UP Board Solutions for Class 12 English Prose Chapter 5 I am Johns Heart

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject English Prose
Chapter Chapter 5
Chapter Name I am Johns Heart
Number of Questions Solved 22
Category NCERT Solutions

UP Board Solutions for Class 12 English Prose Chapter 5 I am John’s Heart

LESSON at a Glance

This lesson is an ‘autobiographical sort of description of the human heart. It is an interesting and informative piece about heart-what it looks like, what wrong notions we have about it, how it works, when it is really in trouble and finally how we can take care of it.

A heart weighs about 340 grams and is red-brown in colour. It is a four chambered pump, and pumps blood daily through about 96000 km of blood vessels. The heart muscles are very strong. It works day and night and only rests between its beats, though only for half a second.

There are some wrong notions about heart. It is not romantic as some poets think, neither it is fragile and delicate. In fact it works twice as hard as the arm muscles. Then, people feel that heart sometimes skip heart beat. It is not skipping a beat but only a misfire, piling one beat on top of another. Whenever a person has fatigue or dizzy spells, he relates it to his heart. He fears that his heart is having trouble. This is not always true. Mostly the fatigue and dizzy spells come from his digestive tract. When the heart is in trouble, it sends pain signal only after undue exertion or emotion. It indicates that heart is not getting enough nourishment to cope with the work man is loading on to it.

The heart gets its nourishment from the blood. Heart does not extract nourishment from the blood passing through its four chambers. It is fed by its own two coronary arteries. If there is any trouble in these coronaries, it may cause death. Fatty deposits begin to build up in the coronary arteries. Gradually, they can close or block an artery. Or a clot may form to close it suddenly.

Persons, belonging to a family where heart disease has occurred often, are more or less certain to have heart trouble. Such a person can’t do anything about heredity but he can do a lot to minimize the risk.

What one can do is—slim down a bit, take regular exercise, relax a little more, cut down on fats and smoking. If he would only do these things, his heart could keep on working for a longer time.

पाठ का हिन्दी अनुवाद

(1) No one could …………… down to 55.
कोई भी नहीं कह सका कि मैं एक सुन्दर वस्तु हूँ। मेरा भार 340 ग्राम है, मेरा रंग भूरा-लाल है और मेरी शक्ल बड़ी भौंड़ी है। मैं जॉन का वफादार सेवक, हृदय हूँ।

मैं नाशपाती के आकार का हूँ। चाहे आपने कवियों से मेरे विषय में कुछ भी सुना हो, मैं वास्तव में रोमांटिक नहीं हूँ। मैं तो एक परिश्रमी चार प्रकोष्ठों वाला पम्प हूँ। वास्तव में दो पम्प, एक रक्त को फेफड़ों तक पहुँचाने के लिए और दूसरा इसे शरीर के अन्दर भेजने के लिए। मैं प्रतिदिन 96000 किमी लम्बी रक्त शिराओं से रक्त को पम्प करता हूँ। इतनी पम्पिग 18000 लीटर की क्षमता वाले टैंक को भरने के लिए पर्याप्त है।

जब कभी भी जॉन मेरे विषय में सोचता है, तब वह मुझे कमजोर तथा नाजुक समझता है। नाजुक! जबकि मैं अब तक उसका 300000 टन रक्त पम्प कर चुका हूँ। जितना कठिन कार्य एक भारी बोझ के बॉक्सिंग चैम्पियन की बाँहों की मांसपेशियों का होता है या किसी दौड़ने वाले व्यक्ति की टाँगों की माँसपेशियों का होता है, मैं उससे भी चौगुना कठिन कार्य करता हूँ। उन्हें मेरी गति से कार्य करने दो और वे मिनटों में ही थककर चूर हो जाएँगे। शरीर की कोई भी मांसपेशी इतनी शक्तिशाली नहीं है जितना मैं, केवल एक स्त्री के गर्भाशय के अतिरिक्त; क्योंकि वह बच्चे को जन्म देती है। किन्तु गर्भाशय की मांसपेशियों को सत्तर वर्ष तक चौबीस घण्टे कार्य नहीं करना पड़ता जितनी कि मुझसे आशा की जाती है। हाँ, वास्तव में यह थोड़ी-सी अतिशयोक्ति है। मैं धड़कनों के बीच थोड़ा आराम करता हूँ। जॉन सोता है उस समय भी उसकी अधिकांश रक्तवाहिनियाँ निष्क्रिय रहती हैं। अतः मैं उनमें रक्त संचार नहीं करता और मेरी धड़कन सामान्यतः 72 से घटकर 55 रह जाती है।

(2) John hardly …………… on to me.
जॉन मेरे विषय में मुश्किल से ही सोचता है और यह अच्छा है। मैं भी नहीं चाहता कि उसकी दशा हार्ट न्यूरेटिक्स जैसी हो जाए और मुझे भी तथा स्वयं को परेशानी में डाल दे। जब कभी वह मेरे विषय मे चिन्ता करता है तब सदा लगभग गलत बातों के विषय में। एक रात को जब जॉन नींद में खोता जा रहा था तब जॉन को अचानक ऐसा महसूस हुआ कि मैं एक धड़कन मिस कर गया अर्थात् छोड़ गया। वह बड़ा परेशान था, क्या मैं उसे धोखा दे रहा था। इसे इतना चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं थी।

समय-समय पर जॉन की कार के ignition system की भाँति मेरा ignition system भी क्षणभर के लिए बिगड़ जाता है। मैं तो अपनी विद्युत शक्ति स्वयं पैदा करता हूँ और सिकुड़न के लिए संकेत भेजता हूँ, किन्तु कभी-कभी मेरा धड़कना रुक जाता है और धड़कन के ऊपर दूसरी धड़कन इकट्ठा हो जाती है। तब ऐसा लगता है कि मैंने एक बीट (धड़कन) मिस कर दी है, किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता। जॉन को इस बात से आश्चर्य होगा कि उसे बिना पता चले कितनी ही बार में ऐसा हुआ होगा।

धड़कन की गिनती–रात्रि के भयानक सपने के बाद कभी-कभी वह जाग जाता है और चिन्तित होता है, क्योकि मैं दौड़ रहा होता हूँ। ऐसा इसलिए होता है कि सपनों में जब वह दौड़ता है तब मैं भी दौड़ता है। जॉन की चिन्ताएँ वास्तव में बातों को और बिगाड़ देती हैं और मेरी गति और भी तेज हो जाती है। यदि वह शान्त हो जाये तब मैं शान्त हो जाता हूँ। किन्तु यदि वह शान्त न हो पाए तब मुझे शान्त करने का एक उपाय है। वेगस नामक नसे ब्रेक का कार्य करती हैं। वे कानों के पीछे जबड़ों के मिलने के स्थान से गर्दन से गुजरती हैं। यहाँ धीरे-धीरे मालिश करने से मेरी गति कम हो जाती है।

जॉन लगभग प्रत्येक बात के लिए मुझे दोष देता है, थकान से लेकरं चक्कर आने तक; किन्तु उसकी थकान का मुझसे कोई सम्बन्धं नहीं और उसके चक्कर आने का सम्बन्ध उसके कानों से है। समय-समय पर जब वह अपनी मेज पर काम करता था तब बहुधा उसकी छाती में तेज दर्द हो जाता था। उसे यह भय हो जाता था कि शायद उसे दिल का दौरा पड़ने वाला है। किन्तु उसे चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं। यह दर्द उसकी भोजन की नली से आता है। यह कुछ घण्टे पूर्व लिए गए भारी भोजन का परिणाम है। पर जब मैं परेशानी में होता हूँ, तब केवल असाधारण थकान या उत्तेजना के बाद ही मैं दर्द का संकेत भेजता हूँ। यही तरीका है। जिसके द्वारा मैं उसे यह बताता हूँ कि मुझे उतनी खुराक नहीं मिल रही है जो वह उस पर लादे जाने वाले काम के बोझ को उठा सके।

(3) How do I get …………… minimize risk.।
मैं अपना पौष्टिक भोजन कैसे प्राप्त करता हूँ? वास्तव में, मैं इसे रक्त से प्राप्त करता हूँ। किन्तु यद्यपि मैं पूरे शरीर के बोझ के 2/100 भाग को ही प्रतिनिधित्व करता हूँ, मुझे रक्त की पूर्ण मात्रा का 1/20 भाग चाहिए। इसका अर्थ है कि जितनी पौष्टिक खुराक शरीर के अन्य सभी अंगों को चाहिए मुझे उसकी दस गुनी खुराक की आवश्यकता है।

किन्तु मैं अपनी खुराक उस रक्त से नहीं खींचता जो मेरे चारों प्रकोष्ठों से होकर गुजरता है। मेरा भोजन मुझे अपनी ही दो कॉरोनरी धमनियों से प्राप्त होता है जो पेड़ की शाखाओं की तरह फैलती हैं और इनका तना शर्बत पीने वाले कागज के पाइप से अधिक मोटा नहीं होता। यही मेरी कमजोरी है। यहाँ की गड़बड़ ही मृत्यु का अकेला सबसे बड़ा कारण है।

कोई नहीं जानता कि यह सब कैसे होता है। किन्तु कभी-कभी जीवन के आरम्भ में अथवा जन्म के समय ही कॉरोनरी आर्टरीज में चर्बी जमा होने लगती है। धीरे-धीरे वे उस धमनी के मार्ग को बन्द कर देती हैं अथवा । रक्त का थक्का (क्लाट) इसे अचानक बन्द कर देता है।

जब कोई धमनी इस प्रकार से बन्द हो जाती है तब हृदय का वह भाग, जिसे इससे खुराक मिलती, मर जाता है। यह एक घाव (Scar tissue) छोड़ जाता है जो छोटे से मार्बल के टुकड़े के बराबर या टैनिस की गेंद के बराबर हो सकता है। परेशानी कितनी गम्भीर है यह बन्द हुई धमनी के आकार तथा स्थिति पर निर्भर करता है।

जॉन को पाँच वर्ष पूर्व दिल का दौरा पड़ा था और उसे इसका पता भी नहीं। वह इतना व्यस्त था कि उसने अपनी छाती के दर्द की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। जो आर्टरी बन्द हुई थी वह मेरे पीछे की दीवार पर एक छोटी आर्टरी थी। मुझे उस मृत ऊतक को हटाने में और जख्म के निशान वाले क्षेत्र को भरने में जो एक मटर से अधिक बड़ा नहीं था, लगभग दो हफ्ते लगे थे।

जॉन ऐसे परिवार का है जिसमें हृदय की बीमारियाँ बहुधा होती रहीं हैं, इसलिए आँकड़े यह कहते हैं कि मैं फिर उसे परेशानी में डालने वाला हूँ। वास्तव में, वह अपनी विरासत के विषय में कुछ नहीं कर सकता, लेकिन वह जोखिम को कम करने में बहुत कुछ कर सकता है।

(4) Let’s start …………… puce for me.
अब हम अधिक भार से आरम्भ करें। जॉन अपनी प्रौढ़ावस्था में चर्बी बढ़ जाने का मजाक उड़ाता है किन्तु यह मजाक की बात नहीं है। इस बढ़ी हुई चर्बी के एक किलो भार में 700 किमी कैपिलरीज होती हैं जिनमें से मुझे खून पम्प करना पड़ता है। यह कार्य उसके अतिरिक्त है जो मुझे उसके प्रत्येक किलो भार को ले जाने में करना पड़ता है।

यह बात मुझे जॉन के रक्तचाप पर ले जाती है। यह 140-90 होता है जो उसकी उम्र के लिए ऊपरी सीमा है। जब मैं सिकुड़ता हूँ तब मेरे दबाव की नाप 140 होती है और 90 दबाव की वह नाप है जब मैं दो धड़कनों के बीच आराम करता हूँ। नीचे की संख्या ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। यह संख्या जितनी बढ़ती जाती है, उतना ही कम आराम मुझे मिलता है और बिना पर्याप्त आराम के हृदय धीरे-धीरे मृत्यु की ओर पहुँच जाता है। बहुत-सी ऐसी बातें हैं जिन्हें करके जॉन अपने रक्तदाब को नीचे सुरक्षित स्तर पर ला सकता है। सबसे पहला है अधिक भार से छुटकारा पाना। उसे यह देखकर आश्चर्य होगा कि उसके रक्तचाप में कितनी गिरावट आ गई।

सिगरेट-बीड़ी पीना दूसरी बात है। जॉन एक दिन में चालीस सिगरेट पी जाता है जिसका अर्थ है कि वह चौबीस घण्टों में निकोटीन जहर की काफी मात्रा अपने अन्दर सोख लेता है। यह बहुत हानिकारक पदार्थ है। यह धमनियों को सिकोड़ देता है–विशेष रूप से हाथ और पैरों की–जिससे रक्तचाप बढ़ जाता है और मुझे उसके विपरीत अधिक काम करना पड़ता है। यह मुझे उत्तेजित भी करता है जिससे मैं और जोर से । धड़कता हूँ। एक सिगरेट मेरी धड़कनों को 72 से 80 तक बढ़ा देता है। जॉन स्वयं कहता है कि धूम्रपान अब छोड़ा नहीं जा सकता और जो हानि होनी थी वह हो चुकी। किन्तु यदि जॉन स्वयं को लगातार निकोटीन उत्तेजना से बचा सके तब उससे मेरे लिए समस्याएँ और आसान हो जाएँगी।

चोटी पर पहुँचने के लिए संघर्ष-जॉन अन्य ढंग से भी मेरी सहायता कर सकता था। वह प्रतिस्पर्धा वाला, महत्त्वाकांक्षी तथा एक सफल व्यापारी जैसा व्यक्ति है। वह यह नहीं अनुभव करता कि उसके लगातार इस प्रकार चिन्तित रहने से उसकी अधिवृक्क ग्रंथियाँ उत्तेजित होकर और अधिक adrenalin तथा noradrenalin नमक पदार्थ पैदा करती हैं। परिणाम वही होता है जो निकोटीन के पहुंचने से होता है अर्थात् तंग धमनियाँ, उच्च रक्तचाप और मेरे लिए तेज चाल।

(5) The point …………… a long time.
बात यह है कि यदि जॉन आराम से रहता है तो मुझे भी आराम मिलेगा। कभी-कभी की नींद भी सहायता कर सकती है। वह हल्के पढ़ने का कार्य (उपन्यास आदि) भी कर सकता है बजाय उन फाइलों के बोझ के जिन्हें वह दफ्तर से घर लाता है।

व्यायाम दूसरी वस्तु है। जॉन उन सप्ताहान्त खिलाड़ियों में से एक है जो आवश्यकता से अधिक व्यायाम करते हैं। वह अब भी पीछे से टेनिस के जाल के छोर तक भागना पसन्द करता है, किन्तु जब वह ऐसा करता है तब मेरा कार्य का बोझ सामान्य से पाँच गुना बढ़ जाता है।

जॉन को नियमित रूप से हल्का व्यायाम करना चाहिए। एक या दो किलोमीटर घूमना उसे लाभ पहुँचाएगा। दफ्तर की कुछ सीढ़ियों पर चढ़ना उसे हानि नहीं पहुँचाएगा। उसका दफ्तर दसवीं मंजिल पर है किन्तु वह दो मंजिल की सीढ़ियाँ चढ़ सकता है फिर लिफ्ट ले ले। ऐसी छोटी-छोटी बातें उसकी बहुत सहायता कर सकती हैं। जैसा कि मैं कह चुका हूँ कि चर्बी के इकट्ठा होने से मेरी धमनियों के मार्ग में रुकावट आयी है, किन्तु नियमित व्यायाम से रक्त प्रवाह के नये रास्ते विकसित हो जाएँगे। तब यदि एक धमनी बन्द भी हो जाएगी तब मुझे दूसरी धमनियों से खुराक मिल सकती है।

अन्त में भोजन की बात है। मैं जॉन को परहेज करने वाला व्यक्ति बनने को नहीं कह रहा हूँ। कुछ भी हो मेरी धमनियों में रुकावट पैदा करने में चर्बी को बहुत योगदान है। जॉन चर्बी से अपनी आवश्यकता की 45 प्रतिशत कैलोरी प्राप्त करता है और अन्य औद्योगिक देशों के समान, जो इसी प्रकार के भोजन खाते हैं, धमनियों के अवरुद्ध होने के कारण मरने वाले लोगों की सम्भावना पचास प्रतिशत है।

मैं ज्यादा माँग करने वाला व्यक्ति नहीं हैं। प्रत्येक दशा में मैं जॉन के लिए जो भी कर सकता हूँ करूंगा। मैं चाहूँगा कि वह कार्य के बीच में आराम भी करे, थोड़ा-सा दुबला-पतला हो जाए, नियमित व्यायाम करे, थोड़ा निश्चित होकर आराम करे। चिकनाई वाले पदार्थों को खाने में और सिगरेट पीने में कमी करे। यदि वह इन बातों का पालन कर ले, तो मैं जॉन के लिए एक लम्बे समय तक काम कर सकेंगी।

Understanding the Text

Explanations
Explain one of the following passages with reference to the context :
(1) From time to time …………… hum knowing. [2018]
Reference : These lines have been taken from the lesson ‘I am John’s Heart’ written by J.D. Ratcliff. [ N.B.: The above reference will be used for all explanations of this lesson. ]

Context : The author has made the human heart speak out its story itself when the bearer of the heart worries about it, he does so nearly always about wrong things.

Explanation : Heart says that it has to beat regularly to produce energy in order to set in motion the shrinking of its muscles. It compares this system to that of John’s car. Sometime, the mechanism for starting combustion in the engine of John’s car does not work. In the same way, the heart also fails to start and heaps one beat on top of another. It gives the impression that the heart has skipped a beat which it hasn’t. John will never expect how frequently it so happens.

(2) After a nightmare …………… slow my beat.
Context : In this lesson the writer deals with the structure and functioning of the human heart. The heart is the strongest organ of our body. It works all the twenty four hours. Its function is just like a pump. It pushes the blood into the whole body through blood vessels.

Explanation : In this passage we come to know in what condition the heart beats increase and how they can be slowed down. After a frightful dream at night the man is worried very much. So, the heart also runs faster. If man is at peace, the heart also comes at night at its normal speed. Moreover, the speed of heart beating can be controlled by rubbing the vagus nerves gently. They pass through the neck behind the ears. These nerves act as a brake.

(3) From time to time …………… loading on to me. Or The pain comes …………… on to me. [2015]
Context : In this lesson the writer deals with the structure and functioning of the human heart. It works all the twenty four hours. Its function is just like a pump. It pushes the blood into the whole body through blood vessels. But with mental worry and anxiety of a man, the heart beating also becomes faster.

Explanation : In this passage the heart makes it clear that he is not to be blamed for any trouble of the body. It tells John that his fatigue and giddiness are due to ear trouble. Sometimes he feels a sudden sharp pain in his chest while working in his office. John connects this trouble with the heart. But in reality it is due to over diet taken a few hours ago. Whenever there is any heart trouble due to excitement or over work heart itself sends out signal which indicates that it is not getting enough nourishment.

(4) When an artery …………… plugged artery. [2012, 17, 18]
Context : Whenever there is any heart trouble, heart sends out its signal. It indicates that it is not getting enough nourishment. The heart does not get its nourishment from the blood passing through its four chambers. But it gets its nourishment by its own coronary arteries.

Explanation : In this passage the heart says how heart attack happens. Sometimes either fat is deposited or a clot is formed in the coronary arteries. It blocks the artery. So, a portion of heart muscle which is fed by it dies and leaves a scar tissue. Thus, the supply through coronary arteries is interrupted and it causes heart trouble. Seriousness of the trouble depends upon the size and position of plugged artery.

(5) John comes from …………… minimize risk.
Context : John suffered from heart attack five years ago. But he was too busy to know about it. There was a sudden sharp pain in his small arteries. The dead tissue swept away and it took two weaks to recover.

Explanation : In these lines the writer says that John has hereditary character of heart disease. So, it is certain that sooner or later John must face the heart attack. No doubt he is helpless as regards heredity but by following certain necessary precautions he can lower the risk of serious heart disease.

(6) Smoking is …………… easier for me.
Context : The heart works like a pump all the twenty four hours. But its speed becomes faster with the mental worry or anxiety. It should be controlled. Heart attack is caused by the plugging of the coronary arteries. The seriousness of the trouble depends upon the size and position of plugged artery.

Explanation : In this passage the heart tells that smoking is very injurious and it is one of the causes of heart trouble. Excess smoking means absorption of poisonous substance named nicotine. It mixes in the blood and makes the blood vessels narrow and hard. It constricts arteries particularly in the hands and feet, so the heart has to use more pressure for pushing the blood. Heart beatings become rapid. If a man leaves smoking, the functioning of the heart will become easier.

(7) I’m not demanding …………… for a long time.
Context : There are three main causes of heart attack. First of them is the plugging of the coronary arteries. Second is excess smoking. Third cause is the constant worry and anxiety. The worry increases the action of adrenal glands which put more adrenalin into the blood.

Explanation : In this paragraph the heart says that he has no grudge with John or anybody else. It does its best under all circumstances. But it tells us some precautions

which everybody should practice. We should keep the weight of body under control. We should not allow the blood pressure raise higher. We should avoid smoking. We should not worry. Moreover, we should walk in the morning in fresh air or should have a light exercise.

Short Answer Type Questions

Answer one of the following questions in not more than 30 words:
Q. 1. How does the heart describe itself ? [2015, 18]
(हृदय अपनी व्याख्या कैसे करता है ?)
Answer :
The heart describes itself thus, “I am not beautiful, I have an unimpressive shape. I am red-brown in colour. My weight is 340 gm. I am pear shaped.”
(हृदय स्वयं की व्याख्या इस प्रकार करता है, “मैं सुन्दर नहीं हूँ। मेरा आकार भी प्रभावशाली नहीं है। मेरा रंग लाल-भूरा है। मेरा भार 340 ग्राम है। मेरा आकार नाशपाती के समान है।”)

Q. 2. What kind of machine is the heart ?
(हृदय किस प्रकार की मशीन है ?)
Answer :
The heart is like a pumping machine.
(हृदय पम्पिग मशीन के समान है।)

Q. 3. How much blood does the heart pump each day?
(हृदय प्रतिदिन कितना रक्त पम्प करता है ?)
Answer :
The heart pumps about 18000 litres blood each day.
(हृदय प्रतिदिन लगभग 18000 लीटर रक्त पम्प करता है।)

Q. 4. What are the two false notions about the heart ?
(हृदय के बारे में दो झूठे विचार कौन-से हैं ?)
Answer :
The two false notions about the heart are:
(i) it is romantic the home of feelings.
(ii) it is a fragile and delicate thing.
(हृदय के विषय में ‘दो झूठे विचार’ हैं कि–
(i) यह रोमांटिक है, भावनाओं का घर है।
(ii) यह बहुत कमजोर और नाजुक वस्तु है।)

Q. 5. In what way does the heart differ from the other muscles of the body?
(किस प्रकार हृदय शरीर की अन्य मांसपेशियों से भिन्न है ?)
Or
How strong is the heart in comparison to other organs of the body?
(हृदय मानव के अन्य अंगों की अपेक्षा मजबूत कैसे है ?)
Answer :
The muscles of the heart are stronger than the muscles of any other organ of body except the uterus of a woman.
(हृदय की मांसपेशियाँ स्त्री के गर्भाशय को छोड़कर शरीर के अन्य समस्त अंगों की मांसपेशियों से अधिक मजबूत है।)

Q. 6. When John is awake his heart has a rest period of half a second between beats. Is the rest period longer or shorter when John is asleep?
(जब जॉन जागा हुआ होता है तब उसका हृदय धड़कनों के बीच आधे सेकण्ड के लिए आराम करता है। जब जॉन सोया हुआ होता है तब क्या यह अवधि लम्बी हो जाती है या छोटी ?)
Answer :
When John is asleep, the rest period is longer because a large percentage of his capillaries are inactive and heart does not push blood through them.
(जब जॉन सोया हुआ होता है तब आराम की अवधि लम्बी हो जाती है, क्योंकि उसकी अधिकांश धमनियाँ निष्क्रिय हो जाती हैं और हृदय को उनमें रक्त नहीं भेजना पड़ता।)

Q. 7. Why does the heart not want John to be a heart neurotic ?
(हृदय जॉन को heart neurotic क्यों नहीं होने देना चाहता ?)
Answer :
The heart does not want John to be a heart neurotic because then John will worry constantly. This worry will be troublesome to John as well as to his heart. (हृदय नहीं चाहता कि जॉन heart neurotic हो जाए क्योंकि फिर जॉन लगातार चिन्ता करेगा। यह चिन्ता जॉन के लिए भी और हृदय के लिए भी परेशानी का कारण हो जाएगी।)

Q. 8. What is the condition when the heart beats increase from normal beats ? How can the rate be brought down ?
(वह कौन-सी स्थिति है जब हृदय की धड़कन सामान्य धड़कन से बढ़ जाती है ? धड़कनों की गति को कैसे कम किया जा सकता है ?)
Answer :
When a man is worried, the heart beats increase from the normal beats. Gentle massage on vagus nerve will bring down the rate of beats.
(जब कोई मनुष्य चिन्तित होता है, तब हृदय की धड़कनें सामान्य धड़कनों से बढ़ जाती हैं। वेगस नामक नसों पर हल्की-हल्की मालिश से इन धड़कनों की गति को कम किया जा सकता है।)

Q. 9. How does the heart tell John, that he is going to have a heart attack ?
(हृदय जॉन को कैसे बताता है कि उसे अब दिल का दौरा पड़ने वाला है ?) [2018]
Answer :
The heart sends a signal in the form of pain in chest which indicates the coming danger of a heart-attack.।
(हृदय सीने में दर्द के रूप में संकेत भेजता है जो दिल के दौरे के होने वाले खतरे के विषय में बताता है।)

Q. 10. How does the heart get its nourishment ? [2012, 18]
(हृदय अपना आहार किस प्रकार प्राप्त करता है ?)
Answer :
The heart gets its nourishment from the blood through its own coronary arteries.
(हृदय अपना आहार अपनी ही coronary arteries के द्वारा रक्त में से प्राप्त करता है।)

Q. 11. How do arteries get blocked ?
(धमनियों में रुकावट कैसे पैदा हो जाती है ?)
Answer :
Due to the fatty deposits the arteries get blocked.
(चर्बी जमा हो जाने के कारण धमनियों में रुकावट पैदा हो जाती है।)

Q. 12. What is the weak spot in the heart which is the greatest single cause of death?
(हृदय का सबसे कमजोर स्थान कौन-सा है जो अकेला ही सबसे बड़ा मृत्यु का कारण है ?)
Answer :
The coronary arteries is the weak spot in the heart. If there is any trouble, it may cause death.
(हृदय में coronary arteries सबसे कमजोर स्थान है। यदि इसमें कोई गड़बड़ हो जाए, तब वह मृत्यु का कारण बन जाती है।)

Q. 13. What are the two ways in which coronary arteries may get clogged ?
(वे दो कौन-से ढंग हैं जिनसे coronary arteries बन्द हो जाती हैं ?)
Answer :
Coronary arteries may get clogged if fatty deposits increase in the arteries or a clot of blood is formed in the artery.
(Coronary arteries बन्द हो सकती हैं यदि धमनियों के अन्दर चर्बी जमा हो जाए या रक्त का थक्का बन जाए।)

Q. 14. What sort of exercise should we take to keep our heart free from problems ?
(हृदय को समस्याओं से मुक्त रखने के लिए हमें किस प्रकार का व्यायाम करना चाहिए ?)
Answer :
A walk of a kilometre or two, climbing a couple of flights of stairs or any other light exercise will keep our heart free from problems.
(एक या दो किलोमीटर का घूमना, जीने की कुछ सीढ़ियाँ चढ़ना जैसे अन्य हल्के व्यायाम हृदय को समस्याओं से मुक्त रखेंगे।)

Q. 15. How does constant worrying cause problems to heart ?
(लगातार चिन्ता करना हृदय के लिए किस प्रकार समस्या पैदा करता है ?)
Answer :
Constant worrying continually stimulates adrenal glands to produce more violent stuff. These stuffs tighten the arteries and the blood-pressure becomes higher.
(लगातार चिन्ता करने से एड्रीनल ग्रन्थियाँ और अधिक हानिकारक पदार्थ पैदा करने लगती हैं। यह पदार्थ धमनियों को तंग कर देता है और रक्तचाप बढ़ जाता है।)

Q. 16. Who is more likely to have a higher blood-pressure-a fat or a lean person ? Why ?
(उच्च रक्तचाप किसे होने की सम्भावना है-मोटे आदमी को या पतले आदमी को ? क्यों ?)
Answer :
A fat man is more likely to have a higher blood-pressure. The excess fat has a lot of capillaries. The heart has to work harder to push blood through these capillaries.
(एक मोटे आदमी को उच्च रक्तचाप होने की सम्भावना अधिक है। अतिरिक्त चर्बी में असंख्य धमनियाँ होती हैं। हृदय को इन धमनियों में रक्त भेजने के लिए बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ता है।)

Q. 17. If a person has high blood pressure, what should he do to bring down the pressure to safer levels ?
(यदि किसी व्यक्ति को उच्च रक्तचाप है, तो उसे सही स्तर तक लाने के लिए क्या करना चाहिए ?)
Or
What should a man do to reduce high blood-pressure ? [2009, 18]
(उच्च रक्तचाप को कम करने के लिए एक व्यक्ति को क्या करना चाहिए ?)
Answer :
To reduce high blood-pressure, a man should :
(i) get rid of excess fat,
(ii) avoid smoking,
(iii) relax a little, and
(iv) do mild exercise regularly.
(उच्च रक्त चाप को कम करने के लिए व्यक्ति को
(i) अत्यधिक चर्बी से छुटकारा पाना चाहिए,
(ii) धूम्रपान से बचना चाहिए,
(iii) थोड़ा आराम करना चाहिए, तथा ,
(iv) रोजाना हल्का व्यायाम करना चाहिए।)

