UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 11 International Trade

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 11 International Trade (अंतर्राष्ट्रीय व्यापार)

UP Board Class 12 Geography Chapter 11 Text Book Questions

UP Board Class 12 Geography Chapter 11 पाठ्यपुस्तक से अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए-

(i) दो देशों के मध्य व्यापार कहलाता है-
(क) अन्तर्देशीय व्यापार
(ख) बाह्य व्यापार
(ग) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
(घ) स्थानीय व्यापार।
उत्तर:
(ग) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार।

(ii) निम्नलिखित में से कौन-सा एक स्थलबद्ध पोताश्रय है-
(क) विशाखापत्तनम
(ख) मुम्बई
(ग) एन्नोर
(घ) हल्दिया।
उत्तर:
(क) विशाखापत्तनम।

(iii) भारत का अधिकांश विदेश व्यापार वहन होता है-
(क) स्थल और समुद्र द्वारा
(ख) स्थल और वायु द्वारा
(ग) समुद्र और वायु द्वारा
(घ) समुद्र द्वारा।
उत्तर:
(क) स्थल और समुद्र द्वारा।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें-

(i) भारत के विदेश व्यापार की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत का विदेश व्यापार सदा ही प्रतिकूल रहा है अर्थात् आयात का मूल्य निर्यात के मूल्य से सदा ही अधिक रहा है। विश्व के लगभग सभी देशों के साथ भारत के व्यापारिक सम्बन्ध हैं। वस्त्र, अयस्क व खनिज, हीरे-आभूषण तथा इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ भारत के मुख्य निर्यात हैं, जबकि पेट्रोलियम हमारे देश का सबसे बड़ा आयात है।

(ii) पत्तन और पोताश्रय में अन्तर बताइए।
उत्तर:
पत्तन-गोदी, घाट एवं सामान उतारने की सुविधाओं सहित तट पर ऐसा स्थान होता है जहाँ पर समुद्र-मार्ग से आने वाले माल को उतारकर स्थल मार्ग द्वारा आन्तरिक भागों को भेजा जाता है। साथ ही आन्तरिक भागों में आए माल को समुद्र मार्ग द्वारा विदेशों को भेजा जाता है।
पोताश्रय-यह समुद्र का वह अंशत: परिषद् क्षेत्र है; जैसे—निवेशिका, नदमुख अथवा समुद्र-अन्तर्गम आदि, जो आने वाले जहाजों को आश्रय देता है।

(iii) पृष्ठप्रदेश के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बन्दरगाह का संलग्न क्षेत्र जो इसकी सेवा करता है तथा इससे सेवा प्राप्त करता है, बन्दरगाह का पृष्ठप्रदेश’ कहलाता है।

(iv) उन महत्त्वपूर्ण मदों के नाम बताइए जिन्हें भारत विभिन्न देशों से आयात करता है?
उत्तर:
भारत मुख्यत: पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम पदार्थों का आयात करता है। इसके अलावा मशीनों व उपकरणों, उर्वरकों, विशेष किस्म का इस्पात, खाद्य तेल तथा रसायन बड़ी मात्रा में आयात किए जाते हैं।

(v) भारत के पूर्वी तट पर स्थित पत्तनों के नाम बताइए।
उत्तर:
भारत के पूर्वी तट पर स्थित पत्तन हैं-कोलकाता, हल्दिया, पाराद्वीप, विशाखापत्तनम, चेन्नई, एन्नोर तथा तूतीकोरिन।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 11 International Trade

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें-

(i) भारत में निर्यात और आयात व्यापार के संयोजन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
निर्यात व्यापार संयोजन-भारत से अनेक वस्तुओं का निर्यात किया जाता है। निर्यात की प्रमुख वस्तुएँ कृषि एवं समवर्गी उत्पाद, अयस्क एवं खनिज, विनिर्मित वस्तुएँ तथा पेट्रोलियम व अपरिष्कृत उत्पाद आदि हैं।

आयात संयोजन-भारत के आयात भी अनेक तरह के हैं। आयात की सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम उत्पाद हैं। इसके अलावा अयस्क, मोती एवं बहुमूल्य रत्न, उर्वरक, कागज व लुग्दी तथा खाद्य तेल हैं।

तालिका: भारत का विदेश व्यापार
UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 11 International Trade 1

स्रोत : http://commerce.nic.in/publications/annual report-2010-11 और आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17.

तालिका: भारत का निर्यात संघटन, 2009-17
UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 11 International Trade 2
स्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17

तालिका : कुछ प्रमुख उपयोगी वस्तुओं का निर्यात
UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 11 International Trade 3
स्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17

तालिका: भारत का आयात संघटन, 2009-2017
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UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 11 International Trade 5
स्त्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17

तालिकाः कुछ प्रमुख वस्तुओं का आयात
UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 11 International Trade 6
स्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17

(ii) भारत के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की बदलती प्रकृति पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत के आयात एवं निर्यात दोनों में ही कालिक परिवर्तन हुए हैं। भारत के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की बदलती प्रकृति

समय के साथ भारत के विदेशी व्यापार में बहुत बड़े परिवर्तन हुए हैं, जैसा कि निम्नलिखित उदाहरणों से समझा जा सकता है-

  1. भारत का कुल विदेशी व्यापार 1950-51 में 1,214 करोड़ रुपये था, जो कि वर्ष 2016-17 में बढ़कर 44,29,762 करोड़ रुपये हो गया।
  2. निर्यात की अपेक्षा आयात तेजी से बढ़ा है। 1950-51 में आयात 608 करोड़ रुपये से बढ़कर 2009-10 में 1,36.736 करोड़ रुपये हो गया। इसकी तुलना में इसी अवधि में निर्यात 606 करोड़ रुपये से बढ़कर 8,45,534 करोड़ रुपये हो गया।
  3. व्यापार घाटा जो कि 2000-01 में – 27,302 करोड़ रुपये था वह बढ़कर 2009-10 में – 5,18.202 करोड़ रुपये हो गया।
  4. भारत के व्यापार सन्तुलन के विपक्ष में होने के कारण-
    • विश्व स्तर पर मूल्यों में वृद्धि।
    •  विश्व बाजार में भारतीय रुपये का अवमूल्यन।
    • उत्पादन में धीमी प्रगति तथा घरेलू उपभोग में वृद्धि।
    • विश्व व्यापार में कड़ी प्रतिस्पर्धा।
    • घाटे में इस वृद्धि के लिए अपरिष्कृत पेट्रोलियम को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, क्योंकि यह भारत की आयात सूची में एक प्रमुख व महँगा घटक है।

वर्ष 2012-13 से 2016-17 के दौरान भारत के विदेश व्यापार में निर्यात एवं आयात के बीच अन्तर का फैलाव
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स्त्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17.

तालिका:भारत का विदेश व्यापार
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स्रोत : http://commerce.nic.in/publications/annual report 2010-11. और आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17.

ऊपर दी गई सारणी से स्पष्ट होता है कि आयात का मूल्य, निर्यात के मूल्य से सदा ही अधिक रहा है और आयात तथा निर्यात के बीच अन्तर बढ़ता ही जाता है। इससे व्यापार घाटे में निरन्तर वृद्धि होती है।

UP Board Class 12 Geography Chapter 11 Other Important Questions

UP Board Class 12 Geography Chapter 11 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भारत के निर्यात में पिछड़ने के कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत के निर्यात में पिछड़ने के कारण भारत के निर्यात में पिछड़ने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  1. भारतीय वस्तुओं की उत्पादन लागत अपेक्षाकृत अधिक है। हम समय, श्रम व वस्तु (कच्चे माल) का अनुकूलतम उपयोग नहीं कर पाते।
  2. भारतीय वस्तुओं की गुणवत्ता का स्तर निम्न है। हम उच्च गुणवत्ता वाली वस्तु नहीं दे पाते।
  3. भारतीय माल के आयात पर विकसित देशों ने संरक्षणवादी नीति अपना रखी है।
  4. यदि कोई देश विकसित देशों से आयात करता है तो उसे कम आयात शुल्क देना होता है। यदि वही देश वही माल किसी विकासशील देश से ले तो उसे अधिक आयात शुल्क देना होता है।
  5. भारतीय रुपये का बार-बार अवमूल्यन एक हथियार के रूप में प्रयोग हो रहा है।
  6. भारतीय निर्यात वस्तुओं की स्थानापन्न वस्तुओं की विदेशी बाजार में बहुलता है।
  7. भारत के परम्परागत निर्यातों की विदेशों में कम माँग है।
  8. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय वस्तुओं का विज्ञापन व प्रचार अपर्याप्त है।

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प्रश्न 2.
पश्चिमी तट पर स्थित भारत के प्रमुख पत्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के पश्चिमी तट पर स्थित प्रमुख पत्तन भारत के पश्चिमी तट पर स्थित प्रमुख पत्तन हैं-

  1. कांडला,
  2. मुम्बई,
  3. जवाहरलाल नहेरू पत्तन, न्हावाशेवा, मुम्बई,
  4. मार्मागाओ,
  5. न्यू मंगलौर तथा
  6. कोच्चि।

1. कांडला-यह एक ज्वारीय पत्तन है जो गुजरात में कच्छ की खाड़ी के मुहाने पर स्थित है। यह पत्तन देश के उत्तर-पश्चिमी भाग की आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ मुम्बई पत्तन पर दबाव को भी कम करता है। इस पत्तन से कच्चे तेल के उत्पादों, उर्वरकों, खाद्य पदार्थों, कपास, चीनी, सीमेण्ट और स्क्रैप (धात्विक कतरनों) आदि का व्यापार होता है।

2. मुम्बई–यह भारत का प्राकृतिक और सबसे बड़ा पत्तन है। यह पत्तन सालसार द्वीप पर स्थित है। यह पश्चिमी तट पर स्थित है। सभी पत्तनों के कुल यातायात का पाँचवाँ भाग अकेला यही पत्तन सँभालता है। मुख्यतः पेट्रोलियम पदार्थों और शुष्क माल का व्यापार होता है।

3. जवाहरलाल नेहरू पत्तन, मुम्बई–मुम्बई के न्हावाशेवा के स्थान पर बनी जवाहरलाल नेहरू पत्तन आधुनिक उपस्करों और आधुनिक साधनो से युक्त एक महत्त्वपूर्ण पत्तन है जिसका विकास मुम्बई पत्तन के भार को कम करने के लिए किया गया है। यह भारत का विशालतम कन्टेनर पत्तन है।

4. मार्मागाओ-जुआरी नदमुख के मुहाने पर अवस्थित यह भारत के पश्चिमी तट का एक प्रमुख, प्राकृतिक एवं सुरक्षित बन्दरगाह है। यहाँ से मुख्यतः लौह-अयस्क, मछलियों के उत्पाद, नारियल और मसालों का निर्यात किया जाता है। इस पत्तन पर आयात की जाने वाली प्रमुख वस्तुएँ रसायन, उर्वरक और खाद्य पदार्थ आदि हैं।

5. न्यू मंगलौर—यह पश्चिमी तट पर कर्नाटक का प्रमुख पत्तन है जो कि कोच्चि और मार्मागाओ के मध्य स्थित है। इस पत्तन से कुद्रेमुख के लौह-अयस्क और लौह-सांद्र को निर्यात किया जाता है। इनके अलावा यहाँ से उर्वरकों, पेट्रोलियम उत्पादों, खाद्य तेलों, कॉफी, चाय, लुग्दी, सूत, ग्रेनाइट पत्थर और शीरा आदि का आयात-निर्यात किया जाता है।

6. कोच्चि-यह केरल में स्थित एक प्राकृतिक पत्तन है। यह मालाबार तट का प्रमुख पत्तन है। इस पत्तन को स्वेज-कोलम्बो मार्ग के पास अवस्थित होने का लाभ प्राप्त है। यहाँ से पेट्रोलियम और उसके उत्पादों, उर्वरकों और कच्चे माल का आयात-निर्यात होता है। कोच्चि पत्तन भारतीय नौसेना के लड़ाकू जलयानों का महत्त्वपूर्ण , आश्रय-स्थल है।

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लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बन्दरगाह को पोताश्रय क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
बन्दरगाह समुद्र का अंशत: परिबद्ध क्षेत्र होता है; जैसे—निवेशिका, ज्वारनदमुख अथवा समुद्र-अंतर्गम आदि, जो आने वाले जहाजों को आश्रय देता है। इसीलिए बन्दरगाह को ‘पोताश्रय’ कहा जाता है। यहाँ जहाज समुद्र की खुली तूफानी, तेज और मारक लहरों से सुरक्षित रहते हैं।

प्रश्न 2.
विशाखापत्तनम बन्दरगाह पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
विशाखापत्तनम-आन्ध्र प्रदेश के तट पर स्थित यह देश में सर्वाधिक गहरी, स्थलरुद्ध और सुरक्षित बन्दरगाह है। यह देश में सबसे आन्तरिक भाग में स्थित बन्दरगाह है जिसे ठोस चट्टान एवं बालू को काटकर एक नहर के द्वारा समुद्र से जोड़ा गया है। यहाँ से लौह-अयस्क, कच्चा तेल, पेट्रोलियम उत्पादों और उर्वरकों का व्यापार होता है। इस पत्तन का पृष्ठ प्रदेश आन्ध्र प्रदेश है।

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प्रश्न 3.
कोलकाता पत्तन काफी हद तक अपनी सार्थकता खो चुका है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कोलकाता पत्तन ने अपना महत्त्व निम्नलिखित कारणों से खो दिया है-

  1. निर्यात का विशाखापत्तनम तथा पाराद्वीप समुद्री-पत्तनों की तरफ मुड़ना।
  2. इसे गंगा नदी द्वारा लायी गई भारी गाद का सामना करना पड़ता है।
  3. यह एक ज्वारीय पत्तन है और इसे बार-बार हुगली नदी के छत्तराव की भी आवश्यकता होती है ताकि जल का न्यूनतम स्तर बना रहे और नौकायन होता रहे।

प्रश्न 4.
प्राकृतिक पत्तन और कृत्रिम पत्तन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक पत्तन-कटे-फटे समुद्री तट पर सुरक्षित पत्तन होता है। इनके विकास में कम व्यय होता है।
कृत्रिम पत्तन सीधी व सपाट तट रेखा पर अशांत समुद्र की लहरों से असुरक्षित होता है, अत: इसकी सुरक्षा के लिए कृत्रिम दीवार बनाई जाती है जिस पर अधिक व्यय आता है।

प्रश्न 5.
पत्तनों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
पत्तनों के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-

  1. प्रमुख पत्तन–10 लाख टन वार्षिक से अधिक यातायात सँभालने वाले पत्तनों को ‘प्रमुख पत्तन’ कहा जाता है।
  2. मध्यम पत्तन-10 लाख टन से कम और 1 लाख टन से अधिक यातायात वाले पत्तन को ‘मध्यम पत्तन’ कहा जाता है।
  3. छोटा पत्तन-1 लाख टन से कम मगर 1500 टन से ज्यादा वाले पत्तन को ‘छोटा पत्तन’ कहा जाता है।
  4. उप-पत्तन–1500 टन से कम वाला पत्तन ‘उप-पत्तन’ कहलाता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
व्यापार किसे कहते हैं?
उत्तर:
वस्तुओं के क्रय-विक्रय को व्यापार कहते हैं।

प्रश्न 2.
व्यापार कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
व्यापार दो प्रकार के होते हैं-

  1. देशी अथवा घरेलू व्यापार तथा
  2. अन्तर्राष्ट्रीय या विदेशी व्यापार।

प्रश्न 3.
देशी या घरेलू व्यापार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
देशी या घरेलू व्यापार में वस्तुओं का क्रय-विक्रय देश के एक भाग से दूसरे भाग में किया जाता है। उदाहरण-असम की चाय सारे देश में बिकती है।

प्रश्न 4.
विदेशी व्यापार से क्या आशय है?
उत्तर:
विदेशी व्यापार में वस्तुओं का क्रय-विक्रय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होता है।

प्रश्न 5.
निर्यात किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब देश में किसी वस्तु का उत्पादन आवश्यकता से अधिक होता है, तो उसे विदेशों में भेज दिया जाता है, इसे निर्यात कहते हैं।

प्रश्न 6.
आयात से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब एक देश किसी दूसरे देश से वस्तु खरीदता है, तो उसे ‘आयात’ कहा जाता है।

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प्रश्न 7.
व्यापार सन्तुलन किसे कहते हैं?
उत्तर:
आयात तथा निर्यात के अन्तर को ‘व्यापार सन्तुलन’ कहते हैं।

प्रश्न 8.
व्यापार सन्तुलन पक्ष और विपक्ष में कब होता है?
उत्तर:
यदि आयात, निर्यात से कम हो, तो ‘व्यापार सन्तुलन”पक्ष’ में होता है और यदि आयात, निर्यात से अधिक हो, तो ‘व्यापार सन्तुलन’ ‘विपक्ष’ में होता है।

प्रश्न 9.
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश द्वार के रूप में किसे जाना जाता है?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश द्वार के रूप में ‘समुद्री पत्तन’ को जाना जाता है।

प्रश्न 10.
विमान पत्तन किसे कहते हैं?
उत्तर:
वायु परिवहन के केन्द्रों को ‘निमान पत्तन’ कहा जाता है।

प्रश्न 11.
विमान पत्तनों का प्रबन्ध कौन करता है?
उत्तर:
विमान पत्तनों का प्रबन्ध ‘भारतीय विमान पत्तन प्राधिकरण’ करता है।

प्रश्न 12.
भारत के कोई दो अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तनों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. इन्दिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन, नई दिल्ली।
  2. दमदम पत्तन, कोलकाता।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
न्हावा शेवा पत्तन किस राज्य में है-
(a) गुजरात
(b) महाराष्ट्र
(c) गोवा
(d) कर्नाटका
उत्तर:
(b) महाराष्ट्र।

प्रश्न 2.
चेन्नई पत्तन कब बनाया गया था-
(a) सन् 1839 में
(b) सन् 1859 में
(c) सन् 1849 में
(d) सन् 1869 में।
उत्तर:
(b) सन् 1859 में।

प्रश्न 3.
भारत का व्यापार सन्तुलन विपक्ष में रहने का कारण है-
(a) विश्व स्तर पर मूल्यों में वृद्धि
(b) विश्व बाजार में कड़ी प्रतिस्पर्धा
(c) विश्व बाजार में भारतीय रुपये का अवमूल्यन
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 4.
भारत द्वारा निर्यात की जाने वाली वस्तु है-
(a) कृषि एवं समवर्गी उत्पाद
(b) अयस्क एवं खनिज
(c) विनिर्मित वस्तुएँ
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 5.
भारत द्वारा आयात की जाने वाली वस्तु है-
(a) पेट्रोलियम अपरिष्कृत तथा अन्य उत्पाद
(b) पूँजीगत सामान
(c) रसायन तथा सम्बन्धित उत्पाद
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 6.
गोवा के तट पर स्थित प्राकृतिक बन्दरगाह है-
(a) मार्मागाओ
(b) न्यू मंगलौर
(c) कोच्चि
(d) हल्दिया।
उत्तर:
(a) मार्मागाओ।

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प्रश्न 7.
सहारा विमान पत्तन स्थित है-
(a) मुम्बई में
(b) कोलकाता में
(c) चेन्नई में
(d) नई-दिल्ली में।
उत्तर:
(a) मुम्बई में।

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UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 5 Contemporary South Asia

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 5 Contemporary South Asia (समकालीन दक्षिण एशिया)

UP Board Class 12 Civics Chapter 5 Text Book Questions

UP Board Class 12 Civics Chapter 5 पाठ्यपुस्तक से अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1.
देशों की पहचान करें
(क) राजतन्त्र, लोकतन्त्र-समर्थक समूहों और आतंकवादियों के बीच संघर्ष के कारण राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण बना।
(ख) चारों तरफ भूमि से घिरा देश।
(ग) दक्षिण एशिया का वह देश जिसने सबसे पहले अपनी अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किया।
(घ) सेना और लोकतन्त्र-समर्थक समूहों के बीच संघर्ष में सेना ने लोकतन्त्र के ऊपर बाजी मारी।
(ङ) दक्षिण एशिया के केन्द्र में अवस्थित। इस देश की सीमाएँ दक्षिण एशिया के अधिकांश देशों से मिलती हैं।
(च) पहले इस द्वीप में शासन की बागडोर सुल्तान के हाथ में थी। अब यह एक गणतन्त्र है।
(छ) ग्रामीण क्षेत्र में छोटी बचत और सहकारी ऋण की व्यवस्था के कारण इस देश को गरीबी कम करने में मदद मिली है।
(ज) एक हिमालयी देश जहाँ संवैधानिक राजतन्त्र है। यह देश भी हर तरफ से भूमि से घिरा हुआ है।
उत्तर:
(क) नेपाल,
(ख) नेपाल,
(ग) श्रीलंका
(घ) पाकिस्तान,
(ङ) भारत,
(च) मालदीव
(छ) बंगलादेश
(ज) भूटान।

प्रश्न 2.
दक्षिण एशिया के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है-
(क) दक्षिण एशिया में सिर्फ एक तरह की राजनीतिक प्रणाली चलती है।
(ख) बंगलादेश और भारत ने नदी-जल की हिस्सेदारी के बारे में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
(ग) ‘साफ्टा’ पर हस्ताक्षर इस्लामाबाद के 12वें सार्क सम्मेलन में हुए।
(घ) दक्षिण एशिया की राजनीति में चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उत्तर.
(क) दक्षिण एशिया में सिर्फ एक तरह की राजनीतिक प्रणाली चलती है।

प्रश्न 3.
पाकिस्तान के लोकतन्त्रीकरण में कौन-कौन सी कठिनाइयाँ हैं?
उत्तर:
पाकिस्तान के लोकतन्त्रीकरण की कठिनाइयाँ पाकिस्तान के लोकतन्त्रीकरण में निम्नलिखित कठिनाइयाँ विद्यमान हैं-

1. सेना का प्रभुत्व–पाकिस्तान में सदैव ही सेना का प्रभुत्व रहा। जितने भी शासक हुए सभी ने लोकतन्त्र के नाम पर सेना के माध्यम से शासन की बागडोर सँभाली। जनता भी सैन्य शासन का इसलिए समर्थन करती है क्योंकि वे सोचते हैं कि इससे देश की सुरक्षा खतरे में नहीं पड़ेगी। पाकिस्तान की भारत के साथ तनातनी रहती है, इस कारण भी सेना समर्थक समूह अधिक मजबूत हैं और अक्सर ये समूह दलील देते हैं कि पाकिस्तान के राजनीतिक दलों और लोकतन्त्र में कमी है। लोकतन्त्र में कमी के कारण पाकिस्तान पूरी तरह सफल नहीं हो सका है।

2. लोकतन्त्र के लिए अन्तर्राष्ट्रीय समर्थन का अभाव-पाकिस्तान में लोकतान्त्रिक शासन चले इसके लिए विशेष अन्तर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त नहीं होता। इस तरह भी सेना को अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए बढ़ावा मिलता है।

3. धर्म गुरुओं एवं अभिजन का प्रभाव-पाकिस्तानी समाज में भू-स्वामी अभिजनों और धर्मगुरुओं का काफी प्रभुत्व रहता है। वे लोग भी सेना के शासन को ही उचित मानते हैं।

प्रश्न 4.
नेपाल के लोग अपने देश में लोकतन्त्र को बहाल करने में कैसे सफल हुए?
उत्तर:
अतीत में नेपाल एक हिन्दू राज्य था। आधुनिक काल में यहाँ कई वर्षों तक संवैधानिक राजतन्त्र रहा। इस दौर में नेपाल की राजनीतिक पार्टियाँ और नागरिक खुले और उत्तरदायी शासन की आवाज उठाते रहे, लेकिन राजा ने सेना की सहायता से शासन पर पूरा नियन्त्रण स्थापित कर लिया और नेपाल में लोकतन्त्र की राह अवरुद्ध हो गई।

नेपाल में लोकतन्त्र की बहाली-नेपाल में एक मजबूत लोकतन्त्र समर्थक आन्दोलन प्रारम्भ हुआ, परिणामस्वरूप सन् 1990 में राजा ने नए लोकतान्त्रिक संविधान की माँग की, लेकिन नेपाल में लोकतान्त्रिक सरकारों का कार्यकाल बहुत छोटा और समस्याओं से भरा रहा।

1990 के दशक में नेपाल के माओवादी, नेपाल के अनेक हिस्सों में अपना प्रभाव कायम करने में सफल हुए। माओवादी, राजा और सत्ताधारी अभिजन के बीच त्रिकोणीय संघर्ष हुआ। सन् 2001 में राजा ने संसद को भंग कर दिया और सरकार को गिरा दिया। इस तरह नेपाल में जो भी थोड़ा-बहुत लोकतन्त्र था उसे राजा ने खत्म कर दिया।

अप्रैल 2006 में यहाँ देशव्यापी लोकतन्त्र समर्थक प्रदर्शन हुआ और राजा ज्ञानेन्द्र ने बाध्य होकर संसद को बहाल किया। इस प्रदर्शन का नेतृत्व सभी दलों के गठबन्धन, माओवादी तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं ने किया।

अभी भी नेपाल में पूरी तरह से लोकतन्त्र की स्थापना नहीं हो पायी है। यह देश इतिहास के एक अद्वितीय दौर से गुजर रहा है, क्योंकि वहाँ संविधान सभा के गठन की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। माओवादी चाहते हैं कि संविधान में मूलगामी सामाजिक, आर्थिक पुनर्रचना के कार्यक्रमों को शामिल किया जाए। सत्ता दलों के गठबन्धन में शामिल हर एक दल को यह बात स्वीकार हो, ऐसा नहीं लगता।

प्रश्न 5.
श्रीलंका के जातीय संघर्ष में किनकी भूमिका प्रमुख है?
उत्तर:
भारतीय मूल के तमिल निवासियों को ब्रिटिश सरकार मजदूरों के रूप में तमिलनाडु से श्रीलंका ले गयी। ये तमिल श्रीलंका में रहने वाले तमिलों से भिन्न हैं। इन तमिलों ने श्रीलंका में नागरिकता की माँग रखी। 1948 में नागरिकता कानून पास किया गया। इस कानून के तहत कुछ ही तमिल नागरिकता प्राप्त कर सके।

श्रीलंका के जातीय संघर्ष में भारतीय मूल के तमिल प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। सन् 1976 में तमिल यूनाइटेड लिबरेशन फ्रण्ट की स्थापना की गयी जिसने तमिल राज्य ईलम की माँग की। तत्पश्चात् सरकार ने इन्हें कुछ सुविधाएँ दीं, दुष्परिणामस्वरूप सन् 1972 में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) का गठन हो गया। लिट्टे ने श्रीलंका में हिंसात्मक गतिविधियाँ अपनायीं। इसने श्रीलंका में कुछ सीमा तक सफलता भी प्राप्त की।

सन् 1987 में भारतीय सरकार श्रीलंका में तमिल मसले में प्रत्यक्ष रूप से शामिल हुई। भारतीय सेना लिट्टे के साथ संघर्ष में फँस गयी। भारतीय सेना की उपस्थिति को श्रीलंका की जनता ने भी पसन्द नहीं किया। सन् 1989 में भारत ने अपनी ‘शान्ति सेना’ लक्ष्य हासिल किए बिना वापस बुला ली। 23 फरवरी, 2002. को श्रीलंका की सरकार और लिट्टे के बीच युद्ध विराम समझौता हुआ। लिट्टे की सफलता का भारत पर काफी प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 6.
भारत और पाकिस्तान के बीच हाल में क्या समझौते हुए?
उत्तर:
दोनों ही देश भारत और पाकिस्तान के मध्य स्वतन्त्रता से लेकर अब तक निरन्तर तनाव की स्थिति बनी रही है।

अगस्त 2011 में नई दिल्ली में दोनों देशों के बीच हुई वार्ता में निश्चित हुआ कि-

  1. दोनों देश एक-दूसरे के कैदियों को छोड़ देंगे।
  2. सीमा व्यापार बढ़ाने हेतु कश्मीर के दोनों भागों को सुविधाएँ प्रदान करेंगे।

प्रश्न 7.
ऐसे दो मसलों के नाम बताएँ जिन पर भारत-बंगलादेश के बीच आपसी सहयोग है और इसी तरह के दो ऐसे मसलों के नाम बताएँ जिन पर असहमति है।
उत्तर:
भारत और बंगलादेश के बीच आपसी सहयोग के निम्नलिखित दो मसले हैं-

  1. विगत वर्षों के दौरान दोनों देशों के बीच आर्थिक सम्बन्ध अधिक बेहतर हुए हैं। बंगलादेश भारत की ‘पूरब चलो’ की नीति का हिस्सा है। इस नीति में म्यानमार के जरिए दक्षिण-पूर्व एशिया से सम्पर्क साधने की बात है।
  2. आपदा प्रबन्धन और पर्यावरण के मसले पर दोनों देशों में सहयोग है। भारत और बंगलादेश के बीच असहमति के दो मसले

निम्नलिखित हैं-

  1. भारत को प्राकृतिक गैस निर्यात न करने का ढाका का फैसला तथा म्यानमार को बंगलादेशी इलाके से होकर भारत को प्राकृतिक गैस निर्यात न करने देना।
  2. भारतीय सेना के पूर्वोत्तर भारत में जाने के लिए अपने इलाके में रास्ता देने से बंगलादेश का इनकार करना।

प्रश्न 8.
दक्षिण एशिया में द्विपक्षीय सम्बन्धों को बाहरी शक्तियाँ कैसे प्रभावित करती हैं?
उत्तर:
कोई भी क्षेत्र अपने आपको गैर-इलाकाई ताकतों से अलग रखने की कितनी भी कोशिश क्यों न करे उस पर बाहरी ताकतों और घटनाओं का असर पड़ता ही है। चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिण एशिया की राजनीति में अहम भूमिका निभाते हैं।

भारत और चीन के सम्बन्धों में पहले से निकटता आई है। परन्तु चीन के सम्बन्ध पाकिस्तान से भी हैं, इस कारण भारत-चीन सम्बन्धों में इतनी निकटता नहीं आ पायी है। यह एक बड़ी कठिनाई के रूप में है। शीतयुद्ध के बाद दक्षिण एशिया में अमेरिकी प्रभाव तेजी से बढ़ा है। अमेरिका ने शीतयुद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों से अपने सम्बन्ध बेहतर किए हैं। दोनों में आर्थिक सुधार हुए हैं और उदार नीतियाँ अपनायी गयी हैं। इससे दक्षिण एशिया में अमेरिकी भागीदारी ज्यादा गहरी हुई है। अमेरिका में दक्षिणी एशियाई मूल के लोगों की संख्या अच्छी खासी है। फिर इस क्षेत्र की सुरक्षा और शान्ति के भविष्य से अमेरिका के हित भी बँधे हुए हैं।

