2009, 12, 13, 14]
(क) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(ख) जयशंकर प्रसाद
(ग) श्यामसुन्दर दास
(घ) डॉ० सम्पूर्णानन्द

(3) निम्नलिखित में से कौन द्विवेदीयुगीन गद्य लेखक/लेखिका हैं ?
(क) महादेवी वर्मा
(ख) श्यामसुन्दर दास
(ग) यशपाल
(घ) भगवतीचरण वर्मा

(4) ‘रूपक रहस्य’ के लेखक कौन हैं ? यह किस विधा की रचना है ?
(क) वियोगी हरि–नाटक
(ख) रामचन्द्र शुक्ल-निबन्ध
(ग) श्यामसुन्दर दास-आलोचना
(घ) प्रतापनारायण मिश्र-निबन्ध

(5) श्यामसुन्दर दास द्वारा किस पत्रिका का सम्पादन किया गया ?
(क) हिन्दी प्रदीप
(ख) माधुरी
(ग) इन्दु
(घ) नागरी प्रचारिणी पत्रिका

(6) ‘नासिकेतोपाख्यान’ शीर्षक से श्यामसुन्दर दास के अतिरिक्त किस लेखक ने गद्य-रचना की है? [2014]
(क) हजारीप्रसाद द्विवेदी
(ख) सदल मिश्र
(ग) रामचन्द्र शुक्ल
(घ) महावीरप्रसाद द्विवेदी

(7) श्यामसुन्दर दास का जन्म-काल है–
(क) सन् 1875 ई०
(ख) सन् 1884 ई०
(ग) सन् 1892 ई०
(घ) सन् 1907 ई०

(8) मुंशी प्रेमचन्द का जन्म-काल है
(क) 1870 ई०
(ख) 1875 ई०
(ग) 1880 ई०
(घ) 1879 ई०

(9) सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन का जन्म-काल है
(क) 1892 ई०
(ख) 1907 ई०
(ग) 1911 ई०
(घ) 1920 ई०

(10) इनके द्वारा ‘भारत कला भवन’ नाम के एक विशाल संग्रहालय की स्थापना की गयी
(क) रामचन्द्र शुक्ल
(ख) श्यामसुन्दर दास
(ग) डॉ० सम्पूर्णानन्द
(घ) राय कृष्णदास

(11) इन्होंने हिन्दी में गद्यगीत विधा का प्रवर्तन किया–
(क) हरिशंकर परसाई
(ख) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(ग) महावीरप्रसाद द्विवेदी
(घ) राय कृष्णदास

(12) ‘भारत की चित्रकला’ तथा ‘भारतीय मूर्तिकला’ इनके प्रामाणिक ग्रन्थ हैं
(क) डॉ० सम्पूर्णानन्द
(ख) राहुल सांकृत्यायन
(ग) महादेवी वर्मा
(घ) राय कृष्णदास

(13) ‘साधना’ नामक गद्यगीतों के संग्रह के रचयिता कौन हैं ?
(क) वृन्दावनलाल वर्मा
(ख) मोहन राकेश
(ग) राय कृष्णदास
(घ) विनय मोहन शर्मा

(14) राय कृष्णदास का लेखन-युग है
(क) भारतेन्दु युग
(ख) द्विवेदी युग
(ग) छायावाद युग
(घ) छायावादोत्तर युग

(15) प्रेमचन्दोत्तर युग के श्रेष्ठ कथाकार के रूप में जाने जाते हैं-
(क) सरदार पूर्णसिंह
(ख) वासुदेवशरण अग्रवाल
(ग) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(घ) जैनेन्द्र कुमार

(16) जैनेन्द्र कुमार की कौन-सी रचना उपन्यास नहीं है ?
(क) कल्याणी
(ख) जयवर्धन
(ग) मुक्तिबोध
(घ) वातायन

(17) निम्नलिखित रचनाओं में से कौन-सी रचना नाटक है ?
(क) मजदूरी और प्रेम
(ख) रस-मीमांसा
(ग) पाप और प्रकाश
(घ) भारत की एकता

(18) जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित निबन्ध-संग्रह है-
(क) पृथिवी-पुत्र और वाग्धारा
(ख) पूर्वोदय और प्रस्तुत प्रश्न
(ग) कुली
(घ) पथ के साथी

(19) ‘त्यागपत्र’ किस लेखक की उपन्यास-विधा की रचना है ?
(क) प्रेमचन्द
(ख) यशपाल
(ग) जैनेन्द्र कुमार
(घ) मोहन राकेश

