UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 4 सुमित्रानन्दन पन्त

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 4
Chapter Name सुमित्रानन्दन पन्त
Number of Questions 7
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 4 सुमित्रानन्दन पन्त

कवि का साहित्यिक परिचय और कृतिया

प्रश्न 1.
सुमित्रानन्दन पन्त का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए। [2009, 10]
या
सुमित्रानन्दन पन्त का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।[2013, 14, 15, 16, 17, 18]
उत्तर
जीवन-पारचय–प्रकृति के सुकुमार कवि पं० सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म 20 मई, 1900 ई० ( संवत् 1957 वि० ) को प्रकृति की सुरम्य क्रीड़ास्थली कूर्माचल प्रदेश के अन्तर्गत अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम गंगादत्त पन्त तथा माता का नाम श्रीमती सरस्वती देवी था। ये अपने माता-पिता की सबसे छोटी सन्तान थे। पन्त जी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की ही पाठशाला में हुई। इसके पश्चात् ये अल्मोड़ा गवर्नमेण्ट हाईस्कूल में प्रविष्ट हुए। तत्पश्चात् काशी के जयनारायण हाईस्कूल से इन्होंने स्कूल लीविंग की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1916 ई० में आपने प्रयाग के म्योर सेण्ट्रल कॉलेज से एफ० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके बाद ये स्वतन्त्र रूप से अध्ययन करने लगे। इन्होंने संस्कृत, अंग्रेजी तथा बँगला का गम्भीर अध्ययन किया। उपनिषद्, दर्शन तथा आध्यात्मिक साहित्य की ओर भी इनकी रुचि रही। संगीत से इन्हें पर्याप्त प्रेम था। सन् 1950 ई० में ये ऑल इण्डिया रेडियो के परामर्शदाता पद पर नियुक्त हुए और सन् 1957 ई० तक इससे सम्बद्ध रहे। इन्हें ‘कला और बूढ़ा चाँद’ नामक काव्य-ग्रन्थ पर ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘लोकायतन’ पर ‘सोवियत भूमि पुरस्कार’ और ‘चिदम्बरा’ पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। भारत सरकार ने पन्त जी को ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से विभूषित किया। पन्त जी 28 दिसम्बर, 1977 ई० ( संवत् 2034 वि०) को परलोकवासी हो गये।

साहित्यिक सेवाएँ–पन्त जी गम्भीर विचारक, उत्कृष्ट कवि और मानवता के प्रति आस्थावान एक ऐसे सहज कुशल शिल्पी थे, जिन्होंने नवीन सृष्टि के अभ्युदय के नवम्वप्नों को मजना की। इन्होंने सौन्दर्य को व्यापक अर्थ में ग्रहण किया है, इसीलिए इन्हें सौन्दर्य का कवि भी कहा जाता है।। रचनाएँ-पन्त जी ने अनेक काव्यग्रन्थ लिखे हैं। कविताओं के अतिरिक्त इन्होंने कहानियाँ, उपन्यास और नाटक भी लिखे हैं, किन्तु कवि रूप में ये अधिक प्रसिद्ध है। पन्त जी के कवि रूप के विकास के तीन सोपान हैं—(1) छायावाद और मानवतावाद, (2) प्रगतिवाद या माक्संवाद तथा (3) नवचेतनावाद।।

  1. पन्त जी के विकास के प्रथम सोपान (जिसमें छायावादी प्रवृत्ति प्रमुख थी) की सूचक रचनाएँ हैं वीणा, ग्रन्थि, पल्लव और गुंजन। ‘वीणा’ में प्राकृतिक सौन्दर्य के प्रति कवि का अनन्य अनुराग व्यक्त हुआ है। ‘ग्रन्थि’ से वह प्रेम की भूमिका में प्रवेश करता है और नारी-सौन्दर्य उसे आकृष्ट करने लगता है। ‘पल्लव’ छायावादी पन्त का चरमविन्दु है। अब तक कवि अपने ही सुख-दु:ख में केन्द्रित था, किन्तु ‘गुंजन’ से वह अपने में ही केन्द्रित न रहकर विस्तृत मानव-जीवन (मानवतावाद) की ओर उन्मुख होता है।
  2. द्वितीय सोपान के अन्तर्गत तीन रचनाएँ आती हैं-युगान्त, युगवाणी और ग्राम्या। इस काल में कवि पहले ‘गाँधीवाद’ और बाद में ‘मार्क्सवाद’ से प्रभावित होकर फिर प्रगतिवादी बन जाता है।
  3. मार्क्सवाद की भौतिक स्थूलता पन्त जी के मूल संस्कारी कोमल स्वभाव के विपरीत थी। इस कारण वह तृतीय सोपान में वे पुनः अन्तर्जगत् की ओर मुड़े। इस काल की प्रमुख रचनाएँ हैंस्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, उत्तरा, अतिमा, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, किरण, पतझर-एक भाव क्रान्ति और गीतहंसः इस काल में कवि पहले विवेकानन्द और रामतीर्थ से तथा बाद में अरविन्द-दर्शन से प्रभावित होता है।

सन् 1955 ई० के बाद की पन्त जी की कुछ रचनाओं (कौए, मेंढक आदि) पर प्रयोगवादी कविता का प्रभाव है, पर कवि का यह रूप भी सहज न होने से वह इसे भी छोड़कर अपने प्राकृत (वास्तविक) रूप पर लौट आया।

साहित्य में स्थान-पन्त जी निर्विवाद रूप से एक सजग प्रतिभाशाली कलाकार थे। इनकी काव्य-साधना सतत विकासोन्मुखी रही है। ये अपने काव्य के बाह्य और आन्तरिक दोनों पक्षों को सँवारने में सदैव सचेष्ट रहे हैं। प्रकृति के सर्वाधिक सशक्त चितेरे के रूप में आधुनिक हिन्दी-काव्य में ये सर्वोपरि हैं। पन्त जी निश्चित ही हिन्दी-कविता के श्रृंगार हैं, जिन्हें पाकर माँ भारती कृतार्थ हुई है।

पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोचर

नौका-विहार

प्रश्न–दिए गए पद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

प्रश्न 1.
जब पहँची चपला बीच धार,
छिप गया चाँदनी का कगार !
दो बाहों से दूरस्थ तीर धारा का कृश कोमल शरीर
आलिंगन करने को अधीर !
अति दूर, क्षितिज पर विटप-माल लगती भू-रेखा-सी अराल,
अपलक नभ नील-नयन विशाल;
माँ के उर पर शिशु-सा, समीप, सोया धारा में एक द्वीप,
उर्मिल प्रवाह को कर प्रतीप,
वह कौन विहग? क्या विकल कोक, उड़ता हरने निज विरह शोक?
छाया की कोकी को विलोक !
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) कब चाँद-सा चमकता हुआ रेत का कगार कवि की आँखों से ओझल हो गया?
(iv) धारा के बीच से देखने पर गंगा के दोनों तट किसके समान लगते हैं?
(v) धारा के बीच स्थित द्वीप कैसा दिखाई पड़ता है?
उत्तर
(i) यह पद्यांश कविवर सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘नौका-विहार’ शीर्षक कविता से उद्धत है। और हमारी पाठ्यपुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित है।
अथवा
शीर्षक नाम- नौका-विहार।।
कवि का नाम–सुमित्रानन्दन पन्त।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-जब नौका गंगा की बीच धारा में पहुँची तो हमने देखा कि चाँदनी में चाँद-सा चमकता हुआ रेतीला कगार हमारी दृष्टि से ओझल हो गया। गंगा के दूर-दूर स्थित दोनों तट फैली हुई दो बाँहों के समान लग रहे थे, जो गंगा-धारा के दुबले-पतले कोमल नारी शरीर का आलिंगन करने के लिए अधीर थे; अर्थात् अपने में कस लेना चाहते थे।
(iii) जब नाव बीच धारा में पहुंची तब कवि ने देखा कि चाँदनी रात में चाँद-सा चमकता हुआ रेतीला कगार आँखों से ओझल हो गया।
(iv) धारा के बीच में देखने पर गंगा के दोनों तट फैली हुई दो भुजाओं के समान लग रहे हैं, जो गंगा के दुबले-पतले शरीर का आलिंगन करने के लिए अधीर हैं।
(v) धारा के बीच स्थित द्वीप ऐसा दिखाई पड़ता है जैसे माँ की छाती से चिपककर कोई नन्हा बालक सोया हुआ हो।

प्रश्न 2.
ज्यों-ज्यों लगती है नाव पार
उर में आलोकित शत विचार ।
इस धारा-सा ही जग का क्रम, शाश्वत इस जीवन का उद्गम,
शाश्वत है गति, शाश्वत संगम !
शाश्वत नभ का नीला विकास, शाश्वत शशि का यह रजत हास,
शाश्वत लघु लहरों का विलास !
हे जग-जीवन के कर्णधार ! चिर जन्म-मरण के आर-पार,
शाश्वत जीवन-नौका-विहार?
मैं भूल गया अस्तित्व ज्ञान, जीवन का यह शाश्वत प्रमाण,
करता मुझको मरत्व दान !
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) इस संसार की गति कवि को किसके समान लगती है?
(iv) गंगा के दोनों किनारे कवि को किसके समान लगते हैं?
(v) कवि क्या भूल गया था?
उत्तर
(i) यह पद्यांश कविवर सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘नौका-विहार’ शीर्षक कविता से उद्धत है। और हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित है।
अथवा
शीर्षक का नाम- नौका-विहार।
कवि का नाम–सुमित्रानन्दन पन्त।।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-जिस प्रकार गंगा की धारा अनादि काल से प्रवाहित होती चली आ रही है, उसी प्रकार यह जगत् (संसार) भी अनादि काल से चला आ रहा है। जिस प्रकार गंगा के जल का उद्गम, प्रवाह एवं सागर में मिलना शाश्वत (निश्चित) है उसी प्रकार जीवन का उत्पन्न होना, गतिशील होना और अन्त में विराट तत्त्व में विलीन हो जाना भी सनातन ही है।
(iii) इस संसार की गति कवि को धारा के समान ही लगती है।
(iv) गंगा के दोनों किनारे जन्म और मृत्यु के समान सनातन लगते हैं।
(v) कवि जीवन का वास्तविकस्वरूप भूल गया था।

