UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य-साहित्यका विकास बहुविकल्पीय प्रश्न : दो

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 3
Chapter Name गद्य-साहित्यका विकास बहुविकल्पीय प्रश्न : दो
Number of Questions 106
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य-साहित्यका विकास बहुविकल्पीय प्रश्न : दो

बहुविकल्पीय प्रश्न : दो

पत्र/पत्रिका विधा पर आधारित

उचित विकल्प का चयन कीजिए

(1) ‘प्रजा हितैषी’ नाम के पत्र का प्रकाशन किया
या
‘प्रजा हितैषी’ समाचार-पत्र निकालने वाले हिन्दी सेवी थे
(क) राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द’ ने
(ख) राजा लक्ष्मण सिंह ने
(ग) बाबू नवीनचन्द्र राय ने
(घ) सुखयाल शास्त्री ने

(2) ‘आनन्द कादम्बिनी’ नामक पत्रिका के सम्पादक थे
(क) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(ख) बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन
(ग) राय कृष्णदास
(घ) धर्मवीर भारती

(3) बालकृष्ण भट्ट द्वारा सम्पादित पत्रिका है
(क) हिन्दी प्रदीप
(ख) इन्दु
(ग) माधुरी
(घ) प्रभा

(4) निम्नलिखित में से ‘ब्राह्मण’ पत्रिका के सम्पादक कौन हैं?
(क) बालकृष्ण भट्ट
(ख) महावीरप्रसाद द्विवेदी
(ग) प्रतापनारायण मिश्र
(घ) श्यामसुन्दर दास

(5) निम्नलिखित में से पत्रिका नहीं है
(क) सरस्वती
(ख) इन्दु
(ग) आनन्द कादम्बिनी
(घ) भारत दुर्दशा

(6) महावीरप्रसाद द्विवेदी ने किस पत्रिका का सम्पादन किया?
(क) इन्दु
(ख) आनन्द कादम्बिनी
(ग) सरस्वती
(घ) हिन्दी प्रदीप

(7) साहित्य सन्देश’ पत्रिका के सम्पादक थे
(क) महावीरप्रसाद द्विवेदी
(ख) प्रतापनारायण मिश्र
(ग) गुलाब राय
(घ) राजेन्द्र यादव

(8) प्रेमचन्द किस पत्रिका के सम्पादक थे?
(क) सरस्वती
(ख) हिन्दी प्रदीप
(ग) चाँद
(घ) हंस

(9) ‘सरस्वती’ के प्रथम सम्पादक हैं
(क) महावीर प्रसाद द्विवेदी (सन् 1903 से)
(ख) श्यामसुन्दर दास (सन् 1903 तक)
(ग) पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
(घ) हरदेव बाहरी

(10) ‘माधुरी’ पत्रिका किस युग से सम्बन्धित है?
(क) शुक्ल युग
(ख) शुक्लोत्तर युग
(ग) द्विवेदी युग
(घ) भारतेन्दु युग

(11) ‘हिन्दी प्रदीप’ के सम्पादक हैं
(क) प्रतापनारायण मिश्र
(ख) बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन
(ग) बालकृष्ण भट्ट
(घ) राधाकृष्ण दास

उत्तर (1) ख, (2) ख, (3) क, (4) ग, (5) घ, (6) ग, (7) ग, (8) घ, (9) के, (10) ग, (11) ग।

नाटक विधा पर आधारित

उचित विकल्प का चयन कीजिए

(1) ‘रणधीर’ और ‘प्रेम मोहिनी’ नाट्य कृतियों के नाटककार हैं
(क) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(ख) प्रतापनारायण मिश्र
(ग) बालकृष्ण भट्टं.
(घ) लाला श्रीनिवास दास

(2) ‘कल्याणी-परिणय’ और ‘धुवस्वामिनी’ कृतियों के कृतिकार हैं
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) हरिकृष्ण प्रेमी
(ग) रामकुमार वर्मा
(घ) गोविन्दवल्लभ पन्त

(3) ‘स्वर्णविहीन’, ‘रक्षाबन्धन’, ‘प्रतिशोध’ के रचयिता हैं
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) हरिकृष्ण प्रेमी’
(ग) रामकुमार वर्मा
(घ) लक्ष्मीनारायण मिश्र

(4) ‘संन्यासी’ और ‘मुक्ति का रहस्य’ के रचयिता हैं
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) हरिकृष्ण प्रेमी
(ग) रामकुमार वर्मा
(घ) लक्ष्मीनारायण मिश्र

(5) निम्ननिखित रचनाओं में से कौन-सी रचना नाटक है?
(क) नमक का दारोगा
(ख) गोदान
(ग) आखिरी चट्टान तक
(घ) राजमुकुट

(6) ‘नाटक’ विद्या पर आधारित रचना नहीं है
(क) सीता की माँ
(ख) लहरों के राजहंस
(ग) अपना-अपना भाग्य।
(घ) आने का मान

(7) निम्नलिखित रचनाओं में कौन-सी रचना नाटक है?
(क) सन्नाटा
(ख) निन्दा रस,
(ग) गरुड़ध्वज
(घ) राष्ट्र का स्वरूप

(8) ‘सूतपुत्र’ किस विधा की रचना है?
(क) कहानी
(ख) उपन्यास
(ग) नाटक
(घ) संस्मरण

(9) निम्नलिखित में से नाटक है
(क) अन्धा युग
(ख) उसने कहा था
(ग) आँसू :
(घ) कलम का सिपाही

(10) निम्नलिखित में से कौन-सी रचना नाटक है?
(क) मजदूरी और प्रेम
(ख) रस-मीमांसा
(ग) पाप और प्रकाश
(घ) भारत की एकता

(11) ‘भारत-दुर्दशा’ किसे विधी की रचना है?
(क) नाटक
(ख) उपन्यास
(ग) एकांकी।
(घ) कहानी

(12) प्रसादोत्तरकाल की नाटक है-
(क) लहरों के राजहंस
(ख) करुणालय
(ग) भारतजननी
(घ) जनमेजय का नागयज्ञ ।

उत्तर (1) घ, (2) क, (3) ख, (4) घ, (5) घ, (6) ग, (7) ग, (8) गे, (9) क, (10) ग, (11) क, (12) का

एकांकी विधा पर आधारित

उचित विकल्प का चयन कीजिए

(1) ‘एक घूट’ को हिन्दी का प्रथम एकांकी मानते हैं। इसके रचयिता हैं
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) जैनेन्द्र कुमार
(ग) रामकुमार वर्मा
(घ) उदयशंकर भट्ट

(2) ‘पृथ्वीराज की आँखें’ एकांकी संग्रह के एकांकीकार हैं
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) जैनेन्द्र कुमार
(ग) रामकुमार वर्मा
(घ) सेठ गोविन्ददास

(3) ‘बहू की विदा’ एकांकी के रचयिता हैं
(क) सेठ गोविन्ददास
(ख) हरिकृष्ण प्रेमी
(ग) मोहन राकेश
(घ) विनोद रस्तोगी

(4) एकांकी-सम्राट कहा जाता है
(क) रामकुमार वर्मा को
(ख) सेठ गोविन्ददास को
(ग) हरिकृष्ण प्रेमी को
(घ) मोहन राकेश को

उत्तर (1) क, (2) ग, (3) घ, (4) का

कहानी विधा पर आधारित

उचित विकल्प का चयन कीजिए

(1) हिन्दी की प्रथम कहानी के नाम से जानी जाती है
(क) दुलाईवाली
(ख) इन्दुमती
(ग) प्लेग की चुडैल
(घ) ग्यारह वर्ष का समय

(2) आधुनिक ढंग की कहानियों का प्रारम्भ किस पत्रिका के प्रकाशन-काल से माना जाता है?
(क) सरस्वती,
(ख) माधुरी
(ग) इन्दु
(घ) मर्यादा

(3) हिन्दी गद्य की कालजयी कहानी उसने कहा था’ के लेखक हैं
(क) चन्द्रधर शर्मा गुलेरी’
(ख) प्रेमचन्द
(ग) सुदर्शन
(घ) जयशंकर प्रसाद

(4) द्विवेदी युग के जासूसी कहानीकारों में अग्रगण्य हैं
(क) गिरिजाकुमार घोष
(ख) गोपालराम गहमरी
(ग) किशोरीलाल गोस्वामी
(घ) बंग महिला

(5) निम्नलिखित रचनाओं में से कौन-सी रचना कहानी है?
(क) त्यागपत्र
(ख) भाग्य और पुरुषार्थ
(ग) पुरस्कार
(घ) आन का मान

(6) कहानियों के क्षेत्र में सर्वाधिक चर्चित कहानीकार प्रेमचन्द के कहानियों के संकलन प्रकाशित हुए हैं
(क) क्षीरसागर’ शीर्षक से
(ख) “मानसरोवर’ शीर्षक से
(ग) “मानसागर’ शीर्षक से
(घ) कथा-संग्रह’ शीर्षक से

(7) ‘ग्राम’, ‘आकाशदीप’, ‘गुण्डा’, ‘चित्रमन्दिर’, ‘आँधी’, ‘सलीम’, ‘मधुआ’ आदि कहानियाँ किस कहानीकार द्वारा रचित हैं?
(क) भगवतीचरण वर्मा
(ख) उपेन्द्रनाथ अश्क
(ग) जयशंकर प्रसाद
(घ) प्रेमचन्द

(8) ‘मुगलों ने सल्तनत बख्श दी’, ‘प्रायश्चित्त’, ‘विक्टोरिया क्रॉस’ कहानियाँ किस कहानीकार द्वारा रचित हैं?
(क) उपेन्द्रनाथ अश्क’
(ख) भगवतीचरण वर्मा
(ग) जयशंकर प्रसाद
(घ) प्रेमचन्द

(9) ‘धर्मयुद्ध’, ‘फूल की चोरी’, ‘चार आने’, ‘अभिशप्त’, ‘कर्मफल’, ‘परदा’, ‘फूलों का कुर्ता’ किस कहानीकार द्वारा रचित प्रसिद्ध कहानियाँ हैं?
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) यशपाल
(ग) स० ही० वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
(घ) प्रेमचन्द

(10) मुरदा सराय’, ‘केवड़े का फूल’, ‘पापजीवी’, ‘हाथ का दाग’ किस कथाकार की श्रेष्ठ रचनाएँ हैं?
(क) अमरकान्त
(ख) यशपाल
(ग) शिवप्रसाद सिंह
(घ) जैनेन्द्र कुमार

(11) निम्नलिखित रचनाओं में से कौन-सी रचना कहानी है?
(क) शेष स्मृतियाँ
(ख) पंचलाइट
(ग) कुटज
(घ) आन का मान

(12) निम्नलिखित रचनाओं में कौन-सी रचना कहानी है?
(क) हंस
(ख) उसने कहा था
(ग) निर्मला
(घ) ध्रुवस्वामिनी

(13) निम्नलिखित रचनाओं में कौन-सी रचना कहानी है?
(क) कुटज
(ख) आखिरी चट्टाने तक
(ग) शिक्षा का उद्देश्य
(घ) पुरस्कार

(14) निम्नलिखित रचनाओं में कौन-सी रचना कहानी नहीं है?
(क) पुरस्कार
(ख) वसीयत
(ग) सती
(घ) आचरण की सभ्यता

(15) प्रेमचन्द के समकालीन कहानीकार हैं
(क) अम्बिकादत्त व्यास
(ख) चण्डीप्रसाद सिंह ‘हृदयेश
(ग) जयशंकर प्रसाद
(घ) माधव प्रसाद मिश्र

(16) ‘पंचलाइट’ के लेखक हैं
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) फणीश्वरनाथ रेणु
(ग) यशपाल
(घ) हजारीप्रसाद द्विवेदी

(17) ‘बहादुर’ नामक कहानी के कहानीकार हैं
(क) फणीश्वरनाथ रेणु
(ख) अमरकान्त
(ग) जैनेन्द्र कुमार
(घ) शिवप्रसाद सिंह

(18) ‘लेग की चुडैल गद्य की किस विधा की रचना है?
(क) नाटक
(ख) एकांकी
(ग) कहानी
(घ) उपन्यास

(19) चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की प्रसिद्ध कहानी है|
(क) पंचलाइट
(ख) उसने कहा था
(ग) पुरस्कार
(घ) आत्माराम

उत्तर (1) ख, (2) के, (3) क, (4) ख, (5) ग, (6) ख, (7) ग, (8) ख, (9) ख, (10) म, (11) ख, (12) ख, (13) घ, (14) घ, (15) ख तथा ग, (16) ख, (17) ख, (18) ग, (19) ख।

उपन्यास विधा पर आधारित

उचित विकल्प का चयन कीजिए

(1) हिन्दी का प्रथम मौलिक उपन्यास माना जाता है
(क) परीक्षा-गुरु
(ख) भूतनाथ
(ग) चन्द्रकान्ता
(घ) सेवासदन

(2) ‘भाग्यवती’ को हिन्दी का प्रथम सामाजिक उपन्यास माना जाता है। इसके लेखक थे
(क) नवीनचन्द्र राय
(ख) गोपालराम गहमरी
(ग) श्रद्धाराम फुल्लौरी
(घ) देवकीनन्दन खत्री।

(3) हिन्दी उपन्यासों की विकास-परम्परा का अध्ययन किस लेखक के नाम से विभाषित करके किया जाता है?
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) प्रेमचन्द
(ग) जैनेन्द्र कुमार
(घ) यशपाल

(4) लिनलिखित उपन्यासकारों में से कौन आंचलिक उपन्यासकारों की श्रेणी में आते हैं।
(क) हजारीप्रसाद द्विवेदी
(ख) फणीश्वरनाथ रेणु’
(ग) रांगेय राघव
(घ) अमृतलाल नागर

(5) आधुनिक काल की महिला उपन्यास-लेखिका हैं
(क) महादेवी वर्मा
(ख) सुभद्रा कुमारी चौहान्
(ग) मीराबाई
(घ) मन्नू भण्डारी

(6) निम्नलिखित में से कौन-सी रचना उपन्यास नहीं है?
(क) गबने
(ख) अशोक के फूल
(ग) तितली
(घ) परीक्षा-गुरु

(7) निम्नलिखित में से कौन-सी रचना उपन्यास है?
(क) कामायनी
(ख) गोदाने
(ग) साकेत
(घ) स्कन्दगुप्त

(8) निम्नलिखित में से कौन-सा उपन्यास प्रेमचन्द का है?
(क) तितली
(ख) सुनीता
(ग) गोदान
(घ) बाणभट्ट की आत्मकथा

(9) उपन्यास विधा की रचना है
(क) नीड़ का निर्माण फिर
(ख) बाणभट्ट की आत्मकथा
(ग) कलम का सिपाही
(घ) पथ के साथी

(10) रामवृक्ष बेनीपुरी का उपन्यास है|
(क) सप्त सिंधु
(ख) पतितों के देश में
(ग) सिंह सेनापति
(घ) विवर्त

(11) ‘मैला आँचल’ रचना है
(क) महावीर प्रसाद द्विवेदी की
(ख) अज्ञेय की
(ग) फणीश्वरनाथ रेणु’ की
(घ) सरदार पूर्णसिंह की

उत्तर (1) क, (2) ग, (3) ख, (4) ख, (5) घ, (6) ख, (7) खे, (8) ग, (9) ख, (10) खं, (11) गा।

निबन्धं विधा पर आधारित

चित विकल्प का चयन कीजिए

(1) निम्नलिखित में से कौन भारतेन्दुयुगीन निबन्धकार नहीं हैं?
(क) प्रतापनारायण मिश्र
(ख) बालकृष्ण भट्ट
(ग) बालमुकुन्द गुप्त
(घ) महावीरप्रसाद द्विवेदी

(2) लाला श्रीनिवास दास और राधाचरण गोस्वामी किस युग के निबन्धकार हैं?
(क) भारतेन्दु युग
(ख) द्विवेदी युग
(ग) शुक्ल युग
(घ) शुक्लोत्तर युग

(3) निम्नलिखित में से कौन द्विवेदीयुगीन निबन्धकार नहीं हैं?
(क) सरदार पूर्णसिंह
(ख) श्यामसुन्दर दास
(ग) बाबू गुलाबराय
(घ) सियारामशरण गुप्त

(4) पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी और पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’ किस युग के निबन्धकार हैं?
(क) भारतेन्दु युग
(ख) द्विवेदी युग
(ग) शुक्ल युग
(घ) शुक्लोत्तर युगे

(5) ‘चिन्तामणि’ शीर्षक निबन्ध-संग्रह में शुक्ल युग के किस निबन्धकार के निबन्धसंकलित हैं।
(क) जयशंकर प्रसाद,
(ख) रामवृक्ष बेनीपुरी
(ग) रामचन्द्र शुक्ल
(घ) सम्पूर्णानन्द

(6) श्रीराम शर्मा और राहुल सांकृत्यायन किस युग के निबन्धकार हैं?
(क) भारतेन्दु युग
(ख) द्विवेदी युग
(ग) शुक्ल युग
(घ) शुक्लोत्तरे युग

(7) ‘अशोक के फूल’ और ‘कुटंज’ के रचनाकार हैं
(क) हजारीप्रसाद द्विवेदी
(ख) मोहन राकेश
(ग) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर
(घ) कुबेरनाथ राय

(8) ‘रस-मीमांसा’ के रचयिता हैं
(क) हजारीप्रसाद द्विवेदी
(ख) रघुवीर सिंह
(ग) डॉ० नगेन्द्र
(घ) रामचन्द्र शुक्ल

(9) इनमें से कौन शुक्लोत्तर युग के निबन्धकार नहीं हैं?
(क) डॉ० नगेन्द्र
(ग) हजारीप्रसाद द्विवेदी
(घ) नन्ददुलारे वाजपेयी

(10) निम्नलिखित में से कौन हास्य-व्यंग्य प्रधान निबन्धों के रचनाकार नहीं हैं।
(क) श्रीनारायण चतुर्वेदी
(ख) हरिशंकर परसाई
(ग) शरद जोशी
(घ) वासुदेवशरण अग्रवाल

(11) युग-प्रवर्तक निबन्ध लेखक हैं
(क) सरदार पूर्णसिंह
(ख) महावीर प्रसाद द्विवेदी
(ग) बालकृष्ण भट्ट
(घ) रामवृक्ष बेनीपुरी

(12) ‘चिन्तामणि’ और ‘राष्ट्र को स्वरूप’ किस गद्य विधा की रचना है?
(क) संस्मरण
(ख) कहानी
(ग) निबन्ध
(घ) उपान्यस

(13) आचार्य रामचन्द्र शुक्ले के अनन्तर समर्थ निबन्धकार/आलोचक हैं
(क) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(ख) लाला श्रीनिवास
(गे) महावीरप्रसाद द्विवेदी
(घ) डॉ० नगेन्द्र

(14) ‘तुम चन्दन हम पानी’ किस विधा की रचना है?
(क) नाटक
(ख) संस्मरण
(ग) आत्मकथा
(घ) निबन्ध

(15) निम्नलिखित में से किसे ललित निबन्धकार माना जाता है?
(क) श्यामसुन्दर दास
(ख) सरदार पूर्णसिंह
(ग) कुबेरनाथ राय
(घ) रामचन्द्र शुक्ल

उत्तर (1) घ, (2) क, (3) घ, (4) ख, (5) ग, (6) ग, (7) क, (8) घ, (9) ख, (10) घ, (11) ख, (12) ग, (13) घ, (14) घ, (15) ग।

आलोचना विधा पर आधारित

उचित विकल्प का चयन कीजिए

(1) हिन्दी नवरत्न’ नामक आलोचनात्मक निबन्ध-संग्रह के रचयिता हैं
(क) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(ख) श्यामसुन्दर दास
(ग) मिश्रबन्धु
(घ) मोहन राकेश

(2) डॉ० नगेन्द्र प्रसिद्ध हैं।
(क) ‘आत्मकथा लेखन के लिए
(ख) ‘यात्रावृत्त के लिए
(ग) गद्यगीत के लिए
(घ) “आलोचना’ के लिए,

(3) आलोचना के क्षेत्र में सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं
(क) मिश्रबन्धु
(ख) गुलाबराय
(ग) सुदर्शन
(घ) रामचन्द्र शुक्ल

उत्तर (1) ग, (2) घ, (3) घ।

आत्मकथा विधा पर आधारित

उचित विकल्प का चयन कीजिए

(1) ‘क्या भूलें क्या याद कौं’ तथा ‘नीड़ का निर्माण फिर’ (हरिवंशराय बच्चन’)किस विधा की रचना है?
(क) आत्मकथा
(ख) जीवनी
(ग) संस्मरण
(घ) कहानी

(2) ‘नीड़ का निर्माण फिर’ किस लेखक की रचना है?
(क) सुमित्रानन्दन पन्त
(ख) डॉ० हरिवंशराय बच्चन
(ग) सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
(घ) विष्णु प्रभाकर

(3) निम्नलिखित रचनाओं में कौन-सी रचना ‘आत्मकथा’ है?
(क) सिंहावलोकन
(ख) मेरी कॉलेज डायरी
(ग) साहित्य-साधना
(घ) जीवन और साहित्य

(4) ‘अपनी खबर’ (पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’) किस विधा की रचना है?
(क) निबन्ध
(ख) आत्मकथा
(ग) उपन्यास
(घ) कहानी

(5) ‘मेरी असफलताएँ’ (बाबू गुलाबराय) किस विधा की रचना है?
(क) जीवनी-साहित्य
(ख) कहानी
(ग) डायरी
(घ) आत्मकथा

(6) वियोगी हरि कृत ‘मेरा जीवन प्रवाह’ किस विधा की रचना है?
(क) जीवनी
(ख) आत्मकथा
(ग) संस्मरण
(घ) कहानी

(7) ‘अन्या से अनन्या’ आत्मकथा के लेखक हैं
(क) मैत्रेयी पुष्पा
(ख) वियोगी हरि
(ग) प्रभा खेतान
(घ) गुलाबराय

उत्तर (1) क, (2) ख, (3) क, (4) ख, (5) घ, (6) ख, (7) ग।

जीवनी विधा पर आधारित

उचित विकल्प का चयन कीजिए

(1) ‘आवारा मसीहा’ (शरत्चन्द्र की जीवनी) के रचयिता कौन हैं?
(क) रामवृक्ष बेनीपुरी
(ख) रांगेय राघव
(ग) विष्णु प्रभाकर
(घ) राहुल सांकृत्यायन

(2) ‘कलम का सिपाही’ (प्रेमचन्द की जीवनी) के रचयिता कौन हैं?
(क) रामवृक्ष बेनीपुरी
(ख) रांगेय राघव
(ग) अमृतराय
(घ) राहुल सांकृत्यायन

(3) ‘निराला की साहित्य-साधना'( सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की जीवनी) के लेखक हैं
(क) रामविलास शर्मा
(ख) महादेवी वर्मा
(ग) शान्ति जोशी
(घ) अमृतराय

(4) मनीषी की लोकयात्रा’ (गोपीनाथ कविराज की जीवनी) के लेखक हैं|
(क) रामविलास शर्मा
(ख) भगवतीप्रसाद सिंह
(ग) रामवृक्ष बेनीपुरी
(घ) रामनरेश त्रिपाठी

(5) निम्नलिखित में से कौन-सी रचना जीवनी नहीं है?
(क) कलम का सिपाही
(ख) निराला की साहित्य-साधना
(ग) मेरा जीवन प्रवाह
(घ) आवारा मसीहा

(6) निम्नलिखित में से कौन-सी रचना जीवनी है?
(क) अतीत के चलचित्र
(ख) चिन्तामणि
(ग) नीड़ का निर्माण फिर
(घ) आवारा मसीहा
उत्तर:
(1) ग, (2) ग, (3) क, (4) ख, (5) ग, (6) घ।

संस्मरण/रेखाचित्र विधा पर आधारित

उचित विकल्प का चयन कीजिए

(1) निम्नलिखित रचनाओं में से कौन-सी रचना ‘रेखाचित्र’ है?
(क) नीरजा
(ख) जयसन्धि
(ग) स्मृति की रेखाएँ
(घ) बिखरे फल

(2) ‘मेरा परिवार’ किस विधा की रचना है?
(क) कहानी
(ख) उपन्यास
(ग) गद्यगीत
(घ) संस्मरण

(3) निम्नलिखित में कौन-सी रचना रेखाचित्र है?
(क) रेशमी टाई
(ख) मैला आँचल
(ग) लहरों के राजहंस
(घ) अतीत के चलचित्र

(4) ‘पथ के साथी’ की रचना किस विधा में की गयी है?
(क) उपन्यास
(ख) कहानी
(ग) जीवनी
(घ) संस्मरण

(5) रेखाचित्र के लेखक हैं
(क) श्यामसुन्दर दास
(ख) रामचन्द्र शुक्ल
(ग) महादेवी वर्मा
(घ) हजारीप्रसाद द्विवेदी –

उत्तर (1) ग, (2) घ, (3) घ, (4) घ, (5) ग।

विविध प्रश्

उचित विकल्प का चयन कीजिए

(1) हिन्दी गद्य की विधा नहीं है
(क) निबन्ध
(ख) आलोचना
(ग) कहानी
(घ) खण्डकाव्य

(2) ज्योतिरीश्वर की रचना ‘वर्ण रलाकर’ की भाषा है
(क) राजस्थानी गद्य
(ख) मैथिली गद्य
(ग) ब्रजभाषा गद्य
(घ) खड़ी बोली गद्य

(3) ‘वर्ण रत्नाकर’ का रचनाकाल है
(क) चौदहवीं शताब्दी
(ख) पन्द्रहवीं शताब्दी
(ग) सोलहवीं शताब्दी
(घ) इनमें से कोई नहीं

(4) ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ की स्थापना में निम्नलिखित लेखकों में से किसका योगदान नहीं है?
(क) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(ख) श्यामसुन्दर दास
(ग) रामनारायण मिश्र
(घ) शिवकुमार सिंह

(5) ‘अंग्रेजी के स्केच’ का रूपान्तरण है
(क) जीवनी
(ख) भेटवार्ता
(ग) रेखाचित्र
(घ) रिपोर्ताज

