UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 22 India and the World

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter Chapter 22
Chapter Name India and the World
(भारत और विश्व)
Number of Questions Solved 14
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 22 India and the World (भारत और विश्व)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1.
1971 ई० के उपरान्त भारत-पाक सम्बन्धों का विवेचन कीजिए। या भारत और पाकिस्तान के सम्बन्धों का वर्तमान सन्दर्भ में परीक्षण कीजिए। [2016]
उत्तर :
15 अगस्त, 1947 को भारत को अंग्रेजी दासता से मुक्ति प्राप्त हुई तथा दो स्वतन्त्र राष्ट्र ‘भारत व पाकिस्तान’ अस्तित्व में आये। पाकिस्तान का निर्माण साम्प्रदायिकता की पृष्ठभूमि पर आधारित था तथा अपने शैशवकाल से ही यह भारत व भारतीयों के प्रति घृणा व द्वेष की भावना रखने लगा। इस अमित्रतापूर्ण वातावरण के कारण भारत-पाक सम्बन्ध मधुर न रहे।

पाकिस्तान द्वारा 1947 ई० में कश्मीर पर आक्रमण के बाद कश्मीर को भारत में विलय हो गया, परन्तु पाकिस्तान ने इस विलय को पूर्ण अवैधानिक बताते हुए अपना वैमनस्य सन् 1965 व सन् 1971 में भारत पर आक्रमण करके प्रदर्शित किया। 1971 ई० के युद्ध के बाद दोनों देशों ने सम्बन्ध सुधारने पर बल दिया तथा इसी कड़ी में 1972 ई० का शिमला समझौता और 1973 ई० का दिल्ली समझौता सम्पन्न हुआ। सन् 1974 ई० में पाकिस्तान ने बांग्लादेश को मान्यता प्रदान की। सन् 1974 व 1976 में भारत-पाक सम्बन्ध मधुर न रह सके। 1976 ई० में टूटे सम्बन्धों को फिर से जोड़ने का प्रयास किया गया। 1978 ई० में भारतीय विदेश मन्त्री की पाकिस्तान यात्रा तथा इसी कड़ी में पाकिस्तानी विदेश सलाहकार श्री आगाशाही को भारत-यात्रा ने सम्बन्धों को मधुर बनाने की दिशा में योगदान दिया। अप्रैल, 1978 में भारत-पाक सलाह जल सन्धि सम्पन्न हुई। यह एक प्रगतिशील व सराहनीय कदम बताया गया।

भारत ने पाकिस्तान के प्रति सदैव सहयोगपूर्ण रवैया अपनाया, परन्तु पाकिस्तान की नीति अनुकूल नहीं रही। पाकिस्तान अपनी सैन्य-शक्ति मात्र भारत के विरुद्ध प्रयोग करने का प्रयास करता रहा है। चीन व अमेरिका इस कार्य में पाकिस्तान की खुले हृदय से सहायता करते रहे। यद्यपि भारत व पाकिस्तान के मध्य वार्ताओं व यात्राओं को क्रम चला आ रहा है, परन्तु मतभेद पूर्णतया दूर नहीं हो सके हैं। सियाचीन विवाद अभी तक समाप्त नहीं हो पाया है।

पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक के समय तक भारत-पाक सम्बन्ध तनावपूर्ण ही रहे। बार-बार कश्मीर विषय को उठाया जाता रहा। साथ ही पाकिस्तान ने प्रत्येक सम्भव तरीके से पंजाब में आतंकवाद को प्रोत्साहित किया। यद्यपि कई स्तरों पर राजनीतिक सम्बन्धों में सुधार हुआ। जिया उल हक कई बार भारत यात्रा पर आये। राजीव गाँधी ने भी उनसे कई बार भेंट की तथा सम्बन्ध सुधारे जाने पर बल दिया।

जिया उल हक की मृत्यु के बाद नवम्बर, 1988 में श्रीमती बेनजीर भुट्टो के नेतृत्व में पाकिस्तान में लोकतन्त्रीय शासन-प्रणाली स्थापित हुई। परिवर्तित राजनीतिक परिस्थितियों में आशी बनी कि भारत-पाक सम्बन्ध सुधरेंगे और आपसी द्वेषभाव व वैमनस्य का वातावरण दूर होगा। दिसम्बर, 1988 के अन्तिम सप्ताह में इस्लामाबाद में हुए ‘दक्षेस (सार्क) सम्मेलन के समय दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों के बीच वार्ता हुई और 1 जनवरी, 1989 को दोनों देशों में तीन समझौते हुए पहले समझौते के अनुसार, भारत-पाक एक-दूसरे के परमाणु संयन्त्रों पर हमला नहीं करेंगे; दूसरा समझौता सांस्कृतिक आदान-प्रदान से सम्बन्धित है तथा तीसरे समझौते के द्वारा दोहरी कर-नीति को समाप्त करने की बात कही गयी। भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी की पाकिस्तानयात्रा इस दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होगी, ऐसी आशा थी; किन्तु यह आशा निराधार सिद्ध हुई। पाकिस्तान भारत में उग्रवादी गतिविधियों को प्रोत्साहन देता रहा है। पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों को भारी मात्रा में अस्त्र-शस्त्र दिये गये, उन्हें प्रशिक्षित किया गया तथा शरण भी दी गयी। इन सबसे भारत-पाक सम्बन्ध प्रभावित हुए।

भारत में सत्ता परिवर्तन हुआ। प्रधानमन्त्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने दोनों देशों के सम्बन्ध मधुर बनाये रखने की इच्छा व्यक्त की, किन्तु पाकिस्तान द्वारा भारत की एकता व अखण्डता को आघात पहुंचाने के प्रयत्नों ने भारत-पाक सम्बन्धों में कटुता पैदा कर दी। पंजाब और कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों को पाकिस्तान खुलेआम बढ़ावा दे रहा है। सन् 1990 के मध्य मार्च तक पंजाब से लगी सीमा पर बड़ी संख्या में सैनिक तैनात थे, जिन्हें धीरे-धीरे जम्मू-कश्मीर मोर्चे पर फैला दिया गया। (उल्लेखनीय है कि 1971 ई० में इसी क्षेत्र में भयंकर टैंक युद्ध हुआ था।) पाकिस्तान में बेनजीर भुट्टो की सरकार परास्त हुई और नवाज शरीफ पाकिस्तान के नये प्रधानमन्त्री बने। उन्होंने भी वही पुरानी नीति अपनायी। 1990 ई० में गठित चन्द्रशेखर सरकार के काल में भी दोनों देशों के सम्बन्धों में कोई परिवर्तन नहीं आया। जून, 1991 में सत्ता में आयी श्री नरसिम्हाराव सरकार के काल में पाकिस्तान के साथ भारत के सम्बन्ध बद से बदतर हो गये। पाकिस्तान द्वारा कश्मीर समस्या का अन्तर्राष्ट्रीयकरण करना, कश्मीर के आतंकवादियों को सशस्त्र समर्थन देना तो जारी था ही, किन्तु जब 1993 ई० में हुए मुम्बई बम-काण्ड में उसका हाथ होने का पता चला तब पूरे विश्व के आगे उसका असली चेहरा सामने आ गया, यहाँ तक कि पाकिस्तान को आतंकवादी राज्य घोषित करने की माँग भी उठने लगी।

1999 ई० का वर्ष भारत-पाक सम्बन्धों की दृष्टि से बड़ा घटनापूर्ण रहा। प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 20-21 फरवरी को बस द्वारा दिल्ली से लाहौर तक शान्ति-यात्रा कर इस बसमार्ग का शुभारम्भ किया, किन्तु मई में कारगिल क्षेत्र में घुसपैठियों की आड़ में पाकिस्तानी फौज ने भारतीय क्षेत्र में कुछ जगह अनाधिकृत कब्जा कर लिया। भारतीय फौज ने अप्रतिम धैर्य, शौर्य और बलिदान द्वारा युद्ध कर कारगिल क्षेत्र मुक्त करा लिया। यह भारत की विजय और पाक की पराजय थी। पाकिस्तान में घटना-चक्र तेजी से बदल गया, वहाँ निर्वाचित सरकार का तख्ता पलटकर तथा प्रधानमन्त्री नवाज शरीफ को गिरफ्तार कर जनरल परवेज मुशर्रफ ने सैनिक तानाशाह के रूप में सत्ता सँभाल ली। उनके भारत विरोधी विचार सर्वविदित हैं।

भारत चाहता था तथा अमेरिका सहित अनेक देश प्रयत्नशील थे कि भारत और पाकिस्तान के बीच शिखर वार्ता हो। अतः जुलाई, 2001 में आगरा में ‘वाजपेयी-मुशर्रफ शिखर सम्मेलन’ आयोजित हुआ। सम्मेलन में भारतीय प्रधानमन्त्री ने भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेद के सभी विषयों पर समग्र बातचीत के प्रयत्न किये, लेकिन मुशर्रफ कश्मीर को केन्द्रीय मुद्दा बतलाते हुए कश्मीर का ही राग अलापते रहे। भारत ने इस बात पर बल दिया कि ‘सीमा पार का आतंकवाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की जड़ है, लेकिन मुशर्रफ ने कश्मीर में पाक प्रायोजित आतंकवाद को स्वतन्त्रता संग्राम की संज्ञा दी। ऐसी स्थिति में 36 घण्टे की ‘कूटनीतिक बाजीगरी’ को असफल होना ही था। अन्त में मुशर्रफ को बिना किसी औपचारिक विदाई के भारत से लौटना पड़ा।

इस असफल शिखर वार्ता के बाद पाक-प्रायोजित आतंकवाद ने उग्र रूप ग्रहण कर लिया। पहले तो श्रीनगर में जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमला हुआ तथा इसके बाद 13 दिसम्बर, 2001 को लोकतन्त्र का हृदयस्थल संसद आतंकवादियों के हमले का निशाना बनी। इस हमले में संलग्न पाँचों आतंकवादी मारे गये। अब यह बात पूर्णतया स्पष्ट और प्रमाणित हो चुकी है कि ये पाँचों व्यक्ति पाकिस्तान के नागरिक और पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के निवासी थे। इस प्रकार हमले का पूरा दायित्व पाकिस्तान पर आता है। यह दुस्साहस की पराकाष्ठा थी। ऐसी स्थिति में भारत ने पाकिस्तान के विरुद्ध कूटनीतिक कार्यवाही करते हुए पाकिस्तान स्थित अपने उच्चायुक्त को वापस बुलाने का फैसला कर लिया। 1 जनवरी, 2002 से समझौता एक्सप्रेस ट्रेन व दिल्ली-लाहौर बस सेवा रद्द कर दी गयी तथा भारतीय वायुमण्डल पर पाक विमानों की आवाजाही पर रोक लगा दी गयी। इसके साथ ही भारत ने 20 आतंकवादियों की सूची पाकिस्तान को देते हुए माँग की कि पाकिस्तान द्वारा इन्हें भारत को सौंप दिया जाना चाहिए। ये ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी भारत में आतंकवादी कार्यवाही में प्रमुख भूमिका रही और अभी पाकिस्तान में रह रहे हैं। पाकिस्तान ने अमेरिकी दबाव के कारण आतंकवाद का मौखिक विरोध और कुछ आतंकवादी संगठनों को अवैध घोषित करने जैसी कुछ सतही कार्यवाहियाँ तो कीं, लेकिन वह इन आतंकवादियों को भारत को सौंपने के लिए तैयार नहीं है।

जनवरी, 2002 से मार्च, 2003 तक का 15 महीने का समय भारत और पाक के बीच अत्यधिक तनावपूर्ण सम्बन्धों का रहा, दोनों देश युद्ध के कगार तक पहुँच गये। सितम्बर-अक्टूबर, 2003 में जम्मू-कश्मीर राज्य की विधानसभा के स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न हुए और अन्ततोगत्वा अप्रैल, 2003 में भारतीय नेतृत्व ने दोनों देशों के आपसी सम्बन्धों में गतिरोध को तोड़ने की पहल की। परन्तु इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला। 18 फरवरी, 2007 को आतंकवादियों ने समझौता एक्सप्रेस रेलगाड़ी में बम विस्फोट किया जिसमें लगभग 68 लोग मारे गए। इस कारण इस रेलगाड़ी का संचालन कुछ समय तक के लिए बन्द कर दिया गया। पुनः सन् 2008 में पाकिस्तानी आतंकवादियों ने मुम्बई पर हमला किया जिसमें लगभग 173 लोग मारे गए तथा लगभग 308 लोग घायल हुए। अनेक इमारतें तहस-नहस हो गयीं। विश्वप्रसिद्ध ताज होटल भी उनमें से एक है। इसी प्रकार की घटनाएँ समय-समय पर पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी करते रहते हैं जिस कारण से दोनों देशों के सम्बन्ध मधुर नहीं बन पाते हैं।

अमेरिका और अन्य कुछ देश भी इस बात के लिए निरन्तर चेष्टा करते रहे हैं कि भारत और पाक के बीच वार्ता प्रारम्भ हो। पाकिस्तान सरकार ने अगस्त, 2011 में भारत को व्यापार में सबसे पसंदीदा देश (एम०एफ०एन०) का दर्जा देने पर सहमति जताकर कुछ सकारात्मक रुख दिखाया था। वर्तमान में नवाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हैं। भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 27 मई, 2014 को उनसे मुलाकात करके पाकिस्तान के साथ शान्तिपूर्ण, मित्रवत् एवं सहयोगपूर्ण द्विपक्षीय सम्बन्ध बनाने की नीति के रूख को दोहराते हुए कहा कि भारतवर्ष पाकिस्तान के सभी लम्बित मुद्दों को सन् 1972 के शिमला समझौते के दायरे में सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध है। इस सन्दर्भ में श्री नरेन्द्र मोदी जी ने अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर शान्ति एवं सौहार्द तथा नियन्त्रण रेखा को सुनिश्चित करने के लिए आतंकवाद एवं हिंसा से मुक्त माहौल बनाने पर जोर दिया। हालाँकि पाकिस्तान के उच्चायुक्त ने हुर्रियत के नेताओं को बुलाकर भारत के समस्त कूटनीतिक प्रयासों पर पानी फेर दिया और 25 अगस्त, 2014 को इस्लामाबाद में होने वाली बातचीत के लिए भारत को विदेश सचिव की यात्रा रद्द करने के लिए मजबूर कर दिया।

आज भी भारत अपनी शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की घोषित नीति के कारण पाकिस्तान के साथ सम्बन्ध सुधारने को तैयार है, लेकिन यह सम्बन्ध कश्मीर तथा देश की एकता व अखण्डता की कीमत पर सुधारने के लिए भारत का कोई विचार नहीं है। दोनों देशों के बीच सम्बन्ध सामान्य रखने के लिए पहले पाकिस्तान को भारत के अन्दरूनी मामलों में दखल देना बन्द करना होगा तथा भारत की एकता व अखण्डता के विरुद्ध साजिशें रचना बन्द करना होगा तब ही जाकर भारत के पाकिस्तान के बीच सम्बन्ध सामान्य हो सकते हैं।

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प्रश्न 2.
भारत के श्रीलंका के साथ सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
भारत और श्रीलंका परम्परागत रूप से मित्र रहे हैं। समस्त मित्रता के बावजूद इन दोनों देशों के बीच 1963-72 के वर्षों में कच्चा तीवू विवाद’ था। भारत इस विवाद को शान्तिपूर्ण तरीके से हल करना चाहता था। अत: अप्रैल, 1973 ई० में तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री ने श्रीलंका की यात्रा की और सद्भावना का परिचय देते हुए ‘कच्चा तीवू समझौता किया।

श्रीलंका में जातीय तनाव और भारत तथा लंका के बीच विवाद वर्ष 1982 के प्रारम्भ से श्रीलंका में बहुसंख्यक सिंहली जाति और अल्प-संख्यक तमिल जाति के बीच विवाद और कटुता ने उग्र रूप ले लिया। भारत पर इस विवाद के प्रभाव और कुछ परिस्थितियों में भारी प्रभाव होते हैं, ऐसी स्थिति में दोनों देशों के बीच तीव्र और चिन्ताजनक विवाद ने जन्म ले लिया। श्रीलंका सरकार द्वारा बातचीत के आधार पर इस विवाद को हल करने के बजाय, पूरी शक्ति के साथ तमिल उग्रवादियों को कुचलने के प्रयत्न किए गए, जिसमें वह अब तक भी सफल नहीं हो पाई है। भारत ने इस बात से कभी भी इंकार नहीं किया कि तमिल समस्या श्रीलंका का घरेलू मामला है, लेकिन यह श्रीलंका का ऐसा घरेलू मामला है जिसका असर भारत की आन्तरिक स्थिति पर भी पड़ता है।

भारत श्रीलंका को इस समस्या के हल हेतु सहयोग देने की इच्छा रखता है। इसी भावना से 29 जुलाई, 1987 को ‘राजीव जयवर्द्धन समझौता सम्पन्न हुआ तथा श्रीलंका सरकार के आग्रह पर भारत ने श्रीलंका में 1987 में भारतीय शान्ति रक्षक दल’ भेजा। इस दल ने जन और धन की हानि उठाते हुए साहस के साथ शान्ति स्थापना के प्रयास किए। 1988 में नव निर्वाचित राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा ने जब ‘भारतीय शान्ति रक्षक दल’ की भारत-वापसी की माँग की, तब इसे भारत वापस बुला लिया गया।

दोनों पक्षों के बीच ‘स्वतन्त्र व्यापार समझौता’ और तदुपरान्त 27 दिसम्बर, 1988 को श्रीलंका की प्रधानमन्त्री भारत यात्रा पर आईं और महत्त्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में दोनों देशों के बीच ‘स्वतन्त्र व्यापार समझौता सम्पन्न हुआ। कुछ बाधाओं को पार करने के बाद यह समझौता मार्च 2000 ई० से लागू हो गया तथा इस समझौते से दोनों देशों के विदेश व्यापार में स्फूर्ति आई। इस प्रकार दोनों देशों के सम्बन्ध मित्रता की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

श्रीलंकी सरकार वर्ष 2000 से ही तमिल समस्या के समाधान हेतु पूरी गम्भीरता के साथ प्रयत्नशील है तथा मई, 2009 में श्रीलंका सरकार और सेना ने तमिले उग्रवादियों का सफाया कर दिया है; लेकिन स्थिति का दूसरा पक्ष यह है कि सारे क्रम में श्रीलंका के तमिल शान्तिप्रिय नागरिकों को भी भारी तबाही का सामना करना पड़ा है। ऐसी स्थिति में तमिल समस्या का समाधाने अभी दूर है। भारतीय हितों की दृष्टि से इस समस्या को संतोषजनक हल आवश्यक है। भारत चाहता है। कि श्रीलंका की एकता और अखण्द्वता बनी रहे, लेकिन साथ ही तमिलों की सुरक्षा के लिए भी कोई भरोसेमन्द व्यवस्था हो जाए। आवश्यकता इस बात की है कि श्रीलंका इस सम्बन्ध में भारतीय दृष्टिकोण को समझे और उसे उचित महत्त्व दे।

मई, 2009 में लिट्टे की समाप्ति के बाद भी श्रीलंका की तमिल समस्या का स्थायी समाधान दूर है। इस समय भारत व श्रीलंका के मध्य दो प्रमुख मुद्दे हैं। प्रथम, श्रीलंका में आन्तरिक रूप से विस्थापित तमिलों का पुनस्र्थापन, जिसके बारे में भारत समय-समय पर मानवीय सहायता के राहत सामग्री उपलब्ध कराता रहा है। जनवरी, 2009 में भारत के विदेश मन्त्री ने श्रीलंका की यात्रा की जिसका प्रमुख उद्देश्य श्रीलंका के तमिलों को मानवीय सहायता उपलब्ध कराना था। दूसरा मुद्दा तमिल समस्या के समाधान का है। भारतीय प्रधानमन्त्री राजीव गांधी की 1991 में तमिल आतंकवादियों द्वारा की गई हत्या के बाद भारत ने तमिल आतंकवादी संगठन का विरोध करना आरम्भ कर दिया था। यद्यपि इस सम्बन्ध में केन्द्र सरकार को भारत के तमिल समूहों का विरोध भी सहना पड़ता है। भारत, श्रीलंका के संविधान व राष्ट्रीय एकता के अन्तर्गत तमिल समस्या का राजनीतिक समाधान चाहता है जिसमें तमिलों को स्वायत्तता दिए जाने का मुद्दा भी शामिल है। अगस्त, 2008 में कोलम्बो में सम्पन्न सार्क सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमन्त्री ने श्रीलंका की यात्रा की।

वर्ष 2009 में दोनों देशों के मध्य 3.27 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार सम्पन्न हुआ। वर्तमान में भारत श्रीलंका का सबसे बड़ा विदेशी निवेशक देश है। सम्बन्धों को प्रगाढ़ बनाने की दृष्टि से 8-11 जून, 2010 में की गई श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस यात्रा के दौरान भारत द्वारा जहाँ तमिल विस्थापितों के लिए 50,000 मकान बनाने का वचन दिया गया वहीं दोनों देशों में सांस्कृतिक क्षेत्र में व्यापक सहयोग बढ़ाने के लिए समझौता किया। भारत इस समय श्रीलंका के कनकनसेनथुराई बन्दरगाह पर पुनर्निर्माण का कार्य कर रहा है। इस सम्बन्ध में वर्ष 2010 में भारत के नौसेना प्रमुख ने श्रीलंका की यात्रा की। इसके बाद दोनों देशों के प्रमुख नेता और उच्च अधिकारीगण एक-दूसरे देशों की निरन्तर यात्रा कर रहे हैं तथा आपसी बातचीत के जरिए अपनी समस्याओं का हल खोजने व आपसी सहयोग को प्रयासरत हैं। कुल मिलाकर लिट्टे की समाप्ति के बाद दोनों देशों में नए सिरे से सम्बन्धों का आरम्भ हो रहा है। भारत, तमिलों के लिए श्रीलंका में अधिक राजनीतिक स्वायत्तता देने का पक्षधर है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
भारत-पाक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले दो प्रमुख मुद्दों को स्पष्ट कीजिए। [2015, 16]
या
भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए। [2014]
उत्तर :
भारत-पाक सम्बन्ध सामान्य नहीं हैं, बल्कि वे चिरकाल से तनावपूर्ण चले आ रहे हैं। भारत- पाक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले दो प्रमुख मुद्दे निम्नवत् हैं –

1. जम्मू-कश्मीर समस्या – पाकिस्तान के द्वारा अक्टूबर, 1947 ई० में कश्मीर पर असफल आक्रमण किया गया। इसके बाद कश्मीर का भारत में विलय हो गया, लेकिन पाकिस्तान के द्वारा इस पूर्णतया वैधानिक और राजनीतिक तथ्य को कभी स्वीकार नहीं किया गया। पाकिस्तान के इसी रवैये के कारण 1965 और 1971 ई० में भारत-पाक युद्ध हुए। कश्मीर का मुद्दा आज भी भारत-पाक सम्बन्धों को प्रभावित कर रहा है।

2. पाकिस्तान का आतंकवाद के रूप में अघोषित युद्ध – पाकिस्तान समर्थक उग्रवादी दस्ते भारत में आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त हैं। आये दिन आगजनी, विस्फोट तथा हत्याएँ की जा रही हैं। सामूहिक हत्याकाण्ड, सैनिक बलों पर लुक-छिप आक्रमण तथा तोड़-फोड़, साधारण घटनाएँ हो गई हैं। ये आतंकवादी गतिविधियाँ भी दोनों देशों के सम्बन्धों को प्रभावित कर रही हैं।

प्रश्न 2.
शिमला समझौते के चार उपबन्ध बताइए।
उत्तर :
जुलाई, 1972 ई० को सम्पन्न हुए शिमला समझौते के निम्नलिखित चार मुख्य उपबन्ध थे –

  1. दोनों देशों की सरकारों ने यह निश्चय किया कि दोनों देश परस्पर उन संघर्षों को समाप्त करते हैं, जिससे दोनों देशों के सम्बन्धों में बिगाड़ उत्पन्न हुआ था।
  2. दोनों ही सरकारें अपनी सामर्थ्य के अनुसार एक-दूसरे के प्रति घृणित प्रचार नहीं करेंगी।
  3. दोनों देशों के आपसी सम्बन्धों में समानता लाने के लिए दोनों देशों के मध्य डाक, तार सेवा, जल, थल, वायुमार्गों द्वारा पुनः संचार व्यवस्था स्थापित की जाएगी। दोनों देशों के नागरिक एक-दूसरे के और निकट आयें, इसलिए नागरिकों को आने-जाने की सुविधाएँ दी जाएँगी।
  4. जहाँ तक सम्भव हो सके, व्यापारिक तथा आर्थिक मामलों में सहयोग का सिलसिला शीघ्र| से-शीघ्र प्रारम्भ हो।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
भारत और श्रीलंका में तनाव का मुख्य कारण क्या रहा?
उत्तर :
तमिल समस्या भारत और श्रीलंका के बीच तनाव का मुख्य कारण रहा है।

प्रश्न 2.
भारत और पाकिस्तान में तनावपूर्ण सम्बन्धों के दो कारण बताइए।
उत्तर :

  1. कश्मीर की समस्या तथा
  2. सिक्ख उग्रवादियों को पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षण और सहायता देना।

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प्रश्न 3.
1987 ई० तक भारत और चीन में सीमा विवाद हल करने के लिए कई बार बातचीत हुई। क्या बातचीत की कोई ठोस परिणाम निकला?
उत्तर :
सात बार बातचीत हुई, किन्तु कोई ठोस परिणाम नहीं निकला।

प्रश्न 4.
बाँग्लादेश का निर्माण कब हुआ?
उत्तर :
1971 ई० में बाँग्लादेश का निर्माण हुआ।

प्रश्न 5.
ताशकन्द समझौता कब हुआ था?
उत्तर :
ताशकन्द समझौता 1966 ई० में हुआ था।

प्रश्न 6.
भारत के चार पड़ोसी देशों के नाम लिखिए। [2013, 15]
उत्तर :
भारत के चार पड़ोसी देशों के नाम निम्नवत् हैं –

