UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 1 Number systems

UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 1 Number systems (संख्या पद्धति)

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प्रश्नावली 1.1

प्रश्न 1.
क्या शून्य एक परिमेय संख्या है? क्या आप इसे [latex]\frac { p }{ q }[/latex] के रूप में लिख सकते हैं जहाँ p और q पूर्णाक हैं और q ≠ 0 है?
हल :
हाँ, शून्य एक परिमेय संख्या है।
इसे [latex]\frac { p }{ q }[/latex] के रूप में लिखा जा सकता है।
0 = [latex]\frac { 0 }{ 4 }[/latex] , [latex]\frac { 0 }{ 5 }[/latex] , [latex]\frac { 0 }{ 8 }[/latex] ,……….

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प्रश्न 2.
3 और 4 के मध्य 6 परिमेय संख्याएँ ज्ञात कीजिए।
हल :
6 परिमेय संख्याएँ ज्ञात करने के लिए, 3 और 4 को (6 + 1) = 7 से गुणा और भाग करते हैं।
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प्रश्न 3.
[latex]\frac { 3 }{ 5 }[/latex] और [latex]\frac { 4 }{ 5 }[/latex] के बीच पाँच परिमेय संख्याएँ ज्ञात कीजिए।
हल :
चूँकि दी गई परिमेय संख्याओ का हर समान है।
पाँच परिमेय संख्याएँ ज्ञात करने के लिए, [latex]\frac { 3 }{ 5 }[/latex] और [latex]\frac { 4 }{ 5 }[/latex] को (5 + 1) = 6 से गुणा और भाग करते हैं।
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प्रश्न 4.
नीचे दिए गए कथन सत्य हैं या असत्य? कारण के साथ अपने उत्तर दीजिए :
(i) प्रत्येक प्राकृत संख्या एक पूर्ण संख्या होती है।
(ii) प्रत्येक पूर्णाक एक पूर्ण संख्या होती है।
(iii) प्रत्येक परिमेय संख्या एक पूर्ण संख्या होती है।
हल :
(i) क्योंकि सभी प्राकृत संख्याएँ {1, 2, 3, 4, ….}, पूर्ण संख्याओं {0, 1, 2, 3, 4, ….} में समाहित हैं। अतः कथन सत्य है।
(ii) क्योंकि ऋणात्मक पूर्णाक, पूर्ण संख्याओं में समाहित नहीं है। अतः कथन असत्य है।
(iii) क्योंकि परिमेय संख्याओं के संग्रह में भिन्ने एवं दशमलव संख्याएँ होती हैं जो पूर्ण संख्याओं के संग्रह में समाहित नहीं हैं। अतः कथन असत्य है।

प्रश्नावली 1.2

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए कथन सत्य हैं या असत्य? कारण के साथ अपने उत्तर दीजिए :
(i) प्रत्येक अपरिमेय संख्या एक वास्तविक संख्या होती है।
(ii) संख्या रेखा का प्रत्येक बिन्दु √m के रूप का होता है जहाँ m एक प्राकृत संख्या है।
(iii) प्रत्येक वास्तविक संख्या एक अपरिमेय होती है।
हल :
(i) क्योंकि वास्तविक संख्याओं का संग्रह परिमेय और अपरिमेय संख्याओं से मिलकर बना है अतः प्रत्येक अपरिमेय संख्या वास्तविक होती है। अत: कथन सत्य है।
(ii) यदि m एक प्राकृतिक संख्या है तो संख्या रेखा पर केवल 1, 2, 3, 4,……. बिन्दु ही स्थित होने चाहिए।
जबकि संख्या रेखा पर दो क्रमिक संख्याओं के मध्य अनन्त “संख्याएँ होती हैं। अत: कथन असत्य है।
(iii) क्योंकि वास्तविक संख्याओं के संग्रह में परिमेय और अपरिमेय दोनों प्रकार की संख्याएँ होती हैं। अत: प्रत्येक वास्तविक संख्या का अपरिमेय होना आवश्यक नहीं है। अतः कथन असत्य है।

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प्रश्न 2.
क्या सभी धनात्मक पूर्णांकों के वर्गमूल अपरिमेय होते हैं? यदि नहीं, तो एक ऐसी संख्या के वर्गमूल का उदाहरण दीजिए जो एक परिमेय संख्या है।
हल :
नहीं, सभी धनात्मक पूर्णांकों के वर्गमूल अपरिमेय नहीं होते हैं।
उदाहरणार्थ : √9 = 3 एक परिमेय संख्या है।

प्रश्न 3.
दिखाइए कि संख्या रेखा पर √5 को किस प्रकार निरूपित किया जा सकता है?
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प्रश्नावली 1.3