Q. 18. How does smoking increase blood-pressure ? [2009]
(धूम्रपान रक्तचाप को कैसे बढ़ाता है ?)
Or
How is smoking injurious to health according to J.D.Ratcliff ? [2015, 17, 18]
(जे०डी० रेटक्लिफ के अनुसार धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए कैसे हानिकारक है?)
Answer :
When a person smokes, nicotine enters his blood. Nicotine is a poisonous substance. It makes the arteries hard and narrow, especially of hands and legs. So, the heart has to do more work to push the blood through these blood vessels. So, the blood-pressure increases.
(जब कोई व्यक्ति सिगरेट पीता है तब निकोटीन नामक पदार्थ उसके रक्त में मिल जाता है। निकोटीन एक जहरीला पदार्थ है। यह धमनियों को, विशेष रूप से हाथ और पैरों की धमनियों को, कठोर और तंग बना देता है। अतः दिल को इन नसों में खून भेजने के लिए अधिक कार्य करना पड़ता है। इसलिए रक्तचाप बढ़ जाता है।)

Q. 19. What particular foods should the heart patient avoid ? [2017]
(हृदय रोगी को किन-किन विशेष भोजनों से बचना चाहिए?)
Answer :
A heart patient should avoid foods rich in fats and giving high number of calories.
(हृदय रोगी को ऐसे भोजन से बचना चाहिए जिनमें चर्बी अधिक हो और जिनसे अधिक कैलोरी मिलती है।)

Q. 20. What part does heredity play in heart troubles ?
(हृदय की परेशानियों में आनुवंशिकता की क्या भूमिका है ?)
Answer :
Heredity plays an important role in the heart troubles. It cannot be avoided but its effect can be minimized.
(आनुवंशिकता हृदय रोगों में मुख्य भूमिका निभाती है। इससे बचा नहीं जा सकता, किन्तु इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।)

Q. 21. What should a man do to avoid heart-attack ? Describe briefly. [2011, 15, 17, 18]
(हृदय गति रुकने से बचने के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए? संक्षेप में वर्णन कीजिए।)
Answer :
To avoid heart attack man should follow the following precautions :
(i) should reduce overweight,
(ii) should avoid smoking,
(iii) should relax more and,
(iv) should have light exercise and balanced diet.
(हृदय गति रुकने से बचने के लिए मनुष्य को निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिए
(i) अधिक भर को घटना
(ii) धूम्रपान से बचना
(iii) अधिक आराम
(iv) हल्का व्यायाम और संतुलित भोजन

Q. 22. What is heart if it is not a romantic character? [2017]
(यदि हदय एक रोमांटिक पात्र नहीं है तो यह क्या है ?)
Answer :
If heart is not a romantic character, it is a pumping machine.
(यदि हृदय एक रोमांटिक पात्र नहीं है तो यह एक पम्प करने वाली मशीन है।)

Vocabulary

Choose the most appropriate word or phrase that best completes the sentence :
1. I weigh 340 grams, am red-brown in colour and have an …………… shape. [2018]
(a) unpleasant
(b) unimpressive
(c) unfair
(d) unsound

2. Whatever you may have heard about me (heart) from poets, I am not a very …………… character. [2014, 17]
(a) pathetic
(b) romantic
(c) heroic
(d) classic

3. No muscles in the body are as strong as I am except those of a woman’s …………… as she gives birth.
(a) stomach
(b) womb
(c) belly
(d) uterus

4. We can slow down heart beat by …………… on vague nerves.
(a) gentle massage
(b) gentle pressure
(c) brisk massage
(d) slow running

5. John blames almost everything on me. But I (heart) have …………… to do with his fatigue.
(a) a little
(b) the little
(c) little
(d) nothing

6. When I (heart) am in trouble, I usually send out …………… only after undue exertion or emotion.
(a) a light signal
(b) a pain signal
(c) an alarm signal
(d) a sound signal

7. Heart is fed by his own two ……………
(a) coronary arteries
(b) pulmonary arteries
(c) major arteries
(d) minor arteries

8. The greatest single cause of death is ……………
(a) fatigue
(b) insufficient sleep
(c) worry and anxiety
(d) trouble in coronary arteries

9. Any one can bring out his blood pressure to safer levels by reducing ……………
(a) his unusual height
(b) his work load
(c) excess weight
(d) quantity of food

10. Smoking is dangerous to heart because ……………
(a) it accelerates the heart beat
(b) it has a dangerous substance named nicotine
(c) it slows down heart beats
(d) it makes our veins inactive

11. Reducing the body weight, regular exercise, more relaxation and control on smoking are some of the …………… for a healthy heart.
(a) necessities
(b) uses
(c) precautions
(d) harms,

12. Also, while John sleeps, a large percentage of his capillaries are …………… so, as I don’t push blood through them, my beat slows from a normal 72 a minute down to 55.
(a) active
(b) inactive
(c) blocked
(d) open

13. John likes catapults …………… than anything else.
(a) more.
(b) much
(c) enough
(d) little

14. All the same …………… seem to play some role in building up those blockage forming in my arteries.
(a) proteins
(b) carbohydrates
(c) fats
(d) calories

15. From …………… my ignition system gets momentarily out of tune.
(a) pillar to post
(b) beginning to end
(c) top to bottom
(d) time to time

16. From time to time, my ignition system gets momentarily out of …………… just like the ignition system of John’s car. [2011]
(a) tune
(b) dune
(c) pume
(d) tone

17. I am not getting enough …………… to cope with the work he is loading on to me. [2018]
(a) energy
(b) nourishment
(c) compliment
(d) supplement

18. When John thinks of me at all, he thinks of me as …………… and delicate. [2009, 15]
(a) soft
(b) soggy
(c) fragile
(d) fragrant

19. How do I get my nourishment ? From the …………… of course.
(a) blood
(b) heart
(c) tissues
(d) arteries

20. Climbing a couple of flight of …………… to his office wouldn’t hurt either.
(a) spares
(b) stares
(c) stairs
(d) scarce

21. I hang by ligament in the …………… of his chest. [2013, 18]
(a) middle
(b) core
(c) centre
(d) deep

22. You must give …………… your bad habits. [2015]
(a) after
(b) away
(c) up
(d) out

23. Then, if our artery closes down, …………… are others to nourish me.. [2015]
(a) here
(b) where
(c) there
(d) their

24. Smoking is a …………… violent stuff. [2015]
(a) gritty
(b) nitty
(c) pretty
(d) petty

25. John hardly …………… thinks of me which is good. [2016]
(a) never
(b) ever
(c) always
(d) sometimes

26. Fatty deposits begin to …………… up in the coronary arteries. [2018]
(a) build
(b) band
(c) bang
(d) bind

Answers :
1. (b), 2. (b), 3. (d), 4. (a), 5. (c), 6. (b), 7. (a) 8. (a), 9. (c), 10. (b), 11. (c), 12. (b), 13. (a), 14. (c), 15. (a), 16. (a), 17. (b), 18. (c), 19. (a), 20. (c), 21. (c), 22. (c), 23. (c), 24. (c), 25. (b), 26. (a). A

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UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 7 Employment: Growth, Informalisation and Other Issues

UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 7 Employment: Growth, Informalisation and Other Issues (रोजगार-संवृद्धि, अनौपचारीकरण एवं अन्य मुद्दे) are part of UP Board Solutions for Class 11 Economics. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 7 Employment: Growth, Informalisation and Other Issues (रोजगार-संवृद्धि, अनौपचारीकरण एवं अन्य मुद्दे).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Economics
Chapter Chapter 7
Chapter Name Employment: Growth, Informalisation and Other Issues (रोजगार-संवृद्धि, अनौपचारीकरण एवं अन्य मुद्दे)
Number of Questions Solved 57
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 7 Employment: Growth, Informalisation and Other Issues (रोजगार-संवृद्धि, अनौपचारीकरण एवं अन्य मुद्दे)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
श्रमिक किसे कहते हैं?
उत्तर
सकल राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान देने वाले सभी क्रियाकलापों को हम आर्थिक क्रियाएँ कहते हैं। वे सभी व्यक्ति जो आर्थिक क्रियाओं में संलग्न होते हैं, श्रमिक कहलाते हैं।

प्रश्न 2.
श्रमिक-जनसंख्या अनुपात की परिभाषा दें।
उत्तर
श्रमिक जनसंख्या अनुपात एक सूचक है जिसका प्रयोग देश में रोजगार की स्थिति के विश्लेषण करने के लिए किया जाता है। यह अनुपात यह जानने में सहायक है कि जनसंख्या का कितना अनुपात वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में सक्रिय योगदान दे रहा है।

प्रश्न 3.
क्या ये भी श्रमिक हैं: एक भिखारी, एक चोर, एक तस्कर, एक जुआरी? क्यों?
उत्तर
एक भिखारी, एक चोर, एक तस्कर और एक जुआरी श्रमिक नहीं हैं क्योंकि ये आर्थिक क्रियाओं में कोई योगदान नहीं देते हैं।

प्रश्न 4.
इस समूह में कौन असंगत प्रतीत होता है—
(क) नाई की दुकान का मालिक,
(ख) एक मोची,
(ग) मदर डेयरी का कोषपाल,
(घ) ट्यूशन पढ़ाने वाला शिक्षक,
(ङ) परिवहन कम्पनी का संचालक,
(च) निर्माण मजदूर।
उत्तर
(घ) ट्यूशन पढ़ाने वाला शिक्षक इन सब में असंगत है क्योंकि यह स्व: नियोजित की श्रेणी में आता है जबकि शेष किराये के श्रमिक की श्रेणी में आते हैं।

प्रश्न 5.
नए उभरते रोजगार मुख्यतः …………….क्षेत्रक में ही मिल रहे हैं। (सेवा/विनिर्माण)
उत्तर
सेवा।

प्रश्न 6.
चार व्यक्तियों को मजदूरी पर काम देने वाले प्रतिष्ठान को…………..क्षेत्रक कहा जाता है। (औपचारिक/अनौपचारिक)
उत्तर
अनौपचारिक।

प्रश्न 7.
राज स्कूल जाता है। पर जब वह स्कूल में नहीं होता, तो प्रायः अपने खेत में काम करता| दिखाई देता है। क्या आप उसे श्रमिक मानेंगे? क्यों?
उत्तर
वे सभी व्यक्ति जो आर्थिक क्रियाकलाप में भाग लेते हैं, श्रमिक कहलाते हैं। खेत में काम करना भी एक आर्थिक क्रियाकलाप है क्योंकि इससे वस्तुओं के प्रवाह में बढ़ोतरी होती है। अत: राज को एक श्रमिक माना जा सकता है।

प्रश्न 8.
शहरी महिलाओं की अपेक्षा ग्रामीण महिलाएँ अधिक काम करती दिखाई देती हैं। क्यों?
उत्तर
भारत में शहरी क्षेत्रों में केवल 14 प्रतिशत महिलाएँ ही किसी आर्थिक कार्य में व्यस्त हैं तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 30 प्रतिशत महिलाएँ आर्थिक कार्यों में लगी हुई हैं। शहरी क्षेत्रों में महिलाओं का प्रतिशत इसलिए कम है क्योंक वहाँ पर पुरुष पर्याप्त रूप से उच्च आय अर्जित करने में सफल रहते हैं और वे परिवार की महिलाओं को घर से बाहर रोजगार प्राप्त करने को प्राय: निरुत्साहित करते हैं। शहरी महिलाएँ घरेलू कामकाज में ही व्यस्त रहती हैं और महिलाओं द्वारा परिवार के लिए किए गए अनेक कार्यों को आर्थिक या उत्पादन कार्य ही नहीं माना जाता।

प्रश्न 9.
मीना एक गृहिणी है। घर के कामों के साथ-साथ वह अपने पति की कपड़े की दुकान के काम में भी हाथ बँटाती है। क्या उसे एक श्रमिक माना जा सकता है? क्यों?
उत्तर
हाँ, मीना को एक श्रमिक माना जा सकता है क्योंकि वह घरेलू कामकाज के साथ-साथ पति की पकड़े की दुकान में भी हाथ बंटाती है जोकि एक आर्थिक क्रियाकलाप है।

प्रश्न 10.
यहाँ किसे असंगत माना जाएगा
(क) किसी अन्य के अधीन रिक्शा चलाने वाला,
(ख) राजमिस्त्री,
(ग) किसी मेकेनिक की दुकान पर काम करने वाला श्रमिक,
(घ) जूते पॉलिश करने वाला लड़का।
उत्तर
यद्यपि उपर्युक्त सभी श्रमिक हैं, क्योंकि ये सभी आर्थिक क्रियाकलाप में संलग्न हैं, फिर भी चारों लोगों में (घ) जूते पॉलिश करने वाला लड़का असंगत है क्योंकि प्रथम तीनों किराए के श्रमिक हैं जबकि जूते पॉलिश करने वाला स्वनियोजित है।

प्रश्न 11.
निम्न सारणी में 1972-73 ई० में भारत में श्रमबल का वितरण दिखा गया है। इसे ध्यान से पढ़कर श्रमबल के वितरण के स्वरूप के कारण बताइए। ध्यान रहे कि ये आँकड़े 30 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं।
UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 1
उत्तर
उपर्युक्त तालिका में दिए गए तथ्यों के आधार पर निम्न निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं

  1. भारत में कुल श्रमबल (19.4 + 3.9 = 23.3 करोड़) या 233 मिलियन था, जिसमें 194 मिलियन ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत थे, शेष शहरी क्षेत्रों में कार्यरत थे।
  2. कुल श्रमबल में 157 मिलियन पुरुष (68%) तथा 76 मिलियन (32%) महिलाएँ थीं।
  3. 125 मिलियन पुरुष (64%) ग्रामीण क्षेत्रों में काम करते थे।
  4. कुल रोजगार में पुरुष श्रमिकों का प्रतिशत 82 तथा महिलाओं का प्रतिशत 9.18 था।
  5. कुल महिला श्रमिकों में ग्रामीण महिला श्रमिकों का प्रतिशत 91 तथा शहरी क्षेत्रों में महिला श्रमिकों का प्रतिशत 9 था।

प्रश्न 12.
इस सारणी में 1999-2000 में भारत की जनसंख्या और श्रमिक जनानुपात दिखाया गया है। क्या आप भारत के (शहरी और सकल) श्रमबल का अनुमान लगा सकते हैं?
UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 5 Human Capital Formation in India 2
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 5 Human Capital Formation in India 3

ग्रामीण क्षेत्र में कुल कार्यबल = 30.12
करोड़ शहरी क्षेत्र में कुल कार्यबल = 961 करोड़
|
कुल कार्यबल =39.66 करोड़

प्रश्न 13.
शहरी क्षेत्रों में नियमित वेतनभोगी कर्मचारी ग्रामीण क्षेत्र से अधिक क्यों होते हैं?
उत्तर
भारत में अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च आय के अवसर सीमित होते हैं। श्रम बाजार में भागीदारी हेतु भी संसाधनों की उनके पास कमी होती है। उनमें से अधिकांश व्यक्ति स्कूल, महाविद्यालय या किसी प्रशिक्षण संस्थान में नहीं जा पाते। यदि कुछ जाते भी हैं तो वे बीच में ही छोड़कर श्रम शक्ति में सम्मिलित हो जाते हैं। इसके विपरीत शहरी लोगों के पास शिक्षा और प्रशिक्षण पाने हेतु अधिक अवसृर होते हैं। शहरी जनसमुदाय को रोजगार के भी विविधतापूर्ण अवसर उपलब्ध हो जाते हैं। वे अपनी शिक्षा और योग्यता के अनुरूप रोजगार की तलाश में रहते हैं किन्तु ग्रामीण क्षेत्र के लोग घर पर नहीं बैठ सकते, क्योंकि उनकी आर्थिक दशा उन्हें ऐसा नहीं करते देती। इस कारण गाँवों की तुलना में शहरों में नियमित वेतनभोगी श्रमिक अधिक पाए जाते हैं।

प्रश्न 14.
नियमित वेतनभोगी कर्मचारियों में महिलाएँ कम क्यों हैं?
उत्तर
जब किसी श्रमिक को कोई व्यक्ति या उद्यम नियमित रूप से काम पर रख उसे मजदूरी देता है, तो वह श्रमिक नियमित वेतनभोगी कर्मचारी कहलाता है। भारत में नियमित वेतनभोगी रोजगारधारियों में पुरुष अधिक अनुपात में लगे हुए हैं। देश के 18 प्रतिशत पुरुष नियमित वेतनभोगी हैं और इस वर्ग में केवल 6 प्रतिशत ही महिलाएँ हैं। महिलाओं की इस कम सहभागिता का एक कारण कौशल स्तर में अन्तर हो सकता है। नियमित वेतनभागी वाले कार्यों में अपेक्षाकृत उच्च कौशल और शिक्षा के उच्च स्तर की आवश्यकता होती है। सम्भवत: इस अभाव के कारण ही अधिक अनुपात में महिलाओं को रोजगार नहीं मिल पा रहे हैं।

प्रश्न 15.
भारत में श्रमबल के क्षेत्रकवार वितरण की हाल की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करें।
उत्तर
देश के आर्थिक विकास के क्रम में श्रमबल का प्रवाह कृषि एवं सम्बन्धित क्रयाकलापों से उद्योग एवं सेवा क्षेत्रक की ओर बढ़ा है। आर्थिक संवृद्धि की प्रक्रिया में मजदूर ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों को प्रवसन करते हैं। विकास के अन्तर्गत सेवा क्षेत्रक का अधिक विकास होने पर उद्योग क्षेत्र का रोजगार के मामले में हिस्सा घटने लगता है। भारत में अधिकांश श्रमिकों के रोजगार का प्रमुख स्रोत प्राथमिक क्षेत्रक है। द्वितीयक क्षेत्रक केवल 16 प्रतिशत श्रमबल को ही नियोजित कर रहा है। लगभग 24 प्रतिशत श्रमिक सेवा क्षेत्रक में लगे हुए हैं। ग्रामीण भारत में कृषि, खनन एवं उत्खनन की क्रियाओं में तीन-चौथाई प्रतिशत ग्रामीण रोजगार पाते हैं जबकि विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्रक में रोजगार पाने वाले ग्रामीणों का अनुपात क्रमशः 10 एवं 13 प्रतिशत है। 60 प्रतिशत शहरी श्रमिक सेवा क्षेत्रक में हैं। लगभग 30 प्रतिशत शहरी श्रमिक द्वितीयक क्षेत्रक में नियोजित हैं।

प्रश्न 16.
1970 से अब तक विभिन्न उद्योगों में श्रमबल के वितरण में शायद ही कोई परिवर्तन आया 
है। टिप्पणी करें।
उत्तर
भारत एक कृषिप्रधान देश है। यहाँ की जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्रों में बसा है एवं कृषि और उससे सम्बन्धित क्रियाओं पर निर्भर है। भारत में विकास योजनाओं का ध्येय कृषि पर निर्भर जनसंख्या के अनुपात को कम करना रहा है। लेकिन कृषि श्रम का गैर-कृषि श्रम के रूप में खिसकाव अपर्याप्त रहा है। वर्ष 1972-73 में प्राथमिक क्षेत्रक में 74 प्रतिशत श्रमबल लगा था, वहीं 1999-2000 ई० में यह अनुपात घटकर 60 प्रतिशत रह गया। द्वितीयक तथा सेवा क्षेत्रक में यह प्रतिशत क्रमशः 11 से बढ़कर 16 तथा 15 से बढ़कर 24 प्रतिशत हो गया है। परन्तु राष्ट्र की विशालता एवं भौतिक प्राकृतिक संसाधनों की तुलना में उक्त बदलाव नगण्य दिखाई पड़ता है।

प्रश्न 17.
क्या आपको लगता है पिछले 50 वर्षों में भारत में रोजगार के सृजन में भी सकल घरेलू उत्पाद के अनुरूप वृद्धि हुई है? कैसे? उत्तर
सकल घरेलू उत्पाद (G.D.P.) एक वर्ष की अवधि में देश में हुए सभी वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन का बाजार मूल्य होता है। 1960-2000 ई० की अवधि में सकल घरेलू उत्पाद में सकारात्मक वृद्धि हुई है और यह संवृद्धि दर रोजगार वृद्धि दर से अधिक रही है। सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में कुछ उतार-चढ़ाव भी आते रहे हैं परन्तु इस अवधि में रोजगार की वृद्धि लगभग 2 प्रतिशत बनी रही। परन्तु 1990 ई० के अन्तिम वर्षों में रोजगार वृद्धि दर कम होकर उसी स्तर पर पहुँच गई जहाँ योजनाकाल के प्रथम चरणों में थी। इस अवधि में सकल घरेलू उत्पाद एवं रोजगार बढ़ोतरी की दरों में अन्तर रहा है। इस प्रकार हम भारतीय अर्थव्यवस्था में रोजगार सृजन के बिना ही अधिक वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करने में सक्षम रहे हैं।

प्रश्न 18.
क्या औपचारिक क्षेत्रक में ही रोजगार का सृजन आवश्यक है? अनौपचारिक में नहीं? कारण बसाइए।
उत्तर
सार्वजनिक क्षेत्रक की सभी इकाइयाँ एवं 10 या अधिक कर्मचारियों को रोजगार देने वाले निजी क्षेत्रक की इकाइयाँ औपचारिक क्षेत्रक माने जाते हैं। इन इकाइयों में काम करने वाले को औपचारिक क्षेत्र के कर्मचारी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी इकाइयाँ और उनमें कार्य कर रहे श्रमिक, अनौपचारिक श्रमिक कहलाते हैं।

औपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था के लाभ मिलते हैं। इनकी आमदनी भी अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों से अधिक होती है। इसके विपरीत अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों की आय नियमित नहीं होती है तथा उनके काम में भी निश्चितता एवं नियमितता नहीं होती। किन्तु दोनों ही क्षेत्रक रोजगार देते हैं, अत: दोनों को ही विकास आवश्यक है। साथ ही अनौपचारिक क्षेत्र को नियमित एवं नियन्त्रित करना भी आवश्यक है।

प्रश्न 19.
विक्टर को दिन में केवल दो घण्टे काम मिल पाता है। बाकी सारे समय वह काम की तलाश में रहता है। क्या वह बेरोजगार है? क्यों? विक्टर जैसे लोग क्या काम करते होंगे?
उत्तर
विक्टर दिन में दो घण्टे काम करता है अर्थात् वह आर्थिक क्रियाकलाप में बहुत कम समय के लिए भाग लेता है। आर्थिक क्रियाकलाप में भाग लेने के कारण उसे श्रमिक कहा जा सकता है। लेकिन विक्टर को पूर्ण रोजगार प्राप्त नहीं है। उसका रोजगार अनियमित है। दूसरे शब्दों में वह अर्द्ध-बेरोजगार है। ऐसे लोग सकल घरेलू उत्पाद में तनिक-सा ही योगदान कर पाते हैं। अत: उनको नियमित रोजगार दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 20.
क्या आप गाँव में रह रहे हैं? यदि आपको ग्राम-पंचायत को सलाह देने को कहा जाए तो आप | गाँव की उन्नति के लिए किस प्रकार के क्रियाकलाप का सुझाव देंगे, जिससे रोजगार सृजन भी हो।
उत्तर
ग्रामवासी होन के नाते मैं ग्राम पंचायत को गाँव की उन्नति के लिए निम्नलिखित सुझाव दूंगा

  1. ग्राम पंचायत आधारित संरचना के विकास पर समुचित ध्यान दे। नालियाँ, पुलियाएँ व सड़क : बनवाएँ। इससे रोजगार के नए-नए अवसर सृजित होंगे।
  2. वह गाँव में कुटीर उद्योगों के विकास पर बल दे। इससे खाली समय में लोगों को रोजगार मिलेगा।
  3. गाँवों में सार्वजनिक निर्माण कार्यों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार वित्तीय सहायता उपलब्ध | कराए।
  4. ग्रामीणों के लिए रोजगार सुनिश्चित किया जाए।
  5. बेसहारा बुजुर्गों, विधवा महिलाओं और अनाथ बच्चों के लिए सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराए।
  6. ग्राम पंचायत देखे कि गाँव का प्रत्येक बच्चा पढ़ने के लिए पाठशाला जाता है।
  7. ग्राम पंचायत गाँव में बच्चों के लिए स्वस्थ मनोरंजन के साधन उपलब्ध कराए।

प्रश्न 21.
अनियत दिहाड़ी मजदूर कौन होते हैं?
उत्तर
जब एक श्रमिक को जितने समय काम करना चाहिए उससे कम समय काम मिलता है अथवा वर्ष में कुछ महीनों के लिए बेकार रहना पड़ता है तो उसे अनियत दिहाड़ी मजदूर कहा जाता है। अनियत मजदूर को अपने काम के बदले उचित दाम व सामाजिक सुरक्षा के लाभ नहीं मिलते हैं। निर्माण मजदूर अनियत मजदूरी वाले श्रमिक कहलाते हैं।

प्रश्न 22.
आपको यह कैसे पता चलेगा कि कोई व्यक्ति अनौपचारिक क्षेत्रक में काम कर रहा है?
उत्तर
भारत में श्रमबल को औपचारिक तथा अनौपचारिक दो वर्गों में विभाजित किया गया है। सभी सार्वजनिक प्रतिष्ठानों तथा 10 या अधिक कर्मचारियों को रोजगार देने वाले निजी क्षेत्रक में काम करने वाले श्रमिकों को औपचारिक श्रमिक हो जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी उद्यम और उनमें काम कर रहे श्रमिकों को अनौपचारिक श्रमिक हो जाएगा। किसान, मोची, छोटे दुकानदार अनौपचारिक क्षेत्रक में काम करने वाले श्रमिक हैं।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
गाँवों की तुलना में शहरों में नियमित वेतनभोगी श्रमिक पाए जाते हैं
(क) कम
(ख) अधिक
(ग) नगण्य ।
(घ) लगभग बराबर
उत्तर
(ख) अधिक

प्रश्न 2.
जब श्रमिक की उत्पादकता शून्य अथवा ऋणात्मक होती है, उसे कहते हैं
(क) मौसमी बेरोजगारी ।
(ख) स्थायी बेरोजगारी ।
(ग) छिपी हुई बेरोजगारी
(घ) शिक्षित बेरोजगारी
उत्तर
(ग) छिपी हुई बेरोजगारी

प्रश्न 3.
बेरोजगारी का सामाजिक दुष्परिणाम है१
(क) मानव संसाधन का निष्क्रिय पड़ा रहना
(ख) उत्पादन की हानि होना ।
(ग) उत्पादता का स्तर निम्न रहना
(घ) सामाजिक अशान्ति बढ़ना
उत्तर
(घ) सामाजिक अशान्ति बढ़ना

प्रश्न 4.
भारत का मुख्य व्यवसाय क्या है?
(क) कृषि
(ख) वाणिज्य
(ग) खनन
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(क) कृषि

प्रश्न 5.
भारत में कौन-सी बेरोजगारी की स्थिति बड़ी करुण व दयनीय है?
(क) शिक्षित
(ख) मौसमी
(ग) औद्योगिक
(घ) अदृश्य
उत्तर
(क) शिक्षित

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सकल घरेलू उत्पाद क्या है?
उत्तर
किसी देश में एक वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्य इसका सकल घरेलू उत्पाद’ कहलाता है।

प्रश्न 2.
आर्थिक क्रियाएँ क्या हैं?
उत्तर
सकल राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान देने वाले सभी क्रियाकलापों को आर्थिक क्रियाएँ कहते हैं।

प्रश्न 3.
श्रमिक कौन हैं?
उत्तर
वे सभी व्यक्ति जो आर्थिक क्रियाओं में संलग्न होते हैं, श्रमिक कहलाते हैं।

प्रश्न 4.
भारत में रोजगार की प्रकृति कैसी है?
उत्तर
भारत में रोजगार की प्रकृति बहुमुखी है। कुछ लोगों को वर्ष भर रोजगार प्राप्त होता है तो कुछ लोग वर्ष में कुछ महीने ही रोजगार पाते हैं।

प्रश्न 5.
देश में रोजगार की स्थिति के विश्लेषण के लिए किस सूचक का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर
देश में रोजगार की स्थिति के विश्लेषण के लिए ‘श्रमिक जनसंख्या अनुपात’ का प्रयोग किया जाता है। यह सूचक यह जानने में सहायक है कि जनसंख्या का कितना अनुपात वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है।

प्रश्न 6.
‘जनसंख्या से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
‘जनसंख्या’ शब्द का अभिप्राय किसी क्षेत्र-विशेष में किसी समय-विशेष पर रह रहे व्यक्तियों की कुल संख्या से है।

प्रश्न 7.
श्रमिक-जनसंख्या अनुपात का आकलन कैसे किया जाता है?
उत्तर
श्रमिक-जनसँख्या अनुपात का आकलन करने के लिए देश में कार्य कर रहे सभी श्रमिकों की संख्या को देश की जनसंख्या से भाग देकर उसे 100 से गुणा कर दिया जाता है। सूत्र रूप में,
UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 5 Human Capital Formation in India 4
प्रश्न 8.
‘श्रमबल से क्या आशय है?
उत्तर
‘श्रमबल’ से आशय व्यक्तियों की उस संख्या से है जो वास्तव में काम कर रहे हैं या काम करने के इच्छुक हैं।

प्रश्न 9.
‘कार्यबल से क्या आशय है?
उत्तर
‘कार्यबल’ से आशय व्यक्तियों की उस संख्या से है जो वास्तव में काम कर रहे हैं।

प्रश्न 10.
सहभागिता दर से क्या आशय है?
उत्तर
सहभागिता दर से आय जनसंख्या के उस प्रतिशत से है जो वास्तव में उत्पादन क्रिया में सहभागी होते हैं। इसे देश की कुल जनसंख्या तथा कार्यबल के बीच अनुपात के रूप में मापा जाता है। सूत्र रूप में,
UP Board Solutions for Class 11 Economics Indian Economic Development Chapter 5 Human Capital Formation in India 5

