UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 4 बहादुर part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 4 बहादुर.
Board | UP Board |
Textbook | SCERT, UP |
Class | Class 12 |
Subject | Sahityik Hindi |
Chapter | Chapter 4 |
Chapter Name | बहादुर |
Category | UP Board Solutions |
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 4 बहादुर
बहादुर – पाठ का सारांश/कथावस्तु
(2018, 16)
‘दिलबहादुर’ से ‘बहादुर’ बनने की प्रक्रिया ‘दिलबहादुर लगभग 12-13 वर्ष का एक पहाड़ी नेपाली लड़का है, जिसके पिता की युद्ध में मृत्यु हो चुकी है और उसकी माँ बहुत गुस्सैल स्वभाव की है। माँ की पिटाई की वजह से वह घर से भाग कर एक मध्यम वर्गीय परिवार में नौकर बन जाता है, जहाँ गृहस्वामिनी निर्मला बड़ी उदारता के साथ उसके नाम से ‘दिल’ शब्द हटाकर उसे सिर्फ बहादुर पुकारती है। अब स्वतन्त्र ‘दिलबहादुर’ नौकर ‘ बहादुर’ बन गया।
परिश्रमी एवं हँसमुख बहादुर
बहादुर अत्यन्त परिश्रमी लड़का है, जो अपनी मेहनत से पूरे घर को न केवल साफ़ सुथरा रखता है, बल्कि घर के सभी सदस्यों की सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है। उसके आने से परिवार के सभी सदस्य बड़े ही आरामतलबी एवं कम्पोर या आलसी बन गए हैं। इतना काम करने के बावजूद वह हमेशा हंसत। रहता है। सना और हंसाना मानो उसकी आदत बन गई थी। वह रात में सोते समय कोई-न-कोई गीत अवश्य गुनगुनाता है।
किशोर की बदतमीजी
निर्मला का बड़ा लड़का किशोर एक बिगड़ा हुआ लड़का था, जो शान-शौकत तथा रोय से रहना पसन्द करता था। उसने अपने सारे काम बहादुर को सौंप दिए। यदि बहादुर उसके काम में थोड़ी-सी भी लापरवाही करता, तो वह बहादुर को गालियाँ देता। छोटी-छोटी गलती पर वह बहादुर को पीटता भी था। बहादुर पिटाई खाकर एक कोने में चुपचाप खड़ा हो जाता और कुछ देर बाद घर के कामों में पूर्ववत् जुट जाता।
एक दिन किशोर ने बहादुर को ‘सुअर का बच्चा’ कह दिया, जिससे उसके स्वाभिमान को ठेस पहुँची और उसने किशोर का काम करने से मना कर दिया। उसने लेखक के पूछने पर रोते हुए कहा कि-”बाबूजी, मैया ने मेरे मरे बाप को क्यों लाकर खड़ा किया?” इतना कहकर वह रो पड़ा।
निर्मला के रिश्तेदार द्वारा चोरी का आरोप लगाना
धीरे-धीरे निर्मला के व्यवहार में भी अन्तर आने लगा और अब उसने बहादुर के लिए रोटियाँ सेंकनी बन्द कर दीं। वह भी बहादुर पर हाथ उठाने लगी। मारपीट एवं गालियों के कारण बहादुर से गलतियाँ एवं भूलें अधिक होने लगीं। एक दिन निर्मला के घर उसके रिश्तेदार अपने परिवार के साथ आए। चाय-नाश्ते के बाद बातचीत के दौरान अचानक रिश्तेदार की पत्नी ने अपने ग्यारह रुपये घर में खो जाने की बात कही। सभी ने बहादुर पर ही शक किया। बहादुर के लगातार मना करने के बावजूद उसे डराया, धमकाया एवं पीटा गया, चूंकि बहादुर पर लगा यह आरोप झूठा था, इसलिए वह लगातार इससे इनकार करता रहा। अन्त में लेखक ने भी उसे पीटा।
