UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi नाटक Chapter 1 कुहासा और किरण

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name कुहासा और किरण
Number of Questions 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi नाटक Chapter 1 कुहासा और किरण (विष्णु प्रभाकर)

प्रश्न 1
‘कुहासा और किरण’ नाटक की कथावस्तु (कथानक, सारांश) पर प्रकाश डालिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 18]
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक के प्रथम अंक की कथावस्तु लिखिए। [2012,13,14,15, 16, 17, 18]
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक के द्वितीय अंक की कथा का सारांश लिखिए। [2011, 12, 14, 15, 16, 17]
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक के तृतीय अंक की कथा पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए। [2011, 12, 15, 16, 17]
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक के अन्तिम अंक की कथावस्तु लिखिए। [2016, 17]
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक का कथानक समस्यामूलक है, जो स्वाधीन भारत के सामाजिक और राजनीतिक जीवन से सम्बन्धित है। कथावस्तु के आधार पर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक का सारांश लिखिए। [2010, 11, 12, 13, 14]
या
‘कुहासा और किरण’ का कथासार अपने शब्दों में लिखिए। [2017]
उत्तर

‘कुहासा और किरण’ का सारांश

विष्णु प्रभाकर जी का ‘कुहासा और किरण’; राजनीतिक वातावरण पर आधारित नाटक है। नाटक की पृष्ठभूमि में स्वतन्त्रता-प्राप्ति से 15 वर्ष पूर्व की कथा छिपी है।

मुलतान में चन्द्रशेखर, राजेन्द्र, चन्दर, हाशमी तथा कृष्णदेव नाम के देशभक्तों ने अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध क्रान्ति की योजना बनायी। अंग्रेज सरकार इन लोगों के षड्यन्त्र से बौखला गयी। इसी समय कृष्णदेव सरकार का मुखबिर बन गया। इस कारण शेष चार साथियों को कठोर कारावास मिला। सन् 1946 ई० में ये लोग जेल से मुक्त हुए। हाशमी और चन्दर निर्धनता के कारण समाप्त हो गये। राजेन्द्र ने नौकरी की, परन्तु उसका शरीर कार्य करने में सक्षम न था। चन्द्रशेखर तपेदिक रोग से पीड़ित हो गया और उसकी पत्नी मालती बेसहारा हो गयी। सन् 1947 ई० में देश स्वतन्त्र हुआ। सन् 1942 ई० का धोखेबाज मुखबिर कृष्णदेव अब देशभक्त नेता बन गया। उसने अपना नाम कृष्ण चैतन्य रख लिया। नाटक के सारांश को तीन अंकों में प्रस्तुत किया जा रहा है।

प्रथम अंक-नाटक का प्रारम्भ नेताजी कृष्ण चैतन्य के निवास पर उनकी षष्ठिपूर्ति के अवसर पर उनकी सेक्रेटरी सुनन्दा और अमूल्य के वार्तालाप से होता है। उन्होंने इस अवसर पर नेताजी को बधाई दी। अन्य लोग भी उन्हें बधाई देने के लिए पहुँचे। अब कृष्ण चैतन्य सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में 250 रुपये प्रति माह राजनीतिक पेंशन पाते हैं। वे प्रत्येक प्रकार के गैर-कानूनी कार्य करते हैं। उन्होंने सुनन्दा नामक लड़की को अपनी व्यक्तिगत सचिव नियुक्त किया और उसके माध्यम से ब्लैकमेल जैसे घृणित कार्य भी किये। कृष्ण चैतन्य के ये कार्य उसकी पत्नी गायत्री को नहीं सुहाते थे। देशभक्त राजेन्द्र के पुत्र अमूल्य के नौकरी की तलाश में कृष्ण चैतन्य के पास आने पर वे उसे विपिन बिहारी के यहाँ सम्पादक की नौकरी दिला देते हैं। अमूल्य के रिश्ते की एक बहन प्रभा; चैतन्य के यहाँ आती-जाती है।

चन्द्रशेखर की विक्षिप्त पत्नी मालती; कृष्ण चैतन्य से राजनीतिक पेंशन दिलाने का आग्रह करने हेतु उसके पास आती है और उसको पहचान लेती है। वहाँ उपस्थित अमूल्य को भी उसकी असली स्थिति का आभास हो जाता है।

द्वितीय अंक-द्वितीय अंक का प्रारम्भ विपिन बिहारी के निजी कक्ष से होता है। पाँच-पाँच पत्रिकाओं के मुख्य अधिकारी विपिन बिहारी अपने कक्ष में बैठे हैं। अमूल्य के आवेदन-पत्र को पढ़कर विपिन बिहारी उसके पिता के विषय में पूछते हैं। अमूल्य ने मुलताने षड्यन्त्र केस के विषय में विपिन बिहारी को बताया। सुनन्दा ने विपिन बिहारी से कहा कि कृष्ण चैतन्य कांग्रेस का मुखौटा लगाये एक देशद्रोही है, किन्तु विपिन बिहारी किसी भी कीमत पर कृष्ण चैतन्य का विरोध करने का साहस नहीं कर पाता। सभी को यह पता चल जाता है कि आज का महान् कांग्रेसी नेता कृष्ण चैतन्य देशद्रोही व मित्रघाती-मुखबिर कृष्णदेव है।

अपनी वास्तविकता को प्रकट हुआ देख कृष्ण चैतन्य, अमूल्य को फँसाने का प्रयास करता है। यातनाओं के कारण अमूल्य आत्महत्या करने का भी प्रयास करता है, परन्तु पुलिस उसको बचाकर अस्पताल ले जाती है। कृष्ण चैतन्य की पत्नी गायत्री को यह सब जानकर बहुत ग्लानि होती है और वह अपने पति को सभी बुरे कार्य छोड़ने का परामर्श देती है। गायत्री की कार एक ट्रक के साथ टकरा जाती है। और गायत्री का देहान्त हो जाता है। पत्नी की मृत्यु के बाद चैतन्य को आत्मग्लानि होती है। यहीं पर दूसरा अंक समाप्त हो जाता है।

तृतीय अंक-यह अंक कृष्ण चैतन्य के निवास से आरम्भ होता है। कृष्ण चैतन्य अपनी पत्नी गायत्री के चित्र के सम्मुख बैठकर अपनी भूलों के लिए प्रायश्चित्त करते हैं तथा गायत्री के बलिदान की महत्ता को स्वीकार करते हैं। सभी लोग शंकित हैं कि यह मामला गायत्री की मृत्यु का नहीं वरन् आत्महत्या का है।

सुनन्दा द्वारा दी गयी सूचना पर वहाँ गुप्तचर विभाग के अधिकारी आ जाते हैं। सुनन्दा अमूल्य का परिचय देते हुए उसे निर्दोष बताती है। कृष्ण चैतन्य भी कागज-चोरी की कहानी को मनगढ़न्त बताते हैं। वे विपिन बिहारी और उमेशचन्द्र के कुकृत्यों का भी पर्दाफाश कर देते हैं। तभी मालती अपनी पेंशन के लिए उनके पास पहुँच जाती है। कृष्ण चैतन्य उससे क्षमा याचना करते हुए उसे अपना सर्वस्व सौंप देते हैं। विपिन बिहारी और उमेशचन्द्र को बन्दी बना लिया जाता है। गुप्तचर अधिकारी कृष्ण चैतन्य को भी साथ चलने के लिए कहते हैं। वे अपनी पत्नी के चित्र को प्रणाम करके उनके साथ चल देते हैं। अमूल्य को निर्दोष सिद्ध होने पर छोड़ दिया जाता है। उसके बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता’-इस कथन के साथ ही नाटक समाप्त हो जाता है।

प्रश्न 2
‘कुहासा और किरण’ नाटक के उस पुरुष-पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए, जिसने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया हो। [2012]
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक के प्रमुख पुरुष-पात्र (नायक) अमूल्य का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक के आधार पर नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2016]
उत्तर

अमूल्य का चरित्र-चित्रण

अमूल्य; श्री विष्णु प्रभाकर कृत ‘कुहासों और किरण’ नाटक का नायक तथा देशभक्त राजेन्द्र का पुत्र है। अमूल्य ऐसे नवयुवकों का प्रतिनिधित्व करता है, जो देश के भ्रष्ट वातावरण में भी ईमानदारी का जीवन जीना चाहते हैं तथा जिन्हें देश से प्रेम है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) देशभक्त युवक–अमूल्य का पिता सच्चा देशभक्त था। पिता के गुण अमूल्य में भी विद्यमान हैं। वह देश को व्यक्ति से अधिक मूल्यवान मानता है। उसका कथन है-“हमारे लिए देश सबसे ऊपर है। देश की स्वतन्त्रता हमने प्राणों की बलि देकर पायी थी, उसे अब कलंकित न होने देंगे।”
(2) कर्तव्यपरायण–अमूल्य अपने सभी कर्तव्यों के प्रति जागरूक है। पिता की असमय मृत्यु के पश्चात् भी परिश्रम के बल पर वह अपना अध्ययन पूरा करता है। वह जिस कार्य पर भी लगता है, उसे पूर्ण लगन के साथ पूरा करता है।
(3) सत्यवादी–अमूल्य सत्यवादी है। कृष्ण चैतन्य जैसे व्यक्ति के सम्पर्क में आकर भी वह अपनी ईमानदारी और सच्चाई का रास्ता नहीं छोड़ता। षड्यन्त्र में फंसने पर भी वह दृढ़ रहता है और कहता है— ‘चलिए, कहीं भी चलिए। मुझे जो कहना है, वह कहूँगा।”
(4) निर्भीक तथा साहसी–अमूल्य साहसी युवक है। वह पुलिस इंस्पेक्टर से नहीं डरता और विपिन बिहारी को सबके सामने बेईमान कहता है। पुलिस इंस्पेक्टर के सामने वह साहसपूर्वक कहता है-”यह षड्यन्त्र है …….:” आप सदा ब्लैक से कागज बेचते हैं और मुझे फंसाना चाहते हैं। ……….. आप सब नीच हैं ……….. आप देशभक्त की पोशाक पहने देशद्रोही हैं, भेड़िये हैं।”
(5) आदर्श मार्गदर्शक-अमूल्य आधुनिक युवकों के लिए एक आदर्श मार्गदर्शक है। वह भ्रष्ट आचरण वाले व्यक्तियों के मुखौटे उतारने का संकल्प लेता है। देशसेवा के प्रति अमूल्य के शब्दों को देखिए-“अब आवश्यकता है कि हम देशसेवा का अर्थ समझें। जो शैतान मुखौटे लगाए शिव बनकर घूम रहे हैं, उनके वे मुखौटे उतारकर उनकी वास्तविकता प्रकट करें।”
(6) सरल स्वभाव वाला—अमूल्य सरल स्वभाव वाला स्वामिभक्त युवक है। सुनन्दा उसके सरल स्वभाव को देखकर ही कहती है—“पिताजी की बात अभी रहने दो। देखा नहीं था तुमने ? उनका नाम सुनकर सब चौंक पड़े थे। उनसे पिताजी की बात मत कहना अभी।”

इस प्रकार ‘कुहासा और किरण’ नाटक का सबसे अनमोल चरित्र अमूल्य का है। वह नाटक का नायक भी है। वह भ्रष्टाचार तथा निराशापूर्ण कुहासे को भेदकर कर्तव्यनिष्ठा, दृढ़ता, सत्यता, देशभक्ति तथा निर्भीकता की स्वर्णिम प्रकाश किरणों से समाज को आलोकित करना चाहता है। अमूल्य ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ के आदर्श का प्रतीक है।

प्रश्न 3
‘कुहासा और किरण’ के आधार पर कृष्ण चैतन्य का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2012, 13, 14, 17, 18]
‘कुहासा और किरण’ नाटक के आधार पर कृष्ण चैतन्य की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2010, 14, 16, 18]
उत्तर

