UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi सफाई हेतु सम्बन्धित अधिकारी को प्रार्थना-पत्र

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi सफाई हेतु सम्बन्धित अधिकारी को प्रार्थना-पत्र are part of UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi सफाई हेतु सम्बन्धित अधिकारी को प्रार्थना-पत्र.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Name सफाई हेतु सम्बन्धित अधिकारी को प्रार्थना-पत्र
Number of Questions 14
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi सफाई हेतु सम्बन्धित अधिकारी को प्रार्थना-पत्र

सफाई हेतु सम्बन्धित अधिकारी को प्रार्थना-पत्र

प्रश्न 1.
अपने क्षेत्र में मच्छरों के प्रकोप का वर्णन करते हुए उचित कार्यवाही के लिए स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखिए।
या
अपने क्षेत्र में मलेरिया फैलने की सम्भावना को देखते हुए स्वास्थ्य अधिकारी को एक पत्र लिखिए।
या
अपने मुहल्ले में वर्षा के कारण उत्पन्न हुई जल-भराव की समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट कराने के लिए नगरपालिका अधिकारी/जिलाधिकारी को पत्र लिखिए। [2011, 12]
या
नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी को अपने मुहल्ले में विद्यमान गन्दगी के विषय में एक पत्र लिखिए। [2012]
या
नगर की स्वच्छता हेतु नगरपालिका अध्यक्ष को आवेदन देते हुए उनका ध्यान गन्दगी से होने वाली बीमारियों की ओर आकृष्ट कीजिए। [2015]
या
ग्राम प्रधान की ओर से अपने जनपद के जिलाधिकारी को एक पत्र लिखिए, जिसमें गाँव की सफाई व्यवस्था हेतु अनुरोध किया गया हो। [2013, 15, 18]
या
अपने ग्राम प्रधान को एक पत्र लिखकर गाँव की सफाई हेतु अनुरोध कीजिए। [2013]
या
अपने नगर में बाढ़ एवं घनघोर वर्षा के बाद गन्दगी के कारण फैलने वाले संक्रामक रोगों की आशंका को दृष्टिगत करते हुए रोकथाम के उपायों हेतु जिलाधिकारी को एक पत्र लिखिए। [2014,16]
या
अपने क्षेत्र में प्रदूषण से उत्पन्न स्थिति का वर्णन करते हुए किसी दैनिक समाचार-पत्र के सम्पादक को एक पत्र लिखिए। [2017]
या
अपने मुहल्ले में फैली गन्दगी की सफाई कराने हेतु नगरपालिका अध्यक्ष को एक शिकायती पत्र लिखिए। (2017)
या
बरसात में बढ़ रहे संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए अपने नगर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी को पत्र लिखिए। (2017)
उत्तर
सेवा में,
स्वास्थ्य अधिकारी,
…………….. नगर निगम।
………………… नगर।

विषय-मच्छरों का बढ़ता हुआ प्रकोप

महोदय,
मैं आपका ध्यान बढ़ते हुए मच्छरों के प्रकोप की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। मैं सुभाष नगर क्षेत्र का निवासी हूँ। पूरे सुभाष नगर क्षेत्र में आजकल मच्छरों का भयंकर आतंक छाया हुआ है। दिन हो यो रात, मच्छरों के झुंड सदा घूमते नज़र आ जाते हैं। रात को तो वे सोना दूभर कर देते हैं। जब सुबह उठते हैं। तो बच्चों के मुंह लाल-लाल दानों से भरे होते हैं। मच्छरों के कारण घर-घर में मलेरिया फैला हुआ है। प्रायः सभी घरों में कोई-न-कोई मलेरिया का रोगी मिल जाएगा। इन मच्छरों के कारण स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ा है।

हमारे क्षेत्र में मच्छरों की अधिकता का बड़ा कारण है–पानी के जमे हुए तालाब और गली-मुहल्लों में फैली चौड़ी-चौड़ी खुली नालियाँ। उन कच्ची नालियों को व्यवस्थित करने की कोई व्यवस्था नहीं हुई है। मुहल्ले के जमादार सफाई की ओर ध्यान नहीं देते, इसलिए नालियों में सदा मल जमा पड़ा रहता है। लोग अपने घरों के गन्दे जल को बाहर यूं ही बिखरा देते हैं, जिससे मार्गों के गड्ढे भर जाते हैं। हमने कई बार निवेदन किया है कि हमारे क्षेत्र के तालाब को भरवा दिया जाए, जिससे मच्छरों का मुख्य अड्डा समाप्त हो जाए, किन्तु इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया गया।

इस बार अत्यधिक वर्षा के कारण जगह-जगह जल का जमाव हो गया है। सभी जगह कीचड़, मल और बदबूदार जल का प्रकोप है। अत: मैं पुनः सुभाष नगर के निवासियों की ओर से आपसे अनुरोध करता हूँ कि मच्छरों को समाप्त करने के लिए सार्वजनिक रूप से क्षेत्र में मच्छरनाशक दवाई छिड़कवाने की व्यवस्था की जाए। मलेरिया से बचने के लिए कुनीन बाँटने तथा पूरे क्षेत्र की सफाई के व्यापक प्रबन्ध किये जाएँ। आशा है आप शीघ्र कार्यवाही करेंगे।
धन्यवाद सहित।

भवदीय
क ख ग
मंत्री, मुहल्ला सुधार समिति
……………………. सुभाष नगर।

दिनांक : 19 जुलाई, 2017

प्रश्न 2.
दिल्ली नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी को एक पत्र लिखकर उनसे अपने मुहल्ले की सफाई कराने का अनुरोध कीजिए। [2013, 14]
या
अपने क्षेत्र की गन्दगी की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए स्वास्थ्य अधिकारी/ उपजिलाधिकारी को एक पत्र लिखिए। [2012, 13]
या
अपने गली-मुहल्ले की नालियों की समुचित सफाई के लिए नगरपालिका के अध्यक्ष को एक पत्र लिखिए। [2011, 13, 18]
या
नगर की सफाई हेतु नगरपालिका को एक पत्र लिखिए। [2015]
या
अपने घर के आस-पास फैली गन्दगी के कारण संक्रामक रोग फैलने की आशा व्यक्त करते हुए उप-जिलाधिकारी को सम्बोधित कर एक शिकायती-पत्र लिखिए। [2018]
उत्तर
सेवा में,
स्वास्थ्य अधिकारी,
दिल्ली नगर निगम, दिल्ली।

विषय-मुहल्ले की सफाई कराने हेतु प्रार्थना-पत्र

श्रीमान,
हम आपका ध्यान मुहल्ले की सफाई सम्बन्धी दुरवस्था की ओर खींचना चाहते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे मुहल्ले की सफाई हेतु नगर निगम का कोई सफाई-कर्मचारी गत दस दिनों से काम पर नहीं आ रहा है। घरों की सफाई करने वाले कर्मचारियों ने भी मुहल्ले में स्थान-स्थान पर गन्दगी और कूड़े-कर्कट के ढेर लगा दिये हैं। इसका कारण सम्भवत: यह भी है कि आसपास कूड़ा-करकट तथा गन्दगी डालने के लिए कोई निश्चित स्थान नहीं है।

आज स्थिति यह है कि मुहल्ले का वातावरण अत्यन्त दूषित तथा दुर्गन्धमय हो गया है। मुहल्ले से गुजरते हुए नाक बन्द कर लेनी पड़ती है। चारों ओर मक्खियों की भिनभिनाहट है। रोगों के कीटाणु प्रतिदिन बढ़ रहे हैं। नालियों की सफाई न होने के कारण मच्छरों का प्रकोप इस सीमा तक बढ़ गया है कि दिन का चैन और रात की नींद हराम हो गयी है।

वर्षा पाँच-सात दिनों में प्रारम्भ होनी सम्भावित है। यथासमय मुहल्ले की सफाई न होने पर मुहल्ले की दुरवस्था का अनुमान लगाना कठिन है। अतः आपसे हम मुहल्ले वालों का निवेदन है कि आप यथाशीघ्र मुहल्ले का निरीक्षण करें तथा सफाई का नियमित प्रबन्ध करवाएँ, अन्यथा मुहल्ला निवासियों के स्वास्थ्य पर उसका कुप्रभाव पड़ने की आशंका है।
आपकी ओर से उचित कार्यवाही के लिए हम प्रतीक्षारत हैं।
दिनांक : 5 जून, 2014

प्रार्थी
………………… नगर
ब्लॉक-डी के निवासी।

प्रश्न 3.
आपके नगर में प्रदूषित पानी पीने से दस्त व हैजे के रोगी बढ़ रहे हैं। नगरपालिका के स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखकर स्थिति से अवगत कराएँ। [2009]
उत्तर
सेवा में,
स्वास्थ्य अधिकारी,
कटनी नगरपालिका,
कटनी।

विषय-प्रदूषित पानी से महामारी की आशंका

महोदय,
पिछले कुछ समय से हमारे क्षेत्र में पीने का शुद्ध पानी नहीं आ रहा है। पानी का स्वाद भी कुछ बदला हुआ-सा है। इस पानी को पीने से लोगों को कई तरह के रोगों का सामना करना पड़ रहा है तथा दस्त व हैजे की आम शिकायत बनी हुई है। पानी को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि इसका रंग कुछ मटमैला-सा है। हमारे क्षेत्र से एक सीवरेज पाइप भी गुज़रती है। इस बात की सम्भावना है कि पानी की पाइप में सीवरेज का गन्दा पानी मिल रहा हो। लोगों को पीने के पानी के लिए इसी पाइप लाइन का सहारा लेना पड़ता है। अगर इसी तरह प्रदूषित जल की आपूर्ति होती रही तो किसी महामारी की समस्या खड़ी हो सकती है। बीमारों की निरन्तर बढ़ती संख्या चिन्ता का कारण है। आपसे अनुरोध है कि हमारे क्षेत्र की पानी के पाइप लाइन की जाँच करवाएँ तथा. उसे अति शीघ्र ठीक करवाएँ।।

आशा है, आप हमारी समस्या को गम्भीरता से लेंगे।
धन्यवाद !
दिनांक : 10 जून, 2014

भवदीय
असलम, रहीम, रहमान,
कादिर, मनीष, कल्पना

प्रश्न 4.
अपने क्षेत्र में व्याप्त गन्दगी के कारण उत्पन्न डेंगू व मलेरिया जैसी भयंकर बीमारियों की जानकारी किसी दैनिक पत्र के सम्पादक को देते हुए पत्र लिखिए।
या
स्वास्थ्य विभाग द्वारा आपके क्षेत्र की गन्दगी की ओर कोई ध्यान न दिये जाने पर किसी दैनिक पत्र के सम्पादक को पत्र लिखिए।
उत्तर

राकेश शुक्ला
प्रधान
‘मेरा मेरठ : स्वच्छ मेरठ
जागृति विहार, मेरठ
दिनांक : 19 सितम्बर, 2017

श्रीमान सम्पादक महोदय,
दैनिक जागरण,
मोहकमपुर, दिल्ली रोड
मेरठ-250 002

विषय-क्षेत्र की गन्दगी से उत्पन्न समस्याओं तथा स्वास्थ्य विभाग की उपेक्षा के सम्बन्ध में

महोदय,
आपके लोकप्रिय समाचार-पत्र के माध्यम से मैं मेरठ प्रशासन तथा उसके वरिष्ठ अधिकारियों का ध्यान मेरठ के नगरीय क्षेत्र मलियाना, कासमपुर, तारापुरी, ब्रह्मपुरी में व्याप्त गन्दगी तथा इसके दुष्प्रभाव की ओर आकृष्ट करना चाहता हूँ। आपसे अनुरोध है कि मेरे इस पत्र को ‘जनवाणी’ शीर्षक स्तम्भ में प्रकाशित करने का कष्ट करें। ये सभी ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ मध्यम तथा निम्न आय वर्ग एवं गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोग रहते हैं। ये चारों ही क्षेत्र प्रत्येक स्तर पर उपेक्षित रहे हैं। इस बार वर्षा की अधिकता के कारण इन क्षेत्रों में स्थान-स्थान पर पानी भर गया है तथा इनके पास बहने वाला नाला भी पानी से भर गया है। पानी के इस भराव के कारण चारों ओर गन्दगी तथा दुर्गन्ध व्याप्त हो गयी है तथा मच्छरों के पनपने के कारण मलेरिया और डेंगू फैल रहा है। आये दिन इन रोगों से ग्रस्त रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। खेद का विषय है कि अधिकारियों का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराये जाने पर भी उनकी ओर से इस समस्या के समाधान के लिए गम्भीरतापूर्वक कोई प्रयास नहीं किये गये। प्रशासन की इस उपेक्षा के कारण इन क्षेत्रों में रहने वाले निवासियों को अपने स्वास्थ्य को लेकर चिन्तित होना स्वाभाविक है।

अपनी संस्था की ओर से मेरा नगर के उच्च पदाधिकारियों तथा नगर निगम के वरिष्ठ अधिकारियों से आग्रह है कि इससे पूर्व कि स्थिति अत्यन्त भयावह होकर अनियन्त्रित हो जाए, इस समस्या को अत्यन्त गम्भीरता से लेते हुए तत्काल इसके समाधान के लिए आवश्यक कदम उठाये जाएँ।
सधन्यवाद!
दिनांक : ……………..

भवदीय
राकेश शुक्ला

प्रश्न 5.
शुल्क मुक्ति हेतु अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को एक आवेदन-पत्र लिखिए। (2015)
उत्तर
सेवा में,
श्रीयुत् प्रधानाचार्य,
जवाहर पब्लिक स्कूल,
जनकपुरी, दिल्ली-18
मान्यवर महोदय,
सविनय निवेदन यह है कि मैं आपके विद्यालय की कक्षा 12 (B) का विद्यार्थी हूँ। मेरे पिताजी अपने छोटे से व्यवसाय द्वारा बड़ी कठिनाई से परिवार का पालन-पोषण करते हैं। कमरतोड़ महँगाई के कारण काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। घर में प्राय: आवश्यक वस्तुओं का अभाव रहता है। मेरे 4 भाई-बहन विभिन्न स्कूलों में पढ़ रहे हैं, उनकी पढ़ाई-लिखाई आदि के खर्चे का मानसिक बोझ पिताजी के सिर पर सदा रहता है।

मैं अपनी कक्षा का परिश्रमी छात्र हूँ और कक्षा में सदा प्रथम स्थान प्राप्त करता रहा हूँ। खेलकूद में भी मेरी अच्छी रुचि है। मैं सीनयर ग्रुप फुटबॉल का कप्तान भी हूँ।
अतः आपसे निवेदन है कि मुझे विद्यालय शुल्क से पूर्ण मुक्ति प्रदान करें, जिससे मैं अध्ययनरत रहकर अपने भविष्य को सँवार सकें। मेरे अभिभावक आपके अत्यन्त आभारी रहेंगे।

आपका आज्ञाकारी शिष्य
सतीश शर्मा
कक्षा-12 (B)

दिनांक : …………………….

प्रश्न 6.
बिजली-समस्या के निराकरण हेतु अपने जिले के बिजली विभाग को एक शिकायती पत्र लिखिए। [2015]
उत्तर
सेवा में,
बिजली विभाग,
मेरठ।

विषय-बिजली की अनियमित आपूर्ति

मान्यवर,
हम ‘जैन नगर कालोनी के निवासी आपका ध्यान बिजली समस्या की ओर आकर्षित कराना चाहते हैं। पानी तथा अन्य कार्यों के लिए बिजली की सर्वाधिक आवश्यकता ग्रीष्म काल में ही होती है और हम सब अप्रैल के प्रारम्भ से ही अनुभव कर रहे हैं कि भरपूर गर्मी प्रारम्भ होने से पूर्व ही बिजली की आपूर्ति कम हो गई है। बिजली जीवन की मूलभूत आवश्यकता है। कोई भी लोकप्रिय सरकार इसकी उपेक्षा नहीं करती।

हमारी कालोनी में बिजली आपूर्ति प्रारम्भ और बन्द होने का कोई समय भी निर्धारित नहीं है। हमारी कालोनी से एक प्रतिनिधि मण्डल इस सम्बन्ध में बिजली आपूर्ति अधिकारी से भी मिला था और उन्होंने एक सप्ताह में बिजली आपूर्ति बढ़ाने का वचन दिया था। खेद है कि आज तीन सप्ताह व्यतीत हो जाने पर भी कोई कार्यवाही इस सम्बन्ध में नहीं हुई है।

इस स्थिति में आपसे हमारा निवेदन है कि कृपया हमारी समस्या की ओर ध्यान दें और इसका शीघ्र समाधान करायें। यदि बिजली-आपूर्ति तुरन्त बढ़ाना सम्भव नहीं हो तो कम से कम उसका समय तो निर्धारित किया जा सकता है।
शीघ्र कार्यवाही की आशा में।

हम हैं आपके जैन नगर निवासी

(1) ……………….
(2) ……………….
(3) ……………….
(4) ……………….

दिनांक : …………..

प्रश्न 7.
किसी समाचार-पत्र के सम्पादक को अपने मुहल्ले में लाउडस्पीकर के कारण पढ़ाई में आने | वाले व्यवधान की ओर अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करते हुए पत्र लिखिए।
[2015]
उत्तर
सेवा में,
सम्पादक महोदय,
दैनिक जागरण, मेरठ।

विषय-परीक्षा के समय लाउडस्पीकर आदि पर रोक

मान्यवर,
निवेदन यह है कि प्रायः सभी विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों की परीक्षाओं का आयोजन मार्च और अप्रैल माह में होता है। विद्यार्थी अपने भविष्य को दाँव पर लगाने के लिए बड़ी लगन वे उत्साह से अध्ययनरत रहते हैं। थोड़ी-सी अशान्ति और शोरगुल से वे अधीर और आतुर हो उठते हैं। परीक्षा की तैयारी के समय वे एकान्त, शान्त व एकाग्रचित रहना चाहते हैं।

देखा गया है कि उक्त दोनों महीनों में वातावरण बड़ा अस्थिर व अशान्त रहता है। विवाह-लग्नों की धूम के कारण लाउडस्पीकर और वाद्य-यन्त्रों का शोर मच जाता है। बैण्ड-बाजों की कर्कश ध्वनि मानो पागल-सा बना देती है। विद्यार्थी अपना सिर थाम लेते हैं। फलस्वरूप झगड़े और फसाद खड़े हो जाते हैं।

इस वर्ष भी मार्च और अप्रैल महीनों में बहुत शादियाँ हैं। अत: प्रशासन को शीर्घ सतर्क और सावधान होकर लाउडस्पीकर और वाद्ययन्त्रों पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए, अन्यथा गत वर्ष की तरह हिंसा की वारदातें पुनर्जीवित हो सकती हैं।

जिला प्रशासन से हमारा अनुरोध है कि परीक्षा की इन अमूल्य घड़ियों में शोरगुल व बैण्ड-बाजों की कर्कश कटु ध्वनि पर प्रतिबन्ध लगा दें और विवाह-लग्न के अवसर पर धीमा संगीत रखने के आदेश जारी किये जाएँ।

मोहन लाल गुप्त
अध्यक्ष,
भारतीय विद्यार्थी परिषद्
मेरठ।

दिनांक : ………….

प्रश्न 8.
छात्रवृत्ति प्राप्त करने हेतु अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को एक आवेदन-पत्र लिखिए। [2016]
उत्तर
सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य,
आदर्श माध्यमिक विद्यालय
सिद्धार्थ नगर, झाँसी।

विषय-छात्रवृत्ति प्राप्त करने के लिए प्रार्थना-पत्र

मान्यवर,
सविनय निवेदन यह है कि मैं बारहवीं कक्षा का छात्र हूँ। मैं सदा विद्यालय में अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण होता रहा हूँ। पिछले कई वर्षों से मैं लगातार प्रथम आ रहा हूँ। इसके अलावा मैं भाषण-प्रतियोगिताओं, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में कई बार विद्यालय के लिए जोनल एवं राष्ट्रीय स्तर पर इनाम जीतकर लाया हूँ। खेल-कूद में भी मेरी गहन रुचि है। मैं स्कूल की कबड्डी टीम का कप्तान भी हूँ। सभी अध्यापक मेरी प्रशंसा करते हैं।

अत्यन्त दु:ख के साथ आपको बताना पड़ रहा है कि पिताजी को एक असाध्य रोग ने आ घेरा है। जिसके कारण घर की आर्थिक दशा डगमगा गई है। पिताजी स्कूल से मेरा नाम कटवाना चाहते हैं। वे मेरा मासिक-शुल्क देने में असमर्थ हैं। मैंने अपनी पाठ्य-पुस्तकें तो जैसे-तैसे खरीद ली हैं, लेकिन शेष व्यय के लिए आपसे नम्र निवेदन है कि मुझे तीन सौ रुपये मासिक की छात्रवृत्ति देने की कृपा करें, ताकि मैं अपनी पढ़ाई सूचारु रूप से चला सकें। यह छात्रवृत्ति आपकी मेरे प्रति विशेष कृपा होगी। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं खूब मेहनत से पढ़ेगा और इस स्कूल का नाम रोशन करूंगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य
हस्ताक्षर

दिनांक :…………………
कक्षा-12
रोल नं०-20

प्रश्न 9.
अपने विद्यालय में कम्प्यूटरों के अभाव की ओर विद्यालय के प्रधानाचार्य का ध्यान आकृष्ट कराते हुए कम्प्यूटर की पूर्ति हेतु उन्हें एक प्रार्थना-पत्र लिखिए। [2016]
उत्तर
सेवा में,
श्रीमान प्रधानाचार्य,
रा०उ०मा० बाल विद्यालय,
बेगमपुल, मेरठ।

विषय-कम्प्यूटर पूर्ति की व्यवस्था हेतु प्रार्थना-पत्र

महोदय,
सविनय निवेदन है कि हम बाहरवीं कक्षा के छात्र यह अनुभव करते हैं कि आज के कम्प्यूटर युग में प्रत्येक व्यक्ति को कम्प्यूटर की जानकारी होनी चाहिए। क्योंकि दिनोंदिन कम्प्यूटर शिक्षा की माँग बढ़ती जा रही है। ऐसे में हमारे उज्ज्वल भविष्य के लिए भी कम्प्यूटर को ज्ञान होना अपरिहार्य है। हालाँकि, विद्यालय में कम्प्यूटर विषय बढ़ाया जाता है और प्रयोगशाला कम्प्यूटर भी उपलब्ध है। लेकिन कम्प्यूटरों की संख्या सीमित होने के कारण हम छात्र निरन्तर अभ्यास नहीं कर पाते हैं। कभी-कभी तो अभ्यास किए बिना दो-दो हफ्ते बीत जाते हैं जिस कारण कक्षा में पढ़ाया गया अध्याय हम भली-भाँति नहीं समझ पाते हैं।

अतः आपसे प्रार्थाना है कि विद्यालय की प्रयोगशाला में कम्प्यूटरों की संख्या को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध करवाने की कृपा करें। हम आपके प्रति कृतज्ञ होंगे। आशा है, आप हमारे अनुरोध को स्वीकार करेंगे।
धन्यवाद!

प्रार्थी
क.ख.ग.
कक्षा-बारह ‘सी’।

दिनांक …………

प्रश्न 10.
पेयजल अधिकारी को पत्र लिखिए, जिसमें अनिवार्य रूप से जल प्राप्त होने की शिकायत की गई हो। (2016)
या
पानी की समस्या का निराकरण के लिए नगरपालिका के अध्यक्ष को एक आवेदन पत्र लिखिए। [2016]
या
अपने नगर में युद्ध पेयजल आपूर्ति कराने हेतु जल स्थान के प्रबन्धक को पत्र लिखिए। [2017]
उत्तर
सेवा में,
श्रीमान निदेशक,
मेरठ जल बोर्ड,
मेरठ।

विषय-पेयजल अधिकारी को जलापूर्ति हेतु प्रार्थना-पत्र

संजय नगर,
पांडव नगर
10 मई, 2016

महोदय,
मैं आपका ध्यान संजय नगर, पांडव नगर, मेरठ में पेयजल की अनियमित जल-आपूर्ति की ओर आकर्षित कराना चाहता हूँ। इस क्षेत्र में प्रात: केवल 35 मिनट ही नलों में पानी आता है। पानी का दबाव बहुत कम होता है, मोटर का प्रयोग करने पर भी ऊपर की मन्जिलों में पानी चढ़ नहीं पाता। सायंकाल भी पेयजल की आपूर्ति अनियमित है। कई बार शाम को दो-दो दिन पानी की आपूर्ति नहीं होती। पानी की इस अनियमित आपूर्ति से क्षेत्र के नागरिकों में रोष है। इससे पूर्व भी अनेक बार स्थानीय अधिकारियों को मैं इस समस्या से अवगत करा चुका हूँ, परन्तु स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।

अतः आपसे प्रार्थना है कि इस क्षेत्र में पेयजल की समुचित व्यवस्था कराने हेतु उचित कदम उठाने की कृपा करें।
मैं और मेरा पूरा क्षेत्र सदैव आपके आभारी रहेंगे।
धन्यवाद!

भवदीय
हस्ताक्षर ……………
संजय नगर, पांडव नगर

प्रश्न 11.
अपने नगर की सार्वजनिक भूमि पर हुए अवैध कब्जे को हटाने के लिए नगरपालिका अध्यक्ष को एक शिकायती पत्र लिखिए। [2016]
उत्तर
सेवा में,
नगरपालिका अध्यक्ष,
मेरठ।

विषय–अवैध कब्जे को हटाना।

मान्यवर,
हम ‘लोहिया नगर कॉलोनी के निवासी आपका ध्यान कॉलोनी और उसके आसपास हो रहे अवैध कब्जों की तरफ आकर्षित कराना चाहते हैं। यहाँ सावर्जनिक भूमि पर कुछ शरारती तत्वों ने कब्जा कर लिया है और वो वहाँ पर गैर-कानूनी कार्यों को बढ़ावा दे रहे हैं। इन गैर-कानूनी कार्यों में जुआ, नशाखोरी, शराब का अवैध व्यापार और कुछ हद तक वैश्यावृत्ति भी शामिल हैं। इन शरारती तत्त्वों और इनके द्वारा किए जा रहे कार्यों के कारण कालोनी की शान्ति और सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न लगने लगा है। आए दिन यहाँ पर लड़ाई-झगड़ा, मारपीट व कॉलोनीवासियों के साथ गाली-गलौज की स्थिति उत्पन्न होती रहती है। इस कारण बच्चों और महिलाओं का घर से निकलना मुश्किल होता जा रहा है। इन शरारती तत्वों को कुछ राजनीतिक संरक्षण मिला होने के कारण हममें से कोई भी इनके खिलाफ ज्यादा नहीं बोल पाते हैं। अत: आपसे हमारा निवेदन है कि हमारी समस्या पर ध्यान देते हुए इसका अतिशीघ्र समाधान कराएँ।
शीघ्र कार्यवाही की आशा में
दिनांक : …………..

समस्त लोहिया नगर निवासी
(1) ……………….
(2) ……………….
(3) ……………….
(4) ……………….
(5) ……………….

प्रश्न 12.
प्राथमिक स्वास्थ्य-केन्द्र पर संक्रामक बीमारियों की रोक-थाम के लिए समुचित दवाइयों की उपलब्यता हेतु जिले के मुख्य चिकित्साधिकारी को एक पत्र लिखिए। [2016]
उत्तर
सेवा में,
मुख्य चिकित्साधिकारी,
मेरठ।

विषय-प्राथमिक स्वास्थ्य-केन्द्र पर संक्रामक बीमारियों की दवाइयों को अभाव

महोदय,
मैं आपका ध्यान क्षेत्र के प्राथमिक स्वास्थ्य-केन्द्र पर संक्रामक बीमारियों से बचाव के लिए इस्तेमाल की जाने वाली जरूरी दवाइयों की कमी की ओर आकर्षित कराना चाहता हूँ। पूरे क्षेत्र में हैजा, डेंगू ज्वर, मलेरिया, टी०बी० (क्षय रोग) तथा पीत ज्वर जैसे संक्रामक रोग अपने चरम-बिन्दु पर हैं। इस कारण प्राथमिक स्वास्थ्य-केन्द्र पर पीड़ितों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है। लेकिन आवश्यक दवाइयों के अभाव में डॉक्टर उचित इलाज नहीं कर पा रहे हैं। वहीं, डॉक्टरों द्वारा पीड़ितों को इलाज हेतु बाहर से लिखी जा रही दवाइयाँ इतने ऊँचे मूल्य पर मिल रही हैं जो आम जन की पहुँच से बाहर है। इस कारण पीड़ितों की संख्या में कमी नहीं आ पा रही है।

अतः आपसे अनुरोध है कि इस मामले को संज्ञान में लेते हुए यथाशीघ्र समुचित दवाइयों को उपलब्ध कराने का कष्ट करें ताकि पीड़ितों को जरूरी इलाज समय पर मिल सके और समय रहते स्वास्थ्य लाभ ले सकें।
धन्यवाद सहित।
दिनांक : …………..

भवदीय
मदनगोपाल
खैरनगर, मेरठ

प्रश्न 13.
नेपाल-भूकम्प पीड़ितों की सहायतार्थ अपने गाँव द्वारा संचित धनराशि को यथात्यान पहुँचाने हेतु अपने जिलाधिकारी को एक पत्र लिखिए। (2016)
या
उज्जैन में बाढ़ पीड़ितों की सहायतार्थ अपने ग्राम द्वारा संचित धनराशि को पहुँचाने हेतु जिलाधिकारी को एक पत्र लिखिए। [2016, 17]
उत्तर
सेवा में,
श्रीमान जिलाधिकारी महोदय,
मेरठ।।

विषय-भूकम्प पीड़ितों की सहायता हेतु धनराशि का संचय

मान्यवर,
मैं आपको ध्यान विगत माह हमारे पड़ोसी देश नेपाल में आए विनाशकारी भूकम्प की ओर आकर्षित कराना चाहता हूँ। इस विनाशकारी भूकम्प में नेपाल को अत्यधिक जान-माल का नुकसान उठाना पड़ा है। एक ओर जहाँ इसके कारण हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी, वहीं दूसरी ओर इसने लाखों लोगों को बेघर कर दिया। इस आपदा के कारण नेपाल की आर्थिक स्थिति डॉवाँडोल हो गई है। साथ-ही, कुछ ऐतिहासिक इमारतों सहित बहुत-से पर्यटन स्थल भी तहस-नहस हो गए हैं। पीड़ितों को देनिक जरूरतों के सामान के साथ खाने-पीने की चीजों की कमी का भी सामना करना पड़ रहा है। इस भयावह आपदा ने मुझे और मेरे पूरे गाँववासियों (लावड़) को झकझोर दिया। इस हादसे के पीड़ित लोगो को मानवीय सहायता के तौर पर समस्त गाँववासियों ने जितना सम्भव हो सका उतनी दैनिक जरूरतों का सामान, कपड़े व दवाइयों के साथ ₹50,000/- का इंतजाम किया है।

अतः आपसे अनुरोध है कि इस सहायता राशि और सामान को स्वीकार कर नेपाल पहुँचाने का यथाशीघ्र प्रबन्ध करें। आपदा की घड़ी से निकलने व पुन:निर्माण के क्रम में हम सम्पूर्ण देश सहित समस्त गाँववासी नेपाल के साथ हैं।

धन्यवाद सहित।
दिनांक ……………….

