UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 7 जूलिया (मंजरी)

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पाठ का सर (सारांश)

प्रस्तुत एकांकी में एक भोली-भाली सेविका जूलिया की मार्मिक पीड़ा और विवशता का चित्रण किया गया है। इसके साथ ही साथ शोषण से मुक्ति पाने का संदेश भी नाटक के अन्त में प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है। गृहस्वामी (मालिक) जूलिया को बच्चों को पढ़ाने और देखभाल करने के कार्य के लिए उसकी मासिक तनख्वाह नियत करता है। (UPBoardSolutions.com) दो मास की तीस रूबल प्रति मासिक की दर से साठ रूबल तय करके मालिक जूलिया की गैरहाजिरी, रविवार और कार्य के प्रति लापरवाही के कारण कटौती करके उसे सिर्फ ग्यारह रूबल ही देता है।

जूलिया काँपते हाथों से धन्यवाद कहकर मालिक से वेतन लेती है। मालिक के पूछने पर कि उसने धन्यवाद क्यों कहा तो वह कहती है कि उसने धन्यवाद इसलिए कहा कि उसे मालिक ने कुछ तो दिया जबकि उसे पहले किसी ने काम के बदले कभी कुछ नहीं दिया। मालिक ने छोटे से क्रूर मजाक के लिए जूलिया से माफी माँगते हुए उसे पूरे अस्सी रूबल दो मास का वेतन दिया। साथ ही उसने जूलिया को समझाया कि इंसान को भला बनने के लिए दब्बू, भीरु और कमजोर बनने की। (UPBoardSolutions.com) आवश्यकता नहीं है बल्कि अपनी सुरक्षा के लिए संसार की ज्यादतियों से पूरी शक्ति के साथ लड़ना चाहिए।

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प्रश्न-अभ्यास 

कुछ करने को
नोट- प्रश्न 1 से प्रश्न 3 तक विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 4.
रूस की मुद्रा रूबल है। बांग्लादेश, चीन, अमेरिका, जापान और पाकिस्तान की मुद्रा के बारे में पता कीजिए।
उत्तर-
देश                              मुद्रा
बांग्लादेश                     टका
चीन                             
युआन
अमेरिका                      डॉलर
जापान                          येन
पाकिस्तान                    
पाकिस्तानी रुपया


नोट-  
प्रश्न 5 तथा 6 विद्यार्थी स्वयं करें।

विचार और कल्पना-

प्रश्न 1.
“इससे पहले मैंने जहाँ-जहाँ काम किया, उन लोगों ने तो मुझे एक पैसा तक नहीं दिया, आप कुछ तो दे रहे हैं। इस वाक्य के भाव के आधार पर बताइए कि जूलिया ने किस-किस तरह के लोगों के बीच गवर्नेश का काम किया होगा?
उत्तर-
जूलिया की बातों से यह पता चलता है कि उसने पहले जिन-जिन लोगों के घर गवर्नेश का काम किया था, वे अच्छे लोग नहीं थे। क्योंकि काम कराकर किसी को भी पारिश्रमिक (वेतन) न देना बहुत बुरी बात है और बहुत बड़ी बेईमानी है। 

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प्रश्न 2.
यदि इन लोगों कि जगह आप होते तो जूलिया को पैसे देते अथवा नहीं? क्यों?
उत्तर-
यदि कुछ लोगों की जगह में होता तो जूलिया को उसका वेतन समय पर दे देता क्योंकि किसी से काम कराकर उसे वेतन न देना बेइमानी और पाप होता है।

प्रश्न, 3.
यदि आप जूलिया के स्थान पर होते तो ऐसे लोगों से कैसा व्यवहार करते?
उत्तर-
यदि मैं जूलिया की जगह होता तो ऐसे लोगों के खिलाफ थाने में रिपोर्ट लिखवाता तथा उनके पड़ोसियों को बताता और अपना वेतन जरूर लेता।। 

एकांकी से-
प्रश्न 1.
गृहस्वामी ने उन्नीस नागे’ किस प्रकार गिनाए और इसके लिए कितने रूक्ल की कटौती की?
उत्तर-
नौ इतवार और तीन छुट्टियों, चार दिन लड़का बीमार और तीन दिन दाँतों में दर्द- इस प्रकार बारह और सात उन्नीस नागे के लिए गृहस्वामी ने उन्नीस रूबल की कटौती की।

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प्रश्न 2.
गृहस्वामी के अनुसार जूलिया के कारण क्या-क्या नुकसान हुआ था?
उत्तर-
गृहस्वामी के अनुसार जूलिया ने चाय की प्लेट और प्याली तोड़ी थी। जूलिया की लापरवाही से लड़के की जैकेट फट गई। नौकरानी नए जूते चुराकर ले गई।

प्रश्न 3.
गृहस्वामी ने अन्त में सत्ताइस रूबल किस आधार पर काट लिए थे?
उत्तर-
दस जनवरी को मालिक ने दस रूबल दिए थे। जूलिया के कथनानुसार मालकिन ने तीन रूबल दिए थे। इस प्रकार तेरह रूबल की कटौती हुई।

प्रश्न 4.
गृहस्वामी को अंत में जूलिया पर गुस्सा क्यों आया और उसने जूलिया को क्या समझाया? ।
उत्तर-
गृहस्वामी को जूलिया पर गुस्सा इसलिए आया कि ग्यारह रूबल की तनख्वाह लेकर जूलिया ने ‘धन्यवाद’ कहा, जो ठीक नहीं था। मालिक ने जूलिया को समझाया कि अन्याय का विरोध करना चाहिए। दुनिया की ज्यादतियों का पूरी शक्ति से विरोध करना चाहिए। संसार में कमजोरों के लिए कोई स्थान नहीं है।

प्रश्न 5.
‘इस संसार में दब्बू और रीढ़रहित लोगों के लिए कोई स्थान नहीं है’ इस वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
दुनिया में कमजोर, डरपोक और सीधे-साधे व्यक्तियों को परेशान किया जाता है और उनका । शोषण किया जाता है।

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 प्रश्न 6.
एकांकी के कौन से संवाद आपको सबसे अच्छे लगे, क्यों?
उत्तर-
जिन संवादों में मालिक द्वारा जूलिया को यह समझाया गया कि अन्याय का विरोध करना चाहिए, वह संवाद मुझे सबसे अच्छा लगा।

भाषा की बात-

प्रश्न 1.
पाठ में अनेक जगहों पर अंग्रेजी तथा (UPBoardSolutions.com) अरबी-फारसी के शब्द आए हैं, जैसेगवर्नेस, तनख्वाह। इसी प्रकार के अन्य शब्दों को पाठ से छाँटकर उनका वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर-
अंग्रेजी-गवर्नेस, सोफा, नोट, जनवरी, प्लेट, डायरी।’
अरबी-फारसी-खुद, तनख्वाह, ख्याल, जरूरत, इतवार, मगर, खैर, मुश्किल, बावजूद, साफ, मजाक, जेब, खामोश, कीमती, नुकसान, नजर, लापरवाही, यकीन, ज्यादतियाँ।

प्रश्न 2.
रीढ़रहित का अर्थ है ‘रीढ़ से हीन’ इसका विपरीतार्थक अर्थ होगा- ‘रीढ़युक्त। इसी प्रकार निम्नलिखित शब्दों में ‘रहित’ और ‘युक्त’ लगाकर शब्द बनाइए
उत्तर-
शब्द                      ‘रहित’ लगाकर                   ‘युक्त’ लगाकर
प्राण             –          प्राणरहित                               प्राणयुक्त
धन              –           धनरहित                                धनयुक्त
बल              –           बलरहित                               बलयुक्त
यश              –           यशरहित                               यशयुक्त

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखिए
उत्तर-
अन्याय – न्याय, क्रूर – दयालु, मूर्ख – बुद्धिमान, दुर्बल – बलवाने, करुण – कठोर

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UP Board Solutions for Class 8 Sanskrit Chapter 2 मातृदेवो भव

