UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 5 Human Capital Formation in India

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Economics
Chapter Chapter 5
Chapter Name Human Capital Formation in India (भारत में मानव पूँजी का निर्माण)
Number of Questions Solved 58
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 5 Human Capital Formation in India (भारत में मानव पूँजी का निर्माण)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किसी देश में मानवीय पूँजी के दो प्रमुख स्रोत क्या होते हैं?
उत्तर
एक देश में मानव पूँजी निर्माण के दो प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं
1. शिक्षा में निवेश,
2. कार्य के दौरान प्रशिक्षण।

प्रश्न 2.
किसी देश की शैक्षिक उपलब्धियों के दो सूचक क्या होंगे?
उत्तर
सामान्यतः शिक्षा से अभिप्राय लोगों के पढ़ने-लिखने तथा समझने की योग्यता से है। यह उच्च आय अर्जित करने का साधन माना जाता है। शिक्षा के दो सूचक इस प्रकार हैं
1. इससे लोगों के मानसिक स्तर का विकास होता है।
2. विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का विकास होता है।

प्रश्न 3.
भारत में शैक्षिक उपलब्धियों में क्षेत्रीय विषमताएँ क्यों दिखाई दे रही हैं?
उत्तर
भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ जनसंख्या का एक विशाल वर्ग निर्धनता रेखा से नीचे जीवन बिता रहा है, वे लोग बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं पर पर्याप्त व्यय नहीं कर सकते। अधिकांश जनता, उच्च शिक्षा का भार वहन नहीं कर पाती। जब बुनियादी शिक्षा को नागरिकों को अधिकार मान लिया जाता है, तो यह अनिवार्य हो जाता है कि सभी नागरिकों को सरकार ये सुविधाएँ नि:शुल्क प्रदान करे। आर्थिक विषमर्ताओं के साथ-साथ शैक्षिक उपलब्धियों के क्षेत्र में भी व्यापक असमानताएँ देखने को मिलती हैं; उदाहरण के लिए साक्षरता दर जहाँ हिमाचल प्रदेश में 83.78%, मिजोरम में 91.58%, केरल में 93.91% और दिल्ली में 86.34% है, वहीं आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना में 67.66%, झारखण्ड में 67.63%, जम्मू-कश्मीर में 68.74% और तमिलनाडु में 80.33% है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी व्यापक विषमताएँ विद्यमान हैं।

प्रश्न 4.
मानव पूँजी निर्माण और मानव विकास के भेद को स्पष्ट करें।
उत्तर
मानव पूँजी निर्माण एवं मानव विकास में भेद इस प्रकार है-मानव पूँजी की अवधारणा शिक्षा और स्वास्थ्य को श्रम की उत्पादकता बढ़ाने का माध्यम मानती है। मानव पूंजी का विचार मानव को किसी साध्य की प्राप्ति का साधन मानता है। यह साध्य उत्पादन में वृद्धि का है। इस मतानुसार शिक्षा और स्वास्थ्य पर किया गया निवेश अनुत्पादक है, अगर उसमें वस्तुओं और सेवाओं के निर्गत में वृद्धि न हो। दूसरी ओर मानव विकास के परिप्रेक्ष्य में मानव स्वयं साध्य भी है। भले ही शिक्षा, स्वास्थ्य आदि पर निवेश से श्रम की उच्च उत्पादकता में सुधार न हो किंतु इनके माध्यम से मानव कल्याण का संवर्द्धन तो होना ही चाहिए।

प्रश्न 5.
मानव पूँजी की तुलना में मानव विकास किस प्रकार से अधिक व्यापक है?
उत्तर
मानव पूंजी का विचार मानव को किसी साध्य की प्राप्ति का साधन मानता है। यह साध्य उत्पादकता में वृद्धि का है। इस मतानुसार शिक्षा और निवेश पर किया गया निवेश अनुत्पादक है, अगर उसमें वस्तुओं और सेवाओं के निर्गत में वृद्धि न हो। मानव विकास का संबंध इस बात से है कि स्वास्थ्य एवं शिक्षा मानव भलाई का अंग है। मानव विकास वह अवसर प्रदान करता है जिससे वे उपयोगिता प्राप्त करने में चयन कर सकें। मानव विकास के परिप्रेक्ष्य में मानव स्वयं साध्य भी है। भले ही शिक्षा, स्वास्थ्य आदि पर निवेश से श्रम की उच्च उत्पादकता में सुधार न हो किंतु इनके माध्यम से मानव कल्याण का संवर्द्धन तो होना ही चाहिए। प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य उसके लिए आवश्यक हैं। संक्षेप में मानव पूंजी की अवधारणा का संबंध मानव की उत्पादकता से है जबकि मानव विकास की अवधारणा का संबंध मानव कल्याण से है। दोनों अवधारणाओं में शिक्षा एवं स्वास्थ्य प्रमुख स्रोत हैं। लेकिन निवेश का लक्ष्य अलग-अलग है। मानव विकास से मानवीय उत्पादकता में स्वतः वृद्धि हो । जाएगी। अत: मानव विकास, मानन पूँजी की तुलना में अधिक व्यापक है।

प्रश्न 6.
मानव पूंजी के निर्माण में किन कारकों का योगदान रहता है?
उत्तर
मानव पूँजी के निर्माण में निम्नलिखित कारकों का योगदान रहता है

  1. शिक्षा,
  2. स्वास्थ्य,
  3. प्रशिक्षण,
  4. संचार तथा
  5. प्रवास।

प्रश्न 7.
शिक्षा एवं स्वास्थ्य को नियंत्रित करने वाले दो-दो सरकारी संगठनों के नाम बताइए।
उत्तर
शिक्षा
1. राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्।
2. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग।
स्वास्थ्य
1. स्वास्थ्य मंत्रालय।
2. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद्।

प्रश्न 8.
शिक्षा को किसी राष्ट्र के विकास में एक महत्त्वपूर्ण आगत माना जाता है, क्यों?
उत्तर
राष्ट्र-निर्माण के लिए शिक्षा का महत्त्वपूर्ण आगत है, क्योंकि

  1. शिक्षा से अच्छे नागरिक उभरकर आते हैं।
  2.  शिक्षा व्यक्ति के साथ-साथ पूरे समाज को लाभान्वित करती है।
  3. शिक्षा से मामव की क्षमता का संवर्द्धन होता है।
  4. शिक्षा से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास होता है।
  5. शिक्षा से लोगों के मानसिक स्तर का विकास होता है।
  6. देश के सभी क्षेत्रों के प्राकृतिक तथा मानवीय साधनों के प्रयोग को शिक्षा सुविधाजनक बनाती है।
  7. शिक्षित मनुष्य आर्थिक-सामाजिक विकास में जयादा योगदान देता है।
  8. शिक्षा अनुसंधान दृष्टिकोण को विकसित करती है।
  9. शिक्षा से देश के निवासियों के सांस्कृतिक स्तर को प्रोत्साहन मिलता है।

प्रश्न 9.
पूँजी निर्माण के निम्नलिखित स्रोतों पर चर्चा कीजिए-
(क) स्वास्थ्य आधारिक संरचना,
(ख) प्रवसन पर व्यय।
उत्तर

(क) स्वास्थ्य आधारिक संरचना
किसी भी कार्य को अच्छी तरह से कौन कर सकता है-एक बीमार व्यक्ति या फिर एक स्वस्थ व्यक्ति? चिकित्सा सुविधाओं के सुलभ नहीं होने पर एक बीमार श्रमिक कार्य से विमुख रहेगा। इससे उत्पादकता में कमी आएगी। अत: इस प्रकार से स्वास्थ्य पर व्यय मानव पूंजी के निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। अस्पताल के भवन, मशीनों एवं उपकरणों, एम्बुलेन्स आदि पर किया गया व्यय स्वास्थ्य आधारित संरचना का निर्माण करता है। स्वास्थ्य आधारिक संरचना से स्वास्थ्य में बढोत्तरी होती है और परिणामस्वरूप उत्पादकता में वृद्धि होती है।

(ख) प्रवसन पर व्यय
व्यक्ति अपने मूल स्थान की आय से अधिक आय वाले रोजगार की तलाश में प्रवसन/पलायन करते हैं। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर प्रवसन मुख्यतः गाँवों में बेरोजगारी के कारण ही होता है। अकुशल श्रमिक देश के अंदर प्रवास करते हैं तथा शिक्षित एवं कुशल व्यक्ति देश के बाहर भी प्रवास के के लिए जाते हैं। प्रवसनों की दोनों ही स्थितियों में परिवहन की लागत और उच्चतर निर्वाह लागत के साथ एक अनजाने सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में रहने की मानसिक लागतें भी प्रवासी श्रमिकों को सहन करनी पड़ती हैं। लेकिन प्रवसित स्थान पर ज्यादा कमाई से प्रवसन काव्यय हल्का हो जाता है। अतः प्रवसन पर किया गया व्यय मानवे पूँजी निर्माण का स्रोत है।

प्रश्न 10.
मानव संसाधनों के प्रभावी प्रयोग के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा पर व्यय संबंधी जानकारी 
प्राप्त करने की आवश्यकता का निरूपण करें।
उत्तर
शिक्षा में निवेश को मानव पूंजी का एक प्रमुख स्रोत माना जाता है। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य में निवेश, कार्य के दौरान प्रशिक्षण, प्रबंधन तथा सूचना आदि में निवेश मानव पूंजी के निर्माण के अन्य स्रोत हैं। व्यक्ति अपनी आय को बढ़ाने के लिए शिक्षा पर निवेश करता है। उसी प्रकार स्वास्थ्य पर व्यय से स्वस्थ श्रमिकों की आपूर्ति बढ़ती है और इस कारण उत्पादकता में भी वृद्धि होती है। बचाव, निदान, स्वच्छ पेयजल, दवाइयों पर व्यय तथा सफाई पर किया गया व्यय आदि स्वास्थ्य व्यय के उदाहरण हैं। जनसामान्य को इन सबकी जानकारी होना आवश्यक है तभी वह इन सुविधाओं का भरपूर लाभ उठा सकता है।

प्रश्न 11.
मानव पूंजी में निवेश आर्थिक संवृद्धि में किस प्रकार सहायक होता है?
उत्तर
हम जानते हैं कि एक साक्षर व्यक्ति का श्रम-कौशल निरक्षर व्यक्ति की अपेक्षा अधिक होता है। इसी कारण वह अपेक्षाकृत अधिक आय अर्जित कर पाता है आर्थिक संवृद्धि का अर्थ देश की वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि से होता है तो फिर स्वाभाविक है कि किसी साक्षर व्यक्ति का योगदान निरक्षर व्यक्ति मी तुलना में कहीं अधिक होगा। एक स्वस्थ व्यक्ति अधिक समय तक व्यवधान रहित श्रम की पूर्ति कर सकता है। इसीलिए स्वास्थ्य भी आर्थिक संवृद्धि का एक महत्त्वपूर्ण कारक बन जाता है। इसी प्रकार कार्य प्रशिक्षण, सूचना एवं प्रवास पर व्यय भी मानव पूँजी निर्माण करते हैं। इन सब पर व्यय से मानव की उत्पादकता में वृद्धि होती है एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण पनपता है। इस प्रकार मानव पूँजी एवं आर्थिक संवृद्धि में सीधा संबंध है।

प्रश्न 12.
विश्व भर में औसत शैक्षिक स्तर में सुधार के साथ-साथ विषमताओं में कमी की प्रवृत्ति| पाई गई है। टिप्पणी करें।
उत्तर
शिक्षा मामेव पूँजी निर्माण का मुख्य स्रोत है। शिक्षा से अच्छे नागरिक उभरकर आते हैं। एक शिक्षित व्यक्ति अशिक्षित व्यक्ति की तुलना में पर्यावरण को ज्यादा बेहतर ढंग से समझ सकता है। शिक्षा से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास होता है। देश के सभी क्षेत्रों के प्राकृतिक तथा मानवीय साधनों के प्रयोग को शिक्षा सुविधाजनक बनाती है। शिक्षा से लोगों के मानसिक स्तर का विकास होता है। शिक्षा से नई तकनीक को स्वीकार करने की योग्यता आती है। अधिक आय उपार्जन हेतु साक्षर मनुष्य एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास कर सकता है। इन सब कारकों से व्यक्ति की आय में वृद्धि होती है। आम आदमी की आय बढ़ने से उच्च एवं निम्न आय वर्ग की दूरी घटने लगती है। इस प्रकार शिक्षा में विषमताओं में कमी की प्रवृत्ति पाई जाती है। दूसरे शब्दों में, शैक्षिक सुधार आर्थिक व सामाजिक विषमताओं में कमी लाता है।

प्रश्न 13.
किसी राष्ट्र के आर्थिक विकास में शिक्षा की भूमिका का विश्लेषण करें।
उत्तर
आर्थिक विकास को आर्थिक संवृद्धि के रूप में देखा जा सकता है यदि संवृद्धि के साथ-साथ साधनों का वितरण समान हो। शिक्षा मानव पूँजी का स्रोत है। किसी साक्षर व्यक्ति के श्रम-कौशल निरक्षर व्यक्ति से अधिक होते हैं। इसी कारण से साक्षर व्यक्ति निरक्षर व्यक्ति की तुलना में अधिक आय अर्जित कर लेता है और आर्थिक संवृद्धि में उसका योगदान भी अधिक होता है। शिक्षा से व्यक्ति ही नहीं समाज भी लाभान्वित होता है। शिक्षा केवल मनुष्य की उत्पादकता को ही नहीं बढ़ाती है बल्कि उसे ज्यादा समझदार, जागरूक व अनुकूलन योग्य बनाती है। शिक्षित श्रम शक्ति की उपलब्धता, नई प्रौद्योगिकी को अपनाने में भी सहायक होती है। इस प्रकार कुशलता से संवर्द्धित व्यक्ति शहर के आर्थिक विकास के लिए ज्यादा योगदान देता है।

प्रश्न 14.
समझाइए कि शिक्षा में निवेश आर्थिक संवृद्धि को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर
व्यक्ति अपनी भावी आय बढ़ाने के लिए शिक्षा पर निवेश करता है। एक साक्षर व्यक्ति को श्रम-कौशल एक निरक्षर की तुलना में अधिक होता है। शिक्षा न केवल श्रम की उत्पादकता को बढ़ाती है। बल्कि यह साथ-ही-साथ परिवर्तन को प्रोत्साहित कर नवीन प्रौद्योगिकी को आत्मसात करने की क्षमता भी विकसित करती है। शिक्षा समाज में परिवर्तनों एवं वैज्ञानिक प्रगति को समझ पाने की क्षमता प्रदान करती है जिससे आविष्कारों एवं नव-परिवर्तनों में सहायता मिलती है। शिक्षित एवं कुशल श्रमिक भौतिक साधनों का  प्रयोग करके ज्यादा और उच्च गुणवत्ता का उत्पादन करके आर्थिक संवृद्धि को जन्म देते हैं। इस प्रकार शिक्षा में निवेश से आर्थिक संवृद्धि में भी बढ़ोत्तरी होती है।

प्रश्न 15.
किसी व्यक्ति के लिए कार्य के दौरान प्रशिक्षण क्यों आवश्यक होता है?
उत्तर
आजकल फर्मे अपने कर्मचारियों के कार्यस्थल पर प्रशिक्षण में व्यय करती हैं। कार्य के दौरान प्रशिक्षण कई प्रकार से दिया जा सकता है; जैसे
1. फर्म के अपने कार्यस्थल पर ही पहले से काम को जानने वाले कुशलकर्मी कर्मचारियों को काम सिखा सकते हैं।
2. कर्मचारियों को किसी अन्य संस्थान/स्थान पर प्रशिक्षण पाने के लिए भेजा जा सकता है। दोनों ही विधियों में फर्म अपने कर्मचारियों के प्रशिक्षण के प्रशिक्षण का कुछ व्यय वहन करती है तथा इस बात पर बल देती है कि प्रशिक्षण के बाद वे कर्मचारी एक निश्चित अवधि तक फर्म के पास ही कार्य करें। इस प्रकार फर्म उनके प्रशिक्षण पर किए गए व्यय की उगाही अधिक उत्पादकता से हुए लाभ के रूप में कर पाने में सफल रहती है। प्रशिक्षण से श्रम-उत्पादकता एवं गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है। इस कारण कार्य के दौरान प्रशिक्षण आवश्यक होता है।

प्रश्न 16.
मानव पूँजी और आर्थिक संवृद्धि के बीच संबंध स्पष्ट करें। ”
उत्तर
मानव पूँजी एवं आर्थिक संवृद्धि एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं अर्थात् एक ओर जहाँ प्रवाहित उच्च आय उच्च स्तर पर मानव पूंजी के सृजन का कारण बन सकती है तो दूसरी ओर उच्च स्तर पर मानव पूँजी निर्माण से आय की संवृद्धि में सहायता मिल सकती है।

प्रश्न 17.
भारत में स्त्री शिक्षा के प्रोत्साहन की आवश्यकता पर चर्चा करें।
उत्तर
भारत में स्त्री शिक्षा दर (65.46%) अभी तक पुरुष शिक्षा दर (82.14%) से कम है। ग्रामीण स्त्री शिक्षा दर लगभग 54 है जो शहरी स्त्री शिक्षा दर 87% की अपेक्षा बहुत कम है। इसीलिए आज महिला शिक्षा को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है

  1. समाज में महिलाओं का सामाजिक स्तर ऊँचा उठाने के लिए।
  2. स्त्रियों को तकनीकी शिक्षा प्रदान करने के लिए।
  3. महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता को प्रोत्साहित करने के लिए।
  4. महिलाओं की स्वास्थ्य देख-रेख एवं बच्चों की शिक्षा के लिए महिला शिक्षा आवश्यक है। 

प्रश्न 18.
शिक्षा एवं स्वास्थ्य क्षेत्रों में सरकार के विविध प्रकार के हस्तक्षेपों के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर
शिक्षा एवं स्वास्थ्य आधारिक संरचना के मुख्य बिन्दु हैं। शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएँ निजी क्षेत्र द्वारा भी उपलब्ध कराई जाती हैं और सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा भी। शिक्षा का उच्च स्तर जहाँ कौशल व तकनीकी को विकसित करके उत्पादन क्षमता में वृद्धि करता है वहीं पौष्टिक, प्रदूषण रहित, स्वच्छ व स्वस्थ जीवन श्रम की उत्पादकता में वृद्धि करके राष्ट्रीय आय को संवर्धित करता है। हम जानते हैं कि एक स्वस्थ व साक्षर व्यक्ति एक अस्वस्थ व निरक्षर व्यक्ति की तुलना में अधिक कुशलतापूर्वक कार्य कर सकता है, एक अच्छा प्रबंधनै दुर्लभ राष्ट्रीय संसायधनों के अधिक अच्छे उपयोग को संभव बना सकता है और इस प्रकार राष्ट्रीय एवं प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने में सहायक हो सकता है। इस प्रकार शिक्षा व स्वास्थ्य पर निवेश मानव पूंजी के अच्छे स्रोत हैं और राष्ट्रीय उत्पादकता बढ़ाने में भी सहायक हैं। निजी क्षेत्र लाभ-आधारित होता है और निजी क्षेत्र द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली शैक्षिक व स्वास्थ्य सुविधाएँ अत्यधिक महँगी होती हैं और समाज के सामान्य वर्ग की पहुँच से परे होती हैं। इन सुविधाओं के विस्तार के लिए सरकारी हस्तक्षेप आवश्यक है। इस संबंध में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं

  1. निजी क्षेत्र की एकाधिकारात्मक प्रवृत्ति को रोकना।
  2. निजी क्षेत्र द्वारा शोषण को रोकना।।
  3. सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को स्वास्थ्य एवं शिक्षा सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
  4. निर्धनता रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले लोगों को शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
  5. विभिन्न प्रकार की संक्रामक बीमारियों की रोकथाम करना।
  6. संतुलित आहार की उपलब्धता सुनिश्चित करना।

प्रश्न 19.
भारत में मानव पूँजी निर्माण की मुख्य समस्याएँ क्या है?
उत्तर
भारत में मानव पूँजी निर्माण से संबंधित मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं

  1. भारत में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या मानवीय पूँजी की गुणवत्ता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है। यह सामान्य सुविधाओं जैसे—सफाई, शिक्षा, रोजगार, अस्पतालों और आवासों आदि की प्रति व्यक्ति उपलब्धता को कम करती है।
  2. भारत में सर्वोच्च वरीयता कृषि एवं औद्योगिक क्षेत्रों के विकास को दी जाती है तथा उपलब्ध वित्तीय साधनों का प्रयोग अधिकतम इन्हीं क्षेत्रों में किया जाता है। इसके बाद बचे वित्तीय संसाधनों को अन्य क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है। उनमें भी मानव संसाधन क्षेत्र की वरीयता निम्न दर्जे की होती है। अतः इस क्षेत्र का विकास अवरुद्ध है।
  3. भारत में कुल शिक्षा व्यय का एक बहुत बड़ा हिस्सा प्राथमिक शिक्षा पर व्यय होता है। उच्चतर/तृतीयक शिक्षण संस्थाओं पर होने वाला व्यय सबसे कम है।
  4. राज्यों में होने वाले प्रति व्यक्ति शिक्षा व्यय में काफी अंतर है। जहाँ लक्षद्वीप में इसका उच्च स्तर १ 3,440 है, वहीं बिहार में यह मात्र १ 386 है। ये विषमताएँ ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में भी देखने को मिलती हैं।
  5. जहाँ देश में एक ओर कुछ विशिष्ट प्रकार के श्रमिकों का अभाव अनुभव किया जा रहा है वहीं । दूसरी ओर घोर बेरोजगारी भी विद्यमान हैं। परिणामस्वरूप एक ओर श्रम न मिलने के कारण प्राकृतिक संसाधनों का उचित प्रयोग नहीं होता तथा दूसरी ओर श्रमशक्ति व्यर्थ ही नष्ट हो जाती
  6. शिक्षा सिद्धांत प्रधान है, व्यवसाय प्रधान नहीं।
  7. उच्च शिक्षित एवं कौशल युक्त श्रम विदेशों की ओर पलायन (brain drain) कर जाता है।

प्रश्न 20.
क्या आपके विचार में सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में लिए जाने वाले | शुल्कों की संरचना निर्धारित करनी चाहिए? यदि हाँ, तो क्यों?
उत्तर
हम जानते हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य की देखभाल निजी तथा सामाजिक लाभों को उत्पन्न करती है। इसी कारण इन सेवाओं के बाजार में निजी और सार्वजनिक संस्थाओं को अस्तित्व है। शिक्षा और स्वास्थ्य पर व्यय महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं और उन्हें आसानी से नहीं बदला जा सकता। इसीलिए सरकारी हस्तक्षेप अनिवार्य है तथा निजी क्षेत्रों के लिए शुल्कों की संरचना निर्धारित करना भी आवश्यक है। मान लीजिए, जब भी किसी बच्चे को किसी स्कूल या फिर स्वास्थ्य देखभाल केन्द्र में भर्ती कर दिया जाता है, जहाँ बच्चे को आवश्यक सुविधाएँ नहीं प्रदान की जा रही हों तब ऐसी स्थिति में किसी दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण कर देने पर भी पर्याप्त मात्रा में धन का व्यय हो चुका होगा। यही नहीं, इन सेवाओं के व्यक्तिगत उपभोक्ताओं को सेवाओं की गुणवत्ताओं और लागतों के विषय में पूर्ण जानकारी नहीं होती। इन परिस्थितियों में शिक्षा स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध करा रही संस्थाएँ एकाधिकार प्राप्त कर लेती हैं और शोषण करने लगती हैं। इस समय सरकार की भूमिका यह होनी चाहिए कि वह निजी सेवा प्रदायकों को उचित मानकों के अनुसार सेवाएँ देने और उनकी उचित कीमत लेने को बाध्य करे।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर 

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पूँजी-निर्माण का अर्थ है
(क) बचत करना ।
(ख) बचत नियंत्रित करना
(ग) विनियोग करना
(घ) बचत का वास्तविक पूँजीगत परिसम्पत्तियों में विनियोग करना
उत्तर
(घ) बचत का वास्तविक पूँजीगत परिसम्पत्तियों में विनियोग करना

प्रश्न 2.
“आर्थिक विकास मानवीय प्रयत्नों का परिणाम है।” यह कथन किसका है?
(क) प्रो० रिचार्ड टी० गिल
(ख) प्रो० आर्थर लेविस
(ग) प्रो० शुल्ज
(घ) प्रो० मिंट
उत्तर
(ख) प्रो० आर्थर लेविस

प्रश्न 3.
सन् 2011 में भारत में साक्षरता का प्रलिंशत था
(क) 70.04
(ख) 74.04
(ग) 90
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(ख) 7404

प्रश्न 4.
शिक्षा का महत्त्व नहीं है
(क) शिक्षा नागरिकता की भावना का विकास करती है।
(ख) शिक्षा से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास होता है।
(ग) शिक्षा से लोगों के मानसिक स्तर का पतन होता है।
(घ) शिक्षा से देशवासियों के सांस्कृतिक स्तर में अभिवृद्धि होती है।
उत्तर
(ग) शिक्षा से लोगों के मानसिक स्तर का पतन होता है।

प्रश्न 5.
औपचारिक शिक्षा का कार्यक्रम कब शुरू किया गया?
(क) सन् 1995 ई० में
(ख) सन् 1993 ई० में
(ग) सन् 1996 ई० में ।
(घ) सन् 1980 ई० में
उत्तर
(क) सन् 1995 ई० में

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंख्या मानव पूंजी में कब बदल जाती है?
उत्तर
जब शिक्षा, प्रशिक्षण एवं चिकित्सा सेवाओं में निवेश किया जाता है तो जनसंख्या मानव पूंजी में बदल जाती है।

प्रश्न 2.
मानव पूँजी से क्या आशय है?
उत्तर
मानव पूँजी से आशय कौशल और मानव में निहित उत्पादन के ज्ञान के स्टॉक से है।

प्रश्न 3.
सकल राष्ट्रीय उत्पाद से क्या आशय है?
उत्तर
किसी अर्थव्यवस्था में जो भी अन्तिम वस्तुएँ और सेवाएँ एक वर्ष की अवधि में उत्पादित की जाती हैं, उन सभी के बाजार मूल्य के योग को सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं।

प्रश्न 4.
जनसंख्या का उत्पादक पक्ष क्या है?
उत्तर
जनसंख्या का उत्पादक पक्ष है—सकल राष्ट्रीय उत्पाद के सृजन में उसके योगदान की क्षमता।

प्रश्न 5.
मानव पूँजी निर्माण क्या है।
उत्तर
शिक्षा, प्रशिक्षण एवं स्वास्थ्य द्वारा मानव संसाधन का विकास ही मानघ’पूँजी निर्माण कहलाता है।

प्रश्न 6.
मानव पूंजी में निवेश का क्या महत्त्व है?
उत्तर
मानव पूंजी में निवेश भौतिक पूँजी की ही भाँति प्रतिफल प्रदान करता है। इससे उत्पादकता बढ़ती है। और उत्पादन बढ़ने से आय बढ़ती है।

प्रश्न 7.
चिकित्सक, अध्यापक, अभियंता तथा दर्जी अर्थव्यवस्था के लिए किस प्रकार परिसम्पत्ति
उत्तर
चिकित्सक, अध्यापक, अभियंता तथा दर्जी अर्थव्यवस्था के लिए उत्पादक क्रियाओं में संलग्न हैं। और परिसम्पत्ति है क्योंकि ये चारों ही सकल राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि करते हैं।

प्रश्न 8.
मानव पूँजी को उत्पादक परिसम्पत्ति में कैसे बदला जा सकता है?
उत्तर
मानव पूँजी में निवेश (शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य, तकनीकी व अनुसंधान) द्वारा मानव पूँजी को उत्पादक परिसम्पत्ति में बदला जा सकता है।

प्रश्न 9.
शिक्षा से क्या लाभ है?
उत्तर
शिक्षा द्वारा श्रम की गुणवत्ता में वृद्धि होती है। इससे देश की कुल उत्पादकता में भी वृद्धि होती है। और इसके फलस्वरूप उसकी आय/मजदूरी में भी वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 10.
जनसंख्या की गुणवत्ता किस पर निर्भर करती है?
उत्तर
जनसंख्या की गुणवत्ता साक्षरता दर, जीवन प्रत्याशा से निरूपित व्यक्तियों के स्वास्थ्य और देश के नागरिकों द्वारा प्राप्त कौशल निर्माण पर निर्भर करती है।

प्रश्न 11.
किस व्यक्ति को साक्षर माना जाता है?
उत्तर
वह व्यक्ति जो स्व-विवेक से किसी भाषा को पढ़-लिख सके, साक्षर माना जाता है।