प्रश्न 1.
निम्नलिखित भिन्नों को दशमलव रूप में लिखिए और बताइए कि प्रत्येक को दशमलव प्रसार किस प्रकार का है :
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित को [latex]\frac { p }{ q }[/latex] के रूप में व्यक्त कीजिए, जहाँ p और q पूर्णाक है तथा q ≠ 0 है :
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प्रश्न 4.
0.99999…. को [latex]\frac { p }{ q }[/latex] के रूप में व्यक्त कीजिए। क्या आप अपने उत्तर से आश्चर्यचकित हैं? अपने अध्यापक और कक्षा के सहयोगियों के साथ उत्तर की सार्थकता पर चर्चा कीजिए।
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प्रश्न 5.
[latex]\frac { 1 }{ 17 }[/latex] के दशमलव प्रसार में अंकों के पुनरावृत्ति खण्ड में अंकों की अधिकतम संख्या क्या हो सकती है? अपने उत्तर की जाँच करने के लिए विभाजन-क्रिया कीजिए।
हल:
[latex]\frac { 1 }{ 17 }[/latex] में हर 17 है। अत: भाग करने पर 1 से 16 तक की कोई भी संख्याएँ शेषफल के रूप में प्राप्त हो सकती है। उसके उपरान्त अंकों की पुनरावृत्ति अवश्य होगी।
अतः [latex]\frac { 1 }{ 17 }[/latex] के दशमलव प्रसार के पुनरावृत्ति खण्ड में अधिकतम अंक = 16
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प्रश्न 6.
[latex]\frac { p }{ q }[/latex] , q ≠ 0 के रूप में परिमेय संख्याओं के अनेक उदाहरण लीजिए, जहाँ p और q पूर्णांक हैं, जिनका 1 के अतिरिक्त अन्य कोई उभयनिष्ठ गुणनखण्ड नहीं है और जिसका सांत दशमलव निरूपण (प्रसार) है। क्या आप यह अनुमान लगा सकते हैं कि q को कौन-सा गुण अवश्य सन्तुष्ट करना चाहिए?
हल :
[latex]\frac { p }{ q }[/latex] के रूप में परिमेय संख्याओं का दशमलव प्रसार सांत तभी होगा जब p को qसे भाग देने पर शेषफल शून्य हो। जबकि p और g में 1 के अतिरिक्त कोई उभयनिष्ठ गुणनखण्ड न हो जहाँ p और q पूर्णांक हैं तथा q ≠ 0 है।
किसी संख्या को भाग करने पर शेषफल शून्य तभी होगा जबकि
(1) भाजक 2 या 2 की कोई घात हो।
(2) भाजक 5 या 6 की कोई घात हो।
(3) भाजक 2 की किसी घात और 5 की किसी घात का गुणनफल हो।
अतः q को 2 अथवा 5 अथवा इनकी किसी घात के बराबर होना चाहिए अथवा 2 की किसी घात और 5 की किसी घात के गुणन के बराबर होना चाहिए।
अर्थात q = 2m x 5n जहाँ m और n पूर्ण संख्याएँ हैं।

प्रश्न 7.
ऐसी तीन संख्याएँ लिखिए जिनके दशमलव प्रसार अनवसानी अनावर्ती हो।
हल :
सभी अपरिमेय संख्याओं के दशमलव प्रसार अनवसानी अनावर्ती होते हैं।
ऐसी तीन संख्याएँ √2, √3, √5 हैं।

प्रश्न 8.
परिमेय संख्याओं [latex]\frac { 5 }{ 7 }[/latex] और [latex]\frac { 9 }{ 11 }[/latex] के बीच की तीन अलग-अलग अपरिमेय संख्याएँ ज्ञात कीजिए।
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प्रश्न 9.
बताइए कि निम्नलिखित संख्याओं में कौन-कौन सी संख्याएँ परिमेय और कौन-कौन भी संख्याएँ अपरिमेय हैं :
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प्रश्नावली 1.4

प्रश्न 1.
उत्तरोत्तर आवर्धन करके संख्या-रेखा पर 3.765 को देखिए।
हल :
चरण 1 : दी गई संख्या 3 तथा 4 के मध्य स्थित है।
चरण 2 : 3 और 4 के मध्य अन्तराल का आवर्धन करते हैं तथा इसे 10 बराबर भागों में विभाजित करते हैं।
चरण 3 : दी गई संख्या 3.7 और 3.8 के मध्य स्थित हैं।
चरण 4 : 3.7 और 3.8 के मध्य अन्तराल को 10 बराबर भागों में विभाजित करते हैं तथा इसका आवर्धन करते हैं।
चरण 5 : दी गई संख्या 3.76 तथा 3.77 के मध्य स्थित हैं।
चरण 6 : 3.76 और 3.77 के मध्य अन्तराल का आवर्धन करते हैं तथा इसे 10 बराबर भागों में विभाजित करते हैं।
चरण 7 : चरण-6 के आवर्धन में 3.765 पाँचवाँ भाग हैं।
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प्रश्न 2.
4 दशमलव स्थानों तक संख्या-रेखा पर 4.26 को देखिए।
हल :
चरण 1 : संख्या रेखा पर दी गई संख्या 4.26, 4 तथा 5 के मध्य स्थित हैं। (4 दशमलव स्थानों तक संख्या 4.2626 हैं।)
चरण 2 : 4 तथा 5 के मध्य अन्तराल का आवर्धन करते हैं और इसे 10 बराबर भागों में विभाजित करते हैं।
चरण 3 : दी गई संख्या 4.2626, 4.2 तथा 4.3 के मध्य स्थित हैं।
चरण 4 : 4.2 तथा 4.3 के मध्य अन्तराल का आवर्धन करते हैं और इसे 10 बराबर भागों में विभाजित करते हैं।
चरण 5 : दी गई संख्या 4.26 और 4.27 के मध्य स्थित हैं।
चरण 6 : 4.26 तथा 4.27 के मध्य अन्तराल का आवर्धन करते हैं और इसे 10 बराबर भागों में विभाजित करते हैं।
चरण 7 : दी गई संख्या 4.262 तथा 4.263 के मध्य स्थित हैं।
चरण 8 : 4.262 तथा 4.263 के मध्य अन्तराल का आवर्धन करते हैं और इसे 10 बराबर भागों में विभाजित करते हैं।
चरण 9 : चरण-8 के आवर्धन में 4.2626 छठवाँ भाग हैं।
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प्रश्नावली 1.5

