UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 9 Urban Settlements

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Geography
Chapter Chapter 9
Chapter Name Urban Settlements (नगरीय अधिवास बस्तियाँ)
Number of Questions Solved 14
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 9 Urban Settlements (नगरीय अधिवास बस्तियाँ)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
नगरों की उत्पत्ति एवं विकास के कारक बताइए तथा विकास-क्रम के आधार पर नगरों का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिएं। नगरीकरण से क्या तात्पर्य है?
या
नगरीकरण की उत्पत्ति तथा विकास को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिए। [2014, 16]
या
नगरीय अधिवास की मुख्य विशेषताएँ बताइए तथा कार्यों के अनुसार नगरीय अधिवासों का वर्गीकरण कीजिए।
या
नगरीय अधिवास की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2015)

नगरीय अधिवास
Urban Settlement

नगरीय अधिवास उद्योग, व्यापार, प्रशासन, सुरक्षा, शिक्षा-तकनीकी, संस्कृति एवं मनोरंजन के केन्द्र होते हैं। ग्रामीण एवं नगरीय अधिवासों में कुछ अन्तर होता है- ग्रामीण अधिवास तो प्राथमिक व्यवसायों; जैसे-आखेट, मत्स्य संग्रहण, पशुचारण, कृषि आदि कार्य करने वाले लोगों की बस्तियाँ होती हैं, जबकि नगरीय अधिवास अकृषित कार्यों; जैसे- निर्माण उद्योग, परिवहन, व्यापार, वाणिज्य, उच्च सेवाओं, प्रशासनिक आदि कार्य करने वाले लोगों की बस्तियाँ होती हैं। इन नगरीय अधिवासों द्वारा इन कार्यों में से एक अथवा दो व्यवसाय या सभी कार्य भी किये जा सकते हैं।

नगरीकरण का अर्थ एवं परिभाषाएँ
Meaning and Definitions of Urbanization

नगरीकरण वर्तमान युग की एक महत्त्वपूर्ण घटना है। यद्यपि आज से हजारों वर्ष पूर्व भी पृथ्वी पर नगर थे परन्तु उस समय नगरीकरण की प्रक्रिया अत्यन्त मन्द थी। वस्तुतः नगरीकरण का आशय व्यक्तियों द्वारा शहरी संस्कृति को स्वीकार करना है। नगरीकरण की निम्नलिखित परिभाषाओं द्वारा इस तथ्य को ठीक प्रकार समझा जा सकता है –

  1. एण्डरसन के अनुसार, “गाँव से नगर की ओर जनसंख्या के गतिशील होने, साथ ही ग्रामीण जीवन के नगरीय जीवन में परिवर्तित होने की प्रक्रिया नगरीकरण कहलाती है।”
  2. ग्रिफिथ टेलर के अनुसार, “गाँवों से नगरों को जनसंख्या का स्थानान्तरण ही नगरीकरण कहलाता है।”

नगरीय अधिवास की विशेषताएँ
Characteristics of Urban Settlement

  1. नगर मिश्रित मकानों अथवा इमारतों का एक समूह होता है। इसमें निम्न, मध्यम एवं उच्च आय वर्गों के निवासस्थान, वाणिज्य क्षेत्र, कारखाने, शिक्षा, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, मनोरंजन, परिवहन, व्यापारिक तथा व्यावसायिक कार्य विकसित होते हैं। प्रशासनिक इकाइयाँ भी नगरीय व्यवस्था के प्रमुख अंग हैं।
  2. नगरों में व्यावसायिक विभिन्नताएँ पायी जाती हैं। इनके अधिकांश निवासी निर्माण, उद्योग, परिवहन, व्यापार-वाणिज्य, उच्च सेवाओं तथा प्रशासनिक आदि कार्यों में लगे होते हैं।
  3. नगरों में संगठित मकान अधिक पाये जाते हैं। यहाँ अनेक मंजिल वाले भवन बनाये जाते हैं। मकानों में सोने के कमरे, स्नानगृह, शौचालय तथा रसोईघर आदि सुविधाओं की पृथक् व्यवस्था होती है।
  4. नगरों में पक्की सड़कें तथा गलियाँ होती हैं। ये परिवहन मार्गों के केन्द्र होते हैं। इनमें गन्दे जल के निकास की व्यवस्था नालियों द्वारा की जाती है।
  5. नगरों में रोशनी, पेयजल, स्वच्छता एवं शान्ति बनाये रखने की भी व्यवस्था होती है।
  6. नगरों में व्यावसायिक, शैक्षणिक तथा प्रशासनिक आदि विभिन्न संस्थान भी होते हैं, जो नगरीय जीवन के आवश्यक एवं गतिशील अंग होते हैं।
  7. नगरों में परिवहन, संचार एवं दूरसंचार के साधनों की भी समुचित व्यवस्था होती है। यहाँ वनों का कर्णभेदी शोर तथा ग्रामीण प्रदेशों से आने वाले दैनिक व्यक्तियों की भीड़-भाड़ अधिक रहती है।
  8. अनेक नगर सुनियोजित ढंग से बसाये जाते हैं। इनमें पार्क, जल प्रदाय, धर्मशालाएँ आदि सार्वजनिक स्थान भी समुचित ढंग से बनाये जाते हैं।
  9. नगरों में सामाजिक-सांस्कृतिक सेवाओं में विद्यालय, अस्पताल, सामुदायिक विकास केन्द्र, खेल के मैदान, पार्क, क्लब, सिनेमाघर आदि भी पाये जाते हैं।
  10. नगरीय जीवन प्राकृतिक पर्यावरण से दूर फैशन एवं कृत्रिमता से पूर्ण होते हैं।

नगरों की उत्पत्ति एवं विकास के कारक
Origin and Factors of Development of Towns

नगर सांस्कृतिक विकास को प्रदर्शित करते हैं और इनका प्रारम्भ कृषि तथा पशुपालन के परिपक्व स्तर पर पहुँचने के कारण आज से पाँच-छ: हजार वर्षों पूर्व हुआ था। नगरों की उत्पत्ति एवं उनका विकास निम्नलिखित कारकों द्वारा हुआ है –
(1) अतिरिक्त उत्पादन (Surplus Production) – प्राथमिक उत्पादक क्षेत्रों में अतिरिक्त उत्पादन के कारण समाज के कुछ लोगों ने प्राथमिक उत्पादन से अवकाश ले लिया। इससे समाज में शैक्षणिक, व्यापारिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक कार्यों का प्रसार प्रारम्भ हुआ।
(2) प्रथम नगरीय क्रान्ति (First Urban Revolution) – प्राचीन नवपाषाण युग, जिसे नगरीय क्रान्ति युग’ भी कहते हैं, में नयी उत्पादन विधियों, नये विचार, आविष्कार एवं सृजनात्मक कार्य, कला-कौशल, भाषा, साहित्य, सामाजिक-राजनीतिक संगठन, उद्योग आदि नये कार्य प्रकट हुए। इससे नगरों की उत्पत्ति और उनके विकास आरम्भ हुए। पहले केन्द्रीय गाँव नगर बनने लगे।

(3) क्षेत्रीय केन्द्रीयता (Regional Centrality) – नगर, स्थानीय एवं क्षेत्रीय केन्द्रीयता के कारण विकास कार्यों के लिए केन्द्रीय स्थानों के रूप में उभरे।
(4) राजनीतिक कारक (Political Factors) – राजाओं व सम्राटों ने अपनी सत्ता कायम रखने के लिए नगरीय केन्द्रों को अपनी राजधानी बनाया। ये नगर प्रारम्भ से ही राजकीय शक्ति तथा सामाजिक-आर्थिक कार्यों के केन्द्र बन गये थे। इनके कारण कुछ ग्रामीण बस्तियाँ नगरीय केन्द्रों के रूप में उदित हुई हैं।

(5) आर्थिक, औद्योगिक-व्यापारिक कारक (Economic, Industrial, Commercial Factors) – उद्योग-धन्धे, विभिन्न व्यवसाय, बाजार, मण्डी, राजमहल जैसे- राजकीय कार्य या शिक्षण-प्रशिक्षण आदि संस्थाओं के एक केन्द्रीय स्थल पर एकत्रित होने के कारण नगरों की क्षेत्रीयता की शक्ति बढ़ गयी तथा इनके चारों ओर बसे मानव-समूहों पर राजसत्ता का नियन्त्रण अधिक सम्भव हो गया।

(6) धार्मिक-सामाजिक कारक (Religious-Social Factors) – पश्चिमी एशिया की आरम्भिक सभ्यताओं में राजा न केवल राजसत्ता, बल्कि धार्मिक कार्यों का भी प्रमुख होता था और उसकी सत्ता ईश्वर के रूप में मानी जाती थी। इस प्रकार धर्म एवं राजशक्ति, दोनों के एकजुट होने पर व्यापारिक कार्य तथा अन्य कार्य एक स्थान पर एकत्र होते गये तथा नगरों का भी विकास होता गया।

(7) सुरक्षा केन्द्र (Defence Centres) – राजधानी की सुरक्षा के लिए नगर सैनिक केन्द्र तथा आन्तरिक सुरक्षा केन्द्र बन गये। इन्हीं कारणों से प्राचीन तथा मध्ययुगीन नगर परकोटायुक्त तथा किले वाले बनाये जाते थे।

(8) बहुधन्धी विकास-मूलक कारक (Multi-Developmental Factors) – राजधानी, प्रशासन, धर्मसत्ता, व्यापार, उद्योग-धन्धे, सुरक्षा, शिक्षण-प्रशिक्षण, संगठन, विकास, कल्याण आदि सभी कार्यों के एकजुट हो जाने से नगर की सत्ता चारों ओर के समीपवर्ती क्षेत्र पर बढ़ती गयी।

(9) सांस्कृतिक कारक (Cultural Factors) – कला-कौशल, स्थापत्य कला, संगीत, धर्म आदि के ज्ञाताओं का कार्य-क्षेत्र केन्द्रीय स्थानों और राजधानियों में अधिक था। इसी कारण नगर सांस्कृतिक विकास के केन्द्र हो गये।

आधुनिक औद्योगिक विकास – आधुनिक औद्योगिक युग को द्वितीय नगरीय क्रान्ति’ (Second Urban Revolution) कहा जाता है। आधुनिक उद्योग-धन्धे वृहत् पैमाने पर विकसित हुए हैं। इनमें सम्पूर्ण विश्व में आधुनिक परिवहन साधनों द्वारा कच्चे माल की पूर्ति की जाती है तथा उत्पादों की खपत भी विश्व स्तर पर की जाती है। इस प्रकार पूँजी, श्रम, तकनीकी एवं प्रबन्ध कुशलता, ज्ञान-विज्ञान आदि का आदान-प्रदान विश्व स्तर पर हो गया है; अतः सम्पूर्ण विश्व एक इकाई होता जा रहा है। कृषि, उद्योग, व्यापार एवं परिवहन के क्षेत्र में उत्पन्न क्रान्तियों ने एकजुट होकर नगरीय-क्रान्ति को जन्म दिया है। औद्योगीकरण तथा नगर एक-दूसरे के लिए प्रेरक हो गये हैं।

किसी भी स्थल पर उद्योग-धन्धों के स्थापित होने के साथ-साथ नगर बसना आरम्भ हो जाता है। नगर बसने के साथ ही अन्य कार्य; जैसे-व्यापारिक दुकानें, सेवा करने वाली दुकानें, प्रशासनिक इकाइयाँ, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं को पूरा करने वाले अनेक कार्य आदि समय के साथ-साथ विकसित होते जाते हैं। पुनः जनसंख्या में वृद्धि से नये उद्योग-धन्धे स्थापित होने प्रारम्भ हो जाते हैं। इस आधार पर औद्योगीकरण से नगरीकरण तथा नगरीकरण से औद्योगीकरण का क्रम विकसित होता जाता है। अत: उद्योग-धन्धों के प्रसार से निम्नलिखित प्रकार के नगरों का विकास होता है –

  1. खनन नगर
  2. व्यापारिक नगर
  3. शैक्षणिक नगर
  4. मनोरंजन एवं स्वास्थ्यवर्द्धक नगर
  5. पर्वतीय नगर
  6. बन्दरगाह या पत्तन नगर
  7. क्रीड़ा नगर तथा
  8. परिवहन नगर।