(6) ‘चिद्विलास’ के लेखक हैं
(क) रामकुमार वर्मा
(ख) हजारीप्रसाद द्विवेदी
(ग) डॉ० सम्पूर्णानन्द
(घ) मोहन राकेश

(7) ‘डायरी’ विधा के लेखक हैं
(क) शमशेर बहादुर सिंह
(ख) राहुल सांकृत्यायन
(ग) सदल मिश्र
(घ) सरदार पूर्णसिंह

(8) छायोत्तर गद्य युग के लेखक हैं
(क) श्यामसुन्दर दास
(ख) वासुदेवशरण अग्रवाल
(ग) वियोगी हरि
(घ) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

(9) पत्रिका से भिन्न रचना
(क) मर्यादा
(ख) सारिका
(ग) वाग्धारा
(घ) विशाल भारत

(10) उपन्यास सम्राट माने जाते हैं
(क) श्यामसुन्दर दास
(ख) जयशंकर प्रसाद
(ग) प्रेमचन्द
(घ) जैनेन्द्र कुमार

(11) एकांकी में अंक होते हैं
(क) तीन
(ख) पाँच
(ग) एक
(घ) अनेक

(12) भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी किसे बोली से बनी है?
(क) अवधी से
(ख) ब्रज भाषा से
(ग) खड़ी बोली से
(घ) बुन्देली से

(13) हिन्दी गद्य को नयी चाल में डालने का क्षेय है
(क) हिन्दी प्रदीप को
(ख) हरिश्चन्द्र चन्द्रिका को
(ग) सरस्वती को
(घ) चाँद को

उत्तर (1) घे, (2) खे, (3) क, (4) क, (5) ग, (6) ग, (7) क, (8) ग, (9) गे, (10) ग, (11) ग, (12) ग, 13) ग।

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UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 9 Environment and Sustainable Development

UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 9 Environment and Sustainable Development (पर्यावरण और धारणीय विकास) are part of UP Board Solutions for Class 11 Economics. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 9 Environment and Sustainable Development (पर्यावरण और धारणीय विकास).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Economics
Chapter Chapter 9
Chapter Name Environment and Sustainable
Development (पर्यावरण और धारणीय विकास)
Number of Questions Solved 65
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 9 Environment and Sustainable Development (पर्यावरण और धारणीय विकास)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1.
पर्यावरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
किसी स्थान विशेष में मनुष्य के आस-पास भौतिक वस्तुओं; जल, भूमि, वायु का आवरण, जिसके द्वारा मानव घिरा रहता है, को पर्यावरण कहते हैं।

प्रश्न 2.
जब संसाधन निस्सरण की दर उनके पुनर्जनन की दर से बढ़ जाती है, तो क्या होता है?
उत्तर
जब संसाधन निस्सरण की दर उनके पुनर्जनन की दर से बढ़ जाती है तो पर्यावरण जीवन पोषण का अपना महत्त्वपूर्ण कार्य जननिक और जैविक विविधता को कायम रखने में असफल हो जाता है। इससे पर्यावरण संकट उत्पन्न होता है।

प्रश्न 3.
निम्न को नवीकरणीय और गैर नवीकरणीय संसाधनों में वर्गीकृत करें—
(क) वृक्ष,
(ख) मछली,
(ग) पेट्रोलियम,
(घ) कोयला
(ङ) लौह-अयस्क तथा
(च) जल।
उत्तर
(क)
वृक्ष — नवीकरणीय
(ख) मछली — 
नवीकरणीय
(ग) पेट्रोलियम– 
अनवीकरणीय
(घ) कोयला — 
अनवकरणीय
(ङ) लौह-अयस्क–
अनवीकरणीय
(च) जल–
नवीकरणीय

प्रश्न 4.
आजकल विश्व के सामने…………..” और “:” की दो प्रमुख पर्यावरण समस्याएँ हैं।
उत्तर
(1) वैश्विक उष्णता
(2) ओजोन अपक्षय।

प्रश्न 5.
निम्न कारक भारत में कैसे पर्यावरण संकट में योगदान करते हैं? सरकार के समक्ष वे कौन-सी समस्याएँ पैदा करते हैं?

सरकार के समक्ष उत्पन्न समस्याएँ

  1. बढ़ती जनसंख्या
  2. वायु प्रदूषण
  3. जल प्रदूषण
  4. सम्पन्न उपभोग मानक
  5. निरक्षरता
  6. औद्योगीकरण
  7. शहरीकरण
  8. वन क्षेत्र में कमी
  9. अवैध वन कटाई
  10. वैश्विक उष्णता।

उत्तर
(1) बढ़ती जनसंख्या-  बढ़ती जनसंख्या पर्यावरण संकट का महत्त्वपूर्ण कारण है। जनसंख्या वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास हुआ है। विश्व की बढ़ती जनसंख्या के कारण इन संसाधनों पर अतिरिक्त भार के कारण इनकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है। इसके अतिरिक्त अपशिष्ट पदार्थों का उत्पादन पर्यावरण की धारणीय क्षमता से बाहर हो गया है।

(2) वायु प्रदूषण- वायु में ऐसे बाह्य तत्वों की उपस्थिति जो मनुष्य के स्वास्थ्य अथवा कल्याण हेतु हानिकारक हो, वायु प्रदूषण कहलाता है। वायु प्रदूषण का सर्वाधिक प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है। शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का खूब प्रसार हो रहा है। वायु प्रदूषण से श्वसन तन्त्र सम्बन्धी रोग,त्वचा कैन्सर आँख, गले व फेफड़ों में खराबी व दूषित जल आदि समस्याएँ पैदा हो रही हैं। वायु प्रदूषण के कारण ही अम्लीय वर्षा होती है जो जीवों एवं पौधों के लिए हानिकारक है।

(3) जल प्रदूषण- जब जल में अनेक प्रकार के खनिज, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ व गैसें एक निश्चित अनुपात से अधिक मात्रा में घुल जाते हैं तो ऐसा जल प्रदूषित कहलाता है। जल प्रदूषण के कारण मनुष्य को हैजा, अतिसार, बुखार व पेचिश आदि बीमारियाँ हो जाती हैं।

(4) सम्पन्न उपभोग मानक- जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। जनसंख्या वृद्धि के कारण यहाँ उत्पादन और उपभोग के लिए संसाधनों की माँग संसाधनों के पुनः सृजन की दर से बहुत अधिक है। अधिक उपभोग ने पर्यावरण पर दबाव बनाया है और इसी कारण से वनस्पति एवं जीवों की अनेक जातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।

(5) निरक्षरता— भारत में अनपढ़ लोगों की संख्या विश्व में सबसे अधिक है। निरक्षरता मानव जाति के लिए एक अभिशाप है। निरक्षर मनुष्य के मानसिक स्तर का कम विकासे हो पाता है। वह नई तकनीक को सहजता से स्वीकार नहीं करता है। उसमें खोजी दृष्टिकोण नहीं होता है। निरक्षर व्यक्ति की उत्पादकता भी कम होती है। निरक्षर होने पर व्यक्ति देश के संसाधनों का उचित प्रकार से प्रयोग नहीं कर पाते हैं। इस प्रकार निरक्षरता का शहरीकरण, औद्योगीकरण, आर्थिक संवृद्धि एवं विकास की प्रक्रिया पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

(6) औद्योगीकरण- भारत विश्व का दसवाँ सर्वाधिक औद्योगिक देश है। तीव्र औद्योगीकरण के कारण अनियोजित शहरीकरण प्रदूषण एवं दुर्घटनाएँ आदि परिणाम सामने आए हैं। तीव्र आर्थिक विकास के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर काफी दबाव पड़ा है तथा अपशिष्ट पदार्थों का भी अधिक उत्पादन हुआ है जो पर्यावरण की धारणीय क्षमता से परे है।

(7) शहरीकरण- शहरीकरण तीव्र आर्थिक विकास का परिणाम है। शहर पर्यावरण को प्रमुख रूप से प्रदूषित करते हैं। कई शहर अपने पूरे गन्दे पानी और औद्योगिक अवशिष्ट कूड़े का 40% से 60% असंसाधित रूप से अपने पास की नदियों में बहा देते हैं। इसके अतिरिक्त शहरी उद्योग वातावरण को अपनी चिमनियों से निकलते धुएँ तथा जहरीली गैसों से प्रदूषित करते हैं। शहरीकरण से गाँवों की काफी जनसंख्या शहरों में आ गई है। शहरों में जनसंख्या का दबाव बढ़ा है और अपशिष्ट पदार्थों के अधिक उत्पादन से पर्यावरण पर भी दबाव बढ़ा है। इसके अतिरिक्त शहरीकरण से जल व वायु प्रदूषण में भी वृद्धि होती है।

(8) वन-क्षेत्र में कमी- भारत में प्रति व्यक्ति जंगल भूमि केवल 0.8 हैक्टेयर है, जबकि बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए यह संख्या 0.47 हैक्टेयर होनी चाहिए। वन-क्षेत्र में कमी से देश को प्रति वर्ष 0.8 मिलियन टन नाइट्रोजन, 1.8 मिलियन टन फॉस्फोरस और 26.3 मिलियन टन पोटैशियम का नुकसान होता है। इसके अतिरिक्त भूमि क्षय से 5.8 मिलियन टन से 8.4 मिलियन टन पोषक तत्वों की क्षति होती है। एक वर्ष की अवधि में औसत वर्ष का स्तर गिर गया है तथा ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी आई है।

(9) अवैध वन-कटाई– वनों के विनाश में औद्योगिक विकास, कृषि विकास, दावाग्नि, चरागाहों का विस्तार, बाँधों, सड़कों व रेलमार्गों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वन जैव पदार्थों में सर्वप्रमुख हैं। अन्य जैव पदार्थ जैसे जीव-जन्तु, पशु तथा मानव; इस पर निर्भर हैं। इसके अतिरिक्त यह अजैव पदार्थ जैसे मिट्टी से भी सम्बन्धित है। समस्त पर्यावरण इन्हीं तत्वों की सुचारु क्रिया-प्रणाली द्वारा सन्तुलन प्राप्त करता है। अत: यदि पर्यावरण के आधारभूत तत्व वन नष्ट हो जाते हैं तो पर्यावरण में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है, जिसका प्रभाव जैव-जगत के विनाश का कारण बन सकता है।

(10) वैश्विक उष्णता– वैश्विक उष्णता पृथ्वी और समुद्र के औसत तापमान में वृद्धि को कहते हैं। भू-तापमान में वृद्धि ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि के परिणामस्वरूप हुई है। वैश्विक उष्णता मानव द्वारा वन विनाश तथा जीवाश्म ईंधन के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों की वृद्धि के कारण होती है। वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन गैस तथा दूसरी गैसों के मिलने से हमारी भूमण्डल सतह लगातार गर्म हो रही है। बीसवीं शताब्दी के दौरान वायुमण्डल केऔसत तापमान में 0.6°C की बढ़ोतरी हुई है। इसके परिणामस्वरूप ध्रुवीय बर्फ पिघली है एवं समुद्र का जलस्तर बढ़ा है।

प्रश्न 6.
पर्यावरण के क्या कार्य होते हैं?
उत्तर
पर्यावरण के चार आवश्यक कार्य निम्नलिखित हैं

  1. यह नवीकरणीय एवं गैर-नवीकरणीय संसाधनों की पूर्ति करता है। |
  2. यह अपशिष्ट पदार्थों को समाहित कर लेता है।
  3. यह जननिक और जैविक विविधता प्रदान करके जीवन का पोषण करता है।
  4. यह सौन्दर्य प्रदान करता है।

प्रश्न 7.
भारत में भू-क्षय के लिए उत्तरदायी छह कारकों की पहचान करें।
उत्तर
भारत में भू-क्षय के लिए उत्तरदायी छह कारक निम्नलिखित हैं-

  1. वन कटाव के कारण वनस्पति की हानि,
  2. अधारी जलाऊ लकड़ी और चारे का निष्कर्षण,
  3. कृषि । परिवर्तन,
  4. वन भूमि का अतिक्रमण, ।
  5. वाग्नि और अत्यधिक चराई,
  6. अनियोजित फसल चक्र।

प्रश्न 8.
समझाएँ कि नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों की अक्सर लागत उच्च क्यों होती है? ”
उत्तर
तीव्र जनसंख्या वृद्धि, औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण हमने प्राकृतिक संसाधनों को तीव्र एवं गहन विदोहन किया है। हमारे अनेक महत्त्वपूर्ण संसाधन विलुप्त हो गए हैं और हम नए संसाधनों की खोज में प्रौद्योगिकी एवं अनुसन्धान पर विशाल राशि व्यय करने के लिए मजबूर हैं। इसके अतिरिक्त पर्यावरण का क्षरण होने से श्वसन तन्त्र एवं जलजनित रोगों की संख्या में वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप व्यय में भी बढ़ोतरी हुई है। वैश्विक पर्यावरण मुद्दे जैसे भू-तापमान में वृद्धि एवं ओजोन परत के क्षय ने स्थिति को और भी गम्भीर बना दिया है जिसके कारण सरकार को अधिक धन व्यय करना पड़ता है। अत: यह स्पष्ट है। कि नकारात्मक पर्यावरण प्रभावों की अवसर लागत बहुत अधिक है।

प्रश्न 9.
भारत में धारणीय विकास की प्राप्ति के लिए उपयुक्त उपायों की रूपरेखा प्रस्तुत करें।
उत्तर
भारत में धारणीय विकास की प्राप्ति के लिए उपयुक्त उपाय निम्नलिखित हैं

  1. मानव जनसंख्या को पर्यावरण की धारण क्षमता के स्तर तक सीमित करना होगा।
  2. प्रोद्योगिक प्रगति संसाधनों को संवर्धित करने वाली हो न कि उनका उपभोग करने वाली।
  3. नवीकरणीय संसाधनों का विदोहन धारणीय आधार पर हो ताकि किसी भी स्थिति में निष्कर्षण की दर पुनः सृजन की दर से कम हो।।
  4. गैर-नवीकरणीय संसाधनों की अपक्षय दर नवीकरणीय संसाधनों के सृजन की दर से कम होनी | चाहिए। |
  5. प्रदूषण के कारण उत्पन्न अक्षमताओं पर रोक लगनी चाहिए।

प्रश्न 10.
भारत में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता है-इस कथन के समर्थन में तर्क दें।
उत्तर
प्रकृति ने मनुष्य को जो वस्तुएँ नि:शुल्क उपहारस्वरूप दी हैं उन्हें प्राकृतिक संसाधन कहा जाता है। किसी देश की भौगोलिक स्थिति, संस्थिति, आकार, जलवायु, धरातल, भूमि, मिट्टी, वनस्पति, खनिज, जल, हवा, जीव-जन्तु, जीवाश्म ऊर्जा, पदार्थ आदि प्राकृतिक संसाधनों की श्रेणी में सम्मिलित हैं। भारत में प्राकृतिक संसाधन प्रचुरता से पाए जाते हैं

  1. दक्षिण के पठार की काली मिट्टी जो विशिष्ट रूप से कपास की खेती के लिए उत्तम है।
  2. अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक गैंगा का मैदान है, जो कि विश्व के अत्यधिक ऊर्वर क्षेत्रों में| से एक है।
  3. भारतीय वन वैसे तो असमान रूप से वितरित हैं परन्तु वे अधिकांश जनसंख्या को हरियाली और उसके वन्य जीवन को प्राकृतिक आवरण प्रदान करते हैं।
  4. देश में लौह-अयस्क, कोयला और प्राकृतिक गैस के पर्याप्त भण्डार हैं।
  5. हमारे देश के विभिन्न भागों में बॉक्साइट, ताँबा, क्रोमेट, हीरा, सोना, सीसा, भूरा कोयला, जिंक | यूरेनियम इत्यादि भी प्रचुर मात्रा में मिलते हैं।
  6. हिन्द महासागर का विस्तृत क्षेत्र है।
  7. पहाड़ों की विस्तृत श्रृंखला है।

प्रश्न 11.
क्या पर्यावरण संकट एक नवीन परिघटना है? यदि हाँ, तो क्यों?
उत्तर
प्राचीन काल में जब सभ्यता शुरू हुई थी, पर्यावरण संसाधनों की माँग और सेवाएँ उनकी पूर्ति से बहुत कम थीं। संक्षेप में प्रदूषण की मात्रा अवशोषण क्षमता के अन्दर थी और संसाधन निष्कर्षण की दर इन संसाधनों के पुनः सृजन की दर से कम थी। अत: पर्यावरण समस्याएँ उत्पन्न नहीं हुईं। लेकिन आधुनिक युग में जनसंख्या विस्फोट और जनसंख्या की पूर्ति के लिए औद्योगिक क्रान्ति के आगमन से उत्पादन और उपभोग के लिए संसाधनों की माँग संसाधनों की पुन: सृजन की दर से बहुत अधिक हो गई है। इसके अलावा अपशिष्ट पदार्थों का उत्पादन अवशोषक क्षमता से ज्यादा हो गया है।

प्रश्न 12.
इसके दो उदाहरण दें
(क) पर्यावरणीय संसाधनों का अति प्रयोग
(ख) पर्यावरणीय संसाधनों का दुरुपयोग।
उत्तर
(क) पर्यावरणीय संसाधनों का अति प्रयोग 

  1. भूमि जल का पुमैः पूर्ण क्षमता से अधिक निष्कर्षण,
  2. आधारणीय जलाऊ लकड़ी और चारे का निष्कर्षण।।

(ख) पर्यावरणीय संसाधनों का दुरुपयोग

  1. नगरीकरण
  2. औद्योगीकरण।

प्रश्न 13.
पर्यावरण की चार प्रमुख क्रियाओं का वर्णन कीजिए। महत्त्वपूर्ण मुद्दों की व्याख्या कीजिए। पर्यावरणीय हानि की भरपाई की अवसर लागतें भी होती हैं। व्याख्या कीजिए।
उत्तर 

पर्यावरण की चार प्रमुख क्रियाएँ


(1) यह संसाधनों की पूर्ति करता है।
(2) यह अवशेष को समाहित कर लेता है।
(3) यह जननिक एवं जैविक विविधता प्रदान करके जीवन का पोषण करता है।
(4) यह सौन्दर्य प्रदान करता है।

महत्त्वपूर्ण मुद्दे

(1) वैश्विक उष्णता
(2) ओजोन अपक्षय
(3) वायु प्रदूषण |
(4) जल प्रदूषण
(5) वन-कटाव
(6) भू-अपरदन।
(7) अनेक महत्त्वपूर्ण संसाधनों का विलुप्त हो जाना।
पर्यावरणीय असंगतियाँ ठीक करने के लिए सरकार विशाल राशि व्यय करने के लिए मजबूर है। जल 
और वायु की गुणवत्ता की गिरावट से साँस और जल-संक्रमण रोगों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है; फलस्वरूप व्यय भी बढ़ा है। हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना चाहिए। संसाधनों का पुनः सृजन करने वाली तकनीक का विकास करना चाहिए। नगरीकरण एवं औद्योगीकरण पर नियन्त्रण लगाना चाहिए। इस प्रकार पर्यावरण सन्तुलन को बनाए रखने की अवसर लागत होती है।

प्रश्न 14.
पर्यावरणीय संसाधनों की पूर्ति माँग के उत्क्रमण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
प्राचीनकाल में जब सभ्यता शुरू हुई थी, पर्यावरण संसाधनों की माँग और सेवाएँ उनकी पूर्ति से बहुत कम थीं। उस समय आधुनिकीकरण, नगरीकरण एवं औद्योगीकरण की दर भी कम थी। अवशिष्ट पदार्थों का उत्पादन भी पर्यावरण की अवशोषी क्षमता के भीतर था। इसलिए पर्यावरण समस्याएँ उत्पन्न नहीं लेकिन आधुनिक युग में तीव्र जनसंख्या वृद्धि नगरीकरण, आधुनिकीकरण एवं औद्योगीकरण के फलस्वरूप उत्पादन और उपभोग के लिए संसाधनों की माँग संसाधनों के पुन: सृजन की दर से बहुत अधिक हो गई एवं अपशिष्ट पदार्थों का उत्पादन पर्यावरण की अवशोषण क्षमता के बाहर हो गया है। तरह से, पर्यावरण की गुणवत्ता के मामले में माँग-पूर्ति सम्बन्ध पूरी तरह उल्टे हो गए हैं। अब हमारे सामने पर्यावरण संसाधनों और सेवाओं की माँग अधिक है, लेकिन उनकी पूर्ति सीमित है।

प्रश्न 15.
वर्तमान पर्यावरण संकट का वर्णन करें। उत्तर-आज आर्थिक विकास के फलस्वरूप प्राकृतिक संसाधनों का बहुत अधिक शोषण हो रहा है। भूमि पर निरन्तर फसलें उगाने में उसकी उत्पादकता कम होती जा रही है। खनिज पदार्थों; जैसे–पेट्रोल, लोहा, कोयला, सोना-चाँदी आदि का खनन ज्यादा होने से उनके भण्डार में कमी होने लगी है। कारखानों और यातायात के साधनों से निकले धुएँ और गन्दगी न वायु एवं जल को प्रदूषित कर दिया है जिस कारण अनेक श्वसन एवं जल संक्रमित बीमारियों ने जन्म ले लिया है। अपशिष्ट पदार्थों का उत्पादन अवशोषण क्षमता से बाहर हो गया है। तीव्र एवं गहन विदोहन से अनेक प्राकृतिक संसाधन समाप्ति की ओर हैं। पर्यावरण क्षरण से वैश्विक उष्णता एवं ओजोन अपक्षय आदि चुनौतियाँ पैदा हो गई हैं।

प्रश्न 16.
भारत में विकास के दो गम्भीर नकारात्मक पर्यावरण प्रभावों को उजागर करें। भारत की पर्यावरण समस्याओं में एक विरोधाभास है-एक तो यह निर्धनताजनित है और दूसरे जीवन-स्तर में सम्पन्नता का कारण भी है। क्या यह सत्य है?
उत्तर
भारत में विकास गतिविधियों के फलस्वरूप पर्यावरण के सीमित संसाधनों पर दबाव पड़ रहा है। उनके साथ-साथ मनुष्य का स्वास्थ्य एवं कल्याण भी प्रभावित हुए हैं। भारत की अत्यधिक गम्भीर पर्यावरणीय समस्याओं में वायु प्रदूषण, दूषित जल, मृदा संरक्षण, वन्य कटान और वन्य-जीवन की विलुप्ति है। भारत में कुछ वरीयता वाले मामले निम्नवत् हैं।

  1. भूमि अपक्षय, |
  2. जैव विविधता का क्षय,
  3. शहरी क्षेत्रों में वाहन से उत्पन्न वायु प्रदूषण
  4. शुद्ध जल प्रबन्धन,
  5. ठोस अपशिष्ट प्रबन्धन।

भारत के पर्यावरण को दो तरफ से खतरा है-
एक तो निर्धनता के कारण पर्यावरण का अपक्षय और दूसरा खतरा साधन सम्पन्नता और तेजी से बढ़ते हुए औद्योगिक क्षेत्र के प्रदूषण से है। भारत में भूमि का अपक्षय विभिन्न मात्रा और रूपों में हुआ है, जोकि मुख्य रूप से कुछ अनियोजित प्रबन्धन एवं प्रयोग का परिणाम है। भारत के शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण बहुत अधिक है, जिसमें वाहनों का सर्वाधिक योगदान है। इसके अतिरिक्त तीव्र औद्योगीकरण और थर्मल पॉवर संयन्त्रों के कारण भी वायु प्रदूषण होता है।

प्रश्न 17.
धारणीय विकास क्या है?
उत्तर
धारणीय विकास वह प्रक्रिया है जो आर्थिक विकास के फलस्वरूप प्राप्त होने वाले दीर्घकालिक शुद्ध लाभों को वर्तमान तथा भावी पीढ़ी दोनों के लिए अधिकतम करती है।

प्रश्न 18.
अपने आस-पास के क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए धारणीय विकास की चार रणनीतियाँ | सुझाइए।।
उत्तर
धारणीय विकास वंह प्रक्रिया है जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करती है परन्तु भावी पीढ़ी की आवश्यकताएँ पूरी करने की योग्यता को कोई हानि नहीं पहुँचाती। 
धारणीय विकास की रणनीतियाँ ये चार रणनीतियाँ निम्नलिखित हैं

(1) ऊर्जा के गैर पारम्परिक स्रोतों का उपयोग-ऊर्जा के पारम्परिक स्रोत जैसे थर्मल और हाइड्रो पॉवर संयन्त्र; पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। थर्मल पॉवर संयन्त्र बड़ी मात्रा में ग्रीन हाउस गैस-कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं तथा बड़ी मात्रा में इनसे निकले धुएँ के कण जल एवं वायु को प्रदूषित करते हैं। इसके अतिरिक्त हाइड्रो पॉवर परियोजनाओं से वन जलमग्न हो जाते हैं और नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में हस्तक्षेप करते हैं। अत: इन सब पर्यावरणीय समस्याओं से बचने के लिए हमें गैर-पारम्परिक स्रोत; जैसे-वायु, शक्ति और सौर किरणों का प्रयोग करना चाहिए। .

