UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ.

Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name मुक्तियज्ञ
Number of Questions Solved 6
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ

कथावस्तु पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं पर प्रकाश डालिए। (2018)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की पृष्ठभूमि संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए। (2018)
अथवा
मुक्तियज्ञ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख कीजिए। (2018, 17, 16)
अथवा
“मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में ऐतिहासिक तथ्यों की प्रधानता है।” उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए। (2017)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य का कथासार अपने शब्दों में लिखिए। (2016)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य का कथानक, संक्षेप में लिखिए। (2018, 16)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य का कथानक/कथावस्तु / प्रतिपाद्य और / कथावस्तु दृष्टिकोण को संक्षेप में लिखिए। (2013, 12, 11, 10)
अथवा
“मुक्तियज्ञ गाँधी युग के स्वर्ण इतिहास का काव्यात्मक आलेख है।” पुष्टि कीजिए। (2014, 13, 11, 10)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के आधार पर गाँधीजी का भारत के लिए योगदान पर प्रकाश डालिए। (2011)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य द्वारा कवि सुमित्रानन्दन पन्त ने स्वतन्त्रता प्राप्ति से उपजी किन समस्याओं की ओर पाठकों का ध्यान आकृष्ट किया है? (2011)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में वर्णित प्रमुख राजनैतिक घटनाओं पर प्रकाश डालिए। (2014, 13, 12, 11)
उत्तर:
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘लोकायतन’ महाकाव्य का एक अंश है। इसमें वर्ष 1921 से 1947 तक के मध्य घटित भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की प्रमुख घटनाओं का वर्णन किया गया है। अंग्रेज़ शासकों ने नमक पर कर लगा दिया था। महात्मा गाँधी ने इसका विरोध किया। वे साबरमती आश्रम से चौबीस दिनों की यात्रा करके डाण्डी ग्राम पहुँचे और सागरतट पर नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा।

वह चौबीस दिनों का पथ ब्रत, दो सौ मील किए पद पावन।
स्थल-स्थल पर रुक, पा जन पूजन, दिया दीप्त सत्याग्रह दर्शन।”

इसके माध्यम से वे अंग्रेज़ों के इस कानून का विरोध करके जनता में चेतना उत्पन्न करना चाहते थे। उनके इस विरोध का आधार सत्य और अहिंसा था। गाँधीजी के इस सत्याग्रह से शासक क्षुब्ध हो गए और उन्होंने भारतीयों पर दमनचक्र चलाना आरम्भ कर दिया। गाँधीजी तथा अनेक नेताओं को जेल में डाल दिया गया। भारतीयों द्वारा जेलें भरी जाने लगीं। जैसे-जैसे दमनचक्र बढ़ता गया वैसे वैसे मुक्तियज्ञ भी बढ़ता चला गया। गाँधीजी ने भारतीयों को स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित किया। सभी ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना प्रारम्भ कर दिया। वर्ष 1927 में भारत में ‘साइमन कमीशन’ आया, भारतीयों ने इसका बहिष्कार किया, जिस कारण साइमन कमीशन को वापस जाना पड़ा। वर्ष 1942 में गाँधीजी ने ‘भारत छोड़ो’ का नारा दिया। अब सब पूर्ण स्वतन्त्रता चाहते थे।

अंग्रेजों ने ‘फूट डालो’ की नीति अपनाकर ‘मुस्लिम लीग’ की स्थापना करा दी। मुस्लिम लीग ने भारत विभाजन की माँग की। वर्ष 1947 में भारत को पूर्ण स्वतन्त्र राष्ट्र घोषित कर दिया गया। अंग्रेजों ने भारत और पाकिस्तान के रूप में देश का विभाजन कर दिया। देश में एक ओर तो स्वतन्त्रता का उत्सव मनाया जा रहा था, वहीं दूसरी ओर विभाजन के विरोध में गाँधीजी मौन-व्रत धारण किए हुए थे। वे चाहते थे कि हिन्दू-मुस्लिम पारस्परिक वैर को त्यागकर सत्य, अहिंसा, प्रेम आदि सात्विक गुणों को अपनाएं और मिल-जुलकर रहें।। इस प्रकार ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य देशभक्ति से परिपूर्ण, गाँधी युग के स्वर्णिम इतिहास का काव्यात्मक आलेख है। इसमें उस युग का वर्णन है, जब भारत में चारों ओर हलचल मची हुई थी, चारों ओर क्रान्ति की अग्नि धधक रही थी। कविवर पन्त ने महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व और कृतित्व के माध्यम से विभिन्न आदशों की स्थापना का सफल प्रयास किया है।

