UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 2 पंचलाइट

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 2
Chapter Name पंचलाइट
Number of Questions 4
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 2 पंचलाइट (फणीश्वरनाथ ‘रेणु’)

प्रश्न 1
पंचलाइट कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
उत्तर
‘पंचलाइट’ रेणु जी की आंचलिक कहानी है। कहानी में बिहार के एक पिछड़े गाँव के परिवेश का सुन्दर चित्रण प्रस्तुत किया गया है।
महतो टोली में अशिक्षित लोग हैं। उन्होंने रामनवमी के मेले से पेट्रोमेक्स खरीदा, जिसे वे ‘पंचलैट’ कहते हैं। ‘पंचलाइट’ को ये सीधे-सादे लोग सम्मान की चीज समझते हैं। पंचलाइट को देखने के लिए टोली के सभी बालक, औरतें और मर्द इकट्ठे हो जाते हैं। सरदार अपनी पत्नी को आदेश देता है कि शुभ कार्य को करने से पहले वह पूजा-पाठ का प्रबन्ध कर ले। सभी उत्साहित हैं, परन्तु समस्या उठती है कि ‘पंचलैट’ जलाएगा कौन ? सीधे-सादे लोग पेट्रोमैक्स को जलाना भी नहीं जानते।।

इस टोली में गोधन नाम का एक युवक है। वह गाँव की मुनरी नामक एक युवती से प्रेम करता है। मुनरी की माँ ने पंचों से गोधन की शिकायत की थी कि वह उसके घर के सामने से सिनेमा का गाना गाकर निकलता है। इस कारण पंचों ने उसे जाति से निकाल रखा है। मुनरी को पता है कि गोधन पंचलाइट जला सकता है। वह चतुराई से यह बात पंचों तक पहुँचा देती है। पंच गोधन को पुन: जाति में ले लेते हैं। वह ‘पंचलाइट’ को जला देता है। मुनरी की माँ गुलरी काकी प्रसन्न होकर गोधन को शाम के भोजन का निमन्त्रण देती है। पंच भी अति उत्साहित होकर गोधन को कह देते हैं-“तुम्हारा सात खून माफ। खूब गाओ सलीमा का गाना।” पंचलाइट की रोशनी में लोग भजन-कीर्तन करते हैं तथा उत्सव मनाते हैं।

कहानी का कथानक सजीव है। सीधे-सादे अनपढ़ लोगों की संवेदनाओं को वाणी देने में रेणु जी समर्थ रहे हैं। इस कहानी में आंचलिक जीवन की सजीव झाँकी प्रस्तुत की गयी है।

प्रम2
कथावस्तु के आधार पर ‘पंचलाइट’ कहानी की समीक्षा कीजिए।
या
‘पंचलाइट’ का कथानक लिखिए तथा उसके उद्देश्य पर प्रकाश डालिए। ‘पंचलाइट’ कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए। [2010, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
या
‘पंचलाइट’ कहानी के कथानक की विवेचना कीजिए। [2018]
या
कहानी-कला के आधार पर पंचलाइट कहानी के कथानक पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
फणीश्वरनाथ रेणु जी हिन्दी-जगत् के सुप्रसिद्ध आंचलिक कथाकार हैं। अनेक जनआन्दोलनों से वे निकट से जुड़े रहे, इस कारण ग्रामीण अंचलों से उनका निकट का परिचय है। उन्होंने अपने पात्रों की कल्पना किसी कॉफी हाउस में बैठकर नहीं की, अपितु वे स्वयं अपने पात्रों के बीच रहे हैं। बिहार के अंचलों के सजीव चित्र इनकी कथाओं के अलंकार हैं। ‘पंचलाइट’ भी बिहार के आंचलिक परिवेश की कहानी है। कहानी-कला की दृष्टि से इस कहानी की समीक्षा (विशेषताएँ) निम्नवत् है-

(1) शीर्षक-कहानी का शीर्षक ‘पंचलाइट’; एक सार्थक और कलात्मक शीर्षक है। यह शीर्षक संक्षिप्त और उत्सुकतापूर्ण है। शीर्षक को पढ़कर ही पाठक कहानी को पढ़ने के लिए उत्सुक हो जाता है। ‘पंचलाइट’ का अर्थ है ‘पेट्रोमैक्स’ अर्थात् ‘गैस की लालटेन’। शीर्षक कथा का केन्द्रबिन्दु है।

(2) कथानक-महतो टोली के सरपंच पेट्रोमैक्स खरीद लाये हैं, परन्तु इसे जलाने की विधि वहाँ कोई नहीं जानता। दूसरे टोले वाले इस बात का मजाक बनाते हैं। महतो टोले का एक व्यक्ति पंचलाइट जलाना जानता है और वह है-‘गोधन’, किन्तु वह जाति से बहिष्कृत है। वह ‘मुनरी’ नाम की लड़की का प्रेमी है। उसकी ओर प्रेम की दृष्टि रखने के कारण ही पंच उसे बिरादरी से बहिष्कृत कर देते हैं। मुनरी इस बात की चर्चा करती है कि गोधन पंचलाइट जलाना जानता है। इस समय जाति की प्रतिष्ठा का प्रश्न है, अत: गोधन को पंचायत में बुलाया जाता है। वह पंचलाइट को स्पिरिट के अभाव में गरी के तेल से ही जला देता है। अब न केवल गोधन पर लगे सारे प्रतिबन्ध हट जाते हैं वरन् उसे मनोनुकूल आचरण की भी छूट मिल जाती है। पंचलाइट की रोशनी में गाँव में उत्सव मनाया जाता है। प्रस्तुत कहानी में कहानीकार ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि आवश्यकता किसी भी बुराई को अनदेखा कर देती है। कथानक संक्षिप्त, रोचक, सरल, मनोवैज्ञानिक, आंचलिक और यथार्थवादी है। कौतूहल और गतिशीलता के अलावा इसमें मुनरी तथा गोधन का प्रेम-प्रसंग बड़े स्वाभाविक ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

(3) उद्देश्य–इस कहानी के द्वारा रेणु जी ने अप्रत्यक्ष रूप से ग्राम-सुधार की कोशिश की है। उन्होंने ग्रामीण अंचल का वास्तविक चित्र खींचा है। गोधन के द्वारा ‘पेट्रोमैक्स’ जलाने पर उसकी सभी गलतियाँ माफ कर दी जाती हैं तथा उसे मनोनुकूल आचरण की छूट भी मिल जाती है जिससे स्पष्ट है, कि आवश्यकता बड़े-से-बड़े रूढ़िगत संस्कार और परम्परा को व्यर्थ साबित कर देती है। इस प्रकार पंचलाइट जलाने की समस्या और उसके समाधान के माध्यम से कहानीकार फणीश्वरनाथ रेणु जी ने ग्रामीण मनोविज्ञान का सजीव चित्र उपस्थित कर दिया है। ग्रामवासी जाति के आधार पर किस प्रकार टोलियों में विभक्त हो जाते हैं और आपस में ईष्र्या-द्वेष युक्त भावों से भरे रहते हैं इसका बड़ा ही सजीव चित्रण इस कहानी में हुआ है। रेणु जी ने यह भी दर्शाया है कि भौतिक विकास के इस आधुनिक युग में भी भारतीय गाँव और कुछ जातियाँ कितने अधिक पिछड़े हुए हैं। कहानी के माध्यम से रेणु जी ने अप्रत्यक्ष रूप से ग्राम-सुधार की प्रेरणा भी दी है।

प्रश्न 3
पंचलाइट कहानी के प्रमुख पात्र का चरित्रांकन कीजिए। [2016]
उत्तर
‘पंचलाइट’ फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ की एक आंचलिक कहानी है। यह कहानी ग्रामीण जीवन पर आधारित है। इसमें ग्रामवासियों की मन:स्थिति की वास्तविक झलक देखने को मिलती है। गोधन इस कहानी का एक मुख्य पात्र है, जिसे समाज के लोग बहिष्कृत कर देते हैं। गोधन के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं–

