UP Board Solutions for Class 10 Hindi सन्धि

UP Board Solutions for Class 10 Hindi सन्धि

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संस्कृत व्याकरण व अनुवाद

सब्धि

‘सन्धि’ का शाब्दिक अर्थ है-‘मेल’। जब पास-पास आये हुए दो वर्ण आपस में मिलकर एक नया रूप धारण करते हैं तो उस एकीकरण को सन्धि कहते हैं। सन्धि करने पर निकट के दो वर्ण मिलकर एक हो जाते हैं; जैसे-
हिम + आलयः = हिमालयः
सूर्य + उदयः = सूर्योदयः।
सु + आगतम् = स्वागतम् ।

सन्धि तीन प्रकार की होती हैं—

  1. स्वर सन्धि,
  2. व्यंजन सन्धि तथा
  3. विसर्ग सन्धि। ध्यातव्य-पाठ्यक्रम में (UPBoardSolutions.com) केवल स्वर सन्धि के ‘यण’ एवं ‘वृद्धि’ भेद ही निर्धारित हैं।

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स्वर सन्धि

जहाँ दो स्वरों के मेल से परिवर्तन होता है, वहाँ स्वर सन्धि होती है (स्वर + स्वर = स्वर सन्धि)। स्वर सन्धि के भी अनेक भेद हैं, जिनमें प्रमुख भेदों का नियमसहित विवरण नीचे दिया जा रहा है-

1. दीर्घ सन्धि (सूत्र–अकः सवर्णे दीर्घः)
नियम-यदि अ, इ, उ, ऋ, ले (ह्रस्व या दीर्घ) के बाद समान स्वर हो तो दोनों के स्थान पर उस वर्ण का दीर्घ; अर्थात् आ, ई, ऊ, ऋ, ऋ (लू नहीं) हो जाता है;
उदाहरण-
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2. गुण सन्धि (सूत्र-आद्गुणः)
नियम–यदि अ या आ के बाद इ, उ, ऋ, लू (ह्रस्व या दीर्घ) आएँ तो उनके स्थान पर क्रमशः ए, ओ, अर् और अल् हो जाते हैं;
उदाहरण-
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3. वृद्धि सन्धि (सूत्र-वृद्धिरेचि)
नियम-यदि अ या आ के बाद ए-ऐ तथा ओ-औ आएँ तो उनके स्थान पर क्रमश: ऐ तथा औ अर्थात् वृद्धि हो जाती है;
उदाहरण-
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4. यण् सन्धि (सूत्र–इको यणचि)
नियम–यदि इ, उ, ऋ, लू (ह्रस्व या दीर्घ) के बाद असमान स्वर आते हैं तो उनके स्थान पर क्रमशः य, व, र, ल् हो जाता है;
उदाहरण-
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अभ्यास

प्रश्न 1.
नीचे लिखे पदों का सन्धि-विच्छेद कीजिए और सन्धि का प्रकार भी लिखिए-
उत्तर
(I)
महौत्सुक्यम्, शुद्धौषधम्, गंगौघः, महैश्वर्यम्, समयौचित्यम्, तत्रैव, मतैक्य, तदैव, रामौदार्यम्।
(II) मात्राज्ञाः, प्रत्युत्तरम्, अत्यन्तम्, करोम्यहम्, ग्रामेष्वपि, यद्यपि, गुर्वाज्ञा, (UPBoardSolutions.com) अभ्युदयः, अन्वेषणम्, दध्यानय, स्वागतम्, पित्राकृतिः, प्रत्युपकार, देवेन्द्रः, हरिश्चन्द्रः, वाग्जाल, नमस्कार।

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प्रश्न 2.
नीचे लिखे पदों में सन्धि कीजिए-
उत्तर
(I)
कृष्ण + औत्कण्ठम्, महा + ऐक्यम्, अद्य + एव,
बाला + ओदनम्, अत्र + एव, रामस्य + एकः, अत्र + एव।
(II) लू + आकृतिः , इति + आदिः, वस्त्राणि + अपि, इति + उक्त्वा ,
मधु + अत्र, धातृ + अंशः, जाति + उपकारः, काष्ठ + ओषधिः।

प्रश्न 3.
यण् अथवा वृद्धि सन्धि की परिभाषा लिखिए तथा उदाहरण भी दीजिए। [2012]

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UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 7 विद्यार्थिचर्या (पद्य – पीयूषम्)

UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 7 विद्यार्थिचर्या (पद्य – पीयूषम्)

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परिचय

स्मृति-ग्रन्थों में जीवन की रीति-नीति, करणीय-अकरणीय कर्म, इनके औचित्य-अनौचित्य एवं विधि-दण्ड का विशेष रूप से वर्णन किया गया है। प्रमुख स्मृति-ग्रन्थों की संख्या अठारह मानी जाती है। इनमें जो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्मृति-ग्रन्थ है, उसका नाम है-‘मनुस्मृति’। इसके रचयिता (UPBoardSolutions.com) आदिपुरुष मनु को माना जाता है।

प्रस्तुत पाठ के श्लोक इसी मनुस्मृति से संगृहीत हैं। यह सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश डालने वाला श्रेष्ठ ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ की उपयोगिता, प्रामाणिकता एवं तार्किकता को इस बात से समझा जा सकता है कि आजकल न्यायालयों में भी मनुस्मृति को प्रमाण मानकर व्यवहार-निर्वाह किया जाता है। इसी ग्रन्थ से विद्यार्थियों के लिए व्यवहार से सम्बन्धित नियम संकलित किये गये हैं।

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पाठ-सारांश

विद्यार्थी को सूर्योदय से पूर्व ब्राह्म-मुहूर्त में उठकर धर्म, अर्थ, शरीर के कष्टों एवं वेदों के तत्त्वों पर विचार करना चाहिए। भोजन करने के उपरान्त स्नान नहीं करना चाहिए। रुग्णावस्था में, रात्रि में, वस्त्रों को पहने हुए, निरन्तर तथा अपरिचित जलाशय में कभी भी स्नान नहीं करना चाहिए। विद्यार्थी को अपना जूठा भोजन किसी को नहीं देना चाहिए। भोजन को समय पर एवं उचित मात्रा में ग्रहण करना चाहिए। भोजनोपरान्त मुँह अवश्य साफ करना चाहिए।

प्रणाम करने की आदत वाले तथा बड़ों की सेवा-शुश्रुषा करने वाले विद्यार्थी की आयु, विद्या, यश और बल बढ़ते हैं। विद्यार्थी को गीले पाँव भोजन करना चाहिए, किन्तु गीले पाँव सोना नहीं चाहिए। गीले पाँव भोजन करने से आयु बढ़ती है। विद्यार्थी को सदैव प्रिय सत्य ही बोलना चाहिए। अप्रिय सत्य और प्रिय असत्य को कभी नहीं बोलना चाहिए, यही उत्तम धर्म है। उसे चंचल हाथ-पैर, चंचल नेत्र, कठोर स्वभाव, चंचल वाणी, दूसरों से द्रोह करने वाला नहीं होना चाहिए।

सभी शुभ लक्षणों से हीन होने पर भी सदाचारी, श्रद्धावान् और दूसरों की निन्दा न करने वाला व्यक्ति सौ (UPBoardSolutions.com) वर्ष तक जीवित रहता है। स्वतन्त्रता ही सुख है और परतन्त्रता दुःख है, रि.धार्थी को सुख-दु:ख को इसी परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए। एकान्त चिन्तने ही कल्याणकारी होता है; अतः विद्यार्थी को अपना हितचिन्तन एकान्त में बैठकर करना चाहिए।

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पद्यांशों की ससन्दर्भ हिन्दी व्याख्या

(1)
ब्राह्म मुहूर्ते बुध्येत्, धर्मार्थी चानुचिन्तयेत्
कायक्लेशांश्च तन्मूलान्, वेदतत्त्वार्थमेव च ॥ [2006]

शब्दार्थ ब्राह्म मुहूर्ते = ब्राह्म-मुहूर्त में, सूर्योदय से पूर्व 48 मिनट तक के समय को ब्राह्म-मुहूर्त कहते हैं। बुध्येत = जागना चाहिए। धर्मार्थी = धर्म और अर्थ (धन) के बारे में। अनुचिन्तयेत् = विचार करना चाहिए। कायक्लेशान् = शरीर के कष्टों को। तन्मूलान् = उनके (शारीरिक कष्ट के कारणों को। वेदतत्त्वार्थम् = वेदों के वास्तविक अर्थ को।

सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के पद्य-खण्ड‘पद्य-पीयूषम्’ के विद्यार्थिचर्या शीर्षक पाठ से उद्धृत है।

[ संकेत इस पाठ के शेष सभी श्लोकों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा। ]

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में विद्यार्थी के प्रात: उठने के उचित समय को बताया गया है।

अन्वय, (छात्रः) ब्राह्म मुहूर्ते बुध्येत धर्मार्थी च अनुचिन्तयेत्, कायक्लेशान् तन्मूलान्, वेद-तत्त्वार्थम् एव च (चिन्तयेत्)।