प्रश्न 1.
बताइए नीचे दी गयी संख्याओं में कौन-कौन परिमेय हैं और कौन-कौन अपरिमेय हैं :
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित व्यंजकों में से प्रत्येक व्यंजक को सरल कीजिए।
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प्रश्न 3.
आपको याद होगा कि π को एक वृत्त की परिधि (c) और उसके व्यास (d) के अनुपात से परिभाषित किया जाता है अर्थात् π = [latex]\frac { c }{ d }[/latex] है। यह इस तथ्य का अन्तर्विरोध करता हुआ प्रतीत होता है कि π अपरिमेय है। इस अन्तर्विरोध का निराकरण आप किस प्रकार करेंगे?
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c और d को किसी पैमाने से मापने पर हमें केवल सन्निकट माप प्राप्त होती है जिससे यह पता नहीं चल पाती कि c या d परिमेय संख्याएँ हैं या अपरिमेय संख्याएँ हैं। इसी कारण हमें c और d को परिमेय संख्याएँ समझने का भ्रम उत्पन्न होता है। और हम c और d के अनुपात 7 को परिमेय संख्या समझने की ओर अग्रसर होते है जिससे अन्तर्विरोध उत्पन्न होता है। वास्तव में 7 के अपरिमेय होने में कोई अन्तर्विरोध नहीं है।

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प्रश्न 4.
संख्या रेखा पर √9.3 को निरूपित कीजिए।
हल :
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रेखाखण्ड AB = 9.3 मात्रक और BC = 1 मात्रक इस प्रकार खींचते हैं कि ABC एक सरल रेखा है।
AC का मध्य-बिन्दु M ज्ञात करते हैं तथा AC को व्यास लेकर अर्द्धवृत्त खींचते हैं।
∠ABD = 90° बनाते हैं जो अर्द्धवृत्त को D पर काटता है।
अब संख्या रेखा पर B को केन्द्र लेकर BD त्रिज्या से चाप लगाते हैं जो संख्या रेखा को P पर काटता है।
अब √9.3 = BP अर्थात् बिन्दु P संख्या रेखा पर √9.3 को निरूपित करती है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित के हरों का परिमेयकरण कीजिए ।
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प्रश्नावली 1.6

प्रश्न 1.
ज्ञात कीजिए :
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प्रश्न 2.
ज्ञात कीजिए।
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प्रश्न 3.
सरल कीजिए :
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UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 3 दुष्यन्त पुत्र भरत (महान व्यक्तिव)

UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 3 दुष्यन्त पुत्र भरत (महान व्यक्तिव)

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पाठ का सारांश

हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त शिकार खेलते समय कण्व ऋषि के आश्रम पहुँचे। वहाँ उन्होंने शकुंतला से गंधर्व विवाह किया और निशानी में एक अँगूठी दी। दुष्यन्त की याद में खोई शकुंतला को दुर्वासा ऋषि ने शाप दे दिया। राजा दुष्यन्त शकुंतला को भूल गए। उसे कण्व ऋषि ने पति के पास भेजा। शकुंतला के पास अपनी पहचान के लिए अँगूठी नहीं थी। इस कारण उसे निराश लौटकर कश्यप ऋषि के आश्रम में रहना पड़ा। वहीं पर भरत का जन्म हुआ, जिसे आश्रमवासी सर्वदमन कहते थे। (UPBoardSolutions.com) यह बचपन से ही वीर और साहसी था। दैवयोग से अँगूठी मिल जाने पर दुष्यन्त को शकुंतला की याद आ गई। वे अपने पुत्र व पत्नी को ढूंढकर जंगल से हस्तिनापुर ले आए। भरत की शिक्षा-दीक्षा हस्तिनापुर में ही हुई। आगे चलकर यही भरत चक्रवर्ती सम्राट हुआ। इसके नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा। भरत ने अश्वमेध यज्ञ किया। इसकी कीर्ति सारे विश्व में फैल गई।

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अभ्यास

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।

प्रश्न 1.
भरत किसके पुत्र थे?
उत्तर :
भरत शकुंतला और दुष्यन्त के पुत्र थे।

प्रश्न 2.
हमारे देश का नाम भारत किसके नाम पर पड़ा?
उत्तर :
हमारे देश का नाम भारत ‘भरत’ के नाम पर पड़ा।

