UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi रस

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi रस are part of UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi Ras.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name रस
Number of Questions 2
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi रस

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  1. श्रृंगार (संयोग व विप्रलम्भ) रस,
  2. हास्य रस,
  3. करुण रस,
  4. वीर रस,
  5. रौद्र रस,
  6. भयानक रस,
  7. वीभत्स रस,
  8. अद्भुत रस तथा
  9. शान्त रस। कुछ विद्वान् ‘वात्सल्य रस’ और ‘भक्ति रस को भी उपरि-निर्दिष्ट नव रसों की श्रृंखला में ही मानते हैं।


[विशेष—माध्यमिक शिक्षा परिषद्, उ० प्र० द्वारा निर्धारित नवीनतम पाठ्यक्रम में आगे दिये जा रहे पाँच रस ही निर्धारित हैं।]

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उदाहरण 2-

कौन हो तुम वसन्त के दूत
विरस पतझड़ में अति सुकुमार ;

घन तिमिर में चपला की रेख
तपन में शीतल मन्द बयार ।( काव्यांजलि : श्रद्धा-मनु)

स्पष्टीकरण-इस प्रकरण में रति स्थायी भाव है। आलम्बन विभाव है–श्रद्धा (विषय) और मनु (आश्रय)। उद्दीपन विभाव है-एकान्त प्रदेश, श्रद्धा की कमनीयता, शीतल-मन्द पवन। हृदय में शान्ति का • मिलना अनुभाव है। आश्रय मनु के हर्ष, उत्सुकता आदि भाव संचारी भाव हैं। इस प्रकार अनुभावविभावादि से पुष्ट रति नामक स्थायी भाव संयोग श्रृंगार रस की दशा को प्राप्त हुआ है।।

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उदाहरण 2-

मेरे प्यारे नव जलद से कंज से नेत्र वाले
जाके आये न मधुबन से औ न भेजा सँदेशा।

मैं रो-रो के प्रिय-विरह से बावली हो रही हूँ।
जा के मेरी सब दुःख-कथा श्याम को तू सुना दे॥  ( काव्यांजलि : पवन-दूतिका)

स्पष्टीकरण-इस छन्द में विरहिण-राधा की विरह-दशा का वर्णन किया गया है। ‘रति’ स्थायी भाव है। आलम्बन विभाव हैं—राधा (आश्रय) और श्रीकृष्ण (विषय)। उद्दीपन विभाव हैं-मेघ जैसी शोभा और कमल जैसे नेत्रों का स्मरणं। श्रीकृष्ण के विरह में रुदन अनुभाव है। स्मृति, आवेग, उन्माद आदि संचारियों से पुष्ट श्रीकृष्ण से मिलने के अभाव में यहाँ वियोग श्रृंगार रस का परिपाक हुआ है।

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उदाहरण:2-

बिंध्य के वासी उदासी तपोब्रतधारी महा बिनु नारि दुखारे।
गौतमतीय तरी तुलसी, सो कथा सुनि भे मुनिबृन्द सुखारे॥

हैहैं सिला सब चंद्रमुखी परसे पदमंजुल-कंज तिहारे।
कीन्हीं भली रघुनायकजू करुना करि कानन को पगु धारे॥ ( हिन्दी : वन पथ पर)

[विशेष—पाठ्यक्रम में संकलित अंश में हास्य रस का उदाहरण दृष्टिगत नहीं होता। अतः 10वीं की पाठ्य-पुस्तक से उदाहरण दिया जा रहा है।

स्पष्टीकरण—इस छन्द में विन्ध्याचल के तपस्वियों की मनोदशा का वर्णन किया गया है। यहाँ ‘हास’ स्थायी भाव है। आलम्बन विभाव हैं–विन्ध्य के उदास तपस्वी (आश्रय) और राम (विषय)। उद्दीपन विभाव हैं—गौतम की स्त्री का उद्धार। मुनियों का कथा आदि सुनना अनुभाव हैं। हर्ष, उत्सुकता आदि संचारी भावों से पुष्ट प्रस्तुत छन्द में हास्य रस का सुन्दर परिपाक हुआ है।

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उदाहरण 2-

क्यों छलक रहा दुःख मेरा
ऊषा की मृदु पलकों में
हाँ! उलझ रहा सुख मेरा
सन्ध्या की घन अलकों में । ( काव्यांजलि : आँसू)

स्पष्टीकरण-प्रस्तुत पद में कवि के अपनी प्रेयसी के विरह में रुदन का वर्णन किया गया है। इसमें कवि के हृदय का ‘शोक’ स्थायी भाव है। आलम्बन विभाव हैं—प्रेमी, यहाँ पर कवि (आश्रय) तथा प्रियतमा (विषय)। उद्दीपन विभाव हैं—अन्धकाररूपी केश-पाश तथा सन्ध्या। कवि के हृदय से नि:सृत उद्गार अनुभाव हैं। अश्रुरूपी प्रात:कालीन ओस की बूंदें संचारी भाव हैं। इन सबसे पुष्ट शोक नामक स्थायी भाव करुण रस की दशा को प्राप्त हुआ है।

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उदाहरण 2-

साजि चतुरंग सैन अंग, में उमंग धारि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है।
भूषन भनत नाद बिहद नगारन के,
नदी नद मद गैबरन के रलत है ॥( काव्यांजलि : शिवा-शौर्य)

स्पष्टीकरण-प्रस्तुत पद में शिवाजी की चतुरंगिणी सेना के प्रयाण का चित्रण है। इसमें ‘शिवाजी के हृदय का उत्साह’ स्थायी भाव है। ‘युद्ध को जीतने की इच्छा आलम्बन है। ‘नगाड़ों का बजना’ उद्दीपन है। ‘हाथियों के मद का बहना’ अनुभाव है तथा उग्रता’ संचारी भाव है। इन सबसे पुष्ट ‘उत्साह’ नामक स्थायी भाव वीर रस की दशा को प्राप्त हुआ है।

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उदाहरण 1

मन पछितैहै अवसर बीते ।
दुर्लभ देह पाई हरिपद भजु, करम वचन अरु होते ॥
अब नाथहिं अनुराग, जागु जड़-त्यागु दुरासा जीते ॥
बुझे न काम अगिनी तुलसी कहुँ बिषय भोग बहु धी ते ॥

स्पष्टीकरण–यहाँ तुलसी (या पाठक)–आश्रय हैं; संसार की असारता आलम्बन; अपना मनुष्य जन्म व्यर्थ होने की चिन्ता–उद्दीपन; मति-धृति आदि संचारी एवं वैराग्यपरक वचन–अनुभाव हैं। इनसे मिलकर शान्त रस की निष्पत्ति हुई है।

उदाहरण 2

अब लौं नसानी अब न नसैहौं ।
रामकृपा भवनिसा सिरानी, जागे फिर न डसैहौं ।

पायो नाम चारु चिंतामनि, उर कर तें न खसैहौं ।
स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैहौं ॥
परबस जानि हँस्यों इन इंद्रिन, निज बस छै न हसैहौं ।
मन-मधुकर पन करि तुलसी, रघुपति पद-कमल बसैहौं ॥ ( काव्यांजलिः विनयपत्रिका)

स्पष्टीकरण—प्रस्तुत पद में तुलसीदास जी की जगत् के प्रति विरक्ति और श्रीराम के प्रति अनुराग मुखर हुआ है। इस पद में संसार से पूर्ण विरक्ति अर्थात् ‘निर्वेद’ नामक स्थायी भाव है। आलम्बन विभाव हैं—तुलसीदास (अश्रय) तथा श्रीराम की भक्ति (विषय)। उद्दीपन विभाव हैं-श्रीराम की कृपा, सांसारिक असारता त इन्द्रियों द्वारा उपहास। स्वतन्त्र होना, राम के चरणों में रत होना, सांसारिक विषयों में पुनः निर्लिप्त न होना आदि से सम्बद्ध कथन अनुभाव हैं। निर्वेद, हर्ष, स्मृति आदि संचारी भाव हैं। इन सबसे पुष्ट ‘निर्वेद’ नामक स्थायी भाव शान्त रस की अवस्था को प्राप्त हुआ है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पद्यांशों में कौन-से रस हैं ? प्रत्येक का स्थायी भाव भी बताइए-
(क) साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धारि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं।
(ख) कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात |
भरे भौन मैं करत हैं, नैननु हीं स बात ।।
(ग) कौन हो तुम वसंत के दूत
‘विरस पतझड़ में अति सुकुमार;
घन तिमिर में चपला की रेख
तपन में शीतल मन्द बयार ?
(घ) आये होंगे यदि भरत कुमति-वश वन में,
तो मैंने यह संकल्प किया है मन में-
उनको इस शर का लक्ष चुनँगा क्षण में,
प्रतिषेध आपका भी न सुनँगा रण में ।
(ङ) सुख भोग खोजने आते सब, आये तुम करने सत्य खोज,
जग की मिट्टी के पुतले जन, तुम आत्मा के, मन के मनोज
जड़ता, हिंसा, स्पर्धा में भर, चेतना, अहिंसा, नम्र ओज,
पशुता का पंकज बना दिया, तुमने मानवता का सरोज ।
उत्तर:
(क) इसमें वीर रस है, जिसका स्थायी भाव उत्साह है।
(ख) इसमें संयोग श्रृंगार रस है, जिसका स्थायी भाव रति है।
(ग) इसमें संयोग श्रृंगार रसे है, जिसका स्थायी भाव रति है।
(घ) इसमें वीर रस है, जिसका स्थायी भाव उत्साह है।
(ङ) इसमें शान्त रस है, जिसका स्थायी भाव निर्वेद है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए–
(क) अपनी पाठ्य-पुस्तक से करुण रस की दो पंक्तियाँ लिखिए। यह भी स्पष्ट कीजिए कि आप इसे करुण रस की रचना क्यों मानते हैं ?
(ख) हास्य रस की निष्पत्ति कब होती है ? अपनी पाठ्य-पुस्तक से उदाहरण देकर समझाइए।
(ग) अपनी पाठ्य-पुस्तक से वीर रस को बतलाने के लिए किसी पद की दो पंक्तियाँ लिखिए और स्पष्ट कीजिए कि उसे वीर रस की रचना क्यों मानते हैं?
(घ) अपनी पाठ्य-पुस्तक से करुण रस का लक्षण लिखिए और उसका उदाहरण दीजिए।
(ङ) अपनी पाठ्य-पुस्तक से शान्त रस की दो पंक्तियाँ लिखिए और यह भी स्पष्ट कीजिए कि आप इसे शान्त रस की रचना क्यों मानते हैं ?
(च) वीर रस का लक्षण लिखिए और अपनी पाठ्य-पुस्तक के आधार पर उसका उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
(छ) विप्रलम्भ श्रृंगार अथवा शान्त रस का लक्षण लिखिए और एक उदाहरण दीजिए।
(ज) अपनी पाठ्य-पुस्तंक से वीर रस की दो पंक्तियाँ लिखिए। रस के आलम्बन और आश्रय की ओर भी संकेत कीजिए।
(झ) संयोग श्रृंगार अथवा वीर रस का लक्षण लिखिए और एक उदाहरण दीजिए।
(ञ) श्रृंगार और करुण में से किसी एक रस का लक्षण और उदाहरण लिखिए।
(ट) “कृरुण’ अथवा ‘वीर’ रस के लक्षण और उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
[संकेत इन सभी प्रश्नों के उत्तर के लिए इन रसों से सम्बन्धित सामग्री का अध्ययन ‘रस’ प्रकरण के अन्तर्गत प्रश्न 2 से करें]

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 12 फुटकर व्यापार

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 12 फुटकर व्यापार are the part of UP Board Solutions for Class 10 Commerce. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 12 फुटकर व्यापार.

Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 12
Chapter Name फुटकर व्यापार
Number of Questions Solved 22
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 12 फुटकर व्यापार

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
मध्यस्थों की श्रृंखला की अन्तिम कड़ी है
(a) उत्पादक
(b) थोक व्यापारी
(c) फुटकर व्यापारी
(d) ये सभी
उत्तर:
(c) फुटकर व्यापारी

प्रश्न 2.
फुटकर व्यापारी की विशेषता है
(a) थोड़ी-थोड़ी मात्रा में क्रय
(b) थोड़ी-थोड़ी मात्रा में विक्रय
(c) कम पूँजी
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

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प्रश्न 3.
विभागीय भण्डार को प्रारम्भ सबसे पहले हुआ था
(a) अमेरिका में
(b) फ्रांस में
(c) जर्मनी में
(d) लन्दन में
उत्तर:
(b)फ्रांस में

प्रश्न 4.
स्वयं सेवा पद्धति अपनायी जाती है
(a) विभागीय भण्डार में
(b) श्रृंखलाबद्ध भण्डार में
(c) सुपर बाजार में
(d) इन सभी में
उत्तर:
(c) सुपर बाजार में

निश्चित उतरी्य प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
उस फुटकर व्यापारी को क्या कहते हैं, जो जगह-जगह माल बेचता है?
उत्तर:
फेरी वाला

प्रश्न 2.
बड़ी मात्रा में फुटकर व्यापार करने वाली दो संस्थाओं के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. विभागीय भण्डार
  2. बहुसंख्यक दुकानें

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प्रश्न 3.
बहुसंख्यक दुकानें किसके द्वारा खोली जाती हैं? (2011)
उत्तर:
उत्पादकों द्वारा।

प्रश्न 4.
विभिन्न वस्तुओं व सेवाओं का लेन-देन करने वाले बाजार का नाम लिखिए। (2013)
उत्तर:
सुपर बाजार

प्रश्न 5.
‘बिग बाजार’ किस क्षेत्र से सम्बन्धित है?
उत्तर:
फुटकर व्यापार

प्रश्न 6.
बहुमूल्य धातुओं अर्थात् सोना एवं चाँदी का लेन-देन करने वाले बाजार का नाम लिखिए। (2014)
उत्तर:
सर्राफा बाजार