(1) योग्य युवक-‘गोधन’ ‘पंचलाइट’ कहानी का एक ऐसा पात्र है जो अशिक्षित होते हुए भी योग्य है। पेट्रोमैक्स जलाने के कार्य को उसकी बिरादरी का कोई भी व्यक्ति नहीं जानता, परन्तु वह उसे जला देता है।
(2) गुणवान-गोधन अशिक्षित होते हुए भी गुणवान् है। उसके इसी गुण के कारण टोले का सरदार उसकी सभी गलतियों को माफ कर देता है तथा उसे फिर से अपने टोले में सम्मिलित कर लेता है।
(3) विवेकी–गोधन अशिक्षित अवश्य है; किन्तु वह विवेकी है। पेट्रोमैक्स जलाने के लिए जब स्पिरिट उपलब्ध नहीं थी तो उसने ‘गरी’ के तेल से ही पेट्रोमैक्स को जला दिया था।
(4) वर्ग-भेद से दूर-गोधन और मुनरी परस्पर स्नेह रखते हैं। गोधन जाति-पाँति, ईष्र्या-द्वेष आदि के चक्कर में नहीं पड़ता। वह मानवीय गुणों का समर्थक है। उसके लिए सभी व्यक्ति एकसमान हैं।
(5) निडर-गोधन में निडरता का गुण भी है। वह गाने गाकर तथा आँख मटकाकर मुनरी के प्रति अपने प्रेम को प्रकट कर देता है।
अतः कहा जा सकता है कि गोधन ग्रामीण परिवेश में पलने-बढ़ने वाला उपर्युक्त गुणों से युक्त एक आदर्श लड़का है।

प्रश्न 4.
आंचलिक कहानी से आप क्या समझते हैं? पंचलाइट कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ प्रथम कथाकार हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं में आंचलिकता को स्थान दिया है। ‘अंचल’ किसी निश्चित भू-भाग को कहते हैं। वहाँ के निवासियों का रहन-सहन, वेशभूषा, रीति-रिवाज तथा लोक-संस्कृति का दर्शन उस आंचलिक रचना में होता है। रेणु जी से पूर्व यह शब्द केवल उपन्यासों में प्रयुक्त होता था। आंचलिकता के समावेश से इनकी कहानियाँ सजीव और मार्मिक होने के साथ-साथ ग्रामीण अंचलों की सम्पूर्ण तस्वीर भी पाठक के समक्ष प्रस्तुत करती हैं। ‘पंचलाइट’ कहानी बिहार के ग्रामीण वातावरण को पाठकों के समक्ष साकार करती है। डॉ० देवराज उपाध्याय के अनुसार-‘किसी प्रदेश विशेष का यथातथ्य और बिम्बात्मक वर्णन ही आंचलिकता है।”

‘रेणु’ की ‘पंचलाइट’ कहानी पूर्ण रूप से आंचलिक है। यह बिहार के ऐसे विशेष भाग से सम्बन्धित है, जो अभी अशिक्षित है, रूढ़िवादी और बौद्धिक चेतनाहीन है।

इस कहानी में बिहार के ग्रामीण भू-भाग की सामाजिक परिस्थितियों पर प्रकाश डाला गया है तथा गाँव में अलग-अलग टोली बनाना, उनका आपस में वैमनस्य होना, एक-दूसरे की खिल्ली उड़ाना, झूठी शान-शौकत का दिखावा करना तथा रूढ़िवादिता आदि का सफल चित्रण करके वास्तविक स्थिति का परिचय दिया गया है।

कहानी में प्रयुक्त ग्रामीण शब्दावली ने पूर्ण रूप से इसे आंचलिक बना दिया है। रोजमर्रा बोले जाने वाले शब्द, अंग्रेजी शब्दों का बिगड़ा रूप और पंचलाइट जलने पर उसकी जय-जयकार करना ग्रामवासियों के भोलेपन और स्वच्छ हृदय को प्रदर्शित करता है।

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 1 धुवयात्रा

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 1 धुवयात्रा (जैनेन्द्र कुमार) are part of UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 1 धुवयात्रा (जैनेन्द्र कुमार).

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Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name धुवयात्रा (जैनेन्द्र कुमार)
Number of Questions 2
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 1 धुवयात्रा (जैनेन्द्र कुमार)

प्रश्न 1.
‘ध्रुवयात्रा’ कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।’ [2012, 13, 14, 16, 17, 18]
उत्तर
ध्रुवयात्रा’ हिन्दी के सुप्रसिद्ध कहानीकार जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी है। जैनेन्द्र जी मुंशी प्रेमचन्द की परम्परा के अग्रणी कहानीकार हैं। मनोवैज्ञानिक कहानियाँ लिखकर इन्होंने हिन्दी कहानी-कला के क्षेत्र में एक नवीन अध्याय को जोड़ा है। प्रस्तुत कहानी में इन्होंने मानवीय संवेदना को मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक दृष्टिकोण में समन्वित करके एक नवीन धारी को जन्म दिया और कहानी ‘ध्रुवयात्रा’ की रचना की। इस कहानी का सारांश निम्नवत् है राजा रिपुदमन बहादुर उत्तरी ध्रुवे को जीतकर अर्थात् उत्तरी ध्रुव की यात्रा करके यूरोप के नगरों से बधाइयाँ लेते हुए भारत आ रहे हैं इस खबर को सभी समाचार पत्रों ने मुखपृष्ठ पर मोटे अक्षरों में प्रकाशित किया। उर्मिला, जो राजा रिपुदमन की प्रेमिका है और जिसने उनसे विवाह किये बिना उनके बच्चे को जन्म दिया है, ने भी इस समाचार को पढ़ा। उसने यह भी पढ़ा कि वे अब बम्बई पहुँच चुके हैं, जहाँ उनके स्वागत की तैयारियाँ जोर-शोर से की जा रही हैं। ………. उन्हें अपने सम्बन्ध में इस प्रकार के प्रदर्शनों में तनिक भी उल्लास नहीं है। ……….” इसलिए वे बम्बई में न ठहरकर प्रात: होने के पूर्व ही दिल्ली पहुँच गये। ……….. उनके चाहने वाले उन्हें अवकाश नहीं दे रहे हैं, ऐसा लगता है कि वे आराम के लिए कुछ दिन के लिए अन्यत्र जाएँगे।

राजा रिपुदमन को अपने से ही शिकायत है। उन्हें नींद नहीं आती है। वे अपने किये पर पश्चाताप कर रहे हैं। जब उर्मिला ने उनसे शादी के लिए कहा था तो उन्होंने परिवारीजनों के डर से मना कर दिया था। उनकी वही भूल आज उन्हें पीड़ा प्रदान कर रही है। वह उसके विषय में बहुत चिन्तित हैं।
दिल्ली में आकर वे आचार्य मारुति से मिलते हैं, जिनके बारे में उन्होंने यूरोप में भी बहुत सुन रखा था।

आचार्य मारुति तरह-तरह की चिकित्सकीय जाँच के परिणामों को ठीक बताते हुए उन्हें विवाह करने की सलाह देते हैं। लेकिन रिपुदमन स्वयं को विवाह के अयोग्य बताते हुए इसे बन्धन में बँधना कहते हैं। आचार्य मारुति उन्हें प्रेम-बन्धन में बँधने की सलाह देते हैं और कहते हैं कि प्रेम का इनकार स्वयं से इनकार है।

अगले दिन राजा रिपुदमन उर्मिला से मिलते हैं और अपने बच्चे का नामकरण करते हैं। वे उर्मिला से समाज के विपरीत अपने द्वारा किये गये व्यवहार के लिए क्षमा माँगते हैं और अपने व उर्मिला के सम्बन्धों को एक परिणति देना चाहते हैं। लेकिन उर्मिला मना करती है और उनसे सतत आगे बढ़ते रहने के लिए कहती है। वह पुत्र की ओर दिखाती हुई कहती है कि तुम मेरे ऋण से उऋण हो और मेरी ओर से आगामी गति के लिए मुक्त हो।

रिपुदमन उर्मिला को आचार्य मारुति के विषय में बताता है। वह उसे ढोंगी, महत्त्व को शत्रु और साधारणता का अनुचर बताती है। वह कहती है कि तुम्हारे लिए स्त्रियों की कमी नहीं है, लेकिन मैं तुम्हारी प्रेमिका हूँ। और तुम्हें सिद्धि तक पहुँचाना चाहती हूँ, जो कि मृत्यु के भी पार है।।

रिपुदमन आचार्य मारुति से मिलता है तथा उसे बताता है कि वह उर्मिला के साथ विवाह करके साथ में रहने के लिए तैयार था, लेकिन उसने मुझे ध्रुवयात्रा के लिए प्रेरित किया और कुछ मेरी स्वयं की भी इच्छा थी। अब वह मुझे सिद्धि तक जाने के लिए प्रेरित कर रही है। आचार्य मारुति स्वीकार करते हैं कि उर्मिला उनकी ही पुत्री है। वे उसे विवाह के लिए समझाएँगे।

जब उर्मिला आचार्य के बुलवाने पर उनके पास जाती है तो वे उससे विवाह के लिए कहते हैं। वह कहती है। कि शास्त्र से स्त्री को नहीं जाना जा सकता उसे तो सिर्फ प्रेम से जाना जा सकता है। वे उसे रिपुदमन से विवाह के लिए समझाते हैं, लेकिन वह नहीं मानती। वह स्पष्ट कहती है कि मुक्ति का पथ अकेले का है। अन्त में आचार्य उर्मिला के ऊपर इस रहस्य को प्रकट कर देते हैं कि वे ही उसके पिता हैं। इस अभागिन को भूल जाइएगा’ यह कहती हुई वह उनके पास से चली जाती है।