भावदीय
समस्त ग्रामवासी

प्रश्न 14.
अपने गाँव में सूखा पीडित राहत योजना के अन्तर्गत किसानों को भुगतान में की जा रही अनियमितताओं के सम्बन्ध में एक शिकायती पत्र अपने जिलाधिकारी को लिखिए।
[2016]
उत्तर
सेवा में,
श्रीमान जिलाधिकारी महोदय,
मेरठ।

विषय-सूखा पीड़ित राहत योजना’ के अन्तर्गत भुगतान में की जा रही अनियमितता

मान्यवर,
मैं आपका ध्यान अपने गाँव चौबला में ‘सूखा पीड़ित राहत योजना के अन्तर्गत किसानों को भुगतान में की जा रही अनियमितताओं की ओर आकर्षित कराना चाहता हूँ। फसली वर्ष 2014-15 में पर्याप्त बारिश न होने तथा नहर द्वारा समय पर पानी न उपलब्ध हो पाने के कारण गाँव की करीब अस्सी फीसदी फसल सूखे की चपेट में आ गई थी। कुछ किसानों की तो सौ फीसदी फसल नष्ट हो गई थी। सूखे की चपेट में आने के कारण किसानों के सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया था। हालाँकि, राज्य सरकार द्वारा समय रहते शुरू की गई ‘सूखा पीड़ित राहत योजना’ ने किसानों को एक नई आशा की किरण दिखाई और मायूस चेहरों पर मुस्कान लाने का कार्य किया, परन्तु यह मुस्कान खिलने से पहले ही मुरझाने लगी। किसानों को इस योजना के नाम पर जो धनराशि चैक प्रदान किए गए वो अधिकांश किसानों का मजाक उड़ा रहे हैं। धनराशि के वितरण में बड़े स्तर पर अनियमितता बरती गई। उदाहरणार्थ, एक किसान जिसकी बीस बीघा फसल पूर्ण रूप से सूखे की चपेट में आ गई, उसे मात्र ₹5,000/- को चैक प्रदान किया गया, वहीं दूसरे किसान, जिसकी मात्र पाँच बीघा फसल बरबाद हुई, को ₹7,000/- का चैक मिला। बड़े स्तर पर पहुँच रखने वाले कुछ बड़े किसानों ने अधिकारियों के साथ साँठगाँठ कर इस पूरे खेल को अंजाम दिया है। इन लोगों ने अधिकारियों को स्वेच्छानुसार आँकड़े उपलब्ध कराए और अधिकारीगण भी बिना निरीक्षण किए ही नाममात्र की कागजी खानापूर्ति कर चले गए।

अतः आपसे अनुरोध है कि इस मामले को अपने संज्ञान में लेकर यथासमय उचित कार्यवाही करें ताकि पीड़ित किसानों को उनका वाजिब मुआवजा मिल सके और वे अपना जीवन सुचारू रूप से यापन कर सकें।

धन्यवाद सहित।
दिनांक ……………..

भावदीय
मनोज चौधरी
गाँव : चौबला

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi सफाई हेतु सम्बन्धित अधिकारी को प्रार्थना-पत्र help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi सफाई हेतु सम्बन्धित अधिकारी को प्रार्थना-पत्र, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 4 Rights and Duties of Citizens

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 4 Rights and Duties of Citizens (नागरिकों के अधिकार तथा कर्तव्य) are part of UP Board Solutions for Class 12 Civics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 4 Rights and Duties of Citizens (नागरिकों के अधिकार तथा कर्तव्य).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter Chapter 4
Chapter Name Rights and Duties of Citizens (नागरिकों के अधिकार तथा कर्तव्य)
Number of Questions Solved 47
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 4 Rights and Duties of Citizens (नागरिकों के अधिकार तथा कर्तव्य)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1.
अधिकार से क्या तात्पर्य है? लोकतन्त्र में उपलब्ध नागरिकों के अधिकारों का वर्णन कीजिए।
या
अधिकारों का वर्गीकरण कीजिए।
या
अधिकारों के विभिन्न प्रकार बताइए और सामाजिक तथा राजनीतिक अधिकारों में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2015]
या
किन्हीं चार राजनीतिक अधिकारों का वर्णन कीजिए। [2008, 11, 12, 13, 14]
उत्तर
प्रजातान्त्रिक राज्यों में अधिकार को मानव-जीवन का आधार माना जाता है, क्योंकि व्यक्ति के आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन का विकास अधिकारों पर ही निर्भर करता है। सामान्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि “अधिकार समाज द्वारा स्वीकृत तथा राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त व्यक्ति को दी जाने वाली वे सुविधाएँ हैं जो उसके व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक होती हैं।

अधिकार की परिभाषा
विभिन्न विचारकों ने अपने-अपने दृष्टिकोण के आधार पर अधिकार की निम्नलिखित परिभाषाएँ दी हैं-

  1. लॉस्की के अनुसार, “अधिकार सामाजिक जीवन की वे परिस्थितियाँ हैं जिनके बिना सामान्यतः कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकता।”
  2. वाइल्ड के अनुसार, “अधिकार कुछ विशेष कार्यों को करने की स्वाधीनता की उचित माँग है।”
  3. बोसांके के शब्दों में, “अधिकार वे माँग हैं जिन्हें समाज स्वीकार तथा राज्य लागू करता है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर अधिकार के निम्नलिखित तत्त्व अथवा लक्षण स्पष्ट होते हैं-

  • व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक सुविधाएँ,
  • समाज की स्वीकृति,
  • राज्य द्वारा मान्यता एवं संरक्षण,
  • सार्वभौमिकता तथा
  • लोक-कल्याण की भावना से प्रेरित।

अधिकारों का वर्गीकरण
अधिकार सामान्य रूप में दो प्रकार के होते हैं-

  1. नैतिक अधिकार तथा
  2. कानूनी या वैधानिक अधिकार।

1. नैतिक अधिकार
नैतिक अधिकार वे अधिकार होते हैं जिनका सम्बन्ध मनुष्य के नैतिक आचरण से होता है। उनके पीछे राज्य की कानूनी शक्ति नहीं होती है। अतएव इनको मानना या न मानना व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। इन्हें प्राप्त करने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता। इन अधिकारों में शिष्ट व्यवहार, नैतिक मान्यताएँ और चारित्रिक नियम सम्मिलित होते हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि नैतिक अधिकारों का राज्य अथवा कानून से कोई सम्बन्ध नहीं होता है। उदाहरण के लिए, वृद्ध और असहाय माता-पिता अपनी सन्तान से जीवन-यापन के लिए सहायता पाने के नैतिक रूप से अधिकारी हैं, परन्तु यदि सन्तान उनकी सहायता नहीं करती तो वह दण्ड की भागी नहीं हो सकती।

2. कानूनी या वैधानिक अधिकार
कानूनी अधिकार वे अधिकार हैं जिनकी व्यवस्था राज्य द्वारा कानून के अनुसार की जाती है। इन अधिकारों में बाधा डालने वाले दण्ड के भागी होते हैं।
कानूनी या वैधानिक अधिकार दो प्रकार के होते हैं-
(क) सामाजिक अधिकार तथा (ख) राजनीतिक अधिकार।

(क) सामाजिक अधिकार – सामाजिक अधिकार वे अधिकार हैं जो मानवीय आधार पर प्रायः राज्य के नागरिक तथा विदेशी सभी को प्राप्त होते हैं। प्रमुख सामाजिक अधिकार निम्नलिखित हैं-

  1. जीवन का अधिकार – प्रत्येक व्यक्ति को जीवन का अधिकार प्राप्त होता है। यह अधिकार मनुष्य के अस्तित्व से सम्बन्धित होता है। जीवन के अधिकार में यह बात भी उल्लेखनीय है कि कोई व्यक्ति स्वयं अपना जीवन समाप्त नहीं कर सकता। आत्महत्या करना दण्डनीय अपराध है।
  2. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार – इस अधिकार का अर्थ है कि मनुष्य को किसी भी धर्म को मानने व उसका प्रचार करने का अधिकार है। राज्य द्वारा उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके ऊपर कोई धर्म थोपा नहीं जा सकता।
  3. शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार – शिक्षा राष्ट्रीय जीवन की आधारशिला है। व्यक्ति के व्यक्तित्व, समाज और राष्ट्र का विकास सब कुछ शिक्षा पर निर्भर करता है। शिक्षा के अभाव में कोई भी मनुष्य उत्तम नागरिक नहीं बन सकता। अरस्तू का तो यह कहना था कि “नागरिक बनने के लिए शिक्षित होना अनिवार्य है। आज के लोकतन्त्रात्मक युग में तो यह अधिकार अत्यन्त अनिवार्य है। संस्कृति के अधिकार का अर्थ है कि व्यक्ति को अपनी भाषा, लिपि, साहित्य, कला एवं परम्पराओं को अपनाने तथा उन्हें सुरक्षित रखने की सुविधा प्राप्त होनी चाहिए।
  4. सम्पत्ति का अधिकार – सम्पत्ति के अधिकार का अर्थ यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन-यापन के लिए वैध उपायों द्वारा धन अर्जित करने, एकंत्रं करने एवं खर्च करने का अधिकार होना चाहिए। उसके इस अधिकार में किसी को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होता। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक होगा कि राज्य सार्वजनिक हित के लिए क्षतिपूर्ति देकर किसी व्यक्ति की सम्पत्ति का अधिग्रहण कर सकता है। साम्यवादी राज्य इस अधिकार के विरुद्ध हैं।
  5. विचार व्यक्त करने का अधिकार – प्रत्येक व्यक्ति को लेखन, भाषण आदि के द्वारा अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का अधिकार होना चाहिए। परन्तु व्यक्ति को अपने विचारों की अभिव्यक्ति का अधिकार उसी सीमा तक होना चाहिए जहाँ तक कि उससे सामाजिक अहित न होता हो। लोकतन्त्र में इस अधिकार का बहुत अधिक महत्त्व है।
  6. समुदाय बनाने का अधिकार – इस अधिकार के अन्तर्गत व्यक्ति को समुदाय बनाने और उसका सदस्य बनाने का अधिकार दिया जाता है। विभिन्न राजनीतिक दलों, विविध प्रकार के समुदाय इसी अधिकार के आधार पर जन्म लेते हैं।
  7. परिवार का अधिकार – परिवार सामाजिक जीवन की प्रथम इकाई तथा नागरिकता का प्रथम विद्यालय है। इस अधिकार के अन्तर्गत विवाह करने, यौन–सम्बन्धों की शुद्धता बनाये रखने, सन्तान व माता-पिता के पारस्परिक सम्बन्ध, उत्तराधिकार आदि के अधिकार सम्मिलित हैं। प्रत्येक व्यक्ति का यह अधिकार है कि वह बिना किसी हस्तक्षेप या प्रतिबन्ध के अपने पारिवारिक जीवन का सुख भोग सके।
  8. न्याय का अधिकार – न्याय के अधिकार से आशय यह है कि न्यायालयों में धनी, निर्धन, साधारण नागरिक और उच्च अधिकारी में कोई अन्तर नहीं होना चाहिए। कानून के सामने छोटे-बड़े का कोई भेद नहीं होना चाहिए। ऐसा तभी हो सकता है जब देश में विधि-विहित शासन हो।
  9. रोजगार का अधिकार – प्रत्येक नागरिक को राज्य की ओर से उसकी योग्यता और शक्ति के अनुसार काम दिया जाए और उसे उसके परिश्रम के अनुरूप वेतन मिले। समाजवादी देशों में इस अधिकार का विशेष महत्त्व है।
    इस अधिकार के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के कोई भी वैध व्यवसाय करने तथा योग्यतानुसार सरकारी नौकरी प्राप्त करने का अधिकार होता है।
  10. समानता का अधिकार – इस अधिकार के अन्तर्गत राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक समानता के अधिकार प्रमुख हैं। ये लोकतन्त्र के प्राण हैं। इनके अभाव में लोकतन्त्र की कल्पना ही अधूरी रह जाती है।

(ख) राजनीतिक अधिकार – राजनीतिक अधिकार नागरिक को देश के शासन में भाग लेने का अवसर प्रदान करते हैं। ये निम्नलिखित हैं-

  1. मतदान का अधिकार – लोकतन्त्र में यह अधिकार राज्य के समस्त वयस्क नागरिकों को प्रतिनिधि संस्थाओं के लिए सदस्यों को चुनने का अधिकार देता है। नागरिकों का यह अधिकार देश के भाग्य का निर्णय करता है।
  2. चुनाव लड़ने का अधिकार – मतदान के साथ ही लोकतन्त्र में प्रत्येक नागरिक को यह भी अधिकार होता है कि वह स्वयं भी प्रतिनिधि संस्थाओं की सदस्यता के लिए चुनाव लड़ सके। किसी व्यक्ति को रंग, जाति, लिंग अथवा सम्पत्ति के आधार पर इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।
  3. सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार – इस अधिकार के अन्तर्गत सभी नागरिकों को योग्यता के अनुरूप सरकारी पदों पर नियुक्त होने का अधिकार प्राप्त रहता है। कोई भी नागरिक धर्म, जाति, लिंग अथवा सम्पत्ति के आधार पर सरकारी पद पाने से वंचित नहीं होना चाहिए।
  4. सरकार की आलोचना करने का अधिकार – सभी लोकतान्त्रिक राज्यों के नागरिकों को सरकार की दोषपूर्ण नीतियों की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त होता है। यदि लोग सरकार के कार्यों व नीतियों से सन्तुष्ट नहीं हैं तो वे उसकी खुलकर आलोचना कर सकते हैं, परन्तु सरकार का विरोध शान्तिपूर्ण ढंग से एक संवैधानिक प्रक्रिया के द्वारा ही किया जा सकता है।
  5. आवेदन-पत्र देने का अधिकार – प्रायः प्रत्येक सभ्य एवं लोकतन्त्रात्मक राज्य में नागरिकों को आवेदन-पत्र देने का अधिकार प्राप्त होता है। इस आवेदन-पत्र के द्वारा लोग सरकार का ध्यान अपने कष्टों की ओर आकृष्ट करते हैं। यह अधिकार सरकार पर अंकुश रखता है और इसके कारण सरकार जनता के कष्टों की उपेक्षा नहीं कर सकती।

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 4 Rights and Duties of Citizens

प्रश्न 2.
कर्तव्य का अर्थ बताइए तथा उसका वर्गीकरण कीजिए। [2007]
या
नागरिकों के कर्तव्यों का उल्लेख करते हुए स्पष्ट कीजिए कि लोकतन्त्र में किन कर्तव्यों पर अधिक बल देना चाहिए ? [2007]
या
एक आदर्श नागरिक के अधिकार तथा कर्तव्यों का विवेचन कीजिए। [2008, 10]
या
नागरिकों के अधिकारों एवं कर्तव्य का संक्षेप में उल्लेख कीजिए। [2010, 12, 14]
[संकेत- अधिकार’ हेतु विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 में अधिकारों सम्बन्धी शीर्षक का अध्ययन करें।]
उत्तर
कर्तव्य – भारतीय प्राचीन विचारकों ने अधिकार की अपेक्षा कर्तव्यपालन पर अधिक जोर दिया है। कौटिल्य ने कर्तव्य को स्वधर्म कहा है। कर्त्तव्य अंग्रेजी भाषा के शब्द ‘ड्यूटी’ (Duty) का हिन्दी अनुवाद है। ‘ड्यूटी’ शब्द की उत्पत्ति ‘Due’ से हुई है, जिसका अर्थ ‘उचित होता है। अतः कर्त्तव्य से तात्पर्य ऐसे कार्य से है जिसे कोई व्यक्ति स्वाभाविक, नैतिक तथा कानूनी दृष्टि से करने हेतु बाध्य हो। लैड के शब्दों में, “करना चाहिए की भावना ही कर्तव्य है।” राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के शब्दों में, “कर्त्तव्य अधिकार का सच्चा स्रोत है। यदि हम अपने कर्तव्यों का पालन करते रहें तो अधिकार हमसे दूर न रहेंगे।”
डॉ० जाकिर हुसैन के मतानुसार, “अपने दायित्वों एवं सेवाओं का सक्रिय इच्छा द्वारा निर्वाह करना ही कर्तव्य है।”

संक्षेप में, किसी विशेष कार्य के करने अथवा न करने के सम्बन्ध में व्यक्ति के उत्तरदायित्व को ही कर्तव्य कहा जा सकता है। अन्य शब्दों में, जिन कार्यों के सम्बन्ध में समाज एवं राज्य सामान्य रूप से व्यक्ति से यह आशा करते हैं कि उसे वे कार्य करने चाहिए, उन्हीं को व्यक्ति के कर्तव्य की संज्ञा दी जा सकती है।

कर्तव्यों का वर्गीकरण अथवा प्रकार
नागरिकों के कर्तव्यों का क्षेत्र अत्यधिक व्यापक है, क्योंकि उसको एक साथ अनेक प्रकार के कर्तव्यों का पालन करना पड़ता है। एक नागरिक के प्रमुख कर्तव्य निम्नलिखित हैं-

1. नैतिक कर्तव्य – नैतिक कर्तव्य उसे कहते हैं जिसका सम्बन्ध व्यक्ति की नैतिक भावना, अन्त:करण तथा उचित कार्य की प्रवृत्ति से होता है। वस्तुतः नैतिक कर्तव्य का सम्बन्ध व्यक्ति के अन्त:करण से होता है। इन कर्तव्यों को राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं होती। नागरिक के नैतिक कर्तव्य निम्नलिखित हैं

(i) परिवार के प्रति कर्तव्य – व्यक्ति, राज्य और समाज के विकास में कुटुम्ब का प्रमुख स्थान है। परिवार में ही मनुष्य को सर्वप्रथम शिक्षा मिलती है और उसमें नागरिक गुणों का बीजारोपण होता है। श्रेष्ठ नागरिक और स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए स्वस्थ परिवार का होना भी आवश्यक है। यह तभी सम्भव है जब नागरिक परिवार के अनुशासन और आचरण का पालन करे।

(ii) अपने प्रति कर्त्तव्य – राज्य या समाज अन्ततः नागरिकों को संगठन है। नागरिकों की उन्नति पर ही उसकी उन्नति निर्भर है। स्वस्थ, चरित्रवान, परिश्रमी तथा स्वावलम्बी नागरिक एक स्वस्थ समाज और राज्य का निर्माण कर सकते हैं। अत: प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने विकास पर पूर्ण ध्यान दे। इसके लिए उसे स्वस्थ, संयमी, अनुशासनप्रिय, शिक्षित और परोपकारी होना चाहिए। यदि कोई नागरिक अपने शारीरिक और मानसिक विकास के प्रति उदास रहता है तो वह अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता।

(iii) ग्राम, नगर, जाति तथा समाज के प्रति कर्तव्य – परिवार के अतिरिक्त नागरिक को भी अपने ग्राम, नगर, जाति एवं समाज से भी सहायता मिलती है; अतः इन संगठनों के प्रति भी उसके कुछ कर्तव्य हैं। उसका कर्तव्य है कि इन संगठनों की उन्नति में सहायता पहुँचाये।

2. कानूनी कर्तव्य अथवा राज्य के प्रति कर्तव्य – ये नागरिक के वे कर्तव्य होते हैं जिन्हें राज्य निर्धारित करता है। नागरिक को इनका पालन अनिवार्य रूप से करना होता है। इनके उल्लंघन करने पर राज्य द्वारा दण्ड दिया जाता है। नागरिक के प्रमुख कानूनी कर्तव्य निम्नलिखित हैं-

(i) राज्य के प्रति निष्ठा – राज्य के प्रति निष्ठा और भक्ति की भावना नागरिक का प्रथम कर्तव्य होता है। उसे शत्रुओं से देश को बचाने के लिए देश के अन्दर शान्ति और सुव्यवस्था बनाये रखने में राज्य की सहायता करनी चाहिए। आपातकाल में अनिवार्य सैनिक सेवा इसी प्रकार के कर्तव्य का फल है।

(ii) कानूनों का पालन – कानून का निर्माण समाज के कल्याण के लिए होता है। अत: प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह राज्य-निर्मित नियमों का पालन करे। ऐसा करके वह राज्य के लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होगा।

(iii) करों का भुगतान – शासन-संचालन और नागरिकों की उन्नति के लिए प्रत्येक राज्य को आर्थिक शक्ति की आवश्यकता होती है। इस आर्थिक शक्ति को प्राप्त करने के लिए राज्य विविध प्रकार के कर लगाता है। अतः प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह समय से सभी प्रकार के करों का भुगतान करे।

(iv) मत का उचित प्रयोग – लोकतन्त्र को चलाने के लिए जनता के प्रतिनिधियों की आवश्यकता होती है और उन प्रतिनिधियों पर ही देश का भविष्य निर्भर करता है। इसलिए नागरिकों का कर्तव्य है कि वे जनता के प्रतिनिधियों का चुनाव पर्याप्त सोच-समझकर करें। जाति, धर्म अथवा धन को मत का अधिकार नहीं बनाना चाहिए।

(v) सार्वजनिक पद ग्रहण करना – प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह सार्वजनिक पद ग्रहण करने के लिए सदैव तत्पर रहे, साथ ही समाज द्वारा सौंपे गये उत्तरदायित्वों का निष्ठापूर्वक निर्वाह करे।

प्रश्न 3.
अधिकारों से सम्बन्धित विभिन्न सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
उत्तर
अधिकार सम्बन्धी विभिन्न सिद्धान्त
अधिकारों के सम्बन्ध में विभिन्न सिद्धान्त प्रचलित हैं, जिनका विवेचन निम्नलिखित है-

1. अधिकारों का प्राकृतिक सिद्धान्त – हॉब्स, लॉक, रूसो आदि विद्वानों ने अधिकारों के प्राकृतिक सिद्धान्त का समर्थन किया है। यह सिद्धान्त अति प्राचीन है। इसके अनुसार अधिकार प्रकृति-प्रदत्त हैं और वे व्यक्ति को जन्म के साथ ही प्राप्त हो जाते हैं। व्यक्ति प्राकृतिक अधिकारों का प्रयोग राज्य के उदय के पूर्व से ही करता आ रहा है। राज्य इन अधिकारों को न तो छीन सकता है और न ही वह इनका जन्मदाता है। टॉमस पेन के अनुसार, “प्राकृतिक अधिकार वे अधिकार हैं जो मनुष्य के अस्तित्व को स्थायित्व प्रदान करने के लिए आवश्यक हैं।’ इस दृष्टिकोण से अधिकार असीमित, निरपेक्ष तथा स्वयंसिद्ध हैं। राज्य इन अधिकारों में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।
आलोचना- इस सिद्धान्त में कतिपय दोष निम्नलिखित हैं-

  • यह सिद्धान्त अनैतिहासिक है, क्योंकि जिस प्राकृतिक व्यवस्था के अन्तर्गत इन अधिकारों के प्राप्त होने का उल्लेख किया गया है, वह काल्पनिक है।
  • ग्रीन का मत है कि समाज से पृथक् कोई भी अधिकार सम्भव नहीं है।
  • यह सिद्धान्त राज्य को कृत्रिम संस्था मानता है, जो अनुचित है।
  • प्राकृतिक अधिकारों में परस्पर विरोधाभास पाया जाता है।
  • यह सिद्धान्त कर्तव्यों के प्रति मौन है, जबकि कर्तव्य के अभाव में अधिकारों का अस्तित्व सम्भव नहीं है।

2. अधिकारों का कानूनी या वैधानिक सिद्धान्त – इस सिद्धान्त के प्रवर्तक बेन्थम, हॉलैण्ड, आँ स्टिन आदि विचारक हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार, अधिकार राज्य की इच्छा के परिणाम हैं और राज्य ही अधिकारों का जन्मदाता है। यह सिद्धान्त प्राकृतिक सिद्धान्त के विपरीत है। व्यक्ति राज्य के संरक्षण में रहकर ही अधिकारों का प्रयोग कर सकता है। राज्य ही कानून द्वारा ऐसी परिस्थितियों को उत्पन्न करता है, जहाँ व्यक्ति अपने अधिकारों का स्वतन्त्रतापूर्वक प्रयोग कर सके। राज्य ही अधिकारों को वैधता प्रदान करता है। यह सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि अधिकारों का अस्तित्व केवल राज्य के अन्तर्गत ही सम्भव है।
आलोचना- इस सिद्धान्त में कतिपय दोष निम्नलिखित हैं-

  • इस सिद्धान्त से राज्य की निरंकुशता का समर्थन होता है।
  • राज्य नैतिक बन्धनों से मुक्त हो जाता है।
  • अधिकारों में स्थायित्व नहीं रहता है।

3. अधिकारों का ऐतिहासिक सिद्धान्त – इस सिद्धान्त के अनुसार अधिकारों की उत्पत्ति प्राचीन रीति-रिवाजों के परिणामस्वरूप होती है। जिन रीति-रिवाजों को समाज स्वीकृति दे देता है, वे अधिकार का रूप धारण कर लेते हैं। इस सिद्धान्त के समर्थकों के अनुसार, अधिकार परम्परागते हैं तथा सतत विकास के परिणाम हैं। इसके अतिरिक्त इनका आधार ऐतिहासिक है। इंग्लैण्ड के संवैधानिक इतिहास में परम्परागत अधिकारों को बहुत अधिक महत्त्व रहा है।
आलोचना- इस सिद्धान्त के आलोचकों का मत है कि अधिकारों का आधार केवल रीतिरिवाज तथा परम्पराएँ नहीं हो सकतीं, क्योंकि कुछ परम्पराएँ तथा रीति-रिवाज समाज के कल्याण में बाधक होते हैं। अतः इस दृष्टि से यह सिद्धान्त तर्कसंगत नहीं है।

4. अधिकारों का समाज – कल्याण सम्बन्धी सिद्धान्त-जे०एस० मिल, जेरमी बेन्थम, पाउण्ड, लॉस्की आदि ने इस सिद्धान्त का समर्थन किया है। इस सिद्धान्त का प्रमुख लक्ष्य उपयोगिता या समाज-कल्याण है। प्रो० लॉस्की के अनुसार-“अधिकारों का औचित्य उनकी उपयोगिता के आधार पर ऑकना चाहिए। इस सिद्धान्त के अनुसार अधिकार वे साधन हैं, जिनसे समाज का कल्याण होता है। लॉस्की का मत है-“लोक-कल्याण के विरुद्ध मेरे अधिकार नहीं हो सकते क्योंकि ऐसा करना मुझे उस कल्याण के विरुद्ध अधिकार प्रदान करता है जिसमें मेरा कल्याण घनिष्ठ तथा अविच्छिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।”
इस सिद्धान्त की निम्नलिखित मान्यताएँ हैं-

  • अधिकार समाज की देन हैं, प्रकृति की नहीं।
  • अधिकारों का अस्तित्व समाज-कल्याण पर आधारित है।
  • व्यक्ति केवल उन्हीं अधिकारों का प्रयोग कर सकता है, जो समाज के हित में हों।
  • कानून, रीति-रिवाज तथा अधिकार सभी का उद्देश्य समाज-कल्याण है।

आलोचना- यह सिद्धान्त तर्कसंगत और उपयोगी तो है, किन्तु इसका सबसे बड़ा दोष यह है कि यह सिद्धान्त समाज-कल्याण की ओट में राज्य को व्यक्तियों की स्वतन्त्रता का हनन करने का अवसर प्रदान करता है, लेकिन समीक्षात्मक दृष्टि से यह दोष महत्त्वहीन है।

5. अधिकारों का आदर्शवादी सिद्धान्त – इस सिद्धान्त की मान्यता है कि अधिकार वे बाह्य साधन तथा दशाएँ हैं, जो व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक होती हैं। इस सिद्धान्त का समर्थन थॉमस हिल ग्रीन, हीगल, बैडले, बोसांके आदि विचारकों ने किया है।
आलोचना- इस सिद्धान्त के कतिपय दोष निम्नलिखित हैं-

  • यह सिद्धान्त व्यावहारिक नहीं है क्योंकि व्यक्तित्व का विकास व्यक्तिगत पहलू है तथा राज्य एवं समाज जैसी संस्थाओं के लिए यह जानना बहुत कठिन है कि किसके विकास के लिए क्या अनावश्यक है?
  • यह व्यक्ति के हितों पर अधिक बल देता है तथा समाज का स्थान गौण रखता है। अतः व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए समाज के हितों के विरुद्ध कार्य कर सकता है।
  • मानव-जीवन के विकास की आवश्यक परिस्थितियाँ कौन-सी हैं, इनका निर्णय कौन करेगा तथा किस-किस प्रकार उपलब्ध होंगी-इन बातों को स्पष्टीकरण नहीं होता है। अतः इस सिद्धान्त का आधार ही अवैधानिक है।

समीक्षा – उपर्युक्त सभी सिद्धान्तों में आदर्शवादी सिद्धान्त सर्वमान्य और तर्कसंगत है, क्योंकि इसके आधार पर यह स्पष्ट होता है कि-

  • अधिकार व्यक्ति की माँग है।
  • अधिकारों की माँग समाज द्वारा स्वीकृत होती है।
  • अधिकारों का स्वरूप नैतिक होता है।
  • अधिकारों का उद्देश्य समाज का वास्तविक हित है।
  • अधिकार व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक साधन हैं।

निष्कर्ष- अधिकारों के उपर्युक्त सिद्धान्तों के अध्ययन के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अधिकारों का आदर्शवादी सिद्धान्त ही सर्वोपयुक्त है क्योंकि यह इस अवधारणा पर आधारित है कि अधिकारों की उत्पत्ति व्यक्ति के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए है। राज्य तथा समाज तो केवल व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा तथा व्यवस्था करने के साधन मात्र हैं। व्यक्ति समाज के कल्याण में ही अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
“अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।” इस कथन को सिद्ध कीजिए। (2007, 15)
या
अधिकार और कर्तव्यों के बीच सम्बन्ध स्थापित कीजिए। [2007, 09, 11]
या
अधिकार और कर्त्तव्य एक-दूसरे के पूरक हैं।” इस कथन की व्याख्या कीजिए। [2011, 13, 15]
उत्तर
अधिकार और कर्तव्यों का सम्बन्ध
अधिकार और कर्तव्य दोनों ही सार्वजनिक जीवन के प्रमुख पक्ष हैं। अधिकारों का महत्त्व कर्तव्य के संसार में ही है। अधिकार और कर्तव्य पर बल देते हुए कहा गया है कि दोनों ही सामाजिक हैं और दोनों ही सफल जीवन की शर्ते हैं, जो समाज के सभी व्यक्तियों को प्राप्त होनी चाहिए। अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।”
एक के समाप्त होते ही दूसरा स्वयं समाप्त हो जाता है, दोनों एक साथ चलते हैं। इसमें से कोई भी एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकता। अधिकार और कर्तव्यों के सम्बन्ध का विवरण निम्नलिखित है-

1. अधिकारों के अस्तित्व के लिए कर्तव्यों का होना अनिवार्य है- अधिकारों का अस्तित्व कर्तव्यों पर निर्भर होता है। अधिकार वे माँगें हैं, जिन्हें समाज ने कर्तव्य के रूप में स्वीकार कर लिया है। किसी व्यक्ति का अधिकार तब तक अधिकार नहीं कहला सकता जब तक कि समाज उसे कर्तव्य मानकर अपनी स्वीकृति न दे दे। उदाहरणार्थ-एक व्यक्ति को यह अधिकार है कि उसका जीवन सुरक्षित रहे, तो अन्य मनुष्यों का यह कर्तव्य बन जाता है कि वे उसके जीवन पर आघात न करें। इसलिए एक विद्वान् ने कहा है कि “कर्तव्यों के संसारे में ही अधिकारों का जन्म होता है।”