नगरों का वर्गीकरण Classification of Towns
विकास-क्रम के आधार पर भी नगरों का वर्गीकरण किया जाता है। इस सम्बन्ध में लुईस ममफोर्ड एवं ग्रिफिथ टेलर के वर्गीकरण महत्त्वपूर्ण हैं –
(अ) लुईस ममफोर्ड का वर्गीकरण Louis Mumford’s Classification
अमेरिकी समाजशास्त्री लुईस ममफोर्ड ने नगरों के विकास की छः अवस्थाएँ. बतायी हैं, जो निम्नलिखित हैं –

  1. इओपोलिस – ग्रामीण क्षेत्रों में विकसित सेवा-केन्द्रों, केन्द्रीय बाजारों या कस्बों को प्राथमिक नगर अर्थात् इओपोलिस कहते हैं। यह नगरीय विकास की प्रारम्भिक अवस्था होती है।
  2. पोलिस – जब ये सेवा-केन्द्र या केन्द्रीय बाजार पूर्ण नगरों के रूप में विकसित होते हैं तो उन्हें पोलिस कहा जाता है। इनमें परिवहन, व्यापार एवं सेवा संस्थानों आदि का विकास परिपूर्ण हो जाता है।
  3. मेट्रोपोलिस – ये बड़े केन्द्रीय नगर होते हैं। ये राज्यों या देशों की राजधानियाँ, औद्योगिक नगर एवं व्यापारिक केन्द्र आदि महानगरों के रूप में होते हैं। इनमें पार्क, खेल के मैदान, सड़कें, सांस्कृतिक संस्थान आदि विकसित हो जाते हैं। इनमें उच्च सांस्कृतिक भू-दृश्य देखने को मिलता है।
  4. मेगालोपोलिस – यह नगरीय विकास का चरम बिन्दु होता है। व्यापार एवं उद्योगों के अतिरिक्तं यहाँ विशाल एवं बहुमंजिले भवन, विलास-स्थल, मनोरंजन केन्द्र, साहित्य एवं कला-कौशल के केन्द्र विशिष्ट रूप में विकसित होते हैं। आर्थिक-सामाजिक स्तर पर कुछ विशेष व्यक्तियों का एकाधिकार हो जाता है, जिससे इनका पतन होना प्रारम्भ हो जाता है।
  5. टायरेनोपोलिस – अधिक बड़े आकार की बस्ती, एकाधिकारी प्रभुसत्ता, बेरोजगारी, अपराध और दुष्कर्मों की अधिकता से आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं प्रशासनिक दृष्टिकोण से ह्रास करने लगती है। इन नगरों के निवासी इन्हें छोड़कर अन्यत्र स्थानों पर बसने के लिए चले जाते हैं।
  6. नेक्रोपोलिस – इस अवस्था में नगर का पतन चरम सीमा तक होता है। इसमें अपराध, दरिद्रता एवं अराजकता फैली रहती है। नगर-निवासियों की धार्मिक-सामाजिक व्यवस्था टूट जाती है।

( ब ) ग्रिफिथ टेलर का वर्गीकरण Griffith Taylor’s Classification
ग्रिफिथ टेलर ने नगरों के विकास की सात अवस्थाएँ बतायी हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित है –
(1) पूर्व-शैशवावस्था – यह नगरीय विकास की आरम्भिक अवस्था है। एक सड़क या गली के सहारे-सहारे लोग अस्थायी रूप से बस जाते हैं। यहाँ पर सामान्य आवश्यकता की कुछ दुकानें भी विकसित हो जाती हैं।

(2) शैशवावस्था – नगरीय विकास की इस अवस्था में मुख्य सड़क या गली के समानान्तर एवं लम्बवत् सड़कों व गलियों का विकास होता है। इससे सड़क मार्गों का एक जाल-सा बन जाता है। मुख्य सड़क-मार्गों एवं चौराहों पर विभिन्न दुकानें विकसित हो जाती हैं।
(3) बाल्यावस्था – इस अवस्था में नगर का विकास आरम्भ हो जाता है तथा नगर के केन्द्रीय भाग में चौक जैसा केन्द्रीय व्यापारिक गूर्त (C.B.D.) बन जाता है।

(4) किशोरावस्था – इसमें नगर का केन्द्रीय भाग पूर्ण रूप से स्पष्ट हो जाता है। व्यापार के अतिरिक्त विभिन्न कार्य; जैसे-उद्योग, परिवहन, शिक्षण-प्रशिक्षण, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, वित्तीय एवं अन्य नगरीय सामाजिक-सांस्कृतिक सेवाएँ विकसित हो जाती हैं। नगर के बाहर की ओर मुख्य सड़क-मार्गों के सहारे-सहारे और अधिक नगरीय विकास होता है। नयी-नयी सड़कें बनने लगती हैं। समीपवर्ती ग्रामीण प्रदेश के लोग रोजगार की खोज में आने लगते हैं। इस प्रकार नगर के प्रत्येक कार्य का विकास अलग-अलग रूप में होने लगता है।

(5) प्रौढावस्था – इस अवस्था में न केवल व्यापार, उद्योग, परिवहन, सेवा-संस्थानों आदि का ही विकास होता है, बल्कि विभिन्न वर्गों की सामाजिक बस्तियों को भी अलगाव हो जाता है। इस प्रकार रिहायशी क्षेत्र उच्च, मध्यम एवं निम्न श्रेणियों में बँट जाते हैं एवं अपने स्तरों के अनुसार ही नागरिक रहना प्रारम्भ कर देते हैं।

(6) उत्तर-प्रौढावस्था – यह नगरीय विकास की चरम अवस्था है। नगरीय क्षेत्र सघन बसाव वाला हो जाता है। नगर के सुचारु रूप से संचालन के लिए परिवहन मार्गों, गन्दी बस्तियों, सेवा संस्थानों आदि का सुधार एवं नियोजन होना आरम्भ होता है।

(7) वृद्धावस्था – यह नगरों के ह्रास की अवस्था है। जब किसी नगर को जोड़ने वाली मुख्य सड़क उससे कुछ दूरी से होकर जाने लगती है या नगर अपने विकास की समस्याओं को सुलझाने में या उनका पुनरुद्धार करने में असमर्थ रहता है तो नगर का विध्वंस होना प्रारम्भ हो जाता है तथा नागरिक अन्यत्र स्थानों पर बसना आरम्भ कर देते हैं। तक्षशिला, नालन्दा, कन्नौज आदि प्राचीन नगर इसके मुख्य उदाहरण हैं।

प्रश्न 2
नगरीय अधिवासों के प्रकार तथा प्रतिरूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर

नगरीय अधिवासों के प्रकार
Types of Urban Settlements

कुल जनसंख्या को आधार मानकर विश्व-स्तर पर नगरीय अधिवासों को निम्नलिखित ग्यारह भागों में विभाजित किया गया है –
(1) केन्द्रीय पुरवे या सेवा केन्द्र (Central Hamlets or Service Centre) संयुक्त राज्य अमेरिका एवं कनाडा जैसे देशों में जहाँ एकल ग्रामीण आवासों का विकास हुआ, वहाँ चार-छः व्यापारिक संस्थानों वाले पुरवे विकसित हुए हैं। इन केन्द्रों में एक परचून की दुकान, ब्यूटीशॉप एवं नाई की दुकान, चर्च, स्कूल, छोटा अस्पताल, पोस्ट ऑफिस आदि पाये जाते हैं। यह एक सेवा केन्द्र की भाँति कार्य करता है।

(2) केन्द्रीय या नगरीय गाँव (Central or Urban Village) – ये पुरवे से बड़े सेवा केन्द्र होते हैं। इनमें 10 से 20 दुकानें एवं संस्थान होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में 20 से 250, ब्रिटेन में 500 एवं : भारत में इनकी जनसंख्या 10,000 व्यक्तियों से भी अधिक होती है।

(3) छोटे कस्बे या (ग्राम-नगर ) ग्रागर केन्द्र (Small Towns or Rural-Urban Centres) – गालपिन (1915) ने ग्रामीण एवं नगरीय बस्तियों के बीच वाले अधिवासों को ‘ग्रागर केन्द्र’ का नाम दिया है। ये वास्तव में बड़े एवं प्रभावशाली सेवा केन्द्र होते हैं। यहाँ पर बड़े बैंक, स्टोर, कृषि विकास संस्थाएँ, बस अड्डा आदि विभिन्न सुविधाएँ होती हैं। भारत में जिन बस्तियों को अभी तक कस्बे का नामकरण नहीं दिया गया है, वे इसी प्रकार के सेवा केन्द्र हैं। यहाँ इनकी जनसंख्या 1,000 से 30,000 व्यक्तियों के मध्य पायी जाती है।

(4) छोटे नगर (Small Towns) – अधिकांश देशों में इन छोटे नगरों की जनसंख्या 5,000 से 50,000 व्यक्ति तक मानी जाती है। सामान्यतया 5,000 से कम; 5,000 से 10,000; 10,000 से 20,000 तथा 20,000 से 50,000 तक के मध्य जनसंख्या रखने वाले अधिवासों को छोटा नगर ही माना गया है। भारत में 5,000 जनसंख्या रखने वाली बस्ती को नगरीय बस्ती का नाम दिया गया है।

(5) मध्यम आकार के नगर (Middle Towns) – विश्व के अधिकांश देशों में 20,000 से 50,000 एवं 50,000 से 1,00,000 तक की जनसंख्या रखने वाले अधिवासों को इस श्रेणी में रखा जाता है। भारत में भी द्वितीय श्रेणी के नगरों की जनसंख्या 50,000 से 1,00,000 व्यक्तियों के मध्य मानी गयी है।

(6) बड़े नगर (Large Cities) – एक लाख से अधिक जनसंख्या रखने वाले नगरों को इस श्रेणी में रखा जा सकता है।
(7) महानगर (Metropolis) – अधिकांशत: पाँच लाख से दस लाख जनसंख्या वाले नगरों को महानगर के नाम से पुकारा जाता है।
(8) दसलाखी महानगर (Milion City) – दस लाख या उससे अधिक जनसंख्या रखने वाले बड़े नगरों को दसलाखी महानगर कहते हैं। ये नगर आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक क्षेत्रों में दूसरे बड़े महानगरों से अपना सम्बन्ध विच्छेद कर लेते हैं; जैसे-भारत में दिल्ली एवं मुम्बई महानगर।

(9) सन्नगर (Conurbation) – जब एक क्रम तथा एक सूत्र में अवस्थित एक या अधिक केन्द्रीय नगर अन्य छोटे समीपस्थ नगरों के साथ पारस्परिक रूप से कार्यात्मक एवं संरचनात्मक रूप से सम्बद्ध होते हैं तो ऐसी वृहद् महानगरीय श्रृंखला क्रम को ‘नगर संलयन या सन्नगर’ कहते हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली महानगर से सहारनपुर नगर को जाने वाले सड़क-मार्ग पर प्रति 10 से 15 किमी के अन्तराल से छोटे-छोटे कस्बों का विकास हुआ है। दिल्ली, शाहदरा, लोनी व गाजियाबाद सन्नगर के उदाहरण हैं। इसी प्रकार कानपुर-मगखारा-उन्नाव नगर संलयन का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

(10) मेगालोपोलिस (Megalopolis) – सन्नगरों से बड़ा मेगालोपोलिस होता है। उदाहरण के लिए, उत्तरी-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका में बोस्टन से लेकर वाशिंगटन तक 600 किमी से अधिक लम्बाई में बसा क्षेत्र एक वृहद् महानगरीय शृंखला है।।

(11) एकुमेनोपोलिस (Ecumenopolis) – कई सौ किलोमीटर तक फैली मानवीय बस्तियों (नगरों) की श्रृंखलाबद्धता को एकुमेनोपोलिस कहा जाता है। उदाहरण के लिए, पाकिस्तान से लेकर सम्पूर्ण उत्तर भारत के क्रमबद्ध मानव अधिवास 5,000 वर्ष बाद ऐसे क्रमबद्ध वृहद् नगरीय समाज का रूप धारण कर सकते हैं।
वास्तव में सन्नगर, मेगालोपोलिस एवं एकुमेनोपोलिस श्रेणियाँ नगरीय अधिवासों की क्रमबद्धता पर प्रकाश डालती हैं।