प्रश्न 3.
शकुंतला को दुष्यन्त क्यों नहीं पहचान सके?
उत्तर :
शकुंतला के पास दुष्यन्त द्वारा दी गई अँगूठी नहीं थी, इसलिए शाप के कारण वे उसे नहीं पहचान सके।

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प्रश्न 4.
ऋषि दुर्वासा शकुंतला से क्यों क्रोधित हो गए और शकुंतला को क्या शाप दिया?
उत्तर :
एक दिन शकुंतला अपनी सहेलियों के साथ बैठी दुष्यंत के बारे में सोच रही थी, उसी समय दुर्वासा ऋषि आश्रम में आए। शकुंतला दुष्यंत की याद में इतनी अधिक खोई हुई थी कि उसे दुर्वासा ऋषि के आने (UPBoardSolutions.com) का पता ही नहीं चला। अतः शकुंतला ने उनका आदर सत्कार नहीं किया, जिससे क्रोधित होकर दुर्वासा ऋषि ने शकुंतला को शाप दिया कि जिसकी याद में खोए रहने के कारण तूने मेरा सम्मान नहीं किया, वह तुझको भूल जाएगा।

योग्यता विस्तार –
नोट – विद्यार्थी अपने शिक्षक/शिक्षिका की सहायता से स्वयं करें।

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UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 2 महर्षि दधीचि (महान व्यक्तिव)

UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 2 महर्षि दधीचि (महान व्यक्तिव)

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पाठ का सारांश

देवासुर संग्राम चल रहा था। असुर देवातओं से लड़ रहे थे; क्योंकि वे अपना प्रभुत्व चाहते थे। वे अत्याचारी थे। देवताओं ने देवराज इन्द्र को जीत का उपाय पूछने ब्रह्मा जी के पास भेजा। ब्रह्मा जी बोले, “हे देवराज! त्याग की शक्ति के बल पर असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते हैं। नैमिषारण्य वन में महर्षि दधीचि ने तपस्या और साधना से अपार शक्ति जुटा ली है। उनकी अस्थियों से बने वज्रास्त्र से असुरों की हार निश्चित है।”

महर्षि दधीचि को देवासुर संग्राम की जानकारी थी। वे देवताओं की विजय चाहते थे। इन्द्र ने उनके पास पहुँचकर उनकी अस्थियों से बने वज्रास्त्र की आवश्यकता बताई, जिससे वृत्रासुर का वध किया जा (UPBoardSolutions.com) सके। महर्षि ने इस कार्य को पूरा करने के लिए स्वयं को धन्य समझा और योगमाया से अपना शरीर त्याग दिया। महर्षि दधीचि की अस्थियों से बने वज्र से वृत्रासुर मारा गया। देवताओं की जीत हुई।

महान है, महर्षि दधीचि का त्याग। नैमिषारण्य में प्रतिवर्ष फाल्गुन मास में उनकी स्मृति में मेले का आयोजन होता है।

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अभ्यास

प्रश्न 1.
दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

(क) असुर देवताओं से क्यों लड़ रहे थे?
उत्तर :
असुर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए देवताओं से लड़ रहे थे।

(ख) देवताओं को महर्षि दधीचि की अस्थियों की आवश्यकता क्यों पड़ी?
उत्तर :
महर्षि दधीचि की अस्थियों से बने वज्रास्त्र से वृत्रासुर का वध निश्चित था। इस कारण देवताओं को महर्षि दधीचि की अस्थियों की आवश्यकता पड़ी।

(ग) अस्थियाँ माँगे जाने पर दधीचि ने क्या सोचा?
उत्तर :
अस्थियाँ माँगे जाने पर दधीचि ने स्वयं को धन्य समझा।

(घ) नैमिषारण्य में प्रतिवर्ष फाल्गुन माह में मेला क्यों लगता है? |
उत्तर :
नैमिषारण्य में प्रतिवर्ष फाल्गुन माह में मेला महर्षि दधीचि की स्मृति में लगता है।

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प्रश्न 2.
पाठ की घटनाओं को सही क्रम दीजिए।

(क) देवताओं और असुरों में युद्ध छिड़ना।
(ख) इंद्र का महर्षि दधीचि के पास जाना।
(ग) इंद्र का ब्रह्मा जी से असुरों पर विजय के बारे में उपाय पूछना।
(घ) इंद्र का ब्रह्मा जी के पास जाना।
(ङ) दधीचि की अस्थियों से वज्र बनाया जाना।
(च) वृत्रसुर का संहार।
(छ) महर्षि दधीचि की प्राण त्यागना।

उत्तर :

(क) देवताओं और असुरों में युद्ध छिड़ना।
(घ) इन्द्र का ब्रह्मा जी के पास जाना।
(ग) इन्द्र का ब्रह्मा जी से असुरों पर विजय के बारे में उपाय पूछना।
(ख) इन्द्र का महर्षि दधीचि के पास जाना।
(छ) महर्षि दधीचि को प्राण त्यागना।
(ङ) दधीचि.की अस्थियों से वज्र, बनाया जाना।
(च) वृत्रासुर का संहार।।