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व्याख्या मनु का कथन है कि छात्र को ब्राह्म-मुहूर्त में अर्थात् सूर्योदय से 1 घण्टे पूर्व जागना चाहिए और धर्म तथा अर्थ के बारे में चिन्तन करना चाहिए। तात्पर्य यह है कि लोक-कल्याण के लिए जितना आवश्यक धन है, परलोक कल्याण के लिए उतना ही आवश्यक धर्म भी है। साथ (UPBoardSolutions.com) ही उसे अपने शारीरिक कष्टों, उनके कारणों व निवारण के उपायों तथा वेदों के सारतत्त्व के विषय में भी विचार करना चाहिए।

(2)
न स्नानमाचरेद भुक्त्वा , नातुरो न महानिशि।
न वासोभिः सहाजस्त्रं, नाविज्ञाते जलाशये ॥ [2006, 09]

शब्दार्थ आचरेत् = करना चाहिए। भुक्त्वा = भोजन करके। आतुरः = रोगी। महानिशि = अधिक रात में। वासोभिः सह = कपड़ों के साथ। अजस्त्रम् = निरन्तर, बहुत समय तक अविज्ञाते = अपरिचिता जलाशये = तालाब में।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में बताया गया है कि विद्यार्थी को कब, कहाँ और कैसे स्नान नहीं करना चाहिए।

अन्वय (छात्रः) भुक्त्वा स्नानं न आचरेत्, न आतुरः, न महानिशि, न वासोभिः सह अजस्रं, न अविज्ञाते जलाशये (स्नानम् आचरेत्)।

व्याख्या मनु का कथन है कि विद्यार्थी को भोजन करके स्नान नहीं करना चाहिए; न रोगी (बीमार) होने पर, न मध्य रात्रि में, न कपड़ों के साथ बहुत समय तक और न अपरिचित जलाशय में स्नान करना चाहिए।

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(3)
नोच्छिष्टं कस्यचिद् दद्यान्नाद्याच्चैव तथान्तरा।
न चैवात्यशनं कुर्यान्न चोच्छिष्टः क्वचिद् व्रजेत् ॥

शब्दार्थ उच्छिष्टम् = जूठा भोजन। कस्यचित् = किसी के लिए। दद्यात् = देना चाहिए। न अद्यात् = भोजन नहीं करना चाहिए। अन्तरा = बीच में, अर्थात् भोजन के दो समयों के मध्य में या बहुत-से लोगों के मध्य। अत्यशनम् = अधिक भोजन। कुर्यात् = करना चाहिए। उच्छिष्टः = जूठे मुँहा क्वचित् = कहीं पर। व्रजेत् = जाना चाहिए।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में भोजन की उचित प्रक्रिया पर प्रकाश डाला गया है।

अन्वय (छात्रः) कस्यचित् उच्छिष्टं न दद्यात् अन्तरा च न एव अद्यात्। न च अति अशनं एव कुर्यात्। उच्छिष्ट: च क्वचित् न व्रजेत्।

व्याख्या मनु का कथन है कि विद्यार्थी को किसी को अपना जूठा भोजन नहीं देना चाहिए तथा (UPBoardSolutions.com) भोजन के दो समयों के बीच में (अर्थात् बार-बार) या बहुत-से लोगों के बीच में भोजन नहीं करना चाहिए। उचित मात्रा से अधिक भोजन नहीं करना चाहिए। जूठे मुंह (बिना मुँह धोये) कहीं नहीं जाना चाहिए।

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(4)
अभिवादनशीलस्य, नित्यं वृद्धोपसेविनः।।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते, आयुर्विद्या यशो बलम् ॥ [2006, 08,09, 10, 11, 15]

शब्दार्थ अभिवादनशीलस्य = प्रणाम करने के स्वभाव वाले की। नित्यं = प्रतिदिन। वृद्धोपसेविनः = बड़े-बूढों की सेवा करने वाले की। चत्वारि = चार चीजें। तस्य = उस (विद्यार्थी) के वर्धन्ते = बढ़ते रहते हैं।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में व्यावहारिक सदाचरण पर प्रकाश डालते हुए उसके महत्त्व को स्पष्ट किया गया है।

अन्वय अभिवादनशीलस्य, नित्यं वृद्धोपसेविन: तस्य आयुः विद्या यश: बलम् (एतानि) चत्वारि वर्धन्ते।

व्याख्या मनु का कथन है कि जो छात्र अपने से बड़ों को अभिवादन कर उनका आशीर्वाद लेता है, नित्य अपने बड़े-बूढ़ों की सेवा करता है, उस छात्र की आयु, विद्या, यश और बल ये चार बढ़ते रहते हैं।

(5)
आर्द्रपादस्तु भुञ्जीत, नार्दपादस्तु संविशेत्।
आर्द्रपादस्तु भुञ्जानो, दीर्घमायुरवाप्नुयात् ॥ [2008, 12]

शब्दार्थ आर्द्रपादः = गीले पाँव वाला, धोने के पश्चात् बिना पोंछे। (UPBoardSolutions.com) भुञ्जीत = भोजन करना चाहिए। संविशेत् = सोना चाहिए। भुञ्जानः = भोजन करता हुआ। अवाप्नुयात् = प्राप्त करता है।

प्रसग प्रस्तुत श्लोक में दीर्घायु होने का उपाय बताया गया है।

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अन्वय आर्द्रपादः तु भुजीत। आईपादः तु ने संविशेत्। आर्द्रपादः तु भुञ्जानः दीर्घम् आयुः अवाप्नुयात्।।

व्याख्या मनु का कथन है कि गीले पाँव (धोने के बाद बिना पोंछे) भोजन करना चाहिए। गीले पैर नहीं सोना चाहिए। गीले पाँव भोजन करता हुआ दीर्घ आयु को प्राप्त करता है। तात्पर्य यह है कि जहाँ भीगे हुए पैरों से भोजन करना आयुवर्द्धक होता है, वहीं भीगे पैरों शयन करना हानिकारक।

(6)
सत्यं ब्रूयात्प्रियं ब्रूयान्न बूयोत्सत्यमप्रियम्।
प्रियं च नानृतं बूयादेष धर्मः सनातनः ।। [2009)

शब्दार्थ बूयात् = बोलना चाहिए। सत्यम् अप्रियम् = बुरा लगने वाला सत्य। अनृतम् = झूठ। सनातनः = सदा रहने वाला, शाश्वत।

प्रसंग इस श्लोक में अप्रिय सत्य और प्रिय असत्य न बोलने का परामर्श दिया गया है।

अन्वय सत्यं ब्रूयात्, प्रियं ब्रूयात्, अप्रियं सत्यं न ब्रूयात्, प्रियं च अनृतं न ब्रूयात् एष सनातन: धर्मः (अस्ति)।

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व्याख्या मनु का कहना है कि सत्य बोलना चाहिए। प्रिय बोलना चाहिए। अप्रिय अर्थात् बुरा लगने वाला सत्य नहीं बोलना चाहिए तथा प्रिय अर्थात् अच्छा लगने वाला झूठ नहीं बोलना चाहिए। यही शाश्वत धर्म है।

(7)
न पाणिपादचपलो, न नेत्रचपलोऽनृजुः ।।
न स्याद्वाक्चपलश्चैव, न परद्रोहकर्मधीः ॥

शब्दार्थ पाणिपादचपलः = चंचल हाथ-पैर वाला। नेत्रचपलः = नेत्रों से चंचल। अनृजुः = कठोर स्वभाव वाला, कुटिल। वाक्चपलः = वाणी से चंचल। परद्रोहकर्मधीः = दूसरों के साथ द्रोह करने में बुद्धि रखने वाला।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में विद्यार्थी को चंचल न होने का परामर्श दिया गया है।

अन्वय (छात्रः) पाणिपादचपल: न (स्यात्)। नेत्रचपलः न (स्यात्), अनृणुः न (स्यात्), वाक्चपल: न (स्यात्), च न एवं परद्रोहकर्मधीः न स्यात्।।

व्याख्या मनु का कथन है कि छात्र को हाथ-पैरों से चंचल नहीं होना चाहिए; अर्थात् उसे अपने हाथ-पैर व्यर्थ में नहीं हिलाने चाहिए। चंचल नेत्रों वाला नहीं होना चाहिए, कुटिल स्वभाव वाला नहीं होना चाहिए, चंचल वाणी वाला नहीं होना चाहिए और न ही दूसरों से द्रोहकर्म में बुद्धि रखने वाला होना चाहिए। तात्पर्य यह है कि विद्यार्थी को कुछ भी करने, कहीं भी जाने, सब कुछ देखने और कुछ भी कहने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना चाहिए।

(8)
सर्वलक्षणहीनोऽपि, यः सदाचारवान्नरः
श्रद्दधानोऽनसूयश्च शतं वर्षाणि जीवति ॥ [2008, 11, 14]

शब्दार्थ सर्वलक्षणहीनोऽपि = सभी शुभ लक्षणों से हीन होता हुआ भी। यः (UPBoardSolutions.com) सदाचारवान्नरः = जो सदाचारी व्यक्ति। श्रद्दधानः = श्रद्धा रखने वाला, श्रद्धालु। अनसूयः = निन्दा न करने वाला, ईष्र्यारहित। शतं वर्षाणि जीवति = सौ वर्षों तक जीवित रहता है।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में सदाचारी व्यक्ति की उपलब्धि पर प्रकाश डाला गया है।

अन्वय सर्वलक्षणहीनः अपि यः नरः सदाचारवान्, श्रद्दधानः, नसूयः च (अस्ति), (स:) शतं वर्षाणि जीवति।