कृष्ण चैतन्य का चरित्र-चित्रण

‘कुहासा और किरण’ नाटक में कृष्ण चैतन्य’ का चरित्र अवसरवादी, स्वार्थी तथा सभी प्रकार से भ्रष्ट व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया गया है। वह नाटक का खलनायक है। आज कृष्ण चैतन्य जैसे अनेक नेता अपनी स्वार्थ सिद्धि हेतु; समाज और देश को खोखला करने में लगे हैं। कृष्ण चैतन्य के चरित्र से सम्बद्ध धनात्मक और ऋणात्मक विशिष्टताओं की विवेचना निम्नलिखित है|

(1) अवसरवादी–कृष्ण चैतन्य पक्का अवसरवादी है। वह पहले अंग्रेजों का दलाल बना रहता है, फिर कांग्रेसी नेता बन जाता है।
(2) मित्रघाती-वह अपने साथियों की मुखबिरी करके उन्हें पकड़वा देता है। इस प्रकार मित्रघाती होने का भी वह दोषी है, यद्यपि वह इस कलंक को छिपाने की भरसक चेष्टा करता है।
(3) चतुर-चालाक–कृष्ण चैतन्य चतुर तथा चालाक है। उसका मत है कि–“कुछ करने से पहले सौ बार सोच लेना बुद्धिमानी का लक्षण है।”
(4) भ्रष्टाचार का प्रतीक-कृष्ण चैतन्य सभी प्रकार के गलत हथकण्डों में माहिर है। वह ब्लैकमेल करता है, रिश्वत लेता है। इसी प्रकार की दूसरी अनेक बुराइयाँ; जैसे क्रूरता, कठोरता और धनलिप्सा का आधिक्य भी उसमें विद्यमान है।
(5) देशद्रोही-‘मुलताने षड्यन्त्र’ की मुखबिरी करके वह देशद्रोही बनता है। इसके उपरान्त भी वह समाज तथा देश के साथ गद्दारी करता ही रहता है।
(6) कृत्रिमता तथा आडम्बर से परिपूर्ण-कृष्ण चैतन्य का जीवन कृत्रिमता तथा आडम्बर से पूर्ण है। वह मुलतान केस में अंग्रेजों को मुखबिर बनकर देश के साथ गद्दारी करता है, किन्तु देश और समाज की सेवा का ढोंग रचता है, जिससे वह शासन और जनता दोनों की आँखों में धूल झोंकता रहता है।
(7) प्रभावशाली व्यक्तित्व-कृष्ण चैतन्य का व्यक्तित्व प्रभावशाली है। उसके प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण ही सरकार व प्रशासन पर उसका पर्याप्त प्रभाव है।
(8) दूरदर्शी-कृष्ण चैतन्य दूरदर्शी व्यक्ति है। अपनी दूरदर्शिता के कारण ही वह अपने वास्तविक नाम ‘कृष्णदेव’ को बदलकर ‘कृष्ण चैतन्य’ रख लेता है। विपिन बिहारी के यहाँ अमूल्य की नियुक्ति उसकी दूरदर्शिता का ही परिचायक है।
(9) आत्मपरिष्कार की भावना–गायत्री का बलिदान कृष्ण चैतन्य में प्रायश्चित्त का भाव उत्पन्न करता है। वह गायत्री के चित्र के सम्मुख पश्चात्ताप करते हुए कहता है-”मेरी आँखें खोलने के लिए तुमने प्राण दे दिये।”
(10) कूटनीतिज्ञ-कृष्ण चैतन्य एक प्रतिभाशाली और कूटनीतिज्ञ पात्र है। यह ठीक है कि वह अपनी प्रतिभा का दुरुपयोग करता है, जिसके कारण उसका चरित्र घृणित हो जाता है, परन्तु यदि उसकी प्रतिभा का सदुपयोग होता तो वह एक श्रेष्ठ पुरुष बन सकता था।

इस प्रकार कृष्ण चैतन्य के चरित्र में अनेकानेक दोष हैं। अन्त में वह अपनी भूलों के लिए प्रायश्चित्त करते हुए कहता है–‘चलिए टमटा साहब, मैंने देश के साथ जो गद्दारी की है, उसकी सजा मुझे मिलनी चाहिए।” इस प्रकार अन्त में अपने दोषों के परिष्कार के प्रयास से वह पाठकों की सहानुभूति का पात्र बन जाता है।

प्रश्न 4
सुनन्दा के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए। [2009, 11, 12, 13, 14]
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक के प्रमुख नारी-पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2010, 11, 12, 13, 16, 17]
या
‘कुहासा और किरण’ की नायिका के चरित्र की विशेषताएँ उदघाटित कीजिए। [2013]
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक के आधार पर ‘सुनन्दा’ को चरित्रांकन (चरित्र-चित्रण) कीजिए। [2015, 16, 17, 18]
उत्तर
सुनन्दा का चरित्र-चित्रण श्री विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित ‘कुहासा और किरण’ नाटक की सुनन्दा प्रमुख नारी-पात्र है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं
(1) भ्रष्टाचार की विरोधी नवयुवतियों की प्रतिनिधि–वह उन नवयुवतियों का प्रतिनिधित्व करती है, जो जागरूक एवं सजग हैं। सुनन्दा दूरदर्शी, साहसी, चतुर, विनोदी, कर्तव्यपरायणा एवं देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए संकल्पबद्ध एक सहयोगी तथा कर्मशीला नवयुवती है। उसे अमूल्य से सहानुभूति है तथा वह समाज के पाखण्डियों के रहस्य खोलने में अन्त तक अमूल्य का साथ देती है। मुखौटाधारी भ्रष्टाचारियों से वह कहती है-“मैं पुकार-पुकार कर कहूंगी कि आप सब भ्रष्ट हैं, नीच हैं, देशद्रोही हैं। आज नहीं तो कल आपको समाज के सामने जवाब देना होगा।”

(2) जागरूक नवयुवती–सुनन्दा, कृष्ण चेतन्य की सेक्रेटरी है। उसकी आयु 25 वर्ष है। वह जागरूक नवयुवती है और समाचार-पत्रों के महत्त्व तथा उसमें निहित शक्ति को पहचानती है। उसी के शब्दों में– ‘शक्ति-संचालन का सूत्र जितना समाचार-पत्रों के हाथ में है, उतना और किसी के नहीं।”

(3) वाक्पटु–सुनन्दा की वाक्पटुता देखते ही बनती है। वह उमेशचन्द्र और कृष्ण चैतन्य की मिली- भगत से परिचित है। उसकी व्यंग्यपूर्ण वाक्पटुता देखिए–“आकाश जैसे पृथ्वी को आवृत्त किये है, वैसे ही आप उनको (कृष्ण चैतन्य को) आवृत्त किये हैं। आकाश के कारण ही पृथ्वी अन्नपूर्णा होती है।”

(4) देशद्रोहियों की प्रबल विरोधी-स्वच्छ मुखौटाधारी देशद्रोहियों को सुनन्दा प्रबल विरोध करती है। वह विपिन बिहारी को भी खरी-खोटी सुनाती है। वह उससे कृष्ण चैतन्य के विषय में स्पष्ट कहती है—“क्या आपको अब भी पता नहीं कि कृष्ण चैतन्य वह नहीं हैं जो दिखाई देते हैं। वह मुखौटा लगाये एक देशद्रोही हैं।”

(5) मुखौटाधारियों की विरोधिनी–अवसर आने पर सुनन्दा मुखौटाधारियों का प्रबल विरोध करती है। यहाँ तक कि वह चाहती है कि गायत्री द्वारा लिखा गया पत्र पुलिस के हवाले कर दिया जाए, क्योंकि पत्र पुलिस के हाथ में पहुँचने पर कृष्ण चैतन्य की परेशानी बढ़ सकती थी। वह उमेशचन्द्र अग्रवाल को लक्ष्य कर कहती है—“मुझे घिनौने चेहरों से सख्त नफरत है। गायत्री माँ के बलिदान के पीछे जो उदात्त भावना है, वह जनता तक पहुँचनी ही चाहिए।”

(6) सहृदयी-सुनन्दा के हृदय में अमूल्य के प्रति सहानुभूति है। वह उसकी विवशता को समझती है। जब अमूल्य झूठी चोरी के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया जाता है, तब वह अन्याय से जूझने के लिए तत्पर हो जाती है। | इस प्रकार सुनन्दा एक प्रगतिशील, व्यवहारकुशल व स्वदेश-प्रेमी नवयुवती के रूप में पाठकों पर अपनी विशिष्ट छाप छोड़ती है।

प्रश्न 5.
‘कुहासा और किरण’ नाटक के आधार पर अमूल्य और कृष्ण चैतन्य के चरित्रों की तुलना कीजिए।
उत्तर

अमूल्य और कृष्ण चैतन्य के चरित्रों की तुलना

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi नाटक Chapter 1 कुहासा और किरण img 1
[संकेत–उपर्युक्त शीर्षकों के अन्तर्गत इस प्रश्न का विस्तार कीजिए। विस्तार के लिए प्रश्न संख्या 2 और 3 देखिए।]

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UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi नाटक Chapter 3 गरुड़ध्वज

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi नाटक Chapter 3 गरुड़ध्वज (लक्ष्मीनारायण मिश्र) are part of UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi . Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi नाटक Chapter 3 गरुड़ध्वज (लक्ष्मीनारायण मिश्र).

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Class Class 11
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 3
Chapter Name गरुड़ध्वज (लक्ष्मीनारायण मिश्र)
Number of Questions 10
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi नाटक Chapter 3 गरुड़ध्वज (लक्ष्मीनारायण मिश्र)

प्रश्न 1:
‘गरुड़ध्वज’ नाटक की कथावस्तु को संक्षेप में लिखिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के प्रथम अंक का कथासार अपने शब्दों में लिखिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के द्वितीय अंक की कथा संक्षेप में लिखिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के अन्तिम (तृतीय) अंक की घटनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के किसी एक अंक के कथानक पर प्रकाश डालिए।
या
गरुड़ध्वज’ नाटक के कथानक का सार लिखिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक में कौन-सा अंक आपको सबसे अच्छा लगा और क्यों ?
उत्तर:
श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र कृत ‘गरुड़ध्वज’ नाटक की कथा ऐतिहासिक है। कथा में प्रथम शती ईसा पूर्व के भारतवर्ष की सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनीतिक तथा सामाजिक झाँकी प्रस्तुत की गयी है। कहानी में शुंग वंश के अन्तिम सेनापति विक्रमादित्य, मालवा के जननायक ‘विषमशील’ के त्याग और शौर्य की गाथा वर्णित है। विषमशील ही ‘विक्रमादित्य’ के नाम से प्रसिद्ध हुए।

प्रथम अंक – नाटक के प्रथम अंक में पहली घटना विदिशा में घटित होती है। विक्रममित्र स्वयं को सेनापति सम्बोधित कराते हैं, महाराज नहीं। विक्रममित्र के सफल शासन में प्रजा सुखी है। बौद्धों के पाखण्ड को समाप्त करके ब्राह्मण धर्म की स्थापना की गयी है। सेनापति विक्रममित्र ने वासन्ती नामक एक युवती का उद्धार किया है। उसके पिता वासन्ती को किसी यवन को सौंपना चाहते थे। वासन्ती; एकमोर नामक युवक से प्रेम करती है। इसी समय कवि और योद्धा कालिदास प्रवेश करते हैं। कालिदास; विक्रममित्र को आजन्म ब्रह्मचारी रहने के कारण भीष्म पितामह’ कहते हैं। विक्रममित्र इस समय सतासी वर्ष के हैं। इसी समय साकेत के एक यवन-श्रेष्ठी की कन्या कौमुदी का सेनापति देवभूति द्वारा अपहरण करने की सूचना विक्रममित्र को मिलती है। देवभूति कन्या को अपहरण कर उसे काशी ले जाते हैं। विक्रममित्र कालिदास को काशी पर आक्रमण करने की आज्ञा देते हैं।

