UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 3 लाटी

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 3
Chapter Name लाटी
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 3 लाटी

लाटी – पाठ का सारांश/कथावस्तु

(2017)

कथानायक कप्तान जोशी की पत्नी को क्षय रोग हो जाना
कथानायक कप्तान जोशी अपनी पत्नी ‘बानो’ से अत्यधिक प्रेम करते हैं। विवाह के तीसरे दिन ही कप्तान को युद्ध के लिए बसरा जाना पड़ा, तब बानो सिर्फ 16 वर्ष की थी। अपने पति की अनुपस्थिति में बानो ने 7-7 ननदों के ताने सुने, भतीजों के कपड़े धोए, ससुर के होज विने, पहाड़-सी नुकीली छतों पर 5-5 सेर उड़द पीसकर बड़ियाँ बनाई आदि। उसे मानसिक प्रताड़ना भी दी गई कि उसका पति जापानियों द्वारा कैद कर लिया गया है और वह कभी नहीं आएगा। यान इन सब कारणों से निरन्तर पुलती रही और क्षय रोग से पीड़ित होकर चारपाई पकड़ लेती है।

कप्तान का पत्नी के प्रति अगाध प्रेम
कप्तान अपनी पत्नी ‘बानो’ से अत्यधिक प्रेम करता है। जब वह दो वर्ष बाद लौटकर घर आता है, तो उसे पता चलता है कि घर वालों ने बानों को क्षय रोग होने पर सैनेटोरियम भेज दिया है। वह दूसरे दिन ही वहाँ पहुँच गया। उसे देखकर बानो के बहते आँसुओं की धारा ने दो साल के सारे उलाहने सुना दिए। सैनेटोरियम के डॉक्टर द्वारा बानो की मौत नज़दीक आने की स्थिति में कमरा खाली करने का उसे नोटिस दे दिया गया। कप्तान ने भूमिका बनाते हुए बानों से कहा कि अब यहीं मन नहीं लगता है। कल किसी और जगह चलेंगे। वह दिन-रात अपनी पत्नी की सेवा में बिना कोई परहेज एवं सावधानी बरते लगा रहता था।

बानो द्वारा आत्महत्या का प्रयास करना
बानो समझ गई कि उसे भी सैनेटोरियम छोड़ने का नोटिस मिल गया है, जिसका अर्थ हुआ कि अब वह भी नहीं बचेगी। कप्तान देर रात तक बानो को बहलाता रहा, उससे अपना प्यार जताता रहा। जब कप्तान को लगा कि बानों सो गई, तो वह भी सोने चला जाता है। सुबह उठने पर बानो अपने पलंग पर नहीं मिली। दूसरे दिन नदी घाट पर बानो की साड़ी मिली। कप्तान को जब लाश भी नहीं मिली, तो उसने समझा बानो नदी में डूबकर मर गई।

‘लाटी’ के रूप में ‘बानो’ का मिलना
जब कप्तान को पूरा विश्वास हो गया कि बानो अब इस दुनिया में नहीं है, तो घर वालों के जोर देने से उसने दूसरा विवाह कर लिया। दूसरी पत्नी प्रभा से उसे दो बेटे एवं एक बेटी है और वह भी कप्तान से अब मेजर हो गया है। लगभग 16 वर्ष बाद नैनीताल में वैष्णवियों के दल में उसे ‘लाटी’ मिलती है, जो यथार्थ में ‘बानो’ थी। अधेड़ वैष्णवियों के बीच बानों जब ‘लाटी’ के रूप में मिलती है, तो मेजर उसे पहचान लेता है। पता चलता है कि गुरु महाराज ने अपनी औषधियों से उसका क्षय रोग ठीक कर दिया था, लेकिन इस प्रक्रिया में उसकी स्मरण शक्ति और आवाज़ दोनों चली गईं। अब न तो वह बोल पाती है और न ही उसे अपना अतीत याद है। वह वैष्णवियों के दल के साथ चली जाती है और मेजर स्वयं को पहले से अधिक बूढ़ा एवं खोखला महसूस करता है।

‘लाटी’ कहानी की समीक्षा

(2018, 17)

सुप्रसिद्ध लेखिका शिवानी ने अपनी कहानियों में भावात्मक और सामाजिक – आर्थिक समस्याओं से जुझती-टकराती नारी को बड़े रोचक एवं मार्मिक रूप से अभिचिंत्रित किया है। शिवानी द्वारा रचित ‘लाटी’ कहानी एक घटना प्रधान मार्मिक कहानी है। यह कहानी महिला त्रासदी पर आधारित है। इसमें बताया गया है कि एक सोलह वर्षीया खूबसूरत लड़की ससुराल में किस तरह सास-ननद के तानों और अत्यधिक काम के बोझ तले दबकर क्षय रोग (टी. बी) का शिकार हो जाती है। कहानी की समीक्षा इस प्रकार हैं—

