UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi गद्य Chapter 8 हम और हमारा आदर्श

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 8
Chapter Name हम और हमारा आदर्श
Number of Questions Solved 3
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi गद्य Chapter 8 हम और हमारा आदर्श

हम और हमारा आदर्श – जीवन/साहित्यिक परिचय

(2017, 16, 14, 13, 12, 11)

प्रश्न-पत्र में पाठ्य-पुस्तक में संकलित पाठों में से लेखकों के जीवन परिचय, कृतियाँ तथा भाषा-शैली से सम्बन्धित एक प्रश्न पूछा जाता है। | इस प्रश्न में किन्हीं 4 लेखकों के नाम दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक लेखक के बारे में लिखना होगा। इस प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

जीवन परिचय तथा साहित्यिक उपलब्धियाँ
भारत रत्न अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम अर्थात् ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को धनुषकोडी गाँव, रामेश्वरम, तमिलनाडु में हुआ था। इनके पिता का नाम जैनुलाब्दीन था, जो मछुवारों को किराए पर नाव दिया करते थे।

कलाम जी की आरम्भिक शिक्षा रामेश्वरम में ही पंचायत प्राथमिक विद्यालय में हुई, इसके पश्चात् इन्होंने मद्रास इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से अन्तरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। स्नातक होने के पश्चात् इन्होंने हायराफ्ट परियोजना पर काम करने के लिए भारतीय रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। वर्ष 1962 में भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन में आने के पश्चात् इन्होंने कई परियोजनाओं में निदेशक की भूमिका निभाई। इन्होंने एस. एल. बी. 3 के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, इसी कारण इन्हें मिसाइल मैन भी कहा गया। इसरो के निदेशक पद से सेवानिवृत्त होने के पश्चात्, ये वर्ष 2002 से 2007 तक भारत के राष्ट्रपति पद पर आसीन रहे, जिसके पश्चात् इन्होंने विभिन्न विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में अध्यापन कार्य किया। अपने अन्तिम क्षणों में भी ये शिलांग में प्रबन्धन संस्थान में पढ़ा रहे थे। वहीं पढ़ाते हुए 27 जुलाई, 2015 में इनका निधन हो गया। इन्हें विभिन्न विश्वविद्यालयों से मानद (मान-प्रतिष्ठा देने वाला) उपाधियों प्राप्त होने के साथ-साथ भारत सरकार द्वारा वर्ष 1981 व 1990 में क्रमशः पद्म भूषण व पद्म विभूषण से तथा 1997 से भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

साहित्यिक सेवाएँ
कलाम जी ने अपनी रचनाओं के द्वारा विद्यार्थियों में युवाओं को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है। इन्होंने अपने विचारों को विभिन्न पुस्तकों में समाहित किया है।

कृतियाँ
इण्डिया 2020, ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम, माई जर्नी, इग्नाइटेड माइण्डस, विंग्स ऑफ फायर, भारत की आवाज, टर्निग प्लॉइण्टेज, हम होंगे कामयाब इत्यादि।

भाषा-शैली
कलाम जी ने मुख्य रूप से अंग्रेजी भाषा में लेखन कार्य किया है, जिसका अनुदित रूप पाठ्यक्रम में संकलित किया गया है। उनकी शैली लाक्षणिक प्रयोग से युक्त है।

योगदान
डॉ. कलाम एक बहुआयामों व्यक्तित्व के धनी थे। विज्ञान प्रौद्योगिकी, देश के विकास और युवा मस्तिष्क को प्रज्जवलित करने में अपनी तल्लीनता के साथ-साथ वे पर्यावरण की चिन्ता भी बहुत करते हैं। डॉ. कलाम ने भारत के विकास स्तर को 2020 तक विज्ञान के क्षेत्र में अत्याधुनिक करने के लिए एक विशिष्ट सोच प्रदान की। वे भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे।

हम और हमारा आदर्श – पाठ का सार

परीक्षा में पाठ का सार” से सम्बन्धित कोई प्रश्न नहीं पूछा जाता हैं। यह केवल विद्यार्थियों को पाठ समझाने के उद्देश्य से दिया गया है।

नागरिकों में समृद्ध राष्ट्र की इच्छा होना
‘हम और हमारा आदर्श’ अध्याय में कलाम जी ने राष्ट्र की प्रगति के लिए स्वयं लोगों द्वारा सुख-सुविधाओं से युक्त जीवन जीने की इच्छा रखने और पूर्ण करने हेतु हदय से प्रयास करने के लिए कहा है। साथ ही वे भौतिकता व यात्मिकता को परस्पर एक दूसरे का पूरक भी सिद्ध करने का प्रयास करते हैं।

प्रगति के लिए स्वयं के महत्त्व को पहचाना।
लेखक कलाम जी स्वयं की युवा छात्रों से मिलने की प्रवृत्ति पर विचार करते हुए, स्वयं के रामेश्वरम द्वीप से निकलकर जीवन में प्राप्त की गई अपनी उपलब्धियों पर आश्चर्य प्रकट करते हैं। इन उपलब्धियों के मूल में वे अपनी महत्त्वाकांक्षा की प्रवृत्ति पर विचार-विमर्श करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि उनके द्वारा समाज के प्रति दिए गए योगदान के अनुसार अपना मूल्यांकन करना ही महत्त्वपूर्ण था।

वे कहते हैं कि मनुष्य को ईश्वर प्रदत्त सभी वस्तुओं का उपभोग करने का अधिकार है और जब तक मनुष्य के भीतर स्वयं समृद्ध भारत में जीने की इच्छा एवं विश्वास नहीं होगा, वह अच्छा नागरिक नहीं बन सकता। विकसित अर्थात् जी-8 देशों के नागरिकों का समृद्ध राष्ट्र में जीने का विश्वास ही उनके विकास का रहस्य हैं।

जीवन में भौतिक वस्तुओं का महत्त्व
कलाम जी भौतिकता और आध्यात्मिकता को न तो एक-दूसरे का विरोधी मानते हैं। और न ही भौतिकतावादी मानसिकता को गलत। वे स्वयं अपना उदाहरण देते हुए न्यूनतम वस्तुओं का उपभोग करने की अपनी प्रवृत्ति के विषय में बताते हैं और कहते हैं कि समृद्धि मनुष्य में सुरक्षा व विश्वास के भाव को संचारित करती है, जो उनमें स्वतन्त्र होने के भाव को पैदा करती है। कलाम जी ब्रह्माण्ड का व बगीचे में खिले फूलों का उदाहरण देते हुए प्रकृति द्वारा प्रत्येक कार्य को पूर्णता से करने के गुण को उद्धारित करते हैं। वे महर्षि अरविन्द द्वारा प्रत्येक वस्तु को ऊर्जा का अंश मानने का उदाहरण देते हुए कहते है कि आत्मा व पदार्थ सभी का अस्तित्व शीनों परस्पर जुड़े हुए हैं। अतः भौतिकता कोई बुरी चीज नहीं है।

स्वेच्छा पूर्ण कार्य ही आनन्द का साधन
कलाम जी कहते हैं कि भौतिकता को सदैव निम्न स्तरीय माना गया है और न्यूनतम में जीवन व्यतीत करने को श्रेयस्कर कहा जाता है। वे कहते हैं कि स्वयं गाँधी जी ने ऐसा जीवन व्यतीत किया, क्योंकि यह उनकी इच्छा थी। मनुष्य को सदैव अपने भीतर से उपजी इलाओं के अनुरूप जीवन शैली को अपनाना चाहिए, अनावश्यक रूप से त्याग की प्रतिमूर्ति बनने का प्रयास नहीं करना चाहिए। वे कहते हैं कि युवा छात्रों से मिलने का मूल उद्देश्य उन्हें इसी गुण से परिचित कराते हुए उन्हें सुख-सुविधाओं से पूर्ण जीवन के सपने देखने और उन्हें पूर्ण करने के लिए शुद्ध भाव से प्रयास करने के लिए प्रेरित करना है। ऐसा करने के उपरान्त ही वे अपने चारों ओर खुशियों का प्रसार कर पाएँगे।

गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-पत्र में गद्य भाग से दो गद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर देने होंगे।

प्रश्न 1.
मैं खासतौर से युवा छात्रों से ही क्यों मिलता हूँ? इस सवाल का जवाब तलाशते हुए मैं अपने छात्र जीवन के दिनों के बारे में सोचने लगा। रामेश्वरम के द्वीप से बाहर निकलकर यह कितनी लम्बी यात्रा रही। पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो विश्वास नहीं होता। आखिर वह क्या था, जिसके कारण यह सम्भव हो सका? महत्त्वाकांक्षा? कई बातें मेरे दिमाग में आती हैं। मेरा ख्याल है कि सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि मैंने अपने योगदान के मुताबिक ही अपना मूल्य आँका। बुनियादी बात जो आपको समझनी चाहिए, वह यह है कि आप जीवन की अच्छी चीजों को पाने का हक रखते हैं, उनका जो ईश्वर की दी हुई हैं। जब तक हमारे विद्यार्थियों और युवाओं को यह भरोसा नहीं होगा कि वे विकसित भारत के नागरिक बनने के योग्य हैं, तब तक वे जिम्मेदार और ज्ञानवान नागरिक भी कैसे बन सकेंगे। विकसित देशों की समृद्धि के पीछे कोई रहस्य नहीं छिपा है। ऐतिहासिक तथ्य बस इतना है कि इन राष्ट्रों, जिन्हें जी-8 के नाम से पुकारा जाता है, के लोगों ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस विश्वास को पुख्ता किया कि मजबूत और समृद्ध देश में उन्हें अच्छा जीवन बिताना है। तब सच्चाई उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप ढल गई।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) लेखक अपने छात्र जीवन के विषय में क्यों सोचने लगता है?
उत्तर:
लेखक को युवा छात्रों से मिलना, उनसे बातें करना अत्यधिक रुचिकर लगता था। वह स्वयं की युवा छात्रों से मिलने की प्रवृत्ति पर प्रश्न अंकित करता है कि उसे यह क्यों अच्छा लगता है? और इसी प्रश्न का उत्तर ढूंढते हुए वह अपने छात्र जीवन के विषय में सोचने लगता है।

(ii) लेखक के अनुसार मनुष्य जीवन में बड़ा बनने का मूल कारण क्या है?
उत्तर:
कलाम जी के अनुसार, मनुष्य का जीवन में बड़ा बनने का मूल कारण उसकी महत्त्वाकांक्षा है। मनुष्य महत्त्वाकांक्षा के बल पर ही अपने जीवन में आगे बढ़ पाता है।

(iii) किसी राष्ट्र के युवा कब तक राष्ट्र की उन्नति में अपनी भूमिका नहीं निभा सकते?
उत्तर:
किसी राष्ट्र के नागरिकों, विशेष रूप से युवाओं व विद्यार्थियों में जब तक यह विश्वास नहीं होगा कि वे स्वयं विकसित राष्ट्र के नागरिक बनने के योग्य हैं, तब तक वे राष्ट्र के विकास एवं उन्नति में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा सकते, क्योंकि राष्ट्र के विकास के लिए उन्हें स्वयं जिम्मेदारियों को उठाते हुए अपना योगदान देना होगा।

(iv) लेखक के अनुसार विकसित देशों की समृद्धि के पीछे क्या तथ्य है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार विकसित देशों की समृद्धि के पीछे कोई रहस्य नहीं छिपा, अपितु इसके पीछे छिपा ऐतिहासिक तथ्य यह है कि इन देशों के नागरिक समृद्ध राष्ट्र में जीने का विश्वास रखते हैं।

(v) ‘महत्त्वाकांक्षा एवं विद्यार्थी शब्दों का सन्धि-विच्छेद करते हुए सन्धि का नाम भी लिखिए।
उत्तर:
महत्त्व + आकांक्षा = महत्त्वाकांक्षा (दीर्घ सन्धि)
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी (दीर्घ सन्धि)

प्रश्न 2.
मैं यह नहीं मानता कि समृद्धि और अध्यात्म एक-दूसरे के विरोधी हैं। या भौतिक वस्तुओं की इच्छा रखना कोई गलत सोच है। उदाहरण के तौर पर, मैं खुद न्यूनतम वस्तुओं को भोग करते हुए जीवन बिता रहा हूँ, लेकिन में सर्वत्र समृद्धि की कद्र करता हूँ, क्योकि यह अपने साथ सुरक्षा तथा विश्वास लाती है, जो अन्ततः हमारी आजादी को बनाए रखने में सहायक है। आप आस-पास देखेंगे, तो पाएँगे कि खुद प्रकृति भी कोई काम आधे-अधूरे मन से नहीं करती। किसी बगीचे में जाइए। मौसम में आपको फूलों की बहार देखने को मिलेगी अथवा ऊपर की तरफ ही देखें, यह ब्रह्माण्ड आपके अनन्त तक फैला दिखाई देगा, आपके यकीन से भी परे।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया हैं तथा इसके लेखक कौन हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश ‘हम और हमारा आदर्श’ से लिया गया है। इसके लेखक ‘ए. पी. जे. अब्दुल कलाम’ हैं।।

(ii) लेखक अध्यात्म एवं भौतिकता को एक-दूसरे के समान मानने के विषय में क्या तर्क देता है।
उत्तर:
लेखक अध्यात्म एवं भौतिकता को एक-दूसरे के समान मानने के विषय में तर्क देते हैं कि समृद्धि अर्थात् धन, वैभव व सम्पन्नता को आध्यात्म के समान महत्त्व देते हुए उन्हें एक-दूसरे का विरोधी मानने से इनकार करते हैं। तथा साथ ही वे भौतिकतावादी मानसिकता रखने वालों को गलत मानने के पक्षधर नहीं हैं।

(iii) भौतिक समृद्धि के महत्व के विषय में लेखक का मत स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखक मनुष्य के जीवन में धन-वैभव, सम्पन्नता आदि को महत्वपूर्ण मानते हुए स्पष्ट करते हैं कि भौतिक सुख-सुविधाएँ मनुष्य में सुरक्षा एवं विश्वास का भायं उत्पन्न करती हैं, जो उनकी स्वतन्त्रता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती हैं तथा मनुष्य में आत्मबल का संचार करती हैं।

(iv) लेखक के अनुसार मनुष्य को जीवन में भौतिक एवं आध्यात्मिक वस्तुओं को किस प्रकार स्वीकार करना चाहिए?
उत्तर:
लेखक के अनुसार जिस प्रकार प्रकृति अपने सभी कार्य पूरे समभाव से करती है, उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन में वस्तुओं को भौतिक एवं आध्यामिक दो वर्गों में विभाजित नहीं करना चाहिए, अपितु उन्हें सहज माव से एक स्वरूप स्वीकारते हुए जीवन को जीना चाहिए।