(2) वायु शक्ति- जिन क्षेत्रों में हवा की गति तीव्र होती है वहाँ पवन चक्की से बिजली प्राप्त की जा | सकती है। ऊर्जा के इस गैर-पारम्परिक स्रोत से पर्यावरण को किसी प्रकार की क्षति नहीं होती है।

(3) ग्रामीण क्षेत्रों में एल०पी०जी व गोबर गैस- गाँवों में रहने वाले लोग अधिकतर ईंधन के रूप में लकड़ी, उपलों और अन्य जैविक पदार्थों का प्रयोग करते हैं जिस कारण वन विनाश, हरित-क्षेत्र में कमी, मवेशियों के गोबर का अप्रत्यय और वायु प्रदूषण जैसे अनेक प्रतिकूल प्रभाव होते हैं। आज सरकार इस स्थिति में सुधार करने के लिए एल०पी०जी० गैस सस्ती दरों पर उपलब्ध करा रही है। इसके अतिरिक्त पर्याप्त मात्रा में गोबर गैस संयन्त्र भी लगाए जा रहे हैं। |

(4) शहरी क्षेत्रों में उच्च दाब प्राकृतिक गैस– दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में उच्च दाब प्राकृतिक गैस (CNG) का ईंधन के रूप में प्रयोग होने से वायु प्रदूषण में काफी कमी आई है।

प्रश्न 19.
धारणीय विकास की परिभाषा में वर्तमान और भावी पीढियों के बीच समता के विचार की व्याख्या करें।
उत्तर
धारणीय विकास से अभिप्राय विकास की उस प्रक्रिया से है जो भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने की योग्यता को बिना कोई हानि पहुँचाए वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करती है। उपर्युक्त परिभाषा में आवश्यकता की अवधारणा का सम्बन्ध संसाधनों के वितरण से है। संसाधनों का वितरण इस प्रकार से हो कि सभी की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाए और सभी को बेहतर जीवन जीने का मौका मिले। सभी की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए संसाधनों के पुनर्वितरण की आवश्यकता होगी जिससे बुनियादी स्तर पर निर्धनों को भी लाभ हो। इस प्रकार की समानता का मापन आय, वास्तविक आय, शैक्षिक सेवाओं, देखभाल, सफाई, जलापूर्ति के रूप में किया जा सकता है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
विश्व पर्यावरण दिवस प्रत्येक वर्ष किस तिथि को मनाया जाता है?
(क) 5 अप्रैल
(ख) 5 मई
(ग) 5 जून
(घ) 5 जुलाई
उत्तर
(ग) 5 जून ।

प्रश्न 2.
नवीकरणीय संसाधन है।
(क) कोयला
(ख) पेट्रोलियम
(ग) लौह-अयस्क
(घ) जल
उत्तर
(घ) जल

प्रश्न 3.
“जीवन की परिस्थिति के सम्पूर्ण तथ्यों का योग पर्यावरण कहलाता है। यह परिभाषा किसने दी है?
(क) ए० फिटिंग ने
(ख) सोरोकिन ने
(ग) ए०जी० तॉसले ने
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(क) ए० फिटिंग ने

प्रश्न 4.
भारत में पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम कब पारित किया गया?
(क) 10 मई, 1984 को
(ख) 19 नवम्बर, 1986 को
(ग) 10 मई० 1987 को
(घ) 19 नवम्बर, 1989 को
उत्तर
(ख) 19 नवम्बर, 1986 को ।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन-सा पर्यावरण प्रदूषण का कारण नहीं है?
(क) वृक्षारोपण
(ख) जनसंख्या वृद्धि
(ग) वायु-प्रदूषण
(घ) ध्वनि-प्रदूषण
उत्तर
(क) वृक्षारोपण

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पर्यावरण क्या है?
उत्तर
मानव के चारों ओर का वह क्षेत्र जो उसे घेरे रहता है तथा उसके जीवन व क्रियाओं को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है, पर्यावरण कहलाता है।

प्रश्न 2.
भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण से क्या आशय है?
उत्तर
भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण के अन्तर्गत वे सभी भौतिक तत्त्व सम्मिलित किए जा सकते हैं जो अपनी क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं से मानव जीवन को प्रभावित करते हैं। इन तत्त्वों में जल, सूर्य का प्रकाश, खनिज पदार्थ, वायु, आर्द्रता, भू-पटल को प्रभावित करने वाले तत्त्व आदि शामिल हैं।

प्रश्न 3.
जैव और अजैव तत्त्वों से क्या आशय है?
उत्तर
भौतिक पर्यावरण को मुख्यतः दो समूहों में बाँटा गया है-जैव तत्त्व तथा अजैव तत्त्व। मानवे, वनस्पति, पशु, मछली, कीट-पतंग व सूक्ष्म जीवाणु जैव तत्त्व हैं जबकि भूमि, वायु, जल व खनिज पदार्थ अजैव तत्त्व हैं।

प्रश्न 4.
सांस्कृतिक अथवा मानव निर्मित पर्यावरण से क्या आशय है?
उत्तर
सांस्कृतिक पर्यावरण का निर्माण मानव के क्रियाकलापों से होता है। यह मानव प्रकृति की पारस्परिक अन्तक्रिया का प्रतिफल है। मानव द्वारा किए गए कार्य, उसके द्वारा बनाई गई वस्तुएँ, उन वस्तुओं की क्रियाविधि-ये सभी सांस्कृतिक पर्यावरण का निर्माण करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 5.
पर्यावरण की धारण क्षमता की सीमा से क्या आशय है? ”
उत्तर
पर्यावरण की धारण क्षमता की सीमा का अर्थ है-संसाधनों का निष्कर्षण इनके पुनर्जनन की दर । से अधिक नहीं होना चाहिए और उत्पन्न अवशेष पर्यावरण की समावेशन क्षमता के भीतर होना चाहिए।

प्रश्न 6.
अवशोषी क्षमता से क्या आशय है?
उत्तर
अवशोषी क्षमता का अर्थ पर्यावरण की अपक्षय को सोखने की योग्यता से है।

प्रश्न 7.
विश्व में बढ़ते पर्यावरण संकट का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर
विश्व में बढ़ते पर्यावरण संकट का मुख्य कारण-संसाधनों का निष्कर्षण इनके पुनर्जनन की दर से अधिक होना तथा सृजित अवशेष का पर्यावरण की अवशोषी क्षमता से बाहर होना।

प्रश्न 8.
वैश्विक उष्णता से क्या आशय है?
उत्तर
पृथ्वी और समुद्र के वातावरण के औसत तापमान में वृद्धि को वैश्विक उष्णता कहते हैं। यह औद्योगिक क्रान्ति से ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि के परिणामस्वरूप पृथ्वी के निचले वायुमण्डल के औसत . तापमान में क्रमिक बढोतरी है।

प्रश्न 9.
वैश्विक उष्णता में वृद्धि करने वाले मानव उत्प्रेरित घटक कौन-से हैं?
उत्तर
वैश्विक उष्णता में वृद्धि करने वाले मानव उत्प्रेरित घटक–वन विनाश, जीवाश्मीय ईंधन को जलाना, कोयला व पेट्रोल उत्पादन का प्रज्वलन, मीथेन गैस का प्रसार आदि हैं।

प्रश्न 10.
वैश्विक उष्णता के क्या परिणाम सामने आए हैं?
उत्तर
वैश्विक उष्णता के परिणाम हैं-वायुमण्डलीय तापमान में वृद्धि, ध्रुवीय हिम के पिघलने से समुद्र-स्तर में वृद्धि और बाढ़ का प्रकोप, अनेक जल-प्रजातियों की विलुप्ति, उष्णकटिबन्धीय तूफानों की बारम्बारता और उष्ण कटिबन्धीय रोगों के प्रभाव में बढ़ोतरी।

प्रश्न 11.
ग्रीन हाउस प्रभाव क्या है?
उत्तर
जब वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि हो जाती है तो वायुमण्डल में अधिक ऊष्मा रोक ली जाती है जिसके कारण उसका तापमान बढ़ जाता है। ऊष्मा का इस प्रकारे वायुमण्डल में रोक लिया जाना ही ‘ग्रीन हाउस प्रभाव’ कहलाता है।

प्रश्न 12 
ओजोन परत के लाभकारी प्रभाव क्या हैं?
उत्तर
वायुमण्डल की ओजोन परत हानिकारक विकिरण से हमारी सुरक्षा करती है। सूर्य की घातक पराबैंगनी किरणों को ओजोन परत शून्य में परावर्तिते कर देती है और छतरी के रूप में हमें सुरक्षा कवज प्रदान करती है।

प्रश्न 13.
ओजोन अपक्षय से क्या आशय है?
उत्तर
ओजोन अपक्षय से आशय समतापमण्डल में ओजोन की कमी को होना है।

प्रश्न 14.
ओजोन अपक्षय की समस्या का मूल कारण क्या है?
उत्तर
ओजोन अपेक्षय समस्या का मूल कारण है-समतापमण्डल में क्लोरीन और ब्रोमीन के उच्च स्तर।

प्रश्न 15.
ओजोन अपक्षय के दुष्परिणाम बताइए।
उत्तर
ओजोन स्तर के अपक्षय के परिणामस्वरूप पराबैंगनी विकिरण पृथ्वी की ओर आते हैं। और जीवों को क्षति पहुँचाते हैं। विकिरण से मनुष्यों में त्वचा कैंसर पैदा होता है। यह पादप लवक के उत्पादन को कम कर जलीय जीवों को प्रभावित करता है तथा स्थलीय पौधों की संवृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

प्रश्न 16.
मॉण्ट्रियल प्रोटोकोल क्या है?
उत्तर
मॉण्ट्रियल प्रोटोकॉल वह व्यवस्था है जिसमें सी०एफ०एस० यौगिकों तथा अन्य ओजोन अपक्षयक रसायनों के प्रयोग पर रोक लगाई गई है।

प्रश्न 17.
भारत में विकास गतिविधियों का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर
भारत में विकास गतिविधियों के फलस्वरूप उसके सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है तथा मानव स्वास्थ्य एवं सुख-समृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

प्रश्न 18.
‘भारत के पर्यावरण को दो तरफा खतरा है।’ ये दो बातें कौन-सी हैं?
उत्तर
ये दो बातें हैं-
(1) गरीबी के कारण पर्यावरण का अपक्षय,
(2) साधन-सम्पन्नता और तेजी से बढ़ता हुआ औद्योगिक क्षेत्रक प्रदूषण।

प्रश्न 19.
चिपको आन्दोलन का उद्देश्य क्या था?
उत्तर
चिपको आन्दोलन का उद्देश्य था—हिमालय पर्वत में वनों का संरक्षण करना।

प्रश्न 20.
अप्पिको आन्दोलन क्या है?
उत्तर
अप्पिको का अर्थ है-“बाँहों में भरना’। 8 सितम्बर, 1983 ई० को सिरसी जिले के सलकानी वन में वृक्ष काटे जा रहे थे। तब 160 स्त्री-पुरुष और बच्चों ने पेड़ों को बाँहों में भर लिया और लकड़ी काटने वालों को भाग जाने को विवश होना पड़ा।

प्रश्न 21.
पर्यावरण प्रदूषण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
मानव के विभिन्न क्रिया-कलापों से उत्पन्न अपशिष्ट उत्पादों के रूप में पदार्थों एवं ऊर्जा के निस्तारण से प्राकृतिक पर्यावरण में होने वाले हानिकारक परिवर्तनों को पर्यावरण प्रदूषण कहते हैं।

प्रश्न 22.
वायु प्रदूषण से क्या आशय है?
उत्तर
वायुमण्डल विभिन्न गैसों का मिश्रण है। इसमें दूषित गैसों (जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड आदि) की अधिकता वायु प्रदूषण कहलाती है।

प्रश्न 23.
मृदा प्रदूषण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
मिट्टी एक स्वनिर्मित तन्त्र का परिणाम है, परन्तु जब प्रदूषित वायु, जल एवं अन्य अपशिष्ट पदार्थ मिट्टी में मिश्रित हो जाते हैं, तो यह मिट्टी प्रदूषित हो जाती है। इसे ही मृदा प्रदूषण कहते हैं।

प्रश्न 24.
जैव प्रदूषण से क्या आशय है?
उत्तर
जीवाणु, विषाणु तथा अन्य सूक्ष्म जीवों (जैसे—प्लेग के पिस्सू आदि) के द्वारा वायु, जल, खाद्य पदार्थों या अन्य वस्तुओं को प्रदूषित कर मनुष्यों को मृत्युकारित करना ही जैव प्रदूषण कहलाता है।

प्रश्न 25.
वर्तमान में किस प्रकार के विकास की आवश्यकता है?
उत्तर
वर्तमान में ऐसे विकास की आवश्यकता है जो कि भावी पीढ़ियों को जीवन की सम्भावित औसत गुणवत्ता प्रदान करे जो कम-से-कम वर्तमान में पीढ़ी द्वारा उपयोग की गई सुविधाओं के बराबर हो।

प्रश्न 26.
‘धारणीय विकास की अवधारणा को परिभाषित कीजिए।
उत्तर
धारणीय विकास ऐसा विकास है जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं की पूर्ति क्षमता से समझौता किए बिना पूरी करे।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पर्यावरण का अर्थ, प्रकार बताइए। पर्यावरण संरक्षण के क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर

पर्यावरण का अर्थ व प्रकार

सोरोकिन के अनुसार-“पर्यावरण उन समस्त दशाओं को इंगित करता है, जो मानव के क्रियाकलापों से स्वतन्त्र हैं तथा जिनकी रचना मानव ने नहीं की है और जो मानव एवं उसके कार्यों से प्रभावित हुए बिना स्वतः परिवर्तित होती हैं।” पर्यावरण दो प्रकार का होता है—
(1) प्राकृतिक पर्यावरण,
(2) सांस्कृतिक पर्यावरण।

पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य 

(1) पर्यावरणीय संसाधनों के अपव्यय को रोकना।
(2) भावी उपयोग के लिए संसाधनों की बचत करना।
(3) संसाधनों का योजनाबद्ध एवं विवेकपूर्ण रीति से उपयोग करना।

प्रश्न 2.
वन्य-जीव संरक्षण के उपाय बताइए।
उत्तर
वन्यजीव संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं-

  1. राष्ट्रीय उद्यानों का विकास तथा रख-रखाव।।
  2. गैर-कानूनी तरीके से वन्य-जीवों के शिकार और वन्य जीव उत्पादों के अवैध व्यापार पर प्रतिबन्ध लगाना।
  3. राष्ट्रीय उद्यानों तथा अभयारण्यों के आस-पास के क्षेत्रों में पारिस्थितिकी का विकास।
  4. वन-विनाश पर रोक।
  5. वन क्षेत्र में वृद्धि।
  6. वन्य-जीवों के संरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता लाना।
  7. वन्य-जीव संरक्षण हेतु विभिन्न प्रकार की परियोजनाओं का अधिक-से-अधिक क्रियान्वयन करना भी आवश्यक है; जैसे-टाइगर प्रोजेक्ट, क्रोकोडाइल ब्रीडिंग एण्ड मैनेजमेण्ट प्रोजेक्ट तथा डिअर प्लानिंग प्रोजेक्ट इत्यादि।
  8. संकटापन्न वन्य-जीवों के विकास के लिए विशेष प्रयास।

भारत में प्राणि-उद्यानों के प्रबन्ध की देखभाल के लिए एक केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण स्थापित किया गया है। यह संस्था 200 चिड़ियाघरों के कार्यों में तालमेल करती है और जानवरों के विनिमय की वैज्ञानिक ढंग से देख-रेख करती है। इस समय में 23 बाघ परियोजनाएँ चल रही हैं तथा इसके अन्तर्गत 26,000 वर्ग किमी से भी अधिक क्षेत्र वनाच्छादित है।

प्रश्न 3.
वनों के ह्रास को रोकने के उपायों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
वनों के ह्रास को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं

  1. ईंधन की लकड़ी के स्थान पर रसोईघरों में वैकल्पिक ऊर्जा का प्रबन्ध हो।
  2. इमारती लकड़ी व फर्नीचर आदि बनाने के लिए वनों की लकड़ी के बजाय कोई अन्य विकल्प प्रयोग में लाया जाए।
  3. पर्यावरण की सुरक्षा की दृष्टि से दुर्लभ किस्म के पेड़ों की कटाई निषिद्ध हो।
  4. वनों पर आधारित उद्योग-धन्धों में कच्चे मालों की पूर्ति के लिए सामाजिकी-वानिकी की योजनाएँ चलाई जाएँ।
  5. सामाजिक-वानिकी, कृषि वानिकी तथा वन खेती से वनों के क्षेत्रफल की पूर्ति की जाएगी।
  6. स्थानान्तरणशील कृषि पर रोक।
  7. चरागाहों के क्षेत्र का संकुचन रोका जाए।
  8. शवों के दाह-संस्कार में प्रयोग की जाने वाली लकड़ी के विकल्प के रूप में विद्युत शवदाह गृहों | का निर्माण किया जाए। इससे वन संरक्षण में मदद मिलेगी।
  9. होली, लोहड़ी तथा अन्य त्योहारों के समय लकड़ी को व्यर्थ न जलाया जाए। इनके लिए लोगों की धार्मिक भावनाओं तथा सांस्कृतिक मान्यताओं को बदलने का प्रयास किया जाना चाहिए।
  10. पशु संख्या नियन्त्रित की जानी चाहिए और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए अभयारण्यों का विकास किया जाना चाहिए। इससे दोहरा लाभ होगा।
  11. ढालू भूमि पर वृक्षों की कटाई नहीं की जानी चाहिए।
  12. कृषि योग्य भूमि के विस्तार के लिए वनों का ह्रास नहीं होने देना चाहिए। इसके लिए कड़े कानूनी प्रावधान किए जाने चाहिए।
  13. ऐसी नदी घाटी परियोजनाओं तथा बाँधों को स्वीकृति नहीं मिलनी चाहिए, जिससे वन क्षेत्र डूब जाने की सम्भावना हो।
  14. वनों के महत्त्व को बताने के लिए जन-साधारण में विज्ञापनों तथा प्रसार माध्यमों द्वारा जागरूकता | पैदा की जानी चाहिए।
  15. वृक्षों की चयनात्मक कटाई तथा बचे हुए जंगलों की रक्षा करके वनों के ह्रास को रोका जा सकता
  16. प्राकृतिक वन क्षेत्रों के स्थान पर वृक्ष तथा फलोद्यान लगाने से भी वन विनाश रुकता है और फल भी प्राप्त होते हैं।
  17. वनों की रक्षा के लिए सामाजिक आन्दोलन चलाए जाने चाहिए।

प्रश्न 4.
पर्यावरणीय संरक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
पर्यावरण का, जिसमें मानव रह रहा है, अपने सभी जैवीय तथा अजैवीय घटकों के साथ समन्वित, समरस तथा सन्तुलित रहना आवश्यक है। वर्तमान में पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता तथा महत्त्व को अग्रलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है

  1. इसके द्वारा पर्यावरणीय असन्तुलन की विनाशकारी प्रभावों से बचा जा सकता है।
  2. पर्यावरण का हमारी शारीरिक संरचना, स्वास्थ्य तथा मन पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। प्राकृतिक संसाधन जितने स्वच्छ व निर्मल होंगे, हमारा शरीर और मन उतना ही स्वच्छ एवं निर्मल होगा, इसलिए गुरु चरक से कहा था—‘स्वस्थ जीवन के लिए शुद्ध वायु, जल और मिट्टी आवश्यक कारक हैं।”
  3. राज्य की स्थिरता पर्यावरण की स्वच्छता पर निर्भर करती है।
  4. जैवीय विकास में पर्यावरण एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
  5. देश के आर्थिक विकास के लिए पर्यावरण की सुरक्षा आवश्यक है।
  6. औद्योगीकरण, नगरीकरण एवं प्रौद्योगिकी के प्रयोग ने प्रदूषण की गम्भीर समस्या को उत्पन्न कियाहै। जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, वायु प्रदूषण एवं ध्वनि प्रदूषण की समस्याओं ने मानव के अस्तित्व को ही चुनौती दे दी है।
  7. रासायनिक एवं आणविक अपघटकों ने ओजोन की परत में छेद करके सम्पूर्ण विश्व को ही त्रस्त कर दिया है।

संक्षेप में, वर्तमान शताब्दी की सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता बन गई है-पर्यावरण की सुरक्षा तथा साथ ही मनुष्य को शुद्ध जल, वायु और भोजन प्रदान करना।

प्रश्न 5.
मृदा अपरदन के दुष्प्रभाव बताइए।
उत्तर
मृदा अपरदन के दुष्प्रभाव निम्नलिखित हैं
(1) मृदा उर्वरता में कमी- मृदा अपरदन के कारण भूमि की ऊपरी परत (Top soil) अपने स्थान से | हट जाती है, जिससे भूमि की उर्वरता प्रभावित होती है; क्योंकि यह परत जीवांशों (humus) के रखने के कारण अधिक उर्वर होती है।

(2) सिल्टीकरण मिट्टी के बड़े– बड़े कण नदियों के जल के साथ बहकर जलाशयों में एकत्रित होने लगते हैं। इससे कृषि योग्य भूमि की उर्वरता नष्ट हो जाती है।

(3) अकाल- मृदा अपरदन के कारण भूमि की उत्पादकता कम हो जाती है तथा सूखे के समय जल की कमी हो जाने पर सिंचाई की समस्या हो जाती है, जिससे अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती

(4) मरुस्थलीकरण- मृदा अपरदन के कारण भूमि शुष्क व बंजर हो जाती है। इससे मरुस्थल जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

(5) जलवायु में परिवर्तन– मृदा अपरदन के कारण भूमि पर किसी प्रकार की वनस्पति उग नहीं पाती जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव जलवायु पर पड़ता है। वनस्पति के न होने से वर्षा की सम्भावना कम हो जाती है।

प्रश्न 6.
नव्यकरणीय और अनव्यकरणीय संसाधनों से क्यो आशय है?
उत्तर
(1) नव्यकरणीय संसाधन– इसमें वे संसाधन सम्मिलित हैं जिनमें प्रकृति में अल्प समय में ही पुन: चक्रण द्वारा स्थापित होने का गुण होता है। इनके उदाहरण जल, काष्ठ, मृदा, खाद्यान्न फसलें आदि हैं।

(2) अनव्यकरणीय संसाधन– ये संसाधन समाप्त हो जाने पर पुनः स्थापित नहीं किए जा सकते हैं। इनका प्रमुख उदाहरण जीवाश्मीय ईंधन व खनिज पदार्थ हैं। परन्तु आजकल विश्व में अत्यधिक उपयोग तथा अव्यवस्थित प्रबन्धन के कारण वन्य-जीव (पादप तथा जन्तु) भी अनव्यकरणीय संसाधन बनते जा रहे हैं।

प्रश्न 7,
मृदा संरक्षण के कुछ उपाय बताइए।
उत्तर

मृदा संरक्षण के उपाय

मृदा अपरदन से भूमि की उर्वरा शक्ति को हानि पहुँचती है जिससे उत्पादन सम्बन्धी परिवर्तन हो सकते हैं। मृदा को हानि से बचाने के कुछ उपाय अग्रवत् हैं

  1. सीधी एवं मूसलाधार वर्षा से भूमि को बचाना।
  2. जल एकत्रित होने से व ढलान की तीव्रता के कारण बहने वाले जल को रोकना।
  3. वायु की तीव्रता को रोकना।
  4. अत्यधिक पशुओं को चराने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना तथा वनों की कटाई रोकना।
  5. खाली भूमि पर वृक्षारोपण कराना।
  6. नग्न मृदा पर पादप आवरण उपलब्ध कराना।

प्रश्न 8.
ग्रीन हाउस प्रभाव (Greenhouse Effect) का वर्णन कीजिए।
उत्तर
 ग्रीनहाउस प्रभाव यदि तपती हुई धूप में खड़ी कार की सारी खिड़कियाँ बन्द कर दें तो अन्दर असहनीय रूप से गर्मी हो जाती है क्योंकि प्रकाश खिड़कियों के शीशे से गुजरकर अन्दर पहुँच जाता है। प्रकाशीय ऊर्जा ऊष्मीय ऊर्जा में परिवर्तित होकर वहाँ रह जाती है और कार को गर्म कर देती है। ग्रीन हाउस या पादप गृह पौधे उगाने के लिए बनाए जाते हैं और इसी सिद्धान्त पर कार्य भी करते हैं। चूंकि वे शीशों के बनाए जाते हैं। अत: प्रकाश अन्दर तो पहुँच जाता है परन्तु ऊष्मा बाहर नहीं निकल पाती। कार्बन डाइऑक्साइड का गुण भी ऐसा ही है कि सूर्य का प्रकाश वायुमण्डल से गुजर जाने देती है परन्तु ऊष्मा को वायुमण्डल से निकलने नहीं देती। इस प्रकार, सामान्य मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड वायुमण्डल के तापमान को बनाए रखती है। परन्तु यदि वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि हो जाती है तो वायुमण्डल में अधिक ऊष्मा रोक ली जाएगी जो उसको तापमान बढ़ा देगी। ऊष्मा का इस प्रकार वायुमण्डल में रोक लिया जाना ही ‘ग्रीन हाउस प्रभाव’ कहलाता है।

ग्रीनहाउस प्रभाव और बदलता वायुमण्डल– रासायनिक प्रदूषण पृथ्वी के वायुमण्डल की संरचना को परिवर्तित कर रहा है और जलवायु को बदल देने, पौधों की पैदावार के प्रारूप को परिवर्तित कर देने और मनुष्य तथा जीपों को खतरनाक पराबैंगनी (ultra-violet) विकिरण से अरक्षित कर देने का भय उत्पन्न कर रहा है।