नगरीय अधिवासों के प्रतिरूप
Pattern of Urban Settlements

नगरीय अधिवासों के मुख्य रूप से निम्नलिखित नौ प्रतिरूप पाये जाते हैं –
(1) चेकरबोर्ड प्रतिरूप (Checker-board Pattern) – इस प्रकार के नगरों में सड़कें एक-दूसरे से समकोण पर मिलती हैं और परस्पर समानान्तर होती हैं। यह प्रतिरूप आयताकार होता है। इसे ‘ग्रिड प्रतिरूप’ भी कहते हैं। वर्तमान परिवहन युग में मोटर मार्गों के लिए यह एक उत्तम प्रणाली है। भारतवर्ष में बंगलुरु, नागपुर, इन्दौर, भोपाल, अमृतसर, जयपुर, चण्डीगढ़ आदि नगरों में यह पद्धति पायी जाती है।

(2) अरीय प्रतिरूप (Radial Pattern) – परिवहन साधनों के केन्द्र पर बसे नगर केन्द्र के चारों ओर निकले मार्गों और सड़कों के किनारे बसते जाते हैं। ऐसे नगर अरीय रूप धारण कर लेते हैं। इसका विकसित रूप मकड़ी के जाल की भाँति लगता है। लन्दन, बर्लिन, पेरिस, दिल्ली आदि नगरों का प्रतिरूप, ऐसा ही है।

(3) तारा प्रतिरूप (Star Pattern) – जब अरीय प्रतिरूप वाले नगर का विकास बाह्य मार्गों पर दूर तकै विस्तृत फैलाव के साथ-साथ होता जाता है, तब नगर का विन्यास तारे जैसा हो जाता है।

(4) वृत्ताकार प्रतिरूप (Circular Pattern) – प्राचीन काल में नगरों का विकास संकेन्द्रीय प्रतिरूप में विकसित होता था। इनके चारों ओर दीवारें, प्राचीरें, गहरी खाइयाँ, किले आदि विकसित होते थे तथा उनका प्रतिरूप वृत्ताकार हो जाया करता था। इनके मध्य में राजमहल या व्यापारिक क्षेत्र होते थे। सड़कें वृत्ताकार होती थीं। आगरा, जयपुर, बीजापुर या पुरानी दिल्ली आदि नगर इसी प्रतिरूप द्वारा निर्मित हुए हैं।

(5) रेखीय प्रतिरूप (Linear Pattern) – कभी-कभी किसी सड़क, रेलमार्ग, नदी या नहर आदि के किनारे-किनारे लगातार नगर का फैलाव होता जाता है, जिसे रेखीय प्रतिरूप कहते हैं।

(6) मिश्रित प्रतिरूप (Mixed Pattern) – विश्व में अधिकांश नगर मिश्रित प्रतिरूपों में विकसित हुए हैं। इनमें कहीं पर वृत्ताकार, कहीं रेखीय, कहीं ग्रिड प्रतिरूप आदि मिश्रित होते हैं।

(7) पंखा प्रतिरूप (Fan Pattern) – जब नगर किसी समुद्री-तट पर या किसी बड़ी नदी के किनारे लम्बे रूप में विकसित हो तो उससे कई सड़कें पीछे की ओर विकसित हो जाती हैं। इन पीछे के मार्गों के सहारे फैली बस्ती पंखे के रूप में विकसित हो जाती है। चेन्नई इसका महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।

(8) अनाकार प्रतिरूप (Amorphous Pattern) – कई नगरों का प्रतिरूप आकृतिहीन लगता है। कई छोटे नगरों का विकास इसी प्रकार होता है। उत्तर प्रदेश राज्य में लार एवं उत्तराखण्ड में रुद्रपुर आदि छोटे नगर इसके उत्तम उदाहरण हैं।

(9) अन्य प्रतिरूप (Other Patterns) – अधिकांश छोटे नगरों की आकृति अंग्रेजी के अक्षर 7 आदि प्रतिरूपों में होती है। झीलों व नदी-मोड़ों पर बसे नगरों का प्रतिरूप अर्द्ध-चन्द्राकार हो जाता है।

प्रश्न 3
नगरों का कार्यों के अनुसार वर्गीकरण कीजिए। नगरों में विभिन्न सुविधाओं एवं समस्याओं का आकलन कीजिए तथा इनका समाधान भी बताइए।
या
नगरीकरण से उत्पन्न समस्याओं के हल के लिए उपायों की विवेचना कीजिए। [2007, 10, 12]
या
कार्यों के आधार पर नगरों को वर्गीकृत कीजिए तथा भारत के सन्दर्भ में नगरीकरण की समस्याओं की विवेचना कीजिए। [2016]
या
नगरीय अधिवास के गुण-दोषों की विवेचना कीजिए। नगरीय अधिवासों के कार्यों का सोदाहरण वर्णन कीजिए। [2010, 16]
या
टिप्पणी लिखिए-नगरीकरण की समस्याएँ। [2010]
या
नगरीकरण की प्रमुख समस्याओं का विवरण दीजिए तथा उनके समाधान हेतु उपायों को सुझाइए। [2012]
या
कार्यों के आधार पर नगरीय अधिवास को वर्गीकृत कीजिए। [2012]
उत्तर

नगरों का कार्यिक वर्गीकरण Functional Classification of Towns
वर्तमान समय में अधिकांश नगरों में अनेक कार्य किये जाते हैं। इनमें से कुछ किसी एक कार्य में ही विशेषीकृत भी हो गये हैं। इन नगरों में उद्योग, व्यापार, परिवहन, बन्दरगाह, प्रशासन, उत्खनन, सुरक्षा, शिक्षा, धार्मिक, मनोरंजन, स्वास्थ्य आदि विशिष्ट कार्य भी मिलते हैं, परन्तु नगरों के कार्यों में विशिष्टीकरण के साथ-साथ अन्य कार्य भी मिलते हैं। विशिष्ट कार्य एवं व्यवसाय की प्रमुखता के आधार पर नगरों को अग्रलिखित आठ वर्गों में विभाजित किया जा सकता है –

(1) प्रशासनिक नगर (Administrative Towns) – देश, राज्य या बड़े प्रदेश की राजधानियों का प्रमुख कार्य प्रशासन होता है। ऐसे नगरों को प्रशासनिक नगर कहा जाता है। इनमें प्रशासनिक कार्यालय व विभिन्न इमारतों आदि की भरमार रहती है। भारत में नई दिल्ली पूर्णतया प्रशासनिक नगर है। इसी प्रकार वाशिंगटन (डी० सी०), इस्लामाबाद, ब्रासीलिया, बर्लिन, कैनबरा, बीजिंग, मास्को आदि प्रशासनिक नगर हैं।

(2) औद्योगिक नगर (Industrial Towns) – जिन नगरों में उद्योग-धन्धों की प्रधानता होती है. उन्हें औद्योगिक नगर कहते हैं। कच्चा माल, ईंधन और ऊर्जा, श्रम, व्यापार, बाजार, यातायात, पूँजी, बैंकिंग, जलापूर्ति, आयात-निर्यात आदि की सुविधाओं के केन्द्रीकरण होने से ऐसे नगरों में उद्योगों की प्रधानता हो जाती है। ग्लासगो, बर्मिंघम, मानचेस्टर, पिट्सबर्ग, मैंगनीटोगोर्क, कानपुर, मुम्बई, अहमदाबाद आदि औद्योगिक नगर हैं।

(3) व्यापारिक नगर (Commercial Towns) – इन नगरों में व्यापार प्रमुख कार्य होता है। न्यूयॉर्क, लन्दन, हांगकांग, सिंगापुर, कोलकाता आदि व्यापारिक नगर हैं। इस प्रकार के नगर यातायात एवं परिवहन के केन्द्र भी होते हैं।

(4) परिवहन नगर (Transport Towns) – वें नगरे जो परिवहन कार्यों की प्रमुखता रखते हैं, उन्हें परिवहन नगर कहते हैं। शिकागो, पर्थ, वेनिस, मुगलसराय आदि ऐसे ही नगरों के उदाहरण हैं।

(5) खनन नगर (Mining Towns) – खनिज पदार्थ वाले क्षेत्रों में ऐसे नगरों का विकास होता है। झारखण्ड में कोडरमा और गिरिडीह; कर्नाटक में कोलार खनन नगर हैं। इसी प्रकार विश्व के अन्य भागों में जोहांसबर्ग (दक्षिणी अफ्रीका), कालगूर्ती-कुलगार्डी (ऑस्ट्रेलिया), स्क्राण्टन (सं० रा० अ०) तथा सडबरी (कनाडा) प्रमुख खनन केन्द्र हैं। खनिज भण्डार समाप्त हो जाने पर ऐसे नगर उजड़ जाते हैं। इन्हें प्रेत नगर (Ghost Towns) भी कहते हैं।

(6) मण्डी या बाजार नगर (Market Towns) – कृषि या पशुचारण प्रदेशों में विभिन्न वस्तुओं के संग्रहण और वितरण केन्द्रों के रूप में बाजारों या मण्डियों का विकास होता है। ब्रिटेन का नार्विक, उत्तर प्रदेश का हापुड़, बिहार का बिहार-शरीफ, घाना का कुमासी ऐसे ही नगर हैं। ऐसी मण्डियाँ समय के स्मथ-साथ व्यापारिक नगरों का रूप ले लेती हैं।

(7) सुरक्षा केन्द्र (Defence Towns) – सैनिक छावनियाँ, किले वाले अथवा नौ-सेना अथवा वायु सेना मुख्यालय वाले केन्द्र सुरक्षा नगर कहलाते हैं। ये प्रमुख नगरों से अलग क्षेत्र में उदित होते हैं। पाकिस्तान में रावलपिण्डी, भारत में काम्पटी एवं शिलांग ऐसे ही नगर हैं।

(8) सांस्कृतिक-धार्मिक-शैक्षिक नगर (Cultural-Religious-Educational Towns) – इन नगरों में संस्कृति, धर्म एवं शिक्षा का बोलबाला होता है अर्थात् इनमें इन्हीं कार्यों की प्रधानता होती है। वाराणसी इसका सर्वोत्तम नमूना है। इसे भारत की सांस्कृतिक राजधानी की संज्ञा दी जाती है। ब्रिटेन का ऑक्सफोर्ड या कैम्ब्रिज, जर्मनी का हाइडेलबर्ग, संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रिंस्टन, स्वीडन का लुण्ड,नीदरलैण्ड का लीडेन विश्व-प्रसिद्ध शैक्षणिक-सांस्कृतिक नगर हैं। इसी प्रकार रोम, येरुसलम, मक्का, हरिद्वार आदि धार्मिक नगर हैं।

नगरों की विशेषताएँ या गुण
Characteristics or Merits of Towns

नगरों में मानवोपयोगी अनेक सुविधाएँ पायी जाती हैं जिनके आकर्षण से समीपवर्ती प्रदेश के लोग यहाँ रहने के लिए प्रवास कर जाते हैं अथवा अपनी सेवाओं एवं आवश्यकताओं को पूर्ण कर अपने घरों को वापस चले जाते हैं। ये सुविधाएँ (गुण) निम्नलिखित हैं –

  1. नगरों में आजीविका के अनेक साधन होते हैं जिससे वहाँ पर रोजगार मिलने में सुविधा रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि भूमि पर जनसंख्या का अधिक भार होने के कारण बहुत-से लोगों को बेकारी का सामना करना पड़ता है जिससे ये लोग रोजगार की तलाश में नगरों को पदार्पण कर जाते हैं।
  2. नगरों में परिवहन के अनेक साधनों-घोड़ागाड़ी, मोटरगाड़ी, नगर बस-सेवा, टैक्सी, रेलगाड़ी आदि की सुविधा मिलती है।
  3. नगरों में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, मनोरंजन, विद्युत तथा जल-आपूर्ति की सुविधाएँ होती हैं।
  4. नगरों में स्कूल, कॉलेज, शिक्षण-प्रशिक्षण, विश्वविद्यालयी-शिक्षा की सुविधाएँ अधिक मिलती हैं।
  5. सुरक्षा के दृष्टिकोण से पुलिस प्रबन्ध की व्यवस्था नगरों में उपलब्ध रहती है।
  6. नगरों में संचार के साधनों; जैसे—डाक, तारघर, टेलीफोन तथा समाचार-पत्रों की सुलभता पायी जाती है।
  7. नगरीय लोगों के रहन-सहन का स्तर उच्च होता है। अत: इस स्तर को बनाये रखने के लिए एवं अपने कार्यों की देखभाल के लिए अनेक व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है, जिस कारण बहुत-से लोग ग्रामों को छोड़कर नगरों में बस जाते हैं।
  8. नागरिक प्रशासन नगर में जल, सीवर, विद्युत, सफाई, चिकित्सा आदि अनेक कार्यों का प्रबन्ध करता है। यह व्यवस्था ग्रामों में नहीं पायी जाती है।
  9. नगरों में विभिन्न सामाजिक संस्थाएँ, धार्मिक स्थान मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे तथा सांस्कृतिक संस्थाएँ–संगीतालय, सिनेमाघर आदि मनोरंजन के साधनों का आकर्षण बना रहता है।
  10. ग्रामों में जो लोग उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेते हैं, वे अपने लिए नौकरी की खोज में नगरों की ओर पलायन कर जाते हैं।