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व्याख्या मनु का कथन है कि सभी शुभ लक्षणों से हीन होता हुआ भी जो मनुष्य सदाचारी, श्रद्धा रखने वाला और दूसरों की निन्दा न करने वाला होता है, वह सौ वर्ष तक जीवित रहता है। तात्पर्य यह है कि सदाचारी, श्रद्धालु और ईर्ष्यारहित व्यक्ति ही दीर्घायुष्य को प्राप्त करते हैं।

(9)
सर्वं परवशं दुःखं, सर्वमात्मवशं सुखम्।।
एतद्विद्यात् समासेन, लक्षणं सुख-दुःखयोः ॥ [2008, 10, 12, 14, 15]

शब्दार्थ परवशं = पराधीनता। आत्मवशम् = स्वाधीनता। विद्यात् = जानना चाहिए। समासेन = संक्षेप में। लक्षणं = पहचान। सुख-दुःखयोः = सुख और दुःख की।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में सुख-दु:ख के लक्षणों पर प्रकाश डाला गया है।

अन्वय परवशं सर्वं दु:खम् (अस्ति)। आत्मवशं सर्वं सुखम् (अस्ति)। एतद् समासेन सुख-दु:खयोः लक्षणं विद्यात्।।

व्याख्या मनु का कथन है कि जो दूसरे के अधीन है, वह सब दुःख है। जो अपने अधीन है, वह सब सुख है। इसे संक्षेप में सुख-दु:ख का लक्षण समझना चाहिए। तात्पर्य यह है कि स्वाधीनता सबसे बड़ा सुख और पराधीनता सबसे बड़ा दुःख है।

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(10)
एकाकी चिन्तयेन्नित्यं, विविक्ते हितमात्मनः।
एकाकी चिन्तयानो हि, परं श्रेयोऽधिगच्छति ॥ [2006,07, 15]

शब्दार्थ एकाकी = अकेला| चिन्तयेत् = विचार करना चाहिए। विविक्ते = एकान्त में। हितम् आत्मनः = अपनी भलाई। चिन्तयानो = विचार करने वाला। परं श्रेयः = परम कल्याण को। अधिगच्छति = प्राप्त करता है।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में एकान्त के महत्त्व का प्रतिपादन किया गया है।

अन्वय विविक्ते एकाकी (सन्) नित्यम् आत्मनः हितं चिन्तयेत्। हि एकाकी चिन्तयान: (पुरुष:) परं श्रेयः अधिगच्छति।।

व्याख्या मनु का कथन है कि एकान्त में अकेला होते हुए सदा अपने हित के विषय (UPBoardSolutions.com) में विचार करना चाहिए; क्योंकि अकेले ही (अपने हित का) चिन्तन करने वाला पुरुष परम कल्याण की प्राप्त करता है। तात्पर्य यह है कि आत्म-कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह एकान्त में यह सोचे कि मेरा हित किसमें है।

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सूक्तिपरक वाक्यांशों की व्याख्या

(1) ब्राह्म मुहूर्ते बुध्येत, धर्माचानुचिन्तयेत्।। [2010]

सन्दर्भ प्रस्तुत सूक्तिपरक पंक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के पद्य-खण्ड ‘पद्य-पीयूषम्’ के ‘विद्यार्थिचर्या’ नामक पाठ से उद्धृत है।

[ संकेत इस पाठ की शेष सभी सूक्तियों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में विद्यार्थी के कर्तव्य का वर्णन किया गया है।

अर्थ ब्राह्म-मुहूर्त में जागना चाहिए तथा धर्म-अर्थ के बारे में चिन्तन करना चाहिए।

व्याख्या सूर्योदय के एक घण्टे पूर्व से लेकर सूर्योदय तक का समय ब्राह्म-मुहूर्त कहलाता है। अत: इस अन्तराल में विद्यार्थी को अवश्य ही निद्रा से जाग जाना चाहिए तथा धर्म और अर्थ के बारे में विचार करना चाहिए। अर्थ से आशय धन से होता है। विद्यार्थी का धन तो विद्या ही है। अतः विद्यार्थी को प्रात:काल विद्याध्ययन या स्वाध्याय करना चाहिए। सभी विद्वान् और शिक्षाशास्त्री मानते हैं कि ब्राह्म-मुहूर्त में किया गया अध्ययन मस्तिष्क में स्थायी रूप से बस जाता है अर्थात् याद हो जाता है। विद्यार्थी के लिए धर्म का तात्पर्य नित्य-नैमित्तिक कार्य तथा ईश्वर की यथासम्भव आराधना से है। अत: प्रत्येक विद्यार्थी को सूर्योदय से पूर्व उठकर अपने धर्म-अर्थ का चिन्तन करना चाहिए।

(2) न स्नानमाचरेद् भुक्त्वा नातुरो न महानिशि। [2008, 10, 15]

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में विद्यार्थियों के लिए स्नान सम्बन्धी कति ‘ नियमों का वर्णन किया गया है।

अर्थ भोजन करके, रुग्णावस्था में और आधी रात में स्नान नहीं करना चाहिए।

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व्याख्या स्वस्थ और नीरोग रहने के लिए व्यक्ति को भोजन करके स्नान नहीं करना चाहिए। इसका कारण यह है कि भोजन को पचाने के लिए जिस पाचन-अग्नि की आवश्यकता होती है, वह स्नान करने के उपरान्त मन्द पड़ जाती है, जिससे भोजन ठीक से नहीं पच पाता और व्यक्ति क्रमश: अस्वस्थ होता जाता है। रुग्णावस्था में स्नान करने पर व्यक्ति की बीमारी और अधिक भयंकर स्थिति में पहुँचकर उसके लिए प्राणघातक हो सकती है। इसी कारण अर्द्ध-रात्रि या मध्यरात्रि में किया गया स्नान भी व्यक्ति के लिए हानिकारक ही होता है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि विद्यार्थी को सदैव भोजन से पूर्व स्नान करना चाहिए, रोगग्रस्त होने पर रोग की (UPBoardSolutions.com) अवस्था के अनुसार ही स्नान करना चाहिए और अर्द्ध-रात्रि में स्नान से बचना चाहिए।

(3) अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में व्यक्ति को अभिवादनशील एवं वृद्ध-सेवी होने का परामर्श दिया गया है।

अर्थ अभिवादनशील और प्रतिदिन वृद्धों की सेवा करने वाले की आयु, विद्या, यश और बल बढ़ते हैं।

व्याख्या जो लोग अपने से बड़ों का नम्रतापूर्वक अभिवादन करते हैं और वृद्धों की नियमित रूप से सेवा करते हैं, उन लोगों की आयु, विद्या, यश और बल बढ़ते हैं। इसका कारण यह है कि जो लोग ऐसा करते हैं, उनके साथ बड़ों के आशीर्वाद और शुभकामनाएँ सम्मिलित होती हैं और सच्चे मन से दिये गये आशीर्वाद अवश्य फलीभूत होते हैं; अतः व्यक्ति को अपने से बड़ों का अभिवादन और वृद्धों की सेवा तन-मन से करनी चाहिए।

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(4)
चत्वारि तस्य वर्द्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्। [2006,07] |
आयुर्विद्या यशो बलम्। [2012, 14, 15]

प्रसंग यहाँ अभिवादनशीलता और बड़े-बूढ़ों की सेवा को सर्वांगीण उन्नति का साधन बताया गया है।

अर्थ उसकी (अभिवादनशील और प्रतिदिन वृद्धों की सेवा करने वाले की) आयु, विद्या, यश और बल चारों बढ़ते हैं।

व्याख्या बड़ों का आदर-सत्कार करने और नित्य-प्रति सेवा करने वाले व्यक्ति की आयु, विद्या, यश और बल ये चारों बढ़ते हैं; क्योंकि इन गुणों से युक्त व्यक्ति की सर्वत्र प्रशंसा होती है, जिससे वह मरकर भी जीवित रहता है। गुरुजनों की कृपा होने पर व्यक्ति विद्या में निपुण हो जाता है (UPBoardSolutions.com) और गुरुजनों; अर्थात् अपने से बड़ों का आदर करना विनम्रता का द्योतक है। विपत्ति में ऐसे व्यक्ति की सभी सहायता करते हैं। वस्तुतः हम महानता के समीप तभी होते हैं जब हम विनम्र होते हैं। विनम्रता बड़ों के प्रति कर्तव्य है, बराबर वालों के प्रति विनयसूचक है और छोटों के प्रति कुलीनता की द्योतक है।

(5)
सत्यं ब्रूयात्प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात्सत्यमप्रियम्। [2006]

सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् ।। [2007, 11, 12]

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में प्रिय सत्य बोलने पर बल दिया गया है।

अर्थ सत्य बोलना चाहिए, प्रिय बोलना चाहिए परन्तु अप्रिय सत्य नहीं बोलना चाहिए।

व्याख्या मनुष्य को सदा सत्य बोलना चाहिए। सत्य बोलने के साथ-साथ उसे ऐसा वचन भी बोलना चाहिए, जो सुनने वालों को प्रिय लगे। यदि कोई बात सत्य है, लेकिन सुनने वाले को वह बुरी लगती है तो उसे भी नहीं बोलना चाहिए; जैसे किसी काने व्यक्ति को ‘काना’ कहकर पुकारा जाए तो यह बात सत्य तो है, लेकिन उसके लिए अप्रिय है। अतः सत्य होते हुए भी अप्रिय होने के कारण ऐसा नहीं कहना चाहिए।