प्रश्न 2.
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2018)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की विशेषताओं को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए। (2017)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की विशेषताएँ संक्षेप में लिखिए। (2017)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की कथावस्तु की समीक्षा कीजिए। (2013, 10)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खाण्डकाव्य की कथावस्तु की विशेषताएँ बताइए। (2014, 12)
अथना
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2017, 14)
अथवा
खण्डकाव्य के लक्षणों के आधार पर ‘मुक्तियज्ञ’ की समीक्षा कीजिए। (2010)
उत्तर:
पन्त जी द्वारा रचित ‘मुक्तियज्ञ’ की कथावस्तु की मुख्य विशेषताएँ निम्नांकित हैं।

1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि मुक्तियज्ञ’ के कथानक की पृष्ठभूमि अत्यधिक विस्तृत है। इसमें वर्ष 1921 से 1947 तक के भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का इतिहास है। प्रमुख रूप से इसमें भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की मुख्य पटनाओं का वर्णन है। साथ ही तत्कालीन विश्व की महत्त्वपूर्ण पटनाओं; जैसे—द्वितीय विश्वयुद्ध, जापान पर गिराए गए अणु बमों आदि का भी उल्लेख हुआ है। इसकी व्यापकता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इसकी कथावस्तु एक महाकाव्य में समाहित हो सकती थी, किन्तु पन्त जी ने बड़ी कुशलता से इस विशाल फलक को एक छोटे से खण्डकाव्य में समेट लिया है। अत: यह कहा जा सकता है कि आकार में लागु होते हुए भी ‘मुक्तियज्ञ’ में महाकाव्य जैसी गरिमा है। इसे लोकहित की दृष्टि से रचा गया है। कहीं भी काल्पनिक घटनाओं का वर्णन नहीं है। मुक्तियज्ञ की कथावस्तु का स्वरूप ऐतिहासिक है।

2. प्रमुख घटनाओं का काव्यात्मक वर्णन मुक्तियज्ञ’ सुनियोजित या सर्गबद्ध रचना नहीं है। इसमें वर्ष 1921 से 1947 तक की प्रमुख घटनाओं का वर्णन किया गया है। कथावस्तु में ऐतिहासिकता का ध्यान रखा गया है। ‘मुक्तियज्ञ’ से पूर्व जितने भी खण्डकाव्य लिखे गए, उन सभी में कथावस्तु इतिहास और पुराणों से ली गई है। यह पहला ऐसा खण्डकाव्य है, जिसमें पहली बार किसी कवि ने आधुनिक युग में घटित घटनाओं पर दृष्टि डाली। इस दृष्टि से इस खण्डकाव्य का विशेष महत्व है। इसमें कवि ने आधुनिक इतिहास से सामग्री ग्रहण की हैं।

3. गाँधीवाद की राष्ट्रीय विचारधारा को चिन्तन ‘मुक्तियज्ञ’ में गांधीवादी विचारधारा का चित्रण हुआ हैं। कथानक इतिहास पर आधारित है। कथा में भावात्मकता और काव्यात्मकता का सुन्दर मिश्रण है। इसमें सत्य, अहिंसा, नारी जागरण, आत्म स्वतन्त्रता, हरिजनोद्धार, नशाबन्दी आदि विचारधाराओं को सुन्दर काव्यात्मक रूप प्रदान किया गया है।

4. सरल अभिव्यक्ति ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में गत तत्त्वों की सरल अभिव्यक्ति की गई है। कवि ने आलंकारिकता अथवा प्रतीकात्मकता को सहायता नहीं ली है, अपितु ऐतिहासिक तथ्यों की रक्षा के लिए सरलता का विशेष ध्यान रखा है। कवि ने काव्यालंकारों का प्रयोग नहीं करके इसे बोझिल होने से बचा लिया है। इस खण्डकाव्य की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें स्वतन्त्रता संग्राम की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का समावेश किया गया है।

