UP Board Solutions for Class 10 Hindi विविध विषयाधारित निबन्ध

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विविध विषयाधारित निबन्ध

51. व्यायाम और स्वास्थ्य [2015]

सम्बद्ध शीर्षक

  • व्यायाम से लाभ [2009]
  • विद्यार्थी जीवन में खेलकूद का महत्त्व [2011]
  • स्वास्थ्य रक्षा
  • स्वस्थ शरीर में स्वस्थ बुद्धि का निवास
  • खेल और व्यायाम
  • स्वास्थ्य शिक्षा का महत्त्व [2012, 13, 16]
  • विद्यालयों में स्वास्थ्य-शिक्षा [2014]
  • व्यायाम का महत्त्व [2016]

रूपरेखा–

  1. प्रस्तावना,
  2. व्यायाम का अर्थ,
  3. व्यायाम के रूप,
  4. व्यायाम की मात्रा,
  5. व्यायाम के लिए आवश्यक बातें,
  6. व्यायाम से लाभ,
  7. उपसंहार।

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प्रस्तावना-मनव-जीवन में स्वास्थ्य का अत्यधिक महत्त्व है। यदि मनुष्य का शरीर स्वस्थ है तो वह जीवन में अपने उद्देश्य की प्राप्ति कर सकता है। यह मानव-जीवन की सर्वश्रेष्ठ पूँजी है। एक तन्दुरुस्ती हजार नियामत’ के अनुसार, स्वास्थ्य वह (UPBoardSolutions.com) सम्पदा है जिसके द्वारा मनुष्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्राप्त कर सकता है-‘धर्मार्थ-काम-मोक्षाणाम्, आरोग्यं मूलकारणम्।’ अंग्रेजी में भी कहावत है-‘Health is wealth.’; अर्थात् स्वास्थ्य ही धन है। प्राचीन काल से ही स्वास्थ्य की महत्ता पर बल दिया जाता रहा है। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए पौष्टिक भोजन, चिन्तामुक्त जीवन, उचित विश्राम और पर्याप्त व्यायाम की आवश्यकता होती है। उत्तम स्वास्थ्य के लिए व्यायाम सर्वोत्तम साधन है।

व्यायाम का अर्थ मन को प्रफुल्लित रखने एवं तन को सशक्त एवं स्फूर्तिमय बनाने के लिए हम कुछ नियमों के अनुसार जो शारीरिक गति करते हैं, उसे ही व्यायाम कहते हैं। केवल दण्ड-बैठक, कुश्ती, आसन आदि ही व्यायाम नहीं हैं, वरन् शरीर के अंग-प्रत्यंग का संचालन भी, जिससे स्वास्थ्य की वृद्धि होती है, व्यायाम कहा जाता है।

व्यायाम के रूप-मन की शक्ति के विकास के लिए चिन्तन-मनन करना आदि मानसिक व्यायाम कहे जाते हैं। शारीरिक बल व स्फूर्ति बढ़ाने को शारीरिक व्यायाम कहा जाता है। प्रधान रूप से व्यायाम शरीर को पुष्ट करने के लिए किया जाता है।

शारीरिक व्यायाम को दो वर्गों में रखा गया है–

  1. खेल-कूद तथा
  2. नियमित व्यायाम।

खेल-कूद में रस्साकशी, कूदना, दौड़ना, कबड्डी, तैरना आदि व्यायाम आते हैं। इनके करने से रक्त का तेजी से संचार होता है और प्राण-वायु की वृद्धि होती है। आधुनिक खेलों में हॉकी, फुटबाल, वॉलीबाल, क्रिकेट आदि खेल व्यायाम के रूप हैं। खेल-कूद सभी स्थानों पर सभी लोग सुविधापूर्वक नहीं कर पाते, इसलिए वे शरीर को पुष्ट रखने के लिए कुश्ती, मुग्दर घुमाना, योगासन आदि अन्य नियमित व्यायाम करते हैं। व्यायाम केवल पुरुषों के लिए ही आवश्यक नहीं है, अपितु स्त्रियों को भी व्यायाम करना चाहिए। रस्सी कूदना, नृत्य करना आदि स्त्रियों के लिए परम उपयोगी व्यायाम हैं।

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व्यायाम की मात्रा–व्यायाम कितना किया जाये, यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है। बालक, युवा, स्त्री, वृद्ध आदि के लिए व्यायाम की अलग-अलग मात्रा है। कुछ के लिए हल्के व्यायाम, कुछ के लिए प्रातः भ्रमण तथा कुछ के लिए अन्य प्रकार के खेल व्यायाम का कार्य करते हैं। आयु, शक्ति, लिंग एवं स्थान के भेद से व्यायाम की मात्रा में अन्तर हो जाता है।

व्यायाम के लिए आवश्यक बातें–व्यायाम का उचित समय प्रात:काल है। प्रातः शौच आदि से निवृत्त होकर बिना कुछ खाये, शरीर पर तेल लगाकरे व्यायाम करना चाहिए। व्यायाम शुद्ध वायु में लाभकारी होता है। व्यायाम प्रत्येक अंग का होना चाहिए। व्यायाम का अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए। व्यायाम के विभिन्न रूप प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रत्येक अवस्था में लाभदायक नहीं हो सकते; अतः उपयुक्त समय में उचित मात्रा में अपने लिए उपयुक्त व्यायाम (UPBoardSolutions.com) का चुनाव करना चाहिए। व्यायाम करते समय नाक से साँस लेना चाहिए और व्यायाम के बाद कुछ देर रुककर स्नान करना चाहिए। व्यायाम करने के बाद दूध आदि पौष्टिक पदार्थों का सेवन आवश्यकता व सामर्थ्य के अनुसार अवश्य करना चाहिए।

व्यायाम से लाभ-व्यायाम से शरीर पुष्ट होता है, बुद्धि और तेज बढ़ता है, अंग-प्रत्यंग में उष्ण रक्त प्रवाहित होने से स्फूर्ति आती है, मांसपेशियाँ सुदृढ़ होती हैं, पाचन-शक्ति ठीक रहती है तथा शरीर स्वस्थ और हल्का प्रतीत होता है। व्यायाम के साथ मनोरंजन का समावेश होने से लाभ द्विगुणित होता है। इससे मन प्रफुल्लित रहता है और व्यायाम की थकावट भी अनुभव नहीं होती। शरीर स्वस्थ होने से सभी , इन्द्रियाँ सुचारु रूप से काम करती हैं। व्यायाम से शरीर नीरोग, मन प्रसन्न और जीवन सरस हो जाता है।

शरीर और मन के स्वस्थ रहने से बुद्धि भी ठीक कार्य करती है। अंग्रेजी में कहावत है—’Sound mind exists in a sound body’; अर्थात् स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। मन प्रसन्न और बुद्धि सक्रिय रहने से मनुष्य की कार्यक्षमता बढ़ जाती है। वह परिश्रमी और स्वावलम्बी हो जाता है।

व्यायाम करने से अनेक लाभ होते हैं, परन्तु इसमें असावधानी करने के कारण हानियाँ भी हो सकती हैं। व्यायाम का चुनाव करते समय, आयु एवं शारीरिक शक्ति का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। उचित समय पर, उचित मात्रा में और उपयुक्त व्यायाम न करने से लाभ के बजाय हानि होती है। व्यायाम करने वालों के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करना अधिक लाभकारी होता है।

उपसंहार-आज के इस मशीनी युग में व्यायाम की उपयोगिता अत्यधिक बढ़ गयी है; क्योंकि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मशीनों का आधिपत्य हो गया है। दिन-भर कार्यालय में कुर्सी पर बैठकर कलम घिसना अब गौरव की बात समझी जाती है तथा शारीरिक श्रम को तिरस्कार और उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है।
जर्जर कर दिया है। अत: आज देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है (UPBoardSolutions.com) कि वह सुन्दर शरीर, निर्मल मन तथा विवेकपूर्ण बुद्धि के लिए उपयुक्त व्यायाम नियमित रूप से प्रतिदिन करता रहे।

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52. योग शिक्षा : आवश्यकता और उपयोगिता [2016, 17]

सम्बद्ध शीर्षक

  • मानव-जीवन में योग शिक्षा का महत्त्व [2011]

रूपरेखा–

  1. प्रस्तावना,
  2. योग का अर्थ,
  3. योग की आवश्यकता,
  4. योग की उपयोगिता,
  5. योग के सामान्य नियम
  6. योग से लाभ,
  7. उपसंहार।

प्रस्तावना-योगासन शरीर और मन को स्वस्थ रखने की प्राचीन भारतीय प्रणाली है। शरीर को किसी ऐसे आसन या स्थिति में रखना जिससे स्थिरता और सुख का अनुभव हो, योगासन कहलाता है।
अंग में शुद्ध वायु का संचार होता है जिससे उनमें स्फूर्ति आती है। परिणामत: व्यक्ति में उत्साह और कार्य-क्षमता का विकास होता है तथा एकाग्रता आती है।

योग का अर्थ-योग, संस्कृत के यज् धातु से बना है, जिसका अर्थ है, संचालित करना, सम्बद्ध करना, सम्मिलित करना अथवा जोड़ना। अर्थ के अनुसार विवेचन किया जाए तो शरीर एवं आत्मा का मिलन ही योग कहलाता है। यह भारत के छ: दर्शनों, जिन्हें षड्दर्शन कहा जाता है, में से एक है। अन्य दर्शन हैं-न्याय, वैशेषिक, सांख्य, वेदान्त एवं मीमांसा। इसकी उत्पत्ति भारत में लगभग 5000 ई०पू० में हुई थी। पहले यह विद्या गुरु-शिष्य परम्परा के तहत पुरानी पीढ़ी से नई पीढ़ी को हस्तांतरित होती थी। लगभग 200 ई०पू० में महर्षि पतञ्जलि ने योग-दर्शन को योग-सूत्र नामक ग्रन्थ के रूप में लिखित रूप में प्रस्तुत किया। इसलिए महर्षि पतञ्जलि को ‘योग का प्रणेता’ कहा जाता है। आज बाबा रामदेव ‘योग’ नामक इस अचूक विद्या का देश-विदेश में प्रचार कर रहे हैं।

योग की आवश्यकता–शरीर के स्वस्थ रहने पर ही मस्तिष्क स्वस्थ रहता है। मस्तिष्क से ही शरीर की समस्त क्रियाओं का संचालन होता है। इसके स्वस्थ और तनावमुक्त होने पर ही शरीर की सारी क्रियाएँ भली प्रकार से सम्पन्न होती हैं। इस प्रकार हमारे शारीरिक, (UPBoardSolutions.com) मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक विकास के लिए योगासन अति आवश्यक है।

हमारा हृदय निरन्तर कार्य करता है। हमारे थककर आराम करने या रात को सोने के समय भी हृदय गतिशील रहता है। हृदय प्रतिदिन लगभग 8000 लीटर रक्त को पम्प करता है। उसकी यह क्रिया जीवन भर चलती रहती है। यदि हमारी रक्त-नलिकाएँ साफ होंगी तो हृदय को अतिरिक्त मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। इससे हृदय स्वस्थ रहेगा और शरीर के अन्य भागों को शुद्ध रक्त मिल पाएगा, जिससे नीरोग व सबल हो जाएँगे। फलत: व्यक्ति की कार्य-क्षमता भी बढ़ जाएगी।

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योग की उपयोगिता-मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए हमारे जीवन में योग अत्यन्त उपयोगी है। शरीर, मन एवं आत्मा के बीच सन्तुलन अर्थात् योग स्थापित करना होता है। योग की प्रक्रियाओं में जब तन, मन और आत्मा के बीच सन्तुलन एवं योग (जुड़ाव) स्थापित होता है, तब आत्मिक सन्तुष्टि, शान्ति एवं चेतना का अनुभव होता है। योग शरीर को शक्तिशाली एवं लचीला बनाए रखता है, साथ ही तनाव से भी छुटकारा दिलाता है। यह शरीर के जोड़ों एवं मांसपेशियों में लचीलापन लाता है, मांसपेशियों को मजबूत बनाता है, शारीरिक विकृतियों को काफी हद तक ठीक करता है, शरीर में रक्त प्रवाह को सुचारु करता है तथा पाचन-तन्त्र को मजबूत बनाता है। इन सबके अतिरिक्त यह शरीर की रोग-प्रतिरोधक शक्तियाँ बढ़ाता है, कई प्रकार की बीमारियों जैसे अनिद्रा, तनाव, थकान, उच्च रक्तचाप, चिन्ता इत्यादि को दूर करता है तथा शरीर को ऊर्जावान बनाता है। आज की भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में स्वस्थ रह पाना किसी चुनौती से कम नहीं है। अत: हर आयु-वर्ग के स्त्री-पुरुष के लिए योग उपयोगी है।

योग के सामान्य नियम-योगासन उचित विधि से ही करना चाहिए अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि की सम्भावना रहती है। योगासन के अभ्यास से पूर्व उसके औचित्य पर भी विचार कर लेना चाहिए। बुखार से ग्रस्त तथा गम्भीर रोगियों को योगासन नहीं करना चाहिए। योगासन करने (UPBoardSolutions.com) से पहले नीचे दिए सामान्य नियमों की जानकारी होनी आवश्यक है

  1.  प्रातः काल शौचादि से निवृत्त होकर ही योगासन का अभ्यास करना चाहिए। स्नान के बाद योगासन करना और भी उत्तम रहता है।
  2. सायंकाल खाली पेट पर ही योगासन करना चाहिए।
  3. योगासन के लिए शान्त, स्वच्छ तथा खुले स्थान का चयन करना चाहिए। बगीचे अथवा पार्क में योगासन करना अधिक अच्छा रहता है।
  4. आसन करते समय कम, हलके तथा ढीले–ढाले वस्त्र पहनने चाहिए।
  5. योगासन करते समय मन को प्रसन्न, (UPBoardSolutions.com) एकाग्र और स्थिर रखना चाहिए। कोई बातचीत नहीं करनी चाहिए।
  6. योगासन के अभ्यास को धीरे-धीरे ही बढ़ाएँ।
  7. योगासन का अभ्यास करने वाले व्यक्ति को हलका, शीघ्र पाचक, सात्विक और पौष्टिक भोजन करना चाहिए।
  8. अभ्यास के आरम्भ में सरल योगासन करने चाहिए।
  9. योगासन के अन्त में शिथिलासन अथवा शवासन करना चाहिए। इससे शरीर को विश्राम मिल जाता है तथा मन शान्त हो जाता है।
  10. योगासन करने के बाद आधे घण्टे तक न तो स्नान करना चाहिए और न ही कुछ खाना चाहिए।

योग से लाभ–छात्रों, शिक्षकों एवं शोधार्थियों के लिए योग (UPBoardSolutions.com) विशेष रूप से लाभदायक सिद्ध होता है, क्योंकि यह उनके मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने के साथ-साथ उनकी एकाग्रता भी बढ़ाता है जिससे उनके लिए अध्ययन-अध्यापन की प्रक्रिया सरल हो जाती है।

पतञ्जलि के योग–सूत्र के अनुसार आसनों की संख्या 84 है। जिनमें भुजंगासन, कोणासन, पद्मासन, मयूरासन, शलभासन, धनुरासन, गोमुखासन, सिंहासन, वज्रासन, स्वस्तिकासन, पवर्तासन, शवासन, हलासन, शीर्षासन, धनुरासन, ताड़ासन, सर्वांगासन, पश्चिमोत्तानासन, चतुष्कोणासन, त्रिकोणासन, मत्स्यासन, गरुड़ासन इत्यादि कुछ प्रसिद्ध आसन हैं। योग के द्वारा शरीर पुष्ट होता है, बुद्धि और तेज बढ़ता है, अंग-प्रत्यंग में उष्ण रक्त प्रवाहित होने से स्फूर्ति आती है, मांसपेशियाँ सुदृढ़ होती हैं, पाचन-शक्ति ठीक रहती है तथा शरीर स्वस्थ और हल्का प्रतीत होता है। योग के साथ मनोरंजन का समावेश होने से लाभ द्विगुणित होता है। इससे मन प्रफुल्लित रहता है और योग की थकावट भी अनुभव नहीं होती। शरीर स्वस्थ होने से सभी इन्द्रियाँ सुचारु रूप से काम करती हैं। योग से शरीर नीरोग, मन प्रसन्न और जीवन सरस हो जाता है।

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उपसंहार–आज की आवश्यकता को देखते हुए योग शिक्षा की बेहद आवश्यकता है, क्योंकि सबसे बड़ा सुख शरीर का स्वस्थ होना है। यदि आपका शरीर स्वस्थ है तो आपके पास दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है। स्वस्थ व्यक्ति ही देश और समाज का हित कर सकता है। अत: आज की भाग-दौड़ की जिन्दगी में खुद को स्वस्थ एवं ऊर्जावान बनाए रखने के लिए योग बेहद आवश्यक है। वर्तमान परिवेश में योग न सिर्फ हमारे लिए लाभकारी है, बल्कि विश्व के बढ़ते प्रदूषण एवं मानवीय व्यस्तताओं से उपजी समस्याओं के निवारण के सदर्भ में इसकी सार्थकता और बढ़ गई है।

53. देशाटन

सम्बद्ध शीर्षक

  • देशाटन से लाभ [2010, 11, 12, 13, 16]
  • पर्यटन (देशाटन) का महत्त्व [2013]
  • पर्यटन से होने वाले लाभ एवं हानि [2011]

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. देशाटन का अर्थ,
  3. देशाटन के साधनों का विकास,
  4. देशाटन : एक स्वाभाविक प्रवृत्ति,
  5. देशाटन को महत्त्व,
  6. देशाटन से लाभ,
  7. देशाटन से हानियाँ,
  8. उपसंहार।

प्रस्तावना–परिवर्तन प्रकृति का नियम है। मानव का मन भी परिवर्तन चाहता है। जब मनुष्य एक स्थान पर रहता-रहता ऊब जाता है, तब उसकी इच्छा भ्रमण करने की होती है। भ्रमण का जीवन में बहुत महत्त्व है। भ्रमण से पारस्परिक सम्पर्क बढ़ता है, जिससे सद्भाव और मैत्री उत्पन्न होती है। यह ज्ञान-वृद्धि, मनोरंजन, स्वास्थ्य, व्यापार और विश्व-बन्धुत्व की दृष्टि से बहुत उपयोगी है।

देशाटन का अर्थ-‘देशाटन’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है-‘देश’ + ‘अटन’। इसमें देश का अर्थ है–स्थान और ‘अटन’ का अर्थ है-भ्रमण। इस प्रकार देश-विदेश के विभिन्न स्थानों का भ्रमण करना ‘देशाटन’ कहलाता है। जीवन का वास्तविक आनन्द भ्रमण करने में ही निहित है। भ्रमण करने से मनुष्य का ज्ञान और अनुभव भी बढ़ता है। वैसे विज्ञान के आविष्कारों और पुस्तकों के माध्यम से देश-विदेश की बातें ज्ञात हो जाती हैं, लेकिन सच्चा आनन्द और वास्तविक सुख तो प्रत्यक्ष देखने से ही मिलता है।

देशाटन के साधनों का विकास–मानव प्राचीन काल से ही पर्यटन-प्रेमी रहा है। सभ्यता के विकास के मूल में उसकी पर्यटन-प्रियता छिपी है। मनुष्य कभी तीर्थयात्रा के बहाने, कभी व्यापार के लिए तो कभी ज्ञानार्जन के लिए विदेशों की यात्रा पर निकल पड़ता था। ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि भारतीय विदेशों में गये और विदेशी यात्री भारत आये। विदेशी यात्रियों में ह्वेनसांग, फाह्यान, वास्कोडिगामा आदि के नाम उल्लेखनीय रहे हैं। पहले पर्यटन के सुगम साधन (UPBoardSolutions.com) उपलब्ध नहीं थे, परन्तु आजकल विज्ञान की उन्नति से देशाटन के विभिन्न साधनों का विकास हो गया है, जिससे मानव थोड़े ही समय में सुदूर देशों की सुविधापूर्वक यात्रा कर सकता है। आज पर्यटन के शौकीन लोगों के लिए दूरस्थ तीर्थस्थलों, ऐतिहासिक इमारतों, गर्जन करते हुए समुद्रों और कल-कल करती हुई नदियों तक पहुँच बनाना यातायात के साधनों के माध्यम से अत्यधिक सरल हो गया है।

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देशाटन : एक स्वाभाविक प्रवृत्ति-वैसे तो प्रत्येक व्यक्ति थोड़ा-बहुत घूमना व देश-विदेश का भ्रमण करना चाहता है, परन्तु कुछ लोगों को देशाटन का विशेष शौक होता है। वे साधनों की परवाह न करके उत्साहपूर्वक भ्रमण करते हैं। घुमक्कड़ों का विचार है कि पैदल देशाटन करने में जो आनन्द प्राप्त होता है, वह किसी वाहन से पर्यटन करने में प्राप्त नहीं होता। परिणामस्वरूप आजकल भी लोग पैदल या साइकिल से देश-भ्रमण के लिए निकलते हैं। देशाटन के कारण मनुष्य की जिज्ञासा, खोज-प्रवृत्ति, मनोरंजन एवं अनुभववृत्ति की पूर्ति होती है।

देशाटन का महत्त्व-मनुष्य के जीवन में विभिन्न देशों के भ्रमण का बड़ा महत्त्व है। घूमना-फिरना। मानव की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। देश-विदेश में घूमकर मनुष्य अपनी जानकारी बढ़ाता है और मनोविनोद करता है। नये-नये स्थान और वस्तुएँ देखने से उसकी कौतूहल-वृत्ति शान्त होती है तथा उसका पर्याप्त मनोरंजन भी होता है। भ्रमण करने से भौगोलिक, ऐतिहासिक, पुरातत्त्व सम्बन्धी, सामाजिक और राजनीतिक ज्ञान तथा अनुभव में वृद्धि होती है।

देशाटन से लाभ-देशाटन के अनेक लाभ हैं, जो निम्नवत् हैं।
(अ) प्रकृति का सान्निध्य-सर्वप्रथम मनुष्य को प्रकृति से निकटता प्राप्त होती है। प्राकृतिक दृश्यों को देखने से हृदय आनन्दित और शरीर स्वस्थ हो जाता है। उन्मुक्त पशु-पक्षियों की भाँति जीवन आनन्दमय प्रतीत होने लगता है। प्रकृति के सान्निध्य से सादगी एवं सद्गुणों का विकास भी होता है।
(ब) ज्ञान-वृद्धि-पर्यटन से ज्ञान-वृद्धि में सहायता मिलती है। किसी वस्तु का विस्तृत एवं यथार्थ ज्ञान भ्रमण से ही प्राप्त होता है। अजन्ता की गुफाओं, ताजमहल, कुतुबमीनार और ऐतिहासिक चित्तौड़ दुर्ग को देखकर व उन स्थानों से सम्बन्धित तथ्यों और गौरव-गाथाओं को सुनकर जितनी जानकारी होती है, उतनी पुस्तकों को पढ़ने या सुनने से नहीं हो सकती।
(स) मनोरंजन–मनोरंजन का सर्वाधिक उत्तम साधन पर्यटन है। भ्रमण करने से विविध प्रकार की वस्तुएँ देखने को मिलती हैं। हिमाच्छादित पर्वतमालाओं, कल-कल नाद करती हुई नदियों की धाराओं, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थानों को देखने से मन का अवसाद दूर हो जाता है।
(द) विश्व-बन्धुत्व की भावना-देशाटन करने से मैत्रीभाव की वृद्धि होती है। देश-विदेश में भ्रमण करने (UPBoardSolutions.com) से लोगों का सम्पर्क बढ़ता है, भाईचारे की भावना बढ़ती है तथा राष्ट्रीय एकता में वृद्धि होती है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, अर्थात् सारी वसुधा हमारा कुटुम्ब है, इस विराट भावे की अनुभूति होती है।
(य) व्यापार में वृद्धि–एक स्थान से दूसरे स्थान का भ्रमण करने से वहाँ की कृषि-उपज, खनिज सम्पदा, कलाकृतियों आदि की विशेष जानकारी मिलती है, जिससे व्यापारी लोग व्यापार की सम्भावनाओं का पता लगाकर अपना व्यापार बढ़ाते हैं।

उपर्युक्त लाभों के अतिरिक्त देशाटन से अन्य कई लाभ भी हैं। देशाटन से दृष्टिकोण विस्तृत होता है, अनुभवों का विकास होता है, उदारता और सद्विचारों का उदय होता है, महान् लोगों से सम्पर्क होता है। देशाटन से सहनशीलता, सहानुभूति, सहयोग, मधुर भाषण आदि गुणों का विकास होता है, जो मनुष्य के जीवन में अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होते हैं।

देशाटन से हानियाँ-देशाटन की आदत पड़ने से, धन के व्यय की आदत पड़ जाती है। घुमक्कड़ लोग घूमने में ही जीवन बिता देते हैं और भौतिक जीवन की प्रगति करने के प्रति उदासीन हो जाते हैं। जलवायु की भिन्नता, मार्ग की कठिनाइयों और सांस्कृतिक मूल्यों की भिन्नता के कारण कभी-कभी जान-माल से भी हाथ धोना पड़ता है।

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उपसंहार-देशाटने हमारे जीवन के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। फलतः प्रत्येक देश में पर्यटन को प्रोत्साहित किया जा रहा है। पर्यटकों के लिए सुख-सुविधाओं के साधन बढ़ गये हैं। लाखों पर्यटक एक देश से दूसरे देश में पहुँचते रहते हैं। सर्वश्रेष्ठ मानव-जीवन को प्राप्त करके (UPBoardSolutions.com) हमें विश्व की अनेक प्रकार की वस्तुओं को देखकर जीवन सफल करना चाहिए। यदि हमें ईश्वर की इस अनुपम सृष्टि का निरीक्षण किये बिना संसार से विदा हो गये तो मन पछताता ही रह जाएगा—

सैर कर दुनिया की गाफिल, जिन्दगानी फिर कहाँ ?
जिन्दगानी गर रही तो, नौजवानी फिर कहाँ ?

54. मेरा प्रिय खेल : क्रिकेट

सम्बद्ध शीर्षक

  • किसी क्रिकेट मैच का वर्णन [2016]
  • क्रिकेट का आँखों देखा हाल [2014]

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. हमारे विद्यालय का क्रिकेट मैच,
  3. खेल के मैदान की व्यवस्था,
  4. मैच का आरम्भ,
  5. भोजनावकाश के बाद का खेल,
  6. पुरस्कार वितरण,
  7. उपसंहार।

प्रस्तावना व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए शिक्षा और भोजन ही पर्याप्त नहीं हैं, वरन् इनके लिए खेलकूद भी परमावश्यक है। खेल जहाँ एक ओर मनोरंजन करते हैं, वहीं दूसरी ओर इनसे खिलाड़ियों में अनुशासन और परस्पर सद्भाव भी जाग्रत होता है। मानव के विकास में खेलों के महत्त्व को समझते हुए उनको प्रोत्साहित करने की दृष्टि से अनेक क्रीड़ा प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। आज का व्यक्ति गम्भीर और जटिल होता चला जा रहा है। उसे पुन: बालकों की भाँति उत्साही, साहसी व खुशमिजाज बनने के लिए खेलों की ओर मुड़ना चाहिए। आज सभी वैज्ञानिक और स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि जो स्फूर्ति खेलों से प्राप्त हो सकती है, वह किसी ओषधि से नहीं।

हमारे विद्यालय का क्रिकेट मैच–प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी नवम्बर मास में हमारे विद्यालय में अन्य खेलों के साथ-साथ क्रिकेट का आयोजन हुआ। इसमें हमारे विद्यालय की क्रिकेट टीम का मुकाबला स्थानीय एस० एस० डी० कॉलेज की क्रिकेट टीम से हुआ। हमारे विद्यालय (UPBoardSolutions.com) एस०डी० इण्टर कॉलेज की क्रिकेट टीम नगर की अन्य टीमों की तुलना में बहुत सुदृढ़ है। हमारे बल्लेबाज और गेंदबाज दोनों ही कुशल हैं तथा उनका क्षेत्ररक्षण बहुत चुस्त है। दूसरी टीम भी बहुत सुदृढ़ थी। खेल का आयोजन हमारे ही विद्यालय के मैदान में हुआ, जो नगर के मध्य में स्थित है। दोनों टीमों का मुकाबला बहुत रोमांचक रहा, जिसकी याद मन-मस्तिष्क में सदा ताजा रहेगी।

खेल के मैदान की व्यवस्था—यह मैच 50-50 ओवरों का था। खेल 9 बजे शुरू होना था। दोनों विद्यालय के छात्र और बहुत बड़ी संख्या में स्थानीय दर्शक वहाँ पर एकत्रित हो चुके थे। मैं तो समय से पहले ही वहाँ पहुँच गया था। खेल के आयोजन की सुन्दर व्यवस्था थी। जिला विद्यालय निरीक्षक इस मैच के मुख्य अतिथि थे। मैदान में सफेद चूने से रेखाएँ खींची हुई थीं। मैदान के चारों ओर दर्शकों के बैठने की व्यवस्था थी। कुछ ही देर में दोनों टीमों के कप्तान भी आये। सिक्का उछालकर टॉस हुआ। हमारे विद्यालय के कप्तान ने टॉस जीता और पहले दूसरी टीम को बल्लेबाजी करने के लिए आमन्त्रित किया।

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मैच का आरम्भ-खेल शुरू हुआ। हमारी टीम के तेज गेंदबाज ने खेल की पहली गेंद फेंकी। बल्लेबाज जल्दबाजी कर बैठा और गेंद उसके बल्ले का बाहरी कोना लेते हुए विकेट-कीपर के हाथों में जा । पहुँची। इस तरह हमारी टीम को पहली सफलता मिली। अगला खिलाड़ी बल्लेबाजी के लिए आया। दोनों ने बहुत तालमेल के साथ दूसरे विकेट की साझेदारी में 120 रन बनाये, जिनमें दस चौके और चार शानदार छक्के सम्मिलित थे। हमारे कप्तान के पसीने छुट रहे थे। कप्तान ने अब गेंद फिरकी गेंदबाजों को सौंपी। उन्होंने इतनी सटीक गेंदबाजी की कि बल्लेबाजों के साथ ‘तू चल मैं आता हूँ की कहावत चरितार्थ हो गयी। एक के बाद एक बल्लेबाज आउट होते चले गए। अभी बयालिस ओवर ही फेंके गये थे कि सारी टीम मात्र 204 रनों पर सिमट गयी।।

भोजनावकाश के बाद का खेल–भोजन से निवृत्त होते ही एस० एस० डी० कॉलेज के खिलाड़ी मैदान में पहुँच गये। हमारी टीम के प्रारम्भिक बल्लेबाज मैदान पर पहुँचे और खेल आरम्भ हो गया। हमारे दोनों प्रारम्भिक बल्लेबाजों ने बहुत सूझ-बूझ और गति के साथ स्कोर को 80 तक पहुँचा दिया। पन्द्रह ओवर का खेल हो चुका था। दूसरी टीम के कप्तान ने अब स्वयं गेंद सँभाली और अपने क्षेत्ररक्षक चारों ओर फैला दिये। उसने बल्लेबाजों को खुलकर खेलने के लिए ललचाया। पहली ही गेंद पर चौका लगा। अगली गेंद बल्लेबाज को चकमा दे गयी। आरम्भिक जोड़ी टूट गयी। गेंदबाजों के हौसले बढ़े और उन्होंने जल्दी-जल्दी चार विकेट ले (UPBoardSolutions.com) लिये। शेष 25 ओवरों में 90 रन बनाने थे और छह विकेट हाथ में.थे। कोई मुश्किल लक्ष्य नहीं था, लेकिन कहते हैं कि क्रिकेट की हर गेंद निर्णायक हो सकती है। अब दो ओवर का खेल शेष था और जीत के लिए दस रन बनाये जाने थे। दोनों बल्लेबाजों ने आपसी तालमेल से विकेट के बीच दौड़ते हुए .1-1 रन लेना शुरू किया और पाँच रन बना लिये। क्षेत्ररक्षकों को करीब बुलाकर विपक्षी टीम के कप्तान ने उन्हें इस तरह रन बनाने से रोकना चाहा, लेकिन तभी बल्लेबाज ने स्थिति को समझते हुए गेंद को ऊपर हवा में उछाल दिया। गेंद सीमा-रेखा से बाहर हो गयी और हमारी टीम ने मैच में रोमांचक विजय प्राप्त की।

पुरस्कार-वितरण-खेल की समाप्ति पर मुख्य अतिथि ने पुरस्कार-वितरण किये। हमारी टीम के प्रारम्भिक बल्लेबाज को ‘मैन ऑफ द मैच’ घोषित किया गया और टीम के कप्तान को विजेता शील्ड प्रदान की गयी। इस प्रकार यह क्रिकेट प्रतियोगिता सम्पन्न हुई, जिसके रोमांचक क्षण आज भी मेरी स्मृति में ताजा बने हुए हैं।

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उपसंहार–हम देख रहे हैं कि एशियन एवं ओलम्पिक खेलों की पदक तालिका में भारतवर्ष पिछड़ता जा रहा है। यह दयनीय स्थिति है। जनसंख्या में चीन के पश्चात् दूसरा स्थान रखने वाला, कभी हॉकी में स्वर्ण पदक विजेता रहा भारत आज कहीं नहीं जम पा रहा है और आजादी के छः दशक बाद भी खेलों के क्षेत्र में उसे निराशा ही हाथ लग रही है।

दुःख की बात है कि हम हर क्षेत्र में पिछड़े होने के प्रभाव से अभी तक मुक्त नहीं हो पाये हैं। (UPBoardSolutions.com) इस स्थिति से उबरने के लिए हमें खिलाड़ियों के उचित प्रशिक्षण, निष्पक्ष चयन व ईमानदार चयनकर्ताओं की अति आवश्यकता है।

55. रोचक यात्रा का वर्णन [2009, 10, 15]

सम्बद्ध शीर्षक

  • किसी रेल यात्रा का वर्णन
  • किसी यात्रा का वर्णन [2011]

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. यात्रा की तैयारी और प्रस्थान,
  3. मार्ग के दृश्य,
  4. वांछित स्थान पर पहुँचना और वहाँ के दर्शनीय स्थलों का वर्णन,
  5. वापसी,
  6. उपसंहार।।