प्रश्न 11.
‘मजदूरी रोजगार’ में कौन आते हैं?
उत्तर
‘मजदूरी रोजगार’ में वे व्यक्ति आते हैं जिनको अन्य व्यक्तियों ने रोजगार प्रदान किया हुआ है और इन्हें अपनी सेवाओं के बदले मजदूरी प्राप्त होती है।

प्रश्न 12.
स्वनियोजित किन व्यक्तियों को कहा जाता है?
उत्तर
स्वनियोजित उन व्यक्तियों को कहा जाता है जो अपने उद्यम के स्वामी और संचालक होते हैं। कपड़े की दुकान का स्वामी स्वनियोजित है।

प्रश्न 13.
नियमित वेतनभोगी कर्मचारी कौन हैं?
उत्तर
जब किसी श्रमिक को कोई व्यक्ति या उद्यम नियमित रूप से काम पर रख उसे मजदूरी देता है तो वह श्रमिक नियमित वेतनभोगी कर्मचारी’ कहलाता है।

प्रश्न 14.
देश की आजीविका का सर्वप्रमुख स्रोत क्या है? ”
उत्तर
देश की आजीविका का सर्वप्रमुख स्रात ‘स्वरोजगार है। 50 प्रतिशत से अधिक लोग इसी वर्ग में कार्यरत हैं।

प्रश्न 15.
भारत में अधिकांश श्रमिकों के रोजगार का प्रमुख स्रोत कौन-सा है?
उत्तर
भारत में अधिकांश श्रमिकों के रोजगार का स्रोत प्राथमिक क्षेत्रक (लगभग 60%) है।

प्रश्न 16.
गत 50 वर्षों से योजनाबद्ध विकास का प्रमुख उददेश्य क्या रहा है?
उत्तर
गते 50 वर्षों से योजनाबद्ध विकास का प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रीय उत्पाद और रोजगार में वृद्धि के माध्यम से अर्थव्यवस्था का प्रसार रहा है।

प्रश्न 17.
श्रमबल में किन श्रमिकों का अनुपात निरन्तर बढ़ रहा है? ”
उत्तर
श्रमबल में अनियत श्रमिकों का अनुपात निरन्तर बढ़ रहा है।

प्रश्न 18.
श्रमबल को किन दो वर्गों में विभाजित किया जाता है?
उत्तर
श्रमबल को निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-
1. औपचारिक अथवा संगठित वर्ग,
2. अनौपचारिक अथवा असंगठित वर्ग।।

प्रश्न 19.
संगठित अथवा औपचारिक वर्ग में कौन-कौन से प्रतिष्ठान आते हैं?
उत्तर
सभी सार्वजनिक क्षेत्रक प्रतिष्ठान तथा 10 या अधिक कर्मचारियों को रोजगार देने वाले निजी क्षेत्रक प्रतिष्ठान, संगठित क्षेत्र में सम्मिलित किए जाते हैं।

प्रश्न 20.
अनौपचारिक (असंगठित क्षेत्रक में कौन-कौन से कर्मचारी सम्मिलित होते हैं?
उत्तर
अनौपचारिक (असंगठित) क्षेत्रक में करोड़ों किसान, कृषि श्रमिक, छोटे-छोटे काम धन्धे चलाने वाले और उनके कर्मचारी तथा सभी सुनियोजित व्यक्ति जिनके पास भाड़े के श्रमिक नहीं हैं, सम्मिलित हैं।

प्रश्न 21.
बेरोजगारी से क्या आशय है?
उत्तर
बेरोजगारी वह दशा है जिसमें शारीरिक तथा मानसिक दृष्टि से कार्य करने के योग्य और प्रचलित मजदूरी पर कार्य करने को तत्पर व्यक्ति को कार्य न मिले।।

प्रश्न 22.
ऐच्छिक बेरोजगारी से क्या आशय है?
उत्तर
प्रत्येक समाज में प्रत्येक समय कुछ-न-कुछ व्यक्ति ऐसे अवश्य होते हैं जो काम करने के योग्य होते हुए भी काम करना नहीं चाहते। यह ऐच्छिक बेरोजगारी की अवस्था कहलाती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बेरोजगारी के आर्थिक व सामाजिक दुष्परिणाम बताइए।
उत्तर
बेरोजगारी के आर्थिक दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं

  1. मानव संसाधन निष्क्रिय रहते हैं। यह एक प्रकार का अपव्यय है।
  2. उत्पादन की हानि होती है।
  3. निवेशाधिक्य सृजित न होने के कारण पूँजी-निर्माण की दर धीमी रहती है।
  4. उत्पादकता का स्तर निम्न रहता है।

बेरोजगारी के सामाजिक दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं

  1. जीवन की गुणवत्ता कम होती है।
  2. आय तथा सम्पत्ति के वितरण में असमानता बढ़ती जाती है।
  3. इससे सामाजिक अशान्ति बढ़ती है।
  4. इस अवस्था में वर्ग-संघर्ष पनपता है।

प्रश्न. 2.
रोजगार/बेरोजगारी की सामान्य, साप्ताहिक तथा दैनिक स्थिति को समझाइए।
उत्तर-
1. सामान्य स्तर- यह वह स्थिति है जिसमें एक व्यक्ति अपना अधिकांश समय काम में व्यतीत करता है। भारत में सामान्य तथा 183 दिवस काम को मानक सीमा बिन्दु माना जाता है। जो व्यक्ति वर्ष में 183 या अधिक दिन काम करते हैं, वे सामान्य रोजगार प्राप्त हैं, अन्य सामान्य रूप से बेरोजगार हैं।

2. साप्ताहिक स्तर- यदि अनुबन्धित सप्ताह के दौरान आप कार्यबल का भाग बन जाते हैं तो आपको साप्ताहिक स्तर के आधार पर रोजगार प्राप्त माना जाएगा अन्यथा साप्ताहिक स्तर पर बेरोजगार।

3. दैनिक स्तर- इसका अनुमान व्यक्ति दिवसों के रूप में लगाया जाता है। ‘साप्ताहिक स्तर दीर्घकालीन बेरोजगारी की ओर संकेत करता है जबकि ‘दैनिक स्तर’ दीर्घकालीन तथा छिपी दोनों बेरोजगारियों का संकेत देता है।

प्रश्न 3.
अदृश्य अथवा छिपी बेरोजगारी से क्या आशय है? ।
उत्तर
अदृश्य अथवा छिपी बेरोजगारी आंशिक बेरोजगारी की वह अवस्था है जिसमें रोजगार में संलग्न श्रम शक्ति का उत्पादन में यागदान शून्य या लगभग शून्य होता है। किसी व्यवसाय/उद्योग में आवश्यकता से अधिक श्रम का लगा होना अदृश्य बेरोजगारी को जन्म देता है। अदृश्य बेरोजगारी निम्न दो रूपों में पाई जाती है
1. जब लोग अपनी योग्यता से कम उत्पादन कार्यों में लगे होते हैं। यह सामान्यतः औद्योगिक देशों में पाई जाती है।
2. जब किसी कार्य में आवश्यकता से अधिक लोग लगे होते हैं। यह बेरोजगारी प्रायःअल्पविकसित कृषिप्रधान देशों में पाई जाती है।

अदृश्य बेरोजगारी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. इसका सम्बन्ध अपना निजी काम करने वालों से होता है, मजदूरी पर काम करने वाले लोगों से | नहीं।
  2. यह दीर्घकालीन जनाधिक्य का परिणाम होती है।
  3. इसका कारण पूरक साधनों की कमी का होना है।

प्रश्न 4.
सामान्यतः आर्थिक क्रियाओं को किन वर्गों में विभाजित किया जाता है?
उत्तर
आर्थिक क्रियाओं को निम्न वर्गों में विभाजित किया जाता है–
1. प्राथमिक क्षेत्रक, जिसमें
(क) कृषि तथा
(ख) खनन व उत्खनन सम्मिलित होते हैं।

2. द्वितीयक क्षेत्रक, जिसमें
(क) विनिर्माण,
(ख) विद्युत, गैस एवं जलापूर्ति तथा
(ग) निर्माण 
कार्य सम्मिलित होते हैं।

3. तृतीयक अथवा सेवा क्षेत्रक, जिसमें
(क) वाणिज्य,
(ख) परिवहन और भण्डारण तथा
(ग) सेवाएँ सम्मिलित होती हैं।

प्रश्न 5.
सरकार रोजगार सृजन के लिए क्या प्रयास करती है?
उत्तर
केन्द्र एवं राज्य सरकारें रोजगार सृजन हेतु अवसरों की रचना करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती आ रही हैं। इनके प्रयासों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है—प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष। प्रत्यक्ष रूप से सरकार अपने विभिन्न विभागों में प्रशासकीय कार्यों के लिए नियुक्तियाँ करती है। सरकार अनेक उद्योग, होटल और परिवहन कम्पनियाँ भी चला रही है। इन सब में वह प्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान करती है। सरकारी उद्यमों में उत्पादकता के स्तर में वृद्धि अन्य उद्यमों के विस्तार को प्रोत्साहित करती है जिससे रोजगार के नए-नए अवसर सृजित होते हैं।देश में निर्धनता निवारण के लिए चलाए ज रहे विभिन्न कार्यक्रम रोजगार सृजन कार्यक्रम ही हैं। से कार्यक्रम केवल रोजगार ही उपलब्ध नहीं कराते अपितु इनके सहारे प्राथमिक, जनस्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, ग्रामीण आवास, ग्रामीण जलापूर्ति, पोषण, लोगों की आय तथा रोजगार सृजन करने वाली परिसम्पत्तियाँ खरीदने में सहायता, दिहाड़ी रोजगार के सृजन के माध्यम से सामुदायिक परिसम्पत्तियों का विकास, गृह और स्वच्छता सुविधाओं का निर्माण, गृहनिर्माण के लिए सहायता, ग्रामीण सड़कों का निर्माण और बंजर भूमि आदि के विकास के कार्य पूरे किए जाते हैं।

प्रश्न 6.
क्या आप जानते हैं कि भारत जैसे देश में रोजगार वृद्धि की दर को 2 प्रतिशत स्तर पर बनाए रखना इतना आसान काम नहीं है? क्यों?
उत्तर
भारत एक विकासशील देश है। कृषि यहाँ का मुख्य व्यवसाय है। भारत के लगभग 60 प्रतिशत लोग कृषि कार्यों में संलग्न हैं। जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के कारण कृषि क्षेत्र में श्रमाधिक्य है। पूँजी व अन्य सहायक साधनों के अभाव में रोजगार के आवश्यक अवसरों का सृजन नहीं हो पाता है। सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में देरी तथा सार्वजनिक रूप से बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण ये परियोजनाएँ पूर्णत: सफल नहीं हो पाती हैं। बढ़ती मुद्रा स्फीति के कारण इन परियोजनाओं की लागत भी बढ़ती जाती है। इसके अतिरिक्त, इनके लाभ भी लाभार्थियों तक नहीं पहुँच पाते हैं।

प्रश्न 7.
इनमें से असंगठित क्षेत्रकों की क्रियाओं में लगे व्यक्तियों के सामने चिह्न अंकित करें

  1. एक ऐसे होटल का कर्मचारी, जिसमें सात भाड़े के श्रमिक एवं तीन पारिवारिक सदस्य हैं।
  2. एक ऐसे निजी विद्यालय का शिक्षक, जहाँ 25 शिक्षक कार्यरत हैं।
  3. एक पुलिस सिपाही।
  4. सरकारी अस्पताल की एक नर्स।
  5. एक रिक्शाचालक।
  6. कपड़े की दुकान का मालिक, जिसके यहाँ नौ श्रमिक कार्यरत हैं।
  7. एक ऐसी बेस कम्पनी का चालक, जिसमें 10 से अधिक बसें और 20 चालक, संवाहक तथा अन्य कर्मचारी हैं।
  8. दस कर्मचारियों वाली निर्माण कम्पनी का सिविल अभियन्ता।
  9. राज्य सरकारी कार्यालय में अस्थायी आधार पर नियुक्त कम्प्यूटर ऑपरेटर।
  10. बिजली दफ्तर का एक क्लर्क।

उत्तर
असंगठित क्षेत्रकों की क्रियाओं में संलग्न व्यक्ति हैं-
(1) एक ऐसे होटल का कर्मचारी, जिसमें सात भाड़े के श्रमिक एवं तीन पारिवारिक सदस्य हैं।
(5) एक रिक्शाचालक।
(6) कपड़े की दुकान का मालिक, जिसके यहाँ नौ श्रमिक कार्यरत हैं।
(9) राज्य सरकारी कार्यालय में अस्थायी आधार पर नियुक्त कम्प्यूटर ऑपरेटर। 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बेरोजगारी किसे कहते हैं? भारत में बेरोजगारी के विभिन्न स्वरूप बताइए।
उत्तर
पूर्ण रोजगार के अभाव की स्थिति को बेरोजगारी कहते हैं। यह एक अत्यन्त पतित एवं दूषित स्थिति है जिसे ‘आर्थिक बरबादी’ के नाम से भी पुकारा जाता है। वस्तुतः बेरोजगारी की स्थिति आर्थिक विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है जो सामाजिक और राजनीतिक अशान्ति को जन्म देती है। इसका समस्त समाज पर व्यापक दुष्प्रभाव पड़ता है। अर्थशास्त्रीय दृष्टि से वही व्यक्ति बेरोजगार कहलाता है, जो शारीरिक तथा मानसिक दृष्टि से कार्य करने के योग्य हो। साथ ही, प्रचलित मजदूरी की दर पर कार्य करने को तत्पर भी हो, परंतु उसे कार्य न मिले। इसके विपरीत, यदि कोई व्यक्ति शारीरिक या मानसिक दृष्टि से कार्य करने के योग्य नहीं है अथवा प्रचलित मजदूरी की दर पर कार्य करने के लिए तत्पर नहीं है (जबकि उसे कार्य उपलब्ध हो) तो उसे 
बेरोजगार नहीं कहा जाएगा। अभिप्राय यह है कि अर्थशास्त्र में ऐच्छिक बेरोजगारी (Voluntary Unemployment) को बेरोजगारी नहीं कहा जाता।

ऐच्छिक बेरोजगारी
प्रत्येक समाज में प्रत्येक समय कुछ-न-कुछ व्यक्ति ऐसे अवश्य पाए जाते हैं जो काम करने के स्रोग्य होते हुए भी काम नहीं करना चाहते। इस प्रकार की बेरोजगारी प्राय: तीन कारणों से उत्पन्न होती है

  1. कुछ व्यक्ति आलसी व कमजोर होने के कारण काम पसन्द नहीं करते जैसी भिखारी, साधु आदि।
  2. कुछ व्यक्ति धनी होने के कारण काम करने की आवश्यकता ही नहीं समझते।
  3. कुछ व्यक्ति उदासीन प्रकृति के होते हैं।

अनैच्छिक बेरोजगारी
जब स्वस्थ, योग्य एवं काम के इच्छुक व्यक्तियों को मजदूरी की प्रचलित दर पर काम नहीं मिल पाता तो इसे अनैच्छिक बेरोजगारी कहते हैं। कीन्स के अनुसार-“इस प्रकार की बेरोजगारी प्रभावपूर्ण माँग में कमी होने के कारण उत्पन्न होती है।”

भारत में बेरोजगारी का स्वरूप

भारत एक विकासशील देश है। अतः यहाँ ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी का स्वरूप एक-सा नहीं पाया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी के तीन मुख्य रूप दिखाई देते हैं-खुली बेरोजगारी, मौसमी बेरोजगारी और छिपी हुई बेरोजगारी। शहरों में पाई जाने वाली बेरोजगारी मुख्यतः दो प्रकार की है—औद्योगिक बेरोजगारी और शिक्षित बेरोजगारी।

ग्रामीण बेरोजगारी
भारत में ग्रामीण बेरोज़गारी का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है

1. खुली बेरोजगोरी– इससे हमारा अभिप्राय उन व्यक्तियों से है जिन्हें जीवन-यापन हेतु कोई कार्य नहीं मिलता। इसे स्थायी बेरोजगारी भी कहा जाता है। इस स्थायी बेरोजगारी के अन्तर्गत भारतीय गाँवों में बहुत सारे व्यक्ति बेरोजगार रहते हैं। स्थायी बेरोजगारी का मुख्य कारण कृषि पर जनसंख्या की अत्यधिक निर्भरता है।

2. मौसमी बेरोजगारी– इस प्रकार की बेरोजगारी वर्ष के कुछ महीनों में अधिक दिखाई देती है। श्रम की माँग में होने वाले परिवर्तनों में मौसमी बेरोजगारी की मात्रा भी परिवर्तित होती रहती है। सामान्यतः फसलों के बोने तथा काटने के समय श्रम की अधिक माँग रहती है, परन्तु अन्य मौसमों में रोजगार उपलब्ध नहीं होता। ग्रामीणों को सामान्यतया साल में 128 से 196 दिन तक बेरोजगार रहना पड़ता है।

3. छिपी हुई बेरोजगारी– जब श्रमिक की उत्पादकता शून्य अथवा ऋणात्मक होती है, तब उसे छिपी हुई या अदृश्य बेरोजगारी कहते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी का अनुमान लगाना कठिन है। , देश की लगभग 67% जनसंख्या कृषि में संलग्न है जबकि इतनी जन-शक्ति की वहाँ आवश्यकता नहीं है।

शहरी बेरोजगारी 
भारत की शहरी बेरोजगारी का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है
1. औद्योगिक बेरोजगारी- औद्योगिक क्षेत्र में पाई जाने वाली बेरोजगारी को औद्योगिक बेरोजगारी
कहा जाता है। इस प्रकार की बेरोजगारी चक्रीय बेरोजगारी तथा तकनीकी बेरोजगारी से प्रभावित होती है। शिक्षित बेरोजगारी 

2. शिक्षा के प्रसार के साथ- साथ इस प्रकार की बेरोजगारी का प्रसार हो रहा है। देश में शिक्षित बेरोजगारी की स्थिति बड़ी करुण एवं दयनीय हो गई है। ‘भारत में प्रशिक्षितों की बेरोजगारी‘ नामक पुस्तक में स्थिति का मूल्यांकन इन शब्दों में किया गया है-“हमारे ।
शिक्षित युवकों में बढ़ती हुई बेरोजगारी हमारे राष्ट्रीय स्थायित्व के लिए जबरदस्त खतरा है। उसे नियन्त्रित करने के लिए यदि समायोचित कदम नहीं उठाया गया तो भारी उथल-पुथल का अन्देशा

बेरोजगारी एक अभिशाप है। इससे एक ओर राष्ट्र के बहुमूल्य साधनों की बरबादी होती है तो दूसरी ओर निर्धनता, ऋणग्रस्तता, औद्योगिक अशान्ति को जन्म मिलता है। सामाजिक दृष्टि से अपराधों में वृद्धि होती है तथा राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न होती है, जिसका समस्त समाज पर व्यापक दुष्प्रभाव पड़ता है। अतः राज्य के नीति-निदेशक तत्त्वों में कहा गया है कि आजीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करना नागरिकों का अधिकार है।

प्रश्न 2.
भारत में बेरोजगारी के प्रमुख कारण बताइए। बेरोजगारी को दूर करने के लिए उपयुक्त| सुझाव दीजिए।
उत्तर
भारत में बेरोजगारी के कारण भारत में बेरोजगारी के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं

1. जनसंख्या में तीव्र वृद्धि–देश में जनसंख्या की वृद्धि-दर लगभग 1.93% वार्षिक रही है। इस प्रकार, जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है, लेकिन रोजगार की सुविधाओं में उस अनुपात में वृद्धि नहीं हुई है।

2. कुटीर उद्योगों का अभाव- भारत में कुटीर उद्योगों का ह्रास हो जाने के कारण भी बेरोजगारी में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है क्योंकि उनमें संलग्न लोगों को अन्य क्षेत्रों में रोजगार नहीं मिला है।

3. दोषपूर्ण शिक्षा-प्रणाली- हमारे देश में दोषपूर्ण शिक्षा-प्रणाली के कारण भी बेरोजगारी में वृद्धि हुई है। भारत में शिक्षा पद्धति व्यवसाय-प्रधान न होकर सिद्धान्त-प्रधान है, जो बेरोजगारी को जन्म दे रही है।

4. यन्त्रीकरण में वृद्धि – विकास की गति को तेज करने के लिए कृषि व उद्योगों में यन्त्रीकरण व आधुनिकीकरण की नीति को अपनाया जा रहा है, जिसके कारण अस्थायी बेरोजगारी को बढ़ावा मिला है।

5. श्रमिकों की गतिशीलता में कमी– शिक्षा का अभाव, पारिवारिक मोह, रूढ़िवादिता,अन्धविश्वास आदि भारतीय श्रमिक की गतिशीलता में बाधक हैं, जिसके कारण व्यक्ति घर पर बेकार रहना पसन्द करता है।

6. अविकसित प्राकृति साधन- यद्यपि हमारे देश में प्राकृतिक साधने पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।तथापि उनका पूर्ण विदोहन नहीं हुआ है, जिसके कारण देश के औद्योगिक विकास की गति धीमी रही है।

7. तकनीकी ज्ञान का अभाव- देश के शिक्षित समुदाय में तकनीकी ज्ञान का अभाव है। वह केवल लिपिक बन सकता है, किसी भी व्यवसाय को आरम्भ करने की क्षमता उसमें नहीं है। इस कारण देश में शिक्षित बेरोजगारी की प्रचुरता है।

8. बचत तथा विनियोग की न्यून दर– प्रति व्यक्ति आय कम होने के कारण हमारे देश में बचत करने की शक्ति कम है, जिसके फलस्वरूप विनियोग भी कम होता है। विनियोग के अभाव में नवीन उद्योग स्थापित नहीं हो पाते।

9. शरणार्थियों का आगमन- म्यांमार, ब्रिटेन, श्रीलंका, कीनिया, युगाण्डा आदि देशों से भारतीयों के लौटने तथा पाकिस्तान के शरणार्थियों के आगमन के कारण बेरोजगारों की संख्या में वृद्धि रही

10. दोषपूर्ण विचार पद्धति–अधिकांश व्यक्ति पढ़ाई के पश्चात् नौकरी चाहते हैं। वे स्वयं अपना कोई कार्य करना पसन्द नहीं करते, जिससे रोजगार चाहने वालों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही

11. पूँजी-गहन परियोजनाओं पर अधिक बल–द्रिय योजना के प्रारम्भ से ही हमने आधारभूत उद्योगों के विकास पर अधिक बल दिया है, जिससे भारी इन्जीनियरी व रसायन उद्योगों में अधिक पूँजी तो लगाई गई, लेकिन उसमें रोजगार के अवसर ज्यादा नहीं खुल पाए।

12. रोजगार-नीति व अंम-शक्ति नियोजन का अभाव योजनाओं में रोजगार प्रदान करने केसम्बन्ध में कोई व्यापक व प्रगतिशील नीति नहीं अपनाई गई। श्रम-शक्ति नियोजन की दिशा में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई। इसके फलस्वरूप देश में बेरोजगारी बढ़ी है।

बेरोजगारी को दूर करने हेतु सुझाव

बेरोजगारी के लिए उत्तरदायी कारणों से स्पष्ट है कि हमारे देश में बेरोजगारी का मूल कारण देश का मन्द आर्थिक विकास है। आज बेरोजगारी समय की सबसे बड़ी चुनौती है; अतः रोजगार की मात्रा में वृद्धि के लिए आर्थिक विकास के कार्यक्रमों की गति देनी ही होगी। इस समस्या को सुलझाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं-

  1. देश में श्रम-शक्ति की वृद्धि को रोकने के लिए जनसंख्या की वृद्धि पर प्रभावपूर्ण नियन्त्रण लगाया | जाए।
  2. जन-शक्ति के उचित उपयोग के लिए जन-शक्ति का नियोजन (Man-power planning) किया जाए।
  3. योजना में वित्तीय लक्ष्यों की उपलब्धि के साथ रोजगार लक्ष्यों की पूर्ति पर ध्यान केन्द्रित होना | चाहिए। अन्य शब्दों में, पंचवर्षीय योजनाओं को पूर्णरूपेण ‘रोजगार-प्रधान’ बनाया जाए।
  4. कुटीर तथा लघु उद्योगों का विकास किया जाए। ग्रामीण क्षेत्रों में तो ये उद्योग ही सम्भावित रोजगार । के केन्द्रबिन्दु हैं।
  5. कृषि के विकास तथा हरित क्रान्ति को स्थायी बनाने के प्रयास किए जाएँ।
  6. ग्रामीण औद्योगीकरण का विस्तार किया जाए।
  7. बचत तथा विनियोग दर में वृद्धि का हर सम्भव प्रयास किया जाए, क्योंकि अधिक पूँजी का विनियोग रोजगार के अधिक अवसर प्रदान करेगा।
  8. आर्थिक विकास के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करने की दृष्टि से शिक्षा-प्रणाली तथा सामाजिक व्यवस्था में वांछित परिवर्तन किया जाए।
  9. रोजगार कार्यालयों (Employment Exchanges) द्वारा रोजगार सेवाओं का विस्तार किया जाए।
  10. बेरोजगारी विशेषज्ञ समिति का सुझाव है कि रोजगार और जन-शक्ति के आयोजन के लिए एक राष्ट्रीय आयोग स्थापित किया जाए।

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UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 2 सत्य की जीत

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 2 सत्य की जीत (द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी) are part of UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi . Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 2 सत्य की जीत (द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 2
Chapter Name सत्य की जीत (द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी)
Number of Questions 9
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 2 सत्य की जीत (द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी)

प्रश्न 1:
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य का कथानक (कथावस्तु) संक्षेप में लिखिए।
या
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में वर्णित अत्यधिक मार्मिक प्रसंग का निरूपण कीजिए।
या
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर द्रौपदी और दुःशासन के वार्तालाप को अपने शब्दों में लिखिए।
या
‘सत्य की जीत’ में धृतराष्ट्र ने लोकमंगल की जिस नीति की उदघोषणा की है, उसका सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
या
‘सत्य की जीत’ के आधार पर दुःशासन एवं विकर्ण के शस्त्र एवं शास्त्र सम्बन्धी विचारों की सम्यक विवेचना कीजिए।
या
“शस्त्र को सर्वस्व मानना विनाश का मूल है।” यह बात ‘सत्य की जीत’ में किस प्रकार अभिव्यक्त की गयी है ?
या
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रस्तुत खण्डकाव्य की कथा द्रौपदी के चीर-हरण से सम्बद्ध है। यह कथानक महाभारत के सभापर्व में द्यूतक्रीड़ा की घटना पर आधारित है। यह एक अत्यन्त लघुकाव्य है, जिसमें कवि ने पुरातन आख्यान को वर्तमान सन्दर्भो में प्रस्तुत किया है। इसकी कथा संक्षेप में अग्रवत् है–

दुर्योधन पाण्डवों को द्यूतक्रीड़ा के लिए आमन्त्रित करता है। पाण्डव उसके निमन्त्रण को स्वीकार कर लेते हैं। युधिष्ठिर जुए में निरन्तर हारते रहते हैं और अन्त में अपना सर्वस्व हारने के पश्चात् द्रौपदी को भी हार जाते हैं। इस पर कौरव भरी सभा में द्रौपदी को वस्त्रहीन करके अपमानित करना चाहते हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए। दुर्योधन दु:शासन को आदेश देता है कि वह बलपूर्वक द्रौपदी को भरी सभा में लाये। दु:शासन राजमहल से द्रौपदी के केश खींचते हुए सभा में लाता है। द्रौपदी को यह अपमान असह्य हो जाता है। वह सिंहनी के संमान गरजती हुई दुःशासन को ललकारती है। द्रौपदी की गर्जना से पूरा राजमहल हिल जाता है और समस्त सभासद स्तब्ध रह जाते हैं-

ध्वंस विध्वंस प्रलय का दृश्य, भयंकर भीषण हा-हाकार।
मचाने आयी हूँ रे आज, खोल दे राजमहल का द्वार ॥

इसके पश्चात् द्रौपदी और दु:शासन में नारी पर पुरुष द्वारा किये गये अत्याचार, नारी और पुरुष की सामाजिक समानता और उनके अधिकार, उनकी शक्ति, धर्म-अधर्म, सत्य-असत्य, शस्त्र और शास्त्र, न्याय-अन्याय आदि विषयों पर वाद-विवाद होता है। अहंकारी दु:शासन भी क्रोध में आ जाता है। ‘भरी सभा में युधिष्ठिर अपना सर्वस्व हार चुके हैं तो मुझे दाँव पर लगाने का उन्हें क्या अधिकार रह गया है ? द्रौपदी के इस तर्क से सभी सभासद प्रभावित होते हैं। वह युधिष्ठिर की सरलता और दुर्योधन आदि कौरवों की कुटिलता का भी रहस्य प्रकट करती है। वह कहती है कि सरल हृदय युधिष्ठिर कौरवों की कुटिल चालों में आकर छले गये हैं; अतः सभा में उपस्थित धर्मज्ञ यह निर्णय दें कि क्या वे अधर्म और कपट की विजय को स्वीकार करते हैं अथवा सत्य और धर्म की हार को अस्वीकार करते हैं ?