(v) ‘समृद्धि’ शब्द के पर्यायवाची लिखिए।
उत्तर:
समृद्धि सम्पन्नता, धन।

प्रश्न 3.
न्यूनतम में गुजारा करने और जीवन बिताने में भी निश्चित रूप से कोई हर्ज नहीं है। महात्मा गाँधी ने ऐसा ही जीवन जिया था, लेकिन जैसा कि उनके साथ था, आपके मामले में भी यह आपकी पसन्द पर निर्भर करता है। आपकी ऐसी जीवन-शैली इसलिए है, क्योंकि इससे वे तमाम जरूरतें पूरी होती हैं, जो आपके भीतर की गहराइयों से उपजी होती हैं, लेकिन त्याग की प्रतिमूर्ति बनना और जोर-जबरदस्ती से चुनने-सहने का गुणगान करना अलग बातें हैं।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) लेखक के अनुसार किस प्रकार का जीवन व्यतीत करने में परेशानी नहीं है?
उत्तर:
लेखक स्पष्ट करते हैं कि भौतिकता को सदैव निम्न स्तरीय माना गया और न्यूनतम में जीवन व्यतीत करने को श्रेयस्कर कहा जाता है अर्थात् यदि हमें कम में भी जीवन व्यतीत करने को कहा जाए, तो इसमें कोई परेशानी नहीं है।

(ii) लेखक महात्मा गाँधी के जीवन का उदाहरण देकर क्या स्पष्ट करना चाहता है ?
उत्तर:
लेखक महात्मा गाँधी के जीवन का उदाहरण देकर यह स्पष्ट करना चाहता है। कि प्रत्येक मनुष्य को अपनी इच्छानुसार जीवन व्यतीत करना चाहिए। उन्हें दूसरों के समक्ष आदर्श प्रस्तुत करने हेतु इच्छा के विपरीत त्याग की प्रतिमूर्ति नहीं बनना चाहिए।

(iii) मनुष्य को सदैव किस प्रकार की जीवन-शैली को अपनाना चाहिए?
उत्तर:
मनुष्य को सदैव अपनी इच्छानुसार जीवन व्यतीत करना चाहिए, क्योंकि इससे हमारी वे सारी जरूरतें पूरी होती हैं, जो स्वयं हमारे अन्तर्मन की गहराइयों से निःसृत होती हैं अर्थात् मनुष्य को सदैव अपनी इच्छाओं के अनुरूप जीवन-शैली को अपनाना चाहिए। अनावश्यक रूप से त्याग करने का प्रयास ठीक नहीं होता।

(iv) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक क्या सन्देश देना चाहता है?
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक भौतिकता या भौतिकता रहित जीवन दोनों में से किसी एक को महत्व न देकर यह सन्देश देना चाहते हैं कि हमें अपनी इच्छानुसार जीवन व्यतीत करना चाहिए।

(v) ‘हज’ एवं ‘तमाम’ शब्दों का पर्यायवाची लिखिए।
उत्तर:
हर्ज-हानि, नुकसान; तमाम-सारा, सम्पूर्ण

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi रस

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name रस
Number of Questions Solved 55
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi रस

रस का अर्थ रस का शाब्दिक अर्थ आनन्द है। संस्कृत में वर्णन आया है-‘रस्यते आस्वाद्यते इति रसः’ अर्थात् जिसका आस्वादन किया जाए, वह रस है, किन्| साहित्यशास्त्र में काव्यानन्द अथवा काव्यास्वाद के लिए रस शब्द प्रयुक्त होता है।

परिभाषा
काव्य को पढ़ने, सुनने अथवा नाटक देखने से सहृदय पाठक, श्रोता अथवा दर्शक को प्राप्त होने वाला विशेष आनन्द रस कहलाता है। कहानी, उपन्यास, कचिता, नाटक, फिल्म आदि को पढ़ने, सुनने अथवा देखने के क्रम में उसके पात्रों के साथ स्थापित होने वाली आत्मीयता के कारण काव्यानुभूति एवं काव्यानन्द व्यक्तिगत संकीर्णता से मुक्त होता है। काव्य का रस सामान्य जीवन में प्राप्त होने वाले आनन्द से इसी अर्थ में भिन्न भी है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने व्यक्तिगत संकीर्णता से मुक्त अनुभव को ‘हृदय की मुक्तावस्था’ कहा है।

रस के अवयव
भरतमुनि ने ‘नाट्यशास्त्र’ में लिखा है-‘विभावानुभाव व्यभिचारिसंयोगाद्वस निष्पत्तिः अर्थात् विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। इनमें स्थायी भाव स्वतः ही अन्तर्निहित है, क्योंकि स्थायी भावं ही विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारी (संचारी) भाव के संयोग से रस दशा को प्राप्त होता है। इस प्रकार रस के चार अवयव अथवा अंग हैं।

1. स्थायी भाव
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसे परिभाषित करते हुए लिखा है-‘प्रधान (स्थायी) भाव वहीं कहा जा सकता है, जो रस की अवस्था तक पहुँचे।’
स्थायी भाव ग्यारह माने गए हैं-रति (स्त्री-पुरुष का प्रेम), हास (सी), शोक (दुःख), क्रोध, उत्साह, भय, जुगुप्सा (घृणा), विस्मय (आश्चर्य), निर्वेद (वैराग्य या शान्ति) तथा वात्सल्य (छोटों के प्रति प्रेम), भगवद् विषयक रति (अनुराग)।

2. विभाव
विभाव से अभिप्राय उन वस्तुओं एवं विषयों के वर्णन से है, जिनके प्रति सहृदय के मन में किसी प्रकार का भाव या संवेदना होती है अर्थात् भाव के जो कारण होते हैं, उन्हें विभाव कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि विभाव स्थायी भाव के उद्बोधक (जन्म देने वाले) कारण होते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं आलम्बन एवं उद्दीपन

  1. आलम्वन विभाव जिन व्यक्तियों या पात्रों के आलम्बन (सहारे) से स्थायी भाव उत्पन्न होते हैं, वे आलम्बन विभाव कहलाते हैं; जैसे-नायक-नायिका । आलम्बन के भी दो प्रकार हैं,
    • आप्रय जिस व्यक्ति के मन में रति आदि विभिन्न भाव उत्पन्न होते हैं, उन्हें आश्रय कहते हैं।
    •  विषय जिस वस्तु या व्यक्ति के लिए आश्रय के मन में भाव उत्पन्न होते हैं, उन्हें विषय कहते हैं। उदाहरण के लिए; यदि राम के मन में सीता के प्रति रति का भाव जाग्रत होता है, तो राम आश्रय होंगे और सीता विषय।।
  2. उद्दीपन विभाव आश्रय के मन में भाव को उद्दीप्त करने वाले विषय की बाहरी चेष्टाओं और बाह्य वातावरण को उद्दीपन विभाव कहते हैं; जैसे—दुष्यन्त शिकार खेलते हुए कण्व के आश्रम में पहुँच जाते हैं। वहाँ वे शकुन्तला को देखते हैं।

शकुन्तला को देखकर दुष्यन्त के मन में आकर्षण या रति भाव उत्पन्न होता है। उस समय शकुन्तला की शारीरिक चेष्टाएँ दुष्यन्त के मन में रति भाव को और अधिक तीव्र करती हैं। इस प्रकार, विषय (नायिका शकुन्तला) की शारीरिक चेष्टाएँ तथा अनुकूल वातावरण को उद्दीपन विभाव कहा जाएगा।

3. अनुभाव
आन्तरिक मनोभावों को बाहर प्रकट करने वाली शारीरिक चेष्टा अनुभाव कहलाती है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि अनुभाव आश्रय के शारीरिक विकार हैं। अनुभाव चार प्रकार के होते हैं सात्विक, कायिक, वाचिक एवं आहार्य।

  • सात्विक जो अनुभाव मन में आए भाव के कारण स्वतः प्रकट हो जाते हैं, वे सात्विक हैं; जैसे-पसीना आना, रोएँ खड़े होना, कँपकँपी लगना, मुँह फीका , पड़ना आदि। सामान्यतः आठ प्रकार के सात्विक अनुभाव माने जाते हैं—स्वेद, रोमांच, स्वरभंग, कम्प, विवर्णता, स्तम्भ, अनु और प्रलाप।
  •  कायिक शरीर में होने वाले अनुभाव कायिक हैं; जैसे-किसी को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाना, चितवन से अपने प्रेमी को झकना आदि।
  • वाचिक किसी प्रसंग विशेष के वशीभूत होकर नायक अथवा नायिका (प्रेम-पात्र) द्वारा वाणी के माध्यम से अभिव्यक्ति, वाचिक अनुभाव है।
  • आहार्य नायक-नायिका या अन्य पात्रों के द्वारा वेश-भूषा के माध्यम से भाव-प्रदर्शित करना आहार्य कहलाता है।

4. संचारी अथवा व्यभिचारी भाव
स्थायी भाव के साथ आते-जाते रहने वाले अन्य भावों को अर्थात् मन के चंचल विकारों को संचारी भाव कहते हैं। संचारी भावों को व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है। यह भी आश्रय के मन में उत्पन्न होता है। एक ही संचारी भाव कई रसों के साथ हो सकता है। वह पानी के बुलबुले की तरह उठता और शान्त होता रहता है।
उदाहरण के लिए; शकुन्तला के प्रति रति भाव के कारण उसे देखकर दुष्यन्त के मन में मोह, हर्ष, आवेग आदि जो भाव उत्पन्न होंगे, उन्हें संचारी भाव कहेंगे।

संचारी भावों की संख्या तैंतीस बताई गई है। इनमें से मुख्य संचारी भाव हैं-शंका, निद्रा, मद, आलस्य, दीनता, चिन्ता, मह, स्मृति, धैर्य, लज्जा, चपलता, आवेग, हर्ष, गर्व, विषाद, उत्सुकता, उग्रता, त्रास आदि।

स्थायी भाव तथा संचारी भावों में पारस्परिक सम्बन्ध
रस, स्थायी भाव तथा संचारी भावों के परस्पर सम्बन्ध को इस प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है।

रस स्थायी भाव संचारी भाव
श्रृंगार रति स्मृति, चिन्ता, हर्ष, मोह इत्यादि
हास्य हास हर्ष, निद्रा, आलस्य, चपलता इत्यादि
करुण शोक ग्लानि, शंका, चिन्ता, दीनता इत्यादि
रौद्र क्रोध उग्रता, शंका, स्मृति इत्यादि
वीर उत्साह आवेग, हर्ष, गर्व इत्यादि
भयानक भय त्रास, ग्लानि, शंका, चिन्ता इत्यादि
बीभत्स जुगुप्सा दीनता, निर्वेद, ग्लानि इत्यादि
अद्भुत  विस्मय हर्ष, स्मृति, आवेग, शंका इत्यादि
शान्त  निर्वेद (वैराग्य) हर्ष, स्मृति, धृति इत्यादि
वात्सल्य वत्सल चिन्ता, शंका, हर्ष, स्मृति इत्यादि
भक्ति भगवद् विषयक रति निर्वेद, हर्ष, वितर्क, मति इत्यादि

रस के भेद
रस के मुख्यतः दस (10) भेद होते हैं। हम रस के सभी भेदों को इस प्रकार स्मरण रख सकते हैं-

श्रृंगार हास्य करुण-वीर-रौद्र भयानक
“वीभत्साद्भुत शान्ताश्च वात्सल्यश्च रसा दश।’

1. शृंगार रस (2018, 17, 16, 15, 14, 13, 12)
श्रृंगार रस का स्थायी भाव रति (प्रेम) है। रति का सामान्य अर्थ हैं—प्रीति, किसी मनोनुकूल प्रिय व्यक्ति की और मन का झुकाव या लगाव। जब नायक-नायिका के मन में एक-दूसरे के प्रति प्रीति उत्पन्न होकर विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के योग से स्थायी भाव रति जाग्रत हो तो ‘श्रृंगार रस’ कहलाता है। इसके अन्तर्गत पति-पत्नी अथवा नायक-नायिका का वर्णन होता है। इसमें पर-पुरुष या पर-नारी के प्रेम-वर्णन का निषेध होता है। शृंगार रस के अवयव इस प्रकार हैं-

स्थायी:      भाव रति
आलम्बन विभाव:  नायक अथवा नायिका
उद्दीपन विभाव:  आलम्बन का सौन्दर्य, प्रकृति, चाँदनी, वसन्त ऋतु, वाटिका, संगीत इत्यादि
अनुभाव:  स्पर्श, आलिंगन, अवलोकन, कटाक्ष, मुस्कान, अश्रु इत्यादि।
संचारी भाव:  निर्वेद, हर्ष, लज्जा, जड़ता, चपलता, आशा, स्मृति, आवेग, उन्माद, रुदन इत्यादि

श्रृंगार रस के दो भेद हैं
(i) संयोग श्रृंगार मिलन या संयोग की अवस्था में जब नायकनायिका के प्रेम का वर्णन किया जाए तो वहाँ संयोग श्रृंगार होता है। (2015, 13)
उदाहरण

“दूलह श्रीरघुनाथ बने दुलही सिय सुन्दरी मन्दिर माहीं।
गावति गीत सबै मिलि सुन्दरि बेद जुवा जुरि बिप्र पढ़ाहीं।।
राम को रूप निहारति जानकि कंकन के नग की परछाहीं।
याते सबै सुधि भूलि गई कर टेकि रही, पल टारत नाहीं।।”

तुलसीदास

स्पष्टीकरण (2014)
उक्त पद में स्थायी भाव रति है। विषय राम और आश्रय सीता हैं। उद्दीपन है-राम का नग में पड़ने वाला प्रतिबिम्ब, अनुभाव है- नग में राम के प्रतिबिम्ब का अवलोकन करना, हाथ टेकना तथा संचारी भाव हैं- हर्ष एवं जड़ता। इस प्रकार यहाँ ‘संयोग शृंगार’ है।

(ii) वियोग या विप्रलम्भ श्रृंगार वियोग अथवा एक-दूसरे से दूर रहने की स्थिति में जब नायक-नायिका के प्रेम का वर्णन किया जाता है, तब उसे वियोग श्रृंगार कहते हैं।
उदाहरण

“मैं निज़ अलिन्द में खड़ी थी सखि एक रात
रिमझिम बंद पड़ती थीं घटा छाई थी।
गमक रही थी केतकी की गन्ध चारों ओर
झिल्ली झनकार यही मेरे मन भाई थी।
करने लगी मैं अनुकरण स्वनूपुरों से
चंचला थी चमकी घनाली घहराई थी।
चौक देखा मैंने चुप कोने में खड़े थे प्रिय,
माई मुखलज्जा उसी छाती में छिपाई थी।

मैथिलीशरण गुप्त (‘यशोधरा से)

स्पष्टीकरण
इस पद में स्थायी भाव रति हैं। आलम्बन है- उर्मिला। उद्दीपन है- घटा, बूंदें, फूल की गन्ध और झिल्लियों की झनकार। अनुभाव हैं- छाती में मुख को छिपाना और संचारी भाव हैं- हर्ष, लज्जा एवं स्मृति। अतः यहाँ ‘वियोग’ अथवा ‘विप्रलम्भ’ श्रृंगार हैं।

2. हास्य रस (2018, 17, 15, 14, 12)
जब किसी (वस्तु अथवा व्यक्ति) की वेशभूषा, वाणी, चेष्टा, आकार इत्यादि में आई विकृति को देखकर सहज हँसी आ जाए तब वहाँ हास्य रस होता है।
हास्य रस के अवयव इस प्रकार हैं।