प्रश्न 3.
जनमानस की भलाई के लिए महर्षि दधीचि ने अपने प्राण त्याग दिए। त्याग का यह एक अनूठा उदाहरण है। आप के समक्ष भी कभी-कभी ऐसी स्थितियाँ आती हैं, तब आप क्या करेंगे? यदि –

(क) आपके किसी साथी के पास किताब खरीदने के लिए पैसे न हों।
(ख) आपको स्कूल जाने के लिए देर हो रही हो, और घर में खाना तैयार न हो।
(ग) दो लोग आपस में झगड़ा कर रहे हों।
(घ) कोई व्यक्ति सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचा रहा हो।

नोट – विद्यार्थी स्वयं करें।

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प्रश्न 4.
“त्याग मानव का सर्वोपरि गुण है” इस पर शिक्षक/शिक्षिका से चर्चा कर दस वाक्य लिखिए।
नोट – विद्यार्थी स्वयं करें।

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UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 12 छत्रपति शिवाजी (महान व्यक्तित्व)

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पाठ का सारांश

भारतीय इतिहास के महापुरुषों में शिवाजी को नाम प्रमुख है। वे जीवन भरे अपने समकालीन शासकों के अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करते रहे। इनके पिता का नाम शाहजी और माता का नाम जीजाबाई था। शिवाजी बचपन से ही अपनी माता के परम भक्त थे। दादाजी कोणदेव की देख-रेख में शिवाजी को सैनिक शिक्षा मिली और वे घुड़सवारी, अस्त्रों-शस्त्रों के प्रयोग तथा अन्य सैनिक कार्यों में शीघ्र ही निपुण हो गए। जब शिवाजी बीस वर्ष के थे, तभी उनके दादा की (UPBoardSolutions.com) मृत्यु हो गई। अब शिवाजी को अपना मार्ग स्वयं बनाना था। भावल प्रदेश के साहसी नवयुवकों की सहायता से शिवाजी ने आस-पास के किलों पर अधिकार करना आरम्भ कर दिया। बीजापुर के सुल्तान से उनका संघर्ष हुआ। शिवाजी ने अनेक किलों को जीता और रायगढ़ को अपनी राजधानी बनाया।

शिवाजी की बढ़ती हुई शक्ति से मुगल बादशाह औरंगजेब को चिन्ता हुई। अब शिवाजी का दमन, करने के लिए औरंगजेब ने आमेर के राजा जयसिंह को भेजा। जब जयसिंह के साथ शिवाजी आगरा पहुँचे, तब नगर के बाहर उनका कोई स्वागत नहीं किया गया। मुगल दरबार में भी उनको यथोचित सम्मान नहीं मिला। स्वाभिमानी शिवाजी यह अपमान सहन न कर सके, वे मुगल सम्राट की अवहेलना करके दरबार से बाहर निकल गए। औरंगजेब ने महल के चारों ओर पहरा बैठाकर उनको कैद कर लिया। वह शिवाजी का वध करने की योजना बना रहा था। इसी समय शिवाजी ने बीमार हो जाने की घोषणा कर दी। वे (UPBoardSolutions.com) ब्राह्मणों और साधु सन्तों को मिठाइयों की टोकरियाँ भिजवाने लगे। बहँगी में रखी एक ओर की टोकरी में स्वयं बैठकर वे आगरा नगर से बाहर निकल गए।

शिवाजी बहुत प्रतिभावान और सजग राजनीतिज्ञ थे। उन्हें अपने सैनिकों की क्षमता और देश की भौगोलिक स्थिति का पूर्ण ज्ञान था। इसीलिए उन्होंने दुर्गों के निर्माण और छापामार युद्ध नीति को अपने शक्ति संगठन को आधार बनाया। शिवाजी की ओर से औरंगजेब का मन साफ नहीं था। इसलिए सन्धि के दो वर्ष बाद ही फिर संघर्ष आरम्भ हो गया। शिवाजी ने अपने वे सब किले फिर जीत लिए जिनको जयसिंह ने उनसे छीन लिया था।

सन् 1674 ई० में बड़ी धूम-धाम से उनका राज्याभिषेक हुआ। उसी समय उन्होंने छत्रपति की पदवी धारण की। इस अवसर पर उन्होंने बड़ी उदारता से दीन-दुखियों को दान दिया। (UPBoardSolutions.com)

बीजापुर और कर्नाटक पर आक्रमण करके समुद्र तट के सारे प्रदेश को अपने अधिकार में कर लिया। शिवाजी ने एक स्वतन्त्र राज्य की स्थापना का महान संकल्प किया था और इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वे आजीवन संघर्ष करते रहे। शिवाजी सच्चे अर्थों में एक महान राष्ट्रनिर्माता थे। उन्हीं के पदचिह्नों पर चलकर पेशवाओं ने भारत में मराठा शक्ति और प्रभाव का विस्तार कर शिवाजी के स्वप्न को साकार किया।