2. कर्तव्य अधिकार पर अवलम्बित हैं- जिस प्रकार अपने अस्तित्व के लिए अधिकार सदैव कर्तव्यों पर निर्भर है, उसी प्रकार कर्तव्य भी अधिकारों पर निर्भर है। कर्तव्यपालने के लिए यह परमावश्यक है कि मनुष्य कर्तव्यपालने की आवश्यक क्षमता रखता हो। दूसरे शब्दों में, मनुष्य को ऐसे अधिकार प्राप्त हों जिनके द्वारा वह अपना शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक विकास कर सके। इस विकास के द्वारा ही वह कर्तव्यपालन के योग्य बन सकता है। यदि उसे ऐसे अधिकार प्राप्त नहीं हैं, जिनके द्वारा वह अपने को सभी दृष्टियों से योग्य बना ले तो उसमें कर्तव्यपालन की क्षमता नहीं आएगी।

3. एक व्यक्ति का अधिकार दूसरे व्यक्ति का कर्तव्य है- समाज में एक वर्ग का जो अधिकार है वही दूसरे को कर्तव्य है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति को जीवित रहने का अधिकार है तो दूसरे लोगों का यह कर्तव्य हो जाता है कि वे उन कार्यों को करें जिनसे वह व्यक्ति अपने जीवित रहने के अधिकार का उपयोग कर सके। इसलिए कहा गया है कि ‘मेरा अधिकार तुम्हारा कर्तव्य है।

4. सुखी सामाजिक जीवन के लिए दोनों आवश्यक हैं- अधिकार और कर्तव्यों का एकमात्र उद्देश्य मनुष्य के सामाजिक जीवन को सुखी बनाना है। ये दोनों व्यक्ति के बहुमुखी विकास के लिए आवश्यक हैं। दोनों के बिना व्यक्ति को शारीरिक, बौद्धिक और मानसिक विकास रुक जाएगा।

5. कर्तव्य अधिकार का सदुपयोग है- अधिकारों के सदुपयोग का दूसरा नाम कर्तव्य है। यदि एक व्यक्ति अपने अधिकारों का समुचित ढंग से पालन कर रहा है तो दूसरे रूप में वह अपने कर्तव्य की पूर्ति कर रहा है। उदाहरण के लिए, सम्पत्ति की सुरक्षा और जीविकोपार्जन हमारा अधिकार है, परन्तु हमारा यह कर्त्तव्य भी है कि हम ऐसा कोई कार्य न करें जिससे दूसरों के इस अधिकार पर कोई आघात हो।

6. अधिकार और कर्तव्य जीवन के दो पक्ष हैं- यदि अधिकार जीवन के भौतिक पक्ष का प्रतीक है तो कर्तव्य जीवन के नैतिक पक्ष का। यदि अधिकार का सम्बन्ध मनुष्य के शरीर से है। तो कर्तव्य का सम्बन्ध मनुष्य की आत्मा से। यदि अधिकार मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं; यथा–भोजन, वस्त्र इत्यादि की पूर्ति करता है तो कर्त्तव्य आत्मा का परिष्कार कर उसे अलौकिक आनन्द प्रदान करता है। इस प्रकार अधिकार और कर्तव्य जीवन के दो पक्ष हैं।

प्रश्न 2.
अधिकारों के प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर
अधिकार के प्रमुख लक्षण
लॉस्की, वाइल्ड और श्रीनिवास शास्त्री ने अधिकार की जो परिभाषाएँ दी हैं उन परिभाषाओं और अधिकार की सामान्य धारणा के आधार पर अधिकार के निम्नलिखित प्रमुख लक्षण कहे जा सकते हैं

1. सामाजिक स्वरूप – अधिकार का सर्वप्रथम लक्षण यह है कि अधिकार के लिए सामाजिक स्वीकृति आवश्यक है, सामाजिक स्वीकृति के अभाव में व्यक्ति जिन शक्तियों का उपभोग करता है वे उसके अधिकार न होकर प्राकृतिक शक्तियाँ हैं। अधिकार तो राज्य द्वारा नागरिकों को प्रदान की गयी स्वतन्त्रता और सुविधा का नाम है और इस स्वतन्त्रता एवं सुविधा की आवश्यकता तथा उपभोग समाज में ही सम्भव है। इसके अतिरिक्त, राज्य के द्वारा व्यक्ति को जिस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अधिकार प्रदान किये जाते हैं, उसकी सिद्धि समाज में ही सम्भव है। इस दृष्टि से भी अधिकार समाजगत ही होते हैं।
2. कल्याणकारी स्वरूप – अधिकारों का सम्बन्ध आवश्यक रूप से व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास से होता है। इस कारण अधिकार के रूप में केवल वे ही स्वतन्त्रताएँ और सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं जो व्यक्तित्व के विकास हेतु आवश्यक या सहायक हों। व्यक्ति को कभी भी वे अधिकार नहीं मिलते हैं जो व्यक्ति के विकास में बाधक हों। इसी कारण मद्यपान, जुआ खेलना या आत्महत्या अधिकार के अन्तर्गत नहीं आते हैं।

3. लोकहित में प्रयोग – व्यक्ति को अधिकार उसके स्वयं के व्यक्तित्व के विकास और सम्पूर्ण समाज के सामूहिक हित के लिए प्रदान किये जाते हैं। अतः यह आवश्यक होता है कि अधिकारों का प्रयोग इस प्रकार किया जाए कि व्यक्ति की स्वयं की उन्नति के साथ-साथ सम्पूर्ण समाज की भी उन्नति हो। यदि कोई व्यक्ति अधिकार का इस प्रकार से उपयोग करता है कि अन्य व्यक्तियों या सम्पूर्ण समाज के हित साधन में बाधा पहुँचती है तो व्यक्ति के अधिकारों को सीमित किया जा सकता है।

4. राज्य का संरक्षण – अधिकार का एक आवश्यक लक्षण यह भी है कि उसकी रक्षा का दायित्व राज्य अपने ऊपर लेता है और इस सम्बन्ध में राज्य आवश्यक व्यवस्था भी करता है। उदाहरणार्थ, व्यक्ति को रोजगार प्राप्त होना चाहिए, यह बात व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है और समाज भी इंसे स्वीकार करता है, लेकिन राज्य जब तक आवश्यक संरक्षण की व्यवस्था न करे, उस समय तक परिभाषित अर्थ में इसे अधिकार नहीं कहा जा सकता है।

5. सार्वभौमिकता या सर्वव्यापकता – अधिकार का एक अन्य लक्षण यह भी है कि अधिकार समाज के सभी व्यक्तियों को समान रूप से प्रदान किये जाते हैं और इस सम्बन्ध में जाति, धर्म, लिंग और वर्ण के आधार पर कोई भेद नहीं किया जाता है। अधिकार के उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर सामान्य शब्दों में अधिकार की परिभाषा करते हुए कहा जा सकता है कि अधिकार समाज के सभी व्यक्तियों के व्यक्तित्व के उच्चतम विकास हेतु आवश्यक वे सामान्य सामाजिक परिस्थितियाँ हैं जिन्हें समाज स्वीकार करता है और राज्य लागू करने की व्यवस्था करता है।’

प्रश्न 3.
नागरिकों के दो राजनीतिक अधिकार लिखिए। [2016]
उत्तर
राजनीतिक अधिकार नागरिकों के दो राजनीतिक अधिकार निम्नवत् हैं-

  1. मतदान का अधिकार – किसी भी प्रजातान्त्रिक या लोकतान्त्रिक राष्ट्र में राज्य के सभी वयस्क (भारत में 18 वर्ष) नागरिकों को प्रतिनिधित्वमूलक संस्थाओं के लिए अपना मत देने का अधिकार होता है, जिसके माध्यम से जनता अपना प्रतिनिधि चुनती है।
  2. चुनाव लड़ने का अधिकार – यह अधिकार एक प्रमुख राजनीतिक अधिकार है, जिसके अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार प्राप्त होता है कि वह स्वयं प्रतिनिधि संस्थाओं की सदस्यता के लिए चुनाव में खड़ा हो सके। इसके लिए उसको किसी भी रंग, जाति, लिंग अथवा सम्पत्ति के आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
राज्य के विरुद्ध विद्रोह का अधिकार पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
राज्य के विरुद्ध विद्रोह का अधिकार
राज्य के प्रति भक्ति और राज्य की आज्ञाओं का पालन व्यक्ति का कानूनी कर्तव्य होता है। और इसलिए व्यक्ति को राज्य के विरुद्ध विद्रोह का कानूनी अधिकार तो प्राप्त हो ही नहीं सकता, लेकिन व्यक्ति को राज्य के विरुद्ध विद्रोह का नैतिक अधिकार अवश्य ही प्राप्त होता है। इसका कारण यह है कि शासन के अस्तित्व का उद्देश्य जन-इच्छा को कार्यरूप में परिणत करते हुए सामान्य कल्याण होता है और यदि शासन सामान्य कल्याण की साधना में असफल हो जाता है। या शासन जन-इच्छा का प्रतिनिधित्व नहीं करता तो उस शासन को अस्तित्व में बने रहने का कोई नैतिक अधिकार शेष नहीं रह जाता है। नागरिकों को इस प्रकार की सरकार को पदच्युत करने का अधिकार होता है और यदि संवैधानिक मार्ग से इच्छित परिवर्तन न किया जा सके तो व्यक्ति को अधिकार है कि वह शक्ति के आधार पर वांछित परिवर्तन करने का प्रयत्न करे।

लॉस्की ने कहा है कि “नागरिकता व्यक्ति के विवेकपूर्ण निर्णय का जनकल्याण में प्रयोग है।” ऐसी परिस्थितियों में यदि व्यक्ति को इस बात का विश्वास हो जाए कि विद्यमान शासन-व्यवस्था सामान्य जनता के हित में कार्य नहीं कर सकती तो राज्य के विरुद्ध विद्रोह व्यक्ति का एक नैतिक अधिकार ही नहीं वरन् एक नैतिक कर्तव्य भी हो जाता है। महात्मा गांधी ने कहा है कि व्यक्ति का सर्वोच्च कर्त्तव्य अपनी अन्तरात्मा के प्रति होता है। अतः अन्तरात्मा की पुकार पर सरकार का विरोध किया जा सकता है।

ग्रीन, महात्मा गांधी, लॉस्की आदि विद्वानों द्वारा व्यक्त किये गये विचारों के आधार पर कहा जा सकता है कि निम्नलिखित शर्तों के पूरा होने पर ही विद्रोह के अधिकार का प्रयोग किया जा सकता है-

  1. स्थिति को सुधारने और वांछित परिवर्तन लाने के लिए विद्रोह के पूर्व सभी संवैधानिक साधनों का प्रयोग किया जाना चाहिए और संवैधानिक साधनों की असफलता के बाद ही विद्रोह के सम्बन्ध में सोचा जाना चाहिए।
  2. विद्रोह की भावना वैयक्तिक न होकर सामाजिक होनी चाहिए। विद्रोह की बात तभी सोची जा सकती है जबकि सरकार के द्वारा किये जाने वाले अन्याय साधारण प्रकृति के न होकर गम्भीर प्रकृति के हों और विद्रोह करने वाली जनता विद्रोह के उद्देश्यों से पूर्ण परिचित हो।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
सम्पत्ति के अधिकार पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
आधुनिक काल में सम्पत्ति का अधिकार बड़े वाद-विवाद वाला अधिकार बन गया है। अरस्तू तथा लॉक इसे प्राकृतिक अधिकार मानते हैं। इसके विपरीत, प्लेटो सम्पत्ति के अधिकार का विरोध करते हैं। कार्ल मार्क्स ने सम्पत्ति को ‘लूट के माल’ की संज्ञा दी है। इसी कारण समाजवादी राष्ट्र रूस, चीन इत्यादि सम्पत्ति के अधिकार के विरोधी हैं।

राज्य अथवा सरकार को किसी व्यक्ति की निजी सम्पत्ति को समुचित मुआवजा दिये बिना छीनने का अधिकार नहीं है, क्योंकि सम्पत्ति ही वह प्रेरणा-स्रोत है जो मानव को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।

वर्तमान समय में सम्पत्ति के अधिकार को अनियमित एवं अनियन्त्रित रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि जहाँ एक ओर सम्पत्ति व्यक्ति की प्रेरणा-स्रोत है वहीं दूसरी ओर सम्पत्ति घमण्ड, शोषण, उत्पीड़न एवं अकर्मण्यता को प्रोत्साहित करती है। लॉस्की ने उचित ही लिखा है, धनवान तथा निर्धन में विभाजित समाज रेत की नींव पर टिका होता है।”

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 4 Rights and Duties of Citizens

प्रश्न 2.
अधिकारों के प्राकृतिक सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
हॉब्स, लॉक तथा रूसो आदि विद्वानों ने अधिकारों के प्राकृतिक सिद्धान्त का समर्थन किया है। यह सिद्धान्त अति प्राचीन है। इस सिद्धान्त की मान्यता है कि अधिकार प्रकृति-प्रदत्त हैं। तथा व्यक्ति को जन्म लेते ही प्राप्त हो जाते हैं। राज्य इन अधिकारों को नहीं छीन सकता, क्योंकि एक तो वह इनका जन्मदाता नहीं है और दूसरे व्यक्ति राज्य के उदय से पूर्व से ही इन अधिकारों का प्रयोग करता आ रहा है।
इस सिद्धान्त में निम्नलिखित दोष पाये गये हैं-

  • यह सिद्धान्त काल्पनिक है न कि ऐतिहासिक।
  • ग्रीस का मत है कि समाज से पृथक् किसी अधिकार की कल्पना नहीं की जा सकती।
  • यह सिद्धान्त राज्य को अनुचित रूप से कृत्रिम संस्था मानता है।
  • यह सिद्धान्त कर्तव्यों के प्रति मौन है, जब कि कर्तव्य के अभाव में अधिकारों का अस्तित्व सम्भव नहीं है।

प्रश्न 3.
अधिकारों के वैधानिक सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
इस सिद्धान्त की मान्यता है कि अधिकार राज्य की इच्छा के परिणाम हैं और राज्य ही अधिकारों का स्रोत है। यह सिद्धान्त प्राकृतिक सिद्धान्त के एकदम विपरीत है। इस सिद्धान्त को मानने वालों में बेन्थम, हॉलैण्ड, ऑस्टिन आदि विद्वान् हैं। इन विद्वानों के अनुसार व्यक्ति राज्य के संरक्षण में रहकर भी अधिकारों का प्रयोग करता है और राज्य ही अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है।
इस सिद्धान्त में निम्नलिखित दोष पाये जाते हैं-

  • यह सिद्धान्त राज्य की निरंकुशता का समर्थक है।
  • राज्य नैतिक बन्धनों से मुक्त हो जाता है।
  • अधिकारों में स्थायित्व नहीं रहता है।

प्रश्न 4.
‘अधिकार केवल समाज में ही सम्भव है, परन्तु असीमित नहीं।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
अधिकार सिर्फ समाज में ही सम्भव–अधिकार की प्रथम विशेषता यह है कि इन्हें व्यक्ति सिर्फ समाज में ही प्राप्त कर सकता है। यदि समाज नहीं है तो व्यक्ति अधिकारों को प्राप्त नहीं कर सकता। एकाकी व्यक्ति को अधिकारों की आवश्यकता नहीं होती है।

अधिकार असीमित नहीं – समाज में एक व्यक्ति के अधिकार दूसरे व्यक्ति के अधिकारों से सीमित हो जाते हैं। एक व्यक्ति अपने अधिकारों का उपभोग तभी कर सकता है जब कि वह दूसरे के अधिकारों को मान्यता प्रदान करे। ऐसा न होने पर समाज में अराजकता फैल सकती है।

प्रश्न 5.
मौलिक अधिकार से क्या आशय है?
उतर
वे अधिकार जो मानव-जीवन के लिए मौलिक तथा अपरिहार्य होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं, मौलिक अधिकार कहे जाते हैं। इन अधिकारों का राज्यों के संविधान में वर्णन कर दिया जाता है। न्यायपालिका इन अधिकारों की रक्षा करती है। सर्वप्रथम मौलिक अधिकार अमेरिकी संविधान में सम्मिलित किये गये। भारतीय संविधान द्वारा भी मौलिक अधिकार प्रदान किये गये हैं।

प्रश्न 6.
कानूनी अधिकार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
ये वे अधिकार हैं जिन्हें राज्य मान्यता प्रदान करता है तथा जिनकी रक्षा राज्य के कानूनों द्वारा होती है। कानूनी अधिकारों का उल्लंघन करने वाले को राज्य द्वारा दण्डित किया जाता है। लीकॉक के शब्दों में, “कानूनी अधिकार वे विशेषाधिकार हैं जो एक नागरिक को अन्य नागरिकों के विरुद्ध प्राप्त होते हैं तथा जो राज्य की सर्वोच्च शक्ति द्वारा प्रदान किये जाते हैं तथा रक्षित होते हैं।”

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
लॉक द्वारा बताये गये कोई दो प्राकृतिक अधिकार बताइए।
उत्तर

  1. जीवन का अधिकार तथा
  2. स्वतन्त्रता का अधिकार।

प्रश्न 2.
नागरिकों के कोई दो सामाजिक अधिकार लिखिए। [2014]
उत्तर

  1. जीवन का अधिकार तथा
  2. समानता का अधिकार

प्रश्न 3
नागरिक के दो नैतिक कर्तव्य लिखिए।
उत्तर

  1. अपने प्रति कर्त्तव्य (चरित्र-निर्माण) तथा
  2. समाज के प्रति कर्तव्य (कुरीतियों का उन्मूलन)।

प्रश्न 4.
नागरिकों के दो कानूनी कर्तव्य लिखिए।
उत्तर

  1. राज्य के कानूनों का पालन करना तथा
  2. राज्य के प्रति भक्ति।

प्रश्न 5.
कानूनी अधिकार के सिद्धान्त के दो समर्थकों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. बेन्थम तथा
  2. ऑस्टिन।

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 4 Rights and Duties of Citizens

प्रश्न 6.
अधिकार के किन्हीं दो सिद्धान्तों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. प्राकृतिक सिद्धान्त तथा
  2. आदर्शवादी सिद्धान्त।

प्रश्न 7.
अधिकारों के दो प्रमुख प्रकार बताइए।
उत्तर

  1. सामाजिक या नागरिक अधिकार तथा
  2. राजनीतिक अधिकार।

प्रश्न 8.
नागरिक के कोई दो प्राकृतिक अधिकार बताइए।
उत्तर

  1. जीवन का अधिकार तथा
  2. स्वतन्त्रता का अधिकार।

प्रश्न 9.
विदेशियों को राज्य में प्राप्त होने वाले कोई दो अधिकार लिखिए।
उत्तर

  1. जीवन-रक्षा का अधिकार तथा
  2. पारिवारिक जीवन व्यतीत करने का अधिकार।

प्रश्न 10.
अधिकारों के आदर्शवादी सिद्धान्त के किन्हीं दो समर्थकों के नाम बताइए।
उत्तर

  1. थॉमस हिल ग्रीन एवं
  2. बोसांके।

प्रश्न 11.
दो मानव अधिकार बताइए।
उत्तर

  1. जीवन का अधिकार तथा
  2. स्वतन्त्रता का अधिकार।

प्रश्न 12.
कर्तव्यों के दो प्रमुख भेद बताइए।
उत्तर
कर्तव्यों के दो प्रमुख भेद हैं-

  1. नैतिक कर्तव्य तथा
  2. कानूनी कर्तव्य।

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 4 Rights and Duties of Citizens

प्रश्न 13.
नागरिक के दो प्रमुख कर्तव्य बताइए।
उत्तर

  1. समाज के प्रति कर्त्तव्य तथा
  2. राज्य के प्रति कर्तव्य।

प्रश्न 14.
मूल कर्तव्य की धारणा भारत के परिप्रेक्ष्य में किस देश की संवैधानिक व्यवस्था से प्रेरित है?
उत्तर
मूल कर्त्तव्य की धारणा भारत के परिप्रेक्ष्य में रूस की संवैधानिक व्यवस्था से प्रेरित तथा गृहीत है।

प्रश्न 15.
राज्य के प्रति नागरिक के दो कर्तव्य बताइए।
उत्तर

  1. राज्य के कानूनों का पालन करना तथा
  2. लगाये गये करों का भुगतान करना।

प्रश्न 16.
“यदि हम कर्तव्यपालन करें तो अधिकार स्वतः प्राप्त हो जाएँगे।” यह कथन किसका है?
उत्तर
यह कथन गाँधी जी का है।

प्रश्न 17.
अधिकार के किन्हीं दो तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर

  1. सार्वभौमिकता तथा
  2. राज्य का संरक्षण।

प्रश्न 18.
अधिकारों का कौन-सा सिद्धान्त सबसे अधिक मान्य है?
उत्तर
अधिकारों का आदर्शवादी सिद्धान्त सबसे अधिक मान्य है।

प्रश्न 19.
वयस्क मताधिकार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर
सामान्यतया 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुके नागरिक को जो मताधिकार प्राप्त होता है, उसे वयस्क मताधिकार कहते हैं।

प्रश्न 20.
नैतिक और कानूनी अधिकारों में क्या अन्तर है? [2007]
उत्तर
नैतिक अधिकारों के पीछे राज्य की कानूनी शक्ति नहीं होती। कानूनी अधिकारों की व्यवस्था राज्य द्वारा कानून के अनुसार की जाती है।

प्रश्न 21.
भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद द्वारा अस्पृश्यता को समाप्त किया गया है? (2007)
उत्तर
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 द्वारा अस्पृश्यता को समाप्त किया गया है।

प्रश्न 22.
नागरिकों के दो राजनीतिक अधिकार लिखिए। [2013, 16]
उत्तर

  1. मतदान का अधिकार तथा
  2. चुनाव लड़ने का अधिकार।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

1. निम्नलिखित में से कौन-सा अधिकार का तत्त्व है?
(क) सार्वभौमिकता
(ख) मानवता
(ग) स्वतन्त्रता
(घ) निष्पक्षता

2. निम्नलिखित में कौन-सा सामाजिक अधिकार नहीं है?
(क) शिक्षा का अधिकार
(ख) सम्पत्ति रखने का अधिकार
(ग) समानता का अधिकार
(घ) मताधिकार

3. निम्नलिखित में से कौन-सा राजनीतिक अधिकार है?
(क) शिक्षा का अधिकार
(ख) धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार
(ग) मतदान का अधिकार
(घ) जीवन-रक्षा का अधिकार

4. निम्नांकित में से कौन कानूनी अधिकार का समर्थक है?
(क) प्रो० बार्कर
(ख) प्रो० लॉस्की
(ग) गाँधी जी
(घ) ऑस्टिन

5. निम्नलिखित में से कौन-सा नागरिक का कर्तव्य है?
(क) कानून का पालन करना
(ख) करों का भुगतान करना
(ग) राज्य के प्रति भक्ति
(घ) ये सभी

6. अधिकारों के समाज-कल्याण सम्बन्धी सिद्धान्तों का समर्थक था-
(क) लॉस्की
(ख) प्लेटो
(ग) रूसो
(घ) मॉण्टेस्क्यू

7. “अधिकार सामाजिक जीवन की वे परिस्थितियाँ हैं जिनके अभाव में सामान्यतया कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर पाता है।” यह कथन किस विचारक का है? [2008, 16]
(क) लॉस्की
(ख) प्लेटो
(ग) बेन्थम
(घ) जे० एस० मिल

8. प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त का समर्थन किसने किया था? [2008, 13]
(क) हीगल ने
(ख) बर्क ने।
(ग) लॉक ने
(घ) बेन्थम ने

9. निम्नलिखित में से कौन एक राजनीतिक अधिकार की श्रेणी में नहीं आता है? (2012, 14)
(क) मत देने का अधिकार
(ख) काम का अधिकार
(ग) निर्वाचित होने का अधिकार
(घ) सार्वजनिक पद ग्रहण करने का अधिकार

10. निम्नलिखित में से कौन-सा कानूनी कर्तव्य नहीं है? (2015)
(क) कानूनों का पालन करना
(ख) सत्य बोलना
(ग) राज्य के प्रति कर्तव्य
(घ) कर अदा करना

11.“अधिकार वह माँग है जिसे समाज स्वीकार करता है और राज्य लागू करता है।” यह कथन निम्न में से किस विचारक का है? (2016)
(क) टी०एच० ग्रीन
(ख) अरस्तू
(ग) बोसांके
(घ) रूसो

12. भारतीय संविधान में नागरिकों को कितने मौलिक कर्तव्य निर्धारित किये गये हैं? [2016]
(क) 10
(ख) 11
(ग) 9
(घ) 15

उत्तर

  1. (क) सार्वभौमिकता,
  2. (घ) मताधिकार,
  3. (ग) मतदान का अधिकार,
  4. (घ) ऑस्टिन,
  5. (घ) ये सभी,
  6. (घ) मॉण्टेस्क्यू,
  7. (क) लॉस्की
  8. (ग) लॉक ने,
  9. (ख) काम का अधिकार,
  10. (ख) सत्य बोलना,
  11. (ग) बोसांके,
  12. (ख) 11

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 4 Rights and Duties of Citizens (नागरिकों के अधिकार तथा कर्तव्य) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 4 Rights and Duties of Citizens (नागरिकों के अधिकार तथा कर्तव्य), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying

UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying (सर्वेक्षण) are part of UP Board Solutions for Class 12 Geography. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying (सर्वेक्षण).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Geography (Practical Work)
Chapter Chapter 5
Chapter Name Surveying (सर्वेक्षण)
Number of Questions Solved 22
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying (सर्वेक्षण)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
सर्वेक्षण से क्या अभिप्राय है? जरीब एवं फीते (Chain and Tape) द्वारा सर्वेक्षण किन-किन परिस्थितियों में किया जाता है तथा इसमें कौन-कौन से उपकरण प्रयोग में लाये जाते हैं?
उत्तर

सर्वेक्षण का अर्थ
Meaning of Surveying

सामान्य बोलचाल की भाषा में सर्वेक्षण का अर्थ धरातल का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करना होता है। जिससे आवश्यक तथ्यों की जानकारी प्राप्त कर उन्हें मानचित्र पर निरूपित किया जा सके। सर्वेक्षण को निम्न प्रकार परिभाषित किया जा सकता है –
“सर्वेक्षण एक ऐसी कला है जिससे विभिन्न बिन्दुओं की आनुपातिक स्थिति का ज्ञान होता है। बिन्दुओं की स्थिति, दूरी व कोण नापकर तथा कई बार ऊँचाई नापकर भी ज्ञात की जाती है।”
सर्वेक्षण क्षैतिज धरातल के बिन्दुओं की स्थिति के निर्धारण करने की क्रिया है।”
“सर्वेक्षण वह कला है जिसके द्वारा धरातल के बिन्दुओं की सापेक्षिक स्थिति मानचित्र पर ठीक-ठीक प्रदर्शित की जाती है।”
इस प्रकार सामान्य रूप से सर्वेक्षण द्वारा किसी क्षेत्र-विशेष में पायी जाने वाली प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक स्थितियों का मापन करते हैं। इन मापों के आधार पर एक निश्चित मापक द्वारा समतल कागज पर मानचित्र की रचना करते हैं। सर्वेक्षण करने से पूर्व निर्धारित क्षेत्र को ध्यानपूर्वक देख लेना चाहिए जिससे सर्वेक्षण के समय कोई बाधा उपस्थित न हो तथा क्षेत्र को एक रेखाचित्र तैयार कर लेना चाहिए।

जरीब (चेन) एवं फीता सर्वेक्षण
Chain and Tape Surveying

चेन व टेप द्वारा सर्वेक्षण सरल तथा कम व्यय वाला है। यह सर्वेक्षण की प्राचीन विधि है। इससे धरातल पर क्षैतिज दूरियाँ नापी जाती हैं। इस विधि का उपयोग प्रमुख रूप से क्षेत्रफल ज्ञात करने के लिए किया जाता है। क्षेत्रों की सीमा निर्धारित करने में भी इस विधि को अपनाया जाता है। उदाहरण के लिए, जब भूमि का बँटवारा करना होता है तो यही विधि प्रयुक्त की जाती है।

चेन-टेप सर्वेक्षण के उपयोग के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ
Favourable Conditions for Chain and Tape Surveying

चेन-टेप द्वारा सर्वेक्षण निम्नलिखित परिस्थितियों में अधिक उपयोगी रहता है –

  1. क्षेत्रीय सीमा निर्धारण में।
  2. भूमि के विभाजन में।
  3. जब अधिक शुद्धता की आवश्यकता हो।
  4. विकास योजनाओं हेतु आँकड़ों के संग्रहण में।
  5. जब समय की अधिकता हो।
  6. अन्य सर्वेक्षण यन्त्र एवं उपकरण उपलब्ध न हों।
  7. जब मानचित्र में कुछ ही विवरण प्रदर्शित किये जाने हों।
  8. जब विस्तृत भू-भागों का शीघ्र सर्वेक्षण करना हो।

चेन-टेप सर्वेक्षण में प्रयुक्त किये जाने वाले उपकरण
Equipments Used in Chain and Tape Surveying

(1) चेन या जरीब (Chain) – जरीब इस्पात की बनी होती है जो विभिन्न लम्बाई की होती है। यह छोटे-छोटे भागों में विभक्त होती है। सबसे छोटे भाग को कड़ी कहते हैं। ये कड़ियाँ एक-दूसरे से छल्लों द्वारा जुड़ी होती हैं। जरीब के दोनों किनारों पर पीतल की मुठियाँ लगी होती हैं, जिन्हें पकड़कर जरीब को खींचते हैं। जरीब में विभिन्न दूरियों पर विभिन्न प्रकार के सूचक लगे होते हैं जिससे दूरियाँ पढ़ने में आसानी रहती है। जरीब निम्नलिखित प्रकार की होती है –

(i) इन्जीनियर्स जरीब (Engineer’s Chain) – यह जरीब 100 फीट लम्बी होती है जिसमें 100 ही कड़ियाँ होती हैं जिसमें प्रत्येक कड़ी की लम्बाई 1 फुट होती है। प्रत्येक 10 कड़ी के बाद पीतल का एक सूचक लगा होता है जिससे कड़ियाँ गिनने में आसानी रहती है।
UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying 1
(ii) गण्टर्स जरीब (Gunter’s Chain) – यह जरीब 66 फीट लम्बी होती है। जिसमें 100 कड़ियाँ होती हैं। प्रत्येक कड़ी की लम्बाई 0.66 फुट या 7.92 इंच होती है। प्रत्येक 10वीं कड़ी पर पीतल का एक सूचक लगा होता है। इस जरीब द्वारा खेतों का क्षेत्रफल सुगमता से नापा जा सकता है, क्योंकि 10 वर्ग जरीब एक एकड़ के बराबर होती है। हमारे देश में लेखपाल भूमि की नाप के लिए इसी जरीब को उपयोग में लाते हैं।

(iii) रेवेन्यू जरीब (Revenue Chain) – यह जरीब 33 फीट लम्बी होती है जिसमें केवल 16 कड़ियाँ होती हैं तथा प्रत्येक कड़ी 21 फीट के बराबर होती है। पहले लेखपालों द्वारा इसी जरीब का प्रयोग खेतों की नाप के लिए किया जाता था, परन्तु छोटी होने के कारण इसका प्रयोग बन्द कर दिया गया है।

(iv) मीट्रिक जरीब (Metric Chain) – मीट्रिक प्रणाली के प्रचलन के कारण इस जरीब का प्रयोग किया जाने लगा है। यह 30 मीटर लम्बी होती है जिसमें प्रत्येक कड़ी 0.3 मीटर अथवा 30 सेमी की होती है। प्रत्येक 10 कड़ियों के बाद पीतल का एक सूचक लगा होता है।