स्थायी भाव हास
आलम्बन – विकृत वस्तु अथवा व्यक्ति
उद्दीपन – आलम्बन की अनोखी आकृति, चेष्टाएँ, बातचीत इत्यादि
अनुभाव – आश्रय की मुस्कान, आँखों का मिचमिचाना तथा अट्टहास करना।
संचारी भाव – हर्ष, निद्रा, आलस्य, चपलता, उत्सुकता, भ्रम, कम्पन इत्यादि
उदाहरण

“बिन्ध्य के बासी उदासी तपो व्रतधारि महा बिनु नारि दुखारे।
गौतमतीय तरी तुलसी सो कथा सुनि भे मुनिवृन्द सुखारे।।
है हैं सिला सब चन्द्रमुखी परसे पद मंजुल कंज तिहारे।
कीन्हीं भली रघुनायक जू! करुणा करि कानन को पगु धारे।।”

तुलसीदास

स्पष्टीकरण
उक्त पद्यांश में विन्ध्य क्षेत्र में पहुँचे श्रीराम के चरण स्पर्श से पत्थर को सुन्दर नारी में परिवर्तित होते जान वहाँ विद्यमान नारियों से दूर रहने वाले तपस्वीगण के प्रसन्न होने का वर्णन है। इस पद्यांश में स्थायी भाव हास है। आलम्बन है- राम और उद्दीपन है- गौतम ऋषि की पत्नी का उद्धारा अनुभव – मुनियों की कथा आदि सुनाना और संचारी भाव हैं- हर्ष, चंचलता एवं उत्सुकता। अतः यहाँ ‘हास्य रस’ है।

3. करुण रस (2018, 17, 16, 14, 13, 12)
जब प्रिय या मनचाही वस्तु के नष्ट होने या उसका कोई अनिष्ट होने पर हृदय शोक से भर जाए, तब ‘करुण रस’ जाग्रत होता है। इसमें विभाव, अनुभाव व संचारी भावों के मेल से शोक नामक स्थायी भाव का जन्म होता है। इसके अवयव इस प्रकार हैं-

स्थायी – भाव शोक
आलम्बन – विनष्ट वस्तु अथवा व्यक्ति
उद्दीपन – आलम्बन का दाहकर्म, इष्ट की विशेषताओं का उल्लेख, उसके चित्र एवं उससे सम्बद्ध वस्तुओं का वर्णन
अनुभाव – रुदन, प्रलाप, कम्प, मूच्र्छा, नि:श्वास, छाती पीटना, भूमि पर गिरना, दैवनिन्दा इत्यादि।
संचारी भाव – निर्वेद, व्याधि, चिन्ता, स्मृति, मोह, अपस्मार, ग्लानि, विषाद, दैन्य, उन्माद, श्रम इत्यादि
उदाहरण

“जो भूरि भाग्य भरी विदित थी अनुपमेय सुहागिनी,
हे हृदय बल्लभ! हैं वहीं अब मैं यहाँ हत मागिनी।
जो साथिनी होकर तुम्हारी थी अतीव सनाथिनी, ।
है अब उसी मुझसी जगत् में और कोई अनाथिनी।।”

मैथिलीशरण गुप्त

स्पष्टीकरण
यहाँ स्थायी भाव शोक है। आलम्बन के अन्तर्गत विषय है—अभिमन्यु का शव तथा आश्रय हैं-उत्तरा। उत्तरा के द्वारा अभिमन्यु की वीरता की स्मृति उद्दीपन हैं और अनुभाव है-उसका चित्कार करना। संचारी भाव हैं-स्मृति, चिन्ता, दैन्य इत्यादि। अतः यहाँ ‘करुण रस’ है।

4. वीर रस (2018, 17, 16, 15, 14, 13)
युद्ध करने के लिए अथवा नीति, धर्म आदि की दुर्दशा को मिटाने जैसे कठिन कार्यों | के लिए मन में उत्पन्न होने वाले उत्साह से वीर रस की उत्पत्ति होती हैं।
वीर रस के अवयव निम्नलिखित हैं-

स्थायी भाव – उत्साह
आलम्बन – शत्रु
उद्दीपन – शत्रु की शक्ति, अहंकार, रणवाद्य, यश की चाह, याचक का आर्तनाद इत्यादि
अनुभाव – प्रहार करना, गर्वपूर्ण उक्ति, रोमांच, कम्प, धर्मानुकूल आचरण करना इत्यादि।
संचारी भावे – हर्ष, उत्सुकता, गर्व, चपलता, आवेग, उग्रता, मति, धृति, स्मृति, असूया इत्यादि।
उदाहरण

चढ़त तुरंग, चतुरंग साजि सिवराज,
चढ़त प्रताप दिन-दिन अति जंग में।
भूषण चढ़त मरहअन के चित्त चाव,
खग्ग खुली चढ़त है अरिन के अंग में।
भौंसला के हाथ गढ़ कोट हैं चढ़त,
अरि जोट है चढ़त एक मेरू गिरिसुंग में।
तुरकान गम व्योमयान है चढ़त बिनु ।
मन है चढ़त बदरंग अवरंग में।।”

भूषण

स्पष्टीकरण
उक्त पद्यांश में स्थायी भाव है- उत्साह। औरंगजेब और तुरक आलम्बन विभाव हैं, जबकि शत्रु का भाग जाना, मर जाना उद्दीपन विभाव हैं। घोड़ों का चढ़ना, सेना सजाना, तलवार चलाना आदि अनुभाव हैं। उग्रता, क्रोध, चाव, हर्ष, उत्साह इत्यादि। संचारी भाव हैं। अतः यहाँ ‘वीर रस’ का निष्पादन हुआ है।

5. रौद्र रस (2018, 17, 15, 14, 13, 19)
विरोधी पक्ष की ओर से व्यक्ति, समाज, धर्म अथवा राष्ट्र की निन्दा या अपमान करने पर मन में उत्पन्न होने वाले क्रोध से रौद्र रस की उत्पत्ति होती है। इसके अवयव । निम्नलिखित हैं-

स्थायी भाव – क्रोध
आलम्बन – विरोधी, अनुचित बात कहने वाला व्यक्ति
उद्दीपन – विरोधियों के कार्य एवं वचन
अनुभाव – शस्त्र चलाना, भौंहें चढ़ाना, दाँत पीसना, मुख लाल करना, गर्जन, आत्म-प्रशंसा, कम्प, प्रस्वेद इत्यादि।
संचारी भाव – उग्रता, अमर्ष, आवेग, उद्वेग, मद, मोह, असूया, स्मृति इत्यादि
उदाहरण

“उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा।।
मानो हवा के वेग से सौता हुआ सागर जगा।”

स्पष्टीकरण
इस काव्यांश में स्थायी भाव है- क्रोध एवं अभिमन्यु को मारने वाला जयद्रथ आलम्बन हैं। अकेले बालक अभिमन्यु को चक्रव्यूह में फंसाकर सात महारथियों द्वारा आक्रमण करना उद्दीपन है। शरीर काँपना, क्रोध करना, मुख लाल होना अनुभाव है तथा उग्रता, चपलता आदि संचारी भाव हैं। अतः यह ‘रौद्र रस’ को उदाहरण है।

6. शान्त रस (2018, 17, 16, 14, 13, 12)
तत्त्व-ज्ञान, संसार की क्षणभंगुरता तथा सांसारिक विषय-भोगों की असारता से उत्पन्न होने वाले वैराग्य से शान्त रस की उत्पत्ति होती है।
इसके अवयव निम्नलिखित हैं-

स्थायी भाव – निर्वेद
आलम्बन – तत्त्व ज्ञान का चिन्तन एवं सांसारिक क्षणभंगुरता
उद्दीपन – शास्त्रार्थ, तीर्थ यात्रा, सत्संग इत्यादि
अनुभाव – पूरे शरीर में रोमांच, अश्रु, स्वतन्त्र होना इत्यादि।
संचारी भाय – मति, धृति, हर्ष, स्मृति, निर्वेद, विबोध इत्यादि।।

उदाहरण

“मन मस्त हुआ फिर क्यों डोले?
हीरा पायो गाँठ गठियायो, बार-बार वाको क्यों खोले?”

स्पष्टीकरण

इस पद में स्थायी भाव निर्वेद है, ईश्वर विषय है तथा कवि आश्रय है। ईश्वर भक्ति व सुलभ वातावरण उद्दीपन हैं तथा ईश्वर की भक्ति में लीन होना, धन्यवाद करना, गाना आदि अनुभाव हैं। प्रसन्नता, विस्मय आदि प्रकट करना संचारी भाव हैं। अतः यहाँ ‘शान्त रस’ उपस्थित है।

7. अद्भुत रस (2018, 16, 13, 11)
किसी असाधारण, अलौकिक या आश्चर्यजनक वस्तु, दृश्य या घटना देखने, सुनने से मन का चकित होकर, ‘विरमय’ स्थायी भाव का प्रादुर्भाव होना ‘अद्भुत रस’ की । उत्पत्ति करता है। मायः जासूसी, तिलिस्मी, ईश्वर वर्णन आदि से सम्बन्धित साहित्य में अद्भुत रस पाया जाता है।
इसके अवयव निम्नलिखित हैं

स्थायी भावे – विस्मय
आलम्बन – विस्मय उत्पन्न करने वाली वस्तु या व्यक्ति
उद्दीपन – अलौकिक वस्तुओं के दर्शन, श्रवण, कीर्तन इत्यादि
अनुभाव – रोमांच, गद्गद् होना, दाँतों तले अँगुली दबाना, आँखें फाड़कर देखना, काँपना, आँसू आना इत्यादि
संचारी भाव – हर्ष, उत्सुकता, मोह, धृति, भ्रान्ति, आवेग इत्यादि

उदाहरण

“अखिल भुवन चर-अचर सब, हरि मुख में लखि मातु
चकित भई गद्गद् वचन, विकसित दृग पुलकातु।”

काव्य कल्पद्रुम

स्पष्टीकरण
यशोदा श्रीकृष्ण के मुख में समस्त ब्रह्माण्ड को देखकर विस्मित हो जाती हैं। उनके मुख से प्रसन्नता के शब्द निकल पड़ते हैं और उनकी आँखें फैल जाती हैं। इस प्रकार यहाँ स्थायी भाव विस्मय है, आलम्बन है- कृष्ण का मुख एवं आश्रय हैयौदा। उद्दीपन है- श्रीकृष्ण के मुख के अन्दर का दृश्य। अनुभाव हैं- गद्गद् वचन एवं आँखों का फैलना तथा संचारी भाव हैं- विस्मय, आश्चर्य हर्ष आदि। अतः यहाँ ‘अद्भुत रस’ है।

8. भयानक रस (2017, 16, 15, 14, 13, 12)
किसी बात को सुनने, किसी वस्तु, व्यक्ति को देखने अथवा उसकी कल्पना करने से मन में भय छा जाए, तो उस वर्णन में भयानक रस विद्यमान रहता है। | इसके अवयव निम्नलिखित हैं।

स्थायी भाय – भय
आलम्बन – भयंकर वस्तु अथवा हिंसक पशुओं के दर्शन आदि।
उद्दीपन – भयावह स्वर, भयंकर चेष्टाएँ आदि
अनुभाव – मूळ, रुदन, पलायन, पसीना छूटना, कम्पन, मुँह सूखना, चिन्ता करना इत्यादि
संचारी भाय – चिन्ता, त्रास, सम्मोह, सम्भ्रम, दैन्य इत्यादि

उदाहरण

“एक ओर अजगरहिं लखि एक ओर मृगराय।
विकल बटोही बीच ही पयो मूरछा खाय।।”

स्पष्टीकरण
इस काव्यांश में स्थायी भाव भय है, राहगीर आश्रय है तथा भयानक जंगल आलंम्बन हैं। वन्य जीवों; जैसे अजगर, मृगराज सिंह का राहगीर की ओर बढ़ना उद्दीपन विभाव हैं। डरना, मूछित होना अनुभाव हैं तथा जड़ता, त्रास, चिन्ता आदि संचारी भाव हैं। अतः यह भयानक रस’ का उदाहरण है।

9. वीभत्स रस (2017, 16, 14, 13, 12)
जुगुप्साजनक या पृणा उत्पन्न करने वाली वस्तुओं अथवा परिस्थितियों को देख-सुनकर मन में उत्पन्न होने वाले भाव वीभत्स रस को उत्पन्न करते हैं। काव्य में इस रस का प्रयोग परिस्थिति के अनुरोध से हुआ है। इसके अवयव निम्नलिखित है।

स्थायी भाव – जुगुप्सा
आलम्बन – रक्त, अस्थि, दुर्गन्धयुक्त मांस इत्यादि।
उद्दीपन – शव का सड़ना, उसमें कीड़े लगना, पशुओं द्वारा उन्हें नचना, खाना इत्यादि।
अनुभाव – घृणा करना, मुँह बनाना, थूकना, नाक को टेढ़ा करना इत्यादि।
संचारी भाव – ग्लानि, मोह, शंका, व्याधि, चिन्ता, जड़ता, वैव, आवेग इत्यादि

उदाहरण

“सिर पर बैठ्यो काग आँख दोउ खात निकारत।
खींचत जीभहिं स्यार अतिहि आनन्द कर धारत।।
गीध जाँघ कहँ खोदि-खोदि कै मास उचारत।
स्वान आँगुरिन काटि-काटि के खाते विचारत।।
बहु चील नोच लै जात तुच मोद भयो सबको हियो।।
मनु ब्रह्मभोज जजिमान कोउ आज भिखारिन कह दियो।।”

स्पष्टीकरण
यहाँ श्मशान में सेवारत् राजा हरिश्चन्द्र की चर्णन किया गया है, जिन्हें पशु-पक्षियों द्वारा शव को नोच-नोचकर खाते देख मन में जुगुप्सा (घृणा) पैदा होती है। यहाँ रथायी भाव जुगुप्सा है। श्मशान का दृश्य आलम्बन है व पाठक आश्रय हैं। कौए द्वारा आँख निकालना, सियार द्वारा जीभ खींचना उद्दीपन हैं। राजा हरिश्चन्द्र द्वारा इनका वर्णन अनुभाव है तथा संचारी भाव हैं-मोह, स्मृति आदि। अतः यहाँ ‘वीभत्स रस’ है।

10. वात्सल्य रस (2014, 13)
वात्सल्य रस का सम्बन्ध छोटे बालक-बालिकाओं के प्रति प्रेम एवं ममता से है। छोटे बालक-बालिकाओं की मधुर चेष्टा, उनकी बोली के प्रति माता-पिता तथा पड़ोसियों की स्नेह, प्यार आदि वात्सल्य रस की उत्पत्ति करते हैं। इसके अवयव निम्नलिखित हैं।

स्थायी भाव – स्नेह (वात्सल्यता)
आलम्बन – सन्तान, शिष्य आदि
उद्दीपन – बाल-ढ, बालक की चेष्टाएँ, तुतलाना, उसका रूप एवं उसकी वस्तुएँ
अनुभाव – बच्चों को गोद लेना, थपथपाना, आलिंगन करना, सिर पर हाथ फेरना इत्यादि
संचारी भाव – हर्ष, आवेग, गर्व, मोह, शंका, चिन्ता इत्यादि