प्रश्न 7.
अंशों का लेन-देन करने वाले बाजार का नाम बताइए। (2012)
उत्तर:
शेयर बाजार

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
फुटकर व्यापार क्या है? फुटकर व्यापार के दो गुणों को लिखिए। (2014)
उत्तर:
फुटकर व्यापार से आशय ऐसे व्यापार से है, जिसमें व्यापारी थोक व्यापारी से माल क्रय करके थोड़ी-थोड़ी मात्रा में उपभोक्ताओं को बेचता है। फुटकर व्यापारी वितरण श्रृंखला की अन्तिम एवं महत्त्वपूर्ण कड़ी होती है। फुटकर व्यापार के दो गुण निम्नलिखित हैं-

  1. फुटकर व्यापारी उपभोक्ताओं को उनकी (UPBoardSolutions.com) आवश्यकतानुसार वस्तुएँ उपलब्ध करवाते हैं।
  2. फुटकर व्यापारी अपने ग्राहकों को उधार माल बेचकर साख सुविधाएँ प्रदान करते हैं।

प्रश्न 2.
फुटकर व्यापारी द्वारा प्रदान की जाने वाली किन्हीं दो सेवाओं का वर्णन कीजिए। (2015)
उत्तर:
फुटकर व्यापारी द्वारा प्रदान की जाने वाली दो सेवाएँ निम्नलिखित हैं

  1. फुटकर व्यापारी उपभोक्ताओं को उनकी रुचि, फैशन व रीति-रिवाज, आदि के आधार पर माल का विक्रय करते हैं।
  2. फुटकर व्यापारी अपने नियमित ग्राहकों को उधार माल बेचकर साख सुविधाएँ प्रदान करते हैं। इससे उपभोक्ताओं को अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं।

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प्रश्न 3.
डाक द्वारा व्यापार से क्या तात्पर्य है? इसकी दो विशेषताएँ बताइए। (2015)
उत्तर:
डाक द्वारा व्यापार में ग्राहकों से डाक द्वारा आदेश प्राप्त करके डाक द्वारा ही माल भेजा (विक्रय किया जाता है। इसमें क्रेता और विक्रेता एक-दूसरे से अनजाने रहते हैं। इस पद्धति को प्रोत्साहन देने में विज्ञापन का विशेष महत्त्व होता है। डाक द्वारा (UPBoardSolutions.com) व्यापार की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. इसमें माल का क्रय-विक्रय डाक द्वारा किया जाता है।
  2. इस पद्धति में ग्राहकों से व्यक्तिगत सम्पर्क करने की आवश्यकता नहीं होती है।

प्रश्न 4.
सुपर बाजार किसे कहते हैं?
उत्तर:
सुपर बाजार का प्रारम्भ सर्वप्रथम अमेरिका में हुआ था। सुपर बाजार एक ऐसे फुटकर व्यापार का संगठन है, जहाँ विभिन्न प्रकार की दैनिक उपयोग की वस्तुएँ नकद एवं स्वयं सेवा के आधार पर बेची जाती हैं। यह सहकारिता के सिद्धान्तों पर आधारित फुटकर व्यापार को आधुनिक संगठन होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
थोक एवं फुटकर व्यापारी से आप क्या समझते हैं? इनके मध्य चार अन्तर लिखिए। (2016)
अथवा
थोक व्यापार व फुटकर व्यापार में अन्तर कीजिए। (2011)
अथवा
फुटकर व्यापार से आप क्या समझते हैं? फुटकर एवं थोक व्यापार में क्या अन्तर है? (2007)
उत्तर:
थोक व्यापारी यह ऐसे व्यापारी होते हैं, जो उत्पादकों व निर्माताओं से भारी मात्रा में माल का क्रय करते हैं और उसे आवश्यकतानुसार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में फुटकर व्यापारियों को बेचते हैं। प्रो. हलें के अनुसार, “थोक व्यापारी वे विपणन व्यक्ति होते हैं, (UPBoardSolutions.com) जो फुटकर व्यापारी तथा निर्माता या उत्पादक के मध्य का स्थान ग्रहण करते हैं।” फुटकर व्यापारी यह थोक व्यापारियों से बड़ी मात्रा में माल खरीदते हैं तथा उपभोक्ताओं को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बेचते हैं। यह मध्यस्थों की श्रृंखला की अन्तिम कड़ी होती है। स्टीफेन्सन के अनुसार, “फुटकर व्यापारी उपभोक्ताओं सम्बन्धी वस्तुओं के वितरण में लगा वह व्यापारिक मध्यस्थ होता है, जिसका अन्तिम उपभोक्ताओं से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।”

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थोक व्यापारी व फुटकर व्यापारी में अन्तर अन्तर
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प्रश्न 2.
फुटकर व्यापारी द्वारा प्रदान की जाने वाली चार सेवाओं का वर्णन कीजिए। (2016)
उत्तर:
फुटकर व्यापारी द्वारा प्रदान की जाने वाली चार सेवाएँ निम्नलिखित हैं

  1. उपभोक्ताओं की रुचि व माँग के अनुसार सूचना देना फुटकर व्यापारी, उपभोक्ताओं की रुचि, फैशन वे रीति-रिवाज, आदि से सम्बन्धित जानकारी थोक व्यापारियों व उत्पादकों को देते हैं। इससे नवीनतम वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है।
  2. माँग उत्पन्न करना फुटकर व्यापारी, थोक व्यापारी से प्राप्त माल को बेचकर अधिकाधिक माल की माँग उत्पन्न करते हैं। यह माल के विक्रय में भी सहायता प्रदान करते हैं।
  3. ग्राहकों को आवश्यकतानुसार माल का विक्रय करना फुटकर व्यापारी उपभोक्ताओं को उनकी रुचि, फैशन व रीति-रिवाज, आदि के आधार पर माल का विक्रय करते हैं।
  4. क्षेत्र की माँग के अनुसार वस्तुओं की पूर्ति करना फुटकर व्यापारी (UPBoardSolutions.com) अपने क्षेत्र के उपभोक्ताओं की माँग के अनुसार वस्तुओं की पूर्ति करते हैं।

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प्रश्न 3.
खुदरा व्यापारियों के महत्त्व को बताइए।
उत्तर:
खुदरा व्यापारियों के महत्त्व को निम्नलिखित तक से स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. ग्राहकों की सन्तुष्टि पर ध्यान फुटकर व्यापारी उपभोक्ता की सेवा और सन्तुष्टि पर पर्याप्त ध्यान देते हैं।
  2. सीमित पूँजी फुटकर व्यापारी को अपना व्यवसाय (दुकान) चलाने के लिए अपेक्षाकृत कम पूँजी की आवश्यकता होती है।
  3. उधार व नकद खरीद ये थोक व्यापारियों और उत्पादकों से माल, उधार तथा नकद दोनों प्रकार से खरीदते हैं।
  4. थोड़ी मात्रा में विक्रय फुटकर व्यापारी, थोक व्यापारियों से माल खरीदकर उपभोक्ताओं को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बेचते हैं।
  5. थोड़ी मात्रा में क्रय फुटकर व्यापारी, थोक व्यापारियों व उत्पादकों से थोड़ी-थोड़ी मात्रा में वस्तुएँ क्रय करते हैं।
  6. सजावट फुटकर व्यापारी बिक्री को बढ़ाने के उद्देश्य से दुकान में सजावट पर अधिक ध्यान देते हैं। ये वस्तुओं का प्रदर्शन भी करते हैं।
  7. ग्राहकों से सीधा सम्पर्क फुटकर व्यापारी और उपभोक्ता के (UPBoardSolutions.com) बीच में सीधा और निकटतम सम्बन्ध होता है।
  8. स्थान का महत्त्व फुटकर व्यापारी दुकान ऐसे स्थान पर लगाता है, जहाँ अधिक मात्रा में लोग आते-जाते हों।
  9. विभिन्न वस्तुओं में व्यापार फुटकर व्यापारी अनेक प्रकार की वस्तुओं को क्रय-विक्रय करते हैं। ये किसी विशिष्ट वस्तु का व्यवसाय नहीं करते हैं।
  10. मध्यस्थों की अन्तिम कड़ी मध्यस्थों की अन्तिम कड़ी फुटकर व्यापारी होते हैं। इनका ग्राहकों से व्यक्तिगत सम्पर्क होता है।
  11. चयन की सुविधा ये उपभोक्ता को विभिन्न वस्तुओं की विभिन्न किस्मों के चयन की सुविधा प्रदान करते हैं।
  12. प्रायः नकद विक्रय ये उपभोक्ताओं को अधिकतर नकद माल बेचते हैं। कुछ ग्राहकों को उधार भी दे देते हैं।

प्रश्न 4.
ऑनलाइन व्यवसाय को परिभाषित कीजिए। इसके गुणों को बताइए। (2018)
उत्तर:
यदि व्यवसाय का स्वामी अपने व्यवसाय को चलाने हेतु इण्टरनेट का उपयोग करता है, तो सम्बन्धित व्यवसाय को ‘ऑनलाइन व्यवसाय’ कहा जाता है। अन्य शब्दों में, ऑनलाइन व्यवसाय में क्रय तथा विक्रय ऑनलाइन होता है तथा इसके अन्तर्गत व्यवसायी अपने ग्राहकों को ऑनलाइन सेवाएँ प्रदान करता है।

ऑनलाइन व्यवसाय के गुण

  1. लागत की बचत होती है।
  2. बेहतर कार्यक्षमता होती है।
  3. पूरे विश्व में ग्राहक इसकी सुविधा किसी (UPBoardSolutions.com) भी समय प्राप्त कर सकता है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
फुटकर व्यापारी की सेवाओं का वर्णन कीजिए। (2008)
उत्तर:
फुटकर व्यापारियों की सेवाएँ फुटकर व्यापारी उत्पादकों, थोक व्यापारी, उपभोक्ताओं अथवा समाज के प्रति विभिन्न महत्त्वपूर्ण सेवाएँ प्रदान करते हैं। ये सेवाएँ निम्नलिखित हैं

I. उत्पादकों व थोक व्यापारियों के प्रति सेवाएँ
फुटकर व्यापारी उत्पादकों व थोक व्यापारियों के प्रति निम्नलिखित सेवाएँ प्रदान करते हैं

  1. उपभोक्ताओं की रुचि व माँग के अनुसार सूचना देना फुटकर व्यापारी, उपभोक्ताओं की रुचि, फैशन वे रीति-रिवाज, आदि से सम्बन्धित जानकारी थोक व्यापारियों व उत्पादकों को देते हैं। इससे नवीनतम वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है।
  2. माँग उत्पन्न करना फुटकर व्यापारी, थोक व्यापारी से प्राप्त माल को बेचकर अधिकाधिक माल की माँग उत्पन्न करते हैं। यह माल के विक्रय में भी सहायता प्रदान करते हैं।
  3. स्थानीय विज्ञापन से मुक्ति फुटकर व्यापारी अपने स्थानीय स्तर पर किसी वस्तु का विज्ञापन स्वयं कर लेते हैं। इसके लिए थोक व्यापारियों को विज्ञापन की आवश्यकता नहीं रहती है।
  4. वितरण के झंझटों से मुक्त करना फुटकर व्यापारियों के उपलब्ध होने पर थोक व्यापारियों को माल के वितरण की समस्या नहीं होती है।
  5. नए माल का प्रचार फुटकर व्यापारी अपने व्यक्तिगत सम्पर्क और प्रभाव (UPBoardSolutions.com) से थोक व्यापारी या उत्पादकों के लिए बाजार में नए माल का प्रचार करके अधिक बिक्री हेतु प्रयास करते हैं।
  6. वितरण लागत में कमी उत्पादक या थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारी को उपभोक्ताओं की तुलना में अधिक माल बेचते हैं। इससे वितरण लागत में कमी आती है।
  7. आँकड़ों को एकत्रीकरण फुटकर व्यापारी माल की माँग व मूल्य आदि से सम्बन्धित आँकड़ों का संग्रहण करके उत्पादकों व थोक व्यापारियों को उपलब्ध करवाते हैं।

II. समाज या उपभोक्ताओं के प्रति सेवाएँ

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फुटकर व्यापारी समाज तथा उपभोक्ताओं के प्रति निम्नलिखित सेवाएँ प्रदान करते  हैं-

  1. ग्राहकों को आवश्यकतानुसार माल का विक्रय करना फुटकर व्यापारी उपभोक्ताओं को उनकी रुचि, फैशन व रीति-रिवाज, आदि के आधार पर माल का विक्रय करते हैं।
  2. क्षेत्र की माँग के अनुसार वस्तुओं की पूर्ति करना फुटकर व्यापारी अपने क्षेत्र के उपभोक्ताओं की माँग के अनुसार वस्तुओं की पूर्ति करते हैं।
  3. साख सुविधाएँ प्रदान करना फुटकर व्यापारी अपने नियमित ग्राहकों को माल उधार बेचकर साख सुविधाएँ प्रदान करते हैं। इससे उपभोक्ताओं को अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ सरलता से उपलब्ध हो जाती हैं।
  4. ताजी वस्तुएँ प्रदान करना फुटकर व्यापारी अपने ग्राहकों को ताजी व शुद्ध वस्तुएँ उपलब्ध करवाते हैं, इसलिए ग्राहक आवश्यकता के अनुसार कभी भी माल खरीद सकते हैं।
  5. माल वापसी की सुविधा देना फुटकर व्यापारी उपभोक्ता को कोई माल पसन्द न आने पर उसे वापस लेने की सुविधा भी प्रदान करते हैं।
  6. माल को घर पहुँचाना फुटकर व्यापारी ग्राहकों के व्यक्तिगत सम्बन्धों के कारण उनके घर पर माल की सुपुर्दगी की सुविधा भी प्रदान करते हैं।
  7. माँग के अनुसार वस्तुएँ उपलब्ध कराना फुटकर व्यापारी अपनी दुकान में मौसम के अनुकूल अलग-अलग प्रकार की वस्तुएँ खरीदकर एकत्र कर लेते हैं, जिससे उपभोक्ताओं को आवश्यकतानुसार उनकी पसन्द की वस्तुएँ सरलता से मिल जाती हैं।
  8. निःशुल्क परामर्श देना फुटकर व्यापारी अपने ग्राहकों से व्यक्तिगत सम्पर्क होने के कारण उनको वस्तुओं के उचित चयन व उपयोगिता के विषय में नि:शुल्क परामर्श देते हैं।
  9. ग्राहकों को चुनाव की सुविधा फुटकर व्यापारी ग्राहकों को उनकी आवश्यकता के (UPBoardSolutions.com) अनुसार वस्तु के उपयुक्त चुनाव की सुविधा देते हैं।
  10. ठगे जाने का भय नहीं फुटकर व्यापारी ग्राहकों के निकट व स्थायी रूप से होने के कारण ग्राहकों से धोखा नहीं करता है। उपभोक्ताओं को फुटकर व्यापारी पर पूर्ण विश्वास होता है।