परिवर्तन

प्रश्न 1.
आज बचपन का कोमल गात
जरा को पीला पात !
चार दिन सुखदै चाँदनी रात
और फिर अन्धकार, अज्ञात !
शिशिर-सा झर नयनों का नीर
झुलस देता गालों के फूल ।
प्रणय का चुम्बन छोड़ अधीर
अधर जाते अधरों को भूल !
मृदुल होठों का हिमजले हास
उड़ा जाता नि:श्वास समीर,
सरल भौंहों का शरदाकाश
घेर लेते घन, घिर गम्भीर !
शून्य साँसों का विधुर वियोग
छुड़ाता अधर मधुर संयोग,
मिलन के पल केवल दो चार,
विरह के कल्प अपार !
अरे, वे अपलक चार नयन,
आठ आँसू रोते निरुपाय,
उठे रोओं के आलिंगन
कसक उठते काँटों-से हाय !
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) बचपन का कोमल और सुन्दर शरीर वृद्धावस्था आने पर कैसा हो जाता है।
(iv) वृद्धावस्था की गहरी साँसें किसे उड़ा देती हैं?
(v) कवि ने सुःख और दुःख की क्या समयावधि बतायी है?
उत्तर
(i) यह पद्यांश श्री सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘परिवर्तन’ शीर्षक कविता से उद्धत है। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित है।
अथवा
शीर्षक का नाम— परिवर्तन।
कवि का नाम–सुमित्रानन्दन पन्त।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-मनुष्य को इस संसार में प्रियजनों से मिलने का सुख बहुधा कुछ ही पल मिल पाता है। अभी वह उन क्षणों को पूर्ण आनन्द भी नहीं ले पाता कि वियोग का क्षण आ पहुँचता है, जो अनन्त काल तक खिंचता चला जाता है। वस्तुत: समय की गति संयोग में अत्यधिक अल्पकालिक और वियोग में अत्यन्त दीर्घकालिक हो जाती है। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता। मिलन-विरह समकालिक है। मिलन के क्षण आनन्द की अनुभूति कराते हैं इसलिए वे शीघ्र बीत गये प्रतीत होते हैं, जबकि विरह के क्षण दु:खपूर्ण होते हैं। कष्ट से व्यतीत होने के कारण वे स्थायी रूप से रुक गये प्रतीत होते हैं।
(iii) बचपन का कोमल शरीर वृद्धावस्था आने पर पीले, सूखे, खुरदरे पत्ते के समान हो जाता है।
(iv) वृद्धावस्था की गहरी साँसें बचपन की होंठों पर ओस की बूंद के समान निर्मल और मोहक हँसी को उड़ा देती हैं।
(v) कवि ने सु:ख के क्षणों को दो-चार दिन यानी बहुत कम तथा दु:ख के समय को कल्पों के समान लम्बा (लगभग सम्पूर्ण जीवन) बताया है।

प्रश्न 2.
अहे निष्ठुर परिवर्तन !
तुम्हारा ही तांडव नर्तन
विश्व का करुण विवर्तन !
तुम्हारा ही नयनोन्मीलन,
निखिल उत्थान, पतन !
अहे वासुकि सहस्रफन !
लक्ष अलक्षित चरण तुम्हारे चिह्न निरन्तर
छोड़ रहे हैं जग के विक्षत वक्षःस्थल पर !
शत-शत फेनोच्छ्वसित, स्फीत फूत्कार भयंकर
घुमा रहे हैं घनाकार जगती का अम्बर ।
मृत्यु तुम्हारा गरल दंत, कंचुक कल्पान्तर
अखिल विश्व ही विवर,
वक्र कुण्डल
दिङमंडल !
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) कवि ने निष्ठुर किसे कहा है?
(iv) नित्यप्रति होने वाले परिवर्तन किसके समान दृष्टिगोचर नहीं होते?
(v) कवि ने मृत्यु को क्या बताया है?
उत्तर
(i) यह पद्यांश श्री सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘परिवर्तन’ शीर्षक कविता से उद्धत है। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक काव्यांजलि’ में संकलित है।
अथवा
शीर्षक का नाम – परिवर्तन।
कवि का नाम–सुमित्रानन्दन पन्त।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कवि ने परिवर्तन को हजार फनों वाले नागराज वासुकि का रूप दिया है। और बताया है कि परिवर्तन रूपी सर्प के रहने का बिल (विवर) सम्पूर्ण विश्व है, क्योंकि परिवर्तन सर्वत्र ही व्याप्त है। सम्पूर्ण दिशाओं का मण्डल ही इसकी गोलाकार कुण्डली है। सभी दिशाओं और सम्पूर्ण संसार में ऐसा कोई भी स्थान नहीं बचा है जहाँ परिवर्तन का प्रभाव न होता हो।
(iii) कवि ने परिवर्तन को निष्ठुर कहा है।
(iv) नित्यप्रति होने वाले परिवर्तन वासुकि सर्प के पैरों के समान दृष्टिगोचर नहीं होते।
(v) कवि ने मृत्यु को वासुकि नाग का विषैला दाँत बताया है।

बापू के प्रति

प्रश्न 1.
तुम मांसहीन, तुम रक्तहीन
हे अस्थिशेष ! तुम अस्थिहीन,
तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केवल,
हे चिर पुराण ! हे चिर नवीन !
तुम पूर्ण इकाई जीवन की,
जिसमें असार भव-शून्य लीन,
आधार अमर, होगी जिस पर ।
भावी की संस्कृति समासीन ।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) कौन हइडियों का ढाँचा मात्र प्रतीत होते हैं?
(iv) गाँधी जी को कवि ने चिर पुराण तथा चिर नवीन क्यों कहा है?
(v) गाँधी जी के आदर्शों पर भविष्य में किसे खड़ा होना पड़ेगा?
उत्तर
(i) यह पद्यांश श्री सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘बापू के प्रति’ शीर्षक कविता से उद्धत है। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक काव्यांजलि’ में संकलित है।
अथवा
शीर्षक का नाम- बापू के प्रति।।
कवि का नाम–सुमित्रानन्दन पन्त।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या–हे बापू! जैसी जीवन्मुक्त योगियों की दशा होती है, वैसी ही दशा आपकी भी है। तुममें मानव-जीवन की पूर्णता (चरम आदर्श) निहित है, जिसमें (अर्थात् पूर्णता में) विश्व की समस्त असारता लीन हो जाएगी। आशय यह है कि संसार तुम्हारे मार्ग पर चलकर अपना खोखलापन दूर करके मानव-जीवन की चरम सार्थकता को प्राप्त करेगा। तुम जिन सिद्धान्तों के आधार पर खड़े हो, वे अमर हैं, शाश्वत हैं। इसलिए भविष्य की मानव-संस्कृति को तुम्हारे ही आदर्शों पर खड़े
होना पड़ेगा; अर्थात् आपके द्वारा दिये गये विचार और ज्ञान ही मानव-जाति के लिए आधार होंगे।
(iii) गाँधी जी देखने में हड्डियों का ढाँचा मात्र प्रतीत होते हैं।
(iv) गाँधी जी को शुद्ध ज्ञानस्वरूप आत्मा अर्थात् आत्मस्वरूप होने के कारण कवि ने चिर पुराण तथा चिर नवीन कहा है।
(v) गाँधी जी के आदर्शों पर भविष्य की मानव-संस्कृति को खड़ा होना पड़ेगा।

प्रश्न 2.
सुख भोग खोजने आते सब,
आये तुम करने सत्य-खोज,
जग की मिट्टी के पुतले जन,
तुम आत्मा के, मन के मनोज !
जड़ता, हिंसा, स्पर्धा में भर
चेतना, अहिंसा, नम्र ओज,
पशुता का पंकज बना दिया
तुमने मानवता का सरोज ।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) अधिकांश मनुष्य संसार में आकर किसकी खोज में लग जाते हैं?
(iv) गाँधी जी का भौतिकवादी मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ा?
(v) ‘तुम आत्मा के, मन के मनोज!’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार होगा?
उत्तर
(i) यह पद्यांश श्री सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘बापू के प्रति’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक काव्यांजलि’ में संकलित है।
अथवा
शीर्षक का नाम- बापू के प्रति।
कवि का नाम–सुमित्रानन्दन पन्त।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-वह पशुता की कीचड़ से उत्पन्न कमलवत् था। तुमने उसे मानवीयतारूपी निर्मल जल वाले सरोवर से उत्पन्न कमल बना दिया; अर्थात् तुमने भौतिकवादी मनुष्य को अध्यात्मवादी बना दिया।
(iii) अधिकांश मनुष्य संसार में सुख की खोज में लग जाते हैं।
(iv) गाँधी जी ने भौतिकवादी मनुष्य को अध्यात्मवादी बना दिया अर्थात् लोगों को मानवीय गुणों के आधार पर जीना सिखा दिया।
(v) रूपक अलंकार।