उदाहरण

“सोहित कर नवनीत लिए
घुटुन चलत रेनु तन मण्डित
मुख दधि लेप किए।”

स्पष्टीकरण
यहाँ स्थायी भाव स्नेह (वात्सल्यता) है, बालक कृष्ण आलम्बन विभाव है तथा माता-पिता आश्रय हैं। बालकृष्ण का घुटनों तक धूल से भरा शरीर होना, मुंह पर ही का लेप आदि होना उद्दीपन विभाव हैं। हँसना, प्रसन्न होना इत्यादि अनुभाव हैं। विस्मित होना, मुग्ध होना इत्यादि संचारी भाव हैं। इस प्रकार यह ‘वात्सल्य रस’ का उदाहरण हैं।

11. भक्ति रस
भगवद्-अनुरक्ति तथा अनुराग के वर्णन से भक्ति रस की उत्पत्ति होती है। प्राचीन आचार्य इसे भगवद्-विषयक् रति मानकर श्रृंगार रस के अन्तर्गत रखते थे। इसके अवयव निम्नलिखित हैं।

स्थायी भाव – भगवद्-विषयक रति
आलम्बन राम-सीता, कृष्ण-राधा इत्यादि।
उद्दीपन – परमेश्वर के कार्यकलाप, सत्संग आदि।
अनुभाव – भगवद्-भजन, कीर्तन, ईश्वर-मग्न होकर हँसना-रोना, नाचना इत्यादि।
संचारी भाव – निर्वेद, हर्ष, वितर्क, मति इत्यादि

उदाहरण

“अँसुबन जल सचि-सचि, प्रेम-चेलि बोई।
‘मीरा’ की लगन लागी, होनी हो सो होई।।”

मीरा

स्पष्टीकरण
यहाँ स्थायी भाव श्रीकृष्ण के प्रति मीरा का अनुराग है। आलम्बन हैं- श्रीकृष्ण एवं सत्संग उद्दीपन है। आँसुओं से प्रेमरूपी बेलि का बोना और उसे सींचना अनुभाव है। तथा हर्ष, शंका आदि संधारी भाव हैं। अतः यहाँ ‘भक्ति रस’ है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
श्रृंगार रस का स्थायी भाव है। (2011, 10)
(क) निर्वेद
(ख) रति
(ग) वात्सल्यता
(घ) उत्साह
उत्तर:
(ख) रति प्रश्न

प्रश्न 2.
“साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धारि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं।”
इन पंक्तियों में निहित रस को नाम निम्नांकित विकल्पों में से चुनकर लिखिए
(क) रौद्र
(ख) अद्भुत
(ग) वीर
(घ) श्रृंगार
उत्तर:
(ग) वीर

प्रश्न 3.
स्थायी भावों को उद्दीप्त अथवा तीव्र करने वाला कारण कहलाता है। (2010)
(क) आलम्बन विभाव
(ख) अनुभाव
(ग) संचारी भाव
(घ) उद्दीपन विभाव
उत्तर:
(घ) उद्दीपन विभाव

प्रश्न 4.
करुण रस का स्थायी भाव है।
(क) क्रोध
(ख) निर्वेद
(ग) शोक
(घ) भय
उत्तर:
(ग) शोक

प्रश्न 5.
वीर रस का स्थायी भाव है। (2010)
(क) वात्सल्य
(ख) उत्साह
(ग) शोक
(घ) आश्चर्य
उत्तर:
(ख) उत्साह

प्रश्न 6.
आचार्यों ने संचारी भावों की संख्या निश्चित की है (2011)
(क) 32
(ख) 33
(ग) 34
(घ) 36
उत्तर:
(ख) 33

प्रश्न 7.
रौद्र रस का स्थायी भाव है (2009, 08, 07, 06, 04)
(क) निर्वेद
(ख) क्रोध
(ग) रतिः
(घ) हास
उत्तर:
(ख) क्रोध

प्रश्न 8.
शान्त रस का स्थायी भाव है। (2011)
(क) निर्वेद
(ख) शोक
(ग) भय
(घ) उत्साह
उत्तर:
(क) निर्वेद

प्रश्न 9.
“जहाँ सुमति तहँ सम्पत्ति नाना।
जहाँ कुमति त बिपति निदाना।।”
उपरोक्त पद में कौन-सा रस है? (2010)
(क) करुण
(ख) भयानक
(ग) श्रृंगार
(घ) शान्त
उत्तर:
(घ) शान्त

प्रश्न 10.
भयानक रस का स्थायी भाव निम्नलिखित विकल्पों को देखकर लिखिए (2014, 11)
(क) क्रोध
(ख) शोक
(ग) उत्साह
(घ) भय
उत्तर:
(घ) भय

प्रश्न 11.
“अर्द्ध रात गइ कपि नहिं आयउ। राम उठाइ अनुज उर लायउ।।।
सकह न दुखित देखि मोहिं काऊ। बन्धु सदा तव मृदुल सुभाऊ।।।
जौं जनतेॐ बन बन्धु बिछोहू। पिता बचन मनतेउँ नहिं ओहू।।”
उपरोक्त पंक्तियों में कौन-सा रस है? (2011)
(क) अद्भुत
(ख) करुण
(ग) वीर
(घ) शान्त
उत्तर:
(ख) करुण

प्रश्न 12.
अदभुत रस का स्थायी भाव है। (2011, 10)
(क) हास
(ख) शोक
(ग) उत्साह
(घ) आश्चर्य
उत्तर:
(घ) आश्चर्य

प्रश्न 13.
वीभत्स रस का स्थायी भाव है। (2011)
(क) भय
(ख) निर्वेद
(ग) शोक
(घ) जुगुप्सा
उत्तर:
(घ) जुगुप्सा

प्रश्न 14.
“ऐसी मूढता या मन की।
परिहरि रामभगति सुर सरिता आस करत ओस कन की।”
इस पद में रस है। (2010)
(क) करुण
(ख) श्रृंगार
(ग) वीर
(घ) शान्त
उत्तर:
(घ) शान्त

प्रश्न 15.
हास्य रस का स्थायी भाव है। (2011, 10)
(क) हास
(ख) उत्साह
(ग) आश्चर्य
(घ) भय
उत्तर:
(क) होस

प्रश्न 16.
“फहरी ध्वजा, फड़की भुजा, बलिदान की ज्वाला उठी।।
निज मातृभूमि के मान में, चढ़ मुण्ड की माला उठी।।”
उपरोक्त पद में रस है। (2011)
(क) करुण
(ख) वीर
(ग) वीभत्स
(घ) भयानक
उत्तर:
(ख) वीर

प्रश्न 17.
“यह वर माँगउ कृपा निकेता, बसहु हृदय श्री अनुज समेता।”
उक्त पद में प्रयुक्त रस का नाम है। (2010)
(क) श्रृंगार
(ख) अद्भुत
(ग) भक्ति
(घ) शान्त
उत्तर:
(ग) भक्ति

प्रश्न 18.
“देखि रूप लोचन ललचाने। हरसे जनु निज निधि पहचाने।।
लोचन मग रामहिं, उर लानी। दीन्हें पलक कपाट सयानी।।”
उपरोक्त काव्य-पक्तियों में रस है। (2008)
(क) वीर
(ख) श्रृंगार
(ग) हास्य
(घ) करुण
उत्तर:
(ख) शृंगार

प्रश्न 19.
“सामने टिकते नहीं वनराज, पर्वत डोलते हैं,
काँपता है कुण्डली मारे समय का व्याल,
मेरी बाँह में मारुत, गरुड़, गजराज का बल है।”
उपरोक्त पंक्तियों में कौन-सा रस हैं?
(क) हास्य रस
(ख) रौद्र रस
(ग) वीर रस
(घ) वीभत्स रस
उत्तर:
(ग) वीर रस

प्रश्न 20.
“कोऊ स्याम-स्याम कै बहकि बिललानी कोऊ
कोमल करेजौ थामि सहमि सुखानी है।”
इस पद में निहित रस का नाम लिखिए।
(क) अद्भुत
(ख) वीर
(ग) करुण
(घ) श्रृंगार
उत्तर:
(घ) श्रृंगार

प्रश्न 21.
“स्याम और सुनदर दोउ जोरी।
निरखत छवि जननी तृन तोरी।।”
उपरोक्त पद में कौन-सा रस है? (2011)
(क) शान्त रस
(ख) वात्सल्य रस
(ग) श्रृंगार रस
(घ) करुण रस
उत्तर:
(ख) वात्सल्य रस

प्रश्न 22.
“कहूँ हाड़ परौ, कहूँ जरो अधजरो मांस,
कहूँ गीध भीर, मांस नोचत अरी अहै।”
उपरोक्त पद में कौन-सा रस है?
(क) हास्य
(ख) वीभत्स
(ग) भयानक
(ध) रौद्र
उत्तर:
(ख) वीभत्स

प्रश्न 23.
“इहाँ उहाँ दुई बालक देखा, मति भ्रम मोर कि आन बिसेखा।”
उक्त पद में प्रयुक्त रस का नाम है (2011)
(क) श्रृंगार
(ख) अद्भुत
(ग) भक्ति
(घ) शान्त
उत्तर:
(ख) अद्भुत

प्रश्न 24.
“सिर पर बैठा काग, आँखि दोउ खात निकारत।।
खींचत जीभहिं स्यार, अतिहिं आनन्द उर धारत।।”
उपरोक्त अवतरण में रस है। (2011, 10)
(क) वीभत्स
(ख) रौद्र
(ग) अद्भुत
(घ) भयानक
उत्तर:
(क) वीभत्स

प्रश्न 25.
“पापी मनुज भी आज मुख से राम-राम निकालते।
देखो भयंकर भेड़िए भी, आज आँसू ढालते।।”
इन पंक्तियों में कौन-सा रस है? (2010)
(क) वीभत्स
(ख) रौद्र
(ग) अद्भुत
(घ) भयानक
उत्तर:
(ग) अद्भुत

प्रश्न 26.
वीभत्स रस का आलम्बन होता है।
(क) सेना
(ख) तपस्वी
(ग) श्मशान
(घ) विस्मय जनक वस्तु
उत्तर:
(ग) श्मशान

प्रश्न 27.
प्रिय वस्तु की अपने प्रति प्रेम भावना का स्मरण किस रस का उद्दीपन है?
(क) हास्य
(ख) श्रृंगार
(ग) अद्भुत
(घ) करुण
उत्तर:
(घ) करुण

प्रश्न 28.
‘रे नृप बालक बोतल तोहि न सँभार’ में रस है।
(क) करुण
(ख) रौद्र
(ग) वीर
(घ) हास्य
उत्तर:
(घ) हास्य

प्रश्न 29.
‘जोश’ किस रस का संचारी भाव है?
(क) अद्भुत
(ख) वात्सल्य
(ग) वीर
(घ) हास्य
उत्तर:
(ग) वीर

प्रश्न 30.
पाठक या दर्शक किस रस का आश्रय होता है?
(क) हास्य
(ख) वीर
(ग) अद्भुत
(घ) वीभत्स
उत्तर:
(घ) वीभत्स

प्रश्न 31.
‘क्या ही स्वच्छ चाँदनी है यह पंक्ति में उद्दीपन है।
(क) क्या ही
(ख) स्वच्छ
(ग) स्वच्छ चाँदनी
(घ) चाँदनी
उत्तर:
(ग) स्वच्छ चाँदनी

प्रश्न 32.
जब चित्त शान्त अवस्था में होता है, तो किस रस की उत्पत्ति होती है?
(क) वात्सल्य
(ख) शान्त
(ग) वीर
(घ) भयानक
उत्तर:
(ख) शान्त

प्रश्न 33.
‘मूर्च्छित होना’ किस रस का अनुभव है?
(क) अद्भुत
(ख) श्रृंगार
(ग) करुण
(घ) रौद्र
उत्तर:
(ग) करुण

प्रश्न 34.
स्त्री-पुरुष के बीच प्रेम कहलाता है।
(क) श्रृंगार रस
(ख) वात्सल्य रस
(ग) भक्ति रस
(घ) अद्भुत रस
उत्तर:
(क) श्रृंगार रस

प्रश्न 35.
सन्तान के प्रति प्रेम किस रस के अन्तर्गत आता है?
(क) श्रृंगार
(ख) वात्सल्य
(ग) शान्त
(घ) वीर
उत्तर:
(ख) वात्सल्य

प्रश्न 36.
ईश्वर के प्रति प्रेम किस रस के अन्तर्गत आता है?
(क) अद्भु त
(ख) मुक्ति
(ग) वात्सल्य
(घ) वीभत्स
उत्तर:
(ख) भक्ति

प्रश्न 37.
‘विंध्य के वासी उदासी तपोव्रत धारी महा बिनु नारि दुखारे।’ पंक्ति में आलम्बन विभाव है।
(क) विंध्याचल पर्वत
(ख) मुनि
(ग) उदासी
(घ) नारि
उत्तर:
(ख) मुनि

प्रश्न 38.
‘आनन्द’ को कहते हैं।
(क) खुशी
(ख) प्रसन्नता
(ग) दुःख
(घ) रस
उत्तर:
(घ) रस

प्रश्न 39.
‘आनन्द’ का पर्याय है।
(क) दुःख
(ख) सुख
(ग) रस
(घ) मग्न
उत्तर:
(ग) रस

प्रश्न 40.
जो भाव हमारे मन में स्थायी रूप से रहते हैं, उन्हें कहते हैं।
(क) उद्दीपन विभाव
(ख) संचारी भाव
(ग) स्थायी भाव
(घ) आलम्बन विभाव
उत्तर:
(ग) स्थायी भाव