  1. नेपाल
  2. भूटान
  3. पाकिस्तान
  4. चीन।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत-चीन युद्ध कब हुआ था?
(क) 1956 ई० में
(ख) 1962 ई० में
(ग) 1965 ई० में
(घ) 1971 ई० में

प्रश्न 2.
प्रथम भारत-पाकिस्तान युद्ध कब हुआ था?
(क) 1962 ई० में
(ख) 1965 ई० में
(ग) 1971 ई० में
(घ) 1948-49 ई० में

प्रश्न 3.
ताशकन्द समझौता कब हुआ था ?
(क) 1950 ई० में
(ख) 1962 ई० में
(ग) 1966 ई० में
(घ) 1972 ई० में

प्रश्न 4.
शिमला समझौता कब सम्पन्न हुआ था?
(क) 1962 ई० में
(ख) 1965 ई० में
(ग) 1971 ई० में
(घ) 1972 ई० में

उत्तर :

  1. (ख) 1962 ई० में
  2. (घ) 1948-49 ई० में
  3. (ग) 1966 ई० में
  4. (घ) 1972 ई० में।

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UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data (समंकों का प्रदर्शन) are part of UP Board Solutions for Class 12 Economics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data (समंकों का प्रदर्शन).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 25
Chapter Name Presentation of Data (समंकों का प्रदर्शन)
Number of Questions Solved 43
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data (समंकों का प्रदर्शन)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
आँकड़ों के चित्रमय प्रदर्शन से आप क्या समझते हैं ? रेखाचित्र द्वारा आँकड़ों के प्रदर्शन का क्या महत्त्व है ? [2007]
या
समंकों के चित्रमय प्रदर्शन से आप क्या समझते हैं। आर्थिक अध्ययनों में इसके उपयोग बताइए। [2007]
या
दण्ड आरेख से आप क्या समझते हैं ? दण्ड आरेख के प्रकारों की विवेचना कीजिए। [2010, 15]
या
आँकड़ों के चित्र सहित प्रदर्शन की उपयोगिता (महत्त्व) की विवेचना कीजिए। [2013]
या
समंकों के रेखाचित्रीय निरूपण के लाभों का वर्णन कीजिए। [2014]
उत्तर:
सांख्यिकी का यह महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है कि जटिल और विशाल आँकड़ों को इस रूप में प्रस्तुत करना कि वे समझने में सरल हो जाएँ। वर्गीकरण और सारणीयन के अन्तर्गत भी यही उद्देश्य निहित होता है। कभी-कभी अंकों का यह जमघट मस्तिष्क को भारी कर देता है। इसीलिए सांख्यिकीय आँकड़ों के चित्रमय प्रदर्शन की आवश्यकता समझी गयी।
संक्षेप में हम यह कह सकते हैं-“सांख्यिकीय आँकड़ों (समंकों) को रोचक एवं आकर्षक बनाने के लिए ज्यामितीय आकृतियों; जैसे-रेखाचित्र, दण्ड-चित्र, वृत्त चित्र, आयत चित्र अथवा मानचित्र के रूप में प्रदर्शित करने की क्रिया को आँकड़ों का चित्रमय प्रदर्शन कहते हैं।”

आँकडों के चित्रमय प्रदर्शन का महत्त्व या लाभ उपयोगिता)
आँकड़ों को जब चित्रों के माध्यम से निरूपित किया जाता है तब वे अधिक आकर्षक तथा समझने में सरल हो जाते हैं। ठीक ही कहा गया है–“एक चित्र हजार शब्दों के बराबर होता है।” रेखाचित्र द्वारा आँकड़ों के प्रदर्शन के महत्त्व या लाभ निम्नलिखित हैं

1. चित्र समंकों को सरल व सुबोध बनाते हैं – जब समंक लम्बे-चौड़े दिये होते हैं तब उन्हें समझना कठिन होता है। बड़े-बड़े समंकों को देखकर मस्तिष्क परेशान हो जाता है तथा कोई भी निष्कर्ष नहीं निकल पाता है। सांख्यिकीय आँकड़े चित्रों, आकृतियों व आलेखों द्वारा निरूपित किये जाने से सरल तथा सुबोध हो जाते हैं।

2. अधिक समय तक स्मरणीय – समंकों को देखकर याद करना कठिन होता है, परन्तु चित्रों की स्मृति मस्तिष्क में दीर्घकाल तक बनी रहती है।

3. विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं – सांख्यिकीय चित्रों को देखकर शिक्षित तथा सामान्य शिक्षित व्यक्ति भी उनका अर्थ समझ जाते हैं। चित्रों को समझाने के लिए सांख्यिकी के सूत्रों आदि का ज्ञान होना आवश्यक नहीं है।

4. समय व श्रम में बचत – चित्रों को समझने तथा उनसे निष्कर्ष निकालने में कम समय व कम श्रम की आवश्यकता होती है। चित्रों को देखकर ही समंक पर्याप्त मात्रा में समझ में आ जाते हैं।

5. आकर्षक एवं प्रभावशाली – रेखाचित्रे अपनी आकृति, सरलता वे सुन्दरता के कारण लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं, जिसका स्थायी प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है।

6. तुलना करने में सहायक – सांख्यिकीय आँकड़ों को चित्रों, आकृतियों, आलेखों द्वारा निरूपित करने से उनका तुलनात्मक अध्ययन सुविधाजनक हो जाता है। चित्रों को देखकर विभिन्न समंकों की तुलना सरलतापूर्वक की जा सकती है। वास्तव में चित्रों का सबसे अधिक महत्त्व समंकों की तुलना करने में ही दृष्टिगत होता है।

7. विज्ञापन में सहायक – सामान्यत: विज्ञापनों के साथ उपयुक्त चित्र बने होते हैं, जिनके माध्यम से विज्ञापन अधिक आकर्षक तथा बोधगम्य हो जाते हैं। आज के प्रतियोगिता के युग में विज्ञापनों का अत्यधिक महत्त्व है। रेखाचित्र विज्ञापन को अधिक आकर्षण व सौन्दर्य प्रदान करते हैं।

8. जनसाधारण को लाभ – आज के वैज्ञानिक युग में आँकड़े प्रस्तुत करने के लिए व्यापारी, अर्थशास्त्री, चिकित्साशास्त्री व सरकार रेखाचित्रों, विशेष रूप से स्तम्भ चार्टी व बिन्दु चित्रों का अधिक उपयोग करते हैं, जिनका लाभ जनसाधारण को भी मिलता है।
निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि सांख्यिकीय चित्रों की उपयोगिता सार्वभौमिक है।

प्रश्न 2
समंकों को रेखाचित्रों द्वारा प्रदर्शित करने की विभिन्न विधियाँ बताइए।
या
दण्ड-चित्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2011]
उत्तर:
सांख्यिकी में सामान्यत: निम्नलिखित प्रकार के रेखाचित्रों का प्रयोग किया जाता है

  1. एक विमा (विस्तार) वाले चित्र (One dimensional diagrams),
  2. दो विमा (विस्तार) वाले चित्र (Two dimensional diagrams),
  3. तीन विमा (विस्तार) वाले चित्र (Three dimensional diagrams),
  4. मानचित्र (Map diagrams) तथा
  5. चित्र-लेख (Pictograms)

एक विमा (विस्तार) वाले चित्र
जब समंक पद-माला विच्छिन्न होती है और उसके किसी एक गुण की तुलना करनी होती हैं तो एक विमा (विस्तार) वाले चित्रों की रचना की जाती है। इस प्रकार के चित्रों की रचना केवल चित्रों की लम्बाई में ही पदों के मूल्यों के अनुसार की जाती है। मोटाई सामान्यतः एकसमान होती है और पदों के मूल्यों से उसका कोई सम्बन्ध नहीं होता है। एक विमा (विस्तार) वाले चित्र दो प्रकार के होते हैं
(क) रेखाचित्र तथा
(ख) दण्ड-चित्र।

(क) रेखाचित्र (Line Diagram) – आँकड़ों के चित्रमय प्रदर्शन के अन्तर्गत यह चित्र प्रदर्शन में सबसे सरल है। इस चित्र का प्रयोग वहाँ किया जाता है, जहाँ किसी तथ्य से सम्बन्धित आँकड़ों की संख्या बहुत अधिक हो, लेकिन उनमें अन्तर बहुत कम हो। इस चित्र में समंकों को दर्शाने के लिए खड़ी रेखाओं का प्रयोग किया जाता है। इस चित्र का लाभ यह है कि समंकों के बीच तुलना आसानी से हो जाती है। यह चित्र आकर्षक नहीं दिखाई पड़ता, इसलिए इसका प्रयोग कम किया जाता है। (पाठ्यक्रम में इसको सम्मिलित नहीं किया गया है।)

(ख) दण्ड-चित्र (Bar Diagram) – इस चित्र का प्रयोग वहाँ किया जाता है, जहाँ किसी तथ्य से सम्बन्धित पद-मूल्यों की संख्या कम हो। दण्ड-चित्र की रचना के लिए एक निश्चित पैमाना निर्धारित किया जाता है और प्रत्येक पद-मूल्य को इस पैमाने के आधार पर बदलकर दण्डों की लम्बाई निश्चित की जाती है। इन चित्रों में सभी दण्डों की मोटाई का एक-समान होना आवश्यक है। दण्ड-चित्र पाँच प्रकार के होते हैं

(1) सरल दण्ड-चित्र – ये दो प्रकार से बनाये जा सकते हैं
(i) उदग्र दण्ड-चित्र तथा

  1. क्षैतिज दण्ड-चित्र।
  2. बहु-दण्ड-चित्र।
  3. द्वि-दिशा दण्ड-चित्र।
  4. अन्तर्विभक्त दण्ड-चित्र।
  5. प्रतिशत अन्तर्विभक्त दण्ड-चित्र।

दो विमा (विस्तार) वाले चित्र
दो विमा वाले चित्र उन चित्रों को कहते हैं जिनमें समंकों का चित्रण दो विस्तारों – ऊँचाई और चौड़ाई-को ध्यान में रखकर किया जाता है। इसीलिए इन्हें क्षेत्रफल चित्र (Area diagram) अथवा धरातल चित्र (Surface diagram) भी कहा जाता है। दो विमा (विस्तार) वाले चित्र निम्नलिखित प्रकार के होते हैं
(क) आयत चित्र,
(ख) वर्ग चित्र और
(ग) वृत्त चित्र।

(क) आयत चित्र (Rectangular Diagram) – आयत चित्र उस चित्र को कहते हैं, जिसमें आयत की लम्बाई तथा चौड़ाई दोनों का महत्त्व होता है और दोनों दो भिन्न-भिन्न तथ्यों को स्पष्ट करते हैं। उत्पादन लागत विश्लेषण तथा पारिवारिक बजटों के चित्रण में आयत चित्रों का प्रयोग किया जाता है।

आयत चित्रों के अन्तर्गत बारम्बारता वितरण को प्रदर्शित करने के लिए रेखाचित्रों का भी प्रयोग किया जाता है। ऐसे प्रदर्शन को आवृत्ति रेखाचित्र या बारम्बारता रेखाचित्र (Frequency graph) कहते हैं। ये अग्रलिखित प्रकार के होते हैं

  1. बारम्बारता आयत चित्र (Frequency Histogram),
  2. बारम्बारता बहुभुज (Frequency Polygon),
  3. बारम्बारता वक्र (Frequency Curve) तथा
  4. थी बारम्बारता वक्र (Cumulative Frequency Curve or Ogive Curve)

(ख) वर्ग चित्र (Square Diagram) – जब चित्र द्वारा प्रदर्शित की जाने वाली राशियों का विस्तार बहुत अधिक हो या जब समंकों के न्यूनतम व अधिकतम मूल्यों में अत्यधिक अन्तर हो तो उन्हें दण्ड-चित्रों द्वारा प्रदर्शित नहीं किया जा सकता। ऐसी स्थिति में वर्ग चित्र का ही प्रयोग किया जाता है। (पाठ्यक्रम में इसको सम्मिलित नहीं किया गया है।)

(ग) वृत्त चित्र (Circular Diagram) – वृत्त चित्र वर्ग चित्रों के विकल्प हैं अर्थात् जिन परिस्थितियों में वर्ग चित्रों का प्रयोग उचित रहता है, उन्हीं दशाओं में वृत्त चित्रों का भी उपयोग किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, जब प्रदर्शित की जाने वाली राशियों का विस्तार बहुत अधिक हो अथवा जब तथ्यों के न्यूनतम व अधिकतम मूल्य में पर्याप्त अन्तर हों तो वृत्त चित्र उपयुक्त रहते हैं।

प्रश्न 3
उदग्र दण्ड-चित्र से आप क्या समझते हैं ? निम्नलिखित आँकड़ों को ग्राफ पेपर पर उदग्र दण्ड-चित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 1
उत्तर:
सरल दण्ड-चित्र दो प्रकार से बनाये जा सकते हैं
(i) उदग्र (Vertical) एवं
(i) क्षैतिज (Horizontal)।

जब दण्ड सीधे बनाये जाते हैं तो वे उदग्र दण्ड कहलाते हैं। इनको बनाते समय यह प्रयास करना चाहिए कि सबसे बड़ा दण्ड बायीं ओर अथवा दायीं ओर बने और सबसे छोटा दायीं ओर अथवा बायीं ओर बने।

1921 से 1961 ई० तक की जनसंख्या का चित्रमय प्रदर्शन
दिये गये आँकड़ों की सहायता से उदग्र दण्ड-चित्र निम्नवत् बनाया जा सकता है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 2

प्रश्न 4
क्षैतिज दण्ड-चित्र से आप क्या समझते हैं ? 1921 से 2001 तक प्रत्येक जनगणना पर भारत की जनसंख्या निम्नवत है। क्षैतिज दण्ड-चित्र द्वारा इसे प्रदर्शित कीजिए

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 3
उत्तर:
जब दण्ड खड़े न होकर लेटी दशा में बनाये जाते हैं तो उन्हें क्षैतिज दण्ड कहते हैं। इसमें मापदण्ड की रेखा ऊपर की ओर ली जाती है। इस प्रकार के दण्ड बनाते समय सबसे बड़ा दण्ड ऊपर और सबसे छोटा दण्ड नीचे आना चाहिए। परन्तु यदि आँकड़े विपरीत क्रम के अनुसार हों तो दण्ड भी उसी क्रम में बनाये जाने चाहिए।
1921 से 2001 तक की जनगणना पर भारत की जनसंख्या का चित्रमय प्रदर्शन
दिये गये आँकड़ों की सहायता से क्षैतिज दण्ड-चित्र निम्न प्रकार बनाया जा सकता है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 4

विशेष – इस चित्र में आँकड़ों को क्षैतिज (Horizontal) रूप में प्रदर्शित किया गया है। आवश्यकता होने पर x और Y-अक्ष में परिवर्तन करके इसे उदग्र (Vertical) रूप में भी प्रदर्शित किया जा सकता है।

प्रश्न 5
बहुदण्ड चित्र से आप क्या समझते हैं ? निम्नलिखित तालिका में एक विद्यालय के साहित्य और विज्ञान वर्गों का 2005 में हाईस्कूल का परीक्षाफल दिया गया है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 5
इन आँकड़ों को बहुदण्ड चित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
जब किसी चित्र द्वारा एक गुण से अधिक या एक ही गुण की एक से अधिक अवस्थाओं को प्रदर्शित करने के लिए चित्र बनाते हैं, तब प्रत्येक गुण या अवस्था के लिए अलग-अलग दण्ड सटे- सटे बनाये जाते हैं और निर्मित चित्र बहुदण्ड चित्र कहलाता है। इसे मिश्रित दण्ड-चित्र भी कहते हैं। दण्डों में अन्तर स्पष्ट करने के लिए उन्हें अलग-अलग चिह्नों या रंगों से दर्शाया जाता है। यह ध्यान रखना चाहिए कि एक ही तथ्य से सम्बन्धित सभी वर्षों अथवा स्थानों के दण्ड-चित्रों में एक ही रंग अथवा चिह्न भरे जाएँ। दण्डों के रंगों या चिह्नों को स्पष्ट करने के लिए अलग से एक संकेतक बनाया जाता है जिसे चित्र के अन्दर ही दिखाया जाता है। एक अवस्था से सम्बन्धित विभिन्न समूहों के दण्ड-चित्र एक साथ मिलाकर बनाये जाते हैं, फिर थोड़ा रिक्त स्थान छोड़कर दूसरी अवस्था से सम्बन्धित विभिन्न समूहों के दण्ड-चित्र एक साथ मिलाकर बनाये जाते हैं। दिये गये ऑकड़ों की सहायता से बहुदण्ड चित्र निम्नवत् बनाया जा सकता है

एक विद्यालय के साहित्य और विज्ञान वर्ग का 1995 ई० के परीक्षाफल का बहुदण्ड चित्र
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प्रश्न 6
द्वि-दिशा दण्ड-चित्र से आप क्या समझते हैं ? विभिन्न वर्षों में एक फर्म की लाभ-हानि (इ करोड़ में) का विवरण निम्नवत है। उपयुक्त चित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 7
उत्तर:
इस प्रकार के दण्ड-चित्र से दो विपरीत गुण वाले तथ्यों का प्रदर्शन किया जाता है। दण्ड आधार रेखा के ऊपर व नीचे दोनों ओर बनाये जाते हैं जो विपरीत गुणों का प्रदर्शन करते हैं। आधार-रेखा के ऊपर
का भाग धनात्मक गुणों का और नीचे का भाग ऋणात्मक गुणों का प्रदर्शन करता है। इन्हें भी अलग-अलग रंगों या चिह्नों द्वारा स्पष्ट किया जाना चाहिए तथा एक संकेतक भी दिया जाना चाहिए।
दिये गये आँकड़ों की सहायता से उपयुक्त दण्ड-चित्र (द्वि-दिशा दण्ड-चित्र) अग्रवत् बनाया जा सकता है

1996 से 2001 ई० तक फर्म की लाभ और हानि का चित्रमय प्रदर्शन
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 8

प्रश्न 7
अन्तर्विभक्त दण्ड-चित्र से आप क्या समझते हैं ? एक विद्यालय में 1999-2000 एवं 2000-2001 के सत्र में विभिन्न वर्गों में छात्रों की संख्या निम्नवत थी। उपयुक्त चित्र (अन्तर्विभक्त दण्ड-चित्र) द्वारा प्रदर्शित कीजिए
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उत्तर:
जब एक ही राशि कई विभागों में विभाजित हो तो कुछ राशि तथा उसके विभिन्न भागों को अन्तर्विभक्त दण्डों द्वारा प्रदर्शित कर सकते हैं। ये विभिन्न अंश कुल परिणाम के साथ अपना अनुपात भी प्रकट करते हैं और एक-दूसरे के साथ तुलनीय भी होते हैं। विभिन्न अंशों को विभिन्न रंगों या चिह्नों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
दिये गये आँकड़ों की सहायता से उपयुक्त दण्ड-चित्र (अन्तर्विभक्त दण्ड-चित्र) अग्रवत् बनाया जा सकती है

1999-2000 एवं 2000-2001 के सत्र में विद्यालय के छात्रों की संख्या को अन्तर्विभक्त दण्ड-चित्र द्वारा प्रदर्शन
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प्रश्न 8
अन्तर्विभक्त दण्ड-चित्र से आप क्या समझते हैं? वर्ष 2000 और 2001 में खाद्यान्नों के उत्पादन को निम्नलिखित सारणी में दिखाया गया है। प्रतिशत अन्तर्विभक्त दण्ड-चित्र द्वारा उत्पादन को प्रदर्शित कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 11
उत्तर:
पद-मूल्यों की सापेक्षिक तुलना के लिए प्रतिशत अन्तर्विभक्त दण्ड-चित्र का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार के चित्र में पद के सम्पूर्ण मूल्य को 100 मानकर उसके विभिन्न अंशों को प्रतिशत के रूप में बदल लिया जाता है। इसके पश्चात् उन प्रतिशतों को संचयी बना लिया जाता है। मापदण्ड के आधार पर पूर्ण दण्ड में से अंश काट दिये जाते हैं और अलग-अलग अंशों को भिन्न-भिन्न रंगों या चिह्नों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इस दण्ड-चित्र में प्रत्येक दण्ड की लम्बाई और चौड़ाई बराबर होती है। केवल इसके अन्तर्विभाजन में प्रतिशत की भिन्नता के अनुसार अन्तर होता है। इस दण्ड-चित्र का सबसे बड़ा गुण यह होता है कि समग्र के अंशों को प्रतिशत में व्यक्त किये जाने के कारण उनकी तुलना करना सरल होता है, किन्तु इस दण्ड-चित्र में कुल सामग्री की तुलना करना सम्भव नहीं होता, क्योंकि सभी राशियों के लिए बराबर-बराबर लम्बाई व चौड़ाई के दण्ड खींचे जाते हैं।
प्रश्न में दी गयी सारणी को निम्नवत् संचयी प्रतिशत सारणी के रूप में बदलेंगे
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 12
प्रतिशत अन्तर्विभक्त दण्ड-चित्र द्वारा सभंकों का प्रदर्शन
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 13

प्रश्न 9
बारम्बारता वक्र से आप क्या समझते हैं? नीचे दी गयी सारणी की सहायता से आयत चित्र, बारम्बारता बहुभुज तथा बारम्बारता वक़ निरूपित कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 14
उत्तर:
वर्गीकृत बारम्बारता बण्टन के वर्ग – अन्तरालों के मध्य-बिन्दुओं (x) को ४-अक्ष पर तथा बारम्बारता (f) को Y-अक्ष पर लेकर बिन्दुओं (x, f) को अंकित करने के बाद उन्हें सरल रेखाओं से क्रमशः मिलाने से जो आकृति बनती है, उसको बारम्बारता बहुभुज कहते हैं। दूसरे शब्दों में, आयत चित्र में, प्रत्येक दो क्रमागत आयतों की ऊपरी भुजाओं के मध्य-बिन्दुओं को एक रेखा-खण्ड द्वारा मिलाने से जो आकृति प्राप्त होती है, उसे बारम्बारता बहुभुज कहते हैं।

बहुभुज को पूर्ण करने के लिए प्रत्येक सिरे पर एक शुन्य बारम्बारता के वर्ग–अन्तराल की कल्पना की जाती है। पहले वर्ग के मध्य-बिन्दु को पहले वर्ग-अन्तराल से पूर्व शून्य बारम्बारता के वर्ग-अन्तराल की कल्पना करके उसके मध्य-बिन्दु से मिलाया जाता है। बाद वाले वर्ग के मध्य-बिन्दु को बाद वाले वर्ग-अन्तराल के बाद शून्य बारम्बारता वाले वर्ग-अन्तराल की कल्पना करके उसके मध्य-बिन्दु से मिलाया जाता है। यदि कल्पित वर्ग – अन्तराल मानना उचित न लगता हो तो पहले बिन्दु को पहले वर्ग-अन्तराल की निम्न सीमा से और अन्तिम बिन्दु को बाद वाले वर्ग-अन्तराल की ऊपरी सीमा से मिला दिया जाता है।

उपर्युक्त विवेचना के अनुसार बारम्बारता बहुभुज बनाने के दो तरीके हुए

(i) मध्य-बिन्दु और बारम्बारता को अंकित करके और
(ii) पहले आयत चित्र बनाकर और उसके बाद मध्य-बिन्दुओं को मिलाकर।

बारम्बारता बहुभुज में मध्य-बिन्दुओं को मिलाकर खींची गयी रेखा में कोणीयता आ जाती है। इस कोणीय स्वरूप को समाप्त करने के लिए मध्य-बिन्दुओं का आश्रय लेते हुए मुक्तहस्त (Freehand) से खींची गयी एक तदनुरूप रेखा को बारम्बारता वक्र कहते हैं। वर्ग–अन्तरालों के मध्य-बिन्दुओं को निर्दिष्ट करने वाली सारणी निम्नवत् बनायी जा सकती है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 15
दिये गये आँकड़ों की सहायता से आयत-चित्र, बारम्बारता बहुभुज और बारम्बारता वक्र निम्नवत् बनाया जा सकता है
आयत-चित्र, बारम्बारता बहुभुज और बारम्बारता वक्र का चित्रमय अंकन
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 16

प्रश्न 10
संचयी बारम्बारता वक्र से आप क्या समझते हैं? नीचे दी गयी बारम्बारता सारणी से एक संचयी बारम्बारता वक्र खींचिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 17
उत्तर:
संचयी बारम्बारता वक्र संचयी बारम्बारता बण्टन का एक आलेख होता है। यदि वर्ग-अन्तरालों की ऊपरी सीमाओं को ४-अक्ष पर और उनकी संगत संचयी बारम्बारताओं को Y-अक्ष पर लेते हुए बिन्दुओं को अंकित किया जाए और फिर उन्हें क्रमशः सरल रेखाओं से मिला दिया जाए तो जो आकृति बनेगी वह संचयी बारम्बारता बहुभुज होगी। परन्तु यदि अंकित बिन्दुओं को मिलाते हुए एक मुक्त हस्त निष्कोण वक्र खींचा जाता है तो इसे संचयी बारम्बारता वक्र या तोरण या ओजाइव वक्र कहते हैं। संचयी बारम्बारता वक्र की सहायता से माध्यिका (Median) भी ज्ञात की जा सकती है। संचयी बारम्बारता वक्र दो प्रकार के होते हैं

(1) ‘से कम वाले – इसके अन्तर्गत संचयी बारम्बारता का बिन्दु वर्गान्तर की ऊपरी सीमा के आधार पर अंकित किया जाता है। इसके बाद इन बिन्दुओं को मिलाकर मुक्त हस्त रेखा से वक्र बना दिया जाता है। यह वक्र नीचे से ऊपर की ओर उठता हुआ होता है।