प्रस्तावना–प्राय: हर व्यक्ति के जीवन में एक निश्चित दिनचर्या बन जाया करती है। वह एक बँधीबँधाई दिनचर्या के अनुसार कार्य करते रहने पर कभी-कभी ऊब जाता है और अपने जीवन-चक्र में बदलाव चाहता है। हर प्रकार के परिवर्तन के लिए यात्रा का अत्यधिक महत्त्व है। यात्रा अथवा नये स्थानों पर भ्रमण से व्यक्ति के जीवन में आयी नीरसता समाप्त हो जाती है और वह अपने अन्दर एक नया उत्साह पाता है। इतना ही नहीं, इन यात्राओं से व्यक्ति के अन्दर आत्मविश्वास और साहस उत्पन्न होता है। इससे विभिन्न व्यक्तियों के बीच आत्मीयता भी बढ़ती है और हमारे व्यावहारिक ज्ञान की वृद्धि होती है।

यात्रा की तैयारी और प्रस्थान-मई का महीना था। हमारी परीक्षाएँ अप्रैल में ही समाप्त हो चुकी थीं। मेरे कुछ साथियों ने आगरा घूमने का कार्यक्रम बनाया। मैंने अपने पिताजी और माताजी से इसके लिए स्वीकृति ले ली और विद्यालय के माध्यम से रियायत प्राप्त करके रेलवे के (UPBoardSolutions.com) आरक्षित टिकट बनवा लिये थे। सभी साथी अपना-अपना सामान लेकर मेरे यहाँ एकत्रित हो गये। घर से सभी छात्र एक थ्री-व्हीलर द्वारा स्टेशन पहुँचे। प्लेटफॉर्म पर बहुत भीड़ थी। कुछ समय के पश्चात् गाड़ी आयी। हमने अपना सामान गाड़ी में चढ़ाया। प्लेटफॉर्म पर सामान बेचने वालों की आवाजों से बहुत शोर हो रहा था, तभी गाड़ी ने सीटी दे दी। गाड़ी के चलने पर ठण्डी हवा लगी तो सभी को राहत मिली।

मार्ग के दृश्य-हम सभी अपनी-अपनी सीटों पर बैठ चुके थे। डिब्बे में इधर-उधर निगाह घुमायी तो देखा कि कुछ लोग बैठे हुए ताश खेल रहे हैं, तो कोई उपन्यास पढ़कर मन बहला रहा है। कुछ लोग बैठे हुए ऊँघ रहे थे। मैं भी अपने साथियों के साथ गपशप कर रहा था। खिड़की से बाहर झाँकने पर मुझे पेड़-पौधे तथा खेत-खलिहान पीछे की ओर दौड़ते नजर आ रहे थे। सभी दृश्य बड़ी तेजी से पीछे छूटते जा रहे थे। गाड़ी छोटे-बड़े स्टेशनों पर रुकती हुई अपने गन्तव्य की ओर निरन्तर बढ़ती ही जा रही थी। हमने कुछ समय ताश खेलकर बिताया। साथ लाये भोजन और फल मिल-बाँटकर खाते-पीते हम सब यात्रा का पूरा आनन्द ले रहे थे।

एक स्टेशन पर गाड़ी रुकते ही अचानक कानों में आवाज पड़ी कि ‘पेठा, आगरे का मशहूर पेठा’। हम सब अपना-अपना सामान सँभालते हुए नीचे उतरे।।

वांछित स्थान पर पहुँचना और वहाँ के दर्शनीय स्थलों का वर्णन–हम सभी साथी एक धर्मशाला में जाकर ठहर गये। धर्मशाला में पहुँचकर हमने मुँह-हाथ धोकर अपने को तरोताजा किया। शाम के सात बज चुके थे। इसलिए हम लोग शीघ्र ही भोजन करके धर्मशाला के आस-पास ही घूमने के लिए निकल गये। अगले दिन 11.00 बजे दिन में हम लोग सिटी बस द्वारा ताज देखने के लिए चल दिये। भारत के गौरव और संसार के गिने-चुने आश्चर्यों में से एक ताजमहल के अनूठे सौन्दर्य को देखकर हम सभी स्तम्भित रह गये। श्वेत संगमरमर पत्थरों से निर्मित ताज दिन में भी शीतल किरणों की वर्षा करता प्रतीत हो रहा था।

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ताजमहल का निर्माण मुगल सम्राट् शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज महल की स्मृति में कराया था। यह एक सफेद संगमरमर के ऊँचे चबूतरे पर बना हुआ है। इस चबूतरे के चारों कोनों पर चार मीनारें बनी हुई। हैं। मुख्य इमारत इस चबूतरे के बीचों-बीच बनी हुई है। (UPBoardSolutions.com) इमारत के ऊपरी भाग में चारों ओर कुरान की आयतें खुदी हुई हैं। इस इमारत के चारों ओर सुन्दर बगीचे बने हुए हैं, जो इसके सौन्दर्य में चार चाँद लगा रहे हैं। वास्तव में यह भारतीय और यूनानी शैली में बनी अद्वितीय और अनुपम इमारत है, जिसे देखने के लिए दुनिया के विभिन्न भागों से प्रति वर्ष लाखों व्यक्ति आते हैं।

दूसरे दिन हमने आगरे को लाल किला तथा दयाल बाग देखने का कार्यक्रम बनाया। इन भवनों के अपूर्व सौन्दर्य ने हम सबका मन मोह लिया। आगरे का लाल किला सम्राट् अकबर द्वारा बनवाया गया है। इस विशाल किले को देखने के लिए वैसे तो कई दिन भी कम हैं, किन्तु हम लोगों ने जल्दी-जल्दी इसके तमाम महत्त्वपूर्ण स्थलों को देखा। यहीं से हम लोग बस द्वारा दयाल बाग पहुँच गये। यहाँ पर राधास्वामी मत वाले एक इमारत का निर्माण पिछले कई वर्षों से करवा रहे हैं, पर अभी भी यह अधूरी ही है। इस इमारत की भव्यता और सौन्दर्य को देखकर यह कहा जा सकता है कि जिस समय यह पूर्ण होगी, निश्चित ही स्थापत्य कला का एक अनुपम उदाहरण होगी।

वापसी-आगरा की आकर्षक और सजीव स्मृतियों को मन में सँजोये, पेठे और नमकीन की खरीदारी कर तथा काँच के चौकोर बक्से में बन्द ताज की अनुकृति लिये हुए हम लोग वापस लौटे। इस प्रकार हमारी यह रोचक यात्रा सम्पन्न हुई।

उपसंहार—घर लौट आने पर मैं प्रायः सोचता कि कूप-मण्डूकता के विनाश के लिए समय-समय पर प्रत्येक व्यक्ति को विविध स्थलों की यात्रा अवश्य करनी चाहिए; क्योंकि इससे कल्पना और यथार्थ का भेद समाप्त होता है और जीवन की वास्तविकता से साक्षात्कार भी होता है। आगरा की यात्रा ने मुझे ढेर सारे नवीन अनुभवों तथा प्रत्यक्ष ज्ञान से साक्षात्कार कराया है।

56. विद्यालय का वार्षिकोत्सव [2011, 12, 13, 14, 15]

सम्बद्ध शीर्षक

  • किसी समारोह का आँखों देखा हाल
  • मेरे विद्यालय का वार्षिक समारोह
  • विद्यालय का पर्वायोजन

रूपरेखा—

  1. प्रस्तावना,
  2. उत्सव की तैयारी,
  3. मुख्य अतिथि का आगमन और उत्सव का आरम्भ,
  4. रोचक कार्यक्रम,
  5. उत्सव का समापन और मुख्य अतिथि का सन्देश,
  6. उपसंहार।

प्रस्तावना-मानव-जीवन संघर्षों का जीवन है। समय-समय पर आयोजित उत्सव उसके जीवन में नवस्फूर्ति भर देते हैं। उसका हृदय उल्लास से भर जाता है और वह कठिनाइयों से जूझता हुआ जीवन-पथ पर आगे बढ़ता चलता है। इसी को दृष्टि में रखकर विभिन्न विद्यालयों में अनेक उत्सवों का आयोजन किया जाता है। हमारे विद्यालय में भी प्रतिवर्ष खेलकूद और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, यही वार्षिकोत्सव कहलाता है जो (UPBoardSolutions.com) बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। विद्यालय का वार्षिकोत्सव मेरा सर्वप्रिय उत्सव रही है। मैं बहुत दिनों पहले से ही इस उत्सव पर अपने कार्यक्रम को प्रस्तुत करने की तैयारी में जुट जाता हूँ। यह उत्सव प्राय: जनवरी माह में मनाया जाता है। इसके साथ ही वार्षिकोत्सव में विद्यालय की भावी प्रगति की रूपरेखा प्रस्तुत की जाती है।

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उत्सव की तैयारी-इस वर्ष 4-5-6 जनवरी को विद्यालय का वार्षिकोत्सव होना निश्चित हुआ। प्रधानाचार्य द्वारा इसकी घोषणा से सभी विद्यार्थियों में आनन्द की लहर दौड़ गयी। उत्सव प्रारम्भ होने में 20 दिन का समय शेष था। अब जोर-शोर से खेलकूद और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की तैयारी शुरू हो गयी। कुछ छात्र लम्बी कूद, ऊँची कूद, भाला फेंक, गोला फेंक में जुटे हुए थे तो कुछ वाद-विवाद, अन्त्याक्षरी, गीतों, नाटक आदि के पूर्वाभ्यास में। इन तैयारियों के लिए प्रधानाचार्य महोदय ने कुछ समय निर्धारित कर दिया और शेष समय में पढ़ाई नियमित रूप से जारी रखने का निर्देश दिया। सभी छात्रों में नया उत्साह और नया जोश था। विद्यालय की विधिवत् सफाई शुरू हो गयी थी।

मुख्य अतिथि का आगमन और उत्सव का आरम्भ-न जाने कब प्रतीक्षा के दिन समाप्त हुए और 4 जनवरी आ गयी, पता ही नहीं चला। इस दिन खेल-कूद की प्रतियोगिताओं का आयोजन था। मैदान हरा-भरा था। चूने की सफेदी से बनी रेखाएँ और रंग-बिरंगी झण्डियाँ मैदान की शोभा को द्विगुणित कर रही थीं। जिला विद्यालय निरीक्षक हमारे खेल-कूद कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। हमारे प्रधानाचार्य और गणमान्य अतिथि खेल के मैदान पर पहुँचे। सभी ने खड़े होकर तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनका अभिवादन किया। इसके बाद खेलकूद प्रतियोगिता आरम्भ हुई।

रोचक कार्यक्रम-खेलों की शुरुआत ने मैदान में हलचल मचा दी। भिन्न-भिन्न प्रकार के खेलों के : लिए अलग-अलग स्थान निर्धारित थे। दिनभर खेल प्रतियोगिताएँ चलती रहीं। मैंने भी ऊँची कूद में भाग लिया और नया कीर्तिमान स्थापित कर खुशी से फूला न समाया। सभी कार्यक्रम बहुत सुव्यवस्थित एवं आकर्षक ढंग से सम्पादित होते रहे।

अगले दिन शाम चार बजे से विद्यालय प्रांगण में बने भव्य पण्डाल में अन्त्याक्षरी कार्यक्रम का आरम्भ हुआ। कार्यक्रम बहुत रोचक रहा। इसके बाद वाद-विवाद प्रतियोगिता शुरू हुई, जिसका विषय था-‘आज की शिक्षा-नीति का देश की प्रगति में योगदान’। इसके (UPBoardSolutions.com) पक्ष-विपक्ष में वक्ताओं ने अपने-अपने विचार रखे और जोरदार तर्क प्रस्तुत किये। विद्यालय के 12वीं कक्षा के छात्र पंकज गुप्ता ने प्रथम और निर्मल जैन ने द्वितीय स्थान प्राप्त किया। रात्रि के आठ बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रम रखा गया था।. सांस्कृतिक कार्यक्रमों में गीत, नाटक, एकांकी, पैरोडी, समूह गान आदि का आयोजन किया गया था। रात्रि के लगभग 12 बजे कार्यक्रम की समाप्ति हुई।

तीसरे दिन का उत्सव प्रदर्शनी और पुरस्कार वितरण के लिए निश्चित था। विद्यालय के बड़े हॉल में छात्रों द्वारा बनाये गये चित्र, मूर्तियों और हस्तनिर्मित अनेक कलात्मक कृतियों की प्रदर्शनी सजी हुई थी। सभी दर्शकों ने छात्रों के सुन्दर व कलात्मक प्रयासों की बहुत सराहना की। इसके बाद तीनों दिनों के कार्यक्रमों के विजेताओं और श्रेष्ठ कलाकारों को पुरस्कार वितरित किये गये। पुरस्कार समारोह के मुख्य अतिथि हमारे क्षेत्र के माननीय उपशिक्षा निदेशक महोदय थे।

उत्सव का समापन और मुख्य अतिथि का सन्देश-पुरस्कार वितरण के बाद हमारे प्रधानाचार्य ने विद्यालय की वर्षभर की प्रगति का विवरण प्रस्तुत किया और वार्षिकोत्सव की सफलता के लिए सम्बन्धित सभी अध्यापकों और विद्यार्थियों का आभार प्रकट किया।

मुख्य अतिथि ने अपने सन्देश में सर्वप्रथम अपने हार्दिक स्वागत पर आभार प्रकट किया और विद्यालय की प्रगति तथा वार्षिकोत्सव के सफल आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने विजेताओं को बधाई दी और अन्य छात्रों को भी आगामी वार्षिकोत्सव में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया।

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उपसंहार–हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव बहुत सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। इस उत्सव पर सभी छात्रों का हृदय आनन्द-विभोर हो गया। प्रत्येक कार्यक्रम बहुत रोचक और आकर्षक था। सचमुच ऐसे उत्सवों से छात्रों की बहुमुखी प्रतिभा प्रकट होती है और उनके व्यक्तित्व के विकास में सहायता मिलती है। इसलिए इस प्रकार के उत्सवों का आयोजन प्रत्येक विद्यालय में किया जाना चाहिए।

57. मनोरंजन के साधन

सम्बद्ध शीर्षक

  • मनोरंजन के आधुनिक साधन [2014]

रूपरेखा–

  1. प्रस्तावना : जीवन में मनोरंजन का महत्त्व,
  2. मनोरंजन के साधनों का विकास,
  3. आधुनिक काल में मनोरंजन के विविध साधन,
  4. उपसंहार।।

प्रस्तावना : जीवन में मनोरंजन का महत्त्व-जीवन में मनोरंजन, सब्जी में नमक की भाँति आवश्यक है। यह मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है। यह उसे प्रसन्नचित्त बनाने की गारण्टी तथा जीवन के कटु अनुभवों को भुलाने की ओषधि दोनों ही हैं। एक नन्हा शिशु भी इसका आकांक्षी है और एक वयोवृद्ध व्यक्ति के लिए भी यह उतना ही महत्त्वपूर्ण है। बच्चे को बेवजह रोना इस बात का संकेत है कि वह उकता रहा है। यदि वृद्ध सनकी और चिड़चिड़े हो उठते हैं तो उसका कारण भी मनोरंजन का अभाव ही है।

मनोरंजन वस्तुतः हमारे जीवन की सफलता का मूल है। मनोरंजनरहित जीवन हमारे लिए भारस्वरूप बन जाएगा। यह केवल हमारे मस्तिष्क के लिए ही नहीं, शारीरिक स्वास्थ्य-वृद्धि के लिए भी परमावश्यक है। मनोरंजन के विविध रूपों-खेलकूद, अध्ययन व सुन्दर दृश्यों के अवलोकन से हमारा हृदय असीम आनन्द से भर उठता है। इससे शरीर के रक्त-संचार को नवीन गति और स्फूर्ति मिलती है तथा हमारे स्वास्थ्य की अभिवृद्धि भी होती है।

मनोरंजन के साधनों का विकास-मनोरंजन की इसी गौरव-गरिमा के कारण बहुत प्राचीन काल से ही मानव-समाज मनोरंजन के साधनों का उपयोग करता आया है। शिकार खेलना, रथ दौड़ाना आदि विविध कार्य प्राचीन काल में मनोरंजन के प्रमुख साधन थे, परन्तु आजकल युग के परिवर्तन के साथ-साथ मनोरंजन के साधन भी बदल गये हैं। विज्ञान ने मनोरंजन के क्षेत्र में क्रान्ति कर दी है। आज कठपुतलियों का नाच जनसमाज की आँखों के लिए उतना प्रिय नहीं रहा, जितना कि सिनेमा के परदे पर हँसते-बोलते नयनाभिराम दृश्य।

आधुनिक काल में मनोरंजन के विविध साधन :
(क) वैज्ञानिक साधन–सिनेमा, रेडियो, टेलीविजन आदि विज्ञान प्रदत्त मनोरंजन के साधनों ने आधुनिक जनसमाज में अत्यन्त लोकप्रियता प्राप्त कर ली है। रेडियो तो मनोरंजन का पिटारा है ही इसे अपने घर में रखे सुन्दर गाने, भाषण, समाचार आदि सुन सकते हैं। टेलीविजन तो इससे भी आगे बढ़ गया है। विविध कार्यक्रमों, खेलों आदि के सजीव प्रसारण को देखकर पर्याप्त मनोरंजन किया जा सकता है।
(ख) अध्ययन-साहित्य का अध्ययन भी मनोरंजन की श्रेणी में आता है। यह हमें मानसिक आनन्द देता है और चित्त को प्रफुल्लित करता है। साहित्य द्वारा होने वाले मनोरंजन से मन की थकान ही नहीं मिटती, वरन् ज्ञान की अभिवृद्धि भी होती है।
(ग) ललित कलाएँ–संगीत, नृत्य, अभिनय, चित्रकला आदि ललित कलाएँ भी मनोरंजन के उत्कृष्ट साधन हैं। संगीत के मधुर स्वरों में आत्म-विस्मृत करने की अपूर्व शक्ति होती है।
(घ) खेल-ललित कलाओं के साथ-साथ खेल भी मनोरंजन के प्रिय विषय हैं। हॉकी, फुटबॉल, क्रिकेट, टेनिस, बैडमिण्टन आदि खेलों से खिलाड़ी एवं दर्शकों का बहुत मनोरंजन होता है। विद्यार्थी वर्ग के लिए खेल बहुत ही हितकर हैं। इनके द्वारा उनका मनोरंजन ही नहीं होता, अपितु स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। गर्मी की साँय-साँय करती लूओं से भरे वातावरण में घर बैठकर साँप-सीढ़ी, लूडो, ताश, कैरम, शतरंज खूब खेले जाते हैं।
(ङ) अन्य साधन–कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं, जिन्हें अभीष्ट कार्य को पूर्ण करने में ही आनन्द की प्राप्ति हो जाती है। कुछ लोग अपने कार्य-स्थलों से लौटने के बाद अपने उद्यान को ठीक प्रकार से सँवारने में ही घण्टों व्यतीत कर देते हैं। कुछ लोगों का मनोरंजन फोटोग्राफी होता है। कहीं मन-लुभावना आकर्षक-सा दृश्य दिखाई दिया और उन्होंने उसे कैमरे में कैद कर लिया। इसी से मन प्रफुल्लित हो उठा।

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मेले-तमाशे, सैर-सपाटे, यात्रा-देशाटन आदि मनोरंजन के विविध साधन हैं। इनसे हमारा मनोरंजन तो होता ही है, साथ-ही-साथ हमारा व्यावहारिक ज्ञान भी बढ़ता है। राहुल सांकृत्यायनं तो देशाटन द्वारा अर्जित ज्ञान के कारण ही महापण्डित कहलाये। सन्तों ने तो हर काम को हँसते-खेलते अर्थात् मनोरंजन करते हुए करने को कहा है, यहाँ तक कि ध्यान (meditation) भी मन को प्रसन्न करते हुए किया जा सकता। है-हसिबो खेलिबो धरिबो ध्यानम्।

उपसंहार-निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जीवन में अन्य कार्यों की भाँति मनोरंजन भी उचित मात्रा में होना आवश्यक है। सीमा से अधिक मनोरंजन समय जैसी अमूल्य सम्पत्ति को नष्ट करता है। जिस प्रकार आवश्यकता से अधिक भोजन अपच का कारण बन शरीर के रुधिर-संचरण में विकार उत्पन्न करता है, उसी प्रकार अधिक मनोरंजन भी हानिकारक होता है। हमें चाहिए कि उचित मात्रा में मनोरंजन करते हुए अपने जीवन को उल्लासमय और सरल बनाएँ।

58. यातायात के नियम

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. नियम-पालन की आवश्यकता,
  3. यातायात के नियम,
  4. उपसंहार।

प्रस्तावना-हम अपने अधिकारों और स्वतन्त्रता का उपभोग तभी तक कर सकते हैं, जब तक कि वे दूसरे लोगों के अधिकारों व स्वतन्त्रता में बाधक न हों। कुछ ऐसे नियम होते हैं जिनका हमें पालन करना ही चाहिए। जब हम नियमों का पालन नहीं करते अथवा बिना सोचे-समझे काम करते हैं तब हम दूसरों के लिए असुविधा पैदा करते हैं।

इसी प्रकार यातायात के नियम हैं जो सड़क के प्रत्येक प्रयोगकर्ता को मानने चाहिए। गाड़ियों के चालकों, साइकिल सवारों तथा पैदल यात्रियों सभी को इन नियमों का पालन करना चाहिए। यदि वे उन्हें नहीं मानेंगे तब वे स्वयं और अन्य व्यक्तियों को भी खतरे में डालेंगे। यातायात के संकेत जानने भी आवश्यक हैं क्योंकि उनके न जानने पर दुर्घटनाओं का अत्यधिक खतरा रहता है।

नियम-पालन की आवश्यकता–एक दिन एक सज्जन अपनी टहलने की छड़ी को अपने हाथों में . (UPBoardSolutions.com) गोल-गोल घुमाते हुए और अपने को महत्त्वपूर्ण व्यक्ति दर्शाते हुए किसी भीड़-भाड़ वाली सड़क पर टहले रहे थे। उनके पीछे आते हुए एक व्यक्ति ने आपत्ति की, “आपको अपनी टहलने की छड़ी इस तरह गोल-गोल नहीं घुमानी चाहिए।’

“मैं अपनी टहलने की छड़ी से जो चाहूँ करने के लिए स्वतन्त्र हूँ।” उन सज्जन ने तर्क दिया।

आप वास्तव में स्वतन्त्र हैं,” दूसरे व्यक्ति ने कहा, “परन्तु आपको यह मालूम होना चाहिए कि आपकी स्वतन्त्रता वहीं समाप्त हो जाती है, जहाँ तक वह मेरी स्वतन्त्रता में बाधक नहीं होती।

निश्चित रूप से हम दूसरों की स्वतन्त्रता में जानबूझकर हस्तक्षेप नहीं करते। परन्तु कभी-कभी अनजाने में हम दूसरों के कार्यों में बाधक बन जाते हैं। यह उस समय होता है जब हम कोई कार्य बिना सोचे-समझे करते हैं या उन नियमों का पालन नहीं करते जिनका हमें पालन करना चाहिए।

यातायात के नियम-यातायात के ऐसे कोई नियम नहीं हैं जो हमें बताएँ कि सभी मामलों में हमें किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए और किस प्रकार का नहीं। परन्तु कुछ मामलों में ऐसे नियम हैं। जिनका हम सबको पालन करना चाहिए। इन नियमों का उद्देश्य प्रत्येक के लिए सड़क के यातायात को सुरक्षित बनाना है। आजकल हमारे नगरों और कस्बों की सड़कें यातायात के कारण अत्यधिक व्यस्त होती चली जा रही हैं। दिन में अधिकांश समय तक सड़कें कुछ धीमे तथा कुछ तेज गति के वाहनों से भरी रहती हैं। यदि लोग यातायात के नियमों का उल्लंघन करते हैं, तो देर-सबेर दुर्घटनाएँ हो सकती हैं। पैदल चलने वालों, गाड़ियों और सड़क के प्रत्येक प्रयोगकर्ता के लिए इन नियमों को जानना आवश्यक है।

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पैदल चलने वालों के लिए एक महत्त्वपूर्ण नियम है। यदि फुटपाथ है तो उन्हें फुटपाथ पर चलना चाहिए। जहाँ कोई फुटपाथ नहीं है, वहाँ पर पैदल चलने वालों को सड़क के बायीं ओर किनारे-किनारे चलना चाहिए। यदि वे इस नियम का पालन नहीं करते हैं, तो वे अपने और दूसरों के लिए भी खतरा पैदा करेंगे। एक वाहन चालक पैदल चलने वाले को बचाने के लिए अचानक ही अपने वाहन को मोड़ सकता है। और ऐसा करने में वह किसी दूसरे को टक्कर मार सकता है, अपने वाहन पर सन्तुलन खो सकता है और फुटपाथ पर अनेक लोगों को टक्कर मारकर गिरा सकता है।

सभी वाहनों को यथासम्भव अपनी बायीं ओर चलना चाहिए और सड़क का दाहिना आधा भाग विपरीत दिशा से आने वाले वाहन के लिए छोड़ देना चाहिए। भारत के समस्त भागों में यातायात का यही नियम प्रचलित है। साइकिल सवारों को सदैव सड़क के किनारे चलना चाहिए और पैदल यात्रियों अथवा वाहनों के मार्ग में कदापि बाधक नहीं बनना चाहिए। हम अक्सर दो या अधिक साइकिल-सवारों को सड़क के बीच में एक-दूसरे के बगल में जाता हुआ देखते हैं, यातायात के नियम इस बात की आज्ञा नहीं देते। जहाँ सड़क बहुत व्यस्त है, वहाँ इससे यातायात में बाधा उपस्थित होगी और दुर्घटनाएँ होंगी।

आगे जा रहे वाहन को पार करने का नियम भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। किसी भी वाहन को दूसरे वाहन से आगे निकलने के लिए दायीं ओर से जाना चाहिए अन्यथा वह उस वाहन से टकरा सकता है, जो बायीं ओर रहने का प्रयत्न कर रहा है।

जहाँ सड़कें एक-दूसरे को काटती हैं वहाँ वाहन के पहले निकलने के अधिकार के बारे में भी नियम है। ऐसे स्थानों पर, साधारणतया, एक गोल चक्कर बना रहता है। जो वाहन दायीं ओर से आ रहा है, उसे बायीं ओर से आने वाले वाहन से पहले मार्ग पाने का अधिकार है। यदि प्रत्येक चालक इस नियम का पालन करे तो गोल-चक्करों पर यातायात सुचारु रूप से चलेगा और दुर्घटनाओं से बचा जा सकेगा।

वाहनों के चालकों को सही संकेत देने में कभी भूल नहीं करनी चाहिए, अन्यथा दुर्घटना होने का खतरा बना रहेगा। दाएँ-बाएँ मुड़ने, चाल मन्दी करने और रुकने तथा दूसरी गाड़ियों को आगे निकल जाने देने के संकेत हैं। साइकिल-सवार, यह सोचकर कि ये संकेत केवल मोटर-चालकों के लिए ही महत्त्वपूर्ण हैं, प्रायः संकेत देने में लापरवाही करते हैं। परन्तु सड़क का प्रयोग करने वाले सभी व्यक्तियों को, चाहे वे साइकिल-सवार हों या मोटरचालक, सही संकेत देने चाहिए, जिससे सड़क पर चलने वाले दूसरे लोग सचेत हो जाएँ। पैदल चलने वालों को भी इन संकेतों का ज्ञान होना चाहिए, जिससे वे यह पता लगा सकें कि सड़क पर चलने वाला वाहन किधर होकर जा रहा है। जब दो मोटर-चालक रात्रि के समय विपरीत दिशाओं से आते हुए अपनी गाड़ियों के प्रकाश को मन्द कर देते हैं तो वे एक-दूसरे के कार्य में सहायक होते हैं।

इस प्रकार के सभी कार्यो में हम अपनी थोड़ी-सी स्वतन्त्रता और सुविधा का त्याग करते हैं जिससे अन्य व्यक्ति अपनी स्वतन्त्रता और सुविधा का आनन्द ले सकें और जीवन सबके लिए सुगमतापूर्वक चल सके।

उपसंहार–इन सभी बातों से अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सार्वजनिक सड़क का प्रयोग करने वाले व्यक्ति को यातायात-नियन्त्रण कार्य पर तैनात पुलिसकर्मी की आज्ञा का पालन करना चाहिए। यह सभी नियमों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। जरा कल्पना कीजिए कि पैदल चलने वालों और तेज गति से चलने वाले वाहनों से भरी व्यस्त सड़क पर यदि पुलिसकर्मी तैनात न हो तो क्या दशा होगी? आप समझ सकते हैं। कि पुलिसकर्मी कितना महत्त्वपूर्ण हैं और आप उसके आदेश को सदैव पालन करने लगेंगे और यदि आप यह समझते हैं कि वह गलत है और आप ठीक हैं, तो भी आप उससे कभी नाराज नहीं होंगे।

59. यदि मैं अपने विद्यालय का प्रधानाचार्य होता [2014]

रूपरेखा–

  1. प्रस्तावना,
  2. मेरी कल्पना प्रधानाचार्य बनना,
  3. अध्यापकों पर ध्यान देना,
  4. पुस्तकालय, खेल आदि का स्तर सुधारने पर बल,
  5. विद्यालय की दशा सुधारना,
  6. शिक्षा-परीक्षा पद्धति में परिवर्तन,
  7. उपसंहार।।

प्रस्तावना-कल्पना भी क्या चीज होती है। कल्पना के घोड़े पर सवार होकर मनुष्य न जाने कहाँ-कहाँ की सैर कर आता है। यद्यपि कल्पना की कथाओं में वास्तविकता नहीं होती तथपि कल्पना में जहाँ मनुष्य क्षण भर के लिए आनन्दित होता है, वहीं वह अपने लिए कतिपय आदर्श भी निर्धारित कर लेता है। इसी कल्पना से लोगों ने नये कीर्तिमान भी स्थापित किये हैं। एडीसन, न्यूटन, राइट बंधु आदि सभी वैज्ञानिकों ने कल्पना का सहारा लेकर ही ये नये आविष्कार किये। कल्पना में मनुष्य स्वयं को सर्वगुणसम्पन्न भी समझने लगता है।

मेरी कल्पना प्रधानाचार्य बनना-मेरी कल्पना अपने आप में अत्यन्त सुखद है कि काश मैं अपने विद्यालय का प्रधानाचार्य होता। प्रधानाचार्य का पद गौरव एवं उत्तरदायित्वपूर्ण होता है। मैं प्रधानाचार्य होने पर अपने सभी कर्तव्यों का भली-भाँति पालन करता। हमारे विद्यालय में तो प्रधानाचार्य यदा-कदा ही दर्शन देते हैं जिससे विद्यार्थी और अध्यापकगण कृतार्थ हो जाते हैं। मैं नित्य-प्रति विद्यालय आता। अपने विद्यार्थियों व अध्यापकगणों की समस्याएँ सुनता और तदनुरूप उनका समाधान करता। अध्यापकों पर ध्यान देना-सामान्यत: विद्यालयों में कुछ अध्यापक अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने ही आते हैं। वे स्वतन्त्र व्यवसाय करते हैं तथा (UPBoardSolutions.com) विद्यार्थियों को पढ़ाना अपना कर्तव्य नहीं समझते। हमारे गणित के अध्यापक शेयरों का धन्धा करते हैं। मन्दी आने पर वे सारा क्रोध विद्यार्थियों पर निकालते हैं। यदि कोई विद्यार्थी उनसे प्रश्न हल करवाने चला जाता है तो वे उसकी पिटाई कर देते हैं। अंग्रेजी के अध्यापक बीमा कम्पनी के एजेन्ट हैं। वे अभिभावकों को बीमा करवाने की नि:शुल्क सलाह देते रहते हैं। अधिकांश अध्यापक ट्यूशन पढ़ाने के शौकीन हैं। वे कक्षा में बिल्कुल नहीं पढ़ाते। जो छात्र उनसे ट्यूशन नहीं पढ़ते, उन्हें वे अनावश्यक रूप से परेशान करते हैं। यहाँ तक कि उनको परीक्षाओं में भी असफल कर देते हैं। यदि मैं अपने विद्यालय का प्रधानाचार्य होता तो सर्वप्रथम अध्यापकों की बुद्धि की इस मलिनता को दूर करता। ट्यूशन पढ़ाने को निषेध घोषित करता तथा ट्यूशन पढ़ाने वालों को दण्डित करता। जो अध्यापक अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं करते उनको विद्यालय से निकालने अथवा उनके स्थानान्तरण की संस्तुति कर देता। सभी अध्यापकों को आदर्श अध्यापक बनने के लिए येन-केन प्रकारेण विवश कर देता।

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पुस्तकालय, खेल आदि का स्तर सुधारने पर बल-हमारे विद्यालय के पुस्तकालय की दशा अत्यन्त शोचनीय हैं। छात्रों को पुस्तकालय से अपनी रुचि एवं आवश्यकता की पुस्तकें नहीं मिलती। मैं विद्यालय के पुस्तकालय की दशा सुधारता। शिक्षाप्रद पुस्तकों तथा महान साहित्यकारों की पुस्तकों की पर्याप्त मात्रा में प्रतियाँ खरीदवाता। किसी भी विषय की पुस्तकों का पुस्तकालय में अभाव नहीं रहने देता और निर्धन विद्यार्थियों को नि:शुल्क पुस्तकें भी उपलब्ध कराता।।

हमारे विद्यालय में खेलों का आवश्यक सामान नहीं है। प्रधानाचार्य होने पर मैं विद्यार्थियों की आवश्यकतानुसार खेल का सामान उपलब्ध करवाता। विद्यालय की टीम के जीतने पर खिलाड़ियों को पुरस्कृत कर उनका मनोबल बढ़ाता। अपने विद्यालय की टीमों को खेलने के लिए बाहर भेजता, साथ ही अपने विद्यालय में भी नये-नये खेलों का आयोजन करता राज्यीय और अन्तर्राज्यीय प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करता।

विद्यालय की दशा सुधारना-मैं विद्यार्थियों से श्रमदान करवाता। श्रमदान के द्वारा विद्यालय के बगीचे में नाना-प्रकार के पेड़-पौधे लगवाता। विद्यार्थियों को पर्यावरण के विषय में सचेत करती। विद्यालय के चारों ओर खुशबूदार फूलों के पौधे लगवाता, जिससे विद्यालय का वातावरण फूलों की सुगन्ध से खुशनुमा हो जाता।

सांस्कृतिक कार्यक्रमों के विषय में मेरा विद्यालय अपने क्षेत्र का सर्वोत्तम विद्यालय होता। संगीत, कला, आदि की शिक्षा की विद्यालय में समुचित व्यवस्था करवाता। प्रत्येक महीने चित्रकला व वाद-विवाद प्रतियोगिता करवाता। विद्यार्थियों के मस्तिष्क में कला के प्रति आकर्षण पैदा करता। इस प्रकार मैं अपने विद्यालय को नवीन रूप प्रदान करता।।

शिक्षा-परीक्षा पद्धति में परिवर्तन-इतना करने के उपरान्त मैं सर्वप्रथम शिक्षा पद्धति में परिवर्तन लाने पर ध्यान केन्द्रित करता। शिक्षा विद्यार्थियों के लिए सामाजिक, नैतिक, बौद्धिक विकास में सहायक होती है। मैं विद्यालय में प्राथमिक शिक्षा पर तो ध्यान देता ही साथ ही व्यावसायिक प्रशिक्षण की भी सुविधा प्रदान करवाता। इस प्रकार विद्यार्थियों को शिक्षा-प्राप्ति के बाद पराश्रित नहीं रहना पड़ता। मैं अपने विद्यालय में हिन्दी को अनिवार्य विषय घोषित करता। इसमें विद्यार्थियों में राष्ट्रभाषा के प्रति सम्मान की भावना जाग्रत होती, साथ ही उनमें देश-प्रेम की भावना भी आती।

हमारे विद्यालय की परीक्षा-प्रणाली बहुत दोषपूर्ण है। परीक्षा से पहले ही विद्यार्थी अत्यधिक तनावग्रस्त हो जाते हैं। मेरे प्रधानाचार्य बनने पर विद्यार्थियों को परीक्षाओं को भूत इस तरह नहीं सताता कि उन्हें अनैतिक विधियाँ अपनाकर परीक्षा उत्तीर्ण करनी पड़े। वार्षिक परीक्षा के साथ-साथ आन्तरिक (UPBoardSolutions.com) मूल्यांकन भी उनकी योग्यता का मापदण्ड होता। लिखित और मौखिक दोनों रूप में परीक्षा होती। शारीरिक स्वास्थ्य भी परीक्षा का एक भाग होता तथा परीक्षा छात्रों के चहुंमुखी विकास का मूल्यांकन करती।

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उपसंहार–यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो विद्यालय का रूप ही दूसरा होता। यह सब मेरी कल्पना में रचा-बसा है। यदि मैं प्रधानाचार्य बनूंगा तो अपनी सभी कल्पनाओं को साकार करूंगा, यह मेरा दृढ़ संकल्प है। मैं ऐसी सूझबूझ से विद्यालय का संचालन करूंगा कि राज्य में ही नहीं पूरे देश में मेरे विद्यालय का नाम रोशन हो जायेगा। मुझे आशा है कि भगवान मेरी इसे कल्पना को अवश्य पूरा करेगा।

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UP Board Solutions for Class 9 English Prose Chapter 6 The Rules of the Road

UP Board Solutions for Class 9 English Prose Chapter 6 The Rules of the Road

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 English. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 English Prose UP Board Solutions for Class 9 English Prose Chapter 6 The Rules of the Road .