द्वितीय अंक – नाटक के दूसरे अंक में दो घटनाएँ प्रस्तुत की गयी हैं। प्रथम में तक्षशिला के राजा अन्तिलिक का मन्त्री ‘हलोदर’ विक्रममित्र से अपने राज्य के दूत के रूप में मिलता है। हलोदर भारतीय संस्कृति में आस्था रखता है तथा सीमा विवाद को वार्ता के द्वारा सुलझाना चाहता है। वार्ता सफल रहती है तथा हलोदर विक्रममित्र को अपने राजा की ओर से रत्नजड़ित स्वर्ण गरुड़ध्वज भेटस्वरूप देता है।

विक्रममित्र के आदेशानुसार कालिदास काशी पर आक्रमण करते हैं तथा अपने ज्ञान और विद्वत्ता से काशी के दरबार में बौद्ध आचार्यों को प्रभावित कर देते हैं। वे कौमुदी का अपहरण करने वाले देवभूति तथा काशी नरेश को बन्दी बनाकर विदिशा ले जाते हैं। नाटक के इसी भाग में वासन्ती काशी विजयी ‘कालिदास’ का स्वागत उनके गले में पुष्पमाला डालकर करती है।

तृतीय अंक – नाटक के तृतीय तथा अन्तिम अंक की कथा ‘अवन्ति’ में प्रस्तुत की गयी है। विषमशील के नेतृत्व में अनेक वीरों ने मालवा को शकों से मुक्त कराया। विषमशील के शौर्य के कारण अनेक राजा उसके समर्थक हो जाते हैं। अवन्ति में महाकाल का एक मन्दिर है, इस पर गरुड़ध्वज फहराता रहता है। मन्दिर का पुजारी मलयवती और वासन्ती को बताता है कि युद्ध की सभी योजनाएँ इसी मन्दिर में बनती हैं। इसी समय विषमशील युद्ध जीतकर आते हैं तथा काशिराज अपनी पुत्री वासन्ती का विवाह कालिदास के साथ विक्रममित्र की आज्ञा लेकर कर देते हैं। इसी अंक में विषमशील का राज्याभिषेक होता है तथा कालिदास को मन्त्री-पद पर नियुक्त किया जाता है। राजमाता जैन आचार्यों को क्षमादान देती हैं। कालिदास की मन्त्रणा से विषमशील का नाम उसके पिता महेन्द्रादित्य तथा किंक्रममित्र के आधार पर विक्रमादित्य रखा जाता है। विक्रममित्र संन्यासी बन जाते हैं तथा कालिदास अपने राजा विक्रमादित्य के नाम पर उसी दिन से विक्रम संवत् का प्रवर्तन करते हैं। नाटक की कथा यहीं समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 2:
नाटक के तत्वों (नाट्यकला की दृष्टि) के आधार पर ‘गरुडध्वज’ नाटक की समीक्षा (आलोचना) कीजिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक में निहित सन्देश पर प्रकाश डालिए।
या
पात्र तथा चरित्र-चित्रण की दृष्टि से ‘गरुड़ध्वज’ नाटक की समीक्षा कीजिए।
या
संवाद-योजना (कथोपकथन) की दृष्टि से ‘गरुड़ध्वज’ नाटक की विवेचना कीजिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक की भाषा-शैली की समीक्षा कीजिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के देश-काल तथा वातावरण की समीक्षा कीजिए।
या
अभिनेयता अथवा रंगमंच की दृष्टि से ‘गरुडध्वज’ नाटक की सफलता पर प्रकाश डालिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के उद्देश्य पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

‘गरुडध्वज’ की तात्त्विक समीक्षा

नाटक के तत्त्वों की दृष्टि से श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र कृत ‘गरुड़ध्वज’ एक उच्चकोटि की रचना है। इसका तात्त्विक विवेचन निम्नवत् है

(1) कथावस्तु (कथानक) – नाटक की कथावस्तु ऐतिहासिक है। इसमें ईसा से एक शताब्दी पूर्व के प्राचीन भारत का सांस्कृतिक, सामाजिक एवं राजनीतिक परिवेश चित्रित किया गया है। प्रथा अंक में कार्य का आरम्भ हुआ है, दूसरे अंक में उसका विकास है तथा तीसरे अंक में चरम-सीमा, उतार तथा समाप्ति है। प्रथम अंक में विक्रममित्र के चरित्र, काशिराज का अनैतिक चरित्र तथा वासन्ती की असन्तुलित मानसिक दशा के साथ ही समाज में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा किये जा रहे अनाचार का चित्रण किया है। विदेशियों के आक्रमण और बौद्ध धर्मावलम्बियों द्वारा राष्ट्रहित को त्यागकर उनकी सहायता इसमें चित्रित की गयी है। दूसरा अंक राष्ट्रहित में धर्म-स्थापना के संघर्ष की है। इस अंक में विक्रममित्र की दृढ़ता एवं वीरता का परिचय प्राप्त होता है। साथ ही , उनके कुशल नीतिज्ञ और एक अच्छे मनुष्य होने का बोध भी होता है। तीसरे अंक के अन्तर्गत युद्ध में विदेशियों की पराजय, कालकाचार्य एवं काशिराज का पश्चात्ताप विक्रममित्र की उदारता तथा आक्रमणकारी हूणों की क्रूर जातिगत प्रकृति को चित्रित किया गया है। इस नाटक का कथानक राज्य के संचालन, धर्म, अहिंसा एवं हिंसा के वास्तविक स्वरूप पर प्रकाश डालता है।

(2) पात्र और चरित्र-चित्रण – पात्र और चरित्र-चित्रण की दृष्टि से यह एक सफल नाटक है। प्रस्तुत नाटक में 14 पुरुष-पात्रों और 4 स्त्री-पात्रों को मिलाकर कुल 18 पात्र हैं। इसके मुख्य पात्र हैं – विक्रममित्र, विषमशील, कालिदास, मलयवती, वासन्ती, काशी-नरेश और कुमार कार्तिकेय। पात्रों में विविध प्रकार के चरित्र हैं-सदाचारी, वीर, साहित्यकार, संगीतकार, लम्पट तथा देशद्रोही। विक्रममित्र आजीवन ब्रह्मचारी रहने के कारण परिचित जनों द्वारा ‘भीष्म पितामह’ के नाम से पुकारे जाते हैं। पात्रों का चरित्र-चित्रण नाटक के कथ्य के अनुसार ही किया गया है। मुख्य पात्र विक्रममित्र हैं, सम्पूर्ण नाटक इनके चारों ओर ही घूमता है। चरित्रों के द्वारा नाटक के कथ्य को दर्शकों तक पहुँचाने के लिए इसके सभी पात्रों का चित्रण उपयुक्त है। निरर्थक पात्र-योजना का समावेश नहीं किया गया है।

(3) भाषा-शैली – ‘गरुड़ध्वज’ की भाषा सुगम, संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली हिन्दी है। नाटक में लक्ष्मीनारायण मिश्र जी ने सहज, सरल एवं सुबोध शैली का प्रयोग किया है। भाषा में कहीं-कहीं क्लिष्टता है, किन्तु मुहावरों तथा लोकोक्तियों का प्रयोग सफलता से हुआ है, जिसने नाटक की भाषा को सहज, सरल और आकर्षक बना दिया है। ऐतिहासिक नामों के प्रयोग विभिन्न घटनाओं के साथ इस प्रकार आये हैं कि उन्हें समझना आसान है। मिश्र जी ने विचारात्मक, दार्शनिक, हास्यात्मक आदि शैलियों का पात्रों के अनुकूल प्रयोग किया है। भाषा-शैली की दृष्टि से यह एक सफल रचना है। नाटक में प्रयुक्त स्वाभाविक भाषा का एक उदाहरण देखिए-”मैं लज्जा और संकोच से मरने लगता हूँ राजदूत! जब इस युग का सारा श्रेय मुझे दिया जाता है। आत्म-स्तुति । से प्रसन्न नास्तिक होते हैं। उसके भीतर जो दैवी अंश था उसी ने उसे कालिदास बना दिया। उसकी शिक्षा और संस्कार में मैं प्रयोजन मात्र बना था। उसका पालन मैंने ठीक इसी तरह किया, जैसे यह मेरे अंश का ही नहीं, मेरे इस शरीर का हो।”

(4) संवाद-योजना (कथोपकथन – नाटक का सबसे सबल तत्त्व उसका संवाद होता है। संवादों के द्वारा ही पात्रों का चरित्र-चित्रण किया जाता है। इस दृष्टि से नाटककार ने संवादों का उचित प्रयोग किया है। नाटक के संवाद सुन्दर हैं। तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप संवादों की रचना की गयी है। संवाद संक्षिप्त, परन्तु प्रभावशाली हैं। वे पात्रों की मनोदशा तथा भावनाओं को स्पष्ट करने में समर्थ हैं; जैसे
वासन्ती-नहीं …….नहीं, बस दो शब्द पूगी कवि ! लौट आओ ……।।
कालिदास—(विस्मय से) क्या है राजकुमारी ?
वासन्ती–यहाँ आइए ! आज मैं कुमार कार्तिकेय का स्वागत करूसँगी। उनका वाहन मोर भी यहीं है।
संवादों में कहीं-कहीं हास्य, व्यंग्य, विनोद तथा संगीतात्मकता का पुट भी मिलता है।

(5) देश-काल तथा वातावरण – नाटक में देश-काल तथा वातावरण का निर्वाह उचित रूप में हुआ है। नाटक में ईसा पूर्व की सांस्कृतिक, धार्मिक तथा राजनीतिक हलचलों को सुन्दर तथा उचित प्रस्तुतीकरण है। नाटककार तत्कालीन समाज के वातावरण का चित्रण करने में पूर्णरूपेण सफल रहा है। तत्कालीन समाज में राजमहल, युद्ध-भूमि, पूजागृह, सभामण्डल आदि का वातावरण अत्यन्त कुशलतापूर्वक चित्रित किया गया है। नाम, स्थान तथा वेशभूषा में देश-काल तथा वातावरण का सुन्दर सामंजस्य देखने को मिलता है।

(6) उद्देश्य अथवा सन्देश – नाटक का उद्देश्य, अतीत की घटनाओं के माध्यम से वर्तमान भारतीयों को उच्च चरित्र, आदर्श मानवता तथा ईमानदारी के साथ-साथ देश के नव-निर्माण का सन्देश देना भी है। नाटककार उदार धार्मिक भावनाओं को व्यंजित करके धर्मनिरपेक्षता पर बल देता है। वह देश की रक्षा और अन्यायियों के विनाश के लिए शस्त्रों के उपयोग का समर्थन करता है। नाटक के तीन अंक हैं। तीनों अंकों में एक-एक मुख्य घटना है। ये घटनाएँ क्रमशः न्याय, राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय शौर्य को प्रदर्शित करती हैं। नाटक की भूमिका में नाटककार स्वयं कहते हैं-”सम्पूर्ण नाटक राष्ट्र की एकता और संस्कृति का सन्देश अपनी घटनाओं में अभिव्यक्त करता है।”

(7) अभिनेयता – ‘गरुड़ध्वज’ नाटक मंच पर अभिनीत किया जा सकता है। नाटक में मात्र तीन अंक हैं। वेशभूषा का प्रबन्ध भी कठिन नहीं है। एकमात्र कठिनाई नाटक की दुरूह भाषा तथा पात्रों के कठिन नाम हैं, जो कहीं-कहीं सफल संवाद-प्रेषण में कठिनाई उत्पन्न कर सकते हैं, परन्तु देश-काल के सजीव चित्रण के लिए, यह आवश्यक था।
इस प्रकार यह नाटक रचना-तत्त्वों की दृष्टि से एक सफल रचना है।