प्रश्न 12.
सन 1951 में साक्षरता-दर क्या थी?
उत्तर
सन् 1951 में साक्षरता दर 16.67 (पुरुष =24.95 तथा स्त्री = 7.93) थी।

प्रश्न 13.
सन 2011 में साक्षरता-दर क्या थी?
उत्तर
सन् 2011 में साक्षरता दर 74.04 (पुरुष = 82.14 तथा स्त्री = 65.46) थी।

प्रश्न 14.
भारत में पुरुष व महिलाओं में से किनमें साक्षरता-दर अधिक है और क्यों?
उत्तर
भारत में पुरुषों में साक्षरता स्त्रियों से अधिक है क्योंकि पुरुष स्त्रियों की तुलना में अधिक संख्या में शिक्षा ग्रहण करते हैं।

प्रश्न 15.
पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ कम शिक्षित क्यों हैं?
उत्तर
पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ कम शिक्षित हैं क्योंकि वे घर व घर से बाहर गैर-आर्थिक क्रिया-कलापों में प्रायः संलग्न रहती हैं।

प्रश्न 16.
साक्षरता-दर की परिकलन कैसे किया जाता है?
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 5 Human Capital Formation in India 1
प्रश्न 17.
समाज के विकास में शिक्षा का क्या योगदान है?
उत्तर
शिक्षा राष्ट्रीय आय और सांस्कृतिक समृद्धि में वृद्धि करती है और प्रशासन की कार्यक्षमता को बढ़ाती है।

प्रश्न 18.
क्या विद्यार्थियों की बढ़ती हुई संख्या को प्रवेश देने के लिए कॉलेजों की संख्या में वृद्धि पर्याप्त है?
उत्तर
नहीं। बढ़ती हुई विद्यार्थियों की संख्या को प्रवेश देने के लिए और अधिक कॉलेजों की स्थापना की जानी चाहिए।

प्रश्न 19.
क्या आप सोचते हैं कि हमें विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ानी चाहिए?
उत्तर
हाँ! विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए और व्यवसायपरक शिक्षा देने के लिए अधिकाधिक विश्वविद्यालय खोले जाने चाहिए।

प्रश्न 20.
संसाधन के रूप में लोग से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर
‘संसाधन के रूप में लोग’ से अभिप्राय वर्तमान उत्पादन कौशल और क्षमताओं के संदर्भ में किसी देश में कार्यरत लोगों के वर्णन करने की एक विधि से है। अन्य संसाधन की भाँति जनसंख्या भी एक साधन है। उसे ‘मानव संसाधन’ कहते हैं।

प्रश्न 21.
मानव संसाधन भूमि और भौतिक पूँजी जैसे अन्य संसाधनों से कैसे भिन्न हैं?
उत्तर
मानव एक सक्रिय संसाधन है जबकि अन्य साधन निष्क्रिय हैं। मानव संसाधन ही भूमि वे भौतिक पूँजी जैसे अन्य संसाधनों का उपयोग करके उन्हें उपयोगी बनाता है, वे अपने आप में उपयोगी नहीं हैं।

प्रश्न 22.
मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका है?
उत्तर
शिक्षा मानव संसाधन को कुशल बनाती है। शिक्षा एवं प्रशिक्षण सुविधाएँ उसकी उत्पादकता में वृद्धि करती हैं जिससे उसकी आय बढ़ती है।

प्रश्न 23.
मानव पूँजी निर्माण में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?
उत्तर
मानव पूंजी निर्माण में स्वास्थ्य सेवाएँ भौतिक पूँजी की ही भाँति प्रतिफल प्रदान करती हैं। अधिक स्वस्थ लोगों की उत्पादकता भी अधिक होती है जिससे उनका उपभोग स्तर एवं जीवन-स्तर भी उच्च रहता

प्रश्न 24.
किसी व्यक्ति के कामयाब जीवन में स्वास्थ्य की क्या महत्त्वपूर्ण भूमिका है?
उत्तर
किसी व्यक्ति के कामयाब जीवन में स्वास्थ्य की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। अच्छा स्वास्थ्य उसे अधिक सक्षम एवं सशक्त बनाता है, रोगों से लड़ने की शक्ति देता है तथा अधिक कार्य करने की क्षमता प्रदान करता है। इससे उसकी उत्पादक़ता एवं आय बढ़ती है। आय की प्राप्ति कामयाबी की सीढ़ी है।

प्रश्न 25.
विरोधाभासी जनशक्ति स्थिति से क्या आशय है?
उत्तर
कुछ विशेष श्रेणियों में जनशक्ति का आधिक्य तथा अन्य श्रेणियों में जनशक्ति की कमी पाई जाती

प्रश्न 26.
श्रमिकों के प्रवास से क्या आशय है?
उत्तर
रोजगार की तलाश में श्रमिकों को गाँवों से शहरों की ओर पलायन ‘श्रमिकों का प्रवास’ कहलाता

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव पूँजी निर्माण किसे कहते हैं?
उत्तर
जनशक्ति अर्थव्यवस्था के लिए एक परिसम्पत्ति है। जब शिक्षा, प्रशिक्षण और चिकित्सा सेवाओं में निवेश किया जाता है तो जनशक्ति मानव पूंजी में बदल जाती है। वास्तव में मानव पूँजी कौशल और उनमें निहित उत्पादन के ज्ञान का स्टॉक है। जब मानव संसाधन को और अधिक शिक्षा तथा स्वास्थ्य द्वारा और विकसित किया जाता है तो हम इसे मानव पूँजी निर्माण कहते हैं। आर्थिक विकास की दर को तीव्र गति से बढ़ाने की दृष्टि से यह एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है।

प्रश्न 2.
किसी देश के लिए मानव पूंजी निर्माण का क्या महत्त्व है? ।
उत्तर
मानव पूंजी निर्माण के महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

  1. मानव पूंजी निर्माण भौतिक पूँजी निर्माण की ही भाँति देश की उत्पादकता शक्ति में वृद्धि करता है।
  2. शिक्षित और बेहतर प्रशिक्षित लोगों की उत्पादकता में वृद्धि के कारण आय में वृद्धि होती है जिससे उनका उपभोग स्तर और इसके फलस्वरूप जीवन-स्तर उच्च होता है।
  3. आय में वृद्धि से समाज के सभी वर्ग प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होते हैं।’
  4. शिक्षित, प्रशिक्षित एवं स्वस्थ व्यक्ति उपलब्ध संसाधनों का अधिक बेहतर उपयोग कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
जनसंख्या को एक उत्पादक परिसम्पत्ति के रूप में कैसे बदला जा सकता है?
उत्तर
मानव पूंजी के निवेश द्वारा विशाल जनसंख्या को एक उत्पादक सम्पत्ति के रूप में बदला जा सकता है। हम जानते हैं कि मानव पूंजी में निवेश (शिक्षा, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सेवा के द्वारा) भौतिक पूँजी की ही भाँति प्रतिफल प्रदान करता है। अधिक शिक्षित, बेहतर प्रशिक्षित और अधिक स्वस्थ लोगों की उत्पादकता का स्तर उच्च होता है। इससे सकल राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि होती है, प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है और उपभोग का स्तर ऊँचा होता है। फलस्वरूप रहन-स्तर के स्तर में भी सुधार होता है। दूसरे, शिक्षित प्रशिक्षित एवं स्वस्थ लोग निष्क्रिय पड़े संसाधनों का बेहतर उपयोग कर सकते हैं।

प्रश्न 4.
जनसंख्या की गुणवत्ता किन घटकों पर निर्भर करती है? जनसंख्या की गुणवत्ता में सुधार क्यों आवश्यक है?
उत्तर
जनसंख्या की गुणवत्ता निम्नलिखित घटकों पर निर्भर करती है
1. साक्षरता दर,
2. जीवन प्रत्याशा,
3. स्वास्थ्य,
4. कौशल निर्माण। जनसंख्या की गुणवत्ता में सुधार आवश्यक है क्योंकि इससे ही अन्ततः देश की संवृद्धि दर निर्धारित होती है। वास्तव में साक्षर एवं स्वस्थ जनसंख्या ही देश की परिसम्पत्तियाँ होती हैं, जबकि निरक्षर व अस्वस्थ जनसंख्या देश पर एक बोझ होती है।

प्रश्न 5.
शिक्षा का क्या महत्त्व है? इसके विकास के लिए सरकार ने क्या किया है?
उत्तर
शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण आगत है। यह राष्ट्रीय आय और सांस्कृ िक समृद्धि में वृद्धि करती है और प्रशासन की कार्यक्षमता बढ़ाती है। सरकार ने शिक्षा के विकास के लिए निम्न कदम उठाए हैं1. प्राथमिक शिक्षा की अनिवार्य किया गया है तथा प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय खोले गए हैं। इस

  1. दिशा में सर्वशिक्षा अभियान एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  2. विद्यार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा उपलब्ध कराने पर विशेष बल दिया गया है।
  3. शिक्षा पर योजना व्यय बढ़ाया गया है।

प्रश्न 6.
किसी देश में जनसंख्या की स्वास्थ्य स्थिति को सुधारना क्यों आवश्यक है?
उत्तर
अच्छा स्वास्थ्य व्यक्ति को अपनी क्षमता बढ़ाने और बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है। वास्तव में स्वास्थ्य स्व-कल्याण की अनिवार्य आधारशिला है। अस्वस्थ लोगों की कार्यक्षमता का स्तर निम्न होता है। जबकि स्वस्थ लोगों की कार्यक्षमता का स्तर उच्च होता है। इसलिए जनसंख्या की स्वास्थ्य स्थिति को सुधारना किसी भी देश की प्राथमिकता होती है और इसीलिए सरकार स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार कल्याण और पौष्टिक भोजन पर विशेष ध्यान दे रही है। अब एक विस्तृत स्वास्थ्य आधारित संरचना का निर्माण देश का प्राथमिक लक्ष्य है।

प्रश्न 7.
मानव पूंजी में विनियोग की सीमाएँ बताइए।
उत्तर
मानव पूंजी में विनियोग की सीमाएँ निम्नलिखित हैं

  1. अल्पविकसित देशों में वित्तीय साधनों का अभाव होता है। अत: उपलब्ध संसाधनों को केवल मानव विकास पर ही व्यय नहीं किया जा सकता।
  2. विदेशी तकनीकी सहायता के बिना अल्पविकसित देशों में कौशल निर्माण सम्भव नहीं है। विदेशी तकनीकी सहायता के आयात के लिए विदेशी विनिमय कोषों की आवश्यकता होती है और अल्पविकसित देशों में विदेशी विनिमय कोष पर्याप्त मात्रा में नहीं होते।
  3. अधिकांश अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाएँ कृषिप्रधान होती हैं और कृषि के अंतर्गत नव-प्रवर्तन एवं कौशल निर्माण की सम्भावना अत्यधिक कम होती है।
  4. इनका सामाजिक, सांस्कृतिक ढाँचा तकनीकी परिवर्तन के अनुकूल नहीं होता।
  5. इन देशों में ज्ञान व कौशल के प्रति जन-सामान्य उदासीन होता है।
  6. कौशल निर्माण मानवीय साधनों के विकास की एक दीर्घकालीन प्रक्रिया है जिसके लिए पर्याप्त एवं लगातार विनियोग, असीमित धैर्य एवं सतर्कता की आवश्यकता है। अल्पविकसित देशों में ऐसा सम्भव नहीं होता।

प्रश्न 8.
मानव विकास से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
मानव विकास से आशय मानव में गुणात्मक सुधार करना है। सन् 1990 में सर्वप्रथम प्रकाशित Human Development Report के अनुसार, मानव विकास लोगों के सामने विस्तार की प्रक्रिया है। UNDP की मानव विकास रिपोर्ट (1997 ई०) में मानव विकास की अवधारणा को इस प्रकार स्पष्ट किया गया है, “यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा जनसामान्य के विकल्पों का विस्तार किया जाता है और इनके द्वारा उनके कल्याण के उन्नत स्तर को प्राप्त किया जाता है। यही मानवीय विकास की धारणा का मूल है। ऐसे सिद्धांत न तो सीमाबद्ध होते हैं और न ही स्थैतिक। परंतु विकास के स्तर को दृष्टि में न रखते हुए जनसामान्य के पास तीन विकल्प हैं—एक लम्बा और स्वस्थ जीवन व्यतीत करना, ज्ञान प्राप्त करना ही अच्छा जीवन स्तर प्राप्त करने के लिए आवश्यक, संसाधनों तक अपनी पहुँच बढ़ाना और भी अनेक विकल्प हैं जिन्हें बहुत-से लोग महत्त्वपूर्ण मानते हैं–राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता से सृजनात्मक और उत्पादक बनने के अवसर और स्वाभिमान एवं गारण्टीकृत मानवीय अधिकारों का लाभ उठाना…..आय केवल एक विकल्प है…. जो लोग आय प्राप्त करना चाहेंगे, चाहे यह बहुत महत्त्वपूर्ण है परंतु यह उनके समग्र जीवन का सार नहीं है। आय एक साधन है जबकि मानव विकास एक साध्य।”

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न

प्रश्न  1.
निर्माण से क्या आशय है? मानव संसाधन विकास के मुख्य स्रोत बताइए।
उत्तर
आर्थिक विकास की प्रक्रिया में अधिकांशतः भौतिक पूँजी के संचय को ही अधिक महत्त्व दिया जाता है जबकि व्यवहार में पूँजी स्टॉक की वृद्धि पर्याप्त सीमा तक मानव पूंजी-निर्माण पर निर्भर रहती हैं। मानव पूंजी-निर्माण, देश के सब लोगों का ज्ञान, कुशलता तथा क्षमताएँ बढ़ाने की प्रक्रिया है। शुल्ज, हार्बिसन, डेनिसन, केण्डूिक, मोसिज, अब्रामोविट्ज़, बैकर, मेरी बोमन, कुजनेस आदि अर्थशास्त्रियों का मत है कि शिक्षा पर व्यय किया गया एक डॉलर राष्ट्रीय आय में उसकी अपेक्षा अधिक वृद्धि करता है, जितना बाँधों, सड़कों, फैक्ट्रियों या अन्य व्यवहार्य पूँजी वस्तुओं पर व्यय किया गया एक डॉलर।

मानव पूँजी निर्माण का अर्थ एवं परिभाषाएँ

मानव पूँजी निर्माण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत मानवीय शक्ति के विकास हेतु भारी मात्रा में विनियोग किया जाता है ताकि देश में मानव-शक्ति तकनीकी कुशलता एवं योग्यता प्राप्त कर सके। इसका संबंध ‘‘ऐसे व्यक्ति उपलब्ध करना और उनकी संख्या में वृद्धि करना है जो कुशल, शिक्षित तथा अनुभवी हों-मानव पूँजी–निर्माण इस प्रकार मानवे में विनियोजन और उसके निर्माणकारी तथा उत्पादक साधन के रूप में विकास से संबंध है।’ इसके अंतर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य एवं प्रशिक्षण पर किया गया व्यय सम्मिलित होता है।

प्रो० मायर के अनुसार- “मानवीय पूँजी निर्माण ऐसे लोगों को प्राप्त करने तथा उनकी संख्या को बढ़ाने की प्रक्रिया है जिनके पास ये कुशलताएँ, शिक्षा और अनुभव होता है जो किसी देश के आर्थिक विकास एवं राजनीतिक विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।”

प्रो० हार्बिसन के शब्दों में—“मानव पूँजी निर्माण से अभिप्राय ऐसे व्यक्तियों को उपलब्ध करना और इनकी संख्या में वृद्धि करना है जो कुशल, शिक्षित व अनुभवपूर्ण हों, जिनकी देश के आर्थिक एवं राजनीतिक विकास के लिए नितांत आवश्यकता होती है। मानव पूंजी निर्माण इस प्रकार मानव में विनियोजन और उसके सृजनकारी तथा उत्पादक साधन की माप में विकास से संबंधित है।”

मानव पूँजी निर्माण के स्रोत मानव पूंजी निर्माण के कुछ महत्त्वपूर्ण स्रोत निम्न प्रकार हैं

1. शिक्षा- शिक्षा पर व्यंय मनुष्य को अधिक कुशल बनाकर उसकी उत्पादन क्षमता में वृद्धि करता | है। इससे भविष्य की आय बढ़ने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं।

2. स्वास्थ्य- एक स्वस्थ व्यक्ति ही किसी कार्य को अच्छी तरह से कर सकता है। चिकित्सासुविधाओं के अभाव में श्रमिक बीमार रहता है और बीमार श्रमिक कार्य से बचता हैं इससे उसकी उत्पादकता कम हो जाती है। स्वास्थ्य पर किया गया व्यय स्वस्थ श्रम बल की पूर्ति को बढ़ाता है। और इस कारण यह मानव पूँजी निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

3. प्रशिक्षण– फमें अपने कर्मचारियों के प्रशिक्षण पर व्यय करती हैं। फमें प्रशिक्षण कार्य की व्यवस्था कारखाने के अंदर भी कर सकती हैं अथवा अपने कर्मचारियों को अन्य प्रशिक्षण संस्थानों में प्रशिक्षण दिला सकती हैं। प्रशिक्षण पर किया गया यह व्यय कर्मचारी की उत्पादकता को बढ़ाता है और इस प्रकार फर्म के लाभ में वृद्धि होती है।

4. प्रवसन तथा सूचना- सामान्यत: लोग अधिक आय की तलाश में अपने मूल स्थान से दूसरे स्थानों को पलायन करते हैं। प्रवसन के दौरान किए जाने वाले व्यय की तुलना में आय में अधिक वृद्धि होती है। इसी प्रकार व्यक्ति श्रम बाजार तथा दूसरे बाजार जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए व्यय करते हैं यह जानकारी मानव पूंजी के उपयोग के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं।

प्रश्न 2.
एक अल्पविकसित अर्थव्यवस्था में मानव पूँजी निर्माण के महत्त्व एवं भूमिका को स्पष्ट | कीजिए।’.
उत्तर
अल्पविकसित अर्थव्यवस्था में मानव पूँजी निर्माण का महत्त्व (भूमिका) किसी भी देश के द्रुत आर्थिक विकास में मानवीय पूँजी का विशेष महत्त्व है। प्रो० आर्थर लेविस के शब्दों में “आर्थिक विकास मानवीय प्रयत्नों का परिणाम है।” प्रो० रिचार्ड टी० गिल के अनुसार 
आर्थिक विकास कोई यांत्रिक प्रक्रिया नहीं बल्कि एक मानवीय उपक्रम है जिसकी प्रगति उन लोगों की कुशलता, गुणों, दृष्टिकोणों एवं अभिरुचियों पर निर्भर करती है। प्रो० शुल्ज के अनुसार-“हमारी आर्थिक प्रणाली का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्षण मानवीय पूँजी का विकास है।’

आर्थिक विकास की दृष्टि से मानवीय पूँजी भौतिक पूँजी की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसका कारण यह है कि भौतिक पूँजी का निर्माण भी मानवीय पूँजी के निर्माण पर ही निर्भर करता है। यदि मानवीय पूँजी निर्माण के लिए कम विनियोग किया जाता है, तो अतिरिक्त भौतिक पूँजी के उत्पादक कार्यों में विनियोग की दर कम होगी और आर्थिक विकास की प्रक्रिया धीमी पड़ जाएगी। अधिकांश अल्पविकसित देशों में मानवीय पूँजी निर्माण उपेक्षित रहा है और उन्होंने ‘भौतिक परिसम्पत्ति के निर्माण पर ही अधिक ध्यान दिया है। प्रो० मिंट का यह कथन सत्य है कि “अब यह अधिकाधिक स्वीकार किया जाता है कि बहुत-से अल्पविकसित देशों का विकास बचत की कमी के कारण इतना नहीं | रुका है जितना कि कौशल और ज्ञान की कमी के कारण, जिसकी वजह से उनकी व्यवस्था की उत्पादक विनियोग में पूंजी का अवशोषण करने की क्षमता सीमित हो गई है।”

इसलिए नई तथा विस्तारशील सरकारी सेवाओं में कर्मचारी नियुक्त करने के लिए, भूमि प्रयोग की नई व्यवस्था तथा कृषि के नए तरीके प्रचलित करने के लिए, संचारण के नए साधनों का विकास करने के लिए, औद्योगीकरण को आगे ले जाने के लिए, शिक्षा प्रणाली का निर्माण करने के लिए मानव पूँजी आवश्यक है। वास्तव में, यदि देश के पास पर्याप्त मानव पूंजी हो, तो भौतिक पूँजी अधिक उत्पादक बन जाती है। जैफ रेंज के शब्दों में जो देश अपने आर्थिक विकास की गति बढ़ाने का प्रयत्न कर रहे हैं। उनमें यह देखा गया है कि उन्नत औद्योगिक देशों से आधुनिक विधियों तथा मशीनरी का प्रयोग करने के लिए प्रथम श्रेणी के अभियंताओं द्वारा जमाएँ रूपांकित किए जाते हैं तब भी प्रदा की मात्रा तथा श्रेणी प्रायः असंतोषजनक रहती है। क्यों? क्योंकि अधिकांश स्थितियों में प्रबन्धक तथा श्रमिक अपर्याप्त रूप से

अप्रशिक्षित होते हैं और उनमें अनुभव की कमी होती है। प्रो० शुल्ज का कहना है कि “मानव पूँजी के अभाव में ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे पास साधनों का मानचित्र हो पर उसमें महान नदी और उसकी शाखाएँ न हों। शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य में उन्नतियाँ और अर्थव्यवस्था में सूचना के बढ़ते स्टॉक उस विशिष्ट नदी का पोषण करते हैं।’ एक विकासशील अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास की गति को तेज करने तथा उसे पिछड़ेपन से बाहर निकालने में मानव पूंजी निर्माण निम्न प्रकार सहायक हो सकता है

  1. यह अल्पविकसित देशों के समग्र वातावरण में परिवर्तन ला सकता है। यह लोगों की आकांक्षाओं,अभिवृत्तियों एवं अभिप्रेरणाओं को विकासोन्मुखी बनाकर आर्थिक विकास के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करा सकता है।
  2. मानव पूँजी भौतिक पूँजी को अधिक उत्पादक बना देती है।
  3. मानवीय पूँजी निर्माण में निवेश अधिक प्रतिफल प्रदान करता है। यह प्रतिफल लागत से अधिक | होता है।
  4. प्राकृतिक संसाधनों का अधिक बेहतर उपयोग किया जा सकता है।
  5. श्रम बल की गतिशीलता बढ़ती है जिससे उसकी आय में वृद्धि होती है।
  6. श्रमिकों के ज्ञान में वृद्धि होती है।
  7. आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करके उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।
  8. श्रम को लाभकारी रोजगार प्राप्त होता है।

संक्षेप में, मानवीय पूँजी निर्माण में किया गया निवेश उपलब्ध संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करके आर्थिक विकास की देर में वृद्धि कर सकता है।

प्रश्न 3.
मानवीय पूँजी निर्माण में निवेश के मुख्य क्षेत्र बताइए।
उत्तर
मानवीय पूँजी निर्माण में निवेश के मुख्य क्षेत्र निम्नलिखित हैं
1. शिक्षा एवं प्रशिक्षण सुविधाएँ–शिक्षा एवं प्रशिक्षण सेवाओं पर किया गया विनियोजन मानव 
शक्ति की कार्यकुशलता को बढ़ाता है, जिससे आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के एक अध्ययन के अनुसार-‘सबसे अधिक प्रगति उन देशों में होगी जहाँ पर शिक्षा विस्तृत होती है और जहाँ पर वह लोगों में प्रयोगात्मक दृष्टिकोणों को विस्तृत करती है। प्रो० सिंगर के अनुसार-“शिक्षा में किया गया विनियोग बहुत अधिक उत्पादक ही नहीं होता है बल्कि वह बढ़ता हुआ प्रतिफल भी देता है क्योंकि कुल तथा शिक्षित व्यक्तियों के सहयोग से काम करता हुआ दल उन व्यक्तियों के समूह में अधिक उपयोगी होता है जिससे कि वह मिलकर बनता है। मानवीय विनियोग के जिस क्षेत्र में भी हम देखते हैं, वहाँ हमें बढ़ता हुआ प्रतिफले ही देखने को मिलता है।’ प्रो० रिचार्ड टी० गिल के शब्दों में—“शिक्षा पर किया गया विनियोग आर्थिक विकास की दृष्टि से सर्वाधिक सार्थक विनियोग माना जाएगा। प्रो० गैलबैथ ने शिक्षा को उपभोग और विनियोग दोनों ही माना है। शिक्षा पर विनियोग करते समय निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए

  1. अर्थव्यवस्था की दशा पर ध्यान देना चाहिए उदाहरण के लिए कृषिप्रधान| अर्थव्यवस्थाओं में कृषि शिक्षा एवं प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
  2. विकास को गति मिलने पर ‘औद्योगिक प्रशिक्षण’ पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
  3. शैक्षिक पद्धति कार्यमूलक होनी चाहिए, सिद्धान्त प्रधान नहीं।
  4. इसके पश्चात्, प्रबन्धकीय व व्यावसायिक शिक्षा पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

2. स्वास्थ्य एवं पोषण— किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए उत्पादकता में वृद्धि’ एक आवश्यक पूर्ण शर्त है और उत्पादकता में वृद्धि के लिए स्वस्थ जनशक्ति का होना आवश्यक है। स्वास्थ्य का निम्न स्तर एवं पोषण की कमी उत्पादकता एवं आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। अल्पविकसित देशों में अल्पपोषण, चिकित्सा सेवाओं की कमी व स्वास्थ्य के निम्न स्तर 

के कारण उनकी गुणात्मक उत्पादकता कम होती है। उनकी प्रति व्यक्ति आय कम होती है और वे निर्धनता के दूषित चक्र में जड़ जाते हैं। अतः इन देशों में विकास की गति को तेज करने के लिए जनशक्ति के गुणों में सुधार किया जाना आवश्यक है। इसके लिए लोगों को पर्याप्त एवं पौष्टिक भोजन दिया जाना चाहिए, सफाई एवं स्वास्थ्य दशाओं की व्यवस्था की जानी चाहिए वृथा चिकित्सा सुविधाओं का विस्तार किया जाना चाहिए। इन मदों पर किया गया विनियोग लोगों के स्वास्थ्य एवं कार्यक्षमता में सुधार लाएगा, श्रम की कार्यक्षमता एवं उत्पादकता को बढ़ाएगा और

आर्थिक विकास दर को तेज करेगा। 3. आवास सुविधाएँ-आवास व्यवस्था मानवीय स्वास्थ्य एवं कार्यकुशलता को प्रभावित करने

वाली एक महत्त्वपूर्ण घटक है। गंदी बस्तियाँ, बिना हवा एवं रोशनी के छप्परयुक्त झोंपड़ियाँ, सीलन एवं गंदगी से भरी गलियाँ लोगों के स्वास्थ्य को शनैः-शनैः क्षीण करती हैं जिसका उनकी उत्पादकता एवं देश के आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अतः इन गंदी बस्तियों को स्वस्थ, हवादार एवं स्वच्छ बनाया जाना चाहिए, मकान निर्माण योजनाओं को व्यापक स्तर पर चालू किया जाना चाहिए और कार्य हेतु निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। अच्छी आवास व्यवस्था श्रमिकों की कार्यक्षमता को बढ़ाएगी, उनके उत्पादकता के स्तर को ऊँचा करेगी और आर्थिक विकास की दर को तीव्र करेगी।

प्रश्न 4.
मानवीय पूँजी निर्माण की मुख्य समस्याएँ बताइए। इन समस्याओं को हल करने के लिए उपयुक्त सुझाव दीजिए।
उत्तर
मानवीय पूँजी निर्माण की समस्याएँ मानव पूंजी निर्माण में आने वाली कुछ मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं

1. आवश्यक मानव पूँजी के स्टॉक का अनुमान लगाने की समस्या- अल्पविकसित देशों में आर्थिक विकास की दृष्टि से आवश्यक मानव पूंजी के कुल स्टॉक का अनुमान लगाना एक कठिन कार्य है। विशेष रूप से विकास की विभिन्न अवस्थाओं में यह अनुमान लगाना तो और भी कठिन होता है। फिर भी, ईतना निश्चित है कि अल्पविकसित देशों के विकास की प्रारम्भिक अवस्था में शिक्षित व प्रशिक्षित व्यक्तियों के रूप में मानव पूंजी (उद्यमी, संगठक, प्रशासक, वैज्ञानिक, चिकित्सक, अभियंता आदि) की आवश्यकता अधिक होती है।