प्रश्न 2.
फुटकर व्यापारी से आप क्या समझते हैं? यह थोक व्यापारी से किस प्रकार भिन्न है? एक फुटकर व्यापारी की समाज के प्रति सेवाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फुटकर व्यापारी से आशय 
थोक व्यापारी यह ऐसे व्यापारी होते हैं, जो उत्पादकों व निर्माताओं से भारी मात्रा में माल का क्रय करते हैं और उसे आवश्यकतानुसार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में फुटकर व्यापारियों को बेचते हैं। प्रो. हलें के अनुसार, “थोक व्यापारी वे विपणन व्यक्ति होते हैं, जो फुटकर व्यापारी तथा निर्माता या उत्पादक के मध्य का स्थान ग्रहण करते हैं।”

फुटकर व्यापारी यह थोक व्यापारियों से बड़ी मात्रा में माल खरीदते हैं तथा उपभोक्ताओं को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बेचते हैं। यह मध्यस्थों की श्रृंखला की अन्तिम कड़ी होती है। स्टीफेन्सन के अनुसार, “फुटकर व्यापारी उपभोक्ताओं सम्बन्धी वस्तुओं के वितरण में लगा वह व्यापारिक मध्यस्थ होता है, जिसका अन्तिम उपभोक्ताओं से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।”

समाज या उपभोक्ताओं के प्रति सेवाएँ
फुटकर व्यापारी समाज तथा उपभोक्ताओं के प्रति निम्नलिखित सेवाएँ प्रदान करते  हैं-

  1. ग्राहकों को आवश्यकतानुसार माल का विक्रय करना फुटकर व्यापारी उपभोक्ताओं को उनकी रुचि, फैशन व रीति-रिवाज, आदि के आधार पर माल का विक्रय करते हैं।
  2. क्षेत्र की माँग के अनुसार वस्तुओं की पूर्ति करना फुटकर व्यापारी अपने क्षेत्र के उपभोक्ताओं की माँग के अनुसार वस्तुओं की पूर्ति करते हैं।
  3. साख सुविधाएँ प्रदान करना फुटकर व्यापारी अपने नियमित ग्राहकों को माल उधार बेचकर साख सुविधाएँ प्रदान करते हैं। इससे उपभोक्ताओं को अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ सरलता से उपलब्ध हो जाती हैं।
  4. ताजी वस्तुएँ प्रदान करना फुटकर व्यापारी अपने ग्राहकों को ताजी व शुद्ध वस्तुएँ उपलब्ध करवाते हैं, इसलिए ग्राहक आवश्यकता के अनुसार कभी भी माल खरीद सकते हैं।
  5. माल वापसी की सुविधा देना फुटकर व्यापारी उपभोक्ता को कोई माल पसन्द न आने पर उसे वापस लेने की सुविधा भी प्रदान करते हैं।
  6. माल को घर पहुँचाना फुटकर व्यापारी ग्राहकों के व्यक्तिगत सम्बन्धों के कारण उनके घर पर माल की सुपुर्दगी की सुविधा भी प्रदान करते हैं।
  7. माँग के अनुसार वस्तुएँ उपलब्ध कराना फुटकर व्यापारी अपनी दुकान में मौसम के अनुकूल अलग-अलग प्रकार की वस्तुएँ खरीदकर एकत्र कर लेते हैं, जिससे उपभोक्ताओं को आवश्यकतानुसार उनकी पसन्द की वस्तुएँ सरलता से मिल जाती हैं।
  8. निःशुल्क परामर्श देना फुटकर व्यापारी अपने ग्राहकों से व्यक्तिगत सम्पर्क होने के कारण उनको वस्तुओं के उचित चयन व उपयोगिता के विषय में नि:शुल्क परामर्श देते हैं।
  9. ग्राहकों को चुनाव की सुविधा फुटकर व्यापारी ग्राहकों को उनकी (UPBoardSolutions.com) आवश्यकता के अनुसार वस्तु के उपयुक्त चुनाव की सुविधा देते हैं।
  10. ठगे जाने का भय नहीं फुटकर व्यापारी ग्राहकों के निकट व स्थायी रूप से होने के कारण ग्राहकों से धोखा नहीं करता है। उपभोक्ताओं को फुटकर व्यापारी पर पूर्ण विश्वास होता है।

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प्रश्न 3.
विभागीय भण्डार से क्या आशय है? विभागीय भण्डार एवं श्रृंखलाबद्ध दुकानों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विभागीय भण्डार विभागीय भण्डार का विकास सर्वप्रथम फ्रांस में सन् 1852 में हुआ था। विभागीय भण्डार के अन्तर्गत एक ही भवन की छत के नीचे वस्तुओं का पृथक्-पृथक् विभागों में विक्रय किया जाता है। इन भण्डारों में उपभोक्ताओं की आवश्यकता की सभी वस्तुएँ अर्थात् सुई से लेकर कार तक एक ही स्थान पर मिल जाती हैं।

इन वस्तुओं के बिल एक ही छत के नीचे अलग-अलग विभागों में बनते हैं। क्लार्क के अनुसार, “विभागीय भण्डार एक फुटकर संस्था है, जिसमें एक ही छत के नीचे बहुत-सी वस्तुओं का व्यापार होता है। ये वस्तुएँ निश्चित विभागों में विभाजित होती हैं। इनका (UPBoardSolutions.com) केन्द्रीय प्रबन्ध होता है और ये मुख्य रूप से स्त्री ग्राहकों की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं।” जेम्स स्टीफेन्सन के अनुसार, “विभागीय भण्डार एक ही छत के अन्तर्गत एक बड़ा भण्डार है, जो विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का फुटकर व्यापार करते हैं।”

विभागीय भण्डार व श्रृंखलाबद्ध दुकानों में अन्तर
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 12 फुटकर व्यापार

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi वाणिज्य सम्बन्धी निबन्ध

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Name वाणिज्य सम्बन्धी निबन्ध
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi वाणिज्य सम्बन्धी निबन्ध

कुटीर एवं लघु उद्योग

प्रमुख विचार-बिन्दु

  1. प्रस्तावना,
  2. कटार उद्योगों को स्वतन्त्र
  3. कुटीर उद्योग की आवश्यकता,
  4. गाँधी जी का योगदान,
  5. कुटीर उद्योगों का नया स्वरूप,
  6. उपसंहार

प्रस्तावना–वर्तमान सभ्यता को यदि यान्त्रिक सभ्यता कहा जाए तो कोई अत्युक्ति न होगी। पश्चिमी देशों की सभ्यता यान्त्रिक बन चुकी है। हाथ से बनी वस्तु और यन्त्र से निर्मित वस्तु में किसी प्रकार की होड़ हो ही नहीं सकती; क्योंकि यन्त्र-युग अपने साथ अपरिमित शक्ति एवं साधन लेकर आया है। परन्तु विज्ञान का यह वरदान मानव-शान्ति के लिए अभिशाप भी सिद्ध हो रहा है। इसलिए युग-पुरुष महात्मा गाँधी ने यान्त्रिक सभ्यता के विरुद्ध कुटीर एवं लघु उद्योगों को बढ़ावा देने की आवाज उठायी। वे कुटीर एवं लघु उद्योगों के माध्यम से ही गाँवों के देश भारत में आर्थिक समता लाने के पक्ष में थे।

थोड़ी पूँजी द्वारा सीमित क्षेत्र में अपने हाथ से अपने घर में ही वस्तुओं का निर्माण करना कुटीर तथा लघु उद्योग के अन्तर्गत है। यह व्यवसाय प्रायः परम्परागत भी होता है। दरियाँ, गलीचे, रस्सियाँ बनाना, खद्दर, मोजे, शाल बुना, लकड़ी, सोने, चाँदी, ताँबे, पीतल की दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुओं को निर्माण करना आदि अनेक प्रकार की हस्तकला के कार्य इसके अन्तर्गत आते हैं।

कुटीर उद्योगों की स्वतन्त्रतापूर्व स्थिति-औद्योगिक दृष्टि से भारत का अतीतकाल अत्यन्त स्वर्णिम एवं सुखद था। लंगभग सभी प्रकार के कुटीर एवं लघु उद्योग अपनी उन्नति की पराकाष्ठा पर थे। ‘ढाके की मलमल’ अपनी कलात्मकता में बहुत ऊँची उठ गयी थी। मुसलमानी बादशाहों और नवाबों के द्वारा भी इसे विशेष प्रोत्साहन मिला। देश को आर्थिक दृष्टि से कुछ इस प्रकार व्यवस्थित किया गया था कि प्रायः प्रत्येक गाँव स्वयं में अधिक-से-अधिक आर्थिक स्वावलम्बन प्राप्त कर सके। किन्तु अंग्रेजी शासन की विनाशकारी आर्थिक नीति तथा यान्त्रिक सभ्यता की दौड़ में न टिक सकने के कारण ग्रामीण जीवन की औद्योगिक स्वावलम्बता छिन्न-भिन्न हो गयी। देश की राजनीतिक पराधीनता इसके लिए पूर्ण उत्तरदायी थी। ग्रामीण-उद्योगों के समाप्त होने से ग्राम्य जीवन का सारा सुख भी समाप्त हो गया।

कुटीर उद्योगों की आवश्यकता–भारत की दरिद्रता का प्रधान कारण कुटीर एवं लघु उद्योगों का विनाश ही रहा है। भारत में उत्पादन का पैमाना अत्यन्त छोटा है। देश की अधिकांश जनता अब भी छोटे-छोटे व्यवसायों से अपनी जीविका चलाती है। भारत के किसानों को वर्ष में कई महीने बेकार बैठना पड़ता है। कृषि में रोजगार की प्रकृति मौसमी होती है। इस बेरोजगारी को दूर करने के लिए कुटीर-उद्योग का सहायक साधनों के रूप में विकास होना आवश्यक है। जापान, फ्रांस, जर्मनी, इटली, रूस आदि सभी देशों में गौण-उद्योग की प्रथा प्रचलित है।।

भारत में कुटीर-उद्योगों और छोटे पैमाने के कला-कौशल के विकास के महत्त्व इस रूप में भी विशेष महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि यदि हम अपने बड़े पैमाने के संगठित उद्योगों में चौगुनी-पंचगुनी वृद्धि कर दें तो भी देश में वृत्तिहीनता की विशाल समस्या सुलझायी नहीं जा सकती। ऐसा करके हम केवल मुट्ठी भर व्यक्तियों की रोटी का ही प्रबन्ध कर सकते हैं। इस जटिल समस्या के सुलझाने का एकमात्र उपाय बड़े पैमाने के साथ-साथ कुटीर एवं लघु उद्योगों का समुचित विकास ही है, जिससे कि ग्रामीण क्षेत्रों को सहायक व्यवसाय और किसानों को अपनी आय में वृद्धि करने का अवसर मिल सके।

गाँधी जी का योगदान–गाँधी जी का विचार था कि बड़े पैमाने के उद्योगों को विशेष प्रोत्साहन न देकर विशालकाय मशीनों के उपयोग को रोका जाए तथा छोटे उद्योगों द्वारा पर्याप्त मात्रा में आवश्यक वस्तुएँ उत्पादित की जाएँ। कुटीर उद्योग मनुष्य की स्वाभाविक रुचियों और प्राकृतिक योग्यताओं के विकास के लिए पूर्ण सुविधा प्रदान करता है। मशीन के मुंह से निकलने वाले एक मीटर टुकड़े को भी कौन अपना कह सकता है, जबकि वह भी उसी मजदूर के खून-पसीने से तैयार हुआ है। हाथ से बनी हुई प्रत्येक वस्तु पर बनाने वाले के नैतिक, सांस्कृतिक तथा आत्मिक व्यक्तित्व की छाप अंकित होती है, जबकि मशीनं की स्थिति में इनका लोप हो जाता है और व्यक्ति केवल उस मशीन का एक निर्जीव पुर्जा मात्र रह जाता है।

कुटीर एवं लघु उद्योगों में आधुनिक औद्योगीकरण से उत्पन्न वे दोष नहीं पाये जाते, जो औद्योगिक नगरों की भीड़-भाड़, पूँजी तथा उद्योगों के केन्द्रीकरण, लोक-स्वास्थ्य की पेचीदा समस्याओं, आवास की कमी तथा नैतिक पतन के कारण उत्पन्न होते हैं।