प्रश्न 3:
‘गरुडध्वज’ नाटक के नायक की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के प्रमुख पुरुष पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
विक्रममित्र की चारित्रिक विशेषताओं का उद्घाटन कीजिए।
या
‘गरुडध्वज’ नाटक के आधार पर विक्रममित्र के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के किसी पुरुष पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:

विक्रममित्र का चरित्र-चित्रण

श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र कृत ‘गरुड़ध्वज’ नाटक में विषमशील तथा विक्रममित्र दो प्रमुख पात्र हैं। नाटक के नायक विक्रममित्र हैं, जो नाटक के आरम्भ से अन्त तक की सभी घटनाओं के साथ जुड़े रहते हैं। यह कहा जा सकता है कि सारे कथानक के मेरुदण्ड विक्रममित्र ही हैं, जिन्होंने मूल कथा को सबसे अधिक प्रभावित किया है। विक्रममित्र, पुष्यमित्र शुंग के वंश के अन्तिम शासक हैं। वे ब्रह्मचारी, सदाचारी, वीर, कुशल राजनीतिज्ञ तथा प्रजावत्सल हैं। वह शासन का संचालन कुशलता से करते हैं। उनके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं-

(1) सज्जन महापुरुष  – विक्रममित्र सज्जन महापुरुष हैं। वे स्वयं को ‘महाराज’ कहलवाना पसन्द नहीं करते, अतः लोग उन्हें सेनापति’ कहते हैं। नारियों के प्रति सम्मान का भाव सदा उनके मन में रहता है।

(2) अनुशासनप्रिय – विक्रममित्र अनुशासनप्रिय हैं तथा कठोर अनुशासन का पालन करने और कराने के पक्षधर हैं। सेनापति के स्थान पर ‘महाराज’ कहे जाने पर सेवक को डर लगता है कि कहीं सेनापति उसे दण्ड न दे दें। विक्रममित्र के शासन में अनुशासन भंग करना और मर्यादा का उल्लंघन करना अक्षम्य अपराध है।

(3) प्रजा के सेवक – विक्रममित्र अपनी प्रजा को अपनी सन्तान की भाँति स्नेह करते हैं। वे अत्याचारी नहीं हैं। उनका मत है-‘सेनापति धर्म और जाति का सबसे बड़ा सेवक है।”

(4) भागवत धर्म के रक्षक – विक्रममित्र भारतवर्ष में मिटती हुई वैदिक संस्कृति तथा ब्राह्मण धर्म के रक्षक हैं। वे भागवत धर्म और उसकी प्रतिष्ठा के लिए आजीवन संघर्ष करते हैं। उनको सेवक कालिदास काशी में हुए शास्त्रार्थ में बौद्धों को निरुत्तर कर देता है।

(5) संगठित राष्ट्र-निर्माता – उस समय देश छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था। विक्रममित्र ने उन्हें इकट्ठा करने का सफल प्रयास किया। विक्रममित्र का मत है – “देश का गौरव, इसके सुख और शान्ति की रक्षा मेरा धर्म है।” वे कालिदास का विवाह काशी-नरेश की पुत्री से कराते हैं। विक्रममित्र के संन्यास के समय तक मगध, साकेत तथा अवन्ति को मिलाकर एक सुदृढ़ राज्य की स्थापना हो चुकी होती है।

(6) निष्काम कर्मवीर –  विक्रममित्र राजा होते हुए भी महाराजा कहलाना पसन्द नहीं करते। वे स्वयं को प्रजा का सेवक ही मानते हैं। विषमशील के योग्य हो जाने पर वे उसे शासक बनाकर स्वयं संन्यासी हो जाते हैं। कालिदास का उन्हें भीष्म पितामह कहना सटीक सम्बोधन है।

(7) नीतिप्रिय – आचार्य विक्रममित्र नीति के अनुसार चलने वाले जननायक हैं। कुमार विषमशील की सफलता का एकमात्र कारण सेनापति विक्रममित्र की नीतियाँ ही हैं। वह नागसेन और पुष्कर से कहते हैं- “तुम जानते हो विक्रममित्र के शासन में अनीति चाहे कितनी छोटी क्यों न हो, छिपी नहीं रह सकती है।”

(8) शरणागतवत्सल – विक्रममित्र अपनी शरण में आये हुए की रक्षा करते हैं। चंचु और कालकाचार्य को क्षमा-दान देना उनकी शरणागतवत्सलता के प्रमाण हैं।

(9) निरभिमानी – विक्रममित्र शासक होते हुए भी अभिमान से कोसों दूर रहते हैं। वे हलोदर से कहते हैं-”मैं लज्जा और संकोच से मरने लगता हूँ; राजदूत! जब इस युग का सारा श्रेय मुझे दिया जाता है।”

इस प्रकार विक्रममित्र न्यायप्रिय, प्रजावत्सल, वीर शासक तथा निष्काम महामानव हैं।

प्रश्न 4:
‘गरुड़ध्वज़’ के आधार पर कालिदास का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘गरुडध्वज’ के अन्य पुरुष-पात्रों की तुलना में कालिदास की चारित्रिक विशेषताओं को प्रकाशित कीजिए।
उत्तर:
‘गरुड़ध्वज’ के पुरुष पात्रों में कालिदास भी एक प्रमुख पात्र हैं। विक्रममित्र शुंगवंशीय शासक एवं वीर सेनापति के रूप में प्रमुख पात्र है। इसके पश्चात् द्वितीय एवं तृतीय क्रम पर क्रमशः विषमशील, कालिदास का ही नाम आता है। विषमशील और विक्रममित्र तो प्रबुद्ध, शासक, सेनापति और शूरवीर पुरुष हैं। कालिदास शकारि विक्रमादित्य के दरबारी रत्नों में एक मुख्य रत्न माने जाते थे। ये एक विद्वान् कवि थे और वीर सैनिक भी थे; अतः वे विषमशील तथा विक्रममित्र से भी कुछ अधिक गुणों के स्वामी हैं। उनकी चरित्र की कुछ प्रमुख विशेषताएँ अग्रवत् हैं

(1) वीरता – कालिदास एक वीर पुरुष हैं। जब देवभूति कौमुदी का अपहरण कर लेता है तो कालिदास उसे काशी में घेर कर पकड़ लाते हैं। उसकी इसी वीरता पर मुग्ध होकर काशी की राजकुमारी वासन्ती उससे प्रेम करने लगती है और काशिराज भी प्रसन्न होकर उन दोनों के विवाह की स्वीकृति देते हैं।

(2) सच्चा-मित्र – कालीदास विषमशील का मित्र है, इसीलिए विषमशील के साथ उसका हास-परिहास चलता रहता है। वह मलयवती के बारे में राजकुमार विषमशील से चुटकी लेता हुआ कहता है
“किस तरह भूल गये विदिशा के प्रासाद का वह उपवन ……….”। घूम-घाम कर मलयवती को आँखों से पी जाना चाहते थे।”

(3) सच्चा-प्रेमी और कवि – वह वासन्ती का सच्चा प्रेमी है। वासन्ती को भी उस पर पूरा विश्वास है। वह वासन्ती के बारे में कहता है-“मैं सब कुछ जानता हूँ। उन्होंने तो उस यवन को देखा भी नहीं, फिर उसकी पवित्रता में शंका उत्पन्न करना तो पार्वती की पवित्रता में शंका उत्पन्न करना होगा। इसके अतिरिक्त वे एक महाकवि भी हैं। जैसा कि मलयवती ने कहा भी है-”क्यों महाकवि को यह क्या सूझी है ?” निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि कालिदास ‘गरुड़ध्वज’ के अन्य पुरुष-पात्रों की अपेक्षा विलक्षण हैं। वे वीर, सच्चे मित्र, सच्चे प्रेमी और महाकवि भी हैं। वे शासक भी हैं और शासित भी; वे वीर हैं, न्यायप्रिय हैं, कठोर हैं और कोमल भी हैं।

प्रश्न 5:
‘गरुड़ध्वज’ के आधार पर विषमशील का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
कुमार विषमशील ‘गरुड़ध्वज’ नाटक के दूसरे प्रमुख पात्र हैं। ये धीरोदात्त स्वभाव के उच्च कुलीन श्रेष्ठ पुरुष हैं। आदि से अन्त तक इनके चरित्र का क्रमिक विकास होता है। इनके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं:

(1) उदार और गुणग्राही – कुमार विषमशील मालवा के गर्दभिल्लवंशी महाराज महेन्द्रादित्य के वीर सुपुत्र हैं। अपने महान् कुल के अनुरूप ही उनमें उदारता और गुणग्राहकता विद्यमान है। कवि कालिदास की विद्वत्ता, वीरता आदि गुणों को देखकर वे उनके गुणों पर ऐसे मुग्ध हो जाते हैं कि उनसे अलग होना नहीं चाहते।

(2) महान् वीर – वीरता कुमार विषमशील के चरित्र की महती विशेषता है। अपनी वीरता के कारण वह शकारि क्षत्रियों को पराजित कर भारी विजय प्राप्त करते हैं। कुमार की वीरता और योग्यता को देखकर ही आचार्य विक्रममित्र उसे सम्राट बनाकर निश्चिन्त हो जाते हैं।

(3) सच्चा-प्रेमी – कुमार विषमशील एक भावुक व्यक्ति है। उसके हृदय में दया, प्रेम, उत्साह आदि मानवीय भावनाएँ पर्याप्त मात्रा में पायी जाती हैं। स्वभाव से धीर होते हुए भी कुमारी मलयवती को देखकर उनके हृदय में प्रेम अंकुरित हो जाता है।

(4) विवेकशील – कुमार विषमशील एक विवेकशील व्यक्ति के रूप में चित्रित हुए हैं। वे भली-भाँति समझते हैं कि किस प्रकार, किस अवसर पर अथवा किस स्थान पर किस प्रकार की बात करनी चाहिए। कालिदास के साथ उसका व्यवहार मित्रों जैसा होता है, हास और उपहास भी होता है किन्तु सेनापति विक्रममित्र के सामने वे सर्वत्र संयत और शिष्ट-आचरण करते हैं। वासन्ती और मलयवती के साथ बातें करते समय वह भावुक हो। उठते हैं। किसी काम को करने से पूर्व वह विवेक से काम लेते हैं तथा उसके दूरगामी परिणाम को सोचते हैं। जब सेनापति विक्रममित्र साकेत और पाटलिपुत्र का राज्य भी उसे सौंपते हैं तो वह बहुत विवेक से काम लेता । है। अवन्ति में रहकर सुदूर पूर्व के इन राज्यों की व्यवस्था करना कोई सरल काम नहीं था। इसलिए वह विक्रममित्र से निवेदन करता है ।
“आचार्य! अभी कुछ दिन आप महात्मा काशिराज के साथ उधर की व्यवस्था करें। मैं चाहता हूँ, मेरे सिर पर किसी मनस्वी ब्राह्मण की छाया रहे और फिर मैं यह देख भी नहीं सकता कि जिस क्षेत्र में प्रायः डेढ़ सौ वर्षों से आपके पूर्व-पुरुषों का अनुशासन रहा, वह अकस्मात् इस प्रकार मिट जाये।”

(5) कृतज्ञता – कुमार विषमशील दूसरे के किये हुए उपकार से अपने को उपकृत मानता है। कालिदास के उपकार के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए वह कहता है “और वह राज्य मुझे देकर मुझ पर, मेरे मन, मेरे प्राण पर राज्य करने की युक्ति निकाल ली।………. मैं सुखी हूँ ……… तुम्हारा अधिकार मेरे मन पर सदैव बना रहे ……… महाकाल से मेरी यही कामना है।”

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि कुमार विषमशील का चरित्र एक सुयोग्य राजकुमार का चरित्र है। वह स्वभाव से उदार, गुंणग्राही तथा भावुक व्यक्ति है। उसमें वीरता, विवेकशीलता आदि कुछ ऐसे गुण हैं जिनके आधार पर उसमें एक श्रेष्ठ शासक बनने की क्षमता सिद्ध हो जाती है। उसका चरित्र स्वाभाविक तथा मानवीय है।

