UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 10 भारतवर्षम् (गद्य – भारती)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 10 भारतवर्षम् (गद्य – भारती) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 10 भारतवर्षम् (गद्य – भारती).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 10
Chapter Name भारतवर्षम् (गद्य – भारती)
Number of Questions Solved 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 10 भारतवर्षम्

पाठ-सारांश

नामकरण-हमारे देश का नाम भारत है। ‘भरत’ शब्द से ‘भारत’ नाम पड़ा। हमारे देश में ‘भरत’ नाम से चार महापुरुष हुए—
(1) दशरथ के पुत्र राम के छोटे भाई भरत,
(2) हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त और शकुन्तला से उत्पन्न भरत,
(3) नाट्शास्त्र के प्रणेता ‘भरत’ मुनि,
(4) भागवत् पुराण में वर्णित जड़ भरत’। भागवत् के अनुसार जड़ भरत’ के नाम से ही हमारे देश का नाम ‘भारत’ पड़ा। भायाम् (तेजसि) रतत्वादेव भारतम्-इस विग्रह से भी ‘भारत’ नाम सार्थक होता है। मुसलमान शासकों ने ‘सिन्धु नदी के नाम से यहाँ के निवासियों को ‘हिन्दू’ और देश को हिन्दुस्थान’ कहा। यूरोपीय लोग हमारे देश को ‘इण्डिया’ कहते हैं। ।

UP Board Solutions

प्रहरी हिमालय-भारत के उत्तर में पर्वतराज हिमालय स्थित है। संसार के सबसे ऊँचे पर्वत हिमालय की चोटियाँ सदैव बर्फ से ढकी रहती हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इसके प्रदेशों में ‘येति’ नाम के हिम मानवे रहते हैं। इसकी उपत्यकाओं में घने वन, असीम ओषधियाँ, फल और फूल तथा अनेक प्रकार के पशु-पक्षी रहते हैं। यह चिरकाल से प्रहरी के समान भारत की रक्षा करता चला आ रही है। चीन के द्वारा हमारे भू-भाग पर कब्जा कर लेने के बाद, हमारे सैनिक रात-दिन इसके हिमाच्छादित शिखरों पर रहकर देश की रक्षा (UPBoardSolutions.com) करते हैं। इसकी गोद में जम्मू-कश्मीर, हिमाचले, सिक्किम, अरुणाचल आदि प्रदेश स्थित हैं। भूटान और नेपाल स्वतन्त्र राज्य भी इसी पर्वत पर स्थित हैं। इसके प्रदेशों पर स्थित अमरनाथ, बदरीनाथ, केदारनाथ, वैष्णव देवी आदि तीर्थों पर प्रतिवर्ष हजारों यात्री जाते हैं। श्रीनगर, पहलगाँव, शिमला, नैनीताल, मसूरी दार्जिलिंग आदि इसी पर्वत पर बसे नगर हैं, जहाँ गर्मियों में लोग पर्यटन के लिए जाते हैं।

तीन दिशाओं में समुद्र-
भारत के दक्षिण में हिन्द महासागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब महासागर है। इसके पश्चिमोत्तर भाग में पाकिस्तान और पूर्वोत्तर भाग में ‘बाँग्लादेश है।पहले ये दोनों देश भारत के ही प्रदेश थे। दक्षिण में कन्याकुमारी है, जहाँ तीन समुद्रों का संगम होता है।

तटीय-प्रदेश-कन्याकुमारी के दक्षिण भाग में समुद्र पार हमारी पड़ोसी देश श्रीलंका है। हिन्द महासागर में लक्षद्वीप’ और बंगाल की खाड़ी में ‘अण्डमान भारत के अभिन्न प्रदेश हैं। समुद्र-तट पर गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आन्ध्र, उड़ीसा, बंगाल आदि भारत के ही प्रदेश हैं। इन नगरों में बड़े बन्दरगाह हैं, जहाँ से असंख्य जलपोतों द्वारा व्यापारिक माल का आयात-निर्यात होता है। सागर के तटों पर मत्स्य-ग्रहण के भी अनेक केन्द्र स्थित हैं।

