UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 1 Reproduction in Organisms

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Biology
Chapter Chapter 1
Chapter Name Reproduction in Organisms
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 1 Reproduction in Organisms (जीवों में जनन)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जीवों के लिए जनन क्यों अनिवार्य है?
उत्तर
जनन जीवों का एक अति महत्त्वपूर्ण लक्षण है। यह एक अति आवश्यक जैविक प्रक्रिया है। जिसके द्वारा न सिर्फ जीवों की उत्तरजीविता में मदद मिलती है बल्कि इससे जीव-जाति की निरन्तरता भी बनी रहती है। जनन जीवों के अमरत्व में भी सहायक होता है। प्राकृतिक मृत्यु, वयता वे जीर्णता के कारण होने वाले जीव ह्रास की आपूर्ति, जनन द्वारा ही होती है। जनने से जीवों की संख्या बढ़ती है। जनन एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा लाभदायक विभिन्नताएँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानान्तरित होती हैं। अत: जनन जैव विकास में भी सहायक होता है। इन समस्त कारणों के आधार पर कहा जा सकता है कि जनन जीवों के लिए अनिवार्य है।

प्रश्न 2.
जनन की अच्छी विधि कौन-सी है और क्यों ?
उत्तर
प्राय: लैंगिक जनन (sexual reproduction) को जनन की श्रेष्ठ विधि माना गया है। लैंगिक जनन के दौरान गुणसूत्रों की अदला-बदली होती है जिससे युग्मकों (gametes) में नये लक्षण विकसित होते हैं तथा नये जीव का विकास होता है जो अपने जनकों से भिन्न होता है। अतः लैंगिक जनन जैव विकास में सहायक होता है। लैगिक जनन द्वारा जीवों के जीवित रहने के अवसर अधिक होते हैं, क्योंकि आनुवंशिक विभिन्नताओं के कारण जीव अधिक क्षमतावान होता है। लैंगिक जनन से जीवों की संख्या भी बढ़ती है। अत: लैंगिक जनन ही, जनन की अच्छी विधि है।

प्रश्न 3.
अलैगिक जनन द्वारा उत्पन्न हुई सन्तति को क्लोन क्यों कहा गया है ?
उत्तर
आकारिकीय व आनुवंशिक रूप से एक समान जीव क्लोन (clone) कहलाते हैं। अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न सन्तति आनुवंशिक व आकारिकीय रूप से अपने जनक के एकदम समान होती है, अत: इसे क्लोन कहते हैं।

प्रश्न 4.
लैगिक जनन के परिणामस्वरूप बनी सन्तति के जीवित रहने के अच्छे अवसर होते हैं। क्यों ? क्या यह कथन हर समय सही होता है ?
उत्तर
लैंगिक जनन के दौरान गुणसूत्रों का विनिमय होने से आनुवंशिक विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं। जो जनक से सन्तति में स्थानान्तरित होती हैं। युग्मकों की उत्पत्ति व निषेचन के कारण नये तथा बेहतर गुणों युक्त सन्तति का जन्म होता है। अत: लैंगिक जनन के परिणामस्वरूप उत्पन्न सन्तति के जीवित रहने के अच्छे अवसर होते हैं।

यह कथन सदैव सही नहीं होता है। जनकों के रोगग्रस्त होने पर वह रोग आने वाली पीढ़ियों में स्थानान्तरित हो जाता है।

प्रश्न 5.
अलैगिक जनन द्वारा बनी सन्तति लैगिक जनन द्वारा बनी सन्तति से किस प्रकार से भिन्न है?
उत्तर
अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न सन्तान आनुवंशिक व संरचनात्मक रूप से जनक के समान होती है अर्थात् अपने जनक का क्लोन (clone) होती है। इसके विपरीत लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न सन्तान आनुवंशिक रूप से जनक से भिन्न होती है।

प्रश्न 6.
अलैगिक तथा लैगिक जनन के मध्य विभेद स्थापित करो। कायिक जनन को प्रारूपिक अलैगिक जनन क्यों माना गया है ?
उत्तर
अलैंगिक तथा लैंगिक जनन के मध्य विभेद निम्नलिखित हैं
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कायिक जनन (vegetative reproduction), अलैंगिक जनन की ऐसी विधि है जिसमें पौधे के कायिक भाग से नये पौधे का निर्माण होता है। अतः इसमें एक ही जनक भाग लेता है तथा इसके द्वारा उत्पन्न सन्तति आनुवंशिक व आकारिकी में अपने जनक के समान होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कायिक जनन वास्तव में प्रारूपिक अलैंगिक जनन है।

प्रश्न 7.
कायिक प्रवर्धन से आप क्या समझते हैं ? कोई दो उपयुक्त उदाहरण दो।
उत्तर
कायिक प्रवर्धन जनन की ऐसी विधि है जिसमें पौधे के शरीर का कोई भी कायिक भाग प्रवर्धक का कार्य करता है तथा नये पौधे में विकसित हो जाता है। मातृ पौधे के कायिक अंग; जैसे-जड़, तना, पत्ती, कलिका आदि से नये पौधे का पुनर्जनन, कायिक प्रवर्धन कहलाता है। कायिक प्रवर्धन के दो उदाहरण निम्न हैं –

  1. अजूबा (Bryophyllum) के पौधे में पत्तियों के किनारों से पादपकाय उत्पन्न होते हैं जो मातृ पौधे से अलग होकर नये पौधे को जन्म देते हैं।
  2. आलू के कन्द में उपस्थित पर्वसन्धियाँ (nodes) कायिक प्रवर्धन में सहायक होती हैं। पर्वसन्धियों में कलिकाएँ स्थित होती हैं तथा प्रत्येक कलिको नये पौधे को जन्म देती है।

प्रश्न 8.
व्याख्या कीजिए –
(क) किशोर चरण
(ख) प्रजनक चरण
(ग) जीर्णता चरण या जीर्णावस्था।
उत्तर
(क) किशोर चरण (Juvenile phase) – सभी जीवधारी लैंगिक रूप से परिपक्व होने से पूर्व एक निश्चित अवस्था से होकर गुजरते हैं, इसके पश्चात् ही वे लैंगिक जनन कर सकते हैं। इस अवस्था को प्राणियों में किशोर चरण यो अवस्था तथा पौधों में कायिक अवस्था (vegetative phase) कहते हैं। इसकी अवधि विभिन्न जीवों में भिन्न-भिन्न होती है।

(ख) प्रजनक चरण (Reproductive phase) – किशोरावस्था अथवा कायिक प्रावस्था के समाप्त होने पर प्रजनक चरण अथवा जनन प्रावस्था प्रारम्भ होती है। पौधों में इस अवस्था को स्पष्ट पहचाना जा सकता है। क्योंकि पौधों में पुष्पन (flowering) प्रारम्भ हो जाता है। प्राणियों में भी अनेक शारीरिकी एवं आकारिकी परिवर्तन आ जाते हैं। इस चरण में जीव संतति उत्पन्न करने
योग्य हो जाता है। यह अवस्था विभिन्न जीवों में अलग-अलग होती है।

(ग) जीर्णता चरण या जीर्णावस्था (Senescent phase) – यह जीवन चक्र की अन्तिम अवस्था अथवा तीसरी अवस्था होती है। प्रजनन आयु की समाप्ति को जीर्णता चरण या जीर्णावस्था की प्रारम्भिक अवस्था माना जा सकता है। इस चरण में उपापचय क्रियाएँ मन्द होने लगती हैं, ऊतकों का क्षय होने लगता है तथा शरीर के अंग धीरे-धीरे कार्य करना बन्द कर देते हैं और अन्ततः जीव की मृत्यु हो जाती है। इसे वृद्धावस्था भी कहते हैं।

प्रश्न 9.
अपनी जटिलता के बावजूद बड़े जीवों ने लैगिक प्रजनन को पाया है, क्यों ?
उत्तर
लैंगिक प्रजनन जटिल तथा धीमी गति से होने के बावजूद भी अनेक रूप से उत्तम है। इस प्रकार के जनन के दौरान गुणसूत्रों का विनिमय होने से नये लक्षण विकसित होते हैं जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थानान्तरित होते रहते हैं। गुणसूत्रों के आदान-प्रदान से विभिन्नताएँ भी उत्पन्न होती हैं, जो जैव विकास में सहायक होती हैं। अपने इन्हीं गुणों के कारण बड़े जीवों में लैंगिक जनन पाया जाता है।

प्रश्न 10.
व्याख्या करके बताएँ कि अर्द्धसूत्री विभाजन तथा युग्मकजनन सदैव अन्तर-सम्बन्धित (अन्तर्बद्ध) होते हैं।
उत्तर
लैंगिक जनन करने वाले जीवधारियों में प्रजनन के समय अर्द्धसूत्री विभाजन (meiosis) तथा युग्मकजनन (gametogenesis) प्रक्रियाएँ होती हैं। सामान्यतया लैंगिक जनन करने वाले जीव द्विगुणित (diploid) होते हैं। युग्मक निर्माण प्रक्रिया को युग्मकजनन (gametogenesis) कहते हैं। शुक्राणुओं के निर्माण को शुक्रजनन तथा अण्डाणुओं के निर्माण को अण्डजनन कहते हैं। इनका निर्माण क्रमशः नर तथा मादा जनदों (gonads) में होता है। युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है, अर्थात् युग्मक अगुणित (haploid) होते हैं। युग्मकजनन प्रक्रिया अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा होती है। अतः युग्मकजनन तथा अर्द्धसूत्री विभाजन क्रियाएँ अन्तरसम्बन्धित (अन्तर्बद्ध) होती हैं। निषेचन के फलस्वरूप नर तथा मादा अगुणित युग्मक संयुग्मन द्वारा द्विगुणित युग्माणु (diploid zygote) बनाता है। द्विगुणित युग्माणु से भ्रूणीय परिवर्धन द्वारा नए जीव का विकास होता है।

प्रश्न 11.
प्रत्येक पुष्पीय पादप के भाग को पहचानिए तथा लिखिए कि वह अगुणित (n) है या द्विगुणित (2n)

  1. अण्डाशय
  2. परागकोश
  3. अण्डा या डिम्ब
  4. पराग
  5. नर युग्मक
  6. युग्मनज

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 1 Reproduction in Organisms img-2
उत्तर
पुष्पीय भाग –

  1. अण्डाशय (Ovary) – द्विगुणित (2n)
  2. परागकोश (Anther) – द्विगुणित (2n)
  3. अण्डा या डिम्ब (Ova) – अगुणित (n)
  4. परागकण (Pollen grain) – अगुणित (n)
  5. नर युग्मक (Male gamete) – अगणित (n)
  6. युग्मनज (Zygote) – द्विगुणित (2n)

[युग्मनज (zygote) शुक्राणु तथा अण्ड के मिलने से बनी द्विगुणित संरचना (2n) होती है।

प्रश्न 12.
बाह्य निषेचन की व्याख्या कीजिए। इसके नुकसान बताइए।
उत्तर
बाह्य निषेचन (External Fertilization) – शुक्राणु (नरे युग्मक) तथा अण्ड (मादा युग्मक) के संयुग्मन या संलयन को निषेचन कहते हैं। इसके फलस्वरूप द्विगुणित युग्माणु (diploid zygote) का निर्माण होता है। अधिकांश शैवालों, मछलियों में और उभयचर प्राणियों में शुक्राणु (नर युग्मक) तथा अण्ड (मादा युग्मक) का संलयन शरीर से बाहर जल में होता है, इसे बाह्य निषेचन (external fertilization) कहते हैं।

बाह्य निषेचन से हानियाँ (Disadvantages of External Fertilization) –

  1. जीवधारियों को अत्यधिक संख्या में युग्मकों का निर्माण करना होता है जिससे निषेचन के अवसर बढ़ जाएँ अर्थात् इनमें युग्मक संलयन के अवसर कम होते हैं।
  2. संतति अत्यधिक संख्या में उत्पन्न होती हैं।
  3. संतति शिकारियों द्वारा शिकार होने की स्थिति से गुजरती है, इसके फलस्वरूप इनकी उत्तरजीविता जोखिमपूर्ण होती है अर्थात् सन्तानें कम संख्या में जीवित रह पाती हैं।

प्रश्न 13.
जूस्पोर (अलैगिक चल बीजाणु) तथा युग्मनज के बीच विभेद करें।
उत्तर
जूस्पोर (अलैंगिक चल बीजाणु) – यह नग्न, चल, कशाभिका युक्त संरचना है जो अलैंगिक जनन की इकाई है। इनका निर्माण जनक कोशिका के जीवद्रव्य से सूत्री विभाजन द्वारा होता है। इनके अग्र भाग पर स्थित कशाभिका जल में तैरने हेतु सहायक होती हैं। ये चलबीजाणु धानी में बनते हैं। उदाहरण – यूलोथ्रिक्स, क्लेमाइडोमोनास आदि।

युग्मनज (Zygote) – लैंगिक जनन के दौरान नर तथा मादा युग्मकों (gametes) के निषेचन से बनी रचना, युग्मनज कहलाती है। यह द्विगुणित (diploid = 2n) होता है तथा विकसित होकर भ्रूण अथवा लार्वा में परिवर्तित हो जाता है। लैंगिक जनन करने वाले जीवों का विकास युग्मनज से होता है। बाह्य निषेचन करने वाले जीवों में युग्मनज का निर्माण बाह्य माध्यम (जल) में होता है; जैसे – मेढ़क जबकि आन्तरिक निषेचन करने वाले जीवों में यह मादा के शरीर में विकसित होता है; जैसे – मनुष्य आदि।

प्रश्न 14.
युग्मकजनन एवं भ्रूणोद्भव के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 1 Reproduction in Organisms img-3

प्रश्न 15.
एक पुष्प में निषेचन-पश्च परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
पुष्प में निषेचन-पश्च परिवर्तन (Post fertilization development in a flower)-पुष्पीय पौधों में दोहरा निषेचन तथा त्रिक संलयन (double fertilization and triple fusion) होता है। इसके फलस्वरूप भ्रूणकोष (embryo sac) में द्विगुणित युग्मनज (zygote) तथा त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक (primary endospermic nucleus) बनता है। इनसे क्रमशः भ्रूण (embryo) तथा भूणपोष (endosperm) बनता है। भ्रूणपोष विकासशील भ्रूण को पोषण प्रदान करता है। इसके साथ-साथ बीजाण्ड में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं जिसके फलस्वरूप बीजाण्ड से बीज तथा अण्डाशय से फलावरण (pericap) का निर्माण होता है।

  1. बीजाण्डवृन्त – बीजवृन्त बनाता है।
  2. अध्यावरण – बीजावरण बनाता है।
  3. अण्डद्वार – बीजद्वार बनाता है।
  4. बीजाण्डकाय (nucellus) – प्रायः नष्ट हो जाता है, कभी-कभी भोजन संचित होने के कारण पेरिस्पर्म (perisperm) बनाता है।
  5. भ्रूणकोष (embryosac)
    • अण्ड कोशिका (egg cell) – भ्रूण (embryo) बनाती है।
    • सहायक कोशिकाएँ (synergids) – नष्ट हो जाती हैं।
    • प्रतिमुख कोशिकाएँ (antipodal cells) – नष्ट हो जाती हैं।
    • ध्रुवीय केन्द्रक (polar nuclei) – भ्रूणपोष बनाता है।
  6. अण्डाशय की भित्ति – फलभित्ति बनाती है। बीज में भ्रूण सुप्तावस्था में रहता है। बीज चारों ओर से बाह्यकवच तथा अन्त:कवच (testa & tegmen) से बने अध्यावरण से घिरा होता है। भ्रूण बीजपत्रों के मध्य स्थित होता है। फलभित्ति की संरचना के आधार पर फल सरस अथवा शुष्क होते हैं।

प्रश्न 16.
एक द्विलिंगी पुष्प क्या है? अपने आस-पास से पाँच द्विलिंगी पुष्पों को एकत्र कीजिए और अपने शिक्षक की सहायता से इनके सामान्य (स्थानीय) एवं वैज्ञानिक नाम पता कीजिए।
उत्तर
द्विलिंगी पुष्प (Bisexual flower) – जब पुष्प में पुमंग (androecium) तथा जायांग (gynoecium) दोनों होते हैं तो पुष्प द्विलिंगी (bisexual) कहलाता है। सामान्यतया समीपवर्ती क्षेत्रों में पाए जाने वाले द्विलिंगी पुष्प जैसे –

  1. सरसों – बेसिका कैम्पेस्ट्रिस (Brassica campestris)
  2. मूली – रेफेनस सैटाइवस (Raphanus sativus)
  3. मटर – पाइसम सटाइवम (Pisum sativum)
  4. सेम – डॉलीकोस लबलब (Dolichos tablab)
  5. अमलतास – केसिया फिस्टुला (Cassia fistula)
  6. गुड़हल – हिबिस्कस रोजा सिनेन्सिस (Hibiscus rosa sinensis)

प्रश्न 17.
किसी भी कुकुरबिट पादप के कुछ पुष्पों की जाँच कीजिए और पुंकेसरी व स्त्रीकेसरी पुष्पों को पहचानने की कोशिश कीजिए। क्या आप अन्य एकलिंगी पौधों के नाम जानते हैं?
उत्तर
कुकुरबिट पादप पुष्प एकलिंगी होते हैं। नर पुष्प में जायांग अनुपस्थित होता है। पुष्प में पाँच पुंकेसर होते हैं। ये प्राय: 2 + 2 + 1 के रूप में संयुक्त रहते हैं। इनके परागकोश व्यावृत (twisted) होते हैं।

मादा पुष्प में पुमंग (androecium) अनुपस्थित होता है। जायांग त्रिअण्डपी, युक्ताण्डपी, एककोष्ठीय तथा अधोवर्ती अण्डाशय से बना होता है। इसमें भित्तिलग्न बीजाण्डन्यास होता है। अण्डाशय से विकसित सरल सरस फल पेपो (pepo) कहलाता है।
अन्य एकलिंगी पौधे –

  1. मक्का – जिआ मेज (Zeq muys)
  2. खजूर – फीनिक्स सिल्वेस्ट्रिस (Phoenix sylvestris)
  3. पपीता – कैरिका पपाया (Carica papaya)
  4. नारियल – कोकोस न्यूसीफेरा (Cocos nucifera)

प्रश्न 18.
अण्डप्रजक प्राणियों की सन्तानों का उत्तरजीवन (सरवाइवल) सजीवप्रजक प्राणियों की तुलना में अधिक जोखिमयुक्त क्यों होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर
अण्डप्रजक (oviparous) प्राणियों में निषेचित अण्डे (युग्मनज) का विकास मादा प्राणी के शरीर से बाहर होता है। मादा कैल्सियमयुक्त कवच से ढके अण्डों को सुरक्षित स्थान पर निक्षेपित करती है। अण्डों में भ्रूणीय विकास के फलस्वरूप शिशु का विकास होता है। शिशु निश्चित अवधि के पश्चात अण्डे के स्फुटन के फलस्वरूप मुक्त हो जाता है। अण्डप्रजक में बाह्य परिवर्द्धन (external development) होता है। यह पर्यावरणीय प्रतिकूल परिस्थितियों तथा शिकारी प्राणियों से प्रभावित होता है। इसके फलस्वरूप इन प्राणियों की उत्तरजीविता अधिक जोखिमयुक्त होती है। अण्डप्रजक प्राणियों को विकास के लिए कम समय मिलता है। अत: इन जीवों में आन्तरिक परिपक्वता सजीवप्रजक की तुलना में कम होती है। जैसे – मत्स्य, उभयचर, सरीसृप तथा पक्षी वर्ग के प्राणी अण्डप्रजक होते हैं।

सजीवप्रजक (जरायुज – viviparous) में निषेचित अण्डे (युग्मनज) का परिवर्द्धन मादा प्राणी के शरीर में होता है। इसे आन्तरिक परिवर्द्धन (internal development) कहते हैं। शिशु का विकास पूरा होने के पश्चात् प्रसव द्वारा इनका जन्म होता है, शिशु का विकास आन्तरिक होने के कारण और परिवर्द्धन में अधिक समय लगने के कारण इनकी उत्तरजीविता अपेक्षाकृत कम जोखिमपूर्ण होती है। आन्तरिक परिवर्द्धन होने के कारण ये बाह्य वातावरण तथा बाह्य परभक्षी जीवों से सुरक्षित रहते हैं। यही कारण है कि सजीवप्रजक की उत्तरजीविता अण्डप्रजक की अपेक्षा अधिक होती है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पौधों के निम्नलिखित अंगों में कौन-सा कायिक प्रजनन के लिए सर्वाधिक अनुकूल है?
(क) जड़
(ख) तना।
(ग) पत्ती
(घ) पत्र-प्रकलिका
उत्तर
(ख) तना

प्रश्न 2.
शकरकन्द एवं डहेलिया में कायिक जनन होता है
(क) पत्तियों द्वारा
(ख) पुष्पों द्वारा
(ग) जड़ों द्वारा
(घ) तनों द्वारा
उत्तर
(ख) पुष्पों द्वारा

प्रश्न 3.
निम्न में कृत्रिम कायिक प्रवर्धन सम्भव है
(क) आलू में
(ख) अजूबा में
(ग) आम में
(घ) प्याज में
उत्तर
(ग) आम में

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जनन किसे कहते हैं?
उत्तर
वह क्रिया जिसमें जीव अपने समान जीव को उत्पन्न करता है, जनन कहलाती है।

प्रश्न 2.
जनन कितने प्रकार का होता है?
उत्तर

  1. लैंगिक जनन तथा
  2. अलैंगिक जनन।

प्रश्न 3.
मुकुलन पर टिप्पणी लिखिए। (2017)
उत्तर
मुकुलन (Budding) – इस प्रकार का विभाजन यीस्ट (Yeast) एवं कुछ जीवाणुओं में पाया जाता है। इस प्रक्रिया में कोशिका में बाह्य वृद्धि होकर एक या एक-से-अधिक छोटी रचनाएँ बन जाती हैं तथा केन्द्रक सूत्री-विभाजन (mitosis) द्वारा (Lindgreen, 1949 के अनुसार) विभाजित होकर दो भागों में बँट जाता है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार केन्द्रक का यह विभाजन असूत्री विभाजन या अमाइटोसिस (amitosis) प्रकार का होता है। प्रत्येक मुकुल (bud) मातृ कोशिका से अलग होकर यीस्ट की नई कोशिका में परिवर्तित हो जाती है। इस क्रिया को मुकुलन (budding) कहते हैं। जब ये उर्द्ध रचनाएँ (outgrowths) अपनी मातृ-कोशिका से अलग नहीं होती तो श्रृंखला बनाती हैं, जिसे स्युडोमाइसीलियम कहते हैं। परन्तु अन्त में ये अलग हो जाती हैं।

प्रश्न 4.
कृत्रिम कायिक प्रवर्धन की दो विधियों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. कलम लगाना
  2. दाब कलम

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पौधों में जनन की कितनी विधियाँ पायी जाती हैं? प्रत्येक का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर
पौधों में जनन की विधियाँ
पौधों में मुख्य रूप से जनन की निम्नलिखित दो विधियाँ पायी जाती हैं –
1. अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction) – यह जनन का एक सामान्य प्रकार है जिसमें केवल एक ही जीव या जनक (Parents) भाग लेता है। इस विधि में वयस्क बनने के बाद जीव अपनी हूबहू प्रतिलिपियों (identical copies) के रूप में सन्ततियाँ उत्पन्न करता है। अतः जनक तथा सन्ततियों के बीच आनुवंशिक पदार्थ एवं लक्षणों में कोई अन्तर नहीं होता है। इसीलिए अलैंगिक जनन के फलस्वरूप उत्पन्न सन्ततियों को क्लोन (clone) कहते हैं। ऐसा जनन अपेक्षाकृत तीव्र दर से होता है। इसके लिए शरीर में कोई विशिष्ट ऊतक या अंग नहीं होते।

2. लैंगिक जनन (Sexual Reproduction) – लैंगिक जनन की प्रक्रिया जटिल होती है। इसके लिए शरीर में विशेष प्रकार के जननांग (reproductive organs) होते हैं। शरीर की सामान्य दैहिक कोशिकाओं (somatic cells) से भिन्न प्रकार की दो अगुणित (haploid = n) कोशिकाओं का संयुग्मन लैंगिक जनन की आधारभूत प्रक्रिया होती है। इन अगुणित कोशिकाओं को लैंगिक कोशिकाएँ (sex cells) या युग्मक (gamets) कहते हैं। शरीर की दैहिक कोशिकाएँ द्विगुणित (diploid) होती हैं। लैंगिक कोशिकाएँ प्रमुख जननांगों अर्थात् जनदों (gonads) की जनन कोशिकाओं (germ cells) में विशेष प्रकार के अर्धसूत्री या मीयोटिक विभाजन (reductional or meiotic division) से बनती हैं। इनके बनने की इस प्रक्रिया को युग्मकजनन (gametogenesis) कहते हैं।

संयुग्मन में भाग लेने वाली दो लैंगिक कोशिकाएँ भिन्न प्रकार की होती हैं – एक नर युग्मक कोशिका तथा दूसरी मादा युग्मक कोशिका इनके संयुग्मन से बनी द्विगुणित कोशिका को युग्मनज अर्थात् जाइगोट (zygote) कहते हैं। इसी से नई सन्तान का प्रारम्भ होता है। जनन कोशिकाओं के अर्धसूत्री विभाजन द्वारा बनी युग्मक कोशिकाओं में जनन कोशिकाओं के जोड़ीदार अर्थात् समजात गुणसूत्रों (homologous chromosomes) का बँटवारा अनियमित एवं संयोगिक (random) होता है। फिर युग्मनजों (zygotes) के बनने में नर व मादा युग्मक का संयुग्मन भी संयोगिक होता है। इसके कारण युग्मनजों के जीन प्रारूप (genotypes) जनन कोशिकाओं के जीन प्रारूपों से कुछ भिन्न होते हैं। इसी कारण लैंगिक जनन के फलस्वरूप बनी सन्तति माता-पिता से थोड़ी भिन्न दिखाई देती है।

प्रश्न 2.
टिप्पणी लिखिए-ब्रायोफाइट्स में वर्षी प्रजनन। (2015)
उत्तर
ब्रायोफाइट्स के युग्मकोभिद् में अनेक प्रकार का वर्षी प्रजनन होता है। उदाहरणार्थ-विखण्डन, जेमा, कन्दे, पुंतन्तु, पत्र-प्रकलिका द्वारा। विखण्डन विधि में बहुकोशिकीय जनक पौधे का शरीर दो या दो से अधिक टुकड़ों में विखण्डित हो जाता है तथा प्रत्येक टुकड़ा पुनरुद्भवन द्वारा एक नई वयस्क सन्तति में विकसित हो जाता है। कभी-कभी पौधे की पत्ती व तने के अग्र भाग पर बहुकोशिकीय एवं हरे रंग की रचनाएँ निकलती हैं, जिन्हें जेम्यूल कहते हैं। ये अलग होकर अंकुरण द्वारा नये पौधे को जन्म देती हैं। पौधों के कन्द तथा पुंतन्तु भी नये पौधों को जन्म देते हैं। ब्रायोफाइट्स में पत्र-प्रकलिकाओं द्वारा भी वर्दी प्रजनन होता है। वे कलिकाएँ जिनमें खाद्य-पदार्थ संचित रहता है, पत्र-प्रकलिकाएँ कहलाती हैं। ये कलिकाएँ मातृ पौधे से टूटकर भूमि पर गिर जाती हैं। तथा अनुकूल मौसम में इनमें अपस्थानिक जड़े निकल आती हैं जो भूमि से जल एवं खनिज लवणों का अवशोषण करती हैं तथा प्रकलिकाएँ वृद्धि करके नवीन पौधे बनाती हैं।

प्रश्न 3.
सूक्ष्म प्रवर्धन (माइक्रो प्रोपेगेशन) पर एक टिप्पणी लिखिए। (2015)
या
ऊतक संवर्धन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2018)
उत्तर
यह कायिक प्रवर्धन की सबसे आधुनिक विधि है। इस विधि में मातृ पौधे के थोड़े से ऊतक से हजारों की संख्या में पादपों (plants) को प्राप्त किया जा सकता है। यह विधि ऊतक तथा कोशिका संवर्धन तकनीकी (tissue and cell culture technique) पर आधारित है।

इस विधि में जिस पौधे से प्रवर्धन करना होता है, उसके किसी भाग से ऊतक (tissue) का छोटा भाग अलग कर लिया जाता है। अब इस ऊतक की अजर्म परिस्थितियों (aseptic conditions) में किसी उचित संवर्धन माध्यम (culture medium) में वृद्धि कराते हैं। यह ऊतक पोषक पदार्थों का अवशोषण करके वृद्धि करता है जिससे कोशिकाओं के गुच्छे बन जाते हैं जिन्हें कैलस (callus) कहा जाता है। इस कैलस को लम्बे समय तक गुणन के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है। आवश्यकता पड़ने पर कैलस का एक छोटा टुकड़ा दूसरे ऐसे माध्यम पर स्थानान्तरित कर दिया जाता है जहाँ यह वृद्धि करके नन्हे पौधे के रूप में विकसित होता है। इस पादप को निकालकर मृदा में लगा दिया जाता है। इस विधि में एक बार ऊतक संवर्धन करके लम्बे समय तक पौधे प्राप्त किए जाते हैं और ये अधिक संख्या में प्राप्त होते हैं। यह विधि आर्किड्स (Orchids), कार्नेशन्स (Carnations), गुलदाऊदी (Crysanthemum) एवं सतावर (Asparagus) में अधिक सफल है। इस विधि से मशरूमों (Mushrooms) का भी संवर्धन किया जाता है।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कायिक जनन किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार का होता है? प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन का विस्तृत वर्णन कीजिए। (2014, 15, 16, 17)
या
कायिक प्रवर्धन किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार का होता है? (2014, 16)
या
प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन पर टिप्पणी लिखिए। (2015)
या
पौधों में कायिक जनन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2018)
उत्तर
पौधों में कायिक जनन
कायिक जनन प्रजनन की अथवा नए पौधे के पुनर्निर्माण (regeneration) की क्रिया है। इस क्रिया में नया पौधा मातृ पौधे के किसी भी कायिक भाग से बनता है। इसके सभी लक्षण व गुण मातृ पौधे के समान ही होते हैं। कायिक जनन को कायिक प्रवर्धन (vegetative propagation) के नाम से भी जाना जाता है।

मातृ पौधे के कायिक अंगों द्वारा नये पादपों का बनना कायिक जनन या कायिक प्रवर्धन कहलाता है।
यह क्रिया निम्न पादपों (lower plants) में सामान्य रूप से देखने को मिलती है जबकि उच्च श्रेणी के पौधों (higher plants) में यह केवल निम्न दो प्रकार से होती है –

  1. प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन (Natural vegetative propagation)
  2. कृत्रिम कायिक प्रवर्धन (Artificial vegetative propagation)

प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन
यह क्रिया प्रकृति में मिलती है। इस क्रिया के अन्तर्गत पादप का कोई अंग अथवा रूपान्तरित भाग मातृ पौधे से अलग होकर नया पौधा बनाता है। यह क्रिया अनुकूल परिस्थितियों में होती है। पौधे का कायिक भाग; जैसे-जड़, तना व पत्ती इस क्रिया में भाग लेते हैं। ये भाग इस प्रकार से रूपान्तरित होते हैं कि वे अंकुरित होकर नया पौधा बना सकें। विभिन्न प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन की विधियाँ अग्रवत् हैं

(A) भूमिगत तना
तने का मुख्य भाग अथवा कुछ भाग भूमिगत वृद्धि करता है तथा एक प्रकार से भोजन संग्रह करने वाले अंग के रूप में रूपान्तरित हो जाता है। परन्तु इस पर कक्षस्थ कलिकाएँ मिलती हैं जिनसे नया पौधा विकसित होता है अथवा शाखाएँ निकलती हैं जो मृदा से बाहर आकर नया पौधा बना लेती हैं। उदाहरण के लिए –

(i) कन्द (Tuber) – वृद्धि असमान (diffuse) होती है; जैसे – आलू (potato)। इस पर आँख (eye) मिलती है, जिसमें कक्षस्थ कलिका (axillary bud) शल्क पत्रों से ढकी रहती है। यह कक्षस्थ कलिका अनुकूल समय में अंकुरित होकर नया पौधा बना लेती है। निश्चित पर्व सन्धियाँ नहीं मिलती हैं।
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(ii) प्रकन्द (Rhizome) – यह भूमिगत तना मृदा के भीतर समानान्तर अथवा क्षैतिज (horizontal) वृद्धि करता है। इस पर पर्व (internode) व पर्वसन्धियाँ (nodes) मिलती हैं। पर्व संघनित (condensed) होते हैं। पर्वसन्धियाँ शल्कपत्रों से ढकी रहती हैं जिनमें कक्षस्थ कलिका मिलती है। इन कक्षस्थ कलिकाओं से नए पौधे निकलते हैं; जैसे—अदरक (ginger), हल्दी (Curcuma) आदि।