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? उसका स्थायी भाव लिखिए।
जथा पंख बिनु खग अति दीना। (2016)
मनि बिनु फनि करिवर कर हीना।।
अस सम जिवन बन्धु बिनु तोही।
जौ जड़ दैव जियावइ मोही।।।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में करुण रस है। इसका स्थायी भाव शोक है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है और क्यों? (2012)
“सदियों से ठण्डी बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है।
दो राह समय के रथ का घर-घरे नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।”
उत्तर:
इन पंक्तियों में वीर रस है, क्योंकि यहाँ प्रजा का शोषण करने वाली सत्ता को उखाड़ फेंकने और उसके स्थान पर स्वराज की स्थापना करने के लिए लोगों का आह्वान किया जा रहा है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? उसका स्थायी भाव लिखिए।
“सूर्यास्त से पहले न जो मैं कल जयद्रथ वध करूँ। (2013)
तो शपथ करता हैं स्वयं मैं ही अनल में जल मलें।।”
उत्तर:
इन पंक्तियों में वीर रस है, जिसका स्थायी भाव ‘उत्साह’ (ओज) है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? उसका स्थायी भाव लिखिए। (2014, 13)
“कहत नटत रीझत खिझत मिलत खिलते लजियात।
भरे भौन में करत है नैननु ही सों बात।।”
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में संयोग श्रृंगार रस है। इसका स्थायी भाव रति है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? उसका स्थायी भाव लिखिए।
“राम को रूप निहारति जानकी, कंकण के नग की परछाई। (2014)
याते सबै सुधि भूलि गई, कर टेक रही पर टारत नाहीं।।”
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में संयोग शृंगार रस है, जिसका स्थायी भाव रति है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? उसका स्थायी भाव लिखिए।
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
सामने पहाड़ हो कि सिंह की दहाड़ हो।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में वीर रस है। इसकी स्थायी भाव ‘उत्साह है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? इसका स्थायी भाव लिखिए।
मन पछिते हैं अवसर बीते।
दुर्लभ देह पाई हरिपद भजु, करम वचन अरु होते।।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में शान्त रस है। इसका स्थायी भाव ‘निवेद’ है।।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? इसका स्थायी भाव लिखिए।
बैठी खिन्ना मक दिवस वे गेह में थी अकेली।।
आके आँसू दृग-युगल में थे धरा को भिगोते।।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में वियोग शृंगार है। इसका स्थायी भाव ‘रति’ है।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है?
विन्ध्य के वासी उदासी तपो व्रत धारि महा बिनु नारि दुखारे।
गौतम तीय तरी तुलसी सो कथा सुनि भे मुनि बृन्द सुखारे।।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में हास्य रस है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस हैं?
कबहुँक हाँ यहि रहनि राँगो।।
श्री रघुनाथ-कृपाल-कृपा तें सन्त सुभाव गहगो।।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में शान्त रस है।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है?
बिनु पद चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै बिधि नाना।।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में अद्भुत रस है।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? इसका स्थायी भाव लिखिए।
लंकी की सेना तो कपि के गर्जन-रण से काँप गयी।
हनुमान के भीषण दर्शन से विनाश ही भाँप गयी।।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में भयानक रस है। इसका स्थायी भाव भय है।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सी रस है? इसका स्थायी भाव लिखिए।
गिद्ध जाँघ को खोदि-खोदि के मांस उपारत।
स्वान आँगुरिन काटि-काटि कै खात बिदारत।।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में वीभत्स रस है। इसका स्थायी भाव जुगुप्सा या घृणा है।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? इसका स्थायी भाव लिखिए।
स्याम गौर सुन्दर दोऊ जोरी।
निरखहिं छवि जननी तृन तोरी।।।
उत्तर:
इन पंक्तियों में वात्सल्य रस है। इसका स्थायी भाव वत्सलता है।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? इसका स्थायी भाव लिखिए।
पुलक गीत हियँ सिय रघुबीरू।
जीह नाम जय लोचन नीरू।।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में भक्ति रस है। इसका स्थायी भाव देवविषयक रति है।

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi गद्य Chapter 7 निन्दा रस

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 7
Chapter Name  निन्दा रस
Number of Questions Solved 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi गद्य Chapter 7 निन्दा रस

निन्दा रस – जीवन/साहित्यिक परिचय

(2017, 16, 14, 13, 12, 11, 10)

प्रश्न-पत्र में पाठ्य-पुस्तक में संकलित पाठों में से लेखकों के जीवन परिचय, कृतियाँ तथा भाषा-शैली से सम्बन्धित एक प्रश्न पूछा जाता है। इस प्रश्न में किन्हीं 4 लेखकों के नाम दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक लेखक के बारे में लिखना होगा। इस प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

जीवन-परिचय तथा साहित्यिक उपलब्धियाँ
मध्य प्रदेश में इटारसी के निकट जमानी नामक स्थान पर हिन्दी के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त, 1924 को हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा मध्य प्रदेश में हुई। नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम. ए. करने के बाद उन्होंने कुछ वर्षों तक अध्यापन कार्य किया, लेकिन साहित्य सृजन में बाधा का अनुभव करने पर इन्होंने नौकरी छोड़कर स्वतन्त्र लेखन प्रारम्भ किया। इन्होंने प्रकाशक एवं सम्पादक के तौर पर जबलपुर से ‘वसुधा’ नामक साहित्यिक मासिक पत्रिका का स्वयं सम्पादन और प्रकाशन किया, जो बाद में आर्थिक कारणों से बन्द हो गई। हरिशंकर परसाई जी ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’, ‘धर्मयुग’ तथा अन्य पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से लिखते रहे। 10 अगस्त, 1995 को इस यशस्वी साहित्यकार का देहावसान हो गया।

साहित्यिक सेवाएँ
व्यंग्य प्रधान निबन्धों के लिए प्रसिद्धि प्राप्त करने वाले परसाई जी की दृष्टि लेखन में बड़ी राम के साथ उतरती थी। उनके हृदय में साहित्य सेवा के प्रति कृतज्ञ भाग विद्यमान था। साहित्य-सेवा के लिए परसाई जी ने नौकरी को भी त्याग दिया। काफी समय तक आर्थिक विषमताओं को झेलते हुए भी ये ‘वसुधा’ नामक साहित्यिक मासिक पत्रिका का प्रकाशन एवं सम्पादन करते रहे। पाठकों के लिए हरिशंकर परसाई एक जाने-माने और लोकप्रिय लेखक हैं।

कृतियाँ
परसाई जी ने अनेक विषयों पर रचनाएँ लिखीं। इनकी रचनाएँ देश की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। परसाई जी ने अपनी कहानियों, उपन्यासों तथा निबन्धों से व्यक्ति और समाज की कमजोरियों, विसंगतियों और आडम्बरपूर्व जीवन पर गहरी चोट की है। परसाई जी की रचनाओं का उल्लेख निम्न प्रकार से किया जा सकता है

  1. कहानी संग्रह हँसते हैं, रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे।।
  2. उपन्यास रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज।
  3. निबन्ध संग्रह तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमान की परत, पगडण्डियों का जमाना, सदाचार की ताबीज, शिकायत मुझे भी है और अन्त में।

भाषा-शैली
परसाई जी ने क्लिष्ट व गम्भीर भाषा की अपेक्षा व्यावहारिक अर्थात् सामान्य बोलचाल की भाषा को अपनाया, जिसके कारण इनकी भाषा में सहजता, सरलता व प्रवाहमयता का गुण दिखाई देता है। इन्होंने अपनी रचनाओं में छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग किया है, जिससे रचना में रोचकता का पुट आ गया है। इस रोचकता को बनाने के लिए परसाई जी ने उर्दू, व अंग्रेजी भाषा के शब्दों तथा कहावतों एवं मुहावरों को बेहद सहजता के साथ प्रयोग किया है, जिसने इनके कथ्य की प्रभावशीलता को दोगुना कर दिया है। इन्होंने अपनी रचनाओं में मुख्यतः व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग किया और उसके माध्यम से समाज की विभिन्न कुरीतियों पर करारे व्यंग्य किए।

हिन्दी साहित्य में स्थान
हरिशंकर परसाई जी हिन्दी साहित्य के एक प्रतिष्ठित व्यंग्य लेखक थे। मौलिक एवं अर्थपूर्ण व्यंग्यों की रचना में परसाई जी सिद्धहस्त थे। हास्य एवं व्यंग्य प्रधान निबन्धों की रचना करके इन्होंने हिन्दी साहित्य में एक विशिष्ट अभाव की पूर्ति की। इनके व्यंग्यों में समाज एवं व्यक्ति की कमजोरियों पर तीखा प्रहार मिलता है। आधुनिक युग के व्यंग्यकारों में उनका नाम सदैव स्मरणीय रहेगा।

निन्दा रस – पाठ का सार

परीक्षा में पाठ का सार’ से सम्बन्धित कोई प्रश्न नहीं पूछा जाता है। यह केवल विद्यार्थियों को पाठ समझाने के उद्देश्य से दिया गया हैं।

प्रस्तुत निबन्ध ‘निन्दा रस’ में लेखक ने निन्दा करने वाले व्यक्तियों के स्वभाव व प्रकृति का उल्लेख किया है। वह कहता है कि अनेक व्यक्ति एक-दूसरे के प्रति ईष्र्या भाव से निन्दा करते रहते हैं। कुछ व्यक्ति अपने स्वभाववश, तो कुछ अकारण ही निन्दा करने में रस लेते हैं। इसके अलावा, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो स्वयं को बड़ा सिद्ध करने के लिए दूसरों की निन्दा में निर्लिप्त भाव से मग्न रहते हैं। कुछ मिशनरी निन्दक होते हैं, तो कुछ अन्य भावों से प्रेरित होकर निन्दा-कार्य में रत रहते हैं।

ईष्र्या भाव से निन्दा अर्थात् प्राणघाती स्नेह
निबन्धकार परसाई जी का कहना है कि कुछ निन्दक ईष्र्या-द्वेष की भावना रखते हुए निन्दा करते हैं और जब उन्हें मौका मिलता है, तब वे ऊपरी तौर पर स्नेह दिखाते हुए अन् पृतराष्ट्र की भाँति प्राणघाती स्नेह दर्शाते हैं। ऐसे निन्दकों से अत्यधिक सतर्क हने की आवश्यकता है और जब भी उनसे मिलें, तो संवेदनाओं को हृदय से निकालकर केवल पुतले रूपी शरीर से ही मिलना चाहिए।

अकारण झूठ बोलने व निन्दा करने की प्रवृत्ति
लेखक का मानना है कि कुछ व्यक्तियों का ऐसा स्वभाव होता है कि वे अकारण ही अपने स्वभाव या प्रकृति के कारण निन्दा करने में रस या आनन्द की अनुभूति करते हैं। ऐसे निन्दक व्यक्ति समाज के लिए अधिक घातक नहीं होते। ये केवल अपना मनोरंजन करते हैं और निन्दा करके सन्तोष प्राप्त करते हैं। मिशनरी निन्दकों का उल्लेख करते हुए लेखक कहता है कि कुछ लोगों का किसी से कोई बैर या द्वेष नहीं होता। वे किसी का बुरा नहीं सोचते, लेकिन 24 घण्टे पवित्र भाव से लोगों की निन्दा करने में लगे रहते हैं। वे अत्यन्त निर्लिप्त, निष्पक्ष भाव से निन्दा करते हैं। ऐसे लोगों के लिए निन्दा टॉनिक की तरह काम करती है।

निन्दा : कुछ लोगों की पूँजी
लेखक का मानना है कि निन्दा करने वाले लोगों में हीनता की भावना होती है। वे हीन भावना का शिकार होते हैं। अपनी हीनता को छिपाने के लिए ही वे दूसरों की निन्दा करते हैं। इसी प्रवृत्ति के कारण उनमें अकर्मण्यता रच-बस जाती है। इतना ही नहीं, कुछ लोग तो निन्दा को अपनी पूँजी समझने लगते हैं, जैसे एक व्यापारी अपनी पूंजी के प्रति अत्यधिक मोह रखता है और उससे लाभ प्राप्ति की उम्मीद भी करता है। उन्हें लगता है कि किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति की निन्दा करके उसे पदच्युत कर उस स्थान पर स्वयं स्थापित हुआ जा सकता है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता है।

गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-पत्र में गद्य भाग से दो गद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर: देने होंगे।

प्रश्न 1.
ऐसे मौके पर हम अक्सर अपने पुतले को अँकवार में दे देते हैं। ‘क’ से क्या मैं गले मिला? क्या मुझे उसने समेटकर कलेजे से लगा लिया? हरगिज नहीं। मैंने अपना पुतला ही उसे दिया। पुतला इसलिए उसकी भुजाओं में सौंप दिया कि मुझे मालूम था कि मैं धृतराष्ट्र से मिल रहा हैं। पिछली रात को एक मित्र ने बताया कि ‘क’ अपनी ससुराल आया है और ‘ग’ के साथ बैठकर शाम को दो-तीन घण्टे तुम्हारी निन्दा करता रहा। इस सूचना के बाद जब आज सबेरे वह मेरे गले लगा तो मैंने शरीर से अपने मन को चुपचाप खिसका दिया और नि:स्नेह, कैंटीली देह उसकी बाहों में छोड़ दी। भावना के अगर काँटे होते, तो उसे मालूम होता है कि वह नागफनी को कलेजे से चिपटाए है। छल का धृतराष्ट्र जब आलिंगन करे, तो पुतला ही आगे बढ़ाना चाहिए।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है? इसके लेखक का नाम भी लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश ‘निन्दा रस’ पाठ से लिया गया है, इसके लेखक का नाम ‘हरिशंकर परसाई है।

(ii) ईष्र्या-द्वेष की भावनाओं से युक्त मित्र से कैसे गले मिलना चाहिए।
उत्तर:
ईष्र्या-द्वेष की भानवाओं से युक्त मित्र यदि गले मिले तो उससे संवेदना शून्य भावहीन होकर ही गले मिलना चाहिए, क्योंकि गले मिलने के लिए जिन भावनाओं और संवेदनाओं की आवश्यकता होती है वे भावनाएँ ईष्र्या-द्वेष की भावनाओं में दब जाती हैं। अतः ऐसे मित्रों से सावधान रहना चाहिए।

(iii) लेखक अपने मित्र ‘क’ से किस प्रकार गले मिला?
उत्तर:
जब लेखक को अपने किसी अन्य भित्र से यह ज्ञात होता है कि मित्र ‘क’ किसी ‘ग’ नाम के व्यक्ति के साथ बैठकर उसकी निन्दा करता है, तब लेखक उससे भावहीन व संवेदनाहीन होकर ही गले मिलता है।

(iv) “छल का धृतराष्ट्र जब आलिंगन करे, तो पुतला ही आगे बढ़ाना चाहिए” से लेखक का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
लेखक कहता है कि जिस प्रकार धृतराष्ट्र ने ईष्र्या-द्वेष के कारण भीम के पुतले को भीम समझकर नष्ट कर दिया था, उसी प्रकार धृतराष्ट्र के समान छली एवं कपटी व्यक्ति तुमसे गले मिले तो भावनाओं से शून्य रहित होकर पुतले के समान ही गले लगाना चाहिए।

(v) ‘छल’ एवं ‘देह’ शब्दों के पर्यायवाची लिखिए।
उत्तर:
छल कपट, धोखा देह- शरीर, गति।।