प्रश्न 9.
दक्षिण एशिया के देशों के बीच आर्थिक सहयोग की राह तैयार करने में दक्षेस (सार्क) की भूमिका और सीमाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। दक्षिण एशिया की बेहतरी में दक्षेस (सार्क) ज्यादा बड़ी भूमिका निभा सके, इसके लिए आप क्या सुझाव देंगे?
उत्तर:
दक्षिण एशिया के क्षेत्र यदि अपने आर्थिक मसलों में सहायता का रुख अपनाएँ तो सभी देश अपने देश के संसाधनों का उचित विकास कर सकते हैं। अनेक संघर्षों के बावजूद दक्षिण एशिया (सार्क) के देश परस्पर मित्रवत् सम्बन्ध तथा सहयोग के महत्त्व को पहचानते हैं। दक्षेस दक्षिण एशियाई देशों द्वारा बहुस्तरीय साधनों में सहयोग करने की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है।

क्षेत्र के सदस्य देशों ने सन् 2002 में ‘दक्षिण एशियाई’ मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौते (SAFTA) पर हस्ताक्षर किए। इसमें पूरे दक्षिण एशिया के लिए मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने का वायदा किया। 11वें शिखर सम्मेलन में दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र के लिए प्रारूप तैयार करने का निर्णय लिया गया। अन्तत: 2004 में दक्षेस के देशों में ‘साफ्टा’ (साउथ एशियन फ्री ट्रेड एशिया एग्रीमेण्ट) दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौते पर हस्ताक्षर किए। दक्षेस का उद्देश्य आर्थिक सहयोग उपलब्ध करना भी है। 1 जनवरी, 2006 से यह समझौता प्रभावी हो गया।
सीमाएँ-दक्षेस की कुछ सीमाएँ भी हैं जिन्हें निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं-

  1. दक्षिण एशिया के देशों के बीच आपसी विवाद तथा समस्याओं ने विशेष स्थान लिया हुआ है। कुछ देशों का मानना है कि ‘साफ्टा’ का सहारा लेकर भारत उनके बाजार में सेंध मारना चाहता है और उनके समाज और राजनीति को प्रभावित करना चाहता है।
  2. दक्षेस में शामिल देशों की समस्याओं के कारण चीन तथा अमेरिका दक्षिण एशियाई राजनीति में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
    दक्षेस की भूमिका के लिए सुझाव-

    •  भारत और पाकिस्तान को आपस के विवादों को सुलझाना चाहिए ताकि सभी दक्षिण एशियाई देशों का ध्यान विवादों से हटकर विकास की ओर जा सके। सभी देशों के लिए भारत का विशाल बाजार सहायक हो सकता है।
    • वित्तीय क्षेत्र में सुधार करना आवश्यक है।
    • श्रम सम्बन्ध, वाणिज्यिक क्षेत्र एवं वित्तीय समस्याओं के लिए कानूनों में परिवर्तन आवश्यक है।
    • पड़ोसी देशों के साथ संचार तथा यातायात व्यवस्था में सुधार करना आवश्यक है।

प्रश्न 10.
दक्षिण एशिया के देश एक-दूसरे पर अविश्वास करते हैं। इससे अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर यह क्षेत्र एकजुट होकर अपना प्रभाव नहीं जमा पाता। इस कथन की पुष्टि के कोई दो उदाहरण दें और दक्षिण एशिया को मजबूत बनाने के लिए उपाय सुझाएँ।
उत्तर:
वास्तव में दक्षिण एशिया के देशों को एक-दूसरे पर विश्वास नहीं है, पाकिस्तान और भारत सदैव एक-दूसरे पर अविश्वास करते हैं। भारत में हुए हर आतंकवादी क्रियाकलाप में विशेष रूप से पाकिस्तान का नाम आता है। इसी तरह पाकिस्तान, भारत पर सिन्ध और बलूचिस्तान में समस्या भड़काने का आरोप लगाता है।

छोटे देशों का भारत के इरादों को लेकर शक करना लाजिमी है। इन देशों को लगता है कि भारत दक्षिण एशिया में अपना दबदबा कायम करना चाहता है।

दक्षिण एशिया को मजबूत बनाने के उपाय-

  1. उचित वातावरण का निर्माण किया जाए।
  2. सन्देह को समाप्त किया जाए।
  3. मिलकर अपनी समस्याओं का हल खोजा जाए।
  4. एक-दूसरे देश में प्रमुख नेताओं की यात्रा हो ताकि कटुता कम हो सके।
  5. आतंकवाद के विरुद्ध सहयोग की भावना का विकास हो।
  6. बाहरी शक्तियों के हस्तक्षेप पर प्रभावी रोक लगाई जाए।

प्रश्न 11.
दक्षिण एशिया के देश भारत को एक बाहुबली समझते हैं जो इस क्षेत्र के छोटे देशों पर अपना दबदबा जमाना चाहता है और उनके अन्दरूनी मामलों में दखल देता है। इन देशों की ऐसी सोच के लिए कौन-कौन सी बातें जिम्मेदार हैं?
उत्तर:
दक्षिण एशिया के देशों का यह सोचना कि भारत अपना दबदबा उन पर स्थापित करना चाहता है मनोवैज्ञानिक रूप से उचित लगता है। उनका यह मानना है कि भारत उनके आन्तरिक मामलों में दखल देता है। जैसे नेपाल को लगता है कि भारत उसको अपने भू-क्षेत्र से होकर समुद्र तक पहुँचने से रोकता है। बंगलादेश का यह मानना है कि भारत सरकार नदी जल में भागीदारी के सवाल पर क्षेत्रीय बाहुबली की तरह व्यवहार करती है।

दक्षिण एशिया के छोटे देशों की ऐसी सोच के लिए जिम्मेदार घटक-

  1. भारत का आकार अन्य दक्षिण एशिया के देशों की तुलना में काफी बड़ा है।
  2. भारत दक्षिण एशिया के छोटे देशों की तुलना में अत्यधिक शक्तिशाली व प्रभावपूर्ण है।
  3. भारत नहीं चाहता है कि इन देशों में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो। उसे भय है कि ऐसी स्थिति में बाहरी शक्तियों को इस क्षेत्र में प्रभाव जमाने में मदद मिलेगी जबकि छोटे देश सोचते हैं कि भारत, दक्षिण एशिया में अपना दबदबा स्थापित करना चाहता है।

UP Board Class 12 Civics Chapter 5 InText Questions

UP Board Class 12 Civics Chapter 5 पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
दक्षिण एशिया के देशों की कछ ऐसी विशेषताओं की पहचान करें जो इस क्षेत्र के देशों में तो समान रूप से लागू होती हैं परन्तु पश्चिम एशिया अथवा दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों पर लागू नहीं होती।
उत्तर:
दक्षिण एशिया एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ के सभी देशों में सद्भाव एवं शत्रुता, आशा व निराशा तथा पारस्परिक शंका एवं विश्वास साथ-साथ बसते हैं।

प्रश्न 2.
कश्मीर मसले पर होने वाली बातचीत ऐसी जान पड़ती है मानो भारत और पाकिस्तान के शासक अपनी जायदाद का झगड़ा निपटा रहे हों। कश्मीरियों को इसमें कैसा लगता होगा?
उत्तर:
कश्मीर मसला दोनों ही देशों के राजनयिकों की राजनीतिक उठा-पटक का प्रतिफल है जिसमें कश्मीरी स्वयं को ठगा हुआ-सा महसूस करते हैं।

प्रश्न 3.
ऐसा क्यों है कि हर पड़ोसी देश को भारत से कुछ-न-कुछ परेशानी है? क्या हमारी विदेश नीति में कुछ गड़बड़ी है? या यह केवल हमारे बड़े होने के कारण है?
उत्तर:
हमारी विदेश नीति अत्यधिक आदर्शवादी रही है। अनेक बार हमने शान्ति दूत का खिताब हासिल करने के लिए राष्ट्रीय हितों की अनदेखी की है। हमारी विदेश नीति की असफलता का एक श्रेष्ठ उदाहरण हमारी तिब्बत नीति थी। जहाँ हमें अपनी गलत विदेश नीति की वजह से सच्चे मित्र नहीं मिल सके वहीं हमने चीन तथा पाक जैसे पड़ोसियों को अपना कट्टर शत्रु बना लिया। हमारी गुटनिरपेक्षता को भी सदैव सन्देहास्पद नजरों से देखा गया है। अत: अब वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विदेश नीति में परिवर्तन की आवश्यकता है।

प्रश्न 4.
अगर अमेरिका के बारे में लिखे गए अध्याय को अमेरिकी वर्चस्व’ का शीर्षक बना दिया गया तो इस अध्याय को भारतीय वर्चस्व क्यों नहीं कहा गया?
उत्तर:
चूँकि अमेरिका सैन्य प्रभुत्व, आर्थिक शक्ति, राजनीतिक दबदबे तथा सांस्कृतिक बढ़त के मामले में विश्व में चोटी पर है। जब अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में शक्ति का एक ही केन्द्र हो तो उसे वर्चस्व शब्द के प्रयोग में वर्णित करना उचित होता है। इस दृष्टिकोण से यह अध्याय भारतीय वर्चस्व के शीर्षक से नहीं लिखा जा सकता है।

प्रश्न 5.
यह कार्टून क्षेत्रीय सहयोग की प्रगति में भारत तथा पाकिस्तान की भूमिका के बारे में क्या बताता है?
UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 5 Contemporary South Asia 1
उत्तर:
क्षेत्रीय सहयोग की प्रगति में भारत एवं पाकिस्तान की निर्णायक भूमिका है तथा यह किसी भी फैसले को प्रभावित करने की अपार क्षमता रखते हैं। उल्लेखनीय है कि फरवरी 2004 में इस्लामाबाद के 12वें दक्षेस (सार्क) सम्मेलन में ही मुक्त व्यापार सन्धि (SAFTA) हस्ताक्षरित हुई थी।

प्रश्न 6.
लगता है हर संगठन व्यापार के लिए ही बनता है? क्या व्यापार लोगों के आपसी मेलजोल से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
विश्व के अधिकांश संगठन व्यापार के लिए ही बनाए गए हैं। व्यापार लोगों के आपसी मेल-जोल से ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं है, लेकिन व्यापार के माध्यम से लोगों का मेल-जोल भी बढ़ता है।

UP Board Class 12 Civics Chapter 5 Other Important Questions

UP Board Class 12 Civics Chapter 5 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बंगलादेश के निर्माण को समझाते हुए इसमें लोकतन्त्रीय शासन की स्थापना की प्रक्रिया का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बंगलादेश का निर्माण क्यों एवं कैसे?
सन् 1947 से सन् 1971 तक बंगलादेश पाकिस्तान का एक अंग था, जिसे पूर्वी पाकिस्तान के नाम से . जाना जाता था। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान बंगाल और असम के विभाजित भागों से पूर्वी पाकिस्तान का यह क्षेत्र बना था, लेकिन अनेक कारणों से पूर्वी पाकिस्तान के लोग पाकिस्तान की सरकार से नाराज थे। बंगलादेश निर्माण के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-

1. पूर्वी पाकिस्तान में उर्दू भाषा अनिवार्य करना-पूर्वी पाकिस्तान के लोग पश्चिमी पाकिस्तान के दबदबे एवं उर्दू भाषा की अनिवार्यता के खिलाफ थे।

2. बंगाली संस्कृति एवं भाषा के साथ दुर्व्यवहार-पाकिस्तान के निर्माण के तुरन्त बाद से ही पूर्वी पाकिस्तान के लोग पाकिस्तानी सरकार के बंगाली संस्कृति एवं भाषा के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार से नाराज थे। फलस्वरूप इन्होंने इसका विरोध करना प्रारम्भ कर दिया।

3. प्रशासन एवं राजनीतिक सत्ता में पर्याप्त हिस्सेदारी की माँग-पूर्वी पाकिस्तान की जनता ने प्रशासन में अपने क्षेत्र के लिए न्यायोचित प्रतिनिधित्व एवं राजनीतिक सत्ता में पर्याप्त हिस्सेदारी की माँग उठायी। पश्चिमी पाकिस्तान के प्रभुत्व के विरुद्ध जन-संघर्ष का नेतृत्व शेख मुजीबुर्रहमान ने किया। इन्होंने पूर्वी क्षेत्र के लिए स्वायत्तता की माँग की।

4. सन् 1970 के आम चुनावों में शेख मुजीबुर्रहमान की अवामी लीग पार्टी को बहुमत मिलनासन् 1970 के आम चुनाव में शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व वाली अवामी लीग पार्टी को पाकिस्तान की समस्त सीटों पर विजय प्राप्त हुई। अवामी लीग को सम्पूर्ण पाकिस्तान के लिए प्रस्तावित संविधान सभा में बहुमत प्राप्त हो गया। लेकिन पाकिस्तान पर पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं का दबदबा था; फलस्वरूप सरकार ने इस सभा को आहूत करने से इनकार कर दिया। शेख मुजीब को गिरफ्तार कर लिया गया। जनरल याहिया खान के सैनिक शासन में पाकिस्तानी सेना ने बंगाली जनता के आन्दोलन को कुचलने की कोशिश की।

5. भारत में शरणार्थियों की समस्या एवं भारत-पाक युद्ध (सन् 1971)~याहिया खान की सैनिक सरकार द्वारा बंगालियों के विद्रोह को कुचलने के प्रयास में हजारों लोग पाकिस्तानी सेना के हाथों मारे गए तथा अनेक लोग पूर्वी पाकिस्तान से भारत पलायन कर गए। भारत के समक्ष इन शरणार्थियों की देखभाल की समस्या खड़ी हो गयी।

भारत सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान की जनता की आजादी की माँग का समर्थन किया तथा उन्हें वित्तीय एवं सैन्य सहायता प्रदान की। इसके परिणामस्वरूप सन् 1971 में भारत और पाकिस्तान के मध्य युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में पाकिस्तान की हार हुई।

6. बंगलादेश का निर्माण-भारत-पाकिस्तान के इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में आत्म-समर्पण कर दिया। इस प्रकार सन् 1971 में एक स्वतन्त्र राष्ट्र बंगलादेश का जन्म हुआ।

बंगलादेश में लोकतन्त्र की स्थापना की प्रक्रिया-

1. संसदीय लोकतन्त्र की स्थापना की प्रक्रिया-स्वतन्त्रता के तुरन्त पश्चात् स्वतन्त्र बंगलादेश की सरकार का गठन हुआ। बंगलादेश ने अपना एक संविधान बनाया जिसमें इसे धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक एवं समाजवादी देश घोषित किया गया।

2. संसदीय लोकतन्त्र के स्थान पर अध्यक्षीय लोकतन्त्र-सन् 1975 में शेख मुजीबुर्रहमान ने बंगलादेश के संविधान में संशोधन कराया, जिसमें संसदीय शासन के स्थान पर अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को मान्यता दी गई। शेख मुजीब ने अपनी पार्टी अवामी लीग को छोड़कर अन्य समस्त पार्टियों को समाप्त कर दिया, जिससे बंगलादेश में तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गयी। इस स्थिति में अगस्त 1975 में बंगलादेशी सेना ने शेख मुजीब के विरुद्ध बगावत कर दी। सेना द्वारा शेख मुजीब की हत्या कर दी गई।

3. सैन्य शासन की स्थापना-शेख मुजीब की हत्या के पश्चात् एक सैन्य शासक जियाउर्रहमान ने बंगलादेश नेशनल पार्टी का गठन किया और सन् 1977 के चुनाव में एच०एम० इरशाद के नेतृत्व में एक और सैन्य सरकार का गठन किया गया।

4. लोकतन्त्र स्थापना की माँग-सैन्य शासन की स्थापना के बावजूद बंगलादेश में लोकतन्त्र की स्थापना की माँग निरन्तर उठती रही। लोकतन्त्र की स्थापना से सम्बन्धित आन्दोलन में छात्रों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। लगातार विरोध को देखते हुए जनरल इरशाद ने बाध्य होकर राजनीतिक गविधियों की छूट दे दी। इसके स्थान पर जनरल इरशाद आगामी 5 वर्षों के लिए राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। सन् 1990 में जनता के व्यापक विरोध के आगे झुकते हुए लेफ्टिनेंट जनरल इरशाद को राष्ट्रपति पद से त्यागपत्र देना पड़ा।

5. पुनः लोकतन्त्र की स्थापना-सन् 1991 में बंगलादेश में चुनाव हुए। इसके पश्चात् बंगलादेश में बहुदलीय चुनावों पर आधारित प्रतिनिधिमूलक लोकतन्त्र आज तक स्थापित है।

प्रश्न 2.
सार्क क्या है? दक्षिण एशिया की शान्ति एवं सहयोग में इसका क्या योगदान है?
उत्तर:
‘दक्षेस (सार्क)
दक्षेस से आशय है-दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (साउथ एशियन एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन)। यह दक्षिण एशिया के आठ देशों (भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव, श्रीलंका एवं अफगानिस्तान) का एक क्षेत्रीय संगठन है जिसकी स्थापना इन देशों ने आपसी सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से की है। दक्षेस की स्थापना दिसम्बर 1985 में की गयी। दक्षेस की स्थापना में बंगलादेश के तत्कालीन राष्ट्रपति जियाउर्रहमान की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।

प्रारम्भ में सार्क में सात देश शामिल थे। सन् 2007 में अफगानिस्तान भी सार्क के आठवें सदस्य के रूप में शामिल हो गया। सार्क का स्थायी मुख्यालय काठमाण्डू (नेपाल) में है। सार्क, दक्षिण एशियाई देशों द्वारा बहुस्तरीय साधनों से आपस में सहयोग करने की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है।

सार्क की स्थापना के साथ ही दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई एवं सदस्य राष्ट्रों ने आपसी सहयोग का संकल्प लिया।

दक्षिण एशिया की शान्ति व सहयोग में दक्षेस (सार्क) का योगदान-दक्षिण एशिया की शान्ति व सहयोग में दक्षेस (सार्क) के मुख्य योगदान निम्नलिखित हैं-

(1) सार्क ने अपने आठों सदस्य देशों को एक-दूसरे के समीप लाने का कार्य किया है, जिससे उनमें दिखाई देने वाला तनाव कम हुआ है। दक्षेस के सहयोग से भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव में कमी आयी है और दोनों देश युद्ध के जोखिम कम करने के लिए विश्वास बहाली के उपाय करने पर सहमत हो गए हैं।

(2) सार्क के कारण इस क्षेत्र के दोनों देशों में अपने आर्थिक व सामाजिक विकास के लिए सामूहिक आत्मनिर्भरता पर बल दिया है। जिससे विदेशी शक्तियों का इस क्षेत्र में प्रभाव कम हुआ है। ये देश अब अपने को अधिक स्वतन्त्र महसूस करने लगे हैं।

(3) सार्क के कारण इस क्षेत्र के देशों की थोड़े-थोड़े अन्तराल पर आपसी बैठकें होती रहती हैं, जिससे उनके छोटे-मोटे मतभेद अपने-आप आसानी से सुलझ रहे हैं एवं इन देशों में अपनापन विकसित हुआ है।

(4) सार्क ने एक संरक्षित अन्न भण्डार की स्थापना की है जो इस क्षेत्र के देशों की आत्मनिर्भरता की भावना के प्रबल होने का सूचक है।

(5) सार्क के सदस्य देशों ने सन् 2004 में दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौते (SAFTA) पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते में सम्पूर्ण दक्षिण एशिया के लिए मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने का वायदा है। यदि दक्षिण एशिया के सभी देश अपनी सीमा-रेखा के आर-पार मुक्त व्यापार पर सहमत हो जाएँ तो इस क्षेत्र में शान्ति और सहयोग के नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है। यह समझौता 1 जनवरी, 2006 से प्रभावी हो गया। इस समझौते में सार्क देशों के मध्य आपसी व्यापार में लगने वाले सीमा शुल्क को सन् 2007 तक 20 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य रखा गया था।

(6) दक्षेस के सहयोग से 1 जनवरी, 2006 से प्रभावी दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौते (SAFTA) से भारत सहित समस्त दक्षिण एशियाई देशों को लाभ हुआ है और क्षेत्र में मुक्त व्यापार बढ़ाने से राजनीतिक मामलों पर सहयोग में वृद्धि हुई है।

प्रश्न 3.
भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के प्रमुख मुद्दों पर चर्चा करते हुए इनके सम्बन्धों को सुधारने हेतु सुझाव दीजिए।
उत्तर:
भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के प्रमुख मुद्दे

भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं-

1. कश्मीर का मुद्दा-विभाजन के तुरन्त बाद दोनों देश कश्मीर के मुद्दे पर लड़ पड़े। पाकिस्तान की सरकार का दावा था कि कश्मीर पाकिस्तान का है जबकि भारत का कहना है कि कश्मीर भारत का अंग है। दोनों देशों के अपने-अपने तर्क हैं। इस मुद्दे को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच सन् 1947-48 तथा सन् 1965 का युद्ध हो चुका है, लेकिन इन युद्धों से इस मसले का समाधान नहीं हो सका।

2.सियाचिन ग्लेशियर पर नियन्त्रण का मुद्दा-हिमालय में भारत-पाक-चीन सीमा पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर का उचित सीमा निर्धारण नहीं किए जा सकने के कारण भारत-पाक के बीच विवाद का मुद्दा बना हुआ है। सामरिक दृष्टि से इस क्षेत्र का अत्यधिक महत्त्व होने के कारण दोनों देश इस पर अपना अधिकार स्थापित करना चाहते हैं।

3. हथियारों की होड़ का मुद्दा–हथियारों की होड़ को लेकर भी भारत और पाकिस्तान के बीच तनातनी रहती है। सन् 1998 में दोनों ने परमाणु परीक्षण किए तथा दोनों परमाणु अस्त्रों से लैस हैं।

4. एक-दूसरे पर सन्देह तथा आरोप-प्रत्यारोप-दोनों देशों की सरकारें लगातार एक-दूसरे को सन्देह की नजर से देखती हैं। उग्रवाद, आतंकवाद, जासूसी आदि के लिए एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करती रहती हैं।

5. नदी-जल बँटवारे पर विवाद–भारत और पाकिस्तान के बीच सिन्धु जल सन्धि की व्याख्या और नदी जल के इस्तेमाल को लेकर विवाद बना हुआ है।

6. सरक्रीक की समस्या-कच्छ के रन में सरक्रीक की सीमा रेखा को लेकर दोनों देशों के मध्य मतभेद हैं।

भारत-पाक सम्बन्धों को सुधारने हेतु सुझाव भारत-पाक सम्बन्धों को सुधारने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं

  1. राजनीतिक स्तर पर बातचीत एवं विश्वास बहाली के प्रयास–भारत और पाकिस्तान दोनों राजनीतिक स्तर पर प्रयास करके आपसी विवादों को बातचीत और समझौतों के द्वारा दूर कर सकते हैं।
  2. आर्थिक स्तर पर प्रयास-दोनों देशों को आपसी सम्बन्ध सुधारने के लिए आर्थिक स्तर पर ‘मुक्त व्यापार सन्धि’ तथा एक-दूसरे की आर्थिक जरूरतों को पूरा करके सम्बन्धों में सुधार के प्रयास करने चाहिए।
  3. सांस्कृतिक स्तर पर प्रयास-सांस्कृतिक स्तर पर दोनों देशों को साहित्य, कला और खेल-गतिविधियों के आदान-प्रदान, वीजा सुविधा तथा सिनेमा के द्वारा सहयोग बढ़ाना चाहिए।
  4. सामाजिक स्तर पर प्रयास-~भारत और पाकिस्तान को अपने सम्बन्ध सुधारने के लिए समय-समय पर इन लोगों को आपस में मिलने की सुविधा प्रदान करें।
  5. तकनीकी तथा चिकित्सा सेवा का आदान-प्रदान-दोनों देश तकनीकी ज्ञान तथा चिकित्सा के क्षेत्र में भी साथ काम करके आपसी सम्बन्ध सुधार सकते हैं।
  6. शिमला समझौते का पालन-दोनों देशों को शिमला समझौते की शर्तों का पालन करना चाहिए।

प्रश्न 4.
“पाकिस्तान में लोकतान्त्रिक एवं सैनिक दोनों प्रकार के नेताओं का शासन रहा है।” इस कथन की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए। अथवा पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पाकिस्तान, दक्षिण एशिया का एक महत्त्वपूर्ण देश है। यहाँ लोकतन्त्र एवं सैन्यतन्त्र दोनों प्रकार की शासन-व्यवस्था रही है, जिसे निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है-

पाकिस्तान में लोकतन्त्र एवं सैन्य तन्त्र (पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था)

1. पाकिस्तान में लोकतन्त्र-सन् 1947 में ब्रिटिश शासन की समाप्ति के बाद भारत और पाकिस्तान का एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में उदय हुआ। पाकिस्तान अपनी स्थापना के समय दो खण्डों में विभाजित राष्ट्र था। इसके एक भाग को पश्चिमी पाकिस्तान एवं दूसरे भाग को पूर्वी पाकिस्तान कहा गया। दोनों के मध्य में भारत राष्ट्र स्थित था। सन् 1947 में पाकिस्तान के निर्माण के समय लोकतान्त्रिक पद्धति में विश्वास जताया गया। मुस्लिम लीग के अध्यक्ष मुहम्मद अली जिन्ना को पाकिस्तान का प्रथम गवर्नर जनरल बनाया गया।

2. सैनिक शासन की स्थापना-पाकिस्तान के पहले संविधान के निर्माण के बाद देश के शासन की बागडोर जनरल अयूब खान ने अपने हाथों में लेकर सैन्य तानाशाही लागू कर दी। शीघ्र ही अयूब खान ने अपना निर्वाचन भी करा लिया। उनके शासन के विरुद्ध जनता ने आन्दोलन कर दिया। फलस्वरूप इन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा। जनरल याहिया खान ने सैन्य शासन की बागडोर सँभाली। इनके शासन के दौरान पाकिस्तान को बंगलादेश संकट का सामना करना पड़ा। सन् 1971 में भारत-पाकिस्तान के मध्य युद्ध हुआ, जिसके परिणामस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान टूटकर एक स्वतन्त्र राष्ट्र बंगलादेश बना।

3. निर्वाचित सरकार का गठन-सन् 1971 में पाकिस्तान में जुल्फिकार अली भुट्टो के नेतृत्व में एक निर्वाचित सरकार का गठन हुआ। यह सरकार सन् 1977 तक अर्थात् लगभग 6 वर्षों तक पाकिस्तान में स्थापित रही।

4. पुनः सैन्य शासन की स्थापना–सन् 1977 में जनरल जियाउल-हक ने पाकिस्तान की लोकतान्त्रिक ढंग से चुनी गयी जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार को अपदस्थ कर सैन्य शासन की स्थापना की। जनरल जियाउल-हक पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने। सन् 1982 से जनरल जियाउल-हक को पाकिस्तान में अनेक लोकतन्त्र समर्थक आन्दोलनों का सामना करना पड़ा।

5. लोकतान्त्रिक शासन-व्यवस्था की स्थापना–सन् 1988 में एक बार पुनः जुल्फिकार अली भुट्टो के नेतृत्व में लोकतान्त्रिक सरकार का गठन हुआ। इसके बाद पाकिस्तान की राजनीति बेनजीर भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी एवं मुस्लिम लीग की आपसी होड़ के इर्द-गिर्द घूमती रही। पाकिस्तान मे निर्वाचित लोकतन्त्र की यह अवस्था सन् 1999 तक कायम रही।

6. पुनः सैन्य शासन की स्थापना-सन् 1999 में पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने प्रधानमन्त्री नवाज शरीफ को हटाकर सैन्य शासन की स्थापना की । सन् 2001 में परवेज मुशर्रफ ने अपना निर्वाचन राष्ट्रपति के रूप में करा लिया, लेकिन व्यवहार में पाकिस्तान में सैन्य शासन कायम रहा।

7. पाकिस्तान में पुनः लोकतन्त्र की स्थापना–पाकिस्तान में बढ़ते लोकतन्त्र समर्थक जन-आन्दोलन एवं विश्व जनमत के बढ़ते दबाव को देखते हुए राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने फरवरी 2008 में पाकिस्तान में आम चुनाव कराए; जिसमें पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को बहुमत प्राप्त हुआ। यूसुफ रजा गिलानी को प्रधामन्त्री बनाया गया। सितम्बर 2008 में परवेज मुशर्रफ के स्थान पर आसिफ अली जरदारी को पाकिस्तान का राष्ट्रपति बनाया गया।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
दक्षिण एशिया क्षेत्र की विशेषताओं का विवरण दीजिए।
उत्तर:
दक्षिण एशिया क्षेत्र की विशेषताएँ-

  1. दक्षिण एशिया एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ सद्भाव और शत्रुता, आशा और निराशा एवं पारस्परिक शंका व विश्वास साथ-साथ बसते हैं।
  2. सामान्यतया भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव एवं श्रीलंका को इंगित करने के लिए ‘दक्षिण एशिया’ पद का व्यवहार किया जाता है। इस क्षेत्र में कभी-कभी अफगानिस्तान एवं म्यानमार को भी शामिल किया जाता है।
  3. उत्तर में विशाल हिमालय पर्वत श्रृंखला, दक्षिण में हिन्द-महासागर, पश्चिम में अरब सागर एवं पूर्व में बंगाल की खाड़ी से दक्षिण एशिया एक विशिष्ट प्राकृतिक क्षेत्र के रूप में नजर आता है।
  4. दक्षिण एशिया विविधताओं से भरा-पूरा क्षेत्र है फिर भी भू-राजनीतिक धरातल पर यह एक क्षेत्र है।
  5. दक्षिण एशिया क्षेत्र की भौगोलिक विशिष्टता ही इस उपमहाद्वीप क्षेत्र के भाषायी, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अनूठेपन के लिए जिम्मेदार है।

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प्रश्न 2.
“दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों में एक-सी राजनीतिक प्रणाली नहीं है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए। अथवा दक्षिण एशियाई देशों में पायी जाने वाली शासन प्रणालियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों में एक-सी राजनीतिक प्रणाली नहीं है, यह निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट है-

  1. दक्षिण एशिया के दो देशों भारत और श्रीलंका में ब्रिटेन से आजाद होने के बाद से ही लोकतान्त्रिक व्यवस्था सफलतापूर्वक स्थापित है।
  2. नेपाल में सन् 2006 तक संवैधानिक राजतन्त्र था। अप्रैल 2006 में एक सफल जन-विद्रोह से यहाँ लोकतन्त्र की स्थापना हुई है।
  3. पाकिस्तान और बंगलादेश में लोकतान्त्रिक एवं सैन्य दोनों प्रकार की शासन व्यवस्थाएँ परिवर्तित होती रही हैं। वर्तमान समय में दोनों देशों में लोकतान्त्रिक शासन-व्यवस्था स्थापित है।
  4. भूटान में वर्तमान में राजतन्त्र स्थापित है, लेकिन यहाँ के राजा ने भूटान में बहुदलीय लोकतन्त्र स्थापित करने की योजना की शुरुआत कर दी है।
  5. मालदीव में सन् 1968 तक सल्तनत शासन था। सन् 1968 में यह देश एक गणतन्त्र बना तथा यहाँ अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली अपनायी गयी।