(iii) घनकन्द (Corm) – यह भूमिगत तना मृदा में ऊर्ध्व वृद्धि करता है। इसमें पर्वसन्धियों (node) पर शल्कपत्रों से कलिकाएँ ढकी रहती हैं जिनसे नया पोधा बनता है; जैसे – अरबी (Colocasia), केसर (Crocus), जिमीकन्द (Amorphophalus) आदि।

(iv) शल्ककन्द (Bulb) – यह प्ररोह का वह रूपान्तरण है जहाँ तना छोटा होता है तथा इसे समानीत तने के चारों ओर रसीले गूदेदार शल्क पत्र मिलते हैं। शल्क पत्रों के कक्ष में कक्षस्थ कलिकाएँ होती हैं जो नये पौधे को जन्म देती हैं; जैसे – प्याज (Allium cepa), ट्यूलिप (Tulip), रजनीगंधा (Narcissus) आदि।

(B) अर्धवायवीय तना
यह तना भूमि के समानान्तर क्षैतिज वृद्धि करता है। प्रत्येक पर्वसन्धि (node) से जड़े तथा प्ररोह (शाखा) निकलते हैं। कभी-कभी पर्वसन्धि का कुछ भाग मृदा में अथवा जल में मिलता है। उदाहरण के लिए –

(i) ऊपरी भूस्तारी (Runner) – यह तना विसर्गी होता है तथा मृदा के बाहर की ओर क्षैतिज रूप से मिलता है। प्रत्येक पर्वसन्धि (node) से जड़े फूटती हैं तथा प्ररोह (शाखा) निकलता है जो विपरीत दिशा में वायु में वृद्धि करता है। पर्वसन्धि से निकलती प्रत्येक शाखा एक नया पौधा बना लेती है; जैसे—दूब घास (Cyanodon), खट्टी बूटी (Oxalis), सेन्टेला (Centella) आदि।

(ii) भूस्तारी (Stolon) – इनमें पर्वसन्धियों से जड़े एवं वायवीय भाग निकलते हैं। भूस्तारी के टूटने पर प्रत्येक वायवीय शाखा स्वतन्त्र पौधा बन जाती है; उदाहरण–अरवी, केला आदि।
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(iii) भूस्तारिका (Offset) – जलोभिद होने के कारण इनकी पर्वसन्धियाँ जल निमग्न होती हैं। प्रत्येक पर्वसन्धि से पत्तियों का एक समूह (tuft) निकलता है, जिसमें नीचे जड़ों का गुच्छा होता है जो मातृ पादप से अलग होकर नया पादप बनाता है; जैसे–समुद्र सोख (Water hyacinth), पिस्टिया (Pistia) आदि।

(iv) अन्त:भूस्तारी (Sucker) – मुख्य तना (पर्व) मृदा के भीतर क्षैतिज रूप (horizontal) में बढ़ता है। शाखाएँ प्रत्येक पर्वसन्धि से मृदा के बाहर निकल आती हैं; जैसे-पोदीना (mint)

(C) मूल
कुछ पौधों के मूल (जड़) कायिक प्रवर्धन करते हैं; जैसे – शकरकन्द (Ipomoea batatas), सतावर, डेहलिया (Dahelia), याम (Dioscored) आदि में अपस्थानिक कलिकाएँ (adventitious buds) निकलती हैं जो नया पौधा बना लेती हैं। कुछ काष्ठीय पौधों की जड़ों; जैसे-मुराया (Muraya), एल्बीजिया (Albuzzia), शीशम (Dalbergia) आदि से भी प्ररोह (shoot) निकलते हैं। जिनकी वृद्धि नए पौधे के रूप में होती है।
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(D) पत्ती
पत्तियों द्वारा कायिक प्रवर्धन सामान्यतः कम ही मिलता है। कुछ पौधों; जैसे–ब्रायोफिल्लम (Bryophyllum) तथा केलेन्चो (Kalanchoe) में पत्ती के किनारों (leaf margins) पर पत्र कलिकाएँ बनती हैं जिनसे छोटे-छोटे पौधे विकसित होते हैं। बिगोनिया (Begonia) अथवा एलिफेन्ट इअर प्लान्ट में पत्र कलिकाएँ पर्णवृन्त तथा शिराओं आदि पर व पूर्ण सतह पर निकलती हैं।
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(E) बुलबिल
ये प्रकलिकाएँ कायिक प्रवर्धन करने वाले जनन अंग हैं। ग्लोबा बल्बीफेरा (Globba bulbifera) में पुष्पक्रम के निचले भाग के कुछ पुष्प बुलबिल अथवा प्रकलिकाएँ बनाते हैं जो रूपान्तरित बहुकोशिकीय संरचनाएँ हैं। प्याज (Allium cepg), अमेरिकन एलोइ (Agave) आदि में भी प्रकलिकाएँ मिलती हैं जो बहुत-से पुष्पों के परिवर्तन से बनती हैं। प्रकलिकाएँ मातृ पौधे से अलग होकर नए पौधे के रूप में विकसित होती हैं।

डायोस्कोरिया बल्बीफेरा (Dioscored butbiferg) की जंगली प्रजाति तथा लिलियम बल्बीफेरम (Lilium bulbiferum) आदि में प्रकलिका (bulbil) पत्ती के अक्ष से निकलती है। खट्टी बूटी (Oxalis) में प्रकलिकाएँ कन्दिल मूल (tuberous root) के फूले हुए भाग से निकलती हैं। ये सभी प्रकलिकाएँ मातृ पादप से अलग होकर नए पादप में विकसित होती हैं।
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UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 11 Biotechnology: Principles and Processes

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Biology
Chapter Chapter 11
Chapter Name Biotechnology: Principles and Processes
Number of Questions Solved 22
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 11 Biotechnology: Principles and Processes (जैव प्रौद्योगिकी-सिद्धान्त व प्रक्रम)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
क्या आप दस पुनर्योगज प्रोटीन के बारे में बता सकते हैं जो चिकित्सीय व्यवहार के काम में लाये जाते हैं? पता लगाइये कि वे चिकित्सीय औषधि के रूप में कहाँ प्रयोग किये जाते हैं? (इंटरनेट की सहायता लें)।
उत्तर
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प्रश्न 2.
एक सचित्र (चार्ट) (आरेखित निरूपण के साथ) बनाइए जो प्रतिबन्धन एन्जाइम को (जिस क्रियाधार डी०एन०ए० पर यह कार्य करता है उसे), उन स्थलों को जहाँ यह डी०एन०ए० को काटता है व इनसे उत्पन्न उत्पाद को दर्शाता है।
उत्तर
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प्रश्न 3.
कक्षा ग्यारहवीं में जो आप पढ़ चुके हैं, उसके आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि आण्विक आकार के आधार पर एन्जाइम बड़े हैं या डी०एन०ए०। आप इसके बारे में कैसे पता लगाएँगे?
या
एन्जाइम (विकर) पर टिप्पणी लिखिए। (2018)
उत्तर
एन्जाइम्स (enzymes) प्रोटीन्स होते हैं। प्रोटीन्स अणु अत्यधिक जटिल संरचना वाले वृहदाणु होते हैं। इनका निर्माण ऐमीनो अम्लों से होता है। प्रकृति में लगभग 300 प्रकार के ऐमीनो अम्ल पाए जाते हैं, किन्तु इनमें से केवल 20 ऐमीनो अम्ल ही जन्तु एवं पादप कोशिकाओं में पाए जाते हैं। ऐमीनो अम्ल श्रृंखलाबद्ध होकर परस्पर पेप्टाइड बन्ध द्वारा जुड़े रहते हैं। प्रत्येक प्रोटीन अणु की पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला में ऐमीनो अम्लों का क्रम विशिष्ट प्रकार का होता है। प्रोटीन्स का आण्विक भार बहुत अधिक होता है। विभिन्न ऐमीनो अम्ल से बनने वाली प्रोटीन्स विभिन्न प्रकार की होती हैं। हमारे शरीर में लगभग 50,000 प्रकार की प्रोटीन्स पायी जाती हैं।

डी०एन०ए० के जैविक-वृहदाणु (biological macromolecules) जटिल संरचना वाले होते हैं। ये प्रोटीन्स (एन्जाइम) से भी बड़े जैविक गुरुअणु होते हैं। इनका अणुभार 106 से 109 डाल्टन तक होता है। डी०एन०ए० अणु पॉलिन्यूक्लिओटाइड श्रृंखला से बना होता है। डी०एन०ए० से कम अणुभार वाले m-RNA, t-RNA तथा r-RNA का निर्माण होता है। आर०एन०ए० प्रोटीन संश्लेषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आर०एन०ए० संश्लेषण हेतु डी०एन०ए० अणु विभिन्न स्थान पर द्विगुणित होकर छोटी-छोटी अनुपूरक श्रृंखलाएँ अर्थात् राइबोन्यूक्लिओटाइड अम्ल का एक छोटा अणु बनाती हैं। इन्हें प्रवेशक (primers) कहते हैं। आर०एन०ए०:प्रवेशकों के संश्लेषण का उत्प्रेरण आर०एन०ए० पॉलिमरेज (RNA polymerase) एन्जाइम करत है। आर०एन०ए० अणु प्रोटीन संश्लेषण के काम आते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि डी०एन०ए० अणु प्रोटीन्स (एन्जाइम्स) से भी बड़े अणु होते हैं।

प्रश्न 4.
मानव की एक कोशिका में DNA की मोलर सान्द्रता क्या होगी? अपने अध्यापक से परामर्श लीजिये।
उत्तर
मानव में DNA 3 M प्रति कोशिका होती है अर्थात् मानव की एक कोशिका में DNA की मोलर सांद्रता 3 होगी।

प्रश्न 5.
क्या सुकेंद्रकी कोशिकाओं में प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज मिलते हैं? अपना उत्तर सही सिद्ध कीजिये।
उत्तर
हाँ, सुकेंद्रकी कोशिकाओं में प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज मिलते हैं।
प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज DNA अनुक्रम की लम्बाई के निरीक्षण के बाद कार्य करता है। जब यह अपना विशिष्ट पहचान अनुक्रम पा जाता है तब DNA से जुड़ता है तथा द्विकुंडलिनी की दोनों लड़ियों को शर्करा-फॉस्फेट आधार स्तंभों में विशिष्ट केन्द्रों पर काटता है। प्रत्येक प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज DNA में विशिष्ट पैसिंड्रोमिक न्यूक्लियोटाइड अनुक्रमों को पहचानता है।

प्रश्न 6.
अच्छी हवा व मिश्रण विशेषता के अतिरिक्त कौन-सी अन्य कंपन फ्लास्क सुविधाएँ हैं?
उत्तर
कंपन फ्लास्क द्वितीयक चुनाव के समय किण्वन के लिये परम्परागत विधि है। इसलिये दंड विलोडक हौज बायोरिएक्टर द्वारा उत्पादों को अधिक आयतन तक संवर्धित किया जा सकता है। यह मात्रा 100 लीटर से 1000 लीटर तक हो सकती है। वांछित उत्पादन पाने के लिये जीव-प्रतिकारक अनुकूलतम परिस्थितियाँ, जैसे- तापमान, pH, क्रियाधार, विटामिन, लवण, ऑक्सीजन आदि उपलब्ध कराता है। इस बायोरिएक्टर में अच्छी हवा व मिश्रण की विशेषता के अतिरिक्त यह कम खर्चीला है तथा इसमें ऑक्सीजन स्थानान्तरण की दर बहुत अधिक होती है।

प्रश्न 7.
शिक्षक से परामर्श कर पाँच पैलिंड्रोमिक अनुप्रयास करें तथा क्षारक-युग्म नियमों का पालन करते हुये पैलिंड्रोमिक अनुक्रम बनाने के उदाहरण का पता लगाइये।
उत्तर
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प्रश्न 8.
अर्द्धसूत्री विभाजन को ध्यान में रखते हुए क्या बता सकते हैं कि पुनर्योगज डी०एन०ए० किस अवस्था में बनते हैं?
उत्तर
अर्द्धसूत्री विभाजन में गुणसूत्रों की संख्या घटकर आधी रह जाती है। प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन में प्रत्येक जोड़ी के समजात गुणसूत्रों के मध्य एक या अनेक खण्डों की अदला-बदली अर्थात् पारगमन (crossing over) होता है।

प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन की प्रथम पूर्वावस्था (Ist prophase) की उपअवस्था जाइगोटीन (zygotene) में समजात गुणसूत्र जोड़े बनाते हैं। इस प्रक्रिया को सूत्रयुग्मन (synapsis) कहते हैं। पैकिटीन (pachytene) उपअवस्था में सूत्रयुग्मक सम्मिश्र (synaptonemal complex) में एक या अधिक स्थानों पर गोल सूक्ष्म घुण्डियाँ दिखाई देने लगती हैं, इन्हें पुनर्संयोजन घुण्डियाँ (recombination nodules) कहते हैं।

समजात गुणसूत्रों के परस्पर जुड़े क्रोमैटिड्स (chromatids) के मध्य एक या अधिक खण्डों की पारस्परिक अदला-बदली को पारगमन कहते हैं। इससे समजात पुनसँयोजित डी०एन०ए० (recombinant DNA) बन जाता है। पुनर्संयोजन घुण्डियाँ उन स्थानों पर बनती हैं जहाँ पर पारगमन हेतु क्रोमैटिड्स के टुकड़े टूटकर पुनः जुड़ते हैं।

प्रश्न 9.
क्या आप बता सकते हैं कि प्रतिवेदक (रिपोर्टर) एंजाइम को वरणयोग्य चिह्न की उपस्थिति में बाहरी DNA को परपोषी कोशिकाओं में स्थानान्तरण के लिये मॉनीटर करने के लिये किस प्रकार उपयोग में लाया जा सकता है?
उत्तर
प्रतिकृतियन की उत्पत्ति वह अनुक्रम है जहाँ से प्रप्तिकृतियन की शुरूआत होती है और जब किसी DNA का कोई खंड इस अनुक्रम से जुड़ जाता है तब परपोषी कोशिकाओं के अन्दर प्रतिकृति कर सकता है। यह अनुक्रम जोड़े गये DNA के प्रतिरूपों की संख्या के नियन्त्रण के लिये भी उत्तरदायी है। ‘ori’ के साथ संवाहक को वरणयोग्य चिह्न की आवश्यकता भी होती है, जो अरूपांतरणों की पहचान एवं उन्हें समाप्त करने में सहायक हो और रूपांतरणों की चयनात्मक वृद्धि को होने दे। रूपांतरण एक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत DNA के एक खंड को परपोषी जीवाणु में प्रवेश कराते हैं।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित का संक्षिप्त वर्णन कीजिये –

  1. प्रतिकृतियन का उद्भव
  2. बायोरिएक्टर (2017)
  3. अनुप्रवाह संसाधन

उत्तर
1. प्रतिकृतियन का उद्भव – यह वह अनुक्रम है जहाँ से प्रतिकृतियन की शुरूआत होती है। जब बाहरी DNA का कोई खंड इस अनुक्रम से जुड़ जाता है तब प्रतिकृति कर सकता है। एक प्रोकैरियोटिक DNA में सामान्यतया एक प्रतिकृतियन स्थल होता है जबकि यूकैरियोटिक DNA में एक से अधिक प्रतिकृतियन स्थल होते हैं।

2. बायोरिएक्टर – बायोरिएक्टर एक बर्तन के समान है, जिसमें सूक्ष्मजीवों, पौधों, जन्तुओं एवं मानव कोशिकाओं का उपयोग करते हुये कच्चे माल को जैव रूप से विशिष्ट उत्पादों व्यष्टि एंजाइम आदि में परिवर्तित किया जाता है। वांछित उत्पाद पाने के लिये जीव-प्रतिकारक अनुकूलतम परिस्थितियाँ, जैसे-तापमान, pH, क्रियाधार, विटामिन, लवण, ऑक्सीजन आदि उपलब्ध कराता है।

सामान्यतया सर्वाधिक उपयोग में लाया जाने वाला बायोरिएक्टर विडोलन (स्टिरिंग) प्रकार का है। विडोलित हौज रिएक्टर सामान्यतया बेलनाकार होते हैं या इसमें घुमावदार आधार होता है। जिससे रिएक्टर के अंदर की सामग्री को मिश्रण में सहायता मिलती है। विडोलक प्रतिकारक के अंदर की सामग्री को मिश्रित करने के साथ-साथ प्रतिकारक में सभी जगह ऑक्सीजन की उपलब्धता भी कराते हैं। प्रत्येक जीव-प्रतिकारक रिएक्टर में एक प्रक्षोभक यन्त्र होता है। इसके अतिरिक्त उसमें ऑक्सीजन-प्रदाय यंत्र, झाग- नियन्त्रण यन्त्र, तापक्रम नियन्त्रण यन्त्र, pH होता है। प्रतिक्रिया नियन्त्रण तंत्र तथा प्रतिचयन द्वारा होता है जिससे समय-समय पर संवर्धित उत्पाद की थोड़ी मात्रा निकाली जा सकती है।

3. अनुप्रवाह संसाधन – जैव प्रौद्योगिकी द्वारा तैयार उत्पाद को बाजार में भेजने से पूर्व उसे कई प्रक्रमों से गुजारा जाता है। इन प्रक्रमों में पृथक्करण एवं शोधन सम्मिलित है और इसे सामूहिक रूप से अनुप्रवाह संसाधन कहते हैं। उत्पाद को उचित परिरक्षक के साथ संरूपित किया जाता है। औषधि के मामले में ऐसे संरूपण को चिकित्सीय परीक्षण से गुजारते हैं। प्रत्येक उत्पाद के लिये सुनिश्चित गुणवत्ता नियन्त्रण परीक्षण की भी आवश्यकता होती है। अनुप्रवाह संसाधन एवं गुणवत्ता नियन्त्रक परीक्षण अलग-अलग उत्पाद के लिये भिन्न-भिन्न होता है।

प्रश्न 11.
संक्षेप में बताइये –
(क) PCR
(ख) प्रतिबंधन एंजाइम और DNA
(ग) काइटिनेज
उत्तर
(क) PCR (Polymerase Chain Reaction) – PCR का अर्थ पॉलीमरेज चेन रिऐक्शन (पॉलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया) है। इस विधि द्वारा कम समय में जीन की कई प्रतिकृतियों का संश्लेषण किया जाता है। इस कार्य के लिये एक विशेष उपकरण थर्मल साइक्लर का उपयोग किया जाता है।
PCR चक्र में मुख्य रूप से तीन चरण होते हैं –

  1. निष्क्रियकरण,
  2. तापानुशीलन तथा
  3. विस्तार।

निष्क्रियकरण में DNA को 92°C पर 1 मिनट तक थर्मल साइक्लर में गर्म किया जाता है जिससे उसके दोनों स्टैंड अलग हो जाते हैं। तापानुशीलन में अभिक्रिया मिश्रण के तापक्रम को घटाया जाता है। यह सामान्यतया 48°C रहता है। इसे इस तापक्रम पर भी 1 मिनट के लिये रखा जाता है। इसके बाद विस्तार किया जाता है जो 27°C पर 1 मिनट के लिये होता है। इस चक्र को 34 – 37 बार दुहराया जाता है। इस प्रक्रम द्वारा DNA खंड को एक अरब गुणा तक प्रवर्धित किया जा सकता है।

पॉलिमरेज श्रृंखला अभिक्रया में DNA खंड के अतिरिक्त उपक्रमकों, एंजाइम टैंक, DNA पॉलीमरेज, मैग्नीशियम क्लोराइड, डाइमेथाइल सल्फॉक्साइड की आवश्यकता पड़ती है। उपक्रमकों (प्राइमर्स) को दो समुच्चयों की आवश्यकता पड़ती है – एक 5′ से 3′ की ओर जाने के लिये तथा एक 3′ व 5′ की ओर जाने के लिए। प्राइमर्स छोटे रासायनिक संश्लेषित अल्प न्यूक्लियोटाइड हैं जो DNA क्षेत्र के पूरक होते हैं।
PCR के उपयोग इस प्रकार हैं:

  1. रोगाणुओं की पहचान में
  2. विशिष्ट उत्परिवर्तन को पहचानने में
  3. DNA फिंगर प्रिटिंग में
  4. पादप रोगाणुओं का पता लगाने में
  5. विलुप्त जीवों तथा मनुष्यों के ममी अवशेष से DNA खंड के क्लोनिंग में।

(ख) प्रतिबंधन एंजाइम और DNA – प्रतिबंधन एंजाइम को ‘आणविक कैंची’ कहा जाता है। वह एंजाइम जो DNA को काटता है प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज कहलाता है। अभी तक 900 से अधिक प्रतिबंधन एंजाइमों की खोज हो चुकी है। ये जीवाणुओं के 230 से अधिक प्रभेदों से अलग किये गये हैं। इनमें से प्रत्येक प्रतिबंधन एंजाइम विभिन्न अनुक्रमों को पहचानते हैं।

प्रतिबंधन एंजाइम डबल स्टेंडेड DNA को खंडित करता है। ये एंजाइम DNA को एक विशेष स्थल पर काटता है; जैसे- एंजाइम ECORI प्लाज्मिड अनुक्रम GAATTC को G और A के मध्य काटता है। प्रतिबंधन एंजाइम के नामकरण में परम्परानुसार नाम का पहला शब्द वंश एवं दूसरा और तीसरा शब्द प्रकेन्द्रकी कोशिकाओं की जाति से लिया गया है जिनसे ये पृथक् किये गये थे। जैसे ECORI को ई० कोलाई RY 13 से प्राप्त किया गया है। ECORI में वर्ण R, RY प्रभेद से लिया गया है।

(ग) काइटिनेज – इस एंजाइम का उपयोग कवक कोशिका को तोड़ने के लिये किया जाता है जिससे DNA के साथ वृहद अणु; जैसे- RNA, प्रोटीन, वसा एवं पॉलिसैकेराइड बाहर निकलते हैं।

प्रश्न 12.
अपने अध्यापक से चर्चा करके पता लगाइये कि निम्नलिखित के बीच कैसे भेद करेंगे?
(क) प्लाज्मिड DNA तथा गुणसूत्रीय DNA
(ख) RNA तथा DNA
(ग) एक्सोन्यूक्लिएज तथा एंडोन्यूक्लिएज
उत्तर
(क) प्लाज्मिड DNA तथा गुणसूत्रीय DNA में अन्तर
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(ख) RNA तथा DNA में अन्तर
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(ग) एक्सोन्यूक्लिएज तथा एंडोन्यूक्लिएज में अन्तर
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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जीनी-इन्जीनियरिंग में जैविक कैंची का कार्य करने वाला एन्जाइम है – (2017)
(क) लाइगेज
(ख) न्यूक्लिएज
(ग) पॉलीमरेज
(घ) रिस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज
उत्तर
(घ) रिस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज

प्रश्न 2.
डी०एन०ए० खण्डों की पहचान करते हैं – (2017)
(क) नॉर्दर्न ब्लोटिंग से
(ख) सदर्न ब्लोटिंग से
(ग) वेस्टर्न ब्लोटिंग से
(घ) इन सभी से
उत्तर
(ख) सदर्न ब्लोटिंग से

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आनुवंशिक इंजीनियरिंग में प्रयुक्त होने वाला सबसे सामान्य बैक्टीरिया कौन-सा है?
उत्तर
ई० कोलाई।

प्रश्न 2.
आनुवंशिकी अभियांत्रिकी में उपयोगी किन्हीं दो एन्जाइमों के नाम तथा कार्य लिखिए। (2017)
उत्तर

  1. प्रतिबंधन एण्डोन्यूक्लिएज एंजाइम (Restriction Endonuclease Enzyme) – यह DNA के भीतर विशिष्ट स्थलों पर ही DNA को काटता है।
  2. DNA लाड़गेजिज (DNA Ligases) – यह एंजाइम DNA के खुले सिरों को जोड़ता है।

प्रश्न 3.
आण्विक कैंचियाँ क्या हैं? इसकी परिभाषा दीजिए। (2017)
उत्तर
प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम को आण्विक कैंची कहते हैं। यह DNA को खंडों में काटता है।

प्रश्न 4.
एण्डोन्यूक्लिएज का क्या कार्य है?
उत्तर
एण्डोन्यूक्लिएज DNA को भीतर से विशिष्ट स्थलों पर काटते हैं।

प्रश्न 5.
प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज कब कार्य करता है?
उत्तर
प्रत्येक प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज DNA अनुक्रम की लम्बाई के निरीक्षण के बाद कार्य करता है।

प्रश्न 6.
DNA के खंडों को आपस में किस एन्जाइम से जोड़ा जाता है?
उत्तर
लाइगेज।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्लाज्मिड्स क्या होते हैं। प्राणियों के जीवन में इनकी उपयोगिता का वर्णन कीजिए। (2009)
या
प्लाज्मिड्स के चार प्रमुख गुण लिखिए। (2010)
या
प्लाज्मिड्स कहाँ पाये जाते हैं? इनका उपयोग क्या और कहाँ होता है? (2011, 16, 17)
या
प्लाज्मिड्स क्या हैं और ये कहाँ पाये जाते हैं? (2015, 17)
या
प्लाज्मिड पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2018)
उत्तर
प्लाज्मिड्स
प्लाज्मिड्स (plasmids) जीवाणु कोशिका में प्राकृतिक रूप से पाये जाते हैं। यह एक दोहरे स्टैण्ड वाला DNA अणु है जो केन्द्रकाभ (nucleoid) के बाहर स्थित होता है। प्लाज्मिड्स की प्रतिकृति स्वतन्त्र होती है। जीवाणु प्लाज्मिड में केवल कुछ ही जीन होते हैं जो कई बार लैंगिक जनन से सम्बन्धित होते हैं। इन जीनों की जीवाणु कोशिका की अन्य जैव प्रक्रियाओं में कोई भूमिका नहीं होती है। इनमें उपस्थित जीन्स, प्रतिरोधी पदार्थों के निर्माण, किण्वन आदि क्रियाओं का नियमन भी करते हैं। स्वनियन्त्रित प्रतिकृति गुण होने के कारण निम्न दो प्रकार के प्लाज्मिड्स ज्ञात हैं –

1. एकल प्रतिलिपि प्लामिडस (Single Copy Plasmids) – ये प्लाज्मिड्स प्रतिकृति करके केवल एक ही प्रतिलिपि (copy) बनाते हैं।

2. बहुप्रतिलिपि प्लाज्मिड्स (Multicopy Plasmids) – ये प्लाज्मिड्स प्रतिकृति करके एक से अधिक प्रतिलिपियाँ बनाते हैं। इस प्रकार की एक जीवाणु कोशिका में परिणामस्वरूप 10 – 12 प्लाज्मिड्स पाये जा सकते हैं (कभी-कभी इनकी संख्या 1000 तक भी होती है)। ऐसे प्लाज्मिड्स का उपयोग क्लोनिंग साधन के रूप में किया जाता है।

प्लाज्मिड की एक विशेषता है कि इसका डी०एन०ए० विजातीय डी०एन०ए० खण्ड से जुड़कर भी दूसरी कोशिका में प्रवेश करने की क्षमता बनाये रखता है। ऐसे प्लाज्मिड्स ही वेक्टर के रूप में प्रयुक्त होते हैं। सबसे पहला आनुवंशिक इंजीनियरिंग से तैयार किया गया वेक्टर प्लाज्मिड PBR322 था जिसे ई० कोलाई के COIE प्लाज्मिड से तैयार किया गया था। दूसरी ओर प्लाज्मिड्स जीवाणु कोशिकाद्रव्य में मुक्त रूप से पाये जाते हैं। इन्हें सहज ही यहाँ से पृथक् किया जा सकता है।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जीनी अभियान्त्रिकी (प्रौद्योगिकी) क्या है? मनुष्य के लिए लाभदायक विभिन्न क्षेत्रों में इसके अनुप्रयोगों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए। (2018)
या
जीनी अभियान्त्रिकी क्या होती है? इसे पुनर्संयोजी डी०एन०ए० प्रौद्योगिकी क्यों कहते हैं? मानव हित में इसकी उपयोगिता का उल्लेख कीजिए। (2009, 12, 13, 15)
या
जेनेटिक इंजीनियरिंग की प्रयोज्यता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2010)
या
जैव प्रौद्योगिकी से आप क्या समझते हैं? (2014)
या
आनुवंशिक अभियान्त्रिकी के मानव हित में चार अनुप्रयोग लिखिए। (2014, 16)
या
जैव प्रौद्योगिकी की उपयोगिता पर टिप्पणी लिखिए। (2013)
या
जैव प्रौद्योगिकी के किन्हीं दो उपयोगों का उल्लेख कीजिए। (2014)
या
आनुवंशिक अभियान्त्रिकी से आप क्या समझते हैं? चिकित्सा अथवा कृषि-क्षेत्र में आनुवंशिक अभियान्त्रिकी की उपयोगिताएँ लिखिए। (2015)
या
जैव प्रौद्योगिकी के बारे में आप क्या जानते हैं? जैव प्रौद्योगिकी के मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में दो उपयोग बताइए। (2015, 17)
या
आनुवंशिक इन्जीनियरिंग क्या है? इसका कोई एक उपयोग लिखिए। (2017)
उत्तर
आनुवंशिक इंजीनियरी या जीनी अभियान्त्रिकी/प्रौद्योगिकी
आनुवंशिक अभियान्त्रिकी या जेनेटिक इन्जीनियरिंग या जीन अभियान्त्रिकी को जीन क्लोनिंग (gene cloning) भी कहते हैं। जीवों में समलक्षणी गुणों (phenotypic characters) में परिवर्तन हेतु आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) को जोड़ना (adding), हटाना (removing) या ठीक करना (repairing) आनुवंशिक इंजीनियरी का उद्देश्य है। क्योंकि DNA अणुओं में जोड़-तोड़ जीनी अभियान्त्रिकी को आधार होता है, इसे पुनर्संयोजी डी०एन०ए० प्रौद्योगिकी भी कहते हैं।

जीन अभियान्त्रिकी में आनुवंशिक पदार्थ का हेर-फेर (manipulation) पूर्व निर्धारित लक्ष्य की ओर निर्देशित किया जाता है। अर्थात् जीवों के आनुवंशिक पदार्थ (DNA) में जोड़-तोड़ करके उनके दोषपूर्ण आनुवंशिक लक्षणों के जीन्स को हटाकर, उनके स्थान पर DNA में उत्कृष्ट लक्षणों के जीन्स को समाविष्ट करना ही जीनी अभियान्त्रिकी (genetic engineering) है।

इस तकनीक में दो DNA अणुओं को सर्वप्रथम कोशिका केन्द्रक से पृथक् किया जाता है और एक या अधिक प्रकार के विशेष एन्जाइम, रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम (restriction enzyme) के द्वारा उनके टुकड़े किये जाते हैं। इसके बाद इन टुकड़ों को इच्छानुसार जोड़कर कोशिका में पुनरावृत्ति व जनन के लिए पुनः स्थापित कर दिया जाता है। संक्षेप में जीन क्लोनिंग या आनुवंशिक इन्जीनियरिंग विदेशी (foreign) DNA के एक विशिष्ट टुकड़े को कोशिका में स्थापित करना होता है।

आर्बर (Arber, 1962) ने बैक्टीरिया कोशिकाओं में रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम (restriction enzyme) नामक ऐसे पदार्थ की उपस्थिति की जानकारी प्राप्त की जो किसी भी बाह्य डी०एन०ए० को विशिष्ट टुकड़ों में तोड़ने के लिए एक तीव्र रसायन का कार्य करता है। यह न्यूक्लिक अम्ल की फॉस्फेट-शर्करा बन्धता को तोड़ता है। किसी बैक्टीरिया पर जब कोई विषाणु आक्रमण करता है तब यह प्रक्रिया उसमें रक्षास्थल का कार्य करती है। स्मिथ (Smith, 1970) ने ग्राम ऋणात्मक बैक्टीरिया हीमोफिलस इन्फ्लुएन्जी (Hemophilus influenzae) से रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम विलगित किया और सन् 1971 में नैथन्स ने बन्दर के ट्यूमर विषाणु (एसवी 40) के DNA को तोड़ने के लिए एक एन्जाइम का उपयोग किया।

सन् 1978 तक लगभग 100 से भी अधिक विभिन्न प्रकार के रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम या निर्बन्धन एण्डोन्यूक्लिएज (restriction endonuclease) विलगित करके लक्षणित किये जा चुके थे। इस प्रकार इसकी खोज सन् 1970 में आर्बर, नैथन्स एवं स्मिथ (Arber, Nathans and Smith) ने की। इसके लिए उन्हें वर्ष 1978 ई० में नोबेल पुरस्कार भी मिला। इसी से जीन अभियान्त्रिकी की नींव पड़ी।