(2) ‘से अधिक वाले – इसके अन्तर्गत संचयी बारम्बारती को बिन्दु वर्गान्तर की निचली सीमा के आधार पर अंकित किया जाता है। इसके बाद इन बिन्दुओं को मिलाकर मुक्त हस्त से वक्र बना दिया जाता है, जो क्रमशः ऊपर से नीचे की ओर गिरता हुआ होता है। दिये गये आँकड़ों की सहायता से सर्वप्रथम बारम्बारता सारणी निम्नलिखित रूप में तैयार की जाएगी।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 18
अब ग्राफ-पेपर पर बिन्दु (10, 7), (20, 17), (30, 40), (40, 91), (50, 97) तथा (60, 100) अंकित किये जाएँगे। अब इन अंकित बिन्दुओं को मिलाते हुए मुक्त हस्त से एक निष्कोण वक्र खींचा जाएगा।
अभीष्ट संचयी बारम्बारता वक्र या तोरण निम्नवत् होगा
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 19

प्रश्न 11
वृत्त चित्रों से आप क्या समझते हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं? संक्षेप में उनका विवरण दीजिए।
या
वृत्त चित्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2011]
उत्तर:
आँकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए वृत्तों या चित्रों का भी प्रयोग किया जाता है। जिन परिस्थितियों में वर्ग चित्रों का प्रयोग उपयुक्त होता है, उन्हीं में वृत्त चित्रों का प्रयोग किया जा समंकों (आँकड़ों) का प्रदर्शन 319 सकता है। दूसरे शब्दों में, जब प्रदर्शित की जाने वाली राशियों का विस्तार बहुत अधिक हो अथवा जब तथ्यों के अधिकतम व न्यूनतम मूल्य में पर्याप्त अन्तर हो तो वृत्त चित्र उपयुक्त होते हैं। वृत्त का क्षेत्रफल अर्द्धव्यास अथवा त्रिज्या पर निर्भर करता है। इसलिए वर्गों की भुजाओं के ही अनुपात से अर्द्धव्यास लेकर वर्गों के स्थान पर वृत्त भी बनाये जा सकते हैं। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि सभी वृत्त केन्द्र एक सरल क्षैतिज रेखा में होने चाहिए तथा सभी वृत्तों के बीच समान दूरी छोड़ी जाए।

वर्गों के स्थान पर वृत्त बनाने के दो लाभ होते हैं। एक तो वृत्तों का बनाना सरल होता है और दूसरे वे देखने में अच्छे भी लगते हैं। इनके द्वारा आँकड़ों के विभाजन को उचित रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है। वृत्तों का प्रयोग प्रायः विश्व के विभिन्न देशों के उत्पादन, जनसंख्या आदि को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है।

वृत्त चित्रों के प्रकार-वृत्त चित्र दो प्रकार के होते हैं
(क) साधारण वृत्त चित्र तथा
(ख) अन्तर्विभक्त वृत्त चित्र।

(क) साधारण वृत्त चित्र – साधारण वृत्त चित्र बनाने के लिए सबसे पहले समंकों का वर्गमूल लिया जाता है। इसके बाद इस वर्गमूल को किसी सामान्य संख्या से भाग देकर लघुरूप में बदल देते हैं। वर्गमूलों के इस छोटे रूप को ही त्रिज्या या अर्द्धव्यास मानकर वृत्त बनाते हैं। आवश्यकता पड़ने पर इन्हें अनुपात के हिसाब से छोटा-बड़ा किया जा सकता है।

वृत्त चित्र का पैमाना निकालने के लिए वृत्त का क्षेत्रफल ज्ञात करना होता है। वृत्त का क्षेत्रफल I2 होता है।

यहाँ, π(Pie) मूल्य सदैव [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] होता है, r वृत्त का अर्द्धव्यास है। एक वृत्त का क्षेत्रफल निकल आने पर 1 वर्ग सेमी के लिए मूल्य निकाल लेंगे, यही पैमाना होगा।

उदाहरण – यदि किसी वृत्त का अर्द्धव्यास 2 सेमी है और उसमें ₹1,760 दिखाये गये हैं तो पैमाना निकालने की पद्धति इस प्रकार होगी
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 20

(ख) अन्तर्विभक्त वृत्त चित्र या कोणिक चित्र – वृत्त-चित्रों की बहुत बड़ी उपयोगिता उनके अन्तर्विभाजन की सुविधा के कारण है। वर्गों में यह सुविधा नहीं होती। वृत्त के केन्द्र पर 360° का कोण होता है। सम्पूर्ण को 360° मानकर उसके विभागों के लिए विभिन्न अंशों के कोणों की गणना कर ली जाती है। इस प्रकार सभी विभागों के कोणों का जोड़ 360° होगा। इन विभिन्न निश्चित किये हुए अंशो के अनुसार कोण बनाते हुए रेखाएँ परिधि से मिला दी जाती हैं।

प्रश्न 12
नीचे सारणी में दी गयी सूचना को साधारण वृत्त-चित्र के रूप में प्रस्तुत कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 21
उत्तर:
सारणी में दिये गये आँकड़ों को साधारण वृत्त-चित्र के रूप में प्रदर्शित करने के लिए निम्नलिखित रूप में परिकल्पित करेंगे
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 22
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 23
अब इन राशियों को वृत्त का अर्द्धव्यास या त्रिज्या मानकर इनसे वृत्तों की रचना करेंगे।
दिये गये आँकड़ों का साधारण वृत्त चित्र के रूप में प्रदर्शन

प्रश्न 13
नयी दिल्ली में किसी मकान को बनाने में आये विभिन्न मदों में व्यय के प्रतिशत आँकड़े निम्नलिखित सारणी में प्रदर्शित हैं
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 24
उत्तर:
खर्च के प्रतिशत को वृत्त के संगत कोणों में बदलने की गणना निम्नलिखित रूप में की जाती है
∵100 प्रतिशत बराबर है 360° के
∴ 1 प्रतिशत बराबर होगा [latex]\frac { { 360 }^{ \circ } }{ 100 }[/latex] = 3.6° के
अत: उपर्युक्त सारणी संगत कोणों के अंशों के आधार पर इस प्रकार बनायी जा सकती है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 25
सबसे पहले एक वृत्त खींचेंगे। वृत्त के केन्द्र पर 90° का कोण बनाएँगे। श्रम के लिए इसके बाद घड़ी में सूई के विपरीत 54°, 72°, 54°, 36° तथा 54° के कोण अन्य सामग्रियों के लिए बनाते चले जाएँगे। प्रत्येक उपविभाग को अलग-अलग चिह्नों से प्रदर्शित करेंगे।

दिये गये आँकड़ों का अन्तर्विभक्त वृत्त-चित्र द्वारा प्रदर्शन
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 26

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
आँकड़ों के चित्रमय प्रदर्शन करते समय अथवा रेखाचित्र बनाते समय क्या-क्या सावधानियाँ रखी जानी चाहिए?
या
आँकड़ों के चित्रमय प्रदर्शन के सामान्य नियमों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
रेखाचित्र बनाते समय निम्नलिखित सावधानियाँ रखी जानी चाहिए

  1. चित्र बनाने से पूर्व चित्र के लिए पैमाना निर्धारित कर लेना चाहिए जो सरल एवं स्पष्ट हो।
  2. रेखाचित्र बनाते समय उसके आकार की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। चित्र ने तो अधिक छोटा और न ही अधिक बड़ा होना चाहिए। चित्र का आकार कागज के आकार के ऊपर निर्भर करता है। अत: जिस कागज पर रेखाचित्र बनाया जा रहा है, उसी के अनुपात को ध्यान में रखकर रेखाचित्र का निर्माण किया जाना चाहिए।
  3. चित्रे आकर्षक होना चाहिए। अत: चित्र बनाते समय इस बात की पूरी सावधानी रखनी चाहिए कि चित्र स्वच्छ तथा प्रभावशाली हो, जिससे देखने वालों का मस्तिष्क चित्र की ओर शीघ्र ही आकर्षित हो जाए।
  4. रेखाचित्रों की शुद्धता की ओर ध्यान रखना परम आवश्यक है। चित्रों को पटरी, परकार तथा पेन्सिल व चाँदे आदि की सहायता से सावधानीपूर्वक बनाना चाहिए। चित्र बनाने के लिए ग्राफ पेपर का प्रयोग उत्तम होता है।
  5. रेखाचित्र में सरलता का गुण होना चाहिए, जिससे कि देखते ही चित्र का अर्थ एवं निष्कर्ष समझ में आ सके।
  6. रेखाचित्रों के पास ही वह सारणी (पैमाना) भी बनी होनी चाहिए, जिसके आधार पर रेखाचित्र बनाया गया है।
  7. रेखाचित्र बनाते समय, समय तथा साधनों का ध्यान होना भी आवश्यक है। चित्र मितव्ययी होने चाहिए।
  8. यदि समंकों को स्तम्भ चित्रों में दर्शाया जा रहा हो तब स्तम्भों में अन्तर की दूरी समान होनी चाहिए।
  9. रेखाचित्र बनाते समय कागज पर चारों ओर पर्याप्त स्थान छोड़ना चाहिए जिससे उसका शीर्षक, पैमाना, संकेत आदि प्रदर्शित किये जा सकें।
  10. चित्र को अधिक स्पष्ट तथा आकर्षक बनाने के लिए रंगों का उपयोग भी किया जा सकता है।
  11. प्रत्येक चित्र के ऊपर पूर्ण, स्पष्ट संक्षिप्त शीर्षक दिया जाना चाहिए। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि चित्र में क्या प्रदर्शित किया जा रहा है।
  12. सांख्यिकीय आँकड़ों के प्रदर्शन के लिए अनेक प्रकार के चित्र बनाये जाते हैं, जिनकी अलग-अलग विशेषताएँ होती हैं; अतः समंकों के विश्लेषण के बाद उनके लिए कौन-सा चित्र उचित होगा, यह विचार करके ही चित्रों को बनाना चाहिए।

प्रश्न 2
चित्रमय प्रदर्शन की सीमाओं पर टिप्पणी लिखिए। [2007]
उत्तर:
सांख्यिकीय चित्रों में अनेक गुण होने के बावजूद इनकी कुछ सीमाएँ भी होती हैं। चित्रमय प्रदर्शन की कुछ सीमाएँ निम्नलिखित हैं

  1. चित्रों द्वारा समंकों का पूर्ण निरूपण नहीं होता। चित्र तो समंकों का अनुमानित रूप में प्रदर्शन करते हैं; अतः वे उन्हीं क्षेत्रों में उपयुक्त होते हैं जहाँ किसी विषय की सरल रूप में सामान्य व्यक्तियों को जानकारी देनी आवश्यक हो।
  2. चित्रों की सहायता से संख्याओं के सूक्ष्म अन्तर को दिखाना असम्भव है।
  3. चित्रों की सहायता से तुलना तभी उपयुक्त हो सकती है जब वे समंकों के समान गुण के आधार पर बनायें जाएँ।
  4. केवल चित्र का कोई महत्त्व नहीं होता, वरन् चित्रों के द्वारा आपसी तुलनात्मक अध्ययन सम्भव होता है।
  5. चित्रों द्वारा पूर्ण सत्य निष्कर्ष नहीं निकाले जा सकते। ये तो निष्कर्ष की ओर पहुँचने के साधन मात्र हैं।
  6. चित्रों द्वारा बहुमुखी विशेषताओं का प्रदर्शन नहीं हो सकता। वर्गीकरण व सारणीयन के द्वारा अनेक प्रकार की सूचनाएँ या विशेषताएँ प्रदर्शित की जा सकती हैं, लेकिन चित्रों के द्वारा किसी एक विशेषता का ही प्रदर्शन किया जा सकता है।
  7. अनुचित एवं अशुद्ध चित्र बनाकर उनका आसानी से दुरुपयोग किया जा सकता है।
  8. प्रत्येक प्रकार के अनुसन्धान में चित्र नहीं बनाये जा सकते। यदि बनाये भी जाएँगे तो कोई स्पष्ट भाव व्यक्त नहीं करेंगे।
  9. यदि चित्र बनाने वाले को विषय तथा चित्र बनाने के नियमों का सम्यक् ज्ञान नहीं है तो उसके द्वारा बनाये गये चित्रों से स्थिति का वास्तविक ज्ञान नहीं हो सकेगा।

प्रश्न 3
निम्नलिखित बारम्बारता बंटन के लिए वर्ग-चिह्न ज्ञात करके बारम्बारता बहुभुज बनाइए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 27
हल:
दिये गये आँकड़ों से बारम्बारता बहुभुज बनाने के लिए सबसे पहले आँकड़ों से मध्य-बिन्दु और अंकित किये जाने वाले बिन्दु निम्नवत् ज्ञात करेंगे
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 28
वर्ग-अन्तराल के मध्य-बिन्दुओं को X-अक्ष पर और बारम्बारता को Y-अक्ष पर लेते हुए उपर्युक्त अंकित किये जाने वाले बिन्दुओं को ग्राफ पेपर पर अंकित करेंगे। इसके बाद इन अंकित बिन्दुओं को सरल रेखा द्वारा मिला देंगे। अब दोनों सिरों को शून्य बारम्बारता के काल्पनिक वर्ग-अन्तराल के मध्य बिन्दुओं से मिला देंगे। अभीष्ट बारम्बारता बहुभुज निम्नवत् बनेगा
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 29

प्रश्न 4
निम्नलिखित आँकड़ों से पहले आयत चित्र बनाइए और फिर उसी ग्राफ पर बारम्बारता बहुभुज और बारम्बारता वक़ बनाइए वर्ग- अन्तराल (0-10 10-20 20-30 30-40 40-50 50-60
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 30
उत्तर:
दिये गये आँकड़ों से बारम्बारता बहुभुज बनाने के लिए सबसे पहले आँकड़ों से मध्य-बिन्दु और अंकित किये जाने वाले बिन्दु निम्नवत् ज्ञात करेंगे
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 31
वर्ग – अन्तराल को X – अक्ष पर और बारम्बारता को Y – अक्ष पर लेते हुए प्रत्येक वर्ग-अन्तराल के लिए X-अक्ष पर एक आयत का निर्माण करेंगे। इस प्रकार जितने भी वर्ग–अन्तराल होंगे, उतनी ही
आयतों का निर्माण होगा। अब इन आयतों के मध्य बिन्दुओं तथा अंकित किये जाने वाले बिन्दुओं को सीधी रेखा द्वारा मिला देंगे। इसके बाद मुक्त हस्त से एक रेखा इन सीधी रेखाओं के तदनुरूप बना देंगे। अभीष्ट आयत चित्र, बारम्बारता बहुभुज और बारम्बारता वक्र निम्नवत् बनेगा
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 32

प्रश्न 5
अग्रलिखित सारणी में दिये गये ‘से कम बारम्बारता वितरण को ‘से अधिक बारम्बारता वितरण में परिवर्तित कीजिए और उससे संचयी बारम्बारता वक्र बनाइए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 33
हल:
दिये गये प्रश्न में से कम’ के अनुसार संचयी बारम्बारता दी गयी हैं। इन आँकड़ों को ‘से अधिक’ संचयी बारम्बारता में बदलने के लिए निम्नवत् सारणी बनानी होगी
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 34
अब ग्राफ पेपर पर बिन्दुओं (0, 200), (20, 160), (40, 110) , (60, 50), (80, 10) को अंकित करेंगे। अब इन अंकित् बिन्दुओं को मिलाते हुए मुक्त हाथों से एक निष्कोण वक्र खीचेंगे। यही अभीष्ट संचयी बारम्बारता वक़ या तोरण होगा
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 35

प्रश्न 6
एक कक्षा में निम्नलिखित परिणाम को उपयुक्त चित्र द्वारा दिखाइए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 36
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 37

प्रश्न 7
निम्नलिखित सारणी में एक डेरी फार्म की 100 गायों का वर्गीकरण उनके एक दिन के दूध के अनुसार दिया गया है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 38
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 39

प्रश्न 8
निम्नलिखित सारणी में एक डेरी फार्म की 100 गायों का वर्गीकरण उनके एक दिन के दूध के अनुसार किया गया है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 40
उपर्युक्त से बारम्बारता बहुभुज बनाइए।
हुल:
यहाँ वर्ग-अन्तराल 4-6 का मध्यमान = [latex]\frac { 4+6 }{ 2 }[/latex] = 5। इसी प्रकार अन्य वर्ग–अन्तरालों के मध्यमान क्रमशः 7, 9, 11, 13 तथा 15 हुए।

4-6 वर्ग-अन्तराल के निकटस्थ नीचे का वर्ग-अन्तराल 2-4 हुआ, जिसकी बारम्बारता शून्य है। इसी प्रकार 14-16 के निकटस्थ ऊपर का वर्ग-अन्तराल 16-18 है, जिसकी बारम्बारता भी शून्य है। इनके मध्यमान क्रमानुसार 3 एवं 17 हैं। इसके लिए दी गयी सारणी को निम्नवत् बदल लेते हैं
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 41
प्रथम विधि
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 42
द्वितीय विधि
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 43

प्रश्न 9
10 विद्यार्थियों द्वारा गणित (X) व विज्ञान (Y) में प्राप्त अंक नीचे दिये हुए हैं। इन दोनों विषयों में प्राप्त अंकों के बीच सम्बन्ध की जाँच ग्राफ की सहायता से कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 44
हुल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 45

प्रश्न 10
निम्नलिखित सारणी को बारम्बारता वक्र निरूपित कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 46
हुल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 47

प्रश्न 11
निम्नलिखित सारणी द्वारा संचयी बारम्बारता आलेख निरूपित कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 48
हुल:
सर्वप्रथम संचयी बारम्बारता सारणी बनाएँ
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 49
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 50

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
रेखाचित्रों द्वारा आँकड़ों के प्रदर्शन के चार महत्त्व बताइए। [2007]
उत्तर:
रेखाचित्रों द्वारा आँकड़ों के प्रदर्शन के चार महत्त्व निम्नलिखित हैं

  1. रेखाचित्र समंकों के प्रदर्शन का आकर्षक एवं प्रभावशाली साधन है।
  2. रेखाचित्र समंकों को सरल एवं बोधगम्य बनाते हैं।
  3. रेखाचित्रों के द्वारा समंकों की तुलना सरलता से की जा सकती है।
  4. रेखाचित्रों से समय एवं श्रम की बचत होती है।

प्रश्न 2
क्षैतिज दण्ड-चित्र किस प्रकार बनाये जाते हैं?
उत्तर:
जब दण्ड खड़े न होकर लेटी दशा में बनाये जाते हैं तो उन्हें क्षैतिज दण्ड कहते हैं। क्षैतिज दण्ड-चित्र बनाते समय सबसे बड़ा दण्ड ऊपर और सबसे छोटा दण्ड नीचे आना चाहिए। परन्तु यदि समंक विपरीत क्रम में हो तो दण्ड भी उसी क्रम में बनाये जाते हैं। क्षैतिज दण्ड चित्र में मापदण्ड की रेखा ऊपर की ओर ली जाती है।

प्रश्न 3
आँकड़ों के चित्रमय प्रदर्शन के कोई दो लाभ लिखिए। [2014, 15]
उत्तर:
दो लाभों के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 के अन्तर्गत देखें।

प्रश्न 4
बारम्बारता वक्र किस प्रकार बनाये जाते हैं?
उत्तर:
यदि बारम्बारता बहुभुज में प्राप्त मध्यमान बिन्दुओं को सरल रेखा से न मिलाकर निष्कोण कर दिया जाए तो बारम्बारता वक्र बन जाता है। बारम्बारता वक्र के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह बारम्बारता बहुभुज के प्रत्येक शीर्ष से होकर जाए, परन्तु जहाँ तक हो सके, उसे बारम्बारता बहुभुज के प्रत्येक शीर्ष से होकर जाना चाहिए।

प्रश्न 5
संचयी बारम्बारता वक्र क्या है? [2011]
या
संचयी आवृत्ति वक्र क्या है? [2011]
उत्तर:
संचयी बारम्बारता वक्र संचयी बारम्बारता बण्टन का एक आलेख होता है। यदि वर्ग अन्तरालों की ऊपरी सीमाओं को x-अक्ष पर और उनकी संगत संचयी बारम्बारताओं को y-अक्ष पर लेते हुए बिन्दुओं को अंकित किया जाए और फिर उन्हें क्रमशः सरल रेखाओं से मिला दिया जाए तो जो आकृति बनेगी, वह संचयी बारम्बारता बहुभुज होगी। परन्तु यदि अंकित बिन्दुओं को मिलाते हुए एक मुक्त हस्त निष्कोण वक्र खींचा जाता है तो इसे संचयी बारम्बारता वक्र या तोरण या ओजाइव (संचयी आवृत्ति) वक्र कहते हैं।

प्रश्न 6
दण्ड चित्रों के किन्हीं दो प्रकारों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
दण्ड चित्रों के दो प्रकार निम्नलिखित हैं – (1) उदग्र (Vertical) (2) क्षैतिज (Horizontal)

  1. उदग्र दण्ड चित्र – जब दण्ड सीधे बनाये जाते हैं तो वे उदग्र दण्ड चित्र कहलाते हैं। इसको बनाते समय यह प्रयास करना चाहिए कि सबसे बड़ा दण्ड बायीं ओर अथवा दायीं ओर बने।
  2. क्षैतिज दण्ड चित्र – जब दण्ड खड़े न होकर लेटी दशा में बनाये जाते हैं तो उन्हें क्षैतिज दण्ड चित्र कहते हैं।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
आयत चित्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी बारम्बारता बंटन में वर्ग-अन्तराल और संगत बारम्बारता को किसी आयत की दो संलग्न भुजाएँ मानकर जो आयत बनाते हैं उन्हें आयत चित्र कहते हैं।

प्रश्न 2
दण्ड चित्रों के किन्हीं दो प्रकारों का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(1) सरल दण्ड चित्र- ये दो प्रकार के होते हैं –  (i) उदग्र दण्ड चित्र, (ii) क्षैतिज दण्डचित्र।
(2) बहु दण्ड चित्र।

प्रश्न 3
बारम्बारता बहुभुज किसे कहते हैं?
उत्तर:
दो या दो से अधिक बंटनों के तुलनात्मक अध्ययन के लिए जो बहुभुज बनाये जाते हैं, ऐसे बहुभुज में वर्ग–अन्तराल का मध्यमाने ही उस वर्ग के सभी आँकड़ों का प्रतिनिधित्व करता है।

प्रश्न 4
द्विविमा चित्रों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
द्विविमा चित्र-द्विविमा चित्र उन चित्रों को कहते हैं, जिनमें समंकों का चित्रण दो विस्तारों ऊँचाई और चौड़ाई को ध्यान में रखकर किया जाता है, इसलिए इन्हें क्षेत्रफल चित्र अथवा धरातल चित्र भी कहा जाता है।

प्रश्न 5
निम्नलिखित चित्र की सहायता से नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 Presentation of Data 51
(i) अधिकतम बारम्बारता वाला वर्ग- अन्तराल बताइए।
उत्तर:
अधिकतम बारम्बारता वाला वर्ग-अन्तराल 60-70 है।

(ii) वह वर्ग-अन्तराल बताइए जिसकी बारम्बारता 15 है।
उत्तर:
वह वर्ग-अन्तराल 20-30 से 40-50 है जिसकी बारम्बारता 15 है।

(iii) न्यूनतम वर्ग- अन्तराल वाला वर्ग-अन्तराल बताइए।
उत्तर:
न्यूनतम वर्ग–अन्तराल वाला वर्ग-अन्तराल 30-40 है।

(iv) वह वर्ग-अन्तराल बताइए जिसकी संचयी बारम्बारता 60 है।
उत्तर:
वह वर्ग – अन्तराल (50-60) है जिसकी संचयी बारम्बारता 60 है।

(v) वर्ग- अन्तराल (50-60) की बारम्बाता बताइए।
उत्तर:
वर्ग-अन्तराल (50-60) की बारम्बारता 25 है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
किसी आयत स्तम्भ के शीर्ष भुजाओं के मध्य बिन्दुओं को मुक्त-हस्त वक्र से मिलाने पर प्राप्त आलेख होगा
(क) तोरण
(ख) बारम्बारता वक्र
(ग) बारम्बारता बहुभुज
(घ) स्तम्भ चार्ट
उत्तर:
(क) तोरण।

प्रश्न 2
यदि बारम्बारता बहुभुज में प्राप्त मध्यमान बिन्दुओं को सरल रेखा से न मिलाकर निष्कोण कर दिया जाए तो प्राप्त आलेख होगा
(क) बारम्बारता वक्र
(ख) तोरण
(ग) स्तम्भ चार्ट
(घ) बारम्बारता बहुभुज
उत्तर:
(क) बारम्बारता वक्र।

प्रश्न 3
सांख्यिकी में किसी वर्ग की ऊपरी सीमा तथा निचली सीमा के अन्तर को कहते हैं [2009]
(क) वर्ग-बारम्बारता
(ख) वर्ग-अन्तराल
(ग) मध्य बिन्दु
(घ) वर्ग सीमाएँ
उत्तर:
(ख) वर्ग-अन्तराल।

प्रश्न 4
किसी बारम्बारता बंटन में वर्ग- अन्तराल और संगत बारम्बारता से बना आलेख होगा
(क) स्तम्भ चित्र
(ख) आयत चित्र
(ग) बारम्बारता बहुभुज
(घ) बारम्बारता वक्र
उत्तर:
(ख) आयत चित्र।

प्रश्न 5
जब X-अक्ष पर बराबर-बराबर स्थान छोड़कर एकसमान चौड़ाई के दण्ड खींचे जाते हैं, तो उसे कहते हैं
(क) स्तम्भ चार्ट
(ख) आयत चित्र
(ग) बारम्बारता बहुभुज
(घ) बारम्बारता वक्र
उत्तर:
(क) स्तम्भ चार्ट।

प्रश्न 6
निम्नलिखित में से कौन-सा द्विविमीय चित्र है? [2002]
(क) आयत चित्र
(ख) दण्ड चित्र
(ग) रेखा चित्र
(घ) प्रतीक चित्र
उत्तर:
(क) आयत चित्र।

प्रश्न 7
निम्नलिखित में से कौन-सा एकविमीय चित्र है? [2006, 08]
(क) आयत चित्र
(ख) वर्ग चित्र
(ग) कोणिक चित्र
(घ) अन्तर्विभक्त चित्र
उत्तर:
(घ) अन्तर्विभक्त चित्र।

प्रश्न 8
संचयी आवृत्ति वक्र को कहा जाता है [2012]
(क) ओजाइव
(ख) पाई चित्र
(ग) दण्ड आरेख
(घ) अन्तर्विभक्त दण्ड आरेख
उत्तर:
(क) ओजाइव।