प्रश्न 2.
कुछ लोग बड़े निर्दोष मिथ्यावादी होते हैं। वे आदतन, प्रकृति के वशीभूत झूठ बोलते हैं। उनके मुख से निष्प्रयास, निष्प्रयोजन झूठ ही निकलता है। मेरे एक रिश्तेदार ऐसे हैं। वे अगर बम्बई (मुम्बई) जा रहे हैं और उनसे पूछे, तो वह कहेंगे, “कलकत्ता (कोलकाता) जा रहा हूँ।” ठीक बात उनके मुँह से निकल ही नहीं सकती। ‘क’ भी बड़ा निर्दोष, सहज-स्वाभाविक मिथ्यावादी है। अद्भुत है मेरा यह मित्र। उसके पास दोषों का ‘केटलॉग’ है। मैंने सोचा कि जब वह हर परिचित की निन्दा कर रहा है, तो क्यों न मैं लगे हाथ विरोधियों की गत, इसके हाथों करा लें। मैं अपने विरोधियों का नाम लेता गया और वह उन्हें निन्दा की तलवार से काटता चला। जैसे लकड़ी चीरने की आरा मशीन के नीचे मजदूर लकड़ी का लट्ठा खिसकाता जाता है और वह चिरता जाता है, वैसे ही मैंने विरोधियों के नाम एक-एक कर खिसकाए और वह उन्हें काटता गया। कैसा आनन्द था। दुश्मनों को रण-क्षेत्र में एक के बाद एक कटकर गिरते हुए देखकर योद्धा को ऐसा ही सुख होता होगा।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) निर्दोष मिथ्यावादी लोग कौन होते हैं?
उत्तर:
जिन लोगों को बिना किसी प्रयोजन तथा बिना किसी प्रयास के झूठ बोलने की। आदत होती है, उन्हें लेखक ने निर्दोष मिथ्यावादी बताया है। ऐसे लोगों का स्वभाव ही ऐसा होता है कि बिना किसी कारण के उनके मुंह से झूठ स्वतः ही निकल जाता

(ii) लेखक अपने मित्र ‘क’ की तुलना किससे करता है?
उत्तर:
लेखक अपने मित्र ‘क’ की तुलना अपने एक ऐसे रिश्तेदार से करते हैं, जो कभी भी सत्य नहीं बोलता है, यदि उस रिश्तेदार से एक सामान्य सा प्रश्न किया जाए कि तुम कहाँ जा रहे हो, तो वह कभी भी सही स्थान का नाम नहीं बताता, क्योंकि उसे झूठ बोलने की स्वभावगत आदत है।

(iii) लेखक का निन्दक मित्र उसके विरोधियों की निन्दा किस प्रकार करता है?
उत्तर:
जिस प्रकार कोई मजदूर लकड़ी काटने वाली आरा मशीन के सामने लट्ठा खिसकाता जाता है और मशीन लकड़ी को चीरती जाती हैं, ठीक उसी प्रकार * लेखक का निन्दक मित्र उसके विरोधियों को अपनी निन्दा रूपी मशीन से काटता चला जाता है।

(iv) लेखक अपने विरोधियों की निन्दा सुनकर किस प्रकार आनन्दित होता है?
उत्तर:
लेखक अपने विरोधियों की निन्दा सुनकर उसी प्रकार आनन्दित होता है, जिस प्रकार रणभूमि में योद्धा को अपने दुश्मनों को एक के बाद एक कटा हुआ देखकर आत्म-सन्तोष एवं आनन्द मिलता है।

(v) स्वाभाविक’ एवं ‘निर्दोष’ शब्दों में क्रमशः प्रत्यय एवं उपसर्ग छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
स्वाभाविक – इक (प्रत्यय)
निर्दोष – निर (उपसर्ग)।

प्रश्न 3.
मेरे मन में गत रात्रि के उस निन्दक मित्र के प्रति मैल नहीं रहा। दोनों एक हो गए। भेद तो रात्रि के अन्धकार में ही मिटता है, दिन के उजाले में भेद स्पष्ट हो जाते हैं। निन्दा का ऐसा ही भेद-नाशक अँधेरा होता है। तीन-चार घण्टे बाद, जब वह विदा हुआ, तो हम लोगों के मन में बड़ी शान्ति और तुष्टि थी। निन्दा की ऐसी ही महिमा है। दो-चार निन्दकों को एक जगह बैठकर निन्दा में निमग्न देखिए और तुलना कीजिए उन दो-चार ईश्वर- भक्तों से जो रामधुन लगा रहे हैं। निन्दकों की-सी एकाग्रता, परस्पर आत्मीयता, निमग्नता भक्तों में दुर्लभ है। इसलिए सन्तों ने निन्दकों को ‘आँगन कुटी छवाय’ पास रखने की सलाह दी है।

दिए गए गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) अपने निन्दक मित्र के प्रति लेखक का व्यवहार किस प्रकार परिवर्तित हो गया?
उत्तर:
जब तक लेखक का निन्दक मित्र अपने परिचितों की निन्दा करता रहता है तब तक लेखक को उसका व्यवहार अच्छा नहीं लगता, किन्तु जैसे ही वह लेखक के विरोधियों को निन्दा रूपी मशीन से काटना प्रारम्भ करता है, तो लेखक को बहुत ही आग-सन्तोष प्राप्त होता है और उसका व्यवहार अपने मित्र के प्रति परिवर्तित हो गया अर्थात् विनम्र हो गया।

(ii) निन्दक प्रशंसक लोगों के मन को शान्ति एवं सन्तुष्टि कब प्राप्त होती है?
उत्तर:
निन्दा की वैचारिक समानता के कारण निन्दक प्रशंसक लोगों के मन शान्त एवं तृप्त हो जाते हैं तथा एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करते हुए जब वे एक दूसरे से विदा होते हैं, तो उनके मन को बड़ी शान्ति एवं सन्तुष्टि प्राप्त होती है।

(iii) निन्दा कर्म में डूबे निन्दकों की तुलना लेखक ने किससे की है और क्यों?
उत्तर:
निन्दा कर्म में हुये निन्दकों की तुलना लेखक ने ईश्वर भक्ति में बैठे उपासकों से की हैं, क्योंकि जिस तल्लीनता के साथ निन्दक अपना निन्दा कर्म करते हैं, वैसी तल्लीनता ईश्वर भक्ति में लीन भक्तों में भी नहीं पाई जा सकती है।

(iv) लेखक के अनुसार सन्तों ने निन्दक को अपने साथ रखने के लिए क्यों कहा है?
उत्तर:
निन्दकों की निन्दा कर्म में तल्लीनता, एकाग्रता और परस्पर शुद्ध स्नेह भाव से डूबे होने के स्वभाव के कारण ही सन्तों ने निन्दक को अपने साथ रखने के लिए कहा है।

(v) ‘आत्मीयता’ तथा ‘निमग्न’ शब्दों में क्रमशः प्रत्यय एवं उपसर्ग छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
आत्मीयता-ईय, ता (प्रत्यय), निमग्न–नि (उपसर्ग)

प्रश्न 4.
कुछ ‘मिशनरी’ निन्दक मैंने देखे हैं। उनका किसी से बैर नहीं, द्वेष नहीं। वे किसी का बुरा नहीं सोचते। पर चौबीसों घण्टे वे निन्दा कर्म में बहुत पवित्र भाव से लगे रहते हैं। उनकी नितान्त निर्लिप्तता, निष्पक्षता इसी से मालूम होती है कि वे प्रसंग आने पर अपने बाप की पगड़ी भी उसी आनन्द से उछालते हैं, जिस आनन्द से अन्य लोग दुश्मन की। निन्दा इनके लिए ‘टॉनिक’ होती है। ट्रेड यूनियन के इस जमाने में निन्दकों के संघ बन गए हैं। संघ के सदस्य जहाँ-तहाँ से खबरें लाते हैं और अपने संघ के प्रधान को सौंपते हैं। यह कच्चा माल हुआ, अब प्रधान उनका पक्का माल बनाएगा और सब सदस्यों को ‘बहुजन हिताय’ मुफ्त बाँटने के लिए दे देगा। यह फुरसत का काम है, इसलिए जिनके पास कुछ और करने को नहीं होता, वे इसे बड़ी खूबी से करते है?

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) लेखक मिशनरी निन्दक किसे कहता है?
उत्तर:
जो निन्दक केवल निन्दा कर्म को ही धर्म समझते हैं लेखक ने उन्हें मिशनरी निन्दक कहा है। ऐसे निन्दकों में किसी के प्रति कोई मनमुटाव अथवा शत्रुता का भाव नहीं होता। ये पूरे शुद्ध भाव से दूसरों की निन्दा करने के कर्म में लगे रहते हैं।

(ii) लेखक के अनुसार निन्दक लोगों की निष्पक्षता का प्रमाण क्या है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार निन्दक लोगों की निष्पक्षता का प्रमाण यह है कि वे अपने पिता की निन्दा भी उसी शुद्ध भाव के साथ करते हैं, जिस शुद्ध भाव से अपने दुश्मन की करते हैं, क्योंकि निन्दा कर्म के आगे वे किसी को बाधक नहीं बनने देना चाहते हैं।

(iii) संघ के सदस्य किस कार्य को पूरी लगन एवं निष्ठा के साथ करते हैं?
उत्तर:
लेखक के अनुसार निन्दकों ने अपने निन्दा के कारोबार को बढ़ाने के लिए संघ निर्मित कर लिए हैं। संघ के सदस्य इधर-उधर से निन्दा की खबरें लाकर संघ के प्रमुख को सौंपने का कार्य पूरी लगन एवं निष्ठा के साथ करते हैं।

(iv) वर्तमान समय में निन्दा का कार्य कौन व्यक्ति बड़ी कुशलता से सम्पन्न कर सकता है?
उत्तर:
निन्दा करने एवं सुनने के लिए व्यक्ति के पास फुरसत होनी चाहिए। वर्तमान समय में निन्दा का कार्य कर्महीन व्यक्ति ही कुशलता से कर सकते हैं, क्योंकि इस पवित्र कार्य को करने में वे निपुण होते हैं।

(v) ‘कच्चा’ एवं ‘दुश्मन’ शब्द के विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर:
शब्द विलोम शब्द
कच्चा – पक्का दुश्मन – दोस्त।

प्रश्न 5.
ईष्र्या द्वेष से प्रेरित निन्दा भी होती है, लेकिन इसमें वह मजा नहीं जो मिशनरी भाव से निन्दा करने में आता है। इस प्रकार का निन्दक बड़ा दुःखी होता है। ईष्र्या-द्वेष से चौबीसों घण्टे जलता है और निन्दा का जल छिड़ककर कुछ शान्ति अनुभव करता है। ऐसा निन्दक बड़ा दयनीय होता है। अपनी अक्षमता से पीड़ित वह बेचारा दूसरे की सक्षमता के चाँद को देखकर सारी रात श्वान जैसा भौंकता है। ईष्र्या-द्वेष से प्रेरित निन्दा करने वाले को कोई दण्ड देने की जरूरत नहीं है। वह निन्दक बेचारा स्वयं दण्डित होता है। आप चैन से सोइए और वह जलन के कारण सो नहीं पाता। उसे और क्या दण्ड चाहिए?

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) लेखक के अनुसार निन्दा कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर:
लेखक के अनुसार निन्दा दो प्रकार की होती है, एक निन्दा ईष्र्या-द्वेष से प्रेरित होकर की जाती है तथा दूसरी निन्दा मिशनरी भाव से की हाती हैं। इसमें निन्दक उसी भाव से निन्दा करता है, जैसे मिशनरी अपने धर्म का प्रचार करते हैं।

(ii) ईष्र्या-द्वेष से निन्दा करने वाले निन्दक की स्थिति कैसी होती है?
उत्तर:
ईष्र्या-द्वेष से की गई निन्दा में निन्दक बड़ा दुःखी रहता है क्योंकि वह चौबीसों घण्टे ईष्र्या से जलता रहता है। वह दूसरे के सफलता पी चाँद को देखकर अपनी असफलता से दुःखी होकर श्वान की तरह सारी रात भौकता रहता है। इस प्रकार ईष्र्या-द्वेष से निन्दा करने वाले निन्दक की स्थिति बड़ी दयनीय होती है।

(iii) लेखक के अनुसार ईष्र्या-द्वेष से प्रेरित होकर निन्दा करने वाले व्यक्ति किस प्रकार स्वयं को दण्डित करते हैं?
उत्तर:
ईष्र्या-क्षेत्र से प्रेरित होकर निन्दा करने वाले व्यक्ति ईष्र्या की जलन में सारी रात जलते रहते हैं। अतः लेखक के अनुसार ईष्र्या-वेष से निन्दा करने वाले निन्दक स्वयं को दण्डित करते रहते हैं।

(iv) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने किस शैली का प्रयोग किया हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने व्यंग्यात्मक एवं विवेचनात्मक शैली का प्रयोग करते हुए लोगों की निन्दा करने की प्रवृत्ति पर कटाक्ष करके उसे विभिन्न उदाहरणों के द्वारा स्पष्ट किया है।

(v) ‘दयनीय’ और ‘दण्डित’ शब्दों में क्रमशः प्रत्यय छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
‘दयनीय’-अनीय (प्रत्यय), दण्डित-इत (प्रत्यय)

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi राजनीतिक निबन्ध

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Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 5
Chapter Name राजनीतिक निबन्ध
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi राजनीतिक निबन्ध

1. भारत में लोकतन्त्र का भविष्य
अन्य शीर्षक भारतीय लोकतन्त्र एवं राजनीति
संकेत बिन्दु प्रजातन्त्र का अर्थ, भारत में प्रजातन्त्र का गठन, प्रजातन्त्र के प्रकार, सरकार के अंग, प्रजातन्त्र के लाभ, प्रजातन्त्र से हानियां, उपसंहार।

प्रजातन्त्र का अर्थ ‘प्रजातन्त्र’ शब्द ग्रीक भाषा से अवतरित अंग्रेजी शब्द ‘Democracy’ का हिन्दी रूपान्तर है, जिसका अर्थ होता है-प्रजा अर्थात् जनता द्वारा परिचालित शासन व्यवस्था। वैसे तो प्रजातन्त्र की कई परिभाषाएँ अब तक दी गई है, किन्तु उनमें अब्राहम लिंकन द्वारा दी गई परिभाषा सर्वाधिक मान्य एवं प्रचलित है। उनके अनुसार, “प्रजातन्त्र जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन है।”

इस तह, प्रजातन्त्र में जनता में ही प्रशासन की सम्पूर्ण शक्ति विद्यमान होती है, उसकी सहमति से ही शासन होता है एवं उसकी प्रगति ही शासन का एकमात्र लक्ष्य होता है। हालाँकि सभ्यता की शुरूआत में शासन व्यवस्था के रूप में राजतन्त्र की ही प्रमुखता थी, किन्तु इस शासन व्यवस्था की सबसे बड़ी खामी यह थी कि प्रायः इसमें आम जनता को अपनी बात रखने का अधिकार नहीं होता था।

भारत में प्रजातन्त्र का गठन आज प्रजातन्त्र एक शक्तिशाली प्रशासनिक व्यवस्था के रूप में उभर चुका है और भारत विश्व के सबसे बड़े प्रजातान्त्रिक देश के रूप में जाना जाता है। यदि हम भारतीय इतिहास पर नजर डालें, तो तीसरी शताब्दी में भारत के सोलह जनपदों में वैशाली एक ऐसा जनपद था, जहाँ गणतान्त्रिक शासन व्यवस्था विद्यमान थी, किन्तु आधुनिक प्रजातन्त्र की उत्पत्ति का स्थल यूरोप को ही माना जा सकता है, क्योकि इसकी नींव मध्यकाल की बारहवीं एवं तेरहवीं शताब्दी के बीच विभिन्न यूरोपीय देशों में राजतन्त्र के विरोध के साथ पड़ी। यूरोप में पुनर्जागरण एवं धर्म सुधार आन्दोलनों ने प्रजातन्त्रात्मक सिद्धान्तों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन आन्दोलनों ने व्यक्ति की धार्मिक स्वतन्त्रता पर बल दिया तथा राजा की शक्ति को सीमित करने के प्रयत्न किए।