जीनी अभियान्त्रिकी के विभिन्न उपयोग
आनुवंशिक इंजीनियरिंग का प्रयोग व्यावसायिक उत्पादनों, अनेक मानव जीन्स की खोज, रोगों के कारण व उनके इलाज की सहायता में हो रहा है। हम जीन्स के नियन्त्रण में संश्लेषित होने वाले अनेक लाभदायक पदार्थों का औद्योगिक स्तर पर उत्पादन कर सकते हैं। इस प्रौद्योगिकी के महत्त्वपूर्ण प्रयोज्य इस प्रकार हैं –

1. जीन्स का निर्माण – किसी विशेष कोशिका से m-RNA अणु को अलग करके प्रतिवर्ती ट्रांस्क्रिप्टेज (reverse transcriptase) एन्जाइम की सहायता से इस पर DNA श्रृंखला का संश्लेषण कराया जा सकता है।

2. जीन का विश्लेषण तथा संग्रह – DNA अणुओं को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर उनका संग्रह करके किसी भी जीव के सम्पूर्ण जीनोम का विश्लेषण किया जा सकता है। इसे “जीनी संग्रह के रूप में रिकॉर्ड किया जा सकता है। संग्रह की इस विधि को “शॉटगन विधि (shotgun method)’ कहते हैं।

3. जीन्स को प्रतिस्थापन – जीनी चिकित्सा (gene therapy) से अवांछित जीन्स को हटाया जा सकता है और इसके स्थान पर नये वांछित जीन्स को प्रवेश कराया जा सकता है। इस प्रकार
व्यक्ति की लम्बाई, बुद्धि, ताकत आदि को नियन्त्रित किया जा सकता है।

4. रोगजनक विषाणुओं का रूपान्तरण – रोगजनक विषाणुओं के आनुवंशिक पदार्थ में परिवर्तन करके कैंसर, एड्स (AIDS) आदि रोगों के विषाणुओं को रोगजनक के बजाय इन्हीं रोगों के
उपचार में प्रयोग किया जा सकता है।

5. विषाणु प्रतिरोधी मुर्गियाँ – जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा मुर्गियों की ऐसी प्रजातियों का विकास किया गया है जो विषाणुओं के संक्रमण का प्रतिरोध करती हैं।

6. व्यक्तिगत जीन्स को अलग करना – कुछ जीन्स को अलग करने की तकनीक विकसित की गयी, जो निम्नलिखित समूहों में वर्गीकृत की जा सकती हैं –

  1. विशेष प्रकार की प्रोटीन बनाने वाली जीन,
  2. r-RNA की जीन्स तथा
  3. नियन्त्रण करने वाली जीन्स; जैसे- प्रोमोटर जीन तथा रेगुलेटरी जीन। चूजों में ओवोएल्ब्यूमिन की जीन, चूहों में ग्लोबिन तथा इम्यूनोग्लोबिन जीन्स, अनाजों व लेग्यूम्स में प्रोटीन संग्रह की जीन्स आदि को पृथक् किया जा चुका है।

7. समुद्री तेल फैलाव का सफाया – इसमें पहले एक प्लाज्मिड में कई जीन्स को जोड़कर एक पुनसँयोजित DNA बनाया जाता है और इसका पुंजकीकरण करके एक समुद्री जीवाणु में प्रवेश कराया जाता है। यह जीवाणु समुद्री सतह पर फैले तेल का सफाया कर देता है। इसे उच्चझक्की जीवाणु (superbug bacterium) कहते हैं।

8. पौधों में नाइट्रोजन अनुबन्धन – पुनर्संयोजी DNA प्रौद्योगिकी के द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्षमता रखने वाले जीवाणुओं का संवर्द्धन करके इन्हें फलीरहित पादपों में प्रविष्ट कराया जाता है।

9. आनुवंशिक रोगों का पता लगाना – अनेक रोगों का गर्भ में ही एम्निओसेण्टेसिस (amniocentesis) तकनीक द्वारा पता लगाया जाता था, किन्तु DNA पुनर्संयोजन तकनीक द्वारा पुंजकीकृत डी०एन०ए० क्रम (cloned DNA sequence) के उपलब्ध होने से गर्भस्थ शिशु के पूरे जीनोटाइप का निरीक्षण किया जा सकता है। इस विधि के द्वारा बिन्दु उत्परिवर्तन, विलोपन आदि सभी उत्परिवर्तनों का पता लगाया जा सकता है। इस विधि का प्रयोग गर्भस्थ शिशु में थैलेसीमिया, फिनाइलकीटोन्यूरिया आदि रोगों का पता लगाने के लिए किया जा रहा है।

10. औद्योगिक रसायन – पेट्रोल, ईंधन, कीटनाशी, आसंजक (adhesives), प्रणोदक (propellants), विलायक (solvents), रंजक (dyes), विस्फोटक आदि कई प्रकार के पदार्थ हमें खनिज तेल पदार्थों से प्राप्त होते हैं। इन्हें हम जीनी अभियान्त्रिकी द्वारा रूपान्तरित जीवाणुओं की सहायता से पादपों के किण्वन से प्राप्त कर सकते हैं।

11. इस तकनीक के द्वारा इन्सुलिन तथा मानव वृद्धि हॉर्मोन का उत्पादन किया जा रहा है।

12. इस तकनीक द्वारा मानव इण्टरफेरॉन (interferon) (ल्यूकोसाइटिक इण्टरफेरॉन, फाइब्रोब्लास्टिक इण्टरफेरॉन, प्रतिरक्षक इण्टरफेरॉन) का उत्पादन किया जा रहा है।

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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields (वैद्युत आवेश तथा क्षेत्र) are part of UP Board Solutions for Class 12 Physics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields (वैद्युत आवेश तथा क्षेत्र).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Physics
Chapter Chapter 1
Chapter Name Electric Charges and Fields (वैद्युत आवेश तथा क्षेत्र)
Number of Questions Solved 103
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields (वैद्युत आवेश तथा क्षेत्र)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
वायु में एक-दूसरे से 30 cm दूरी पर रखे दो छोटे आवेशित गोलों पर क्रमशः
2 x 10-7 C तथा 3 x 10-7 C आवेश हैं। उनके बीच कितना बल है ?
हल-
दिया है, q1 = 2 x 10-7 C, q2 = 3 x 10-7 C तथा
r = 30 सेमी = 0.3 मीटर, F = ?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q1

प्रश्न 2.
0.4 μC आवेश के किसी छोटे गोले पर किसी अन्य छोटे आवेशित गोले के कारण वायु में 0.2 N बल लगता है। यदि दूसरे गोले पर 0.8 μC आवेश हो तो
(a) दोनों गोलों के बीच कितनी दूरी है?
(b) दूसरे गोले पर पहले गोले के कारण कितना बल लगता है?
हल-
दिया है, q1 = 0.4 μC = 0.4 x 10-6 C
q2 = 0.8 μC = 0.8 x 10-6 C
तथा q2 के कारण q1 पर बल F = 0.2 N
(a) r = ?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q2
(b) q2 पर -q1 के कारण बल = ?
कूलॉम का बल न्यूटनीय बल है अर्थात् एक आवेश पर दूसरे आवेश के कारण बल, दूसरे आवेश पर पहले आवेश के कारण बले के बराबर तथा विपरीत होता है।
अतः q2 पर q1 के कारण बल भी 0.2 N ही होगा, तथा इसकी दिशा q1 की ओर होगी।

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प्रश्न 3.
जाँच द्वारा सुनिश्चित कीजिए कि [latex s=2]\frac { k{ e }^{ 2 } }{ G{ m }_{ e }{ m }_{ p } }[/latex] विमाहीन है। भौतिक नियतांकों की सारणी देखकर इस अनुपात का मान ज्ञात कीजिए। यह अनुपात क्या बताता है?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q3
यह निश्चित दूरी पर रखे इलेक्ट्रॉन व प्रोटॉन के बीच वैद्युत बल तथा गुरुत्वीय बल का अनुपात है। यह बताता है कि गुरुत्वीय बल की तुलना में वैद्युत बल अत्यन्त प्रबल है।

प्रश्न 4.
(a) “किसी वस्तु का वैद्युत आवेश क्वाण्टीकृत है। इस प्रकथन से क्या तात्पर्य है?
(b) स्थूल अथवा बड़े पैमाने पर विद्युत आवेशों से व्यवहार करते समय हम विद्युत आवेश के क्वाण्टमीकरण की उपेक्षा कैसे कर सकते हैं?
उत्तर-
(a) किसी वस्तु का आवेश क्वाण्टीकृत है, इस कथन का तात्पर्य यह है कि हम किसी वस्तु को जितना चाहें उतना आवेश नहीं दे सकते अपितु वस्तु को आवेश, आवेश की न्यूनतम इकाई (e, मूल आवेश) के पूर्ण गुणजों में ही दिया जा सकता है।
(b) स्थूल अथवा बड़े पैमाने पर आवेशों से (UPBoardSolutions.com) व्यवहार करते समय आवेश के क्वाण्टमीकरण का कोई महत्त्व नहीं होता और इसकी उपेक्षा की जा सकती है। इसका कारण यह है कि बड़े पैमाने पर व्यवहार में आने वाले आवेश मूल आवेश की तुलना में बहुत बड़े होते हैं। उदाहरण के लिए 1 μC आवेश में लगभग 1013 मूल आवेश सम्मिलित हैं। ऐसी अवस्था में आवेश को सतत मानकर व्यवहार किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
जब काँच की छड़ को रेशम के टुकड़े से रगड़ते हैं तो दोनों पर आवेश आ जाता है। इसी प्रकार की परिघटना का वस्तुओं के अन्य युग्मों में भी प्रेक्षण किया जाता है। स्पष्ट कीजिए कि यह प्रेक्षण आवेश संरक्षण नियम से किस प्रकार सामंजस्य रखता है?
उत्तर-
घर्षण द्वारा आवेशन की घटनाएँ आवेश संरक्षण नियम के साथ पूर्ण सामंजस्य रखती हैं। जब इस प्रकार की किसी घटना में दो उदासीन वस्तुओं को रगड़ा जाता है तो दोनों वस्तुएँ आवेशित हो जाती हैं। घर्षण से पूर्व दोनों वस्तुएँ उदासीन होती हैं अर्थात् उनका कुल आवेश शून्य होता है। (UPBoardSolutions.com) इस प्रकार के सभी प्रेक्षणों में सदैव यह पाया गया है कि एक वस्तु पर जितना धनावेश आता है, दूसरी वस्तु पर उतना ही ऋणावेश आता है। इस प्रकार घर्षण द्वारा आवेशन के बाद भी दोनों वस्तुओं का नेट आवेश शून्य ही बना रहता है।

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प्रश्न 6.
चार बिन्दु आवेश qA = 2 μC, qB = -5 μC, qC = 2 μC तथा qD = -5 μC, 10 cm भुजा के किसी वर्ग ABCD के शीर्षों पर अवस्थित हैं। वर्ग के केन्द्र पर रखे 1 μC आवेश पर लगने वाला बल कितना है ?
हल-
किसी आवेश पर कार्य करने वाले अन्य आवेशों के कारण कूलॉम बलों को सदिश विधि द्वारा जोड़ा जाता है। अत: वर्ग के केन्द्र पर रखे आवेश q0 = 1 μC पर बल चारों आवेशों qA, qB, qC व qD के कारण कूलॉम बलों के सदिश योग के बराबर होगा।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q6
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q6.1
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q6.2

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प्रश्न 7.
(a) स्थिर विद्युत-क्षेत्र रेखा एक सतत वक्र होती है अर्थात कोई क्षेत्र रेखा एकाएक नहीं टूट सकती क्यों?
(b) स्पष्ट कीजिए कि दो क्षेत्र रेखाएँ कभी-भी एक-दूसरे का प्रतिच्छेदन क्यों नहीं करतीं?
उत्तर-
(a) विद्युत-क्षेत्र रेखा वह वक्र है जिसके प्रत्येक बिन्दु पर खींची गई स्पर्श रेखा उस बिन्दु पर विद्युत-क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करती है। ये क्षेत्र रेखाएँ सतत वक्र होती हैं अर्थात् किसी बिन्दु पर एकाएक नहीं टूट सकतीं, अन्यथा उस बिन्दु परे विद्युत-क्षेत्र की कोई दिशा ही नहीं होगी, जो असम्भव है।
(b) दो विद्युत-क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को प्रतिच्छेदित नहीं कर सकतीं; क्योंकि इस स्थिति में कटान बिन्दु पर दो स्पर्श रेखाएँ खींची जाएँगी जो उस बिन्दु पर विद्युत-क्षेत्र की दो दिशाएँ प्रदर्शित करेंगी जो असम्भव है।

प्रश्न 8.
दो बिन्दु आवेश qA = 3 μC तथा qB = -3 μC निर्वात में एक-दूसरे से 20 cm दूरी पर स्थित हैं।
(a) दोनों आवेशों को मिलाने वाली रेखा AB के मध्य बिन्दु O पर विद्युत-क्षेत्र कितना है?
(b) यदि 1.5 x 10-9 C परिमाण का कोई ऋणात्मक परीक्षण आवेश इसे बिन्दु पर रखा जाए तो यह परीक्षण आवेश कितने बल का अनुभव करेगा?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q8
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q8.1

प्रश्न 9.
किसी निकाय में दो आवेश qA = 2.5 x 10-7 C तथा qB = – 2.5 x 10-7 C क्रमशः दो बिन्दुओं A : (0, 0, -15 cm) तथा B : (0, 0, +15 cm) पर अवस्थित हैं। निकाय का कुल आवेश तथा विद्युत-द्विध्रुव आघूर्ण क्या है?
हल-
प्रश्नानुसार, qA = 2.5 x 10-7 C, qB = – 2.5 x 10-7 C,
2a = AB = 30 cm = 0.30 m
कुल आवेश, Q = qA + qB = 2.5 x 10-7 C – 2.5 x 10-7 C = 0
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q9

प्रश्न 10.
4 x 10-9 cm द्विध्रुव आघूर्ण को कोई विद्युत-द्विध्रुव 5 x 104 NC-1 परिमाण के किसी एकसमान विद्युत-क्षेत्र की दिशा से 30° पर संरेखित है। द्विध्रुव पर कार्यरत बल आघूर्ण का परिमाण परिकलित कीजिए।
हल-
दिया है,
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q10

प्रश्न 11.
ऊन से रगड़े जाने पर कोई पॉलीथीन का टुकड़ा 3 x 10-7 C के ऋणावेश से आवेशित पाया गया।
(a) स्थानान्तरित (किस पदार्थ से किस पदार्थ में) इलेक्ट्रॉनों की संख्या आकलित कीजिए।
(b) क्या ऊन से पॉलीथीन में संहति का स्थानान्तरण भी होता है?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q11
(b) हाँ, ऊन से पॉलीथीन पर द्रव्यमान का स्थानान्तरण होता है क्योंकि इलेक्ट्रॉन, जो द्रव्य कण हैं, ऊन से पॉलीथीन पर विस्थापित होते हैं।
m = प्रत्येक इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान = 9.1 x 10-31 kg,
n = 1.875 x 1012
पॉलीथीन पर स्थानान्तरित कुल द्रव्यमान M = m x n = 91 x 10-31 kg x 1.875 x 1012 = 1.71 x 1018 kg

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प्रश्न 12.
(a) दो विद्युतरोधी आवेशित ताँबे के गोलों A तथा B के केन्द्रों के बीच की दूरी 50 cm है। यदि दोनों गोलों पर पृथक्-पृथक् आवेश 6.5 x 10-7 C हैं तो इनमें पारस्परिक स्थिर विद्युत प्रतिकर्षण बल कितना है? गोलों के बीच की दूरी की तुलना में गोलों A तथा B की त्रिज्याएँ नगण्य हैं।
(b) यदि प्रत्येक गोले पर आवेश की मात्रा दो गुनी तथा गोलों के बीच की दूरी आधी कर दी जाए तो प्रत्येक गोले पर कितना बल लगेगा?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q12

प्रश्न 13.
मान लीजिए प्रश्न 12 में गोले A तथा B साइज में सर्वसम हैं तथा इसी साइज का कोई तीसरा अनावेशित गोला पहले तो पहले गोले के सम्पर्क, तत्पश्चात दूसरे गोले के सम्पर्क में लाकर, अन्त में दोनों से ही हटा लिया जाता है। अब A तथा B के बीच नया प्रतिकर्षण बल कितना है?
हल-
माना प्रारम्भ में प्रत्येक गोले ‘A’ व ‘B’ पर अलग-अलग q आवेश है। (q = 6.5 x 10-7 C) माना तीसरा अनावेशित गोला C है।
गोले A व C समान आकार के हैं; अतः परस्पर स्पर्श कराने पर ये कुल आवेश (qA + qC = q + 0) को आधा-आधा बाँट लेंगे।
हटाने के तत्पश्चात् दोनों पर आवेश
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q13

प्रश्न 14.
चित्र 1.4 में किसी एकसमान स्थिर विद्युत-क्षेत्र में तीन आवेशित कणों के पथचिह्न (tracks) दर्शाए गए हैं। तीनों आवेशों के चिह्न लिखिए। इनमें से किस कण का आवेश-संहति अनुपात ([latex s=2]\frac { q }{ m }[/latex]) में अधिकतम है?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q14
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q14.1

प्रश्न 15.
एकसमान विद्युत-क्षेत्र E = 3 x 103 iN/C पर विचार कीजिए।
(a) इस क्षेत्र का 10 cm भुजा के वर्ग के उस पाश्र्व से जिसका तल ya तल के समान्तर है, गुजरने वाला फ्लक्स क्या है?
(b) इसी वर्ग से गुजरने वाला फ्लक्स कितना है यदि इसके तल का अभिलम्ब x-अक्ष से 60° का कोण बनाता है?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q15

प्रश्न 16.
प्रश्न 15 में दिए गए एकसमान विद्युत-क्षेत्र का 20 cm भुजा के किसी घन से (जो इस प्रकार अभिविन्यासित है कि उसके फलक निर्देशांक तलों के समान्तर हैं) कितना नेट फ्लक्स गुजरेगा?
उत्तर-
एक घन के 6 फलक होंगे। इनमें से दो फलक y-z समतल के, दो z-x समतल के तथा दो x-y समतल के समान्तर होंगे।
विद्युत-क्षेत्र E = 3 x 10 i N/C x-अक्ष के अनुदिश है; अत: यह z-x तथा x-y समतलों के समान्तर फलकों के समान्तर होगा।
इन चारों फलकों से गुजरने वाला फ्लक्स शून्य होगा।
विद्युत-क्षेत्र एकसमान है; अतः y-z समतल के (UPBoardSolutions.com) समान्तर फलकों में से जितना फ्लक्स एक फलक से अन्दर प्रविष्ट होगा उतनी ही फ्लक्स दूसरे फलक से बाहर आएगा। अतः घन से गुजरने वाला नेट फ्लक्स शून्य होगा।

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प्रश्न 17.
किसी काले बॉक्स के पृष्ठ पर विद्युत-क्षेत्र की सावधानीपूर्वक ली गई माप यह संकेत देती है। कि बॉक्स के पृष्ठ से गुजरने वाला नेट फ्लक्स 8.0 x 103 Nm2/C है।
(a) बॉक्स के भीतर नेट आवेश कितना है?
(b) यदि बॉक्स के पृष्ठ से नेट बहिर्मुखी फ्लक्स शून्य है तो क्या आप यह निष्कर्ष निकालेंगे कि बॉक्स के भीतर कोई आवेश नहीं है? क्यों, अथवा क्यों नहीं?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q17
(b) यदि बॉक्स के पृष्ठ से नेट बहिर्मुखी वैद्युत फ्लक्स शून्य है, तो इससे यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि बॉक्स के अन्दर कोई आवेश नहीं है। हो सकता है कि बॉक्स के अन्दर समान मात्रा में धनावेश तथा ऋणावेश दोनों उपस्थित हों, जो एक-दूसरे के प्रभाव को निरस्त कर देंगे अर्थात् बॉक्स के अन्दर नेट आवेश शून्य हो जाएगा और हमें ऐसा प्रतीत होगा कि बॉक्स के अन्दर कोई आवेश नहीं है।

प्रश्न 18.
चित्र 1.6 में दर्शाए अनुसार 10 cm भुजा के किसी वर्ग के केन्द्र से ठीक 5 cm ऊँचाई पर कोई +10 µC आवेश रखा है। इस वर्ग से गुजरने वाले विद्युत फ्लक्स का। परिमाण क्या है? [संकेत : वर्ग को 10 cm किनारे के किसी घन का एक फलक मानिए]
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q18
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q18.1
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q18.2

प्रश्न 19.
2.0 µC का कोई बिन्दु आवेश किसी किनारे पर 9.0 cm किनारे वाले किसी घनीय गाउसीय पृष्ठ के केन्द्र पर स्थित है। पृष्ठ से गुजरने वाला नेट फ्लक्स क्या है?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q19

प्रश्न 20.
किसी बिन्द आवेश के कारण, उस बिन्दु को केन्द्र मानकर खींचे गए 10 cm त्रिज्या के गोलीय गाउसीय पृष्ठ पर विद्युत फ्लक्स- 1.0 x 103 Nm2/C
(a) यदि गाउसीय पृष्ठ की त्रिज्या दो गुनी कर दी जाए तो पृष्ठ से कितना फ्लक्स गुजरेगा?
(b) बिन्दु आवेश का मान क्या है?
हल-
(a) बिन्दु आवेश के चारों ओर खींचे गए गोलीय गाउसीय पृष्ठ से गुजरने वाला वैद्युत फ्लक्स उसकी त्रिज्या पर निर्भर नहीं करता, अत: त्रिज्या दो गुनी करने पर भी उससे गुजरने वाला वैद्युत फ्लक्स -1.0 x 108 न्यूटन-मी2/कूलॉम ही रहेगा।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q20

प्रश्न 21.
10 cm त्रिज्या के चालक गोले पर अज्ञात परिमाण का आवेश है। यदि गोले के केन्द्र से 20 cm दूरी पर विद्युत-क्षेत्र 1.5 x 103 N/C त्रिज्यतः अन्तर्मुखी (radially inward) है तो गोले पर नेट आवेश कितना है?
हल-
दिया है, चालक गोले की त्रिज्या R = 10 सेमी
गोले के केन्द्र से बिन्दु की दूरी r = 20 सेमी = 0.20 मी
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q21

प्रश्न 22.
2.4m व्यास के एकसमान आवेशित चालक गोले का पृष्ठीय आवेश घनत्व 80.0 µC/m2 है।
(a) गोले पर आवेश ज्ञात कीजिए।
(b) गोले के पृष्ठ से निर्गत कुल विद्युत फ्लक्स क्या है?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q22

प्रश्न 23.
कोई अनन्त रैखिक आवेश 2 cm दूरी पर 9 x 104 NC-1 विद्युत-क्षेत्र उत्पन्न करता है। रैखिक आवेश घनत्व ज्ञात कीजिए।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q23

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प्रश्न 24.
दो बड़ी, पतली धातु की प्लेटें एक-दूसरे के समानान्तर एवं निकट हैं। इनके भीतरी फलकों पर, प्लेटों के पृष्ठीय आवेश घनत्वों के चिह्न विपरीत हैं तथा इनका परिमाण 17.0 x 10-23 C/mहै।
(a) पहली प्लेट के बाह्य क्षेत्र में,
(b) दूसरी प्लेट के बाह्य क्षेत्र में, तथा
(c) प्लेटों के बीच में विद्युत-क्षेत्र E का परिमाण परिकलित कीजिए।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q24
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q24.1
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q24.2

अतिरिक्त अभ्यास

प्रश्न 25.
मिलिकन तेल बूंद प्रयोग में 2.55 x 104 NC-1 के नियत विद्युत-क्षेत्र के प्रभाव में 12 इलेक्ट्रॉन आधिक्य की कोई तेल बूंद स्थिर रखी जाती है। तेल का घनत्व 1.26 g cm3 है। बूंद की त्रिज्या का आकलन कीजिए। (g = 9.81 m s-2, e = 1.60 x 10-19 C)।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q25
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q25.1

प्रश्न 26.
चित्र 1.9 में दर्शाए गए वक्रों में से कौन सम्भावित स्थिर विद्युत-क्षेत्र रेखाएँ निरूपित नहीं करते?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q26
उत्तर-
केवल चित्र (c) सम्भावित स्थिर विद्युत-क्षेत्र रेखाएँ निरूपित करता है।
(a) विद्युत-क्षेत्र रेखाएँ सदैव चालक पृष्ठ के लम्बवत् होती हैं, इस चित्र में रेखाएँ चालक पृष्ठ के लम्बवत नहीं हैं।
(b) क्षेत्र रेखाओं को ऋणावेश से धनावेश की ओर जाते दिखाया गया है जो कि सही नहीं है।
(d) क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को काट रही हैं जो कि सही नहीं है।
(e) क्षेत्र रेखाएँ बन्द वक्रों के रूप में प्रदर्शित की गई हैं जो कि सही नहीं है।

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प्रश्न 27.
दिक्स्थान के किसी क्षेत्र में, विद्युत-क्षेत्र सभी जगह z-दिशा के अनुदिश है। परन्तु विद्युत क्षेत्र का परिमाण नियत नहीं है, इसमें एकसमान रूप से z-दिशा के अनुदिश 105 NC-1 प्रति मीटर की दर से वृद्धि होती है। वह निकाय जिसका ऋणात्मक z-दिशा में कुल द्विध्रुव आघूर्ण 10-7 cm के बराबर है, कितना बल तथा बल-आघूर्ण अनुभव करता है?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q27

प्रश्न 28.
(a) किसी चालक A, जिसमें चित्र 1.10 (a) में दर्शाए अनुसार कोई कोटर/गुहा (Cavity) है, को Q आवेश दिया गया है। यह दर्शाइए कि समस्त आवेश चालक के बाह्य पृष्ठ पर प्रतीत होना चाहिए।
(b) कोई अन्य चालक B जिस पर आवेश q है, को कोटर/गुहा (Cavity) में इस प्रकार सँसा दिया जाता है कि चालक Bचालक A से विद्युतरोधी रहे। यह दर्शाइए कि चालक A के बाह्य पृष्ठ पर कुल आवेश Q + q है [चित्र 1.10 (b)]]
(c) किसी सुग्राही उपकरण को उसके पर्यावरण के प्रबल स्थिर विद्युत-क्षेत्रों से परिरक्षित किया जाना है। सम्भावित उपाय लिखिए।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q28
उत्तर-
(a) एक ऐसी गाउसीय सतह की कल्पना कीजिए जो पूर्णतया चालक के भीतर स्थित है तथा . चालक के बाह्य पृष्ठ के अत्यन्त समीप है।
चालक के भीतर विद्युत-क्षेत्र शून्य होता है; अत: इस गाउसीय सतह से गुजरने वाला नेट विद्युत फ्लक्स शून्य होगा।
तब गाउस प्रमेय से, q = [latex s=2]{ \epsilon }_{ 0 }[/latex] Φ = [latex s=2]{ \epsilon }_{ 0 }[/latex] 0 = 0
अर्थात् सतह के भीतर आवेश शून्य होगा।
अत: चालक का सम्पूर्ण आवेश उसके बाह्य पृष्ठ पर होगा।

(b) दिया है, चालक ‘A’ पर कुल आवेश = Q
चालक ‘B’ पर कुल आवेश = q
माना चालक ‘A’ में बनी कोटर के पृष्ठ पर q1 आवेश है तथा चालक ‘A’ के बाह्य पृष्ठ पर Q1 आवेश है।
अब चालक ‘A’ पर कुल आवेश Q1 + q1 = Q …….(1)
पुन: एक ऐसे गाउसीय पृष्ठ की कल्पना कीजिए जो पूर्णत: चालक ‘A’ के भीतर स्थित है परन्तु इसके बाह्य पृष्ठ के अत्यन्त समीप है।
चालक के भीतर विद्युत-क्षेत्र शून्य होता है; अत: इस पृष्ठ से गुजरने वाला कुल फ्लक्स शून्य होगा।
अत: इस गाउसीय पृष्ठ के भीतर कुल आवेश = 0 अर्थात्
q1 + q = 0 ⇒ q1 = -q
समीकरण (1) से, Q1 – q = Q
चालक ‘A’ के बाह्य पृष्ठ पर कुल आवेश Q1 = Q + q होगा।

(c) खोखले बन्द चालक के भीतर विद्युत-क्षेत्र शून्य होता है; अत: किसी सुग्राही उपकरण को पर्यावरण के प्रबल स्थिर विद्युत-क्षेत्रों से परिरक्षित करने के लिए उसे खोखले बन्द चालक के भीतर रखना चाहिए।

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प्रश्न 29.
किसी खोखले आवेशित चालक में उसके पृष्ठ पर कोई छिद्र बनाया गया है। यह दर्शाइए कि छिद्र में विद्युत-क्षेत्र [latex s=2]\left( \frac { \sigma }{ 2{ \epsilon }_{ 0 } } \right) \overset { \wedge }{ n }[/latex] है, जहाँ । अभिलम्बवत् दिशा में बहिर्मुखी एकांक सदिश है तथा छिद्र के निकट पृष्ठीय आवेश घनत्व है।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q29
उत्तर-
माना किसी खोखले चालक को कुछ धनावेश दिया गया है, जो तुरन्त ही उसके पृष्ठ पर समान रूप से वितरित हो जाता है। माना आवेश का पृष्ठ घनत्व [latex s=2]\sigma[/latex] है। चालक के पृष्ठ के किसी अवयव dA पर विचार कीजिए। स्पष्ट है कि इस क्षेत्रफल अवयव पर उपस्थित (UPBoardSolutions.com) आवेश की मात्रा q = [latex s=2]\sigma[/latex] dA होगी। माना इस क्षेत्रफल अवयव के अत्यन्त समीप चालक के पृष्ठ के बाहर तथा अन्दर दो बिन्दु क्रमश: P तथा Q हैं। चूँकि बिन्दु P पृष्ठ के समीप है; अतः चालक के कारण बिन्दु P पर विद्युत-क्षेत्र की तीव्रता E = [latex s=2]\frac { \sigma }{ { \epsilon }_{ 0 } }[/latex] पृष्ठ के लम्बवत् बाहर की ओर होगी। माना बिन्दु P पर अवयव dA तथा शेष चालक के कारण विद्युत-क्षेत्र की तीव्रताएँ क्रमश: E1 व E2 हैं, तब स्पष्टतया E1 व E2 दोनों पृष्ठ के लम्बवत् बाहर की ओर होंगी तथा परिणामी तीव्रता E, E1 व E2 के योग के बराबर होगी।

अतः E1 + E2 = [latex s=2]\frac { \sigma }{{ \epsilon }_{ 0 } }[/latex] …..(1)
चूँकि बिन्दु Q क्षेत्रफल अवयव dA के अत्यन्त समीप परन्तु P के विपरीत ओर है; अतः इस अवयव के कारण बिन्दु Q पर क्षेत्र की तीव्रता E1 के बराबर परन्तु दिशा में विपरीत होगी, जबकि शेष चालक के कारण Q पर विद्युत-क्षेत्र की तीव्रता E2 के बराबर तथा उसी की दिशा में होगी। चूँकि बिन्दु Q चालक के अन्दर है; अतः बिन्दु Q पर परिणामी तीव्रता शून्य होगी।

अतः बिन्दु Q पर परिणामी तीव्रता E2 – E1 = 0
अथवा E1 = E2 [बिन्दु Q पर E1 व E2 के विपरीत हैं।]
समीकरण (1) से, E1 = E2 = [latex s=2]\frac { \sigma }{ 2{ \epsilon }_{ 0 } }[/latex]
अतः शेष चालक के कारण बिन्दु P पर विद्युत-क्षेत्र की तीव्रता
E2 = [latex s=2]\frac { \sigma }{ 2{ \epsilon }_{ 0 } }[/latex]
अब यदि बिन्दु P पर एक छिद्र कर दिया जाए तो क्षेत्र अवयव dA तथा इसके कारण आन्तरिक बिन्दु Q पर विद्युत-क्षेत्र E1 दोनों समाप्त हो जाएँगे।
तब विद्युत-क्षेत्र E2 छिद्र के किसी बिन्दु पर केवल शेष चालक के कारण शेष रहेगा।
अतः छिद्र पर विद्युत-क्षेत्र की तीव्रता
[latex s=2]\overset { \rightarrow }{ E } =\frac { \sigma }{ 2{ \epsilon }_{ 0 } } \overset { \wedge }{ n }[/latex]
जहाँ n छिद्र पर बहिर्मुखी दिशा में एकांक सदिश है।