रिपुदमन के पूछने पर उर्मिला बताती है कि वह आचार्य से मिल चुकी है। रिपुदमन उसके कहने पर दक्षिणी ध्रुव के शटलैण्ड द्वीप के लिए जहाज तय करते हैं। अब उर्मिला उनको रोकना चाहती है, लेकिन वे नहीं रुकते। वे चले जाते हैं। रिपुदमन की ध्रुव पर जाने की खबर पूरी दनिया को ज्ञात हो जाती है। उर्मिला को भी अखबारों के माध्यम से सारी खबर ज्ञात होती रहती है और वह इन्हीं कल्पनाओं में डूबी रहती है।

तीसरे दिन के अखबार में उर्मिला राजा रिपुदमन की आत्महत्या की खबर का एक-एक अंश पूरे ध्यान से पढ़ती है। अखबार वालों ने एक पत्र भी छापा था, जिसमें रिपुदमन ने स्वीकार किया था कि उनकी यह यात्रा नितान्त व्यक्तिगत थी, जिसे सार्वजनिक किया गया। मैं किसी से मिले आदेश और उसे दिये गये अपने वचन को पूरा नहीं कर पा रहा हूँ, इसलिए होशो हवाश में अपना काम-तमाम कर रहा हूँ। भगवान मेरे प्रिय के अर्थ मेरी आत्मा की रक्षा करे।’ यहीं पर कहानी समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 2
‘धुवयात्रा’ कहानी की कथावस्तु का विवेचन कीजिए। या ध्रुवयात्रा कहानी के कथानक की विवेचना कीजिए। [2018]
या
कथा-संगठन की दृष्टि से ‘धुवयात्रा’ कहानी की समीक्षा कीजिए।
या
‘ध्रुवयात्रा’ कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए। [2013, 14, 15, 16, 18]
या
‘ध्रुवयात्रा’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जैनेन्द्र कुमार महान् कथाकार हैं। ये व्यक्तिवादी दृष्टि से पात्रों का मनोविश्लेषण करने में कुशल हैं। प्रेमचन्द की परम्परा के अग्रगामी लेखक होते हुए भी इन्होंने हिन्दी कथा-साहित्य को नवीन शिल्प प्रदान किया। ‘ध्रुवयात्रा’ जैनेन्द्र कुमार की सामाजिक, मनोविश्लेषणात्मक, यथार्थवादी रचना है। कहानीकला के कतिपय प्रमुख तत्त्वों के आधार पर इस कहानी की समीक्षा निम्नवत् है-

(1) शीर्षक–कहानी का शीर्षक आकर्षक और जिज्ञासापूर्ण है। सार्थकता तथा सरलता इस शीर्षक की विशेषता है। कहानी का शीर्षक अपने में कहानी के सम्पूर्ण भाव को समेटे हुए है तथा प्रारम्भ से अन्त तक कहानी इसी ध्रुवयात्रा पर ही टिकी है। कहानी का प्रारम्भ नायक के ध्रुवयात्रा से आगमन पर होता है और कहानी का समापन भी ध्रुवयात्रा के प्रारम्भ के पूर्व ही नायक के समापन के साथ होता है। अत: कहानी का शीर्षक स्वयं में पूर्ण और समीचीन है।।

(2) कथानक-श्रेष्ठ कथाकार के रूप में स्थापित जैनेन्द्र कुमार जी ने अपनी कहानियों को कहानी- कला की दृष्टि से आधुनिक रूप प्रदान किया है। ये अपनी कहानियों में मानवीय गुणों; यथा-प्रेम, सत्य तथा करुणा; को आदर्श रूप में स्थापित करते हैं।

इस कहानी की कथावस्तु का आरम्भ राजा रिपुदमन की ध्रुवयात्रा से वापस लौटने से प्रारम्भ होता है। कथानक का विकास रिपुदमन और आचार्य मारुति के वार्तालाप, तत्पश्चात् रिपुदमन और उसकी अविवाहिता प्रेमिका उर्मिला के वार्तालाप और उर्मिला तथा आचार्य मारुति के मध्य हुए वार्तालाप से होता है। कहानी के मध्य में ही यह स्पष्ट होता है कि उर्मिला ही मारुति की पुत्री है। कहानी का अन्त और चरमोत्कर्ष राजा रिपुदमन द्वारा आत्मघात किये जाने से होता है।

प्रस्तुत कहानी में कहानीकार ने एक सुसंस्कारित युवती के उत्कृष्ट प्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाया है तथा प्रेम को नारी से बिलकुल अलग और सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित किया है। कहानी का प्रत्येक पात्र कर्तव्य के प्रति निष्ठा एवं नैतिकता के प्रति पूर्णरूपेण सतर्क दिखाई पड़ता है और जिसकी पूर्ण परिणति के लिए वह अपना जीवन अर्पण करने से भी नहीं डरता। कहानी मनौवैज्ञानिकता के साथ-साथ दार्शनिकता से भी ओत-प्रोत है और संवेदनाप्रधान होने के कारण पाठक के अन्तस्तल पर अपनी अमिट छाप छोड़ती हैं। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि ध्रुवयात्रा एक अत्युत्कृष्ट कहानी है।

(3) उद्देश्य-प्रस्तुत कहानी में कहानीकार जैनेन्द्र जी ने बताया है कि प्रेम एक पवित्र बन्धन है और विवाह एक सामाजिक बन्धन। प्रेम में पवित्रता होती है और विवाह में स्वार्थता। प्रेम की भावना व्यक्ति को उसके लक्ष्य तक पहुँचने में मदद करती है। उर्मिला कहती है, “हाँ, स्त्री रो रही है, प्रेमिका प्रसन्न है। स्त्री की मत सुनना, मैं भी पुरुष की नहीं सुनँगी। दोनों जने प्रेम की सुनेंगे। प्रेम जो अपने सिवा किसी दया को, किसी कुछ को नहीं जानता।”
निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि प्रेम को ही सर्वोच्च दर्शाना इस कहानी का मुख्य उद्देश्य है, जिसमें कहानीकार को पूर्ण सफलता मिली है।

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 7 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन’ अज्ञेय’

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Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 7
Chapter Name सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन’ अज्ञेय’
Number of Questions 4
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 7 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन’ अज्ञेय’

कवि का साहित्यिक परिचय और कृतिया

प्रश्न 1.
अज्ञेय के जीवन-परिचय और कृतियों पर प्रकाश डालिए। [2009, 10, 11]
या
सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए। (2012, 13, 14, 15, 16, 18]
उत्तर
जीवन-परिचय-अज्ञेय जी का जन्म सन् 1911 ई० में करतारपुर (जालन्धर) में हुआ था। इनके पिता पं० हीरानन्द शास्त्री भारत के प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता थे। ये वत्स गोत्र के और सारस्वत ब्राह्मण परिवार के थे। संकीर्ण जातिवाद से ऊपर उठकर वत्स गोत्र के नाम से ये वात्स्यायन कहलाये। अज्ञेय जी का शैशव अपने पिता के साथ वन और पर्वतों में बिखरे पुरातत्त्व अवशेषों के मध्य व्यतीत हुआ। माता और भाइयों से अलग एकान्त में रहने के कारण इनका जीवन और व्यक्तित्व कुछ विशेष प्रकार का बन गया। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा पुराने ढंग से अष्टाध्यायी रटकर संस्कृत में हुई। इसके बाद इन्होंने फारसी और अंग्रेजी सीखी। इनकी आगे की शिक्षा मद्रास (चेन्नई) और लाहौर में हुई। सन् 1929 ई० में बी० एस-सी० उत्तीर्ण करने के उपरान्त ये अंग्रेजी में एम० ए० के अन्तिम वर्ष में ही थे कि क्रान्तिकारी आन्दोलनों में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर लिये गये। चार वर्ष जेल में और एक वर्ष घर में ही नजरबन्द रहकर व्यतीत करना पड़ा। इन्होंने मेरठ के किसान आन्दोलन में भाग लिया था और तीन वर्ष तक सेना में भरती होकर असम-बर्मा सीमा पर और यहाँ युद्ध समाप्त हो जाने पर पंजाब के पश्चिमोत्तर सीमान्त पर सैनिक रूप में सेवा भी की। सन् 1955 ई० में यूनेस्को की वृत्ति पर आप यूरोप गये तथा सन् 1957 ई० में जापान और पूर्वेशिया का भ्रमण किया। कुछ समय तक ये अमेरिका में भारतीय साहित्य और संस्कृति के प्राध्यापक रहे तथा जोधपुर विश्वविद्यालय में तुलनात्मक साहित्य और भाषा अनुशीलन विभाग में निदेशक पद पर भी कार्य किया। ये ‘दिनमान’ और ‘नया प्रतीक’ पत्रों के सम्पादक भी रहे।

