UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 1 The Solid State

UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 1 The Solid State (ठोस अवस्था) are part of UP Board Solutions for Class 12 Chemistry. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 1 The Solid State (ठोस अवस्था).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Chemistry
Chapter Chapter 1
Chapter Name The Solid State
Number of Questions Solved 105
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 1 The Solid State (ठोस अवस्था)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
ठोस कठोर क्यों होते हैं?
उत्तर
ठोस कठोर होते हैं, क्योंकि इनके अवयवी कण अत्यन्त निविड संकुलित होते हैं। इनमें कोई स्थानान्तरीय गति नहीं होती है तथा ये केवल अपनी माध्य स्थिति के चारों ओर कम्पन कर सकते हैं।

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प्रश्न 2.
ठोसों का आयतन निश्चित क्यों होता है?
उत्तर
ठोस के अवयवी कणों की स्थिति नियत होती है तथा वे गति के लिए स्वतन्त्र नहीं होते हैं। इसलिए इनका आयतन निश्चित होता है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित को अक्रिस्टलीय तथा क्रिस्टलीय ठोसों में वर्गीकृत कीजिए पॉलियूरिथेन, नैफ्थेलीन, बेन्जोइक अम्ल, टेफ्लॉन, पोटैशियम नाइट्रेट, सेलोफेन, पॉलिवाइर्निल क्लोराइड, रेशा काँच, ताँबा।
उत्तर
अक्रिस्टलीय ठोस – पॉलियूरिथेन, फ्लॉन, सेलोफेन, पॉलिवाइनिल, क्लोराइड, रेशा काँच।
क्रिस्टलीय ठोस – नैफ्थेलीन, बेन्जोइक अम्ल, पोटैशियम नाइट्रेट, ताँबा।

प्रश्न 4.
काँच को अतिशीतित द्रव क्यों माना जाता है?
उत्तर
क्योंकि यह ठोस होते हुए भी द्रवों के कुछ गुण प्रदर्शित करता है। द्रवों के समान इसमें प्रवाहित होने का गुण होता है। इसका यह गुण पुरानी इमारतों के काँच में देखा जा (UPBoardSolutions.com) सकता है जो तली पर कुछ मोटा होता है। यह केवल तभी सम्भव है जबकि यह अत्यन्त मन्द गति से द्रवों के समान प्रवाहित हो।

प्रश्न 5.
एक ठोस के अपवर्तनांक का मान सभी दिशाओं में समान प्रेक्षित होता है। इस ठोस की प्रकृति पर टिप्पणी कीजिए। क्या यह विदलन गुण प्रदर्शित करेगा?
उत्तर
चूँकि ठोस के अपवर्तनांक का मान सभी दिशाओं में समान है। अत: यह समदेशिक प्रकृति का है। अतः यह अक्रिस्टलीय ठोस है। यह स्वच्छ विदलने गुण प्रदर्शित नहीं करेगा।

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प्रश्न 6.
उपस्थित अन्तराआण्विक बलों की प्रकृति के आधार पर निम्नलिखित ठोसों को विभिन्न संवर्गों में वर्गीकृत कीजिए-पोटैशियम सल्फेट, टिन, बेंजीन, यूरिया, अमोनिया, जल, जिंक सल्फाइड, ग्रेफाइट, रूबिडियम, आर्गन, सिलिकन कार्बाइड।
उत्तर
पोटैशियम सल्फेट = आयनिक, टिन = धात्विक, बेंजीन = आण्विक (अध्रुवीय), यूरिया = आण्विक (ध्रुवीय), अमोनिया = आण्विक (हाइड्रोजन आबन्धित), जल = आण्विक (हाइड्रोजन आबन्धित), जिंक सल्फाइड = आयनिक, ग्रेफाइट = सहसंयोजी, रूबिडियम = धात्विक, आर्गन = आण्विक (अध्रुवीय), सिलिकन कार्बाइड = सहसंयोजी या नेटवर्क।

प्रश्न 7.
ठोस A, अत्यधिक कठोर तथा ठोस एवं गलित अवस्थाओं में विद्युतरोधी है और अत्यन्त उच्च दाब पर पिघलता है। यह किस प्रकार का ठोस है?
उत्तर
सहसंयोजी अथवा नेटवर्क ठोस, जैसे- SiC

प्रश्न 8.
आयनिक ठोस गलित अवस्था में विद्युत चालक होते हैं, परन्तु ठोस अवस्था में नहीं। व्याख्या कीजिए।
उत्तर
गलित अवस्था में आयनिक यौगिक वियोजित होकर मुक्त आयन देते हैं तथा विद्युत चालन करते हैं। ठोस अवस्था में आयन गति करने के लिए मुक्त नहीं होते हैं। अत: ये ठोस अवस्था में विद्युत चालन नहीं करते हैं।

प्रश्न 9.
किस प्रकार के ठोस विद्युत चालक, आघातवर्थ्य और तन्य होते हैं?
उत्तर
धात्विक ठोस।

प्रश्न 10.
‘जालक बिन्द’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर
प्रत्येक जालक बिन्दु ठोस के एक अवयवी कण को प्रदर्शित करता है। अवयवी कण परमाणु, अणु या आयन हो सकते हैं। किसी विशेष क्रिस्टलीय ठोस की आकृति के लिए जालक बिन्दु उत्तरदायी होते हैं।

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प्रश्न 11.
एकक कोष्ठिका को अभिलक्षणित करने वाले पैरामीटरों के नाम बताइए।
उत्तर

  1. एकक कोष्ठिका की कोर की विमाएँ (a, b,c) – परस्पर लम्बवत् हो सकती हैं अथवा नहीं।
  2. कोरों के मध्य के कोण (a,B तथा γ)

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में विभेद कीजिए –

  1. षट्कोणीय और एकनताक्ष एकक कोष्ठिका
  2. फलक केन्द्रित तथा अंत्य-केन्द्रित एकक कोष्ठिका।

उत्तर

  1. षट्कोणीय एकक कोष्ठिका में,
    a = b ≠ c; α = β = 90° तथा γ = 120°
    एकनताक्ष एकक कोष्ठिका में
    a ≠ b ≠ c तथा α = γ = 90° तथा β = 90°
  2. fcc में अवयवी कण सभी 8 कोनों एवं सभी 6 फलकों के केन्द्रों पर व्यवस्थित होते हैं। अंत्य- केन्द्रित एकक कोष्ठिका में अवयवी कण सभी 8 कोनों तथा दो विपरीत फलकों के केन्द्रों पर स्थित होते हैं।

प्रश्न 13.
स्पष्ट कीजिए कि एक घनीय एकक कोष्ठिका के

  1. कोने और
  2. अन्तःकेन्द्र पर उपस्थित परमाणु का कितना भाग सन्निकट कोष्ठिका से सहभाजित होता है?

उत्तर

  1. कोने पर उपस्थित परमाणु 8 एकक कोष्ठिकाओं से सहभाजित होता है। अतः एक एकक कोष्ठिका के लिए इसका योगदान 1/8 होता है।
  2. अन्त:केन्द्र पर उपस्थित परमाणु किसी भी अन्य एकक कोष्ठिका द्वारा सहभाजित नहीं होता है।

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प्रश्न 14.
एक अणु की वर्ग निविड संकुलित परत में द्विविमीय उप-सहसंयोजन संख्या क्या होगी?
उत्तर
द्विविमीय निविड संकुलित परत में परमाणु 4 सन्निकट परमाणुओं को स्पर्श करता है अत: इसकी उप-सहसंयोजन संख्या 4 होगी।

प्रश्न 15.
एक यौगिक षट्कोणीय निविड़ संकुलित संरचना बनाता है। इसके 0.5 मोल में रिक्तियों की संख्या कितनी होगी? उनमें से कितनी रिक्तियाँ चतुष्फलकीय हैं?
हल
यौगिक के 0.5 मोल में परमाणुओं की संख्या = 0.5 x 6.022 x 1023
= 3.011 x 1023
अष्टफलकीय रिक्तियों की संख्या = संकुलन में परमाणुओं की संख्या
= 3.011 x 1023
चतुष्फलकीय रिक्तियों की संख्या = 2 x संकुलन में परमाणुओं की संख्या
= 2 x 3.011 x 1023 = 6.022 x 1023
∴ रिक्तियों की कुल संख्या = (3.011 + 6.022) x 1023
= 9.033 x 1023

प्रश्न 16.
एक यौगिक दो तत्त्वों M तथा N से बना है। तत्त्व N, ccp संरचना बनाता है और M के परमाणु चतुष्फलकीय रिक्तियों के 1/3 भाग को अध्यासित करते हैं। यौगिक का सूत्र क्या है।
हल
माना ccp में N परमाणु = n
∴ चतुष्फलकीय रिक्तियों की संख्या = 2n
चूँकि M परमाणु चतुष्फलकीय रिक्तियों का 1/3 भाग घेरते हैं।
अतः M परमाणुओं की संख्या = [latex s=2]\frac { 2n }{ 3 }[/latex]
M : N = [latex s=2]\frac { 2n }{ 3 }[/latex] : n = 2 : 3
अत: सूत्र M2N2 होगा।

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प्रश्न 17.
निम्नलिखित में से किस जालक में उच्चतम संकुलन क्षमता है?

  1. सरल घनीय,
  2. अन्तः केन्द्रित घन और
  3. षट्कोणीय निविड संकुलित जालक।

उत्तर
संकुलन क्षमताएँ निम्न हैं –

  1. सरल घनीय = 52.4%,
  2. अन्तः केन्द्रित घनीय = 68%,
  3. षट्कोणीय निविड संकुलित = 74%

अतः षट्कोणीय निविड संकुलित व्यवस्था में अधिकतम संकुलन क्षमता होती है।

प्रश्न 18.
एक तत्त्व का मोलर द्रव्यमान 2.7 x 10-2 kg mol-1 है। यह 405 pm लम्बाई की भुजा वाली घनीय एकक कोष्ठिका बनाता है। यदि उसका घनत्व 2.7 x 103 kg m-3 हो तो घनीय एकक कोष्ठिका की प्रकृति क्या होगी?
हल
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 1 The Solid State image 1
चूँकि प्रति एकक कोष्ठिका में तत्त्व के चार परमाणु हैं, अत: घनीय एकक कोष्ठिका फलक-केन्द्रित (fcc) या घनीय निविड संकुलित होगी।

प्रश्न 19.
जब एक ठोस को गर्म किया जाता है तो किस प्रकार का दोष उत्पन्न हो सकता है? इससे कौन-से भौतिक गुण प्रभावित होते हैं और किस प्रकार?
उत्तर
रिक्तिका दोष; गर्म करने पर ठोस के कुछ परमाणु अथवा आयन जालक स्थल को पूर्णतः छोड़ देते। हैं। परमाणुओं अथवा आयनों के क्रिस्टल को पूर्णतः छोड़ने के कारण पदार्थ का घनत्व कम हो जाता है।

प्रश्न 20.
निम्नलिखित किस प्रकार का स्टॉइकियोमीट्री दोष दर्शाते हैं?

  1. ZnS
  2. AgBr

उत्तर

  1. फ्रेंकेल दोष
  2. फ्रेंकेल तथा शॉटकी दोष दोनों।

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प्रश्न 21.
समझाइए कि एक उच्च संयोजी धनायन को अशुद्धि की तरह मिलाने पर आयनिक ठोस में रिक्तिकाएँ किस प्रकार प्रविष्ट होती हैं?
उत्तर
विद्युत उदासीनता बनाए रखने के लिए उच्च संयोजकता वाले धनायन द्वारा निम्न संयोजकता वाले दो या अधिक धनायन प्रतिस्थापित होते हैं। अत: कुछ धनायन रिक्तियाँ जनित होती हैं, जैसे- यदि आयनिक ठोस Na+ cl में Sr2+ की अशुद्धि मिलाई जाती है तब दो Na+ जालक बिन्दु रिक्त हो जाते हैं तथा इनमें से एक Sr2+ आयन द्वारा घिर जाती है तथा अन्य रिक्त रहती हैं।

प्रश्न 22.
जिन आयनिक ठोसों में धातु आधिक्य दोष के कारण ऋणायनिक रिक्तिका होती हैं, वे रंगीन होते हैं। उपयुक्त उदाहरण की सहायता से समझाइए।
उत्तर
इसको सोडियम क्लोराइड (Na+ cl) का उदाहरण लेकर समझा सकते हैं। जब इसके क्रिस्टलों को सोडियम वाष्प की उपस्थिति में गर्म करते हैं तब कुछ Cl आयन अपने जालक स्थलों को छोड़कर सोडियम से संयुक्त होकर NaCl बना लेते हैं। इस अभिक्रिया के होने के लिए सोडियम (UPBoardSolutions.com) परमाणु इलेक्ट्रॉन खोकर Na+ आयन बनाते हैं। ये इलेक्ट्रॉन क्रिस्टल में विसरित होकर Cl आयनों द्वारा जनित ऋणायनिक रिक्तिकाओं को घेर लेते हैं। क्रिस्टल में अब सोडियम का आधिक्य होता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों द्वारा घेरे गए स्थल F- केन्द्र कहलाते हैं। ये क्रिस्टल को पीला रंग प्रदान करते हैं, क्योंकि वे दृश्य प्रकाश की ऊर्जा का अवशोषण करके उत्तेजित हो जाते हैं।

प्रश्न 23.
वर्ग 14 के तत्त्व को n- प्रकार के अर्द्धचालक में उपयुक्त अशुद्धि द्वारा अपमिश्रित करके रूपान्तरित करना है। यह अशुद्धि किस वर्ग से सम्बन्धित होनी चाहिए?
उत्तर
अशुद्धि वर्ग 15 से सम्बन्धित होनी चाहिए।

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प्रश्न 24.
किस प्रकार के पदार्थों से अच्छे स्थायी चुम्बक बनाए जा सकते हैं-
लौहचुम्बकीय अथवा फेरीचुम्बकीय? अपने उत्तर का औचित्य बताइए।
उत्तर
लौहचुम्बकीय पदार्थ श्रेष्ठ स्थायी चुम्बक बनाते हैं क्योंकि इनमें धातु आयन छोटे क्षेत्रों में व्यवस्थित होते हैं, जिन्हें डोमेन कहते हैं। प्रत्येक डोमेन सूक्ष्म चुम्बक के रूप में (UPBoardSolutions.com) कार्य करता है। ये डोमेन अनियमित रूप में व्यवस्थित होते हैं। जब इन पर चुम्बकीय क्षेत्र आरोपित किया जाता है तब वे चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में व्यवस्थित हो जाते हैं तथा प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र बनाते हैं। बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के हटा लेने पर भी डोमेन व्यवस्थित रहते हैं। इस प्रकार लौहचुम्बकीय पदार्थ स्थायी चुम्बक में परिवर्तित हो जाता है।

अतिरिक्त अभ्यास

प्रश्न 1.
‘अक्रिस्टलीय पद को परिभाषित कीजिए। अक्रिस्टलीय ठोसों के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर
ऐसे ठोस जिनका निश्चित ज्यामितीय आकार या विन्यास नहीं होता है अर्थात् इनके अवयवी कण निश्चित क्रम में व्यवस्थित नहीं होते हैं, अक्रिस्टलीय ठोस (amorphous solids) कहलाते हैं। इनका कोई निश्चित गलनांक नहीं होता है तथा ये समदैशिक (isotropic) होते हैं; जैसे, प्लास्टिक, काँच आदि।

प्रश्न 2.
काँच, क्वार्टज जैसे ठोस से किस प्रकार भिन्न है? किन परिस्थितियों में क्वार्टज को काँच में रूपान्तरित किया जा सकता है?
उत्तर
काँच अक्रिस्टलीय ठोस है। इसमें अवयवी कणों (SiO4 चतुष्क) की केवल लघु परासी व्यवस्था होती है। दूसरी ओर क्वार्ट्ज में अवयवी कणों (SiO4 चतुष्क) की लघु और दीर्घ (दोनों) परासी व्यवस्थाएँ होती हैं। दूसरे शब्दों में, क्वार्ज क्रिस्टलीय होता है।
क्वार्ट्ज़ को पिघलाकर उसे शीघ्रता से ठंडा करने पर काँच प्राप्त होता है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित ठोसों का वर्गीकरण आयनिक, धात्विक, आण्विक, सहसंयोजक या अक्रिस्टलीय में कीजिए।

  1. टेट्राफॉस्फोरस डेकॉक्साइड (P4O10)
  2. अमोनियम फॉस्फेट (NH4)3 PO4
  3. SiC
  4. I2
  5. P4
  6. प्लास्टिक
  7. ग्रेफाइट
  8. पीतल
  9. Rb
  10. LiBr
  11. Si

उत्तर

  1. आयनिक (Ionic) : अमोनियम फॉस्फेट (NH4)3 PO4, LiBr
  2. धात्विक (Metallic) : पीतल, Rb
  3. आण्विक (Molecular) : टेट्राफॉस्फोरस डेकॉक्साइड (P4O10), I2, P4
  4. सहसंयोजक (Covalent) : ग्रेफाइट, SiC, Si
  5. अक्रिस्टलीय (Amorphous) : प्लास्टिक

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प्रश्न 4.

  1. उपसहसंयोजन संख्या का क्या अर्थ है?
  2. निम्नलिखित में परमाणुओं की उपसहसंयोजन संख्या क्या है?
    1. एक घनीय निविड संकुलित संरचना
    2. एक अन्त:केन्द्रित घनीय संरचना।

उत्तर

  1. उप-सहसंयोजन संख्या – यदि परमाणुओं को गोलों के रूप में प्रदर्शित किया जाए, तब किसी विशेष गोले के सन्निकट उपस्थित अन्य गोलों की संख्या उसकी उप-सहसंयोजन संख्या कहलाती है। आयनिक क्रिस्टलों में किसी आयन के चारों ओर उपस्थित विपरीत आवेशित गोलों की संख्या उसकी उप-सहसंयोजन संख्या कहलाती है।।
    1. 12
    2. 8.

प्रश्न 5.
यदि आपको किसी अज्ञात धातु का घनत्व एवं एकक कोष्ठिका की विमाएँ ज्ञात हैं तो क्या आप उसके परमाण्विक द्रव्यमान की गणना कर सकते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
परमाण्विक द्रव्यमान, M = [latex s=2]\frac { \rho \times { a }^{ 3 }\times { N }_{ A } }{ Z } [/latex]
किसी अज्ञात धातु का घनत्व एवं एकक कोष्ठिका की विमाएँ ज्ञात होने पर उपर्युक्त सूत्र की सहायता से उसके परमाण्विक द्रव्यमान की गणना की जा सकती है।

प्रश्न 6.
‘किसी क्रिस्टल की स्थिरता उसके गलनांक के परिमाण द्वारा प्रकट होती है।’ टिप्पणी कीजिए। किसी आँकड़ा पुस्तक से जल, एथिल ऐल्कोहॉल, डाइएथिल ईथर तथा मेथेन के गलनांक एकत्र करें। इन अणुओं के मध्य अन्तराआण्विक बलों के बारे में आप क्या कह सकते हैं?
उत्तर
किसी पदार्थ का गलनांक जितना उच्च होता है उसके अवयवी कणों के मध्य आकर्षण बल उतना ही अधिक होता है और पदार्थ भी उतना ही अधिक स्थायी होता है। जल, एथिल ऐल्कोहॉल, डाइएथिल ईथर और मेथेन के गलनांक क्रमशः 273 K, 155.7 K, 156.8 K और 90.5 K हैं। जल और एथिल ऐल्कोहॉल में अंतराआण्विक बल हाइड्रोजन आबंधन होते हैं। जल के अणुओं के मध्य हाइड्रोजन आबंधन एथिल ऐल्कोहॉल (UPBoardSolutions.com) के अणुओं की तुलना में प्रबल होता है जोकि उनके गलनांकों से भी स्पष्ट होता है। डाइएथिल ईथर के अणुओं के बीच द्विध्रुव-द्विध्रुव आकर्षण होता है तथा मेथेन अणुओं के मध्य यह दुर्बल वाण्डरवाल्स बल होता है जो कि इनके गलनांकों से स्पष्ट है।

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प्रश्न 7.
निम्नलिखित युगलों के पदों (शब्दों) में कैसे विभेद करोगे?

  1. षट्कोणीय निविड संकुलन एवं घनीय निविड संकुलन
  2. क्रिस्टल जालक एवं एकक कोष्ठिका
  3. चतुष्फलकीय रिक्ति एवं अष्टफलकीय रिक्ति।

उत्तर
1. षट्कोणीय निविड संकुलन एवं घनीय निविड संकुलन
(Hexagonal Close Packing and Cubic Close Packing)
ये दोनों त्रिविमीय निविड संकुलित संरचनाएँ द्विविम-षट्कोणीय निविड संकुलित परतों को एक-दूसरे पर रखकर जनित की जा सकती हैं।

षट्कोणीय निविड संकुलन – जब तृतीय परत को द्वितीय परत पर रखा जाता है, तब उत्पन्न एक सम्भावना के अन्तर्गत द्वितीय परत की चतुष्फलकीय रिक्तियों को तृतीय परत के गोलों द्वारा आच्छादित किया जा सकता है। इस स्थिति में तृतीय परत के गोले प्रथम परत के गोलों के साथ पूर्णत: (UPBoardSolutions.com) संरेखित होते हैं। इस प्रकार गोलों का पैटर्न एकान्तर परतों में पुनरावृत्त होता है। इस पैटर्न को प्रायः ABAB….पैटर्न लिखा जाता है। इस संरचना को षट्कोणीय निविड संकुलित (hcp) संरचना कहते हैं (चित्र-1)। इस प्रकार की परमाणुओं की व्यवस्था कई धातुओं; जैसे- मैग्नीशियम और जिंक में पायी जाती है।
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घनीय निविड संकुलन – इसके लिए तीसरी परत दूसरी परत के ऊपर इस प्रकार रखते हैं कि उसके गोले अष्टफलकीय रिक्तियों को आच्छादित करते हों। इस प्रकार से रखने पर तीसरी परत के गोले प्रथम अथवा द्वितीय किसी भी परत के साथ संरेखित नहीं होते। इस व्यवस्था को ‘C’ प्रकार का (UPBoardSolutions.com) कहा जाता है। केवल चौथी परत रखने पर उसके गोले प्रथम परत के गोलों के साथ संरेखित होते हैं। जैसा चित्र-1 व 2 में दिखाया गया है। इस प्रकार के पैटर्न को प्रायः ABCABC… लिखा जाता है। इस संरचना को घनीय निविड संकुलित संरचना (ccp) अथवा फलक-केन्द्रित घनीय (fcc) संरचना कहा जाता है। धातु; जैसे- ताँबा तथा चाँदी इस संरचना में क्रिस्टलीकृत होते हैं।
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उपर्युक्त दोनों प्रकार के निविड़ संकुलन अति उच्च क्षमता वाले होते हैं और क्रिस्टल का 74% स्थान सम्पूरित रहता है। इन दोनों में प्रत्येक गोला बारह गोलों के सम्पर्क में रहता है। इस प्रकार इन दोनों संरचनाओं में उपसहसंयोजन संख्या 12 है।

2. क्रिस्टल जालक एवं एकक कोष्ठिका
(Crystal Lattice and Unit Cell)
क्रिस्टल जालक – क्रिस्टलीय ठोसों का मुख्य अभिलक्षण अवयवी कणों का नियमित और पुनरावृत्त पैटर्न है। यदि क्रिस्टल में अवयवी कणों की त्रिविमीय व्यवस्था को (UPBoardSolutions.com) आरेख के रूप में निरूपित किया जाए, जिसमें प्रत्येक बिन्दु को चित्रित किया गया हो तो व्यवस्था को क्रिस्टल जालक कहते हैं। इस प्रकार, “द्विकस्थान (space) में बिन्दुओं की नियमित त्रिविमीय व्यवस्था को क्रिस्टल जालक कहते हैं।”
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क्रिस्टल जालक के एक भाग को चित्र- 3 में दिखाया गया है। केवल 14 त्रिविमीय जालक सम्भव हैं।
एकक कोष्ठिका – एकक कोष्ठिका क्रिस्टल जालक का लघुतम भाग है (चित्र-3)। जब इसे विभिन्न दिशाओं में पुनरावृत्त किया जाता है तो पूर्ण जालक की उत्पत्ति होती है।

3. चतुष्फलकीय रिक्ति एवं अष्टफलकीय रिक्ति
(Tetrahedral Void and Octahedral Void)
चतुष्फलकीय रिक्ति – ये रिक्तियाँ चार गोलों द्वारा घिरी रहती हैं जो एक नियमित चतुष्फलक के शीर्ष पर स्थित होते हैं। इस प्रकार जब भी द्वितीय परत का एक गोला प्रथम (UPBoardSolutions.com) परत की रिक्ति के ऊपर होता है, तब एक चतुष्फलकीय रिक्ति बनती है। इन रिक्तियों को चतुष्फलकीय रिक्तियाँ इसलिए कहा जाता है। क्योंकि जब इन चार गोलों के केन्द्रों को मिलाया जाता है, तब एक चतुष्फलक बनता है। चित्र-4 में इन्हें “T’ से अंकित किया गया है। ऐसी एक रिक्ति को अलग से चित्र-5 में दिखाया गया है।
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अष्टफलकीय रिक्ति – ये रिक्तियाँ सम्पर्क में स्थित तीन गोलों द्वारा संलग्नित रहती हैं। इस प्रकार द्वितीय परत की त्रिकोणीय रिक्तियाँ प्रथम परते की त्रिकोणीय रिक्तियों (UPBoardSolutions.com) के ऊपर होती हैं और इनकी त्रिकोणीय आकृतियाँ अतिव्यापित नहीं होतीं। उनमें से एक में त्रिकोण का शीर्ष ऊर्ध्वमुखी और दूसरे में अधोमुखी होता है। इन रिक्तियों को चित्र-4 में ‘O’ से अंकित किया गया है। ऐसी रिक्तियाँ छह गोलों से घिरी होती हैं। ऐसी एक रिक्ति को अलग से चित्र- 5 में दिखाया गया है।
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प्रश्न 8.
निम्नलिखित जालकों में से प्रत्येक की एकक कोष्ठिका में कितने जालक बिन्दु होते हैं?

  1. फलक-केन्द्रित घनीय,
  2. फलक-केन्द्रित चतुष्कोणीय,
  3. अन्तःकेन्द्रित।

उत्तर

  1. फलक-केन्द्रित घनीय संरचना (fcc) में जालक बिन्दु
    = 8 (कोनों पर) + 6 (फलक केन्द्र पर) = 14
  2. फलक-केन्द्रित चतुष्कोणीय संरचना में जालक बिन्दु
    = 8 (कोनों पर) + 6 (फलक केन्द्र पर) = 14
  3. अन्त:केन्द्रित घनीय (bcc) संरचना में जालक बिन्दु
    = 8 (कोनों पर) + 1 (अन्त:केन्द्र पर) = 9

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प्रश्न 9.
समझाइए –

  1. धात्विक एवं आयनिक क्रिस्टलों में समानता एवं विभेद का आधार।
  2. आयनिक ठोस कठोर एवं भंगुर होते हैं।

उत्तर
1. समानताएँ (Similarities) – (1) आयनिक तथा धात्विक दोनों क्रिस्टलों में स्थिर विद्युत आकर्षण बल विद्यमान होता है। आयनिक क्रिस्टलों में यह विपरीत आवेशयुक्त आयनों के मध्य होता है। धातुओं में यह संयोजी इलेक्ट्रॉनों तथा करनैल (kernels) के मध्य होता है। इसी कारण से इन दोनों के गलनांक उच्च होते हैं।
(2) दोनों स्थितियों में बन्ध अदैशिक (non-directional) होता है।

विभेद (Differences) – (1) आयनिक क्रिस्टलों में आयन गति के लिए स्वतन्त्र नहीं होते हैं। अत: ये ठोस अवस्था में विद्युत का चालन नहीं करते। ये ऐसा केवल गलित अवस्था या जलीय विलयन में करते हैं। धातुओं में संयोजी इलेक्ट्रॉन बँधे नहीं होते, अपितु मुक्त रहते हैं। अत: ये ठोस (UPBoardSolutions.com) अवस्था में भी विद्युत का चालन करते हैं।
(2) आयनिक बन्ध स्थिर विद्युत आकर्षण के कारण प्रबल होते हैं। धात्विक बन्ध दुर्बल भी हो सकता है। या प्रबल भी, यह संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या तथा करनैल के आकार पर निर्भर करता है।

2. आयनिक क्रिस्टल कठोर होते हैं क्योंकि इनमें विपरीत आवेशयुक्त आयनों के मध्य प्रबल स्थिर विद्युत आकर्षण बल उपस्थित होता है। ये भंगुर होते हैं क्योंकि आयनिक बन्ध अदिशात्मक होता है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित के लिए धातु के क्रिस्टल में संकुलन क्षमता की गणना कीजिए।

  1. सरल घनीय,
  2. अन्त:केन्द्रित घनीय,
  3. फलक-केन्द्रित घनीय।

(यह मानते हुए कि परमाणु एक-दूसरे के सम्पर्क में हैं।)

उत्तर
1. सरल घनीय जालक में संकुलन क्षमता
(Packing Efficiency in Simple Cubic Lattice)
सरल घनीय जालक में परमाणु केवल घन के कोनों पर उपस्थित होते हैं। घन के किनारों (कोरों) पर कण एक-दूसरे के सम्पर्क में होते हैं (चित्र-6)। इसलिए घन के कोर अथवा भुजा की लम्बाई ‘a’ और प्रत्येक कण का अर्द्धव्यास r निम्नलिखित प्रकार से सम्बन्धित होता है –
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a = 2r
घनीय एकक कोष्ठिका का आयतन = a3 = (2r)3 = 8r3
चूँकि सरल घनीय एकक कोष्ठिका में केवल 1 परमाणु होता है।
अतः अध्यासित दिक्स्थान का आयतन = 4/3 πr3
∴ संकुलन क्षमता
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2. अन्तः केन्द्रित घनीय जालक में संकुलन क्षमता
(Packing Efficiency in Body-centred Cubic Lattice)
संलग्न चित्र से यह स्पष्ट है कि केन्द्र पर स्थित परमाणु विकर्ण पर व्यवस्थित अन्य दो परमाणुओं के सम्पर्क में है।
Δ EFD में,
b2 = a2 + a2 = 2a2
b = √2a

अब Δ AFD में,
c2 = a2 + b2 = a2 + 2a2 = 3a2
c= √3a
काय विकर्ण 4r की लम्बाई 47 के बराबर है, जहाँ r गोले (परमाणु) का अर्द्धव्यास है क्योंकि विकर्ण पर उपस्थित तीनों गोले एक-दूसरे के सम्पर्क में हैं। अतः
√3a = 4r
a = [latex s=2]\frac { 4 }{ \sqrt { 3 } } [/latex] r
अतः यह भी लिख सकते हैं कि r = [latex s=2]\frac { \sqrt { 3 } }{ 4 } [/latex] a
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इस प्रकार की संरचना में परमाणुओं की कुल संख्या 2 है तथा उनका आयतन 2 x (4/3) πr3 है।
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3. फलक-केन्द्रित घनीय जालक में संकुलन क्षमता
(Packing Efficiency in Face-centred Cubic Lattice)
संलग्न चित्र से, Δ ABC में,
AC2 = b2 = BC2 + AB2
= a2 + a2 = 2a2
या  b = √2a
यदि गोले का अर्द्धव्यास r हो तो
b= 4r = √2a
या  a = [latex s=2]\frac { 4r }{ \sqrt { 2 } } [/latex] = 2√2r
या  r = [latex s=2]\frac { a }{ 2\sqrt { 2 } } [/latex]
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 1 The Solid State image 12
इस प्रकार की संरचना में परमाणुओं की कुल संख्या चार होती है तथा उनका आयतन 4 x [latex]\frac { 4 }{ 3 } [/latex] πr3 है।
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UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 1 The Solid State image 14

प्रश्न 11.
चाँदी का क्रिस्टलीकरण fcc जालक में होता है। यदि इसकी कोष्ठिका के कोरों की लम्बाई 4.07 x 10-8 cm तथा घनत्व 10.5 g cm-3 हो तो चाँदी का परमाण्विक द्रव्यमान ज्ञात कीजिए।
हल
fcc जालक के लिए Z = 4
कोर की लम्बाई, a = 4.077 x 10-8 cm, घनत्व ρ = 10.5 g cm-3
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 1 The Solid State image 15
=107.14 g mol-1
अतः चाँदी का परमाण्विक द्रव्यमान = 107.14 g mol-1 होगा।

प्रश्न 12.
एक घनीय ठोस दो तत्वों P एवं Q से बना है। घन के कोनों पर Q परमाणु एवं अन्तःकेन्द्र पर P परमाणु स्थित हैं। इस यौगिक का सूत्र क्या है? P एवं Q की उपसहसंयोजन संख्या क्या है?
हल
घन में परमाणु Q, 8 कोनों पर स्थित हैं।
Q परमाणुओं की संख्या = 1/8 x 8= 1
परमाणु P अन्त: केन्द्र पर स्थित है,
अतः P परमाणुओं की संख्या = 1
अतः यौगिक का सूत्र = PQ
P तथा Q की उप-सहसंयोजन संख्या = 8

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प्रश्न 13.
नायोबियम का क्रिस्टलीकरण अन्तःकेन्द्रित घनीय संरचना में होता है। यदि इसका घनत्व 8.55 g cm-3 हो तो इसके परमाण्विक द्रव्यमान 93u का प्रयोग करके परमाणु त्रिज्या की गणना कीजिए।
हल
अन्त: केन्द्रित घनीय संरचना (bcc) में Z = 2, घनत्व ρ = 8.55 g cm-3, परमाण्विक द्रव्यमान,
M = 92.9 g mol-1
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 1 The Solid State image 16
∴ a = (36.1 x 10-24 cm3)1/3 = 3.3 x 10-8 cm
bcc एकक कोष्ठिका के लिए,
विकर्ण = 4 x नायोबियम परमाणु की त्रिज्या
√3a = 4 x नायोबियम परमाणु की त्रिज्या
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 1 The Solid State image 17
= 1.43 x 10-8 cm

प्रश्न 14.
यदि अष्टफलकीय रिक्ति की त्रिज्या हो तथा निविड संकुलन में परमाणुओं की त्रिज्या हो तो r एवं R में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
हल
अष्टफलकीय रिक्ति में स्थित गोला चित्र 9 में छायांकित वृत्त द्वारा प्रदर्शित है। रिक्ति के ऊपर तथा नीचे उपस्थित गोले चित्र-9 में प्रदर्शित नहीं हैं। अब चूंकि ABC एक समकोण त्रिभुज है, अत: पाइथागोरस सिद्धान्त लागू करने पर,
AC2 = AB2 + BC2
(2R)2 = (R + r)2 + (R + r)2
= 2(R + r)2
4R2 = 2(R + r)2
(√2R)2 = (R + r)2
√2R = R + r
r = √2R – R
r = (√2 – 1)R
r = (1.414 – 1)R
r = 0.414 R
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प्रश्न 15.
कॉपर fcc जालक के रूप में क्रिस्टलीकृत होता है जिसके कोर की लम्बाई 3.61 x 10-8 cm है। यह दर्शाइए कि गणना किए गए घनत्व के मान तथा मापे गए घनत्व 8.92 g cm-3 में समानता है।
हल
fcc जालक में Z = 4, कोर की लम्बाई, a = 3.61 x 10-8 cm, घनत्व ρ = ?
कॉपर का परमाण्विक द्रव्यमान, M = 63.5 g mol-1
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 1 The Solid State image 19
= 8.97 g cm-3
अतः घनत्व का गणनात्मक मान 8.97 g cm-3 तथा मापे गये घनत्व का मान 8.92 g cm-3 लगभग समान हैं।

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प्रश्न 16.
विश्लेषण द्वारा ज्ञात हुआ कि निकिल ऑक्साइड का सूत्र Ni0.98 O1.00 है। निकिल आयनों का कितना अंश Ni2+ और Ni3+ के रूप में विद्यमान है?
हल
Ni0.98 O1.00 नॉन- स्टॉइकियोमीटी यौगिक है। Ni आयन तथा ऑक्साइड आयनों का संघटन 98 : 100 है। माना Ni में x Ni2+ आयन तथा (98 – x) Ni3+ आयन हैं।
Ni2+ तथा Ni3+ पर उपस्थित धनावेश ऑक्साइड आयनों पर उपस्थित ऋणावेश के बराबर होगा, अतः
x × 2 + (98 – x )3 = 100 x 2
2 + 294 – 3x = 100 × 2
∴ x = 94
अत: 98 Ni आयनों में 94 Ni2+ आयन तथा 4 Ni3+ आयन होंगे।
∴ Ni2+ आयनों का प्रतिशत = [latex]\frac { 94 }{ 98 } [/latex] x 100= 96%
Ni3+ आयनों का प्रतिशत = 4%

प्रश्न 17.
अर्द्धचालक क्या होते हैं? दो मुख्य अर्द्धचालकों का वर्णन कीजिए एवं उनकी चालकता क्रियाविधि में विभेद कीजिए।
उत्तर
अर्द्धचालक (Semiconductors) – वे ठोस जिनकी चालकता 10-6 से 104 ohm-1 m-1 तक के मध्यवर्ती परास में होती है, अर्द्धचालक कहलाते हैं।
अर्द्धचालकों में संयोजक बैण्ड एवं चालक बैण्ड के मध्य ऊर्जा- अन्तराल कम होता है। अतः कुछ इलेक्ट्रॉन चालक बैण्ड में लाँघ सकते हैं और अल्प- चालकता प्रदर्शित कर सकते हैं। ताप बढ़ने के साथ अर्द्धचालकों में विद्युत- चालकता बढ़ती है, क्योंकि अधिक संख्या में इलेक्ट्रॉन चालक बैण्ड में देखे जा सकते हैं। सिलिकन एवं जर्मेनियम जैसे पदार्थ इस प्रकार का व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। इनमें उचित अशुद्धि को (UPBoardSolutions.com) उपयुक्त मात्रा में मिलाने से इनकी चालकता बढ़ जाती है। इस आधार पर दो प्रकार के अर्द्धचालक तथा उनकी चालकता- क्रियाविधि का वर्णन निम्नवत् है –
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(i) n- प्रकार के अर्द्धचालक (n-type semiconductors) – सिलिकन तथा जर्मेनियम आवर्त सारणी के वर्ग 14 से सम्बन्धित हैं और प्रत्येक में चार संयोजक इलेक्ट्रॉन हैं। क्रिस्टलों में इनका प्रत्येक परमाणु अपने निकटस्थ परमाणुओं के साथ चार सहसंयोजक बन्ध बनाता है [चित्र-11 (a)]। जब वर्ग 15 के तत्व; जैसे- P अथवा As, जिनमें पाँच संयोजक इलेक्ट्रॉन होते हैं, को अपमिश्रित किया जाता है तो ये (UPBoardSolutions.com) सिलिकन अथवा जर्मेनियम के क्रिस्टल में कुछ जालक स्थलों में आ जाते हैं [चित्र-11 (b)]। P अथवा As के पाँच में से चार इलेक्ट्रॉनों का उपयोग चार सन्निकट सिलिकन परमाणुओं के साथ चार सहसंयोजक बन्ध बनाने में होता है। पाँचवाँ अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन विस्थानित (delocalised) हो जाता है। यह विस्थानित इलेक्ट्रॉन अपमिश्रित सिलिकन (अथवा जर्मेनियम) की चालकता में वृद्धि करता है। यहाँ चालकता में वृद्धि ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन के कारण होती है, अत: इलेक्ट्रॉन-धनी अशुद्धि से अपमिश्रित सिलिकन को n-प्रकार का अर्द्धचालक कहा जाता है।
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(ii) p- प्रकार के अर्द्धचालक (p-type semiconductors) – सिलिकन अथवा जर्मेनियम को वर्ग 13 के तत्वों; जैसे- B, Al अथवा Ga के साथ भी अपमिश्रित किया जा सकता है जिनमें केवल तीन संयोजक इलेक्ट्रॉन होते हैं। वह स्थान जहाँ चौथा इलेक्ट्रॉन नहीं होता, इलेक्ट्रॉन रिक्ति या इलेक्ट्रॉन छिद्र कहलाता है [चित्र-11 (c)]। निकटवर्ती परमाणु से इलेक्ट्रॉन आकर इलेक्ट्रॉन छिद्र को भर सकता है, परन्तु ऐसा करने पर वह अपने मूल स्थान पर इलेक्ट्रॉन छिद्र छोड़ जाता है। यदि ऐसा हो तो यह प्रतीत होगा जैसे कि (UPBoardSolutions.com) इलेक्ट्रॉन छिद्र जिस इलेक्ट्रॉन द्वारा यह भरा गया है, उसके विपरीत दिशा में चल रहा है। विद्युत क्षेत्र के प्रभाव में इलेक्ट्रॉन, इलेक्ट्रॉन छिद्रों में से धनावेशित प्लेट की ओर चलेंगे, परन्तु ऐसा प्रतीत होगा; जैसे इलेक्ट्रॉन छिद्र धनावेशित हैं और ऋणावेशित प्लेट की ओर चल रहे हैं। इस प्रकार के अर्द्धचालकों को p- प्रकार के अर्द्धचालक कहते हैं।

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प्रश्न 18.
नॉनस्टॉइकियोमीट्री क्यूप्रस ऑक्साइड, Cu2O प्रयोगशाला में बनाया जा सकता है। इसमें कॉपर तथा ऑक्सीजन का अनुपात 2 : 1 से कुछ कम है। क्या आप इस तथ्य की व्याख्या कर सकते हैं कि यह पदार्थ p- प्रकार का अर्द्धचालक है?
उत्तर
Cu2O में Cu तथा O का 2 : 1 से कम अनुपात यह प्रदर्शित करता है कि इसमें धनायनिक रिक्ति के कारण धातु न्यूनता (metal deficiency) है। धातु न्यून यौगिक धनायन छिद्रों के द्वारा विद्युत चालन करते हैं। अतः p- प्रकार के अर्द्धचालक (p- type semiconductors) होते हैं।

प्रश्न 19.
फेरिक ऑक्साइड में ऑक्साइड आयन के षट्कोणीय निविड़ संकुलन में क्रिस्टलीकृत होता है जिसकी तीन अष्टफलकीय रिक्तियों में से दो पर फेरिक आयन उपस्थित होते हैं। फेरिक ऑक्साइड का सूत्र ज्ञात कीजिए।
हल
माना निविड संकुलित संरचना में ऑक्साइड (O2-) आयनों की संख्या = x
∴ अष्टफलकीय रिक्तियों की संख्या = x
∴ इन रिक्तियों का 2/3 भाग फेरिक आयनों (Fe3+) द्वारा भरा है।
अत: उपस्थित Fe3+ आयनों की संख्या 2/3 × x = 2x/3
Fe3+ : O2- = 2x/3 : x = 2 : 3
अतः फेरिक ऑक्साइड का सूत्र Fe2O3 होगा।

प्रश्न 20.
निम्नलिखित को p-प्रकार या n-प्रकार के अर्द्धचालकों में वर्गीकृत कीजिए –

  1. In से डोपित Ge,
  2. Si से डोपित B

उत्तर

  1. p- प्रकार का अर्द्धचालक,
  2. n- प्रकार का अर्द्ध-चालक।

प्रश्न 21.
सोना (परमाणु त्रिज्या= 0.144 nm) फलक-केन्द्रित एकक कोष्ठिका में क्रिस्टलीकृत होता है। इसकी कोष्ठिका के कोर की लम्बाई ज्ञात कीजिए।
हल
fcc संरचना के लिए यदि r परमाणु की त्रिज्या हो तो
फलक विकर्ण = 4r
यदि कोष्ठिका की कोर की लम्बाई a हो तो फलक विकर्ण = √2a
अतः √2a = 4r
∴ a = [latex]\frac { 4 }{ \sqrt { 2 } } [/latex] × 0.144
0.407 nm

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प्रश्न 22.
बैण्ड सिद्धान्त के आधार पर

  1. चालक एवं रोधी
  2. चालक एवं अर्द्धचालक में क्या अन्तर होता है?

उत्तर

  1. चालक एवं रोधी में अन्तर (Difference between conductor and insulator) – अचालक अथवा रोधी में संयोजक बैण्ड तथा चालक बैण्ड के मध्य ऊर्जा-अन्तर बहुत अधिक होता है, जबकि चालक में ऊर्जा-अन्तर अत्यन्त कम होता है या संयोजक बैण्ड तथा चालक बैण्ड के बीच अतिव्यापन होता है।
  2. चालक एवं अर्द्धचालक में अन्तर (Difference between conductor and semiconductor) – चालक में संयोजक बैण्ड तथा चालक बैण्ड के बीच ऊर्जा-अन्तर अत्यन्त कम होता है। अथवा अतिव्यापन होता है, जबकि अर्द्धचालकों में ऊर्जा अन्तर सदैव कम ही होता है, कभी भी अतिव्यापन नहीं होता।

प्रश्न 23.
उचित उदाहरणों द्वारा निम्नलिखित पदों को परिभाषित कीजिए

  1. शॉट्की दोष
  2. फ्रेंकेल दोष
  3. अन्तराकाशी
  4. F-केन्द्र।

उत्तर
1. शॉट्की दोष (Schottky defect) – यह आधारभूत रूप से आयनिक ठोसों का रिक्तिका दोष है। जब एक परमाणु अथवा आयन अपनी सामान्य (वास्तविक) स्थिति से लुप्त हो जाता है तो एक जालक रिक्तता निर्मित हो जाती है; इसे शॉकी दोष कहते हैं। विद्युत उदासीनता को बनाए रखने के लिए लुप्त होने वाले धनायनों और ऋणायनों की संख्या बराबर होती है। शॉट्की दोष उन आयनिक पदार्थों द्वारा दिखाया जाता है जिनमें धनायन और ऋणायन लगभग समान आकार के होते हैं। उदाहरण के लिए– NaCl, KCl, CsCl और AgBr शॉट्की दोष दिखाते हैं।

2. फ्रेंकेल दोष (Frenkel defect) – यह दोष आयनिक ठोसों द्वारा दिखाया जाता है। लघुतर आयन (साधारणतया धनायन) अपने वास्तविक स्थान से विस्थापित होकर अन्तराकाश में चला जाता है। यह वास्तविक स्थान पर रिक्तिका दोष और नए स्थान पर अन्तराकाशी दोष उत्पन्न करता है। (UPBoardSolutions.com) फ्रेंकेल दोष को विस्थापन दोष भी कहते हैं। यह ठोस के घनत्व को परिवर्तित नहीं करता। फ्रेंकेल दोष उन आयनिक पदार्थ द्वारा दिखाया जाता है जिनमें आयनों के आकार में अधिक अन्तर होता है। उदाहरण के लिए– ZnS, AgCl, AgBr और AgI में यह दोष Zn2+ और Ag+ आयन के लघु आकार के कारण होता है।

3. अन्तराकाशी दोष (Interstitial defect) – जब कुछ अवयवी कण (परमाणु अथवा अणु) अन्तराकोशी स्थल पर पाए जाते हैं तब उत्पन्न दोष अन्तराकाशी दोष कहलाता है। यह दोष पदार्थ के घनत्व को बढ़ाता है। अन्तराकाशी दोष अनआयनिक ठोसों में पाया जाता है। आयनिक ठोसों में सदैव विद्युत उदासीनता बनी रहनी चाहिए। इससे इनमें यह दोष दिखाई नहीं देता है।

4. F-केन्द्र (F-centre) – जब क्षारकीय हैलाइड; जैसे- NaCl को क्षार धातु (जैसे- सोडियम) की वाष्प के वातावरण में गर्म किया जाता है तो सोडियम परमाणु क्रिस्टल की सतह पर जम जाते हैं। Cl आयन क्रिस्टल की सतह में विसरित हो जाते हैं और Na+ आयनों के साथ जुड़कर NaCl देते हैं। Na+ आयन बनाने के लिए Na परमाणु से एक इलेक्ट्रॉन निकल जाता है। निर्मुक्त इलेक्ट्रॉन विसरित होकर क्रिस्टल के (UPBoardSolutions.com) ऋणायनिक स्थान को अध्यासित करते हैं, परिणामस्वरूप अब क्रिस्टल में सोडियम का आधिक्य होता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों द्वारा भरी जाने वाली इन ऋणायनिक रिक्तिकाओं को F-केन्द्र कहते हैं। ये NaCl क्रिस्टलों को पीला रंग प्रदान करते हैं। यह रंग इन इलेक्ट्रॉनों द्वारा क्रिस्टल पर पड़ने वाले प्रकाश से ऊर्जा अवशोषित करके उत्तेजित होने के परिणामस्वरूप दिखता है।

प्रश्न 24.
ऐलुमिनियम घनीय निविड संकुलित संरचना में क्रिस्टलीकृत होता है। इसका धात्विक अर्द्धव्यास 125 pm है।

  1. एकक कोष्ठिका के कोर की लम्बाई ज्ञात कीजिए।
  2. 1.0 cm3 ऐलुमिनियम में कितनी एकक कोष्ठिकाएँ होंगी?