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UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 16 Union Territories and their Administrative System

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 16 Union Territories and their Administrative System (संघ राज्यक्षेत्र (केन्द्रप्रशासित क्षेत्र) तथा उनकी शासन-व्यवस्था) are part of UP Board Solutions for Class 12 Civics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 16 Union Territories and their Administrative System (संघ राज्यक्षेत्र (केन्द्रप्रशासित क्षेत्र) तथा उनकी शासन-व्यवस्था).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter Chapter 16
Chapter Name Union Territories and their Administrative System
(संघ राज्यक्षेत्र (केन्द्रप्रशासित क्षेत्र) तथा उनकी शासन-व्यवस्था)
Number of Questions Solved 26
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 16 Union Territories and their Administrative System (संघ राज्यक्षेत्र (केन्द्रप्रशासित क्षेत्र) तथा उनकी शासन-व्यवस्था)

विस्तृत उतरीय प्रश्न [6 अंक]

प्रश्न 1.
भारत के केन्द्र-प्रशासित क्षेत्रों के नाम लिखिए तथा उनकी शासन व्यवस्था पर प्रकाश डालिए। [2008, 10, 11]
या

संघ-शासित क्षेत्र से क्या तात्पर्य है? ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के प्रशासक की नियुक्ति कौन करता है?
या
केन्द्रशासित क्षेत्रों के प्रशासनिक ढाँचे का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
केन्द्र-प्रशासित क्षेत्र (संघ राज्य क्षेत्रों) का निर्धारण
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में चार प्रकार के राज्यों की स्थापना की गई थी – (1) ‘क’ श्रेणी के राज्यों में पूर्व ब्रिटिश प्रान्तों को रखा गया, इस श्रेणी के राज्यों की संख्या 9 थी। (2) ‘ख’ श्रेणी के राज्यों में कुछ संघ तथा बड़ी-बड़ी देशी रियासतों को सम्मिलित किया गया, इनकी संख्या 8 थी। (3) ‘ग’ श्रेणी के राज्यों में कुछ छोटे प्रान्तों को सम्मिलित किया गया, इनकी संख्या 9 थी, तथा (4) ‘घ’ श्रेणी के राज्यों में अण्डमान तथा निकोबार द्वीपों को सम्मिलित किया गया। ‘क’ तथा ‘ख’ श्रेणी के राज्यों में पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना की गई परन्तु ‘ग’ श्रेणी के राज्यों में आंशिक उत्तरदायी शासन की स्थापना की गई तथा ‘घ’ श्रेणी के राज्यों में किसी उत्तरदायी शासन की स्थापना नहीं की गई वरन् उनका प्रशासन केन्द्र सरकार के अधीन रहा। इनको ही केन्द्र-प्रशासित क्षेत्रों की संज्ञा दी गई।

राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत ‘क’, ‘ख’, ‘ग’ तथा ‘घ’ श्रेणी के राज्यों को समाप्त कर दिया गया तथा सभी राज्यों को मिलाकर 14 नए राज्यों के गठन के साथ-साथ 6 केन्द्र शासित प्रदेशों की स्थापना की गई। राज्यों और केन्द्र-शासित प्रदेशों की संख्या कालान्तर में विभिन्न अधिनियमों के अनुसरण के साथ परिवर्तित होती गई।

वर्तमान स्थिति – भारत में वर्तमान समय में 29 राज्य तथा 7 संघीय क्षेत्र हैं। पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त न होने के बावजूद भी दिल्ली व पुदुचेरी में 70वें संविधान संशोधन के आधार पर यह व्यवस्था की गई है कि इनकी विधानसभाओं के सदस्यों को भी राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेने का अधिकार होगा। उत्तराखण्ड, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ तथा तेलंगाना को भारतीय संघ में नए राज्यों के रूप में सम्मिलित किया गया है और भारत के कुल 29 राज्यों में ये भी शामिल हैं।

संघीय क्षेत्रों का प्रशासन
संघीय क्षेत्र (केन्द्र-प्रशासित क्षेत्र) की विधानसभा अपने सम्पूर्ण क्षेत्र या कुछ भाग के लिए। उन नियमों के बारे में कानून का निर्माण कर सकती है जो कि संविधान में दी गई सातवीं अनुसूची में राज्य सूची अथवा समवर्ती सूची में दिए गए हैं और यदि वे विषय इस क्षेत्र पर लागू होते हैं। यदि संघीय क्षेत्र की विधानसभा किसी ऐसे कानून का निर्माण कर देती है जो संसद के कानून के विरुद्ध है तो उस क्षेत्र की विधानसभा का कानून वहाँ तक अवैधानिक समझा जाएगा। जहाँ तक कि वह संसद के कानून के विरुद्ध है।

दिल्ली, पुदुचेरी तथा अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह का प्रशासन उपराज्यपाल के अधीन है। चण्डीगढ़, लक्षद्वीप, दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव का प्रशासन प्रशासक के अधीन है। उल्लेखनीय है कि संविधान संशोधन (55) के अन्तर्गत अरुणाचल प्रदेश तथा संविधान संशोधन (57) के अन्तर्गत गोआ को राज्य का स्तर प्राप्त हो गया है। गोआ के साथ जुड़े दमन एवं दीव पूर्व की भाँति केन्द्र-शासित क्षेत्र ही हैं। वहाँ प्रशासक प्रशासकीय कार्यों का संचालन करता है। प्रशासन की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है।

इस प्रकार केन्द्र-शासित क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार की शासन व्यवस्था है। दो केन्द्र-शासित क्षेत्रों (दिल्ली एवं पुदुचेरी) में संसदीय अधिनियम के अनुसार लोकप्रिय मन्त्रिपरिषद् व विधानसभाएँ स्थापित की गई हैं और शेष 5 संघ राज्यों को प्रबन्ध पूर्ण रूप से केन्द्र द्वारा किया जाता है। राष्ट्रपति को प्रत्येक संघीय क्षेत्र के लिए प्रशासक नियुक्त करने का अधिकार है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के प्रशासक की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। संविधान के द्वारा संघ राज्य क्षेत्र के प्रशासकों को अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई है। लेकिन वह अपनी इस शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से ही कर सकता है। यदि वह चाहे तो किसी राज्य से लगे केन्द्रीय क्षेत्र को उस राज्य के अन्तर्गत करने का अधिकार भी रखता है। संविधान ने राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया है कि वह अण्डमान व निकोबार द्वीप समूह तथा लक्षद्वीप, दमन व दीव के प्रशासन एवं व्यवस्था के लिए कोई नियम बना सकता है। इन नियमों को संसद द्वारा पारित अधिनियमों के समान ही मान्यता प्राप्त होगी। इसी प्रकार संसद को यह अधिकार प्राप्त है कि वह इन क्षेत्रों के लिए कोई अन्य व्यवस्था कर दे। राष्ट्रपति राज्य की कार्यपालिका शक्ति स्वयं भी धारण कर सकता है।

अनुच्छेद 241 के अन्तर्गत संसद विधि द्वारा किसी संघ प्रशासित क्षेत्र के लिए उच्च न्यायालय गठित कर सकती है या ऐसे किसी राज्य-क्षेत्र में किसी न्यायालय को इस संविधान में सभी या किन्हीं प्रयोजनों के लिए उच्च न्यायालय घोषित कर सकेगी। जब तक ऐसा विधान नहीं बनाया जाता तब तक ऐसे राज्य-क्षेत्रों के सम्बन्ध में विद्यमान उच्च न्यायालय अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते रहेंगे। दिल्ली के लिए 1966 से पृथक् उच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है जबकि अन्य 6 केन्द्र शासित प्रदेश निकटवर्ती राज्यों के उच्च न्यायालयों के साथ सम्बद्ध किए गए हैं; जैसेचण्डीगढ़ (पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय), लक्षद्वीप (केरल उच्च न्यायालय), अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह (कलकत्ता उच्च न्यायालय), पुदुचेरी (मद्रास उच्च न्यायालय), दादरा और नगर हवेली (बम्बई उच्च न्यायालय), दमन और दीव (बम्बई उच्च न्यायालय)।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
भौगोलिक स्थिति को स्पष्ट करते हुए किन्हीं दो केन्द्र प्रशासित क्षेत्रों (संघ राज्य क्षेत्रों) के नाम लिखिए।
या
दो केन्द्रशासित राज्यों (क्षेत्रों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।)
उत्तर :
भौगोलिक स्थिति के अनुसार दो केन्द्र-प्रशासित क्षेत्र निम्नलिखित हैं –

1. दमन और दीव – यह केन्द्र-शासित क्षेत्र भौगोलिक रूप से दो पृथक् स्थलों को मिलाकर राजनीतिक इकाई बनाया गया है। दोनों के बीच में विशाल अरब सागर लहराता है। दमन गुजरात की मुख्य भूमि पर अरब सागर के किनारे स्थित है। यह 20° 24′ उत्तरी अक्षांश तथा 72° 48′ पूर्वी देशान्तर पर स्थित है। इसके विपरीत दीव काठियावाड़ प्रायद्वीप के समीप अरब सागर में एक टापू है जो पुल द्वारा जूनागढ़ जिले से जुड़ा हुआ है। यह 20° 42′ उत्तरी अक्षांश तथा 70° 45′ पूर्वी देशान्तर पर स्थित है।

2. दादरा और नगर हवेली – यह संघ राज्य दो पृथक् भौगोलिक क्षेत्रों से बना है। पहला दादरा जो काफी छोटा क्षेत्र है तथा दूसरा नगर हवेली जो अपेक्षाकृत विस्तृत है। दोनों के बीच में गुजरात का वलसाड़ जिला है। दादरा चारों ओर से इस जिले से घिरा हुआ है, जबकि नगर हवेली की उत्तरी सीमा इसी जिले को छूती है और दक्षिणी भाग महाराष्ट्र से लगा हुआ है। यह संघ राज्य 20° 18′ उत्तरी अक्षांश तथा 73° 12′ पूर्वी देशान्तर पर गुजरात व महाराष्ट्र के बीच में स्थित है।

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प्रश्न 2.
दिल्ली के वर्तमान ढाँचे पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
वर्ष 1911 ई० में देश की राजधानी को कोलकाता से दिल्ली स्थानान्तरित किया गया। वर्ष 1956 ई० में इसे केन्द्र-शासित राज्य का स्तर प्राप्त हुआ। 69वें संविधान संशोधन अधिनियम (1991) के फलस्वरूप दिल्ली में विधानसभा का गठन किया गया। इस राज्य के लिए कुछ विशेष विधेयकों को पारित करने के लिए केन्द्र से अग्रिम स्वीकृति लेना अनिवार्य होता है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा द्वारा पारित कुछ विधेयकों को राष्ट्रपति द्वारा विचार करने तथा स्वीकृति के निमित्त रोक लिया जाता है।

दिल्ली को केन्द्र-शासित प्रदेशों के समान संविधान की सातवीं अनुसूची को सूची II और III में निहित मामलों में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन वह संविधान की अनुसूची II की प्रविष्टि 1 (सार्वजनिक सुरक्षा), 2 (पुलिस बल), और 18 ( भूमि, कृषि क्षेत्र तथा नई बस्तियाँ) पर कानून नहीं बना सकती है। अनेक क्षेत्रों में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली पर केन्द्रीय गृह मन्त्रालय के आन्तरिक सुरक्षा विभाग तथा गृह विभाग का सीधा हस्तक्षेप होता है। इस प्रकार दिल्ली की स्थिति राज्यों के प्रशासनिक ढाँचे से सर्वथा अलग प्रकार की है जो भारत के अन्य किसी राज्य में परिलक्षित नहीं होती है।

प्रश्न 3.
दिल्ली के अतिरिक्त अन्य संघीय क्षेत्रों के वर्तमान शासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
4 दिसम्बर, 1962 ई० को लोकसभा ने भारतीय संविधान का 14वाँ संशोधन पारित किया। बाद में राज्यसभा ने भी इसका अनुमोदन कर दिया तथा राष्ट्रपति ने अपनी अनुमति दे दी। भारतीय संविधान के 14वें संशोधन के द्वारा पुदुचेरी को भारतीय क्षेत्र में सम्मिलित किया गया। संविधान के 12वें संशोधन के द्वारा गोवा, दमन, दीव को भारतीय क्षेत्र में सम्मिलित किया गया। संविधान के 10वें संशोधन के द्वारा दादरा तथा नगर हवेली को भारतीय क्षेत्र में प्रविष्ट कर लिया गया। पहले ये फ्रांस तथा पुर्तगाल के अधिकार-क्षेत्र में थे।

मणिपुर व त्रिपुरा को 21 जनवरी, 1972 ई० को, हिमाचल प्रदेश को 25 जनवरी, 1981 ई० को, अरुणाचल प्रदेश को 1986 ई० को तथा गोवा को 1987 ई० को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान कर दिया गया।

अब भारत में 7 केन्द्रशासित क्षेत्र इस प्रकार हैं –

  1. चण्डीगढ़
  2. दिल्ली
  3. दमन और दीव
  4. दादरा और नगर हवेली
  5. पुदुचेरी
  6. लक्षद्वीप
  7. अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय राजधानी राज्य-क्षेत्र दिल्ली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
1911 ई० में अंग्रेजों द्वारा दिल्ली को भारत की राजधानी बनाया गया। तत्पश्चात् स्वतन्त्र भारत में 1956 ई० में दिल्ली को भारत संघ के केन्द्र-शासित प्रदेश का दर्जा प्रदान किया गया। वर्तमान समय में 69वें संवैधानिक संशोधन के द्वारा 1991 ई० में संघ राज्य-क्षेत्र दिल्ली को अब ‘राष्ट्रीय राजधानी राज्य-क्षेत्र दिल्ली के नाम से जाना जाता है। दिल्ली के प्रशासक को ‘उपराज्यपाल’ कहा जाता है, जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा वह राष्ट्रपति के प्रति ही उत्तरदायी होता है। इसके अतिरिक्त दिल्ली के लिए 70 सदस्यीय विधानसभा तथा मन्त्रिपरिषद् की व्यवस्था भी की गयी है। मन्त्रिपरिषद् के सम्बन्ध में स्मरणीय तथ्य यह है कि चुनाव के पश्चात् मन्त्रिपरिषद् के प्रधान अर्थात् मुख्यमन्त्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा मुख्यमन्त्री राष्ट्रपति के प्रति ही उत्तरदायी होता है।

प्रश्न 2.
1963 ई० के अधिनियम के अनुसार संघीय क्षेत्रों का प्रशासन किस प्रकार से संचालित होता है?
उत्तर :
संघीय क्षेत्र की विधानसभा अपने सम्पूर्ण क्षेत्र अथवा कुछ भाग के लिए उन विषयों के सम्बन्ध में कानून का निर्माण कर सकती है जो कि संविधान में दी गई सातवीं अनुसूची में राज्य सूची अथवा समवर्ती सूची में दिए गए हैं, यदि वे विषय इस क्षेत्र पर लागू होते हैं। यदि संघीय क्षेत्र की विधानसभा कोई ऐसा कानून पारित कर देती है जो संसद के किसी कानून के विरुद्ध है तो उस क्षेत्र की विधानसभा का कानून वहाँ तक अवैधानिक समझा जाएगा जहाँ तक कि वह संसद के कानून का विरोधी है।

प्रश्न 3.
पॉण्डिचेरी (आधुनिक पुदुचेरी) के शासकीय संगठन की रूपरेखा दीजिए।
उत्तर :
इस संघ राज्य-क्षेत्र में सर्वोच्च कार्यपालिका अधिकारी को उपराज्यपाल कहते हैं, जिसे राष्ट्रपति द्वारा 5 वर्ष की अवधि के लिए नियुक्त किया जाता है। इस क्षेत्र के लिए लोकप्रिय शासन की व्यवस्था की गयी है जिसके अनुसार इस क्षेत्र में मन्त्रिमण्डल और विधानसभा हैं। अन्य राज्यों की विधान-सभाओं और पुदुचेरी की विधानसभा में अन्तर केवल यह है कि पुदुचेरी विधानसभा की शक्तियाँ अन्य राज्यों की विधानसभाओं की तुलना में सीमित हैं। पुदुचेरी में एक मन्त्रिपरिषद् है, जिसका प्रधान मुख्यमन्त्री है। मन्त्रिपरिषद् उपराज्यपाल को प्रशासनिक कार्यों में सहायता के परामर्श प्रदान करती है।

प्रश्न 4.
केन्द्र-शासित प्रदेशों के शासन के प्रमुख के रूप में किसकी भूमिका है? या केन्द्र-शासित क्षेत्रों के प्रशासनिक ढाँचे का वर्णन कीजिए। [2009]
उत्तर :
केन्द्र-शासित प्रदेशों के शासन के संचालन को विभिन्न प्रकार की व्यवस्थाओं के अन्तर्गत रखा गया है, जैसे –

  1. दिल्ली, पुदुचेरी तथा अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह का शासन उपराज्यपाल के अधीन संचालित होता है।
  2. चण्डीगढ़, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव तथा लक्षद्वीप का शासन प्रशासक द्वारा संचालित किया जाता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
भारतीय संघ में केन्द्र-शासित क्षेत्रों की संख्या कितनी है? [2008, 16]
उत्तर :
भारतीय संघ में केन्द्र-शासित क्षेत्रों की संख्या 7 है।

प्रश्न 2.
किन्हीं चार (दो) केन्द्र-शासित प्रदेशों के नाम लिखिए।
उत्तर :

  1. चण्डीगढ़
  2. दादरा व नगर हवेली
  3. लक्षद्वीप
  4. पुदुचेरी।

प्रश्न 3.
वर्तमान समय में किन केन्द्र-शासित क्षेत्रों में लोकप्रिय सरकार है?
उत्तर :
वर्तमान समय में दो केन्द्र-शासित क्षेत्रों-दिल्ली और पुदुचेरी में लोकप्रिय सरकार/ विधानसभा और मन्त्रिपरिषद् हैं।

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 16 Union Territories and their Administrative System

प्रश्न 4.
केन्द्र-शासित क्षेत्र दिल्ली को मुख्य प्रशासक कौन है?
उत्तर :
केन्द्र-शासित क्षेत्र दिल्ली का मुख्य प्रशासक ‘उपराज्यपाल है, जिसे राष्ट्रपति 5 वर्ष के लिए नियुक्त करता है। वर्तमान में उपराज्यपाल श्री अनिल बैजल हैं।

प्रश्न 5.
मुख्य आयुक्त की नियुक्ति कौन करता है?
उत्तर :
मुख्य आयुक्त की नियुक्ति. राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में सदस्यों की संख्या कितनी है? वहाँ के मुख्यमन्त्री की नियुक्ति कौन करता है?
उत्तर :
संविधान के 69वें संशोधन अधिनियम, 1991 ई० के अनुसार दिल्ली की विधानसभा में सदस्यों की संख्या 70 है तथा वहाँ के मुख्यमन्त्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं।

प्रश्न 7.
किन्हीं दो केन्द्र प्रशासित क्षेत्रों (संघ-राज्य क्षेत्रों) की स्थिति बताइए।
उत्तर :

  1. लक्षद्वीप-लक्षद्वीप एक केन्द्र प्रशासित क्षेत्र है तथा यह अरब सागर में स्थित है।
  2. अण्डमान व निकोबार द्वीप समूह-यह भी एक केन्द्र प्रशासित क्षेत्र है तथा यह बंगाल की खाड़ी में स्थित है।

प्रश्न 8
केन्द्र प्रशासित कोई दो संघीय क्षेत्रों के नाम लिखिए जहाँ विधानसभा नहीं है। [2010]
उत्तर :

  1. दमन और दीव
  2. दादरा और नगर हवेली।

प्रश्न 9
कौन-सा केन्द्र-शासित प्रदेश दो राज्यों की राजधानी है? [2011, 14]
उत्तर
चण्डीगढ़।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा कब प्रदान किया गया?
(क) 1985 ई० में
(ख) 1986 ई० में
(ग) 1987 ई० में
(घ) 1988 ई० में।

प्रश्न 2.
गोवा, दीव व दमन तथा पुदुचेरी का प्रशासन किसके अधीन है?
(क) उपराज्यपाल
(ख) राज्यपाल
(ग) मुख्यायुक्त
(घ) प्रशासक

प्रश्न 3.
दिल्ली को राज्य का दर्जा प्रदान किया गया
(क) 1991 ई० में
(ख) 1994 ई० में
(ग) 1992 ई० में
(घ) 1993 ई० में।

प्रश्न 4.
1956 ई० में पारित राज्य पुनर्गठन अधिनियम के द्वारा निम्नलिखित में से किसको केन्द्र शासित क्षेत्र में सम्मिलित नहीं किया गया था?
या
निम्नलिखित में से केन्द्र-शासित राज्य कौन-सा है।
(क) जम्मू-कश्मीर
(ख) मेघालय
(ग) चण्डीगढ़
(घ) त्रिपुरा।

प्रश्न 5.
संघीय क्षेत्र के रूप में पुदुचेरी किस राज्य के साम्राज्यवाद से मुक्त हुआ था?
(क) ब्रिटेन
(ख) पुर्तगाल
(ग) फ्रांस
(घ) जर्मनी।

प्रश्न 6.
भारतीय संघ में सम्मिलित राज्यों की संख्या है
(क) 20
(ख) 25
(ग) 40
(घ) 29

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन संघ राज्य क्षेत्र है? [2012]
(क) गोवा
(ख) दिल्ली
(ग) छत्तीसगढ़
(घ) मेघालय।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से केन्द्र-शासित राज्य कौन-सा है? [2009]
(क) पुदुचेरी
(ख) सिक्किम
(ग) गोवा
(घ) मिजोरम

प्रश्न 9.
भारत में कुल कितने संघ-शासित क्षेत्र हैं? [2008, 09]
(क) 7
(ख) 8
(ग) 6
(घ) 9

उत्तर :

  1. (ग) 1987 ई० में
  2. (क) उपराज्यपाल
  3. (क) 1991 ई० में
  4. (ग) चण्डीगढ़
  5. (ग) फ्रांस
  6. (घ) 29
  7. (ख) दिल्ली
  8. (क) पुदुचेरी
  9. (क) 7

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UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 15 The State Legislature

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter Chapter 15
Chapter Name The State Legislature
(राज्य के विधानमण्डल)
Number of Questions Solved 39
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 15 The State Legislature (राज्य के विधानमण्डल)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1.
उत्तर प्रदेश की विधानसभा के संगठन एवं शक्तियों का उल्लेख कीजिए। [2016]
या
उत्तर प्रदेश के विधानमंडल के दोनों सदनों के संगठन एवं शक्तियों की परस्पर तुलना कीजिए। [2016]
या
उत्तर प्रदेश की विधानसभा की रचना तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
या
विधानसभा के संगठन, कार्यकाल तथा अधिकारों (शक्तियों) का उल्लेख कीजिए। [2007]
या
राज्य-मन्त्रिमण्डल की शक्तियों और कार्यों का वर्णन कीजिए।
या
राज्य विधान सभा की वित्तीय शक्तियों का वर्णन कीजिए। [2012]
या
राज्य विधानसभा के कार्यों का वर्णन कीजिए। उत्तर प्रदेश की विधानसभा के संगठन पर प्रकाश डालिए तथा उन उपायों का उल्लेख कीजिए जिनके द्वारा वह मन्त्रिपरिषद् को नियन्त्रित करती है। [2013]
या
राज्य में विधानसभा की दो शक्तियाँ लिखिए। [2008, 10, 12]
उत्तर :
राज्य विधानमण्डल
संविधान के द्वारा भारत के प्रत्येक राज्य में एक विधानमण्डल की व्यवस्था की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 168 में कहा गया है कि प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमण्डल होगा, जो राज्यपाल तथा कुछ राज्यों में दो सदन से मिलकर तथा कुछ में एक संदन से बनेगा। जिन राज्यों के दो सदन होंगे, उनके नाम क्रमशः विधानसभा और विधान-परिषद् होंगे। प्रत्येक राज्य में जनता द्वारा वयस्क मताधिकार द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों का सदन होता है। विधानमण्डल के इस प्रथम सदन को ‘विधानसभा’ कहते हैं। जिन राज्यों में विधानमण्डल का दूसरा सदन है, उसे ‘विधानपरिषद्” कहते हैं।

विधानसभा की रचना
विधानसभा विधानमण्डल का प्रथम और लोकप्रिय सदन है। जिन राज्यों में विधानमण्डल के दो सदन हैं, वहाँ पर विधानसभा विधान-परिषद् से अधिक शक्तिशाली है।

1. सदस्य-संख्या – संविधान में राज्य की विधानसभा के सदस्यों की केवल न्यूनतम और अधिकतम संख्या निश्चित की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 170 के अनुसार राज्य की विधानसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 500 और न्यूनतम संख्या 60 होगी। सम्पूर्ण प्रदेश को अनेक निर्वाचन क्षेत्रों में इस प्रकार विभाजित किया जाता है कि विधानसभा का प्रत्येक सदस्य कम-से-कम 75 हजार जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करे। इस नियम का अपवाद केवल असम के स्वाधीन जिले शिलाँग की छावनी और नगरपालिका के क्षेत्र, सिक्किम, गोआ, मिजोरम तथा अरुणाचल प्रदेश हैं। अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए जनसंख्या के आधार पर इसके स्थान सुरक्षित किये गये हैं।

2. सदस्यों की योग्यताएँ – विधानसभा के सदस्य के लिए व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताएँ होनी चाहिए –

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. उसकी आयु कम-से-कम 25 वर्ष हो।
  3. वह भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन लाभ के पद पर न हो।
  4. वह पागल या दिवालिया घोषित न हो।
  5. वह संसद या राज्य के विधानमण्डल द्वारा निर्धारित शर्तों को पूरा करता हो।
  6. किसी न्यायालय द्वारा उसे दण्डित न किया गया हो।