(A) PASSAGES FOR COMPREHENSION

Read the following passages and answer the questions given below :
निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़िये और नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(a) There is a story of a man who thought he had a right to do what he liked. One day this gentleman was walking along a busy road, spinning his walking stick round and round in his hand and trying to look important. A man walking behind him objected.
“You ought not to spin your walking-stick round and round like that!” he said.
“I am free to do what I like with my walking-stick” argued the gentleman.
“Of course, you are,” said the other (UPBoardSolutions.com) man, “but you ought to know that your freedom ends where my nose begins:”
The story tells us that we can enjoy our rights and freedom only if they do not interfere with other people’s rights and freedoms.

Questions.
1. Write name of the lesson from which the above passage has been taken.
(उस पाठ का नाम लिखिए जिससे उपरोक्त गद्यांश लिया गया है। )
2. What did the man in the above story think about his right?
(उपरोक्त कहानी में व्यक्ति अपने अधिकार के बारे में क्या सोचता था?)
3. How did the man try to look important?
(वह व्यक्ति महत्वपूर्ण दिखने के लिए किस प्रकार प्रयास करता था?)
4. In what words did the other man object to the spinning of the walking-stick?
(टहलने की छड़ी को घुमाने पर दूसरे व्यक्ति ने किन शब्दों में आपत्ति की?)
5. Use the word ‘freedom’ in a sentence of your own.
(अपने वाक्य में ‘freedom’ शब्द का प्रयोग कीजिए।)
Answers:
1. The name of the lesson is “The Rules of the Road’.
(पाठ का नाम ‘The Rules of the Road’ है।)
2. The man in the above story thinks about his right that he is free to do anything he likes.
(उपर्युक्त कहानी में बताया गया, व्यक्ति अपने अधिकार के विषय में सोचता है कि वह जो कुछ चाहे करने के लिए स्वतन्त्र है।)
3. The man was walking along a busy road, spinning his walking-stick round and round in his hand. He was doing so to look important.
(वह आदमी एक व्यस्त सड़क पर अपनी टहलने की छड़ी को अपने हाथ में लेकर चारों ओर घुमाकर टहल रहा था। वह महत्वपूर्ण दिखने के लिए ऐसा कर रहा था।
4. The other man objected and said, “You ought not to spin your walking-stick round and round.”
(दूसरे व्यक्ति ने आपत्ति की और कहा, “आपको अपनी टहलने की छड़ी को चारों ओर नहीं घुमाना चाहिए।)
5. India got freedom in 1947.
(भारत को स्वतंत्रता 1947 में प्राप्त हुई।)

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(b) The story tells us that we can enjoy our rights and our freedom only if they do not interfere with other people’s right and freedoms.
There are very few of us, of course, who will argue like the gentleman in the story, that we have a right to go about spinning our walk-in-sticks (UPBoardSolutions.com) in a busy street. We certainly do not interfere on purpose with other people’s freedom. But sometimes we get in other people’s way without knowing it. This happens when we act without thinking or when we disobey rules that we ought to obey.

Questions.
1. Write name of the lesson from which the above passage has been taken.
(उस पाठ का नाम लिखिए जिससे उपरोक्त गद्यांश लिया गया हैं?)
2. What is the moral of the story?
(कहानी का नैतिक आदर्श क्या है?)
3. Why will very few people argue like the gentleman in the story?
(बहुत कम लोग ही कहानी के महाशय की तरह तर्क क्यों करेंगे?)
4. What happens when we disobey rules?
(जब हम नियमों का पालन नहीं करते तो क्या होता है?)
5. Use the word ‘Certainly’ in a sentence of your own.
(अपने वाक्य में ‘Certainly’ शब्द का प्रयोग कीजिए।)
Answers:
1. The name of the lesson is “The Rule of the Road’.
(पाठ का नाम “The Rule of the Road’ है।)
2. The moral of the story is that we can enjoy our rights and freedom only if we do not interfere with other people’s rights and freedom.
(कहानी की नैतिक शिक्षा यह है कि हम अपने अधिकारों और स्वतन्त्रताओं का आनन्द केवल तब ले सकते हैं जब हम दूसरे लोगों के अधिकारों और स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप न करें।)
3. Few people will argue like the gentleman in the story because they think wrongly that they have a right to go about spinning their walking-sticks in a busy street. However, they do not interfere with other people’s freedom purposely.
(बहुत कम लोग ही कहानी के महाशय की तरह तर्क करते हैं क्योंकि वे यह गलत सोचते हैं कि उन्हें व्यस्त सड़क | पर अपनी टहलने की छड़ी को इधर-उधर घुमाने का अधिकार है। हालांकि वे दूसरे लोगों की स्वतन्त्रता में जान
बूझकर हस्तक्षेप नहीं करते हैं।)
4. When we disobey rules, we interfere with other people’s rights and freedom.
(जब हम नियमों का पालन नहीं करते तो हम दूसरों के अधिकारों और स्वतंत्रताओं में हस्तक्षेप करते हैं।)
5. I shall certainly help him tomorrow.
(मैं निश्चित रूप से उसकी कल सहायता करूंगा।)

(c) Of course, everybody does not behave in this way. One can see, now and then, examples of a different kind of behaviour. We sometimes notice with pleasure a young man in a bus giving up his seat to an elderly person or to a woman who has got into the bus with a baby in her arms. When a man sitting in a train turns to the person next to him and asks, “May I smoke?” he is giving thought to the convenience of the other person. When two (UPBoardSolutions.com) motorists coming from opposite directions at night dim the lights of their vehicles, they are being helpful to each other. In all such actions we give up a little of our freedom and convenience so that other people may enjoy theirs, and life may run smoothly for all.

Questions.
1. ‘Of course’, everybody does not behave in this way. What way is referred to here?
(‘निश्चय ही प्रत्येक व्यक्ति इस प्रकार का व्यवहार नहीं करता है। यहाँ पर किस प्रकार के व्यवहार का सन्दर्भ है?)
2. When are two motorists helpful to each other?
(दो मोटरगाड़ी चालक एक-दूसरे के सहायक कब होते हैं?)
3. What good thing do we notice in all such actions?
(इस प्रकार के सभी कार्यों में हमें कौन सी अच्छी बातें दिखाई पड़ती है?)
4. What is the result, if people obey “the rules of the road”?
(यदि लोग “सड़क के नियमों का पालन करते हैं तो क्या परिणाम होता है?)
5. Which words in the above passage mean :
(a) joy (b) leaving.
उपरोक्त गद्यांश के किन शब्दों का अर्थ है
(a) joy (b) leaving.
Answers:
1. ‘Of course’, everybody does not behave in this way refers to the way of behaviour of some people who, while travelling in railway trains, do not pay attention to the convenience of other fellow passengers.
(‘निश्चय ही प्रत्येक व्यक्ति इस प्रकार का व्यवहार नहीं करता है। यह कुछ ऐसे लोगों के व्यवहार के तरीकों को सन्दर्भित करता है जो रेलगाड़ियों में यात्रा करते समय अपने सहयात्रियों की सुविधा पर ध्यान नहीं देते।)
2. When two motorists coming from opposite directions at night dim the light of their vehicles, they are being helpful to each other.
(जब रात्रि में विपरीत दिशाओं से आने पर दो मोटर गाड़ी चालक अपने-अपने वाहनों के प्रकाश को धुंधला कर देते हैं तब वे एक-दूसरे के सहायक होते हैं।).
3. In all such actions, the good thing that we notice is that people give up a little of their convenience and freedom for the sake of others.
(इस प्रकार के सभी कार्यों में जोअच्छी बात हमें दिखाई पड़ती है वह यह है कि लोग अपनी स्वतंत्रता और सुविधा का दूसरों के लिए त्याग कर देते है।)
4. If people obey ‘the rules of the road life runs smoothly for all.
(यदि लोग ‘सड़क के नियमों का पालन करते हैं तो सबका जीवन सरलतापूर्वक चलता है।)
5. Joy mean pleasure and leaving means giving up.
Joy का अर्थ pleasure है और a site leaving का अर्थ giving up है।

(d) There are no rules to tell us how we ought to behave or ought not to behave in all matters. But in some matters there are rules that all have to obey. Take for example, the rules of the road. The purpose of these rules is to make the roads safe for everybody. The roads in our cities and towns are getting more and more busy with traffic these days. (UPBoardSolutions.com) All kinds of vehicles, some slow, fast, fill the roads during the greater part of the day. If people disobey traffic rules, accidents happen sooner or later. There are rules for pedestrians as well as for vehicles and every user of the road ought to know the rules.

Questions.
1. Write name of the lesson from which the above passage has been taken.
(उस पाठ का नाम लिखिए जिससे उपरोक्त गद्यांश लिया गया है। )
2. Why are the rules of the road necessary?
(सड़क के नियम आवश्यक क्यों हैं?)
3. What will happen if people do not obey traffic rules?
(यदि लोग यातायात के नियमों का पालन न करें तो क्या होगा?)
4. Why are the roads in our cities getting more and more busy?
(हमारे नगरों में सड़कें अधिक व्यस्त क्यों होती जा रही हैं?)
5. Which words in the above passage mean :
(a) Aim (b) Those who walk on foot.
उपरोक्त गद्यांश में किन शब्दों का अर्थ है
(a) Aim (b) Those who walk on foot.
Answers:
1. The name of the lesson is “The Rules of the Road’.
(पाठ का नाम “The Rules of the Road’ है।)
2. The rules of the road are necessary for the safety of everyone.
(सड़क के नियम प्रत्येक व्यक्ति की सुरक्षा के लिए आवश्यक है। )
3. If people do not obey traffic rules, accidents will happen sooner or later.
(यदि लोग यातायात के नियमों का पालन न करें तो देर या सबेर दुर्घटनाएँ हो जायेंगी।)
4. The roads in our cities are getting more and more busy because all kinds of vehicles fill the roads during the greater part of the day.
(हमारे नगरों में सड़कें अधिक व्यस्त होती जा रही हैं क्योंकि सभी प्रकार की गाड़ियाँ दिन के अधिकांश भाग में सड़कों को भरे हुए रखती हैं।)
5. Aim mean purpose and those who walk on foot means pedestrians
(Aim का अर्थ है purpose और Those who walk on foot का अर्थ है pedestrians पैदल चलने वाले।)

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(e) All vehicles should keep to the left and leave the right half of the road free for those coming from the opposite direction. This is the traffic rule in all parts of India. In some countries in the west, however, vehicles have to keep to the right and not to the left. It does not matter whether it is right or left, but everyone should obey the rule. Cyclists should always keep to the edge of the road and not get in the way of other vehicles or of (UPBoardSolutions.com) pedestrians. We often see two or more cyclists riding together side by side right in the middle of the road. Traffic rules do not allow this. Where the road is busy, this will interfere with the flow of traffic and cause accidents. The rule about overtaking is an equally important rule. One vehicle should overtake another vehicle only on the right, because otherwise it may get in the way of the vehicle which is trying to keep to the left.

Questions.
1. Name the lesson from which the above passage has been taken.
(उस पाठ का नाम लिखिए जिससे उपरोक्त गद्यांश लिया गया है।)
2. What is the general traffic rule in all parts of India?
(भारत के सभी भागों में यातायात का सामान्य नियम क्या है? )
3. What is advisable for the cyclists? 
(साइकिल चलाने वालों के लिए राय देने योग्य बात क्या है?)
4. What is not allowed by traffic rules for the cyclists and why?
(यातायात के नियम साइकिल चलाने वालों को किस बात की आज्ञा नहीं देते और क्यों?)
5. What is meant by the term ‘overtaking’ according to traffic rules?
(यातायात नियमों के अनुसार ‘ओवरटेकिंग’ का क्या तात्पर्य है?)
Answers:
1. The name of the lesson is ‘The Rules of the Road’.
(पाठ का नाम “The Rules of the Road’ है। )
2. The general traffic rule in all parts of India is that all vehicle should keep to the left.
(भारत के सभी भागों में यातायात को सामान्य नियम यह है कि बाएं से चलना चाहिए।)
3. The cyclists are advised to be careful about giving signals.
(साइकिल चालकों को सलाह दी जाती है कि वे संकेत देने के बारे में सावधान रहें।)
4. The cyclists are not allowed to be careless about giving signals. The reason is that their carelessness will be dangerous to them as well as to others. (साइकिल चालकों को यह अनुमति नहीं है कि वे संकेत देने के बारे में लापरवाह हो जाएं। इसका कारण यह है कि लापरवाही उनके तथा दूसरों के लिए खतरनाक हो जायेगी।)
5. ‘Overtaking’ means to catch up a vehicle from behind and go forward suddenly.
(‘ओवरटेकिंग’ का तात्पर्य है किसी सवारी को पीछे से पकड़ना तथा अचानक आगे निकल जाना।)

(B) LONG ANSWER TYPE QUESTIONS AND THEIR ANSWERS

Answer the following questions in not more than 60 words each :

Question 1.
What is the story about the gentleman walking along a busy road, spinning his stick? What does the story teach?
(अपनी छड़ी घुमाते हुए व्यस्त सड़क पर चलने वाले महाशय की कहानी क्या है? कहानी हमें क्या नहीं सिखाती है?)
Answer:
There is a story of a man who thought he had right to do what he liked. One day he was walking along a busy road spinning his stick. Another man walking behind him objected to do so. But the gentleman did not agree with him. (UPBoardSolutions.com) He said that he was free to do what he liked. The other man advised him that he ought to know that his freedom ended where his nose began. Thus the story dces not teach us to interfere with other people’s rights and freedom.

यह कहानी एक व्यक्ति के विषय में है जो यह सोचता था कि वह जो चाहे उसे करने का अधिकार है। एक दिन वे व्यस्त सड़क पर अपनी छड़ी को घुमाते हुए टहल रहे थे। उनके पीछे टहलने वाले व्यक्ति ने ऐसा करने पर आपत्ति की लेकिन वे महाशय उससे सहमत नहीं थे। उन्होंने कहा कि वे जो चाहें, करने के लिए स्वतंत्र हैं। दूसरे व्यक्ति ने राय दी कि उन्हें जानना चाहिए कि उनकी स्वतंत्रता वहीं समाप्त हो गयी जहाँ उसकी नाक शुरू हो गयी। इस प्रकार यह कहानी हमें दूसरे लोगों के अधिकारों और स्वतंत्रताओं में हस्तक्षेप करना नहीं सिखाती हैं।

Question 2.
How do people sometimes act without thinking of other people’s convenience? Give a few examples.
(कभी-कभी लोग दूसरे लोगों की सुविधाओं को सोचे बिना किस प्रकार का कार्य करते हैं? कुछ उदाहरण दीजिए।)
Answer:
People, sometimes, act without thinking of other people’s conveniences. These people fail to realise that they are acting without getting any thought to other people’s convenience, when they put up loudspeakers outside their houses. In the same way, while travelling in a railway train, some people do not think of the convenience of other people and begin to discuss loudly India’s foreign policy or begin to smoke while other people do not like such behaviour.

कभी-कभी लोग दूसरों की सुविधाओं को सोचे बिना कार्य करते हैं। जब ये लोग अपने घरों के बाहर लाउडस्पीकर लगाते हैं तो वे लोग यह महसूस नहीं करते कि वे दूसरे लोगों की सुविधा का विचार किये बिना कार्य कर रहे हैं। इसी प्रकार रेलगाड़ी में यात्रा करते समय कुछ लोग दूसरे लोगों की (UPBoardSolutions.com) सुविधा का ध्यान नहीं देते और भारत की विदेश नीति के बारे में जोर-जोर से बहस करने लगते हैं अथवा धूम्रपान करने लगते हैं जबकि दूसरे लोग इस प्रकार का व्यवहार पसन्द नहीं करते।

Question 3.
Some people, on the other hand, are very thoughtful about the convenience of the other people. Give a few examples of this kind of behaviour.
(दूसरी ओर कुछ लोग दूसरों की सुविधा के प्रति बहुत विचारशील होते हैं। इस प्रकार के व्यवहार के कुछ उदाहरण दीजिए।)
Answer:
Generally people act without thinking of other people’s convenience. But everybody does not behave in this way. We sometimes notice with pleasure a young man in a bus giving up his seat to an elderly person or to a woman who has (UPBoardSolutions.com) got in the bus with a baby in her arms. When a man sitting in a train or bus turns to person next and gets permission to smoke. He is giving thought to the convenience the other person.

सामान्यतः लोग दूसरे लोगों की सुविधा को सोचे बिना कार्य करते हैं किन्तु प्रत्येक व्यक्ति इस प्रकार का व्यवहार नहीं करता है। कभी-कभी हम प्रसन्नतापूर्वक देखते हैं कि बस में यात्रा करने वाला एक नवयुवक अपनी सीट किसी अधिक आयु के व्यक्ति को दे रहा होता है या उस स्त्री को दे देता है जो अपनी बांहों में एक बच्चे को लेकर बस में आ जाती है। जब रेलगाड़ी। या बस में बैठा हुआ एक व्यक्ति अपने बराबर बैठे हुए व्यक्ति की ओर मुड़ता है और धूम्रपान करने के लिए उसकी अनुमति । प्राप्त करता है तो वह दूसरे लोगों की सुविधा का ध्यान दे रहा होता है।

Question 4.
Why is it necessary to foll the rules of the road?
(सड़क के नियमों का पालन करना क्यों आवश्यक है?)
Answer:
The rules of the road are most important. They ought to be obeyed-in human life. The purpose of these rules is to make the roads safe for everybody. Now-a-days the traffic has increased very much. All kinds of vehicles, fill the roads during the greater part of the day. Hence it is the duty of all the road users to obey the rules of the road. If people disobey traffic rules, accidents may happen sooner or later. So the rules of the road are most important.

सड़क के नियम बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। मानव जीवन में उनका पालन अवश्य किया जाना चाहिए। इन नियमों को उद्देश्य सड़क पर चलने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए सड़कों को सुरक्षित बनाना है। आजकल यातायात बहुत बढ़ गया है। सब प्रकार की गाड़ियाँ दिन के अधिकांश भाग में सड़कों (UPBoardSolutions.com) को भरे हुए रखती हैं। इसलिए सड़क के नियमों का पालन करना सड़क को प्रयोग करने वाले सभी व्यक्तियों का कर्तव्य है। यदि लोग यातायात के नियमों का उल्लंघन करते हैं तो देर या सबेर दुर्घटनाएँ हो सकती हैं इसलिए सड़क के नियम सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं।

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Question 5.
What is the most important rule of the road?
(सड़क की सबसे अधिक महत्वपूर्ण नियम क्या है?)
Answer:
There are certain rules of the road which we should know. The vehicle coming from the right has right of way over the one coming from the left at the round abouts. Drivers of the vehicle should give right signals. The cyclists should always keep to edge of the road. Pedestrians should know the rules of the road so that they may see the right way of vehicles. Above all the most important rule of all is to obey the policeman on duty. His work is very important. Hence we should obey him.

सड़क के कुछ नियम है जिन्हें हमें जानना चाहिए। दाहिनी ओर से आने वाली गाड़ियों को गोल चक्करे पर बायीं ओर से आने वाली गाड़ियों से पहले जाने का अधिकार है। गाड़ियों के चालकों को सही संकेत देनी चाहिए। साइकिल चालकों को सदैव सड़क के किनारे से चलना चाहिए। पैदल चलने (UPBoardSolutions.com) वालों को सड़क के नियमों को जानना चाहिए ताकि वे गाड़ियों की सही दिशा को देख सके। इन सबके अतिरिक्त सबके लिए महत्वपूर्ण नियम ड्यूटी पर तैनात पुलिस के सिपाही के संकेत का पालन करना है। उसका कार्य बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए हमें उसकी आज्ञा माननी चाहिए।

(C) SHORT ANSWER TYPE QUESTIONS AND THEIR ANSWERS

Answer the following questions in not more than 25 words each :

Question 1.
What did the man, spinning the walking-stick, say to the man who objected to his doing s0?
(टहलने की छड़ी घुमाने वाले व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति से क्या कहा जिसने उसके ऐसा करने पर आपत्ति की थी? )
Answer:
The man spinning the walking stick said that he was free to do what he liked with his walking stick.
(टहलने की छड़ी घुमाते हुए व्यक्ति ने कहा कि वे अपनी टहलने की छड़ी से इच्छानुसार कार्य करने के लिए स्वतन्त्र हैं।)

Question 2.
We sometimes get in the way of other people without knowing it. When does this happen?
(हम कभी-कभी अनजाने में दूसरे व्यक्तियों के मार्ग में आ जाते हैं। ऐसा कब होता है?)
Answer:
We some times get in the way of other people without knowing it. This happens when we do
not care for the convenience of other people.
(हम कभी-कभी अनजाने में दूसरे व्यक्तियों के मार्ग में आ जाते हैं। यह लेता है जब हम दूसरे व्यक्तियों की सुविधा की परवाह नहीं करते। )

Question 3.
What do people fail to realise when they put up loudspeakers outside their houses?
(जेब लोग अपने घरों के बाहर लाउडस्पीकर लगा देते हैं तब वे क्या अनुभव नहीं कर पाते?)
Answer:
Generally, people fail to realise that they are acting without any thought for other people’s convenience, when they put loudspeakers outside their houses. (साधारणतया जब लोग अपने घरों के बाहर लाउडस्पीकर लगा देते हैं तो वे इस बात का अनुभव नहीं कर पाते कि वे दूसरे लोगों की सुविधा को सोचे बिना कार्य कर रहे हैं।)

Question 4.
Give an example of want of thought for fellow passengers in trains.
(रेलगाड़ियों में सहयात्रियों के साथ यात्रा करते समय विचार शून्यता का एक उदाहरण दीजिए।)
Answer:
While travelling in a railway train, some people do not think of the convenience of other people. When some people want to sleep on account of being tired, they began to discuss loudly, the India’s Foreign Policy. Some people began to smoke and don’t think of others.
(रेलगाड़ियों में यात्रा करते समय कुछ व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों की सुविधा के विषय में नहीं सोचते हैं। जब कुछ लोग थक जाने के कारण सोना चाहते हैं तब वे भारत की विदेश (UPBoardSolutions.com) नीति के विषय में जोर-जोर से वार्तालाप प्रारम्भ कर देते हैं। कुछ व्यक्ति धूम्रपान करना प्रारम्भ कर देते हैं और दूसरों के विषय में नहीं सोचते हैं।)

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Question 5.
Why should everybody obey traffic rules?
(प्रत्येक व्यक्ति को यातायात नियमों का पालन क्यों करना चाहिए?)
Answer:
Everybody should obey traffic rules to avoid road accidents. If we do not obey traffic rules, accidents may happen sooner or later.
( प्रत्येक व्यक्ति को सड़क दुर्घटनाओं से बचने के लिए यातायात नियमों का पालन करना चाहिए। यदि हम यातायात नियमों का पालन नहीं करते तो देर या सबेर दुर्घटनाएँ हो सकती है।)

Question 6.
What is the rule for pedestrians?
(पैदल चलने वालों के लिए क्या नियम हैं?)
Answer:
There is an important rule for pedestrians. They should keep to the footpath and leave the middle of the road for vehicles. Where there is no footpath, they must keep close to the edge of the road.
(यहाँ पैदल चलने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण नियम है। उन्हें फुटपाथ पर ही चलना चाहिए और सड़क के बीच भाग को गाड़ियों के लिए छोड़ देना चाहिए। जहाँ पर फुटपाथ न हो, वहाँ उन्हें सड़क के किनारे के निकट ही रहना चाहिए।)

Question 7.
What will happen if pedestrians do not obey the rule?
(यदि पैदल चलने वाले नियम का पालन नहीं करेंगे तो क्या होगा?)
Answer:
If pedestrians do not obey the rule, they will cause danger to themselves as well as to others.
(यदि पैदल चलने वाले नियम का पालन नहीं करेंगे तो वे अपने आपको तथा दूसरों को संकट में डाल देंगे।)

Question 8.
What is the traffic rule in all parts of India?
भारत के सभी भागों में यातायात नियम क्या है?
Answer:
In all parts of India there is a traffic rule that all vehicles should keep to the left and leave right half of the road free for those coming from the (UPBoardSolutions.com) opposite direction
(भारत के सभी भागों में यातायात का नियम यह है कि सब गाड़ियों को बायीं ओर से चलना चाहिए और दायें आधे भाग को दूरी दिशा से आने वाली मोटर गाड़ियों के लिए छोड़ देना चाहिए।)

Question 9.
Why are cyclists advised not to ride side by side on the road?
(साइकिल सवारों को एक साथ अगल-बगल न चलने की सलाह क्यों दी जाती है?)
Answer:
Cyclists are advised not to ride side by side on the road because this will interfere with the flow of traffic and cause accidents.
(साइकिल सवारों को एक साथ अगल-बगल न चलने की सलाह इसलिए दी जाती है क्योंकि वहाँ ऐसा करने से यातायात में रुकावट होगी और दुर्घटनाएँ घटित होगी। )

Question 10.
What is the rule about overtaking? Why is it important?
(आगे जा रही मोटर गाड़ियों को पार करने के बारे में क्या नियम है? यह क्यों महत्वपूर्ण हैं?) .
Answer:
The rule about overtaking is important. One vehicle should overtake another vehicle only on the right, otherwise it may get in the way of the vehicle which is trying to keep to the left.
(आगे जा रही मोटर गाड़ियों को पार करने का नियम (UPBoardSolutions.com) महत्वपूर्ण है। जो मोटर गाड़ी दूसरी मोटर गाड़ी से आगे निकलना चाहती है उसे यह केवल दायीं ओर से ही निकलना चाहिए, नहीं तो वह उस गाड़ी के मार्ग में आ सकती है, जो बायीं ओर रहने का प्रयास कर रही है।)

Question 11.
Who has the right of way at roundabouts?
(गोल चक्करों पर पहले मार्ग पाने का अधिकार किसका है?)
Answer:
The vehicle coming from the right of way at roundabouts over the vehicle coming from the left.
(गोल चक्करों पर दायीं ओर से आने वाली गाड़ियों को बायीं ओर से आने वाली गाड़ियों से पहले जाने का अधिकार है। )

Question 12.
Why should all users of road give right signals?
(सड़क का प्रयोग करने वाले सभी व्यक्तियों को उचित संकेत क्यों देना चाहिए?)
Answer:
All users of road should give right signals, so that others on the road may be warned.
(सड़क को प्रयोग करने वाले सभी व्यक्तियों को उचित संकेत इसलिए देना चाहिए ताकि सड़क पर चलने वाले अन्य व्यक्तियों को चेतावनी मिल सके।)

(D) OBJECTINE TYPE QUESTIONS

Question 1.
Complete the following statements with the most suitable choice :
(सबसे उपयुक्त विकल्प चुनकर निम्नलिखित कथनों को पूरा कीजिए)

(i) Drivers of vehicles should never fail :
(a) to give the right signals
(b) to dim the light
(c) to slow down the speed
(d) to stop
(ii) This is the most important rule of all :
(a) that is to obey the policeman on traffic duty
(b) that is to disobey the rules of the road
(c) that is to give right signals
(d) that is to walk in the middle of the road
Answer:
(i) (a) to give the right signals.
(ii) (a) that is to obey the policeman on traffic duty.

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Question 2.
Point out the true’ and false’ statements in the following :
निम्नलिखित कथनों में ‘सत्य’ और ‘असत्य कथन बताइए
(i) We should keep to the left in India.
(ii) Pedestrians ought to obey the rules.
(iii) If people disobey traffic rules, accidents happen sooner or later.
(iv) All vehicles should keep to the right.
(v) Drivers of vehicles should never fail to give the right signals.
Answer:
(i) T,
(ii) T,
(iii) T,
(iv) E,
(v) T.

(E) VOCABULARY

Question 1.
Match the words given below Column ‘A’ with the meanings given below Column ‘B’ below :
(नीचे दिये हुए सूची ‘अ’ के शब्दों का सूची ‘ब’ के अर्थों से मिलान कीजिए)
UP Board Solutions for Class 9 English Prose Chapter 6 The Rules of the Road image 1
Answer:
UP Board Solutions for Class 9 English Prose Chapter 6 The Rules of the Road image 2

Question 2.
Fill in the blanks in the following sentences with the words given below :
निम्नलिखित वाक्यों को नीचे दिये हुए उपयुक्त शब्दों की सहायता से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

careless (लापरवाह ); signal (संकेत); vehicles (वाहत); pedestrians (पदयाती); argue ( तर्क करना )
(i) The road is meant for ……. and the footpath is for…….
(ii) The old lady began to …….
(iii) Drivers of vehicles should never fail to give the right …….
(iv) Cyclists are often ……. about giving signals.
Answer:
(i) Vehicles, pedestrians
(ii) Argue
(ii) Signal
(iv) Careless

Question 3.
Give the antonyms of the following words :
(निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए)
like; freedom; sleep; foreign; careless; right
Answer:
UP Board Solutions for Class 9 English Prose Chapter 6 The Rules of the Road image 3

Question 4.
Give the synonyms of the following words :
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए
want; convenicnce; objected; argue; suppose
Answer:
UP Board Solutions for Class 9 English Prose Chapter 6 The Rules of the Road image 4
UP Board Solutions for Class 9 English Prose Chapter 6 The Rules of the Road image 5

Question 5.
Use the following phrases in your own sentences so as to make their meanings clear :
निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ स्पष्ट करते हुए अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए
to come across (मिलना ); now and then (कभी – कभी); to get into (पड़ जाना); on purpose (जाना बूझ कर )
Answer:
To come across (मिलना) : He came across me near the park.
Now and then (कभी – कभी) : Now and then, he comes to trouble me with a request for loan.
To get into (पड़ जाना) : She got into trouble by back biting her principal
On purpose (जाना बूझ कर) : We certainly do not interfere on purpose with other persons.

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Question 6.
Find one word for each of the following expressions :
(निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक शब्द बताइये)
(i) A person who walks on foot. ( )
(ii) Those who drive motor vehicles. ( )
Answer:
(i) Pedestrians
(ii) Motorists

WORKSHEET-6

The Conjunction if is generally used to express condition. But condition can also be expressed by the use of unless.

Example :

  • If Kumar does not obey orders, he will be dismissed.
  • Unless Kumar obeys orders, he will be dismissed.

When if and unless clauses refer to future tense, the Present simple form of the Verb is used in the clauses not Verbs with will, shall, etc.
If would, therefore, be wrong to say.
If you will study hard, you will be able to speak English very well soon.
The right sentence would be :
If you study hard, you will be able to speak English very well soon.

Question 1.
Rewrite the following sentences if in place of using :
(If के स्थान पर unless का प्रयोग करते हुए निम्नलिखित वाक्यों को पुनः लिखिए?)
Examples :
The test will be held tomorrow if it does not rain.
The test will be held tomorrow unless it rains.
(i) If you are not hungry, you needn’t eat now.
(ii) If you do not take an autorickshaw, you will be late for the meeting.
Answer:
(i) Unless you are hungry, you needn’t eat now.
(ii) Unless you take an autorickshaw, you will late for the meeting.

Question 2.
Rewrite the following sentences using if in place of unless :
(Unless के स्थान पर if का प्रयोग करते हुए निम्नलिखित वाक्यों को पुनः लिखिए)
(i) I’ll see you at 7 O’clock unless something goes wrong.
(ii) Unless you wear warm clothes, you will feel cold in Delhi.
Answer:
(i) I’ll see you at 7 O’clock if something does not go wrong.
(ii) If you do not wear warm clothes, you will feel cold in Delhi.