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मातृदेवो भव

शब्दार्था:-ज्वरेण = बुखार से, वैद्यम् = वैद्य को, उक्त्वा = कहकर, तत्र प्राप्तः = वहाँ पहुँचा, क्रीडितुम = खेलने के लिए, क्रीडाक्षेत्रात् = खेल के मैदान से, अनयत् = लाया, उपनिषदुपदिशति = उपनिषद सीख देती है, अन्यद् अपि उक्तम् = और भी कहा गया है, चत्वारि = चार, सत्वरम् = शीघ्र, प्रमुदिता = प्रसन्न।।

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मुकुलः एकः ……………………………………. अगच्छ त्।
हिन्दी अनुवाद-मुकुल एक छात्र है। उसका एक मित्र है। उसका नाम सतीश है। एक दिन सतीश की माँ बुखार से पीड़ित हो गईं। वह बोली, “अरे सतीश! जाओ वैद्य को बुला लाओ।” सतीश ने कहा, “यह मेरे खेलने (UPBoardSolutions.com) का समय है। मेरे मित्र आते हैं। मैं खेलने जाता हूँ।” ऐसा कहकर वह बाहर चला गया।

तस्मिन् एव ……………………………….. अगच्छत्।
हिन्दी अनुवाद-उसी समय सतीश का मित्र मुकुल वहाँ आया। उसने सतीश की माँ को बुखार से पीड़ित देखा। उसने उससे पूछा, “सतीश कहाँ गया?” वह बोली, “मित्रों के साथ खेलने गया।” मुकुल दुखी हुआ। वह बाहर गया।

सः सतीशं ………………………………… प्रमुदिताऽभवत्।
हिन्दी अनुवाद-वह सतीश को खेल के मैदान से घर लाया और बोला, “हे मित्र! तुम्हारी माता बुखार से पीड़ित है। तुम्हें उनकी सेवा करनी चाहिए।” क्या तुम नहीं जानते कि उपनिषद में भी यह उपदेश दिया गया है- ‘माता देवतुल्य होती है। और यह भी कहा गया है

‘अभिवादनशील और नित्य बड़ों की सेवा करने वालों की आयु, विद्या, यश और बल- ये चार बढ़ते हैं।’

“अब जल्दी जाओ और शीघ्र ही चिकित्सक को लाओ।” ऐसा सुनकर सतीश वैद्य को ले आया। उसकी माता प्रसन्न हुई।

अभ्यासः

प्रश्न 1.
उच्चारणं कुरुत पुस्तिकायां च लिखत
उत्तर
नोट-विद्यार्थी स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
एकपदेन उत्तरत
(क) सतीशस्य जननी केन पीडिता आसीत्?
उत्तर
ज्वरेण

(ख) मुकुलः कस्य मित्रम् अस्ति?
उत्तर
सतीश्स्य

(ग) कः दु:खितोऽभवत्?
उत्तर
मुकुल:

(घ) कः वैद्यम् आनयत्?
उत्तर
सतीश:

प्रश्न 3.
कः/का; उक्तवान्/ उक्तवती इति लिखत (लिखकर)
(क) भोः सतीश! गच्छ वैद्यम् आनये।
उत्तर
माता

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(ख) अहं क्रीडनार्थं गच्छामि।
उत्तर
सतीश

(ग) मित्रैः सह क्रीडितुं गतः।।
उत्तर
माता

(घ) हे मित्र! एषा तव जननी ज्वरपीडिता अस्ति।
उत्तर
मुकुलः

प्रश्न 4.
पूर्णवाक्येन उत्तरत
(क) मुकुलः सतीशस्य मातरम् किम् अपृच्छत्?
उत्तर
कुत्र सतीशः गत:।।

(ख) सतीशः किम् उक्त्वा बहिः अगच्छत्?
उत्तर
‘अयं मे क्रीडनस्य कालः। मम मित्राणि आगच्छन्ति। अहं क्रीडनार्थं गच्छामि।’ इति उक्त्वा सः बहिः आगच्छत्।।

(ग) उपनिषद् किम् उपदिशति?
उत्तर
‘मातृदेवो भव’।।

(घ) सः सतीशं कुतः आनयत्?
उत्तर
सः सतीशं क्रीडाक्षेत्रात् गृहम् आनयत।

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प्रश्न 5.
प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(क) सतीशस्य जननी कदा प्रमुदिता अभवत्।
उत्तर
सतीशः वैद्यम् आनयत् तर्हि तस्य जननी प्रमुदिता अभव्त।

(ख) आयुर्विद्या यशोबलं कस्य वर्धन्ते?
उत्तर
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः। चत्वारि तस्य वर्धन्ते, आयुर्विद्या यशो बलम्।।

(ग) किं श्रुत्वा सतीशः वैद्यम् आनयत्?
उत्तर
मित्रस्य उपदेशं श्रुत्वा सतीश: वैद्यम् आनयत।

(घ) सतीशः कुत्र अगच्छत्?
उत्तर
सतीशः क्रीडनार्थं बहिः अगच्छत्।

प्रश्न 6.
अधोलिखितानि-पदानि वाक्य रचनां कुरुत (करके)
उत्तर
यथा- ज्वरेण – महेशः ज्वरेण पीडितः।
मित्राणि – रमेशस्य मित्राणि कृष्णः, सुरेशः, महेशः च सन्ति।
ताम् – मुकुल: सतीशस्य जननीं ज्वरेण पीड़िताम् अपश्चत्।
क्रीडाक्षेत्रात् – मुकुल: सतीशं क्रीडाखेत्रात् गृहम् आनयत्।

  • गच्छ
  • लोट्
  • मध्यम पुरुषः
  • एकवचनम्

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प्रश्न 7.
विचिन्त्य लिखतयदि भवतः सहपाठी रुग्ण: स्यात् तदा भवान् किं करिष्यति? इति लिखत।।
उत्तर
यदि मम सहपाठी रुग्णः स्यात्, तदा अहं (UPBoardSolutions.com) तस्य चिकित्सां-सेवा शुश्रूषां च करिष्यामि।

• नोट – विद्यार्थी शिक्षण-सङ्केतः’ और ‘क्न्धुबान्धवानां नामानि’ स्वयं करें ।

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UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 7 भरते जनसंख्या – समस्या (गद्य – भारती)

UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 7 भरते जनसंख्या – समस्या (गद्य – भारती)

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परिचय

आज हमारा देश भारत जनसंख्या-वृद्धि की भयंकर समस्या से ग्रसित है जिससे ‘बढ़ता मानव घटता अन्न’ वाली कहावत चरितार्थ हो रही है, क्योंकि भूमि तो बढ़ाई नहीं जा सकती। मकान, दुकान, सड़क, कारखाने, विद्यालय, अस्पताल आदि सभी का निर्माण भूमि (UPBoardSolutions.com) पर ही होता है; अत: कृषि-योग्य भूमि दिनों-दिन कम होती जा रही है। सरकार के पास साधन सीमित हैं, फलतः असीमित जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति सम्भव नहीं हो सकती। आज भारत की जनसंख्या लगभग एक सौ बीस करोड़ से भी अधिक हो गयी है, जिससे जनता को लगभग सभी आवश्यक स्थानों पर स्थानाभाव की समस्या झेलनी पड़ रही है। इन सभी समस्याओं का निदान परिवार नियोजन से ही सम्भव है। यदि एक परिवार में मात्र एक-दो बच्चे जन्म लेंगे, तभी यह समस्या सुलझ सकती है।

प्रस्तुत पाठ जनसंख्या वृद्धि की विकराल समस्या के परिप्रेक्ष्य में परिवार नियोजन की आवश्यकता को स्पष्ट रूप से सामने रखता है।

पाठ-सारांश [2006, 08, 09, 10, 12, 14]

प्रस्तावना स्वतन्त्रता-प्राप्ति के 67 वर्ष (पाठ में उल्लिखित है ‘40 वर्ष) बाद भी भारत में दरिद्रता की समस्या हल नहीं हुई है। आज भी करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें भोजन के लिए मुट्ठीभर अनाज और शरीर ढकने के लिए दो हाथ कपड़ा भी नहीं मिल पाता है। खाद्य और उपभोग की वस्तुओं में उत्पादन-वृद्धि के अनुपात में जनसंख्या की वृद्धि अधिक हो रही है। यहाँ पर प्रतिवर्ष सवा करोड़ बच्चे पैदा होते हैं; अत: सुरसा के मुँह के समान निरन्तर वृद्धिमान जनसंख्या की वृद्धि से अधिक बढ़ा हुआ उत्पादन भी ‘ऊँट के मुँह में जीरा’ के समान सिद्ध हो रहा है।

जनसंख्या-वृद्धि के दुष्परिणाम :
(क) वर्ग-संघर्ष जनसंख्या की अबाधगति से वृद्धि से नगरों, ग्रामों, बाजारों, स्कूलों, अस्पतालों में सभी स्थानों पर भीड़-ही-भीड़ दिखाई देती है। योग्य व शिक्षित युवक भी रोजगार न मिलने से दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। ऐसी विकट स्थिति में सब जगह मैं-मैं के कारण अव्यवस्था और भ्रष्टाचार व्याप्त है जिसके परिणामस्वरूप गलत सिफारिश, रिश्वत, भाई-भतीजावाद, जाति और वर्ग-संघर्ष समाज को दूषित कर रहे हैं।.