प्रश्न 3.
“दक्षिण एशियाई देशों की जनता लोकतन्त्र की आकांक्षाओं में सहभागी है।” उक्त कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
दक्षिण एशिया में लोकतन्त्र का मिला-जुला रिकॉर्ड रहा है। इसके बावजूद इस क्षेत्र के देशों की जनता लोकतन्त्र की आकांक्षाओं में सहभागी है। इस क्षेत्र के पाँच बड़े देशों—भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल व श्रीलंका में हाल में किए सर्वेक्षण में यह बात स्पष्ट हुई है कि इन पाँच देशों में लोकतन्त्र को व्यापक जनसमर्थन प्राप्त है। इन देशों में प्रत्येक वर्ग एवं धर्म के आम नागरिक लोकतन्त्र को अच्छा मानते हैं तथा प्रतिनिधिमूलक लोकतन्त्र की संस्थाओं का समर्थन करते हैं। इन देशों के लोग शासन संचालन की किसी और प्रणाली की अपेक्षा लोकतन्त्र को वरीयता देते हैं और यह मानते हैं कि उनके देश के लिए लोकतन्त्र ही सर्वश्रेष्ठ प्रणाली हो सकती है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि दक्षिण एशिया की जनता लोकतन्त्र को अन्य शासन प्रणालियों से अच्छा समझती है।

प्रश्न 4.
सार्क के उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
सार्क के प्रमुख उद्देश्य-सार्क के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. दक्षिण एशिया के लोगों के कल्याण में वृद्धि तथा उनके जीवन-स्तर में उन्नति लाना।
  2. इस क्षेत्र में आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति एवं सांस्कृतिक विकास लाना।
  3. दक्षिण एशिया के देशों के बीच सामूहिक आत्मविश्वास को विकसित करने का प्रयास करना।
  4. एक-दूसरे की समस्याओं को समझने, सुलझाने तथा परस्पर विश्वास को लाने में योगदान करना।
  5. आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी तथा वैज्ञानिक क्षेत्रों में परस्पर सहयोग करना।
  6. दूसरे विकासशील देशों के साथ पारस्परिक सहयोग में वृद्धि करना।
  7. समान हितों के मामलों में अन्तर्राष्ट्रीय आधारों पर परस्पर सहयोग में वृद्धि करना।
  8. समान उद्देश्यों वाले क्षेत्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना।

प्रश्न 5.
सार्क की प्रमुख संस्थाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सार्क की प्रमुख संस्थाएँ–सार्क की प्रमुख संस्थाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. शिखर सम्मेलन-सार्क देशों का प्रतिवर्ष एक शिखर सम्मेलन आयोजित किया जाता है जिसमें सदस्य देशों के शासनाध्यक्ष भाग लेते हैं।
  2. मन्त्रिपरिषद्-सार्क के सभी राष्ट्रों के विदेश मन्त्रियों ने मिलकर एक मन्त्रिपरिषद् का निर्माण किया गया है जो नीतियों का निर्माण करती है।
  3. स्थायी समिति सार्क की एक स्थायी समिति है जो परिषद् की योजनाओं को स्वीकृति देती है तथा उनका वित्तीय प्रबन्ध करती है।
  4. तकनीकी समिति-सार्क की तकनीकी समिति क्षेत्रीय सहयोग के विस्तार, योजनाओं का निर्माण व उनके कार्यान्वयन का मूल्यांकन आदि कार्य करती है।
  5. सचिवालय-सार्क का एक सचिवालय है। इसका एक महासचिव होता है जिसका कार्यकाल 2 वर्ष रखा गया है।
  6. वित्तीय व्यवस्था-सार्क के चार्टर के अनुच्छेद-9 में वित्तीय व्यवस्थाओं का प्रावधान किया गया है।

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प्रश्न 6.
कश्मीर समस्या पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
कश्मीर समस्या कश्मीर भारत के उत्तर-पश्चिमी कोने में एक देशी रियासत थी। भारत की स्वतन्त्रता के बाद कश्मीर के राजा ने कश्मीर को स्वतन्त्र रखने का निर्णय लिया, लेकिन पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा प्रान्त में कबाइली लोगों को सहयोग देकर 22 अक्टूबर, 1947 को कश्मीर पर आक्रमण कर कश्मीर के कुछ क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।

अन्ततः कश्मीर के शासक ने कश्मीर को भारत के साथ विलय करने के लिए सन्धि की। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को कश्मीर से खदेड़ना शुरू कर दिया। इसी बीच विवाद संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाया गया और स्थिति आज तक यथावत् बनी हुई है।

दोनों देशों के बीच प्रमुख समस्या यह है कि पाकिस्तान मुस्लिम बहुल प्रान्त होने के कारण कश्मीर को पाकिस्तान का भाग मानता है, जबकि देशी रियासतों के विलय प्रस्ताव के हिसाब से कश्मीर का विलय भारत में हुआ है। दोनों पक्ष अपनी-अपनी बात पर अड़े हुए हैं। दोनों देशों के बीच बातचीत के कई दौर हो चुके हैं, लेकिन समस्या जस-की-तस बनी हुई है।

प्रश्न 7.
“दक्षिण एशियाई देशों की जनता लोकतन्त्र की आकांक्षाओं में संहभागी है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
दक्षिण एशिया में लोकतन्त्र का रिकॉर्ड मिला-जुला रहा है। इसके बावजूद इस क्षेत्र के देशों की जनता लोकतन्त्र की आकांक्षाओं की सहभागी है अर्थात् वह लोकतन्त्र को अन्य शासन प्रणालियों से अच्छा समझती है।

इस क्षेत्र के पाँच बड़े देशों-बंगलादेश, नेपाल, भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका में हाल ही में एक सर्वेक्षण किया गया था जिसमें यह बात स्पष्ट हुई कि इन पाँच देशों में लोकतन्त्र को व्यापक जन-समर्थन हासिल है। इन देशों में हर वर्ग और धर्म के आम नागरिक लोकतन्त्र को अच्छा मानते हैं और प्रतिनिधिमूलक लोकतन्त्र की संस्थाओं का समर्थन करते हैं। इन देशों के लोग शासन की किसी और प्रणाली की अपेक्षा लोकतन्त्र को वरीयता देते हैं और मानते हैं कि उनके देश के लिए लोकतन्त्र ही ठीक है।

प्रश्न 8.
भारत और बंगलादेश के बीच मतभेद के मुद्दों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत और बंगलादेश के बीच मतभेद के मुद्दे भारत और बंगलादेश के बीच मतभेद के प्रमुख मुद्दे इस प्रकार हैं-

(I) भारत के बंगलादेश से अप्रसन्न होने के कारण भारतीय सरकारों के बंगलादेश से अप्रसन्न होने के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. भारत में अवैध अप्रवास के विषय का ढाका द्वारा खण्डन करना।
  2. बंगलादेश सरकार द्वारा भारत-विरोधी इस्लामी कट्टरपन्थी जमातों को समर्थन देना।
  3. भारतीय सेना को पूर्वोत्तर भारत में जाने के लिए अपने इलाके से रास्ता देने से बंगलादेश का इनकार करना।

(II) बंगलादेश भारत पर निम्नलिखित कारणों से अप्रसन्न है-

  1. बंगलादेश की सरकार का मानना है कि भारत सरकार नदी-जल में हिस्सेदारी के प्रश्न पर इलाके के बाहुबली की तरह बरताव करती है।
  2. बंगलादेश का आरोप है कि भारत की सरकार चटगाँव पर्वतीय क्षेत्र में विद्रोह को हवा दे रही है।

प्रश्न 9.
भारत-नेपाल के सम्बन्धों के बीच कड़वाहट के मुद्दों पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत-नेपाल के सम्बन्धों के बीच तनाव के मुद्दे भारत-नेपाल के मधुर सम्बन्धों के बीच निम्नलिखित मुद्दे मनमुटाव पैदा करते रहे हैं-

  1. भारत की चीन के साथ मित्रता को लेकर भारत सरकार ने अक्सर अपनी अप्रसन्नता प्रकट की है।
  2. नेपाल सरकार भारत-विरोधी तत्त्वों के विरुद्ध आवश्यक कदम नहीं उठाती है। इससे भी भारत अप्रसन्न है।
  3. भारत की सुरक्षा एजेन्सियाँ नेपाल में चल रहे माओवादी आन्दोलन को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानती हैं।
  4. नेपाल के लोगों की यह सोच है कि भारत की सरकार नेपाल के अन्दरूनी मामलों में दखल दे रही है और उसके नदी-जल तथा पन-बिजली पर आँख गड़ाए हुए है।
  5. नेपाल को यह भी लगता है कि भारत उसको अपने भू-क्षेत्र से होकर समुद्र तक पहुँचने में रोकता है।

प्रश्न 10.
श्रीलंका के जातीय संघर्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
श्रीलंका का जातीय संघर्ष श्रीलंका के जातीय संघर्ष में भारतीय मूल के तमिल प्रमुख भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। उनके संगठन लिट्टे की हिंसात्मक कार्रवाइयों तथा आन्दोलन की वजह से श्रीलंका को जातीय संघर्ष का सामना करना पड़ा। लिट्टे की प्रमुख माँग है कि श्रीलंका के एक क्षेत्र को अलग राष्ट्र बनाया जाए।

श्रीलंकाई राजनीति पर बहुसंख्यक सिंहली समुदाय का वर्चस्व रहा है और तमिल सरकार एवं राजनेताओं पर उनके हितों की अनदेखी किए जाने का दोषारोपण किया गया। सिंहली राष्ट्रवादियों की मान्यता है कि श्रीलंका में तमिलों के साथ कोई रियायत नहीं की जानी चाहिए क्योंकि तमिल केवल सिंहली लोगों का है।

तमिलों के प्रति उपेक्षित व्यवहार से एक उग्र तमिल राष्ट्रवाद की आवाज बुलन्द हुई। सन् 1983 के पश्चात् उग्र तमिल संगठन ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम’ (लिट्टे) देश की सीमा के साथ सशस्त्र संघर्षरत है। इसने तमिल ईलम अर्थात् श्रीलंकाई तमिलों हेतु एक पृथक् देश की माँग कर डाली। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सन् 2009 में श्रीलंकाई सरकार द्वारा लिट्टे का सफाया कर दिए जाने के बाद उक्त स्थिति में बदलाव आ गया है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
दक्षिण एशिया क्या है?
उत्तर:
सामान्यतया भारत, बंगलादेश, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान, मालदीव एवं श्रीलंका को इंगित करने के लिए ‘दक्षिण एशिया’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। यह एशिया महाद्वीप के दक्षिण में स्थित है। इसके उत्तर में हिमालय पर्वत श्रेणी, दक्षिण में हिन्द महासागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में अरब सागर स्थित है।

प्रश्न 2.
पाकिस्तान में लोकतन्त्र के स्थायी न बन पाने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
पाकिस्तान में लोकतन्त्र के स्थायी न बन पाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  1. यहाँ सेना, धर्मगुरु और भू-स्वामी अभिजनों का सामाजिक दबदबा है।
  2. भारत के साथ निरन्तर तनातनी रहने के कारण सेना-समर्थक समूह अधिक मजबूत है।
  3. अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी देशों ने अपने स्वार्थपूर्ति हेतु पाकिस्तान में सैन्य शासन को बढ़ावा दिया।

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प्रश्न 3.
शिमला समझौते की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
शिमला समझौते की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. नियन्त्रण रेखा से दोनों देशों की सेनाओं की वापसी की जाए।
  2. जीता हुआ क्षेत्र वापस किया जाए।
  3. भारत द्वारा बन्दी बनाए गए एक लाख सैनिकों की रिहाई की जाए।
  4. दोनों देश आगे आपसी विवादों को द्विपक्षीय वार्ता के द्वारा सुलझाएँगे।

प्रश्न 4.
श्रीलंका की प्रमुख सफलताएँ क्या हैं?
उत्तर:
श्रीलंका की प्रमुख सफलताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. श्रीलंका ने अच्छी आर्थिक वृद्धि और विकास के उच्च स्तर को हासिल किया है।
  2. इसने जनसंख्या की वृद्धि दर पर सफलतापूर्वक नियन्त्रण स्थापित किया है।
  3. दक्षिण एशियाई देशों में सबसे पहले श्रीलंका ने ही आर्थिक उदारीकरण किया।
  4. श्रीलंका में निरन्तर लोकतान्त्रिक व्यवस्था कायम रही है।

प्रश्न 5.
“क्या दक्षिण एशिया में लोकतन्त्र लोकप्रिय है?” इसके पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
दक्षिण एशिया में लोकतन्त्र लोकप्रिय है। इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं-

  1. दक्षिण एशिया में कराए गए सर्वेक्षणों से पता चलता है कि लोकतन्त्र को यहाँ भरपूरं जनसमर्थन प्राप्त है।
  2. दक्षिण एशिया में सभी जाति, धर्म एवं वर्ग के लोगों को लोकतन्त्र अच्छा लगता है।
  3. दक्षिण एशिया के लोग शासन की अन्य प्रणाली की अपेक्षा लोकतन्त्र को वरीयता देते हैं।

प्रश्न 6.
बंगलादेश एक स्वतन्त्र राष्ट्र किस प्रकार बना?
उत्तर:
सन् 1971 से पहले बंगलादेश पूर्वी पाकिस्तान के रूप में पाकिस्तान का ही एक भाग था। पाकिस्तानी शासकों के तानाशाही रवैये के विरुद्ध बंगलादेश के लोगों ने आन्दोलन किया, जिसे पाकिस्तान सरकार ने दबाने का भरपूर प्रयास किया। पूर्वी पाकिस्तान के लोग भारत पलायन कर गए। भारत ने शरणार्थियों की समस्या से परेशान होकर पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की आजादी का समर्थन किया। अन्तत: दिसम्बर 1971 में भारत-पाक के मध्य युद्ध में पाकिस्तान की पराजय हुई और बंगलादेश के रूप में एक नए राष्ट्र का उदय हुआ।

प्रश्न 7.
साफ्टा क्या है?
उत्तर:
साफ्टा का पूरा नाम है-दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र। दक्षेस के सदस्य देशों ने फरवरी 2004 में साफ्टा समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता 1 जनवरी, 2006 से प्रभावी हो गया है। इस समझौते के तहत दक्षेस देशों के बीच आपसी व्यापार में लगने वाले सीमा शुल्क को सन् 2007 तक 20 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य था।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा देश है-
(a) भारत
(b) पाकिस्तान
(c) श्रीलंका
(d) बंगलादेश।
उत्तर:
(a) भारत।

प्रश्न 2.
सार्क का गठन कब किया गया-
(a) 1985 में
(b) 1986 में
(c) 1990 में
(d) 1991 में।
उत्तर:
(a) 1985 में।

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प्रश्न 3.
वर्तमान में सार्क देशों की सदस्य संख्या है-
(a) 7
(b) 8
(c) 9
(d) 10
उत्तर:
(b) 8

प्रश्न 4.
‘साफ्टा’ सम्बन्धित है-
(a) आसियान से
(b) सार्क से
(c) हिमवेक्ष से
(d) ओपेक से
उत्तर:
(b) सार्क से

प्रश्न 5.
सार्क का सचिवालय स्थित है-
(a) नई दिल्ली में
(b) ढाका में
(c) इस्लामाबाद में
(d) काठमाण्डू में।
उत्तर:
(d) काठमाण्डू में।

प्रश्न 6.
चकमा शरणार्थियों की समस्या निम्नांकित में से किन देशों से सम्बन्धित है-
(a) भारत व पाकिस्तान
(b) भारत व चीन
(c) भारत व बंगलादेश
(d) भारत व श्रीलंका।
उत्तर:
(c) भारत व बंगलादेश।

प्रश्न 7.
नेपाल में पूर्ण लोकतन्त्र की स्थापना हुई-
(a) 2002 में
(b) 2001 में
(c) 2006 में
(d) 2004 में।
उत्तर:
(c) 2006 में।

प्रश्न 8.
बंगलादेश एक स्वतन्त्र सम्प्रभु राष्ट्र बना-
(a) 1955 में
(b) 1960 में
(c) 1965 में
(d) 1971 में।
उत्तर:
(d) 1971 में।

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UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 3 Human Development

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 3 Human Development (मानव विकास)

UP Board Class 12 Geography Chapter 3 Text Book Questions

UP Board Class 12 Geography Chapter 3 पाठ्यपुस्तक से अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए
(i) मानव विकास सूचकांक (2011) के सन्दर्भ में विश्व के देशों में भारत की निम्नलिखित में से कौन-सी कोटि थी
(क) 126
(ख) 134
(ग) 128 .
(घ) 129.
उत्तर:
(ख) 134.

(ii) मानव विकास सूचकांक में भारत के निम्नलिखित राज्यों में से किस एक की कोटि उच्चतम
(क) तमिलनाडु
(ख) पंजाब
(ग) केरल
(घ) हरियाणा।
उत्तर:
(ग) केरल।

(iii) भारत के निम्नलिखित राज्यों में से किस एक में स्त्री साक्षरता निम्नतम है
(क) जम्मू और कश्मीर
(ख) अरुणाचल प्रदेश
(ग) झारखण्ड
(घ) बिहार।
उत्तर:
(घ) बिहार।

(iv) भारत के निम्नलिखित में से किस एक में 0-6 आयु वर्ग के बच्चों में लिंग अनुपात निम्नतम है
(क) गुजरात
(ख) हरियाणा
(ग) पंजाब
(घ) हिमाचल प्रदेश।
उत्तर:
(ख) हरियाणा।

(v) भारत के निम्नलिखित केन्द्र शासित प्रदेशों में से किस एक की साक्षरता दर उच्चतम है
(क) लक्षद्वीप
(ख) चण्डीगढ़
(ग) दमन और दीव
(घ) अण्डमान और निकोबार द्वीप।
उत्तर:
(क) लक्षद्वीप।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें
(i) मानव विकास को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
मानव विकास –“मानव विकास, स्वस्थ भौतिक पर्यावरण से लेकर आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्वतन्त्रता तक सभी प्रकार के मानव विकल्पों को सम्मिलित करते हुए लोगों के विकल्पों में विस्तार और उनके शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं एवं सशक्तीकरण के अवसरों में वृद्धि की प्रक्रिया है।”

(ii) उत्तरी भारत के अधिकांश राज्यों में मानव विकास के निम्न स्तरों के दो कारण बताइए।
उत्तर:
उत्तरी भारत में मानव विकास के निम्न स्तर के प्रमुख कारण हैं
1. गरीबी – पंजाब व हरियाणा के अतिरिक्त उत्तरी भारत के राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, असम आदि राज्यों में गरीबी के कारण मानव विकास नहीं हो पाया है।

2. पिछड़ापन – उत्तरी भारत के राज्य कृषिप्रधान होने के कारण अन्य क्षेत्रों में पिछड़े हुए हैं जैसे-औद्योगीकरण आदि। शिक्षा का स्तर भी नीचा है। पिछड़ेपन के कारण ही इन राज्यों का मानव विकास नहीं हो पाया है।

(iii) भारत में बच्चों के घटते लिंगानुपात के दो कारण बताइए।
उत्तर:
भारत में बच्चों के घटते लिंगानुपात के निम्नलिखित कारण हैं

  • परिवार में पुरुष प्रधानता – भारतीय हिन्दू परिवार अधिकतर पुरुष प्रधान हैं। स्त्रियों का स्थान गौण रह जाता है।
  • कन्या भ्रूण हत्या – कन्या भ्रूण हत्या भी घटते लिंगानुपात का प्रमुख कारण है। .

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें
(i) भारत में 2001 के स्त्री साक्षरता के स्थानिक प्रारूपों की विवेचना कीजिए और इसके लिए उत्तरदायी कारणों को समझाइए।
उत्तर:
भारत में 2001 के स्त्री साक्षरता के स्थानिक प्रारूप

  • जनगणना-2001 के अनुसार देश में स्त्री साक्षरता दर मात्र 54.16 प्रतिशत है। स्त्री साक्षरता की दृष्टि से देश के सभी राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों में केरल (87.86 प्रतिशत) प्रथम स्थान पर है।
    UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 3 Human Development 1
  • स्त्री साक्षरता की दृष्टि से मिजोरम (88.49 प्रतिशत) का द्वितीय स्थान तथा लक्षद्वीप (87.52 प्रतिशत) का तृतीय स्थान है।
  • देश में सबसे कम महिला साक्षरता बिहार (33.57 प्रतिशत) राज्य की है।
  • देश में कम महिला साक्षरता वाले राज्य झारखण्ड, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश हैं।

भारत में स्त्री साक्षरता कम होने के कारण
भारत में स्त्री साक्षरता के कम होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  • पुरुषप्रधान समाज
  • कन्या भ्रूण हत्या
  • स्त्री शिक्षा की उपेक्षा
  • सरकारी प्रयासों का अभाव आदि।

(ii) भारत के 15 प्रमुख राज्यों में मानव विकास के स्तरों में किन कारकों ने स्थानिक भिन्नता उत्पन्न की है?
उत्तर:
भारत के योजना आयोग ने राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों को विश्लेषण की इकाई मानकर मानव विकास सूचकांक तैयार किया है। विश्व विकास रिपोर्ट के अनुसार भारत मध्यम मानव विकास वाला देश है और विश्व के 188 देशों में इसका 131वाँ स्थान है। भारत के विभिन्न राज्यों में (तालिका) 0.790 संयुक्त सूचकांक मूल्य के साथ केरल कोटिक्रम में सर्वोच्च है। इसके बाद दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, गोवा और पंजाब आते हैं। अपेक्षा के अनुरूप बिहार, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य देश के 23 प्रमुख राज्यों में सबसे नीचे हैं।

तालिका: भारत-मानव विकास सूचकांक 2007-08
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UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 3 Human Development 3
स्रोत : भारत का योजना आयोग, भारत राष्ट्रीय मानव विकास रिपोर्ट 2011.
भारत में मानव विकास की प्रादेशिक विषमताओं के लिए कई सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा ऐतिहासिक कारण उत्तरदायी हैं।

UP Board Class 12 Geography Chapter 3 Other Important Questions

UP Board Class 12 Geography Chapter 3 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मानव विकास क्यों आवश्यक है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
विकास लोगों के लिए होता है न कि लोग विकास के लिए। विकास की सभी प्रक्रिया मानव-केन्द्रित हैं। मानव विकास की संकल्पना केवल अर्थव्यवस्था के विकास से सम्बन्धित नहीं है, बल्कि यह मानव के समग्र विकास से जुड़ी है। मानव विकास में लक्ष्य और साधन दोनों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

पाल स्ट्रीटन के अनुसार मानव विकास निम्नलिखित कारणों से अनिवार्य होता है

  • आर्थिक, सामाजिक अथवा भौतिक हर प्रकार के विकास का अन्तिम लक्ष्य मानव जीवन की दशाओं को सुधारना तथा लोगों के लिए विकल्पों को बढ़ाना है।
  • मानव विकास उच्चतर उत्पादकता का साधन है। कुशल, शिक्षित, स्वस्थ और सतर्क श्रमिक और गुणात्मक उत्पादन करने में सक्षम होते हैं। यही कारण है कि आज अनेक देश मानव विकास में विनिवेश कर रहे हैं।
  • मानव विकास के परिणामस्वरूप प्रजनन की गति धीमी होती है जिससे परिवारों का आकार छोटा करने में सहायता मिलती है।
  • मानव विकास भौतिक पर्यावरण के संरक्षण में सहायक सिद्ध होता है। विकास के होने और गरीबी के घटने से वनों का अवैध कटान, मृदा अपरदन तथा मरुस्थलीकरण का बढ़ना कम हो जाता है।
  • जीवन की समुन्नत दशाएँ और गरीबी में कमी सभ्य, स्वस्थ और तार्किक समाज की रचना में सहायक होती हैं। ऐसे समाज में लोकतन्त्र और सामाजिक स्थिरता की जड़ें मजबूती से फैलती हैं।
  • मानव विकास सामाजिक अशान्ति को कम करने तथा राजनीतिक स्थिरता में बढ़ाने में सहायक हो सकता है।

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प्रश्न 2.
स्वस्थ जीवन के सूचक का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वस्थ जीवन के सूचक आरोग्य एवं दीर्घायु होना एक स्वस्थ जीवन के सूचक हैं। स्वास्थ्य मानव विकास का प्रमुख आधार है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश के लोगों के स्वास्थ्य-सुधार की दिशा में अनेक कदम उठाए गए। स्वस्थ और लम्बे जीवन के कुछ महत्त्वपूर्ण माप अनलिखित हैं
शिशु मर्त्यता, माताओं में प्रजननोत्तर मृत्यु-दर घटाने के उद्देश्य से पूर्व और प्रसवोत्तर स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता, वृद्धों के लिए स्वास्थ्य सेवाएँ, पर्याप्त पोषण और व्यक्तियों की सुरक्षा इत्यादि। जिन स्वास्थ्य सूचकों के क्षेत्र में भारत ने सराहनीय कार्य किया है, वे निम्नलिखित हैं

1. अशोधित मृत्यु-दर

  • भारत में मृत्यु – दर तेजी से कम हुई है। सन् 1951 में मृत्यु-दर 25.1 थी जो घटकर सन् 2015 में 6.5 रह गई।
  • सन् 2015 में शिशु मृत्यु-दर सन् 1951 की शिशु मृत्यु-दर की अपेक्षा लगभग एक-तिहाई से भी कम रह गई है अर्थात् यह 148 प्रति हजार से 37 प्रति हजार रह गई है।
  •  चार वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु-दर भी एक-तिहाई रह गई है।
    अत: इन तथ्यों से स्पष्ट है कि मृत्यु का खतरा जीवन की प्रत्येक अवस्था में घट गया है। यह स्वास्थ्य सेवाओं में पर्याप्त सुधार की निशानी है।

2. अशोधित जन्म – दर-20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में किए गए प्रयत्नों से जन्म-दर घटी तो है, लेकिन तेजी से नहीं घटी है। उदाहरणत: सन् 1951 में जन्म-दर 40.8 (प्रति हजार) थी जो सन् 2011 में 20.8 रह गई अर्थात् इसमें 19 अंकों की कमी आई है। जन्म-दर का कम होना भी शिक्षा के प्रसार, जागरूकता और आर्थिक विकास का सूचक है।

3. कुल प्रजनन दर – इस अवधि में कुल प्रजनन दर भी घटी है। सन् 1951 में बच्चा पैदा करने की उम्र छह बच्चे प्रति स्त्री थी जो सन् 2011 में घटकर 2.9 रह गई है।

4. जीवन प्रत्याशा – लोगों की आयु में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

  • सन् 1951 में पुरुष जीवन प्रत्याशा 37.1 वर्ष थी जो बढ़कर सन् 2011 में 62.6 वर्ष हो गई है।
  • इसी तरह स्त्री जीवन प्रत्याशा सन् 1951 में 36.2 वर्ष से बढ़कर सन् 2011 में 64.6 वर्ष हो गई है।

प्रश्न 3.
मानव विकास की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव विकास की अवधारणा लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार का दूसरा नाम मानव विकास है। मानव विकास केवल धन से नहीं हो जाता। यह तभी सम्भव है जब मनुष्य की आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक सभी प्रकार की उन्नति हो। मानव विकास जीवन की उत्कृष्टता हेतु एक सतत प्रक्रिया है।

मानव विकास का सम्बन्ध उन सभी अवसरों के विस्तार से है जिनका लाभ मानव उठा सकता है और अपनी क्षमताओं का निर्माण कर सकता है। वे क्षमताएँ हैं—दीर्घ जीवन और स्वस्थ तन-मन, शिक्षा, सूचना एवं ज्ञान प्राप्त करना, जीविकोपार्जन के अवसरों की उपलब्धि, जीवन-यापन के उच्च स्तर के लिए प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच का होना। मानव विकास के इन मुख्य तत्त्वों के अतिरिक्त जीवन के कई और भी अनिवार्य पक्ष हैं जिनके बिना जीवन की गुणवत्ता नहीं बढ़ सकती; जैसे-व्यक्तिगत एवं सामाजिक सुरक्षा, राजनीतिक स्वतन्त्रता, मानव अधिकारों की गारण्टी व समानता, व्यक्तिगत आत्म-सम्मान से युक्त शिष्ट जीवन, सामुदायिक जीवन में सहभागिता, उत्तरदायी सरकार, आत्मनिर्भरता और शान्ति। इस तरह मानव विकास मनुष्य की रुचियों, अवसरों और क्षमताओं के विस्तार पर बल देता है।

इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानव विकास को इस प्रकार परिभाषित किया है-“मानव विकास, स्वस्थ भौतिक पर्यावरण से लेकर आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्वतन्त्रता तक सभी प्रकार के मानव विकल्पों को शामिल करते हुए लोगों के विकल्पों में विस्तार और उनके शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं तथा सशक्तीकरण के अवसरों में वृद्धि की प्रक्रिया है।”

लघ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
विकास के भारतीय अनुभवों के निष्कर्ष को समझाइए।
उत्तर:
भारत में पश्चिम की तर्ज पर हुए आधुनिक विकास के हमारे अनुभव बताते हैं कि

  • आधुनिक विकास स्वयं को सामाजिक अन्याय, प्रादेशिक असन्तुलन और पर्यावरणीय निम्नीकरण जैसे आवश्यक मुद्दों से जोड़ नहीं पाया।
  • वर्तमान विकास जीवन की गुणवत्ता और मानव विकास में गिरावट, सामाजिक अशान्ति, सामाजिक वितरण, अन्यायों व पारिस्थितिक संकट का कारण बना है।
  • इतना ही नहीं, विकास इन संकटों व समस्याओं की उत्पत्ति, उनका प्रणयन और स्थिरीकरण करता है।

प्रश्न 2.
विकास और निर्धनों के सामर्थ्य में कमी को समझाइए।
उत्तर:
विकास के यूरोपीय मॉडल का असर यह हुआ कि भारत जैसे देशों में गरीबों की सामर्थ्य में गिरावट के लिए तीन अन्तर्सम्बन्धित प्रक्रियाएँ कार्यरत हो गईं

  • विस्थापन के फलस्वरूप दुर्बल होते सामाजिक बन्धनों के कारण सामाजिक सामर्थ्य में कमी।
  • वायु, मृदा, जल और ध्वनि प्रदूषण के कारण पर्यावरण सामर्थ्य की कमी।
  • बढ़ते गम्भीर रोगों व दुर्घटनाओं के कारण व्यक्तिगत सामर्थ्य में कमी। इन प्रक्रियाओं का गरीबों के जीवन की गुणवत्ता और मानव विकास पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

प्रश्न 3.
विकास का विश्लेषण करते समय ध्यान रखी जाने वाली बातें क्या हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विकास का विश्लेषण करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जाता है

  • विकास से एक आदमी को कितना लाभ पहुँचा?
  • उसे जीवन में आगे बढ़ने के लिए कितने अवसर मिल पाए?
  • विकास का फल स्त्रियों और पुरुषों में समान रूप से वितरित हुआ कि नहीं?