(6), श्रद्दधानोऽनसूयश्च शतं वर्षाणि जीवति [2007]

प्रसग प्रस्तुत सूक्ति में मनुष्य के दीर्घायु होने के कारणों पर प्रकाश डाला गया है।

अर्थ श्रद्धा रखने वाला, निन्दा न करने वाला व्यक्ति सौ वर्षों तक जीवित रहता है।

व्याख्या मनु जी कहते हैं कि जो व्यक्ति श्रद्धेय लोगों और वस्तुओं के प्रति श्रद्धा रखता है और दूसरे लोगों की निन्दा नहीं करता है, वह संसार में कम-से-कम सौ वर्ष तक जीवित रहता है। यहाँ पर जीवित रहने से आशय उसका यश निरन्तर चलते रहने से है; क्योंकि व्यक्ति के जीवन (UPBoardSolutions.com) का उद्देश्य सद्कर्मों के द्वारा युगों-युगों तक चलते रहने वाले यश की प्राप्ति करना है। श्रद्धावान् और दूसरों की निन्दा न करने वाला व्यक्ति उस यश को प्राप्त कर लेता है; क्योंकि इन गुणों से युक व्यक्ति का लोग मरने के पश्चात् भी युगों-युगों तक स्मरण करते हैं। इस प्रकार व्यक्ति मरणोपरान्त भी जीवित रहता है।

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(7)
सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्।। [2006,09, 11, 12, 14]
सर्वं परवशं दुःखं। [2013]
एतद् विद्यात् समासेन, लक्षणं सुखदुःखयोः ॥

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में स्वतन्त्रता के महत्त्व को बताया गया है।

अर्थ पराधीनता सबसे बड़ा दु:ख है तथा स्वाधीनता सबसे बड़ा सुख।

व्याख्या महर्षि मनु ने संक्षेप में सुख और दुःख का लक्षण बताते हुए कहा है कि पराधीनता से बढ़कर दुःख नहीं है और स्वाधीनता से बढ़कर सुख नहीं है। तोता सोने के पिंजरे में रहकर भी परवश होने से दुःखी रहता है और मुक्त हो जाने पर सुखी हो जाता है। पराधीनता में मनुष्य मन के अनुकूल कार्य नहीं कर पाता; जिससे वह दुःखी रहता है। स्वाधीनता में वह अपने मन के अनुकूल कार्य करके सुखी रहता है। निश्चित ही बन्धन में कोई सुख नहीं है। स्वाधीन रहने पर ही सुख की प्राप्ति हो सकती है। तुलसीदास जी ने भी कहा है-‘पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।’ इसी को संक्षेप में सुख और दुःख का लक्षण जानना चाहिए अर्थात् सुख को स्वाधीनता का तथा दुःख को पराधीनता का।

(8)
एकाकी चिन्तयानो हि परं श्रेयोऽधिगच्छति। [2007,08,09, 10, 14]
पॅरं श्रेयोधिगच्छति।।

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में एकान्त के महत्त्व का प्रतिपादन किया गया है।

अर्थ निश्चय ही अकेला मनुष्य चिन्तन करने पर परम कल्याण को प्राप्त करता है।

व्याख्या मनुष्य को एकान्त में बैठकर अपना हित सोचना चाहिए। जो व्यक्ति एकान्त में बैठकर अपना हित सोचता है, वह परम कल्याण को प्राप्त करता है; क्योंकि एकान्त में बैठने से एकाग्रता होती है और एकाग्र होकर ही कोई व्यक्ति ध्यानपूर्वक सोच सकता है। एकान्त में बैठने से व्यक्ति के ऊपर बाहरी वातावरण का प्रभाव नहीं पड़ता, जिससे उसे किसी प्रकार के दबाव का सामना नहीं करना पड़ता; फलतः उचित निर्णय लेना आसान हो जाता है। इसीलिए कहा गया है कि व्यक्ति को अपने सम्बन्ध में चिन्तन एकान्त में ही करना चाहिए।

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श्लोक का संस्कृत-अर्थ

(1) ब्राह्म मुहूर्ते …………………………………………… वेदतत्त्वार्थमेव च ॥ [2014]
संस्कृतार्थः स्मृतिकारः मनुः कथयति यत् छात्र: प्रात:काले ब्राह्म मुहूर्ते बुध्येत्, धर्मान् अर्थान् च अनुचिन्तयेत्। कायस्य क्लेशान् तन्मूलान्, तत् निवारणोपायान्, वेदस्य तत्त्वानाम् अर्थस्य च चिन्तयेत्।।

(2) न स्नानमाचरेद …………………………………………… नाविज्ञाते जलाशये॥ [2006, 10, 13]
संस्कृतार्थः स्मृतिकारः मनुः कथयति यत् छात्र: भोजनं कृत्वा कदापि स्नानं ने आचरेत्। आतुरोऽपि, दीर्घ निशायाम् अपि, वस्त्राणि परिधायापि, अविज्ञाते सरोवरे स्नानं कदापि न आचरेत्।

(3) नोच्छिष्टं कस्यचिद् …………………………………………… क्वचिद् व्रजेत् ॥ [2007, 09]
संस्कृतार्थः स्मृतिकारः मनुः कथयति यत् विद्यार्थी कस्यचित् उच्छिष्टं भोजनं न दद्यात्, नैव द्वौ भोजनस्य मध्ये भोजनं कुर्यात्, अत्यधिक भोजनं न कुर्यात्, नापि उच्छिष्टः मुखात् क्वचित् गच्छेत्।।

(4) अभिवादनशीलस्य …………………………………………… यशो बलम् ॥ [2010, 11, 12, 13, 14, 15]
संस्कृतार्थः स्मृतिकारः अभिवादनशीलतायाः वृद्ध-सेवायाः च लाभं वर्णयति यत् यस्य स्वभाव: स्वपूज्यानाम् अभिवादनम् अस्ति, यः सदा वृद्धानां सेवां करोति, तस्य जनस्य आयुः, विद्या, यशः शक्तिः च इति चत्वारि वस्तूनि वृद्धि लभन्ते।

(5) आर्दपादस्तु भुञ्जीत …………………………………………… दीर्घमायुरवाप्नुयात् ॥ (2006, 11]
संस्कृतार्थः अस्मिन् श्लोके चरण-प्रक्षालनस्य नियमानां र्णनम् : प्त–जलेन चरणौ प्रक्षाल्य आर्द्रपाद एव भोजनं (UPBoardSolutions.com) कुर्यात्, परम् आर्द्राभ्यां पादाभ्यां शयनं न कुर्यात्। यः जनः जलेन चरणौ प्रक्षाल्य आर्द्रपादः भोजनं करोति सः दीर्घम् आयुः प्राप्नोति।।

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(6) सत्यं ब्रूयात्प्रियं …………………………………………… धर्मः सनातनः ॥ [2006, 13]
संस्कृतार्थः महर्षिः मनुः सत्यभाषणस्य विषये नियमं कथयति यत् मनुष्यः सदा सत्यं वदेत्। सदा प्रियं वदेत्। तादृशं सत्यं न वदेत् यत् कस्यापि अप्रियं कटु च अस्ति। तादृशं प्रियम् अपि न वदेत् यत् सत्यं न अस्ति। इत्थं प्रकारेण सत्यं-प्रियं-भाषणं सर्वेषां समीचीनः धर्मः अस्ति।

(7) न पाणिपादचपलो …………………………………………… परद्रोहकर्मधीः ॥
संस्कृतार्थः स्मृतिकारः मनुः कथयति यत् विद्यार्थी हस्त–पादयोः चापल्यं न कुर्यात्, इत्यमेव अनृजुः सन् वाक्चापल्यमपि न कुर्यात्। परेषां द्रोहकर्मणि बुद्धिः अपि न कुर्यात्।

(8) सर्वलक्षणहीनोऽपि …………………………………………… वर्षाणि जीवति॥ [2008, 09, 10, 12, 13]
संस्कृतार्थः मनुः महाराजः कथयति यत् यः नरः सर्वलक्षणैः हीनः अस्ति, परञ्च सदाचारयुक्तः, श्रद्धायुक्तः, ईष्र्यारहितः च अस्ति, सः शतं संवत्सराणि जीवति।।

(9) सर्वं परवशं दुःखं, …………………………………………… सुखदुःखयोः ॥ [2006, 08, 10, 12, 14]
संस्कृतार्थः स्मृतिकारः मनुः कथयति-अस्मिन् संसारे यदपि (UPBoardSolutions.com) पराधीनम् अस्ति, तत्सर्वं दु:खस्वरूपम् अस्ति। यत् स्वाधीनम् अस्ति, तत्सर्वं सुखस्वरूपम् अस्ति। पराधीनतां दुःखस्य स्वाधीनतां च सुखस्य सङ्क्षेपेणलक्षणं जानीयात्।।

(10) एकाकी चिन्तयेन्नित्यं …………………………………………… श्रेयोऽधिगच्छति। [2006, 09, 14]
संस्कृतार्थः अस्मिन् श्लोके एकान्तचिन्तनस्य महत्त्वं प्रदर्शितम् यत् प्रत्येक मानवा: एकान्तस्थले स्थित्वा प्रतिदिनं स्वहिताय चिन्तनं कुर्यात्। य: मानव: नित्यप्रति एकाकी भूत्वा स्वहितकारिणं विषयं प्रति चिन्तयति.य: सर्वथा स्वकल्याणं प्राप्नोति।

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi पर्यायवाची शब्द

UP Board Solutions for Class 10 Hindi पर्यायवाची शब्द

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi पर्यायवाची शब्द.