(2) फीता (Tape) – इस सर्वेक्षण में फीता एक आवश्यक उपकरण है। यह कपड़े, प्लास्टिक, धातु आदि के बने होते हैं। फीतों की लम्बाई भिन्न-भिन्न होती है; जैसे—25 फीट, 50 फीट, 100 फीट अथवा 15 मीटर, 30 मीटर आदि। भार में हल्का होने के कारण जरीब के स्थान पर फीते का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। यह चमड़े के एक गोल डिब्बे में लिपटा होता है। इसके एक सिरे पर पीतल की एक घुण्डी लगी होती है जिसकी सहायता से इसे दूर तक फैलाया जा सकता है।
UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying 2
(3) लक्ष्य दण्ड (Ranging Rod) – लक्ष्य दण्ड का उपयोग धरातलीय बिन्दुओं की ओर अधिक दृष्टिगोचर करने के लिए किया जाता है। इनकी लम्बाई 6 से 10 फीट तक होती है। इसके प्रत्येक फीट के भाग को विरोधी रंग से रँग दिया जाता है जिससे दूरी स्पष्ट दिखलाई पड़े। इन्हें रंगने में लाल, हरे, काले तथा सफेद रंग का प्रयोग किया जाता है। यह लकड़ी अथवा लोहे के बने होते हैं। कभी-कभी इनके ऊपरी सिरे पर लाल रंग की झण्डियाँ भी लगा दी जाती हैं।

(4) तीर (Arrows) – यह लोहे के बने होते हैं जिनका एक सिरा मुड़ा हुआ तथा दूसरा सिरा नुकीला होता है जिससे इसे भूमि में आसानी से गाड़ा जा सके। इनकी लम्बाई 1 फीट से 1.5 फीट तक होती है। यह जरीब की दूरियों को गिनने में सहायक होते हैं। जरीबों की संख्या अथवा धरातल की लम्बाई तीर गिनकर करते हैं।

(5) चुम्बकीय दिक्सूचक (Magnetic Compass) – इसे कुतुबनुमा भी कहा जाता है। इसकी सहायता से सर्वेक्षण करते समय उत्तर दिशा निर्धारित की जाती है। जरीब रेखा के सहारे उत्तर दिशा ज्ञात कर ली जाती है। इस यन्त्र में एक सुई लगी होती है जिसके एक सिरे पर N अंकित रहता है जो उत्तर दिशा का संकेतक है।
UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying 3
(6) समकोणात्मक दर्पण (Optical Square) – यह धातु का बना एक डिब्बेनुमा यन्त्र होता है। इसकी दोनों भुजाओं पर दो शीशे 45° के कोण पर लगे होते हैं। इसका उपयोग जरीब रेखा के ऊपर खड़े होकर लक्ष्य बिन्दु से समकोणात्मक स्थिति ज्ञात करने में होता है।

(7) समकोणमापदण्ड (Cross Staff) – इस यन्त्र का उपयोग भी जरीब रेखा से लक्ष्य बिन्दुओं की संमकोणात्मक स्थिति ज्ञात करने के लिए किया जाता है। इस यन्त्र में एक-दूसरे से समकोण बनाते हुए दो दर्श रेखक दण्ड लगे होते हैं। यह शुद्ध स्थिति का बोध नहीं कर पाता; अत: इसका उपयोग सीमित है।
UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying 4
(8) क्षेत्र-पुस्तिका (Field-Book) – इसे सर्वेक्षण पुस्तिका भी कहा जाता है। इसमें सर्वेक्षण की गयी सभी मापें अंकित की जाती हैं जिससे प्रयोगशाला में उस क्षेत्र का शुद्ध मानचित्र बनाया जा सके। क्षेत्र-पुस्तिका में जितनी शुद्ध माप अंकित की जाएगी, उतना ही शुद्ध उस क्षेत्र का मानचित्र होगा।
UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying 5
(9) अन्य उपकरण (Other Instruments) – उपर्युक्त यन्त्रों के अतिरिक्त पेन्सिल, रबड़, मापक, चॉदा आदि की भी जरीब एवं फीते द्वारा सर्वेक्षण में आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 2
जरीब-फीते (Chain-Tape) द्वारा सर्वेक्षण प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए तथा इस विधि के गुण-दोषों का भी वर्णन कीजिए।
उत्तर

चेन-टेप द्वारा सर्वेक्षण प्रक्रिया
Surveying Process by Chain and Tape

चेन-टेप सर्वेक्षण प्रक्रिया निम्नलिखित विधियों द्वारा की जाती है –
(1) उपकरणों की जाँच तथा पर्याप्त सर्वेक्षक दल – सर्वेक्षण प्रक्रिया प्रारम्भ करने से पूर्व सभी यन्त्रों एवं उपकरणों की जाँच कर लेनी चाहिए तथा समस्त आवश्यक उपकरण लेकर ही क्षेत्र में पहुँचना। चाहिए। साथ ही सर्वेक्षण के लिए तीन व्यक्तियों का दल अवश्य होना चाहिए। एक, जरीब को खींचकर आगे-आगे चलने वाला नायक (Leader); दूसरा, उसके पीछे चलने वाला अनुगामी (Follower) और तीसरा, क्षेत्र-पुस्तिका पर नाप लिखने वाला क्षेत्र-पुस्तिका लेखक (Field Book Writer)।

(2) क्षेत्र का निरीक्षण – सर्वप्रथम जिस क्षेत्र का सर्वेक्षण करना होता है, उसका भली-भाँति निरीक्षण कर लेना चाहिए। इसके साथ ही क्षेत्र की बाह्य सीमा पर झण्डियाँ आदि गाड़ देनी चाहिए। सर्वेक्षण क्षेत्र की सीमा को ध्यान में रखते हुए कुछ मुख्य एवं गौण बिन्दुओं का निर्धारण धरातल पर लेते हैं तथा इसी आधार पर क्षेत्र का एक अनुमानित रेखाचित्र बना लेते हैं। यह अनुमानित रेखाचित्र क्षेत्रीय निरीक्षण के आधार पर तैयार किया जाता है।

(3) दिशा निर्धारण – सर्वेक्षण आरम्भ करने से पहले चुम्बकीय दिक्सूचक की सहायता से उत्तर दिशा ज्ञात कर लेनी चाहिए तथा उत्तर की ओर तीर का निशान (↑) बनाकर उस पर उत्तर अथवाN लिख देना चाहिए।

(4) दूरियाँ ज्ञात करना – जरीब पर अवस्थानों की प्रलम्ब दूरियाँ लेनी चाहिए। फीता जब शरीर पर 90° का कोण बनाता है तो वह दूरी प्रलम्बे दूरी (off-sets) कहलाती है। फीते को जरीब पर चापवत् घुमाकर एक दूरी ज्ञात की जा सकती है।

(5) बन्ध रेखा तथा जाँच रेखा (Tie Line and Check Line) – दो जरीब रेखाओं पर निश्चित बिन्दुओं को बन्ध स्टेशन कहते हैं। इन दोनों बिन्दुओं को मिलाने वाली रेखा ही टाइ रेखा या बन्ध रेखा कहलाती है। जब दूरी अधिक होती है तब लम्बवत् दूरी न लेकर प्रमुख बिन्दुओं की दूरी बन्ध रेखा की। सहायता से नापते हैं। इन रेखाओं की आवश्यकता जरीब द्वारा खुले तथा बन्द, दोनों ही प्रकार के सर्वेक्षण में पड़ती है।
UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying 6
जाँच रेखाएँ कभी-कभी चेन द्वारा सर्वेक्षण का अंकन कागज पर पूर्ण हो जाने के पश्चात् अशुद्धि आदि की जाँच करती है। इसमें त्रिभुज की दो भुजाओं पर दो बिन्दुओं को मिला देते हैं तथा इस रेखा की दूरी मापक द्वारा नाप लेते हैं तथा उसे फीट में परिवर्तित करने के बाद क्षेत्र में नापी गयी दूरी से मिलान करते हैं। यदि दोनों दूरियाँ समान हैं तो सर्वेक्षण कार्य शुद्ध है। भू-मापन की शुद्धि इससे ज्ञात होती जाती है। इसी कारण जाँच रेखाओं को पूफ रेखा (Proof lines) भी कहा जाता है।

(6) क्षेत्र-पुस्तिका लिखना – जरीब द्वारा ज्ञात की हुई भू-मापन की माप को क्षेत्र-पुस्तिका में अंकित करते जाते हैं ताकि प्रयोगशाला में उन आँकड़ों से सर्वेक्षित क्षेत्र का मानचित्र बना सकें। क्षेत्र-पुस्तिका में निम्नलिखित दो प्रकार की मापें लिखी जाती हैं –
(i) नीचे से ऊपर को अर्थात् मध्य में जरीब की क्षैतिज दूरियाँ तथा
(ii) दायें-बायें दोनों ओर लक्ष्य बिन्दुओं की लम्बवत् दूरियाँ।
ऊपर दूरियाँ फीट या मीटर में लिखी जाती हैं। सबसे ऊपर जरीब की कुल दूरी का योग लिखा जाता है। दूरियाँ जरीब फैलाने की दिशा में खड़े होकर तुरन्त एवं शुद्ध लिखनी चाहिए। जितनी सही क्षेत्र-पुस्तिका होगी, मानचित्र उतना ही सही बनेगा।

(7) आलेखन करना (Plotting) – भू-सर्वेक्षण से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर एक उचित मापक लेकर समतल कागज पर अंकित करने की प्रक्रिया आलेखन (Plotting) कहलाती है। यह प्रक्रिया सर्वेक्षण की अन्तिम तथा महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसे प्रयोगशाला में सम्पन्न किया जाता है।

सर्वेक्षण की विधियाँ
Methods of Surveying

जरीब-फीते द्वारा सर्वेक्षण की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं –
(I) त्रिभुजीकरण विधि (Triangulation Method) – इस विधि में क्षेत्र को त्रिभुजों में विभाजित करके सर्वेक्षण किया जाता है।
(II) चक्रमण-विधि (Traversing Method) – इस विधि के अन्तर्गत सर्वेक्षण करते हुए धीरेधीरे आगे बढ़ते हैं। इसमें आधार रेखा पर लक्ष्यों की कोणात्मक लम्ब दूरियाँ ली जाती हैं। दिशा और मोड़ को बन्ध रेखाओं की सहायता से निर्धारित करना पड़ता है। यह निम्नलिखित दो प्रकार का होता है

(1) खुला चलन सर्वेक्षण (Open Traverse Survey) – इस विधि में एक स्थान से सर्वेक्षण प्रारम्भ कर उस स्थान पर ही वापस नहीं आते हैं, बल्कि दूसरे बिन्दु पर समाप्त कर देते हैं। इससे जरीब पर लम्बवत् दूरियाँ ज्ञात की जाती हैं। यह विधि लम्बाई में फैले क्षेत्रों-रेलमार्ग, सड़क, नदी अथवा सँकरे क्षेत्रों के लिए प्रयुक्त की जाती है।
UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying 7
(2) बन्द चलन सर्वेक्षण (Closed Traverse Survey) – इस विधि में जिस स्थान से सर्वेक्षण आरम्भ करते हैं, उसी स्थान पर आकर समाप्त करते हैं। विस्तृत क्षेत्रों के सर्वेक्षण में इस विधि का प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक आधार रेखा के लिए पृथक् क्षेत्र-पुस्तिका लिखी जाती है। ऐसी स्थिति का निर्धारण बन्ध रेखा तथा जाँच रेखा द्वारा किया जाता है।
UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying 8

जरीब-फीते द्वारा सर्वेक्षण में आने वाली बाधाओं का निराकरण
Solution of Problems in Chain and Tapes Surveying

जरीब-फीते द्वारा भू-मापन करते समय अनेक बाधाएँ आ जाती हैं। उनका समुचित निराकरण बहुत आवश्यक होता है। सर्वेक्षण में निम्नलिखित बाधाएँ आती हैं –
(1) ढालू भूमि – ढालू भूमि का सर्वेक्षण करते समय भूमि की क्षैतिज दूरियाँ नापने में कठिनाई होती है। इस कठिनाई का निराकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है –

  1. ढालू भूमि पर सुविधानुसार तीन या । चार लम्बदण्ड गाड़ देने चाहिए।
  2. सबसे आगे वाले लम्बदण्ड के ठीक नीचे जरीब का एक सिरा तीर की सहायता । से स्थिर कर देना चाहिए।
  3. जरीब का सिरा ढालू भूमि पर गडे हुए लम्बदण्ड के साथ ऐसे सटाकर रखना चाहिए कि जरीब लम्बदण्ड के साथ समकोण बनाये।
  4. दोनों लम्बदण्डों की क्षैतिज दूरी ज्ञात कर लेनी चाहिए।
  5. यह प्रक्रिया शेष लम्बदण्डों के साथ करके प्राप्त आँकड़ों को संयुक्त कर लेना चाहिए। ढालू भूमि की यह क्षैतिज दूरी होगी।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying 9
(2) तालाब या भवन – यदि सर्वेक्षण करते समय क्षेत्र के बीच कोई तालाब या भवन की बाधा आ खड़ी हो तो उसका निराकरण निम्नलिखित प्रकार से करना चाहिए –

  1. तालाब या भवन के दो छोरों पर दो अवस्थान अर्थात् स्टेशन निर्धारित कर लेने चाहिए।
  2. समकोण दण्ड की सहायता से उन दोनों अवस्थानों को मिलाने वाली रेखा पर समान दूरी से लम्ब डालने चाहिए।
  3. दोनों समकोणों के बीच की दूरी ज्ञात कर लेनी चाहिए। यही तालाब या भवन की वास्तविक क्षैतिज दूरी होगी।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying 10
(3) नदी या नाला – सर्वेक्षण करते समय किसी नदी या नाले की भी बाधा उत्पन्न हो सकती है। इसकी चौड़ाई को निम्नलिखित प्रकार से ज्ञात करके तालाब या नदी की बाधा का निराकरण हो सकता है –

  1. नदी या नाले के किनारे खड़े होकर समतल स्थान पर एक लम्बदण्ड ‘क’ गाड़ देना चाहिए।
  2. इसके ठीक सामने नदी के दूसरे किनारे पर कोई वृक्ष या टीला ‘ख’ निर्धारित कर लेना चाहिए।
  3. इस ओर लम्बदण्ड से लगभग 20 फीट आगे चलकर दूसरा दण्ड ‘ग’ गाड़ देना चाहिए।
  4. इन दोनों लम्बदण्डों के मध्य में अन्य लम्बदण्ड ‘भ’ गाड़ देना चाहिए।
  5. 20 फीट वाले लम्बदण्ड की सीध में एक अन्य लम्बदण्ड ‘घ’ इस प्रकार गाड़ देना चाहिए कि ‘ख’, ‘भ’ तथा ‘घ’ तीनों एक ही सीध में हो जाएँ।
  6. ग तथा ‘घ के मध्य की दूरी नदी या नाले की चौड़ाई को प्रकट करेगी।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying 11

जरीब-फीते द्वारा सर्वेक्षण के गुण-दोष
Merits and Demerits of Chain and Tape Surveying

गुण – जरीब-फीते द्वारा सर्वेक्षण विधि में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं –

  1. छोटे एवं समतल क्षेत्रों के लिए यह सर्वश्रेष्ठ विधि है।
  2. जरीब-फीते द्वारा सर्वेक्षण करना सरल और सुगम है। इसके लिए अधिक अभ्यास की आवश्यकता नहीं होती है।
  3. जरीब-फीते द्वारा सर्वेक्षण कम खर्चीला होता है, क्योंकि इसमें साधारण उपकरण ही प्रयुक्त किये जाते हैं।
  4. इसमें अन्य उपकरणों की अपेक्षा त्रुटि की सम्भावना बहुत कम है।
  5. इस विधि से क्षेत्र-पुस्तिका के विवरण के आधार पर मानचित्र सरलता से बना लिया जाता
  6. इस विधि में मानचित्र की सहायता से क्षेत्रफल सुगमता से ज्ञात हो सकता है, जबकि अन्य विधियों में ऐसा होना असम्भव है।

दोष – इस विधि द्वारा सर्वेक्षण में निम्नलिखित दोष हैं –

  1. जरीब लोहे की बनी होने के कारण बार-बार खींचने तथा पटकने से टेढ़ी हो जाती है, जिससे माप अर्थात् लम्बाई में कमी आ सकती है।
  2. ऊँचे-नीचे तथा ढालू क्षेत्रों में जरीब द्वारा शुद्ध भू-मापन में कठिनाई आती है।
  3. जरीब-फीते द्वारा भू-मापन में समय अधिक लगता है जिससे यह कार्य थका देने वाला होता है।
  4. बड़े-बड़े क्षेत्रों के लिए यह विधि अनुपयोगी एवं कठिन होती है।
  5. कभी-कभी जरीब की दूरियाँ पढ़ने में त्रुटि भी हो सकती है।
  6. इस विधि द्वारा सर्वेक्षण करने के बाद प्रयोगशाला में मानचित्र बनाने का कार्य अलग से करना पड़ता है।
  7. जरीब की लम्बाई पर तापमान का प्रभाव भी पड़ता है जिससे भू-मापन में त्रुटि आ सकती है।

प्रश्न 3
समतल मेज (Plane Table) सर्वेक्षण में कौन-कौन से उपकरण आवश्यक होते हैं? इस यन्त्र द्वारा सर्वेक्षण विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर

समतल मेज सर्वेक्षण
Plane Table Surveying

सर्वेक्षण की यह एक लेखाचित्रीय विधि (Graphical Method) है। इस विधि में क्षेत्र मापन एवं आलेखन (Plotting) साथ-साथ सर्वेक्षण क्षेत्र में ही हो जाता है।
समतल मेज सर्वेक्षण विधि के निम्नलिखित गुण होते हैं –

  1. यह विधि अधिक शुद्ध एवं सरल होती है।
  2. इस विधि में मानचित्र सर्वेक्षण के साथ-साथ क्षेत्र में ही तैयार हो जाता है। इसी कारण इसमें त्रुटियों की सम्भावना कम रहती है। यदि त्रुटि हो भी जाए तो उसे क्षेत्र में ही दूर कर लिया जाता है।
  3. इसमें सर्वेक्षण कार्य शीघ्रता से सम्पन्न हो जाता है, क्योंकि इसमें केवल आधार रेखा को ही मापना होता है। अन्य क्षैतिज रेखाओं को मापने की आवश्यकता नहीं होती है तथा न ही क्षेत्र-पुस्तिका बनाने की आवश्यकता पड़ती है।
  4. सर्वेक्षण की इस विधि में पूरा कार्य क्षेत्र में ही पूर्ण कर लिया जाता है। अतः सर्वेक्षणकर्ता क्षेत्र में ही तथ्यों की तुलना कर सकता है तथा भूल का सुधार भी क्षेत्र में ही खड़े-खड़े कर लिया जाता है।
  5. इस सर्वेक्षण में आवश्यकतानुसार सर्वेक्षण कार्य कभी भी रोका जा सकता है तथा पुन: प्रारम्भ किया जा सकती है।

समतल मेज सर्वेक्षण में आवश्यक उपकरण
Required Equipments in Plane Table Surveying

समतल मेज सर्वेक्षण में निम्नलिखित उपकरणों की आवश्यकता होती है –
(1) समतल मेज तथा त्रिपाद (Plane Table and Tripod) – समतल मेज लकड़ी से निर्मित एक प्रकार का समतल ड्राइंगबोर्ड होता है जिसे त्रिपाद पर एक पेंच की सहायता से कसा जा सकता है। तथा अलग किया जा सकता है। यह पट्ट 40×25 सेमी या 50×40 सेमी या 75×55 सेमी आदि नाप का होता है। त्रिपाद की तीन समान टाँगें होती हैं जिन्हें आवश्यकतानुसार इधर-उधर हटाया जा सकता है।
UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying 12
(2) दर्शरेखक (Alidade) – यह एक उपयोगी उपकरण है जो लकड़ी या धातु का बना होता है। इसकी लम्बाई 30 से 45 सेमी तक होती है। इसके एक छोर पर मापक बना होता है। दर्श रेखक के दोनों सिरों पर 8 सेमी लम्बे दो फलक लगे होते हैं जो एक कब्जे द्वारा इससे जुड़े होते हैं, जिन्हें आवश्यकतानुसार ऊपर-नीचे किया जा सकता है। एक फलक में एक लम्बवत् खिड़की बनी होती है, जिसे दृष्टक फलक (Eye vane) कहते हैं तथा दूसरे फलक की खिड़की में एक तार या धागा लगा होता है, जिसे दृश्य फलक (Object vane) कहते हैं। दर्श रेखक का प्रयोग करते समय उसे समतल मेज पर गाड़ी हुई आलपिन से सटाकर रखते हैं तथा दृष्टक फलक, दृश्य फलक के तार एवं धरातल के बिन्दु को। एक सीध में मिलाकर किरणें खींचते हैं।

(3) स्प्रिट लेविल (Spirit Level) – इस यन्त्र का प्रयोग मेज को समतल करने में किया जाता है। यह लकड़ी के एक आयताकार डिब्बे में एक ट्यूब के रूप में होता है जिसमें स्प्रिट भरी होती है। इसमें वायु का एक बुलबुला होता है अर्थात् ट्यूब में कुछ स्थान रिक्त छोड़ दिया जाता है। ट्यूब के ऊपर एक समतलन प्रक्रिया के लिए संकेत बना रहता है। जब बुलबुला इस संकेतक के बीच में आ जाता है, तब मेज समतल हो जाती है।
UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying 13
(4) दिक्सूचक (Compass) – विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 1 देखें।

(5) साहुल एवं चिमटा (Plumb Bob with Fork) – यह एक सामान्य-सा उपकरण होता है जिसका प्रयोग समतल मेज को किसी स्थान पर केन्द्रित करने के लिए किया जाता है। साहुल लोहे का बना होता है जो शंक्वाकार होता है जिसमें ऊपर की ओर धागा बँधा होता है। यह धागा चिमटे से बँधा होता है। इसके द्वारा धरातलीय बिन्दु समतल मेज पर स्थापित ड्राइंगशीट पर निश्चित किया जाता है।
UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying 14
(6) फीता (Tape) – विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 1 देखें।
(7) लक्ष्य दण्ड (Ranging Rod) – विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 1 देखें।
(8) तीर (Arrows) – विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 1 देखें।
(9) अन्य सामग्री (Other Materials) – उपर्युक्त उपकरणों के अतिरिक्त ड्राइंगशीट, पेन्सिल, रबड़, आलपिन, बोर्ड पिन आदि उपकरण आवश्यक होते हैं।

समतल मेज द्वारा सर्वेक्षण प्रक्रिया
Surveying Process by Plane Table

समतल मेज द्वारा सर्वेक्षण करते समय निम्नलिखित प्रक्रियाएँ करनी आवश्यक होती हैं –

  1. आधार-रेखा का चयन
  2. समतल मेज पर ड्राइंगशीट चढ़ाना
  3. सर्वेक्षण मेज की स्थापना –
    • त्रिपाद पर समतल मेज को स्थिर करना,
    • संकेद्रण (Centering) करना तथा
    • समतलन (Levelling) करना
  4. समतल पट्ट का अभिस्थापन (Orientation)
  5. धरातल के विभिन्न बिन्दुओं के लिए किरणें खींचना

समतल मेज का स्थापन
Setup of Plane Table

समतल मेज का स्थापन सर्वेक्षण क्षेत्र में किसी सुविधाजनक स्थान पर त्रिपाद की सहायता से इस प्रकार किया जाता है कि मेज से सभी धरातलीय बिन्दु स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होते हों। तत्पश्चात् मेज पर बोर्ड पिन की सहायता से ड्राइंगशीट लगायी जाती है। अब स्प्रिट लेविल की सहायता से मेज के त्रिपाद की टाँगों को खिसकाकर समतलन की क्रिया कर लेते हैं। समतल मेज के एक कोने में दिक्सूचक की सहायता से उत्तर दिशा अंकित कर दी जाती है। समतल मेज पर एक बिन्दु ‘क’ लेकर उसका धरातल से। केन्द्रीयकरण साहुल एवं चिमटे की सहायता से कर लेना चाहिए जिससे कागज के ‘क’ बिन्दु की स्थिति धरातल पर ज्ञात हो जाये। इसके बाद धरातल के इस ‘क’ बिन्दु से आधार-रेखा का चुनाव करते हैं। आधार-रेखा का चुनाव करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि ‘क’ ‘ख’ बिन्दुओं से सम्पूर्ण क्षेत्र भली- भाँति दिखाई पड़ता हो। आधार रेखा की लम्बाई सर्वेक्षण किये जाने वाले क्षेत्र के अनुरूप ही होनी चाहिए। आधार-रेखा का स्थापन समतल क्षेत्र में किया जाना चाहिए जिससे दूरियाँ अधिक शुद्ध रूप में नापी जा सकें। अब ‘क’ बिन्दु से दर्श रेखक की सहायता से धरातल के बिन्दुओं की स्थिति देखकर किरणें डाल दी जाती हैं।

समतल मेज का अभिस्थापन
Re-setup of Plane Table

समतल मेज का अभिस्थापन निम्नलिखित दो प्रकार से किया जाता है –
(1) दिक्सूचक की सहायता द्वारा – जब मेज को प्रथम स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर रखा जाता है तो दिक्सूचक की सहायता से पुनः उत्तर दिशा प्राप्त कर ली जाती है।
(2) पश्चावलोकन द्वारा – जब मेज को पहले स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर रखा जाता है तो प्रथम स्थान पर लक्ष्य दण्ड गाड़ देते हैं तथा आधार रेखा के सहारे दर्श रेखक की सहायता से समतल मेज़ को घुमाकर एक सीध में कर लिया जाता है। इस दूसरे स्थान पर समतलीकरण एवं केन्द्रीकरण भी करना आवश्यक होता है।

समतल मेज के अभिस्थापन के बाद निम्नलिखित विधियों द्वारा सर्वेक्षण किया जा सकता है –
(1) विकिरण विधि (Radiation Method) – इस विधि का प्रयोग एक ही बिन्दु से सर्वेक्षण करने में किया जाता है। इसके लिए सर्वेक्षण क्षेत्र छोटा होना चाहिए। सर्वप्रथम क्षेत्र के मध्य में समतल मेज का स्थापन कर लिया जाता है तथा दर्श रेखक की सहायता से सर्वेक्षण बिन्दु से प्रमुख बिन्दुओं की ओर इंगित करते हुए किरणें खींच देते हैं। इसके साथ ही केन्द्रीयकरण बिन्दु से धरातलीय दूरियाँ फीते की सहायता से नाप लेते हैं। एक निश्चित मापक को मानकर ड्राइंगशीट पर इन दूरियों को काट लेते हैं, जो धरातल के बिन्दुओं का मानचित्र पर प्रदर्शन होता है। इन सभी बिन्दुओं को मिलाने से क्षेत्र का मानचित्र तैयार कर लिया जाता है।
UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying 15
(2) प्रतिच्छेदन विधि (Inter-section Method) – इस विधि द्वारा किरणों के पारस्परिक प्रतिच्छेदन द्वारा विभिन्न धरातलीय स्थानों को ड्राइंगशीट पर अंकित कर लिया जाता है। इसी कारण इसे प्रतिच्छेदन विधि कहा जाता है। इसके लिए सर्वप्रथम एक आधार-रेखा का चुनाव किया जाता है। पुन: इस आधार-रेखा के दोनों बिन्दुओं से सर्वेक्षित क्षेत्र के विभिन्न बिन्दुओं को प्रकट करने वाली किरणों को खींच दिया जाता है। यही ड्राइंगशीट पर सर्वेक्षित बिन्दुओं की स्थिति होगी। यह विधि सर्वोत्तम है तथा सर्वाधिक प्रचलित है। यह ध्यान रखना होता है कि समतलीकरण, केन्द्रीकरण तथा उत्तर दिशा का निर्धारण समतल मेज के स्थापन तथा अभिस्थापन में कर लिया गया है, तत्पश्चात् ही किरणें खींची गयी हैं। इस आधार पर सर्वेक्षण क्रिया से प्राप्त मानचित्र शुद्ध होगा।
UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying 16
इन विधियों के अतिरिक्त दो विधियाँ और हैं, जो निम्नलिखित हैं –
(3) रेखांकन या चलन विधि (Traverse Method) –
(अ) खुला चलन सर्वेक्षण (Opened Traverse Surveying) एवं
(ब) बन्द चलन सर्वेक्षण (Closed Traverse Surveying)।

(4) स्थिति निर्धारण अथवा परिच्छेदन विधि (Resection Method)
(अ) दो बिन्दु समस्या (Two Point Problem) एवं
(ब) तीन बिन्दु समस्या (Three Point ङ्ग Problem)।
इस समस्या के निदान के लिए स्थिति का निर्धारण तीन प्रकार से किया जा सकता है –

  • लेखाचित्रीय विधि (Graphical Method)
  • यान्त्रिक विधि (Mechanical Method)
  • त्रुटि-त्रिभुज अथवा पुन: परीक्षा की विधि (Triangle of Error Method)

स्थिति निर्धारण अथवा परिच्छेदन विधि-का विस्तृत विवरण पाठ्यक्रम में नहीं दिया गया है।
UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying 17

मौखिक परिक्षा : सम्भावित प्रश्न

प्रश्न 1
सर्वेक्षण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
सर्वेक्षण वह कला है जिसके द्वारा धरातल के विभिन्न बिन्दुओं की सापेक्षिक दूरी को मापक के अनुसार समतल कागज पर प्रदर्शित किया जाता है।

प्रश्न 2
सर्वेक्षण कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर
सर्वेक्षण दो प्रकार के होते हैं – (अ) भू-पृष्ठीय सर्वेक्षण (Geodetic Survey) तथा
(ब) समतल सर्वेक्षण (Plane Survey)।

प्रश्न 3
सर्वेक्षण का उद्देश्य क्या है?
उत्तर
सर्वेक्षण का प्रमुख उद्देश्य किसी भूभाग का मानचित्र अथवा फोटो तैयार करना है।

प्रश्न 4
जरीब कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर
जरीब चार प्रकार की होती हैं –

  1. इन्जीनियर्स जरीब-100 फीट लम्बी
  2. गण्टर्स जरीब-66 फीट लम्बी
  3. रेवेन्यू जरीब-33 फीट लम्बी तथा
  4. मीटर जरीब-30 मीटर लम्बी।

प्रश्न 5
जरीब एवं फीता सर्वेक्षण से क्या तात्पर्य है? उत्तर जरीब एवं फीते की सहायता से किसी क्षेत्र का भू-मापन जरीब एवं फीता सर्वेक्षण कहलाता है।

प्रश्न 6
सर्वेक्षण में अधिकांशतः किस जरीब का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर
सर्वेक्षण में अधिकांशत: इन्जीनियर्स जरीब का प्रयोग किया जाता है।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying

प्रश्न 7
लक्ष्य दण्ड को विभिन्न रंगों से क्यों रँगा जाता है?
उत्तर
जिससे कि दूरवर्ती स्थान भी स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो सके।

प्रश्न 8
चुम्बकीय कम्पास की क्या उपयोगिता है?
उत्तर
इसका उपयोग मानचित्र में उत्तर दिशा का निर्धारण करने में किया जाता है।

प्रश्न 9
जरीब-फीता सर्वेक्षण में चैक लाइन का क्या उपयोग है?
उत्तर
चैक लाइन इस सर्वेक्षण की शुद्धता की जाँच के लिए खींची जाती है।