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 3 जयशंकर प्रसाद

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Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 3
Chapter Name जयशंकर प्रसाद
Number of Questions 6
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 3 जयशंकर प्रसाद

कवि का साहित्यिक परिचय और कृतिया

प्रश्न 1.
जयशंकर प्रसाद का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए। [2010, 11, 16, 17]
या
जयशंकर प्रसाद को साहित्यिक परिचय लिखते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए। [2012, 13, 16, 18]
उत्तर
जीवन-परिचय-जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में माघ शुक्ल दशमी संवत् 1945 वि० (सन् 1889 ई०) में हुआ था। इनके पिता का नाम देवीप्रसाद था। ये तम्बाकू के एक प्रसिद्ध व्यापारी थे। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने से इनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। घर पर ही इन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू, फारसी का गहन अध्ययन किया। ये बड़े मिलनसार, हँसमुख तथा सरल स्वभाव के थे। इनका बचपन बहुत सुख से बीता, किन्तु उदार प्रकृति तथा दानशीलता के कारण ये ऋणी हो गये। अपनी पैतृक सम्पत्ति का कुछ भाग बेचकर इन्होंने ऋण से छुटकारा पाया। अपने जीवन में इन्होंने कभी अपने व्यवसाय की ओर ध्यान नहीं दिया। परिणामस्वरूप इनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ती गयी और चिन्ताओं ने इन्हें घेर लिया।

बाल्यावस्था से ही इन्हें काव्य के प्रति अनुराग था, जो उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया। ये बड़े स्वाभिमानी थे, अपनी कहानी अथवा कविता के लिए पुरस्कारस्वरूप एक पैसा भी नहीं लेते थे। यद्यपि इनका जीवन बड़ा नपा-तुला और संयमशील था, किन्तु दु:खों के निरन्तर आघातों से ये न बच सके और संवत् 1994 वि० ( सन् 1937 ई०) में अल्पावस्था में ही क्षय रोग से ग्रस्त होकर स्वर्ग सिधार गये। साहित्यिक सेवाएँ-श्री जयशंकर प्रसाद छायावाद के प्रवर्तक, उन्नायक तथा प्रतिनिधि कवि होने के साथ-साथ युग प्रवर्तक नाटककार, कथाकार तथा उपन्यासकार भी थे। विशुद्ध मानवतावादी दृष्टिकोण वाले प्रसाद जी ने अपने काव्य में आध्यात्मिक आनन्दवाद की प्रतिष्ठा की है। प्रेम और सौन्दर्य इनके काव्य के प्रमुख विषय रहे हैं, किन्तु मानवीय संवेदना उनकी कविता का प्राण है।

रचनाएँ–प्रसाद जी अनेक विषयों एवं भाषाओं के प्रकाण्ड पण्डित और प्रतिभासम्पन्न कवि थे। इन्होंने नाटक, उपन्यास, कहानी, निबन्ध आदि सभी साहित्यिक विधाओं पर अपनी लेखनी चलायी और अपने कृतित्व से इन्हें अलंकृत किया। इनका काव्य हिन्दी-साहित्य की अमूल्य निधि है। इनके प्रमुख काव्यग्रन्थों का विवरण निम्नवत् है-
कामायनी—यह प्रसाद जी की कालजयी रचना है। इसमें मानव को श्रद्धा और मनु के माध्यम से हृदय और बुद्धि के समन्वय का सन्देश दिया गया है। इस रचना पर कवि को मंगलाप्रसाद पारितोषिक भी मिल चुका है।
आँसू-यह प्रसाद जी का वियोग का काव्य है। इसमें वियोगजनित पीड़ा और दु:ख मुखर हो उठा है।
लहर—यह प्रसाद जी का भावात्मक काव्य-संग्रह है।
झरना—इसमें प्रसाद जी की छायावादी कविताएँ संकलित हैं, जिसमें सौन्दर्य और प्रेम की अनुभूति साकार हो उठी है।
कहानी—आकाशदीप, इन्द्रजाल, प्रतिध्वनि, आँधी।
उपन्यास-कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण)।
निबन्ध-काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध।
चम्पू-प्रेम राज्य। इनके अन्य काव्य-ग्रन्थ चित्राधार, कानन-कुसुम, करुणालय, महाराणा को महत्त्व, प्रेम-पथिक आदि हैं।
साहित्य में स्थान–प्रसाद जी असाधारण प्रतिभाशाली कवि थे। उनके काव्य में एक ऐसा नैसर्गिक आकर्षण एवं चमत्कार है कि सहृदय पाठक उसमें रसमग्न होकर अपनी सुध-बुध खो बैठता है। निस्सन्देह वे आधुनिक हिन्दी-काव्य-गगन के अप्रतिम तेजोमय मार्तण्ड हैं।

‘पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोवर

गीत

प्रश्न-दिए गए पद्यांश को पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

प्रश्न 1.
बीती विभावरी जाग री ।
अम्बर-पनघट में डुबो रही-
तारा-घट ऊषा-नागरी ।
खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय को अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लायी—
मधु-मुकुल नवल रस-गागरी ।
अधरों में राग अमन्द पिये,
अलकों में मलयज बन्द किये–
तू अब तक सोयी है आली !
आँखों में भरे विहाग री।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) प्रस्तुत पंक्तियों में किस समय का सुन्दर वर्णन किया गया है?
(iv) कौन आकाशरूपी पनघट पर तारारूपी घड़े को डुबो रहा है? ।
(v) ‘खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत गीत महाकवि श्री जयशंकर प्रसाद के ‘लहर’ नामक कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘गीत’ शीर्षक रचना से उद्धत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- गीत।
कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-इस गीत में मानवीकरण द्वारा प्रात:काल की शोभा का सुन्दर चित्रण किया गया है। एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि हे सखी! रात बीत चुकी है। अब तू उठ। आकाशरूपी पनघट पर ऊषारूपी चतुर नारी तारारूपी घड़ा डुबो रही है; अर्थात् तारे एक-एक करके छिपते चले जा रहे हैं।
(iii) प्रस्तुत पंक्तियों में प्रात:काल की शोभा का सुन्दर वर्णन किया गया है।
(iv) उषारूपी चतुर नारी आकाशरूपी पनघट पर तारारूपी घड़े को डुबो रही है।
(v) अलंकार-अनुप्रास, रूपक।

श्रद्धा-मनु

प्रश्न–दिए गए पद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

प्रश्न 1.
“कौन तुम ? संसृति-जलनिधि तीर
तरंगों से फेंकी मणि एक,
कर रहे निर्जन का चुपचाप
प्रभा की धारा से अभिषेक ?
मधुर विश्रान्त और एकान्त–
जगत का सुलझा हुआ रहस्य
एक करुणामय सुन्दर मौन
और चंचल मन का आलस्य !”
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) उक्त पंक्तियों में कौन किसका परिचय पूछ रहा है?
(iv) कौन अपनी कान्ति से वीराने को शोभायमान कर रहा है?
(v) ‘प्रभा की धारा से अभिषेक?’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री जयशंकर प्रसाद के ‘कामायनी’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘श्रद्धा-मनु’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- श्रद्धा-मेनु।
कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत पद्यांश में श्रद्धा मनु से उनका परिचय पूछ रही है कि संसाररूपी सागर के तट पर तरंगों (लहरों) द्वारा फेंकी गयी किसी मणि के सदृश तुम कौन हो, जो चुपचाप बैठे अपनी शोभा की किरणों से इस निर्जन प्रदेश को स्नान करा रहे हो; अर्थात् जिस प्रकार लहरें समुद्र के तल से किसी मणि को उठाकर तट पर पटक देती हैं, उसी प्रकार सांसारिक आघातों से ठुकराये हुए हे भव्य पुरुष! तुम कौन हो?
(iii) उक्त पंक्तियों में श्रद्धा मनु का परिचय पूछ रही हैं।
(iv) मनु भव्य पुरुष की भाँति अपनी कांति से वीराने को शोभायमान कर रहे हैं।
(v) रूपक अलंकार।।

प्रश्न 2.
समर्पण लो सेवा का सार
सजल संसृति का यह पतवार;
आज से यह जीवन उत्सर्ग
इसी पद तल में विगत विकार।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) श्रद्धा किसकी जीवनसंगिनी बनकर सेवा करना चाहती हैं?
(iv) किसका समर्पण मनु की जीवन-नौका के लिए पतवार के समान सिद्ध होगा?
(v) ‘सजल संसृति का यह पतवार।’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री जयशंकर प्रसाद के ‘कामायनी’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘श्रद्धा-मनु’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- श्रद्धा-मनु।
कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-श्रद्धा मानवता को सफल और समृद्ध बनाने के लिए मनु के समक्ष आत्मसमर्पण करती है और कहानी है कि यह मेरा आत्मसमर्पण संसार-सागर में निरुद्देश्य भटकने वाली तुम्हारी जीवन-नौका के लिए पतवार के समान सिद्ध होगा अर्थात् तुम्हारे जीवन को निश्चित दिशा देगा। आज से तुम्हारे चरणों में बिना किसी स्वार्थभावना के मैं अपने जीवन को न्योछावर करती हूँ।
(iii) श्रद्धा मनु की जीवनसंगिनी बनकर उनकी सेवा करना चाहती हैं।
(iv) श्रद्धा का समर्पण मनु की जीवन-नौका के लिए पतवार के समान सिद्ध होगा।
(v) अनुप्रास अलंकार।।