2. मानव पूँजी निर्माण की वृद्धि दर को व्यक्त करने की समस्या- मानव पूँजी निर्माण की वृद्धि दर को स्पष्ट शब्दों में व्यक्त करना सम्भव नहीं होता। फिर भी, इस संबंध में यह कहा जाता है कि सामान्य रूप से मानव पूँजी निर्माण की वृद्धि दर, केवल श्रम-शक्ति की वृद्धि दर से ही नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर से भी अधिक होनी चाहिए। हार्बिसन का कहना है कि तकनीकी व्यक्तियों में वृद्धि दर श्रम शक्ति की वृद्धि दर से कम-से-कम तिगुनी तथा क्लर्को, शिल्पियों, प्रबंधकों और प्रशासक सेविवर्ग की वृद्धि से दुगुनी अवश्य होनी चाहिए।

3. शिक्षा में विनियोजन का ढाँचा निर्धारित करने की समस्या–एशिया, अफ्रीका तथा दक्षिणी अमेरिका के अधिकांश देशों में, प्राथमिक शिक्षा पर अधिक बल दिया जाता है जोकि प्रायः निःशुल्क एवं अनिवार्य होती है और माध्यमिक शिक्षा पर कम। ऐसा करने में पर्याप्त अपव्यय होता है और अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों का दबाव बढ़ने से आर्थिक विकास में बाधा पड़ती है।

4. उच्चतर शिक्षा के अनुचित प्रसार की समस्या- अल्पविकसित देश शिक्षा के विद्यमान स्तर में सुधार किए बिना ही उच्चतर शिक्षा हेतु विश्वविद्यालय खोलते रहते हैं। फलस्वरूप शिक्षा के स्तर में गिरावट आ जाती है तथा निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्रों में रोजगार प्राप्त स्नातकों की दक्षता और उन्नति की सम्भावना घट जाती है। मिंट महोदय का विचार है कि इस प्रकार की शिक्षा नीति एक प्रकार से देश के आर्थिक विकास व मानवीय साधनों का अपव्यय है।।

5. कृषि शिक्षा, स्त्री एवं प्रौढ़ शिक्षा तथा कार्यरत प्रशिक्षण कार्यक्रमों का अभावं- अल्पविकसित देशों में कृषि शिक्षा, स्त्री एवं प्रौढ़ शिक्षा तथा कार्यरत प्रशिक्षण (On the job training) कार्यक्रमों की ओर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। परिणामत: आर्थिक विकास की दृष्टि से उपयुक्त मानसिकता, दृष्टिकोण तथा उत्पादक क्रियाओं का अभाव बना रहता है।

समस्याओं के निवारण हेतु उपयुक्त सुझाव

भारत में मानव पूंजी निर्माण में वृद्धि एवं इसके मार्ग में आने वाली समस्याओं के समाधान के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं

  1. जनसंख्या में उच्च वृद्धि दर को कम किया जाए। इससे श्रम-बल में वृद्धि की दर कम होगी, बचत । और निवेश में वृद्धि होगी तथा जनसंख्या की गुणवत्ता में सुधार होगा।
  2. उपयुक्त जनशक्ति नियोजन किया जाए ताकि श्रम की पूर्ति श्रम की माँग के अनुरूप की जा सके।
  3. उपर्युक्त शिक्षा सुधार की योजना बनाई जाए। शिक्षा सिद्धांत प्रधान न होकर व्यवसाय प्रधान हो। शिक्षा विकास के अनुरूप होनी चाहिए।
  4. देश में वर्तमान जनसंख्या के लिए पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएँ और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराया | जाना चाहिए।
  5. मानव पूँजी निर्माण राष्ट्रीय विकास कार्यक्रम का एक भाग बनाया जाना चाहिए।

प्रश्न 5.
मानव संसाधन विकास के एक आवश्यक तत्त्व के रूप में शिक्षा का महत्त्व एवं स्वरूप बताइए। भारत में शिक्षा क्षेत्र के विकास पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
शिक्षा : मानव संसाधन के विकास का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। शिक्षा से आशय लोगों के पढ़ने-लिखने और समझने की योग्यता से है। भारत में मात्र 74.04% लोग साक्षर हैं, जबकि अन्य विकसित देशों में यह प्रतिशत 90 से 95 तक है।

शिक्षा का महत्त्व

शिक्षा के महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

  1. शिक्षा नागरिकता की भावना का विकास करती है।
  2. शिक्षा से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास होता है।
  3. शिक्षा उपलब्ध प्राकृतिक एवं मानवीय साधनों के विवेकपूर्ण उपयोग को सुविधाजनक बनाती है।
  4. इससे लोगों के मानसिक स्तर का विकास होता है।
  5. इससे देशवासियों के सांस्कृतिक स्तर में अभिवृद्धि होती है।
  6. यह मानवीय व्यक्तित्व के विकास में सहायक है।
  7. यह विकास प्रक्रिया में जनसहभागिता को संभव बनाती है।

भारत में शिक्षा क्षेत्र का विकास

1. सामान्य शिक्षा का प्रसार- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् देश में सामान्य शिक्षा का व्यापक प्रसार हुआ है। देश में शिक्षण संस्थाओं की संख्या लगभग चार गुना और छात्रों की संख्या लगभग पाँच गुना बढ़ चुकी है। 1951 ई० में कुल जनसंख्या का मात्र 16% ही साक्षर था जो 2011 में बढ़कर लगभग 74.04% हो गया है।

2. प्राथमिक शिक्षा- प्राथमिक शिक्षा में 6 से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों में कक्षा एक से आठ तक के छात्र आते हैं। योजनाकाल में प्राथमिक स्कूलों की संख्या में काफी वृद्धि हुई। इस समय 6 से 14 वर्ष के आयु समूह में लगभग 90% बच्चे स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं किंतु अभी भी यह प्रतिशत निम्न है। शिक्षा की दृष्टि से अति पिछड़े राज्य हैं-बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व अरुणाचल प्रदेश। शिक्षा के इस पिछड़ेपन का प्रमुख कारण आर्थिक व सामाजिक पिछड़ापन है।

3. माध्यमिक शिक्षा- वर्ष 2010-11 में देश में लगभग 2 लाख 45 हजार माध्यमिक विद्यालय कार्य कर रहे थे। इनके अतिरिक्त केन्द्रीय विद्यालय’ व ‘नवोदय विद्यालय भी स्थापित किए गए  हैं। किंतु इन विद्यालयों में विद्यार्थियों का दाखिला संतोषजनक नहीं रहा है। यह मात्र 20% है। इसके अतिरिक्त शिक्षा के व्यावसायीकरण में भी विशेष सफलता नहीं मिली है।

4. उच्चतर शिक्षा– भारत में विश्वविद्यालयों एवं विश्वविद्यालय स्तर की संस्थाओं में 20 केन्द्रीय विश्वविद्यालय, 215 राज्य विश्वविद्यालय, 100 समकक्ष विश्वविद्यालय, राज्य अधिनियम के अंतर्गत गठित 5 संस्थाएँ तथा 13 राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान शामिल हैं। ये संस्थान 1800 महिला महाविद्यालयों सहित 17000 महाविद्यालयों के अतिरिक्त हैं। देश में शिक्षा के क्षेत्र में अब प्राइवेट विश्वविद्यालय भी खुल गए हैं।

5. तकनीकी, चिकित्सकीय एवं कृषि शिक्षा– स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थानों में काफी वृद्धि हुई है। वर्तमान में देश में 1215 पॉलीटैक्निकल संस्थाएँ तथा 778 मान्यता प्राप्त इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में, देश में 268 मेडिकल कॉलेज तथा 126 डेन्टल कॉलेज हैं। देश में अनेक अनुसंधान केन्द्र भी स्थापित किए गए

6. ग्रामीण शिक्षा- ग्रामीण क्षेत्रों में भी शिक्षा के व्यापक प्रसार पर बल दिया जा रहा है। इस हेतु राष्ट्रीय ग्रामीण उच्च शिक्षा परिषद् की स्थापना की जा चुकी है।

7. प्रौढ़ तथा स्त्री शिक्षा- प्रौढ़ शिक्षा के प्रोत्साहन के लिए राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की स्थापना की गई। 1975 ई० में औपचारिक शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया गया है। स्त्रियों में शिक्षा का प्रसार करने के लिए स्त्री शिक्षा परिषद् की स्थापना की गई है।

8. कुल साक्षरता अभियान– देश में सभी के लिए शिक्षा’ आन्दोलन शुरू किया जा चुका है। | इसके फलस्वरूप साक्षरता में तेजी से वृद्धि हुई है। उपर्युक्त प्रयासों के बावजूद हमने शिक्षा के क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय सफलता अर्जित नहीं की है। आज भी भारत में निरक्षर लोगों की संख्या विश्व में सबसे अधिक है, व्यावसायिक शिक्षा की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है, बालिकाओं का दाखिला प्रतिशत अपेक्षाकृत कम है, ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों में शिक्षा तक पहुँच कम है और निजीकरण से शैक्षिक जगत में असमानताएँ बढ़ी हैं। अतः शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है।

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास बहुविकल्पीय प्रश्न : एक

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 2
Chapter Name गद्य-साहित्यका विकास बहुविकल्पीय प्रश्न : एक
Number of Questions 48
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास बहुविकल्पीय प्रश्न : एक

बहुविकल्पीय प्रश्न : एक

वासुदेवशरण अग्रवाल

उचित विकल्प का चयन कीजिए-

(1) निम्नलिखित में कौन-सा निबन्ध-संग्रह नहीं है ?
(क) भारत की एकता
(ख) पृथिवी-पुत्र
(ग) कल्पवृक्ष
(घ) पाणिनिकालीन भारतवर्ष

(2) पाणिनिकालीन भारतवर्ष’ किस विधा की रचना है ?
(क) पत्र-पत्रिका
(ख) निबन्ध
(ग) आलोचन
(घ) शोध – निबन्ध

(3) ‘कल्पवृक्ष’ निबन्ध के रचनाकार हैं-
(क) श्यामसुन्दर दास
(ख) मोहन राकेश
(ग) सरदार पूर्णसिंह
(घ) वासुदेवशरण अग्रवाल

(4) निम्नलिखित में से कौन छायावादोत्तर युग के लेखक हैं ? [2013]
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) राय कृष्णदास
(ग) बाबू गुलाबराय
(घ) वासुदेवशरण अग्रवाल

(5) ‘पृथिवी-पुत्र’ और ‘माता-भूमि’ नामक निबन्ध-संग्रह के रचनाकार हैंया ‘पृथिवी-पुत्र’ निबन्ध-संग्रह है- [2015, 17]
(क) सरदार पूर्णसिंह
(ख) वासुदेवशरण अग्रवाल
(ग) हरिशंकर परसाई
(घ) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर

(6) ‘राष्ट्र का स्वरूप’ निबन्ध के रचयिता हैं-
(क) डॉ० सम्पूर्णानन्द
(ख) रायकृष्ण दास
(ग) वासुदेवशरण अग्रवाल
(घ) मोहन राकेश

(7) ‘राष्ट्र का स्वरूप’ निबन्ध संकलित है [2018]
(क) “कल्पलता’ में
(ख) “पृथिवी-पुत्र’ में
(ग) “कल्पवृक्ष’ में
(घ) “मातृभूमि’ में

उत्तर (1) घ, (2) घ, (3) घ, (4) घ, (5) ख, (6) ग, (7) ख।

कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’

उचित विकल्प का चयन कीजिए-

(1) लघुकथा, संस्मरण, रेखाचित्र और रिपोर्ताजविधाओं का इन्होंने प्रवर्तन और पोषण किया-
(क) रामवृक्ष बेनीपुरी
(ख) सरदार पूर्णसिंह
(ग) जैनेन्द्र कुमार
(घ) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर

(2) ‘नया जीवन’ और ‘विकास’ पत्र के सम्पादक थे-
(क) डॉ० सम्पूर्णानन्द
(ख) मोहन राकेश
(ग) जैनेन्द्र कुमार
(घ) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर

(3) ‘क्षण बोले कण मुसकाये’ और ‘बाजे पायलिया के हुँघरू’ दोनों ललित-निबन्ध विधा की रचनाएँ हैं; इनके रचनाकार हैं-
(क) विद्यानिवास मिश्र
(ख) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर
(ग) महावीरप्रसाद द्विवेदी
(घ) जैनेन्द्र कुमार

(4) ‘दीप जले शंख बजे’ किस लेखक द्वारा रचित संस्मरण विधा की रचना है ?
(क) रामवृक्ष बेनीपुरी
(ख) महावीरप्रसाद द्विवेदी
(ग) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’
(घ) जैनेन्द्र कुमार

(5) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ द्वारा रचित कौन-सी रचना रेखाचित्र है ?
(क) नयी पीढ़ी के विचार
(ख) धरती के फूल
(ग) आकाश के तारे
(घ) क्षण बोले कण मुसकाये

(6) इनमें से किस लेखक ने अपनी सर्वाधिक रचनाएँ रेखाचित्र विधा में की हैं ?
(क) विद्यानिवास मिश्र
(ख) जैनेन्द्र कुमार।
(ग) मोहन राकेश
(घ) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर

(7) देवबन्द(सहारनपुर) जन्म-स्थान है [2015]
(क) मोहन राकेश का
(ख) श्यामसुन्दर दास का
(ग) डॉ० सम्पूर्णानन्द का
(घ) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ का

(8) ‘भूले बिसरे चेहरे’ के रचनाकार हैं (2018)
(क) रामधारीसिंह ‘दिनकर’
(ख) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’
(ग) हरिशंकर परसाई
(घ) हजारीप्रसाद द्विवेदी

उत्तर (1) घ, (2) घ, (3) ख, (4) ग, (5) के, (6) घ, (7) घ, (8) ख।

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ।

उचित विकल्प का चयन कीजिए-

(1) निम्नलिखित रचनाओं में कौन-सी रचना आलोचना विधा की रचना है ?
(क) अशोक के फूल
(ख) हिन्दी-साहित्य
(ग) पुनर्नवा
(घ) साहित्य का मर्म

(2) निम्नलिखित में कौन-सी रचना ‘इतिहास’ नहीं है ?
(क) हिन्दी-साहित्य की भूमिका
(ख) हिन्दी-साहित्य
(ग) हिन्दी-साहित्य का आदिकाल
(घ) बाणभट्ट की आत्मकथा

(3) ‘अशोक के फूल’ तथा ‘विचार-प्रवाह’ निबन्ध-संग्रह के लेखक हैं-
(क) वासुदेवशरण अग्रवाल
(ख) रामवृक्ष बेनीपुरी
(ग) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’
(घ) आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी

(4) ‘कुटज’ किस विधा की रचना है?
(क) कहानी
(ख) संस्मरण
(ग) उपन्यास
(घ) ललित निबन्ध

(5) इनमें से कौन-सी रचना उपन्यास नहीं है ?
(क) अनामदास का पोथा
(ख) चारु चन्द्रलेख
(ग) आलोक पर्व
(घ) बाणभट्ट की आत्मकथा

(6) ‘कालिदास की लालित्य योजना’ किस विधा की रचना है ?
(क) आलोचना
(ख) संस्मरण
(ग) नाटक
(घ) निबन्ध

(7) हिन्दी के उच्च स्तरीय ललित-निबन्धकारों में इनका मूर्धन्य स्थान है-
(क) श्यामसुन्दर दास
(ख) प्रतापनारायण मिश्र
(ग) हजारीप्रसाद द्विवेदी
(घ) जयशंकर प्रसाद

(8) निम्नलिखित में कौन छायावादी युग के गद्य-लेखक हैं ?
(क) प्रतापनारायण मिश्र
(ख) हजारीप्रसाद द्विवेदी
(ग) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(घ) नन्ददुलारे वाजपेयी

(9) हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म-काल है–
(क) 1907 ई०
(ख) 1906 ई०
(ग) 1902 ई०
(घ) 1905 ई०

(10) हजारीप्रसाद द्विवेदी का लेखन-युग है
(क) भारतेन्दु युग
(ख) द्विवेदी युग
(ग) छायावाद युग
(घ) छायावादोत्तर युग

(11) हजारीप्रसाद द्विवेदी के निबन्ध किस श्रेणी में आते हैं ? [2009]
(क) ऐतिहासिक निबन्ध
(ख) मनौवैज्ञानिक निबन्ध
(ग) ललित निबन्ध
(घ) वस्तुप्रधान निबन्ध

(12) सन् 1957 में पद्मभूषण से अलंकृत हुए [2013]
(क) रायकृष्ण दास
(ख) विद्यानिवास मिश्र
(ग) अज्ञेय
(घ) हजारीप्रसाद द्विवेदी

(13) ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ विधा की रचना है [2014]
(क) उपन्यास
(ख) जीवनी
(ग) आत्मकथा
(घ) रिपोर्ताज

(14) डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी का उपन्यास है [2015]
(क) त्याग
(ख) भूले-बिसरे चित्र
(ग) अनामदास का पोथा
(घ) सूरज का सातवाँ घोड़ा।

उत्तर(1) घ, (2) घ, (3) घ, (4) घ, (5) ग, (6) क, (7) ग, (8) घ, (9) क, (10) घ, (11) ग, (12) घ, (13) के, (14) ग।

प्रो० जी० सुन्दर रेड्डी

उचित विकल्प का चयन कीजिए-

(1) हिन्दीतर प्रदेश के निवासी होते हुए भी इनका हिन्दी भाषा पर अच्छा अधिकार है-
(क) राय कृष्णदास
(ख) रामवृक्ष बेनीपुरी।
(ग) स० ही० वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
(घ) प्रो० जी० सुन्दर रेड्डी

(2) भाषा और आधुनिकता’ किस विधा की रचना है ? (2012)
(क) नाटक
(ख) कहानी
(ग) उपन्यास
(घ) निबन्ध

(3) “लेखन में वैज्ञानिक शब्दावली को ज्यों का त्यों लेना चाहिए।” यह सुझाव है
(क) स० ही० वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का
(ख) राय कृष्णदास का
(ग) हजारीप्रसाद द्विवेदी का
(घ) प्रो० जी० सुन्दर रेड्डी का

(4) ‘मेरे विचार’ और ‘वैचारिकी’ नामक निबन्ध-संग्रह किस लेखक के द्वारा रचित हैं ?
(क) हजारीप्रसाद द्विवेदी
(ख) जैनेन्द्र कुमार।
(ग) प्रो० जी० सुन्दर रेड्डी
(घ) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’

(5) ‘साहित्य और समाज’ नामक कृति किस विधा की रचना है ?
(क) नाटक
(ख) निबन्ध
(ग) आलोचना
(घ) कहानी

(6) ‘शोध और बोध’ नामक शोध-कृति के रचनाकार हैं-
(क) प्रो० जी० सुन्दर रेड्डी
(ख) श्यामसुन्दर दास
(ग) जैनेन्द्र कुमार।
(घ) मोहन राकेश

उत्तर (1) घ, (2) घ, (3) घ, (4) ग, (5) ख, (6) क।

हरिशंकर परसाई

उचित विकल्प का चयन कीजिए-

(1) निम्नलिखित में से कौन-सी रचना उपन्यास है ?
(क) और अन्त में
(ख) भूत के पाँव पीछे
(ग) सदाचार का तावीज
(घ) रानी नागफनी की कहानी

(2) वसुधा’ साहित्यिक पत्रिका के प्रकाशक एवं सम्पादक थेया ‘वसुधा’ मासिक पत्रिका का सम्पादन किया था [2016]
(क) राय कृष्णदास
(ख) रामवृक्ष बेनीपुरी
(ग) अज्ञेय
(घ) हरिशंकर परसाई

(3) समाज की कमजोरियों एवं राजनीति के फरेबों पर करारे व्यंग्य लिखने में सिद्धहस्त थे-
(क) रामवृक्ष बेनीपुरी ।
(ख) स० ही० वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
(ग) प्रोफेसर जी० सुन्दर रेड्डी
(घ) हरिशंकर परसाई

(4) इनकी शैली व्यंग्यप्रधान है और इन्होंने हिन्दी में व्यंग्य-लेखन को नयी दिशा दी
(क) श्यामसुन्दर दास
(ख) हरिशंकर परसाई
(ग) मोहन राकेश
(घ) जैनेन्द्र कुमार

(5) इनमें से कौन-सी रचना ‘निबन्ध’ विधा की रचना नहीं है ?
(क) तट की खोज
(ख) भूत के पाँव पीछे
(ग) सदाचार का तावीज ।
(घ) शिकायत मुझे भी है।

(6) इनमें से कौन-सी ‘निबन्ध’ विधा की रचना परसाई द्वारा रचित नहीं है ?
(क) तब की बात और थी।
(ख) बेईमानी की परत
(ग) बकलमखुद
(घ) पगडण्डियों का जमाना

(7) निम्नलिखित में से छायावादोत्तर गद्यकार हैं-
(क) महावीरप्रसाद द्विवेदी
(ख) बालकृष्ण भट्ट
(ग) हरिशंकर परसाई
(घ) श्यामसुन्दर दास

(8) निन्दा रस’ निबन्ध के रचनाकार हैं [2011, 13, 16, 17, 18]
(क) हेजारीप्रसाद द्विवेदी
(ख) प्रेमचन्द
(ग) हरिशंकर परसाई
(घ) जैनेन्द्र कुमार

उत्तर (1) घ, (2) घ, (3) घ, (4) ख, (5) क, (6) ग, (7) ग, (8) ग।

डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम

उचित विकल्प का चयन कीजिए–

(1) डॉ० अब्दुल कलाम का जन्मस्थान है
(क) बनारस
(ख) फर्रुखाबाद
(ग) तमिलनाडु
(घ) दिल्ली

(2) भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति कौन थे?
(क) डॉ० अब्दुल कलाम ।
(ख) डॉ० राधाकृष्णन
(ग) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
(घ) इनमें से कोई नहीं

(3) डॉ० अब्दुल कलाम को इनमें से किस सम्मान से सम्मानित किया गया?
(क) पद्मभूषण
(ख) पद्मविभूषण
(ग) भारतरत्न
(घ) इनमें से कोई नहीं

(4) ‘मिशन इण्डिया’ पुस्तक के लेखक हैं-
(क) पं० जवाहरलाल नेहरू
(ख) प्रणब मुखर्जी
(ग) अब्दुल कलाम
(घ) गांधी जी

(5) डॉ० अब्दुल कलाम का निधन हुआ-
(क) 27 जुलाई, 2015 को
(ख) 15 जुलाई, 2017 को
(ग) 27 जुलाई, 2014 को
(घ) 15 अगस्त, 2015 को

उत्तर (1) ग, (2) क, (3) ख, (4) ग, (5) क।

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UP Board Solutions for Class 12 English Prose Chapter 2 A Fellow Traveller

UP Board Solutions for Class 12 English Prose Chapter 2 A Fellow Traveller are part of UP Board Solutions for Class 12 English. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 English Prose Chapter 2 A Fellow Traveller.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject English Prose
Chapter Chapter 2
Chapter Name A Fellow Traveller
Number of Questions Solved 25
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 English Prose Chapter 2 A Fellow Traveler

LESSON at a Glance

A.G. Gardiner is one of the best essayists the world has ever had. He had the genius of describing ordinary things in an exceptionally interesting manner. The present story is an example of it.

Gardiner was travelling in a passenger train from London to a Midland Town. The passengers got down in ones and twos at the wayside stations, and in the end he was left alone in the compartment.

The sense of being alone in the compartment opened up a basketful of good things for Gardiner. Instead of feeling loneliness, he thought he could do anything he liked, he. could stand upwards on his head and nobody would see him. He could sing, dance, open or shut the windows but nobody would object it. But alas! a mosquito was disturbing him.

The mosquito fluttered, took a round in the compartment and sat on the nose of the writer. He flicked it off but it again sat on his nose after taking another round of the compartment. Then, it sat on the back of his hand and then on the newspaper he was reading. He warned the mosquito twice but in vain. Now, Gardiner decided to kill it. He adopted many tactics to get hold and kill the mosquito, but every time it escaped. At last Gardiner began to enter into the spirit of a fellow mosquito. It was no more a mere insect for him. He realised that he and the mosquito were fellow mortals in this world. But by chance they had become fellow-travellers that night.

Gardiner concludes that we take birth but we do not know from where we have come. This remains a mystery. Our life in this world is very short yet it is full of wonders. We have to struggle hard to live for this short period. Then, we go away from this world our own way.

पाठ का हिन्दी अनुवाद

(1) I do not ………….. even D.O.R.A.
मैं नहीं जानता कि हममें से कौन डिब्बे में पहले सवार हुआ। वास्तव में, मैं यह भी नहीं जानता था कि वह कुछ समय के लिए डिब्बे में था। यह लन्दन से मिडलैण्ड टाउन को जाने वाली अन्तिम गाड़ी थी, एक अत्यन्त धीमी गति से चलने वाली गाड़ी और ऐसा लगता था कि सम्भवत: यात्रा कभी समाप्त ही नहीं होगी। जब वह चली थी तब इसमें बहुत अधिक भीड़ न थी किन्तु ज्यों ही यह उपनगरीय स्टेशनों पर रुकती थी तब एक-एक या दो-दो यात्री नीचे उतर जाते थे, किन्तु जैसे ही हम लन्दन के बाहरी क्षेत्र से आगे बढ़े, तब डिब्बे में मैं अकेला ही था।

रात्रि के समय जो डिब्बा शोर करता हुआ झटके ले रहा हो उसमें अकेले यात्रा करना स्वतन्त्रता का आनन्द देता है। वहाँ बहुत प्रकार से स्वतन्त्रता का सुखद आभास होता है। आप अपनी पसन्द का कोई भी कार्य कर सकते हैं। आप स्वयं से जितनी जोर से चाहें बातें कर सकते हैं और कोई भी व्यक्ति आपको सुनेगा नहीं। आप जॉन (अपने काल्पनिक शत्रु) से सफलतापूर्वक लड़ सकते हैं और बिना किसी जवाबी हमले के भय के आप उसे मिट्टी में लुढ़का सकते हैं। आप अपने सिर के बल खड़े हो सकते हैं। दो कदम नाच सकते हैं। गोल्फ का अभ्यास कर सकते हैं या बिना किसी रोक-टोक के फर्श पर कंचे खेल सकते हैं या उसे बन्द कर

सकते हैं। आप दोनों खिड़की खोल सकते हैं या दोनों बन्द कर सकते हैं। आप कोई भी कोना चुन सकते हैं। और बारी-बारी से सारे कार्य कर सकते हैं। आप गद्दों पर लम्बे-लम्बे लेट सकते हैं और सारे नियमों को तोड़ सकते हैं। सम्भवतः अंग्रेजों के सुरक्षा कानूनों को भी।

(2) On this ………….. humiliated me.
इस रात मैंने कोई कार्य नहीं किया। वे बातें मेरे मन में भी नहीं आई। जो कुछ मैंने किया वह बहुत साधारण बात थी। जब मेरा अन्तिम साथी यात्री भी चला गया तब मैंने अपना अखबार रख दिया। अपने हाथ और पैर फैलाए, खड़ा हो गया और शान्त गर्मियों की रात्रि को खिड़की के बाहर झाँककर देखा जिसमें मैं यात्रा कर रहा था और दिन की धुंधली रोशनी को देखा जो अब भी आकाश में उत्तर की ओर थी। मैं डिब्बे के इस पार से उस पार तक गया और दूसरी खिड़की में से बाहर देखा, एक सिगरेट जलाई, बैठ गया और फिर पढ़ने लगा। उस समय मैं अपने साथी यात्री से सावधान हो गया। वह आया और मेरी नाक पर बैठ गया। वह उन कीड़े-मकोड़ों में से एक था जिन्हें हम यों ही मच्छर कह देते हैं। वह पंख वाला, तेज डंक वाला तथा निर्भीक था। मैंने उसे अपनी नाक पर से हटा दिया। उसने डिब्बे का दौरा किया। उसकी लम्बाई, चौड़ाई तथा ऊँचाई का निरीक्षण किया। प्रत्येक खिड़की को देखा। रोशनी के चारों ओर पंख फड़फड़ाए, उसने निश्चय कर लिया कि कोने में बैठे हुए मुझ जैसे बड़े प्राणी से अधिक मनोरंजक वस्तु उसके लिए और नहीं है, वह आया और उसने मेरी गर्दन पर निगाह डाली।

