UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 7 लोभ: पापस्य कारणम् are part of UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi . Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 7 लोभ: पापस्य कारणम्.
Board | UP Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 11 |
Subject | Sahityik Hindi |
Chapter | Chapter 7 |
Chapter Name | लोभ: पापस्य कारणम् |
Category | UP Board Solutions |
UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 7 लोभ: पापस्य कारणम्
अवतरणों का ससन्दर्भ अनुवाद
(1) एको …………………………. पश्यति।।
[ सरस्तीरे (सरः +तीरे) = सरोवर के किनारे बूतेकह रहा था। लोभाकृष्टेन (लोभ +आकृष्टेन) = लोभ से आकृष्ट (पथिक) द्वारा। पान्येनालोचितम (पान्थेन + आलोचितम्) = पथिक ने सोचा। संशयमनारुह्य (संशयम् +अनारुह्य) = सन्देह पर चढ़े बिना (सन्देह किये बिना)। पुनरारुह्य (पुनः + आरुह्य) = फिर चढ़कर।]
सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘लोभः पापस्य कारणम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है।
[विशेष – इस पाठ के अन्तर्गत आने वाले समस्त अनुच्छेदों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।
अनुवाद – एक बूढ़ा बाघ स्नान करके, कुश हाथ में लेकर, तालाब के किनारे कह रहा था, “अरे, अरे पथिको! यह सोने का कंगन लो।’ तब लोभ से खिंचकर किसी राहगीर ने सोचा, ‘भाग्य से ही ऐसा सम्भव होता है (ऐसा सुअवसर हाथ आता है), किन्तु इस (जैसे) सन्देहास्पद विषय में प्रवृत्त होना ठीक नहीं (अर्थात् जहाँ संकट की आशंका हो, ऐसे कार्य से विरत होना ही अच्छा), फिर भी (कहा गया है कि)संशय (सन्देह) का आश्रय लिये बिना व्यक्ति कल्याण (हित) को प्राप्त नहीं करता, पर सन्देह का आश्रय लेने पर यदि जीवित बच जाता है तो ( भलाई) देखता है (प्राप्त करता है)।
(2) सः आह ………………… लोकप्रवादो दुर्निवारः।।
व्याघ्र उवाच ……………… दातुमिच्छामि।
स आह ………………………. विश्वासभूमिः।
[मारात्मके= हिंसक (जीवघाती) पर। यौवनदशायाम् अतीव = यौवन में बहुत अधिक बधान्मे (बधात् + में) = वध से मरे। दाराश्च (दाराः +च) = पत्नी भी। वंशहनश्चाहम (वंशहीना +च+अहम्) – और मैं वंशहीन (हो गया)| धार्मिकणाहमादिष्टः (धार्मिकण+अहम् +आदिष्टः)- किसी धर्मात्मा ने मुझे उपदेश दिया। तदुपदेशादिदानीमहं (तत् +उपदेशात् +इदानीम् + अहम्) -उस उपदेश से मैं अब। विश्वासभूमिः = विश्वासपात्र। चैतावान् (च + एतावान्) = और (मैं) इतना।]
अनुवाद – वह (पथिक) बोला–“तेरा कंगन कहाँ है ?” बाघ ने हाथ फैलाकर दिखाया। पथिक बोला, “तुझे हिंसक (जीवघाती) पर कैसे विश्वास करू ?’ बाघ बोला – “सुन रे पथिक! पहले ही युवावस्था में मैं बड़ा पापी (दुराचारी) था। अनेक गायों और मनुष्यों को मारने से मेरे पुत्र और पत्नी मर गये और मैं वंशहीन हो गया। तब किसी धर्मात्मा ने मुझे उपदेश दिया–“आप कुछ दान, धर्म आदि कीजिए।” उस उपदेश से नहाने वाला, दान देने वाला, बूढ़ा, टूटे नाखून और दाँतों वाला मैं भला विश्वास योग्य क्यों नहीं हूँ? मैं तो इतना लोभरहित हो गया हूँ कि अपने हाथ से स्वर्णकंकण (सोने का कंगन) को भी जिस किसी को (किसी को भी) देना चाहता हूँ, तो भी बाघ मनुष्य को खाता है, यह लोकनिन्दा दूर करना कठिन है” (अर्थात् लोगों के मन में बाघ के हिंसक होने की धारणा इतने गहरे तक बैठी है कि उसका निराकरण सम्भव नहीं, चाहे मैं कितना ही धर्मात्मा क्यों न हो जाऊँ)।
(3) मया च धर्मशास्त्राणि ……………………… पण्डितः।।
मरुस्थल्यां यथा ………………………….. पाण्डुनन्दन।।
अधीतानि = पढे हैं। पाण्डुनन्दन = पाण्डव (यहाँ युधिष्ठिर)। लोष्ठवत् = मिट्टी के ढेले के सदृश।]
अनुवाद-और मैंने धर्मशास्त्र भी पढ़े हैं—हे युधिष्ठिर! मरुभूमि (रेगिस्तान) में जैसे वर्षा और जैसे भूखे को दिया भोजन सफल होता है, वैसे ही दरिद्र को दिया दान भी सफल होता है। जो व्यक्ति दूसरे की स्त्री को माता के समान, दूसरे के धन को मिट्टी के ढेले के समान तथा समस्त प्राणियों को अपने समान देखती है (समझता है), वह पण्डित (सच्चा ज्ञानी) है।
(4) त्वं चातीव ……………………… किमौषधैः ।।
[ प्रयच्छेश्वरे (प्रचच्छ+ईश्वरे) = समर्थ को दो। नीरुजस्य = निरोगी की।]
अनुवाद – और तुम बहुत दरिद्र हो, इसलिए तुम्हें यह सोने का कंगन देने को प्रयत्नशील (सचेष्ट) हूँ; क्योंकि-हे कौन्तेय (कुन्ती पुत्र)! दरिद्रों का भरण (पालन-पोषण) करो, धनवान् को धन मत दो। औषध रोगी के लिए है, जो नीरोगी (स्वस्थ) है, उसे औषध से क्या (लाभ) ? (धनवानों के पास तो धन है ही, धन की आवश्यकता उसी को है, जिसके पास धन नहीं है।)
(5) तदत्र …………………………. भक्षितः।।
[ तदत्र (तत् +अत्र) = तो यहाँ (इस)| सरसि = सरोवर में। तदवचः प्रतीतः = उसकी बात पर विश्वास करके। महापङ्के – अत्यधिक कीचड़ में। पलायितुमक्षमः – भागने में असमर्थ। अतस्त्वामहमुत्थापयामि (अतः + त्वाम् +अहम् +उत्थापयामि) = इसलिए तुम्हें मैं निकालता हूँ। शनैः शनैरुपगम्य (शनैः शनैः +उपगम्य) = धीरे-धीरे पास जाकर।]
अनुवाद – तो यहाँ (इस) सरोवर में स्नान करके सोने का कंगन लो। तब जब वह उसकी बात पर विश्वास कर लालच में (पड़कर) सरोवर में स्नान करने के लिए घुसा तो गहरी कीचड़ (दलदल) में फंसकर भागने में असमर्थ हो गया। उसे कीचड़ में पड़ा (फैसा) देख बाघ बोला, ‘ओहो, दलदल में फंस गये। तो तुम्हें निकालता हूँ यह कहकर धीरे-धीरे पास पहुँचकर बाघ ने उसे खा लिया।
We hope the UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 7 लोभ: पापस्य कारणम् help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 7 लोभ: पापस्य कारणम्, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.
Thanks for your help ????