हल
घनीय निविड संकुलित संरचना में fcc संरचना होती है।
अतः फलक विकर्ण a√2 = 4r

1. ऐलुमिनियम की एकक कोष्ठिका की कोर की लम्बाई
a = [latex]\frac { 4 }{ \sqrt { 2 } } [/latex] × 125 pm = 353.5 pm
2. Al के 1 cm3 में एकक कोष्ठिकाओं की संख्या
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प्रश्न 25.
यदि NaCl को SrCl2 के 10-3 मोल % से डोपित किया जाए तो धनायनों की रिक्तियों का सान्द्रण क्या होगा?
हल
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 1 The Solid State image 23

प्रश्न 26.
निम्नलिखित को उचित उदाहरणों से समझाइए –

  1. लौहचुम्बकत्व
  2. अनुचुम्बकत्व
  3. फेरीचुम्बकत्व
  4. प्रतिलौहचुम्बकत्व
  5. 12 – 16 और 13 – 15 वर्गों के यौगिक।

उत्तर
1. लौहचुम्बकत्व (Ferromagnetism) – कुछ पदार्थ; जैसे-लोहा, कोबाल्ट, निकिल, गैडोलिनियम और CrO2 बहुत प्रबलता से चुम्बकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित होते हैं। ऐसे पदार्थों को लौहचुम्बकीय पदार्थ कहा जाता है। प्रबल आकर्षणों के अतिरिक्त ये स्थायी रूप से चुम्बकित किए जा सकते हैं। ठोस अवस्था में लौहचुम्बकीय पदार्थों के धातु आयन छोटे खण्डों में एकसाथ समूहित हो जाते हैं, इन्हें डोमेन कहा जाता है। इस प्रकार प्रत्येक डोमेन एक छोटे चुम्बक की भाँति व्यवहार करता है। लौहचुम्बकीय पदार्थ के अचुम्बकीय (UPBoardSolutions.com) टुकड़े में डोमेन अनियमित रूप से अभिविन्यसित होते हैं और उनकी चुम्बकीय आघूर्ण निरस्त हो जाता है। पदार्थ को चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर सभी डोमेन चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में अभिविन्यसित हो जाते हैं (चित्र-12 (a)] और प्रबल चुम्बकीय प्रभाव उत्पन्न होती है। चुम्बकीय क्षेत्र को हटा लेने पर भी डोमेनों का क्रम बना रहता है और लौहचुम्बकीय पदार्थ स्थायी चुम्बक बन जाते हैं। चुम्बकीय पदार्थों की यह प्रवृत्ति लौहचुम्बकत्व कहलाती है।
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2. अनुचुम्बकत्व (Paramagnetism) – वे पदार्थ जो चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा आकर्षित होते हैं, अनुचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। इन पदार्थों की यह प्रवृत्ति अनुचुम्बकत्व कहलाती है। अनुचुम्बकीय पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र की ओर दुर्बल रूप से आकर्षित होते हैं। ये चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में ही चुम्बकित हो जाते हैं तथा चुम्बकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति में अपना चुम्बकत्व खो देते हैं। अनुचुम्बकत्व का कारण एक अथवा (UPBoardSolutions.com) अधिक अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति है, जो कि चुम्बकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित होते हैं। O2, Cu2+, Fe3+, Cr3+ ऐसे पदार्थों के कुछ उदाहरण हैं।

3. फेरीचुम्बकत्व (Ferrimagnetism) – जब पदार्थ में डोमेनों के चुम्बकीय आघूर्णो का संरेखण समान्तर एवं प्रतिसमान्तर दिशाओं में असमान होता है, तब पदार्थ में फेरीचुम्बकत्व देखा जाता है। [चित्र-12 (c)]। ये लोहचुम्बकत्व की तुलना में चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा दुर्बल रूप से आकर्षित होते हैं। Fe3O4 (मैग्नेटाइट) और फेराइट जैसे MgFe2O4, ZnFe2O4, ऐसे पदार्थों के उदाहरण हैं। ये पदार्थ गर्म करने पर फेरीचुम्बकत्व खो देते हैं और अनुचुम्बकीय बन जाते हैं।

4. प्रतिलौहचुम्बकत्व (Antiferromagnetism) – प्रतिलौहचुम्बकत्व प्रदर्शित करने वाले पदार्थ जैसे MnO में डोमेन संरचना लोहचुम्बकीय पदार्थ के समान होती है, परन्तु उनके डोमेन एक-दूसरे के विपरीत अभिविन्यसित होते हैं तथा एक-दूसरे के चुम्बकीय आघूर्ण को निरस्त कर (UPBoardSolutions.com) देते हैं [चित्र-12 (b)]। जब चुम्बकीय आघूर्ण इस प्रकार अभिविन्यासित होते हैं कि नेट चुम्बकीय आघूर्ण शून्य हो जाता है, तब चुम्बकत्व प्रतिलौहचुम्बकत्व कहलाता है।

5. 12 – 16 और 13 -15 वर्गों के यौगिक (Compounds of group 12-16 and 13-15) – वर्ग 12 के तत्वों और वर्ग 16 के तत्वों से बने यौगिक 12 – 16 वर्गों के यौगिक कहलाते हैं; जैसे- ZnS, HgTe आदि।
वर्ग 13 के तत्वों और वर्ग 15 के तत्वों से बने यौगिक 13 – 15 वर्गों के यौगिक कहलाते हैं; जैसे- GaAs, AlP आदि।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

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बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
एक विशेष ठोस अति कठोर है तथा इसका गलनांक अति उच्च है। ठोस अवस्था में यह अचालक है तथा प्रगलन पर यह विद्युत चालक हो जाता है। ठोस है।
(i) धात्विक
(ii) आण्विक
(iii) नेटवर्क
(iv) आयनिक
उत्तर
(iv) आयनिक

प्रश्न 2.
किस प्रकार के ठोस विद्युत चालक, आघातवर्धनीय और तन्य होते हैं?
(i) आणिवक
(ii) आयनिक
(iii) धात्विक
(iv) सहसंयोजक
उत्तर
(iii) धात्विक

प्रश्न 3.
ठोस Aएक अति कठोर ठोस तथा गलित अवस्था में विद्युतरोधी है और बहुत उच्च ताप पर पिघलता है। यह किस प्रकार का ठोस है?
(i) आण्विक
(ii) आयनिक
(iii) धात्विक
(iv) सहसंयोजक
उत्तर
(iv) सहसंयोजक

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प्रश्न 4.
ग्रेफाइट है –
(i) आयनिक ठोस
(ii) धात्विक ठोस
(iii) सहसंयोजी ठोस
(iv) आण्विक ठोस
उत्तर
(iii) सहसंयोजी ठोस

प्रश्न 5.
निम्न में से कौन-सा सहसंयोजक क्रिस्टल है?
(i) रॉक साल्ट
(ii) बर्फ
(iii) क्वार्ट्ज
(iv) शुष्क बर्फ
उत्तर
(iii) क्वार्ट्ज

प्रश्न 6.
प्लास्टिक है –
(i) आयनिक ठोस
(ii) धात्विक ठोस
(iii) सहसंयोजी ठोस
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(iv) इनमें से कोई नही

प्रश्न 7.
सोडियम क्लोराइड क्रिस्टल की संरचना है –
(i) फलक केन्द्रित घनीय
(ii) मोनोक्लीनिक
(iii) ऑर्थोरोम्बिक
(iv) चतुष्कोणीय
उत्तर
(i) फलक केन्द्रित घनीय

प्रश्न 8.
फलक केन्द्रित घनीय जालक में एक एकक कोष्ठिका में परमाणुओं की संख्या होगी –
(i) 2
(ii) 3
(iii) 4
(iv) 5
उत्तर
(iii) 4

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प्रश्न 9.
58.5 g NaCl में एकक कोष्ठिकाओं की लगभग संख्या होगी –
(i) 1.5 x 1023
(ii) 6 x 1023
(iii) 3 x 1022
(iv) 0.5 x 1024
उत्तर
(i) 1.5 x 1023

प्रश्न 10.
Zn अपनी गलित अवस्था से ठोस अवस्था में परिवर्तित होता है जिसकी संरचना hcp प्रकार की है। समीपस्थ परमाणुओं की संख्या होगी –
(i) 6
(ii) 8
(iii) 12
(iv) 4
उत्तर
(iii) 12

प्रश्न11.
एक ठोस AB, जिसकी संरचना NaCl प्रकार की है, में A परमाणु घनीय एकक कोष्ठिका के सभी कोनों को घेरते हैं। यदि एक अक्ष के सभी फलक केन्द्रित परमाणु निष्कासित हो जायें तो ठोस की स्टॉइकियोमीट्री होगी –
(i) AB2
(ii) A2B
(iii) A4B3
(iv) A3B4
उत्तर
(iv) A3B4

प्रश्न12.
एक एकक कोष्ठिका जिसमें परमाणुओं की संख्या 2 है तथा जो ABC ABC….. संकुलन क्रम प्रदर्शित करती है, में चतुष्फलकीय रिक्तियों की संख्या होगी –
(i) Z
(ii) 2Z
(iii) Z/2
(iv) Z/4
उत्तर
(ii) 2Z

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प्रश्न 13.
सोडियम क्लोराइड क्रिस्टल में Na’ आयन की समन्वय संख्या है –
(i) 6
(ii) 8
(iii) 4
(iv) 1
उत्तर
(i) 6

प्रश्न 14.
एक धातु फलक केन्द्रित घनीय जालक में क्रिस्टलित होता है। एकक कोष्ठिका की कोर की लम्बाई 408 pm है। धातु परमाणु का व्यास है
(i) 288 pm
(ii) 408 pm
(iii) 144 pm
(iv) 204 pm
उत्तर
(i) 288 pm

प्रश्न 15.
सरल घन में उपस्थित परमाणुओं द्वारा घेरे गये कुल आयतन का प्रभाव है –
(i) [latex s=2]\frac { \pi }{ 4 } [/latex]
(ii) [latex s=2]\frac { \pi }{ 6 } [/latex]
(iii) [latex s=2]\frac { \pi }{ 3\sqrt { 2 } } [/latex]
(iv) [latex s=2]\frac { \pi }{ 4\sqrt { 2 } } [/latex]
उत्तर
(ii) [latex s=2]\frac { \pi }{ 6 } [/latex]

प्रश्न 16.
एक ठोस यौगिक XY की NaCl संरचना है। यदि धनायन की त्रिज्या 100 pm है तो ऋणायन (Y) की त्रिज्या होगी –
(i) 275.1 pm
(ii) 322.5 pm
(iii) 241.5 pm
(iv) 165.7 pm
उत्तर
(iii) 241.5 pm

प्रश्न17.
फ्रेंकेल दोष के कारण आयनिक क्रिस्टल का घनत्व –
(i) घटता है।
(ii) बढ़ता है।
(iii) परिवर्तित होता है।
(iv) अपरिवर्तित रहता है।
उत्तर
(iv) अपरिवर्तित रहता है।

प्रश्न 18.
फ्रेंकेल तथा शॉटकी दोष होते हैं –
(i) नाभिकीय दोष
(ii) क्रिस्टल दोष
(iii) परमाणु दोष
(iv) अणु दोष
उत्तर
(ii) क्रिस्टल दोष

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प्रश्न 19.
शॉटकी दोष किसके जालक की अपूर्णताएँ परिभाषित करता है?
(i) गैस की
(ii) प्लाज्मा की
(iii) द्रव की
(iv) ठोस की
उत्तर
(iv) ठोस की

प्रश्न 20.
Fe3O4 का क्रिस्टल है –
(i) प्रतिचुम्बकीय
(ii) लौहचुम्बकीय
(iii) अनुचुम्बकीय
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(ii) लौहचुम्बकीय

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
क्रिस्टलीय ठोस क्या हैं?
उत्तर
वे ठोस जिनमें घटक कणों की दीर्घ परास व्यवस्था होती है, क्रिस्टलीय ठोस कहलाते हैं।  उदाहरणार्थ– चाँदी, ताँबा, सोडियम क्लोराइड आदि।

प्रश्न 2.
अक्रिस्टलीय ठोस को परिभाषित कीजिए।
उत्तर
एक ठोस अक्रिस्टलीय कहलाता है, जब इसके अवयवी कणों की लघु परास व्यवस्था होती है।

प्रश्न 3.
आण्विक ठोस से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
जिन ठोसों के क्रिस्टल जालक सरल विविक्त अणुओं से बने होते हैं, वे आण्विक ठोस कहलाते हैं। उदाहरणार्थ– आयोडीन, सल्फर, सफेद फास्फोरस आदि।

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प्रश्न 4.
आयनिक ठोस की परिभाषा दीजिए।
उत्तर
जिन ठोसों के क्रिस्टल जालक धनायनों और ऋणायनों से बने होते हैं, वे आयनिक ठोस कहलाते हैं। उदाहरणार्थ– सोडियम क्लोराइड, धातु ऑक्साइड, धातु सल्फाइड आदि।

प्रश्न 5.
धात्विक ठोस को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
जो ठोस धातुओं के गुण प्रकट करते हैं, धात्विक ठोस कहलाते हैं। उदाहरणार्थ– सोना, चाँदी, ताँबा आदि।

प्रश्न 6.
सह-संयोजक ठोस से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
जिन ठोसों के क्रिस्टल जालक परमाणुओं से बने होते हैं, वे सह-संयोजक ठोस कहलाते हैं। उदाहरणार्थ -हीरा, ग्रेफाइट, सिलिका आदि।

प्रश्न 7.
सोडियम क्लोराइड का टुकड़ा सोडियम धातु से कठोर होता है। क्यों?
उत्तर
NaCl (सोडियम क्लोराइड) में Na+ तथा Cl के मध्य आयनिक बन्ध होता है जिसके कारण ये अपेक्षाकृत कठोर होते हैं। सोडियम धातु में धात्विक बन्ध होता है जो आयनिक बन्ध की तुलना में कमजोर होता है, इसलिए सोडियम धातु NaCl की तुलना में नर्म होता है।

प्रश्न 8.
रॉक साल्ट प्रकार की संरचना में प्रत्येक आयन की उपसहसंयोजन संख्या क्या होती है?
उत्तर
रॉक साल्ट प्रकार की संरचना में प्रत्येक आयन की उपसहसंयोजन संख्या 6 होती है।

प्रश्न 9.
आयनिक क्रिस्टलों में 12 उप-सहसंयोजन संख्या क्यों नहीं पायी जाती है?
उत्तर
घनीय रिक्तिको के निर्माण के लिए त्रिज्या अनुपात परास 0.732 से 1.0 होता है। अतः उप-सहसंयोजन संख्या 8 से अधिक नहीं हो सकती है।

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प्रश्न 10.
क्या किसी दिये गये तत्त्व के षट्कोणीय निविड संकुलन तथा घनीय निविड संकुलन संरचना के घनत्व समान हो सकते हैं? समझाइए।
उत्तर
दोनों प्रकार की संरचना में घेरा गया कुल आयतन समान (74%) होता है एवं दोनों संरचनाओं में उप-सहसंयोजन संख्या 12 होती है। अतः दोनों संरचनाओं में घनत्व समान होंगे।

प्रश्न 11.
एक क्रिस्टलीय ठोस में ऑक्साइड आयन घनीय निविड संकुलन संरचना में व्यवस्थित है। धनायन A समान रूप से अष्टफलकीय तथा चतुष्फलकीय रिक्तियों में वितरित है। यदि सभी अष्टफलकीय रिक्तियाँ भरी हों तब ठोस का सूत्र क्या है?
उत्तर
ऑक्साइड आयनों की घनीय निविड संकुलन संरचना में प्रति एकक कोष्ठिका 4 ऑक्साइड आयन होने चाहिए। प्रत्येक ऑक्साइड आयन 2 चतुष्फलकीय रिक्तियों तथा एक अष्टफलकीय रिक्तियों से सम्बन्धित होता है। अत: 4 अष्टफलकीय तथा 8 चतुष्फलकीय रिक्तियाँ होनी चाहिए। (UPBoardSolutions.com) चूंकि सभी अष्टफलकीय रिक्तियाँ A द्वारा घेरी जाती हैं। अत: अष्टफलेकीय रिक्तियों में 4 धनायन A होंगे तथा समान संख्या में धनायन A चतुष्फलकीय रिक्तियों में होंगे। अत: 4 ऑक्साइड आयन तथा 8 धनायन A होंगे। अतः ठोस का सूत्र A 80,या A20 होगा।

प्रश्न 12.
घनीय निविड संकुलन संरचना युक्त 1 मोल यौगिक में अष्टफलकीय रिक्तियाँ कितनी होंगी?
उत्तर
अष्टफलकीय रिक्तियों की संख्या = संकुलन में परमाणुओं की संख्या
= 1 मोल = 6.023 × 1023

प्रश्न 13.
संकुलन दक्षता (क्षमता) को परिभाषित कीजिए।
उत्तर
क्रिस्टल में उपलब्ध कुल स्थान का परमाणुओं द्वारा घेरा हुआ अंश संकुलन दक्षता कहलाता है। यह प्रायः प्रतिशत में व्यक्त की जाती है।
यदि किसी क्रिस्टल संरचना की एकक कोष्ठिका में उपस्थित परमाणुओं द्वारा कोष्ठिका का घेरा हुआ, आयतन Voccu और एकक कोष्ठिका का कुल आयतन Vcell है, तो
संकुलन क्षमता = [latex s=2]\frac { { V }_{ occu } }{ { V }_{ cell } } [/latex] x 100

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प्रश्न 14.
किसी तत्त्व x की परमाणु त्रिज्या 3.6Å है। इसकी एकक कोष्ठिका में सन्निकट पड़ोसी कण की दूरी क्या होगी?
हल
d = 2r = 2 x 3.6 Å = 7.2 Å.

प्रश्न 15.
फ्रेंकेल दोष AgCl क्रिस्टलों के घनत्व को परिवर्तित क्यों नहीं करता है?
उत्तर
चूँकि फ्रेंकेल दोषयुक्त क्रिस्टल में आयनों की संख्या समान रहती है इसलिए यह दोष क्रिस्टलों के घनत्व में कोई परिवर्तन नहीं करता है।

प्रश्न 16.
क्रिस्टलों में कौन-सा बिन्दु दोष सम्बन्धित ठोस के घनत्व को परिवर्तित नहीं करता है?
उत्तर
फ्रेंकेल दोष।

प्रश्न 17.
फ्रेंकेल दोष उपस्थित होने पर भी क्रिस्टल के घनत्व में कोई परिवर्तन नहीं होता है, क्यों?
उत्तर
फ्रेंकेल दोष में धनायन अपने जालक बिन्दुओं से हटकर अन्तराकाशी स्थानों में आ जाते हैं, इसलिए क्रिस्टल के घनत्व में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

प्रश्न 18.
शॉटकी तथा फ्रेंकेल दोषों का क्रिस्टल की उदासीनता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर
शॉटकी तथा फ्रेंकेल दोष उपस्थित होने पर क्रिस्टल उदासीन (neutral) बने रहते हैं।

प्रश्न 19.
CaCl2, AgCI क्रिस्टल में मिलाने पर शॉटकी दोष उत्पन्न करता है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर
विद्युत उदासीनता बनाए रखने के लिए 2Ag2+ आयन 1 Ca2+ द्वारा प्रतिस्थापित होंगे। अत: प्रत्येक Ca2+ आयन के प्रवेश पर जालक स्थल में एक छिद्र उत्पन्न होता है।

प्रश्न20.
F- केन्द्र क्या है?
उत्तर
वह स्थान जहाँ ऋणायन रिक्तिका में इलेक्ट्रॉन उपस्थित होता है, F- केन्द्र कहलाता है।

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प्रश्न 21.
रिक्तिका को परिभाषित कीजिए।
उत्तर
धातु परमाणुओं अथवा आयनों को जब क्रिस्टल में संकुलित किया जाता है, तब इनके मध्य उपस्थित स्थान रिक्तिका कहलाता है।

प्रश्न 22.
एक लवण का नाम लिखिए जिसे AgCl में मिलाकर धनायन रिक्तियाँ उत्पन्न की जा सकती हैं।
उत्तर
CdCl2 अथवा SrCl2

प्रश्न 23.
क्षारीय धातु हैलाइडों के रंग के लिए उत्तरदायी नॉन-स्टॉइकियोमिट्री बिन्दु दोष का नाम लिखिए।
उत्तर
धातु आधिक्य अथवा ऋणायनिक रिक्तिकाएँ अथवा F- केन्द्र।

प्रश्न 24.
आप किस प्रकार NaCl संरचना को CsCl प्रकार की संरचना में एवं CsCl को NaCl प्रकार की संरचना में परिवर्तित करेंगे?
उत्तर
CsCl प्रकार की संरचना को NaCl प्रकार की संरचना में गर्म करके तथा NaCI पर उच्च दाब आरोपित करके CSCl प्रकार की संरचना प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 25.
साधारण नमक शुद्ध सफेद के स्थान पर कभी-कभी पीला दिखाई देता है? क्यों?
उत्तर
ऐसा जालक स्थलों में ऋणायनों के स्थान पर इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण होता है। ये स्थल F- केन्द्रों की तरह कार्य करते हैं।

प्रश्न 26.
जिंक ऑक्साइड सफेद होता है लेकिन गर्म करने पर यह पीला पड़ जाता है। समझाइए।
उत्तर
जब जिंक ऑक्साइड को गर्म किया जाता है तब यह निम्न समीकरण के अनुसार ऑक्सीजन खोता है।
ZnO → Zn2+ + 1/2 O2 + 2e
Zn2+ अन्तराकाशी रिक्तिकाओं में व्यवस्थित हो जाते हैं तथा इलेक्ट्रॉन विद्युत उदासीनता बनाए रखने के लिए पड़ोसी अन्तराकाशी रिक्तियों में व्यवस्थित हो जाते हैं। इससे धातु आधिक्य दोष उत्पन्न होता है। अन्तराकाशी रिक्तियों में इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण यह पीला होता है क्योंकि इलेक्ट्रॉनों द्वारा श्वेत प्रकाश के अन्य रंगों को अवशोषित कर लिया जाता है।

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प्रश्न 27.
अर्द्धचालकों की विद्युत चालकता पर ताप का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर
ताप वृद्धि से अर्द्धचालकों की विद्युत चालकता बढ़ जाती है।

प्रश्न 28.
गर्म करने पर चुम्बकीय पदार्थ अनुचुम्बकीय हो जाते हैं, क्यों?
उत्तर
गर्म करने पर इलेक्ट्रॉन चक्रण अनियमित रूप से अभिविन्यसित (aligned) हो जाने के कारण लौहचुम्बकीय पदार्थ अनुचुम्बकीय हो जाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
58.5 ग्राम NaCl में इकाई सेलों की संख्या ज्ञात कीजिए।
हल
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प्रश्न 2.
एक आयनिक ठोस के फलक केन्द्रित घनीय सेल के कोर की लम्बाई 508 pm है। यदि धनायन की त्रिज्या 110 pm हो, तो ऋणायन की त्रिज्या की गणना कीजिए।
हल
दिया गया है, कोर की लम्बाई = 508 pm,
धनायन की त्रिज्या (r+)= 110 pm, ऋणायन की त्रिज्या (r)= ?
सूत्र कोर की लम्बाई = 2(r+ + r) से,
508 /2 = r+ + r
r+ + r = 254
110 + r = 254
r = 254 – 110
r = 144 pm

प्रश्न 3.
चाँदी घनीय संवृत संकुलन (ccp) जालक बनाती है। इसके क्रिस्टल की x – किरण जाँच से ज्ञात हुआ कि इसके एकक सेल के कोर की लम्बाई 408.6 pm है। चाँदी के घनत्व की गणना कीजिए। (चाँदी का परमाणु द्रव्यमान = 107.9)
हल
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प्रश्न 4.
बैण्ड सिद्धान्त के आधार पर चालक और अर्द्धचालक पदार्थों के विद्युत गुणों को समझाइए।
उत्तर
बैन्ड सिद्धान्त के अनुसार, प्रत्येक तत्व में दो प्रकार के बैन्ड उपस्थित होते हैं, संयोजक बैन्ड तथा आगामी उच्च रिक्त बैन्ड (चालकता बैन्ड)। इन दोनों बैन्डों के मध्य की दूरी को ऊर्जा अन्तराल कहते हैं। चालकों (धातुओं) में संयोजकता बैन्ड आंशिक रूप से भरा होता है, या रिक्त (UPBoardSolutions.com) चालकता बैन्ड के साथ अतिव्यापन करता है जिससे विद्युत क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन आसानी से प्रवाहित हो सकते हैं और धातुएँ चालकता दर्शाती हैं।

अर्द्धचालकों में ऊर्जा अन्तराल कम होता है। इस कारण कुछ इलेक्ट्रॉन संयोजक बैन्ड से चालकता बैन्ड में चले जाते हैं। इस प्रकार अर्द्धचालक अल्पचालकता दर्शाते हैं। ताप बढ़ने पर अर्द्धचालकों की विद्युत चालकता बढ़ जाती है।
विद्युतरोधियों में ऊर्जा अन्तराल इतना अधिक होता है, कि इलेक्ट्रॉन इसे नहीं लाँघ सकते। अतः चालकता नहीं दर्शाते हैं।
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दीर्थ शरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ठोसों को किस प्रकार वर्गीकृत किया जाता है? प्रत्येक प्रकार के अवयवी कण के बारे में समझाइए तथा उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर
ठोसों का वर्गीकरण (Classification of Solids) – ठोसों को दो वृहत् प्रकारों- क्रिस्टलीय तथा अक्रिस्टलीय में वर्गीकृत किया जा सकता है। क्रिस्टलीय ठोसों में अवयवी कणों (परमाणु, आयन अथवा अणु) का क्रम सुव्यवस्थित होता है। क्रिस्टलीय ठोस साधारणत: लघु क्रिस्टलों की (UPBoardSolutions.com) अत्यधिक संख्या से बना होता है, उनमें प्रत्येक का निश्चित अभिलक्षणिक जयामितीय आकार होता है। इसमें दीर्घ परासी व्यवस्था होती है अर्थात् कणों की व्यवस्था का पैटर्न नियमित होता है जिसकी सम्पूर्ण क्रिस्टल में एक से अन्तराल पर पुनरावृत्ति होती है। सोडियम क्लोराइड और क्वार्ट्ज क्रिस्टलीय ठोसों के विशिष्ट उदाहरण हैं।

अक्रिस्टलीय ठोस (ग्रीक अमोरफोस= आकृति नहीं होना) असमाकृति के कणों से बने होते हैं। इन ठोसों में अवयवी कणों (परमाणुओं, अणुओं अथवा आयनों) की व्यवस्था केवल लघु परासी व्यवस्था होती है। ऐसी व्यवस्था में नियमित और आवर्ती पुनरावृत्त पैटर्न केवल अल्प दूरियों तक देखा जाता है। ऐसे भाग बिखरे होते । हैं और इनके बीच व्यवस्था-क्रम अनियमित होते हैं। क्वार्ट्ज (क्रिस्टलीय) और क्वार्ट्ज काँच (अक्रिस्टलीय) की संरचनाएँ क्रमश: चित्र-14 (a) और (b) में दर्शाई गई हैं।

यद्यपि दोनों संरचनाएँ लगभग समरूप हैं, फिर भी अक्रिस्टलीय क्वार्ट्ज काँचे में दीर्घ परासी व्यवस्था नहीं है। अक्रिस्टलीय ठोसों की संरचना द्रवों के सदृश होती है। अवयवी कणों की व्यवस्था में अन्तर के कारण दोनों प्रकार के ठोसों के गुण भिन्न होते हैं।

अधिकतर ठोस पदार्थ (तत्त्व तथा यौगिक) क्रिस्टलीय प्रकृति के होते हैं। उदाहरण के लिए – सभी धात्विक तत्व; जैसे- लोहा, ताँबा और चाँदी; अधात्विक तत्व; जैसे-सल्फर, फॉस्फोरस और आयोडीन एवं यौगिक; जैसे सोडियम क्लोराइड, जिंक सल्फाइड और नैफ्थेलोन क्रिस्टलीय ठोस हैं। (UPBoardSolutions.com) काँच, रबर और प्लास्टिक अक्रिस्टलीय ठोसों के विशिष्ट उदाहरण हैं। कुछ पदार्थ विभिन्न स्थितियों में भिन्न- भिन्न संरचनात्मक व्यवस्थाएँ प्राप्त करते हैं। ये व्यवस्थाएँ बहुरूप (polymorph) कहलाती हैं।
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उदाहरणार्थ– डायमण्ड तथा ग्रेफाइट कार्बन के दो भिन्न बहुरूप हैं। इन भिन्न संरचनाओं के गुण; जैसे-गलनांक, घनत्व आदि भिन्न-भिन्न होते हैं। उदाहरणार्थ- ग्रेफाइट कोमल तथा विद्युत का अच्छा चालक होता है, जबकि डायमण्ड कठोर तथा विद्युत का दुर्बल चालक होता है। क्रिस्टलीय ठोसों को उनमें परिचालित अन्तराआण्विक बलों की प्रकृति के आधार पर चार वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है। इनका वर्णन निम्नलिखित है –

(1) आण्विक ठोस (Molecular Solids)
आण्विक ठोसों के अवयवी कण अणु होते हैं। इन्हें निम्नलिखित उपवर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है –
(i) अधुवी आण्विक ठोस (Non-polar molecular solids) – इनके अन्तर्गत वे ठोस आते हैं जो या तो परमाणुओं उदाहरणार्थ– निम्न ताप पर ऑर्गन और हीलियम अथवा अध्रुवी सहसंयोजक बन्धों से बने अणुओं; उदाहरणार्थ– निम्न ताप पर H2, Cl2, और I2 द्वारा बने होते हैं। इन (UPBoardSolutions.com) ठोसों में परमाणु अथवा अणु दुर्बल परिक्षेपण बलों अथवा लण्डन बलों द्वारा बँधे रहते हैं। ये ठोस मुलायम और विद्युत के अचालक होते हैं। इनके गलनांक निम्न कोटि के होते हैं और ये सामान्यत: कमरे के ताप और दाब पर द्रव अथवा गैसीय अवस्था में होते हैं।

(ii) ध्रुवीय-आण्विक ठोस (Polar molecular solids) – HCl, SO2 आदि पदार्थों के अणु ध्रुवीय सहसंयोजक बन्धों से बने होते हैं। ऐसे ठोसों में अणु अपेक्षाकृत प्रबल द्विध्रुव-द्विध्रुव अन्योन्यक्रियाओं (dipole-diple interactions) से एक-दूसरे के साथ बँधे रहते हैं। ये ठोस मुलायम और विद्युत के अचालक होते हैं। इनके गलनांक अध्रुवी आण्विक ठोसों से अधिक होते हैं, फिर भी इनमें से अधिकतर कमरे के ताप और दाब पर गैस अथवा द्रव हैं। ठोस SO2 और ठोस NH3 ऐसे ठोसों के उदाहरण हैं।

(iii) हाइड्रोजन आबन्धित आण्विक ठोस (Hydrogen bonded molecular solids) – ऐसे ठोसों के अणुओं में H और F, O अथवा N परमाणुओं के मध्य ध्रुवीय-सहसंयोजक बन्ध होते हैं। प्रबल हाइड्रोजन आबन्धन ऐसे ठोसों के अणुओं; जैसे-H2O (बर्फ) बंधित करते हैं। ये विद्युत के अचालक हैं। सामान्यतः ये कमरे के ताप और दाब पर वाष्पशील द्रव अथवा मुलायम ठोस होते हैं।

(2) आयनिक ठोस (Ionic Solids)
आयनिक ठोसों के अवयवी कण आयन होते हैं। ऐसे ठोसों का निर्माण धनायनों और ऋणायनों के त्रिविमीय विन्यासों में प्रबल कूलॉमी (स्थिर विद्युत) बलों से बँधने पर होता है। ये ठोस कठोर और भंगुर प्रकृति के होते हैं। इनके गलनांक और क्वथनांक उच्च होते हैं। चूंकि इनमें आयन गमन (UPBoardSolutions.com) के लिए स्वतन्त्र नहीं होते; अतः ये ठोस अवस्था में विद्युतरोधी होते हैं। यद्यपि गलित अवस्था में अथवा जल में घोलने पर आयन गमन के लिए मुक्त हो जाते हैं और वे विद्युत का संचालन करते हैं।

(3) धात्विक ठोस (Metallic Solids)
धातुएँ मुक्त इलेक्ट्रॉनों के समुद्र से घिरे और उनसे जुड़े धनायनों के सुव्यवस्थित संग्रह हैं। ये इलेक्ट्रॉन गतिशील होते हैं और क्रिस्टल में सर्वत्र समरूप से विस्तारित होते हैं। प्रत्येक धात्विक परमाणु इन गतिशील इलेक्ट्रॉनों के समुद्र में एक अथवा अधिक इलेक्ट्रॉनों का योगदान देता है। ये मुक्त और गतिशील इलेक्ट्रॉन, धातुओं की उच्च विद्युत और ऊष्मीय चालकता के लिए उत्तरदायी होते हैं। (UPBoardSolutions.com) विद्युत क्षेत्र प्रयुक्त करने पर ये इलेक्ट्रॉन धनायनों के नेटवर्क में सतत प्रवाह करते हैं। इसी प्रकार जब धातु के एक भाग में ऊष्मा संचरित की जाती है तो ऊष्मीय ऊर्जा मुक्त इलेक्ट्रॉनों द्वारा सर्वत्र एकसमान रूप से विस्तारित हो जाती है। धातुओं की दूसरी महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ कुछ स्थितियों में उनकी चमक और रंग हैं। ये भी उनमें उपस्थित मुक्त इलेक्ट्रॉनों के कारण होती हैं। धातुएँ अत्यधिक आघातवर्धनीय और तन्य होती हैं।

(4) सहसंयोजक अथवा नेटवर्क ठोस (Covalent or Network Solids)
अधात्विक क्रिस्टलीय ठोसों की विस्तृत बहुरूपता (polymorphism) सम्पूर्ण क्रिस्टल में निकटवर्ती परमाणुओं के मध्य सहसंयोजक बन्धों के बनने के कारण होती है। इन्हें विशाल अणु (giant molecule) भी कहा जाता है। सहसंयोजक बन्ध प्रबल और दिशात्मक प्रकृति के होते हैं; इसीलिए परमाणु अपनी स्थितियों पर अति प्रबलता से बँधे रहते हैं। ऐसे ठोस अत्यधिक कठोर और भंगुर होते हैं। इनका गलनांक अत्यन्त उच्च होता है और गलन से पूर्व ये विघटित भी हो सकते हैं। ये विद्युत का संचालन नहीं करते; अतः ये विद्युतरोधी होते हैं। हीरा और सिलिकन कार्बाइड ऐसे ठोसों के विशिष्ट उदाहरण हैं।

ग्रेफाइट मुलायम और विद्युत चालक है। इसके अपवादात्मक गुण इसकी विशिष्ट संरचना के कारण होते हैं। इसमें कार्बन परमाणु विभिन्न परतों में व्यवस्थित होते हैं और प्रत्येक परमाणु उसी परत के तीन निकटवर्ती परमाणुओं से सहसंयोजक बन्धन में होता है। प्रत्येक परमाणु का चौथा (UPBoardSolutions.com) संयोजकता इलेक्ट्रॉन अलग परतों के मध्य उपस्थित होता है और यह गमन के लिए मुक्त होता है। यही मुक्त इलेक्ट्रॉन ग्रेफाइट को विद्युत का उत्तम चालक बनाते हैं। विभिन्न परतें एक-दूसरे पर फिसल सकती हैं। ये ग्रेफाइट को मुलायम ठोस और उत्तम ठोस-चिकनाई (Solid lubricant) बनाते हैं।

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प्रश्न 2.
क्रिस्टल तन्त्र के प्रकारों की विस्तृत विवेचना कीजिए। उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर
क्रिस्टल तन्त्र के प्रकार (Types of Crystal System) – सामान्यतया दो प्रकार की एकक कोष्ठिकाएँ मिलकर विभिन्न क्रिस्टल तन्त्र बनाती हैं। ये एकक कोष्ठिकाएँ निम्नलिखित हैं –
(1) आद्य एकक कोष्ठिकाएँ (Primitive unit cells) – जब अवयवी कण एकक कोष्ठिका के केवल कोनों पर उपस्थित हों तो उसे आद्य एकक कोष्ठिका कहा जाता है।

(2) केन्द्रित एकक कोष्ठिकाएँ (Centred unit cells) – जब एकक कोष्ठिका में एक अथवा अधिक अवयवी कण कोनों के अतिरिक्त अन्य स्थितियों पर भी उपस्थित होते हैं तो उसे केन्द्रित एकक कोष्ठिका कहते हैं। केन्द्रित एकक कोष्ठिकाएँ निम्नलिखित तीन प्रकार की होती हैं –

  1. अन्त:केन्द्रित एकक कोष्ठिका (Body-centred unit cells) – ऐसी एकक कोष्ठिका में एक अवयवी कण (परमाणु, अणु अथवा आयन) कोनों में उपस्थित कणों के अतिरिक्त उसके अन्त:केन्द्र में होता है।
  2. फलक-केन्द्रित एकक कोष्ठिका (Face-centred unit cells) – ऐसी एकक कोष्ठिका में कोनों पर उपस्थित अवयवी कणों के अतिरिक्त एक अवयवी कण प्रत्येक फलके के केन्द्र पर भी होता है।
  3. अंत्य-केन्द्रित एकक कोष्ठिका (End-centred unit cells) – ऐसी एकक कोष्ठिका में कोनों पर उपस्थित अवयवी कणों के अतिरिक्त एक अवयवी कण किन्हीं दो विपरीत फलकों के केन्द्र में पाया जाता है।

सात क्रिस्टल तन्त्र (Seven Crystal System) – जब क्रिस्टल जालक में एकक कोष्ठिका के जालक स्थल केवल कोनों पर स्थित होते हैं, तब यह सरल अथवा आद्य एकक कोष्ठिका कहलाती है। क्रिस्टलों के सभी प्रकारों में सात प्रकार की सरल अथवा आद्य एकक कोष्ठिकाएँ होती हैं। (UPBoardSolutions.com) ये एकक कोष्ठिकाएँ लम्बाई a, b तथा c और कोण α, β तथा γ द्वारा अभिलक्षणित होती हैं। यह सात क्रिस्टल तन्त्र कहलाता है (चित्र-15)। सभी क्रिस्टलों को इनमें से किसी एक के द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। ये सात प्रकार अग्रलिखित हैं –

(1) घनीय (Cubic) – इसमें तीनों अक्ष समान लम्बाई की एवं परस्पर समकोण पर होती हैं (a = b = c, सभी कोण = 90°)। इस प्रकार की एकक कोष्ठिका से बने क्रिस्टल घनीय क्रिस्टल कहलाते हैं। उदाहरणार्थ- NaCl, KCl, CaF2, ZnS, हीरा, CsSl आदि।

(2) चतुष्कोणीय या द्विसमलम्बाक्ष (Tetragonal or Dirhombic) – तीनों अक्ष परस्पर समकोण पर होती हैं, परन्तु केवल दो अक्ष समान लम्बाई की होती हैं (a = b ≠ c, सभी कोण = 90°)। इन क्रिस्टलों के उदाहरण SnO2, TiO2, Sn, यूरिया आदि हैं।

(3) विषमलम्बाक्ष (Orthorhombic) – इसमें तीन असमान अक्ष होती हैं जो परस्पर समकोण पर होती हैं (a ≠ b ≠ c, सभी कोण = 90°)। BaSO4, KNO3 आदि इस प्रकार के क्रिस्टलों के उदाहरण हैं।

(4) एकनताक्ष (Monoclinic) – इसमें असमान लम्बाई की तीन अक्ष होती हैं तथा दो कोण 90° के होते हैं (a ≠ b ≠ c, दो कोण = 90° तथा एक कोण ≠ 90°)। कैल्सियम सल्फेट (CaSO4.2H2O), पोटैशियम मैग्नीशियम सल्फेट [K2Mg(SO4)2.6H2O] आदि एकनताक्ष क्रिस्टलों के कुछ उदाहरण हैं।
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(5) त्रिसमनताक्ष अथवा त्रिकोणी (Rhombohedral or Trigonal) – इस प्रकार के क्रिस्टलों में तीनों अक्षों की भुजाएँ समान होती हैं। तीनों अन्तराअक्षीय (interfacial) कोण भी समान होते हैं; परन्तु कोणों का मान 90° नहीं होता है। उदाहरणार्थ- कैल्सियम कार्बोनेट (CaCO3), सोडियम नाइट्रेट (NaNO3), क्वार्ट्ज (SiO2), कैल्साइट आदि।

(6) त्रिनताक्ष (Triclinic) – इस प्रकार के क्रिस्टलों की संरचना में तीनों अक्षों की तीनों भुजाएँ। असमान होती हैं। तीनों कोण भी असमान होते हैं। कोई भी कोण 90° (UPBoardSolutions.com) का नहीं होता है (a ≠ b ≠ c, α ≠ β ≠ γ ≠ 90°)। उदाहरण- कॉपर सल्फेट (CuSO4), पोटैशियम डाइक्रोमेट (K2Cr2O7), बोरिक अम्ल (H3BO3) आदि।

(7) षट्कोणीय (Hexagonal) – दो अक्षों की भुजाएँ (a तथा b) समान और तीसरे अक्ष की भुजा (c) इन दोनों से भिन्न होती है। दो अक्षीय कोण समान एवं 90° के तथा तीसरा कोण 120° का होता है। (d = b # c, दो कोण = 90° तथा एक कोण = 120°)। उदाहरण– कैल्सियम (Ca), जिंक (Zn), मैग्नीशियम (Mg), मर्करी सल्फाइड (HgS), बर्फ, ग्रेफाइट आदि।

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प्रश्न 3.
निविड संकुलित संरचनाओं से आप क्या समझते हैं? एकविमा, द्विविमा तथा त्रिविमा में निविड संकुलन को समझाइए।
उत्तर
निविड संकुलित संरचनाएँ
(Close-packed Structures)
ठोसों में अवयवी कण निविड संकुलित होते हैं तथा उनके मध्य न्यूनतम रिक्त स्थान होता है। ये संरचनाएँ निविड संकुलित संरचनाएँ कहलाती हैं (यदि हम अवयवी कणों को समरूप कठोर गोले मानें जो एक-दूसरे के सम्पर्क में हैं)।
एकविमा में निविड संकुलन (Close Packing in One Dimension) जब कणों को प्रदर्शित करने वाले गोले एक पंक्ति में एक-दूसरे को स्पर्श करते हुए व्यवस्थित किए जाते हैं, तब यह एकविमा में निविड का संकुलन कहलाता है।
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द्विविमा में निविड संकुलन (Close Packing in Two Dimension)
द्विविमीय निविड संकुलित संरचना निविड संकुलित गोलों की पंक्तियों को एकसाथ व्यवस्थित करके प्राप्त की जा सकती है। इसे निम्नलिखित दो भिन्न प्रकार से किया जा सकता है –
(1) प्रथम विधि के अन्तर्गत द्वितीय पंक्ति को प्रथम के सम्पर्क में इस प्रकार रखा जा सकता है कि द्वितीय पंक्ति के गोले प्रथम पंक्ति के गोलों के ठीक ऊपर हों तथा दोनों (UPBoardSolutions.com) पंक्तियों के गोले क्षैतिजीय तथा साथ ही ऊध्र्वाधर रूप से संरेखित हों। यदि प्रथम पंक्ति को ‘A’ प्रकार की पंक्ति माना जाए तो द्वितीय पंक्ति प्रथम पंक्ति के ठीक समान होने के कारण, वह भी ‘A’ प्रकार की होगी। इसी प्रकार से अधिक पंक्तियों को रखकर AAA…. प्रकार की व्यवस्था प्राप्त की जा सकती है।

इसे चित्र-17 (a) में दिखाया गया है। स्पष्ट है कि इस व्यवस्था में प्रत्येक गोला चार निकटवर्ती गोलों के सम्पर्क में रहता है। इस प्रकार द्विविमीय उपसहसंयोजन संख्या चार है। साथ ही यदि इन सन्निकट चार गोलों के केन्द्रों को जोड़ा जाए तो एक वर्ग प्राप्त होता है। अतः इस संकुलन को द्विविमा में वर्ग निविड संकुलन (square close packing in two dimension) कहा जाता है।
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(2) द्वितीय विधि के अन्तर्गत द्वितीय पंक्ति को प्रथम के ऊपर एकसमान रूप से इस प्रकार रखा जा सकता है कि उसके गोले प्रथम पंक्ति के अवनमनों में भली-भाँति व्यवस्थित हो जाएँ। यदि प्रथम पंक्ति के गोलों की व्यवस्था को ‘A’ प्रकार कहा जाए तो द्वितीय पंक्ति जो कि भिन्न है, उसे ‘B’ (UPBoardSolutions.com) प्रकार कहा जा सकता है। जब तृतीय पंक्ति को द्वितीय के निकट एकसमान रूप से रखा जाता है तो उसके गोले प्रथम तल के गोलो से संरेखित होते हैं, अत: यह तल भी ‘A’ प्रकार का है। इसी प्रकार से रखे गए चौथी पंक्ति के गोले द्वितीय पंक्ति (‘B’ प्रकार) से संरेखित होते हैं, अत: यह व्यवस्था ABAB…. प्रकार की है।

इस व्यवस्था में मुक्त स्थान कम होता है और इसमें संकुलन, वर्ग निविड संकुलन से अधिक दक्ष है। प्रत्येक गोला छह निकटवर्ती गोलों के सम्पर्क में रहता है और द्विविमीय उपसहसंयोजन संख्या छह है। इन छह गोलों के केन्द्र सम-षट्कोण के कोनों पर हैं [चित्र-17 (b)]। इस प्रकार इस संकुलन को द्विविमा में षट्कोणीय निविड संकुलन कहा जाता है। चित्र-17 (b) में स्पष्ट परिलक्षित होता है कि इस तल में कुछ रिक्तियाँ हैं। जो त्रिकोणीय आकृति की हैं। इन्हें त्रिकोणीय रिक्तियाँ कहते हैं। ये दो प्रकार की होती हैं। एक पंक्ति में त्रिकोण का शीर्ष ऊर्ध्वमुखी और अगली पंक्ति में अधोमुखी होता है।

त्रिविमा में निविड संकुलन (Close Packing in Three Dimension)
सभी वास्तविक संरचनाएँ त्रिविम संरचनाएँ होती हैं। इन्हें द्विविमीय परतों को एक-दूसरे के ऊपर रखकर प्राप्त किया जा सकता है। वर्ग निविड संकुलित तथा षट्कोणीय निविड संकुलित संरचनाओं से त्रिविमीय संरचना निम्नवत् प्राप्त की जा सकती है –

(1) द्विविम वर्ग निविड़ संकुलित परतों से त्रिविम निविड़ संकुलन (Three dimensional close packing from two dimensional square close packed layers) – इसके अन्तर्गत द्वितीय परत को प्रथम परत के ऊपर इस प्रकार रखा जाता है कि ऊपरी परत के गोले प्रथम परत के गोलों के ठीक ऊपर रहें। इस व्यवस्था में दोनों परतों के गोले पूर्णतया क्षैतिज तथा साथ ही ऊर्ध्वाधर रूप से सीध में होते हैं (चित्र-18), इसी प्रकार से हम और परतों को एक-दूसरे के ऊपर रख सकते हैं। यदि प्रथम परत के गोलों की (UPBoardSolutions.com) व्यवस्था को ‘A’ प्रकार कहा जाए तो सभी परतों में समान व्यवस्था होती है। इस प्रकार इस जालक में AAA…. प्रकार का पैटर्न है। इस प्रकार उत्पन्न होने वाला जालक सरल घनीय जालक (simple cubic lattice) और उसकी एकक कोष्ठिका आद्य- घनीय एकक कोष्ठिका (primitive- cubic unit cell) है।
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(2) द्विविम-षट्कोणीय निविड संकुलित परतों से त्रिविम निविड संकुलन (Three dimensional close packing from two dimensional-hexagonal close packed layers) – इसमें परतों को एक-दूसरे पर रखकर त्रिविमीय निविड संकुलित संरचना निम्नलिखित प्रकार से प्राप्त की जा सकती है –
(i) द्वितीय परंत को प्रथम परत के ऊपर रखना (Placing the second layer on the first layer) – एक द्विविम-षट्कोणीय निविड संकुलित परत ‘A’ पर समान परत इस प्रकार रखते हैं कि द्वितीय परत के गोले प्रथम परत के अवनमनों में आ जाएँ। चूंकि दो परतों के गोले भिन्न प्रकार से संरेखित हैं, अतः द्वितीय परत को हम B परत कहते हैं। यह चित्र-19 में देखा जा सकता है कि प्रथम परत की (UPBoardSolutions.com) सभी त्रिकोणीय रिक्तियाँ द्वितीय परत के गोलों से आवृत नहीं हैं। इससे अलग-अलग व्यवस्थाओं की उत्पत्ति होती है। जब भी द्वितीय परत का एक गोला प्रथम परत की रिक्ति के ऊपर होता है, तब एक चतुष्फलकीय रिक्ति बनती है। चित्र-19 में इन्हें ‘T’ से दर्शाया गया है।

अन्य स्थानों पर द्वितीय परत की त्रिकोणीय रिक्तियाँ प्रथम परत की त्रिकोणीय रिक्तियों के ऊपर हैं और इनकी त्रिकोणीय आकृतियाँ अतिव्यापित नहीं होती हैं। उनमें से एक में त्रिकोण का शीर्ष ऊर्ध्वमुखी और दूसरे में अधोमुखी होता है। इन रिक्तियों को चित्र-19 में ‘O’ से दर्शाया गया है। ये रिक्तियाँ छह गोलों से घिरी होती हैं तथा इन्हें अष्टफलकीय रिक्तियाँ कहा जाता है।

(ii) तृतीय परत को द्वितीय परत पर रखना (Placing the third layer on the second layer) – इस स्थिति में दो सम्भावनाएँ होती हैं –
(क) द्वितीय परत की चतुष्फलकीय रिक्तियों को तृतीय परत के गोलों द्वारा आच्छादित किया जा सकता है। इस स्थिति में तृतीय परत के गोले प्रथम परत के गोलों के साथ पूर्णत: संरेखित होते हैं। इस प्रकार गोलों का पैटर्न एकान्तर परतों में पुनरावृत्त होता है। इस पैटर्न को प्राय: ABAB… पैटर्न लिखा जाता है तथा इस संरचना को षट्कोणीय निविड संकुलित (hcp) संरचना कहते हैं। अनेक धातुओं; जैसे- मैग्नीशियम और जिंक में परमाणुओं की व्यवस्था hcp प्रकार की होती है।
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(ख) तृतीय परत को द्वितीय परत पर इस प्रकार रखा जा सकता है कि गोले अष्टफलकीय रिक्तियों को आच्छादित करते हों। इस प्रकार से रखने पर तृतीय परत के गोले प्रथम अथवा द्वितीय किसी भी परत के साथ संरेखित नहीं होते। इस व्यवस्था को ‘C’ प्रकार कहा जाता है। केवल चौथी (UPBoardSolutions.com) परत रखने पर उसके गोले प्रथम परत के गोलों के साथ संरेखित होते हैं। इस प्रकार के पैटर्न को प्राय: ABCABC…. लिखा जाता है। इस संरचना को घनीय निविड संकुलित संरचना (ccp) अथवा फलक-केन्द्रित घनीय (fcc) संरचना कहा जाता है। कुछ धातुएँ जैसे ताँबा तथा चाँदी इस संरचना में क्रिस्टलीकृत होते हैं।

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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments (किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र) are part of UP Board Solutions for Class 12 Physics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments (किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Physics
Chapter Chapter 9
Chapter Name Ray Optics and Optical Instruments (किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र)
Number of Questions Solved 172
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments (किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
2.5 cm साइज़ की कोई छोटी मोमबत्ती 36 cm वक्रता त्रिज्या के किसी अवतल दर्पण से 27 cm दूरी पर रखी है। दर्पण से किसी परदे को कितनी दूरी पर रखा जाए कि उसका सुस्पष्ट प्रतिबिम्ब परदे पर बने। प्रतिबिम्ब की प्रकृति और साइज़ का वर्णन कीजिए। यदि मोमबत्ती को दर्पण की ओर ले जाएँ, तो परदे को किस ओर हटाना पड़ेगा?
हल-
दिया है, u = -27 सेमी, O = 2.5 सेमी
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अत: प्रतिबिम्ब वास्तविक, उल्टा तथा 5 सेमी ऊँचा है। यदि मोमबत्ती को पर्दे की ओर ले जायें, तो पर्दे को दर्पण से दूर ले जाना होगा। यदि मोमबत्ती को 18 सेमी से कम दूरी तक खिसकायें, तो प्रतिबिम्ब आभासी बनेगा तथा पर्दे पर प्राप्त नहीं होगा।