नगरों की समस्याएँ या दोष
Problems or Demerits of Towns

नगरों में सुविधाओं के साथ-साथ कुछ समस्याएँ भी होती हैं जिनका समाधान खोजना अत्यावश्यक है। ये समस्याएँ निम्नलिखित हैं –

  1. जनसंख्यां में अतिशय वृद्धि के कारण नगरों के आकार में भी वृद्धि हो जाती है जिससे नगरों में जनसंख्या की सघनता की समस्या हो जाती है। खाली भूमि महँगी हो जाती है। नगर के निवासी छोटे-छोटे मकानों में रहने को विवश हो जाते हैं। यातायात में कठिनाई उत्पन्न हो जाती है। यहाँ पर प्रात:काल तथा सायंकाल जनसंख्या की अत्यधिक भीड़ देखने को मिलती है।
  2. नगरों में प्राथमिक आवश्यकताओं-दूध, अनाज, साग-सब्जी, फल आदि-की पूर्ति समीपवर्ती देहात क्षेत्रों से की जाती है। कभी-कभी उत्पादन की कमी से या अन्य कमी के कारण इनके मूल्य ऊँचे हो जाते हैं। धनी लोग तो अधिक मूल्य देकर इन वस्तुओं को खरीद लेते हैं, जब कि साधारण आय के लोग देखते ही रह जाते हैं।
  3. नगरीय क्षेत्रों में खाद्य-पदार्थों; जैसे-आटे, घी, तेल, दूध आदि में मिलावटे बहुत अधिक होती है, जिससे लोगों को भोज्य-पदार्थ भी शुद्ध नहीं मिल पाते।
  4. नगरीय केन्द्रों के मकानों का किराया बहुत ऊँचा होता है। कोलकाता, मुम्बई, दिल्ली, अहमदाबाद, कानपुर आदि नगरों में काफी व्यक्ति बिना मकान, रात्रि में नगर की सड़कों की पटरियों पर, पार्क, गलियों या गन्दी बस्तियों में ही सो जाते हैं। इससे वर्ग-संघर्ष की भावना को बल मिलता है।
  5. भारत के कुछ नगरों में जनसंख्या की सघनता बहुत अधिक है जितनी कि विश्व के वृहत्तम् नगरों में भी नहीं है। मुम्बई महानगर में 20,000 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी निवास करते हैं, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयॉर्क नगर में 10,000 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी ही निवास करते हैं।
  6. न्यूयॉर्क आदि नगरों में इतनी जनसंख्या की सघनता औसत रूप से 15 या 20 मंजिल के मकानों में रहकर है, परन्तु भारत में उससे अधिक सघनता केवल एक या दो मंजिलों के मकानों में रहते हुए है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि नगरों में लोग बहुत तंग जगह में निवास करते हैं।
  7. कभी-कभी बड़े नगरों में पेयजल तथा विद्युत-आपूर्ति की कमी से बड़ी असुविधा हो जाती है।
  8. नगरों के आकार में वृद्धि होने पर उनके प्रबन्ध एवं प्रशासन की समस्या आती है।
  9. नगरों में समीपवर्ती ग्रामों में जो लोग आकर बसते हैं, वे अधिकतर पुरुष होते हैं। इस कारण नगरों की जनसंख्या में पुरुष-महिला अनुपात का सन्तुलन बिगड़ जाता है।
  10. बड़े नगरों के लिए पुलिस आदि की व्यवस्था अधिक करनी पड़ती है, जिससे कर आदि अधिक लगते हैं और महँगाई बढ़ जाती है।
  11. बड़े-बड़े नगर देश की सम्पत्ति होते हैं; अत: युद्ध-काल में बड़े नगरों को बम वर्षा का भय बना रहता है। द्वितीय महायुद्ध में जापान के केवल दो नगरों-हिरोशिमा एवं नागासाकी–पर अणुबम के प्रहार से जापान को हार मान लेनी पड़ी थी। इसीलिए बड़े नगरों को सुरक्षा की भी एक समस्या रहती
  12. बड़े नगरों में सामाजिक-आर्थिक वर्गों की विषमता की समस्या बहुत गम्भीर हो जाती है। श्रमिक आन्दोलन, हड़ताले आदि बढ़ जाती हैं। धनी एवं निर्धनों में वर्गभेद उत्पन्न हो जाते हैं।

नगरों की समस्याओं का समाधान Remedies of Urban Problems
नगरों के दोषों को दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि नगरों का पुनर्निर्माण किया जाए और मास्टर प्लान योजनाओं द्वारा इन दोषों को दूर किया जाये तथा औद्योगिक क्षेत्रों का भी सुनियोजित विकास किया जाए। योजनाओं द्वारा नगरों के बाह्य विस्तृत भागों में, चौड़ी सड़कों के सहारे-सहारे कम मंजिलों की बस्तियाँ बसाई जानी चाहिए। मिलों एवं कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए मिलों से दूर एवं नगरों के बाह्य भागों में साफ-सुथरे, स्वास्थ्यवर्द्धक मौहल्ले या वार्ड बसाये जाएँ तथा उनके रिहायशी क्षेत्रों से दैनिक काम करने वाले स्थानों तक परिवहन के साधनों-मोटर, बसों या रेलगाड़ियों का प्रबन्ध किया जाना चाहिए। नगर-निर्माण की योजनाएँ बनाने के लिए भूगोलवेत्ताओं का सहयोग अति आवश्यक है। नगर में चौड़ी सड़कें, विद्युत, जल-आपूर्ति, चिकित्सा एवं शिक्षा और रोजगार की योजनाएँ बनाकर उनको तत्परता से कार्यान्वित किया जाना चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
नगरीकरण किसे कहते हैं? [2010, 14, 16]
या
नगरीकरण को परिभाषित कीजिए। [2008]
उत्तर
नगरीकरण को अंग्रेजी में Urbanization कहा जाता है। इसका अर्थ है-व्यक्ति या जनसंख्या को नगरीय बना देना अर्थात् ऐसी जनसंख्या को, जो ग्रामीण या अर्द्ध-ग्रामीण है, नगरीय जनसंख्या के रूप में परिवर्तित करना नगरीकरण कहलाता है। वास्तव में यदि मनुष्यों का चिन्तन, आचार-विचार तथा सामाजिक मूल्य नगरीय है तो वे ग्रामों में रहते हुए भी नगरीकृत हैं, परन्तु यहाँ पर हमारा उद्देश्य समाज के उस वर्ग से है जो प्रायः अकृषि कार्यों में लगा हुआ है; अतः नगरीकरण . सामाजिक जीवन के सम्पूर्ण क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन की ओर संकेत करता है। इसलिए बर्गेल (E. E. Bergel) ने कहा है कि ग्रामों के नगरीय क्षेत्र में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को नगरीकरण कहते हैं। अत: नगरीकरण एक प्रक्रिया है जो वर्तमान समय की महत्त्वपूर्ण घटना मानी जा सकती है। यह वास्तव में एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें नगरों की जनसंख्या में वृद्धि हो रही है।

प्रश्न 2
नगरीकरण की समस्या के निराकरण के किन्हीं दो उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
नगरीय समस्याओं के निराकरण हेतु निम्नलिखित दो उपाय किये जा सकते हैं –

  1. नगरों की सीमाओं का निश्चित परिसीमन किया जाए, जिससे उनमें असामान्य रूप से वृद्धि न हो सके और कृषि-भूमि का भी अतिक्रमण रुक सके।
  2. ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जाए, जिससे नगरों की ओर जनसंख्या के पलायन को रोका जा सके।

प्रश्न 3
कस्बों तथा नगर में क्या अन्तर है? [2014]
उत्तर
कस्बा (Town) कस्बा नगरीय गाँव की अपेक्षा एक बड़ी इकाई है। इसमें मकान सटे हुए, सड़कें तंग तथा गलियाँ सँकरी होती हैं। ये कस्बे सड़क मार्गों के संगम या रेलपथ पर स्थित होते हैं। इसके दो क्षेत्र होते हैं- आवासीय एवं व्यावसायिक। नगरों से इसका पृथक्करण जनसंख्या के आधार : पर किया जाता है। सामान्य रूप से इनकी जनसंख्या 5,000 से 10,000 व्यक्ति तक मानी गई है।

नगर (City) नगर उस क्षेत्र को कहते हैं, जहाँ विशाल जनसमूह निवास करता है, जो समीपवर्ती क्षेत्र से अतिरिक्त उत्पादक वस्तुएँ एकत्रित करता है तथा आर्थिक, व्यापारिक, धार्मिक तथा राजनीतिक क्रिया-कलापों का केन्द्र होता है। 50 हजार से 10 लाख तक की जनसंख्या रखने वाली बस्ती को प्रायः नगर कहा जाता है। नगर अपने समीपवर्ती क्षेत्र से आर्थिक शक्ति ग्रहण कर तेजी से विकसित होते हैं। नगर वस्तुतः एक विशिष्ट प्रकार का सामाजिक संगठन होता है। नगरों के विकास का आधार उद्योग-धन्धे तथा व्यापारिक गतिविधियाँ होती हैं।

प्रश्न 4
नगरीय अधिवासों के दो प्रकारों का वर्णन कीजिए। [2013, 14, 16]
उत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 2 के अन्तर्गत नगरीय अधिवासों के प्रकार’ शीर्षक देखें।

प्रश्न 5
नगरीकरण से उत्पन्न किन्हीं चार समस्याओं का वर्णन कीजिए। [2010, 12, 13, 14]
उत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 के अन्तर्गत नगरों की समस्याएँ या दोष’ शीर्षक देखें।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
जनसंख्या एवं नागरिक कार्यों के आधार पर नगरीय बस्तियों को कितने भागों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर
जनसंख्या एवं नागरिक कार्यों के आधार पर नगरीय बस्तियों को चार भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. पुरवा या टोला
  2. नगरीय या बाजार गाँव
  3. कस्बा और
  4. नगर।

प्रश्न 2
खनन नगर से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
खनिज पदार्थ वाले क्षेत्रों में ऐसे नगरों का विकास होता है। झारखण्ड के कोडरमा, गिरिडीह और कर्नाटक का कोलार खनन नगर हैं।

प्रश्न 3
नगरीकरण से उत्पन्न किसी एक समस्या की विवेचना कीजिए। [2010]
उत्तर
नगरीकरण होने से जनसंख्या की अतिशय वृद्धि होती है जिससे नगरों के आकार में वृद्धि हो जाती है तथा जनसंख्या की सघनता की समस्या हो जाती है। भूमि तथा भवनों के किराये बढ़ जाते हैं तथा भीड़ के कारण यातायात में कठिनाई उत्पन्न हो जाती है।

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1
मेगालोपोलिस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया?
(क) टेलर ने
(ख) जीन गोटमैन ने
(ग) डेविस ने
(घ) पेन्क ने
उत्तर
(ख) जीन गोटमैन ने।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 9 Urban Settlements

प्रश्न 2
लिपिसे-कौन औद्योगिक नगर नहीं है ?
(क) र
(ख) सिन्द्री
(ग) रंग
(घ) पुणे
उत्तर
(घ) पुसी।

प्रश्न 3
सन्नगर नहीं हैं –
(क) पुणे
(ख) हावड़ा
(ग) गाजियाबाद
(घ) नैनी
उत्तर
(क) पुणे।

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UP Board Solutions for Class 12 English Poetry Short Poems Chapter 8 My Heaven

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject English Poetry short Poems
Chapter Chapter 8
Chapter Name My Heaven
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 English Poetry Short Poems Chapter 8 My Heaven

About the Poet : Rabindranath Tagore is one of the most famous poets of India. He was born in Kolkata on May 6, 1861. He was educated mostly at home. He won Noble Prize in 1931. He had a great insight in the understanding of human life. He died in 1941.