प्रश्न 30.
गाउस नियम का उपयोग किए बिना किसी एकसमान रैखिक आवेश घनत्व 2 के लम्बे पतले तार के कारण विद्युत-क्षेत्र के लिए सूत्र प्राप्त कीजिए।
[संकेत : सीधे ही कूलॉम नियम का उपयोग करके आवश्यक समाकलन का मान निकालिए।]
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q30
उत्तर-
एकसमान रैखिक आवेश घनत्व वाले लम्बे पतले तार के कारण विद्युत-क्षेत्र (Electric Field due to a Long Straight Wire having Uniform Linear Charge Density)- माना एक लम्बे सीधे धनावेशित तार को एकसमान रैखिक आवेशं घनत्व है। हमें इस तार के कारण किसी बिन्दु P पर विद्युत-क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है। बिन्दु P से तार पर लम्ब PO खींचा। तार पर बिन्दु 0 से x दूरी पर एक सूक्ष्म अवयव AB = dx लिया।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q30.1
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q30.2

प्रश्न 31.
अब ऐसा विश्वास किया जाता है कि स्वयं प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन (जो सामान्य द्रव्य के नाभिकों का निर्माण करते हैं) और अधिक मूल इकाइयों जिन्हें क्वार्क कहते हैं, के बने हैं। प्रत्येक प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन तीन क्वार्को से मिलकर बनता है। दो प्रकार के क्वार्क होते हैं : ‘अप क्वार्क (u द्वारा निर्दिष्ट) जिन पर + (2/3)e आवेश तथा ‘डाउन क्वार्क (d द्वारा निर्दिष्ट) जिन पर (-1/3) e आवेश होता है, इलेक्ट्रॉन से मिलकर सामान्य द्रव्य बनाते हैं। (कुछ अन्य प्रकार के क्वार्क भी पाए गए हैं जो भिन्न असामान्य प्रकार का द्रव्य बनाते हैं।) प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन के सम्भावित क्वार्क संघटन सुझाइए।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q31
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q31.1

प्रश्न 32.
(a) किसी यादृच्छिक स्थिर विद्युत-क्षेत्र विन्यास पर विचार कीजिए। इस विन्यास की किसी शून्य-विक्षेप स्थिति (null-point अर्थात् जहाँ E = 0) पर कोई छोटा परीक्षण आवेश रखा गया है। यह दर्शाइए कि परीक्षण आवेश का सन्तुलन आवश्यक रूप से अस्थायी है।
(b) इस परिणाम का समान परिमाण तथा चिह्नों के दो आवेशों (जो एक-दूसरे से किसी दूरी पर रखे हैं) के सरल विन्यास के लिए सत्यापन कीजिए।
उत्तर-
(a) माना शून्य विक्षेप स्थिति में रखे परीक्षण आवेश का सन्तुलन स्थायी है। अब यदि परीक्षण आवेश को सन्तुलन की स्थिति से थोड़ा-सा विस्थापित किया जाए तो आवेश पर एक प्रत्यानयन बल लगना चाहिए जो आवेश को वापस सन्तुलन की ओर ले जाए। इसका यह अर्थ हुआ कि (UPBoardSolutions.com) उस स्थान पर शून्य विक्षेप बिन्दु की ओर जाने वाली क्षेत्र रेखाएँ होनी चाहिए। जबकि स्थिर विद्युत-क्षेत्र रेखाएँ कभी भी शून्य विक्षेप बिन्दु तक नहीं पहुँचतीं। अत: हमारी यह परिकल्पना कि परीक्षण आवेश का सन्तुलन स्थायी है, गलत है। यह निश्चित रूप से अस्थायी सन्तुलन है।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q32

प्रश्न 33.
प्रारम्भ में 3-अक्ष के अनुदिश, चाल से गति करती हुई, दो आवेशित प्लेटों के मध्य क्षेत्र में m द्रव्यमान तथा -q आवेश का एक कण प्रवेश करता है (चित्र 1.14 में कण 1 के समान)। प्लेटों की लम्बाई L है। इन दोनों प्लेटों के बीच एकसमान विद्युत-क्षेत्र E बनाए रखा जाता है। दर्शाइए कि प्लेट के अन्तिम किनारे पर कण का ऊर्ध्वाधर विक्षेप [latex s=2]\frac { qE{ L }^{ 2 } }{ 2m{ v }_{ x }^{ 2 } }[/latex] है। (कक्षा 11 की पाठ्य पुस्तक के अनुभाग 4.10 में वर्णित गुरुत्वीय क्षेत्र में प्रक्षेप्य की गति के साथ इस कण की गति की तुलना कीजिए।)
उत्तर-
एकसमान विद्युत-क्षेत्र में आवेशित कण (इलेक्ट्रॉन) का गमन-पथ- (i) जब कण का प्रारम्भिक वेग विद्युत-क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् है—माना धातु की दो समान्तर प्लेटें जिन पर विपरीत आवेश हैं, एक-दूसरे से कुछ दूरी पर स्थित हैं। इन प्लेटों के बीच के स्थान में विद्युत-क्षेत्र एकसमान है। माना ऊपरी प्लेट धनावेशित है, जबकि नीचे की प्लेट ऋणावेशित है। अत: विद्युत-क्षेत्र E कागज के तल में नीचे की ओर दिष्ट होगा [चित्र 1.14]।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q33
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q33.1

प्रश्न 34.
प्रश्न 33 में वर्णित कण की इलेक्ट्रॉन के रूप में कल्पना कीजिए जिसको vx = 2.0 x 106 ms-1 के साथ प्रक्षेपित किया गया है। यदि 0.5 cm की दूरी पर रखी प्लेटों के बीच विद्युत-क्षेत्र E का मान 9.1 x 102 N/C हो तो ऊपरी प्लेट पर इलेक्ट्रॉन कहाँ टकराएगा? (e = 1.6 x 10-19 C, me = 9.1 x 10-31 kg)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields Q34

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
इलेक्ट्रॉन के आवेश एवं संहति का अनुपात होगा (2016)
(i) 1.77 x 1011 कूलॉम/किग्रा।
(ii) 1.9 x 1012 कूलॉम/किग्रा
(iii) 1.6 x 10-19 कूलॉम/किग्रा
(iv) 3.2 x 1011 कूलॉम/किग्रा
उत्तर-
(i) 1.77 x 1011 कूलॉम/किग्रा

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प्रश्न 2.
दो बिन्दु आवेशों को पहले वायु में तथा फिर K परावैद्युतांक वाले माध्यम में समान दूरी पर रखने पर यदि उनके बीच लगने वाले वैद्युत बल F0 तथा Fm हों तो F0 : Fm का मान होगा
(i) K : 1
(ii) 1 : K
(iii) K2 : 1
(iv) 1 : K2
उत्तर-
(i) K : 1

प्रश्न 3.
वैद्युतशीलता (60) का एस०आई० मात्रक है (2009, 12, 14, 15)
(i) कूलॉम2/न्यूटन-मीटर2
(ii) न्यूटन-मीटर2/कूलॉम2
(iii) न्यूटन/कूलॉम
(iv) न्यूटन/वोल्ट/मीटर2
उत्तर-
(i) कूलॉम2/न्यूटन-मीटर2

प्रश्न 4.
एक निश्चित दूरी r पर स्थित दो समरूप धातु के गोलों पर आवेश +4q तथा -2q हैं। गोलों के बीच आकर्षण बल F है। यदि दोनों गोलों को स्पर्श कराकर पुनः उसी दूरी पर रख दिया जाए तो उनके बीच बल होगा (2015)
(i) F
(ii) [latex s=2]\frac { F }{ 2 }[/latex]
(iii) [latex s=2]\frac { F }{ 4 }[/latex]
(iv) [latex s=2]\frac { F }{ 8 }[/latex]
उत्तर-
(i) F

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प्रश्न 5.
दो समान आवेशों q, q को जोड़ने वाली रेखा के मध्य बिन्दु पर एक आवेश q’ रख दिया जाता है। यदि तीनों आवेशों का निकाय सन्तुलन में हो तो q’ का मान होगा- (2011, 18)
(i) -q/2
(ii) -q/4
(iii) +q/4
(iv) +q/2
उत्तर-
(ii) +q/4

प्रश्न 6.
+1 µC तंथा +4 µC के दो आवेश एक-दूसरे से कुछ दूरी पर वायु में स्थित हैं। उन पर लगने वाले बलों का अनुपात है (2014)
(i) 1 : 4
(ii) 4 : 1
(iii) 1 : 1
(iv) 1 : 16
उत्तर-
(iii) 1 : 1

प्रश्न 7.
8 कूलॉम ऋण आवेश में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या है (2015)
(i) 5 x 1049
(ii) 2.5 x 1019
(iii) 12.8 x 1019
(iv) 1.6 x 1019
उत्तर-
(i) 5 x 1049

प्रश्न 8.
एक वर्ग के दो विपरीत कोनों पर आवेश Q रखे हैं। दूसरे दो विपरीत कोनों पर आवेश q रखे हैं। यदि किसी Q पर नेट विद्युत बल शून्य हो, तो बराबर है
(i) [latex s=2]\frac { 1 }{ \surd 2 }[/latex]
(ii) -2√2
(iii) -1
(iv) 1
उत्तर-
(ii) -2√2

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प्रश्न 9.
वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक है (2011, 13, 15, 16, 17)
(i) कूलॉम/न्यूटन
(ii) जूल/न्यूटन
(iii) न्यूटन/कूलॉम
(iv) न्यूटन/मी
उत्तर-
(iii) न्यूटन/कूलॉम

प्रश्न 10.
निम्न में से कौन-सा वैद्युत-क्षेत्र का मात्रक नहीं है? (2009, 14)
(i) न्यूटन/कूलॉम
(ii) वोल्ट/मीटर
(iii) जूल/कूलॉम
(iv) जूल/कूलॉम/मीटर
उत्तर-
(iii) जूल/कूलॉम

प्रश्न 11.
किसी आवेशित गोलीय चालक में विभव
(i) गोले के भीतर शून्य होता है तथा गोले के बाहर भी शून्य होता है।
(ii) गोले के भीतर अधिकतम होता है तथा गोले के बाहर शून्य होता है।
(iii) गोले के भीतर शून्य होता है तथा गोले के बाहर दूरी बढ़ने के साथ कम होता जाता है।
(iv) गोले के भीतर अधिकतम होता है तथा गोले के बाहर दूरी बढ़ने के साथ कम होता जाता है।
उत्तर-
(iv) गोले के भीतर अधिकतम होता है तथा गोले के बाहर दूरी बढ़ने के साथ कम होता जाता है।

प्रश्न 12.
R1 व R2 त्रिज्याओं के दो चालक गोलों के पृष्ठों पर आवेशों के पृष्ठ घनत्व बराबर हैं। पृष्ठों पर वैद्यत-क्षेत्र की तीव्रताओं का अनुपात है। (2010, 17)
(i) [latex s=2]\frac { { R }_{ 1 }^{ 2 } }{ { R }_{ 2 }^{ 2 } }[/latex]
(ii) [latex s=2]\frac { { R }_{ 2 }^{ 2 } }{ { R }_{ 1 }^{ 2 } }[/latex]
(iii) [latex s=2]\frac { R1 }{ R2 }[/latex]
(iv) 1 : 1
उत्तर-
(iv) 1 : 1

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प्रश्न 13.
आवेश का खोखला गोला वैद्युत क्षेत्र उत्पन्न नहीं करता। (2017)
(i) किसी आन्तरिक बिन्दु पर
(ii) किसी बाहरी बिन्दु पर
(iii) 2 मी से अधिक दूरी पर
(iv) 5 मी से अधिक दूरी पर
उत्तर-
(i) किसी आन्तरिक बिन्दु पर

प्रश्न 14.
r मीटर त्रिज्या वाले खोखले गोले के केन्द्र पर q कूलॉम का आवेश रखा है। यदि गोले की त्रिज्या दोगुनी कर दी जाए तथा आवेश का मान आधा कर दें, तब गोले के पृष्ठ से निर्गत कुल वैद्युत फ्लक्स होगा (2012)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields

प्रश्न 15.
एक बन्द पृष्ठ के भीतर n वैद्युत द्विध्रुव स्थित हैं। बन्द पृष्ठ से निर्गत वैद्युत फ्लक्स होगा। (2013)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields 30

प्रश्न 16.
वैद्युत फ्लक्स को मात्रक है। (2017, 18)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields

प्रश्न 17.
5 कूलॉम आवेश के दो बराबर तथा विपरीत आवेशों के बीच की दूरी 5.0 सेमी है। इसका वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण है (2015)
(i) 25 x 10-2 कूलॉम-मीटर
(ii) 5 x 10-2 कूलॉम-मीटर
(iii) 1.0 कूलॉम-मीटर
(iv) शून्ये
उत्तर-
(i) 25 x 10-2 कूलॉम-मीटर

प्रश्न 18.
वैद्युत-क्षेत्र [latex s=2]\overset { \rightarrow }{ E }[/latex] में [latex s=2]\overset { \rightarrow }{ p }[/latex] आघूर्ण वाले द्विध्रुव पर लगने वाला बल-आघूर्ण है- (2011, 17, 18)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields MCQ 18

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वैद्युत आवेश के क्वाण्टीकरण (quantisation) का मूल कारण क्या है?
उत्तर-
इसका मूल कारण यह है कि एक वस्तु से दूसरी वस्तु में इलेक्ट्रॉनों का स्थानान्तरण केवल पूर्णांक संख्याओं में ही हो सकता है।

प्रश्न 2.
सिद्ध कीजिए कि कूलॉम2/न्यूटन-मीटर2 तथा फैरड/मीटर एक ही भौतिक राशि के मात्रक हैं। (2010)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields

प्रश्न 3.
बलों के अध्यारोपण का सिद्धान्त क्या है?
उत्तर-
“यदि किसी निकाय में अनेक आवेश हों, तो उनमें से किसी एक आवेश पर बल, अन्य आवेशों के कारण अलग-अलग बलों को सदिश योग होता है, यही बलों के अध्यारोपण का सिद्धान्त कहलाता है।”

प्रश्न 4.
आवेश के रेखीय घनत्व का अर्थ बताइए। (2013)
उत्तर-
किसी चालक अथवा अचालक पदार्थ की प्रति एकांक लम्बाई पर उपस्थित आवेश को उसका रेखीय घनत्व कहते हैं। यदि l लम्बाई के चालक पर एकसमान रूप से फैला हुआ आवेश q हो, तब आवेश का रेखीय घनत्व λ = ([latex s=2]\frac { q }{ l }[/latex]) कूलॉम/मीटर।

प्रश्न 5.
आवेश के पृष्ठ घनत्व से क्या तात्पर्य है? (2015)
उत्तर-
किसी चालक अथवा अचालक पदार्थ के प्रति एकांक क्षेत्रफल पर उपस्थित आवेश की मात्रा को आवेश का पृष्ठ घनत्व कहते हैं। आवेश का पृष्ठ घनत्व [latex]\sigma =\frac { q }{ A }[/latex] कॅम/मीटर2

प्रश्न 6.
दो आवेशों के बीच वैद्युत बल का सूत्र लिखिए। प्रयुक्त प्रतीकों के नाम भी लिखिए। (2011)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields

प्रश्न 7.
कूलॉम के नियम की क्या परिसीमाएँ हैं?
उत्तर-
कूलॉम का नियम दो स्थायी (stationary) वैद्युत आवेशों के लिए सत्य है तथा आवेशों के बीच दूरी r < 10-15 मी के लिए सत्य नहीं है।

प्रश्न 8.
जल का परावैद्युतांक 80 है। वैद्युतशीलता कितनी होगी?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields VSAQ 8

प्रश्न 9.
एक कूलॉम में कितने इलेक्ट्रॉन होते हैं? (2010, 17)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields VSAQ 9

प्रश्न 10.
3.2 कूलॉम आवेश कितने इलेक्ट्रॉनों द्वारा निर्मित होगा ? (2011, 12)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields VSAQ 10

प्रश्न 11.
एक निश्चित दूरी पर स्थित दो इलेक्ट्रॉनों के बीच वैद्युत बल F न्यूटन है। इससे आधी दूरी पर स्थित दो प्रोटॉनों के बीच वैद्युत बल कितना होगा? (2011)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields VSAQ 11
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields VSAQ 11.1

प्रश्न 12.
दो बिन्दु आवेशों के बीच स्थिर वैद्युत बल F है। यदि इन आवेशों को उतनी ही दूरी पर जल (k = 80) में रख दिया जाये तब उनके बीच बल कितना रहेगा? (2014)
हल-
दो बिन्दु आवेशों के बीच स्थिर वैद्युत बल = F
माना जल में रखने पर दोनों बिन्दुओं के बीच स्थिर वैद्युत बल = Fm
Fm = [latex s=2]\frac { F }{ k }[/latex] = [latex s=2]\frac { F }{ 80 }[/latex]

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प्रश्न 13.
इलेक्ट्रॉन वोल्ट की परिभाषा दीजिए तथा इसका संख्यात्मक मान जूल में व्यक्त कीजिए। (2015)
उत्तर-
एक इलेक्ट्रॉन वोल्ट वह ऊर्जा है जो किसी इलेक्ट्रॉन से 1 वोल्ट विभवान्तर द्वारा त्वरित होने पर अर्जित होती है।
अर्थात् 1 इलेक्ट्रॉन वोल्ट = 1.6 x 10-19 जूल

प्रश्न 14.
कूलॉम के नियम का सदिश रूप बताइए। (2017)
उत्तर-
[latex s=2]\overset { \rightarrow }{ { F }_{ 12 } } ={ \overset { \rightarrow }{ -F } }_{ 21 }[/latex]
अत: बिन्दु आवेश q1 पर q2 के कारण कार्यरत वैद्युत बल बिन्दु आवेश q2 पर q1 के कारण कार्यरत वैद्युत बल के परिमाण में बराबर तथा दिशा में विपरीत होता है।

प्रश्न 15.
वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता की परिभाषा तथा इसका मात्रक लिखिए। (2015, 17)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields VSAQ 15

प्रश्न 16.
1.5 x 10-3 कूलॉम आवेश पर 2.25 न्यूटन का बल कार्य करता है। उस बिन्दु पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात कीजिए।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields VSAQ 16

प्रश्न 17.
5.0 x 10-8 कूलॉम बिन्दु आवेश से कितनी दूरी पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता 450 वोल्ट/मीटर होगी? (2012)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields VSAQ 17

प्रश्न 18.
एक इलेक्ट्रॉन तथा एक प्रोटॉन एक समान वैद्युत क्षेत्र में रखे गए हैं। किसका त्वरण अधिक होगा और क्यों? (2015)
उत्तर-
इलेक्ट्रॉन का त्वरण अधिक होगा, क्योंकि प्रोटॉन की अपेक्षा इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान कम होता है।

प्रश्न 19.
किसी आवेशित कण के भार को एक वैद्युत-क्षेत्र द्वारा किस प्रकार सन्तुलित किया जाता है? (2009)
उत्तर-
कण पर आवेश की प्रकृति के अनुसार उस पर वैद्युत-क्षेत्र ऐसी दिशा में लगाकर, ताकि उसके कारण कण पर लगने वाला वैद्युत बल ऊर्ध्वाधरत: ऊपर की ओर अर्थात् कण के भार की विपरीत दिशा में कार्य करे तथा परिमाण में इसके बराबर हो।

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प्रश्न 20.
आवेशित खोखले गोलाकार चालक के भीतर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता कितनी होती है?
उत्तर-
शून्य।

प्रश्न 21.
0.1 मीटर त्रिज्या के एक गोलीय चालक को कितना आदेश दिया जाए कि चालक के पृष्ठ पर वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता900 वोल्ट/मीटर हो जाए ? (2010)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields VSAQ 21

प्रश्न 22.
दो बड़ी पतली धातु की प्लेट एक-दूसरे के बहुत निकट और समान्तर हैं। प्लेटों पर विपरीत प्रकार के आवेश के पृष्ठ घनत्वों के परिमाण 17.7 x 10-22 कूलॉम/मी हैं। प्लेटों के बीच वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता क्या है? (2014, 16)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields VSAQ 22

प्रश्न 23.
वैद्युत-फ्लक्स तथा वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता में सम्बन्ध लिखिए। वैद्युत-फ्लक्स का मात्रक भी लिखिए।
या
वैद्युत-फ्लक्स का मात्रक लिखिए। (2018)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields VSAQ 23

प्रश्न 24.
किसी घन के केन्द्र पर 10 μC का एक आवेश रखा है। घन के एक फलक से निकलने वाले वैद्युत-फ्लक्स की गणना कीजिए। (2011)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields VSAQ 24

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields VSAQ 25

प्रश्न 26.
यदि किसी 8 सेमी भुजा वाले एक घन के केन्द्र पर 1 कूलॉम आवेश रखा जाए तो घन के किसी फलक से बाहर आने वाले फ्लक्स की गणना कीजिए। (2017)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields VSAQ 26

प्रश्न 27.
एक वैद्युत द्विध्रुव 1.0 x 10-6 कूलॉम परिमाण तथा विपरीत प्रकृति के दो वैद्युत आवेशों से बना है। इन आवेशों के बीच की दूरी 2.0 सेमी है। इस द्विध्रुव को 1.0 x 105 न्यूटन/कूलॉम की बाह्य वैद्युत-क्षेत्र तीव्रता में रखा गया है। द्विध्रुव पर अधिकतम बल-आघूर्ण का मान निकालिए। (2011)
हल-
τmax = pE = (q x 2l) x E
= (1.0 x 10-6 x 2.0 x 10-2) (1.0 x 105)
= 2.0 x 10-3 न्यूटन-मीटर

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प्रश्न 28.
1.0 μC के दो बराबर एवं विपरीत प्रकार के आवेश 2.0 मिमी दूर रखे हैं। इस विद्युत द्विध्रुव का द्विध्रुव आघूर्ण ज्ञात कीजिए। (2017)
उत्तर-
दिया है, q = 1.0 μC =1.0 x 10-6 C,
l = 2.0 मिमी = 2 x 10-3 मी
विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण, p = q . 2l = 1.0 x 10-6 x 2 x 2 x 10-3 = 4 x 10-9 कूलॉम-मी

प्रश्न 29.
स्थिर वैद्युतिकी में गौस की प्रमेय को गणितीय रूप में लिखिए तथा प्रयुक्त संकेतों के अर्थ बताइए। (2009, 10)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields VSAQ 29

प्रश्न 30.
एक R त्रिज्या वाले Q आवेश से आवेशित धातु के खोखले गोले के केन्द्र से r > R दूरी पर वैद्युत विभव का सूत्र लिखिए। (2013)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields VSAQ 30

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कूलॉम का वैद्युत बल सम्बन्धी नियम लिखिए।
या
दो बिन्दु आवेशों के बीच लगने वाले आकर्षण अथवा प्रतिकर्षण बल के लिए कूलॉम का सूत्र लिखिए।
उत्तर-
कूलॉम का नियम-1785 ई० में फ्रांसीसी वैज्ञानिक कूलॉम ने दो आवेशों के बीच कार्य करने वाले बल के सम्बन्ध में एक नियम दिया, जिसे कूलॉम का नियम कहते हैं। इस नियम के अनुसार-“दो स्थिर बिन्दु आवेशों के मध्य लगने वाला आकर्षण या प्रतिकर्षण बल, दोनों आवेशों की मात्राओं के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।” इस बल की दिशा दोनों आवेशों को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश होती है। यदि दो बिन्दु आवेश q1 व q2 एक-दूसरे से । दूरी पर स्थित हों, तो कूलॉम के नियम से उनके बीच लगने वाला बल
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जहाँ K एक विमाहीन नियतांक है जिसे उस पदार्थ (परावैद्युत माध्यम) का परावैद्युतांक (dielectric constant) अथवा विशिष्ट परावैद्युतता कहते हैं। निर्वात् अथवा वायु के लिए K का मान 1 होता है। उपर्युक्त सूत्र में ε0K के स्थान पर केवल है भी लिखते हैं तथा ६ को परावैद्युत माध्यम की वैद्युतशीलता (permitivity) कहते हैं।

प्रश्न 2.
आसुत जल की 64 बूंदें, प्रत्येक की त्रिज्या 0.1 मिमी तथा आवेश (2/3) x 10-12 कूलॉम है, मिलकर एक बड़ी बूंद बनाती हैं। बड़ी बूंद को विभव ज्ञात कीजिए। (2013)
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प्रश्न 3.
दो बिन्दु आवेश +5 x 10-19 कूलॉम व +10 x 10-19 कूलॉम 1.0 मीटर की दूरी पर पृथकतः स्थित हैं। दोनों आवेशों को जोड़ने वाली रेखा के किस बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता शून्य होगी? (2017)
हल-
माना कि दिये गये बिन्दु आवेश (UPBoardSolutions.com) बिन्दुओं A व B पर स्थित हैं तथा उनके बीच बिन्दु O पर वैद्युत क्षेत्र शून्य है। माना कि बिन्दु0 की बिन्दु A से दूरी x मीटर है; अत: बिन्दु O की बिन्दु B से दूरी (1 – x) मीटर होगी। बिन्दु O पर, बिन्दु A पर स्थित आवेशे के कारण वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields SAQ 3.1

प्रश्न 4.
धातु के एक पतले गोलीय कोश की त्रिज्या 0.25 मीटर है तथा इस पर 0.2 μC आवेश है। इसके कारण एक बिन्दु पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात कीजिए जबकि बिन्दु
(i) कोश के भीतर,
(ii) कोश के ठीक बाहर तथा
(iii) कोश के केन्द्र से 3.0 मीटर की दूरी पर है। (2017)
हल-
(i) आवेशित कोश के भीतर किसी (UPBoardSolutions.com) भी बिन्दु पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता शून्य है।
(ii) बाह्य बिन्दुओं के लिए कोश इस प्रकार व्यवहार करता है जैसे कि सम्पूर्ण आवेश इसके केन्द्र पर रखा हो। अत: यदि कोश की त्रिज्या R है, तब कोश के ठीक बाहर किसी बिन्दु पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता
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प्रश्न 5.
वैद्युत-फ्लक्स से क्या तात्पर्य है? इसे आवश्यक सूत्र देते हुए समझाइए। (2009)
या
वैद्युत-फ्लक्स की परिभाषा तथा मात्रक लिखिए। (2012, 15)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields SAQ 5
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प्रश्न 6.
एक समरूप वैद्युत-क्षेत्र E = (5 x 103) i न्यूटन/कूलॉम में एक 10 सेमी भुजा वाला वर्गाकार समतल पृष्ठ yz- तल के समान्तर स्थित है। पृष्ठ से कितना वैद्युत फ्लक्स उत्पन्न होगा? यदि पृष्ठ का तल x-अक्ष की दिशा से 30° कोण बनाता है तब कितना वैद्युत फ्लक्स होगा? (2015)
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प्रश्न 7.
एक खोखले बेलन के भीतर q कूलॉम आवेश स्थित है। यदि बेलन के वक्रीय पृष्ठ से [latex]\oint { } [/latex] वोल्ट-मीटर वैद्युत फ्लक्स सम्बन्धित हो तब बेलन के किसी एक समतल पृष्ठ पर कितना वैद्युत फ्लक्स होगा? (2014)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields SAQ 7

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी वैद्युत-द्विध्रुव के कारण अक्षीय स्थिति में किसी बिन्दु पर वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता का व्यंजक प्राप्त कीजिए। (2012, 14)
या
वैद्युत द्विध्रुव के कारण अक्षीय स्थिति में किसी बिन्दु पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता के सूत्र का निगमन कीजिए। (2013, 16).
उत्तर-
अक्षीय स्थिति में वैद्युत- क्षेत्र की तीव्रता माना कि एक वैद्युत-द्विध्रुव AB, जिसमें (+q) व (-q) कूलॉम के आवेश एक-दूसरे से 2l मीटर की दूरी पर स्थित हैं, किसी ऐसे माध्यम में रखा है जिसका परावैद्युतांक K है। द्विध्रुव की अक्ष पर द्विध्रुव के मध्य बिन्दु O से r मीटर की दूरी पर स्थित (UPBoardSolutions.com) प्रेक्षण बिन्दु P है, जिस पर वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है (चित्र 1.17)। माना कि द्विध्रुव के आवेश +q व -q के कारण बिन्दु P पर उत्पन्न वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता क्रमशः E1 वे E2 हैं। चित्र 1.17 से स्पष्ट है कि आवेश (+q) से बिन्दु P की दूरी (r – l) है और आवेश (-q) से इसकी दूरी (r + l) है, अतः
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प्रश्न 2.
वैद्युत-द्विध्रुव के कारण निरक्षीय स्थिति (अनुप्रस्थ स्थिति) में किसी बिन्दु पर वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता का व्यंजक प्राप्त कीजिए। (2010, 16, 17)
या
वैद्युत-द्विध्रुव की परिभाषा दीजिए। (2014)
उत्तर-
वैद्युत-द्विध्रुव आघूर्ण- वह वैद्युत निकाय (system) जिसमें दो बराबर, परन्तु विपरीत प्रकार के बिन्दु-आवेश एक-दूसरे से बहुत कम दूरी पर रखे हों, वैद्युत-द्विध्रुव’ कहलाता है। दोनों आवेशों में से किसी एक आवेश और दोनों आवेशों के बीच की दूरी के गुणनफल को ‘द्विध्रुव’ का ‘वैद्युत-द्विध्रुव आघूर्ण (electric dipole moment) कहते हैं। इसे प्राय: p से प्रदर्शित करते हैं।
चित्र 1.18 में प्रदर्शित वैद्युत-द्विध्रुव का वैद्युत-द्विध्रुव आघूर्ण p = q x 2l
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields LAQ 2.1
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प्रश्न 3.
वैद्युत-द्विध्रुव तथा वैद्युत-द्विध्रुव आघूर्ण से आप क्या समझते हैं? (2017)
या
एकसमान तीव्रता वाले वैद्युत क्षेत्र में वैद्युत द्विध्रुव पर लगने वाले बल-युग्म के आघूर्ण का सूत्र प्राप्त कीजिए। (2012, 17)
या
एकसमान वैद्युत क्षेत्र में एक वैद्युत-द्विध्रुव पर लगने वाले बल-आघूर्ण का व्यंजक प्राप्त कीजिए। इसके आधार पर वैद्युत-द्विध्रुव आघूर्ण की परिभाषा दीजिए। (2014)
उत्तर-
वैद्युत-द्विध्रुव तथा वैद्युत-द्विध्रुव आघूर्ण- वह वैद्युत निकाय (system) जिसमें दो बराबर, परन्तु विपरीत प्रकार के बिन्दु-आवेश एक-दूसरे से बहुत कम दूरी पर रखे हों, “वैद्युत-द्विध्रुव’ कहलाता है। दोनों आवेशों में से किसी एक आवेश और दोनों आवेशों के बीच की दूरी के गुणनफल को ‘द्विध्रुव’ का वैद्युत-द्विध्रुव आघूर्ण (electric dipole moment) कहते हैं। इसे प्रायः p से प्रदर्शित करते हैं।
(i) द्विध्रुव पर शुद्ध स्थानान्तर बल F = qE – qE = 0
(ii) एकसमान वैद्युत-क्षेत्र में रखे वैद्युत-द्विध्रुव पर बल-युग्म–यदि किसी वैद्युत-द्विध्रुव को एकसमान वैद्युत-क्षेत्र (E) में रखा जाए तो उसके आवेशों पर समान और विपरीत बल -qE तथा +qE (अर्थात् एक बल-युग्म) कार्य करने लगता है। यह बल-युग्म द्विध्रुव को क्षेत्र की दिशा में संरेखित (UPBoardSolutions.com) करने का प्रयत्न करता है। इसे प्रत्यानयन बल-युग्म’ कहते हैं। माना एक वैद्युत-द्विध्रुव एकसमान वैद्युत-क्षेत्र (E) में क्षेत्र से 8 कोण बनाते हुए रखा गया है। +q तथा – q पर लगने वाले बराबर एवं विपरीत बले (+qE व -qE) एक बल-युग्म बनाते हैं जो द्विध्रुव को घुमाकर क्षेत्र E की दिशा में लाने का प्रयत्न करता है। इस प्रत्यानयन बल-युग्म का आघूर्ण
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प्रश्न 4.
वैद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा से आप क्या समझते हैं? एकसमान वैद्युत क्षेत्र में स्थित द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा का व्यंजक प्राप्त कीजिए, जबकि द्विध्रुव के अक्ष क्षेत्र से 6 कोण बनाएँ।
उत्तर-
वैद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा- वैद्युत क्षेत्र में किसी वैद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा उस कार्य के बराबर होती है जो कि द्विध्रुव को अनन्त से क्षेत्र के भीतर लाने में करना पड़ता है। एकसमान वैद्युत क्षेत्र में वैद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा के लिए व्यंजक- माना कि एक वैद्युत द्विध्रुव AB को अनन्त से किसी एकसमान वैद्युत क्षेत्र E में इस प्रकार लाया जाता है कि द्विध्रुव आघूर्ण p सदैव क्षेत्र B की (UPBoardSolutions.com) दिशा में रहे (चित्र 1.21)। क्षेत्र E के कारण द्विध्रुव के आवेश +q पर एक बल F (= qE) क्षेत्र की दिशा में तथा आवेश -q पर उतना ही बल F (= qE) विपरीत दिशा में कार्य करता है। अतः द्विध्रुव को क्षेत्र में लाने के लिए, आवेश +q पर बाहरी कर्ता द्वारा कार्य किया जाएगा जो धनात्मक होगा, जबकि -q आवेश पर स्वयं क्षेत्र कार्य करेगा, अर्थात् कार्य प्राप्त होगा जो ऋणात्मक होगा। परन्तु चित्र 1.21 से स्पष्ट है कि अनन्त से क्षेत्र के भीतर – q आवेश को लाने में प्राप्त कार्य +q को लाने में किए जाने वाले कार्य से अधिक होगा। बिन्दु A तक लाने में प्राप्त कार्य तथा किया गया कार्य बराबर होंगे। अत: वे एक-दूसरे को निरस्त कर देंगे। अतः द्विध्रुव को स्थिति AB तक लाने में नेट कार्य -q आवेश को A से B तक लाने में प्राप्त कार्य के बराबर होगा, जो ऋणात्मक होगी।
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields LAQ 4.1
प्रश्न 5.
+3.2 x 10-19 कूलॉम तथा -3.2 x 10-19 कूलॉम के दो बिन्दु आवेश एक-दूसरे से 2.4 x 10-10 मीटर की दूरी पर रखे हैं। यह द्विध्रुव 4 x 105 वोल्ट/मीटर तीव्रता के समांगी वैद्युत-क्षेत्र में स्थित है। ज्ञात कीजिए।
(i) वैद्युत-द्विध्रुव आघूर्ण,
(ii) द्विध्रुव को साम्यावस्था से 180° घुमाने में आवश्यक कार्य तथा
(iii) साम्यावस्था में वैद्युत-द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा। (2012)
हल-
(i) p. = q x 2l = 3.2 x 10-19 कूलॉम x 2.4 x 10-10 मीटर = 7.68 x 10-29 कूलॉम-मीटर
(ii) वैद्युत-द्विध्रुव को साम्यावस्था अर्थात् वैद्युत-क्षेत्र E की दिशा से θ कोण घुमाने में आवश्यक कार्य
W = pE (1 – cos θ)
यहाँ θ = 180° एवं p = 7.68 x 10-29 कूलॉम-मीटर
E = 4.0 x 105 वोल्ट/मीटर।
W = (7.68 x 10-29) x (4.0 x 105) x (1 – cos 180°)
= (7.68 x 10-29) x (4.0 x 105) x 2 (∵ cos 180° = – 1)
= 6.144 x 10-28 जूल