कुटीर, लघु उद्योग थोड़ी पूँजी के द्वारा जीविका-निर्वाह के साधन प्रस्तुत करते हैं। पारस्परिक सहयोग से कुटीर-उद्योग बड़े पैमाने में भी परिणत किया जा सकता है। कुटीर-उद्योग में छोटे-छोटे बालकों एवं स्त्रियों के परिश्रम का भी सुन्दर उपयोग किया जा सकता है। कुटीर उद्योग की इन्हीं विशेषताओं से प्रभावित होकर बड़े- बड़े औद्योगिक राष्ट्रों में भी कुटीर एवं लघु उद्योग की प्रथा प्रचलित है। जापान में 60 प्रतिशत उद्योगशालाएँ कुटीर एवं लघु उद्योग से संचालित हैं। कहा जाता है कि जर्मनी में प्रत्येक मनुष्य को रोटी देने का प्रबन्ध करने के लिए हिटलर ने कुटीर-उद्योगों की ही शरण ली थी।

कुटीर उद्योगों का नया स्वरूप–इस समय देश में छोटे कारखानों की संख्या मोटे तौर पर एक करोड़ से अधिक आँकी गयी है, परन्तु तेल की घानियाँ, खाँडसारी और ऐसी वस्तुओं के छोटे कारखाने, जिन्हें केवल एक आदमी चलाता है आदि को मिलाकर इनकी संख्या बहुत कम है। पंचवर्षीय योजनाओं का उद्देश्य उद्योगों को आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाने का रहा है। अतः मुख्य रूप से ध्यान इस पर दिया जाएगा कि उद्योगों का विकास विकेन्द्रीकरण के आधार पर हो, शिल्पिक कुशलता में सुधार किया जाए और उत्पादकता बढ़ाने के लिए सहायता देकर छोटे उद्योग वालों की आय बढ़ाने में सहायता की जाए तथा दस्तकारों को सहकारिता के आधार पर संगठित करने के प्रयास किये जाएँ। इससे छोटे उद्योगों में उत्पादन का क्षेत्र बढ़ेगा।

उपसंहार–छोटे उद्योगों की गाँवों में स्थापना से न केवल ग्रामीण दस्तकारों की स्थिति में सुधार हुआ है, बल्कि गाँवों में रोजगार की सुविधा भी बढ़ी है। अतः ग्राम विकास कार्यक्रमों में कुटीर एवं लघु उद्योगों का स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। पूर्ण रूप से सफल बनाने के लिए हमारी सरकार इन्हें वैज्ञानिक पद्धति से सहकारिता के आधार पर संचालित करने की व्यवस्था कर रही है। इसकी सफलता पर ही हमारे जीवन में पूर्ण शान्ति, सुख और समृद्धि की कल्याणकारी पूँज ध्वनित हो सकेगी।

आर्थिक उदारीकरण एवं निजीकरण की नीति

प्रमुख विचार-बिन्दु

  1. प्रस्तावना,
  2. पं० नेहरू की विचारधारा,
  3. भारतीय अर्थव्यवस्था,
  4. उदारीकरण का अर्थ,
  5. निजीकरण का अर्थ,
  6. नयी औद्योगिक नीति,
  7. उपसंहार

प्रस्तावना-आजकल ‘उदारीकरण’ शब्द का प्रयोग अत्यधिक प्रचलित हो गया है और इसे इस प्रकार प्रस्तुत किया जा रहा है जैसे देश की जर्जर अर्थव्यवस्था का उद्धार केवल यही पद्धति कर सकती है। इस व्यवस्था के पक्षधरों का मानना है कि स्वातन्त्र्योत्तर भारत ने आर्थिक विकास हेतु जिस नीति का अनुगमन किया वह सरकारी नियन्त्रण पर आधारित रही और निजी उद्यमिता इससे प्रभावित हुई। फलत: देश की आर्थिक उन्नति में अपेक्षित उन्नति नहीं हुई। यह भी तर्क दिया जा रहा है कि परमिट लाइसेंस राज ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था में गतिरोध ही उत्पन्न किया है।

पं० नेहरू की विचारधारा--ज्ञातव्य है कि सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र किसी भी उन्नतिशील देश के विकास के मूल में होते हैं और इन्हीं से उस देश की आर्थिक प्रक्रिया नियन्त्रित होती है। पं० जवाहरलाल नेहरू का विचार था कि यदि देश का सर्वांगीण विकास करना है तो प्रमुख उद्योगों को विकसित किया जाना आवश्यक होगा। उनका विचार था कि दुनिया में अनेक आर्थिक विचारधाराओं में संघर्ष हो रहा है। मुख्यतः दो धाराएँ हैं-एक ओर तो तथाकथित पूँजीवादी विचारधारा है और दूसरी ओर तथाकथित सोवियत रूस की साम्यवादी विचारधारा। प्रत्येक पक्ष अपने दृष्टिकोण की यथार्थता का कायल है। लेकिन इससे जरूरी तौर पर यह नतीजा नहीं निकलता है कि आप इन दोनों पक्षों में से एक को स्वीकार करें। बीच के कई दूसरे तरीके भी हैं। पूँजीवादी औद्योगिक व्यवस्था ने उत्पादन की समस्या को अत्यधिक सफलता से हल किया है। लेकिन उसने कई समस्याओं को हल नहीं भी किया है। यदि वह इन समस्याओं को हल नहीं कर सकता तो कोई और रास्ता निकालना होगी। यह सिद्धान्त का नहीं कठोर तथ्य का सवाल है। भारत में यदि हम अपने देश की भोजन, वस्त्र, मकान आदि की बुनियादी समस्याएँ हल नहीं कर सकते तो हम अलग कर दिये जाएँगे और हमारी जगह कोई और आएगा। इस समस्या के हल के लिए चरमपंथी तरीका ही नहीं वरन् बीच का रास्ता भी अपनाया जा सकता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था--भारत में जिस प्रकार की अर्थव्यवस्था प्रारम्भ हुई उसे मिश्रित अर्थव्यवस्था का नाम दिया गया। मिश्रितृ अर्थव्यवस्था से तात्पर्य है ऐसी व्यवस्था जहाँ कुछ क्षेत्र में सरकारी नियन्त्रण रहता है तथा अन्य क्षेत्र निजी घ्यवस्था के अधीन रहते हैं और क्षेत्रों का वर्गीकरण पूर्णतय पूर्व सुनिश्चित रहता है।

हिन्दुस्तान में आजादी से पूर्व किसी सुनियोजित औद्योगिक नीति की घोषणा नहीं हुई थी। स्वातन्त्र्योत्तर प्रथम औद्योगिक नीति की घोषणा मिश्रित अर्थव्यवस्था की संकल्पना पर आधारित थी। सन् 1956 में जो औद्योगिक नीति बनी, वह प्रमुख एवं आधारभूत उद्योगों के त्वरित विकास तथा समाजवादी समाज की स्थापना जैसे लक्ष्यों पर आधारित थी। बाद में उसमें कतिपय नीतिगत परिवर्तन हुए जिससे सार्वजनिक क्षेत्र में व्याप्त अवरोधों को दूर किया जा सका।

उदारीकरण का अर्थ-आर्थिक प्रतिबन्धों की न्यूनता को ही उदारीकरण कह सकते हैं। प्रतिबन्धों के कारण प्रतियोगिता का अभाव रहता है, फलतः उत्पादक वर्ग वस्तु की गुणवत्ता के प्रति उदासीन रहता है। किन्तु यदि प्रतिबन्धों का अभाव कर दिया जाए तो इसका परिणाम दूरगामी होती है। उदारवादियों का मानना है और नियन्त्रित अर्थव्यवस्था या सरकारीकरण से उद्यमिता का विकास बाधित होता है।

यहाँ पर उल्लेख किया जाना आवश्यक है कि निजीकरण को सम्प्रति विश्व के अधिकांश विकसित एवं अर्द्धविकसित देशों में अपनाया गया है। चूंकि सरकारी उद्योगों में प्रतियोगिता का अभाव रहता है और इसमें उत्पादकता को बढ़ाने का कोई विशेष प्रयास नहीं होता। फलतः इन उद्योगों में कुशलता घट जाती है, किन्तु विकल्प रूप में निजीकरण ही सबसे बेहतर व्यवस्था है, यह भी नहीं कहा जा सकता।

निजीकरणका अर्थ-निजीकरण’ का अर्थ उत्पादनों के साधनों का निजी हाथों में होना है। इसमें सबसे बड़ी त्रुटि यह है कि निजीकरण का उद्देश्य अल्पकाल में अधिक से अधिक लाभ कमाना होता है। इस कारण यह दीर्घकालीन प्रतिस्पर्धात्मक बाजार नहीं बनाये रहता। प्रायः सरकारी घाटों को पूरा करने के लिए निजीकरण का तरीका अपनाया जाता है। सार्वजनिक सम्पत्ति का निजी हाथों में विक्रय उसी दशा में किया जाना चाहिए जब कि वह राष्ट्रीय ऋण को कम करने में सहायक हो।

सन् 1993 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया था कि उदारीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप बेरोजगारी और मुद्रा स्फीति दोनों में वृद्धि हुई है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रोफेसर रुद्र दत्त ने ‘इम्पैक्ट ऑफ इकनॉमिक पॉलिसी ऑन लेबर एण्ड इण्डस्ट्रियल रिलेशन की रिपोर्ट में कहा था कि उदारीकरण ने उत्पादन की संरचना को भी विकृत किया है।

‘नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एण्ड पॉलिसी के प्रमुख शोधकर्ता सुदीप्तो मण्डल का मानना है कि उदारीकरण के परिणामस्वरूप मिल-मालिकों की उग्रता बढ़ी है जबकि श्रमिक वर्ग के जुझारूपन में कमी आयी है।

नयी औद्योगिक नीति–विगत वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था अत्यधिक नियन्त्रित एवं विनियमित अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित हुई है। 24 जुलाई, 1991 को भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व अर्थव्यवस्था के एक अंग के रूप में विकसित करने के लिए नयी औद्योगिक नीति तैयार हुई जिसे उदार एवं क्रान्तिकारी नीति की संज्ञा दी गयी है। इस नीति का लक्ष्य है-

  1. अर्थव्यवस्था में खुलेपन को लाना।
  2. अर्थव्यवस्था को अनावश्यक नियन्त्रणों से मुक्त रखना।
  3. विदेशी सहयोग एवं भागीदारी को बढ़ावा देना।
  4. रोजगार के अवसर बढ़ाना।
  5. सार्वजनिक क्षेत्र को प्रतिस्पर्धा के योग्य बनाना।
  6. आधुनिक प्रतिस्पर्धात्मक अर्थव्यवस्था को विकसित करना।
  7. निर्यात बढ़ाने के लिए आयातों को उदार बनाना।
  8. उत्पादकता वृद्धि हेतु प्रोत्साहन देना आदि।।

वर्तमान औद्योगिक नीति के अन्तर्गत उद्योगों पर लगे प्रशासनिक एवं कानूनी नियन्त्रणों में शिथिलता दी गयी है। सभी मौजूदा उत्पादन इकाइयों को विस्तार परियोजनाओं को लागू करने के लिए पूर्वानुमति की आवश्यकता नहीं है। उच्च प्राथमिकता वाले उद्योगों में विदेशी पूँजी के निवेश को 40 प्रतिशत के स्थान पर 51 प्रतिशत तक की अनुमति देने के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र के महत्त्व को बनाये रखने पर बल दिया गया है। विदेशी तकनीशियनों की सेवाएँ किराये पर लेने तथा स्वदेश में विकसित प्रौद्योगिकी की विदेशों में जाँच करने के लिए अब स्वतः अनुमति की व्यवस्था है।

यह तो ठीक है कि नयी औद्योगिक नीति से उत्पादन वृद्धि, निर्यात संवर्द्धन, औद्योगीकरण, तकनीकी सुधार, प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति का विकावा तथा नये उद्यमियों को प्रोत्साहन प्राप्त होगा किन्तु अत्यधिक उदारीकरण एवं विदेशी पूँजी के निवेश की स्वतन्त्र छूट से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था बहुराष्ट्रीय निगमों एवं वड़े औद्योगिक घरानों के चक्र में फँस जाएगी। इस नीति के निम्नलिखित दूरगामी दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं

  1. आर्थिक विषमता में वृद्धि।
  2. आत्मनिर्भरता में ह्रास।
  3. आयतित संस्कृति को बढ़ावा।
  4. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों एवं विदेशी विनियोजकों को स्वतन्त्र छूट देने से देशी उद्यमियों का प्रतिस्पर्धा में। टिक पाना कठिन।
  5. अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के दबाव।
  6. काले धन की समानान्तर अर्थव्यवस्था।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि उदारीकरण की हवा पश्चिम से चली है। ठीक है कि निजी उद्योगों की उत्पादन संवृद्धि में विशेष भूमिका हो सकती है किन्तु हस्तक्षेप के अभाव में निजी उद्यमिता विनाशात्मक हो सकती है और किसी भी रूप में निजीकरण सार्वजनिक इकाइयों की त्रुटियों को दूर करने वाला प्रभावपूर्ण उपकरण नहीं हो सकता है। निजीकरण से निजी क्षमता का लाभ होगा और सार्वजनिक इकाइयाँ अस्वस्थ होंगी।

उपसंहार-उदारीकरण से आशय यह नहीं है कि सरकार की भूमिका इसमें कम होती है, अपितु इसमें उसका उत्तरदायित्व और बढ़ जाता है और आर्थिक उदारीकरण का औचित्य सही मायने में तभी सिद्ध हो सकेगा, जब उससे जन-साधारण लाभान्वित हो सकेगा। उदारीकरण की नीति भारतीय अर्थव्यवस्था को गतिशील एवं प्रतिस्पर्धात्मक बनाने में सफल हो सकती है। किन्तु विदेशी पूँजी पर आश्रितता, विदेशी आर्थिक उपनिवेशवाद की स्थापना एवं बड़े औद्योगिक घरानों का वर्चस्व बढ़ेगा, जिससे गरीबी और बेरोजगारी में वृद्धि होगी। अतः इस नीति को दूरदर्शितापूर्वक लागू करना होगा अन्यथा अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों के भारत में आने से भारतीय कम्पनियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा, जो कि आर्थिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से भारत के लिए अत्यधिक हानिकारक है।