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प्रश्न 2.
4.5 cm साइज़ की कोई सुई 15 cm फोकस दूरी के किसी उत्तल दर्पण से 12 cm दूर रखी है। प्रतिबिम्ब की स्थिति तथा आवर्धन लिखिए। क्या होता है जब सुई को दर्पण से दूर ले जाते हैं? वर्णन कीजिए।
हल-
यहाँ सुई का आकार O = 4.5 सेमी; उत्तल दर्पण की फोकस दूरी f = 15 सेमी। दर्पण से वस्तु (सुई) की दूरी u = -12 सेमी
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अर्थात् प्रतिबिम्ब सीधा (आभासी) तथा 2.5 सेमी लम्बा (ऊँचा) बनेगा।
जब सुई को दर्पण से दूर ले जाते हैं तो इसका प्रतिबिम्ब दर्पण से दूर फोकस की ओर खिसकेगा तथा इसका आकार घटता जायेगा।

प्रश्न 3.
कोई टैंक 12.5 cm ऊँचाई तक जल से भरा है। किसी सूक्ष्मदर्शी द्वारा बीकर की तली पर पड़ी किसी सुई की आभासी गहराई 9.4 cm मापी जाती है। जल का अपवर्तनांक क्या है? बीकर में उसी ऊँचाई तक जल के स्थान पर किसी 1.63 अपवर्तनांक के अन्य द्रव से प्रतिस्थापन करने पर सुई को पुनः फोकसित करने के लिए सूक्ष्मदर्शी को कितना ऊपर/नीचे ले जाना होगा?
हल-
सुई की वास्तविक गहराई h = 12.5 सेमी
आभासी गहराई h’ = 9.4 सेमी
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पहले सूक्ष्मदर्शी 9.4 सेमी पर फोकस था अतः इसका नीचे की ओर विस्थापन = (9.4 – 1.7) सेमी = 1.7 सेमी

प्रश्न 4.
चित्र 9.1 (a) तथा (b) में किसी आपतित किरण का अपवर्तन दर्शाया गया है जो वायु में क्रमशः काँच-वायु तथा जल-वायु अन्तरापृष्ठ के अभिलम्ब से 60° का कोण बनाती है। उस आपतित किरण का अपवर्तन कोण ज्ञात कीजिए, जो जल में जल-काँच अन्तरापृष्ठ के अभिलम्ब से 45° का कोण बनाती है [चित्र 9.1(c)]
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments Q4.1

प्रश्न 5.
जल से भरे 80 cm गहराई के किसी टैंक की तली पर कोई छोटा बल्ब रखा गया है। जल के पृष्ठ का वह क्षेत्र ज्ञात कीजिए जिससे बल्ब का प्रकाश निर्गत हो सकता है। जल का अपवर्तनांक 1.33 है। (बल्ब को बिन्दु प्रकाश स्रोत मानिए)
हल-
टैंक की तली में रखे बल्ब से निकलने वाली प्रकाश किरणें जल के पृष्ठ से तभी निर्गत होंगी, जबकि आपतन कोण जल-वायु अन्तरापृष्ठ के लिए क्रान्तिक कोण C से कम (UPBoardSolutions.com) अथवा उसके बराबर हो। यदि उसे पृष्ठ के क्षेत्रफल की त्रिज्या हो जिससे बल्ब का प्रकाश निकल रहा है, तो यह स्थिति चित्र 9.2 की भाँति होगी जहाँ h बल्ब की जल के तल से गहराई है।
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प्रश्न 6.
कोई प्रिज्म अज्ञात अपवर्तनांक के काँच का बना है। कोई समान्तर प्रकाश-पुंज इस प्रिज्म के किसी फलक पर आपतित होता है। प्रिज्म का न्यूनतम विचलन कोण 40° मापा गया। प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक क्या है? प्रिज्म का अपवर्तन कोण 60° है। यदि प्रिज्म को जल (अपवर्तनांक 1.33) में रख दिया जाए तो प्रकाश के समान्तर पुंज के लिए नए न्यूनतम विचलन कोण का परिकलन कीजिए।
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प्रश्न 7.
अपवर्तनांक 1.55 के काँच से दोनों फलकों की समान वक्रता त्रिज्या के उभयोत्तल लेन्स निर्मित करने हैं। यदि 20 cm फोकस दूरी के लेन्स निर्मित करने हैं तो अपेक्षित वक्रता त्रिज्या क्या होगी?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments Q7

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प्रश्न 8.
कोई प्रकाश-पुंज किसी बिन्दु P पर अभिसरित होता है। कोई लेन्स इस अभिसारी पुंज के पथ में बिन्दु P से 12 cm दूर रखा जाता है। यदि यह
(a) 20 cm फोकस दूरी का उत्तल लेन्स है,
(b) 16 cm फोकस दूरी का अवतल लेन्स है तो प्रकाश-पुंज किस बिन्दु पर अभिसरित होगा?
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प्रश्न 9.
3.0 cm ऊँची कोई बिम्ब 21 cm फोकस दूरी के अवतल लेन्स के सामने 14 cm दूरी पर रखी है। लेन्स द्वारा निर्मित प्रतिबिम्ब का वर्णन कीजिए। क्या होता है जब बिम्ब लेन्स से दूर हटती जाती है?
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अतः प्रतिबिम्ब 1.8 cm लम्बा आभासी तथा सीधा होगा, जो लेन्स के बायीं ओर उससे 8.4 cm की दूरी पर बनेगा। जैसे-जैसे बिम्ब लेन्स से दूर हटती है, (u → ∞) वैसे-वैसे प्रतिबिम्ब फोकस के समीप खिसकता जाता है (v → f)।

प्रश्न 10.
किसी 30 cm फोकस दूरी के उत्तल लेन्स के सम्पर्क में रखे 20 cm फोकस दूरी के अवतल लेन्स के संयोजन से बने संयुक्त लेन्स (निकाय) की फोकस दूरी क्या है? यह तन्त्र अभिसारी लेन्स है अथवा अपसारी? लेन्सों की मोटाई की उपेक्षा कीजिए।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments Q10

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प्रश्न 11.
किसी संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में 2.0 cm फोकस दूरी का अभिदृश्यक लेन्स तथा 6.25 cm फोकस दूरी का नेत्रिका लेन्स एक-दूसरे से 15 cm दूरी पर लगे हैं। किसी बिम्ब को अभिदृश्यक से कितनी दूरी पर रखा जाए कि अन्तिम प्रतिबिम्ब
(a) स्पष्ट दृष्टि की अल्पतम दूरी (25 cm), तथा
(b) अनन्त पर बने? दोनों स्थितियों में सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता ज्ञात कीजिए।
हल-
दिया है, अभिदृश्यक लेन्स की फोकस दूरी fe = 2.0 सेमी
नेत्रिका लेन्स की (UPBoardSolutions.com) फोकस दूरी f0 = 6.25 सेमी।
दोनों लेन्सों के बीच की दूरी L = 15 सेमी
स्पष्ट दृष्टि की अल्पतम दूरी D = 25 सेमी
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments Q11.1
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments

प्रश्न 12.
25 cm के सामान्य निकट बिन्दु को कोई व्यक्ति ऐसे संयुक्त सूक्ष्मदर्शी जिसका अभिदृश्यक 8.0 mm फोकस दूरी तथा नेत्रिका 2.5 cm फोकस दूरी की है, का उपयोग करके अभिदृश्यक से 9.0 mm दूरी पर रखे बिम्ब को सुस्पष्ट फोकसित कर लेता है। दोनों लेन्सों के बीच पृथक्कन दूरी क्या है? सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता क्या है?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments Q12
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प्रश्न 13.
किसी छोटी दूरबीन के अभिदृश्यक की फोकस दूरी 144 cm तथा नेत्रिका की फोकस दूरी 6.0 cm है। दूरबीन की आवर्धन क्षमता कितनी है? अभिदृश्यक तथा नेत्रिका के बीच पृथक्कन दूरी क्या है?
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प्रश्न 14.
(a) किसी वेधशाला की विशाल दूरबीन के अभिदृश्यक की फोकस दूरी 15 m है। यदि 1.0 cm फोकस दूरी की नेत्रिका प्रयुक्त की गयी है तो दूरबीन का कोणीय आवर्धन क्या है?
(b) यदि इस दूरबीन का उपयोग चन्द्रमा का अवलोकन करने में किया जाए तो अभिदृश्यक लेन्स द्वारा निर्मित चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब का व्यास क्या है? चन्द्रमा का व्यास 3.48 x 106 m तथा चन्द्रमा की कक्षा की त्रिज्या 3.8 x 108 m है।
हल-
दिया है, दूरबीन के अभिदृश्यक लेन्स की फोकस दूरी f0 = 15 मीटर
नेत्रिका की फोकस दूरी fe = 1.0 सेमी = 1.0 x 10-2 मीटर
(a) कोणीय आवर्धन
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments Q14
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प्रश्न 15.
दर्पण-सूत्र का उपयोग यह व्युत्पन्न करने के लिए कीजिए कि
(a) किसी अवतल दर्पण के हैं तथा 2f के बीच रखे बिम्ब का वास्तविक प्रतिबिम्ब 2f से दूर बनता है।
(b) उत्तल दर्पण द्वारा सदैव आभासी प्रतिबिम्ब बनता है जो बिम्ब की स्थिति पर निर्भर नहीं करता।
(c) उत्तल दर्पण द्वारा सदैव आकार में छोटा प्रतिबिम्ब, दर्पण के ध्रुव व फोकस के बीच बनता
(d) अवतल दर्पण के ध्रुव तथा फोकस के बीच रखे बिम्ब का आभासी तथा बड़ा प्रतिबिम्ब बनता है।
[नोट: यह अभ्यास आपकी बीजगणितीय विधि द्वारा उन प्रतिबिंबों के गुण व्युत्पन्न करने में सहायता करेगा जिन्हें हम किरण आरेखों द्वारा प्राप्त करते हैं।]
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments Q15
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments Q15.3

प्रश्न 16.
किसी मेज के ऊपरी पृष्ठ पर जड़ी एक छोटी पिन को 50 cm ऊँचाई से देखा जाता है। 15 cm मोटे आयताकार काँच के गुटके को मेज के पृष्ठ के समान्तर पिन व नेत्र के बीच रखकर उसी बिन्दु से देखने पर पिन नेत्र से कितनी दूर दिखाई देगी? काँच की अपवर्तनांक 1.5 है। क्या उत्तर गुटके की अवस्थिति पर निर्भर करता है?
हल-
काँच का अपवर्तनांक
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments Q16
अतः पिन का विस्थापन x = H – h = 15 सेमी -10 सेमी = 5 सेमी
अर्थात् पिन 5 सेमी उठी प्रतीत होगी।
उत्तर गुटके की अक्ष की स्थिति पर निर्भर नहीं करता।

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प्रश्न 17.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
(a) चित्र 9.5 में अपवर्तनांक 1.68 के तन्तु काँच से बनी किसी प्रकाश नलिका (लाइट पाइप) का अनुप्रस्थ परिच्छेद दर्शाया गया है। नलिका का बाह्य आवरण 1.44 अपवर्तनांक के ‘पदार्थ का बना है। नलिका के अक्ष से आपतित किरणों के कोणों का परिसर, जिनके लिए चित्र में दर्शाए अनुसार नलिका के भीतर पूर्ण परावर्तन होते हैं, ज्ञात कीजिए।
(b) यदि पाइप पर बाह्य आवरण न हो तो क्या उत्तर होगा?
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प्रश्न 18.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
(a) आपने सीखा है कि समतल तथा उत्तल दर्पण सदैव आभासी प्रतिबिम्ब बनाते हैं। क्या ये दर्पण किन्हीं परिस्थितियों में वास्तविक प्रतिबिम्ब बना सकते हैं? स्पष्ट कीजिए।
(b) हम सदैव कहते हैं कि आभासी प्रतिबिम्ब को परदे पर केन्द्रित नहीं किया जा सकता। यद्यपि जब हम किसी आभासी प्रतिबिम्ब को देखते हैं तो हम इसे स्वाभाविक रूप में अपनी आँख की स्क्रीन (अर्थात् रेटिना) पर लेते हैं। क्या इसमें कोई विरोधाभास है?
(c) किसी झील के तट पर खड़ा मछुआरा झील के भीतर किसी गोताखोर द्वारा तिरछा देखने पर अपनी वास्तविक लम्बाई की तुलना में कैसा प्रतीत होगा-छोटा अथवा लम्बा?
(d) क्या तिरछा देखने पर किसी जल के टैंक की आभासी गहराई परिवर्तित हो जाती है? यदि हाँ, तो आभासी गहराई घटती है अथवा बढ़ जाती है।
(e) सामान्य काँच की तुलना में हीरे का अपवर्तनांक काफी अधिक होता है? क्या हीरे को तराशने वालों के लिए इस तथ्य का कोई उपयोग होता है?
उत्तर-
(a) यह सही है कि समतल दर्पण तथा उत्तल दर्पण अपने सामने स्थित बिम्ब का आभासी प्रतिबिम्ब बनाते हैं। परन्तु ये दर्पण अपने पीछे स्थित किसी बिन्दु (UPBoardSolutions.com) (आभासी बिम्ब) की ओर अभिसरित किरण पुंज को परावर्तित करके अपने सामने स्थित किसी बिन्दु पर अभिसरित कर सकते हैं अर्थात् आभासी बिम्ब का वास्तविक प्रतिबिम्ब बना सकते हैं (देखें चित्र)।
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(b) जब किसी दर्पण से परावर्तन अथवा लेन्स से अपवर्तन के पश्चात् किरणें अपसरित होती हैं तो प्रतिबिम्ब को आभासी कहा जाता है। इस प्रतिबिम्ब को परदे पर प्राप्त नहीं किया जा सकता। यदि इन अपसारी किरणों के मार्ग में कोई अन्य दर्पण अथवा लेन्स रखकर इन्हें किसी बिन्दु पर (UPBoardSolutions.com) अभिसरित किया जा सकता तो वहाँ वास्तविक प्रतिबिम्ब बनेगा जिसे परदे पर प्राप्त किया जा सकता है। नेत्र लेन्स वास्तव में यही कार्य करता है। यह आभासी प्रतिबिम्ब बनाने वाली अपसारी किरणों को रेटिना पर अभिसरित कर देता है, जहाँ वास्तविक प्रतिबिम्ब बन जाता है। अतः इसमें कोई विरोधाभास नहीं है।

(c) चूंकि इस दशा में अपवर्तन वायु (विरल माध्यम) से पानी (सघन माध्यम) में होता है। अत: झील में डूबे हुए गोताखोर को मछुआरे की लम्बाई अधिक प्रतीत होगी।

(d) हाँ, परिवर्तित हो जाती है। आभासी गहराई घट जाती है।

(e) वायु के सापेक्ष हीरे का अपवर्तनांक 2.42 (काफी अधिक) है तथा क्रान्तिक कोण 24° (बहुत कम) है। हीरा तराशने में दक्ष कारीगर इस तथ्य का उपयोग करते हुए (UPBoardSolutions.com) हीरे को इस प्रकार तराशता है, कि एक बार हीरे में प्रवेश करने वाली प्रकाश किरण हीरे के विभिन्न फलकों पर बार-बार परावर्तित होने के बाद ही किसी फलक से बाहर निकल पाए। इसके लिए हीरे की आन्तरिक सतह पर आपतन कोण 24° से अधिक होना चाहिए। इससे हीरा अत्यधिक चमकीला दिखाई पड़ता है।

प्रश्न 19.
किसी कमरे की एक दीवार पर लगे विद्युत बल्ब का किसी बड़े आकार के उत्तल लेन्स द्वारा3 m दूरी पर स्थित सामने की दीवार पर प्रतिबिम्ब प्राप्त करना है। इसके लिए उत्तल लेन्स की अधिकतम फोकस दूरी क्या होनी चाहिए?
हल-
माना किसी उत्तल लेन्स की फोकस दूरी f है तथा यह बल्ब का प्रतिबिम्ब दूसरी दीवार पर बनाता है।
माना बल्ब की लेन्स से दूरी u (आंकिक मान) तथा दूसरी दीवार की लेन्स से दूरी v है, तब
u + v = 3 ⇒ u = 3 – v
लेन्स के सूत्र में चिह्न सहित मान रखने पर,
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प्रश्न 20.
किसी परदे को बिम्ब से 90 cm दूर रखा गया है। परदे पर किसी उत्तल लेन्स द्वारा उसे एक-दूसरे से 20 cm दूर स्थितियों पर रखकर, दो प्रतिबिम्ब बनाए जाते हैं। लेन्स की फोकस दूरी ज्ञात कीजिए।
हल-
माना बिम्ब की लेन्स से दूरी u (आंकिक मान) है तथा प्रतिबिम्ब (परदे) की लेन्स से दूरी v है।
u + v = 90 ⇒ v = 90 – u
लेन्स के सूत्र में चिह्न सहित मान रखने पर,
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प्रश्न 21.
(a) प्रश्न 10 के दो लेन्सों के संयोजन की प्रभावी फोकस दरी उस स्थिति में ज्ञात कीजिए जब उनके मुख्य अक्ष संपाती हैं तथा ये एक-दूसरे से 8 cm दूरी पर रखे हैं। क्या उत्तर आपतित समान्तर प्रकाश पुंज की दिशा पर निर्भर करेगा? क्या इस तन्त्र के लिए प्रभावी फोकस दूरी किसी भी रूप में उपयोगी है ?
(b) उपर्युक्त व्यवस्था (a) में 1.5 cm ऊँचा कोई बिम्ब उत्तल लेन्स की ओर रखा है। बिम्ब की उत्तल लेन्स से दूरी 40 cm है। दो लेन्सों के तन्त्र द्वारा उत्पन्न आवर्धन तथा प्रतिबिम्ब का आकार ज्ञात कीजिए।
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments Q21.3

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प्रश्न 22.
60° अपवर्तन कोण के प्रिज्म के फलक पर किसी प्रकाशकिरण को किस कोण पर आपतित कराया जाए कि इसका दूसरे फलक से केवल पूर्ण आन्तरिक परावर्तन ही हो? प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक 1.524 है।
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प्रश्न 23.
आपको विविध कोणों के क्राउन काँच व फ्लिंट काँच के प्रिज्म दिए गए हैं। प्रिज्मों का कोई ऐसा संयोजन सुझाइए जो
(a) श्वेत प्रकाश के संकीर्ण पुंज को बिना अधिक परिक्षेपित किए विचलित कर दे।
(b) श्वेत प्रकाश के संकीर्ण पुंज को अधिक विचलित किए बिना परिक्षेपित (तथा विस्थापित)। कर दे।
उत्तर-
हम जानते हैं कि फ्लिण्ट काँच, क्राउन काँच की तुलना में अधिक विक्षेपण उत्पन्न करता है।
(a) बिना विक्षेपण के विचलन (UPBoardSolutions.com) उत्पन्न करने हेतु क्राउन काँच का एक प्रिज्म लीजिए तथा एक फ्लिण्टे काँच का प्रिज्म लीजिए जिसका अपवर्तक कोण अपेक्षाकृत कम हो। अब इन्हें एक-दूसरे के सापेक्ष उल्टा रखते हुए सम्पर्क में रखिए। इस प्रकार बना संयोजन श्वेत प्रकाश को बिना अधिक परिक्षेपित किए विचलित कर देगा।

(b) पुराने संयोजन में लिए गए फ्लिण्ट काँच के प्रिज्म के अपवर्तक कोण में वृद्धि कीजिए (परन्तु अभी भी यह कोण दूसरे प्रिज्म की तुलना में कम ही रहेगा)। यह व्यवस्था पुंज को बिना अधिक विचलित किए परिक्षेपण उत्पन्न करेगी।

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प्रश्न 24.
सामान्य नेत्र के लिए दूर बिन्दु अनन्त पर तथा स्पष्ट दर्शन का निकट बिन्दु नेत्र के सामने लगभग 25 cm पर होता है। नेत्र का स्वच्छ मण्डल (कॉर्निया) लगभग 40 डायोप्टर की अभिसरण क्षमता प्रदान करता है तथा स्वच्छ मण्डल के पीछे नेत्र लेन्स की अल्पतम अभिसरण क्षमता लगभग 20 डायोप्टर होती है। इस स्थूल आँकड़े से सामान्य नेत्र के परास (अर्थात नेत्र लेन्स की अभिसरण क्षमता का परिसर) का अनुमान लगाइए।
हल-
दिया है, कॉर्निया की अभिसरण क्षमता = +40 D
नेत्र लेन्स की अभिसरण क्षमता = +20 D
अत: कॉर्निया तथा नेत्र लेन्स की कुल अभिसरण क्षमता
P = (40 + 20) D = 60 D
अनन्त पर स्थित वस्तुओं के लिए नेत्र न्यूनतम अभिसरण क्षमता का प्रयोग करता है।
अत: उपर्युक्त क्षमता न्यूनतम अभिसरण क्षमता होगी। इसलिए नेत्र लेन्स की अधिकतम फोकस दूरी
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प्रश्न 25.
क्या निकट दृष्टिदोष अथवा दीर्घ दृष्टिदोष आवश्यक रूप से यह ध्वनित होता है कि नेत्र ने अपनी समंजन क्षमता आंशिक रूप से खो दी है? यदि नहीं, तो इन दृष्टिदोषों का क्या कारण हो सकता है?
हल-
यह आवश्यक नहीं है कि निकट दृष्टिदोष अथवा दूर दृष्टिदोष केवल नेत्र के आंशिक रूप से अपनी समंजन क्षमता खो देने के कारण ही उत्पन्न होता है। यह नेत्र गोलक के सामान्य आकार से बड़ा अथवा छोटा होने के कारण भी उत्पन्न हो सकता है।

प्रश्न 26.
निकट दृष्टिदोष का कोई व्यक्ति दूर दृष्टि के लिए -1.0 D क्षमता का चश्मा उपयोग कर रहा है। अधिक आयु होने पर उसे पुस्तक पढ़ने के लिए अलग से +2.0 D क्षमता के चश्मे की आवश्यकता होती है। स्पष्ट कीजिए ऐसा क्यों हुआ?
हल-
– 1.0 D क्षमता के संगत फोकस दूरी
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments Q26
अत: प्रारम्भ में नेत्र की स्वस्थ अवस्था में व्यक्ति 1.00 मीटर दूरी तक की वस्तुओं को स्पष्ट देख सकता है।
अधिक आयु होने पर नेत्र की समंजन (UPBoardSolutions.com) क्षमता कम हो जाने के कारण नेत्र लेन्स का निकट बिन्दु और दूर विस्थापित हो जाता है। अत: व्यक्ति में जरा दृष्टि दोष है। इस दशा में प्रयुक्त उत्तल लेन्स की क्षमता
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चूँकि निकट बिन्दु 25 सेमी से 50 सेमी पर विस्थापित हो गया है, अतः जरी दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति 50 सेमी से 100 सेमी तक के बीच की वस्तु देख सकता है।

प्रश्न 27.
कोई व्यक्ति ऊर्ध्वाधर तथा क्षैतिज धारियों की कमीज पहने किसी दूसरे व्यक्ति को देखता है। वह क्षैतिज धारियों की तुलना में ऊर्ध्वाधर धारियों को अधिक स्पष्ट देख पाता है। ऐसा किस दृष्टिदोष के कारण होता है? इस दृष्टिदोष का संशोधन कैसे किया जाता है?
हल-
यह घटना अबिन्दुकता नामक दृष्टिदोष के कारण होती है। सामान्य नेत्र पूर्णतः गोलीय होता है। तथा इसके विभिन्न तलों की वक्रता सर्वत्र समान होती है। परन्तु अबिन्दुकता दोष में कॉर्निया पूर्णतः गोलीय नहीं रह जाता तथा इसके विभिन्न तलों की वक्रताएँ समान नहीं रह पातीं। प्रश्नानुसार व्यक्ति (UPBoardSolutions.com) ऊध्र्वाधर धारियों को स्पष्ट देख पाता है परन्तु क्षैतिज धारियों को नहीं। इससे स्पष्ट है कि नेत्र में ऊर्ध्वाधर तल में पर्याप्त वक्रता है जिसके कारण ऊर्ध्वाधर रेखाएँ दृष्टि पटल पर स्पष्ट फोकस हो रही हैं। परन्तु क्षैतिज तल की वक्रता पर्याप्त नहीं है। इस दोष को सिलिण्डरी लेन्स की सहायता से दूर किया जा सकता है।

प्रश्न 28.
कोई सामान्य निकट बिन्दु (25 cm) का व्यक्ति छोटे अक्षरों में छपी वस्तु को 5 cm फोकस दूरी के पतले उत्तल लेन्स के आवर्धक लेन्स का उपयोग करके पढ़ता है।
(a) वह निकटतम तथा अधिकतम दूरियाँ ज्ञात कीजिए जहाँ वह उस पुस्तक को आवर्धक लेन्स द्वारा पढ़ सकता है।
(b) उपर्युक्त सरल सूक्ष्मदर्शी के उपयोग द्वारा संभावित अधिकतम तथा न्यूनतम कोणीय आवर्धन (आवर्धन क्षमता) क्या है?
हल-
(a) वस्तु को निकटतम दूरी से देखने के लिए वस्तु का प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी अर्थात् निकट बिन्दु पर बनना चाहिए। अत: v = -25 सेमी
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments Q28.1

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प्रश्न 29.
कोई कार्ड शीट जिसे 1 mm2 साइज़ के वर्गों में विभाजित किया गया है, को 9 cm दूरी पर रखकर किसी आवर्धक लेन्स (10 cm फोकस दूरी का अभिसारी लेन्स) द्वारा उसे नेत्र के निकट रखकर देखा जाता है।
(a) लेन्स द्वारा उत्पन्न आवर्धन (प्रतिबिम्ब-साइज़/वस्तु-साइज़) क्या है? आभासी प्रतिबिम्ब में प्रत्येक वर्ग का क्षेत्रफल क्या है?
(b) लेन्स का कोणीय आवर्धन (आवर्धन क्षमता) क्या है?
(c) क्या (a) में आवर्धन क्षमता (b) में आवर्धन के बराबर है? स्पष्ट कीजिए।
हल-
(a) दिया है, u = -9 सेमी, f = +10 सेमी
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(c) बराबर नहीं है; क्योंकि लेन्स द्वारा उत्पन्न ‘आवर्धन तथा लेन्स की आवर्धन क्षमता अलग-अलग भौतिक राशियाँ हैं। ये तभी बराबर होंगी यदि प्रतिबिम्ब नेत्र के निकट बिन्दु (= 25 सेमी) पर बने।

प्रश्न 30.
(a) प्रश्न 29 में लेन्स को चित्र से कितनी दूरी पर रखा जाए ताकि वर्गों को अधिकतम संभव आवर्धन क्षमता के साथ सुस्पष्ट देखा जा सके।
(b) इस उदाहरण में आवर्धन (प्रतिबिम्ब-साइज़/वस्तु-साइज़) क्या है?
(c) क्या इस प्रक्रम में आवर्धन, आवर्धन क्षमता के बराबर है? स्पष्ट कीजिए।
हल-
(a) अधिकतम आवर्धन क्षमता के लिए, v = D = -25 cm, f = 10 सेमी
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments Q30.1
हाँ, इस स्थिति में आवर्धन, आवर्धन क्षमता के बराबर है, क्योंकि प्रतिबिम्ब नेत्र के निकट बिन्दु D = 25 सेमी पर बनता है।

प्रश्न 31.
प्रश्न 30 में वस्तु तथा आवर्धक लेन्स के बीच कितनी दूरी होनी चाहिए ताकि आभासी प्रतिबिम्ब में प्रत्येक वर्ग 6.25 mm क्षेत्रफल का प्रतीत हो? क्या आप आवर्धक लेन्स को नेत्र के अत्यधिक निकट रखकर इन वर्गों को सुस्पष्ट देख सकेंगे।
[नोट: अभ्यास 9.29 से 9.31 आपको निरपेक्ष साइज में आवर्धन तथा किसी यन्त्र की आवर्धन क्षमता (कोणीय आवर्धन) के बीच अन्तर को स्पष्टतः समझने में सहायता करेंगे।]
हल-
दिया है, f = 10 सेमी, वस्तु के प्रत्येक वर्ग को क्षेत्रफल A0 = 1 मिमी2
प्रतिबिम्ब के प्रत्येक वर्ग का क्षेत्रफल, Al = 6.25 मिमी2
क्षेत्रीय आवर्धन,
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चूंकि आभासी प्रतिबिम्ब 15 सेमी पर है तथा स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी 25 सेमी है। अत: प्रतिबिम्ब नेत्र को सुस्पष्ट दिखाई नहीं देगा।

प्रश्न 32.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(a) किसी वस्तु द्वारा नेत्र पर अन्तरित कोण आवर्धक लेन्स द्वारा उत्पन्न आभासी प्रतिबिम्ब द्वारा नेत्र पर अन्तरित कोण के बराबर होता है। तब.फिर किन अर्थों में कोई आवर्धक लेन्स कोणीय आवर्धन प्रदान करता है?
(b) किसी आवर्धक लेन्स से देखते समय प्रेक्षक अपने नेत्र को लेन्स से अत्यधिक सटाकर रखता है। यदि प्रेक्षक अपने नेत्र को पीछे ले जाए तो क्या कोणीय आवर्धन परिवर्तित हो जाएगा?
(c) किसी सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन (UPBoardSolutions.com) क्षमता उसकी फोकस दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होती है। तब हमें अधिकाधिक आवर्धन क्षमता प्राप्त करने के लिए कम-से-कम फोकस दूरी के उत्तल लेन्स का उपयोग करने से कौन रोकता है?
(d) किसी संयुक्त सूक्ष्मदर्शी के अभिदृश्यक लेन्स तथा नेत्रिका लेन्स दोनों ही की फोकस दूरी कम क्यों होनी चाहिए?
(e) संयुक्त सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखते समय सर्वोत्तम दर्शन के लिए हमारे नेत्र, नेत्रिका पर स्थित न होकर उससे कुछ दूरी पर होने चाहिए। क्यों? नेत्र तथा नेत्रिका के बीच की यह अल्प दूरी कितनी होनी चाहिए?
उत्तर-
(a) आवर्धक लेन्स के बिना वस्तु को देखते समय उसे नेत्र से 25 cm से कम दूरी पर नहीं रखा जा सकता, परन्तु लेन्स की सहायता से वस्तु को देखते समय वस्तु को अपेक्षाकृत नेत्र के अधिक समीप रखा जा सकता है जिससे कि अन्तिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बने। इस प्रकार कोणीय साइज में वृद्धि वस्तु को नेत्र के समीप रखने के कारण होती है।

(b) हाँ, क्योंकि इस स्थिति में प्रतिबिम्ब द्वारा नेत्र पर बना दर्शन कोण, उसके द्वारा लेन्स पर बने दर्शन कोण से कुछ छोटा हो जाएगा।

(c) एक-तो अत्यन्त कम फोकस दूरी के लेन्सों (मोटे लेन्सों) को बनाने की प्रक्रिया आसान नहीं है, दूसरे फोकस दूरी घटने के साथ लेन्सों में विपथन का दोष बढ़ने (UPBoardSolutions.com) लगती है। इससे उनके द्वारा बने प्रतिबिम्ब अस्पष्ट हो जाते हैं। व्यवहार में किसी एकल उत्तल लेन्स द्वारा 3 से अधिक आवर्धन प्राप्त करना सम्भव नहीं है परन्तु विपथन के दोष से मुक्त लेन्स द्वारा कहीं अधिक आवर्धन (लगभग 10) प्राप्त किया जा सकता है।
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(e) संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में वस्तु से चलने वाला प्रकाश अभिदृश्यक से गुजरने के बाद नेत्रिका से गुजरकर आँख तक पहुँचता है। वस्तु का प्रतिबिम्ब स्पष्ट देखने के लिए (UPBoardSolutions.com) आवश्यक है कि वस्तु से चलने वाला अधिकतम प्रकाश नेत्र में पहुँचे। वस्तु से चलने वाले प्रकाश को अधिकतम मात्रा में ग्रहण करने के लिए ही नेत्र को नेत्रिका से अत्यल्प दूरी पर रखा जाता है। यह अत्यल्प दूरी यन्त्र की संरचना पर निर्भर करती है तथा उस पर लिखी गई होती है।

प्रश्न 33.
1.25 cm फोकस दूरी का अभिदृश्यक तथा 5 cm फोकस दूरी की नेत्रिका का उपयोग करके वांछित कोणीय आवर्धन (आवर्धन क्षमता) 30X होता है। आप संयुक्त सूक्ष्मदर्शी का समायोजन कैसे करेंगे?
हल-
जब अन्तिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बनता है तो यह संयुक्त सूक्ष्मदर्शी का सामान्य समायोजन होता है। इसमें
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments Q33
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अतः संयुक्त सूक्ष्मदर्शी के समायोजन में अभिदृश्यक तथा नेत्रिका को परस्पर 11.67 सेमी दूरी पर रखना होगा तथा वस्तु को अभिदृश्यक के सामने इससे 1.5 सेमी की दूरी पर रखना होगा।

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प्रश्न 34.
किसी दूरबीन के अभिदृश्यक की फोकस दूरी 140 cm तथा नेत्रिका की फोकस दूरी 5.0 cm है। दूर की वस्तुओं को देखने के लिए दूरबीन की आवर्धन क्षमता क्या होगी जब-
(a) दूरबीन का समायोजन सामान्य है (अर्थात अन्तिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बनता है)।
(b) अन्तिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी (25 cm) पर बनता है।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments Q34

प्रश्न 35.
(a) प्रश्न 34 (a) में वर्णित दूरबीन के लिए अभिश्यक लेन्स तथा नेत्रिका के बीच पृथक्कन दूरी क्या है?
(b) यदि इस दूरबीन का उपयोग 3 km दूर स्थित 100 m ऊँची मीनार को देखने के लिए किया जाता है तो अभिदृश्यक द्वारा बने मीनार के प्रतिबिम्ब की ऊँचाई क्या है?
(c) यदि अन्तिम प्रतिबिम्ब 25 cm दूर बनता है तो अन्तिम प्रतिबिम्ब में मीनार की ऊँचाई क्या है?
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प्रश्न 36.
किसी कैसेग्रेन दूरबीन में चित्र 9.9 में दर्शाए अनुसार दो दर्पणों का प्रयोग किया। द्वतीयक गया है। इस दूरबीन में दोनों दर्पण एक-दूसरे से 20 mm दूर रखे गए हैं। यदि बड़े दर्पण की वक्रता त्रिज्या 220 mm हो तथा छोटे दर्पण की वक्रता त्रिज्या 140 mm हो तो अनन्त पर रखे चित्र 9.9 किसी बिम्ब का अन्तिम प्रतिबिम्ब कहाँ बनेगा?
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments Q36.3

प्रश्न 37.
किसी गैल्वेनोमीटर की कुण्डली से जुड़े समतल दर्पण पर लम्बवत आपतित प्रकाश (चित्र 9.11) दर्पण से टकराकर अपना पथ पुनः अनुरेखित करता है। गैल्वेनोमीटर की कुण्डली में प्रवाहित कोई धारा दर्पण में 3.5° का परिक्षेपण उत्पन्न करती है। दर्पण के सामने 1.5 m की दूरी पर रखे परदे पर प्रकाश के परावर्ती चिह्न में कितना विस्थापन होगा?
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प्रश्न 38.
चित्र 9.12 में कोई समोत्तल लेन्स (अपवर्तनांक 1.50) किसी समतल दर्पण के फलक पर किसी द्रव की परत के सम्पर्क में दर्शाया गया है। कोई छोटी सुई जिसकी नोक मुख्य अक्ष पर है, अक्ष के अनुदिश ऊपर-नीचे गति कराकर इस प्रकार समायोजित की जाती है कि सुई की नोक का उल्टा प्रतिबिम्ब सुई की स्थिति पर ही बने। इस स्थिति में सुई की लेन्स से दूरी 45.0 cm है। द्रव को हटाकर प्रयोग को दोहराया जाता है। नयी दूरी 30.0 cm मापी जाती है। द्रव का काम अपवर्तनांक क्या है?
हुल-
द्रव को हटाकर प्रयोग करते समय इस स्थिति में सुई से चलने वाली किरणें काँच के लेन्स से अपवर्तित होकर समतल दर्पण पर अभिलम्बवत् आपतित होती हैं। दर्पण इन किरणों को वापस उन्हीं के मार्ग पर लौटा देता है जिससे किरणें वापस सुई की स्थिति में ही प्रतिबिम्ब बनाती हैं।
यह स्पष्ट है कि दर्पण की अनुपस्थिति में लेन्स से अपवर्तित किरणें अनन्त पर मिलती हैं।
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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अपवर्तन की घटना में निम्न में से कौन-सी राशि अपरिवर्तित रहती है? (2012)
(i) प्रकाश की चाल
(ii) प्रकाश की तीव्रता
(iii) प्रकाश की तरंगदैर्घ्य
(iv) प्रकाश की आवृत्ति
उत्तर-
(iv) प्रकाश की आवृत्ति

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प्रश्न 3.
आकाश नीला दिखाई देता है- (2014, 17)
(i) प्रकीर्णन के कारण
(ii) परावर्तन के कारण
(iii) अपवर्तन के कारण
(iv) पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के कारण
उत्तर-
(i) प्रकीर्णन के कारण

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प्रश्न 4.
निरपेक्ष अपवर्तनांक का मान है-
(i) n < 1
(ii) n > 1
(iii) 1 > n > 0
(iv) ∞ > n > 0
उत्तर-
(ii) n > 1

प्रश्न 5.
एक उत्तल दर्पण की फोकस दूरी 20 सेमी है। एक वस्तु दर्पण के सामने ध्रुव से 20 सेमी की दूरी पर रखे जाने पर प्रतिबिम्ब की दूरी ध्रुव से होती है- (2014)
(i) 40 सेमी
(ii) 10 सेमी
(iii) 20 सेमी
(iv) अनन्त पर
उत्तर-
(ii) 10 सेमी

प्रश्न 6.
यदि किसी माध्यम से निर्वात में सम्पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के लिए क्रान्तिक कोण 30° है, तो माध्यम में प्रकाश का वेग है- (2015, 17)
(i) 3 x 108 भी/से
(ii) 1.5 x 108 मी/से।
(iii) 6 x 108 मी/से
(iv) 4.5 x 108 मी/से
उत्तर-
(ii) 1.5 x 108 मी/से

प्रश्न 7.
यदि सघन माध्यम में आपतन कोण, क्रान्तिक कोण के बराबर हो, तो अपवर्तन कोण होगा- (2016, 17)
(i) 0°
(ii) 45°
(iii) 90°
(iv) 180°
उत्तर-
(iii) 90°

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प्रश्न 8.
यदि विरल तथा सघन माध्यम में प्रकाश की चाल क्रमशः v1 तथा v2 हों तथा सघन माध्यम में क्रांतिक कोण C है, तब (2016)
(i) v1 = v2 sinC
(ii) v1 = v2 cosC
(iii) v1 = v2 tanC
(iv) v1 = v2 cosec C
उत्तर-
(iv) v1 = v2 cosec C

प्रश्न 9.
वायु के सापेक्ष जल और काँच के अपवर्तनांक क्रमशः एवं हैं। काँच का जल के सापेक्ष अपवर्तनांक होगा- (2017)
(i) [latex]\frac { 1 }{ 3 }[/latex]
(ii) [latex]\frac { 4 }{ 3 }[/latex]
(iii) [latex]\frac { 5 }{ 4 }[/latex]
(iv) [latex]\frac { 20 }{ 9 }[/latex]
उत्तर-
(iii) [latex]\frac { 5 }{ 4 }[/latex]

प्रश्न 10.
वायु में प्रकाश की चाल 3.0 x 108 मीटर/सेकण्ड है। 1.5 अपवर्तनांक वाले काँच में प्रकाश की चाल होगी- (2017)
(i) 1.5 x 108 मी/से।
(ii) 2.0 x 108 मी/से
(iii) 1.8 x 108 मी/से
(iv) 2.5 x 108 मी/से
उत्तर-
(ii) 2.0 x 108 मी/से

प्रश्न 11.
किसी गोलीय दर्पण की फोकस दूरी (f) एवं वक्रता त्रिज्या (R) में सम्बन्ध है- (2017)
(i) R = [latex]\frac { f }{ 2 }[/latex]
(ii) f = 3R
(ii) f = [latex]\frac { R }{ 2 }[/latex]
(iv) f = [latex]\frac { R }{ 4 }[/latex]
उत्तर-
(iii) [latex]\frac { R }{ 2 }[/latex]

प्रश्न 12.
दो लेन्स जिनकी क्षमताएँ 5D तथा -3D हैं, सम्पर्क में रखे हैं। संयुक्त लेन्स की फोकस दूरी है- (2012, 13, 15)
(i) 50 सेमी
(ii) 75 सेमी
(iii) 25 सेमी
(iv) 20 सेमी
उत्तर-
(i) 50 सेमी

प्रश्न 13.
4 डायोप्टर और -2 डायोप्टर क्षमता के दो लेन्स सम्पर्क में रखे हैं। संयुक्त लेन्स की फोकस दूरी होगी- (2013, 16, 17)
(i) 50 सेमी
(ii)-50 सेमी
(iii) 25 सेमी
(iv) -25 सेमी
उत्तर-
(i) 50 सेमी

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प्रश्न 14.
एक समतल-उत्तल लेन्स में उत्तल पृष्ठ की वक्रता-त्रिज्या 10 सेमी और लेन्स की फोकस दूरी 30 सेमी है। लेन्स के पदार्थ का अपवर्तनांक है- (2011)
(i) 1.5
(ii) 1.66
(iii) 1.33
(iv) 0.3
उत्तर-
(iii) 1.33

प्रश्न 15.
सम्पर्क में रखे दो पतले लेन्सों की फोकस दूरियाँ 25 सेमी तथा -40 सेमी हैं। इस संयोजन की क्षमता होगी- (2010)
(i) -6.67 D
(ii) -2.5 D
(iii) +1.5 D
(iv) +4 D
उत्तर-
(iii) + 1.5 D

प्रश्न 16.
सम्पर्क में रखे उत्तल एवं अवतल लेन्स की फोकस दूरियाँ क्रमशः 12 सेमी और 18 सेमी हैं। संयुक्त लेन्स की फोकस दूरी होगी- (2014)
(i) 50 सेमी
(ii) 45 सेमी
(iii) 36 सेमी
(iv) 18 सेमी
उत्तर-
(iv) 18 सेमी

प्रश्न 17.
0.5 मी फोकस दूरी के एक उत्तल लेन्स को 1 मी फोकस दूरी के अवतल लेन्स के सम्पर्क में रखा गया है। संयुक्त लेन्स की फोकस दूरी है- (2010)
(i) 1 मी।
(ii) -1 मी
(iii) 0.5 मी
(iv) -0.5 मी
उत्तर-
(i) 1 मी

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प्रश्न 18.
एक पदार्थ जिसका अपवर्तनांक n = 1.51 है, से एक पतला लेन्स बना है। लेन्स की दोनों सतह उत्तल हैं। इसे जल (n = 1.33) में डुबोया गया है। यह लेन्स व्यवहार करेगा- (2010)
(i) एक अभिसारी लेन्स की तरह
(ii) एक अपसारी लेन्स की तरह
(iii) काँच के एक आयताकार टुकड़े की तरह
(iv) एक प्रिज्म की तरह
उत्तर-
(i) एक अभिसारी लेन्स की तरह

प्रश्न 19.
यदि 1.5 अपवर्तनांक के समोत्तल लेन्स की वक्रता-त्रिज्या 10 सेमी, हो तो इस लेन्स की क्षमता होगी- (2011)
(i) 10D
(ii) 5D
(iii) -10D
(iv) -5D
उत्तर-
(ii) 5D

प्रश्न 20.
एक उत्तल लेन्स की क्षमता 2 डायोप्टर है। इसकी फोकस-दूरी होगी- (2015)
(i) 20 सेमी
(ii) 50 सेमी
(iii) 40 सेमी
(iv) 60 सेमी
उत्तर-
(ii) 50 सेमी

प्रश्न 21.
एक उत्तल लेन्स मुख्य अक्ष पर रखी बिन्दु वस्तु का वास्तविक प्रतिबिम्ब बनाता है। यदि लेन्स के ऊपरी अर्द्ध भाग को काला कर दिया जाए, तो (2012)
(i) प्रतिबिम्ब नीचे की ओर खिसक जायेगा।
(ii) प्रतिबिम्ब ऊपर की ओर खिसक जायेगा
(iii) प्रतिबिम्ब की लम्बाई आधी हो जायेगी
(iv) प्रतिबिम्ब की तीव्रता घट जायेगी
उत्तर-
(iv) प्रतिबिम्ब की तीव्रता घट जायेगी।

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प्रश्न 22.
+3D तथा -5D क्षमता के दो पतले लेन्स सम्पर्क में रखे गये हैं। इस संयोजन की फोकस दूरी होगी- (2009, 16)
(i) -40 सेमी
(ii) +40 सेमी
(iii) +20 सेमी
(iv) -50 सेमी
उत्तर-
(iv) -50 सेमी

प्रश्न 23.
R वक्रता त्रिज्या तथा n अपवर्तनांक का एक समतल-उत्तल लेन्स R वक्रता त्रिज्या n1 तथा n2 अपवर्तनांक के समतल-अवतल लेन्स के सम्पर्क में चित्रानुसार रखे जाते हैं। संयुक्त लेन्स की क्षमता है- (2017)
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उत्तर-
(i) 0

प्रश्न 24.
दो लेन्स जिनकी शक्तियाँ 4D और -2D हैं, सम्पर्क में रखे हैं। संयुक्त लेन्स की शक्ति- (2017)
(i) 6 D
(ii) 2 D
(iii) -2 D
(iv) 4 D
उत्तर-
(ii) 2 D

प्रश्न 25.
एक प्रिज्म का अपवर्तक कोण 60° है। जब प्रकाश की एक किरण 50° पर आपतित होती है तो इसमें अल्पतम विचलन होता है। अल्पतम विचलन कोण का मान है- (2013)
(i) 40°
(ii) 45°
(iii) 55°
(iv) 60°
उत्तर-
(i) 40°

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प्रश्न 26.
एक समबाहु प्रिज्म न्यूनतम विचलन की स्थिति में है। यदि आपतन कोण प्रिज्म कोण का 4/5 गुना हो, तो न्यूनतम विचलन कोण का मान होगा- (2011)
(i) 72°
(ii) 60°
(iii) 48°
(iv) 36°
उत्तर-
(iv) 36°

प्रश्न 27.
प्रिज्म से गुजरने पर निम्नलिखित में से किस रंग के प्रकाश का विचलन अधिकतम होगा?
(i) लाल रंग
(ii) बैंगनी रंग
(iii) नीला रंग
(iv) हरा रंग
उत्तर-
(ii) बैंगनी रंग

प्रश्न 28.
जिस भौतिक घटना के लिए सर सी० वी० रमन को नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया था, वह है प्रकाश का- (2014)
(i) ध्रुवण
(ii) व्यतिकरण
(ii) विवर्तन
(iv) प्रकीर्णन
उत्तर-
(iv) प्रकीर्णन

प्रश्न 29.
निम्नलिखित में से किस रंग के प्रकाश की चाल जल में सर्वाधिक होगी?
(i) लाल
(ii) पीला
(iii) हरा
(iv) बैंगनी
उत्तर-
(i) लाल

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प्रश्न 30.
उदय व अस्त होते समय सूर्य का ताम्र वर्ण (रक्ताभ) दिखना सम्बन्धित है, प्रकाश के
(i) प्रकीर्णन से
(ii) परिक्षेपण से
(iii) अपवर्तन से
(iv) व्यतिकरण से
उत्तर-
(i) प्रकीर्णन से

प्रश्न 31.
एक व्यक्ति +2D क्षमता का चश्मा प्रयोग करता है। उसका दृष्टि दोष है- (2014)
(i) निकट दृष्टि दोष ।
(ii) दूर दृष्टि दोष,
(ii) जरा दूर दृष्टि दोष ।
(iv) अबिन्दुकता
उत्तर-
(ii) दूर दृष्टि दोष

प्रश्न 32.
सामान्य नेत्र के लिए स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी है- (2015)
(i) अनन्त
(ii) 50 सेमी
(iii) 25 सेमी
(iv) 75 सेमी
उत्तर-
(iii) 25 सेमी

प्रश्न 33.
इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शी की अपेक्षा अधिक होती है- (2011)
(i) 5 गुनी
(ii) 50 गुनी
(iii) 500 गुनी
(iv) 5000 गुनी
उत्तर-
(iv) 5000 गुनी

प्रश्न 34.
नेत्र लेन्स की प्रकृति होती है- (2016)
(i) अभिसारी
(ii) अपसारी.
(iii) अभिसारी तथा अपसारी दोनों
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(i) अभिसारी

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प्रश्न 35.
निकट दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति के लिए प्रयुक्त किया जाता है
(i) अवतल लेन्स
(ii) अवतल दर्पण
(iii) उत्तल दर्पण
(iv) उत्तल लेन्स
उत्तर-
(i) अवतल लेन्स

प्रश्न 36.
दूर दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति के लिए प्रयुक्त किया जाता है
(i) अवतल लेन्स
(ii) अवतल दर्पण
(iii) उत्तल दर्पण
(iv) उत्तल लेन्स
उत्तर-
(iv) उत्तल लेन्स

प्रश्न 37.
किसी दूरदर्शी के अभिदृश्यक लेन्स का व्यास D है। यदि प्रयुक्त प्रकाश की तरंगदैर्घ्य λ हो, तो इसकी विभेदन क्षमता होगी- (2010, 12, 13)
(i) λ/D
(ii) 1.22λ/D
(iii) D/1.22λ
(iv) λD
उत्तर-
(iii) D/1.22λ

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प्रश्न 38.
दूर-दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति का निकट बिन्दु स्थित होगा- (2014)
(i) 25 सेमी दूरी पर
(ii) 25 सेमी से कम दूरी पर
(iii) 25 सेमी से अधिक दूरी पर
(iv) अनन्त पर
उत्तर-
(iii) 25 सेमी से अधिक दूरी पर