मैंने उसे फिर झटके से हटा दिया। वह उड़ गया, पूरे डिब्बे का दूसरा दौरा किया, वापस लौटा और धृष्टता से मेरे हाथ के पीछे बैठ गया। मैंने कहा, “यह काफी है। उदारता की भी सीमा होती है। तुम्हें दो बार चेतावनी दी गई है कि मैं एक विशेष व्यक्ति हूँ, मुझे पसन्द नहीं है कि कोई अपरिचित व्यक्ति मेरे शरीर पर गुदगुदाए। मैं अब स्वयं को एक जज मानता हूँ जो किसी कैदी को मौत का दण्ड सुनाता है। मैं तुम्हें मृत्यु दण्ड देता हूँ। यही न्याय की माँग है और अदालत का यह आदेश है। तुम्हारे विरुद्ध बहुत-से आरोप हैं। तुम आवारा हो, तुम लोक कंटक हो, तुम बिना टिकट के यात्रा कर रहे हो, तुम्हारे पास मीट कूपन भी नहीं है अर्थात् तुम्हें किसी को खून चूसने का अधिकार नहीं है। इन सभी और अनेक अन्य जुर्मों के कारण तुम अब मरने वाले हो।” मैंने अपने सीधे हाथ से बहुत तेज घातक घूसा मारा। वह बड़ी चालाकी से मेरे मुक्के से बचकर भाग गया और मैंने स्वयं को बड़ा अपमानित अनुभव किया।

(3) My personal ………….. I s it.
मेरा व्यक्तिगत अभिमान जाग्रत हो गया। मैं अपना पैंसा तानकर तथा अखबार लेकर आगे बढ़ा। मैं अपनी सीट पर कूदा और लैम्प के चारों ओर उसका पीछा किया। मैंने बिल्ली जैसी चतुराई की चालें अपनाईं, जब तक वह नीचे उतरा मैंने उसकी प्रतीक्षा की एवं चुपचाप आगे बढ़ा और अचानक तेजी से एवं भयंकर ढंग से उस पर वार किया।

यह भी व्यर्थ रहा। वह मेरे साथ इस प्रकार खेला जैसे कोई साँड से कुश्ती लड़ने वाला व्यक्ति क्रोधित साँड के चारों ओर चतुराई से घूमता है तथा उससे निबटता है। यह स्पष्ट हो गया था कि यह अपना मनोरंजन कर रहा था और इसी कारण उसने मेरी शान्ति को भंग किया था। वह थोड़ा खेलना चाहता था और ऐसा खेल कि इतने बड़े और भारी प्राणी के चारों ओर घूम-फिरकर जो इतना अच्छा लगता है और इतना निःसहाय और मूर्ख दिखाई देता था। मैंने अब समझने की कोशिश आरम्भ कर दी। वह अब केवल एक कीड़ा-मकोड़ा ही नहीं था। वह ऐसा बुद्धिमान व्यक्ति होता जा रहा था जो मेरी बराबरी के आधार पर ही उस डिब्बे पर अपना अधिकार रखता था। मैंने उसकी ओर स्नेह का अनुभव किया और मेरी महानता की भावना गायब होने लगी। मैं अपने आपको उस प्राणी से महान् कैसे मान सकता था जो स्पष्ट रूप से उस प्रतियोगिता में मेरा स्वामी था जिसमें हम इतनी देर से लगे थे। फिर क्यों न मैं विशाल हृदय वाला बनूं। विशाल हृदय तथा दया मनुष्य के दो सबसे अच्छे लक्षण हैं। इन्हीं दोनों गुणों के अभ्यास से मैं अपने सम्मान को पुनः प्राप्त कर सकता हूँ। इस समय मैं एक हँसी-मजाक की वस्तु था, दयावान होकर मैं मनुष्य के नैतिक सम्मान को पुन: प्राप्त कर सकता हूँ और सम्मान के साथ अपने कोने में जा सकता हूँ। अपनी सीट पर वापस आकर मैंने कहा कि मैं मृत्यु-दण्ड वापस लेता हूँ। मैं तुम्हें नहीं मार सकता, किन्तु मैं तुम्हारे मृत्यु-दण्ड को क्षमा कर सकता हूँ। मैं ऐसा कर रहा हूँ।

(4) I took up my ………….. round the lamp.
मैंने अखबार उठाया और वह आकर इस पर बैठ गया। मैंने कहा, ऐ मूर्ख साथी, तुमने स्वयं को मेरे हवाले कर दिया है। मैं इस सम्मानित साप्ताहिक-पत्र के दोनों पन्नों को यदि जोर से बन्द करू जैसे चाँटे की आवाज होती है तब तुम दो लेखों के बीच कुचले जाओगे और मर जाओगे, एक लेख ‘Peace Traps’ और दूसरा “The Modesty of Mr Hughes. किन्तु मैं ऐसा नहीं करूंगा। मैंने तुम्हें मृत्यु-दण्ड से क्षमा किया है और मैं तुम्हें इस बात से सन्तुष्ट कर दूंगा कि मैं जो कहता हूँ वही करता हूँ। इसके अतिरिक्त मैं तुम्हें मारना भी नहीं चाहता। तुम्हें भली प्रकार जान-पहचानकर, मैं तुमसे स्नेह करने लगा हूँ। मैं कल्पना करता हूँ कि सैंट फ्रांसिस भी तुम्हें छोटा भाई ही मानता है। मैं इतनी उदारता तथा विनम्रता नहीं दिखा सकता, किन्तु मैं तो इससे भी दूर का रिश्ता पहचानता हूँ। संयोग से हम इस गर्मियों की रात्रि में साथी यात्री बन गये हैं। मैंने तुम्हारा मनोरंजन किया और तुमने मेरा। हमारे अहसान पारस्परिक हैं और इस सत्य पर आधारित हैं कि हम दोनों ही नश्वर प्राणी हैं। हमारे जीवन का आश्चर्य और रहस्य समान है। मैं मानता हूँ कि तुम अपनी यात्रा के विषय में कुछ नहीं जानते। मुझे यह भी निश्चय नहीं है कि अपनी यात्रा के बारे में मैं अधिक जानता हूँ। वास्तव में, जब तुम यह सोचोगे तो पाओगे कि हम दोनों एक-दूसरे के ही समान हैं-केवल भूत, जो हैं और नहीं भी हैं जो रात्रि में इस प्रकार प्रकाशमान डिब्बे में आ गए हैं, थोड़ी देर तक चिराग पर फड़फड़ा रहे हैं और पुनः अँधेरे में चले जाएँगे। शायद ………

खिड़की पर से एक आवाज आई ‘Going on tonight; Sir यह एक जाने-पहचाने कुली की आवाज थी, जिसने मुझे इशारा दिया कि यही स्टेशन है, जहाँ मुझे उतरना है। मैंने उसे धन्यवाद दिया और कहा कि मैं ऊँघ रहा था। अपना टोप और छड़ी लेकर मैं गर्मियों की ठण्डी रात में बाहर आ गया। जब मैंने डिब्बे का दरवाजा बन्द किया तब मैंने अपने साथी यात्री को लैम्प के चारों ओर पंख फड़फड़ाते हुए देखा।

Understanding the Text

Explanations
Explain one of the following passages with reference to the context :
(1) I do not know ………….. I was alone.
Or
I do not know ………….. eternity. [2015]
Reference : These lines have been taken from the lesson ‘A Fellow-traveller’ written by a famous English essayist A.G. Gardiner. [ N.B. : The above reference will be used for all explanations of this lesson. )

Context : This delightful essay is about an encounter between a mosquito and the author who were travelling in the same compartment of a train.

Explanation : The writer was travelling by a passenger train and was left alone in the carriage as all other passengers had alighted from it on the way side stations. It was the last suburban train from London to a Midland town. When the train left the outer ring of London behind, the writer was the only passenger in the compartment and only then he realized that he was alone.

(2) There is a pleasant ………….. anything you like. [2011, 18]
Context : The writer was travelling by a train and was left alone in the carriage as all other passengers had alighted from it.

Explanation : The writer says that travelling in a carriage, all alone, which is moving along jerkily at night making much noise is a unique experience. It gives you pleasure of personal liberty. This liberty is altogether unchecked and is infact very pleasing. You are free to do whatever you like.

(3) I flicked him off my nose ………….. took at my neck. [2009]
Or
He was one of ………….. at my neck. [2015]
Context : The writer was travelling in a train. When the last of his fellow passengers had gone, he lit a cigarette, sat down and began to read again. It was then that a mosquito joined him in the compartment and sat on his nose.

Explanation : The writer says that he struck the mosquito off his nose with a sharp light blow. The mosquito flew away and examined the entire compartment, went to see each window and then moved restlessly round the light. The author further says that the mosquito came to the conclusion that he (the author) was the most advantageous creature for him in the compartment, sitting in a corner. It came near the author and had a glance at his neck.

(4) I flicked him off ………….. has its limits. [2013]
Context : The writer was travelling in a train. When all the passengers had gone, a mosquito began to disturb the writer again and again. He began to move in the whole compartment and thought the writer to be most interesting from him to play with.

Explanation : In this passage the writer describes the imprudence of the mosquito. After taking the round of the whole compartment, the mosquito came and sat upon the neck of the writer. The writer struck him with a light sharp blow. But the mosquito again flew away, took a round of the compartment and seated himself rudely on the back of the writer’s hand. But the writer could not bear it anymore and told the mosquito that genersity has its limit and reminded him that he had already warned him twice.

(5) It is enough ………….. court awards it.
Context : The writer was travelling in a passenger train from London. When the train had left the outer ring of London, only the writer was left there. He was tired of a mosquito who troubled him again and again. Now, the mosquito sat on the back of his hand.

Explanation : The writer could not tolerate this bold mischief of the mosquito. He could not be generous any more. He had already warned it twice. The writer thought about himself that he was not an ordinary man. He must be regarded. But the little mosquito was disturbing him and tickling his body again and again. It was a stranger. So, he decided to punish it. He thought himself to be a judge and decided to condemn it to death as there were many charges against it.

(6) I assume the ………….. humiliated me. [2009, 17, 18]
Context : The writer was travelling in a train. His fellow-traveller was a mosquito who disturbed him very much. First, author explained him in every way but he did not obey and accept his suggestions. Then, the author was ready to kill him.

Explanation : In these lines the writer says that seeing the dangerous activities of mosquito he warned him for punishment. He told him that he was authorised to condemn him to death. He charged his fellow-traveller that he has no ticket of railway, no license of meat. He was a vegabond and a public nuisance. For these and many other misdemeanours he should be sentenced to death. The writer further says that he struck the mosquito off his nose with a sharp light blow with his right hand. But he flew away to save himself and the writer felt himself ashamed very much.

(7) My personal vanity ………….. terrible swiftness. [2011]
Context : A great battle was going on between the writer and the mosquito. The mosquito constantly disturbed the writer. Becoming a judge, the writer sentenced the mosquito to death. He charged the mosquito in many ways.

Explanation : The writer thought that his decision was quite right. He wanted to kill it. He struck a fatal blow with his right hand and with his paper he jumped on the seat and followed him. He used all tactics but the mosquito dodged every attack. But every time he failed.

(8) He played with me ………….. spirit of the fellow. [2013]
Context : The writer was travelling in a train. When all the passengers had gone, a mosquito began to disturb him again and again. The writer tried his best to stop him but he did not obey him and continued disturbing him. He warned him to kill him and framed many serious charges against him but all in vain.

Explanation : In this passage the writer accepts his defeat. He wanted to kill him but his all efforts failed and the mosquito went on enjoying this fight. He played with the writer openly and courageously. It was a show of a fight between a metador and an angry bull. In this fight the writer himself behaved like an angry bull and the mosquito like a skilful metador. It was clear to the writer that the mosquito was enjoying himself by moving round the man who seemed to him so helpless and stupid. Now the writer changed his feelings against the mosquito and began to enter into his spirit.

(9) It was obvious ………….. and so stupid. [2012]
Context : A great battle was going on between the writer and the mosquito. The writer used all tactics to kill the mosquito but the mosquito dodged every attack. Thus the writer failed every time.

Explanation : Now the writer had come to know the reality of the sport between him and mosquito. According to the writer the mosquito was busy in his own entertainment. Therefore he had disturbed him. He wanted to play a game fluttering round the man who seemed to him so big and so stupid. The writer also realized that the mosquito had the equal right on the compartment. Thus the writer accepted his defeat and changed his views.

(10) I began to enter ………….. my prestige. [2014]
Context : During his journey the writer was troubled very much by a mosquito. He warned it twice but useless. Third time he decided to kill it. But by its clever trick the mosquito saved itself from all cunning tactics of the writer. So, the writer was perplexed.

Explanation : The writer accepted his defeat. He began to understand him and love him. He accepted that the mosquito also was not only an ordinary insect but it also had a personality of its own. It proved that it had the equal right like the writer to stay in the compartment. Now, the writer did not think himself superior to the mosquito because it had defeated him in the competition. Now the writer decided to be magnanimous. He remembered that magnanimity and mercy are the two noble qualities of man. Thus by developing these two qualities, he would be able to get back his lost prestige.

(11) Magnanimity and mercy ………….. I do it. [2012, 18]
Or
At present ………….. I do it. [2018]
Context : The writer could not kill the mosquito. Now, he started having kindly feelings for the mosquito. His sense of superiority began to disappear gradually. He felt that the mosquito had equal rights to be in the compartment. It had equal rights to live and enjoy. So the writer now decided to be generous and kind to the mosquito.

Explanation : Now, it dawned on the writer that generosity and mercy were the greatest qualities of man. He felt that by being generous and merciful he could get back his honour lost in his fight with the mosquito. Thus, he could save his face. He felt how foolish and helpless, he was at that moment. He was an object of mockery. But by showing mercy and forgiveness, he could thus recover his lost honour. He came back to his seat. He would not punish the mosquito with death. He would not kill it. He had suspended his death sentence.

(12) But I shall not do it. ………….. distant relationship. [2013]
Context : The writer accepted his defeat in the encounter with the mosquito and developed an affection for him. He decided to withdraw the death sentence to maintain his moral dignity and honour.

Explanation : In these lines the writer tells the mosquito his decision of not killing him because he has pardoned him. But he wants to make him aware that he does what he says. But now he has come to know him well and has developed an affection for him. St. Francis would have called him ‘Little Brother’. He can’t show such christian civility but he had a distant relationship with him, i.e. both of them are fellow-travellers. Both have interested each other in the dark of night.

(13) The obligation is mutual ………….. about mine. [2009, 17]
Context : The writer accepted his defeat in the encounter with the mosquito. Now he decided to pardon the mosquito and withdraw the death sentence. That was the only way to maintain his moral dignity and honour.

Explanation : Now the writer has changed his attitude for the mosquito. He treats it on equal terms. He thinks that both are obliged to each other because both have entertained each other. Moreover, both of them are mortals. So he compares their life to a journey. None knows when and where this journey will end. Both have taken birth in this world, enjoy their life, wander hither and thither and ultimately die and this world becomes dark to them. This is the philosophic attitude of the writer about life.

(14) The miracle of life ………….. night again. [2009, 17, 18]
Context : In the end the mosquito sat on the newspaper and it was in the hands of the writer. But he did not kill it because he had reprieved it. He thought that by chance they became the fellow-travellers. Both entertained each other. They were now friends because they were fellow mortals.

Explanation : In these lines the writer says that life is the greatest miracle of nature. Nobody knows exactly about his life. The beginning and end of our life both are a mystery. All the creatures on this earth are fellow-travellers. None is superior or inferior. We take birth but don’t know from where we have come. We struggle hard for our life in this world for a short period. Then, we go away from this world but do not know where we have to go. This is the journey of our life. [N. B. : Thus, the writer has taught us a lesson of fraternity among all creatures because the mystery and miracle of life are common to all.)

Short Answer Type Questions

Answer one of the following questions in not more than 30 words:
Question 1.
Give a brief description of the train Mr. A.G. Gardiner travelled by. [2009]
(जिस रेलगाड़ी में मि० ए० जी० गार्डनर ने यात्रा की उसका संक्षिप्त विवरण दीजिए)
Answer :
The writer was travelling by a suburban train which ran from London to a Midland Town. It was a stopping train.
(लेकख उपनगरीय रेलगाड़ी से यात्रा कर रहा था यह गाड़ी मीलडलोड के एक -एक कसबे तक जगह -जगह रुक कर जाती थी)

Question 2.
Why did the author call the train as one of those trains which give you an understanding of eternity’ ?
(लेखक ने गाड़ी को ऐसी गाड़ी क्यों कहा है जो अनन्त काल का आभास कराती है ?)
Answer :
The train was running very slow. It stopped at all stations. So, the writer thought that his journey would never end and he called the train as such.
(रेलगाड़ी बहुत धीमी चल रही थी। यह सभी स्टेशनों पर रुकती थी। इसलिए लेखक ने सोचा कि उसकी यात्रा कभी समाप्त नहीं होगी और ऐसा ही उसने गाड़ी के विषय में सोचा।)

Question 3.
What did the author think by the time the train left London ?
(जिस समय गाड़ी लन्दन से रवाना हुई उस समय लेखक ने क्या सोचा ?)
Answer :
When the train left London the author thought that he was all alone in the compartment. So, he was at liberty to do anything he liked.
(जब गाड़ी लन्दन से रवाना हुई तब लेखक ने सोचा कि डिब्बे में वह अकेला है। इसलिए वह कुछ भी करने को स्वतन्त्र है जो वह चाहे।)

Question 4.
What is, according to Mr. A.G. Gardiner, the pleasant sense of freedom about being alone in a compartment ?
(मि० ए० जी० गार्डनर के अनुसार रेल के डिब्बे में अकेला होने पर स्वतन्त्रता का क्या आनन्द प्राप्त होता है ?)
Answer :
According to A.G. Gardiner, the pleasant sense of freedom about being alone in a compartment is that the passenger is free to do what he likes.
(ए० जी० गार्डनर के अनुसार रेल के डिब्बे में अकेला होने पर यात्री को स्वतन्त्रता का यही आनन्द प्राप्त होता है कि वह अपनी पसन्द का कोई भी कार्य करने को स्वतन्त्र है।)

Question 5.
What, according to A.G. Gardiner, are the advantages of travelling alone in a railway compartment ? [2010, 11, 18]
(ए० जी० गार्डनर के अनुसार रेलगाड़ी के डिब्बे में अकेले ही यात्रा करने के क्या लाभ हैं?)
Answer :
According to the author, travelling alone in a compartment, a person could talk easily to himself, sing or dance, play marbles, open or shut windows, walk or lie down at full length on the cushion for rest.
(लेखक के अनुसार रेल के डिब्बे में अकेले यात्रा करते समय व्यक्ति अपने आप से सरलता से बातें कर सकता है, गीत गा सकता है या नाच सकता है, खिड़कियों को खोल या बन्द कर सकता है, टहल सकता है। या आराम करने के लिए गद्दे पर पसर कर लेट सकता है।)

Question 6.
What things would you do if you were travelling alone in a compartment ?
(यदि आप डिब्बे में अकेले यात्रा कर रहे हों तब आप क्या-क्या काम करेंगे ?)
Or
What can one do freely while travelling alone in a carriage of a night train according to A.G. Gardiner ?
(ए० जी० गार्डनर के अनुसार एक रात की गाड़ी में यात्रा करते हुए कोई आजादी से क्या कर सकता है?)
Answer :
If I was travelling alone in a compartment, I could talk myself, sing or dance, open or shut the windows. I could sit in a corner.
(यदि मैं डिब्बे में अकेले यात्रा करू, तो मैं अपने आप से बातें करू, गाऊँ, नाचूँ, खिड़कियाँ खोलें या बन्द करूं। मैं किसी कोने में भी बैठ जाऊँ।).

Question 7.
What does the abbreviation D. O. R. A. stand for?
(D. 0. R. A. को पूरा अर्थ क्या है ?)
Answer :
D. O. R. A. stands for the Defence of the Realm Act which provided the British Government wide power during the Great war.
(D. O. R. A. का अर्थ है ‘राज्य सुरक्षा अधिनियम’ जिसने प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सरकार को बहुत अधिक शक्ति प्रदान की थी।)

Question 8.
What did the author do while travelling alone in the compartment ?
(लेखक जिस समय डिब्बे में अकेला यात्रा कर रहा था तब उसने क्या किया?)
Answer :
While travelling alone in the compartment, the author put down his paper, stretched his arms and legs, stood up and looked out of the window, lit a cigar, sat down and began to read the paper again.
(जब लेखक डिब्बे में अकेला यात्रा कर रहा था तब उसने अपना अखबार रख दिया। अपने हाथ-पैर फैलाये, खड़ा हुआ और खिड़की से बाहर देखा, सिगार जलाया, फिर बैठ गया और पुन: अखबार पढ़ने लगा।)

Question 9.
Who was A.G. Gardiner’s fellow-traveller ? When did the author become aware of his fellow-traveller ? [2012, 16, 18]
(लेखक का साथी यात्री कौन था ? लेखक को अपने साथी यात्री का पता कब चला ?)
Answer :
A. G. Gardiner’s fellow-traveller was a mosquito. The author became aware of his fellow-traveller when he was reading the newspaper and mosquito sat on his nose.
(लेखक का साथी यात्री एक मच्छर था। लेखक को अपने साथी यात्री का पता उस समय चला जब वह अखबार पढ़ रहा था और एक मच्छर उसकी नाक पर बैठ गया।)

Question 10.
What did the author do when the fellow-traveller came and sat on his nose?
(जब साथी यात्री, आकर लेखक की नाक पर बैठ गया, तब लेखक ने क्या किया ?)
Answer :
When the fellow-traveller came and sat on his nose, he flicked it off.
(जब साथी यात्री आकर उसकी नाक पर बैठ गया तब उसने उसे झटके के साथ फेंक दिया।)

Question 11.
What did the author say when the mosquito seated himself impudently on the back of his hand ? [2011]
(जब मच्छर धृष्टतापूर्वक हाथ के पिछली ओर बैठ गया तब लेखक ने क्या कहा ?)
Or
Why did the writer decide to punish the fellow-traveller ? [2011, 18]
(लेखक ने सहयात्री को दण्डित करने का निश्चय क्यों किया?)
Answer :
The author said that the limit of magnanimity was over. He would punish him by putting him to death.
(लेखक ने कहा कि उदारता की सीमा समाप्त हो गई है। वह उसे मृत्युदण्ड देगा।)

Question 12.
Why did justice demand the award of death sentence ?
(न्याय की माँग मौत की सजा क्यों थी ?)
Answer :
There were many charges against the mosquito. It was a vagabond and a public nuisance. He was travelling without ticket and sucking the blood of the author. So, justice demanded the award of death sentence.
(मच्छर के विरुद्ध बहुत-से आरोप थे। वह आवारा और लोक कंटक था। वह बिना टिकट यात्रा कर रहा था और लेखक का खून चूस रहा था। इसलिए न्याय की माँग थी कि उसे मृत्यु-दण्ड मिले।)

Question 13.
What did the fellow-traveller do to avoid the sentence of death?
(मृत्यु-दण्ड से बचने के लिए साथी यात्री ने क्या किया ?)
Answer :
To avoid the sentence of death the fellow-traveller dodged the author and ran away.
(साथी यात्री ने लेखक को चकमा दे दिया और भाग गया।)

Question 14.
Why did the author feel humiliated and how did he react to it?
(लेखक ने स्वयं को अपमानित क्यों अनुभव किया और इसके प्रति उसकी क्या प्रतिक्रिया थी ?)
Answer :
The author felt humiliated because the mosquito avoided his blow cunningly. Then, he adopted all sorts of tactics to kill him.
(लेखक ने अपमानित इसलिए अनुभव किया, क्योंकि अपराधी चालाकी से उसके मुक्के से बच गया। फिर लेखक ने उसे मारने के लिए प्रत्येक चाल चली।)

Question 15.
Who was the “skilful matador finessing round an infuriated bull ?” And who was the ‘infuriated bull’ ?
(क्रुद्ध साँड़ से भिड़ने वाला चतुर पहलवान कौन था ? और क्रुद्ध साँड कौन था ?)
Answer :
The mosquito was skilful matador and the author was infuriated bull.
(मच्छर चतुर पहलवान था और लेखक क्रुद्ध साँड था।)

Question 16.
Why according to the author, did the fellow-traveller disturb his repose ?
(लेखक के अनुसार उसके साथी यात्री ने उसकी शान्ति क्यों भंग की ?)
Answer :
The fellow-traveller was enjoying himself. So, the author thought that he had disturbed his repose.
(साथी यात्री अपनी मनोरंजन कर रहा था। इसलिए उसने लेखक की शान्ति को भंग किया।)

Question 17.
What did the author begin to think when he found himself so helpless and stupid against his fellow-traveller ?
(जब लेखक ने अपने सहयात्री से निपटने में स्वयं को इतना असहाय और मूर्ख पाया तब वह क्या सोचने लगा ?)
Answer :
The author began to enter into the spirit of his fellow-traveller when he found himself, so helpless and stupid.
(जब लेखक ने स्वयं को इतना असहाय और मूर्ख पाया तब उसने सहयात्री की मन की स्थिति को समझने की चेष्टा की।)

Question 18.
Why did he decide to be magnanimous and merciful to the fellow traveller?
(उसने (लेखक) ने अपने सहयात्री के प्रति इतना उदार और दयावान होने का निश्चय क्यों किया ?)
Answer :
The author wanted to make up his lost prestige. So, he decided to be magnanimous and merciful to the fellow-traveller because these were the noblest virtues of mankind.
(लेखक अपना खोया हुआ सम्मान प्राप्त करना चाहता था। अत: उसने सहयात्री के प्रति उदार और दयावान होने का निश्चय किया, क्योंकि मानव जाति के ये सबसे अच्छे दो गुण हैं।)

Question 19.
What did the author think of the fellow-traveller when the latter sat on the newspaper ?
(जब सहयात्री अखबार पर बैठ गया तब लेखक ने क्या सोचा ?)
Answer :
When the fellow-traveller sat on the newspaper, the author thought him to be foolish. He thought to kill him but he let him go.
(जब सहयात्री अखबार पर बैठ गया तब लेखक ने उसे मूर्ख समझा। उसने उसे मारने की बात सोची, किन्तु उसे क्षमा कर दिया।)

Question 20.
What relationship did the author develop with his fellow-traveller ?
(लेखक ने अपने सहयात्री से क्या सम्बन्ध विकसित किया ?)
Or
Who was the fellow-traveller ? What relationship did the author develop with the fellow-traveller ?
(सहयात्री कौन था ? लेखक ने अपने सहयात्री से क्या सम्बन्ध विकसित किया ?)
Answer :
The author developed a distant relationship with his fellow-traveller. He said that they were fellow-mortals. A mosquito was the fellow-traveller.
(लेखक ने अपने सहयात्री से दूर का रिश्ता विकसित किया। उसने कहा कि वे दोनों साथी नश्वर प्राणी हैं। सहयात्री एक मच्छर था।)

Question 21.
Do you like this essay or not ? Give reasons.
(क्या आप इस निबन्ध को पसन्द करते हैं ? कारण दीजिए।)
Answer :
Yes, I like this essay because it teaches us a great moral ‘Live and let live’. Moreover, it is written in a simple language. It is delightful and instructive. It condemns superiority complex.
(हाँ, मैं इस निबन्ध को पसन्द करता हूँ, क्योंकि वह ‘जियो और जीने दो’ को महान् पाठ पढ़ाता है। इसके अतिरिक्त यह सरल भाषा में लिखा गया है। यह मनोरंजक एवं शिक्षाप्रद है। यह उच्च भावना के विचार को भी त्यागती है।)

Question 22.
Explain the following:
(निम्नलिखित का वर्णन कीजिए :
(a) “I assume the black cap …………… awards it.”
(b) “It was all in vain ………….. bull.”
(c) “The miracle of life …………… about mine.”
Answer :
(a) The author supposes himself a judge sentencing the mosquito to death because there are many capital charges against it. He also says that his decision is legal and justified.
(b) The author wanted to kill the mosquito. But his all efforts failed and the mosquito went on enjoying this fight. In this fight the writer himself behaved like an angry bull and the mosquito like a skilful matador.
(c) In the end the author realised that life is the greatest miracle of nature. The life of all creatures in this world is like a journey. But none knows its purpose. This truth applies to both of them, i.e. the author and the mosquito.
[(a) लेखक अपने आप में कल्पना करता है कि एक न्यायाधीश के रूप में वह इस मच्छर को मृत्युदण्ड दे सकता है क्योंकि उसके विरुद्ध बहुत-से आपराधिक मामले हैं। वह यह भी कहता है कि उसका निर्णय कानूनी एवं न्यायपूर्ण है। (b) लेखक मच्छर को मार देना चाहता है लेकिन उसके सभी प्रयास असफल हो जाते हैं और मच्छर इस युद्ध का आनन्द लेता रहता है। इस युद्ध में लेखक स्वयं एक क्रोधी बैल की भाँति व्यवहार करता है जबकि मच्छर एक चालाक साँड़ की तरह।
(c) अन्त में लेखक यह महसूस करता है कि जीवन प्रकृति का एक महानतम चमत्कार है। इस संसार में सभी प्राणी एक यात्री के समान हैं लेकिन कोई भी इसके उद्देश्य को नहीं जानता है। यह सत्य लेखक तथा मच्छर दोनों के लिए लागू होता है।