कहता है कि यदि शास्त्र-बल से शस्त्र-बल ऊँचा और महत्त्वपूर्ण हो जाएगा तो मानवता का विकास अवरुद्ध . हो जाएगा; क्योंकि शस्त्र-बल मानवता को पशुता में बदल देता है। वह इस बात पर बल देता है कि द्रौपदी द्वारा प्रस्तुते तर्क पर धर्मपूर्वक और न्यायसंगत निर्णय होना चाहिए। वह कहता है कि द्रौपदी किसी प्रकार भी कौरवों द्वारा जीती हुई नहीं है।

किन्तु कौरव ‘विकर्ण की बात को स्वीकार नहीं करते। हारे हुए युधिष्ठिर अपने उत्तरीय वस्त्र उतार देते हैं। दुःशासन द्रौपदी के वस्त्र खींचने के लिए हाथ बढ़ाता है। उसके इस कुकर्म पर द्रौपदी अपने सम्पूर्ण आत्मबल के साथ सत्य का सहारा लेकर उसे ललकारती है और वस्त्र खींचने की चुनौती देती है। वह कहती है कि मैं किसी प्रकार भी विजित नहीं हैं और उसके प्राण रहते उसे कोई भी निर्वस्त्र नहीं कर सकता। यह सुनकर मदान्ध दु:शासन द्रौपदी का चीर खींचने के लिए पुन: हाथ बढ़ाता है। द्रौपदी रौद्र रूप धारण कर लेती है। उसके दुर्गा-जैसे तेजोद्दीप्त भयंकर रौद्र-रूप को देख दुःशासन घबरा जाता है और उसके वस्त्र खींचने में स्वयं को असमर्थ पाता है।

द्रौपदी कौरवों को पुनः चीर-हरण करने के लिए ललकारती है। सभी सभासद द्रौपदी के सत्य, तेज और सतीत्व के आगे निस्तेज हो जाते हैं। वे सभी कौरवों की निन्दा तथा द्रौपदी के सत्य और न्यायपूर्ण पक्ष का समर्थन करते हैं। मेदान्ध दुर्योधन, दु:शासन, कर्ण आदि को द्रौपदी पुन: ललकारती हुई कहती है-

और तुमने देखा यह स्वयं, कि होते जिधर सत्य और न्याय ।
जीत होती उनकी ही सदा, समय चाहे कितना लग जाय ॥

वहाँ उपस्थित सभी सभासद कौरवों की निन्दा करते हैं; क्योंकि वे सभी यह अनुभव करते हैं कि यदि पाण्डवों के प्रति होते हुए इस अन्याय को आज रोका नहीं गया तो इसका परिणाम बहुत बुरा होगा।

अन्त में धृतराष्ट्र उठते हैं और पाण्डवों को मुक्त करने तथा उनका राज्य लौटाने के लिए दुर्योधन को आदेश देते। हैं। इसके साथ ही चे द्रौपदी का पक्ष लेते हुए उसका समर्थन करते हैं तथा सत्य, न्याय, धर्म की प्रतिष्ठा तथा संसार का कल्याण करना ही मानवं-जीवन का उद्देश्य बताते हैं। वे पाण्डवों की कल्याण-कामना करते हुए कहते हैं-

तुम्हारे साथ तुम्हारी सत्य, शक्ति श्रद्धा, सेवा औ’ कर्म ।
यही जीवन के शाश्वत मूल्य, इन्हीं पर टिका मनुज का धर्म ॥
इन्हीं को लेकर दृढ़ अवलम्ब, चल रहे हो तुम पथ पर अभय ।
तुम्हारा गौरवपूर्ण भविष्य, प्राप्त होगी पग-पग पर विजय ॥

धृतराष्ट्र द्रौपदी के विचारों को उचित ठहराते हैं। वे उसके प्रति किये गये दुर्व्यवहार के लिए उससे क्षमा माँगते हैं। तथा कहते हैं-

जहाँ है सत्य, जहाँ है धर्म, जहाँ है न्याय, वहाँ है जीत।
तुम्हारे यश-गौरव के दिग्-दिगन्त में गूंजेंगे स्वर, गीत ॥

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि इस खण्डकाव्य की कथा द्रौपदी के चीरहरण की अत्यन्त संक्षिप्त किन्तु मार्मिक घटना पर आधारित है। द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी ने इस कथा को अत्यधिक प्रभावी बनाया है और युग के अनुकूल बनाकर नारी के सम्मान की रक्षा करने के संकल्प को दुहराया है।

प्रश्न 2:
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
या
‘सत्य की जीत’ की कथावस्तु की समीक्षा कीजिए।
या
“वस्तु-सौष्ठव एवं संगठन की दृष्टि से ‘सत्य की जीत’ एक सफल खण्डकाव्य है।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।
या
खण्डकाव्य की दृष्टि से ‘सत्य की जीत’ काव्य की समीक्षा (आलोचना) कीजिए।
या
“सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के रचना-कौशल पर प्रकाश डालिए।
या
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की पात्र-योजना अथवा पात्रों की प्रतीकात्मकता पर अपनी दृष्टि डालिए।
उत्तर:
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य कथा-संगठन एवं उसके रचना-शिल्प के अनुसार निम्नलिखित विशेषताओं से युक्त है

(1) प्रसिद्ध पौराणिक घटना पर आधारित – ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की कथावस्तु द्रौपदी के चीर-हरण’ की पौराणिक घटना पर आधारित है। महाभारत में वर्णित यह मार्मिक प्रसंग सभी युगों में विद्वानों द्वारा विवाद एवं निन्दात्मक समस्या का विषय बना रहा है। तत्कालीन युग में विदुर ने नारी के इस अपमान को भीषण विनाश का पूर्व संकेत माना था और अधिकांश समालोचकों के अनुसार महाभारत के युद्ध का कारण भी प्रमुख रूप से यही था। पाण्डवों को तत्कालीन समाज का भावनात्मक समर्थन भी इसी कारण मिला था। कवि ने इसी मार्मिक घटना को अपने खण्डकाव्य की कथावस्तु बनाया है।

(2) कथावस्तु का संगठन – ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में कवि ने संवादों के माध्यम से कथा का संगठन किया है। प्रसंग लघु होने के कारण संवाद-सूत्र में व्यक्त की गयी इस कथा का संगठन अत्यन्त उत्तम कोटि का है। कवि ने वातावरण, मनोवेग, आक्रोश आदि की अभिव्यक्ति जिन संवादों द्वारा की है, वह अपनी व्यंजना में पूर्णतया सफल रहे हैं। कथावस्तु में केवल राजसभा का एक दृश्य सामने आता है, किन्तु नाटकीय आरम्भ एवं कौतूहलपूर्ण मोड़ों से गुजरती हुई कथावस्तु स्वाभाविक रूप में तथा त्वरित गति से अपनी सीमा की ओर बढ़ी

(3) कथावस्तु की लघुता में विशालता – ‘सत्य की जीत’ का कथा-प्रसंग अत्यन्त लघु है। कवि ने द्रौपदी के चीर-हरण के प्रसंग पर अपने खण्डकाव्य की कथावस्तु-योजना तैयार की है। इस एक घटना को लेकर कवि ने प्रस्तुत खण्डकाव्य में विशद वस्तु-योजना की है, जिसमें महाभारत काल के साथ-साथ वर्तमान युग के समाज की विसंगतियों के प्रति आक्रोश की उद्घोषणा हुई है ।

पुरुष के पौरुष से ही सिर्फ, बनेगी धरा नहीं यह स्वर्ग।
चाहिए नारी का नारीत्व, तभी होगा पूरा.यह सर्ग।

(4) मौलिकता – यद्यपि ‘सत्य की जीत की कथा महाभारत की चीर-हरण घटना पर आधारित है, किन्तु कवि ने उसके प्रस्तुतीकरण में वर्तमान नारी की दशा को प्रस्तुत किया है और कुछ मौलिक परिवर्तन भी किये हैं। वे द्रौपदी के वस्त्र को श्रीकृष्ण द्वारा बढ़ाया जाता हुआ नहीं दिखाते, वरन् स्वयं द्रौपदी को ही अपने आत्मबल के प्रयोग के द्वारा दुःशासन को रोकते हुए दिखाते हैं। माहेश्वरी जी ने इस प्रसंग को स्वाभाविक एवं बुद्धिगम्य बना दिया है।

(5) देशकाल एवं वातावरण – इस खण्डकाव्य में महाभारतकालीन देशकाल एवं वातावरण का अनुभव अत्यन्त कुशलता से कराया गया है। दृश्य तो एक ही है, किन्तु पात्रों के संवाद एवं उनकी छवि के अंकन से इस देशकाल एवं वातावरण का पूर्ण स्वरूप सामने आ जाता है।

(6) नाटकीयती अथवा संवाद-योजना – ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में कवि ने कथोपकथनों के द्वारा कथा को प्रस्तुत किया है। इसके संवाद सशक्त, पात्रानुकूल तथा कथा-सूत्र को आगे बढ़ाने वाले हैं। कवि के इस प्रयास से काव्य में नाटकीयता का समावेश हो गया है, जिस कारण ‘सत्य की जीत काव्य अधिक आकर्षक बन गया है। द्रौपदी का यह संवाद उसकी निडर मनोवृत्ति का परिचायक हैं

अरे ओ दुर्योधन निर्लज्ज, करता यों बढ़-बढ़कर बात।
बाल बाँकी कर पाया नहीं, तुम्हारा वीर विश्वविख्यात ।।

(7) सुसम्बद्धता – ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की कथावस्तु पात्रों के कथोपकथनों की कड़ियों से सुसम्बद्ध हैं। कवि की कल्पना-शक्ति, अद्भुत प्रस्तुतीकरण और प्रबन्धात्मकता सभी सराहनीय हैं। कथा में आदि से अन्त तक कहीं भी अव्यवस्था नहीं आयी है। इस प्रकार समस्त कथावस्तु सुसम्बद्ध एवं सुव्यवस्थित है।

(8) खण्डकाव्य का सन्देश और उद्देश्य – प्रस्तुत खण्डकाव्य में कवि ने पात्रों के कथोपकथनों तथा तर्कवितर्क द्वारा यह सिद्ध कर दिया है कि असत्य, क्रूरता, अहंकार, अन्याय और अत्याचार की पराजय अवश्य होती है। कवि का उद्देश्य प्रस्तुत खण्डकाव्य की कथा के द्वारा नारी-जागरण एवं शस्त्रों के भण्डारण के विरुद्ध मानवतावादी भावना को स्वर देना है। राष्ट्र या समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना भी इस खण्डकाव्य की कथावस्तु का उद्देश्य है।

(9) पात्रों की प्रतीकात्मकता – इस खण्डकाव्य में प्रस्तुत किये गये सभी पात्रों का प्रतीकात्मक महत्त्व है। द्रौपदी सत्य, न्याय, धर्म आदि के गुणों की पुंज एवं अपने अधिकारों के लिए सजग और प्रगतिशील नारी को प्रतीक है। दु:शासन और दुर्योधन अनैतिकता एवं हिंसावृत्ति के प्रतीक हैं। पाण्डवों की प्रतीकात्मकता निम्नलिखित पंक्तियों से स्पष्ट है

युधिष्ठिर सत्य, भीम हैं शक्ति, कर्म के अर्जुन हैं अवतार।
नकुल श्रद्धा, सेवा सहदेव, विश्व के हैं ये मूलाधार ॥

(10) पात्रों का चयन एवं समायोजन – कवि ने इस खण्डकाव्य की कथा-योजना में महाभारतकालीन उन्हीं प्रमुख पात्रों को लिया है, जिनका द्रौपदी के चीर-हरण प्रसंग में उपयोग किया जा सकता था। नवीनता यह है कि इन पात्रों में श्रीकृष्ण को किसी भी रूप में सम्मिलित नहीं किया गया है। प्रमुख पात्र द्रौपदी एवं दु:शासन हैं। अन्य पात्रों का उल्लेख केवल वातावरण एवं प्रसंग को उद्दीपन प्रदान करने के लिए हुआ है। पात्रों को चरित्र-चित्रण स्वाभाविक है और उनके मनोभावों की अभिव्यक्ति की बड़ी सुन्दर अभिव्यंजना हुई है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि वस्तु-संगठन की दृष्टि से खण्डकाव्य की कथा लघु होनी चाहिए, नायक या नायिका में उदात्त-गुणों का समावेश होना चाहिए और कथा का विस्तार क्रमिक एवं उद्देश्य आदर्शों की स्थापना होना चाहिए। इन सभी विशेषताओं का समावेश इस खण्डकाव्य में सफलतापूर्वक किया गया है; अतः यह एक सफल खण्डकाव्य है।।

प्रश्न 3:
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में निहित सन्देश (उद्देश्य) को स्पष्ट कीजिए।
या
‘सत्य की जीत’ में प्रतिपादित आदर्शों का सोदाहरण विवेचन कीजिए।
या
” ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में कवि ने मानवीय आदर्श एवं शाश्वत जीवन-मूल्यों की प्रतिष्ठा की है, इस कथन की पुष्टि कीजिए।
या
‘सत्य की जीत’ की प्रमुख विचारधारा पर प्रकाश डालिए।
या
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में कवि की सफलता पर प्रकाश डालिए।
या
‘सत्य की जीत’ के प्रमुख विचार-बिन्दुओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
या
” ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की कथावस्तु पौराणिक होते हुए भी आधुनिक विचारधारा की पोषक है,” उद्धरण देकर सिद्ध कीजिए।
या
‘सत्य की जीत’ में जिन उदात्त जीवन-मूल्यों का चित्रण किया गया है, उन्हें सोदाहरण समझाइए।
या
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य से समाज को क्या सन्देश मिलता है ? ‘सत्य की जीत’ शीर्षक की सार्थकता को प्रमाणित कीजिए। ‘सत्य की जीत के आधार पर ‘जीओ और जीने दो’ की समीक्षा कीजिए।
या
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में नारी विषयक अवधारणा का चित्रण कीजिए।
उत्तर:
सत्य की जीत’ शीर्षक से स्वतः स्पष्ट है कि कवि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी प्रस्तुत खण्डकाव्य में असत्य पर सत्य की विजय प्रतिष्ठित करना चाहते हैं। इसे खण्डकाव्य में द्रौपदी के चीर-हरण का प्रसंग वर्णित किया गया है, किन्तु इसमें कथा का रूप सर्वथा मौलिक है। अत्याचारियों के दमन को द्रौपदी झुककर स्वीकार नहीं करती, वरन् वह पूर्ण आत्म-बलं से अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करती है। उसकी पक्ष सत्य एवं न्याय का पक्ष है। अन्ततः उसकी ही जीत होती है और पूरी राजसभा उसके पक्ष में हो जाती है।
प्रस्तुत खण्डकाव्य में कवि का उद्देश्य असत्य पर सत्य की विजय को दर्शाना है तथा खण्डकाव्य का मुख्य आध्यात्मिक भाव भी यही है। इस दृष्टिकोण से इसे खण्डकाव्य का यह शीर्षक पूर्णरूप से उपयुक्त और सार्थक है। इस खण्डकाव्य में निम्नलिखित विचारों का प्रतिपादन हुआ है

(1) नैतिक मानव-मूल्यों की स्थापना – ‘सत्य की जीत’ में कवि ने दुःशासन और दुर्योधन के छल-कपट, दम्भ, ईष्र्या, अनाचार, शस्त्र-बल, परपीड़न आदि की पराजय दिखाकर उन पर सत्य, धर्म, न्याय, प्रेम, मैत्री, करुणा, श्रद्धा आदि शाश्वत मानव-मूल्यों की प्रतिष्ठा की है और कहा है

जहाँ है सत्य, जहाँ है धर्म, जहाँ है न्याय, वहाँ है जीत।

कवि का विचार है कि मानव को भौतिकवाद के गर्त से नैतिक मूल्यों की स्थापना के आधार पर ही निकाला जा सकता है।

(2) नारी की प्रतिष्ठा – कवि ने प्रस्तुत खण्डकाव्य में द्रौपदी को श्रृंगार व कोमलता की परम्परागत मूर्ति के रूप में नहीं, वरन् दुर्गा के नव रूप में प्रतिष्ठित किया है, जो अपने सतीत्व और मर्यादा की रक्षा के लिए चण्डी और दुर्गा भी बन जाती है। यही कारण है कि भारत में नारी की शक्ति को दुर्गा के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। द्रौपदी दुःशासन से स्पष्ट कह देती है कि नारी पुरुष की सम्पत्ति या भोग्या नहीं है। उसका अपना स्वतन्त्र व्यक्तित्व है। पुरुष और नारी के सहयोग से ही विश्व का मंगल सम्भव है

पुरुष के पौरुष से ही सिर्फ, बनेगी धरा नहीं यह स्वर्ग।
चाहिए नारी का नारीत्व, तभी होगा पूरा यह सर्ग ॥

(3) प्रजातान्त्रिक भावना का प्रतिपादन – प्रस्तुत खण्डकाव्य का सन्देश है कि हम प्रजातान्त्रिक भावनाओं का आदर करें। किसी एक व्यक्ति की निरंकुश नीति को अनाचार की छूट न दें। राजसभा में द्रौपदी के प्रश्न पर जहाँ दुर्योधन, दु:शासन, कर्ण अपना तर्क प्रस्तुत करते हैं वहीं धृतराष्ट्र अपना निर्णय देते समय जन-भावनाओं की अवहेलना भी नहीं करते।

(4) स्वार्थ और ईष्र्या का उन्मूलन – आज का मनुष्य ईर्ष्या व स्वार्थ के चंगुल में फंसा हुआ है। ईर्ष्या और स्वार्थ संघर्ष को जन्म देते हैं। इनके वशीभूत होकर व्यक्ति सब कुछ कर बैठता है-इसे कवि ने कौरवों द्वारा द्रौपदी के चीर-हरण की घटना से व्यक्त किया है। दुर्योधन पाण्डवों से ईर्ष्या रखता है, जिसके कारण वह उन्हें द्यूतक्रीड़ा में हराकर उन्हें नीचा दिखाने तथा द्रौपदी को निर्वस्त्र करके उन्हें अपमानित करना चाहता है। कवि स्वार्थ और ईर्ष्या को पतन का कारण सिद्ध करता है और उनके स्थान पर मैत्री, त्याग और सेवा जैसे लोकमंगलकारी भावों को प्रतिष्ठित करना चाहता है।

(5) सहयोग, सह-अस्तित्व और विश्व-बन्धुत्व का सन्देश – ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में कवि ने आज के युग के अनुरूप यह सन्देश दिया है कि सहयोग और सह-अस्तित्व के विकास से ही विश्व-कल्याण होगा–जियें हम और जियें सब लोग। इससे सत्य, न्याय, मैत्री, करुणा और सदाचार को बल मिलेगा, जिससे व्यक्ति को समस्त संसार एक कुटुम्ब की भाँति प्रतीत होने लगेगा।

(6) शान्ति की कामना – प्रस्तुत खण्डकाव्य में कवि गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित है। वह शस्त्र बल पर सत्य, न्याय और शास्त्र की विजय दिखलाता है। धृतराष्ट्र भी शस्त्रों का प्रयोग स्थायी शान्ति की स्थापना के लिए किये जाने पर बल देते हैं

किये हैं जितने भी एकत्र, शस्त्र तुमने, उनका उपयोग।
युद्ध के हित नहीं, शान्ति हित करो, यही है उनका स्वत्व प्रयोग।

(7) निरंकुशवाद के दोषों का प्रकाशन – प्रस्तुत खण्डकाव्य के द्वारा कवि यह बताना चाहता है कि जब सत्ता निरंकुश हो जाती है तो वह अनैतिक कार्य करने में भी कोई संकोच नहीं करती। ऐसे राज्य में विवेक पूर्णतया कुण्ठित हो जाता है। भीष्म, द्रोण, धृतराष्ट्र आदि भी दुर्योधन की सत्ता की निरंकुशता के आगे हतप्रभ हैं। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में भारतीय शाश्वत जीवन-मूल्यों की प्रतिष्ठा की गयी है। इस खण्डकाव्य के द्वारा कंवि अपने पाठकों को सदाचारपूर्ण जीवन की प्रेरणा देना चाहता है। वह उन्नत मानवीय जीवन का सन्देश देता हैं। धृतराष्ट्र की उदारतापूर्ण इस घोषणा में काव्य का उद्देश्य स्पष्ट हो जाता है

नीति समझो मेरी यह स्पष्ट, जियें हम और जियें सब लोग।
बाँटकर आपस में मिले सभी, धरा का करें बराबर भोगे॥

प्रश्न 4:
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर नायिका द्रौपदी का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
” ‘सत्य की जीत’ में द्रौपदी के चरित्र में वर्तमान युग के नारी-जागरण का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।” स्पष्ट कीजिए।
या
“सत्य की जीत’ के किसी मुख्य पात्र की चरित्रगत विशेषताएँ लिखिए।
या
‘सत्य की जीत’ के आधार पर द्रौपदी के चरित्र-चित्रण की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
या
“नारी अबला नहीं, शक्तिरूपा है।” द्रौपदी के चरित्र के माध्यम से इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
या
‘सत्य की जीत’ में कवि ने द्रौपदी के चरित्र में जो नवीनताएँ प्रस्तुत की हैं, उनका उदघाटन करते हुए उसके चरित्र-वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
या
‘सत्य की जीत के आधार पर द्रौपदी के संघर्षमय जीवन का चित्रण कीजिए।
या
‘सत्य की जीत’ की नायिका द्रौपदी के चरित्र में समाविष्ट मानवीय आदर्शों का विश्लेषण कीजिए।
या
द्रौपदी का पक्ष सत्य और न्याय का पक्ष है। इस बात को सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर द्रौपदी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं-

(1) नायिका:  द्रौपदी ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की नायिका है। सम्पूर्ण कथा उसके चारों ओर घूमती है। वह राजा द्रुपद की पुत्री, धृष्टद्युम्न की बहन तथा युधिष्ठिर सहित पाँचों पाण्डवों की पत्नी है। ‘सत्य की जीत खण्डकाव्य में अत्यधिक विकट समय होते हुए भी वह बड़े आत्मविश्वास से दु:शासन को अपना परिचय देती हुई कहती है

जानता नहीं कि मैं हूँ कौन ? द्रौपदी धृष्टद्युम्न की बहन।
पाण्डुकुल वधू भीष्म, धृतराष्ट्र, विदुर को कब रे यह सहन॥

(2) स्वाभिमानिनी सबला – द्रौपदी स्वाभिमानिनी है। वह अपना अपमान नारी-जाति का अपमान समझती है। और वह इसे सहन नहीं करती। ‘सत्य की जीत की द्रौपदी महाभारत की द्रौपदी की भाँति असहाय, अबला और संकोची नारी नहीं है। यह द्रौपदी तो अन्यायी, अधर्मी पुरुषों से जमकर संघर्ष व विरोध करने वाली है। इस प्रकार उसका निम्नलिखित कथन द्रष्टव्य है

समझकर एकाकी, निशंक, दिया मेरे केशों को खींच।
रक्त का पैंट पिये मैं मौन, आ गयी भरी सभा के बीच ॥
इसलिए नहीं कि थी असहाय, एक अबला रमणी का रूप।
किन्तु था नहीं राज-दरबार, देखने मेरा भैरव-रूप ।।

(3) विवेकशीला – द्रौपदी पुरुष के पीछे-पीछे आँख बन्द कर चलने वाली नारी नहीं, वरन् विवेक से कार्य करने वाली नारी है। आज की नारी की भाँति वह अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए सजग है। द्रौपदी की स्पष्ट मान्यता है कि नारी में अपार शक्ति और आत्मबल विद्यमान है। पुरुष स्वयं को संसार में सर्वाधिक शक्तिसम्पन्न समझता है, किन्तु द्रौपदी इस अहंकारपूर्ण मान्यता का खण्डन करती हुई कहती है

नहीं कलिंका कोमल सुकुमार, नहीं रे छुई-मुई-सा गात !
पुरुष की है यह कोरी भूल, उसी के अहंकार की बात ॥

वह केवल दुःशासन ही नहीं वरन् अपने पति को भी प्रश्नों के कटघरे में खड़ा कर स्पष्टीकरण माँगती है। वह भरी सभा में यह सिद्ध कर देती है कि जुए में स्वयं को हारने वाले युधिष्ठिर को मुझे दाँव पर लगाने का कोई अधिकार नहीं है।-

द्रौपदी के वचन सुनकर सम्पूर्ण सभा, स्तब्ध और किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाती है और द्रौपदी के तर्को पर न्यायपूर्वक विचार करने के लिए विवशं हो जाती है। द्रौपदी के ये कथन उसकी वाक्पटुता एवं योग्यता के परिचायक हैं।

(4) साध्वी – द्रौपदी में शक्ति, ओज, तेज, स्वाभिमान और बुद्धि के साथ-साथ सत्य, शील और धर्म का पालन करने की शक्ति भी है। द्रौपदी के चरित्र की श्रेष्ठता से प्रभावित धृतराष्ट्र उसकी प्रशंसा करते हुए कहते हैं।

द्रौपदी धर्मनिष्ठ है सती, साध्वी न्याय सत्य साकार।
इसी से आज सभी से प्राप्त, उसे बल सहानुभूति अपार ॥

(5) ओजस्विनी – ‘सत्य की जीत’ की नायिका द्रौपदी ओजस्विनी है। वह अपना अपमान होने पर सिंहनी की भाँति दहाड़ती है

सिंहनी ने कर निडर दहाड़, कर दिया मौन सभा को भंग।

दुःशासन द्वारा केश खींचने के बाद वह रौद्र-रूप धारण कर लेती है। कवि कहती है

खुली वेणी के लम्बे केश, पीठ पर लहराये बन काल।।
उगलते ज्यों विष कालिया नाग, खोलकर मृत्यु-कणों का जाल ।

(6) सत्य, न्याय और धर्म की एकनिष्ठ साधिका – द्रौपदी सत्य और न्याय की अजेय शक्ति और असत्य तथा अधर्म की मिथ्या शक्ति का विवेचन बहुत संयत शब्दों में करती हुई कहती है

सत्य का पक्ष, धर्म का पक्ष, न्याय का पक्ष लिये मैं साथ।
अरे, वह कौन विश्व में शक्ति, उठा सकती जो मुझ पर हाथ॥

(7) नारी-जाति की पक्षधर – ‘सत्य की जीत की द्रौपदी आदर्श भारतीय नारी है। भारतीय संस्कृति के आधार वेद हैं और वेदों के अनुसार आदर्श नारी में अपार शक्ति, सामर्थ्य, बुद्धि, आत्म-सम्मान, सत्य, धर्म, व्यवहारकुशलता, वाक्पटुता, सदाचार आदि गुण विद्यमान होते हैं। द्रौपदी में भी ये सभी गुण विद्यमान हैं। अपने सम्मान को ठेस लगने पर वह सभा में गरज उठती है

मौन हो जा मैं सह सकतीन, कभी भी नारी का अपमान।
दिखा देंगी तुझको अभी, गरजती आँखों का तूफान ।।

द्रौपदी को पता है कि नारी में अपार शक्ति-सामर्थ्य, बुद्धि और शील विद्यमान हैं। नारी ही मानव-जाति के सृजन की अक्षय स्रोत है। वह नारी-जाति को पुरुष के आगे हीन सिद्ध नहीं होने देती है। नारी की गरिमा का वर्णन करती हुई वह कहती है

पुरुष उस नारी की ही देन, उसी के हाथों का निर्माण।

(8) वीरांगनां – वह पुरुष को विवश होकर क्षमा कर देने वाली असहाय अबला नहीं वरन् चुनौती देकर दण्ड देने को कटिबद्ध है

अरे ओ दुःशासन निर्लज्ज, देख तू नारी को भी क्रोध ।
किसे कहते उसका अपमान, कराऊँगी मैं उसका बोध ॥

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि द्रौपदी पाण्डव-कुलवधू, वीरांगना, स्वाभिमानी, आत्मगौरव- सम्पन्न, सत्य और न्याय की पक्षधर, सती-साध्वी, नारीत्व के स्वाभिमान से मण्डित एवं नारी जाति का आदर्श है।

प्रश्न 5:
‘सत्य की जीत के आधार पर दुःशासन का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘सत्य की जीत’ के एक प्रमुख पुरुष पात्र (दुःशासन) के चरित्र की विशेषताएँ बताइट।
या
‘सत्य की जीत’ में व्यक्त दुःशासन के चरित्र की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत खण्डकाव्य में दुःशासन एक प्रमुख पात्र है जो दुर्योधन का छोटा भाई तथा धृतराष्ट्र का पुत्र है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं-

(1) अहंकारी एवं बुद्धिहीन – दुःशासन को अपने बल पर बहुत अधिक घमण्ड है। विवेक से उसे कुछ लेना-देना नहीं है। वह स्वयं को सर्वश्रेष्ठ और महत्त्वपूर्ण मानता है तथा पाण्डवों का भरी सभा में अपमान करता है। सत्य, प्रेम और अहिंसा की अपेक्षा वह पाशविक शक्तियों को ही सब कुछ मानता है

शस्त्र जो कहे वही है सत्य, शस्त्र जो करे वही है कर्म ।
शस्त्र जो लिखे वही है शास्त्र, शस्त्र-बल पर आधारित धर्म ॥

इसीलिए परिवारजन और सभासदों के बीच द्रौपदी को निर्वस्त्र करने में वह तनिक भी लज्जा नहीं मानता है।

(2) नारी का अपमान करने वाला – द्रौपदी के साथ हुए तर्क-वितर्क में दु:शासन का नारी के प्रति पुरातन और रूढ़िवादी दृष्टिकोण प्रकट हुआ है। दु:शासन नारी को पुरुष की दासी और भोग्या तथा पुरुष से दुर्बल मानता है। नारी की दुर्बलता का उपहास उड़ाते हुए वह कहता है

कहाँ नारी ने, ले तलवार, किया है पुरुषों से संग्राम ।
जानती है वह केवल पुरुष, भुजदण्डों में करना विश्राम ॥

(3) शस्त्र-बल विश्वासी – दु:शासन शस्त्र-बल को सब कुछ समझता है। उसे धर्म-शास्त्र और धर्मज्ञों में कोई विश्वास नहीं है। इन्हें तो वहें शस्त्र के आगे हारने वाले मानता है ।

धर्म क्या है और क्या है सत्य, मुझे क्षणभर चिन्ता इसकी न।
शास्त्र की चर्चा होती वहाँ, जहाँ नर होता शस्त्र-विहीन ।।