प्रश्न 39.
एक खगोलीय दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता 10 तथा नेत्रिका की फोकस दूरी 20 सेमी है। अभिदृश्यक लेन्स की फोकस दूरी है- (2017)
(i) 2 सेमी
(ii) 200 सेमी
(ii) 100 सेमी
(iv) 0.5 सेमी
उत्तर-
(ii) 200 सेमी

प्रश्न 40.
एक दूरदर्शी के अभिदृश्यक लेन्स का व्यास 0.1 मीटर है तथा प्रकाश की तरंगदैर्घ्य 600 नैनोमीटर है। दूरदर्शी की विभेदन सीमा होगी लगभग- (2017)
(i) 7.32 x 10-4 रेडियन
(ii) 6.0 x 10-5 रेडियन
(iii) 7.32 x 10-6 रेडियन
(iv) 6 x 10-2 रेडियन
उत्तर-
(iii) 7.32 x 10-6 रेडियन

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आवर्धन का सूत्र
(i) v व u के पदों में
(ii) u वीं के पदों में,
(iii) v तथा f के पदों में लिखिए।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments VSAQ 1

प्रश्न 2.
अपवर्तनांक की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
आपतन कोण की ज्या तथा अपवर्तन कोण की ज्या का अनुपात एक नियतांक होता है। जिसे पहले माध्यम के सापेक्ष दूसरे माध्यम का अपवर्तनांक कहते हैं।
[latex]\frac { sin i }{ sin r }[/latex] – नियतांक [latex s=2]{ _{ 1 }{ n }_{ 2 } }[/latex]

प्रश्न 3.
प्रकाश के वेग के पदों में अपवर्तनांक का सूत्र लिखिए।
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प्रश्न 4.
क्रान्तिक कोण की परिभाषा लिखिए। (2017)
उत्तर-
सघन माध्यम में बना वह आपतन कोण जिसके लिए विरल माध्यम में अपवर्तन कोण 90° हो, क्रान्तिक कोण कहलाता है।

प्रश्न 5.
उस भौतिक सिद्धान्त का नाम लिखिए जिस पर प्रकाशिक तन्तु का कार्य सिद्धान्त आधारित है। (2018)
उत्तर-
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन।

प्रश्न 6.
विरल माध्यम के सापेक्ष सघन माध्यम के अपवर्तनांक तथा क्रान्तिक कोण में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर-
[latex s=2]{ _{ r }{ n }_{ d } }[/latex] = [latex]\frac { 1 }{ sinC }[/latex]
जहाँ, C = क्रान्तिक कोण तथा । विरल और d सघन माध्यम का संकेत है।

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प्रश्न 7.
यदि प्रकाश की एक किरण हवा से काँच के पृष्ठ पर 45° पर आपतित हो तो यह 15° विचलित होती है। काँच-हवा पृष्ठ के लिए क्रान्तिक कोण की गणना कीजिए। (2014)
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प्रश्न 8.
अवतल दर्पण के उपयोग लिखिए।
उत्तर-

  1. हजामत करने में,
  2. डॉक्टर द्वारा शरीर के सूक्ष्म भागों की जाँच करने में,
  3. कार की हेडलाइट में, टॉर्च में तथा टेबल लैम्पों के शेड में परावर्तक के रूप में।

प्रश्न 9.
अवतल दर्पण द्वारा अनन्त पर स्थित वस्तु के प्रतिबिम्ब को किरण आरेख द्वारा दर्शाइए। (2014)
उत्तर-
अवतल दर्पण द्वारा अनन्त पर स्थित वस्तु के प्रतिबिम्ब को चित्र 9.14 में प्रदर्शित किया गया है।
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प्रश्न 10.
किसी समतल परावर्ती तल पर 5000 Å का प्रकाश आपतित है। परावर्तित प्रकाश की आवृत्ति ज्ञात कीजिए। (2015)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments VSAQ 10

प्रश्न 11.
गोलीय दर्पण की फोकस दूरी की परिभाषा दीजिए। एक अवतल दर्पण अपने सामने से 10 सेमी दूरी पर रखी वस्तु का 3 गुना वास्तविक प्रतिबिम्ब बनाता है। दर्पण की वक्रता त्रिज्या ज्ञात कीजिए। (2016)
उत्तर-
दर्पण के ध्रुव से मुख्य फोकस तक की दूरी को गोलीय दर्पण की फोकस दूरी कहते हैं।
यहाँ, u = -10 सेमी
माना O = x होगी।
I = 3x सेमी
हम जानते हैं कि,
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प्रश्न 12.
15 सेमी फोकस दूरी वाले एक अवतल दर्पण के सामने दर्पण से 10 सेमी दूरी पर 8 सेमी ऊँचाई की वस्तु रखी है। दर्पण द्वारा बने प्रतिबिम्ब की स्थिति ज्ञात कीजिए। (2016)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments VSAQ 12

प्रश्न 13.
वायु के सापेक्ष पानी तथा काँच के अपवर्तनांक क्रमशः [latex]\frac { 4 }{ 3 }[/latex] तथा [latex]\frac { 3 }{ 2 }[/latex] हैं। काँच से पानी पर आपतित प्रकाश किरण के लिए क्रान्तिक कोण का मान ज्ञात कीजिए। (2017)
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प्रश्न 14.
किसी लेन्स के लिए न्यूटन का सूत्र लिखिए तथा प्रतीकों के अर्थ बताइए। (2013, 14, 17)
उत्तर-
x’x = ff’, जहाँ x’ तथा x क्रमश: प्रथम एवं द्वितीय फोकस से वस्तु की दूरियाँ एवं f’ तथा f क्रमशः लेन्स की प्रथम तथा द्वितीय फोकस दूरियाँ हैं।

प्रश्न 15.
लेन्स की फोकस दूरी का सूत्र लिखिए, जबकि लेन्स के दोनों ओर के माध्यम भिन्न-भिन्न हैं। (2013)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments VSAQ 15

प्रश्न 16.
एक लेन्स की क्षमता + 2.5 डायोप्टर है? लेन्स की फोकस दूरी ज्ञात कीजिए। (2014)
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प्रश्न 17.
किसी उत्तल लेन्स की फोकस दूरी f, अपवर्तनांक n एवं लेन्स की वक्रता त्रिज्याओं R1 और R2 के बीच सम्बन्ध का सूत्र लिखिए। (2012)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments VSAQ 17

प्रश्न 18.
एक उभयोत्तल लेन्स की दोनों वक्रता-त्रिज्याएँ 20 सेमी हैं तथा लेन्स के काँच का अपवर्तनांक 1.5 है। लेन्स की फोकस दूरी क्या होगी ? (2010)
उत्तर-
जब उभयोत्तल लेन्स की वक्रता त्रिज्याएँ समान होती हैं तब उसकी फोकस दूरी वक्रता त्रिज्या के समान होती है। अत: f = R = 20 सेमी।

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प्रश्न 19.
यदि एक उत्तल लेन्स की वायु में फोकस दूरी 20 सेमी है, तो जल में उसकी फोकस दूरी क्या होगी ? (2010)
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प्रश्न 20.
वायु के सापेक्ष काँच एवं जल का अपवर्तनांक क्रमशः [latex]\frac { 3 }{ 2 }[/latex] एवं [latex]\frac { 4 }{ 3 }[/latex] है। जल के सापेक्ष काँच का अपवर्तनांक ज्ञात कीजिए।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments VSAQ 20

प्रश्न 21.
एक पतले समतल-उत्तल लेन्स की फोकस दूरी 20.0 सेमी है। इस लेन्स के वक्र पृष्ठ की वक्रता त्रिज्या ज्ञात कीजिए। लेन्स के पदार्थ का अपवर्तनांक 1.5 है। (2013)
उत्तर-
R1 = ?, R2 = ∞, f = 20 सेमी तथा n = 1.5
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प्रश्न 22.
किस दशा में लेन्स की प्रथम फोकस दूरी का मान उसकी द्वितीय फोकस दूरी के मान के बराबर नहीं होता है? (2009, 10)
उत्तर-
जब लेन्स के दोनों ओर माध्यम भिन्न-भिन्न होता है।

प्रश्न 23.
20 सेमी फोकस दूरी वाले दो पतले उत्तल लेन्स सम्पर्क में रखे गये हैं। इससे 20 सेमी की दूरी पर रखी गयी वस्तु के लिए वस्तु एवं उसके प्रतिबिम्ब के बीच की दूरी ज्ञात कीजिए। (2015)
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प्रश्न 24.
सम्पर्क में रखे दो पतले लेंसों के संयोजन की फोकस दूरी एवं क्षमता का सूत्र लिखिए। (2017)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments VSAQ 24

प्रश्न 25.
दो उत्तल लेंस जिनमें प्रत्येक की फोकस दूरी 20 सेमी है सम्पर्क में रखे हैं। संयुक्त लेंस की क्षमता की गणना कीजिए। (2017)
हल-
दिया है, P1 = P2 = 20 सेमी
P = P1 + P2 = 20 + 20 = 40 सेमी

प्रश्न 26.
एक लेन्स जिसकी क्षमता +2D है -1D क्षमता वाले दूसरे लेन्स के साथ युग्म बनाता है। युग्म की तुल्य फोकस दूरी क्या होगी? (2017)
हल-
दिया है, P1 = + 2D, P2 = -1D
P = P1 + P2 = +2D + (-1D) = +1D
फोकस दूरी = [latex]\frac { 100 }{ P }[/latex] = [latex]\frac { 100 }{ 1 }[/latex] = 100 सेमी

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प्रश्न 27.
प्रिज्म के पदार्थ के अपवर्तनांक का सूत्र लिखिए। प्रयुक्त प्रतीकों का अर्थ बताइए। (2013, 14, 17)
या
किसी प्रिज्म के पदार्थ के अपवर्तनांक का सूत्र अल्पतम विचलन कोण एवं प्रिज्म कोण के पदों में व्यक्त कीजिए। (2013, 16)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments

प्रश्न 28.
किसी प्रिज्म के लिये आपतन कोण तथा विचलन कोण के बीच का ग्राफ दिखाइए। विचलन कोण कब न्यूनतम होगा ? (2010, 12)
उत्तर-
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments
जब आपतन कोण तथा निर्गत कोण बराबर होते हैं, अर्थात् प्रिज्म के अन्दर अपवर्तित किरण प्रिज्म के आधार के समान्तर होती है; तब विचलन कोण न्यूनतम होगा।

प्रश्न 29.
किसी प्रकाशिक माध्यम की वर्ण विक्षेपण क्षमता का सूत्र लिखिए। (2014)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments VSAQ 29

प्रश्न 30.
किसी पतले प्रिज्म द्वारा उत्पन्न न्यूनतम विचलन तथा कोणीय विक्षेपण के लिये सूत्र लिखिए। (2015, 17)
उत्तर-
न्यूनतम विचलन कोण δm = 2i – A
कोणीय विक्षेपण के लिए सूत्र θ = (nV – nR) A
जहाँ nV तथा nR क्रमशः लाल व बैंगनी रंगों के प्रकाश के लिए प्रिज्म के काँच के अपवर्तनांक हैं तथा A प्रिज्म का कोण है।

प्रश्न 31.
न्यूनतम विचलन की क्या सार्थकता है? (2010)
उत्तर-
न्यूनतम विचलन की सार्थकता- अल्पतम (न्यूनतम) विचलन की स्थिति में प्रिज्म के अन्दर अपवर्तित किरण प्रिज्म के आधार के समान्तर होती है तथा आपतन कोण व निर्गत कोण बराबर होते हैं।

प्रश्न 32.
किसी पदार्थ के लाल, बैंगनी तथा पीले रंग के प्रकाश के लिए अपवर्तनांक क्रमशः 1.52, 1.62 तथा 1.60 हैं। पदार्थ की वर्ण-विक्षेपण (परिक्षेपण) क्षमता ज्ञात कीजिए। (2011, 14)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments VSAQ 32

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प्रश्न 33.
लाल और नीले प्रकाश की किरणें एक दिये गये प्रिज्म पर डाली जाती हैं। किसके लिए अल्पतम विचलन कोण 6, का मान अधिक होगा? व्याख्या कीजिए। (2011)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments VSAQ 33

प्रश्न 34.
काँच के एक प्रिज्म का कोण 60° है तथा अल्पतम विचलन कोण 39° है। काँच का अपवर्तनांक क्या है? दिया है, sin 49.5° = 0.76. (2012)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments

प्रश्न 35.
काँच से निर्मित एक पतले प्रिज्म से उत्पन्न न्यूनतम विचलन कोण 4° है। प्रिज्म कोण ज्ञात कीजिए। (काँच का अपवर्तनांक 1.5 है)। (2012)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments VSAQ 35

प्रश्न 36.
एक पतले प्रिज्म का प्रिज्म कोण 4° है तथा इसके पदार्थ का अपवर्तनांक 1.5 है। प्रिज्म द्वारा उत्पन्न न्यूनतम विचलन कोण ज्ञात कीजिए। (2013)
हल-
δm = (n – 1) A = (1.5 – 1) 4° = 0.5 x 4° = 2°

प्रश्न 37.
न्यूनतम विचलन अवस्था में एक प्रकाश किरण एक समकोणिक प्रिज्म पर इस प्रकार आपतित होती है कि आपतन कोण, प्रिज्म कोण का [latex]\frac { 3 }{ 4 }[/latex] है। न्यूनतम विचलन कोण ज्ञात कीजिए। (2014)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments

प्रश्न 38.
किसी पतले प्रिज्म से उत्पन्न न्यूनतम विचलन कोण 10° है। प्रिज्म कोण ज्ञात कीजिए। प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक 1.5 है। (2016)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments VSAQ 38

प्रश्न 39.
63° कोण वाले प्रिज्म का पीले प्रकाश के लिए विचलन कोण 29° है। आपतन कोण ज्ञात कीजिए। (2016)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments

प्रश्न 40.
किसी प्रिज्म के पदार्थ की वर्ण विक्षेपण क्षमता से क्या तात्पर्य है? (2017)
उत्तर-
जब सूर्य का श्वेत प्रकाश एक पतले प्रिज्म में से गुजरता है, तो बैंगनी तथा लाल रंगों की निर्गत किरणों के बीच उत्पन्न कोणीय परिक्षेपण तथा मध्यवर्ती (अर्थात् पीले रंग की किरण के लिए विचलन कोण के अनुपात को प्रिज्म के पदार्थ की वर्ण विक्षेपण क्षमता कहते हैं। इसे ग्रीक अक्षर w (ओमेगा) से प्रदर्शित करते हैं।

प्रश्न 41.
फ्लिन्ट काँच के लिए बैंगनी एवं लाल रंगों के प्रकाश हेतु अपवर्तनांक क्रमशः 1.632 तथा 1.613 हैं। प्रिज्म के पदार्थ की विक्षेपण क्षमता की गणना कीजिए। (2017)
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प्रश्न 42.
नेत्र की समंजन क्षमता से आप क्या समझते हैं ? (2017, 18)
उत्तर-
नेत्र की वह क्षमता जिसके कारण नेत्र लेन्स की फोकस दूरी में परिवर्तन कर नजदीक व दूर की वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, नेत्र की समंजन क्षमता कहलाती है।

प्रश्न 43.
एक व्यक्ति को पुस्तक पढ़ने के लिए पुस्तक को आँख से 35 सेमी दूर रखना पड़ता है। इस व्यक्ति के नेत्र में कौन-सा दोष है?
उत्तर-
दूर-दृष्टि दोष।

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प्रश्न 44.
मनुष्य की आँख के रेटिना के कार्य का उल्लेख कीजिए। (2015)
उत्तर-
रेटिना प्रकाश- शिराओं की एक फिल्म होती है, जो वस्तुओं के प्रतिबिम्बों के रूप-रंग और आकार का ज्ञान मस्तिष्क तक पहुँचाती है। जिस स्थान पर प्रकाश-शिरा (UPBoardSolutions.com) रेटिना को छेदकर मस्तिष्क में जाती है, उस स्थान पर प्रकाश का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इस स्थान को अंध-बिन्दु कहते हैं। रेटिना के बीचों-बीच एक पीत-बिन्दु होता है।

प्रश्न 45.
इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी, प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शी से उत्तम क्यों माना जाता है? (2013)
उत्तर-
इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी, प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शी की तुलना में किसी वस्तु का लगभग 5000 गुना आवर्धित प्रतिबिम्ब बनाता है, इसलिए यह प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शी से उत्तम माना जाता है।

प्रश्न 46.
किसी प्रकाशिक यन्त्र की विभेदन क्षमता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
किसी प्रकाशिक यन्त्र की दो पास-पास रखी वस्तुओं के प्रतिबिम्बों को अलग-अलग करने की क्षमता को विभेदन क्षमता (resolving power) कहते हैं।

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प्रश्न 47.
आँख पर चन्द्रमा का दर्शन कोण 0.6° है। दूरदर्शी के अभिदृश्यक एवं नेत्रिका की फोकस दूरियाँ क्रमशः 200 सेमी एवं 10 सेमी हैं। दूरदर्शी से देखने पर चन्द्रमा का दर्शन कोण कितना होगा?
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प्रश्न 48.
दूरदर्शी के अभिदृश्यक का द्वारक बड़ा क्यों बनाया जाता है? (2018)
उत्तर-
दूरदर्शी की विभेदन क्षमता तथा प्रतिबिम्ब की तीव्रता बढ़ाने के लिए इसके अभिदृश्यक का द्वारक बड़ा बनाया जाता है।

प्रश्न 49.
50 सेमी द्वारक के अभिदृश्यक लेन्स वाले दूरदर्शी की विभेदन सीमा कितनी होगी? अभिदृश्यक लेन्स में आपतित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य λ = 6000 Å है।(2014)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments VSAQ 49UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments VSAQ 49.1

प्रश्न 50.
सूक्ष्मदर्शी की विभेदन सीमा हेतु व्यंजक लिखिए। प्रयुक्त संकेतों के अर्थ लिखिए। (2015, 17)
उत्तर-
सूक्ष्मदर्शी की विभेदन सीमा = [latex s=2]\frac { \lambda }{ 2\mu sin\theta }[/latex]
जहाँ, λ = प्रकाश की तरंगदैर्घ्य,
μ = वस्तु एवं अभिदृश्यक लेन्स के बीच उपस्थित माध्यम का अपवर्तनांक,
θ = वस्तु एवं अभिदृश्यक के बीच बने प्रकाश शंकु का अर्द्धशीर्ष कोण।

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प्रश्न 51.
परावर्ती दूरदर्शी में परवलयाकार दर्पण के द्वारक का मान अधिक क्यों रखा जाता है।
उत्तर-
जिससे दूरदर्शी में अधिक प्रकाश प्रवेश कर सके तथा प्रतिबिम्ब चमकीला बने।

प्रश्न 52.
-2D क्षमता वाले लेन्स का उपयोग करने वाले व्यक्ति को दूर बिन्दु कितनी दूरी पर होगा?
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प्रश्न 53.
निकट दृष्टि दोष वाला व्यक्ति 15 सेमी दूर की वस्तु स्पष्ट देख सकता है। 25 सेमी दूर वस्तु को स्पष्ट देखने के लिए आवश्यक लेंस की फोकस दूरी निकालिए। (2017)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments VSAQ 53

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रकाश के अपवर्तन से आप क्या समझते हैं? इसके नियम लिखिए।
उत्तर-
प्रकाश का अपवर्तन- जब प्रकाश एक पारदर्शी माध्यम से दूसरे पारदर्शी माध्यम में प्रवेश करता है, तो दूसरे माध्यम में जाने पर इसका वेग तथा दिशा बदल जाती है। इस घटना को प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं।
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अपवर्तन के नियम-
प्रकाश का अपवर्तन निम्न दो नियमों के अनुसार होता है-
(i) आपतित किरण, अपवर्तित किरण और आपतन बिन्दु पर अभिलम्ब तीनों एक ही तल में होते हैं।
(ii) किन्हीं दो माध्यमों के लिए तथा एक निश्चित रंग (तरंगदैर्ध्य) के प्रकाश के लिए आपतन कोण की ज्या तथा अपवर्तन कोण की ज्या की निष्पत्ति एक नियतांक होती है। यदि आपतन कोण i व अपवर्तन कोण r हैं, तो
[latex]\frac { sin i }{ sin r }[/latex] = नियतांक
इस नियम को स्नेल का नियम (Snell’s Law) कहते हैं तथा इस नियतांक को पहले माध्यम के सापेक्ष दूसरे माध्यम का अपवर्तनांक (refractive index) कहते हैं। यदि पहले व दूसरे माध्यम : को 1 व 2 से निरूपित करें, तो माध्यम 2 का 1 के सापेक्ष अपवर्तनांक 17 से प्रदर्शित करते हैं।
इस प्रकार
[latex]\frac { sin i }{ sin r }[/latex] = [latex s=2]{ _{ 1 }{ n }_{ 2 } }[/latex]
किसी पदार्थ का अपवर्तनांक (i) माध्यम की प्रकृति, (ii) माध्यम की भौतिक अवस्था, (iii) प्रकाश के रंग तथा (iv) माध्यम के ताप पर निर्भर करता है।

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प्रश्न 2.
किसी अवतल दर्पण के लिए सूत्र [latex s=2]\frac { 1 }{ f } =\frac { 1 }{ u } +\frac { 1 }{ v }[/latex] की स्थापना कीजिए, जहाँ संकेतों के सामान्य अर्थ हैं। (2017)
हल-
माना कि M1 M2 एक अवतल दर्पण है जिसका ध्रुव P है, फोकस F है तथा व्रकता केन्द्र C है (चित्र 9.17)। इसकी मुख्य अक्ष के किसी बिन्दु पर एक वस्तु AB रखी है। वस्तु के सिरे A से मुख्य अक्ष के समानान्तर चलने वाली आपतित किरण AM दर्पण के बिन्दु M से टकराती है। परावर्तन के पश्चात् यह किरण दर्पण के फोकस F से होकर गुजरती है। दूसरी किरण AO दर्पण के वक्रता केन्द्र से होकर जाती है तथा परावर्तन के पश्चात् उसी मार्ग से वापस लौट जाती है। दोनों परावर्तित किरणें बिन्दु A’ पर काटती हैं। (UPBoardSolutions.com) इस बिन्दु A’ से मुख्य अक्ष पर डाला गया लम्ब A’ B’, वस्तु AB की प्रतिबिम्ब है। अब, माना कि वस्तु AB की दर्पण के ध्रुव से दूरी PB = -u, प्रतिबिम्ब A’B’ की दूरी PB’ = -v, दर्पण की वक्रता त्रिज्या PC = -R तथा दर्पण की फोकस दूरी PF = -f है। (ये सभी दूरियाँ चूंकि आपतित किरण के चलने की दिशा के विपरीत दिशा में नापी जाती हैं अर्थात् दर्पण के बायीं ओर हैं; अत: चिह्न परिपाटी के अनुसार ये दूरियाँ ऋणात्मक हैं।)
ΔABC तथा ΔA’B’C समकोणिक हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments SAQ 2
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प्रश्न 3.
परस्पर सम्पर्क में रखे दो पतले लेन्सों के संयोजन की फोकस दूरी के लिए सूत्र की स्थापना कीजिए। (2011, 15, 16, 17)
या
परस्पर सम्पर्क में रखे दो पतले उत्तल लेन्सों के संयोजन की फोकस दूरी F के लिए सूत्र [latex s=2]\frac { 1 }{ F } =\frac { 1 }{ { f }_{ 1 } } +\frac { 1 }{ { f }_{ 2 } }[/latex] की स्थापना कीजिए, जहाँ f1 तथा f2 क्रमशः दोनों लेन्सों की फोकस दूरियाँ हैं।
या
f1 फोकस दूरी को उत्तल लेन्स f2 फोकस दूरी के अवतल लेन्स के सम्पर्क में रखा है। संयुक्त लेन्स की फोकस दूरी एवं प्रकृति ज्ञात कीजिए, जबकि f1 < f2.
उत्तर-
चित्र 9.18 के अनुसार दो पतले उत्तल लेन्सों L1 व L2 को सम्पर्क में रखकर एक संयुक्त लेन्स बनाया गया है। माना इनकी फोकस दूरियाँ क्रमशः f1 व f2 हैं तथा इस संयुक्त (UPBoardSolutions.com) लेन्स द्वारा बिन्दु-वस्तु O का प्रतिबिम्ब I पर बनता है। प्रतिबिम्ब बनने की प्रक्रिया को निम्न प्रकार समझा जा सकता है-
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यदि L2 लेन्स न हो तो वस्तु O का प्रतिबिम्ब लेन्स L1 द्वारा I’ पर बनता। यदि I’ की L1 से दूरी v’ हो तथा L1 से O की दूरी u हो, तो लेन्स के सूत्र से
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments SAQ 3.1
अब, प्रतिबिम्ब I’ लेन्स L2 के लिए आभासी वस्तु का कार्य करता है जो इसका प्रतिबिम्ब I पर बनाता है। प्रतिबिम्ब I की L2 से दूरी । हो, तो लेन्स के सूत्र से,
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments SAQ 3.2
समी० (1) व समी० (2) को जोड़ने पर
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments SAQ 3.3
यदि इन दोनों लेन्सों के स्थान पर एक ऐसे पतले लेन्स का प्रयोग करें जो u दूरी पर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब v दूरी पर बनाये, तो लेन्स की फोकस दूरी F के लिए।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments SAQ 3.4
समी० (3) व समी० (4) की तुलना करने पर
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments SAQ 3.5
इस सूत्रे से संयुक्त लेन्स की फोकस दूरी की गणना की जा सकती है।
समीकरण (5) प्राप्त करने के लिए दो उत्तल लेन्सों को सम्पर्क में रखा हुआ माना गया है, परन्तु यह समीकरण ऐसे संयुक्त लेन्स के लिए भी सही है जो एक उत्तल एवं एक (UPBoardSolutions.com) अवतल लेन्स से बना हो, अथवा दो अवतल लेन्सों से बना हो। समीकरण (5) का उपयोग करते समय इस बात को ध्यान में रखते हैं कि उत्तल लेन्स के लिए फोकस दूरी धनात्मक एवं अवतल लेन्स की फोकस दूरी ऋणात्मक लेते हैं। यदि L1 उत्तल लेन्स एवं L2 अवतल लेन्स हो, तो
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments SAQ 3.6

  • यदि f1 > f2, तब F ऋणात्मक होगा और संयुक्त लेन्स अवतल लेन्स की भाँति कार्य करेगा।
  • यदि f1 < f2, तब F धनात्मक होगा और संयुक्त लेन्स उत्तल लेन्स की भाँति कार्य करेगा।
  • यदि f1 = f2, तब F अनन्त होगा और संयुक्त लेन्स समतल प्लेट की भाँति कार्य करेगा।

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प्रश्न 4.
एक लेन्स जिसकी फोकस दूरी f है, एक दीप्त वस्तु का चित्र पर्दे पर m गुना बड़ा बनाता है। सिद्ध कीजिए कि पर्दे की लेन्स से दूरी (m + 1) f है। (2011, 13)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments
परन्तु पर्दे पर प्राप्त चित्र वास्तविक होता है जिसके लिए m ऋणात्मक होता है।
अत: समी० (1) में .m के स्थान पर (-m) रखने पर पर्दे की लेन्स से दूरी v = f (1 + m) = (m + 1) f.

प्रश्न 5.
एक उत्तल लेन्स 20 सेमी फोकस दूरी का तथा एक अवतल लेन्स 25 सेमी फोकस दूरी का, सम्पर्क में रखे गये हैं। इस युग्म से 2 मी दूरी पर रखी वस्तु के प्रतिबिम्ब की स्थिति तथा प्रकृति ज्ञात कीजिए। (2013)
हल-
प्रश्नानुसार, उत्तल लेन्स की फोकस-दूरी f1 = +20 सेमी तथा अवतल लेन्स की फोकस-दूरी f2 = -25 सेमी। यदि इन लेसों को परस्पर सम्पर्क में रखने पर बने लेन्स युग्म की फोकस-दूरी F हो, तो
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परन्तु प्रतिबिम्ब के आकार तथा वस्तु के आकार का अनुपात आवर्धन (m) होता है। अतः प्रतिबिम्ब का आकार वस्तु के आकार के बराबर होगा। आवर्धन (m) का (UPBoardSolutions.com) ऋणात्मक चिह्न इस बात का प्रतीक है कि प्रतिबिम्ब उल्टा बनेगा। इस प्रकार प्रतिबिम्ब युग्म से 2 मीटर दूरी पर वस्तु की दिशा की विपरीत दिशा में अर्थात् युग्म के पीछे उल्टा, वास्तविक तथा आकार में वस्तु के बराबर बनेगा।

प्रश्न 6.
दो पतले लेन्स सम्पर्क में रखे हैं। एक लेन्स की फोकस दूरी 30.0 सेमी है। यदि संयोजन की फोकस दूरी 15.0 सेमी हो, तो दूसरे लेन्स की फोकस दूरी ज्ञात कीजिए। यदि एकसमान फोकस दूरी के विपरीत प्रकृति वाले दो लेन्सों को सम्पर्क में रखा जाए, तो संयोजन की. क्षमता क्या होगी? (2015)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments SAQ 6
एकसमान फोकस दूरी एवं विपरीत प्रकृति वाले दो लेन्सों को सम्पर्क में रखने पर, संयोजन की फोकस दूरी अनन्त होगी।
अतः संयोजन की क्षमता शून्य होगी।

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प्रश्न 7.
एक उभयोत्तल लेन्स 1.5 अपवर्तनांक के काँच से बना है। इसके दोनों पृष्ठों की वक्रता त्रिज्याएँ 20 सेमी हैं। लेन्स की क्षमताओं का अनुपात ज्ञात कीजिए जब इसे हवा में रखा जाए और जब इसे 1.25 अपवर्तनांक के द्रव में डुबाया जाए। (2014)
हल-
वायु के लिए लेन्स की क्षमता
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प्रश्न 8.
एक वस्तु से पर्दा 75 सेमी की दूरी पर है। इनके बीच में 12 सेमी फोकस दूरी वाले उत्तल लेन्स को कहाँ रखा जाए, जिससे पर्दे पर वस्तु का वास्तविक प्रतिबिम्ब बन जाए। (2016)
हल-
दिया है, u = 75 सेमी, f = 12 सेमी
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अतः उत्तल लेन्स को 10.3 सेमी की दूरी पर रखा जाएगा।

प्रश्न 9.
एक 10 सेमी वक्रता त्रिज्या वाले काँच (ng = [latex]\frac { 3 }{ 2 }[/latex]) के द्वि-उत्तल लेन्स AB को तल के अनुदिश दो बराबर भागों में काटा जाता है। लेन्स के किसी एक भाग (nω = [latex]\frac { 4 }{ 3 }[/latex]) में डुबाने पर उस भाग की फोकस दूरी की गणना कीजिए। (2017)
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प्रश्न 10.
प्रकाश के दो बिन्दु स्रोतों के बीच की दूरी 30 सेमी है। एक स्रोत से 20 सेमी दूर एक उत्तल लेन्स रखने पर दोनों स्रोतों के प्रतिबिम्ब एक ही बिन्दु पर बनते हैं। उसे उत्तल लेन्स की फोकस दूरी ज्ञात कीजिए तथा संगत किरण आरेख भी बनाइए। (2017)
उत्तर-
चित्रानुसार, O1 व O2 दो प्रकाश स्रोत हैं जिनके बीच की दूरी 30 सेमी है। लेन्स, स्रोत O1 से 20 सेमी की दूरी पर रखा है तथा O2 का (वास्तविक) प्रतिबिम्ब I (UPBoardSolutions.com) बनाता है। स्रोत O2 से लेन्स की दूरी 10 सेमी है तथा प्रश्नानुसार O2 का आभासी प्रतिबिम्ब भी 1 पर ही बनता है।
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प्रश्नानुसार, दोनों वस्तुओं के प्रतिबिम्ब एक ही बिन्दु पर (लेन्स के एक ही ओर) बनते हैं, अत: इनमें से एक वास्तविक तथा दूसरा आभासी होगा अर्थात् लेन्स के समीप वाली वस्तु फोकस से पहले रखी होगी।
स्रोत O1 के लिए, u = -20 सेमी
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प्रश्न 11.
प्रकाश के वर्ण-विक्षेपण से आप क्या समझते हैं? एक प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का वर्णविक्षेपण किस प्रकार होता है? समझाइए।
उत्तर-
श्वेत प्रकाश विभिन्न रंगों के प्रकाश का मिश्रण होता है। जब श्वेत प्रकाश की किरण प्रिज्म पर आपतित होती है तो विभिन्न रंगों की अनेक किरणों में विभाजित हो जाती है। इस प्रक्रिया को प्रकाश को ‘वर्ण-विक्षेपण’ (dispersion) कहते हैं। वर्ण-विक्षेपण का कारण किसी पदार्थिक माध्यमं में भिन्न-भिन्न रंगों में प्रकाश की चाल का भिन्न-भिन्न होना है। अत: किसी पदार्थ का अपवर्तनांक n भिन्न-भिन्न रंगों में प्रकाश के लिए भिन्न-भिन्न होता है। काँच का अपवर्तनांक बैंगनी प्रकाश के लिए सबसे अधिक होता है। अत: सूत्र δm = (n – 1) A (UPBoardSolutions.com) के अनुसार, बैंगनी प्रकाश का विचलन कोण लाल प्रकाश के विचलन कोण से बड़ा होता है। भिन्न-भिन्न रंगों के लिए भिन्न-भिन्न विचलन कोण होने के कारण, श्वेत प्रकाश के प्रिज्म में प्रवेश करने पर इसमें से भिन्न रंगों की किरणें भिन्न-भिन्न दिशाओं में निकलती हैं। बैंगनी रंग के प्रकाश की किरण प्रिज्म के आधार की ओर सबसे अधिक तथा लाल प्रकाश की ओर सबसे कम झुकती है। अत: श्वेत प्रकाश विभिन्न रंगों की किरणों में विभाजित हो जाता है। इसी को वर्ण-विक्षेपण कहते हैं।

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प्रश्न 12.
काँच ([latex s=2]{ _{ a }{ n }_{ g } }=\frac { 3 }{ 2 }[/latex]) पतले प्रिज्म द्वारा प्रकाश किरण का अल्पतम विचलन कोण 60° है। यदि पप्रिज्म को जल ([latex s=2]{ _{ a }{ n }_{ w } }=\frac { 4 }{ 3 }[/latex]) में डुबो देया जाए तो विचलन कोण कितना हो जायेगा? (2012)
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प्रश्न 13.
एक पतले प्रिज्म के पदार्थ के लिए लाल एवं बैंगनी रंगों के अपवर्तनांक 1.65 हैं। पदार्थ की विक्षेपण क्षमता 0.08 है। प्रकाश के पीले रंग के लिए प्रिज्म का विचलन कोण 5.0° है। प्रिज्म कोण की गणना कीजिए। (2011)
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प्रश्न 14.
किसी प्रिज्म के पदार्थ के लिए लाल, बैंगनी, पीले रंग के प्रकाश के अपवर्तनांक क्रमशः 1.51, 1.61 तथा 1.59 हैं। पदार्थ की वर्ण-विक्षेपण क्षमता ज्ञात कीजिए। यदि माध्य विचलन 5° हो, तो कोणीय वर्ण-विक्षेपण कितना होगा? (2012)
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प्रश्न 15.
किसी प्रिज्म से अल्पतम-विचलन कोण 30°, प्रिज्म के प्रथम अपवर्तक पृष्ठ पर अपवर्तन कोण 30° है। प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक ज्ञात कीजिए। (2011, 16)
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प्रश्न 16.
A प्रिज्म कोण वाले प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक Cosec ([latex]\frac { A }{ 2 }[/latex]) है। न्यूनतम विचलन कोण का मान ज्ञात कीजिए। (2014)
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प्रश्न 17.
प्रकाश का प्रकीर्णन क्या है? प्रकीर्णन पर आधारित रमन प्रभाव क्या है? (2016, 18)
हल-
प्रकाश का प्रकीर्णन- माध्यम के कणों द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित कर अन्य दिशाओं में पुनः विकरित करने की क्रिया को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं। बेन्जीन जैसे कार्बनिक द्रव पर प्रकाश के तीव्र किरण पुंज को डालकर उससे प्रकीर्णित प्रकाश का अध्ययन करते हुए देखा कि प्रकीर्णित प्रकाश में आपतित प्रकाश की आवृत्ति v की रेखा के अतिरिक्त उससे कम आवृत्ति (v – v1) (v – v2)… तथा उससे अधिक आवृत्ति (v + v1) (v + v2) …. की भी रेखाएँ प्राप्त होती हैं, जिन्हें स्टोक रेखाएँ तथा प्रतिस्टोक रेखाएँ कहते हैं। इस स्पेक्ट्रम को रमन स्पेक्ट्रम तथा इस प्रभाव को रमन प्रभाव कहते हैं।

प्रश्न 18.
फ्लिण्ट काँच के लिए बैंगनी, पीले तथा लाल रंगों के प्रकाश के लिए अपवर्तनांक क्रमशः 1.632, 1.620 तथा 1.613 है। फ्लिट काँच के पदार्थ की विक्षेपण क्षमता ज्ञात कीजिए। (2016)
हल-
फ्लिण्ट काँच के पदार्थ की विक्षेपण क्षमता
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प्रश्न 19.
(a) 25.0 सेमी तथा 2.5 सेमी फोकस दूरी वाले दो उत्तल लेन्स दिए गए हैं। दूरदर्शी बनाने हेतु इनको किस प्रकार समायोजित करेंगे? एक स्वच्छ चित्र द्वारा प्रतिबिम्ब के बनने को प्रदर्शित कीजिए। इस दूरदर्शी की आवर्धन क्षमता कितनी होगी?
(b) खगोलीय दूरदर्शक के अभिदृश्यक तथा नेत्रिका की फोकस दूरियाँ क्रमशः 250 सेमी व 10 सेमी हैं। अन्तिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की (i) न्यूनतम दूरी पर बनता है, (ii) अनन्तता पर बनता है। दोनों दशाओं में दूरदर्शक की आवर्धक क्षमता की गणना कीजिए। (2015)
हल-
(a) 25.0 सेमी फोकस दूरी वाला उत्तल लेन्स अभिदृश्यक O, तथा 2.5 सेमी वाला नेत्रिका E के रूप में प्रयुक्त किया जायेगा। श्रांत आँख (relaxed eye) से देखने के लिए अन्तिम प्रतिबिम्ब अनन्तता पर बनना चाहिए। इसके लिए नेत्रिका E तथा अभिदृश्यक O के बीच दूरी इतनी (UPBoardSolutions.com) रखते हैं कि दूर-स्थित वस्तु AB का अभिदृश्यक द्वारा बना प्रतिबिम्ब A’B’, नेत्रिका E के फोकस पर पड़े (चित्र 9.21)। स्पष्ट है कि इसके लिए दोनों लेन्सों के बीच दूरी (f0 + fe) के बराबर होगी, जहाँ f0 अभिदृश्यक की तथा fe नेत्रिका की फोकस दूरी है।
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments SAQ 19.1

प्रश्न 20.
सूक्ष्मदर्शी की विभेदन-क्षमता से आप क्या समझते हैं? इसका सूत्र लिखिए तथा बताइए कि यह किस प्रकार बढ़ाई जा सकती है? या किसी सूक्ष्मदर्शी की विभेदन-क्षमता से क्या तात्पर्य है? (2013)
या
सूक्ष्मदर्शी की विभेदन-क्षमता के लिए व्यंजक लिखिए। सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता कैसे बढ़ायी जा सकती है? (2015)
उत्तर-
किसी सूक्ष्मदर्शी की विभेदन- क्षमता उसकी दो समीपवर्ती वस्तुओं के प्रतिबिम्बों को अलग-अलग करने की क्षमता है। सूक्ष्मदर्शी की विभेदन-क्षमता प्रयुक्त प्रकाश की तरंगदैर्घ्य (λ) के व्युत्क्रमानुपाती तथा सूक्ष्मदर्शी में प्रवेश करने वाली प्रकाश-किरणों के शंकु-कोण के अनुक्रमानुपाती होती है।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments SAQ 20
जहाँ λ प्रकाश की तरंगदैर्घ्य है, n वस्तु तथा अभिदृश्यक के बीच माध्यम का निरपेक्ष अपवर्तनांक तथा α = अर्द्ध शंकु-कोण।
सूक्ष्मदर्शी का उपयोग समीप की वस्तुओं को देखने में होता है; जैसे – सूक्ष्म कण, स्लाइडे इत्यादि। इन वस्तुओं को किसी प्रकाश-स्रोत से प्रकाशित करते हैं। इसकी विभेदन-सीमा घटाने के लिए (अथवा विभेदन-क्षमता बढ़ाने के लिए) शंकु-कोण का मान अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है, (UPBoardSolutions.com) परन्तु छोटे तरंगदैर्घ्य के प्रकाश का प्रयोग करके λ का मान घटाया जा सकता है। अतः साधारण प्रकाश के स्थान पर नीला प्रकाश प्रयुक्त करके सूक्ष्मदर्शी की विभेदन-क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।

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प्रश्न 21.
किसी दूरदर्शी की विभेदन-क्षमता से क्या तात्पर्य है? इसका सूत्र लिखिए। दूरदर्शी की विभेदन-क्षमता कैसे बढ़ायी जाती है? (2017)
या
दूरदर्शी की विभेदन-क्षमता का सूत्र लिखिए तथा प्रयुक्त संकेतों के अर्थ लिखिए। यह किन-किन बातों पर निर्भर करती है? (2009)
या
दूरदर्शी की विभेदन क्षमता का सूत्र लिखिए तथा प्रयुक्त प्रतीकों के अर्थ बताइए। इसको . कैसे बढ़ाया जा सकता है? (2011, 12)
उत्तर-
दो समीपवर्ती वस्तुओं को दूरदर्शी द्वारा देखने पर प्रतिबिम्बों को अलग-अलग करने की क्षमता को दूरदर्शी. की ‘विभेदन-क्षमता’ कहते हैं।
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स्पष्ट है कि दूरदर्शी की विभेदन-क्षमता, दूरदर्शी के अभिदृश्यक लेन्से का व्यास (d) बढ़ाकर बढ़ायी जा सकती है अर्थात्, विभेदन-क्षमता अभिदृश्यक के द्वारक तथा प्रकाश की तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करती है।

प्रश्न 22.
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी का नामांकित किरण आरेख बनाइए जब अन्तिम प्रतिबिम्ब अनन्तता पर बनता है। इसकी विभेदन क्षमता कैसे बढ़ायी जा सकती है? (2015)
उत्तर-
श्रांत आँख के लिए अन्तिम प्रतिबिम्ब A”B” अनन्तता पर बनता है। इस दशा में प्रतिबिम्ब A’B’, नेत्रिका E के फोकस F’e पर होगा। संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता के लिए उपर्युक्त प्रश्न (20) देखिए।
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प्रश्न 23.
इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की विभेदन-क्षमता प्रकाशीय इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की तुलना में अधिक क्यों होती है? (2011, 13)
या
इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की उपयोगिता बताइए। (2010)
या
समझाइए कि किसी इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता, प्रकाश सूक्ष्मदर्शी से अधिक क्यों होती है? (2013)
उत्तर-
इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी- आजकल अतिसूक्ष्म वस्तुओं के चित्र लेने के लिए इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी (electron microscope) काम में लाया जाता है। इसमें प्रकाश पुंज के स्थान पर तीव्रगामी इलेक्ट्रॉन पुंज को प्रयुक्त करते हैं। इलेक्ट्रॉन पुंज तरंग की तरह व्यवहार करता है जिसकी तरंगदैर्घ्य (UPBoardSolutions.com) डी-ब्रॉगली के सिद्धान्तानुसार λ = (h/mυ) बहुत छोटी अर्थात् 1 Å की कोटि (order) की होती है। यह दृश्य प्रकाश की तरंगदैर्ध्य से लगभग 5000 गुना छोटी होती है। परन्तु विभेदन-क्षमता तरंगदैर्घ्य के व्युत्क्रमानुपाती होती है। अतः इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की विभेदन-क्षमता, प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शी की तुलना में लगभग 5000 गुना अधिक होती है। यही इस सूक्ष्मदर्शी की उपयोगिता है।

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प्रश्न 24.
एक दूर-दृष्टि दोष वाले मनुष्य का निकट बिन्दु आँख से 150 सेमी पर है। यदि वह 25 सेमी दूर स्थित पुस्तक को पढ़ना चाहता है तो उसे कैसा तथा कितनी फोकस दूरी का लेन्स लगाना होगा? (2014, 17)
हल-
इस व्यक्ति की आँख का निकट-बिन्दु 150 सेमी पर है। उसे एक ऐसा लेन्स चाहिए जो 25 सेमी की दूरी पर स्थित वस्तु का प्रतिबिम्ब 150 सेमी पर बना दे। इस प्रकार लेन्स के लिए u = -25 सेमी तथा v = -150 सेमी
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प्रश्न 25.
एक निकट दृष्टि दोष वाला व्यक्ति 30 सेमी से अधिक दूर की वस्तु को स्पष्ट नहीं देख सकता है। अनन्त पर स्थित वस्तु को देखने के लिए कितनी फोकस दूरी के तथा किस प्रकार के लेन्स की आवश्यकता होगी? (2016)
हल-
दिया है, u = -∞, v = -30 सेमी, f = ?
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अत: व्यक्ति को अनन्त पर स्थित वस्तु को देखने के लिए 30 सेमी फोकस-दूरी के अवतल लेन्स की आवश्यकता होगी।

प्रश्न 26.
दूरदृष्टि दोष वाले व्यक्ति का निकट बिन्दु आँख से 100 सेमी है। आँख से 25 सेमी की दूरी पर रखी किताब को स्पष्ट पढने के लिए कितनी क्षमता का लेन्स आवश्यक है? इसके लिए किस प्रकार के लेन्स का प्रयोग किया जाएगा? (2017)
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प्रश्न 27.
एक दूरदर्शी में अभिदृश्यक एवं नेत्रिका की फोकस दूरियाँ क्रमशः 100 सेमी और 50 सेमी हैं। दूरदर्शी की अधिकतम लम्बाई और आवर्धन क्षमता की गणना कीजिए। (2017)
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
क्रान्तिक कोण तथा पूर्ण आन्तरिक परावर्तन से क्या अभिप्राय है ? सिद्ध कीजिए कि [latex s=2]n=\frac { 1 }{ sinC }[/latex] , जहाँ संकेतों के सामान्य अर्थ हैं।
या
सिद्ध कीजिए कि सघन माध्यम का अपवर्तनांक क्रान्तिक कोण की ज्या (sine) का व्युत्क्रमानुपाती होगा। (2015, 17)
या
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन की व्याख्या कीजिए तथा क्रान्तिक कोण के महत्त्व को रेखांकित कीजिए। (2015)
या
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन से आप क्या समझते हैं? इसकी आवश्यक शर्ते लिखिए। (2015)
उत्तर-
जब कोई प्रकाश-किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती है तो इसका अधिकांश भाग अपवर्तित हो जाता है तथा शेष भाग परावर्तित हो जाता है। इस दशा में प्रकाश-किरण अभिलम्ब से दूर हटती है, अत: अपवर्तन कोण का मान आपतन कोण से बड़ा होता है।
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अब यदि सघने माध्यम में आपतन कोण (i) को बढ़ाते जायें तो विरल माध्यम में अपवर्तन कोण (r) का मान भी बढ़ता जाता है। एक विशेष आपतन कोण के लिए अपवर्तन कोण 90° हो जाता है। इस आपतन कोण को ‘क्रान्तिक कोण’ कहा जाता है तथा ‘C’ से प्रदर्शित करते हैं। अतः क्रान्तिक कोण को निम्न प्रकारे से परिभाषित किया जाता है-
“सघन माध्यम में बना वह आपतन कोण जिसके लिए विरले माध्यम में बना अपवर्तन कोण समकोण अर्थात् 90° होता है, दोनों माध्यमों के अन्तरापृष्ठ के लिए क्रान्तिक कोण कहलाता है।”
जब यदि माध्यम में आपतन कोण का मान क्रान्तिक कोण से आगे थोड़ा-सा ही बढ़ाया जाता है, तो सम्पूर्ण आपतित प्रकाश, परावर्तन के नियमों के अनुसार (UPBoardSolutions.com) परावर्तित होकर सघन माध्यम में ही वापस लौट आता है। इस घटना को प्रकाश का पूर्ण आन्तरिक परावर्तन कहते हैं। अतः पूर्ण आन्तरिक परावर्तन की घटना होने के लिए अग्रलिखित शर्तों का पूरा होना आवश्यक है-

  1. प्रकाश सघनं माध्यम से विरल माध्यम में जाना चाहिए।
  2. सघन माध्यम में आपतन कोण का मान क्रान्तिक कोण से बड़ा होना चाहिए।

अपवर्तनांक तथा क्रान्तिक कोण में सम्बन्ध- यदि विरल माध्यम को माध्यम -1 तथा सघन माध्यम को माध्यम -2 से प्रदर्शित करें तो स्नेल के नियम के अनुसार,
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इस प्रकार क्रान्तिक कोण की ज्या (sin) को व्युत्क्रम विरल माध्यम के सापेक्ष सघन माध्यम के अपवर्तनांक के बराबर होता है।