About the Poem : In this poem Rabindranath Tagore expresses his love for India. So he describes what type of country he wants and prays to God likewise. This poem is an extract from his famous work Gitanjali a collection of short poems.

Central Idea                                                                                [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
In this poem the poet imagines a country where the people’s minds should be free from fear and narrow mindedness. They should have no distinction of caste, race or language. They should not be conservative. They should share knowledge freely and use their reason in thinking and doing. They should follow the path of Truth under the guidance of God. Then his country will be heaven on earth.

(इस कविता में कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर एक ऐसे देश की कल्पना करते हैं जहाँ लोगों का मस्तिष्क भय और संकीर्ण दृष्टिकोण से मुक्त हो। उनमें जाति, धर्म या भाषा का कोई भेदभाव न हो। वे रूढ़िवादी न हों। वे ज्ञान को स्वतन्त्रतापूर्वक बाँटें और विचारों तथा कार्यों में अपनी तर्क-शक्ति का प्रयोग करें। वे भगवान् के मार्गदर्शन में सत्य के मार्ग का अनुसरण करें। तब यह देश इस पृथ्वी पर स्वर्ग बन जाएगा।)

EXPLANATIONS (With Meanings & Hindi Translation)
(1)
Where the mind is without fear and the head is held high;
Where knowledge is free;
Where the world has not been broken up into fragments
by narrow domestic walls;
Where words come out from the depth of truth; [2016]

[Word-meanings : fragments = टुकड़े pieces; narrow domestic walls = जाति, धर्म, भाषा आदि के आधार पर आन्तरिक विभाजन internal divisions due to caste, creed, language, etc.)

(यहाँ टैगोर बताते हैं कि स्वतन्त्रता वहाँ है जहाँ लोगों के मस्तिष्क में कोई भय न हो और जहाँ सम्मान से सिर ऊँचा रहता हो। जहाँ ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति स्वतन्त्र हो। जहाँ संसार धर्म, जाति तथा भाषा के आधार पर छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित न हो और जहाँ विचार हृदय की गहराई से प्रकट होते हों अर्थात् जहाँ किसी को धोखा न दिया जाता हो।)

Reference : These lines have been taken from the poem My Heaven composed by R.N. Tagore.

Context : It is an extract from the famous work of Tagore ‘Gitanjali’. In this poem the poet expresses his lofty concept of freedom. He does not want political freedom. But he wants freedom in every field of life, social or spiritual.

Explanation : In this stanza the poet advises his countrymen to know the meaning of true happiness and to enjoy it. They should live in an atmosphere free from fear where they feel themselves proud and dignified. They should have self-respect. Everybody should be free in getting knowledge and in using his reasoning power. Society should not be divided into small sections on the narrow basis of religion, caste and language. They should be true to everyone.

(इस पद्यांश में कवि देशवासियों को शिक्षा देता है कि वे सच्ची प्रसन्नता का अर्थ जाने और उसका आनन्द लें। उन्हें भय मुक्त वातावरण में रहना चाहिए जहाँ वे स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर सकें। उनमें आत्म-सम्मान भी होना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त करने और अपनी तर्क-शक्ति को प्रयोग करने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए। समाज धर्म, जाति और भाषा के आधार छोटे-छोटे वर्गों में विभाजित न हों, वे सभी के लिए सच्चे हों।)

(2)
Where tireless striving stretches its arms towards perfection;
Where the clear stream of reason has not lost its way
into the dreary desert sand of dead habit;
Where the mind is led forward by Thee into ever-widening
thought and action –
Into that heaven of freedom, my Father, let my country awake. [2010, 12, 15, 18]

[ Word-meanings : tireless = लगातार constant; striving = संघर्ष struggle; stretches = फैलाता है spreads; reason = तर्क-शक्ति thinking power; dreary = उदासीन, नीरस dull; dead habit = पुराने रीति-रिवाज old customs which are useless now; ever-widening = सदा विकास करने वाला ever progressing; my Father = भगवान् God.]

(इस पद्यांश में कवि भगवान् से प्रार्थना करता है कि वह एक विशेष प्रकार का वातावरण देश को प्रदान करे। उसके देशवासी उन्नति तथा विकास के लिए निरन्तर प्रयास एवं संघर्ष करते रहें जब तक कि वे पूर्णता को प्राप्त न कर लें। लोग उन पुरानी परम्पराओं एवं रीति-रिवाजों को न मानें जिनका अब कोई महत्त्व ही नहीं है, बल्कि वे अपनी तर्क-शक्ति का प्रयोग करें। वे विशाल दृष्टिकोण से सोचने एवं उसी के अनुरूप कार्य करने में अपनी बुद्धि का उपयोग करें। इस प्रकार का वातावरण वास्तव में स्वतन्त्रता का वातावरण होगा और लोग अपने देश को स्वर्ग जैसा समझेंगे। अत: कवि भगवान् से प्रार्थना करता है कि वह उसके देशवासियों को जाग्रत करे और उनमें यह सभी सद्गुण भरे।)

Reference : These lines have been taken from the poem My Heaven composed by R.N. Tagore.

Context : This poem is an extract from the famous work of Tagore named Gitanjali. In this poem the poet expresses his lofty concept of freedom. He does not want political freedom. But he wants freedom in every walk of life, social or spiritual.

Explanation : In this concluding stanza the poet prays to God that He should give his countrymen some virtues so that they may feel that they are living in heaven. He wants that his countrymen should struggle hard to progress in their life till they reach perfection. They should use their mind and reason in thinking and doing any work. Their outlook in every field should be very wide. Such an atmosphere of freedom will be worth living and his countrymen would think themselves living in heaven.

(इस अन्तिम पद्यांश में कवि भगवान् से प्रार्थना करता है कि वह उसके देशवासियों को कुछ ऐसे गुण प्रदान करे जिससे वे यह अनुभव करें मानो वे स्वर्ग में रह रहे हैं। वह चाहता है कि उसके देशवासी अपने जीवन में उन्नति करने के लिए उसे समय तक संघर्ष करें जब तक कि वे पूर्णता को प्राप्त न कर लें। वे अपना मस्तिष्क और तर्क-शक्ति सोचने तथा कार्य करने में प्रयोग करें। प्रत्येक क्षेत्र में उनका दृष्टिकोण व्यापक होना चाहिए। स्वतन्त्रता का ऐसा वातावरण रहने योग्य होगा और उसके देशवासी ऐसा अनुभव करेंगे मानो वे स्वर्ग में रह रहे हैं।)

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi शब्दों में सूक्ष्म अन्तर

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Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 2
Chapter Name शब्दों में सूक्ष्म अन्तर
Number of Questions 63
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi शब्दों में सूक्ष्म अन्तर

शब्दों में सूक्ष्म अन्तर

नवीनतम पाठ्यक्रम में शब्द-रचना के अन्तर्गत शब्दों के सूक्ष्म अन्तर को सम्मिलित किया गया है, जिसके लिए विभिन्न प्रकार के शब्द-युग्मों का अध्ययन किया जाना चाहिए। इसके लिए 2 अंक निर्धारित हैं। शब्द-युग्म से अभिप्राय है-शब्दों का जोड़ा। विभिन्न प्रकार के शब्दों के जोड़े बनाकर शब्द-रचना की जाती है।

शब्द-युग्म में दो स्वतन्त्र अर्थ वाले शब्द होते हैं, जो अलग-अलग रहने पर तो पृथक्-पृथक् अर्थ देते हैं, किन्तु जब उन शब्दों का युग्म बनाकर एक शब्द के रूप में प्रयोग किया जाता है तो वे शब्द अपने अर्थों से भिन्न अर्थ देने लगते हैं; उदाहरणार्थ-‘दिन’ और ‘रात’ दो पृथक्-पृथक् अर्थ रखने वाले शब्द हैं, किन्तु जब इन शब्दों का युग्म बनाकर एक शब्द के रूप में प्रयोग किया जाता है, तो ये दोनों शब्द अपने-अपने अर्थ को त्यागकर एक नवीन अर्थ का बोध कराने लगते हैं; जैसे—

  1. लोग दिन में जागते हैं और रात को सोते हैं।
  2. दिनेश ने रात-दिन कड़ी मेहनत की है।

यहाँ प्रथम वाक्य में ‘रात’ और ‘दिन’ अपने वास्तविक अर्थ को व्यक्त कर रहे हैं, किन्तु द्वितीय वाक्य में जब वे युग्म के रूप में प्रयुक्त हुए हैं तो वे अपने मूल अर्थ को छोड़कर एक नवीन अर्थ को व्यक्त कर रहे हैं। यहाँ ‘रात-दिन’ शब्द ‘निरन्तरता’ को व्यक्त कर रहा है। इस प्रकार शब्द-युग्म के रूप में एक नवीन अर्थबोधक शब्द की रचना हो गयी है।
शब्द-युग्मों की रचना-शब्द-युग्मों की रचना निम्नलिखित सात प्रकारों से की जाती है-

  1. एक ही शब्द की पुनरुक्ति द्वारा,
  2. सजातीय या समानार्थक शब्दों के द्वारा,
  3. विलोम शब्दों के द्वारा,
  4. सार्थक और निरर्थक शब्दों के द्वारा,
  5. निरर्थक शब्दों के द्वारा,
  6. परसर्गों के साथ शब्द की पुनरावृत्ति द्वारा,
  7. समोच्चारित भिन्नार्थक शब्दों के द्वारा।। उपर्युक्त विधियों द्वारा निर्मित शब्द-युग्म जिन नवीन अर्थों का बोध कराते हैं, उन्हें वाक्य प्रयोग द्वारा भली प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है।

(1) एक ही शब्द की पुनरुक्ति द्वारा
पुनरुक्ति = पुनः + उक्ति; अर्थात् एक ही शब्द को फिर से कहना उस शब्द की पुनरुक्ति कहलाता है। पुनरुक्ति भी शब्द-युग्म बनाने का प्रमुख तत्त्व है। इसमें एक ही शब्द को प्राय: एक बार दोहराकर शब्द-युग्म बनाया जाता है, किन्तु जब किसी ध्वनि के द्वारा किसी क्रिया को बताया जाता है, तब ध्वनिवाचक शब्द की एक बार से अधिक आवृत्ति की जाती है। साहित्य में इसे ध्वन्यर्थ अलंकार के नाम से जाना जाता है। एक और अनेक आवृत्ति द्वारा शब्द-युग्म बनाने की प्रक्रिया को निम्नवत् समझा जा सकता है–

शब्द-युग्म                        वाक्य-प्रयोग।
1. अंग-अंग – माँ ने अपने बेटे का अंग-अंग चूम डाला।
2. अपना-अपना – आज सभी अपना-अपना राग अलापने में लगे हैं।
3. कोना-कोना – कस्तूरी की सुगन्ध से वन का कोना-कोना महक उठा।
4. खाली-खाली – बच्चों के बिना घर खाली-खाली लगता है।
5. गाँव-गाँव – आज गाँव-गाँव में बिजली पहुँच गयी है।
6. गाते-गाते – गाते-गाते रात कट गयी।
7. घर-घर – घर-घर में सास-बहू की एक ही कहानी है।
8. छिपते-छिपते – सूरज के छिपते-छिपते मैं घर पहुँच गया।
9. तार-तार – उसके तन के कपड़े तार-तार हो गये।
10. पानी-पानी – अपनी गलती पर वह शर्म से पानी-पानी हो गयी।
11. बूंद-बूंद – कल लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस जाएँगे।
12. मचल मचल – कश्मीर के सौन्दर्य परे मन मचल-मचल जाता है।
13. रटते-रटते – तुम्हें एक ही बात रटते-रटते दो घण्टे हो गये।
14. रोम-रोम – श्रीराम को देखकर हनुमान जी का रोम-रोम पुलकित हो गया।
15. लम्बी-लम्बी – ईदगाह पर नमाजियों की लम्बी-लम्बी कतारें लगती हैं।
16. सहते-सहते – पति के अत्याचार सहते-सहते अन्तत: निर्मला टूट ही गयी।
17. साफ-साफ – मैं साफ-साफ कहने में विश्वास रखता हूँ।
18. हँसते-हँसते – दु:खों का हँसते-हँसते ही सामना करना चाहिए।
19. छम-छम-छम – उसके पैरों के घुघरू छम-छम-छम कर बज उठे।
20. झम-झमझम – देखते-ही-देखते झम-झम-झम वर्षा होने लगी।
21. गुन-गुन-गुन – गुन-गुन-गुन भौंरे गाते हैं।