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कृषि सम्बन्धी निबन्ध

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Subject Samanya Hindi
Chapter Name कृषि सम्बन्धी निबन्ध
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कृषि सम्बन्धी निबन्ध

ग्राम्य विकास की समस्याएँ और उनका समाधान

सम्बद्ध शीर्षक

  • भारतीय कृषि की समस्याएँ
  • भारतीय किसानों की समस्याएँ और उनके समाधान
  • ग्रामीण कृषकों की समस्या
  • आज का किसान : समस्याएँ और समाधान
  • भारतीय किसान का जीवन
  • कृषक जीवन की त्रासदी

प्रमुख विचार-बिन्दु

  1. प्रस्तावना,
  2. भारतीय कृषि का स्वरूप,
  3. भारतीय कृषि की समस्याएँ,
  4. समस्या का समाधान,
  5. ग्रामोत्थान हेतु सरकारी योजनाएँ,
  6. आदर्श ग्राम की कल्पना,
  7. उपसंहार

प्रस्तावना-प्राचीन काल से ही भारत एक कृषिप्रधान देश रहा है। भारत की लगभग 70 प्रतिशत जनता गाँवों में निवास करती है। इस जनसंख्या का अधिकांश भाग कृषि पर ही निर्भर है। कृषि ने ही भारत को अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में विशेष ख्याति प्रदान की है। भारत की सकल राष्ट्रीय आय का लगभग 30 प्रतिशत कृषि से ही आता है। भारतीय समाज का संगठन और संयुक्त परिवार-प्रणाली आज के युग में कृषि व्यवसाय के कारण ही अपना महत्त्व बनाये हुए है। आश्चर्य की बात यह है कि हमारे देश में कृषि बहुसंख्यक जनता का मुख्य और महत्त्वपूर्ण व्यवसाय होते हुए भी बहुत ही पिछड़ा हुआ और अवैज्ञानिक है। जब तक भारतीय कृषि में सुधार नहीं होता, तब तक भारतीय किसानों की स्थिति में सुधार की कोई सम्भावना नहीं और भारतीय किसानों की स्थिति में सुधार के पूर्व भारतीय गाँवों के विकास की कल्पना ही नहीं की जा सकती। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि भारतीय कृषि, कृषक और गाँव तीनों ही एक-दूसरे पर अवलम्बित हैं। इनके उत्थान और पतन, समस्याएँ और समाधान भी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।

भारतीय कृषि का स्वरूप-भारतीय कृषि और अन्य देशों की कृषि में बहुत अन्तर है। कारण अन्य देशों की कृषि वैज्ञानिक ढंग से आधुनिक साधनों द्वारा की जाती है, जब कि भारतीय कृषि अवैज्ञानिक और अविकसित है। भारतीय कृषक आधुनिक तरीकों से खेती करना नहीं चाहते और परम्परागत कृषि पर ही आधारित हैं। इसके साथ-ही भारतीय कृषि कां स्वरूप इसलिए भी अव्यवस्थित है कि यहाँ पर कृषि प्रकृति की उदारता पर निर्भर है। यदि वर्षा ठीक समय पर उचित मात्रा में हो गयी तो फसल अच्छी हो जाएगी। अन्यथा बाढ़ और सूखे की स्थिति में सारी की सारी उपज नष्ट हो जाती है। इस प्रकार प्रकृति की अनिश्चितता पर निर्भर होने के कारण भारतीय कृषि सामान्य कृषकों के लिए आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है।

भारतीय कृषि की समस्याएँ-आज के विज्ञान के युग में भी कृषि के क्षेत्र में भारत में अनेक समस्याएँ विद्यमान हैं, जो कि भारतीय कृषि के पिछड़ेपन के लिए उत्तरदायी हैं। भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याओं में सामाजिक, आर्थिक और प्राकृतिक कारण हैं। सामाजिक दृष्टि से भारतीय कृषक की दशा अच्छी नहीं है। अपने शरीर की चिन्ता न करते हुए सर्दी, गर्मी सभी ऋतुओं में वह अत्यन्त कठिन परिश्रम करता है तब भी उसे पर्याप्त लाभ नहीं हो पाता। भारतीय किसान अशिक्षित होता है। इसका कारण आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के प्रसार का न होना है। शिक्षा के अभाव के कारण वह कृषि में नये वैज्ञानिक तरीकों का प्रयोग नहीं कर पाता तथा अंच्छे खाद और बीज के बारे में भी नहीं जानता। कृषि करने के आधुनिक वैज्ञानिक यन्त्रों के विषय में भी उसैका ज्ञान शून्य होता है तथा आज भी वह प्रायः पुराने ढंग के ही खाद और बीजों का प्रयोग करता है। भारतीय किसानों की आर्थिक स्थिति भी अत्यन्त शोचनीय है। वह आज भी महाजनों की मुट्ठी में जकड़ा हुआ हैं। प्रेमचन्द ने कहा था, “भारतीय किसान ऋण में ही जन्म लेता है, जीवन भर ऋण ही चुकाता रहता है और अन्ततः ऋणग्रस्त अवस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।’ धन के अभाव में ही वह उन्नत बीज, खाद और कृषि-यन्त्रों का प्रयोग नहीं कर पाता। सिंचाई के साधनों के अभाव के कारण वह प्रकृति पर अर्थात् वर्षों पर निर्भर करता है।

प्राकृतिक प्रकोपों—बाढ़, सूखा, ओला आदि से भारतीय किसानों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। अशिक्षित होने के कारण वह वैज्ञानिक विधियों की खेती में प्रयोग करना नहीं जानता और न ही उन पर विश्वास करना चाहता है। अन्धविश्वास, धर्मान्धता, रूढ़िवादिता आदि उसे बचपन से ही घेर लेते हैं। इस सबके अतिरिक्त एक अन्य समस्या है-भ्रष्टाचार की, जिसके चलते न तो भारतीय कृषि का स्तर सुधर पाता है और न ही भारतीय कृषक का। हमारे पास दुनिया की सबसे अधिक उपजाऊ भूमि है। गंगा-यमुना के मैदान में इतना अनाज पैदा किया जा सकता है कि पूरे देश का पेट भरा जा सकता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण दूसरे देश आज भी हमारी ओर ललचाई नजरों से देखते हैं। लेकिन हमारी गिनती दुनिया के भ्रष्ट देशों में होती है। हमारी तमाम योजनाएँ भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं। केन्द्र सरकार अथवा विश्व बैंक की कोई भी योजना हो, उसके इरादे कितने ही महान् क्यों न हों पर हमारे देश के नेता और नौकरशाह योजना के उद्देश्यों को धूल चटा देने की कला में माहिर हो चुके हैं। ऊसर भूमि सुधार, बाल पुष्टाहार, आँगनबाड़ी, निर्बल वर्ग आवास योजना से लेकर कृषि के विकास और विविधीकरण की तमाम शानदार योजनाएँ कागजों और पैम्फ्लेटों पर ही चल रही हैं। आज स्थिति यह है कि गाँवों के कई घरों में दो वक्त चूल्हा भी नहीं जलता है तथा ग्रामीण नागरिकों को पानी, बिजली, स्वास्थ्य, यातायात और शिक्षा की बुनियादी सुविधाएँ भी ठीक से उपलब्ध नहीं हैं। इन सभी समस्याओं के परिणामस्वरूप भारतीय कृषि का प्रति एकड़ उत्पादन, अन्य देशों की अपेक्षा गिरे हुए स्तर का रहा है।

समस्या का समाधान-भारतीय कृषि की दशा को सुधारने से पूर्व हमें कृषक और उसके वातावरण की ओर वृष्टिपात करना चाहिए। भारतीय कृषक जिन ग्रामों में रहता है, उनकी दशा अत्यन्त शोचनीय है। अंग्रेजों के शासनकाल में किसानों पर ऋण का बोझ बहुत अधिक था। शनैः-शनै: किसानों की आर्थिक दशा और गिरती चली गयी एवं गाँवों का सामाजिक-आर्थिक वातावरण अत्यन्त दयनीय हो गया। अत: किसानों की स्थिति में सुधार तभी लाया जा सकता है, जब विभिन्न योजनाओं के माध्यम से इन्हें लाभान्वित किया जा सके। इनको अधिकाधिक संख्या में साक्षर बनाने हेतु एक मुहिम छेड़ी जाए। ऐसे ज्ञानवर्द्धक कार्यक्रम तैयार किये जाएँ, जिनसे हमारा किसान कृषि के आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों से अवगत हो सके।

ग्रामोत्थान हेतु सरकारी योजनाएँ-ग्रामों की दुर्दशा से भारत की सरकार भी अपरिचित नहीं है। भारत ग्रामों का ही देश है; अत: उनके सुधारार्थ पर्याप्त ध्यान दिया जाता है। पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा गाँवों में सुधार किये जा रहे हैं। शिक्षालय, वाचनालय, सहकारी बैंक, पंचायत, विकास विभाग, जलकल, विद्युत आदि की व्यवस्था के प्रति पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है। इस प्रकार सर्वांगीण उन्नति के लिए भी प्रयत्न हो रहे हैं, किन्तु इनकी सफलता ग्रामों में बसने वाले निवासियों पर भी निर्भर है। यदि वे अपना कर्तव्य समझकर विकास में सक्रिय सहयोग दें, तो ये सभी सुधार उत्कृष्ट साबित हो सकते हैं। इन प्रयासों के बावजूद ग्रामीण जीवन में अभी भी अनेक सुधार अपेक्षित हैं।

आदर्श ग्राम की कल्पना-गाँधी जी की इच्छा थी कि भारत के ग्रामों का स्वरूप आदर्श हो तथा उनमें सभी प्रकार की सुविधाओं, खुशहाली और समृद्धि का साम्राज्य हो। गाँधी जी का आदर्श गाँव से अभिप्राय एक ऐसे गाँव से था, जहाँ पर शिक्षा का सुव्यवस्थित प्रचार हो; सफाई, स्वास्थ्य तथा मनोरंजन की सुविधाएँ हो; सभी व्यक्ति प्रेम, सहयोग और सद्भावना के साथ रहते हों; रेडियो, पुस्तकालय, पोस्ट ऑफिस आदि की सुविधाएँ हों; भेदभाव, छुआछूत आदि की भावना न हो; तथा लोग सुखी और सम्पन्न हों। परन्तु आज भी हम देखते हैं कि उनका स्वप्न मात्र स्वप्न ही रह गया है। आज भी भारतीय गाँवों की दशा अच्छी नहीं है। चारों ओर बेरोजगारी और निर्धनता का साम्राज्य है। गाँधी जी का आदर्श ग्राम तभी सम्भव है। जब कृषि जो कि ग्रामवासियों का मुख्य व्यवसाय है, की स्थिति में सुधार के प्रयत्न किये जाएँ और कृषि से सम्बन्धित सभी समस्याओं का यथासम्भव शीघ्रातिशीघ्र निराकरण किया जाए।

उपसंहार-ग्रामों की उन्नति भारत के आर्थिक विकास में अपना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। भारत सरकार ने स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् गाँधी जी के आदर्श ग्राम की कल्पनो को साकार करने का यथासम्भव प्रयास किया है। गाँवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई आदि की व्यवस्था के प्रयत्न किये हैं। कृषि के लिए अनेक सुविधाएँ; जैसे-अच्छे बीज, अच्छे खोद, अच्छे उपकरण और साख एवं सुविधाजनक ऋण-व्यवस्था आदि देने का प्रबन्ध कियगया है। इस दशा में अभी और सुधार किये जाने की आवश्यकता है। वह दिन दूर नहीं है जब हम अपनी संस्कृति के मूल्य को पहचानेंगे और एक बार फिर उसके सर्वश्रेष्ठ होने का दावा करेंगे। उस समय हमारे स्वर्ग से सुन्दर देश के वैसे ही गाँव अँगूठी में जड़े नग की तरह सुशोभित होंगे और हम कह सकेंगे—

हमारे सपनों का संसार, जहाँ पर हँसती हो साकार,
जहाँ शोभा-सुख-श्री के साज, किया करते हैं नित श्रृंगार।
यहाँ यौवन मदमस्त ललाम, ये हैं वही हमारे ग्राम ॥

भारत में वैज्ञानिक कृषि

सम्बद्ध शीर्षक

  • भारतीय विज्ञान एवं कृषि
  • वैज्ञानिक विधि अपनाएँ : अधिक अंन्न उपजाएँ
  • भारत का किसान और विज्ञान
  • भारतीय कृषि एवं विज्ञान
  • व्यावसायिक कृषि का प्रसार : किसान का आधार

प्रमुख विचार-बिन्दु

  1. प्रस्तावना,
  2. प्रजनन : कृषि की विशिष्ट वैज्ञानिक विधि,
  3. विज्ञान की नयी तकनीकों के प्रयोग का सुखद परिणाम,
  4. उत्पादन के भण्डारण और भू-संरक्षण के लिए विज्ञान की उपादेयता,
  5. उपसंहार