साहित्य के अतिरिक्त चित्रकला, मृत्तिका-शिल्प, फोटोग्राफी, बागवानी, पर्वतारोहण आदि में ये विशेष रुचि लेते थे। 4 अप्रैल, 1987 ई० को इनका स्वर्गवास हो गया। इन्हें मरणोपरान्त ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

साहित्यिक सेवाएँ-अज्ञेय जी की रचनाओं में उनका व्यक्तित्व बहुत मुखर रहा है। वे प्रयोगवादी कवि के रूप में विख्यात हैं और उनकी प्रतिभा निरन्तर परिमार्जित होती रही है। प्रगतिवादी काव्य का ही एक रूप प्रयोगवादी काव्य के आन्दोलन में प्रतिफलित हुआ। इसका प्रवर्तन ‘तार सप्तक’ के द्वारा अज्ञेय जी ने ही किया था। इन्होंने अपने कलात्मक बोध, समृद्ध कल्पना-शक्ति और संकेतमयी अभिव्यंजना द्वारा भावना के अनेक नये अनछुए रूपों को उजागर किया।

प्रमुख रचनाएँ—(1) आँगन के पार द्वार, (2) सुनहले शैवाल, (3) पूर्वा, (4) हरी घास पर क्षण भर, (5) बावरा अहेरी, (6) अरी ओ करुणामय प्रभामय, (7) इन्द्रधनु रौंदे हुए ये, (8) कितनी नावों में कितनी बार, (9) पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ, (10) इत्यलम्, (11) चिन्ता, (12) सागरमुद्रा, (13) महावृक्ष के नीचे, (14) भग्नदूत, (15) रूपांवरा, (16) नदी के बॉक पर छाया आदि इनके प्रमुख काव्य ग्रन्थ हैं। ‘प्रिज़न डेज़ ऐण्ड अदर पोयम्स’ नाम से इनकी अंग्रेजी भाषा में रचित एक अन्य काव्य-कृति भी प्रकाशित हुई है।

साहित्य में स्थान–अज्ञेय की सतत प्रयोगशील प्रतिभा किसी एक बँधी-बँधायी लीक पर चलने वाली न थी, फलतः इन्होंने काव्य के भावपक्ष तथा कलापक्ष दोनों में नये-नये प्रयोग करके हिन्दी-कविता के भावक्षेत्र का विस्तार किया तथा अभिव्यक्ति को नूतन व्यंजकता प्रदान की। अत: इनके विषय में यह नि:संकोच कहा जा सकता है कि इन्होंने हिन्दी कविता का नव संस्कार किया। ये प्रयोगवादी काव्यधारा के प्रवर्तक तथा आधुनिक हिन्दी कवियों में उच्च स्थान के अधिकारी हैं।

पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोर

मैंने आहुति बनकर देखा

प्रश्न–दिए गए पद्यांश को पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

प्रश्न 1.
वे रोगी होंगे प्रेम जिन्हें अनुभव-रस का कटु प्याला है-
वे मुर्दे होंगे प्रेम जिन्हें सम्मोहन-कारी हाला है।
मैंने विदग्ध हो जान लिया, अन्तिम रहस्य पहचान लिया-
मैंने आहुति बनकर देखा यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है !
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) कवि ने रोगी किसे बताया है?
(iv) किनको संवेदनाहीन मृतक की संज्ञा दी गयी है?
(v) कवि ने यह कैसे सिद्ध किया है कि प्रेम यज्ञ की ज्वाला के समान पवित्र और कल्याणकारी
उत्तर
(i) प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रयोगवाद के प्रवर्तक श्री सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन’अज्ञेय’ द्वारा रचित ‘पूर्वा’ कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘मैंने आहति बनकर देखा’ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं।
अथवा
शीर्षक का नाम- मैंने आहुति बनकर देखा।
कवि का नाम–सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कवि अज्ञेय का कहना है कि प्रेम जीवन में माधुर्य और सरसता का संचार करता है तथा व्यक्ति को एक नवीन चेतना और उत्साहित करने वाली नव-प्रेरणा प्रदान करता है। यह निष्प्राण व्यक्ति में भी प्राण डाल देता है। कवि कहता है कि मैंने स्वयं अनुभूत करके प्रेम के सच्चे स्वरूप और उसकी महत्ता को जान लिया है। मुझे प्रेम का यह तत्त्व अथवा रहस्य ज्ञात हो गया है कि प्रेम यज्ञ की उस ज्वाला के समान पवित्र और कल्याणकारी है, जो भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टियों से व्यक्ति के लिए आवश्यक और मंगलकारी है। साथ ही प्रेम के इस मंगलकारी स्वरूप की अनुभूति तथा प्रेमरूपी यज्ञ की ज्वाला के दर्शन उसी समय सम्भव हो पाते हैं, जब व्यक्ति स्वयं प्रेमरूपी यज्ञ में अपनी आहुति देता है। आशय यह है कि कठिनाइयों और बाधाओं को पार करके तथा संघर्ष में तपकर ही हम प्रेम के तत्त्व को पहचान सकते हैं।
(iii) कवि ने उन लोगों को रोगी बताया है जो प्रेम को कटु अनुभवों का प्याला बताते हैं।
(iv) जो लोग प्रेम को अचेतन करने वाली मदिरा कहते हैं उनको संवेदनाहीन मृतक की संज्ञा दी है।
(v) कवि ने स्वयं व्यक्तिगत गहन अनुभूमि के आधार पर यह सिद्ध किया है कि प्रेम यज्ञ की ज्वाला के समान पवित्र और कल्याणकारी है।

हिरोशिमा

प्रश्न 1.
छायाएँ मानव-जन की
नहीं मिटीं लम्बी हो-होकर :
मानव ही सब भाप हो गये।
छायाएँ तो अभी लिखी हैं,
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजड़ी सड़कों की गच पर ।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) प्रस्तुत अंश में किसका वर्णन हुआ है?
(iv) परमाणु हमले से कहाँ पर तुरन्त ही सब कुछ समाप्त हो गया?
(v) हिरोशिमा की उजड़ी सड़कों पर आज भी कितनी काली छायाएँ देखी जा सकती हैं?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रयोगवाद के प्रवर्तक श्री सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन’अज्ञेय’ द्वारा रचित ‘पूर्वा’ कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘हिरोशिमा’ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं।
अथवा
शीर्षक का नाम- हिरोशिमा।
कवि का नाम–सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-‘अज्ञेय’ जी ने कहा है कि परमाणु शक्ति के दुरुपयोग से मानवता त्रस्त होती है। मानव के साथ-साथ प्रकृति और दूसरे जीव-जन्तु भी समूल नष्ट हो जाते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के अन्त में अमेरिका ने जापान देश के हिरोशिमा और नागासाकी नगरों पर परमाणु बमों से हमला किया तो मनुष्य द्वारा रचे गये उस सूर्य की रोशनी में वहाँ की जनता भाप बन कर उड़ गयी थी। लोगों की छायाएँ डूबते सूर्य के प्रकाश में जैसे लम्बी होकर मिटती हैं, वैसी हिरोशिमा में नहीं मिटी थीं, वहाँ तुरन्त ही सब कुछ समाप्त हो गया था। आज तक भी वहाँ की उजड़ी सड़कों और परमाणु बमों की आग से झुलसे पत्थरों पर उस त्रासदी की काली छायाएँ स्पष्ट देखी जा सकती हैं।
(iii) प्रस्तुत अंश में अमेरिका के परमाणु बमों द्वारा जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नगरों में हुए भीषण नर-संहार का वर्णन हुआ है।
(iv) हिरोशिमा और नागासाकी नगरों में परमाणु हमले से तुरन्त ही सब-कुछ समाप्त हो गया।
(v) हिरोशिमा की उजड़ी सड़कों पर परमाणु बस की आग से झुलसे पत्थरों पर उस त्रासदी की काली छायाएँ स्पष्ट देखी जा सकती हैं।