कथानक
‘लाटी’ कहानी का कथानक मध्यम वर्गीय पहाड़ी परिवार से सम्बन्धित है। कथानक में नई नवेली दुल्हन बानो के जीवन की त्रासदी को उकेरा गया है, जिसके पति कप्तान जोशी विवाह के तीसरे दिन ही उसे छोड़कर युद्ध भूमि में चले जाते हैं और दो वर्षों के बाद लौटते हैं।

इन दो वर्षों में बानो ने सास-ननद के ताने सुने, सास के व्यंग्य-बाण सहे। ससुराल में काम के बोझ तले दबकर सन्त्रास भरी ज़िन्दगी जीने के कारण वह क्षय रोग का शिकार हो जाती है और उसे गोठिया सैनेटोरियम में भर्ती कर दिया जाता है। अब कप्तान आता है और उसे पता चलता है कि बानो क्षय रोग की शिकार है, तो वह मानों के पास रहकर उसकी जी जान से सेवा करता है, किन्तु एक दिन डॉक्टर से घर ले जाने के लिए कहते हैं, क्योंकि अब उसका इलाज सम्भव नहीं है।

कप्तान उसे घर लाने की जगह भुवाली में किराए के मकान में ले जाना चाहता है, किन्तु वह रात में ही नदी में कूदकर आत्महत्या का प्रयास करती हैं। कप्तान को जब नदी किनारे उसकी साड़ी मिलती है, तो वह उसे मृत समझकर घर लौट आता है। और एक वर्ष बाद वह दूसरा विवाह कर लेता है।

उधर, बानो को एक सन्त बचा लेता है और उसका क्षय रोग भी ठीक कर देता है, लेकिन इस प्रक्रिया में उसकी आवाज़ और स्मृति दोनों चली जाती हैं। 16 वर्ष बाद अपनी पत्नी के साथ नैनीताल में घूमने के दौरान एक दिन भुवाली में चाय की दुकान पर कप्तान, जो अब मेजर बन चुका है, की भेंट लाटी से होती है।

मेजर उसे पहचान लेता है, लेकिन बानो उसे नहीं पहचानती। मेजर उसे स्वीकार नहीं कर सकता, क्योंकि उसकी ज़िन्दगी अब काफी आगे बढ़ गई है। अब उसके बच्चे काफी बड़े हो गए हैं और पत्नी बानो जैसी भोली नहीं है। इस प्रकार ‘लाटी’ कहानी एक महिला की त्रासद भरी ज़िन्दगी की कारुणिक कहानी है। इस कहानी के माध्यम से यह बताया गया है कि महिला ही महिला के शोषण का मुख्य कारण है। पति के बिना स्त्री की ससुराल में कोई इज्जत नहीं होती। उसे शारीरिक-मानसिक यातनाओं का शिकार होना पड़ता है।

पात्र और चरित्र-चित्रण
पात्रों की दृष्टि से यह एक सन्तुलित कहानी है। कहानी के सभी पत्रि कथानक के विकास में सहायक हैं। कप्तान जोशी, बानो (लाटी), नेपाली भाभी, प्रभा एवं वैष्णवी इसके मुख्य पात्र हैं, लेकिन लेखिका ने बानो (लाटी) एवं कप्तान जोशी के चरित्र को विशेष रूप से संवारा है। इस कहानी में कप्तान जोशी का चरित्र अत्यधिक अन्तर्धन से भरा हुआ है। नेपाली भाभी के चरित्र के माध्यम से कथानक को गतिशील बनाया गया है। कहानी में सभी पात्रों की सृष्टि सौददेश्य की गई है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि पात्र एवं चरित्र-चित्रण की दृष्टि से ‘लाटी’ एक सफल कहानी है।

कथोपकथन या संवाद
इस कहानी में संवादों की भरमार नहीं है, लेकिन जो भी हैं, वे सभी अत्यन्त प्रभावपूर्ण, भावात्मक पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालने वाले और रोचक हैं। कहानी के संवाद संक्षिप्त, सरल, सारगर्भित, स्वाभाविक, स्पष्ट, सार्थक और गतिशील हैं। पात्रों के चरित्र के अनुसार सटीक हैं।

देशकाल और वातावरण
आलोच्य कहानी में देशकाल और वातावरण को ध्यान हर जगह रखा गया है। कहानी की पृष्ठभूमि पहाड़ी क्षेत्र की हैं। अतः पहाड़ी शब्द; जैसे-‘युद्धज्यू’, ‘तिथण’ आदि का प्रयोग पहाड़ी वातावरण बनाने के लिए किया गया है। सैनेटोरियम के वातावरण में भी लेखिका ने पहाड़ी चित्रों को साकार कर दिया है।

भाषा-शैली
प्रस्तुत कहानी में शिवानी ने सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। पहाड़ी वातावरण सृजित करने के लिए यथास्थान पहाड़ी शब्दों का प्रयोग किया गया है। अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू, अरबी-फारसी, तत्सम, तद्भव, देशज, आँचलिक सभी प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया गया है। आधुनिक सभ्य समाज की इंग्लिश भाषा का एक उदाहरण देखिए-” चलो डार्लिग, पहाड़ का इंटीरियर घूमा जाए। भूवाली चले”… “इसी दुकान में आज एकदम पहाड़ी स्टाइल से कलई के गिलास में चाय पिएँगे हनी।” लेखिका ने शैली के रूप में चित्रात्मक, वर्णनात्मक, हास्य व्यंग्यात्मक, सूत्रात्मक तथा सबसे अधिक भावात्मक शैली का प्रयोग किया है।