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प्रश्न 4.
यू०एन०डी०पी० ने मानव विकास की प्रकृति के निर्धारण में किन कारकों की अवहेलना की है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यू०एन०डी०पी० ने मानव विकास की प्रकृति के निर्धारण में निम्नलिखित कारकों की अवहेलना की है

  • उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और नव-साम्राज्यवाद जैसे ऐतिहासिक कारक;
  • मानवाधिकार उल्लंघन, प्रजाति, लिंग, धर्म और जाति के आधार पर सामाजिक भेदभाव जैसे सामाजिक-सांस्कृतिक कारक;
  • अपराध, आतंकवाद और युद्ध जैसी सामाजिक समस्याएँ और राज्य की प्रकृति, सरकार का स्वरूप (लोकतन्त्र अथवा तानाशाही), सशक्तीकरण का स्तर जैसे राजनीतिक कारक इत्यादि।

प्रश्न 5.
स्वच्छ भारत मिशन के विषय में संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
स्वच्छ भारत मिशन कारखानों से निकलने वाले विषैले और जैविक क्रियाओं से नष्ट न हो पाने वाले कचरे, शहरों के सीवर तथा खुले में शौच आदि के कारण स्वास्थ्य से सम्बन्धित बहुत-से खतरे पैदा हुए हैं। भारत सरकार ने इन समस्याओं का समाधान करने के लिए बहुत-से कदम उठाए हैं, स्वच्छ भारत मिशन उनमें से एक है।

स्वस्थ मस्तिष्क एक स्वस्थ शरीर में निवास करता है और एक स्वस्थ शरीर के लिए स्वच्छ वातावरण विशेष रूप से स्वच्छ हवा, पानी, शोर मुक्त माहौल और स्वच्छ परिवेश प्राथमिक आवश्यकताएँ हैं।

नगर निगम के कचरे, उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषित जल और परिवहन से निकलने वाले धुएँ आदि शहरों में प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं। ग्रामीण इलाकों और शहरों में झुग्गी-झोपड़ियों में खुले में शौच प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं।

भारत सरकार ने देश को प्रदूषण रहित बनाने के विचार से स्वच्छ भारत अभियान चलाया है जिसके उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  • स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य देश को खुले में शौच से मुक्ति और नगर निगम के शत-प्रतिशत ठोस कचरे का वैज्ञानिक तरीके से उचित प्रबन्धन, घरों में शौचालय, सामुदायिक शौचालय, सार्वजनिक शौचालय का निर्माण है।
  • ग्रामीण भारत में घरों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए साफ ईंधन के तौर पर एल०पी०जी० को सुलभ करना।
  • जल से होने वाले रोगों की रोकथाम के लिए प्रत्येक घर में पीने लायक जल की व्यवस्था करना।
  • अपरम्परागत ईंधन के स्रोत जैसे पवन तथा सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना।

प्रश्न 6.
मानव विकास के उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मानव विकास के उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  • राजनीतिक स्वतन्त्रता, आत्म-निर्भरता तथा स्वाभिमान प्रत्येक मानव की चाहत है।
  • मानव विकास की प्रक्रिया में स्त्री-पुरुष, बच्चे सभी को शामिल किया जाता है।
  • विकास लोगों के हित और कल्याण के लिए होना चाहिए।
  • विकास सहभागीय होना चाहिए।

प्रश्न 7.
पर्यावरण पर मानव के प्रभाव को प्रभावित करने वाले कारकों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण पर मानव प्रभाव प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के द्वारा होता है। यह निम्न प्रकार से प्रभावित करता है

  • मानव आर्थिक विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करता है।
  • वस्तुओं के उत्पादन और उपभोग की प्रक्रिया से भी प्रदूषकों का उत्सर्जन होता है।
  • सेवाओं जैसे परिवहन व संचार के साधनों के कारण भी पर्यावरण प्रदूषित होता है।
  • जनसंख्या की वृद्धि का भी पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 8.
मानव विकास के लक्षणों को समझाइए।
उत्तर:
मानव विकास के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

  • लोगों के विकल्पों को परिवर्धन की प्रक्रिया और जनकल्याण के स्तरों को ऊँचा उठाना मानव विकास है।
  • मानव विकास के लिए आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक जैसे मानवीय विकल्पों के परिवर्धन पर बल दिया जाता है।
  • दीर्घ और स्वस्थ जीवन, शिक्षा और उच्च जीवन स्तर मानव विकास के मुख्य विकल्प हैं। इन विकल्पों . को परिवर्धित करने की प्रक्रिया ही मानव विकास है।

प्रश्न 9.
मानव विकास के मूलभूत क्षेत्रों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मानव विकास के मूलभूत क्षेत्र निम्नलिखित हैं

  • स्वास्थ्य – स्वास्थ्य का मूल्यांकन करने के लिए चुना गया सूचक जन्म के समय जीवन प्रत्याशा है। उच्चतर जीवन प्रत्याशा का अर्थ है कि लोगों के पास दीर्घ और स्वस्थ जीवन जीने के अधिक अवसर हैं।
  • शिक्षा – प्रौढ़ साक्षरता दर और सकल नामांकन अनुपात ज्ञान तक पहुँच को दर्शाता है। किसी देश में ज्ञान तक शत-प्रतिशत पहुँच बहुत आसान नहीं है।
  • संसाधनों तक पहुँच को क्रय – शक्ति (अमेरिकी डॉलर) के सन्दर्भ में मापा जाता है।

प्रश्न 10.
जीवन प्रत्याशा विशेष रूप से बढ़ने के कारणों को समझाइए।
उत्तर:
जीवन प्रत्याशा विशेष रूप से बढ़ने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  • जीवन प्रत्याशा बढ़ने का कारण निरन्तर बढ़ती खाद्य सुरक्षा है।
  • चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार हुआ है।
  • अनाज और दालों की प्रति व्यक्ति और प्रतिदिन उपलब्धि में वृद्धि हुई है।
  • अस्पतालों और डिस्पेंसरियों की संख्या में वृद्धि हुई है।

प्रश्न 11.
“मानव विकास की प्रक्रिया का केन्द्रबिन्दु है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मानव विकास का लक्ष्य है-जनकल्याण; इसलिए मानव ही विकास का केन्द्रबिन्दु है। विकास लोगों के लिए हो, न कि लोग विकास के लिए। लोगों को स्वास्थ्य, शिक्षा आदि की क्षमताओं को सुधारने के लिए पूरे अवसर मिलने चाहिए ताकि वे अपनी क्षमताओं का पूरा-पूरा उपयोग कर सकें। इन निर्णयों में पुरुष, स्त्रियाँ, बच्चे सभी शामिल हों। सबको मानवीय, आर्थिक और राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त करने के अवसर प्राप्त हों। विकास का मुख्य लक्ष्य मानव जीवन की समृद्धि होना चाहिए।

प्रश्न 12.
भारत में साक्षरता दर निम्न होने के कारण बताइए।
उत्तर:
भारत में निम्न साक्षरता दर के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  • गरीबी – भारत में आज भी बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं।
  • शिक्षा सुविधाओं का अभाव – भारत में प्राथमिक विद्यालयों का अभाव है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का व्यापक प्रचार नहीं हुआ है।
  • अज्ञानता – अनेक जनजातीय क्षेत्रों में अज्ञानता के कारण शिक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता इसलिए साक्षरता दर निम्न है।
  • समाज में स्त्रियों की स्थिति-भारत में स्त्रियों को पुरुषों के समान दर्जा प्राप्त नहीं है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्री शिक्षा पर बल नहीं दिया जाता। इसीलिए स्त्री-शिक्षा आज भी काफी कम है।

अतिलघ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
वर्तमान सन्दर्भ में विकास का प्रतीक किसे समझा जाता है?
उत्तर:
कम्प्यूटरीकरण, औद्योगीकरण, सक्षम परिवहन जाल, वृहत् शिक्षा प्रणाली, उन्नत व आधुनिक चिकित्सा सुविधाएँ और वैयक्तिक सुरक्षा इत्यादि को ही वर्तमान सन्दर्भ में विकास का प्रतीक समझा जाता है।

प्रश्न 2.
आर्थिक उपलब्धियों के सूचक बताइए।
उत्तर:
आर्थिक उपलब्धियों के सूचक हैं

  • सकल घरेलू उत्पादन
  • प्रति व्यक्ति आय
  • गरीबी, तथा
  • रोजगार।

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प्रश्न 3.
स्वस्थ जीवन के सूचक बताइए।
उत्तर:
स्वस्थ जीवन के सूचक हैं

  • अशोधित मृत्यु-दर
  • अशोधित जन्म-दर
  • कुल प्रजनन दर, तथा
  • जीवन प्रत्याशा।

प्रश्न 4.
केरल में साक्षरता दर ऊँची होने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
केरल में साक्षरता दर ऊँची होने के कारण हैं-गैर-कृषि कामगारों का ऊँचा अनुपात, शिक्षा पर पारम्परिक रूप से अधिक ध्यान दिया जाना तथा कुशल व सजग प्रशासन आदि। ।

प्रश्न 5.
मानव विकास की कुंजी क्या है?
उत्तर:
भूख, गरीबी, दासता, बँधुआकरण, अज्ञानता, निरक्षरता और किसी भी अन्य प्रकार की प्रबलता से मुक्ति मानव विकास की कुंजी है।

प्रश्न 6.
एक स्वस्थ और लम्बे जीवन के महत्त्वपूर्ण माप क्या हैं?
उत्तर:
शिशु मर्त्यता और माताओं के प्रजननोत्तर मृत्यु-दर को घटाने के उद्देश्य से पूर्व और प्रसवोत्तर स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता, वृद्धों के लिए स्वास्थ्य सेवाएँ, पर्याप्त पोषण और व्यक्तियों की सुरक्षा आदि स्वस्थ जीवन और लम्बे जीवन के महत्त्वपूर्ण माप हैं।

प्रश्न 7.
मानव विकास सूचकांक 2007-08 के अनुसार केरल का मानव विकास सूचकांक मूल्य क्या है?
उत्तर:
0.790.

प्रश्न 8.
गांधी जी के अनुसार एक व्यक्ति और एक राष्ट्र के जीवन में उच्चतर लक्ष्य प्राप्त करने की कुंजी क्या है?
उत्तर:
गांधी जी के अनुसार व्यक्तिगत मितव्ययिता, सामाजिक धन की न्यासधारिता और अहिंसा एक व्यक्ति और एक राष्ट्र के जीवन में उच्चतर लक्ष्य प्राप्त करने की कुंजी है।

प्रश्न 9:
शूमाकर की पुस्तक का क्या नाम है?
उत्तर:
‘स्मॉल इज ब्यूटीफुल’ (1974)।

प्रश्न 10.
सन् 1993 की मानव विकास रिपोर्ट के प्रमुख मुद्दे क्या थे?
उत्तर:
लोगों की प्रतिभागिता और उनकी सुरक्षा सन् 1993 की मानव विकास रिपोर्ट के प्रमुख मुद्दे थे।

प्रश्न 11.
मानव विकास के संकेतक/पक्ष बताइए।
उत्तर:
मानव विकास के संकेतक/पक्ष हैं

  • मानव संकेतक
  • स्वास्थ्य संकेतक
  • सामाजिक संकेतक, तथा
  • आर्थिक संकेतक।

प्रश्न 12.
मानव विकास के उपागमों के नाम बताइए।
उत्तर:
मानव विकास के उपागम हैं

  • आय उपागम
  • कल्याण उपागम
  • आधारभूत उपागम, तथा
  • क्षमता सम्बन्धी उपागम।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने अपना पहला प्रतिवेदन कब प्रकाशित किया
(a) सन् 1990 में
(b) सन् 1992 में
(c) सन् 1995 में
(d) सन् 1998 में।
उत्तर:
(a) सन् 1990 में।

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प्रश्न 2.
मानव विकास का प्रमुख तत्त्व है
(a) दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन
(b) शिक्षा
(c) उच्च जीवन स्तर
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
वर्तमान सन्दर्भ में विकास का प्रतीक किसे समझा जाता है
(a) कम्प्यूटरीकरण
(b) औद्योगीकरण
(c) सक्षम परिवहन
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 4.
सामाजिक संकेतक हैं
(a) स्त्री साक्षरता
(b) स्कूल जाने वाले बच्चों का नामांकन
(c) छात्र-अध्यापक अनुपात
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 5.
आर्थिक संकेतक है
(a) वेतन
(b) आय
(c) रोजगार
(d) ये सभी।
उत्तर:
(d) ये सभी।

प्रश्न 6.
स्वस्थ जीवन का सूचक है
(a) अशोधित मृत्यु-दर
(b) अशोधित जन्म-दर
(c) जीवन प्रत्याशा
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 7.
गांधी जी के अनुसार एक व्यक्ति और एक राष्ट्र के जीवन में उच्चतर लक्ष्य प्राप्त करने की कुंजी है
(a) व्यक्तिगत मितव्ययिता
(b) सामाजिक धन की न्यासधारिता
(c) अहिंसा
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 8.
गरीबी, प्रतिबिम्बित होती है
(a) जीवन की निम्न गुणवत्ता से
(b) भूख से
(c) कुपोषण से
(d) उपर्युक्त सभी से।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी से।

प्रश्न 9.
जनगणना-2011 के अनुसार भारत में कुल साक्षरता दर थी
(a) 74.04 प्रतिशत
(b) 62.14 प्रतिशत
(c) 60.28 प्रतिशत
(d) 58.22 प्रतिशत।
उत्तर:
(a) 74.04 प्रतिशत।

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प्रश्न 10.
1999-2000 के अनुसार भारत में गरीबी-रेखा की दर थी
(a) 26.10 प्रतिशत
(b) 30.12 प्रतिशत
(c) 22.18 प्रतिशत
(d) 18.60 प्रतिशत।
उत्तर:
(a) 26.10 प्रतिशत।

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UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 4 Alternative Centres of Power

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 4 Alternative Centres of Power (सत्ता के वैकल्पिक केंद्र)

UP Board Class 12 Civics Chapter 4 Text Book Questions

UP Board Class 12 Civics Chapter 4 पाठ्यपुस्तक से अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1.
तिथि के हिसाब से इन सबको क्रम दें-
(क) विश्व व्यापार संगठन में चीन का प्रवेश
(ख) यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना
(ग) यूरोपीय संघ की स्थापना
(घ) आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना।
उत्तर:
(ख) यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना (1957)
(घ) आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना (1967)
(ग) यूरोपीय संघ की स्थापना (1992)
(क) विश्व व्यापार संगठन में चीन का प्रवेश (2001)।

प्रश्न 2.
‘ASEAN Way’ या आसियान शैली क्या है?
(क) आसियान के सदस्य देशों की जीवन शैली है।
(ख) आसियान सदस्यों के अनौपचारिक और सहयोगपूर्ण कामकाज की शैली को कहा जाता है।
(ग) आसियान सदस्यों की रक्षानीति है।
(घ) सभी आसियान सदस्य देशों को जोड़ने वाली सड़क है।
उत्तर:
(ख) आसियान सदस्यों के अनौपचारिक और सहयोगपूर्ण कामकाज की शैली को कहा जाता है।

प्रश्न 3.
इनमें से किसने ‘खुले द्वार’ की नीति अपनाई
(क) चीन
(ख) यूरोपीय संघ
(ग) जापान
(घ) अमेरिका।
उत्तर:
(क) चीन।

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प्रश्न 4.
खाली स्थान भरें-
(क) 1962 में भारत और चीन के बीच……….. और ………. को लेकर सीमावर्ती लड़ाई हुई थी।
(ख) आसियान क्षेत्रीय मंच के कार्यों में …………. और ………. करना शामिल है।
(ग) चीन ने 1972 में ………….. के साथ दो तरफा सम्बन्ध शुरू करके अपना एकान्तवास समाप्त किया।
(घ) ……….. योजना के प्रभाव से 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना हुई।
(ङ) …………. आसियान का एक स्तम्भ है जो इसके सदस्य देशों की सुरक्षा के मामले देखता है।
उत्तर:
(क) 1962 में भारत और चीन के बीच अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख को लेकर सीमावर्ती लड़ाई हुई थी।
(ख) आसियान क्षेत्रीय मंच के कार्यों में आर्थिक विकास और सामाजिक विकास में तालमेल करना शामिल है।
(ग) चीन ने 1972 में अमेरिका के साथ दो तरफा सम्बन्ध शुरू करके अपना एकान्तवास समाप्त किया।
(घ) मार्शल योजना के प्रभाव से 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना हुई।
(ङ) सुरक्षा समुदाय आसियान का एक स्तम्भ है जो इसके सदस्य देशों की सुरक्षा के मामले देखता है।

प्रश्न 5.
क्षेत्रीय संगठनों को बनाने के उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर:
क्षेत्रीय संगठनों को बनाने के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. अन्तर-क्षेत्रीय समस्याओं का क्षेत्रीय स्तर पर हल ढूँढना-क्षेत्रीय संगठन अन्तर-क्षेत्रीय समस्याओं का क्षेत्रीय स्तर पर हल ढूँढने में अन्य संगठनों की अपेक्षा अधिक कामयाब हो सकते हैं। यदि किसी क्षेत्र के किन्हीं दो राष्ट्रों में किसी मामले को लेकर विवाद है तो उसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने से दोनों देशों में कटुता बढ़ेगी। यदि क्षेत्रीय संगठन अपने सदस्य देशों के आपसी विवाद का हल ढूँढने में सफल रहते हैं तो आपस में अनावश्यक द्वेष अथवा विनाश से बचा जा सकता है।

2. संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यों को सुगम करना–यदि छोटी-छोटी क्षेत्रीय समस्याओं को क्षेत्रीय संगठनों द्वारा क्षेत्रीय स्तर पर ही हल कर लिया जाए तो संयुक्त राष्ट्र संघ का कार्य हल्का हो जाएगा और वह बड़ी अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में अपना समय लगा सकता है।

3. बाहरी हस्तक्षेप का मुकाबला-क्षेत्रीय संगठनों में आमतौर पर यह प्रावधान रखा जाता है कि क्षेत्र के किसी एक देश में बाहरी हस्तक्षेप होने पर संगठन के अन्य सदस्य उस देश की सहायता करेंगे और ऐसे संकट के समय समस्त क्षेत्रीय देश बाहरी हस्तक्षेप का डटकर मुकाबला करेंगे।

4. क्षेत्रीय सहयोग एवं एकता की स्थापना क्षेत्रीय संगठनों में आपसी सहयोग की भावना एवं एकता स्थापित होती है। क्षेत्र के विभिन्न देश क्षेत्रीय संगठन बनाकर आपस में राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों में सहयोग कर लाभ उठा सकते हैं। अपने-अपने क्षेत्रों में अधिक शान्तिपूर्ण एवं सहकारी क्षेत्रीय व्यवस्था विकसित करने का प्रयास कर सकते हैं।

प्रश्न 6.
भौगोलिक निकटता का क्षेत्रीय संगठनों के गठन पर क्या असर होता है?
उत्तर:
भौगोलिक एकता का क्षेत्रीय संगठनों के गठन पर निम्नलिखित रूप से विशेष प्रभाव पड़ता है-

  1. भौगोलिक निकटता के कारण क्षेत्र विशेष में आने वाले देशों में संगठन की भावना विकसित होती है।
  2. पारस्परिक निकटता से आर्थिक सहयोग एवं अन्तर्देशीय व्यापार को बढ़ावा मिलता है।
  3. सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था स्थापित करके कम धन व्यय होता है और बचे हुए धन का उपयोग अपने-अपने देश के विकास के लिए कर सकते हैं। अत: स्पष्ट है कि भौगोलिक निकटता क्षेत्रीय संगठनों को शक्तिशाली बनाने में तथा उनके प्रभाव में वृद्धि में योगदान देती है।

प्रश्न 7.
आसियान विजन-2020′ की मुख्य-मुख्य बातें क्या हैं?
उत्तर:
आसियान तेजी से बढ़ता हुआ एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है। इसके विजन दस्तावेज 2020 में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका को प्रमुखता दी गई है। आसियान विजन 2020 की प्रमुख बातें-

  1. आसियान द्वारा टकराव की जगह बातचीत द्वारा हल निकालने को महत्त्व देना। इस नीति से आसियान ने कम्बोडिया के टकराव एवं पूर्वी तिमोर के संकट को सँभाला है।
  2. आसियान की असली ताकत अपने सदस्य देशों, सहभागी सदस्यों और शेष गैर-क्षेत्रीय संगठनों के बीच निरन्तर संवाद और परामर्श करने की नीति में है।
  3. आसियान एशिया का एकमात्र ऐसा क्षेत्रीय संगठन है जो एशियाई देशों और विश्व शक्तियों को राजनीतिक और सुरक्षा मामलों पर चर्चा के लिए मंच उपलब्ध कराता है।
  4. एशियाई देशों के साथ व्यापार और निवेश मामलों की ओर ध्यान देना।
  5. नियमित रूप से वार्षिक बैठक का आयोजन करना।

प्रश्न 8.
आसियान समुदाय के मुख्य स्तम्भों और उनके उद्देश्य के बारे में बताएँ।
उत्तर:
आसियान समुदाय के निम्नलिखित मुख्य तीन स्तम्भ हैं-

  1. आसियान सुरक्षा समुदाय,
  2. आसियान आर्थिक समुदाय,
  3. आसियान-सामाजिक सांस्कृतिक समुदाय। 2003 में आसियान के तीन स्तम्भों के आधार पर इसे समुदाय बनाने की दिशा में प्रयास किया गया।

उद्देश्य-

1. आसियान सुरक्षा समुदाय-यह क्षेत्रीय विवादों को सैनिक टकराव तक न ले जाने की सहमति पर आधारित है। इस स्तम्भ के उद्देश्यों में शामिल हैं-आसियान सदस्य देशों में शान्ति, निष्पक्षता, सहयोग तथा अहस्तक्षेप को बढ़ावा देना। साथ ही राष्ट्रों को आपसी अन्तर तथा सम्प्रभुता के अधिकारों का सम्मान करना।

2. आसियान आर्थिक समुदाय-आसियान आर्थिक समुदाय का उद्देश्य आसियान देशों का साझा बाजार और उत्पादन आधार तैयार करना तथा इस इलाके में सामाजिक और आर्थिक विकास में सहायता करना है। यह संगठन इस क्षेत्र के देशों के आर्थिक विवादों को निपटाने के लिए बनी मौजूदा व्यवस्था को भी सुधारता है।

3. सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय-इसका उद्देश्य है कि आसियान सदस्य देशों के बीच संघर्ष या टकराव की जगह सहयोग एवं बातचीत को बढ़ावा दिया जाए। यह सदस्य देशों के बीच सामाजिक एवं सांस्कृतिक विचारधारा का प्रचार-प्रसार करके संवाद और परामर्श के लिए रास्ता तैयार करते हैं।

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प्रश्न 9.
आज की चीनी अर्थव्यवस्था नियन्त्रित अर्थव्यवस्था से किस तरह अलग है?
उत्तर:
आर्थिक सुधारों के प्रारम्भ करने से चीन सबसे अधिक तेजी से आर्थिक वृद्धि कर रहा है और माना जाता है कि इस गति से चलते सन् 2040 तक चीन दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति, अमेरिका से भी आगे निकल जाएगा। क्षेत्रीय मामलों में उसका प्रभाव बहुत बढ़ गया है।
आज की चीनी अर्थव्यवस्था पहले की नियन्त्रित अर्थव्यवस्था से किस प्रकार अलग है, इसे निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत समझा जा सकता है

1. आर्थिक सुधारों के हेतु खुले द्वार की नीति-सन् 1949 में माओ के नेतृत्व में हुई साम्यवादी क्रान्ति के बाद चीनी जनवादी गणराज्य की स्थापना के समय यहाँ की आर्थिक रूपरेखा सोवियत मॉडल पर आधारित थी। इसका जो विकास मॉडल अपनाया उसमें खेती से पूँजी निकालकर सरकारी नियन्त्रण में बड़े उद्योग खड़े करने पर जोर था। परन्तु इसका औद्योगिक उत्पादन पर्याप्त तेजी से नहीं बढ़ रहा था। विदेशी व्यापार न के बराबर था और प्रति व्यक्ति आय काफी कम थी।

चीनी नेतृत्व ने 1970 के दशक में बड़े नीतिगत निर्णय लिए। सन् 1972 में अमेरिका से सम्बन्ध बनाकर अपने राजनीतिक और आर्थिक एकान्तवाद को समाप्त किया। सन् 1978 में तत्कालीन नेता देंग श्याओपेंग ने चीन में आर्थिक सुधारों और खुले द्वार की नीति की घोषणा की। अब नीति यह हो गयी कि विदेशी पूँजी और प्रौद्योगिकी के निवेश से उच्चतर उत्पादकता को प्राप्त किया जाए। बाजारमूलक अर्थव्यवस्था को अपनाने के लिए चीन ने अपना तरीका अपनाया।

2. खेती एवं उद्योगों का निजीकरण–चीन ने शॉक थेरेपी पर अमल करने के स्थान पर अपनी अर्थव्यवस्था को चरणबद्ध ढंग से खोला। सन् 1982 में खेती का निजीकरण किया गया और उसके बाद 1998 में उद्योगों के व्यापार सम्बन्धी अवरोधों को केवल विशेष आर्थिक क्षेत्रों के लिए ही हटाया गया वहाँ विदेशी निवेशक अपने उद्यम लगा सकते हैं।

3. कृषि और उद्योग दोनों का विकास-आज की चीनी अर्थव्यवस्था को मूल रूप से उभरने का अवसर मिला है। कृषि के निजीकरण के कारण कृषि उत्पादों तथा ग्रामीण आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उद्योग और कृषि दोनों ही क्षेत्रों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तेज रही। व्यापार के नए कानून तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों (स्पेशल इकॉनामिक जोन-SEZ) के निर्माण से विदेशी व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई तथा कृषि और उद्योगों के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ।

4. विश्व व्यापार संगठन में शामिल-राज्य द्वारा नियन्त्रित अर्थव्यवस्था वाला देश चीन आज पूरे विश्व में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए सबसे आकर्षक देश बनकर उभरा है। चीन के पास विदेशी मुद्रा का विशाल भण्डार है और इसके दम पर चीन दूसरे देशों में निवेश कर रहा है। चीन 2001 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल हो गया। अब चीन की योजना विश्व आर्थिकी से अपने जुड़ाव को और गहरा करके भविष्य की विश्व व्यवस्था का एक मनचाहा रूप देने की है।

चीन की आर्थिक स्थिति में तो नाटकीय सुधार हुआ लेकिन वहाँ हर किसी को सुधारों का लाभ नहीं मिला है। वहाँ महिलाओं को रोजगार और काम करने के हालात उतने ही खराब हैं जितने यूरोप में 18वीं और 19वीं सदी में थे। गाँव और शहर के बीच भी फासला बढ़ता जा रहा है। परन्तु क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर चीन एक ऐसी जबरदस्त आर्थिक शक्ति बनकर उभरा है कि सभी उसका लोहा मानने लगे हैं। इसी स्थिति के कारण जापान, अमेरिका और आसियान तथा रूस सभी व्यापार के आगे चीन से बाकी विवादों को भुला चुके हैं। आशा की जाती है कि चीन और ताइवान के मतभेद भी खत्म हो जाएंगे। सन् 1997 में वित्तीय संकट के बाद आसियान देशों की अर्थव्यवस्था को टिकाए रखने में चीन के उभारने में काफी मदद की है। इसकी नीतियाँ बताती हैं कि विकासशील देशों के मामले में चीन एक नई विश्वशक्ति के रूप में उभरता जा रहा है।

प्रश्न 10.
किस तरह यूरोपीय देशों ने युद्ध के बाद की अपनी परेशानियाँ सुलझाईं? संक्षेप में उन कदमों की चर्चा कीजिए जिनसे होते हुए यूरोपीय संघ की स्थापना हुई?
उत्तर:
जब द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हुआ तब यूरोप के नेता यूरोप की समस्याओं को लेकर काफी परेशान रहे। द्वितीय विश्वयुद्ध ने उन अनेक मान्यताओं और व्यवस्थाओं को ध्वस्त कर दिया जिसके आधार पर यूरोपीय देशों के आपसी सम्बन्ध बने थे। सन् 1945 तक यूरोपीय देशों ने अपनी अर्थव्यवस्था की बर्बादी तो झेली ही, उन मान्यताओं और व्यवस्थाओं को ध्वस्त होते हुए भी देख लिया जिन पर यूरोप खड़ा था। यूरोपीय देशों की कठिनाइयों को सुलझाने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए-

1. यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना एवं अमेरिका द्वारा सहयोग–अमेरिका ने यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए अभूतपूर्व सहायता की। इसे मार्शल योजना के नाम से जाना जाता है। अमेरिका ने ‘नाटो’ के तहत एक सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को जन्म दिया। मार्शल योजना के तहत ही सन् 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना की गयी जिसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों को आर्थिक मदद की गयी। यह एक ऐसा मंच बन गया जिसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों ने व्यापार और आर्थिक मामलों में एक-दूसरे की सहायता शुरू की।

2. यूरोपीय परिषद् का गठन एवं राजनीतिक सहयोग–सन् 1949 में गठित यूरोपीय परिषद् राजनीतिक सहयोग के मामले में अगला कदम साबित हुई। यूरोप के पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था के आपसी एकीकरण की प्रक्रिया चरणबद्ध ढंग से आगे बढ़ी और इसके परिणामस्वरूप सन् 1957 में यूरोपियन इकॉनामिक कम्युनिटी का गठन हुआ।

3. यूरोपीय पार्लियामेण्ट का गठन और राजनीतिक स्वरूप-यूरोपीय पार्लियामेण्ट के गठन के बाद इस प्रक्रिया ने राजनीतिक स्वरूप प्राप्त कर लिया। सोवियत गुट के पतन के बाद इस प्रक्रिया में तेजी आई और सन् 1992 में इस प्रक्रिया की परिणति यूरोपीय संघ की स्थापना के रूप में हुई। यूरोपीय संघ के रूप में समान विदेश और सुरक्षा नीति से आन्तरिक मामलों तथा न्याय से जुड़े मुद्दों पर सहयोग और एक समान मुद्रा के चलन के लिए रास्ता तैयार हो गया।