3. निर्वाचन पद्धति – विधानसभा सदस्यों का निर्वाचन वयस्क मताधिकार प्रणाली द्वारा होता है। कम-से-कम 18 वर्ष की आयु प्राप्त राज्य का प्रत्येक स्त्री, पुरुष मतदान का अधिकारी होता है। इस प्रकार ऐसे व्यक्तियों की मतदाता सूची तैयार कर ली जाती है। निश्चित तिथि को मतदान होता है। मतगणना पश्चात् सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले व्यक्तियों को निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। यह समस्त चुनाव प्रक्रिया देश का निर्वाचन आयोग सम्पन्न कराता है।

4. कार्यकाल – राज्य विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। राज्यपाल द्वारा इसे समय से पूर्व भी भंग किया जा सकता है। यदि संकटकाल की घोषणा हो तो संसद विधि द्वारा विधानसभा का कार्यकाल बढ़ा सकती है जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगा तथा किसी भी अवस्था में संकटकाल की घोषणा समाप्त हो जाने के बाद 6 माह की अवधि से अधिक नहीं होगा।

5. पदाधिकारी – प्रत्येक राज्य की विधानसभा के दो प्रमुख पदाधिकारी होते हैं – (1) अध्यक्ष (Speaker) तथा (2) उपाध्यक्ष (Deputy Speaker)। इन दोनों का चुनाव विधानसभा के सदस्य अपने सदस्यों में से ही करते हैं तथा इनका कार्यकाल विधानसभा के कार्यकाल तक होता है। अध्यक्ष के वही सब कार्य होते हैं जो लोकसभा अध्यक्ष के होते हैं।

राज्य विधानसभा के कार्य और शक्तियाँ

विधानसभा राज्य की व्यवस्थापिका है। संविधान द्वारा राज्य विधानसभा को व्यापक शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं। राज्य विधानसभा की शक्तियों का अध्ययन निम्नलिखित सन्दर्भो में किया जा सकता है –

1. निर्वाचन सम्बन्धी शक्ति – राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेते हैं। इसके अतिरिक्त जिन राज्यों में द्वितीय सदन (विधान-परिषद्) की व्यवस्था है, उसके 1/3 सदस्यों का निर्वाचन विधानसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है।

2. विधायी शक्ति – राज्य की विधानसभा को सामान्यत: उन सभी विषयों पर कानून-निर्माण की शक्ति प्राप्त होती है जो राज्य सूची और समवर्ती सूची में दिये गये हैं। यद्यपि कोई भी विधेयक कानून का स्वरूप तभी धारण करता है जब उसे दोनों सदनों की स्वीकृति प्राप्त हो जाती है, किन्तु इस विषय में विधानसभा की शक्तियाँ विधान-परिषद् की शक्तियों से बहुत अधिक हैं। विधान-परिषद् विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को 4 माह के लिए रोककर केवल देरी ही कर सकती है। समवर्ती सूची के विषय पर राज्यसभा द्वारा निर्मित कोई विधि यदि उसी विषय पर संसद द्वारा निर्मित विधि के विरुद्ध हो तो राज्य विधानमण्डल द्वारा निर्मित विधि मान्य नहीं होगी। राज्य विधानमण्डल की कानून-निर्माण की शक्ति पर निम्नलिखित प्रतिबन्ध भी हैं –

(i) अनुच्छेद 356 के अनुसार यदि राज्य में संविधान तन्त्र भंग होने के कारण राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है।
(ii) कुछ विधेयक राज्य विधानमण्डल में प्रस्तावित किये जाने के पूर्व उन पर राष्ट्रपति की अनुमति आवश्यक होती है। ऐसे विधेयक वे हैं जिनका सम्बन्ध राज्य के भीतर या विभिन्न राज्यों के बीच व्यापार, वाणिज्य व आने-जाने की स्वतन्त्रता पर रोक लगाने से होता है।
(iii) संघीय संसद अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों और समझौतों का पालन करने के लिए भी राज्य सूची के किसी विषय पर कानून बना सकती है।

3. वित्तीय शक्ति – विधानसभा को राज्य के वित्त पर पूर्ण नियन्त्रण प्राप्त होता है। आय-व्यय का वार्षिक लेखा विधानसभा से स्वीकृत होने पर ही शासन के द्वारा आय-व्यय से सम्बन्धित कोई कार्य किया जा सकता है। वित्त विधेयक केवल विधानसभा में प्रस्तुत किये जा सकते हैं। वित्तीय मामलों में विधान-परिषद् विधानसभा से अत्यधिक दुर्बल सदन है। विधानसभा से विनियोग विधेयक पारित होने पर ही सरकार संचित निधि से व्यय हेतु धन खर्च कर सकती है।

4. प्रशासनिक शक्ति – संविधान द्वारा राज्यों के क्षेत्र में भी संसदात्मक व्यवस्था स्थापित किये जाने के कारण राज्य का मन्त्रिमण्डल अपनी नीति और कार्यों के लिए विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है। विधानसभा सदस्यों द्वारा मन्त्रियों से उनके विभागों के सम्बन्ध में प्रश्न पूछे जा सकते हैं व काम रोको प्रस्ताव पारित किया जा सकता है। विधानसभा कभी भी राज्य मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध ‘अविश्वास प्रस्ताव पारित करके इसे उसके पद से हटा सकती है।

5. संविधान संशोधन शक्ति – हमारे संविधान की कुछ धाराएँ ऐसी हैं कि संसद द्वारा बहुमत के आधार पर पारित प्रस्ताव को कम-से-कम आधे राज्यों की विधानसभाओं द्वारा स्वीकार किया जाए। इस प्रकार राज्य विधानसभा संविधान संशोधन के कार्य में भी भाग लेती है।

[संकेत – विधान परिषद् के संगठन एवं शक्तियाँ शीर्षक का अध्ययन विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 2. तथा विधानसभा द्वारा मन्त्रिपरिषद् पर नियन्त्रण’ शीर्षक का अध्ययन लघु उत्तरीय प्रश्न 4 (शब्द-सीमा 150 शब्द) के अन्तर्गत करें तथा विधान परिषद् के संगठन एवं शक्तियों की परस्पर तुलना के लिए, विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 2 का उत्तर देखें।]

प्रश्न 2.
उत्तर प्रदेश की विधानपरिषद की रचना किस प्रकार होती है? उसके कार्यों का वर्णन कीजिए। [2013]
या
उत्तर प्रदेश की विधान-परिषद की रचना पर प्रकाश डालिए। [2013]
उत्तर :
विधान-परिषद की रचना अथवा संगठन राज्य, विधान परिषद् की संरचना को निम्नवत् स्पष्ट किया जा सकता है –

1. सदस्य-संख्या – विधान-परिषद् राज्य के विधानमण्डल का उच्च सदन होता है। यह एक स्थायी सदन है। संविधान में व्यवस्था की गयी है कि प्रत्येक राज्य की विधान-परिषद् की सदस्य-संख्या उसकी विधानसभा के सदस्यों की संख्या के 1/3 से अधिक न होगी, किन्तु किसी भी स्थिति में उसकी सदस्य संख्या 40 से कम नहीं होनी चाहिए।

2. सदस्यों को निर्वाचन – विधान-परिषद् के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है तथा कुछ सदस्यों को मनोनीत भी किया जाता है। निम्नलिखित निर्वाचक मण्डल विधान-परिषद् के सदस्यों का चुनाव करते हैं –

(अ) विधानसभा का निर्वाचक मण्डल – कुल सदस्य संख्या के 1/3 सदस्यों का निर्वाचन विधानसभा के सदस्य ऐसे व्यक्तियों में से करते हैं, जो विधानसभा के सदस्य न हों।
(ब) स्थानीय संस्थाओं का निर्वाचक मण्डल – समस्त सदस्यों का 1/3 भाग, उस राज्य की नगरपालिकाओं, जिला परिषदों और अन्य स्थानीय संस्थाओं द्वारा चुना जाता है, जैसा संसद कानून द्वारा निश्चित करे।
(स) अध्यापकों का निर्वाचक मण्डल – इसमें वे अध्यापक होते हैं जो राज्य के अन्तर्गत किसी माध्यमिक पाठशाला या इससे उच्च शिक्षण संस्था में 3 वर्ष से पढ़ा रहे हों। यह निर्वाचक मण्डल कुल सदस्यों के 1/12 भाग को चुनता है।
(द) स्नातकों का निर्वाचक मण्डल – यह ऐसे शिक्षित व्यक्तियों को मण्डल होता है जो इस राज्य में रहते हों तथा स्नातक स्तर की परीक्षा पास कर ली हो और जिन्हें यह परीक्षा पास किये 3 वर्ष से अधिक हो गये हों। यह मण्डल कुल सदस्यों के 1/12 भाग को चुनता है।
(य) राज्यपाल द्वारा मनोनीत सदस्य – कुल सदस्य संख्या के 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा उन व्यक्तियों में से मनोनीत किये जाते हैं जो साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक सेवा के क्षेत्रों में विशेष रुचि रखते हों।

3. सदस्यों की योग्यताएँ – विधान-परिषद् की सदस्यता के लिए भी वे ही योग्यताएँ हैं, जो विधानसभा की सदस्यता के लिए हैं। भिन्नता केवल इतनी है कि विधान परिषद् की सदस्यता के लिए न्यूनतम आयु 30 वर्ष होनी चाहिए। निर्वाचित सदस्य को उस राज्य की विधानसभा के किसी निर्वाचन क्षेत्र का सदस्य तथा निवासी भी होना चाहिए।

4. कार्यकाल – विधान परिषद् इस दृष्टि से स्थायी है कि पूर्ण विधान परिषद् कभी भी भंग नहीं होती। विधान-परिषद् के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष है। प्रति दो वर्ष के बाद 1/3 सदस्य अपने पद से मुक्त होते रहते हैं और उनके स्थान पर नये सदस्य निर्वाचित होते हैं।

5. वेतन तथा भत्ते – विधान परिषद् के सदस्यों के वेतन और भत्ते विधानसभा सदस्यों के बराबर हैं। उत्तर प्रदेश में पारित किये गये कानून के अन्तर्गत विधानमण्डल के प्रत्येक सदस्य (विधायक) को प्रति माह वेतन, निर्वाचन-क्षेत्र भत्ता, जन सेवा भत्ता, सचिवीय भत्ता, चिकित्सा भत्ता तथा मकान किराया भत्ता मिलता है। इसके अतिरिक्त उसे प्रति वर्ष रेल यात्रा के कूपन भी मिलते हैं। इन कूपनों को हवाई यात्रा कूपनों में परिवर्तित कराने की भी सुविधा प्राप्त है। इन्हें पानी, बिजली, टेलीफोन एवं फर्नीचर की सुविधाओं के साथ-साथ उ० प्र० रा० प० नि० की बसों में मुफ्त यात्रा का भी प्रावधान है। मकान बनवाने अथवा कार खरीदने के लिए ब्याज मुक्त ऋण तथा आजीवन पेन्शन की भी व्यवस्था है। इन्हें प्राप्त होने वाले वेतन तथा भत्तों की राशि में समय-समय पर परिवर्तन होते रहते हैं।

6. पदाधिकारी – विधान परिषद् में मुख्यत: दो पदाधिकारी होते हैं, जिन्हें सभापति तथा उपसभापति कहते हैं। विधान परिषद् के सदस्य अपने में से इनका चुनाव करते हैं।

विधान-परिषद् के अधिकार तथा कार्य

विधान-परिषद्, विधानसभा की तुलना में एक कमजोर सदन है, फिर भी इसे निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त हैं –

1. कानून-निर्माण कार्य – साधारण विधेयक राज्य विधानमण्डल के किसी भी सदन में प्रस्तावित किये जा सकते हैं तथा वे विधेयक दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत होने चाहिए। यदि कोई विधेयक विधानसभा से पारित होने के बाद विधान–परिषद् द्वारा अस्वीकृत कर दिया जाता है। या परिषद् विधेयक में ऐसे संशोधन करती है जो विधायकों को स्वीकार्य नहीं होते या परिषद् के समक्ष विधेयक रखे जाने की तिथि से तीन माह तक विधेयक पारित नहीं किया जाता है। तो विधानसभा उस विधेयक को पुनः स्वीकृत करके विधानपरिषद् को भेजती है। इस बार विधान परिषद् विधेयक को स्वीकृत करे या न करे, एक माह बाद यह विधान परिषद् द्वारा स्वीकृत मान लिया जाता है।

2. कार्यपालिका शक्ति – विधानपरिषद प्रश्नों, प्रस्तावों तथा वाद-विवाद के आधार पर मन्त्रि परिषद् के विरुद्ध जनमत तैयार करके उसको नियन्त्रित कर सकती है, किन्तु उसे मन्त्रिपरिषद् को पदच्युत करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि कार्यपालिका केवल विधानसभा के प्रति ही उत्तरदायी होती है।

3. वित्तीय कार्य – वित्त विधेयक केवल विधानसभा में ही प्रस्तावित किये जाते हैं, विधानपरिषद् में नहीं। विधानसभा किसी वित्त विधेयक को पारित कर स्वीकृति के लिए विधान-परिषद्, के पास भेजती है तो विधान-परिषद् या तो 14 दिन के अन्दर उसे ज्यों-का-त्यों स्वीकार कर सकती है या फिर अपनी सिफारिशों सहित विधानसभा को वापस लौटा सकती है। यह विधानसभा पर निर्भर है कि वह विधान-परिषद् की सिफारिशें माने या न माने। यदि परिषद् 14 दिन के अन्दर विधेयक पर कोई निर्णय नहीं लेती तो वह दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत मान लिया जाता है।

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प्रश्न 3.
राज्य विधानमण्डल में कानून-निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। [2013, 15]
या
राज्य विधानमण्डल में कानून का निर्माण कैसे होता है? इसकी प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए।
या
उत्तर प्रदेश राज्य में विधि-निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। [2008]
उत्तर :
राज्य विधानमण्डल में कानून-निर्माण की प्रक्रिया

(1) साधारण विधेयकों के सम्बन्ध में
साधारण विधेयक मन्त्रिपरिषद् के किसी सदस्य या राज्य विधानमण्डल के किसी सदस्य द्वारा विधानमण्डल के किसी भी सदन में रखे जा सकते हैं। यदि विधेयक किसी मन्त्रिपरिषद् के सदस्य द्वारा रखा जाता है तो इसे सरकारी विधेयक’ और यदि राज्य विधानमण्डल के किसी अन्य सदस्य द्वारा रखा जाता है तो इसे ‘निजी सदस्य विधेयक’ कहा जाता है। राज्य विधानमण्डल को भी कानून-निर्माण के लिए लगभग वैसी प्रक्रिया अपनानी होती है जैसी प्रक्रिया संसद के द्वारा अपनायी जाती है। ऐसे विधेयक को कानून का रूप ग्रहण करने के लिए निम्नलिखित चरणों से गुजरना होता है –

(अ) विधेयक को प्रेषित करना तथा प्रथम वाचन – सरकारी विधेयक के लिए कोई पूर्व सूचना आवश्यक नहीं होती है, परन्तु निजी सदस्य विधेयकों के लिए एक महीने पहले ही सूचना देना आवश्यक है। सरकारी विधेयक साधारणतः सरकारी गजट में छापा जाता है। ‘निजी सदस्य विधेयक को प्रस्तुत करने के लिए दिन निश्चित किया जाता है। निश्चित दिन को विधेयक प्रस्तुत करने वाला सदस्य अपने स्थान पर खड़ा होकर उस विधेयक को पेश करने के लिए सदन से आज्ञा माँगता है और विधेयक के शीर्षक को पढ़ता है। यदि विधेयक अधिक महत्त्वपूर्ण है तो विधेयक पेश करने वाला सदस्य विंधेयक पर एक संक्षिप्त भाषण भी दे सकता है। यदि उस सदन में उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्य बहुमत से विधेयक का समर्थन करते हैं तो विधेयक सरकारी गजट में छाप दिया जाता है। यही विधेयक का प्रथम वाचन समझा जाता है।

(ब) द्वितीय वाचन – प्रथम वाचन के बाद विधेयक प्रस्तावित करने वाला सदस्य प्रस्ताव रखता है कि उसके विधेयक का दूसरा वाचन किया जाए। इस अवस्था में विधेयक के सामान्य सिद्धान्तों पर ही वाद-विवाद होता है, उसकी एक-एक धारा पर बहस नहीं होती है। जब इस प्रकार की बहस के बाद कोई विधेयक पारित हो जाता है तो उसे प्रवर समिति (Select Committee) के पास भेज दिया जाता है।

(स) प्रवर समिति अवस्था – द्वितीय वाचन के पश्चात् विवादपूर्ण विधेयक को प्रवर समिति के पास भेज दिया जाता है। इसमें विधानमण्डल के 15 से 30 तक सदस्य होते हैं। इस अवस्था में विधेयक की प्रत्येक धारा पर गहरा विचार किया जाता है।

(द) तृतीय वाचन – प्रतिवेदन अवस्था की समाप्ति के कुछ समय बाद उसका तृतीय वाचन प्रारम्भ होता है। इस अवस्था में विधेयक के साधारण सिद्धान्तों पर फिर से बहस की जाती है और विधेयक में भाषा सम्बन्धी सुधार किये जाते हैं। इस अवस्था में विधेयक की धाराओं में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता। इसे या तो स्वीकार किया जाता है या अस्वीकार। इसके बाद मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के बहुमत द्वारा स्वीकार होने पर इसे सदन द्वारा स्वीकृत समझा जाता है।

(य) विधेयक दूसरे सदन में – एक सदन द्वारा विधेयक स्वीकार कर लिये जाने पर जिन राज्यों में विधानमण्डल का एक ही सदन है, वहाँ विधेयक राज्यपाल के पास भेज दिया जाता है। और जिन राज्यों में विधानमण्डल के दो सदन हैं, वहाँ विधेयक दूसरे सदन में भेज दिया जाता है। द्वितीय सदन में भी विधेयक को उन्हीं अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है जिने अवस्थाओं से होकर विधेयक प्रथम सदन में गुजरा था। यदि विधेयक विधानसभा द्वारा पारित होने के पश्चात् विधान-परिषद् द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है या तीन महीने तक विचार पूरा नहीं होता तो विधानसभा उस विधेयक को पुन: स्वीकार करके परिषद् के पास भेजती है। तब यदि विधाने-परिषद् पुनः विधेयक अस्वीकार कर देती है अथवा दोबारा विधेयक आने की तिथि से एक माह बाद तक विधेयक पारित नहीं करती या विधेयक में पुनः ऐसे संशोधन करती है जो विधानसभा को स्वीकार नहीं होते तो विधेयक विधान-परिषद् द्वारा पारित किये बिना ही दोनों सदनों द्वारा पारित हुआ माना जाता है।

(र) राज्यपाल की स्वीकृति – विधेयक दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत होने पर राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। राज्यपाल या तो इस विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे देता है या अपनी ओर से कुछ संशोधनों का सुझाव देकर विधेयक विधानमण्डल के पास दोबारा भेज सकता है। यदि इस बार भी विधेयक को उसी रूप में या राज्यपाल की सिफारिशों के अनुरूप पारित कर देता है तो राज्यपाल को उस विधेयक पर अवश्य ही अपनी अनुमति प्रदान करनी पड़ेगी। राज्यपाल की स्वीकृति के बाद यह विधेयक कानून बन जाता है। अनेक बार राज्यपाल कुछ विशेष प्रकार के विधेयकों को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज देता है। ऐसे विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त करने के बाद ही कानून बन पाते हैं।

(2) वित्त विधेयकों के सम्बन्ध में

जहाँ तक वित्त विधेयक की प्रक्रिया का सम्बन्ध है ये केवल विधानसभा में ही प्रस्तुत किये जाते हैं और विधान-परिषद् को वित्त विधेयकों के सम्बन्ध में लगभग वे ही अधिकार प्राप्त हैं। जो राज्यसभा को केन्द्रीय वित्त विधेयकों के सम्बन्ध में हैं। विधानसभा द्वारा पारित वित्त विधेयक विधान-परिषद् के पास विचारार्थ भेज दिया जाता है। यदि विधान-परिषद् उस विधेयक को प्राप्ति की तिथि से 14 दिन बाद तक न लौटाये तो वह विधेयक दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत समझा जाएगा। यदि विधान परिषद् 14 दिन की अवधि में विधेयक को अपने संशोधनों सहित लौटा भी दे तो इन संशोधनों को स्वीकार या अस्वीकार करना विधानसभा पर निर्भर करता है। विधानसभा इन संशोधनों के साथ या इन संशोधनों के बिना किसी रूप में भी विधेयक को राज्यपाल के पास भेज सकती है। और राज्यपाल की स्वीकृति से वह विधेयक कानून का रूप धारण कर लेता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
राज्य विधानमण्डल के दोनों सदनों के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए। [2013]
या
विधानसभा और विधान-परिषद् की तुलना कीजिए। इनमें से कौन अधिक शक्तिशाली है और क्यों? [2013]
उत्तर :
उत्तर प्रदेश के विधानमण्डल में दो सदन हैं। इसके निम्न सदन को विधानसभा तथा उच्च सदन को विधान-परिषद् कहते हैं। विधानसभा की तुलना में विधान परिषद् की स्थिति काफी कमजोर है। यह एक निर्बल द्वितीय सदन है। इन दोनों के पारस्परिक सम्बन्धों को इस प्रकार समझा जा सकता है

1. विधायिनी क्षेत्र में विधायिनी क्षेत्र में विधानसभा व विधान-परिषद् के सम्बन्ध इस प्रकार है –

(अ) साधारण विधेयक के सम्बन्ध में – साधारण विधेयकों के सम्बन्ध में राज्यसभा को लोकसभा के बराबर अधिकार दिये गये हैं, किन्तु विधानपरिषद् के सन्दर्भ में ऐसा नहीं कहा जा सकता है। उसे विधानसभा की इच्छा माननी ही पड़ती है। विधानसभा द्वारा पारित प्रत्येक साधारण विधेयक को स्वीकृति के लिए विधान परिषद् के पास भेजा जाता है। यदि विधान-परिषद् ऐसे किसी भी विधेयक को अस्वीकृत करे या संशोधित करे या तीन महीने तक उस पर कोई निर्णय ही न ले तो विधानसभा उसे पुनः पारित करके विधान परिषद् में भेज सकती है। इस स्थिति में यदि विधान-परिषद् अब भी उसे पारित न करे या एक महीने तक उस पर कोई निर्णय न ले तो विधेयक विधान-परिषद् द्वारा स्वीकृत मान लिया जाएगा और उसे राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए भेज दिया जाएगा। इस प्रकार साधारण विधेयकों के पारित होने में विधान परिषद् अधिक-से-अधिक चार महीने की देरी कर सकती है। कानून बनाने में अन्तिम शक्ति विधानसभा की ही रहती है।

(ब) वित्त विधेयक के सम्बन्ध में – लोकतन्त्रात्मक राज्यों में वित्तीय विधेयकों पर निम्न सदन की सम्मति ही सर्वमान्य होती है। विधानसभा भी इसका अपवाद नहीं है। वित्तीय विधेयक केवल विधानसभा में ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं, परन्तु विधान-परिषद् को उन पर अपनी सम्मति व्यक्त करने का पूरा अधिकार है चाहे विधानसभा उसे माने या न माने। नियम यह है कि विधानसभा में पारित हो जाने के बाद प्रत्येक वित्त विधेयक विधान परिषद् की संस्तुति के लिए भेजा जाता है। यदि विधान-परिषद् वित्त विधेयक में कोई संशोधन करे जो विधानसभा को मान्य नहीं है या 14 दिन में कोई वित्त विधेयक बिना निर्णय के लौट आये तो यह विधान-परिषद् द्वारा स्वीकृत मान लिया जाता है। और उसे सीधा राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए भेज दिया जाता है।

2. कार्यपालिका क्षेत्र में – राज्य की मन्त्रिपरिषद् विधानसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है और यही उसे अविश्वास प्रस्ताव द्वारा पदच्युत कर सकती है। विधानपरिषद् को मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव रखने का अधिकार नहीं है। यद्यपि विधान-परिषद् के कुछ सदस्य मन्त्रिपरिषद् के सदस्य होते हैं, यहाँ तक कि कुछ राज्यों में इसी सदन के मुख्यमन्त्री भी हो चुके हैं, परन्तु विधान-सभा ही मन्त्रिपरिषद् पर नियन्त्रण रखती है। विधान-परिषद् इस सन्दर्भ में काफी कमजोर सिद्ध होती है।

3. अन्य क्षेत्रों में विधान – परिषद् राष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सदस्यों के निर्वाचन में भाग नहीं ले सकती। केवल विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों को यह अधिकार प्राप्त है। संविधान संशोधन में भी विधानसभाओं की ही राय ली जाती है। विधान-परिषद् को इस सम्बन्ध में कुछ नहीं करना पड़ता। इतना ही नहीं, विधान परिषद् के 1/3 सदस्यों का निर्वाचन तक भी विधानसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है। इस प्रकार से विधान परिषदों की स्थिति कमजोर है। राज्यों के द्वितीय सदन की इस निर्बल स्थिति को देखते हुए आलोचकों का कहना है कि जो संस्था किसी विधेयक के पारित होने में केवल चार महीने की देर कर सकती है, उसे बनाये रखने का कोई औचित्य नहीं। अत: इस पर जनता का धन खर्च करना व्यर्थ है। सत्तारूढ़ दल इसे सदन को अपने दलीय हितों की वृद्धि का साधन बना लेते हैं।

विधान-परिषद् की आवश्यकता

निर्बल स्थिति होने पर भी विधानपरिषद् का महत्त्व कम नहीं आँका जा सकता। इसके द्वारा विधानसभा का कार्यभार हल्का हो जाता है। यहाँ कम सदस्य होते हैं, इसलिए शान्त और गम्भीर वातावरण में अच्छी तरह वाद-विवाद हो जाता है। यह विधि-निर्माण में जल्दबाजी पर रोक लगाता है, जिससे इस बीच विधेयक के सम्बन्ध में जनमत जानने का अवसर भी मिल जाता है। इसके द्वारा विभिन्न वर्गों, अल्पसंख्यकों तथा विभिन्न व्यवसायों का प्रतिनिधित्व किया जा सकता है। साथ ही राज्यपाल द्वारा अनुभवी और विशेषज्ञों को मनोनीत करने से प्रशासन को अवश्य ही लाभ पहुंचता है।