प्रस्तावना-किसान और खेती इस देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इसलिए सच ही कहा गया है। कि हमारे देश की समृद्धिका रास्ता खेतों और खलिहानों से होकर गुजरता है; क्योंकि यहाँ की दो-तिहाई जनता कृषि-कार्य में संलग्न है। इस प्रकार हमारी कृषि-व्यवस्था पर ही देश की समृद्धि निर्भर करती है और कृषि-व्यवस्था को विज्ञान ने एक सुदृढ़ आधार प्रदान किया है, जिसके कारण पिछले दशकों में आत्मनिर्भरता की स्थिति तक उत्पादन बढ़ा है। इस वृद्धि में उन्नत किस्म के बीजों, उर्वरकों, सिंचाई के साधनों, जल-संरक्षण एवं पौध-संरक्षण का उल्लेखनीय योगदान रहा है और यह सब कुछ विज्ञान की सहायता से ही सम्भव हो सका है। इस प्रकार विज्ञान और कृषि आज एक-दूसरे के पूरक हो गये हैं।

मनुष्यों को जीवित रहने के लिए खाद्यान्न, फल और सब्जियाँ चाहिए। ये सभी चीजें कृषि से ही प्राप्त होंगी। दूसरी ओर किसानों को अपनी कृषि की उपज बढ़ाने के लिए नयी तकनीक चाहिए, उन्नत किस्म के बीज चाहिए, उर्वरक और सिंचाई के साधनों के अलावा बिजली भी चाहिए। विज्ञान का ज्ञान ही उन्हें यह सब उपलब्ध करा सकता है।

प्रजनन: कृषि की विशिष्ट वैज्ञानिक विधि-चन्द्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने वित्तीय वर्ष 1999-2000 में गेहूँ की चार नयी प्रजातियाँ विकसित कीं। कृषि वैज्ञानिक प्रोफेसर जियाउद्दीन अहमद के अनुसार, ‘अटल’, ‘नैना’, ‘गंगोत्री एवं प्रसाद’ नाम की ये प्रजातियाँ रोटी को और अधिक स्वादिष्ट बनाने में सक्षम होंगी। पहली प्रजाति-के-9644 को प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम से जोड़कर ‘अटल’ नाम दिया गया है, जिन्होंने ‘जय जवान जय किसान’ के साथ ‘जय विज्ञान’ जोड़कर एक नया नारा दिया है। यह गेहूँ ऐच्छिक पौधों के प्रकार के साथ, वर्षा की विविध स्थितियों में भी श्रेयस्कर उत्पादक स्थितियाँ सँजोये रखेगा। हरी पत्ती और जल्दी पुष्पित होने वाली इस प्रजाति का गेहूँ कड़े दाने वाला होगा। इसमें अधिक उत्पादकता के साथ अधिक प्रोटीन भी होगा। प्रजनन की विशिष्ट विधि का प्रयोग करके वैज्ञानिकों ने के-7903 नैना प्रजाति का विकास किया है, जो 75 से 100 दिन में पक जाता है। इसमें 12 प्रतिशत प्रोटीन होता है और इसकी उत्पादन-क्षमता 40 से 50 क्विटल प्रति हेक्टेयर है। इसी प्रकार विकसित के-9102 प्रजाति को गंगोत्री नाम दिया है। इसकी परिपक्वता अवधि 90 से 105 दिन के बीच घोषित की गयी है। इसमें 13 प्रतिशत प्रोटीन होता है और 40 से 50 क्विटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन-क्षमता होती है। प्रजनन की विशिष्ट वैज्ञानिक विधि से ही ऐसा सम्भव हो पाया है।

विज्ञान की नयी तकनीकों के प्रयोग का सुखद परिणाम-आधारभूतं वैज्ञानिक तकनीकें जो कृषि के क्षेत्र में प्रयुक्त हुई और हो रही हैं, उन्हें अब व्यापक स्वीकृति भी मिल रही है। ये वे आधार बनी हैं, जिससे कृषि की उपलब्धियाँ ‘भीख के कटोरे’ से आज निर्यात के स्तर तक पहुँच गयी हैं। कृषि में वृद्धि, विशेषकर पैदावार और उत्पादन में अनेक गुना वृद्धि, मुख्य अनाज की फसलों के उत्पादन में वृद्धि से सम्भव हुई है। पहले गेहूं की हरित क्रान्ति हुई और इसके बाद धान के उत्पादन में क्रान्ति आयी। उत्तर प्रदेश के 167.31 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खेती की जाती है, जिसमें वर्ष 1999-2000 में 452.36 लाख मी० टन खाद्यान्न का रिकार्ड उत्पादन हुआ, जो देश के कुल उत्पादन का 23 प्रतिशत है। विज्ञान की नयी-नयी तकनीकों के प्रयोग से ही यह सम्भव हो सकती है।

उत्पादन के भण्डारण और भू-संरक्षण के लिए विज्ञान की उपादेयता-–पर्याप्त मात्रा में उत्पादन के बाद उसके भण्डारण की भी आवश्यकता होती है। आलू, फल आदि के भण्डारण के लिए शीतगृहों एवं प्रशीतित वाहनों के लिए वैज्ञानिक विधियों की सहायता की आवश्यकता पड़ती है। फसलों के निर्यात के लिए साफ-सुथरी सड़कों, ट्रैक्टरों और ट्रकों का निर्माण विज्ञान के ज्ञान से ही सम्भव हो सका है, जिनकी आवश्यकता कृषकों के लिए होती है। इसके अलावा चीनी मिले, आटा मिल, चावल मिल, दाल मिल और तेल मिल की आवश्यकता पड़ती है। इन मिलों की स्थापना वैज्ञानिक विधि से ही हो सकती है। ट्यूबवेल एवं कृषि पर आधारित उद्योगों के लिए बिजली की आवश्यकता को वैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर पूरा किया जा सकता है। इसी प्रकार खेत की मिट्टी की जाँच कराकर, विश्लेषण के परिणामों के आधार पर सन्तुलित उर्वरकों एवं जैविक खादों के प्रयोग के लिए भी विज्ञान के ज्ञान की ही आवश्यकता होती है।

उपसंहार—इस प्रकार विज्ञान और कृषि का बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है। भूमण्डलीकरण के युग में आज विज्ञान की सहायता के बिना कृषि और कृषक को उन्नत नहीं बनाया जा सकता। यह भी सत्य है कि जब तक गाँव की खेती तथा किसान की दशा नहीं सुधरती, तब तक देश के विकास की बात बेमानी ही कही जाएगी। भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन 23 दिसम्बर को किसान-दिवस’ के रूप में मनाये जाने की घोषणा से कृषि और कृषक के उज्ज्वल भविष्य की अच्छी सम्भावनाएँ दिखाई देती हैं।

भारत में कृषि क्रान्ति एवं कृषक आन्दोलन

प्रमुख विचार-बिन्दु

  1. प्रस्तावना,
  2. किसानों की समस्याएँ,
  3. कृषक संगठन व उनकी माँग,
  4. कृषक आन्दोलनों के कारण,
  5. उपसंहार

प्रस्तावना—हमारा देश कृषि प्रधान है और सच तो यह है कि कृषि क्रिया-कलाप ही देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। ग्रामीण क्षेत्रों की तीन-चौथाई से अधिक आबादी अब भी कृषि एवं कृषि से संलग्न क्रिया-कलापों पर निर्भर है। भारत में कृषि मानसून पर आश्रित है और इस तथ्य से सभी परिचित हैं कि प्रत्येक वर्ष देश की एक बहुत बड़ा हिस्सा सूखे एवं बाढ़ की चपेट में आता है। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था, भारतीय जन-जीवन का प्राणतत्त्व है। अंग्रेजी शासन-काल में भारतीय कृषि का पर्याप्त ह्रास हुआ।

किसानों की समस्याएँ--भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। भारत की अधिकांश जनता गाँवों में बसती है। यद्यपि किसान समाज का कर्णधार है किन्तु इनकी स्थिति अब भी बदतर है। उसकी मेहनत के अनुसार उसे पारितोषिक नहीं मिलता है। यद्यपि सकल घरेलू उत्पाद में कृषि-क्षेत्र का योगदान 30 प्रतिशत है, फिर भी भारतीय कृषक की दशा शोचनीय है।

देश की आजादी की लड़ाई में कृषकों की एक वृहत् भूमिका रही। चम्पारण आन्दोलन अंग्रेजों के खिलाफ एक खुला संघर्ष था। स्वातन्त्र्योत्तर जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ। किसानों को भू-स्वामित्व का अधिकार मिला। हरित कार्यक्रम भी चलाया गया और परिणामत: खाद्यान्न उत्पादकता में वृद्धि हुई; किन्तु इस हरित क्रान्ति का विशेष लाभ सम्पन्न किसानों तक ही सीमित रहा। लघु एवं सीमान्त कृषकों की स्थिति में कोई आशानुरूप सुधार नहीं हुआ।

आजादी के बाद भी कई राज्यों में किसानों को भू-स्वामित्व नहीं मिला जिसके विरुद्ध बंगाल, बिहार एवं आन्ध्र प्रदेश में नक्सलवादी आन्दोलन प्रारम्भ हुए।

कृषक संगठन वे उनकी माँग--किसानों को संगठित करने का सबसे बड़ा कार्य महाराष्ट्र में शरद जोशी ने किया। किसानों को उनकी पैदावार का समुचित मूल्य दिलाकर उनमें एक विश्वास पैदा किया कि वे संगठित होकर अपनी स्थिति में सुधार ला सकते हैं। उत्तर प्रदेश के किसान नेता महेन्द्र सिंह टिकैत ने । किसानों की दशा में बेहतर सुधार लाने के लिए एक आन्दोलन चलाया है और सरकार को इस बात का अनुभव करा दिया कि किसानों की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। टिकैत के आन्दोलन में किसानों के मन में कमोवेश यह भावना भर दी कि वे भसंगठित होकर अपनी आर्थिक उन्नति कर सकते हैं।

किसान संगठनों को सबसे पहले इस बारे में विचार करना होगा कि “आर्थिक दृष्टि से अन्य वर्गों के साथ उनका क्या सम्बन्ध है। उत्तर प्रदेश की सिंचित भूमि की हदबन्दी सीमा 18 एकड़ है। जब किसान के लिए सिंचित भूमि 18 एकड़ है, तो उत्तर प्रदेश की किसान यूनियन इस मुद्दे को उजागर करना चाहती है कि 18 एकड़ भूमि को सम्पत्ति-सीमा का आधार मानकर अन्य वर्गों की सम्पत्ति अथवा आय-सीमा निर्धारित होनी चाहिए। कृषि पर अधिकतम आय की सीमा साढ़े बारह एकड़ निश्चित हो गयी, किन्तु किसी व्यवसाय पर कोई भी प्रतिबन्ध निर्धारित नहीं हुआ। अब प्रौद्योगिक क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भी शनैः-शनैः हिन्दुस्तान में अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाती जा रही हैं। किसान आन्दोलन इस विषमता एवं विसंगति को दूर करने के लिए भी संघर्षरत है। वह चाहता है कि भारत में समाजवाद की स्थापना हो, जिसके लिए सभी प्रकार के पूँजीवाद तथा इजारेदारी का अन्त होना परमावश्यक है। यूनियन की यह भी माँग है कि वस्तु विनिमय के अनुपात से कीमतें निर्धारित की जाएँ, न कि विनिमयं का माध्यम रुपया माना जाए। यह तभी सम्भव होगा जब उत्पादक और उपभोक्ता दोनों रूपों में किसान के शोषण को समाप्त किया जा सके। सारांश यह है कि कृषि उत्पाद की कीमतों को आधार बनाकर ही अन्य औद्योगिक उत्पादों की कीमतों को निर्धारित किया जाना चाहिए।”

किसान यूनियन किसानों के लिए वृद्धावस्था पेंशन की पक्षधर है। कुछ लोगों का मानना है कि किसान यूनियन किसानों का हित कम चाहती है, वह राजनीति से प्रेरित ज्यादा है। इस सन्दर्भ में किसान यूनियन का कहना है “हम आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक शोषण के विरुद्ध किसानों को संगठित करके एक नये समाज की संरचना करना चाहते हैं। आर्थिक मुद्दों के अतिरिक्त किसानों के राजनीतिक शोषण से हमारा तात्पर्य जातिवादी राजनीति को मिटाकर वर्गवादी राजनीति को विकसित करना है। आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक दृष्टि से शोषण करने वालों के समूह विभिन्न राजनीतिक दलों में विराजमान हैं और वे अनेक प्रकार के हथकण्डे अर्पनाकर किसानों को मुंह बन्द करना चाहते हैं। कभी जातिवादी नारे देकर, कभी किसान विरोधी आर्थिक तर्क देकर, कभी देश-हित का उपदेश देकर आदि, परन्तु वे यह भूल जाते हैं कि किसानों की उन्नति से ही भारत नाम का यह देश, जिसकी जनसंख्या का कम-से-कम 70% भाग किसानों का है, उन्नति कर सकता है। कोई चाहे कि केवल एक-आध प्रतिशत राजनीतिज्ञों, अर्थशास्त्रियों, स्वयंभू समाजसेवियों तथा तथाकथित विचारकों की उन्नति हो जाने से देश की उन्नति हो जाएगी तो ऐसा सोचने वालों की सरासर भूल होगी।

यहाँ एक बात का उल्लेख करना और भी समीचीन होगा कि आर्थर डंकल के प्रस्तावों ने कृषक आन्दोलन में घी का काम किया है। इससे आर्थिक स्थिति कमजोर होगी और करोड़ों कृषक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के गुलाम बन जाएँगे।