Question 3.
Fill in the blanks in the following sentences with the correct tense form of the Verbs given in brackets :
(निम्नलिखित वाक्यों को कोष्ठक में दी हुई क्रियाओं के सही काल रूप की सहायता से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए)
(i) He will be ……. a book. (read)
(ii) The train has ……. the platform. (leave)
(iii) My sister ……. a letter. (Write)
(iv) My father ……. to Mumbai yesterday. (go)
Answer:
(i) reading
(ii) left
(iii) has written
(iv) went

Question 4.
Join each pair of following sentences by using the Conjunction given below :
(नीचे दिये हुए conjunctions का प्रयोग करके निम्नलिखित वाक्यों के प्रत्येक जोड़े को जोड़िये)
that; but; or; who; where
(i) Make haste. You will be late.
(ii) The Ginza is a good hotel. It is very expensive.
(iii) The teacher said. The sun is larger than the moon.
(iv) This is the village. I was born here.
(v) The boy got the first prize. He stood first.
Answer:
(i) Make haste or you will be late.
(ii) The Ginza is a good hotel but it is very expensive.
(iii) The teacher said that the sun is larger than the moon.
(iv) This is the village where I was born.
(v) The boy who stood first got the first prize.

Question 5.
Change the follwoing sentences into Indirect Speech :
(निम्नलिखित वाक्यों को Indirect Speech में बदलिये:)
(i) Krishna said to me, “I want to read a paper.”
(ii) Alka said to her sister, “Here, I lived for ten years.”
(iii) The boy said to the doctor, “Give me some medicine for fever.”
(iv) The boys said, “Let us go for a picnic.”
(v) The guard said to the boy, “What are you doing here.”
Answer:
(i) Krishna told me that he wanted to read a paper.
(ii) Alka told her sister that there she had lived for ten years.
(iii) The boys requested the doctor to give him some medicine for fever.
(iv) The boys proposed that they should go for a picnic.
(v) The guard asked the boy what he was doing there.

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Question 6.
Change the following sentences into Passive Voice :
निम्नलिखित वाक्यों को Passive Voice में बदलिए
(i) People speak English all over the world.
(ii) Please do it.
(iii) Do you write a letter?
(iv) Who has written this book?
Answer:
(i) English is spoken by people all over the world.”
(ii) You are requested to do it or let it be done.
(iii) Is a letter written by you?
(iv) By whom has this book written?

Question 7.
Complete the spellings of the following words :
निम्नलिखित शब्दों की वर्तनियाँ पूरा कीजिए।
st–y;
ri–t;
fr-ed-m;
for-gn;
of–n
Answer:
story,
right,
freedom,
foreign,
often.

Question 8.
Fill in the blanks with the words given below :
(नीचे दिये हुए शब्दों की सहायता से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।)
otherwise (अन्यथा); disobeyed (आज्ञा का उल्लंघन किया); convenience (सुविधा); caused (उत्पन्न किया); roundabouts (गोल चक्कर)
They should know the rule about right of way at ……. All these rules are meant for the ……. and safety of everyone using the road and they must not be ……. accidents will be ……. sooner or later.
Answer:
They should know the rule about right of way at round abouts. All these rules are meant for the convenience and safety of every one using the road and they must not be disobeyed. Otherwise accidents will be caused sooner or later.

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Question 9.
Read the following passage and answer the questions given below it :
(निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िये और इसके नीचे दिये हुए प्रश्नों के उत्तर दीजिए)
There is a story of a man who thought he had a right to do what he liked. One day this gentleman was walking along a busy road, spinning his walking-stick round and round in his hand and trying to look important. A man walking behind him objected.
“You ought not to spin your walking-stick round and round like that” he said, “I am free to do what I like with my walking-stick,” argued the gentleman. “Of course, you are” said the other man, ‘but you ought to know that your freedom ends where my nose begins.
The story tells us that we can enjoy our rights and freedom only if they do not interfere with other people’s rights and freedom.

Questions.
(i) What did the man in the above story think about his right?
(कहानी में बताया गया व्यक्ति अपने अधिकार के विषय में क्या सोचता था?)
(ii) How did the man try to look important?
(उस आदमी ने महत्वपूर्ण दिखने के लिए किस प्रकार प्रयत्न किया?)
(iii) How did the other man protest?
(दूसरे आदमी ने किस प्रकार विरोध किया?)
(iv) Where does our freedom end?
(हमारी स्वतन्त्रता कहाँ समाप्त होती है?)
(v) What does the story teach us?
(कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती हैं?)
(vi) Find out the words in the above passage which mean “crowded” and “moving”.
(उपरोक्त गद्यांश में उन शब्दों को खोजिए जिनके अर्थ crowded और moving हैं।)
Answer:
(i) The man in the above story thought about his right that he had a right to do what he liked?
(उपरोक्त कहानी में बताया गया कि व्यक्ति अपने अधिकार के विषय में सोचता है कि वह जो कुछ चाहे करने के लिए स्वतन्त्र हैं।)
(ii) The man tried to look important as he was walking along a busy road spinning his walking stick round and round in his hand.
(वह व्यक्ति महत्वपूर्ण दिखने का प्रयत्न कर रहा था क्योंकि वह एक व्यस्त सड़क पर अपनी टहलने की छड़ी को हाथ में लेकर घुमाते हुए टहल रहा था।)
(iii) The other man protested to do so.
(दूसरे आदमी ने ऐसा करने का विरोध किया।)
(iv) Our freedom ends where my nose begins.
(तुम्हारी स्वतन्त्रता वही समाप्त हो जाती है जहाँ मेरी नाक प्रारम्भ होती है।)
(v) The story teaches us that we can enjoy our rights and freedom only if we do not interfere with other people’s rights and freedom.
(कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हम अपने अधिकारों और स्वतन्त्रता का आनन्द केवल तभी ले सकते हैं जब हम दूसरे लोगों के अधिकारों और स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप न करें।)
(vi) Crowded-busy (भीड़युक्त)
Moving-walking (चलते हुए)।

We hope the UP Board Solutions for Class 9 English Prose Chapter 6 The Rules of the Road help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 English Prose Chapter 6 The Rules of the Road, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 10 Hindi वैज्ञानिक निबन्ध

UP Board Solutions for Class 10 Hindi वैज्ञानिक निबन्ध

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi वैज्ञानिक निबन्ध.

वैज्ञानिक निबन्ध

47. विज्ञान : वरदान या अभिशाप [2010, 11, 12, 13, 15, 16]

सम्बद्ध शीर्षक

  • मानव-जीवन में विज्ञान का महत्त्व [2011]
  • विज्ञान के चमत्कार [2011, 13]
  • विज्ञान की देन [2012]
  • विज्ञान का सदुपयोग
  • विज्ञान का महत्त्व [2012, 13, 14]
  • विज्ञान और मानव-जीवन [2010]
  • विज्ञान के बढ़ते चरण (कदम) [2010, 12, 13]
  • विज्ञानं से लाभ एवं हानि [2013]

रूपरेखा–

  1. प्रस्तावना,
  2. विज्ञान : वरदान के रूप में,
  3. विज्ञान : अभिशाप के रूप में,
  4. उपसंहार।

प्रस्तावना-आज का युग वैज्ञानिक चमत्कारों का युग है। मानव-जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आज विज्ञान ने आश्चर्यजनक क्रान्ति ला दी है। मानव-समाज की सारी गतिविधियाँ आज विज्ञान से परिचालित हैं। दुर्जेय प्रकृति पर विजय प्राप्त कर आज विज्ञान मानव (UPBoardSolutions.com) का भाग्यविधाता बन बैठा है। अज्ञात रहस्यों की खोज में उसने आकाश की ऊँचाइयों से लेकर पाताल की गहराइयाँ तक नाप दी हैं। उसने. हमारे जीवन को सभी ओर से इतना प्रभावित कर दिया है कि विज्ञान-शून्य विश्व की आज कोई कल्पना तक नहीं कर सकता। इस स्थिति में हमें सोचना पड़ता है कि विज्ञान को वरदान समझा जाए या अभिशाप। अतः इन दोनों पक्षों पर समन्वित दृष्टि से विचार करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचना उचित होगा।

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विज्ञान : वरदान के रूप में-आधुनिक मानव का सम्पूर्ण पर्यावरण विज्ञान के वरदानों के आलोक से आलोकित है। प्रात: ज़ागरण से लेकर रात्रि-शयने तक के सभी क्रिया-कलाप विज्ञान द्वारा प्रदत्त साधनों के सहारे ही संचालित होते हैं। जितने भी साधनों का हमें अपने दैनिक जीवन में उपयोग करते हैं, वे सब विज्ञान के ही वरदान हैं। इसीलिए तो कहा जाता है कि आज का अभिनव मनुष्य विज्ञान के माध्यम से प्रकृति पर भी विजय पा चुका है

आज की दुनिया विचित्र नवीन,
प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन ।
हैं बँधे नर के करों में वारि-विद्युत-भाप,
हुक्म पर चढ़ता उतरता है पवन का ताप ।

विज्ञान के इन विविध वरदानों की उपयोगिता प्रमुख क्षेत्रों में निम्नलिखित है
(क) यातायात के क्षेत्र में प्राचीन काल में मनुष्य को लम्बी यात्रा तय करने में बरसों लग जाते थे, किन्तु आज रेल, मोटर, जलपोत, वायुयान आदि के आविष्कार से दूर-से-दूर स्थानों पर अति शीघ्र पहुंचा जा सकता है। यातायात और परिवहन की उन्नति से व्यापार की भी कायापलट हो गयी है।
(ख) संचार के क्षेत्र में—बेतार के तार ने संचार के क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है। आकाशवाणी, दूरदर्शन, दूरभाष (टेलीफोन, मोबाइल फोन) आदि की सहायता से कोई भी समाचार क्षण-भर में विश्व के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचाया जा सकता है। कृत्रिम उपग्रहों ने इस दिशा में और भी चमत्कार कर दिखाया है।
(ग) दैनन्दिन जीवन में-विद्युत् के आविष्कार ने मनुष्य की दैनन्दिन सुख-सुविधाओं को बहुत (UPBoardSolutions.com) बढ़ा दिया है। वह हमारे कपड़े धोती है, उन पर प्रेस करती है, भोजन पकाती है, सर्दियों में गर्म और गर्मियों में शीतल जल उपलब्ध कराती है तथा गर्मी-सर्दी दोनों से समान रूप से हमारी रक्षा करती है।
(घ) स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के क्षेत्र में मानव को भयानक और संक्रामक रोगों से पर्याप्त सीमा तक बचाने का श्रेय विज्ञान को ही है। एक्स-रे, अल्ट्रासाउण्ड टेस्ट, ऐन्जियोग्राफी, कैट स्कैन आदि परीक्षणों के माध्यम से शरीर के अन्दर के रोगों का पता सरलतापूर्वक लगाया जा सकता है। यही नहीं, विज्ञान से नेत्रहीनों को नेत्र, कर्णहीनों को कान और अंगहीनों को अंग देना भी सम्भव हो सका है।
(ङ) औद्योगिक क्षेत्र में भारी मशीनों के निर्माण ने बड़े-बड़े कल-कारखानों को जन्म दिया है, जिससे श्रम, समय और धन की बचत के साथ-साथ प्रचुर मात्रा में उत्पादन सम्भव हुआ है। इससे विशाल जनसमूह को आवश्यक वस्तुएँ सस्ते मूल्य पर उपलब्ध करायी जा सकी हैं।
(च) कृषि के क्षेत्र में-—125 करोड़ से अधिक की जनसंख्या वाला हमारा देश आज यदि कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हो सका है तो यह भी विज्ञान की ही देन है। विज्ञान ने किसान को उत्तम बीज, प्रौढ़ एवं विकसित तकनीक, रासायनिक खादे, कीटनाशक, ट्रैक्टर, ट्यूबवेल और बिजली प्रदान की है। छोटे-बड़े बाँधों का निर्माण कर नहरें निकालना भी विज्ञान से ही सम्भव हुआ है।
(छ) शिक्षा के क्षेत्र में—मुद्रण-यन्त्रों के आविष्कार ने बड़ी संख्या में पुस्तकों को प्रकाशन सम्भव बनाया है। इसके अतिरिक्त समाचार-पत्र, पत्र-पत्रिकाएँ आदि भी मुद्रण-क्षेत्र में हुई क्रान्ति के फलस्वरूप घर-घर पहुँचकर लोगों का ज्ञानवर्द्धन कर रही हैं।
(ज) मनोरंजन के क्षेत्र में चलचित्र, आकाशवाणी, दूरदर्शन आदि के आविष्कार ने मनोरंजन को सस्ता और सुलभ बनाकर मनुष्य को उच्चकोटि का मनोरंजन सुलभ कराया है।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि मानव-जीवन के लिए विज्ञान से बढ़कर दूसरा कोई वरदान नहीं है।

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विज्ञान : अभिशाप के रूप में विज्ञान का एक और पक्ष भी है। विज्ञान एक असीम शक्ति प्रदान करने वाला तटस्थ साधन है। मानव चाहे जैसे इसका इस्तेमाल कर सकता है। सभी जानते हैं कि मनुष्य में दैवी प्रवृत्ति भी है और आसुरी भी। सामान्य रूप से जब मनुष्य की दैवी प्रवृत्ति प्रबल रहती है तो वह मानव-कल्याण के कार्य करता है, परन्तु किसी भी समय मनुष्य की आसुरी प्रवृत्ति प्रबल होते ही कल्याणकारी विज्ञान एकाएक प्रबलतम (UPBoardSolutions.com) विध्वंसक एवं संहारक शक्ति का रूप ग्रहण कर सकता है। गत विश्व युद्ध से लेकर अब तक मानव ने विज्ञान के क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति की है; अतः कहा जा सकता है। कि आज विज्ञान की विध्वंसक शक्ति पहले की अपेक्षा बहुत बढ़ गयी है।

विध्वंसक साधनों के अतिरिक्त अन्य अनेक प्रकार से भी विज्ञान ने मानव का अहित किया है। विज्ञान ने भौतिकवादी प्रवृत्ति को प्रेरणा दी है, जिसके परिणामस्वरूप धर्म एवं अध्यात्म से सम्बन्धित विश्वास थोथे प्रतीत होने लगे हैं। मानव-जीवन के पारस्परिक सम्बन्ध भी कमजोर होने लगे हैं।

आज विज्ञान के ही कारणे मानव-जीवन अत्यधिक खतरों से परिपूर्ण तथा असुरक्षित हो गया है। कम्प्यूटर तथा दूसरी मशीनों ने यदि मानव को सुविधा के साधन उपलब्ध कराये हैं तो साथ-साथ रोजगार के अवसर भी छीन लिये हैं। विद्युत् विज्ञान द्वारा प्रदत्त एक महान् देन है, परन्तु विद्युत् का एक मामूली झटका ही व्यक्ति की इहलीला समाप्त कर सकता है। विज्ञान के दिन-प्रतिदिन होते जा रहे नवीन आविष्कारों के कारण मानव पर्यावरण असन्तुलन के दुश्चक्र में भी फंस चुका है।

सुख-सुविधाओं की अधिकता के कारण मनुष्य आलसी और आरामतलब बनता जा रहा है, जिससे उसकी शारीरिक शक्ति का ह्रास हो रहा है, अनेक नये-नये रोग उत्पन्न हो रहे हैं तथा उसमें सर्दी और गर्मी सहने की क्षमता घट गयी है। चारों ओर का कृत्रिम आडम्बरयुक्त जीवन इस विज्ञान की ही देन है। विज्ञान के इस विनाशकारी रूप को दृष्टि में रखकर महाकवि दिनकर मानव को चेतावनी देते हुए कहते हैं

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सावधान, मनुष्य ! यदि विज्ञान है तलवार ।
तो इसे दे फेंक, तजकर मोह, स्मृति के पार ॥
खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार।
काट लेगा अंग, तीखी है बड़ी यह धार ।

उपसंहार-विज्ञान सचमुच तलवार है, जिससे व्यक्ति आत्मरक्षा भी कर सकता है और अनाड़ीपन में अपने अंग भी काट सकता है। इसमें दोष तलवार का नहीं, उसके प्रयोक्ता का है। विज्ञान ने मानव के सम्मुख असीमित विकास का मार्ग खोल दिया है, जिससे (UPBoardSolutions.com) मनुष्य संसार से बेरोजगारी, भुखमरी, महामारी आदि को समूल नष्ट कर विश्व को अभूतपूर्व सुख-समृद्धि की ओर ले जा सकता है, किन्तु यह तभी सम्भव है, जब मनुष्य में आध्यात्मिक दृष्टि का विकास हो, मानव-कल्याण की सात्विक भावना जागे। अत: स्वयं मानव को ही यह निर्णय करना है कि वह विज्ञान को वरदान रहने दे या अभिशाप बना दे।

48. कम्प्यूटर : आधुनिक यन्त्र मानव

सम्बद्ध शीर्षक

  • सार्वजनिक क्षेत्र में कम्प्यूटर का महत्त्व
  • कम्प्यूटर की उपयोगिता
  • कम्प्यूटर विज्ञान : युग की माँग
  • कम्प्युटर शिक्षा
  • कम्प्यूटर : एक अभिनव क्रान्ति [2011]
  • कम्प्यूटर : आज की आवश्यकता [2011, 12, 14, 15]
  • आधुनिक शिक्षा में कम्प्यूटर की उपयोगिता [2013]

रूपरेखा—

  1. प्रस्तावना : कम्प्यूटर क्या है?,
  2. कम्प्यूटर के उपयोग,
  3. कम्प्यूटर तकनीक से हानियाँ,
  4. कम्प्यूटर और मानव-मस्तिष्क,
  5. उपसंहार।

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प्रस्तावना : कम्प्यूटर क्या है ?–कम्प्यूटर असीमित क्षमताओं वाली वर्तमान युग का क्रान्तिकारी साधन है। यह एक ऐसा यन्त्र-पुरुष है, जिसमें यान्त्रिक मस्तिष्कों का रूपात्मक और समन्वयात्मक योग तथा गुणात्मक घनत्व पाया जाता है। इसके परिणामस्वरूप यह कम-से-कम समय में तीव्र गति से त्रुटिहीन गणनाएँ कर लेता है। आरम्भ में, गणित की जटिल गणनाएँ करने के लिए ही कम्प्यूटर का विकास किया गया था। आधुनिक कम्प्यूटर (UPBoardSolutions.com) के प्रथम सिद्धान्तकार चार्ल्स बैबेज़ (1779-1871 ई०) ने गणित और खगोल-विज्ञान की सूक्ष्म सारणियाँ तैयार करने के लिए ही एक भव्य कम्प्यूटर की योजना तैयार की थी। दूसरे महायुद्ध के दौरान पहली बार बिजली से चलने वाले कम्प्यूटर बने। इनका उपयोग भी गणनाओं के लिए ही हुआ। आज के कम्प्यूटर केवल गणनाएँ करने तक ही सीमित नहीं रह गये हैं वरन् अक्षरों, शब्दों, आकृतियों और कथनों को भी ग्रहण करने अथवा इससे भी अधिक अनेकानेक कार्य करने में समर्थ हैं।

कम्प्यूटर के उपयोग-आज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कम्प्यूटरों का व्यापक उपयोग हो रहा है
(क) प्रकाशन के क्षेत्र में सन् 1971 ई० में माइक्रोप्रॉसेसर का आविष्कार हुआ। इस • आविष्कार ने कम्प्यूटरों को छोटा, सस्ता और कई गुना शक्तिशाली बना दिया। माइक्रोप्रॉसेसर के आविष्कार के बाद कम्प्यूटर का अनेक कार्यों में उपयोग सम्भव हुआ। किसी पुस्तक की 500 पृष्ठों की पाण्डुलिपि का कुछ हजार पुस्तकों के रूप में पाठकों के सम्मुख आना कुछ घण्टों की बात हो गयी है।
(ख) बैंकों में कम्प्यूटर का उपयोग बैंकों में भी किया जाने लगा है। खातों के संचालन और लेनदेन का हिसाब रखने वाले कम्प्यूटर भी बैंकों में स्थापित हो रहे हैं। आज कम्प्यूटर के द्वारा ही 24 घण्टे पैसों के लेन-देन की ए० टी० एम० (Automated Teller Machine) जैसी सेवाएँ सम्भव हो सकी हैं।।
(ग) सूचनाओं के आदान-प्रदान में प्रारम्भ में कम्प्यूटर की गतिविधियाँ वातानुकूलित कक्षों तक ही सीमित थीं, किन्तु अब एक कम्प्यूटर हजारों किलोमीटर दूर के दूसरे कम्प्यूटरों के साथ बातचीत कर सकता है तथा उन्हें सूचनाएँ भेज सकता है। इण्टरनेट जैसी सुविधा से आज देश का प्रत्येक नगर सम्पूर्ण विश्व से जुड़ गया है।
(घ) आरक्षण के क्षेत्र में–कम्प्यूटर नेटवर्क की अनेक व्यवस्थाएँ अब हमारे देश में स्थापित हो गयी हैं। इसके द्वारा अब सभी प्रमुख एयरलाइन्स की हवाई यात्राओं तथा देश के सभी प्रमुख शहरों में रेल-यात्रा के आरक्षण की व्यवस्था भी अस्तित्व में आ गयी है।
(ङ) कम्प्यूटर ग्राफिक्स में कम्प्यूटर केवल अंकों और अक्षरों को ही नहीं, वरन् रेखाओं और आकृतियों को भी सँभाल सकते हैं। कम्प्यूटर ग्राफिक्स की इस व्यवस्था के अनेक उपयोग हैं। भवनों, मोटरगाड़ियों तथा हवाईजहाजों आदि के डिजाइन तैयार करने में कम्प्यूटर ग्राफिक्स का व्यापक उपयोग हो रहा है। वास्तुशिल्पी भी अब अपने डिजाइन कम्प्यूटर स्क्रीन पर तैयार करते हैं।

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(च) कला के क्षेत्र में कम्प्यूटर अब चित्रकार की भूमिका भी निभाने लगे हैं। चित्र तैयार करने के लिए अब रंगों, तूलिकाओं, रंग-पट्टिका और कैनवास की कोई आवश्यकता नहीं रह गयी है। चित्रकार अब कम्प्यूटर के सामने बैठता है और अपने नियोजित प्रोग्राम (UPBoardSolutions.com) की मदद से अपनी इच्छा के अनुसार स्क्रीन पर रंगीन रेखाएँ प्रस्तुत कर देता है।
(छ) संगीत के क्षेत्र में कम्प्यूटर अब सुर सजाने का काम भी करने लगे हैं। पाश्चात्य संगीत के स्वरांकन को कम्प्यूटर स्क्रीन पर प्रस्तुत करने में कोई कठिनाई नहीं होती, परन्तु वीणा जैसे भारतीय वाद्य की स्वरलिपि तैयार करने में कठिनाइयाँ आ रही हैं। लेकिन वह दिन दूर नहीं, जब भारतीय संगीत की स्वर-लहरियों को भी कम्प्यूटर स्क्रीन पर उभर कर प्रस्तुत किया जा सकेगा।
(ज) खगोल-विज्ञान के क्षेत्र में कम्प्यूटरों ने वैज्ञानिक अनुसन्धान के अनेक क्षेत्रों का समूचा ढाँचा ही बदल दिया है। पहले खगोलविद् दूरबीनों पर रात-रात भर आँखें गड़ाकर आकाशीय पिण्डों का अवलोकन करते रहते थे, किन्तु अब किरणों की मात्रा के अनुसार ठीक-ठीक चित्र उतारने वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरण उपलब्ध हो गये हैं।
(झ) चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन भी एक सरल कम्प्यूटर ही है। मतदान के लिए ऐसी वोटिंग मशीनों का उपयोग अब हमारे देश में भी हो रहा है।
(ञ) उद्योग-धन्धों में कम्प्यूटर उद्योग-नियन्त्रण के भी शक्तिशाली साधन हैं। बड़े-बड़े कारखानों के संचालन का काम अब कम्प्यूटर सँभालने लगे हैं। कम्प्यूटरों से जुड़कर रोबोट अनेक किस्म के औद्योगिक उत्पादनों को सँभाल सकते हैं।
(ट) सैनिक कार्यों में आज भी प्रमुख रूप से महायुद्ध की तैयारी के लिए नये-नये शक्तिशाली सुपर कम्प्यूटरों का विकास किया जा रहा है। महाशक्तियों की ‘स्टारवार्स’ की योजना कम्प्यूटरों के नियन्त्रण पर आधारित है।
(ठ) अपराध निवारण में अपराधों के निवारण में भी कम्प्यूटर की अत्यधिक उपयोगिता है। कई देशों में सभी अधिकृत वाहन मालिकों, चालकों, अपराधियों का रिकॉर्ड पुलिस के एक विशाल कम्प्यूटर में संरक्षित होता है। कम्प्यूटर द्वारा क्षणमात्र में अपेक्षित जानकारी उपलब्ध हो जाती है, जो कि अपराधियों को पकड़ने में सहायक सिद्ध होती है। किसी अपराधी का कैसा भी चित्र उपलब्ध होने पर कम्प्यूटर की सहायता से अपराधी के किसी भी उम्र और स्वरूप की तस्वीर प्रस्तुत की जा सकती है।

कम्प्यूटर तकनीक से हानियाँ-जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कम्प्यूटर तकनीक के निरन्तर बढ़ते जा रहे व्यापक उपयोगों ने जहाँ एक ओर इसकी उपयोगिता दर्शायी है, वहीं दूसरी ओर इसके भयावह परिणामों को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। यह स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि कम्प्यूटर हर क्षेत्र में मानव-श्रम को नगण्य बना रहा है, जिससे भारत सदृश जनसंख्या बहुल देशों में बेरोजगारी की समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है। बैंकों आदि में इस व्यवस्था के कुछ (UPBoardSolutions.com) दुष्परिणाम भी सामने आये हैं। दूसरों के खातों के कोड नम्बर जानकर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपयों से बैंकों को ठगना अब एक आम बात हो गयी है।

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कम्प्यूटर और मानव-मस्तिष्क-कम्प्यूटर के सन्दर्भ में ढेर सारी भ्रान्तियाँ जनसामान्य के मस्तिष्क में छायी हुई हैं। कुछ लोग इसे सुपर पावर समझ बैठे हैं, जिसमें सब कुछ करने की क्षमता है; किन्तु उनकी धारणाएँ पूर्णरूपेण निराधार हैं। वास्तविकता तो यह है कि कम्प्यूटर एकत्रित आँकड़ों को इलेक्ट्रॉनिक विश्लेषण प्रस्तुत करने वाली एक मशीन-मात्र है। यह केवल वही काम कर सकता है जिसके लिए इसे निर्देशित किया गया हो। यह कोई निर्णय स्वयं नहीं ले सकता और न ही कोई नवीन बात सोच सकता है। यह मानवीय संवेदनाओं, अभिरुचियों, भावनाओं और चित्त से रहित, मात्र एक यन्त्र-पुरुष है। जिसकी बुद्धि-लब्धि (Intelligence Quotient : I.O.) मात्र एक मक्खी के बराबर होती है, यानि बुद्धिमत्ता में कम्प्यूटर मनुष्य से कई हजार गुना पीछे है।

उपसंहार-निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी के भी दो पक्ष हैं। इसको सोच-समझकर उपयोग किया जाए तो यह वरदान सिद्ध हो सकता है, अन्यथा यह मानव-जाति की तबाही का साधन भी बन सकता है। इसलिए कम्प्यूटर की क्षमताओं को ठीक से समझना आवश्यक है। इलेक्ट्रॉनिकी शिक्षा एवं साधन; कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी की उपेक्षा नहीं कर सकते। लेकिन इनके लिए यदि बुनियादी शिक्षा की समुचित व्यवस्था की जाती, देश में टेक्नोलॉजी के साधन जुटाये जाते और पाश्चात्य संस्कृति में विकसित हुई इस टेक्नोलॉजी को देश की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर धीरे-धीरे अपनाया जाता तो अच्छा होता।

49. भारत की वैज्ञानिक प्रगति [2010]

सम्बद्ध शीर्षक

  • भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियाँ
  • भारतीय विज्ञान की देन

रूपरेखा–

  1. प्रस्तावना,
  2. स्वतन्त्रता पूर्व और पश्चात् की स्थिति,
  3. विभिन्न क्षेत्रों में हुई वैज्ञानिक प्रगति,
  4. उपसंहार।

प्रस्तावना-सामान्य मनुष्य की मान्यता है कि सृष्टि का रचयिता सर्वशक्तिमान ईश्वर है, जो इस संसार का निर्माता, पालनकर्ता और संहारकर्ता है। आज विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि वह ईश्वर के प्रतिरूप ब्रह्मा (निर्माता), विष्णु (पालनकर्ता) और महेश (संहारकर्ता) को (UPBoardSolutions.com) चुनौती देता प्रतीत हो रहा है। कृत्रिम गर्भाधान से परखनली शिशु उत्पन्न करके उसने ब्रह्मा की सत्ता को ललकारा है, बड़े-बड़े उद्योगों की । स्थापना कर और लाखों-करोड़ों लोगों को रोजगार देकर उसने विष्णु को चुनौती दी है तथा सर्व-विनाश के लिए परमाणु बम का निर्माण कर उसने शिव को भी चकित कर दिया है।

विज्ञान का अर्थ है—किसी भी विषय में विशेष ज्ञान। विज्ञान मानव के लिए कामधेनु की तरह है जो उसकी सभी कामनाओं की पूर्ति करता है तथा उसकी कल्पनाओं को साकार रूप देता है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञान प्रवेश कर चुका है चाहे वह कला का क्षेत्र हो या संगीत और राजनीति का। विज्ञान ने समस्त पृथ्वी और अन्तरिक्ष को विष्णु के वामनावतार की भाँति तीन डगों में नाप डाला है।

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स्वतन्त्रता पूर्व और पश्चात् की स्थिति–बीसवीं शताब्दी को विज्ञान के क्षेत्र में अनेक प्रकार की उपलब्धियाँ हासिल करने के कारण विज्ञान का युग कहा गया है। आज संसार ने ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में बहुत अधिक प्रगति कर ली है। भारत भी इस क्षेत्र में किसी अन्य वैज्ञानिक दृष्टि से उन्नत कहे जाने वाले देशों से यदि आगे नहीं, तो बहुत पीछे या कम भी नहीं है। 15 अगस्त, सन् 1947 में जब अंग्रेजों की गुलामी का जुआ उतारकर भारत स्वतन्त्र हुआ था, तब तक कहा जा सकता है कि भारत वैज्ञानिक प्रगति के नाम पर शून्य से अधिक कुछ भी नहीं था। सूई तक का आयात इंग्लैण्ड आदि देशों से करना पड़ता था। लेकिन आज सूई से लेकर हवाई जहाज, जलयान, सुपर कम्प्यूटर, उपग्रह तक अपनी तकनीक और बहुत कुछ अपने साधनों से इस देश में ही बनने लगे हैं।

विभिन्न क्षेत्रों में हुई कैज्ञाभिक प्रगति-डाक-तार के उपकरण, तरह-तरह के घरेलू इलेक्ट्रॉनिक सामान, रेडियो-टेलीविजन, कारें, मोटर-गाड़ियाँ, टूक, रेलवे इंजन और यात्री तथा अन्य प्रकार के डिब्बे, कल-कारखानों में काम आने वाली छोटी-बड़ी मशीनें, कार्यालयों में काम आने वाले सभी प्रकार के सामान, रबर-प्लास्टिक के सभी प्रकार के उन्नत उपकरण, कृषि कार्य करने वाले ट्रैक्टर,.पम्पिंग सेट तथा अन्य कटाई-धुनाई-पिसाई की मशीनें आदि सभी प्रकार के आधुनिक विज्ञान की देन माने जाने वाले साधन आज भारत में ही बनने लगे हैं। कम्प्यूटर, छपाई की नवीनतम तकनीक की मशीनें आदि भी आज भारत बनाने लगा है। इतना ही नहीं, आज भारत में अणु शक्ति से चालित धमन भट्ठियाँ, बिजलीघर, कल-कारखाने आदि भी चलने लगे हैं तथा अणु-शक्ति का उपयोग अनेक शान्तिपूर्ण कार्यों के लिए होने लगा है।

आज भारतीय वैज्ञानिक अपने उपग्रह तक अन्तरिक्ष में उड़ाने तथा कक्षा में स्थापित करने में सफल हो चुके हैं। आवश्यकता होने पर संघातक अणु, कोबाल्ट और हाइड्रोजन जैसे बम बनाने की दक्षता भी भारतीय वैज्ञानिकों ने हासिल कर ली है। विज्ञान-साधित उपकरणों, शस्त्रास्त्रों (UPBoardSolutions.com) का आज सैनिक दृष्टि से बहुत अधिक महत्त्व बढ़ गया है। धरती से धरती तक, धरती से आकाश तक मार कर सकने वाली कई तरह की मिसाइलें भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा बनायी गयी हैं, जो आज भारतीय सेना के पास हैं। युद्धक टैंक, विमान, दूर-दूर तक मार करने वाली तोपें आदि भारत में ही बन रही हैं।

विज्ञान ने भारतीयों के रहन-सहन और चिन्तन-शक्ति को पूर्णरूपेण बदल डाला है। भारत हवाई जहाज, समुद्र के वक्षस्थल को चीरने वाले जहाज, आकाश का सीना चीर कर निकल जाने वाले रॉकेट, कृत्रिम उपग्रह आदि के निर्माण में अपना अग्रणी स्थान रखता है। आधुनिक विज्ञान की सहायता से आज भारत ने चिकित्सा के क्षेत्र में बड़ी प्रगति की है। कठिन-से-कठिन माने जाने वाले ऑपरेशन आज भारतीय शल्य-चिकित्सकों के द्वारा सफलतापूर्वक सम्पादित किये जा रहे हैं। सभी प्रकार की प्राणरक्षक ओषधियों का निर्माण भी यहाँ होने लगा है।