प्रश्न 2.
मानव का रचा हुआ सूरज
मानव को भाप बनाकर सोख गया।
पत्थर पर लिखी हुई यह
जली हुई छाया
मानव की साखी है।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) मानव का रचा हुआ सूरज क्या है?
(iv) अणुबमरूपी सूरज किसे और किस प्रकार भाप बनाकर सोख गया?
(v) कौन आज भी महाविनाश के गवाह हैं?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रयोगवाद के प्रवर्तक श्री सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘हिरोशिमा’ द्वारा रचित ‘पूर्वा’ कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित हिरोशिमा’ शीर्षक कविता से उद्धत हैं।
अथवा
शीर्षक का नाम-हिरोशिमा।
कवि का नाम-सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या–परमाणु बम के रूप में मनुष्य ने मानो कृत्रिम सूरज की रचना कर ली है। इसके विस्फोट में सूरज के समान ही अत्यधिक ताप उत्पन्न होता है। अमेरिका ने जब हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया तो विस्फोट के समय उससे इतना ताप और प्रकाश उत्पन्न हुआ कि लगा आसमान से टूटकर सूरज ही धरती पर आ गिरा हो। उस समय मनुष्य भाप बनकर उड़ गया और उसकी राख तक शेष न रही। सूर्य में भी इतना ही ताप है कि उसके पास पहुँचकर कोई भी वस्तु ठोस अथवा द्रव अवस्था में नहीं रहती, वरन् वह गैस में परिवर्तित हो जाती है, ऐसा ही हिरोशिमा के परमाणु बम विस्फोट के समय हुआ था। जहाँ पर बम गिरा था, वहाँ की अधिकांश वस्तुएँ विशेषकरे पेड़-पौधे और जीव-जन्तु अत्यधिक ताप के कारण भाप (गैस) बनकर उड़ गये थे। यह वैज्ञानिक प्रगति के महाविनाश का प्रथम प्रमाण था।
(iii) मानव का रचा हुआ सूरज अणुबम है।
(iv) अणुबमरूपी सूरज ने मनुष्यों को उसी प्रकार जलाकार भस्म कर डाला जिस प्रकार सूर्य पानी को भाप बना डालता है।
(v) अणुबम की आग ने मानव तो मानव, पत्थर तक को जलाकर काला कर डाला, जो आज भी उस महाविनाश की गाथा के गवाह हैं।

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 6 रामधारी सिंह दिनकर

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 6
Chapter Name रामधारी सिंह दिनकर
Number of Questions 6
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 6 रामधारी सिंह दिनकर

कवि का साहित्यिक परिचय और कृतिया

प्रश्न 1.
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जीवन-परिचय और साहित्यिक प्रदेय पर प्रकाश डालिए। [2009]
था
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए। [2010, 11]
था
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का साहित्यिक परिचय दीजिए एवं उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए। [2012, 14, 15, 16, 17, 18]
उतर
जीवन-परिचय-श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म 30 सितम्बर, 1908 ई० ( संवत् 1965 वि० ) को जिला मुंगेर (बिहार) के सिमरिया नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री रवि सिंह और माता का नाम श्रीमती मनरूपदेवी था। इनकी दो वर्ष की अवस्था में ही पिता का देहावसान हो गया; अत: बड़े भाई वसन्त सिंह और माता की छत्रछाया में ही ये बड़े हुए। इनकी आरम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही हुई। अपने विद्यार्थी जीवन से ही इन्हें आर्थिक कष्ट झेलने पड़े। विद्यालय के लिए घर से पैदल दस मील रोज आना-जाना इनकी विवशता थी। इन्होंने मैट्रिक (हाईस्कूल) की परीक्षा मोकामा घाट स्थित रेलवे हाईस्कूल से उत्तीर्ण की और हिन्दी में सर्वाधिक अंक प्राप्त करके ‘भूदेव’ स्वर्णपदक जीता। 1932 ई० में पटना से इन्होंने बी० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। ग्रामीण परम्पराओं के कारण दिनकर जी का विवाह किशोरावस्था में ही हो गया। अपने पारिवारिक दायित्वों के प्रति दिनकर जी जीवन भर सचेत रहे और इसी कारण इन्हें कई प्रकार की नौकरी करनी पड़ी। सन् 1932 ई० में बी० ए० करने के बाद ये एक नये स्कूल में अध्यापक बने। सन् 1934 ई० में इस पद को छोड़कर सीतामढ़ी में सब-रजिस्ट्रार बने। सन् 1950 ई० में बिहार सरकार ने इन्हें मुजफ्फरपुर के स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिन्दी-विभागाध्यक्ष के पद पर नियुक्त किया। सन् 1952 ई० से सन् 1963 ई० तक ये राज्यसभा के सदस्य मनोनीत किये गये। इन्हें केन्द्रीय सरकार की हिन्दी-समिति को परामर्शदाता भी बनाया गया। सन् 1964 ई० में ये भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति बने।।

दिनकर जी को कवि-रूप में पर्याप्त सम्मान मिला। ‘पद्मभूषण’ की उपाधि, ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार, द्विवेदी पदक, डी० लिट् की मानद उपाधि, राज्यसभा की सदस्यता आदि इनके कृतित्व की राष्ट्र द्वारा स्वीकृति के प्रमाण । सन् 1972 ई० में इन्हें उर्वशी’ के लिए ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया। इनका स्वर्गवास 24 अप्रैल, 1974 ई०( संवत् 2031 वि०) को मद्रास (चेन्नई) में हुआ।

साहित्यिक सेवाएँ–दिनकर जी की सबसे प्रमुख विशेषता उनकी परिवर्तनकारी सोच रही है। उनकी कविता का उद्भव छायावाद युग में हुआ और वह प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता आदि के युगों से होकर गुजरी। इस दीर्घकाल में जो आरम्भ से अन्त तक उनके काव्य में रही, वह है उनका राष्ट्रीय स्वर। ‘दिनकर’ जी राष्ट्रीय भावनाओं के ओजस्वी गायक रहे हैं। इन्होंने देशानुराग की भावना से ओत-प्रोत, पीड़ितों के प्रति सहानुभूति की भावना से परिपूर्ण तथा क्रान्ति की भावना जगाने वाली रचनाएँ लिखी हैं। ये लोक के प्रति निष्ठावान, सामाजिक दायित्व के प्रति सजग तथा जनसाधारण के प्रति समर्पित कवि रहे हैं।

कृतियाँ-दिनकर जी की साहित्य विपुल है, जिसमें काव्य के अतिरिक्त विविध-विषयक गद्य-रचनाएँ भी हैं। इनकी प्रमुख
काव्य-रचनाएँ—(1) रेणुका, (2) हुंकार, (3) कुरुक्षेत्र तथा (4) उर्वशी हैं। इनके अतिरिक्त दिनकर जी के अन्य काव्यग्रन्थ निम्नलिखित हैं(5) खण्डकाव्य-रश्मिरथी, (6) कविता-संग्रह–(i) रसवन्ती, (ii) द्वन्द्वगीत, (iii) सामधेनी, (iv) बापू, (v) इतिहास के आँसू, (vi) धूप और धुआँ, (vii) नीम के पत्ते, (viii) नीलकुसुम, (ix) चक्रवाल, (x) कविश्री, (xi) सीपी और शंख, (xii) परशुराम की प्रतीक्षा, (xiii) स्मृति-तिलक, (xiv) हारे को हरिनाम आदि, (7) बालसाहित्य-धूप-छाँह, मिर्च का मजा, सूरज को ब्याह।
साहित्य में स्थान–दिनकर जी की सबसे बड़ी विशेषता है, उनका समय के साथ निरन्तर गतिशील रहना। यह उनके क्रान्तिकारी व्यक्तित्व और ज्वलन्त प्रतिभा का परिचायक है। फलत: गुप्त जी के बाद ये ही राष्ट्रकवि पद के सच्चे अधिकारी बने और इन्हें ‘युग-चरण’, ‘राष्ट्रीय-चेतना का वैतालिक’ और ‘जनजागरण का अग्रदूत’ जैसे विशेषणों से विभूषित किया गया। ये हिन्दी के गौरव हैं, जिन्हें पाकर सचमुच हिन्दी कविता धन्य हुई।

‘पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोचर

पुरवा प्रश्न–दिए गए पद्यांश को पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