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(ख) प्रदूषण की समस्या मनुष्य के पास व्यक्तिगत साधन और राष्ट्र के पास साधन सीमित ही हैं, अतः जनसंख्या वृद्धि पर रोकथाम की आवश्यकता है। बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए प्रतिवर्ष लाखों भवनों, हजारों विद्यालयों और सैकड़ों अस्पतालों की आवश्यकता पड़ती है। छोटे-छोटे घरों में रहने वाले अधिक लोग पशुओं के बाड़े में रहने वाली भेड़ों की तरह रह रहे हैं और चारों ओर गन्दगी फैला रहे हैं। रोजगार की तलाश में गाँव के लोग (UPBoardSolutions.com) नगरों की ओर भाग रहे हैं, जिससे नगरों में भी आवास की समस्या जटिल होती जा रही है। वहाँ फुटपाथों पर, सार्वजनिक उपवनों और झोपड़ियों में रहकर लोग नारकीय जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उनके यत्र-तत्र मल-मूत्र त्याग के द्वारा वातावरण दूषित हो रहा है और जन-सामान्य को पेयजल भी शुद्ध रूप में उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।

(ग) शान्ति-व्यवस्था की समस्या विभिन्न प्रकार के अभावों के कारण उन वस्तुओं की प्राप्ति और जीविका के लिए आपाधापी मची हुई है। आपसी सौहार्द समाप्त हो गया है और हिंसा की प्रवृत्ति बढ़ रही है। जीविका के अभाव में युवक असामाजिक हो रहे हैं, जिससे अपराध बढ़ रहे हैं और बिना कारण के झगड़े हो रहे हैं। शान्ति-व्यवस्था की समस्या भी उत्पन्न होती जा रही है और परिवारों में अधिक बच्चे होने से उनका पालन-पोषण भी ठीक ढंग से नहीं हो पा रहा है।

(घ) बाढ़ एवं भूक्षरण की समस्या जनसंख्या की निरन्तर वृद्धि के कारण वन काट डाले गये हैं और अब पर्वतों को नग्न किया जा रहा है अर्थात् पर्वतों पर उगी वनस्पतियाँ भी काटी जा रही हैं। वृक्षों और वनों को अन्धाधुन्ध काटने से भूमि का क्षय हो रहा है। बाढ़े आती हैं जिससे खेतों की उपजाऊ मिट्टी बह जाती है। और अरबों की सम्पत्ति नष्ट हो जाती है। नदियों के किनारे स्थित नगरों की गन्दगी नदियों में बहा दी जाती है, जिससे गंगा जैसी पवित्र नदियों का जल भी अपेय हो गया है।

समस्याओं का निदान : परिवार-नियोजन जनसंख्या के विस्फोट के कारण सभी तरह का विकास होने पर भी जन-जीवन संघर्षमय, जीने की इच्छा से व्याकुल, निराश और क्षुब्ध हो गया है। हत्या जैसी पाप-कथाओं को सुनकर अब मन उद्विग्न नहीं होता। यद्यपि विचारक, विद्वान्, नेता और प्रशासक इस समस्या के समाधान में लगे हुए हैं तथापि इसका एकमात्र हल परिवार नियोजन है; अर्थात् परिवार सीमित रहे और एक परिवार में दो से अधिक बच्चे पैदा न हों। बच्चों का पालन-पोषण ठीक प्रकार से हो। अधिक बच्चों के होने पर भोजन, वस्त्र आदि की आवश्यकता भी अधिक होती है। सीमित आय में उनकी शिक्षा-दीक्षा सही ढंग से नहीं हो सकती है। परिवार नियोजन से आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणिक आदि समस्त प्रकार के असन्तुलन समाप्त हो जाएँगे और मानव-जीवन में सुख-समृद्धि का संचार हो जाएगा।

सरकारी प्रयास एवं परिणाम राष्ट्रसंघ, भारत सरकार और राज्य सरकारें जनसंख्या की वृद्धि को रोकने के लिए विविध योजनाएँ बना रही हैं और उनको लागू कर रही हैं। इसके लिए उनके द्वारा अनेक साधन सुलभ कराये जा रहे हैं। लेकिन सभी वर्गों के सहयोग के अभाव में अपेक्षित परिणाम नजर नहीं आ रहे हैं। सरकार तो साधन जुटा सकती है और वह यथाशक्ति जुटा भी रही है। परिवार नियोजन तो सबको अपने देश के, कुल के, समाज के विकास और कल्याण के लिए करना चाहिए। हम सभी का यह परम कर्तव्य होना चाहिए कि वह अपने परिवार को संयमित तथा सीमित रखे।

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गद्यांशों का ससन्दर्भ अनुवाद

(1)
स्वतन्त्रताप्राप्तेश्चत्वारिंशद्वर्षपश्चादपि अस्माकं देशे दरिद्रतायाः समस्या नैव समाहिता। अद्यापि कोटिशो जना निर्धनतायाः स्तरादपि अधस्ताद वर्तमाना उदरपूरणाय मुष्टिपरिमितं धान्यं शरीराच्छादनाय च हस्तद्वयं यावत् कर्पटं च नो लभन्ते, अन्येषां सौविध्यानां तु कथैव का। नास्त्येतद् यद् अस्मिन् काले साधनानां विकासो, भोज्यानां भोग्यानां च वस्तूनां परिवृद्धिर्न जातेति। वस्तुतः सत्यप्यनेकगुणिते धान्यादीनामुत्पादने तस्य लाभो नैव दृश्यते यतो हि जनसङ्ख्यापि तदनुपातेन ततोऽप्यधिकं वा वर्धते। सम्प्रति तु दशेयं जाता सपादैककोटिसख्यका बालकाः प्रतिवर्षमुत्पद्यन्ते। एवं वक्तव्यं यद् आस्ट्रेलियामहाद्वीपे यावन्तो जनाः निवसन्ति तावन्तः प्रतिवर्षमत्र भारते जन्म लभन्ते। एवं सुरसाया मुखस्येव जनस्य वृद्धिरत्र भवति येन सर्वात्मना प्रभूतवृद्धि गतमपि उत्पादनम् उष्ट्रस्य मुखे जीरकमिव एकपदे एव विलीयते।।

शब्दार्थ पश्चादपि = बाद भी। दरिद्रतायाः = निर्धनता की। नैव = नहीं ही। समाहिता = हल हुई। अधस्तात् = नीचे। मुष्टिपरिमितम् = मुट्ठीभरा शरीराच्छादनाय = शरीर ढकने के लिए। हस्तद्वयम् = दो हाथ| कर्पटम् = कपड़ा। सौविध्यानाम् = सुविधाओं की। कथैव = बात ही। नास्त्येतद् = नहीं है, (UPBoardSolutions.com) ऐसा। सत्यप्यनेकगुणिते = वस्तुतः अनेक गुना होने पर भी न दृश्यते = दिखाई नहीं देता। तदनुपातेन = उसके अनुपात से। ततोऽप्यधिकम् (ततः +,अपि + अधिक) = उससे भी अधिक। सम्प्रति = आजकल। सपादैककोटिसङ्ख्य काः = सवा करोड़ की संख्या में उत्पद्यन्ते = जन्म लेते हैं। यावन्तः = जितने। तावन्तः = उतने। सुरसायाः मुखस्येव = सुरसा के मुख के समान। सर्वात्मना = सभी प्रकार से। प्रभूतवृद्धि गतमपि = अधिक वृद्धि होने पर भी। उष्ट्रस्य मुखे जीरकम् इवे = ऊँट के मुँह में जीरे के समान। एकपदे = एक साथ ही। विलीयते = समा जाता है, विलीन हो जाता है।

सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के गद्य-खण्ड ‘गद्य-भारती’ में संकलित ‘भारते जनसंख्या-समस्या’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है।

[ संकेत इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में भारत में जनसंख्या-वृद्धि की समस्या पर प्रकाश डाला गया है।

अनुवाद स्वतन्त्रता-प्राप्ति के सड़सठ वर्ष पश्चात् भी (मूल पाठ में उल्लिखित है 40 वर्ष) हमारे देश में गरीबी की समस्या हल नहीं हुई है। आज भी करोड़ों लोग गरीबी के स्तर से भी नीचे रहते हुए पेट भरने के लिए मुट्ठीभर धान्य (अन्न) और शरीर ढकने के लिए दो हाथ जितना वस्त्र नहीं प्राप्त करते हैं। दूसरी सुविधाओं का तो कहना ही क्या? ऐसी बात नहीं है कि इस समय साधनों का विकास, खाने योग्य और उपयोग के योग्य वस्तुओं की वृद्धि नहीं हुई है। वास्तव में अनेक गुना धन-धान्यादि का उत्पादन होने पर भी उसका लाभ नहीं दिखाई देता है; क्योंकि जनसंख्या भी उस अनुपात से या उससे भी अधिक बढ़ जाती है। इस समय तो यह दशा हो (UPBoardSolutions.com) गयी है कि सवा करोड़ बच्चे प्रतिवर्ष पैदा होते हैं। ऐसा कहना चाहिए कि ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप में जितने लोग रहते हैं, उतने प्रतिवर्ष यहाँ भारत में जन्म लेते हैं। इस प्रकार सुरसा के मुख के समान लोगों की वृद्धि यहाँ पर हो रही है, जिससे बहुत बढ़ा हुआ उत्पादन भी ‘ऊँट के मुंह में जीरा के समान एक बार में ही समाप्त हो जाता है।

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(2)
जनसङ्ख्याया अनिरुद्धवृद्धेः परिणामोऽयं जातो यत् नगरेषु, ग्रामेषु, आपणेषु, चिकित्सालयेषु, विद्यालयेषु, न्यायालयेषु किं बहुना, यत्र तत्र सर्वत्रापि जनानां महान्तः सम्मर्दाः दृश्यन्ते। यात्रिणो यानेषु, छात्राः विद्यालयेषु, रोगिणः चिकित्सालयेषु च स्थानं न लभन्ते। योग्याः प्रशिक्षिताः शिक्षिता अपि युवानो जीविकामलभमाना द्वाराद् द्वारं भृशम् अटन्ति। ‘एकं दाडिमं, शतं रोगिणाम्’ एवंविधे व्यतिकरे सर्वत्रापि अहमहमिकाकारणात् न केवलम् अव्यवस्था अपितु भ्रष्टाचारोऽपि अलर्कविषमिव प्रसरति। कुसंस्तुतिः, उत्कोचः, भ्रातृ-भ्रातृजवादः, जातिदलसङ्घर्ष इत्यादयो विकाराः समाजशरीरं दूषयन्ति। येन सर्वोऽपि समाजो मनोरोगीव सजायते।

जनसङ्ख्याया अनिरुद्धवृद्धेः ………………………………………………………….. स्थानं न लभन्ते।

शब्दार्थ अनिरुद्धवृद्धेः = बेरोक-टोक वृद्धि से। आपणेषु = बाजारों में। किंबहुना = अधिक क्या। सम्मर्दाः = भीड़। प्रशिक्षिताः = प्रशिक्षित लोग। युवानः = युवा लोग। जीविकामलभमानाः = जीविका न प्राप्त करते हुए। द्वाराद्वारम् = द्वार से द्वार तक। भृशम् = अधिक अटन्ति = घूमते हैं। दाडिमम् = अनार। व्यतिकरे = कठिन परिस्थिति में अहमहमिकाकारणात् = पहले मैं, पहले मैं के कारण। अलर्कविषमिव = पागल कुत्ते के विष के समान। प्रसरति = फैल रहा है। कुसंस्तुतिः = गलत सिफारिश। उत्कोचः = घूस भ्रातृ-भ्रातृजवादः = भाई-भतीजावाद। मनोरोगीव = मानसिक रोगी के समान। सञ्जायते = हो रहा है।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में जनसंख्या की बेरोक-टोक वृद्धि के दुष्परिणाम के विषय में बताया गया है।

अनुवाद जनसंख्या की बेरोक-टोक वृद्धि का परिणाम यह हुआ कि नगरों, ग्रामों, बाजारों, अस्पतालों, विद्यालयों, न्यायालयों में अधिक क्या, जहाँ-तहाँ सभी जगह लोगों की बहुत भीड़ दिखाई देती है। गाड़ियों में यात्री, विद्यालयों में छात्र और चिकित्सालयों में रोगी स्थान नहीं प्राप्त करते हैं। (UPBoardSolutions.com) योग्य, प्रशिक्षित, पढ़े-लिखे युवक भी रोजगार न प्राप्त करते हुए द्वार-द्वार पर अधिकता से घूम रहे हैं। एक अनार सौ बीमार’ इस प्रकार की कठिन परिस्थिति में सभी जगह पहले मैं पहले मैं’ के कारण केवल अव्यवस्था ही नहीं, अपितु भ्रष्टाचार भी पागल कुत्ते के विष के समान फैल रहा है। गलत सिफारिश, घूस, भाई-भतीजावाद, जाति और वर्ग को संघर्ष इत्यादि विकार समाज के शरीर को दूषित कर रहे हैं, जिससे सारा समाज ही मानसिक रोगी के समान हो रहा है।

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(3)
मनुष्याणां व्यक्तिगतसाधनानि राष्ट्रस्य च साधनानि तु सीमितान्येव, आवश्यकता तु जनवृद्धेः वारणान्महती आपद्यते। प्रतिवर्षी लक्षशः आवासाः, सहस्रशो विद्यालयाः, शतशश्चिकित्सालयाः, बहूनि चान्यानि साधनान्यपेक्ष्यन्ते न सीमितसाधनैः सम्पादयितुं शक्यन्ते। फलतो लघिष्ठेष्वपि गृहेषु अतिसङ्ख्यकाः जना पशुवाटेषु अजा मेषा इव निवसन्ति परितश्च मालिन्यं प्रसारयन्ति। जीविकां मृगयमाणाः ग्रामीणाः जनाः नगरं धावन्ति। तत्रे च सहस्रशो लक्षशो जनाः पद्धतिमभितः, सार्वजनिकेषु उद्यानादिस्थानेषु, अनधिकारनिर्मितेषु पर्पोटजेषु निवसन्तः निषिद्धस्थान एव यत्र तत्र मलमूत्रादित्यागेन वातावरणं मलिनयन्ति रोगग्रस्ताश्च जायन्ते। चिकित्साशिक्षादि सौविध्यस्य तु दूर एवास्तां कथा शुद्ध पेयं जलमपि नोपलभ्यते। एतादृशं जीवनमपि किं जीवनमू? [2013]