ऊर्जा के क्षेत्र में भी भारतीय वैज्ञानिकों की प्रगति सराहनीय है। इन्होंने नदियों की मदमस्त चाल को बाँधकर उनके जल का उपयोग सिंचाई और विद्युत निर्माण में किया। सौर ऊर्जा, पवनचक्कियाँ, ताप बिजलीघर, परमाणु बिजलीघर आदि ऊर्जा के क्षेत्र में हमारी प्रगति को दर्शाते हैं। महानगरों में गगनचुम्बी इमारतों का निर्माण, सड़कें, फ्लाईओवर, सब-वे आदि हमारी अभियान्त्रिकीय प्रगति को दर्शाते हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के भीतर से जल, अनेक खनिज और समुद्र को चीर कर तेल के कुएँ भी खोज निकाले हैं।

कुछ-एक अपवादों को छोड़कर, भारत में अधिकांश कार्य हाथों के स्थान पर मशीनों से हो सकने सम्भव हो गये हैं। मानव का कार्य अब इतना ही रह गया है कि वह इन मशीनों पर नियन्त्रण रखे। विज्ञान ने मानव के दैनिक जीवन के लिए भी अनेक क्रान्तिकारी सुविधाएँ जुटायी हैं। डी० वी० डी० प्लेयर, दूरभाष, कपड़े धोने की मशीन, धूल-मिट्टी हटाने की मशीन, एयरकण्डीशनर आदि आरामदायक मशीनें भारत में ही बनने लगी हैं। घरों में लकड़ी-कोयले से जलने वाली अँगीठी का स्थान कुकिंग गैस ने और गाँवों में उपलों से जलने वाले चूल्हों का स्थान गोबर गैस संयन्त्र ने ले लिया है। कम्प्यूटर का प्रवेश और उसका विस्तार हमारी तकनीकी प्रगति की ओर इंगित करते हैं।

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उपसंहार—घर-बाहर, दफ्तर-दुकान, शिक्षा-व्यवसाय, आज कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं जहाँ विज्ञान का प्रवेश न हुआ हो। भारत का होनहार वैज्ञानिक हर दिशा, स्थल और क्षेत्र में सक्रिय रहकर अपनी निर्माण एवं नव-नव, अनुसन्धान-प्रतिभा का परिचय दे रहा है। इतना ही नहीं भारतीय वैज्ञानिकों ने विदेशों में भी अपनी प्रतिभा की धूम मचा रखी है। आज भारत में जो कृषि या हरित क्रान्ति, श्वेत क्रान्ति आदि सम्भव हो पायी है, उन सबका कारण विज्ञान और उसके (UPBoardSolutions.com) द्वारा प्रदत्तं नये-नये उपकरण तथा ढंग ही हैं। विज्ञान को कार्यरत करने वाले कोई विदेशी नहीं, वरन् भारतीय वैज्ञानिक ही हैं। उन्हीं की लगन, परिश्रम और कार्य-साधना से हमारा देश भारत आज इतनी अधिक वैज्ञानिक प्रगति कर सका है।

50. दूरसंचार के साधन (2016)

रूपरेखा–

  1. प्रस्तावना,
  2. दूरसंचार के साधन,
  3. दूरसंचार का क्षेत्र,
  4. उपसंहार।

प्रस्तावना–आधुनिक युग में विज्ञान के नवीन आविष्कारों ने विश्व में क्रान्ति सी ला दी है। वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से एक छोर पर मौजूद व्यक्ति दुनिया के दूसरे छोर से बातें करने में सक्षम है। दूरसंचार के क्षेत्र में कम्प्यूटर नेटवर्क के माध्यम से देश के ही नहीं, बल्कि विश्व के भी लगभग सभी मुख्य नगर एक-दूसरे से जुड़ चुके हैं। दूरसंचार से लोगों को देश की हर गतिविधि सामाजिक, राजनीति, आर्थिक एवं सांस्कृतिक की जानकारी मिलती है। हर परिस्थितियों में सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों से जनसाधारण को अवगत कराने की जिम्मेदारी भी दूरसंचार को ही वहन करनी पड़ती है।।

दूरसंचार के साधन-दूरसंचार के साधनों के माध्यम से ही जनता की समस्याओं एवं सूचनाओं को ” जन-जन तक पहुँचाया जाता है। टेलीफोन, रेडियो, टेलीविजन, इत्यादि दूरसंचार के ऐसे ही साधन हैं। टेलीफोन ऐसा माध्यम है, जिसकी सहायता से एक बार में कुछ ही व्यक्तियों से संचार किया जा सकता है, किन्तु दूरसंचार के कुछ साधने ऐसे भी हैं, जिनकी सहायता से एक साथ कई व्यक्तियों से संचार किया जा सकता है। जिन साधनों का प्रयोग कर एक बड़ी जनसंख्या तक विचारों, भावनाओं व सूचनाओं को सम्प्रेषित किया जाता है, उन्हें हम जनसंचार माध्यम भी कहते हैं।

जनसंचार माध्यमों को कुल तीन वर्गों-मुद्रण माध्यम, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम एवं नव-इलेक्ट्रॉनिक माध्यम; में विभजित किया जा सकता है। मुद्रण माध्यम के अन्तर्गत समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, पैम्फलेट, पोस्टर, जर्नल, पुस्तकें इत्यादि आती हैं। इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के अन्तर्गत रेडियो, टेलीविजन एवं फिल्म आती हैं और इन्टरनेट नव-इलेक्ट्रॉनिक माध्यम है। आइए इनके प्रमुख साधनों के बारे में जानते हैं।

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रेडियो-आधुनिक काल में रेडियो दूरसंचार का एक प्रमुख साधन है, खासकर दूरदराज के उन क्षेत्रों में जहाँ अभी तक बिजली नहीं पहुंच पाई है या जिन क्षेत्रों के लोग आर्थिक रूप से पिछड़े हैं। भारत में सन् 1923 में रेडियो के प्रसारण के प्रारम्भिक प्रयास और (UPBoardSolutions.com) 1927 ई० में प्रायोगिक तौर पर इसकी शुरुआत के बाद से अब तक इस क्षेत्र में अत्यधिक प्रगति हासिल की जा चुकी है और इसका सर्वोत्तम उदाहरण एफ.एम. रेडियो प्रसारण है। एफ.एम. फ्रीक्वेंसी मॉड्यूल का संक्षिप्त रूप है। यह एक ऐसा रेडियो प्रसारण है जिसमें आवृत्ति को प्रसारण ध्वनि के अनुसार मॉड्यूल किया जाता है।

टेलीविजन-टेलीविजन का आविष्कार सन् 1925 में जे०एल० बेयर्ड ने किया था। आजकल यह दूरसंचार का प्रमुख साधन बन चुका है। पहले इस पर प्रसारित धारावाहिकों एवं सिनेमा के कारण यह लोकप्रिय था। बाद में कई न्यूज चैनलों की स्थापना के साथ ही यह दूरसंचार का एक ऐसा सशक्त माध्यम बन गया, जिसकी पहुँच करोड़ों लोगों तक हो गई। भारत में इसकी शुरूआत सन् 1959 में हुई थी। वर्तमान में तीन सौ से अधिक टेलीविजन चैनल चौबीसों घण्टे विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम प्रसारित कर दर्शकों का मनोरंजन कर रहे हैं।

कम्प्यूटर एवं इन्टरनेट–इन्टरनेट दूरसंचार का एक नवीन इलेक्ट्रॉनिक माध्यम है। इसका आविष्कार 1969 में हुआ था। इसके बाद से अब तक इसमें काफी विकास हो चुका है। इन्टरनेट वह जिन्न है। जो व्यक्ति के सभी आदेशों का पालन करने को तैयार रहता है। विदेश जाने के लिए हवाई जहाज का टिकट बुक कराना हो, किसी पर्यटन स्थल पर स्थित होटल का कोई कमरा बुक कराना हो, किसी किताब का ऑर्डर देना हो, अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए विज्ञापन देना हो, अपने मित्रों से ऑनलाइन चैटिंग करनी हो, डॉक्टरों से स्वास्थ्य सम्बन्धी सलाह लेनी हो या वकीलों से कानूनी सलाह लेनी हो; इन्टरनेट हर मर्ज की दवा है। इन्टरनेट ने सरकार, व्यापार और शिक्षा को नए अवसर दिए हैं। सरकार अपने प्रशासनिक कार्यों के संचालन, विभिन्न कर प्रणाली, प्रबन्धन और सूचनाओं के प्रसारण जैसे अनेकानेक कार्यों के लिए इन्टरनेट का उपयोग करती हैं। कुछ वर्ष पहले तक इन्टरनेट व्यापार और वाणिज्य में प्रभावी नहीं था, लेकिन आज सभी तरह के विपणन और व्यापारिक लेन-देन इसके माध्यम से सम्भव हैं।

दूरसंचार का कोर्यक्षेत्र

प्राचीनकाल में सन्देशों के आदान-प्रदान में बहुत समय लग जाया करता था, परन्तु अब समय की दूरी घट गई है। अब टेलीफोन, मोबाइल फोन, टेलीग्राम, प्रेजर, तथा फैक्स के द्वारा क्षणभर में सन्देश और विचारों का आदान-प्रदान किया जा सकता है। अब तक समाचार को टेलीप्रिंटर, रेडियो, अथवा टेलीविजन द्वारा कुछ ही क्षणों में विश्वभर में प्रेषित किया जा सकता है।

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उपसंहार-दूरसंचार के माध्यम से हर क्षेत्र सुगम हो चुका है। इसके द्वारा अपने विचारों को कुछ ही क्षणों में (UPBoardSolutions.com) विश्वभर में कहीं भी प्रेषित कर सकते हैं। आज इसे वैज्ञानिक तकनीक ने और भी सुगम और आसान बना दिया है। दूरसंचार या मीडिया के माध्यमों के द्वारा ताजातरीन खबरें और मौसम सम्बन्धी जानकारियाँ हमें आसानी से प्राप्त हो रही हैं।

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UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 5 विश्वकविः रवीन्द्रः (गद्य – भारती)

UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 5 विश्वकविः रवीन्द्रः (गद्य – भारती)

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परिचय

रवीन्द्रनाथ ठाकुर की मातृभाषा बांग्ला थी। ये अनेक वर्षों तक इंग्लैण्ड में रहे थे। इसलिए इन पर वहाँ की भाषा तथा संस्कृति का भी पर्याप्त प्रभाव पड़ा था। इन्होंने बांग्ला और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में साहित्य-रचना की है। ये नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रथम भारतीय थे। इनकी रचना ‘गीताञ्जलि’ पर इनको यह पुरस्कार प्राप्त हुआ था। ‘गीजाञ्जलि’ के पश्चात् इनकी दूसरी कृति या निर्माण ‘विश्वभारती है। इसमें प्राचीन भारतीय पद्धति (UPBoardSolutions.com) अर्थात् आश्रम पद्धति से शिक्षा दी जाती है। इन्होंने भारतीय और पाश्चात्य संगीत का समन्वय करके संगीत की एक नवीन शैली को जन्म दिया, जिसे ‘रवीन्द्र संगीत’ कहा जाता है। प्रस्तुत पाठ में रवीन्द्रनाथ जी के जीवन-परिचय के साथ-साथ इनकी साहित्यिक एवं सामाजिक उपलब्धियों पर भी प्रकाश डाला गया है।

पाठ-सारांश [2006, 07,08, 11, 12, 13, 15]

प्रसिद्ध महाकवि श्री रवीन्द्रनाथ का बांग्ला साहित्य में वही स्थान है जो अंग्रेजी-साहित्य में शेक्सपीयर का, संस्कृत-साहित्य में कविकुलगुरु कालिदास का और हिन्दी-साहित्य में तुलसीदास का। इनका नाम आधुनिक भारतीय कलाकारों में भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। ये केवल आध्यात्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में ही नहीं, वरन् रचनात्मक साहित्यकार के रूप में भी जाने जाते हैं।

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इन्होंने सांस्कृतिक क्षेत्र में संगीत और नृत्य की नवीन रवीन्द्र-संगीत-शैली प्रारम्भ की। शिक्षाविद् के रूप में इनके नवीन प्रयोगात्मक विचारों को प्रतीक ‘विश्वभारती है, जिसमें आश्रम शैली का नवीन शैली के साथ समन्वय है। ये दीन और दलित वर्ग की हीन दशा के महान् सुधारक थे।

वैभव में जन्म रवीन्द्रनाथ का जन्म कलकत्ती नगर में 7 मई, सन् 1861 ईस्वी को एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री देवेन्द्रनाथ एवं माता का नाम श्रीमती शारदा देवी था। इनके पास विपुल अचल सम्पत्ति थी। इनका प्रारम्भिक जीवन नौकर-चाकरों की देख-रेख में बीता। खेल और स्वच्छन्द विहार का समय न मिलने से इनका मन उदास रहता था।

प्रकृति-प्रेम इनके भवन के पीछे एक सुन्दर सरोवर था। उसके दक्षिणी किनारे पर नारियल के पेड़ और पूर्वी तट पर एक बड़ा वट वृक्ष था। रवीन्द्र अपने भवन की खिड़की में बैठकर इस दृश्य को देखकर प्रसन्न होते थे। वे सरोवर में स्नान करने के लिए आने वालों की चेष्टाओं और वेशभूषा को देखते रहते थे। शाम के समय सरोवर के किनारे बैठे बगुलों, हंसों और जलमुर्गों के स्वर को बड़े प्रेम से सुनते थे।

शिक्षा रवीन्द्र की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। इन्होंने घर पर ही बांग्ला के साथ गणित, विज्ञान और संस्कृत का अध्ययन किया। इसके बाद इन्होंने कलकत्ता के ‘ओरियण्टले सेमिनार स्कूल’ और ‘नॉर्मल स्कूल में प्रवेश लिया, लेकिन वहाँ अध्यापकों के स्वेच्छाचरण और सहपाठियों की हीन मनोवृत्तियों तथा अप्रिय स्वभाव को देखकर इनका मन वहाँ नहीं लगा। सन् 1873 ई० में पिता देवेन्द्रनाथ इन्हें अपने साथ हिमालय पर ले गये। वहाँ हिमाच्छादित पर्वत-श्रेणियों और सामने (UPBoardSolutions.com) हरे-भरे खेतों को देखकर इनका मन प्रसन्न हो गया। पिता देवेन्द्रनाथ इन्हें प्रतिदिन नवीन शैली में पढ़ाते थे। कुछ समय बाद हिमालय से लौटकर इन्होंने विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की।

सत्रह वर्ष की आयु में रवीन्द्र अपने भाई सत्येन्द्रनाथ के साथ कानून की शिक्षा प्राप्त करने के लिए लन्दन गये, परन्तु वहाँ वे बैरिस्टर की उपाधि न प्राप्त कर सके और दो वर्ष बाद ही कलकत्ता लौट आये।

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साहित्यिक प्रतिभा के धनी रवीन्द्रनाथ में साहित्य-रचना की स्वाभाविक प्रतिभा थी। उनके परिवार में घर पर प्रतिदिन गोष्ठियाँ, चित्रकला की प्रदर्शनी, नाटक-अभिनय और देश-सेवा के कार्य होते रहते थे। इन्होंने अनेक कथाएँ और निबन्ध लिखकर उनको ‘भारती’, ‘साधना’, ‘तत्त्वबोधिनी’ आदि पारिवारिक पत्रिकाओं में प्रकाशित कराया।

रचनाएँ इन्होंने शैशव संगीत, प्रभात संगीत, सान्ध्य संगीत, नाटकों में रुद्रचण्ड, वाल्मीकि प्रतिभा (गीतिनाट्य), विसर्जन, राजर्षि, चोखेरबाली, चित्रांगदा, कौड़ी ओकमल, गीताञ्जलि आदि अनेक रचनाएँ लिखीं। इनकी प्रतिभा कथा, कविता, नाटक, उपन्यास, निबन्ध आदि में समान रूप से उत्कृष्ट थी। गीताञ्जलि पर इन्हें साहित्य का ‘नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

महात्मा गाँधी जी के प्रेरक गुरु सन् 1932 ई० में गाँधी जी पूना की जेल में थे। अंग्रेजों की हिन्दू-जाति के विभाजन की नीति के विरुद्ध वे जेल में ही आमरण अनशन करना चाहते थे। उन्होंने इसके लिए रवीन्द्र जी से ही अनुमति माँगी और उनको समर्थन प्राप्त करके आमरण अनशन किया। रवीन्द्रनाथ (UPBoardSolutions.com) का जीवन उनके काव्य के समान मनोहारी और लोक-कल्याणकारी था। उनकी मृत्यु 7 अगस्त, 1941 ई० को हो गयी थी, लेकिन उनकी वाणी आज भी काव्य रूप में प्रवाहित है।

गद्यांशों का ससन्दर्भ अनुवाद

(1)
आङ्ग्लवाङ्मये काव्यधनः शेक्सपियर इव, संस्कृतसाहित्ये कविकुलगुरुः कालिदास इव, हिन्दीसाहित्ये महाकवि तुलसीदास इव, बङ्गसाहित्ये कवीन्द्रो रवीन्द्रः केनाविदितः स्यात्। आधुनिक भारतीयशिल्पिषु रवीन्द्रस्य स्थानं महत्त्वपूर्णमास्ते इति सर्वैः ज्ञायत एव। तस्य बहूनि योगदानानि पार्थक्येन वैशिष्ट्यं लभन्ते। न केवलमाध्यात्मिकसांस्कृतिकक्षेत्रेषु तस्य योगदान महत्त्वपूर्णमपितु रचनात्मकसाहित्यकारतयापि तस्य नाम लोकेषु सुविदितमेव सर्वैः।।

शब्दार्थ वाङ्मये = साहित्य में। काव्यधनः = काव्य के धनी। कवीन्द्रः = कवियों में श्रेष्ठ। केनाविदितः = किसके द्वारा विदित नहीं हैं, अर्थात् सभी जानते हैं। आस्ते = है। पार्थक्येन = अलग से। लोकेषु = लोकों में। सुविदितमेव = भली प्रकार ज्ञात है।

सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के गद्य-खण्ड ‘गद्य-भारती’ में संकलित ‘विश्वकविः रवीन्द्रः’ शीर्षक पाठ से उधृत है।

[ संकेत इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में कवीन्द्र रवीन्द्र के महत्त्वपूर्ण योगदानों का उल्लेख किया गया है।

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अनुवाद अंग्रेजी-साहित्य में काव्य के धनी शेक्सपियर के समान, संस्कृत-साहित्य में कविकुलगुरु कालिदास के समान, हिन्दी-साहित्य में महाकवि तुलसीदास के समान बांग्ला-साहित्य में कवीन्द्र रवीन्द्र किससे अपरिचित हैं अर्थात् सभी लोगों ने उनका नाम सुना है। आधुनिक (UPBoardSolutions.com) भारतीय कलाकारों में रवीन्द्र का स्थान महत्त्वपूर्ण है, यह सभी जानते हैं। उनके बहुत-से योगदान अलग से विशेषता प्राप्त करते हैं। केवल आध्यात्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में ही उनका योगदान महत्त्वपूर्ण नहीं है, अपितु रचनात्मक साहित्यकार के रूप में भी उनका नाम संसार में सबको विदित ही है।

(2)
सांस्कृतिकक्षेत्रे सङ्गीतविधासु नृत्यविधासु च सः नूतनां शैली प्राकटयत्। सा शैली ‘रवीन्द्र सङ्गीत’ नाम्ना ख्यातिं लभते। एवं नृत्यविधासु परम्परागतशैलीमनुसरताऽनेन शिल्पिना नवीना नृत्यशैली आविष्कृता। अन्यक्षेत्रेष्वपि शिक्षाविद्रूपेण तेन नवीनानां विचाराणां सूत्रपातो विहितः। तेषां प्रयोगात्मकविचाराणां पुजीभूतः निरुपमः प्रासादः ‘विश्वभारती’ रूपेण सुसज्जितशिरस्कः राजते। यत्र आश्रमशैल्याः नवीनशैल्या साकं समन्वयो वर्तते। दीनानां दलितवर्गाणां दशासमुद्धर्तृरूपेणाऽसौ अस्माकं भारतीयानां पुरः प्रस्तुतोऽभवत्।

शब्दार्थ सांस्कृतिकक्षेत्रे = संस्कृति से सम्बद्ध क्षेत्र में विधासु = विधाओं में, प्रकारों में। प्राकटयत् = प्रकट की। ख्याति = प्रसिद्धि को। अनुसरता = अनुसरण करते हुए। आविष्कृता = खोज की। शिक्षाविद्रूपेण = शिक्षाशास्त्र के ज्ञाता के रूप में। पुञ्जीभूतः = एकत्र, समूह बना हुआ। प्रासादः = महला सुसज्जितशिरस्कः = भली-भाँति सजे हुए सिर वाला। साकं = हाथा समन्वयः = ताल-मेल। समुद्धर्तृरूपेण असौ = उद्धार करने वाले के रूप में यह पुरः = सामने।

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प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश-द्वय में रवीन्द्र जी के सांस्कृतिक और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान का उल्लेख किया गया है।

अनुवाद सांस्कृतिक क्षेत्र में संगीत-विधा और नृत्य-विधाओं में उन्होंने नवीन शैली प्रकट की। वह शैली ‘रवीन्द्र-संगीत’ के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है। इस प्रकार नृत्य-विधाओं में परम्परागत शैली का अनुसरण करते हुए इस कलाकार ने नवीन नृत्य शैली का आविष्कार किया। दूसरे क्षेत्रों में भी शिक्षाविद् के रूप में नवीन विचारों का सूत्रपात किया। उनके प्रयोगात्मक विचारों का एकत्रीभूत स्वरूप अनुपम भवन ‘विश्वभारती के रूप में सजे हुए सिर वाला होकर सुशोभित है, जहाँ पर आश्रम शैली का नवीन शैली के साथ समन्वय है। दीनों और दलित वर्गों की दशा के सुधारक के रूप में वे हम भारतीयों के सामने प्रस्तुत थे।

(3)
रवीन्द्रनाथस्य जन्म कलिकातानगरे एकषष्ट्यधिकाष्टादशशततमे खीष्टाब्दे मईमासस्य सप्तमे दिवसे (7 मई, 1861) अभवत्। अस्य जनकः देवेन्द्रनाथः, जननी शारदा देवी चास्ताम्। रवीन्द्रस्य जन्म एकस्मिन् सम्भ्रान्ते समृद्धे ब्राह्मणकुले जातम्। यस्य सविधे अचला विशाला सम्पत्तिरासीत्। अतो भृत्यबहुलं भृत्यैः परिपुष्टं संरक्षितं जीवनं बन्धनपूर्णमन्वभवत्। अतः स्वच्छन्दविचरणाय, क्रीडनाय सुलभोऽवकाशः नासीत्तेन मनः खिन्नमेवास्त।

रवीन्द्रनाथस्य जन्म ………………………………………………….. बन्धनपूर्णमन्वभवत्।।

शब्दार्थ एकषष्ट्यधिकोष्टादशशततमे = अठारह सौ इकसठ में। ख्रीष्टाब्दे = ईस्वी में। आस्ताम् = थे। सम्भ्रान्ते = सम्भ्रान्त। धनिके = धनी। सविधे = पास में। अचला = जो न चल सके। भृत्यबहुलं = नौकरों की अधिकता वाले। परिपुष्टं = सभी प्रकार से पुष्ट हुए। (UPBoardSolutions.com) बन्धनपूर्णमन्वभवत् = बन्धनपूर्ण अनुभव हुआ। नासीत्तेन = नहीं था, इस कारण से। खिन्नमेवास्त = दुःखी ही था।

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प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में रवीन्द्र के वैभवसम्पन्न प्रारम्भिक जीवन का वर्णन किया गया है।

अनुवाद रवीन्द्रनाथ का जन्म कलकत्ता नगर में सन् 1861 ईस्वी में मई मास की 7 तारीख को हुआ था। इनके पिता देवेन्द्रनाथ और माता शारदा देवी थीं। रवीन्द्र का जन्म एक सम्भ्रान्त और समृद्ध ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पास विशाल अचल सम्पत्ति थी; अतः उन्होंने नौकरों की अधिकता से पूर्ण, सेवकों से पुष्टे किये गये, देखभाल किये गये जीवन को बन्धनपूर्ण अनुभव किया। इसलिए स्वच्छन्द विचरण के लिए, खेलने के लिए उनके पास इच्छित समय नहीं था, इस कारण से उनका मन दुःखी रहता था। (4) वैभवशालिभवनस्य पृष्ठभागे एकं कमनीयं सरः आसीत्। यस्य दक्षिणतटे नारिकेलतरूणां पङ्क्ति राजते स्म। पूर्वस्मिन् तटे जटिलस्तपस्वी इव महान् जीर्णः पुरातनः एकः वटवृक्षोऽनेकशाखासम्पन्नोऽन्तरिक्षं परिमातुमिव समुद्यतः आसीत्।। भवनस्य वातायने समुपविष्टः बालकः दृश्यमिदं दशैं दशैं परां मुदमलभत। अस्मिन्नेव सरसि तत्रत्याः निवासिनः यथासमयं स्नातुमागत्य स्नानञ्च कृत्वा यान्ति स्म। तेषां परिधानानि विविधाः क्रियाश्च दृष्ट्वा बालः किञ्चित्कालं प्रसन्नः अजायत। मध्याह्वात् पश्चात् सरोवरेः शून्यतां भजति स्म। सायं पुनः बकाः हंसाः जलकृकवाकवः विहंगाः कोलहलं कुर्वाणाः स्थानानि लभन्ते स्म। तस्मिन् काले इदमेव कम्न सरः बालकस्य मनोरञ्जनमकरोत् । [2015]

वैभवशालिभवनस्य ………………………………………………….. समुद्यतः आसीत् ।।
भवनस्य वातायने ………………………………………………….. शून्यतां भजति स्म
भवनस्य वातायने ………………………………………………….. मनोरञ्जनमकरोत् । [2012]

शब्दार्थ वैभवशालिभवनस्य = ऐश्वर्य सामग्री से परिपूर्ण भवन के पृष्ठभागे = पिछले भाग में। कमनीयम् = सुन्दर। राजते स्म = सुशोभित थी। जटिलस्तपस्वी = जटाधारी तपस्वी। जीर्णः = पुराना। वटवृक्षः = बरगद का पेड़। परिमातुम् = मापने के लिए। समुद्यतः = तत्पर। वातायने = खिड़की में। समुपविष्टः = बैठा हुआ। परां मुदम् = अत्यन्त प्रसन्नता को। स्नातुं आगत्य = नहाने के लिए आकर। कृत्वा = करके। परिधानानि = वस्त्र। दृष्ट्वा = देखकर। शून्यतां भजति स्म = सूना हो जाता था। जलकृकवाकवः = जल के मुर्गे। कम्रम् =सुन्दर।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में रवीन्द्र के प्रकृति-प्रेम का मनोहारी वर्णन किया गया है।

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अनुवाद वैभवपूर्ण भवन के पिछले भाग में एक सुन्दर तालाब था। जिसके दक्षिण किनारे पर नारियल के वृक्षों की पंक्ति सुशोभित थी। पूर्वी किनारे पर जटाधारी तपस्वी के समान बड़ा, बहुत पुराना एक वट का वृक्ष था। अनेक शाखाओं से सम्पन्न वह (वृक्ष) मानो आकाश को मापने के लिए तैयार था। भवन की खिड़की में बैठा हुआ बालक (रवीन्द्र) इस दृश्य को देख-देखकर अत्यन्त प्रसन्नता प्राप्त करता था। इसी सरोवर में वहाँ के निवासी समयानुसार स्नान के लिए आते और स्नान करके जाते थे। उनके वस्त्रों और विविध क्रियाओं को देखकर बालक कुछ समय के लिए प्रसन्न हो जाता था। दोपहर के बाद सरोवर निर्जन (जन-शून्य) हो जाता था। शाम को फिर बगुले, हंस, जलमुर्गे, पक्षी कोलाहल करते हुए (अपना-अपना) स्थान प्राप्त कर लेते थे। उस समय यही सुन्दर सरोवर बालक (रवीन्द्र) का मनोरंजन करता था।

(5)
शिक्षा-रवीन्द्रस्य प्राथमिकी शिक्षा गृहे एव जाता। शिक्षणं बङ्गभाषायं प्रारभत। प्रारम्भिकं विज्ञानं, संस्कृतं, गणितमिति त्रयो पाठ्यविषयाः अभूवन्। प्रारम्भिकगृहशिक्षायां समाप्तायां बालकः उत्तरकलिकातानगरस्य ओरियण्टल सेमिनार विद्यालये प्रवेशमलभत्। तदनन्तरं नार्मलविद्यालयं गतवान् परं कुत्रापि मनो न रमते स्म। सर्वत्र अध्यापकानां स्वेच्छाचरणं सहपाठिनां तुच्छारुचीः अप्रियान् स्वभावांश्च विलोक्य मनो न रेमे। अतः शून्यायां घटिकायां मध्यावकाशेऽपि च ऐकान्तिकं जीवनं बालकाय रोचते स्म। बालकस्य मनः विद्यालयेषु न रमते इति विचिन्त्य जनको देवेन्द्रनाथः त्रिसप्तत्यधिकाष्टादशशततमे खीष्टाब्दे (1873) सूनोरुपनयनसंस्कारं विधाय तं स्वेन सार्धमेव हिमालयमनयत्। तत्र पितुः सम्पर्केण बालकस्य मनः स्वच्छतामभजत्। तत्रत्यस्य भवनस्य पृष्ठभागे हिमाच्छादिताः पर्वतश्रेणयः आसन्। भवनाभिमुखं शोभनानि (UPBoardSolutions.com) सुशाद्वलानि क्षेत्राणि राजन्ते स्म। अत्रत्यं प्राकृतिकं जीवनं बालकस्य मनो नितरामरमयत्। जनको देवेन्द्रनाथः प्रतिदिवसं नवीनया पद्धत्या पाठयति स्म। पितुः पाठनशैली बालकाय रोचते स्म। कालान्तरं हिमालयात् प्रतिनिवृत्य पुनः विद्यालयीयां शिक्षा लेभे।

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प्रारम्भिक गृहशिक्षायां ………………………………………………….. रोचते स्म। [2006]

शब्दार्थ प्रारभत = प्रारम्भ हुआ। प्रवेशमलेभत्=प्रवेश प्राप्त किया। कुत्रापि= कहीं भी। नरमते स्म = नहीं लगता था। स्वेच्छाचरणं = अपनी इच्छा के अनुकूल (स्वतन्त्र) आचरण। तुच्छारुचीः = खराब आदतें। रेमे =रमा, लगा। शून्यायां घटिकायां = खाली घेण्टे में। ऐकान्तिकं = एकान्त से सम्बन्धित। त्रिसप्तत्यधिकाष्टादशशततमे = अठारह सौ तिहत्तर में। सूनोरुपनयनसंस्कारं (सूनोः + उपनयन संस्कारं)= पुत्र का यज्ञोपवीत संस्कार। विधाय= करके। स्वेन सार्धम्=अपने साथ। तत्रत्यस्य= वहाँ के। सुशाद्वलानि=सुन्दर घास से युक्त। राजन्ते स्म = सुशोभित थे। नितराम् = अत्यधिक। अरमयत् = रम गया। प्रतिनिवृत्य = वापस लौटकर। लेभे = प्राप्त किया।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में बालक रवीन्द्र का पढ़ने में मन न लगने एवं पिता के साथ हिमालय पर जाकर पढ़ने का वर्णन है।

अनुवाद रवीन्द्र की प्राथमिक शिक्षा घर पर ही हुई। पढ़ाई बांग्ला भाषा में प्रारम्भ हुई। प्रारम्भ में विज्ञान, संस्कृत और गणित ये तीन पाठ्य-विषय थे। प्रारम्भिक गृह-शिक्षा समाप्त होने पर बालक ने उत्तरी कलकत्ता नगर के ‘ओरियण्टल सेमिनार स्कूल में प्रवेश लिया। इसके बाद नॉर्मल विद्यालय में गया, परन्तु कहीं भी (उसका) मन नहीं लगता था। सब जगह अध्यापकों के स्वेच्छाचरण, सहपाठियों की तुच्छ इच्छाओं और बुरे स्वभावों को देखकर (इनका) मन नहीं लगा। इसलिए खाली घण्टे और मध्य अवकाश में भी बालक को एकान्त का जीवन अच्छा लगता था। बालक का मन विद्यालयों में नहीं लगता है-ऐसा सोचकर पिता देवेन्द्रनाथ सन् 1873 ईस्वी में पुत्र का उपनयन संस्कार कराके उसे अपने साथ ही हिमालय पर ले गये। वहाँ पिता के सम्पर्क से बालक का मन स्वस्थ हो गया। वहाँ के भवन के पिछले भाग में बर्फ से ढकी पर्वत-श्रेणियाँ थीं। भवन के सामने सुन्दर हरी घास से युक्त खेत सुशोभित थे। यहाँ के प्राकृतिक जीवन ने बालक के मन को बहुत प्रसन्न कर दिया। पिता देवेन्द्रनाथ प्रतिदिन नवीन पद्धति द्वारा पढ़ाते थे। पिता की पाठन-शैली बालक को अच्छी लगती थी। कुछ समय पश्चात् हिमालय से लौटकर पुन: विद्यालयीय शिक्षा प्राप्त की।

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(6)
सप्तदशवर्षदेशीयो रवीन्द्रनाथः अष्टसप्तत्यधिकाष्टादशशततमे ख्रीष्टाब्दे सितम्बरमासे भ्रात्रा न्यायाधीशेन सत्येन्द्रनाथेन सार्धं विधिशास्त्रमध्येतुं लन्दननगरं गतवान्। दैवयोगाद् रवीन्द्रस्य बैरिस्टरपदवी पूर्णतां नागात्। सः पितुराज्ञया भ्रात्रा सत्येन्द्रनाथेन साकम् अशीत्यधिकाष्टादशशततमे (UPBoardSolutions.com) खीष्टाब्दे (1880) फरवरीमासे लन्दननगरात् कलिकातानगरमायातः। इङ्ग्लैण्डदेशस्य वर्षद्वयावासे पाश्चात्यसङ्गीतस्य सम्यक् परिचयस्तेन लब्धः।