(20) ‘साहित्य का श्रेय और प्रेय’ किस विधा की रचना है ?
(क) कहानी
(ख) आलोचना
(ग) निबन्ध
(घ) संस्मरण

(21) ‘अज्ञेय’ का वास्तविक नाम ( पूरा नाम) है—
(क) रामवृक्ष बेनीपुरी
(ख) हजारीप्रसाद द्विवेदी
(ग) कन्हैयालाल मिश्र
(घ) सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

(22) ‘विशाल भारत’, ‘सैनिक’, ‘प्रतीक’, ‘वाक्’ तथा ‘दिनमान’ पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया [2012]
(क) आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने
(ख) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ ने
(ग) रामवृक्ष बेनीपुरी ने
(घ) सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ ने

(23) उत्तर प्रियदर्शी’ नाटक के लेखक हैं-
(क) मोहन राकेश
(ख) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’
(ग) रामवृक्ष बेनीपुरी
(घ) सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन’अज्ञेय’

(24) अरे यायावर रहेगा याद’ किस विधा की रचना है ? [2010]
(क) उपन्यास
(ख) नाटक
(ग) कहानी
(घ) यात्रा-साहित्य

(25) अज्ञेय जी द्वारा रचित निम्नलिखित में से कौन-सी रचना निबन्ध विधा की रचना नहीं है ?
(क) विपथगा,
(ख) आत्मनेपद
(ग) त्रिशंकु
(घ) लिखि कागद कोरे

(26) इन्होंने भाषा सम्बन्धी विविध प्रयोग किये और शैली के क्षेत्र में भी नये प्रतिमान स्थापित किये
(क) स० ही० वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
(ख) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(ग) डॉ० सम्पूर्णानन्द
(घ) श्रीराम शर्मा

(27) अज्ञेय जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार से किस रचना के लिए सम्मानित किया गया था ?
(क) जयदोल
(ख) कितनी नावों में कितनी बार
(ग) एक बूंद सहसा उछली
(घ) अरी ओ करुणा प्रभामय

(28) ‘सन्नाटा’ के रचनाकार हैं [2013]
(क) महावीरप्रसाद द्विवेदी
(ख) राय कृष्णदास
(ग) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(घ) स० ही० वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

(29) ‘हरिऔध’ का पूरा नाम क्या है ? [2010]
(क) मैथिलीशरण गुप्त
(ख) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(ग) अयोध्यासिंह उपाध्याय
(घ) सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन

(30) ‘कामायनी’ की रचना विधा क्या है ?
(क) खण्डकाव्य
(ख) नाटिका
(ग) उपन्यास
(घ) महाकाव्य

(31) ‘भाषा योग-वाशिष्ठ’ के रचयिता हैं [2010, 18]
(क) रामप्रसाद निरंजनी
(ख) सदासुख मुंशीलाल ‘नियाज’
(ग) सदल मिश्र
(घ) इंशाअल्ला खाँ

(32) डॉ० रघुवीर सिंह का लेखन-युग है
(क) छायावाद युग
(ख) द्विवेदी युग
(ग) भारतेन्दु युग
(घ) छायावादोत्तर युग

(33) द्विवेदी युग का ख्याति प्राप्त तिलिस्मी उपन्यास है-
(क) आत्मदाह
(ख) गबन
(ग) नूतन ब्रह्मचारी
(घ) चन्द्रकान्ता सन्तति

(34) ‘भारतेन्दु युग’ की कालावधि मानी जाती है-
(क) 1900 से 1922 ई०
(ख) 1919 से 1938 ई०
(ग) 1868 से 1900 ई०
(घ) 1868 ई० तेक

(35) ‘द्विवेदी युग’ की कालावधि मानी जाती है|
(क) 1900 से 1922 ई०
(ख) 1919 से 1938 ई०
(ग) 1868 से 1900 ई०
(घ) 1938 ई० से अब तक

(36) ‘तितली’ उपन्यास के रचनाकार हैं [2013, 16]
(क) हजारीप्रसाद द्विवेदी
(ख) प्रेमचन्द
(ग) महावीरप्रसाद द्विवेदी
(घ) जयशंकर प्रसाद

(37) ‘शुक्ल युग’ ( छायावाद युग) की कालावधि मानी जाती है|
(क) 1900 से 1922 ई०
(ख) 1919 से 1938 ई०
(ग) 1938 से 1947 ई०
(घ) 1947 ई० से अब तक