(iii) वैद्युत-क्षेत्र E में द्विध्रुव को साम्यावस्था से से कोण पर रखे होने पर इसकी स्थितिज ऊर्जा
U = – pE cos θ
जहाँ θ = द्विध्रुव की अक्ष तथा इसकी साम्यावस्था अर्थात् वैद्युत-क्षेत्र की दिशा के बीच स्थित कोण साम्यावस्था में θ = 0°,
अत: U0 = – pE (cos 0° = 1)
यहाँ p = 7.68 x 10-29 कूलॉम-मीटर
E = 4.0 x 105 वोल्ट/मीटर
U0 = – (7.68 x 10-29) x (4.0 x 105) जूल = -3.072 x 10-23 जूल

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प्रश्न 6.
दो एक जैसे वैद्युत-द्विध्रुव AB तथा CD जिनके प्रत्येक के द्विध्रुव आघूर्ण P हैं तथा 120° कोण पर चित्रानुसार रखे हैं। इस संयोजन का परिणामी द्विध्रुव आघूर्ण ज्ञात कीजिए। यदि +x दिशा में एक समरूप वैद्युत क्षेत्र में आरोपित हो तब-संयोजन पर कार्य करने वाले बल-आघूर्ण का मान क्या होगा? (2014)
हल-
माना दोनों आवेशों के बीच की दूरी = 2a
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields LAQ 6.2

प्रश्न 7.
स्थिर वैद्युत में गौस की प्रमेय क्या है? (2010, 11, 14, 17, 18)
या
सिद्ध कीजिए कि किसी बन्द पृष्ठसे गुजरने वाला वैद्युत-फ्लक्स उस पृष्ठ द्वारा परिबद्ध कुल आवेश q का 1/ε0 गुना होता है, जहाँ ε0 मुक्त आकाश (free space) की वैद्युतशीलता है। (2009, 16)
या
गौस-प्रमेय लिखिए। सिद्ध कीजिए कि किसी बन्द पृष्ठ से गुजरने वाला नेट वैद्युत-फ्लक्स उस पृष्ठ द्वारा परिबद्ध कुल आवेश q का 1/ε0 गुना होता है, जहाँ ε0 मुक्त आकाश की वैद्युतशीलता है।
या
वैद्युत-स्थैतिकी में गौस की प्रमेय लिखिए तथा उसको सिद्ध कीजिए। (2014, 15, 18)
या
स्थिर-विद्युतिकी (वैद्युत-स्थैतिकी) में गौस के नियम का उल्लेख कीजिए। (2014)
उत्तर-
गौस की प्रमेय (Gauss Theorem)- गौस की प्रमेय वैद्युत-क्षेत्र के कारण किसी बन्द पृष्ठ से निर्गत वैद्युत-फ्लक्स तथा उस पृष्ठ से परिबद्ध कुल वैद्युत आवेश के बीच सम्बन्ध व्यक्त करती है। इसके अनुसार–“किसी वैद्युत-क्षेत्र में स्थित बन्द पृष्ठ से निर्गत सम्पूर्ण वैद्युत-फ्लक्स का मान उस पृष्ठ द्वारा परिबद्ध कुल आवेश का (1/ε0) गुना होता है।”
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प्रश्न 8.
गौस की प्रमेय से कूलॉम के नियम का निगमन कीजिए। (2018)
या
गौस-प्रमेय की सहायता से दो बिन्दु आवेशों के बीच कार्य करने वाले बल के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए। (2011)
उत्तर-
माना कोई विलगित बिन्दु आवेश +q, वायु या निर्वात् में बिन्दु O पर रखा है। इससे दूरी पर एक बिन्दु P है। इस बिन्दु से गुजरता हुआ q को परिबद्ध किये हुए एक गोलीय (UPBoardSolutions.com) गौसियन-पृष्ठ खींचा गया है। इस बिन्दु पर q के कारण वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता O से P की दिशा में पृष्ठ के लम्बवत् होगी। P के परित: किसी पृष्ठ अवयव के क्षेत्रफल dA का क्षेत्रफल सदिश dA भी E की दिशा में होगा (चित्र 1.24)।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields LAQ 8.1
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यही कूलॉम का नियम है जो कि गौस-प्रमेय से व्युत्पन्न किया गया है। इस प्रकार, स्थिर विद्युतिकी में कूलॉम का नियम तथा गौस का नियम परस्पर तुल्य हैं। ये दो भौतिक नियम नहीं हैं, बल्कि एक ही नियम है जिसे विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त किया गया है।

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प्रश्न 9.
गौस के नियम का उपयोग करके एक अनन्त लम्बाई के पतले, सीधे एकसमान आवेशित तार द्वारा उत्पन्न वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता के लिए एक व्यंजक का निगमन कीजिए। (2012)
या
वैद्युत-स्थैतिकी में गौस की प्रमेय बताइए। इसका उपयोग करके एकसमान आवेशित लम्बे तार के निकट वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता के लिए व्यंजक व्युत्पन्न कीजिए। (2011, 13)
या
स्थिर-विद्युतिकी (वैद्युत-स्थैतिकी) का गौस प्रमेय लिंखिए। इसकी सहायता से एक समान रूप से आवेशित अनन्त लम्बाई के सीधे तार के निकट वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए। (2015)
या
अनन्त लम्बाई के समान रूप से आवेशित सीधे तार के निकट वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता का व्यंजक गौस के प्रमेय की सहायता से प्राप्त कीजिए। (2017, 18)
उत्तर-
गौस की प्रमेय-दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 7 का उत्तर देखिए। अनन्त लम्बाई के आवेशित तार के निकट वैद्युत-क्षेत्र की Y ) , तीव्रता-चित्र 1.25 में एक अनन्त लम्बाई (UPBoardSolutions.com) का चालक तार प्रदर्शित है। जिसके आवेश का रेखीय घनत्व १ कूलॉम प्रति मीटर है। माना यह तार K परावैद्युतांक वाले माध्यम में रखा है। इसकी अक्ष से दूरी पर एक बिन्दु P है जहाँ इस चालक तार के कारण वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है।
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चित्र 1.25 में इस चालक तार के चारों ओर r त्रिज्या का एक ऐसा बेलन दर्शाया गया है जिसकी लम्बाई । है तथा प्रेक्षण बिन्दु P इसके वक्र-पृष्ठ पर है। इस बेलन की अक्ष तथा तार की अक्ष एक ही है। चूंकि तार समान रूप से आवेशित है, अत: इसकी अक्ष से समान दूरी पर स्थित प्रत्येक बिन्दु पर वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता के समान होगी तथा इसकी दिशा अक्ष के लम्बवत् बाहर की ओर होगी। अतः (UPBoardSolutions.com) वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता की दिशी इस बेलन के अनुप्रस्थ काट के चित्र 1.25 समान्तर है। अत: इस बेलन के समतल पृष्ठों से गुजरने वाला वैद्युत-फ्लक्स शून्य होगा क्योंकि इसका क्षेत्रफल वेक्टर A, वेक्टर E के लम्बवत् होगा, इसलिए वैद्युत-फ्लक्स

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प्रश्न 10.
गौस के नियम का उपयोग करके एक समान आवेशित अनन्त समतल चादर के कारण विद्युत क्षेत्र ज्ञात कीजिए। (2017)
या
गौस के नियम का प्रयोग करते हुए एक असीमित (अनन्त) विस्तार वाली आवेशित समतल चादर के निकट वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात कीजिए। (2015, 16)
या
वैद्युत स्थैतिकी में गौस-नियम का उल्लेख कीजिए। इस नियम का उपयोग करके अनन्त विस्तार की समतल आवेशित अचालक प्लेट के निकट वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात कीजिए। (2011)
या
वैद्यत स्थैतिकी में गौस की प्रमेय का उल्लेख कीजिए। इसकी सहायता से अनन्त विस्तार की समतल आवेशित प्लेट के निकट वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात कीजिए। (2013, 17)
उत्तर-
गौस की प्रमेय (Gauss’ Theorem)- दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 7 में देखिए।
अनन्त विस्तार की समतल आवेशित प्लेट के कारण किसी निकट बिन्दु पर वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता- चित्र 1.26 में BCDG एक अनन्त विस्तार की आवेशित समतल प्लेट है, जिसकी मोटाई नगण्य है। इस प्रकार की प्लेट के दोनों पृष्ठों पर समान आवेश होता है। माना इसके प्रत्येक पृष्ठ पर आवेश का पृष्ठ घनत्व 0 है।
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यदि प्लेट धनावेशित है तो इसके कारण वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता प्लेट के लम्बवत् बाहर की ओर होती है। और यदि प्लेट ऋणावेशित है तो तीव्रता प्लेट के लम्बवत् अन्दर की ओर होती है। चित्रे 1.26 में धनावेशित प्लेट दिखायी गयी है।

माना इस प्लेट के निकट बिन्दु P पर वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है। इसके लिए इसे प्लेट के आर-पार एक बेलनाकार गौसियन पृष्ठ की कल्पना करते हैं जिसकी अनुप्रस्थ काट P के परितः। क्षेत्रफल अवयव dA है जो सीट (प्लेट) के समान्तर है। बेलन के P तथा P’ सिरे प्लेट से (UPBoardSolutions.com) समान दूरी पर हैं। सिरे P पर dA के प्रत्येक बिन्दु पर वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता (E) समान होगी। यह वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता पृष्ठ के लम्बवत् बाहर की ओर होगी। क्षेत्रफल अवयव dA को क्षेत्रफल सदिश dA से प्रदर्शित किया गया है जो E की ही दिशा में होगा। अत: सिरे P पर इस पृष्ठ से गुजरने वाला वैद्युत-फ्लक्स-
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प्रश्न 11.
गौस प्रमेय की सहायता से अनन्त विस्तार की समतल आवेशित चालक प्लेट के कारण वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता के सूत्र का निगमन कीजिए। (2012)
उत्तर-
माना अनन्त विस्तार एवं परिमित लघु मोटाई की एक धन-आवेशित ‘समतल चालक प्लेट निर्वात् (अथवा वायु) में स्थित है (चित्र 1.27)। चूँकि प्लेट एक ‘समतल (UPBoardSolutions.com) चालक है, अत: प्लेट को दिया गया सम्पूर्ण आवेश प्लेट के बाह्य पृष्ठों 1 व 2 पर एकसमान रूप से वितरित हो जाता है। प्लेट के भीतर वैद्युत क्षेत्र सर्वत्र शून्य होता है तथा प्लेट के पृष्ठों पर एवं समीपवर्ती बाह्य बिन्दुओं पर वैद्युत क्षेत्र प्लेट के पृष्ठों के लम्बवत् होता है। माना कि प्लेट पर आवेश की पृष्ठ-घनत्व ० है।

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धन-आवेशित चालक प्लेट के कारण वैद्युत क्षेत्र की दिशा प्लेट के लम्बवत् तथा प्लेट से परे की ओर को दिष्ट है। यदि प्लेट ऋण-आवेशित हो तब क्षेत्र की दिशा प्लेट के लम्बवत् तथा प्लेट की ओर को दिष्ट होगी। हमने उपरोक्त सूत्र एक समतल आवेशित चालक के लिए प्राप्त किया है। वास्तव (UPBoardSolutions.com) में यह किसी भी आकृति’ के चालक के लिए सत्य है। इस सूत्र से स्पष्ट है कि अनन्त विस्तार के आवेशित चालक के ‘निकट’ किसी बिन्दु पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता चालक के क्षेत्रफल अथवा चालक से इस बिन्दु की दूरी पर निर्भर नहीं करती। इसका अर्थ है कि चालक के निकट’ सभी बिन्दुओं पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता समान होती है।

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प्रश्न 12.
एकसमान आवेशित गोलीय कोश के कारण उसके पृष्ठ के किसी बिन्दु पर वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता का व्यंजक प्राप्त कीजिए। (2015)
या
एकसमान आवेशित गोलीय कोश के कारण उसके पृष्ठ पर, कोश के बाह्य बिन्दु पर तथा कोश के भीतर वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता का व्यंजक ज्ञात कीजिए।
या
गौस प्रमेय की सहायता से किसी आवेशित गोलीय कोश के बाहर किसी बिन्दु पर वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात कीजिए। (2015, 16, 17)
या
एकसमान आवेशित गोलीय कोश के कारण विद्युत क्षेत्र की तीव्रता का व्यंजक गौस के नियम के आधार पर प्राप्त कीजिए जबकि बिन्दु कोश के
(i) बाहर,
(ii) पृष्ठ पर तथा
(iii) भीतर स्थित है। (2017)
उत्तर-
माना कि त्रिज्या R का एक विलगित (isolated) गोलीय कोश है जिस पर ओवश +qएकसमान रूप से वितरित है। हमें इस कोश के बाहर, कोश के पृष्ठ पर तथा कोश के भीतर वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है।

बाह्य बिन्दु पर (At an External Point)- माना कि आवेशित कोश के केन्द्र O (चित्र 1.28) से दूरी r पर (r > R) एक बिन्दु P है जिस पर वैद्युत क्षेत्र की (UPBoardSolutions.com) तीव्रता ज्ञात करनी है। इसके लिये, हम बिन्दु P से गुजरने वाला, त्रिज्या F का संकेन्द्री गोलीय पृष्ठ खींचते हैं जिसे गौसियन पृष्ठ’ (Gaussian surface) कहते हैं। आवेश-वितरण की सममिति के कारण, गौसियन पृष्ठ के सभी बिन्दुओं पर वैद्युत-क्षेत्र का परिमाण E समान होगा तथा दिशा बाहर की ओर को त्रिज्यतः (radially outward) होगी।
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields LAQ 12.2
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields

प्रश्न 13.
गौस की प्रमेय बताइए। एकसमान रूप से आवेशित अचालक गोले के कारण किसी बाह्य बिन्दु पर उत्पन्न वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए। (2010, 12)
या
‘R’ त्रिज्या के एकसमान रूप से आवेशित अचालक गोले के केन्द्र से (r < R) दूरी पर वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता का व्यंजक ज्ञात कीजिए। (2012)
उत्तर-
गौस की प्रमेय- दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 7 में देखिए।
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माना R त्रिज्या का एक विलगित (isolated) अचालक (non-conducting) ठोस गोला है जिसके सम्पूर्ण आयतन में 2 आवेश एकसमान रूप से वितरित है। इसके केन्द्र O से r दूरी पर स्थित बिन्दु P पर इसके कारण उत्पन्न वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है, जबकि r < R.

यह बिन्दु P गोले के भीतर केन्द्र O से r दूरी पर है। P पर वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता प्राप्त करने के लिए बिन्दु P से गुजरने वाली गोलीय गौसियन पृष्ठ खींचते हैं। P के परित: (UPBoardSolutions.com) गौसियन पृष्ठ के अल्पांश क्षेत्रफल अवयव dA का क्षेत्रीय सदिश dA भी पृष्ठ के लम्बवत् अर्थात् है की दिशा में ही होगा अर्थात् उनके बीच कोण शून्य है। अत: क्षेत्रफल अवयव dA से होकर जाने वाला वैद्युत-फ्लक्स
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 1 Electric Charges and Fields

प्रश्न 14.
एकसमान आवेशित अचालक गोले के भीतर किसी बिन्दु पर गौस प्रमेय की सहायता से वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता का सूत्र स्थापित कीजिए। (2013)
उत्तर-
माना कि बिन्दु P गोले के भीतर केन्द्र0 से दूरी पर है। (चित्र 1.31)।
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P पर वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता प्राप्त करने के लिए। बिन्दु P से गुजरने वाला गोलीय गौसियन पृष्ठ खींचते हैं। माना आवेशित गोले के कारण P पर उत्पन्न वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता में है। आवेश वितरण की सममिति के कारण गौसियन पृष्ठ के प्रत्येक बिन्दु पर वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता का परिमाण E समान (UPBoardSolutions.com) होगा तथा दिशा पृष्ठ के लम्बवत् होगी। P के परित: गौसियन पृष्ठ के अल्पांश क्षेत्रफल अवयव dA को चित्र 1.31 क्षेत्रीय सदिश dA भी पृष्ठ के लम्बवत् अर्थात् है की दिशा में ही होगी अर्थात् उनके बीच कोण शून्य है। अत: क्षेत्रफल अवयव dA से होकर जाने वाला वैद्युत फ्लक्स
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UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 10 Microbes in Human Welfare

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Biology
Chapter Chapter 10
Chapter Name Microbes in Human Welfare
Number of Questions Solved 22
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 10 Microbes in Human Welfare (मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जीवाणुओं को नग्न आँखों द्वारा नहीं देखा जा सकता, परन्तु सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखा जा सकता है। यदि आपको अपने घर से अपनी जीव विज्ञान प्रयोगशाला तक एक नमूना ले जाना हो और सूक्ष्मदर्शी की सहायता से इस नमूने से सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति को प्रदर्शित करना हो तो किस प्रकार का नमूना आप अपने साथ ले जाएँगे और क्यों?
उत्तर
हम अपने घर में आसानी से उपलब्ध होने वाले दही को प्रयोगशाला में नमूने के रूप में ले जा सकते हैं व सूक्ष्मजीव की उपस्थिति को प्रदर्शित कर सकते हैं क्योकि दूध का दही में परिवर्तन या किण्वन लैक्टोबैसिलस जीवाणु की सहायता से होता है। इसलिए दही में ये सूक्ष्मजीव उपस्थित होते हैं।

प्रश्न 2.
उपापचय के दौरान सूक्ष्मजीव गैसों का निष्कासन करते हैं; उदाहरण द्वारा सिद्ध कीजिए।
उत्तर
चावल, आटा, दाल का बना नरम-नरम आटा जिसका प्रयोग डोसा व इडली बनाने में होता है। जीवाणु द्वारा किण्वित होता है। इस आटे का फूला हुआ दिखना CO2 के उत्पादन के कारण होता है।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 10 Microbes in Human Welfare img-1
इसी तरह ब्रैड का सना हुआ आटा यीस्ट द्वारा किण्वित होता है।

प्रश्न 3.
किस भोजन (आहार) में लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया मिलते हैं? इनके कुछ लाभप्रद उपयोगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया लैक्टिक अम्ल उत्पन्न करके दुध को दही में बदल देता है। यह दूध की शर्करा लैक्टोज को लैक्टिक एसिड में बदलता है। लैक्टिक अम्ल दूध की प्रोटीन केसीन को जमाकर दही में परिवर्तित कर देता है। यह जीवाणु दूध से लैक्टोज को निकाल देता है परंतु बहुत-से व्यक्तियों को बिना लैक्टोज के दूध पीने पर एलर्जी होती है। ये जीवाणु महत्त्वपूर्ण विटामिन B12 उत्पन्न करते हैं तथा ये सड़ाने वाले जीवाणु व हानिकारक सूक्ष्मजीवों की वृद्धि को रोकते हैं।

प्रश्न 4.
कुछ पारम्परिक भारतीय आहार जो गेहूं, चावल तथा चना (अथवा उनके उत्पाद) से बनते हैं और उनमें सूक्ष्मजीवों का प्रयोग शामिल हो, उनके नाम बताइए।
उत्तर
गेहूं, चावल तथा चना (अथवा उनके उत्पाद) से सूक्ष्मजीवों का प्रयोग करके भटूरा (गेहुँ से), डोसा व इडली (चावल व उड़द की दाल) इत्यादि से बनते हैं।

प्रश्न 5.
हानिप्रद जीवाणु द्वारा उत्पन्न करने वाले रोगों के नियन्त्रण में किस प्रकार सूक्ष्मजीव महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं?
उत्तर
प्रतिजैविक (antibiotic) सूक्ष्मजीवधारियों (microbes) के उपापचयी व्युत्पन्न होते हैं। ये किसी अन्य सूक्ष्म जीवधारी जैसे-जीवाणु के लिए हानिकारक अथवा निरोधी होते हैं। प्रतिजैविक, प्रतियोगिता निरोध द्वारा रोगों को ठीक करते हैं। अधिकतर प्रतिजैविक बैक्टीरिया से ही प्राप्त होते हैं। प्रतिजैविक जैसे- पेनिसिलिन (Penicillin) का उत्पादन सूक्ष्मजीवों (कवक) द्वारा किया जाता है। यह प्रतिजैविक हानिकारक रोगों को उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीवों को मारने के काम आते हैं। प्रतिजैविक संक्रमित रोग जैसे- डिफ्थीरिया, काली खाँसी तथा न्यूमोनिया की रोकथाम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पेनिसिलिन सर्वप्रथम प्राप्त प्रतिजैविक है। इसकी खोज एलेक्जेण्डर फ्लेमिंग (Alexander Fleming) ने की थी।

प्रश्न 6.
किन्हीं दो कवक प्रजातियों के नाम लिखिए, जिनका प्रयोग प्रतिजैविकों (एंटीबायोटिक्स) के उत्पादन में किया जाता है।
उत्तर

  1. रैमाइसिन को म्यूकर रैमोनियास नामक कवक से।
  2. पेनिसिलिन को पेनिसिलियम नोटेटम नामक कवक से प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 7.
वाहित मल से आप क्या समझते हैं? वाहित मल हमारे लिए किस प्रकार से हानिप्रद है?
उत्तर
प्रतिदिन नगर व शहरों से व्यर्थ जल की बहुत बड़ी मात्रा जनित होती है। इस व्यर्थ जल का प्रमुख घटक मनुष्य का मल-मूत्र है। नगर में इस व्यर्थ जल को वाहित मल (सीवेज) कहते हैं।

  1. वाहित मल (सीवेज) में कार्बनिक पदार्थों की बड़ी मात्रा तथा सूक्ष्मजीव पाये जाते हैं, जो अधिकांशतः रोगजनकीय होते हैं।
  2. वाहित मल में ऑक्सीजन की कमी होती है। इसलिए कार्बनिक पदार्थों का विघटन भी नहीं हो पाता है। इसके फलस्वरूप वाहित मल वातावरण को प्रदूषित करते हैं।

प्रश्न 8.
प्राथमिक तथा द्वितीयक वाहित मल उपचार के बीच पाए जाने वाले मुख्य अन्तर कौन-से हैं?
उत्तर
वाहित मल का उपचार वाहित मल संयन्त्र में किया जाता है जिससे यह प्रदूषण मुक्त हो सके। यह उपचार दो चरणों में सम्पन्न होता है –

1. प्राथमिक उपचार (Primary treatment) – प्राथमिक उपचार में मुख्यत: बड़े-छोटे कणों को भौतिक क्रियाओं; जैसे- अवसादन (sedimentation), निस्यंदन (filtration), प्लवन आदि द्वारा अलग किया जाता है। सबसे पहले तैरते हुए कूड़े-करकट को नियंदन द्वारा हटा दिया जाता है। इसके बाद ग्रिट (grit) मृदा तथा छोटे कणों को अवसादन द्वारा पृथक् किया जाता है। बारीक कण प्राथमिक स्लज (primary sludge) के रूप में नीचे बैठ जाते हैं और प्लावी बहिःस्राव (supernatant effluent) का निर्माण होता है। बहि:स्राव को प्राथमिक उपचार टैंक से द्वितीयक उपचार के लिए ले जाया जाता है।

2. द्वितीयक उपचार (Secondary treatment) – द्वितीयक उपचार में सूक्ष्मजीवधारियों का उपयोग किया जाता है। जैसे-ऑक्सीकरण ताल एक उथला जलाशय होता है जिसमें वाहित मल एकत्रित किया जाता है। इसमें कार्बनिक पदार्थ अधिक होने के कारण शैवाल और जीवाणुओं की अच्छी वृद्धि होने लगती है।

जीवाणु अपघटन करते हैं और शैवाल उनसे उत्पन्न कार्बन डाइ ऑक्साइड का प्रकाश संश्लेषण में उपयोग करते हैं। प्रकाश संश्लेषण में विमोचित ऑक्सीजन जल को दूषित होने से बचाती है। इस प्रकार ऑक्सीकरण ताल, शैवाल और जीवाणुओं के बीच सहजीविता का उदाहरण है। ऑक्सीजन ताल में होने वाली क्रियाओं द्वारा संक्रामक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं और कार्बनिक पदार्थों के अपघटन के पश्चात् केवल नुकसान न देने वाले पदार्थ ही रह जाते हैं। द्वितीयक उपचार के पश्चात् प्लान्ट से बहि:स्राव सामान्यत: जल के प्राकृतिक स्रोतों जैसे-नदियों, झरनों आदि में छोड़ दिया जाता है अथवा तृतीयक उपचार हेतु रासायनिक क्रियाविधियों द्वारा इससे नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस लवणों को पृथक् करने के पश्चात् बहि:स्राव को जलाशयों में मुक्त कर दिया जाती है।

प्रश्न 9.
क्या सूक्ष्मजीवों का प्रयोग ऊर्जा के स्रोतों के रूप में भी किया जा सकता है? यदि हाँ, तो किस प्रकार से? इस पर विचार करें।
उत्तर
हाँ, सूक्ष्मजीवों का प्रयोग ऊर्जा के स्रोतों के रूप में भी किया जा सकता है। बायोगैस एक प्रकार से गैसों (मुख्यतः मीथेन) का मिश्रण है जो सूक्ष्मजीवी सक्रियता द्वारा उत्पन्न होती है। गोबर में पादपों के सेलुलोजीय व्युत्पन्न प्रचुर मात्रा में होते हैं। अतः इसका प्रयोग बायोगैस को पैदा करने में किया जाता है। गोबर में मुख्य रूप से मिथेनोबैक्टीरियम पाया जाता है, जो मीथेन का उत्पादन करते हैं। बायोगैस (गोबर गैस) संयन्त्र का उपयोग मुख्य रूप से गाँवों में खाना बनाने एवं प्रकाश उत्पन्न करने में किया जाता है।

प्रश्न 10.
सूक्ष्मजीवों का प्रयोग रसायन उर्वरकों तथा पीड़कनाशियों के प्रयोग को कम करने के लिए भी किया जा सकता है। यह किस प्रकार सम्पन्न होगा? व्याख्या कीजिए। (2014, 15, 16, 17, 18)
उत्तर
जैव नियन्त्रण (Bio Control) – पादप रोगों तथा पीड़कों (pests) के नियन्त्रण के लिए जैववैज्ञानिक विधि (biological methods) का प्रयोग ही जैव नियन्त्रण (bio control) है। आधुनिक समाज में ये समस्याएँ रसायनों, कीटनाशियों तथा पीड़कनाशियों के बढ़ते हुए प्रयोगों की सहायता से नियन्त्रित की जाती हैं। ये रसायन मनुष्यों तथा जीव-जन्तुओं के लिए अत्यन्त ही विषैले तथा हानिकारक होते हैं। विषाक्त रसायन खाद्य श्रृंखला के माध्यम से जीवधारियों के शरीर में पहुंचते हैं। ये पर्यावरण को भी प्रदूषित करते हैं।

जैव उर्वरक के रूप में सूक्ष्मजीव (Microbes as biofertilizers) – जैव उर्वरकों का मुख्य स्रोत जीवाणु, कवक तथा सायनोबैक्टीरिया होते हैं। लेग्यूमिनस पादपों की जड़ों पर उपस्थित ग्रंथियों का निर्माण राइजोबियम (Rhizobium) जीवाणु के सहजीवी सम्बन्ध द्वारा होता है। ये जीवाणु वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत कर कार्बनिक रूप में परिवर्तित करते हैं। मृदा में मुक्तावस्था में रहने वाले अन्य जीवाणु जैसे-एजोस्पाइरिलम (Azospirilum) तथा एजोटोबैक्टर (Azotobacter) भी वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को स्थिर कर मृदा में नाइट्रोजन अवयव की मात्रा को बढ़ाते हैं।

कवक अनेक पादपों के साथ सहजीवी सम्बन्ध स्थापित करते हैं। इस सम्बन्ध को माईकोराइजा (Mycorrhiza) कहते हैं। ग्लोमस (Glomus) जीनस के बहुत-से कवक सदस्य माइकोराइजा बनाते हैं। इस सम्बन्ध में कवकीय सहजीवी मृदा से जल एवं पोषक तत्वों का अवशोषण कर पादपों को प्रदान करते हैं और पादपों से भोजन प्राप्त करते हैं।
सायनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria) स्वपोषित सूक्ष्मजीव हैं जो जलीय तथा स्थलीय वायुमण्डल में विस्तृत रूप से पाए जाते हैं। इनमें से अधिकांश वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को नाइट्रोजन यौगिकों के रूप में स्थिर करके मृदा की उर्वरता को बढ़ाते हैं। जैसे-ऐनाबीना (Anabaena), नॉस्टॉक (Nostoc) आदि। धान के खेत में सायनोबैक्टीरिया महत्त्वपूर्ण जैव उर्वरक की भूमिका निभाते हैं।

पीड़क तथा रोगों का जैव नियन्त्रण (Biological Control of Pests & Diseases) – जैव नियन्त्रण विधि से विषाक्त रसायन तथा पीड़कनाशियों पर हमारी निर्भरता को काफी हद तक कम किया जा सकता है। बैक्टीरिया बैसीलस थूरिनजिएन्सिस (Bacillus thuringiensis) को प्रयोग बटरफ्लाई कैटरपिलर नियन्त्रण में किया जाता है। पिछले दशक में आनुवंशिक अभियान्त्रिकी की सहायता से वैज्ञानिक बैसीलस थूरिनजिएन्सिस टॉक्सिन जीन को पादपों में पहुँचा सके हैं। ऐसे पादप पीड़के द्वारा किए गए आक्रमण के प्रति प्रतिरोधी होते हैं। Bt-कॉटन इसका एक उदाहरण है जिसे हमारे देश के कुछ राज्यों में उगाया जाता है। ड्रेगनफ्लाई (dragonflies), मच्छर और ऐफिड्स (aphids) आदि Bt-कॉटन को क्षति नहीं पहुंचा पाते।

जैव वैज्ञानिक नियन्त्रण के तहत कवक ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) का उपयोग पादप रोगों के उपचार में किया जाता है। यह बहुत-से पादप रोगजनकों का प्रभावशील जैव नियन्त्रण कारक है। बेक्यूलोवायरसिस (Baculoviruses) ऐसे रोगजनक हैं जो कीटों तथा सन्धिपादों (आर्थोपोड्स) पर हमला करते हैं। अधिकांश बैक्यूलोवायरसिस जो जैव वैज्ञानिक नियन्त्रण कारकों की तरह प्रयोग किए जाते हैं, वे न्यूक्लिओपॉलिहीड्रोवायरस (nucleopolyhedrovirus) प्रजाति के अन्तर्गत आते हैं। यह विषाणु प्रजाति-विशेष; सँकरे स्पेक्ट्रम कीटनाशीय उपचारों के लिए अति उत्तम मानी जाती हैं।