(4) दुराचारी – दु:शासन हमारे समक्ष एक दुराचारी व्यक्ति के रूप में आती है। वह मानवोचित व्यवहार भी नहीं जानता। वह अपने बड़ों व गुरुजनों के सामने भी अभद्र व्यवहार करने में संकोच नहीं करता। वह शास्त्रज्ञों, धर्मज्ञों व नीतिज्ञों पर कटाक्ष करता है और उन्हें दुर्बल बताता है

लिया दुर्बल मानव ने ढूँढ, आत्मरक्षा का सरल उपाय।
किन्तु जब होता सम्मुख शस्त्र, शास्त्र हो जाता निरुपाय ॥

(5) धर्म और सत्य का विरोधी – धर्म और सत्य का शत्रु दु:शासन आध्यात्मिक शक्ति का विरोधी एवं भौतिक शक्ति का पुजारी है। वह सत्य, धर्म, न्याय, अहिंसा जैसे उदार आदर्शों की उपेक्षा करता है।

(6) सत्य व सतीत्व से पराजित – दुःशासन की चीर-हरण में असमर्थता इस तथ्य की पुष्टि करती है कि सत्य की ही जीत होती है। वह शक्ति से मदान्ध होकर तथा सत्य, धर्म एवं न्याय की दुहाई देने को दुर्बलता का चिह्न बताता हुआ जैसे ही द्रौपदी का चीर खींचने के लिए हाथ आगे बढ़ाता है, वैसे ही द्रौपदी के शरीर से प्रकट होने वाले सतीत्व की ज्वाला से पराजित हो जाता है।

दुःशासन के चरित्र की दुर्बलताओं या विशेषताओं का उद्घाटन करते हुए डॉ० ओंकार प्रसाद माहेश्वरी लिखते हैं कि “लोकतन्त्रीय चेतना के जागरण के इस युग में अब भी कुछ ऐसे साम्राज्यवादी प्रकृति के दुःशासन हैं, जो दूसरों के बढ़ते मान-सम्मान को नहीं देख सकते तथा दूसरों की भूमि और सम्पत्ति को हड़पने के लिए प्रतिक्षण घात लगाये हुए बैठे रहते हैं। इस काव्य में दुःशासन उन्हीं का प्रतीक है।”

प्रश्न 6:
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर दुर्योधन का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
श्री द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी कृत ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में दुर्योधन एक प्रमुख पुरुष पात्र है जो दु:शासन का बड़ा भाई तथा धृतराष्ट्र का पुत्र है। उसकी प्रमुख चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) अभिमानी और विवेकहीन – दुर्योधन को अपने बाहुबल पर अत्यधिक घमण्ड है। विवेक से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है। वह बाहुबल में विश्वास रखता है। नैतिकता में उसे बिल्कुल विश्वास नहीं है। वह स्वयं को सर्वश्रेष्ठ और महत्त्वपूर्ण मानता है, इसी कारण पाण्डवों का भरी सभा में अपमान करता है। दुर्योधन का नारी के प्रति पुरातन रूढ़िवादी दृष्टिकोण है। वह पाशविक शक्तियों को ही सब कुछ मानता है।

(2) नारी के प्रति उपेक्षा-भाव – द्रौपदी के द्वारा उपहास किये जाने पर वह उससे प्रतिशोध लेने की भावना में दग्ध रहता है। वह नारी को भोग्या और चरणों की धूल समझता है। इसी कारण भरी सभा में द्रौपदी का चीर-हरण करवाता है।

(3) दुराचारी – ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में दुर्योधन हमारे सामने एक दुराचारी पुरुष पात्र के रूप में आता है। वह मानवोचित व्यवहार भी नहीं जानता है। वह अपने बड़ों व गुरुजनों के सामने भी अभद्र व्यवहार करने में संकोच नहीं करता।

(4) ईष्र्यालु – दुर्योधन ईष्र्यालु प्रवृत्ति का पुरुष पात्र है, जो हमेशा ही पाण्डवों से ईर्ष्या रखता है। वह पाण्डवों की समृद्धि और मान सम्मान को सहन नहीं कर सकता है।

(5) छल-कपट में विश्वास – दुर्योधन यद्यपि वीर है लेकिन वह छल-कपट में विश्वास रखता है। छल-कपट से ही वह पाण्डवों को जुए के खेल में हरा देता है और उनके राज्य को हड़प लेता है। इस प्रकार उपर्युक्त गुणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि उसके चरित्र में वर्तमान साम्राज्यवादी शासकों की लोलुपता की झलक प्रस्तुत की गयी है।

प्रश्न 7:
‘सत्य की जीत के आधार पर युधिष्ठिर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के नायक का चरित्रांकन कीजिए।
या
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के प्रधान पात्र का चरित्रांकन कीजिए।
उत्तर:
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में युधिष्ठिर का चरित्र धृतराष्ट्र और द्रौपदी के कथनों के माध्यम से उजागर हुआ है। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) सत्य और धर्म के अवतार – युधिष्ठिर की सत्य और धर्म में अडिग निष्ठा है। उनके इसी गुण पर मुग्ध धृतराष्ट्र कहते हैं

युधिष्ठिर ! धर्मपरायण श्रेष्ठ, करो अब निर्भय होकर राज्य।

(2) सरल-हृदय व्यक्ति – युधिष्ठिर बहतं सरल-हृदय के व्यक्ति हैं। वे दसरों को भी सरल-हृदय समझते हैं। इसी सरलता के कारण वे शकुनि और दुर्योधन के कपटे जाल में फंस जाते हैं और उसका दुष्परिणाम भोगते हैं। द्रौपदी ठीक ही कहती है

युधिष्ठिर ! धर्मराज थे, सरल हृदय, समझे न कपट की चाल।

(3) सिन्धु-से धीर-गम्भीर – द्रौपदी का अपमान किये जाने पर भी युधिष्ठिर का मौन व शान्त रहने का कारण उनकी दुर्बलता नहीं, वरन् उनकी धीरता, गम्भीरता और सहिष्णुता है

खिंची है मर्यादा की रेखा, वंश के हैं वे उच्च कुलीन।।

(4) अदूरदर्शी – युधिष्ठिर यद्यपि गुणवान हैं, किन्तु द्रौपदी को दाँव पर लगाने जैसा अविवेकी कार्य कर बैठते हैं, जिससे जान पड़ता है कि वह सैद्धान्तिक अधिक किन्तु व्यवहारकुशल कम हैं। वह इस कृत्य का दूरगामी परिणाम दृष्टि से ओझल कर बैठते हैं

युधिष्ठिर धर्मराज का हृदय, सरल-निर्मल-निश्छल-निर्दोष।
भेरा अन्तर-सागर में अमित, भाव-रत्नों का सुन्दर कोष ॥

(5) विश्व-कल्याण के साधक – युधिष्ठिर का लक्ष्य विश्व-मंगल है, यह बात धृतराष्ट्र भी स्वीकार करते हैं

तुम्हारे साथ विश्व है, क्योंकि, तुम्हारा ध्येय विश्व-कल्याण।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि युधिष्ठिर इस खण्डकाव्य के ऐसे पात्र हैं, जो आरम्भ से लेकर अन्त तक मौन रहे हैं। कवि ने उनके मौन से ही उनके चरित्र की उपर्युक्त विशेषताएँ स्पष्ट की हैं।

प्रश्न 8:
‘सत्य की जीत’ की काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
या
‘सत्य की जीत’ की भाषा-शैली की विशेषताएँ बताइए।
या
काव्य-सौन्दर्य की दृष्टि से ‘सत्य की जीत का मूल्यांकन कीजिए।
या
एक खण्डकाव्य के रूप में सत्य की जीत का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
‘सत्य की जीत’ की काव्यगत विशेषताएँ निम्नवत् हैं

(अ) भावगत विशेषताएँ

(1) सुगठित कथावस्तु – ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की कथावस्तु अत्यन्त स्पष्ट, सरल और सुगठित है। काव्य की सभी घटनाएँ परस्पर सुसम्बद्ध हैं। कथा में आदि से अन्त तक रोचकता एवं कौतूहल विद्यमान है। कथा में कहीं भी अस्वाभाविकता एवं अरोचकता नहीं है।

(2) विश्व-बन्धुत्व का सन्देश – कवि ने विश्व को ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में प्रेम, सत्य, न्याय, मैत्री, करुणा और सदाचार की शिक्षा देकर सम्पूर्ण संसार को मार्ग दिखाया है

न्याय समता मैत्री भ्रातृत्व, भावना, स्नेहित सह अस्तित्व।
इन्हीं शाश्वत मूल्यों से बने, विश्व का मंगलमय व्यक्तित्व ॥

(3) शान्ति की कामना – ‘सत्य की जीत’ गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित है। केवल शस्त्र-बल पर विश्वास रखने वाले दुर्योधन और दु:शासन दोनों सत्य, न्याय और शास्त्र से पराजित होते हैं। स्थायी शान्ति की स्थापना के लिए धृतराष्ट्र कहते हैं

किये हैं जितने भी एकत्र, शस्त्र तुमने, उनका उपयोग।
युद्ध के हित नहीं, शान्ति हित करो, यही है उनका स्वत्व प्रयोग।

(4) उदात्त आदर्शों का स्वर – प्रस्तुत खण्डकाव्य से नारियों के प्रति श्रद्धा, विनाशकारी आचरण, शस्त्रीकरण का विरोध, प्रजातान्त्रिक आदर्शो, असत्य की निर्बलता एवं सत्य के आत्मबल की शक्ति का स्वर मुखरित होता है। इस खण्डकाव्य में कवि ने द्रौपदी के चीर-हरण को प्रसंग बनाकर उदात्त आदर्शों की. भाव-धारा प्रवाहित की है। यह भाव-धारा ही इस खण्डकाव्य की आत्मा है।

(5) रस-निरूपण – प्रस्तुत खण्डकाव्य में वीर रस की प्रधानता है, किन्तु इसमें रौद्र, शान्त आदि रसों का भी सुन्दर परिपाक हुआ है। ओजस्विनी, वीरांगना, द्रौपदी की ओजमयी वाणी इस काव्य का केन्द्रीय आकर्षण है। रौद्र रस का एक उदाहरण द्रष्टव्य है:

मौन हो जा मैं सह सकती न, कभी भी नारी का अपमान।
दिखा देंगी तुझको अभी, गरजती आँखों का तूफान ।

(6) प्रतीकात्मकता – ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में सभी पुरुष तथा स्त्री पात्रों का चरित्र प्रतीकात्मक है। द्रौपदी सत्य, न्याय, धर्म आदि गुणों की प्रतीक और अपने अधिकारों के लिए सजग नारी है। पाण्डवों की प्रतीकात्मकता द्रष्टव्य है

युधिष्ठिर सत्य, भीम है शक्ति, कर्म के अर्जुन हैं अवतार।
नकुल श्रद्धा, सेवा सहदेव, विश्व के हैं ये मूलाधार ॥

इसके बाद भी पाण्डवों के सभी गुण द्रौपदी की तेजस्विता के सम्मुख हीन जान पड़ते हैं।

(ब) कलागत विशेषताएँ

(1) भाषा – ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की भाषा सरल, सुबोध और परिष्कृत खड़ी बोली है। इसकी भाषा में प्रवाहमयता, प्रभावात्मकता, स्वाभाविकता, प्रसंगानुकूलता आदि गुण भी विद्यमान हैं। काव्य में संवादों की सजीवता एवं प्रभावपूर्णता निस्सन्देह सराहनीय है। भाषा में कहीं भी अस्वाभाविकता एवं दुरूहता के दर्शन नहीं होते; यथा

किया यदि शस्त्रों से ही मोह, न अपनाया विवेक का पन्थ।
मुझे लगता है, जो कुछ हुई, प्रगति अब तक, उसका रे अन्त ।।

(2) शैली – सारा खण्डकाव्य संवादात्मक शैली में रचित है। इसकी सम्पूर्ण कथावस्तु धृतराष्ट्र की राजसभा में पात्रों के कथोपकथनों के रूप में प्रस्तुत की गयी है। संवादों पर आधारित कथा की प्रगति शैली की प्रमुख विशेषता है

द्रौपदी बढ़-बढ़कर मत बोल, कहा उसने तत्क्षण तत्काल।
पीट मत री नारी का ढोल, उगल मत व्यर्थ अग्नि की ज्वाल॥

संवादों के कारण इस काव्य में नाटकीय-सौन्दर्य आ गया है। काव्य के समस्त घटना-व्यापार को सजीव, प्रवाहपूर्ण, सरल और विचारोत्तेजक संवादों के माध्यम से दृश्यांकित किया गया है। इन संवादों में कवि की अपूर्व मनोवैज्ञानिकता एवं सूझ-बूझ का परिचय मिलता है।

(3) अलंकार-योजना – ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में कवि ने उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रयोग किया है; यथा

रूपक – खोल जीवन-पुस्तक के पृष्ठ, मुस्कराते समरांगण बीच।
                  शस्त्र से लिखते सच्चे शास्त्र, रक्त के स्वर्णिम अक्षर खींच।
उपमा – माँग में सिन्दूर की यह रेख, मौन विद्युत-सी घन के बीच।
                कि जैसे अवसर पाकर शीघ्र, गिराएगी दुश्मन पर खींच ॥

(4) छन्द-विधान – ‘सत्य की जीत में कवि ने 16-16 मात्राओं के चार पंक्तियों वाले; मुक्त छन्द का प्रयोग किया है।

(5) भाव-चित्रण – मानव-हृदय में किसी भाव के उठने पर कुछ शारीरिक प्रतिक्रियाएँ होती हैं। इन्हें अनुभाव या संचारी भाव कहते हैं। ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में कवि ने विभिन्न-पात्रों के अनुभावों का चित्रण किया है। यहाँ क्रोधाभिभूत भीम की मुद्राओं का चित्रण देखिए

फड़कने लगे भीम के अंग, शस्त्र-बल की सुनकर ललकार।
नेत्र मुड़े धर्मराज की ओर, झुके पी, मौन रक्त की धार ।

निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि उदात्त आदर्शों के लिए सद्गुणी नायिका को आधार बनाकर लिखी गयी यह काव्य-रचना कथा की लघुती, क्रम-विस्तार आदि गुणों से युक्त है, अत: काव्य-सौन्दर्य की दृष्टि से ‘सत्य की जीत’ एक सफल खण्डकाव्य है।

प्रश्न 9:
” ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में आज की आधुनिक जाग्रत नारी का स्वर मुखर हुआ है।” इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
या
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में द्रौपदी द्वारा प्रतिपादित नारी की शक्ति एवं महत्ता पर प्रकाश डालिटी:
या
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर द्रौपदी और दुःशासन के वार्तालाप (संवाद) को अपने शब्दों में लिखिए।
या
” ‘सत्य की जीत’ में महाभारत युग के साथ वर्तमान युग भी बोल उठा है। इस कथन को समझाइट।
या
‘सत्य की जीत’ कथनक की वर्तमान सामाजिक प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिए।
या
नारी जागरण की दृष्टि से सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में कवि द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी ने द्रौपदी के परम्परागत चरित्र में नवीन उद्भावनाएँ करके आज की नारी का मार्गदर्शन किया है। दूसरे शब्दों में, हम यह भी कह सकते हैं कि माहेश्वरी जी ने द्रौपदी के माध्यम से आधुनिक नारी के उभरते स्वर को सशक्त अभिव्यक्ति दी है, जिसका विवेचन निम्नवत् है
दुःशासन द्वारा भरी-सभा में अपमानित हुई द्रौपदी अबला-सी बनकर केवल आँसू नहीं बहाती, वरन् वह साहसी आधुनिक स्त्री की भाँति सिंहनी के समान गरजती हुई क्रोधित होकर उसे चेतावनी देती है

अरे-ओ ! दुःशासन निर्लज्ज ! देख तू नारी का भी क्रोध।
किसे कहते उसका अपमान, कराऊँगी मैं इसका बोध ॥

द्रौपदी दु:शासन को अपमानित करती हुई बड़े आत्मविश्वास से कहती है कि तू मुझे बाल खींचकर भरी-सभा में ले तो अवश्य आया है, किन्तु मैं रक्त के बूंट पीकर केवल इसलिए चुप हूँ; क्योंकि नारी से मार खाकर तू संसार में मुंह दिखाने के योग्य नहीं रह जाएगा।

द्रौपदी के व्यंग्य बाणों से दु:शासन तिलमिला उठता है और कहता है कि “तू नारी की श्रेष्ठता के ढोल मत पीट। क्या कभी किसी नारी ने तलवार अपने हाथ में लेकर कहीं संग्राम किया है ? नारी तो पुरुष पर निर्भर रहती है। वह तो पुरुष के पैरों की धूल के समान है।”

इस पर द्रौपदी नारी-विषयक पुरातन मान्यताओं को तोड़ती हुई दु:शासन को फटकारती हुई कहती है कि “तू अभी नारी की शक्ति को पहचान ही नहीं पाया है। यद्यपि नारी दिखने में कोमल-कलिका के समान अवश्य होती है, परन्तु आवश्यकता पड़ने पर वह पापियों का संहार करने के लिए भैरवी का रूप भी धारण कर सकती है। पुरुष की यह भूल ही है कि वह सारे विश्व पर अपना अधिकार मानता है, नारी पर अकारण ही चोट करता है, जबकि नारी और पुरुष दोनों एक समान हैं।”

द्रौपदी के व्यंग्य-कटाक्षों को काटते हुए दु:शासन पुनः कहता है कि “नारीरूपी सरिताएँ क्या कभी पुरुषरूपी पहाड़ को हिला पायी हैं ? लहरों को तो भूधर के केवल चरण छूकर लौट जाना पड़ता है। स्त्रीरूपी लहर तो पुरुषरूपी किनारा पाकर शान्त हो जाती है।’ दुःशासन पुनः कहता है कि “तू हमारी दासी है, क्योंकि पाण्डव तुझे जुए में हार गये हैं। तू नारीत्व की बात मत कर।”

इस प्रकार द्रौपदी और दु:शासन के वार्तालाप द्वारा कवि ने यह सिद्ध किया है कि मानवता के विकास में नारी और पुरुष दोनों का ही समान महत्त्व है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। ‘पुरुष का स्थान उच्च और नारी का स्थान निम्न है’ ऐसा सोचना नारी के प्रति अन्याय व असत्य का द्योतक है। इस रूप में, ‘सत्य की जीत’ में स्थल-स्थल पर आज की जाग्रत नारी का स्वर ही मुखरित हुआ प्रतीत होता है। ऐसी जाग्रत नारी, जो अपनी सृजनात्मक महत्ता से भली-भाँति परिचित है और जो समय आने पर सीता ही नहीं चण्डी तथा काली भी बन सकती है

पुरुष उस नारी की ही देन, उसी के हाथों का निर्माण।

अन्तत: द्रौपदी और दु:शासन के वार्तालाप का अन्त ‘सत्य की जीत’ से होता है।

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्य-साहित्यका विकास अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name काव्य-साहित्यका विकास अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
Number of Questions 133
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्य-साहित्यका विकास अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

सामान्य प्रश्न

प्रश्न 1
हिन्दी-काव्य-साहित्य के विविध कालों का समय बताइए।
उत्तर

  1. आदिकाल (वीरगाथाकाल) —– सन् 993 ई० से सन् 1318 ई० तक।
  2. पूर्व-मध्यकाल (भक्तिकाल) – सन् 1318 ई० से सन् 1643 ई० तक।
  3. उत्तर-मध्यकाल (रीतिकाल) – सन् 1643 ई० से सन् 1843 ई० तक।
  4. आधुनिककाल (गद्यकाल) – सन् 1843 ई० से अब तक।

उपर्युक्त काल-विभाजन आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के ‘हिन्दी-साहित्य का इतिहास के आधार पर दिया गया है।

प्रश्न 2
कविता के बाह्य तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
कविता के बाह्य तत्त्व हैं—

  1. लय,
  2. तुक,
  3. छन्द,
  4. शब्द-योजना,
  5. चित्रात्मक भाषा तथा
  6. अलंकार

प्रश्न 3
कविता के आन्तरिक तत्त्व कौन-कौन से हैं ?
उत्तर
कविता के आन्तरिक तत्त्व हैं—

  1. अनुभूति की व्यापकता,
  2. कल्पना की उड़ान,
  3. रसात्मकता और सौन्दर्य-बोध तथा
  4. भावों का उदात्तीकरण।

प्रश्न 4 हिन्दी पद्य-साहित्य के इतिहास के विभिन्न कालों के नाम लिखिए।
उत्तर
हिन्दी-पद्य साहित्य के विभिन्न कालों के नाम हैं-

  1. वीरगाथाकाल (आदिकाल),
  2. भक्तिकाल (पूर्व-मध्यकाल),
  3. रीतिकाल (उत्तर-मध्यकाल) एवं
  4. आधुनिककाल।

प्रश्न 5
काव्य के कितने भेद होते हैं ?
उत्तर
काव्य के दो भेद होते हैं–

  1. श्रव्य काव्य और
  2. दृश्य काव्य।

प्रश्न 6
श्रव्य काव्य के कौन-कौन से भेद होते हैं ?
उत्तर
श्रव्य काव्य के दो भेद होते हैं—

  1. प्रबन्ध काव्य और
  2. मुक्तक काव्य।

प्रश्न 7
दृश्य काव्य तथा श्रव्य काव्य का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
दृश्य काव्य का रंगमंच पर अभिनय किया जा सकता है, जब कि श्रव्य काव्य का अभिनय नहीं किया जा सकता। दृश्य काव्य का आनन्द उसे देखकर अथवा सुनकर लिया जा सकता है, जब कि श्रव्य काव्य का आनन्द केवल सुनकर ही लिया जा सकता है।

प्रश्न 8
प्रबन्ध काव्य के कितने भेद होते हैं ?
उत्तर
प्रबन्ध काव्य के दो भेद होते हैं—

  1. महाकाव्य और
  2. खण्डकाव्य।

प्रश्न 9
महाकाव्य और खण्डकाव्य में अन्तर बताइए।
उत्तर
महाकाव्य की कथा में जीवन की सर्वांगीण झाँकी होती है, जब कि खण्डकाव्य में जीवन के एक पक्ष का चित्रण होता है। महाकाव्य की विस्तृत कथावस्तु पर अनेक खण्डकाव्य लिखे जा सकते हैं।

प्रश्न 10
दो महाकाव्यों के नाम लिखिए।
उत्तर दो महाकाव्यों के नाम हैं—

  1. श्रीरामचरितमानस और
  2. कामायनी।

प्रश्न 11
दो खण्डकाव्यों के नाम लिखिए।
उत्तर
दो खण्डकाव्यों के नाम हैं-

  1. जयद्रथ-वध और
  2. हल्दीघाटी।

आदिकाल (वीरगाथाकाल)

प्रश्न 12
हिन्दी के आदिकाल का समय निर्देश कीजिए और हिन्दी के प्रथम कवि का नाम बताइए।
उत्तर
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार आदिकाल का समय 993 ई० से 1318 ई० तक माना जाता है। सरहपा को हिन्दी का प्रथम कवि माना जाता है।

प्रश्न 13
हिन्दी का प्रथम कवि किसे माना जाता है ? उनका रचना-काल कब से प्रारम्भ हुआ ?
उत्तर
सरहपा को हिन्दी का प्रथम कवि माना जाता है। उनका रचना-काल 769 ई० से प्रारम्भ हुआ। कुछ विद्वान् हिन्दी का प्रथम कवि ‘पृथ्वीराज रासो’ के रचयिता चन्दबरदाई को मानते हैं।

प्रश्न 14 आदिकाल (वीरगाथाकाल) की प्रमुख विशेषताएँ बताइए। [2009]
या
आदिकालीन हिन्दी-साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
या
आदिकाल (वीरगाथाकाल) की रचनाओं की दो प्रमुख काव्य-प्रवृत्तियाँ लिखिए।
या
आदिकाल के योगदान की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
या
आदिकाल के रासो साहित्य की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर
विशेषताएँ (प्रवृत्तियाँ)-

  1. आदिकाल में अधिकांश रासो ग्रन्थ लिखे गये; जैसेपृथ्वीराज रासो, परमाल रासो आदि। इनमें आश्रयदाताओं की अतिशयोक्तिपूर्ण प्रशंसा है।
  2. वीर और श्रृंगार रस की प्रधानता है।
  3. युद्धों का सजीव वर्णन किया गया है।
  4. काव्यभाषा के रूप में डिंगल और पिंगल का प्रयोग हुआ है।
  5. काव्य-शैलियों में प्रबन्ध और गीति शैलियों का प्रयोग मिलता है।
  6. सामूहिक राष्ट्रीय भावना का अभाव रहा है।

प्रश्न 15
आदिकाल (वीरगाथाकाल) के प्रमुख कवियों और उनकी कृतियों के नाम बताइए। आदिकाल की रचना है। [2011]
या
आदिकाल के रचनाकार हैं। [2011]
या
आदिकाल के दो रचनाकारों के नाम लिखिए। [2015]
उत्तर
आदिकाल (वीरगाथाकाल) के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ इस प्रकार हैंचन्दबरदाई (पृथ्वीराज रासो), नरपति-नाल्ह (बीसलदेव रासो), दलपति विजय (खुमान रासो), जगनिक (परमाल रासो या आल्ह खण्ड), विद्यापति (पदावली), अब्दुल रहमान (सन्देश रासक), स्वयंभू (पउमचरिउ), धनपाल (भविसयत्तकहा), जोइन्दु (परमात्मप्रकाश), पुष्पदन्त (उत्तरपुराण) एवं अमीर खुसरो की फुटकर रचनाएँ।

प्रश्न 16
वीरगाथाकाल (आदिकाल) की रचनाओं में वर्णित विषय का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
आदिकाल के साहित्य में रणोन्मत्त राजपूत वीरों, रणबाँकुरों, राजपूत महिलाओं, रण-स्थल के रक्तरंजित क्रियाकलापों, गर्जन-तर्जन व हाहाकार का सजीव चित्रण है।

प्रश्न 17
वीरगाथाकाल (आदिकाल) में साहित्य रचना की प्रमुख धाराओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
इस काल की तीन प्रमुख काव्यधाराएँ निम्नलिखित हैं

  1. संस्कृत काव्यधारा,
  2. प्राकृत एवं अपभ्रंश काव्यधारा तथा
  3. हिन्दी काव्यधारा।

प्रश्न 18
आदिकाल के विभिन्न नाम बताइए।
या
‘वीरगाथाकाल’ के लिए प्रयुक्त दो अतिरिक्त नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
वीरगोथाकाल, अपभ्रंशकाल, सन्धिकाल, आविर्भावकाल, चारणकाल, बीजवपनकाल एवं सिद्ध-सामन्त युग आदि।।

प्रश्न 19
वीरगाथाकाल में रचनाएँ कौन-कौन-से काव्य-रूपों (विधाओं) में लिखी गयीं ?
उत्तर
प्रबन्ध काव्य और मुक्तक काव्यों के रूप में लिखी गयी हैं।।

प्रश्न 20
वीरगाथाकाल की रचनाओं में कौन-सी भाषा प्रयुक्त हुई है ?
उत्तर
डिंगल और पिंगल।

प्रश्न 21
आदिकाल के साहित्य को कितने वर्गों में विभाजित किया जा सकता है ?
उत्तर
पाँच वर्गों में—

  1. सिद्ध साहित्य,
  2. जैन साहित्य,
  3. नाथ साहित्य,
  4. रासो साहित्य,
  5. लौकिक साहित्य।

प्रश्न 22
जैन साहित्य का सबसे अधिक लोकप्रिय रूप किन ग्रन्थों में मिलता है ?
उत्तर
जैन साहित्य का सर्वाधिक लोकप्रिय रूप ‘रास’ ग्रन्थों में मिलता है।

प्रश्न 23
जैन धर्म के चार रास ग्रन्थों और उनके रचयिताओं के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. देवसेन रचित ‘श्रावकाचार रास’,
  2. मुनि जिनविजय कृत ‘भरतेश्वर बाहुबली रास’,
  3. जिनधर्मसूरि कृत ‘स्थूलभद्र रास’ तथा
  4. विजयसेन सूरि कृत रेवंतगिरि रास’।

प्रश्न 24
नाथ साहित्य के प्रणेता कौन थे ?
उत्तर
नाथ साहित्य के प्रणेता गोरखनाथ थे।

प्रश्न 25
कवियों तथा उनके ग्रन्थों का सही मेल करें-
कवि–दलपति विजय, चन्दबरदाई, नरपति नाल्ह, नल्हसिंह भाट तथा जगनिक।
ग्रन्थ—पृथ्वीराज रासो, बीसलदेव रासो, विजयपाल रासो, आल्ह खण्ड, खुमान रासो।
उत्तर
कवि ग्रन्थ
दलपति विजय – खुमान रासो [2011]
चन्दबरदाई – पृथ्वीराज रासो [2013]
नरपति नाल्ह बीसलदेव रासो
नल्हसिंह भाट – विजयपाल रासो
जगनिक – आल्ह खण्ड (परमाल रासो) [2014]

भक्तिकाल

प्रश्न 26
भक्तिकाल की सभी प्रमुख काव्यधाराओं का परिचय दीजिए।
उत्तर
भक्तिकाल में हिन्दी-कविता दो धाराओं में प्रवाहित हुई–निर्गुण भक्ति-धारा और सगुण भक्ति-धारा। निर्गुणवादियों में भी जिन्होंने ज्ञान को अपनाया, वे ज्ञानमार्गी और जिन्होंने प्रेम को अपनाया, वे प्रेममार्गी कहलाये।।

जिन कवियों ने भगवान् के दुष्टदलनकारी-लोकरक्षक रूप को सामने रखी, वे रामभक्ति शाखा से सम्बद्ध माने गये और जिन्होंने भगवान् के लोकरंजक रूप को सामने रखा, वे कृष्णभक्ति शाखा के कवि कहलाये।।