प्रश्न 3.
डरो मत अरे अमृत सन्तान
अग्रसर है। मंगलमय वृद्धि
पूर्ण आकर्षण जीवन-केन्द्र
खिंची आवेगी सकल समृद्धि!
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) मनु ने संसार और जीवन को क्या मान लिया था?
(iv) श्रद्धा मनु को किसकी संतान बताकर उत्साहित करती हैं?
(v) कब सकल समृद्धि पास खिंची चली आएगी?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री जयशंकर प्रसाद के ‘कामायनी’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘श्रद्धा-मनु’ शीर्षक कविता से उद्धत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- श्रद्धा-मनु।
कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रसाद जी के ‘कामायनी’ महाकाव्य की नायिका श्रद्धा निवृत्ति पथ पर अग्रसर मनु को प्रवृत्ति पथ पर लाने का प्रयास करती है। मनु ने संसार को निराशा से भरा और जीवन को उपायहीन मान लिया था। श्रद्धा उनमें जीवन के प्रति उत्साह भरती हुई कहती है कि तुम कभी न मरने वाले देवताओं की सन्तान हो; अत: भयभीत क्यों होते हो? तुम्हारे सामने मंगलों की भरपूर समृद्धि है। तुम उसे पाने का साहस तो करके देखो।
(iii) मनु ने संसार को निराशा से भरा और जीवन को उपायहीन मान लिया था।
(iv) श्रद्धा मनु को कभी न मरने वाले देवताओं की संतान बताकर उत्साहित करती हैं।
(v) जब भय समाप्त हो जाएगा और मन के अन्दर जीने का उत्साह पैदा हो जाएगा तब सेब सकल समृद्धि पास खिंची चली आएगी।

प्रश्न 4.
शक्ति के विद्युत्कण जो व्यस्त
विकल बिखरे हैं, हो निरुपाय;
समन्वय उसका करे समस्त ।
विजयिनी मानवता हो जाय।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) इन पंक्तियों में श्रद्धा ने मनु को कौन-सी बात बताई है?
(iv) समस्त सृष्टि की रचना किनसे हुई है?
(v) श्रद्धा मनु को किस प्रकार मानवता का साम्राज्य स्थापित करने के लिए प्रेरित करती हैं?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री जयशंकर प्रसाद के ‘कामायनी’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘श्रद्धा-मनु’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- श्रद्धा-मनु।।
कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-श्रद्धा मनु से कहती है कि जीवन के प्रति हताशा और निराशा को त्यागकर आपको लोक-मंगल के कार्यों में लगना चाहिए। इसके लिए सबसे महत्त्वपूर्ण और मुख्य कार्य संसार की विभिन्न शक्तियों में पारस्परिक समन्वय स्थापित करना है। विश्व की विद्युत्-कणों के समान जो भी करोड़ों-करोड़ शक्तियाँ हैं, वे सब बिखरी पड़ी हैं, जिस कारण जीवन में उनका कोई भी उपयोग नहीं हो पा रहा है। उन सब शक्तियों को एकत्रित कीजिए और उनमें आया समन्वय स्थापित कीजिए, जिससे उन शक्तियों का अधिक-से-अधिक उपयोग हो सके। इसी में मानवता का कल्याण निहित है। यदि आप यह समन्वय स्थापित करने में सफल हो गए तो सर्वत्र मानवता का साम्राज्य स्थापित हो जाएगा।
(iii) इन पंक्तियों में श्रद्धा ने मनु को मानवता की विजय का उपाय बताया है।
(iv) समस्त सृष्टि की रचना शक्तिशाली विद्युत्-कणों से हुई है।
(v) श्रद्धा ने मनु को बिखरी पड़ी समस्त शक्तियों को एकत्रित करके उनके उपयोग द्वारा मानवता का साम्राज्य स्थापित करने के लिए प्रेरित किया है।

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 2 मैथिलीशरण गुप्त

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 2
Chapter Name मैथिलीशरण गुप्त
Number of Questions 7
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 2 मैथिलीशरण गुप्त

कवि का साहित्यिक परिचय और कृतिया

प्रश्न 1.
मैथिलीशरण गुप्त का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए। [2009, 10, 11, 16]
था
मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक परिचय दीजिए और उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए। [2012, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
उत्तर
जीवन-परिचय-राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म संवत् 1943 वि० (सन् 1886 ई०) में, चिरगाँव (जिला झाँसी) में हुआ था। इनके पिता का नाम सेठ रामचरण गुप्त था। सेठ रामचरण गुप्त स्वयं एक अच्छे कवि थे। गुप्त जी पर अपने पिता का पूर्ण प्रभाव पड़ा। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी से भी इन्हें बहुत प्रेरणा मिली। ये द्विवेदी जी को अपना गुरु मानते थे। गुप्त जी को प्रारम्भ में अंग्रेजी पढ़ने के लिए झाँसी भेजा गया, किन्तु वहाँ इनका मन न लगा; अत: घर पर ही इनकी शिक्षा का प्रबन्ध किया गया, जहाँ इन्होंने अंग्रेजी, संस्कृत और हिन्दी का अध्ययन किया। गुप्त जी बड़े ही विनम्र, हँसमुख और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। इनके काव्य में भारतीय संस्कृति को प्रेरणाप्रद चित्रण हुआ है। इन्होंने अपनी कविताओं द्वारा राष्ट्र में जागृति तो उत्पन्न की ही, साथ ही सक्रिय रूप से असहयोग आन्दोलनों में भी भाग लेते रहे, जिसके फलस्वरूप इन्हें जेल भी जाना पड़ा। ‘साकेत’ महाकाव्य पर इन्हें हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन, प्रयाग से मंगलाप्रसाद पारितोषिक भी मिला। भारत सरकार ने गुप्त जी को इनकी साहित्य-सेवा के लिए पद्मभूषण से सम्मानित किया और राज्यसभा का सदस्य भी मनोनीत किया। जीवन के अन्तिम क्षणों तक ये निरन्तर साहित्य-सृजन करते रहे। 12 दिसम्बर, 1964ई०(संवत् 2021 वि०) को माँ-भारती का यह महान् साधक पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया।

साहित्यिक सेवाएँ—गुप्त जी का झुकाव गीतिकाव्य की ओर था और राष्ट्रप्रेम इनकी कविता का प्रमुख स्वर रहा। इनके काव्य में भारतीय संस्कृति का प्रेरणाप्रद चित्रण हुआ है। इन्होंने अपनी कविताओं द्वारा राष्ट्र में जागृति तो उत्पन्न की ही, साथ ही सक्रिय रूप से असहयोग आन्दोलनों में भी भाग लेते रहे, जिसके फलस्वरूप इन्हें जेल भी जाना पड़ा। ‘साकेत’ महाकाव्य पर इन्हें हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन, प्रयाग से मंगलाप्रसाद पारितोषिक भी मिला। भारत सरकार ने गुप्त जी को इनकी साहित्य-सेवा के लिए पद्मभूषण से सम्मानित किया और राज्यसभा का सदस्य भी मनोनीत किया।

रचनाएँ—गुप्त जी की समस्त रचनाएँ दो प्रकार की हैं—(1) अनूदित तथा (2) मौलिक।
इनकी अनूदित रचनाओं में दो प्रकार का साहित्य है-कुछ काव्य और कुछ नाटक। इन अनूदित ग्रन्थों में संस्कृत के यशस्वी नाटककार भास के ‘स्वप्नवासवदत्ता’ का अनुवाद उल्लेखनीय है। ‘वीरांगना’, मेघनाद-वध’, ‘वृत्र-संहार’ आदि इनकी अन्य अनूदित रचनाएँ हैं। इनकी प्रमुख मौलिक काव्य-रचनाएँ निम्नवत् हैं-
साकेत—यह उत्कृष्ट महाकाव्य है, जो ‘श्रीरामचरितमानस’ के बाद राम-काव्य का प्रमुख स्तम्भ है।
भारत-भारती-इसमें भारत की दिव्य संस्कृति और गौरव का गान किया गया है।
यशोधरा–इसमें बुद्ध की पत्नी यशोधरा के चरित्र को उजागर किया गया है।
द्वापर, जयभारत, विष्णुप्रिया-इनमें हिन्दू संस्कृति के प्रमुख पात्रों के चरित्र का पुनरावलोकन कर कवि ने अपनी पुनर्निर्माण कला उत्कृष्ट रूप में प्रदर्शित की है।
गुप्त जी की अन्य प्रमुख काव्य-रचनाएँ इस प्रकार हैं-रंग में भंग, जयद्रथ-वध, किसान, पंचवटी, हिन्दू, सैरिन्ध्री, सिद्धराज, नहुष, हिडिम्बा, त्रिपथगा, काबा और कर्बला, गुरुकुल, वैतालिक, मंगल घट, अजित आदि। ‘अनघ’, ‘तिलोत्तमा’, ‘चन्द्रहास’ नामक तीन छोटे-छोटे पद्यबद्ध रूपक भी इन्होंने लिखे हैं। साहित्य में स्थान-राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त आधुनिक हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि रहे हैं। खड़ी बोली को काव्य के साँचे में ढालकर परिष्कृत करने का जो असाधारण कौशल इन्होंने दिखाया, वह अविस्मरणीय रहेगा। इन्होंने राष्ट्र को जगाया और उसकी चेतना को वाणी दी है। ये भारतीय संस्कृति के यशस्वी उद्गाता एवं परम वैष्णव होते हुए भी विश्व-बन्धुत्व की भावना से ओत-प्रोत थे। ये सच्चे अर्थों में इस राष्ट्र के महनीय मूल्यों के प्रतीक और आधुनिक भारत के सच्चे राष्ट्रकवि थे।

पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोचर

कैकेयी का अनुताप

प्रश्न–दिए गए पद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

प्रश्न 1.
तदनन्तर बैठी सभा उटज के आगे,
नीले वितान के तले दीप बहु जागे ।
टकटकी लगाये नयन सुरों के थे वे,
परिणामोत्सुक उन भयातुरों के थे वे ।
उत्फुल्ल करौंदी-कुंज वायु रह-रहकर, ।
करती थी सबको पुलक-पूर्ण मह-महकर ।
वह चन्द्रलोक था, कहाँ चाँदनी वैसी,
प्रभु बोले गिरा गंभीर नीरनिधि जैसी ।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) भरत किसे लेने चित्रकूट गए हुए हैं?
(iv) अयोध्या का राज्य किसे मिला था?
(v) “प्रभु बोले गिरा गंभीर नीरनिधि जैसी।” पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘साकेत’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘कैकेयी का अनुताप’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक कानाम- कैकेयी का अनुताप।
कवि का नाम-मैथिलीशरण गुप्त।।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-पंचवटी में तारों से परिपूर्ण चाँदनी रात्रि में सभा हो रही थी। उस सभा में अयोध्या से भरत के साथ आये हुए सभी लोग शान्ति से बैठे हुए थे। उपस्थित सभी लोग उस सभा में होने वाले निर्णय के परिणाम को जानने के लिए उत्सुक थे। उस सभा के मौन को तोड़ते हुए राम ने भरत को सम्बोधित करते हुए कहा कि ‘हे भरत! अब तुम अपनी इच्छा को बताओ।’ राम के द्वारा अत्यधिक गम्भीर वाणी में बोलने से सभा को ऐसा प्रतीत हुआ कि समुद्र का जल गम्भीर गर्जन कर रहा हो।
(iii) भरत राम को लेने चित्रकूट गए हुए थे।
(iv) अयोध्या का राज्य भरत को मिला था।
(v) अलंकार-उपमा, अनुप्रास।

प्रश्न 2.
कहते आते थे यही अभी नरदेही,
‘माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले ही।’
अब कहें सभी यह हाय ! विरुद्ध विधाता-
‘है पुत्र पुत्र ही, रहे कुमाता माता।’
बस मैंने इसका बाह्य-मात्र ही देखा,
दृढ़ हृदय न देखा, मृदुल गात्र ही देखा ।।
परमार्थ न देखा, पूर्ण स्वार्थ ही साधा,
इस कारण ही तो हाय आज यह बाधा !
युग-युग तक चलती रहे कठोर कहानी-
‘रघुकुल में भी थी एक अभागिन रानी।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) पद्यांश के अनुसार, आज तक लोग क्या कहते आए हैं?
(iv) किसने प्रायश्चित्त किया है कि मैंने पुत्र का कोमल शरीर ही देखा, उसका दृढ़ हृदय नहीं देखा?
(v) इन पंक्तियों में कैकेयी को किस बात पर पश्चात्ताप हुआ है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘साकेत’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘कैकेयी का अनुताप’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक नाम- कैकेयी का अनुताप।
कवि का नाम-मैथिलीशरण गुप्त।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कैकेयी श्रीराम से कहती है कि आज तक मनुष्य यही कहते आये थे कि पुत्र कितना ही दुष्ट क्यों न हो, परन्तु माता उसके प्रति कभी भी दुर्भाव नहीं रखती है। अब तो मेरे चरित्र के कारण लोगों का इस उक्ति पर से विश्वास हट जाएगा और संसार के लोग यही कहा करेंगे कि माता दुष्टतापूर्ण व्यवहार कर सकती है, परन्तु पुत्र कभी कुपुत्र नहीं हो सकता।
(iii) पद्यांश के अनुसार, आज तक लोग यही कहते आए हैं कि पुत्र कुपुत्र हो सकता है पर माता कुमाता नहीं हो सकती।
(iv) कैकेयी ने प्रायश्चित्त किया है कि मैंने पुत्र का कोमल शरीर हो देखा उसका दृढ़-हृदय नहीं देखा।
(v) इन पंक्तियों में कैकेयी को अपने ऊपर लगने वाले कलंक और पुत्र की प्रवृत्ति को न पहचान पाने का पश्चात्ताप हुआ है।

प्रश्न 3.
निजजन्म जन्म में सुने जीव यह मेरा-
धिक्कार ! उसे था महास्दार्थ ने घेरा।”
सौ बार धन्य वह एक लाल की माई,
जिस जननी ने है जना भरत-सा भाई ।”
पागल-सी प्रभु के साथ सभा चिल्लाई
सौ बार धन्य वह एक लाल की माई ।’
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) कैकेयी स्वयं को धिक्कारती हुई क्या कहती हैं?
(iv) कैकेयी के प्रायश्चित्त के उपरान्त श्रीराम उनसे क्या कहते हैं?
(v) प्रभु राम के साथ कैकेयी के अपराध का अपमार्जन करती हुई सभा क्या चिल्ला उठी?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘साकेत’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘कैकेयी का अनुताप’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक नाम- कैकेयी का अनुताप।
कवि का नाम-मैथिलीशरण गुप्त।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कैकेयी स्वयं को धिक्कारती हुई कहती है कि मैं सद्गति न पाऊँ और जन्म-जन्मान्तरों में मेरे प्राण यही सुनते रहें कि रघुकुल की उस रानी को धिक्कार है, जिसे घोर स्वार्थ ने घेरकर ऐसा अनुचित कर्म कराया कि उसने धर्म का विचार बिल्कुल छोड़ दिया और अधर्म का आचरण किया।
(iii) कैकेयी स्वयं को धिक्कारती हुई कहती हैं कि मैं सद्गति न पाऊँ और जन्म-जन्मान्तर तक मेरे प्राण यही सुनते रहे कि रघुकुल की रानी ने स्वार्थवश ऐसे अनुचित कर्म कराए।
(iv) कैकेयी के प्रायश्चित्त के उपरान्त श्रीराम उनसे कहते हैं कि तुम अभागिन नहीं हो, वरन् वह माता तो सौ-सौ बार धन्य है, जिसने भरत जैसे भाई को जन्म दिया।
(v) प्रभु राम के साथ कैकेयी के अपराध का अपमार्जन करती हुई सभा चिल्ला उठी की भरत जैसे महान् धर्मशील पुत्र को जन्म देने वाली माता धन्य है, सैकड़ों बार धन्य है।

प्रश्न 4.
मुझको यह प्यारा और इसे तुम प्यारे,
मेरे दुगुने प्रिय, रहो न मुझसे न्यारे ।
मैं इसे न जानें, किन्तु जानते हो तुम,
अपने से पहले इसे मानते हो तुम ।।
तुम भ्राताओं का प्रेम परस्पर जैसा,
यदि वह सब पर यों प्रकट हुआ है वैसा ।
तो पाप-दोष भी पुण्य-तोष है मेरा,
मैं रहूँ पंकिला, पद्म-कोष है मेरा ।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) श्रीराम का कौन प्यारा है?
(iv) कैकेयी को कौन दोगुने प्रिय हैं? क्य?
(v) “मैं रहूँ पंकिला, पद्म-कोष है मेरा।” पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘साकेत’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘कैकेयी का अनुताप’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- कैकेयी का अनुताप।
कवि का नाम–मैथिलीशरण गुप्त।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कैकेयी श्रीराम से कहती हैं कि हे राम! मुझे यह भरत प्रिय है और भरत को तुम प्रिय हो। इस प्रकार तो तुम मुझे दोगुने प्रिय हो। तुम दोनों भाइयों के बीच जिस प्रकार का प्रेम सब लोगों के सामने प्रकट हुआ है, उससे तो मेरे पाप का दोष भी पुण्य के सन्तोष में बदल गया है। मुझे तो यह सन्तोष है कि मैं स्वयं कीचड़ के समान निन्दनीय हूँ, किन्तु मेरी कोख से कमल के समान निर्मल भरत को जन्म हुआ।
(iii) श्रीराम को भरत प्यारे हैं।
(iv) कैकेयी को भरत प्रिय हैं और भरत को राम प्रिय हैं इसलिए कैकेयी को राम और भरत दोगुने प्रिय हैं।
(v) रूपक अलंकार।

गीत

प्रश्न–दिए गए पद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

प्रश्न 1.
निरख सखी, ये खंजन आये,
फेरे उन मेरे रंजन ने नयन इधर मन भाये !
फैला उनके तन का आतप, मन से सर सरसाये,
घूमें वे इस ओर वहाँ, ये हंस यहाँ उड़ छाये !
करके ध्यान आज इसे जन का निश्चय वे मुसकाये,
फूल उठे हैं कमल, अधर-से यह बन्धूक सुहाये !
स्वागत, स्वागत, शरद, भाग्य से मैंने दर्शन पाये,
नभ से मोती वारे, लो, ये अश्रु अर्घ्य भर लाये ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) उर्मिला द्वारा किस ऋतु का स्वागत किया गया है?
(iv) हंसों को देखकर उर्मिला क्या अनुमान लगाती है?
(v) बन्धूक पुष्पों में उर्मिला ने किसका आभास पाया है।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘साकेत’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘गीत’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम– गीत।।
कवि का नाम-मैथिलीशरण गुप्त।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या–हे शरत्! तुम्हारा स्वागत है; क्योंकि तुम्हारे आगमन पर मैंने खंजन पक्षियों में प्रिय के नेत्रों का, धूप में प्रिय के तप का, हंसों में उनकी गति और हास्य का तथा बन्धूक पुष्पों में उनके अधरों का आभास पाया है। आकाश ने ओस की बूंदों के रूप में मोती न्योछावर कर तुम्हारा स्वागत किया है और मैं अपने आँसुओं का अर्घ्य देकर तुम्हारी अभ्यर्थना करती हूँ।
(iii) उर्मिला द्वारा शरत् ऋतु का स्वागत किया गया है।
(iv) हंसों को देखकर उर्मिला यह अनुमान लगाती हैं कि प्रियतम इस ओर घूमे होंगे अथवा निश्चय ही मेरा ध्यान करके मुस्कराए होंगे।
(v) बन्धूक पुष्पों में उर्मिला ने प्रियतम के अधरों का आभास पाया है।