4. यूरोपीय संघ एक विशाल राष्ट्र-राज्य के रूप में-एक लम्बे समय में बना यूरोपीय संघ आर्थिक सहयोग वाली व्यवस्था से बदलकर अधिक-से-अधिक राजनीतिक रूप लेता गया। अब यूरोपीय संघ स्वयं काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र राज्य की तरह ही काम करने लगा है। हालाँकि यूरोपीय संघ का कोई संविधान नहीं बन सका लेकिन इसका अपना झण्डा, गान, स्थापना दिवस और अपनी मुद्रा है। नए सदस्यों को शामिल करते हुए

यूरोपीय संघ ने सहयोग के दायरे में विस्तार की कोशिश की है। अनेक देशों के लोग इस बात को लेकर कुछ खास . उत्साहित नहीं थे कि जो ताकत इनके देश की सरकार को हासिल थी वह अब यूरोपीय संघ को दे दी जाए।

प्रश्न 11.
यूरोपीय संघ को क्या चीजें एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन बनाती हैं?
उत्तर:
यूरोपीय संघ को निम्नलिखित तत्त्व एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन सिद्ध करते हैं-

1. समान राजनीतिक रूप-यूरोपीय संघ आर्थिक सहयोग वाली व्यवस्था से बदलकर अधिक-सेअधिक राजनीतिक रूप लेता गया है। यूरोपीय संघ का अपना एक झण्डा, गान, स्थापना दिवस तथा अपनी मुद्रा यूरो है। इससे साझी विदेश नीति और सुरक्षा नीति में सहायता मिली है।

2. सहयोग की नीति-यूरोपीय संघ ने सहयोग की नीति को अपनाया है। यूरोपीय संगठन के माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों ने एक-दूसरे की मदद की, इससे भी इस संघ का प्रभाव बढ़ा। इस महाद्वीप के इतिहास ने सभी यूरोपीय देशों को सिखा दिया कि क्षेत्रीय शान्ति और सहयोग ही अन्ततः उन्हें समृद्धि और विकास दे सकता है। संघर्ष और युद्ध, विनाश और पतन का मूल कारण होते हैं।

3. आर्थिक प्रभाव या शक्ति-यूरोपीय संघ का आर्थिक प्रभाव बहुत अधिक है। सन् 2005 में वह विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। इसकी मुद्रा यूरो अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व के लिए खतरा बन सकती है। विश्व व्यापार में इसकी भागीदारी अमेरिका से तीन गुनी अधिक है और इसी के चलते वह अमेरिका और चीन से व्यापारिक विवादों में बराबरी से बात करता है। इसकी आर्थिक शक्ति का प्रभाव इसके निकटतम देशों पर ही नहीं बल्कि एशिया और अफ्रीका के दूर-दराज के देशों पर भी है।

4. राजनीति और कूटनीति का प्रभाव-इस संघ का राजनीतिक और कूटनीतिक प्रभाव भी कम नहीं है। इसके दो सदस्य देश ब्रिटेन और फ्रांस सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं। संघ के कई अन्य सदस्य देश सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों में शामिल हैं।

5. विश्व के अन्य देशों की नीतियों को प्रभावित करना-यूरोपीय संघ में विकास एवं एकीकरण के कारण विश्व के अन्य देशों को प्रभावित करने की क्षमता भी है। वह अमेरिका को प्रभावित कर सकता है और विश्व की आर्थिक, सामाजिक स्थिति को प्रभावित कर सकता है।

6.सैन्य शक्ति-यूरोपीय संघ के पास विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना है। इसका कुल बजट अमेरिका के बाद सबसे अधिक है। यूरोपीय संघ के दो देशों ब्रिटेन एवं फ्रांस के पास परमाणु हथियार हैं। विज्ञान और संचार प्रौद्योगिकी के मामले में इस संघ का विश्व में दूसरा स्थान है।

प्रश्न 12.
चीन और भारत की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मौजूदा एक-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था को चुनौती दे सकने की क्षमता है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने तर्कों से अपने विचारों को पुष्ट करें।
उत्तर:
उक्त कथन से हम पूर्णत: सहमत हैं। इस विचार की पुष्टि निम्नलिखित बिन्दुओं में स्पष्ट होती है-

(1) विकासशील देश भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाएँ विकसित होती हुई अर्थव्यवस्थाएँ हैं। ये नयी अर्थव्यवस्था उदारीकरण, वैश्वीकरण तथा मुक्त व्यापार नीति की समर्थक हैं। ये अमेरिका और अन्य बहुराष्ट्रीय नियम समर्थक कम्पनियाँ स्थापित और संचालन करने वाले राष्ट्रों को आकर्षित करने के लिए अन्य सुविधाएँ प्रदान करके अपने देश के आर्थिक विकास की गति को बढ़ाने की क्षमता रखते हैं।

(2) चीन-भारत की मित्रता और सहयोग अमेरिका के लिए चिन्ता का कारण बन सकता है। ये एक-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था के संचालन करने वाले राष्ट्र अमेरिका और उसके मित्रों को चुनौती देने में सक्षम हैं।

(3) आज दोनों ही राष्ट्र अपने यहाँ वैज्ञानिक अनुसन्धान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति कर चुके हैं और अमेरिका को अपने शक्ति के प्रदर्शन से प्रभावित कर सकते हैं।

(4) विश्व में चीन और भारत विशाल जनसंख्या वाले देश हैं। ये अमेरिका के लिए एक विशाल बाजार प्रदान कर सकते हैं, साथ ही इन देशों के कुशल कारीगर और श्रमिक पश्चिमी देशों एवं अन्य देशों में अपने हुनर से बाजार को सहायता दे सकते हैं।

(5) चीन और भारत विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण लेते समय अमेरिका और उन बड़ी शक्तियों के एकाधिकार की प्रवृत्ति को नियन्त्रित कर सकते हैं।

(6) दोनों देशों के मध्य सड़क निर्माण, रेल लाइन विस्तार, वायुयान और जलमार्ग सम्बन्धी सुविधाओं के क्षेत्र में पारस्परिक आदान-प्रदान और सहयोग की नीतियाँ अपनाकर अपने को दोनों राष्ट्र शीघ्र ही महाशक्तियों की श्रेणी में ला सकते हैं। इन देशों के इंजीनियर्स ने विश्व की सुपर शक्तियों को अत्यधिक प्रभावित किया है।

(7) इसके अतिरिक्त आतंक को समाप्त करने में सहयोग देकर, तस्करी रोकने, नशीली दवाओं के उत्पादन पर रोक आदि में अपनी भूमिका द्वारा ये विश्व व्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं।

निःसन्देह चीन और भारत ऐसी उभरती अर्थव्यवस्थाएँ हैं जो मौजूदा एक-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था को चुनौती दे सकने की क्षमता रखती हैं।

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प्रश्न 13.
मुल्कों की शान्ति और समृद्धि क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों को बनाने और मजबूत करने पर टिकी है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
मुल्कों की शान्ति और समृद्धि क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों को बनाने और उन्हें मजबूत करने पर टिकी हैं क्योंकि ये संगठन व्यापार, उद्योग-धन्धों, खेती आदि संस्थाओं को बढ़ावा देते हैं। इन संगठनों के निर्माण के कारण ही रोजगार में वृद्धि होती है और गरीबी समाप्त होती है। किसी भी देश के विकास में क्षेत्रीय आर्थिक . संगठन का विशिष्ट महत्त्व होता है।

क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बाजार शक्तियों और देश की सरकारों की नीतियों से विशेष सम्बन्ध रखते हैं। प्रत्येक देश अपने यहाँ कृषि उद्योगों और व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए परस्पर क्षेत्रीय राज्यों से सहयोग माँगते हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें उनके उद्योगों के लिए कच्चा माल मिले। यह तभी सम्भव होगा जब उन क्षेत्रों में शान्ति होगी। ये संगठन विभिन्न व्यापार में पूँजी निवेश, श्रम गतिशीलता आदि के विस्तार में सहायक होते हैं और अपने क्षेत्रों में समृद्धि लाते हैं।

प्रश्न 14.
भारत और चीन के बीच विवाद के मामलों की पहचान करें और बताएँ कि वृहत्तर सहयोग के लिए इन्हें कैसे निपटाया जा सकता है? अपने सुझाव भी दीजिए।
उत्तर:
भारत और चीन के बीच विवाद के मामले

1. सीमा विवाद–चीन ने कुछ ऐसे मानचित्र प्रकाशित किए जिनमें भारतीय भू-भाग पर चीनी दावा किया गया था। यहीं से सर्वप्रथम सीमा-विवाद प्रकट हुआ। चीन ने पाकिस्तान के साथ सन्धि करके कश्मीर का कुछ भाग अपने अधीन कर लिया जिसे तथाकथित पाकिस्तान द्वारा हथियाए गए कश्मीर का हिस्सा माना जाता है। चीन, भारत के एक राज्य अरुणाचल प्रदेश पर भी अपना दावा करता है।

2. 1962 में सैनिक मुठभेड़ और असफलता–सन् 1962 में सैनिक मुठभेड़ की असफलता का परिणाम चीन के साथ सम्बन्धों में कटुता आना रहा। सन् 1979 में वियतनाम पर हमला करते समय चीन ने यह घोषणा की थी कि दण्डानुशासन वाली यह कार्रवाई सन् 1962 के नमूने पर ही की गयी थी। इस तरह के वक्तव्यों को अनसुना करना असम्भव है।

3. विश्व व्यापार संगठन में एक जैसी नीतियों को अपनाना-चीन और भारत दोनों ही विकासशील हैं। अत: विकास के लिए विश्व व्यापार संगठन में समान नीति अपनाते हैं। समान नीति के कारण प्रतिद्वन्द्विता की भावना पैदा होती है।

4. भारत द्वारा किए गए परमाणु परीक्षण–चीन, भारत के परमाणु परीक्षणों का विरोध करता है। सन् 1998 में भारत द्वारा किए गए परमाणु परीक्षण का चीन ने काफी विरोध किया जबकि वह स्वयं परमाणु अस्त्र-शस्त्र रखता है।

भारत-चीन मतभेद दूर करने के सुझाव

1. सांस्कृतिक सम्बन्धों का निर्माण–चीन और भारत दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक सम्बन्ध सुदृढ़ हों। भाषा और साहित्य का आदान-प्रदान हो। एक-दूसरे के देश में लोग भाषा और साहित्य का अध्ययन करें।

2. नेताओं का आवागमन-दोनों ही देशों के प्रमुख नेताओं का एक-दूसरे देश में आना-जाना रहना चाहिए ताकि वे अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकें जिससे कि सद्भाव और सहयोग की भावना पैदा हो।

3. व्यापारिक सम्बन्ध-दोनों ही देशों में तकनीक सम्बन्धी सामान व व्यक्तियों का आदान-प्रदान हो, कम्प्यूटर आदि के आदान-प्रदान से भारत और चीन दोनों देशों में आन्तरिक व्यापार को बढ़ावा दिया जा सकता है।

4. आतंकवाद पर संयुक्त दबाव-भारत और चीन आतंकवाद को समाप्त करने में एक-दूसरे का सहयोग कर सकते हैं और ऐसे देशों पर दबाव डाल सकते हैं जो आतंकवादियों को शरण देते हैं। यह तभी हो सकता है जब दोनों ही देश संयुक्त रूप से दबाव डालें।

5. पर्यावरण सुरक्षा समस्या का समाधान-दोनों ही देश पर्यावरण सुरक्षा की समस्या का संयुक्त रूप से समाधान कर सकते हैं और एक-दूसरे देश में प्रदूषण फैलाने वाली समस्या को दूर करने में सहयोग कर सकते हैं।

6. विभिन्न क्षेत्रों में मैत्रीपूर्ण वातावरण तैयार करके-चीन और भारत तिब्बत शरणार्थियों और तिब्बत से जुड़ी समस्याओं, ताइवान की समस्या के समाधान और भारतीय सहयोग एवं नैतिक समर्थन बढ़ाकर, निवेश को बढ़ाकर, मुक्त व्यापार नीति, वैश्वीकरण और उदारीकरण, संचार-साधनों में सहयोग करके एक मैत्रीपूर्ण वातावरण बना सकते हैं।

निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि परस्पर सहयोग एवं बातचीत द्वारा दोनों देशों के बीच दूरी कम हो सकती है और जो मनमुटाव की स्थिति रही है वह समाप्त की जा सकती है। संघर्ष से व्यवस्था को कभी गति नहीं . मिलती। सहयोग से विकास होता है और अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर सम्मान बढ़ता है।

UP Board Class 12 Civics Chapter 4 InText Questions

UP Board Class 12 Civics Chapter 4 पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
ओपेन डोर (मुक्त द्वार) की नीति किसके द्वारा और कब अपनाई गई थी? इस नीति का चीन पर क्या प्रभाव (असर) पड़ा?
उत्तर:
चीनी नेता देंग श्याओपेंग ने सन् 1978 में ओपेन डोर (मुक्त द्वार) की नीति चलाई जिसका देश पर बहुत ही अच्छा प्रभाव पड़ा। इस नीति के कारण चीन ने अद्भुत प्रगति की तथा वह आगामी वर्षों में विश्व की एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा।

प्रश्न 2.
2003 में यूरोपीय संघ ने एक साझा संविधान बनाने की कोशिश की थी। यह कोशिश नाकामयाब रही। इसी को लक्ष्य करके यह कार्टून बना है। कार्टूनिस्ट ने यूरोपीय संघ को टाइटैनिक जहाज के रूप में क्यों दिखाया है?
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उत्तर:
जिस प्रकार टाइटैनिक जैसा विशाल जहाज डूबकर नष्ट हो गया था ठीक उसी प्रकार सन् 2003 में यूरोपीय संघ के सदस्यों द्वारा एक संयुक्त (साझा) संविधान निर्मित करने का प्रयास विफल रहा। इसी को लक्ष्य करके उक्त कार्टून बना है। एरेस, केगल्स कार्टूनिस्ट ने यूरोपीय संघ को टाइटैनिक जहाज के रूप में दिखाया है। उल्लेखनीय है कि संविधान तथा जहाज दोनों ही अपनी-अपनी मंजिल को हासिल नहीं कर सके थे।

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प्रश्न 3.
कल्पना कीजिए, क्या होता अगर पूरे यूरोपीय संघ की एक फुटबॉल टीम होती?
उत्तर:
यदि यूरोपीय संघ की एक फुटबॉल टीम होती तो खिलाड़ियों के चयन में कड़ी प्रतिस्पर्धा होती तथा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के बलबूते ही खिलाड़ी चुने जाते।

प्रश्न 4.
क्या भारत दक्षिण-पूर्व एशिया का हिस्सा नहीं है? भारत के पूर्वोत्तरी राज्य आसियान देशों के इतने निकट हैं?
उत्तर:
भारत दक्षिण-पूर्व एशिया का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह दक्षिण एशिया का हिस्सा है। भारत आसियान देशों का पड़ोसी देश है। इसलिए भारत के पूर्वोत्तरी राज्य आसियान देशों के इतने निकट स्थित हैं।

प्रश्न 5.
नक्शे में आसियान के सदस्य देशों को पहचानिए। नक्शे में आसियान के सचिवालय को दिखाएँ।
पूर्व एशिया और पैसिफिक का मानचित्र
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स्रोत: http://www.unicef.org/eapro/EAP_map_final.gif

नोट-यूनीसेफ साइट पर दिए गए मानचित्र में किसी भी देश या क्षेत्र या किसी भी सीमा के परिसीमन की कानूनी स्थिति को प्रतिबिम्बित नहीं किया गया है।
उत्तर:
आसियान के सदस्य देश–इण्डोनेशिया, मलयेशिया, फिलीपीन्स, सिंगापुर, थाईलैण्ड, ब्रुनेई, वियतनाम, लाओस, म्यानमार तथा कम्बोडिया। आसियान का सचिवालय जकार्ता (इण्डोनेशिया) में है।

प्रश्न 6.
आसियान क्यों सफल रहा और दक्षेस (सार्क) क्यों नहीं? क्या इसलिए कि उस क्षेत्र में कोई बहुत बड़ा देश नहीं है? उत्तर:
आसियान की सफलता का मुख्य कारण इसके सदस्य देशों का अनौपचारिक, टकरावरहित एवं सहयोगात्मक मेल-मिलाप था जिससे निवेश, श्रम एवं सेवाओं के मामले में मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने में सफलता प्राप्त हुई। इसने सदस्य देशों का साझा बाजार एवं उत्पादन आधार तैयार किया है और इस क्षेत्र के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में सहयोग प्रदान किया है जबकि दक्षेस (सार्क) के सफल न होने का कारण इसके सदस्य देशों में बातचीत के माध्यम से आपसी टकराव को समाप्त नहीं किया। फलस्वरूप यहाँ न तो साझा बाजार स्थापित हो सका और न ही निवेश, श्रम एवं सेवाओं के मामलों में यह मुक्त क्षेत्र बन सका।
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प्रश्न 7.
कार्टून में दिखाया गया छोटा-सा आदमी कौन हो सकता है? क्या वह ड्रैगन को रोक सकता है?
उत्तर:
कार्टून में दिखाया गया एक छोटा-सा आदमी अमेरिका है। वर्तमान परिस्थितियों में ऐसा नहीं लगता है कि वह ड्रैगन को बढ़ने से रोक पाएगा।

प्रश्न 8.
चीन में सिर्फ छह ही विशेष आर्थिक क्षेत्र हैं और भारत में ऐसे 200 से ज्यादा क्षेत्रों की मंजूरी! क्या यह भारत के लिए अच्छा है?
उत्तर:
संख्यात्मक दृष्टिकोण से भारतीय विशेष आर्थिक क्षेत्र चीन की अपेक्षा अधिक हैं, लेकिन रचनात्मक दृष्टिकोण से हमें चीन की बराबरी अथवा आगे निकलने की भरपूर कोशिश करनी होगी। भारत में ऐसे 200 से ज्यादा क्षेत्रों को मंजूरी देना भारतीय हितों के सर्वथा अनुकूल ही है।
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प्रश्न 9.
प्रथम चित्र में कोने में लिखे ‘तब’ शब्द का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रथम चित्र में ‘तब’ का अभिप्राय है-चीन में साम्यवादी क्रान्ति के बाद माओ के नेतृत्व में लाल अर्थात् वामपंथी चीन, जो साम्यवाद अथवा समाजवाद को ही सर्वश्रेष्ठ अर्थव्यवस्था तथा प्रगति का मापदण्ड मानता था। जब तक माओ जीवित रहे उन्होंने इसी विचारधारा का अनुसरण किया।

प्रश्न 10.
दूसरे चित्र में ‘अब’ शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
दूसरे चित्र में ‘अब’ का अर्थ चीनी राष्ट्रपति हू जिन्ताओ की पूँजी-परस्त नीतियों वाले चीन से है। चीन ने मुक्त द्वार की नीति का अनुसरण किया। तब से लेकर वर्तमान तक चीन ने स्वयं को वैश्वीकरण तथा उदारवादी अर्थव्यवस्था से जोड़कर बड़ी तेजी से आर्थिक प्रगति की है।

प्रश्न 11.
उपर्युक्त दोनों चित्र चीन के दृष्टिकोण से किसका संकेत करते हैं?
उत्तर:
उक्त दोनों चित्र चीनी दृष्टिकोण में परिवर्तन का संकेत देते हैं। समाजवाद से धीरे-धीरे पूँजीवाद अथवा वैश्वीकरण तथा स्वयं को उदारीकरण से जोड़ना तथा चीनी उत्पादों को अन्य देशों में भेजते हुए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापारिक प्रतिस्पर्धाओं में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना।

प्रश्न 12.
कार्टून में साइकिल का इस्तेमाल आज के चीन के दोहरेपन को इंगित करने के लिए किया गया है? यह दोहरापन क्या है? क्या हम इसे अन्तर्विरोध कह सकते हैं? उक्त साइकिल का चित्र क्या चीन में प्रचलित दोहरेपन का प्रतीक है?
उत्तर:
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चीन विश्व में सर्वाधिक साइकिल प्रयोग करने वाला देश है। कार्टून में साइकिल का प्रयोग वर्तमान चीन के दोहरेपन को दर्शाता है। यह दोहरापन है कि एक तरफ तो चीन साम्यवादी विचारधारा वाले देशों का प्रतिनिधि होने की बात करता है वहीं दूसरी ओर वह अपनी अर्थव्यवस्था में सम्मिलित होने के लिए डॉलर अर्थात् पूँजीवादी व्यवस्था को आमन्त्रित कर रहा है।

चीनी साइकिल कार्टून में दर्शायी गयी साइकिल के दोनों पहियों में से अगला पहिया यहाँ साम्यवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहा है वहीं पीछे का पहिया पूँजीवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहा है। इसे हम एक प्रकार का विचारधारागत अन्तर्विरोध कह सकते हैं।

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प्रश्न 13.
चीन के राष्ट्रपति हू जिन्ताओ ने नवम्बर 2006 में भारत का दौरा किया। इस दौरे में जिन समझौतों पर हस्ताक्षर हुए उनके बारे में पता करें।
उत्तर:
चीन के राष्ट्रपति हू जिन्ताओ ने नवम्बर 2006 में भारत की यात्रा की। इस अवसर पर चीन के राष्ट्रपति हू जिन्ताओ और तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह के मध्य 10 सूत्रीय साझा घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर हुए। इसमें दोनों देशों के लोगों का आपसी सम्पर्क, पर्यटन, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, विद्यार्थियों की आपसी आवाजाही के क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग के समझौते हुए।

UP Board Class 12 Civics Chapter 1 Other Important Questions

UP Board Class 12 Civics Chapter 1 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पश्चिमी यूरोप को एकताबद्ध करने के प्रयासों के आर्थिक और राजनीतिक प्रयासों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
पश्चिमी यूरोप का आर्थिक पुनरुद्धार और एकीकरण-द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पश्चिमी यूरोप को एकताबद्ध करने के आर्थिक-राजनीतिक प्रयास निम्नलिखित रहे-

  1. शीतयुद्ध-सन् 1945 के बाद यूरोप के देशों में मेल-मिलाप की शीतयुद्ध से भी मदद मिली। शीतयुद्ध के दौर में पूर्वी यूरोप तथा पश्चिमी यूरोप के देश अपने-अपने खेमों में एक-दूसरे के नजदीक आए।
  2. मार्शल योजना-1947-इस योजना के तहत अमेरिका ने यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए अभूतपूर्व सहायता की।
  3. नाटो-अमेरिका ने नाटो के तहत पश्चिमी यूरोप में एक सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था का गठन किया।
  4. यूरोप आर्थिक सहयोग संगठन-मार्शल योजना के तहत सन् 1948 में यूरोप आर्थिक सहयोग संगठन के माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों ने व्यापार और आर्थिक मामलों में एक-दूसरे की सहायता शुरू की।
  5. यूरोपीय परिषद्-5 मई, 1949 को यूरोपीय परिषद् की स्थापना हुई जिसके तहत आर्थिक और सामाजिक प्रगति के लिए अपनी सामान्य विरासत के आदर्शों और सिद्धान्तों में एकता लाने का प्रयास किया गया।
  6. यूरोपीय कोयला तथा इस्पात समुदाय-18 अप्रैल, 1951 को पश्चिमी यूरोप के छह देशों ने यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय का गठन किया।
  7. यूरोपीय अणु शक्ति समुदाय तथा यूरोपीय आर्थिक समुदाय-25 मार्च, 1957 को यूरोपीय आर्थिक समुदाय (यूरोपीय साझा व्यापार) और यूरोपीय अणुशक्ति समुदाय का गठन किया गया।
  8. मास्ट्रिस्ट सन्धि (1991)-इस सन्धि ने यूरोप के लिए एक अर्थव्यवस्था, एक मुद्रा, एक बाजार, एक नागरिकता, एक संसद, एक सरकार, एक सुरक्षा व्यवस्था तथा एक विदेश नीति का मार्ग प्रशस्त किया।
  9. यूरोपीय संघ (1992)-सन् 1992 में यूरोपीय संघ के रूप में समान विदेश और सुरक्षा नीति, आन्तरिक मामलों तथा न्याय से जुड़े मुद्दों पर सहयोग और एक-समान मुद्रा के चलन के लिए रास्ता तैयार हो गया। 1 जनवरी, 1999 को यूरोपीय संघ की साझा यूरो मुद्रा को औपचारिक रूप से स्वीकृति दे दी तथा 2007 में लिस्बन सन्धि कर निर्णय प्रक्रिया में सुधार का महत्त्वपूर्ण कदम उठाया गया।

प्रश्न 2.
यूरोपीय संघ एक अधिराष्ट्रीय संगठन के रूप में कैसे उभरा? इनकी सीमाएँ क्या हैं?
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के पश्चात् अनेक यूरोपीय नेता यूरोप के प्रश्नों को लेकर दुविधा में पड़े हुए थे। क्या यूरोप को अपनी पुरानी शत्रुता को पुन: प्रारम्भ कर देना चाहिए अथवा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में सकारात्मक योगदान करने वाले सिद्धान्तों तथा संस्थाओं के आधार पर उसे अपने सम्बन्धों को नए आयाम देने, चाहिए। द्वितीय विश्वयुद्ध ने उन अनेक मान्यताओं तथा व्यवस्थाओं को ध्वस्त कर दिया जिनके आधार पर यूरोप के देशों के परस्पर आपसी सम्बन्ध विकसित हुए थे। सन् 1945 तक यूरोपीय राष्ट्रों ने अपनी अर्थव्यवस्था की बर्बादी को अति निकट से देखा था। उन्होंने उन मान्यताओं और व्यवस्थाओं को भी टूटते हुए देखा था जिन पर यूरोप खड़ा हुआ था।

द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् यूरोपीय देशों द्वारा समस्याओं का समाधान द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यूरोपीय देशों ने निम्नांकित ऐतिहासिक कदम उठाकर अपनी समस्याएं सुलझाई थी-

1. अमेरिकी सहयोग तथा यूरोपीय आर्थिक संगठन की स्थापना-सन् 1945 के बाद यूरोप के देशों में परस्पर मेल-मिलाप से शीतयुद्ध में भी सहायता मिली। अमेरिका ने यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए पर्याप्त सहायता प्रदान की थी। इसे ‘मार्शल योजना’ के नाम से जाना जाता है। अमेरिका ने ‘नाटो’ के अन्तर्गत एक सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को जन्म दिया। मार्शल योजना में ही सन् 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना की गयी जिसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों को आर्थिक सहायता दी गयी। यह एक ऐसा मंच बन गया जिसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों ने व्यापार तथा आर्थिक मामलों में एक-दूसरे की सहायता प्रारम्भ की।

2. यूरोपीय परिषद् तथा आर्थिक समुदाय का गठन–सन् 1949 में गठित यूरोपीय परिषद् राजनीतिक सहयोग के मामले में एक मील का पत्थर सिद्ध हुई। यूरोप के पूँजीवादी देशों में अर्थव्यवस्था के परस्पर एकीकरण की प्रक्रिया चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ी और इसके फलस्वरूप सन् 1957 में यूरोपीय इकोनोमिक कम्युनिटी का गठन हुआ।

3. यूरोपीय पार्लियामेण्ट का गठन-यूरोपीय संसद के गठन के बाद परस्पर जुड़ाव की इस प्रक्रिया ने राजनीतिक स्वरूप हासिल कर लिया। सोवियत खेमे के पतन के बाद इस प्रक्रिया में तेजी आई और सन् 1992 में दूसरी परिणति यूरोपीय संघ की स्थापना के रूप में हुई। यूरोपीय संघ के रूप में समान विदेश तथा सुरक्षा नीति, आन्तरिक मामलों एवं न्याय से जुड़े मुद्दों पर सहयोग और एकसमान मुद्रा के चलन हेतु रास्ता तैयार हो गया।

4. यूरोपीय संघ का गठन-एक लम्बी समयावधि में निर्मित यूरोपीय संघ आर्थिक सहयोग वाली व्यवस्था से परिवर्तित होकर अधिकाधिक राजनीतिक स्वरूप धारण करता चला गया। अब यूरोपीय संघ स्वयं काफी सीमा तक एक विशाल राष्ट्र-राज्य की तरह ही कार्य करने लगा। हालाँकि यूरोपीय संघ का एक अलग संविधान निर्मित किए जाने की असफल कोशिश की जा चुकी है परन्तु इसका अपना झण्डा, गान, स्थापना दिवस और अपनी मुद्रा है। अन्य देशों के सम्बन्धों के मामले में इसने काफी सीमा तक संयुक्त विदेश तथा सुरक्षा नीति भी बना ली है। – नए सदस्यों को सम्मिलित करते हुए यूरोपीय संघ ने सहयोग के दायरे में रहते हुए विस्तार का प्रयास किया। मुख्यतया नए सदस्य पूर्व सोवियत गुट से थे।

यूरोपीय संघ की सीमाएँ एक अधिराष्ट्रीय संगठन के रूप में यूरोपीय संघ आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक मामलों में हस्तक्षेप करने में सक्षम है, परन्तु अनेक मामलों में इसके सदस्य देशों की अपनी विदेश तथा रक्षा नीति है जो विभिन्न मुद्दों पर परस्पर एक-दूसरे के विरुद्ध भी होती है। उदाहरणार्थ, इराक पर अमेरिकी हमले में ब्रिटिश प्रधानमन्त्री तो उसके साथ थे, लेकिन जर्मन तथा फ्रांस इस आक्रमण के विरुद्ध थे। इसी तरह यूरोप के कुछ भागों में यूरो को लागू किए जाने के कार्यक्रम को लेकर भी काफी मतभेद रहे थे। पूर्व ब्रिटिश प्रधानमन्त्री मार्गरेट थैचर ने ग्रेट ब्रिटेन को यूरोपीय बाजार से अलग रखा। डेनमार्क तथा स्वीडन ने मास्ट्रिस्ट सन्धि तथा संयुक्त यूरोपीय मुद्रा यूरो को मानने का प्रतिरोध किया। उक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि विदेशी तथा रक्षा मामलों में कार्य करने की यूरोपीय संघ की क्षमता सीमित है।

प्रश्न 3.
आसियान के संगठन एवं उसके विजन दस्तावेज-2020 का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आसियान का संगठन आसियान की स्थापना-दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (आसियान) की स्थापना सन् 1967 मे बैंकॉक में की गयी। इस संगठन के प्रारम्भिक सदस्यों में इण्डोनेशिया, मलयेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर एवं थाईलैण्ड थे। बाद में ब्रुनेई, दारुस्सलाम, वियतनाम, लाओस, म्यानमार एवं कम्बोडिया भी आसियान में सम्मिलित हो गए। वर्तमान में इसकी सदस्य संख्या 10 है। इसका मुख्यालय जकार्ता (इण्डोनेशिया) है।