प्रश्न 10
टाइ लाइन का क्या अर्थ है?
उत्तर
दो जरीब रेखाओं द्वारा निर्मित कोण को सही निर्धारण करने के लिए पहली जरीब रेखा पर दूसरी जरीब रेखा के झुकावे को निश्चित करने वाली रेखा टाइ रेखा कहलाती है।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying

प्रश्न 11
समतल मेज सर्वेक्षण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
समतल मेज सर्वेक्षण, सर्वेक्षण की वह आरेखीय विधि है जिसमें सर्वेक्षण तथा आलेखन दोनों कार्य सर्वेक्षण क्षेत्र में ही एक साथ हो जाते हैं।

प्रश्न 12
समतल मेज सर्वेक्षण में स्प्रिट लेविल का क्या उपयोग है?
उत्तर
समतल मेज सर्वेक्षण में स्प्रिट लेविल मेज की समतलीकरण क्रिया करने में उपयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 13
समतल मेज द्वारा सर्वेक्षण करने की कौन-कौन-सी विधियाँ हैं?
उत्तर
समतल मेज सर्वेक्षण करने की चार विधियाँ निम्नवत् हैं –

  1. विकिरण विधि (Radiation Method)
  2. प्रतिच्छेदन विधि (Intersection Method)
  3. रेखांकन या चलन विधि (Traverse Method) तथा
  4. स्थिति निर्धारण अथवा परिच्छेदन विधि (Resection Method)।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying

प्रश्न 14
किरण किसे कहते हैं?
उत्तर
समतल मेज पर दर्श रेखक की सहायता से किसी लक्ष्य बिन्दु के लिए खींची जाने वाली सरल रेखा को किरणें (Rays) कहते हैं।

प्रश्न 15
केन्द्रीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
साहुल तथा चिमटे की सहायता से धरातल के निर्धारण बिन्दु को ड्राइंगशीट पर अंकित करने की प्रक्रिया केन्द्रीकरण कही जाती है।

प्रश्न 16
समतल मेज के अभिस्थापन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
समतल मेज को क्षेत्र में स्थापित कर समतल करना तथा चुम्बकीय उत्तर को निर्धारित करने की क्रिया स्थापन कहलाती है।

प्रश्न 17
समतल मेज का पुनस्र्थापन किसे कहा जाता है?
उत्तर
समतल मेज को प्रथम स्थान से उठाकरे दूसरे अभिस्थापन पर समतलीकरण एवं केन्द्रीकरण क्रिया द्वारा स्थापित करना पुनस्र्थापन कहा जाता है।

प्रश्न 18
समतल मेज सर्वेक्षण विधि की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर
समतल मेज सर्वेक्षण विधि की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  1. यह विधि अधिक सरल एवं शुद्ध होती है।
  2. इस विधि द्वारा सर्वेक्षण करने में कम समय लगता है।
  3. इसमें केवल आधार-रेखा ही मापी जाती है।
  4. क्षेत्र-पुस्तिका तथा अन्य लक्ष्य स्थानों के कोण आदि बनाने की आवश्यकता नहीं होती है।
  5. इस विधि द्वारा सर्वेक्षण करने में केवल दो व्यक्तियों की ही आवश्यकता होती है।।
  6. इसमें आलेखन का कार्य सर्वेक्षण क्षेत्र में सर्वेक्षण के साथ ही पूरा हो जाता है; अत: त्रुटियाँ कम होने की सम्भावना रहती है।
  7. यह विधि कम थकाने वाली होती है।

प्रश्न 19
समतल मेज सर्वेक्षण विधि के प्रमुख दोष क्या हैं?
उत्तर
समतल मेज सर्वेक्षण विधि के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं –

  1. इस सर्वेक्षण को तेज वायु, धूप एवं वर्षा ऋतु में करना कठिन होता है।
  2. इसका प्रयोग केवल समतल तथा खुले क्षेत्रों में ही ठीक रहता है।
  3. समतल मेज को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाने-ले जाने में कठिनाई होती है।
  4. बड़े क्षेत्रों का सर्वेक्षण करने में यह विधि अनुपयुक्त है।
  5. इस सर्वेक्षण में अनेक उपकरण होने से उनके क्षेत्र में खो जाने का भय रहता है।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying (सर्वेक्षण) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 5 Surveying (सर्वेक्षण), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 3 Theory of Price Determination

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 3 Theory of Price Determination (मूल्य-निर्धारण का सिद्धान्त) are part of UP Board Solutions for Class 12 Economics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 3 Theory of Price Determination (मूल्य-निर्धारण का सिद्धान्त).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 3
Chapter Name Theory of Price Determination (मूल्य-निर्धारण का सिद्धान्त)
Number of Questions Solved 24
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 3 Theory of Price Determination (मूल्य-निर्धारण का सिद्धान्त)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
“किसी वस्तु का बाजार मूल्य माँग व पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा निर्धारित होता है।” रेखाचित्र सहित व्याख्या कीजिए।
या
“जिस प्रकार हम इस बात पर विवाद कर सकते हैं कि कागज के एक टुकड़े को कैंची का ऊपर वाला या नीचे वाला फलक काटता है, उसी प्रकार हम इस बात पर भी विवाद कर सकते हैं कि मूल्य का निर्धारण तुष्टिगुण द्वारा होता है या उत्पादन लागत द्वारा।” मार्शल के इस कथन की व्याख्या कीजिए।
या
रेखाचित्र द्वारा कीमत-निर्धारण के सामान्य सिद्धान्त की विवेचना कीजिए। [2011]
उत्तर:
किसी वस्तु का मूल्य मुद्रा में निर्धारित करने के विषय में विभिन्न अर्थशास्त्रियों में मतभेद रहा है। परम्परावादी अर्थशास्त्री प्रो० एडम स्मिथ, रिकाड, माल्थस व मिल आदि मूल्य के निर्धारण में उत्पादन लागत को तथा ऑस्ट्रियन अर्थशास्त्री प्रो० जेवेन्स, मैन्जर तथा वालरस आदि तुष्टिगुण को अधिक महत्त्व प्रदान करते थे; परन्तु प्रो० मार्शल ने मूल्य के निर्धारण में समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाया तथा मूल्य के निर्धारण का सामान्य सिद्धान्त, जिसे माँग और पूर्ति का नियम (Law of Demand and Supply) या आधुनिक सिद्धान्त (Modern Theory) कहते हैं, प्रस्तुत किया। इस सिद्धान्त के अनुसार, ‘मूल्य के निर्धारण’ में माँग (तुष्टिगुण) और पूर्ति (उत्पादन लागत) दोनों ही शक्तियों का हाथ होता है। इन दोनों के परस्पर प्रभाव द्वारा कीमत का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है। जहाँ दोनों की सापेक्ष स्थिति समान होती है अर्थात् जहाँ माँग और पूर्ति मात्रा के बराबर होती हैं। इस बिन्दु को सन्तुलन बिन्दु कहते हैं। इस बिन्दु पर जो कीमत निश्चित होती है उसे सन्तुलित कीमत (Equilibrium Price) कहते हैं।

1. माँग पक्ष की व्याख्या – किसी वस्तु की कीमत के निर्धारण में माँग पक्ष से सम्बन्धित दो प्रश्न उठते हैं

  •  क्रेता किसी वस्तु के लिए कीमत क्यों देता है?
  • क्रेता किसी वस्तु के लिए अधिक-से-अधिक कितनी कीमत दे सकता है?

क्रेता की वस्तु के उपयोग से आवश्यकता की पूर्ति होती है, इसी कारण वह वस्तु के लिए कीमत देने को तैयार रहता है। वस्तु की आवश्यकता जितनी अधिक तीव्र होती है, क्रेता उसके लिए उतनी ही अधिक कीमत देने के लिए तत्पर रहता है, क्योंकि उसे वस्तु से उतना ही अधिक तुष्टिगुण मिलता है। क्रेता किसी वस्तु की अधिक-से-अधिक कितनी कीमत देने को तैयार हो जाएगा, यह आवश्यकता की तीव्रता पर निर्भर करता है; परन्तु सीमान्त तुष्टिगुण ह्रास नियम के अनुसार, किसी वस्तु की अधिकाधिक इकाइयों से मिलने वाला तुष्टिगुण क्रमशः घटता जाता है। अतः कोई भी क्रेता किसी वस्तु की अधिक-से-अधिक सीमान्त तुष्टिगुण के बराबर कीमत दे सकता है। क्रेता वस्तु की जितनी भी इकाइयाँ खरीदता है वे रूप और गुण में समान होती हैं; अत: वह वस्तु की प्रत्येक इकाई के लिए एक ही अर्थात् सीमान्त तुष्टिगुण के बराबर कीमत देता है। इस प्रकार किसी वस्तु की माँग तथा कीमत, सीमान्त तुष्टिगुण द्वारा निश्चित होती है। यह क्रेता द्वारा दी जाने वाली मूल्य की अधिकतम सीमा होती है।

2. पूर्ति पक्ष की व्याख्या – माँग पक्ष की भाँति ही पूर्ति के विषय में भी दो प्रश्न उठते हैं

  •  विक्रेता अपनी वस्तु के लिए कीमत क्यों माँगता है ?
  •  विक्रेता अपनी वस्तु के लिए कम-से-कम कितनी कीमत ले सकता है ?

वस्तुओं के उत्पादन में कुछ-न-कुछ व्यय अवश्य करना पड़ता है। इसलिए विक्रेता अपनी वस्तु के लिए कीमत माँगता है। कोई भी उत्पादक अपंना माल हानि पर अर्थात् उत्पादन व्यय से कम कीमत पर नहीं बेचना चाहता। वह हर सम्भव प्रयास करता है कि उसे अधिकाधिक कीमत मिले, परन्तु किसी भी दशा में वह उत्पादन लागत व्यय से कम कीमत पर अपना माल बेचने के लिए तैयार नहीं होता। उत्पादन लागत से तात्पर्य ।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 3 Theory of Price Determination 121
सीमान्त लागत (Marginal Cost) से है। अत: वस्तु का निम्नतम पूर्ति मूल्य, वस्तु की सीमान्त लागत के बराबर चावल की माँग व पूर्ति की मात्राएँ (क्विटलों में) होगा। यह वस्तु की कीमत की न्यूनतम सीमा होती है। इस कीमत से कम पर विक्रेता अपनी वस्तु बेचने के लिए तैयार नहीं हो सकता।

3. माँग और पूर्ति का सन्तुलन – मॉग पक्ष अथवा क्रेताओं की दृष्टि से किसी वस्तु की कीमत सीमान्त तुष्टिगुण से अधिक नहीं हो सकती। किसी भी दशा में वे सीमान्त तुष्टिगुण से अधिक कीमत देने के लिए तैयार नहीं होते। दूसरी ओर विक्रेता अथवा पूर्ति पक्ष अपनी वस्तु की न्यूनतम कीमत सीमान्त उत्पादन लागत व्यय से कम लेने को तैयार नहीं होते हैं। अत: कीमत दोनों सीमाओं (अधिकतम और न्यूनतम) के बीच माँग और पूर्ति की सापेक्ष शक्तियों के प्रभाव के अनुसार निर्धारित होती है अर्थात् कीमत माँग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा सीमान्त तुष्टिगुण द्वारा निर्धारित अधिकतम और सीमान्त लागत व्यय द्वारा निर्धारित न्यूनतम सीमा के बीच कहीं पर निश्चित होगी। क्रेता कम-से-कम कीमत देना चाहेगा और विक्रेता अधिक-से-अधिक कीमत प्राप्त करना चाहेगा। इस क्रम में जिस पक्ष की स्थिति सुदृढ़ होगी, कीमत उसके पक्ष में होगी। इस स्थिति में कीमत ऊपर-नीचे होती रहेगी और अन्त में यह उस बिन्दु पर निश्चित होगी जहाँ माँग और पूर्ति की मात्राएँ बराबर होंगी। यही स्थिति साम्य अथवा सन्तुलन की स्थिति कहलाती है।

इस प्रकार बाजार में कीमत गेंद की तरह इधर-उधर लुढ़कती रहेगी, परन्तु अन्त में वह सन्तुलन बिन्दु पर ही निर्धारित होगी। इस प्रकार पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में साम्य की स्थिति में – कीमत = सीमान्त तुष्टिगुण = सीमान्त लागत।

उपर्युक्त विवेचन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि वस्तु के मूल्य के निर्धारण में माँग और पूर्ति दोनों का ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनमें से कोई एक, दूसरे की सहायता के बिना स्वयं मूल्य निर्धारित नहीं कर सकता। मूल्य-निर्धारण में माँग व पूर्ति के सापेक्षिक महत्त्व को स्पष्ट करते हुए प्रो० मार्शल ने बताया है कि जिस प्रकार हम इस बात पर विवाद कर सकते हैं कि कागज के एक टुकड़े को कैंची को ऊपर वाला या नीचे वाला फलक काटता है, उसी प्रकार हम इस बात पर भी विवाद कर सकते हैं कि मूल्य का निर्धारण तुष्टिगुण द्वारा होता है या उत्पादन लागत द्वारा।”

प्रो० मार्शल के अनुसार, मूल्य-निर्धारण का सामान्य सिद्धान्त यह बताता है कि वस्तु का मूल्य सीमान्त तुष्टिगुण तथा सीमान्त उत्पादन व्यय के बीच में माँग और पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा उस स्थान पर निर्धारित होता है जहाँ वस्तु की पूर्ति उसकी माँग के बराबर होती है।
कीमत-निर्धारण के उपर्युक्त सिद्धान्त को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। किसी समय बाजार में चावल की माँग एवं पूर्ति को निम्नलिखित तालिका में दर्शाया गया है
माँग और पर्ति तालिका

चावल की माँग की मात्रा चावल का मूल्य प्रति क्विटल(₹ में) वस्तु की पूर्ति की मात्रा (किंवटल में)
500 1,200 1,300
700 1,000 1,000
900 800 900
1,000 600 700
1,300 400 500

माँग और पूर्ति की दी गयी तालिका मॉग और पूर्ति के नियम के अनुसार है। इस तालिका से स्पष्ट है कि कीमत बढ़ने पर माँग घट जाती है, किन्तु पूर्ति बढ़ जाती है। इसके विपरीत कीमत घट जाने पर माँग बढ़ जाती है और पूर्ति घट जाती है। साम्य की स्थिति में चावल की कीमत में ₹ 800 प्रति क्विटल होगी, क्योंकि इस कीमत पर ही माँग और पूर्ति की मात्राएँ समान हैं। यही कीमत सन्तुलित कीमत है। उपर्युक्त उदाहरण को रेखाचित्र द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है।

रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण
इस रेखाचित्र में अ ब रेखा पर चावल की माँग एवं पूर्ति और अ स रेखा पर चावल की कीमत दिखायी गयी है। उपर्युक्त तालिका में दिये गये आँकड़ों के आधार पर माँग और पूर्ति वक्र खींचे गये हैं। म म’ माँग वक्र और प प पूर्ति वक्र हैं। ये दोनों वक्र एक-दूसरे को स बिन्दु पर काटते हैं। यही सन्तुलन बिन्दु है, क्योंकि इस बिन्दु पर माँग और पूर्ति की मात्राएँ बराबर हैं। कीमत के क’ के बराबर है।

प्रश्न 2
मूल्य के निर्धारण में समय तत्त्व के महत्त्व की व्याख्या कीजिए। विभिन्न समयावधि में मूल्य के निर्धारण में मॉग और पूर्ति की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
या
कीमत-निर्धारण में समय तत्त्व की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रो० मार्शल प्रथम अर्थशास्त्री थे जिन्होंने मूल्य के निर्धारण में समय के महत्त्व पर विशेष बल दिया। उनके अनुसार, समयावधि मूल्य के निर्धारण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है। किसी वस्तु का मूल्य उसकी माँग और पूर्ति से निर्धारित होता है। मूल्य के निर्धारण में माँग और पूर्ति दोनों में किसकी महत्त्व अधिक है, यह समय या अवधि पर आधारित होता है। मूल्य के निर्धारण में माँग पक्ष अधिक प्रभावशाली होगा अथवा पूर्ति पक्ष, यह इस बात पर निर्भर होगा कि बाजार में माँग और पूर्ति को एक-दूसरे के साथ समायोजित होने के लिए कितना समय मिलता है। ऐसा इसलिए होता है कि पूर्ति की दशाएँ समयावधि के साथ बदलती रहती हैं। साधारणतया समयावधि जितनी लम्बी होती है, पूर्ति का प्रभाव उतना ही अधिक होता है और समयावधि जितनी छोटी होती है, उतना ही माँग का प्रभाव अधिक होता है।

कीमत के निर्धारण पर समय के प्रभाव को स्पष्ट करने के लिए प्रो० मार्शल ने बाजार का वर्गीकरण इस प्रकार किया है

  1. अति-अल्पकालीन बाजार,
  2. अल्पकालीन बाजार,
  3. दीर्घकालीन बाजार,
  4. अति-दीर्घकालीन बाजार।

1. अति-अल्पकाल में मूल्य-निर्धारण – अति-अल्पकाल उस स्थिति को बताता है जिसमें पूर्ति लगभग स्थिर रहती है। समय इतना कम होता है कि माँग के बढ़ने पर अधिक उत्पादन नहीं किया जा सकता, इसलिए पूर्ति मात्र स्टॉक तक ही सीमित होती है। पूर्ति के लगभग स्थिर होने के कारण कीमत माँग के द्वारा निर्धारित की जाती है। यदि माँग में वृद्धि होती है तो कीमत बढ़ जाती है और यदि माँग घट जाती है तो कीमत कम हो जाती है। अति-अल्पकालीन बाजार में कीमत माँग और पूर्ति के अस्थायी सन्तुलन का परिणाम होती है, इस कारण मूल्य के निर्धारण में ‘माँग’ का प्रभाव अधिक होता है।

2. अल्पकाल में मूल्य-निर्धारण – अल्पकाल वह अवधि है जिसमें पूर्ति पूर्णतया निश्चित नहीं होती। उसमें कुछ परिवर्तन किया जा सकता है, परन्तु उसे माँग के अनुसार नहीं बढ़ाया जा सकता। केवल अल्पकाल में परिवर्तनशील साधन; जैसे – श्रम, कच्चा माल, शक्ति के साधनों आदि की मात्रा में वृद्धि करके उत्पादन में कुछ वृद्धि की जा सकती है, इसलिए पूर्ति पूर्णतया अनिश्चित होती है; अत: उसे माँग के बराबर नहीं बढ़ाया जा सकता, क्योंकि मशीनों की उत्पादन क्षमता निश्चित होती है और इतने कम समय में नई ‘फर्मे भी उद्योग में प्रवेश नहीं कर सकतीं। अत: अल्पकाल में भी कीमत के निर्धारण में मुख्य प्रभाव माँग का रहता है, क्योंकि पूर्ति में अधिक परिवर्तन करना सम्भव नहीं होता।।

3. दीर्घकाल में मूल्य – निर्धारण दीर्घकाल में इतना पर्याप्त समय होता है कि वस्तु की पूर्ति को घटा-बढ़ाकर माँग के अनुसार किया जा सकता है। इसमें इतना समय मिल जाता है कि उत्पत्ति के सभी साधनों में परिवर्तन किया जा सकता है। दीर्घकाल में किसी वस्तु की पूर्ति को वर्तमान मशीनों की क्षमता को बढ़ाकर या उद्योग में नई फर्मों के प्रवेश के द्वारा बढ़ाया जा सकता है। इसी प्रकार मशीनों की क्षमता को कम करके या उद्योगों से कुछ फर्मों के बहिर्गमन के द्वारा पूर्ति को घटाया जा सकता है। इसलिए कीमत पर माँग का प्रभाव बहुत कम हो जाता है तथा कीमत का निर्धारण अधिकांश रूप से पूर्ति की शक्तियों के द्वारा होता है। दीर्घकाल में किसी वस्तु की कीमत उसकी उत्पादन लागत से बहुत ऊपर अथवा बहुत नीचे नहीं रह सकती है। दीर्घकालीन कीमत माँग और पूर्ति के बीच स्थायी और स्थिर सन्तुलन की परिणाम होती है। अत: दीर्घकालीन कीमत को दीर्घकालीन सामान्य कीमत भी कहा जाता है।

4. अति-दीर्घकाल में मूल्य-निर्धारण – जबे समय इतना अधिक लम्बा हो कि उसमें माँग और पूर्ति की परिस्थितियाँ ही बदल जाएँ तो उसे दीर्घकाल कहते हैं। दीर्घकाल में मूल्य के निर्धारण में पूर्ति पक्ष का प्रभाव अधिक रहता है।

प्रो० मार्शल के अनुसार, “सामान्यतः काल जितना अल्प होता है, कीमत पर माँग का प्रभाव उतना ही अधिक होता है और काल जितना ही दीर्घ होता है, कीमत पर लागत (पूर्ति) का प्रभाव उतना ही अधिक होता है।” मत के निर्धारण के सम्बन्ध में यह बात लागू नहीं होती है कि कीमत का निर्धारण कुछ परिनिया में केवल माँग द्वारा होता है और कुछ अन्य परिस्थितियों में अकेले पूर्ति द्वारा।
प्रो० मार्शल के अनुसार, “जिस प्रकार कागज काटने के लिए कैंची के दोनों फलकों का उपयोग आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार कीमत-निर्धारण में माँग और पूर्ति दोनों की ही आवश्यकता होती है। यह सत्य है कि समय जितना अल्प होगा, उतना ही मूल्य के ऊपर माँग का प्रभाव अधिक होगा। इसके विपरीत समय जितना अधिक होगा, वस्तु के मूल्य पर पूर्ति का प्रभाव उतना ही अधिक होगा।’

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
माँग, मूल्य व पूर्ति की पारस्परिक निर्भरता यो सम्बन्ध को समझाइए।
उत्तर:
माँग, मूल्य और पूर्ति के सम्बन्ध को निम्नवत् स्पष्ट किया जा सकता है

1. मूल्य, माँग व पूर्ति पर निर्भर रहता है – जिस प्रकार कागज काटने के लिए कैंची के दोनों फलकों का उपयोग आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार कीमत (मूल्य) के निर्धारण में माँग और पूर्ति दोनों की ही आवश्यकता होती है। उनके परस्पर प्रभाव द्वारा मूल्य का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर दोनों की सापेक्ष स्थिति एक-सी होती है अर्थात् जहाँ पर माँग और पूर्ति दोनों ही मात्रा में बराबर होती हैं। इस प्रकार कहा जाता है कि मूल्य की स्थिति माँग व पूर्ति पर निर्भर करती है।

2. मॉग, मूल्य व पूर्ति पर – माँग और मूल्य में घनिष्ठ सम्बन्ध है। किसी वस्तु को खरीदने और व्यय करने की तत्परता (Willingness) पर मूल्य का बड़ा प्रभाव पड़ता है। कोई व्यक्ति वस्तु की कितनी मात्रा खरीदेगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वस्तु का बाजार में कितना मूल्य है। जब हम कहते हैं कि बाजार में गेहूं की माँग एक हजार क्विटल है तो हमें इसके साथ यह भी बताना चाहिए कि यह माँग किस मूल्य पर है। माँग और मूल्य के घनिष्ठ सम्बन्ध के कारण ही यह कहा जाता है कि माँग से अभिप्राय वस्तु की उस मात्रा से है जो किसी निश्चित समय में किसी एक विशेष कीमत पर खरीदी जाएगी। इस प्रकार बिना मूल्य के माँग अर्थहीन है।

माँग, पूर्ति पर भी निर्भर रहती है। माँग और पूर्ति में घनिष्ठ सम्बन्ध है। कोई व्यक्ति वस्तु की कितनी मात्रा खरीदेगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वस्तु की बाजार में कितनी पूर्ति है। बिना पूर्ति के माँग का कोई अर्थ नहीं होता। जब हम कहते हैं कि बाजार में गेहूं की माँग एक हजार क्विटल है तो हमें उसके साथ यह भी बताना चाहिए कि इस मूल्य पर वस्तु की कितनी पूर्ति है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि वस्तु की माँग, मूल्य व वस्तु की पूर्ति पर निर्भर रहती है कि वस्तु कितनी मात्रा में खरीदी जाएगी।

3. पूर्ति, मूल्य व माँग पर – किसी वस्तु का उत्पादन कितनी मात्रा में किया जाए, यह वस्तु की माँग पर निर्भर करता है। उपभोक्ताओं की रुचि, फैशन तथा आय पर वस्तु की माँग निर्भर रहती है। लोग जितनी अधिक वस्तुओं की माँग करेंगे, वस्तु का मूल्य उतना ही अधिक होगा; अत: उत्पादक लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से वस्तुओं का अधिक उत्पादन करेंगे जिसके कारण वस्तुओं की पूर्ति बढ़ेगी। कीन्स का रोजगार सिद्धान्त प्रभावपूर्ण माँग सिद्धान्त पर आधारित है। माँग जितनी अधिक होगी, वस्तुओं का उत्पादन या पूर्ति उतनी ही अधिक होगी। इस प्रकार माँग पूर्ति को प्रभावित करती है।
पूर्ति और मूल्य का घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। किसी वस्तु की पूर्ति साधारणतया कीमत पर निर्भर होती है। कीमत बढ़ने पर पूर्ति भी बढ़ जाती है और कीमत घटने पर पूर्ति भी घट जाती है। अर्थशास्त्र में पूर्ति का अभिप्राय वस्तु की उस मात्रा से होता है जो किसी समय एक मूल्य-विशेष पर बिकने आती है। अंतः बिना मूल्य का उल्लेख किये पूर्ति का कोई अर्थ नहीं होता। इस प्रकार स्पष्ट है कि वस्तु की पूर्ति वस्तु की मॉग व मूल्य पर निर्भर होती रहती है।

प्रश्न 2
सामान्य मूल्य की परिभाषा तथा विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
अर्थशास्त्र में सामान्य मूल्य से आशय है किसी वस्तु का वह मूल्य जो वस्तु की माँग व पूर्ति की। स्थायी शक्तियों द्वारा दीर्घकाल में निश्चित होता है। यह माँग व पूर्ति के स्थायी साम्य का परिणाम होता है। यह मूल्य दीर्घकाल तक रहता है; अत: यह मूल्य स्थिर रहता है तथा लागत मूल्य के बराबर होता है।

परिभाषा – मार्शल के अनुसार, “किसी निश्चित वस्तु का सामान्य मूल्य वह है जो कि अधिक शक्तियों द्वारा दीर्घकाल में निर्धारित होता है। इस मूल्य पर माँग की अपेक्षा पूर्ति का अधिक प्रभाव होता है, क्योंकि दीर्घकाल में पूर्ति में परिवर्तन लाया जा सकता है।

सामान्य मूल्य के निम्नलिखित लक्षण या विशेषताएँ हैं

1. यह दीर्घकाल में होता है – माँग और पूर्ति के सन्तुलन का परिणाम दीर्घकाल में होने के कारण इसे दीर्घकालीन मूल्य कहते हैं।

2. सामान्य मूल्य के निर्धारण में पूर्ति का अधिक महत्त्व होता है – इस पर माँग की अपेक्षा पूर्ति का अधिक प्रभाव हैं, क्योंकि दीर्घकाल में पूर्ति को माँग के अनुसार घटाया-बढ़ाया जा सकता है।

3. मॉग व पूर्ति के सन्तुलन का स्थायी परिणाम होता है – दीर्घकाल में पूर्ति को माँग के साथ समन्वय का पूरा समय मिल जाता है। इस कारण यह माँग व पूर्ति के स्थायी साम्य का परिणाम होता है।

4. यह सीमान्त व औसत लागत के बराबर होता है – दीर्घकाल में समयावधि इतनी लम्बी होती है कि सीमान्त लागत औसत लागत के बराबर हो जाती है। अत: सामान्य मूल्य सीमान्त व औसत दोनों लागतों के बराबर होता है।

5. यह काल्पनिक होता है – यह व्यावहारिक जीवन में सम्भव नहीं होता है। यह केवल काल्पनिक होता है।

6. यह मूल्य स्थिर रहता है – इसके मूल्य में बाजार मूल्य की तरह परिवर्तन नहीं होते। यह स्थायी रहता है।

7. सामान्य मूल्य धुरी के समान होता है – इस मूल्य के चारों ओर बाजार मूल्य चक्कर काटा करता है। अतः यह धुरी के समान होता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
बाजार मूल्य एवं सामान्य मूल्य में अन्तर बताइए। [2016]
उत्तर:
बाजार मूल्य एवं सामान्य मूल्य में अन्तर

क्र० सं० बाजार मूल्य सामान्य मूल्य
1. अल्पकालीन मूल्य होता है। सामान्य मूल्य दीर्घकालीन मूल्य होता है।
2. इसमें परिवर्तन होते रहते हैं। यह अस्थायी होता है।
3. यह माँग व पूर्ति के अस्थायी प्रभाव का परिणाम होता है। यह माँग और पूर्ति के स्थायी साम्य का परिणाम होता है।
4. यह वास्तविक जीवन में पाया जाता है। यह काल्पनिक होता है।
5. यह पुनरुत्पादनीय और अपुनरुत्पादनीय दोनों प्रकार की वस्तुओं का होता है। यह केवल पुनरुत्पादनीय वस्तुओं का होता है।
6. यह सामान्य मूल्य के चारों ओर चक्कर काटता रहता है। यह मूल्य धुरी के समान होता है और स्थिर रहता है।
7. यह लागत मूल्य से ऊँचा-नीचा होता रहता है। यह सीमान्त व औसत, दोनों लागतों के बराबर होता है।
8. इस पर माँग का व्यापक प्रभाव होता है। इस पर पूर्ति का अधिक प्रभाव होता है।

प्रश्न 2
बाजार और सामान्य मूल्य में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर:
बाजार मूल्य की प्रवृत्ति सदैव सामान्य मूल्य के बराबर होने की होती है। बाजार मूल्य सामान्य मूल्य के चारों ओर चक्कर काटता रहता है। यह अधिक समय तक सामान्य मूल्य से बहुत नीचा या ऊँचा नहीं रह सकता। सामान्य मूल्य लागत मूल्य के बराबर होता है, किन्तु बाजार मूल्य घटता-बढ़ता रहता है। इतना होते हुए बाजार मूल्य की प्रवृत्ति सदा सामान्य मूल्य की ओर बढ़ने लगती है। यदि बाजार मूल्य सामान्य मूल्य से अधिक ऊँचा हो जाता है तो उत्पादकों को असाधारण लाभ होने लगेगा और वे इस वस्तु का उत्पादन बढ़ाएँगे। दूसरे उत्पादक भी इस वस्तु का उत्पादन करने लगेंगे। वस्तु की पूर्ति माँग के बराबर हो जाएगी और मूल्य गिरकर सामान्य मूल्य के बराबर हो जाएगा।

इसी प्रकार, यदि माँग कम हो जाने के कारण किसी वस्तु का बाजार मूल्य सामान्य मूल्य से नीचा होता है तो उत्पादकों को हानि होने लगेगी। वे इस वस्तु का उत्पादन कम कर देंगे तथा कुछ अन्य उत्पादक भी इसका उत्पादन बन्द कर देंगे। इस प्रकार वस्तु की पूर्ति कम होकर माँग के अनुसार हो जाएगी और बाजार मूल्य सामान्य मूल्य के बराबर हो जाएगा। इस प्रकार मूल्य बार-बार सामान्य मूल्य के बराबर होता रहता है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
“मूल्य के निर्धारण में उत्पादन लागत का अधिक महत्त्व रहता है। यह मत किन अर्थशास्त्रियों का है ?
उत्तर:
परम्परावादी अर्थशास्त्री प्रो० एडम स्मिथ, रिकाड, माल्थस व मिल आदि अर्थशास्त्रियों का मत है कि मूल्य-निर्धारण में उत्पादन लागत का अधिक महत्त्व रहता है।