शब्दार्थ व्यक्तिगतसाधनानि = व्यक्तिगत साधन। सीमितान्येव = सीमित ही हैं। आपद्यते = आ पड़ी है। लक्षशः = लाखों। सहस्रशः = हजारों। शतशः = सैकड़ों। अपेक्ष्यन्ते = अपेक्षित हैं। सम्पादयितुं शक्यन्ते = बनाये जा सकते हैं। लघिष्ठेषु = अत्यन्त छोटे। पशुवाटेषु = पशुओं के बाड़े में। (UPBoardSolutions.com) अजा मेषा इव = भेड़-बकरियों के समान/ परितश्च = और चारों ओर। मालिन्यं = गन्दगी। प्रसारयन्ति = फैलाते हैं। मृगयमाणाः = ढूंढ़ते हुए। पद्धतिमभितः = मार्ग के दोनों ओर। पर्पोटजेषु = झोपड़ियों में। मलिनयन्ति,= मलिन (दूषित) करते हैं। सौविध्यस्य = सुविधा की। दूर एवास्तां कथा = दूर ही रहे बात। नोपलभ्यते = नहीं प्राप्त होता है।।

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प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में जनसंख्या-वृद्धि के दुष्परिणामों के विषय में बताया गया है।

अनुवाद मनुष्यों के व्यक्तिगत साधन और राष्ट्र के साधन तो सीमित ही हैं, तो जनवृद्धि को रोकने की बड़ी आवश्यकता आ पड़ी है। प्रतिवर्ष लाखों आवास, हजारों विद्यालय, सैकड़ों अस्पताल और बहुत-से दूसरे साधनों की आवश्यकता है, किन्तु सीमित साधनों से वे सम्पादित (बनाये) नहीं किये जा सकते हैं। फलस्वरूप अत्यन्त छोटे घरों में अधिक संख्या में लोग पशुओं के बाड़ों में भेड़-बकरियों की तरह रहते हैं।
और चारों ओर गन्दगी फैलाते हैं। जीविका को ढूंढ़ते हुए गाँव के लोग नगर की ओर दौड़ते हैं और वहाँ हजारों-लाखों लोग मार्ग के दोनों ओर, सार्वजनिक उपवन आदि स्थानों में, अनधिकार रूप से बनी हुई। झोपड़ियों में रहते हुए, गलत स्थान पर इधर-उधर मल-मूत्र आदि के त्याग द्वारा वातावरण को गन्दा करते हैं। और बीमार हो जाते हैं। चिकित्सा, शिक्षा आदि की सुविधा की बात तो दूर रहे, उनको पीने का शुद्ध जल भी प्राप्त नहीं होता है। इस प्रकार का जीना भी क्या जीना है?

(4)
विभिन्नानामभावानां कारणात् तत्तद्वस्तुप्राप्तये जीविकार्थं च महती प्रतिद्वन्द्विता प्रवर्तते। मिथः सौमनस्यं विलीयते, हिंसायाः भावः प्रादुर्भवति यतो हि क्षीणा जनाः निष्करुणा भवन्ति। क्षुधाहतः किं न कुरुते। अवृत्तिका युवानः असामाजिका जायन्ते। अपराधा वर्धन्ते। स्थाने स्थाने (UPBoardSolutions.com) अकारणादेव कलहा जायन्ते शान्तिव्यवस्थायाः महती समस्या उत्पद्यते। परिवारेषु बालकानामधिकताय तेषां पालनं सुष्ठ न भवति। ‘अति सर्वत्र वर्जयेत्’ इति नीतिवाक्यानुसारेण सम्प्रति बालकानामपि सङ्ख्यावृद्धिर्वर्जनीया एव। [2007]

शब्दार्थ विभिन्नानामभावानां = विभिन्न प्रकार के अभावों का। जीविकार्थम् = रोजगार के लिए। प्रतिद्वन्द्विता = होड़। प्रवर्त्तते = बढ़ रही है। मिथः = आपस में। सौमनस्यम् = सद्भाव। विलीयते = नष्ट हो रहा है। यतो हि = क्योंकि निष्करुणाः = निर्दयी, करुणाहीन। क्षुधाहतः = भूख से पीड़िता अवृत्तिकाः = बेरोजगार। कलहाः = झगड़े। उत्पद्यते = उत्पन्न होती है। सुष्टुः = भली प्रकार वर्जयेत् = त्यागनी चाहिए। वर्जनीया एव = वर्जनीय; अर्थात् त्याज्य ही है।

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प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में जनसंख्या की वृद्धि को रोकने के लिए बल दिया गया है।

अनुवाद अनेक प्रकार के अभावों के कारण उस-उस वस्तु की प्राप्ति के लिए और जीविका के लिए अत्यधिक होड़ बढ़ती जाती है। आपसी सद्भाव नष्ट हो जाता है, हिंसा का भाव उत्पन्न होता है; क्योंकि कमजोर मनुष्य निर्दयी होते हैं। भूख से पीड़ित क्या नहीं करता? बेरोजगार युवक असामाजिक हो जाते हैं। अपराध बढ़ जाते हैं। जगह-जगह बिना कारण ही झगड़े हो जाते हैं। शान्ति-व्यवस्था की बड़ी समस्या उत्पन्न हो जाती है। परिवारों में बच्चों की अधिकता से उनका पालन भी ठीक नहीं हो पाता है। अति सब जगह छोड़ देनी चाहिए’ इस नीति-वाक्य के अनुसार इस समय बच्चों की भी संख्या की वृद्धि को रोकना चाहिए।

(5)
निरन्तरं वर्धमानया जनसङ्ख्यया बहूनि वनान्यपि निगिलितानि। पर्वताः नग्ना कृताः। वृक्षेषु प्रतिक्षणं कुठाराघातः क्रियते। वृक्षाणां वनानां च अन्धान्धकर्तनेन वर्षासु भूक्षरणं जायते। उर्वरकां मृत्स्नां वर्षाजलम् अपवाहयति, नदीनां तलानि उत्थलानि भवन्ति। येन जलप्लावनानि भवन्ति अर्बुदानां च सम्पत् प्रतिवर्ष नश्यति। नदीतटे स्थितानां नगराणाम् उत्तरोत्तरं विवर्धमानं मालिन्यं महाप्रणालैनंदीषु पात्यते येन गङ्गासदृश्योऽपि सुधास्वादुजला नद्यो स्थाने स्थाने अपेया अस्नानीया च जायन्ते। [2006, 07 08]

शब्दार्थ वनान्यपि = वन भी। निगिलितानि = नष्ट हो गये हैं। अन्धान्धकर्तनेन = अन्धाधुन्ध काटने से। भूक्षरणम् = भूमि का कटाव उर्वरकां = उपजाऊ। मृत्स्नाम् = मिट्टी को। अपवाहयति = बहा ले जाता है। उत्थलानि = उथले, कम गहरे। जलप्लावनानि = बाढे। अर्बुदानां (UPBoardSolutions.com) च सम्पत् = अरबों की सम्पत्ति। उत्तरोत्तरं = दिन-प्रतिदिन विवर्धमानं = बढ़ता हुआ। महाप्रणालैः = बड़े नालों के द्वारा पात्यते = गिराया जाता है। सुधास्वादुजला = अमृत के समान स्वादयुक्त जल वाली। अपेया = न पीने योग्य अस्नानीया = स्नान के अयोग्य।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में जनसंख्या की वृद्धि के दुष्परिणामों पर प्रकाश डाला गया है।

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अनुवाद निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या से बहुत-से वन भी नष्ट कर दिये गये। पर्वत नग्न कर दिये गये। वृक्षों पर प्रत्येक क्षण कुल्हाड़ी से प्रहार किया जा रहा है। वृक्षों और वनों के अन्धाधुन्ध काटने से वर्षा-ऋतु में भूमि का कटाव हो जाता है। उपजाऊ मिट्टी को वर्षा का जल बहा ले जाता है। नदियों के तल उथले (कम गहरे) हो जाते हैं, जिससे बाढ़े आती हैं और अरबों की सम्पत्ति प्रतिवर्ष नष्ट हो जाती है। नदी के किनारे पर स्थित नगरों की लगातार बढ़ती हुई गन्दगी बड़े नालों से नदियों में गिरायी जाती है, जिससे गंगा जैसी अमृत के समान स्वादिष्ट जल वाली नदियाँ भी जगह-जगह न पीने योग्य और स्नान न करने योग्य हो गयी हैं।