प्रश्न 1.
कौन है अंकुश, इसे मैं भी नहीं पहचानता हूँ ।
पर, सरोवर के किनारे कंठ में जो जल रहा है।
उस तृषा, उस वेदना को जानता हूँ।
सिन्धु-सा उद्द्दाम, अपरम्पार मेरा बल कहाँ है ?
गूंजता जिस शक्ति का सर्वत्र जयजयकारे,
उस अटल संकल्प का सम्बल कहाँ है ?
यह शिला-सा वक्ष, ये चट्टान-सी मेरी भुजाएँ,
सूर्य के आलोक से दीपित, समुन्नत भाल,
मेरे प्राण का सागर अगम, उत्ताल, उच्छल है।
सामने टिकते नहीं वनराज, पर्वत डोलते हैं,
काँपता है कुंडली मारे समय का व्याल,
मेरी बाँह में मारुत, गरुड़, गजराज का बल है।
मर्त्य मानव की विजय का तूर्य हूँ मैं,
उर्वशी ! अपने समय का सूर्य हूँ मैं ।
अंध तम के भाल पर पावक जलाता हूँ,
बादलों के सीस पर स्यन्दन’चलाता हूँ।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) राजा पुरूरवा किससे अपने मन की दुविधाग्रस्त स्थिति का वर्णन कर रहे हैं?
(iv) ऐसा क्या है जो राजा पुरूरवा को उर्वशी जैसी रूपसी के पास होने पर भी कामना पूरी करने पर रोक रहा है?
(v) हे उर्वशी! मैं अपने समय का सूर्य हूँ।” इस बात का क्या आशय है?
उत्तर
(i) ये पंक्तियाँ महाकवि रामधारीसिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित नाटकीय महाकाव्य ‘उर्वशी’ के तृतीय अंक से हमारी पाठ्य-पुस्तक काव्यांजलि’ में संकलित ‘पुरूरवा’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत हैं।
अथवा
शीर्षक का नाम-— उर्वशी।
कवि का नाम-रामधारी सिंह ‘दिनकर’।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-पुरूरवा कहते हैं कि मैं उस अंकुश या प्रतिबन्ध के विषय में नहीं जानता कि वह कौन-सी शक्ति है, जो मुझे अपनी प्यास बुझाने से रोक रही है। मेरी स्थिति उस व्यक्ति की-सी है, जो प्रेम सरोवर के किनारे बैठा है, किन्तु प्यास की पीड़ा से व्याकुल होने पर भी वह अपनी प्यास नहीं बुझा पाता। ऐसा क्यों होता है, यह मैं स्वयं नहीं समझ पाता। पुरूरवा का आशय है कि उर्वशी जैसी अनुपम रूपसी पास होने पर भी और स्वयं कामाग्नि से विह्वल होने पर भी वह अपनी कामना पूरी क्यों नहीं कर पा रहा है। सम्भवतया उसके सत्संस्कार उसे इस समाज विरुद्ध सम्बन्ध बनाने से रोक रहे हैं।
(iii) राजा पुरूरवा अप्सरा उर्वशी से अपने मन की दुविधाग्रस्त स्थिति का वर्णन कर रहे हैं।
(iv) राजा पुरूरवा के सत्संस्कार हैं जो उसे समाज के विरुद्ध सम्बन्ध बनाने से रोक रहे हैं।
(v) ‘हे उर्वशी! मैं अपने समय का सूर्य हूँ इस बात का आशय है कि जैसे सूर्य के तेज के सामने तारे फीके पड़ जाते हैं वैसे ही मेरे दुर्धर्ष तेज के सामने संसार के सारे राजा-गण निस्तेज हो चुके हैं।

उर्वशी

प्रश्न–दिए गए पद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

प्रश्न 1.
मैं नहीं गगन की लता
तारकों में पुलकिता फूलती हुई,
मैं नहीं व्योमपुर की बाला,
विधु की तनया, चन्द्रिका-संग,
पूर्णिमा सिन्धु की परमोज्ज्वल आभा-तरंग,
मैं नहीं किरण के तारों पर झूलती हुई भू पर उतरी ।
मैं नाम-गोत्र से रहित पुष्प,
अम्बर में उड़ती हुई मुक्त आनन्द-शिखा
इतिवृत्त हीन,
सौन्दर्य-चेतना की तरंग;
सुर-नर-किन्नर गन्धर्व नहीं,
प्रिय! मैं केवल अप्सरा
विश्वनर के अतृप्त इच्छा-सागर से समुद्भूत ।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) इस पद्यांश में उर्वशी ने किसे अपना परिचय दिया है?
(iv) आकाश में उड़ती हुई स्वच्छन्द आनन्द की शिखा कौन है?
(v) ‘मैं नाम-ग्रोत्र से रहित पुष्प’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर
(i) यह पद्यांश राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित ‘उर्वशी’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘उर्वशी’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- उर्वशी
कवि का नाम-रामधारी सिंह ‘दिनकर’।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-मैं नक्षत्रों के बीच में रहकर प्रसन्नतापूर्वक फलने-फूलने वाली आकाश की लता नहीं हूँ, न मैं आकाश में स्थित किसी नगर से उतरी युवती हुँ, न ही मैं चन्द्रमा की पुत्री हूँ, जो चाँदनी के साथ चन्द्रकिरणरूपी तारों पर लटककर पृथ्वी पर उतरी हो और न ही मैं पूर्णिमा के चन्द्रमा के उज्ज्वल प्रकाशरूपी सागर की हिलोरें लेती लहर हूँ। मैं तो मानव के हृदय में सुखोपभोग की अतृप्त इच्छाओं का जो सागर लहरा रहा है, उसी से उत्पन्न हुई केवल एक अप्सरा हूँ।
(iii) इस पद्यांश में उर्वशी ने राजा पुरूरवा को अपना परिचय दिया है।
(iv) उर्वशी आकाश में उड़ती हुई स्वच्छन्द आनन्द की शिखा है।
(v) रूपक अलंकार।।

प्रश्न 2.
देवालय में देवता नहीं, केवल मैं हूँ।
मेरी प्रतिमा को घेर उठ रही अगुरु-गन्ध,
बज रहा अर्चना में मेरी मेरा नूपुर ।
भू-नभ को सब संगीत नाद मेरे निस्सीम प्रणय को है,
सारी कविता जयगान एक मेरी त्रयलोक-विजय का है।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि को नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) इन पंक्तियों में नारी की विश्वव्यापी शक्ति का वर्णन कौन कर रहा है?
(iv) उर्वशी ने मन्दिरों में देवताओं के स्थान पर किसका वास बताया है?
(v) संसार का समस्त काव्य किसका गान करता है?
उत्तर
(i) यह पद्यांश राष्ट्रकवि रामधारीसिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित ‘उर्वशी’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘उर्वशी’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- उर्वशी।
कवि का नाम-रामधारी सिंह ‘दिनकर’।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-उर्वशी कह रही है कि मन्दिरों में देवताओं का नहीं, अपितु मेरा ही वास है। आशय यह है कि देव-प्रतिमाएँ मनुष्य की सौन्दर्य चेतना का परिणाम हैं और इस सौन्दर्य चेतना का मूल आधार नारी है। इस प्रकार मन्दिरों में देव-प्रतिमाओं के विभिन्न रूपों में मनुष्य वस्तुतः सौन्दर्य की साकार प्रतिमा नारी को ही अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करता है। अतः स्पष्ट है कि देवालयों में देव-प्रतिमाओं के स्थान पर मुख्यतः नारी ही अधिष्ठित है।
(iii) इन पंक्तियों में नारी की विश्वव्यापी शक्ति का वर्णन उर्वशी कर रही है।
(iv) उर्वशी ने मन्दिरों में देवताओं के स्थान पर स्वयं का वास बताया है।
(v) संसार का समस्त काव्य नारी के ही त्रैलोक्य-विजय का गान करता है।

अभिनव मनुष्य

प्रश्न–दिए गए पद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

प्रश्न 1.
यह मनुज, ब्रह्माण्ड का सबसे सुरम्य प्रकाश,
कुछ छिपा सकते न जिससे भूमि या आकाश ।
यह मनुज जिसकी शिखा उद्द्दाम,
कर रहे जिसको चराचर भक्तियुक्त प्रणाम ।
यह मनुज, जो सृष्टि का श्रृंगार,
ज्ञान का, विज्ञान का, आलोक का आगार ।
‘व्योम से पाताल तक सब कुछ इसे है ज्ञेय’
पर, न यह परिचय मनुज का, यह न उसका श्रेय ।
श्रेय उसका, बुद्धि पर चैतन्य उर की जीत;
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) आकाश और पृथ्वी का कोई भी तत्त्व किससे अज्ञात नहीं रह सकता?
(iv) संसार के सभी जड़-चेतन पदार्थ किस कारण मनुष्य को प्रणाम करते हैं?
(v) ‘आकाश’ शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश कविवर रामधारी सिंह दिनकर’ द्वारा रचित ‘कुरुक्षेत्र’ काव्य के छठे सर्ग से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘अभिनव मनुष्य’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- अभिनव मनुष्य।
कवि का नाम-रामधारी सिंह ‘दिनकर’।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या–कवि कहता है कि आज मनुष्य ने वैज्ञानिक प्रगति के बल पर इस संसार के विषय में सब कुछ जान लिया है। पृथ्वी के गर्भ से लेकर सुदूर अन्तरिक्ष तक के सभी रहस्यों का उद्घाटन कर दिया है। चाँद-तारे, सूरज आदि की स्थिति को स्पष्ट कर दिया है कि आसमान में कहाँ और कैसे टिके हैं? पृथ्वी के गर्भ में जहाँ शीतल जल का अथाह भण्डार है, वहीं दहकता लावा भी विद्यमान है; उसके द्वारा यह भी ज्ञात किया जा चुका है। किन्तु यह ज्ञान-विज्ञान तो मनुष्यता की पहचान नहीं है और न ही इससे मानवता का कल्याण हो सकता है। संसार का कल्याण तो केवल इस बात में निहित है कि प्रत्येक मनुष्य प्राणिमात्र से स्नेह करे, उसे अपने समान ही समझे, यही मनुष्यता की अथवा मनुष्य होने की पहचान भी है, अन्यथा ज्ञान-विज्ञान की जानकारी तो एक कम्प्यूटर भी रखता है, मगर उसमें मानवीय संवेदनाएँ नहीं होती; अत: उसे मनुष्य नहीं कहा जा सकता।
(iii) आकाश और पृथ्वी का कोई भी तत्त्व अभिनव मनुष्य से अज्ञात नहीं रह सकता।
(iv) आज का यह अभिनव मनुष्य इतना बुद्धिमान हो गया है कि इसके यश की अदम्य-शिखा सर्वत्र शोभित है जिसे संसार के सभी जड़-चेतन पदार्थ शक्तिपूर्वक प्रणाम करते हैं।
(v) आकाश’ शब्द के दो पर्यायवाची शब्द हैं–नभ, शून्य।