प्रश्न 11.
जल के तीन नमूने लो, एक-नदी का जल, दूसरा-अनुपचारित वाहित मल जले तथा तीसरा-वाहित मल उपचार संयन्त्र से निकला द्वितीयक बहिःस्राव; इन तीनों नमूनों पर ‘अ’, ‘ब’, ‘स’ के लेबल लगाओ। इस बारे में प्रयोगशाला कर्मचारी को पता नहीं है कि कौन-सा क्या है? इन तीनों नमूनों ‘अ’, ‘ब’, ‘स’ का बी०ओ०डी० रिकॉर्ड किया गया जो क्रमशः 20 mg/L, 8 mg/L तथा 400 mg/L निकाला। इन नमूनों में कौन-सा सबसे अधिक प्रदूषित नमूना है? इस तथ्य को सामने रखते हुए कि नदी का जल अपेक्षाकृत अधिक स्वच्छ है। क्या आप सही लेबल का प्रयोग कर सकते हैं?
उत्तर
BOD (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) ऑक्सीजन की उस मात्रा को संदर्भित करता है जो जीवाणु द्वारा एक लीटर पानी में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों की खपत निश्चित समय-काल में करता है। तथा उन्हें ऑक्सीकृत करता है।

अनुपचारित वाहित मल जल सबसे अधिक प्रदूषित होता है क्योंकि इसमें मनुष्य का मल-मूत्र, कपड़े की धुलाई से उत्पन्न जल, औद्योगिक तथा कृषि अपशिष्ट आदि उपस्थित रहता है, इसलिए इस जल का BOD सबसे अधिक होगा। नदी का जल साफ होता है क्योंकि इसमें कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बहुत कम होती है, अत: इस जल को BOD सबसे कम होगा। इसलिए ये निम्नलिखित प्रकार से लेबल किए जा सकते हैं –
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 10 Microbes in Human Welfare img-2

प्रश्न 12.
उन सूक्ष्मजीवों के नाम बताओ जिनसे साइक्लोस्पोरिन-ए (प्रतिरक्षा निषेधात्मक औषधि) तथा स्टैटिन (रक्त कोलिस्ट्रॉल लघुकरण कारक) को प्राप्त किया जाता है।
उत्तर

  1. साइक्लोस्पोरिन-ए का उत्पादन ट्राइकोडर्मा पॉलोस्पोरम नामक कवक से किया जाता है।
  2. स्टैटिन (लोभास्टैटिन) का उत्पादन मोनॉस्कस परफ्यूरीअस से किया जाता है।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित में सूक्ष्मजीवियों की भूमिका का पता लगाएँ तथा अपने अध्यापक से इनके विषय में विचार-विमर्श करें –

  1. एकल कोशिका प्रोटीन (SCP)
  2. मृदा।

उत्तर
1. एकल कोशिका प्रोटीन (Single Cell Protein) – शैवाल (algae); जैसे- स्पाइरुलिना, क्लोरेला तथा सिनेडेस्मस एवं कवक (fungi); जैसे- यीस्ट सैकेरोमाइसीटी, टॉरुलाप्सिस तथा कैंडिडा का उपयोग एकल कोशिका प्रोटीन के रूप में किया जा रहा है।

2. मृदा (Soil) – यह एक अकेला निवास स्थल है जिसमें विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीव तथा प्राणिजात उपस्थित रहते हैं और उच्च पादपों को यांत्रिक सहायता एवं पोषक तत्त्व प्रदान करते हैं, जिस पर मनुष्य की सभ्यता आधारित है। पौधे के विकास पर राइजोस्फीयर सूक्ष्मजीवों का लाभदायक प्रभाव पड़ता है। राइजोस्फीयर में सूक्ष्मजीवों द्वारा प्रतिक्रिया के फलस्वरूप CO2 तथा कार्बनिक अम्ल का निर्माण होता है जो पौधे में अकार्बनिक पोषकों को घुलाते हैं। कुछ राइजोस्फीयर सूक्ष्मजीव वृद्धि उत्तेजक पदार्थ भी उत्पादित करते हैं। जीवाणु, कवक, सायनोबैक्टीरिया आदि जैव उर्वरक मृदा की पोषक
गुणवत्ता को बढ़ाते हैं।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित को घटते क्रम में मानव समाज कल्याण के प्रति उनके महत्त्व के अनुसार संयोजित करें; महत्त्वपूर्ण पदार्थ को पहले रखते हुए कारणों सहित अपना उत्तर लिखें- बायोगैस, सिट्रिक एसिड, पेनिसिलिन तथा दही
उत्तर

  1. पेनिसिलिन – यह एक प्रतिजैविक है। इसका उपयोग बहुत-से जीवाणु-जनित रोगों; जैसे- सिफलिस, गठिया, डिफ्थीरिया, फेफड़े का संक्रमण आदि के उपचार में किया जाता है।
  2. बायोगैस – इसका उपयोग खाना बनाने एवं प्रकाश पैदा करने में किया जाता है। गोबर गैस निर्माण के उपरान्त उपयोग की गई गोबर की स्लरी का प्रयोग उर्वरक के रूप में किया जाता है।
  3. सिट्रिक एसिड – इसका उपयोग बहुत-से भोज्य पदार्थों के परिरक्षण के रूप में किया जाता है। सिट्रिक अम्ल का उत्पादन ऐस्परजिलस नाइजर नामक कवक द्वारा किया जाता है।
  4. दही – यह एक दुग्ध उत्पाद है जिसका उपयोग हम प्रतिदिन करते हैं। लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया दूध को दही में परिवर्तित कर देते हैं।

प्रश्न 15.
जैव- उर्वरक किस प्रकार से मृदा की उर्वरता को बढ़ाते हैं?
उत्तर
जैव-उर्वरक का निर्माण विभिन्न प्रकार के जीवों; जैसे- नील- हरित शैवाल या सायनोबैक्टीरिया, जीवाणु एवं कवक से होता है।
सायनोबैक्टीरिया की कई जातियाँ; जैसे- नॉस्टॉक, ऐनाबीना, टोलीप्रोथ्रिक्स आदि वायुमण्डल से नाइट्रोजन गैस को ग्रहण कर इसे नाइट्रोजन यौगिकों में परिणत कर देती हैं। इनमें हेट्रोसिस्ट नामक विशेष कोशिका पायी जाती है, जो नाइट्रोजन-स्थिरीकरण में मुख्य भूमिका निभाती हैं तथा मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाती हैं।

सहजीवी जीवाणु; जैसे- राइजोबियम मटर कुल के पौधों की जड़ों में ग्रंथियाँ बनाते हैं और वायुमण्डल से नाइट्रोजन गैस ग्रहण कर इसे नाइट्रोजन के यौगिकों के रूप में परिणत करते हैं। इससे मृदा की पोषक शक्ति की वृद्धि होती है।
भूमि में पाए जाने वाले मुक्तजीवी जीवाणु; जैसे-एजोटोबैक्टर, एजोस्पाइरिलम भी वायुमण्डल के नाइट्रोजन को स्थिरीकृत करते हैं।
माइकोराइजा के कवक पौधों को पोषक तत्त्व प्रदान करते हैं। कवक के तन्तु मृदा से फॉस्फोरस तथा अन्य पोषकों को ग्रहण कर पौधों को उपलब्ध कराते हैं।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
स्ट्रेप्टोमाइसिन उत्पादित की जाती है –
(क) स्ट्रेप्टोमाइसिस स्कोलियस द्वारा
(ख) स्ट्रेप्टोमाइसिस फ्रेडी द्वारा
(ग) स्ट्रेप्टोमाइसिस वैनेजुएली द्वारा
(घ) स्ट्रेप्टोमाइसिस ग्रीसिअस द्वारा
उत्तर
(घ) स्ट्रेप्टोमाइसिस ग्रीसिअस द्वारा

प्रश्न 2.
सायनोबैक्टीरिया का प्रयोग जैव-उर्वरक के रूप में खेतों में किया जाता है –
(क) गेहूं
(ख) मक्का
(ग) धान
(घ) गन्ना
उत्तर
(ग) धान

प्रश्न 3.
किस तत्त्व के पोषण के लिए माइकोराइजा उत्तरदायी है?
(क) पोटैशियम
(ख) कॉपर
(ग) जिंक
(घ) फॉस्फोरस
उत्तर
(घ) फॉस्फोरस

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
यीस्ट कोशिकाओं का किण्वन में क्या योगदान है? (2014)
उत्तर
यीस्ट कोशिकाएँ किण्वन की प्रक्रिया में शर्कराओं को तोड़कर उन्हें अम्ल, गैसों तथा ऐल्कोहॉल में परिवर्तित कर देती हैं।

प्रश्न 2.
बायोगैस के घटक गैसों के नाम लिखिए तथा इससे मनुष्य को होने वाले दो लाभ बताइए। (2016, 17)
उत्तर
बायोगैस एक प्रकार से गैसों (जिसमें मुख्यतः मेथेन शामिल है) का मिश्रण है जो सूक्ष्मजीवी सक्रियता द्वारा उत्पन्न होती है। कुछ बैक्टीरिया जो सेल्यूलोजीय पदार्थों पर अवायुवीय रूप से उगते हैं; वह CO2 तथा H2 के साथ-साथ बड़ी मात्रा में मेथेन भी उत्पन्न करते हैं।

प्रश्न 3.
जैव उर्वरक के रूप में प्रयुक्त दो सूक्ष्म जीवों के नाम लिखिए।
उत्तर
राइजोबियम तथा एनाबीना।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
घरेलू उत्पादों तथा औद्योगिक उत्पादन में सूक्ष्मजीवों के महत्त्व को समझाइए। (2014, 15, 16, 17, 18)
उत्तर
1. घरेलू उत्पादों में सूक्ष्मजीव
हम प्रतिदिन सूक्ष्मजीवियों अथवा उनसे व्युत्पन्न पदार्थों का प्रयोग करते हैं। इसका सामान्य उदाहरण दूध से दही को उत्पादन है। सूक्ष्मजीव जैसे लैक्टोबैसिलस तथा अन्य जिन्हें सामान्यतः लैक्टिक ऐसिड बैक्टीरिया कहते हैं, दूध में वृद्धि करते हैं और उसे दही में परिवर्तित कर देते हैं।
इसके अतिरिक्त डोसा, इडली, ब्रेड आदि को बनाने में भी सूक्ष्मजीवों का प्रयोग किया जाता है जो दाल-चावल के आटे व मैदा को स्पंजित कर देते हैं।

2. औद्योगिक उत्पादन में सूक्ष्मजीव
औद्योगिक क्षेत्र में भी सूक्ष्मजीवों का प्रयोग बहुतायत में किया जाता है। सूक्ष्मजीव विशेषकर यीस्ट (सैकेरोमाइसीस सैरीविसेई) का प्रयोग प्राचीन काल से ही वाइन, बीयर, ह्विस्की, ब्रांडी, रम आदि के उत्पादन में किया जाता रहा है। सूक्ष्मजीवों द्वारा प्रतिजैविकों (एंटीबायोटिक) का भी उत्पादन होता है। एक प्रमुख एंटीबायोटिक पेनिसिलिन का उत्पादन ( पेनिसिलियम नोटेटम) नामक सूक्ष्मजीव से किया। जाता है।

कुछ विशेष प्रकार के रसायनों; जैसे-कार्बनिक अम्ल, ऐल्कोहॉल, एंजाइम आदि के व्यावसायिक तथा औद्योगिक उत्पादन में भी सूक्ष्मजीवों का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है। उदाहरणार्थ-ऐसीटिक अम्ल का उत्पादन ऐसीटोबैक्टर एसिटाई तथा एथेनॉल का उत्पादन सकेरोमाइसीस सैरीविसेई नामक सूक्ष्मजीवों द्वारा किया जाता है।

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UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 9 Strategies for Enhancement in Food Production

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 9 Strategies for Enhancement in Food Production (खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति) are part of UP Board Solutions for Class 12 Biology. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 9 Strategies for Enhancement in Food Production (खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Biology
Chapter Chapter 9
Chapter Name Strategies for Enhancement in Food Production
Number of Questions Solved 43
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 9 Strategies for Enhancement in Food Production (खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मानव कल्याण में पशुपालन की भूमिका की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर
मानव कल्याण में पशुपालन की भूमिका (Role of Animal Husbandry in Human Welfare)-विश्व की बढ़ती जनसंख्या के साथ खाद्य उत्पादन की वृद्धि एक प्रमुख आवश्यकता है। पशुपालन पर लागू होने वाले जैविक सिद्धान्त खाद्य उत्पादन बढ़ाने के हमारे प्रयासों में मुख्य भूमिका निभाते हैं। पशुपालन, पशु प्रजनन तथा पशुधन वृद्धि की एक कृषि पद्धति है। पशुपालन का सम्बन्ध पशुधन जैसे-भैंस, गाय, सुअर, घोड़ा, भेड़, ऊँट, बकरी आदि के प्रजनन तथा उनकी देखभाल से होता है जो मानव के लिए लाभप्रद हैं। इसमें कुक्कुट पालन तथा मत्स्य पालन भी शामिल हैं। मत्स्यकी (fisheries) में मत्स्यों (मछलियों), मृदुकवची (मोलस्क) तथा क्रस्टेशिआई (प्रॉन, क्रैब आदि) का पालन-पोषण, उनको पकड़ना (शिकार) बेचना आदि शामिल हैं। अति प्राचीनकाल से मानव द्वारा मधुमक्खी, रेशमकीट, झींगा, केकड़ा, मछलियाँ, पक्षी, सुअर, भेड़, ऊँट आदि का प्रयोग उनके उत्पादों जैसे- दूध, अण्डे, मांस, ऊन, रेशम, शहद आदि प्राप्त करने के लिए किया जाता रहा है।

डेरी उद्योग (dairying) एक पशुप्रबन्धन है जिससे मानव खपत के लिए दुग्ध तथा इसके उत्पाद प्राप्त होते हैं। कुक्कुट का प्रयोग भोजन (मांस) प्राप्त करने के लिए अथवा उनके अण्डों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। मधुमक्खी पालन शहद के उत्पादन के लिए मधुमक्खियों के छत्तों का रख-रखाव है। शहद उच्च पोषक महत्त्व का एक आहार है तथा आयुर्वेद औषधियों में भी इसका प्रयोग किया जाता है। मधुमक्खियों से मोम भी प्राप्त होता है, मोम का प्रयोग कान्तिवर्द्धक सौन्दर्य प्रसाधनों में तथा विभिन्न प्रकार के पॉलिश वाले उद्योगों में किया जाता है। एक गणना के अनुसार विश्व का 70 प्रतिशत से भी अधिक पशुधन भारत तथा चीन में है।

प्रश्न 2.
यदि आपके परिवार के पास एक डेरी फार्म है, तब आप दुग्ध उत्पादन में उसकी गुणवत्ता तथा मात्रा में सुधार लाने के लिए कौन-कौन से उपाय करेंगे?
उत्तर
डेरी फार्म प्रबन्धन से दुग्ध की गुणवत्ता में सुधार तथा उसका उत्पादन बढ़ता है। मूल रूप से डेरी फार्म में रहने वाले पशुओं की नस्ल की गुणवत्ता पर ही दुग्ध उत्पादन निर्भर करता है। क्षेत्र की जलवायु एवं परिस्थितियों के अनुरूप उच्च उत्पादन एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली नस्लों को अच्छी नस्ल माना जाता है। उच्च उत्पादन क्षमता प्राप्त करने के लिए पशुओं की अच्छी देखभाल, जिसमें उनके रहने के लिए अच्छा आवास तथा पर्याप्त स्वच्छ जल एवं रोगमुक्त वातावरण होना आवश्यक है। पशुओं को भोजन देते समय चारे की गुणवत्ता तथा मात्रा पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त दुग्धीकरण तथा दुग्ध उत्पादों के भण्डारण और परिवहन के दौरान स्वच्छता तथा पशुओं का कार्य करने वाले व्यक्ति के स्वास्थ्य का महत्त्व सर्वोपरि है। पशु चिकित्सक का नियमित जाँच हेतु आना अनिवार्य है। इन सभी कठोर उपायों को सुनिश्चित करने के लिए सही-सही रिकॉर्ड रखने एवं समय-समय पर निरीक्षण की आवश्यकता होती है। इससे समस्याओं की पहचान और उनका समाधान शीघ्रतापूर्वक निकालना सम्भव हो जाता है।

प्रश्न 3.
नस्ल शब्द से आप क्या समझते हैं? पशु प्रजनन के क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर
नस्ल (Breed) – पशुओं का वह समूह जो वंश तथा सामान्य लक्षणों जैसे- सामान्य दिखावट, आकृति, आकार, संरूपण आदि में समान हों, एक नस्ल के कहलाते हैं।
पशु प्रजनन का उद्देश्य (Objectives of Animal Breeding) – पशु प्रजनन, पशुपालन का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। पशु प्रजनन का उद्देश्य पशुओं के उत्पादन को बढ़ाना तथा उनके उत्पादों की वांछित गुणवत्ता में सुधार करना है। कृत्रिम प्रजनन द्वारा उच्च दुग्ध उत्पादन वाली नस्ल की मादाओं तथा उच्च गुणवत्ता वाले मांस (कम वसा वाले मांस) प्रदान करने वाली नस्लों को सफलतापूर्वक जनित किया गया है जिससे अल्पकाल में ही बड़ी संख्या में पशुधन में वृद्धि सम्भव है।

प्रश्न 4.
पशु प्रजनन के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली विधियों के नाम बताएँ। आपके अनुसार कौन – सी विधि सर्वोत्तम है? क्यों?
उत्तर
पशु प्रजनन के लिए आधुनिक समय में निम्नलिखित विधियाँ प्रयोग में लाई जा रही हैं –
1. अन्तःप्रजनन (Inbreeding) – एक ही नस्ल के पशुओं के मध्य जब प्रजनन होता है तो वह अन्तःप्रजनन कहलाता है। इस विधि में एक नस्ल से उत्तम किस्म का नर तथा उत्तम किस्म की मादा को पहले अभिनिर्धारित किया जाता है तथा जोड़ों में उनका संगम कराया जाता है। ऐसे संगम से जो संतति उत्पन्न होती है, उस संतति का मूल्यांकन किया जाता है तथा भविष्य में कराए जाने वाले संगम के लिए अत्यन्त उत्तम किस्म के नर तथा मादा की पहचान की जाती है। इससे सामान्यत: जनन क्षमता तथा उत्पादन दोनों को बनाए रखने में सहायता मिलती है।

2. बहिःप्रजनन (Out breeding) – इसमें एक ही नस्ल की या भिन्न-भिन्न नस्लों या भिन्न प्रजातियों के सदस्य भाग लेते हैं। यह निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है –

  1. बहिःसंकरण (Out-crossing) – इसमें एक ही नस्ल के ऐसे पशुओं का चयन किया जाता है जो 4-6 पीढ़ियों तक किसी भी वंशावली में संयुक्त (उभय) पूर्वज नहीं होते। इससे अन्तः प्रजनन अवसादन या अवर्नमन (depression) समाप्त हो जाता है। इस संगम के फलस्वरूप प्राप्त संतति बहिःसंकर (out-cross) कहलाती है।
  2. संकरण (Hybridization) – संकरण किसी जीव की ऐच्छिक विशिष्टताओं के संरक्षण एवं प्रसार की महत्त्वपूर्ण युक्ति है। जन्तु संकरण द्वारा मानवोपयोगी पशु-पक्षियों की नस्ल सुधारकर अधिकाधिक लाभ प्राप्त किया जाता है। संकरण दो विभिन्न नस्लों के वांछनीय गुणों के संयोजन में सहायक होता है। इससे नई नस्ल जो वर्तमान नस्लों से श्रेष्ठ होती हैं, प्राप्त की जाती हैं जैसे-हिसरडेल (Hisardale) नस्ल की भेड़ का विकास बीकानेरी भेड़ (ewes) तथा मैरीनो रेम्स (मेढ़ा-rams) से किया गया है।
  3. अन्त:विशिष्ट संकरण (Interspecific hybridization) – जब विभिन्न प्रजातियों के नर तथा मादा पशुओं के मध्य संकरण कराया जाता है तो इसे अन्त:विशिष्ट संकरण (interspecific hybridization) कहते हैं। उदाहरण के लिए-गधा तथा घोड़ा अलग-अलग जाति के पशु हैं, किन्तु इन पशुओं के आपस में संकरण द्वारा खच्चर उत्पन्न कराया जाता है। खच्चर गधे एवं घोड़े से अधिक शक्तिशाली होता है।

कृत्रिम निषेचन (Artificial Insemination) – इस विधि में वांछित गुणों वाले नर पशुओं के वीर्य को वीर्य बैंकों में सुरक्षित रखते हैं तथा आवश्यकतानुसार इच्छित मादा पशु के गर्भाशय में एक विशेष पिचकारी द्वारा वीर्य को पहुँचा दिया जाता है।
भारत में संकरण विधि द्वारा जन्तुओं की नस्ल सुधार हेतु अनेक शासकीय एवं अशासकीय अनुसन्धान संस्थान आई०सी०ए०आर० (ICAR-Indian Council of Agriculture Research) के अधीन कार्यरत हैं। इन संस्थानों में कार्यरत वैज्ञानिकों के शोध एवं प्रयासों द्वारा गाय, भैंस, भेड़, बकरी, घोड़ा, ऊँट, कुक्कुट, मछली आदि जन्तुओं की नस्ल एवं उपयोगिता में गुणात्मक सुधार हुआ है। फलतः अनेक जन्तु उत्पादों में विश्व में भारत को अग्रणी स्थान प्राप्त है। कृत्रिम वीर्य-सेचन सबसे अच्छी (सर्वोत्तम) पशु प्रजनन विधि है। इससे अल्प समय में उच्च गुणवत्ता वाले पशुओं को सफलतापूर्वक जनित किया जाता है।

प्रश्न 5.
मौन (मधुमक्खी) पालन से आप क्या समझते हैं? हमारे जीवन में इसका क्या महत्त्व है?
या
मधुमक्खियों द्वारा निर्माण किये जाने वाले दो प्रमुख उत्पादों के नाम लिखिए। (2018)
उत्तर
मौन पालन (मधुमक्खी पालन-Bee Keeping)-शहद के उत्पादन के लिए मधुमक्खियों के छत्तों का रख-रखाव ही मधुमक्खी पालन अथवा मौन पालन (Bee keeping) कहलाता है। मधुमक्खी पालन का व्यवसाय किसी भी क्षेत्र में जहाँ जंगली झाड़ियों, फलों के बगीचों तथा लहलहाती फसलों के पर्याप्त कृषि क्षेत्र या चरागाह हों किया जा सकता है। मधुमक्खी पालन यद्यपि अपेक्षाकृत आसान है, परन्तु इसके लिए विशेष प्रकार के कौशल की आवश्यकता होती है। मधुमक्खी पालन प्राचीनकाल से चला आ रहा एक कुटीर उद्योग है। मधुमक्खियों से शहद तथा मोम प्राप्त होता है। शहद का उपयोग आयुर्वेदिक औषधियों में किया जाता है। मोम का उपयोग कान्तिवर्द्धक वस्तुओं की तैयारी तथा विभिन्न प्रकार के पॉलिश वाले उद्योगों में किया जाता है। पुष्पीकरण के समय यदि मधुमक्खी के छत्तों को खेतों के बीच में रख दिया जाए तो इससे पौधों की परागण क्षमता बढ़ जाती है और इस प्रकार फसल तथा शहद दोनों के उत्पादन में सुधार हो जाता है।

प्रश्न 6.
खाद्य उत्पादन को बढ़ाने में मत्स्यकी की भूमिका की विवेचना कीजिए।
उत्तर
मत्स्यकी की भूमिका (Role of Fishery) – मत्स्यपालन के अन्तर्गत मछली पालने के तरीकों एवं इनके रख-रखाव और उपयोग के बारे में अध्ययन किया जाता है। मछलियों से मांस (प्रोटीन का स्रोत), तेल इत्यादि प्राप्त होता है। मत्स्यकी एक प्रकार का उद्योग है, जिसका सम्बन्ध मछली अथवा अन्य जलीय जीव को पकड़ना, उनका प्रसंस्करण (processing) तथा उन्हें बेचने से होता है। हमारी जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग आहार के रूप में मछली, मछली उत्पादों तथा अन्य जलीय जन्तुओं पर आश्रित है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में मत्स्यकी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह समुद्र तटीय राज्यों में अनेक लोगों को आय तथा रोजगार प्रदान करती है। बहुत-से लोगों के लिए यह जीविका का एकमात्र साधन है। मत्स्यकी की बढ़ती हुई माँग को देखते हुए इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार की तकनीकें अपनाई जा रही हैं। नीली क्रान्ति (Blue Revolution) मछली उत्पादन से जुड़ी है। इसके अन्तर्गत अलवणीय तथा लवणीय जलीय प्राणियों के उत्पादन में-द्धि की जाती है।

मछली उत्तम प्रोटीन का खाद्य संसाधन है। मछलियों की अलवणीय नस्लों कतला, रोहू, मृगल, सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प आदि प्रमुख हैं। कतला मछलियों की वृद्धि सबसे तेज होती है। समुद्री मछलियों के अतिरिक्त झींगा (prawn), केकड़ा (crabs), लॉबस्टर (lobster), ऑयस्टर (oyester) आदि प्रमुख समुद्री खाद्य संसाधन हैं।

प्रश्न 7.
पादप प्रजनन में भाग लेने वाले विभिन्न चरणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर
पादप प्रजनन (Plant Breeding) – पादप प्रजनन कार्यक्रम अत्यन्त सुव्यवस्थित रूप से पूरे विश्व के सरकारी संस्थानों तथा व्यापारिक संस्थानों द्वारा चलाए जाते हैं। फसल की एक नई
आनुवंशिक नस्ल के प्रजनन में निम्नलिखित मुख्य चरण होते हैं –
(क) परिवर्तनशीलता का संग्रहण (Collection of Variability) – किसी भी प्रजनन कार्यक्रम का मूलाधार आनुवंशिक परिवर्तनशीलता है। बहुत-सी फसलों में यह गुण उन्हें अपनी पूर्ववर्ती आनुवंशिक जंगली प्रजातियों से प्राप्त होता है। किसी फसल में पाए जाने वाले सभी जीन्स के विविध ऐलील (alleles) के समस्त संग्रहण (पादप बीजों के रूप में) को उसका जननद्रव्य (जर्मप्लाज्म) संग्रहण कहते हैं।

(ख) जनकों का मूल्यांकन तथा चयन (Evaluation and Selection of Parents) – पादपों को उनके लक्षणों के वांछनीय संयोजन के साथ अभिनिर्धारित किए जाने के लिए जननद्रव्य (जर्मप्लाज्म) को मूल्यांकित किया जाता है। चयन किए गए पादपों की संख्या वृद्धि कर उनका प्रयोग संकरण की प्रक्रिया में किया जाता है। इस प्रकार वांछनीय एवं शुद्ध वंशक्रम तैयार कर लिया जाता है।

(ग) चयनित जनकों के मध्य संकरण (Cross hybridization among the Selected Parents) – वांछित लक्षणों को बहुधा दो भिन्न जनकों से प्राप्त कर संयोजित किया जाता है। यह संकरण (hybridization) द्वारा सम्भव है कि जनकों के संकरण से वांछित आनुवंशिक लक्षणों का संगम एक पौधे में हो सके। जैसे—उच्च प्रोटीन गुणवत्ता वाले जनक तथा रोग प्रतिरोधक जनक के संयोजन से वांछित (उच्च प्रोटीन-गुणवत्ता एवं रोग प्रतिरोधक) आनुवंशिक लक्षणों वाला पौधा प्राप्त किया जा सकता है।

(घ) श्रेष्ठ पुनर्योगज का चयन तथा परीक्षण (Selection and Testing of Super Recombinant) – प्रजनन उद्देश्य को प्राप्त करने में चयन की यह प्रक्रिया अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसके अन्तर्गत संकरों (hybrids) की संतति से ऐसे पादपों का चयन किया जाता है जिनमें वांछित लक्षण संयोजित हों। स्वपरागण द्वारा शुद्ध लक्षणों को प्राप्त किया जाता है।

(ङ) नए कंषणों का परीक्षण, निर्मुक्त होना तथा व्यापारिकरण (Testing, Release and Commercialization of New Cultivars) – नए चयनित वंशक्रम को उनके उत्पादन तथा अन्य गुणवत्ता; रोगप्रतिरोधकता आदि गुणों के आधार पर मूल्यांकित किया जाता है। मूल्यांकित पौधों को अनुसन्धान वाले खेतों में जहाँ उपयुक्त उर्वरक; सिंचाई तथा अन्य शस्य प्रबन्धन उपलब्ध हों, वहाँ उगाया जाता है तथा उसमें उपर्युक्त गुणों का मूल्यांकन किया जाता है। इसके पश्चात् चयनित पादपों के बीजों को व्यापारिक स्तर पर उगाने के लिए निर्गत कर दिया जाता है।

प्रश्न 8.
जैव प्रबलीकरण का क्या अर्थ है? व्याख्या कीजिए। (2015, 16, 17)
उत्तर
जैव प्रबलीकरण (Biofortification) – उन्नत खाद्य गुणवत्ता रखने वाली फसलों में पादप प्रजनन को जैव प्रबलीकरण कहते हैं। जैव प्रबलीकरण द्वारा प्राप्त उच्च विटामिन, खनिज, प्रोटीन तथा स्वास्थ्यवर्द्धक वसा वाली प्रजनित फसलें जनस्वास्थ्य को सुधारने के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रायोगिक माध्यम होती हैं। उन्नत पोषक गुणवत्ता के लिए निम्नलिखित को सुधारने के उद्देश्य से प्रजनन किया जाता है –

  1. प्रोटीन की मात्रा तथा गुणवत्ता,
  2. तेल की मात्रा तथा गुणवत्ता,
  3. विटामिन की मात्रा,
  4. सूक्ष्मपोषक तथा खनिज की मात्रा।

जैव प्रबलीकरण के द्वारा ही मक्का, गेहूँ तथा धान की उच्च गुणवत्ता वाली किस्में विकसित की गई हैं। सन् 2000 में विकसित की गई मक्का में ऐमीनो एसिड, लाइसीन तथा ट्रिप्टोफैन की दुगुनी मात्रा विकसित की गई। गेहूं की किस्म (एटलस 66 कृष्य) जिसमें उच्च प्रोटीन मात्रा है, विकसित की गई हैं। धान की उच्च लौह तत्त्व वाली किस्म विकसित की गई, इसमें सामान्यत: प्रयोग में लाई गई किस्मों की तुलना में लौह तत्त्व की मात्रा पाँच गुना अधिक है। भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान नई दिल्ली ने प्रचुर मात्रा में विटामिन तथा खनिज वाली सब्जियों की फसलें विकसित की हैं।

प्रश्न 9.
विषाणु मुक्त पादप तैयार करने के लिए पादप को कौन-सा भाग सबसे अधिक उपयुक्त है। तथा क्यों?
उत्तर
विषाणु मुक्त पादप तैयार करने के लिए पादप का शीर्ष तथा कक्षीय भाग (विभज्योतक) सबसे अधिक उपयुक्त होता है, क्योंकि यह भाग विषाणु से अप्रभावित रहता है।

प्रश्न 10.
सूक्ष्मप्रवर्धन द्वारा पादपों के उत्पादन के मुख्य लाभ क्या हैं?
उत्तर
सूक्ष्मप्रवर्धन (Micropropagation) – ऊतक संवर्धन द्वारा हजारों की संख्या में पादपों को उत्पन्न करने की विधि सूक्ष्मप्रवर्धन कहलाती है। इनमें प्रत्येक पादप आनुवंशिक रूप से मूल पादप के समान होते हैं जिससे वे तैयार किए जाते हैं। ये सोमाक्लोन (somaclones) कहलाते हैं। अधिकांश महत्त्वपूर्ण खाद्य पादपों जैसे-टमाटर, केला, सेब आदि का बड़े पैमाने पर उत्पादन इस विधि द्वारा किया गया है।

इस विधि द्वारा अत्यन्त ही अल्प अवधि में हजारों पादप तैयार किए जा सकते हैं। इस विधि का अन्य महत्त्वपूर्ण उपयोग रोगग्रसित पादपों से स्वस्थ पादपों को प्राप्त करना है। यद्यपि पादप विषाणु से संक्रमित है, परन्तु विभज्योतक (शीर्ष तथा कक्षीय) विषाणु से अप्रभावित रहती है। अत: विभज्योतक (मेरिस्टेम) को अलग करके उन्हें विट्रो संवर्धन में उगाया जाता है, ताकि विषाणु मुक्त पादप तैयार हो सकें। वैज्ञानिकों को केला, गन्ना, आलू आदि संवर्धित विभज्योतक तैयार करने में काफी सफलता मिली है।