प्रदूषण के इन कारणों में से जीवाश्मीय ईधन का जलाया जाना और वनों का जलाया जाना कार्बन डाइऑक्साइड चक्र में असन्तुलन का कारण बना है। हाल ही में जितनी कार्बन डाइऑक्साइड हरे पौधे और वृक्ष अवशोषित करते हैं उससे अधिक अवमुक्त हो रही है। कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती हुई मात्रा वायुमण्डल में छाये जा रही है और उसने वहाँ एक मोटा आवरण बना लिया है जो सौर विकिरण के लिए पारदर्शी है और दृश्य प्रकाश को धरातल की सतह तक पहुँच जाने देता है, परन्तु पुनर्विकिरण के रूप में वापस लौटती हुई ऊष्मीय तरंगें (अवरक्त विकिरण) उस आवरण द्वारा रोक ली जाती हैं। ऊष्मा वापस पृथ्वी पर लौटा दी जाती है और इस प्रकार ग्रीनहाउस प्रभाव (greenhouse effect) का कारण बनती है।
वह पाँच गैसें, जो ग्रीनहाउस प्रभाव में योगदान करती हैं, निम्नवत् हैं
कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) – 50%
क्र्लोरोफ्लोरो कार्बन्स (CFCs) – 14%
मीथेन (CH4)
– 18%
ओजोन (03)
– 12%
ट्रोपोस्फेरिक नाइट्रस ऑक्साइड – 6%
ग्रीन हाउस प्रभाव या वायुमण्डलीय तापन में कार्बन डाइऑक्साइड का सर्वाधिक योगदान है। वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड के एकत्रीकरण में गत दो दशकों में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का सन् 1958 में एकत्रीकरण दस लाख में 315 अंश था जो 1990 ई० में बढ़कर 353 अंश प्रति दस लाख हो गया और 1.5% की अनुमानित दर से प्रति वर्ष बढ़ रहा है। यह बहुत कम प्रतीत होता है, परन्तु कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती हुई यह दर भयावह है और वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी है कि यदि यह इसी दर से बढ़ती रही तो पृथ्वी का औसत तापक्रम वर्ष । 
2030 ई० तक 3-4C बढ़ जाएगा, समुद्रों की सतह 1 से 2 मीटर तक ऊपर उठ जाएगी और बहुत-ने छोटे द्वीपों और विभिन्न महाद्वीपों के तटीय क्षेत्र जल में डूब जाएँगे।

प्रश्न 9.
ओजोन परत अवक्षय पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
ओजोन परत की अल्पता या अवक्षय (ozone-layer depletion) चिन्ताजनक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या है। इससे सम्पूर्ण मानवता के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है। हमें ज्ञात है कि वायुमण्डल की ओजोन परत हानिकारक सौर विकिरण से हमारी सुरक्षा करती है। यह परत पृथ्वीवासियों के लिए छतरी (umbrella) के रूप में सुरक्षा कवच प्रदान करती है। सूर्य की घातक पराबैंगनी किरणों (Ultra-violet rays) को ओजोन परत शून्य में परावर्तित कर देती है। यदि ये विषैली किरणें धरातल पर सीधी आने लगे तो अनेक कोमल पौधों के अंकुर जल जाएँ। मनुष्य के वातानुकूलन, प्रशीतन, फोम, प्लास्टिक, हेयर ड्रायर, स्प्रे कैन, प्रसंस्कृत पदार्थों की पैकेजिंग, डिसपेन्सर, अग्निशामक, अनेक प्रसाधन सामग्रियों के निर्माण से अवमुक्त क्लोरोफ्लोरो कार्बन तथा सुपरसॉनिक जेट विमानों से अवमुक्त नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO) के कारण धरातल पर सूर्य की पराबैंगनी किरणे अधिक मात्रा में आने लगती हैं। CFC व NO, गैसें ओजोन परत को क्षीण करती हैं। CFC गैस में क्लोरीन, फ्लोरीन तथा कार्बन तत्वों के यौगिक होते हैं। अनुमान लगाया गया है कि वायुमण्डल में फ्रेऑन (Freon) गैस का सान्द्रण 13 से 18% प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा है। सन् 1976 ई० में वायुमण्डल में फ्रेऑन-11 तथा फ्रेऑन-12 का सान्द्रण क्रमशः 120 PPM व 220 PPM था। यदि वायुमण्डल में फ्रेऑन व हैलोन्स की अवमुक्त मात्रा पर अंकुश नहीं लगाया जाता तो पृथ्वीवासियों को निकट भविष्य में गम्भीर समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। ओजोन परत की अल्पता से त्वचा कैन्सर व चर्मरोग होने का खतरा बढ़ जाएगा। वायुमण्डल में अवमुक्त नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स की उपस्थिति में मसूढ़ो में सूजन, मोतियाबिन्द, रक्तस्राव, ऑक्सीजन की कमी, निमोनिया तथा फेफड़े के कैंसर हो जाता है। अनुमान लगाया गया है कि मनुष्य वायुमण्डल में 6 गुना अधिक हानिकारक गैसें अवमुक्त कर रहा है। एक टन कोयले के जलाने पर 5 से 10 किग्री तक नाइट्रोजन ऑक्साइड्स का निर्माण होता है। इसी प्रकार स्वचालित मोटर वाहनों (मोटरे-कार, बस, ट्रक, स्कूटर आदि) में एक टन डीजल या पेट्रोलियम का उपभोग होने से 25 से 30 किग्रा नाइट्रोजन ऑक्साइड अवमुक्त होती है।

15 किमी की ऊँचाई पर उड़ने वाले सुपर-सॉनिक जेट विमानों के समूह से अवमुक्त नाइट्रोजन ऑक्साइड से वायुमण्डलीय ओजोन के सान्द्रण में 30% तक की कमी हो सकती है। अनुमान लगाया गया है कि वायुमण्डल में ओजोन के सान्द्रण में मात्र 5% की कमी हो जाने से संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 20 हजार से 60 हजार अतिरिक्त लोग कैंसर का शिकार हो जाएँगे। ओजोन परत की अल्पता से निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं

  1. सूर्य की पराबैंगनी किरणें धरातल पर सीधे पहुँचकर भू-पृष्ठ के तापमान में वृद्धि करेंगी। इससे त्वचा कैंसर तथा अन्धेपन का प्रकोप बढ़ जाएगा।
  2. समतापमण्डल का तापमान अव्यवस्थित हो जाएगा।
  3. भूमण्डलीय ताप वृद्धि (global warming) से हिमनदों में जमी बर्फ पिघलने लगेगी परिणामतः सागर तल में वृद्धि होने से निचले क्षेत्र जलमग्न हो जाएँगे।
  4. ओजोन-अल्पता से क्षोभमण्डल में हाइड्रोजन परॉक्साइड की मात्रा में वृद्धि होगी। इससे अम्लीय वर्षा तथा धूम्रकुहरे (smog) का निर्माण होगा।
  5. जलवायु में परिवर्तन होगा।
  6. जैव-भू रासायनिक चक्र (Bio-geo-chemical cycle) परिवर्तित होने लगेंगे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पर्यावरण से क्या आशय है? पर्यावरण के विभिन्न प्रकार भी बताइए।
उत्तर 

पर्यावरण से आशय

पर्यावरण अंग्रेजी भाषा के Environment शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। यह दो शब्दों; परि + आवरण; से मिलकर बना है। ‘परि’ का अर्थ है-‘चारों ओर’ तथा ‘आवरण’ का अर्थ है-‘घेरना अथवा ढकना। इस प्रकार पर्यावरण का उन सभी घटकों को योग है, जो किसी वस्तु के चारों ओर से घेरे रहते हैं और उस वस्तु को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। इस प्रकार पर्यावरण उन सभी प्रक्रियाओं, दशाओं, बलों अथवा वस्तुओं का सम्मिलित स्वरूप हैं, जो भौतिक या रासायनिक रूप से जीवन को प्रभावित करते हैं।

पर्यावरण की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

ए० फिटिग के अनुसार-“जीवन की परिस्थिति के सम्पूर्ण तथ्यों का योग पर्यावरण कहलाता है।”

सोरोकिन के अनुसार-पर्यावरण उन समस्त दशाओं को इंगित करता है, जो मानव के क्रियाकलापों से स्वतन्त्र हैं तथा जिनकी रचना मानव ने नहीं की है और जो मानव एवं उसके कार्यों से प्रभावित हुए बिना स्वत: परिवर्तित होती हैं।”

ए०जी०ताँसले के अनुसार-“उन सभी प्रभावकारी दशाओं का कुल योग, जिनमें जीव निवास करता है, पर्यावरण कहलाता है।” संक्षेप में, पर्यावरण उन सभी भौगोलिक दशाओं का सम्पूर्ण योग है, जो मानव एवं उसकी क्रियाओं को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है और जो मानवीय प्रभाव से स्वतन्त्र रहते हुए स्वत:

परिवर्तित होता रहता है।

पर्यावरण के प्रकार मूल रूप से पर्यावरण को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है
(1) भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण तथा
(2) सांस्कृतिक या मानवनिर्मित पर्यावरण।

(1) भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण- भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण उन समस्त भौतिक शक्तियों, तत्त्वों एवं प्रक्रियाओं का योग होता है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मानवीय क्रियाकलापों को प्रभावित करता है। यह पर्यावरण स्थान एवं समय के सन्दर्भ में परिवर्तित होता रहता है। भौतिक पर्यावरण की शक्तियाँ, तत्त्व एवं प्रक्रियाएँ निम्नलिखित हैं

(अ) शक्तियाँ- भौतिक पर्यावरण की शक्तियाँ हैं-पृथ्वी की गति, गुरुत्वाकर्षण शक्ति, सूर्यातप, ज्वालामुखी, भूकम्प एवं भू-पटल की गति। ये शक्तियाँ पृथ्वी के धरातल पर भिन्न-भिन्न प्रकार का भौतिक भू-दृश्य उपस्थित करती हैं, जिससे पर्यावरण का जन्म होता है और जो अनेक प्रकार से मानवीय पर्यावरण को प्रभावित करता है।

(ब) तत्त्व- भौतिक पर्यावरण के अन्तर्गत निम्नलिखित तत्त्वों को सम्मिलित किया जाता है—स्थिति एवं विस्तार, स्वरूप एवं आकार, जलवायु दशाएँ, महासागर, नदियाँ एवं झीलें, शैल, मिट्टी, खनिज, भूमिगत जल, प्राकृतिक वनस्पति एवं जीव-जन्तु आदि।

(स) प्रक्रियाएँ- भौतिक पर्यावरण के अन्तर्गत निम्नलिखित प्रक्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है—अपक्षय एवं अपरदन, ताप विकिरण, संचालन एवं संवहन, वायु एवं जल की गतियाँ, भू-दृश्य एवं जैविक तत्त्वों की उत्पत्ति, विकास एवं क्षय।। उपर्युक्तु सभी शक्तियाँ, तत्त्व एवं प्रक्रियाएँ मिलकर भौतिक पर्यावरण को निर्मित करती हैं तथा एक-दूसरे से स्वतन्त्र होते हुए भी किसी-न-किसी प्रकार से सांस्कृतिक पर्यावरण को प्रभावित करती हैं।

(2) सांस्कृतिक या मानवनिर्मित पर्यावरण- मानव सांस्कृतिक पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। यह प्राकृतिक वातावरण में परिवर्तन लाने के लिए सदैव क्रियाशील रहता है। मानव ने ही अपने ज्ञान, विज्ञान एवं तकनीकी विकास से प्राकृतिक पर्यावरण का उपयोग कर सांस्कृतिक पर्यावरण का निर्माण किया है। सांस्कृतिक या मानवनिर्मित पर्यावरण की शक्तियाँ, तत्त्व एवं प्रक्रियाएँ निम्नलिखित हैं

(अ) शक्तियाँ- सांस्कृतिक पर्यावरण को निर्मित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली मुख्य शक्तियाँ हैं–कुल जनसंख्या, वितरण एवं घनत्व, आयु वर्ग, स्त्री-पुरुष अनुपात, जनसंख्या वृद्धि एवं स्वास्थ्य।

(ब) तत्त्व– सांस्कृतिक पर्यावरण के अन्तर्गत निम्नलिखित तत्त्वों को सम्मिलित किया जाता है—मूलभूत आवश्यकताओं की आपूर्ति, आर्थिक क्रियाएँ, तकनीकी विकास, सामाजिक एवं राजनीतिक संगठन आदि।

(स) प्रक्रियाएँ– सांस्कृतिक प्रक्रियाएँ वे हैं, जिनके द्वारा मानव प्राकृतिक पर्यावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करती है। ये हैं-पोषण, समूहीकरण, पुनः उत्पादन, पृथक्करण, अनुकूलन, समायोजन व प्रवास। यद्यपि सांस्कृतिक पर्यावरण मानव निर्मित होता है तथापि इस पर भौतिक पर्यावरण की स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है। ये दोनों ही परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं और एक-दूसरे को निरन्तर प्रभावित करते रहते हैं।

प्रश्न 2.
वायु प्रदूषण का अर्थ एवं स्रोत बताइए। यह हमारे जीवन को किस प्रकार प्रभावित करता है? इसे रोकने के उपाय भी बताइए। उत्तर

वायु प्रदूषण

अर्थ- ऑक्सीजन को छोड़कर वायु में किसी भी गैस की मात्रा सन्तुलित अनुपात से अधिक होने पर वायु श्वसन के योग्य नहीं रहती। अतः वायु में किसी भी प्रकार की गैस वृद्धि या अन्य पदार्थ का समावेश ‘वायु प्रदूषण’ कहलाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार- “वायु प्रदूषण को ऐसी परिस्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें बाह्य वायुमण्डल में ऐसे पदार्थों का संकेन्द्रण हो जाता है, जो मानव और उसके चारों ओर विद्यमान पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं।’

स्रोत–
मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्राकृतिक सन्तुलन को बिगाड़ता है। एक ओर तो वह वनों को काट डालता है तथा दूसरी ओर कल-कारखाने, औद्योगिक संस्थान आदि चलाकर वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा ही नहीं बढ़ाता वरन् नाइट्रोजन, सल्फर आदि अनेक तत्वों के ऑक्साइड्स भी वायुमण्डल में मिला देता है। इसके अतिरिक्त, मोटरगाड़ियों, कार, विमान आदि से अनेक प्रकार के अदग्ध हाइड्रोकार्बन्स तथा विषैली गैसें निकलती हैं। इन सबके परिणामस्वरूप वायु प्रदूषण बढ़ता जाता है।

प्रभाव

  1. वायु प्रदूषण से मनुष्य के स्वास्थ्य पर गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सल्फर डाइऑक्साइड से फेफड़ों के रोग, कैडमियम से हृदय रोग, कार्बन मोनोऑक्साइड से कैंसर आदि रोग लग सकते हैं। आँखों में, श्वसन मार्ग तथा गले में जलन वायु प्रदूषण के साधारण रोग हैं।
  2. पशुओं में फेफड़ों की अनेक बीमारियाँ धूल कणों, सल्फर डाइऑक्साइड आदि से पैदा होती है। कार्बन मोनोऑक्साइड से पशुओं की मृत्यु तक हो जाती है फ्लुओरीन; घास तथा चारे में इकट्ठा होकर; विभिन्न प्रकार से पशुओं के शरीर को (चारा खाने पर) हानि पहुँचाती है।
  3. वायु प्रदूषण का पौधों पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है। सल्फर डाइऑक्साइड पत्तियों में स्थित क्लोरोफिल को नष्ट कर देती है। वायु प्रदूषण के कारण पत्तियाँ आंशिक या पूर्ण रूप से झुलस जाती हैं।
  4. वायु प्रदूषण इमारतों, वस्त्रों आदि पर हानिकारक प्रभाव डालता है। हाइड्रोजन सल्फाइड के प्रभाव| से भवन काले पड़ने लगते हैं।

रोकथाम के उपाय

  1. प्रत्येक बस्ती में पर्याप्त संख्या में पेड़-पौधे लगाए जाने चाहिए तथा वनस्पति उगानी चाहिए।
  2. जिन घरों में अँगीठी आदि जलाई जाती है, वहाँ धुएँ के निकलने की उचित : अवस्था होनी चाहिए। इसके लिए एक ऊँची चिमनी लगाई जानी चाहिए।
  3. मकानों को यथासम्भव सड़कों से दूर बनाना चाहिए तथा मका में सूर्य का प्रकाश आने की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए।
  4. खाली भूमि नहीं छोड़नी चाहिए, क्योंकि खाली भूमि से धूल उड़ती है, जो वायु को दूषित करती है।
  5. यदि घरों में पशु पालने हों, तो उन्हें निवास से दूर रखना चाहिए। इससे गन्दी गैसें घर में एकत्रित नहीं हो पातीं।
  6. औद्योगिक संस्थानों तथा कारखानों को बस्ती से दूर स्थापित करना चाहिए।
  7. जहाँ अधिक वाहन चलते हैं, वहाँ सड़कें पक्की होनी चाहिए।
  8. तेलशोधक कारखानों पर वायु प्रदूषण से बचने के लिए शोधक यन्त्र लगाए जाने चाहिए।
  9. जनमानस में जागरूकता लाई जानी चाहिए तथा सर्वत्र वनस्पति को सघन रूप में उगाया जाना चाहिए व पेड़ों को काटने से रोका जाना चाहिए।

प्रश्न 3.
जल प्रदूषण का अर्थ, स्रोत एवं मानव-जीवन पर उसके प्रभाव बताइए। जल प्रदूषण की रोकथाम के लिए उपयुक्त सुझाव भी दीजिए।
उत्तर

जल प्रदूषण

अर्थ-
जल में अनेक प्रकार के खनिज, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थों तथा गैसों के एक निश्चित अनुपात से अधिक या अन्य अनावश्यक तथा हानिकारक पदार्थ घुले होने से जल प्रदूषित हो जाता है। यह प्रदूषित जल जीवों में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न कर सकता है। जल प्रदूषक विभिन्न रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु, वाइरस, कीटाणुनाशक पदार्थ, अपतृणनाशक पदार्थ, वाहित मल, रासायनिक खादें, अन्य कार्बनिक पदार्थ आदि अनेक पदार्थ हो सकते हैंस्रोत–जल प्रदूषण के विभिन्न स्रोत निम्नलिखित हो सकते हैं

  1. कृषि में प्रयोग किए गए कीटाणुनाशक, अपतृणनाशक, विभिन्न रासायनिक खादें।
  2. सीसा, पारा आदि के अकार्बनिक तथा कार्बनिक पदार्थ, जो औद्योगिक संस्थानों से निकलते हैं।
  3. भूमि पर गिरने वाला या तेल वाहकों द्वारा ले जाया जाने वाला तेल तथा अनेक प्रकार के वाष्पीकृत | होने वाले पदार्थ जैसे पेट्रोल, एथिलीन आदि; वायुमण्डल से द्रवित होकर जल में आ जाते हैं।
  4. रेडियोधर्मी पदार्थ जो परमाणु विस्फोटों आदि से उत्पन्न होते हैं और जल-प्रवाह में पहुँचते हैं।
  5. वाहित मल जो मनुष्यों द्वारा जल प्रवाह में मिला दिया जाता है।

प्रभाव

  1. जल प्रदूषण के कारण अनेक प्रकार की बीमारियाँ महामारी के रूप में फैल सकती हैं। हैजा, टाइफॉइड, पेचिश, पोलियो आदि रोगों के रोगाणु प्रदूषित जल द्वारा ही शरीर में पहुँचते हैं।
  2. नदी, तालाब आदि का प्रदूषित जल पीने वाले पशुओं, मवेशियों आदि में भयंकर बीमारियाँ उत्पन्न | करता है।
  3. जल में रहने वाले जन्तु व पौधे प्रदूषित जल से नष्ट हो जाते हैं या उनमें अनेक प्रकार के रोग लगजाते हैं। जल में विषैले पदार्थों के कण नीचे बैठ जाते हैं।
  4. प्रदूषित जल पौधों में भी अनेक प्रकार के कीट तथा जीवाणु रोग उत्पन्न कर सकता है। कुछ विषैले पदार्थ पौधों के माध्यम से मनुष्य तथा अन्य जीवों के शरीर में पहुँचकर उन्हें हानि पहुँचाते हैं।
  5. जलीय जीवों के नष्ट होने से खाद्य पदार्थों की हानि होती है। ऑक्सीजन की कमी के कारण मछलियाँ बड़ी संख्या में मर जाती हैं।

रोकथाम के उपाय

जल प्रदूषण की रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं

  1. कूड़ा-करकट, सड़े-गले पदार्थ एवं मल-मूत्र को शहर से बाहर गड्डा खोदकर दबा देना चाहिए।
  2.  सीवर का जल पहले नगर से बाहर ले जाकर दोषरहित करना चाहिए। बाद में इसे नदियों में छोड़ | देना चाहिए।
  3. विभिन्न कारखानों आदि से निकले जल तथा अपशिष्ट पदार्थों आदि का शुद्धीकरण आवश्यक रूप से किया जाना चाहिए।
  4. विभिन्न प्रदूषकों को समुद्री जल में मिलने से रोका जाना चाहिए।
  5. समुद्र के जल में परमाणु विस्फोट नहीं किया जाना चाहिए।
  6. झीलों, तालाबों आदि में शैवाल जैसे जलीय पौधे उगाए जाने चाहिए, ताकि जल को शुद्ध रखा जा सके।
  7. मृत जीवों, जले हुए जीवों की राख आदि को नदियों में प्रवाहित नहीं करना चाहिए। .
  8. खेतों में तथा जल में कीटाणुनाशक दवाओं का कम-से-कम प्रयोग किया जाना चाहिए।
  9. स्वच्छ जल 3 रुपयोग को रोका जाना चाहिए।
  10. ग्राम से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक समितियों का गठन किया जाना चाहिए।

प्रश्न 4.
मृदीय (मृदा) प्रदूषण का अर्थ, स्रोत एवं प्रभाव बताइए। मृदीय प्रदूषण की रोकथाम के| लिए क्या उपाय अपनाए जाने चाहिए? उत्तर

मृदीय प्रदूषण

अर्थ- प्रदूषित जल तथा वायु के कारण मृदा भी प्रदूषित हो जाती है। वर्षा आदि जल के साथ ये प्रदूषक पदार्थ मृदा में आ जाते हैं। इसके अतिरिक्त, जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ अधिक फसल उगाने के लिए भूमि की उर्वरता बढ़ाने या बनाए रखने के लिए उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है। विभिन्न प्रकार के कीटाणुनाशक पदार्थ, अपतृणनाशी पदार्थ आदि फसलों पर छिड़के जाते हैं। ये सब पदार्थ मृदा के साथ मिलकर उसमें हानिकारक प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसी को ‘मृदीय प्रदूषण’ कहते हैं। स्रोत–काफी मात्रा में ठोस अपशिष्ट पदार्थ (wastes) घरों से बाहर फेंक दिए जाते हैं। सब्जियों के शेष भाग, पैकिंग का व्यर्थ समान, डिब्बे, कागज के टुकड़े, कोयले की राख, धातु, प्लास्टिक, चीनी व मिट्टी के बर्तन आदि कूड़े के ढेर बनते हैं। प्रभाव–राष्ट्रीय प्रदूषण के निम्नलिखित प्रभाव हो सकते हैं

  1. गन्दे स्थान अनेक जीव-जन्तुओं; चूहे, मक्खियों, मच्छरों आदि रोगवाहकों; के रहने तथा बढ़ने के | स्थान बन जाते हैं तथा मनुष्यों व पशुओं में रोग उत्पन्न करते हैं।
  2. खानों-दानों आदि की मृदा में अनेक प्रदूषक पदार्थ पाए जाते हैं। ये पदार्थ विषैले होते हैं, जो पौधों के प्ररीर में एकत्रित होकर बाद में मनुष्य तथा पशुओं के शरीर में पहुँचकर रोग उत्पन्न कर देते हैं।
  3. अनेक उद्योग; जैसे–लुगदी व कागज मिल, तेलशोधक कारखाने, रासायनिक खाद के कारखाने, लोहा व इस्पात कारखाने, प्लास्टिक व रबड़ संयन्त्र आदि मृदा प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं।
  4. रेडियोधर्मी पदार्थ मृदा में पहुँचकर अनेक प्रकार से हानियाँ पहुँचाते हैं। इनसे पौधे नष्ट हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त पौधों द्वारा अनेक हानिकारक पदार्थ मनुष्यों तथा जीवों में पहुँचते हैं और भयंकर

रोग उत्पन्न करते हैं।

रोकथाम के उपाय-मृदीय प्रदूषण की रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जाने चाहिए

  1. घरेलू अपशिष्टों, वाहित मल आदि का उचित प्रबन्ध होना चाहिए। इस कार्य का प्रबन्ध समितियों द्वारा होना चाहिए।
  2. परमाणु विस्फोटों पर रोक लगाई जानी चाहिए। परमाणु संस्थानों से होने वाले रिसाव को रोकने के | लिए समुचित उपाय किए जाने चाहिए।
  3. कृषि के अपशिष्ट, गोबर आदि कार्बनिक पदार्थों का विसर्जन हानिकारक विधियों द्वारा नहीं कियाजाना चाहिए। इनका प्रयोग अधिक ऊर्जा उत्पादन तथा उचित खाद के उत्पादन के लिए किया जा सकता है।
  4. उद्योगों के लिए निश्चित किया जाए कि वे अपने अपशिष्टों के निष्कासन के लिए ऐसी योजनाएँ बनाएँ कि वे जल, वायु तथा मृदा को हानि न्यूनतम स्तर पर ही पहुंचा सकें।

प्रश्न 5.
आर्थिक विकास पर पर्यावरण प्रदूषण के दुष्प्रभाव बताइए।
उत्तर
पर्यावरणीय समस्याएँ आज हम सभी के लिए चिन्ता का विषय हैं। मनुष्य को अच्छे स्वास्थ्य एवं सुखे जीवन के लिए इनकी ओर आवश्यक ध्यान देना चाहिए। पर्यावरणीय संरक्षण का मूलभूत लक्षणे प्राकृतिक संसाधनों के मानवीय उपयोग के प्रबन्ध से है, ताकि वे वर्तमान पीढ़ी के लिए दीर्घकालीन लाभ प्रदान कर सकें और साथ ही भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए तैयार रहें।

विकासे हमारे लिए अति आवश्यक है। विकास न केवल देश को आर्थिक समृद्धि की ओर ले जाएगा। अपितु विकास के कारण देश का सन्तुलित आर्थिक विकास सम्भव होगा और देश में आर्थिक और सामाजिक विषमताएँ कम होंगी। अतः पर्यावरणीय समस्याओं के कारण विकास कार्यों को धीमा करना बिल्कुल भी उचित नहीं है। वास्तव में, विकास कार्यों में पर्यावरणीय समस्याओं का अध्ययन एवं उम्बित समय पर उनका निदान करके ही प्रत्येक क्षेत्र में बहुमुखी प्रगति सम्भव है।