प्रश्न 2.
सावधान, मनुष्य ! यदि विज्ञान है तलवार,
तो इसे दे फेंक, तजकर मोह, स्मृति के पार ।
हो चुका है सिद्ध, है तू शिशु अभी अज्ञान;
फूल काँटों की तुझे कुछ भी नहीं पहचान ।
खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार,
काट लेगा अंग, तीखी है बड़ी यह धार ।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) कवि ने भौतिकवादी और वैज्ञानिक युग के मानव को क्या चेतावनी दी है?
(iv) कवि ने तलवार किसे बताया है और इसका इस्तेमाल करने से मनुष्य को क्यों मना किया
(v) ‘तलवार’ शब्द के दो पर्यायवाची लिखिए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश कविवर रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित ‘कुरुक्षेत्र’ काव्य के छठे सर्ग से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘अभिनव मनुष्य’ शीर्षक काव्यांश से उद्धत है।।
अथवा
शीर्षक का नाम- अभिनव मनुष्य।।
कवि का नाम-रामधारी सिंह ‘दिनकर’।।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कवि श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ मनुष्य को सचेत करते हुए कहते हैं। कि हे मनुष्य! यह सिद्ध हो चुका है कि तुम अभी एक शिशु के समान अज्ञानी हो। तुम अपने ही हाथों अपना सर्वनाश करने पर तुले हुए हो। तुम्हें फूल और काँटों की कुछ भी पहचान नहीं है; अर्थात् तुम्हें यह पहचान नहीं है कि तुम्हारे लिए क्या लाभदायक है और क्या हानिकारक। अणुबम का प्रयोग करके विज्ञान पर गर्व करने वाले मनुष्य ने अपनी अबोधता और विवेकहीनता को सिद्ध कर दिया है।
(iii) कवि ने भौतिकवादी और वैज्ञानिक युग के मानव को यह चेतावनी दी है कि यदि तू अभी सावधान नहीं हुआ तो तुझे विज्ञान के दुष्परिणाम भोगने पड़ेंगे।
(iv) कवि ने विज्ञान को तलवार बताया है और इसे मनमानी क्रीड़ा का माध्यम बना लेना स्वयं का नुकसान करना है। इसलिए इसके प्रचण्ड प्रभाव वे बचने के लिए मनुष्य को मना किया है।
(v) तलवार’ शब्द के दो पर्यायवाची हैं-खड्ग तथा कृपाण।।

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 5 महादेवी वर्मा

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Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 5
Chapter Name महादेवी वर्मा
Number of Questions 5
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कवयित्री का साहित्यिक परिचय और कृतिया

प्रश्न 1.
महादेवी वर्मा के जीवन-परिचय एवं कृतियों (साहित्यिक योगदान) पर प्रकाश डालिए। [2009, 10, 11]
था
महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय दीजिए एवं उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए। [2012, 13, 14, 16, 17, 18]
उत्तर
जीवन-परिचय–महादेवी वर्मा का जन्म फखाबाद के एक शिक्षित कायस्थ परिवार में सन् 1907 ई०( संवत् 1963 वि०) में होलिका दहन के दिन हुआ था। इनके पिता श्री गोविन्दप्रसाद वर्मा, भागलपुर के एक कॉलेज में प्रधानाचार्य थे। इनकी माता हेमरानी परम विदुषी धार्मिक महिला थीं एवं नाना ब्रजभाषा के एक अच्छे कवि थे। महादेवी जी पर इन सभी का प्रभाव पड़ा और अन्ततः वे एक प्रसिद्ध कवयित्री, प्रकृति एवं परमात्मा की निष्ठावान् उपासिका और सफल प्रधानाचार्या के रूप में प्रतिष्ठित हुईं। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में और उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई। संस्कृत से एम० ए० उत्तीर्ण करने के बाद ये प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाचार्या हो गयीं। इनका विवाह 9 वर्ष की अल्पायु में ही हो गया था। इनके पति श्री रूपनारायण सिंह एक डॉक्टर थे, परन्तु इनका दाम्पत्य जीवन सफल नहीं था। विवाहोपरान्त ही इन्होंने एफ०ए०, बी०ए० और एम०ए० परीक्षाएँ सम्मानसहित उत्तीर्ण कीं। महादेवी जी ने घर पर ही चित्रकला तथा संगीत की शिक्षा भी प्राप्त की।

इन्होंने नारी-स्वातन्त्र्य के लिए संघर्ष किया, परन्तु अपने अधिकारों की रक्षा के लिए नारियों का शिक्षित होना भी आवश्यक बताया। कुछ वर्षों तक ये उत्तर प्रदेश विधान-परिषद् की मनोनीत सदस्या भी रहीं। भारत के राष्ट्रपति से इन्होंने ‘पद्मभूषण’ की उपाधि प्राप्त की। हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से इन्हें ‘सेकसरिया पुरस्कार’ तथा ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ मिला। मई 1983 ई० में ‘भारत-भारती’ तथा नवम्बर 1983 ई० में यामा पर ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से इन्हें सम्मानित किया गया। 11 सितम्बर, 1987 ई० (संवत् 2044 वि०) को इस महान् लेखिका का स्वर्गवास हो गया।

साहित्यिक सेवाएँ–श्रीमती महादेवी वर्मा का मुख्य रचना क्षेत्र काव्य है। इनकी गणना छायावादी कवियों की वृहत् चतुष्टयी (प्रसाद, पन्त, निराला और महादेवी) में होती है। इनके काव्य में वेदना की प्रधानता है। काव्य के अतिरिक्त इनकी बहुत-सी श्रेष्ठ गद्य-रचनाएँ भी हैं। इन्होंने प्रयाग में ‘साहित्यकार संसद’ की स्थापना करके साहित्यकारों का मार्गदर्शन भी किया। ‘चाँद’ पत्रिका का सम्पादन करके इन्होंने नारी को अपनी स्वतन्त्रता और अधिकारों के प्रति सजग किया है।

महादेवी वर्मा जी के जीवन पर महात्मा गाँधी का तथा कला-साहित्य साधना पर कवीन्द्र रवीन्द्र का प्रभाव पड़ा। इनका हृदय अत्यन्त करुणापूर्ण, संवेदनायुक्त एवं भावुक था। इसलिए इनके साहित्य में भी वेदना की गहरी टीस है।

रचनाएँ-महादेवी जी का प्रमुख कृतित्व इस प्रकार है-

  1. नीहार-यह इनका प्रथम प्रकाशित काव्य-संग्रह है।
  2. रश्मि-इसमें आत्मा-परमात्मा विषयक आध्यात्मिक गीत हैं।
  3. नीरजा-इस संग्रह के गीतों में इनकी जीवन-दृष्टि का विकसित रूप दृष्टिगोचर होता है।
  4. सान्ध्यगीत-इसमें इनके श्रृंगारपरक गीतों को संकलित किया गया है।
  5. दीपशिखा-इसमें इनके रहस्य-भावना-प्रधान गीतों का संग्रह है।
  6. यामा-यह महादेवी जी के भाव-प्रधान गीतों का संग्रह है।