(2) सजातीय या समानार्थक शब्दों के द्वारा
सजातीय अथवा समानार्थक लगने वाले दो शब्दों को मिलाकर भी शब्द-युग्म की रचना की जाती है। इसमें दोनों ही शब्द मिलते-जुलते अर्थ देने वाले होते हैं, किन्तु दोनों का अर्थ एक नहीं होता; जैसे-
शब्द-युग्म                          वाक्य-प्रयोग
1. ईर्ष्या-द्वेष – मन में ईष्र्या-द्वेष रखकर कोई सुखी नहीं रह सकता है।
2. उद्योग-धन्धे – सरकार को उद्योग-धन्धों पर विशेष बल देना चाहिए।
3. ऋद्धि-सिद्धि – भगवान् की भक्ति ही सभी ऋद्धि-सिद्धि देने वाली होती है।
4. खेल-तमाशा – अब खेल-तमाशों का समय नहीं रहा है।
5. चमक-दमक – व्यक्ति को बाहरी चमक-दमक से बचना चाहिए।
6. जादू-टोना – जादू-टोना अब गुजरे हुए कल की बातें हैं।
7. झाड़-पोंछ – किसी भी सामान की झाड़-पोंछ आवश्यक है।
8. तोड़-फोड़ – उपद्रवियों ने पूरे शहर में अत्यधिक तोड़-फोड़ की।
9. दीन-हीन – दीन-हीन को सताना अच्छी बात नहीं है।
10. धन-दौलत – धन-दौलत से सुख नहीं खरीदा जा सकता।
11. फल-फूल – उपवास में महाराज जी केवल फल-फूल ही खाते हैं।
12. मार-पीट – बच्चों को मार-पीट कर नहीं सुधारा जा सकता।
13. रीति-रिवाज – रीति-रिवाज हमारी संस्कृति के अभिन्न अंग हैं।
14. विधि-विधान – सभी कार्य विधि-विधानपूर्वक सम्पन्न हुए।
15. साधु-सन्त – कबीर सदैव साधु-सन्तों की संगत में रहते थे।
16. हँसी-खुशी – सभी के दिन हँसी-खुशी से बीते।

(3) विलोम शब्दों के द्वारा
दो विलोम शब्दों को मिलाकर भी शब्द-युग्म की रचना की जाती है। इस प्रकार के शब्द-युग्मों से युक्त वाक्य प्रायः सूक्तिपरक और नैतिकता से ओत-प्रोत होते हैं; जैसे-
शब्द-युग्म                     वाक्य-प्रयोग
1. आगे-पीछे – लोग नेताओं के आगे-पीछे घूमते-फिरते हैं।
2. आना-जाना – उनका बाहर आना-जाना लगा ही रहता है।
3. उचित-अनुचित – मनुष्य को उचित-अनुचित का ध्यान रखना ही चाहिए।
4. गुण-दोष – मित्रों के गुण-दोष की परख विपत्ति में ही होती है।
5. रात-दिन – रात-दिन पढ़ाई में जुटकर मैंने प्रथम श्रेणी पायी है।
6. धर्म-अधर्म – धर्म-अधर्म को सभी धर्मग्रन्थों ने एक समान रूप में परिभाषित किया है।
7. न्याय-अन्याय – व्यक्ति को प्रत्येक कार्य में न्याय-अन्याय का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।
8. मान-अपमान – सज्जन मान-अपमान को एक समान लेते हैं।
9. शुभ-अशुभ – कर्मशील व्यक्ति शुभ-अशुभ का विचार नहीं करते।
10. सवाल-जवाब – इन व्यर्थ के सवाल-जवाब का क्या औचित्य है ?
11. साधु-असाधु – किसी व्यक्ति के कार्य ही उसे साधु-असाधु की श्रेणी में रखते हैं।
12. सोते-जागते – उसे सोते-जागते कमाने की ही धुन सवार रहती है।
13. होनी-अनहोनी – होनी-अनहोनी दोनों ही नहीं टलतीं।
14. ज्ञान-अज्ञान – ज्ञान-अज्ञान को जानने वाला ही विद्वान् है।

(4) सार्थक और निरर्थक शब्दों के द्वारा
यद्यपि निरर्थक शब्दों को भाषा में शब्द ही नहीं माना जाता और इसी कारण उनका अध्ययन भी भाषा के अन्तर्गत नहीं किया जाता, तथापि इन निरर्थक शब्दों का भी भाषा में बड़ा महत्त्व है। सार्थक शब्दों के साथ मिलाकर जब इनसे शब्द-युग्म की रचना की जाती है तो ये सार्थक हो उठते हैं। यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि शब्द-युग्म द्वारा जब ये निरर्थक शब्द सार्थक हो उठते हैं, तब भी उनके अर्थ को सार्थक शब्द के अर्थ से पृथक् करके नहीं देखा जा सकता। इनकी सार्थकता सदैव अपने साथ प्रयुक्त होने वाले सार्थक शब्दों पर ही निर्भर करती है। इस प्रकार के शब्द-युग्मों में सार्थक शब्द पहले अथवा बाद में कहीं भी आ सकता है; जैसे-
शब्द-युग्म                            वाक्य-प्रयोग
1. आमने-सामने – जरा–सी बात पर दोनों भाई आमने-सामने आ गये।
2. आस-पास – हमारे आस-पास का वातावरण बड़ी सुहावना था।
3. उल्टा-पुल्टा – बच्चों ने जरा-सी देर में सब-कुछ उल्टा-पुल्टा कर दिया।
4. खाना-वाना – बहुत देर हो गयी है अब खाना-वाना खाना है या नहीं।
5. घर-वर – अब घर-वर चलोगे या नहीं।
6. चाय-शाय – अरे भई गौरव को चाय-शाय पिलायी या नहीं ?
7. चिट्ठी-विट्ठी – नीरज कोई चिट्ठी-विट्ठी नहीं लिखता।
8. ठीक-ठाक – घर पर सब ठीक-ठाक है।
9. देख-भाल – बच्चों की उचित देख-भाल एक पढ़ी-लिखी माँ ही कर सकती है।
10. बची-खुचा – मैंने बचा-खुचा सामान भिखारी को दे दिया।
11. भीड़-भाड़ – आजकल शहरों में सभी जगह भीड़-भाड़ है।
12. मिठाई-विठाई – बच्चों को ज्यादा मिठाई-विठाई नहीं खानी चाहिए।
13. चाकू-वाकू – मैंने कोई चाकू-वाकू नहीं देखा।
14. गुम-सुम – वह अकसर गुम-सुम रहता है।
15. तोल-ताल – सामान को जल्दी से तोल-ताल पर छुट्टी करो।।
16. मार-धाड़ – अब मार-धाड़ वाली फिल्में ही अधिक बनती हैं।
17. ठाट-बाट – दिनेश के ठाट-बाट देखते ही बनते हैं।
18. पीट-पाट – अब तुम यहाँ से तुरन्त चले जाओ नहीं तो कोई पीट-पाट देगा।

(5) निरर्थक शब्दों के द्वारा
साधारण बोलचाल की भाषा में दो निरर्थक शब्दों को मिलाकर उनसे शब्द-युग्म की रचना करके एक विशेष अर्थ की अभिव्यक्ति की जाती है; जैसे-
शब्द-युग्म                वाक्य-प्रयोग
1. अफरा-तफरी – अचानक मंत्री जी के आने की खबर सुनकर कार्यालय में अफरा-तफरी मच गयी।
2. इक्के-दुक्के – रात में इक्के-दुक्के लोग ही पार्क में घूमते हैं।
3. ऊल-जलूल – उसकी ऊल-जलूल बातों पर कौन ध्यान देता है?
4. चूं-चपड़ – जाओ अब अपना रास्ता देखो, ज्यादा चूं-चपड़ मत करो।
5. हेक्का-बक्का – भाई की मृत्यु का समाचार सुनकर वह हक्का-बक्का रह गया।
6. हट्टा-कट्टा – वैभव देखने में हट्टा-कट्टा लगता है।

(6) परसर्गों के साथ शब्द की पुनरावृत्ति द्वारा
पुनरावृत्ति द्वारा बने शब्द-युग्मों के मध्य परसर्ग लगाकर भी शब्द-युग्म की रचना की जाती है। इस प्रकार के शब्द-युग्म में परसर्ग के दोनों ओर संयोजक चिह्न लगाते हैं; जैसे-
शब्द-युग्म                       वाक्य-प्रयोग
1. अपनी-ही-अपनी – सब अपनी-ही-अपनी चलाते हैं, दूसरों की कोई नहीं सुनता।
2. आगे-ही-आगे – चोर पुलिस के आगे-ही-आगे दौड़ता हुआ गायब हो गया।
3. ऊपर-ही-ऊपर – झीलों में बर्फ ऊपर-ही-ऊपर जमती है।
4. और-ही-और – लक्ष्मी के जन्म से गिरधर की हालत और-ही-और होती चली गयी।
5. कभी-न-कभी – कभी-न-कभी तो उसके दिन भी फिरेंगे।
6. कहीं-न-कहीं – यह दवाई हूँढ़ने पर कहीं-न-कहीं मिल ही जाएगी।
7. कुछ-का-कुछ – डर के मारे वह कुछ-का-कुछ कहने लगा।
8. ढेर-का-ढेर – खलिहान में गेहूं का ढेर-का-ढेर जलकर राख हो गया।
9. नीचे-ही-नीचे – वह नदी में नीचे-ही-नीचे तैर लेता है।
10. लोग-ही-लोग – संगम पर जहाँ तक दृष्टि जाती है, लोग-ही-लोग दिखते हैं।

(7) समोच्चारित भिन्नार्थक शब्दों के द्वारा
जो शब्द उच्चारण में लगभग समान प्रतीत होते हैं, परन्तु उनके अर्थ भिन्न होते हैं, उन्हें समोच्चारित भिन्नार्थक शब्द-युग्म भी कहा जाता है; यथा-
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बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (क) निम्नलिखित शब्द-युग्मों में से किसी एक शब्द-युग्म में बताइए कि उसका कौन-सा अर्थ सही है-

(1) अनल-अनिल [2009, 11, 15, 17]
(क) पृथ्वी और आकाश
(ख) अग्नि और वायु
(ग) जल और वायु
(घ) पानी और आग

(2) सकल-शकल [2010, 17]
(क) कला और कृति
(ख) सन् और सम्वत्
(ग) सम्पूर्ण और अंश
(घ) सबल और निर्बल

(3) पुरुष-परुष—- (2015, 17]
(क) नर और नारी
(ख) आदमी और फरसा
(ग) पुरुष और पैसा
(घ) आदमी और कठोर

(4) गृह-ग्रह
(क) घर और नक्षत्र
(ख) घर और गृहस्थी
(ग) गिरोह और घर
(घ) गाँव और घर

(5) वृत्त-वित्त
(क) चरित्र और धन
(ख) धन और दौलत
(ग) गिरोह और घर
(घ) गाँव और घर

(6) बात-वात
(क) भात और दाल
(ख) बातचीत और वायु
(ग) हवा और पानी
(घ) बाट और तराजू

(7) कपट-कपाट [2016]
(क) कप और प्लेट
(ख) किवाड़ और खिड़की
(ग) धोखा और दरवाजा
(घ) पर्दा और किवाड़

(8) पतन-पत्तन-
(क) गिरना और उठना
(ख) पत्ता और फूल
(ग) गिरना और बन्दरगाह
(घ) पर्दा और किवाड़

(9) सुत-सूत [2012]
(क) पुत्र और पिता
(ख) पुत्र और सारथी
(ग) पुत्र और माता
(घ) पुत्र और पत्नी।।

(10) अभिराम-अविराम [2009, 10, 14, 15, 17]
(क) सुन्दर और लगातार
(ख) राम और लक्ष्मण
(ग) अब और तब
(घ) सुन्दर और मजबूत।

(11) पास-पाश [2010]
(क) उत्तीर्ण और निकट
(ख) निकट और जाल
(ग) निकट और ऊँचा
(घ) समीप और दूर

(12) पंथ-पथ-
(क) पथिक और रास्ता
(ख) सम्प्रदाय और मार्ग
(ग) चलना और बैठना
(घ) मार्ग और कार्य