Question 23.
‘Magnanimity has its limits,’ who said it and why ? [2017]
(उदारता की भी सीमा होती है, यह शब्द किसने कहे और क्यों ?)
Answer :
The author said it because he was angry with his fellow-traveller, i.e. mosquito who was continuously disturbing him.
(लेखक ने यह शब्द कहे, क्योंकि वह अपने साथी यात्री अर्थात् मच्छर से बहुत नाराज था जो उसे लगातार परेशान कर रहा था।)

Question 24.
Who was the fellow-traveller of the author and where did he sit ?
(लेखक का सहयात्री कौन था और वह कहाँ बैठा था ?)
Answer :
A mosquito was the fellow-traveller of the author. He sat on the back of his hand.
(लेखक का सहयात्री एक मच्छर था। वह लेखक के हाथ की पिछली ओर बैठा था।)

Question 25.
When did the author, A.G. Gardiner, feel that he was not superior to the mosquito ? [2015]
(लेखक ए०जी० गार्डनर ने कब महसूस किया कि मच्छर उससे श्रेष्ठ है?)
Answer :
Every effort of the author to punish the mosquito proved useless. At first, there was vanity in him of being a human. But since he could not do anything against him, his superiority began to fade away from him.
(लेखक को मच्छर को दण्डित करने का प्रत्येक प्रयास असफल रहा। पहले, उसमें एक मानव होने का घमण्ड था। लेकिन जब वह उसने आगे कुछ नहीं कर सका, तो उसकी श्रेष्ठता कम होने लगी।)

Vocabulary

Choose the most appropriate word or phrase that best completes the sentence :
1. The train by which A.G. Gardiner travelled stopped at ………… stations.
(a) big
(b) suburban
(c) small
(d) road side

2. There is a pleasant sense of freedom ………… being alone in a carriage that is jolting noisily through the night. [2010]
(a) of
(b) over
(c) for
(d) about

3. Indeed you can go on opening them and shutting them as a sort of …………. of freedom.
(a) festival
(b) occasion
(c) function
(d) chance

4. Magnanimity has its ………….
(a) end
(b) no end
(c) limits
(d) uses

5. You are a vagrant, you are a public ………….., you are travelling without ticket.
(a) servant
(b) man
(c) individual
(d) nuisance

6. I (A.G. Gardiner) felt my heart warming towards him and the sense of ………… fading. [2018]
(a) superiority
(b) inferiority
(c) kindness
(d) sympathy

7. Magnanimity and mercy were the noblest …………. of man.
(a) qualities
(b) characteristics
(c) traits
(d) attributes

8. I cannot kill you but I can ………. you. [2015, 17, 18]
(a) reprieve
(b) forgive
(c) punish
(d) condemn

9. Fortune has made us fellow-travellers on this …………. night.
(a) summer
(b) winter
(c) dark
(d) moonlit

10. I have ……….. you and you have …………. me.
(a) interested, disturbed
(b) disturbed, interested
(c) interested, entertained
(d) entertained, interested

11. The author one evening …………. a passenger train.
(a) mounted
(b) climbed
(c) boarded .
(d) got up

12. As I closed the door of the compartment, I saw my.. ……….. fluttering round the lamp. [2011]
(a) mosquito
(b) friend
(c) companion
(d) fellow-traveller

13. I felt my heart warming towards him and the sense of superiority …………..
(a) increasing
(b) coming
(c) fading
(d) shining

14. I do not know which of us got into the; ………… first. [2016, 17]
(a) carriage
(b) courage
(c) cartridge
(d) cottage

15. I flicked him ………….. my nose. [2010, 15, 18].
(a) off
(b) of
(c) at
(d) through

16. Justice demands it, and the court ………….. [2010, 18]
(a) declares.
(b) decides
(c) awards
(d) directs

17. You can open the window or shut it without ………….. a protest. [2010]
(a) provoking
(b) calling
(c)picking
(d) getting

18. I cannot go ………….. far as that in christian charity and civility. [2010]
(a) as
(b) too
(c) to
(d) so

19. I went out …………. the cool summer night.
(a) in
(b) for
(c) into
(d) to

20. Istruck a swift, ………….. blow with my right hand. [2011]
(a) gentle
(b)big
(c) lethal
(d) normal

21. How could I feel ………… to a creature who was so manifestly my master in the only competition we had ever enjoyed.
(a) inferior
(b) greater
(c) better
(d) superior

22. He played false ………….. me openly. [2013, 17]
(a) for
(b) with
(c) in
(d) by

Answers :
1. (b)
2. (d)
3. (a)
4. (c)
5. (d)
6. (a)
7. (d)
8. (a)
9. (a)
10. (C)
11. (e)
12. (d)
13. (c)
14. (a)
15. (a)
16. (c)
17. (a)
18. (d)
19. (c)
20. (c)
21. (d)
22. (b).

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास अतिलघु उत्तरीय प्रश्न are part of UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास अतिलघु उत्तरीय प्रश्न.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name गद्य-साहित्यका विकास  अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
Number of Questions 173
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi गद्य-साहित्यका विकास अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
गद्य एवं पद्य का अन्तर दो पंक्तियों में लिखिए।
उत्तर
वाक्यबद्ध विचारात्मक रचना को गद्य कहते हैं। दैनिक जीवन की बोलचाल में गद्य को ही प्रयोग होता है, जब कि छन्दबद्ध, भावपूर्ण और गेय रचनाएँ पद्य कहलाती हैं।

प्रश्न 2
हिन्दी की आठ बोलियाँ कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर

  1. ब्रज,
  2. अवधी,
  3. बुन्देली,
  4. बघेली,
  5. छत्तीसगढ़ी,
  6. हरियाणवी,
  7. कन्नौजी तथा
  8. खड़ी बोली।

प्रश्न 3
हिन्दी गद्य के प्राचीनतम प्रयोग किन भाषाओं में मिलते हैं ?
उत्तर
हिन्दी गद्य के प्राचीनतम प्रयोग राजस्थानी और ब्रज भाषाओं में मिलते हैं।

प्रश्न 4
प्राचीन ब्रज भाषा गद्य की दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर
गोकुलनाथ कृत ‘चौरासी वैष्णवन की वार्ता’ और बैकुण्ठमणि कृत ‘अगहन माहात्म्य’; प्राचीन ब्रज भाषा गद्य की रचनाएँ हैं।

प्रश्न 5
खड़ी बोली गद्य की प्रथम प्रामाणिक रचना तथा उसके लेखक का नाम व समय लिखिए।
उत्तर
रचना–गोरा बादल की कथा। लेखक–जटमल। समय–सन् 1623 ई०।

प्रश्न 6
खड़ी बोली गद्य की सबसे प्राचीन रचना कौन-सी है ?
उत्तर
खड़ी बोली गद्य की सबसे प्राचीन रचना कवि गंग द्वारा लिखित ‘चंद छंद बरनन की महिमा’ है।

प्रश्न 7
खड़ी बोली गद्य के दो प्रारम्भिक उन्नायकों के नाम लिखिए।
उत्तर
खड़ी बोली गद्य के दो प्रारम्भिक उन्नायक हैं—

  1. सदल मिश्र तथा
  2. पं० लल्लूलाल।

प्रश्न 8
‘अष्टयाम’ की कौन-सी भाषा है ? [2010]
उत्तर
‘अष्टयाम’ शीर्षक से चार लोगों-खुमान, हितहरिवंश, देव, नाभादास–ने रचनाएँ की हैं। ‘अष्टयाम’ की भाषा ब्रजभाषा है।

प्रश्न 9
भारतेन्दु से पूर्व हिन्दी गद्य के चार प्रवर्तकों और उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
या
कलकत्ता स्थित फोर्ट विलियम कॉलेज के उन दो हिन्दी-शिक्षकों के नाम लिखिए, जिन्हें खड़ी बोली गद्य का प्रारम्भिक उन्नायक माना जाता है।
या
लल्लूलाल किस कॉलेज में हिन्दी-अध्यापक थे ? उनकी प्रसिद्ध रचना का नाम लिखिए।
या
खड़ी बोली के प्रारम्भिक उन्नायकों में विशेष रूप से जिन चार लेखकों का उल्लेख किया जाता है, उनमें से किन्हीं दो की एक-एक रचना का नाम लिखिए। [2009, 10]
उत्तर
भारतेन्दु से पूर्व हिन्दी गद्य के चार प्रवर्तकों और उनकी एक-एक रचनाओं के नाम निम्नलिखित हैं-

  1. इंशा अल्ला खाँ-रानी केतकी की कहानी।।
  2. सदासुखलाल-सुखसागर।
  3. लल्लूलाल–प्रेमसागर।
  4. सदल मिश्र-नासिकेतोपाख्यान।।

इनमें सदल मिश्र तथा लल्लूलाल कलकत्ता के ‘फोर्ट विलियम कॉलेज’ में अध्यापक थे।

प्रश्न 10
भारतेन्दु युग के किन्हीं दो लेखकों की दो-दो कृतियों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर
(1) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र-

  • वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति तथा
  • अकबर और औरंगजेब।

(2) प्रतापनारायण मिश्र–

  • हठी हम्मीर तथा
  • देशी कपड़ा।

प्रश्न 11
भारतेन्दु युग से पूर्व किन दो राजाओं ने हिन्दी गद्य के निर्माण में योग दिया ?
या
हिन्दी गद्य की उर्दूप्रधान तथा संस्कृतप्रधान शैलियों के पक्षधर दो राजाओं के नाम लिखिए।
या
भारतेन्दु के उदय से पूर्व की खड़ी बोली के दो भिन्न शैलीकार गद्य-लेखकों के नाम लिखिए। [2009]
उत्तर
भारतेन्दु युग से पूर्व राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द’ ने अरबी-फारसी मिश्रित हिन्दी लिखकर तथा राजा लक्ष्मण सिंह ने संस्कृत मिश्रित खड़ी बोली को अपनाकर हिन्दी गद्य के निर्माण में योगदान दिया।

प्रश्न 12
हिन्दी गद्य के विकास में ईसाई धर्म-प्रचारकों के योगदान का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
ईसाई पादरियों ने ईसाई धर्म के प्रचार के लिए ‘बाइबिल’ एवं अन्य धार्मिक पुस्तकों का साधारण बोलचाल की हिन्दी भाषा में अनुवाद करवाया।

प्रश्न 13
भारतीय जागरण को देशव्यापी बनाने में किन संस्थाओं ने विशेष योगदान दिया ?
उत्तर

  1. आर्य समाज,
  2. प्रार्थना समाज,
  3. ब्रह्म समाज,
  4. रामकृष्ण मिशन एवं
  5. थियोसॉफिकल सोसाइटी।।

प्रश्न 14
भारतेन्दु के समकालीन या भारतेन्दु युग के चार गद्य-लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. पं० बालकृष्ण भट्ट,
  2. प्रतापनारायण मिश्र,
  3. किशोरीलाल गोस्वामी,
  4. लाला श्रीनिवास दास।

प्रश्न 15
खड़ी बोली गद्य का व्यवस्थित विकास कब हुआ ?
उत्तर
खड़ी बोली गद्य का व्यवस्थित विकास भारतेन्दु युग में हुआ।

प्रश्न 16
भारतेन्दु युग की दो पत्रिकाओं एवं उनके सम्पादकों के नाम लिखिए।
या
भारतेन्दु युग की दो प्रसिद्ध पत्रिकाओं के नाम लिखिए। [2009]
उत्तर

  1. ‘ब्राह्मण’–प्रतापनारायण मिश्र तथा
  2. हिन्दी प्रदीप’-पं० बालकृष्ण भट्ट्ट।

प्रश्न 17
भारतेन्दु युग के गद्य की मुख्य विशेषताएँ बताइट।
उत्तर
भारतेन्दु युग के गद्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. भारतेन्दु युग का गद्य सरल-सरस है,
  2. इसमें मुहावरों और लोकोक्तियों का अधिक प्रयोग हुआ है,
  3. इसमें तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू, फारसी एवं अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है तथा
  4. इसमें व्याकरण की त्रुटियाँ हैं।

प्रश्न 18
भारतेन्दु युग में किन गद्य-विधाओं का विकास हुआ ?
उत्तर
भारतेन्दु युग में नाटक, कहानी, उपन्यास एवं निबन्ध गद्य-विधाओं का विकास हुआ।

प्रश्न 19
निम्नलिखित में से किन्हीं दो पत्रिकाओं के सम्पादकों के नाम लिखिए
(1) आनन्द कादम्बिनी,
(2) हरिश्चन्द्र चन्द्रिका,
(3) नया जीवन।
या
‘आनन्द कादम्बिनी’ के सम्पादक कौन थे? [2017]
उत्तर
(1) आनन्द कादम्बिनी – सम्पादक : बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’।
(2) हरिश्चन्द्र चन्द्रिका – सम्पादक : भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।
(3) नया जीवन – सम्पादक : कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’।

प्रश्न 20
द्विवेदी युग के दो प्रमुख लेखकों की एक-एक रचना का नाम लिखिए।
या
द्विवेदी युग के दो प्रसिद्ध निबन्धकारों (लेखकों) के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. बाबू श्यामसुन्दर दास-साहित्यालोचन।
  2. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी–रसज्ञ-रंजन।

प्रश्न 21
द्विवेदी युग में प्रकाशित चार पत्रिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. सरस्वती,
  2. मर्यादा,
  3. माधुरी तथा
  4. इन्दु।।

प्रश्न 22
22 द्विवेदी युग का समय बताइए और उस व्यक्ति का पूरा नाम बताइए, जिसके कारण इसे ‘द्विवेदी युग’ कहा जाता है।
उत्तर
द्विवेदी युग का समय सन् 1900 ई० से 1920 ई० तक है। इस युग को आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के नाम पर ‘द्विवेदी युग’ कहा जाता है।

प्रश्न 23
द्विवेदी युग के हिन्दी गद्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
द्विवेदी युग का हिन्दी गद्य व्याकरण-सम्मत, परिमार्जित तथा पद-विन्यास व वाक्य-विन्यास से युक्त है। इसमें औदात्य, पाण्डित्य एवं प्रवाह है। इसकी भाषा-शैली अत्यन्त परिष्कृत, सामासिक तथा प्रवाहपूर्ण है।

प्रश्न 24
‘शुक्ल युग’ को यह नाम क्यों दिया गया है ?
या
हिन्दी-काव्य के छायावाद युग’ के समय को हिन्दी गद्य-साहित्य में शुक्ल युग’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर
सन् 1919 ई० से 1938 ई० तक के काल को हिन्दी गद्य-साहित्य में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के महत्त्वपूर्ण योगदान के कारण ‘शुक्ल युग’ अथवा ‘छायावाद युग’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 25
आलोचना, नाटक, उपन्यास एवं कहानी के क्षेत्र में प्रसिद्ध शुक्ल युग के तीन गद्य रचनाकारों के नाम बताइए।
उत्तर
शुक्ल युग के तीन प्रमुख गद्य-रचनाकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, जयशंकर प्रसाद और प्रेमचन्द हैं, जो क्रमश: आलोचना, नाटक एवं उपन्यास तथा कहानी के क्षेत्र में प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 26
शुक्ल युग के प्रमुख गद्यकारों के नाम बताइट। उत्तर जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, बाबू गुलाबराय, नन्ददुलारे वाजपेयी, महादेवी वर्मा, राय कृष्णदास, हजारीप्रसाद द्विवेदी आदि शुक्ल युग के प्रमुख गद्यकार हैं।

प्रश्न 27
‘शुक्ल युग’ को अन्य किन नामों से जाना जाता है ?
उत्तर
शुक्ल युग को ‘छायावाद युग’, ‘प्रसाद युग’ एवं ‘प्रेमचन्द युग’ नामों से जाना जाता है।

प्रश्न 28
छायावाद युग के किन्हीं दो नाटकों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. चन्द्रगुप्त तथा
  2. अजातशत्रु।।

प्रश्न 29
छायावाद युग में गद्य को समृद्ध करने वाले प्रमुख लेखकों एवं उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर
जयशंकर प्रसाद (चन्द्रगुप्त), प्रेमचन्द ( गबन, गोदान), बाबू गुलाबराये ( मेरी असफलताएँ) तथा आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (चिन्तामणि) आदि छायावाद युग में गद्य को समृद्ध करने वाले प्रमुख लेखक हैं।।

प्रश्न 30
छायावादयुगीन किन्हीं दो ऐसे गद्य-लेखकों के नाम बताइए जो कवि न हों।
उत्तर
छायावादयुगीन गद्य-लेखक राहुल सांकृत्यायन एवं बाबू गुलाबराय कवि नहीं थे।

प्रश्न 31
ऐसे तीन गद्य-लेखकों के नाम लिखिए, जिन्होंने द्विवेदी युग तथा छायावाद युग दोनों में लेखन-कार्य किया।
उत्तर
द्विवेदी युग और छायावाद युग दोनों में लेखन-कार्य करने वाले तीन गद्य-लेखक हैं-

  1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल,
  2. बाबू गुलाबराय तथा
  3. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी।

प्रश्न 32
छायावादोत्तर युग की प्रमुख गद्य-विधाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
नाटक, कहानी, उपन्यास, समालोचना, जीवनी, गद्य-गीत, एकांकी, आत्मकथा, रिपोर्ताज, यात्रावृत्त, संस्मरण एवं रेखाचित्र आदि छायावादोत्तर युग की प्रमुख गद्य-विधाएँ हैं।

प्रश्न 33
छायावादोत्तर युग के प्रमुख गद्य-लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, हरिशंकर परसाई, यशपाल, रामवृक्ष बेनीपुरी, धर्मवीर भारती, विद्यानिवास मिश्र, कमलेश्वर आदि छायावादोत्तर युग के प्रमुख गद्य-लेखक हैं।

प्रश्न 34
मुंशी सदासुखलाल की भाषा की विशेषताएँ बताइट।
उत्तर

  1. भाषा में अस्पष्टता अधिक है तथा
  2. वाक्य-रचना पर फारसी शैली का प्रभाव है।

प्रश्न 35
हिन्दी खड़ी बोली गद्य-साहित्य के विकास में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का योगदान बताइट।
या
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के गद्य की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने लोक-प्रचलित शब्दावली, कहावतों, लोकोक्तियों और मुहावरों के प्रभावपूर्ण प्रयोग से अपनी भाषा को अधिकाधिक सशक्त एवं सजीव बनाया तथा नाटक, कहानी, निबन्ध आदि अनेक गद्य-विधाओं में रचनाएँ कीं। इसलिए इन्हें ‘हिन्दी खड़ी बोली गद्य का जनक’ भी कहा जाता है।

प्रश्न 36
छायावादी युग के गद्य की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर

  1. छायावादी युग का गद्य कलात्मक है तथा
  2. उसमें विशिष्ट अभिव्यंजना शक्ति, कल्पना की प्रधानता, स्वच्छन्द चेतना, अनुभूति की सघनता और भावुकता विद्यमान है।

प्रश्न 37
किन्हीं दो छायावादी पद्य-लेखकों की एक-एक गद्य रचना का नाम लिखिए।
उत्तर

  1. जयशंकर प्रसाद – चन्द्रगुप्त (नाटक)।
  2. महादेवी वर्मा – स्मृति की रेखाएँ (संस्मरण)।

प्रश्न 38
छायावादोत्तर हिन्दी गद्य (प्रगतिवादी गद्य) की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
छायावादोत्तर काल का हिन्दी गद्य सहज, व्यावहारिक और अलंकारविहीन था। उसमें भावुकतापूर्ण अभिव्यक्ति का स्थान चुटीली उक्तियों ने ले लिया था।

प्रश्न 39
छायावादोत्तर युग के दो कहानी लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. जैनेन्द्र कुमार तथा
  2. अज्ञेय।।

प्रश्न 40
छायावादोत्तर युग के दो लेखकों की एक-एक गद्य-रचना का नाम लिखिए।
उत्तर

  1. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ –– अर्द्धनारीश्वर।
  2. धर्मवीर भारती – गुनाहों के देवता।

प्रश्न 41
छायावादोत्तरयुगीन साहित्यकारों की दोनों पीढ़ियों के एक-एक साहित्यकार का नाम लिखिए।
उत्तर

  1. पहली पीढ़ी – आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी।
  2. दूसरी पीढ़ी – विद्यानिवास मिश्र।

प्रश्न 42
स्वातन्त्र्योत्तर युग के प्रमुख गद्य-लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
स्वातन्त्र्योत्तर युग में विद्यानिवास मिश्र, हरिशंकर परसाई, फणीश्वरनाथ रेणु’, धर्मवीर भारती, प्रभाकर माचवे, रजनी पणिक्कर, मोहन राकेश, मन्नू भण्डारी, शिवानी, नागार्जुन आदि प्रमुख गद्य-लेखक हुए।

प्रश्न 43
निम्नलिखित गद्य-लेखकों की एक-एक प्रसिद्ध गद्य-रचना का नाम लिखिए
(1) राजेन्द्र यादव तथा
(2) धीरेन्द्र वर्मा।
उत्तर
(1) लेखक-राजेन्द्र यादव, रचना-चेखव : एक इण्टरव्यू, विधा-भेटवार्ता (काल्पनिक)।
(2) लेखक-धीरेन्द्र वर्मा, रचना-मेरी कॉलेज डायरी, विधा-डायरी।

प्रश्न 44
निम्नलिखित लेखकों की एक-एक प्रसिद्ध गद्य-रचना का नाम लिखिए–
(1) महादेवी वर्मा तथा
(2) लक्ष्मीचन्द्र जैन।
उत्तर
(1) लेखिका-महादेवी वर्मा, रचना–पथ के साथी; अतीत के चलचित्र; स्मृति की रेखाएँ, विधा-संस्मरण; संस्मरण/रेखाचित्र।।
(2) लेखक-लक्ष्मीचन्द्र जैन, रचना-भगवान् महावीर : एक इण्टरव्यू, विधा-भेटवार्ता (काल्पनिक)।

प्रश्न 45
निम्नलिखित लेखकों की एक-एक रचना का नाम लिखिए–
(1) विद्यानिवास मिश्र,
(2) डॉ० नगेन्द्र,
(3) हजारीप्रसाद द्विवेदी,
(4) रघुवीर सिंह।
उत्तर
(1) लेखक-विद्यानिवास मिश्र, रचना-मेरे राम का मुकुट भीग रहा है, विधा-निबन्ध।
(2) लेखक-डॉ० नगेन्द्र, रचना-हिन्दी साहित्य का बृहद् इतिहास, विधा-आलोचना।
(3) लेखक-हजारीप्रसाद द्विवेदी, रचना-कल्पलता (निबन्ध-संग्रह), विधा-निबन्ध।
(4) लेखक-रघुवीर सिंह, रचना–शेष स्मृतियाँ, विधा-संस्मरण।

प्रश्न 46
निम्नलिखित कृतियों में से किन्हीं दो कृतियों के रचनाकार और उनकी विधाओं के नाम लिखिए
(1) अतीत के चलचित्र,
(2) लहरों के राजहंस,
(3) श्रद्धा-भक्ति।
उत्तर
(1) कृति-अतीत के चलचित्र, रचनाकार-महादेवी वर्मा, विधा-रेखाचित्र।
(2) कृति-लहरों के राजहंस, रचनाकार-मोहन राकेश, विधा-नाटक।

प्रश्न 47
हिन्दी गद्य की प्रमुख विधाओं के नाम लिखिए।
उत्तर
निबन्ध, नाटक, कहानी, उपन्यास, एकांकी तथा आलोचना हिन्दी गद्य की प्रमुख विधाएँ हैं।

प्रश्न 48
छायावादोत्तर युग में प्रारम्भ एवं समृद्ध होने वाली प्रकीर्ण गद्य-विधाओं में से किन्हीं दो विधाओं के नाम लिखिए।
उत्तर
जीवनी, आत्मकथा, यात्रावृत्त, गद्यकाव्य, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, डायरी, भेटवार्ता, पत्र-साहित्य आदि हिन्दी की गौण या प्रकीर्ण गद्य-विधाएँ हैं।

प्रश्न 49
प्रकीर्ण गद्य-विधाओं का अभूतपूर्व विकास किस युग में हुआ ?
उत्तर
प्रकीर्ण गद्य-विधाओं का अभूतपूर्व विकास छायावादोत्तर युग में हुआ।

प्रश्न 50
(1) भारतेन्दु युग के निबन्धकारों के नाम लिखिए।
(2) द्विवेदी युग के निबन्धकारों के नाम लिखिए।
(3) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और उनके बाद के युग के दो प्रमुख निबन्धकारों के नाम लिखिए।
(4) स्वातन्त्र्योत्तर युग के दो निबन्धकारों के नाम लिखिए।
उत्तर
(1) भारतेन्दु युग-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रतापनारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट।
(2) द्विवेदी युग-आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी, पद्मसिंह शर्मा, अध्यापक पूर्णसिंह।
(3) शुक्ल युग-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, गुलाबराय, पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल। शुक्लोत्तर युग–डॉ० नगेन्द्र, श्रीमती महादेवी वर्मा, वासुदेवशरण अग्रवाल।
(4) स्वातन्त्र्योत्तर युग-विद्यानिवास मिश्र, कुबेरनाथ राय।

प्रश्न 51
विषय और शैली की दृष्टि से निबन्ध के प्रमुख कितने भेद हैं ? उनके नाम लिखिए।
उत्तर
विषय और शैली की दृष्टि से निबन्ध के प्रमुख चार भेद हैं-

  1. विचारात्मक निबन्ध,
  2. भावात्मक निबन्ध,
  3. वर्णनात्मक निबन्ध तथा
  4. विवरणात्मक निबन्ध।

प्रश्न 52
निबन्ध की परिभाषा लिखिए तथा उसके चारे भेदों में से किसी एक का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर
निबन्ध उस गद्य-रचना को कहते हैं, जिसमें एक सीमित आकार के अन्तर्गत किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन; एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सौष्ठव, सजीवता और सम्बद्धता के साथ किया गया हो। निबन्ध का एक भेद, वर्णनात्मक निबन्ध है।

प्रश्न 53
हिन्दी में निबन्ध-रचना का आरम्भ किस युग में माना जाता है ? दो युग-प्रवर्तक निबन्ध लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
हिन्दी में निबन्ध-रचना का आरम्भ भारतेन्दु युग से माना जाता है। हिन्दी के दो युग-प्रवर्तक निबन्धकार आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी और आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हैं।

प्रश्न 54
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने किस प्रकार के निबन्धों की रचना की ?
उत्तर
शुक्ल जी ने विचारप्रधान, समीक्षात्मक तथा मनोवैज्ञानिक निबन्धों की रचना की।

प्रश्न 55
हिन्दी के प्रमुख भावात्मक निबन्धकारों के नाम लिखिए।
उत्तर
हिन्दी के भावात्मक निबन्ध लिखने वालों में वियोगी हरि, सरदार पूर्णसिंह, राय कृष्णदास, रघुवीर सिंह, महादेवी वर्मा, रामवृक्ष बेनीपुरी तथा विद्यानिवास मिश्र प्रमुख हैं।

प्रश्न 56
हिन्दी के दो युग-प्रवर्तक निबन्ध लेखकों और उनकी एक-एक निबन्ध पुस्तक के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. श्यामसुन्दर दास-साहित्यिक लेख।
  2. रामचन्द्र शुक्ल–चिन्तामणि (दो भागों में)।

प्रश्न 57
प्रमुख ललित निबन्ध लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, धर्मवीर भारती, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, विद्यानिवास मिश्र आदि ललित निबन्धों के प्रमुख लेखक हैं।

प्रश्न 58
कहानी अथवा आधुनिक कहानी किस उद्देश्य से लिखी जाती है ?
उत्तर
कहानी का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ व्यक्ति या समाज के महत्त्वपूर्ण अनुभवों, अनुभूतियों एवं यथार्थ की कलात्मक अभिव्यक्ति करना है, जब कि मानव-जीवन की कुण्ठाओं, भटकाव, संत्रास, दिशाहीनता और यान्त्रिक जड़ता का यथार्थ और मार्मिक चित्रण करना आधुनिक कहानी के अन्यतमे उद्देश्य हैं।

प्रश्न 59
कहानी के कौन-कौन से तत्त्व होते हैं ?
उत्तर
कहानी के सात तत्त्व होते हैं—

  1. शीर्षक,
  2. कथावस्तु या कथानक,
  3. पात्र और चरित्र-चित्रण,
  4. कथोपकथन या संवाद,
  5. देशकाल या वातावरण,
  6. भाषा-शैली तथा
  7. उद्देश्य।

प्रश्न 60
कहानी की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर

  1. लघु कथानक,
  2. पात्र एवं चरित्र-चित्रण,
  3. मुख्य रूप से एक ही विषय, भाव अथवा संवेदना का प्रस्तुतीकरण तथा
  4.  निश्चित उद्देश्य-कहानी की मुख्य विशेषताएँ हैं।