प्रश्न 2.
मुझे फूल मत मारो,
मैं अबला बाला वियोगिनी, कुछ तो दया विचारो ।।
होकर मधु के मीत मदन, पटु, तुम कटु, गरल न गारो,
मुझे विकलता, तुम्हें विफलता, ठहरो, श्रम परिहारो ।
नहीं भोगिनी यह मैं कोई, जो तुम जाल पसारो,
बल हो तो सिन्दूर-बिन्दु यह—यह हरनेत्र निहारो !
रूप-दर्प कन्दर्प, तुम्हें तो मेरे पति पर वारो,
लो, यह मेरी चरण-धूलि उस रति के सिर पर धारो ।।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) वसंत का मित्र कौन है?
(iv) उर्मिला ने शिव का तीसरा नेत्र किसे बताया है?
(v) उर्मिला ने अपने पति को किससे अधिक सुन्दर बताया है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘साकेत’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘गीत’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम- गीत।
कवि का नाम-मैथिलीशरण गुप्त।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-राम के वन-गमन के समय सीता राम के साथ ही रहती हैं। भरत और शत्रुघ्न की पत्नियाँ माण्डवी और श्रुतकीर्ति भी उनसे अलग नहीं होती हैं। मात्र उर्मिला ही अपने पति से अलग रहती हैं; क्योंकि लक्ष्मण राम के साथ ही वन को गये हैं। उर्मिला के विरह-वर्णन में परम्परागत रूप में षड्ऋतु-वर्णन का चित्रण करने के साथ-साथ लाक्षणिक वैचित्र्य की झलक भी दिखाई गयी है। वसन्त ऋतु के आगमन पर उर्मिला कामदेव से आग्रह कर रही हैं कि वे उनके ऊपर अपने पुष्प रूपी बाण न चलाएँ; क्योंकि वे एक अबला और विरहिणी स्त्री हैं। पुराणों के अनुसार कामदेव को काम-वासना के अधिष्ठाता ईश्वर के रूप में माना जाता है। कामदेव की साथी-सहयोगी वसन्त ऋतु है, .. वाहन कोयल नामक पक्षी है तथा लड़ाई के अस्त्र-शस्त्र फूलों से बने हुए धनुष और बाण हैं। इसीलिए उर्मिला फूलों से ने मारने के लिए आग्रह कर रही हैं।
(iii) वसंत का मित्र कामदेव है।
(iv) उर्मिला ने अपने सिन्दूर-बिन्दु को शिव का तीसरा नेत्र बताया है।
(v) उर्मिला ने अपने पति को कामदेव से अधिक सुन्दर बताया है।

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 1 अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
Number of Questions 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 1 अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

कवि का साहित्यिक परिचय और कृतिया

प्रश्न 1.
अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ के जीवन एवं उनकी रचनाओं पर प्रकाश डालिए। [2009, 10, 11]
या
अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए। [2013, 16, 18]
उत्तर
जीवन-परिचय-श्री अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ आधुनिक हिन्दी खड़ी बोली के प्रथम महाकवि थे। इन्होंने काव्य के क्षेत्र में भाव और भाषा दोनों दृष्टियों से नये-नये प्रयोग किये और युगानुरूप नवीन आदर्शों की प्रतिष्ठा की। हरिऔध का जन्म संवत् 1922 वि० (सन् 1865 ई०) में ग्राम निजामाबाद (जिला आजमगढ़) के एक सनाढ्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित भोलासिंह और माता का नाम रुक्मिणी देवी था। भोलासिंह के बड़े भाई पं० ब्रह्मसिंह ज्योतिष के अच्छे विद्वान् थे। हरिऔध जी की प्रारम्भिक शिक्षा इन्हीं की देख-रेख में हुई। मिडिल परीक्षा पास करने के पश्चात् ये काशी के क्वींस कॉलेज में पढ़ने के लिए भेजे गये, किन्तु अस्वस्थता के कारण पढ़ न सके। इन्होंने घर पर ही अंग्रेजी और उर्दू का अध्ययन किया। संवत् 1939 वि० (सन् 1882 ई०) में इनका विवाह हुआ। विवाह के पश्चात् इन्हें आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा, इसलिए सर्वप्रथम इन्होंने निजामाबाद के तहसीली स्कूल में लगभग तीन वर्ष तक अध्यापन-कार्य किया। तदुपरान्त ये कानूनगो हो गये और उत्तरोत्तर उन्नति कर सदर कानूनगो के पद पर पहुँच गये। संवत् 1966 वि० (सन् 1909 ई०) में सरकारी नौकरी से अवकाश प्राप्त कर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अवैतनिक अध्यापक हो गये। सन् 1941 ई० तक वे इसी पद पर रहे। इसके पश्चात् अवकाश ग्रहण कर आजमगढ़ को अपना निवासस्थान बनाया और वहीं रहकर साहित्य-सेवा में अपना जीवन लगा दिया। यहीं संवत् 2002 (सन् 1945 ई० ) में इनका स्वर्गवास हो गया।

साहित्यिक सेवाएँ–हरिऔध जी द्विवेदी युग के प्रतिनिधि कवि थे। इन्होंने खड़ी बोली को नया रूप प्रदान किया तथा प्राचीन कथानकों में नवीन उद्भावनाएँ समाहित कीं। भाषा की विविधता के साथ-साथ इन्होंने हिन्दी छन्दों में भी नवीन छन्द-पद्धति की उद्भावना की। इनके काव्य में वात्सल्य रस एवं विप्रलम्भ श्रृंगार
का जगमगाता रूप झलकता है।

रचनाएँ–हरिऔध जी ने गद्य-पद्य दोनों में ही सफलतापूर्वक रचना की है। इनके द्वारा रचे गये काव्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है—(1) प्रियप्रवास, (2) वैदेही-वनवास, (3) रस-कलश, (4) चौखे-चौपदे और चुभते-चौपदे, (5) इनके अतिरिक्त हरिऔध जी के अन्य काव्य-ग्रन्थ इस प्रकार हैं-(i) रुक्मिणीपरिणय, (ii) प्रद्युम्न-विजय, (iii) बोलचाल, (iv) पद्य-प्रसून, (v) पारिजात, (vi) ऋतु-मुकुर, (vii) काव्योपवन, (viii) प्रेम-पुष्पोपहार, (ix) प्रेम-प्रपंच, (४) प्रेमाम्बु-प्रस्रवण, (xi) प्रेमाम्बु-वारिधि। (6) इनके प्रमुख उपन्यास निम्नलिखित हैं- (i) ठेठ हिन्दी का ठाठ, (ii) अधखिला फूल, (iii) प्रेमकान्ता।।

साहित्य में स्थान-नि:संकोच हम यह कह सकते हैं कि हरिऔध जी की काव्य-प्रतिभा विविधरूपिणी है। वे अपनी रचनाओं में कहीं रीतिकालीन हैं तो कहीं भारतेन्दुकालीन, कहीं द्विवेदीकालीन हैं तो कहीं नवयुगकालीन। इनके इन समस्त रूपों में इनका द्विवेदीकालीन रूप ही प्रमुख है। भाव और भाषा दोनों ही क्षेत्रों में इन्होंने नये-नये प्रयोग किये और आधुनिक युगानुरूप नवीन उद्भावनाएँ भी दीं। निश्चय ही ये हिन्दी के गौरव हैं।

पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोचर

पवन-दूतिका

प्रश्न–दिए गए पद्यांशों को फ्ढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