बहादुर के प्रति घरवालों का कटुतापूर्ण व्यवहार
इस घटना के बाद से घर के सभी सदस्य बहादुर को सन्देह की दृष्टि से देखने लगे और उसे कुत्ते की तरह दुत्कारने लगे। बहादुर भी बहुत ही खिन्न रहने लगा। अब उसके अन्दर परिवार के लोगों के प्रति अपनापन नहीं रहा। अन्दर से वह बड़ी बेचैनी एवं बन्धन महसूस करता था।
बहादुर का घर से भाग जाना
एक दिन उसके हाथ से सिल छूटकर गिर गई और उसके दो टुकड़े हो गए। पिटाई के डर तथा लोगों के क्रूर एवं असभ्य व्यवहार से तंग आकर वह अपना सारा सामान घर में ही छोड़कर कहीं चला गया। वह अपना भी कोई सामान लेकर नहीं गया। निर्मला, उसके पति एवं किशोर को उसकी ईमानदारी पर विश्वास हो गया था। वे जानते थे कि रिश्तेदार के रुपये उसने नहीं चुराए थे। सभी बहादुर पर स्वयं द्वारा किए गए अत्याचारों के लिए पश्चाताप करने लगे।
‘बहादुर’ कहानी की समीक्षा
(2018, 17, 16, 14, 13, 11, 10)
श्री अमरकान्त द्वारा रचित ‘बहादुर’ कहानी एक मध्यमवर्गीय परिवार के जीवन से सम्बन्धित समस्याओं पर आधारित है। इसमें एक बेसहारा पहाडी लड़के की मार्मिक कथा का वर्णन है। कहानी के तत्वों के आधार पर प्रस्तुत कहानी की समीक्षा इस प्रकार हैं-
कथानक
इस कहानी की कथावस्तु में मध्यम वर्गीय परिवार की साधारण सी लगने वाली कई बातों के माध्यम से मानवीय करुणा को प्रदर्शित किया गया है। आरम्भ से अन्त तक यह कहानी बहादुर के इर्द-गिर्द ही घूमती हैं। सहजता, रोचकता, संक्षिप्तता कहानी की विशेषता है तथा यह एक यथार्थवादी कहानी भी है।
बहादुर एक बेसहारा पहाड़ी नेपाली लड़का है। उसके पिता की मृत्यु हो चुकी है और उसकी माँ उसे हमेशा मारती रहती हैं, जिससे तंग आकर वह घर से भाग जाता है और एक मध्यम वर्गीय परिवार में घरेलू नौकर के रूप में नौकरी करने लगता है। वह हँसमुख, ईमानदार और परिश्रमी लड़का है। निर्मला, जो गृहस्वामिनी है, बहादुर का पूरा ध्यान रखती हैं। निर्मला का बड़ा लड़का किशोर बहादुर पर पूरी तरह आश्रित है। इसके बावजूद वह ज़रा-जरा सी बात पर बहादुर को गालियाँ देता है तथा पीटता है। कुछ दिन बाद निर्मला का व्यवहार भी बहादुर के प्रति बदल जाता है। एक दिन किशोर ने बहादुर के पिता को सम्बोधित कर गाली दे दी, जो बहादुर को बहुत बुरी लगी और उस दिन उसने न तो कोई काम किया और न ही खाना खाया। एक दिन निर्मला के घर कुछ रिश्तेदार आए, उन्होंने बहादुर पर ग्यारह रुपये चोरी करने का आरोप लगाया तथा इसी के लिए निर्मला के पति ने बहादुर की पिटाई कर दी। इस घटना से बहादुर बहुत आहत हो गया और वह चुपचाप घर छोड़कर चला गया। उसके जाने के बाद घर वालों को उसकी कमी महसूस हुई और बाद में सभी लोग पश्चाताप करने लगे। इस प्रकार यह कहानी एक अल्पवयस्क नौकर के मनोविज्ञान को भी प्रकट करती है।