प्रश्न 2.
प्रकाशिक तन्तु क्या होते हैं? इनकी रचना, कार्य सिद्धान्त तथा अनुप्रयोग लिखिए। इसमें किस घटना का उपयोग होता है? (2015)
या
प्रकाशिक तन्तु नलिका में पूर्ण आन्तरिक परावर्तन की प्रक्रिया चित्र द्वारा समझाइए तथा आवश्यक सूत्र भी लिखिए। (2018)
उत्तर-
प्रकाशिक तन्तु- प्रकाशिक तन्तु पूर्ण आन्तरिक परावर्तन की घटना पर आधारित वह युक्ति है। जिसकी सहायता से एक प्रकाश सिग्नल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक बिना ऊर्जा-ह्रास के प्रक्षेपित किया जा सकता है। रचना-इसको चित्र 9.24 में दर्शाया गया है। यह उच्च कोटि के काँच (क्वार्ट्ज अपवर्तनांक 1.7) के अत्यधिक लम्बे तथा पतले हजारों तन्तुओं (fibers) से मिलकर बना होता है। प्रत्येक (UPBoardSolutions.com) रेशे (तन्तु) की मोटाई लगभग माइक्रो मीटर (10-6 मी) कोटि की होती है। तन्तु (क्वार्ट्ज के रेशे के चारों ओर अपेक्षाकृत कम अपवर्तनांक (n = 1.5) वाले पदार्थ की पतली तह लेपित कर दी जाती है। पाइप के भीतरी भाग को क्रोड (core) तथा लेपित भाग को अधिपट्टन (cladding) कहते हैं। क्रोड के पदार्थ का अपवर्तनांक अधिपट्टन के अपवर्तनांक की तुलना में अधिक होता है।
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इस प्रकार के पाइपों की बड़ी संख्या के समूह को एक पाइप में डाल दिया जाता है जिसे प्रकाश पाइप (light pipe) कहते हैं तथा इसे प्रकाश सिग्नलों के प्रेक्षण में प्रयुक्त किया जाता है।
कार्य सिद्धान्त- जब प्रकाश किरण तन्तु के एक सिरे पर अल्प कोण बनाती हुई आपतित होती है तो यह इसके अन्दर अपवर्तित होकर तन्तु तथा तन्तु के ऊपर किये गये लेप के अन्तरापृष्ठ पर क्रान्तिक कोण से बड़े कोण पर आपतित होती है। अतः यह किरण यहाँ से पूर्ण परावर्तित (UPBoardSolutions.com) होकर इसके सम्मुख वाले अन्तरापृष्ठ पर टकराती है। यहाँ पर यह पुनः क्रान्तिक कोण से बड़े कोण पर आपतित होती है। इसलिए यह पुनः पूर्ण आन्तरिक परावर्तित हो जाती है। इस प्रकार यह किरण बार-बार पूर्ण आन्तरिक परावर्तित होती हुई प्रकाशिक तन्तु के दूसरे सिरे पर पहुँच जाती है। तन्तु के इस सिरे पर यह किरण वायु में अपवर्तित होकर अभिलम्ब से दूर हटती हुई तीव्रता के कम हुए बिना बाहर निकल जाती है।

अनुप्रयोग- इनके अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं-
1. संचार प्रणाली में प्रकाशिक तन्तु से संदेशों को मॉडुलन (modulation) द्वारा एक साथ एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जा सकता है। संदेशों की अधिक संख्या उच्च आवृत्ति वाली वैद्युत-चुम्बकीय तरंगों द्वारा मॉडुलित करके एक साथ संचारित की जा सकती है। प्रकाश अति उच्च आवृत्ति वाली वैद्युत-चुम्बकीय तरंग है। इनका संचरण सुचालक तार के स्थान पर प्रकाशिक तन्तु द्वारा किया जा सकता है। आधुनिक युग में प्रकाशिक तन्तुओं का उपयोग टेलीफोन व संचार लाइनों के रूप (UPBoardSolutions.com) में हो रहा है।
2. प्रकाशीय तन्तु विद्युत संकेतों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक संचरित करने में काम आते हैं। ये विद्युत संकेत परांतरित्र (transducer) द्वारा प्रकाश में परिवर्तित कर दिये जाते हैं। अब इन प्रकाशीय संकेतों को प्रकाश तन्तुओं द्वारा दूरस्थ स्थानों तक भेज दिया जाता है।
3. प्रकाशीय तन्तुओं द्वारा वस्तुओं के प्रतिबिम्बों को दूरस्थ स्थानों पर भेजा जा सकता है।
4. इनका प्रयोग सजावट करने वाले लैम्पों में किया जाता है। फव्वारों में जल की धारा को प्रकाशित करने में इनका प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 3.
किसी गोलीय पृष्ठ पर अपवर्तन का सूत्र, प्रयुक्त चिह्नों का अर्थ बताते हुए लिखिए तथा इसकी सहायता से पतले लेन्स के लिए सम्बन्ध [latex s=2]\frac { 1 }{ f } =\left( n-1 \right) \left( \frac { 1 }{ { R }_{ 1 } } -\frac { 1 }{ { R }_{ 2 } } \right)[/latex] सिद्ध कीजिए। (2009, 15)
या
किसी लेन्स की फोकस दूरी के लिये उसके दोनों पृष्ठों की वक्रता त्रिज्याओं तथा उसके पदार्थ के अपवर्तनांक के पदों में एक व्यंजक का निगमन कीजिए। यदि काँच के लेन्स को ऐसे व्रव में डुबा दिया जाये जिसका अपवर्तनांक काँच के अपवर्तनांक से अधिक हो, तो इसकी फोकस दूरी में क्या परिवर्तन हो जाएगा? (2010)
या
किसी गोलीय पृष्ठ पर प्रकाश के अपवर्तन का सूत्र लिखिए। इसकी सहायता से किसी पतले लेन्स की फोकस दूरी के लिए सूत्र [latex s=2]\frac { 1 }{ f } =\left( n-1 \right) \left( \frac { 1 }{ { R }_{ 1 } } -\frac { 1 }{ { R }_{ 2 } } \right)[/latex] स्थापित कीजिए। (2012, 14, 16, 17)
या
यदि एक लेन्स के दोनों ओर माध्यम एक ही हो, तो पतले लेन्स की फोकस दूरी के लिए अपवर्तनांक और वक्रता त्रिज्याओं के पदों में सूत्र व्युत्पन्न कीजिए। यदि एक काँच लेन्स, काँच की अपेक्षा अधिक अपवर्तनांक के एक द्रव में डुबोया जाये तो इसकी फोकस दूरी एवं प्रकृति कैसे परिवर्तित होगी?
उत्तर-
गोलीय पृष्ठ पर अपवर्तन का सूत्र
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments LAQ 3
जहाँ n पृष्ठ के पदार्थ का वायु के सापेक्ष अपवर्तनांक है, u वस्तु की ध्रुव से दूरी है, v प्रतिबिम्ब की ध्रुव से दूरी है तथा R पृष्ठ की वक्रता-त्रिज्या है।
पतले लेन्स के लिए अपवर्तन का सूत्र- चित्र 9.25 में एक पतला लेन्स L वायु में रखा है। लेन्स के पदार्थ का वायु के सापेक्ष अपवर्तनांक n है तथा इसके पहले व दूसरे (UPBoardSolutions.com) पृष्ठों की वक्रता-त्रिज्याएँ क्रमशः R1 व R2 हैं। माना लेन्स की मोटाई t है। एक बिन्दु-वस्तु O लेन्स की मुख्य अक्ष पर लेन्स के प्रथम पृष्ठ के ध्रुवे P1 से u दूरी पर रखी है। यह पृष्ठ O का प्रतिबिम्ब I’ बनाता है।
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments LAQ 2.2
यही पतले लेन्स के अपवर्तन का सूत्र है। यदि काँच के लेन्स को ऐसे द्रव में डुबो दिया जाये जिसका अपवर्तनांक काँच के अपवर्तनांक से अधिक है, तो लेन्स की फोकस दूरी बढ़ जायेगी तथा इसके साथ-साथ फोकस दूरी का चिह्न भी उलट जायेगा अर्थात् लेन्स की प्रकृति उलट जायेगी।

प्रश्न 4.
एक 25 सेमी फोकस दूरी का उत्तल लेन्स 20 सेमी फोकस दूरी के अवतल लेन्स के सम्पर्क में रखा जाता है। इस संयोजन की क्षमता तथा प्रकृति ज्ञात कीजिए। संयोजन को 1.6 अपवर्तनांक वाले द्रव में रखे जाने पर फोकस दूरी तथा प्रकृति पर क्या प्रभाव पड़ेगा? लेन्सों के पदार्थ का अपवर्तनांक 1.5 है। (2014)
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प्रश्न 5.
एक वस्तु किसी पर्दे से 60.0 सेमी की दूरी पर स्थित है। एक उत्तल लेन्स को इनके बीच दो भिन्न स्थानों पर रखने से पर्दे पर दो बार वास्तविक प्रतिबिम्ब बनते हैं। यदि प्रतिबिम्बों की लम्बाइयाँ 9.0 सेमी तथा 4.0 सेमी हों तो वस्तु की लम्बाई तथा लेन्स की फोकस दूरी ज्ञात कीजिए।
हल-
हम जानते हैं कि, विस्थापन विधि में
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प्रश्न 6.
लेन्स द्वारा प्रकाश के अपवर्तन के लिए न्यूटन का सूत्र xx’ = ff’ स्थापित कीजिए। (2017)
उत्तर-
सूत्र की उपपत्ति- माना एक लेन्स का प्रकाशिक केन्द्र C है। F व F’ इसके फोकस बिन्दु तथा OCI मुख्य अक्ष है। O एक वस्तु है जिसका लेन्स द्वारा निर्मित प्रतिबिम्ब I है। इस प्रकार O तथा I संयुग्मी बिन्दु (conjugate points) हैं। O’ से चलने वाली आपतित किरण O’A जो मुख्य अक्ष के (UPBoardSolutions.com) समान्तर है, अपवर्तन के पश्चात् लेन्स के फोकस F से होकर जाती है। दूसरी किरण O’B प्रथम फोकस बिन्दु से गुजरती हुई लेन्स से अपवर्तन के पश्चात् मुख्य अक्ष के समान्तर हो जाती है। दोनों निर्गत किरणें I’ पर मिलती हैं, जो O’ का वास्तविक प्रतिबिम्ब है। I’ से मुख्य अक्ष पर खींचा गया लम्ब II’ वस्तु OO’ का प्रतिबिम्ब है।
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प्रश्न 7.
किसी उत्तल या अवतल गोलीय पृष्ठ पर आपतित प्रकाश के अपवर्तन के लिए सूत्र [latex s=2]\frac { n }{ v } -\frac { 1 }{ u } =\frac { n-1 }{ R }[/latex] स्थापित कीजिए। n पदार्थ का वायु के सापेक्ष अपवर्तनांक तथा R गोलीय तल की त्रिज्या है। (2017)
उत्तर-
माना कि SPS’ एक उत्तल गोलीय पृष्ठ है जो निरपेक्ष अपवर्तनांक n1 के विरल माध्यम को निरपेक्ष अपवर्तनांक n2 के सघन माध्यम से पृथक् करता है। इस पृष्ठ का वक्रता केन्द्र C है तथा ध्रुव P है।

इसके मुख्य अक्ष PC पर (पीछे बढ़ाने पर) एक बिन्दु वस्तु O स्थित है। O से एक आपतित किरण OA, पृष्ठ पर बिन्दु A पर आपतित होती है, जहाँ CAN अभिलम्ब है। अपवर्तन के नियमानुसार, अपवर्तित किरण AB, अभिलम्ब की ओर मुड़ जाती है। दूसरी आपतित किरण OP पृष्ठ पर अभिलम्बवत् (UPBoardSolutions.com) गिरती है, अतः बिना विचलित हुए सीधी चली जाती है। ये दोनों अपवर्तित किरणें पीछे बढ़ाये जाने पर बिन्दु I पर मिलती हैं। अतः वस्तु 0 का आभासी प्रतिबिम्ब बिन्दु I है।
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प्रश्न 8.
प्रिज्म के पदार्थ के लिए अपवर्तनांक का सूत्र अल्पतम विचलन कोण तथा प्रिज्म कोण के पदों में निगमित कीजिए। (2009, 10, 11)
या
[latex s=2]n=\frac { sin\left( \frac { A+{ \delta }_{ m } }{ 2 } \right) }{ sin\left( \frac { A }{ 2 } \right) }[/latex] का निगमन कीजिए। यहाँ n प्रिज्म का अपवर्तनांक, A प्रिज्म का कोण तथा अल्पतम विचलन है। या किसी प्रिज्म के पदार्थ के अपवर्तनांक के लिये, प्रिज्म के कोण तथा न्यूनतम विचलन कोण के पदों में एक व्यंजक निकालिए। (2012)
उत्तर-
प्रिज्म के पदार्थ के अपवर्तनांक का सूत्र- चित्र 9.28 में, ABC प्रिज्म का मुख्य परिच्छेद है। प्रिज्म का अपवर्तन कोण A है। माना एक प्रकाश किरण RS, प्रिज्म के अपवर्तक पृष्ठ AB पर तिरछी आपतित होती है जो अभिलम्ब MSE की ओर झुक जाती है और ST दिशा में अपवर्तित हो जाती है। इस पृष्ठ पर आपतन कोण i1 वे अपवर्तन कोण r1 है। अपवर्तित किरण ST’ पृष्ठ AC पर अभिलम्ब NTE से दूर हटती हुई वायु (UPBoardSolutions.com) में TU दिशा में निकल जाती है। पृष्ठ AC पर आपतन कोण, तथा निर्गत कोण i2 है। आपतित किरण RS तथा निर्गत किरण TU को पीछे की ओर बढ़ाने पर ये बिन्दु D पर मिलती हैं। आपतित किरण तथा निर्गत किरणों के बीच बना कोण δ विचलन कोण कहलाता है।
ΔDST में δ बहिष्कोण है, अत:
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प्रश्न 9.
किसी प्रकाशिक माध्यम की ‘वर्ण-विक्षेपण क्षमता की परिभाषा दीजिए। किसी प्रिज्म के पदार्थ के लिए वर्ण-विक्षेपण क्षमता का सूत्र अपवर्तनांक के पदों में प्राप्त कीजिए। या किसी प्रकाशिक माध्यम की विक्षेपण क्षमता की परिभाषा लिखिए। (2016)
या
किसी प्रकाशिक माध्यम की वर्ण-विक्षेपण क्षमता का सूत्र लिखिए। क्या वर्ण-विक्षेपण क्षमता प्रिज्म के कोण पर निर्भर करती है? या किसी प्रिज्म की वर्ण-विक्षेपण क्षमता की परिभाषा दीजिए। (2010)
या
वर्ण-विक्षेपण क्षमता की परिभाषा दीजिए। (2013)
उत्तर-
जब श्वेत प्रकाश एक पतले प्रिज्म में से गुजरता है तो बैंगनी तथा लाल रंगों की निर्गत किरणों के बीच उत्पन्न कोणीय वर्ण-विक्षेपण तथा मध्यवर्ती (अर्थात् पीले रंग की) (UPBoardSolutions.com) किरण के लिए विचलन कोण के अनुपात को प्रिज्म के पदार्थ की’वर्ण-विक्षेपण क्षमता’ (dispersive power) कहते हैं। इसे ω (ओमेगा) से प्रदर्शित करते हैं। अपवर्तनांक के पदों में वर्ण-विक्षेपण क्षमता सूत्र
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प्रश्न 10.
उपयुक्त किरण आरेख द्वारा प्रिज्म के कोणीय वर्ण-विक्षेपण का सूत्र निकालिए। (2014)
उत्तर-
कोणीय वर्ण-विक्षेपण (परिक्षेपण) (Angular dispersion)- “दो रंगों की निर्गत किरणों के बीच का कोण उन रंगों के लिए कोणीय वर्ण-विक्षेपण (angular dispersion) कहलाता है।”
यदि δR व δv क्रमश: लाल तथा बैंगनी रंग की किरणों के लिए (अल्पतम) विचलन कोण हों तो उनके बीच कोणीय वर्ण-विक्षेपण θ = δV – δR
माना कि प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक A है तथा nR व nV क्रमशः लाल व बैंगनी रंगों के लिए प्रिज्म के पदार्थ के अपवर्तनांक हैं। तब, पतले प्रिज्म से उत्पन्न विचलन के लिए
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प्रश्न 11.
निकट दृष्टि दोष क्या है ? इसके क्या कारण हो सकते हैं? इसका निवारण किस प्रकार किया जाता है ? (2017)
या
निकट दृष्टि दोष क्या है? इसका निवारण किस प्रकार किया जाता है? (2014)
या
निकट दृष्टि दोष क्या है? (2016)
उत्तर-
निकट-दृष्टि दोष (Myopia or shortsightedness)- निकट दृष्टि दोष वाले व्यक्ति को पास की वस्तुएँ तो स्पष्ट दिखायी देती हैं; परन्तु अधिक दूर की वस्तुएँ स्पष्ट दिखायी नहीं देतीं अर्थात् नेत्र का दूर बिन्दु अनन्त पर न होकर कम दूरी पर आ जाता है। इस दोष के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं।

  1. नेत्र लेन्स की वक्रता बढ़ जाए जिससे उसकी फोकस दूरी कम हो जाए।
  2. नेत्र लेन्स और रेटिना के बीच की दूरी बढ़ जाए अर्थात् नेत्र के गोले में लम्बापन आ जाए।

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इस दोष के कारण दूर की वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर न बेनकर उससे आगे बनने लगता है (चित्र 9.30) अर्थात् प्रतिबिम्ब रेटिना व नेत्र लेन्स के बीच P पर बन जाने से वस्तु स्पष्ट नहीं दिखती। ऐसे मनुष्य का दूर बिन्दु अनन्त पर न होकर आँख के काफी पास बनता है तथा निकट बिन्दु भी 25 सेमी से कम दूरी पर बनता है। दोष का निवारण-इस दोष में नेत्र का लेन्स अधिक अभिसारी (converging) (UPBoardSolutions.com) हो जाता है; अत: इस दोष को दूर करने के लिए ऐसा लेन्स प्रयुक्त करना चाहिए जो नेत्र लेन्स को कम अभिसारी कर दे। इसलिए इस दोष को दूर करने के लिए उचित फोकस दूरी के अवतल लेन्स का प्रयोग करते हैं, ताकि इसे लेन्स तथा नेत्र लेन्स की संयुक्त फोकस दूरी बढ़कर इतनी हो जाए कि प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनने लगे।
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यदि निकट दृष्टि दोष वाले व्यक्ति का आँख के लिए दूर बिन्दु O हो, तो प्रयुक्त अवतल लेन्स अनन्त से आने वाली समान्तर किरणों का प्रतिबिम्ब O पर बनाएगा। यह प्रतिबिम्ब नेत्र लेन्स के लिए वस्तु का कार्य करेगा, जिससे अन्तिम प्रतिबिम्ब (I) रेटिना पर बनने लगेगा (चित्र 9.31)। स्पष्टतः प्रयुक्त लेन्स की फोकस दूरी नेत्र से नेत्र के दूर बिन्दु के बीच की दूरी के बराबर होगी।

प्रश्न 12.
दूर दृष्टि दोष क्या है ? इसके क्या कारण हो सकते हैं ? इसका निवारण किस प्रकार किया जाता है? (2017)
या
आँख का दूर दृष्टि दोष क्या है? इसका निवारण कैसे किया जाता है? (2014)
उत्तर-
दूर-दृष्टि दोष (Hypermetropia or longsightedness)- दूर दृष्टि दोष मनुष्य की आँख को वह दोष है, जिसमें मनुष्य दूर की वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है; परन्तु पास की वस्तुएँ स्पष्ट दिखायी नहीं पड़तीं। इसके निम्न दो कारण हो सकते हैं-

  1. नेत्र लेन्स की फोकस दूरी अधिक हो जाए अर्थात् लेन्स पतला हो जाए।
  2. आँख के गोले का व्यास कम हो जाए अर्थात् नेत्र लेन्स व रेटिना के बीच की दूरी कम हो जाए।

इन कारणों से पास की वस्तुओं के प्रतिबिम्ब रेटिना पर न बनकर उसके पीछे बनते हैं (चित्र 9.32)। दूसरे शब्दों में, नेत्र का निकट बिन्दु 25 सेमी से अधिक दूर हो जाता है।
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दोष का निवारण- चूँकि इस दोष में नेत्र लेन्स की फोकस दूरी बढ़ जाती है जिससे नेत्र लेन्स कम अभिसारी (converging) हो जाता है; अतः इस दोष को दूर करने के लिए एक-ऐसा लेन्स प्रयुक्त करना चाहिए जिससे वह अधिक अभिसारी हो जाए। इस दोष को दूर करने के लिए उपयुक्त फोकस दूरी का उत्तल लेन्स प्रयुक्त करते हैं ताकि इस लेन्स तथा नेत्र-लेन्स की संयुक्त फोकस दूरी इतनी हो जाये कि प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनने लगे।

माना सामान्य आँख का निकट बिन्दु N तथा दूर दृष्टि से पीड़ित आँख का निकट बिन्दु O पर है। प्रयुक्त उत्तल लेन्स N पर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब O पर बनाने लगे, (UPBoardSolutions.com) तब प्रतिबिम्ब O नेत्र लेन्स के लिए वस्तु का कार्य करेगा तथा नेत्र लेन्स अन्तिम प्रतिबिम्ब रेटिना पर बना देगा। इस प्रकार उचित फोकस दूरी का उत्तल लेन्स प्रयुक्त करने पर सामान्य निकट बिन्दु N पर रखी वस्तु भी आँख को स्पष्ट दिखाई देगी (चित्र 9.33)।
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प्रश्न 13.
एक अपवर्तनी खगोलीय दूरदर्शी का किरण आरेख खींचिए जब अन्तिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बनता है। इसकी आवर्धन क्षमता के लिए व्यंजक भी स्थापित कीजिए। (2016, 17)
या
खगोलीय दूरदर्शी का किरण आरेख बनाइए। जब अन्तिम प्रतिबिम्ब अनन्तता पर बन रहा है। दूरदर्शी में अभिदृश्यक लेन्स का द्वारक बड़े आकार का क्यों लिया जाता है? (2015)
या
खगोलीय दूरदर्शी द्वारा अन्तिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बनने का किरण आरेख बनाइए। (2017)
उत्तर-
खगोलीय दूरदर्शी (Astronomical Telescope)- खगोलीय दूरदर्शी एक ऐसा प्रकाशिक यन्त्र है जिसके द्वारा उना दूर स्थित वस्तु का प्रतिबिम्ब का आँख पर बड़ा दर्शन कोण बनाता है जिससे कि वह वस्तु आँख को बड़ी दिखायी पड़ती है।

रचना- इसमें धातु की एक लम्बी बेलनाकार नली होती है जिसके एक सिरे पर बड़ी फोकस-दूरी तथा बड़े द्वारक का अवर्णक उत्तल लेन्स लगा होता है, जिसे ‘अभिदृश्यक लेन्स’ कहते हैं। नली के दूसरे सिरे पर एक अन्य छोटी नली फिट होती है जो दन्तुर दण्ड-चक्र (रैक-पिनयन) व्यवस्था द्वारा बड़ी नली में आगे-पीछे खिसकाई जा सकती है। छोटी नली के बाहरी सिरे पर एक छोटी फोकस-दूरी तथा छोटे द्वारकं को अवर्णक उत्तल लेन्स लगा रहता है जिसे अभिनेत्र लेन्स अथवा नेत्रिका कहते हैं। नेत्रिका के फोकस पर क्रॉस-तार लगे रहते हैं।

समायोजन- सबसे पहले नेत्रिको को छोटी नली में आगे-पीछे खिसकाकर क्रॉस-तार पर फोकस करे लेते हैं। फिर जिस वस्तु को देखना हो उसकी ओर अभिदृश्यक लेन्स को दिष्ट कर देते हैं। दन्तुर-दण्ड-चक्र व्यवस्था द्वारा छोटी नली को लम्बी नली में आगे-पीछे खिसकाकर (UPBoardSolutions.com) अभिदृश्यक लेन्स की क्रॉस-तार से दूरी इस प्रकार समायोजित करते हैं कि वस्तु के प्रतिबिम्ब और क्रॉस-तार में लम्बन न रहे। इस स्थिति में वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब दिखाई देगा। यह प्रतिबिम्ब लेन्सों द्वारा प्रकाश के अपवर्तन से बनता है। अतः यह दूरदर्शी अपवर्तक’ दूरदर्शी है।

प्रतिबिम्ब का बनना- चित्र 9.34 में दूरदर्शी का अभिदृश्यक लेन्स O तथा नेत्रिका E। दिखाये गये हैं। AB एक दूर-स्थित वस्तु है। जिसका A सिरा दूरदर्शी की अक्ष पर है। लेन्स -14 0 के द्वारा AB का वास्तविक, उल्टा व छोटा प्रतिबिम्ब A’B’, लेन्स के द्वितीय फोकस F0 पर बनता है। यह प्रतिबिम्ब नेत्रिका E के प्रथम फोकस Fe के भीतर है तथा नेत्रिका के लिए वस्तु का कार्य करता है। अतः नेत्रिका, A’B’ का आभासी, सीधा तथा बड़ा प्रतिबिम्ब A”B” बनाती है। B” की स्थिति ज्ञात करने के लिए, B’ से दो विछिन्न किरणें (………) ली गई हैं। एक किरण जो E के प्रकाशिक-केन्द्र में से जाती है, सीधी चली जाती है तथा दूसरी किरण जो मुख्य अक्ष से समान्तर ली गई है, E के दूसरे फोकस F, से होकर जाती है। ये किरणें पीछे बढ़ाने पर बिन्दु B” पर मिलती हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments LAQ 13आवर्धन-क्षमता- दूरदर्शी की आवर्धन-क्षमता (कोणीय आवर्धन)
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments LAQ 13.2
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प्रश्न 14.
किसी परावर्ती दूरदर्शी का किरण आरेख खींचकर उसमें प्रतिबिम्ब का बनना प्रदर्शित कीजिए। (2009, 16, 17)
या
परावर्ती दूरदर्शी का किरण आरेख खींचिए तथा इसकी आवर्धन-क्षमता का सूत्र लिखिए जब प्रतिबिम्ब (i) अनन्त पर बन रहा हो। (ii) स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बन रहा हो। (2011)
या
परावर्ती दूरदर्शी में प्रतिबिम्ब का बनना किरण-आरेख द्वारा समझाइए। अपवर्ती दूरदर्शी की तुलना में परावर्ती दूरदर्शी का क्या लाभ है? (2009, 10, 11)
या
परावर्ती दूरदर्शी का किरण आरेख खींचिए तथा इसकी कार्यविधि समझाइए। किसी दूरदर्शी की विभेदन क्षमता कैसे बढ़ाई जा सकती है? (2012)
या
परावर्ती दूरदर्शी की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2017)
या
किसी परावर्ती दूरदर्शी से प्रतिबिम्ब का बनना किरण आरेख द्वारा समझाइए। अपवर्ती दूरदर्शी की अपेक्षा परावर्ती दूरदर्शी क्यों अच्छी होती है? (2017)
उत्तर-
परावर्ती दूरदर्शी की रचना एवं उसके द्वारा प्रतिबिम्ब बनने की किरण आरेख चित्र 9.36 में प्रदर्शित किया गया है। इसमें अभिदृश्यक एक बड़े आकार तथा बड़ी फोकस दूरी का अवतल दर्पण M1 होता है जो एक चौड़ी नली के एक सिरे पर। लगा रहता है। नली का खुला सिरा दूर स्थित वस्तु की (UPBoardSolutions.com) ओर करके रखा जाता है। नली में अवतल दर्पण के फोकस से कुछ पहले एक समतल दर्पण M2 मुख्य अक्ष से 45° कोण पर झुका हुआ रखा जाता है। दूरदर्शी की इस चौड़ी नली के बगल में एक पतली नली लगी होती है जिसमें कम फोकस दूरी तथा छोटी द्वारक का एक अवर्णक उत्तल लेन्स E लगा रहता है, जिसे नेत्रिका कहते हैं।
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अवतल दर्पण M1 दूर स्थित वस्तु AB से आने वाली समान्तर किरणों को अपने फोकस पर केन्द्रित करता है। परन्तु ये किरणें फोकस पर केन्द्रित होने से पूर्व फोकस से पहले 45° कोण पर झुके समतल दर्पण M2 पर आपतित होती हैं। समतल दर्पण इन किरणों को परावर्तित (UPBoardSolutions.com) करके AB का छोटा, वास्तविक, उल्टा प्रतिबिम्बे A1B1 बनाता है। नेत्रिका E द्वारा A1B1 का वास्तविक, सीधा तथा बड़ा प्रतिबिम्ब A2B2 स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी तथा अनन्त के बीच में बन जाता है। जब प्रतिबिम्ब A1B1 नेत्रिका के फोकस पर बन जाता है, तो अन्तिम प्रतिबिम्ब A2B2 अनन्त पर बनेगा।
आवर्धन क्षमता सूत्र
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments LAQ 14.1
अपवर्ती दूरदर्शी की तुलना में परावर्ती दूरदर्शी के लाभ- अपवर्ती दूरदर्शी की तुलना में परावर्ती दूरदर्शी के निम्नलिखित लाभ हैं-

  1. परावर्ती दूरदर्शक में प्रकाश अवशोषण बहुत कम होता है; अत: इससे निर्मित प्रतिबिम्ब, समान द्वारक के अपवर्ती दूरदर्शक की अपेक्षा अधिक चमकीला होता है।
  2. परावर्ती दूरदर्शक से बना अन्तिम प्रतिबिम्ब वर्ण-विपथन दोष से पूर्णतः मुक्त होता है।
  3. इसमें परवलयाकार दर्पणों के प्रयोग (UPBoardSolutions.com) से गोलीय विपथन दोष भी स्वतः दूर हो जाता है जिससे प्रतिबिम्ब टेढ़े दिखायी नहीं देते।
  4. दूरदर्शी से दूर-स्थित वस्तु को चमकीला प्रतिबिम्ब बनाने के लिए उसके अभिदृश्यक का द्वारक बड़ा (large) होना आवश्यक है। तकनीकी दृष्टि से बड़े द्वारक के लेन्स को ढालने (casting) की क्रिया में उसके पदार्थ में विकृति आ जाती है, क्योंकि बड़े आकार के गर्म काँच को एकसमान (uniformly) ठण्डा करना कठिन होता है। फलस्वरूप इनसे निर्मित प्रतिबिम्ब भी विकृत हो जाते हैं। चूँकि दर्पण से परावर्तन द्वारा प्रतिबिम्ब निर्मित होते हैं, प्रकाश की किरण केवल दर्पण के पृष्ठ को स्पर्श करती है, उसके पदार्थ में होकर नहीं गुजरती है। अत: दर्पण के पदार्थ में कोई विकृति होने पर उसका प्रतिबिम्ब पर प्रभाव नहीं पड़ता।
  5. दूरदर्शी की विभेदन क्षमता = d/1.22 λ अतः अभिदृश्यक का द्वारक d बढ़ाकर दूरदर्शी की विभेदन क्षमता बढ़ायी जा सकती है।
  6. परावर्ती दूरदर्शी में परवलयाकार दर्पण के उपयोग से प्रतिबिम्ब में गोलीय विपथन के दोष को दूर किया जा सकता है।

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प्रश्न 15.
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी का नामांकित किरण आरेख बनाइए तथा इसकी आवर्धन क्षमता का सूत्र ज्ञात कीजिए, जब अन्तिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बनता है। (2016)
उत्तर-
आवर्धन-क्षमता- माना कि अन्तिम प्रतिबिम्ब A” B” नेत्रिका E पर β कोण बनाता है। आँख नेत्रिका के समीप है, अतः A” B” द्वारा आँख पर बनने वाले कोण को भी β मान सकते हैं। माना कि यदि वस्तु AB आँख से स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी D पर हो, तो वह आँख पर α कोण बनाती है। अब, सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन-क्षमता
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We hope the UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments (किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments (किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 Environmental Issues

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 Environmental Issues (पर्यावरण के मुद्दे) are part of UP Board Solutions for Class 12 Biology. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 Environmental Issues (पर्यावरण के मुद्दे).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Biology
Chapter Chapter 16
Chapter Name Environmental Issues
Number of Questions Solved 41
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 Environmental Issues (पर्यावरण के मुद्दे)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
घरेलू वाहितमल के विभिन्न घटक क्या हैं? वाहितमल के नदी में विसर्जन से होने वाले प्रभावों की चर्चा करें।
उत्तर
घरेलू वाहितमल मुख्य रूप से जैव निम्नीकरणीय कार्बनिक पदार्थ होते हैं जिनका अपघटन आसानी से होता है। इसका परिणाम सुपोषण होता है। घरेलू वाहितमल के विभिन्न घटक निम्नलिखित हैं –

  1. निलंबित ठोस – जैसे- बालू, गाद और चिकनी मिट्टी।
  2. कोलॉइडी पदार्थ – जैसे- मल पदार्थ, जीवाणु, वस्त्र और कागज के रेशे।
  3. विलीन पदार्थ जैसे – पोषक पदार्थ, नाइट्रेट, अमोनिया, फॉस्फेट, सोडियम, कैल्शियम आदि।

वाहितमल के नदी में विसर्जन से होने वाले प्रभाव इस प्रकार हैं –

  1. अभिवाही जलाशय में जैव पदार्थों के जैव निम्नीकरण से जुड़े सूक्ष्मजीव ऑक्सीजन की काफी मात्रा का उपयोग करते हैं। वाहित मल विसर्जन स्थल पर भी अनुप्रवाह जल में घुली ऑक्सीजन की मात्रा में तेजी से गिरावट आती है और इसके कारण मछलियों तथा जलीय जीवों की मृत्युदर में वृद्धि हो जाती है।
  2. जलाशयों में काफी मात्रा में पोषकों की उपस्थिति के कारण प्लवकीय शैवाल की अतिशय वृद्धि होती है, इसे शैवाल प्रस्फुटन कहा जाता है। शैवाल प्रस्फुटन के कारण जल की गुणवत्ता घट जाती है और मछलियाँ मर जाती हैं। कुछ प्रस्फुटनकारी शैवाल मनुष्य और जानवरों के लिए अत्यधिक विषैले होते हैं।
  3. वाटर हायसिंथ पादप जो विश्व के सबसे अधिक समस्या उत्पन्न करने वाले जलीय खरपतवार हैं और जिन्हें बंगाल का आतंक भी कहा जाता है, पादप सुपोषी जलाशयों में काफी वृद्धि करते हैं और इसकी पारितंत्रीय गति को असन्तुलित कर देते हैं।
  4. हमारे घरों के साथ-साथ अस्पतालों के वाहितमल में बहुत से अवांछित रोगजनक सूक्ष्मजीव हो। सकते हैं और उचित उपचार के बिना इनको जल में विसर्जित करने से गम्भीर रोग, जैसे- पेचिश, टाइफाइड, पीलिया, हैजा आदि हो सकते हैं।

प्रश्न 2.
आप अपने घर, विद्यालय या अपने अन्य स्थानों के भ्रमण के दौरान जो अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं, उनकी सूची बनाएँ। क्या आप उन्हें आसानी से कम कर सकते हैं? कौन से ऐसे अपशिष्ट हैं जिनको कम करना कठिन या असम्भव होगा?
उत्तर
अपशिष्टों की सूची इस प्रकार है –

  1. कागज, कपड़ा, पॉलीथिन बैग
  2. डिस्पोजेबल क्रॉकरी
  3. ऐलुमिनियम पन्नी, टिन का डिब्बा
  4. शीशा।

अपशिष्ट जिन्हें कम किया जा सकता है –

  1. कागज
  2. कपड़ा।

अपशिष्ट जिन्हें कम नहीं किया जा सकता है –

  1. ऐलुमिनियम पन्नी, टिन का डिब्बा
  2. डिस्पोजेबल क्रॉकरी
  3. पॉलीथिन बैग
  4. शीशा।

प्रश्न 3.
वैश्विक उष्णता में वृद्धि के कारणों और प्रभावों की चर्चा करें। वैश्विक उष्णता वृद्धि को नियन्त्रित करने वाले उपाय क्या हैं?
उत्तर
वैश्विक उष्णता में वृद्धि के कारण – ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि के कारण पृथ्वी की। सतह का ताप काफी बढ़ जाता है जिसके कारण विश्वव्यापी उष्णता होती है। गत शताब्दी में पृथ्वी के तापमान में 0.6°C वृद्धि हुई है। इसमें से अधिकतर वृद्धि पिछले तीन दशकों में ही हुई है। एक सुझाव के अनुसार सन् 2100 तक विश्व का तापमान 1.40 – 5.8°C बढ़ सकता है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि तापमान में इस वृद्धि से पर्यावरण में हानिकारक परिवर्तन होते हैं जिसके परिणामस्वरूप विचित्र जलवायु-परिवर्तन होते हैं। इसके फलस्वरूप ध्रुवीय हिम टोपियों और अन्य जगहों, जैसे हिमालय की हिम चोटियों का पिघलना बढ़ जाता है। कई वर्षों बाद इससे समुद्र तल का स्तर बढ़ेगा जो कई समुद्र तटीय क्षेत्रों को जलमग्न कर देगा।
वैश्विक उष्णता के निम्नांकित प्रभाव हो सकते हैं

  1. अन्न उत्पादन कम होगा
  2. भारत में होने वाली मौसमी वर्षा पूर्ण रूप से बन्द हो सकती है
  3. मरुभूमि का क्षेत्र बढ़ सकता है
  4. एक-तिहाई वैश्विक वन समाप्त हो सकते हैं
  5. भीषण आँधी, चक्रवात तथा बाढ़ की संभावना बढ़ जाएगी
  6. 2050 ई० तक एक मिलियन से अधिक पादपों एवं जन्तुओं की जातियाँ समाप्त हो जाएँगी।

वैश्विक उष्णता को निम्नलिखित उपायों द्वारा नियन्त्रित किया जा सकता है –

  1. जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को कम करना
  2. ऊर्जा दक्षता में सुधार करना
  3. वनोन्मूलन को कम करना
  4. मनुष्य की बढ़ती हुई जनसंख्या को कम करना
  5. जानवरों की विलुप्त हो रही प्रजातियों को संरक्षित करना
  6. वनों का विस्तार करना
  7. वृक्षारोपण को बढ़ावा देना।

प्रश्न 4.
कॉलम अ और ब में दिए गए मदों का मिलान करें –
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 Environmental Issues img-1
उत्तर
(क) 2
(ख) 1
(ग) 3
(घ) 4.

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पर आलोचनात्मक टिप्पणी लिखें –

  1. सुपोषण (Utrofication)
  2. जैव आवर्धन (Biological Magnification)
  3. भौमजल (भूजल) का अवक्षय और इसकी पुनःपूर्ति के तरीके।

उत्तर
1. सुपोषण (Eutrophication) – अकार्बनिक फॉस्फेट एवं नाइट्रेट के जलाशयों में एकत्र होने की क्रिया को सुपोषण कहते हैं। सुपोषण झील का प्राकृतिक काल-प्रभावन दर्शाता है, यानि झील अधिक उम्र की हो जाती है। यह इसके जल की जैव समृद्धि के कारण होता है। तरुण झील का जल शीतल और स्वच्छ होता है। समय के साथ-साथ इसमें सरिता के जल के साथ पोषक तत्त्व, जैसे-नाइट्रोजन और फॉस्फोरस आते रहते हैं जिसके कारण जलीय जीवों में वृद्धि होती रहती है। जैसे-जैसे झील की उर्वरता बढ़ती है वैसे- वैसे पादप और प्राणी बढ़ने लगते हैं। जीवों की मृत्यु होने पर कार्बनिक अवशेष झील के तल में बैठने लगते हैं। सैकड़ों वर्षों में इसमें जैसे-जैसे सिल्ट एवं जैव मलबे का ढेर लगता है वैसे-वैसे झील उथली और गर्म होती जाती है। उथली झील में कच्छ (marsh) पादप उग आते हैं और मूल झील बेसिन उनसे भर जाता है।

मनुष्य के क्रियाकलापों के कारण सुपोषण की क्रिया में तेजी आती है। इस प्रक्रिया को त्वरित सुपोषण कहते हैं। इस प्रकार झील वास्तव में घुट कर मर जाती है और अन्त में यह भूमि में परिवर्तित हो जाती है।

2. जैव आवर्धन (Biological Magnification) – जैव आवर्धन का तात्पर्य है, क्रमिक पोषण स्तर पर आविषाक्त की सान्द्रता में वृद्धि का होना। इसका कारण है जीव द्वारा संगृहीत आविषालु पदार्थ उपापचयित या उत्सर्जित नहीं हो सकता और इस प्रकार यह अगले उच्चतर पोषण स्तर पर पहुँच जाता है। ये पदार्थ खाद्य श्रृंखला के विभिन्न पोषी स्तरों (trophic levels) के जीवों में धीरे-धीरे संचित होते रहते हैं। खाद्य श्रृंखला में इन्हें सबसे पहले पौधों द्वारा प्राप्त किया जाता है। पौधों से इन पदार्थों को उपभोक्ताओं द्वारा प्राप्त किया जाता है। उद्योगों के अपशिष्ट जल में प्रायः विद्यमान कुछ विषैले पदार्थों में जलीय खाद्य श्रृंखला जैव आवर्धन कर सकते हैं।

यह परिघटना पारा एवं D.D.T. के लिए सुविदित है। क्रमिक पोषण स्तरों पर D.D.T: की सान्द्रता बढ़ जाती है। यदि जल में यह सान्द्रता 0.003 ppb से आरम्भ होती है तो अन्त में जैव आवर्धन के द्वारा मत्स्यभक्षी पक्षियों में बढ़कर 25 ppm हो जाती है। पक्षियों में D.D.T. की उच्च सान्द्रता कैल्शियम उपापचय को नुकसान पहुँचाती है जिसके कारण अंडकवच पतला हो जाता है और यह समय से पहले फट जाता है जिसके कारण। पक्षी-समष्टि की संख्या में कमी हो जाती है।

3. भौमजल का अवक्षय और इसकी पुनः पूर्ति के तरीके (Ground- water Depletion and Ways for its Replenishment) – भूमिगत जल पीने के लिए अधिक शुद्ध एवं सुरक्षित है। औद्योगिक शहरों में भूमिगत जल प्रदूषित होता जा रहा है। अपशिष्ट तथा औद्योगिक अपशिष्ट बहाव जमीन पर बहता रहता है जोकि भूमिगत जल प्रदूषण के साधारण स्रोत हैं। उर्वरक तथा पीड़कनाशी, जिनका उपयोग खेतों में किया जाता है, भी प्रदूषक का कार्य करते हैं। ये वर्षा-जल के साथ निकट के जलाशयों में एवं अन्तत: भौमजल में मिल जाते हैं। अस्वीकृत कूड़े के ढेर, सेप्टिक टंकी एवं सीवेज गड्ढे से सीवेज के रिसने के कारण भी भूमिगत जल प्रदूषित होता है।

वाहितमल जले एवं औद्योगिक अपशिष्टों को जलाशयों में छोड़ने से पहले उपचारित करना चाहिए जिससे भूमिगत जल प्रदूषित होने से बच सकता है।

प्रश्न 6.
अण्टार्कटिका के ऊपर ओजोन छिद्र क्यों बनते हैं? पराबैंगनी विकिरण के बढ़ने से हमारे ऊपर किस प्रकार प्रभाव पड़ेंगे?
उत्तर
हालाँकि ओजोन अवक्षय व्यापक रूप से होता है, लेकिन इसका असर अण्टार्कटिक क्षेत्र में खासकर देखा गया है। यहाँ जगह-जगह पर ओजोन परत में इतनी कमी पड़ जाती है कि छिद्र को आभास होने लगता है और इसे ओजोन छिद्र (Ozone hole) की संज्ञा दी जाती है। कुछ सुगन्धियाँ, झागदार शेविंग क्रीम, कीटनाशी, गन्धहारक आदि डिब्बों में आते हैं और फुहारा या झाग के रूप में निकलते हैं। इन्हें ऐरोसोल कहते हैं। इनके उपयोग से वाष्पशील CFC वायुमण्डल में पहुँचकर ओजोन स्तर को नष्ट करते हैं। CFC का व्यापक उपयोग एयरकण्डीशनरों, रेफ्रिजरेटरों, शीतलकों, जेट इंजनों, अग्निशामक उपकरणों, गद्देदार फोम आदि में होता है। ज्वालामुखी, रासायनिक उर्वरक, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, सवाना तथा अन्य वन-वृक्षों के जलने से ओजोन की परत को क्षति होती है। फ्रिऑन सबसे अधिक घातक क्लोरोफ्लोरोकार्बन है जो ओजोन से प्रतिक्रिया कर उसका अवक्षय करता है।

पराबैंगनी- बी की अपेक्षा छोटे तरंगदैर्ध्य युक्त पराबैंगनी विकिरण पृथ्वी के वायुमण्डल द्वारा लगभग पूरा का पूरा अवशोषित हो जाता है। बशर्ते कि ओजोन स्तर ज्यों-का-त्यों रहे लेकिन पराबैंगनी-बी DNA को क्षतिग्रस्त करता है और उत्परिवर्तन को बढ़ाता है। इसके कारण त्वचा में बुढ़ापे के लक्षण दिखते हैं। इससे विविध प्रकार के त्वचा कैंसर हो सकते हैं। इससे हमारी आँखों में कॉर्निया का शोथ हो । जाता है जिसे हिम अंधता, मोतियाबिंद आदि कहा जाता है।

प्रश्न 7.
वनों के संरक्षण और सुरक्षा में महिलाओं और समुदायों की भूमिका की चर्चा करें।
उत्तर
भारत में वन संरक्षण का एक लम्बा इतिहास है। जोधपुर (राजस्थान) के राजा ने 1731 ई० में अपने महल के निर्माण के लिए वृक्षों को काटने का आदेश दिया था। जिस वन क्षेत्र के वृक्षों को काटना था उसके आस-पास कुछ बिश्नोई परिवार रहते थे। इस परिवार की अमृता नामक महिला ने राजा के आदेश का विरोध किया एवं वृक्ष से चिपककर खड़ी हो गई। उसका कहना था कि वृक्ष हमारी जान है। उसके बिना हमारा जिंदा रहना असम्भव है। इसे काटने के लिए पहले आपको हमें काटना होगा। राजा के लोगों ने पेड़ के साथ-साथ महिला एवं उसके बाद उसकी तीन बेटियों तथा बिश्नोई परिवार के सैकड़ों लोगों को वृक्ष के साथ कटवा दिया। भारत सरकार ने इस साहसी महिला, जिसने पर्यावरण की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी, के सम्मान में अमृता देवी बिश्नोई वन्यजीव संरक्षण पुरस्कार देना हाल में शुरू किया है।

चिपको आन्दोलन के प्रवर्तक डॉ० सुन्दरलाल बहुगुणा के नाम से ही वन-संरक्षण की संवेदना होने लगती है। 1974 ई० में हिमालय के गढ़वाल में जब ठेकेदारों द्वारा वृक्षों को काटने की प्रक्रिया आरम्भ हुई तो इससे बचाने के लिए स्थानीय महिलाओं ने अदम्य साहस का परिचय दिया। वे वृक्षों से चिपकी रहीं एवं वृक्षों को काटे जाने से रोकने में सफल रहीं। इसी प्रयास ने आन्दोलन का रूप ले लिया एवं ‘चिपको आन्दोलन’ के रूप में विश्वविख्यात हुआ।

प्रश्न 8.
पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकने के लिए एक व्यक्ति के रूप में आप क्या उपाय करेंगे?
उत्तर
पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए हम एक व्यक्ति के रूप में निम्नलिखित उपाय करेंगे –

  1. सीसारहित एवं सल्फररहित पेट्रोल के उपयोग के साथ-साथ इंजन से कम-से-कम धुआँ उत्सर्जित हो, इस पर ध्यान रखेंगे।
  2. बिजली या बैटरी से चालित वाहनों के प्रयोग पर बल देंगे।
  3. उद्योगों की चिमनी हवा में काफी ऊपर हो एवं इसमें फिल्टर लगा होना चाहिए, इस सन्दर्भ में लोगों के माध्यम से प्रयास करेंगे।
  4. उद्योगों एवं परिष्करणशालाओं को आबादी से दूर स्थापित करवाने का प्रयास करेंगे।
  5. वनरोपण के प्रति लोगों को जागरूक एवं प्रोत्साहित करेंगे।
  6. प्रदूषण से होने वाली बीमारियों तथा हानिकारक प्रभावों के बारे में आम लोगों को जानकारी देंगे।
  7. जीवाश्म ईंधनों का प्रयोग कम-से-कम करेंगे।
  8. जनसंख्या वृद्धि से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को बताएँगे।
  9. धूम्रपान से होने वाली हानियों के बारे में लोगों को सलाह देंगे।
  10. मोटर वाहन चलाते समय हॉर्न का प्रयोग कम-से-कम हो, इस बात का ध्यान रखेंगे।
  11. रेडियो, टी०वी०, म्यूजिक सिस्टम आदि का प्रयोग करते समय इस बात का ध्यान रखेंगे कि आवाज बहुत धीमी हो।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में चर्चा करें –
(क) रेडियो सक्रिय अपशिष्ट
(ख) पुराने बेकार जहाज और ई- अपशिष्ट
(ग) नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट
उत्तर
(क) रेडियो सक्रिय अपशिष्ट (Radioactive Wastes) – न्यूक्लियर रिएक्टर से निकलने वाला विकिरण जीवों के लिए बेहद नुकसानदेह होता है क्योंकि इसके कारण अति उच्च दर से विकिरण उत्परिवर्तन होते हैं। न्यूक्लियर अपशिष्ट विकिरण की ज्यादा मात्रा घातक यानि जानलेवा होती है लेकिन कम मात्रा कई विकार उत्पन्न करती है। इसका सबसे अधिक बार-बार होने वाला विकार कैंसर है। इसलिए न्यूक्लियर अपशिष्ट अत्यन्त प्रभावकारी प्रदूषक है।

रेडियो सक्रिय अपशिष्ट का भण्डारण कवचित पात्रों में चट्टानों के नीचे लगभग 500 मीटर की गहराई में पृथ्वी में गाड़कर करना चाहिए। नाभिकीय संयन्त्रों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों जिनमें विकिरण कम हो उसे सीवरेज में छोड़ा जा सकता है। अधिक विकिरण वाले अपशिष्टों का विशेष उपचार, संचय एवं निपटारा किया जाता है।

(ख) पुराने बेकार जहाज और ई-अपशिष्ट (Defunct Ships and E-Wastes) – पुराने बेकार जहाज एक प्रकार के ठोस अपशिष्ट हैं जिनका उचित निपटारा आवश्यक है। विकासशील देशों में इसे तोड़कर धातु को अलग किया जाता है। इसमें सीसा, मरकरी (पारा), ऐस्बेस्टस, टिन आदि पाए जाते हैं जो हानिकारक होते हैं।

ऐसे कम्प्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक सामान जो मरम्मत के लायक नहीं रह जाते हैं इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट (E-wastes) कहलाते हैं। ई-अपशिष्ट को लैंडफिल्स में गाड़ दिया जाता है या जलाकर भस्म कर दिया जाता है। विकसित देशों में उत्पादित ई-अपशिष्ट का आधे से अधिक भाग विकासशील देशों, खासकर चीन, भारत तथा पाकिस्तान में निर्यात किया जाता है जिससे विकासशील देशों में इसकी समस्या बहुत बढ़ जाती है। इसमें मौजूद वैसे तत्त्व या धातु जिनका पुन:चक्रण किया जा सकता हो, जैसे-लोहा, निकेल, ताँबा आदि का पुन:चक्रण कर पुनः उपयोग किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया में विकसित देशों की तरह वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करना चाहिए ताकि, इससे जुड़े कर्मियों पर इनका हानिकारक प्रभाव कम-से-कम हो।