प्रश्न 61
नयी कहानी की क्या विशेषताएँ हैं ?
उत्तर
नयी कहानी जीवन के किसी मार्मिक तथ्य को नाटकीय प्रभाव के साथ व्यक्त करती है तथा उसमें यथार्थता एवं मनोवैज्ञानिकता होती है।

प्रश्न 62
हिन्दी की प्रथम मौलिक कहानी का नाम बताइए। [2009]
उत्तर
कहानी-कला की दृष्टि से किशोरीलाल गोस्वामी की ‘इन्दुमती’ हिन्दी-साहित्य की प्रथम मौलिक कहानी है।

प्रश्न 63
आधुनिक युग की किन्हीं दो महिला कथाकारों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. मन्नू भण्डारी तथा
  2. उषा प्रियंवदा।

प्रश्न 64
द्विवेदी युग के किन्हीं दो प्रसिद्ध कहानीकारों के नाम बताइए।
उत्तर

  1. रामचन्द्र शुक्ल तथा
  2. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी।

प्रश्न 65
हिन्दी के प्रमुख कहानीकारों के नाम बताइट।
उत्तर
मुंशी प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, जैनेन्द्र कुमार, भगवतीचरण वर्मा, यशपाल, चतुरसेन शास्त्री, फणीश्वरनाथ ‘रेणु’, शैलेश मटियानी, मन्नू भण्डारी, अज्ञेय आदि हिन्दी के प्रमुख कहानीकार हैं।

प्रश्न 66
प्रेमचन्द जी की प्रमुख कहानियों के नाम लिखिए।
उत्तर
मन्त्र, ईदगाह, कफन, पंच परमेश्वर, पूस की रात, शतरंज के खिलाड़ी, नमक का दारोगा आदि प्रेमचन्द की प्रमुख कहानियाँ हैं।

प्रश्न 67
जयशंकर प्रसाद की प्रमुख कहानियों के नाम लिखिए।
उत्तर
आकाशदीप, पुरस्कार, ममता, आँधी, इन्द्रजाल, छाया, प्रतिध्वनि आदि जयशंकर प्रसाद की प्रमुख कहानियाँ हैं।

प्रश्न 68
प्रेमचन्दोत्तर किन्हीं दो कहानीकारों के नाम लिखिए।
उत्तर
प्रेमचन्दोत्तर कथाकारों में यशपाल एवं जैनेन्द्र कुमार प्रमुख हैं।

प्रश्न 69
हिन्दी के दो कहानी-संग्रहों और उनके लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
हिन्दी कहानियों के दो संग्रहों के नाम हैं-‘आकाशदीप’ तथा ‘ज्ञानदान’। इनके लेखकों के नाम क्रमशः हैं—जयशंकर प्रसाद तथा यशपाल।

प्रश्न 70
प्रेमचन्द के समकालीन कहानीकारों में से किन्हीं दो के नाम लिखिए।
उत्तर
राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह एवं विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ प्रेमचन्द के समकालीन कहानीकार थे। इनकी कहानियों में क्रमशः ‘कानों में कॅगना’ एवं ‘कलाकार का दण्ड’ लोकप्रिय हैं।

प्रश्न 71
आधुनिक युग के किन्हीं दो कहानीकारों के नाम लिखिए।
या
प्रेमचन्द के बाद के किन्हीं दो प्रमुख कहानीकारों के नाम लिखिए।
या
छायावादोत्तर युग के किन्हीं दो कहानी-लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
जैनेन्द्र कुमार, सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, यशपाल, भगवतीचरण वर्मा, विष्णु प्रभाकर, अमृतराय आदि आधुनिक युग के प्रसिद्ध कहानीकार हैं।

प्रश्न 72
छायावादी युग के सबसे प्रसिद्ध कहानीकार का नाम लिखिए।
उत्तर
छायावादी युग के सबसे प्रसिद्ध कहानीकार जयशंकर प्रसाद थे।

प्रश्न 73
स्वतन्त्रता के पश्चात् के प्रमुख कहानीकारों के नाम लिखिए।
उत्तर
स्वतन्त्रता के पश्चात् के प्रमुख कहानीकारों में विष्णु प्रभाकर, कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव, मोहन राकेश, निर्मल वर्मा आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

प्रश्न 74
हिन्दी के कहानी लेखकों में से किन्हीं दो की एक-एक कहानी का नाम लिखिए।
उत्तर
हिन्दी के कहानी लेखकों में प्रेमचन्द एवं जयशंकर प्रसाद की एक-एक कहानियाँ क्रमशः ‘नमक का दारोगा’ एवं ‘पुरस्कार’ हैं।

प्रश्न 75
हिन्दी के प्रमुख उपन्यासकारों के नाम बताइए।
उत्तर
प्रेमचन्द, भगवतीचरण वर्मा, वृन्दावनलाल वर्मा, यशपाल, जैनेन्द्र कुमार, चतुरसेन शास्त्री, सुदर्शन, इलाचन्द्र जोशी, फणीश्वरनाथ ‘रेणु’, राजेन्द्र यादव, उदयशंकर भट्ट, देवेन्द्र सत्यार्थी आदि।

प्रश्न 76
हिन्दी के प्रथम मौलिक उपन्यास एवं उसके लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर
लाला श्रीनिवास दास द्वारा लिखित परीक्षा-गुरु’ नामक उपन्यास, हिन्दी का प्रथम मौलिक उपन्यास है।

प्रश्न 77
द्विवेदी युग के दो प्रमुख उपन्यासकारों के नाम लिखिए।
उत्तर
द्विवेदी युग के दो प्रमुख उपन्यासकार हैं—

  1. किशोरीलाल गोस्वामी तथा
  2. अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’।।

प्रश्न 78
प्रेमचन्द युग के दो उपन्यासकारों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. प्रेमचन्द तथा
  2. पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’।

प्रश्न 79
मुंशी प्रेमचन्द के प्रमुख उपन्यासों के नाम लिखिए। या प्रेमचन्द के दो प्रसिद्ध उपन्यासों के नाम लिखिए। [2010, 12]
उत्तर
मुंशी प्रेमचन्द ने गोदान, गबन, कर्मभूमि, रंगभूमि, प्रेमाश्रम, सेवासदन, निर्मला आदि उपन्यासों की रचना की।

प्रश्न 80
जयशंकर प्रसाद के दो उपन्यासों के नाम लिखिए।
उत्तर
‘कंकाल’ और ‘तितली’।

प्रश्न 81
आधुनिक काल की दो महिला उपन्यासकारों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. शिवानी तथा
  2. उषा प्रियंवदा।

प्रश्न 82
प्रमुख आंचलिक उपन्यासकारों के नाम लिखिए।
उत्तर
फणीश्वरनाथ रेणु’, रांगेय राघव, हिमांशु जोशी, नागार्जुन, अमृतलाल नागर, देवेन्द्र सत्यार्थी और शिवप्रसाद सिंह।

प्रश्न 83
प्रेमचन्द के बाद होने वाले आधुनिक युग के प्रमुख उपन्यासकारों के नाम लिखिए।
या
आधुनिक युग के किन्हीं दो उपन्यासकारों के नाम लिखिए। [2011]
उत्तर
सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, जैनेन्द्र कुमार, उपेन्द्रनाथ अश्क’, मोहन राकेश, इलाचन्द्र जोशी, डॉ० धर्मवीर भारती, अमृतलाल नागर, विष्णु प्रभाकर, रांगेय राघव, भगवतीचरण वर्मा आदि प्रेमचन्द के पश्चात् होने वाले प्रमुख उपन्यासकार हैं।

प्रश्न 84
‘उपन्यास’ और ‘कहानी’ का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कहानी का रचना-फलक आकार में छोटा होता है, जबकि उपन्यास का पर्याप्त विस्तृत। कहानी में प्राय: किसी एक घटना अथवा मनोदशा का वर्णन होता है, जबकि उपन्यास में समग्र मानव-जीवन से सम्बन्धित विविध घटनाओं का समावेश किया जाता है।

प्रश्न 85
उपन्यास का शाब्दिक अर्थ बताइए।
उत्तर
उपन्यास का शाब्दिक अर्थ है-सामने रखना। इसमें ‘प्रसादन’ अर्थात् प्रसन्न करने का भाव भी निहित है। अत: किसी घटना को इस प्रकार सामने रखना कि दूसरों को प्रसन्नता हो, उपन्यस्त करना कहा जाएगा।

प्रश्न 86
उपन्यास की परिभाषा दीजिए।
उत्तर
हिन्दी में उपन्यास को अंग्रेजी के नॉवेल शब्द का पर्याय माना जाता है। उपन्यास गद्य की वह विधा है, जिसमें जीवन का व्यापक चित्रण रोचक एवं सजीव शैली में किया गया हो।

प्रश्न 87
उपन्यास को कितने भागों में विभाजित किया जा सकता है ?
उत्तर
विषय के आधार पर हिन्दी उपन्यासों को निम्नलिखित आठ भागों में विभाजित किया जा सकता है—

  1. सामाजिक,
  2. राजनीतिक,
  3. ऐतिहासिक,
  4. पौराणिक,
  5. मनोवैज्ञानिक,
  6. आंचलिक,
  7.  तिलिस्मी/जासूसी,
  8.  क्रान्तिकारी आदि।

प्रश्न 88
हिन्दी के दो प्रसिद्ध उपन्यासकारों एवं उनके उपन्यासों के नाम लिखिए।
उत्तर
हिन्दी के दो उपन्यासकारों एवं उनके उपन्यासों के नाम निम्नलिखित हैं

  1. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी–बाणभट्ट की आत्मकथा, चारुचन्द्रलेख, पुनर्नवा, अनामदास का पोथा।
  2. श्री भगवतीचरण वर्मा–चित्रलेखा, भूले-बिसरे चित्र, तीन वर्ष, टेढ़े-मेढ़े रास्ते।

प्रश्न 89
हिन्दी के प्रमुख मनोवैज्ञानिक उपन्यासकारों एवं उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर
हिन्दी के प्रमुख मनोवैज्ञानिक उपन्यासकार एवं उनके उपन्यासों के नाम निम्नलिखित हैं

  1. जैनेन्द्र कुमार-परख, सुनीता, त्यागपत्र आदि।।
  2. इलाचन्द्र जोशी–जहाज का पंछी, घृणापथ आदि।
  3. सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’–शेखर : एक जीवनी (दो भाग), नदी के द्वीप आदि।

प्रश्न 90
भारतीय और पाश्चात्य दृष्टि से नाटक के तत्त्व बताइए।
उत्तर
भारतीय आचार्यों ने नाटकों के पाँच तत्त्व माने हैं—

  1. वस्तु,
  2. नेता,
  3. रस,
  4. अभिनय एवं
  5. वृत्ति।

पाश्चात्य विद्वानों ने नाटक के छः तत्त्व स्वीकार किये हैं—

  1. कथावस्तु,
  2. पात्र एवं चरित्र-चित्रण,
  3. कथोपकथन,
  4. देशकाल,
  5. भाषा-शैली एवं
  6. उद्देश्य।।

प्रश्न 91
नाटक श्रव्य-काव्य है अथवा दृश्य-काव्य ?
उत्तर
नाटक दृश्य-काव्य है।

प्रश्न 92
हिन्दी के प्रथम नाटक एवं उसके रचयिता का नाम लिखिए। [2014]
उत्तर
गोपालचन्द्र गिरिधरदास द्वारा रचित ‘नहुष’ को हिन्दी का प्रथम नाटक माना जाता है।

प्रश्न 93
हिन्दी के प्रमुख नाटककारों के नाम लिखिए।
उत्तर
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, जयशंकर प्रसाद, वृन्दावनलाल वर्मा, लक्ष्मीनारायण मिश्र, विष्णु प्रभाकर, सेठ गोविन्ददास, हरिकृष्ण ‘प्रेमी’ आदि हिन्दी के प्रमुख नाटककार हैं।

प्रश्न 94
भारतेन्दु युग के प्रमुख नाटककारों के नाम लिखिए।
उत्तर
भारतेन्दु युग के प्रमुख नाटककारों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के अतिरिक्त बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र, बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, लाला श्रीनिवास दास आदि के नाम प्रमुख हैं।।

प्रश्न 95
जयशंकर प्रसाद के समकालीन प्रमुख नाटककारों के नाम लिखिए।
उत्तर
जयशंकर प्रसाद के समकालीन नाटककारों में प्रमुख हैं—

  1. हरिकृष्ण ‘प्रेमी’,
  2. लक्ष्मीनारायण मिश्र,
  3. गोविन्दवल्लभ पन्त,
  4. सेठ गोविन्ददास आदि।

प्रश्न 96
जयशंकर प्रसाद के प्रसिद्ध नाटकों के नाम लिखिए।
उत्तर
चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, राज्यश्री तथा अजातशत्रु-जयशंकर प्रसाद के प्रसिद्ध नाटक हैं।

प्रश्न 97
प्रसादोत्तर (छायावादोत्तर) युग के प्रमुख नाटककारों के नाम लिखिए।
या
आधुनिक काल के प्रमुख नाटककारों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. डॉ० रामकुमार वर्मा,
  2. सेठ गोविन्ददास,
  3. मोहन राकेश,
  4. विष्णु प्रभाकर,
  5. उपेन्द्रनाथ अश्क’,
  6. डॉ० लक्ष्मीनारायण लाल एवं
  7. धर्मवीर भारती।

प्रश्न 98
हिन्दी के ऐतिहासिक नाटककारों एवं उनके एक-एक नाटक का नाम लिखिए।
या
हिन्दी के किसी प्रसिद्ध नाटककार एवं उसके द्वारा रचित नाटक का नाम बताइट।
उत्तर
हिन्दी के ऐतिहासिक नाटककार और उनके एक-एक नाटक का नाम निम्नलिखित है-

  1. जयशंकर प्रसाद-चन्द्रगुप्त,
  2. हरिकृष्ण प्रेमी–रक्षाबन्धन,
  3. गोविन्दवल्लभ पन्त-राजमुकुट,
  4. सेठ गोविन्ददास–हर्ष,
  5.  वृन्दावनलाल वर्मा–झाँसी की रानी,
  6. लक्ष्मीनारायण मिश्र-वत्सराज।

प्रश्न 99
हिन्दी एकांकी का जनक किसे माना जाता है ? [2011, 17]
उत्तर
हिन्दी एकांकी का आरम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की ‘अँधेर नगरी’, ‘प्रेमयोगिनी’ आदि रचनाओं से हुआ; अत: भारतेन्दु जी ही हिन्दी एकांकी के जनक हैं, किन्तु आधुनिक हिन्दी एकांकी का जनक डॉ० रामकुमार वर्मा को माना जाता है।

प्रश्न 100
हिन्दी के प्रमूख एकांकीकारों के नाम बताइए।
उत्तर
डॉ० रामकुमार वर्मा, विष्णु प्रभाकर, सेठ गोविन्ददास, उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’, हरिकृष्ण ‘प्रेमी’, विनोद रस्तोगी, जगदीशचन्द्र माथुर, उदयशंकर भट्ट, प्रभाकर माचवे, गिरिजाकुमार माथुर आदि हिन्दी के प्रमुख एकांकीकार हैं।।

प्रश्न 101
छायावादोत्तर युग के किन्हीं दो एकांकीकारों के नाम लिखिए।
उत्तर
डॉ० धर्मवीर भारती एवं डॉ० लक्ष्मीनारायण लाल छायावादोत्तर युग के प्रमुख एकांकीकार

प्रश्न 102
आलोचना विधा के चार प्रमुख लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, नन्ददुलारे वाजपेयी, हजारीप्रसाद द्विवेदी, श्यामसुन्दर दास तथा डॉ० नगेन्द्र आलोचना विधा के प्रमुख लेखक हैं।

प्रश्न 103
हिन्दी गद्य की विविध विधाओं के नाम लिखिए।
उत्तर

  1.  नाटक,
  2. उपन्यास,
  3. एकांकी,
  4. कहानी,
  5. निबन्ध,
  6. आलोचना,
  7. आत्मकथा,
  8. जीवनी,
  9. यात्रावृत्त,
  10. रेखाचित्र,
  11. संस्मरण,
  12. गद्यकाव्य,
  13. रिपोर्ताज,
  14. डायरी,
  15.  रेडियो-रूपक,
  16.  भेटवार्ता आदि।

प्रश्न 104
द्विवेदी युग के प्रमुख आलोचना-लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
द्विवेदी युग के प्रमुख आलोचना-लेखकों में आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी, मिश्रबन्धु, बाबू श्यामसुन्दर दास, पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’, लाला भगवानदीन आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

प्रश्न 105
छायावादी युग के सबसे प्रसिद्ध आलोचना-लेखक (आलोचक) कौन थे ?
उत्तर
छायावादी युग के सबसे प्रसिद्ध आलोचना-लेखक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल थे।

प्रश्न 106
हिन्दी के दो प्रसिद्ध आलोचकों के नाम बताइए।
उत्तर
हिन्दी के दो प्रसिद्ध आलोचक हैं—

  1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और
  2. बाबू श्यामसुन्दर दास।

प्रश्न 107
आधुनिक युग के किसी प्रसिद्ध गद्य-आलोचक का नाम लिखिए।
उत्तर
आधुनिक युग में डॉ० नगेन्द्र हिन्दी के एक प्रसिद्ध गद्य-आलोचक हैं।

प्रश्न 108
शुक्लोत्तर युग के आलोचना-लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
डॉ० रामकुमार वर्मा, डॉ० नगेन्द्र, डॉ० रामविलास शर्मा आदि शुक्लोत्तर युग के प्रसिद्ध आलोचना-लेखक हैं।

प्रश्न 109
‘समालोचक’ पत्र किस युग में प्रकाशित हुआ था ?
उत्तर
समालोचक’ पत्र, द्विवेदी युग में प्रकाशित हुआ था।

प्रश्न 110
व्यावहारिक समीक्षा के क्षेत्र में ख्यात आलोचकों के नाम लिखिए।
उत्तर
व्यावहारिक समीक्षा के क्षेत्र में ख्यात प्रमुख आलोचक हैं-आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी, आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, डॉ० विनय मोहन शर्मा, डॉ० गोविन्द त्रिगुणायत आदि।

प्रश्न 111
माक्र्सवादी समीक्षा के क्षेत्र में ख्यात आलोचकों के नाम लिखिए।
उत्तर
मार्क्सवादी समीक्षा के क्षेत्र में ख्यात प्रमुख आलोचक हैं-डॉ० रामविलास शर्मा, शिवदान सिंह चौहान, डॉ० विश्वम्भरनाथ उपाध्याय आदि।

प्रश्न 112
जीवनी किसे कहते हैं? हिन्दी में जीवनी-लेखन का कार्य किस युग में प्रारम्भ हुआ ?
उत्तर
किसी व्यक्ति विशेष के जीवन की जन्म से लेकर मृत्यु तक की घटनाओं के क्रमबद्ध विवरण को ‘जीवनी’ कहा जाता है। हिन्दी में जीवनी-लेखन का कार्य भारतेन्दु युग में प्रारम्भ हो चुका था।

प्रश्न 113
जीवनी लिखने वाले किसी एक लेखक तथा उसकी रचना का नाम लिखिए।
उत्तर
लेखक–अमृतराय। रचना-‘कलम का सिपाही’।

प्रश्न 114
प्रसिद्ध जीवनी-लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
बनारसीदास चतुर्वेदी, बाबू गुलाबराय, विष्णु प्रभाकर, अमृतराय आदि प्रमुख जीवनी-लेखक हैं।

प्रश्न 115
द्विवेदी युग के प्रमुख जीवनी-लेखकों के नाम लिखिए। इस युग में किस प्रकार की जीवनियाँ लिखी गयीं ?
उत्तर
द्विवेदी युग के जीवनी-लेखकों में लक्ष्मीधर वाजपेयी, डॉ० सम्पूर्णानन्द, नाथूराम प्रेमी, मुकुन्दीलाल वर्मा उल्लेखनीय हैं। इस युग में ऐतिहासिक पुरुषों और धार्मिक नेताओं की जीवनियाँ लिखी गयीं।

प्रश्न 116
छायावाद युग के प्रमुख जीवनी-लेखकों के नाम लिखिए। इस युग में कैसी जीवनियाँ लिखी गयीं ?
उत्तर
छायावाद युग के जीवनी-लेखकों में रामनरेश त्रिपाठी, गणेश शंकर विद्यार्थी, प्रेमचन्दउल्लेखनीय हैं। इस युग में राष्ट्रीय महापुरुषों की जीवनियाँ लिखी गयीं।

प्रश्न 117
छायावादोत्तर युग के प्रमुख जीवनी-लेखकों के नाम लिखिए। इस युग में किस प्रकार की जीवनियाँ लिखी गयीं ?
उत्तर
छायावादोत्तर युग के जीवनी-लेखकों में काका कालेलकर, रामवृक्ष बेनीपुरी, बनारसीदास चतुर्वेदी, राहुल सांकृत्यायन-विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इस युग में लोकप्रिय नेताओं, सन्त-महात्माओं, विदेशी महापुरुषों, वैज्ञानिकों, खिलाड़ियों और साहित्यकारों की जीवनियाँ लिखी गयीं।

प्रश्न 118
निम्नलिखित जीवनियों के लेखक कौन हैं-
(1) सुमित्रानन्दन पन्त : जीवन और साहित्य,
(2) निराला की साहित्य-साधना।
उत्तर
(1) शान्ति जोशी एवं
(2) डॉ० रामविलास शर्मा।

प्रश्न 119
छायावादोत्तर युग के दो प्रसिद्ध जीवनी-लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. जैनेन्द्र कुमार तथा
  2. काका कालेलकर।

प्रश्न 120
आत्मकथा का अर्थ बताइए और इसकी परिभाषा दीजिए। हिन्दी में प्रथम आत्मकथा का नाम बताइट।
उत्तर
आत्मकथा का शाब्दिक अर्थ होता है-अपनी कहानी। यह लेखक का अपने जीवन से सम्बद्ध वर्णन है। अतः आत्मकथा किसी विशिष्ट व्यक्ति द्वारा लिखा गया वह आख्यान या वृत्तान्त है जो वह बड़ी बेबाकी से अपने जीवन के बारे में प्रस्तुत करता है। जैन कवि बनारसीदास की ‘अर्द्धकथा’ को हिन्दी के आत्मकथा साहित्य की प्रथम आत्मकथा कहा जाता है।

प्रश्न 121
हिन्दी के प्रमुख आत्मकथा-लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
बाबू श्यामसुन्दर दास (मेरी आत्मकहानी), वियोगी हरि (मेरा जीवन प्रवाह), डॉ० राजेन्द्र प्रसाद (मेरी आत्मकथा) आदि प्रमुख आत्मकथा लेखकों के अतिरिक्त डॉ० हरिवंशराय ‘बच्चन’, पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ तथा गुलाबराय आदि श्रेष्ठ आत्मकथाकार हैं।

प्रश्न 122
निम्नलिखित आत्मकथाओं के लेखकों के नाम लिखिए
(1) अपनी कहानी एवं
(2) मेरी असफलताएँ।
उत्तर
(1) वृन्दावनलाल वर्मा एवं
(2) बाबू गुलाबराय।

प्रश्न 123
आत्मकथा विधा की प्रमुख रचनाओं और उनके लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
आत्मकथा विधा से सम्बन्धित प्रमुख रचनाएँ और उनके लेखक हैं—

  1. कुछ आप बीती, कुछ जग बीती (भारतेन्दु हरिश्चन्द्र),
  2. निज वृत्तान्त (अम्बिकादत्त व्यास),
  3. कल्याण का पथिक (स्वामी श्रद्धानन्द),
  4. मुझमें दैवी जीवन का विकास (स्वामी सत्यानन्द अग्निहोत्री),
  5. आपबीती ( भाई परमानन्द),
  6. तरुण स्वप्न (सुभाषचन्द्र बोस),
  7. मेरी कहानी (जवाहरलाल नेहरू),
  8. सत्य की खोज (एस० राधाकृष्णन),
  9. आधे रास्ते और सीधी चट्टान (कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी),
  10.  मेरी आत्मकथा (डॉ० राजेन्द्र प्रसाद),
  11.  प्रवासी की आत्मकथा (स्वामी भवानीदयाल संन्यासी),
  12.  स्वतन्त्रता की खोज (सत्यदेव परिव्राजक),
  13. साठ वर्ष : एक रेखांकन (सुमित्रानन्दन पन्त),
  14. परिव्राजक की प्रजा (शान्तिप्रिय द्विवेदी) आदि।

प्रश्न 124
रेखाचित्र अथवा आत्मकथा की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
रेखाचित्र—

  1. रेखाचित्र में कम-से-कम शब्दों के प्रयोग द्वारा किसी व्यक्ति या वस्तु की विशेषता को उभारा जाता है।
  2. रेखाचित्र में लेखक पूर्णत: तटस्थ होकर, किसी वस्तु या व्यक्ति का चित्रात्मक शैली में सजीव तथा भावपूर्ण चित्र प्रस्तुत करता है।

आत्मकथा—

  1. महापुरुषों द्वारा लिखी गयी आत्मकथाएँ पाठकों को उनके जीवन के आत्मीय पहलुओं से परिचय कराती हुई मार्गदर्शन करती हैं और प्रेरणा देती हैं।
  2. लेखक स्वयं अपने जीवन के प्रसंगों को पूर्ण निजता के साथ भावात्मक एवं रोचक शैली में प्रस्तुत करता है।

प्रश्न 125
रेखाचित्र किसे कहते हैं ? इसको परिभाषित कीजिए।
उत्तर
रेखाचित्र साहित्य की वह गद्यात्मक विधा है, जिसमें किसी विषय-विशेष का, उसकी बाह्य विशेषताओं को उभारते और तत्सम्बन्धित विभिन्न संक्षिप्त घटनाओं को समेटते हुए शब्द-रेखाओं के माध्यम से सजीव, सरस, मर्मस्पर्शी एवं प्रभावशाली चित्र उभारा जाता है।

प्रश्न 126
किन्हीं दो रेखाचित्रकारों के नाम लिखिए। [2011]
उत्तर
(1) महादेवी वर्मा तथा
(2) रामवृक्ष बेनीपुरी।

प्रश्न 127
रेखाचित्र विधा में किसने लेखन प्रारम्भ किया ?
उत्तर
कुछ विद्वान् पद्मसिंह शर्मा को रेखाचित्र विधा का जनक मानते हैं, परन्तु इस विधा के नाम से इस विधा में लेखन प्रारम्भ करने का श्रेय श्रीराम शर्मा को है।

प्रश्न 128
छायावादोत्तर युग के प्रमुख रेखाचित्र विधा के लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
रेखाचित्र विधा में लिखने वाले छायावादोत्तर युग के लेखकों में उल्लेखनीय हैं—प्रकाशचन्द्र गुप्त, बनारसीदास चतुर्वेदी, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’, विनयमोहन शर्मा, सत्यवती मलिक, रघुवीर सहाय और डॉ० नगेन्द्र।

प्रश्न 129
संस्मरण की परिभाषा दीजिए।
उत्तर
संस्मरण का शाब्दिक अर्थ होता है सम्यक् स्मरण, जिसके मूल में गम्भीर चिन्तन का भाव निहित होता है। मानव-जीवन की कटु, तिक्त एवं मधुर स्मृतियाँ अनुभूति और संवेदना का संसर्ग प्राप्त करके जब हृदय से निकलती हैं तब वे संस्मरण का रूप धारण कर लेती हैं।

प्रश्न 130
संस्मरण और रेखाचित्र का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
संस्मरण में साहित्यकार अपने जीवन में आये किसी व्यक्ति विशेष पर आधारित घटना को रोचक शैली में, यथार्थ रूप में और अपने व्यक्तित्व में रंगकर प्रस्तुत करता है; जैसे–महादेवी वर्मा कृत ‘प्रणाम। रेखाचित्र में लेखक कम-से-कम शब्दों का प्रयोग करके किसी वस्तु या व्यक्ति का चित्रात्मक शैली में सजीव भावपूर्ण चित्र प्रस्तुत करता है; जैसे–महादेवी वर्मा कृत ‘गिल्लू’।

प्रश्न 131
‘संस्मरण’ की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर

  1. संस्मरण में व्यक्तियों, घटनाओं अथवा दृश्यों को स्मृति के सहारे पुन: कल्पना में मूर्त किया जाता है।
  2. संस्मरण में लेखक तटस्थ रहने के बाद भी स्वयं को चित्रित कर देता है।
  3. संस्मरण व्यक्ति, वस्तु अथवा घटना के वैशिष्ट्य को लक्षित करने वाला होता है।