(6)
अभिप्रायोऽयं यज्जनसङ्ख्याविस्फोटकारणात् सर्वविध विकासे सत्यपि राष्ट्रे जन-जीवनं सङ्घर्षमयं जिजीविषाकुलं, नैराश्यपीडितं मनःक्षोभकरं च जातम्। मानवीयगुणानां हासो भवति। अत एव तु हत्यादिमहापातकानां श्रवणं न मनुष्यान् पुरेव उद्वेजयाति। यद्यपि सर्वेऽपि विचारकाः, मनीषिणः, नेतारः, प्रशासकाश्च समस्यामेनां समाधातुं प्रयतमानाः सन्ति। अस्या एकमात्र समाधानं परिवार नियोजनम्। परिवारः सीमितो भवेत्। तच्च तदैव सम्भवति यदा परिवारे बालकानाम् उत्पत्तिरधिका न भवेत्, एक एव द्वौ वा बालकौ स्यातां, येन तत्पालनं पोषणं च सुष्ठ भवेत्। अधिकानां कृते अधिकानि भोजनवस्त्रादिवस्तूनि अपेक्ष्यन्ते, परिवारस्य आयस्तु सीमितो भवति।।

शब्दार्थ अभिप्रायोऽयम् = अभिप्राय यह है। यज्जनसङ्ख्याविस्फोटकारणात् = जनसंख्या की अधिक वृद्धि के कारण से। सत्यपि = हो जाने पर भी। जिजीविषाकुलम् = जीवित रहने की इच्छा से व्याकुला मनः क्षोभकरं = मन में दुःख उत्पन्न करने वाला। ह्रासः = घटती। पुरेव (पुरा + इव) = पहले की तरह उद्वेजयति = पीड़ित करता है। समाधातुम् = समाधान करने के लिए। प्रयतमानाः = प्रयत्नशील। उत्पत्तिरधिका = अधिक उत्पत्ति। सुष्टुं भवेत् = अच्छी प्रकार से हो जाए। अपेक्ष्यन्ते = अपेक्षित होती है।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में जनसंख्या की वृद्धि को रोकने का उपाय परिवार नियोजन को बताया गया है।

अनुवाद अभिप्राय यह है कि जनसंख्या के विस्फोट के कारण से सभी प्रकार का विकास होने पर भी राष्ट्र में लोगों का जीवन संघर्षों से भरा, जीने की इच्छा से व्याकुल, निराशा से पीड़ित तथा मन को क्षुब्ध करने वाला हो गया है। मानवीय गुणों का ह्रास होता जा रहा है। इसीलिए हत्या आदि बड़े पापों का सुनना मनुष्यों को पहले की तरह दु:खी नहीं करता है। यद्यपि सभी विचारक, विद्वान्, नेता, प्रशासक इस समस्या का समाधान करने के लिए प्रयत्न कर रहे हैं, तथापि इसका एकमात्र समाधान परिवार नियोजन है। परिवार सीमित होना चाहिए। वह तभी हो सकता है, जब परिवार में बच्चों की उत्पत्ति अधिक न हो, एक या दो ही बालक (UPBoardSolutions.com) होवें, जिससे उनका पालन-पोषण अच्छी तरह से हो सके। अधिक के लिए अधिक भोजन, वस्त्र आदि वस्तुओं की आवश्यकता होती है। परिवार की आय तो सीमित होती है।

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(7)
अधिका बालका भविष्यन्ति चेत् तेषां शिक्षा-दीक्षाऽपि चारुतया न भविष्यति। एकः द्वौ वा बालको दम्पत्योः स्यातां यथाकाले शिक्षाविवाहादयः करणीयाः। एतदेव परिवार नियोजनम्। राष्ट्रसङ्घन भारतसर्वकारेण राज्यशासनेन च जनसङ्ख्यां नियन्तुं विविधाः परिवारकल्याणयोजनाः प्रवर्तिताः अनेकानि साधनानि च प्रापितानि तथापि अपेक्षितः परिणामो नाद्यापि दृश्यते। कारणं त्विदं यद्देशवासिनां सर्वेषां वर्गाणां सहयोगो नैव प्राप्यते।

शब्दार्थ चारुतया = ठीक से, भली प्रकार से। भारतसर्वकारेण = भारत सरकार ने। प्रवर्तिताः = आरम्भ की है। प्रापितानि = प्राप्त करा दिये हैं। अपेक्षितः = मनचाहा। नाद्यापि = आज भी नहीं। त्विदम् (तु + इदम्) = तो यह है। प्राप्यते = प्राप्त होता है।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में जनसंख्या की वृद्धि को रोकने के लिए किये गये शासकीय प्रयासों की चर्चा की गयी है।

अनुवाद यदि अधिक बच्चे होंगे तो उनकी शिक्षा-दीक्षा भी ठीक प्रकार से नहीं होगी। पति-पत्नी के एक या दो बच्चे ही हों तो उचित समय पर शिक्षा, विवाह आदि करना चाहिए। यही परिवार-नियोजन है। राष्ट्रसंघ, भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा जनसंख्या को रोकने के लिए अनेक प्रकार की परिवार कल्याण की योजनाएँ प्रारम्भ की गयी हैं और अनेक साधन उपलब्ध कराये गये हैं तो भी अपेक्षित परिणाम आज भी नहीं दिखाई दे रहे हैं। इसका कारण यह है कि देशवासियों के सभी वर्गों का सहयोग प्राप्त नहीं हो रहा है।

(8)
एषा समस्या तु न केवलं राष्ट्रस्यैव अपितु सर्वस्यापि परिवारस्यैव मुख्यतया विद्यते। नियोजित एव परिवारः प्रत्येकपरिवारजनस्य सुखशान्तिकारको भविष्यति। सर्वकारस्तु यथाशक्ति साधनानि दातुं शक्नोति तच्चासौ करोत्येव। सन्ततिनिरोधस्तु प्रत्येक मनुष्येण स्वस्य, स्वकुलस्य, समाजस्य, राष्ट्रस्य, विश्वस्य च उन्नतये शान्तये च धर्मानुष्ठानमिव स्वत एव सर्वात्मना विधेयस्तदैव समस्यायाः समाधानं भवेत्, मातृकल्याणं बालकल्याणं च स्यात्। [2015]

शब्दार्थ प्रत्येकपरिवारजनस्य = परिवार के प्रत्येक जन का। करोत्येव = करती ही है। सन्ततिनिरोधस्तु = परिवार नियोजन, सन्तानोत्पत्ति का रोकना तो। उन्नतये = उन्नति के लिए। धर्मानुष्ठानमिव = धार्मिक अनुष्ठान की तरह। सर्वात्मना = पूरी तरह से। विधेयः = करना चाहिए।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में बताया गया है कि नियोजित परिवार ही सुख और शान्ति का मूल कारण है।

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अनुवाद यह समस्या तो केवल राष्ट्र की नहीं है, अपितु मुख्य रूप से सभी परिवारों की ही है। नियोजित परिवार ही परिवार के प्रत्येक व्यक्ति की सुख-शान्ति का करने वाला अर्थात् कारक होगा। सरकार तो यथाशक्ति साधनों को दे सकती है, यह तो वह करती ही है। सन्तति-निरोध (UPBoardSolutions.com) तो प्रत्येक मनुष्य को अपनी, अपने कुल की, समाज की, राष्ट्र की और विश्व की उन्नति और शान्ति के लिए धर्मानुष्ठान की तरह स्वयं ही पूरी तरह से करना चाहिए, तभी समस्या का समाधान हो सकेगा, (इसी से) माता का कल्याण और बच्चों का कल्याण होगा।

लघु उत्तटीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में जनसंख्या-वृद्धि को रोकने के उपाय बताइए। या जनसंख्या वृद्धि के समाधान क्या हैं? [2006,07]
उत्तर :
भारत में जनसंख्या वृद्धि को रोकने का एकमात्र उपाय परिवार-नियोजन है। परिवार-नियोजन का तात्पर्य है-सीमित परिवार, अर्थात् किसी दम्पति के एक या दो बच्चे होना ही परिवार नियोजन है। नियोजित परिवार ही परिवार के प्रत्येक व्यक्ति को सुख-शान्ति प्रदान कर सकता है। सरकार तो केवल साधनों की उपलब्धता ही सुनिश्चित कर सकती है लेकिन इसके लिए प्रयास तो प्रत्येक व्यक्ति को इसे एक धर्मानुष्ठान मानकर करना होगा। तभी इस समस्या का समाधान हो सकता है।