पर्यावरणीय सुरक्षा एवं पारिस्थितिक सन्तुलन यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं कि विकास कार्यक्रम लम्बे समय तक अनवरत गति से चलते रहें। भारी, मध्यम एवं लघु उद्योगों के संयोजन पर आधारित विविधतापूर्ण औद्योगिक ढाँचे की स्थापना तथा देश में बढ़ती हुई शहरी एवं ग्रामीण जनसंख्या के परिणामस्वरूप वायु, जल एवं भू-संसाधनों पर दबाव बढ़ा है, जिसके कारण वायु तथा जल प्रदूषण में वृद्धि हुई है। चिमनी से उड़ती राख, फॉस्फोजिप्सम तथा झोंका भट्ठी के धातु अपशिष्ट जैसे ठोस कचरे को भण्डारण, कचरे का ढेर लगाना एवं उसका निपटान करना; औद्योगिक क्षेत्र में प्रमुख समस्या बन गए हैं। रसायन एवं पेट्रो-रसान उद्योगों के विकास के पीछे जहरीले, ज्वलनशील एवं विस्फोटक रसायनों को विनियमित करने की समस्या भी जटिल होती जा रही है। अधिकांश उद्योग दूषित जल को नदियों एवं जलमार्गों में पर्याप्त शोधन के बिना ही छोड़ देते हैं। औद्योगिक अवशिष्टों का स्राव आसानी से घुलनशील नहीं होता है और नदियाँ भी इसे प्राकृतिक रूप से आत्मसात नहीं कर पाती हैं। इसके परिणामस्वरूप जल तत्त्व प्रदूषित ही रह जाते हैं और जनस्वास्थ्य पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। 17 राज्यों में द्वितीय श्रेणी के 241 नगरों में केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, आपूर्ति किया गया 90% जल गन्दा होता है। अपर्याप्त सफाई की समस्या भी गम्भीर है। औद्योगिक प्रदूषण को प्रमुख भाग अवशिष्ट पदार्थों के रूप में है।

उद्योगों और सड़क पर चलने वाले मोटर वाहनों द्वारा प्रतिदिन हजारों टन प्रदूषक पदार्थों का वायु में उत्सर्जन किया जाता है। वाहनों द्वारा उत्सर्जित प्रदूषण पदार्थ अधिक घातक सिद्ध होते हैं, क्योंकि उनसे जनता का नजदीकी सम्पर्क रहता है और शहरों में ऊँचे-ऊँचे भवनों के कारण उनका प्रकीर्णन नहीं हो पाता है। पुराने इंजन, पुराने वाहन, भीड़-भाड़ वाला यातायात, खराब दशा वाली सड़कें तथा घटिया किस्म का ईंधन वायु प्रदूषण को और भी बढ़ा देते हैं। कोयले पर आधारित तापीय संयन्त्र सल्फर डाइ-ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि गैंसे उत्सर्जित करके वातावरण को प्रदूषित करते हैं।, जिसके कारण तेजाबी वर्षा होती है, जो क्षेत्र की मिट्टी, वनस्पति एवं जल-जीवों के जीवन को नष्ट करती है, जिससे बड़ी मात्रा में समाज का अहित होता है। इसके अतिरिक्त, खनन उद्योग भी आस-पास के क्षेत्र में वायु और जल को प्रदूषित कर रही है। खननों के वास्तविक प्रचलनों के अलावा खानों से निकला अपशिष्ट पदार्थ और इनके ढेर, खेतों एवं सम्पत्ति को नष्ट करते हैं। खुदाई से भूमिगत जल के स्रोत भी दूषित हो जाते हैं। खानों से बन्दरगाहों और रेलवे स्टेशनों के लिए लौह-अयस्कों की ढुलाई से प्रत्येक स्थान; यथा-वायु में, घरों में तथा खाना पकाने के बर्तनों; पर धूल की एक परत जम जाती है।

मुख्य रूप से बड़े शहरों में ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि हो रही है। वहाँ यातायात तथा वायुयानों का शोर मानव स्वास्थ्य एवं श्रवण शक्ति के लिए खतरा उत्पन्न करता है और शारीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार के तनाव उत्पन्न करता है। व्यापक स्तर पर गरीबी के साथ-साथ बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ा है, जिससे पर्यावरण का स्तर विकृत हुआ है। वन संसाधनों की चराई, व्यापारिक एवं घरेलू आवश्यकताओं हेतु अधिक उपयोग के दूसरे तरीकों, अतिक्रमणों, कृषि जैसी अस्थायी पद्धतियों और विकासात्मक क्रिया-कलापों के कारण खतरा बढ़ गया है। देश की नाजुक पारिस्थितिक प्रणालियों को भी दबाव का सामना करना पड़ रहा है। मूंगे की चट्टानें, जो समुद्रीय पारिस्थितिक प्रणालियों की बहुत ही उत्पादनकारी प्रणाली है, पर भी चूने के उत्पादन, मनोरंजक वस्तुओं के उपयोग और आभूषण सम्बन्धी व्यापार के कारण हुए अन्धाधुन्ध दोहन से प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। 6,700 वर्ग किमी कच्छ वनस्पति क्षेत्र, मछली पकड़ने, भूमि तथा समुद्र के बीच के स्थान के उपयोग में परिवर्तन और जल प्रदूषण, जोकि समुद्री जहाजों एवं तटीय तेलशोधक कारखानों से तेल के रिसाव,

घरेलू गन्दगी तथा औद्योगिक बहि:स्राव के गलत दिशा परिवर्तन से होता है, के कारण जैविक दबाव क्षेत्र बन गया है। संक्षेप में, आर्थिक विकास कार्यक्रमों के अन्तर्गत कृषि एवं औद्योगिक विकास, परिवहन के साधनों के विकास, विद्युत एवं परमाणु शक्ति के विकास आदि के कारणों ने पर्यावरणीय प्रदूषण को बढ़ाया है, जिससे मानव जीवन का अस्तित्व (आर्थिक विकास का मुख्य लक्ष्य है–मानव-कल्याण में वृद्धि) ही खतरे में पड़ गया है। अतः आर्थिक विकास के लाभ तभी तक उपादेय हैं, जब तक पर्यावरण संरक्षित है, इसलिए आर्थिक विकास कार्यक्रमों में पर्यावरण संरक्षण को विशेष महत्त्व दिया जा रहा है। वास्तव में,आर्थिक विकास एवं पर्यावरण संरक्षण एक-दूसरे से परस्पर सम्बद्ध हैं।

प्रश्न 6.
पर्यावरण सुरक्षा से क्या अभिप्राय है? यह क्यों आवश्यक है? भारत सरकार ने इसके लिए क्या उपाय किए हैं? अथवा पर्यावरण प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयासों का वर्णन| कीजिए।
उत्तर

पर्यावरण संरक्षण (सुरक्षा) का अर्थ

प्राकृतिक आपदाओं से बचने का एकमात्र उपाय पर्यावरणीय संरक्षण है। पर्यावरणीय संरक्षण से आशय है-पर्यावरणीय संसाधनों; यथा-भूमि, जल, खनिज, वन, ऊर्जा व जीव-जन्तुओं आदि; का न्यूनतम उपयोग करके अधिकतम लाभ प्राप्त करना अर्थात् उन्हें कम-से-कम हानि पहुँचाना। एली के शब्दों में, “पर्यावरणीय संसाधनों का संरक्षण वर्तमान पीढ़ी का भावी पीढ़ी के लिए त्याग है।” मैकनाल के शब्दों में-“पर्यावरणीय संरक्षण से आशय प्राकृतिक संसाधनों का इस प्रकार उपयोग करने से है, जिससे मानव जाति की आवश्यकताओं की पूर्ति सर्वोत्तम रीति से कर सके और ऐसा तब ही हो सकता है, जबकि वर्तमान एवं भविष्य की सम्भावित आवश्यकताओं में सन्तुलन रखा जाए। संक्षेप में, पर्यावरणीय संरक्षण से आशय पर्यावरणीय संसाधनों को ऐसे विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग करना है, ताकि अधिकतम समय तक, अधिकतम लोगों के, अधिकतम हित में उनका उपयोग किया जा सके।
पर्यावरणीय संरक्षण के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं|

  1. पर्यावणीय संसाधनों की आवश्यकता अपव्ययता को रोकना।
  2. भावी उपयोग के लिए संसाधनों की बचत करना।।
  3. संसाधनों को योजनाबद्ध एवं विवेकपूर्ण रीति से उपयोग करना।

पर्यावरणीय संरक्षण की आवश्यकता- पर्यावरण का, जिसमें मानव रह रहा है, अपने सभी जैवीय तथा अजैवीय घटकों के साथ समन्वित, समरस तथा सन्तुलित रहना आवश्यक है। वर्तमान में पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता तथा महत्त्व को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है

  1. इसके द्वारा पर्यावरणीय असन्तुलन के विनाशकारी प्रभावों से बचा जा सकता है। ,
  2. पर्यावस्ण को हमारी शारीरिक संरचना, स्वास्थ्य तथा मन पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। प्राकृतिक संसाधन जितने स्वच्छ व निर्मल होंगे, हमारा शरीर और मन भी उतना ही स्वच्छ एवं निर्मल होगा, इसलिए गुरु चरक ने कहा था-“स्वस्थ जीवन के लिए शुद्ध वायु, जल और मिट्टी आवश्यक कारक हैं।”
  3. राज्य की स्थिरता पर्यावरण की स्वच्छता पर निर्भर करती है।
  4. जैवीय विकास के पर्यावरण एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
  5. देश के आर्थिक विकास के लिए पर्यावरण की सुरक्षा आवश्यक है।
  6. औद्योगीकरण, नगरीकरण एवं प्रौद्योगिकी के प्रयोग ने प्रदूषण की गम्भीर समस्या को उत्पन्न किया है। जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, एवं ध्वनि प्रदूषण की समस्याओं ने तो मानव के अस्तित्व को ही चुनौती दे दी है।
  7. रासायनिक एवं आणविक अपघटकों ने ओजोन की परत में छेद करके सम्पूर्ण विश्व को ही त्रस्त कर दिया है।

संक्षेप में, वर्तमान शताब्दी की सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता बन गई है-पर्यावरण की सुरक्षा साथ ही मनुष्य को शुद्ध जल, वायु और भोजन प्रदान करना।

पर्यावरण संरक्षण हेतु सरकारी प्रयास

पर्यावरण संरक्षण के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने लगभग 30 कानून बनाए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कानून हैं-जल (प्रदूषण निवारण और नियन्त्रण) अधिनियम 1974 ई० वायु (प्रदूषण और निवारण) अधिनियम, 1981 ई०; फैक्ट्री अधिनियम, कीटनाशक अधिनियम आदि। इन अधिनियमों के क्रियान्वयन का दायित्व केन्द्रीय एवं राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड कारखानों के मुख्य निरीक्षक और कृषि विभागों के कीटनाशक निरीक्षकों पर है। पर्यावरण संरक्षण के सम्बन्ध में सरकारी प्रयासों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-
(1) पर्यावरण संगठनों का गठन- चौथी योजना के प्रारम्भ में सरकार का ध्यान पर्यावरण सम्बन्धी 
समस्याओं की ओर आकर्षित हुआ। इस दृष्टि से सरकार ने सर्वप्रथम सन् 1972 ई० में एक पर्यावरण समन्वय समिति का गठन किया। जनवरी 1980 ई० में एक अन्य समिति का गठन किया गया, जिसे विभिन्न कानूनों तथा पर्यावरण को बढ़ावा देने वाले प्रशासनिक तन्त्र की विवेचना करने और उन्हें सुदृढ़ करने हेतु संस्तुतियाँ देने का कार्य सौंपा गया। इस समिति की ही संस्तुति पर सन् । 1980 ई० में पर्यावरण विभाग की स्थापना की गई। परिणामस्वरूप पर्यावरण के कार्यक्रमों के आयोजन, प्रोत्साहन और समन्वयन के लिए सन् 1985 ई० में पर्यावरण वन्य और वन्य-जीवन मन्त्रालय की स्थापना की गई।

(2) जल प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण – केन्द्रीय जल प्रदूषण निवारण और नियन्त्रण बोर्ड; जल और वायु प्रदूषण के मूल्यांकन, निगरानी और नियन्त्रण की शीर्षस्थ संस्था है। जल (1974 ई०) और वायु (1981 ई०) प्रदूषण निवारण और नियन्त्रण कानूनों तथा जल उपकर अधिनियम (1977 ई०) को लागू करने को उत्तरदायित्व केन्द्रीय बोर्ड पर और राज्यों में गठित बोडों पर है।

(3) केन्द्रीय गंगा प्राधिकरण– सरकार ने सन् 1985 ई० में केन्द्रीय गंगा प्राधिकरण की स्थापना की थी। गंगा सफाई कार्ययोजना का लक्ष्य नदी में बहने वाली मौजूदा गन्दगी की निकासी करके उसे किसी अन्य स्थान पर एकत्र करना और उपयोगी ऊर्जा स्रोत में परिवर्तित करने का है। इस योजना में निम्नलिखित कार्य शामिल है-

  1. दूषित पदार्थों की निकासी हेतु बने नालों और नालियों को नवीनीकरण।
  2. अनुपयोगी पदार्थों तथा अन्य दूषित द्रव्यों को गंगा में जाने से रोकने के लिए नए रोधक नालों का निर्माण तथा वर्तमान पम्पिंग स्टेशनों और जल-मल संयन्त्रों का नवीनीकरण।
  3. सामूहिक शौचालय बनाना, पुराने शौचालयों को फ्लश में बदलना, विद्युत शवदाह गृह बनवाना तथा गंगा के घाटों का विकास करना।
  4.  जल-मल प्रबन्ध योजना का आधुनिकीकरण।

(4) अर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 ई०— यह अधिनियम 19 नवम्बर, 1986 ई० से लागू हो गया है। इस अधिनियम की कुछ महत्त्वपूर्ण बातें निम्नलिखित हैं
(अ) केन्द्र सरकार को प्राप्त अधिकार

  1. पर्यावरण की गुणवत्ता के संरक्षण के लिए सभी आवश्यक कदम उठाना।
  2. पर्यावरण सुरक्षा से सम्बन्धित अधिनियमों के अन्तर्गत राज्य सरकारों, अधिकारियों और प्राधिकारियों के काम में समन्वय स्थापित करना।।
  3. पर्यावरण प्रदूषण के निवारण, नियन्त्रण और उपशमन के लिए राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम की योजना बनाना और उसे क्रियान्वित करना।
  4. पर्यावरण प्रदूषण के नि:सरण के लिए मानक निर्धारित करना।
  5. किसी भी अधिकारी का प्रवेश, निरीक्षण, नमूना लेने और जाँच करने की शक्ति प्रदान ।करना।
  6. पर्यावरण प्रयोगशालाओं की स्थापना करना या उन्हें मान्यता प्रदान करना।
  7. सरकारी विश्लेषकों को नियुक्त करना या उन्हें मान्यता प्रदान करना।।
  8. पर्यावरण की गुणवत्ता के मानक निर्धारित करना।
  9. दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए रक्षोपाय निर्धारित करना और दुर्घटनाएँ लेने पर उपचारात्मक कदम उठाना।
  10. खतरनाक पदार्थों के रख-रखाव/सँभालने आदि की प्रक्रियाएँ और रक्षोपाय निर्धारित करना। कुछ ऐसे क्षेत्रों का परिसीमन करना, जहाँ किसी भी उद्योग की स्थापना अथवा औद्योगिक गतिविधियाँ संचालित न की जा सकें।

(ब) किसी भी व्यक्ति को यह अधिकार प्राप्त है कि निर्धारित प्राधिकरणों को 60 दिन की सूचना देने के बाद इस अधिनियम के उपबन्धों का उल्लघंन करने वालों के विरुद्ध न्यायालय में शिकायत कर दे।
(स) अधिनियम के अन्तर्गत किसी भी स्थान को प्रभारी व्यक्ति किसी दुर्घटना आदि के 
फलस्वरूप प्रदूषणों का रिसाव निर्धारित मानक से अधिक होने या अधिक रिसाव होने की आशंका पर उसकी सूचना निर्धारित प्राधिकरण को देने के लिए बाध्य होगा।
(द) अधिनियम का उल्लंघन करने वालों के लिए अधिनियम में कठोर दण्ड देने की व्यवस्था
(य) इस अधिनियम के अन्तर्गत आने वाले मामले दीवानी अदालतों के कार्य-क्षेत्र में नहीं आते।

(5) अन्य योजनाएँ- उपर्युक्त के अतिरिक्त शासकीय स्तर से किए गए कुछ अन्य प्रयास निम्नलिखित हैं|

  1. राष्ट्रीय पारिस्थितिकी बोर्ड (1981 ई०) की स्थापना।
  2. विभिन्न राज्यों में जीवमण्डल भण्डारों की स्थापना।
  3. सिंचाई भूमि स्थलों के लिए राज्यवार नोडल एकेडेमिक रिसर्च इन्स्टीट्यूट की स्थापना।
  4. राष्ट्रीय बंजर भूमि विकास बोर्ड (1985 ई०) की स्थापना।
  5. वन नीति में संशोधन।
  6. राष्ट्रीय वन्य-जीवन कार्ययोजनाओं का आरम्भ।
  7. अनुसन्धान कार्यों के लिए निरन्तर प्रोत्साहन।।
  8. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना।
  9. प्रदूषण निवारण पुरस्कारों की घोषणा।।
  10. 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।

प्रश्न 7.
धारणीय विकास का अर्थ एवं इसकी आवश्यकताएँ बताइए। भारत में धारणीय विकास की| रणनीति भी समझाइए।
उत्तर
धारणीय विकास का अर्थ धारणीय विकास वह प्रक्रिया है जो आर्थिक विकास के फलस्वरूप प्राप्त होने वाले दीर्घकालीन शुद्ध लाभों को वर्तमान तथा भावी पीढ़ी दोनों के लिए अधिकतम करती है। यह भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता को बिना कोई हानि पहुँचाए वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करती है।

यू०एन०सी०ई०डी० के अनुसार-“धारणीय विकास से आशय ऐसे विकास से है जो वर्तमान पीढ़ी। की आवश्यकताओं को भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं की पूर्ति क्षमता के समझौता किए बिना पूरी करें।”

यू०एन०सी०ई०डी० की रिपोर्ट ‘अवर कॉमन फ्यूचर’ के अनुसार-“धारणीय विकास विकासको वह प्रक्रिया है जो सभी की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति और एक अच्छे जीवन की आकांक्षाओं की सन्तुष्टि के लिए सभी को अवसर प्रदान करती है।” एडवई बारबियर के अनुसार-“धारणीय विकास से आशय बुनियादी स्तर पर गरीबों के जीवन के भौतिक मानकों को ऊँचा उठाना है जिसे आय, वास्तविक आय, शैक्षिक सेवाएँ, स्वास्थ्य देखभाल, सफाई, जलापूर्ति इत्यादि के रूप में परिमाणात्मक रूप से मापा जा सकता है।”

रॉबर्ट रेपीट के अनुसार- “धारणीय विकास का अर्थ विकास की वह रणनीति है जो सभी प्राकृतिक, मानवीय, वित्तीय तथा भौतिक साधनों का सम्पत्ति तथा आर्थिक कल्याण में वृद्धि करने के लिए प्रबन्ध करती है।” उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर धारणीय विकास की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. आर्थिक संवृद्धि एवं प्रति व्यक्ति आय में दीर्घकालीन वृद्धि होनी चाहिए।
  2. प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण एवं कुशलतापूर्वक शोषण किया जाना चाहिए।
  3. उपलब्ध संसाधनों का उपयोग इस प्रकार किया जाना चाहिए कि भावी पीढ़ी अपनी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने की योग्यता में कमी न हो।
  4. ऐसे कार्य न किए जाएँ जो पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ाते हैं तथा भावी पीढ़ी की गुणवत्ता को कम करते हैं। 

धारणीय विकास की आवश्यकताएँ

धारणीय विकास की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित आवश्यकताएँ हैं

  1. मानव जनसंख्या की पर्यावरण की धारण क्षमता के स्तर तक स्थिर करना होगा।
  2. प्रौद्योगिक प्रगति आगत-निपुण हो, न कि आगत उपभोगी।
  3. किसी भी स्थिर्सि में नव्यकरणीय संसाधनों की निष्कर्षण की दर पुनर्सेजन की दर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  4. गैर-नवीकरणीय संसाधनों की अपक्षय दर नवीनीकृत प्रतिस्थापकों से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  5. प्रदूषण के कारण उत्पन्न अक्षमताओं को सुधार किया जाना चाहिए।

भारत में धारणीय विकास की रणनीतियाँ

धारणीय विकास रणनीति के मुख्य बिन्दु निम्न प्रकार हैं

  1. अपनी विद्युत आवश्यकताओं के लिए ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधनों का अधिकाधिक उपयोग | करना। थर्मल पावर संयन्त्र और जलविद्युत परियोजनाएँ पर्यावरण को हानि पहँचाते हैं जबकि ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधनों का पर्यावरण पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।
  2. ग्रामीण क्षेत्रों में तरल पेट्रोलियम गैस (LPG) के प्रयोग को प्रोत्साहन देना। इसके अतिरिक्त गोबर गैस संयन्त्रको प्रोत्साहन दिया जाए।
  3. शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में उच्च दाब प्राकृतिक गैस (CNG) को बढ़ावा देना। इससे वायु प्रदूषण कम होगा।
  4. पवनचक्की से ऊर्जा प्राप्त करना। इसमें लागत कम आती है।
  5. सूर्य किरणों से सौर-ऊर्जा प्राप्त करना। यह ऊर्जा का अक्षय स्रोत है।
  6. पहाड़ी क्षेत्रों में झरनों की सहायता से लघु जलीय प्लाण्ट स्थापित करना।
  7. विभिन्न आर्थिक क्रियाओं में पारम्परिक ज्ञान का प्रयोग करना।
  8. जैविक कम्पोस्ट खाद के प्रयोग को प्रोत्साहन देना।
  9. बेहतर कीट नियन्त्रक तरीकों को अपनाना। कीट नियन्त्रण में सहायक विभिन्न कीटों व पक्षियों को संरक्षण देना।

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UP Board Solutions for Class 12 English Poetry Short Poems Chapter 4 An Elegy Written in a Country Churchyard

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject English Poetry short Poems
Chapter Chapter 4
Chapter Name An Elegy Written in a Country Churchyard
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 English Poetry Short Poems Chapter 4 An Elegy Written in a Country Churchyard

About the Poet : Thomas Gray was born in London in 1716. He was educated at Eton and Cambridge. He worked as a professor of History at Cambridge. He was one of the most learned men of his time. He remained bachelor and died in 1771.

About the Poem : This poem is an extract of the poem Elegy Written in a Country Churchyard. It is not a personal elegy. It was completed in about eight years. In this poem the poet laments over the lot of simple, ignorant people who are buried in their graves. Nothing can awake them from their eternal sleep. The poet concludes that nothing in life is everlasting. All lead to the one and only one end.

Central Idea                                                                                                                                    [2010, 15, 18]
In this poem the poet Thomas Gray pays his tributes to the simple, ignorant and unknown people who are lying buried in their graves. He advises the people not to be proud of their noble birth, wealth, power and beauty. They all die one day. The end of our life’s journey is death which is certain to all.

(इस कविता में कवि थॉमस ग्रे साधारण, अनपढ़ और उन अज्ञात व्यक्तियों को श्रद्धांजलि देता है जो अपनी कब्रों में दफना दिए गए हैं। वह लोगों को शिक्षा देता है कि वे महान् वंश में जन्म लेने पर यां अपने धन, शक्ति तथा सुन्दरता पर अभिमान न करें। ये सभी वस्तुएँ एक दिन समाप्त हो जाती हैं। हमारी जीवन-यात्रा का अन्त मृत्यु है जो सभी को निश्चित रूप से आती है।)

EXPLANATIONS (With Meanings & Hindi Translation)
(1)
The curfew tolls the knell of the parting day,
The lowing herd wind slowly o’er the lea,
The Ploughman homeward plods his weary way,.
And leaves the world to darkness and to me. [2017]

[Word-meanings : curfew = शाम की घण्टी evening bell; tolls = धीरे-धीरे कुछ समय तक घण्टा बजाना rings slowly till sometimes; knell = अन्तिम संस्कार के समय बजने वाली घण्टी की आवाज sound of bell; parting day= दिन का अन्त end of the day; lowing herd = रम्भाते हुए पशुओं का झुण्ड, ground of cattle with sound; lea = चारागाह का रास्ता track of grassland; ploughman = किसान farmer; plods = धीरे-धीरे चलता है walks slowly; weary = थका हुआ tired, homeward = घर की ओर towards home.]

(लगातार रुक-रुक कर बजने वाली शाम की घण्टी की आवाज दिन की समाप्ति की सूचक है। चरागाह के रास्ते पर पशु रम्भाते हुए धीरे-धीरे लौट रहे हैं। दिनभर के परिश्रम से थका हुआ किसान भी अपने घर की ओर लौट रहा है। कवि सोचता है कि अब पूरे संसार में अँधेरा हो जाएगा और मैं भी इस अँधेरे में अकेला रह जाऊँगा।)

Reference : This stanza has been taken from An Elegy Written in a Country Churchyard composed by Thomas Gray.

[ N.B. : The above reference will be used for all the explanations of this poem. ]

Context : The poet is sitting in a country churchyard. There are men lying buried in their small graves all around the churchyard. The day is going to be ended. The poet is reminded that nothing in life is everlasting. Death comes to all.

Explanation : In this stanza the poet says that the evening bells are ringing and telling the people that the day is to be over and soon there will be darkness everywhere. The wind is blowing very slowly. The cattle are returning home and they are very eager to see their young ones. The farmer is tired of his whole day labour and he is also returning home slowly. So all these things indicate that the day is going to be over and there will be darkness everywhere. The poet will be left alone.