कृषक आन्दोलनों के कारण-भारत में कृषक आन्दोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  1. भूमि-सुधारों का क्रियान्वयन दोषपूर्ण है। भूमि का असमान वितरण इसे आन्दोलन की मुख्य जड़ है।
  2. भारतीय कृषि को उद्योग का दर्जा न दिये जाने के कारण किसानों के हितों की उपेक्षा निरन्तर हो रही है।
  3. किसानों द्वारा उत्पादित वस्तुओं का मूल्य-निर्धारण सरकार करती है जिसका समर्थन मूल्य बाजार मूल्य से नीचे रहता है। मूल्य-निर्धारण में कृषकों की भूमिका नगण्य है।
  4. दोषपूर्ण कृषि विपणन प्रणाली भी कृषक आन्दोलन के लिए कम उत्तरदायी नहीं है। भण्डारण की अपर्याप्त व्यवस्था, कृषि मूल्यों में होने वाले उतार-चढ़ावों की जानकारी न होने से भी किसानों को पर्याप्त आर्थिक घाटा सहना पड़ता है।
  5. बीजों, खादों, दवाइयों के बढ़ते दाम और उस अनुपात में कृषकों को उनकी उपज का पूरा मूल्य भी न मिल पाना अर्थात् बढ़ती हुई लागत भी कृषक आन्दोलन को बढ़ावा देने के लिए उत्तरदायी है।
  6. नयी कृषि तकनीक का लाभ आम कृषक को नहीं मिल पाता है।
  7. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का पुलन्दा लेकर जो डंकल प्रस्ताव भारत में आया है, उससे भी किसान बेचैन हैं और उनके भीतर एक डर समाया हुआ है।
  8. कृषकों में जागृति आयी है और उनका तर्क है कि चूंकि सकल राष्ट्रीय उत्पाद में उनकी महती भूमिका है; अत: धन के वितरण में उन्हें भी आनुपातिक हिस्सा मिलना चाहिए।

उपसंहार–विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं का अवलोकन करने पर स्पष्ट होता है कि कृषि की हमेश उपेक्षा हुई है; अतः आवश्यक है क़ि कृषि के विकास पर अधिकाधिक ध्यान दिया जाए।

स्पष्ट है कि कृषक हितों की अब उपेक्षा नहीं की जा सकती। सरकार को चाहिएं कि कृषि को उद्योग का दर्जा प्रदान करे। कृषि उत्पादों के मूलँ-निर्धारण में कृषकों की भी भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए। भूमि-सुधार कार्यक्रम के दोषों का निवारण होना जरूरी है तथा सरकार को किसी भी कीमत पर डंबल प्रस्ताव को अस्वीकृत कर देना चाहिए और सरकार द्वारा किसानों की माँगों और उनके आन्दोलनों पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना चाहिए।

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 11 थोक व्यापार

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 11
Chapter Name थोक व्यापार
Number of Questions Solved 16
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 11 थोक व्यापार

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
“थोक व्यापारी वे विपणन व्यक्ति होते हैं, जो फुटकर व्यापारी तथा निर्माता या उत्पादक के मध्य का स्थान ग्रहण करते हैं।” यह परिभाषा किसने दी हैं?
(a) ए. एल. लार्सन
(b) एस. ई. थॉमस
(c) वेब्सटर शब्दकोश
(d) प्रो. हर्ले
उत्तर:
(d) प्रो. हले

प्रश्न 2.
थोक व्यापारी एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। (2014)
(a) फुटकर व्यापारी एवं उपभोक्ता के बीच
(b) उत्पादक एवं फुटकर व्यापारी के बीच
(C) उत्पादक एवं उपभोक्ता के बीच
(d) उपरोक्त सभी के बीच
उत्तर:
(b) उत्पादक एवं फुटकर व्यापारी के बीच

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प्रश्न 3.
थोक व्यापारी का मुख्य कार्य होता है।
(a) उत्पादन में वित्तीय सहायता प्रदान करना
(b) निर्माता का परामर्शात्मक कार्य करना
(c) माल के भण्डारण का कार्य करना
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 4.
थोक व्यापार के लाभ हैं।
(a) साख सुविधाएँ प्रदान करना
(b) विशिष्टीकरण को प्रोत्साहन
(c) उत्पादकों का लाभ
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
थोक व्यापारी अपना माल किसे बेचते हैं?
उत्तर:
फुटकर व्यापारी को

प्रश्न 2.
थोक व्यापारी माल किससे खरीदते हैं?
उत्तर:
उत्पादकों से

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प्रश्न 3.
थोक व्यापारी अपने माल को कहाँ पर रखते हैं?
उत्तर:
गोदामों में

प्रश्न 4.
थोक व्यापारी वस्तुओं का  विज्ञापन करते हैं/नहीं करते हैं।
उत्तर:
करते हैं।

प्रश्न 5.
क्या उपभोक्ता थोक व्यापारी से अपनी मनपसन्द की वस्तुएँ खरीद सकता है?
उत्तर:
नहीं

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
थोक व्यापार क्या है? (2011)
अथवा
थोक व्यापार क्या है? इसके दो गुणों का उल्लेख कीजिए। (2013)
उत्तर:
थोक व्यापार से आशय ऐसे व्यापार से है, जिसमें व्यापारी उत्पादकों व निर्माताओं से भारी मात्रा में माल का क्रय करते हैं और उसे आवश्यकतानुसार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में फुटकर व्यापारियों को बेचते हैं। थोक व्यापार निर्माता एवं (UPBoardSolutions.com) फुटकर व्यापारी के मध्य की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। इस व्यापार में एक ही वस्तु का क्रय-विक्रय किया जाता है तथा माल उधार व नकद दोनों प्रकार से बेचा जाता है। ए. एल. लार्सन के अनुसार, “थोक व्यापार में उन सब एजेन्सियों को सम्मिलित किया जाता है, जो स्थानीय बाजार तथा फुटकर व्यापारी के मध्य होने वाले क्रय-विक्रय में हाथ बँटाते हैं।” थोक व्यापार के दो गुण निम्नलिखित हैं

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  1. साख-सुविधाएँ प्रदान करना थोक व्यापारी उत्पादकों और फुटकर व्यापारियों को साख-सुविधाएँ प्रदान करते हैं।
  2. वस्तुओं के संग्रह की सुविधा थोक व्यापारी माल का संग्रह करने कीसमस्या से उत्पादकों व फुटकर व्यापारियों को मुक्त करने में सक्षम होते हैं।

प्रश्न 2.
थोक व्यापारी की दो विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर:
थोक व्यापारी की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. थोक व्यापारी मुख्यतः किसी एक ही वस्तु का व्यापार करते हैं।
  2. थोक व्यापारी की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है। यह उत्पादक से नकद माल क्रय करने में सक्षम होते हैं तथा फुटकर व्यापारियों को अधिकतर उधार माल बेचते हैं।

प्रश्न 3.
थोक व्यापारी के कोई चार कार्य बताइए।
उत्तर:
थोक व्यापारी के चार कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. पूर्वानुमान कार्य थोक व्यापारी ग्राहक की आवश्यकताओं के सम्बन्ध में पूर्वानुमान लगाने का प्रयास करते हैं।
  2. माल का संग्रहण थोक व्यापारी निर्माताओं से माल (UPBoardSolutions.com) खरीदकर अपने गोदामों में माल का संग्रहण करते हैं।
  3. वित्त प्रबन्धन थोक व्यापारी निर्माताओं व फुटकर व्यापारियों के लिए वित्त की व्यवस्था भी करते हैं।
  4. श्रेणीयन एवं उपविभाजन थोक व्यापारी माल को अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित कर, उसको पैक करवाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
क्या थोक व्यापारी को हटाया जा सकता है? चार कारण दीजिए। (2017)
अथवा
थोक व्यापारी के दोष बताइए।
उत्तर:
हाँ, थोक व्यापारी को हटाया जा सकता है। इसे हटाने के कारण/दोष निम्नलिखित हैं-

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  1. मूल्यों में वृद्धि थोक व्यापारियों के कारण वस्तु की कीमत में अनावश्यक वृद्धि हो जाती है, क्योंकि थोक व्यापारी की कमीशन के कारण उत्पादकों द्वारा बेचे गए माल तथा उपभोक्ताओं द्वारा खरीदे गए माल की कीमत में अन्तर होता है।
  2. मनमानी शर्ते थोक व्यापारी फुटकर व्यापारियों पर मनमानी शर्ते थोपने का कार्य करते हैं तथा ये छोटे निर्माताओं से मनमानी शर्तों पर माल क्रय करते हैं।
  3. चोरबाजारी को बढ़ावा थोक व्यापारी वस्तुओं की कृत्रिम कमी पैदा करके वस्तु के मूल्य बढ़ाते हैं एवं चोरबाजारी को भी बढ़ावा देते हैं।
  4. निजी व्यापारिक चिह्नों का प्रयोग थोक व्यापारी निर्माताओं से माल क्रय (UPBoardSolutions.com) करके उस पर अपने चिह्न लगाकर ग्राहकों को बेचते हैं। इस प्रकार एकाधिकार से उपभोक्ताओं का शोषण होता है।
  5. केवल लोकप्रिय वस्तुओं का ही विक्रय थोक व्यापारी अधिक लोकप्रिय व तुरन्त बिकने वाली वस्तुओं को ही बेचते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
थोक व्यापारी से आप क्या समझते हैं? थोक व्यापारी की विशेषताओं तथा कार्यों का वर्णन कीजिए। (2006)
उत्तर:
थोक व्यापारी ऐसे व्यापारी होते हैं, जो उत्पादकों व निर्माताओं से भारी मात्रा में माल का क्रय करते हैं और उसे आवश्यकतानुसार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में फुटकर व्यापारियों को बेचते हैं। यह निर्माता एवं फुटकर व्यापारी के मध्य की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी होते हैं। प्रो. हलें के अनुसार, “थोक व्यापारी वे विपणन व्यक्ति होते हैं, जो फुटकर व्यापारी तथा निर्माता या उत्पादक के मध्य का स्थान ग्रहण करते हैं।

वेब्सटर शब्दकोश के अनुसार, “थोक व्यापारी एक मध्यस्थ है, जो मुख्यतः फुटकर व्यापारियों, औद्योगिक संस्थाओं या व्यापारिक व्यवहार करने वालों के हाथ पुनः विक्रय के उद्देश्य से अथवा व्यवहार के लिए विक्रय करता है।’ एस. ई. थॉमस के अनुसार, “थोक व्यापारी ऐसा व्यापारी है, जो उत्पादकों से बड़ी मात्रा में माल खरीदकर फुटकर व्यापारियों को सुविधाजनक मात्रा में पुनः बिक्री करता है।”

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थोक व्यापारी की विशेषताएँ थोक व्यापारी की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. एक ही वस्तु का व्यापार थोक व्यापारी मुख्यत: किसी एक ही वस्तु का व्यापार करते हैं।
  2. मजबूत आर्थिक स्थिति थोक व्यापारी की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी होती है। यह उत्पादक से प्रायः नकद में माल क्रय करने में सक्षम होते हैं तथा फुटकर व्यापारियों को अधिकतर उधार माल बेचते हैं।
  3. बड़ी मात्रा में माल क्रय करना थोक व्यापारी की प्रमुख विशेषता यह है कि ये बड़ी मात्रा में माल खरीदकर, इसे थोड़ी-थोड़ी मात्रा में फुटकर व्यापारियों को बेचते हैं।
  4. उत्पादकों से माल क्रय करना थोक व्यापारी सीधे ही उत्पादकों से बड़ी मात्रा में माल क्रय करते हैं।
  5. महत्त्वपूर्ण कड़ी थोक व्यापारी न तो उत्पादक होते हैं और (UPBoardSolutions.com) न ही फुटकर व्यापारी होते हैं। यह निर्माता और फुटकर व्यापारी के मध्य की महत्त्वपूर्ण कड़ी होते हैं।
  6. मूल्य-निर्धारण थोक व्यापारी अधिक मात्रा में माल खरीदकर उनकी थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पैकिंग बनाकर माल के मूल्य भी निर्धारित करते हैं।
  7. मूल्य नियन्त्रण थोक व्यापारी माँग और पूर्ति की आवश्यकतानुसार भाल को स्टॉक रखते हैं और माँग के अनुसार माल को बेचते हैं। इस प्रकार वह मूल्य नियन्त्रण में भी सहायक होते हैं।
  8. व्यापक व्यापारिक क्षेत्र थोक व्यापारी को व्यापारिक क्षेत्र व्यापक होता है। ये विज्ञापन पर अधिक एवं दुकान की सजावट पर कम ध्यान देते हैं।

थोक व्यापारी के कार्य थोक व्यापारी के निम्नलिखित कार्य हैं-

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  1. पूर्वानुमान कार्य थोक व्यापारी फुटकर व्यापारियों से सम्पर्क करके पहले बाजार विशेष के ग्राहकों की आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाते हैं, फिर फुटकर व्यापारियों को उसी के अनुसार माल उपलब्ध कराने का प्रयास करते हैं।
  2. माल का संग्रहण थोक व्यापारी विभिन्न उत्पादकों अथवा निर्माताओं से विशिष्ट वस्तुओं को अधिक मात्रा में मँगवाकर अपने पास एकत्रित करते हैं, जिससे फुटकर व्यापारियों को उनका चुनाव करने में आसानी रहती है।
  3. वित्त प्रबन्धन थोक व्यापारी निर्माता के लिए वित्त प्रबन्धन का कार्य करते हैं। वह निर्माताओं को अग्रिम राशि भेजकर तथा फुटकर व्यापारियों को एक निश्चित समय के लिए उधार माल उपलब्ध कराकर वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं।
  4. श्रेणीयन एवं उपविभाजन विभिन्न निर्माताओं से एकत्रित की गई वस्तुओं को थोक विक्रेता उनकी किस्म या गुण के अनुसार भिन्न-भिन्न श्रेणियों एवं उपविभागों में विभाजित करते हैं और फिर उन्हें उपयुक्त ब्राण्ड (चिह्न) के अनुसार पैक करा देते हैं।
  5. विज्ञापन एवं नमूनों का वितरण थोक व्यापारी अपनी ओर से वस्तु-विशेष (UPBoardSolutions.com) का विज्ञापन करवाते हैं तथा वस्तु का नि:शुल्क नमूना भी उपलब्ध करवाते हैं।
  6. जोखिम वहन करना थोक व्यापारी निर्माता से बड़ी मात्रा में माल का क्रय करते हैं एवं इस माल के विक्रय को पूरा जोखिम थोक व्यापारी ही वहन करते हैं।
  7. माल का भण्डारण थोक व्यापारी निर्माताओं से थोक में माल खरीदकर गोदामों में उसके भण्डारण का कार्य करते हैं तथा समय-समय पर फुटकर व्यापारियों को उनकी आवश्यकतानुसार माल उपलब्ध करवाते हैं।
  8. माँग व पूर्ति में सन्तुलन वस्तुओं की माँग और पूर्ति में सन्तुलन बनाए रखने में भी थोक व्यापारी की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