इसके अतिरिक्त ‘सन्धिनी’, ‘आधुनिक कवि’ तथा ‘सप्तपर्णा’ इनके अन्य काव्य-संग्रह हैं। ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘श्रृंखला की कड़ियाँ इनकी महत्त्वपूर्ण गद्य रचनाएँ हैं।
साहित्य में स्थान–निष्कर्ष रूप में महादेवी जी वर्तमान हिन्दी-कविता की सर्वश्रेष्ठ गीतकार हैं। इनके भावपक्ष और कलापक्ष दोनों ही अतीव पुष्ट हैं। अपने साहित्यिक व्यक्तित्व एवं अद्वितीय कृतित्व के आधार पर, हिन्दी साहित्याकाश में महादेवी जी का गरिमामय पद ध्रुव तारे की भाँति अटल है।

‘पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोचर

गीत 1

प्रश्न–दिए गए पद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

प्रश्न 1.
चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना !
जाग तुझको दूर जाना !
अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कम्प हो ले,
या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;
आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया,
जाग या विद्युत-शिखाओं में निठुर तूफान बोले ! पर तुझे है नाश-पथ पर, चिह्न अपने छोड़ आना !
जाग तुझको दूर जाना !
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवयित्री ने पथिक को क्या प्रेरणा दी है?
(iv) मार्ग में आने वाली अनेकानेक कठिनाइयों के बावजूद भी पथिक को विनाश और विध्वंश के बीच क्या छोड़ जाना है?
(v) ‘हिमगिरि’ शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा रचित सान्ध्यगीत नामक कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘गीत 1′ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम– गीत 1
कवयित्री का नाम-महादेवी वर्मा।।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कवयित्री महादेवी वर्मा कहती हैं कि हे पथिक! तुम्हारी सदा सचेत रहने वाली आँखों में यह खुमारी कैसी है और तुम्हारी वेशभूषा इतनी अस्त-व्यस्त क्यों हो रही है? ऐसा प्रतीत हो रहा है कि तुम अपने घर पर ही विश्राम कर रहे हो। सम्भवतः तुम यह भूल गये हो कि तुम्हें लम्बी यात्रा पर जाना है। इसीलिए तुम जाग जाओ, क्योंकि तुम्हारा प्राप्य या लक्ष्य बहुत दूर है। इसीलिए तुम्हें आलस्य में पड़े न रहकर तुरन्त निकल जाना चाहिए। आशय यह है कि साधक को साधना-मार्ग में अनेक कठिनाइयों-बाधाओं का सामना करना पड़ता है। जो साधक इनसे घबराकर या हताश होकर बैठ जाता है, वह अपने लक्ष्य तक कभी नहीं पहुँच पाता। इसलिए साधक को आगे बढ़ते रहने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।
(iii) प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवयित्री ने पथिक को निरन्तर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाने की प्रेरणा दी है।
(iv) मार्ग में आने वाली अनेकानेक कठिनाइयों के बावजूद भी पथिक को विनाश और विध्वंस के बीच नव-निर्माण के चित्र छोड़ जाना है।
(v) ‘हिमगिरि’ शब्द के दो पर्यायवाची हैं–हिमालय, गिरिराज।

प्रश्न 2.
कह न ठंडी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;
हार भी तेरी बनेगी मानिनी जय की पताका,
राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी !
है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना !
जाग तुझको दूर जाना !
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) इस पद्यांश से कवयित्री का आशय स्पष्ट कीजिए।
(iv) किसकी राख अमर दीपक की भाग बनकर अमर हो जाती है?
(v) ‘क्षणिक’ शब्द से मूल शब्द और प्रत्यय अलग करके लिखिए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा रचित सान्ध्यगीत नामक कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘गीत 1′ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- गीत 1
कवयित्री का नाम-महादेवी वर्मा।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कवयित्री का कहना है कि यदि किसी के हृदय में अज्ञात प्रियतम के प्रति सच्चा प्रेम है तथा उसके हृदय में अपने प्रियतम से मिलने की एकनिष्ठ छटपटाहट विद्यमान है तो इस स्थिति में उसको मिलने वाली हार भी जीत ही मानी जाएगी। भाव यह है कि प्रेम की सफलता इसी में है कि हम एकनिष्ठ भाव से अपने प्रेम को प्रदर्शित करते रहें, चाहे हमारा अपने प्रियतम से मिलन हो या न हो। आशय यह है कि जीवात्मा अविनाशी परमात्मा पर अपने को मिटाकर भी अक्षय पुण्य एवं गौरव की अधिकारिणी बनती है।
(iii) इस पद्यांश से कवयित्री का आशय है कि साधना के कष्टों से घबराकर साधक को हार नहीं माननी चाहिए। साधना-पथ पर मिली असफलता भी गौरव का ही कारण बनती है।।
(iv) पतंगा दीपक पर जलकर राख बन जाता है। उसकी राख अमर दीपक का भाग बनकर अमर हो जाती
(v) क्षणिक = क्षण + इक।

गीत 2

प्रश्न 1.
पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला !
घेर ले छाया अमा बन,
आज कज्जल-अश्रुओं में रिमझिमा ले यह घिरा घन !
और होंगे नयन सूखे, तिल बुझे औ’ पलक रूखे,
आर्द्र चितवन में यहाँ
शत विद्युतों में दीप खेला !
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) कवयित्री को साधना-पथ पर आगे बढ़ने से कौन नहीं रोक सकता?
(iv) कवयित्री के साधनारूपी दीपक पर किनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता?
(v) ‘प्राण’ तथा ‘अश्रु’ शब्दों के वचन बताइए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित ‘दीपशिखा’ नामक कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘गीत 2’ नामक कविता से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- गीत 2
कवयित्री का नाम–महादेवी वर्मा।
(ii) महादेवी जी कह रही हैं कि लक्ष्य-पथ पर यदि कोई साथ न भी चले, अकेला ही चलना पड़े, तब भी वे निरन्तर आगे बढ़ती रहेंगी और अपरिचित मार्ग के समस्त संकटों को सहर्ष झेलकर अज्ञात प्रियतम के पास पहुँच जाएँगी। ऐसा उनका दृढ़विश्वास है।
(iii) कवयित्री को मार्ग में आने वाली बाधाएँ साधना-पथ पर आगे बढ़ने से नहीं रोक सकतीं।
(iv) कवयित्री के साधनारूपी दीपक पर घनघोर वर्षा और कौंधती बिजलियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
(v) ‘प्राण’ तथा ‘अश्रु’ सदा बहुवचन में रहने वाले शब्द हैं।

गीत 3

प्रश्न 1.
मैं नीर भरी दुख की बदली !
स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसो,
क्रन्दन में आहत विश्व हँसा,
नयनों में दीपक से जलते
पलकों में निर्झरिणी मचली ।।
मेरा पग पग संगीत-भरा,
श्वासों से स्वप्न-पराग झरा,
नभ के नव रँग बुनते दुकूल,
छाया में मलय-बयार पली !
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने स्वयं को क्या बताया है?
(iv) कवयित्री के निरन्तर रुदन का क्या कारण है?
(v) कवयित्री आकाश से अपने हृदय की समानता करते हुए क्या कहती है?
उत्तर
(i) यह पद्यांश श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘सान्ध्य-गीत’ नामक काव्य-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘गीत 3’ शीर्षक कविता से उद्धत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- गीत 3
कवयित्री का नाम–महादेवी वर्मा।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कवयित्री महादेवी वर्मा का कहना है कि मैं नीर-भरी दु:ख की बदली हूँ; अर्थात् मेरा जीवन दु:ख की बदलियों से घिरा हुआ है। जिस प्रकार बदली आकाश में रहती है; किन्तु दूर-दूर तक फैले हुए आकाश का कोई भी कोना उसका स्थायी निवास नहीं होता, वह तो इधर-उधर भ्रमण करती रहती है। उसी प्रकार इस विस्तृत संसार में भी ‘मेरा’ कहने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है। मेरा तो इतना ही परिचय और इतना ही इतिहास है कि मैं कल आई थी और आज जा रही हूँ। कवयित्री का आशय यह है कि मानव-जीवन क्षणिक है; अर्थात् जो आज है, वह कल नहीं होगा। समग्र मानव-जीवन का मात्र इतना ही परिचय है और इतना ही इतिहास है।
(iii) प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने स्वयं को दुःख की बदली बताया है।
(iv) प्रीतम से मिलने की व्याकुलता कवयित्री के निरन्तर रुदन का कारण है।
(v) कवयित्री आकाश से अपने हृदय की समानता करते हुए कहती हैं कि जिस प्रकार आकाश बहुरंगी मेघरूपी दुपट्टे से सुशोभित है उसी प्रकार मेरा हृदय भी बहुरंगी नाना अभिलाषाओं से राँगा हुआ है।

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