प्राकृतिक सुषमा–भारत पर प्रकृति देवी की विशेष कृपा है। यहाँ छह ऋतुएँ होती हैं। सूर्य और चन्द्रमा का सर्वाधिक प्रकाश इसी देश में फैलता है। सूर्यास्त और चन्द्रास्त के मनोरम दृश्य भारत में ही देखे जा सकते हैं। इसके उत्तरी भाग में सिन्धु, बेतवा, सतलज, सरस्वती, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र आदि; इसके मध्य में नर्मदा और चम्बल तथा इसके दक्षिण भाग में गोदावरी, कावेरी, कृष्णा, पेरिषार, महानदी आदि नदियाँ भारतभूमि की उपज बढ़ाती हैं। इन नदियों के तटों पर हरिद्वार, प्रयाग, काशी,गया आदि तीर्थस्थान हैं, जहाँ हजारों यात्री स्नान (UPBoardSolutions.com) करके धर्म-लाभ करते हैं। विशेष अवसरों पर कुम्भ । जैसे महामेले लगते हैं। भारत के वन परम मनोहारी हैं, हिमालय पर देवदार के तथा सागर के तटीय : प्रदेशों में नारियल और सुपारी के सुन्दर वन हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण ही कश्मीर को ‘पृथ्वी का स्वर्ग’ कहा जाता है। हमारे राष्ट्रगीत में भी भारत के प्रमुख प्रदेशों, पर्वतों और नदियों का उल्लेख है।

संसार का गुरु-भारत को संसार का गुरु कहा जाता है। यहाँ केवल उपनिषदों और उत्तरवेदान्त की आध्यात्मिकता ही नहीं है, वरन् वेद और स्मृतियों में प्रतिपादित नैतिक आचार तथा योगाभ्यास विदेशियों के आकर्षण के केन्द्र बने हुए हैं। वे भारत के आश्रमों में रहकर शान्ति प्राप्त करते हैं। अपने देशों में भी उन्होंने भारत जैसे आश्रम स्थापित किये हैं। वे काम और अर्थ पुरुषार्थों को भारत की प्राचीन उपलब्धि मानते हैं। वात्स्यायन के यौन-विज्ञान तथा चाणक्य के राजनीति-विज्ञान का उल्लेख किये बिना इतिहास प्रारम्भ नहीं करते। (UPBoardSolutions.com) शल्यविज्ञान का आविर्भाव सुश्रुत से ही माना जाता है। गणित के अंकों का लेखन सर्वप्रथम भारत में ही हुआ। बाद में अरब और यूरोपीय देशों ने इसे जाना। आज भी अंकों को ‘हिन्दसा’ (हिन्द से आया हुआ) कहते हैं। ब्रिटेन आदि देशों में आज भी माध्यमिक स्कूलों में योगासनों की शिक्षा दी जाती है। गाँधी जी द्वारा उद्घोषित ‘अहिंसा परमो धर्मः’ व ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना विश्व भर में विश्वशान्ति के अद्वितीय उपाय माने जाते हैं।

कला की प्रगति-भारत की वास्तुकला और शिल्पकला को देखकर विदेशी चकित रह जाते हैं। खजुराहो और कोणार्क के मन्दिरों की शिल्पकला को देखने के लिए सम्पूर्ण विश्व से लाखों पर्यटक यहाँ आते हैं। ताजमहल और कुतुबमीनार आज भी भारत का गौरव बढ़ा रहे हैं। ‘ताजमहल’ को संसार के आश्चर्यों में गिना जाता है। भारतीय मूर्तिकला पर विदेशी इतने मुग्ध हैं कि लाखों रुपये खर्च करके भी वैध-अवैध उपायों से इसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते रहते हैं।

महापुरुषों की पवित्र भूमि-इस गरिमाशाली देश भारत में नचिकेता के समान ज्ञानपिपासु, सत्यकाम के समान सत्यवादी, बालक ध्रुव के समान तपस्वी, अभिमन्यु के समान वीर किशोर, एकलव्य-उद्दालक-कौत्स सरीखे गुरुभक्त-शिष्य, शिवि-मयूरध्वज-कर्ण के सदृश परमदानी, हरिश्चन्द्र-युधिष्ठिर के समान सत्यपालक, भरत-लक्ष्मण के समान आदर्श भाई, दशरथ जैसे पिता, मैत्रेयी-गार्गी-भारती के समान विदुषी महिलाएँ, (UPBoardSolutions.com) रजिया-दुर्गाबाई-लक्ष्मीबाई के समान वीरांगनाएँ, सीता-सवित्री-गान्धारी के समान सती-स्त्रियाँ, भगत सिंह, चन्द्रशेखर और सुखदेव जैसे देशभक्त, महावीर, बुद्ध और गाँधी जैसे सन्त-महात्मा इस पावनभूमि पर उत्पन्न हुए हैं। दूसरे देशों में तो ईश्वर ने कहीं अपना दूत भेजा तो कहीं पुत्र, परन्तु भारत में तो वे मानव रूप धारण करके स्वयम् अवतीर्ण होते रहे हैं।