प्रश्न 1.
बैठी खिन्ना यक दिवस वे गेह में थीं अकेली ।
आके आँसू दृग-युगल में थे धरा को भिगोते ।।
आई धीरे इस सदन में पुष्प-सद्गंध को ले ।
प्रात: वाली सुपवन इसी काल वातायनों से ।।
संतापों को विपुल बढ़ता देख के दु:खिता हो ।
धीरे बोली स-दुःख उससे श्रीमति राधिका यों ।।
प्यारी प्रात: पवन इतना क्यों मुझे है सताती ।
क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) घर में दुःखी होकर एक दिन अकेले कौन बैठा था?
(iv) फूलों की सुगंध से युक्त होकर राधा के घर में किसने प्रवेश किया?
(v) राधा ने प्रातःकालीन वायु से दुःखित होकर क्या कहा?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद महाकवि अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘प्रियप्रवास’ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘पवन-दूतिका’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।।
अथवा
शीर्षक नाम- पवन-दूतिका।
कवि का नाम-अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रात:कालीन सुखद वायु पुष्यों की सुगंध लेकर धीरे से खिड़कियों के रास्ते उस घर में प्रविष्ट हुई। जो राधा घर में बहुत दु:खी होकर अकेली बैठी थीं। वायु संयोग में सुखद लगती थी, वही अब वियोग में दु:ख बढ़ाने वाली सिद्ध हुई. अत: उस वायु के कारण अपनी व्यथा को और बढ़ता देखकर राधा बहुत दु:खित होकर उससे बोली कि हे प्यारी प्रभातकालीन वायु! तू मुझे इतना क्यों सता रही है? क्या तू भी मेरे भाग्य की कठोरता से प्रभावित होकर दूषित हो गयी है अर्थात् समय या भाग्य तो मेरे विपरीत है ही, पर क्या तू भी उससे प्रभावित होकर मेरा दु:ख बढ़ाने पर तुली है, जब कि सामान्यत: तू लोगों को सुख देने वाली मानी जाती है?’
(iii) एक दिन राधा घर में दु:खी होकर अकेली बैठी हुई थीं।
(iv) फूलों की सुगंध से युक्त होकर राधा के घर प्रात:कालीन सुखद वायु ने प्रवेश किया।
(v) राधा ने प्रात:कालीन वायु से दुःखित होकर कहा कि हे प्रभातकालीन वायु! तू मुझे क्यों सताती है? का तू भी मेरे भाग्य की कठोरता से प्रभावित होकर दूषित हो गई है।

प्रश्न 2.
लज्जाशीला पथिक महिला जो कहीं दृष्टि आये ।
होने देना विकृत-वसना तो न तू सुन्दरी को ।।
जो थोड़ी भी श्रमित वह हो गोद ले श्रान्ति खोना ।
होंठों की औ कमल-मुख की म्लानतायें मिटाना ।।
कोई क्लान्ता कृषक-ललना खेत में जो दिखावे ।
धीरे-धीरे परस उसकी क्लान्तियों को मिटाना ।।
जाता कोई जलद यदि हो व्योम में तो उसे ला।
छाया द्वारा सुखित करना, तप्त भूतांगना को ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) राधा पवन-दूतिका से राह में पथिकों के साथ कैसा व्यवहार करने को कहती हैं?
(iv) राधा ने पवन-दूतिका को पथिक कृषक-स्त्री के ऊपर किसके द्वारा छाया करने को कहा
(v) ‘कृषक ललना’ शब्द में कौन-सा समास होगा?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद महाकवि अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘प्रियप्रवास’ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘पवन-दूतिका’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक नाम- पवन-दूतिका।
कवि का नाम-अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध’।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-हे पवन ! यदि तुझे मार्ग में कोई लाजवन्ती स्त्री दिखाई पड़े तो इतने वेग से न बहना कि उसके वस्त्र उड़कर अस्त-व्यस्त हो जाएँ और उसका शरीर उघड़ जाए। यदि वह थोड़ी-सी भी थकी दिखाई दे तो उसे गोद में लेकर अर्थात् उसे चारों ओर से घेरकर उसकी थकान मिटा देना, जिससे कि (थकान के कारण) उसके सूखे होंठ और मुरझाया हुआ कमल-सदृश मुख प्रफुल्लित हो उठे।।
(iii) राधा पवन-दूतिका से राह में पथिकों के साथ परोपकार का व्यवहार करने को कहती हैं।
(iv) राधा ने पवन-दूतिका को थकित कृषक-स्त्री के ऊपर मेघ द्वारा छाया करने को कहा है।
(v) ‘कृषक-ललना’ शब्द में ‘तत्पुरुष समास’ होगा।

प्रश्न 3.
तू देखेगी जलद-तन को जा वहीं तद्गता हो ।
होंगे लोने नयन उनके ज्योति-उत्कीर्णकारी ।।
मुद्रा होगी वर बदन की मूर्ति-सी सौम्यता की ।
सीधे साधे वचन उनके सिक्त होंगे सुधा से ।।
नीले फूले कमल दल-सी गात की श्यामता है।
पीला प्यारा वसन कटि में पैन्हते हैं फबीला ।।
छूटी काली अलके मुख की कान्ति को है बढ़ाती ।
सद्वस्त्रों में नवल तन की फूटती-सी प्रभा है ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) प्रस्तुत पंक्तियों में राधा पवन-दूतिका को किसकी पहचान बताती हैं?
(iv) श्रीकृष्ण के नेत्रों की शोभा कैसी है?
(v) श्रीकृष्ण कटि में कैसा वस्त्र धारण करते हैं?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद महाकवि अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘प्रियप्रवास’ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘पवन-दूतिका’ शीर्षक काव्यांश से उद्धत है।
अथवा
शीर्षक नाम- पवन-दूतिका।।
कवि का नाम-अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-राधा कहती हैं कि हे पवन! वहाँ जाकर तू मेघ के समान शोभा वाले श्रीकृष्ण को देखेगी। उनके शरीर की श्यामलता खिले हुए नीलकमल के समान मोहक है। मेरे प्रियतम कृष्ण कटि में आकर्षक पीला वस्त्र धारण करते हैं। उनके मुख पर लटकी हुई काले बालों की लट उनकी शोभा को चार चाँद लगा रही होगी। उनके सुन्दर वस्त्रों से उनके मनोहर शरीर की शोभा अत्यधिक बढ़ रही होगी।
(iii) प्रस्तुत पंक्तियों में राधा पवन-दूतिका को श्रीकृष्ण की पहचान बताती हैं।
(iv) श्रीकृष्ण के सुन्दर नेत्र प्रकाश बिखेरते हैं।
(v) श्रीकृष्ण कटि में पीला वस्त्र धारण करते हैं।

प्रश्न 4.
कोई प्यारा कुसुमे कुम्हला गेह में जो पड़ा हो ।
तो प्यारे के चरण पर ला डाल देना उसी को ।।
यों देना ऐ पवन बतला फूल-सी एक बाला ।
म्लाना हो हो कमल-पग को चूमना चाहती है ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) राधा पवन-दृतिका से मुरझाए हुए पुष्प को कहाँ डाल देने के लिए कह रही हैं?
(iv) मुरझाए हुए पुष्प की उपमा किससे की गई है?
(v) श्रीकृष्ण के कमल के समान कोमल चरणों को कौन चूमना चाहता है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद महाकवि अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘प्रियप्रवास’ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘पवन-दूतिका’ शीर्षक काव्यांश से उद्धत है।
अथवा
शीर्षक नाम- पवन-दूतिका।
कवि का नाम–अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या–हे पवन ! कृष्ण के घर पहुँचकर यदि कोई मुरझाया हुआ सुन्दर फूल वहाँ पड़ा मिल जाए तो उसे प्रिय कृष्ण के चरणों में लाकर रख देना। इस प्रकार तू उन्हें यह बता देना कि इसी फूल की तरह विरह में मुरझाई हुई एक तरुणी (राधा) आपके कमल समान कोमल घरणों को चूमना चाहती है। शायद उस मुरझाए फूल को देखकर ही उन्हें मेरी याद आ जाए।
(iii) राधा पवन-दूतिका से मुरझाए हुए पुष्प को श्रीकृष्ण के चरणों में लाकर डाल देने के लिए कह रही हैं।
(iv) मुरझाए हुए पुष्प की उपमा राधा से की गई है।
(v) श्रीकृष्ण के कमल के समान कोमल चरणों को राधाजी चूमना चाहती हैं।

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य गरिमा Chapter 6 हम और हमारा आदर्श

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 6
Chapter Name हम और हमारा आदर्श (डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम)
Number of Questions 3
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य गरिमा Chapter 6 हम और हमारा आदर्श (डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम)

लेखक का साहित्यिक परिचय और कृतिया

प्रश्न 1.
डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम की साहित्यिक सेवाओं का उल्लेख कीजिए।
या
डॉ० ए०पी०जे० का साहित्यिक परिचय दीजिए एवं प्रमुख कृतियों का उल्लेख कीजिए।
या
डॉ० ए०पी०जे० का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जीवन-परिचय–डॉ० ए०पी० जे० अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम् में एक मुसलमान परिवार में हुआ। उनके पिता जैनुलअबिदीन एक नाविक थे और उनकी माता अशिअम्मा एक गृहणी थीं, उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए उन्हें छोटी उम्र से ही काम करना पड़ा। अपने पिता की आर्थिक मदद के लिए बालक कलाम स्कूल के बाद समाचार-पत्र वितरण का कार्य करते थे। अपने स्कूल के दिनों में कलाम पढ़ाई-लिखाई में सामान्य थे, पर नयी चीज सीखने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। उनके अन्दर सीखने की भूख थी और वो पढ़ाई पर घंटों ध्यान देते थे। उन्होंने अपनी स्कूल की पढ़ाई रामनाथपुरम स्वार्ज मैट्रिकुलेशन स्कूल से पूरी की और उसके बाद तिरुचिरापल्ली के सेंट जोसेफ कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ से उन्होंने सन् 1954 में भौतिक विज्ञान में स्नातक किया। वर्ष 1960 में कलाम ने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद कलाम ने रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में वैज्ञानिक के तौर पर भर्ती हुए। कलाम ने अपने कैरियर की शुरुआत भारतीय सेना के लिए एक छोटे हेलीकॉप्टर का डिजाइन बनाकर किया।