प्रश्न 6:
‘गरुड़ध्वज’ के आधार पर वासन्ती का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के किसी नारी-पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ के प्रमुख नारी-पात्र के विषय में अपने विचार प्रकट कीजिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक की नायिका (प्रमुख नारी-पात्र) का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
क्या वासन्ती का चरित्र आधुनिक नारियों के लिए अनुकरणीय है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

वासन्ती का चरित्र-चित्रण

श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र कृत ‘गरुड़ध्वज’ नाटक की नायिका वासन्ती है। वासन्ती काशिराज की इकलौती पुत्री है। बौद्ध धर्म के अनुयायी होने के कारण वे वासन्ती का विवाह किसी राजकुल में नहीं कर पाते, अतः अपनी युवा पुत्री का विवाह शाकल के 50 वर्षीय यवन राजकुमार से निश्चित करते हैं, किन्तु इसी बीच विक्रममित्र के प्रयास से यह विवाह बीच में रोक दिया जाता है और वासन्ती को राजमहल में सुरक्षित पहुँचा दिया जाता है। बाद में वह कालिदास की प्रेयसी के रूप में हमारे सम्मुख आती है। वासन्ती के चरित्र में निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ पायी जाती हैं

(1) अनुपम सुन्दरी – वासन्ती रूप और गुण दोनों में अद्वितीय है। उसका सौन्दर्य कालिदास जैसे संयमी पुरुष को भी आकर्षित कर लेता है। उसके सौन्दर्य की प्रशंसा करते हुए कुमार विषमशील कालिदास से कहते हैं  “और तुम्हारी वासन्ती-रूप और गुण का इतना अद्भुत मिश्रण ………… पता नहीं, कितने कुण्ड इस पर्वतीय स्रोत के सामने फीके पड़ेंगे।”

(2) उदारता और प्रेमभावना से परिपूर्ण – वासन्ती विश्व के समस्त प्राणियों के लिए अपने हृदय में उदार भावना रखती है। उसमें बड़े-छोटे, अपने-पराये सभी के लिए एक समान प्रेमभाव ही भरा हुआ है।

(3) धार्मिक संकीर्णता से त्रस्त – पिता के बौद्ध धर्मानुयायी होने के कारण कोई भी राज-परिवार वासन्ती से विवाह-सम्बन्ध के लिए तैयार नहीं होता। अन्त में उसके पिता काशिराज उसे 50 वर्षीय यवन राजकुमार को सौंप देने का निश्चय कर लेते हैं, जब कि वासन्ती उससे विवाह नहीं करना चाहती। इस प्रकार वासन्ती तत्कालीन समाज में व्याप्त धार्मिक संकीर्णता से त्रस्त है। धार्मिक संकीर्णता से ऊपर उठना चाहिए तथा योग्य व्यक्ति का वरण करना चाहिए।

(4) आत्मग्लानि से विक्षुब्ध – वासन्ती आत्मग्लानि से विक्षुब्ध होकर अपने जीवन से छुटकारा पाना चाहती है। और अपनी जीवन-लीला समाप्त करने का प्रयास करती है, परन्तु विक्रममित्र उसको ऐसा करने से रोक लेते हैं। वह असहाय होकर कहती है-”वह महापुरुष कौन होगा, जो स्वेच्छा से आग के साथ विनोद करेगा।” नारियों को इस तरह की भावना को त्यागकर साहसपूर्वक जीवनयापन करना चाहिए और समाज के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।

(5) स्वाभिमानिनी – वासन्ती धार्मिक संकीर्णता से त्रस्त होने पर भी अपनी स्वाभिमान नहीं खोती। वह किसी ऐसे राजकुमार से विवाह-बन्धन में नहीं बँधना चाहती, जो विक्रममित्र के दबाव के कारण ऐसा करने के लिए विवश हो। अतः आधुनिक नारियों को भी इस तरह संकल्प लेना चाहिए।

(6) सहृदय और विनोदप्रिय – वासन्ती विक्षुब्ध और निराश होने पर भी सहृदय और विनोदप्रिय दृष्टिगोचर . होती है। वह कालिदास के काव्य-रस का पूरा आनन्द लेती है।

(7) आदर्श प्रेमिका – वासन्ती एक सहृदया, सुन्दर, आदर्श प्रेमिका है। वह निष्कलंक और पवित्र है।

सार रूप में यह कहा जा सकता है कि वासन्ती एक आदर्श नारी-पात्र है और इस नाटक की नायिका है|

वासन्ती का चरित्र आधुनिक नारियों के लिए अनुकरणीय है।

प्रश्न 7:
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के आधार पर मलयवती का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:

मलयवती का चरित्र-चित्रण

मलयवती; श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र कृत ‘गरुड़ध्वज’ नाटक के नारी-पात्रों में एक प्रमुख पात्र है। सम्पूर्ण नाटक में अनेक स्थलों पर उसका चरित्र पाठकों को आकर्षित करता है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) अपूर्व सुन्दरी – मलयवती का व्यक्तित्व अत्यन्त प्रभावपूर्ण है। वह मलय देश की राजकुमारी और अपूर्व सुन्दरी है। विदिशा के राजप्रासाद के उपवन में उसके रूप-सौन्दर्य को देखकर कुमार विषमशील भी उस पर मुग्ध हो जाते हैं।

(2) ललित कलाओं में रुचि रखने वाली – मलयवती की ललित-कलाओं में विशेष रुचि है। ललित कलाओं में दक्ष होने के उद्देश्य से ही वह विदिशा जाती है और वहाँ मलय देश की चित्रकला, संगीतकला आदि भी
सीखती है।

(3) विनोदप्रिय – राजकुमारी मलयवती प्रसन्नचित्त और विनोदी स्वभाव की है। वासन्ती उसकी प्रिय सखी है। और वह उसके साथ खुलकर हास-परिहास करती है। जब राजभृत्य उसे बताता है कि महाकवि कह रहे थे कि मलयवती और वासन्ती दोनों को ही राजकुमारी के स्थान पर राजकुमार होना चाहिए था तो मलयवती कहती है-“क्यों महाकवि को यह सूझी है? इस पृथ्वी की सभी कुमारियाँ कुमार हो जाएँ, तब तो अच्छी रही। कह देना महाकवि से इस तरह की उलट-फेर में कुमारों को कुमारियाँ होना होगा और महाकवि भी कहीं उस चक्र में न आ जाएँ।’

(4) आदर्श प्रेमिका – मलयवती के हृदय में कुमार विषमशील के प्रति प्रेम का भाव जाग्रत हो जाता है। वह विषमशील का मन से वरण कर लेने के उपरान्त, एकनिष्ठ भाव से केवल उन्हीं का चिन्तन करती है। वह स्वप्न में भी किसी अन्य की कल्पना करना नहीं चाहती। उसका प्रेम सच्चा है और उसे अपने प्रेम पर पूर्ण विश्वास है। अन्ततः प्रेम की विजय होती है और कुमार विषमशील के साथ उसका विवाह हो जाता है। इस प्रकार मलयवती का चरित्र एवं व्यक्तित्व अनुपम है। वह एक आदर्श राजकुमारी की छवि प्रस्तुत करती है।

प्रश्न 8.
” ‘गरुडध्वज’ नाटक राष्ट्र की एकता और संस्कृति का सन्देश अपनी घटनाओं में अभिव्यक्त करता है।” नाटक की कथावस्तु से इस कथन की पुष्टि कीजिए।
या
” ‘गरुड़ध्वज’ नाटक में राष्ट्र की एकता और संस्कृति का सन्देश है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक की राष्ट्रीयता को स्पष्ट कीजिए।
या
“राष्ट्र को गतिशील बनाने वाले जो उच्च विचार हैं, वे ‘गरुड़ध्वज’ नाटक में समाविष्ट हैं।” विवेचना कीजिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक में युगीन समाज का यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
या
‘मरुड़ध्वज’ नाटक के शीर्षक की सार्थकता को स्पष्ट कीजिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ में राष्ट्रीय भावना का संयोजन है। स्पष्ट कीजिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक में ‘नीति और संस्कृति के मानदण्ड स्थापित हैं। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
या
राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरसता की दृष्टि से ‘गरुड़ध्वज’ नाटक कितना समर्थ है ? साधार स्पष्ट कीजिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के कथानक में न्याय और राष्ट्रीय एकता पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:

‘गरुड़ध्वज’ का महत्त्व

श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र द्वारा रचित ‘गरुड़ध्वज’ नाटक में ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी के भारतीय इतिहास के एक महत्त्वपूर्ण युग के धुंधले स्वरूप को चित्रित किया गया है, जो भारत की राष्ट्रीय एकता और प्राचीन संस्कृति को प्रस्तुत करता है। इसमें तत्कालीन न्यायव्यवस्था का स्वरूप भी परिलक्षित होता है।
राष्ट्रीय एकता और भारतीय संस्कृति का चित्रण – प्रस्तुत नाटक में मगध, साकेत, अवन्ति और मलय देश के एकीकरण की घटना, सुदृढ़ भारत राष्ट्र के निर्माण, राष्ट्रीय अखण्डता तथा एकता की प्रतीक है। विक्रममित्र तथा विषमशील के चरित्र सशक्त राष्ट्र के निर्माता और राष्ट्रीय एकता के संरक्षक-सन्देशवाहक हैं। इस नाटक में नाटककार धार्मिक संकीर्णताओं और स्वार्थों के परिणामस्वरूप देश की विशृंखलता और अध:पतन की ओर पाठकवर्ग का ध्यान आकर्षित करके राष्ट्र को एकता के सूत्र में बाँधने का सन्देश देता है। नाटक का नायक विक्रममित्र वैदिक संस्कृति और भागवत् धर्म का उन्नायक है। वह भगवान् विष्णु का उपासक है, इसीलिए उसका राजचिह्न गरुड़ध्वज है, जो उसके लिए सर्वाधिक पवित्र और पूज्य है। वह सनातन भागवत धर्म की ध्वजा सर्वत्र फहरा देता है। इस दृष्टि से नाटक का शीर्षक ‘गरुड़ध्वज’ भी सार्थक हो उठी है।

निष्पक्ष एवं सुदृढ़ न्याय-व्यवस्था – प्राचीन भारत में न्याय निष्पक्ष होता था। शासक द्वारा प्रत्येक नागरिक की भाँति अपने रिवारजनो को भी अपराध के लिए समान कठोर दण्ड दिये जाने की व्यवस्था थी। नाटक के प्रथम अंक’ की घरना इसका उदाहरण है। शुंग वंश के कुमार सेनानी देवभूति ने श्रेष्ठी अमोघ की कन्या कौमुदी को अपहरण विह-मण्डप से कर लिया। इस समाचार से विक्रममित्र बहुत दु:खी हुए। देवभूति शुंग साम्राज्य के शासक हैं, किन्तु विक्रममित्र अपने सैनिकों को तत्काल काशी का घेरा डालने और देवभूति को पकड़ने का आदेश देते हैं। यह तत्कालीन निष्पक्ष एवं सुदृढ़ न्याय-व्यवस्था का स्पष्ट प्रमाण है।

प्रश्न 9:
‘गरुड़ध्वज’ नाटक की ऐतिहासिकता प्रमाणित कीजिए।
या
‘गरुडध्वज’ नाटक की कथावस्तु के ऐतिहासिक पक्ष को स्पष्ट कीजिए।
या
” ‘गरुडध्वज’ की कथा में ऐतिहासिकता एवं काल्पनिकता का मेल है।” इस कथन का विवेचन कीजिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक में अभिव्यक्त सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ नाटक में नाटककार ने इतिहास के किस काल को अपनी रचना के विषय रूप में चुना है, प्रकाश डालिए।
उत्तर:

‘गरुड़ध्वज’ की ऐतिहासिकता तथा संस्कृति

श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र द्वारा रचित ‘गरुड़ध्वज’ नाटक में ईसा से एक शती पूर्व के समय का वर्णन है। उस समय भारत में विक्रमादित्य नाम का एक शासक था। नाटक में कुमार विषमशील का नामकरण ‘विक्रमादित्य’ हुआ है। शुंग वंश में सेनापति पुष्यमित्र के वंश में विक्रममित्र अन्तिम ऐतिहासिक व्यक्ति हुए। वंश-परम्परा का लोप, नाटककार के अनुसार विक्रममित्र के आजीवन ब्रह्मचारी रहने के कारण हुआ।

नाटक के प्रसिद्ध पात्र इतिहाससम्मत हैं; जैसे-तक्षशिला की यवन शासक अन्तिलिक, उसका मन्त्री हलोदर, शुंग साम्राज्य में काशी का शासक देवभूति, कालिदास, जैन आचार्य कोलके आदि। नाटक के कुछ स्थानों के नाम भी ऐतिहासिक हैं; जैसे—विदिशा, पाटलिपुत्र, अवन्ति, साकेत, काशी इत्यादि। घटना की दृष्टि से भी नाटक को इतिहास से अनुप्राणित किया गया है। विक्रमादित्य द्वारा शकों को पराजित करने की घटना, कालिदास का विक्रमादित्य का सभासद होना तथा ईसा से 57 वर्ष पूर्व विक्रम संवत् का प्रवर्तन होना इतिहास-सम्मत है। इस काल में भारत के सामाजिक परिवेश पर जैनों, बौद्धों तथा वैदिक धर्माचार्यों का प्रभाव था। नाटककार ने नाटक में सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक परिस्थितियों का चित्रण करते समय इस तथ्य का ध्यान रखा है। भारत में उस समय अनेक गणराज्य थे। बौद्धों, सनातनियों तथा जैनियों के संघर्ष धार्मिक वातावरण को प्रभावित कर रहे थे। नाटक में नारी अपहरण के साथ-साथ विक्रममित्र द्वारा अपहरणकर्ता को दण्ड, प्रेम-विवाह, बहु-विवाह, संगीत तथा ललित-कलाओं में अभिरुचि का चित्रण करके तत्कालीन धार्मिक और सांस्कृतिक वातावरण को उद्घाटित करने का प्रयास किया गया है। विक्रममित्र मूलभूत वैदिक संस्कृति के आधार पर राज्य और समाज को चलाना चाहते थे। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ‘गरुड़ध्वज’ नाटक में ऐतिहासिकता तथा तत्कालीन भारतीय संस्कृति को समन्वित रूप प्रस्तुत करके नाटककार ने स्तुत्य कार्य किया है।

प्रश्न 10:
‘गरुड़ध्वज’ नाटक की रचना नाटककार ने किन उद्देश्यों से प्रेरित होकर की है ?
या
‘गरुड़ध्वज’ के रचनात्मक उद्देश्य (प्रतिपाद्य) पर प्रकाश डालिए।
या
‘गरुड़ध्वज’ में किस समस्या को उठाया गया है ?
उत्तर:

‘गरुड़ध्वज’ का उद्देश्य

‘गरुड़ध्वज’ ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी के भारतीय इतिहास के कथानक पर आधारित नाटक है। नाटककार श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र ने आदियुग के एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण किन्तु धुंधले स्वरूप को उजागर करने का प्रयास किया है। पाठकों के सम्मुख एक ज्वलन्त ऐतिहासिक तथ्य को प्रस्तुत किया गया है, जिसमें धार्मिक संकीर्णताओं तथा स्वार्थों के कारण देश की एकता के बिखराव और उसके नैतिक पतन की ओर ध्यान आकृष्ट करके नाटककार पूरे राष्ट्र को एकता के सूत्र में बाँधने का संकेत देता है। परोक्ष रूप में नाटक के निम्नलिखित उद्देश्य भी हैं

  1.  नाटककार को धार्मिक कट्टरता बिल्कुल भी मान्य नहीं है। वह धर्म और सम्प्रदाय की दीवारों से बाहर होकर लोक-कल्याण की ओर उन्मुख होना चाहता है।
  2. हलोदर के कथन में नाटककार स्वयं बोल रहा है। वह देश की रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य मानता है।
  3.  उदार धार्मिक भावना का सन्देश ही नाटक का मूल स्वर है।
  4.  नाटक में राष्ट्रीय एकता एवं जनवादी विचारधारा का समर्थन किया गया है।
  5. वासन्ती, कौमुदी आदि नारियों के उद्धार के पीछे नारी के शील और सम्मान की रक्षा के लिए प्रेरणा देने का उद्देश्य निहित है।
  6. प्रस्तुत नाटक में धर्मनिरपेक्षता का उद्देश्य भी स्पष्ट रूप में चित्रित किया गया है।
  7.  नाटक में स्वस्थ गणराज्य की स्थापना पर बल दिया गया है।
  8. देश की रक्षा तथा अन्यायियों के विनाश के लिए शस्त्रों का उपयोग उचित माना गया है।

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 4 बहादुर

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 4
Chapter Name बहादुर
Number of Questions 3
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 4 बहादुर (अमरकान्त)

प्रश्न 1
‘बहादुर’ कहानी का सारांश संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए। [2010, 11, 14, 15, 16, 17, 18]
या
‘बहादुर’ कहानी की कथावस्तु का उल्लेख कर सिद्ध कीजिए कि यह एक यथार्थवादी कहानी है।
उत्तर
अमरकान्त जी द्वारा लिखी कहानी ‘बहादुर’, एक मध्यमवर्गीय परिवार में नौकर के साथ परिवारजनों द्वारा किये गये अत्यधिक कटु व्यवहार की कहानी है। लेखक ने स्वयं को कहानी का पात्र बनाते हुए कहानी की आत्म-कथात्मक रूप में रचना की है। अपने से सम्पन्न रिश्तेदारों के घर नौकर द्वारा जुटाई सुविधा एवं शान को देखकर लेखक की पत्नी निर्मला स्वयं भी एक नौकर रखना चाहती है। बहादुर नेपाल को 12-13 साल का लड़का है, जो अपनी माँ के दुर्व्यवहार से तंग आकर घर छोड़कर शहर चला आता है और निर्मला के परिवार में नौकर रख लिया जाता है। निर्मला और उसका परिवार बहादुर के प्रति पहले तो अच्छा व्यवहार करते हैं, परन्तु धीरे-धीरे कठोरता बरतने लगते हैं। वह घर का सारा कार्य करता है, इसके बावजूद उसके साथ गाली-गलौज से मारपीट तक की नौबत आ जाती है। झूठी चोरी का इल्जाम लगाकर उसे अपमानित किया जाता है और पीटा जाता है। अन्तत: बहादुर घर छोड़कर चला जाता है। अब परिवार के सभी सदस्य उसे ढूंढ़ते हैं, क्योंकि उसके कारण सब आराम के आदी हो चुके हैं।

बहादुर की उपयोगिता देखकर सभी अब अपना घरेलु कार्य करने से घबराते हैं, वहादुर के घर छोड़ जाने पर वे सभी पश्चात्ताप करते हैं तथा अच्छा व्यवहार करने की सोचते हैं। परन्तु अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत।।
बहादुर में सहनशीलता और स्वाभिमान की भावना कूट-कूटकर भरी हुई है। उसके इसी चरित्र के कारण यह कहानी हमें प्रिय है।

प्रश्न 2
‘बहादुर’ कहानी के उद्देश्य का विवेचनात्मक परिचय दीजिए। बहादुर कहानी की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए। [2016]
या
‘बहादुर’ कहानी की कथावस्तु का विवेचन कीजिए और कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। [2009, 11]
या
‘बहादुर’ कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए। [2012, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
उत्तर
आधुनिक कथा-जगत् में प्रेमचन्द की कहानी-कला को अक्षुण्ण रखने वाले कलाकारों में अमरकान्त अग्रणी हैं। इनकी कहानियों में मध्यम वर्ग तथा निम्न वर्ग की पारिवारिक परिस्थितियों का सजीव, आदर्श तथा यथार्थवादी चित्रण मिलता है। इनकी ‘बहादुर’ कहानी; मध्यमवर्गीय परिवार में नौकरी करने वाले बहादुर नाम के पहाड़ी लड़के पर आधारित एक समस्यामूलक कहानी है। कहानी-कला के तत्त्वों के आधार पर कहानी की संक्षिप्त समीक्षा आगे प्रस्तुत है–

(1) शीर्षक-प्रस्तुत कहानी का शीर्षक लघु, आकर्षक, सरल तथा सार्थक है। कहानी की कथा इसके प्रमुख पात्र बहादुर के चारों ओर घूमती है; अत: शीर्षक की दृष्टि से ‘बहादुर’ कहानी एक सफल रचना है।
(2) कथानक-प्रस्तुत कहानी में लेखक ने समाज के वर्ग-भेद को उजागर किया है। बहादुर 12-13 वर्ष की उम्र का एक गरीब बालक है। वह एक साधारण परिवार में नौकर है, जिसका मुखिया स्वयं लेखक है। प्रारम्भ में तो उसका परिवार में पालतू पशु-पक्षियों की तरह बड़ा आदर-सत्कार होता है और वह भी बड़ी मेहनत व लगन से काम करता है, किन्तु कुछ दिनों बाद वह लेखक के बड़े लड़के किशोर और उसकी पत्नी निर्मला द्वारा डॉट, मार खाने लगता है। उससे अपनी रोटी स्वयं सेंक लेने को भी कहा जाता है। एक दिन घर में आये कुछ रिश्तेदारों द्वारा बहादुर के ऊपर चोरी करने का आरोप लगाया जाता है और लेखक द्वारा बहादुर को मारा-पीटा भी जाता है। पत्थर की एक सिल के टूट जाने और समस्त परिवारजनों के दुर्व्यवहार से पीड़ित होने के कारण वह उस घर से भाग जाता है। वह अपने साथ घर का और अपना कोई भी सामान नहीं ले जाता। बहादुर के चले जाने के बाद परिवार के लोगों को बहादुर के गुणों की अनुभूति होती है और वे अपने द्वारा उसके प्रति किये गये अमानवीय व्यवहारों पर पश्चात्ताप करते हैं।

कहानी का कथानक रोचक, सुगठित, संक्षिप्त तथा समस्याप्रधान है। इसमें बताया गया है कि मात्र पूँजीपति ही श्रम का शोषण नहीं करते, वरन् सामान्य मध्यम वर्ग भी इस कुकृत्य में पीछे नहीं है। इस प्रकार कथानक-तत्त्व की दृष्टि से यह एक सफल कहानी है।

(3) उद्देश्य ( सन्देश)—इस कहानी का उद्देश्य समाज में उत्पन्न वर्ग-संघर्ष को मानवीय सहानुभूति द्वारा समाप्त करने का सन्देश देना है। शोषितों के प्रति मानवता एवं प्रेम का व्यवहार, ऊँच-नीच के भेद के कारण दिलों में पड़ी दरार को भर देता है। बहादुर भी मानवीय स्नेह एवं संवेदनाओं का भूखा है। मालिक द्वारा पीटे जाने और प्रतिक्रिया स्वरूप उसके द्वारा घर छोड़ दिये जाने पर परिवार के सभी लोगों को पश्चात्ताप का अनुभव होता है। वे स्वयं को दोषी महसूस करते हैं। धनी और निर्धन का वर्ग-भेद मानवीय भावनाएँ ही कम कर सकती हैं। लेखक का मुख्य उद्देश्य दोनों के हृदयों का परिवर्तन है और सबके प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार बनाये रखने का सन्देश देना है।

‘बहादुर’ कहानी अत्यन्त मार्मिक कहानी है। यह आत्म-कथात्मक शैली में प्रस्तुत की गयी है। अमरकान्त जी ने बड़े सटीक और सुन्दर ढंग से कहानी को प्रस्तुत करके पाठकों के मन पर अमिट छाप छोड़ी है। कहानी-कला के तत्त्वों की दृष्टि से यह एक सफल कहानी है।