(ग) नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट (Municipal Solid Wastes) – इसके अन्तर्गत घरों, कार्यालयों, भण्डारों, विद्यालयों आदि में रद्दी में फेंकी गई चीजें आती हैं जो नगरपालिका द्वारा इकट्ठी की जाती हैं और उनका निपटारा किया जाता है। इसमें आमतौर पर कागज, खाद्य अपशिष्ट, कॉच, धातु, रबर, चमड़ा, वस्त्र आदि होते हैं। इनको जलाने से अपशिष्ट के आयतन में कमी आती है। खुले में इसे फेंकने से यह चूहों और मक्खियों के लिए प्रजनन स्थल का कार्य करता है। इसका निपटारा सैनिटरी लैंडफिल्स के माध्यम से भी किया जाता है। इन लैंडफिल्स से रसायनों के रिसाव का खतरा है जिससे कि भौम जल संसाधन प्रदूषित हो जाते हैं। खासकर महानगरों में कचरा इतना अधिक होने लगता है कि ये स्थल भी भर जाते हैं। इन सब का मात्र एक हल है कि पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति हम सभी को अधिक संवेदनशील होना चाहिए।

प्रश्न 10.
दिल्ली में वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के लिए क्या प्रयास किए गए? क्या दिल्ली में वायु की गुणवत्ता में सुधार हुआ?
उत्तर
वाहनों की संख्या काफी अधिक होने के कारण दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर देश में सबसे अधिक है। दिल्ली में वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए हैं –

  1. सभी सरकारी वाहनों यानि बसों में डीजल के स्थान पर सम्पीड़ित प्राकृतिक गैस (सी०एन०जी) का प्रयोग किया जाए।
  2. वर्ष 2002 के अन्त तक दिल्ली की सभी बसों को सी०एन०जी० में परिवर्तित कर दिया जाए।
  3. पुरानी गाड़ियों की धीरे-धीरे हटा लिया जाए।
  4. सीसा रहित पेट्रोल या डीजल का प्रयोग किया जाए।
  5. कम गंधक (सल्फर) युक्त पेट्रोल या डीजल का प्रयोग किया जाए।
  6. वाहनों में उत्प्रेरक परिवर्तकों का प्रयोग किया जाए।
  7. वाहनों के लिए यूरो- II मानक अनिवार्य कर दिया जाए।

दिल्ली में किए गए इन प्रयासों के कारण वायु की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है। एक आकलन के अनुसार सन् 1997 – 2005 ई० तक दिल्ली में CO और SO2 के स्तर में काफी गिरावट आई है।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में चर्चा करें –
(क) ग्रीनहाउस गैस
(ख) उत्प्रेरक परिवर्तक
(ग) पराबैंगनी-बी।
उत्तर
(क) ग्रीनहाउस गैसें (Green House Gases) – कार्बन-डाई-ऑक्साइड, मीथेन, जलवाष्प, नाइट्रसऑक्साइड तथा क्लोरोफ्लोरो कार्बन को ग्रीनहाउस गैस कहा जाता है।

ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि के कारण पृथ्वी की सतह का ताप काफी बढ़ जाता है जिसके कारण विश्वव्यापी उष्णता होती है। इन गैसों के कारण ही ग्रीनहाउस प्रभाव पड़ते हैं। ग्रीनहाउस प्रभाव प्राकृतिक रूप से होने वाली परिघटना है जिसके कारण पृथ्वी की सतह और वायुमण्डल गर्म हो जाता है। पृथ्वी का तापमान सीमा से अधिक बढ़ने पर ध्रुवीय हिमटोप के पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ने तथा बाढ़ आने की सम्भावना बढ़ जाती है। आने वाली शताब्दी में पृथ्वी का तापमान 0.6°C तक बढ़ जाएगा। औद्योगिक विकास, जनसंख्या वृद्धि एवं वृक्षों की निरन्तर हो रही कमी से वायुमण्डल में CO2 की मात्रा 0.03% से बढ़कर 0.04% हो गई है। अगर यही क्रम जारी रहा तो बहुत सारे द्वीप एवं समुद्री तटों पर बसे शहर समुद्र में समा जाएँगे।

(ख) उत्प्रेरक परिवर्तक (Catalytic Converter) – इसमें कीमती धातु, प्लेटिनम-पैलेडियम और रोडियम लगे होते हैं जो उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। ये परिवर्तक स्वचालित वाहनों में लगे होते हैं जो विषैली गैसों के उत्सर्जन को कम करते हैं। जैसे ही निर्वात उत्प्रेरक परिवर्तक से होकर गुजरता है अग्ध हाइड्रोकार्बन डाइऑक्साइड और जल में बदल जाता है तथा कार्बन मोनोऑक्साइड एवं नाइट्रिक ऑक्साइड क्रमशः कार्बन डाइऑक्साइड एवं नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित हो जाता है। उत्प्रेरक परिवर्तक युक्त मोटर वाहनों में सीसा रहित पेट्रोल का उपयोग करना चाहिए क्योंकि सीसा युक्त पेट्रोल उत्प्रेरक को अक्रिय कर देता है।

(ग) पराबैंगनी-बी (Ultraviolet-B) – यह DNA को क्षतिग्रस्त करता और उत्परिवर्तन को बढ़ाता है। इससे कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और विविध प्रकार के त्वचा कैंसर उत्पन्न होते हैं। हमारे आँख का स्वच्छमंडल (कॉर्निया) UV- बी विकिरण का अवशोषण करता है। इसकी उच्च मात्रा के कारण कॉर्निया का शोथ हो जाता है, जिसे हिम अंधता, मोतियाबिन्द आदि कहा जाता है। इस प्रकार पराबैंगनी किरणें सजीवों के लिए बेहद हानिकारक हैं।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सा प्राथमिक प्रदूषक है? (2015)
(क) SO2
(ख) CO
(ग) NO2
(घ) ये सभी
उत्तर
(घ) ये सभी

प्रश्न 2.
भोपाल गैस त्रासदी किस गैस से हुई थी? (2017)
(क) मेथिल आइसोसायनेट
(ख) एथिल आइसोसायनेट
(ग) मेथेन
(घ) SOx एवं NOx
उत्तर
(क) मेथिल आइसोसायनेट

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सी वायु प्रदूषक गैस है और अम्लीय वर्षा बनाती है? (2011, 12, 14)
(क) सल्फर डाइऑक्साइड
(ख) ऑक्सीजन
(ग) नाइट्रोजन
(घ) हाइड्रोजन
उत्तर
(क) सल्फर डाइऑक्साइड

प्रश्न 4.
ताजमहल को किसके प्रभाव से खतरा बना हुआ है? (2017)
(क) क्लोरीन
(ख) SO2
(ग) ऑक्सीजन
(घ) हाइड्रोजन
उत्तर
(ख) SO2

प्रश्न 5.
यदि किसी जलकाय में लगातार प्रदूषक पदार्थ गिरेंगे तो उसका – (2017)
(क) BOD बढ़ जायेगा
(ख) BOD घट जायेगा
(ग) सभी पौधे मृत हो जायेंगे।
(घ) जन्तु मर जायेंगे परन्तु पौधे जीवित रहेंगे
उत्तर
(क) BOD बढ़ जायेगा।

प्रश्न 6.
यदि वातावरण में CO2 की सान्द्रता लगातार बढ़ती है, तो इसका वातावरण में क्या प्रभाव होगा? (2017)
(क) ओजोन अपक्षरण
(ख) ग्रीनहाउस प्रभाव
(ग) प्रकाश श्वसन का बढ़ना
(घ) घुटन होना
उत्तर
(ख) ग्रीनहाउस प्रभाव

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रदूषण की परिभाषा लिखिए। (2015)
उत्तर
यह जल, वायु तथा थल में होने वाला वह भौतिक तथा रासायनिक परिवर्तन है जिसके कारण इन स्थानों पर उपस्थित जीवों के जीवन में हानिकारक परिवर्तन आने लगते हैं और इन जीवों का जीवन संकट में आ जाता है।

प्रश्न 2.
प्रदूषक से आप क्या समझते हैं। पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले मुख्य प्रदूषकों के नाम लिखिए। (2017)
उत्तर
प्रदूषक – पर्यावरण प्रदूषण उत्पन्न करने वाले पदार्थों को प्रदूषक कहते हैं। पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले मुख्य प्रदूषक ईंधन का जलना, यातायात, रासायनिक क्रियायें, धातु कर्म आदि हैं।

प्रश्न 3.
द्वितीयक वायु प्रदूषक किसे कहते हैं? (2017)
उत्तर
कुछ प्रदूषक वातावरण में आने पर अन्य पदार्थों से क्रिया करके द्वितीयक प्रदूषकों के रूप में अनेक प्रकार के विषैले पदार्थ बना लेते हैं जो स्वास्थ्य पर गम्भीर तथा हानिकारक प्रभाव डालते हैं। जैसे स्मॉग, PAN, ओजोन, ऐल्डिहाइड आदि।

प्रश्न 4.
प्रदूषण उत्पन्न करने में कीटाणुनाशक पदार्थों की भूमिका का वर्णन कीजिए। (2009)
उत्तर
विभिन्न प्रकार के कीटाणुनाशक तथा पीड़कनाशक रसायन मृदा के सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देते हैं। इससे विभिन्न पदार्थों का अपघटन रुक जाता है और मृदा की उर्वरता प्रभावित होती है। ये पदार्थ खाद्य श्रृंखला के माध्यम से मनुष्य में पहुँच कर उन्हें भी हानि पहुँचाते हैं।

प्रश्न 5.
जीवाश्म ईंधन के जलने से जो सामान्य वायु प्रदूषक गैसें उत्पादित होती हैं, उनके नाम बताइए। (2009, 10)
या
किन्हीं दो वायु प्रदूषक गैसों के नाम बताइए। (2010, 14, 16)
उत्तर
SO2, SO3, NO2, CO2 तथा अदग्ध हाइड्रोकार्बन्स।

प्रश्न 6.
स्वचालित वाहनों से शहरी वायुमण्डल क्यों प्रदूषित हो जाता है? (2013)
उत्तर
स्वचालित वाहनों में जीवाश्म ईंधन के दहन के फलस्वरूप हानिकारक गैसें; जैसे- CO2, CO, SO2, NO2, आदि उत्सर्जित होती हैं जिससे वायुमण्डल प्रदूषित हो जाता है।

प्रश्न 7.
स्वचालित वाहन निर्वातक के अतिविषालु धातु प्रदूषक का नाम बताइए। (2010)
उत्तर
स्वचालित वाहन निर्वातक में प्राय: सीसा (Pb = lead) धातु अतिविषालु प्रदूषक होता है।

प्रश्न 8.
अम्ल वर्षा के लिए उत्तरदायी दो मुख्य अम्लों के नाम लिखिए। (2015, 17)
उत्तर

  1. सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4) तथा
  2. नाइट्रिक अम्ल (HNO3)।

प्रश्न 9.
ग्रीन हाउस गैसों के चार प्रमुख स्रोतों के नाम लिखिए। (2017)
उत्तर

  1. CO2 – औद्योगीकरण से
  2. मेथेन – खदानों, तेल शोधन कारखानों एवं धान के खेतों से।
  3. CFCs – रेफ्रिजरेटर एवं एयर-कण्डिशनर निर्माण में प्रयुक्त होने वाली गैस से।
  4. नाइट्रस ऑक्साइड – नाइट्रोजनी खादों के प्रयोग से।

प्रश्न 10.
वायुमण्डल के किस भाग में सामान्यतः ओजोन पाया जाता है? (2013)
उत्तर
ओजोन वायुमण्डल के समतापमण्डल भाग में पाया जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भोपाल गैस त्रासदी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2016)
उत्तर
भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) – 3 दिसम्बर, 1984 की मध्यरात्रि में भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कम्पनी के कारखाने के एक संयन्त्र से दुर्घटनावश निकली गैसों के कारण अनेक लोगों की सोते हुए अकारण ही मृत्यु हो गयी तथा बहुत से लोग कई अन्य असाध्य बीमारियों के शिकार हो गये। यह घटना ‘भोपाल गैस त्रासदी’ (Bhopal gas tragedy) के नाम से जानी जाती है। इस कारखाने में मिथाइल आइसो सायनेट (M.I.C.) जैसी विषैली गैस (जिसका उपयोग सीवान नामक कीटनाशक उत्पाद बनाने में किया जाता था) के रिसाव से लगभग 2 हजार व्यक्तियों की जाने गईं तथा हजारों लोग आँख और श्वास के गम्भीर रोगों के शिकार हुए। यह भी अनुमान है कि इस संयन्त्र से निकली गैसों में M.I.C. के साथ एक और बहुत ही विषैली गैस ‘फॉस्जीन’ (phosgene) भी थी।

प्रश्न 2.
अम्लीय वर्षा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2012, 13, 14, 16, 17, 18)
उत्तर
अम्लीय वर्षा
प्राकृतिक ईंधनों के जलने से, अनेक पदार्थों के ऑक्साइड विशेषकर गन्धक, नाइट्रोजन आदि के जल वाष्प के साथ मिलकर अम्ल बना लेते हैं; जैसे

  1. SO2 से SO3 तथा H2SO4, इसी प्रकार
  2. नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NO2) से HNO3 आदि बन जाते हैं।

जब ये अम्ल अधिक आर्द्रता में जल के साथ वर्षा के रूप में गिरते हैं, इसे अम्लीय वर्षा (acid rain) कहते हैं।

अम्लीय वर्षा से हानियाँ – अम्लीय वर्षा से जल तथा मृदा की अम्लीयता (acidity) बढ़ती है अतः मृदा की उर्वरता (fertility) कम हो जाती है। साथ ही पेड़-पौधों की पत्तियों को हानि पहुँचती है। जिससे प्रकाश संश्लेषण की गति मन्द पड़ जाती है। इस प्रकार अम्लीय वर्षा विभिन्न प्रकार से हमारी सम्पत्ति को नष्ट करती है। उदाहरण के लिए यह-इमारतों, रेल-पटरियों, स्मारकों, ऐतिहासिक इमारतों, विभिन्न पदार्थों से बनी मूर्तियों तथा अन्य सामान को नष्ट करने वाली होती है।

प्रश्न 3.
जैव रासायनिक ऑक्सीजन माँग पर टिप्पणी लिखिए। (2014, 15, 16, 17)
उत्तर
जैव- रासायनिक ऑक्सीजन माँग (Biochemical Oxygen Demand = BOD) जल में कार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों की अधिकता से उनके विघटन की दर व ऑक्सीजन की खपत बढ़ जाती है, जिससे जल में घुलित ऑक्सीजन (dissolve Oxygen =DO) की मात्रा कम हो जाती है। ऑक्सीजन की आवश्यकता का सीधा सम्बन्ध जल में कार्बनिक पदार्थों की बढ़ती मात्रा से है। इसे जैव-रासायनिक ऑक्सीजन माँग (BiochemicalOxygen Demand =BOD) के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। BOD, ऑक्सीजन की उस मात्रा का मापन है जो जल के एक नमूने में वायवीय जैविक अपघटकों (aerobic decomposers) द्वारा जैव क्षयकारी (biodegradable) कार्बनिक पदार्थों के अपघटन के लिए आवश्यक है। घर की गन्दी नाली से निकले गन्दे जल की BOD value 200 – 400 ppm ऑक्सीजन (एक लीटर गन्दे जल के लिये) होती है। औद्योगिक संस्थानों से निकले कचरे के कारण BOD का मान 2500 ppm तक हो जाता है। पीने के स्वच्छ जल की BOD 1 ppm से कम होनी चाहिये।

प्रश्न 4.
रेडियोऐक्टिव अपशिष्ट प्रबन्धन पर टिप्पणी लिखिए। (2014)
उत्तर
रेडियोऐक्टिव अपशिष्टों को नष्ट करने के लिए सबसे सरल एवं उचित उपाय यह है कि इन अपशिष्टों को भूमि में लगभग 500 मीटर या और अधिक गहराई में गाड़ दिया जाये परन्तु यह ध्यान रखना आवश्यक है कि वह स्थान जहाँ पर अपशिष्ट को गाड़ा जा रहा हो मानव आबादी से बहुत दूर हो।
परमाणु परीक्षण को तत्काल प्रभाव से रोका जाना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो ये परीक्षण भूमि के नीचे गहराई में किये जाने चाहिए।

प्रश्न 5.
ग्रीन हाउस प्रभाव पर टिप्पणी लिखिए। (2010, 11, 12, 13, 14, 16, 18)
उत्तर
वायु प्रदूषण का पृथ्वी के तापक्रम पर प्रभाव
ग्रीन हाउस प्रभाव वायुमण्डल के सामान्य संगठन तथा पर्यावरण के सामान्य अवस्था में होने पर सूर्य की किरणों से गर्म होने वाली पृथ्वी अधिकतर ऊष्मा को वापस लौटा देती है जो बाह्य वायुमण्डल (exosphere) व अन्तरिक्ष में वापस विसरित हो जाती है। इस प्रकार पृथ्वी का जीवमण्डल क्षेत्र ऊष्मा से बचा रहता है। किन्तु पिछले कुछ दशकों से पर्यावरण में कुछ गैसों; विशेषकर कार्बन डाइऑक्साइड आदि की मात्रा बढ़ने से पृथ्वी पर तापमान बढ़ने लगा है।

पृथ्वी पर कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता से बनी हुई परत ग्रीन हाउस के शीशे की परत के समान कार्य करती है अर्थात् यह सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने देने के लिए तो पारदर्शक (transparent) होती है परन्तु पृथ्वी से गर्म वायु जब ऊपर उठती है तो यह उसके लिए अपारदर्शक (opaque) दीवार का काम करती है, फलस्वरूप पृथ्वी का तापक्रम बढ़ जाता है। कार्बन डाइऑक्साइड का यही प्रभाव ग्रीन हाउस प्रभाव (green house effect) कहलाता है। अन्य गैसें; जैसे- क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स (CFCs), नाइट्रोजन के ऑक्साइड; जैसे- (NO2), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), अमोनिया (NH3), मेथेन (CH4) आदि भी इसी प्रकार का प्रभाव उत्पन्न करने में सहायक होती हैं।

ग्रीन हाउस प्रभाव के प्रभाव
ग्रीन हाउस प्रभाव त्वचा (skin) तथा फेफड़ों (lungs) के रोगों में वृद्धि करने में सहायक है। इसके अन्य भयंकर प्रभावों में ताप के कारण पर्वतीय चोटियों तथा धुवों (poles) पर बर्फ के पिघलने से समुद्र तल में वृद्धि, तटीय भूमि (coastal land) तथा नगरों आदि के पानी में डूबने की सम्भावना में अत्यधिक वृद्धि होती जाती है।

ग्रीन हाउस प्रभाव से पृथ्वी का ताप बढ़ने अर्थात् भूमण्डलीय ऊष्मायन (global warming) के अतिरिक्त पर्यावरण विभिन्न प्रकार से प्रभावित होता है। इससे पौधों में वाष्पोत्सर्जन में वृद्धि, वर्षा (rainfall) में वृद्धि, किन्तु मृदा नमी (soil moisture) का ह्रास होता है।

प्रश्न 6.
‘पृथ्वी ऊष्मायन पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए। (2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15)
या
वैश्विक तापन अथवा भूमण्डलीय ऊष्मायन के कारण और उसे कम करने के उपाय बताइए। (2015, 17)
उत्तर
पृथ्वी ऊष्मायन या भूमण्डलीय ऊष्मायन
ग्रीन हाउस गैसों (green house gases) के द्वारा उत्पन्न ग्रीन हाउस प्रभाव (green house effect) ही पृथ्वी ऊष्मायन (global warming) का कारण है। पृथ्वी पर पहुँचने वाली प्रकाशीय ऊर्जा को तो ये गैसें क्षोभमण्डल में आने में कोई बाधा नहीं डालतीं किन्तु ऊष्मा के रूप में जब यह ऊर्जा वापस विकरित होती है तो उसके कुछ भाग को वायुमण्डल में ही रोके रखती हैं अथवा ये ऊष्मारोधी गैसें पृथ्वी से विसरित होकर आयी ऊष्मा का कुछ भाग अवशोषित कर लेती हैं एवं पुनः धरातल को वापस कर देती हैं। इस प्रक्रिया में वायुमण्डल के निचले भाग में अतिरिक्त ऊष्मा एकत्रित हो जाती है। विगत कुछ वर्षों से मानवीय क्रिया-कलापों के कारण इन ऊष्मारोधी गैसों की मात्रा वायुमण्डल में बढ़ जाने के कारण वायुमण्डल के औसत ताप में वृद्धि हो गयी है। इस प्रकार पृथ्वी के औसत तापमान में बढ़ोतरी को पृथ्वी ऊष्मायन या भूमण्डलीय ऊष्मायन या विश्व तापन (global warming) कहते हैं।

विश्व मौसम संगठन के अनुसार भूतल का औसत तापमान पिछली शताब्दी के पूरा होते-होते लगभग 0.60° सेल्सियस तक बढ़ा है। तापमान में यह वृद्धि मुख्य रूप से 1910 से 1945 ई० और 1976 से 2000 ई० के मध्य हुई है।

इस प्रकार लगभग सम्पूर्ण विश्व में 90 का दशक सबसे गर्म दशक और 1961 ई० के बाद क्रमशः 1980,81, 83, 86 एवं 1988 ई० का वर्ष सबसे गर्म वर्ष रहा है। इस दशक तक तुलनात्मक रूप में समुद्री जल का ताप भी बढ़ा है।

ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से उत्पन्न संकट सम्पूर्ण विश्व के लिए भयंकरतम समस्या है। इसके दुष्प्रभाव तथा दुष्परिणाम पृथ्वी पर उपस्थित जीवन के लिए ही खतरा सिद्ध हो सकते हैं। इस सबका परिणाम है। कि ऊँचे स्थानों पर अधिक वर्षा होने लगी है और उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में वर्षा में कमी आयी है।

पिछली शताब्दी में समुद्री जल स्तर में 15 से 20 सेमी तक बढ़ोतरी हुई है। विश्व के कुछ स्थानों में ग्लेशियर (glaciers) का कुछ नीचे हो जाना भी वायुमण्डल के तापमान में वृद्धि का संकेत है। ग्लोबल वार्मिंग का सबसे भयंकर दुष्परिणाम पर्यावरण में जलवायु तथा मौसम परिवर्तन के रूप में। प्रकट होता है। जैसे-जैसे पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो रही है इस प्रकार के परिवर्तन के परिणाम सामने आ भी रहे हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में, लगभग 20 वर्ष पूर्व जहाँ हिमपात होता था, उन स्थानों पर हिमपात होना बन्द हो गया है अथवा इतनी कम मात्रा में होने लगा है कि उसका कोई लाभ नहीं रह गया है।

इस प्रकार के परिवर्तनों के कारण प्रतिवर्ष विभिन्न मौसमों में आकस्मिक तापमान की वृद्धि या कमी विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं; जैसे-तूफान, चक्रवात, अतिवृष्टि, सूखा आदि के रूप में सामने आ रही है। 1990 से 2100 ई० तक पृथ्वी के तापमान में वर्तमान गति से 5° सेल्सियस तक बढ़ जाने की आशंका व्यक्त की जा रही है। इस प्रकार की तापमान में वृद्धि से वर्षा के प्रारूप में अत्यधिक परिवर्तन आएँगे विशेषकर निचले अक्षांशों (latitudes) पर वर्षा में अधिक कमी हो सकती है। फलस्वरूप सूखा, बाढ़ जैसी आपदाओं में वृद्धि हो सकती है। बढ़ती गर्मी और मानसून की अनिश्चितता से कटिबन्धीय क्षेत्रों में पैदावार में कमी आ सकती है।

संयुक्त राष्ट्र ने अपने पर्यावरण कार्यक्रम में उल्लेख कियां है; आज मानवता के समक्ष भूमण्डलीय ऊष्मायन (ग्लोबल वार्मिंग) सबसे भयावह खतरा है। इसके लिए मनुष्य की आर्थिक विकास की गतिविधियाँ उत्तरदायी हैं। ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव सम्पूर्ण पारिस्थितिक तन्त्र (ecological setup) पर पड़ता है। इससे जीवमण्डल का कोई भी अंश प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है; परिणामस्वरूप पर्वतों से बर्फ पिघलेगी, बाढ़े आयेंगी, समुद्री जल स्तर बढ़ेगा, स्वास्थ्य सम्बन्धी विपदाएँ बढ़ेगी, असमय मौसमी बदलाव होंगे तथा जलवायु में भयंकर परिवर्तनों को बढ़ावा मिलेगा।

एक अध्ययन के अनुसार प्रति 1° सेल्सियस तापमान की वृद्धि से दक्षिण-पूर्वी एशिया में चावल का उत्पादन 5 प्रतिशत कम हो जाएगा।
उपर्युक्त के अतिरिक्त अन्य अनेक दुष्परिणाम; जैसे- अनावृष्टि, अतिवृष्टि आदि की सम्भावनाओं का बढ़ना, विभिन्न प्रकार के रोगों में वृद्धि, क्षोभमण्डल (troposphere) के बाहरी भाग में उपस्थित पृथ्वी के रक्षा कवच अर्थात् ओजोनमण्डल (ozonosphere) अथवा ओजोन परत (ozone layer) की मोटाई में कमी होने की सम्भावना आदि है।

ओजोन परत के क्षीण होने से पृथ्वी पर पराबैंगनी किरणों के प्रभाव में वृद्धि हो जाएगी जिससे त्वचा कैन्सर, मोतियाबिन्द आदि रोगों में वृद्धि होती है, शरीर का प्रतिरोधी तन्त्र हासित होता है, सूक्ष्म जीव; विशेषकर पादपप्लवकों (phytoplanktons) के नष्ट होने से जलीय पारिस्थितिक तन्त्र पूर्णत: नष्ट हो जायेंगे।

भूमण्डलीय ऊष्मायन को कम करने के उपाय पृथ्वी ऊष्मायन (ग्लोबल वार्मिंग) को रोकने के लिए मानवीय क्रिया-कलापों पर प्रतिबन्ध लगाना आवश्यक है जिनसे ग्रीन हाउस गैसों; जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), नाइट्रस ऑक्साइड (N2O), मेथेन (CH4), क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स (CFCs), हैलोजन्स (हैलोकार्बन्स Clx, Fx, Brx) आदि की वृद्धि को रोकने में सहायता मिल सकती है।

प्रश्न 7.
ओजोन परत को हानि पहुँचाने वाले प्रदूषकों का विवरण दीजिए। पृथ्वी पर जीवन के लिए ओजोन परत का क्या महत्त्व है? (2011, 12)
या
ओजोन क्षरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2012, 14)
या
ओजोन परत पर एक विवरण लिखिए। (2015, 16)
उत्तर
ओजोन परत
ओजोन परत (ozone layer) जिसे ओजोन मण्डल (ozonosphere) भी कहते हैं, समतापमण्डल के निचले तथा क्षोभमण्डल के ऊपरी (बाहरी) भाग में स्थित है। यह भाग 15 से 30 किमी ओजोन गैस (O3) की एक मोटी परत होती है। यह गैस ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से बनी हुई होती है। इसमें एक विशेष प्रकार की तीखी गंध होती है तथा इसका रंग नीला होता है। ओजोन सूर्य से आने वाली हानिकारक किरणों प्रमुखतः पराबैंगनी किरणों (ultraviolet rays) को पृथ्वी पर आने से रोककर पृथ्वी और उसके जीवधारियों के सुरक्षा कवच (protection shield) के रूप में कार्य करती है।

ओजोन परत को हानि
वायु प्रदूषण के कारण विभिन्न प्रकार के प्रदूषक ओजोन परत या ओजोनमण्डल (ozonosphere) को हानि पहुँचा सकते हैं। उदाहरण के लिए समतापमण्डल में क्लोरीन गैस के पहुंचने से ओजोन की मात्रा में कमी आ जाती है।
क्लोरीन का एक परमाणु 1,00,000 ओजोन अणुओं को नष्ट कर देता है। ये क्लोरीन परमाणु क्लोरोफ्लोरोकार्बन (chloroflorocarbon = CFCs) के विघटन से बनते हैं। इनकी रासायनिक क्रिया इस प्रकार है –
Cl + O3 → ClO + O2
ClO + O – Cl + O2

फ्रेऑन (freon) सबसे अधिक घातक क्लोरोफ्लोरोकार्बन है, इसका प्रयोग प्रशीतन (रेफ्रिजरेशन) वातानुकूलन, गद्देदार सीट या सोफों में प्रयुक्त फोम, अग्निशामक प्लास्टिक, ऐरोसॉल स्प्रे आदि में होता है। उद्योगों में CFCs का उत्पादन लगातार होता है। इस प्रकार अत्यधिक औद्योगीकरण, 15 किमी से अधिक ऊँचाई पर उड़ने वाले जेट विमान, परमाणु बमों के विस्फोट आदि से निकली विषैली गैसे जिसमें क्लोरीन यौगिक तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड्स होते हैं, ज्वालामुखी विस्फोट से निकली हाइड्रोजन क्लोराइड तथा फ्लोराइड आदि गैसें ओजोन परत के अवक्षय के लिए जिम्मेदार हैं। इन सभी विषैली गैसों के कारण ओजोन परत की मोटाई लगातार घटती जा रही है और उसमें जगह-जगह पर छिद्र हो रहे हैं।

ओजोन परत का महत्त्व
सूर्य से प्राप्त पराबैंगनी किरणों, जिन्हें ओजोन परत रोकती है, से सीधा सम्पर्क मनुष्य, अन्य जीव- जन्तु, वनस्पति आदि में रोग प्रतिरोधक क्षमता का अवक्षय करता है। मनुष्य में त्वचा का कैन्सर, आँखों में मोतियाबिन्द, अन्धापन आदि रोगों की वृद्धि होती है। समुद्री तथा स्थलीय जीव-जन्तु, कृषि, उपज, वनस्पति एवं खाद्य पदार्थों पर भी इन पराबैंगनी किरणों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इनसे भूपृष्ठीय तापमान बढ़ने से विश्वतापन या पृथ्वी ऊष्मायन (global warming) का खतरा है। इससे जलवायु परिवर्तित हो जायेगी अर्थात् ओजोन परत पृथ्वी एवं उसके समस्त जीवधारियों की जीवन सुरक्षा में प्रकृति का अनुपम उपहार है और इसमें कमी (या ओजोन छिद्र) पृथ्वी के पर्यावरण के लिए भयंकर तबाही ला सकता है।

प्रश्न 8.
वनोन्मूलन के कारण क्या हैं और इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है? (2015)
या
वनोन्मूलन क्या है? इसके मुख्य कारण लिखिए। (2015)
उत्तर
वनोन्मूलन – वन क्षेत्र को वन रहित क्षेत्र में परिवर्तित करने की प्रक्रिया वनोन्मूलन कहलाती है।
वनोन्मूलन के कारण
वनोन्मूलन के प्रमुख कारण निम्नवत् हैं –

  1. मानव जनसंख्या का बढ़ना जिससे भवन निर्माण, रेलवे लाइन, सड़कों, इमारतों, शैक्षिक संस्थाओं, उद्योगों आदि को स्थापित करने के लिए भूमि की माँग बढ़ी है।
  2. दावानल (forest fire) के अवसर बढ़ना। दावानल बड़े वृक्षों के साथ-साथ छोटे पौधों और यहाँ तक कि बीजों और अनेक जन्तुओं को भी भस्म कर देती है।
  3. मानव क्रियाओं के कारण जलवायु में परिवर्तन के फलस्वरूप सूखा, तूफान, वर्षा आने के कारण वनों का विनाश हुआ है।
  4. पशुओं के अत्यधिक चारण से, जिससे बड़े पौधों के साथ-साथ छोटे पौधे भी नष्ट हो जाते हैं। तथा मृदा अपरदन भी होता है।

वनोन्मूलन का नियंत्रण
वनोन्मूलन के नियंत्रण के कुछ उपाय निम्नवत् हैं –

  1. चारण समस्या को नियन्त्रित करना।
  2. वन रहित भूमि पर वनारोपण करना।
  3. संरक्षित वन, आरक्षित वन या अन्य वन्य भूमि सहित सभी प्रकार के वनों का संरक्षण करना।
  4. कृषि एवं आधिपत्य के स्थानान्तरण को नियन्त्रित करना।
  5. वनों में केन्द्रीय सरकार की पूर्वानुमति से अवन्य क्रियाओं की अनुमति मिलना।
  6. ऐसे स्थानों पर जहाँ मृदा अपरदन की अधिक सम्भावना है वनोन्मूलन को रोकना।
  7. वनवासियों के पास ईंधन, चारा, वास्तु सामग्री आदि गौण स्रोतों की पहुँच होनी चाहिए जिससे कि वे पेड़ न काटें।
  8. कार्यकारी योजनाओं का वैज्ञानिक अनुसन्धान पर आधारित पर्यावरणीय सार्थक कार्य योजनाओं में रूपान्तरण।
  9. मानवों की सहकारी समिति द्वारा प्रबन्धित गाँव के चारों ओर समुदाय वन लगाना।
  10. खड़े वनों की सुरक्षा करमा।
  11. वृक्षारोपण के कार्य में आम जनता और ऐच्छिक एजेन्सियों को सम्बद्ध करना।

प्रश्न 9.
वन संरक्षण तथा चिपको आंदोलन से आप क्या समझते हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2016)
उत्तर
मानव एवं अन्य जीवों के समुचित विकास एवं वृद्धि के लिए वन संरक्षण आवश्यक है। इसके लिए सभी लोगों की भागीदारी होनी चाहिए। अगर वन-क्षेत्र के आस-पास के लोग इसे बचाने के लिए सजग रहेंगे तो वर्तमान पीढ़ी की जरूरत पूरी होगी एवं भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति की क्षमता भी बनी रहेगी। भारत में वन संरक्षण में लोगों की भागीदारी सदियों से रही है।

चिपको आन्दोलन (Chipko Movement) – चिपको आन्दोलन डॉ० सुन्दरलाल बहुगुणा की अगुवाई में शुरु हुआ। सन् 1974 में हिमालय के गढ़वाल में जय ठेकेदारों द्वारा वृक्षों को काटने की प्रक्रिया आरम्भ हुई तो इन्हें बचाने के लिए स्थानीय महिलाओं ने अदम्य साहस का परिचय दिया। वे वृक्षों से चिपकी रहीं एवं वृक्षों को काटे जाने से रोकने में सफल रहीं। इसी प्रयास ने आन्दोलन का रूप लिया एवं चिपको आन्दोलन के रूप में विश्वविख्यात हुआ।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों तथा इसका नियन्त्रण करने के उपयुक्त उपायों का वर्णन कीजिए। (2015)
उत्तर
प्रदूषण
[संकेत-अतिलघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 के उत्तर का अध्ययन करें]

प्रदूषण के कारण
प्रदूषण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
1. वाहितमल (Sewage) – नगरपालिकाओं में भूमिगत नालियों के द्वारा बस्तियों से निकला। मल-मूत्र प्रायः नदी, बड़े तालाबों अथवा झीलों में डाल दिया जाता है। मूत्र में यूरिया होता है। जिसके जलीय-अपघटन द्वारा अमोनिया उत्पन्न होती है। गन्दी नालियों में उपस्थित अन्य नाइट्रोजन यौगिकों के अपघटन से भी अमोनिया उत्पन्न होती रहती है। इस प्रकार जल प्रदूषित हो जाता है और इससे दुर्गन्ध फैलती है। इस प्रकार का जल पीने योग्य नहीं रहता और न ही ऐसे जल का प्रयोग नहाने-धोने के लिए किया जा सकता है, क्योंकि ऐसे जल में नहाने से बहुत से चर्मरोग हो जाते हैं।

2. घरेलू अपमार्जक (Household Detergents) – घरेलू अपमार्जक ऐसे रासायनिक पदार्थ हैं। जो दुग्धशाला व भोज्य सामग्री में उपयोगी दूसरे सामान, मकानों, अस्पतालों की सफाई तथा नहाने-धोने के काम आते हैं। इनमें बहुत से विभिन्न प्रकार के साबुन, सर्फ, टाइड (tide), फैब (fab) इत्यादि हैं। ये पदार्थ नालियों इत्यादि के द्वारा नदियों, तालाबों, झीलों, इत्यादि में चले। जाते हैं। अपमार्जकों के कार्बनिक पदार्थों का पूर्णरूप से ऑक्सीकरण न हो पाने के कारण कार्बन डाइऑक्साइड, ऐल्कोहॉल, कार्बनिक अम्ल उत्पन्न हो जाते हैं जो जल का प्रदूषण करते हैं और जलीय प्राणियों को हानि पहुँचाते हैं।

3. कीटाणुनाशक पदार्थ (Pesticides) – ये पदार्थ चूहे, कीड़े-मकोड़े, जीवाणुओं, कवकों आदि को मारने के लिए खेतों, उद्यानों, गन्दी नालियों और पौधों पर छिड़के जाते हैं। ये पदार्थ ठोस, द्रव तथा गैस के रूप में होते हैं। डी०डी०टी० (DDT) सफेद रंग का पदार्थ है जो चीटियों, मक्खियों, कीड़े-मकोड़ों तथा मच्छरों को मारने के काम आता है। सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) एक रंगहीन गैस के रूप में मकानों को कीटाणुविहीन करने के लिए प्रयोग में आती है। इसी प्रकार फॉर्मेल्डिहाइड, क्लोरीन, क्रियोसोल, कार्बोलिक अम्ल, फिनाइल, पोटेशियम परमैंगनेट इत्यादि बहुत से कीटाणुओं को मारने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। चूने को, मकानों में, सफेदी के रूप में तथा गन्दी नालियों में पाए जाने वाले कीड़े-मकोड़ों को मारने के लिए प्रयोग किया जाता है। चूने में क्लोरीन गैस को मिलाकर ब्लीचिंग पाउडर बनाया जाता है। यह कुओं तथा जल संग्रहालयों का जल शुद्ध करने के काम आता है।

इन रासायनिक पदार्थों से हमें जितना लाभ होता है उससे कहीं अधिक हानि होती है, जैसे- अनेक जन्तुओं की मृत्यु उन पौधों तथा छोटे कीड़ों के खाने से हो जाती है, जिन पर ये दवाइयाँ छिड़की गई हों। मच्छर इत्यादि मारने के लिए ये पदार्थ हवाई जहाज द्वारा छिड़के जाते हैं जिससे अनेक पौधे व मछलियाँ इत्यादि मर जाती हैं। कीटनाशी दवाइयों के छिड़कने से भूमि में रहने वाले कीड़े, केंचुए तथा कवक, इत्यादि भी मर जाते हैं जिससे मृदा की उर्वरता नष्ट हो जाती है। कीटनाशी रासायनिक पदार्थ के प्रयोग से कभी-कभी सन्तान पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

4. खरपतवारनाशी पदार्थ (Weedicides) – 2,4-D एवं 2,4,5-T तथा दूसरे पदार्थ जिनका प्रयोग खेतों में उत्पन्न खरपतवार (weeds) को नष्ट करने के लिए किया जाता है, मिट्टी में मिलकर भूमि प्रदूषण करते हैं।

5. धुआँ (Smoke) – औद्योगिक चिमनियों, घरों में ईंधन के जलाने तथा स्वचालित वाहनों, जैसे- मोटरकार तथा रेल के इंजन, इत्यादि से धुआँ निकलकर वायु प्रदूषण करता है। धुएँ में कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल की वाष्प मुख्य रूप से होती है। इसके साथ ही कार्बन मोनॉक्साइड, अन्य कार्बनिक यौगिक तथा नाइट्रोजन के यौगिक भी होते हैं। वातावरण में इनकी मात्रा बढ़ जाने पर वायु प्रदूषित हो जाती है, श्वसन में कठिनाई होती है तथा आँखों पर बुरा प्रभाव

6. स्वतः चल-निर्वातक (Automobile Exhaust) – जेट विमान, ट्रैक्टर, मोटरकार, स्कूटर इत्यादि में पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल, इत्यादि के जलने से हानिकारक गैसें उत्पन्न होती हैं। जो वायु प्रदूषण करती हैं। वायुमण्डल में आने वाली कार्बन डाइऑक्साइड की लगभग 20 प्रतिशत मात्रा मोटर वाहन इंजनों में गैसोलिन के जलने से आती है।

7. औद्योगिक उच्छिष्ट (Chemical Discharge from Industries) – औद्योगिक उच्छिष्टों के जल में मिलने से उसमें ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और उसमें क्लोराइड, नाइट्रेट तथा
सल्फेट आदि की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है। कारखानों से निकले अपशिष्ट पदार्थ नदियों में डाले जाने के कारण हमारे देश की अधिकांश नदियों का जल प्रदूषित होता जा रहा है। इन पदार्थों का विषैला प्रभाव मछलियों आदि जलीय जन्तुओं तथा जलीय पौधों के लिए हानिकारक होता है। सीसे (lead), जस्ते (zinc), ताँबे (copper) तथा लौह (iron) के यौगिक जल में मिलकर विशेष रूप से उसका प्रदूषण करते हैं।

विद्युत् उत्पादन के लिए ऊष्मीय शक्ति संयन्त्र (thermal power plant) में कोयले का अधिक मात्रा में दहन होता है। प्रति तीन टन कोयले का दहन करने के लिए आठ टन ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है जिसके कारण वायुमण्डल की ऑक्सीजन धीरे-धीरे कम हो रही है। एक सुपर ऊष्मीय संयन्त्र (thermal plant) 100 टन सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) प्रतिदिन उत्पन्न कर रहा है जो कि प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है।

8. कूड़े-करकट तथा लाशों का सड़ना (Decay and Putrefaction of Household Waste and Dead Bodies) – विभिन्न जन्तुओं की मृत्यु के बाद बहुत से जीवाणुओं द्वारा उनकी लाशों का अपघटन किया जाता है, इस प्रक्रिया में सड़न उत्पन्न होती है। मृत जन्तुओं की प्रोटीन के अपघटन से उत्पन्न अमोनिया इत्यादि दुर्गन्धमय पदार्थों से वायु प्रदूषित होती है। इसी प्रकार विभिन्न जीवाणुओं द्वारा कूड़े के ढेर का अपघटन करने पर उत्पन्न अनेक दुर्गन्धमय पदार्थ एवं । दूषित गैसें भी वायु को प्रदूषित करती हैं।

9. रेडियोधर्मी प्रबन्धन (Radioactive Management) – अणु परीक्षणों पर प्रतिबन्ध होना चाहिए, इनका प्रयोग केवल मानव कल्याण हेतु होना चाहिए। विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों, चिकित्सीय उपकरणों (रेडियोधर्मी) तथा अन्य सभी अपशिष्ट पदार्थों जिनमें कुछ भी रेडियोधर्मिता है को बस्ती से दूर भूमि में गहराई में दबा देना चाहिए।

10.जैविक प्रदूषक (Bio-Pollutants) – कुछ रोग; जैसे-दमा, जुकाम, एक्जीमा तथा त्वचा सम्बन्धी अन्य दूसरे रोग कुछ जैविकों के कारण होते हैं, जैसेकि कुछ कवकों के बीजाणु (fungal spores), जीवाणु (bacteria) तथा कुछ उच्च वर्ग के पौधों के परागकण (pollen grains), जैसे-कीकर (Acacid), शहतूत (Mulberry), अरण्डी (Ricinus), पार्थेनियम (carrot grass) एवं चिलबिल (Holopteleg)।

प्रदूषण का नियन्त्रण
नगरपालिका वाहितमल (sewage) के जल में शहरों एवं कस्बों से निकली गन्दगी, कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थ तथा मानव-मल में उपस्थित बहुत से जीवाणु होते हैं जो रोग फैला सकते हैं। बस्ती के समस्त वाहितमल का एक ही निष्कासन स्थान होना उचित है जो नदी के उस भाग में खुलता हो जो शहर की आबादी के बाहर आता है, यदि बस्ती के पास नदी नहीं हो तब निष्कासन बस्ती से दूर किसी ऐसी झील, तालाब, इत्यादि में किया जा सकता है जिसका जल मनुष्य व उसके पशुओं के काम न आता हो, यदि बस्ती के बाहर काफी मात्रा में खाली भूमि हो तो वहाँ भी गन्दा जल निकाला जा सकता है जिससे कुछ जल जलवाष्प के रूप में उड़ जाता है तथा कुछ भूमिगत हो जाता है।

नदी, तालाब, झीलों में डाले जाने वाले मल-मूत्र से उनके जल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है जिससे वहाँ रहने वाली मछलियों के मरने की सम्भावना रहती है, जिस कारण यह आवश्यक हो जाता है कि वाहितमल (sewage) को जल में डालने से पूर्व उसे शुद्ध किया जाए। प्रदूषण नियन्त्रण के कुछ प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं –

1. वाहितमल शुद्धिकरण (Sewage Treatment) – वाहितमल के शुद्धिकरण में पहले गन्दगी को विशेष छन्नों द्वारा छानकर अलग किया जाता है फिर गन्दगी को नीचे बैठने दिया जाता है। (settling)। इस क्रिया से अकार्बनिक पदार्थ एवं कुछ कार्बनिक पदार्थ पृथक् हो जाते हैं तथा शेष कार्बनिक पदार्थ निलम्बित (suspended) और घुली अवस्था में रह जाते हैं। इन पदार्थों का खनिजीकरण (mineralization) किया जाता है जिससे यह पदार्थ अकार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित हो जाते हैं। इसमें ऑक्सीजन कृत्रिम विधियों द्वारा जल में प्रविष्ट की जाती है या इसे ऑक्सीजन की अधिकता वाले टैंक में पहुँचाया जाता है जिसमें ऑक्सीय जीवाणु होते हैं। यहाँ से कुछ घण्टे बाद स्लज अन्तिम टैंक में जाता है, जहाँ पर अनॉक्सीय दशाओं में स्लज का विघटन होता है। इस क्रिया में मेथेन गैस मुक्त होती है। यह गैस, पूरा उपकरण चलाने में ईंधन के रूप में प्रयुक्त होती है।

कभी-कभी इस प्रक्रिया में बहुत से हरे शैवालों में उत्पन्न ऑक्सीजन का प्रयोग किया जाता है। यह ऑक्सीजन हरे शैवालों द्वारा प्रकाश-संश्लेषण क्रिया में उत्पन्न होती है। गन्दे जल में प्रायः वे सभी तत्व उपस्थित होते हैं जिनकी शैवालों को अपनी वृद्धि के लिए आवश्यकता होती है, जैसे-कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, सल्फर, पोटैशियम, इत्यादि, परन्तु ये पदार्थ गन्दे जल में जटिल कार्बनिक पदार्थों के यौगिकों के रूप में उपस्थित रहते हैं। शैवालों द्वारा प्रयोग में लाए जाने के लिए इन पदार्थों में CO2, NH3, SO4, NO3, PO3 के अतिरिक्त ऑक्सीजन का होना आवश्यक है। यह कार्य शैवालों तथा जीवाणुओं की सहजीविता द्वारा किया जाता है। शैवाल जीवाणुओं के लिए ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं तथा जीवाणु इस ऑक्सीजन का प्रयोग करके जटिल पदार्थों से अकार्बनिक पदार्थ बनाते हैं जो शैवालों द्वारा प्रयोग किए जाते हैं।

वाहितमल की गन्दगी का शैवालों द्वारा शुद्धिकरण एक विशेष प्रकार के खुले तालाबों में किया जाता है। ऐसे तालाबों को ऑक्सीकरण ताल (Oxidation ponds) अथवा निरीक्षण ताल (stabilization ponds) कहते हैं। वाहितमल के गन्दे जल को तालाब में एक स्थान पर प्रविष्ट और दूसरी ओर से निष्कासित किया जाता है।

2. घरेलू अपमार्जकों (household detergents) को भी वाहितमल की तरह नदियों, झीलों तथा तालाबों में डाला जाना चाहिए। यह कार्य शहर की आबादी वाले क्षेत्र से आगे की ओर के भागों में किया जाना चाहिए। जिस तालाब अथवा झील का जल पशुओं आदि के पीने के काम आता है उसमें कपड़े व गन्दी वस्तुएँ नहीं धोनी चाहिए। इसी प्रकार जिन खेतों में कीटनाशक पदार्थ और खरपतवारनाशक छिड़के गए हों, उनमें से बहने वाले जल को पीने के जलाशयों में नहीं जाने देना चाहिए। उद्योग-धन्धों से निष्कासित बहुत से रासायनिक पदार्थों को भी पीने के जलाशयों तथा खेतों में न डालकर ऐसे तालाबों व झीलों में डाला जाना चाहिए जिनमें मछलियाँ इत्यादि न हों।

3. रेडियोधर्मी विकिरण के प्रभाव से बचने के लिए परमाणु विस्फोट को कम अथवा पूर्णरूप से रोका जाना चाहिए। रेडियोधर्मी व्यर्थ पदार्थों का निपटान एक गम्भीर समस्या है और अब तक समुद्र ही इसके लिए उपयुक्त स्थान समझा जाता है। विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, चिकित्सीय उपकरणों (रेडियोधर्मी) तथा अन्य सभी ऐसे अपशिष्ट पदार्थों जिनमें कुछ भी रेडियोधर्मिता है, को कंकरीट टैंकों में बन्द करके बस्ती से दूर भूमि में गहराई में दबा देना चाहिए।

4. रहने के लिए मकान सड़कों से कुछ दूरी पर बनाए जाने चाहिए जिससे स्वत: चल-निर्वातकों से निकले धुएँ और धूल का मानव जीवन पर दुष्प्रभाव न पड़े।

5. घरों से निकले गोबर को बस्ती से बाहर कम्पोस्ट गड्ढों (compost pits) में डाला जाना चाहिए जिससे उसके ढेर पर मक्खी इत्यादि को प्रजनन के लिए उपयुक्त स्थान न मिल पाए और इससे बदबू भी उत्पन्न न हो। इस प्रकार से गोबर से अच्छी खाद बन सकती है। गोबर से गोबर गैस संयन्त्र (gobar gas plant) द्वारा गोबर गैस उत्पन्न की जानी चाहिए, जो घरों में ईंधन के रूप में प्रयोग की जा सके। इस विधि में एक बड़े सिलेण्डर (cylinder) में एक ओर 30 सेमी का एक छिद्र होता है जो एक ढक्कन से बन्द रहता है। सिलेण्डर का 3/4 भाग भूमिगत रखा जाता है। छिद्र के द्वारा गोबर और कुछ जल समय-समय पर सिलेण्डर में डाला जाता है। एक-दूसरे छिद्र के द्वारा 2 – 5 सेमी की एक नली सिलेण्डर से रसोई के चूल्हे तक ले जाई जाती है। गोबर में किण्वन (fermentation) से उत्पन्न गैस ईंधन का कार्य करती है।