(38) ‘शुक्लोत्तर युग’ ( छायावादोत्तर युग) की कालावधि मानी जाती है-
(क) 1900 से 1922 ई०
(ख) 1919 से 1938 ई०
(ग) 1938 से 1947 ई०
(घ) 1947 ई० से अब तक

(39) ‘द्विवेदी युग’ और ‘छायावादी युग’ दोनों युगों में लेखन-कार्य करने वाले लेखक-द्वय हैं [2014]
(क) महावीरप्रसाद द्विवेदी व गुलाबराय
(ख) प्रतापनारायण मिश्र व प्रेमचन्द
(ग) गुलाबराय व जयशंकर प्रसाद
(घ) जयशंकर प्रसाद व जैनेन्द्र कुमार

(40) ‘छायावाद युग’ और ‘छायावादोत्तर युग’ दोनों युगों में अपनी रचनाधर्मिता से हिन्दी साहित्य में विशेष योगदान करने वाले लेखक हैं-
(क) आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
(ख) स० ही० वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
(ग) जयशंकर प्रसाद
(घ) डॉ० नगेन्द्र

(41) किस युग की रचनाएँ मार्क्सवाद से सर्वाधिक प्रभावित हुई हैं ?
(क) छायावादी युग
(ख) छायावादोत्तर युगे
(ग) शुक्ल युग
(घ) द्विवेदी युग

(42) गद्य की विधा जो नहीं है
(क) निबन्ध
(ख) आलोचना
(ग) उपन्यास
(घ) गद्यकाव्य

(43) हिन्दी की गद्य और पद्य विधाओं में समान रूप से लिखने वाले विद्वान् हैं-
(क) मैथिलीशरण गुप्त
(ख) विष्णु प्रभाकर
(ग) जयशंकर प्रसाद
(घ) तीनों में से कोई नहीं

(44) छायावादी युग के लेखक कौन नहीं हैं ?
(क) वियोगी हरि
(ख) भगवतीचरण वर्मा
(ग) नन्ददुलारे वाजपेयी
(घ) डॉ० रघुवीर सिंह

(45) निम्नलिखित में से कौन-सा साहित्यकार छायावादी नहीं है ?
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
(ग) सुमित्रानन्दन पन्त
(घ) महादेवी वर्मा

(46) ‘संस्कृति के चार अध्याय’ किस युग की रचना है ?
(क) भारतेन्दु युग
(ख) द्विवेदी युग
(ग) छायावादोत्तर युग
(घ) छायावाद युग

(47) ‘हमीर हठ’ किस प्रकार की रचना है ?
(क) निबन्ध
(ख) कथा-साहित्य
(ग) आलोचना
(घ) इतिहास

(48) ‘खड़ी बोली’ गद्य के विकास का प्रारम्भिक युग कौन-सा है ?
(क) द्विवेदी युग
(ख) छायावाद युग।
(ग) भारतेन्दु युग
(घ) छायावादोत्तर युग

(49) निम्नलिखित में से किस निबन्धकार को ललित निबन्धकार माना जाता है ? [2009]
(क) कुबेरनाथ राय
(ख) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(ग) सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
(घ) सरदार पूर्णसिंह

(50) निम्नलिखित में असत्य कथन है
(क) गद्य व्याकरण सम्मत वाक्यबद्ध रचना है।
(ख) गद्य प्रधानतया विचार, तर्क चिन्तन एवं विश्लेषण प्रधान होता है।
(ग) गद्य में लय, यति एवं गति आदि का महत्त्व होता है।
(घ) आज का युग गद्य प्रधान है।

(51) कौन-सा युग हिन्दी गद्य के उत्कर्ष का सूर्योदय-काल था ?
(क) भारतेन्दु युग
(ख) द्विवेदी युग
(ग) छायावाद युग
(घ) छायावादोत्तर युग

(52) छायावादोत्तर युग के लेखक नहीं हैं [2009]
(क) भीष्म साहनी
(ख) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(ग) वासुदेवशरण अग्रवाल
(घ) बालकृष्ण भट्ट

(53) ‘द्विवेदी पत्रावली’ के संकलनकर्ता हैं-
(क) बैजनाथ सिंह
(ख) बनारसी दास चतुर्वेदी
(ग) पद्मसिंह शर्मा
(घ) वियोगी हरि

(54) हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल को गद्य काल की संज्ञा किसने दी ?
(क) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(ख) महावीरप्रसाद द्विवेदी
(ग) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(घ) बाबू श्यामसुन्दर दास