प्रश्न 132
हिन्दी के दो संस्मरण लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. महादेवी वर्मा तथा
  2. काका कालेलकर।

प्रश्न 133
हिन्दी के प्रथम संस्मरण लेखक का नाम बताइए। [2010]
उत्तर
बाबू बालमुकुन्द गुप्त ने पं० प्रतापनारायण मिश्र के संस्मरण (1907 ई०) में लिखकर इस विधा का सूत्रपात किया; परन्तु डॉ० गोविन्द त्रिगुणायत संस्मरण का प्रथम लेखक सत्यदेव परिव्राजक को स्वीकार करते हैं।

प्रश्न 134
महादेवी वर्मा के कुछ संस्मरण-ग्रन्थों के नाम लिखिए।
उत्तर
महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘पथ के साथी’ (संस्मरण), ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘स्मारिका’ (रेखाचित्रनुमा संस्मरण) आदि संस्मरण-ग्रन्थ हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं।

प्रश्न 135
कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ द्वारा रचित संस्मरणात्मक रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर
‘जिन्दगी मुसकाई’, ‘माटी हो गयी सोना’ तथा ‘दीप जले शंख बजे’ प्रभाकर जी की प्रमुख संस्मरणात्मक रचनाएँ हैं।

प्रश्न 136
संस्मरण विधा से सम्बन्धित प्रमुख रचनाओं और उनके लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
संस्मरण विधा से सम्बन्धित प्रमुख रचनाएँ और उनके लेखक निम्नलिखित हैं—

  1. मण्टो मेरा दुश्मन,
  2. ज्यादा अपनी कम परायी (उपेन्द्रनाथ अश्क’);
  3. कुछ शब्द कुछ रेखाएँ। (विष्णु प्रभाकर);
  4. बचपन की स्मृतियाँ,
  5. जिनका मैं कृतज्ञ,
  6. मेरे असहयोग के साथी (राहुल सांकृत्यायन);
  7. दस तस्वीरें,
  8.  जिन्होंने जीना सीखा (जगदीशचन्द्र माथुर);
  9. स्मृति-कण,
  10.  चेहरे जाने-पहचाने (सेठ गोविन्ददास);
  11.  चेतना के बिम्ब (डॉ० नगेन्द्र);
  12.  समय के पाँव (माखनलाल चतुर्वेदी);
  13.  लोकदेव नेहरू,
  14.  संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ (रामधारी सिंह ‘दिनकर’);
  15.  नये-पुराने झरोखे (डॉ० हरिवंशराय बच्चन’) ।।

प्रश्न 137
‘यात्रावृत्त’ किसे कहते हैं ?
उत्तर
जब कोई यात्री अपनी यात्रा के अन्तर्गत मार्ग में आने वाले विविध व्यक्तियों, स्थानों, व्यवस्थाओं आदि के अपने हृदय पर पड़ने वाले प्रभावों का सूक्ष्म और सजीव वर्णन करता है, तब उसे यात्रावृत्त कहते हैं।

प्रश्न 138
हिन्दी में यात्रावृत्त लिखने का क्रम किस लेखक से प्रारम्भ हुआ तथा सर्वाधिक यात्रावृत्त किस गद्य-युग में लिखे गये ?
उत्तर
यात्रावृत्त लिखने का क्रम भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से प्रारम्भ हुआ तथा सर्वाधिक यात्रावृत्त छायावाद और छायावादोत्तर युग में लिखे गये।

प्रश्न 139
हिन्दी के यात्रा-साहित्य के दो प्रमुख लेखकों और उनकी एक-एक रचना के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. राहुल सांकृत्यायन-घुमक्कड़शास्त्र तथा
  2. मोहन राकेश-आखिरी चट्टान तक।

प्रश्न 140
यात्रावृत्त के मुख्य तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
यात्रा से जुड़ी निजी स्मृतियाँ, सहजता, सत्यता, रोचकता और सरसता यात्रावृत्त के मुख्य तत्त्व

प्रश्न 141
छायावाद युग के यात्रावृत्त विधा के प्रमुख लेखक और उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
छायावाद युग की यात्रावृत्त विधा के प्रमुख लेखक और उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नवत् हैं-

  1. रामनारायण मिश्र – यूरोप यात्रा के छ: मास तथा
  2. राहुल सांकृत्यायन – मेरी यूरोप यात्रा, मेरी तिब्बत यात्रा।

प्रश्न 142
छायावादोत्तर युग की यात्रावृत्त विधा की प्रमुख रचनाएँ और उनके लेखकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
छायावादोत्तर युग की प्रमुख रचनाएँ एवं उनके लेखक इस प्रकार हैं—

  1. घुमक्कड़शास्त्र,
  2. किन्नर देश में,
  3. हिमालय परिचय (राहुल सांकृत्यायन);
  4. पैरों में पंख बाँधकर,
  5. उड़ते चलो, उड़ते चलो (रामवृक्ष बेनीपुरी);
  6. वह दुनिया (भगवतशरण उपाध्याय);
  7. अरे यायावर रहेगा याद,
  8. एक बूंद सहसा उछली (सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’);
  9. तन्त्रालोक से यन्त्रालोक तक (डॉ० नगेन्द्र);
  10. पृथ्वी-परिक्रमा,
  11.  सुदूर दक्षिण में (सेठ गोविन्ददास);
  12. धरती गाती है (देवेन्द्र सत्यार्थी);
  13.  तूफानों के बीच (रांगेय राघव);
  14. आखिरी चट्टान तक (मोहन राकेश);
  15. आज का जापान (भदन्त आनन्द कौसल्यायन);
  16.  लोहे की दीवार के दोनों ओर (यशपाल);
  17.  सुबह के रंग (अमृतराय);
  18.  भू-स्वर्ग कश्मीर (हंसकुमार तिवारी) आदि।

प्रश्न 143
‘रिपोर्ताज’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘रिपोर्ताज’ का सम्बन्ध अंग्रेजी के ‘रिपोर्ट’ शब्द से है। रिपोर्ट सामान्य रूप में समाचार-पत्रों में प्रकाशित करने तथा रेडियो-दूरदर्शन पर प्रसारित करने के लिए पत्रकार द्वारा तैयार की जाती है। यही कार्य जब सौन्दर्यचेता साहित्यकार द्वारा किया जाता है तो उसमें उसके व्यक्तित्व की विशिष्टताएँ, प्रतिक्रियाएँ और व्याख्याएँ भी समाहित हो जाती हैं। इस प्रकार साहित्यकार द्वारा विरचित घटना-विवरण ‘रिपोर्ताज’ कहलाता

प्रश्न 144
हिन्दी में रिपोर्ताज लिखने का प्रचलन किस युग में हुआ ? प्रमुख रिपोर्ताज लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
हिन्दी में रिपोर्ताज लिखने का प्रचलन छायावादोत्तर युग में हुआ। प्रमुख रिपोर्ताज लेखक हैं—

  1. धर्मवीर भारती,
  2. कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’,
  3. रांगेय राघव,
  4. विष्णुकान्त शास्त्री आदि।

प्रश्न 145
रिपोर्ताज विधा की हिन्दी में प्रथम रचना का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर
डॉ० शिवदानसिंह चौहान विरचित ‘लक्ष्मीपुरा’ (1938 ई०) को हिन्दी गद्य-साहित्य का प्रथम रिपोर्ताज माना जाता है।

प्रश्न 146
प्रमुख रिपोर्ताज रचनाएँ और उनके लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
रिपोर्ताज विधा की प्रमुख रचनाएँ और उनके लेखक हैं–

  1. पहाड़ों में प्रेममयी संगीति (उपेन्द्रनाथ अश्क’);
  2. एक तस्वीर के दो पहलू,
  3. क्षण बोले कण मुसकाये,
  4. दिल्ली की यात्रा-स्मृतियाँ (कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’);
  5. वे लड़ेंगे हजार साल (शिवसागर मिश्र);
  6. युद्ध-यात्रा (धर्मवीर भारती);
  7.  प्लाट का मोर्चा (शमशेर बहादुर सिंह)।

प्रश्न 147
हिन्दी में डायरी विधा का आरम्भ किस युग से हुआ ? किसी डायरी लेखक की डायरी का नाम लिखिए।
उत्तर
हिन्दी में डायरी विधा का आरम्भ छायावाद युग से हुआ। डायरी लेखक-धीरेन्द्र वर्मा, रचना-मेरी कॉलेज डायरी।।

प्रश्न 148
हिन्दी की दो नवीन गद्य विधाओं व उन विधाओं के एक-एक प्रमुख लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर

  1. रिपोर्ताज’ हिन्दी गद्य की एक नयी विधा है। इस विधा के प्रमुख लेखक- कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ हैं।
  2. ‘डायरी’ हिन्दी की दूसरी नवीन गद्य विधा है। इस विधा के प्रमुख लेखक-धीरेन्द्र वर्मा हैं।

प्रश्न 149
डायरी विधा की प्रथम रचना का नामोल्लेख कीजिए। (2009)
उत्तर
नरदेव शास्त्री ‘वेदतीर्थ’ को प्रथम डायरी-लेखक माना जाता है। उनकी डायरी “नरदेव शास्त्री ‘वेदतीर्थ’ की जेल डायरी” का प्रकाशन 1930 ई० के आसपास माना जाता है।

प्रश्न 150
डायरी विधा की प्रमुख रचनाएँ और उनके लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
हिन्दी गद्य की डायरी विधा के अन्तर्गत घनश्यामदास बिड़ला की डायरी के पन्ने, सुन्दरलाल त्रिपाठी की ‘दैनन्दिनी’, धीरेन्द्र वर्मा की ‘मेरी कॉलेज डायरी’ जैसी कुछ गिनी-चुनी रचनाएँ ही उपलब्ध हैं।

प्रश्न 151
छायावादोत्तर युग में डायरी विधा में लेखन करने वाले लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
छायावादोत्तर युग में इलाचन्द्र जोशी, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, शमशेर बहादुर सिंह, मोहन राकेश, लक्ष्मीकान्त वर्मा, नरेश मेहता, अजित कुमार, प्रभाकर माचवे आदि की डायरियाँ प्रकाशित हुई हैं।

प्रश्न 152
‘गद्यगीत’ विधा को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘गद्यगीत’ में गद्य के माध्यम से किसी भावपूर्ण विषय की काव्यात्मक अभिव्यक्ति होती है। उदाहरण–“मित्र! यहाँ तो सुख के साथ दु:ख लगा है, और उससे सुख को अलग कर लेने के उद्योग में भी एक सुख है।” (राय कृष्णदास)

प्रश्न 153
‘गद्यगीत’ अथवा ‘गद्यकाव्य’ की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
‘गद्यगीत’ अथवा ‘गद्यकाव्य’ गद्य और काव्य के बीच की विधा है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं–

  1. इसमें अनुभूति की सघनता होती है,
  2. इसमें संक्षिप्तता और रहस्यमय सांकेतिकता होती है।

प्रश्न 154
गद्यगीतों का आरम्भ किस लेखक के किस ग्रन्थ से माना जाता है ?
उत्तर
गद्यगीतों का आरम्भ राय कृष्णदास के ‘साधना-संग्रह’ नामक ग्रन्थ से माना जाता है।

प्रश्न 155
‘तरंगिणी’ के लेखक तथा उसकी गद्य विधा का नाम लिखिए।
उत्तर
लेखक-वियोगी हरि तथा विधा-गद्यकाव्य ।।

प्रश्न 156
हिन्दी में गद्यकाव्य की रचना करने वाले किन्हीं दो लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. राय कृष्णदास तथा
  2. वियोगी हरि।

प्रश्न 157
गद्यकाव्य विधा की प्रमुख रचनाएँ और उनके लेखकों का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर
गद्यकाव्य विधा की प्रमुख रचनाएँ और उनके रचनाकारों के नाम हैं—

  1. शारदीया,
  2. दुपहरिया,
  3. वंशीरव,
  4. उन्मन,
  5. स्पन्दन (दिनेशनन्दिनी चौरडया);
  6. चिन्ता (सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’);
  7. शुभ्रा (रामप्रसाद विद्यार्थी ‘रावी’);
  8. आराधना (राजनारायण मेहरोत्रा ‘रजनीश’);
  9. श्रद्धाकण,
  10. तरंगिणी (वियोगी हरि);
  11. मरी खाल की हाय,
  12. जवाहर (आचार्य चतुरसेन शास्त्री);
  13. साहित्य देवता (माखनलाल चतुर्वेदी);
  14. शेष स्मृतियाँ (डॉ० रघुवीर सिंह) आदि।

प्रश्न 158
‘भेटवार्ता’ अथवा ‘साक्षात्कार’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर
जब रचनाकार किसी विशिष्ट व्यक्ति से मुलाकात करके उसके व्यक्तित्व, भावों, क्रिया-कलापों आदि से सम्बन्धित साहित्य की रचना प्रश्न-उत्तर रूप में करता है, तो यह रचना ‘भेटवार्ता या साक्षात्कार कहलाती है। यह विधा वस्तुत: पत्रकारिता की देन है। यह वास्तविक भी हो सकती है और काल्पनिक भी।

प्रश्न 159
चेखव : एक इण्टरव्यू’ तथा ‘भगवान् महावीर : एक इण्टरव्यू किस विधा की रचनाएँ हैं ? इनके लेखक कौन हैं ?
उत्तर
उक्त दोनों ‘काल्पनिक भेटवार्ता’ विधा की रचनाएँ हैं। इनके लेखक क्रमश: राजेन्द्र यादव एवं लक्ष्मीचन्द जैन हैं।

प्रश्न 160
हिन्दी में भेटवार्ता विधा में लेखन का प्रारम्भ किसने किया ?
उत्तर
हिन्दी में भेटवार्ता विधा का श्रीगणेश बनारसीदास चतुर्वेदी ने जगन्नाथ दास ‘रत्नाकर’ और प्रेमचन्द से भेंट करने के उपरान्त उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में लिखकर किया।

प्रश्न 161
भेटवार्ता विधा की प्रमुख रचनाओं का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर
भेटवार्ता विधा की प्रमुख रचनाएँ हैं—

  1. कवि दर्शन (बेनी माधव शर्मा),
  2. मैं इनसे मिला (दो भाग) (डॉ० पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’),
  3. कला के हस्ताक्षर (देवेन्द्र सत्यार्थी),
  4. सृजन की मनोभूमि (डॉ० रणवीर रांग्रा),
  5. हिन्दी कहानी और फैशन (डॉ० सुरेश सिन्हा) आदि।

प्रश्न 162
छायावादोत्तर युग में भेटवार्ता विधा में लेखन करने वालों का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर
छायावादोत्तर युग में भेटवार्ता लिखने वालों के नाम हैं—

  1. प्रभाकर माचवे,
  2. शिवदानसिंह चौहानं,
  3. रामचरण महेन्द्र,
  4. कैलाश कल्पित,
  5. राजेन्द्र यादव,
  6. लक्ष्मीचन्द्र जैन आदि।

प्रश्न 163
सन् 1947 के बाद प्रकाशित दो साहित्यिक पत्रों के संकलन के नाम तथा उनके सम्पादकों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. ‘बड़ों के कुछ प्रेरणादायक पत्र’ – वियोगी हरि।
  2.  “निराला के पत्र’ – जानकीवल्लभ शास्त्री।

प्रश्न 164
हिन्दी-साहित्य में पत्र-साहित्य की प्रथम रचना कौन-सी है ?
उत्तर
हिन्दी-साहित्य में प्रथम पत्र-साहित्य का प्रकाशन 1904 ई० (द्विवेदी युग) में महात्मा मुंशीराम के द्वारा ‘स्वामी दयानन्द से सम्बद्ध पत्रों के संकलन’ से हुआ था।

प्रश्न 165
छायावाद युग की पत्र-साहित्य की रचना का नाम लिखिए।
उत्तर
छायावाद युग में रामकृष्ण आश्रम, देहरादून से ‘विवेकानन्द पत्रावली’ का प्रकाशन हुआ था।

प्रश्न 166
छायावादोत्तर युग की उल्लेखनीय पत्र-साहित्य रचनाओं को लिखिए।
उत्तर
छायावादोत्तर युग में प्रकाशित प्रमुख पत्र-साहित्य हैं—

  1. द्विवेदी पत्रावली (बैजनाथ सिंह ‘विनोद’),
  2. पद्मसिंह शर्मा के पत्र (बनारसीदास चतुर्वेदी),
  3. बड़ों के प्रेरणादायक पत्र (वियोगी हरि),
  4. पन्त के दो सौ पत्र बच्चन के नाम (हरिवंशराय बच्चन),
  5. भिक्षु के पत्र (भाग 1-2) (भदन्त आनन्द कौसल्यायन),
  6. यूरोप के पत्र (डॉ० धीरेन्द्र वर्मा),
  7. सोवियत रूस : पिता के पत्रों में (डॉ० जगदीशचन्द्र),
  8. लन्दन के पत्र (ब्रजमोहन लाला),
  9. बन्दी की चेतना (कमलापति त्रिपाठी),
  10. बापू के पत्र (काका कालेलकर) आदि।।

प्रश्न 167
हिन्दी के नयी पीढ़ी के चार साहित्यिक रचनाकारों के नाम लिखिए।
उत्तर
कमलेश्वर, हृदयेश, मनोहरश्याम जोशी तथा सुदीप नयी पीढ़ी के रचनाकार हैं।

प्रश्न 168
हिन्दी गद्य के विकास में सबसे अधिक योगदान करने वाली अथवा द्विवेदी युग की सर्वाधिक प्रसिद्ध पत्रिका तथा उसके सम्पादक का नाम लिखिए।
या
द्विवेदी युग की सर्वप्रथम पत्रिका और उसके सम्पादक का नाम लिखिए। (2011)
उत्तर
पत्रिका-सरस्वती (सन् 1903 से प्रारम्भ)।।
सम्पादक–आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी।

प्रश्न 169
हिन्दी की दो प्राचीन साहित्यिक पत्रिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर
हिन्दी की दो प्राचीन साहित्यिक पत्रिकाओं के नाम हैं—

  1. चरित्र एवं
  2. वचनिका।

प्रश्न 170
हिन्दी गद्य के विकास में ‘सरस्वती’ पत्रिका के योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से हिन्दी गद्य में व्याप्त व्याकरण सम्बन्धी भूलों को दूर किया गया, वाक्य-विन्यास को सुव्यवस्थित किया गया तथा लेखकों और कवियों को प्रेरणा देकर लेखन-कार्य के लिए प्रोत्साहित किया गया।

प्रश्न 171
द्विवेदी युग के दो प्रसिद्ध सम्पादकों के नाम लिखिए।
उत्तर
द्विवेदी युग के दो प्रसिद्ध सम्पादकों के नाम हैं—

  1. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी तथा
  2. श्री गणेश शंकर विद्यार्थी।

प्रश्न 172
स्वतन्त्रता के बाद प्रकाशित किन्हीं दो साहित्यिक पत्रिकाओं और उनके सम्पादकों के नाम लिखिए।
उत्तर
स्वतन्त्रता के बाद प्रकाशित होने वाली हिन्दी की दो साहित्यिक पत्रिकाएँ हैं-कादम्बिनी तथा ‘धर्मयुग’। इनके सम्पादकों के नाम हैं-राजेन्द्र अवस्थी तथा धर्मवीर भारती। वर्तमान में केवल ‘कादम्बिनी’ का प्रकाशन ही हो रहा है।

प्रश्न 173
निम्नलिखित में से किन्हीं दो सम्पादकों की पत्रिकाओं के नाम लिखिए-
(1) महावीरप्रसाद द्विवेदी,
(2) श्यामसुन्दर दास,
(3) महादेवी वर्मा,
(4) धर्मवीर भारती।। [2011]
उत्तर
सम्पादक                                                 पत्रिका
(1) महावीरप्रसाद द्विवेदी             –           सरस्वती
(2) श्यामसुन्दर दास                     –             नागरी प्रचारिणी पत्रिका
(3) महादेवी वर्मा                          –                            चाँद
(4) धर्मवीर भारती                          –                     धर्मयुग
ध्यातव्य-हिन्दी-साहित्य की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं को युगानुसार सारणीबद्ध रूप में नीचे दिया जा रहा है-
UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi नाटक Chapter 1 कुहासा और किरण img 3
UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi नाटक Chapter 1 कुहासा और किरण img 2
विशेष—इस सूची में दिये गये पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादक उनकी प्रकाशनावधि के दौरान बहुधा परिवर्तित होते रहते थे। प्रस्तुत सूची में रचना-धर्मिता के कारण बहुचर्चित सम्पादकों के नामों का ही उल्लेख किया जा रहा है। प्रस्तुत सूची की अधिकांश पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन वर्तमान में बाधित है। आजकल मात्र ‘कादम्बिनी’ तथा ‘हंस’ ही नियमित प्रकाशित हो रही हैं।

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 6 श्रवणकुमार

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 6 श्रवणकुमार (डॉ० शिवबालक शुक्ल) are part of UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 6 श्रवणकुमार (डॉ० शिवबालक शुक्ल).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 6
Chapter Name श्रवणकुमार (डॉ० शिवबालक शुक्ल)
Number of Questions 6
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 6 श्रवणकुमार (डॉ० शिवबालक शुक्ल)

प्रश्न 1.
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 18]
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का क्रमबद्ध वर्णन कीजिए। [2009]
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के ‘अयोध्या’ सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए। [2011, 13, 15, 16]
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के ‘दशरथ’ खण्ड की कथा का सार लिखिए। [2012]
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के चौथे सर्ग ‘श्रवण’ की कथावस्तु लिखिए। [2016, 18]
या
‘अवणकुमार’ खण्डकाव्य के छठे सर्ग ‘सन्देश’ की कथा अपने शब्दों में लिखिए। [2011, 14, 15, 17]
या
‘श्रवणकुमार’ के ‘आश्रम’ शीर्षक सर्ग की कथा संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए।
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के प्रमुख सामाजिक प्रसंगों का वर्णन कीजिए। [2017]
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर प्रथम सर्ग की कथावस्तु लिखिए। [2017]
या
‘श्रवणकुमार’ काव्य के ‘श्रवण’ शीर्षक सर्ग का सारांश लिखिए। [2014]
या
‘श्रवणकुमार खण्डकाव्य के सातवें (सप्तम) सर्ग ‘अभिशाप का सारांश लिखिए। [2009, 10, 12, 13, 15, 16, 17]
या
‘श्रवणकुमार’ के सर्गों का नामोल्लेख करते हुए ‘निर्वाण’ (अष्टम) सर्ग का सारांश लिखिए।
या
‘श्रवणकुमार’ के आखेट सर्ग की कथा संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए। [2011, 12]
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के तीसरे सर्ग ‘आखेट’ की कथावस्तु का उद्घाटन कीजिए। [2016]
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के सर्गों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के किसी मार्मिक अंश (श्रवण सर्ग) की कथा का उल्लेख कीजिए। [2012, 13, 14]
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के जो कारुणिक प्रसंग जनमानस को बहुत प्रभावित करते हैं, उन पर प्रकाश डालिए। [2013]
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के कारुणिक प्रसंग का वर्णन कीजिए। [2015]
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के कथानक में महाराज दशरथ की भूमिका पर प्रकाश डालिए। [2013]
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के ‘निर्वाण’ सर्ग की कथावस्तु लिखिए। [2018]
उत्तर
डॉ० शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित खण्डकाव्य ‘श्रवणकुमार’ की कथा ‘वाल्मीकि रामायण’ के ‘अयोध्याकाण्ड’ के श्रवणकुमार प्रसंग पर आधारित है। इस खण्डकाव्य का सर्गानुसार कथानक निम्नवत् है-

प्रथम सर्ग : अयोध्या

प्रथम सर्ग में ‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के कथानक की पृष्ठभूमि तैयार की गयी है। इसमें अयोध्या नगरी की स्थापना, उसका नामकरण, राज्यकुल के वैभव एवं उसकी गौरवमयी विशेषताओं का वर्णन किया गया है; यथा-

सरि सरयू के पावन तट पर है साकेत नगर छविमान ।
जिसमें श्री शोभा वैभव के कभी तने थे विपुल वितान॥
मनु-वंशज इक्ष्वाकु भूप की कीर्ति-पताका लोक-ललाम ।
अनुपम शोभाधाम अयोध्या चित्ताकर्षक अति अभिराम ॥

कवि ने यह भी बताया कि अयोध्या में सर्वत्र नैतिकता और सदाचार विद्यमान है। इस नगरी में सभी वस्तुओं का विक्रय उचित मूल्य पर होता है। यहाँ के नर-नारी परस्पर यथोचित सम्मान करते हैं। इस प्रकार अयोध्या का जीवन सहज और आनन्द से परिपूर्ण है। इस सर्ग में अयोध्या की रम्य-प्रकृति का चित्रण भी किया गया है।
ऐसी अयोध्या के शब्द-वेध-निपुण राजकुमार दशरथ एक दिन शिकार करने की योजना बनाते हैं-

ऐसे वातावरण भव्य में दशरथ-उर में उठी उमंग ।
देखें सरयू-वन में मृगया आज दिखाती है क्या रंग ॥

द्वितीय सर्ग : आश्रम

द्वितीय सर्ग के आरम्भ में सरयू नदी के वन-प्रान्तर के रमणीक आश्रम का मनोहारी चित्रण हुआ है, जिसमें श्रवणकुमार और उसके नेत्रहीन माता-पिता सानन्द निवास कर रहे हैं। इस आश्रम में सर्वत्र सुखशान्ति है जहाँ सदैव शरद् एवं वसन्त का वैभव व्याप्त रहता है। स्वच्छ जल से भरे तालाबों में कमल खिले हुए हैं। यहाँ मनुष्य, पशु-पक्षी, कीट-पतंग सब परस्पर सहज प्रेम-भाव से रहते हैं। यहाँ द्वेष और कटुता नाममात्र को भी नहीं है। आश्रम के वर्णन में कवि ने भारतीय दर्शन का चिन्तन प्रस्तुत किया है। आश्रम के शान्त-सौन्दर्यमय प्राकृतिक एवं आध्यात्मिक वातावरण में ही युवक श्रवणकुमार के चरित्र का विकास होता है। वह माता-पिता की आज्ञानुसार ही नित्य-प्रति कार्य करता है तथा उनकी सेवा में लगा रहता है-

जननी और जनक को श्रद्धा-सहित नवाकर शीश ।
आह्निक-क्रिया निवृत्ति-हेतु जाता सरयू-तट पा आशीष ॥

तृतीय सर्ग : आखेट

तृतीय सर्ग में एक ओर दशरथ मृग-शावक के वध का स्वप्न देखते हैं। दूसरी ओर श्रवणकुमार जब जल लेने जाता है तो उसकी बायीं आँख फड़कने लगती है। शकुन-अपशकुन तथा स्वप्न-विचार से दोनों ही अशुभ हैं। स्वप्न में मृग-शावक-वध से दशरथ व्याकुल हो जाते हैं। वे ब्रह्म-मुहूर्त में जागकर आखेट हेतु वने। की ओर चल देते हैं।

दूसरी ओर; उसी समय श्रवणकुमार के माता-पिता को बहुत अधिक प्यास लगती है और वह माता-पिता की आज्ञानुसार नदी से जल लेने चल देता है। जल में पात्र डूबने की ध्वनि को किसी हिंसक पशु की ध्वनि समझकर दशरथ शब्दभेदी बाण चला देते हैं, जो सीधे श्रवणकुमार के हृदय में जाकर लगता है। श्रवणकुमार का चीत्कार सुनकर दशरथ विस्मय, चिन्ता और शोक में डूब जाते हैं। उन्हें हतप्रभ एवं किंकर्तव्यविमूढ़ देख उनका सारथी उन्हें सान्त्वना देता है।

प्रस्तुत सर्ग में श्रवणकुमार की मातृ-पितृ-भक्ति, शकुन-अपशकुन तथा दशरथ की आखेट-रुचि पर प्रकाश डाला गया है।

चतुर्थ सर्ग : श्रवण

चतुर्थ सर्ग का आरम्भ श्रवणकुमार के मार्मिक विलाप से होता है। उसकी समझ में यह नहीं आता कि उसका कोई शत्रु नहीं, फिर भी उस पर किसने बाण छोड़ दिया ? बाण लगने पर भी उसे अपनी चिन्ता नहीं, वरन् अपने वृद्ध एवं प्यासे माता-पिता की चिन्ता है-

मुझे बाण की पीड़ा सम्प्रति इतनी नहीं सताती है ।
पितरों के भविष्य की चिन्ता जितनी व्यथा बढ़ाती है ॥