वैज्ञानिकों ने पादपों से एकल कोशिकाएँ अलग की हैं तथा उनकी कोशिकाभित्ति का पाचन हो जाने से प्लाज्मा झिल्ली द्वारा घिरा नग्न प्रोटोप्लास्ट पृथक् किया जा सका है। प्रत्येक किस्म में वांछनीय लक्षण विद्यमान होते हैं। पादपों की दो विभिन्न किस्मों से अलग किया गया प्रोटोप्लास्ट युग्मित होकर संकर प्रोटोप्लास्ट उत्पन्न करता है जो आगे चलकर नए पादप को जन्म देता है। यह संकर कायिक संकर (somatic hybrid) कहलाता है तथा यह प्रक्रम कायिक संकरण (somatic hybridization) कहलाता है।

प्रश्न 11.
पत्ती में कर्तातक पादप के प्रवर्धन में जिस माध्यम का प्रयोग किया जाता है, उसके विभिन्न घटकों का पता लगाओ।
उत्तर
इस माध्यम के निम्नलिखित घटक होते हैं –

  1. एक्सप्लाण्ट (शीर्षस्थ या कक्षस्थ कलिकाओं का भाग)
  2. संवर्धन माध्यम (सूक्रोज, अकार्बनिक लवण, विटामिन, अमीनो अम्ल )
  3. वृद्धि नियन्त्रक (ऑक्सिन, साइटोकाइनिन)

प्रश्न 12.
शस्य पादपों के किन्हीं पाँच संकर किस्मों के नाम बताएँ, जिनका विकास भारतवर्ष में हुआ है।
उत्तर

  1. शर्बती सोनोरा (गेहूं की किस्म)
  2. गंगा 5 (मक्का की किस्म)
  3. साबरमती BC-S/55 (धान की किस्म)
  4. पूसा-240 (चने की किस्म)
  5. पूसा बोतड (सरसों की किस्म)

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सामाजिक एवं बहुरूपी कीट है (2017)
(क) घरेलू मक्खी
(ख) मधुमक्खी
(ग) मच्छर
(घ) कॉकरोच
उत्तर
(ख) मधुमक्खी

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सा उत्पाद मधुमक्खी से प्राप्त किया जाता है? (2017)
(क) शहद
(ख) मोम
(ग) रेशम
(घ) शहद और मोम
उत्तर
(घ) शहद और मोम

प्रश्न 3.
कच्चा रेशम का निर्माण किसके द्वारा होता है? (2018)
(क) नर रेशम कीट
(ख) मादा रेशम कीट
(ग) नर व मादा दोनों रेशम कीट
(घ) कैटरपिलर लारवा
उत्तर
(घ) कैटरपिलर लारवी

प्रश्न 4.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान कहाँ स्थित है?
(क) हैदराबाद
(ख) शिमला
(ग) भोपाल
(घ) नई दिल्ली
उत्तर
(घ) नई दिल्ली

प्रश्न 5.
पादप प्रजनन की मुख्य विधि है (2017)
(क) वरण
(ख) प्रसंकरण
(ग) प्रवेशन
(घ) इनमें से सभी
उत्तर
(घ) इनमें से सभी

प्रश्न 6.
पादप प्रजनन द्वारा उन्नत खाद्य गुणवत्ता वाले पौधों का निर्माण कहलाता है- (2017)
(क) बायोफोर्टीफिकेशन
(ख) बायोमेगनिफिकेशन
(ग) बायोडिग्रेडेशन
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(क) बायोफोर्टीफिकेशन

प्रश्न 7.
यदि किसी पौधे में दूसरी एक या अधिक जीन्स का प्रवेश करा दिया जाए, तो पौधा कहलाएगा (2017)
(क) ट्रान्सग्रेसिव
(ख) ट्रान्सजेनिक
(ग) त्रिगुणित
(घ) त्रिसोमिक
उत्तर
(ख) ट्रान्सजेनिक

प्रश्न 8.
बी०टी० फसलों के उत्पादन में निम्नलिखित में से कौन भाग लेता है? (2017)
(क) शैवाल
(ख) फफूदी
(ग) जीवाणु
(घ) ये सभी
उत्तर
(ग) जीवाणु

प्रश्न 9.
बी०टी० कपास में कीटनाशक के रूप में एक प्रकार का होता है- (2017)
(क) प्रोटीन
(ख) “लिपिड
(ग) कार्बोहाइड्रेट
(घ) विटामिन
उत्तर
(क) प्रोटीन

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पशुपालन के दो लाभ बताइए। (2015)
उत्तर

  1. दुधारू पशुओं को पालने से हमें उनसे दूध प्राप्त होता है।
  2. पाले गये पशुओं के गोबर का प्रयोग खाद के रूप में किया जाता है जिससे मृदा की उर्वरता बनी रहती है।

प्रश्न 2.
शहतूत के रेशमकीट का वैज्ञानिक नाम लिखिए। (2017)
उत्तर
बॉम्बिक्स मोराइ (Bombyx mori)

प्रश्न 3.
मधुमक्खी की दो प्रजातियों के जन्तु वैज्ञानिक नाम लिखिए। (2014, 16)
उत्तर
एपिस मेलीफेरो (Apis melifero) तथा एपिस इण्डिका (Apis indica)।

प्रश्न 4.
भारत में हरित क्रान्ति का जनक किसे कहते हैं? (2015)
उत्तर
भारत में हरित क्रान्ति का जनक डॉ० एम०एस० स्वामीनाथन को कहते हैं।

प्रश्न 5.
किन्हीं दो बी०टी० फसलों के नाम लिखिए। इनके निर्माण में भाग लेने वाले मुख्य जीवाणु का भी नाम लिखिए। (2017)
उत्तर

  1. BT कपास
  2. BT बैंगन।

BT फसलों के निर्माण के लिए बैसीलस थूरीनजिएंसिस नामक जीवाणु का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 6.
दलहनी पौधों के लिए नाइट्रोजन युक्त खाद की ज्यादा आवश्यकता नहीं पड़ती हैं क्यों? (2014)
उत्तर
दलहनी पौधों की जड़ों में प्रकृति में उपस्थित मुक्त नाइट्रोजन गैस का स्थिरीकरण करने वाले जीवाणु (राइजोबियम, नाइट्रोबैक्टर आदि) पाये जाते हैं जिनके कारण उन्हें नाइट्रोजन युक्त खाद की ज्यादा आवश्यकता नहीं पड़ती हैं।

प्रश्न 7.
एकल कोशिका प्रोटीन देने वाले दो जीवों के नाम लिखिए। (2017)
उत्तर
स्पाइरुलीना एवं यीस्ट।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पशुपालन क्या है? इसमें सुधार लाने की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए। (2015)
उत्तर
पशुपालन
पशुपालन, व्यावहारिक जीव विज्ञान की वह शाखा है जो पालतू पशुओं को मितव्ययितापूर्ण एवं स्वस्थ रखने की कला का ज्ञान कराती है। पशुपालन में सुधार लाने की विभिन्न विधियाँ निम्नवत् हैं

  1. आस-पास का तापमान (Near by Temperature) – पशुओं के आस-पास लगभग 20°C ताप उपयुक्त रहता है। ताप में अधिक भिन्नता होने पर चारा ग्रहण क्षमता तथा पाचन क्रिया प्रभावित होने से उत्पादन घटता है।
  2. धूप या विकिरण (Sunshine or Radiation) – मौसम के अनुसार पशुओं को धूप या विकिरण से बचाने का प्रबन्ध करना चाहिए ताकि शरीर में ताप/ऊर्जा सन्तुलन में सहायता मिले।
  3. भोजन व पानी का प्रबन्ध (Arrangement of Food and Water) – पशुओं के लिए पर्याप्त व सन्तुलित भोजन व पानी का प्रबन्ध होना चाहिए। गर्मी में अपेक्षाकृत पानी की अधिक आवश्यकता होती है।
  4. उचित व्यवहार (Good Behaviour) – पशुओं के साथ दया व मित्रतापूर्ण व्यवहार करने से उनका दुग्ध उत्पादन बढ़ता है।
  5. स्वास्थ्य परीक्षण (Health Checkup) – पशुओं का नियमित अन्तराल पर स्वास्थ्य परीक्षण कराना चाहिए तथा बीमारी के लक्षण दिखाई देते ही उसको पृथक् कर देना चाहिए और योग्य पशु चिकित्सक से उपचार कराना चाहिए।
  6. खुरों की छटाई (Hoof Triming) – खुरों को समय-समय पर काटते रहना चाहिए क्योंकि एक ही स्थान पर रहने से उनके खुर बढ़ जाते हैं, चलने में कठिनाई होती है।
  7. व्यायाम (Exercise) – पशुओं को चारागाह में भेजकर या अन्य किसी माध्यम से घुमाने वव्यायाम की व्यवस्था होनी चाहिए।
  8. सींग रोधन – पशुओं की पारस्परिक सुरक्षा तथा अपनी सुरक्षा हेतु सींग रोधन अपनाना चाहिए।
  9. बिछावन व्यवस्था – पशुशाला या पशु बाँधने के स्थान पर मौसम के अनुसार सूखा भूसा, लकड़ी का बुरादा या रेत आदि का प्रयोग बिछावन के रूप में अवश्य करें।
  10. बाह्य-परजीवियों से रक्षा (Protection from External Parasites) – पशु के रहने के स्थान पर मक्खियाँ, जू, खटमले, पिस्सू, चीचड़ी आदि पैदा न होने दें। ये सभी पशु की दैहिक क्रियाओं पर बुरा प्रभाव डालती हैं। अतः सफाई के साथ-साथ कीटनाशकों का प्रयोग करें।
  11. अपशिष्टों से बचाव – घर की सड़ी-गली खाद्य वस्तुओं अथवा अन्य अपशिष्टों को पशुओं को नहीं देना चाहिए, ऐसा करना उनके लिए प्राण घातक भी हो सकता है।

प्रश्न 2.
मधुमक्खी के बीच संचार का वर्णन कीजिए। (2013)
उत्तर
बहुत पहले से लोग जानते हैं कि जब कोई मधुमक्खी (स्काउट मक्खी – scout bee) भोजन के किसी नये स्रोत का पता लगाकर छत्ते में लौटती है तो इसके शीघ्र बाद ही छत्ते से कई भोजन-संग्रहकर्ता मक्खियाँ, स्काउट मक्खी को साथ लिये बिना ही, स्वतन्त्र रूप से नये स्रोत की ओर उड़ जाती हैं। अतः स्पष्ट है कि स्काउट मक्खियाँ भोजन के नये स्रोतों की सूचना भोजन-संग्रहकर्ता मक्खियों को देती हैं। सदियों से वैज्ञानिक मधुमक्खियों में इस सूचना-प्रसारण की विधि का पता लगाने का प्रयास करते रहे हैं। अर्नेस्ट स्पाइट्ज़नर (Ernest Spytzner, 1788) ने पहले-पहल बताया कि स्काउट मक्खियाँ कुछ विशिष्ट प्रकार की गतियों (movements) द्वारा सूचना-प्रसारण करती हैं। इन गतियों को अब “मधुमक्खी के नाच (bee dances)’ कहते हैं। सन् 1946 से 1969 तक अनवरत अनुसंधान के फलस्वरूप, प्रो० कार्ल वॉन फ्रिश (Karl Von Frisch) ने “मधुमक्खी के नाच’ की व्याख्या करने में सफलता पाई और इसके लिये नोबेल पुरस्कार जीता। उन्होंने पता लगाया कि सूचना-प्रसारण के लिये भोजन-खोजकर्ता या स्काउट मक्खियाँ दो प्रकार का “नाच’ करती हैं। (चित्र 7.1)-(1) गोल नाच तथा (2) दुम-दोलनी नाच।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 9 Strategies for Enhancement in Food Production img-1

1. गोल नाच (Round Dance) – इस नाच में स्काउट मक्खी क्रमशः दाईं-बाईं ओर गोल-गोल चक्कर काटती है। ऐसे नाच द्वारा सूचना-प्रसारण तब किया जाता है जब नया भोजन-स्रोत निकट (छत्ते से 75 मीटर तक) ही होता है। इसमें स्रोत की दिशा की सूचना प्रसारित नहीं होती; स्काउट मक्खी द्वारा लाई गई फूलों की सुगन्ध से ही भोजन-संग्रहकर्ता मक्खियों का मार्गनिर्देशन हो जाता है और ये निर्दिष्ट फूलों तक पहुँच जाती हैं।

2. दुम-दोलनी नाच (Tail-wagging or “Shuffle” Dance) – स्काउट मक्खियाँ इस नाच द्वारा सूचना-प्रसारण तब करती हैं जब नया भोजन-स्रोत छत्ते से 75 मीटर से अधिक दूर होता है।
इस नाच द्वारा भोजन-स्रोत की दूरी एवं सूर्य के संदर्भ में इसकी दिशा के ज्ञान का भी प्रसारण होता है। इसमें स्काउट मक्खी पहले एक सीधी रेखा पर तेजी से चलती है। फिर इस रेखा के एक ओर अर्धवृत्ताकार पथ पर चल कर वापस इसी सीधी रेखा पर चलती है। फिर इस रेखा के दूसरी ओर अर्धवृत्ताकार पथ पर चलकर वापस सीधी रेखा पर चलती है। यही गति बार-बार दोहराई जाती है। सीधी रेखा पर चलते समय यह उदर के पिछले अर्थात् पुच्छ भाग को तेजी से दायें-बायें हिलाती रहती है और साथ ही पंखों को फड़-फड़ाकर एक मन्द गति ध्वनि उत्पन्न करती रहती है।

सीधी रेखा पर मक्खी की गति की दिशा से, सूर्य की वर्तमान स्थिति के अनुसार, भोजन-स्रोत की दिशा का ज्ञान होता है। पूर्ण नाच की दर तथा सीधी रेखा पर चलते समय दुम-दोलनी की दर एवं ध्वनि की तीव्रता से स्रोत की दूरी का ज्ञान होता है। यदि सीधी रेखा पर मक्खी छत्ते में ऊपर से नीचे की ओर चलती है तो स्रोत छत्ते से सूर्य की ओर न होकर विपरीत दिशा में होता है और यदि यह गति नीचे से ऊपर की ओर होती है तो स्रोत सूर्य की दिशा में होता है। यदि स्रोत सूर्य की दिशा से किसी कोण पर होता है तो सीधी रेखा भी तद्नुसार ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर की ओर न होकर उसी कोण पर होती है। नाच के समय भोजन-संग्रहकर्ता मक्खियाँ स्काउट मक्खी को छु-छूकर स्पर्श-ज्ञान द्वारा तथा स्काउट मक्खी के पंखों की फड़-फड़ाहट की ध्वनि की श्रवण-संवेदना द्वारा सूचना ग्रहण करती हैं।

प्रश्न 3.
पीडक जन्तु (पेस्ट) किसे कहते हैं? किन्हीं दो कृषि पीडक कीटों के नाम, उनसे होने वाली हानि एवं उत्पादन पर प्रभाव तथा उनके नियंत्रण के उपायों का वर्णन कीजिए। (2014)
उत्तर
पीड़क जन्तु-मनुष्य भोजन के लिए कृषि द्वारा भूमि से अनाज, फल, सब्जी आदि उगाता है, लेकिन कोई भी फसल ऐसी नहीं होती जिससे अनेक प्रकार के कीट अपना भोजन प्राप्त न करते हों। पेड़-पौधों की जड़ों, तनों, पत्तियों, कलियों, फूलों, बीजों आदि पर विभिन्न प्रकार के कीट आक्रमण करते हैं। लगभग एक-तिहाई फसल के भागीदार ये कीट बन जाते हैं। इससे हमारे देश को लगभग 500 करोड़ और अकेले उत्तर प्रदेश को 50 करोड़ की हानि प्रतिवर्ष होती है। इन हानिकारक कीटों को ही हम पीड़क जन्तु या पीड़क कीट कहते हैं।

दो कृषि पीइक कीटों के नाम – दो मुख्य कृषि पीड़क कीटों के नाम निम्नवत् हैं।
1. टिड्डी
2. ईख की गिडार
हानि एवं उत्पादन पर प्रभाव

  1. फसल को टिड्डियों से बहुत हानि होती है। एक टिड्डी दल में करोड़ों तक की संख्या में टिड्डियाँ हो सकती हैं जो कुछ ही मिनटों में सम्पूर्ण फसल का सफाया कर देती हैं, जिससे उत्पादन शून्य भी हो सकता है।
  2. ईख की गिडार गन्ने के तने को भीतर से खोखला कर देती है जिससे उत्पादन घट जाता है।

नियंत्रण के उपाय – निम्नलिखित उपायों द्वारा पीड़क कीटों को नियन्त्रित किया जा सकता है।

  1. यान्त्रिक नियन्त्रण,
  2. भौतिक नियन्त्रण
  3. जैविक नियन्त्रण (बन्ध्याकरण, कीट भक्षण, परजीविता),
  4. सांस्कृतिक नियन्त्रण,
  5. वैज्ञानिक नियन्त्रण तथा
  6. रासायनिक नियन्त्रण।

प्रश्न 4.
पादप प्रजनन का महत्त्व बताइए। (2015)
उत्तर
पादप प्रजनन का महत्त्व
पादप प्रजनन से फसलों की वांछित गुणों व उच्च गुणवत्ता वाली प्रजातियों को विकसित किया जा सकता है। पादप प्रजनन के निम्न प्रमुख लाभ हैं –
1. उत्पादन में वृद्धि (Increase in Production) – तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण खाद्य संसाधनों को बढ़ाने की आवश्यकता है। पादप प्रजनन द्वारा फसली पौधों की पैदावार व गुणवत्ता को बढ़ाना सम्भव हुआ है। हरित क्रान्ति (green revolution) नामक प्रयास से भारत में गेहूं की नयी, उन्नत फसलें विकसित की गयी हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने गेहूँ की 591-किस्मों से NP-4, NP-52, कल्याण सोना-227, सोनोरा-64 जैसी उन्नत किस्में तैयार की हैं। गेहूँ के अतिरिक्त मक्का, धान, जौ, गन्ना की भी उन्नत किस्में विकसित की गयी हैं।

2. गुणवत्ता में सुधार (Improvement in Quality) – पादप प्रजनन से हम स्वेच्छा से पौधों के | श्रेष्ठ गुणों का विकास करके पौधों की गुणवत्ता सुधार सकते हैं। फसली पौधों की गुणवत्ता में
सुधार का अर्थ है-अधिक पैदावार, रोग प्रतिरोधकता आदि। चने की G-24 किस्म का दाना गहरे भूरे रंग का होता है तथा Pb 7, I-58 व G-17 के साथ इसके संकरण से C-158 व C-132 जैसी गुणवान किस्में विकसित की गयी हैं।

3. रोग व पीइक प्रतिरोधकता (Resistivity for Diseases and Insects) – पौधों में विषाणु, जीवाणु, कवक आदि से विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। उदाहरण-आलू में अंगमारी (blight) रोग, गन्ने में लाल विगलन (red-rot) व काले किट्ट (black rust) का रोग आदि कवकजनित होते हैं। पादप प्रजनन द्वारा पौधों की रोग प्रतिरोधी किस्में विकसित की गयी हैं। उदाहरण-गेहूँ की C-228, C-253 व चने की GP-17, GP-24 आदि।

4. विशेष मृदा व विशेष जलवायु हेतु किस्में (Varieties for Particular Soil and Climate) – भारतवर्ष में प्रत्येक क्षेत्र की जलवायु व मृदा विभिन्न प्रकार की है। मृदा व जलवायु की विभिन्नता को ध्यान में रखते हुए पादप-प्रजनन द्वारा पौधों की ऐसी किस्में उत्पन्न की गयी हैं जो विभिन्न प्रकार की मृदा व जलवायु में विकसित हो सकती हैं। उदाहरण – पंजाब की मृदा मूंगफली की वृद्धि के लिए अनुकूलित नहीं है। अतः पादप प्रजनन द्वारा मूंगफली की ऐसी किस्में उत्पन्न की गयी हैं जो ऊसर व रेतीली मृदा में भी उग सकती हैं। पादप प्रजनन से पतन प्रतिरोधी किस्में (varieties resistant to lodging) भी तैयार की गई हैं।

प्रश्न 5.
खाद्य उत्पादन में दलहनी पौधों की भूमिका का वर्णन कीजिए। (2014)
उत्तर
दलहनी पौधों के अन्तर्गत दाल वाले पौधे; जैसे-अरहर, चना, मूंग, उड़द आदि सम्मिलित होते हैं। दालें प्रोटीन का मुख्य स्रोत होती हैं क्योंकि इनमें प्रोटीन प्रचुर मात्रा में उपस्थित होती है। यदि हम खाद्य उत्पादन में दलहनी पौधों का विस्तार करेंगे तो ये हमें दो प्रकार से लाभ पहुँचाएँगी –

  1. हमें प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत प्राप्त होगा तथा
  2. भूमि उपजाऊ होगी क्योकि दलहनी पौधे मृदा की उपजाऊ शक्ति में वृद्धि करते हैं। इनकी जड़ों में कुछ विशिष्ट जीवाणुओं की गाँठे होती हैं जो मृदा में नाइट्रोजन के स्तर को बढ़ाती हैं।

प्रश्न 6.
जैविक आवर्धन पर टिप्पणी लिखिए। (2015)
उत्तर
अनेक प्रकार के कीटनाशक पदार्थ (pesticides), खरपतवारनाशी (weedicides) व अन्य क्लोरीनयुक्त पदार्थ ऐसे पदार्थ हैं जिनका जीवधारियों द्वारा बहुत कम विघटन होता है, अर्थात् ये अक्षयकारी (non-biodegradable) होते हैं। इनका उपयोग कृषि की उपज बढ़ाने के लिए किया जाता है। ये पदार्थ खाद्य श्रृंखला के द्वारा पौधों व जन्तुओं के शरीर में जाते हैं और वहीं पर संचित होते रहते हैं। इनकी सान्द्रता प्रत्येक ट्रॉफिक स्तर पर बढ़ती जाती है और उच्च उपभोक्ता में अधिकतम हो जाती है। इस क्रिया को जैविक आवर्धन (biological magnification or biological amplification) कहते हैं।

DDT तथा BHC आदि कीटनाशक पदार्थ वसा में घुलनशील होते हैं। अतः ये मनुष्यों व जन्तुओं के वसा ऊतक (adipose tissue) में संचित हो जाते हैं। श्वसन क्रिया में वसा के ऑक्सीकरण के समय ये पदार्थ रुधिर वाहिनियों में प्रवेश करके विषैला प्रभाव दिखाते हैं और इससे कैन्सर तक हो जाता है। इसी को देखते हुए कृषि में DDT के प्रयोग पर प्रतिबन्ध है, परन्तु इसका उपयोग मलेरिँया नियन्त्रण में किया जाता है।

प्रश्न 7.
संकर ओज पर टिप्पणी लिखिए। (2014, 15, 16, 17)
उत्तर
संकर ओज-भिन्न-भिन्न आनुवंशिक संगठन युक्त दो या दो से अधिक जातियों में मौजूद लक्षणों को एक ही जाति में विकसित करने की विधि को संकरण कहते हैं तथा इस प्रकार प्राप्त हुई जातियों को संकर ओज कहते हैं।

प्रश्न 8.
आनुवंशिकीय रूपान्तरित फसलों पर टिप्पणी लिखिए। (2014, 15)
उत्तर
कीट पीड़कों से प्रतिरोधकता विकसित करने की यह पादप प्रजनन विधि है। इस विधि से प्राप्त पौधों पर कीट पीड़कों का कोई प्रभाव नहीं होता। ये पौधे जीवाणु, कवक जीन द्वारा परिवर्तित कर दिये जाते हैं इसलिए इन्हें आनुवंशिकीय रूपान्तरित फसल कहा जाता है। उदाहरणार्थ-बी०टी० फसलें।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए –

  1. BT कपास तथा
  2. हरित क्रान्ति। (2014, 16, 17)

उत्तर
BT कपास
बैसीलस थूरीनजिएंसिस (Bacillus thuringiensis) नामक जीवाणु ऐसी प्रोटीन (जीव विष) को निर्माण करता है जिसमें अनेक प्रकार के कीटों (तम्बाकू का कीट, सैनिक कीट, मूंग कीट) को नष्ट करने की क्षमता होती है। बैसीलस जीवाणु से बनी जीव विष कीटनाशक होता है, लेकिन जीवाणु में निष्क्रिय होता है। कीट में पहुँचते ही सक्रिय हो जाता है तथा कीटों की मृत्यु हो जाती है। जीव विष को बनाने वाली जीवाणु से जीन को पृथक् करके फसलों में समाविष्ट कर देते हैं। इसी प्रकार BT-कपास नामक पौधे का निर्माण कर लिया गया है। BT-कपास पर शलभ (Ballworms) कृमि का प्रभाव नहीं होता है और उत्पादन बढ़ जाता है। जीव विष को बनाने वाली जीन को क्राई (cry) कहते हैं। ये कई प्रकार की होती हैं।

हरित क्रान्ति
भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत के सकल घरेलू उत्पादन की लगभग 33 प्रतिशत आय तथा समष्टि की लगभग 62 प्रतिशत जनता को रोजगार कृषि से प्राप्त होता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती बढ़ती हुई जनसंख्या के पोषण की थी क्योंकि यहाँ कृषि योग्य भूमि सीमित थी। इसके लिए वह वृहद् योजना बनाने की आवश्यकता थी जिससे उपलब्ध भूमि में अधिक-से-अधिक पैदावार की जा सके। 1960 ई० के मध्य से पादप प्रजनन की विधियों का उपयोग कर गेहूँ, धान, मक्का आदि की उन्नत संकर किस्में विकसित की गईं। परिणामस्वरूप खाद्य उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई। इसे प्रावस्था को ‘हरित क्रान्ति’ (Green Revolution) के नाम से जाना जाता है। भारत में हरित क्रान्ति के प्रारम्भ हेतु प्रमुख योगदान डॉ० एम०एस० स्वामीनाथन (Dr. M.S. Swaminathan) व डॉ० नॉर्मन बोरलॉग (Dr. Norman Borlog) ने दिया था। अपने इस योगदान के लिए इन्हें अनेक पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए –

  1. BT बैंगन तथा
  2. ऊतक संवर्धन। (2014, 16, 17, 18)

या
पूर्ण शक्तता (टोटीपोटेन्सी) किसे कहते हैं? ऊतक संवर्धन की प्रमुख विधियों का चित्रों की सहायता से वर्णन कीजिए। (2015)
या
ऊतक संवर्धन क्या है? इसके अन्तर्गत आने वाले विभिन्न पदों के नाम लिखिए। (2015, 17)
उत्तर
BT बैंगन
बैसीलस थूरीनजिएंसिस नामक जीवाणु ऐसी प्रोटीन का निर्माण करता है जिसमें अनेक प्रकार के कीटों (तम्बाकू का कीट, सैनिक कीट, मूंग कीट) को नष्ट करने की क्षमता होती है। बेसीलस जीवाणु से बना यह जीव विष कीटनाशक होता है। जीवाणु में निष्क्रिय परन्तु कीट में पहुँचते ही सक्रिय हो जाता है जिससे कीटों की मृत्यु हो जाती है। जीव विष को बनाने वाले जीवाणु से जीव को पृथक् करके बैंगन की फसल में समाविष्ट कर देते हैं। इनसे BT बैंगन का निर्माण होता है जिस पर पीड़कों का कोई प्रभाव नहीं होता है।

ऊतक संवर्धन
इस तकनीक का विकास सर्वप्रथम सन् 1902 में गोटलीब हेबर लेन्डटू द्वारा किया गया। भोजन की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए इस तकनीक का उपयोग करते हैं। इसके अन्तर्गत प्रयोगशाला के भीतर पादप कोशिका, ऊतक, अंगों की वृद्धि पात्रों में उपस्थित कृत्रिम संवर्धन माध्यम में करके पौधों की संख्या में अपार वृद्धि करते हैं। एक कोशिका अथवा मूल कोशिका द्वारा पूरा पौधा विकसित करने की क्षमता को पूर्ण शक्तता (टोटीपोटेन्सी) कहते हैं। इस प्रक्रिया को ऊतक संवर्धन (tissue culture) कहते हैं। इस विधि से अल्प काल में हजारों की संख्या में पादपों का उत्पादन किया जाता है। इसे सूक्ष्म प्रवर्धन (micro propagation) भी कहते हैं।

सन् 1957 में स्टीवर्ड नामक वैज्ञानिक ने एकल कोशिका से पूर्ण पौधे की वृद्धि को सिद्ध किया। ऊतक संवर्धन में अनेक वृद्धि नियन्त्रक जैसे- ऑक्सिन (auxin) व साइटोकाइनिन (cytokinine) की आवश्यकता होती है। ऊतक संवर्धन की प्रमुख दो विधियाँ हैं –

  1. प्रयोगशाला में वृद्धि जैसे-कैलस (callus) व निलम्बन संवर्धन,
  2. एक्स प्लान्ट जैसे- मेरीस्टेम संवर्धन, भ्रूण संवर्धक, परागकोश संवर्धन, जीवद्रव्य संवर्धन आदि।

संवर्धन के ये प्रयोग आनुवंशिक इन्जीनियरिंग (genetic engineering) में बहुत लाभदायक हैं, क्योंकि नई किस्म के पौधे उत्पन्न करने में कोशिका संवर्धन एक प्रमुख विधि है।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 9 Strategies for Enhancement in Food Production img-2

प्रश्न 11.
एकल कोशिका प्रोटीन पर टिप्पणी लिखिए।
या
एकल कोशिका प्रोटीन क्या है? किन्हीं दो एकल कोशिका प्रोटीन के वानस्पतिक नाम लिखिए। (2014)
उत्तर
एकल कोशिका प्रोटीन
सूक्ष्मजीवों को मनुष्य तथा पशुओं के पोषण में प्रोटीन के स्रोत के रूप में उपयोग में लाया जा रहा है, जैसे- यीस्ट, स्पाइरुलीना आदि।
एकल कोशिका प्रोटीन द्वारा आवश्यक सभी अमीनो अम्ल शरीर को प्राप्त होते हैं। उच्चवर्गीय पौधों के स्थान पर जीवाणु तथा यीस्ट बेहतर प्रोटीन स्रोत हैं, क्योंकि खाद्य के रूप में प्रयुक्त किए जाने वाले उच्च वर्गीय पौधों में लाइसीन अमीनो अम्ल नहीं पाया जाता है। एकल कोशिका प्रोटीन के उत्पादन के लिए कम जगह की आवश्यकता पड़ती है। इसका उत्पादन जलवायु से भी प्रभावित नहीं होता है। शैवाल, जैसे-स्पाइरुलीना, क्लोरेला तथा सिनेडेस्मस का उपयोग एकल कोशिका प्रोटीन के रूप में किया जा रहा है। स्पाइरुलीना को आलू-संसाधन संयन्त्र से निर्मुक्त अवशिष्ट जल जिसमें स्टार्च की। मात्रा उपस्थित रहती है, में आसानी से उगाया जा सकता है।

यहाँ तक कि इसे भूसा, शीरा, पशु खाद तथा मेल-जल में भी उगाया जा सकता है। स्पाईरुलीना में प्रोटीन के अतिरिक्त खनिज, वसा, कार्बोहाइड्रेट तथा विटामिन भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। प्रदूषित जल में आसानी से उगाए जाने के कारण स्पाइरुलीना का उपयोग पर्यावरणीय प्रदूषण को भी कम करने के लिए किया जाता है। शैवालों के अतिरिक्त कवक, जैसे-यीस्ट (सेकेरोमाइसीज), टॉरुलाप्सिस तथा कैंडिडा का उपयोग भी एकल कोशिका प्रोटीन के रूप में किया जा रहा है। फ्यूजेरियम एवं मशरूम के कवकतन्तु को एकल कोशिका प्रोटीन के रूप में उपयोग बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।

गणना की गई है कि 0.5 टन सोयाबीन से 40 किलोग्राम प्रोटीन प्रति 24 घंटे में प्राप्त हो सकती है। इसकी तुलना में 0.5 टन यीस्ट से उसी समय-सीमा में 50 टन प्रोटीन प्राप्त हो सकती है। इसी प्रकार प्रतिदिन 25 किलोग्राम दूध देने वाली गाय 200 ग्राम प्रोटीन पैदा करती है। इसी समय में 250 ग्राम सूक्ष्मजीव; जैसे-मिथायलोफिलस मिथायलोटोपस 25 टन तक प्रोटीन उत्पन्न कर सकते हैं।