प्रश्न 2
“मूल्य के निर्धारण में तुष्टिगुण अर्थात माँग पक्ष का अधिक महत्त्व रहता है। यह मत किन अर्थशास्त्रियों का था ?
उत्तर:
ऑस्ट्रियन अर्थशास्त्री प्रो० जेवेन्स, मैन्जर तथा वालरस आदि मूल्य के निर्धारण में तुष्टिगुण को अधिक महत्त्व प्रदान करते थे।

प्रश्न 3
प्रो० मार्शल के अनुसार मूल्य-निर्धारण का सामान्य सिद्धान्त क्या है ?
उत्तर:
प्रो० मार्शल के अनुसार मूल्य-निर्धारण का सामान्य सिद्धान्त यह बताता है कि, “वस्तु का मूल्य सीमान्त तुष्टिगुण तथा सीमान्त उत्पादन लागत के बीच में माँग और पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा उस स्थान पर निर्धारित होता है, जहाँ वस्तु की पूर्ति उसकी माँग के बराबर होती है।”

प्रश्न 4
बाजार मूल्य की सामान्य प्रवृत्ति क्या होती है ?
उत्तर:
बाजार मूल्य की प्रवृत्ति सदैव सामान्य मूल्य के बराबर होने की होती है। बाजार मूल्य सामान्य मूल्य के चारों ओर चक्कर काटता रहता है।

प्रश्न 5
बाजार मूल्य की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. बाजार मूल्य माँग वे पूर्ति के अस्थायी प्रभाव का परिणाम होता है।
  2.  यह लागत मूल्य से ऊँचा-नीचा होता रहता है।

प्रश्न 6
किस प्रकार के बाजार में कीमत के निर्धारण में माँग का प्रभाव अधिक होता है ?
उत्तर:
अति-अल्पकालीन बाजार में पूर्ति निश्चित होने के कारण मूल्य मुख्यतया माँग पर आधारित होता है। अत: अति-अल्पकालीन बाजार में कीमत-निर्धारण में माँग का प्रभाव अधिक होता है।

प्रश्न 7
प्रो० मार्शल ने समय को कितने भागों में बाँटा है ?
उत्तर:
प्रो० मार्शल ने समय को चार भागों में बाँटा है।

प्रश्न 8
किसी वस्तु का बाजार मूल्य किन शक्तियों द्वारा निर्धारित होता है ?
उत्तर:
मॉग और पूर्ति की सापेक्ष शक्तियों द्वारा निर्धारित होता है।

प्रश्न 9
बाजार मूल्य किस प्रकार की वस्तुओं का होता है ?
उत्तर:
केवल भण्डार तक रखी वस्तुओं का अर्थात् जिन वस्तुओं की पूर्ति भण्डार की मात्रा तक बढ़ायी जा सकती है।

प्रश्न 10
सब्जियों के मूल्य के निर्धारण में किस पक्ष की प्रधानता होती है, माँग पक्ष की या पूर्ति पक्ष की ?
उत्तर:
माँग पक्ष की।

प्रश्न 11
कीमत-निर्धारण में समय कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर:
कीमत-निर्धारण में समय चार प्रकार का होता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
वस्तु के मूल्य-निर्धारण में उत्पादन लागत को महत्त्व प्रदान करने वाले अर्थशास्त्री हैं
(क) प्रो० एडम स्मिथ
(ख) रिकाड
(ग) माल्थस व मिल
(घ) ये सभी
उत्तर:
(घ) ये सभी।

प्रश्न 2
वस्तु के मूल्य-निर्धारण में तुष्टिगुण को महत्त्व प्रदान करने वाले अर्थशास्त्री हैं
(क) प्रो० जेवेन्स
(ख) मैन्जर तथा वालरस
(ग) (क) तथा (ख) दोनों
(घ) माल्थस व मिल
उत्तर:
(ग) (क) तथा (ख) दोनों।।

प्रश्न 3
वस्तु के मूल्य-निर्धारण में समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाने वाले अर्थशास्त्री हैं
(क) प्रो० जेवेन्स
(ख) प्रो० माल्थस
(ग) प्रो० मार्शल
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) प्रो० मार्शल।।

प्रश्न 4
मार्शल के ‘माँग एवं पूर्ति का नियम’ को इस नाम से भी पुकारते हैं
(क) माँग का सिद्धान्त
(ख) आधुनिक सिद्धान्त
(ग) सीमान्त लागत का सिद्धान्त ।
(घ) ये सभी
उत्तर:
(ख) आधुनिक सिद्धान्त।।

प्रश्न 5
यदि बाजार मूल्य सामान्य से अधिक ऊँचा हो, तो
(क) उत्पादकों को सामान्य हानि होने लगेगी
(ख) उत्पादकों को सामान्य लाभ होने लगेगा
(ग) उत्पादकों को असाधारण लाभ होगा
(घ) उत्पादकों को असाधारण हानि होने लगेगी
उत्तर:
(ग) उत्पादकों को असाधारण लाभ होगा।

प्रश्न 6
कीमत-निर्धारण में समय के महत्त्व को बतलाया था
(क) ए० मार्शल ने
(ख) ए० सी० पीगू ने
(ग) एल० रॉबिन्स ने
(घ) जे० के० मेहता ने
उत्त:
(क) ए० मार्शल ने।

प्रश्न 7
“एक वस्तु की कीमत के निर्धारण में माँग और पूर्ति दोनों का समान महत्त्व होता है।” यह कथन है
(क) ए० सी० पीगू का
(ख) जे० के० मेहता का
(ग) डेविड रिकार्डों का
(घ) ए० मार्शल का
उत्तर:
(घ) ए० मार्शल का।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 3 Theory of Price Determination (मूल्य-निर्धारण का सिद्धान्त) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 3 Theory of Price Determination (मूल्य-निर्धारण का सिद्धान्त), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Psychology Chapter 12 Natural Disasters (प्राकृतिक आपदाएँ)

UP Board Solutions for Class 12 Psychology Chapter 12 Natural Disasters (प्राकृतिक आपदाएँ)
are part of UP Board Solutions for Class 12 Psychology. Here we have given UP Board Solutions for Class 12  Psychology Chapter 12 Natural Disasters (प्राकृतिक आपदाएँ)

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Psychology
Chapter Chapter 12
Chapter Name  Natural Disasters
(प्राकृतिक आपदाएँ)
Number of Questions Solved 60
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Psychology Chapter 12 Natural Disasters (प्राकृतिक आपदाएँ)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
आपदाओं से आप क्यों समझते हैं? आपदाओं के विभिन्न प्रकारों का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर
इस जगत में घटित होने वाली असंख्य घटनाओं की निरन्तरता ही जीवन है। घटनाएँ। असंख्य प्रकार की होती हैं। कुछ घटनाएँ सामान्य जीवन की प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होने में सहायक होती हैं, जबकि कुछ अन्य घटनाएँ बाधक होती हैं। सामान्य जीवन की गति को अवरुद्ध करने वाली घटनाओं को हम दुर्घटना की श्रेणी में रखते हैं। जब कुछ दुर्घटनाएँ व्यापक तथा विकराल रूप में घटित होती हैं तो उन्हें हम ‘आपदा’ या ‘विपत्ति’ कहते हैं।

सामान्य रूप से जब गम्भीर आपदा या विपत्ति की बात की जाती है तो हमारा आशय मुख्य रूप से उन प्राकृतिक घटनाओं से होता है जो जनजीवन एवं सम्पत्ति आदि पर गम्भीर, प्रतिकूल यो। विनाशकारी प्रभाव डालती हैं। प्राकृतिक आपदाओं के मुख्य रूप या प्रकार हैं-भूकम्प, बाढ़, सूखा, भूस्खलन ज्वालामुखी का फटना, तूफान, समुद्री तूफान, ओलावृष्टि, बादल फटना, सूनामी या समुद्री लहरें, उल्कापात, महामारियाँ। इन सभी प्राकृतिक आपदाओं का यदि विश्लेषण किया जाए तो हम कह सकते हैं कि उन विषम या प्रतिकूल प्रभाव वाली दशाओं को आपदाएँ कहा जाता है जो मनुष्यों, जीव-जगत था सामान्य जनजीवन को व्यापक रूप से प्रभावित करती हैं तथा पहले से चली आ रही जीवन सम्बन्धी सामान्य गतिविधियों में बाधा डालती हैं। इस तथ्य को इन शब्दों में भी कहा जा सकता है, उन समस्त दशाओं को आपदा कहा जाता है, जिनमें मनुष्य तथा जैव समुदाय, प्राकृतिक, मानवीय, पर्यावरणीय या सामाजिक कारणों से गम्भीर जान-माल की क्षति सहन करने के लिए बाध्य हो  जाता है।”

हिन्दी भाषा में प्रयोग होने वाला ‘आपदा’ शब्द का अंग्रेजी पर्याय Disaster है। अंग्रेजी भाषा का यह शब्द वास्तव में फ्रेंच भाषा के शब्द Desastre से लिया गया है, जिसका आशय ग्रह से है। प्राचीन विश्वासों के अनुसार प्राकृतिक आपदाएँ कुछ अनिष्टकारी तारों या ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव के कारण उत्पन्न होती हैं। वर्तमान वैज्ञानिक खोजों ने इस प्राचीन विश्वास को खण्डित कर दिया है। अब यह जान लिया गया है कि प्रायः सभी आपदाएँ अपने आप में प्राकृतिक घटनाएँ ही हैं तथा उनके कारण भी प्राकृतिक ही होते हैं। प्राकृतिक आपदाएँ उन गम्भीर प्राकृतिक घटनाओं को कहा जाता है, जिनके प्रभाव से हमारे सामाजिक ढाँचे व विभिन्न व्यवस्थाओं को गम्भीर क्षति पहुँचती है।

इनसे मनुष्यों एवं अन्य जीव-जन्तुओं का जीवन समाप्त हो जाता है तथा हर प्रकार की सम्पत्ति को भी नुकसान होता है। इस प्रकार की आपदाओं से मनुष्यों का सामाजिक-आर्थिक जीवन भी अस्त-व्यस्त हो जाता है। ऐसे में जनजीवन को पुनः सामान्य बनाने के लिए तथा पुनर्वास के लिए व्यापक स्तर पर बाहरी सहायता की आवश्यकता होती है। वर्तमान समय में विश्व-मानव प्राकृतिक आपदाओं के प्रति पर्याप्त सचेत है तथा इन अवसरों पर विश्व के कोने-कोने से सहायता एवं सहानुभूति प्राप्त हो जाती है।

आपदाओं के प्रकार
(Kinds of Disasters)

यहू सत्य है कि गम्भीर एवं व्यापक आपदाएँ मुख्य रूप से प्राकृतिक कारकों से ही उत्पन्न होती हैं, परन्तु कुछ आपदाएँ अन्य कारकों के परिणामस्वरूप भी उत्पन्न हो सकती हैं। इस स्थिति में आपदाओं के व्यवस्थित अध्ययन के लिए आपदाओं का समुचित वर्गीकरण करना भी आवश्यक माना जाता है। आपदाओं के मुख्य प्रकार या वर्ग निम्नलिखित हो सकते हैं

1. आकस्मिक रूप से घटित होने वाली आपदाएँ- कुछ आपदाएँ या प्राकृतिक घटनाएँ ऐसी हैं। जो एकाएक या आकस्मिक रूप से घटित हो जाती हैं तथा अल्प समय में ही गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव डाल  देती हैं। इनकी न तो कोई पक्की पूर्व-सूचना होती है और न निश्चित भविष्यवाणी ही की जा सकती है। इस वर्ग की आपदाओं को आकस्मिक रूप से घटित होने वाली आपदाएँ कहा जाता है। इस वर्ग की मुख्य आपदाएँ हैं-भूकम्प, ज्वालामुखी का विस्फोट, सूनामी, बादल का फटना, चक्रवातीय तूफान, भूस्खलन तथा हिम की आँधी। इन आपदाओं के प्रति सचेत न होने के कारण जान-माल की भारी क्षति हो जाती है।

2. धीरे-धीरे अथवा क्रमशः आने वाली आपदाएँ- दूसरे वर्ग में उन आपदाओं को सम्मिलित किया जाता है जो आकस्मिक रूप से नहीं बल्कि धीरे-धीरे आती हैं तथा उनकी गम्भीरता क्रमशः बढ़ती है। इस वर्ग की आपदाओं की समुचित पूर्व-सूचना होती है तथा उनकी भावी गम्भीरता की भी भविष्यवाणी की जा सकती है। इस वर्ग की आपदाओं के पीछे प्रायः प्राकृतिक कारकों के साथ-ही-साथ मनुष्य के कुप्रबन्धन या पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ सम्बन्धी कारक भी निहित होते हैं। इस वर्ग की मुख्य आपदाएँ हैं—सूखा, अकाल, किसी क्षेत्र का मरुस्थलीकरण, मौसम एवं जलवायु सम्बन्धी परिवर्तन, कृषि पर कीड़ों का प्रभाव तथा पर्यावरण-प्रदूषण। इन आपदाओं का मुकाबला किया जा सकता है तथा इन्हें नियन्त्रित करने के भी उपाय किये जा सकते हैं।

3. मानवजनित अथवा सामाजिक आपदाएँ– तीसरे वर्ग की आपदाओं को हम मानव-जनित अथवा सामाजिक आपदाएँ कहते हैं। इस प्रकार की आपदाओं के लिए कोई भी प्राकृतिक कोरक जिम्मेदार नहीं होता बल्कि ये आपदाएँ मानवीय लापरवाही, कुप्रबन्धन, षड्यन्त्र अथवा समाज-विरोधी तत्त्वों की गतिविधियों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं। इस वर्ग की आपदाओं में मुख्य हैं—युद्ध, दंगा, आतंकवाद, अग्निकाण्ड, सड़क दुर्घटनाएँ, वातावरण को दूषित करना तथा जनसंख्या विस्फोट आदि। इस वर्ग की आपदाओं को विभिन्न प्रयासों एवं जागरूकता से नियन्त्रित किया जा सकता है।

4. जैविक आपदाएँ या महामारी- चतुर्थ वर्ग की आपदाओं में उन आपदाओं को सम्मिलित किया जाता है जिनका सम्बन्ध मनुष्यों के शरीर एवं स्वास्थ्य से होता है। साधारण शब्दों में हम कह सकते हैं कि व्यापक स्तर पर फैलने वाले संक्रामक एवं घातक रोगों को इस वर्ग की आपदा माना जा सकता है। उदाहरण के लिए, एक समय था जब प्लेग, हैजा, चेचक आदि संक्रामक रोग प्रायः गम्भीर आपदा के रूप में देखें, जाते थे। इन रोगों के प्रकोप से प्रतिवर्ष लाखों व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती थी। वर्तमान समय में एड्स, तपेदिक, हेपेटाइटिस-बी डेगू तथा चिकनगुनिया जैसे रोगों को जैविक आपदा के रूप में देखा जा रहा है।

प्रश्न 2
आग लगना या अग्निकाण्ड किस प्रकार की आपदा है? इसके कारणों, बचाव तथा । सम्बन्धित प्रबन्धन के उपायों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
सभ्य मानव-जीवन तथा आग का घनिष्ठ सम्बन्ध है। सभ्यता के विकास से पूर्व मनुष्य आग से परिचित नहीं था। वह आग जलाना नहीं जानता था। इस ज्ञान के अभाव में वह जंगल के कन्द-मूल, फल तथा पशुओं का कच्चा मांस खाकर ही जीवन-यापन करता था। स्पष्ट है कि आग जलाने के ज्ञान के अभाव में व्यक्ति का जीवन पशु-तुल्य ही था। जैसे ही मनुष्य ने आग जलाना सीख लिया, वैसे ही उसने सभ्यता के मार्ग पर अग्रसर होना प्रारम्भ कर दिया। आज हमारे जीवन की असंख्य गतिविधियाँ आग पर ही निर्भर हैं। सर्वप्रथम हमारा आहार या भोजन पूर्ण रूप से आग (ताप) पर ही निर्भर है। पाक-क्रिया की चाहे जिस विधि को अपनाया जाए, प्रत्येक दशा में ताप अर्थात् आग एक अनिवार्य कारक है। इस प्रकार आग हमारे रसोईघर का अनिवार्य साधन है। आहार के अतिरिक्त जीवन के अन्य सभी क्षेत्रों में भी आग की महत्त्वपूर्ण एवं अनिवार्य भूमिका है। औद्योगिक क्षेत्र में, परिवहन एवं यातायात के क्षेत्र में भी आग या ईंधन को अनिवार्य कारक माना जाता है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि आग एक अति महत्त्वपूर्ण एवं प्रबल कारक है जो मानव-जीवन के लिए उपयोगी एवं सहायक है। अग्नि का उपयोग मानव आदिकाल से कर रहा है। अग्नि यदि नियन्त्रण में रहे तो मानव की सबसे अच्छी सेवक व मित्र है। मानव के लिए यह ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। यदि मानव के नियन्त्रण से अग्नि.

निकल जाए, तो यह विनाशकारी रूप धौरण कर लेती है। उस अवस्था में यह मानव की सबसे बड़ी शत्रु और संहारक बन जाती है। प्रत्येक वर्ष अग्नि लाखों लोगों के प्राण लेती है तथा लाखों को विकलांग बना देती है। लाखों इमारतें तथा अनेक वन प्रतिवर्ष अग्नि की भेंट चढ़ जाते हैं। एक बार अग्नि अपनी जकड़ बना ले तो इसको नियन्त्रित करना आसान नहीं होता। आग के अनियन्त्रित रूप को आग लगना’ या

अग्निकाण्ड कहा जाता है। आग लगना भी एक गम्भीर आपदा है। यह एक ऐसी आपदा है जो किसी-न-किसी रूप में मनुष्य द्वारा उत्पन्न की गयी आपदा है। आग लगना प्राकृतिक आपदा नहीं है। यह मानवकृत आपदा है। यह लापरवाही से, दुर्घटनावश अथवा दुर्भावनाजनित भी हो सकती है।

अग्निकाण्ड के कारण
(Causes of Fire)

आग लगाने के लिए तीन बातों का एक स्थान पर होना आवश्यक है। ये हैं
1. ऑक्सीजन गैस।
2. ईंधन; जैसे-पेट्रोल, कागज, लकड़ी आदि।
3. ऊष्मा; शेष दो वस्तुएँ एक साथ हों, तो अग्नि को जन्म देती हैं। आग लगने के मुख्य कारण

1. मानव लापरवाही

  • घर पर हम आग का प्रयोग खाना पकाने के लिए करते हैं। खाना पकाते समय ढीले-ढाले तथा ज्वलनशील कपड़े पहनने पर बहुधा आग लग जाती है। महिलाएँ अक्सर साड़ी या चुनरी पहनकर खाना बनाती हैं और इसी कारण वे रसोईघर में आग पकड़ लेती हैं तथा इसका शिकार हो जाती हैं।
  • हम, धूम्रपान करने के लिए अक्सरे माचिस को जलाते हैं। सिगरेट-बीड़ी सुलगा लेने पर जलती हुई तिल्ली को बिना सोचे-समझे इधर-उधर फेंक देते हैं। इसके कारण भी आग लग जाती है।
  • कभी-कभी हम घर पर कपड़ों पर बिजली की इस्तरी करते-करते, इस्तरी को बिना बन्द किये उसे खुला छोड़कर किसी और काम में लग जाते हैं। परिणामस्वरूप गर्म इस्तरी कपड़ों में आग लगा देती है।
  • त्योहारों और खुशी के अन्य अवसरों पर नवयुवक व बच्चे आतिशबाजी चलाते हैं। यह आतिशबाजी भी आग लगने का कारण बन जाती है।
  • प्रायः झुग्गी-झोंपड़ियों में आग लग जाया करती है। यह भी लापरवाही के ही कारण लगती है।


2. बिजली के दोषपूर्ण उपकरण व फिटिंग

  • बिजली सम्बन्धी दोषपूर्ण वायरिंग, शॉर्ट सर्किट व ओवरलोड आग लगने के कारण हैं। दुकानों व वर्कशॉपों में, जो रात को बन्द रहते हैं तथा कोई व्यक्ति उनकी देखभाल नहीं करता, अक्सर शॉर्ट सर्किट से आग लगने की दुर्घटनाएँ होती हैं।
  • दोषपूर्ण तथा अनाधिकृत विद्युत उपकरण भी आग लगने के कारण । मल्टी प्वाइंट अडॉप्टर भी शीघ्र गर्म हो जाने के कारण आग पकड़ लेते हैं।

3. ज्वलनशील पदार्थों के प्रति लापरवाही

कुछ पदार्थ ऐसे हैं जो अत्यन्त ज्वलनशील हैं; जैसे-पेट्रोल, सरेस, ग्रीस तथा ज्वलनशील गैसें। इनके भण्डारण में लापरवाही के कारण प्रायः आग लग जाती है।

4. अन्य कारण 

(1) आज के आतंकवादी समय में शरारती तत्त्व भी आगजनी करते हैं। वे बहुधा धार्मिक स्थलों, बाजारों व बस्तियों में आग लगा देते हैं।
(2) वनों की आग का मुख्य कारण जैविक अथवा मानवजनित लापरवाही है। बाँस के वनों में आपसी घर्षण से उत्पन्न चिंगारी द्वारा अथवः थण्डरबोल्ट से भी दावाग्नि उत्पन्न हो जाती है।
(3) वनाग्नि कभी-कभी निम्नलिखित व्यक्तियों द्वारा लगाई जाती है।

(क) शहद निकालने वाले श्रमिक
(ख) शाक-बीज एकत्र करने वाले श्रमिक
(ग) अवैध कटान को छिपाने वाले व्यक्ति
(घ) अवैध शिकारी
(ङ) वन भूमि पर अतिक्रमण करने वाले व्यक्ति।

आग से बचाव
(Protection from Fire)

1. हमें आग से बचाव के नियमों का सख्ती से पालन करना चाहिए।
2. हमें अपने कार्यस्थल, घर (विशेषकर रसोई में), फैक्ट्री आदि में अग्नि-शमन उपकरण लगाने चाहिए।
3. घर में ज्वलनशील पदार्थों का भण्डारण नहीं करना चाहिए। यदि यह अपरिहार्य हो, तो पूरी सावधानी बरतनी चाहिए।
4. रसोई में खाना पकाते समय कृत्रिम रेशों के ज्वलनशील कपड़े व ढीले-ढाले कपड़े नहीं पहनने चाहिए।
5. बिजली के I.S.I. मार्का उपकरण ही प्रयोग करने चाहिए तथा बिजली के तारों की फिटिंग भी निपुण व्यक्ति से करानी चाहिए।
6. जलती हुई बीड़ी, सिगरेट व माचिस की तिल्ली इधर-उधर नहीं फेंकनी चाहिए। इन्हें बुझाकर फेंकने की ही आदेत डालनी चाहिए।
7. बिजली के उपकरणों को सावधानीपूर्वक प्रयोग करना चाहिए।
8. आतिशबाजी खुले स्थान पर सावधानीपूर्वक की जानी चाहिए।
9. घर से बाहर जाने से पहले बिजली तथा गैस के सभी उपकरण बन्द कर देने चाहिए।

आग लगने पर प्रबन्धन– यदि आग लग जाए तो उसके कारण क्षति को कम करने तथा उसकी पुनरावृत्ति को रोकने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. आग बुझाना एक खतरनाक काम है। इसके लिए तभी प्रयास करें जब आपका जीवन खतरे में न पड़े।
  2. सर्वप्रथम आग में फँसे व्यक्ति को वहाँ से निकालना चाहिए।
  3. 101 पर फोन करके फायर ब्रिगेड को बुलाना चाहिए तथा आग की सूचना आस-पास के व्यक्तियों को शोर मचाकर दे देनी चाहिए।
  4. यदि आग छोटी है तो अग्निशमन उपकरण का प्रयोग करना चाहिए।
  5. यदि आग फैल चुकी है तो उस स्थान से निकलकर सुरक्षित जगह आ जाना चाहिए।
  6. आग लगने के स्थान की बिजली आपूर्ति बन्द कर देनी चाहिए।
  7. आग के धुएँ से दूर रहना चाहिए अन्यथा आपका दम घुट सकता है।
  8. बिजली के जलते हुए उपकरणों पर पानी मत डालिए, बल्कि रेत व मिट्टी डालिए। आग बुझने के पश्चात् निम्नलिखित बातों का ध्यान रखिए
    • आग लगने के कारणों का पता लगाइए।
    • घायल व्यक्ति के उपचार का प्रबन्ध कीजिए।
    • भविष्य में आग से बचने के लिए आवश्यक उपाय कीजिए।
    • अग्निशमन उपकरण, पंखों और बिजली के तारों का पूरा निरीक्षण कीजिए। जहाँ कहीं कोई दोष मिले, उसे दूर कीजिए।

प्रश्न 3
सूखा नामक आपदा से आप क्या समझते हैं? इसके मुख्य कारणों तथा सूखा शमन की 
युक्तियों का उल्लेख कीजिए।
या 
सूखे के प्रभाव को कम करने के उपायों के बारे में लिखिए। (2011, 16)
उत्तर

सूखा : एक आपदा
(Draught : Apisaster)

सूखा वह स्थिति है जिसमें किसी स्थान पर अपेक्षित तथा सामान्य वर्षा से कहीं कम वर्षा पड़ती है। यह स्थिति एक लम्बी अवधि खुक रहती है। सूखा गर्मियों में भयंकर रूप धारण कर लेता है जब सूखे के साथ-साथ ताप भी आक्रमण करता है। सूखा मानव, वनस्पति व पशु-पक्षियों को भूखा मार देता है। सूखे की स्थिति में कृषि, पशुपालन तथा मनुष्यों को सामान्य आवश्यकता से कम जल प्राप्त होता है।

शुष्क तथा अर्द्ध-शुष्क प्रदेशों में सूखी एक सामान्य समस्या है, किन्तु पर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्र भी इससे अछूते नहीं हैं। मानसूनी वर्षा के क्षेत्र सूखे से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं। सूखा एक मौसम सम्बन्धी आपदा है तथा किसी अन्य विपत्ति की अपेक्षा अधिक धीमी गति से आती है।

सूखा के कारण
(Causes of Draught)

वैसे यूँ तो सूखा के अनेक कारण हैं, परन्तु प्रकृति तथा मानव दोनों ही इसके मूल में हैं। सूखा के कारण इस प्रकार हैं|

1. अत्यधिक चराई तथा जंगलों की केंटाई- अत्यधिक चराई तथा जंगलों की कटाई के कारण हरियाली की पट्टी धीरे-धीरे समाप्त हो रही है, परिणामस्वरूप वर्षा कम मात्रा में होती है। यदि होती भी है, तो जल भूतल पर तेजी से बह जाता है। इसके कारण मिट्टी का कटाव होता है तथा सतह से नीचे जल-स्तर कम हो जाता है, परिणामस्वरूप कुएँ, नदियाँ और जलाशय सूखने लगते हैं।

2. ग्लोबल वार्मिंग- ग्लोबल वार्मिंग वर्षा की प्रवृत्ति में बदलाव का कारण बन जाती है। परिणामस्वरूप वर्षा वाले क्षेत्र सूखाग्रस्त हो जाते हैं।

3. कृषि योग्य समस्त भूमि का उपयोग – बढ़ती हुई आबादी के लिए खाद्य-सामग्री उगाने के लिए लगभग समस्तं कृषि योग्य भूमि पर जुताई व खेती की जाने लगी है, परिणामस्वरूप मृदा की उर्वरा शक्ति क्षीण होती जा रही है तथा वह रेगिस्तान में परिवर्तित होती जा रही है। ऐसी स्थिति में वर्षा की थोड़ी कमी भी सूखे का कारण बन जाती है।

4. वर्षा का असमान वितरण
दोनों तरीके से व्याप्त है। विभिन्न स्थानों पर न तो वर्षा की मात्रा समान है और न ही अवधि। हमारे देश में कुल जोती जाने वाली भूमि का लगभग 70 प्रतिशत भाग सूखा सम्भावित क्षेत्र है। इस क्षेत्र में यदि कुछ वर्षों तक लगातार वर्षा न हो तो सूखे की अत्यन्त दयनीय स्थिति पैदा हो जाती है।

सूखा शमन की प्रमुख युक्तियाँ (साधन)
(Means to Prevent Draught)

1. हरित पट्टियाँ– हरित पट्टी कालान्तर में वर्षा की मात्रा में वृद्धि तो करती ही है, साथ में ये वर्षा जल को रिसकर भूतल के नीचे जाने में सहायक भी होती हैं। परिणामस्वरूप कुओं, तालाबों आदि में जल-स्तर बढ़ जाता है और मानव उपयोग के लिए अधिक जल उपलब्ध हो जाता है।

2. जल संचय– वर्षा कम होने की स्थिति में जल आपूर्ति को बनाये रखने के लिए, जल को संचय करके रखना एक दूरदर्शी युक्ति है। जल का संचय बाँध बनाकर या तालाब बनाकर किया जा सकता है।

3. प्राकृतिक तालाबों का निर्माण- यह भी सूखे की स्थिति से निबटने के लिए एक उत्तम उपाय है। प्राकृतिक तालाबों में जल संचय भू-जल के स्तर को भी बढ़ाता है।

4. विभिन्न नदियों को आपस में जोड़ने- से उन क्षेत्रों में भी जल उपलब्ध किया जा सकता है। जहाँ वर्षा का अभाव रहा हो। भारत सरकार नदियों को जोड़ने की एक महत्त्वाकांक्षी योजना अगस्त 2005 ई० में प्रारम्भ कर चुकी है।

5. भूमि का उपयोग– सूखा सम्भावित क्षेत्रों में भूमि उपयोग पर विशेष ध्यान देना आवश्यक्त है, विशेषकर हरित पट्टी बनाने के लिए कम-से-कम 35 प्रतिशत भूमि को आरक्षित कर दिया जाना चाहिए। इस भूमि पर अधिकाधिक वृक्षारोपण किया जाना चाहिए।

प्रश्न4
बाढ़ से आप क्या समझते हैं? बाढ़ के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए तथा बाढ शमन की प्रमुख युक्तियों का भी वर्णन कीजिए।
या
बाढ़ आने के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए।
या
बाढ़ से बचने के उपाय लिखिए। 
(2017)
उत्तर

बाढ़ : एक प्राकृतिक आपदा
(Flood : A Natural Disaster) 

बाढ़ का अर्थ किसी क्षेत्र में निरन्तर वर्षा होने या नदियों का जल फैल जाने से उस क्षेत्र का जलमग्न होना है। वर्षाकाल में अधिक वर्षा होने पर नदी प्रायः अपने सामान्य जल-स्तर से ऊपर बहने लगती है। उनका जल तटबन्धों को तोड़कर आस-पास के निम्न क्षेत्रों में फैल जाता है, जिससे वे क्षेत्र जलमग्न हो जाते हैं। नदियों या धाराओं के मुहाने पर, तेज ढालों पर या जलमार्ग के अत्यन्त निकट बस्तियों को बाढ़ का खतरा बना रहता है।

बाढ़ एक प्राकृतिक घटना है, किन्तु जब यह मानव- जीवन व सम्पत्ति को क्षति पहुँचाती है तो यह प्राकृतिक आपदा कहलाती है। बाढ़ों के कारण दामोदर नदी ‘बंगाल का शोक’, कोसी बिहार का शोक तथा ब्रह्मपुत्र ‘असम का शोक’ कहलाती है। ह्वांग्हो नदी ‘चीन का शोक’ कहलाती है।