5. सफल कथावस्तु ‘मुक्तियज्ञ’ की कथावस्तु अत्यन्त विशाल है, जो एक खण्डकाव्य में समाविष्ट नहीं हो सकती। वर्ष 1921 से 1947 तक की घटनाओं को एक खण्डकाव्य में वर्णित नहीं किया जा सकता था, किन्तु पन्त जी ने इस काल की प्रमुख घटनाओं को काव्य के कथानक में इस प्रकार जोड़ा है कि सम्पूर्ण घटनाएँ हमारे सामने सजीव हो उठती हैं। इस प्रकार मुक्तियज्ञ खण्डकाव्य सत्य पर आधारित खण्डकाव्य है। इसमें महात्मा गाँधी । ने जो कुछ भी किया वह राष्ट्र, समाज और मानवता के कल्याण के लिए किया।

प्रश्न 3.
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के नामकरण या शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए। (2016, 15)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की रचना के उद्देश्य /सन्देश पर प्रकाश डालिए। (2010)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में प्रतिपादित सामाजिक चेतना पर प्रकाश डालिए। (2011)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में अभिव्यक्त गाँधी दर्शन की आत्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि को स्पष्ट कीजिए। (2011)
उत्तर:

नामकरण की सार्थकता

‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य का सम्पूर्ण कथानक भारत के स्वतन्त्रता संग्राम से जुड़ा हुआ है। इसके नायक महात्मा गाँधी हैं, जो परम्परागत नायकों से हटकर हैं। इनका यही व्यक्तित्व भारतीय जनता को प्रेरणा और शक्ति देता है। भारत को स्वतन्त्र कराने के लिए इन्होंने एक प्रकार से यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें अनेक देशभक्तों ने हँसते-हँसते अपने प्राणों की आहुति दे दी, अपनी सर्वस्व बलिदान कर दिया। देश की मुक्ति के लिए चलाए गए यज्ञ के कारण ही इस खण्डकाव्य का नाम ‘मुक्तियज्ञ’ रखा गया, जो पूर्णतया सार्थक एवं उचित है।

मुक्तिया खण्डकाव्य का उद्देश्य

‘मुक्तियज्ञ’ एक उद्देश्य प्रधान रचना है। कवि इस रचना के माध्यम से मनुष्य को परतन्त्र भारत की भीषण परिस्थितियों से परिचित कराना चाहता है। इस उद्देश्य में कवि पूर्णतया सफल रहा हैं। कवि ने आधुनिक युग की घटना को खण्डकाव्य का विषय बनाया है। उनका उद्देश्य भावी पीढ़ी को देश की आजादी के इतिहास से परिचित कराना है, साथ ही गाँधी दर्शन की महत्त्वपूर्ण भूमिका को प्रदर्शित करना है। कवि ने पश्चिमी भौतिकवादी दर्शन और गाँधीवादी मूल्यों के बीच संघर्ष का चित्रण किया है और अन्त में गाँधीवादी जीवन मूल्यों की विजय का शंखनाद किया है।

कवि का उद्देश्य असत्य पर सत्य की विजय, हिंसा पर अहिंसा की विजय दिखाकर मानवता के प्रति सच्ची आस्था उत्पन्न करना है तथा जन-जन में विश्वबन्धुत्व और प्रेम की भावना का संचार करना है।

पन्त जी ने ‘मुक्तियज्ञ’ के माध्यम से लोक कल्याण का सन्देश दिया है। काव्य के नायक गाँधीजी क्रो लोकनायक के रूप में चित्रित कर जातिवाद, साम्प्रदायिकता और रंगभेद का कट्टर विरोध किया है। कवि का उद्देश्य केवल स्वतन्त्रता संग्राम के दृश्यों का चित्रण करना ही नहीं है वरन् कवि ने शाश्वत जीवन मूल्यों का भी उद्घोष किया है जो सत्य, अहिंसा, त्याग, प्रेम और करुणा की विश्वव्यापी भावनाओं पर आधारित हैं। गाँधीवादी दर्शन को माध्यम बनाकर कवि ने विश्वबन्धुत्व और मानवतावाद सम्बन्धी आदर्शों की स्थापना की है।