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अभ्यास-प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
शिवाजी को अपने आरम्भिक जीवन में किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?
उत्तर :
शिवाजी का बचपन पिता के स्थान पर माता के संरक्षण में गुजरा। जब वे 20 वर्ष के थे, बाबा का देहान्त हो गया और उन्हें अपना मार्ग स्वयं बनाना पड़ा। बीजापुर के सुल्तान से उनका संघर्ष हुआ। अफजल खाँ ने उनके साथ छल किया, तब उन्होंने बघनख से उसे मारा। औरंगजेब के मामा शाइस्ता खाँ से टक्कर ली और उसको पराजित (UPBoardSolutions.com) किया। मुगल शासक औरंगजेब उनका प्रारम्भ से ही शत्रु बना रहा, जिससे शिवाजी को संघर्ष करना पड़ा। यही शिवाजी की कठिनाइयाँ थीं।

प्रश्न 2.
शिवाजी को मराठा राज्य की स्थापना करने में क्यों सफलता मिली?
उत्तर :
बचपन से ही शिवाजी के निडर व्यक्तित्व का निर्माण हुआ। उनकी माता बहुत धार्मिक थीं। उससे उन्होंने धार्मिक नवयुवकों की मदद से आस-पास के किले जीतकर रायगढ़ को राजधानी बनाया। उन्होंने छापामार नीति से काम लिया और सैनिक शक्ति सुदृढ़ की। शिवाजी प्रतिभावान और सजग राजनीतिज्ञ थे। वे जैसा मौका देखते थे वैसी नीति बनाते थे। (UPBoardSolutions.com) वे मुगलों के राज्य पर छापा मारते थे तो कभी-कभी उन्हें मित्र भी बनाए रखते थे। इन्हीं कारण से उन्हें मराठा राज्य की स्थापना में सफलता मिली।

प्रश्न 3.
शिवाजी की रणनीति पर संक्षेप में प्रकाश डालो।।
उत्तर :
शिवाजी बहुत प्रतिभावान और सजग राजनीतिज्ञ थे। उन्हें अपने सैनिकों की क्षमता और देश की भौगोलिक स्थिति का पूर्ण ज्ञान था। इसीलिए उन्होंने दुर्गों के निर्माण और छापामार युद्ध नीति को अपने शक्ति संगठन का आधार बनाया।

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प्रश्न 4.
किस आधार पर आप कह सकते हैं कि शिवाजी एक योग्य शासक थे?
उत्तर :
शिवाजी एक योग्य शासक थे। कठिन परिस्थितियों में उन्होंने मराठा राज्य की स्थापना की तथा विशाल मुगल साम्राज्य से टक्कर ली। दुर्ग निर्माण और छापामार नीति से सैनिक शक्ति सुदृढ़ की। धार्मिक सहिष्णुता से प्रजा का मन जीता। उन्होंने छत्रपति की उपाधि धारण की। अत्याचारों का दमन किया और धर्मनिरपेक्ष मराठा राज्य की नींव डाली।

प्रश्न 5.
शिवाजी के चारित्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
शिवाजी एक कुशल योद्धा थे। बहुत प्रतिभावान और सजग राजनीतिज्ञ थे। वे सभी ध र्मों का समान आदर करते थे। उनके राज्य में स्त्रियों का बड़ा सम्मान किया जाता था। (UPBoardSolutions.com) उनके राज्य में हर व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता थी। उनका राज्य धर्म निरपेक्ष राज्य था। अपनी प्रजा तथा सैनिकों के सुख-सुविधा को वे विशेष ध्यान रखते थे।

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 11 केदारनाथ सिंह (काव्य-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 11 केदारनाथ सिंह (काव्य-खण्ड)

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कवि-परिचय

प्रश्न 1.
केदारनाथ सिंह के जीवन-परिचय और काव्य-कृतियों (रचनाओं) पर प्रकाश डालिए। या केदारनाथ सिंह का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी एक रचना का नाम लिखिए। [2013, 14, 15]
उत्तर
कवि केदारनाथ सिंह ने अपने समकालीन कवियों की तुलना में बहुत कम कविताएँ लिखी हैं। परन्तु इनकी कविताएँ निजत्व की विशिष्टता से परिपूर्ण हैं। शहर में रहते हुए भी ये गंगा और घाघरा के मध्य की अपनी धरती को भूले नहीं थे। खुले कछार, हरियाली से लहलहाती फसलें और दूर-दूर तक जाने वाली पगडण्डियाँ इनके हृदय को भाव-विह्वल बनाती थीं।

जीवन-परिचय-केदारनाथ सिंह जी का जन्म 7 जुलाई, सन् 1934 (UPBoardSolutions.com) ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद के चकिया नामक गाँव में हुआ था। इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1956 ई० में एम० ए० और 1964 ई० में पीएच० डी० की। सन् 1978 ई० में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा विभाग में हिन्दी भाषा के प्रोफेसर (आचार्य) नियुक्त होने के पूर्व इन्होंने वाराणसी, गोरखपुर और पडरौना के कई स्नातक-स्नातकोत्तर विद्यालयों में अध्यापन कार्य किया। सन् 1999 में इन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर पद से अवकाश-ग्रहण किया और इसके बाद ये यहीं से मानद प्रोफेसर के रूप में जुड़े हुए थे।