प्रश्न 2.
विधानसभा के विधान-परिषद् से अधिक शक्तिशाली होने के कारणों का उल्लेख कीजिए।
या
इस राज्य में विधानसभा विधान-परिषद् से अधिक शक्तिशाली है” इस कथन का परीक्षण कीजिए। [2012]
उत्तर :
विधानसभा तथा विधान-परिषद् की शक्तियों के निम्नलिखित तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि विधानसभा विधान-परिषद् की तुलना में अधिक शक्तिशाली है।

1. प्रतिनिधित्व के सम्बन्ध में – विधानसभी राज्य की जनता की प्रतिनिधि है, जब कि विधान परिषद् कुछ विशेष वर्गों की।

2. कार्यपालिका के सम्बन्ध में – राज्य की मन्त्रिपरिषद् विधानसभा के ही प्रति उत्तरदायी होती है, विधान परिषद् के प्रति नहीं। विधान परिषद् केवल प्रश्न, पूरक प्रश्न तथा स्थगन प्रस्ताव उपस्थित कर मन्त्रिपरिषद् के कार्यों की जाँच तथा आलोचना ही कर सकती है। मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पास कर उसे पदच्युत करने का कार्य विधानसभा के द्वारा ही किया जा सकता है।

3. वित्त के क्षेत्र में – वित्त विधेयक विधानसभा में ही प्रस्तावित किये जा सकते हैं। विधानसभा से स्वीकृत होने पर जब कोई वित्त विधेयक विधान-परिषद् को भेजा जाता है तथा परिषद् 14 दिन के भीतर संशोधन सहित वापस कर देती है, उन संशोधनों को स्वीकार करने का अधिकार विधानसभा को है। यदि परिषद् 14 दिन के भीतर वित्त विधेयक नहीं लौटाती है, तो विधेयक दोनों सदनों से पारितं समझा जाता है। अनुदान की माँगों पर मतदान भी केवल विधानसभा में ही होता है। इस दृष्टि से राज्यों में विधान-परिषद् को वैसी ही स्थिति प्राप्त होती है जैसी स्थिति केन्द्र में राज्यसभा की है।

4. राष्ट्रपति के निर्वाचन के सम्बन्ध में – राष्ट्रपति के निर्वाचन में भी केवल विधानसभा के सदस्य ही भाग लेते हैं, विधान परिषद् के सदस्य नहीं।

विधानसभा तथा विधान-परिषद् की शक्तियों के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि विधान-सभा विधान-परिषद् की तुलना में अधिक शक्तिसम्पन्न है। डॉ० ए० पी० शर्मा के शब्दों में, जो समानता का ढोंग लोकसभा और राज्यसभा के बीच है, वह विधानसभा और विधानपरिषद् के बीच नहीं।” विधानसभा का अधिक शक्तिशाली होना स्वाभाविक भी है, क्योंकि विधानसभा जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित है, विधान-परिषद् अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित है।

प्रश्न 3.
विधानसभा अध्यक्ष के कार्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। [2008, 10]
उत्तर :
विधानसभा अध्यक्ष के कार्य निम्नलिखित हैं –

  1. वह विधानसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है और सदन की कार्यवाही का संचालन करता
  2. सदन में शान्ति और व्यवस्था बनाये रखना उसका मुख्य उत्तरदायित्व है तथा इस हेतु उसे समस्त आवश्यक कार्यवाही करने का अधिकार है।
  3. सदन का कोई भी सदस्य सदन में उसकी आज्ञा से ही भाषण दे सकता है।
  4. वह सदन की कार्यवाही से ऐसे शब्दों को निकाले जाने का आदेश दे सकता है जो असंसदीय या अशिष्ट हैं।
  5. सदन के नेता के परामर्श से वह सदन की कार्यवाही का क्रम निश्चित कर सकता है।
  6. वह प्रश्नों को स्वीकार करता या नियम-विरुद्ध होने पर उन्हें अस्वीकार करता है।
  7. वह किसी प्रश्न पर मतदान कराता और परिणाम की घोषणा करता है।
  8. सामान्य स्थिति में वह सदन में मतदान में भाग नहीं लेता लेकिन यदि किसी प्रश्न पर पक्ष और विपक्ष में बराबर मत आयें, तो वह ‘निर्णायक मत’ (Casting Vote) का प्रयोग करता है।
  9. कोई विधेयक ‘धन विधेयक’ (Money Bill) है अथवा नहीं इसका निर्णय अध्यक्ष करता है।
  10. विधानसभा और विधान परिषद् के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता वही करता है।
  11. सदन तथा राज्यपाल के बीच ‘अध्यक्ष’ ही सम्पर्क स्थापित करता है।
  12. वह सदन के सदस्यों के अधिकारों की रक्षा करता है।
  13. वह विधानमण्डल की कुछ समितियों का पदेन सभापति होता है।
  14. वह सदन की दर्शक दीर्घा में दर्शकों और प्रेस प्रतिनिधियों के प्रवेश पर नियन्त्रण भी लगा सकता है।

अध्यक्ष की अनुपस्थिति में इन सभी कार्यों का सम्पादन उपाध्यक्ष करता है। यदि दोनों ही अनुपस्थित हों तो विधानसभा अपने सदस्यों में से एक कार्यवाहक अध्यक्ष चुन लेती है।

प्रश्न 4.
“विधानसभा, राज्य मन्त्रिपरिषद पर नियन्त्रण रखती है।” दो तर्क देते हुए इस कथनका औचित्य स्पष्ट कीजिए।
या
विधानसभा मन्त्रिपरिषद पर किस प्रकार नियन्त्रण रखती है ? [2010, 11]
या
विधानसभा तथा मन्त्रिपरिषद् के सम्बन्धों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
संविधान के अनुसार, विधानसभा तथा मन्त्रिपरिषद् परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। बेजहाट का कथन है कि “मन्त्रिपरिषद् अपने जन्म की दृष्टि से विधायिका से सम्बन्धित है।” मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। किन्तु वास्तव में स्थिति इसके विपरीत होती है, क्योंकि मन्त्रिपरिषद् बहुमत दल की होती है, इसलिए विधानसभा इस पर अधिक नियन्त्रण नहीं रख पाती है तथा मुख्यमन्त्री भी विधानसभा को भंग कर सकता है। विधानसभा, प्रश्नों, पूरक प्रश्नों तथा काम रोको प्रस्तावों द्वारा मन्त्रिपरिषद् पर नियन्त्रण रखती है तथा निम्नलिखित आधारों पर मन्त्रिपरिषद् को पदच्युत कर सकती है –

  1. अविश्वास के प्रस्ताव द्वारा – विधानसभा के सदस्य मन्त्रिपरिषद् से असन्तुष्ट होकर सदन के सामने अविश्वास का प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकते हैं। इस प्रस्ताव के पारित हो जाने पर मन्त्रिपरिषद् को त्याग-पत्र देना होता है।
  2. विधेयक की अस्वीकृति – मन्त्रिपरिषद् द्वारा प्रस्तुत किसी विधेयक को यदि विधानसभा स्वीकृति न दे तो ऐसी दशा में भी मन्त्रिपरिषद् को अपना पद त्यागना पड़ता है।
  3. किसी मन्त्री के प्रति अविश्वास – यदि विधानसभा किसी मन्त्री-विशेष के प्रति अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर दे तो भी सम्पूर्ण मन्त्रिपरिषद् को त्याग-पत्र देने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
  4. गैर-सरकारी प्रस्तावे – विरोधी दलों के प्रस्ताव को गैर-सरकारी और मन्त्रिपरिषद् द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव को सरकारी प्रस्ताव कहते हैं। यदि विधानसभा किसी ऐसे गैर-सरकारी प्रस्ताव को स्वीकृत कर दे जिसका मन्त्रिपरिषद् विरोध कर रही हो, तो इस स्थिति में सम्बन्धित मन्त्री को अपना पद त्यागना होगा। सैद्धान्तिक दृष्टि से तो मन्त्रिपरिषद् पर विधानसभा द्वारा नियन्त्रण रखा जाता है, किन्तु व्यवहार में दलीय अनुशासन के कारण मन्त्रिपरिषद् ही विधानसभा पर नियन्त्रण रखती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
राज्य में विधानपरिषद के अस्तित्व के पक्ष में चार तर्क दीजिए। [2007]
उत्तर :
उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र जैसे विशाल राज्यों में विधानपरिषद् का अस्तित्व निश्चित रूप से अपना महत्त्व रखता है। इसके अस्तित्व के पक्ष में प्रमुख तर्क हैं –

  1. विधेयक को अधिकतम चार महीने की अवधि तक रोके रखकर यह प्रथम सदन विधानसभा की मनमानी पर रोक लगाता है।
  2. विधानसभा, प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होती है। विधानपरिषद् अप्रत्यक्ष रूप से। जिन वर्गों को प्रथम सदन में प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं होता, वे द्वितीय सदन में प्रतिनिधित्व प्राप्त कर सकते हैं।
  3. विधेयक को चार माह तक रोके रखकर विधानपरिषद् विधेयक पर जनमत जाग्रत करने का कार्य करती है।

प्रश्न 2.
राज्य के विधानमण्डल में कौन-कौन से अंग होते हैं? [2007]
उत्तर :
प्रत्येक राज्य का विधानमण्डल राज्यपाल और राज्य के विधानमण्डल से मिलकर बनता है। कुछ राज्यों के विधानमण्डल के दो सदन होते हैं, अर्थात् विधानसभा व विधान परिषद्। उत्तर प्रदेश तथा बिहार में द्वि-सदनात्मक विधानमण्डल हैं।

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प्रश्न 3.
उत्तर प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल क्या है? [2015]
उत्तर
उत्तर प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष है। हालांकि राज्यपाल द्वारा इसे समय से पूर्व भी भंग किया जा सकता है। परन्तु यदि संकटकाल की घोषणा प्रवर्तन में हो तो संसद विधि द्वारा विधानसभा का कार्यकाल बढ़ा सकती है जोकि एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगा तथा किस्सी भी अवस्था में संकटकाल की घोषणा समाप्त हो जाने के बाद 6 माह की अवधि से अधिक नहीं होगा।

प्रश्न 4.
राज्य में विधान-परिषद् की उपयोगिता के पक्ष में चार तर्क दीजिए। [2016]
उत्तर :
विधान परिषद् की उपयोगिता के पक्ष में चार तर्क निम्नलिखित हैं –

  1. यह सदन विधेयक में विलम्ब करके जनता को अपना मत अभिव्यक्त करने का अवसर देता है।
  2. यह संशोधनकारी सदन के रूप में कार्य करता है। ब्लण्टशली ने कहा भी है कि “चार आँखे दो आँखों की तुलना में सदैव अच्छा देखती हैं।”
  3. विधानपरिषद् में विशेष हितों-अल्पसंख्यकों, विभिन्न व्यवसायों व वर्गों को प्रतिनिधित्व मिलता है।
  4. इसमें परिपक्व और अनुभवी लोग होते हैं। राज्यपाल इसमें कुछ ऐसे व्यक्तियों को मनोनीत करता है जो कला, साहित्य, विज्ञान, समाज सेवा, सहकारिता आन्दोलन में विशेष अनुभवी हों।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
उत्तर प्रदेश का विधानमण्डल द्वि-सदनीय है अथवा एक-सदनीय?
उत्तर :
उत्तर प्रदेश का विधानमण्डल द्वि-सदनीय है।

प्रश्न 2.
विधानसभा का कार्यकाल कितना होता है?
उत्तर :
विधानसभा का कार्यकाल सामान्य रूप में पाँच वर्ष का होता है।

प्रश्न 3.
आपके राज्य में विधानसभा के अध्यक्ष का चयन कौन करता है?
उत्तर :
राज्य की विधानसभा के सदस्य विधानसभा के अध्यक्ष का चयन करते हैं।

प्रश्न 4.
विधानसभा तथा विधानपरिषद के सदस्यों हेतु निर्धारित आयु-सीमा बताइए।
उत्तर :

  1. विधानसभा–25 वर्ष तथा
  2. विधान-परिषद्-30 वर्ष।

प्रश्न 5.
विधान-परिषद् के सदस्यों का कार्यकाल कितना है? [2010, 11]
या
राज्य विधान-परिषद का कार्यकाल क्या है? [2012]
उत्तर :
विधान-परिषद् एक स्थायी सदन है, परन्तु इसके सदस्यों का कार्यकाल छ: वर्ष है। प्रति . दो वर्ष बाद 1/3 सदस्य उससे पृथक् हो जाते हैं तथा उनके स्थान पर नये सदस्य चुन लिये जाते हैं।

प्रश्न 6.
किन्हीं चार राज्यों के नाम लिखिए जिनमें द्वि-सदनीय विधानमण्डल हैं। [2013]
उत्तर :
कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा महाराष्ट्र।

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प्रश्न 7.
राज्य विधानमण्डल का सत्रावसान कौन करता है?
उत्तर :
राज्य विधानमण्डल का सत्रावसान राज्यपाल करता है।

प्रश्न 8.
विधेयक कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर :
विधेयक दो प्रकार के होते हैं –

  1. साधारण विधेयक तथा
  2. धन या वित्त विधेयक।

प्रश्न 9
वित्त विधेयक विधानमण्डल के किस सदन में पेश होता है?
उत्तर :
वित्त विधेयक विधानसभा में प्रस्तुत किये जाते हैं।

प्रश्न 10.
वित्त विधेयक को विधान-परिषद अधिक-से-अधिक कितने दिनों तक रोक सकती [2011]
उत्तर :
वित्त विधेयक को विधानपरिषद अधिक-से-अधिक 14 दिनों तक रोक सकती है।

प्रश्न 11.
विधानसभा के सदस्यों की अधिकतम व न्यूनतम संख्या क्या हो सकती है?
उत्तर :
विधानसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 500 तथा न्यूनतम संख्या 60 हो सकती है।

प्रश्न 12.
उत्तर प्रदेश विधानसभा एवं विधान-परिषद् की सदस्य-संख्या बताइए। [2008, 11]
या
उत्तर प्रदेश की विधानपरिषद् में कुल कितने सदस्य हैं? [2016]
उत्तर :
विधानसभा सदस्य संख्या : 404 तथा विधान-परिषद् सदस्य-संख्या : 100।

प्रश्न 13.
राज्य सूची पर कौन कानून बनाता है?
उत्तर :
राज्य की विधानसभा राज्य सूची पर कानून बनाती है।

प्रश्न 14.
उन दो राज्यों के नाम बताइए जहाँ व्यवस्थापिका का एक ही सदन है। [2010]
उत्तर :

  1. मध्य प्रदेश तथा
  2. राजस्थान।

प्रश्न 15.
स्थानीय स्व-शासन के दो मुख्य लाभ लिखिए।
उत्तर :

  1. स्थानीय समस्याओं का त्वरित समाधान तथा
  2. नागरिकों के समय तथा धन की बचत।

प्रश्न 16.
उत्तर प्रदेश की विधायिका के दोनों सदनों के नाम लिखिए। [2014, 16]
उत्तर :
विधानसभा तथा विधान-परिषद्।

प्रश्न 17.
उत्तर प्रदेश की विधानसभा के प्रथम अध्यक्ष कौन थे? [2014, 16]
उत्तर :
श्री पुरुषोत्तम दास टण्डन।

प्रश्न 18.
उत्तर प्रदेश की विधानमण्डल के विश्रान्ति में अध्यादेश कौन जारी करता है? [2014]
उत्तर :
राज्यपाल।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
बिहार में विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या है। [2016]
(क) 224
(ख) 234
(ग) 243
(घ) 288

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कहाँ एक-सदनीय विधानमण्डल है?
(क) कर्नाटक
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) मध्य प्रदेश
(घ) बिहार

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कहाँ द्वि-सदनीय विधानमण्डल है?
(क) गुजरात
(ख) तमिलनाडु
(ग) ओडिशा
(घ) जम्मू-कश्मीर

प्रश्न 4.
भारत के निम्नलिखित में से किस एक राज्य में विधान-परिषद् नहीं है – [2011]
(क) बिहार
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) महाराष्ट्र
(घ) मध्य प्रदेश

प्रश्न 5.
विधानसभा तथा विधान-परिषद् के सदस्यों हेतु न्यूनतम निर्धारित आयु है
(क) 25 वर्ष से 30 वर्ष
(ख) 30 वर्ष से 35 वर्ष
(ग) 20 वर्ष से 25 वर्ष
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 6.
विधान-परिषद् के सदस्यों की न्यूनतम संख्या होती है
(क) 50.
(ख) 80
(ग) 40
(घ) 35

प्रश्न 7.
विधानसभा के सदस्यों की न्यूनतम संख्या होती है
(क) 50
(ख) 60
(ग) 100
(घ) 150

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से कौन राज्य विधान-परिषद् के सदस्यों के निर्वाचन से सम्बन्धित नहीं [2007]
(क) स्थानीय संस्थाओं का निर्वाचन मण्डल
(ख) स्नातकों का निर्वाचन मण्डल
(ग) विधानपरिषद का निर्वाचन मण्डल
(घ) अध्यापकों का निर्वाचन मण्डल

प्रश्न 9.
निम्न में से भारत के किस राज्य में द्वि-सदनात्मक विधान मण्डल नहीं है? [2008, 15]
(क) बिहार
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) जम्मू एवं कश्मीर
(घ) राजस्थान

प्रश्न 10.
भारत के निम्नलिखित में से किस राज्य में विधानपरिषद् है? [2012]
(क) मध्य प्रदेश
(ख) हिमाचल प्रदेश
(ग) गुजरात
(घ) जम्मू-कश्मीर

उत्तर :

  1. (ग) 243
  2. (ग) मध्य प्रदेश
  3. (घ) जम्मू-कश्मीर
  4. (घ) मध्य प्रदेश
  5. (क) 25 वर्ष से 30 वर्ष
  6. (ग) 40
  7. (ख) 60
  8. (ग) विधान परिषद् का निर्वाचन मण्डल
  9. (घ) राजस्थान
  10. (घ) जम्मू-कश्मीर।

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UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 25 Personality and Personality Tests

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 25 Personality and Personality Tests (व्यक्तित्व एवं व्यक्तित्व परीक्षण) are part of UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 25 Personality and Personality Tests (व्यक्तित्व एवं व्यक्तित्व परीक्षण).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Pedagogy
Chapter Chapter 25
Chapter Name Personality and Personality Tests
(व्यक्तित्व एवं व्यक्तित्व परीक्षण)
Number of Questions Solved 46
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 25 Personality and Personality Tests (व्यक्तित्व एवं व्यक्तित्व परीक्षण)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
व्यक्तित्व का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। [2007]
या
व्यक्तित्व का क्या अर्थ है तथा इसकी परिभाषा भी दीजिए। व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए। [2007, 08]
उत्तर :
व्यक्तित्व का अर्थ
शाब्दिक उत्पत्ति के अर्थ में, इस शब्द का उद्गम लैटिन भाषा के ‘पर्सनेअर’ (Personare) शब्द से माना गया है। प्राचीनकाल में, ईसा से एक शताब्दी पहले Persona शब्द व्यक्ति के कार्यों को स्पष्ट करने के लिए प्रचलित था। विशेषकर इसका अर्थ नाटक में काम करने वाले अभिनेताओं द्वारा पहना हुआ नकाब समझा जाता था, जिसे धारण करके अभिनेता अपना असली रूप छिपाकर नकली वेश में रंगमंच पर अभिनय करते थे। रोमन काल में Persona शब्द का अर्थ हो गया—स्वयं वह अभिनेता’ जो अपने विलक्षण एवं विशिष्ट स्वरूप के साथ रंगमंच पर प्रकट होता था। इस भाँति व्यक्तित्व’ शब्द किसी व्यक्ति के वास्तविके स्वरूप का समानार्थी बन गया।

सामान्य अर्थ में 
व्यक्तित्व से अभिप्राय व्यक्ति के उन गुणों से है जो उसके शरीर सौष्ठव, स्वर तथा नाक-नक्श आदि से सम्बन्धित हैं। दार्शनिक दृष्टिकोण के अनुसार, सम्पूर्ण व्यक्तित्व आत्म-तत्त्व की पूर्णता में निहित है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार, मानव जीवन की किसी भी अवस्था में व्यक्ति का व्यक्तित्व एक संगठित इकाई है, जिसमें व्यक्ति के वंशानुक्रम और वातावरण से उत्पन्न समस्त गुण समाहित होते हैं। । दूसरे शब्दों में, व्यक्तित्व में बाह्य गुण तथा आन्तरिक गुण का समन्वित तथा संगठित रूप परिलक्षित होता है। अपने बाह्य एवं आन्तरिक गुणों के साथ व्यक्ति अपने वातावरण के साथ भी अनुकूलन करता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने वातावरण के साथ भिन्न प्रकार से अनुकूलन रखता है और इसी कारण से हर एक व्यक्ति का अपना अलग व्यक्तित्व होता है। इसके साथ ही व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति मनुष्य के व्यवहार से होती है, अथवा व्यक्तित्व पूरे व्यवहार का दर्पण है और मनुष्य व्यवहार के माध्यम से निज व्यक्तित्व को अभिप्रकाशित करता है। सन्तुलित व्यवहार सुदृढ़ व्यक्तित्व का परिचायक है।

व्यक्तित्व की परिभाषाएँ

  1. बोरिंग के अनुसार, “व्यक्ति के अपने वातावरण के साथ अपूर्व एवं स्थायी समायोजन के योग को व्यक्तित्व कहते हैं।”
  2. मन के शब्दों में, “व्यक्तित्व वह विशिष्ट संगठन है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति के गठन, व्यवहार के तरीकों, रुचियों, दृष्टिकोणों, क्षमताओं, योग्यताओं और प्रवणताओं को सम्मिलित किया जा सकता है।”
  3. आलपोर्ट के अनुसार, “व्यक्तित्व व्यक्ति के उन मनो-शारीरिक संस्थानों का गत्यात्मक संगठन है जो वातावरण के साथ उसके अनूठे समायोजन को निर्धारित करता है।”
  4. मॉर्टन प्रिंस के कथनानुसार, “व्यक्तित्व व्यक्ति के सभी जन्मजात व्यवहारों, आवेगों, प्रवृत्तियों, झुकावों, आवश्यकताओं तथा मूल-प्रवृत्तियों एवं अनुभवजन्य और अर्जित व्यवहारों व प्रवृत्तियों का योग है।
  5. वारेन का विचार है, “व्यक्तित्व व्यक्ति का सम्पूर्ण मानसिक संगठन है जो उसके विकास की किसी भी अवस्था में होता है।

उपर्युक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि 

  1. व्यक्ति एक मनोशारीरिक प्राणी है।
  2. वह अपने वातावरण से समायोजन (अनुकूलन) करके निज व्यवहार का निर्माण करता है।
  3. मनुष्य की शारीरिक-मानसिक विशेषताएँ उसके व्यवहार से जुड़कर संगठित रूप में दिखायी पड़ती हैं। यह संगठन ही व्यक्तित्वे की प्रमुख विशेषता है।
  4. प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व स्वयं में विशिष्ट होता है।

व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले कारक
व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले मूल कारक हैं – आनुवंशिकता तथा पर्यावरण आनुवंशिकता में उन कारकों या गुणों को सम्मिलित किया जाता है, जो माता-पिता के माध्यम से प्राप्त होते हैं। इस प्रकार के मुख्य गुण हैं-शरीर का आकार एवं बनावट तथा रंग आदि। शरीर में पायी जाने वाली विभिन्न नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ तथा उनसे होने वाला स्राव भी व्यक्ति को प्रभावित करते हैं। इसके अतिरिक्त वातावरण का भी व्यक्तित्व पर गम्भीर प्रभाव पड़ता है। वातावरण के अन्तर्गत मुख्य रूप से परिवार, विद्यालय तथा समाज का प्रभाव व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण एवं विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रश्न 2
सन्तुलित व्यक्तित्व की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
सन्तुलित व्यक्तित्व की विशेषताएँ आदर्श नागरिक बनने के लिए मनुष्य के व्यक्तित्व का सन्तुलित होना अनिवार्य है। व्यवहार के माध्यम से व्यक्ति का व्यक्तित्व परिलक्षित होता है और समाजोपयोगी एवं वातावरण की परिस्थितियों से अनुकूलित व्यवहार ‘अच्छे व्यक्तित्व से ही उद्भूत होता है। सुन्दर एवं आकर्षक व्यक्तित्व दूसरे लोगों को शीघ्र ही प्रभावित कर देता है, जिससे वातावरण के साथ सफल सामंजस्य में सहायता मिलती है। यह तो निश्चित है कि सुन्दर जीवन जीने के लिए अच्छा एवं सन्तुलित व्यक्तित्व एक पूर्व आवश्यकता है, किन्तु प्रश्न यह है कि एक ‘आदर्श व्यक्तित्व के क्या मानदण्ड होंगे ? इसका उत्तर हमें निम्नलिखित शीर्षकों के माध्यम से प्राप्त होगा। सन्तुलित व्यक्तित्व की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है।

1. शारीरिक स्वास्थ्य :
सामान्य दृष्टि से व्यक्ति का शारीरिक स्वास्थ्य सन्तुलित एवं उत्तम व्यक्तित्व का पहला मानदण्ड है। अच्छे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति का शारीरिक गठन, स्वास्थ्य तथा सौष्ठव प्रशंसनीय होता है। वह व्यक्ति नीरोग होता है तथा उसके विविध शारीरिक संस्थान अच्छी प्रकार कार्य कर रहे होते हैं।

2. मानसिक स्वास्थ्य :
अच्छे व्यक्तित्व के लिए स्वस्थ शरीर के साथ स्वस्थ मन भी होना चाहिए। स्वस्थ मन उस व्यक्ति का कहा जाएगा जिसमें कम-से-कम औसत बुद्धि पायी जाती हो, नियन्त्रित तथा सन्तुलित मनोवृत्तियाँ हों और उनकी मानसिक प्रक्रियाएँ भी कम-से-कम सामान्य रूप से कार्य कर रही हों।