आसियान की प्रमुख विशेषताएँ आसियान की प्रमुख संस्थाओं में आसियान सुरक्षा समुदाय, आर्थिक आसियान समुदाय एवं आसियान सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय आदि हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित हैं-

1. आसियान सुरक्षा समुदाय-आसियान सुरक्षा समुदाय क्षेत्रीय विवादों को सैन्य टकराव तक ले जाने की सहमति पर आधारित है। सन् 2003 तक आसियान के सदस्य देशों ने अनेक समझौते किए जिनके माध्यम से प्रत्येक देश ने शान्ति, सहयोग, निष्पक्षता व अहस्तक्षेप को बढ़ावा देने, राष्ट्रों के आपसी अन्तर एवं सम्प्रभुता के अधिकारों का सम्मान करने पर अपनी वचनबद्धता प्रकट की। सन् 1994 में आसियान देशों की सुरक्षा एवं विदेश नीतियों में तालमेल बनाने के लिए आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना की गयी।

2. आसियान आर्थिक समुदाय-आसियान आर्थिक समुदाय का उद्देश्य आसियान देशों का साझा बाजार एवं उत्पादन आधार तैयार करना है तथा इस क्षेत्र के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में सहायता प्रदान करना है। यह संगठन इस क्षेत्र के आर्थिक विवादों को निपटाने के लिए निर्मित वर्तमान व्यवस्था में भी सुधार करना चाहता है। आसियान ने निवेश, श्रम एवं सेवाओं के सम्बन्ध में मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने पर भी ध्यान दिया है। इस प्रस्ताव पर आसियान के साथ बातचीत करने की शुरुआत संयुक्त राज्य अमेरिका व चीन ने कर दी है।

3. आसियान सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय-आसियान का यह समुदाय सम्बन्धित देशों में शैक्षिक विकास, समाज कल्याण, जनसंख्या नियन्त्रण, संचार एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा देने का कार्य कर रहा है।

आसियान का विजन दस्तावेज-2020 दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (आसियान) के विजन दस्तावेज-2020 की व्याख्या इस प्रकार है-

  1. आसियान के विजन दस्तावेज-2020 में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका को प्रमुखता दी गयी है।
  2. टकराव के स्थान पर बातचीत को बढ़ावा देने की बात की गयी है।
  3. आसियान के विजन दस्तावेज-2020 के अन्तर्गत एक आसियान सुरक्षा समुदाय, एक आसियान आर्थिक समुदाय एवं आसियान सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय बनाने की संकल्पना की गयी है।
  4. विजन दस्तावेज-2020 में क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण, वित्तीय सहयोग एवं व्यापार उदारीकरण के विभिन्न उपायों पर बल दिया गया है।

प्रश्न 4.
माओ युग के पश्चात् चीन द्वारा कौन-कौन सी नई आर्थिक नीतियाँ अपनायी गईं? इन नीतियों को अपनाए जाने के कारणों एवं लाभकारी परिणामों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
माओ युग के पश्चात् चीन द्वारा अपनायी गई नई आर्थिक नीतियाँ चीनी नेतृत्व ने 1970 के दशक में आर्थिक संकट से उबरने के लिए कुछ बड़े नीतिगत निर्णय लिए; जिनका विवरण निम्नलिखित है-

1. संयुक्त राज्य अमेरिका से सम्बन्ध स्थापित करना-चीन ने अपने राजनीतिक एवं आर्थिक एकान्तवास को समाप्त करने के लिए सन् 1972 में संयुक्त राज्य अमेरिका से सम्बन्ध स्थापित किए।

2. आधुनिकीकरण-सन् 1973 में तत्कालीन चीनी प्रधानमन्त्री चाऊ एन लाई ने कृषि, उद्योग, सेना, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण के चार प्रस्ताव रखे।

3. आर्थिक सुधारों एवं खुले द्वार की नीति–सन् 1978 में तत्कालीन चीनी नेता देंग श्याओपेंग ने चीन में आर्थिक सुधारों एवं खुले द्वार की नीति की घोषणा की। अब नीति यह हो गयी है कि विदेशी पूँजी एवं प्रोद्यौगिकी के निवेश से उच्चतर उत्पादकता को प्राप्त किया जाए। चीन सन् 2001 में विश्व व्यापार संगठन में भी शामिल हो गया।

4. बाजारमूलक अर्थव्यवस्था को अपनाना-चीन ने अपने देश का आर्थिक विकास करने के लिए बाजारमूलक अर्थव्यवस्था को अपनाया। चीन ने बाजारमूलक अर्थव्यवस्था को अपनाने के लिए शॉक थेरेपी पर अमल करने के बजाय अपनी अर्थव्यवस्था को चरणबद्ध ढंग से खोला। इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम सन् 1982 में खेती का निजीकरण किया गया, तत्पश्चात् सन् 1998 में उद्योगों का निजीकरण किया गया तथा व्यापार सम्बन्धी अवरोधों को मात्र विशेष आर्थिक क्षेत्रों के लिए हटाया गया, जहाँ विदेशी निवेशक अपने उद्यम स्थापित कर सकते हैं।

माओ के पश्चात् नई आर्थिक नीतियाँ अपनाने के कारण सन् 1949 में माओ के नेतृत्व में हुई साम्यवादी क्रान्ति के बाद से चीन पर्याप्त आर्थिक विकास नहीं कर पा रहा था जिसके निम्न कारण थे-

  1. चीनी अर्थव्यवस्था की विकास दर-5 से 6 प्रतिशत के मध्य थी, लेकिन जनसंख्या में 2 से 3 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि इस विकास दर की प्रभावशीलता को कम कर रही थी तथा बढ़ती जनसंख्या विकास से वंचित होती जा रही थी।
  2. चीन की राज्य नियन्त्रित अर्थव्यवस्था के कारण खेती की पैदावार उद्योगों को आवश्यकतानुसार अधिशेष नहीं दे पाती थी।
  3. औद्योगिक उत्पादन तेजी से नहीं बढ़ रहा था।
  4. विदेशी व्यापार बहुत कम था।
  5. चीन के निवासियों की प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी।

नई आर्थिक नीतियों के लाभकारी परिणाम
चीन में 1970 के दशक के बाद अपनायी गयी नई आर्थिक नीतियों के कारण चीनी अर्थव्यवस्था को अपनी गतिहीनता से उभरने में सहायता मिली। नई आर्थिक नीतियों के लाभकारी परिणाम निम्नलिखित हैं-

  1. कृषि उत्पादों एवं ग्रामीण आय में वृद्धि-चीन ने सन् 1982 में कृषि के निजीकरण के बाद कृषि उत्पादों एवं ग्रामीण आय में उल्लेखनीय वृद्धि की है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बचतों में वृद्धि हुई जिससे ग्रामीण उद्योगों में तीव्र गति से वृद्धि हुई।
  2. अर्थव्यवस्था की तीव्र वृद्धि दर-नई आर्थिक नीतियों के कारण उद्योग एवं कृषि दोनों ही क्षेत्रों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तीव्र रही।
  3. विदेशी व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि–चीन में व्यापार के नए कानूनों एवं विशेष आर्थिक क्षेत्र (स्पेशल इकोनॉमिक जोन-SEZ) के निर्माण से विदेशी व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
  4. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश-नई आर्थिक नीतियों के करण चीन सम्पूर्ण विश्व में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए सबसे अधिक आकर्षक देश बनकर उभरा है।
  5. विदेशी मुद्रा का विशाल भण्डार-वर्तमान में चीन के पास विदेशी मुद्रा का विशाल भण्डार उपलब्ध है और इसी ताकत के आधार पर चीन दूसरे देशों में भी निवेश कर रहा है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों ने ‘आसियान’ के निर्माण की पहल क्यों की?
उत्तर:
दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों ने निम्नलिखित कारणों से विवश होकर दक्षिण-पूर्व एशियाई संगठन (आसियान) बनाने की पहल की

  1. द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले और उसके दौरान, दक्षिण-पूर्व एशियाई देश बार-बार यूरोपीय और जापानी उपनिवेशवाद का शिकार हुए तथा इस क्षेत्र के देशों ने भारी राजनीतिक और आर्थिक कीमत चुकाई।
  2. युद्ध के बाद इस क्षेत्र को राष्ट्र निर्माण, आर्थिक पिछड़ेपन और गरीबी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा।
  3. इस क्षेत्र के देशों को शीतयुद्ध के दौर में किसी एक महाशक्ति के साथ जाने के दबावों को भी झेलना पड़ा।
    इसी के चलते दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों ने आसियान बनाकर एक वैकल्पिक पहल की।

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प्रश्न 2.
यूरोपीय संघ के राजनीतिक स्वरूप पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
यूरोपीय संघ का राजनीतिक स्वरूप

एक लम्बे समय में बना यूरोपीय संघ आर्थिक सहयोग वाली व्यवस्था से बदलकर ज्यादा-से-ज्यादा राजनीतिक रूप लेता गया है। यथा-

  1. अब यूरोपीय संघ स्वयं काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र-राज्य की तरह ही काम करने लगा है।
  2. यद्यपि यूरोपीय संघ की एक संविधान बनाने की कोशिश तो असफल हो गई लेकिन इसका अपना झण्डा, गान, स्थापना दिवस और अपनी मुद्रा (यूरो) है।
  3. अन्य देशों से सम्बन्धों के मामले में इर.ने काफी हद तक साझी विदेश और सुरक्षा नीति भी बना ली है।
  4. नए सदस्यों को शामिल करते हुए यूरोपीय संघ ने सहयोग के दायरे में विस्तार की कोशिश की। नए सदस्य मुख्यतः भूतपूर्व सोवियत खेमे के थे।
  5. सैनिक ताकत के हिसाब से यूरोपीय संघ के पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना है।

प्रश्न 3.
यूरोपीय आर्थिक समुदाय पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
यूरोपीय आर्थिक समुदाय/यूरोपीय साझा बाजार

यूरोपीय आर्थिक समुदाय या यूरोपीय साझा बाजार का जन्म 25 मार्च, 1957 को रोम की सन्धि के तहत 1 जनवरी, 1958 को हुआ था। इस पर हस्ताक्षर करने वाले छह राष्ट्र थे—

  1. फ्रांस,
  2. जर्मनी,
  3. इटली,
  4. बेल्जियम,
  5. नीदरलैण्ड और
  6. लक्जमबर्ग। वर्तमान में इसके सदस्यों की संख्या बढ़कर 27 हो गई है।

उद्देश्य-यूरोपीय साझा बाजार का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों की आर्थिक नीतियों में उत्तरोत्तर सामंजस्य स्थापित करके समुदाय के क्रमबद्ध आर्थिक विकास की उन्नति करना तथा सदस्य देशों में निकटता स्थापित कराना है।

यूरोपीय साझा बाजार के साथ ही यूरोपीय एकीकरण की नींव पड़ी और यूरोपीय आर्थिक समुदाय ही सन् 1992 में यूरोपीय संघ में बदल गया है।

प्रश्न 4.
यूरो, अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व के लिए खतरा कैसे बन सकता है?
उत्तर:
निम्नलिखित रूप में यूरो अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व के लिए खतरा बन सकता है-

  1. यूरोपीय संघ के सदस्यों की संयुक्त मुद्रा यूरो का प्रचलन दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही चला जा रहा है और यह डॉलर को चुनौती प्रस्तुत करता नजर आ रहा है क्योंकि विश्व व्यापार में यूरोपीय संघ की भूमिका अमेरिकी से तिगुनी है।
  2. यूरोपीय संघ राजनीतिक, कूटनीतिक तथा सैन्य रूप से भी अधिक प्रभावी है। इसे अमेरिका धमका नहीं सकता।
  3. यूरोपीय संघ की आर्थिक शक्ति का प्रभाव अपने पड़ोसी देशों के साथ-साथ एशिया और अफ़्रीका के राष्ट्रों पर भी है।
  4. यूरोपीय संघ की विश्व की एक विशाल अर्थव्यवस्था है जो सकल घरेलू उत्पाद में अमेरिका से भी अधिक है।

प्रश्न 5.
दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों ने आसियान के निर्माण की पहल क्यों की?
उत्तर:
दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों ने निम्नलिखित कारणों से आसियान के निर्माण की पहल की-

  1. द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले और उसके दौरान, दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्र यूरोपीय और जापानी उपनिवेशवाद के शिकार हुए तथा भारी राजनीतिक और आर्थिक कीमत चुकाई।
  2. युद्ध के बाद इन्हें राष्ट्र निर्माण, आर्थिक पिछड़ेपन और गरीबी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा।
  3. शीतयुद्ध काल में इन्हें किसी एक महाशक्ति के साथ जाने के दबावों को भी झेलना पड़ा था।
  4. परस्पर टकरावों की स्थिति में ये देश अपने आपको सँभालने की स्थिति में नहीं थे।
  5. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन तीसरी दुनिया के देशों में सहयोग और मेल-जोल कराने में सफल नहीं हो रहे थे।

प्रश्न 6.
भारत और चीन के सम्बन्धों में कटुता पैदा करने वाले प्रमुख मुद्दे लिखिए।
उत्तर:
भारत और चीन के सम्बन्धों में कटुता पैदा करने वाले मुद्दे-

  1. सीमा-विवाद-भारत और चीन के मध्य सीमा-विवाद चल रहा है। यह विवाद मैकमोहन रेखा, अरुणाचल प्रदेश के एक भाग तवांग तथा अक्साई चिन के क्षेत्र को लेकर है।
  2. पाक को परमाणु सहायता-चीन गोपनीय तरीके से पाकिस्तान को परमाणु ऊर्जा एवं तकनीक प्रदान कर रहा है। इससे चीन के प्रति भारत में खिन्नता है।
  3. हिन्द महासागर में पैठ–चीन, हिन्द महासागर में अपनी पैठ जमाना चाहता है। इस हेतु उसने म्यानमार से कोको द्वीप लिया है तथा पाकिस्तान में कराँची के पास ग्वादर बन्दरगाह बना रहा है।
  4. भारत विरोधी रवैया-चीन भारत की परमाणु नीति की आलोचना करता है और सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता का विरोधी है।।

प्रश्न 7.
चीन के साथ भारत के सम्बन्धों को बेहतर बनाने के लिए आप क्या सुझाव देंगे?
उत्तर:
चीन के साथ भारत के सम्बन्धों में सुधार हेतु सुझाव-

  1. सांस्कृतिक सम्बन्धों में सुदृढ़ता लाना-चीन और भारत दोनों के बीच सांस्कृतिक सम्बन्ध सुदृढ़ हों-इसके लिए भाषा और साहित्य का आदान-प्रदान एवं अध्ययन किया जाए।
  2. नेताओं का आवागमन-दोनों देशों के प्रमुख नेता परस्पर एक-दूसरे देश का भ्रमण करें, अपने विचारों का आदान-प्रदान कर परस्पर सहयोग एवं सद्भाव की भावना को विकसित करें।।
  3. व्यापारिक सम्बन्धों को बढ़ावा-दोनों देशों के बीच व्यापारिक सम्बन्धों में निरन्तर विस्तार किया जाना चाहिए।
  4. पर्यावरण सुरक्षा पर समान दृष्टिकोण-दोनों ही देश विश्व सम्मेलनों में पर्यावरण सुरक्षा के सम्बन्ध में समान दृष्टिकोण अपनाकर परस्पर एकता को बढ़ावा दे सकते हैं।
  5. बातचीत द्वारा विवादों का समाधान-दोनों देश अपने विवादों का समाधान निरन्तर बातचीत द्वारा करने का प्रयास करते रहें।

प्रश्न 8.
आसियान के सदस्य देशों के नाम तथा इसके प्रमुख उद्देश्यों पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आसियान के सदस्य देश-सन् 1967 में स्थापित दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (आसियान) के सदस्य देश 10 हैं-

  1. इण्डोनेशिया,
  2. मलयेशिया,
  3. फिलीपीन्स,
  4. सिंगापुर,
  5. थाईलैण्ड,
  6. ब्रुनेई दारुस्सलाम,
  7. वियतनाम,
  8. लाओस,
  9. कम्बोडिया,
  10. म्यानमार।

आसियान के प्रमुख उद्देश्य

  1. क्षेत्रीय शान्ति तथा सुरक्षा स्थापित करना।
  2. आर्थिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक विकास को प्रोत्साहन देना।
  3. दक्षिण-पूर्वी एशियाई अध्ययन को बढ़ावा देना।
  4. एक-समान उद्देश्यों तथा लक्ष्यों वाले अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों तथा अन्य दूसरे संगठनों के साथ लाभप्रद और निकटतम सहयोग बनाए रखना।
  5. कृषि, व्यापार तथा उद्योगों के विकास में हरसम्भव सहयोग देना।
  6. प्रशिक्षण तथा शोध इत्यादि सुविधाएँ देने में परस्पर सहयोग तथा सहायता देना।
  7. आसियान देशों का साझा बाजार एवं उत्पादन आधार तैयार करना।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
यूरोपीय संघ के झण्डे में 12 सितारों का क्या महत्त्व है? अथवा यूरोपीय संघ के झण्डे में बना हुआ सोने के रंग के सितारों का घेरा किस बात का प्रतीक है?
उत्तर:
यूरोपीय संघ के झण्डे में सोने के रंग के 12 सितारों का घेरा यूरोप के लोगों की एकता और मेल-मिलाप का प्रतीक है क्योंकि 12 की संख्या को वहाँ पूर्णता, समग्रता और एकता का प्रतीक माना जाता है।

प्रश्न 2.
मार्शल योजना क्या है?
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका ने यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए महत्त्वपूर्ण सहायता की। इसे मार्शल योजना के नाम से जाना जाता है। यह योजना अमेरिकी विदेश मन्त्री मार्शल के नाम से प्रसिद्ध है।

प्रश्न 3.
यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय का गठन कब और कैसे हुआ?
उत्तर:
अप्रैल 1951 में पश्चिमी यूरोप के छह देशों-फ्रांस, प० जर्मनी, इटली, बेल्जियम, नीदरलैण्ड और लक्जमबर्ग ने पेरिस सन्धि पर हस्ताक्षर कर यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय का गठन किया।

प्रश्न 4.
यूरोपीय संघ की किन्हीं चार साझी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
यूरोपीय संघ की चार साझी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. यूरोपीय संघ की साझी मुद्रा, स्थापना दिवस, गान एवं झण्डा।
  2. यूरोपीय संघ आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक मामलों में हस्तक्षेप करने में सक्षम है।
  3. यूरोपीय संघ के दो सदस्य ब्रिटेन व फ्रांस सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं।
  4. यूरोपीय संघ का आर्थिक, राजनीतिक, कूटनीतिक एवं सैन्य प्रभाव बहुत अधिक है।

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प्रश्न 5.
यूरोपीय संघ के देशों के मध्य पाए जाने वाले किन्हीं चार मतभेदों को बताइए।
उत्तर:
यूरोपीय संघ के देशों के मध्य पाए जाने वाले चार मतभेद निम्नलिखित हैं-

  1. यूरोपीय देशों की विदेश एवं रक्षा नीति में परस्पर मतभेद पाया जाता है।
  2. इराक युद्ध का ब्रिटेन ने समर्थन किया, लेकिन फ्रांस व जर्मनी ने विरोध किया।
  3. यूरोप के कुछ देशों में यूरो मुद्रा को लागू करने के सम्बन्ध में मतभेद है।
  4. डेनमार्क तथा स्वीडन ने मास्ट्रिस्ट सन्धि और साझी यूरोपीय मुद्रा ‘यूरो’ को मानने का प्रतिरोध किया।

प्रश्न 6.
यूरोपीय संघ क्या है? इसके गठन के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:
यूरोपीय संघ यूरोप के देशों का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है। इसकी स्थापना फरवरी 1992 में हुई थी। इसका राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य एवं कूटनीतिक रूप से विश्व राजनीति में महत्त्वपूर्ण स्थान है।

यूरोपीय संघ के निर्माण (गठन) के दो प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  1. यूरोप के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए।
  2. संयुक्त राज्य अमेरिका की आर्थिक शक्ति से मुकाबला करने के लिए।

प्रश्न 7.
यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन क्या है?
उत्तर:
यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना सन् 1948 में अमेरिकी विदेश मन्त्री मार्शल के द्वारा प्रस्तुत योजना के आधार पर की गई थी।
इस संगठन का प्रमुख उद्देश्य पश्चिमी यूरोप के देशों की आर्थिक मदद करना था। इस संगठन ने एक ऐसा मंच प्रस्तुत किया जिसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों ने व्यापार और आर्थिक मामलों में एक-दूसरे की सहायता की।

प्रश्न 8.
आसियान के झण्डे के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (आसियान) के झण्डे (प्रतीक चिह्न) में धान की दस बालियों को दर्शाया गया है। ये दस बालियाँ दक्षिण-पूर्व एशिया के दस देशों को दर्शाती हैं जो परस्पर मित्रता व एकता के धागे से बँधे हुए हैं। झण्डे में दिया गया वृत्त आसियान की एकता का प्रतीक है।

प्रश्न 9.
भारत और आसियान के सम्बन्धों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
भारत और आसियान के सम्बन्ध के विषय में कुछ तथ्य निम्नलिखित हैं-

  1. भारत और आसियान परस्पर मुक्त व्यापार सन्धि के प्रयास में है।
  2. भारत ने दो आसियान सदस्यों-सिंगापुर व थाईलैण्ड से मुक्त व्यापार सन्धि कर ली है।
  3. भारतीय विदेश नीति में आसियान देशों पर ज्यादा ध्यान दिया गया है।
  4. भारत आसियान की मौजूदा आर्थिक शक्ति के प्रति आकर्षित हुआ है।

प्रश्न 10.
चीन ने ‘खुले द्वार की नीति’ कब और क्यों अपनाई?
उत्तर:
सन् 1978 में चीन के तत्कालीन नेता देंग श्याओपेंग ने चीन में आर्थिक सुधारों एवं खुले द्वार की नीति की घोषणा की। चीन ने विदेशी पूँजी और प्रौद्योगिकी के निवेश से उच्चतर उत्पादकता प्राप्त करने के लिए तथा बाधामूलक अर्थव्यवस्था को अपनाने के लिए यह नीति अपनाई।

प्रश्न 11.
चीन की नई आर्थिक नीति की कोई चार असफलताएँ बताइए।
उत्तर:
चीन की आर्थिक नीति की चार असफलताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. चीन में हुए आर्थिक सुधारों का लाभ सभी वर्गों को समान रूप से प्राप्त नहीं हुआ है।
  2. चीन में बेरोजगारी बढ़ी है।
  3. चीन में अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है तथा पर्यावरण खराब हुआ है।
  4. चीन द्वारा अपनाई गई अर्थव्यवस्था से ग्रामों व शहरों, तटीय व मुख्य भूमि पर रहने वाले लोगों में आर्थिक असमानता बढ़ी है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मास्ट्रिस्ट सन्धि पर हस्ताक्षर कब हुए थे-
(a) 7 फरवरी, 1993
(b) 7 फरवरी, 1992
(c) 8 जून, 1992
(d) 7 जुलाई, 1992.
उत्तर:
(b) 7 फरवरी, 1992.

प्रश्न 2.
मास्ट्रिस्ट सन्धि किस संगठन का आधार है-
(a) गैट
(b) विश्व व्यापार संगठन
(c) नाफ्टा
(d) यूरोपीय संघ।
उत्तर:
(d) यूरोपीय संघ।

प्रश्न 3.
उत्तर अटलाण्टिक सन्धि संगठन (नाटो) का निर्माण किया गया-
(a) 1945 में
(b) 1947 में
(c) 1949 में
(d) 1950 में।
उत्तर:
(c) 1949 में।

प्रश्न 4.
यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना कब की गई-
(a) 1949 में
(b) 1950 में
(c) 1948 में
(d) 1951 में।
उत्तर:
(c) 1948 में।

प्रश्न 5.
आसियान का मुख्यालय स्थित है-
(a) जकार्ता में
(b) बांडुंग में
(c) मनीला में
(d) सिंगापुर में।
उत्तर:
(a) जकार्ता में।

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 4 Alternative Centres of Power

प्रश्न 6.
आसियान का स्थापना वर्ष है-
(a) 1967
(b) 1977
(c) 1966
(d) 1958
उत्तर:
(a) 1967

प्रश्न 7.
चीन की साम्यवादी क्रान्ति कब हुई-
(a) दिसम्बर 1948
(b) जनवरी 1949
(c) अक्टूबर 1949
(d) फरवरी 1950
उत्तर:
(c) अक्टूबर 1949.

प्रश्न 8.
चीन में साम्यवादी क्रान्ति के प्रमुख नेता थे-
(a) सन-यातसेन
(b) च्यांगकाई शेक
(c) माओत्से तुंग
(d) लेनिन।
उत्तर:
(c) माओत्से तुंग।

प्रश्न 9.
दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संगठन कहलाता है-
(a) आसियान
(b) सार्क
(c) नाटो
(d) सेन्टो।
उत्तर:
(a) आसियान।

प्रश्न 10.
आसियान के झण्डे में प्रदर्शित वृत्त किसका प्रतीक है
(a) एकता का
(b) मित्रता का
(c) प्रतियोगिता का
(d) संघर्ष का।
उत्तर:
(a) एकता का।

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UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 1 Challenges of Nation Building

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 1 Challenges of Nation Building (राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ)

UP Board Class 12 Civics Chapter 1 Text Book Questions

UP Board Class 12 Civics Chapter 1 पाठ्यपुस्तक से अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत-विभाजन के बारे में निम्नलिखित कौन-सा कथन गलत है?
(क) भारत-विभाजन ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त’ का परिणाम था।
(ख) धर्म के आधार पर दो प्रान्तों-पंजाब और बंगाल-का बँटवारा हुआ।
(ग) पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान में संगति नहीं थी।
(घ) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों देशों के बीच आबादी की अदला-बदली होगी।
उत्तर:
(घ) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों देशों के बीच आबादी की अदला-बदली होगी।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित सिद्धान्तों के साथ उचित उदाहरणों का मेल करें-
UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 1 Challenges of Nation Building 1
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 1 Challenges of Nation Building 2

प्रश्न 3.
भारत का कोई समकालीन राजनीतिक नक्शा लीजिए (जिसमें राज्यों की सीमाएँ दिखाई गई हों) और नीचे लिखी रियासतों के स्थान चिह्नित कीजिए
(क) जूनागढ़,
(ख) मणिपुर,
(ग) मैसूर,
(घ) ग्वालियर।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 1 Challenges of Nation Building 3

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प्रश्न 4.
नीचे दो तरह की राय लिखी गई है-
विस्मय-रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने से इन रियासतों की प्रजा तक लोकतन्त्र का विस्तार हुआ।
इन्द्रप्रीत—यह बात मैं दावे के साथ नहीं कह सकता। इसमें बल प्रयोग भी हुआ था जबकि लोकतन्त्र में आम सहमति से काम लिया जाता है।
देसी रियासतों के विलय और ऊपर के मशविरे के आलोक में इस घटनाक्रम पर आपकी क्या राय है?
उत्तर:
1. विस्मय की राय के सम्बन्ध में विचार-देसी रियासतों का विलय प्रायः लोकतान्त्रिक तरीके से ही हुआ क्योंकि 565 में से केवल चार-पाँच रजवाड़ों ने ही भारतीय संघ में शामिल होने से कुछ आना-कानी दिखाई थी। इनमें से भी कुछ शासक जनमत एवं जनता की भावनाओं की अनदेखी कर रहे थे। विलय से पूर्व अधिकांश रियासतों में शासन अलोकतान्त्रिक रीति से चलाया गया था और रजवाड़ों के शासक अपनी प्रजा को लोकतान्त्रिक अधिकार देने के लिए तैयार नहीं थे। इन रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने से यहाँ समान रूप से चुनावी प्रक्रिया क्रियान्वित हुई। अत: विस्मय का यह विचार सही है कि भारतीय संघ में मिलाने से यहाँ जनता तक लोकतन्त्र का विस्तार हुआ।

2. इन्द्रप्रीत की राय के सम्बन्ध में विचार—यह बात ठीक है कि कुछ रियासतों (हैदराबाद और जूनागढ़) को भारत में मिलाने के लिए बल प्रयोग किया गया, परन्तु तत्कालीन परिस्थितियों में इन रियासतों पर बल प्रयोग करना आवश्यक था, क्योंकि इन रियासतों ने भारत में शामिल होने से मना कर दिया था तथा इनकी भौगोलिक स्थिति इस प्रकार की थी कि इससे भारत की एकता एवं अखण्डता को हमेशा खतरा बना रहता था। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि जो बल प्रयोग किया गया, वह इन रियासतों की जनता के विरुद्ध नहीं, बल्कि शासन (शासन वर्ग) के विरुद्ध किया गया क्योंकि इन दोनों राज्यों की 80 से 90 प्रतिशत जनसंख्या भारत में विलय चाह रही थी। उन्होंने आन्दोलन शुरू कर रखा था और जब से ये रियासतें भारत में शामिल हो गईं, तब से इन रियासतों के लोगों को भी सभी लोकतान्त्रिक अधिकार दे दिए गए।

प्रश्न 5.
नीचे 1947 के अगस्त के कुछ बयान दिए गए हैं जो अपनी प्रकृति में अत्यन्त भिन्न हैं
आज आपने अपने सर काँटों का ताज पहना है। सत्ता का आसन एक बुरी चीज है। इस आसन पर आपको बड़ा सचेत रहना होगा…… आपको और ज्यादा विनम्र और धैर्यवान बनना होगा…… अब लगातार आपकी परीक्षा ली जाएगी। -मोहनदास करमचन्द गांधी
….. भारत आजादी की जिन्दगी के लिए जागेगा…… हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाएँगे….. आज दुर्भाग्य के एक दौर का खात्मा होगा और हिन्दुस्तान अपने को फिर से पा लेगा…… आज हम जो जश्न मना रहे हैं वह एक कदम भर है, सम्भावनाओं के द्वार खुल रहे हैं…… -जवाहरलाल नेहरू इन दो बयानों से राष्ट्र-निर्माण का जो एजेण्डा ध्वनित होता है उसे लिखिए। आपको कौन-सा एजेण्डा अँच रहा है और क्यों?
उत्तर:
मोहनदास करमचन्द गांधी और जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिए गए उपर्युक्त बयान राष्ट्र निर्माण की भावना से सम्बन्धित हैं।

गांधी जी ने देश की जनता को चुनौती देते हुए कहा है कि देश में स्वतन्त्रता के बाद लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था कायम होगी, राजनीतिक दलों में सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्ष होगा। ऐसी स्थिति में नागरिकों को अधिक विनम्र और धैर्यवान बनना होगा, उन्हें धैर्य से काम लेना होगा तथा चुनावों में निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर देशहित को प्राथमिकता देनी होगी।

जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिया गया बयान हमें विकास के उस एजेण्डे की तरफ संकेत कर रहा है कि भारत आजादी की जिन्दगी जिएगा। यहाँ राजनीतिक स्वतन्त्रता, समानता और किसी हद तक न्याय की स्थापना हुई है लेकिन हमारे कदम पुराने ढर्रे से प्रगति की ओर बहुत धीमी गति से बढ़ रहे हैं। नि:सन्देह 14-15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि को उपनिवेशवाद का खात्मा हो गया। हिन्दुस्तान जी उठा, यह एक स्वतन्त्र हिन्दुस्तान था लेकिन आजादी मनाने का यह उत्सव क्षणिक था क्योंकि आगें बहुत समस्याएँ थीं जिनमें उनको समाप्त कर नई सम्भावनाओं के द्वार खोलना है, जिससे गरीब-से-गरीब भारतीय यह महसूस कर सके कि आजाद हिन्दुस्तान भी उसका मुल्क है। इस प्रकार नेहरू के बयान में भविष्य के राष्ट्र की कल्पना की गई है जिसमें उन्होंने एक ऐसे राष्ट्र को कल्पना की है जो आत्मनिर्भर एवं स्वाभिमानी बनेगा।

उपर्युक्त दोनों कथनों में महात्मा गांधी का कथन इस दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वह भविष्य में लोकतान्त्रिक शासन के समक्ष आने वाली समस्याओं के प्रति नागरिकों को आगाह करता है कि सत्ता प्राप्ति के मोह, विभिन्न प्रकार के लोभ-लालच, भ्रष्टाचार, धर्म, जाति, वंश, लिंग के आधार पर जनता में फूट डाल सकते हैं तथा हिंसा हो सकती है। ऐसी परिस्थितियों में जनता को विनम्र और धैर्यवान रहते हुए देशहित में अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करना चाहिए।

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प्रश्न 6.
भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए नेहरू ने किन तर्कों का इस्तेमाल किया? क्या आपको लगता है कि ये केवल भावात्मक और नैतिक तर्क हैं अथवा इनमें कोई तर्क युक्तिपरक भी है?
उत्तर:
नेहरू जी धर्मनिरपेक्षता में पूर्ण विश्वास रखते थे, वे धर्म विरोधी या नास्तिक नहीं थे। उनकी धर्म सम्बन्धी धारणा संकुचित न होकर अधिक व्यापक थी। भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने अपने तर्क प्रस्तुत किए। ये तर्क इस प्रकार हैं “अनेक कारणों की वजह से हम इस भव्य तथा विभिन्नता से भरपूर देश को एकता के सूत्र में बाँधे रखने में सफल हुए हैं। इसमें मुख्य रूप से हमारे संविधान निर्माण तथा उनका अनुकरण करने वाले महान नेताओं की बुद्धिमत्ता तथा दूरदर्शिता है।

यह बात कम महत्त्व की नहीं है कि भारतीय स्वभाव से धर्मनिरपेक्ष हैं और हम प्रत्येक धर्म का अपने दिल से आदर करते हैं। भारतवासियों की भाषाई तथा धार्मिक पहचान चाहे कुछ भी हो, वे कभी भी भाषायी तथा सांस्कृतिक एकरूपता रूपी एक नीरस तथा कठोर व्यवस्था को उन पर थोपने के लिए प्रयत्न नहीं करते। हमारे लोग इस बात से भली-भाँति परिचित हैं कि जब तक हमारी विविधता सुरक्षित है, हमारी एकता भी सुरक्षित है। हजारों वर्ष पूर्व हमारे प्राचीन ऋषियों ने यह उद्घोषित किया था कि समस्त विश्व एक कुटुम्ब है।”

नेहरू जी की उपर्युक्त पंक्तियों में निम्नांकित तर्क हमारे समक्ष प्रस्तुत किए गए हैं-

(1) नेहरू जी ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है तथा प्राचीन काल से ही यहाँ समय-समय पर विभिन्न सांस्कृतिक विशेषताओं वाले समूह व जनसमूह विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु आते रहे हैं। नेहरू जी के शब्दों में, “भारत मात्र एक भौगोलिक अभिव्यक्ति नहीं है बल्कि भारत के मस्तिष्क की विश्व में बहुत मान्यता है जिसके कारण भारत विदेशी प्रभावों को आमन्त्रित करता है और इन प्रभावों की अच्छाइयों को एक सुसंगत तथा मिश्रित बपौती में संश्लेषित कर लेता है। भारत के अतिरिक्त किसी अन्य देश में, विभिन्नता में एकता जैसे सिद्धान्त को नहीं उत्पन्न किया गया है क्योंकि यहाँ यह हजारों वर्षों से एक सभ्य सिद्धान्त बन गया है तथा यही भारतीय राष्ट्रवाद का आधार है। इस विभिन्नता के प्रति न डगमगाने वाले समर्पण को निकाल देने से भारत की आत्मा ही लुप्त हो जाएगी। स्वतन्त्रता संग्राम ने इसी सभ्यता के सिद्धान्त को एक राष्ट्र की व्यावहारिक राजनीति में निर्मित करने के लिए उपयोग किया।” पं० नेहरू द्वारा प्रस्तुत यह तर्क भावनात्मक और नैतिक तो ही है साथ ही इनका आधार भी युक्तिसंगत व देश की गरिमा व अस्मिता के अनुकूल है जो राष्ट्रीय एकता व अखण्डता की दृष्टि से समीचीन प्रतीत होते हैं।

(2) नेहरू जी ने देश की स्वतन्त्रता से पहले तथा संविधान निर्माण की प्रक्रिया के दौरान भी इस बात पर विशेष बल दिया था कि भारत की एकता व अखण्डता तभी अक्षुण्ण रह सकती है जबकि अल्पसंख्यकों को समान अधिकार, धार्मिक तथा सांस्कृतिक स्वतन्त्रता एवं धर्मनिरपेक्ष राज्य का वातावरण तथा विश्वास प्राप्त होता रहे। उनका तर्क था कि हम भारत में अनेक कारणों से राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने में सफल हुए हैं, इसी कारण भारत धर्मनिरपेक्ष व अल्पसंख्यक, भाषाई और धार्मिक समुदायों की पहचान को बचाने में सफल रहा। भारत विश्व को एक परिवार समझकर “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना में विश्वास करने वाला राष्ट्र रहा है।

चूँकि भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाना था अत: पं० नेहरू का यह कथन पूर्ण युक्तिपरक है कि अपने देश में रहने वाले अल्पसंख्यक मुस्लिमों के साथ समानता का व्यवहार किया जाएगा। पाकिस्तान चाहे जितना भी उकसाए अथवा वहाँ के गैर-मुस्लिमों को अपमान व भय का सामना करना पड़े परन्तु हमें अपने अल्पसंख्यक भाइयों के साथ सभ्यता व शालीनता का व्यवहार करना है तथा उन्हें समस्त नागरिक अधिकार दिए जाने हैं तभी भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र कहलाएगा।

भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाए रखने के लिए 15 अक्टूबर, 1947 को नेहरू जी ने देश के विभिन्न प्रान्तों के मुख्यमन्त्रियों को जो पत्र लिखा था उसमें उन्होंने यह तर्क दिया था कि मुस्लिमों की संख्या इतनी अधिक है कि चाहें तो भी वे दूसरे देशों में नहीं जा सकते। इस प्रकार नेहरू जी द्वारा प्रस्तुत किए गए तर्क भावनात्मक और नैतिक होते हुए भी युक्तिपरक हैं। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए प्रस्तुत किए गए नेहरू जी के तर्क केवल भावनात्मक व नैतिक़ ही नहीं बल्कि युक्तिपरक भी हैं।

प्रश्न 7:
आजादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र-निर्माण की चुनौती के लिहाज से दो मुख्य अन्तर क्या थे?
उत्तर:
आजादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र निर्माण की चुनौती के लिहाज से निम्नांकित दो प्रमुख अन्तर थे-

  1. आजादी के साथ देश के पूर्वी क्षेत्रों में सांस्कृतिक एवं आर्थिक सन्तुलन की समस्या थी जबकि पश्चिमी क्षेत्रों में विकास सम्बन्धी चुनौती थी।
  2. देश के पूर्वी क्षेत्रों में भाषाई समस्या अधिक थी जबकि पश्चिमी क्षेत्रों में धार्मिक एवं जातिवाद की समस्या अधिक थी।

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प्रश्न 8.
राज्य पुनर्गठन आयोग का काम क्या था? इसकी प्रमुख सिफारिशें क्या थीं?
उत्तर:
केन्द्र सरकार ने सन् 1953 में भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के लिए एक आयोग बनाया। फजल अली की अध्यक्षता में गठित इस आयोग का कार्य राज्यों के सीमांकन के मामले पर कार्रवाई करना था। इसने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि राज्यों को सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए।

राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशें-

  1. भारत की एकता व सुरक्षा की व्यवस्था बनी रहनी चाहिए।
  2. राज्यों का गठन भाषा के आधार पर किया जाए।
  3. भाषाई और सांस्कृतिक सजातीयता का ध्यान रखा जाए।
  4. वित्तीय तथा प्रशासनिक विषयों की ओर उचित ध्यान दिया जाए।

इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सन् 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्रशासित प्रदेश बनाए गए।

भारतीय संविधान में वर्णित मूल वर्गीकरण की चार श्रेणियों को समाप्त कर दो प्रकार की इकाइयाँ (स्वायत्त राज्य व केन्द्रशासित प्रदेश) रखी गई।

प्रश्न 9.
कहा जाता है कि राष्ट्र एक व्यापक अर्थ में ‘कल्पित समुदाय’ होता है और सर्व सामान्य विश्वास, इतिहास, राजनीतिक आकांक्षा और कल्पनाओं से एक सूत्र में बँधा होता है। उन विशेषताओं की पहचान करें जिनके आधार पर भारत एक राष्ट्र है।
उत्तर:
भारत की एक राष्ट्र के रूप में विशेषताएँ भारत की एक राष्ट्र के रूप में प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. मातृभूमि के प्रति श्रद्धा एवं प्रेम-मातृभूमि से प्रेम प्रत्येक राष्ट्र का स्वाभाविक लक्षण एवं विशेषता माना जाता है। एक ही स्थान या प्रदेश में जन्म लेने वाले व्यक्ति मातृभूमि से प्यार करते हैं और इस प्यार के कारण वे आपस में एक भावना के अन्दर बँध जाते हैं। भारत से लाखों की संख्या में लोग विदेश में जाकर बस गए हैं लेकिन मातृभूमि से प्रेम के कारण वे सदा अपने आपको भारतीय राष्ट्रीयता का अंग मानते हैं।

2. भौगोलिक एकता-भौगोलिक एकता भी राष्ट्रवाद की भावना को विकसित करती है। जब मनुष्य कुछ समय के लिए एक निश्चित प्रदेश में रह जाता है तो उसे उस प्रदेश से प्रेम हो जाता है और यदि उसका जन्म भी उसी प्रदेश में हुआ हो तो प्यार की भावना और तीव्र हो जाती है।

3. सांस्कृतिक एकरूपता-भारतीय संस्कृति इस देश को एक राष्ट्र बनाती है। यह विभिन्नता में एकता लिए हुए है। इस संस्कृति की अपनी पहचान है। लोगों के अपने संस्कार हैं, छोटे-बड़ों का आदर करते हैं। वैवाहिक बन्धन, जाति प्रथाएँ, साम्प्रदायिक सद्भाव, सहनशीलता, त्याग, पारस्परिक प्रेम, ग्रामीण जीवन का आकर्षक वातावरण इस राष्ट्र की एकता को बनाने में अधिक सहायक रहा है।

4. सामान्य इतिहास-भारत का एक अपना राजनीतिक-आर्थिक इतिहास है। इस इतिहास का अध्ययन सभी करते हैं और इसकी गलतियों से छुटकारा पाने का प्रयास समय-समय पर सत्ताधारियों, सुधारकों, धर्म प्रवर्तकों, भक्त और सूफी सन्तों ने किया है।

5. सामान्य हित-भारत राष्ट्र के लिए सामान्य हित महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। यदि लोगों के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा धार्मिक हित समान हों तो उनमें एकता की उत्पत्ति होना स्वाभाविक है। 18वीं शताब्दी में अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए अमेरिका के विभिन्न राज्य आपस में संगठित हो गए और उन्होंने स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी।

6. संचार के साधनों की विभिन्न भूमिका-भारत एक राष्ट्र है। इसकी भावना को सुदृढ़ करने के लिए जनसंचार माध्यम, इलेक्ट्रॉनिक और प्रिण्ट मीडिया आदि भी भारत को एक राष्ट्र बनाने में योगदान दे रहे हैं।

7. जन इच्छा-भारत का एक राष्ट्र के रूप में एक अन्य महत्त्वपूर्ण तत्त्व लोगों में राष्ट्रवादी बनने की इच्छा भी है। मैजिनी ने लोक इच्छा को राष्ट्र का आधार बताया है।

प्रश्न 10.
नीचे लिखे अवतरण को पढ़िए और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

राष्ट्र-निर्माण के इतिहास के लिहाज से सिर्फ सोवियत संघ में हुए प्रयोगों की तुलना भारत से की जा सकती है। सोवियत संघ में भी विभिन्न और परस्पर अलग-अलग जातीय समूह, धर्म, भाषाई-समुदाय और सामाजिक वर्गों के बीच एकता का भाव कायम करना पड़ा। जिस पैमाने पर यह काम हुआ, चाहे भौगोलिक पैमाने के लिहाज से देखें या जनसंख्यागत वैविध्य के लिहाज से, वह अपने आपमें बहुत व्यापक कहा जाएगा। दोनों ही जगह राज्य की जिस कच्ची सामग्री से राष्ट्र-निर्माण की शुरुआत करनी थी वह समान रूप से दुष्कर थी। लोग धर्म के आधार पर बँटे हुए और कर्ज तथा बीमारी से दबे हुए थे। – रामचन्द्र गुहा

(क) यहाँ लेखक ने भारत और सोवियत संघ के बीच जिन समानताओं का उल्लेख किया है, उनकी एक सूची बनाइए। इनमें से प्रत्येक के लिए भारत से एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
इस अवतरण में लेखक ने भारत और सोवियत संघ के बीच निम्नलिखित समानताओं का उल्लेख किया है-

  1. भारत और सोवियत संघ दोनों में ही विभिन्न और परस्पर अलग-अलग जातीय समूह, धर्म, भाषाई समुदाय और सामाजिक वर्ग हैं। भारत में अलग-अलग प्रान्तों में अलग-अलग धर्म और समुदाय के लोग रहते हैं और उनकी भाषा और वेश-भूषा भी अलग-अलग है।
  2. भारत और सोवियत संघ दोनों राष्ट्रों को ही इन सांस्कृतिक विभिन्नताओं के बीच एकता का भाव कायम करने हेतु प्रयास करने पड़े। भारत के प्रत्येक प्रान्त की संस्कृति भिन्न है। परन्तु सभी प्रान्तों के लोग एक-दूसरे की संस्कृति का सम्मान करते हैं।
  3. दोनों ही राष्ट्रों के निर्माण के प्रारम्भिक वर्षों में अत्यन्त संघर्ष का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश शासन से स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद भारत को नए राष्ट्र के निर्माण में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा क्योंकि आजादी साथ-साथ देश का भी विभाजन हुआ।
  4. दोनों ही राष्ट्रों की पृष्ठभूमि धार्मिक आधार पर बँटी हुई तथा कर्ज और बीमारी से त्रस्त थी। चूंकि भारत बहुत लम्बे समय तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था और यहाँ विभिन्न धर्मों के लोग रहते थे तथा ब्रिटिश सरकार ने यहाँ की जनता को कर्जदार बना दिया था। धन के अभाव में वे बीमारी से छुटकारा पाने में अशक्त थे।

(ख) लेखक ने यहाँ भारत और सोवियत संघ में चली राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रियाओं के बीच की असमानता का उल्लेख नहीं किया है। क्या आप दो असमानताएँ बता सकते हैं?
उत्तर:
भारत और सोवियत संघ में चली राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रियाओं के बीच दो असमानताएँ इस प्रकार-

  1. भारत में लोकतान्त्रिक समाजवादी आधार पर राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया पूर्ण हुई जबकि सोवियत संघ में साम्यवादी आधार पर राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया पूर्ण हुई।
  2. भारत ने राष्ट्र-निर्माण के लिए कई प्रकार की बाहरी सहायता अर्थात् विदेशी सहायता प्राप्त की जबकि सोवियत संघ ने राष्ट्र-निर्माण के लिए आत्म-निर्भरता का सहारा लिया।

(ग) अगर पीछे मुड़कर देखें तो आप क्या पाते हैं? राष्ट्र-निर्माण के इन दो प्रयोगों में किसने बेहतर काम किया और क्यों?
उत्तर:
राष्ट्र-निर्माण के इन दोनों प्रयोगों में सोवियत संघ ने बेहतर काम किया अत: वह एक महाशक्ति के रूप में उभरकर सामने आया। प्रथम विश्वयुद्ध के पहले रूस, यूरोप में एक बहुत ही पिछड़ा देश था। रूस में पूँजीवाद को समाप्त करने तथा उसे एक आधुनिक औद्योगिक राष्ट्र बनाने के लिए स्टालिन ने नियोजित आर्थिक विकास के आधार पर कार्य आरम्भ किया। रूसी क्रान्ति से समाजवादी विचारधारा की जो लहर सम्पूर्ण विश्व में बही उसने जाति, रंग और लिंग के आधार पर भेदभाव समाप्त करने में बड़ी सहायता दी। जबकि भारत में आज भी साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयता, भ्रष्टाचार, निरक्षरता, भुखमरी जैसी समस्याएँ विद्यमान हैं और भारत आज भी एक विकासशील राष्ट्र है।

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UP Board Class 12 Civics Chapter 1 पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अच्छा! तो मुझे अब पता चला कि पहले जिसे पूर्वी बंगाल कहा जाता था वही आज का बंगलादेश है तो क्या यही कारण है कि हमारे वाले बंगाल को पश्चिमी बंगाल कहा जाता है?
उत्तर:
देश के विभाजन से पूर्व बंगाल प्रान्त को दो भागों में विभाजित किया गया जिसका एक भाग पूर्वी बंगाल जो सन् 1971 तक पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था। लेकिन सन् 1971 में यहाँ जिया उर रहमान के नेतृत्व में स्वतन्त्र बंगलादेश का निर्माण हुआ। इस प्रकार सन् 1971 के पश्चात् पूर्वी पाकिस्तान के हिस्से को बंगलादेश के नाम से जाना जाता है तथा बंगाल का दूसरा भाग जो भारत में आ गया उसे पश्चिमी बंगाल कहा गया। आज तक इसका यही नाम चला आ रहा है।

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 1 Challenges of Nation Building

प्रश्न 2.
क्या जर्मनी की तरह हम लोग भारत और पाकिस्तान के बँटवारे को खत्म नहीं कर सकते? मैं तो अमृतसर में नाश्ता और लाहौर में लंच करना चाहता हूँ।
उत्तर:
जर्मनी की तरह भारत एवं पाकिस्तान के बँटवारे को समाप्त करना सम्भव नहीं है क्योंकि जर्मनी के विभाजन व भारत के विभाजन की परिस्थितियों में व्यापक अन्तर है। जर्मनी का विभाजन विचारधारा और आर्थिक कारणों के आधार पर हुआ जबकि भारत के विभाजन का आधार धर्म था अर्थात् भारत व पाकिस्तान का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ जिसमें पाकिस्तान की धार्मिक कट्टरपन्थिता की भावना विशेष महत्त्व रखती है। इस दृष्टि से इस विभाजन को समाप्त करना या दोनों देशों का एकीकरण करना प्रायः असम्भव कार्य है।

प्रश्न 3.
क्या यह बेहतर नहीं होगा कि हम एक-दूसरे को स्वतन्त्र राष्ट्र मानकर रहना और सम्मान करना सीख जाएँ?
उत्तर:
राष्ट्रों के आपसी सम्बन्धों में सुधार की प्रथम शर्त यही मानी जाती है कि हम एक-दूसरे को स्वतन्त्र राष्ट्र मानकर उनका सम्मान करें तथा अन्तर्राष्ट्रीय सीमा-रेखा का सम्मान करें। प्रायः यह देखा गया है कि भारत और पाकिस्तान के मध्य तनाव का मुख्य कारण दोनों देशों का एक-दूसरे के प्रति सम्मान की भावना का न होना तथा पाकिस्तान द्वारा भारतीय सीमा में घुसपैठ करना व आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देना माना जाता है। पाकिस्तान द्वारा कश्मीर को लेकर विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के विरुद्ध दुष्प्रचार करना तथा भारत विरोधी नीति अपनाना दोनों देशों के सम्बन्धों में कटुता उत्पन्न करता है। इस प्रकार आपसी सम्बन्धों को बेहतर बनाने हेतु एक-दूसरे का सम्मान करना अति आवश्यक है।

प्रश्न 4.
मैं सोचता हूँ कि आखिर उन सैकड़ों राजा-रानी, राजकुमार और राजकुमारियों का क्या हुआ होगा? आखिर आम नागरिक बनने के बाद उनका जीवन कैसा रहा होगा?
उत्तर:
देसी रियासतों के एकीकरण के दौरान विभिन्न छोटी-छोटी रियासतों को भारत संघ में शामिल किया गया। इन रियासतों में कुछ रियासतें तो अपनी इच्छानुसार भारत संघ में सम्मिलित हो गईं तथा कुछ को समझा-बुझाकर तथा कुछ को सैन्य व आर्थिक सहायता देकर भारत संघ में सम्मिलित करने का प्रयास किया गया। लेकिन रियासतों के एकीकरण के पश्चात् इन रियासतों के राजा, महाराजाओं के जीवन बसर के लिए भारत सरकार द्वारा विशेष सहायता देने का प्रावधान दिया गया जिसमें इनको प्रतिवर्ष विशेष सहायता राशि ‘प्रिवीपर्स’ के रूप में देने की व्यवस्था की गई। यह व्यवस्था सन् 1970 तक रही। इसके पश्चात् ये व्यक्ति आम नागरिक की भाँति जीवन बसर कर रहे हैं। इनको भी संविधान द्वारा वहीं अधिकार प्रदान किए गए हैं जो एक आम नागरिक को प्राप्त है।

प्रश्न 5.
दिए मानचित्र को ध्यान से देखते हुए निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-
UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 1 Challenges of Nation Building 4
नोट-यह नक्शा किसी पैमाने के हिसाब से बनाया गया भारत का मानचित्र नहीं है। इसमें दिखाई गई भारत की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखा को प्रामाणिक सीमा रेखा न माना जाए।
(1) स्वतन्त्र राज्य बनने से पहले निम्नलिखित राज्य किन मूल राज्यों के अंग थे?
(क) गुजरात,
(ख) हरियाणा,
(ग) मेघालय,
(घ) छत्तीसगढ़।
(2) देश के विभाजन से प्रभावित दो राज्यों के नाम बताएँ।
(3) दो ऐसे राज्यों के नाम बताएँ जो पहले संघ-शासित राज्य थे।
उत्तर:
(1)
(क) गुजरात मूलत: मुम्बई राज्य (महाराष्ट्र) का अंग था।
(ख) हरियाणा मूलत: पंजाब का अंग था।
(ग) मेघालय मूलतः असोम का अंग था।
(घ) छत्तीसगढ़ मूलत: मध्य प्रदेश का अंग था।

(2)

  1. पंजाब,
  2. बंगाल, देश के विभाजन से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले दो राज्य थे।

(3) राज्य बनने से पूर्व गोवा तथा अरुणाचल प्रदेश संघ शासित प्रदेश थे।

प्रश्न 6.
संयुक्त राज्य अमेरिका की जनसंख्या अपने देश के मुकाबले एक-चौथाई है लेकिन वहाँ 50 राज्य हैं। भारत में 100 से भी ज्यादा राज्य क्यों नहीं हो सकते?
उत्तर:
राज्यों की संख्या में वृद्धि का आधार केवल जनसंख्या नहीं हो सकता। राज्यों की संख्या के निर्धारण में अनेक तत्त्वों का ध्यान रखना पड़ता है जिनमें जनसंख्या के साथ-साथ देश का क्षेत्रफल, आर्थिक संसाधन, उस क्षेत्र के लोगों की भाषा, देश की सभ्यता एवं संस्कृति, लोगों का जीवन व शैक्षणिक स्तर आदि तत्त्व प्रमुख हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका का क्षेत्रफल भारत की तुलना में बहुत अधिक है तथा वह एक विकसित देश है और संसाधनों की तुलना में भी यह भारत से समृद्ध है। इस आधार पर संयुक्त राज्य अमेरिका में राज्यों की संख्या 50 है। भारत का क्षेत्रफल कम होने, उसका विकासशील देश होना तथा संसाधनों की दृष्टि से संयुक्त राज्य अमेरिका से कम समृद्ध होना आदि ऐसे तत्त्व हैं जिनके कारण भारत में और अधिक राज्य नहीं बनाए जा सकते।

UP Board Class 12 Civics Chapter 1 Other Important Questions

UP Board Class 12 Civics Chapter 1 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भारत विभाजन में आने वाली कठिनाइयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत विभाजन में आने वाली कठिनाइयाँ
भारत के विभाजन के लिए यह आधार तय किया गया था कि जिन इलाकों में मुसलमान बहुसंख्यक थे वे इलाके पाकिस्तान के भू-भाग होंगे और शेष हिस्से भारत कहलाएँगे। लेकिन व्यवहार में इस विभाजन में निम्नलिखित कठिनाइयों का सामना करना पड़ा-

1. मुस्लिम बहुल इलाकों का निर्धारण करना-भारत में दो इलाके ऐसे थे जहाँ मुसलमानों की आबादी अधिक थी। एक इलाका पश्चिम में था तो दूसरा इलाका पूर्व में था। ऐसा कोई तरीका न था कि इन दोनों इलाकों को जोड़कर एक जगह कर दिया जाए। अत: फैसला यह हुआ कि पाकिस्तान के दो इलाके शामिल होंगे-

  • पूर्वी पाकिस्तान और
  • पश्चिमी पाकिस्तान। इनके मध्य में भारतीय भू-भाग का बड़ा विस्तार होगा।

2. प्रत्येक मुस्लिम बहुल क्षेत्र को पाकिस्तान में जाने को राजी करना—मुस्लिम बहुल हर इलाका पाकिस्तान में जाने को राजी हो, ऐसा भी नहीं था। विशेषकर पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त जिसके नेता खान अब्दुल गफ्फार खाँ थे, जो द्विराष्ट्र सिद्धान्त के खिलाफ थे। अन्ततः उनकी आवाज की अनदेखी कर पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त को पाकिस्तान में मिलाया गया।

3. पंजाब और बंगाल के बँटवारे की समस्या-तीसरी कठिनाई यह थी कि ‘ब्रिटिश इण्डिया’ के मुस्लिम बहुल प्रान्त पंजाब और बंगाल में अनेक हिस्से बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम आबादी वाले थे। ऐसे में फैसला हुआ कि इन दोनों प्रान्तों में भी बँटवारा धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर होगा और इसमें जिले अथवा तहसील को आधार माना जाएगा। 14-15 अगस्त मध्यरात्रि तक यह फैसला नहीं हो पाया था। इन दोनों प्रान्तों का धार्मिक आधार पर बँटवारा विभाजन की सबसे बड़ी त्रासदी थी।

4. अल्पसंख्यकों की समस्या-सीमा के दोनों तरफ अल्पसंख्यक थे। ये लोग इस तरह से सांसत में थे जैसे ही यह बात साफ हुई कि देश का बँटवारा होने वाला है, वैसे ही दोनों तरफ से अल्पसंख्यकों पर हमले होने लगे। दोनों ही तरफ के अल्पसंख्यकों के पास एकमात्र रास्ता यही बचा था कि वे अपने-अपने घरों को छोड़ दे। आबादी का यह स्थानान्तरण आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदी भरा था। दोनों ही तरफ के अल्पसंख्यक अपने घरों से भाग खड़े हुए और अकसर अस्थायी तौर पर उन्हें शरणार्थी शिविरों में पनाह लेनी पड़ी। हर हाल में अल्पसंख्यकों को सीमा के दूसरी तरफ जाना पड़ा। इस प्रक्रिया में उन्हें हर तकलीफ-कत्ल, स्त्रियों से जबरन शादी, उन्हें अगवा करना, बच्चों का माँ-बाप से बिछड़ जाना, अपनी सम्पत्ति को छोड़ना आदि झेलनी पड़ी। इस तरह विभाजन में सिर्फ सम्पदा, देनदारी और परिसम्पत्तियों का ही बँटवारा नहीं हुआ, बल्कि इसमें दोनों समुदाय हिंसक अलगाव के शिकार भी हुए।

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प्रश्न 2.
भारत का विभाजन किन परिस्थितियों में हुआ? वर्णन कीजिए।
अथवा भारत विभाजन के प्रमुख कारणों का विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय परिस्थितियों से विवश होकर ही कांग्रेस के नेताओं ने भारत-विभाजन के साथ स्वतन्त्रता प्राप्त करना स्वीकार किया। महात्मा गांधी ने तो यहाँ तक कह दिया था कि “पाकिस्तान का निर्माण उनकी लाश पर होगा।” फिर भी भारत का विभाजन होकर ही रहा। भारत-विभाजन के लिए उत्तरदायी परिस्थितियाँ व कारण निम्नांकित रूप से वर्णित हैं-

1. अंग्रेजी सरकार की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति–ब्रिटिश शासकों ने हिन्दू-मुसलमानों में निरन्तर फूट डालने हेतु ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को अपनाया। वे निरन्तर हिन्दू-मुस्लिम सम्बन्धों में कटुता लाने तथा उन्हें परस्पर विरोधी बनाने का प्रयास करते रहे। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद के अनुसार, “पाकिस्तान के निर्माता कवि इकबाल तथा मि० जिन्ना नहीं? बल्कि लॉर्ड मिण्टो थे।” कांग्रेस के नेतृत्व में हुए स्वाधीनता आन्दोलन में अधिकांश हिन्दुओं ने भाग लिया था इसलिए ब्रिटिश शासन ने हिन्दुओं और कांग्रेस से अपना बदला लेने के लिए मुस्लिम साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहन दिया।

2. लीग के प्रति कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति–कांग्रेस ने लीग के प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनाई। सन् 1916 में लखनऊ पैक्ट में साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को स्वीकार किया गया। सिन्ध को बम्बई से पृथक् किया गया, सी० आर० फार्मले में पाकिस्तान की माँग को कछ सीमा तक स्वीकार किया गया।