प्रजातन्त्र के प्रकार सामान्यतः प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था दो प्रकार की मानी जाती है-प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र एवं अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र। वह शासन व्यवस्था जिसमें देश के समस्त नागरिक प्रत्यक्ष रूप से राज्य कार्य में भाग लेते हैं, प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र कहा जाता है। अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि शासन चलाते हैं।

व्यवस्था के दृष्टिकोण से प्रजातन्त्र के दो रूप होते हैं—संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक। संसदात्मक व्यवस्था में जनता एक निश्चित अवधि के लिए संसद सदस्यों का निर्वाचन करती हैं। संसद द्वारा मन्त्रिमण्डल का निर्माण होता है। मन्त्रिमण्डल संसद के प्रति एवं संसद सदस्य जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। संसदात्मक प्रजातन्त्र में राष्ट्रपति यद्यपि सर्वोच्च पद पर आसीन होता है, किन्तु वह नाममात्र का शासक होता है। भारत में शासन प्रणाली की संसदात्मक व्यवस्था है। अध्यक्षात्मक प्रजातन्त्र प्रणाली में राष्ट्रपति सर्वाधिक शक्तिशाली होता है। अमेरिका जैसे देशों में ऐसी ही प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था है।

सरकार के अंग प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था में सरकार के तीन अंग होते हैं—विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका। विधायिका का कार्य कानून का निर्माण करना, कार्यपालिका का कार्य उन कानूनों का सही ढंग से क्रियान्वयन करना एवं न्यायपालिका का कार्य कानून का उल्लंघन करने वाले लोगों को दण्डित करना है। इस प्रकार सरकार के तीनों अंग प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था को सशक्त बनाते हैं।

प्रजातन्त्र के लाभ प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था के अनेक लाभ हैं। प्रजातान्त्रिक शासन में राज्य की अपेक्षा व्यक्ति को अधिक महत्त्व दिया जाता है। राज्य व्यक्ति के विकास के लिए पूर्ण अवसर प्रदान कराता है। जिस तरह व्यक्ति और समाज को अलग करके दोनों के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती, ठीक उसी प्रकार प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था में प्रजा और सरकार को अलग-अलग नहीं देखा जा सकता।

प्रजातन्त्र से हानियाँ प्रजातन्त्र के कई लाभ हैं, तो कई हानियां भी हैं। प्रजातन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि जनता शिक्षित हो एवं अपना हित समझती हो। जनता के अशिक्षित होने की स्थिति में स्वार्थी लोग धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र इत्यादि के आधार पर लोगों को भ्रमित कर सत्ता में आ जाते हैं। कभी-कभी ऐसा भी देखने में आता है कि धनी एवं भ्रष्टाचारी लोग गरीब जनता को धन का प्रलोभन देकर या अपने प्रभाव से सत्ता पाने में कामयाब रहते हैं। प्रौद्योगिकी में विकास के बाद इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के आम चुनाव में शामिल करने से यद्यपि चुनाव में होने वाले भ्रष्टाचार में कमी हुई है, किन्तु यदि जनता समझदार न हो तो अभी भी भ्रष्ट उम्मीदवार को निर्वाचित होने से नहीं रोका जा सकता। प्रजातन्त्र के बारे में मुहम्मद इकबाल ने लिखा है

जम्हूरियत वह तर्ज-ए-हुकूमत है कि जिसमें,
बन्दों को गिना करते हैं, तौला नहीं करते।”

अर्थात् प्रजातन्त्र ऐसी शासन व्यवस्था है, जिसमें बहुमत के आधार पर जन-प्रतिनिधियों का चुनाव किया जाता हैं न कि उम्मीदवारों की योग्यता के आधार पर। इस तरह यदि जनता शिक्षित एवं समझदार न हो तो इस बात की सम्भावना है कि वह ऐसे आदमी को बहुमत दे, जो योग्य न हो। प्रजातन्त्र की एक और कमी यह है कि जनता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से शासन नहीं करती, बल्कि शासन के लिए प्रतिनिधि चुनती हैं। चुने गए प्रतिनिधि के जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने की स्थिति में, देश एवं समाज का कभी भला नहीं हो सकता। इसलिए राजनीतिशास्त्र के विद्वान् प्लेटो ने प्रजातन्त्र को मुख का शासन कहा है। प्रजातन्त्र का एक और दोष यह है कि न्यायपालिका सरकार का मुख्य अंग होने के बावजूद समय पर न्याय नहीं कर पाती, क्योंकि न्यायपालिका पर किसी व्यक्ति विशेष का अधिकार नहीं होता।

उपसंहार निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है कि यदि जनता अशिक्षित हो या अधिक समझदार न हो तब प्रजातन्त्र की कमियाँ अधिक बढ़ सकती हैं, किन्तु यदि जनता शिक्षित एवं समझदार हो तो इसे सर्वोत्तम शासन व्यवस्था कहा जा सकता है, क्योंकि इस प्रणाली में ही जनता को अपनी बात कहने का पूर्ण अधिकार होता है। निश्चय ही आज कहा जा सकता है कि भारतवर्ष में प्रजातन्त्र का भविष्य दीर्घकालिक एवं सुखद है।

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi समसामयिक निबन्ध

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 4
Chapter Name समसामयिक निबन्ध
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi समसामयिक निबन्ध

1. स्वच्छ भारत अभियान (2018)
प्रस्तावना यह सर्वविदित है कि 2 अक्टूबर भारतवासियों के लिए कितने महत्त्व का दिवस है। इस दिन हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का जन्म हुआ था। इस युग-पुरुष ने भारत सहित पूरे विश्व को मानवता की नई राह दिखाई। हमारे देश में प्रत्येक वर्ष गाँधी जी का जन्मदिवस एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है और इसमें कोई सन्देह नहीं है कि उनके प्रति हमारी श्रद्धा प्रतिवर्ष बढ़ती जाती है। इस बार (वर्ष 2014 में) भी 2 अक्टूबर को ससम्मान गाँधी जी को याद किया गया, लेकिन ‘स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत के कारण इस बार यह दिन और भी विशिष्ट रहा।

स्वच्छता अभियान से तात्पर्य ‘स्वच्छ भारत अभियान’ एक राष्ट्र स्तरीय अभियान है। गाँधी जी की 145वीं जयन्ती के अवसर पर माननीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस अभियान के आरम्भ की घोषणा की। यह अभियान प्रधानमन्त्री जी की महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है। 2 अक्टूबर, 2014 को उन्होंने राजपथ पर जनसमूह को सम्बोधित करते हुए सभी राष्ट्रवासियों से स्वच्छ भारत अभियान में भाग लेने और इसे सफल बनाने की अपील की। साफ-सफाई के सन्दर्भ में देखा जाए, तो यह अभियान अब तक का सबसे बड़ा स्वच्छता अभियान है।

स्वच्छता अभियान एक जन आन्दोलन साफ-सफाई को लेकर दुनियाभर में भारत की छवि बदलने के लिए प्रधानमन्त्री जी बहुत गम्भीर हैं। उनकी इच्छा स्वच्छ भारत अभियान को एक जन आन्दोलन बनाकर देशवासियों को गम्भीरता से इससे जोड़ने की है। हमारे नवनिर्वाचित प्रधानमन्त्री जी ने 2 अक्टूबर के दिन सर्वप्रथम गाँधी जी को राजघाट पर श्रद्धांजलि अर्पित की और फिर नई दिल्ली स्थित वाल्मीकि बस्ती में जाकर झाड़ लगाई। कहा जाता है कि वाल्मीकि बस्ती दिल्ली में गाँधी जी का सबसे प्रिय स्थान था। वे अक्सर यहाँ आकर ठहरते थे।

इसके बाद, मोदी जी ने जनपथ जाकर स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत की। इस अवसर पर उन्होंने लगभग 40 मिनट का भाषण दिया और स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया। अपने भाषण के दौरान उन्होंने महात्मा गाँधी और लालबहादुर शास्त्री का जिक्र करते हुए बड़ी ही खूबसूरती से इन दोनों महापुरुषों को इस अभियान से जोड़ दिया, उन्होंने कहा-“गांधी जी ने आजादी से पहले नारा दिया था ‘क्विट इण्डिया क्लीन इण्डिया, आजादी की लड़ाई में उनका साथ देकर देशवासियों ने ‘क्विट इण्डिया’ के सपने को तो साकार कर दिया, लेकिन अभी उनका ‘क्लीन इण्डिया’ का सपना अधूरा ही है।।

अब समय आ गया है कि हम सवा सौ करोड़ भारतीय अपनी मातृभूमि को स्वच्छ बनाने का प्रण करें। क्या साफ-सफाई केवल सफाई कर्मचारियों की जिम्मेदारी हैं? क्या यह हम सभी की जिम्मेदारी नहीं हैं? हमें यह नज़रिया बदलना होगा। मैं जानता हूं कि इसे केवल एक अभियान बनाने से कुछ नहीं होगा। पुरानी आदतों को बदलने में समय लगता है। यह एक मुश्किल काम है, मैं जानता है, लेकिन हमारे पास वर्ष 2019 तक का समय है।”

प्रधानमन्त्री जी ने पाँच साल में देश को साफ-सुथरा बनाने के लिए लोगों को शपथ दिलाई कि न में गन्दगी करूगा और न ही गन्दगी करने दें। अपने अतिरिक्त मैं सौ अन्य लोगों को साफ-सफाई के प्रति जागरूक करूगा और उन्हें सफाई की शपथ दिलवाऊँगा। उन्होने कहा कि हर व्यक्ति साल में 100 घण्टे का श्रमदान करने की शपथ ले और सप्ताह में कम-से-कम दो घण्टे सफाई के लिए निकाले। अपने भाषण में प्रधानमन्त्री ने स्कूलों और गांवों में शौचालय निर्माण की आवश्यकता पर भी बल दिया।

भारत को स्वच्छ बनाने में सरकार का योगदान केन्द्र सरकार और प्रधानमन्त्री की ‘गन्दगी मुक्त भारत’ की संकल्पना अच्छी है तथा इस दिशा में उनकी ओर से किए गए आरम्भिक प्रयास भी सराहनीय हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि आखिर क्या कारण है कि साफ-सफाई हम भारतवासियों के लिए कभी महत्त्व का विषय ही नहीं रहा? आखिर क्यों तमाम प्रयासों के बाद भी हम साफ-सुथरे नहीं रहते? हमारे गाँव गन्दगी के लिए बहुत पहले से बदनाम हैं, लेकिन प्यान दिया जाए, तो यह पता चलता है कि इस मामले में शहरों की स्थिति भी गाँवों से बहुत भिन्न नहीं है।

स्वच्छता अभियान की आवश्यकता आज पूरी दुनिया में भारत की छवि एक गन्दे देश की है। जब-जब भारत की अर्थव्यवस्था, तरक्को, ताकत और प्रतिभा की बात होती है, तब-तब इस बात की भी चर्चा होती है कि भारत एक गन्दा देश है। पिछले ही वर्ष हमारे पड़ोसी देश चीन के कई ब्लॉगों पर गंगा में तैरती लाशों और भारतीय सड़कों पर पड़े कूड़े के ढेर वाली तस्वीरें छाई रहीं।

कुछ साल पहले इण्टरनेशनल हाइजीन काउंसिल ने अपने एक सर्वे में यह कहा था कि औसत भारतीय घर बेहद गन्दे और अस्वास्थ्यकर होते हैं। इस सर्वे में काउंसिल ने कमरों, बाथरूम और रसोईघर की साफ-सफाई को आधार बनाया था। उसके द्वारा जारी गन्दे देशों की सूची में सबसे पहला स्थान मलेशिया और दूसरा स्थान भारत को मिला था। हद तो तब हो गई जब हमारे ही एक पूर्व केन्द्रीय मन्त्री ने यहाँ तक कह दिया कि यदि गन्दगी के लिए नोबेल पुरस्कार दिया जाता, तो वह शर्तिया भारत को ही मिलता।

ये सभी बाते और तथ्य हमें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि हम भारतीय साफ-सफाई के मामले में भी पिछड़े हुए क्यों हैं? जबकि हम उस समृद्ध एवं गौरवशाली भारतीय संस्कृति के अनुयायी हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य सदा ‘पवित्रता’ और ‘शुद्धि’ रहा है। वास्तव में, भारतीय जनमानस इसी अवधारणा के चलते एक उलझन में रहा है। उसने इसे सीमित अर्थों में ग्रहण करते हुए मन और अन्त:करण की शुचिता को ही सर्वोपरि माना है, इसलिए हमारे यहाँ कहा गया है।

“मन चंगा तो कठौती में गंगा’

यह सही है कि चरित्र की शुद्धि और पवित्रता बहुत आवश्यक है, लेकिन बाहर की सफाई भी उतनी ही आवश्यक है। यदि हमारा आस-पास का परिवेश ही स्वच्छ नहीं होगा, तो मन भला किस प्रकार शुद्ध रह सकेगा? अस्वच्छ परिवेश का प्रतिकूल प्रभाव हमारे मन पर भी पड़ता है। जिस प्रकार एक स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है, उसी प्रकार एक स्वस्थ और शुद्ध व्यक्तित्व का विकास भी स्वच्छ और पवित्र परिवेश में ही सम्भव हैं।

अतः अन्त:करण की शुद्धि का मार्ग बाहरी जगत् की शुद्धि और स्वच्छता से होकर ही गुजरता है। साफ-सफाई के अभाव से हमारे आध्यात्मिक लक्ष्य तो प्रभावित होते ही हैं, साथ ही हमारी आर्थिक प्रगति भी बाधित होती है। अपने भाषण में प्रधानमन्त्री जी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक आकलन का हवाला देते हुए कहा है कि गन्दगी के कारण औसत रूप से प्रत्येक भारतीय को प्रतिवर्ष लगभग 6,500 का अतिरिक्त आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है। यदि उच्च वर्ग को इसमें शामिल न किया जाए, तो यह आँकड़ा 12 से 15 हजार तक पहुंच सकता हैं। इस तरह देखा जाए, तो हम स्वच्छ रहकर इस आर्थिक नुकसान से बच सकते हैं।

उपसंहार कुल मिलाकर सार यहीं है कि वर्तमान समय में स्वच्छता हमारे लिए एक बड़ी आवश्यकता है। यह समय भारतवर्ष के लिए बदलाव का समय है। बदलाव के इस दौर में यदि हम स्वच्छता के क्षेत्र में पीछे रह गए, तो आर्थिक उन्नति का कोई महत्व नहीं रहेगा। हाल ही में हमारे प्रधानमन्त्री ने 25 सितम्बर, 2014 को ‘मेक इन इण्डिया’ अभियान का भी शुभारम्भ किया है, जिसका लक्ष्य भारत को मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में अव्वल बनाना है। इस अभियान से आर्थिक गति तो अवश्य मिलेगी, लेकिन इसके साथ ही हमें प्रदूषण’ के रूप में एक बड़ी चुनौती भी मिलने वाली है। अतः हमें अपने दैनिक जीवन में तो सफ़ाई को एक मुहिम की तरह शामिल करने की जरूरत है ही, साथ ही हमें इसे एक बड़े स्तर पर भी देखने की ज़रूरत है, ताकि हमारा पर्यावरण भी स्वच्छ रहे।