6. मृत जन्तुओं तथा मकानों के कूड़े-करकट को बस्ती से दूर गड्ढ़ों में रखकर मिट्टी से ढक देना चाहिए।

7. स्वचालित वाहनों (automobiles) में उत्प्रेरक संपरिवर्तक (catalytic converter) का प्रयोग वायुमण्डलीय प्रदूषण (atmospheric pollution) को कम करने के लिए किया जाता है। इस विधि में स्वचालित वाहनों (automobiles) के इंजन से निकलने वाली गैसों को उत्प्रेरक संपरिवर्तक (catalytic converter) में रखे विषमांगी उत्प्रेरक (heterogenous catalyst) के ऊपर से प्रवाहित किया जाता है।

उत्प्रेरक संपरिवर्तक (catalytic converter) में विषमांगी उत्प्रेरक (heterogenous catalyst) के रूप में प्लैटिनम (platinum), पैलेडियम (palladium) एवं होडियम (rhodium) धातुओं के साथ-साथ कॉपर ऑक्साइड (CuO) एवं क्रोमियम ऑक्साइड (Cr2O3) का भी प्रयोग करते हैं।

स्वचालित वाहनों (automobiles) में उत्प्रेरक संपरिवर्तक (catalytic converter) का प्रयोग करते समय सीसा रहित पेट्रोल (unleaded petrol) का प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि सीसायुक्त पेट्रोल (leaded petrol) उत्प्रेरक संपरिवर्तक में रखे विषमांगी उत्प्रेरकों (heterogenous catalyst) के लिए विष (poison) का कार्य करता है और उत्प्रेरक संपरिवर्तक की कार्य क्षमता को समाप्त कर देता है।

प्रश्न 2.
वायु प्रदूषण क्या होता है? वायु प्रदूषण के कारणों एवं मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रभावों की विवेचना कीजिए। वायु प्रदूषण के नियन्त्रण के उपायों का उल्लेख कीजिए। (2010,11,14,16)
या
वायु प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? विभिन्न प्रकार के वायु प्रदूषकों का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में वातावरण पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभावों की विवेचना कीजिए। (2010)
या
‘वायु प्रदूषक’ पर टिप्पणी लिखिए। (2015, 17)
उत्तर
वायु प्रदूषण
वायु में विभिन्न प्रकार की गैसें पाई जाती हैं; जैसे- O2 (21%), N2 (78%), आर्गन (1% से कम), CO2 (0.03%) आदि। वायु में किसी भी गैस की मात्रा सन्तुलित अनुपात से अधिक होना अथवा कम होना अथवा अन्य किसी पदार्थ का समावेश वायु प्रदूषण (air pollution) कहलाता है और इस प्रकार की वायु श्वसन के योग्य नहीं रहती। सभी जीव श्वसन में कार्बन डाइऑक्साइड निकालते तथा ऑक्सीजन लेते हैं, किन्तु हरे पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग कर ऑक्सीजन वायु में छोड़ते हैं। इस प्रकार इन दोनों गैसों का अनुपात सन्तुलित रहता है। मनुष्य अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए विभिन्न प्रकार की क्रियाएँ करके इस सन्तुलन को बिगाड़ता है। एक ओर वह वनों इत्यादि को अनियोजित प्रकार से काट डालता है तो दूसरी ओर कल-कारखाने, औद्योगिक संस्थान आदि चलाकर वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को बढ़ाता है, साथ ही नाइट्रोजन, सल्फर आदि अनेक तत्त्वों के ऑक्साइड्स इत्यादि वायुमण्डल में डाल देता है।

वायु प्रदूषक
सामान्यत: दो प्रकार के कारक वायु में प्रदूषक (pollutants) उत्पन्न करने में सहायक हैं। ये हैं, मनुष्य की बढ़ती जनसंख्या (population) तथा बढ़ती हुई उत्पादकता (productivity) जिसमें कृषि प्रक्रियाएँ, ऊर्जा उत्पादन प्रमुखत: परमाणु ऊर्जा तथा अन्य वैज्ञानिक क्रियाएँ सम्मिलित हैं। वायुमण्डल को प्रदूषित करने वाले अनेक स्रोत (sources) इन प्रदूषकों (pollutants) को इन्हीं दो कारकों के आधार पर उत्पन्न करते हैं। सारणी देखिए।

वायु प्रदूषण के स्रोत तथा उनसे उत्पन्न होने वाले प्रदूषक
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वायु प्रदूषण के परिणाम या जन-जीवन पर प्रभाव
वायु प्रदूषण से निम्नलिखित हानियाँ होती हैं। कुछ भयंकर रोग भी वायु प्रदूषण के द्वारा ही होते हैं –
1. वायु में उपस्थित मिट्टी, धूल के कण, परागकण, बीजाणु आदि श्वास के रोग, जैसे- दमा (asthma), फेफड़ों का कैन्सर, एलर्जी आदि उत्पन्न करते हैं तथा वायुमण्डल को भी दूषित करते हैं।

2. कोयला तथा पेट्रोलियम पदार्थों के जलने से निकली गैसें मुख्यतः कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड आदि फेफड़ों में पहुँचकर नमी से अभिक्रिया कर अम्ल बनाती हैं, जो श्वसन तन्त्र में घाव कर देते हैं। नाइट्रोजन के ऑक्साइड फेफड़ों, हृदय तथा आँखों के रोग पैदा करते हैं। कार्बन मोनोऑक्साइड रुधिर में मिलकर ऑक्सीजन के वाहक हीमोग्लोबिन से अभिक्रिया करके ऑक्सीजन संवहन के कार्य को प्रभावित करती है तथा थकावट व मानसिक विकार पैदा करती है।

3. वातावरण में फ्लुओराइड (fluoride) की मात्रा बढ़ने से पत्तियों के सिरों व किनारों के ऊतक नष्ट होने लगते हैं इस स्थिति को हरिमहीनता (chlorosis) या ऊतक क्षय (necrosis) कहते हैं। फलस्वरूप पत्तियाँ नष्ट होने लगती हैं, प्रकाश संश्लेषण रुक जाता है और ऑक्सीजन की उत्पत्ति पर प्रभाव पड़ता है।

4. कुछ प्रदूषक वातावरण में आने पर अन्य पदार्थों से क्रिया करके द्वितीयक प्रदूषकों (secondary pollutants) के रूप में अनेक प्रकार के विषैले पदार्थ बना लेते हैं जो स्वास्थ्य पर गम्भीर तथा हानिकारक प्रभाव डालते हैं; जैसे- स्वचालित निर्वातक में निकलने वाले अदग्ध हाइड्रोकार्बन तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड सूर्य के प्रकाश में प्रतिक्रिया करके प्रकाश संश्लेषी स्मॉग (photosynthetic smog) का निर्माण करते हैं। इनमें पैरॉक्सी ऐसीटिल नाइट्रेट (PAN) तथा ओजोन होते हैं। इस प्रकार बनने वाले पदार्थ विषैले होते हैं। इनका प्रभाव विशेषकर आँखों तथा श्वसन पथ पर होता है तथा साँस लेने में कठिनाई हो जाती है। पौधों के लिए PAN अत्यधिक हानिकारक है तथा इसके प्रभाव से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया अवरुद्ध हो जाती है। दूसरी ओर ओजोन पत्तियों में श्वसन तेज कर देती है। इस प्रकार, भोजन की कमी से पौधे नष्ट हो जाते हैं।

5. विभिन्न प्रकार की धातुओं के कण घातक रोगों को जन्म देते हैं। ये सब विषैले होते हैं। सीसा (lead) तन्त्रिका तन्त्र तथा वृक्कों के रोगों को उत्पन्न करता है। कैडमियम रुधिर चाप बढ़ाता है। और हृदय तथा श्वसन सम्बन्धी रोगों का कारण है। लोहे तथा सिलिका के कण भी फेफड़ों की बीमारियाँ पैदा करते हैं।

6. फ्लुओराइड हड्डियों तथा दाँतों पर प्रभाव डालते हैं। इनसे पत्तियों पर धब्बे पड़ जाते हैं और पौधों की वृद्धि ठीक नहीं होती है।

पूर्ण या अपूर्ण दहन से उत्पन्न प्रदूषक तथा उनका स्वास्थ्य पर प्रभाव प्रदूषक
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जन्तुओं पर प्रभाव
उपर्युक्त के अनुसार, वायु प्रदूषक अन्य जन्तुओं पर भी अहितकर प्रभाव उत्पन्न करते हैं। पशुओं में फेफड़ों की अनेक बीमारियाँ, धूलकणों, सल्फर डाइऑक्साइड आदि से पैदा होती हैं। इसी प्रकार कार्बन मोनोऑक्साइड से पशुओं की मृत्यु तक हो जाती है। गाय, बैल तथा भेड़े, फ्लुओरीन के प्रति अत्यधिक संवेदी हैं। फ्लुओरीन घास तथा अन्य चारों में एकत्रित हो जाती है। पशु जब इसको खाते हैं। तो ये पदार्थ उनके शरीर में पहुँचकर अस्थियों तथा दाँतों पर प्रभाव डालते हैं। कैडमियम श्वसन विष है, यह हृदय को हानि पहुँचाता है। सुअर वायु प्रदूषण से कम प्रभावित होता है।

पौधों पर प्रभाव
वायु प्रदूषण का पौधों पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है। सामान्यत: वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार के प्रदूषकों की परतें होने के कारण सूर्य के प्रकाश की पौधों तक पहुँच कम हो जाने से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में कमी आती है। धूल तथा अन्य कण पत्तियों पर जमकर उनकी कार्यिकी पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। उनमें श्वसन, प्रकाश संश्लेषण तथा वाष्पोत्सर्जन क्रिया की दर घट जाती है। सल्फर डाइऑक्साइड पत्तियों में क्लोरोफिल (chlorophyll) को नष्ट कर देती है। ओजोन की उपस्थिति से श्वसन तेज हो जाता है, भोजन की आपूर्ति नहीं हो पाती अतः पौधे की मृत्यु हो सकती है। इसी प्रकार, विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म कण; जैसे- सीसा, कैडमियम, फ्लुओराइड, ऐस्बेस्टस आदि वृद्धि रोकने वाले, ऊतकों को नष्ट करने वाले आदि प्रभाव उत्पन्न करते हैं। इनके प्रभाव से पत्तियाँ आंशिक रूप से अथवा पूर्ण रूप से झुलस (जलना) जाती हैं।

अन्य आर्थिक प्रभाव
सल्फर डाइऑक्साइड व कार्बन डाइऑक्साइड आदि से बने अम्ल; जैसे-सल्फ्यूरिक अम्ल, कार्बनिक अम्ल हमारी इमारतों, वस्त्रों आदि पर अत्यन्त हानिकारक प्रभाव डालते हैं। भवनों पर सीसे (lead) का रोगन हाइड्रोजन सल्फाइड के प्रभाव से काला पड़ जाता है। सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स आदि भवनों का संक्षारण भी करते हैं। मथुरा के तेल शोधक कारखाने से निकली हुई गैसें, कहते हैं कि विश्व प्रसिद्ध आगरा के ताजमहल के संगमरमर को काफी हानि पहुँचा रही हैं। इसी प्रकार, दिल्ली के लाल किले के पत्थरों को थर्मल विद्युत गृह से निकली गैसों ने काफी हानि पहुँचायी है।

ओजोन कवच पर प्रभाव
ओजोन कवच जो पृथ्वी के वायुमण्डल के बाहरी भाग में, क्षोभ मण्डल (troposphere) जिसमें हम रहते हैं, के बाहर व समताप मण्डल (stratosphere) के भीतरी परत के रूप में है तथा समताप मण्डल का ही भाग मानी जाता है, 15 से 30 किमी ओजोन गैस (O3) की मोटी परत के रूप में स्थित है, पृथ्वी की सुरक्षा विशेषकर सूर्य से आने वाली पराबैंगनी (ultraviolet) किरणों आदि से करता है। वायु प्रदूषण के कारण विभिन्न प्रकार के प्रदूषक इस परत को हानि पहुँचा सकते हैं। उदाहरण के लिए समताप मण्डल में क्लोरीन गैस के पहुंचने से ओजोन की मात्रा में कमी आ जाती है। क्लोरीन का एक परमाणु, 1,00,000 ओजोन अणुओं को नष्ट कर देता है।

सूर्य से प्राप्त पराबैंगनी किरणों, जिन्हें ओजोन परत रोकती है, से सीधा सम्पर्क मनुष्य, अन्य जीव-जन्तु, वनस्पति आदि में रोग प्रतिरोधक क्षमता का अवक्षय करता है। मनुष्य में त्वचा का कैन्सर, आँखों में मोतियाबिन्द, अन्धापन आदि रोगों की वृद्धि होती है। समुद्री तथा स्थलीय जीव-जन्तु, कृषि उपज, वनस्पति एवं खाद्य पदार्थों पर भी इन पराबैंगनी किरणों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इनसे भूपृष्ठीय तापमान बढ़ने से विश्वतापन (global warming) का खतरा है जिससे जलवायु परिवर्तित हो जायेगी।

वायु प्रदूषण की रोकथाम (नियन्त्रण)
मनुष्य ने विभिन्न प्रकार से वायु को सामान्य से अधिक दूषित करना प्रारम्भ कर दिया है। उद्योगों एवं अन्य कारणों से हमारा वायुमण्डल बहुत अधिक दूषित हो रहा है। इस स्थिति में वायुमण्डल को कृत्रिम रूप से प्रदूषण-रहित करने की भी आवश्यकता को अनुभव किया जाने लगा है। वायु को शुद्ध रखने के लिए निम्नलिखित कृत्रिम साधनों को मुख्य रूप से अपनाया जाता है –

  1. आवासों को बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि उनमें हवा एवं सूर्य के प्रकाश के आने-जाने की व्यवस्था ठीक रहे तथा उन्हें सड़कों इत्यादि से दूर बनाना चाहिए।
  2. जहाँ कोयला, लकड़ी आदि जलायी जाती है वहाँ से धुआँ निकलने के लिए ऊँची चिमनी आदि की व्यवस्था होनी चाहिये, ताकि धुआँ एवं दूषित गैसें घर के अन्दर एकत्रित न हो पायें।
  3. यदि पशु पालने हों तो उन्हें आवास से दूर ही रखना चाहिये। इनके गोबर इत्यादि को गोबर गैस आदि बनाने में उपयोग में लाना चाहिये।
  4. आबादी क्षेत्रों में काफी संख्या में पेड़-पौधे लगाने चाहिये ये वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को कम करते हैं तथा ऑक्सीजन को बढ़ाते हैं जिससे वायुमण्डल स्वच्छ होता है।
  5. भूमि खाली नहीं छोड़नी चाहिये, धूल उड़कर वायु को दूषित करती है।
  6. औद्योगिक संस्थानों तथा फैक्ट्रियों को आबादी से दूर बनाना चाहिये। इनमें छन्ने लगाये जाने चाहिए तथा धुआँ निकालने वाली चिमनियाँ काफी ऊँची होनी चाहिये जिससे दूषित गैसें काफी दूर ऊँचाई पर वायुमण्डल में चली जाये।
  7. जहाँ अधिक वाहन चलते हैं वहाँ की सड़कें पक्की होनी चाहिये। चूँकि कच्ची सड़कों से धूल उड़ती है।
  8. वनों आदि को सुरक्षित तथा संवर्धित करना आवश्यक है। इन्हें नष्ट होने से बचाना तथा नये वन लगाने चाहिए। यदि वृक्षों को काटना ही आवश्यक हो तो वांछित संख्या में नये पेड़ लगाकर क्षतिपूर्ति पहले ही कर लेनी आवश्यक है।

प्रश्न 3.
जल-प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? यह कितने प्रकार का होता है? जल-प्रदूषण के कारणों तथा मानव-स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव की विवेचना कीजिए। जल-प्रदूषण के नियन्त्रण के उपायों का उल्लेख कीजिए। (2011, 14, 17)
या
नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने के समुचित उपाय लिखिए। (2014)
या
क्या कारण है कि औद्योगिक इकाइयों के पास बहने वाली नदियों का जल पीने योग्य नहीं होता है? (2014)
या
गंगा जल प्रदूषण के प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए और इसके नियन्त्रण के उचित उपाय भी लिखिए। (2015, 18)
या
घरेलू अपमार्जक पर टिप्पणी लिखिए। (2017)
उत्तर
जल प्रदूषण
जल पौधों एवं जन्तुओं दोनों के लिए ही अति आवश्यक है। पेड़-पौधे भूमि से जड़ों की सहायता से जल प्राप्त करते हैं, जबकि जन्तु इसे विभिन्न जल स्रोतों से पीते हैं।

जल में होने वाला ऐसा भौतिक तथा रासायनिक या तापीय परिवर्तन जिसके कारण जल जहरीला (poisonous) हो जाता है तथा यह फिर पौधों तथा जन्तुओं के लिए उपयोगी नहीं रहता है, जल प्रदूषण (water pollution) कहलाता है।

जल प्रदूषण के विभिन्न स्रोत या प्रकार

  1. वाहित मल
  2. घरेलू अपमार्जक
  3. कृषि उद्योग के प्रदूषक
  4. औद्योगिक रसायन
  5. रेडियोधर्मी पदार्थ
  6. तापीय प्रदूषण।

1. वाहित मल (Sewage) – नगरों से निकले विभिन्न अपशिष्ट पदार्थ; जैसे- मल-मूत्र, कूड़ा-करकटे आदि नालियों-नालों द्वारा बड़े तालाबों, झीलों तथा नदियों में डाल दिया जाता है जिससे इन जल स्रोतों में अपघटन की क्रिया आदि सामान्य रूप से बढ़ जाती है, इससे जले स्रोतों में दुर्गन्ध फैलने लगती है। अब ऐसा जल पीने योग्य नहीं रह जाता क्योंकि इसमें विभिन्न हानिकारक प्रदूषक मिले हुए होते हैं जो जीव-जन्तुओं के स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाते हैं। ऐसा जल नहाने योग्य भी नहीं रहता है क्योंकि ऐसे प्रदूषित जल में नहाने पर विभिन्न प्रकार के चर्म रोगों के होने का खतरा रहता है। डॉॉफ्नया (Dophnia) तथा ट्राउट (Trout) आदि मछलियाँ जल प्रदूषण के प्रति संवेदनशील होती हैं।

2. घरेलू अपमार्जक (Household Detergents) – घरों में साफ-सफाई के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले रासायनिक पदार्थ; जैसे- विभिन्न प्रकार के सर्फ एवं साबुन आदि आते हैं, घरेलू अपमार्जक (household detergents) कहलाते हैं। इन सभी पदार्थों को घरों से नालियों में बहा दिया जाता है जिससे शैवालों की संख्या में तीव्र वृद्धि होने लगती है। जब इन शैवालों की मृत्यु होती है तो इनके अपघटन के लिए इन्हें फिर तालाबों, झीलों आदि में पहुँचाया जाता है। अपमार्जकों के जल में जमा हो जाने के कारण अधिक O2 की आवश्यकता पड़ती है, जिसके कारण अन्य जलीय जीवों के लिए O2 की मात्रा कम पड़ने लगती है जिससे जलीय जीवों की मृत्यु होने लगती है।

3. कृषि उद्योग के प्रदूषक (Agricultural Pollutants) – विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थों; जैसे- 2-4D, 2-4-5 T, DDT, SOआर्गेनोक्लोरीन, आर्गेनोफास्फेट आदि का प्रयोग कृषि उद्योग में खरपतवारनाशी (weedicides), शाकनाशी (herbicides), कीटनाशी (insecticides), पेस्टीसाइड्स (pesticides), आदि के रूप में किया जाता है। ये पदार्थ खाद्य श्रृंखला (food chain) से होते हुए मनुष्य (सर्वाहारी) में संचित होते रहते हैं, जिससे मनुष्य में तरह-तरह की बीमारियाँ उत्पन्न होने लगती हैं। मनुष्य में इस प्रकार के संचय को बायोमैग्नीफिकेशन (biomagnification) कहते हैं। यही रासायनिक पदार्थ जब नालियों तथा नालों द्वारा तालाबों या झीलों में पहुँचते हैं तो तालाब में उपस्थित जन्तुओं एवं पौधों दोनों को हानि पहुँचाते हैं और जल प्रदूषण (water pollution) करते हैं।

4. औद्योगिक रसायन (Industrial Chemicals) – विभिन्न उद्योगों द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्बनिक (organic) तथा अकार्बनिक (inorganic) प्रदूषकों (pollutants) को जल में मुक्त किया जाता है।

पारा, साइनाइड, रबर, रेशे, तेल, धूल, कोयला, अम्ल, क्षार, गर्म जल, कॉपर, जिंक, फिनोल, फेरस लवण (सल्फाइड तथा सल्फाइट), जस्ता, क्लोराइड आदि प्रमुख औद्योगिक प्रदूषक (industrial pollutants) हैं जो जल में मुक्त किये जाते हैं। जल में पहुँचकर ये जलीय वनस्पतियों तथा जन्तुओं को तरह-तरह से हानि पहुँचाते हैं।

सन् 1952 में जापान के मिनामाटा खाड़ी (Minamata bay) में पारे (30 -100 ppm तक) से प्रदूषित (infected) मछलियों को खाने से अनेक लोगों की मृत्यु हो गई थी। यही कारण है कि औद्योगिक इकाइयों के पास बहने वाली नदियों का जल पीने योग्य नहीं होता है।

5. रेडियोधर्मी पदार्थ (Radioactive Substances) – परमाणु केन्द्रों में होने वाले विभिन्न प्रयोगों के फलस्वरूप उत्पन्न विकिरण (radiation) जल में पहुँचकर जलीय जीवों में प्रतिकूल आनुवंशिक प्रभाव (hereditary effect) डालती हैं।

6. तापीय प्रदूषण (Thermal Pollution) – ऊष्मीय शक्ति संयन्त्रों (thermal power plants) में कोयले की ऊष्मा का उपयोग करके विद्युत उत्पन्न की जाती है। यहाँ अपशिष्ट पदार्थ के रूप में गर्म जल (hot water) को नदी-नालों में बहा दिया जाता है, जहाँ पर पहुँचकर यह जलीय जन्तुओं एवं पौधों को हानि पहुँचाता है।

जल प्रदूषण की रोकथाम के उपाय
जल प्रदूषण की रोकथाम के लिए निम्नलिखित प्रयास किये जाने चाहिए –

  1. मानव आबादियों से उत्पन्न विभिन्न अपशिष्ट पदार्थों; जैसे- मल-मूत्र, कूड़ा-करकट आदि को जल में नहीं डालना चाहिए। इन्हें मानव बस्तियों से बाहर गड्ढों में दबा देना चाहिए।
  2. घरों से निकलने वाले गन्दे जल को एकत्रित कर संशोधन संयन्त्रों के पूर्ण उपचार के उपरान्त ही नदी या तालाबों में विसर्जित किया जाना चाहिए।
  3. पेट्रोलियम अवशिष्टों को नदी, नालों आदि में नहीं बहाना चाहिए।
  4. कृषि के लिए न्यूनतम मात्रा में रसायनों तथा जैविक खाद का उपयोग किया जाना चाहिए।
  5. जल के दुरुपयोग को रोकना चाहिए। इसके लिये समाज में जाग्रति पैदा करनी चाहिए।
  6. मृत जीवों को जल में नहीं बहाना चाहिए।
  7. फॉस्फोरस का अवक्षेपण कर उसे जलाशयों से हटा देना चाहिए।
  8. सेफ्टिक टैंक, ऑक्सीकरण तालाब तथा फिल्टर स्तर का प्रयोग कर कार्बनिक पदार्थों की मात्रा को कम किया जा सकता है।
  9. कारखानों द्वारा उत्पन्न गर्म जल को नदियों आदि में नही छोड़ना चाहिए, इससे जलीय जन्तु एवं वनस्पति नष्ट हो जाती है।

प्रश्न 4.
रेडियोधर्मी प्रदूषण क्या है? रेडियोधर्मी प्रदूषण फैलाने वाले किन्हीं दो रेडियोधर्मी पदार्थों के नाम लिखिए। (2015)
या
रेडियोधर्मी प्रदूषण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2016)
उत्तर
रेडियोधर्मी प्रदूषण
परमाणु शक्ति उत्पादन केन्द्रों और परमाणवीय परीक्षणों से जल, वायु तथा भूमि का प्रदूषण होता है जो आज की पीढ़ी के लिए ही नहीं वरन् आने वाली पीढ़ियों के लिए भी हानिकारक सिद्ध होता है। एक नाभिकीय विस्फोट (nuclear explosion) के द्वारा इलेक्ट्रॉन (electrons), प्रोटॉन (protons) के साथ-ही-साथ न्यूट्रॉन (neutrons) तथा α (ऐल्फा) एवं β (बीटा) कण प्रवाहित होते हैं जिनके कारण गुणसूत्रों (chromosomes) पर उपस्थित जीन्स (genes) में उत्परिवर्तन (mutations) उत्पन्न होते हैं जो आनुवंशिक होते हैं। नाभिकीय विस्फोट से विस्फोटन के स्थान पर तथा उसके आस-पास बहुत अधिक जीव हानि होती है और लम्बी अवधि में यह समस्त संसार के लिए भी हानिकारक होता है। इस प्रकार के विस्फोट से लन्दन, न्यूयॉर्क तथा दिल्ली जैसे बड़े शहर भी शीघ्र ही नष्ट किए जा सकते हैं तथा वैज्ञानिकों के पास अभी तक इससे बचाव के कोई साधन नहीं हैं।

प्रायः 16 किमी तक चारों ओर के स्थान में इससे सारी लकड़ी जल जाती है। विस्फोट के स्थान पर तापक्रम इतना अधिक हो जाता है कि धातु तक पिघल जाती हैं। एक विस्फोट के समय उत्पन्न रेडियोधर्मी पदार्थ वायुमण्डल की बाह्य परतों में प्रवेश कर जाते हैं, जहाँ पर वे ठण्डे होकर संघनित अवस्था में बूंदों का रूप ले लेते हैं और बाद में ठोस अवस्था में बहुत छोटे धूल के कणों के रूप में वायु में विसरित हो जाते हैं और वायु के झोंकों के साथ समस्त संसार में फैल जाते हैं। कुछ वर्षों के पश्चात् ये रेडियोधर्मी बादल धीरे-धीरे पृथ्वी पर बैठने लगते हैं। सभी नाभिकीय विस्फोटों के द्वारा प्राय: 5% रेडियोधर्मी स्ट्रॉन्शियम-90 (strontium-90) मुक्त होता है जिससे जल, वायु तथा भूमि का प्रदूषण होता है।

यह घास तथा शाकों में प्रवेश पा जाता है और इस प्रकार से यह गाय व दूसरे दूध देने वाले पशुओं के द्वारा तथा मांस के द्वारा मनुष्य के शरीर में प्रवेश पा जाता है, जहाँ पर यह हड्डियों में प्रवेश कर, कैन्सर तथा अन्य आनुवंशिक रोग उत्पन्न करता है। बच्चों को यह अधिक हानि पहुँचाता है। आयोडीन131 (Iodine131) थाइरॉइड को उत्तेजित करता है तथा लसिका गाँठों, रुधिर कणिकाओं व अस्थि मज्जा को नष्ट करके ट्यूमर (tumour) उत्पन्न करती है। द्वितीय महायुद्ध में 6 अगस्त सन् 1945 व 9 अगस्त सन् 1945 को क्रमशः नागासाकी तथा हिरोशिमा में हुए परमाणु बम के विस्फोट से लाखों मनुष्यों की मृत्यु के अतिरिक्त बहुत से लोग अपंग हो गए थे और बहुत से रोग उनकी सन्तति में भी उत्पन्न हुए।

पराबैंगनी (UV) किरणें DNA, RNA व प्रोटीनों को प्रभावित करती हैं। पराबैंगनी विकिरणों (UV radiations) के कारण जिरोडर्मा पिगमेण्टोसम (xeroderma pigmentosum) नामक त्वचा का रोग हो जाता है। सीजियम137 (Cs137) उपापचयिक क्रियाओं में बाधा उत्पन्न करता है।

26 अप्रैल सन् 1986 में रूस में चिरनोबिल (Chernobyl) स्थित परमाणु शक्ति केन्द्र से लगभग 1,35,000 व्यक्तियों को वहाँ से तुरन्त हटाया गया और 1.5 लाख को सन् 1991 तक हटाया गया। लगभग 6.5 लाख व्यक्ति इससे प्रभावित हुए हैं जिनमें कैन्सर, थाइरॉइड, मोतियाबिन्द तथा प्रतिरक्षा तन्त्र के क्षीण होने की सम्भावना है। मानवीय भूल के कारण घातक रेडियोधर्मी कण कई किलोमीटर वातावरण में प्रविष्ट हो गए थे जिसके कारण अनेक व्यक्ति हताहत हुए थे।

प्रश्न 5.
प्रदूषण क्या है? ध्वनि प्रदूषण का विस्तार से वर्णन कीजिए। (2015)
उत्तर
प्रदूषण
[संकेत–अतिलघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 के उत्तर का अध्ययन करें]

ध्वनि प्रदूषण
नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक रॉबर्ट कोच (Robert Koch) ने शोर (noise) के सम्बन्ध में विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि “एक दिन ऐसा आएगा जब मनुष्य को स्वास्थ्य के सबसे बड़े शत्रु के रूप में निर्दयी शोर (noise) से संघर्ष करना पड़ेगा।” लगता है वह दुखद दिन अब निकट आ गया है। शोर (noise) की गिनती भी अब प्रदूषकों में होने लगी है।

अन्य प्रदूषकों (pollutants) के समाने शोर भी हमारी औद्योगिक प्रगति एवं आधुनिक सभ्यता का प्रतिफल (byproduct) है। अनेक प्रकार के वाहन, जैसे- मोटरकार, बस, जेट विमान, ट्रैक्टर, रेलवे इंजन, जेनरेटर, लाउडस्पीकर, टेलीविजन, रेडियो, बाजे एवं कारखानों के साइरन तथा मशीनों, आदि से ध्वनि प्रदूषण होता है। ध्वनि की लहरें जीवधारियों की उपापचय क्रियाओं को प्रभावित करती हैं। अधिक तेज ध्वनि से मनुष्य की सुनने की शक्ति का ह्रास होता है और अधिक समय तक शोर में रहने से बहरापन (prebycusis) हो जाता है। शोर के कारण नींद ठीक प्रकार से नहीं आती जिससे नाड़ी-संस्थान सम्बन्धी एवं नींद न आने के रोग उत्पन्न हो जाते हैं, कभी-कभी तो पागलपन का रोग भी हो जाता है। कुछ ध्वनि छोटे-छोटे कीटाणुओं को नष्ट कर देती हैं जिस कारण बहुत से पदार्थों का प्राकृतिक रूप से अपघटन नहीं होता।

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के चांसलर डॉ० वर्न नुडसन (Verm Knudson) मानते हैं कि धुएँ के समान ही शोर भी एक धीमी गति वाला मृत्यु दूत है।

ध्वनि की प्रबलता (intensity of noise), शोर की इकाई, डेसीबल (decibel dB) में मापी जाती है। 50 से 60 dB नींद में व्यवधान उत्पन्न करने के लिए काफी है। 80 डेसीबल (dB) या इससे अधिक का शोर श्रवण-शक्ति को स्थायी हानि पहुँचाने में सक्षम होता है। सामान्य श्रवण-शक्ति वालों के लिए 25 – 30 डेसीबल की ध्वनि पर्याप्त होती है। 5 डेसीबल की ध्वनि अत्यन्त मन्द, 75 dB साधारण तेज, 95 dB अत्यन्त तेज और 120 dB से अधिक की ध्वनि तीव्र कष्टकारक होती है। ध्वनि प्रदूषण को कम करने का उपाय यही है कि हम अपने दैनिक जीवन में धीमी ध्वनि का प्रयोग करें अर्थात् त्योहारों, उत्सवों आदि पर लाउडस्पीकर, म्यूजिक सिस्टम इत्यादि का प्रयोग कम आवाज के साथ करें। वाहनों के हॉर्न अनावश्यक न बजायें। प्रेशर हॉर्न का प्रयोग न करें इत्यादि।

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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 8 Electromagnetic Waves

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Physics
Chapter Chapter 8
Chapter Name Electromagnetic Waves (वैद्युत चुम्बकीय तरंगें)
Number of Questions Solved 42
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 8 Electromagnetic Waves (वैद्युत चुम्बकीय तरंगें)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
चित्र 8.1 में एक संधारित्र दर्शाया गया है जो 12 cm त्रिज्या की दो वृत्ताकार प्लेटों को 5.0 cm की दूरी पर रखकर बनाया गया है। संधारित्र को एक बाह्य स्रोत (जो चित्र में नहीं दर्शाया गया है) द्वारा आवेशित किया जा रहा है। आवेशकारी धारा नियत है और इसका मान 0.15 A है।
(a) धारिता एवं प्लेटों के बीच विभवान्तर परिवर्तन की दर का परिकलन कीजिए।
(b) प्लेटों के बीच विस्थापन धारा ज्ञात कीजिए।
(c) क्या किरचॉफ का प्रथम नियम संधारित्र की प्रत्येक प्लेट पर लागू होता है? स्पष्ट कीजिए।
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हल-
दिया है, प्लेट की त्रिज्या r = 0.12 m, बीच की दूरी d = 0.05 m
आवेशन धारा i = 0.15 A
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 8 Electromagnetic Waves
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 8 Electromagnetic Waves Q15
(c) हाँ, किरचॉफ का प्रथम नियम संधारित्र की प्रत्येक प्लेट पर भी लागू होता है, क्योंकि
प्लेट तक आने वाली चालन धारा = प्लेट से आगे जाने वाली विस्थापन धारा

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प्रश्न 2.
एक समान्तर प्लेट संधारित्र (चित्र 8.2), R = 6.0 cm त्रिज्या की दो वृत्ताकार प्लेटों से बना है। और इसकी धारिता C = 100 pF है। संधारित्र को 230V, 300 rad s-1 की (कोणीय) आवृत्ति के किसी स्रोत से जोड़ा गया है।
(a) चालन धारा का r.m.s. मान क्या है?
(b) क्या चालन धारा विस्थापन धारा के बराबर है?
(c) प्लेटों के बीच, अक्ष से 3.0 cm की दूरी पर स्थित बिन्दु पर B का आयाम ज्ञात कीजिए।
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हल-
यहाँ R = 6.0 x 10-2 मी, C = 100 x 10-12 F = 10-10 F,
Vrms = 230 वोल्ट, w = 300 रे-से-1
(a) संधारित्र का धारितीय प्रतिघात
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 8 Electromagnetic Waves Q2.2
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प्रश्न 3.
10-10 m तरंगदैर्घ्य की X-किरणों, 6800 Å तरंगदैर्घ्य के प्रकाश तथा 500 m की रेडियो तरंगों के लिए किस भौतिक राशि का मान समान है?
हल-
X-किरणें, लाल प्रकाश तथा रेडियो तरंगें सभी वैद्युत-चुम्बकीय तरंगें हैं। अत: इन सभी की निर्वात् में चाल समान होगी जिसका मान c = 3.0 x 108 मी/से होता है।

प्रश्न 4.
एक समतल विद्युतचुम्बकीय तरंग निर्वात में z-अक्ष के अनुदिश चल रही है। इसके विद्युत तथा चुम्बकीय-क्षेत्रों के सदिश की दिशा के बारे में आप क्या कहेंगे? यदि तरंग की आवृत्ति 30 MHz हो तो उसकी तरंगदैर्घ्य कितनी होगी?
हल-
वैद्युत-चुम्बकीय तरंगों में संचरण नियतांक (UPBoardSolutions.com) सदिश [latex s=2]\vec { K }[/latex], वैद्युत क्षेत्र सदिश [latex s=2]\vec { E }[/latex] तथा चुम्बकीय क्षेत्र सदिश [latex s=2]\vec { E }[/latex] दायें हाथ की निकाय बनाते हैं।

चूँकि संचरण सदिश [latex s=2]\vec { K }[/latex], Z- दिशा में हैं, वैद्युत क्षेत्र सदिश [latex s=2]\vec { E }[/latex], X-दिशा में तथा चुम्बकीय क्षेत्र सदिश [latex s=2]\vec { B }[/latex], Y- दिशा में होगा।
दिया है आवृत्ति, v = 30 MHz = 30 x 106 Hz
प्रकाश की चाल c = 3 x 108 ms-1
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 7 Alternating Current Q4

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प्रश्न 5.
एक रेडियो 7.5 MHz से 12 MHz बैंड के किसी स्टेशन से समस्वरित हो सकता है। संगत तरंगदैर्घ्य बैंड क्या होगा?
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प्रश्न 6.
एक आवेशित कण अपनी माध्य साम्यावस्था के दोनों ओर 10 Hz आवृत्ति से दोलन करता है। दोलक द्वारा जनित विद्युतचुम्बकीय तरंगों की आवृत्ति कितनी है?
हल-
हम जानते हैं कि त्वरित अथवा कम्पित आवेशित कण कम्पित विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है। यह विद्युत क्षेत्र, कम्पित चुम्बकीय-क्षेत्र उत्पन्न करता है। ये दोनों (UPBoardSolutions.com) क्षेत्र मिलकर वैद्युतचुम्बकीय तरंग उत्पन्न करते हैं; जिसकी आवृत्ति, कम्पित कण के दोलनों की आवृत्ति के बराबर होती है।
तरंगों की आवृत्ति v = 109 Hz

प्रश्न 7.
निर्वात में एक आवर्त विद्युतचुम्बकीय तरंग के चुम्बकीय-क्षेत्र वाले भाग का आयाम B0 = 510 nT है। तरंग के विद्युत क्षेत्र वाले भाग का आयाम क्या है?
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प्रश्न 8.
कल्पना कीजिए कि एक विद्युतचुम्बकीय तरंग के विद्युत क्षेत्र का आयाम E0 = 120 N/C है तथा इसकी आवृत्ति v = 50.0 MHz है।
(a) B0, ω, k तथा λ ज्ञात कीजिए,
(b) E तथा B के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए।
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प्रश्न 9.
विद्युतचुम्बकीय स्पेक्ट्रम के विभिन्न भागों की पारिभाषिकी पाठ्यपुस्तक में दी गई है। सूत्र E = hν (विकिरण के एक क्वांटम की ऊर्जा के लिए : फोटॉन) का उपयोग कीजिए तथा em वर्णक्रम (विद्युतचुम्बकीय स्पेक्ट्रम) के विभिन्न भागों के लिए ev के मात्रक में फोटॉन की ऊर्जा निकालिए। फोटॉन ऊर्जा के जो विभिन्न परिमाण आप पाते हैं वे विद्युतचुम्बकीय विकिरण के स्रोतों से किस प्रकार सम्बन्धित हैं?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 8 Electromagnetic Waves
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 8 Electromagnetic Waves Q9.1
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 8 Electromagnetic Waves
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 8 Electromagnetic Waves Q9.3
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प्रश्न 10.
एक समतल em (विद्युतचुम्बकीय) तरंग में विद्युत क्षेत्र, 2.0 x 1010 Hz आवृत्ति तथा 48 Vm-1 आयाम से ज्यावक्रीय रूप से दोलन करता है।
(a) तरंग की तरंगदैर्घ्य कितनी है?
(b) दोलनशील चुम्बकीय-क्षेत्र का आयाम क्या है?
(c) यह दर्शाइए [latex s=2]\vec { E }[/latex] क्षेत्र का औसत ऊर्जा घनत्व, [latex s=2]\vec { B }[/latex] क्षेत्र के औसत ऊर्जा घनत्व के बराबर है।
(c = 3 x 108 ms-1)
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 8 Electromagnetic Waves Q10.1

अतिरिक्त अभ्यास

प्रश्न 11.
कल्पना कीजिए कि निर्वात में एक विद्युतचुम्बकीय तरंग का विद्युत क्षेत्र
E = {(3.1 N/C) cos [(1.8 rad/m) y + (5.4 x 106 rad/s) t]} [latex s=2]\hat { i }[/latex] है।
(a) तरंग संचरण की दिशा क्या है?
(b) तरंगदैर्घ्य λ कितनी है?
(c) आवृत्ति v कितनी है?
(d) तरंग के चुम्बकीय-क्षेत्र सदिश का आयाम कितना है?
(e) तरंग के चुम्बकीय-क्षेत्र के लिए व्यंजक लिखिए।
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प्रश्न 12.
100 W विद्युत बल्ब की शक्ति का लगभग 5% दृश्य विकिरण में बदल जाता है।
(a) बल्ब से 1 m की दूरी पर,
(b) 10 m की दूरी पर दृश्य विकिरण की औसत तीव्रता कितनी है? यह मानिए कि विकिरण समदैशिकतः उत्सर्जित होता है और परावर्तन की उपेक्षा कीजिए।
हल-
यहाँ दृश्य विकिरण की शक्ति P = 100 वाट का 5% = 100 x ([latex]\frac { 5 }{ 100 }[/latex]) वाट = 5 वाट
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 7 Alternating Current Q12

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प्रश्न 13.
em वर्णक्रम (विद्युतचुम्बकीय स्पेक्ट्रम) के विभिन्न भागों के लिए लाक्षणिक ताप परिसरों को ज्ञात करने के लिए λmT = 0.29 cm K सूत्र का उपयोग कीजिए। जो संख्याएँ आपको मिलती हैं वे क्या बतलाती हैं?
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प्रश्न 14.
विद्युतचुम्बकीय विकिरण से सम्बन्धित नीचे कुछ प्रसिद्ध अंक, भौतिकी में किसी अन्य प्रसंग में विद्युतचुम्बकीय दिए गए हैं। स्पेक्ट्रम के उस भाग का उल्लेख कीजिए जिससे इनमें से प्रत्येक सम्बन्धित है।
(a) 21 cm (अन्तरातारकीय आकाश में परमाण्वीय हाइड्रोजन द्वारा उत्सर्जित तरंगदैर्घ्य)
(b) 1057 MHz (लैंब-विचलन नाम से प्रसिद्ध, हाइड्रोजन में, पास जाने वाले दो समीपस्थ ऊर्जा स्तरों से उत्पन्न विकिरण की आवृत्ति)
(c) 2.7 K (सम्पूर्ण अन्तरिक्ष को भरने वाले समदैशिक विकिरण से सम्बन्धित ताप-ऐसा विचार जो विश्व में बड़े धमाके ‘बिग बैंग के उद्भव का अवशेष माना जाता है।)
(d) 5890 Å – 5896 Å (सोडियम की द्विक रेखाएँ)
(e) 14.4 keV [57Fe नाभिक के एक विशिष्ट संक्रमण की ऊर्जा जो प्रसिद्ध उच्च विभेदन की स्पेक्ट्रमी विधि से सम्बन्धित है (मॉसबौर स्पेक्ट्रोस्कॉपी)]
हल-
(a) दी गई तरंगदैर्घ्य 10-2 m क्रम की है, जो लघु रेडियो तरंग क्षेत्र में पड़ती है।
(b) यह आवृत्ति 109 Hz की कोटि की है, जो लघु रेडियो तरंग क्षेत्र में पड़ती है।
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प्रश्न 15.
निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दीजिए

  1. लम्बी दूरी के रेडियो प्रेषित्र लघु-तरंग बैंड का उपयोग करते हैं। क्यों?
  2. लम्बी दूरी के TV प्रेषण के लिए उपग्रहों का उपयोग आवश्यक है। क्यों?
  3. प्रकाशीय तथा रेडियो दूरदर्शी पृथ्वी पर निर्मित किए जाते हैं किन्तु X-किरण खगोल विज्ञान का अध्ययन पृथ्वी का परिभ्रमण कर रहे उपग्रहों द्वारा ही सम्भव है। क्यों?
  4. समतापमण्डल के ऊपरी छोर पर छोटी-सी ओजोन की परत मानव जीवन के लिए निर्णायक है। क्यों?
  5. यदि पृथ्वी पर वायुमण्डल नहीं होता तो उसके धरातल का औसत ताप वर्तमान ताप से अधिक होता या कम?
  6. कुछ वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणी की है कि पृथ्वी पर नाभिकीय विश्व युद्ध के बाद ‘प्रचण्ड नाभिकीय शीतकाल होगा जिसका पृथ्वी के जीवों पर विध्वंसकारी प्रभाव पड़ेगा। इस भविष्यवाणी का क्या आधार है?

उत्तर-

  1. ये तरंगें पृथ्वी के आयनमण्डल से परावर्तित होकर वापस पृथ्वी तल की ओर लौट आती हैं। और इसी कारण बिना ऊर्जा खोए पृथ्वी पर लम्बी दूरियाँ तय कर पाती हैं।
  2. बहुत लम्बी दूरी के सम्प्रेषण के लिए अति उच्च आवृत्ति की तरंगों की आवश्यकता होती है। आयनमण्डल इन तरंगों को पृथ्वी की ओर परावर्तित नहीं कर पाता। अत: ये तरंगें आयनमण्डल से पार निकल जाती हैं। इन्हें वापस पृथ्वी पर भेजने के लिए उपग्रह की आवश्यकता होती है।
  3. चूँकि पृथ्वी का वायुमण्डल X-किरणों को अवशोषित कर लेता है। अत: X-किरण खगोलविज्ञान का अध्ययन वायुमण्डल से ऊपर उपग्रहों द्वारा ही सम्भव है।
  4. यह ओजोन परत सूर्य से (UPBoardSolutions.com) पृथ्वी पर आने वाली मानव जीवन के लिए हानिकारक पराबैंगनी तरंगों को अवशोषित कर लेती है। अतः ओजोन परत, पृथ्वी पर मानव जीवन की सुरक्षा के लिए अति महत्त्वपूर्ण है।
  5. यदि पृथ्वी पर वायुमण्डल नहीं होता तो हरित गृह प्रभाव नहीं होता। इससे पृथ्वी का ताप वर्तमान ताप की तुलना में कम होता।
  6. प्रचण्ड नाभिकीय युद्ध के बाद पृथ्वी धूल तथा गैसों के विशाल बादल से घिर जाएगी जिसके कारण सूर्य की रोशनी पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाएगी ओर पृथ्वी बहुत अधिक ठण्डी हो जाएगी।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
[latex s=2]\frac { 1 }{ \sqrt { { \mu }_{ 0 }{ \varepsilon }_{ 0 } } }[/latex] का मात्रक है- (2016)
(i) न्यूटन/कूलॉम
(ii) वेबर/मी2
(iii) फैरड
(iv) मीटर/सेकण्ड
उत्तर-
(iv) मीटर/सेकण्ड

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प्रश्न 2.
यदि [latex s=2]\vec { E }[/latex] तथा [latex s=2]\vec { B }[/latex] वैद्युत-चुम्बकीय तरंग के क्रमशः वैद्युत वेक्टर तथा चुम्बकीय वेक्टर हों तब वैद्युत-चुम्बकीय तरंग के संचरण की दिशा अनुदिश होती है- (2015, 18)
(i) [latex s=2]\vec { E }[/latex]
(ii) [latex s=2]\vec { B }[/latex]
(iii) [latex s=2]\vec { E }[/latex] . [latex s=2]\vec { B }[/latex]
(iv) [latex s=2]\vec { E }[/latex] x [latex s=2]\vec { B }[/latex]
उत्तर-
(iv) [latex s=2]\vec { E }[/latex] x [latex s=2]\vec { B }[/latex]

प्रश्न 3.
किसी वैद्युत चुम्बकीय तरंग के वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्र होते हैं- (2016)
(i) परस्पर लम्बवत् तथा समान कला में
(ii) परस्पर समान्तर तथा समान कला में
(iii) परस्पर लम्बवत् तथा विपरीत कला में
(iv) परस्पर समान्तर तथा विपरीत कला में
उत्तर-
(i) परस्पर लम्बवत् तथा समान कला में

प्रश्न 4.
किसी विद्युत चुम्बकीय तरंग में वैद्युत क्षेत्र का आयाम 5 वोल्ट/मीटर है। चुम्बकीय क्षेत्र का आयाम है- (2017, 18)
(i) 5 टेस्ला
(ii) 1.67 x 10-8 टेस्ला
(iii) 1.5 x 10-8 टेस्ला
(iv) 1.67 x 10-10 टेस्ला
उत्तर-
(ii) 1.67 x 10-8 टेस्ला

प्रश्न 5.
वैद्युतशीलता ([latex s=2]{ \varepsilon }_{ 0 }[/latex]) तथा चुम्बकशीलता ([latex s=2]{ \mu }_{ 0 }[/latex]) के माध्यम में विद्युत चुम्बकीय तरंग का वेग होगा (2017)
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प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन विद्युत चुम्बकीय तरंगें नहीं हैं?
(i) गामा किरणे
(ii) एक्स किरणें
(iii) अवरक्त किरणे
(iv) बीटा किरणे
उत्तर-
(iv) बीटा किरणे

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में कौन-सा विद्युत-चुम्बकीय विकिरण है?
(i) α – किरणें
(ii) β – किरणे
(iii) X – किरणे
(iv) धनात्मक किरणे
उत्तर-
(iii) X – किरणे

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प्रश्न 8.
सबसे अधिक आवृत्ति की तरंग है-
(i) पराबैंगनी तरंगें।
(ii) गामा तरंगें
(iii) दृश्य प्रकाश तरंगें
(iv) रेडियो तरंगें
उत्तर-
(ii) गामा तरंगें

प्रश्न 9.
X-किरणें, γ – किरणें तथा सूक्ष्म-तरंगों के निर्वात में चलने पर, उनकी- (2013)
(i) तरंगदैर्घ्य समान परन्तु चाल असमान होती है।
(ii) आवृत्ति समान परन्तु चाल असमान होती है।
(iii) चाल समान परन्तु तरंगदैर्ध्य असमान होती हैं।
(iv) चाल समान तथा आवृत्ति भी समान होती है।
उत्तर-
(iii) चाल समान परन्तु तरंगदैर्घ्य असमान होती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विस्थापन धारा का सूत्र लिखिए।
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प्रश्न 2.
निर्वात में वैद्युत-चुम्बकीय तरंगों के वेग का व्यंजक लिखिए।
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प्रश्न 3.
30, 000 Å तरंगदैर्घ्य की वैद्युत चुम्बकीय तरंग की आवृत्ति ज्ञात कीजिए। यह स्पेक्ट्रम के किस भाग को प्रदर्शित करती है? (2014)
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प्रश्न 4.
एक समतल वैद्युत चुम्बकीय तरंग में वैद्युत क्षेत्र के दोलनों की आवृत्ति 2 x 1010 Hz तथा आयाम 30 वोल्ट-मीटर-1 है। तरंग में चुम्बकीय क्षेत्र का आयाम ज्ञात कीजिए। (2014)
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प्रश्न 5.
वैद्युत-चुम्बकीय तरंगों के संचरण की तीन विधाएँ लिखिए। (2015)
उत्तर-

  • भू-तरंगों द्वारा संचरण
  • आकाश तरंगों द्वारा संचरण
  • अन्तरिक्ष तरंगों द्वारा संचरण।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन-सी वैद्युत-चुम्बकीय तरंगें नहीं हैं? कारण बताइए।
गामा किरणें, X-किरणें, रेडियो तरंगें, ध्वनि तरंगें, अवरक्त, पराबैंगनी।
उत्तर-
ध्वनि तरंगें, क्योंकि इनके संचरण के लिए माध्यम आवश्यक है।

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प्रश्न 7.
दृश्य स्पेक्ट्रम की तरंगदैर्घ्य का परास लगभग कितना होता है?
उत्तर-
3900 Å से 7800 Å.