प्रश्न 3
‘बहादुर’ कहानी में उद्घाटित समाज के शोषक चरित्र पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
अमरकान्त द्वारा रचित ‘बहादुर’ कहानी का नायक ‘दिल बहादुर’ नामक नेपाली लड़का, एक निम्नवर्गीय परिवार का सदस्य है और निर्मला का परिवार मध्यमवर्गीय स्थिति को परिवार है। यह आर्थिक दृष्टि से अधिक सम्पन्न परिवार नहीं है, लेकिन झुठे दिखावे और शान-शौकत के लिए नौकर की आवश्यकता को बनाये हुए है। निर्मला पड़ोसियों को अपनी शान-शौकत से प्रभावित करना चाहती है। निर्मला का पति भी दिखावे और प्रदर्शन को ही अपने जीवन का वास्तविक आधार मानता है। अपनी आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के बावजूद अपने रिश्तेदारों की नकल करते हुए वह अपने यहाँ नौकर रख लेता है। निर्मला का लड़का किशोर, नौकर को हीन दृष्टि से देखता है और बात-बात पर उसे गाली देता है। नौकर रखने का प्रदर्शन, नौकर के प्रति दिखावे का व्यवहार, नौकर पर रोब डालना, नौकर से जी-तोड़ काम लेना, उसको बात-बात पर पीटना-गाली देना आदि क्रिया-कलाप मध्यमवर्गीय परिवारों; जो कि समाज का सबसे बड़ा तबका है; की शोषक मानसिकता को उजागर करते हैं और समाज के शोषक चरित्र पर प्रकाश डालते हैं।

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 3 लाटी

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 3
Chapter Name लाटी (शिवानी)
Number of Questions 2
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 3 लाटी (शिवानी)

प्रश्न 1
‘लाटी’ कहानी का सारांश (कथावस्तु) अपने शब्दों में लिखिए। [2012, 13, 15, 16, 18]
उत्तर
प्रसिद्ध उपन्यासकार एवं कथा-लेखिका शिवानी द्वारा कृत ‘लाटी’ कहानी एक घटना प्रधान कहानी है। इस कहानी में कप्तान जोशी का वर्णन है, जो अपनी बीमार पत्नी ‘बानो’ से अत्यधिक प्रेम करते हैं। टी०बी० की मरीज होने के कारण जब उनकी पत्नी जिन्दगी से निराश हो जाती है तो वह नदी में कूदकर आत्महत्या करने का प्रयास करती है तथा बाद में लाटी बनकर कप्तान से मिलती है परन्तु बोल नहीं पाती। इस कहानी का सारांश निम्नलिखित है–

कप्तान जोशी गोठिया टी०बी० सैनेटोरियम के तीन नम्बर के बंगले में दो गुना किराया देकर अपनी रोगिणी पत्नी ‘बानो’ के साथ रहता था। ‘बानो’ से अत्यधिक प्रेम के कारण वह उसको देख सहज भाव से मुस्करा देता तथा उसे प्रसन्न करने की पूरी कोशिश करता। बँगले के बरामदे में पत्नी के पलँग के पास वह दिन भर कुर्सी डाले बैठा रहता। कभी अपने हाथों से टेम्प्रेचर चार्ट भरता और कभी समय देख-देखकर दवाइयाँ देता। पास के बंगले के मरीज बड़ी तृष्णा और चाव से इनकी कबूतर-सी जोड़ी देखते। ऐसी घातक बीमारी पर भी बड़े यत्न और स्नेह से कप्तान अपनी पत्नी की सेवा करता था। विवाह के दो वर्ष बाद ही ‘बानो’ को भयंकर तपेदिक हो गयी। कप्तान दिन-रात सेवा करता तथा उसे बेहद प्यार करता। माता-पिता के पत्र आते कि यह भयंकर बीमारी है, तुम बचकर रहो। माँ ने रो-रोकर पत्र लिखा कि मेरे दस-बीस बेटे नहीं हैं, तुम अकेले हो। कप्तान पर इन बातों का कोई असर नहीं होता। उसने ‘बानो’ की सेवा-सुश्रूषा में कोई कमी नहीं रखी।

‘बानो’ से विवाह के ठीक तीसरे दिन कप्तान को बसरा जाना पड़ा। बानो को छोड़कर जाना उसके लिए असहनीय था। उसने बानो से पहली मुलाकात में ही उसका नाम पूछा। जब उसने अपना नाम बानो बताया तो कप्तान ने मजाक में कहा कि यह तो मुसलमानी नाम है। जब बानो की आँखें छलक उठीं तो कप्तान बोला मैं तो तुम्हें छेड़ रहा था-कितना प्यारा नाम है? अभी बानो केवल सोलह वर्ष की थी। कप्तान दो वर्ष बाद वापस आता है। इस बीच बानो ने सात सात ननदों के ताने सुने, भतीजों के कपड़े धोये, ससुर के होज बिने, पहाड़-सी नुकीली छतों पर पाँच-पाँच सेर उड़द पीस कर बड़ियाँ डालीं। उससे कहा गया कि तेरे पति को जापानियों ने कैद कर लिया है, अब वह कभी नहीं लौटेगा। सास और चचिया सास के व्यंग्य बाण उसे व्याकुल कर देते। वह घुलती गयी और एक दिन क्षय रोग से पीड़ित होकर उसने चारपाई पकड़ ली। दो साल बाद कप्तान आया और आकर बानो को देखने चल दिया तो घर वालों के चेहरे लटक गये। एक प्राइवेट वार्ड के बरामदे में लेटी बानो को देखकर कप्तान के होश उड़ गये। दो वर्ष में बानो घिसकर और भी बच्ची बन गयी थी। कप्तान को देखकर उसकी आँखों से आँसू टपकने लगे।।

बानो की नाजुक हालत देखकर अन्तत: डॉक्टर ने कप्तान को नोटिस दे दिया कि कमरा खाली करके मरीज को घर ले जाइए। कप्तान ने बानो से कहा घर नहीं, दूसरी जगह चलेंगे। सुबह उठा तो कप्तान ने देखा कि बानो पलँग पर नहीं थी। दूसरे दिन नदी के घाट पर बानो की साड़ी मिली तो वह समझ गया कि उसने आत्महत्या करने का प्रयास किया है।

कप्तान का एक साल में ही विवाह हो जाता है। दो बेटे और एक बेटी उसकी दूसरी पत्नी प्रभा ने उसे दिये। कप्तान अब मेजर हो गया। पन्द्रह-सोलह साल बाद कप्तान प्रभा के साथ नैनीताल घूमने आया। प्रभा की जिद पर वह सड़क की ही चाय की दुकान पर उसके साथ चाय पीने बैठ गया। वहीं पर वैष्णवी साध्वियों के झुण्ड के साथ उसे बानो मिलती है, जो कि अब जीभ कट जाने के कारण बोल नहीं पाती और उसकी याददाश्त भी जाती रही है। प्रभा उसकी सुन्दरता पर मुग्ध थी। वैष्णवियों के ही बातचीत से कप्तान को यह निश्चित हो जाता है कि लाटी ही बानो है। उसका प्रेम अभी भी बानो के प्रति समाप्त नहीं हुआ था। लेकिन अब वह जीवन की दौड़ में बहुत आगे बढ़ चुका था। वह सोच ही रहा था कि प्रभा ने चलने के लिए कह दिया, वह उठ खड़ा हुआ। उसे अनुभव हुआ कि कुछ ही पलों में वह बूढ़ा और खोखला हो चुका है। यहीं पर कथा का समापन हो जाती है।

प्रश्न 2
कथानक की दृष्टि से शिवानी की ‘लाटी’ कहानी की समीक्षा कीजिए।
या
उद्देश्य की दृष्टि से ‘लाटी’ कहानी की समीक्षा कीजिए। या। ‘लाटी’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।
या
‘लाटी’ कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए। [2012, 14, 15, 16, 17, 18]
उत्तर
शिवानी हिन्दी की एक प्रसिद्ध महिला कथाकार रही हैं। इनकी कहानियों में नारी के विभिन्न रूपों का सुन्दर चित्रण हुआ है। सामाजिक रूढ़ियों और आडम्बरों पर ये शालीन व्यंग्य करती हैं। प्रस्तुत कहानी ‘लाटी’ में एक महिला की कथा है। कहानी-कला के कतिपय प्रमुख तत्त्वों के आधार पर इस कहानी की समीक्षा निम्नवत् है-

(1) शीर्षक-कहानी का शीर्षक संक्षिप्त, सरल, कौतूहलवर्द्धक तथा आकर्षक है। कहानी का मूल भाव शीर्षक के साथ जुड़ा है। शीर्षक पढ़ते ही जिज्ञासा होती है, कौन लाटी ? कहाँ की लाटी ? ‘लाटी’ के अतिरिक्त अन्य कोई भी शीर्षक पाठकों की जिज्ञासा में इतनी वृद्धि नहीं कर सकता था, जितना ‘लाटी’ ने किया। अत: प्रस्तुत कहानी का यह शीर्षक पूर्णतया उपयुक्त है।

(2) कथानक-बानो से विवाह के तीसरे ही दिन कप्तान को बसरा जाना पड़ा। अपनी खिलौने-सी बहू से उसे अतिशय प्यार है। दो वर्ष बाद जब वह वापस लौटता है तो उसे पता चलता है कि उसकी पत्नी एक टी० बी० सैनेटोरियम में भर्ती है। इन दो वर्षों में सास-ननदों के ताने सुने; घर के समस्त काम किये और अन्ततः बीमार होकर सैनेटोरियम की चारपाई पकड़ ली। कप्तान आता है, उसे हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध कराता है और उसकी समस्त सेवा-सुश्रूषा स्वयं करता है। डॉक्टरों ने उसके बचने की उम्मीद छोड़ दी तो जीवन से तंग आकर बानो नदी में कूदकर आत्महत्या कर लेती है। कप्तान की दूसरी शादी हो जाती है और उसके तीन बच्चे भी बड़े हो जाते हैं। सोलह-सत्रह वर्षों के बाद जब वह नैनीताल घूमने आता है तो एक चाय की दुकान पर बानो लाटी के रूप में जीवित मिलती है, जिसकी याददाश्त जा चुकी है और वह बोल नहीं सकती।

प्रस्तुत कहानी का अन्त नाटकीय है, कहानी में उत्सुकता, आकर्षण तथा सुगठन है। बानो को लाटी के रूप में जीवित दिखाकर लेखिका ने कथा में एक अकल्पनीय मोड़ प्रस्तुत किया है। कथा-लेखिका ने मुख्य घटना के घटने तक पाठकों की जिज्ञासा को बनाये तथा उन्हें कहानी से बाँधे रखा है। घटना का क्रम, उदय, विकास और उपसंहार अत्यधिक सुनियोजित ढंग से हुआ है। कहानी में प्रवाह और गतिशीलता अन्त तक बनी हुई है। अत: कहा जा सकता है कि कथानक के तत्त्वों की दृष्टि से लाटी एक उत्कृष्ट कहानी है।

(3) उद्देश्य–शिवानी की कहानियाँ चित्रण अथवा घटनाप्रधान होती हैं। इन कहानियों का उद्देश्य मुख्यत: मनोरंजन प्रदान करना ही होता है। इसके साथ ही लेखिका अपने पाठक को आज के समाज की वास्तविकता से भी अवगत कराना चाहती हैं। इस प्रकार कहानी-कला के प्रमुख तत्त्वों की दृष्टि से शिवानी जी की ‘लाटी’ कहानी सफल कहानी है। इसमें प्रारम्भ से अन्त तक पाठक के हृदय को बाँध लेने का गुण विद्यमान है।