पात्र और चरित्र-चित्रण
प्रस्तुत कहानी का सर्वाधिक प्रमुख पात्र एवं नायक बहादुर है, जिस पर पूरा कथानक टिका हुआ है। इस चरित्र के महत्व का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इस चरित्र के आधार पर ही कहानी का शीर्षक रखी गया है। उसके स्वभाव में कुछ ऐसी सरसता, भोलापन, करुणा एवं वेदना है, जिसके कारण उसे नज़रअन्दाज़ करना असम्भव है। अन्य पात्रों में निर्मला जो पर की स्वामिनी है, निर्मला का पति व निर्मला का पुत्र किशोर जोकि बिगड़ा हुआ | नवयुवक है तथा नौकर को हीन दृष्टि से देखता है।
कथोपकथन या संवाद
इस कहानी के संवाद अत्यन्त सरल, संक्षिप्त, स्वाभाविक, स्पष्ट, रोचक, सार्थक तथा गतिशील हैं। ये पात्रों के अनुकूल तथा सटीक हैं। संवाद संक्षिप्त तथा स्वाभाविक कथोपकथन पर आधारित हैं।
देशकाल और वातावरण
कहानी में देशकाल और वातावरण का भी ध्यान रखा गया है। कहानी में निम्न तथा मध्यम वर्गीय परिवार के लिए सजीव तथा स्वाभाविक वातावरण का चित्रण किया गया है। नौकर पर रोब जमाना, उससे जी तोड़ काम कराना, उसे बात-बात पर बार-बार पीटना, गाली देना आदि घटनाओं ने पारिवारिक वातावरण को मार्मिक बना दिया है।
भाषा-शैली
प्रस्तुत कहानी में अमरकान्त नै सरल, स्वाभाविक और सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है तथा चित्रात्मक शैली का भी प्रयोग किया गया है। भाषा कथा के अनुरूप है, जिसमें अन्य भाषाओं के शब्द भी लिए गए हैं, जैसे-शरारत, ओहदा, किस्सा, ज़रा आदि उर्दू शब्द है। लोकोक्तियों तथा मुहावरों का भी प्रयोग हुआ है; जैसे–माथा ठनकना, नौ दो ग्यारह होना, पंच बराबर होना आदि। इसके अतिरिक्त इसमें वर्णनात्मक, काव्यात्मक और आलंकारिक शैली का प्रयोग किया गया है।
उद्देश्य
यह कहानी निम्न एवं मध्यमवर्गीय समाज के मनोविज्ञान के वास्तविक चित्र को प्रदर्शित करती है। इस कहानी के माध्यम से वर्ग भेद मिटाने को प्रोत्साहन दिया गया है, जो मानवीय सहानुभूति के आधार पर ही मिट सकता है।
शीर्षक
कहानी का ‘बहादुर’ शीर्षक आकर्षक व मुख्य पात्राधारित है। अमरकान्त जी की कहानी के शीर्थक व्यक्ति विशेष से सम्बन्धित हैं। सम्पूर्ण कहानी की कथावस्तु घटनाएँ ‘बहादुर’ के इर्द-गिर्द घूमती हैं। ‘बहादुर’ कहानी का शीर्षक अत्यन्त सरल, संक्षिप्त एवं रोचक है, जो पाठक के मन में कौतूहलता उत्पन्न करता है। अतः शीर्षक की दृष्टि से ‘बहादुर’ कहानी सफल व सार्थक है।
‘बहादुर’ का चरित्र-चित्रण
(2017, 16, 14, 13, 11, 10)
अमरकान्त द्वारा लिखित कहानी ‘बहादुर’ में मुख्य रूप से चार पात्र हैं-लेखक या निर्मला का पति, निर्मला, पुत्र किशोर तथा पहाड़ी नौकर दिलबहादुर, जिसे निर्मला ने केवल बहादुर नाम दे दिया था और यही बहादुर कहानी का नायक हैं। बहादुर के चरित्र की अनेक विशेषताएँ हैं, जिन्हें निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर देखा जा सकता है-