प्रश्न 4.
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की राष्ट्रीयता और देशभक्ति की भावनाओं पर प्रकाश डालिए। (2016)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना का प्रतिपादन किया गया है।” इस कथन की विवेचना कीजिए। (2014, 13)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ में प्रतिपादित सामाजिक चेतना पर प्रकाश डालिए। (2011)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में राष्ट्रीय एकता तथा मानवमात्र का कल्याण निहित है।” इस कथन की विवेचना कीजिए (2018, 09)
उत्तर:
कवि ने आधुनिक युग की घटना को खण्डकाव्य का विषय बनाया है। उनका उद्देश्य भावी पीढ़ी को देश की आज़ादी के इतिहास से परिचित कराना हैं। साथ ही गाँधी दर्शन की महत्त्वपूर्ण भूमिका को प्रदर्शित करना है। कवि ने पश्चिमी भौतिकवादी दर्शन और गाँधीवादी मूल्यों के बीच संघर्ष का चित्रण किया है और अन्त में गाँधीवादी जीवन मूल्यों की विजय का शंखनाद किया है। पन्त जी ने ‘मुक्तियज्ञ’ के माध्यम से लोक कल्याण का सन्देश दिया है। काव्य के नायक गाँधीजी को लोकनायक के रूप में चित्रित कर जातिवाद, साम्प्रदायिकता और रंगभेद का कट्टर विरोध किया है।

कवि का उद्देश्य केवल स्वतन्त्रता संग्राम के दृश्यों का चित्रण करना ही नहीं है वरन् कवि ने शाश्वत जीवन मूल्यों का भी उद्घोष किया है, जो सत्य, अहिंसा, त्याग, प्रेम और करुणा की विश्वव्यापी भावनाओं पर आधारित है। कवि ने इस कृति काव्य में सत्य की असत्य पर विजय और अहिंसा की हिंसा पर विजय दर्शाकिर मानवता के प्रति सच्ची आस्था व्यक्त की है। इससे विश्वबन्धुत्व, प्रेम और सहयोग की भावना सशक्त होगी और विश्व में एकता स्थापित होगी। कवि का यह जीवन दर्शन भारतीय स्वतन्त्रता के आन्दोलन की पृष्ठभूमि में कवि ने गाँधीवादी दर्शन को माध्यम बनाकर विश्वबन्धुत्व और मानवतावाद सम्बन्धी आदशों की स्थापना की है। मुक्तियज्ञ’ का यह पवित्र धुआँ समस्त संसार की मानवता और सांसारिक प्रेम का विस्तृत स्वरूप, प्रहण कर लेता है।

“हिरोशिमा नागासाकी पर, भीषण अणुबम का विस्फोटन,
मानवता के मर्मस्थल का, कभी भरेगा क्या दुःसह व्रण।”

प्रश्न 5.
खण्डकाव्य की दृष्टि से मुक्तियज्ञ’ की समीक्षा कीजिए।
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ के वाक्य कौशल पर प्रकाश डालिए।
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ की भाषा-शैली की क्या विशेषताएँ हैं? (2010)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ की भाषा-शैली पर उदाहरण सहित प्रकाश डालिए। (2012, 11)
अथवा
“आकार की लघुता के बावजूद ‘मुक्तियज्ञ’ की आत्मा में एक महाकाव्य जैसी गरिमा है।” इस कथन की विवेचना कीजिए। (2011, 10)
अथवा
खण्डकाव्य के लक्षणों के आधार पर ‘मुक्तियज्ञ’ की समीक्षा कीजिए। (2010)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ की कथावस्तु खण्डकाव्य की दृष्टि से कितनी सफल है? स्पष्ट कीजिए। (2015)
अथवा
खण्डकाव्य के लक्षणों (विशेषताओं) का ध्यान रखते हुए सिद्ध कीजिए कि ‘मुक्तियज्ञ’ एक सफल खण्डकाव्य है। (2013, 12)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की रचना में कवि की सफलता का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
किसी भी साहित्यिक रचना के काव्य-सौन्दर्य के दो प्रकार होते हैं।

  1. भावपक्ष
  2. शिल्पपक्ष अथवा कलापक्ष।

इन दोनों प्रकारों को दृष्टिगत रखते हुए ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य का काव्य-सौन्दर्य निम्न प्रकार है । भावपक्षीय विशेषताएँ ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की भावपक्षीय विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं।