प्रश्न 27
भक्तिकाल की प्रमुख काव्यधाराओं और उनके कवियों के नाम लिखिए।
या
भक्तिकाल की विभिन्न धाराओं के नाम बताइट।
उत्तर
भक्तिकाल में दो प्रकार की काव्य-रचना हुई—

  1. निर्गुणमार्गीय तथा
  2. सगुणमार्गीय।

निर्गुण काव्य की दो धाराएँ हैं—
(क) ज्ञानाश्रयी-काव्यधारा तथा
(ख) प्रेमाश्रयी-काव्यधारा।

सगुण काव्य की भी दो धाराएँ हैं—
(क) कृष्णभक्ति-काव्यधारा तथा
(ख) रामभक्ति-काव्यधारा।

प्रश्न 28
सन्तकाव्य का अर्थ स्पष्ट कीजिए। इस धारा के प्रमुख कवि का नाम भी लिखिए।
उत्तर
सन्तकाव्य से आशय निर्गुण ज्ञानाश्रयी शाखा से है। ये भक्त निर्गुण-निराकार की उपासना करते हैं और ज्ञान को उसकी प्राप्ति का साधन मानते हैं। इस धारा के प्रमुख कवि हैं—कबीर, रैदास, नानक, दादू, मलूकदास आदि।

प्रश्न 29
भक्तिकाल की निर्गुण तथा सगुण भक्तिधारा का परिचय दीजिए।
उत्तर
जिस धारा में भगवान् के निर्गुण-निराकार रूप की आराधना पर बल दिया गया, वह निर्गुण धारा कहलायी और जिसमें सगुण-साकार रूप की आराधना पर बल दिया गया, वह सगुण धारा कहलायी। निर्गुणवादियों में जिन्होंने भगवत्-प्राप्ति के साधन-रूप में ज्ञान को अपनाया, वे ज्ञानमार्गी और जिन्होंने प्रेम को अपनाया, वे प्रेममार्गी कहलाये। ज्ञानमार्गी शाखा के सबसे प्रमुख कवि कबीर और प्रेममार्गी (सूफी) शाखा के मलिक मुहम्मद जायसी हुए।

प्रश्न 30
ज्ञानाश्रयी निर्गुण (सन्त) काव्यधारा की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
या
भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताओं (प्रवृत्तियों) का उल्लेख कीजिए।
या
ज्ञानाश्रयी भक्ति-शाखा की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए। भक्तिकाल की कोई एक विशेषता का उल्लेख कीजिए। [2016]
उत्तर

  1. सद्गुरु का महत्त्व सर्वाधिक; सत्संग पर भी बल।
  2. निर्गुण की उपासना एवं अवतारवाद का खण्डन।
  3. भगवान् के नाम-स्मरण तथा भजन पर बल।
  4. धर्म के क्षेत्र में रूढ़िवाद, बाह्याचार एवं आडम्बर का विरोध तथा सामाजिक क्षेत्र में विषमता, ऊँचे-नीच एवं छुआछूत का खण्डन।
  5. आन्तरिक शुद्धि एवं प्रेम साधना पर बल।
  6. ईश्वर की एकता पर बल; राम-रहीम अभिन्न हैं।

प्रश्न 31
ज्ञानाश्रयी शाखा के किसी एक कवि द्वारा रचित दो ग्रन्थों के नाम लिखिए।
उत्तर
कवि-कबीर; रचित ग्रन्थ-बीजक, कबीर-ग्रन्थावली।

प्रश्न 32
प्रेमाश्रयी भक्ति-शाखा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ (विशेषताएँ) लिखिए।
या
निर्गुण-पन्थ की प्रेमाश्रयी-शाखा की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर

  1. मुसलमान होकर भी हिन्दू प्रेमगाथाओं का वर्णन, जिनमें हिन्दू संस्कृति का चित्रण मिलता है।
  2. सूफी सिद्धान्तों का निरूपण।
  3. रहस्यवाद की चरम अभिव्यक्ति।
  4. लौकिक वर्णनों के माध्यम से अलौकिकता की व्यंजना।
  5. मसनवी शैली का प्रयोग।
  6. पूर्वी अवधी भाषा तथा दोहा-चौपाई छन्दों का प्रयोग।

प्रश्न 33
भक्तिकाल की सगुण भक्तिधारा का संक्षेप में परिचय दीजिए।
उत्तर
सगुण भक्ति में जिन्होंने भगवान् के लोकरंजक रूप को सामने रखा, वे कृष्णोपासक कहलाये तथा जिन्होंने भगवान् के दुष्ट-दलनकारी लोकरक्षक रूप को सामने रखा, वे रामभक्ति शाखा से सम्बद्ध माने गये।

प्रश्न 34
कृष्ण-काव्यधारा की प्रमुख विशेषताएँ बताइट। या भक्तिकाल की सगुण कृष्णभक्ति शाखा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ बताइट।
उत्तर

  1. श्रीमद्भागवत का आधार लेकर कृष्णलीला-गान।
  2. सख्य, वात्सल्य एवं माधुर्य भाव की उपासना एवं लोकपक्ष की उपेक्षा।
  3. काव्य में श्रृंगार एवं वात्सल्य रसों की प्रधानता; मूल आधार कृष्ण के बाल और किशोर रूप का लीला-वर्णन।
  4. ब्रज भाषा में मुक्तक काव्य-शैली की प्रधानता, जिसमें अद्भुत संगीतात्मकता का गुण विद्यमान है।

प्रश्न 35
कृष्णभक्ति-काव्य में वर्णित प्रमुख रसों का नामोल्लेख करते हुटे उस रचना का नाम भी बताइए, जिसमें उन सभी रसों का सर्वश्रेष्ठ चित्रण हुआ है।
उत्तर
कृष्णभक्ति-काव्य में श्रृंगार रस का सांगोपांग एवं वात्सल्य और भक्ति रसों का प्रयोग प्रमुखता से हुआ है। सूरदास के ‘सूरसागर’ में इन सभी रसों का सर्वश्रेष्ठ चित्रण है।

प्रश्न 36 कृष्ण-काव्यधारा के प्रमुख कवियों के नाम लिखिए। [2009]
या
अष्टछाप के किन्हीं दो कवियों का नाम लिखिए।
उत्तर
अष्टछाप के कवि ही कृष्ण-काव्यधारा के प्रमुख कवि थे। महाप्रभु वल्लभाचार्य जी के चार शिष्यों एवं अपने चार शिष्यों को मिलाकर महाप्रभु के सुपुत्र गोसाईं विट्ठलनाथ जी ने अष्टछाप की स्थापना की, जिसके आठ कवि थे-सूरदास, कुम्भनदास, परमानन्ददास, कृष्णदास, छीतस्वामी, गोविन्ददास, चतुर्भुजदास, नन्ददास। इनके अतिरिक्त कृष्ण काव्यधारा के अन्य प्रमुख कवि हैं-मीरा, रसखान, हितहरिवंश और नरोत्तमदास।

प्रश्न 37
राम-काव्यधारा की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर

  1. लोकसंग्रह (लोकहित) की भावना के कारण मर्यादा की प्रबल भावना।
  2. राम का परब्रह्मत्व।
  3. दास्य भाव की उपासना।
  4. समन्वय की विराट् चेष्टा।
  5. स्वान्त:सुखाय काव्य-रचना।
  6. अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं, प्रबन्ध और मुक्तक दोनों काव्य-शैलियों एवं विविध छन्दों का प्रयोग।

प्रश्न 38
रामाश्रयी शाखा के दो प्रमुख कवियों का नाम दीजिए।
या
राम को नायक मानकर रचना करने वाले दो कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर
गोस्वामी तुलसीदास और आचार्य केशवदास रामाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि हैं। इन दोनों ने राम को नायक मानकर अपने काव्यों की रचना की है।

प्रश्न 39
भक्तिकालीन काव्य को ‘हिन्दी कविता का स्वर्ण युग’ क्यों कहा जाता है ? स्पष्ट कीजिए।
या
हिन्दी साहित्य के विकास में भक्तिकाल के योगदान का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
भावों की उदात्तता, महती प्रेरकता, अनुभूति-प्रवणता, लोकहित का मुखरित स्वर, भारतीय संस्कृति का मूर्तिमान रूप, समन्वय की विराट् चेष्टा तथा कलापक्ष की समृद्धि इस काल की ऐसी विशेषताएँ हैं, जो किसी अन्य काल के काव्य में इतनी उच्च कोटि की नहीं मिलतीं। इसीलिए भक्तिकाल को हिन्दी काव्य को स्वर्ण युग कहा जाता है।

प्रश्न 40
भक्तिकाल में भक्तिभावना के कौन-से दो रूप मिलते हैं ?
उत्तर
निर्गुण भक्ति और सगुण भक्ति।

प्रश्न 41
भक्तिकाव्य की दो प्रमुख शाखाओं के नाम लिखिए।

  1. निर्गुण भक्ति-शाखा और
  2. सगुण भक्ति-शाखा।

प्रश्न 42
भक्तिकाल के चार प्रमुख कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर
कबीरदास, मलिक मुहम्मद जायसी, सूरदास और तुलसीदास।

प्रश्न 43
भक्तिकालीन विभिन्न काव्यधाराओं में किस धारा का काव्य सर्वश्रेष्ठ है और उसका सर्वश्रेष्ठ कवि कौन है ?
उत्तर
सर्वश्रेष्ठ काव्यधारा–रामाश्रयी काव्यधारा तथा सर्वश्रेष्ठ कवि–गोस्वामी तुलसीदास।

प्रश्न 44
भक्तिकाल की चार प्रमुख काव्यकृतियों के नाम लिखिए। भक्ति काव्यधारा की दो पुस्तकों के नाम लिखिए। [2009]
उत्तर
बीजक, पद्मावत, सूरसागर तथा श्रीरामचरितमानस।

प्रश्न 45
निर्गुण काव्यधारा की दो शाखाएँ कौन-सी हैं ?
उत्तर

  1. ज्ञानाश्रयी (सन्त) काव्यधारा तथा
  2. प्रेमाश्रयी (सूफी) काव्यधारा।

प्रश्न 46
निर्गुण-काव्यधारा की कोई एक प्रमुख विशेषता बताइए और उसके प्रमुख कवि का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर
निर्गुण काव्य में परम ब्रह्म के निराकार स्वरूप की उपासना हुई तथा ज्ञान एवं प्रेम तत्त्व की प्रधानता रही। कबीर एवं जायसी इस धारा के प्रमुख कवि हैं।

प्रश्न 47
सन्त काव्यधारा के चार प्रमुख कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर
कबीरदास, रैदास, दादू तथा नानक।

प्रश्न 48
प्रेममार्गी निर्गुण (सूफी) काव्यधारा के प्रमुख कवि का नाम तथा उनकी प्रमुख रचना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
कवि-मलिक मुहम्मद जायसी। रचना-पद्मावत।।

प्रश्न 49
सूफी काव्यधारा की कुछ प्रमुख कृतियों के नाम लिखिए।
उत्तर
पद्मावत, मृगावती (कुतुबन), मधुमालती (मंझन), चित्रावली (उसमान) आदि।

प्रश्न 50
सगुण कृष्णभक्ति-शाखा के चार प्रमुख कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर
सूरदास, मीरा, रसखान, कुम्भनदास, गोविन्ददास, नरोत्तमदास एवं परमानन्ददास।

प्रश्न 51
कृष्णभक्ति-शाखा के किन्हीं दो कवियों की एक-एक रचना का नाम लिखिए।
या
प्रेमाश्रयी अथवा कृष्णकाव्य की दो प्रमुख काव्य-रचनाओं के नाम बताइट।
या
महाकवि सूरदास की दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. सूरदास-सूरसागर व साहित्यलहरी तथा
  2. मीराबाई नरसी जी का मायरा।

प्रश्न 52
राम-काव्यधारा के दो प्रमुख कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर
तुलसीदास राम-काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि हैं। अन्य प्रमुख कवि हैं–केशवदास, नाभादास एवं अग्रदास।।

प्रश्न 53
राम-काव्यधारा की रचना किन भाषाओं में हुई है ?
उत्तर
राम-काव्यधारा की रचना अवधी तथा ब्रजभाषा में हुई है।

प्रश्न 54
ब्रजभाषा तथा अवधी भाषा के मध्यकालीन एक-एक प्रसिद्ध महाकाव्य का नाम लिखिए।
उत्तर

  1. ब्रजभाषा–सूरसागर तथा
  2. अवधी भाषा-श्रीरामचरितमानस।

प्रश्न 55
रामभक्ति-शाखा के किसी एक कवि तथा उसके द्वारा रचित दो ग्रन्थों के नाम लिखिए।
या
सगुण भक्तिधारा के किसी एक कवि द्वारा रचित दो ग्रन्थों के नाम लिखिए।
उत्तर
तुलसीदास जी के चार ग्रन्थों के नाम हैं–

  1. श्रीरामचरितमानस,
  2. विनयपत्रिका,
  3. कवितावली तथा
  4. गीतावली।

प्रश्न 56
उत्तर भारत में भक्ति-भावना को प्रवाहित करने का श्रेय किसको है ?
उत्तर
स्वामी रामानन्द तथा महाप्रभु वल्लभाचार्य को।

प्रश्न 57
हिन्दी काव्य के भक्तिकाल की दो प्रमुख धाराओं के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. निर्गुण काव्यधारा (ज्ञानमार्गी तथा प्रेममार्गी)।
  2. सगुण काव्यधारा (रामभक्ति तथा कृष्णभक्ति)।

प्रश्न 58
ज्ञानमार्गी शाखा के दो कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. कबीर तथा
  2. नानक

प्रश्न 59
हिन्दी-साहित्य की भक्तिकालीन ज्ञानाश्रयी शाखा की दो विशेषताएँ संक्षेप में लिखिए।
उत्तर

  1. ज्ञानाश्रयी शाखा में निर्गुण ब्रह्म की उपासना हुई तथा
  2. जाति-पाँति, रूढ़ियों और मिथ्याडम्बरों का विरोध हुआ।

प्रश्न 60
निर्गुण भक्ति की प्रेमाश्रयी शाखा की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर

  1. यह फारसी की मसनवी शैली में रचित है तथा
  2. अवधी भाषा में काव्य-रचना हुई।

प्रश्न 61
भक्तिकाल की प्रेमाश्रयी शाखा के एक प्रमुख कवि और उसकी एक प्रमुख रचना (महाकाव्य) का नाम लिखिए।
या
प्रेमाश्रयी शाखा के किसी एक कवि द्वारा रचित दो ग्रन्थों के नाम लिखिए। [2009]
उत्तर
कवि–मलिक मुहम्मद जायसी और उनकी रचना का नाम है पद्मावत (महाकाव्य) और अखरावट।

प्रश्न 62
रामभक्ति शाखा की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर

  1. श्रीराम की प्रतिष्ठा पूर्ण ब्रह्म के रूप में हुई है तथा
  2. यह काव्य ब्रज तथा अवधी दोनों ही भाषाओं में रचा गया।

प्रश्न 63
भक्तिकाल की तीन सामान्य प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर

  1. जीव की नश्वरता का समान रूप से वर्णन है।
  2. प्रभु के नाम स्मरण तथा गुरु की महत्ता का वर्णन सभी कवियों ने किया है।
  3. कवियों के नामोल्लेख की प्रवृत्ति रही है।

प्रश्न 64
तुलसीदास द्वारा विरचित दो प्रसिद्ध काव्यकृतियों के नाम लिखिए जिनमें एक अवधी तथा दूसरी ब्रजभाषा की हो।
उत्तर

  1. श्रीरामचरितमानस–अवधी भाषा तथा
  2. विनयपत्रिका-ब्रजभाषा।

रीतिकाल

प्रश्न 65
रीतिकालीन काव्य की प्रमुख विशेषताएँ (प्रवृत्तियाँ) लिखिए।
या
रीतिकाल की दो प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए। [2015]
उत्तर

  1. राज्याश्रित कवियों द्वारा लक्षण-लक्ष्य पद्धति पर काव्य-रचना की गयी, ये कवि रीतिबद्ध कहलाये। जिन्होंने रीति पद्धति का तिरस्कार कर स्वतन्त्र काव्य-रचना की, वे रीतिमुक्त कवि कहलाये।
  2. श्रृंगार रस की प्रधानता, परन्तु वीर रस का भी ओजस्वी वर्णन।
  3. मुख्यत: मुक्तक शैली एवं ब्रज भाषा का प्रयोग।
  4. भाव पक्ष की अपेक्षा कला पक्ष पर बल।

प्रश्न 66
रीतिबद्ध काव्य के अभिप्राय को स्पष्ट करते हुए इस प्रवृत्ति की किन्हीं दो रचनाओं और उसके रचयिताओं के नाम लिखिए।
उत्तर
जिस काव्य में काव्य-तत्त्वों का लक्षण देकर उदाहरण रूप में काव्य-रचना प्रस्तुत की जाती है, उसे ‘रीतिबद्ध काव्य’ कहते हैं। इस प्रवृत्ति के दो कवियों की रचनाओं के नाम निम्नलिखित हैं-

  1. रस-विलास–आचार्य चिन्तामणि तथा
  2. कविप्रिया-आचार्य केशवदास।

प्रश्न 67
हिन्दी में रीतिबद्ध और रीतिमुक्त कविता का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
रीतिबद्ध काव्य के अन्तर्गत वे ग्रन्थ आते हैं, जिनमें काव्य-तत्त्वों के लक्षण देकर उदाहरण के रूप में काव्य-रचनाएँ की जाती हैं, जब कि रीतिमुक्त काव्यधारा की रचनाओं में रीति–परम्परा के साहित्यिक बन्धनों एवं रूढ़ियों से मुक्त; स्वच्छन्द रचनाएँ। इस काव्यधारा के कवियों में घनानन्द का प्रमुख स्थान है और रीतिबद्ध काव्यकारों में आचार्य चिन्तामणि का प्रथम स्थान है।

प्रश्न 68
रीतिकाल में कौन-कौन-सी काव्यधाराएँ मिलती हैं ?
उत्तर

  1. रीतिबद्ध काव्यधारा तथा
  2. रीतिमुक्त काव्यधारा।

प्रश्न 69
रीतिकाल के चार प्रमुख कवियों के नाम लिखिए। [2011]
उत्तर
केशवदास, बिहारीलाल, देव एवं घनानन्द।

प्रश्न 70
रीतिकाल में वीर रस का प्रमुख कवि कौन था ? उसकी रचनाओं के नाम लिखिए। [2011]
उत्तर
रीतिकाल में वीर रस में रचना करने वाले प्रमुख कवि ‘भूषण’ थे। उनकी प्रमुख रचनाओं के नाम है-‘शिवराज भूषण’, ‘शिवा बावनी’, ‘शिवा शौर्य’, ‘छत्रसाल दशक आदि।

प्रश्न 71
केशवदास की दो प्रमुख काव्य-रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर

  1.  रामचन्द्रिका तथा
  2. कविप्रिया।

प्रश्न 72
रीतिकाल की दो काव्यकृतियों और उनके रचनाकारों के नाम लिखिए। [2008]
उत्तर

  1. सतसई-बिहारी तथा
  2. रामचन्द्रिका–केशवदास।

प्रश्न 73
रीतिकाल की पाँच प्रमुख काव्यकृतियों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. बिहारी-सतसई,
  2. रसराज (मतिराम),
  3. शिवराजभूषण (भूषण),
  4. भावविलास (देव) तथा
  5. घनानन्द कवित्त।

प्रश्न 74
रीतिकाल के चार रीतिबद्ध कवियों के नाम लिखिए।
या
रीतिकालीन किसी एक कवि का नाम लिखिए। [2011]
उत्तर

  1. चिन्तामणि,
  2. मतिराम,
  3. भूषण तथा
  4. देव

प्रश्न 75
रीतिकाल के चार रीतिमुक्त कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. घनानन्द,
  2. ठाकुर,
  3. बोधा तथा
  4. आलम।

प्रश्न 76
निम्नलिखित कवियों में से रीतिबद्ध तथा रीतिमुक्त कवियों का चुनाव कीजिए
(क) भूषण,
(ख) घनानन्द,
(ग) बिहारी,
(घ) बोधा ठाकुर,
(ङ) आचार्य केशवदास।
उत्तर
(1) रीतिबद्ध कवि-(ङ) आचार्य केशवदास, (ग) बिहारी, (क) भूषण।
(2) रीतिमुक्त कवि-(ख) घनानन्द तथा (घ) बोधा ठाकुर।

प्रश्न 77
रीतिकाव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर

  1. आश्रयदाताओं की अतिशयोक्तिपूर्ण प्रशंसा।
  2. श्रृंगार और वीर रस की प्रधानता।
  3. रीतिकाल की कविता का प्रमुख स्वर श्रृंगार का था।
  4. रीतिकाल के कवियों ने नारी को भोग्या रूप में प्रस्तुत किया।

प्रश्न 78
रीतिमुक्त काव्य से आप क्या समझते हैं ? इस काव्यधारा की मुख्य प्रवृत्तियाँ लिखिए।
उत्तर
रीतिकालीन परम्परा पर आधारित रूढ़ियों एवं साहित्यिक बन्धनों से मुक्त काव्य को रीतिमुक्त काव्य कहा जाता है। इस काव्यधारा की मुख्य प्रवृत्तियाँ हैं—

  1. शास्त्रीय मान्यताओं एवं रूढ़ियों से मुक्त स्वच्छन्द काव्य-रचना,
  2. कल्पना की प्रचुरता एवं सांकेतिकता,
  3. अनुभूति, आवेश आदि को विशेष महत्त्व इत्यादि।

प्रश्न 79
रीतिकाल के किन्हीं दो आचार्य कवियों के नाम लिखिए।
या
रीतिकाल के किसी आचार्य कवि की एक रचना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर

  1. आचार्य केशव-रामचन्द्रिका तथा
  2. आचार्य चिन्तामणि-रस-विलास।

प्रश्न 80
रीतिकाल में काव्य-रचना जिन छन्दों में की गयी है उनमें से किन्हीं दो प्रमुख छन्दों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. कवित्त तथा
  2. सवैया।

आधुनिककाल

प्रश्न 81
कविता के आधुनिककाल के प्रथम युग का नाम लिखिए तथा उस युग के एक प्रमुख कवि का नाम बताइट।
उत्तर
कविता के आधुनिककाल का प्रथम युग–भारतेन्दु युग। प्रमुख कवि-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।

प्रश्न 82
पुनर्जागरण काल (भारतेन्दु युग) का समय लिखिए।
उत्तर
सन् 1857 से 1900 ई० तक।

प्रश्न 83
भारतेन्दु युग के दो कवियों के नाम उनकी एक-एक रचनासहित लिखिए।
या
भारतेन्दु युग के किन्हीं दो कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र-प्रेम माधुरी तथा
  2. श्रीधर पाठक–वनाष्टक।

प्रश्न 84
निम्नलिखित में से किन्हीं दो की एक-एक प्रसिद्ध काव्य-रचना का नाम लिखिए
(1) महादेवी वर्मा,
(2) सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’,
(3) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,
(4) केशवदास।
उत्तर
(1) महादेवी वर्मा-‘दीपशिखा’।
(2) सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’-‘परिमल’।
(3) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र-‘प्रेम-फुलवारी’।
(4) केशवदास-‘रामचन्द्रिका’।

प्रश्न 85
द्विवेदीकालीन दो प्रमुखतम महाकाव्यों के नाम लिखिए।
या
आधुनिककाल के दो महाकाव्यों और उनके रचयिताओं के नाम बताइए।
उत्तर

  1. साकेत – मैथिलीशरण गुप्त।
  2. प्रियप्रवास – अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’।

प्रश्न 86
द्विवेदीयुगीन कविता की दो प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर
द्विवेदी युग के काव्य की दो विशेषताएँ (प्रवृत्तियाँ) निम्नलिखित हैं-

  1. काव्य में ब्रजभाषा के स्थान पर खड़ी बोली की प्रतिष्ठा हुई।
  2. स्वदेश प्रेम तथा स्वदेशी गौरव पर काव्य-रचनाएँ की गयीं।

प्रश्न 87
कविता के आधुनिककाल के द्वितीय युग का नाम तथा उस युग के एक प्रमुख कवि तथा एक रचना का नाम लिखिए।
उत्तर
आधुनिककाल के द्वितीय युग का नाम द्विवेदी युग’ है। कवि–मैथिलीशरण गुप्त; रचना–साकेत।

प्रश्न 88
द्विवेदी युग के दो प्रमुख कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. मैथिलीशरण गुप्त तथा
  2. अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’।

प्रश्न 89
द्विवेदी युग की समय-सीमा बताइए।
उत्तर
द्विवेदी युग की समय-सीमा 1900 ई० से 1918 ई० तक है।

प्रश्न 90
द्विवेदीयुगीन काव्यधारा के किन्हीं दो कवियों की दो-दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. श्री मैथिलीशरण गुप्त; रचनाएँ–भारत-भारती तथा यशोधरा,
  2. श्री अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध’; रचनाएँ—रुक्मिणी परिणय तथा वैदेही वनवास।

प्रश्न 91
कविता के आधुनिककाल के तृतीय युग का नाम लिखिए तथा उस युग के एक प्रमुख कवि का नाम लिखिए।
उत्तर
कविता के आधुनिककाल के तृतीय युग का नाम ‘छायावादी युग’ है तथा इस युग के प्रमुख कवि श्री जयशंकर प्रसाद जी हैं।

प्रश्न 92
छायावादी काव्य की प्रमुख विशेषताओं (प्रवृत्तियों) का उल्लेख करते हुए किन्हीं दो छायावादी कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. मूलतः सौन्दर्य और प्रेम का काव्य,
  2. प्रकृति का मानवीकरण,
  3. अज्ञात के प्रति जिज्ञासा (रहस्यवादी प्रवृत्ति),
  4. नारी की महिमा का वर्णन,
  5. राष्ट्रीयता की भावना,
  6. वैराग्य, वेदना और पलायनवादिता,
  7. प्रतीकात्मकता और लाक्षणिकता,
  8. चित्रात्मकता,
  9. प्रगतिमयता तथा
  10. खड़ी बोली का अतिशय परिमार्जन।

दो छायावादी कवियों के नाम-

  1. जयशंकर प्रसाद तथा
  2. सुमित्रानन्दन पन्त।

प्रश्न 93
छायावादी कविता के हास के कारण लिखिए।
उत्तर
विदेशी शासन के दमन के कारण जनसाधारण की निरन्तर बढ़ती पीड़ा छायावाद के ह्रास का मुख्य कारण बनी। इस दमन को देखकर कविगण कल्पना लोक से उबरकर यथार्थ के कठोर धरातल पर आ गये। पूँजी की वृद्धि तथा दीनता का प्रसार भी छायावाद के ह्रास का कारण बना।

प्रश्न 94
छायावाद काल की समय-सीमा बताइए।
उत्तर
सन् 1918 से 1938 ई० तक का समय छायावाद के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 95
छायावाद के चार कवि और उनकी दो-दो रचनाएँ लिखिए।
या
पायावाद के दो प्रमुख कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. जयशंकर प्रसाद कामायनी; आँसू,
  2. सुमित्रानन्दन पन्त-पल्लव; ग्राम्या,
  3. सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’–परिमल; गीतिका,
  4. महादेवी वर्मा–दीपशिखा; सान्ध्य-गीत।।

प्रश्न 96
दो रहस्यवादी कवि और उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. सुमित्रानन्दन पन्त कृत ‘पल्लव’ तथा
  2. महादेवी वर्मा कृत ‘दीपशिखा’।

प्रश्न 97
छायावादी कविता के हास के कारण संक्षेप में लिखिए।
उत्तर

  1. छायावादी कविता में सूक्ष्म और वायवीय कल्पनाओं की अधिकता थी।
  2. स्थूल जगत की कठोर वास्तविकता से उसका कोई सम्बन्ध नहीं रह गया था।
  3. समाज में पूँजी के विरुद्ध आवाज उठ रही थी, इसलिए अतिशय कल्पना को छोड़ रोटी, कपड़ा और मकान कविता का विषय बनने लगे थे।

प्रश्न 98
निम्नलिखित कवियों की एक-एक प्रमुख रचना का नाम लिखिए जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’, सुमित्रानन्दन पन्त, रामधारी सिंह ‘दिनकर’।
उत्तर

  1. जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’, रचना-गंगावतरण।
  2. सुमित्रानन्दन पन्त, रचना-चिदम्बरी।
  3. रामधारी सिंह ‘दिनकर’, रचना–उर्वशी।

प्रश्न 99
निम्नलिखित कवियों में से किन्हीं दो द्वारा रचित एक-एक महाकाव्य का नाम लिखिए
(1) चन्दबरदाई,
(2) तुलसीदास,
(3) अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’,
(4) रामधारी सिंह ‘दिनकर’।।
उत्तर
(1) पृथ्वीराज रासो,
(2) श्रीरामचरितमानस,
(3) प्रियप्रवास तथा
(4) कुरुक्षेत्र।

प्रश्न 100
बिहारी, मैथिलीशरण गुप्त, अज्ञेय, रत्नाकर, पन्त, दिनकर में से किन्हीं दो की एक-एक रचना का नाम लिखिए।
उत्तर
अज्ञेय–आँगन के पार द्वार। जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’-उद्धवशतक।

प्रश्न 101
आधुनिक युग (छायावादी काव्यधारा) के किसी एक महाकाव्य और उसके रचनाकार का नाम लिखिए।
या
‘कामायनी’ महाकाव्य के सर्गों के नाम लिखिए। [2013]
उत्तर
महाकाव्य-कामायनी; रचनाकार–जयशंकर प्रसाद।
‘कामायनी’ महाकाव्य के सर्गों के नाम हैं—

  1. चिन्ता,
  2. आशा,
  3. श्रद्धा,
  4. काम,
  5. वासना,
  6. लज्जा ,
  7. कर्म,
  8. ईष्र्या,
  9. इडा,
  10. स्वप्न,
  11. संघर्ष,
  12. निर्वेद,
  13. दर्शन,
  14. रहस्य तथा
  15. आनन्द