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केदारनाथ सिंह जी को अनेक सम्माननीय सम्मानों से सम्मानित किया गया है। सन् 1980 में इन्हें ‘कुमारन असन’ कविता-पुरस्कार तथा सन् 1989 में ‘अकाल में सारस’ रचना के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। कतिपय कारणों से इन्होंने हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा प्रदत्त सर्वोच्च शलाका सम्मान ठुकरा दिया।

लम्बी बीमारी के कारण 19 मार्च, 2018 को इनको निधन हो गया।

रचनाएँ–केदारनाथ सिंह द्वारा कविता व गद्य की अनेक पुस्तकों की रचना की गयी है, जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं

(1) कविता-संग्रह-अभी बिलकुल अभी’, ‘जमीन पक रही है’, ‘यहाँ से देखो’, ‘अकाल में सारस’, ‘टॉल्सटॉय और साइकिल’ एवं ‘तीसरा सप्तक’ में संकलित प्रकाशित कविताएँ। ‘बाघ’ इनकी प्रमुख लम्बी कविता है, जो मील का पत्थर मानी जा सकती है। (UPBoardSolutions.com) ‘जीने के लिए कुछ शर्ते, ‘प्रक्रिया’, ‘सूर्य’, ‘एक प्रेम-कविता को पढ़कर’, ‘आधी रात’, ‘बादल ओ’, ‘रात’, ‘अनागत’, ‘माँझी का पुल’, ‘फर्क नहीं पड़ता’, आदि इनकी प्रमुख कविताएँ हैं।
(2) निबन्ध और कहानियाँ-‘मेरे समय के शब्द’, ‘कल्पना और छायावाद’, ‘हिन्दी कविता में बिम्ब-विधान्’, ‘कब्रिस्तान में पंचायत’ आदि।
(3) अन्य-‘ताना-बाना’।

साहित्य में स्थान–कवि केदारनाथ सिंह के मूल्यांकन के लिए आवश्यक है कि इनकी 1960 ई० और उसके बाद की कविताओं के बीच एक विभाजक रेखा खींच दी जाए। अपनी कविताओं के माध्यम से ये भ्रष्टाचार, विषमता और मूल्यहीनता पर सधा हुआ प्रहार करते थे। प्रगतिशील लेखक संघ से सम्बद्ध श्री केदारनाथ सिंह जी समकालीन हिन्दी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर और आधुनिक हिन्दी कवियों में उच्च स्थान के अधिकारी हैं।

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पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या

नदी
प्रश्न 1.
अगर धीरे चलो
वह तुम्हें छू लेगी
दौड़ो तो छूट जायेगी नदी
अगर ले लो साथ
वह चलती चली जायेगी कहीं भी
यहाँ तक-कि कबाड़ी की दुकान तक भी।
उत्तर
सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड में संकलित ‘नदी’ शीर्षक कविता से उधृत हैं। इन पंक्तियों के रचयिता श्री केदारनाथ सिंह जी हैं।

[विशेष—इस शीर्षक के अन्तर्गत आने वाले सभी पद्यांशों के लिए (UPBoardSolutions.com) यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।] |

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहता है कि नदी का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। यह जीवन में प्रत्येक क्षण हमारा साथ देती है।

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व्याख्या-कवि कहता है कि यदि हम नदी के बारे में, उसके गुणों के बारे में, उसके महत्त्व के बारे में सोचते हैं तो वह हमारे अन्तस्तल को स्पर्श करती प्रतीत होती है। नदी हमारा पालन-पोषण उसी प्रकार करती है, जिस प्रकार हमारी माँ। जिस प्रकार अपनी माँ से हम अपने-आपको अलग नहीं कर सकते, उसी प्रकार हम नदी से भी अपने को अलग नहीं कर सकते। यदि हम सामान्य गति से चलते रहते हैं तो यह हमें स्पर्श करती प्रतीत होती है लेकिन जब हम सांसारिकता में पड़कर भाग-दौड़ में पड़ जाते हैं तो यह हमारा साथ छोड़ देती है। यदि हम इसे साथ लेकर चलें तो यह प्रत्येक परिस्थिति में किसी-न-किसी रूप में हमारे साथ रहती है; (UPBoardSolutions.com) क्योंकि यह हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। न तो वह हमसे अलग हो सकती है और न हम उससे।

काव्यगत-सौन्दर्य-

  1. कवि ने नदी के महत्त्व का वर्णन किया है कि यह हमारे जीवन के प्रत्येक क्षण में किसी-न-किसी रूप में हमारे साथ रहती है।
  2. भाषा-सहज और सरल खड़ी बोली।
  3. शैली-वर्णनात्मक व प्रतीकात्मक।
  4. छन्द-अतुकान्त और मुक्त।
  5. अलंकार-अनुप्रास का सामान्य प्रयोग।

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प्रश्न 2.
छोड़ दो
तो वहीं अँधेरे में
करोड़ों तारों की आँख बचाकर
वह चुपके से रच लेगी
एक समूची दुनिया
एक छोटे-से घोंघे में
संचाई यह है
कि तुम कहीं भी रहो।
तुम्हें वर्ष के सबसे कठिन दिनों में भी
प्यार करती है एक नदी
उत्तर
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहता है कि नदी पृथ्वी पर ही नहीं आकाश में भी विचरण करती है. अर्थात् सभी स्थानों पर हमारे साथ रहती है।