(इस पद्यांश में कवि कहता है कि शाम के समय घण्टियाँ बज रही हैं और लोगों को बता रही हैं कि दिन का अन्त होने वाला है और शीघ्र ही सभी स्थानों पर अँधेरा हो जाएगा। हवा बहुत धीमे-धीमे चल रही है। पशु अपने घर वापस लौट रहे हैं और वे अपने बच्चों को देखने के लिए बहुत उत्सुक हैं। किसान पूरे दिन की मेहनत से थक गया है और वह भी धीरे-धीरे लौट रहा है। इसलिए यह सभी बातें बताती हैं कि दिन समाप्त हो रहा है और सभी स्थानों पर अँधेरा हो जाएगा। कवि अकेला रह जाएगा।)

(2)
Beneath those rugged elms, that yew-tree’s shade
Where heaves the turf in many a mouldering heap,
Each in his narrow cell for ever laid,
The rude forefathers of the hamlet sleep. [2011]

[Word-meanings : beneath = नीचे under; rugged = भद्दे rough; elm = एक प्रकार का जंगली पेड़ a kind of forest tree; yew = एक प्रकार का सदाबहार पेड़, an evergreen tree; heaves = उठता है raises; tuf = सूखी घास dry grass; mouldering = टूटते हुए, ढहते हुए breaking up into dust; heap = ढेर a large number; cell = छोटी कब्र small grave; laid = दफनाए गए buried; rude = असभ्य uncivilized; forefathers = पूर्वज ancestors; hamlet =
छोटा गाँव small village.]

(इस पद्यांश में कवि बताता है कि इस छोटे गाँव के निर्धन असभ्य गाँव वालों के पूर्वज अपनी-अपनी छोटी साधारण कब्रों में सदा के लिए लेटे हुए हैं अर्थात् दफना दिये गये हैं। उनकी कब्रे या तो Elm नामक पेड़ों के नीचे हैं या Yew नामक पेड़ों की छाया में हैं। ये कब्रे सूखी घास के मैदानों में बनी हैं और उनके ऊपर मिट्टी के ढेर हैं जिनकी मिट्टी ढह-ढहकर नीचे गिर रही है।)

Context : The poet is sitting in a country churchyard in the evening. It will soon become dark and the poet will be left alone there. The poet is reminded that nothing in life is everlasting and death comes to all.

Explanation : In this stanza the poet thinks about the small graves and the dead bodies buried there. He says that some graves are under the elm trees and some are in the shade of yew trees. There is dry grass everywhere in the grave yard. The graves are like the heaps of earth and they are very narrow. Poor and uncivilized common people of the village are lying buried in these graves and they will never wake up.

(इस पद्यांश में कवि छोटी कब्रों तथा उनमें दफनाए हुए मृतकों के विषय में सोचता है। वह कहता है कि कुछ कब्रे Elm नामक वृक्षों के नीचे हैं और कुछ yew नामक वृक्षों की छाया में। कब्रिस्तान में प्रत्येक स्थान पर खुश्क घास है। कब्रे मिट्टी के ढेर के समान हैं और वे बहुत तंग हैं। गाँव के गरीब और असभ्य साधारण व्यक्ति इन कब्रों में दफना दिए गए हैं और वे कभी नहीं जायेंगे।)

(3)
‘The breezy call of incense-breathing morn,
The swallow twittering from the straw-built shed,
The cock’s shrill clarion, or the echoing horn,
No more shall rouse them from their lowly bed. [2018]

[Word-meanings : incense-breathing morn = प्रातःकाल की सुगन्धित वायु fragrant morning air; breezy = सुखद pleasant; call = पुकार; swallow = अबाबील नामक पक्षी a kind of bird; twittering= चहचहाना chirping; shed = घोंसला nest; straw bult = घास-फूस के बने हुए; shrill = तीखी sharp; clarion = जगाने के लिए तेज ऊँची आवाज अर्थात् मुर्गे की बाँग crowing of the cock; echoing = गुंजन करता हुआ, resounding; born = बिगुल the horm sounded by the hunters; lowly bed = कब्र grave.]

(इस पद्यांश में कवि कहता है कि प्रात:काल की सुगन्धित वायु सभी को आकर्षित करती है। घास-फूस से बने घोंसलों में अबाबील नामक पक्षी चहचहाते हैं। मुर्गा सोए हुए लोगों को जगाने के लिए जोर-जोर से बाँग देता है। शिकारियों के द्वारा बजाये गये बिगुल की ध्वनि दूर तक गूंजती है। इन सभी बातों से सोए हुए व्यक्ति जाग जाते हैं, किन्तु कब्रों में सोए हुए व्यक्तियों को कोई भी आवाज नहीं जगा पाएगी।)

Context : The poor villagers are sleeping in their graves. Their graves are not in good condition. There is dry grass everywhere in the graveyard.

Explanation : The poet says that the morning is pleasant with a fragrant smell and the light breeze is calling everybody to get up from sleep. The small winds, swallows, are excited at the pleasant morning and are twittering in their straw-built nests. The cocks are making loud, stimulating and clear calls. The reflecting sound made by some at horns distance is excited too. But all these things are unable to rouse the poor dead villagers from their sleep who lay buried in their graves.

(कवि कहता है कि प्रात:काल का समय सुगन्धित गन्ध से भरा हुआ है और हल्की मन्द पवन प्रत्येक व्यक्ति को नींद से उठ जाने के लिए पुकार रही है। छोटे-छोटे पक्षी तथा अबाबील सुखद प्रात:काल से बहुत प्रफुल्लित हैं और अपने घास-फूस से बने घौंसलों में चहचही रहे हैं। मुर्गे भी जोर-जोर स्पष्ट उत्तेजक बाँग दे रहे हैं। थोड़ी दूर से बिगुल के बजने की आवाज भी उत्प्रेरक है। किन्तु ये सभी बातें उन बेचारे मृत गाँव वालों को उठाने में असमर्थ हैं जो अपनी कब्रों में दफन हुए पड़े हैं।)

(4)
Let not ambition mock their useful toil,
Their homely joys, and destiny obscure;
Nor grandeur hear with a disdainful smile
The short and simple annals of the poor. [2012, 13, 17, 18]

[Word-meanings : ambition = महत्त्वाकांक्षा strong desire; mock = मजाक उड़ाना to make fun of, laugh at; toil = कठिन परिश्रम difficult work; homely = साधारण simple; destiny = भाग्य fate; obscure = अस्पष्ट dim; grandeur = महान् व्यक्ति grand and mighty men; disdainful = घृणाजनक ढंग से full of hatred; annals = जीवन का लेखा records of life.]

(इस पद्यांश में कवि धनी एवं महत्त्वाकांक्षी व्यक्तियों से कहता है कि वे गरीब आदमियों के कार्यों को या उनके जीवन को तुच्छ भावना या मखौल की दृष्टि से न देखें। उनके जीवन की खुशियाँ बहुत साधारण थीं। भाग्य से वे अपरिचित थे और भाग्य ने उनका साथ भी नहीं दिया। धनी एवं महान् व्यक्तियों को इन गरीब लोगों के संक्षिप्त एवं साधारण जीवन को तिरस्कार की दृष्टि से देखकर उसका मखौल नहीं उड़ाना चाहिए।)

Context : The poet is sitting in a country churchyard. There are men lying buried in their small graves. Nobody and no sound can wake them up. They will never come back to life because they have died. They were very simple, uneducated and poor people.

Explanation : In this stanza the poet says that the people who are buried here were very simple and useful. They worked hard for the nation. Fate never favoured them yet they were always contented. The history of their life is very short and simple. So the rich and great people should not laugh at them. They should not see them with hatred.

(इस पद्यांश में कवि कहता है कि वे लोग जो यहाँ दफना दिए गए हैं बहुत ही साधारण और लाभदायक थे। उन्होंने राष्ट्र के लिए परिश्रम किया। भाग्य ने कभी साथ नहीं दिया फ़िर भी वे सदा सन्तुष्ट रहते थे। उनके जीवन का इतिहास बहुत छोटा और साधारण है। इसलिए धनी और महान् लोगों को उन पर हँसना नहीं चाहिए। उन्हें उनको घृणा से भी नहीं देखना चाहिए।)

Comments : In this stanza ‘Ambition’ has been personified. Moreover we note the poet’s sympathy for the poor.

(5)
The boast of heraldry, the pomp of power,
And all that beauty, all that wealthe’er gave
Awaits alike th’ inevitable hour :
The paths of glory lead but to the grave. [2009, 11, 13, 16, 17, 18]

[Word-meanings : boast of heraldry = ऊँचे वंश में पैदा होने का अभिमान pride on one’s noble birth; pomp of power = बाहरी आडम्बर show of wealth; inevitable = निश्चित that cannot be avoided; inevitable hour = मृत्यु death.]

(इस पद्यांश में कवि कहता है कि हमें महान् वंश में उत्पन्न होने का या धन का अभिमान नहीं करना चाहिए। सभी सुन्दर वस्तुएँ तथा सभी प्रकार की धन-दौलत एक दिन नष्ट हो जाएँगे, मृत्यु सभी को आएगी। जिन व्यक्तियों को अपने जीवन में अधिक सम्मान भी मिल गया है उनका भी अन्त मृत्यु ही है।)

Context : The poet is sitting in a country churchyard. He is remembering the men lying buried in their small graves. No man and no sound can wake them up. They will never come back to life because they have been buried forever. They were very simple, uneducated and poor people.

Explanation : In this concluding stanza the poet says that we should not be proud of our birth in a high family or of our wealth. Powerful, beautiful or wealthy persons may get honour and fame in this world. But their end is also like the poor, weak and ugly people. So they should not be proud of their material p sessions. They should remember that the end of all is the same, i.e. death.

(इस अन्तिम पद्यांश में कवि कहता है कि हमें अपने उच्च कुल में जन्म लेने पर या अपनी सम्पत्ति पर गर्व नहीं करना चाहिए। शक्तिशाली, सुन्दर या धनवान व्यक्ति इस संसार में सम्मान तथा प्रसिद्धि प्राप्त कर सकते हैं। किन्तु उनका अन्त भी गरीब, कमजोर तथा भद्दे लोगों के समान होता है। इसलिए उन्हें अपनी भौतिक वस्तुओं पर गर्व नहीं करना चाहिए। उन्हें याद रखना चाहिए कि सभी का अन्त समान है अर्थात् मृत्यु।)

Comments : This stanza teaches us that it is useless to run after name, fame, pomp, money and power because the end of our journey of life is only death.

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UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 7 Major Tribes of India

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Geography
Chapter Chapter 7
Chapter Name Major Tribes of India (भारत की प्रमुख जनजातियाँ)
Number of Questions Solved 41
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 7 Major Tribes of India (भारत की प्रमुख जनजातियाँ)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
नागा जनजाति के निवास-क्षेत्र एवं अर्थव्यवस्था का वर्णन कीजिए। [2008]
या
नागा जनजाति के निवास-क्षेत्र और आर्थिक क्रियाकलाप का वर्णन कीजिए।
या
टिप्पणी लिखिए-नागा जनजाति।
उत्तर

नागा Nagas

यह जनजाति मुख्यत: भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित नागालैण्ड राज्य में निवास करती है। नागा राष्ट्र की उत्पत्ति कुछ विद्वानों के अनुसार संस्कृत में प्रचलित ‘नग’ (पर्वत) शब्द से हुई। डॉ० एल्विन के मतानुसार, नागा की उत्पत्ति नाक अथवा लोंग से हुई। ये इण्डो-मंगोलॉयड प्रजाति से सम्बन्ध रखते हैं।

निवास-क्षेत्र – नागा जाति का मुख्य निवास-क्षेत्र नागालैण्ड है। पटकोई पहाड़ियों, मणिपुर के पठारी भाग, असम व अरुणाचल प्रदेश में भी कुछ नागा वर्ग निवास करते हैं।
प्राकृतिक वातावरण – नागालैण्ड के पूर्व में पटकोई तथा दक्षिण में मणिपुर व अराकान पर्वतश्रेणियाँ स्थित हैं। यहाँ उच्च एवं विषम धरातल, उष्णार्द्र जलवायु तथा अधिक वर्षा (200 से 250 सेमी) पायी जाती है। यहाँ सघन वनों में साल, टीक, बाँस, ओक, पाइन तथा आम, जैकफूट (कटहल), केले, अंजीर एवं जंगली फल भी प्रचुरता से पाये जाते हैं। इन वनों में हाथी, भैंसे, हिरण, सूअर, रीछ, तेंदुए, चीते, बैल (बिसन), साँभर, भेड़िये, लकड़बग्घे आदि तथा वन्य जन्तु चूहे, साँप, गिलहरियाँ, गिद्ध आदि पाये जाते हैं।

शारीरिक लक्षण – नागाओं के शारीरिक लक्षणों में मंगोलॉयड तत्त्व की अधिकता है, किन्तु डॉ० हट्टन इन्हें ऑस्ट्रेलॉयड मानते हैं। इनकी त्वचा का वर्ण हल्के पीले से गहरा भूरा, बाल काले व सुंघराले तथा लहरदार, आँखें गहरी भूरी, गालों की हड्डियाँ उभरी हुईं, सिर मध्यम चौड़ा, नाक मध्यम चौड़ी, कद मध्यम व छोटा होता है। नागाओं के अनेक उपवर्ग पाये जाते हैं। नागाओं के पाँच बड़े उपवर्ग निम्नवत् हैं –

  1. उत्तरी क्षेत्र में रंगपण व कोन्याक नागा;
  2. पश्चिम में अंगामी, रेंगमा व सेमा;
  3. मध्य में आओ, ल्होटा, फीम, चेंग, सन्थम;
  4. दक्षिण में कचा व काबुई तथा
  5. पूर्वी क्षेत्र में टेंगरखुल व काल्पो-केंगु नागा।

निवास – अधिकांश नागा पाँच-सात झोंपड़े बनाकर ग्रामों में रहते हैं। एक ग्राम में एक कुटुम्ब ही निवास करता है। झोंपड़ियों का निर्माण करने के लिए यहाँ के वनों में उगने वाले बाँस एवं लकड़ी का प्रयोग अधिक किया जाता है। नागा लोग अपने गृहों का निर्माण ऊँचे भागों में करते हैं, जहाँ वर्षा के जल से रक्षा हो सके। ये लोग अपने घरों को हथियारों एवं नरमुण्डों से सजाते हैं। सामान्यतः एक गाँव में 200 से 250 मकान तक होते हैं। एक मकान में बहुधा दो छप्पर होते हैं।

जिस स्थान पर नागा लोग नृत्य करते हैं, वहाँ वृत्ताकार ईंटों का घेरा बना होता है। मारम नागा अपने मकानों के दरवाजे पश्चिम दिशा की ओर नहीं बनाते, क्योंकि पश्चिम दिशा से शीतल वायु प्रवाहित होती है। अंगामी नागाओं में प्रत्येक गाँव कई भागों में बँटा होता है। इनके आपसी झगड़ों को निपटाने वाले मुखिया को टेबो कहते हैं।

वेशभूषा – सामान्यत: नागा बहुत कम वस्त्र पहनते हैं। आओ नागा एक फीट चौड़ा कपड़ा कमर पर लपेटते हैं तथा स्त्रियाँ ऊँचे लहँगे पहनती हैं। पुरुष सिर पर रीछ या बकरी की खाल की टोपी, हार्नबिल के पंख व सींग तथा हाथी-दाँत व पीतल के भुजबन्ध पहनते हैं। स्त्रियाँ उत्सवों तथा पर्यों पर पीतल के गहने, कौड़ियों, मँगे व मोती की मालाएँ तथा आकर्षक रंग-बिरंगे वस्त्र पहनती हैं। नागाओं में शरीर गुदवाने (Tattooing) का अधिक प्रचलन है।

भोजन – चावले नागाओं का प्रिय भोजन है, परन्तु यह कम मात्रा में प्राप्त होता है। इसी कारण ये लोग शिकार एवं जंगलों से प्राप्त होने वाले कन्दमूल-फल आदि पर निर्भर करते हैं। नागा लोग बकरी, गाय, बैल, साँप, मेंढक आदि का मांस खाते हैं। चावल से निकाली गयी शराब का उपयोग विशेष उत्सवों पर करते हैं। भोजन के सम्बन्ध में इनके यहाँ कुछ निषेध भी हैं; जैसे–मारम नागाओं में सूअर का मांस खाना वर्जित है, जबकि तेंडुल नागा बकरी के मांस का सेवन नहीं करते। बिल्ली का मांस सभी के लिए वर्जित है। कपड़ा-बुनकर नागाओं में नर-पशु का मांस कुंआरी लड़कियों को नहीं परोसा जाता। नागा लोग बिना दूध की चाय का सेवन करते हैं।

आर्थिक विकास एवं अर्थव्यवस्था – भारत की सभी जनजातियों में नागाओं ने पर्याप्त आर्थिक विकास किया है। इनके मुख्य व्यवसाय आखेट तथा झूमिंग कृषि करना है। इनके आर्थिक व्यवसाय निम्नलिखित हैं –
1. आखेट – पहाड़ी एवं मैदानी नागाओं की शिकार करने की विधियाँ भिन्न-भिन्न हैं। जंगली पशुओं को खदेड़कर नदी-घाटियों में लाकर भालों से उन्हें मारना सभी नागाओं में प्रचलित है। शिकार करने के लिए ये तीरकमान, भालों, दाव आदि का प्रयोग करते हैं। विष लगे तीरों का प्रयोग करना मणिपुर के मारम नागाओं में प्रचलित है। आखेट के नियमों का पालन सभी नागा कठोरता से करते हैं।

2. मछली पकड़ना – मछली पकड़ने का कार्य पर्वतों के निचले भागों, नदियों एवं तालाबों के किनारे जालों, टोकरों एवं भालों की सहायता से किया जाता है।

3. कृषि-कार्य – मणिपुर एवं नागा पहाड़ियों में निवास करने वाली आदिम नागी जाति ने। पर्वतीय क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि-कार्य में काफी प्रगति कर ली है, परन्तु उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्रों में झूमिंग पद्धति से कृषि की जाती है, अर्थात् वनों को आग लगाकर साफ करे प्राप्त की गयी भूमि पर, दो या तीन वर्षों तक खेती की जाती है, फिर इसे परती छोड़ दिया जाता है। ये लोग बाग भी लगाते हैं। यहाँ पर प्रमुख फसलें धान, मॅडवा, कोट तथा मोटे अनाज हैं। चाय की झाड़ियाँ प्राकृतिक रूप से उगती हैं। कुछ भागों में कपास भी उगायी जाती है।

4. कुटीर उद्योग-धन्धे – उत्तरी-पूर्वी भारत की अधिकांश आदिम जातियों में छोटे करघों पर बुनाई की कला उन्नत अवस्था में है। यहाँ मुख्य रूप से मोटा कपड़ा बुना जाता है। नागाओं द्वारा मिट्टी के बर्तन भी तैयार किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त सभी नागा टोकरियाँ एवं चटाई बनाने का व्यवसाय करते हैं। लोहार द्वारा गाँव में ही शिकार के लिए औजार तथा कृषि के उपकरण बनाये जाते हैं। नागा लोग टोकरियाँ, चटाइयाँ, मछली, पशु, लकड़ी का कोयला आदि वस्तुओं का व्यापार करते हैं।

सामाजिक व्यवस्था – अधिकांश नागाओं में संयुक्त परिवार-प्रथा तथा प्रजातन्त्रात्मक व्यवस्था लागू है। इनके गाँव में एक मुखिया या पुरोहित होता है, जो धार्मिक संस्थाओं का संचालन करता है। कोन्यक नागाओं में सामन्तवादी व्यवस्था प्रचलित है, वहाँ मुखिया शासक के रूप में होता है जो वंशानुगत होता है। नागाओं में किसी व्यक्ति का विवाह अपने गोत्र में नहीं हो सकता।
नागा युवकों के सोने के लिए ‘मोरूग’ (कुमार गृह) बने होते हैं, जहाँ सभी कुंआरे युवक तथा युवतियाँ होते हैं। इनमें समगोत्री विवाह वर्जित है; अत: एक मोरूग में निवास करने वाला लड़का, दूसरे मोरूग में प्रवासित लड़कियों से शादी कर सकता है। मोरूंग में नाच-गाने एवं मनोरंजन की सभी सुविधाएँ होती हैं।

धार्मिक विश्वास – नागाओं का विश्वास है कि खेतों, पेड़ों, नदियों, पहाड़ियों, भूत-प्रेतों आदि विभिन्न रूपों में आत्माएँ पायी जाती हैं। आत्मा की शक्ति क्षीण होने पर बाढ़, दुर्भिक्ष, तूफान, बीमारियों आदि के प्राकृतिक प्रकोप होते हैं। फसलें नष्ट हो जाती हैं, स्त्रियों में बाँझपन होता है, पशु नष्ट हो जाते हैं, शिकार उपलब्ध नहीं होता। अतएव आत्मा की तुष्टि के लिए पशु बलि, मदिरा, मछली आदि की भेंट चढ़ाई जाती है। जादू-टोने में इनका बहुत विश्वास है। ईसाई मिशनरियों के सम्पर्क में आने से अधिकांश नागाओं ने ईसाई धर्म अपना लिया।

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प्रश्न 2
भोटिया जनजाति के निवास-क्षेत्र, आर्थिक व्यवसाय एवं सामाजिक रीति-रिवाजों का वर्णन कीजिए।
उत्तर

भोटिया Bhotia

क्रुक के अनुसार, ‘भोटिया’ शब्द की उत्पत्ति ‘भोट’ अथवा ‘भूट’ से हुई है। उत्तराखण्ड राज्य में तिब्बत व नेपाल की सीमा से संलग्न त्रिभुजाकार पर्वतीय क्षेत्र ‘भूट’ या ‘भोट’ नाम से विख्यात है। इसके अन्तर्गत अल्मोड़ा जिले में उत्तर-पूर्व में स्थित आसकोट व दरमा तहसीलें, पिथौरागढ़ तथा चमोली जिले सम्मिलित हैं।

शारीरिक रचना – शारीरिक रचना की दृष्टि से भोटिया मंगोलॉयड प्रजाति से सम्बन्धित हैं। यह मध्यम व छोटे कद, सामान्य चपटी वे चौड़ी नाक, चौड़ा चेहरा, उभरी हुई गाल की हड्डियों, बादामी आकारयुक्त आँखें, शरीर पर कम बाल, त्वचा का प्रायः गोरा वर्ण आदि शारीरिक लक्षणों वाली जनजाति है।

प्राकृतिक वातावरण – भोट क्षेत्र समुद्रतल से 3,000 से 4,000 मीटर ऊँचा है। इस क्षेत्र में गंगा व शारदा की सहायक नदियाँ-कृष्णा, गंगा, धौली, गौरी, दरमा व काली प्रवाहित होती हैं। समतल भूमि केवल सँकरी घाटियों में उपलब्ध होती है। निचली घाटियों में उष्णार्द्र जलवायु पायी जाती है, किन्तु पर्वतीय ढालों पर ठण्डी जलवायु मिलती है।

अर्थव्यवस्था – प्राकृतिक साधनों के अभाव में भोटिया लोगों ने पशुचारण को आजीविका का मुख्य साधन बनाया है। सँकरी घाटियों के समतल भागों में बिखरे क्षेत्रों में तथा पर्वतीय ढालों पर सँकरी सोपानी पट्टियों में मोटे खाद्यान्नों व आलू की खेती होती है।

कृषि – पर्वतीय ढालों पर शीतकाल में हिमपात होने के कारण केवल ग्रीष्मकाल में 4 माह की अवधि में कृषि की जाती है। यहाँ गेहूँ, जौ, मोटे अनाज व आलू मुख्यत: उगाये जाते हैं। पहाड़ी ढालों पर सीढ़ीनुमा खेत बनाये जाते हैं। यहाँ पर झूम प्रणाली की तरह ‘काटिल’ विधि से वनों को आग लगाकर भूमि को साफ करके बिना सिंचाई खेती कर ली जाती है। नदियों के किनारे सिंचाई द्वारा खेती की जाती है।

पशुचारण : मौसमी प्रवास – भोटिया लोगों की अर्थव्यवस्था पशुचारण पर आधारित है। इस क्षेत्र में 3,000 से 4,000 मीटर की ऊँचाई तक मुलायम घास आती है। यहाँ भोटिया लोग भेड़, बकरियाँ व ‘जीबू’ (गाय की भाँति पशु) चराते हैं। भेड़-बकरियों से मांस, दूध व ऊन की प्राप्ति होती है तथा जीबू बोझा ढोने के काम आता है। पशुचारण मौसमी-प्रवास पर आधारित है। ग्रीष्मकाल में निचली घाटियों में तापमान काफी ऊँचे हो जाते हैं तब उच्च ढालों पर पशुचारण किया जाता है। अक्टूबर (शीत ऋतु के आरम्भ) में पुन: ये निचले ढालों व घाटियों में उतर आते हैं।

कुटीर-शिल्प – पशुचारण से ऊन, खाल आदि पशु पदार्थ बड़ी मात्रा में प्राप्त होते हैं। भोटिया स्त्रियाँ सुन्दर डिजाइनदार कालीन, दुशाले, दरियाँ, कम्बल आदि बनाती हैं। इसके अतिरिक्त वे ऊनी मोजे, बनियान, दस्ताने, मफलर, टोपे, थैले आदि भी बुनती हैं। भोटिया स्त्रियाँ अत्यन्त मेहनती व कुशल कारीगर होती हैं। वे गेहूँ, जौ, मंडुए के भूसे से चटाइयाँ व टोकरे भी बनाती हैं।

व्यापार – भोटिया अपने तिब्बती पड़ोसियों से शताब्दियों से परस्पर लेन-देन का व्यापार करते रहे हैं। ये तिब्बत से ऊन लेकर उन्हें बदले में वस्त्र, नमक खाद्यान्न आदि देते हैं। किन्तु राजनीतिक कारणों से भारत व तिब्बत के मध्य सम्पर्क प्रायः ठप्प हो जाने के कारण अब भोटिया लोग ऊनी वस्त्र, सस्ते सौन्दर्य आभूषण, जड़ी-बूटियों का व्यापार मैदानी भागों में करते हैं तथा अपनी आवश्यकता की सामग्री नमक, शक्कर, तम्बाकू, ऐलुमिनियम के बर्तन आदि खरीदते हैं।