पर्यायवाची शब्द

पाठ्यक्रम में केवल पर्यायवाची (समानार्थी) शब्द ही निर्धारित हैं।
नवीनतम पाठ्यक्रम के अनुसार प्रस्तुत प्रकरण से कुल 2 अंकों के प्रश्न पूछे जाएँगे।

एक ही अर्थ को प्रकट करने वाले एकाधिक शब्द पर्यायवाची कहलाते हैं। यद्यपि किसी भाषा में कोई दो शब्द समान अर्थ वाले नहीं होते, उनमें सूक्ष्म-सा अन्तर अवश्य होता है तथापि अर्थ के स्तर पर अधिक निकट होने वाले शब्दों को समानार्थी कहा जाता है; उदाहरणार्थ-अश्व, हय और तुरंग-तीनों घोड़े के लिए प्रयुक्त होते हैं। अत: ये पर्यायवाची शब्द हैं।-

हिन्दी भाषा के कुछ शब्दों के पर्यायवाची निम्नवत् हैं-

अमृत [2011, 12, 13, 15]-अमिय, सुधा, पीयूष, अमी।
अतिथि [2014, 18]-अभ्यागत, मेहमान, पाहुना, आगन्तुक।
असुर-दनुज, दानव, दैत्य, राक्षस, निशाचर, खल, रजनीचर।
अग्नि [2011, 12, 13, 15, 16]–हुताशन, वह्नि, अनल, पावक, आग, दहन, ज्वाला।
अनुपम-अद्भुत, अद्वितीय, अनोखा, अपूर्व, अनूठा।
अधर्म-पतित, भ्रष्ट, नीच, निकृष्ट, खल, (UPBoardSolutions.com) पामर, दुर्जन।
अपमान-अनादर, उपेक्षा, तिरस्कार, निरादर।।
अन्धकार—तम, तिमिर, तमिस्र, तमिस, तमर, तारीक।
अश्व [2013, 15]-घोड़ा, वाहन, हय, बाजी, घोटक, सैंधव, तुरंग।
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अहंकार-अभिमान, गर्व, घमण्ड, मद, दर्प।
आकाश [2011, 13, 14, 15, 16, 17] – अन्तरिक्ष, अम्बर, आसमान, व्योम, नभ, गगन।
आँख [2011, 12, 14, 16]-दृग, लोचन, चक्षु, अक्षि, नेत्र, नयन।।
आनन्द–प्रसन्नता, हर्ष, उल्लास, खुशी।
आम [2017]-आम्र, रसाल, सहकार, अमृतफल।
आभूषण--गहना, भूषण, अलंकार, जेवर इनाम-पुरस्कार, पारितोषिक, प्रीतिकर, आनन्दकर।
इच्छा-अभिलाषा, चाह, मनोरथ, कामना, आकांक्षा, लालसा।
इन्द्र [2011, 15, 17, 18]-देवेन्द्र, सुरेन्द्र, सुरपति, पुरन्दर, देवराज, शचीपति।
ईश्वर-ईश, परमात्मा, परमेश्वर, प्रभु, भगवान, जगदीश।
उषा—प्रभात, सवेरा, अरुणोदय, निशान्त।
उदर—पेट, जठर।
उत्पन्न–पैदा, उद्भूत, आविर्भाव, प्रादुर्भूत।
उन्नति–उदय, वृद्धि, उत्कर्ष, उत्थान।
उद्देश्य-अभिप्राय, आशय, लक्ष्य, ध्येय, इष्ट, तात्पर्य।
उद्यान [2012, 13]-उपवन, कुसुमाकर, बगीचा, बाग, वाटिका।
कोयल [2013, 18]-पिक, कोकिल, परभृत, वसन्तदूत।
किरण—-मरीचि, मयूख, कर, रश्मि, अंश।
कामदेव [2011, 13, 15]-मदन, मनसिज, रतिपति, पंचशर, अतनु, कन्दर्प, मन्मथ, मनोज, अनंग।
कमल [2011, 12, 13, 14, 15, 17, 18]-शतदल, पुण्डरीक, (UPBoardSolutions.com) उत्पल, वारिज, कोकनद, सरसिज, पद्म, नलिन, राजीव, सरोज, पंकज, अरविन्द, अम्बुज, जलज, सरोरुह, कंज, नीरज।
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कपड़ा [2016, 18]–वस्त्र, पट, वसन, चीर, अम्बर।।
किनारा-तट, तीर, कगार, कूल।
कृष्ण [2016]–घनश्याम, मोहन, केशव, माधव, वासुदेव, गिरिधर, गोपाल, मुरारि कथा-कहानी, आख्यान, गल्प, आख्यायिका।।
कलह–झगड़ा, विवाद।
कान-कर्ण, श्रोत्र, श्रवण।
कृपा–अनुग्रह, मेहरबानी, दया, अनुकम्पा।
क्रोध-गुस्सा, रोष, कोप, अमर्ष।
खग [2016]-पक्षी, पखेरू, विहंग, द्विज, चिड़िया
गणेश [2011, 12]-गणपति, भालचन्द्र, लम्बोदर, गजानन, विनायक।
गंगा [2015, 16, 17]-भागीरथी, देवनदी, सुरसरि, मंदाकिनी, नदीश्वरी।
गाय [2012, 13, 15, 16]–गौ, सुरभि, धेनु।
गोद-अंक, क्रोड, उत्सर्ग।।
घर (2011, 14, 15, 16)-सदन, धाम, गेह, आयतन, आलय, आगार, भवन, गृह, निकेतन।
चाँदनी—ज्योत्स्ना, कौमुदी, चन्द्रिका, चन्द्रमरीची।
चाँद [2011, 12, 13, 14, 15, 18]–निशाकर, हिमांशु, राकेश, निशिपति, कलानिधि, सुधाधर, चन्द्र, चन्द्रमा, विधु, सोम, शशि, शशांक, मयंक, इन्दु, रजनीश।
जल[2012, 14, 15, 16, 17, 18]-पय, सलिल, पानी, जीवन, तोय, अम्बु, वारि, उदक, नीर।
जंगल [2013, 17]-विपिन, कानन, अरण्य, वन।।
जीभ-जिह्वा, रसना, रसज्ञा, रसा।
जूता-चरणदास, जूत, जोड़ा, पदत्र, पादत्राण।
झण्डा-ध्वज, पताका, निशान, केतु।
तलवार-खड्ग, कृपाण, असि, शमशीर, करवाल।
तरंग-लहर, उर्मि, वीचि, हिलोर।
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तालाब [2011, 13, 14, 15, 17]-सर, सरोवर, तड़ाग, जलाशय, ताल, पोखर।
तारा-नक्षत्र, तारक, ऋण, नखत। तीर [2012]-बाण, शर, सायक, शिलीमुख।
दुष्ट-खल, दुर्जन, पामर, शठ।।
दूध [2017]–पय, दुग्ध, गोरस, क्षीर।
दन्त-दाँत, दर्शन, रद, द्विज, दंश।
दास—भृत्य, नौकर, सेवक, अनुचर, परिचारक।
दिन [2012, 16]-दिवस, वार, वासर, अहन्।
देवता–सुर, अमर, देव, त्रिदिव, गीर्वाण, आदित्य।
दुर्गा – भवानी, देवी, कालिका, (UPBoardSolutions.com) अम्बा, चण्डिका।।
दुःख-पीड़ा, कष्ट, व्यथा, विषाद, यातना, वेदना।
धनुष-धनु, कोदण्ड, चाप, कमान, कार्मुक, शरासन।
धन-द्रव्य, अर्थ, वित्त, सम्पत्ति, लक्ष्मी।
नदी [2011, 12, 15, 16, 18]-सरिता, तरंगिणी, जलमाता, नद, तटिनी।
नरक–दुर्गति, संघात, यमपुर, यमलोक, यमालय।
नेत्र [2016]–नयन, लोचन, चक्षु, आँख, दृग।।
नारी [2011]-स्त्री, कामिनी, महिला, अबला, वनिता, भामिनी, ललना, वामा, कान्ता, रमणी।
रात [2012,16]–निशा, यामिनी, रात्रि, रजनी, शर्वरी।।
नौका-नाव, तरिणी, जलयान, बेड़ा, पतंग, तरी।।
पण्डित [2014]–विद्वान, प्राज्ञ, बुद्धिमान, धीमान, वीर, सुधी।
पक्षी [2013]-खग, नभचर, विहग, विहंगम, पतंग, शकुंत, अण्डज, शकुनि, पखेरू, खेचर।
पत्नी [2015]-वधू, गृहिणी, स्त्री, प्राणप्रिया, अर्धांगिनी, वल्लभा, तिय, भार्या।।
पति-स्वामी, नाथ, वर, कान्त, प्राणनाथ, आर्य, ईश।।
पत्ता [2017]-पात, दल, पत्र, किसलय, पर्ण, पल्लव।
पराग-पुष्परज, कुसुमरज, पुष्पधूलि।
पर्वत [2012, 14, 16, 18]–गिरि, पहाड़, शैल, नग, अचल, महीधर, धराधर, अद्रि, भूधर।
पुत्र-सुत, बेटा, लड़का, पूत, तनय, पुत्र, आत्मज, तनु।
पुत्रीसुला, बेटी, लड़की, नन्दिनी, तनया, तनुजा, (UPBoardSolutions.com) दुहिता, आत्मजा।
पत्थर [2014, 15, 16]-पाषाण, वज्र, पाहन, उपल, शिला।
पुरुष-मनुज, आदमी, मर्द, जन, नर, मनुष्य।
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पृथ्वी [2011, 13, 14, 17, 18]-वसुन्धरा, वसुधा, अवनि, मेदिनी, धरती, धरा, भूमि, मही, वसुमति।।
पुष्प [2012, 13, 15] कुसुम, सुमन, फूल, पुहुप, मंजरी, प्रसून।
प्रकाश-उजाला, ज्योति, प्रभाव, विभा, आलोक।।
प्रसन्नता–हर्ष, खुशी, आह्लाद, मोद।
फल-रसाल, सस्य, पीलांक।
फूल [2016, 17, 18]-पुष्प, सुमन, कुसुम, मंजरी।
बादल [2012, 13, 14, 16, 17]-मेघ, जलद, नीरद, घन, वारिद, पयोद, धराधर, अम्बुद।
बन्दर–कपि, मर्कट, शाखामृग, हरि, वानर।
बिजली [2018]-दामिनी, सौदामिनी, विद्युत, चंचला, चपला, तड़ित।
बाल-अलक, कच, चिकुर, केश, कुन्तल।।
ब्राह्मण-भूसुर, द्विज, भूदेव, विप्र।।
बर्फ़-तुषार, हिम, तुहिन।
भ्रमर [2012, 17]-मधुप, मधुकर, भौंरा, भुंग, द्विरेफ, अलि, षट्पद।
भयानक–डरावना, भयजनक, विकट, गम्भीर
भिक्षा–भीख, याचना, माँगना, खैरात।
भूख-क्षुधा, बुभुक्षा, अन्नलिप्सा, आहारेच्छा।
भाई (2015)-भ्राता, सहोदर, बंधु, प्रियजन।
मछली-अण्डज, मीन, मत्स्य।
मदिरा-शराब, सुरा, मद्य, (UPBoardSolutions.com) वारुणी।
माता (2013, 14, 15)-जननी, माँ, मात, मैया, अम्बा।
मित्र-सखा, सहचर, साथी, मीत, दोस्त।
मुख-मुँह, मुखड़ा, आनन, वदन।
मृत्यु-निधन, देहान्त, अन्त, मौत।।
मनुष्य-मनुज, नर, आदमी, मानव, पुरुष।
मोर [2016]-मयूर, शिखी, शिखण्डी, कलापी।
मूर्ख-अज्ञ, अबोध, गॅवार, मूढ़।।
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मल्लाह–नाविक, माँझी, खेवट, कर्णधार, केवट।
महादेव-शिव, शम्भू, शंकर, महेश, त्रिलोचन, त्रिनेत्र, पशुपति, उमापति, कैलाशपति, रूद्र, भूतनाथ, नीलकण्ठ, पिनाकी।
यत्न-उद्यम, प्रयास, उद्योग, प्रयत्न, पुरुषार्थ।
यमुना [2014]-यम की बहन, नदी, कालिन्दी, दुर्गा।
यौवन-जवानी, युवावस्था, जीवन, शिरोमणि, तरुणाई।
युवक-जवान, युवा, तरुण।।
युद्ध-रण, संग्राम, लड़ाई, समर, संगर।
रात्रि [2012, 15, 16]–यामिनी, विभावरी, निशि, क्षपा, रात, रजनी, निशा।।
राजा-नरेश, भूपति, भूपाल, नरेन्द्र, महीपाल. नृप, नृपति, महीप।।
लक्ष्मी-इन्दिरा, कमला, रमा, हरिप्रिया, श्री।
लंहू-रक्त, खून, शोणित, रुधिर।।
लता [2016]-बेल, शोरा, वल्ली, आरोही, द्राक्षा।
वायु 2011, 12, 13, 15]-अनिल, वात, मारुत, पवमान, समीरण, हवा, पवन, प्रकम्पन, समीर।
वृक्ष [2017]-रुख, विटप, द्रुम, पादप, तरु, पेड़।
वज्र [2014, 18]-अश्मि, पवि, कुलिश।
वन [2011, 12, 13]-विपिन, जंगल, कानन, अटवी, अरण्य।
वर्ष-अब्द, साल, बरस, संवत्।।
वसन [2017]-वस्त्र, आवरण, चीर।
वानर [2018]–बन्दर, कपि, हरि, मर्कट, शाखामृग।
वर्षा (2016)–बारिश, बरसात, बौछारे, (UPBoardSolutions.com) वृष्टि।
विष्णु [2016, 18]-नारायण, जनदिन, चक्रपाणि, माधव, केशव।
व्यर्थ-निरर्थक, अर्थहीन, फ़िजूल।
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शत्रु-रिपु, दुश्मन, विपक्षी, अरि, वैरी, अराति।
शरीर-देह, काया, कलेवर, तन, वपु।।
शहद [2014]–मधु, अमृत, सुधा, घी।
शोभा–छवि, दीप्ति, कान्ति, सुषमा, आभा, छटा।
शिव [2017]–महादेव, शंकर, शम्भू, त्रिलोचन, महेश।
सेना –अनी, दल, चमू, कटेक, फौज।
सोना [2014]–हेम, हिरण्य, कंचन, स्वर्ण, कनक, कुन्दन।।
सूरज [2012, 13, 14, 16, 17, 18]–भानु, भास्कर, सूर्य, दिनेश, दिनकर, आदित्य, प्रभाकर, रवि, दिवाकर।
सूर [2017]-देवता, वसु, आदित्य।।
समुद्र [2012, 13, 14]-सागर, सिन्धु, रत्नाकर, उदधि, जलधि, जलनिधि, पारावार, अम्बुधि।
सिंह-हरि, शेर, केसरी, शार्दूल, व्याघ्र, केहरि, मृगेन्द्र, मृगराज, पंचानन।
स्वर्ग-द्युलोक, बैकुण्ठ, सुरलोक, देवलोक।
सवेरा–सूर्योदय, अरुणोदय, प्रातः, उषा, भोर।
साँप [2012, 14, 17]–नाग, फणि, व्याल, सर्प, अहि, भुजंग, पन्नग, विषधर।
संसार [2013]–विश्व, जगत, जग, दुनिया, (UPBoardSolutions.com) भव, भुवन।
सुगन्धि–सौरभ, सुरभि, महक, खुशबू।
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सरस्वती-शारदा, भारती, गिरा, वाणी।
सन्तान-सन्तति, अपत्य, प्रजा, प्रसूति, औलाद।
हंस [2014]–मराल, कलहंस, मानसौकस।
हाथ [2016]-हस्त, कर, पाणिः ।
हिरण [2014, 18]–कुरंग, सारंग, मृग।
हाथी [2014, 17, 18]-दन्ती, कुंजर, द्विरद, द्विप, मतंग, हस्ती, गज, करी।
हनुमान-अंजनीनन्दन, कपीश्वर, पवनसुत, वज्रांगी, महावीर, बजरंगबली।