व्याख्या-कवि कहता है कि यदि हम सदा साथ रहने वाली नदी को किसी अनुचित स्थान पर छोड़ दें तो वह वहाँ रुकी नहीं रहेगी वरन् अनगिनत लोगों की आँखों से बचकर वह वहाँ भी अपनी एक नवीन दुनिया उसी प्रकार बसा लेगी जिस प्रकार एक (UPBoardSolutions.com) छोटा-सा घोंघा अपने आस-पास सीप की रचना कर लेता है। आशय यह है कि नदी की यह दुनिया अत्यधिक लघु रूप में भी सीमित हो सकती है। कवि का कहना है कि हम कहीं पर भी रहें, वर्ष के सबसे कठिन माने जाने वाले ग्रीष्म के दिनों में भी यह हमें अपने स्नेहरूपी जल से सिक्त करती है और अतिशय प्रेम प्रदान करती है।

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काव्यगत सौन्दर्य-

  1. नदी सर्वत्र विद्यमान है, वह दुर्गम परिस्थितियों में भी अपनी दुनिया बसा लेती है।
  2. भाषा-सहज और सरल खड़ी बोली।
  3. शैली-वर्णनात्मक व प्रतीकात्मक।
  4. छन्द-अतुकान्त और मुक्त।।

प्रश्न 3.
नदी जो इस समय नहीं है इस घर में
पर होगी जरूर कहीं न कहीं
किसी चटाई या फूलदान के नीचे
चुपचाप बहती हुई
उत्तर
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि नदी की सर्वव्यापकता की ओर संकेत कर रहा है।

व्याख्या-नदी की सर्वव्यापकता की ओर संकेत करता हुआ कवि कहता है कि जो नदी विभिन्न स्थलों के मध्य से अनवरत प्रवाहित होती रहती है वह किसी-न-किसी रूप में हमारे घरों में भी प्रवाहित होती हुई हमें सुख और आनन्द की अनुभूति देती है। इसके (UPBoardSolutions.com) बहने की ध्वनि हमें किसी चटाई या फूलदान से भी सुनाई पड़ सकती है और इसको हम मन-ही-मन अनुभव भी कर लेते हैं। आशय यह है कि नदी और व्यक्ति का गहरा और अटूट सम्बन्ध पहले से ही रहा है और आगे भी रहेगा।

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काव्यगत सौन्दर्य-

  1. नदी से अटूट सम्बन्ध का वर्णन करते हुए कहा गया है कि नदी घरों में भी चुपचाप बहती रहती है।
  2. भाषा-सहज और सरल खड़ी बोली।
  3. शैली–प्रतीकात्मक।
  4. छन्द ……. अतुकान्त और मुक्त।

प्रश्न 4.
कभी सुनना
जब सारा शहर सो जाय
तो किवाड़ों पर कान लगा
धीरे-धीरे सुनना
कहीं आसपास
एक मादा घड़ियाल की कराह की तरह
सुनाई देगी नदी।
उत्तर
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहता है कि नदी प्रत्येक समय हमारे बीच उपस्थित रहती है।

व्याख्या-कवि कहता है कि यदि आप इस बात से सन्तुष्ट नहीं है कि नदी हमारे-आपके बीच हमेशा विद्यमान रहती है तो अपनी सन्तुष्टि के लिए; जब मनुष्यों के सभी क्रिया-कलाप बन्द हो जाएँ और समस्त चराचर प्रकृति शान्त रूप में हो; अर्थात् सारा शहर गहरी निद्रा में सो रहा हो; उस समय आप घरों के दरवाजों से कान लगाकर, एकाग्रचित्त होकर नदी की आवाज को सुनने का प्रयास कीजिए। आपको अनुभव होगा कि नदी की (UPBoardSolutions.com) प्रवाहित होने वाली मधुर ध्वनि एक मादा मगरमच्छ की दर्दयुक्त कराह जैसी आती प्रतीत होगी। स्पष्ट है कि नदी किसी-न-किसी रूप में सदैव हमारे साथ रहती है।

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काव्यगत सौन्दर्य–

  1. नदी की निरन्तरता का जीवन्त रूप में वर्णन किया गया है।
  2. भाषा-सहज और सरल खड़ी बोली।
  3. शैली–प्रतीकात्मक।
  4.  छन्द–अतुकान्त और मुक्त।
  5.  अलंकार-पुनरुक्तिप्रकाश और अनुप्रास।

काव्य-सौदर्य एवं व्याकरण-बोध

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है?
(क) अगर ले लो साथ वह चलती चली जाएगी कहीं भी,
यहाँ तक कि कबाड़ी की दुकान तक भी।
(ख) वह चुपके से रच लेगी।
एक समूची दुनिया
एक छोटे से घोंघे में
उत्तर
(क) ल, च, क की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार।
(ख) ‘ए, क, च’ की आवृत्ति के कारण (UPBoardSolutions.com) अनुप्रास अलंकार। . 2

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