छल-कपट रहित भोला बालक
12-13 वर्ष का नेपाली बालक बहादुर बहुत ही भोला है और छल-कपट से कोसों दूर है। उसमें न तो किसी प्रकार की कृत्रिमता या बनावटीपन है और न ही किसी बात को छिपाने की कला। वह किसी भी बात का बिलकुल सच एवं स्पष्ट उत्तर देता है।
परिश्रमी
बहादुर अत्यन्त परिश्रमी लड़का है। वह घर के सभी सदस्यों के अधिश कार्यों को करता है और उन्हें करते हुए न कोई आलस्य दिखाता है और न कोई अनमनापन। वह बड़े ही प्यार एवं जिम्मेदारी के साथ अपने कार्यों को सम्पन्न करता है।
हँसमुख एवं मृदुभाषी
बहादुर हर समय हँसते रहने वाला लड़का है। वह किसी भी बात कहकर अपनी नैसर्गिक, स्वाभाविक हँसी जरूर हँसता है, जो सामने देखने सुनने वालों के हृदय को । झंकृत कर देती हैं। वह सभी लोगों के प्रश्नों का उत्तर बड़े ही मीठे स्वर में हँसकर देता है।
ईमानदार एवं सच्चा हृदय
गरीब होने के बावजूद भी बहादुर अत्यधिक ईमानदार बालक है, जिसे बेईमानी हूँ तक नहीं पाई है। उसके मन में कोई लालच नहीं है। घर में कहीं गिरे या पड़े पैसों को वह निर्मला के हाथों में रख देता है। वह घर छोड़कर जाते समय भी अपना सामान तक नहीं ले जाती हैं।
सहनशील एवं स्वाभिमानी
बहादुर बड़ा ही सहनशील बालक है। वह घर के सारे काम करने के बावजूद निर्मला की झाँट खाता रहता है। किशोर द्वारा भी कई बार बदतमीज़ियाँ की जाती हैं, जिन्हें वह थोड़ी देर में ही भूल जाता है और अपने काम में पूर्ववत् लग जाता है। एक बार किशोर द्वारा उसके पिता से सम्बन्धित गाली देने पर उसका स्वाभिमान जाग जाता है। वह किशोर का काम करने से इनकार कर देता है।
मातृ-पितृभक्त बालक
बहादुर का हृदय मातृभक्ति एवं पितृभक्ति की भावना से ओत-प्रोत हैं। माँ द्वारा पीटे जाने के कारण घर से भागा बहादुर माँ के पास जाना नहीं चाहता, लेकिन मात-पिता के प्रति अपने फर्ज को वह अच्छी तरह समझता है।। इसीलिए वह अपने कमाए पैसों को माँ को ही देना चाहता है। अपने पिता के प्रति प्रेम ने ही उसे किशोर का काम करने से मना करने हेतु प्रेरित किया।
व्यवहार कुशल
बहादुर बहुत व्यवहार कुशल बालक हैं। इसी व्यवहार कुशलता के कारण वह घर के सभी सदस्यों को अत्यधिक प्रभावित कर देता है। मोहल्ले के बच्चों को भी वह अपने गाने सुनाकर मोहित कर लेता है।
स्नेही बालक
वह निर्मला के अन्दर अपनी माँ की छवि देखता है। वह स्नेह का भूखा है। जब निर्मला उसका ध्यान रखती है, तो वह भी बीमार निर्मला का बहुत ध्यान रखता हैं। उसे निर्मला के स्वास्थ्य की बहुत चिन्ता है। इस प्रकार, बहादुर पाठकों के हृदय-पटल पर अपना अमिट चित्र अंकित कर देता है। पाठक उसे लम्बे समय तक याद रखते हैं।
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