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UP Board Solutions for Class 6 Hindi प्रार्थना पत्र (पत्र – लेखन)

UP Board Solutions for Class 6 Hindi प्रार्थना पत्र (पत्र – लेखन)

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पत्रों के भेद – पत्र मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं –

  1. व्यक्तिगत पत्र (सामाजिक पत्र)।
  2. व्यापारिक पत्र।
  3. सरकारी पत्र।

कुछ मुख्य प्रशस्ति – सूचक तथा अभिवादन एवं अन्त में लिखे जानेवाले शब्द –
UP Board Solutions for Class 6 Hindi प्रार्थना पत्र (पत्र - लेखन) 1

पुत्र का पिता के नाम पत्र

राजकीय इन्टर कॉलेज,
लखन
दिनांक 1 अप्रैल, 20xx
पूजनीय पिता जी,
सादर चरण स्पर्श।
मैं यहाँ कुशल हैं और आपकी कुशलता की ईश्वर से कामना करता हूँ। मैं मन लगाकर पढ़ रहा हैं। अब शीघ्र ही मेरी वार्षिक परीक्षाएँ शुरू होने वाली हैं। (UPBoardSolutions.com)
संमयाभाव के कारण इस बार मैं घर आने में असमर्थ रहूँगा। पूज्य माता जी को सादर प्रणाम। छोटे भाई-बहनों को शुभ आशीर्वाद।
आपका प्रिय पुत्र
सुनील कुमार

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निमन्त्रण पत्र

बुलन्दशहर
दिनांक 10 जून, 20xx
प्रिय शर्मा जी,
सादर नमस्ते।
ईश्वर की अनुकंपा से मेरे पुत्र सुनील का जन्मदिन दिनांक 15 जून, 20xx को है। आपसे प्रार्थना है कि आप इस मंगल बेला में सपरिवार पधारकर उत्सव की शोभा बढ़ाएँ।
आपका दर्शनाभिलाषी
अजय सिन्हा