प्रश्न 2.
जनसंख्या विस्फोट का क्या अर्थ है? इसका राष्ट्र के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? [2006,07,08, 11]
या
यो जनसंख्या विस्फोट से क्या तात्पर्य है? [2011]
उत्तर :
जनसंख्या विस्फोट का अर्थ है-जनसंख्या को उपलब्ध साधनों की तुलना में तीव्र गति से बढ़ना। जनसंख्या का विस्फोट होने पर सभी प्रकार के साधनों के रहने पर भी राष्ट्र में जन-जीवन संघर्षपूर्ण हो जाता है, जीने की इच्छा व्याकुल करने लगती है, मन में निराशा-क्षोभ उत्पन्न हो जाता है तथा मानवीय गुणों की हानि होती है।

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प्रश्न 3.
भारत में जनसंख्या-वृद्धि को रोकने में सबसे बड़ी बाधा क्या है? [2006]
उत्तर :
भारत में जनसंख्या-वृद्धि को रोकने में सबसे बड़ी बाधा देशवासियों का अल्पशिक्षित होना है। यही वह प्रमुख बाधा है, जिसके चलते सरकार द्वारा चलाये जा रहे परिवार कल्याण कार्यक्रम को जनता का अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाता, क्योंकि भारतवासी यह नहीं समझते कि यह मुख्य रूप से राष्ट्र की समस्या है। वे यह समझते हैं कि यह परिवारों की समस्या है, राष्ट्र की नहीं।

प्रश्न 4.
जनसंख्या-वृद्धि से होने वाली किन्हीं दो समस्याओं का उल्लेख कीजिए। [2006]
उत्तर जनसंख्या वृद्धि से होने वाली दो समस्याएँ निम्नलिखित हैं

(क) जनसंख्या की अत्यधिक वृद्धि होने के कारण योग्य, प्रशिक्षित और पढ़े-लिखे युवकों को भी रोजगार नहीं मिल पा रहा है।
(ख) जनसंख्या-वृद्धि से उत्पन्न होने वाली दूसरी महत्त्वपूर्ण समस्या है–भूमि की सीमितता की समस्या।

प्रश्न 5.
जनसंख्या-वृद्धि में ‘अति सर्वत्र वर्जयेत्’ उक्ति की समीक्षा कीजिए।
या
राष्ट्र की उन्नति के लिए जनसंख्या-वृद्धि किस प्रकार घातक है?
या
प्रत्येक व्यक्ति को सन्तति-निरोध क्यों करना चाहिए? [2007]
उत्तर :
“अति सर्वत्र वर्जयेत्” उक्ति का तात्पर्य यह है कि किसी भी वस्तु की अति सर्वथा वर्जना योग्य अर्थात् त्यागने योग्य होती है। भारत के पास विश्व में उपलब्ध भू-भाग का मात्र 2% ही है, लेकिन जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का 1/6 भाग (लगभग 17%) से अधिक है। भारत में प्रतिवर्ष उतने (UPBoardSolutions.com) लोग जन्म ले लेते हैं, जितनी ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप की कुल जनसंख्या है। इसके चलते खाद्यान्नों के उत्पादन में हो रही अत्यधिक वृद्धि भी ऊँट के मुँह में जीरा’ के समान व्यर्थ सिद्ध हो रही है। निश्चित ही यह जनसंख्या-वृद्धि या की अति है। अतः जनसंख्या-वृद्धि से उत्पन्न समस्याओं के समाधान के लिए प्रत्येक व्यक्ति को सन्तति-निरोध करना चाहिए।

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प्रश्न 6.
भारत में जनसंख्या-वृद्धि को रोकने के उपाय बताइए। [2011]
या
हमारे देश में जनसंख्या समस्या का समाधान कैसे हो सकता है? [2006,07, 11, 12]
उत्तर :
भारत में जनसंख्या-वृद्धि को रोकने का एकमात्र उपाय परिवार-नियोजन है। परिवार-नियोजन को तात्पर्य है-सीमित परिवार अर्थात् किसी दम्पति के एक या दो बच्चों का होना । देश और राज्य की सरकारें तो केवल साधनों की उपलब्धता ही सुनिश्चित कर सकती हैं, लेकिन इसके (UPBoardSolutions.com) लिए प्रयास तो प्रत्येक व्यक्ति को करना होगा। जब प्रत्येक व्यक्ति परिवार के नियोजन को एक धर्मानुष्ठान मानकर प्रयास करेगा, तभी जनसंख्या की समस्या का समाधान हो सकता है।

प्रश्न 7. प्राकृतिक वातावरण पर जनसंख्या-वृद्धि का क्या प्रभाव पड़ रहा है? [2009]
उत्तर :
जनसंख्या वृद्धि के कारण वन काटे जा रहे हैं और पर्वतों को नंगा किया जा रहा है। वनों और वृक्षों के कट जाने से भूमि का कटाव बढ़ता जा रहा है, बाढ़ आ रही है, खेतों की उपजाऊ मिट्टी समाप्त होती जा रही है। नगरों के मल-मूत्र नदियों में बहाये जाने से इनका जल प्रदूषित हो रहा है। गंगा जैसी पवित्र और सदानीरा नदी का जल अपेय; अर्थात् न पीने योग्य; हो गया है।

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UP Board Solutions for Class 8 Sanskrit Chapter 1 आश्रम:

UP Board Solutions for Class 8 Sanskrit Chapter 1 आश्रम:

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संस्कृत पीयूषम्

आश्रमः

शब्दार्थाः– पुराकले = प्राचीन काल में, अतीव = अत्यन्त, अश्वत्थः = पीपल, परिव्याप्ती = चारों ओर से ढंका, आमलकः = आँवला, पनसः = कटहल, पेरु = अमरूद, वलीवर्दः = बैल, कुर्दनम् = कूदना, चटकानाम् = चिड़ियों का, विहाय = छोड़कर, सम्प्रत्यपि = इस समय भी ।

अस्माकं प्रदेशस्य ………………………………….. वर्षति स्म ।
हिन्दी अनुवाद-हमारे प्रदेश की राजधानी लखनऊ नगर है। उस नगर के समीप नैमिषारण्य प्राचीन तीर्थस्थल अत्यन्त प्रसिद्ध है। वहाँ पहले एक आश्रम में ऋषि, मुनि, गुरु, कवि और छात्र निवास करते थे। आश्रम के विशाल परिसर में पीपल, बरगद, नींबू और अशोक वृक्षों की गहन छाया व्याप्त रहती थी। वहाँ फले वाले आम, आँवले, कटहल और अमरूद (UPBoardSolutions.com) के वृक्ष भी बहुत अधिक थे। इन वृक्षों से वहाँ पर्यावरण अत्यन्त शुद्ध था, जिनसे वहाँ शीतल वायु मन्द-मन्द लगातर बहती थी, समय-समय पर बादल बरसते थे।

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इदानीमपि तस्मिन् ………………………….. खादन्ति स्म च ।
हिन्दी अनुवाद-अभी भी उस आश्रम में गायें, बैल, घोड़े और अन्य पशु स्वतन्त्रता से चरते हैं। पेड़ों पर बन्दरों का कूदना, चिड़ियों का चहकना, मोरों का नाचना और मुर्गी की तालध्वनियाँ दर्शकों को आनन्द देती हैं।

उस आश्रम के निकट गोमती नदी बहती है । उसको निर्मल जेल सब आश्रमवासी लोग पीते हैं । पहले पशु और पक्षी विरोध छोड़कर एक ही घाट पर पानी पीते थे, एक जगह रहते थे और वहीं खाते थे।