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 2 पंचलाइट

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 2 पंचलाइट (फणीश्वरनाथ ‘रेणु’) are part of UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 2 पंचलाइट (फणीश्वरनाथ ‘रेणु’).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 2
Chapter Name पंचलाइट
Number of Questions 4
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 2 पंचलाइट (फणीश्वरनाथ ‘रेणु’)

प्रश्न 1
पंचलाइट कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
उत्तर
‘पंचलाइट’ रेणु जी की आंचलिक कहानी है। कहानी में बिहार के एक पिछड़े गाँव के परिवेश का सुन्दर चित्रण प्रस्तुत किया गया है।
महतो टोली में अशिक्षित लोग हैं। उन्होंने रामनवमी के मेले से पेट्रोमेक्स खरीदा, जिसे वे ‘पंचलैट’ कहते हैं। ‘पंचलाइट’ को ये सीधे-सादे लोग सम्मान की चीज समझते हैं। पंचलाइट को देखने के लिए टोली के सभी बालक, औरतें और मर्द इकट्ठे हो जाते हैं। सरदार अपनी पत्नी को आदेश देता है कि शुभ कार्य को करने से पहले वह पूजा-पाठ का प्रबन्ध कर ले। सभी उत्साहित हैं, परन्तु समस्या उठती है कि ‘पंचलैट’ जलाएगा कौन ? सीधे-सादे लोग पेट्रोमैक्स को जलाना भी नहीं जानते।।

इस टोली में गोधन नाम का एक युवक है। वह गाँव की मुनरी नामक एक युवती से प्रेम करता है। मुनरी की माँ ने पंचों से गोधन की शिकायत की थी कि वह उसके घर के सामने से सिनेमा का गाना गाकर निकलता है। इस कारण पंचों ने उसे जाति से निकाल रखा है। मुनरी को पता है कि गोधन पंचलाइट जला सकता है। वह चतुराई से यह बात पंचों तक पहुँचा देती है। पंच गोधन को पुन: जाति में ले लेते हैं। वह ‘पंचलाइट’ को जला देता है। मुनरी की माँ गुलरी काकी प्रसन्न होकर गोधन को शाम के भोजन का निमन्त्रण देती है। पंच भी अति उत्साहित होकर गोधन को कह देते हैं-“तुम्हारा सात खून माफ। खूब गाओ सलीमा का गाना।” पंचलाइट की रोशनी में लोग भजन-कीर्तन करते हैं तथा उत्सव मनाते हैं।

कहानी का कथानक सजीव है। सीधे-सादे अनपढ़ लोगों की संवेदनाओं को वाणी देने में रेणु जी समर्थ रहे हैं। इस कहानी में आंचलिक जीवन की सजीव झाँकी प्रस्तुत की गयी है।

प्रम2
कथावस्तु के आधार पर ‘पंचलाइट’ कहानी की समीक्षा कीजिए।
या
‘पंचलाइट’ का कथानक लिखिए तथा उसके उद्देश्य पर प्रकाश डालिए। ‘पंचलाइट’ कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए। [2010, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
या
‘पंचलाइट’ कहानी के कथानक की विवेचना कीजिए। [2018]
या
कहानी-कला के आधार पर पंचलाइट कहानी के कथानक पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
फणीश्वरनाथ रेणु जी हिन्दी-जगत् के सुप्रसिद्ध आंचलिक कथाकार हैं। अनेक जनआन्दोलनों से वे निकट से जुड़े रहे, इस कारण ग्रामीण अंचलों से उनका निकट का परिचय है। उन्होंने अपने पात्रों की कल्पना किसी कॉफी हाउस में बैठकर नहीं की, अपितु वे स्वयं अपने पात्रों के बीच रहे हैं। बिहार के अंचलों के सजीव चित्र इनकी कथाओं के अलंकार हैं। ‘पंचलाइट’ भी बिहार के आंचलिक परिवेश की कहानी है। कहानी-कला की दृष्टि से इस कहानी की समीक्षा (विशेषताएँ) निम्नवत् है-

(1) शीर्षक-कहानी का शीर्षक ‘पंचलाइट’; एक सार्थक और कलात्मक शीर्षक है। यह शीर्षक संक्षिप्त और उत्सुकतापूर्ण है। शीर्षक को पढ़कर ही पाठक कहानी को पढ़ने के लिए उत्सुक हो जाता है। ‘पंचलाइट’ का अर्थ है ‘पेट्रोमैक्स’ अर्थात् ‘गैस की लालटेन’। शीर्षक कथा का केन्द्रबिन्दु है।

(2) कथानक-महतो टोली के सरपंच पेट्रोमैक्स खरीद लाये हैं, परन्तु इसे जलाने की विधि वहाँ कोई नहीं जानता। दूसरे टोले वाले इस बात का मजाक बनाते हैं। महतो टोले का एक व्यक्ति पंचलाइट जलाना जानता है और वह है-‘गोधन’, किन्तु वह जाति से बहिष्कृत है। वह ‘मुनरी’ नाम की लड़की का प्रेमी है। उसकी ओर प्रेम की दृष्टि रखने के कारण ही पंच उसे बिरादरी से बहिष्कृत कर देते हैं। मुनरी इस बात की चर्चा करती है कि गोधन पंचलाइट जलाना जानता है। इस समय जाति की प्रतिष्ठा का प्रश्न है, अत: गोधन को पंचायत में बुलाया जाता है। वह पंचलाइट को स्पिरिट के अभाव में गरी के तेल से ही जला देता है। अब न केवल गोधन पर लगे सारे प्रतिबन्ध हट जाते हैं वरन् उसे मनोनुकूल आचरण की भी छूट मिल जाती है। पंचलाइट की रोशनी में गाँव में उत्सव मनाया जाता है। प्रस्तुत कहानी में कहानीकार ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि आवश्यकता किसी भी बुराई को अनदेखा कर देती है। कथानक संक्षिप्त, रोचक, सरल, मनोवैज्ञानिक, आंचलिक और यथार्थवादी है। कौतूहल और गतिशीलता के अलावा इसमें मुनरी तथा गोधन का प्रेम-प्रसंग बड़े स्वाभाविक ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

(3) उद्देश्य–इस कहानी के द्वारा रेणु जी ने अप्रत्यक्ष रूप से ग्राम-सुधार की कोशिश की है। उन्होंने ग्रामीण अंचल का वास्तविक चित्र खींचा है। गोधन के द्वारा ‘पेट्रोमैक्स’ जलाने पर उसकी सभी गलतियाँ माफ कर दी जाती हैं तथा उसे मनोनुकूल आचरण की छूट भी मिल जाती है जिससे स्पष्ट है, कि आवश्यकता बड़े-से-बड़े रूढ़िगत संस्कार और परम्परा को व्यर्थ साबित कर देती है। इस प्रकार पंचलाइट जलाने की समस्या और उसके समाधान के माध्यम से कहानीकार फणीश्वरनाथ रेणु जी ने ग्रामीण मनोविज्ञान का सजीव चित्र उपस्थित कर दिया है। ग्रामवासी जाति के आधार पर किस प्रकार टोलियों में विभक्त हो जाते हैं और आपस में ईष्र्या-द्वेष युक्त भावों से भरे रहते हैं इसका बड़ा ही सजीव चित्रण इस कहानी में हुआ है। रेणु जी ने यह भी दर्शाया है कि भौतिक विकास के इस आधुनिक युग में भी भारतीय गाँव और कुछ जातियाँ कितने अधिक पिछड़े हुए हैं। कहानी के माध्यम से रेणु जी ने अप्रत्यक्ष रूप से ग्राम-सुधार की प्रेरणा भी दी है।

प्रश्न 3
पंचलाइट कहानी के प्रमुख पात्र का चरित्रांकन कीजिए। [2016]
उत्तर
‘पंचलाइट’ फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ की एक आंचलिक कहानी है। यह कहानी ग्रामीण जीवन पर आधारित है। इसमें ग्रामवासियों की मन:स्थिति की वास्तविक झलक देखने को मिलती है। गोधन इस कहानी का एक मुख्य पात्र है, जिसे समाज के लोग बहिष्कृत कर देते हैं। गोधन के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं–

(1) योग्य युवक-‘गोधन’ ‘पंचलाइट’ कहानी का एक ऐसा पात्र है जो अशिक्षित होते हुए भी योग्य है। पेट्रोमैक्स जलाने के कार्य को उसकी बिरादरी का कोई भी व्यक्ति नहीं जानता, परन्तु वह उसे जला देता है।
(2) गुणवान-गोधन अशिक्षित होते हुए भी गुणवान् है। उसके इसी गुण के कारण टोले का सरदार उसकी सभी गलतियों को माफ कर देता है तथा उसे फिर से अपने टोले में सम्मिलित कर लेता है।
(3) विवेकी–गोधन अशिक्षित अवश्य है; किन्तु वह विवेकी है। पेट्रोमैक्स जलाने के लिए जब स्पिरिट उपलब्ध नहीं थी तो उसने ‘गरी’ के तेल से ही पेट्रोमैक्स को जला दिया था।
(4) वर्ग-भेद से दूर-गोधन और मुनरी परस्पर स्नेह रखते हैं। गोधन जाति-पाँति, ईष्र्या-द्वेष आदि के चक्कर में नहीं पड़ता। वह मानवीय गुणों का समर्थक है। उसके लिए सभी व्यक्ति एकसमान हैं।
(5) निडर-गोधन में निडरता का गुण भी है। वह गाने गाकर तथा आँख मटकाकर मुनरी के प्रति अपने प्रेम को प्रकट कर देता है।
अतः कहा जा सकता है कि गोधन ग्रामीण परिवेश में पलने-बढ़ने वाला उपर्युक्त गुणों से युक्त एक आदर्श लड़का है।

प्रश्न 4.
आंचलिक कहानी से आप क्या समझते हैं? पंचलाइट कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ प्रथम कथाकार हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं में आंचलिकता को स्थान दिया है। ‘अंचल’ किसी निश्चित भू-भाग को कहते हैं। वहाँ के निवासियों का रहन-सहन, वेशभूषा, रीति-रिवाज तथा लोक-संस्कृति का दर्शन उस आंचलिक रचना में होता है। रेणु जी से पूर्व यह शब्द केवल उपन्यासों में प्रयुक्त होता था। आंचलिकता के समावेश से इनकी कहानियाँ सजीव और मार्मिक होने के साथ-साथ ग्रामीण अंचलों की सम्पूर्ण तस्वीर भी पाठक के समक्ष प्रस्तुत करती हैं। ‘पंचलाइट’ कहानी बिहार के ग्रामीण वातावरण को पाठकों के समक्ष साकार करती है। डॉ० देवराज उपाध्याय के अनुसार-‘किसी प्रदेश विशेष का यथातथ्य और बिम्बात्मक वर्णन ही आंचलिकता है।”

‘रेणु’ की ‘पंचलाइट’ कहानी पूर्ण रूप से आंचलिक है। यह बिहार के ऐसे विशेष भाग से सम्बन्धित है, जो अभी अशिक्षित है, रूढ़िवादी और बौद्धिक चेतनाहीन है।

इस कहानी में बिहार के ग्रामीण भू-भाग की सामाजिक परिस्थितियों पर प्रकाश डाला गया है तथा गाँव में अलग-अलग टोली बनाना, उनका आपस में वैमनस्य होना, एक-दूसरे की खिल्ली उड़ाना, झूठी शान-शौकत का दिखावा करना तथा रूढ़िवादिता आदि का सफल चित्रण करके वास्तविक स्थिति का परिचय दिया गया है।

कहानी में प्रयुक्त ग्रामीण शब्दावली ने पूर्ण रूप से इसे आंचलिक बना दिया है। रोजमर्रा बोले जाने वाले शब्द, अंग्रेजी शब्दों का बिगड़ा रूप और पंचलाइट जलने पर उसकी जय-जयकार करना ग्रामवासियों के भोलेपन और स्वच्छ हृदय को प्रदर्शित करता है।

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