प्रश्न 8.
विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम का कौन-सा भाग रडार संचालन में प्रयोग होता है? उनके तरंगदैर्ध्य की कोटि बताइए। (2015)
उत्तर-
सूक्ष्म तरंगें या लघु रेडियो तरंगें। तरंगदैर्घ्य परिसर 10-3 मीटर से 3 x 10-1 मीटर होता है।

प्रश्न 9.
निम्न में से किसकी तरंगदैर्घ्य सबसे कम और किसकी सबसे अधिक हैं?
या
वैद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम में सबसे छोटी तरंगदैर्घ्य और सबसे बड़ी तरंगदैर्घ्य की तरंगों के नाम लिखिए। (2014)
(i) नीला प्रकाश
(ii) अवरक्त किरणें
(iii) गामा-किरणें
(iv) हरा प्रकाश
उत्तर-
सबसे कम तरंगदैर्घ्य गामा-किरणों की तथा सबसे अधिक अवरक्त किरणों की।

प्रश्न 10.
वैद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम में सबसे बड़ी तथा सबसे छोटी तरंगदैर्घ्य की तरंगों के नाम बताइए। (2013, 16)
उत्तर-
रेडियो तरंगें, गामा किरणें।

प्रश्न 11.
प्रकाश स्पेक्ट्रम के हरे, बैंगनी, लाल, पीले रंगों को आवृत्ति के बढ़ते क्रम में लिखिए।
उत्तर-
लाल → पीला → हरा → बैंगनी।

प्रश्न 12.
वैद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के विभिन्न भागों को उनके तरंगदैर्घ्य के बढ़ते क्रम में लिखिए। (2014)
उत्तर-
तरंगदैर्ध्य का बढ़ता क्रम इस प्रकार है- गामा किरणें, एक्स किरणें, पराबैंगनी किरणें, दृश्य विकिरण, अवरक्त किरणें, माइक्रो तरंगें, रेडियो तरंगें, दीर्घ तरंगें।

प्रश्न 13.
10-2 मीटर तरंगदैर्घ्य वाली विद्युत चुम्बकीय तरंग का नाम लिखिए। (2017)
उत्तर-
सूक्ष्म या माइक्रो तरंगें।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विस्थापन धारा क्या है? इसका सूत्र लिखिए। ऐम्पियर-मैक्सवेल परिपथीय नियम का सूत्र लिखिए। (2016, 18)
उत्तर-
विस्थापन धारा- किसी परिपथ में समय के साथ परिवर्ती वैद्युत क्षेत्र (अर्थात् वैद्युतीय विस्थापन) के कारण उत्पन्न धारा को विस्थापन धारा (displacement current) कहते हैं। इसे id से प्रदर्शित करते हैं।
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प्रश्न 2.
एक समतल विद्युत-चुम्बकीय तरंग के विद्युत-क्षेत्र का आयाम E0 = 150 न्यूटन प्रति कूलॉम है तथा आवृत्ति v = 50 मेगा हर्ट्ज है। तरंग के दोलनी चुम्बकीय क्षेत्र का आयाम B0 तथा कोणीय आवृत्ति w का मान ज्ञात कीजिए। (2014)
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प्रश्न 3.
विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के स्पेक्ट्रम को आवृत्ति के बढ़ते हुए क्रम में लिखिए। इस स्पेक्ट्रम के विभिन्न क्षेत्रों की उपयोगिता की अत्यन्त संक्षेप में विवेचना कीजिए। (2017)
या
गामा किरणों से रेडियो तरंगों तक सभी विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के नाम तरंगदैर्घ्य के बढ़ते क्रम में लिखिए। (2015, 18)
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प्रश्न 4.
विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के अलग-अलग क्षेत्रों की किन्हीं चार प्रकार की तरंगों के नाम लिखिए। उनकी तरंगदैर्घ्य के औसत मान तथा कोई एक उपयोग लिखिए। (2010)
या
अवरक्त विकिरण तथा गामा किरणों के एक-एक उपयोग लिखिए। (2014)
या
विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के मुख्य भागों को उनकी तरंगदैर्ध्य परास के साथ लिखिए। (2015, 17)
या
निम्न वैद्युत-चुम्बकीय तरंगों का एक-एक उपयोग लिखिए- (2015)

  1. सूक्ष्म तरंगें,
  2. अवरक्त तरंगें,
  3. पराबैंगनी तरंगें,
  4. X-किरणें

उत्तर-

  1. गामा किरणें- (10-14 मीटर से 10-10 मीटर तक)
    नाभिक की संरचना के सम्बन्ध में सूचना देने में उपयोगी।
  2. एक्स किरणें- (10-11 मीटर से 3 x 10-8 मीटर तक)
    चिकित्सा विभाग में सर्जरी में उपयोगी।
  3. पराबैंगनी किरणें- (10-8 मीटर से 4 x 10-7 मीटर तक)
    खाने की वस्तुओं के संरक्षण में उपयोगी।
  4. अवरक्त किरणें- (8 x 10-7 मीटर से 5 x 10-3 मीटर तक)
    कोहरे व धुन्ध के पार देखने में उपयोगी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

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प्रश्न 1.
मैक्सवेल के विद्युत चुम्बकीय तरंग सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए। (2017)
या
विद्युत-चुम्बकीय तरंगें क्या हैं? (2010, 15, 17, 18)
या
एक वैद्युत-चुम्बकीय तरंग किसी माध्यम में वेग [latex s=2]\vec { \nu } =\vec { \nu } \hat { i }[/latex] से चल रही है। एक चित्र द्वारा वैद्युत चुम्बकीय तरंग का संचरण वैद्युत व चुम्बकीय क्षेत्रों के कम्पनों की दिशाओं के साथ प्रदर्शित कीजिए। वैद्युत व चुम्बकीय क्षेत्रों के परिमाण, वैद्युत-चुम्बकीय तरंग के वेग से किस प्रकार सम्बन्धित हैं? (2014)
या
विद्युत-चुम्बकीय तरंगों की चार विशेषताओं (अभिलक्षण) का उल्लेख कीजिए। (2014, 15, 17, 18)
या
विद्युत चुम्बकीय तरंगों के किन्हीं दो विशिष्ट गुणों को लिखिए। (2015, 16)
या
मैक्सवेल का प्रकाश के सम्बन्ध में वैद्युत चुम्बकीय तरंग सिद्धान्त लिखिए। (2017, 18)
या
पराबैंगनी तथा अवरक्त किरणों का क्या अर्थ है?
उत्तर-
मैक्सवेल का प्रकाश का विद्युत-चुम्बकीय तरंग सिद्धान्त (Maxwell’s electromagnetic wave theory of light)– ब्रिटिश वैज्ञानिक मैक्सवेल ने सन् 1865 में केवल गणितीय सूत्रों के आधार पर यह प्रमाणित किया कि जब कभी किसी वैद्युत परिपथ में वैद्युत धारा बहुत उच्च आवृत्ति से बदलती है (अर्थात् परिपथ में उच्च आवृत्ति के वैद्युत दोलन होते हैं) तो उस परिपथ से ऊर्जा, तरंगों के रूप में चारों ओर को प्रसारित होने लगती है। इन तरंगों को विद्युत-चुम्बकीय तरंगें’ कहते हैं। इन तरंगों में वैद्युत क्षेत्र E तथा चुम्बकीय (UPBoardSolutions.com) क्षेत्र B परस्पर लम्बवत् तथा तरंग के संचरण की दिशा के भी लम्बवत् होते हैं (चित्र 8.4)। इन तरंगों के संचरण के लिए माध्यम का होना आवश्यक नहीं है; अर्थात् विद्युत-चुम्बकीय तरंगें निर्वात् में होकर चल सकती हैं। मैक्सवेल ने गणनाओं द्वारा यह स्थापित किया कि विद्युत चुम्बकीय तरंगों की चाल 3.0 x 108 मीटर/सेकण्ड है जो कि निर्वात् में प्रकाश की चाल है। इस आधार पर मैक्सवेल ने अपना यह मत दिया कि प्रकाश विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के रूप में संचरित होता है।
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विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के अभिलक्षण- विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के अभिलक्षण निम्नलिखित हैं-

  1. विद्युत-चुम्बकीय तरंगें त्वरित आवेश द्वारा उत्पन्न की जाती हैं।
  2. इन तरंगों के संचरण के लिए किसी पदार्थक माध्यम की आवश्यकता नहीं होती।
  3. ये तरंगें निर्वात् अथवा मुक्त स्थान में [latex s=2]\nu =\frac { 1 }{ \sqrt { { \mu }_{ 0 }{ \epsilon }_{ 0 } } }[/latex] वेग से चलती हैं जिसका मान प्रकाश की चाल के बराबर होता है।
  4. वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों के परिवर्तनों की दिशाएँ परस्पर लम्बवत् होती हैं तथा संचरण की दिशा के भी लम्बवत् होती हैं। इस प्रकार, विद्युत-चुम्बकीय तरंगों की प्रकृति अनुप्रस्थ होती है।
  5. वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों में परिवर्तन साथ-साथ होते हैं तथा क्षेत्रों के महत्तम मान E0 व B0 एक ही स्थान पर तथा एक ही समय होते हैं।
  6. निर्वात् में विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों के परिमाणों का सम्बन्ध
    E/B = v = c होता है।
  7. वैद्युत-चुम्बकीय तरंगों में ऊर्जा, औसतन वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों में बराबर-बराबर बँटी होती है।
  8. निर्वात् में, औसत वैद्युत ऊर्जा घनर [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 } { \varepsilon }_{ 0 }{ E }^{ 2 }[/latex] तथा औसत चुम्बकीय ऊर्जा (UPBoardSolutions.com) घनत्व [latex s=2]\frac { { B }^{ 2 } }{ 2{ \mu }_{ 0 } }[/latex] होता है।
  9. विद्युत-चुम्बकीय तरंग में प्रकाशिक प्रभाव वैद्युत क्षेत्र वेक्टर के कारण होता है।
    पराबैंगनी किरणें- दृश्य विकिरण के बैंगनी रंग से कम तरंगदैर्घ्य की (10-8 मी से 4 x 10-7 मी तक) किरणें पराबैंगनी किरणें कहलाती हैं।
    अवरक्त किरणें- दृश्य विकिरण के लाल रंग से अधिक तरंगदैर्घ्य (7.8 x 10-7 मी से 15 x 10-3 मी तक) की किरणें अवरक्त किरणें कहलाती हैं।

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UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 15 Biodiversity and Conservation

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Biology
Chapter Chapter 15
Chapter Name Biodiversity and Conservation
Number of Questions Solved 41
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 15 Biodiversity and Conservation (जैव विविधता एवं संरक्षण)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जैव विविधता के तीन आवश्यक घटकों (कंपोनेंट) के नाम लिखिए।
उत्तर
जैव विविधता के तीन आवश्यक घटक निम्नवत् हैं –

  1. आनुवंशिक विविधता
  2. जातीय विविधता
  3. पारिस्थितिकिय विविधता प्रश्न

प्रश्न 2.
पारिस्थितिकीविद् किस प्रकार विश्व की कुल जातियों का आकलन करते हैं?
उत्तर
पृथ्वी पर जातीय विविधता समान रूप से वितरित नहीं है, बल्कि एक रोचक प्रतिरूप दर्शाती है। पारिस्थितिकीविद् विश्व की कुल जातियों का आकलन अक्षांशों पर तापमान के आधार पर करते हैं। जैव विविधता साधारणतया, उष्ण कटिबन्ध क्षेत्र में सबसे अधिक तथा ध्रुवों की तरफ घटती जाती है। उष्ण कटिबन्ध क्षेत्र में जातीय समृद्धि के महत्त्वपूर्ण कारण इस प्रकार हैं- उष्ण कटिबन्ध क्षेत्रों (Tropical regions) में जैव जातियों को विकास के लिए अधिक समय मिला तथा इस क्षेत्र को अधिक सौर ऊर्जा प्राप्त हुई जिससे उत्पादकता अधिक होती है। जातीय समृद्धि किसी प्रदेश के क्षेत्र पर आधारित होती है। पारिस्थितिकीविद् प्रजाति की उष्ण एवं शीतोष्ण प्रदेशों (Temperate regions) में मिलने की प्रवृत्ति, अधिकता आदि की अन्य प्राणियों एवं पौधों से तुलना कर उसके अनुपात की गणना और आकलन करते हैं।

प्रश्न 3.
उष्ण कटिबन्ध क्षेत्रों में सबसे अधिक स्तर की जाति- समृद्धि क्यों मिलती है? इसकी तीन परिकल्पनाएँ दीजिए।
उत्तर
इस प्रकार की परिकल्पनायें निम्नवत् हैं –

  1. जाति उद्भवन (speciation) आमतौर पर समय का कार्य है। शीतोष्ण क्षेत्र में प्राचीन काल से ही बार-बार हिमनद (glaciation) होता रहा है जबकि उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र लाखों वर्षों से
    अबाधित रहा है। इसी कारण जाति विकास तथा विविधता के लिए लम्बा समय मिला है।
  2. उष्ण कटिबन्धीय पर्यावरण शीतोष्ण पर्यावरण (temperate environment) से भिन्न तथा कम मौसमीय परिवर्तन दर्शाता है। यह स्थिर पर्यावरण निकेत (niches) विशिष्टीकरण को।
    प्रोत्साहित करता रहा है जिसकी वजह से अधिकाधिक जाति विविधता उत्पन्न हुई है।
  3. उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में अधिक सौर ऊर्जा उपलब्ध है जिससे उत्पादन अधिक होता है जिससे परोक्ष रूप से अधिक जैव विविधता उत्पन्न हुई है।

प्रश्न 4.
जातीय-क्षेत्र सम्बन्ध में समाश्रयण (रिग्रेशन) की ढलान का क्या महत्त्व है?
उत्तर
जातीय- क्षेत्र सम्बन्ध (Species- area relationship) – जर्मनी के महान् प्रकृतिविद् व भूगोलशास्त्री एलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट (Alexander Von Humboldt) ने दक्षिणी अमेरिका के जंगलों में गहन खोज के बाद जाति समृद्धि तथा क्षेत्र के मध्य सम्बन्ध स्थापित किया। उनके अनुसार कुछ सीमा तक किसी क्षेत्र की जातीय समृद्धि अन्वेषण क्षेत्र की सीमा बढ़ाने के साथ बढ़ती है। जाति समृद्धि और वर्गकों की व्यापक किस्मों के क्षेत्र के बीच सम्बन्ध आयताकार अतिपरवलय (rectangular hyperbola) होता है। यह लघुगणक पैमाने पर एक सीधी रेखा दर्शाता है। इस सम्बन्ध को निम्नांकित समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है –
log S = log C + Z log A
जहाँ; S = जाति समृद्धि, A = क्षेत्र, Z = रेखीय ढाल (समाश्रयण गुणांक रिग्रेशन कोएफिशिएंट)
C = Y – अन्त:खण्ड (इंटरसेप्ट)
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 15 Biodiversity and Conservation img-1

पारिस्थितिकी वैज्ञानिकों के अनुसार z का मान 0.1 से 0.2 परास में होता है। यह वर्गिकी समूह अथवा क्षेत्र पर निर्भर नहीं करता है। आश्चर्यजनक रूप से समाश्रयण रेखा (regression line) की ढलान एक जैसी होती है। यदि हम किसी बड़े समूह के जातीय क्षेत्र सम्बन्ध जैसे- सम्पूर्ण महाद्वीप का विश्लेषण करते हैं, तब ज्ञात होता है कि समाश्रयण रेखा की ढलान तीव्र रूप से तिरछी खड़ी होती। है। Z के माने की परास (range) 0.6 से 1.2 होती है।

प्रश्न 5.
किसी भौगोलिक क्षेत्र में जाति क्षति के मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर
जाति क्षति के कारण (Causes of Species Loss) – विभिन्न समुदायों में जीवों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है। जब तक किसी पारितन्त्र में मौलिक जाति उपस्थित रहती है तब तक प्रजाति के सदस्यों की संख्या में वृद्धि होती रहती है। मौलिक जाति के विलुप्त होने पर इसके जीनपूल में उपस्थित महत्त्वपूर्ण लक्षण विलुप्त हो जाते हैं। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन मानव हस्तक्षेप के कारण सम्पूर्ण विश्व जाति क्षति की बढ़ती हुई दर का सामना कर रहा है। जाति क्षति के मुख्य कारण निम्नवत् हैं –

(i) आवासीय क्षति तथा विखण्डन (Habitat Loss and Fragmentation) – मानवीय हस्तक्षेप के कारण जीवों के प्राकृतिक आवासों का नाश हुआ है। जिसके कारण जातियों का विनाश गत 150 वर्षों में अत्यन्त तीव्र गति से हुआ है। मानव हितों के कारण औद्योगिक क्षेत्रों, कृषि क्षेत्रों, आवासीय क्षेत्रों में निरन्तर वृद्धि हो रही है जिससे वनों का क्षेत्रफल 18% से घटकर लगभग 9% रह गया है। आवासीय क्षति जन्तु व पौधे के विलुप्तीकरण का मुख्य कारण है।

विशाल अमेजन वर्षा वन को सोयाबीन की खेती तथा जानवरों के चरागाहों के लिए काट कर साफ कर दिया गया है। इसमें निवास करने वाली करोड़ों जातियाँ प्रभावित हुई हैं और उनके जीवन को खतरा उत्पन्न हो गया है। आवासीय क्षति के अतिरिक्त प्रदूषण भी जातियों के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है। मानव क्रियाकलाप भी जातीय आवासों को प्रभावित करते हैं। जब मानव क्रियाकलापों द्वारा बड़े आवासों को छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त कर दिया जाता है, तब जिन स्तनधारियों और पक्षियों को अधिक आवास चाहिए वह बुरी तरह प्रभावित होते हैं जिससे समष्टि में कमी होती है।

(ii) अतिदोहन (Over Exploitation) – मानव हमेशा से भोजन तथा आवास के लिए प्रकृति पर निर्भर रहा है, परन्तु लालच के वशीभूत होकर मानव प्राकृतिक सम्पदा का अत्यधिक दोहन कर रहा है जिसके कारण बहुत-सी जातियाँ विलुप्त हो रही हैं। अतिदोहन के कारण गत 500 वर्षों में अनेक प्रजातियाँ विलुप्त हो गई हैं। अनेक समुद्री मछलियों की प्रजातियाँ शिकार के कारण कम होती जा रही हैं जिसके कारण व्यावसायिक महत्त्व की अनेक जातियाँ खतरे में हैं।

(iii) विदेशी जातियों का आक्रमण (Alien Species Invasions) – जब बाहरी जातियाँ अनजाने में या जान बूझकर किसी भी उद्देश्य से एक क्षेत्र में लाई जाती हैं, तब उनमें से कुछ आक्रामक होकर स्थानीय जातियों में कमी या उनकी विलुप्ति का कारण बन जाती हैं। गाजर घास (पार्थेनियम) लैंटाना और हायसिंथ ( आइकॉर्निया) जैसी आक्रामक खरपतवार जातियाँ पर्यावरण तथा अन्य देशज जातियों के लिए खतरा बन गई हैं। इसी प्रकार मत्स्य पालन के उद्देश्य से अफ्रीकन कैटफिश क्लेरियस गैरीपाइनस मछली को हमारी नदियों में लाया गया, लेकिन अब ये मछली हमारी नदियों की मूल अशल्कमीन (कैटफिश) जातियों के लिए खतरा पैदा कर रही हैं।

(iv) सहविलुप्तता (Co-extinctions) – एक जाति के विलुप्त होने से उस पर आधारित दूसरी जन्तु व पादप जातियाँ भी विलुप्त होने लगती हैं। उदाहरण के लिए– एक परपोषी मत्स्य जाति विलुप्त होती है, तब उसके विशिष्ट परजीवी भी विलुप्त होने लगते हैं।

(v) स्थानान्तरी अथवा झूम कृषि (Shifting or Jhum Cultivation) – जंगलों में रहने वाली जन जातियाँ विभिन्न जन्तुओं का शिकार करके भोजन प्राप्त करती हैं। इनका कोई निश्चित
आवास नहीं होता। ये जीवनयापन के लिए एक स्थान से दूसरे स्थानों पर स्थानान्तरित होती रहती हैं। ये जंगल की भूमि पर खेती करते हैं, इसके लिए ये जनजातियाँ प्राय: जंगल के पेड़-पौधों, घास फूस को जलाकर नष्ट कर देते हैं। इस प्रकार की कृषि को झूम कृषि कहते हैं। इसके कारण वन्य प्रजातियाँ स्थानाभाव के कारण प्रभावित होती हैं।

प्रश्न 6.
पारितन्त्र के कार्यों के लिए जैवविविधता कैसे उपयोगी है?
उत्तर
जैव विविधता की पारितन्त्र के कार्यों के लिए उपयोगिता (Utility of Biodiveristy for Ecosystem Functioning) – अनेक दशकों तक पारिस्थितिकविदों का विश्वास था कि जिस समुदाय में अधिक जातियाँ होती हैं वह पारितन्त्र कम जाति वाले समुदाय से अधिक स्थिर रहता है। डेविड टिलमैन (David Tilman) ने प्रयोगशाला के बाहर के भूखण्डों पर लम्बे समय तक पारितन्त्र के प्रयोग के बाद पाया कि उन भूखण्डों में जिन पर अधिक जातियाँ थीं, साल दर साल कुल जैवभार में कम विभिन्नता दर्शाई। उन्होंने अपने प्रयोगों में यह भी दर्शाया कि विविधता में वृद्धि से उत्पादकता बढ़ती है।

हम यह महसूस करते हैं कि समृद्ध जैव विविधता अच्छे पारितन्त्र के लिए जितनी आवश्यक है, उतनी ही मानव को जीवित रखने के लिए भी आवश्यक है। प्रकृति द्वारा प्रदान की गई जैव विविधता की अनेक पारितन्त्र सेवाओं में मुख्य भूमिका है। तीव्र गति से नष्ट हो रही अमेजन वन पृथ्वी के वायुमण्डल को लगभग 20 प्रतिशत ऑक्सीजन, प्रकाश संश्लेषण द्वारा प्रदान करता है। पारितन्त्र की दूसरी सेवा परागणकारियों; जैसे- मधुमक्खी, गुंजन मक्षिका पक्षी तथा चमगादड़ द्वारा की जाने वाली परागण क्रिया है जिसके बिना पौधों पर फल तथा बीज नहीं बन सकते। हम प्रकृति से अन्ये अप्रत्यक्ष सौन्दर्यात्मक लाभ उठाते हैं। पारितन्त्र पर्यावरण को शुद्ध बनाता है। सूखा तथा बाढ़ आदि को नियन्त्रित करने में हमारी मदद करता है।

प्रश्न 7.
पवित्र उपवन क्या हैं ? उनकी संरक्षण में क्या भूमिका है?
उत्तर
अलौकिक ग्रूव्स या पवित्र उपवन पूजा स्थलों के चारों ओर पाये जाने वाले वनखण्ड हैं। ये जातीय समुदायों/राज्य या केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित किये जाते हैं। पवित्र उपवनों से विभिन्न प्रकार के वन्य जन्तुओं और वनस्पतियों को संरक्षण प्राप्त होता है क्योंकि इनके आस-पास हानिकारक मानव गतिविधियाँ बहुत कम होती हैं। इस प्रकार ये वन्य जीव संरक्षण में धनात्मक योगदान प्रदान करते हैं।

प्रश्न 8.
पारितन्त्र सेवा के अन्तर्गत बाढ़ व भू- अपरदन (सॉयल इरोजन) नियन्त्रण आते हैं। यह किस प्रकार पारितन्त्र के जीवीय घटकों (बायोटिक कम्पोनेंट) द्वारा पूर्ण होते हैं?
उत्तर
पारितन्त्र को संरक्षित कर बाढ़, सूखा व भू-अपरदन (soil erosion) जैसी समस्याओं पर नियन्त्रण पाया जा सकता है। वृक्षों की जड़ें मृदा कणों को जकड़े रहती हैं, जिससे जल तथा वायु प्रवाह में अवरोध उत्पन्न होते हैं। वृक्षों के कटान से यह अवरोध समाप्त हो जाता है। मृदा की ऊपरी उपजाऊ परत तीव्र वायु या वर्षा के जल के साथ बहकर नष्ट हो जाती है। इसे मृदा अपरदन कहते हैं। पहाड़ों में जल ग्रहण क्षेत्रों के वृक्षों को काटने से मैदानी क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है और यह अधिक गम्भीर रूप धारण कर लेती है। बाढ़ के समय नदियों का पानी किनारों से तेज गति से टकराता है और इन्हें काटता रहता है। इसके फलस्वरूप नदी का प्रवाह सामान्य दिशा के अतिरिक्त अन्य दिशाओं में भी होने लगता है। वृक्षारोपण, बाढ़ नियन्त्रण तथा मृदा अपरदन को रोकने का प्रमुख उपाय है। वृक्ष मरुस्थलों में वातीय अपरदन (wind erosion) को रोकने में उपयोगी होते हैं। वृक्ष वायु गति की तीव्रता को कम करने में सहायक होते हैं जिससे अपरदन की दर कम हो जाती है।

प्रश्न 9.
पादपों की जाति विविधता (22 प्रतिशत), जन्तुओं (72 प्रतिशत) की अपेक्षा बहुत कम है। क्या कारण है कि जन्तुओं में अधिक विविधता मिलती है?
उत्तर
प्राणियों में अनुकूलन की क्षमता पौधों की अपेक्षा बहुत अधिक होती है। प्राणियों में प्रचलन का गुण पाया जाता है, इसके फलस्वरूप विपरीत परिस्थितियाँ होने पर ये स्थान परिवर्तन करके स्वयं को बचाए रखते हैं। इसके विपरीत पौधे स्थिर होते हैं, उन्हें विपरीत स्थितियों का अधिक सामना करना ही पड़ता है। प्राणियों में तन्त्रिका तन्त्र तथा अन्त:स्रावी तन्त्र पाया जाता है। इसके फलस्वरूप प्राणी वातावरण से संवेदनाओं को ग्रहण करके उसके प्रति अनुक्रिया करते हैं। प्राणी तन्त्रिका तन्त्र एवं अन्त:स्रावी तन्त्र के फलस्वरूप स्वयं को वातावरण के प्रति अनुकूलित कर लेते हैं। इन कारणों के फलस्वरूप किसी भी पारितन्त्र में प्राणियों में पौधों की तुलना में अधिक जैव विविधता पाई जाती है।

प्रश्न 10.
क्या आप ऐसी स्थिति के बारे में सोच सकते हैं, जहाँ पर हम जान-बूझकर किसी जाति को विलुप्त करना चाहते हैं? क्या आप इसे उचित समझते हैं?
उत्तर
जब बाहरी जातियाँ अनजाने में या जान-बूझकर किसी भी उद्देश्य से एक क्षेत्र में लाई जाती हैं, तब उनमें से कुछ आक्रामक होकर स्थानीय जातियों में कमी या उनकी विलुप्ति का कारण बन जाती हैं। गाजर घास लैंटाना और हायसिंथ (आइकॉर्निया) जैसी आक्रामक खरपतवार जातियाँ पर्यावरण तथा अन्य देशज जातियों के लिए खतरा बन गई हैं। इसी प्रकार मत्स्य पालन के उद्देश्य से अफ्रीकन कैटफिश क्लेरियस गैरीपाइनस मछली को हमारी नदियों में लाया गया, लेकिन अब ये मछली हमारी नदियों की मूल अशल्कमीन (कैटफिश जातियों) के लिए खतरा पैदा कर रही हैं। इन हानिकारक प्रजातियों को हमें जान-बूझकर विलुप्त करना होगा। इसी प्रकार अनेक विषाणु जैसे-पोलियो विषाणु को विलुप्त करके दुनिया को पोलियो मुक्त करना चाहते हैं।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न 
प्रश्न 1.
उत्तर प्रदेश का राज्य पक्षी है – (2015)
(क) मोर
(ख) सारस
(ग) कबूतर
(घ) गौरैया
उत्तर
(ख) सारस

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सा स्तनिन संकटग्रस्त नहीं है? (2016)
(क) लाल पाण्डा
(ख) कस्तूरी मृग
(ग) नील गाय
(घ) भारतीय बबर शेर
उत्तर
(ग) नील गाय

प्रश्न 3.
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम किस सन में पारित किया गया था? (2014)
(क) 1942
(ख) 1972
(ग) 1912
(घ) 1991
उत्तर
(ख) 1972

प्रश्न 4.
प्राकृतिक वासस्थान में जीवों का संरक्षण कहलाता है (2017)
(क) उत्थाने संरक्षण
(ख) स्वस्थाने संरक्षण
(ग) (क) व (ख) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(ख) स्वस्थाने संरक्षण

प्रश्न 5.
भारत में अभयारण्यों की कुल संख्या है – (2017)
(क) 515
(ख) 480
(ग) 520
(घ) 490
उत्तर
(ग) 520

प्रश्न 6.
भारत का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है – (2014)
(क) दुधवा राष्ट्रीय उद्यान
(ख) काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान
(ग) कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान
(घ) कान्हा राष्ट्रीय उद्यान
उत्तर
(ग) कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान

प्रश्न 7.
घाना राष्ट्रीय उद्यान किस प्रदेश में स्थित है? (2016)
(क) सिक्किम
(ख) असम
(ग) राजस्थान
(घ) उत्तराखण्ड
उत्तर
(ग) राजस्थान

प्रश्न 8.
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान भारत के किस राज्य में स्थित है? (2016)
(क) असम
(ख) गुजरात
(ग) महाराष्ट्र
(घ) पंजाब
उत्तर
(क) असम

प्रश्न 9.
एशियाई शेरों के लिए एकमात्र प्राकृतिक वास गिर राष्ट्रीय उद्यान कहाँ पर स्थित है। (2018)
(क) उत्तराखण्ड
(ख) राजस्थान
(ग) गुजरात
(घ) मध्य प्रदेश
उत्तर
(ग) गुजरात

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वन्य जीवन और जैव विविधता में अन्तर बताइए। (2015)
उत्तर
वन्य जीवन में वे सभी प्राणी तथा पादप आते हैं जो मनुष्य के नियन्त्रण और प्रभुत्व से दूर अपने प्राकृतिक वासस्थानों में रहते हैं जबकि जैव विविधता में सभी जीव, जातियाँ, समष्टियाँ, उनके बीच आनुवंशिक विभिन्नताएँ तथा सभी समुदायों के एकत्रित सम्मिश्र व पारिस्थितिक तन्त्र आते हैं।

प्रश्न 2.
वन्य जीवन क्या है? इसके विनाश के दो मुख्य कारण बताइए।
उत्तर
वन्य जीवन– (उपर्युक्त प्रश्न संख्या 1 का उत्तर देखें।)
विनाश के कारण– 1. वनोन्मूलन 2. वनों में लगने वाली आग

प्रश्न 3.
जैव विविधता की परिभाषा लिखिए। इसके संरक्षण की दो विधियों का उल्लेख कीजिए। (2015, 16, 17)
उत्तर
जैव विविधता (उपर्युक्त प्रश्न संख्या 1 का उत्तर देखें।)
जैव संरक्षण की विधियाँ- 1. स्वस्थाने संरक्षण 2. बहिस्थाने संरक्षण

प्रश्न 4.
विश्व पर्यावरण दिवस प्रतिवर्ष किस दिनांक को मनाया जाता है? इसका उद्देश्य क्या है? (2014)
उत्तर
जैव विविधता एवं पर्यावरण के संरक्षण के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।

प्रश्न 5.
आइ०यू०सी०एन० (IUCN) तथा डब्लूडब्लू०एफ० (WWF) का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर
IUCN – अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण संघ (International Union of Conservation of Nature and Natural Resources)
WWF – World Wide Fund.

प्रश्न 6.
निम्नलिखित प्राणी कहाँ पाये जाते हैं? (2014)

  1. बबर शेर
  2. बाघ

उत्तर

  1. बबर शेर – गुजरात के काठियावाड में स्थित गिर जंगल में।
  2. बाघ – पश्चिम बंगाल में स्थित सुन्दरवन में।

प्रश्न 7.
कौन-सा जन्तु अत्यधिक शिकार के कारण भारत में विलुप्त हो रहा है? (2017)
उत्तर
कस्तूरी मृग।

प्रश्न 8.
भारत के राष्ट्रीय जन्तु का नाम लिखिए। इसके संरक्षण के लिए कौन-सी परियोजना प्रारम्भ की गई है? (2014)
उत्तर
भारत के राष्ट्रीय जन्तु का नाम ‘बाघ’ है। इसके संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट टाइगर’ परियोजना प्रारम्भ की गई है।

प्रश्न 9.
राष्ट्रीय पार्क एवं वन्य-जीव सैन्क्चुअरी में अन्तर बताइए। (2015)
या
उस प्रदेश तथा राष्ट्रीय उद्यान का नाम लिखिए जहाँ भारतीय गैंडे संरक्षित हैं। राष्ट्रीय उद्यान और प्राणि विहार में अन्तर बताइए। (2017)
उत्तर
राष्ट्रीय पार्क वन्य जीव एवं पारिस्थितिक तन्त्र दोनों के संरक्षण के लिए सुनिश्चित होते हैं। जबकि वन्य- जीव सैन्क्चुअरी केवल वन्य-जीव का संरक्षण करने के लिए सुनिश्चित होते हैं। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, सिबसागर, जोरहट (असम) एवं मानस प्राणिविहार बारपोटा (असम) में भारतीय गैंडों को संरक्षित किया गया है।

प्रश्न 10.
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी स्थित राष्ट्रीय उद्यान का नाम लिखिए। (2014, 17)
उत्तर
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान।

प्रश्न 11.
वन्य जीव क्या है? कॉर्बेट नेशनल पार्क किस राज्य में स्थित है? (2017)
उत्तर
वन्य जीव (प्रश्न संख्या 1 का उत्तर देखें)
कॉर्बेट नेशनल पार्क, नैनीताल, उत्तराखण्ड में स्थित है।

प्रश्न 12.
‘तप्त स्थल (हॉट स्पॉट) क्या हैं? भारत में स्थित दो तप्त स्थलों के नाम लिखिए। (2014, 17)
उत्तर
वह भौगोलिक क्षेत्र जहाँ की जैव विविधता संकट में होती है, तप्त स्थल कहलाता है। हिमालय (पूर्वी हिमालय) तथा पश्चिमी घाट भारत में स्थित प्रमुख तप्त स्थल हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वन्य प्राणियों के विनाश के चार प्रमुख कारण लिखिए। (2014)
या
प्राणियों के विलुप्तीकरण के कारण लिखिए। (2016)
उत्तर
वन्य प्राणियों के विनाश के चार प्रमुख कारण निम्नवत् हैं –

  1. तीव्र वनोन्मूलन जिसके कारण वन्य प्राणियों के प्राकृतिक आवास समाप्त होते जा रहे हैं।
  2. गैर-कानूनी रूप से वन्य प्राणियों का शिकार।
  3. मानव की क्रियाओं या भूलवश या प्राकृतिक कारणों से वनों में लगने वाली आग।
  4. प्रदूषण ने विभिन्न प्राणियों के आवासों को विभिन्न प्रकार से दूषित कर दिया है जिससे इनमें रहने वाले जीवों का जीवनकाल कम हो गया है।

प्रश्न 2.
वन्य प्राणी उत्पादों के लिए मनुष्य का लोभ’ शीर्षक पर टिप्पणी लिखिए। (2014)
उत्तर
स्वतन्त्रता के बाद, क्रीड़ा आखेट (game hunting) का स्थान फर, चमड़े, मांस, हाथीदाँत, औषधियों, प्रसाधनों, सुगन्ध-द्रव्यों, साज-सज्जा, स्मृति चिन्हों, संग्रहालयी निदर्शो (museum specimens) आदि के लिए, वन्य प्राणियों के चोरी और सीनाजोरी से शिकार ने ले लिया। इस प्रकार, वन्य प्राणियों का विनाश व्यापक और तीव्र गति से होने लगा। उदाहरणार्थ, एक कामोत्तेजक औषधि (aphrodisiac) के संश्लेषण में प्रयुक्त सींग के लिए गैंडे (rhinoceros) का विगत 40-50 वर्षों में व्यापक वध हुआ है। इसी प्रकार, हाथीदाँत (ivory) के लिए हाथियों का, कस्तूरी (musk-एक अत्यधिक सुगन्धित द्रव्य जो नर की नाभि के निकट स्थित एक पुटी में भरा होता है) के लिए कस्तूरी मृग (musk deer) का, चर्बी, मांस, खाल, आदि के लिए ह्वेल का, फर के लिए हिमालयी हिमचीते (Himalayan snow-leopard) का, चमड़े के लिये बाघों, लोमड़ियों, घड़ियालों, साँभर, साँपों आदि का व्यापक वध हुआ है और अब भी हो रहा है।

प्रश्न 3.
रेड डाटा बुक से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयोगिता बताइए। (2014, 15)
या
रेड डाटा बुक किसे कहते हैं। इसमें उल्लिखित किन्हीं चार स्तनियों के नाम लिखिए। (2015)
उत्तर
विश्व संरक्षण संघ (World Conservation Union- WCU) – जिसे अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण संघ (International Union of Conservation of Nature and Natural Resources- IUCN या IUCNNR) भी कहा जाता है, के अध्ययन से ज्ञात हुआ कि जैव विविधता को विश्व के सभी भागों में अति संकट से गुजरना पड़ रहा है। इस सम्बन्ध में wCU ने अध्ययन द्वारा संकटग्रस्त जीवों की सूची लिपिबद्ध की जिसे रेड डाटा बुक कहा जाता है। इस सूची में उन जातियों एवं उपजातियों को सम्मिलित किया गया जो विलोपन के खतरे से गुजर रही हैं। इसका प्रकाशन पहली बार सन् 1963 में स्विट्जरलैण्ड में किया गया जहाँ WCU का मुख्यालय है। WCU ने रेड डाटा बुक में संकटग्रस्त जातियों को विभिन्न श्रेणियों में बाँटकर विभाजित किया और उन्हें सूचीबद्ध किया। रेड डाटा बुक की सहायता से हमें संकटग्रस्त जीवों की जानकारी आसानी से उपलब्ध हो जाती है। इस जानकारी की सहायता से हम उन संकटग्रस्त जीवों के संरक्षण के लिए प्रयास कर सकते हैं और उन्हें विलुप्त होने से बचा सकते हैं।
इसमें उल्लिखित चार स्तनी इस प्रकार हैं-

  1. काला हिरण
  2. चीतल
  3. चिंकारा तथा
  4. तेन्दुआ।

प्रश्न 4.
“भारत में वन्य प्राणियों की संकटग्रस्त जातियाँ” शीर्षक पर टिप्पणी लिखिए। (2014)
या
संकटग्रस्त जातियाँ किन्हें कहते हैं? कोई दो संकटग्रस्त जातियों के उदाहरण दीजिए। (2015)
या
संकटाग्रस्त जातियों से आप क्या समझते हैं? किन्हीं दो संकटाग्रस्त भारतीय स्तनधारी प्राणियों के नाम लिखिए। (2017)
उत्तर
हमारे देश में, इस समय, वन्य स्तनियों की लगभग 81, वन्य पक्षियों की लगभग 30, सरीसृपों और उभयचरों की लगभग 15 तथा अकशेरुकियों की बहुत-सी जातियाँ संकटग्रस्त हैं अर्थात् विलुप्त होने की कगार पर हैं, इन्हें संकटग्रस्त जातियाँ कहा जाता है। इनकी पूर्ण सूची, भारतीय शासन द्वारा प्रसारित “लाल आँकड़े’ (Red Data Book) नामक पुस्तक में दी गई हैं। हमारे संकटग्रस्त स्तनी मुख्यत: हैं—बबर शेर, बाघ, भेड़िये, सियार, लोमड़ियाँ, भालू, गन्ध बिलाव, लोरिस, अधिकांश जातियों के बन्दर, शल्की चींटीखोर, हिमचीता, गैंडा, जंगली गधा, जंगली सुअर, कस्तूरी मृग, कश्मीरी मृग, विविध जातियों के कुरंग, उड़न गिलहरियाँ, गंगों का सँस, सेही, गवले या गौर, जंगली भेड़े और बकरियाँ, गिब्बन, हाथी, जंगली भैंसे आदि।

हमारे संकटग्रस्त पक्षी मुख्यतः हैं- कुछ जातियों की बत्तखें, बाज, समुद्री गरुड़, बाँस तीतर, पहाड़ी बटेर, भारतीय पनचिरा, स्कन्ध मुर्गाबी (spur fowl), धनेश, हुकना, चेड़ (pheasant), सारस आदि।
संकटग्रस्त सरीसृप हैं- कई जातियों के कछुवे, मगरमच्छ, गोह, विषैले सर्प, अजगर इत्यादि।
संकटग्रस्त उभयचर मुख्यत: हैं- जरायुजी (viviparous) टोड तथा हिमालयी सरटिका (newt)।

प्रश्न 5.
जंगली जानवरों को सुरक्षित रखना क्यों आवश्यक है? इसके लिए सरकार द्वारा क्या कदम उठाया गया है? (2013)
या
वन्य जीव संरक्षण क्यों आवश्यक है? इस विषय में सरकार क्या कदम उठा रही है? (2015)
उत्तर
जंगल में जंगली जानवर पारिस्थितिक तन्त्र के जैविक घटक (biotic factors) होते हैं। ये जंगल में विभिन्न जीवों की संख्या को सीमित रखने में सहायक होते हैं। यदि इन्हें नष्ट कर दिया जायेगा तो जंगल में अन्य जीवों की संख्या में अचानक परिवर्तन आ जायेगा, जिससे वहाँ पारिस्थितिक तन्त्र में असन्तुलन की स्थिति आ जायेगी।
जंगली जानवरों की सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा उठाये गये कदम निम्नवत् हैं –

  1. ZSI (Zoological Survey of India) – जुलोजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया का प्रमुख उद्देश्य जन्तुओं का सर्वेक्षण, अनुसंधान तथा पर्यवेक्षण है।
  2. IBWL (Indian Board for Wildlife) – वन्य जीवन भारतीय परिषद् का गठन भी वन्य जीवों के संरक्षण के लिये ही किया गया। इसका प्रमुख कार्य राष्ट्रीय उद्यानों, जन्तु विहारों तथा चिड़ियाघरों द्वारा जन्तुओं का संरक्षण करना है।
  3. भारतीय संविधान में जंगली जीवों के शिकार पर प्रतिबन्ध लगाया गया है।
  4. अनाधिकृत रूप से जंगलों को काटने पर रोक लगायी गयी है।
  5. वृक्षारोपण का कार्यक्रम राष्ट्रीय स्तर पर चलाया जा रहा है।
  6. भारतीय जन्तु सर्वेक्षण विभाग द्वारा संकटग्रस्त जातियों का अध्ययन किया जा रहा है जिसे लाल आँकड़े की किताब (Red Data Book) में सूचीबद्ध किया जा रहा है।

प्रश्न 6.
“बाघ परियोजना का वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर
बाघ परियोजना (Project Tiger) – इस परियोजना का आरम्भ सन् 1973 में किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों में बाघों का संरक्षण करना है। इससे सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय उद्यान, कॉर्बेट नेशनल पार्क, नैनीताल (उत्तराखण्ड), रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान, सवाई माधोपुर (राजस्थान) एवं सुन्दरवन चीता अभयारण्य (पं बंगाल) हैं।

प्रश्न 7.
वन्यजीव की परिभाषा लिखिए। इसके संरक्षण की दो प्रमुख विधियों का वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर
वन्यजीव में वे सभी प्राणी तथा पादप आते हैं जो मनुष्य के नियन्त्रण और प्रभुत्व से दूर अपने प्राकृतिक वास स्थानों में रहते हैं। वन्य जीव संरक्षण विस्तृत रूप से दो प्रमुख विधियों द्वारा किया जाता है –
1. स्वस्थाने संरक्षण (In- situ Conservation) – स्वस्थाने संरक्षण वन्य जन्तुओं के प्राकृतिक आवास में किया जाता है। इसके लिए इन प्राकृतिक आवास स्थानों को निषिद्ध क्षेत्र घोषित कर दिया जाता है। निषेध की सीमा के अनुसार इन क्षेत्रों को निम्न प्रकारों में बाँटा गया है –

  1. राष्ट्रीय उद्यान (National Park)
  2. अभयारण (Sanctuaries)
  3. जीवमण्डल आरक्षित क्षेत्र (Biosphere reserve)
  4. अलौकिक ग्रूव्स तथा झीलें (Sacred grooves and lakes)

2. बहिस्थाने संरक्षण (Ex- situ Conservation) – इस संरक्षण में संकटोत्पन्न पादपों तथा जन्तुओं का उनके प्राकृतिक आवास से अलग एक विशेष स्थान पर अच्छी देखभाल की जाती है और सावधानीपूर्वक संरक्षित किया जाता है। इसके अन्तर्गत जन्तु उद्यान, वानस्पतिक उद्यान, वन्य जीव सफारी पार्क, बीज बैंक एवं जीन बैंक आदि आते हैं।

प्रश्न 8.
प्राणि विहार क्या है? भारत के दो प्राणि विहारों के नाम लिखिए। (2017)
उत्तर
अभयारण (प्राणि विहार, Sanctuaries) – अभयारण्यों का उद्देश्य केवल वन्य जीवन का संरक्षण करना होता है। अतः इसमें व्यक्तिगत स्वामित्व, लकड़ी काटने, पशुओं को चराने आदि की अनुमति इस प्रतिबन्ध के साथ दी जाती है कि इन क्रिया-कलापों से वन्य प्राणी प्रभावित न हों। इनकी स्थापना एवं नियन्त्रण सम्बन्धित राज्य सरकार के अधीन होती है। भारत में लगभग 520 अभयारण हैं। भारत के दो प्राणि विहार-

  1. जलदापारा जन्तु विहार, मदारीहाट-पश्चिमी बंगाल
  2. घाना पक्षी विहार, भरतपुर-राजस्थान।

प्रश्न 9.
जीवमण्डल आरक्षित क्षेत्र से आप क्या समझते हैं? भारत में कितने जीव-मण्डल आरक्षित क्षेत्र हैं? (2017)
या
संरक्षित जैवमण्डल क्या है? किन्हीं दो भारतीय संरक्षित जैवमण्डल के नाम लिखिए। (2018)
उत्तर
जीवमण्डल आरक्षित क्षेत्र (Biosphere Reserve) – सन् 1971 में यूनेस्को की मनुष्य एवं जीव-मण्डल परियोजना के अन्तर्गत मानव कल्याण हेतु जीवमण्डल के संरक्षण की दृष्टि से जीवमण्डल आरक्षित क्षेत्रों की स्थापना का शुभारम्भ किया गया। भारत में कुल 18 जीवमण्डल आरक्षित क्षेत्र हैं जिनमें से हिमालय प्रदेश का शीत मरुस्थल क्षेत्र तथा शेशाचालम प्रमुख हैं।

प्रश्न 10.
सिद्ध कीजिए कि “मानव-कल्याण, वन्य प्राणियों के साथ सहअस्तित्व में छिपा हुआ है।” (2014)
उत्तर
हजारों-लाखों वर्ष पूर्व का आदिमानव (primitive man) स्वयं एक वन्य प्राणि था जो भोजन के लिए अन्य वन्य प्राणियों का शिकार करता था। सभ्यता (civilization) और संस्कृति (culture) के उदय के साथ-साथ, प्रागैतिहासिक (prehistoric) मानव में वन्य प्राणियों के प्रति प्रेम और इनके साथ सहअस्तित्व की भावना का भी उदय हुआ। प्रारम्भ में प्रागैतिहासिक मानव ने, शिकार में सहायता हेतु, कुत्तों को पाला। भूवैज्ञानिक (geological) प्रमाणों से पता चलता है कि बाद में, लगभग 5000 वर्ष पूर्व की सिन्धु घाटी सभ्यता (Indus valley civilization) तक, गाय एवं बैल, भैंस, हाथी, बकरी, मछलियाँ, मगरमच्छ आदि कई प्रकार के वन्य प्राणी मानव-जीवन से सम्बद्ध हो गये।

इनके अतिरिक्त भी, भित्ति-चित्रणों में और सिक्कों, बर्तनों आदि पर खुदाई में शेर, बाघ, गैंडे, सर्प, बन्दर आदि कुछ ऐसे वन्य प्राणियों का समावेश हो गया जिनसे कि मानव घबराता या डरता था। इसके बाद, ईसापूर्व के धार्मिक दर्शनों (religious philosophies), जैसे कि हिन्दू धर्म (Hinduism), बौद्ध-धर्म (Budhhism), जैन- धर्म (Jainism) आदि में, वन्य प्राणियों के वध को रोकने हेतु, ‘अहिंसा (Ahimsa or non-violence) धार्मिक सिद्धान्त (sacred tenet) के रूप में अपनाया गया। आर्यों (Aryans) ने शेर, मृग, सारस, मोर, हाथी, बकरी, घड़ियाल, बैल, गरुड़ (eagle), बत्तख आदि को देवी-देवताओं की सवारियाँ (mounts) मानकर इनका सम्मान किया।

इस प्रकार उपर्युक्त वर्णन से सिद्ध होता है कि मानव-कल्याण वन्य प्राणियों के साथ सहअस्तित्व में छिपा हुआ है अर्थात् यदि मानव वन्य प्राणियों के साथ प्रेमभाव से रहेगा तो उनका कल्याण निश्चित है। परन्तु यदि वह उनका विनाश करता है तो कुछ समय पश्चात्, उनकी हानि परिलक्षित होने लगेगी।

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