शब्दार्थ सप्तदशवर्षदेशीयो = सत्रह वर्षीय। अष्टसप्तत्यधिकोष्टादशशततमे = अठारह सौ अठहत्तर में। विधिशास्त्रम् = न्याय-शास्त्र, कानून शास्त्र। अध्येतुम् = पढ़ने के लिए। पूर्णतां नागात् = पूर्णता को प्राप्त नहीं हुई। सम्यक् = अच्छी तरह।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में रवीन्द्रनाथ द्वारा लन्दन जाने और वकालत की शिक्षा प्राप्त न करने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद सत्रह वर्ष की अवस्था में रवीन्द्रनाथ सन् 1878 ईस्वी में सितम्बर महीने में भाई न्यायाधीश सत्येन्द्रनाथ के साथ न्याय-शास्त्र (वकालत) पढ़ने के लिए लन्दन नगर गये। दैवयोग से रवीन्द्र की बैरिस्टर की उपाधि पूर्ण नहीं हुई। वे पिता की आज्ञा से भाई सत्येन्द्रनाथ के साथ सन् 1880 ईस्वी में फरवरी के महीने में लन्दन नगर से कलकत्ता नगर आ गये। इंग्लैण्ड देश के दो वर्ष के निवास में उन्होंने पाश्चात्य संगीत का अच्छी तरह ज्ञान प्राप्त कर लिया।

(7)
साहित्यिक प्रतिभायाः विकासः-रवीन्द्रस्य साहित्यिकरचनायां नैसर्गिकी नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा तु प्रधानकारणमासीदेव। परं तत्रत्या पारिवारिकपरिस्थितिरपि विशिष्टं कारणमभूत्। यथा—गृहे। प्रतिदिनं साहित्यिकं वातावरणं, कलासाधनायाः गतिविधयः, नाटकानां मञ्चनानि, सङ्गीतगोष्ठ्यः, चित्रकलानां प्रदर्शनानि, देशसेवाकर्माणि सदैव भवन्ति स्म। किशोरावस्थायामेव रवीन्द्रः अनेकाः कथाः निबन्धाश्च लिखित्वा पारिवारिकपत्रिकासु भारती-साधना-तत्त्वबोधिनीषु मुद्रयति स्म। [2013]

शब्दार्थ नैसर्गिकी = स्वाभाविक नवनवोन्मेषशालिनी = नये-नये विकास वाली प्रतिभा = रचनाबुद्धि। कलासाधनायाः = कला-साधना की। गोष्ठ्यः = गोष्ठियाँ। मुद्रयति स्म = छपवाते थे।

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प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में रवीन्द्रनाथ की साहित्यिक रुचि एवं रचनात्मक प्रवृत्ति का वर्णन किया गया है।

अनुवाद रवीन्द्र की साहित्यिक रचना में स्वाभाविक नये-नये विकास वाली प्रतिभा तो प्रधान कारण थी ही, परन्तु वहाँ की पारिवारिक परिस्थिति भी विशेष कारण थी; जैसे—घर में प्रतिदिन साहित्यिक वातावरण, कला–साधना की गतिविधियाँ, नाटकों का अभिनय, संगीत-गोष्ठियाँ, (UPBoardSolutions.com) चित्रकलाओं का प्रदर्शन, देश-सेवा के कार्य सदा होते थे। किशोर अवस्था में ही रवीन्द्र अनेक कथाओं और निबन्धों को लिखकर पारिवारिक पत्रिकाओं ‘भारती’, ‘साधना’, ‘तत्त्वबोधिनी’ में छपवाते थे।

(8)
तेन च शैशवसङ्गीतम्, सान्ध्यसङ्गीतम्, प्रभातसङ्गीतम्, नाटकेषु रुद्रचण्डम्, वाल्मीकि-प्रतिभा गीतिनाट्यम्, विसर्जनम्, राजर्षिः, चोखेरबाली, चित्राङ्गदा, कौडी ओकमल, गीताञ्जलिः इत्यादयो बहवः ग्रन्थाः विरचिताः। गीताञ्जलिः वैदेशिकैः नोबलपुरस्कारेण पुरस्कृतश्च। एवं बहूनि प्रशस्तानि पुस्तकानि बङ्गसाहित्याय प्रदत्तानि। कवीन्द्ररवीन्द्रस्य प्रतिभा कथासु, कवितासु, नाटकेषु, उपन्यासेषु, निबन्धेषु समानरूपेण उत्कृष्टा दृश्यते। सत्यमेव गीताञ्जलिः चित्राङ्गदा च कलादृष्ट्या महाकवेरुभेऽपि रचने वैशिष्ट्यमावहतः।।

शब्दार्थ विरचिताः = लिखे। पुरस्कृतः = पुरस्कृत, पुरस्कार प्राप्त, सम्मानित किया। प्रशस्तानि = प्रशंसनीय। प्रदत्तानि = दिये। उत्कृष्टा = श्रेष्ठ, उन्नत उभेऽपि = दोनों ही। वैशिष्ट्यमावहतः = विशेषता धारण करते हैं।

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प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में रवीन्द्रनाथ की साहित्यिक कृतियों का विवरण दिया गया है।

अनुवाद उन्होंने (रवीन्द्रनाथ ने) शैशव संगीत, सान्ध्य संगीत, प्रभात संगीत, नाटकों में रुद्रचण्ड, वाल्मीकि-प्रतिभा (गीतिनाट्य), विसर्जन, राजर्षि, चोखेरबाली, चित्रांगदा, कौड़ी ओकमल, गीताञ्जलि इत्यादि बहुत-से ग्रन्थों की रचना की। गीताञ्जलि को विदेशियों ने नोबेल पुरस्कार से पुरस्कृत किया है। इस प्रकार बहुत-सी सुन्दर पुस्तकें उन्होंने बांग्ला-साहित्य को प्रदान कीं। कवीन्द्र रवीन्द्र की प्रतिभा कथाओं में, कविताओं में, नाटकों में, उपन्यासों और निबन्धों में समान रूप से उत्कृष्ट दिखाई देती है। वास्तव में महाकवि की दोनों ही रचनाएँ गीताञ्जलि और चित्रांगदा कला की दृष्टि से विशिष्टता को धारण करती हैं।

(9)
द्वात्रिंशदधिकैकोनविंशे शततमे खीष्टाब्दे महात्मागान्धी पुणे कारागारेऽवरुद्धः आसीत्। ब्रिटिशशासकाः अनुसूचितजातीयानां सवर्णहिन्दूजातीयेभ्यः पृथक् निर्वाचनाय प्रयत्नशीलाः आसन्।

यस्य स्पष्टमुद्देश्यं हिन्दूजातीयानां परस्परं विभाजनमासीत्। बहुविरोधे कृतेऽपि ब्रिटिशशासकाः शान्ति ने लेभिरे विभाजयितुं च प्रयतमाना एवासन्। तदा महात्मागान्धी हिन्दूजातिवैक्यं स्थापयितुं कारागारे आमरणम् अनशनं प्रारभत। गुरुदेवस्य रवीन्द्रनाथस्य चानुमोदनमैच्छत्। यतश्च महात्मागान्धी गुरुदेवस्य रवीन्द्रस्य केवलमादरमेव नाकरोत्, अपि तु यथाकालं समीचीनसम्मत्यै मुखमपि ईक्षते स्म। महात्मा एनं कवीन्द्र रवीन्द्र गुरुममन्यता रवीन्द्रनाथः तन्त्रीपत्रे ‘भारतस्य एकतायै सामाजिकाखण्डतायै च अमूल्य-जीवनस्य बलिदानं सर्वथा समीचीनं, परं जनाः दारुणायाः विपत्तेः गान्धिनः जीवनमभिरक्षेयुः इति लिखित्वा प्रत्युदतरत्। रवीन्द्रः आमरणस्य अनशनस्य समर्थनमेव न कृतवानपि तु प्रायोपवेशने प्रारब्धे पुणे कारागारञ्चागतवान्।

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शब्दार्थ द्वात्रिंशदधिकैकोनविंशे शततमे = उन्नीस सौ बत्तीस में अवरुद्धः = बन्दा स्पष्टमुद्देश्यं = स्पष्ट उद्देश्य। लेभिरे = प्राप्त कर रहे थे। समीचीनम् = उचित| मुखमपि ईक्षते स्म = मुख की ओर देखते थे, अपेक्षा करते थे। तन्त्रीपत्रे = तार (टेलीग्राम) में। अभिरक्षेयुः = रक्षा करें। प्रत्युदतरत् = उत्तर दिया। प्रायोपवेशने = अनशन के समय।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में महात्मा गाँधी द्वारा कवीन्द्र रवीन्द्र को गुरु मानने एवं उनसे सम्मति लेने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद सन् 1932 ईस्वी में महात्मा गाँधी पुणे में जेल में बन्द थे। ब्रिटिश शासक अनुसूचित जाति वालों का सवर्ण हिन्दू जाति वालों से अलग निर्वाचन कराने के लिए प्रयत्न में लगे थे, जिसका स्पष्ट उद्देश्य हिन्दू जाति वालों का आपस में बँटवारा करना था। बहुत विरोध करने पर भी अंग्रेजी शासक शान्ति को प्राप्त न हुए। अर्थात् अपने प्रयासों को बन्द नहीं किया और (देश एवं हिन्दू जाति को) विभाजित करने के लिए प्रयत्नशील रहे। तब महात्मा गाँधी ने हिन्दू जातियों (UPBoardSolutions.com) में एकता स्थापित करने के लिए जेल में आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया और गुरुदेव रवीन्द्रनाथ के अनुमोदन की इच्छा की; क्योंकि महात्मा गाँधी गुरुदेव रवीन्द्रनाथ का केवल आदर ही नहीं करते थे, अपितु समयानुसार सही सलाह के लिए उनसे अपेक्षा भी करते थे। महात्मा इन कवीन्द्र रवीन्द्र को गुरु मानते थे। रवीन्द्रनाथ ने तार में भारत की एकता और सामाजिक अखण्डता के लिए अमूल्य जीवन का बलिदान सभी प्रकार से सही है, परन्तु लोग भयानक विपत्ति से गाँधी जी के जीवन की रक्षा करें” लिखकर उत्तर दे दिया। रवीन्द्र ने आमरण अनशन का समर्थन ही नहीं किया, अपितु उपवास के प्रारम्भ होने पर पुणे जेल में आ गये।

(10)
एवं बहुवर्णिकं, गरिमामण्डितं साहित्यिक, सामाजिकं, दार्शनिकं, लोकतान्त्रिकं जीवनं तस्य काव्यमिव मनोहारि सर्वेभ्यः कल्याणकारि प्रेरणादायि चाभूत्। एकचत्वारिंशदधिकैकोनविंशे शततमे खीष्टाब्देऽगस्तमासस्य सप्तमे दिनाङ्के (7 अगस्त, 1941) रवीन्द्रस्य पार्थिव शरीरं वैश्वानरं प्राविशत्। अद्यापि गुरुदेवस्य रवीन्द्रस्य वाक् काव्यरूपेण अस्माकं समक्षं स्रोतस्विनी इव सततं प्रवहत्येव। अधुनापि करालस्य कालस्य करोऽपि वाचं मूकीकर्तुं नाशकत्।

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जयन्ति ते सुकृतिनो रससिद्धाः कवीश्वराः ।
नास्ति येषां यशःकाये जरामरणजं भयम् ॥

शब्दार्थ बहुवर्णिकम् = बहुरंगी, अनेक प्रकार का। गरिमामण्डितम् = गरिमा (गौरव) से युक्त। एकचत्वारिंशदधिकैकोनविंशे शततमे = उन्नीस सौ इकतालिस में। पार्थिवम् = मिट्टी से बना, भौतिक वैश्वानरम् = अग्नि में। प्राविशत = प्रविष्ट हुआ। वाक् = वाणी। स्रोतस्विनी इव = नदी के समान। प्रवहत्येव = बहती ही है। वाचं मूकीकर्तुम् = वाणी को मौन करने के लिए। नाशकत् = समर्थ नहीं हुआ। सुकृतिनः = सुन्दर कार्य करने वाले रससिद्धाः = रस है सिद्ध जिनको। कवीश्वराः = कवियों में ईश्वर अर्थात् कवि श्रेष्ठ| यशःकाये = यशरूपी शरीर में जरामरणजे = वृद्धावस्था और मृत्यु से उत्पन्न।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में कवीन्द्र रवीन्द्र के जीवन का मूल्यांकन किया गया है, उनके देहान्त की बात कही गयी है और सुन्दर रचनाकार के रूप में उनके यश का गान किया गया है।

अनुवाद इस प्रकार उनका बहुरंगी, गरिमा से मण्डित, साहित्यिक, सामाजिक, दार्शनिक, लोकतान्त्रिक जीवन उनके काव्य के समान सुन्दर, सबके लिए कल्याणकारी और प्रेरणाप्रद था। सन् 1941 ईस्वी में अगस्त महीने की 7 तारीख को रवीन्द्र का पार्थिव शरीर अग्नि में प्रविष्ट हो गया। आज भी गुरुदेव रवीन्द्र की वाणी काव्य के रूप में हमारे सामने नदी के समान निरन्तर बह रही है। आज भी भयानक मृत्यु का हाथ भी (उनकी) वाणी को चुप करने में समर्थ नहीं हो सका। पुण्यात्मा, (UPBoardSolutions.com) रससिद्ध वे कवीश्वर जयवन्त होते हैं, जिनके यशरूपी शरीर में बुढ़ापे और मृत्यु से उत्पन्न भय नहीं है। इसलिए कविगण हमेशा यशरूपी शरीर से ही जीवित रहते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
महाकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर की रचना ‘गीताञ्जलि’ पर प्रकाश डालिए।
या
‘गीताञ्जलि’ के रचयिता का नाम लिखिए। [2006,07,14]
या
विश्वकवि रवीन्द्र की सबसे प्रसिद्ध रचना कौन-सी है? [2011]
या
रवीन्द्रनाथ को नोबेल पुरस्कार किस रचना पर मिला? [2007]
या
रवीन्द्रनाथ को किस पुस्तक पर कौन-सा पुरस्कार दिया गया था? [2010]
उत्तर :
गीताञ्जलि महाकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा बांग्ला भाषा में लिखे गये गीतों का संकलन है। यह महाकवि की एक अत्यधिक विशिष्ट रचना है। इसका अंग्रेजी अनुवाद; जो कि स्वयं रवीन्द्रनाथ के द्वारा ही। किया गया; को सन् 1913 ईस्वी में विदेशियों द्वारा ‘नोबेल पुरस्कार’ से पुरस्कृत किया गया।

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प्रश्न 2.
विश्वकवि रवीन्द्र का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिए।
या
विश्वकवि रवीन्द्र का परिचय दीजिए। या कविवर रवीन्द्र का जन्म कब और कहाँ हुआ था? [2008]
या
विश्वकवि रवीन्द्र के माता-पिता का नाम लिखिए। [2010, 12, 13]
या
कवीन्द्ररवीन्द्र की प्रमुख रचनाओं/कृतियों के नाम लिखिए। [2006,08, 10]
उत्तर :
रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, सन् 1861 ईस्वी में कलकत्ता नगर के एक सम्भ्रान्त और समृद्ध ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ तथा माता का नाम शारदा देवी था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। बाद में इन्होंने स्कूल में प्रवेश ले लिया, लेकिन वहाँ इनका मन नहीं लगा। 17 वर्ष की अवस्था में ये अपने बड़े भाई के साथ इंग्लैण्ड गये। वहाँ इन्होंने दो वर्ष के निवास में पाश्चात्य संगीत का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया। इन्होंने शैशव संगीत, प्रभात संगीत, (UPBoardSolutions.com) सान्ध्य संगीत (गीति काव्य); रुद्रचण्ड, वाल्मीकि-प्रतिभा (गीति नाट्य), विसर्जन, राजर्षि, चोखेरबाली, चित्रांगदा, कौड़ी ओकमल, गीताञ्जलि इत्यादि बहुत-से ग्रन्थों की रचना की। महात्मा गाँधी इन्हें अपना गुरु मानते थे। सन् 1941 ईस्वी में 7 अगस्त को इनका पार्थिव शरीर पंचतत्त्व में विलीन हो गया।

प्रश्न 3.
रवीन्द्रनाथ टैगोर के सांस्कृतिक और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने सांस्कृतिक क्षेत्र में संगीत और नृत्य विधाओं में एक नवीन शैली का प्रचलन किया, जिसे रवीन्द्र-शैली के नाम से जाना जाता है। एक शिक्षाविद् के रूप में भी इन्होंने नवीन विचारों का प्रारम्भ किया। इनके विचारों का पुंजस्वरूप भवन ‘विश्वभारती के रूप में हमारे समक्ष विद्यमान है। यहाँ पर शिक्षा की आश्रम शैली, नवीन शैली के साथ समन्वित रूप में विद्यमान है।

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प्रश्न 4.
विश्वकवि रवीन्द्र के बाल्य-जीवन का उल्लेख कीजिए। या* * बचपन में बालक रवीन्द्रनाथ का मेन क्यों खिन्न रहता था? [2009]
उत्तर :
रवीन्द्रनाथ का जन्म अतुल धनराशि तथा वैभव से सम्पन्न एक अत्यधिक धनाढ्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था। सेवकों द्वारा पालित, पोषित और रक्षित होने के कारण ये अपने जीवन को बन्धनपूर्ण मानते थे। स्वतन्त्रतापूर्वक घूमने और खेलने का अवसर न मिलने के कारण ये पर्याप्त खिन्नता का अनुभव करते थे। इनके वैभवशाली भवन के पीछे एक सुन्दर सरोवर था जिसके एक ओर नारियल के वन और दूसरी ओर बरगद का वृक्ष था। भवन के झरोखे में बैठकर रवीन्द्रनाथ इस प्राकृतिक दृश्य को देखकर बहुत प्रसन्न होते थे। प्रात:काल के समय सरोवर में स्त्री-पुरुष स्नान के लिए आते थे। उनकी विविध रंग-बिरंगी पोशाकों को देखकर बालक रवीन्द्रनाथ प्रसन्न हो जाते थे। सायंकाल में यह सरोवर पक्षियों की चहचहाहट से गुंजित हो उठता था। यह सब कुछ बालक रवीन्द्रनाथ को बहुत सुखद प्रतीत होता था।

प्रश्न 5.
‘विश्वकवि’ संज्ञा किस आधुनिक कवि को दी गयी है? [2010,11]
उत्तर :
‘विश्वकवि’ संज्ञा आधुनिक कवि श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर को दी गयी है।

प्रश्न 6.
विधिशास्त्र का अध्ययन करने के लिए रवीन्द्रनाथ किसके साथ और कहाँ गये? [2006]
उत्तर :
विधिशास्त्र का अध्ययन करने के लिए रवीन्द्रनाथ अपने बड़े भाई न्यायाधीश सत्येन्द्रनाथ के साथ सन् 1878 ई० में लन्दन गये।

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प्रश्न 7.
विश्वकवि रवीन्द्र की तुलना किन-किन कवियों से की गयी है? [2010]
उत्तर :
विश्वकवि रवीन्द्र की तुलना अंग्रेजी कवि शेक्सपियर, संस्कृत कवि कालिदास और हिन्दी कवि गोस्वामी तुलसीदास से की गयी है।

प्रश्न 8.
‘विश्वभारती’ का परिचय दीजिए। [2009]
उत्तर :
एक शिक्षाविद् के रूप में रवीन्द्रनाथ ने नवीन विचारों का सूत्रपात किया था। उनके प्रयोगात्मकशिक्षात्मक विचारों का प्रतिफल विश्वभारती के रूप में अपना मस्तक उन्नत किये हुए आज भी सुशोभित हो रहा है। इस संस्था में अध्ययन-अध्यापन की आश्रम-व्यवस्था तथा नवीन (UPBoardSolutions.com) शैली का समन्वय है।।

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प्रश्न 9.
विश्वकवि रवीन्द्र की साहित्यिक प्रतिभा का परिचय दीजिए।
उत्तर :
[
संकेत ‘पाठ-सारांश’ के उपशीर्षकों’ ‘साहित्यिक प्रतिभा के धनी’ एवं ‘रचनाएँ की सामग्री को संक्षेप में लिखें।]

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi शैक्षिक निबन्ध

UP Board Solutions for Class 10 Hindi शैक्षिक निबन्ध

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शैक्षिक निंबन्ध

37. समाचार-पत्र

सम्बद्ध शीर्षक

  • समाचार-पत्रों का महत्त्व

रूपरेखा–

  1. प्रस्तावना,
  2. समाचार-पत्रों का आविष्कार और विकास;
  3. समाचार-पत्रों के विविध रूप,
  4. समाचार-पत्रों का महत्त्व,
  5. समाचार-पत्रों से लाभ,
  6. समाचार-पत्रों से हानियाँ,
  7. उपसंहार।

प्रस्तावना जिज्ञासा एवं कौतूहल मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। अपने आस-पास की एवं सुदूर स्थानों की नित नवीन घटनाओं को सुनने व जानने की मनुष्य की प्रबल इच्छा रहती है। पहले प्रायः व्यक्ति दूसरों से सुनकर या पत्र आदि के द्वारा (UPBoardSolutions.com) अपनी जिज्ञासा का समाधान कर लेते थे, परन्तु अब विज्ञान के

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आविष्कार एवं मुद्रण-यन्त्रों के विकास से समाचार-पत्र व्यक्ति की जिज्ञासा को शान्त करने के प्रमुख साधन हो गये हैं। यह एक ऐसा साधन है, जिसके द्वारा हम घर बैठे अपने समाज, राष्ट्र एवं विश्व की नवीनतम घटनाओं से अवगत रह सकते हैं। समाचार-पत्रों से पूरा विश्व एक परिवार बन गया है, जिसमें सभीं देश एक-दूसरे के सुख-दु:ख में सम्मिलित होते हैं।

समाचार-पत्रों का आविष्कार और विकास समाचार-पत्र का आविष्कार सर्वप्रथम इटली में हुआ। तत्पश्चात् अन्य देशों में भी धीरे-धीरे समाचार-पत्रों का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। भारत में समाचार-पत्र का प्रादुर्भाव अंग्रेजों के भारत आगमन पर प्रेस की स्थापना होने से माना जाता है। हिन्दी में ‘उदन्त मार्तण्ड’ नाम से पहला समाचार-पत्र निकला। शनैः-शनैः भारत में समाचार-पत्रों का विकास हुआ और हिन्दी, अंग्रेजी तथा विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं में अनगिनत समाचार-पत्रों का प्रकाशन आरम्भ हुआ। हिन्दी में आज नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान, जनसत्ता, पंजाब केसरी, अमर उजाला, दैनिक जागरण, वीर अर्जुन, आज, दैनिक भास्कर आदि समाचार-पत्रों को चरम विकास उनकी बढ़ती हुई माँग का सूचक है।

समाचार-पत्रों के विविध रूप-आज देशी एवं विदेशी कितनी ही भाषाओं में समाचार-पत्र, प्रकाशित हो रहे हैं। इनमें से कुछ समाचार-पत्र प्रतिदिन प्रकाशित होते हैं, तो कुछ साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक, अर्द्ध-वार्षिक एवं वार्षिक। नये-नये समाचार-पत्र निकलते ही जा रहे हैं। आजकल प्रायः सभी समाचार-पत्र मनोरंजक सामग्री; यथा-लेख, कहानी, फैशन, स्वास्थ्य, खेल, ज्योतिष आदि; को अपने पत्र में नियमित स्थान देते हैं।

समाचार-पत्रों का महत्त्व-आज समाचार-पत्रों का महत्त्व सर्वविदित है। आज ‘प्रेस’ को लोकतन्त्र के चार स्तम्भों में से एक प्रमुख स्तम्भ माना जाता है। समाचार-पत्रों ने केवल भारतीय जनजीवन को ही प्रभावित नहीं किया है, अपितु भारतीयों में राष्ट्रीयता का संचार भी किया है। आधुनिक युग में समाचार-पत्रों की उपयोगिता ‘दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ गयी है। इनके द्वारा अपने देश के ही नहीं, विदेशों के समाचार भी घर बैठे प्राप्त होते हैं। सामाजिक उत्थान, राष्ट्रीय उन्नति तथा जन-कल्याण हेतु समाचार-पत्रों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। ये सामाजिक कुरीतियों, अन्धविश्वासों और अपराधों का प्रकाशन कर उनकी रोकथाम में मदद करते हैं। ये विभिन्न राजनीतिक समस्याओं को जनता के सम्मुख लाकर राष्ट्रीय जागरण का तथा जनमत का निर्माण करके लोकतन्त्र के सच्चे रक्षक का कार्य करते हैं।

समाचार-पत्रों से लाभ-
( क) ज्ञानवर्द्धन का साधन-देश-विदेश में घटित होने वाली घटनाओं की जानकारी तथा भौगोलिक-सामाजिक परिवर्तनों का ज्ञान समाचार-पत्रों के माध्यम से मिल जाता है। विज्ञान, साहित्य, राजनीति, इतिहास, भूगोल आदि अनेक क्षेत्रों में हुई प्रगति का ज्ञान समाचार-पत्र ही कराते हैं। समाचार-पत्रों का सूक्ष्म अध्ययन करने वाला व्यक्ति सामान्य ज्ञान में कभी पीछे नहीं रहता।।
(ख) मनोरंजन का साधन–समाचारों की जानकारी से मानसिक सन्तुष्टि प्राप्त होती है। इनमें प्रकाशित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक सामग्री विशेष रूप से मनोरंजन प्रदान करती है। यात्रा के समय पत्र-पत्रिकाएँ यात्रा को सुगम एवं मनोरंजक बनाती हैं।।
(ग) कुरीतियों की समाप्ति समाचार-पत्रों से सामाजिक कुरीतियों एवं बुराइयों को दूर करने में भी सहायता मिलती है। समाज में फैली अशिक्षा, दहेज, बाल-विवाह, वृद्ध-विवाह आदि बुरी प्रथाओं का परिहार होता है। देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, शोषण, अनाचार और (UPBoardSolutions.com) अत्याचारों की घटनाओं को प्रकाशित कर असामाजिक तत्वों में भय उत्पन्न करने में सहायता मिलती है।
(घ) स्वस्थ जनमत का निर्माण-आज के प्रजातान्त्रिक युग में प्रत्येक राजनीतिक दल को अपनी विचारधारा जनता तक पहुँचानी होती है। स्वस्थ जनमत का निर्माण करने एवं राजनीतिक शिक्षा देने में समाचार-पत्रों का सर्वाधिक महत्त्व है। इस प्रकार समाचार-पत्र जनता और सरकार के बीच की कड़ी होते हैं।

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समाचार-पत्रों से हानियाँ–समाचार-पत्र जहाँ देश का कल्याण करते हैं; वहीं इनसे हानियाँ भी होती हैं। ये किसी पूँजीपति, राजनीतिक नेता और साम्प्रदायिक दल की सम्पत्ति होते हैं; अतः इनमें जो समाचार या सूचनाएँ प्रकाशित होती हैं, उन्हें वे अपनी स्वार्थ–पूर्ति के आधार पर भी तोड़-मरोड़कर प्रकाशित करते हैं। बहुत-से समाचार-पत्र अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए झूठी अफवाह, निराधार एवं सनसनीपूर्ण संमाचार, अभिनेत्रियों के अश्लील चित्र प्रकाशित करते हैं। इनमें प्रकाशित जातिगत, साम्प्रदायिक एवं प्रादेशिक विचार कभी-कभी राष्ट्रीय एकता में भी बाधक होते हैं।

उपसंहार-आज के युग में समाचार-पत्र को महत्त्वपूर्ण शक्ति-स्तम्भ माना जाता है। अतः समाचार-पत्रों को ऐसे लोगों के हाथ में केन्द्रित न होने दें, जो देश में गड़बड़ी, अव्यवस्था और विद्रोह फैलाना चाहते हैं। इनके अध्ययन से स्वतन्त्र चिन्तन में बाधा नहीं पहुँचनी चाहिए। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि समाचार-पत्रों के स्वामियों, सम्पादकों एवं पत्रकारों को किसी भी राजनीतिक दल के हाथों अपनी स्वतन्त्रता नहीं बेचनी चाहिए। ऐसा करने से ही वे अपनी लेखनी की स्वतन्त्रता को बचाये रख सकेंगे और अपना दायित्व निभाने में सफल होंगे। समाचार-पत्रों में निष्पक्ष और नि:स्वार्थ होकर पूरी ईमानदारी से विचार व्यक्त किये जाने चाहिए, जिससे समाज व राष्ट्र का कल्याण हो सके।

38. पुस्तकालय [2014]

सम्बद्ध शीर्षक

  • पुस्तकालय से लाभ [2012,13]
  • आदर्श पुस्तकालय
  • पुस्तकालय का महत्त्व [2014]
  • पुस्तकालय की उपयोगिता [2016]

रूपरेखा–

  1. प्रस्तावना,
  2. पुस्तकालय का अर्थ,
  3. पुस्तकालयों के प्रकार,
  4. पुस्तकालय की उपयोगिता (लाभ),
  5. कुछ प्रसिद्ध पुस्तकालय,
  6. पुस्तकालयों के प्रति हमारे कर्तव्य,
  7. सुझाव,
  8. उपसंहार।

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प्रस्तावना-ज्ञान-पिपासा मानव का स्वाभाविक गुण है। इसी की तृप्ति के लिए वह पुस्तकों का अध्ययन करता है। पुस्तकालय वह भवन है, जहाँ अनेक पुस्तकों का विशाल भण्डार होता है। पुस्तकालय से बढ़कर ज्ञान-पिपासा को शान्त करने का कोई (UPBoardSolutions.com) अन्य उत्तम साधन नहीं है। यही पुस्तकें हमें असत् से सत् की ओर तथा अन्धकार से प्रकाश की ओर बढ़ने की प्रेरणा देती हैं और अन्तत: हमारी अन्त:प्रकृति में यह ध्वनि गूंज उठती है-” असतो मा सद् गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।”

पुस्तकालय का अर्थ–पुस्तकालय का अर्थ है-पुस्तकों की घर। इसमें विविध विषयों पर लिखित व संकलित पुस्तकों का विशाल संग्रह होता है। पुस्तकालय सरस्वती का पावन मन्दिर है, जहाँ जाकर मनुष्य सरस्वती की कृपा से ज्ञान का दिव्य आलोक पाता है। इससे उसकी मानसिक शक्तियाँ विकसित होती हैं तथा उसके ज्ञान-नेत्र खुल जाते हैं। निर्धन व्यक्ति भी पुस्तकालय में विविध विषयों की पुस्तकों का अध्ययन करके ज्ञान प्राप्त कर सकता है। महान् व्यक्तियों ने उत्तम पुस्तकों को सदैव प्रेरणास्रोत माना है और इनके द्वारा अनुपम ज्ञान प्राप्त किया है।

पुस्तकालयों के प्रकार–पुस्तकालय चार प्रकार के होते हैं–

  1. व्यक्तिगत,
  2. विद्यालय,
  3. सार्वजनिक तथा
  4. सरकारी।

व्यक्तिगत पुस्तकालयों से अधिक व्यक्ति लाभ नहीं उठा सकते। उनसे वही व्यक्ति लाभान्वित होते हैं, जिनकी वे सम्पत्ति हैं। विद्यालयों के पुस्तकालयों का उपयोग विद्यालय के छात्र और अध्यापक ही कर पाते हैं। इनमें अधिकांशत: विद्यार्थियों के उपयोग की ही पुस्तकें होती हैं। सरकारी पुस्तकालयों का उपयोग राजकीय कर्मचारी या विधान-मण्डलों के सदस्य ही कर पाते हैं। केवल सार्वजनिक पुस्तकालयों का ही उपयोग सभी व्यक्तियों के लिए होता है। इनमें घर पर पुस्तकें लाने के लिए। इनका सदस्य बनना पड़ता है। पुस्तकालय का एक महत्त्वपूर्ण अंग ‘वाचनालय’ होता है, जहाँ दैनिक समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएँ प्राप्त होती हैं, जिसे वहीं बैठकर पढ़ना होता है।

पुस्तकालय की उपयोगिता ( लाभ)-पुस्तकालय मानव-जीवन की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता हैं। वे ज्ञान, विज्ञान, कला और संस्कृति के प्रसार-केन्द्र होते हैं। पुस्तकालयों से अनेक लाभ हैं, उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं
(क) ज्ञान-वृद्धि-पुस्तकालय ज्ञान के मन्दिर होते हैं। ज्ञान-वृद्धि के लिए पुस्तकालयों से बढ़कर अन्य उपयोगी साधन नहीं हैं। पुस्तकालयों के द्वारा मनुष्य कम धन खर्च करके बहुमूल्य ग्रन्थों का अध्ययन कर असाधारण ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
(ख) सदगुणों का विकास-विद्वानों की पुस्तकों को पढ़कर महान् बनने, नवीन विचारों और नवीन चिन्तन की प्रेरणा प्राप्त होती है। रुचिकर पुस्तकें पढ़ने से नवीन स्फूर्ति एवं नवीन चेतना प्राप्त होती है। तथा कुवासनाओं, कुसंस्कारों और अज्ञान का नाश होता है। (UPBoardSolutions.com) पुस्तकालय में बालकों के लिए बाल-साहित्य भी उपलब्ध होता है, जिसको पढ़कर बच्चे भी अपने समय का सदुपयोग कर सकते हैं।
(ग) समाज का कल्याण-पुस्तकालय से व्यक्ति को तो लाभ होता ही है, सम्पूर्ण समाज का भी कल्याण होता है। प्रत्येक समाज एवं राष्ट्र प्राचीन साहित्य का अध्ययन करके नये सामाजिक नियमों का निर्माण कर सकता है। रूस के एक महत्त्वपूर्ण नेता लेनिन; जो रूस की प्रचलित व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन लाने में सहायक हुए; का अधिकांश समय पुस्तकों के अध्ययन में ही व्यतीत होता था।
(घ) श्रेष्ठ मनोरंजन एवं समय का सदुपयोग–घर पर खाली बैठकर गप्पे मारने की अपेक्षा पुस्तकालय में जाकर पुस्तकें पढ़ना अधिक उपयोगी होता है। इससे श्रेष्ठ ज्ञानार्जन के साथ पर्याप्त मनोरंजन भी होता है। मनोरंजन से रुचि का परिष्कार एवं ज्ञान की वृद्धि होती है।
(ङ) सत्संगति का लाभ–पुस्तकालय में पहुँचकर एक प्रकार से महान् विद्वानों, विचारकों तथा महापुरुषों से अप्रत्यक्ष साक्षात्कार होता है। यदि हमें गाँधी, सुकरात, राम, कृष्ण, ईसा, महावीर आदि के श्रेष्ठ विचारों की संगति प्राप्त करनी है तो पुस्तकालय से उत्तम कोई अन्य स्थान नहीं है।