(13) अभय-उभय-
(क) निडर और दोनों
(ख) भयरहित और निडर
(ग) निर्भय और कायर
(घ) आभायुक्त और अन्य

(14) अम्बुज-अम्बुद– [2013, 14, 16]
(क) कमल और बादल
(ख) जल और कमल
(ग) बादल और समुद्र
(घ) समुद्र और कमल

(15) मेघ-मेध–
(क) बादल और कील
(ख) बादल और यज्ञ
(ग) काला और बुद्धि
(घ) बादल और चर्बी

(16) अंस-अंश [2013,17]
(क) अंकुर और हिस्सा
(ख) हिस्सा और अंकुर
(ग) कंधा और हिस्सा
(घ) हिस्सा और कंधा।

(17) जलज-जलद [2009, 14, 16]
(क) बादल और कमल
(ख) कमल और बादल
(ग) कमल और तालाब
(घ) तालाब और कमल

(18) अन्न-अन्य–
(क) अनाज और दूसरा
(ख) भोजन और अनेक
(ग) गेहूँ और वह
(घ) बेकार और दूसरा

(19) उपकार-अपकार [2013]
(क) दूसरे का कार्य और बुरा
(ख) पुकार और न बोलना
(ग) भलाई और बुराई
(घ) अच्छा और दुष्ट

(20) अचार-आचार-
(क) बुरा आचरण और अच्छा
(ख) मुरब्बा और आचरण
(ग) स्थिर और चल
(घ) आम और चारा

(21) भित्ति-भीत–
(क) भक्ति और भाग्य
(ख) द्वार और दीवार
(ग) दीवार और डरा हुआ
(घ) बाहर और भीतर

(22) अमूल्य-अमूल-
(क) मूल-रहित और दूध
(ख) मूलरहित और जड़ रहित
(ग) मूल्य सहित और मूलभूत
(घ) अधिक मूल्यवाला और मूर्ख

(23) भारती-भारतीय
(क) सरस्वती और भारत का रहने वाला।
(ख) भार ढोने वाली और भर्ती करने वाला
(ग) भार में लगी हुई और चुनाव
(घ) एक जाति और एक व्यक्ति

(24) श्रान्त-आन्ति-
(क) थकान और खिन्नता
(ख) शान्ति और खिन्नता
(ग) खिल और थकान
(घ) शस्त और अशान्त।

(25) प्रारम्भ-प्रारब्ध-
(क) आरम्भ और योजना
(ख) अथ और इति
(ग) आरम्भ और भाग्य
(घ) शुरू करने की स्थिति और समाप्ति

(26) छात्र-क्षात्र– [2011,14]
(क) छतरीधारी और विद्यार्थी
(ख) विद्यार्थी और नेता
(ग) क्षत्रियधर्मी और विद्यार्थी
(घ) विद्यार्थी और क्षत्रियोचित

(27) नियत-नियति [2013]
(क) निश्चित और भाग्य
(ख) आदत और भाग्य
(ग) प्रकृति और गणना
(घ) आदत और गणना

(28) वहन-बहन
(क) टोना-भागिनी
(ख) बहना-बहिनी
(ग) ढोना-बहना
(घ) ढोना-ढहाना

(29) आय-आयु
(क) आना-उम्र
(ख) आमदनी-उम्र
(ग) आना-आज्ञा
(घ) आमदनी-आना

(30) श्रवण-श्रमण
(क) पाप और पुण्य
(ख) सज्जन और दुर्जन
(ग) कान और भिक्षु
(घ) सावन और परिश्रमी

(31) अंश-अंशु– [2015, 17]
(क) भाग और सूर्य
(ख) सूर्य और भाग
(ग) भाग और किरण
(घ) भाग और वरुण

(32) कटिबंध-कटिबद्ध-
(क) फेंटा और तैयार
(ख) करधनी और तैयार
(ग) तैयार और बाजूबन्द
(घ) उद्यत और उद्धत

(33) निहत-निहित–
(क) डरा हुआ और छिपा हुआ
(ख) छिपा हुआ और डरा हुआ
(ग) मरा हुआ और छिपा हुआ
(घ) हारा हुआ और मरा हुआ

(34) बिहग-बिहंग
(क) पक्षी और बालक
(ख) पक्षी और तोता
(ग) पक्षी और आकाश
(घ) आकाश और पक्षी

(35) अतिथि-अतिथेय (2010)
(क) जिसके आने की कोई तिथि न हो–अतिथि सेवा करने वाला
(ख) अधिक तिथि–आने वाली तिथि
(ग) अतिथिविहीन-तिथि सहित
(घ) जिसके आने की तिथि हो-जो निश्चित तिथि पर आये

(36) अग-अघ [2010,16]
(क) आगे-पीछे
(ख) अचल-पाप
(ग) नया–पुराना
(घ) सम्पूर्ण-पुण्य

(37) आरत-आराति [2012]
(क) आरती और आरती करने वाला
(ख) प्रेमी और प्रेम से रहित
(ग) दु:ख और शत्रु
(घ) रात्रि के पहले और रात्रि के बाद

(38) जलद-जलधि [2012]
(क) कमल और समुद्र
(ख) बादल और समुद्र
(ग) सिन्धु और आकाश
(घ) जलना और जो जला न हो

(39) श्वपच-स्वपच– [2012]
(क) दुष्ट और सज्जन
(ख) चाण्डाल और स्वयंपाकी
(ग) स्वयंपाकी और चाण्डाल
(घ) दुर्जन और साधु

(40) आतप-आपात [2012]
(क) धूप और संकट
(ख) संकट और धूप
(ग) धूप और छाया
(घ) उजाला और अँधेरा

(41) आवरण-आभरण- [2016]
(क) प्रारम्भ और अन्त
(ख) परदा और अन्त
(ग) परदा और गहना
(घ) मृत्यु और ढकना

(42) दुर्लभ-अप्राप्य [2013]
(क) कठिनाई से मिले – बिलकुल न मिले
(ख) हर समय मिले – कभी न मिले
(ग) कभी-कभी मिले – हर समय न मिले
(घ) मिलता हो – खो जाता हो।

(43) उच्छृखल-उद्दण्ड [2013]
(क) तत्पर और उद्धत
(ख) अवांछनीय और साहसी
(ग) नियमबद्ध न होना और जो दण्ड से न डरता हो
(घ) अन्याय से उत्पन्न भय और डर से उत्पन्न व्याकुलता

(44) निद्रा-तन्द्रा [2013]
(क) सो जाना और नींद की अर्द्ध-अवस्था या ऊँघना
(ख) नींद और आलस्य
(ग) जागना और सोने जैसी स्थिति
(घ) आलस्य और जाग्रत

(45) आपात-ऑपाद [2014]
(क) विपदा और सम्पदा
(ख) सुख और दुःख
(ग) संकट और निष्कण्टक
(घ) संकटे और पैर तक

(46) क्षति-क्षिति [2014]
(क) हानि और लाभ
(ख) हानि और आकाश
(ग) आकाश और पृथ्वी
(घ) हानि और पृथ्वी

(47) अम्ब-अम्भ (2015)
(क) माता और पानी
(ख) माता और पिता
(ग) आकाश और स्वर्ग
(घ) देवी और देवता

(48) अलि-आली (2015)
(क) भौंरा और सखी
(ख) भौंरा और कली
(ग) कली और भौंरा
(घ) सखी और भौंरा

(49) जगत्-जगत [2015]
(क) संसार और कुएँ का चबूतरा
(ख) संसार और संसारी
(ग) कुआँ और संसार
(घ) घड़ा और पानी

(50) उपल-उत्पल– [2015]
(क) उत्पन्न और ऊपर
(ख) ऊपर और नीचे
(ग) ओला और कमल
(घ) समाप्त और प्रारम्भ

(51) भव-भव्य (2015)
(क) संसार और सुन्दर
(ख) विश्व और व्यापक
(ग) सुख और दुःख
(घ) भौतिक और आध्यात्मिक

(52) कर्म-क्रम [2015]
(क) धर्म और कर्म
(ख) काम और आरम्भ
(ग) कार्य और क्रम
(घ) काम और सिलसिला

(53) आमरण-आभरण– [2013,15]
(क) मृत्यू और आभार
(ख) मृत्यु के निकट और सुन्दर
(ग) मृत्युपर्यन्त और आभूषण
(घ) मृत्यु होना और ढकना

(54) अपत्य-अपथ्य (2016)
(क) पतिविहीन और कुमार्ग
(ख) पुत्रहीन और भोजन
(ग) सन्तान और अहितकर
(घ) पुत्र और बीमारी

(55) कपिश-कपीश [2016]
(क) मटमैला और अंगद
(ख) मटमैला और हनुमान
(ग) बालि और अंगद
(घ) हनुमान और मैला

(56) प्रथा-पृथा– [2016]
(क) तरीका और परम्परा
(ख) अर्जुन और कुन्ती
(ग) रीति-रिवाज और कुन्ती
(घ) परम्परा और पृथ्वी

(57) अनुभव-अनुभूति [2018]
(क) व्यवहार रहित ज्ञान और अव्यावहारिक ज्ञान
(ख) व्यवहार से प्राप्त आन्तरिक ज्ञान और चिन्तन से प्राप्त आन्तरिक ज्ञान ।
(ग) अल्पकालिक ज्ञान और दीर्घकालिक प्राप्त ज्ञान
(घ) व्यावहारिक ज्ञान ओर अव्यावहारिक ज्ञान

(58) ईष्र्या-स्पर्धा [2018]
(क) दूसरों की उन्नति से प्रसन्न होना और दूसरों से प्रेरणा लेना
(ख) दूसरों से द्वेष करना और दूसरों से प्रेम करना
(ग) दूसरों की उन्नति से जलना और दूसरों की उन्नति और गुणों को प्राप्त करने की होड़
(घ) अवनति और उन्नति

(59) अशक्त-आसक्त– [2018]
(क) शक्तिमान-निकट
(ख) समर्थ-लगाव रखने वाला।
(ग) असमर्थ-लगाव रखने वाला
(घ) शक्तिरहित-प्रेम करने वाला

(60) देव-दैव [2018]
(क) देना-आकाश
(ख) देवता-भाग्य
(ग) दाता-विधाता
(घ) दान-भाग्य

(61) अपेक्षा-उपेक्षा [2018]
(क) तुलना और अवहेलना
(ख) समीक्षा और तुलना
(ग) तुलना और स्वागत
(घ) स्वागत और अनादर

(62) कुल-कूल [2018]
(क) वंश और तट
(ख) योग और वियोग
(ग) वंश और योग
(घ) योग और किनारा

उत्तर
1, (ख), 2. (ग), 3. (घ), 4. (क), 5. (क). 6. (ख). 7. (ग), 8. (ग), 9, (ख). 10. (क), 11. (ख), 12, (ख), 13. (क), 14. (क), 15, (ख), 16. (ग), 17. 19. (ग), 20. (ख), 21. (ग), 22, (घ), 23. (क), 24. (क), 25. (ग), 26. (घ), 27. (क), 28. (क), 29. (ख), 30. (ग),31. (क), 32. (क),33. (ग), 34. (घ), 35.(क), 36. (ख),37. (ग), 38. (ख),39. (ख),40. (क),41. (ग),42. (क),43. (ग),44. (क),45. (घ),46. (घ), 47, (घ), 48. (क),49. (क), 50. (ग),51. (क), 52. (घ),53. (ग),54. (ग), 55. (ख), 56. (ग), 57. (ख), 58. (ग), 59. (घ), 60. (ख), 61. (क), 62. (क)

प्रश्न (ख)
निम्नलिखित में से किन्हीं दो शब्द-युग्मों के सूक्ष्म अन्तर को स्पष्ट कीजिए-
(i) अविराम-अभिराम,
(ii) अवलम्ब-अविलम्ब,
(iii) ग्रह-गृह,
(iv) कुल-कूल,
(v) अभिज्ञ-अनभिज्ञ,
(vi) क्षात्र-छात्र,
(vii) पुरुष-परुष।
उत्तर
(i) अविराम-अभिराम का अर्थ है–निरन्तर-सुन्दर,
(ii) अवलम्ब-अविलम्ब का अर्थ है-सहाराशीघ्र,
(iii) ग्रह-गृह का अर्थ है-नक्षत्र-घर,
(iv) कुल-कूल का अर्थ है-वंश-किनारा,
(v) अभिज्ञ-अनभिज्ञ का अर्थ है—जानकार-अनजान,
(vi) क्षात्र-छात्र का अर्थ हैं–क्षत्रिय-विद्यार्थी,
(vii) पुरुष-परुष का अर्थ है—मनुष्य-कठोर।

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UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य-साहित्यका विकास प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँ

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य-साहित्यका विकास प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँ are part of UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi . Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य-साहित्यका विकास प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँ.