(i) वैचारिक प्रधानता सुमित्रानन्दन पन्त’ द्वारा रचित खण्डकाव्य ‘मुक्तियज्ञ’ विचार प्रधान खण्डकाव्य है। इसमें गाँधीदर्शन की विस्तृत व्याख्या की गई है। कवि ने गांधीजी के विचारों को बड़े ही सरल, सरस और रुचिकर ढंग से प्रस्तुत किया हैं। कवि ने गाँधीजी की विचारधारा को सत्य, अहिंसा, प्रेम, नारी-जागरण, हरिजनोद्धार, भारतीय कला और संस्कृति की रक्षा, अतिभौतिकता का विरोध, मदिरा के विरुद्ध आन्दोलन तथा स्वदेशी वस्तुओं के अपनाने और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के रूप में प्रस्तुत किया है। समस्त काव्य गम्भीरता से परिपूर्ण है। गाँधीदर्शन एवं भारत के स्वतन्त्रता-संग्राम के भावों को सरल ढंग से प्रस्तुत करते हुए उसका सम्बन्ध विश्व मानवतावाद से जोड़ा है; जैसे-

“प्रतिध्वनित होता जगती में, भारत आत्मा का नैतिक पण,
नई चेतना शिखा जगाता, आत्म-शक्ति से लोक उन्नयन।’

(ii) युग चित्रण कवि ने इस खण्डकाव्य में भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम का पूर्णरूपेण वर्णन किया है। गाँधीजी के पथ-प्रदर्शन में स्वाधीनता आन्दोलन, अंग्रेजों के अत्याचार और आखिर में भारतवासियों के द्वारा स्वराज्य-प्राप्ति, इन सभी घटनाओं का आदि से लेकर अन्त-पर्यन्त इस नाटक में वर्णन किया है।
डॉ. सावित्री सिन्हा के कथनानुसार-“आकार की लघुता के बावजूद ‘मुक्तियज्ञ’ की आत्मा में एक महाकाव्य जैसी गरिमा है।”

(iii) रस परिपाक सुमित्रानन्दन पन्त’ द्वारा रचित ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य वीर रस प्रधान है। इसमें गाँधीजी एवं उनके अन्य सहयोगी लोगों के बलिदान एवं त्याग की साहस से युक्त कार्यों का वर्णन किया गया है। भारतवासियों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध अहिंसात्मक संघर्ष में इन पंक्तियों में वीर रस दर्शनीय है।

गूंज रहा रण शंख, गरजती, भेरी, उड़ता सुर धनु केतन।
ऊर्ध्व असंख्य पदों से धरती चलती, यह मानवता का रण।।”

इसके अतिरिक्त इस खण्डकाव्य में करुण एवं शान्त रस की भी सुन्दर व्यंजना देखने को मिलती हैं।

(iv) प्रकृति चित्रण का अभाव मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के रचयिता सुमित्रानन्दन पन्त’ प्रकृति के चतुर चितेरे हैं। वे प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। उनकी प्रायः प्रत्येक रचना में प्रकृति का अनेक रूपों में वर्णन मिलता है। ‘मुक्तियज्ञ’ में प्रकृति चित्रण का पूर्णतया अभाव है या तो वे प्रकृति का वर्णन करना भूल गए या उन्हें अवकाश ही नहीं मिला, क्योकि ‘मुक्तियज्ञ खण्डकाव्य एक विचार एवं समस्या प्रधान रचना हैं।

कलापक्षीय विशेषताएँ इस खण्डकाव्य में सुमित्रानन्दन ‘पन्त’ जी के कला पक्षीय काव्य-प्रतिभा का उपयोग नहीं के बराबर हुआ है, फिर भी उनकी कलापक्षीय विशेषताओं के दर्शन निम्नलिखित प्रकार से कई रूपों में होते हैं। –

(i) भाषा ‘मुक्तियज्ञ’ में सुमित्रानन्दन पन्त’ जी ने संस्कृतनिष्ठ, खड़ी बोली और सरल हिन्दी का प्रयोग किया है। भाषा में अभिव्यक्ति की सरलता, बोधगम्यता और चित्रात्मकता के साथ-ही-साथ सरसता और सुकुमारता के भी दर्शन होते हैं। कवि द्वारा अनेक स्थलों पर कठिन शब्दावली का भी प्रयोग किया गया है, जिसके कारण कहीं-कहीं पर भाषा बोझिल सी हो गई है। भाषा माधुर्य, प्रसाद और ओज गुण युक्त है।