प्रश्न 102
प्रगतिवादी काव्य का परिचय दीजिए।
उत्तर
प्रगतिवादी काव्य का उद्भव छायावादी काव्य की काल्पनिक एवं भावुकतापूर्ण अभिव्यक्ति के विद्रोहस्वरूप हुआ। इस वाद के काव्यों में स्थूल जगत् की वास्तविकता, सामाजिक-आर्थिक विसंगतियों एवं वर्ग-शोषण के स्वर को अलंकारविहीन तथा सरल रूप में अभिव्यक्ति दी गयी।

प्रश्न 103
प्रगतिवादी कविता की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
या
प्रगतिवादी काव्य की दो प्रमुख प्रवृत्तियों (विशेषताओं) का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर

  1. साम्यवाद का काव्यात्मक रूपान्तर (अर्थात् मार्क्स और रूस का गुणगान, पूँजीवाद का विरोध एवं कृषक-मजदूर-राज्य की स्थापना का स्वप्न),
  2. यथार्थवाद,
  3. परम्पराओं और रूढ़ियों का विरोध,
  4. धर्म और ईश्वर में अविश्वास,
  5. श्रम की महत्ता की स्थापना,
  6. शोषितों के प्रति सहानुभूति,
  7. वेदना और निराशा,
  8. नारी के प्रति आधुनिक यथार्थवादी दृष्टिकोण,
  9. जन-भाषा का आग्रह तथा
  10. छन्दों और अलंकारों का बहिष्कार।

प्रश्न 104
प्रगतिवाद के प्रमुख कवियों और उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
या
प्रगतिवादी काव्यधारा के किन्हीं दो कवियों की एक-एक रचना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
नागार्जुन (युगधारा), केदारनाथ अग्रवाल (युग की गंगा), शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (प्रलयसृजन), त्रिलोकचन्द शास्त्री (धरती)।

प्रश्न 105
प्रगतिवादी युग के दो कवियों तथा उनकी एक-एक रचना का नाम लिखिए।
उत्तर

  1. रामधारी सिंह ‘दिनकर’-उर्वशी तथा
  2. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’–विन्ध्य हिमालय से।।

प्रश्न 106
छायावादोत्तर काल की कविता का काल-विभाजन लिखिए।
उत्तर
(क) प्रगतिवाद, प्रयोगवाद (1938-1959 ई०);
(ख) नयी कविता का काल (1959 ई० से वर्तमान तक)।।

प्रश्न 107
प्रयोगवादी कविता की मुख्य विशेषताएँ बताइए। या छायावादोत्तर काल की काव्य-प्रवृत्तियाँ लिखिए।
उत्तर

  1. अति वैयक्तिकता,
  2. निराशा, कुण्ठा और घुटन,
  3. फ्रायड के प्रभाववश नग्न यौन-चित्रण,
  4. अतियथार्थवाद (नग्न यथार्थ),
  5. पराजय, पलायन और वेदना,
  6. बौद्धिकता,
  7. क्षण का महत्त्व,
  8. अवचेतन के यथावत् प्रकाशन का आग्रह,
  9. अनगढ़ भाषा का प्रयोग एवं
  10. नया शिल्पविधान (नये उपमानों, बिम्बों, प्रतीकों का प्रयोग तथा छन्दहीनता का आग्रह)।

प्रश्न 108
प्रयोगवाद से आप क्या समझते हैं ? ‘नयी कविता’ क्या है ?
उत्तर
सन् 1943 में प्रकाशित ‘तारसप्तक’ की कविताओं में नये बिम्ब-विधानों, नये अलंकारों और नयी भावाभिव्यक्ति को अपनाया गया। काव्य की इसी नयी विधा को ‘प्रयोगवादी काव्य’ के नाम से अभिहित किया गया। नयी कविता इस प्रयोगवादी कविता का ही विकसित रूप है।

प्रश्न 109
प्रयोगवादी काव्यधारा का नेतृत्व करने वाले कवि का नामोल्लेख कीजिए और उनके एक प्रमुख प्रकाशन का नाम लिखिए। [2011]
उत्तर
प्रयोगवादी काव्यधारा का नेतृत्व करने वाले कवि सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय हैं। इन्होंने ‘तारसप्तक’ नामक एक काव्य-संकलन सन् 1943 ई० में प्रकाशित किया। ‘कितनी नावों में कितनी बार इनकी एक प्रमुख रचना है, जिस पर इन्हें ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार की प्राप्ति हुई है।

प्रश्न 110
प्रथम तारसप्तक के कवियों के नाम लिखिए।
या
हिन्दी में प्रयोगवादी काव्यधारा के किन्हीं चार कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर
सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, गजानन माधव मुक्तिबोध’, गिरिजाकुमार माथुर, प्रभाकर माचवे, नेमिचन्द्र जैन, भारत भूषण और रामविलास शर्मा। सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ ने इन सात कवियों की रचनाएँ ‘तारसप्तक’ के नाम से सन् 1943 ई० में प्रकाशित कीं।

प्रश्न 111
‘तारसप्तक’ का प्रकाशन किसने और किस समय किया? इसके सम्पादक कौन थे ?
उत्तर
श्री सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ ने सन् 1943 ई० में अपनी पीढ़ी के अन्य छ: कवियों के सहयोग से ‘तारसप्तक’ का प्रकाशन किया। इसके सम्पादक श्री सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ स्वयं थे।

प्रश्न 112
‘तारसप्तक’ की कविताएँ किस काव्यधारा से सम्बन्धित हैं ?
उत्तर
‘तारसप्तक’ की कविताएँ प्रयोगवादी काव्यधारा से सम्बन्धित हैं।।

प्रश्न 113
‘दूसरा सप्तक’ के कवियों के नाम लिखिए। यह कब प्रकाशित हुआ ? [2016]
उत्तर
‘दूसरा सप्तक’ में भवानी प्रसाद मिश्र, शकुन्त माथुर, हरिनारायण व्यास, शमशेर बहादुर सिंह, नरेश मेहता, रघुवीर सहाय तथा धर्मवीर भारती की कविताएँ संकलित थीं। इस सप्तक की रचनाओं में आत्मान्वेषण पर बल दिया गया था तथा यह सन् 1951 ई० में प्रकाशित हुआ।

प्रश्न 114
‘तीसरा सप्तक’ के कवियों के नाम लिखिए। यह कब प्रकाशित हुआ ? या तीसरा सप्तक के प्रकाशन-वर्ष का उल्लेख कीजिए। | [2012, 14, 17]
उत्तर
‘तीसरा सप्तक’ के अन्तर्गत प्रयागनारायण त्रिपाठी, कीर्ति चौधरी, मदन वात्स्यायन, केदारनाथ सिंह, कुंवर नारायण, विजयदेव नारायण साही तथा सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की रचनाएँ संकलित हैं। इस सप्तक की कविताओं में सौन्दर्यवादी प्रवृत्ति के साथ-साथ युगीन सत्य की भी निश्छल अभिव्यक्ति मिलती है। इसका प्रकाशन सन् 1959 ई० में हुआ।

प्रश्न 115
‘चौथा सप्तक’ कब प्रकाशित हुआ ? इसके कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर
सन् 1979 ई० में चौथा सप्तक प्रकाशित हुआ। इसमें अवधेश कुमार, राजकुमार कुम्भज, स्वदेश भारती, नन्दकिशोर आचार्य, सुमन राजे, श्रीराम वर्मा, राजेन्द्र किशोर की रचनाएँ संकलित हैं।

प्रश्न 116
प्रयोगवादी काव्य की पाँच रचनाओं और रचयिताओं के नाम लिखिए।
या
प्रयोगवादी काव्यधारा के किन्हीं दो कवियों की एक-एक रचना का उल्लेख कीजिए। उत्तर भग्नदूत (सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’), चाँद का मुँह टेढ़ा (गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’); ओ अप्रस्तुत मन (भारतभूषण अग्रवाल), धूप के धान (गिरिजाकुमार माथुर), गीतफरोश (भवानीप्रसाद मिश्र)।।

प्रश्न 117
आधुनिक युग की कविता की चार मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर

  1. यथार्थ का उन्मुक्त चित्रण,
  2. नारी-मुक्ति का आह्वान,
  3. लघुता के प्रति सजगता और
  4. गेय तत्त्व की अवहेलना।

प्रश्न 118
आधुनिक कविता के प्रमुख वादों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, हालावाद, स्वच्छन्दतावाद आदि आधुनिक कविता के प्रमुख वाद हैं।

प्रश्न 119
नयी कविता से आप क्या समझते हैं ? इसके आरम्भ होने का समय लिखिए। [2013]
उत्तर
इसका आरम्भ सन् 1954 ई० में जगदीश गुप्त और डॉ० रामस्वरूप चतुर्वेदी के सम्पादन में ‘नयी कविता’ के प्रकाशन से हुआ। यह कविता किसी वाद से बँधकर नहीं चलती।

प्रश्न 120
नयी कविता को अकविता क्यों कहा जाता है ?
उत्तर
नयी कविता परम्परागत कविता के स्वरूप से नितान्त भिन्न हो गयी है। यह किसी वाद या दर्शन से जुड़ी नहीं है, इसलिए इसे अकविता कहा जाता है।

प्रश्न 121
नयी कविता की किन्हीं दो प्रमुख रचनाओं का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर

  1. युग की गंगा-केदारनाथ अग्रवाल तथा
  2. बूंद एक टपकी-भवानीप्रसाद मिश्र।।

प्रश्न 122
‘नयी कविता’ से सम्बन्धित किन्हीं दो पत्रिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. कल्पना’ तथा
  2. ‘ज्ञानोदय’।

प्रश्न 123
नयी कविता के पाँच प्रमुख कवियों के नाम बताइए।
उत्तर
जगदीश गुप्त, धर्मवीर भारती, नरेश मेहता, लक्ष्मीकान्त वर्मा तथा सर्वेश्वरदयाल सक्सेना।

प्रश्न 124
नयी कविता की विशेषताओं (प्रवृत्तियों) का उल्लेख करते हुए किन्हीं दो प्रतिनिधि कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर
नयी कविता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. यथार्थता,
  2. वर्जनाओं से मुक्ति (अर्थात् सामाजिक मर्यादाओं एवं बन्धनों का तिरस्कार करके नि:संकोचे अश्लील चित्रण),
  3. हृदयपक्ष की अपेक्षा बुद्धिपक्ष की प्रधानता,
  4. निराशा तथा अवसाद (खिन्नता) की प्रबलता,
  5. खिचड़ी भाषा, जिसमें हिन्दी की विभिन्न बोलियों, प्रादेशिक भाषाओं एवं अंग्रेजी आदि के शब्दों का घालमेल तथा
  6. प्रतीकों, बिम्बों एवं मुक्त छन्द पर बल। | नयी कविता के दो प्रतिनिधि कवि हैं-जगदीश गुप्त और सर्वेश्वरदयाल सक्सेना।।

प्रश्न 125
नवगीत’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर
‘नवगीत’ छायावादी एवं प्रगतिवादी दोनों ही काव्यों की कई विशेषताओं से युक्त ऐसा काव्य है, जिसमें आधारभूत चेतना, जीवन-दृष्टि, भाव-भूमि एवं अभिव्यंजना शैली की व्यापकता, सूक्ष्मता, विविधता, यथार्थता एवं लौकिकता का एकान्तिक संयोग है।

प्रश्न 126
‘नवगीत’ की किन्हीं दो आधारभूत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
नवगीत की दो आधारभूत विशेषताएँ हैं-

  1. सर्वत्र भावानुकूल भाषा का प्रयोग तथा
  2. स्वस्थ बिम्ब एवं प्रतीक विधान।।

प्रश्न 127
नवगीत’ के दो महत्त्वपूर्ण गीतकारों और उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर
नवगीत’ के दो महत्त्वपूर्ण गीतकार और उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. शम्भूनाथ सिंह (‘उदयाचल’, ‘दिवालोक’, ‘समय की शिला पर’, ‘जहाँ दर्द नील हैं’ आदि।) तथा
  2. वीरेन्द्र मिश्र (‘गीतम’, ‘लेखनी बेला’, ‘अविराम चल मधुवन्ति’ आदि।)

प्रश्न 128
नवगीतधारा के प्रमुख कवियों के नाम बताइए।
उत्तर
रमानाथ अवस्थी, डॉ० शम्भूनाथ सिंह, श्रीपाल सिंह ‘क्षेम’, गुलाब खण्डेलवाल, सुमित्राकुमारी सिन्हा, शान्ति मेहरोत्रा, हंसकुमार तिवारी, सोम ठाकुर, गोपालदास नीरज’, वीरेन्द्र मिश्र तथा डॉ० कुँवर बेचैन।

प्रश्न 129
साठोत्तरी कविता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर
साठोत्तरी कविता मोह-भंग, आक्रोश, अस्वीकार, तनाव और विद्रोह की कविता है। इसको मुहावरा नया है, शैली बेपर्द है और इसमें जिजीविषा का गहरा रंग है।

प्रश्न 130
साठोत्तरी कविता की किन्हीं दो आधारभूत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
साठोत्तरी कविता की दो आधारभूत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—

  1. अन्याय के विरुद्ध और शासन द्वारा कही जाने वाली चिकनी-चुपड़ी बातों की आक्रोशयुक्त स्वर में अभिव्यक्ति तथा
  2. व्यक्ति और उसके परिवेश की हर परत की बेपर्द अभिव्यक्ति।

प्रश्न 131
साठोत्तरी कविता के किन्हीं दो प्रमुख कवियों और उनकी रचनाओं के नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर
साठोत्तरी कविता के दो महत्त्वपूर्ण कवि और उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं–

  1. धूमिल (‘संसद से सड़क तक’, ‘कल सुनना मुझे’, ‘सुदामा पाण्डे का प्रजातन्त्र’ आदि) तथा
  2. रामदरश मिश्र (‘पथ के गीत’, ‘बैरंग बेनाम चिट्ठियाँ’, ‘पक गयी है धूप’, ‘कन्धे पर सूरज’ आदि)।

प्रश्न 132
‘नया दोहा’ के प्रमुख संकलनों के नाम लिखिए।
उत्तर
नया दोहा’ के प्रमुख संकलनों के नाम निम्नलिखित हैं

  1. अमलतास की छाँव (पाल भसीन),
  2. आँखों खिले पलाश (पं० देवेन्द्र शर्मा ‘इन्द्र’),
  3. कटुक सतसई (विश्वप्रकाश दीक्षित ‘बटुक’),
  4. कालाय तस्मै नमः (भारतेन्दु मिश्र) आदि।

प्रश्न 133
वर्तमान युग के पाँच जीवित कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर
वर्तमान युग के पाँच जीवित कवियों के नाम हैं—पं० देवेन्द्र शर्मा ‘इन्द्र’, पाल भसीन, विश्वप्रकाश दीक्षित ‘बटुक, भारतेन्दु मिश्र और दिवाकर आदित्य शर्मा।।

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UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 3 Man and His Environment

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 3 Man and His Environment (मानव एवं उसका पर्यावरण) are part of UP Board Solutions for Class 12 Geography. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 3 Man and His Environment (मानव एवं उसका पर्यावरण).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Geography
Chapter Chapter 3
Chapter Name Man and His Environment (मानव एवं उसका पर्यावरण)
Number of Questions Solved 19
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 3 Man and His Environment (मानव एवं उसका पर्यावरण)

विस्तृत उतरीय प्रश्न

प्रश्न 1
पर्यावरण से क्या अभिप्राय है? पर्यावरण के तत्त्वों पर प्रकाश डालिए। [2007]
या
प्राकृतिक पर्यावरण के तत्त्वों का वर्णन कीजिए। [2007]
या
भौतिक पर्यावरण के चार क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए। [2009] पर्यावरण के दो प्रमुख संघटकों का उल्लेख कीजिए। (2010, 13, 14, 15, 16)
या
पर्यावरण के प्रमुख तत्त्वों की विवेचना कीजिए तथा मानव के क्रियाकलापों पर उनके प्रभावों की व्याख्या कीजिए। (2014)
उत्तर

पर्यावरण का अर्थ Meaning of Environment

पर्यावरण भूगोल का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। पर्यावरण’ भूतल पर चारों ओर का वह आवरण है जो मानव को प्रत्येक ओर से घेरे हुए है और उसके जीवन तथा क्रियाकलापों पर प्रभाव डालता है तथा संचालित करता है। इस दशा में मानव से सम्बन्धित समस्त बाह्य तथ्य, वस्तुएँ, स्थितियाँ तथा दशाएँ शामिल होती हैं, जिनकी क्रिया-प्रतिक्रियाएँ मानव के जीवन-विकास को प्रभावित करती हैं। प्राकृतिक पर्यावरण द्वारा मानव के सभी । क्रियाकलाप निर्धारित होते हैं। ये प्राकृतिक परिस्थितियाँ–धरातलीय बनावट, जलवायु, वनस्पति, मिट्टी, खनिज-सम्पदा तथा जैविक तत्त्व-किसी-न-किसी प्रकार मानव को प्रभावित करते हैं; अर्थात् मानव इस प्राकृतिक पर्यावरण की देन है। पर्यावरण के सम्बन्ध में सभी भूगोलवेत्ता एकमत नहीं हैं। अत: पर्यावरण को समझने के लिए निम्नांकित विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषाओं का अध्ययन एवं विश्लेषण करना आवश्यक होगा –

जर्मन वैज्ञानिक फिटिंग ने पर्यावरण को परिभाषित करते हुए कहा है कि, “जीव के परिस्थिति कारकों का योग पर्यावरण है; अर्थात् जीवन की परिस्थिति के समस्त तथ्य मिलकर पर्यावरण कहलाते हैं।”
ए० जी० तांसले के अनुसार, “प्रभावकारी दशाओं का वह सम्पूर्ण योग जिसमें जीव निवास करते हैं, पर्यावरण कहलाता है।”
एम० जे० हर्सकोविट्ज के अनुसार, “पर्यावरण उन समस्त बाह्य दशाओं और प्रभावों का योग है। जो प्राणी के जीवन एवं विकास पर प्रभाव डालते हैं।”
प्रो० डेविस के अनुसार, “मानव के सम्बन्ध में भौगोलिक पर्यावरण से अभिप्राय भूमि अथवा मानव के चारों ओर फैले उन भौतिक स्वरूपों से है, जिनमें वह निवास करता है, जिनका उसकी आदतों और क्रियाओं पर प्रभाव पड़ता है।”

पर्यावरण के प्रकार एवं तत्त्व
Elements and Types of Environment

पर्यावरण को निम्नलिखित दो मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है –
1. भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण (Physicalor Natural Environment) – इसके अन्तर्गत वे समस्त भौतिक शक्तियाँ, तत्त्व एवं क्रियाएँ सम्मिलित की जा सकती हैं जिनको प्रत्यक्ष प्रभाव मानव के क्रियाकलापों पर पड़ता है। भौतिक शक्तियों में पृथ्वी की गतियाँ, सूर्यातप, गुरुत्वाकर्षण बल, भूकम्प एवं ज्वालामुखी क्रिया, भू-पटल की गतियाँ तथा प्राकृतिक तथ्यों से सम्बन्धित सभी दृश्य सम्मिलित किये जाते हैं। इन शक्तियों द्वारा भू-तल पर अनेक क्रियाओं का जन्म होता है, जिनसे पर्यावरण के तत्त्वों का जन्म होता है। इन शक्तियों अथवा क्रियाओं और तत्त्वों का सम्मिलित प्रभाव मानव के क्रियाकलापों पर पड़ता है।

भौतिक क्रियाओं में भूमि का अपक्षय, अपरदन, निक्षेपण, ताप विकिरण, संचालन, संवाहन, वायु एवं जल की गतियाँ, जीवधारियों की उत्पत्ति तथा उनका विकास एवं विनाश आदि क्रियाएँ सम्मिलित हैं। इन प्रक्रियाओं से प्राकृतिक वातावरण अपनी अनेक क्रियाओं का क्रियान्वयन करता है, जिनका प्रत्यक्ष । प्रभाव मानव के क्रियाकलापों पर पड़ता है।
भौतिक पर्यावरण के तत्त्व – इनकी उत्पत्ति एवं विकास धरातल पर विभिन्न शक्तियों और प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप होता है। भौतिक पर्यावरण के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं –

  1. भौगोलिक स्थिति
  2. महासागर और तट
  3. नदियाँ और झीलें
  4. मिट्टियाँ, खनिज पदार्थ
  5. उच्चावच
  6. भूमिगत जल
  7. देशों का आकार एवं विस्तार
  8. जलवायु (तापमान, वर्षा, आर्द्रता आदि)
  9. प्राकृतिक वनस्पति तथा
  10. जैविक तत्त्व।

उपर्युक्त सभी तत्वों द्वारा प्राकृतिक पर्यावरण का निर्माण होता है। इन सभी का सम्मिलित एवं व्यापक प्रभाव मानव-जीवन पर अवश्य ही पड़ता है। ये सभी तत्त्व मानव के लिए महत्त्वपूर्ण नि:शुल्क प्राकृतिक उपहार हैं। प्रो० हरबर्टसन के अनुसार, “भौतिक शक्तियों को मानव पर इतना अधिक प्रभाव पड़ता है कि वे मानव-जीवन एवं उसके क्रियाकलापों में स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं।”

2. सांस्कृतिक या मानव-निर्मित पर्यावरण (Cultural or Man-made Environment) – प्राकृतिक पर्यावरण को मनुष्य ज्ञान-विज्ञान एवं तकनीकी विकास द्वारा परिवर्तित कर उन्हें अपने अनुरूप ढालने का प्रयास करता है; क्योकि वह (मानव) एक सजीव तथा क्रियाशील इकाई है। भूमि को जोतकर कृषि करना, उसमें नहरें, रेलपथ एवं सड़कें बनाना, वनों को साफ करना, पर्वतों को काटकर सुरंगें बनाना, नवीन बस्तियाँ बसाना, विभिन्न इमारतों का निर्माण करना, भू-गर्भ से खनिज पदार्थों का शोषण करना, उद्योग-धन्धे स्थापित करना आदि मानवीय क्रियाओं के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। इस प्रकार मानव एक केन्द्रीय कारक है। मानव-निर्मित इस प्रकार के पर्यावरण को सांस्कृतिक या प्राविधिक पर्यावरण के नाम से पुकारा जाता है।

मानव-निर्मित वातावरण में भी विभिन्न शक्तियाँ, तत्त्व एवं प्रक्रियाएँ क्रियाशील रहती हैं। सांस्कृतिक वातावरण की शक्तियों में क्षेत्र-विशेष के जनसमूह के विभिन्न पहलुओं; जैसे-जनसंख्या, वितरण, लिंग, स्वास्थ्य, शिक्षा, तकनीकी आदि को सम्मिलित किया जाता है। सांस्कृतिक प्रक्रियाओं के अन्तर्गत पोषण, समूहीकरण, पुन: उत्पादन, प्रभुत्व स्थापन, प्रवास, पृथक्करण, अनुकूलन, समाचौर्जन, विशेषकरण तथा अनुक्रमण आदि सम्मिलित किये जाते हैं।
साँस्कृतिक वातावरण के तत्त्व – सांस्कृतिक वातावरण के तत्त्व मानव एवं उसके समूह दोनों की प्रभावित करते हैं। ये तत्त्व निम्नलिखित हैं –

  1. प्राथमिक या अनिवार्य आवश्यकताएँ – भोजन, वस्त्र एवं आवास।
  2. आर्थिक व्यवसाय के प्रतिरूप – प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक व्यवसाय; जैसे-खाद्यान्न संग्रहण, आखेट करना, मछली पकड़ना, निर्माण उद्योग, परिवहन, वाणिज्य एवं व्यापार विभिन्न सेवाएँ आदि।
  3. तकनीकी प्रतिरूप – यन्त्र, उपकरण, यातायात एवं संचार के साधन।
  4. सामाजिक आवश्यकताएँ – शिक्षा, भाषा, धर्म, दर्शन, कला एवं साहित्य।
  5. सामाजिक संगठन – समुदाय, प्रबन्ध, सहकारिता, घर-परिवार, सामाजिक प्रथाएँ, लोक-रीतियाँ आदि।
  6. राजनीतिक संगठन – राज्य, सरकार, सम्पत्ति, कानून, शक्तियाँ, जनमत एवं अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध आदि।

प्राकृतिक पर्यावरण का मानव के क्रियाकलापों से सम्बन्ध
Relation between Natural Environment and Human Activities

प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक दोनों ही वातावरणों का सामूहिक प्रभाव मानव के क्रियाकलापों पर पड़ता है। इसके अन्तर्गत समय तत्त्व भी महत्त्वपूर्ण है। मानव भूगोल में दोनों ही प्रकार के वातावरण का विशेष महत्त्व है। वातावरण के सभी प्राकृतिक तत्त्व, सांस्कृतिक तत्त्वों से जुड़े हुए हैं। कुमारी सेम्पुल के शब्दों में, “मानव पृथ्वी के धरातल की उपज है। सभी जड़ एवं चेतन पदार्थों में भौगोलिक वातावरण का प्रभाव अन्तिम है।” प्रो० वायने सांस्कृतिक पर्यावरण को मानव-क्रियाओं और भौतिक पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्धों की अभिव्यक्ति मानते हैं। उनके अनुसार, “मानवीय क्रियाएँ जो विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सम्पन्न की जाती हैं, भौतिक वातावरण से सामंजस्य स्थापित करती हैं। इनके फलस्वरूप भौतिक पर्यावरण परिवर्तित होता है और सांस्कृतिक पर्यावरण का विकास होता है। मनुष्य स्वयं भी इस पर्यावरण का अभिन्न अंग बन जाता है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि मानव भूगोल के अध्ययन के लिए पर्यावरण के दोनों अंगों अर्थात् प्राकृतिकसांस्कृतिक पर्यावरण का प्रारम्भिक ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है।
[ मानव के क्रियाकलापों पर प्रभाव – इसके लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 2 का उत्तर देखें।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 3 Man and His Environment

प्रश्न 2
उदाहरण देकर मानव की आर्थिक क्रियाओं पर प्राकृतिक पर्यावरण के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
या
उदाहरण देते हुए मानवीय क्रियाकलापों पर भौतिक वातावरण के प्रभाव को समझाइए।
या
मैदानों को सभ्यता का पालना” क्यों कहा जाता है ?
उत्तर
मानव भूगोल में उन प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक तथ्यों का अध्ययन किया जाता है जिनका प्रत्यक्ष सम्बन्ध मानव और उसके जीवन के क्रियाकलापों से होता है। ये तथ्य पर्यावरण से सम्बन्धित होते हैं। पर्यावरण के दो भेद हैं-

  1. प्राकृतिक पर्यावरण एवं
  2. सांस्कृतिक पर्यावरण।

प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण के तत्त्व एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं तथा उनका सम्मिलित प्रभाव मानवीय जीवन एवं उसके कार्यों पर पड़ता है। यह भौगोलिक पर्यावरण ही होता है जो मानव के क्रियाकलापों एवं उसकी आदतों को निर्धारित करता है। इस सम्बन्ध में रैटजेल ने कहा है कि पर्यावरण एवं मानव के पारस्परिक सम्बन्धों में पर्यावरण अधिक शक्तिशाली है, यहाँ तक कि संसार के विभिन्न प्रदेशों में मनुष्यों के रहन-सहन, आर्थिक, औद्योगिक, सामाजिक एवं संस्कृति को वातावरण की ही देन माना गया है। कुमारी सेम्पुल ने इनके साथ-साथ मानने के विचारों, भावनाओं एवं धार्मिक विश्वासों पर भी प्राकृतिक़ पर्यावरण का प्रभाव बताया है। कार्ल रिट्र का मत था कि पृथ्वी और उसके निवासियों में परस्पर गहनतम सम्बन्ध होता है तथा एक के बिना दूसरे का वर्णन नहीं हो सकता। इस प्रकार-इस विचारधारा के समर्थकों को वातावरण निश्चयवाद‘ के प्रतिपादक के रूप में जाना जाता है। इस आधार पर प्राकृतिक पर्यावरण का प्रभाव मानव पर अनेक रूपों में पड़ता है, जिसे निम्नलिखित रूपों में समझा जा सकता है –

1. भौगोलिक स्थिति एवं मानव – पृथ्वीतल पर भिन्न-भिन्न क्षेत्रों और स्थानों की स्थिति की विभिन्नता देखी जाती है तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के पर्यावरण का प्रभाव मानव-जीवन पर भी भिन्न-भिन्न होता है। भौगोलिक स्थिति का प्रभाव उस प्रदेश के निवासियों के रूप, रंग, आकृति, भोजन, वस्त्र, आवास, रहन-सहन और रीति-रिवाजों पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। यही कारण है कि द्वीपीय स्थिति मानव-निवास के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है, क्योंकि यहाँ पर सम जलवायु एवं बन्दरगाहों द्वारा व्यापार की सुविधाएँ रहती हैं। इन्हीं कारणों से जापान एवं ब्रिटेन ने अपनी द्वीपीय स्थिति का लाभ उठाया है तथा उनके निवासी प्रगति के चरम बिन्दु पर पहुँचे हैं। महाद्वीपीय स्थिति किसी प्रदेश के आर्थिक विकास में बाधक होती है। यही कारण है कि मंगोलिया एवं अफगानिस्तान सदृश देश आर्थिक प्रगति में अभी भी बहुत पीछे हैं। व्यापारिक मार्गों एवं उन्नत संसाधन-प्रदेशों के निकट स्थित देश भी विकास की गति में आगे रहते हैं। सिंगापुर एवं कोरिया इसके महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं। इस प्रकार उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि भौगोलिक स्थिति का मानव पर्यावरण पर अत्यन्त गहरा प्रभाव पड़ता है। तथा यह उसके आर्थिक विकास में सहायक होती है।