वर्ष 1969 में उनका स्थानान्तरण भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) में हुआ। यहाँ वो भारत के सैटेलाइट लांच ह्वीकल परियोजना के निदेशक के तौर पर नियुक्त किये गये थे। इसरो में शामिल होना कलाम के कैरियर का सबसे अहम मोड़ था और जब उन्होंने सैटेलाइट लांच ह्रीकल परियोजना पर कार्य आरम्भ किया तब उन्हें लगा जैसे वो वही कार्य कर रहे हैं जिसमें उनका मन लगता है।

1963-64 के दौरान उन्होंने अमेरिका के अन्तरिक्ष संगठन नासा की भी यात्रा की। परमाणु वैज्ञानिक राजा रमन्ना, जिनके देख-रेख में भारत ने पहला परमाणु परीक्षण किया, ने कलाम को वर्ष 1974 में पोखरण में परमाणु परीक्षण देखने के लिए भी बुलाया था। भारत सरकार ने महत्त्वाकांक्षी ‘इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ का प्रारम्भ डॉ० कलाम के देख-रेख में किया। वह इस परियोजना के मुख्य कार्यकारी थे। इस परियोजना ने देश को अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें दी हैं। जुलाई, 1992 से लेकर दिसम्बर, 1999 तक डॉ० कलाम प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार और रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के सचिव थे। भारत ने पहला दूसरा परमाणु परीक्षण इसी दौरान किया था। इसमें एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आर० चिदम्बरम के साथ डॉ० कलाम इस परियोजना के समन्वयक थे। इस दौरान मिले मीडिया कवरेज ने उन्हें देश का सबसे बड़ा परमाणु वैज्ञानिक बना दिया।

एक रक्षा वैज्ञानिक के तौर पर उनकी उपलब्धियों और प्रसिद्धि के मद्देनजर एन०डी०ए० की गठबंधन सरकार ने उन्हें वर्ष 2002 में राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया तथा 25 जुलाई, 2002 को उन्होंने भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। डॉ० कलाम देश के ऐसे तीसरे राष्ट्रपति थे जिन्हें राष्ट्रपति बनने से पहले ही भारतरत्न से नवाजा जा चुका था।

कलाम हमेशा से देश के युवाओं और उनके भविष्य को बेहतर बनाने के बारे में बातें करते थे। इसी सम्बन्ध में उन्होंने देश के युवाओं के लिए “ह्वाइट कैन आई गिव’ पहल की शुरुआत भी की जिसका उद्देश्य भ्रष्टाचार का सफाया है। देश के युवाओं में उनकी लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें 2 बार (2003 और 2004) ‘एम०टी०वी० यूथ आइकॉन ऑप द इयर अवार्ड’ के लिए मनोनीत भी किया गया था। शिक्षण के अलावा डॉ० कलाम ने कई पुस्तकें भी लिखीं जिनमें प्रमुख हैं–‘इंडिया 2020 : अ विजन फॉर द न्यू मिलेनियम, ‘विंग्स ऑफ फायर : ऐन ऑटोबायोग्राफी’, ‘इग्नाइटेड माइंड्स : अनलीशिंग द पॉवर विदिन इंडिया’, ‘मिशन इंडिया’, ‘इंडोमिटेबल स्पिरिट’ आदि।

देश और समाज के लिए किये गये उनके कार्यों के लिए डॉ० कलाम को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। लगभग 40 विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद की डॉक्टरेट की उपाधि दी और भारत सरकार ने उन्हें पदम्भूषण, पदविभूषण और भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘भारतरत्न’ से अलंकृत किया। 26 जुलाई, 2015 को भारतीय प्रबंधन संस्थान, शिलाँग, में अध्यापन कार्य के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा जिसके बाद करोड़ों लोगों के प्रिय और चहेते डॉ० अब्दुल कलाम परलोक सिधार गये।

गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोए

प्रश्न–दिए गए गद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

प्रश्न 1.
मैं खासतौर से युवा छात्रों से ही क्यों मिलता हूँ? इस सवाल का जवाब तलाशते हुए मैं अपने छात्र जीवन के दिनों के बारे में सोचने लगा। रामेश्वरम् के द्वीप से बाहर निकलकर यह कितनी लम्बी यात्रा रही। पीछे मुड़कर देखता हूँ तो विश्वास नहीं होता। आखिर वह क्या था जिसके कारण यह सम्भव हो सका? महत्त्वाकांक्षा? कई बातें मेरे दिमाग में आती हैं। मेरा ख्याल है कि सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि मैंने अपने योगदान के मुताबिक ही अपना मूल्य आँका। बुनियादी बात जो आपको समझनी चाहिए वह यह है कि आप जीवन की अच्छी चीजों को पाने का हक रखते हैं, उनका जो ईश्वर की दी हुई हैं। जब तक हमारे विद्यार्थियों और युवाओं को यह भरोसा नहीं होगा कि वे विकसित भारत के नागरिक बनने के योग्य हैं तब तक वे जिम्मेदार और ज्ञानवान् नागरिक भी कैसे बन सकेंगे।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम खासतौर से किससे मिलते थे?
(iv) डॉ० अब्दुल कलाम की कामयाबी के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात क्या रही?
(v) व्यक्ति किन चीजों को पाने का हक रखता है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित’डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम’ के तेजस्वी मन से “हम और हमारा आदर्श” का सम्पादित अंश है।
अथवा
पाठ का नाम– हम और हमारा आदर्श।
लेखक का नाम-डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या–अनेकानेक उपलब्धियों एवं प्रसिद्धियों के धनी डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम ने प्रस्तुत अंश के माध्यम से भारतीय युवाओं को यह बताना चाहा है कि जब तक उन्हें यह विश्वास नहीं होगा कि वे देश के नागरिक बनने की सम्पूर्ण योग्यता स्वयं में रखते हैं तब तक वे एक | जिम्मेदार और ज्ञानवान नागरिक नहीं बन सकते अर्थात् जब तक व्यक्ति को अपनी कीमत का आकलन नहीं होगा तब तक वह महत्त्वपूर्ण कार्य नहीं कर सकता।
(iii) डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम खासतौर से देश के युवा छात्रों से मिलते थे।
(iv) डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम की कामयाबी के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि उन्होंने अपने योगदान के मुताबिक ही अपने मूल्य का आकलन किया।
(v) व्यक्ति उन सभी अच्छी चीजों को पाने का हक रखता है जो ईश्वर की दी हुई हैं।

प्रश्न 2.
मैं यह नहीं मानता की समृद्धि और अध्यात्म एक-दूसरे के विरोधी हैं या भौतिक वस्तुओं की इच्छा रखना कोई गलत सोच है। उदाहरण के तौर पर, मैं खुद न्यूनतम वस्तुओं का भाग करते हुए जीवन बिता रहा हूं लेकिन मैं सर्वत्र समृद्धि की कद्र करता हूँ, क्योंकि समृद्धि अपने साथ सुरक्षा तथा विश्वास लाती है, जो अंतत: हमारी आजादी को बनाए रखने में सहायक हैं। आप अपने आस-पास देखेंगे तो पाएँगे कि खुद प्रकृति भी कोई काम आधे-अधूरे मन से नहीं करती। किसी बगीचे में जाइए। मौसम में आपको फूलों की बहार देखने को मिलेगी। अथवा ऊपर की तरफ ही देखें, यह ब्रह्माण्ड आपके अनंत तक फैला दिखाई देगा, आपके यकीन से भी परे।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) लेखक किनको एक-दूसरे का विरोधी नहीं मानता?
(iv) डॉ० कलाम संवृद्धि की कद्र क्यों करते हैं?
(v) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने छात्रों को क्या संदेश दिया है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित ‘डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम’ के तेजस्वी मन से “हम और हमारा आदर्श” का सम्पादित अंश है।।
अथवा
पाठ का नाम- हम और हमारा आदर्श।
लेखक का नाम-डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से अब्दुल कलाम जी समृद्धि की कद्र करते हुए कहते हैं कि व्यक्ति को कामयाब होने के लिए वह सभी हरसम्भव प्रयास करने चाहिए जो वह कर सकता है। किसी भी कार्य को अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए अर्थात् काम करते हुए उससे ऊबकर उसे बीच में नहीं छोड़ देना चाहिए। इसके लिए प्रकृति का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए वे कहते हैं कि यदि आप अपने आस-पास देखें तो आपको ऐसे प्रकृति के बहुत-से उदाहरण मिल जाएँगे जो कि पूर्ण होते दिखेंगे यानी प्रकृति अपने किसी भी काम को अधूरे मन से नहीं करती। आप किसी फूलों के बाग में ही पहुँच जाइए; वहाँ मौसम में आपको फूलों की बहार देखने को मिलेगी, क्योंकि मौसम ने अपने काम को अधूरा नहीं छोड़ा। या फिर आप अपने ऊपर की ओर ही देखें तो आपको यह ब्रह्माण्ड इस तरह विस्तृत दिखाई देगा जिसका कोई अन्त नहीं है, जहाँ तक आप सोच भी नहीं सकते अर्थात् यह नभ भी हमें विस्तृत होने का यानी पूर्णता का सन्देश देता है।
(iii) लेखक संवृद्धि और अध्यात्म को एक-दूसरे का विरोधी नहीं मानता।
(iv) डॉ० कलाम सम्वृद्धि की कद्र इसलिए करते हैं, क्योकि संवृद्धि अपने साथ सुरक्षा तथा विश्वास लाती है, जो अन्तत: हमारी आजादी को बनाए रखने में सहायक है।
(v) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक ने छात्रों को प्रगति करने के लिए किसी भी कार्य को पूर्ण करके ही चैन लेने का सन्देश दिया है।

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