भोजन – भोटिया लोगों का मुख्य भोजन भुने हुए गेहूं का आटा (‘सत्तू’) है। मंडुआ व जौ भी इनका प्रिय खाद्यान्न है। भेड़-बकरी का मांस व दूध एवं विशेष अवसरों पर मदिरा का प्रयोग व्यापक रूप से होता है।

वेशभूषा – ठण्डी जलवायु के कारण पशुओं की खाल व ऊन से निर्मित वस्त्र अधिक प्रचलित हैं। पुरुष ऊनी पाजामा, कमीज व टोपी पहनते हैं। स्त्रियाँ पेटीकोट की तरह का ऊनी घाघरा तथा कन्धों से कमर तक लटकता हुआ ‘लवा’ नामक विशिष्ट वस्त्र पहनती हैं। शिक्षित वर्गों में बाह्य सम्पर्को व आर्थिक समृद्धि के कारण आधुनिक फैशन के वस्त्रों का प्रचलन बढ़ गया है। भोटिया स्त्रियाँ आभूषणप्रिय होती हैं। ये ताबीज, हँसुली, मँगे, पुरानी चौवन्नियों की माला, बेसर, नाथ, अँगूठियाँ आदि पहनती हैं। कलाई व ठोड़ी पर गुदना भी कराती हैं।

बस्तियाँ व मकान – मौसमी प्रवास पर आधारित पशुचारण अपनाने के कारण भोटिया लोगों के आवास अर्द्ध-स्थायी होते हैं। प्रायः प्रत्येक परिवार के दो घर होते हैं। ग्रीष्मकाल में ये उच्च ढालों पर एवं शीतकाल में घाटियों में निर्मित घरों में रहते हैं। मकान में दो या तीन कमरे होते हैं। ये पत्थर, मिट्टी, घास-फूस, स्लेट आदि से निर्मित होते हैं। इनकी छतें ढालू होती हैं। ये मकान प्रायः जल के निकट बनाये जाते हैं। मकानों में प्रायः खिड़की, दरवाजे नहीं होते।

समाज – भोटिया लोग हिन्दू रीति-रिवाजों को अपनाते हैं। इनमें एकपत्नी प्रथा (Monogamy) प्रचलित है। विवाह सम्बन्ध माता-पिता द्वारा तय किये जाते हैं। विवाह के अवसर पर नृत्य, मनोरंजन, आमोद-प्रमोद, मदिरा आदि का आयोजन होता है। भोटिया लोग अन्धविश्वासी भूत-प्रेत के पूजक होते। हैं। घुमक्कड़ कठोर जीवन के बावजूद ये हँसमुख, साहसी, परिश्रमी, निष्कपट, सहनशील एवं धार्मिक प्रकृति के होते हैं, किन्तु शारीरिक स्वच्छता के प्रति लापरवाह होते हैं।

प्रश्न 3
“संथाल जनजाति के पर्यावरण, व्यवसाय तथा संस्कृति की भिन्नता उनके निवास-गृहों और रीति-रिवाजों से स्पष्ट हो जाती है।” इस कथन की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
या
भारत में संथाल जनजाति के निवास-क्षेत्र (वितरण), अर्थव्यवस्था और सामाजिक जीवन को वर्णन कीजिए। [2010, 15]
उत्तर

संथाल अथवा गोंड
Santhal or Gond

संथाल भारत की सबसे बड़ी जनजाति है। इनका प्रमुख क्षेत्र बिहार के छोटा नागपुर के पठार का पूर्वी भाग (संथाल परगना) है। यह पश्चिमी बंगाल के वीरभूमि, बांकुड़ा, माल्दा, मिदनापुर व चौबीस परगना, ओडिशा के मयूरभंज जिले तथा असम में भी पाये जाते हैं। ये लोग ऑस्ट्रिक वर्ग की मुण्डा भाषा बोलते हैं। बंगाल, असम व अन्य क्षेत्रों में सम्पर्को के कारण बिहारी, बंगाली व असमी भी बोलते हैं; अतः ये बहुभाषी हो गये हैं। गुहा के अनुसार, इनमें प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉयड प्रजाति तत्त्व की प्रधानता है। मध्यम कद, गहरा भूरा वर्ण, काली आँखें, काले सीधे घंघराले बाल, लम्बा सिर, मध्यम, चौड़ी व चपटी नाक, मोटे होंठ, शरीर पर कम बाल इनके प्रमुख शारीरिक लक्षण हैं।

प्राकृतिक वातावरण – संथाल परगना विषम तथा निम्न पठारी क्षेत्र है जिसे मौसमी नदी-नालों ने बहुत काट-छाँट दिया है। यहाँ शीतकाल में 30°C व ग्रीष्मकाल में 45°C तापमान पाये जाते हैं। वार्षिक वर्षा का औसत 150 सेमी रहता है। साल, महुआ, कदम, पीपल, कुसुम, पलास आदि के सघन वन पाये जाते हैं। इनमें सूअर, गीदड़, तेंदुए, हिरण, चीता आदि वन्य जन्तु पाये जाते हैं।
अर्थव्यवस्था– संथाल मूलतः कृषक हैं। ये वनों से आखेट एवं वस्तु-संग्रह, नदियों, पोखरों आदि से मछली पकड़ने का कार्य व मजदूरी भी करते हैं।

कृषि – कृषि इनका प्रमुख व्यवसाय है। ये वनों को साफ करके एक ही खेत को लगातार बोते हैं। धान, मोटे अनाज, दालें व कपास उगाते हैं। सिंचाई, उर्वरक, फसलों के हेर-फेर पर ध्यान न देने के कारण भूमि की उर्वरता नष्ट हो जाती है। मकान के पिछवाड़े खुली जगह में ये शाक-सब्जियाँ, फली, चारा आदि उगाते हैं।
वस्तु-संग्रह – वनों से महुआ फल, छालें, जड़, गाँठे, फल-फूल, कोंपले आदि एकत्रित करके संथाले लोग भोजन की पूर्ति करते हैं। मकान बनाने के लिए सामग्री भी एकत्रित करते हैं।

आखेट – जंगली सूअर का शिकार संथाल लोगों का प्रिय मनोरंजन तथा भोजन का अतिरिक्त साधन है। ये लोग जाल, फन्दे, तीर आदि के द्वारा तालाब, नदी व पोखर से मछली भी पकड़ते हैं।
पशुपालन – भोजन पूर्ति के लिए संथाल लोग गाय, बैल, सूअर, बकरी, मुर्गी व कबूतर पालते हैं।
मजदूरी – प्राकृतिक साधनों से पर्याप्त आजीविका प्राप्त न होने के कारण ये लोग असम के चाय के बागानों, बंगाल की जूट व कपड़ा-मिलों, बिहार व ओडिशा की खानों में श्रमिकों का भी कार्य करते हैं।

भोजन – उबला हुआ चावल व उसकी शराब, महुए का आटा व पशु का मांस संथाल लोगों का प्रिय भोजन है। मछली, वनों से एकत्रित फल, जड़े, गाँठे, फूल, कोंपल आदि तथा पक्षियों का मांस भी उनके भोजन में सम्मिलित है। ये तम्बाकू के बहुत शौकीन होते हैं।
वेशभूषा – संथाल पुरुष कमर से ऊपर प्रायः नग्न रहते हैं। कमरे के नीचे लँगोटीमात्र पहनते हैं। स्त्रियाँ धोती-ब्लाउज पहनती हैं। बालों के जूड़े में फूल व पक्षियों के पंख आदि लगाती हैं। पुरुष भी बालों में पक्षियों के पंख, फूल-पत्तियाँ, गाय की पूँछ के बाल आदि लगाते हैं। स्त्रियाँ चाँदी व पीतल के आभूषण, हँसली, कर्धनी, कड़े, झुमके, अँगूठी आदि पहनती हैं। स्त्रियाँ शरीर पर गुदना कराती हैं।

बस्तियाँ व मकान – प्राय: 20 या 25 परिवारों का एक गाँव होता है। किसी सड़क मार्ग के सहारे रेखीय प्रतिरूप में गाँव बसते हैं। झोंपड़ी बनाने में साल के शहतीर, बाँस, पत्तियों, मिट्टी व गोबर का प्रयोग होता है। इनमें खिड़कियाँ नहीं होतीं, केवल एक प्रवेशद्वार होता है। दीवारों को मिट्टी व गोबर से लीपकर चित्रकारी व माँडने बनाये जाते हैं। प्रत्येक गाँव में एक मांझी स्थान होता है, जो गाँव के संस्थापक का स्थान होता है।

समाज – संथाल परिवार पितृसत्तात्मक होते हैं। इनमें संयुक्त परिवार प्रणाली पायी जाती है। प्राय: एक पत्नी प्रथा प्रचलित है, किन्तु सन्तान न होने पर बहुपत्नी विवाह होते हैं। विधवा विवाह भी प्रचलित है। इनके समाज में माता-पिता द्वारा तय विवाह का अधिक प्रचलन है। इनमें विवाह की अनेक पद्धतियाँ प्रचलित हैं, जिनमें बपला, घर्दी जवाई, इतुत, नीरबोलोक, किरिन जवाई, संगा आदि प्रमुख हैं।

संथाल लोग अनेक देवी-देवताओं को पूजते हैं। ठाकुर इनका सबसे बड़ा देवता, सृष्टि, प्रकृति एवं जीवन का नियन्त्रक है। ये लोग वनों, पहाड़ों, नदियों आदि में देवताओं व आत्माओं का वास मानते हैं। उन्हें प्रसन्न करने के लिए बलि देते हैं व पूजा करते हैं। अशिक्षा व अज्ञान के कारण जादू-टोने, भूत-प्रेत आदि में विश्वास करते हैं। रोगों व प्राकृतिक प्रकोपों को शान्त करने के लिए झाड़-फूक, जादू-टोना करते हैं। संथाल लोग अब हिन्दू देवी-देवताओं को भी मानते हैं। बाह्य, सोहरई तथा सकरात इनके प्रमुख त्योहार हैं।

संथाल समाज में ‘टोटम’ (Totem–प्राकृतिक प्रतीक) व्यवस्था प्रचलित है। प्रत्येक उपवर्ग का एक निश्चित प्रतीक होता है। समान प्रतीकों में परस्पर विवाह निषिद्ध होते हैं। संथालों का प्रादेशिक संगठन ‘परहा’ प्रणाली पर आधारित है, जिसमें गाँव के मुखिया द्वारा प्रशासन होता है। बड़े गाँवों में पंचायत व्यवस्था पायी जाती है।

प्रश्न 4
टोडा जनजाति के प्राकृतिक, आर्थिक एवं सामाजिक जनजीवन पर एक सारगर्भित निबन्ध लिखिए।
उत्तर

टोडा Todas

टोडा दक्षिणी भारत में नीलगिरी पर्वतीय क्षेत्र में निवास करने वाली एक प्रमुख जनजाति है। गोरी व सुन्दर मुखाकृति, सुगठित शरीर, पतले होंठ, लम्बी नाक, बड़े नेत्र, लम्बा कद, काले लहरदार बालों वाली यह जनजाति अन्य दक्षिण भारतीय वर्गों से अलग दिखाई देती है।
प्राकृतिक वातावरण – नीलगिरी के पूर्वी ढालों पर समुद्रतल से लगभग 2,000 मीटर ऊँची पहाड़ियों से घिरे 200 वर्ग किमी क्षेत्र में टोडा जनजाति का निवास पाया जाता है। यह क्षेत्र ‘टोडरनाद कहलाता है। इस वृष्टिछाया प्रदेश में वर्षा का औसत 100 सेमी से कम रहता है। उच्च प्रदेश होने के कारण तापमान कम रहते हैं। यहाँ घास प्रमुख वनस्पति है। वनों में हिरन, सांभर, तेंदुए, चीते, सूअर, जंगली कुत्ते आदि भी पाये जाते हैं।

अर्थव्यवस्था – टोडा जनजाति स्वयं को टोडरनाद प्रदेश का ‘भूस्वामी मानती है। ये कृषि व्यवसाय को नीचा समझते हैं। आखेट, वनोद्योग और मजदूरी भी इन्हें पसन्द नहीं है; अतः इन्होंने पशुपालन को अपनाया है। ये केवल भैंस पालते हैं। अपनी आवश्यकता के लिए पड़ोसी बदागा वर्ग से कृषि कराते हैं। आवश्यक शिल्प (बढ़ईगिरि व लोहारी) भी अन्य वर्गों से कराते हैं।

भोजन – टोडा लोग विशुद्ध शाकाहारी होते हैं। इनके भोजन में दुग्ध पदार्थों की प्रधानता है। उत्सव तथा विशेष पर्वो को छोड़कर ये कभी भी मांस-मछली का सेवन नहीं करते। विशेष पर्वो पर ये भैंसे की बलि देते हैं तथा उसको प्रसाद-रूप में ग्रहण करते हैं। बदागा जनजाति से प्राप्त चावल, कोराली, थिनई आदि खाद्यान्न, शहद, फल, शाक-सब्जियाँ इनका प्रमुख भोजन है।।

वेशभूषा – टोडा स्त्री व पुरुष ढीला लम्बा, बिना सिला चोगानुमा वस्त्र पहनते हैं जो कन्धों से पैर तक शरीर को ढकता है। नये सम्पर्को के कारण अब स्त्रियों में धोती-ब्लाउज एवं पुरुषों में कमीज, कुते का प्रचलन हो गया है। वृद्ध-पुरुष अब भी नंगे सिर एवं बिना सिले वस्त्र पहनते हैं। स्त्रियाँ कौड़ी व चाँदी की मालाएँ, नथ, झुमके आदि पहनती हैं। ठोड़ी, बॉह व शरीर पर गुदना कराती हैं।

बस्तियाँ व मकान – टोडा लोगों की बस्तियाँ ‘मण्ड’ कहलाती हैं। तमिल भाषा में ‘मण्ड’ का अर्थ ‘मध्य स्थिति है। ये बस्तियाँ सुन्दर प्राकृतिक दृश्यों एवं चरागाहों के मध्य स्थापित की जाती हैं। प्राय: एक बस्ती में आठ या दस परिवारों के झोंपड़े होते हैं, जो ‘अर्स’ कहलाते हैं। ये ‘अर्स’ अर्द्ध-ढोलक के आकार के (Half barrel shaped) होते हैं। इन्हें बनाने में बाँस, खजूर व घास का प्रयोग होता है। मकानों में खिड़की व रोशनदान नहीं होते, छोटा-सा प्रवेशद्वार होता है। 6 x 3 मीटर आकार के कमरे के भीतर ही शयनकक्ष, रसोई व अग्नि स्थान की व्यवस्था होती है। निवास-कक्ष से पृथक् एक ‘दुग्ध मन्दिर बनाया जाता है। इस दुग्ध मन्दिर की देखभाल एक अविवाहित पुरुष करता है, जिसे पलोल कहते हैं।

सामाजिक जीवन – टोडा लोगों को सम्पूर्ण जीवन एवं दिनचर्या भैसपालने में व्यतीत होती है। समस्त कार्य पुरुषों द्वारा किये जाते हैं। टोडा परिवार पितृसत्तात्मक एवं बहुपति प्रणाली पर आधारित होता है। राजनीतिक व धार्मिक समारोहों, उत्सवों, पर्वो आदि में स्त्री का सक्रिय भाग लेना वर्जित होता है। भूमि एवं पशु-सम्पत्ति पर बड़े लड़के का अधिकार होता है। टोडा लोग आदिवासी धर्म का पालन करते हैं। इनके देवी-देवताओं में ‘तैकिर जी’ व ‘ओन’ प्रमुख हैं। नदियों, पहाड़ों व दुग्ध गृह के भी देवता होते हैं। प्राकृतिक प्रकोप, बीमारी, भैंसों के दूध सूखने को देवता का प्रकोप माना जाता है। पशुबलि देकर देवताओं को प्रसन्न किया जाता है।

प्रश्न 5
भारत की थारू प्रजाति के निवासस्थान, अर्थव्यवस्था एवं सामाजिक जीवन का विवरण लिखिए।
उत्तर
सामान्य परिचय – उत्तर प्रदेश व बिहार में नेपाल की सीमा से संलग्न 25 किमी चौड़ी व 600 किमी लम्बी तराई व भाबर की सँकरी पट्टी में थारू जनजाति निवास करती है। इस क्षेत्र में नैनीताल जिले के किच्छा, खटिमा, रामपुरा, सितारगंज, नानक-भट्टा, बनवासा आदि क्षेत्र, पीलीभीत व खीरी जिलों से लेकर बिहार में मोतीहारी जिले तक के क्षेत्र सम्मिलित हैं।

‘थारू’ शब्द की उत्पत्ति काफी विवादास्पद है। कुछ विद्वानों के अनुसार, ये पहले ‘अथरु कहलाते थे, बाद में थारू कहलाये। थारू’ का अर्थ है ‘ठहरे हुए’–कठिन भौगोलिक वातावरण के बावजूद ये सदियों से इस क्षेत्र में विद्यमान हैं, कदाचित इसलिए थारू कहलाते हैं। एक अन्य मतानुसार, ‘थारू’ नामक मदिरा का सेवन करने तथा ‘थारू’ नामक अपहरण विवाह प्रथा अपनाने के कारण भी इन्हें ‘थारू’ कहा जाता है।
इनके शारीरिक लक्षण मंगोलॉयड प्रजाति से मिलते हैं। तिरछे नेत्र, उभरी गालों की हड्डियाँ, पीली त्वचा, शरीर वे चेहरे पर कम बाल, सीधे सपाट केश, मध्यम नाक व कद इनके प्रमुख लक्षण हैं। वास्तव में इनमें मंगोलॉयड व अन्य प्रजातियों का मिश्रण हो गया है।

प्राकृतिक वातावरण – हिमालय की तलहटी में स्थित इस क्षेत्र में पर्वतीय ढालों से उतरते हुए नदी-नालों तथा अधिक वर्षा के कारण यत्र-यत्र बाढ़ व दलदल उत्पन्न होती है। इसलिए मच्छरों का अधिक प्रकोप रहता है। प्राय: ये क्षेत्र मलेरियाग्रस्त रहते हैं। यहाँ ग्रीष्मकाल में 38°C से 44°C एवं शीतकाल में 12°C से 15°C ताप पाये जाते हैं। मानसूनी वर्षा का औसत 125 से 150 सेमी रहता है। यहाँ सघने मानसूनी वनों में हल्दू, ढाक, तनु, शीशम, सेमल, खैर, तेन्दू आदि की प्रधानता रहती है। नरकुल, बैंत, मुंज घास की भी प्रचुरता होती है। वनों में चीता, भेड़िया, तेन्दुआ, हिरण, सूअर, सियार, लकड़बग्घा आदि जन्तु पाये जाते हैं।

जलवायु – सामान्यतः इस क्षेत्र की जलवायु तथा प्राकृतिक वातावरण अस्वास्थ्यकर हैं, किन्तु स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् वनों को साफ कर कृषि-फार्म बना लिये गये। दलदलों को सुखाकर कृषि योग्य बनाया गया। मलेरिया उन्मूलन के भी प्रयास किये गये। वनों पर आधारित लघु उद्योगों की भी स्थापना की गयी।
अव्यदध – थारु लोग स्थायी कृषक हैं। यहाँ भूमि अपरदन की बहुत समस्या है, तथापि विभिन्न उपायों द्वारा थारूः लोग चावल, मक्का, गेहूँ, चना, दालें, आलू, प्याज, शाक-सब्जियाँ आदि उगाते हैं। कृषि-कार्य में स्त्रियाँ भी सक्रिय योग देती हैं।

सामाजिक व्यवस्था – थारुओं में स्त्रियों की प्रतिष्ठा पुरुषों से अधिक है तथा वे पर्याप्त स्वतन्त्र हैं। स्त्रियाँ अपने को रानी तथा पुरुषों को सेवक या सिपाही समझती हैं। विवाह तय करते समय लड़के एवं लड़की की सहमति आवश्यक होती है। विवाह-संस्कार चार चरणों में सम्पन्न होता है, जो क्रमश: अपना-पराया, बटकाही, भाँवर तथा चाल हैं।

थारुओं में विवाह पूर्व यौन स्वच्छन्दता पायी जाती है। पत्नी के विनिमय तथा तलाक प्रथा का प्रचलन है। धार्मिक दृष्टिकोण से थारू हिन्दुओं के अधिक निकट हैं। ये स्वयं को सूर्यवंशी राजपूतों के वंशज समझते हैं तथा सीता एवं राम की आदरपूर्वक पूजा करते हैं। ये जादू-टोनों में विश्वास करते हैं। इसी कारण इनमें व्यवस्थित धर्म नहीं मिलता। इनमें पशुओं की बलि देने की प्रथा भी पायी जाती है।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 7 Major Tribes of India

प्रश्न 6
भील जनजाति के निवास-क्षेत्र, अर्थव्यवस्था एवं सामाजिक व्यवस्था (रीति रिवाजों) का वर्णन कीजिए।
या
टिप्पणी लिखिए- भारत की भील जनजाति।
उत्तर

भील Bhils

भील एक प्राचीन ऐतिहासिक जनजाति है। परम्परा से आखेटक व तीरन्दाज जनजाति का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है, किन्तु अब ये स्थायी कृषक के रूप में जाने जाते हैं। वास्तव में यह जनजाति विकास के विभिन्न चरणों में है। मध्य प्रदेश के भील घुमक्कड़ जरायमपेशा हैं। खान देश के भील स्थायी कृषक हैं। गुजरात के भील आखेटक व कृषक हैं। राजस्थान व महाराष्ट्र के भील घुमक्कड़, आखेटक, स्थायी कृषक अथवा श्रमिक हैं।

भील’ शब्द की उत्पत्ति तमिल भाषा के ‘विल्लवर’ (धनुर्धारी) शब्द से बतायी जाती है। विभिन्न मानवशास्त्रियों के अनुसार, यह प्राक्द्रविड़ या मेडिटरेनियन प्रजाति से सम्बद्ध है। अधिक मान्य मतानुसार, भील भारत के मूल निवासी हैं। औसत मध्यम कद, मध्यम चौड़ी नाक, भूरे से गहरा काला त्वचा वर्ण, काले बाल, मध्यम मोटे होंठ, शरीर पर कम बाल तथा सुगठित शरीर इस जनजाति के मुख्य शारीरिक लक्षण हैं।

निवास-क्षेत्र – भील लोगों का निवास-क्षेत्र मध्य प्रदेश के धार, झाबुआ, रतलाम व निमाड़ जिले; राजस्थान के डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़, उदयपुर व चित्तौड़गढ़ जिले, गुजरात के पंचमहल, साबरकांठा, बनासकाठा व बड़ोदरा जिले हैं। भीलों का निवास-क्षेत्र ‘भीलवाड़ा’ के रूप में विख्यात है। इसके अतिरिक्त बिखरे हुए रूप में यह जनजाति महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश व कर्नाटक के अन्य भागों में भी पायी जाती है।

प्राकृतिक वातावरण – भीलों का निवास ऊँचे (1,000 मीटर) असमतल पठारी व पहाड़ी प्रदेश में है, जहाँ अनेक बरसाती नदी-नाले प्रवाहित होते हैं। यहाँ माही, ताप्ती व नर्मदा ने पठारों को काटकर गहरी घाटियाँ बनायी हैं। यहाँ वर्ष भर उच्च तापमान एवं 50 से 125 सेमी वार्षिक वर्षा के कारण महुआ, आम, सागौन, बाँस वे पलास के सघन वन उगते हैं। वनों में अनेक प्रकार के जीव-जन्तु एवं पशु-पक्षी पाये जाते हैं।

अर्थव्यवस्था – परम्परागत रूप से भील घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करते हैं। आखेट उनकी आजीविका का प्रमुख साधन रहा है। वातावरण के अनुरूप अब भी अरावली, विन्ध्या तथा सतपुड़ा पहाड़ियों के भील निवासी आखेटक हैं। ये तीर-कमान, फन्दे, जाल, गोफन आदि द्वारा जंगली सूअर व पशु-पक्षियों का शिकार करते हैं। कई भील वर्ग अब स्थायी कृषक हो गये हैं। मैदानी क्षेत्रों में भूमि साफ करके चावल, मक्का, गेहूँ, मोटे अनाज, रतालू, कद्दू व शाक-सब्जियाँ बोते हैं। इस प्रकार की कृषि ‘दजिआ’ कहलाती है। पहाड़ी क्षेत्रों में वनों को जलाकरे वर्षाकाल में खाद्यान्न, दालें व सब्जियाँ उगाई जाती हैं।

इस प्रकार की कृषि ‘चिमाता’ कहलाती है। तीन-चार फसलें प्राप्त करने के पश्चात् इस भूमि को परती छोड़ दिया जाता है। स्थायी कृषि के साथ-साथ भील लोग पशुपालन भी करने लगे हैं। ये गाय, बैल, भैंस, भेड़-बकरियाँ तथा मुर्गी पालते हैं। इनसे दूध, मांस व अण्डे प्राप्त करते हैं। कुछ भील वनोपज एकत्रण द्वारा भी आजीविका प्राप्त करते हैं। मानसूनी वनों से विविध प्रकार की व्यावसायिक महत्त्व की गौण उपजे तथा खाद्य-पदार्थ प्राप्त होते हैं।

बच्चे व स्त्रियाँ वनों से खाने योग्य जड़े, वृक्षों की पत्तियाँ, फल, कोंपलें, गाँठे, शहद, गोंद, छाले, जड़ी-बूटियाँ व अन्य पदार्थ एकत्रित करते हैं। तालाबों, पोखरों व नदियों से मछलियाँ भी प्राप्त की जाती हैं। आजीविका के इन विविध साधनों के अतिरिक्त कुछ भील खानों, कारखानों तथा सड़क निर्माण आदि कार्यों में श्रमिक के रूप में भी कार्य करते हैं। ये वनों में लकड़ी काटने का कार्य तथा शहरों में मजदूरी भी करते हैं।