(55) ‘बड़ों के प्रेरणादायक पत्र’ पत्र संकलन किसने प्रकाशित कराया? [2010]
(क) बैजनाथ सिंह
(ख) बनारसीदास चतुर्वेदी
(ग) वियोगी हरि
(घ) हरिवंशराय बच्चन

(56) ‘नूतन ब्रह्मचारी’ किस विधा की रचना है ? [2010]
(क) नाटक
(ख) उपन्यास
(ग) जीवनी
(घ) आलोचना

(57) ‘हिन्दी प्रगतिशील लेखक संघ’ का प्रथम अधिवेशन हुआ [2011]
या
प्रेमचन्द की अध्यक्षता में प्रगतिशील लेखक संघ’ का अधिवेशन हुआ । [2014]
(क) सन् 1932 में
(ख) सन् 1936 में
(ग) सन् 1938 में
(घ) सन् 1940 में

(58) प्रारम्भिक गद्य लेखकों में दो राजाओं में से एक हैं [2012]
(क) सदासुख लाल
(ख) सदल मिश्र
(ग) शिवप्रसाद सितारेहिन्द
(घ) लल्लूलाल

(59) ‘दि मैड मैन’ का ‘पगला’ नाम से हिन्दी में अनुवाद किया है [2012]
(क) वासुदेवशरण अग्रवाल ने
(ख) रायकृष्ण दास ने
(ग) डॉ० सम्पूर्णानन्द ने।
(घ) जी० सुन्दर रेड्डी ने

(60) निम्नलिखित में से सदल मिश्र की रचना है [2013]
(क) रानी केतकी की कहानी
(ख) नासिकेतोपाख्यान
(ग) राजा भोज का सपना
(घ) सत्यार्थ प्रकाश

(61) कौन-सी रचना धर्मवीर भारती की है ? (2013)
(क) अणिमा
(ख) अपरा।
(ग) अन्धा-युग
(घ) अर्चना

(62) ‘भारत-भारती’ की रचना-विधा है– [2014]
(क) कहानी
(ख) उपन्यास
(ग) नाटक
(घ) काव्य

(63) निम्नलिखित में असत्य कथन है [2014]
(क) हजारीप्रसाद द्विवेदी निबन्धकार एवं उपन्यासकार हैं।
(ख) महावीरप्रसाद द्विवेदी ‘सरस्वती’ पत्रिका के सम्पादक थे।
(ग) रामचन्द्र शुक्ल ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ ग्रन्थ के लेखक हैं।
(घ) प्रतापनारायण मिश्र हिन्दी प्रदीप’ के सम्पादक थे।

(64) ‘खड़ी बोली गद्य’ की प्रथम रचना है [2015]
(क) कविवचन सुधा।
(ख) गोरा बादल की कथा
(ग) कामायनी
(घ) चिदम्बरा

(65) ‘त्यागपत्र’ विधा की दृष्टि से रचना है [2015]
(क) कहानी
(ख) निबन्ध
(ग) उपन्यास
(घ) नाटक

(66) ‘अतिचार’ रचना के सम्पादक हैं [2015]
(क) बालमुकुन्द गुप्त
(ख) मुनि जिनविजय
(ग) किशोरीलाल गोस्वामी
(घ) नाभादास

(67) ‘श्रृंगार-रस-मंडन’ के रचनाकार हैं [2015]
(क) नाभादास
(ख) चतुर्भुज दास
(ग) बिट्ठलनाथ
(घ) ज्योतिरीश्वर ठाकुर

(68) ‘चिन्तामणि’ के रचनाकार हैं [2016, 18]
(क) प्रेमचन्द
(ख) श्यामसुन्दर दास
(ग) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(घ) गुलाब राय

(69) सरस्वती पत्रिका है [2016]
(क) शुक्ल युग की
(ख) द्विवेदी युग की
(ग) भारतेन्दु युग की
(घ) छायावादी युग की

(70) चन्द्रकांता सन्तति’ रचना है [2016]
(क) भारतेन्दु युग की
(ख) द्विवेदी युग की।
(ग) छायावादी युग की
(घ) छायावादोत्तर युग की

(71) ‘कालिदास की निरंकुशता’ के रचनाकार हैं [2016]
(क) महावीरप्रसाद द्विवेदी
(ख) बालकृष्ण भट्ट
(ग) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(घ) नन्द दुलारे वाजपेयी