मित्र को पत्र

इलाहाबाद
दिनांक 1 जून, 20xx
अभिन्न हृदयं मयंक,
सस्नेह नमस्कार।
मैं कुशलता से हूँ और तुम्हारी कुशलता की कामना ईश्वर से करता हूँ। तुम्हारा और तुम्हारे पत्र का इंतजार हर समय रहता हैं लेकिन आशा-निराशा में बदल जाती है न तुम आते हो, न तुम्हारा पत्र। मैं इससे अनभिज्ञ हूँ कि इस उपेक्षा और निष्ठुरता का क्या कारण है। अतीत की स्मृतियाँ दिन-रात तुमसे मिलने के लिए बेचैन करती रहती हैं। अगर मेरे (UPBoardSolutions.com) इस पत्र का उत्तर नहीं दोगे तो आगे से मेरा भी तुम्हें कोई पत्र नहीं मिलेगा। पत्र का उत्तर शीघ्र देना। भाभी जी को प्रणाम के बच्चों को प्यार।
तुम्हारा मित्र
राजेश

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बधाई पत्र

इलाहाबाद
दिनांक 25 जुलाई, 20xx
स्नेहमयी ज्योति,
यह ज्ञात होने पर मुझे अत्यधिक प्रसन्नता हुई कि तुमने मेरठ विश्वविद्यालय में सबसे अधिक अंक प्राप्त किए। इस सफलता के लिए मैं तुम्हें हार्दिक बधाई देती हैं और आशा करती हूँ कि तुम्हें एम०ए० में भी ऐसा गौरव प्राप्त हो। आशा है विश्वविद्यालय की तरफ से तुम्हें स्वर्ण-पदक भी प्राप्त होगा। ईश्वर सदैव तुम्हारा पथ प्रशस्त करता रहे।
मैं सपरिवार तुम्हें तुम्हारी सफलता के लिए बधाई देती हूँ। घर में सबको नमस्कार कहना।
तुम्हारी मित्र
सीमा।

शोक पत्र

कानपुर
दिनांक 12 फरवरी, 20xx
प्रिय श्रीमती शशि देवी जी,
आपके आदरणीय पति के असामयिक देहावसान का समाचार सुनकर हृदय को अत्यधिक दुख हुआ। निःसन्देश यह आपके और आपके परिवार के ऊपर एक भयंकर वज्रपात हुआ है लेकिन मृत्यु के ऊपर किसी का वश नहीं। भयंकर परिस्थितियों का सामना करना ही मानव का परम कर्तव्य है। इस कर्तव्य का पालन करके ही वह अपने जीवन में सफल हो सकता है।
मैं इस दुःखद घड़ी में आपकी हर प्रकार से सहायता करने के लिए तैयार हैं। आप धीरज रखें। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।
आपकी बहन
रेनू

व्यावसायिक पत्र
(पुस्तक विक्रेता से पुस्तकें मँगाने के सम्बन्ध में)

राजकीय इन्टर कॅलेज,
लखनऊ
दिनांक 1 अप्रैल, 20xx
अशोक प्रकाशन,
डिप्टी गंज, बुलन्दशहर।
मान्यवर महोदय,
कृपया निम्नलिखित पुस्तकों को उचित कमीशन काटकर वी०पी०पी० पार्सल द्वारा शीघ्र भेजने की कृपा करें।

  1. राष्ट्र बाल भारती कक्षा 6 – 25 प्रतियाँ
  2. राष्ट्र बाल भारती कक्षा 7 – 25 प्रतियाँ
  3. राष्ट्र बाल भारती कक्षा 8 – 25 प्रतियाँ

भवदीय
कमलकिशोर (अध्यापक)

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प्रधानाचार्य को अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र

श्रीयुत प्रधानाचार्य महोदय,
राजकीय इन्टर कॉलेज आगरा
श्रीमान जी,
निवेदन यह है कि मुझे रात्रि से बुखार आ रहा है। मैं कॉलेज आने में असमर्थ हैं। अतः आपसे प्रार्थना है कि मुझे दो दिन का अवकाश देने की कृपा करें। आपकी अति कृपा होगी।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
नीरज कुमार, कक्षा 6 (अ)
दिनांक 12 जुलाई, 20xx

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi तत्सम शब्द

UP Board Solutions for Class 10 Hindi तत्सम शब्द

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तत्सम शब्द

नवीनतम पाठ्यक्रम के अनुसार प्रस्तुत प्रकरण से कुल 2 अंकों के प्रश्न पूछे जाएँगे।
ध्यातव्य – प्रस्तुत प्रकरण के अन्तर्गत शब्द-रचना/शब्द-भण्डार से सम्बन्धित सामग्री किंचित विस्तार से दी गयी है। विद्यार्थियों को ज्ञान-बोध के लिए सम्पूर्ण सामग्री का अध्ययन करना चाहिए।

शब्द–निश्चित अर्थ को प्रकट करने वाले स्वतन्त्र वर्ण-समूह को शब्द कहते हैं; जैसे–घर, मकानं, विद्यालय, सुन्दरता आदि। ये सभी शब्द वर्गों के मेल से बने हैं। इनका अपना निश्चित अर्थ है। ये स्वयं में स्वतन्त्र इकाइयाँ हैं।

शब्दों का महत्त्व—जिस प्रकार व्यक्ति के बिना समाज नहीं बन सकता, बूंद के बिना जल नहीं बन सकता, उसी प्रकार शब्द के बिना भाषा का निर्माण नहीं हो सकता। हमारे प्रत्येक भाव या विचार शब्दों के द्वारा प्रकट होते हैं। (UPBoardSolutions.com) शब्दों के बिना हम अपनी बात दूसरों तक नहीं पहुँचा सकते।।

शब्द-भण्डार–किसी भाषा में प्रयुक्त हो रहे या हो सकने वाले सभी शब्दों के समूह को उस भाषा का ‘शब्द-भण्डार’ कहते हैं। किसी भाषा के सभी शब्दों की गिनती करना सम्भव नहीं है। कारण यह है कि समय के साथ-साथ कुछ शब्दों का प्रयोग समाप्त होता रहता है तथा कुछ नये शब्द बढ़ते रहते हैं। उदाहरणार्थ-रत्ती, तोला, छटाँक, सेर आदि शब्द आजकल बाह्य (आउट ऑफ डेट) हो गये हैं। इसलिए इनका महत्त्व समाप्त होता जा रहा है। दूसरी ओर, (UPBoardSolutions.com) नयी सभ्यता के साथ-साथ टी०वी०, दूरदर्शन, वीडियो, पॉलीथिन, ऑडियो आदि शब्दों का प्रचलन बढ़ रहा है।

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शब्द-भण्डार का वर्गीकरण निम्नलिखित आधारों पर किया जाता है-

  1. इतिहास या स्रोत के आधार पर,
  2. चना के आधार पर,
  3. योग के आधार पर,
  4. करणिक प्रकार्य के आधार पर तथा
  5. अर्थ के आधार पर।

इतिहास या स्रोत की दृष्टि से वर्गीकरण

हिन्दी की शब्दावली मुख्यत: चार स्रोतों से आयी है। ये स्रोत हैं–तत्सम (संस्कृत), तद्भव, देशी भाषाएँ और विदेशी भाषाएँ। इन्हीं के आधार पर हिन्दी के शब्दों को भी चार भागों में बाँटा जाता है– तत्सम, तद्भव, देशी तथा विदेशी।

1. तत्सम शब्द-संस्कृत भाषा के ऐसे शब्द, जो हिन्दी में भी अपने मूल रूप में प्रचलित हैं, तत्सम कहलाते हैं; जैसे–पुष्प, पुस्तक, बालक, कन्या, विद्या, साधु, आत्मा, तपस्वी, विद्वान, राजा, पृथ्वी, नेता, माता, अहंकार, नवीन, सुन्दर, सहसा, नित्य, अकस्मात् आदि।।

इनके अतिरिक्त जिन संस्कृत शब्दों में संस्कृत के ही प्रत्यय लगाकर नवीन शब्दों का निर्माण किया गया है, वे भी तत्सम शब्द कहलाते हैं; जैसे-आकाशवाणी, दूरदर्शन, आयुक्त, उत्पादनशील, क्रयशक्ति, प्रौद्योगिकी आदि।

संस्कृत भाषा ने अपने समय में जिन शब्दों को अन्य भाषाओं से लिया था, उन्हें (UPBoardSolutions.com) भी हम तत्सम मानते हैं। ऐसे कुछ शब्द हैं-केन्द्र, यवन, असुर, पुष्प, नीर, गण, मर्कट, रात्रि, गंगा, कदली, ताम्बूल, दीनार, सिन्दूर, मुद्रा, तीर आदि।

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2. तद्भव शब्द-संस्कृत के जो शब्द प्राकृत, अपभ्रंश, पुरानी हिन्दी आदि सोपानों से गुजरने के कारण आज हिन्दी में परिवर्तित रूप में मिल रहे हैं, वे तद्भव कहलाते हैं। हिन्दी में प्रचलित कुछ तद्भव शब्द मूल संस्कृत रूपों के साथ नीचे दिये जा रहे हैं-
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3.देशी या देशज शब्द-देशी या देशज शब्द वे हैं, जिनका स्रोत संस्कृत नहीं है, बल्कि वे भारत के ग्राम्य क्षेत्रों और जनजातियों में बोली जाने वाली देशी बोलियों में से लिये गये हैं। इनका स्रोत अज्ञात है; जैसे—झाडू, टट्टी, ठोकर, भोंपू, अटकल, भोंदू, पगड़ी, लोटा, झोला, टाँग, ठेठ, पेट, खिड़की, झंझट, थप्पड़, थूकं, चीनी आदि।