बाढ़ के कारण
(Causes of Flood)

1. निरन्तर भारी वर्षा– जब किसी क्षेत्र में निरन्तर भारी वर्षा होती है तो वर्षा का जल धाराओं के रूप में मुख्य नदी में मिल जाता है। यह जल नदी के तटबन्धों को तोड़कर आस-पास के क्षेत्रों को जलमग्न कर देता है। भारी मानसूनी वर्षा तथा चक्रवातीय वर्षा बाढ़ों के प्रमुख कारण हैं। |

2. भूस्खलन भूस्खलन भी कभी- कभी बाढ़ों का कारण बनते हैं। भूस्खलन के कारण नदी का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है, परिणामस्वरूप नदी का जल मार्ग बदलकर आस-पास के क्षेत्रों को जलमग्न कर देता है।

3. वन-विनाश- वन पानी के वेग को कम करते हैं। नदी के ऊपरी भागों में बड़ी संख्या में वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई से भी बाढ़े आती हैं। हिमालय में बड़े पैमाने पर वन विनाश ही हिमालय-नदियों में बाढ़ का मुख्य कारण है।

4. दोषपूर्ण जल निकास प्रणाली– मैदानी क्षेत्रों में उद्योगों और बहुमंजिले मकानों की परियोजनाएँ बाढ़ की सम्भावना को बढ़ाती हैं। इसका कारण यह है कि पक्की सड़कें, नालियाँ, निर्मित क्षेत्र, पक्के पार्किंग स्थल आदि के कारण यहाँ जल रिसकर भू-सतह के नीचे नहीं जा पाता। यहाँ पर जल निकास की भी पूर्ण व्यवस्था नहीं होने के कारण, वर्षा का पानी नीचे स्थानों पर भरता चला जाता है तथा बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

5. बर्फ का पिघलना- सामान्य से अधिक बर्फ का पिघलना भी बाढ़ का एक कारण है। बर्फ के अत्यधिक पिघलने से नदियों में जल की मात्री उसी अनुपात में अधिक हो जाती है तथा नदियों का जल तट-बन्ध तोड़कर आस-पास के इलाकों को जलमग्न कर देता है।

देश भर में केन्द्रीय जल आयोग के लगभग 132 पूर्वानुमान केन्द्र हैं। ये केन्द्र देश में लगभग सभी बाढ़-सम्भावी नदियों पर नजर रखते हैं। जल-स्तरों पर खतरे का निशान चिह्नित होता है। खतरे वाले जल-स्तर बढ़ने के विषय में टी० वी०, रेडियो तथा पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से चेतावनी प्रसारित की जाती है। समय रहते ही बाढ़ सम्भावित क्षेत्रों को लोगों से खाली करा लिया जाता है।

बाढ़ शमन की प्रमुख युक्तियाँ
(Means to Prevent Flood)

1. सीधा जलमार्ग – बाढ़ की स्थिति में जलमार्ग को सीधा रखना चाहिए जिससे वह तेजी से एक सीमित मार्ग से बह सके। टेढ़ी-मेढ़ी धारों में बाढ़ की सम्भावना अधिक होती है।

2. जल मार्ग परिवर्तन- बाढ़ के छन क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिए जहाँ प्रायः बाढ़े आती हैं। ऐसे स्थानों से जल के मार्ग को मोड़ने के लिए कृत्रिम ढाँचे बनाये जाने हैं। यह कार्य वहाँ किया जाता है जहाँ कोई बड़ा जोखिमंन हो।

3. कृत्रिम जलाशयों का निर्माण- वर्षा के जल से आबादी-क्षेत्र को बचाने के लिए कृत्रिम जलाशयों का निर्माण किया जाना चाहिए। इन जलाशयों में भण्डारित जल को बाद में सिंचाई अथवा पीने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।इन जलाशयों में बाढ़ के जल को मोड़ने के लिए जल कपाट लगे होते हैं।

4. बाँध निर्माण– आबादी वाले क्षेत्रों को बाढ़ से बचाने के लिए तथा जल का प्रवाह उस ओर रोकने के लिए रेत के थैलों का बाँध बनाया जा सकता है।

5. कच्चे तालाबों का निर्माण– अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में कच्चे तालाबों का अधिक-से-अधिक निर्माण कराया जाना चाहिए। ये तालाब वर्षा के जल को संचित कर सकते हैं तथा संचित जल आवश्यकता के समय उपयोग में लाया जा सकता है।

6. नदियों को आपस में जोड़ना– विभिन्न क्षेत्रों में बहने वाली नदियों को आपस में जोड़कर बाढ़ के प्रकोप को कम किया जा सकता है। अधिक जल वाली नदियों का जल कम जल वाली नदियों में चले जाने से बाढ़ की स्थिति से बचा जा सकता है।

7. बस्तियों का बुद्धिमत्तापूर्ण निर्माण– बस्तियों का निर्माण नदियों के मार्ग से हटकर किया जाना चाहिए। नदियों के आस-पास अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में, सुरक्षा के लिए मकान ऊँचे चबूतरों पर बनाये जाने चाहिए।

प्रश्न 5
भूकम्प से आप क्या समझते हैं? भूकम्प के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए। भूकम्प से होने वाली क्षति से बचाव के उपायों का भी उल्लेख कीजिए।
उक्ट

भूकम्प : एक प्राकृतिक आपदा
(Earthquake : A Natural Disaster) 

भूकम्प भूतलकी आन्तरिक शक्तियों में से एक है। भूगर्भ में प्रतिदिन कम्पन होते हैं। जब ये कम्पन तीव्र होते हैं तो ये भूकम्प कहलाते हैं।

साधारणतया भूकम्प एक प्राकृतिक एवं आकस्मिक घटना है जो भू-पटल में हलचल पैदा कर देती है। इन हलचलों के कारण पृथ्वी अनायास ही वेग से काँपने लगती है जिसे भूचाल या भूकम्प कहते हैं। यह एक विनाशकारी घटना है। हमारे देश में भी विभिन्न क्षेत्रों में समय-समय पर हल्के या तीव्र भूकम्प आते रहते हैं।

भूकम्प मूल एवं भूकम्प केन्द्र- भूगर्भ में भूकम्पीय लहरें चलती रहती हैं। जिस स्थान से इन लहरों का प्रारम्भ होता है, उसे भूकम्प मूल कहते हैं। जिस स्थान पर भूकम्पीय लहरों का अनुभव सर्वप्रथम किया जाता है, उसे अभिकेन्द्र या भूकम्प केन्द्र कहते हैं। (भूकम्प की तीव्रता की माप के लिए रिक्टर स्केल’ का निर्धारण किया गया है।)

भूकम्प के कारण
(Causes of Earthquake)

भूगर्भशास्त्रियों ने भूकम्प के निम्नलिखित कारण बताये हैं

1. ज्वालामुखी उद्गार- जब विवर्तनिक हलचलों के कारण भूगर्भ में गैसयुक्त द्रवित लावा भूपटल की ओर प्रवाहित होती है तो उसके दबाव से भू-पटल की शैलें हिल उठती हैं। यदि लावा के मार्ग में कोई भारी चट्टान आ जाए तो प्रवाहशील लावा उस चट्टानं को वेग से ढकेलता है, जिससे भूकम्प आ जाता है।

2. भू-असन्तुलन में अव्यवस्था- भू-पटल पर विभिन्न बल समतल समायोजन में लगे रहते हैं जिससे भूगर्भ की सियाल एवं सिमा की परतों में परिवर्तन होते रहते हैं। यदि ये परिवर्तन एकाएक तथा तीव्र हो जाएँ तो पृथ्वी का कम्पन प्रारम्भ हो जाता है तथा उस क्षेत्र में भूकम्प के झटके आने प्रारम्भ हो जाते हैं।

3. जलीय भार- मानव द्वारा निर्मित जलाशय, झील अथवा तालाब के धरातल के नीचे की चट्टा के भार एवं दबाव के कारण अचानंक़ परिवर्तन आ जाते हैं तथा इनके कारण ही भूकम्प आ जाता है। 1967 ई० में कोयना भूकम्प (महाराष्ट्र) कोयना जलाशय में जले भर जाने के कारण ही आया था।

4. भू-पटल में सिकुड़न– विकिरण के माध्यम से भूगर्भ की गर्मी धीरे-धीरे कम होती रहती है। जिसके कारण पृथ्वी की ऊपरी पपड़ी मैं सिकुड़न आती है। यह सिकुड़न पर्वत निर्माणकारी क्रिया को जन्म देती है। जब यह प्रक्रिया तीव्रता से होती है, तो भू-पटल पर कम्पन प्रारम्भ हो जाता है।

5. प्लेट विवर्तनिकी- महाद्वीप तथा महासागरीय बेसिन विशालकाय दृढ़ भूखण्डों से बने हैं, जिन्हें प्लेट कहते हैं। सभी प्लेटें विभिन्न गति से सरकती रहती हैं। कभी-कभी दो प्लेटें परस्पर टकराती हैं तब भूकम्प आते हैं। 26 जनवरी, 2001 को गुजरात के भुज क्षेत्र में उत्पन्न भूकम्प की उत्पत्ति का कारण प्लेटों का टकरा जाना ही था।

भूकम्प से भवन-सम्पत्ति की क्षति का बचाव
(Protection of Damaged Land and Property from Earthquake)

भूकम्प अपने आप में किसी प्रकार से नुकसान नहीं पहुँचाता, परन्तु भूकम्प के प्रभाव से हमारे भवन एवं इमारतें टूटने लगती हैं तथा उनके गिरने से जान-माल की अत्यधिक हानि होती है। अतः भूकम्प से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए भवन-निर्माण में ही कुछ सावधानियाँ अपनायी जानी चाहिए तथा आवश्यक उपाय किये जाने चाहिए। |

1. भवनों की आकृति- भवन का नक्शा साधारणतया आयताकार होना चाहिए। लम्बी दीवारों को सहारा देने के लिए ईंट-पत्थर या कंक्रीट के कॉलम होने चाहिए। जहाँ तक हो सके T, LL, U और X आकार के नक्शों वाले बड़े भवनों को उपयुक्त स्थानों पर अलग-अलग खण्डों में बाँटकर। आयताकार खण्ड बना लेना चाहिए। खण्डों के बीच खास अन्तर से चौड़ी जगह छोड़ दी जानी चाहिए ताकि भूकम्प के समय भवन हिल-डुल सके और क्षति न हो।

2. नींव- जहाँ आधार भूमि में विभिन्न प्रकार की अथवा नरम मिट्टी हो वहीं नींव में कॉलमों को भिन्न-भिन्न व्यवस्था में स्थापित करना चाहिए। ठण्डे देशों में मिट्टी में आधार की गहराई जमाव-बिन्दु क्षेत्र के काफी नीचे तक होनी चाहिए, जबकि चिकनी मिट्टी में यह गहराई दरार के सिकुड़ने के स्तर से नीचे तक होनी चाहिए। ठोस मिट्टी वाली परिस्थितियों में किसी भी प्रकार के आधार का प्रयोग कर सकते हैं। चूने या सीमेण्ट के कंक्रीट से बना इसका ठोस आधार होना चाहिए।

3. दीवारों में खुले स्थान- दीवारों में दरवाजों और खिड़कियों की बहुलता के कारण, उनकी भार-रोधक क्षमता कम हो जाती है। अत: ये कम संख्या में तथा दीवारों के बीचोंबीच स्थित होने चाहिए।

4. कंक्रीट से बने बैंडों का प्रयोग- भूकम्प संवेदनशील क्षेत्रों में, दीवारों को मजबूती प्रदान करने तथा उनकी कमजोर जगहों पर समतल रूप से मुड़ने की क्षमता को बढ़ाने के लिए कंक्रीट के मजबूत बैंड बनाए जाने चाहिए जो स्थिर विभाजक दीवारों सहित सभी बाह्य तथा आन्तरिक दीवारों पर लगातार काम करते रहते हैं। इन बैंडों में प्लिन्थ बैंड, लिटल बैंड, रूफ बैंड तथा गेबल बैंड आदि सम्मिलित हैं।

5. वर्टिकल रीइन्फोर्समेंट- दीवारों के कोनों और जोड़ों में वर्टिकल स्टील लगाया जाना चाहिए। भूकम्पीय क्षेत्रों, खिड़कियों तथा दरवाजों की चौखट में भी वर्टिकल रीइन्फोर्समेंट की व्यवस्था की जानी चाहिए।

प्रश्न 6
एक प्राकृतिक आपदा के रूप में समुद्री लहरों का सामान्य परिचय दीजिए। इनके मुख्य कारण क्या होते हैं? समुद्री लहरों की चेतावनी तथा बचाव के लिए आवश्यक सावधानियों का भी उल्लेख कीजिए।
उक्ट

समुद्री लहरें : प्राकृतिक आपदा
(Sea Waves : Natural Disaster)

समुद्री लहरें कभी-कभी विनाशकारी रूप धारण कर लेती हैं। इनकी ऊँचाई 15 मीटर और कभी-कभी इससे भी अधिक तक होती है। ये तट के आस-पास की बस्तियों को तबाह कर देती हैं। ये

लहरें मिनटों में ही तट तक पहुँच जाती हैं। जब ये लहरें उथले पानी में प्रवेश करती हैं, तो, झ्यावह शक्ति के साथ तट से टकराकर कई मीटर ऊपर तक उठती हैं। तटवर्ती मैदानी इलाकों में इनकी रफ्तार 50 किमी प्रति घण्टा तक हो सकती है।

इन विनाशकारी समुद्री लढेरों को ‘सूनामी कहा जाता है। ‘सूनामी’, जापानी भाषा का शब्द है, जो दो शब्दों ‘सू’ अर्थात् ‘बन्दरगंह’ और ‘नामी’ अर्थात् ‘लहर’ से बना है। सूनामी लहरें अपनी भयावह शक्ति के द्वारा विशाल चट्टानों, नौकाओं तथा अन्य प्रकार के मलबे को भूमि पर कई मीटर अन्दर तक धकेल देती हैं। ये तटवर्ती इमारतों, वृक्षों आदि को नष्ट कर देती हैं। 26 दिसम्बर, 2004 को दक्षिण-पूर्व एशिया के 11 देशों में सूनामी’ द्वारा फैलाई गयी विनाशलीला से हम सब परिचित हैं।

समुद्री लहरों के कारण
(Causes of Sea Waves)

1. ज्वालामुखी विस्फोट- वर्ष 1993 में इण्डोनेशिया में क्रकटू नामक विख्यात ज्वालामुखी में भयानक विस्फोट हुआ और इसके कारण लगभग 40 मीटर ऊँची सूनामी लहरें उत्पन्न हुईं। इन लहरों ने जावा व सुमात्रा में जन-धन की अपार क्षति पहुँचायी।

2. भूकम्प– समुद्र तल के पास या उसके नीचे भूकम्प आने पर समुद्र में हलचल पैदा होती है। और यही हलचल विनाशकारी सूनामी का रूप धारण कर लेती है। 26 दिसम्बर, 2004 को दक्षिण-पूर्व एशिया में आई विनाशकारी सूनामी लहरें, भूकम्प का ही परिणाम थीं।।

3. भूस्खलन– समुद्र की तलहटी में भूकम्प व भूस्खलन के कारण ऊर्जा निर्गत होने से बड़ी-बड़ी लहरें उत्पन्न होती हैं जिनकी गति अत्यन्त तेज होती है। मिनटों में ही ये लहरें विकराल रूप धारण कर, तट की ओर दौड़ती हैं।

चेतावनी व अन्य युक्तियाँ
(Warning and Other Means)

सूनामी लहरों की उत्पत्ति को रोकना मानव के वश में नहीं हैं। समय से इसकी चेतावनी देकर, लोगों की जान व सम्पत्ति की रक्षा की जा सकती है।

1. उपग्रह प्रौद्योगिकी– उपग्रह प्रौद्योगिकी के प्रयोग से सूनामी सम्भावित भूकम्पों की तुरन्त चेतावनी देना सम्भब हो गया है। चेतावनी का समय तट रेखा से अभिकेन्द्र की दूरी पर निर्भर करता है। फिर भी उन तटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को जहाँ सूनामी कुछ घण्टों में विनाश फैला सकती है, सूनामी के अनुमानित समय की सूचना दे दी जाती है।

2. तटीय ज्वार जाली– तटीय ज्वार जाली का निर्माण करके सूनामियों को तट के निकट रोको जा सकता है। गहरे समुद्र में इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता।

3. सूनामीटर- सूनामीटर के द्वारा समुद्र तल में होने वाली हलचलों का पता लगाकर, उपग्रह के माध्यम से चेतावनी प्रसारित की जा सकती है। इसके लिए सूनामी सतर्कता यन्त्र समुद्री केबुलों के द्वारा भूमि से जोड़े जाते हैं और उन्हें समुद्र में 50 किमी तक आड़ा-तिरछा लगाया जाता है।

सूनामी की आशंका पर सावधानियाँ
(Precautions on the Probability of Tsunami)

यदि आप ऐसे तटवर्ती क्षेत्र में रहते हैं जहाँ सूनामी की आंशका है, तो आपको निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिए

  1. तट के समीप न तो मकान बनवाएँ और न ही किसी तटवर्ती बस्ती में रहें।
  2. तंट के समीप रहना आवश्यक हो, तो घर को ऊँचे स्थान पर बनवाएँ। ये स्थान 10 फुट से ऊँचे स्थान पर ही हों, क्योंकि सूनामी लहरें अधिकांशतः इससे कम ऊँची होती हैं।
  3. अपने घरों को बनाते समय भवन निर्माण विशेषज्ञ की राय लें तथा मकान को सूनामी निरोधक बनाएँ।
  4. सूनामी के विषय में प्राप्त चेतावनी के प्रति लापरवाही न बरतें तथा आने वाली बाढ़ को रोकने के लिए तैयारी रखें।

लघु उत्तरीय प्रश्नी

प्रश्न 1
भवन या गृह के अग्नि-अवरोधन के मुख्य उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
भवन एवं भवन में रहेंचे वालों की सुरेक्षा के लिए अनिवार्य है कि भवन को अग्नि से बचाव के योग्य बनाया जाए। अग्नि एक ऐसा कारक है जो कभी भी दुर्घटनावश या लापरवाही के परिणामस्वरूप सक्रिय हो जाता है। भंवन-निर्माण की प्रक्रिया में कोई ऐसा उपाय सम्भव नहीं है कि भवन में आग लगे ही नहीं। भवन में रखी हुई प्रायः सभी वस्तुएँ कम या अधिक ज्वलनशील होती हैं; अतः असावधानी, दुर्घटनावश अथवा किसी शरारत के परिणामस्वरूप मकान में आग लग सकती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए केवल इस प्रकार के उपाय किये जा सकते हैं जिनसे भवन में आग लग जाने पर उसका फैलाव तेजी से न हो तथा शीघ्र ही भवन गिर न जाए। इस उद्देश्य से भवन की संरचना को अधिक-से-अधिक अग्निसह (Fire Resisting) बनाना चाहिए।

भवन के अग्नि-अवरोधन (Fire proofing of house) के लिए भवन-निर्माण में अधिक-सेअधिक अग्निसह पदार्थों को इस्तेमाल करना चाहिए। भवन संरचना के सभी भाग कम-से-कम इतने अग्निसह तो अवश्य होने चाहिए कि इतने समय तक टूटकर न गिरें, जितने समय तक भवन में रहने वाले व्यक्ति सुरक्षापूर्वक उसमें से बाहर न निकल जाएँ। भवन को आग सम्बन्धी दुर्घटना के दृष्टिकोण से सुरक्षित बनाने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं|

  1. भवन की समस्त भारवाही दीवारें तथा स्तम्भ पर्याप्त मोटे तथा सुदृढ़ होने चाहिए, क्योंकि मोटे स्तम्भ एवं दीवारें पर्याप्त अग्निसह होते हैं।
  2. जहाँ तक हो सके भवन के अन्दर की विभाजक दीवारें भी अग्निसह पदार्थों की बनानी चाहिए। लकड़ी या प्लाईबोर्ड की दीवारें शीघ्र आग पकड़ लेती हैं। ये विभाजक दीवारें R.C.C., R.B.C., धातु की जाली, ऐस्बेस्टस, सीमेण्ट, बोर्ड अथवा कंक्रीट में खोखले ब्लॉकों द्वारा बनाई जानी चाहिए। 
  3. भवन की सभी दीवारों पर अग्नि अवरोधक प्लास्टर किया जाना चाहिए।
  4. भवन में यदि ढाँचेदार संरचनाएँ हों तो उनके फ्रेम ताप पाकर टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं।
  5. फर्श बनाने में अधिक-से-अधिक अग्निसह पदार्थों को ही इस्तेमाल करना चाहिए। यदि फर्श लकड़ी के हों तो मोटी लकड़ी की कड़ियाँ अधिक दूरी पर लगानी चाहिए। फर्श में स्थान-स्थान पर अग्नि-स्टॉप भी लगाये जाने चाहिए। यदि लोहे के हों तो उन्हें चिकनी मिट्टी की टाइलों, टेरा-कोटा या प्लास्टर से ढक देना चाहिए।
  6. भवन के बाहरी दरवाजे तथा खिड़कियाँ प्रवलित शीशे की होनी चाहिए तथा इनके फ्रेम धातु के बने होने चाहिए।
  7. भवन की छत चपटी बनाई जानी चाहिए। यदि छत ढालू हो तो उसमें लगाई जाने वाली सीलिंग अग्निसह पदार्थ की ही होनी चाहिए।
    उपर्युक्त उपायों के अतिरिक्त सुरक्षा की दृष्टि से भवन में निकासी की अधिक-से-अधिक सुविधाएँ होनी चाहिए, क्योंकि यदि दुर्घटनावश आग लग ही जाए तो उसमें रहने वाले व्यक्ति शीघ्रातिशीघ्र जान बचाकर बाहर निकल जाएँ।

प्रश्न 2
जल जाने या झुलस जाने पर क्या प्राथमिक उपचार किया जाना चाहिए?
उत्तर
आग से जल जाने पर तुरन्त निम्नलिखित प्राथमिक उपचार किया जाना चाहिए|

  1. जलने अर्थात् आग लग जाने पर सर्वप्रथम आवश्यक उपाय है-आग को बुझाना। इसके लिए पानी, मिट्टी या रेत तथा कम्बल आदि डाले जा सकते हैं। जिस व्यक्ति के कपड़ों में आग लग गयी हो वह जमीन पर लेटकर निरन्तर करवटें बदल-बदल कर एवं लुढ़ककर भी आग बुझाने का प्रयास कर सकता है। आग बुझ जाने पर आवश्यक प्राथमिक चिकित्सा के उपाय तुरन्त करने चाहिए।
  2. जल जाने वाले शरीर के भाग पर से वस्त्रों को सावधानीपूर्वक हटा देना चाहिए, किन्तु वस्त्र चिपकने की दशा में उसे चारों ओर से काट देना चाहिए और शरीर पर चिपक गये वस्त्र पर नारियल का तेल लगा देना चाहिए।
  3. अलसी के तेल तथा चूने के पानी को समान अनुपात में मिलाकर उसमें स्वच्छ कपड़ा या रुई। का फोहा भिगोकर जले भाग पर रखने चाहिए।
  4. फफोलों को फोड़ना नहीं चाहिए, क्योंकि इस स्थिति में विभिन्न प्रकार के बाहरी संक्रमणों का भय बढ़ जाता है।
  5. जले भाग पर टैनिक एसिड, कोई अच्छा मरहम जैसे कि बरनॉल आदि धीरे-धीरे लगाना चाहिए।
  6. जले हुए स्थानों पर नारियल का तेल भी लगाने से आराम मिलता है।
  7. जले भाग को साफ कपड़े या रुई से ढककर हल्की पट्टी बाँध देनी चाहिए।
  8.  दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को लगे आघात का उपचार करना चाहिए।
  9. जले हुए व्यक्ति को साधारण प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करने के उपरान्त शीघ्रातिशीघ्र किसी योग्य चिकित्सक को अवश्य दिखाना चाहिए तथा समुचित उपचार करवाना चाहिए।

प्रश्न 3
चक्रवातीय तूफान से क्या आशय है?
उत्तर
प्रकृति द्वारा परिचालित क्रियाओं में से एक अनोखी तथा अत्यधिक विस्मयकारी क्रिया चक्रवातीय तूफान या चक्रवात भी है। चक्रवातीय तूफानों को अमेरिका में सामान्य रूप से ‘हरीकेन’ कहा जाता है। ऑस्ट्रेलिया में इसे ‘विलीविलीज’ तथा चीन में ‘टाइफून’ कहा जाता है।

चक्रवाती तूफान सामान्य रूप से समुद्रतटीय भागों में आया करते हैं। ये अति तीव्र गति से चलने वाली हवाओं के रूप में होते हैं तथा इन हवाओं के साथ-ही-साथ सम्बन्धित क्षेत्र में प्रचण्ड वर्षा भी होती है। सामान्य रूप से हवाओं की गति 400 किमी प्रति घण्टा तक वर्षा 1000 से 1500 मिमी या इससे भी अधिक प्रतिदिन होती है। चक्रवातीय तूफान अल्प समय के लिए ही होते हैं, परन्तु इनसे अत्यधिक क्षति हो जाती है, क्योंकि ये अचानक तथा एकाएक विकराल रूप ग्रहण कर लिया करते हैं। चक्रवातीय तूफानों में हवाओं के न्यून वायुदाब के परिणामस्वरूप समुद्र तल में अत्यधिक लहरें तथा उभार उत्पन्न होते हैं। इस स्थिति में तल से ऊपर की ओर उठने वाली तीव्र गति वाली हवाएँ समुद्र के जल को तट की ओर खींचती हैं। इसके साथ ही तटीय क्षेत्रों में भारी वर्षा होती है तथा बाढ़ की भयंकर स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार तेज हवाओं तथा भारी वर्षा से सम्बन्धित क्षेत्र में जान-माल का भारी नुकसान होता है।

जहाँ तक भारतीय उपमहाद्वीपीय क्षेत्र का प्रश्न है, यहाँ प्राय: चक्रवातीय तूफान आया करते हैं। हमारे देश में पूर्वी समुद्रतटीय क्षेत्रों में स्थित राज्य पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश का तटीय भाग, ओडिशा तथा तमिलनाडु में प्रायः चक्रवातीय तूफान आया करते हैं। सन् 1999 में ओडिशा में एक भयंकर चक्रवातीय तूफान आया था। इससे क्षेत्र के लगभग 460 गाँव तथा 5 लाख लोग गम्भीर रूप से प्रभावित हुए थे।

प्रश्न 4
चक्रवातीय तूफानों के मुख्य प्रतिकूल प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
जैसा कि हम जानते हैं, चक्रवातीय तूफानों की स्थिति में अत्यधिक तेज हवाएँ चलती हैं, वर्षा होती है तथा बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। चक्रवातीय तूफानों के मुख्य प्रतिकूल प्रभाव निम्नलिखित होते हैं

  1. चक्रवातीय तूफान के समय जो जलयान सम्बन्धित क्षेत्र में होते हैं, उन्हें बहुत अधिक हानि होती है। यह प्रतिकूल प्रभाव समुद्र में चलते हुए जलयान तथा लंगर डाले खड़े जलयान एवं बन्दरगाह सभी पर पड़ता है।
  2. चक्रवात के सम्मुख आने वाले क्षेत्र में हर प्रकार से जान-माल की भारी क्षति होती है।
  3. चक्रवातीय तूफान के कारण प्राय: तेज हवाओं के साथ-ही-साथ बाढ़, कीचड़ के प्रवाह तथा भू-स्खलन के माध्यम से भी सम्बन्धित क्षेत्र में गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं।
  4. चक्रवातीय तूफान के बाद सम्बन्धित क्षेत्र में अनेक संक्रामक रोग भी तेजी से फैलने लगते हैं।
  5. चक्रवातीय तूफान से सम्बन्धित क्षेत्र में विद्युत आपूर्ति, पेयजल, यातायात सेवाएँ तथा, संचार सेवाएँ भी प्रायः ठप्प हो जाती हैं।
  6. चक्रवातीय तूफान से फ़सलों तथा अन्य सम्पत्ति को भी बहुत अधिक हानि होती है।

प्रश्न 5
सूखा पड़ने के प्रतिकूल प्रभावों का उल्लेख कीजिए। : (2011, 16, 17)
उत्तर
सूखा एक ऐसी आपदा है जिसके परिणामस्वरूप सम्बन्धित क्षेत्र में जल की कमी या अभाव हो जाता है। यह एक गम्भीर आपदा है तथा इसके विभिन्न प्रतिकूल प्रभाव क्रमशः स्पष्ट होने लगते हैं। सर्वप्रथम सूखे का प्रभाव कृषि-उत्पादनों पर पड़ता है। फसलें सूखने लगती हैं तथा क्षेत्र में खाद्य-पदार्थों की कमी होने लगती है। इस स्थिति में अनाज आदि के दाम बढ़ जाते हैं तथा गरीब परिवारों की आर्थिक स्थिति दयनीय हो जाती है। सूखे का प्रतिकूल प्रभाव क्षेत्र के पशुओं पर भी पड़ता है क्योंकि उनको पर्याप्त मात्रा में चारा तथा जल उपलब्ध नहीं हो पाता।

इससे क्षेत्र में दूध एवं मांस आदि की भी कमी होने लगती है। कृषि-कार्य घट जाने के कारण अनेक कृषि-श्रमिकों को रोजगार मिलना बन्द हो जाता है तथा क्षेत्र की अर्थव्यवस्था बिगड़ने लगती है। सूखे की दशा में कृषि-उत्पादनों में कमी आ जाती है। इस स्थिति में कृषि आधारित कच्चे माल से सम्बन्धित औद्योगिक संस्थानों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस स्थिति में सम्बन्धित उत्पादनों की कमी हो जाती है तथा उनकी कीमत भी बढ़ जाती है। इसके अतिरिक्त किसी क्षेत्र में निरन्तर सूखे की स्थिति बने रहने से वहाँ के निवासी अन्य क्षेत्रों में चले जाते हैं। इससे सामाजिक ढाँचा प्रभावित होता है तथा जनसंख्या का क्षेत्रीय सन्तुलन बिगड़ने लगता है। सूखे की समस्या विकराल हो जाने की स्थिति में बेरोजगारी तथा भुखमरी की समस्याएँ भी प्रबल होने लगती हैं।