तत्र छात्राणां …………………………………. आसन्
हिन्दी अनुवाद-वहाँ छात्रों के लिए ये नियम थे- प्रातः सूर्योदय से पहले उठना चाहिए, नदी में स्नान करना चाहिए, संध्या वन्दना करनी चाहिए, ईश्वर का नमन करना चाहिए, एक साथ खाना चाहिए। इसके बाद (UPBoardSolutions.com) पढ़ने के लिए कक्षाओं में जाना चाहिए । आश्रम के इन नियमों को सब छात्र अच्छी तरह से पालन करते थे।

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संप्रत्यपि आश्रमोऽयं ………………………….. भवेत् ।
हिन्दी अनुवाद-आज-कल भी यह आश्रम छात्रों को अच्छे संस्कार देता है । वहाँ जातिगत भेदभाव बिना सब निवास करते हैं। स्वास्थ्य के संवर्धन के लिए वहाँ व्यायाम, योग की प्राकृतिक चिकित्सा और शिक्षण प्रचलित है और वह आश्रम त्याग, तपस्या, परोपकार, उदारता की शिक्षा देता है। इस प्रकार के आश्रम आजकल सब जगह होने चाहिए।

अभ्यासः

प्रश्न 1.
उच्चारणं कुरुत पुस्तिकायां च लिखत-
उत्तर
नोट-विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2.
एकपदेन उत्तरत-
(क) आश्रमस्य समीपे का नदी प्रवहति?
उत्तर
गोमती नदी

(ख) काले काले कः वर्षति स्मः ?
उत्तर
मेघः

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(ग) वृक्षेषु कस्य कूर्दनम् आनन्दं ददाति?
उत्तर
वानरस्य

(घ) आश्रमे भेदभावं विना के निवसन्ति?
उत्तर
छात्राः

प्रश्न 3.
प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(क) आश्रमे स्वच्छन्द के के विचरन्ति?
उत्तर
धेनवः, बलिवर्दाः, अश्वाः , अन्ये च।

(ख) स्वास्थ्यसंवर्धनाय आश्रमे किं किं भवति ?
उत्तर
नाना विधानाः व्यायामाः।

(ग) छात्राणां कृते आश्रमे के के नियमाः आसन् ?
उत्तर
छात्राणां कृते एते नियमाः आसन्- प्रातः सूर्योदयात् पूर्वम् उत्थातव्यम्, नद्यां स्नानं कर्तव्यम्, सन्ध्या वन्दनं करणीयम्, ईश्वरः नमनीयः सहैव खादनीयं ततः पठनाय कक्षायां गन्तव्यम् । एतान् आश्रमनियमान् सर्वे छात्रीः सम्यक् प्रत्यापालयन।

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(घ) आश्रमः किं किं शिक्षयति?
उत्तर
आश्रमः त्याग, तपस्या, परोपकार, उदारतां च शिक्षयति ।

प्रश्न 4.
उचित मेलनं कृत्वा लिखत ( मिलान करके)
उत्तर
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प्रश्न 5.
अधोलिखित पदानां सन्धि-विच्छेदं कुरुत (करके)
उत्तर
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प्रश्न 6.
उदाहरणानुसारं पदरचनां कुरुत (रचना करके)
उत्तर
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प्रश्न 7.
विचिन्त्य उत्तराणि लिखत-
(क) फलदायकानां पञ्चवृक्षाणां नामानि लिखत।
उत्तर
आम्रम्, पनसः, पेरुवृक्षाः, कदली, नारिकेलः।

(ख) अनुस्वारसन्धियुक्तानि पञ्चवाक्यानि लिखत।।
उत्तर

  1. अस्माकं प्रदेशस्य सीतापुरजनपदे नैमिषारण्यं प्राचीनं तीर्थस्थलम् अतीव प्रसिद्धम् अस्ति। तत्र पुरा काले एकस्मिन् आश्रमे ऋषयः मुनयः गुरवः कवयः छात्राश्च निवसन्ति स्म।
  2. आश्रमस्य विशाले परिसरे अश्वत्थ-वट-निम्बाशोक-वृक्षाणां गहना छाया परिव्याप्तासीत्। तत्र फलशालिनः आम्राऽऽमलक-पनस-पेरुवृक्षाः अपि विपुलाः आसन्।।
  3. एभिः वृक्षैः तत्र पर्यावरणम् अत्यन्तं शुद्धमासीत्, येन शीतलाः वायवः मन्द-मन्दं निरन्तरं वहन्ति स्म, काले-काले च मेघः वर्षति स्म। इदानीमपि तस्मिन् आश्रमे धेनवः बलीवर्दाः अश्वाः (UPBoardSolutions.com) अन्ये च पशवः स्वच्छन्दं चरन्ति।
  4. वृक्षेषु कपीनां कूर्दनम्, चटकानां कूजनम् मयूराणां नर्तनम् दर्शकेभ्यः आनन्दं ददति। तस्याश्रमस्य सपीपे गोमती नदी प्रवहति। तस्याः निर्मलं जलं सर्वे आश्रमवासिनः पिबन्ति स्म। आश्रमे पशवः पक्षिणश्च विरोधं विहाय एकस्मिन् घट्टे पानीयम् पिबन्ति स्म, एकत्र वसन्ति स्म, तत्रैव खादन्ति स्म च।
  5. तस्मिन् आश्रमे पाठशालायां बालकाः बालिकाश्च सहैवापठन्।

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(ग) जीवने वृक्षाणाम् उपयोगं लिखत।
उत्तर
जीवने वृक्षाणां बहु उपयोगं अस्ति। एभिः विना जीवनः असम्भवः। वृक्षैः पर्यावरणं रक्षितम्। पर्यावरणेन सृष्टिं रक्षितम्। सृष्ट्याः पृथिवी रक्षिता।।

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TRANSLATION OF THE LESSON (पाठ का हिन्दी अनुवाद)

How often we…………………………………. of starting anew.

हिन्दी अनुवाद- कवि कहता है कि कितनी बार हम इच्छा जताते हैं एक और मौके की, एक नई शुरूआत करने की । एक मौका अपनी गलतियों को मिटाने का, और अपनी असपफलता को जीत में बदलने का। (UPBoardSolutions.com) एक बिल्कुल नई शुरुआत करने के लिए एक नए दिन की आवश्यकता नहीं होती। हमें सिर्फ एक गहरी, तीव्र इच्छा की आवश्यकता है, फिर से पूरे दिल से प्रयास करने की।
हमें आवश्यकता है पहले से थोड़ा बेहतर जीने की, हमेशा क्षमाशील होने की, और थोड़ी सी सूर्य-समान चमक लाने की, इस दुनिया में जहाँ हम रह रहे हैं।
इसलिए पूर्ण निराशा में भी कभी हिम्मत न हारो, और सोचो, कि तुम निराशा से निकल चुके हो। क्योंकि हमेशा एक नया कल होता है, और आशा होती है फिर से नई शुरूआत करने की।

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EXERCISE (अभ्यास)
Comprehension Questions

Question 1.
Answer the following questions:

a. Why do we wish for another chance?
Ans. To correct our mistakes in order to make a new beginning, we wish for another chance.
b. What does it take to make a brand new start?
Ans. We need to have a strong desire to try once again with all our heart, to make a brand new start
c. Why should we never give up in despair?
Ans. We should never give up in despair because there is always a hope to start everything afresh and there is a new tomorrow. (UPBoardSolutions.com)
d. What lesson do we learn from the poem?
Ans. Although we commit mistakes and face failures, there is always a hope for a nextchance in our lives. We must have a strong desire to try and make our life and
our world better.

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Question 2.
Match the following to complete the lines of the poem:
UP Board Solutions for Class 8 English Chapter 1 Another Chance 1

Word Power

Question 1.
Read the poem and write the antonyms of the following words:
1. Success             failure
2. old                       new
3. shallow              deep
4. never               always
5. end                beginning
6. despair             hope

Question 2.
Write three rhyming words for the words given below:

1. eight  date , gate , great
2. face lace , trace, grace 
3. chin bin, grin , pin
4. new dew, sew , few

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Activity

A number has been given to each letter of the alphabet in the table below.
Read the table and decode the message. The first word has been decoded :
UP Board Solutions for Class 8 English Chapter 1 Another Chance 2

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