भोजन – भील लोग मुख्यत: शाकाहारी हैं। गेहूँ, चावल, मक्का, कोदो, दाल, सब्जियाँ इनका प्रमुख भोजन हैं। विशेष पर्वो तथा उत्सवों के अवसरों पर अथवा शिकार प्राप्त होने पर ये बकरे या भैंस का मांस, मछली, अण्डा आदि भी खाते हैं। महुए की शराब, ताड़ी का रस, तम्बाकू व गाँजा इन्हें विशेष रुचिकर है। वनों से एकत्रित जंगली बेर, आम, महुआ फल व शहद भी इनके भोजन में सम्मिलित हैं।

वेशभूषा – उष्ण जलवायु एवं निर्धनता के कारण भील लोग अल्प व सूती वस्त्र पहनते हैं। भील पुरुष लँगोटी या घुटनों तक लम्बा वस्त्र, अंगोछा, कमीज व साफा पहनते हैं। स्त्रियाँ लहँगा, कुर्ती व चोली पहनती हैं। चाँदी की हँसुली, बालियाँ, छल्ले, पैजनियाँ इनके प्रिय आभूषण हैं। पुरुष भी कड़ा, बालियाँ व हँसुली पहनते हैं। मुंह व हाथ पर गुदना कराने का प्रचलन है।

बस्तियाँ व मकान – 20 से 200 झोंपड़ियों की भील बस्तियाँ किसी नियोजित क्रम में नहीं बसायी जातीं। गाँव की सीमा के बाहर ‘देवरे’ (पूजा-स्थल) होते हैं। मकान या आयताकार झोंपड़ियाँ ऊँचे चबूतरे पर निर्मित होती हैं। यह पत्थर, बाँस, मिट्टी, खपरैल, घास-फूस से निर्मित होती हैं। खपरैल या छप्पर पर कद्दू, तोरी या लौकी की बेलें चढ़ायी जाती हैं। झोंपड़ी के भीतर खाना पकाने के बर्तन, अन्न भण्डार, चटाइयाँ, टोकरी, डलिया आदि सामान की व्यवस्था होती है।

समाज – भील समाज अत्यन्त संगठित है। ये अपने विशिष्ट रीति-रिवाज अपनाते हैं। ये बहुत साहसी, निर्भीक, मेहनती, आदर-सत्कार करने वाले, सहृदय व ईमानदार होते हैं। घर का बुजुर्ग व्यक्ति ही महत्त्वपूर्ण निर्णय लेता है। प्रायः एक गाँव में एक ही वंश के लोग रहते हैं। प्रत्येक गाँव का निजी पण्डित, पुजारी, चरवाहा, कोतवाल आदि होता है। एक ही उपसमूह में अन्तर्विवाह निषिद्ध माना जाता है। प्रत्येक उपसमूह का एक निश्चित प्रतीक (Totem) होता है। इनमें बाल-विवाह जैसी कुरीति नहीं है। गन्धर्व विवाह, अपहरण विवाह तथा विधवा विवाह इनमें प्रचलित हैं। ‘गोल गाथेड़ो’ नामक विशिष्ट विवाह-प्रथा के अनुसार किसी युवक को वीरतापूर्ण साहसिक कार्य करके अपनी पसन्द की वधू छाँटने का अधिकार होता है।

ये अनेक हिन्दू देवी-देवताओं को पूजते हैं। जादू-टोने में भी बहुत विश्वास करते हैं। रोगों व कष्टों को दूर करने के लिए झाड़-फूक, टोना-टोटका आदि का सहारा लेते हैं। बलि भी चढ़ाते हैं। हिन्दुओं के समान अपने मृतकों का दाह-संस्कार करते हैं।
भील एक विकासोन्मुख जनजाति है। भारत सरकार ने इनके विकास के लिए शिक्षा, शिल्प, रोजगार, अस्पताल आदि की सुविधाएँ प्रदान की हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
नागा जनजाति के निवास क्षेत्र एवं आर्थिक क्रियाओं का वर्णन कीजिए। [2008]
उत्तर
निवास क्षेत्र – नागा जनजाति का निवास क्षेत्र मुख्य रूप से नागालैण्ड है। इसके अतिरिक्त यह लोग असम, मेघालय, मिजोरम, राज्य के पठारी भागों तथा अरुणाचल प्रदेश में भी निवास करते हैं। नागालैण्ड राज्य में लगभग 80% नागा निवास करते हैं। इनका सम्बन्ध इण्डो-मंगोलॉयड प्रजाति से है।

आर्थिक क्रियाएँ – भारत की अन्य आदिम जातियों की अपेक्षा नागाओं ने आर्थिक क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति की है। पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा सरकार ने इन लोगों के आर्थिक विकास के लिए सामुदायिक विकास खण्डों की स्थापना की है। इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाएँ कृषि उत्पादन एवं उद्योग-धन्धों के विकास पर अधिक ध्यान दिया गया है। नागा लोगों की आय के प्रमुख स्रोत-जंगली पशुओं का आखेट, मछली पकड़ना, कृषि करना तथा कुटीर उद्योग; जैसे मोटा कपड़ा, चटाई तथा टोकरियाँ आदि बनाने का कार्य है।

प्रश्न 2
भारत में थारू के वास्य क्षेत्र का वर्णन कीजिए। [2008]
उत्तर

भारत में थारू के वास्य क्षेत्र

थारू जनजाति के लोग भारत के उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखण्ड राज्यों के तराई और भाबर क्षेत्रों में निवास करते हैं। यह क्षेत्र एक संकरी पट्टी के रूप में शिवालिक हिमालय के नीले भाग में पूर्व से पश्चिम दिशी तक फैला है। पश्चिम में इस क्षेत्र का विस्तार नैनीताल जिले के दक्षिण-पूर्व से लेकर पूर्व में गोरखपुर और नेपाल की सीमा के सहारे-सहारे लगभग 600 किमी लम्बी और 25 किमी चौड़ाई में है, थारु जनजाति के अधिकांश लोग उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ भाग में रहते हैं जिसमें ऊधमसिंहनगर जिले के किच्छा, खटीमा, सितारगंज व बनबसा क्षेत्र सम्मिलित हैं। उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, खीरी, गोरखपुर, गोण्डा एवं बस्ती जिलों से लेकर बिहार में मोतीहारी जिले के उत्तरी भाग तक थारू जनजाति का निवास क्षेत्र है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
भारत में कौन-कौन-सी जनजातियाँ निवास करती हैं?
उत्तर
भारत में नागा, संथाले, भील, भोटिया, थारू, टोडा आदि प्रमुख जनजातियाँ निवास करती हैं।

प्रश्न 2
भील शब्द से क्या आशय है?
उत्तर
भील शब्द की उत्पत्ति तमिल भाषा के ‘विल्लावर’ शब्द से हुई है, जिसका आशय धनुष-बाण धारण करने वाला, आखेटक या धनुर्धारी होता है।

प्रश्न 3
नागाओं के प्रमुख देवता कौन हैं?
उत्तर
नागाओं के प्रमुख देवता लकीजुंगवा तथा गवांग हैं। अनेक नागा बौद्ध एवं ईसाई धर्म भी मानने लगे हैं।

प्रश्न 4
संथालों का निवास-क्षेत्र कौन-सा है?
उत्तर
संथालों का निवास-क्षेत्र झारखण्ड राज्य का संथाल परगना जनपद है।

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प्रश्न 5
संथालों की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?
उत्तर
संथालों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनमें बहुपत्नी अथवा बहुपति विवाह प्रथा नहीं है।

प्रश्न 6
संथालों द्वारा मनाये जाने वाले त्योहार कौन-कौन से हैं?
उत्तर
संथालों द्वारा मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहार हैं- बाह्य, सोहरई तथा सकरात।

प्रश्न 7
भारत में नागा जनजाति का मुख्य निवास-क्षेत्र कहाँ है तथा इनका मुख्य व्यवसाय क्या है?
उत्तर
भारत में नागा जनजाति का मुख्य निवास-क्षेत्र नागालैण्ड है; पटकोई पहाड़ियों, मणिपुर के पठारी भाग, असम व अरुणाचल प्रदेश में भी कुछ नागा वर्ग निवास करते हैं। इनका मुख्य व्यवसाय आखेट तथा झूमिंग कृषि करना है।

प्रश्न 8
थारू समाज में स्त्रियों की दशा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर
थारुओं में स्त्रियों की प्रतिष्ठा पुरुषों से अधिक है तथा वे पर्याप्त रूप से स्वतन्त्र हैं। स्त्रियाँ अपने को रानी तथा पुरुषों को सिपाही या सेवक समझती हैं।

प्रश्न 9
भारत की सबसे बड़ी जनजाति के नाम का उल्लेख कीजिए। इसका निवास-क्षेत्र भी बताइए।
उत्तर
संथाल भारत की सबसे बड़ी जनजाति है। इसकी जनसंख्या 25 लाख से अधिक है। इसका प्रमुख निवास-क्षेत्र झारखण्ड के छोटा नागपुर के पठार को पूर्वी भाग, सन्थाल परगना है।

प्रश्न 10
भील जनजाति भारत के किन क्षेत्रों में निवास करती है?
उत्तर
भील जनजाति के लोगों के निवास-क्षेत्र मध्य प्रदेश के धार, झाबुआ, रतलाम व निमाड़ जिले; राजस्थान के डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़, उदयपुर व चित्तौड़गढ़ जिले; गुजरात के पंचमहल, साबरकाठा, बनासकांठा व बड़ोदरा जिले हैं।

प्रश्न 11
उत्तर भारत की किन्हीं दो जनजातियों के नाम लिखिए। [2007, 08, 11]
उत्तर

  1. नागा जनजाति (नागालैण्ड)।
  2. भील जनजाति (मध्य प्रदेश, राजस्थान)।

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1 किस जनजाति के लोग घर को ‘कू’ के नाम से पुकारते हैं?
(क) संथाल
(ख) नागा
(ग) भील
(घ) थारू
उत्तर
(ग) भील।

प्रश्न 2
किस जनजाति के लोग प्रकृतिपूजक होते हैं और मारन बुरू नामक देवता की पूजा करते हैं?
(क) थारू
(ख) संथाल
(ग) नागा
(घ) भील
उत्तर
(ख) संथाले।

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प्रश्न 3
निम्नांकित में से कौन गोंड जनजाति का निवास-क्षेत्र है? [2010, 13, 15]
(क) झारखण्ड
(ख) छत्तीसगढ़
(ग) ओडिशा
(घ) बिहार
उत्तर
(ख) छत्तीसगढ़

प्रश्न 4
‘अर्स किस जनजाति के निवास-क्षेत्र हैं?
(क) बढू
(ग) टोडा
(ग) टोडा
(घ) नागा
उत्तर
(ग) टोडा।

प्रश्न 5
वह जनजाति जो मौसमी स्थानान्तरण करती है –
(क) नागा
(ख) संथाल
(ग) भील
(घ) भोटिया
उत्तर
(घ) भोटिया।

प्रश्न 6
निम्नलिखित में से थारू जनजाति किस देश में निवास करती है?
(क) दक्षिण अफ्रीका
(ख) भारत
(ग) ऑस्ट्रेलिया
(घ) दक्षिण अमेरिका
उत्तर
(ख) भारत।

प्रश्न 7
निम्नलिखित में से थारू जनजाति कहाँ निवास करती है? [2009, 10, 11, 12, 14, 15, 16]
(क) थार मरुस्थल में
(ख) नीलगिरि की पहाड़ियों में
(ग) तराई प्रदेश में
(घ) सुन्दरवन में
उत्तर
(ग) तराई प्रदेश में।

प्रश्न 8
निम्नांकित में से किसमें टोडा जनजाति का निवास है? [2012, 16]
(क) आन्ध्र प्रदेश
(ख) कर्नाटक
(ग) केरल
(घ) तमिलनाडु
उत्तर
(घ) तमिलनाडु।

प्रश्न 9
निम्नलिखित में से संथाल जनजाति कहाँ निवास करती है? [2008, 10, 11, 14]
(क) ब्राजील
(ख) ऑस्ट्रेलिया
(ग) भारत
(घ) दक्षिण अफ्रीका
उत्तर
(ग) भारत।

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प्रश्न 10
भोटिया जनजाति निम्नलिखित में से कहाँ निवास करती है? [2010, 11, 13, 14, 15]
(क) छत्तीसगढ़
(ख) बिहार
(ग) उत्तराखण्ड
(घ) मध्य प्रदेश
उत्तर
(ग) उत्तराखण्ड।

प्रश्न 11
किस जनजाति के प्रत्येक उप-समूह एक या एक निश्चित प्रतीक (Totem) होता है?
(क) भोटिया
(ख) भील
(ग) टोडा
(घ) संथाल
उत्तर
(ख) भील।

प्रश्न 12
किस जनजाति के लोग विशुद्ध शाकाहारी होते हैं तथा इनके भोजन में दुग्ध पदार्थों की प्रधानता होती है?
(क) भोटिया
(ख) संथाल
(ग) टोडा
(घ) भील
उत्तर
(ग) टोडा।

प्रश्न 13
किस जनजाति के लोगों का मुख्य भोजन भुने हुए गेहूँ (जौ) का आटा (सत्) है?
(क) एस्किमो
(ख) भोटिया
(ग) टोडा
(घ) भील
उत्तर
(ख) भोटिया।

प्रश्न 14
निम्नलिखित में से किस प्रदेश में भील जनजाति का निवास-क्षेत्र है? [2016]
(क) उत्तर प्रदेश
(ख) बिहार
(ग) राजस्थान
(घ) मध्य प्रदेश
उत्तर
(घ) मध्य प्रदेश।

प्रश्न 15
निम्नलिखित में से कौन-सा थारू जनजाति का प्रमुख निवास क्षेत्र है ? [2009]
(क) मेघालय
(ख) उत्तरी बंगाल
(ग) उत्तर प्रदेश व बिहार
(घ) नागालैण्ड
उत्तर
(ग) उत्तर प्रदेश व बिहार।

प्रश्न 16
निम्नलिखित में से कौन भारत की जनजाति है? [2016]
(क) एस्किमो
(ख) पिग्मी
(ग) बद्दू
(घ) टोडा
उत्तर
(घ) टोडा।

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प्रश्न 17
संथाल जनजाति निवास करती है – [2010, 11, 13, 14]
(क) उत्तर प्रदेश में
(ख) असम में
(ग) झारखण्ड में
(घ) आन्ध्र प्रदेश में
उत्तर
(ग) झारखण्ड में।

प्रश्न 18
टोडा जनजाति निवास करती है – [2012, 16]
(क) अरावली पहाड़ियों में
(ख) कुमाऊँ पहाड़ियों में
(ग) नीलगिरि पहाड़ियों में
(घ) विन्ध्य पहाड़ियों में
उत्तर
(ग) नीलगिरि पहाड़ियों में।

प्रश्न 19
निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में गोंड जनजाति के लोग पाए जाते हैं? [2013]
(क) बिहार
(ख) छत्तीसगढ़
(ग) नागालैण्ड
(घ) पश्चिम बंगाल
उत्तर
(ख) छत्तीसगढ़।

प्रश्न 20
भोटिया जनजाति निवास करती है – [2013]
(क) उत्तर प्रदेश में
(ख) बिहार में
(ग) उत्तराखण्ड में
(घ) हिमाचल प्रदेश में
उत्तर
(ग) उत्तराखण्ड में।

प्रश्न 21
खासी जनजाति निवास करती है – [2013]
(क) छत्तीसगढ़ में
(ख) झारखण्ड में
(ग) मणिपुर में
(घ) मेघालय में
उत्तर
(घ) मेघालय में।

प्रश्न 22
निम्नलिखित में से कौन-सी जनजाति छोटा नागपुर पठार पर पायी जाती है? [2014]
(क) भोटिया
(ख) संथाल
(ग) टोडा
(घ) भील
उत्तर
(ख) संथाल

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UP Board Solutions for Class 12 English Poetry Short Poems Chapter 3 On His Blindness

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject English Poetry short Poems
Chapter Chapter 3
Chapter Name On His Blindness
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 English Poetry Short Poems Chapter 3 On His Blindness

About the Poet : John Milton was born in London in 1608. He passed M. A. from Cambridge in 1632. He devoted himself to the study of classics, art, modern language and literature. Generally his writings are autobiographical. He lost his eye-sight at the age of 44 in 1652. Some of his famous works are : Paradise Lost, Paradise Regained, Samson Agoniste, etc. He died in 1674.

About the Poem : ‘On His Blindness’ is a personal sonnet expressing grief over his premature blindness. It is a complaint to God for this injustice. The poet was unable to use his poetic talent in the service of God. The poet soon realizes the supremacy of God and gets consolation.

Central Idea                                                                                                     [2010, 11, 12, 14, 15, 16, 17, 18]
This sonnet of Milton expresses his grief over his premature blindness. He thinks he will not be able to use his poetic talent in the service of God. But soon he realizes that the best service to God is to bear the misfortunes and sufferings of life. These are given us by God to test our patience. So we should have faith in God.

(मिल्टन इस sonnet में समय से पूर्व अपने अन्धे हो जाने पर दु:ख प्रकट करता है। वह सोचता है कि वह अपने कविता के गुण को भगवान् की सेवा में प्रयोग नहीं कर सकेगा। किन्तु शीघ्र ही वह अनुभव करता है। कि भगवान् की सबसे अच्छी सेवा जीवन के कष्टों एवं आपदाओं को सहन करना है। ये हमें भगवान् द्वारा हमारे धैर्य की परीक्षा करने के लिए दी गई हैं। इसलिए हमें भगवान् में विश्वास रखना चाहिए।)

EXPLANATIONS (With Meanings & Hindi Translation) SHOES
(1)
When I consider how my light is spent
Ere half my days, in this dark world and wide,
And that one talent, which is death to hide,
Lodged with me useless, though my soul more bent
To serve therewith my Maker, and present
My true account, lest He, returning, chide; [2014, 18]

[Word-meanings : consider = विचार करना think; light = आँखों का प्रकाश eye- sight; is spent = खो गई is lost; ere = पहले before; half my days = आधा जीवन half of my life; wide = व्यापक large; talent * कविता करने का गुण poetic talent; which is death to hide = जिसे मृत्यु छीन सकती है which can be taken away by death alone; lodged = है, पड़ा है lying; soul more bent = अधिक उत्सुक हूँ more willing या eager; therewith = उस उपहार से with it; Maker = रचयिता God; true account = सही हिसाब real work; lest = कहीं ऐसा न हो कि in order that not; returning = मृत्यु के बाद after death; chide = बुरा-भला कहना scold.]

(जब मैं (कवि) सोचता हूँ कि मैं अपने आधे जीवन से पूर्व ही अन्धा कैसे हो गया और यह संसार मेरे लिए अँधेरा तथा विशाल हो गया (तब मुझे दु:ख होता है)। मेरे पास एक गुण है (कविता करने का), जो मृत्यु तक मेरे पास रहेगा, उसे मैं (अन्धा होने के कारण) प्रयोग में नहीं ला सकेंगा। यद्यपि मेरी तीव्र इच्छा है कि मैं अपनी उस योग्यता से अपने ईश्वर की (कविता के द्वारा प्रशंसा करके) सेवा करू और मृत्यु के बाद भगवान् के समक्ष इस संसार में अपने कार्यों का सही लेखा-जोखा प्रस्तुत कर सकें। कहीं ऐसा न हो कि भगवान् मुझे मृत्यु के बाद डाँटे (कि मैंने कविता लिखकर उसकी सेवा क्यों नहीं की)।)

Reference : This stanza is an extract from John Milton’s poem ‘On His Blindness’.

[ N.B. : The above reference will be used for all the explanations of this poem. ]

Context : In these lines the poet expresses his grief over his premature blindness. But soon he realizes that he should not complain against God because God neither needs man’s work nor His own gifts. . Explanation: In this opening stanza we note that Milton is very much grieved when he thinks why he has become blind before half of his age. This world has become very wide and dark for him. God has given him a poetic talent which nobody can take away. But it is lying useless with him because in the absence sight he cannot compose poems. He is more eager to serve God but he is helpless. So he thinks that God will scold him when he is not able to justify his mission on the Day of Judgement.

(इस प्रथम पद्यांश में हम पाते हैं कि मिल्टन उस समय अत्यन्त दु:खी होता है जब वह सोचता है कि आधी आयु से पहले ही वह कैसे अन्धा हो गया। उसके लिए यह संसार बहुत विस्तृत तथा अन्धकारमय हो गया है। भगवान् ने उसे काव्य प्रतिभा प्रदान की है जिसे कोई भी नहीं छीन सकता। किन्तु यह उसके पास व्यर्थ ही पड़ी है, क्योकि आँखों की रोशनी के बिना वह काव्य रचना नहीं कर सकता। वह भगवान् की सेवा करने के लिए बहुत उत्सुक है, किन्तु असहाय है। इसलिए वह सोचता है कि जब निर्णय के दिन वह अपने कार्य को सही सिद्ध नहीं कर पाएगा तब भगवान् उसे डाटेंगे।)

Comments : In this stanza Milton’s feelings show his faith in God and Christianity.

(2)
‘Doth God exact day-labour, light denied ?
I fondly ask : but patience, to prevent,
That murmur, soon replies, ‘God doth not need’
Either man’s work, or His own gifts; who best,
Bear His mild yoke, they serve Him best; [2012, 16, 17, 18]

[Word-meanings : denied = मना कर दिया refused; fondly = मूर्खता से foolishly; patience
= धैर्य power of endurance; to prevent = टाल देना, रोकना to stop; murmur = शिकायत complaint; mild = हल्का light; yoke = जुआ अर्थात् कष्ट sufferings.]

( मैं (कवि) मूर्खता से पूछता हूँ कि क्या भगवान् मुझसे पूरे दिन मेहनत कराना चाहता है, जबकि मेरी आँखों की रोशनी चली गई है अर्थात् मैं अन्धा हो गया हूँ। किन्तु तुरन्त मेरे इस विरोध (शिकायत) को रोकने के लिए धैर्य उत्तर देता है, “भगवान् को न तो मनुष्य के कार्य की आवश्यकता है और न अपने उपहारों की। जो व्यक्ति बिना सन्देह, शिकायत या प्रश्न किए हुए भगवान् के दिए कष्टों को सहन करते हैं वे भगवान् की सर्वोत्तम सेवा करते हैं।”)

Context : In these lines the poet expresses his grief over his premature blindness. But he is sad thinking that the talent of composing poems is lying useless with him although he is eager to serve God.

Explanation : In this stanza we note poet’s complaint to God and realization of his mistake. He foolishly asks if God is so unjust that He expects a blind man to write poems. But soon patience checks him and tells him that God neither wants to take. work from any man nor He has any need of the gifts given by Him. God has given punishment to man for his sins in the form of light sufferings. So the man who cheerfully bears the ‘misfortunes of life and takes them as the will of God, serves Him best. Thus the poet realizes that he should not complain against God.

(इसे पद्यांश में हम कवि की भगवान् के प्रति शिकायत तथा अपनी भूल का अनुभव करते हैं। वह मूर्खता से पूछता है कि क्या भगवान् इतना अन्यायी है कि वह एक अन्धे आदमी से भी कविता लिखने की आशा करता है। किन्तु तुरन्त धैर्य उसे रोकता है और उसे बताता है कि भगवान् न तो किसी व्यक्ति से काम लेना चाहता है। और ने उसे अपने द्वारा दिए हुए उपहार चाहिए। भगवान् ने मनुष्य को उसके पापों के लिए दण्ड हल्के कष्टों के रूप में दिए हैं। इसलिए वह मनुष्य जो जीवन के कष्टों को प्रसन्नतापूर्वक सहन करता है और उन्हें भगवान् की इच्छा के रूप में मानता है वह ही भगवान् की सबसे अच्छी सेवा करता है। इस प्रकार कवि यह अनुभव करता है कि उसे भगवान् के विरुद्ध शिकायत नहीं करनी चाहिए।)

Comments : In this stanza the poet has personified patience.

(3)
His state,
Is kingly : thousands at his bidding speed,
And post o’er land and ocean without rest;
They also serve who only stand and wait. [2009, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]

[Word-meanings : thousands = हजारों देवदूत thousands of angels; state = दशा, स्थिति position; bidding = 341511, order; speed = doi immediately; post = aut से घूमना-फिरना move speedily.]

(भगवान् की स्थिति राजाओं जैसी है। हजारों देवदूत उसकी आज्ञा पर बहुत तेजी से पृथ्वी पर भी और समुद्र पर भी लगातार घूम-फिर रहे हैं। वे व्यक्ति भी भगवान् की सेवा करते हैं जो शान्ति से खड़े रहते हैं और अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हैं अर्थात् जो बिना शर्त के स्वयं को भगवान् की इच्छा के प्रति समर्पित कर देते हैं।)

Context : Milton became blind before half of his age. So he was very grieved. He thinks that the gift of poetry given by God is lying useless with him. He makes a
protest against God. But soon he realizes his mistake. He comes to know that unconditional surrender to the will of God is the best service to Him.

Explanation : In this concluding stanza the poet says that the position of God is like kings. Thousands of angels are running continuously over land and ocean. They do not take rest and travel from one place to another. They convey the message of God to the poeple everywhere at His order. The sufferings and misfortunes of life are given to us by God as a test. So the best service to God is to bear these sufferings without any complaint.

(इस अन्तिम पद्यांश में कवि कहता है कि भगवान् की स्थिति राजाओं के समान है। हजारों देवदूत पृथ्वी पर भी और समुद्र पर भी लगातार घूम रहे हैं। वे आराम भी नहीं करते और एक स्थान से दूसरे स्थान तक यात्रा करते हैं। वे भगवान् का सन्देश उसकी आज्ञा पर प्रत्येक स्थान पर लोगों तक पहुँचाते हैं। जीवन के कष्ट और विपत्तियाँ भगवान् के द्वारा हमें परीक्षा के तौर पर दी गई हैं। इसलिए भगवान् की सबसे अच्छी सेवा इन कष्टों को बिना कोई शिकायत किये हुए सहन करना है।)

Comments : The last line of this stanza has become proverbial and is often quoted.

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