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कुछ प्रसिद्ध पुस्तकालय-देश में पुस्तकालयों की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है। .. नालन्दा और तक्षशिला में भारत के अति प्रसिद्ध पुस्तकालय थे, जो कि विदेशी आक्रान्ताओं के द्वारा; हमारी प्राचीन संस्कृति को नष्ट करने के उद्देश्य से; नष्ट-भ्रष्ट कर दिये गये। इस समय भारत में कोलकाता, दिल्ली, मुम्बई, पटना, वाराणसी आदि स्थानों पर भव्य पुस्तकालय हैं, जहाँ पर शोधार्थी व सामान्य अध्येता भी उचित औपचारिकताओं का निर्वाह करके अध्ययन कर सकते हैं।

पुस्तकालयों के प्रति हमारे कर्तव्य-पुस्तकालय समाज के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं। उनके विकास से देशवासियों में नवचेतना का उदय होता है। पुस्तकालयों को क्षति पहुँचाने की प्रवृत्ति समाज के लिए घातक है; अत: पाठकों का कर्तव्य है कि जो पुस्तकें पुस्तकालय से ली जाएँ, उन्हें निश्चित समय पर लौटाया जाए। उन पर नाम लिखना, स्याही के धब्बे डालना, पन्ने या कतरन फाड़ना, पुस्तकों की साज-सज्जा को नष्ट करना आदि अनैतिकता तथा पुस्तकालय की क्षति है। पुस्तकालयों के नियमों का पालन करना एवं उन्हें दिनानुदिन विकसित करने में सहायक होना हमारा परम कर्तव्य है।

सुझाव–हमारे देश के गाँवों में जहाँ लगभग दो-तिहाई जनसंख्या निवास करती है, पुस्तकालयों का नितान्त अभाव है। ग्रामवासियों की निरक्षरता ओर अज्ञानता का मूल कारण भी यही है। ग्रामविकास की योजनाओं के अन्तर्गत प्रत्येक गाँव में जनसंख्या के आधार पर पुस्तकालयों का निर्माण होना चाहिए।

उपसंहार-जीवन की सच्ची उन्नति इसी बात में है कि हम पुस्तकालय के महत्त्व को समझे और उनसे लाभ उठाएँ। सुयोग्य नागरिकों के चरित्र-निर्माण एवं समाज के उत्थान हेतु पुस्तकालयों के विकास के लिए सतत प्रयत्न किये जाने चाहिए। पुस्तकालयों में संग्रहीत पुस्तकों के (UPBoardSolutions.com) माध्यम से ही हम अपने पूर्वजों की गौरवपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर से प्रेरणा प्राप्त करते हैं और उनके द्वारा स्थापित तेज और पुरुषार्थ को भावी पीढ़ी में उतारने को सचेष्ट होते हैं। इसलिए नियमित रूप से पुस्तकालयों में बैठकर अध्ययन करना हमारे आचरण का आवश्यक अंग होना चाहिए।

39. महापुरुष की जीवनी

सम्बद्ध शीर्षक

  • राष्ट्रपिता : महात्मा गाँधी
  • मेरे प्रिय नेता
  • किसी महापुरुष के अनुकरणीय कार्य [2011]

रूपरेखा–

  1. प्रस्तावना,
  2. जीवन-परिचय एवं शिक्षा,
  3. दक्षिण अफ्रीका-गमन,
  4. भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के कर्णधार,
  5. गाँधीजी की मृत्यु,
  6. गाँधीजी का आदर्श व्यक्तित्व,
  7. वर्तमान समय में गाँधीजी की प्रासंगिकता,
  8. उपसंहार।।

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प्रस्तावना–प्राचीन काल से लेकर आज तक हमारे देश में अनेक महान् विभूतियों, युगपुरुषों तथा सन्त-महात्माओं ने जन्म लिया। महात्मा गाँधी का जन्म भी यहीं की पवित्र-पावन भूमि पर हुआ था। सत्य और अहिंसा का सहारा लेकर सम्पूर्ण श्व को शान्ति का पाठ पढ़ाने (UPBoardSolutions.com) वाली महान् आत्मा, जिसने प्रेम का महान् आदर्श प्रस्तुत किया, ऐसे महात्मा का नाम सभी भारतीयों द्वारा बड़े आदर से लिया जाता है। भारतवासी उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ या ‘बापू’ कहकर पुकारते हैं। वे अहिंसा के अवतार, सत्य के देवता, अछूतों के प्राणाधार एवं राष्ट्र के पिता थे।

जीवन-परिचय एवं शिक्षा–महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर, सन् 1869 ई० को काठियावाड़ के अन्तर्गत पोरबन्दर नामक स्थान के एक सम्भ्रान्त परिवार में हुआ था। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी था। इनके पिता करमचन्द गाँधी राजकोट रियासत में दीवान थे। इनकी माता पुतलीबाई अत्यन्त धर्मपरायण, पूजा-पाठ में श्रद्धा रखने वाली एक आदर्श महिला थीं।

गाँधीजी की प्रारम्भिक शिक्षा राजकोट में हुई। वे मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करके सन् 1888 ई० में कानून का अध्ययन करने के लिए इंग्लैण्ड चले गये। सन् 1891 ई० में गाँधीजी बैरिस्टर होकर भारत लौटे और बम्बई में वकालत करना आरम्भ किया। ये झूठ से काम लेना पाप समझते थे और गरीबों के मुकदमों की पैरवी नि:शुल्क किया करते थे।

दक्षिण अफ्रीका-गमन—सन् 1893 ई० में एक गुजराती व्यवसायी के मुकदमे की पैरवी करने के लिए गाँधीजी को दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ की सरकार द्वारा भारतीयों के साथ अपमान व भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता था। गाँधीजी को स्वयं नाना प्रकार की अवमाननाएँ सहन करनी पड़ीं।। उन्होंने भारतीयों की राजनीतिक और सामाजिक दशा सुधारने के लिए ‘नैटाल कांग्रेस की स्थापना की और इस भेदभाव के विरुद्ध सत्याग्रह आन्दोलन आरम्भ किया। वहाँ उन्हें अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा, परन्तु वे अपने दृढ़ संकल्प से अविचलित रहे। बीस वर्ष अफ्रीका में रहकर गाँधीजी भारत लौट आये।।

भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के कर्णधार–भारत लौटने पर गाँधीजी ने पराधीन भारतीयों की दुर्दशा देखी। उन्होंने पराधीन भारत की बेड़ियों को काटने का निश्चय किया और अहमदाबाद के निकट साबरमती के तट पर एक आश्रम की स्थापना की और यहीं रहकर करोड़ों भारतीयों का मार्गदर्शन किया। गाँधीजी ने यहाँ भी अंग्रेजों के विरुद्ध दक्षिण अफ्रीका में आजमाये गये सत्याग्रह और अहिंसा को असहयोग की नयी धार चढ़ाते हुए आजमाया। उनके नेतृत्व से भारतीयों में एक नयी स्फूर्ति आ गयी। उनके एक आह्वान पर लोग सत्याग्रह में भाग लेकर अपने प्राण निछावर करने के लिए स्वतन्त्रता-संग्राम में कूद पड़े

चल पड़े जिधर दो डगमग में, बढ़ गये कोटि पग उसी ओर।
पड़ गयी जिधर भी एक दृष्टि, गड़ गये कोटि दृग उसी ओर ॥

गाँधीजी ने मदनमोहन मालवीय, पं० मोतीलाल नेहरू, चितरंजन दास आदि के सहयोग से राष्ट्रव्यापी आन्दोलन छेड़ दिया। गाँधीजी को कांग्रेस का सभापति बनाया गया। इन्होंने कांग्रेस के सम्मुख खादी-प्रचार, अछूतोद्धार और मुस्लिम एकता की योजना रखी। सन् 1929 ई० में (UPBoardSolutions.com) ‘साइमन कमीशन’ का बहिष्कार किया गया। सन् 1930 ई० में गाँधीजी ने डाण्डी में नमक सत्याग्रह करके ‘नमक-कानून’ को तोड़ा।

तदनन्तरं गाँधीजी कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में ‘गोलमेज कॉन्फ्रेन्स’ में भाग लेने इंग्लैण्ड गये। वहाँ से उनके लौटने पर आन्दोलन ने पुनः जोर पकड़ा। सन् 1942 ई० में गाँधीजी ने अंग्रेजो, भारत छोड़ो’ का नारा लगाया तथा भारतीयों के लिए ‘करो या मरो’ का आह्वान किया। गाँधीजी के आह्वान पर भारतीय लोगों ने प्रशासन-शिक्षा आदि सभी क्षेत्रों में असहयोग प्रारम्भ कर दिया। इससे अंग्रेजों को यह समझ में आने लगा। कि भारत को अब अधिक समय तक गुलाम नहीं रखा जा सकता। अन्ततः उन्होंने भारत का दो भागों में विभाजन करके 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत की स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी।

गाँधीजी की मृत्यु-गाँधीजी की मानवतावादी नीति को मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति समझकर एक भ्रान्त युवक नाथूराम गोडसे ने प्रार्थना को जाते समय 30 जनवरी, 1948 ई० को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। ‘हे राम’ का उच्चारण करता हुआ मानवता का यह पोषक सदा के लिए सो गया।

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गाँधीजी का आदर्श व्यक्तित्व-गाँधीजी केवल राजनीतिक नेता ही नहीं थे, वरन् वे समाजसुधारक एवं ग्राम-सुधारक भी थे। उन्होंने समाज में हरिजनों की दयनीय दशा देखकर उनका उद्धार किया। समाज में नारी को सम्मानपूर्ण स्थान दिलाने का भरसक प्रयत्न किया। उनका विश्वास था कि भारत गाँवों में बसा हुआ है और गाँवों की उन्नति से ही देश की उन्नति हो सकती है।

गाँधीजी का व्यक्तित्व महान् था। उनकी ‘कथनी और करनी’ में कोई अन्तर नहीं था। ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ उनके जीवन का मूलमन्त्र था। ‘सत्य और अहिंसा’ उनके दिव्य अस्त्र थे। ‘प्रेम और शान्ति उनका सन्देश था। ‘रामराज्य’ उनका स्वप्न था। ‘पाप से घृणा करो, पापी से नहीं उनके हृदय के उद्गार थे।

वर्तमान समय में गाँधीजी की प्रासंगिकता–आज महापुरुषों को उनकी जयन्ती अथवा पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करना एक औपचारिकता मात्र रह गयी है। गाँधीजी का अनुयायी होने का दम भरने वाले नेता ही आज छल-छद्म, धोखाधड़ी व रिश्वतखोरी जैसे भ्रष्टाचार के मामलों में आकण्ठ डूबे दिखाई दे रहे हैं। गाँधीजी के देश में ही उनका गाँधीवाद नष्ट हो रहा है और लोकतन्त्र लड़खड़ा रहा है।

गाँधीजी ने स्वाधीनता और स्वावलम्बन के लिए विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर उनकी होली जलायी थी और राष्ट्रभाषा हिन्दी के माध्यम से स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ी थी, पर आज बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ, विदेशी भाषा और विदेशी वस्तुओं को कण्ठहार बनाया जा रहा है। (UPBoardSolutions.com) अहिंसा के पुजारी और शान्ति के दूत के ही देश में हिंसा, हत्या, अपहरण और बलात्कार आम हो गये हैं।

उपसंहार-संसार में अनेक महापुरुष हुए हैं, पर वस्तुतः गाँधीजी विश्व के सर्वश्रेष्ठ महापुरुषों में एक थे। यदि ईसा और बुद्ध धर्म-प्रचारक थे, वाशिंगटन तथा लेनिन कुशल राजनीतिज्ञ थे, कबीर और तुलसी जनता को भक्ति-रस में स्नान कराने वाले सन्त थे तो राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी एक साथ श्रेष्ठ सन्त, राजनीति विशारद, परम धर्मात्मा, समाज-सुधारक और मानवता के पोषक थे। गाँधीजी जैसे महापुरुष अमर होते हैं। तथा स्वार्थ, हिंसा और अनैतिकता के अन्धकार में भटकती मानवता के लिए प्रकाश-स्तम्भ के तुल्य होते हैं।

40. डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. शैक्षिक उपलब्धियाँ,
  3. जीवन की सफलताएँ,
  4. प्रेरणा के स्रोत,
  5. उपसंहार।

प्रस्तावना-तमिलनाडु के मध्यमवर्गीय परिवार में डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 ई० को हुआ था। जिनका पूरा नाम-अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन अबुल कलाम था। इनके पिता का नाम जैनुलाब्दीन था जो मछुआरों को किराये पर नाव देने का काम करते थे। इनको बचपन से ही पायलट बनकर आसमान की अनन्त ऊँचाइयों को छूने का सपना था। अपने इस सपने को साकार करने के लिए इन्होंने अखबार तक बेचा तथा (UPBoardSolutions.com) मुफलिसी में भी अपनी पढ़ाई जारी रखी और संघर्ष करते हुए उच्च शिक्षा हासिल कर पायलट की भर्ती परीक्षा में सम्मिलित हुए। उस परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बावजूद उनका चयन नहीं हो सका, क्योंकि उस परीक्षा के द्वारा केवल आठ पायलटों का चयन होना था और सफल अभ्यर्थियों की सूची में उनका नौंवा स्थान था। इस घटना से निराशा होने पर भी उन्होंने हार नहीं मानी और दृढ़-निश्चय के बल पर उन्होंने सफलता की ऐसी बुलन्दियाँ हासिल कीं, जिनके सामने सामान्य पायलटों की उड़ानें अत्यन्त तुच्छ नजर आती हैं।

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शैक्षिक उपलब्धियाँ-उनका व्यक्तित्व एक तपस्वी और कर्मयोगी का रहा। इन्होंने संघर्ष करते हुए प्रारम्भिक शिक्षा रामेश्वरम् के प्राथमिक स्कूल से प्राप्त करने के बाद रामनाथपुरम् के शवट्ज़ हाईस्कूल से मैट्रिकुलेशन किया। इसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए तिरुचिरापल्ली चले गए। वहाँ के सेन्ट जोसेफ कॉलेज से उन्होंने बी.एस-सी. की उपाधि प्राप्त की। बी. एस-सी. के बाद 1958 ई० में उन्होंने मद्रास इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इन्जीनियरिंग में डिप्लोमा किया।

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉ० कलाम ने हावरक्राफ्ट परियोजना एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। इसके बाद 1962 ई० में वे भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन में आए, जहाँ उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी 3 के निर्माण में भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी प्रक्षेपण यान से जुलाई, 1980 ई० में रोहिणी उपग्रह का अन्तरिक्ष में सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया। 1982 ई० में वे भारतीय रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संगठन में वापस निदेशक के तौर पर आए तथा अपना सारा ध्यान गाइडेड मिसाइल के विकास पर केन्द्रित किया। अग्नि मिसाइल एवं पृथ्वी मिसाइल के सफल परीक्षण का श्रेय भी इन्हीं को जाता है। उस महान व्यक्तित्व ने भारत को अनेक मिसाइलें प्रदान कर इसके सामरिक दृष्टि से इतना सम्पन्न कर दिया कि पूरी दुनिया इन्हें ‘मिसाइल मैन’ के नाम से जानने लगी।

जीवन की सफलताएँ-जुलाई, 1992 ई० में वे भारतीय रक्षा मन्त्रालय में वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त हुए। उनकी देखरेख में भारत ने 1998 ई० में पोखरण में दूसरा सफल परमाणु परीक्षण किया और परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों की सूची में शामिल हुआ। वर्ष 1963-64 के दौरान कलाम ने अमेरिका के अन्तरिक्ष संगठन नाशा की भी यात्रा की। वैज्ञानिक के रूप में कार्य करने के दौरान अलग-अलग प्रणालियों को एकीकृत रूप देना उनकी विशेषता थी। उन्होंने अन्तरिक्ष एवं सामरिक प्रौद्योगिकी का उपयोग कर नए उपकरणों का निर्माण भी किया।

डॉ० कलाम की उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 1981 ई० पद्मभूषण और 1990 ई० में पदम् विभूषण से सम्मानित किया। इसके बाद उन्हें विश्वभर के 30 से अधिक विश्वविद्यालयों ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि से विभूषित किया। 1997 ई० में भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया।

एक दिन ऐसा भी आया जब उन्होंने भारत के सर्वोच्च पद पर 26 जुलाई, 2002 को ग्यारहवें राष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण किया। उन्होंने इस पद को 25 जुलाई, 2007 तक सुशोभित किया। वे राष्ट्रपति भवन को सुशोभित करने वाले प्रथम वैज्ञानिक हैं। राष्ट्रपति के रूप में (UPBoardSolutions.com) अपने कार्यकाल में उन्होंने कई देशों का दौरा किया एवं भारत का शान्ति का सन्देश दुनिया भर को दिया। इस दौरान उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया एवं अपने व्याख्यानों द्वारा देश के नौजवानों का मार्गदर्शन करने एवं उन्हें प्रेरित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया।

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सीमित संसाधनों एवं कठिनाइयों के होते हुए भी उन्होंने भारत को अन्तरिक्ष अनुसन्धान एवं प्रक्षेपास्त्रों के क्षेत्र में एक ऊँचाई प्रदान की। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। कलाम जी का व्यक्तिगत जीवन बेहद अनुशासित रहा। वे शाकाहारी थे तथा कुरान एवं भगवद्गीता दोनों का अध्ययन करते थे। संगीत से उनका बेहद लगाव था। कलाम ने तमिल भाषा में कविताएँ भी लिखीं। जिनका अनुवाद विश्व की कई भाषाओं में हो चुका है। इसके अतिरिक्त उन्होंने कई प्रेरणास्पद पुस्तकों की भी रचना की है। भारत 2020 : नई सहस्राब्दी । के लिए एक दृष्टि’, ‘इग्नाइटेड माइण्ट्स : अनलीशिंग द पावर विदिन इण्डिया’, ‘इण्डिया माय ड्रीम’, ‘विंग्स ऑफ फायर’ उनकी प्रसिद्ध पुस्तकें हैं। उनकी पुस्तकों का कई भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उनका मानना है कि भारत तकनीकी क्षेत्र में पिछड़ जाने के कारण ही अपेक्षित उन्नति-शिखर पर नहीं पहुंच पाया है। इसलिए अपनी पुस्तक ‘भारत 2020 : नई सहस्राब्दी के लिए एक दृष्टि’ के द्वारा उन्होंने भारत के विकास-स्तर को 2020 तक विज्ञान के क्षेत्र में अत्याधुनिक करने के लिए देशवासियों को एक विशिष्ट दृष्टिकोण प्रदान किया। यही कारण है कि वे देश की नई पीढ़ी के लोगों के बीच काफी लोकप्रिय रहे हैं।

प्रेरणा के स्रोत–पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम हमेशा से युवाओं को ऊर्जावान बनाने के लिए उनका हौंसला बढ़ाते रहते थे। युवाओं के उज्ज्वल भविष्य के लिए उनकी कहीं कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें अपनाकर कोई भी छात्र बुलन्दियों को छू सकता है। उनकी कही बातें हमेशा युवाओं का मार्गदर्शन करती रहेंगी।

कलाम ने कहा था

चलो हम अपना आज कुर्बान करते हैं जिससे हमारे बच्चों को बेहतर कल मिले।.।।
भगवान उन्हीं की मदद करता है जो कड़ी मेहनत करते हैं। यह सिद्धान्त स्पष्ट होना आवश्यक है।
सपने सच हों, इसके लिए सपने देखना जरूरी है।
छात्रों को प्रश्न जरूर पूछना चाहिए, यह छात्र का सर्वोत्तम गुण है।
अगर एक देश को भ्रष्टाचार मुक्त होना है तो मैं यह महसूस करता हूँ कि हमारे समाज में तीन ऐसे लोग हैं जो ऐसा कर सकते हैं, ये हैं-पिता, माता और शिक्षक।
युवाओं के लिए कलाम का विशेष संदेश था—अलग ढंग से सोचने का साहस करो, आविष्कार का साहस करो. अज्ञात पथ पर चलने का साहस करो. असम्भव को खोजने का साहस करो और समस्याओं को जीतो और सफल बनो। ये वे महान गुण हैं जिनकी दिशा में तुम अवश्य काम करो।
हमें हार नहीं माननी चाहिए और समस्याओं को हम पर हावी नहीं होना चाहिए।

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उपसंहार-डॉ० कलाम के निधन से समाज को जो अपूरणीय क्षति हुई है, उसे भर पाना नामुमकिन है, परन्तु उनके आदर्शों पर चलकर हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अवश्य दे सकते हैं। ऐसे युगपुरुष, महान वैज्ञानिक, दार्शनिक, कर्मयोगी और खुशहाल भारत के स्वप्नदृष्टा, जिनके व्यक्तित्व से देश की आने वाली पीढ़ियाँ प्रेरणा लेती रहेंगी।

41. छात्र और अनुशासन [2013, 14, 15, 16]

सम्बद्ध शीर्षक

  • विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्त्व [2013]
  • विद्यार्थी जीवन में अनुशासन [2011, 16]
  • जीवन में अनुशासन का महत्त्व [2018]

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. विद्यार्थी और विद्या,
  3. अनुशासन का स्वरूप और महत्त्व,
  4. अनुशासनहीनता के कारण,
  5. निवारण के उपाय,
  6. उपसंहार।

प्रस्तावना विद्यार्थी देश का भविष्य हैं। देश के प्रत्येक प्रकार का विकास विद्यार्थियों पर ही निर्भर है। विद्यार्थी जाति, समाज और देश का निर्माता होता है; अतः विद्यार्थी का चरित्र उत्तम होना बहुत आवश्यक है। उत्तम चरित्र अनुशासन से ही बनता है। अनुशासन जीवन का प्रमुख (UPBoardSolutions.com) अंग और विद्यार्थी जीवन की आधारशिला है। व्यवस्थित जीवन व्यतीत करने के लिए मात्र विद्यार्थी ही नहीं अपितु प्रत्येक मनुष्य के लिए अनुशासित होना अति आवश्यक है। आज विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता की शिकायत सामान्य-सी बात हो गयी है। इससे शिक्षा-जगत् ही नहीं, अपितु सारा समाज प्रभावित हुआ है।

विद्यार्थी और विद्या-‘विद्यार्थी’ का अर्थ है-‘विद्या का अर्थी’ अर्थात् विद्या प्राप्त करने की कामना करने वाला। विद्या लौकिक या सांसारिक जीवन की सफलता का मूल आधार है, जो गुरु-कृपा से प्राप्त होती है।

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संसार में विद्या सर्वाधिक मूल्यवान् वस्तु है, जिस पर मनुष्य के भावी जीवन का सम्पूर्ण विकास तथा सम्पूर्ण नति निर्भर करती है। इसी कारण महाकवि भर्तृहरि विद्या की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि “विद्या ही मनुष्य का श्रेष्ठ स्वरूप है, विद्या भली-भाँति छिपाया हुआ धन है (जिसे दूसरा चुरा नहीं सकता) । विद्या ही सांसारिक भोगों को तथा यश और सुख को देने वाली है, विद्या गुरुओं की भी गुरु है। विद्या ही श्रेष्ठ ५. देवता है। राजदरबार में विद्या ही आदर दिलाती है, धन नहीं। अत: जिसमें विद्या नहीं, वह निरा पशु है। इस अमूल्य विद्यारूपी रत्न को पाने के लिए इसका जो मूल्य चुकाना पड़ता है, वह है तपस्या। इस तपस्या का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कवि कहता है

सुखार्थिनः कुतो विद्या, कुतो विद्यार्थिनः सुखम्।
सुखार्थी वा त्यजेद् विद्या, विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् ॥

अनुशासन का स्वरूप और महत्त्व-‘अनुशासन’ का अर्थ है-बड़ों की आज्ञा (शासन) के पीछे (अनु) चलना। ‘अनुशासन का अर्थ वह मर्यादा है जिनका पालन ही विद्या प्राप्त करने और उसका उपयोग करने के लिए अनिवार्य होता है। अनुशासन का भाव सहज रूप से विकसित किया जाना चाहिए। थोपे जाने पर अथवा बलपूर्वक पालन कराये जाने पर यह लगभग अपना उद्देश्य खो देता है। विद्यार्थियों के प्रति प्रायः सभी को यह शिकायत रहती है कि वे अनुशासनहीन होते जा रहे हैं, किन्तु शिक्षक वर्ग को भी इसका कारण ढूंढ़ना चाहिए कि क्यों विद्यार्थियों की उनमें श्रद्धा विलुप्त होती जा रही है।

अनुशासनहीनता के कारण-वस्तुत: विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता एक दिन में पैदा नहीं हुई है। इसके अनेक कारण हैं, जिन्हें मुख्यत: निम्नलिखित चार वर्गों में बाँटा जा सकता है
(क) पारिवारिक कारण–बालक की पहली पाठशाला उसका परिवार है। माता-पिता के आचरण का बालक पर गहरा प्रभाव पड़ता है। आज बहुत-से ऐसे परिवार हैं जिनमें माता-पिता दोनों नौकरी करते हैं या अलग-अलग व्यस्त रहते हैं। इससे बालक उपेक्षित होकर विद्रोही बन जाता है।
(ख) सामाजिक कारण–विद्यार्थी जब समाज में चतुर्दिक् व्याप्त भ्रष्टाचार, घूसखोरी, सिफारिशबाजी, (UPBoardSolutions.com) भाई-भतीजावाद, फैशनपरस्ती, विलासिता और भोगवाद अर्थात् हर स्तर पर व्याप्त अनैतिकता को देखता है तो वह विद्रोह कर उठता है और अध्ययन की उपेक्षा करने लगता है।
(ग) राजनीतिक कारण-छात्र-अनुशासनहीनता का एक बहुत बड़ा कारण दूषित राजनीति है। आज राजनीति जीवन के हर क्षेत्र पर छा गयी है। सारे वातावरण को उसने इतना विषाक्त कर दिया है कि स्वस्थ वातावरण में साँस लेना कठिन हो गया है।
(घ) शैक्षिक कारण—छात्र-अनुशासनहीनता का कदाचित् सबसे प्रमुख कारण यही है। अध्ययन के लिए आवश्यक अध्ययन-सामग्री, भवन एवं अन्यान्य सुविधाओं का अभाव, कर्तव्यपरायण एवं चरित्रवान् शिक्षकों के स्थान पर अयोग्य, अनैतिक और भ्रष्ट अध्यापकों की नियुक्ति, अध्यापकों द्वारा छात्रों की कठिनाइयों की उपेक्षा करके ट्यूशन आदि के चक्कर में लगे रहना या मनमाने ढंग से कक्षाएँ लेना आदि छात्र-अनुशासनहीनता के प्रमुख शैक्षिक कारण हैं।

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निवारण के उपाय-यदि शिक्षकों को नियुक्त करते समय सत्यता, योग्यता और ईमानदारी का आकलन अच्छी प्रकार कर लिया जाए तो प्राय: यह समस्या उत्पन्न ही न हो। प्रभावशाली, गरिमामण्डित, विद्वान् और प्रसन्नचित्त शिक्षक के सम्मुख विद्यार्थी सदैव अनुशासनबद्ध रहते हैं। पाठ्यक्रम को अत्यन्त सुव्यवस्थित वे सुनियोजित, रोचक, ज्ञानवर्धक एवं विद्यार्थियों के मानसिक स्तर के अनुरूप होना चाहिए।

छात्र-अनुशासनहीनता के उपर्युक्त कारणों को दूर करके ही हम इस समस्या का समाधान कर सकते हैं। सबसे पहले वर्तमान शिक्षा-व्यवस्था को इतना व्यावहारिक बनाया जाना चाहिए कि शिक्षा पूरी करके विद्यार्थी अपनी आजीविका के विषय में पूर्णत: निश्चिन्त हो सके। शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी के स्थान पर मातृभाषा हो। शिक्षा सस्ती की जाए और निर्धन किन्तु योग्य छात्रों को नि:शुल्क उपलब्ध करायी जाए। परीक्षा-प्रणाली स्वच्छ हो, जिससे योग्यता का सही और निष्पक्ष मूल्यांकन हो सके।

उपसंहार—छात्रों के समस्त असन्तोषों का जनक अन्याय है। इसलिए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से अन्याय को मिटाकर ही देश में सच्ची सुख-शान्ति लायी जा सकती है। छात्र-अनुशासनहीनता का मूल भ्रष्ट राजनीति, समाज, परिवार और दूषित शिक्षा-प्रणाली में निहित है। इनमें सुधार लाकर ही हम विद्यार्थियों में व्याप्त अनुशासनहीनता की समस्या का स्थायी समाधान ढूंढ़ सकते हैं।

42. शिक्षा में क्रीड़ा का महत्त्व

सम्बद्ध शीर्षक

  • राष्ट्रीय जीवन में क्रीड़ा का महत्त्व
  • जीवन में खेलकूद का महत्त्व [2011, 12]

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. जीवन में खेलों का महत्त्व,
  3. शिक्षा में खेलों का महत्त्व,
  4. राष्ट्रीय जीवन में खेलों का महत्त्व,
  5. भारत में खेलों की स्थिति,
  6. कुछ सुझाव,
  7. उपसंहार।

प्रस्तावना-मानव ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है। इसलिए समग्र मानवता को स्वस्थ, सबल और कर्म-निरत रखने के लिए खेलों को महत्त्व देना अत्यावश्यक है। महर्षि चरक का कथन है-‘ धर्मार्थकाम-मोक्षाणां आरोग्यं मूलकारणम्’; अर्थात् धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—ये चारों (UPBoardSolutions.com) सिद्धियाँ तभी प्राप्त होती हैं जब शरीर स्वस्थ रहे और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए खेल आवश्यक हैं। खेलों की उपेक्षा करके जीवन के सन्तुलित विकास की कल्पना करना व्यर्थ है। यही कारण है कि प्रत्येक देश में स्वाभाविक रूप से खेलकूद (क्रीड़ा) और व्यायाम का महत्त्व होता है।

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जीवन में खेलों का महत्त्व–महाकवि कालिदास ने कहा है कि ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्। तात्पर्य यह है कि किसी धर्म-साधना के लिए अथवा कर्तव्य-निर्वाह के लिए स्वस्थ और पुष्ट शरीर का होना अति आवश्यक है और शरीर को पुष्ट करने में खेलों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। खिलाड़ी का शरीर स्वस्थ होता है और जब शरीर स्वस्थ रहेगा तो मन और मस्तिष्क भी स्वस्थ रहेंगे। एक कहावत हैं— ‘A healthy mind is in a healthybody’; अर्थात् स्वस्थ मस्तिष्क स्वस्थ शरीर में ही सम्भव है। अतः स्पष्ट है कि जीवन में खेलों का अत्यधिक महत्त्व है। खेलों से भाईचारा तथा आत्मविश्वास बढ़ता है, सहिष्णुता आती है और मिलकर रहने की या जीवन जीने की भावना उत्पन्न होती है।

शिक्षा में खेलों का महत्त्व-शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य का सर्वांगीण विकास करना है। सर्वांगीण विकास के अन्तर्गत शरीर, मन और मस्तिष्क भी आते हैं। खेलों से शरीर के सभी महत्त्वपूर्ण अंगों का विकास होता है। विद्यार्थी ही नहीं, अपितु प्रत्येक व्यक्ति एक ही जैसी दिनचर्या व काम से ऊब जाता है। इसलिए ऐसी स्थिति में उसे परिवर्तन की जरूरत महसूस होती है। छात्रों की मन भी पुस्तकीय शिक्षा से अवश्य ही ऊबता है; अत: छात्रों की मानसिक स्थिति में परिवर्तन के लिए छात्रों को खेल खिलाना आवश्यक हो जाता है। इससे उनका मनोरंजन हो जाता है और एकरसता भी टूट जाती है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उनका शरीर पुष्ट और स्वस्थ हो जाता है।

खेलकूद अप्रत्यक्ष रूप से आध्यात्मिक विकास में भी सहायक होते हैं। खेलकूद से प्राप्त प्रफुल्लता और उत्साह से जीवन-संग्राम में जूझने की शक्ति प्राप्त होती है। इतना ही नहीं, सच्चा खिलाड़ी तो हानिलाभ, यश-अपयश, सफलता-असफलता को समान भाव से ग्रहण करने का भी अभ्यस्त हो जाता है।

राष्ट्रीय जीवन में खेलों का महत्त्व—किसी भी राष्ट्र का निर्माण भूमि, मनुष्य तथा उसकी संस्कृति के समन्वित रूप से होता है। इन सभी तत्त्वों में संस्कृति का विशेष महत्त्व है और खेल हमारी सांस्कृतिक विरासत भी हैं। सहयोग, प्रेम, अहिंसा, सहिष्णुता और एकता का इसमें विशेष महत्त्व है। ये सभी गुण खेलों के माध्यम से ही उत्पन्न होते हैं। खेल खेलते समय हमारी संकीर्ण मनोवृत्तियाँ; यथा-अस्पृश्यता, जातिवाद, धार्मिक विभेद, क्षेत्रवाद, भाषावाद आदि (UPBoardSolutions.com) अलगाववादी भावनाएँ समाप्त हो जाती हैं और शुद्ध एकता की अनुभूति होती है। खेलों से राष्ट्रीयता की जड़े मजबूत होती हैं।

भारत में खेलों की स्थिति—हमें यह देखकर बहुत दु:ख होता है कि हमारे देश में खेलों की स्थिति बहुत दयनीय है। अन्तर्राष्ट्रीय खेलों में जब कभी अपने देश का नाम देखने का मन करता है तो दुर्भाग्यवश हमें अन्त से प्रारम्भ की ओर देखना पड़ता है। कभी हॉकी में सिरमौर रहा हमारा देश आज वहाँ भी शून्यांक पर दिखाई देता है। जसपाल राणा, पी० टी० उषा, लिएण्डर पेस के बाद कुछ ही आशा की किरणें हैं, जो कभी-कभी अन्धकार में प्रकाश बिखेरती हैं। खेलों में राजनीति के प्रवेश ने उनका स्तर घटिया कर दिया है।

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कैसी विडम्बना है कि विश्व की सर्वाधिक आबादी रखने वाले देशों में द्वितीय स्थान वाला भारत, ओलम्पिक खेलों में मात्र कुछ-एक काँस्य और रजत पदक ही प्राप्त कर पाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में एक से बढ़कर एक एथलीट्स मिल सकते हैं और यदि उन्हें उचित प्रशिक्षण दिया जाए तो वे अन्तर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में बहुत-सा सोना बटोर सकते हैं, पर ऐसा नहीं होता। पहुँच वालों के चहेते ही सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बनकर देश को अपमान का पूँट पीने को विवश करते हैं।