3. हिन्दू-मुसलमानों में परस्पर अविश्वास की भावना-हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही जातियों के लोग परस्पर अविश्वास की भावना रखते थे। सल्तनत काल व मुगलकाल में अनेक मुस्लिम शासकों ने हिन्दुओं पर अत्यधिक अत्याचार किए। इसलिए इन दोनों जातियों में परस्पर द्वेष की भावना थी। इसके अलावा हिन्दुओं का मुस्लिमों के प्रति सामाजिक बहिष्कार सम्बन्धी व्यवहार भी अच्छा नहीं था। इसका परिणाम यह हुआ कि मुसलमानों को ईसाइयों का व्यवहार हिन्दुओं की तुलना में अधिक अच्छा लगा और वे ईसाइयों के निकट होते चले गए।

4. जिन्ना की हठधर्मिता—जिन्ना द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के समर्थक थे। सन् 1940 के बाद संवैधानिक गतिरोध को दूर करने हेतु अनेक योजनाएँ प्रस्तुत की गईं परन्तु जिन्ना की पाकिस्तान निर्माण सम्बन्धी हठधर्मिता . के कारण कोई भी योजना स्वीकार नहीं की जा सकी और अन्ततः भारत और पाकिस्तान का विभाजन होकर रहा।

5. साम्प्रदायिक दंगे-जब मुस्लिम लीग को संवैधानिक साधनों से सफलता प्राप्त नहीं हुई तो उसने मुस्लिमों को साम्प्रदायिक उपद्रव करने हेतु बढ़ावा दिया तथा लीग की सीधी कार्रवाई की योजना में नोआखली और त्रिपुरा में मुसलमानों द्वारा अनेक दंगे करवाए गए। मौलाना अबुल कलाम आजाद के अनुसार, “16 अगस्त का दिन भारत के इतिहास में काला दिन है क्योंकि इस दिन सामूहिक हिंसा ने कलकत्ता जैसी महानगरी को हत्या, रक्तपात और बलात्कारों की बाढ़ में डुबो दिया।”

6. सत्ता के प्रति आकर्षण-भारत-विभाजन का एक कारण कांग्रेस और लीग के अनेक नेताओं का सत्ता के प्रति आकर्षण भी था। स्वतन्त्रता संघर्ष के लिए नेताओं ने अत्यन्त कष्ट सहे थे तथा उनमें और अधिक संघर्ष करने की शक्ति नहीं रह गयी थी। यदि वे माउण्टबेटन योजना को स्वीकार नहीं करते तो न जाने कितने वर्षों के संघर्ष के बाद उन्हें सत्ता का सुख भोगने का अवसर प्राप्त होता। माइकेल ब्रेचर के शब्दों में, “कांग्रेसी नेताओं . के सम्मुख सत्ता के प्रति आकर्षण भी था….. और विजय की घड़ी में वे इससे अलग होने के इच्छुक नहीं थे।”

7. सत्ता हस्तान्तरण के सम्बन्ध में ब्रिटिश दृष्टिकोण-भारत-विभाजन के सम्बन्ध में ब्रिटिश दृष्टिकोण यह था कि इससे भारत एक निर्बल देश हो जाएगा तथा भारत व पाकिस्तान हमेशा एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ते रहेंगे। इस प्रकार ब्रिटेन की यह इच्छा आज भी काफी सीमा तक पूर्ण होती दिखाई दे रही है।

इस तरह उपर्युक्त परिस्थितियों के कारण भारत का विभाजन हो गया। महात्मा गांधी के अनुसार, “32 वर्षों के सत्याग्रह का यह एक लज्जाजनक परिणाम था।”

प्रश्न 3.
1947 में भारत के विभाजन के क्या परिणाम हुए? अथवा “भारत और पाकिस्तान का विभाजन अत्यन्त दर्दनाक था।” विभाजन के परिणामों का उल्लेख उपर्युक्त तथ्य के प्रकाश में सविस्तार कीजिए।
उत्तर:
भारत का विभाजन-14-15 अगस्त, 1947 को एक नहीं बल्कि दो राष्ट्र भारत और पाकिस्तान अस्तित्व में आए। भारत और पाकिस्तान का विभाजन दर्दनाक था तथा इस पर फैसला करना और अमल में लाना और भी कठिन था।

विभाजन के कारण–

  • मुस्लिम लीग ने ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त’ की बात की थी। इसी कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग देश यानि पाकिस्तान की माँग की।
  • भारत के विभाजन के पूर्व ही देश में दंगे फैल गए ऐसी स्थिति में कांग्रेस के नेताओं ने भारत-विभाजन की बात स्वीकार कर ली।

भारत-विभाजन के परिणाम भारत और पाकिस्तान विभाजन के निम्नलिखित परिणाम सामने आए-

1. आबादी का स्थानान्तरण-भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद आबादी का स्थानान्तरण आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदीपूर्ण था। मानव-इतिहास के अब तक ज्ञात सबसे बड़े स्थानान्तरणों में से यह एक था। धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदाय के लोगों को अत्यन्त बेरहमी से मारा। जिन इलाकों में अधिकतर हिन्दू अथवा सिक्ख आबादी थी, उन इलाकों में मुसलमानों ने जाना छोड़ दिया। ठीक इसी प्रकार मुस्लिम-बहुल आबादी वाले इलाकों से हिन्दू और सिक्ख भी नहीं गुजरते थे।

2. घर-परिवार छोड़ने के लिए विवश होना-विभाजन के फलस्वरूप लोग अपना घर-बार छोड़ने के लिए मजबूर हो गए। दोनों ही तरफ के अल्पसंख्यक अपने घरों से भाग खड़े हुए तथा अक्सर अस्थायी तौर पर उन्हें शरणार्थी शिविरों में रहना पड़ा। वहाँ की स्थानीय सरकार व पुलिस इन लोगों से बेरुखी का बर्ताव कर रही थी। लोगों को सीमा के दूसरी तरफ जाना पड़ा और ऐसा उन्हें हर हाल में करना था, यहाँ तक कि लोगों ने पैदल चलकर यह दूरी तय की।

3. महिलाओं व बच्चों पर अत्याचार-विभाजन के फलस्वरूप सीमा के दोनों तरफ हजारों की संख्या में औरतों को अगवा कर लिया गया। उन्हें जबरदस्ती शादी करनी पड़ी तथा अगवा करने वाले का धर्म भी अपनाना पड़ा। कई परिवारों में तो खुद परिवार के लोगों ने अपने ‘कुल की इज्जत’ बचाने के नाम पर घर की बहू-बेटियों को मार डाला। बहुत-से बच्चे अपने माता-पिता से बिछुड़ गए।

4. हिंसक अलगाववाद-विभाजन में सिर्फ सम्पत्ति, देनदारी और परिसम्पत्तियों का ही बँटवारा नहीं हुआ बल्कि इस विभाजन में दो समुदाय जो अब तक पड़ोसियों की तरह रहते थे उनमें हिंसक अलगाववाद व्याप्त हो गया। सभी के लिए मारकाट अत्यन्त नृशंस थी तथा बँटवारे का मतलब था ‘दिल के दो टुकड़े हो जाना।

5. भौतिक सम्पत्ति का बँटवारा-विभाजन के कारण 80 लाख लोगों को अपना घर-बार छोड़कर सीमा पार जाना पड़ा तथा वित्तीय सम्पदा के साथ-साथ टेबिल, कुर्सी, टाइपराइटर और पुलिस के वाद्ययन्त्रों तक का बँटवारा हुआ था। सरकारी और रेलवे कर्मचारियों का भी बँटवारा हुआ। इस प्रकार साथ-साथ रहते आए दो समुदायों के बीच यह एक हिंसक और भयावह विभाजन था।

6. अल्पसंख्यकों की समस्या विभाजन के समय सीमा के दोनों तरफ ‘अल्पसंख्यक’ थे। जिस जमीन पर वे और उनके पुरखे सदियों तक रहते आए थे उसी जमीन पर वे ‘विदेशी’ बन गए थे। जैसे ही देश का बँटवारा होने वाला था वैसे ही दोनों तरफ के अल्पसंख्यकों पर हमले होने लगे। इस कठिनाई से उबरने के लिए किसी के पास कोई योजना भी नहीं थी। हिंसा नियन्त्रण से बाहर हो गयी। दोनों तरफ के अल्पसंख्यकों ने अपने-अपने घरों को छोड़ दिया। कई बार तो उन्हें ऐसा चन्द घण्टों के अन्दर करना पड़ा।

इस तरह भारत और पाकिस्तान का विभाजन अत्यन्त दर्दनाक व त्रासदी से भरा था। सआदत हसन मंटो के अनुसार, “दंगाइयों ने चलती ट्रेन को रोक लिया। गैर मजहब के लोगों को खींच-खींचकर निकाला और तलवार तथा गोली से मौत के घाट उतार दिया। बाकी यात्रियों को हलवा, फल और दूध दिया गया।”

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प्रश्न 4.
भारत में देशी राज्यों ( रजवाड़ों) के विलय पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
राज्यों के पुनर्गठन की समस्या-राज्यों का गठन तथा पुनः संगठन स्वतन्त्र भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी। उस समय भारतवर्ष छोटी-छोटी रियासतों में बँटा हुआ था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पहले भारत दो भागों में बँटा हुआ था-

(i) ब्रिटिश भारत,
(ii) देसी राज्य (रजवाड़े)।

ब्रिटिश भारत का शासन तत्कालीन भारत सरकार के अधीन था, जबकि देसी राज्यों का शासन देसी राजाओं के हाथों में था। राजाओं ने ब्रिटिश राज की सर्वोच्च सत्ता स्वीकार कर रखी थी और इसमें वे अपने राज्य के घरेलू मामलों का शासन चलाते थे। अंग्रेजी प्रभुत्व में आने वाले भारतीय साम्राज्य के एक-तिहाई हिस्से में रजवाड़े कायम थे। प्रत्येक चार भारतीयों में से एक किसी-न-किसी रजवाड़े की प्रजा थी।

देसी राज्यों या रजवाड़ों के विलय की समस्या-स्वतन्त्रता के तुरन्त पहले ब्रिटिश-शासन ने घोषणा की कि भारत पर ब्रिटिश प्रभुत्व के साथ ही रजवाड़े भी ब्रिटिश-अधीनता से स्वतन्त्र हो जाएँगे। रजवाड़ों की कुल संख्या लगभग 565 थी। ब्रिटिश शासन का यह दृष्टिकोण था कि रजवाड़े अपनी मर्जी से चाहें तो भारत या पाकिस्तान में शामिल हो जाएँ या फिर अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए रखें। यह फैसला रजवाड़ों की प्रजा को नहीं करना था बल्कि यह फैसला लेने का अधिकार राजाओं को दिया गया था। यह एक गम्भीर समस्या थी और इससे अखण्ड भारत के अस्तित्व पर ही खतरा मँडरा रहा था।

अनेक राजाओं ने अपने राज्य को आजाद रखने की घोषणा भी कर दी थी। रजवाड़ों के शासकों के रवैये से यह बात साफ हो गई कि स्वतन्त्रता के बाद भारत कई छोटे-छोटे देशों की शक्ल में बँट जाने वाला है। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का लक्ष्य एकता और आत्मनिर्णय के साथ-साथ लोकतन्त्र का रास्ता अपनाना था जबकि रजवाड़ों में शासन अलोकतान्त्रिक रीति से चलाया जाता था और शासक अपनी प्रजा को लोकतान्त्रिक अधिकार देने के लिए तैयार नहीं थे।

राज्यों के पुनर्गठन की समस्या का समाधान-यद्यपि देसी रियासतों की भारत में विलय की समस्या एक महत्त्वपूर्ण समस्या थी, परन्तु पं० नेहरू, तत्कालीन गृहमन्त्री सरदार पटेल ने इस समस्या को बड़े ही सुनियोजित ढंग से सुलझाया। देसी रियासतों की समस्या के हल के लिए पं० नेहरू ने 27 जून, 1947 को एक विभाग की स्थापना की, जिसे राज्य विभाग कहा जाता है। पं० नेहरू ने सरदार पटेल को इस विभाग का मन्त्री एवं वी० पी० मेनन को इसका सचिव नियुक्त किया। देसी रियासतों का विलय तीन चरणों में किया गया-

(i) प्रथम चरण-एकीकरण,
(ii) द्वितीय चरण-अधिमिलन एवं
(iii) तृतीय चरण-प्रजातन्त्रीकरण।

(i) प्रथम चरण : एकीकरण-एकीकरण में वे देसी रियासतें आती हैं, जिन्होंने सरदार पटेल के परामर्श पर स्वयं ही भारत में विलय होना स्वीकार कर लिया था। अधिकांश देसी रियासतों के शासकों ने भारतीय संघ में अपने विलय के एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसे ‘इन्स्ट्रमेण्ट ऑफ एक्सेशन’ कहा जाता है। इस पर हस्ताक्षर का अर्थ था कि रजवाड़े भारतीय संघ का अंग बनने के लिए सहमत हैं।

(ii) द्वितीय चरण : अधिमिलन-अधिमिलन में मणिपुर, जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर जैसी रियासतों को शामिल किया गया, जबकि इन्होंने स्वेच्छा से भारत में शामिल होना स्वीकार नहीं किया था, परन्तु सरदार पटेल ने अपने रणनीतिक कौशल एवं सूझ-बूझ से इन रियासतों को भारत में विलय होने के लिए मजबूर कर दिया।

(iii) तृतीय चरण : प्रजातन्त्रीकरण-तृतीय चरण प्रजातन्त्रीकरण से सम्बन्धित था। देसी रियासतों को प्रजातान्त्रिक ढाँचे में ढालना भारत सरकार के लिए प्रमुख समस्या थी। इस समस्या के लिए प्रान्तों में प्रजातान्त्रिक एवं प्रतिनिधिक संस्थाओं की स्थापना की गई। इन प्रान्तों में भी संसदीय शासन प्रणाली लागू की गई तथा निर्वाचित विधानसभाओं की व्यवस्था की गई।

इस तरह पं० नेहरू एवं सरदार पटेल की सूझ-बूझ से देशी रियासतों की समस्या का समाधान किया गया।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य कैसे बना?
उत्तर:
यद्यपि भारत और पाकिस्तान का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था, परन्तु विभाजन के बाद सन् 1951 में भारत की कुल आबादी में 12 प्रतिशत मुसलमान थे। इसके अलावा अन्य अल्पसंख्यक धर्मावलम्बी भी थे।

भारत सरकार के अधिकतर नेता सभी नागरिकों को समान दर्जा देने के लिए सहमत थे, चाहे वह किसी भी धर्म का हो। वे मानते थे कि नागरिक चाहे जिस धर्म को माने, उसका दर्जा बाकी नागरिकों के बराबर ही होना चाहिए। धर्म को नागरिकता की कसौटी नहीं बनाया जाना चाहिए। उनके इस धर्मनिरपेक्ष आदर्श की अभिव्यक्ति भारतीय संविधान में हुई। इस तरह भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बना।

प्रश्न 2.
विभाजन के समय पाकिस्तान को दो भागों-पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान में क्यों बाँटा गया?
उत्तर:
भारत के विभाजन का यह आधार तय किया गया कि जिन इलाकों में मुसलमान बहुसंख्यक थे, वे इलाके पाकिस्तान के भू-भाग होंगे। अविभाजित भारत के ऐसे दो इलाके थे-एक इलाका पश्चिम में था जबकि दूसरा इलाका पूर्व में। इसे देखते हुए यह निर्णय लिया गया कि पाकिस्तान में ये दो इलाके शामिल होंगे। ये पूर्वी पाकिस्तान तथा पश्चिमी पाकिस्तान कहलाए। ऐसा कोई तरीका नहीं था कि इन दो इलाकों को जोड़कर एक जगह कर दिया जाए। इसलिए पाकिस्तान को दो भागों में बाँटा गया।

प्रश्न 3.
भारतीय संघ में जूनागढ़ को शामिल करने की घटना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जूनागढ़ रियासत का भारत में विलय-जूनागढ़, गुजरात के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक राज्य था। जूनागढ़ की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू थी। जूनागढ़ के नवाब महावत खान ने पाकिस्तान के साथ शामिल होने का निर्णय किया। लेकिन भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर जूनागढ़ भारत में ही शामिल हो सकता था। जूनागढ़ के शासक के न मानने पर सरदार पटेल ने जूनागढ़ के शासक के विरुद्ध बल प्रयोग का आदेश दिया। जूनागढ़ में भारतीय सैनिकों का सामना करने की क्षमता नहीं थी अन्तत: दिसम्बर 1947 में करवाए गए जनमत संग्रह में जूनागढ़ के लगभग 80 प्रतिशत लोगों ने भारत में शामिल होने की बात कही।

प्रश्न 4.
हैदराबाद को भारत में किस प्रकार शामिल किया?
उत्तर:
हैदराबाद रियासत का भारत में विलय-स्वतन्त्रता प्राप्ति एवं भारत के विभाजन के बाद हैदराबाद के निजाम उसमान अली खान ने हैदराबाद को स्वतन्त्र रखने का निर्णय लिया लेकिन हैदराबाद का निजाम परोक्ष रूप से पाकिस्तान का समर्थक था। हैदराबाद भारत के केन्द्र में स्थित था। यहाँ हिन्दू बहुसंख्यक रूप में निवासरत थे। इस कारण हैदराबाद का भारत में विलय अनिवार्य था। तत्कालीन गृहमन्त्री सरदार पटेल की आशंका थी कि आने वाले समय में हैदराबाद पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के लिए खतरा उत्पन्न कर सकता है। सरदार पटेल तथा लॉर्ड माउण्टबेटन द्वारा हैदराबाद के निजाम को समझाने के प्रयासों की विफलता के बाद सरदार पटेल ने सैन्य कार्रवाई करके हैदराबाद को भारत में मिला लिया।

प्रश्न 5.
पाण्डिचेरी तथा गोवा के भारत में विलय की घटनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पाण्डिचेरी तथा गोवा का भारत में विलय-स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद पाण्डिचेरी फ्रांस तथा गोवा पुर्तगाल के अधीन थे। फ्रांस, पाण्डिचेरी को भारत में शामिल करने के पक्ष में नहीं था। परिणामस्वरूप भारतीय सैनिकों ने कार्रवाई करके पाण्डिचेरी को भारत संघ में शामिल कर लिया। इसी तरहं पुर्तगाल भी गोवा से अपना अधिकार छोड़ना नहीं चाहता था। अतः पुर्तगाल ने भारत द्वारा पेश किए गए सभी प्रस्तावों का विरोध किया। परिणामस्वरूप 18 दिसम्बर, 1961 को भारतीय सेना ने गोवा, दमन व दीव को पुर्तगाल से मुक्त कराके भारत में शामिल कर लिया। भारतीय प्रधानमन्त्री ने इसे मात्र पुलिस कार्रवाई की संज्ञा दी। सन् 1987 में गोवा भारत का 25वाँ राज्य बन गया।

प्रश्न 6.
भारत का विभाजन क्यों हआ?
उत्तर:
राष्ट्रीय आन्दोलन की चरम स्थिति में मुस्लिम लीग ने ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त’ की बात की। इस सिद्धान्त के अनुसार भारत किसी एक कौम का नहीं बल्कि हिन्दू और मुसलमान नामक दो कौमों का देश था और इसी कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग देश यानि पाकिस्तान की माँग की। यद्यपि कांग्रेस ने द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त और पाकिस्तान की माँग का विरोध किया तथापि ब्रिटिश शासन की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के चलते कांग्रेस ने भी अन्ततः पाकिस्तान की माँग मान ली और भारत का विभाजन निश्चित हो गया।

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प्रश्न 7.
सीमान्त गांधी कौन थे? उनके द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के दृष्टिकोण का उल्लेख करते हुए उनकी भूमिका का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
खान अब्दुल गफ्फार खाँ को ‘सीमान्त गांधी’ कहा जाता है। वे पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त (पेशावर के मूल निवासी) के निर्विवाद नेता थे। वे कांग्रेस के नेता तथा लाल कुर्ती नामक संगठन के समर्थक थे। सच्चे गांधीवादी, अहिंसा व शान्ति के समर्थक होने के कारण उनको ‘सीमान्त गांधी’ कहा जाता था। वे द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के विरोधी थे। संयोग से उनकी आवाज की अनदेखी की गई और ‘पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त’ को पाकिस्तान में शामिल मान लिया गया।

प्रश्न 8.
रजवाड़ों के सन्दर्भ में सहमति-पत्र का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रजवाड़ों का सहमति-पत्र-आजादी के तुरन्त पहले अंग्रेजी शासन ने घोषणा की कि भारत पर ब्रिटिश प्रभुत्व के समाप्त होने के साथ ही रजवाड़े भी ब्रिटिश-अधीनता से आजाद हो जाएंगे और वह अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में शामिल हो सकते हैं या अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए रख सकते हैं। शान्तिपूर्ण बातचीत के जरिए लगभग सभी रजवाड़े जिनकी सीमाएँ आजाद हिन्दुस्तान की नयी सीमाओं से मिलती थीं, के शासकों ने भारतीय संघ में अपने विलय के सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। इस सहमति-पत्र को ‘इंस्ट्रमेण्ट ऑफ एक्सेशन’ कहा जाता है। इस पर हस्ताक्षर का अर्थ था कि रजवाड़े भारतीय संघ का अंग बनने के लिए सहमत हैं।

प्रश्न 9.
संक्षेप में राज्य पुनर्गठन आयोग के निर्माण की पृष्ठभूमि, कार्य तथा इससे जुड़े एक्ट का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राज्य पुनर्गठन आयोग-आन्ध्र प्रदेश के गठन के साथ ही देश के दूसरे हिस्सों में भी भाषाई आधार पर राज्यों को गठित करने का संघर्ष चल पड़ा। इन संघर्षों से बाध्य होकर केन्द्र सरकार ने सन् 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया। इस आयोग का काम राज्यों के सीमांकन के मामलों पर गौर करना था। इसने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सन् 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ। इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्रशासित प्रदेश बनाए गए।

प्रश्न 10.
संविधान सभा द्वारा राष्ट्रीय भाषा के प्रश्न का हल किस प्रकार किया गया?
उत्तर:
संविधान सभा द्वारा राष्ट्रीय भाषा की समस्या का समाधान-बहुभाषी संस्कृति होने के कारण देश में भाषा की समस्या सबसे महत्त्वपूर्ण थी जिसका संविधान सभा को हल निकालना था। भाषा की समस्या का ऐसा हल ढूँढने का प्रयास किया गया जिसे सभी सामान्य रूप से स्वीकार कर लें और यह प्रयास तीन वर्षों तक जारी रहा। संविधान सभा की अन्तिम बैठक के प्रारम्भ में सभा के अध्यक्ष डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि भाषायी प्रावधानों को मतदान के लिए नहीं रखेंगे क्योंकि यदि कोई निर्णय देश को स्वीकार न हुआ तो उसको लागू करना कठिन होगा। लम्बे वाद-विवाद के बाद भाषा की समस्या पर निर्णय लिए गए और इस प्रकार संविधान सभा में भाषा की समस्या का समाधान किया गया। जहाँ तक राष्ट्रीय भाषा का प्रश्न है तो उस पर यह सहमति बनी कि देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्वीकार किया जाएगा। अतिलघ

उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत के समक्ष मुख्यतः कौन-कौन सी चुनौतियाँ थीं?
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत के सामने तीन प्रमुख चुनौतियाँ थीं-

  1. भारत की क्षेत्रीय अखण्डता को कायम करना।
  2. लोकतान्त्रिक व्यवस्था को लागू करना।
  3. आर्थिक विकास तथा गरीबी को समाप्त करने हेतु नीति निर्धारित करना।

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प्रश्न 2.
भारत और पाकिस्तान के मध्य विभाजन का क्या आधार तय किया गया?
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन का आधार तय किया गया कि धार्मिक बहुसंख्या के आधार पर विभाजन होगा। अर्थात् जिन क्षेत्रों में मुसलमान बहुसंख्यक थे, वे क्षेत्र ‘पाकिस्तान’ के भू-भाग होंगे तथा शेष भाग ‘भारत’ कहलाएँगे।

प्रश्न 3.
‘इंस्ट्रमेण्ट ऑफ एक्सेशन’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
विभिन्न रजवाड़ों या रियासतों के शासकों ने भारतीय संघ में अपने विलय के एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए। इस सहमति-पत्र को ‘इंस्ट्रमेण्ट ऑफ एक्सेशन’ कहा जाता है। इस पर हस्ताक्षर का अर्थ यह था कि रजवाड़े भारतीय संघ का अंग बनने के लिए सहमत हैं।

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् रजवाड़ों के विलय की क्या समस्या थी?
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् रजवाड़ों को भी कानूनी तौर पर स्वतन्त्र होना था। ब्रिटिश शासन का नजरिया यह था कि रजवाड़े अपनी मर्जी से भारत या पाकिस्तान में शामिल हो जाएँ अथवा स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए रखें। यह फैसला लेने का अधिकार राजाओं को दिया गया था। यह एक गम्भीर समस्या व चुनौती थी।

प्रश्न 5.
भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य कैसे बना? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
भारत और पाकिस्तान का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था, परन्तु सन् 1951 के वक्त भारत में 12% मुसलमान थे फिर भी लोकतान्त्रिक भारत में मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी और यहूदियों के साथ समानता का व्यवहार किया गया। अत: भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना।

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प्रश्न 6.
‘पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त’ को पाकिस्तान में शामिल क्यों मान लिया गया?
उत्तर:
मुस्लिम बहुल हर क्षेत्र पाकिस्तान में जाने को तैयार नहीं था। खान अब्दुल गफ्फार खाँ (सीमान्त गांधी) पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के निर्विवाद नेता थे तथा वे ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त’ के खिलाफ थे। उनके विचारों पर अमल नहीं किया गया तथा ‘पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त’ को पाकिस्तान में शामिल मान लिया गया।

प्रश्न 7.
पंजाब और बंगाल का बँटवारा करने का क्या आधार सुनिश्चित किया गया?
उत्तर:
‘ब्रिटिश इण्डिया’ के मुस्लिम बहुल प्रान्त पंजाब और बंगाल के अनेक भागों में बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम आबादी वाले थे। अत: निर्णय हुआ कि इन दोनों प्रान्तों में भी बँटवारा धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर होगा और इसमें जिले या उससे निचले स्तर के प्रशासनिक हल्के को आधार बनाया जाएगा।

प्रश्न 8.
मुस्लिम लीग ने ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त’ की बात क्यों की? इसका परिणाम क्या हुआ?
उत्तर:
मुस्लिम लीग के द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के अनुसार भारत किसी एक कौम का नहीं बल्कि ‘हिन्दू’ और ‘मुसलमान’ नाम की दो कौमों का देश था और इसी कारण मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की माँग की और यह माँग मान ली गयी।

प्रश्न 9.
विभाजन की त्रासदी बताने हेतु कोई दो घटनाएँ बताइए।
उत्तर:

  1. अनेक परिवारों के लोगों ने अपने ‘कुल की इज्जत’ बचाने के नाम पर घर की बहू-बेटियों तक को मार डाला। बहुत-से बच्चे अपने माँ-बाप से बिछुड़ गए।
  2. वित्तीय सम्पदा के साथ-साथ टेबल-कुर्सी, टाइपराइटर और पुलिस के वाद्य यन्त्रों तक का बँटवारा हुआ।

प्रश्न 10.
राष्ट्रीय आन्दोलन के नेता एक पन्थनिरपेक्ष राज्य के पक्षधर क्यों थे?
उत्तर:
राष्ट्रीय आन्दोलन के नेता एक पन्थनिरपेक्ष राज्य के पक्षधर थे क्योंकि वे जानते थे कि बहुधर्मावलम्बी देश भारत में किसी धर्म विशेष को संरक्षण देना भारत की एकता के लिए बाधक बनेगा तथा इससे विविध धर्मावलम्बियों के मूल अधिकारों का हनन होगा।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
विभाजन के समय भारत में कुल रजवाड़ों की संख्या कितनी थी-
(a) 565
(b) 570
(c) 580
(d) 562
उत्तर:
(a) 565

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प्रश्न 2.
द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त की बात जिस राजनीतिक दल ने सर्वप्रथम की थी, वह था-
(a) भारतीय जनता पार्टी
(b) मुस्लिम लीग
(c) कांग्रेस
(d) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी।
उत्तर:
(b) मुस्लिम लीग।

प्रश्न 3.
राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना कब हुई-
(a) सन् 1953 में
(b) सन् 1954 में
(c) सन् 1955 में
(d) सन् 1956 में।
उत्तर:
(a) सन् 1953 में।

प्रश्न 4.
देसी रियासतों के एकीकरण में किस नेता की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही-
(a) पं० जवाहरलाल नेहरू
(b) महात्मा गांधी
(c) सरदार पटेल
(d) गोपालकृष्ण गोखले।
उत्तर:
(c) सरदार पटेल।

प्रश्न 5.
भारत का संविधान कब लागू किया गया-
(a) 15 अगस्त, 1947
(b) 26 जनवरी, 1950
(c) 14 अगस्त, 1948
(d) 19 जून, 1951
उत्तर:
(b) 26 जनवरी, 1950

प्रश्न 6.
खान अब्दुल गफ्फार खाँ को किस नाम से जाना जाता है-
(a) महात्मा गांधी
(b) मुहम्मद अली जिन्ना
(c) सीमान्त गांधी
(d) मौलाना आजाद।
उत्तर:
(c) सीमान्त गांधी।

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प्रश्न 7.
राज्य पुनर्गठन अधिनियम के आधार पर कितने राज्यों की स्थापना की गई-
(a) 14
(b) 15
(c) 16
(d) 17
उत्तर:
(a) 14

प्रश्न 8.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद सबसे बड़ी चुनौती थी-
(a) औद्योगिक विकास
(b) निर्धनता
(c) बेरोजगारी
(d) भारत की क्षेत्रीय अखण्डता को बनाए रखना।
उत्तर:
(d) भारत की क्षेत्रीय अखण्डता को बनाए रखना।

प्रश्न 9.
बंगलादेश का निर्माण कब हुआ-
(a) सन् 1971 में
(b) सन् 1974 में
(c) सन् 1976 में
(d) सन् 1978 में।
उत्तर:
(a) सन् 1971 में।

प्रश्न 10.
सन् 1960 में बम्बई का विभाजन कर कौन-कौन से दो राज्यों का निर्माण किया गया-
(a) पंजाब और हरियाणा
(b) महाराष्ट्र और गुजरात
(c) असम और मेघालय
(d) मध्य प्रदेश और आन्ध्र प्रदेश।
उत्तर:
(b) महाराष्ट्र और गुजरात।

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