इस खण्डकाव्य की भाषा भावात्मक और दार्शनिक विचारों को अभिव्यक्त करने में पूर्णतया सक्षम है। यहाँ इससे सम्बन्धित एक उदाहरण दर्शनीय है।

झोंक आग में तन के कपड़े, गिरते पद पर पागल स्त्री-नर।
भेद कभी इतिहास कहेगा, कौन पुरुष चला युग-भू पर।”

(ii) शैली कवि ने ‘मुक्तियज्ञ’ की रचना में मूर्तशैली को अपनाया है, जो सीधी-सादी एवं अभिधा प्रधान है। इसमें गम्भीरता है, प्रौढ़ता है और साथ ही यह सरल भी है। इसमें कवि ने काल्पनिकता का समावेश नहीं किया है। खण्डकाव्य में कवि की दृष्टि कथन की शैली पर कम और कथ्य पर अधिक टिकी है। इनकी शैली में व्यंजना शैली का परिचय मिलता है। इससे सम्बन्धित एक उदाहरण दर्शनीय है।

“मुखर तर्क के शब्द जाल में भटक न खो जाए अन्त:स्वर,
गुरुता से सौजन्य, बुद्धि से, हृदय बोध था उनको प्रियतर।”

(iii) छन्द पन्त’ जी ने ‘मुक्तियज्ञ’ में ‘मुक्त’ छन्द का प्रयोग किया है। समस्त काव्य की रचना में कवि ने 16 मात्राओं की चार-चार पंक्तियों वाले छन्द का प्रयोग किया है। कवि ने कुछ स्थानों पर छन्द परिवर्तन भी किया है।

(iv) अलंकार ‘मुक्तियज्ञ’ में कवि की दृष्टि कथन पर कम और कथ्य पर अधिक होने के कारण अलंकारों का प्रयोग केवल विषय की स्पष्टता के लिए ही किया गया है। फिर भी कवि ने खण्डकाव्य में अनुप्रास, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण आदि अलंकारों का प्रयोग किया है। एक ‘उपमा का उदाहरण दर्शनीय हैं-
“उन्नत जन वन देवदारु-से, स्वर्णछत्र सिर पर तारक नभ।
सौम्य आस्य, उन्मुक्त हास्यमय, प्रात: रवि-सा स्निग्ध स्वर्णप्रभ।।”
मानवीकरण का उदाहरण दर्शनीय है।
“जगे खेत खलिहान, बाग फड़, जगे बैल हाँसया हल विस्मित।
हाट बाट गोचर घर-आँगन, वापी पनघट जगे चमत्कृत।।”

इस प्रकार निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की कहानी की पृष्ठभूमि अधिक विस्तृत है, फिर भी कवि ‘पन्त’ जी ने उसके प्रधान प्रसंगों को इस प्रकार से क्रमबद्ध किया है कि कहानी के क्रमिक विकास में कोई बाधा उत्पन्न नहीं हुई है। कवि द्वारा इस कृति में एक ही रस और एक ही छन्द का प्रयोग किया गया है। अतः इस दृष्टि से यह कृति खण्डकाव्य की सभी विशेषताओं से विभूषित है।

(v) उद्देश्य कवि का उद्देश्य असत्य पर सत्य की विजय, हिंसा पर अहिंसा की विजय दिखाकर मानवता के प्रति सच्ची आस्था उत्पन्न करना है तथा जन-जन में विश्वबन्धुत्व और प्रेम की भावना का संचार करना है।