2. जलवायु एवं मानव – प्राकृतिक पर्यावरण का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व जलवायु है। मानवीय जीवन को प्रभावित करने और दिशा निर्धारित करने में जलवायु सबसे शक्तिशाली कारक है। मानव के लिए भोजन, वस्त्र, मकानों की आकृति तथा कृषि-फसलों को जलवायु ही निर्धारित करती है। पृथ्वीतल पर मानव का निवास जलवायु द्वारा निश्चित होता है। मानसूनी, उपोष्ण कटिबन्धीय तथा सम-शीतोष्ण जलवायु प्रदेशों में विश्व की 98% जनसंख्या निवास करती है। इसके विपरीत शीत-प्रधान टुण्ड्रा, उष्ण मरुस्थलों तथा आर्कटिक एवं हिमाच्छादित प्रदेशों के अस्थायी निवासों में विरल जनसंख्या निवास करती है। जलवायु द्वारा मानव-जीवन के निम्नलिखित पक्ष प्रभावित होते हैं –

  1. मानव का स्वास्थ्य एवं किसी प्रदेश में रह सकने की क्षमता तथा मानवीय भौतिक शक्ति
  2. मानव की खाद्य पूर्ति और पेयजल की उपलब्धि
  3. वस्त्र एवं उनके प्रकार
  4. मकान व उनके निर्माण की सामग्री तथा उनकी आकृति
  5. मानवीय क्रियाकलाप अर्थात् व्यवसाय तथा
  6. मानवीय संस्कृति।

जलवायु द्वारा ही मानव के व्यवसाय एवं कृषि-फसलें निर्धारित होती हैं। उदाहरण के लिए, भारतवर्ष में 100 सेमी से अधिक वर्षा वाले भागों में चावल एवं गन्ने का उत्पादन किया जाता है, जब कि 50 से 100 सेमी वर्षा वाले भागों में मिश्रित खाद्यान्न फसलें निर्धारित हुई हैं। अनुकूल जलवायु के कारण ही भूमध्यसागरीय प्रदेशों में गेहूं व फलों आदि की कृषि की जाती है। कठोर एवं विषम जलवायु के कारण विषुवतेरेखीय प्रदेशों में प्राकृतिक संसाधनों का बाहुल्य है, परन्तु औद्योगिक पिछड़ापन पाया जाता है।

उष्ण कटिबन्धीय एवं उपोष्ण कटिबन्धीय जलवायु प्रदेशों में सूती वस्त्र पहने जाते हैं, परन्तु शीत-प्रधान देशों में वर्ष-भर ऊनी या समूर के वस्त्र पहने जाते हैं। अधिक वर्षा वाले भागों में मकानों की छतें ढलवाँ बनाई जाती हैं, जिससे वर्षा का जल नीचे को बह जाए। हिम प्रदेशों में मकानों की छतें चौरस बनाई जाती हैं। टुण्ड्रा प्रदेशों के निवासी अपने मकानों के दरवाजे बहुत छोटे बनाते हैं जिससे उनमें बर्फीली वायु प्रवेश न कर सके। इसीलिए हंटिंगटन ने जलवायु को ही मानव संस्कृति का कारक और द्योतक बताया है।

3. स्थलाकृतियाँ एवं मानव – धरातल पर स्थलाकृतियाँ, पहाड़ी, पठारी, मरुस्थलीय तथा मैदानी प्रतिरूपों में मिलती हैं। मानव-आवास के लिए सर्वोत्तम क्षेत्र मैदान हैं। यहाँ पर जीविका चलाने के लिए कृषि, सिंचाई, पशुपालन, निर्माण उद्योग, परिवहन, संचार आदि सभी सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। अतः जनसंख्या तथा मानव-आवासों के लिए मैदान सबसे अधिक उपयुक्त होते हैं।

मैदानों की अपेक्षा पठारी भूमि पर कृषि एवं आवासों की सुविधाएँ कम होती हैं। पठारी व पहाड़ी क्षेत्रों में ऊँची-नीची भूमि से मानवीय जीवन में बाधा पड़ती है तथा आर्थिक विकास की गति भी धीमी रहती है। परिवहन साधनों के अभाव के कारण वृहत् उद्योगों का अभाव होता है। मानव जीवन-निर्वाह कृषि, पशुचारण एवं फलों की कृषि पर निर्भर करता है। पर्वतों का मानव को सबसे बड़ा लाभ हिम क्षेत्रों द्वारा नदियों को प्राप्त होने वाली जल की मात्रा है। संत्त वाहिनी नदियों के ऊपर जल-विद्युत शक्ति का उत्पादन किया जाता है। इसी कारण जापान, स्विट्जरलैण्ड, नॉर्वे, स्वीडन आदि देशों में उद्योग-धन्धों का पर्याप्त विकास हुआ है। मैदानों में मानवीय आवास तथा आर्थिक विकास के निम्नलिखित कारण हैं –

  1. कृषि के लिए समतल एवं उपजाऊ भूमि
  2. सिंचाई के लिए नहरें तथा कुओं आदि की सुविधा
  3. कृर्षि-कार्यो के लिए उपजाऊ भूमि की प्राप्ति
  4. परिवहन के लिए सड़क एवं रेलमार्गों के निर्माण की सुविधा तथा
  5. उद्योग, वाणिज्य एवं व्यापार की बड़े पैमाने पर प्राप्त सुविधाएँ।

उपर्युक्त कारणों से ही विश्व की 97 प्रतिशत जनसंख्या मैदानों में निवास करती है। चीन, भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, पश्चिमी यूरोपीय देश, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि देशों में अधिकांश जनसंख्या मैदानों में निवास करती है तथा ये मैदान’जनसंख्या का पालना’ (Cradle of Mankind) कहे जाते हैं। विश्व की प्राचीन सभ्यताओं का विकास भी इन्हीं मैदानों में हुआ है।

4. मिट्टियाँ और मानव – विश्व के सभी प्राणियों का भोजन प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से मिट्टी पर निर्भर करता है। शाकाहारी मानव को भोजन कृषि उत्पादन से प्राप्त होता है, जबकि मांसाहारी लोगों को भोजन पशुओं से प्राप्त होता है। इस प्रकार मानव के साथ-साथ पशुओं के भोज्य पदार्थों में भी मिट्टी को होथ रहता है। कांप एवं लावा मिट्टियों की उत्पादकता के कारण इनमें अधिक मानव आवास मिलते हैं; जैसे-सतलुज-गंगा का मैदान, यांगटिसीक्यांग का मैदान, डेन्यूब, राइन, डॉन, वोल्गा नदियों की घाटियों तथा मिसीसिपी के बेसिन में।
पर्वतीय मिट्टियों की अपेक्षा मैदानों की मिट्टियाँ अधिक उपजाऊ होती हैं, क्योंकि मैदानी मिट्टियाँ अधिक बारीक होती हैं तथा उनकी परतें भी अधिक गहरी होती हैं एवं उनमें पोषक तत्त्व भी अधिक होते हैं। इसके विपरीत पर्वतीय मिट्टियों में अपरदन के कारण पोषक तत्त्व बह जाते हैं तथा उत्पादकता की कमी के कारण कम मानव निवास करते हैं।

5. प्राकृतिक वनस्पति एवं मानव – प्राकृतिक वनस्पति जलवायु की देन होती है। प्रत्येक प्रकार की वनस्पति का मानव-जीवन पर अपना अलग-अलग प्रभाव होता है। वनों में निवास करने वाले लोगों को लकड़ी पर्याप्त मात्रा में मिल जाती है; अत: उनके मकानों में लकड़ी का प्रयोग अधिक होता है। पेड़-पौधों द्वारा वायु-प्रदूषण कम होता है तथा मानव को पर्याप्त प्राणदायिनी ऑक्सीजन प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त इनसे बाढ़, जलवृष्टि, अपरदन तथा मरुस्थलों के प्रसार जैसी समस्याओं पर नियन्त्रण पाया जा सकता है एवं वे आर्थिक विकास में सहायक होते हैं। वन नमीयुक्त पवनों के मार्ग में बाधा उपस्थित कर वर्षा कराने में सहायक होते हैं। ये कृषि-कार्यों में भी सहायक हैं एवं पशुओं को चार उपलब्ध कराते हैं। इनसे उद्योग-धन्धों को कच्चा माल प्राप्त होता है। विषुवत्रेखीय प्रदेशों में वन ही आजीविका के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। घास के मैदानों में पशुपालन का कार्य अधिक किया जाता है। इसीलिए प्रेयरी, स्टेप्स, पम्पाज आदि घास के मैदानों में कृषि के बड़े-बड़े फार्म हैं। इस प्रकार प्राकृतिक वनस्पति किसी-न-किसी रूप में मानव को प्रभावित करती है।

6. जन्तु-जगत् एवं मानव-मानव पशु – जगत् की सहायता से अपने पर्यावरण के साथ समायोजन में लगा रहता है। वास्तव में मानव और जन्तु एक-दूसरे को सहायता एवं सहयोग देकर, दूसरे का सहयोग प्राप्त कर सह-जीवन द्वारा अपने सहअस्तित्व की स्थापना करते हैं। पशुओं से मानव को दूध, मांस, खाल, ऊन, समूर, सवारी तथा सुरक्षा प्राप्त होती है। खिरगीज लोगों की अर्थव्यवस्था का आधार पशु ही हैं। डेनमार्क में दुधारू पशु पाले जाने के कारण यह विश्व का महत्त्वपूर्ण दुग्ध उत्पादक, देश बन गया है। ऑस्ट्रेलिया में उत्तम नस्ल की भेड़े पाले जाने के कारण वह विश्व का मुख्य ऊन उत्पादक देश बन गया है। पश्चिमी यूरोपीय तट व मध्य-पूर्वी प्रशान्त सागरीय तटे मछली के अक्षय भण्डार होने के कारण जनसंख्या को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। मरुस्थलों में ऊँट परिवहन का एकमात्र साधन है तथा ‘रेगिस्तान का जहाज‘ कहलाता है, परन्तु यहाँ पर कम जनसंख्या निवास करती : है। पर्वतीय एवं उच्च पठारी क्षेत्रों में याक नामक पशु बोझा एवं सवारी ढोने के काम आता है। एस्किमो प्रजाति अपने आर्थिक विकास के लिए पूर्णत: पशुओं पर आधारित है।

बहुत-से पशु एवं छोटे जीव मानव के लिए हानिकारक भी होते हैं। वन्य पशुओं में शेर, चीता, भालू आदि हिंसक होते हैं, जबकि रेंगकर चलने वाले जीवों में सर्प आदि प्राणघातक होते हैं। उड़ने वाले जन्तुओं में टिड्डी सबसे अधिक हानिकारक है। इस प्रकार जीव-जन्तु प्रकृति के सन्तुलन को बनाये रखने में सहायक होते हैं।

7. शैल एवं खनिज पदार्थ तथा मानव – मानव सभ्यता का विकास खनिजों द्वारा हुआ है। पाषाण युग से लेकर अणु युग तक मानव ने विकास की अनेक सीढ़ियाँ पार की हैं। कुछ खनिज पदार्थ शक्ति के स्रोत होते हैं; जैसे- कोयला एवं पेट्रोलियम। इनसे कारखाने चलाये जाते हैं। यूरेनियम, थोरियम आदि खनिज़ों से परमाणु शक्ति गृहों का संचालन किया जाता है।

वर्तमान काल में खनिज पदार्थ किसी राष्ट्र की शक्ति का पर्याय माने जाते हैं। जिस देश के पास जितने अधिक कोयला, पेट्रोल, यूरेनियम, लोहा, ताँबा, जस्ता, ऐलुमिनियम आदि खनिजों के भण्डार होते हैं, वह देश उतना ही अधिक शक्तिशाली एवं विकसित माना जाता है। ब्रिटेन ने उन्नीसवीं शताब्दी में लोहे एवं कोयले के बल पर ही औद्योगिक क्रान्ति का श्रीगणेश किया था। खनिज पदार्थों की समाप्ति पर आर्थिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। कुछ खनिज पदार्थ मानव समुदाय के लिए घातक होते हैं। इनमें अणु एवं परमाणु खनिजों का प्रमुख स्थान है। द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा किये गये अणु बम प्रहार से जापान के हिरोशिमा एवं नागासाकी नगरों का विनाश हो गया था तथा बहुत-से लोग। काल-कवलित हो गये थे। इस प्रकार के अणु एवं परमाणु युद्ध विश्व शान्ति के लिए एक स्थायी खतरा बन गये हैं, परन्तु फिर भी खनिज उत्पादक क्षेत्र विषम परिस्थितियों को रखते हुए भी जनसंख्या के संकेन्द्रण बने हुए हैं।

8. महासागर एवं मानव – पृथ्वीतल के भाग पर जलमण्डल (सागर एवं महासागर) का विस्तार है। महासागर और उसका तट मानव-जीवन के लिए बड़े महत्त्वपूर्ण हैं। इनके प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  1. जलवायु में परिवर्तन एवं उसका समकारी प्रभाव
  2. मानव के भोज्य पदार्थों की उपलब्धि
  3. खनिज संसाधनों की प्राप्ति
  4. औद्योगिक प्रोत्साहन
  5. यात्रा एवं व्यापारिक मार्गों की सुविधा
  6. शक्ति संसाधनों की प्राप्ति
  7. सभ्यता का विकास तथा
  8. स्वास्थ्य-मनोरंजन के केन्द्र।

सागरों एवं महासागरों में प्रवाहित गर्म एवं ठण्डे जल की धाराएँ किसी स्थान अथवा प्रदेश की जलवायु में परिवर्तन ला देती हैं। महासागरे मत्स्य उत्पादन के अक्षय भण्डार हैं; जैसे- ग्रान्ड बैंक्स (Grand Banks) एवं डॉगर बैंक्स। इनमें नमक, पोटाश, मैग्नीशियम, मोती, मूंगा, सीप आदि बहुमूल्य खनिज पदार्थ प्राप्त होते हैं। स्वेज एवं पनामा नहर मार्गों ने विश्व को एक-दूसरे के समीप ला दिया है। महासागरीय ज्वार-भाटे से जल-विद्युत शक्ति का उत्पादन भी किया जाता है। बहुत-से समुद्र तटवर्ती नगर एवं पत्तन पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित हुए हैं। इस प्रकार महासागर मानव के लिए बहुत उपयोगी हैं एवं उनकी भावी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के महत्त्वपूर्ण स्रोत बन सकने की सामर्थ्य रखते हैं।

इस प्रकार स्पष्ट है कि प्राकृतिक पर्यावरण मानवीय क्रियाकलापों को बहुत अधिक प्रभावित करता है तथा पर्यावरण में उसकी केन्द्रीय भूमिका है, क्योंकि प्राकृतिक पर्यावरण के तत्त्वों का मानव वर्ग द्वारा ही उपभोग किया जाता है अथवा उपयोगिता प्राप्त की जाती है।

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प्रश्न 3
“मानव ने प्राकृतिक भू-दृश्य में परिवर्तन कर सांस्कृतिक भू-दृश्य का निर्माण किया है।” तर्क एवं उदाहरणों सहित अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
या
“मानव एवं प्राकृतिक पर्यावरण एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं।” उपयुक्त उदाहरणों की सहायता से इस कथन की पुष्टि कीजिए।
या
मानव और पर्यावरण के सम्बन्ध की विवेचना कीजिए। [2011, 14, 15, 16]
उत्तर
भौगोलिक पर्यावरण के दो महत्त्वपूर्ण अंग हैं- प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक। दोनों ही प्रकार के वातावरणों का प्रभाव मानवीय जीवन एवं उनके क्रियाकलापों पर पड़ता है, परन्तु मानव अपने बुद्धि-बल के प्रयास से इन दोनों ही पर्यावरणों में कुछ परिवर्तन करता है, जिससे वह अपनी सत्ता बनाये रख सके एवं उन्नति के मार्ग पर बढ़ता रहे। प्राकृतिक पर्यावरण मानव को अनेक रूपों में प्रभावित करता है तथा आर्थिक एवं सामाजिक क्रियाओं का समन्वय करता है।
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सांस्कृतिक पर्यावरण मानव द्वारा निर्मित भू-दृश्य होता है। इसके द्वारा मानव अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति विभिन्न प्रकार के पर्यावरण में रहता हुआ पूरी करता है। प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण के तत्त्व मानव के भोजन, वस्त्र, आवास, व्यवसाय एवं सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यों पर व्यापक रूप से अपना प्रभाव डालते हैं। इसी प्रभाव के कारण वह अपने रहन-सहन का अनुकूलन करती है। इन क्रियाओं को ‘पर्यावरण समायोजन’ कहते हैं। इसे निम्नलिखित रूपों में प्रस्तुत किया जा सकता है –
अनुकूलन से तात्पर्य मानव को स्वयं पर्यावरण के अनुकूल बनाने का प्रयास है। इसे स्वयं द्वारा किया हुआ परिवर्तन भी कह सकते हैं। अनुकूलन में मानव दो प्रकार की क्रियाएँ करता है-

  1. आन्तरिक एवं
  2. बाह्य। आन्तरिक अनुकूलन भी दो प्रकार का होता है –
    1. ऐच्छिक एवं
    2. अनैच्छिक या प्राकृतिक रूपान्तरण भी दो प्रकार का होता है –
      • प्राकृतिक पर्यावरण का रूपान्तरण एवं
      • सांस्कृतिक पर्यावरण का रूपान्तरण।

यदि यूरोप के किसी देश; जैसे नार्वे, स्वीडन या ब्रिटेन का कोई मानव समुदाय भारत में आकर दक्षिण तमिलनाडु राज्य में निवास करने लगता है तो तमिलनाडु राज्य की जलवायु उसे अपने देश की जलवायु की अपेक्षा बहुत गर्म लगती है तथा ग्रीष्म काल में सूर्यातप भी अधिक असहनीय हो जाता है। इसीलिए गर्मी से बचने के लिए वह यूरोपियन समुदाय कुछ कृत्रिम साधनों; जैसे वातानुकूलित कमरों एवं रेफ्रीजरेटर तथा कूलर का प्रयोग करता है। धूप से बचाव के लिए ऊनी कपड़ों के स्थान पर सूती कपड़े, छाते आदि का प्रयोग करने लगता है; अर्थात् अपने को प्राकृतिक पर्यावरण के अनुसार ढाल लेता है तथा तदनुसार अपना अनुकूलन कर लेता है।

एक यूरोपियन परिवार ने दक्षिणी भारत में आने के बाद अपने आपको पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए तमिल भाषा के कुछ शब्द सीखे हैं। नमस्कार की विधि तथा खान-पान की नयी प्रणालियाँ सीखने के साथ-साथ कुछ भोज्य-पदार्थों में अपनी रुचि जाग्रत की है। यह कार्य उनका ऐच्छिक अथवा आन्तरिक अनुकूलन है, परन्तु उस यूरोपियन परिवार के कई पीढ़ियों तक निवास करते-करते उसकी सन्तान की त्वचा में श्याम वर्ण के कण बनने लगेंगे तथा सूर्यातप को सहन करने में भी समर्थ होने लगेंगे। इस प्रकार यह क्रिया उन लोगों का अनैच्छिक आन्तरिक अनुकूलन या प्राकृतिक अनुकूलन कहलाएगी। उन्होंने तमिल समाज में अपना मेल-जोल बैठाने के लिए भारतीय वेशभूषा के कुछ अंश भी अपना लिये हैं, यह उनका बाह्य अनुकूलन है। जलवायु की विषमता से बचने के लिए उन्होंने वातानुकूलित मकान, कूलर, रेफ्रीजरेटर एवं छातों का प्रयोग किया है। यह कार्य प्राकृतिक पर्यावरण को रूपान्तरण कहलाएगा।

इस प्रकार मानव ने अपने ज्ञान, विज्ञान, तकनीकी तथा नवीन प्रविधियों द्वारा पर्यावरण में परिवर्तन के प्रयास किये हैं तथा उसे अपने अनुकूल ढाला है; अत: मानव द्वारा प्राकृतिक पर्यावरण को अपने अनुकूल ढालने की प्रक्रिया समायोज़न कहलाती है। मानव अब निराशावादी नहीं है, वह अपनी परिस्थितियों का दास मात्र भी नहीं है। जॉर्ज टैथम ने भी कहा है कि पर्यावरण.मानव को निःसन्देह प्रभावित करता है, परन्तु प्रतिक्रिया-स्वरूप वह भी अपने पर्यावरण को प्रभावित करता है। मानव द्वारा चन्द्रतल पर पदार्पण, बड़ी-बड़ी नदियों पर बाँध बनाकर जल-प्रवाह को व्यवस्थित करना, साइबेरिया के उत्तर में स्थित टुण्ड्रा प्रदेशों में समूर फार्मों की स्थापना तथा आर्कटिक प्रदेशों में काँच के घरों का निर्माण कर सब्जियों का उत्पादन करना आदि सभी कार्य प्राकृतिक पर्यावरण को अपने अनुकूल बनाने का ही प्रयास है।

इस प्रकार प्राकृतिक पर्यावरण की सीमा में किसी प्रदेश का मानव-वर्ग अपनी आवश्यकताओं, क्षमताओं और छाँट के अनुसार, पर्यावरण के साथ समायोजन कर, उन प्रदेशों का क्षेत्र संगठन करता है। मानव प्राकृतिक पर्यावरण का प्रयोग कर सांस्कृतिक पर्यावरण का निर्माण करता है। सांस्कृतिक पर्यावरण के तत्त्व भी प्रभावशाली होते हैं; उनका प्रभाव प्राकृतिक तत्त्वों पर तो होता ही है। इसके साथ-साथ वे एक-दूसरे को भी प्रभावित करते हैं। अत: पर्यावरण एवं मानवीय क्रियाएँ एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं तथा संगठित एवं मिश्रित रूप में ही उनको अध्ययन किया जाना चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
मानव प्राकृतिक पर्यावरण पर विजय प्राप्त कर चुका है।” आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
उत्तर
वैज्ञानिक एवं तकनीकी ज्ञान तथा प्रविधियों द्वारा मानव ने प्राकृतिक पर्यावरण पर विजय प्राप्त करने का प्रयास किया है। उसने ऊँचे-ऊँचे पर्वतों को पार कर लिया है, नदियों के प्रवाह मार्ग को अपनी इच्छानुसार मोड़ लिया है। वह अन्तरिक्ष में गया है तथा अनेक नवीन नक्षत्रों की खोज की है। जो अभी उससे अछूते हैं, उन्हें खोजने का प्रयास अभी जारी है। भौगोलिक पर्यावरण मानवे पर अपना व्यापक प्रभाव डालता है। उसे जहाँ पर भी परिवर्तन की सम्भावनाएँ दिखलाई पड़ती हैं, वह अपनी आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर लेता है, परन्तु पर्यावरण का प्रत्यक्ष प्रभाव मानव के क्रियाकलापों पर पड़ता है। अतः मानव सबसे उत्तम भौगोलिक कारक है, वह उसका उपयोग अपने ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर करता है। इस सम्बन्ध में बोमैन ने भी कहा है कि “वातावरण के भौगोलिक तत्त्व मानव का सम्पर्क पाकर परिवर्तनशील हो जाते हैं।’

यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है कि मानव ने प्राकृतिक पर्यावरण पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त नहीं की है। उस पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त करना सम्भव नहीं है। उदाहरण के लिए, ध्रुवीय शीत प्रदेशों में चावल का उत्पादन तथा विषुवत्रेखीय प्रदेशों में रेण्डियर का पालना आज भी असम्भव है, परन्तु उन्होंने अनुकूलन द्वारा कुछ प्रायोगिक प्रयास किये हैं। उसे अनुकूलता के लिए कुछ समय प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है तथा परिस्थितियाँ अनुकूल होते ही वह इन तत्त्वों को अपने पक्ष में कर लेगा। कुमारी सेम्पुल ने कहा है, “मानव प्रकृति पर विजय उसकी आज्ञा मानकर ही प्राप्त कर सकता है। मानव अपनी बुद्धि एवं शक्ति का प्रयोग करता है, क्योंकि पर्यावरण उसे उन्नति का अवसर प्रदान करता है। अत: मानव तथा पर्यावरण का सम्बन्ध बहुत ही घनिष्ठ है।”

प्रश्न 2
पर्यावरण से क्या तात्पर्य है? [2014]
उत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 के अन्तर्गत ‘पर्यावरण का अर्थ’ शीर्षक देखें।

प्रश्न 3
“मानव और जन्तु एक-दूसरे के पूरक है” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 2 के अन्तर्गत शीर्षक (6) देखें।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
भौतिक अथवा प्राकृतिक पर्मवरण से का तात्पर्य है?
या
भौतिक पर्यावरण को परिभाषित कीजिए। (2012, 13, 16)
उत्तर
प्राकृतिक पर्यावरण से तात्पर्य उन समस्त भौतिक शक्तियों (सूर्यातप, पृथ्वी की गतियाँ, गुरुत्वाकर्षण, ज्वालामुखी आदि), प्रक्रियाओं (भूमि अपक्षय अवसादीकरण, विकिरण, चालन, संवहन, वायु-जल की गति, जीवन-मरण विकास आदि) से है; जिनका प्रत्यक्ष प्रभाव मानव-जीवन पर पड़ता है।

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प्रश्न 2
द्वीपीय स्थिलि मानव-विकास के लिए कैसी मानी गयी है?
उत्तर
द्वीपीय स्थिति मानव-विकास के लिए सर्वोत्तम मानी गयी है, क्योंकि यहाँ पर सम जलवायु एवं बन्दरगाहों पर व्यापार की व्यापक सुविधाएँ रहती हैं। उदाहरणार्थ- जापान एवं ब्रिटेन।

प्रश्न 3
कौन-सी सिट्टियाँ अधिक उपजाऊ हैं-पर्वतीय मिट्टियाँ या मैदानी मिट्टियाँ?
उत्तर
मैदानी मिट्टियाँ अधिक उपजाऊ हैं, क्योंकि ये अधिक बारीक होती हैं तथा इनकी परतें भी अधिक गहरी होती हैं। इनमें पोषक तत्त्व भी अधिक पाये जाते हैं।

प्रश्न 4
प्राकृतिक वनस्पति किसकी देन है?
उत्तर
प्राकृतिक वनस्पति जलवायु की देन है।

प्रश्न 5
वर्तमान काल में किसी राष्ट्र की शक्ति का पर्याय किसे माना जाता है?
उत्तर
वर्तमान काल में जो देश अपनी खनिज सम्पदा का जितना अधिक दोहन कर रहा है वह शक्तिशाली होता जा रहा है। अत: किसी राष्ट्र की शक्ति का पर्याय उस राष्ट्र की खनिज सम्पदा है।

प्रश्न 6
पर्यावरण के दो प्रकार बताइए। [2009]
उत्तर
पर्यावरण के दो प्रकार निम्नवत् हैं –

  1. भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण तथा
  2. सांस्कृतिक या मानवनिर्मित पर्यावरण।

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1
“पर्यावरण उन समस्त बाह्य दशाओं और प्रभावों का योग है जो प्राणी के जीवन एवं विकास पर प्रभाव डालते हैं। पर्यावरण की यह परिभाषा दी है –
(क) प्रो० डेविस ने
(ख) जर्मन वैज्ञानिक फिटिंग ने
(ग) ए०जी० तांसले ने
(घ) एमजे० हर्सकोविट्ज ने
उत्तर
(घ) एम०जे० हर्सकोविट्ज ने।

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प्रश्न 2
पर्वतों का मानव को सबसे बड़ा लाभ है-
(क) प्राकृतिक वनस्पति की प्राप्ति
(ख) प्राकृतिक पर्यावरण की प्राप्ति
(ग) हिम क्षेत्रों द्वारा नदियों को प्राप्त होने वाले जल की मात्रा
(घ) (क) एवं (ख) दोनों की प्राप्ति
उत्तर
(ग) हिम क्षेत्रों द्वारा नदियों को प्राप्त होने वाले जल की मात्रा।

प्रश्न 3
वर्तमान काल में किसी राष्ट्र की शक्ति का पर्याय माना जाता है –
(क) उस राष्ट्र की सैनिक क्षमता
(ख) उस राष्ट्र का कृषि उत्पादन
(ग) उस राष्ट्र की जनसंख्या
(घ) उस राष्ट्र की खनिज सम्पदा
उत्तर
(घ) उस राष्ट्र की खनिज सम्पदा।

प्रश्न 4
निम्नांकित में कौन भौतिक पर्यावरण का तत्त्व नहीं है ?
(क) भूमि के रूप
(ख) मिट्टियाँ
(ग) खनिज पदार्थ
(घ) अधिवास
उत्तर
(घ) अधिवास।

प्रश्न 5
निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा कथन असत्य है। [2016]
(क) पर्यावरण की कार्यप्रणाली प्राकृतिक नियमों से संचालित होती है।
(ख) पर्यावरण जैविक संसाधनों का भण्डार है।
(ग) पर्यावरणीय व्यवस्था में स्वयं संवर्द्धन की क्षमता है।
(घ) पर्यावरणीय तत्त्वों में पार्थिव एकता विद्यमान है।
उत्तर
(ख) पर्यावरण जैविक संसाधनों का भण्डार है।

प्रश्न 6
पर्यावरण ज्ञान के लिए प्रयुक्त होने वाले पारिस्थितिकी शब्द का अंग्रेजी पर्याय ‘इकोलॉजी सर्वप्रथम किस जर्मन जैव वैज्ञानिक ने प्रस्तावित किया था? [2016]
(क) ओडम
(ख) अर्नस्ट हैकल
(ग) डेविस
(घ) हरबर्टसन
उत्तर
(ख) अर्नस्ट हैकल

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प्रश्न 7
“मानव पृथ्वी के धरातल की उपज है।” यह कथन निम्नलिखित में से किस विद्वान का है। [2016]
(क) डिमाजियाँ
(ख) रेटजैल
(ग) हेटनर
(घ) कुमारी सेम्पुल
उत्तर
(घ) कुमारी सेम्पुल।

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