3. आत्म-चेतना :
सन्तुलित व्यक्तित्व वाला व्यक्ति स्वाभिमानी तथा आत्म-चेतना से युक्त होता है। वह सदैव ऐसे कार्यों से बचता है जिसके करने से वह स्वयं अपनी ही नजर में गिरता हो या उसकी आत्म-चेतना आहत होती हो। वह चिन्तन के समय भी आत्म-चेतना आहत होती हो। वह चिन्तन के समय भी आत्म-चेतना को सुरक्षित रखता है तथा स्वस्थ विचारों को ही मन में स्थान देता है।

4. आत्म-गौरव-आत्म :
गौरव का स्थायी भाव अच्छे व्यक्तित्व का परिचायक है तथा व्यक्ति में आत्म-चेतना पैदा करता है। आत्म-गौरव से युक्त व्यक्ति आत्म-समीक्षा के माध्यम से प्रगति का मार्ग खोलता है और विकासोन्मुख होता है।

5. संवेगात्मक सन्तुलन :
अच्छे व्यक्तित्व के लिए आवश्यक है कि उसके समस्त संवेगों की अभिव्यक्ति सामान्य रूप से हो। उसमें किसी विशिष्ट संवेग की प्रबलता नहीं होनी चाहिए।

6. सामंजस्यता :
सामंजस्यता या अनुकूलन का गुण अच्छे व्यक्तित्व की पहली पहचान है। मनुष्य और उसके चारों ओर का वातावरण परिवर्तनशील है। वातावरण के विभिन्न घटकों में आने वाला परिवर्तन मनुष्य को प्रभावित करता है। अतः सन्तुलित व्यक्तित्व में अपने वातावरण के साथ अनुकूलन करने या सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता होनी चाहिए। सामंजस्य की इस प्रक्रिया में या तो व्यक्ति स्वयं को वातावरण के अनुकूल परिवर्तित कर लेता है या वातावरण में अपने अनुसार परिवर्तन उत्पन्न कर देता है।

7. सामाजिकता :
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अतः उसमें अधिकाधिक सामाजिकता की भावना होनी चाहिए। सन्तुलित व्यक्तित्व में स्वस्थ सामाजिकता की भावना अपेक्षित है। स्वस्थ सामाजिकता का भाव मनुष्य के व्यक्तित्व में प्रेम, सहानुभूति, त्याग, सहयोग, उदारता, संयम तथा धैर्य का संचार करता है, जिससे उसका व्यक्तित्व विस्तृत एवं व्यापक होता जाता है। इस भाव के संकुचन से मनुष्य स्वयं तक सीमित, स्वार्थी, एकान्तवासी और समाज से दूर भागने लगता है। सामाजिकता की भावना , व्यक्ति के व्यक्तित्व को विराट सत्ता की ओर उन्मुख करती है।

8. एकीकरण :
मनुष्य में समाहित उसके संमस्त गुण एकीकृत या संगठित स्वरूप में उपस्थित होने चाहिए। सन्तुलित व्यक्तित्व के लिए उन सभी गुणों का एक इकाई के रूप में समन्वय अनिवार्य है। किसी एक गुण या पक्ष का आधिक्य या वेग व्यक्तित्व को असंगठित बना देता है। ऐसा बिखरा हुआ व्यक्तित्व असन्तुष्ट व दु:खी जीवन की ओर संकेत करंता है। अतः अच्छे व्यक्तित्व में एकीकरण या संगठन का गुण पाया जाता है।’

9. लक्ष्योन्मुखता या उद्देश्यपूर्णता :
प्रत्येक मनुष्य के जीवन का कुछ-न-कुछ उद्देश्य या लक्ष्य अवश्य होता है। निरुद्देश्य या लक्ष्यविहीन जीवन असफल, असन्तुष्ट तथा अच्छा जीवन नहीं माना जाता है। हर किसी जीवन का सुदूर उद्देश्य ऊँचा, स्वस्थ तथा सुनिश्चित होना चाहिए एवं उसकी तात्कालिक क्रियाओं को भी प्रयोजनात्मक होना चाहिए। एक अच्छे व्यक्तित्व में उद्देश्यपूर्णता का होना अनिवार्य है।

10. संकल्प :
शक्ति की प्रबलता-प्रबल एवं दृढ़ इच्छा-शक्ति के कारण कार्य में तन्मयता तथा संलग्नता आती है। प्रबल संकल्प लेकर ही बाधाओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है तथा लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। स्पष्टतः संकल्प-शक्ति की प्रबलता सन्तुलित व्यक्तित्व का एक उचित मानदण्ड है।

11. सन्तोषपूर्ण महत्त्वाकांक्षा :
उच्च एवं महान् आकांक्षाएँ मानव जीवन के विकास की द्योतक हैं, किन्तु यदि व्यक्ति इन उच्च आकांक्षाओं के लिए चिन्तित रहेगा तो उससे वह स्वयं को दुःखी एवं असन्तुष्ट हो पाएगा। मनुष्य को अपनी मन:स्थिति को इस प्रकार निर्मित करना चाहिए कि इन उच्च आकांक्षाओं की पूर्ति के अभाव में उसे असन्तोष या दुःख का बोध न हो। मनोविज्ञान की भाषा में इसे सन्तोषपूर्ण महत्त्वाकांक्षा कहा गया है और यह सुन्दर व्यक्तित्व के लिए आवश्यक है। हमने उपर्युक्त बिन्दुओं के अन्तर्गत एक सम्यक् एवं सन्तुलित व्यक्तित्व की विशेषताओं का अध्ययन किया है। इन सभी गुणों का समाहार ही एक आदर्श व्यक्तित्व कहा जा सकता है, जिसे समक्ष रखकर हम अन्य व्यक्तियों से उसकी तुलना कर सकते हैं और निज व्यक्तित्व को उसके अनुरूप ढालने का प्रयास कर सकते हैं।

प्रश्न 3
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य विधियाँ कौन-कौन-सी हैं ? व्यक्तित्व परीक्षण की वैयक्तिक विधियों का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
या
व्यक्तित्व मापन की प्रमुख विधियों का वर्णन कीजिए। [2008]
या
व्यक्तित्व परीक्षण के कौन-कौन से प्रकार हैं? इनमें से किसी एक की विवेचना कीजिए। [2010]
या
व्यक्तित्व मापन के विभिन्न प्रकार बताइए और उनमें से किसी एक विधि का वर्णन कीजिए। [2007, 13, 15]
उत्तर :
व्यक्तित्व परीक्षण की विधियाँ
व्यक्तित्व का मापने या परीक्षण एक जटिल समस्या है, जिसके लिए किसी एक विधि को प्रामाणिक नहीं माना जा सकता। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व मापन व परीक्षण के लिए कुछ विधियों का निर्माण किया है। इन विधियों को निम्नांकित चार वर्गों में विभक्त किया जा सकता है।

  1. वैयक्तिक विधियाँ
  2. वस्तुनिष्ठ विधियाँ
  3. मनोविश्लेषणात्मक विधियाँ तथा
  4. प्रक्षेपण या प्रक्षेपी विधियाँ।

व्यक्तित्व परीक्षण की वैयक्तिक विधियाँ वैयक्तिक विधियों के अन्तर्गत व्यक्तित्व का परीक्षण स्वयं परीक्षक द्वारा किया जाता है। इसमें जाँच-कार्य, किसी व्यक्ति-विशेष या उसके परिचित से पूछताछ द्वारा सम्पन्न होता है। प्रमुख वैयक्तिक विधियाँ हैं।

1. प्रश्नावली विधि :
प्रश्नावली विधि के अन्तर्गत प्रश्नों की एक तालिका बनाकर उस व्यक्ति को दी जाती है, जिसके व्यक्तित्व का परीक्षण किया जाता है। प्राय: छोटे-छोटे प्रश्न किये जाते हैं, जिनका उत्तर हाँ या नहीं में देना होता है। सही उत्तरों के आधार पर व्यक्ति की योग्यता और क्षमता का मापन किया जाए हैं। प्रश्नावलियों के चार प्रकार हैं—बन्द प्रश्नावली, जिसमें हाँ या नहीं से सम्बन्धित प्रश्न होते हैं। खुली प्रश्नावली, जिसमें व्यक्ति को पूरा उत्तर लिखना होता है। सचित्र प्रश्नावली, जिसके अन्तर्गत चित्रों के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दिये जाते हैं तथा मिश्रित प्रश्नावली, प्रश्न होते हैं।

प्रश्नावली विधि का प्रमुख दोष यह है कि व्यक्ति प्राय: प्रश्नों के गलत उत्तर देते हैं या सही उत्तर को छिपा लेते हैं। कभी-कभी प्रश्नों का अर्थ समझने में भी त्रुटि हो जाती है, जिनका भ्रामक उत्तर प्राप्त होता, है। प्रश्नावलियों द्वारा मूल्यांकन करने पर तुलनात्मक अध्ययन में काफी सहायता मिलती है। इसके साथ ही अनेक व्यक्तियों की एक साथ परीक्षा से धन और समय की भी बचत होती है।

2. व्यक्ति-इतिहास विधि :
विशेष रूप से समस्यात्मक बालकों के व्यक्तित्व का अध्ययन करने के लिए प्रयुक्त इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति-विशेष से सम्बन्धित अनेक सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं। जैसे—उसका शारीरिक स्वास्थ्य, संवेगात्मक स्थिरता, सामाजिक जीवन आदि। व्यक्ति के भूतकालीन जीवन के अध्ययन द्वारा उसकी वर्तमान मानसिक व व्यावहारिक संरचना को समझने का प्रयास किया जाता है। इन सूचनाओं को इकट्ठा करने में व्यक्ति विशेष के माता-पिता, अभिभावक, सगे-सम्बन्धी, मित्र-पड़ोसी तथा चिकित्सकों से सहायता ली जाती है। इन सभी सूचनाओं, बुद्धि-परीक्षण तथा रुचि-परीक्षण के आधार पर व्यक्ति के वर्तमान व्यवहार की असामान्यताओं के कारणों की खोज उसके भूतकाल के जीवन से करने में व्यक्ति-इतिहास विधि उपयोगी सिद्ध होती है।

3. साक्षात्कार विधि :
व्यक्तित्व का मूल्यांकन करने की यह विधि सरकारी नौकरियों में चुनाव के लिए सर्वाधिक प्रयोग की जाती है। भेंट या साक्षात्कार के दौरान परीक्षक परीक्षार्थी से प्रश्न पूछता है और उसके उत्तरों के आधार पर उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन करता है। बालक के व्यक्तित्व का अध्ययन करने के लिए उसके अभिभावक, माता-पिता, भाई-बहन व मित्रों आदि से भी भेंट या साक्षात्कार किया जा सकता है। इस विधि का सबसे बड़ा दोष आत्मनिष्ठा का है। थोड़े से समय में किसी व्यक्ति-विशेष के हर पक्ष से सम्बन्धित प्रश्न नहीं पूछे जा सकते और अध्ययन किये गये विभिन्न व्यक्तियों की पारस्परिक, -तुलना भी नहीं की जा सकती। इस विधि को अधिकतम उपयोगी बनाने के लिए निर्धारण मान का प्रयोग किया जाना चाहिए तथा प्रश्न व उनके उत्तर पूर्व निर्धारित हों ताकि साक्षात्कार के दौरान समय एवं शक्ति की बचत हो।

4. आत्म-चरित्र लेखन विधि :
इस विधि में परीक्षक जीवन के किसी पक्ष से सम्बन्धित एक शीर्षक पर परीक्षार्थी को अपने जीवन से जुड़ी ‘आत्मकथा लिखने को कहता है। यहाँ विचारों को लिखकर अभिव्यक्त करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है। परीक्षार्थी के जीवन से सम्बन्धित सभी बातों को गोपनीय रखा जाता है। इस विधि का दोष यह है कि प्रायः व्यक्ति स्मृति के आधार पर ही लिखता है, जिससे उसके मौलिक चिन्तन का ज्ञान नहीं हो पाता। कई कारणों से वह व्यक्तिगत जीवन की बातों को छिपा भी लेता है। इस भाँति यह विधि अधिक विश्वसनीय नहीं कही जा सकती।

प्रश्न 4
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य वस्तुनिष्ठ विधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य वस्तुनिष्ठ विधियाँ व्यक्तित्व परीक्षण की वस्तुनिष्ठ विधियों के अन्तर्गत व्यक्ति के बाह्य आचरण तथा व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। इसमें ये चार विधियाँ सहायक होती हैं।

  1. निर्धारणमान विधि
  2. शारीरिक परीक्षण विधि
  3. निरीक्षण विधि तथा
  4. समाजमिति विधि।

1. निर्धारणमान विधि :
किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के मूल्यांकन हेतु प्रयुक्त इस विधि में अनेक सम्भावित उत्तरों वाले कुछ प्रश्न पूछे जाते हैं तथा प्रत्येक उत्तर के अंक निर्धारित किये जाते हैं। इस विधि का प्रयोग ऐसे निर्णायकों द्वारा किया जाता है जो इस व्यक्ति से भली-भाँति परिचित होते हैं जिसके व्यक्तित्व का मापन करना है। उस विधि से सम्बन्धित दो प्रकार के निर्धारण मानदण्ड प्रचलित हैं।

(i) सापेक्ष निर्धारण मानदण्ड
(ii) निरपेक्ष निर्धारण मानदण्ड

(i) सापेक्ष निर्धारण मानदण्ड :
इस विधि के अन्तर्गत अनेक व्यक्तियों को एक-दूसरे के सापेक्ष सम्बन्ध में श्रेष्ठता क्रम में रखा जाता है। इस भाँति श्रेणीबद्ध करते समय सभी व्यक्तियों की आपस में तुलना हो जाती है। माना 10 व्यक्तियों की ईमानदारी के गुण का मूल्यांकन करना है तो सबसे अधिक ईमानदार व्यक्ति को पहला तथा सबसे कम ईमानदार को दसवाँ स्थान प्रदान किया जाएगा तथा इनके मध्य में शेष लोगों को श्रेष्ठता-क्रम में स्थान दिया जाएगा। यह विधि थोड़ी संख्या के समूह पर ही लागू हो सकती है, क्योंकि बड़ी संख्या वाले समूह के बीच के लोगों का क्रम निर्धारित करना अत्यन्त दुष्कर कार्य है।

(ii) निरपेक्ष निर्धारण मानदण्ड :
इस विधि में किसी के गुण के आधार पर व्यक्तियों की तुलना नहीं की जाती, अपितु उन्हें विभिन्न विशेषताओं की निरपेक्ष कोटियों में रख लिया जाता है। कोटियों की संख्या 3,5,7, 11, 15 या उससे अधिक भी सम्भव है। इन कोटियों को कभी-कभी शब्द के स्थान पर अंकों द्वारा भी दिखाया जा सकता है, किन्तु तत्सम्बन्धी अंकों के अर्थ लिख दिये जाते हैं। ईमानदारी के गुण को निम्न प्रकार मानदण्ड पर प्रदर्शित किया गया है
UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 25 Personality and Personality Tests image 1
इस विधि के अन्तर्गत मूल्यांकन करते समय निर्णायक को न तो अधिक कठोर होना चाहिए और न ही अधिक उदार। व्यक्तियों की कोटियों के अनुसार श्रेणीबद्ध करने में सामान्य वितरण का ध्यान रखना आवश्यक है।

2. शारीरिक परीक्षण विधि :
इसमें व्यक्ति विशेष के शारीरिक लक्षणों के आधार पर उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है। व्यक्तित्व के निर्माण में सहभागिता रखने वाले शारीरिक तत्त्वों के मापन हेतु इन यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है-नाड़ी की गति नापने के लिए स्फिग्नोग्राफ; हृदय की गति एवं कुछ हृदय-विकारों को ज्ञात करने के लिए इलेक्ट्रो कार्डियोग्राफ; फेफड़ों की गति के मापन हेतु-न्यूमोग्राफ; त्वचा में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों के अध्ययन हेतु-साइको गैल्वेनोमीटर तथा रक्तचाप के मापन हेतु-प्लेन्थिस्मोग्राफ।

3. निरीक्षण विधि :
हम जानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति भिन्न-भिन्न परिस्थितियों तथा समयों पर भिन्न-भिन्न आचरण प्रदर्शित करता है। इस विधि के अन्तर्गत उसके आचरण का निरीक्षण करके उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है। यहाँ परीक्षक देखकर व सुनकर व्यक्तित्व के विभिन्न शारीरिक, मानसिक तथा व्यावहारिक गुणों को समझने का प्रयास करता है, जिसके लिए निरीक्षण तालिका का प्रयोग किया जाता है। निरीक्षण के पश्चात् तुलना द्वारा निरीक्षण गुणों का मूल्यांकन किया जाता है। निरीक्षणकर्ता की आत्मनिष्ठा के दोष के कारण इस विधि को वैज्ञानिक एवं विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता।

4. समाजमिति विधि :
समाजमिति विधि के अन्तर्गत व्यक्ति की सामाजिकता का मूल्यांकन किया जाता है। बालकों को किसी सामाजिक अवसर पर अपने सभी साथियों के साथ किसी खास स्थान पर उपस्थित होने के लिए कहा जाता है, जहाँ वे अपनी सामर्थ्य और क्षमताओं के अनुसार कार्य करते हैं। अब यह देखा जाता है कि प्रत्येक बालक का उसके समूह में क्या स्थान है। संगृहीत तथ्यों के आधार पर एक सोशियोग्राम (Sociogram) तैयार किया जाता है और उसका विश्लेषण किया जाता है। इसी के आधार पर बालक के व्यक्तित्व की व्याख्या प्रस्तुत की जाती है।

प्रश्न 5
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य प्रक्षेपण विधियों का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
या
व्यक्तिस्व मापन की प्रक्षेपी विधियों से क्या तात्पर्य है ? इनमें से किसी एक विधि का विस्तृत वर्णन कीजिए।
या
व्यक्तित्व मापन की किसी एक विधि की व्याख्या कीजिए। [2007]
उत्तर :
व्यक्तित्व परीक्षण की प्रक्षेपण विधियाँ प्रक्षेपण (Projection) अचेतन मन की वह सुरक्षा प्रक्रिया है जिसमें कोई व्यक्ति अपनी अनुभूतियों, विचारों, आकांक्षाओं तथा संवेगों को दूसरों पर थोप देता है। प्रक्षेपण विधियों द्वारा व्यक्ति-विशेष के व्यक्तित्व सम्बन्धी उन पक्षों का ज्ञान हो जाता है जिनसे वह व्यक्ति स्वयं ही अनभिज्ञ होता है। कुछ प्रक्षेपण विधियाँ निम्नलिखित हैं।

  1. कथा प्रसंग परीक्षण
  2. बाल सम्प्रत्यक्षण परीक्षण
  3. रोर्शा स्याही धब्बा परीक्षण तथा
  4. वाक्य पूर्ति या कहानी पूर्ति परीक्षण।।

1. कथा प्रसंग परीक्षण :
कथा प्रसंग विधि, जिसे प्रसंगात्मक बोध परीक्षण और टी० ए० टी० टेस्ट भी कहते हैं, के निर्माण का श्रेय मॉर्गन तथा मरे (Morgan and Murray) को जाता है। परीक्षण में 30 चित्रों का संग्रह है जिनमें से 10 चित्र पुरुषों के लिए, 10 स्त्रियों के लिए तथा 10 स्त्री व पुरुष दोनों के लिए होते हैं। परीक्षण के समय व्यक्ति के सम्मुख 20 चित्र प्रस्तुत किये जाते हैं। इनमें से एक चित्र खाली रहता है।

अब व्यक्ति को एक-एक करके चित्र प्रस्तुत किये जाते हैं और उस चित्र से सम्बन्धित कहानी बनाने के लिए कहा जाता है जिसमें समय का कोई बन्धन नहीं रहता। चित्र दिखलाने के साथ ही यह आदेश दिया जाता है, “चित्र को देखकर बताइए कि पहले क्या घटना हो गयी है ? इस समय क्या हो रहा है ? चित्र में जो लोग हैं उनमें क्या विचार या भाव उठ रहे हैं तथा कहानी का क्या अन्त होगा?” व्यक्ति द्वारा कहानी बनाने पर उसका विश्लेषण किया जाता है जिसके आधार पर उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

2. बांल सम्प्रत्यक्षण परीक्षण :
इसे ‘बालकों का बोध परीक्षण’,या ‘सी० ए० टी० टेस्ट’ भी कहते हैं। इनमें किसी-न-किसी पशु से सम्बन्धित 10 चित्र होते हैं, जिनके माध्यम से बालकों की विभिन्न समस्याओं; जैसे-पारस्परिक या भाई-बहन की प्रतियोगिता, संघर्ष आदि के विषय में सूचनाएँ एकत्र की जाती हैं। इन उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर बालक के व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

3. रोर्णा स्याही धब्बा परीक्षण :
इस परीक्षण का निर्माण स्विट्जरलैण्ड के प्रसिद्ध मनोविकृति चिकित्सक हरमन रोर्शा ने 1921 ई० में किया था। इसके अन्तर्गत विभिन्न कार्डों पर बने स्याही के दस धब्बे होते हैं, जिन्हें इस प्रकार से बनाया जाता है कि बीच की रेखा के दोनों ओर एक जैसी आकृति दिखायी पड़े। पाँच कार्डों के धब्बे काले, भूरे, दो कार्डों के काले-भूरे के अलावा लाल रंग के भी होते हैं तथा शेष तीन कार्डों में अनेक रंग के धब्बे होते हैं। अब परीक्षार्थी को आदेश दिया जाता है।

कि चित्र देखकर बताओ कि यह किसके समान प्रतीत होता है ? यह क्या हो सकता है ? आदेश देने के बाद एक-एक कार्ड परीक्षार्थी के सामने प्रस्तुत किये जाते हैं, जिन्हें देखकर वह धब्बों में निहित आकृतियों के विषय में बताता है। परीक्षक, परीक्षार्थी द्वारा कार्ड देखकर दिये गये उत्तरों को वर्णन,उनका समय, कार्ड घुमाने का तरीका एवं परीक्षार्थी के व्यवहार, उद्गार और भावों को नोट करता जाता है। अन्त में परीक्षक द्वारा परीक्षार्थी के उत्तरों के विषय में उससे पूछताछ की जाती है। रोर्शा परीक्षण में इन चार बातों के आधार पर अंक दिये जाते हैं।

  • स्याही के धब्बों का क्षेत्र
  • धब्बों की विशेषताएँ (रंग, रूप, आकार आदि)
  • विषय-पेड़-पौधे, मनुष्य आदि तथा
  • मौलिकता

अंकों के आधार पर परीक्षक परीक्षार्थी के व्यक्तित्व का मूल्यांकन प्रस्तुत करता है। इस परीक्षण को व्यक्तिगत निर्देशन तथा उपचारात्मक निदान के लिए सर्वाधिक उपयोगी माना जाता है।

4. वाक्यपूर्ति यो कहानी :
पूर्ति परीक्षण इस विधि के अन्तर्गत परीक्षण-पदों के रूप में अधूरे वाक्य तथा अधूरी कहानियों को परीक्षार्थी के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है। जिसकी पूर्ति करके वह अपनी इच्छाओं, अभिवृत्तियों, विचारधारा तथा भय आदि को अप्रत्यक्ष रूप से अभिव्यक्त कर देता है। इस प्रकार के परीक्षण रोडे (Rohde), पैनी (Payne) तथा हिल्ड्रेथ (Hildreath) आदि द्वारा निर्मित किये गये हैं। [2012]

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
व्यक्तित्व क्या है? वे कौन-से कारक हैं जो व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं? [2015]
या
वे कौन-से कारक हैं जो बालकों के व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करते हैं?
उत्तर :
व्यक्तित्व के बाह्य गुणों तथा आन्तरिक गुणों के समन्वित तथा संगठित रूप को व्यक्तित्व कहते हैं। वुडवर्थ के अनुसार, “व्यक्तित्व गुणों को समन्वित रूप है।” व्यक्तित्व के निर्माण एवं विकास को प्रभावित करने वाले कारक बालक के व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले दो महत्त्वपूर्ण कारक है।

1. आनुवांशिकता :
शारीरिक आकार, बनावट तथा मानसिक बुद्धि आदि आनुवांशिक गुण होते हैं, जो माता-पिता से प्राप्त होते हैं, जिनसे व्यक्तित्व का निर्माण होता है। ये कारक व्यक्तित्व के विकास के लिए चहारदीवारी का कार्य करते हैं, जिसके भीतर व्यक्तित्व का विकास होता है।

2. वातावरण :
इसके तीन तत्त्व होते हैं।

(i) परिवार :
यह एक ऐसी सामाजिक संस्था है, जहाँ बालक के व्यक्तित्व के विकास का प्रथम चरण प्रारम्भ होता है। परिवार में कुछ तत्त्व व्यक्तित्व के विकास पर व्यापक प्रभाव डालते हैं; जैसे – माता – पिता के आपसी सम्बन्ध, उनका बालक के साथ व्यवहार, परिवार की आर्थिक स्थिति, परिवार का सामाजिक स्तर, परिवार के नैतिक मूल्य, परिवार के सदस्यों की संख्या, संयुक्त परिवार व्यवस्था आदि।

(ii) विद्यालय :
बालक के व्यक्तित्व को प्रभावित करने में घर-परिवार के पश्चात् विद्यालय का ही स्थान आता है। विद्यालय में व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण कारक हैं; जैसे—अध्यापक का व्यवहार, अनुशासन पद्धति, नैतिक मूल्य, अध्यापन तथा सीखने के तरीके, स्वतन्त्र कार्य करने के अवसर तथा साथियों का व्यवहार आदि।

(iii) समाज :
बालक के व्यक्तित्व का निर्माण, सामाजिक रीति-रिवाज, परम्पराएँ, संस्कृति तथा सभ्यता के द्वारा होता है। बालक की मनोवृत्ति का विकास, समाज में प्रचलित मान्यताएँ, विश्वास तथा धारणाएँ करती हैं। इस प्रकार राजनीतिक विचार, जनतान्त्रिक मूल्य आदि भी व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 2
शारीरिक संरचना के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक क्रैशमर (Kretschmer) ने शारीरिक संरचना में भिन्नता को व्यक्तित्व के वर्गीकरण का आधार माना है। उसने 400 व्यक्तियों की शारीरिक रूपरेखा का अध्ययन किया तथा उनके व्यक्तित्व को दो समूहों में इस प्रकार बाँटा।