कुछ सुझाव-शरीर में स्फूर्ति और मन में उल्लास भरकर सामाजिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता की भावना जगाने वाले खेलों की उपेक्षा करना उचित नहीं है। खेल मनुष्य में सहिष्णुता, साहस, धैर्य और सरसता उत्पन्न करते हैं; अतः विद्यालय समय में ही कक्षावार खेल खिलाने तथा प्रतिस्पर्धात्मक मैच खिलाने की अनिवार्य व्यवस्था होनी चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में ब्लॉक स्तर पर जो क्रीड़ा प्रतियोगिताएँ होती हैं, उनमें छात्रों के अलावा अन्य ग्रामीण युवक-युवतियों की प्रतिभागिता भी सुनिश्चित होनी चाहिए। हमारी सरकार ऐसी खेल नीति बनाये, जिसमें सभी प्रकार के खेलों के गिरते स्तर को सुधारने के लिए केवल नगरों में ही नहीं, अपितु ग्रामीण क्षेत्रों (UPBoardSolutions.com) में भी अच्छे कोच तथा खेल के मैदान उपलब्ध कराये जाएँ।

उपसंहार—जीवन के प्रत्येक भाग में खेलों का अपना विशेष महत्त्व है, चाहे विद्यार्थी जीवन हो या सामाजिक। इन खेलों से स्फूर्ति, आनन्द, उल्लास, एकता, सद्भाव, सहयोग और सहिष्णुता जैसे मानवीय गुणों का विकास होता है, बन्धुत्व की भावना बढ़ती है और शरीर स्वस्थ रहता है। इसलिए खेलों के प्रति रुचि जगाने तथा खेलों के गिरते स्तर को उन्नत बनाने के लिए क्रीड़ा प्रतियोगिताओं का समय-समय पर आयोजन होना ही चाहिए। यदि सच्चे मन से और निष्पक्ष भाव से खेलों के विकास की ओर ध्यान दिया जाएगा तो ओलम्पिक के साथ-साथ अन्य राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में भी देश को मान-सम्मान अवश्य मिलेगा।

43. जनतन्त्र और शिक्षा

सम्बद्ध शीर्षक

  • सार्वजनिक शिक्षा अभियान

रूपरेखा—

  1. प्रस्तावना,
  2. जनतन्त्र का अर्थ,
  3. जनतन्त्र का उद्देश्य,
  4. जनतन्त्र के आधार,
  5. जनतन्त्र और शिक्षा,
  6. जनतन्त्र में शिक्षा,
  7. उपसंहार।

प्रस्तावना–शिक्षा जनतन्त्र के लिए संजीवनी और अमृत तुल्य है। जनतन्त्र में शिक्षा की समुचित व्यवस्था जनतन्त्र को प्रभावी और प्रोन्नत बनाती है। जनतन्त्र जीवन की एक पद्धति है, जिसमें व्यक्ति के अस्तित्व को महत्त्व प्रदान किया जाता है। शिक्षा व्यक्ति के व्यक्तित्व की विधायक है।

जनतन्त्र का अर्थ–जनतन्त्र एक व्यापक व्यवस्था है, जिसके अन्तर्गत व्यक्ति से सम्बन्धित राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक सभी क्षेत्र आते हैं। जनतन्त्र शासन का वह रूप है, जिसमें शासन की शक्ति सम्पूर्ण जन-समाज के सदस्यों में निहित होती है। राजनीतिक दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति इसमें भाग लेने का अधिकारी है। यह जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता के प्रतिनिधियों का शासन है। केण्डेल के अनुसार, “जनतन्त्र एक आदर्श के रूप में जीवन की एक विधि है, जो व्यक्ति की स्वतन्त्रता एवं उसके उत्तरदायित्व पर आधारित है।” शिक्षा के क्षेत्र में जनतन्त्र के अनुसार व्यक्ति को समान सुविधा, स्वतन्त्रता एवं व्यक्तित्व-विकास के समान अवसर प्राप्त होते हैं।

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जनतन्त्र का उद्देश्य-जनतन्त्र एक जीवन-दर्शन है। मानव के विकास एवं समाज के कल्याण में जनतन्त्र की सफलता निहित है। जनतन्त्र का लक्ष्य समाज की सभी क्रियाओं में व्यक्ति को समान रूप से अधिकार दिलाना है। उत्तम नागरिक का निर्माण जनतन्त्र का मुख्य कर्तव्य है। शिक्षा के आधार पर ही जनतन्त्र के व्यवहार एवं आदर्श निश्चित होते हैं।

जनतन्त्र के आधार–शिक्षा के क्षेत्र में जनतन्त्र की भावना को सफल बनाने के लिए (UPBoardSolutions.com) कुछ उपाय बताये गये हैं, जो निम्नलिखित हैं

  1. मानव व्यक्तित्व की सुरक्षा तथा आदर,
  2. प्रत्येक व्यक्ति को स्वतन्त्रता, समानता तथा सामाजिक न्याय की प्राप्ति,
  3. व्यक्ति की जनतन्त्र में आस्था, जागरूकता, क्षमता तथा योग्यता,
  4. अधिकार के साथ उत्तरदायित्व का निर्वाह,
  5. शान्तिपूर्ण विचार-विनिमय द्वारा समस्या का समाधान,
  6. अल्पसंख्यकों की सुरक्षा तथा धर्मनिरपेक्षता,
  7. सहयोग, सहिष्णुता तथा बन्धुत्व की भावना,
  8. विरोधी-विचारों तथा मत प्रकाशन के अधिकार तथा
  9. स्वस्थ एवं स्वतन्त्र जीवन-दर्शन।

जनतन्त्र व्यक्ति के आचरण द्वारा ही जीवित रहता है। शिक्षा द्वारा ही मनुष्य में वे सभी गुण आ सकते हैं, जिनकी जनतन्त्र में अपेक्षा की जाती है। अतः जनतन्त्र की सफलता हेतु अच्छी शिक्षा-व्यवस्था आवश्यक है। जनतन्त्र में अनिवार्य नि:शुल्क शिक्षा का प्रावधान होना चाहिए।

जनतन्त्र और शिक्षा–सुयोग्य नागरिकों के ऊपर ही जनतन्त्र की सफलता आधारित होती है। शिक्षा द्वारा नागरिकों में विवेक का प्रादुर्भाव होता है। शिक्षा द्वारा ही मानव की भावनाओं को परिष्कृत कर मानवीय गुणों का विकास किया जाता है। जनतन्त्र में शिक्षा वह साधन है, जिससे व्यक्ति समाज के क्रिया-कलापों में सक्रिय भाग लेने में समर्थ होता है। समाज का निर्माण व्यक्ति करता है और व्यक्ति का निर्माण शिक्षा। शिक्षा जीवन की समस्याओं का समाधान करने के लिए साधन है। जनतन्त्र में जन-शिक्षा को प्रोत्साहन मिलता है।

शिक्षा का आदर्श स्वस्थ समाज का निर्माण करना है। जनतान्त्रिक शिक्षा व्यक्ति और समाज (UPBoardSolutions.com) में सन्तुलन स्थापित करती है। जनतन्त्र में शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का शारीरिक, बौद्धिक तथा नैतिक विकास करना है। समाज का यह दायित्व है कि वह व्यक्ति को प्रगति का वातावरण प्रदान करे, जिससे वह स्वहित साधन के साथ सामाजिक हित का भी संवर्द्धन करे। इस प्रकार जनतन्त्र और शिक्षा एक-दूसरे के पूरक हैं।।

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जनतन्त्र में शिक्षा—
(क) उद्देश्य-जनतन्त्र की शिक्षा एक सन्तुलित शिक्षा है, जिसमें बौद्धिक विकास के साथ-साथ सामाजिक गुणों तथा व्यावहारिक कुशलता का विकास भी होता है। शिक्षा समाज में तथा विद्यालय में सम्पर्क स्थापित करने का कार्य करती है। जनतन्त्र में शिक्षा का उद्देश्य होता है-व्यक्ति को योग्य (आदर्श) नागरिक बनाना।
(ख) पाठ्यक्रम-जनतन्त्र में शैक्षिक पाठ्यक्रम व्यापक होता है। एच० के० हेनरी के अनुसार, पाठ्यक्रम के अन्तर्गत सम्पूर्ण विद्यालय का वातावरण आता है, जिनका सम्बन्ध बालकों से होता है।” वास्तव में पाठ्यक्रम के अन्तर्गत विद्यालय की वे सभी बहुमुखी क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं, जिनका अनुभव छात्र को विद्यालये, कक्षा, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, खेल आदि के द्वारा उपलब्ध होता है। पाठ्यक्रम का निर्धारण करते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि बालकों में स्वतन्त्र चिन्तन तथा विचारशक्ति उत्पन्न हो और उनकी निर्णयात्मक शक्ति का विकास हो।।
(ग) विद्यालय का उत्तरदायित्व–समाज में जनतन्त्रीय आदर्शों की स्थापना में विद्यालय का महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व है। एच० जी० वेल्स के अनुसार, “विद्यालय संसार के लघु प्रतिरूप होने चाहिए, जिन्हें ग्रहण करने के हम इच्छुक हों।” विद्यालय छात्रों तथा समाज के जीवन में एकता लाता है तथा सामाजिक भावना का विकास करता है। विद्यालय के प्रशासन में राज्य का हस्तक्षेप जनतन्त्र के लिए बाधक होता है तथा विद्यालय को राजनीतिक व्यक्तियों की (UPBoardSolutions.com) दुर्भावना का शिकार होना पड़ता है, जिससे विद्यालयों की प्रगति अवरुद्ध हो जाती है।
(घ) अनुशासन–जनतन्त्र में अनुशासन का तात्पर्य बालक-बालिकाओं को जनतन्त्र के सामाजिक जीवन के लिए तैयार करना है। जनतन्त्र का सामाजिक जीवन स्वच्छन्दता का नहीं होता, अपितु उसमें एक व्यवस्था होती है, अच्छा आचरण और अनुशासन होता है। अनुशासन की परीक्षा बालकों के व्यवहार से होती है। अच्छे आचरण और अच्छे व्यवहार से तात्पर्य अच्छे चरित्र से होता है। इस कार्य में विद्यालय, समाज, अध्यापक तथा अभिभावक सबको प्रयास करना चाहिए।

उपसंहार-इस प्रकार जनतन्त्र और शिक्षा की मूलभूत बातों पर विचार करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि इनका मानव-जीवन में विशिष्ट महत्त्व है। टैगोर के अनुसार, “सफल शिक्षा समग्र जीवन को पूर्ण रूप से प्रभावित करती है।” जनतन्त्र और शिक्षा दोनों एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। शिक्षा जनतन्त्र की अनुजा है तथा शिक्षा और जनतन्त्र समान रूप से इस युग में पूजित तथा प्रतिष्ठित हैं।

44. जीवन में शिक्षा का महत्त्व

रूपरेखा

  1. प्रस्तावना,
  2. शिक्षा का उद्देश्य,
  3. शिक्षा की आवश्यकता,
  4. शिक्षा से ही समाज का उत्थान सम्भव,
  5. उपसंहार।

प्रस्तावना-शिक्षा-विहीन व्यक्ति सींग और पूँछरहित जानवर के समान होता है। शिक्षा मनुष्य को देवत्व की ओर ले जाती है। मनुष्य के भीतर विकास की जो सम्भावनाएँ होती हैं, उन्हें विकसित करना ही शिक्षा का मुख्य कार्य है। शिक्षा के अभाव में मनुष्य ने अपने लिए और न ही समाज के लिए उपयोगी हो पाता है। मानव सभ्यता का विकास, शिक्षा का ही विकास है। प्राचीन काल की शिक्षा में गुरु का अधिक महत्त्व रहता था। गुरुजनों ने जो सत्य उपलब्ध किया, उसे शिष्यों तक पहुँचाना वे अपना कर्तव्य समझते थे। पुस्तकीय ज्ञान को विद्यार्थियों के मस्तिष्क में ढूंस देना ही शिक्षा का मुख्य लक्ष्य स्वीकार नहीं किया जा सकता।

शिक्षा का उद्देश्य–शिक्षा का उद्देश्य है-संस्कार देना। मनुष्य के शारीरिक, मानसिक तथा भावात्मक विकास में योगदान देना शिक्षा का मुख्य कार्य है। शिक्षित व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहता है, स्वच्छता को जीवन में महत्त्व देता है और उन सभी बुराइयों से दूर रहता है, जिनसे स्वास्थ्य को हानि पहुँचती है। रुग्ण शरीर के कारण शिक्षा में बाधा पड़ती है। शिक्षा हमारे ज्ञान का विस्तार करती है। ज्ञान का प्रकाश जिन खिड़कियों से प्रवेश करता है, (UPBoardSolutions.com) उन्हीं से अज्ञान और रूढ़िवादिता का अन्धकार निकल भागता है। शिक्षा के द्वारा मनुष्य अपने परिवेश को पहचानने और समझने में सक्षम होता है। विश्व में ज्ञान का जो विशाल भण्डार है, उसे हम शिक्षा के माध्यम से ही प्राप्त कर सकते हैं। सृष्टि के रहस्यों को खोलने की कुंजी शिक्षा ही है। अशिक्षित व्यक्ति रूढ़ियों, अन्धविश्वासों एवं कुरीतियों का शिकार हो सकता है। शिक्षा हमारी भावनाओं का संस्कार करती है और हमारे दृष्टिकोण को उदार बनाती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शिक्षा का उद्देश्य मानव का सर्वांगीण विकास करना है।

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शिक्षा की आवश्यकता–समाजे मानवीय सम्बन्धों का ताना-बाना है। व्यक्ति और समाज का सम्बन्ध अत्यन्त गहरा है। व्यक्ति के अभाव में समाज का अस्तित्व और समाज के अभाव में सभ्य मनुष्य की कल्पना कर सकना भी असम्भव है। समाज का स्वास्थ्य, व्यक्तियों के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। यदि समाज में रहने वाले व्यक्ति स्वस्थ, सुशिक्षित, उदार, संवेदनशील एवं परोपकारी होंगे, तो समाज अवश्य उन्नति करेगा। प्रत्येक सभ्य समाज की प्रमुख चिन्ता यही होती है कि वह किसी प्रकारे अपने नागरिकों की क्षमता को बढ़ा सके। समाज का प्रत्येक व्यक्ति समाज से जितना लेता है उससे अधिक देने में सक्षम हो सके तभी समाज का विकास सम्भव है। शिक्षित व्यक्ति में ही यह क्षमता विकसित हो सकती है। शिक्षित व्यक्ति ही एक अच्छा व्यापारी, कर्मचारी, डॉक्टर, अध्यापक, इंजीनियर अथवा नेता हो सकता है। शिक्षित व्यक्ति समाज में रहने के लिए बेहतर स्थान बना सकता है।

शिक्षा से ही समाज का उत्थान सम्भव–शिक्षा के प्रसार द्वारा ही समाज में समता, सहयोग एवं शोषणरहित व्यवस्था का निर्माण सम्भव है। आज भारत में साक्षरता अभियान पर बल दिया जा रहा है; क्योंकि साक्षर और शिक्षित नागरिक ही सामाजिक कुरीतियों से लड़ सकते हैं। रूढ़िबद्ध समाज में परिवर्तन लाने का साधन शिक्षा ही हो सकती है। शिक्षित व्यक्ति अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझ सकता है। वह आसानी से शोषण का शिकार नहीं हो सकता; क्योंकि प्राय: अज्ञानता ही मनुष्य को असहाय बनाती है।

शिक्षित व्यक्ति ही प्रजातन्त्र की सफलता में सहयोग दे सकते हैं। प्रजातन्त्र का आधार प्रबुद्ध जनमत है। (UPBoardSolutions.com) शिक्षित व्यक्ति ही राष्ट्रीय समस्याओं को ठीक प्रकार से समझ सकता है। इस प्रकार शिक्षा प्रजातन्त्र की सफलता के लिए अत्यधिक आवश्यक है।

नारी मुक्ति आन्दोलन में भी शिक्षा का अत्यधिक महत्त्व है। शिक्षित नारी अपने परिवार तथा समाज के लिए उपयोगी भूमिका निभा सकती है। वह बच्चों को अच्छे संस्कार दे सकती है, घर को सजा-सँवार सकती है, आत्म-निर्भर हो सकती है, अपने अधिकारों के लिए लड़ सकती है और शोषण का विरोध कर सकती है।

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उपसंहार-निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सामाजिक परिवर्तन में शिक्षित नागरिकों की भूमिका ही महत्त्वपूर्ण हो सकती है। शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य का सर्वांगीण विकास है। व्यक्ति के विकास में ही समाज का विकास निहित है। 45. मेरे प्रिय साहित्यकार

45. मेरे प्रिय साहित्यकार (जयशंकर प्रसाद) [2010, 15]

सम्बद्ध शीर्षक

  • मेरे प्रिय कवि [2013, 14]
  • मेरे प्रिय लेखक [2009]

रूपरेखा–

  1. प्रस्तावना,
  2. साहित्यकार का परिचय,
  3. साहित्यकार की साहित्य-सम्पदा,
  4. छायावाद के श्रेष्ठ कवि,
  5. श्रेष्ठ गद्यकार,
  6. उपसंहार।

प्रस्तावना–संसार में सबकी अपनी-अपनी रुचि होती है। किसी व्यक्ति की रुचि चित्रकारी में है तो किसी की संगीत में। किसी की रुचि खेलकूद में है तो किसी की साहित्य में। मेरी अपनी रुचि भी साहित्य में रही है। साहित्य प्रत्येक देश और प्रत्येक काल में इतना अधिक रचा गया है कि उन सबका पारायण तो एक जन्म में सम्भव ही नहीं है। फिर साहित्य में भी अनेक विधाएँ हैं–कविता, उपन्यास, नाटक, कहानी, निबन्ध आदि। अतः मैंने सर्वप्रथम हिन्दी-साहित्य (UPBoardSolutions.com) को यथाशक्ति अधिकाधिक अध्ययन करने का निश्चय किया और अब तक जितना अध्ययन हो पाया है, उसके आधार पर मेरे सर्वाधिक प्रिय साहित्यकार हैं-जयशंकर प्रसाद प्रसाद जी केवल कवि ही नहीं, नाटककार, उपन्यासकार, कहानीकार और निबन्धकार भी हैं। प्रसाद जी ने हिन्दी-साहित्य में युगान्तरकारी परिवर्तन किये हैं। उन्होंने हिन्दी भाषा को एक नवीन अभिव्यंजनाशक्ति प्रदान की है। इन सबने मुझे उनका प्रशंसक बना दिया है और वे मेरे प्रिय साहित्यकार बन गये हैं।

साहित्यकार का परिचय–श्री जयशंकर प्रसाद जी का जन्म सन् 1889 ई० में काशी के प्रसिद्ध सुँघनी साहु परिवार में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री बाबू देवी प्रसाद था। लगभग 11 वर्ष की अवस्था में ही जयशंकर प्रसाद ने काव्य-रचना आरम्भ कर दी थी। सत्रह वर्ष की अवस्था तक इनके ऊपर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा। इनके पिता, माता के बड़े भाई का देहान्त हो गया और परिवार का समस्त उत्तरदायित्व इनके सुकुमार कन्धों पर आ गया। गुरुतर उत्तरदायित्वों का निर्वाह करते हुए एवं अनेकानेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना करने के उपरान्त 15 नवम्बर, 1937 ई० को आपका देहावसान हुआ। अड़तालीस वर्ष के छोटे-से जीवन में इन्होंने जो बड़े-बड़े काम किये, उनकी कथा सचमुच अकथनीय है।

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साहित्यकार की साहित्य-सम्पदा–प्रसाद जी की रचनाएँ सन् 1907-08 ई० में सामयिक पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी थीं। ये रचनाएँ ब्रजभाषा की पुरानी शैली में थीं, जिनका संग्रह ‘चित्राधार’ में हुआ। सन् 1913 ई० में ये खड़ी बोली में लिखने लगे। प्रसाद जी ने पद्य और गद्य दोनों में साधिकार रचनाएँ कीं। इनकी रचनाओं का वर्गीकरण अग्रवत् है
(क) काव्य-कानन-कुसुम, प्रेम पथिक, महाराणा का महत्त्व, झरना, आँसू, लहर और कामायनी (नामाव्य)।
(ख) नाटक इन्होंने कुल मिलाकर 13 नाटक लिखे। इनके प्रसिद्ध नाटक हैं–चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, अजातशत्रु, जनमेजय का नागयज्ञ, कामना और ध्रुवस्वामिनी।।
(ग) उपन्यास–कंकाल, तितली और इरावती।।
(घ) कहानी–प्रसाद जी की विविध कहानियों के पाँच संग्रह हैं—छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आँधी और इन्द्रजाल।
(ङ) निबन्ध–प्रसाद जी ने साहित्य के विविध विषयों से सम्बन्धित निबन्ध लिखे, जिनका संग्रह है-काव्य और कली तथा अन्य निबन्ध।

छायावाद के श्रेष्ठ कवि–छायावाद हिन्दी कविता के क्षेत्र का एक आन्दोलन है, जिसकी अवधि सन् 1920-36 ई० तक मानी जाती है। ‘प्रसाद’ जी छायावाद के जन्मदाता माने जाते हैं। छायावाद एक आदर्शवादी काव्यधारा है, जिसमें वैयक्तिकता, रहस्यात्मकता, प्रेम, सौन्दर्य तथा स्वच्छन्दतावाद की सबल अभिव्यक्ति हुई है। प्रसाद की ‘आँसू’ नाम की कृति के साथ हिन्दी में छायावाद का जन्म हुआ। आँसू का प्रतिपाद्य है–विप्रलम्भ श्रृंगार। प्रियतम के वियोग की (UPBoardSolutions.com) पीड़ा वियोग के समय आँसू बनकर वर्षा की भाँति उमड़ पड़ती है

जो घनीभूत पीड़ा थी, स्मृति सी नभ में छायी।
दुर्दिन में आँसू बनकर, वह आज बरसने आयी।

प्रसाद जी के काव्य में छायावाद अपने पूर्ण उत्कर्ष पर दिखाई देता है। इनकी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण . रचना है-‘कामायनी’ महाकाव्य, जिसमें प्रतीकात्मक शैली पर मानव-चेतना के विकास का काव्यात्मक निरूपण किया गया है।

श्रेष्ठ गद्यकार-प्रसाद जी की सर्वाधिक ख्याति नाटककार के रूप में है। इन्होंने गुप्तकालीन भारत को आधुनिक परिवेश में प्रस्तुत करके गाँधीवादी अहिंसामूलक देशभक्ति का सन्देश दिया है। साथ ही अपने समय के सामाजिक आन्दोलनों को सफल चित्रण किया है। नारी की स्वतन्त्रता एवं महिमा पर उन्होंने सर्वाधिक बल दिया है। इनके प्रत्येक नाटक का संचालन सूत्र किसी नारी पात्र के हाथ में ही रहता है। इनके उपन्यास और कहानियों में भी सामाजिक भावना का प्राधान्य है, जिनमें दाम्पत्य-प्रेम के आदर्श रूप का चित्रण किया गया है। इनके निबन्ध विचारात्मक एवं चिन्तनप्रधान हैं।

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उपसंहार-पद्य और गद्य की सभी रचनाओं में इनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ एवं परिमार्जित हिन्दी है। इनकी शैली आलंकारिक एवं साहित्यिक है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि इनकी गद्य-रचनाओं में भी इनका छायावादी कवि हृदय झाँकता हुआ दिखाई देता है। मानवीय भावों और आदर्शों में उदारवृत्ति का सृजन विश्व-कल्याण के प्रति इनकी विशाल-हृदयता का सूचक है। हिन्दी-साहित्य के लिए प्रसाद जी की यह बहुत बड़ी देन है। अपनी विशिष्ट कल्पना-शक्ति, मौलिक अनुभूति एवं नूतन अभिव्यक्ति के फलस्वरूप प्रसाद जी हिन्दी-साहित्य में मूर्धन्य स्थान पर प्रतिष्ठित हैं। समग्रत: यह कहा जा सकता है कि प्रसाद जी का साहित्यिक व्यक्तित्व बहुत महान् है, जिस कारण वे मेरे सर्वाधिक प्रिय साहित्यकार रहे हैं।

46. मेरे प्रिय कवि : तुलसीदास [2016, 17]

सम्बद्ध शीर्षक

  • लोकनायक तुलसीदास
  • मेरा प्रिय कवि [2009, 10, 13]
  • मेरा प्रिय साहित्यकार [2010]

रूपरेखा—

  1. प्रस्तावना,
  2. जन्म की परिस्थितियाँ,
  3. लोकनायक तुलसीदास,
  4. तुलसी के राम,
  5. निष्काम भक्ति-भावना,
  6. धर्म-समन्वय की भावना पर बल–
    1. सगुण-निर्गुण का समन्वय,
    2. कर्म, ज्ञान एवं भक्ति का समन्वय,
    3. युगधर्म समन्वय,
    4. सामाजिक समन्वय,
    5. साहित्यिक समन्वय,
    6. उपसंहार।

प्रस्तावना–संसार में अनेक प्रसिद्ध साहित्यकार हुए हैं, जिनकी अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं। यदि मुझसे पूछा जाए कि मेरा प्रिय साहित्यकार कौन है? तो मेरा उत्तर होगा-महाकवि तुलसीदास। यद्यपि तुलसी के काव्य में भक्ति-भावना प्रधान है, परन्तु उनका काव्य कई सौ वर्षों के बाद भी भारतीय जनमानस में रचा-बसा हुआ है और उनका मार्ग-दर्शन कर रही है, इसलिए तुलसीदास मेरे प्रिय साहित्यकार हैं। उनकी भक्ति-भावना, समन्वयात्मक दृष्टिकोण तथा काव्य सौष्ठव ने मुझे अनायास अपनी ओर आकृष्ट किया है।

जन्म की परिस्थितियाँ—तुलसीदास जी का जन्म अत्यन्त विषम परिस्थितियों में हुआ था। हिन्दू समाज अशक्त होकर मुगलों के चंगुल में फंसा हुआ था। हिन्दू-समाज की संस्कृति और सभ्यता पर निरन्तर आघात हो रहे थे। कहीं पर कोई भी उचित आदर्श नहीं था। इस युग में मन्दिरों का विध्वंस और ग्रामों व नगरों का नाश दे रहा था। अच्छे संस्कार समाप्त हो रहे थे। तलवार के बल पर हिन्दुओं को मुसलमान बनाया जा रहा था। सर्वत्र धार्मिक विषमता व्याप्त थी। (UPBoardSolutions.com) विभिन्न सम्प्रदायों ने अपनी इफली, अपना राग अलापना आरम्भ कर दिया था। ऐसी स्थिति में भोली-भाली जनता यह समझने में असमर्थ थी कि वह किस सम्प्रदाय का आश्रय ले। दिग्भ्रमित जनता को ऐसे नाविक की आवश्यकता थी, जो उनकी जीवन-नौका को सँभाल सके। गोस्वामी तुलसीदास ने निराशा के अन्धकार में डूबी हुई जनता के समक्ष भगवान् राम का लोकमंगलकारी रूप प्रस्तुत किया। इस प्रकार उन्होंने जनता में अपूर्व आशा एवं शक्ति का संचार किया। युगद्रष्टा तुलसी ने अपनी रचना ‘श्रीरामचरितमानस’ के द्वारा विभिन्न मतों, सम्प्रदायों एवं धाराओं का समन्वय किया। उन्होंने अपने युग को नवीन दिशा, नई गति एवं नवीन प्रेरणा दी। सच्चे लोकनायक के समान उन्होंने लोगों को मानवता के सूत्र में बाँधने का सफल प्रयास किया।

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लोकनायक तुलसीदास-आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का कथन है-“लोकनायक वही हो सकता है, जो समन्वय कर सके। भारतीय समाज में विभिन्न प्रकार की परस्पर विरोधी संस्कृतियाँ, जातियाँ, आचार, निष्ठा और विचार-पद्धतियाँ प्रचलित हैं। बुद्धदेव समन्वयकारी थे, ‘गीता’ ने समन्वय की चेष्टा की और तुसलीदास भी समन्वयकारी थे।”

तुलसी के राम-तुलसीदास उन राम के उपासक थे, जो सच्चिदानन्द परब्रह्म हैं तथा जिनका भूमि पर पापरूपी हरण करने के लिए अवतार होता है।

जब-जब होइ धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी ॥
तब-तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा ।।

तुलसीदास जी ने अपने काव्य में सभी देवी-देवताओं की स्तुति की है, लेकिन अन्त में वे यही कहते तुलसीद हैं।

माँगत तुलसीदास कर जोरे। बसहिं रामसिय मानस मोरे॥

निम्नलिखित पंक्तियों में भगवान राम के प्रति उनकी अनन्यता और भी अधिक पुष्ट हुई है–

एक भरोसो एक बल, एक आस बिस्वास ।
एक राम घनस्याम हित, चातक तुलसीदास ॥

तुलसीदास के समक्ष ऐसे राम का जीवन था, जो मर्यादाशील थे तथा शक्ति एवं सौन्दर्य के अवतार थे।

निष्काम भक्ति-भावना-सच्ची भक्ति वही है, जिसमें आदान-प्रदान का भाव नहीं होता। भक्त के (UPBoardSolutions.com) लिए भक्ति का आनन्द ही उसका फल है। इस सन्दर्भ में तुलसी का तो यही कथन है

मो सम दीन ने दीन हित, तुम्ह समान रघुबीर।।
अस बिचारि रघुबंस मनि, हरहु विषम भवं भीर।।

धर्म-समन्वय की भावना-तुलसीदासजी के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता धर्म-समन्वय है। इसे प्रवृत्ति के कारण वे वास्तविक अर्थों में लोकनायक कहलाए। उनके काव्य में धर्म-समन्वय के अग्रलिखित रूप दृष्टिगोचर होते हैं

(i) सगुण-निर्गुण का समन्वय ईश्वर के सगुण और निर्गुण दोनों रूपों का विवाह दर्शन एवं भक्ति दोनों ही क्षेत्रों में प्रचलित था। तुलसीदास ने कहा है सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा। गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा॥

(ii) कर्म, ज्ञान एवं भक्ति का समन्वय-तुलसीदास जी की भक्ति मनुष्य को संसार से विमुख करके अकर्मण्य बनाने वाली नहीं है, अपितु सत्कर्म की प्रबल प्रेरणा देने वाली है। उनका सिद्धान्त है कि राम के समान आचरण करो, रावण सदृश नहीं—

भगतिहि ग्यानहि नहिं कछु भेदा। उभय हरहिं भव सम्भव खेदा॥

तुलसी ने ज्ञान और भक्ति के धागे में राम के नाम का मोती पिरो दिया है, जो सबके लिए मान्य है–

हिय निर्गुन नयनन्हे सगुन, रसना राम सुनाम।
मनहुँ पुरट सम्पुट लसत, तुलसी ललित ललाम॥

(iii) युगधर्म समन्वय-भगवान को प्राप्त करने के लिए अनेक प्रकार के बाह्य तथा आन्तरिक (UPBoardSolutions.com) साधनों की आवश्यकता होती है। ये साधन प्रत्येक युग के अनुसार बदलते रहते हैं और इन्हीं को युगधर्म की संज्ञा दी जाती है। तुलसीदास जी ने इनका भी समन्वय प्रस्तुत किया है

कृतयुग त्रेता द्वापर, पूजा मख अरु जोग।
जो गति होइ सो कलि हरि, नाम ते पावहिं लोग।

(iv) सामाजिक समन्वय-तुलसीदास जी के समय में भारतीय समाज अनेक प्रकार की विषमताओं तथा कुरीतियों से ग्रस्त था। आपस में भेदभाव की खाई चौड़ी होती जा रही थी। ऊँच-नीच, धनी-निर्धन, स्त्री-पुरुष तथा गृहस्थ व संयासो का अन्तर बढ़ता जा रहा था। रामकथा की चित्रात्मकता एवं विषय-सम्बन्धी अभिव्यक्ति इतनी व्यापक और सक्षम थी कि उससे तुलसीदास जी के दोनों उद्देश्य सिद्ध हो जाते थे। सन्त-असन्त का समन्वय, व्यक्ति और समाज का समन्वय तथा व्यक्ति और परिवार का समन्वय आदि तुलसीदास के काव्य में सर्वत्र दृष्टिगोचर हुआ है।

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(v) साहित्यिक समन्वय-साहित्य की दृष्टि से भी तुलसी का काव्य अद्वितीय है। इनके काव्य में सभी रसों को स्थान मिला है जिनका प्रभाव इनके काव्य में देखने को मिलता है। साहित्यिक क्षेत्र में भाषा, छन्द, सामग्री, रस, अलंकार आदि की दृष्टि से भी तुलसी ने अनुपम समन्वय स्थापित किया। उस समय साहित्यिक क्षेत्र में विभिन्न भाषाएँ विद्यमान थीं तथा विभिन्न छन्दों में रचनाएँ की जाती थीं। तुलसी ने अपने काव्य में संस्कृत, अवधी तथा ब्रजभाषा का अद्भुत समन्वय किया।

उपसंहार—तुलसी ने अपने युग और भविष्य, स्वदेश और विश्व, व्यष्टि सभी के सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण सामग्री दी है। तुलसीदास जी को ‘आधुनिक दृष्टि ही नहीं, हर युग की दृष्टि मूल्यवान् मानेगी; क्योंकि मणि की चमक अन्दर से आती है बाहर से नहीं।।

कवि तुलसीदास जी की भाषा अत्यन्त सरल और सरस है। उन्होंने श्रीरामचरितमानस का जितना सरल गेयरूप में वर्णन किया है वह अतुलनीय है। यद्यपि मैंने जितने भी साहित्यों का अध्ययन किया है मानस जैसा सरलीकरण और शब्दों की अभिव्यक्ति किसी में नहीं पायी। (UPBoardSolutions.com) अतैव इनकी अतुलनीय साहित्यिक विशेषताओं के कारण इनके बारे में यही कहा जा सकता है-

“कविता करके तुलसी न लसे, कविता लसी पा तुलसी की कला।”

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