(72) ‘राधाकृष्णदास’ लेखक थे [2015]
(क) भारतेन्दु युग के
(ख) द्विवेदी युग के
(ग) छायावाद युग के
(घ) छायावादोत्तर युग के

(73) ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ के लेखक हैं [2015]
(क) हजारीप्रसाद द्विवेदी
(ख) रामचन्द्र शुक्ल
(ग) डॉ० नगेन्द्र
(घ) डॉ० रामकुमार वर्मा

(74) गद्य विधा की संख्या है [2016]
(क) तीन
(ख) सात
(ग) ग्यारह
(घ) पन्द्रह

(75) ‘नूतन ब्रह्मचारी’ के रचनाकार हैं [2016]
(क) सदल मिश्र
(ख) बालकृष्ण भट्ट
(ग) लल्लू लाल
(घ) मोहन राकेश

(76) ‘ग्यारह वर्ष का समय’ के रचनाकार हैं [2016]
(क) मुंशी इंशा अल्ला खाँ
(ख) राजेन्द्र बाला घोस
(ग) रामचन्द्र शुक्ल
(घ) जयशंकर प्रसाद

(77) गोरा बादल की कथा’ के लेखक हैं [2016]
(क) कवि गंग
(ख) जटमले
(ग) पं० दौलत राम
(घ) रामप्रसाद निरंजनी

(78) ‘मुद्रा राक्षस’ के लेखक हैं [2016]
(क) श्यामसुन्दर दास
(ख) महावीर प्रसाद द्विवेदी
(ग) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(घ) जयशंकर प्रसाद

(79) रसज्ञ-रंजन’ कृति के लेखक हैं [2016]
(क) हजारीप्रसाद द्विवेदी
(ख) महावीरप्रसाद द्विवेदी
(ग) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(घ) राहुल सांकृत्यायन

(80) सरदार पूर्णसिंह द्वारा लिखित निबन्ध नहीं है [2016]
(क) सच्ची वीरता
(ख) कन्यादान
(ग) पवित्रता
(घ) कालिदास की निरंकुशता

(81) ‘चिद्विलास’ के रचनाकार हैं [2016]
(क) वासुदेवशरण अग्रवाल
(ख) डॉ० सम्पूर्णानन्द
(ग) हरिशंकर परसाई
(घ) महावीरप्रसाद द्विवेदी

(82) ‘पन्दहा’ (आजमगढ़, उत्तर प्रदेश) जन्म-स्थान है [2016]
(क) हजारीप्रसाद द्विवेदी को
(ख) राहुल सांकृत्यायन को
(ग) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का
(घ) मोहन राकेश का

(83) ‘पैरों में पंख बाँधकर’ यात्रावृत्तान्त कृति है [2016]
(क) रामवृक्ष बेनीपुरी की।
(ख) डॉ० सम्पूर्णानन्द की
(ग) मोहन राकेश की
(घ) वासुदेवशरण अग्रवाल की

(84) आधुनिक काल के प्रारम्भिक डायरी-लेखक हैं [2016]
(क) घनश्याम दास बिड़ला
(ख) त्रिलोचन
(ग) शमशेर बहादुर सिंह
(घ) बच्चन

(85) ‘भारत दुर्दशा’ रचना है [2016]
(क) जयशंकर प्रसाद की
(ख) रामकुमार वर्मा की
(ग) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की
(घ) श्यामसुन्दर दास की.

(86) ‘वर्ण रत्नाकर’ के रचनाकार हैं [2017]
(क) मथुरानाथ शुक्ल
(ख) दौलतराम
(ग) रामप्रसाद निरंजनी
(घ) ज्योतिरीश्वर

(87) सरदार पूर्णसिंह किस युग के लेखक हैं? [2017]
(क) भारतेन्दु युग
(ख) द्विवेदी युग
(ग) छायावाद युग
(घ) प्रगतिवाद युग

(88) डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी की रचना है [2017]
(क) चिन्तामणि
(ख) पंच परमेश्वर
(ग) कुटज
(घ) चन्द्रकान्ता

(89) वासुदेवशरण अग्रवाल की रचना है [2017]
(क) अन्तराल
(ख) त्रिशंकु
(ग) तट की खोज
(घ) वाग्धारा

(90) संस्मरण विधा की रचना है– [2017]
(क) दीप जले शंख बजे
(ख) बाजे पायलिया के घंघरू
(ग) अरे यायावर रहेगा याद
(घ) तब की बात और थी