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Class Class 11
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 5
Chapter Name गद्य-साहित्यका विकास प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँ
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi पद्य-साहित्य का विकास प्रमुख काव्य-कृतियाँ और उनके रचनाकार

प्रमुख काव्य-कृतियाँ और उनके रचनाकार

प्राय: परीक्षा में अतिलघु उत्तरीय प्रश्नों के रूप में प्रमुख काव्य-कृतियों के नाम देकर उनके रचनाकार कवि का नाम पूछा जाता है अथवा किसी कवि का नाम देकर उसकी रचना का नाम पूछा जाता है। निम्नांकित तालिका विद्यार्थियों के लिए दोनों रूपों में सहायक सिद्ध होगी।
UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi पद्य-साहित्य का विकास प्रमुख काव्य-कृतियाँ और उनके रचनाकार 1
UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi पद्य-साहित्य का विकास प्रमुख काव्य-कृतियाँ और उनके रचनाकार 2
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UP Board Solutions for Class 12 English Poetry Short Poems Chapter 7 The Passing of Arthur

UP Board Solutions for Class 12 English Poetry Short Poems Chapter 7 The Passing of Arthur are part of UP Board Solutions for Class 12 English. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 English Poetry Short Poems Chapter 7 The Passing of Arthur.

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Textbook NCERT
Class Class 12
Subject English Poetry short Poems
Chapter Chapter 7
Chapter Name The Passing of Arthur
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 English Poetry Short Poems Chapter 7 The Passing of Arthur

About the Poet : Alfred Lord Tennyson was born at Somersby in 1809. He was educated at Trinity College, Cambridge. He was a reputed representative poet of the Victorian age. He was a poet Laureate from 1850 until his death in 1892.

About the Poem : This poem is an extract from Alfred Lord Tennyson’s longer poem Morte D’Arthur. The poet describes that the wounded king Arthur is going with his three queens on his mysterious journey. He advises his faithful knight Bedivere to have consolation and to pray to God for the peace of his soul. He also tells him about the power and miracles of the prayer.

Central Idea                                                                                                                                       [2013, 17, 18]
The poet Tennyson tells us that the old social orders change and new ones take their place. Any good system, if it lingers too long, loses its utility and brings corruption. Then he tells us the importance of prayer. Men are not better than animals if they do not pray to God. Prayer is the link between God and the world. Moreover the similies used in this poem make it more beautiful and impressive.

(कवि टेनिसन बताता है कि समाज की पुरानी व्यवस्थाएँ बदल जाती हैं और नई व्यवस्थाएँ उनका स्थान ले लेती हैं। कोई भी अच्छी व्यवस्था यदि काफी समय तक चल जाए तब यह अपना महत्त्व खो देती है और भ्रष्टाचार को जन्म देती है। फिर वह प्रार्थना का महत्त्व बताता है। वे मनुष्य जानवरों से अधिक अच्छे नहीं होते जो भगवान् की प्रार्थना नहीं करते। प्रार्थना भगवान् और संसार के बीच एक कड़ी है। इसके अतिरिक्त इस कविता को उपमा अलंकार के प्रयोग ने और अधिक सुन्दर तथा प्रभावशाली बना दिया है।)

EXPLANATIONS (With Meanings & Hindi Translation) RESTAURACIONES
(1)
And slowly answer’d Arthur from the barge :
“The old order changeth, yielding place to new,
And God fulfils Himself in many ways,
Lest one good custom should corrupt the world. [2009, 10, 12, 14, 15, 18]

[Word-meanings : barge = एक प्रकार की हल्की नाव a light boat; order = प्रणाली system; changeth = बदल जाता है changes; yielding = देते हुए giving; fulfills Himself = अपनी इच्छा प्रकट करता है expresses His will; lest = कहीं ऐसा न हो कि; corrupt = खराब करना, बिगाड़ना spoil.]

(जब राजा आर्थर मरने वाला था तब उसने अपने एक सरदार जो अकेला ही व्यक्ति था जो लड़ाई में बच गया था, को सान्त्वना दी। राजा ने अपनी नाव में से धीमे स्वर में कहा, “पुरानी प्रणाली बदल जाती है और नयी को स्थान देती है। भगवान् अपनी इच्छा को कई प्रकार से पूरा कर लेता है। सभी परिवर्तन भगवान् की इच्छा से होते हैं। परिवर्तन इसलिए आवश्यक है कि कहीं ऐसा न हो कि एक अच्छी परम्परा अधिक समय तक चलकर पूरे संसार को ही बिगाड़ दे।”)

Reference : This stanza has been taken from the poem The Passing of Arthur composed by Alfred Lord Tennyson.

[ N.B. : The above reference will be used for all the explanations of this poem. ]

Context : The wounded King Arthur is going on his mysterious journey. He bids goodbye to his favourite knight Bedivere. He is very weak, so he speaks in a very low voice. He consoles him saying that he should not be sad on the ending of the age of chivalry.

Explanation : In this opening stanza the king Arthur speaks to Bedivere in a low voice, “Change is the law of nature. One thing does not remain the same at all times. The old systems change and new systems take their place. God also changes His ways in fulfilling His purposes. Even a good system may be harmful in the long run if a change is not brought in it in due course. One good system if it continues for a long time, may spoil the whole world.”

(इस प्रथम पद्यांश में राजा आर्थर, बेडीवर से धीमी आवाज में बोलता है, “परिवर्तन प्रकृति का नियम है। एक वस्तु प्रत्येक समय समान नहीं रहती। पुरानी व्यवस्थाएँ बदल जाती हैं और नई व्यवस्थाएँ उनका स्थान ले लेती हैं। भगवान् भी अपने कार्यों को पूरा कराने के लिए अपने ढंग को बदल लेता है। आगे चलकर एक अच्छी व्यवस्था भी हानिकारक हो सकती है, यदि समय रहते उसमें परिवर्तन न लाया जाए। यदि एक अच्छी व्यवस्था को काफी समय तक चलने दिया जाए तब यह पूरे संसार को खराब कर सकती है।”)

Comments : The old order’ here means the age of chivalry and the institution of knighthood that flourished during the Dark age and the Middle ages.

(2)
Comfort thyself : what comfort is in me ?
I have lived my life, and that which I have done.
May He within Himself make pure ! but thou,
If thou shouldst never see my face again,
Pray for my soul, More things are wrought by prayer
Than this world dreams of. Wherefore, let thy voice
Rise like a fountain for me night and day. [2011, 13, 15]

[Word-meanings : comfort = सान्त्वना consolation; wrought = किए जाते हैं are done; dreams of = सोचती है thinks of; wherefore = इसलिए therefore.]

(राजा आर्थर, बेडीवर को समझाता है कि जिस प्रकार मैंने स्वयं को सान्त्वना दी है उसी प्रकार तुम भी स्वयं को सान्त्वना देना। मुझे तो अपने जीवन में जो कुछ करना था कर लिया और मैं भगवान् से प्रार्थना करता हूँ कि जो कुछ मैंने किया है भगवान् उसे अपनी शक्ति से दोषमुक्त कर दे। राजा पुनः कहता है कि यदि मैं जीवित न रह सकें और तुम मुझे न देख सको तब तुम मेरी आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करना। बहुत-से कार्य प्रार्थना के द्वारा सम्भव हो जाते हैं। प्रार्थना में इतनी शक्ति है कि सांसारिक मनुष्य उसकी कल्पना भी नहीं कर सकता। इसलिए राजा अपने शूरवीर को उपदेश देता है कि वह दिन-रात उसकी आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करता रहे जिस प्रकार से एक फव्वारा लगातार ऊपर की ओर चलता है।)

Context : King Arthur was fatally wounded in a battle. He asked his knight, Sir Bedivere to put him in the boat. When the boat began to sail, Sir Bedivere was sad. King Arthur is consoling the knight.

Explanation : King Arthur asks the knight to feel comfortable from his side as his life is almost over. He has performed duties of his life. He hopes and prays that God may accept his work by purifying it of all its unworthiness. Then he asks the knight to pray for the peace if his soul does not find him alive in the world. King Arthur points out that more things are done by prayer than people think of. Sometimes prayers do wonders and unimaginable things. Therefore, King Arthur asks his knight to pray for him day and night. But the prayer should be spontaneous like a fountain that flows on continuously.

(राजा आर्थर अपने शूरवीर को कहता है कि मेरी ओर से स्वयं को सान्त्वना दो क्योंकि मेरा जीवन लगभग समाप्त हो गया है। मैं अपने जीवन के कर्तव्यों का निर्वाह कर चुका हूँ। मैं आशा करता हूँ और भगवान् से प्रार्थना करता हूँ कि भगवान् मेरे कार्यों को दोषमुक्त करके उन्हें स्वीकार करें। फिर वह उस शूरवीर से कहता है कि यदि तुम मुझे संसार में जीवित न पाओ तब भगवान् से मेरी आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करना। राजा आर्थर बताता है कि मनुष्यों के सोचने की अपेक्षा बहुत से कार्य प्रार्थना से कर लिये जाते हैं। कभी-कभी प्रार्थना से आश्चर्यजनक और अकल्पनीय कार्य भी हो जाते हैं। अतः राजा आर्थर अपने शूरवीर से कहता है कि दिन-रात मेरे लिए प्रार्थना करना, किन्तु प्रार्थना लगातार चलने वाले फव्वारे के समान सतत् । होनी चाहिए।)

(3)
For what are men better than sheep or goats
That nourish a blind life within the brain,
If, knowing God, they lift not hands of prayer
Both for themselves and those who call them friend ?
For so the whole round earth is in every way
Bound by gold chains about the feet of God,
But now farewell. [2013, 18]

[ Word-meanings : nourish = Jifaa rad & keep alive; a blind life within the brain = आध्यात्मिकता से-रहित जीवन जो पशुओं के समान दूसरों पर आश्रित रहे the life without any spiritual knowledge and not independent in his thinking; for so = FAYOR in this, way; bound = बँधी हुई tied.]

(राजा अपने वफादार सरदार को समझाते हैं कि जिन मनुष्यों के पास आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है और जो दूसरों पर निर्भर रहते हैं, वे पशुओं के समान हैं। जो व्यक्ति भगवान् को जानते हुए भी अपने लिए तथा अपने मित्रों के लिए उससे प्रार्थना नहीं करते वे भी पशु के समान हैं। यह पूरी संसार प्रेम के बन्धन में भगवान् से बँधा हुआ है। इसलिए भगवान् की प्रार्थना अत्यन्त आवश्यक एवं प्रभावकारी है।)

Context : The wounded King Arthur is going on his mysterious journey. He bids goodbye to his favourite knight Bedivere. He requests him to pray for the peace of his soul. He tells him the power of prayer that even the impossible works become possible by prayer.

Explanation : In this stanza the poet tells us the power of prayer and distinction between men and animals. The animals do not have brain. They can’t use their reasoning power. They have no knowledge of God. But man knows what God is. So he should pray to God for himself and for his friends. So the people who do not pray to God are just like animals. Prayer is what we say due to affection. It is affection that binds us with God. So prayer is very necessary and effective.

(इस पद्यांश में कवि प्रार्थना की शक्ति तथा मनुष्य और पशुओं में भेद के विषय में बताता है। पशुओं में मस्तिष्क नहीं होता। वे अपनी तर्क शक्ति का भी प्रयोग नहीं कर सकते। उन्हें भगवान् का भी कोई ज्ञान नहीं होता, किन्तु मनुष्य जानता है कि भगवान् क्या है। इसलिए उसे अपने लिए और अपने मित्रों के लिए भगवान् से प्रार्थना करनी चाहिए। इसलिए जो व्यक्ति भगवान् से प्रार्थना नहीं करते वे पशुओं के समान होते हैं। प्रार्थना वही होती है जो हम प्रेम के कारण करते हैं। यह वह प्रेम है जो हमें भगवान् के बन्धन में बाँधता है। इसलिए प्रार्थना अत्यन्त आवश्यक और प्रभावकारी होती है।)

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