1. साइक्लॉयड :
क्रैशमर के अनुसार, साइक्लॉयड व्यक्ति प्रसन्नचित्त सामाजिक प्रकृति के, विनोदी तथा मिलनसार होते हैं। इनका शरीर मोटापा लिए हुए होता है। ऐसे व्यक्तियों का जीवन के प्रति वस्तुवादी दृष्टिकोण पाया जाता है।

2. शाइजॉएड :
साइक्लॉयड के विपरीत शाइजॉएड व्यक्तियों की शारीरिक बनावट दुबली-पतली होती है। ऐसे लोग मनोवैज्ञानिक दृष्टि से संकोची, शान्त स्वभाव, एकान्तवासी, भावुक, स्वप्नदृष्टा तथा आत्म-केन्द्रित होते हैं।

क्रैशमर ने इनके अलावा चार उप-समूह भी बताये हैं।

1. सुडौलकाय :
स्वस्थ शरीर, सुडौल मांसपेशियाँ, मजबूत हड्डियाँ, चौड़ा वक्षस्थल तथा लम्बे चेहरे वाले शक्तिशाली लोग, जो इच्छानुसार अपने कार्यों का व्यवस्थापन कर लेते हैं, क्रियाशील होते हैं, कार्यों में रुचि लेते हैं तथा अन्य चीजों की अधिक चिन्ता नहीं करते।

2. निर्बल :
लम्बी भुजाओं व पैर वाले दुबले – पतले निर्बल व्यक्ति, जिनका सीना चपटा, चेहरा तिकोना तथा ठोढ़ी विकसित होती है। ऐसे लोग दूसरों की निन्दा तो करते हैं, लेकिन अपनी निन्दा सुनने के लिए तैयार नहीं होते।

3. गोलकाय :
बड़े शरीर और धड़, किन्तु छोटे कन्धे, हाथ पैर वाले तथा गोल छाती वाले असाधारण शरीर के ये लोग बहिर्मुखी होते हैं।

4. स्थिर बुद्धि :
ग्रन्थीय रोगों से ग्रस्त तथा विभिन्न प्रकार के प्रारूप वाले इन व्यक्तियों का शरीर साधारण होता है।

प्रश्न 3
स्वभाव के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
शैल्डन (Scheldon) ने स्वभाव के आधार पर मानव व्यक्तियों को तीन भागों में बाँटा है।

  1. एण्डोमॉर्फिक (Endomorphic) गोलाकार शरीर वाले कोमल और देखने में मोटे व्यक्ति इस विभाग के अन्तर्गत आते हैं। ऐसे लोगों का व्यवहार आँतों की आन्तरिक पाचन-शक्ति पर निर्भर करता है।
  2. मीजोमॉर्फिक (Mesomorphic) आयताकार शरीर रचना वाले इन लोगों का शरीर शक्तिशाली तथा भारी होता है।
  3. एक्टोमॉर्फिक (Ectomorphic) इन लम्बाकार शक्तिहीन व्यक्तियों में उत्तेजनशीलता अधिक होती है। ऐसे लोग बाह्य जगत् में निजी क्रियाओं को शीघ्रतापूर्वक करते हैं।

शैल्डन : ने उपर्युक्त तीन प्रकार के व्यक्तियों के स्वभाव का अध्ययन करके व्यक्तित्व के ये तीन वर्ग बताये हैं।

1. विसेरोटोनिक (Viscerotonic :
मुण्डोमॉर्फिक वर्ग के ये लोग विसेरोटोनिक प्रकार का . व्यक्तित्व रखते हैं। ये लोग आरामपसन्द तथा गहरी व ज्यादा नींद लेते हैं। किसी परेशानी के समय दूसरों की मदद पर आश्रित रहते हैं। ये अन्य लोगों से प्रेमपूर्ण सम्बन्ध रखते हैं तथा तरह-तरह के भोज्य पदार्थों के लिए लालायित रहते हैं।

2. सोमेटोटोनिक (Somatotonic) :
मीजोमॉर्फिक वर्ग के अन्तर्गत आने वाले सोमेटोटोनिक व्यक्तित्व के लोग बलशाली तथा निडर होते हैं। ये अपने विचारों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना पसन्द करते हैं। ये कर्मशील होते हैं तथा आपत्ति से भय नहीं खाते।

3. सेरीब्रोटोनिक (Cerebrotonic) :
एक्टोमॉर्फिक वर्ग में शामिल सेरीब्रोटोनिक व्यक्तित्व के लोग धीमे बोलने वाले, संवेदनशील, संकोची, नियन्त्रित तथा एकान्तवासी होते हैं। संयमी होने के कारण ये अपनी इच्छाओं तथा भावनाओं को दमित कर सकते हैं। आपातकाल में ये दूसरों की मदद लेना पसन्द नहीं करते। ये सौम्य स्वभाव के होते हैं। इन्हें गहरी नींद नहीं आती।

प्रश्न 4
सामाजिकता के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
या
मनोवैज्ञानिक जंग के अनुसार दो प्रकार के व्यक्तित्व होते हैं। वे कौन-से प्रकार हैं? उनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2010]
या
अन्तर्मुखी व्यक्तित्व से आपको क्या अभिप्राय है? [2014]
उत्तर :
जंग (Jung) नामक मनोवैज्ञानिक ने समाज से सम्पर्क स्थापित करने की क्षमता पर आधारित करके व्यक्तित्व को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया है।

  1. बहिर्मुखी
  2. अन्तर्मुखी। जंग के वर्गीकरण को सर्वाधिक मान्यता प्रदान की जाती है।

1. बहिर्मुखी :
बहिर्मुखी व्यक्तियों की रुचि बाह्य जगत् में होती है। इनमें सामाजिकता की प्रबल भावना होती है और ये सामाजिक कार्यों में लगे रहते हैं। इनकी अन्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  • बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाले लोगों का ध्यान सदा बाह्य समाज की ओर लगा रहता है। यही कारण है कि इनका आन्तरिक जीवन कष्टमय होता है।
  • ऐसे व्यक्तियों में कार्य करने की दृढ़ इच्छा होती है और ये वीरता के कार्यों में अधिक रुचि रखते हैं।
  • समाज के लोगों से शीघ्र मेल-जोल बढ़ा लेने की इनकी प्रवृत्ति होती है। समाज की दशा पर विचार करना इन्हें भाता है और ये उसमें सुधार लाने के लिए भी प्रवृत्त होते हैं।
  • अपनी अस्वस्थता एवं पीड़ा की बहुत कम परवाह करते हैं।
  • चिन्तामुक्त होते हैं।
  • आक्रामक, अहमवादी तथा अनियन्त्रित प्रकृति के होते हैं।
  • प्राय: प्राचीन विचारधारा के पोषक होते हैं।
  • धारा प्रवाह बोलने वाले तथा मित्रवत् व्यवहार करने वाले होते हैं।
  • ये शान्त एवं आशावादी होते हैं।
  • परिस्थिति और आवश्यकताओं के अनुसार स्वयं को व्यवस्थित कर लेते हैं।
  • ऐसे व्यक्ति शासन करने तथा नेतृत्व करने की इच्छा रखते हैं। ये जल्दी से घबराते भी नहीं हैं।
  • बहिर्मुखी व्यक्तित्व के लोगों में अधिकतर समाज-सुधारक, राजनैतिक नेता, शासक व प्रबन्धक, खिलाड़ी, व्यापारी और अभिनेता सम्मिलित होते हैं।

2. अन्तर्मुखी अन्तर्मुखी व्यक्तियों की रुचि स्वयं में होती है। :
इनकी सामाजिक कार्यों में रुचि न के बराबर होती है। स्वयं अपने तक ही सीमित रहने वाले ऐसे लोग संकोची तथा एकान्तप्रेमी होते हैं। इनकी अन्य। विशेषताएँ इस प्रकार हैं।

  • अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के लोग कम बोलने वाले, लज्जाशील तथा पुस्तक-पत्रिकाओं को पढ़ने में गहरी रुचि रखते हैं।
  • ये चिन्तनशील तथा चिन्ताओं से ग्रस्त रहते हैं।
  • सन्देह प्रवृत्ति के कारण अपने कार्य में अत्यन्त सावधान रहते हैं।
  • अधिक लोकप्रिय नहीं होते।
  • इनका व्यवहार आज्ञाकारी होता है, लेकिन जल्दी ही घबरा जाते हैं।
  • आत्म-केन्द्रित और एकान्तप्रिय होते हैं।
  • स्वभाव में लचीलापन नहीं पाया जाता और क्रोध करने वाले होते हैं।
  • चुपचाप रहते हैं।
  • अच्छे लेखक तो होते हैं, किन्तु अच्छे वक्ता नहीं होते।
  • समाज से दूर रहकर धार्मिक, सामाजिक तथा राजनैतिक आदि समस्याओं के विषय में चिन्तनरत रहते हैं, लेकिन समाज में सामने आकर व्यावहारिक कार्य नहीं कर पाते।

बहिर्मुखी तथा अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के लोगों की विभिन्न विशेषताओं को अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ऐसे व्यक्ति समाज में शायद ही कुछ हों जिन्हें विशुद्धतः बहिर्मुखी या अन्तर्मुखी का नाम दिया जा सके। ज्यादातर लोगों का व्यक्तित्व ‘मिश्रित प्रकार का होता है, जिसमें बहिर्मुखी तथा अन्तर्मुखी दोनों प्रकार की विशेषताएँ निहित होती हैं। ऐसे व्यक्तित्व को विकासोन्मुख व्यक्तित्व (Ambivert Personality) की संज्ञा प्रदान की जाती है।

प्रश्न 5
व्यक्तित्व के मूल्यांकन के लिए इस्तेमाल होने वाली ‘व्यक्तित्व परिसूचियों का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर :
व्यक्तित्व के मूल्यांकन की एक प्रविधि व्यक्तित्व परिसूचियाँ भी हैं। व्यक्तित्व परिसूचियाँ (Personality Inventories) कथनों की लम्बी तालिकाएँ होती हैं, जिनके कथन व्यक्तित्व एवं जीवन के विविध पक्षों से सम्बन्धित होते हैं। परीक्षार्थी के सामने परिसूची रख दी जाती है, जिन पर वह हाँ / नहीं अथवा (√) या (×) के माध्यम से अपना मत प्रकट करता है। इन उत्तरों का विश्लेषण करके व्यक्तित्व को समझने का प्रयास किया जाता है। ये व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों रूपों में प्रयुक्त होती हैं।

इनको प्रचलन आजकल काफी बढ़ गया है, क्योंकि इनके माध्यम से कम समय में अधिकाधिक सूचनाएँ एकत्र की जा सकती हैं। अमेरिका तथा इंग्लैण्ड में निर्मित व्यक्तित्व परिसूचियों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-बर्न श्यूटर की व्यक्तित्व परिसूची, कार्नेल सूचक, मिनेसोटा बहुपक्षीय व्यक्तित्व परिसूची, आलपोर्ट का ए० एस० प्रतिक्रिया अध्ययन, वुडवर्थ का व्यक्तिगत प्रदत्त पत्रक, बेल की समायोजन परिसूची तथा फ्राइड हीडब्रेडर का अन्तर्मुखी-बहिर्मुखी परीक्षण इत्यादि। भारत में ‘मनोविज्ञानशाला उ० प्र०, इलाहाबाद द्वारा भी एक व्यक्तित्व परिसूची का निर्माण किया गया है, जिसे चार भागों में विभाजित किया गया है।

  1. तुम्हारा घर तथा परिवार
  2. तुम्हारा स्कूल
  3. तुम और दूसरे लोग तथा
  4. तुम्हारा स्वास्थ्य तथा अन्य समस्याएँ

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
वार्नर द्वारा किया गया व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
वार्नर (Warner) ने शारीरिक आधार पर व्यक्तित्व के दस विभिन्न रूप बताये हैं।

  1. सामान्य
  2. असामान्य बुद्धि वाला
  3. मन्दबुद्धि वाला
  4. अविकसित शरीर का
  5. स्नायुविक
  6. स्नायु रोगी
  7. अपरिपुष्ट
  8. सुस्त और पिछड़ा हुआ
  9. अंगरहित तथा
  10. मिरगी ग्रस्त

प्रश्न 2
टरमन द्वारा किया गया व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
टरमन (Turman) :
बुद्धि-लब्धि के आधार पर व्यक्तित्व के दो प्रकार बताये हैं।

  1. प्रतिभाशाली
  2. उप-प्रतिभाशाली
  3. अत्युत्कृष्ट
  4. उत्कृष्ट बुद्धि
  5. सामान्य बुद्धि
  6. मन्दबुद्धि
  7. मूर्ख
  8. मूढ़-जड़ बुद्धि।

प्रश्न 3
थॉर्नडाइक द्वारा किया गया व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
थॉर्नडाइक (Thorndike) ने विचार – शक्ति के आधार पर व्यक्तित्व को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा है।

  1. सूक्ष्म विचारक – किसी कार्य को करने से पूर्व उसके पक्ष/विपक्ष में बारीकी से विचार करने वाले ऐसे व्यक्ति विज्ञान, गणित व तर्कशास्त्र में रुचि रखते हैं।
  2. प्रत्यय विचारक – ऐसे लोग शब्द, संख्या तथा सन्तों आदि प्रत्ययों के आधार पर विचार करना पसन्द करते हैं।
  3. स्थूल विचारक – स्थूल विचारक क्रिया पर बल देने वाले तथा स्थूल चिन्तन करने वाले होते हैं।

प्रश्न 4
व्यक्तित्व मूल्यांकन के लिए अपनायी जाने वाली स्वतन्त्र साहचर्य विधि का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
व्यक्तित्व मूल्यांकन की स्वतन्त्र साहचर्य (Free Association) विधि में 50 से लेकर 100 तक उद्दीपक शब्दों की एक सूची प्रयोग की जाती है। परीक्षक परीक्षार्थी को सामने बैठाकर सूची का एक-एक शब्द उसके सामने बोलता है। परीक्षार्थी शब्द सुनकर जो कुछ उसके मन में आता है, कह देता है जिन्हें लिख लिया जाता है और उन्हीं के आधार पर व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

प्रश्न 5
स्वप्न विश्लेषण विधि का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर :
स्वप्न विश्लेषण :
यह मनोचिकित्सा की एक महत्त्वपूर्ण विधि है। मनोविश्लेषणवादियों के अनुसार, स्वप्न मन में दबी हुई भावनाओं को उजागर करता है। इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति अपने स्वप्नों को नोट करता जाता है और परीक्षक उसका विश्लेषण करके व्यक्ति के व्यक्तित्व की व्याख्या प्रस्तुत करता है। वैसे तो स्वप्नों को ज्यों-का-त्यों याद करने में काफी कठिनाई होती है तथापि स्वप्न साहचर्य के अभ्यास द्वारा, स्वप्नों को सुविधापूर्वक याद किया जा सकता है।

प्रश्न 6
शिक्षा में ‘व्यक्तित्व परीक्षण के महत्त्व का विवेचन कीजिए। (2016)
उत्तर :
शिक्षा में व्यक्तित्व परीक्षण का महत्त्व इस प्रकार है।

  1. व्यक्तित्व परीक्षण के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तिगत विशेषताओं की माप होती है।
  2. व्यक्तित्व का वास्तविक मापन वस्तुनिष्ठता, वैधता तथा विश्वसनीयता द्वारा होता है।
  3. शिक्षा में व्यक्तित्व का परीक्षण मुख्यत: व्यक्ति के ज्ञान के मूल्यांकन के लिए किया जाता है।
  4. व्यक्तित्व परीक्षण द्वारा व्यक्ति की बुद्धि क्षमता का परीक्षण किया जाता है।
  5. व्यक्तित्व परीक्षण द्वारा परीक्षार्थी के सीखने की क्षमता का पता चलता है।
  6. परीक्षण द्वारा व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक आकलन किया जाता है।
  7. व्यक्ति परीक्षण द्वारा परीक्षार्थी या व्यक्ति के व्यवहार का अवलोकन किया जाता है।

प्रश्न 7
व्यक्तित्व मूल्यांकन की परिस्थिति परीक्षण विधि का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
व्यक्तित्व मूल्यांकन की एक विधि ‘परिस्थिति परीक्षण विधि’ (Situation Test Method) भी है। इसे वस्तु परीक्षण भी कहते हैं, जिसके अनुसार व्यक्ति के किसी गुण की माप करने के लिए उसे उससे सम्बन्धित किसी वास्तविक परिस्थिति में रखा जाता है तथा उसके व्यवहार के आधार पर गुण का मूल्यांकन किया जाता है। इस परीक्षण में परिस्थिति की स्वाभाविकता बनाये रखना आवश्यक है।

प्रश्न 8
व्यक्तित्व मूल्यांकन की व्यावहारिक परीक्षण विधि का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
व्यक्तित्व मूल्यांकन की एक विधि व्यावहारिक परीक्षण विधि (Performance Test Method) भी है। इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति को वास्तविक परिस्थिति में ले जाकर उसके व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। परीक्षार्थी को कुछ व्यावहारिक कार्य करने को दिये जाते हैं। इन कार्यों की परिलब्धियों तथा व्यवहार सम्बन्धी लक्षणों के आधार पर परीक्षार्थी के व्यक्तित्व से सम्बन्धित निष्कर्ष प्राप्त किये जाते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने अनेक प्रकार की व्यावहारिक परीक्षण विधियाँ प्रस्तुत की हैं। एक उदाहरण इस प्रकार है-बच्चों के एक समूह को पुस्तकालय में ले जाकर स्वतन्त्र छोड़ दिया गया और उनके क्रियाकलापों का अध्ययन किया गया। वे वहाँ जो कुछ भी करते हैं, जिन पुस्तकों का अध्ययन करते हैं या जिस प्रकार की बातचीत करते हैं, उसे नोट करके उनके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
व्यक्तित्व की एक स्पष्ट परिभाषा लिखिए। [2007, 13]
उत्तर :
“व्यक्तित्व व्यक्ति के उन मनो-शारीरिक संस्थानों का गत्यात्मक संगठन है जो वातावरण के साथ उसके अनूठे समायोजन को निर्धारित करता है।” [आलपोर्ट]

प्रश्न 2
व्यक्तित्व के निर्माण में किन कारकों का योग रहता है ?
उत्तर :
व्यक्तित्व के निर्माण में व्यक्ति के जन्मजात तथा अर्जित गुणों का योग रहता है।

प्रश्न 3
किस विद्वान ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण शारीरिक संरचना के आधार पर किया है ?
उत्तर :
क्रैशमर नामक विद्वान् ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण शारीरिक संरचना के आधार पर किया है।

प्रश्न 4
किस विद्वान ने स्वभाव के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण किया है ?
उत्तर :
शैल्डन ने स्वभाव के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत किया है।

प्रश्न 5
किस मनोवैज्ञानिक ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण सामाजिकता के आधार पर किया है?
उत्तर :
जंग नामक मनोवैज्ञानिक ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण सामाजिकता के आधार पर किया है।

प्रश्न 6
सन्तुलित व्यक्तित्व की चार मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2008]
उत्तर :
सन्तुलित व्यक्तित्व की चार मुख्य विशेषताएँ हैं।

  1. उत्तम शारीरिक स्वास्थ्य
  2. अच्छा मानसिक स्वास्थ्य
  3. संवेगात्मक सन्तुलन तथा
  4. सामाजिकता

प्रश्न 7
व्यक्तित्व – परीक्षण की मुख्य विधियाँ कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर :
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य विधियाँ हैं

  1. वैयक्तिक विधियाँ
  2. वस्तुनिष्ठ विधियाँ
  3. मनोविश्लेषणात्मक विधियाँ तथा
  4. प्रक्षेपण या प्रक्षेपी विधियाँ।

प्रश्न 8
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य वैयक्तिक विधियाँ कौन-कौन-सी ?
उत्तर :
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य वैयक्तिक विधियाँ हैं

  1. प्रश्नावली विधि
  2. व्यक्ति इतिहास विधि
  3. साक्षात्कार विधि तथा
  4. आत्म-चरित्र-लेखन विधि।

प्रश्न 9
‘रोर्णा स्याही धब्बा परीक्षण किस प्रकार की विधि है ? (2007)
उत्तर :
‘रोर्णा स्याही धब्बा परीक्षण’ एक प्रक्षेपण विधि है।

प्रश्न 10
किस विधि से व्यक्ति में सामाजिक अन्तर्सम्बन्धों को मापा जाता है?
उत्तर :
समाजमिति विधि द्वारा व्यक्ति में सामाजिक अन्तर्सम्बन्धों को मापा जाता है।”

प्रश्न 11
व्यक्तित्व के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त का प्रतिपादक कौन है?
उत्तर :
व्यक्तित्व के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त का प्रतिपादक सिगमण्ड फ्रॉयड है।

प्रश्न 12
किस प्रकार के व्यक्तियों में आत्मविश्वास की सुदृढ भावना और पर्याप्त सहनशीलता होती है?
उत्तर :
बहिर्मुखी प्रकार के व्यक्तियों में आत्मविश्वास की सुदृढ़ भावना और पर्याप्त सहनशीलता होती

प्रश्न 13
सर्वप्रथम ‘स्याही धब्बा परीक्षण किसने किया था ? [2011]
उत्तर :
सर्वप्रथम ‘स्याही धब्बा परीक्षण स्विट्जरलैण्ड के प्रसिद्ध मनोविकृति चिकित्सक हरमन रोर्शा ने किया था।

प्रश्न 14
बाल सम्प्रत्यय परीक्षण (c.A.T.) का सम्बन्ध किस परीक्षण से है? [2014]
उत्तर :
बाल सम्प्रत्यय परीक्षण (C.A.T) का सम्बन्ध व्यक्तित्व-परीक्षण से है।

प्रश्न 15
व्यक्तित्व के शाब्दिक अर्थ को बताइए। [2012]
उत्तर :
व्यक्तित्व का शाब्दिक अर्थ है-व्यक्ति का वास्तविक स्वरूप।

प्रश्न 16
‘स्याही धब्बा परीक्षण क्या है। [2009]
उत्तर :
‘स्याही धब्बा परीक्षण’ व्यक्तित्व-परीक्षण की एक प्रक्षेपी विधि है।

प्रश्न 17
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य।

  1. व्यक्तित्व का आशय है-व्यक्ति का रूप-रंग एवं वेशभूषा धारण करने का ढंग।
  2. व्यक्तित्व वर्गीकरण का एक आधार सामाजिकता भी है।
  3. व्यक्तित्व मापन या मूल्यांकन का न तो कोई महत्त्व है और न ही आवश्यकता।
  4. व्यक्तित्व परीक्षण की मनोविश्लेषणात्मक विधि के प्रतिपादक एडलर थे।

उत्तर :

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. असत्य

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए।

प्रश्न 1
“व्यक्तित्व रुचियों का वह समाकलन है, जो जीवन के व्यवहार में एक विशेष प्रवृत्ति उत्पन्न करता हैं।” यह परिभाषा किसकी है ?
(क) कार माइकेल की
(ख) मैकार्डी की
(ग) आलपोर्ट की
(घ) मार्टन प्रिन्स की
उत्तर :
(ख) मैका की

प्रश्न 2
सामाजिक अन्तर्किया की दृष्टि से जंग के अनुसार व्यक्तित्व के प्रकार हैं।
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच
उत्तर :
(क) दो

प्रश्न 3
व्यक्तित्व परीक्षण की वैयक्तिक विधि है।
(क) मनो-विश्लेषण विधि
(ख) रोश परीक्षण
(ग) वाक्य पूर्ति परीक्षण
(घ) प्रश्नावली विधि
उत्तर :
(घ) प्रश्नावली विधि

प्रश्न 4
रोर्शा परीक्षण मापन करता है। [2008, 10]
(क) उपलब्धि को
(ख) रुचिं को
(ग) बुद्धि का
(घ) व्यक्तित्व का
उत्तर :
(घ) व्यक्तित्व का

प्रश्न 5
व्यक्तित्त्व मापन की वस्तुनिष्ठ विधि है।
(क) समाजमिति
(ख) स्वप्न विश्लेषण
(ग) स्वतन्त्र साहचर्य
(घ) कहानी-पूर्ति परीक्षण
उत्तर :
(क) समाजमिति

प्रश्न 6
मनोविश्लेषण विधि के प्रवर्तक हैं।
(क) वुण्ट
(ख) फ्रॉयड
(ग) जंग
(घ) स्पीयरमैन
उत्तर :
(ख) फ्रॉयड

प्रश्न 7
प्रक्षेपण विधि मापन करता है।
(क) बुद्धि का
(ख) रुचिका
(ग) व्यक्तित्व का
(घ) उपलब्धि का
उत्तर :
(ग) व्यक्तित्व का

प्रश्न 8
व्यक्तित्व मापन की आरोपणात्मक विधि है।
(क) साक्षात्कार विधि
(ख) स्वप्न विश्लेषण विधि
(ग) रोर्णा स्याही धब्बा परीक्षेण
(घ) ये सभी
उत्तर :
(ग) रोर्शा स्याही धब्बा परीक्षण

प्रश्न 9
आर० बी० कैटल द्वारा विकसित पी० एफ० प्रश्नावली में प्रयुक्त पी० एफ० (व्यक्तित्व कारकों) की संख्या है।
(क) 14
(ख) 16
(ग) 15
(घ) 17
उत्तर :
(ख) 16

प्रश्न 10
“व्यक्तित्व गुणों का समन्वित रूप है।” यह कथन है।
(क) वुडवर्थ का
(ख) गिलफोर्ड का
(ग) जे० एस० रासे को
(घ) स्किनरे का
उत्तर :
(घ) स्किनर का

प्रश्न 11
वाक्यपूर्ति तथा कहानी पूर्ति परीक्षण व्यक्तित्व परीक्षण की किस विधि में शामिल है?
(क) आत्म चरित्र लेखन विधि
(ख) वस्तुनिष्ठ विधि
(ग) प्रक्षेपी विधि
(घ) मनोविश्लेषणात्मक विधि
उत्तर :
(क) आत्म चरित्र लेखन विधि

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