4. आगत (विदेशी) शब्द-हिन्दी में अरबी, फ़ारसी, अंग्रेज़ी भाषा के शब्द (UPBoardSolutions.com) प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। इसका कारण यह है कि इन भाषाभाषियों ने भारत पर पर्याप्त समय तक राज्य किया। इनके अतिरिक्त ग्रीक, तुर्की, पुर्तगाली तथा फ्रांसीसी भाषा के शब्द भी यत्र-तत्र मिल जाते हैं।

उपर्युक्त प्रमुख स्रोतों के अतिरिक्त शब्दों के निर्माण में निम्नलिखित विधियों का भी प्रयोग हुआ है-

अनुकरणात्मक शब्द-खटखटाना, फ़ड़फड़ाना, फुफकार, ठसक आदि।
संकर शब्द-दो विभिन्न स्रोतों से आये शब्दों को मिलाकर जो शब्द बनते हैं, उन्हें ‘संकर’ कहते हैं; जैसे-
हिन्दी और संस्कृत-वर्षगाँठ, माँगपत्र, कपड़ा-उद्योग, पूँजीपति आदि।
हिन्दी और विदेशी–किताबघर, घड़ीसाज, थानेदार, बैठकबाज, रेलगाड़ी, पानदान आदि।
संस्कृत और विदेशी–रेलयात्री, योजना कमीशन, कृषि, मजदूर, (UPBoardSolutions.com) रेडियोतरंग, छायादार आदि।
अरबी/फ़ारसी और अंग्रेज़ी-अफ़सरशाही, बीमापॉलिसी, पार्टीबाजी, सीलबंद आदि।

रचना के आधार पर वर्गीकरण

रचना की दृष्टि से शब्द दो प्रकार के होते हैं-

  1. मूल शब्द तथा
  2. व्युत्पन्न शब्द।

1. मूल शब्द–इन्हें रूढ़ भी कहते हैं। ये स्वतन्त्र और अपने में पूर्ण होते हैं। इनकी रचना अन्य किसी शब्द या शब्दांश की सहायता से नहीं होती। इसलिए इनके सार्थक खण्ड नहीं हो सकते; जैसे-सेना, फूल, कुत्ता, कुरसी, दिन, किताब, घर, मुँह, काला, घड़ा, (UPBoardSolutions.com) घोड़ा, जल, कमल, कपड़ी, घास आदि।

2. व्युत्पन्न शब्द-व्युत्पन्न का अर्थ है-उत्पन्न। दो या अधिक शब्दों अथवा शब्दांशों के योग से बने शब्द ‘व्युत्पन्न’ कहलाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-यौगिक तथा योगरूढ़।

यौगिक शब्द-जो शब्द किसी शब्द में अन्य शब्द या शब्दांश (उपसर्ग, प्रत्यय) लगाने से उत्पन्न होते हैं, उन्हें यौगिक शब्द कहते हैं; जैसे–

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योगरूढ़ शब्द-जिन यौगिक शब्दों का एक रूढ़ अर्थ हो गया है और अपने विशिष्ट अर्थ में उनका प्रयोग होने लगा है, ऐसे शब्द योगरूढ़ कहे जाते हैं; उदाहरण के लिए-पंकज एक यौगिक शब्द है जिसमें एक शब्द पंक (कीचड़) और प्रत्यय-ज (से उत्पन्न) है। इस यौगिक का सामान्य अर्थ है-कीचड़ से उत्पन्न वस्तु। परन्तु यह शब्द केवल ‘कमल’ के लिए रूढ़ हो गया है। इसलिए यह योगरूढ़ है।
बहुव्रीहि समास के सभी शब्द योगरूढ़ के ही उदाहरण हैं; यथा–
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प्रयोग के आधार पर वर्गीकरण

प्रयोग की दृष्टि से शब्दों को निम्नलिखित दो वर्गों में बाँटा जा सकता है–

1. सामान्य शब्द-सामान्य शब्दावली वह शब्दावली है जिसका प्रयोग सामान्य जन अपने दैनिक कार्य-व्यवहार में करते हैं। ऐसी शब्दावली प्राय: अधिक प्रचलित होती है तथा लोक-व्यवहार से इसका ज्ञान होता है; उदाहरणार्थ
हाथ, नाक, पैर, रेडियो, स्कूल, कॉलेज, माता-पिता, ईश्वर, दुकान, नमक, चीनी, साइकिल, चाचा, मामा, मेज, कुर्सी, सुबह, शाम, घर, बाज़ार, दाल, भात आदि।

2. पारिभाषिक शब्द-इसे तकनीकी शब्दावली भी कहते हैं। पारिभाषिक (UPBoardSolutions.com) शब्द का अर्थ है- ऐसे शब्द, जिनकी परिभाषा सुनिश्चित हो। ये शब्द किसी एक शास्त्र से सम्बन्धित होते हैं तथा एक ही सुनिश्चित अर्थ का वहन करते हैं।

विज्ञान से सम्बन्धित पारिभाषिक शब्द निम्नवत् हैं-
बल, रेखा, अनुक्रिया, प्रदूषण, पर्यावरण।।
प्रशासन से सम्बन्धित पारिभाषिक शब्द निम्नवत् हैं
आयोग, कनिष्ठ, वरिष्ठ, पदोन्नति, बन्धपत्र, कार्यवृत्त, सीमा-शुल्क आदि।
राजनीतिशास्त्र से सम्बन्धित पारिभाषिक शब्द निम्नवत् हैं-
राज्य, राष्ट्रपति, राज्यपाल, संविधान, महान्यायवादी आदि।
साहित्य से सम्बन्धित पारिभाषिक (UPBoardSolutions.com) शब्द निम्नवत् हैं—
छायावाद, दोहा, रूपक, उपमा, समास, सन्धि, साधारणीकरण आदि।

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व्याकरणिक प्रकार्य के आधार पर वर्गीकरण

व्याकरणिक दृष्टि से शब्दों को उनके प्रकार्य के आधार पर दो वर्गों में बाँटा जाता है—

  1. विकारी तथा
  2. अविकारी।

(1) विकारी शब्द-जिन शब्दों के रूप में लिंग, वचन, कारक अथवा काल (UPBoardSolutions.com) आदि के अनुसार परिवर्तन या विकार होता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं। संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया विकारी शब्द हैं। निम्नलिखित उदाहरण देखिए-

(क) संज्ञा-
लड़का-लड़के, लड़कों, लड़कपन।
लड़की-लड़कियाँ, लड़कियों।
माता-माताएँ, माताओं।

(ख) सर्वनाम-
मैं-मुझ (को); मुझे; मेरा।
यह–उस (को); उन्हें; ये—उन्होंने।

(ग) विशेषण-
अच्छा-अच्छे, अच्छी, अच्छों।

(घ) क्रिया-
जाना—जाऊँगा, जाता हूँ, जाएँ, जाओ, जाते आदि।

(2) अविकारी शब्द अथवा अव्यय-जिन शब्दों के रूप में लिंग, वचन, कारक अथवा काल आदि के अनुसार कोई परिवर्तन नहीं होता, वे अविकारी शब्द अथवा अव्यय कहलाते हैं। क्रिया-विशेषण, सम्बन्धसूचक, समुच्चयबोधक, विस्मयादिबोधक शब्द अविकारी शब्द अथवा अव्यय हैं। उदाहरणार्थ

  • क्रिया-विशेषण-जो शब्द क्रिया की विशेषता को प्रकट करें, उन्हें क्रिया-विशेषण कहते हैं; जैसे-धीरे, सहसा, इधर, कहाँ, अधिक आदि।
  • सम्बन्धसूचक-जो अव्यय शब्द संज्ञा या सर्वनाम का वाक्य के अन्य शब्दों के साथ सम्बन्ध प्रकट करें, उन्हें सम्बन्धसूचक कहते हैं; जैसे-तक, भर, यहाँ, साथ आदि।
  • समुच्चयबोधक-जो अव्यय शब्द दो या अधिक शब्दों और वाक्यों को जोड़ते हैं, (UPBoardSolutions.com) उन्हें समुच्चयबोधक कहते हैं; जैसे—तथा, और, किन्तु, अथवा आदि।
  • विस्मयादिबोधक-विस्मय, पीड़ा, हर्ष, शोक, घृणा आदि मानसिक भावों को प्रकट करने वाले शब्द विस्मयादिबोधक कहलाते हैं; जैसे–अहो ! ओहो ! छी-छी ! आदि।

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अर्थ के आधार पर वर्गीकरण

शब्द भाषा की लघुतम सार्थक इकाई है। इसका अर्थ से केवल एक ही निश्चित सम्बन्ध नहीं होता। किसी शब्द का एक निश्चित अर्थ होता है, किसी के एक से अधिक अर्थ होते हैं तथा किसी शब्द के समानार्थी शब्दों की उपलब्धता रहती है। कुछ शब्द अन्य शब्दों (UPBoardSolutions.com) के विरोधी भाव को प्रकट करते हैं। इस प्रकार शब्द के निम्नलिखित चार भेद हो जाते हैं-

  1. पर्यायवाची शब्द,
  2. विलोमार्थी शब्द,
  3. एकार्थी शब्द तथा
  4. अनेकार्थी शब्द।

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