प्रश्न 6
आपदा-प्रबन्धन का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा वर्तमान समय में इसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
यह एक्ल सर्वविदित तथ्य है कि प्राकृतिक आपदाओं से जान-माल की व्यापक हानि होती है। तथा इनके दूरगामीप्रतिकूल प्रभाव भी होते हैं। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए आज के वैज्ञानिक युग में आपदा-प्रबन्धन के अन्तर्गत विभिन्न आपदाओं के घटित होने की पूर्व जानकारी प्राप्त करने के अधिक-से-अधिक वैज्ञानिक उपाय किये जा रहे हैं। उदाहरण के लिए बाढ़, सूनामी, सूखा, चक्रवात आदि आने से पूर्व जार्नकारी प्राप्त की जाती है। इस जानकारी को ध्यान में रखते हुए सम्बन्धित क्षेत्र में पूर्व तैयारियाँ तथा बचाव के उपाय किये जाते हैं, उदाहरणस्वरूप बाढ़ की चेतावनी प्राप्त होते ही लोग सुरक्षित स्थानों पर पलायन कर जाते हैं। आपदा-प्रबन्धन के अन्तर्गत इस बात के भी सभी सम्भव उपाय किये जाते हैं। जिससे आपदा के कारण कम-से-कम के क्षति है। इसके अतिरिक्त आपदा के आने के उपरान्त किये जाने वाले बचाव-कार्य भी आपदा प्रबन्धन के ही अन्तर्गत आते हैं। उदाहरणस्वरूप बाढ़ के उपरान्त संक्रामक रोगों की रोकथाम के उपाय भी आपदा-प्रबन्धन के ही कार्य हैं।
आपदा-प्रबन्धन का मुख्य महत्त्व यह है कि उत्तम आपदा-प्रबन्धन से आपदा के प्रतिकूल प्रभावों को समाप्त या कम किया जा सकता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
प्राकृतिक आपदा का अर्थ बताइए। (2017)
उत्तर
प्राकृतिक आपदाएँ उन गम्भीर प्राकृतिक घटनाओं को कहा जाता है, जिनके प्रभाव से हमारे सामाजिक ढाँचे व विभिन्न व्यवस्थाओं को गम्भीर क्षति पहुँचती है। इनसे मनुष्यों एवं अन्य जीव-जन्तुओं के जीवन को नुकसान होता है तथा हर प्रकार की सम्पत्ति को भी नुकसान होता है। इस प्रकार की आपदाओं से मनुष्यों का सामाजिक-आर्थिक जीवन भी अस्त-व्यस्त हो जाता है। ऐसे में जनजीवन को पुनः सामान्य बनाने के लिए तथा पुनर्वास के लिए व्यापक स्तर पर बाहरी सहायता की आवश्यकता होती है। वर्तमान समय में विश्व मानव प्राकृतिक आपदाओं के प्रति पर्याप्त सचेत है तथा इन अवसरों पर विश्व के कोने-कोने से सहायता एवं सहानुभूति प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 2
आग लगने के मुख्य प्रतिकूल प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
आग लगने से सबसे गम्भीर आशंका व्यक्तियों के जलने या झुलसने की होती है। आग की लपट लग जाने या कपड़ों में आग लग जाने पर व्यक्ति जल सकता है। आग से निकलने वाली गर्म हवा  लग जाने से व्यक्ति झुलस सकता है। जलने तथा झुलसेने से व्यक्ति के शरीर पर लगभग समान प्रभाल ही पड़ते हैं। इस स्थिति में शरीर की त्वचा लाल पड़ जाती है, फफोले पड़ जाते हैं, त्वचा के तन्तु नष्ट हो जाते हैं और अत्यधिक पीड़ा होती है। जब कोई अंगे बहुत अधिक जल जाता है तो दिल की घबराहट अथवा आघात का भय रहता है। त्वचा के अधिक जल जाने पर अनेक प्रकार के संक्रमण की भी आशंका बढ़ जाती है। यह संक्रमण प्राय: घातक सिद्ध होता है। जलने के प्रभाव से व्यक्ति के गुर्दो, यकृत आदि आन्तरिक अंगों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है जो गम्भीर समस्या उत्पन्न कर देता है। जलने से व्यक्ति को गहरा मानसिक आघात या सदमी भी पहुँचता है। इसका भी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 3
‘जंगल की आग पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
आग लगने की दुर्घटना का एक रूप या प्रकार ‘जंगल की आग’ भी है। जंगल की आग को ‘दावानल’ कहते हैं। जंगल में आग प्राय: तीन कारणों से लग जाती है। जंगल में कुछ पेड़ ऐसे भी होते हैं जो आपस में रगड़ या घर्षण के कारण आग उत्पन्न कर देते हैं। तेज गर्मी के मौसम में इस प्रकार की घर्षण से प्रायः जंगलों में आग लग जाती है। इसके अतिरिक्त लापरवाही से भी आग लग जाती है। जंगल में विचरण करने वाले व्यक्ति द्वारा जलती हुई माचिस, बीड़ी-सिगरेट या उपले आदि से सूखे पत्तों में आग लग जाती है। तथा हवा से फैलकर भयंकर रूप ग्रहण कर लेती है। इसके अतिरिक्त कुछ स्वार्थी एवं समाज-विरोधी व्यक्ति भी जंगल में आग लगा दिया करते हैं। ये लोग कृषि योग्य भूमि ग्रहण करने के लिए पेड़ों की कटाई या भूमि अधिग्रहण के निहित स्वार्थ से जंगल में आग लगा देते हैं। जंगल में लगने वाली आग अति भयंकर एवं व्यापक होती है। इसे नियन्त्रित करना या बुझाना प्रायः एक कठिन कार्य होता है। यह आग या तो जंगल समाप्त होने पर बुझती है अथवा तेज वर्षा हो जाने पर ही बुझती है। जंगल की आग से अनेक हानियाँ हो जाती हैं। सर्वप्रथम वन सम्पदा की अत्यधिक हानि होती है। इसके साथ-ही-साथ वनों में रहने वाले पशु-पक्षियों का जीवन भी गम्भीर रूप से प्रभावित होता है। इसके अतिरिक्त जंगल की आग से पर्यावरण का तापमान अत्यधिक बढ़ जाता है तथा पर्यावरण-प्रदूषण में भी वृद्धि होती है।

प्रश्न 4
समुद्र की आग’ पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
आग लगने की दुर्घटना का एक रूप या प्रकार ‘समुद्र की आग’ भी है। समुद्र की आग को बड़वानल भी कहते हैं। यह सत्य है कि समुद्र जल का अथाह भण्डार होता है। ऐसे में समुद्र में आग लग़ना एक आश्चर्य की बात प्रतीत होती है परन्तु यथार्थ में समुद्र में प्रायः आग लगने की दुर्घटनाएँ होती रहती हैं। समुद्र में आग लगने का कारण समुद्र में विद्यमान तेल के भण्डारों अथवा प्राकृतिक गैस में आग लगना हुआ करता है।

तेल अर्थात् पेट्रोलियम पदार्थ तथा प्राकृतिक गैस अत्यधिक ज्वलनशील पदार्थ होते हैं जो कि जल की उपस्थिति में भी जल उठते हैं। समुद्र की आग भी अत्यधिक भयंकर तथा व्यापक होती है। इससे जहाँ एक ओर तेल अथवा गैस भण्डारों की व्यापक क्षति होती है, वहीं दूसरी ओर जलीय जीवों का जीवन भी संकट में आ जाता है। यही नहीं, पर्यावरण-प्रदूषण में भी वृद्धि होती है। तथा कभी-कभी समुद्र में यात्रा करने वाले जलयान भी इसकी चपेट में आ जाते हैं। समुद्र की आग को नियन्त्रित करने के लिए व्यापक उपाय करने पड़ते हैं।

प्रश्न 5
आग लगने से बचाव के लिए अस्थायी पण्डालों में क्या उपाय किए जाने चाहिए?
उत्तर
विभिन्न समारोहों के आयोजन के लिए प्रायः पण्डाल लगाये जाते हैं। इन पण्डालों में आग लगने की कुछ अधिक आशंका रहती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए आग से सुरक्षा के लिए कुछ उपायों को अपनाना आवश्यक माना जाता है। इस प्रकार के कुछ मुख्य उपाय निम्नलिखित हैं

  1. पण्डाल बनाने में सिन्थेटिक कपड़ों, रस्सियों तथा अन्य सामग्री का इस्तेमाल न किया जाए।
  2. पण्डाल कभी भी बिजली की तारों के नीचे या बहुत निकट नहीं लगाया जाना चाहिए।
  3. पण्डाल के चारों ओर पर्याप्त खुला स्थान होना चाहिए ताकि आपदा के समय सरलता से बाहर जा सकें।
  4. पण्डाल का द्वार कम-से-कम पाँच मीटर चौड़ा होना चाहिए तथा निकास द्वार अधिक-सेअधिक होने चाहिए।
  5. पण्डाल में लगी कुर्सियों की कतारों में कम-से-कम डेढ़ मीटर की दूरी अवश्य होनी चाहिए।
  6. बिजली का सर्किट तथा जेनरेटर आदि पण्डाल से कम-से-कम 15 मीट्रर दूर होने चाहिए।
  7. अग्नि-सुरक्षा के यथासम्भव अधिक-से-अधिक उपाय किये जाने चाहिए। पानी, रेत, आग बुझाने वाली गैस आदि की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
  8. पण्डाल के अन्दर ज्वलनशील पदार्थ नहीं रखे जाने चाहिए।
  9. पण्डाल में अमोनियम सल्फेट,अमोनियम कार्बोनेट, बोरेक्स, बोरिक एसिड, एलम तथा पानी का घोल बनाकर छिड़काव किया जाना चाहिए।

प्रश्न 6
बाढ़ के समय मुख्य रूप से क्या सावधानियाँ आवश्यक होती हैं?
उत्तर
बाढ़ के समय सबसे अधिक आवश्यक कार्य है-मनुष्य की जान बचाना। इसके लिए आवश्यक है कि यथासम्भव शीघ्रातिशीघ्र बाढ़ग्रस्त क्षेत्र से निकल जाएँ तथा किसी ऊँचे सुरक्षित स्थान पर पहुँच जाएँ। यदि मकान काफी मजबूत हो तो मकान की ऊपरी मंजिल पर चढ़ जाएँ। यदि मकान मजबूत न हो तो मकान से बाहर निकल जाएँ। बाढ़ के समय पेड़ों पर न चढ़े क्योंकि पेड़ भी जड़ से ही उखड़ सकते हैं। यदि घर में रबड़ की ट्यूब हो तो उनको हवा भरकर अपने साथ रखें।

प्रश्न 7
बाढ़ के उपरान्त किये जाने वाले कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
सामान्य रूप से बाढ़ का प्रकोप कुछ समय में घटने लगता है, परन्तु बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में पानी, कीचड़, गन्दगी तथा सीलन बहुत अधिक हो जाती है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कुछ महत्त्वपूर्ण, कार्य अति आवश्यक होते हैं। घरों तथा गलियों में सफाई की व्यवस्था करें। पानी की निकासी के उपाय करें तथा कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करें। इससे संक्रामक रोगों से बचाव हो सकता है। साफ पेय जल की व्यवस्था करें। जहाँ तक हो सके जल उबालकर ही पिएँ। चिकित्सकों से सम्पर्क बनाये रखें तथा संक्रामक रोगों से बचने के सभी सम्भव उपाय करें। बाढ़ग्रस्त लोगों को भारी नुकसान हो जाता है। अतः अन्य क्षेत्रों में रेहने वाले लोगों तथा सरकारी तन्त्र को बाढ़ग्रस्त लोगों की हर सम्भव सहायता करनी चाहिए। भोजन एवं कपड़ों आदि की तुरन्त पूर्ति होनी चाहिए।

प्रश्न 8
भूकम्प आपदा के समय आवश्यक सावधानियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
यह सत्य है कि भूकम्प आकस्मिक रूप से आता है। भूकम्प के आने पर मानसिक सन्तुलन बनाये रखें तथा अधिक घबराएँ नहीं। इस समय कुछ सावधानियाँ नितान्त आवश्यक होती हैं। सामान्य रूप से आप जहाँ हों, वहीं टिके रहें। यदि हो सके तो दीवारों, छतों और दरवाजों से दूर रहें। इसके साथ-ही-साथ दीवारों के टूटने तथा मलबा गिरने पर ध्यान रखें तथा बचाव के उपाय करें। भूकम्प के समय यदि आप किसी वाहन में हों तो वाहन को सुरक्षित स्थान पर रोककर उसमें से बाहर खुले में आ जाएँ। भूकम्प के समय न तो किसी पुल को पार करें और न ही किसी सुरंग में प्रवेश करें। यदि घर पर हों तो बिजली का मेन स्विच बन्द कर दें, गैस सिलेण्डर को भी बन्द कर दें। इन उपायों द्वारा कुछ दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है।

प्रश्न 9
भूकम्प आपदा के पश्चात किए जाने वाले कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
सामान्य रूप से भूकम्प की प्रबलता अल्प समय के लिए ही होती है, परन्तु अल्प समय में ही अचेक गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव हो जाते हैं। भूकम्प के पश्चात् भी बहुत सजग रहना आवश्यक होता है। इस समय परिवार के बच्चों तथा वृद्ध सदस्यों का विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है। इस समय घर में गैस के सिलेण्डर को बन्द रखें तथा आग न जलाएँ। रेडियो तथा दूरदर्शन को चलाए रखें, सभी आवश्यक घोषणाओं को ध्यानपूर्वक सुने तथा आवश्यक कार्य करें। भूकम्प से क्षतिग्रस्त होने वाले मकानों से दूर ही रहें। यदि भूकम्प के हल्के झटके आ रहे हों तो उनसे डरे नहीं। ऐसा कुछ समय तक होता रहता है। जहाँ जिस प्रकार की सहायता की आवश्यकता है, उस कार्य को अवश्य करें। तुरन्त सहायता उपलब्ध हो जाने पर अनेक व्यक्तियों की जान बचाई जा सकती है। अपने क्षेत्र में यथासम्भव सफाई व्यवस्था को बनाये रखें ताकि संक्रामक रोगों से बचा जा सके।

प्रश्न 10
संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-‘भूकम्प की भविष्यवाणी ।
उत्तर
भूकम्प की भविष्यवाणी करने में अग्रलिखित बिन्दुओं का विशेष महत्त्व है

  1. किसी क्षेत्र में हो रही भूगर्भीय मतियों का उस क्षेत्र में हो रहे भू-आकृति परिवर्तनों से अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे क्षेत्र जहाँ भूमि ऊपर-नीचे होती रहती है, अत्यधिक भूस्खलन होते हैं, नदियों का असामान्य मार्ग परिवर्तन होता है, प्रायः भूकम्प की दृष्टि से संवेदनशील होते हैं।
  2. किसी क्षेत्र में सक्रिय अंशों, जिन दरारों से भूखण्ड टूटकर विस्थापित भी हुए हों, की उपस्थिति को भूकम्प का संकेत माना जा सकता है। इस प्रकार के भ्रंशों की गतियों को समय के अनुसार तथा अन्य उपकरणों से नाप जा सकता है।
  3. भूकम्प संवेदनशील क्षेत्रों में भूक़म्पमापी यन्त्र (Seismograph) लगाकर विभिन्न भूगर्भीय गतियों को रिकॉर्ड किया जाता है। इस अध्ययन से बड़े भूकम्प आने की पूर्व चेतावनी मिल जाती है।

प्रश्न 11
प्रतिबल की समस्या एवं उसके निराकरण के बारे में लिखिए। (
2011)
उत्तर
गम्भीर प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने वाला व्यक्ति प्रायः प्रतिबल (Stress) का शिकार हो जाता है। प्रतिबल मुख्य रूप से समायोजनात्मक प्रक्रियाओं से सम्बन्धित होता है। प्रबल प्रतिबल की स्थिति में सम्बन्धित व्यक्ति को अपने व्यवहार में अनेक प्रकार के समायोजन करने पड़ते हैं। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि यदि प्रतिबल सामान्य स्तर का है तो वह व्यक्तित्व के विकास में सहायक सिद्ध होता है, परन्तु निरन्तर प्रबल तथा गम्भीर प्रतिबल व्यक्तित्व के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि व्यक्ति को प्रबल प्रतिबल से बचने के उपाय करने चाहिए। इनके लिए प्रायः दो प्रकार की प्रतिक्रियाएँ की जा सकती हैं—प्रथम प्रकार की प्रतिक्रियाएँ कार्य निर्देशित प्रतिक्रियाएँ कहलाती हैं। इस प्रकार की प्रतिक्रियाओं में प्रतिबल निग्रस्त व्यक्ति समायोजन के लिए अपने आप में, परिष्करण में या दोनों में अपने अनुकूल परिवर्तन करने के उपाय् करता है।

इस प्रकार की प्रतिक्रिया भी तीन प्रकार की हो सकती है। इन्हें क्रमशः आक्रमण, पलायुन तथा समझौता कहा गया है। आक्रमण के अन्तर्गत व्यक्ति प्रतिबल के कारण या बाधा की समाप्त करने के उपाय करता है। इस उपाय को अपनाने से व्यक्ति निराश नहीं होता तथा निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने में प्रायः सफल हो जाता है। द्वितीय उपाय पलायन है। पलायन के अन्तर्गत व्यक्ति सम्बन्धित समस्या का सामना नहीं करता, बल्कि उससे दूर भागता है। तीसरा उपाय समझौता है। इस उपौय को उस स्थिति में अपनाया जाता है जब न तो आक्रमण सम्भव है और न ही पलायन। यह एक मध्यममार्गी उपाय है। जहाँ तक प्रतिबल के प्रति की जाने वाली अन्य प्रतिक्रियाएँ है। वे प्रतिक्रियाएँ सुरक्षा-निर्देशित प्रक्रियाएँ हैं, परन्तु समझौते की स्थिति में व्यक्ति अपने अहं को आत्म-अवमूल्यन से बचाने के लिए प्रयास करता है।

प्रश्न 12
प्राकृतिक आपदाओं के कारण पड़ने वाले किन्हीं दो मनोवैज्ञानिक प्रभावों के बारे में लिखिए।
या
प्राकृतिक आपदा के दौरान चिन्ताग्रसित व्यक्ति के लक्षणों के बारे में लिखिए। (2018)
उत्तर
प्राकृतिक आपदाओं के कारण व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इससे व्यक्ति विभिन्न साधारण अथवा गम्भीर मानसिक रोगों का शिकार हो सकता है। वह निरन्तर चिन्ताग्रस्त रहता है। ऐसे में व्यक्ति कुण्ठा, अकारण भय, अति चिन्ता, तनाव आदि का शिकार हो सकता है। प्राकृतिक आपदाओं के कारण व्यक्ति का सामान्य व्यवहार भी विकृत हो सकता है। व्यक्ति के व्यवहार में अस्थिरता, खीज, आक्रामकता या उत्साहहीनता के लक्ष्य उत्पन्न हो सकते हैं। अति गम्भीर प्राकृतिक आपदाओं के कारण व्यक्ति में निराशावादी प्रवृत्ति प्रबल हो सकती है तथा इसकी प्रबलता इतनी बढ़ सकती है कि व्यक्ति आत्महत्या तक कर सकता है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न  1. निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति उचित शब्दों द्वारा कीजिए|

1. जीवन पर गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली प्राकृतिक घटनाओं को………….कहा जाता है।
2. भूकम्प, ज्वालामुखी का विस्फोट, बादल का फटना तथा सूनामी…………….प्राकृतिक आपदाएँ हैं। (2010, 11)
3. युद्ध, दंगा, आतंकवादी हमला………….आपदाएँ हैं।
4. आग लगना या अग्निकाण्ड मानवीय……….’या’…………के कारणे घटित होता है।
5. अधिकांश प्राकृतिक आपदाएँ………….रूप से घटित होती है।
6. सूनामी, चक्रवात, सूखा, बाढ़……………आपदाएँ हैं। (2011)
7. युद्ध तथा साम्प्रदायिक दंगे…………..आपदा नहीं है।
8. सूखा एक………….वाली प्राकृतिक आपदा है।
9. सूखे का सर्वाधिक प्रभाव………..पर पड़ता है। 
(2010)
10. बाढ़ से……….:”एवं…………की हानि होती है।
11. भूकम्प के कारण सर्वाधिक हानि………….के कारण होती है।
12. भूकम्प की तीव्रता की माप के लिए:……….’को अपनाया गया है।
13. सुनामी से सर्वाधिक क्षति……………..‘में होती है।
14. प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली क्षति को कम करने के लिए………….आवश्यक है।
15. गम्भीर प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव से व्यक्ति में………..”प्रवृत्ति प्रबल हो जाती है।
16. समुद्र में गर्म पानी के तापमान और दबाव के कारण…………”उत्पन्न होता है। (2016)
17. प्राकृतिक आपदा के दौरान भय, असहायता और भारी हानि के कारण व्यक्ति में …………..विचार उत्पन्न होते हैं। 
(2017)
उत्तर
1. प्राकृमिक आपदा
2. आकस्मिक
3. मानव जनित
4. लापरवाही,दुर्भावना
5.आकस्मिक
6. प्राकृतिक
7. प्राकृतिक
8. धीरे-धीरे आने
9. कृषि कार्य एवं कृषि उत्पादों
10. फसलों, आवासीय क्षेत्रों
11. भवनों के गिरने
12. रिक्टर स्केल
13. तटीय क्षेत्रों
14, आपदा प्रबन्धन
15. निराशावादी
16. समुद्री तूफान
17. नकारात्मक।

प्रश्न II. निम्नलिखित प्रश्नों का निश्चित उत्तर एक शब्द अथवा एक वाक्य में दीजिए
प्रश्न 1.
गम्भीर आपदाओं से क्या आशय है?
उत्तर
उन समस्त प्राकृतिक घटनाओं को गम्भीर आपदाओं के रूप में जाना जाता है, जिनसे जनजीवन एवं सम्पत्ति आदि पर गम्भीर प्रतिकूल या विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 2.
मुख्य प्राकृतिक आपदाएँ कौन-कौन सी हैं? (2010)
उत्तर
भूकम्प, बाढ़, सूखा, भूस्खलन, ज्वालामुखी का फटना, तूफान, समुद्री तूफान, ओलावृष्टि, बादल फटना तथा सूनामी या समुद्री लहरें आदि मुख्य प्राकृतिक आपदाएँ हैं।

प्रश्न 3
आपदाओं के मुख्य वर्गों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
आपदाओं के मुख्य रूप से चार वर्ग निर्धारित किये गये हैं—

  1. आकस्मिक रूप से घटित होने वाली आपदाएँ
  2. धीरे-धीरे अथवा क्रमशः आने वाली आपदाएँ
  3. मानव जनित अथवा सामाजिक आपदाएँ तथा
  4. जैविक आपदाएँ या महामारी।

प्रश्न 4.
आकस्मिक रूप से घटित होने वाली मुख्य प्राकृतिक आपदाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
भूकम्प, ज्वालामुखी का विस्फोट, सूनामी, बादल का फटना, चक्रवातीय तूफान, भू-स्खलन तथा हिम की आँधी आकस्मिक रूप से घटित होने वाली मुख्य प्राकृतिक आपदाएँ हैं।

प्रश्न 5.
धीरे-धीरे अथवा क्रमशः आने वाली मुख्य प्राकृतिक आपदाएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर
सूखा, अकाल, किसी क्षेत्र का मरुस्थलीकरण तथा मौसम एवं जलवायु सम्बन्धी परिवर्तन धीरे-धीरे अथवा क्रमशः आने वाली मुख्य प्राकृतिक आपदाएँ हैं।

प्रश्न 6.
हमारे जीवन में आग का क्या स्थान है?
उत्तर
हमारे जीवन में आग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। आग एक अति महत्त्वपूर्ण एवं प्रबल कारक है, जो मानव-जीवन के लिए उपयोगी एवं सहायक है।

प्रश्न 7.
आग लगने या ‘अग्निकाण्ड’ से क्या आशय है?
उत्तर
आग का अनियन्त्रित होकर विनाशकारी रूप ग्रहण कर लेना ही ‘आग लंगना’ या ‘अग्निकाण्ड’ कहलाती है।

प्रश्न 8.
आग के नितान्त अभाव में हमारा कौन-सा महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता?
उत्तर
आग के नितान्त अभाव में भोजन पकाने अर्थात् पाक-क्रिया का कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता।

प्रश्न 9.
आग लगने पर सबसे गम्भीर आशंका क्या होती है?
उत्तर
आग लगने पर सबसे गम्भीर आशंका व्यक्तियों के जलने या झुलसने की होती है। इससे व्यक्तियों की मृत्यु भी हो सकती है।

प्रश्न 10.
सूखे से क्या आशय है?
उत्तर
किसी क्षेत्र में मनुष्यों, पशुओं तथा कृषि-कार्यों के लिए सामान्य आवश्यकता से काफी कम मात्रा में जल की उपलब्ध होना ‘सूखा पड़ना’ कहलाता है।

प्रश्न 11.
सूखे का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव किस पर पड़ता है?
उत्तर
सूखे का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव कृषि-कार्यों तथा कृषि उत्पादनों पर पड़ता है।

प्रश्न 12.
अनावृष्टि के परिणामस्वरूप कौन-सी आपदा उत्पन्न हो सकती है?
उत्तर
अनावृष्टि के परिणामस्वरूप सूखे की आपदा उत्पन्न हो सकती है।

प्रश्न 13.
बाढ़ से क़्या आशय है?
उत्तर
उन क्षेत्रों का जलमग्न हो जाना बाढ़ कहलाता है, जिन क्षेत्रों में सामान्य दशाओं में जल-भराव नहीं होता।

प्रश्न 14.
किसी क्षेत्र में भयंकर बाढ़ आने के उपरान्त किस अन्य आपदा के आने की आशंका बढ़ | जाती है? ।
उत्तर
किसी क्षेत्र में भयंकर बाढ़ आने के उपरान्त संक्रामक रोगों के फैलने की आशंका बढ़ जाती हैं।

प्रश्न 15.
भूकम्प के परिणामस्वरूप सर्वाधिक हानि किस कारण से होती है?
उत्तर
भूकम्प के परिणामस्वरूप सर्वाधिक हानि मकानों के गिरने के कारण होती है।

प्रश्न 16.
भूकम्प की तीव्रता के मापन के पैमाने को क्या कहते हैं?
उत्तर
भूकम्प की तीव्रता के मापन के पैमाने को ‘रिक्टर स्केल’ या ‘रिक्टर पैमाना’ कहते हैं।

प्रश्न 17.
सूनामी से क्या आशय है? (2012)
उतर
जब समुद्री लहरें तेज गति से तट की ओर बढ़ती हैं तो उन्हें सूनामी कहते हैं। इन लहरों की ऊँचाई लगभग 15 मीटर तथा गति 50 किमी प्रति घण्टा तक हो सकती है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए
प्रश्न 1.
आपदा हो सकती है।
(क) आकस्मिक आपदा
(ख) धीरे-धीरे आने वाली आपदा
(ग) जैविक आपदा
(घ) इनमें से किसी भी प्रकार की आपदा
उतर
(घ) इनमें से किसी भी प्रकार की आपदा

प्रश्न 2.
संक्रामक रोगों का भयंकर प्रकोप किस वर्ग की आपदा है?
(क) प्राकृतिक आपदा
(ख) मानव जनित आपदा
(ग) जैविक आपदा
(घ) अस्पष्ट आपदा
उतर
(ग) जैविक आपदा

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन प्राकृतिक आपदा नहीं है? (2008, 10, 14)
(क) सूखा
(ख) भुखमरी/युद्ध
(ग) बाढ़
(घ) भूकम्प।
उतर
(ख) भुखमरी/युद्ध

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन प्राकृतिक आपदा नहीं है? |
(क) भूकम्प
(ख) साम्प्रदायिक दंगा
(ग) बाढ़
(घ) सुनामी।
उतर
(ख) साम्प्रदायिक दंगा

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन मानव निर्मित आपदा से सम्बन्धित है? (2018)
(क) बाढ़
(ख) नाभकीय परीक्षण
(ग) सूखा
(घ) चक्रवात
उतर
(ख) नाभकीय परीक्षण

प्रश्न 6.
बाढ़, भूकम्प, चक्रवात तथा सूखा आदि आपदाओं के पीछे निहित कारक होते हैं
(क) दैवी प्रकोप सम्बन्धी कारक
(ख) पाप में वृद्धि सम्बन्धी कारक
(ग) प्राकृतिक कारक
(घ) मानव द्वारा पर्यावरण-प्रदूषण में वृद्धि
उतर
(ग) प्राकृतिक कारक

प्रश्न 7.
‘आग लगना या ‘अग्निकाण्ड’ किस प्रकार की आपदा है?
(क) प्राकृतिक आपदा
(ख) दैवी प्रकोप सम्बन्धी आपदा
(ग) मानवकृत आपदा
(घ) अज्ञाते आपदा
उतर
(ग) मानवकृत आपदा 

प्रश्न 8.
आग का मौलिक गुण है
(क) भयंकर लपटें उत्पन्न करना
(ख) ताप प्रदान करना
(ग) जलाना
(घ) भोजन पकाना
उतर
(ख) ताप प्रदान करना

प्रश्न 9.
आग लगने या ‘अग्निकाण्ड’ का कारण हो सकता है
(क) मानवीय लापरवाही
(ख) दुर्घटना के परिणामस्वरूप
(ग) व्यक्तिगत दुर्भावना या षड्यन्त्र
(घ) ये सभी कारण
उतर
(घ) ये सभी कारण

प्रश्न 10.
सूखा पड़ने का प्रण है
(क) अधिक कृषि कार्य
(ख) वर्षा का बहुत कम होना
(ग) अधिक संख्या में नलकूप लगाना
(घ) जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि
उतर
(ख) वर्षा का बहुत कम होना

प्रश्न 11.
बाढ़ नामक आपदा का स्रोत हैं
(क) तालाब
(ख) झीलें
(ग) नदियाँ
(घ) नहरें
उतर
(ग) नदियाँ

प्रश्न 12.
किसी भवन में आग लग जाने पर सर्वप्रथम क्या करना चाहिए?
(क) फायर ब्रिगेड को बुलाना
(ख) भवन के अन्दर उपस्थित व्यक्तियों को भवन से बाहर निकालना
(ग) प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था करना
(घ) आग-बुझाने के उपाय करना
उतर
(ख) भवन के अन्दर उपस्थित व्यक्तियों को भवन से बाहर निकालना

प्रश्न 13.
भूकम्प से जान-माल का नुकसान होता है|
(क) पृथ्वी की गति से ।
(ख) इमारतों के गिरने से
(ग) अत्यधिक वर्षा से
(घ) डर से
उतर
(ख) इमारतों के गिरने से

प्रश्न 14.
सूनामी का सबसे अधिक प्रभाव कहाँ होता है?
(क) पहाड़ी क्षेत्रों में
(ख) तटवर्ती क्षेत्रों में
(ग) समुद्र के मध्यवर्ती क्षेत्र में
(घ) मैदानी भागों में
उतर
(ख) तटवर्ती क्षेत्रों में

प्रश्न 15.
समुद्री लहरों के समय समुद्र में विद्यमान जलयानों का बचाव हो सकता है
(क) तट की ओर तेजी से बढ़ने पर
(ख) तट से दूर खुले समुद्र की ओर चले जाने पर
(ग) एक स्थान पर रुक जाने पर
(घ) बन्दरगाह पर लंगर डाल देने पर
उतर
(ख) तट से दूर खुले समुद्र की ओर चले जाने पर

प्रश्न 16.
चक्रवातीय तूफान की दशा में होता है
(क) अत्यधिक तेज हवाएँ चलती हैं।
(ख) भारी वर्षा होती है।
(ग) ऊँची-ऊँची लहरें उठती हैं।
(घ) ये सभी
उतर
(घ) ये सभी

प्रश्न 17.
गम्भीर प्राकृतिक आपदाओं का लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर (2011)
(क) अच्छा प्रभाव पड़ता है
(ख) कोई प्रभाव नहीं पड़ता
(ग) गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है
(घ) उत्साहवर्द्धक प्रभाव पड़ता है
उतर
(ग)
गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है

प्रश्न 18.
प्राकृतिक आपदा से उत्पन्न विषद से रोकथाम में निम्नलिखित में से कौन सहायक नहीं है? (2018)
(क) जैविक चिकित्सा,
(ख) योग
(ग) बहिष्कार
(घ) संज्ञानात्मक चिकित्सा
उतर
(ग)
बहिष्कार

We hope the UP Board Solutions for Class 12  Psychology Chapter 12 Natural Disasters (प्राकृतिक आपदाएँ) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12  Psychology Chapter 12 Natural Disasters (प्राकृतिक आपदाएँ), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.