प्रश्न 2.
थोक व्यापारी की सेवाओं का वर्णन कीजिए। (2010)
उत्तर:
थोक व्यापारी उत्पादकों एवं फुटकर विक्रेताओं के मध्य की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी होता है। यह दोनों पक्षों के लिए महत्त्वपूर्ण है। थोक व्यापारी द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं को अग्रलिखित तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है

I. उत्पादकों या निर्माताओं के प्रति सेवाएँ थोक व्यापारी की उत्पादकों या निर्माताओं के प्रति निम्नलिखित सेवाएँ हैं

  1. वित्तीय सहायता थोक व्यापारी प्रायः उत्पादकों को माल के क्रयादेश के साथ ही माल का अग्रिम भुगतान कर देते हैं। इससे निर्माता को बिना ब्याज के कार्यशील पूंजी प्राप्त हो जाती है और वित्तीय सहायता प्राप्त होती है।
  2. बड़े पैमाने पर उत्पादन में सहायता थोक व्यापारियों द्वारा बड़ी मात्रा में क्रयादेश दिए जाने से उत्पादक या निर्माता बड़े पैमाने पर उत्पादन करने में सक्षम होते हैं।
  3. विज्ञापन थोक व्यापारी प्रायः निर्माताओं के माल का विज्ञापन स्वयं अपने खर्चे पर करते हैं। इससे निर्माताओं के माल की माँग बढ़ती है और विज्ञापन पर उनका अनावश्यक व्यय नहीं होता है।
  4. जोखिम वहन करना बड़ी मात्रा में माल को क्रय करके थोक व्यापारी (UPBoardSolutions.com) भविष्य में होने वाले जोखिमों को स्वयं वहन करते हैं और निर्माता इससे मुक्त रहते हैं।
  5. विक्रय में सहायता थोक व्यापारी स्वयं माल के विक्रय का प्रबन्ध करके उत्पादकों को विक्रय की चिन्ता से मुक्त कर देते हैं। इससे उत्पादकों को विक्रय में सहायता मिलती है।
  6. भण्डारण में सहायता थोक व्यापारी निर्माताओं के लिए कच्चा माल व निर्मित माल को रखने के लिए अपने गोदामों की सुविधा प्रदान करते हैं, जिससे निर्माताओं को भण्डारण में सहायता प्राप्त होती है।
  7. मध्यस्थ की भूमिका थोक व्यापारी उत्पादकों व फुटकर व्यापारियों के मध्यस्थ के रूप में कार्य करते हैं।
  8. विदेशी व्यापार में सहायक थोक व्यापारी, निर्माताओं को विदेशी बाजारों के सम्बन्ध में उपयोगी जानकारी देते हैं, जिससे उन्हें विदेशों में नए-नए बाजार खोजने में सहायता मिलती है।

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II. फुटकर व्यापारियों के प्रति सेवाएँ थोक व्यापारी की फुटकर व्यापारियों के प्रति निम्नलिखित सेवाएँ हैं

  1. माल को संग्रहित करने से मुक्ति थोक व्यापारी से आवश्यकतानुसार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में वस्तुएँ उपलब्ध हो जाने से फुटकर व्यापारी को स्वयं वस्तुओं का स्टॉक रखने की आवश्यकता नहीं रहती है।
  2. साख सुविधाएँ थोक व्यापारी फुटकर व्यापारियों को माल उधार क्रय करने की सुविधा प्रदान करते हैं। इस प्रकार फुटकर व्यापारियों को तुरन्त माल उधार पर मिल जाता है।
  3. मूल्यों में स्थायित्व थोक व्यापारी अपने क्षेत्र में माँग एवं पूर्ति में सन्तुलन करके मूल्यों में स्थायित्व लाने का प्रयास करते हैं।
  4. जोखिम में कमी थोक व्यापारी माल तैयार होते ही उसे खरीदकर अपने पास रख लेते हैं, जबकि फुटकर व्यापारी आवश्यकतानुसार थोक व्यापारी से बिक्री के अनुसार माल खरीदते रहते हैं। इस प्रकार वह जोखिम से मुक्त रहते हैं।
  5. नवनिर्मित वस्तुओं की जानकारी थोक व्यापारी उत्पादकों अथवा निर्माताओं की नई-नई वस्तुओं से फुटकर व्यापारियों को परिचित कराते हैं। तथा उनकी माँग बढ़ाने के लिए प्रवर्तन कार्य करते हैं।
  6. परिवहन की सुविधा थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारियों को परिवहन की सुविधा भी प्रदान करते हैं।
  7. भिन्न-भिन्न उत्पादकों से सम्बन्ध स्थापित कराने में मुक्ति कई थोक व्यापारी (UPBoardSolutions.com) अनेक निर्माताओं का माल बेचते हैं। ऐसी स्थिति में फुटकर व्यापारी को दूर-दूर तक फैले निर्माताओं से सम्पर्क करने की आवश्यकता नहीं रहती है।
  8. संवेष्टन का लाभ थोक व्यापारी माल को अलग-अलग छाँटकर छोटे-छोटे डिब्बों में पैक कर देते हैं। इससे फुटकर व्यापारियों को पैकिंग के कार्य से मुक्ति मिलती है।

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III. समाज या उपभोक्ता के प्रति सेवाएँ थोक व्यापारी की समाज या उपभोक्ता के प्रति निम्नलिखित सेवाएँ हैं

  1. ताजे व आधुनिक माल की प्राप्ति विज्ञापन तथा विक्रय संवर्द्धन द्वारा थोक व्यापारी विभिन्न नवीन वस्तुओं व ताजा वस्तुओं की प्राप्ति उपभोक्ता को करवाने में सहायक होता है।
  2. रुचि के अनुसार वस्तुएँ उपलब्ध थोक व्यापारी अपने उत्पादकों की वस्तुएँ संग्रह करके रखते हैं। फुटकर व्यापारी ग्राहक की इच्छानुसार वस्तुएँ दुकान में रखते हैं। इससे ग्राहक को मनपसन्द माल (वस्तुएँ) सरलता से प्राप्त हो जाता है।
  3. मूल्यों में स्थायित्व थोक व्यापारी माल का संग्रह करके उसकी पूर्ति में सन्तुलन बनाए रखने में सहायक होते हैं, जिससे मूल्यों में स्थायित्व रहता है।
  4. बाजार अनुसन्धान का लाभ अनेक थोक व्यापारी बाजार अनुसन्धान भी करते हैं। इससे वे समाज की आवश्यकताओं, पसन्द, नापसन्द, इच्छा, आदि का ज्ञान प्राप्त करके उत्पादक को उसी प्रकार के माल के उत्पादन की सलाह देते हैं।
  5. उचित मूल्य थोक व्यापारी कम लाभ पर वस्तुओं का विक्रय करते हैं (UPBoardSolutions.com) और कभी-कभी फुटकर व्यापारियों द्वारा लिए जाने वाले माल के मूल्यों पर भी नियन्त्रण रखते हैं। इससे उपभोक्ता को वस्तुएँ उचित मूल्य पर प्राप्त हो जाती हैं।
  6. पैकिंग का लाभ थोक व्यापारी वस्तुओं को भार एवं माप के अनुसार सुविधाजनक इकाइयों में बाँटकर उनकी पैकिंग करते हैं, जिससे उपभोक्ता द्वारा वस्तुएँ आसानी से उपयोग में लाने में सहायता मिलती है।
  7. समान मूल्य एक क्षेत्र में निर्माता द्वारा एक ही थोक व्यापारी नियुक्त किया जाता है, जो सभी फुटकर व्यापारियों को समान मूल्य पर वस्तुएँ वितरित करता है।
  8. वस्तुओं की आसानी से उपलब्धि थोक व्यापारियों के अभाव में फुटकर व्यापारी उपभोक्ताओं को उनकी आवश्यकता की वस्तुएँ उपलब्ध नहीं करवा सकते हैं। थोक व्यापारी विभिन्न निर्माताओं की विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ फुटकर व्यापारियों को उपलब्ध कराकर उपभोक्ता को आसानी से वस्तु उपलब्ध करवाते हैं।

प्रश्न 3.
थोक व्यापारी किसे कहते हैं? इसके गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
थोक व्यापारी से आशय
थोक व्यापारी ऐसे व्यापारी होते हैं, जो उत्पादकों व निर्माताओं से भारी मात्रा में माल का क्रय करते हैं और उसे आवश्यकतानुसार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में फुटकर व्यापारियों को बेचते हैं। यह निर्माता एवं फुटकर व्यापारी के मध्य की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी होते हैं। प्रो. हलें के अनुसार, “थोक व्यापारी वे विपणन व्यक्ति होते हैं, जो फुटकर व्यापारी तथा निर्माता या उत्पादक के मध्य का स्थान ग्रहण करते हैं।

वेब्सटर शब्दकोश के अनुसार, “थोक व्यापारी एक मध्यस्थ है, जो मुख्यतः फुटकर व्यापारियों, औद्योगिक संस्थाओं या व्यापारिक व्यवहार करने वालों के हाथ पुनः विक्रय के उद्देश्य से अथवा व्यवहार के लिए विक्रय करता है।’ एस. ई. थॉमस के अनुसार, “थोक व्यापारी ऐसा व्यापारी है, जो उत्पादकों से बड़ी मात्रा में माल खरीदकर फुटकर व्यापारियों को सुविधाजनक मात्रा में पुनः बिक्री करता है।”

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थोक व्यापारी के गुण थोक व्यापारी के निम्नलिखित गुण हैं

  1. साख सुविधाएँ प्रदान करना थोक व्यापारी उत्पादकों को अग्रिम भुगतानकरके तथा फुटकर व्यापारियों को उधार माल बेचकर आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं।
  2. वस्तुओं के संग्रह की सुविधा थोक व्यापारी माल का संग्रह करके रखने की समस्या से भी उत्पादकों एवं फुटकर व्यापारियों को मुक्त करते हैं।
  3. जोखिम से मुक्ति थोक व्यापारी निर्माता या उत्पादक से वस्तुओं को (UPBoardSolutions.com) नकद में खरीदते हैं, जिससे उत्पादकों को मूल्यों के घट जाने अथवा किसी अन्य कारण से हानि की कोई जोखिम नहीं रहती है।
  4. विशिष्टीकरण को प्रोत्साहन थोक व्यापारी उत्पादकों को उपभोक्ताओं की माँग व रुचि के विषय में अवगत कराते हैं, जिससे माँग के अनुसार उत्पादन किया जाता है।
  5. बड़े पैमाने पर उत्पादन के लाभ थोक व्यापारी उत्पादकों से अधिक मात्रा में माल का क्रय करते हैं। इससे उत्पादकों को उत्पादित माल के वितरण की समस्या नहीं होती तथा उत्पादन लगातार बड़े पैमाने पर किया जा सकता है।
  6. मूल्य-निर्धारण में सहायक थोक व्यापारी मूल्य को निर्धारित करने में अत्यन्त सहायक होते हैं।
  7. माल परिवहन में सहायता थोक व्यापारी अपने फुटकर व्यापारियों को माल की सुपुर्दगी उनकी दुकानों पर ही करवाते हैं। इससे फुटकर व्यापारी अपने द्वारा क्रय किए गए माल के परिवहन के खर्चे से बच जाते हैं।
  8. भावी माँग का अनुमान थोक व्यापारी भावी माँग का अनुमान लगाकर उत्पादक को उत्पादन निरन्तरता में सहायता करते हैं।

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थोक व्यापारी के दोष थोक व्यापारी के दोष निम्नलिखित हैं

  1. मूल्यों में वृद्धि थोक व्यापारी के कारण वस्तु की कीमत में अनावश्यक रूप से वद्धि हो जाती है।
  2. मनमानी शर्ते थोक व्यापारी एक ओर तो छोटे निर्माताओं से मनमानी शर्तों पर माल क्रय करते हैं और दूसरी ओर प्रतिष्ठित निर्माताओं के माल का विक्रय करते समय फुटकर व्यापारियों पर मनमानी शर्ते थोपने का कार्य भी करते हैं।
  3. चोरबाजारी को बढ़ावा थोक व्यापारी वस्तुओं की कृत्रिम कमी पैदा करके वस्तु के मूल्य बढ़ाते रहते हैं, जिससे चोरबाजारी की सम्भावना भी बढ़ती है।
  4. निजी व्यापारिक चिह्नों का प्रयोग थोक व्यापारी निर्माताओं से माल क्रय करके उस पर अपने चिह्न लगाकर ग्राहकों को बेचते हैं। इस प्रकार एकाधिकार से उपभोक्ताओं का शोषण होता है।
  5. केवल लोकप्रिय वस्तुओं को ही विक्रय थोक व्यापारी केवल अधिक लोकप्रिय (UPBoardSolutions.com) व तुरन्त बिकने वाली वस्तुओं को ही बेचते हैं।
  6. वस्तुओं में मिलावट कुछ थोक व्यापारी खाद्य वस्तुओं में मिलावट करके बेचते हैं। ये अधिक लाभ कमाने के लिए उपभोक्ता के स्वास्थ्य से धोखेबाजी करते हैं।

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