उद्देश्य
कहानी का उद्देश्य मध्यम वर्गीय समाज में पति के बिना अकेली रहने वाली पत्नी के जीवन की त्रासदी को दिखाना है। लेखिका ने यह भी सन्देश दिया है कि महिला ही महिला का शोषण करती है। उन्हें अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना चाहिए तथा इसमें यह भी बताया गया है कि क्षय रोग असाध्य नहीं है। परिजनों के सहयोग और प्रेम से रोगी को बचाया जा सकता है—

शीर्षक
प्रस्तुत कहानी का शीर्षक ‘लाटी’ बानो (लाटी) के जीवन की व्यथा को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सफल है, क्योंकि सम्पूर्ण कहानी बानो (लाटी) के इर्द-गिर्द घूमती है। अतः कहानी का शीर्षक चरित्र प्रधान है। अपनी संक्षिप्तता, गौलिकता व कौतूहलता के चलते ‘लाटी’ शीर्षक पाठक के मन में आरम्भ से अन्त तक जिज्ञासा का प्रतिपादन करता है।

बानो (लाटी) का चरित्र-चित्रण

(2018, 17, 14, 13)

सुप्रसिद्ध लेखिका शिवानी की कहानी ‘लाटी’ में बानो मुख्य स्त्री पात्र है, जो बाद में ‘लाटी’ के नाम से जानी जाती है। बानो कप्तान जोशी की पहली पत्नी है, जिससे कप्तान अगाध प्रेम करता है। बानो के चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

मोहक एवं भोला व्यक्तित्व
16 वर्षीया किशोरी बानो का व्यक्तित्व अत्यन्त मोहक एवं भोला है, जिससे कप्तान जोशी उसकी ओर आकर्षित हो जाते हैं और अन्ततः दोनों विवाह के बन्धन में बँध जाते हैं। बानो के मोहक एवं भोले व्यक्तित्व के कारण ही कप्तान जोशी उससे अत्यधिक प्यार करते हैं एवं अन्त समय तक उसकी इच्छा पूरी करने की कोशिश करते हैं।

त्यागमयी एवं पतिव्रता
बानों का विवाह मात्र 16 वर्ष की उम्र में ही हो गया और विवाह के तीन दिन बाद ही उसके पति कप्तान जोशी युद्ध के लिए बस चले गए। वह पूरे दो वर्ष बाद घर लौटे तब तक बानो त्यागपूर्वक पतिव्रत धर्म का निष्ठा के साथ पालन करती रही और अपने पति की प्रतीक्षा में उसने स्वयं को घर के कामों में झोंक दिया।

परिश्रमी एवं सहनशील
बानो बड़ी ही परिश्रमी एवं सहनशील युवती है, जो अपने पति की अनुपस्थिति में अनेक कामों को अंजाम देकार तथा कष्ट सहकर सिद्ध करती है। वह घर के अनेक काम करने के अलावा घर के लोगों के व्यंग्य बाण भी सहती है, लेकिन मुख से कुछ नहीं कहती। इसी कारण वह मन-ही-मन घुटती रहती है।

क्षय रोग की शिकार
मन-ही-मन घुटते रहने तथा पति के आने में देरी होने से उत्पन्न मानसिक तनाव के कारण वह क्षय रोग से पीड़ित हो जाती है। क्षय रोग होने पर उसके ससुराल वाले उसे घर से निकाल कर सैनेटोरियम भेज देते हैं।

अत्यन्त भावुक प्रकृति
बानो अत्यन्त भावूक प्रकृति की युवती है। पति के युद्ध में जाते समय वह उसके पैरों में पड़ जाती है। उसकी पलकें भीग जाती हैं और उसका गला भर आता है। इसी तरह, दो वर्ष बाद पति के वापस आने पर वह सैनेटोरियम में भर्ती है। पति को देखकर उसकी तरल आँखें खुली ही रह गईं, फिर आँसू टपकने लगे। बानो के बहते आँसुओं की धारा में दो साल के सारे उलाहने सुना दिए।

पतिव्रता
अपने कष्टमय जीवन एवं क्षय रोग से तंग आकर तथा इसके कारण होने वाली परेशानियों से पति को मुक्त करने के लिए वह अपने जीवन को समाप्त करने का निर्णय लेती है और नदी में कूद जाती हैं।

अपनी परेशानियों से अधिक उसे अपने पति की परेशानियों की चिन्ता है। वह ऐसा करके अपने पति को दुःख से मुक्ति प्रदान करना चाहती है। इस प्रकार, बानो (लाटी) का चरित्र अत्यन्त भावपूर्ण एवं संवेदनशील हैं, जो पाठकों के हृदय को झकझोर देता है।

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