दशरथ आहत श्रवणकुमार को देखकर तथा उसके मार्मिक क्रन्दन को सुनकर व्याकुल हो जाते हैं।
श्रवणकुमार के आँखें खोलने पर सारथी बताता है कि ये अजपुत्र दशरथ हैं और मृगया (शिकार) के भ्रम में आज इनसे यह भयंकर भूल हो गयी है। श्रवणकुमार कहता है कि राजन्! मुझे मारकर आपने एक नहीं वरन् एक साथ तीन प्राणियों के प्राण लिये हैं। मेरे अन्धे माता-पिता आश्रम में प्यासे बैठे हुए मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं। आप यह जल का पात्र लेकर वहाँ जाइए और उन्हें मेरे प्राण-त्याग की सूचना दे दीजिए। यह कहकर श्रवणकुमार प्राण त्याग देता है। उसके शव को सारथी की देखभाल में छोड़ अत्यन्त दु:खी मन से दशरथ जलपात्र लेकर आश्रम की ओर चल देते हैं।
इस सर्ग में कवि ने श्रवणकुमार के सात्त्विक जीवन, उसके कारुणिक अन्त और दशरथ के मन में उत्पन्न आत्मग्लानि एवं शोकाकुलता का बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है।

पंचम सर्ग : दशरथ

पंचम सर्ग को आरम्भ दशरथ के अन्तर्द्वन्द्व, विषाद, आत्मग्लानि और अपराध-भावना से होता है। दशरथ दु:खी एवं चिन्तित भाव से सिर झुकाए आश्रम की ओर जा रहे थे और सोच रहे थे कि इस घटना के कारण हृदय पर लगे घाव का प्रायश्चित वे किस प्रकार करें–

हाय चलेगी युग-युगान्त तक अब मेरी यह पाप कथा।
जो मुझको ही नहीं वंशजों को भी देगी मर्म व्यथा ॥

इसी प्रकार के मानसिक उद्वेगों से आकुल-व्याकुल दशरथ आश्रम पहुँच जाते हैं।

षष्ठ सर्ग : सन्देश

षष्ठ सर्ग में श्रवणकुमार के माता-पिता की असहाय दशा तथा दशरथ के क्षोभ का बड़ा ही मार्मिक चित्रण हुआ है। श्रवणकुमार के माता-पिता उसके आने की प्रतीक्षा में व्याकुल हैं। दशरथ की पदचाप सुनकर वे पूछते हैं-

श्रवण-पिता ने कहा, ”आज प्रिय क्योंकर तुमने किया विलम्ब ?
करती रही विविध आशंका अब तक वत्स तुम्हारी अम्ब ।”

ऋषि-दम्पति पर्याप्त समय तक अपने पुत्र के गुणों का वर्णन करते रहते हैं। तत्पश्चात् दशरथ उन्हें जल-ग्रहण करने के लिए कहते हैं तो वे शंकित होकर उनका परिचय पूछते हैं। अन्त में दशरथ उन्हें वह हृदय-विदारक दुर्घटना का समाचार सुना देते हैं, जिसे सुनते ही वे करुण विलाप कर उठते हैं और हाहाकार करते अपने मृतक पुत्र के स्पर्श के लिए दशरथ के साथ चल देते हैं।

सप्तम सर्ग : अभिशाप

‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के सप्तम सर्ग में ऋषि-दम्पति का करुण विलाप चित्रित हुआ है। सरयू-तट पर अपने मृतक पुत्र के शरीर को स्पर्शकर उनके धैर्य का बाँध टूट जाता है। वे विलाप करते-करते अचेत हो जाते हैं। कुछ देर बाद वे सचेत होते हैं तो पुनः विलाप कर उठते हैं-

कौन हमारे लिए विपिन से कन्द मूल फल लायेगा ।
कौन अतिथि-सा हमें खिलाने में सच्चा सुख पायेगा ।

इस प्रकार श्रवणकुमार के माता-पिता उसके गुणों और सुकर्मों का स्मरण कर-करके हृदयविदारक विलाप करते हैं। अन्त में श्रवणकुमार के पिता दशरथ से कहते हैं कि यद्यपि आपने यह पाप अनजाने में किया है, परन्तु पाप तो पाप ही है। इसलिए—

पुत्र-शोक से कलप रहा हूँ जिस प्रकार मैं, अजनन्दन ।
सुत-वियोग में प्राण तजोगे इसी भाँति करके क्रन्दन ।

अष्टम सर्ग : निर्वाण

इस सर्ग में शाप के कारण दशरथ बहुत अधिक दु:खी हैं। पर्याप्त विलाप करने के बाद श्रवणकुमार के पिता को यह आत्मबोध होता है कि मेरे उदार एवं शान्त हृदय में क्रोध कैसे आ गया ? मैंने तो व्यर्थ ही दशरथ को शाप दे दिया। मेरे पुत्र का वध तो नियति के विधान के अनुसार दशरथ के हाथों ही होना था। फिर इसमें किसी का क्या दोष ?
वे श्रवणकुमार को जलांजलि देने के लिए उठते हैं, तभी दिव्य रूपधारी श्रवणकुमार कहता है-

मैं प्रतिकृत हो गया आपकी सेवा परिचर्या कर तात ।।
मुझे श्रेष्ठ पद मिला आज है पा आशीष तुम्हारा मात ।।

पुत्र-शोक में व्याकुल ऋषि-दम्पति रुदन करते-करते प्राण-त्याग देते हैं और सारथी द्वारा तैयार की गयी चिता में श्रवणकुमार एवं उसके पिता-माता तीनों के नश्वर शरीर भस्म हो जाते हैं।

नवम सर्ग : उपसंहार

नवम सर्ग में दशरथ दुःखी हृदय से अयोध्या लौट आते हैं। अपयश फैलने के भय से वे वन की दुर्घटना किसी को भी नहीं बताते, किन्तु राम के वन-गमन के समय वे भावविह्वल होकर कौशल्या से यह सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाते हैं तथा पुत्र-वियोग में तड़पते हुए प्राण त्याग देते हैं।

प्रश्न 2.
श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के नायक (प्रमुख पात्र) श्रवणकुमार का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2009, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17]
या
‘श्रवणकुमार’ में वर्णित मातृ एवं पितृभक्ति का संक्षेप में उल्लेख कीजिए। [2009]
या
‘श्रवणकुमार’ के किसी एक पात्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
या
“‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य का नायक वह आदर्श पात्र है जो युगों-युगों तक अनुकरणीय रहेगा।” इस कथन के आधार पर श्रवणकुमार का चरित्रांकन कीजिए।
या
वर्तमान सामाजिक एवं सांस्कृतिक संकट की बेला में श्रवणकुमार का चरित्र भावी युवा पीढ़ी का संवाहक बन सकता है। सतर्क उत्तर दीजिए।
या
कुमार के चारु-चरित पर, संस्कार का प्रचुर प्रभाव।” कथन के आलोक में श्रवणकुमार के चरित्र पर प्रकाश डालिए। [2010]
उत्तर
श्रवणकुमार प्रस्तुत खण्डकाव्य का प्रमुख पात्र है। ‘श्रवणकुमार’ की कथा आरम्भ से अन्त तक उसी से सम्बद्ध है; अत: इस खण्डकाव्य का नायक श्रवणकुमार है। उसकी प्रमुख चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं–
(1) मातृ-पितृभक्त-श्रवणकुमार का नाम ही मातृ-पितृभक्ति का पर्याय बन चुका है। श्रवणकुमार अपने माता-पिता का एकमात्र आदर्श पुत्र है। वह प्रात:काल से सायंकाल तक अपने वृद्ध एवं नेत्रहीन माता-पिता की सेवा में लगा रहता है। दशरथ के बाण से बिद्ध होकर भी श्रवणकुमार को अपने प्यासे माता-पिता की ही चिन्ता सता रही है*

मुझे बाण की पीड़ा सम्प्रति इतनी नहीं सताती है ।
पितरों के भविष्य की चिन्ता जितनी व्यथा बढ़ाती है ॥

(2) निश्छल एवं सत्यवादी-श्रवणकुमार के पिता वैश्य वर्ण के और माता शूद्र वर्ण की थीं। जब दशरथ ब्रह्म-हत्या की सम्भावना व्यक्त करते हैं तो श्रवणकुमार उन्हें सत्य बता देता है–

वैश्य पिता माता शूद्रा थी मैं यों प्रादुर्भूत हुआ ।
संस्कार के सत्य भाव से मेरा जीवन पूत हुआ ॥

श्रवणकुमार स्पष्टवादी है। वह किसी से कुछ नहीं छिपाता। वह सत्यकाम, जाबालि आदि के समान ही अपने कुल, गोत्र आदि का परिचय देता है।
(3) क्षमाशील एवं सरल स्वभाव वाला-श्रवणकुमार का स्वभाव बहुत ही सरल है। उसके मन में किसी के प्रति ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध एवं वैर नहीं है। दशरथ के बाण से बिद्ध होने पर भी वह अपने समीप आये सन्तप्त दशरथ का सम्मान ही करता है।
(4) भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी-श्रवणकुमार भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी है। चार वेद और छ: दर्शन ही भारतीय संस्कृति के आधार हैं। धर्म के दस लक्षणों को वह अपने जीवन में धारण किये है-

दम अस्तेय अक्रोध सत्य धृति, विद्या क्षमा बुद्धि सुकुमार।
शौच तथा इन्द्रिय-निग्रह हैं, दस सदस्य मेरे परिवार ॥

वेद के अनुसार माता, पिता, गुरु, अतिथि तथा पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति ये पाँच ‘देवता’ कहलाते हैं तथा ये ही पूजा के योग्य हैं। श्रवणकुमार भी माता, पिता, गुरु और अतिथि की देवतुल्य पूजा करता है।

(5) आत्मसन्तोषी-श्रवणकुमार को किसी वस्तु के प्रति लोभ-मोह नहीं है। उसे भोग एवं ऐश्वर्य की तनिक भी चाह नहीं है। वह तो सन्तोषी स्वभाव का है-

वल्कल वसन विटप देते हैं, हमको इच्छा के अनुकूल।
नहीं कभी हमको छू पाती, भोग ऐश्वर्य वासन्न-धूल ॥

(6) संस्कारों को महत्त्व देने वाला-श्रवणकुमार समदर्शी है। वह किसी के प्रति भी भेदभाव नहीं रखता तथा कर्म, शील एवं संस्कारों को महत्त्व देता है। उसके जीवन में पवित्रता संस्कारों के प्रभाव के कारण ही है-

विप्र द्विजेतर के शोणित में अन्तर नहीं रहे यह ध्यान ।
नहीं जन्म के संस्कार से, मानव को मिलता सम्मान ॥

(7) अतिथि-सत्कारी-भारतीय परम्परा के अनुसार अतिथि का स्वागत-सत्कार महापुण्य का कार्य है। श्रवणकुमार इस गुण से युक्त है। वह बाण द्वारा घायल पड़ा है, जब दशरथ उसके पास पहुँचते हैं। वह दशरथ को अपना अतिथि मानता है, क्योंकि वह उसके वन में आये हैं। वह दशरथ का स्वागत करना चाहता है। वह उनसे हर प्रकार की कुशल-मंगल पूछता है और अपने नेत्रों के जल से दशरथ के चरण धो लेना चाहता है।
इस प्रकार श्रवणकुमार उदार, परोपकारी, सर्वगुणसम्पन्न तथा खण्डकाव्य का नायक है।

प्रश्न 3.
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के चरित्रों में देवोपम गुणों के साथ-साथ मानव-सुलभ दुर्बलताएँ भी दिखाई देती हैं। इस कथन के सम्बन्ध में अपने विचार लिखिए।
उत्तर
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के चरित्र-चित्रण में काव्यकार डॉ० शिवबालक शुक्ल ने अपनी अनुपम रचनाधर्मिता का परिचय दिया है। उनके द्वारा गढ़े चरित्र जहाँ एक ओर देवोपम हैं, वहीं दूसरी ओर उनमें मानव-सुलभ दुर्बलताएँ भी दृष्टिगत होती हैं। यही उनके चरित्रों की सर्वप्रमुख विशेषता है। पात्र चाहे श्रवणकुमार हो या उसके अन्धे माता-पिता अथवा अयोध्या नरेश दशरथ, सभी पात्रों का चरित्रांकन बड़े मनोयोग से किया गया है।

श्रवणकुमार में सत्यवादिता, संस्कारों को महत्ता देने की प्रवृत्ति, क्षमाशीलता और आत्म-सन्तोष जैसे गुण उसे देवोपम बनाते हैं, वहीं माता-पिता से अत्यधिक मोह, मृत्यु से भय आदि दुर्बलताएँ उसे साधारण मानव सिद्ध करते हैं।

दशरथ के चरित्र में भी जहाँ न्यायप्रियता, सत्यवादिता, उदारता और कर्तव्यनिष्ठा जैसे देवोपम गुण विद्यमान हैं, वहीं स्वप्न को देखकर मन में शंकित होना; श्रवण के अन्धे माता-पिता द्वारा शापित होने पर शाप की परिणति के विषय में सोचकर दु:खी होना और इस घटना के लोक में प्रचलित हो जाने पर कुल-परम्परा पर लगने वाले कलंक की चिन्ता करना आदि उनके चरित्र की ऐसी दुर्बलताएँ हैं, जो उन्हें साधारणजन के समकक्ष ला खड़ी करती हैं।

इसी प्रकार श्रवण के पिता का चरित्र भी गुणों एवं दुर्बलताओं से युक्त है। वे जहाँ पुत्र-मृत्यु का समाचार सुनकर अपना विवेक खो बैठते हैं और दशरथ को शाप दे डालते हैं, वहीं बाद में अपने किये पर पश्चात्ताप करते हैं कि मैंने दशरथ को व्यर्थ ही शाप दे डाला। इनका पहला कार्य जहाँ मानव-सुलभ दुर्बलता का परिचायक है, वहीं उस पर पश्चात्ताप करना उनके देवोपम-चरित्र का।

प्रश्न 4.
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर दशरथ का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
उत्तर
रघुवंशी राजा अज के पुत्र दशरथ ‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य में आरम्भ से अन्त तक विद्यमान हैं। मूल रूप से दशरथ इस खण्डकाव्य के प्राण हैं। दशरथ की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) उत्तम-कुलोत्पन्न–राजा दशरथ उत्तम-कुलोत्पन्न हैं। उनका वंश ‘इक्ष्वाकु’ नाम से प्रसिद्ध है। पृथु, त्रिशंकु, सगर, दिलीप, रघु, हरिश्चन्द्र और अज; दशरथ के इतिहासप्रसिद्ध पूर्वज रहे हैं। उन्हें अपने वंश पर गर्व है

क्षत्रिय हूँ मम शिरा जाल में रघुवंशी है रक्त प्रवाह ।।
हस्ति पोत अथवा मृगेन्द्र के पाने की है उत्कट चाह ॥

(2) लोकप्रिय-शासक-राजा दशरथ प्रजावत्सल एवं योग्य शासक हैं। उनके राज्य में सबको न्याय मिलता है, चोरी कहीं नहीं होती है, प्रजा सब प्रकार से सुखी व सन्तुष्ट है तथा विद्वज्जनों का यथोचित सत्कार होता है–

सुख समृद्धि आमोदपूर्ण था कौशलेश का शुभ शासन।
दुःख था केवल एक दुःख को, जिसे मिला था निर्वासन ॥

(3) धनुर्विद्या में निपुण कुमार दशरथ धनुर्विद्या में निपुण और शब्दभेदी बाण चलाने में पारंगत हैं। आखेट में उनकी विशेष रुचि है

शब्द-भेद के निपुण अहेरी, रविकुल के भावी भूपाल ।
लक्ष्य करें मृग महिष नाग वृक, शूकर सिंह व्याघ्र विकराल ॥

इसीलिए श्रावण मास में वर्षा के अनन्तर जब चारों ओर हरियाली छाई रहती है, तब वे आखेट का निश्चय करते हैं।
(4) विनम्र एवं दयालु–दशरथ में तनिक भी अहंकार नहीं है। दूसरे का दुःख देखकर वे बहुत अधिक व्याकुल हो जाते हैं। स्वप्न में मृग-शावक के वध से ही वे दु:खी हो उठते हैं-

करने को गये समुद्यत, ढाढ भार करके रोदने ।
नेत्र खुल गये स्वप्न समझकर किया पार्श्व का परिवर्तन ॥

(5) संवेदनशील एवं पश्चात्ताप करने वाले–दशरथ अपने किये अनुचित कार्य पर आत्मग्लानि से भर उठते हैं तथा उसका प्रायश्चित्त करते रहते हैं। श्रवणकुमार की हत्या पर उनके प्रायश्चित्त एवं आत्मग्लानि उनके सच्चे पश्चात्ताप पर किया गया आर्तनाद है-

मलहम कौन भयंकर व्रण पर जिसका लेप करू जाकर।
भू में धसँ गि गिरिवर से सरि में डूब मसँ जाकर ॥

अपने इस कुकृत्य पर उन्हें अपने नहीं, अपने कुल के अपयश का दुःख सता रहा है-

हाय चलेगी युग युगान्त तक अब मेरी यह पाप कथा।
जो मुझको ही नहीं वंशजों को भी देगी मर्म व्यथा ॥

अपने द्वारा किये गये कर्म पर दु:खी होकर वे अन्ततः धरती माता से ही कह उठते हैं-

फटो धरणि, मैं समा सकुँ तुम करो ग्रहण, मम भाग्य जगे।
पर वसुन्धरे! मुझे शरण दे-तुम्हें न कहीं कलंक लगे ।

(6) आत्म-तपस्वी-दशरथ न्यायप्रिय होने के साथ-साथ आत्म-तपस्वी भी हैं। वे अपने अपराध को स्वयं अक्षम्य मानते हैं-

करें मुनीश क्षमा वे होंगे, निस्पृह करुणा सिंन्धु अगाध ।
पर मेरे मन न्यायालय में क्षम्य नहीं है यह अपराध ॥

(7) अपराध-बोध से ग्रसित-श्रवणकुमार के पिता द्वारा शाप दिये जाने पर दशरथ काँप उठते हैं। वे अयोध्या लौटकर यद्यपि लोकनिन्दा के भय से किसी को भी यह दुर्घटना नहीं बताते, किन्तु अपने अपराध की वेदना उनके हृदय में कसकती ही रहती है। वे जानते हैं कि समस्त प्राणियों को अपने कर्म का फल तो भोगना ही पड़ता है। इसलिए वे किसी से कुछ कहे बिना भी अपना अपराध स्वीकार कर लेते हैं। कवि कहता है–

रही खरकती हाय शूल-सी पीड़ा उर में दशरथ के।
” ग्लानि-त्रपा, वेदना विमण्डित शाप-कथा वे कह न सके।

(8) तेजस्वी-दशरथ एक तेजस्वी राजकुमार हैं। जब वह श्रवणकुमार के पास पहुँचते हैं तो वह उनके रूप से प्रभावित हो उठता है। उनके प्रत्येक अंग से तेज मानो फूटा पड़ता है। श्रवण उनसे निवेदन करता है-

रूपवान् है तेज आपका, अंग-अंग से फूट रहा।
परिचय दें उर उत्सुकता है, सचमुच धीरज छूट रहा ॥

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि दशरथ का चरित्र महान् गुणों से विभूषित है जो कि प्रायश्चित्त और आत्म-ग्लानि की अग्नि में तपकर और भी शुद्ध हो गया है। कवि दशरथ को चरित्र-चित्रण करने में पूर्ण सफल रहा है।

प्रश्न 5.
पंचम एवं सप्तम सर्ग के आधार पर दशरथ के अन्तर्द्वन्द्व पर प्रकाश डालिए। [2010]
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के पंचम सर्ग में चित्रित दशरथ के अन्तर्द्वन्द्व का सोदाहरण वर्णन कीजिए। [2012]
या
“‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के पंचम सर्ग में दशरथ के अन्तर्द्वन्द्व का व्यापक चित्रण है।” इस कथन को सोदाहरण प्रमाणित कीजिए।
या
‘श्रवणकुमार’ में चित्रित महाराज दशरथ का मानसिक अन्तर्द्वन्द्व स्पष्ट कीजिए।
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य में प्रस्तुत महाराज दशरथ के मानसिक असमंजस का वर्णन कीजिए।
या
“दशरथ का अन्तर्द्वन्द्व ‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य की अनुपम निधि है।” इस उक्ति के आलोक में दशरथ का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर

दशरथ का अन्तर्द्वन्द्व

‘श्रवणकुमार’ के पंचम सर्ग में दशरथ की मानसिकता, पश्चात्ताप तथा आत्मग्लानि से पूर्ण आन्तरिक दशा को व्यापक अभिव्यक्ति दी गयी है। दशरथ के हाथों श्रवणकुमार का प्राणान्त हो चुका है, जिससे वे दुःख, ग्लानि, भय एवं करुणा के भाव में भरे सोच रहे हैं कि क्या श्रवणकुमार के माता-पिता भी श्रवणकुमार की तरह उदार-हृदय होंगे और उन्हें क्षमा कर देंगे अथवा वे उन्हें कठोर शाप दे देंगे।
दशरथ के मन में अपने कुल के दुर्भाग्य पर भी भावावेग उमड़ता है। वे सोचते हैं कि क्या उनके कुल के सभी सदस्यों के भाग्य में शापित होना ही लिखा है तथा क्या उनको भी अपने पूर्वजों की तरह (दशरथ के पूर्वज भी विभिन्न कारणों से शापित होते रहे थे) शापित होना पड़ेगा-

रघुकुल में शापित होने की, परम्परागत परिपाटी।
पार पड़ेगी करनी ही हाँ, दुःख की यह दुर्गम घाटी ॥

इस सर्ग में लज्जा, ग्लानि, चिन्ता, शंका, भय आदि से ग्रस्त दशरथ के संकल्प-विकल्प प्रकट हुए हैं।
‘श्रवणकुमार’ के सप्तम सर्ग में भी देशरथ के अन्तर्मन में निहित भावों को मार्मिक चित्रण किया गया है। श्रवणकुमार के शव को उठाकर उसके माता-पिता के सामने लाते हुए दशरथ स्वयं भी जीवित लाश के समान ही हैं। वे ग्लानि, पश्चात्ताप, विवशता और करुणा के आधिक्य के कारण अपना विवेक खो बैठे हैं, जिससे उन्हें दिशा और दुर्गम-पथ की कठिनाइयों का ज्ञान नहीं हो रहा है। वे चेतनाशून्य से उस शव को उठाकर श्रवणकुमार के माता-पिता के पास लाते हैं-

अनुभव-दिग्सूक्ति का नहीं थी बेचारे दशरथ के पास,
दिग्भ्रम हुआ, पाथ-पथ दुर्गम, हृदय क्षुब्ध, मन हुआ उदास ।

किसी के पुत्र को मृत्यु की गोद में सुलाने के पश्चात् उसके शव को लेकर उसके माता-पिता के पास जाने वाले संवेदनशील-सहृदय व्यक्ति की मानसिकता क्या होती है, इसको कवि शिवबालक शुक्ल ने दशरथ के अन्तर्मन की दशा के सजीव चित्रण में भली प्रकार दर्शाया है।
[ संकेत-इस सामग्री के अतिरिक्त दशरथ की मानसिकता में विनम्रता, दयालुता, उदारता तथा आत्म-तपस्विता का समन्वय दृष्टिगत होता है। दशरथ के चरित्र-चित्रण से इन गुणों की सामग्री ग्रहण कर उसका यहाँ उल्लेख करना चाहिए। ]

प्रश्न 6.
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के मार्मिक स्थलों का सोदाहरण निदर्शन कीजिए।
या
“‘श्रवणकुमार’ काव्य के अभिशाप सर्ग में करुण रस का सांगोपांग वर्णन है।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।
या
‘श्रवणकुमार’ के कथानक के मार्मिक स्थल की समीक्षा कीजिए।
उत्तर
डॉ० शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित खण्डकाव्य ‘श्रवणकुमार’ की कथा वाल्मीकिरामायण के अयोध्याकाण्ड’ के श्रवणकुमार–प्रसंग पर आधारित है। कवि ने इस कथा को युगानुरूप परिवर्तित कर सर्वथा नये रूप में प्रस्तुत किया है। ‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य की कथा नौ सर्गों में विभक्त है, जिनमें अन्तिम छ: सर्गों में करुण रस की पवित्र धारा प्रवाहित हुई है। बाण लगने पर श्रवण का मार्मिक क्रन्दन, दशरथ की आत्मग्लानि, श्रवण के माता-पिता का करुण-विलाप, उनका दशरथ को शाप देना, श्रवण के माता-पिता का पुत्र-शोक में प्राण त्यागना और दशरथ का दु:खी मन से अयोध्या लौटना ऐसे कारुणिक प्रसंग हैं जिन्हें पढ़कर किसी भी सहृदय पाठक का मन करुणा से आप्लावित हो उठता है। इस कारुणिकता का ही यह प्रभाव है कि यह कथानक भारतीय जनमानस की स्मृति में अमिट हो गया है और श्रवणकुमार का नाम मातृ-पितृभक्ति का पर्याय बन गया है। यही इस सर्ग का वैशिष्ट्य है और इसीलिए यह पाठकों को सबसे अधिक प्रभावित भी करता है।

‘अभिशाप’ इस खण्डकाव्य का सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण सर्ग है, जिसमें वात्सल्य की गंगा और करुण रस की यमुना का सुन्दर संगम हुआ है। इसमें करुण रस के सभी अंगों की सहज अभिव्यक्ति हुई है। यही इस सर्ग का वैशिष्ट्य भी है। श्रवण का शव, उसके माता-पिता के मनोभावों, पूर्व स्मृतियों एवं शव-स्पर्श, शीश-पटकना, रोना आदि में आलम्बन, उद्दीपन एवं अनुभाव के दर्शन होते हैं। प्रलाप, चिन्ता, स्मरण, गुणकथन और अभिलाषा आदि वृत्तियों की सहायता से शोक की करुण रस में परिणति इस सर्ग में द्रष्टव्य है। इसके साथ ही कथावस्तु का सबसे महत्त्वपूर्ण अंश भी इसी सर्ग में है। इसके अतिरिक्त इस सर्ग में श्रवण के पिता का चरित्र देवत्व और मनुष्यत्व के बीच संघर्ष करता हुआ दिखाई देता है। ऋषि होकर भी वे क्रोध को रोक न सके और पुत्र-वध से उत्पन्न रोष के कारण, दशरथ को शाप दे दिया–

पुत्र-शोक में कलप रहा हूँ, जिस प्रकार मैं अज-नन्दन।
सुत-वियोग में प्राण तजोगे, इसी भाँति करके क्रन्दन ॥

श्रवण की माता के विलाप में भी करुण रस का स्रोत निम्नवत् फूट पड़ता है-

मणि खोये भुजंग-सी जननी, फन-सा पटक रही थी, शीश।।
अन्धी आज बनाकर मुझको, किया न्याय तुमने जगदीश ?

तो उधर वात्सल्य रस की गंगा भी प्रवाहित होती दिखाई देती हैं-

धरा स्वर्ग में रहो कहीं भी ‘माँ’ मैं रहूँ सदा अय प्यार।
रहो पुत्र तुम, ठुकराओ मत मुझ दीना का किन्तु दुलार ॥

यह सर्ग जहाँ काव्यगत विशेषताओं की दृष्टि से विशिष्ट है, वहीं यह अपने उदात्त विचारों एवं विश्लेषण के कारण भी विशिष्ट है। श्रवणकुमार के पिता पुत्र-वध के कारण दशरथ के प्रति रोष में हैं, किन्तु उनके द्वारा अपराध की स्वीकृति कर लेने के कारण वे उनके प्रति सहानुभूति भी रखते हैं।

इस सर्ग के अन्त में ऋषि दम्पति में मानवीय दुर्बलता भी दिखाई गयी है। भले ही उन्होंने क्रोधवश दशरथ को शाप दे दिया, किन्तु दशरथ की निरपराध पत्नी के प्रति सहानुभूति भी दिखाई गयी है कि बेचारी नारी गेहूँ के साथ घुन की भाँति पिसेगी। अपने पुत्रहन्ता और उसकी पत्नी के प्रति यह संवेदनात्मक भाव, वह भी उस समय जब पुत्र का शव सामने हो, मानवादर्श की चरम सीमा को दर्शाता है।

इस सर्ग में दशरथ की आन्तरिक अनुभूति एवं उनके अन्तर्मन का द्वन्द्व भी अपनी विशिष्टता रखता है। पश्चात्ताप और अपराध-बोध से दबा हुआ एक राजेश्वर; श्रवण के माता-पिता के सामने उनके पुत्र के शव के साथ जिस मन:स्थिति में खड़ा है, वह कवि की कल्पना-शक्ति की अनुभवात्मक संवेदना का परिचय देता है और उसकी उस स्थिति की अभिव्यक्ति में रसों का जो अद्भुत समन्वय हुआ है, वह सराहनीय है।

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