चरित्र-चित्रण पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 6.
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2018)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के आधार पर गाँधीजी के चरित्र की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2018)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के नायक के चरित्र पर प्रकाश डालिए। (2018)
अथवा
‘मुक्तिया’ खण्डकाव्य के आधार पर प्रधान पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2017)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के नायक का चरित्रांकन कीजिए। (2017)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के मुख्य पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2017)
अथवा
सिद्ध कीजिए कि राष्ट्रपिता गाँधी ‘मुक्तियज्ञ’ के पुरोधा हैं। (2017)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के नायक की विशेषताएँ बताइए। (2016)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ के आधार पर महात्मा गाँधी का चरित्रांकन/चरित्र निरूपण कीजिए। (2016)
अथवा
मुक्तियज्ञ खण्डकाव्य के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 17, 16)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य का नायक कौन हैं? उसकी चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2016)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की दृष्टि से महात्मा गाँधी का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2016)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के नायक कौन हैं? उनका चारित्रिक विश्लेषण कीजिए। (2014, 13, 12, 11, 10)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के नायक महात्मा गाँधी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2015, 14)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ के गाँधीजी इस सदी के महानायक हैं। इस कथन की पुष्टि कीजिए। (2012)
अथवा
“गाँधीजी राष्ट्र के लिए एक समर्पित व्यक्ति थे।” उक्ति पर प्रकाश डालिए।
अथवा
“व्यक्ति गाँधी का चित्रण कवि का ध्येय नहीं है-राष्ट्रपिता और राष्ट्रनायक गाँधी ‘मुक्तियज्ञ’ के मुख्य पुरोधा हैं।” इस कथन को ध्यान में रखते हुए गाँधीजी के व्यक्तित्व का विश्लेषण कीजिए।
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ में महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व का वही अंश उभारा गया है, जो भारतीय जनता को शक्ति और प्रेरणा देता है। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं? (2011, 10)
उत्तर:
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में गाँधीजी को नायक के रूप में चित्रित किया गया है। वह इस सदी के महानायक हैं। उन्होंने सत्य, अहिंसा, प्रेम, भाईचारे के महान् गुणों से विश्व और मानवता का कल्याण किया है, लोगों को परम सुख और सन्तोष प्रदान किया है। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. सत्य-अहिंसा के पुजारी गाँधीजी सत्य और अहिंसा के महान् पुजारी थे। देश में जब चारों ओर हिंसा की अग्नि धधक रही थी, तब उन्होंने सत्य और अहिंसा का सहारा लिया। उन्हें पूर्ण विश्वास था कि बिना रक्तपात के भी स्वतन्त्रता प्राप्त की जा सकती है और इन्हीं अस्त्रों के बल पर गाँधीजी ने अंग्रेजों की नींव हिलाकर रख दी। कठिन-से-कठिन परिस्थितियों में भी वह अपने सिद्धान्तों पर अडिग रहे और अन्ततः उन्हीं के सिद्धान्तों पर भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई।
  2. दृढ़प्रतिज्ञ महात्मा गाँधी अपने निश्चय पर दृढ़ रहने वाले एक साहसी व्यक्ति थे। उन्होंने जिस कार्य को पूरा करने का संकल्प किया, उसे वह करके ही रहे। कोई बाधा-विघ्न उन्हें पथ से विचलित नहीं कर सकी। उन्होंने नमक कानून तोड़ने की प्रतिज्ञा को पूरा करके ही दिखाया।
  3. जननायक महात्मा गाँधी जन-जन के प्रिय नेता रहे हैं। उनके एक इशारे पर लाखों नर-नारी अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने के लिए तत्पर रहते थे। भारत की जनता ने उनका पूरा साथ दिया और उनके साथ आजादी की लड़ाई लड़कर अंग्रेजों से अपने आपको मुक्त कराया।
  4. समदर्शी महात्मा गाँधी सबको समान दृष्टि से देखते थे। उनके लिए न कोई बड़ा था, न कोई छोटा। उन्होंने देश से छुआछूत के भूत को भगाने के लिए अथक प्रयास किया। उनकी दृष्टि में कोई अछूत नहीं था।
  5. मानवता के पुजारी ‘मुक्तियज्ञ’ के नायक गाँधीजी ने अपना सम्पूर्ण जीवन मानव के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उनका दृढ़ विश्वास था कि घृणा, घृणा से नहीं, अपितु प्रेम से मरती हैं। उनमें दया, करुणा, त्याग, संयम, विश्वबन्धुत्व एवं वीरता के गुण भरे हुए थे।
  6. जातिप्रथा के विरोधी गाँधीजी जातिप्रथा के कट्टर विरोधी थे। उनका मानना था कि भारत जाति-पाँति के भेदभाव में पड़कर अपना विनाश कर रहा है।

इस प्रकार ‘मुक्तियज्ञ’ के नायक गाँधीजी महान् लोकनायक, सत्य एवं अहिंसा के पुजारी, निर्भीक, दृढ़प्रतिज्ञ और साहसी पुरुष के रूप में हमारे सामने आते हैं। कवि ने उनमें सभी लोक कल्याणकारी गुणों का समावेश किया है।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

Leave a Comment