(91) आलोचनात्मक कृति ‘कालिदास की लालित्य-योजना’ के लेखक हैं [2017]
(क) हरिशंकर परसाई
(ख) मोहन राकेश
(ग) डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी
(घ) महावीरप्रसाद द्विवेदी

(92) ‘वारिस’ कहानी-संग्रह है [2017]
(क) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ का
(ख) प्रो० जी० सुन्दर रेड्डी का
(ग) मोहन राकेश का
(घ) “अज्ञेय’ का

(93) हरिशंकर परसाई की रचना है [2017]
(क) कल्पवृक्ष
(ख) धरती के फूल
(ग) तब की बात और थी
(घ) मेरे विचार

(94) डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखे गए निम्न ग्रन्थों में से हिन्दी साहित्य के इतिहास से सम्बन्धित ग्रन्थ नहीं है– [2017]
(क) हिन्दी साहित्य की भूमिका
(ख) हिन्दी साहित्य का आदिकाल
(ग) हिन्दी-साहित्य
(घ) चारुचन्द्र-लेख

(95) ‘भूले-बिसरे चेहरे’ रेखाचित्र के रचयिता हैं [2018]
(क) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’
(ख) अमृत राय
(ग) महावीरप्रसार द्विवेदी
(घ) राजेन्द्र यादव

(96) ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ के लेखक हैं|
(क) मोहन राकेश
(ख) अज्ञेय
(ग) हजारीप्रसाद द्विवेदी
(घ) हरिशंकर परसाई

(97) निम्नलिखित में से किस निबन्ध-संग्रह की रचना हरिशंकर परसाई द्वारा की गई है? [2018]
(क) पगडण्डियों का जमाना
(ख) क्षण बोले कण मुस्काए
(ग) चिन्तामणि
(घ) बाजे पायलिया के मुँघरू

(98) ‘परीक्षा-गुरु’ के लेखक हैं [2018]
(क) हजारीप्रसाद द्विवेदी
(ख) सदल मिश्र
(ग) लक्ष्मण सिंह
(घ) लाला श्रीनिवास दास

(99) ‘स्कन्दगुप्त’ नाटक के लेखक हैं [2018]
(क) प्रेमचन्द
(ख) लक्ष्मीनारायण मिश्र
(ग) जयशंकर प्रसाद
(घ) धर्मवीर भारती

(100) ‘शेखर एक जीवनी’ के लेखक हैं [2018]
(क) भीष्म साहनी
(ख) जयशंकर प्रसाद
(ग) सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
(घ) प्रेमचन्द

(101) ‘नासिकेतोपाख्यान’ के लेखक हैं– [2018]
(क) लल्लूलाल
(ख) सदासुखलाल
(ग) सदल मिश्र
(घ) इंशाअल्ला खाँ

(102) बालमुकुन्द गुप्त किस युग के लेखक थे? [2018]
(क) भातेन्दु युग के
(ख) द्विवेदी युग के
(ग) छायावादी युग के
(घ) प्रगतिवादी युग के

(103) श्यामसुन्दर दास की शैली है [2018]
(क) व्यास
(ख) समास
(ग) भावात्मक
(घ) व्यंग्यात्मक

(104) किसके गद्य में करुण संवेदना की प्रधानता है? [2018]
(क) माखनलाल चतुर्वेदी के
(ख) पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ के
(ग) जयशंकर प्रसाद के
(घ) महादेवी वर्मा के

(105) निबन्ध प्रौढ़तम स्तर तक पहुँचा [2018]
(क) द्विवेदी युग में
(ख) शुक्ल युग में
(ग) शुक्लोत्तर युग में
(घ) प्रयोगवादी युग में

(106) किस रचना के लेखक प्रो० जी० सुन्दर रेड्डी हैं? [2018]
(क)’वैचारिकी, शोध और बोध
(ख) “भारत की मौलिक एकता’
(ग) विचार और वितर्क’
(घ) आत्मनेपद

(107) मोहन राकेश की रचना नहीं है [2018]
(क) “लहरों के राजहंस’
(ख) ‘बकलमखुद
(ग) ‘तट की खोज’
(घ), ‘समय-सारथी

(108) ‘शिकायत मुझे भी है’ निबन्ध-संग्रह है– [2018]
(क) धर्मवीर भारती का
(ख) सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का
(ग) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ का
(घ) हरिशंकर परसाई का

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास मिश्रित बहुविकल्पीय प्रश्न help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास मिश्रित बहुविकल्पीय प्रश्न, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.