स्वच्छता समान रूप से हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी हैं। हर समय कोई सरकारी संस्था या बाहरी बल हमारे पीछे नहीं लगा रह सकता। हमें अपनी आदतों में सुधार करना होगा और स्वच्छता को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना होगा. हालाँकि आदतों में बदलाव करना आसान नहीं होगा, लेकिन यह इतना मुश्किल भी नहीं है। प्रधानमन्त्री ने ठीक ही कहा है कि यदि हम कम-से-कम खर्च में अपनी पहली ही कोशिश में मंगल ग्रह पर पहुंच गए, तो क्या हम स्वच्छ भारत का निर्माण सफलतापूर्वक नहीं कर सकते? कहने का तात्पर्य है कि ‘क्लीन इण्डिया’ का सपना पूरा करना कठिन नहीं है। हमें हर हाल में इस लक्ष्य को वर्ष 2019 तक प्राप्त करना होगा, तभी हमारी ओर से राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को उनकी 150वीं जयन्ती पर सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकेगी।

2. आतंकवाद : समस्या और समाधान (2016, 13, 11, 10)
अन्य शीर्षक भारत में आतंकवाद की समस्या (2017), आतंकवाद की समस्या (2017), आतंकवाद और विश्व शान्ति (2014, 13, 11), आतंकवाद एक चुनौती, आतंकवाद और उसके दुष्परिणाम, आतंकवादः कारण एवं निवारण (2013), आतंकवाद और राष्ट्रीय एकता।

संकेत बिन्दु आतंकवाद का अर्थ, भारत में आतंकवाद के रूप में नक्सलवाद, आतंकवाद को पड़ोसी देशों का समर्थन, प्रगति में बाधक, वैश्विक समस्या, समाधान, उपसंहार।

आतंकवाद का अर्थ आतंक की कोई विचारधारा नहीं होती, इस कारण इसे ‘आतंकवाद’ कहना गैर-जरूरी है, किन्तु सामान्य बोलचाल तथा सम्प्रेषण के लिए इस शब्द का प्रयोग सर्वथा अनुचित नहीं है। हिंसा तथा आतंक के पीछे निहित स्वार्थ हो सकता है। यह उद्देश्य प्राप्ति या जनसामान्य के विकास के लक्ष्य से सम्बन्ध नहीं रखता, बल्कि यह वर्चस्ववाद की नीति का आयाम है।

आज हमारा देश आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है। वास्तव में, आतंकवाद वैश्विक रूप धारण कर चुका है। यह धर्म, सम्प्रदाय तथा समुदाय की आड़ में कतिपय कुत्सित विचार वाले लोगों की मानसिकता का परिणाम है।

भारत में आतंकवाद के रूप में नक्सलवाद ‘आतंकवाद’ भारत में कोई पुरानी समस्या नहीं है। आजादी के बाद लोकतन्त्र ने अभिव्यक्ति की जो परम्परा दी, उसमें अपनी जगह न बना पाने की जद्दोजहद में कुछ असामाजिक तत्वों ने आतंक का रास्ता अपना लिया। देश की राजनीतिक तथा सामाजिक प्रक्रिया भी इसमें जिम्मेदार रही है।

समाज की विषमता तथा आर्थिक विभाजन ने एक पूरे वर्ग को हिंसा का रास्ता अपनाने को विवश किया। किसान-मजदूरों की समस्या ने ‘नक्सलवाद’ को उभारा। आज ‘नक्सलवाद’ एक हिंसात्मक आन्दोलन की तरह फैल चुका है, किन्तु हम नक्सलवाद को सीधे तौर पर आतंकवाद नहीं कह सकते हैं।

यह एक उद्देश्य के लिए संघर्ष है। आज भारत में ‘नक्सलवाद’ को अधिक बड़ा खतरा मानकर उसके विरुद्ध बड़े-बड़े ऑपरेशन (अभियान) चलाए जा रहे हैं। हमारी सेना देश के बाहर जाकर भी नक्सलवादियों का सफाया कर रही है, किन्तु आतंकवाद की खतरनाक तथा विध्वंसक प्रक्रिया पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है।

आतंकवाद को पड़ोसी देशों का समर्थन भारत में आतंकवाद क्षेत्रीय तथा साम्प्रदायिक आधार ले चुका है। यह किसी विशेष उद्देश्य के अतिरिक्त देश को मात्र अस्थिर रखने की चाल के साथ संचालित है, जिसे हमारे पड़ोसी देशों का समर्थन प्राप्त है। कश्मीर, असम तथा अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों में कई आतंकी गुट अपनी कार्रवाइयों को अंजाम दे रहे हैं।

कश्मीर में इस्लामी कट्टरपन्थी आतंकी गुट सक्रिय हैं, जिन्हें पाकिस्तान की खुफिया एजेन्सी आई एस आई का समर्थन प्राप्त है। यह एजेन्सी आतंकवादियों को प्रशिक्षण तथा धन उपलब्ध कराती है। असम में सक्रिय ‘उल्फा’ जैसे आतंकी संगठन को बांग्लादेश के आतंकी गुटों का समर्थन प्राप्त है। उल्फा बांग्लादेश में अपने ठिकानों से ही कार्रवाई का संचालन कर रहा है।

प्रगति में बाधक आतंकवाद की समस्या भारत की प्रगति में बाधक है। यह लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए चुनौती है। भारत के विभिन्न शहरों में हुई आतंकवादी घटनाएँ यह प्रमाणित कर चुकी हैं कि आतंकवादी कहीं भी, कभी भी अपने कुत्सित उद्देश्य को पूरा करने में सफल हो सकते हैं।

मुम्बई में वर्ष 1993 का बम विस्फोट, होटल ताज पर हमला, दिल्ली में सीरियल विस्फोट, संसद पर हमला, वाराणसी के संकटमोचन मन्दिर परिसर में विस्फोट, वर्ष 2002 में गुजरात में अक्षरधाम मन्दिर पर आतंकियों का हमला, वर्ष 2015 में दोना नगर के गुरुदासपुर में हुआ आतंकी हमला तथा हाल ही में 2016 में पठानकोट में हुआ विस्फोट आदि घटनाएँ वास्तव में हमारी सुरक्षा प्रणाली के लिए चुनौती हैं। निर्दोष नागरिकों की जान लेने वाले केवल भय तथा अशान्ति की प्रक्रिया को अंजाम देना चाहते हैं। यह मानवीय क्रूरता का उदाहरण हैं। आज देश का कोई शहर आतंकवाद से सुरक्षित नहीं है।

वैश्विक समस्या आतंकवादियों ने देश के कोने-कोने में अपना नेटवर्क स्थापित कर लिया है। यदि सरकार आतंकवाद को समाप्त करने की किसी ठोस नीति को क्रियान्वित नहीं करती, तो इसे नियन्त्रित करना भी कठिन हो जाएगा। आज आतंकवाद न केवल भारत वरन् पूरे विश्व के लिए एक समस्या बन गया है। इसने दुनिया के लोगों में खौफ पैदा करने का अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया है। इस वैश्विक समस्या से संघर्ष करने के लिए विभिन्न देशों के बीच आपसी समन्वय बनाने की आवश्यकता है।

समाधान आतंकवाद को नियन्त्रित करना कठिन नहीं है। इसके लिए ठोस कार्यनीति बनाकर उसके क्रियान्वयन की जरूरत है। धर्म तथा सम्प्रदाय के नाम पर आतंक फैलाने वाले गुटों को जवाब देने के लिए धार्मिक रूप से सहिष्णु लोगों को आगे आना होगा। शक्ति तथा संसाधनों के माध्यम से आतंकियों के इरादों को ध्वस्त किया जा सकता है। इस समस्या से निपटने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय की भी आवश्यकता है।

उपसंहार महावीर, बुद्ध, गुरुनानक, महात्मा गाँधी जैसे महापुरुषों को जन्म देने वाली इस पुण्य भारत-भूमि पर आतंकवाद कलंक का टीका है। हम सभी भारतवासियों को इसे समूल नष्ट करने का संकल्प लेकर फिर से देश को सत्य, अहिंसा एवं शान्ति की तपोभूमि बनाना होगा, तभी भारत और विश्व का कल्याण सम्भव है।

3. बढ़ती जनसंख्या : बड़ी समस्या (2016, 15, 00)
अन्य शीर्षक जनसंख्या वृद्धि की समस्या (2012, 11, 10), भारत में जनसंख्या वृद्धि : कारण और निवारण, बढ़ती जनसंख्या : समस्या और समाधान (2018, 11, 12, 11, 10), जनसंख्या का विरफोट : एक समस्या (2011), बढ़ती जनसंख्या के कुप्रभाव (2017, 15)।।

संकेत बिन्दु भूमिका, जनसंख्या में दूसरा सबसे बड़ा देश, जनसंख्या वृद्धि के कारण, जनसंख्या वृद्धि का कुप्रभाव, नियन्त्रण के उपाय, उपसंहार।

भूमिका सुप्रसिद्ध विचारक गार्नर का कहना है कि जनसंख्या किसी भी राज्य के लिए उससे अधिक नहीं होनी चाहिए, जितनी साधन-सम्पन्नता राज्य के पास है अर्थात् जनसंख्या किसी भी देश के लिए वरदान होती हैं, परन्तु जब अधिकतम सीमा-रेखा को पार कर जाती है, तब वही अभिशाप बन जाती है।

जनसंख्या में दूसरा सबसे बड़ा देश वर्तमान में जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है। हमारे सामने अभी जनसंख्या विस्फोट की समस्या है। बढ़ती हुई जनसंख्या का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत की जनसंख्या मात्र 36 करोड़ थी, जो अब वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार बढ़कर 121 करोड़ से भी अधिक हो गई है।

जनसंख्या वृद्धि के कारण जनसंख्या वृद्धि के विभिन्न महत्त्वपूर्ण कारणों में जन्म एवं मृत्यु दर के बीच अधिक दूरी, विवाह के समय कम आयु, अत्यधिक निरक्षरता, परिवार नियोजन के प्रति धार्मिक दृष्टिकोण, निर्धनता (अधिक हाथ अधिक आमदनी का सिद्धान्त), मनोरंजन के साधनों की कमी, संयुक्त परिवार, परिवारों में युवा दम्पतियों में अपने बच्चों के पालन पोषण के प्रति जिम्मेदारी में कमी तथा बन्ध्याकरण, ट्यूबेक्टॉमी एवं लूप के प्रभावों के विषय में गलत सूचना या । सूचना का अभाव आदि उल्लेखनीय हैं।

जनसंख्या वृद्धि का कुप्रभाव जनसंख्या वृद्धि का प्रत्यक्ष प्रभाव लोगों के जीवन-स्तर पर पड़ता है। यही कारण है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से कृषि एवं औद्योगिक क्षेत्रों में चामत्कारिक प्रगति के बावजूद यहाँ प्रति व्यक्ति आय में सन्तोषजनक वृद्धि नहीं हो पाई हैं।

जनसंख्या वृद्धि एवं नियन्त्रण की सैद्धान्तिक व्याख्याओं के अन्तर्गत एक व्याख्या मानती है कि विकास जनन क्षमता (fertility) की दर को कम कर देता है। यह भी कहा जाता है कि विकास मृत्यु दर को जन्म दर की अपेक्षा अधिक कम करता है। जिसका परिणाम, जनसंख्या में वृद्धि का होना है।

नियन्त्रण के उपाय यदि देश लगभग 1.5 करोड़ व्यक्तियों की प्रतिवर्ष की वृद्धि से बचना चाहता है, तो केवल एक ही मार्ग शेष है कि आवश्यक परिवार नियोजन एवं जनसंख्या हतोत्साहन का कड़वा घूट लोगों को पिलाया जाए। इसके लिए एक उपयुक्त जनसंख्या नीति की आवश्यकता है। सबसे अधिक बल इस बात पर दिया जाना चाहिए कि परिवार नियोजन कार्यक्रम में अत्यधिक जोर बन्ध्याकरण पर देने की अपेक्षा ‘फासले’ की विधि को प्रोत्साहित किया जाए, जिससे इसके अनुरूप जनांकिकीय प्रभाव प्राप्त किया जा सके। हमारे देश में लगभग पांच में से तीन (576) विवाहित स्त्रियाँ 30 वर्ष से कम आयु की हैं और दो या दो से अधिक बच्चों की माँ हैं। ‘बच्चियाँ ही बच्चे पैदा करे’ इस सच्चाई को बदलना होगा। यह केवल फासले की विधि तथा लड़कियों की अधिक विवाह-उम्र को प्रोत्साहन देने से ही सम्भव हो सकेगा।

भारत जैसे विकासशील देश में बढ़ती जनसंख्या पर नियन्त्रण पानी अत्यन्त आवश्यक है अन्यथा इसके परिणामस्वरूप देश में अशिक्षा, गरीबी, बीमारी, भूखमरी, बेरोजगारी, आवासहीनता जैसी कई समस्याएँ उत्पन्न होगी और देश का विकास अवरुद्ध हो जाएगा। अतः जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकारों के साथ-साथ देश के प्रत्येक नागरिक को इस विकट समस्या से लड़ना होगा। समाज-सेवी संस्थाओं की भी इस समस्या के समाधान हेतु महत्त्वपूर्ण भूमिका होनी चाहिए।

जनसंख्या वृद्धि रोकने हेतु शिक्षा का व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार अति आवश्यक है। महिलाओं के शिक्षित होने से विवाह की आयु बढ़ाई जा सकती है, प्रजनन आयु वाले दम्पतियों को गर्भ निरोध स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। उन्हें छोटा परिवार सुखी परिवार की बात समझाई जा सकती है।

केन्द्रीय एवं राज्य स्तरों पर जनसंख्या परिषद् स्थापित करना भी इस समस्या का उपयुक्त उपाय हो सकता है, क्योंकि ऐसा करके न केवल विभिन्न स्तरों पर समन्वय का कार्य किया जा सकेगा, बल्कि अल्पकालीन व दीर्घकालीन योजनाओं का निर्धारण भी किया जा सकेगा। मीडिया को भी इस कार्य में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने की आवश्यकता है। इन सब बातों पर ध्यान देकर जनसंख्या विस्फोट पर निश्चय ही नियन्त्रण पाया जा सकता हैं।

उपसंहार विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक ‘स्टीफन हॉकिंग’ ने मानव को सावधान करते हुए कहा है-“हमारी जनसंख्या एवं हमारे द्वारा पृथ्वी के निश्चित संसाधनों के उपयोग, पर्यावरण को स्वस्थ या बीमार करने वाली हमारी तकनीकी क्षमता के साथ घातीय रूप में बढ़ रहे हैं। आज प्रत्येक देशवासी को उनकी बातों से प्रेरणा लेकर देश को समृद्ध एवं विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प लेना चाहिए।

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