प्रश्न 12.
केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान पर टिप्पणी लिखिए। (2015)
उत्तर
केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान उत्तर प्रदेश की राजधानी, लखनऊ में स्थित है। यहाँ जैव चिकित्सा विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित अनेक वैज्ञानिक कार्यरत हैं। भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् स्थापित होने वाली प्रयोगशालाओं में से यह एक है। इस संस्थान का उद्घाटन 17 फरवरी, 1951 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू द्वारा किया गया था। प्रशासनिक और वैज्ञानिक प्रयोजनों के लिए संस्थान को जनशक्ति, तकनीकी और वैज्ञानिक सहायता उपलब्ध कराने के लिए इसे 17 अनुसंधान एवं विकास विभाग और कुछ डिवीजनों में बाँटा गया है। इनके अलावा इस संस्थान के बाहर स्थित दो डाटा सेंटर और एक फील्ड स्टेशन कार्य कर रहे हैं।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य के लिए लाभदायक तीन कीटों के जन्तु-वैज्ञानिक नाम लिखिए तथा उनके उत्पाद का उल्लेख कीजिए। उनमें से किसी एक कीट के जीवन चक्र का वर्णन कीजिए। (2011, 12)
या
रेशम कीट पालन किसे कहते हैं ? रेशम कीट का सचित्र जीवन चक्र लिखिए। (2009, 17)
या
आर्थिक महत्त्व के किन्हीं दो कीटों के नाम लिखिए तथा उनके द्वारा उत्पादित पदार्थों का मनुष्य के लिए उपयोग बताइए। (2008,09, 15, 16, 17)
या
किन्हीं दो लाभदायक कीटों का वैज्ञानिक नाम लिखिए तथा उनके द्वारा उत्पादित पदार्थ का नाम एवं मानव द्वारा उपयोग बताइए। (2010, 11, 12, 15)
या
मनुष्य के आर्थिक महत्त्व के किन्हीं तीन कीटों के जन्तु वैज्ञानिक नाम लिखिये तथा इनके द्वारा उत्पादित पदार्थों की उपयोगिता बताइए। भारतवर्ष में पाए जाने वाले रेशम कीट की विभिन्न प्रजातियों के जन्तु वैज्ञानिक नाम लिखिए। (2014)
या
मनुष्य के लिए लाभदायक किन्हीं दो कीटों के जन्तु वैज्ञानिक नाम लिखिए तथा इनके द्वारा उत्पन्न किये जाने वाले उत्पादों का आर्थिक महत्त्व बताइए। (2013, 14, 15)
या
मानव के लिए लाभदायक दो कीटों के जन्तु वैज्ञानिक नाम लिखिए। (2014, 16)
या
आर्थिक महत्त्व के कीटों की एक सूची दीजिए। इनमें से किसी एक द्वारा उत्पादित उत्पादों का उपयोग लिखिए। (2015)
या
टिप्पणी लिखिए-

  1. रेशम,
  2. लाख (2015)

या
किन्हीं दो लाभदायक कीटों के प्राणि वैज्ञानिक नाम लिखिए तथा उनके उत्पादित पदार्थों का मानव हित में उपयोग बताइए। (2017)
या
रेशम कीट का आर्थिक महत्त्व लिखिए। (2018)
उत्तर
मनुष्य के लिए लाभदायक तीन कीट
1. रेशम कीट (Silkworm = Bombyx mort)
इसकी बॉम्बिक्स मोराइ (Bombyx mori) नामक जाति का शहतूत के वृक्षों पर पालन किया जाता है। इस कीट से उत्तम किस्म का रेशम प्राप्त किया जाता है। इसकी एन्थेरिया पैपिया (Antheraeg pupia) नामक जाति से उच्च कोटि का रेशम टसर प्राप्त किया जाता है।

2. मधुमक्खी (Honey bee = Apis indica)
यह एक सामाजिक, बहुरूपी (polymorphic) कीट है। यह मोम की एक छत्तेनुमा कालोनी बनाकर रहती है। प्रत्येक छत्ते में हजारों की संख्या में षट्भुजीय कोष्ठक होते हैं। अनेक कोष्ठकों को खाद्य भण्डार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जिनमें यह बहुत मात्रा में शहद (honey) एकत्र रखती है। अन्य कोष्ठकों में इसके बच्चों, अण्डों आदि की देखभाल की जाती है।

एक बड़े छत्ते में एक ऋतु में लगभग 150 किलोग्राम तक शहद प्राप्त हो जाता है। मधु मनुष्य के लिए एक प्राकृतिक शक्तिवर्द्धक एवं रोगाणु रोधक, अम्लीय पदार्थ होता है। इसमें औषधि महत्त्व के लगभग 80 प्रकार के पदार्थ होते हैं।
मधुमक्खी का पूरा छत्ता मोम का बना होता है। मोम प्रायः सफेद अथवा हल्का पीला-सा होता है और अनेक सौन्दर्य प्रसाधनों को तैयार करने के लिए आधार पदार्थ होता है।

3. लाख का कीट (Lac insect = Tachardia lacca)
ये कीट प्रतिकूल वातावरणीय परिस्थितियों तथा शत्रुओं से सुरक्षित रहने के लिए ढाक, साल, पीपल, बरगद, अंजीर आदि वृक्षों पर अण्डे देते समय लाख का रक्षात्मक खोल बनाते हैं। यह 1-2 सेमी मोटी पपड़ी के रूप में होता है। हमारे देश में एक महत्त्वपूर्ण उद्योग के रूप में लाख एकत्र किया जाता है। लाख का उपयोग वार्निश, चमड़ा, मोहरी लाख, बिजली के सामान, खिलौने, बर्तन, चूड़ियाँ आदि बनाने में किया जाता है।

रेशम कीट पालन
रेशम उद्योग का एक रोमांचकारी इतिहास है। कहा जाता है कि लगभग 2600 ईसा पूर्व चीन की एक महारानी सी लिंगची (Si Ling Chi) ने अपनी वाटिका में पेड़ों पर सफेद से रंग के कोकून फलों की भाँति लटके हुए देखे। इन्हें देखकर वह आकर्षित हुई और उनमें से सूक्ष्म धागे उतरवाकर महीन व चमकदार कपड़ा बुनवाया जो बहुत अधिक लोकप्रिय हुआ। चीनियों ने रेशम के उद्योग को बढ़ाया और गुप्त रखा, किन्तु कुछ समय बाद पुजारियों द्वारा यह रहस्य किसी प्रकार से यूरोप पहुँच गया। अब यह उद्योग यूरोप तथा एशिया के अनेक देशों में प्रचलित है किन्तु अमेरिका में जहाँ पर श्रमिकों की समस्या है वहाँ यह सफल नहीं हो सका।

रेशम प्राप्ति के लिए रेशम कीट का पालन करना रेशम कीट पालन या सेरीकल्चर (sericulture) कहलाता है। यह कार्य चीन, जापान, इटली, स्पेन आदि देशों में बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता है। भारत में असम, मैसूर आदि स्थानों पर इनका पालन औद्योगिक महत्त्व के लिए किया जाता है। समूचे विश्व में लगभग 3 हजार करोड़ किग्रा रेशम इन्हीं कीटों से प्राप्त किया जाता है। रेशम इसकी कोकून अवस्था से प्राप्त किया जाता है। 25 हजार कोकूनों से लगभग 1 पौण्ड रेशम प्राप्त होता है। रेशम का उपयोग रेशमी वस्त्र, साड़ियों आदि के निर्माण में किया जाता है।

रेशम कीट का जीवन चक्र
रेशम कीट एकलिंगी (unisexual) होने के कारण नर तथा मादा कीट अलग-अलग होते हैं। रेशम कीट शहतूत की पत्तियों पर पाला जाता है। इनका भोजन शहतूत की पत्तियाँ हैं।
1. अण्डे (Eggs) – मादा रेशमकीट एक बार में 300 से 400 अण्डे शहतूत की पत्तियों पर देती | है। अण्डे देने के बाद मादा कीट भोजन लेना बन्द कर देती है और 4-5 दिन में मर जाती है।
2. डिम्भक (Larva) – अण्डे से 8-10 दिन में चिकना व बेलनाकार लारवा निकलता है, जिसे इल्ली या कैटरपिलर (caterpillar) कहते हैं। इसका रंग सफेद होता है तथा शरीर 13 खण्डों में बँटा होता है। यह अधिक सक्रिय होने के कारण तेजी से शहतूत की पत्तियों को खाता है। शरीर के दोनों ओर 8 जोड़ी श्वासरन्ध्र (spiracles) होते हैं। शहतूत की पत्तियों को खाकर यह तेजी से बड़ा होता है और चार बार त्वक्पतन या निर्मोचन करके 30-35 दिन में 7-8 सेमी लम्बा हो जाती है। परिपक्व इल्ली पत्ती खाना बन्द कर देती है। अब इसमें एक जोड़ी लार ग्रन्थियाँ बन जाती हैं जिनसे निकला लसदार पदार्थ हवा में सूखकर रेशम (silk) के रूप में परिवर्तित हो जाता है।

प्यूपा तथा उसका कोठून (Pupa and its Cocoon) – इल्ली जब विश्रामावस्था में आ जाती है तो उसके सिर की दोनों लार ग्रन्थियों (salivary glands) से विकसित रेशम ग्रन्थियों से स्रावित एक प्रकार की चिपचिपा पदार्थ लैबियम (labium) के सूक्ष्म रन्ध्रों द्वारा निकलता जाता है। यह पदार्थ वायु के सम्पर्क में आकर पाँच अति महीन सूत्रों के रूप में सूखता जाता है। इसी समय एक गोंद के समान पदार्थ सेरिसिन (sericin) जो दो अन्य ग्रन्थियों से आता है, इन सूत्रों को आपस में चिपकाकर एक ठोस तन्तु के रूप में बदल जाता है।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 9 Strategies for Enhancement in Food Production img-3

इस समय जब ठोस सूत्र का उत्पादन हो रहा होता है तो इल्ली (कैटरपिलर) प्रकाश से हटकर अँधेरे की ओर जाकर अपने सिर को इस तरह घुमाती है कि रेशम तन्तु शरीर पर लिपटता जाता है और तीन-चार दिनों बाद रेशम के महीन तन्तुओं से बना कोकून (cocoon) इल्ली को अपने अन्दर पूर्णतः बन्द कर लेता है। एक कोकून पर लगभग 1000-1500 मीटर लम्बा रेशम का तन्तु होता है। कोकून के अन्दर विश्रामावस्था में इल्ली भूरे रंग के प्यूपा (pupa) में बदल जाती है।

प्यूपा के शरीर से उदर की टाँगें लुप्त हो जाती हैं, वक्ष पर दो जोड़ा पंख बनते हैं तथा शरीर अब कीट की भाँति हो जाता है। यह शिशु कीट ही कोकून को तोड़कर बाहर निकलता है जो रेशम कीट या रेशम शलभ (moth) कहलाता है। एक रेशम कीट का जीवन चक्र लगभग 56 दिनों में पूर्ण होता है। नर व मादा शलभ कोकूनों से निकलने के शीघ्र बाद ही मैथुन करते हैं तथा 3-4 दिनों में मर जाते हैं।

रेशम उद्योग
प्यूपावरण (puparium) के अन्दर जब कीट प्रौढ़ हो जाता है तो वह अपनी क्षारीय लार से कोकून का एक सिरा गला देता है और इसे तोड़कर बाहर निकल आता है। अब यह अपना स्वतन्त्र जीवन व्यतीत करता है। ऐसा होने से, चूंकि कोकून कट-फट जाता है और उसके सूत्र टूट जाते हैं तो वह रेशम के धागे प्राप्त करने अर्थात् रेशम उद्योग के लिए बेकार हो जाता है। इसलिए पूर्ण रूप से कीट के बनने तथा उसके निकलने के पूर्व ही रेशम उद्योग के लिए कोकून एकत्र कर लिये जाते हैं।

एकत्र किये गये कोकून जिनके अन्दर कीट होता है, उबलते हुए पानी में डाल दिये जाते हैं ताकि उनके अन्दर उपस्थित कीट मर जाये और कोकूनों से महीन तन्तु बिना कटे-फटे उतार लिया जाये।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 9 Strategies for Enhancement in Food Production img-4
रेशम का तन्तु जो कोकून के ऊपर पाया जाता है वह अत्यधिक महीन होता है अतः रेशम बनाने के लिए 6-6 या 8-8 तन्तुओं को ऐंठकर धागे बनाये जाते हैं जिनसे रेशम का कपड़ा तैयार किया जाता है। 454 ग्राम रेशम लगभग 25000 (पच्चीस हजार) कोकूनों से प्राप्त होता है।

प्रश्न 2.
श्रम विभाजन के संदर्भ में मधुमक्खी के विभिन्न प्रारूपों का उल्लेख कीजिए तथा इनके कार्यों का वर्णन कीजिए। (2013)
उत्तर
मधुमक्खी की कॉलोनी बहुत ही सुव्यवस्थित बस्ती होती है। इसके हजारों सदस्य एक ही परिवार के होते हैं। बहुरूपी सदस्य तीन प्रकार के होते हैं –

  1. केवल एक बड़ी-सी रानी मक्खी (queen),
  2. लगभग 100 नर मक्खियाँ या ड्रोन्स (drones) तथा
  3. हजारों (60 हजार तक) छोटी श्रमिक मक्खियों (workers)।

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रानी मक्खी (The Queen) – यह कॉलोनी की सर्वश्रेष्ठ सदस्य होती है, क्योंकि कॉलोनी का मूल अस्तित्व ही इसी के संदर्भ में होता है। यह सामान्यतः लगभग पाँच वर्ष तक जीवित रहती है और अण्डे देने के अतिरिक्त कोई अन्य कार्य नहीं करती। इसीलिये इसमें बहुत बड़े अण्डाशय (ovaries) होते हैं। अण्डाशयों के कारण उदर भाग बहुत बड़ा होता है। अत: इसका शरीर एक श्रमिक मक्खी से लगभग पाँच गुना बेड़ा (15 से 20 मिमी लम्बी) और तीन गुना भारी होता है। इसके अन्य अंग-पंख, मुखांग, मस्तिष्क, डंक आदि–कम विकसित होते हैं। लार एवं मोम ग्रंथियाँ नहीं होतीं। इस प्रकार, यह न तो उड़ सकती है और न मधु या मोम बना सकती है। पोषण के लिये इसे पूर्णरूपेण श्रमिक मक्खियों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसका डंक कम विकसित होते हुये भी क्रियाशील होता है और इसे यह सुरक्षा (defense) के काम में ला सकती है, परन्तु इसका प्रमुख उपयोग यह अण्डारोपण (oviposition) में करती है। अपने जीवनकाल में यह लगभग पन्द्रह लाख अण्डे देती है। एक दिन में सामान्यत: यह एक से तीन हजार अण्डे देती है, परन्तु अण्डारोपण केवल जननकाल (हमारे देश में शरद ऋतु एवं बसन्त) में होता है।

नर मक्खियाँ या झोन्स (Drones) – छत्ते की लगभग 100 नर मक्खियाँ रानी से काफी छोटी (7 से 15 मिमी लम्बी) परन्तु हृष्ट-पुष्ट होती हैं। इनमें उदर भाग कुछ चौड़ा, पाद लम्बे तथा मस्तिष्क, पंख और नेत्र बड़े होते हैं। इनमें भी लार एवं मोम ग्रन्थियाँ नहीं होतीं। अत: पोषण के लिये ये भी श्रमिक मक्खियों पर निर्भर करती हैं। इनमें डंक भी नहीं होता। अतः ये अपनी सुरक्षा भी नहीं कर सकतीं। इनका एकमात्र कार्य रानी का निषेचन करना होता है। अतः जननकाल में श्रमिक मक्खियाँ इनका उपयुक्त पोषण करती हैं और ये प्राय: छत्ते के बाहर उन्मुक्त उड़-उड़ कर जननकाल में उत्पन्न हुई युवा रानी मक्खियों से सम्भोग करती रहती हैं। जननकाल के बाद, ग्रीष्म ऋतु में, श्रमिक मक्खियाँ नर मक्खियों का तिरस्कार करने लगती हैं और अन्त में गरमी से इन्हें मर जाने के लिये छत्ते से बाहर खदेड़ देती हैं।

श्रमिक मक्खियाँ (Worker Bees) – ये नर मक्खियों से भी छोटी (5 से 10 मिमी लम्बी), परन्तु अपेक्षाकृत अधिक हृष्ट-पुष्ट एवं कुछ गहरे रंग की होती हैं। पंख और मुखांग बहुत मजबूत होते हैं। पूर्ण शरीर पर घने, रोम-सदृश शूक (bristles) होते हैं। दूसरे से पाँचवें उदर खण्डों के अधर तल पर एक-एक जोड़ी जेबनुमा (pocket-like) मोम ग्रन्थियाँ (wax glands) होती हैं। इन ग्रन्थियों द्वारा स्रावित मोम को श्रमिक मक्खियाँ अपने मैन्डिबल्स द्वारा खूब चबा-चबाकर इससे नये कोष्ठक बनाती हैं। इन मक्खियों के पाद फूल से पराग (pollens) एकत्रित करने के लिये उपयोजित होते हैं। सभी पादों पर कड़े शूकों के पराग ब्रुश (pollen brushes)” तथा तीसरी जोड़ी के (मेटाथोरैक्सी) पादों पर एक-एक “पराग डलियाँ (pollen baskets) होती हैं। जब ये मक्खियों फूलों का रस चूसने जाती हैं। तो इनके मुखांगों एवं शूकों से अनेक पराग कण चिपक जाते हैं। पराग ब्रुशों द्वारा शरीर के विभिन्न भागों से छुड़ा-छुड़ाकर पराग कणों को पराग डलियों में इकट्ठा किया जाता है।
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अत्यधिक सक्रिय जीवन होने के कारण श्रमिक मक्खियाँ केवल दो से चार महीनों तक ही जीवित रहती हैं। प्रत्येक मक्खी वयस्क बनने के साथ-साथ पहले ही दिन से अथक परिश्रम में जुट जाती है। अत: इनकी कोई बाल्यावस्था नहीं होती। आयु के साथ-साथ इसके कार्य बदलते रहते हैं। तदनुसार प्रत्येक छत्ते की श्रमिक मक्खियों को निम्नलिखित तीन प्रमुख कालवर्गों (age groups) में बाँटा जा सकता है।
1. अपमार्जक या सफाई मक्खियाँ (Scavenger or Sanitary Bees) – वयस्क होते ही पहले तीन दिन प्रत्येक श्रमिक मक्खी रिक्त कोष्ठकों की सफाई करती है।

2. उपचारिका या आया मक्खियाँ (Nurse or House Bees) – चौथे से लगभग पन्द्रहवें दिन तक प्रत्येक श्रमिक मक्खी छत्ते के रख-रखाव एवं शिशुओं के पालन-पोषण से सम्बन्धित विभिन्न कार्य निम्नलिखित क्रम में करती है।

  1. चौथे से छठे दिन तक यह, “उपमाता या धाय (foster mother)” की भाँति, बड़े शिशुओं को मधु एवं पराग का मिश्रण खिलाती है। कभी-कभी यह छत्ते के आस-पास के वातावरण का जायजा लेने हेतु इसके चारों ओर उड़ती है।
  2. सातवें दिन इसकी मैक्सिलरी ग्रन्थियाँ (maxillary glands) सक्रिय हो जाती हैं। इन ग्रंथियों से एक “शाही जैली (royal jelly)’ का स्रावण होने लगता है। अतः अब श्रमिक मक्खी रानी, युवा शिशुओं तथा उन बड़े शिशुओं को जिनका विकास भावी रानियों में होना होता है, शाही जैली खिलाने का काम करने लगती हैं।
  3. लगभग बारहवें दिन की श्रमिक मक्खी में मोम ग्रन्थियाँ सक्रिय हो जाती हैं। अतः अब मक्खी छत्ते की मरम्मत और नये कोष्ठकों के निर्माण का कार्य करने लगती है। मोम ग्रन्थियों से मोम की पपड़ियाँ-सी स्रावित होती हैं। इन्हें मक्खी अपने बिचले (दूसरी जोड़ी के) पादों द्वारा खुरचकर मैन्डिबल्स द्वारा चबाती है और लार में सान-सानकर उपयोग में लाती है। पुराने कोष्ठकों की दीवारों की टूट-फूट एवं दरारों को भरने हेतु ये मक्खियाँ प्रोपोलिस (propolis) नामक एक गोंद-सदृश पदार्थ भी बनाती है। यह पदार्थ भोजन-संग्रहकर्ता मक्खियों द्वारा पौधों से एकत्रित राल (resin) से बनाया जाता है। बारहवें से लगभग पंद्रहवें दिन तक तीन-चार दिन के इस जीवनकाल में श्रमिक मक्खियाँ, छत्ते की मरम्मत एवं पुनर्निर्माण के अतिरिक्त, अन्य निम्नलिखित कर्तव्य (duties) भी साथ-साथ निभाती रहती हैं।

(a) प्रहरी मक्खियाँ (Sentinel Bees) – इस कर्त्तव्य में श्रमिक मक्खियाँ छत्ते के प्रवेश द्वार पर पहरा देती हैं।
(b) सैनिक मक्खियाँ (Soldier Bees) – इस कर्तव्य में ये घुसपैठियों से छत्ते की सुरक्षा करती हैं। यदि किसी दूसरे परिवार अर्थात् दूसरे छत्ते की मधुमक्खी भी आ जाती है तो सैनिक मक्खियाँ इसे डंकों द्वारा मारकर छत्ते से बाहर फेंक देती हैं। इसके अतिरिक्त ये मक्खियाँ भोजन-संग्रहकर्ता मक्खियों द्वारा लाये गये पुष्परस (nectar) की जॉच भी करती हैं।
(c) रानी की अंगरक्षक मक्खियाँ (Retinue of Queen) – इस कर्त्तव्य में लगभग पचास मक्खियाँ हर समय रानी मक्खी को घेरे रहती हैं; इसके शरीर की सफाई और सुरक्षा करती हैं, इसके मल को छत्ते से बाहर निकालती हैं, समय-समय पर इसे शाही जैली खिलाती हैं तथा इसके द्वारा दिये गये अण्डों को पृथक् कोष्ठकों में पहुँचाती हैं।
(d) संवाती मक्खियाँ (Fanning Bees) – इस कर्त्तव्य में ये मक्खियाँ अण्डों एवं नन्हें शिशुओं को गरम रखने तथा पंखों को बार-बार फड़फड़ाकर छत्ते की दूषित वायु को बाहर निकालने का काम करती हैं।

3. भोजन-खोजकर्ता (Scout Bees) एवं भोजन-संग्रहकर्ता मक्खियाँ (Foraging or Field Bees) – लगभग पंद्रह दिन की आयु के बाद, प्रत्येक श्रमिक मक्खी अपने जीवन के सबसे कठिन काम में जुट जाती है। भोजन के नये स्रोत की खोज में, या पहले से ज्ञात स्रोतों से जल, पुष्परस एवं पराग एकत्रित करके लाने हेतु यह बार-बार छत्ते से दूर-दूर उड़कर वापस आती है। इस प्रकार यह पुष्परस के लिये छत्ते एवं स्रोत के बीच प्रतिदिन सात से पंद्रह चक्कर लगाती है। स्पष्ट है कि जल भी मधुमक्खी के लिये बहुत आवश्यक होता है। सामान्यतः एक कॉलोनी में प्रतिदिन एक-दो लीटर जल की आवश्यकता होती है। यदि जल की कमी हो जाये तो श्रमिक मक्खियों एक-दो दिन से अधिक जीवित नहीं रह सकतीं।

कुछ वैज्ञानिकों की धारणा है कि उपरोक्त श्रम विभाजन एवं विविध कर्तव्यों के अतिरिक्त, प्रत्येक छत्ते में तीन-चार सबसे पुरानी या वृद्ध श्रमिक मक्खियों को एक नियन्त्रक (controller) दल या नियन्त्रक परिषद (board of directors) होती है जो अन्य सभी मक्खियों की क्रियाओं को नियन्त्रित रखती है।

प्रश्न 3.
मधुमक्खी पालन से आप क्या समझते हैं? मधुमक्खी के जीवन चक्र का सचित्र वर्णन कीजिए। मधुमक्खी पालन द्वारा बनाये हुए पदार्थों के नाम लिखिए। (2014)
या
भारत में पाई जाने वाली किन्हीं दो प्रजाति की शहद की मक्खियों के जन्तु वैज्ञानिक नाम लिखिए। इनमें से किसी एक की पालन विधि का वर्णन कीजिए। (2014)
या
टिप्पणी लिखिए-शहद (मधु) (2015)
या
“मधुवाटिकाएँ क्या हैं? मधुमक्खी के जीवन चक्र का सचित्र वर्णन कीजिए। इनके द्वारा उत्पादित पदार्थों का आर्थिक महत्त्व बताइए। (2017)
उत्तर
मधुमक्खी पालन मधु (शहद) एवं मोम प्राप्त करने हेतु व्यावसायिक स्तर पर मधुमक्खियों को पालना, मधुमक्खी पालन कहलाता है। इसके लिए बड़े-बड़े मधुमक्खी के फॉर्म स्थापित किये जाते हैं, जिन्हें मधुवाटिकाएँ कहते हैं। इनमें मधुमक्खी पालन वैज्ञानिक विधियों से किया जाता है। भारत में पाई जाने वाली दो प्रजाति की शहद की मक्खियों के नाम इस प्रकार हैं-

  1. एपिस इण्डिका;
  2. एपिस मेलीफेरो।

मधुमक्खी का जीवन चक्र
एक नए छत्ते की सारी मधुमक्खियाँ एक ही रानी मक्खी की सन्तानें होती हैं। रानी मक्खी के अण्डे दो प्रकार के होते हैं।

  1. निषेचित द्विगुणित अण्डे (Fertilized Diploid Eggs) – इनमें गुणसूत्रों की संख्या 32 होती है। इनके भ्रूणीय परिवर्धन से सपुंसक रानी मक्खियाँ या नपुंसक श्रमिक मक्खियाँ बनती हैं। सम्भवतः रानी मक्खी के शरीर से स्रावित एक पदार्थ, ऐल्फा कीटोग्लूटेरिक अम्ल के प्रभाव से श्रमिक मक्खियाँ नपुंसक हो जाती हैं।
  2. अनिषेचित एकगुणित अण्डे (Unfertilized Haploid Eggs) – इनमें गुणसूत्रों की संख्या 16 होती है। इनके भ्रूणीय परिवर्धन से नर मक्खियाँ अर्थात् ड्रोन्स (drones) बनते हैं।

छत्ते में तीन प्रकार की मक्खियों के विकास हेतु भिन्न प्रकार के कोष्ठक होते हैं-श्रमिकों के लिए छोटे षट्भुजीय, ड्रोन्स के लिए मध्यम माप के षट्भुजीय तथा रानियों के लिए बड़े त्रिभुजाकार से। भ्रूणीय परिवर्धन का समय भी तीनों प्रकार की मक्खियों के लिए भिन्न होता है-श्रमिक के लिए 21, ड्रोन के लिए 14 तथा रानी के लिए 16 दिन। प्रत्येक अण्डे से लगभग तीन दिन बाद एक छोटा-सा, सुंडी जैसा शिशु या लार्वा निकलता है जिसे ग्रब कहते हैं। दो दिन तक प्रत्येक लार्वा को आया मक्खियाँ शाही जैली खिलाती हैं। इसके बाद, रानियों की लार्वी का पोषण तो शाही जैली से ही किया जाता है, परन्तु ड्रोन्स एवं श्रमिक मक्खियों की लार्वी को केवल मधु एवं पराग दिया जाता है।

सक्रिय पोषण के फलस्वरूप, प्रत्येक लार्वा में तीव्र वृद्धि होती है। इस वृद्धिकाल में लार्वा में पाँच बार त्वपतन (moulting or ecdysis) होता है। पाँचवें त्वक्पतन के बाद, प्रत्येक लार्वा के कोष्ठक को श्रमिक मक्खियाँ मोम की एक टोपी से बन्द कर देती हैं। अपने बन्द कोष्ठक में प्रत्येक लार्वा अपने चारों ओर रेशमी धागे का एक कोकून (cocoon) बना लेता है और कोकून के भीतर, कायान्तरण द्वारा, प्यूपा (pupa) में बदल जाता है। कायान्तरण द्वारा प्रत्येक प्यूपा शीघ्र ही एक युवा मक्खी (imago) में बदल जाता है जो अपने मैन्डीबल्स की सहायता से कोकून तथा मोम की टोपी को काटकर बाहर निकल आती है।
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मधुमक्खी पालन द्वारा बनाए गए पदार्थ
मधुमक्खी पालन द्वारा निम्नलिखित पदार्थ बनाए जाते हैं।
1. मधू (Honey) – मधुमक्खियों के छत्तों से हमें प्रतिवर्ष लाखों किलोग्राम मधु और मोम मिलता है। एक 150 ग्राम भार के छत्ते में मधु के भण्डारण हेतु लगभग 9100 मोम के कोष्ठक होते हैं। जिनमें चार किलोग्राम तक मधु भरा हो सकता है। तद्नुसार एक बड़े छत्ते से एक ऋतु में 150 किलोग्राम तक मधु मिल जाता है। एक किलोग्राम मधु बनाने के लिए एक भोजन-संग्रहकर्ता मक्खी को एक से डेढ़ लाख बार पुष्परस लाना पड़ता है। यदि फूल छत्ते से औसतन 1500 मीटर दूर हों, अर्थात् एक बार पुष्परस लाने हेतु भोजन-संग्रहकर्ता को तीन किलोमीटर उड़ना पड़े तो एक किलोग्राम मधु बनाने के लिए इसे 3,60,000 से 4,50,000 किलोमीटर, अर्थात् पृथ्वी के चारों ओर 8 से 11 बार चक्कर लगाने के बराबर उड़ना पड़ेगा।

मधु मनुष्य के लिए एक प्राकृतिक शक्तिवर्धक (tonic) एवं रोगाणुरोधक (antiseptic), अम्लीय पदार्थ होता है। इसमें औषधीय महत्त्व के लगभग 80 प्रकार के पदार्थ होते हैं। प्रमुख पदार्थ होते हैं ग्लूकोस एवं फ्रक्टोस (glucose and fructose), शर्कराएँ, डायस्टेज, इन्वर्टेज, कैटेलेज, परऑक्सीडेज, लाइपेज (diastase, invertase, catalase, peroxidase, lipase) आदि एन्जाइम, कई लाभदायक लवण, कार्बनिक अम्ल (मैलिक, सिट्रिक, टार्टरिक, ऑक्जेलिक-malic, citric, tartaric, Oxalic acid) तथा विटामिन (vitamins)। मधु को घाव पर लगा देने से घाव में रोगाणुओं का संक्रमण (infection) नहीं होता और घाव के शीघ्र ठीक होने में सहायता मिलती है। अतः फोड़ा-फुन्सी, नासूर आदि के इलाज में इसका उपयोग होता है। आँखों की सफाई के लिए इसका काजल की भाँति उपयोग करते हैं। अनेक आयुर्वेदिक दवाइयाँ मधु के साथ खाई जाती हैं। प्राचीनकाल में मृत मानव शरीर को परिरक्षित रखने हेतु इसे शहद में रखा जाता था।

2. मधुमक्खी का मोम (Beeswax) – मधुमक्खी का पूरा छत्ता मोम का बना होता है। मोम प्रायः सफेद, कभी-कभी हल्का पीला-सा होता है। विविध प्रकार के सौन्दर्य प्रसाधनों (cosmetics) को तैयार करने में आधार पदार्थ (base material) के रूप में इसका व्यापक उपयोग होता है। कई प्रकार के औषधीय मरहम एवं तेल भी इससे बनाए जाते हैं। मूर्तियाँ और मॉडल, पेन्ट (paints), जूतों की पॉलिश, संगमरमर को जोड़ने वाला सरेस (glue), काँच पर लिखने वाली पेन्सिलों आदि को बनाने में भी इसका उपयोग होता है।

3. मधुमक्खी का विष (Bee Venom or Apitoxin) – यह एक तेज अम्ल (acid) होता है जिसमें महत्त्वपूर्ण प्रतिजैविक औषधि (antibiotic drug) के गुण होते हैं। रुधिर में पहुँचने पर यह विष शरीर के सुरक्षा तन्त्र (immunity) को सुदृढ़ बनाता है। अतः अन्य विषैले जन्तुओं के दंश, रुधिरक्षीणता (anaemia), गठिया (rheumatism) आदि कई रोगों, तन्त्रिका तन्त्र की गड़बड़ियों, कई प्रकार के नेत्र एवं चर्म रोगों, उच्च रुधिरचाप आदि के उपचार में इस विष का प्रयोग किया जाता है।

मधुमक्खी के छत्ते के सीमेन्ट पदार्थ (propolis) तथा पराग का भी औषधीय उपयोग किया जाता रहा है। स्वयं मधुमक्खी के शरीर से बनाई गई एक औषधि डिफ्थीरिया (diphtheria) रोग के उपचार के लिए काम में लाई जाती है।

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