राजनीतिक और आर्थिक प्रगति-आज समस्त संसार में भारत का अपना विशिष्ट स्थान है। भारत ने अपनी स्वतन्त्रता प्राप्त करके पराधीन देशों की सहायता करने की घोषणा की। सभी देशों की प्रभुसत्ता का भारत ने सदा समादर किया है। साम्यवादी और पूँजीवादी देशों से अपने को अलग रखकर निर्गुट स्वतन्त्र राष्ट्रों का संगठन किया और गौरांगों की रंगभेद-नीति के विरुद्ध दृढ़ जनमत तैयार किया। आधुनिक विज्ञान, उद्योग और यान्त्रिकी के क्षेत्र में विकास करते हुए इसने अनेक नये आविष्कार किये और कृषि का पर्याप्त उत्पादन बढ़ाया। जिस देश में पहले सूई भी नहीं बनती थी, वहाँ अब आधुनिक यन्त्रों के निर्माण हो रहे हैं। इंग्लैण्ड-अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्रों को भी हस्तशिल्प की वस्तुएँ एवं अभियान्त्रिकीय सूक्ष्म यन्त्र प्रदान किये जा रहे हैं। वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की जितनी अधिकता भारत में है, उतनी अन्य देशों में नहीं। भारत की परिश्रमशीलता से अन्य देश भी भली-भाँति परिचित

समस्याएँ—यद्यपि भारत का अतीत एवं गौरव सम्मान के उच्च आसन पर प्रतिष्ठित है, किन्तु इससे भारत के भविष्य का निर्माण नहीं हो सकता। वर्तमान में उपलब्ध सुविधाओं और सम्पत्ति का सदुपयोग परमावश्यक है। भारत में कुछ समस्याएँ मुँह फैलाये खड़ी हैं। विदेशी नहीं चाहते कि भारत राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में प्रगति करे; अतः वे आपस में फूट डालकर झगड़े कराते रहते हैं। विदेशियों द्वारा भड़काने (UPBoardSolutions.com) पर कुछ धर्मान्ध पंजाब में आतंकवाद फैला रहे हैं। प्रतिवर्ष अनेक साम्प्रदायिक झगड़े होते हैं, जिनमें निर्दोष व्यक्ति मारे जाते हैं और जन-धन की भारी क्षति और देश की शक्ति का ह्रास होता है। हमको आपस में मित्रतापूर्वक रहना चाहिए, क्योंकि देश की मुख्यधारा से मिलने में ही देश का कल्याण है। राजनीति द्वारा धर्म का संकट उपस्थित करना देश के लिए अहितकर

हमारे देश में दूसरी बड़ी समस्या जनसंख्या की वृद्धि की है। जनसंख्या की वृद्धि से देश के . विकास की गति रुक जाती है और विकास के अवसर, नष्ट हो जाते हैं; अतः हमें परिवार कल्याण की योजनाओं पर अमल करना चाहिए। हमारे सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार को बोलबाला है। अनुचित लाभ के लिए किसी को प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए।

यह हमारी जन्मभूमि है, जिस पर हमने जन्म लिया है। किसी का शव जलाया जाये या दफनाया जाये—दोनों में क्या अन्तर है? सबको भारतमाता की मिट्टी में विलीन होना है। आपस में झगड़ने और जन्मभूमि के प्रति विद्रोह से क्या लाभ? उसका हमें हमेशा सम्मान करना चाहिए। कहा भी गया है-”जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।”

UP Board Solutions

गद्यांशों का सस अनुवाद

(1) भारतं नामास्माकं जन्मभूमिः। भरतनामानश्चत्वारो महापुरुषा अस्मिन् देशे अति प्राचीनकाले.बभूवुः। एको मर्यादापुरुषोत्तमरामचन्द्रस्यानुजो दाशरथिर्भरतः, हस्तिनापुराधीशस्य पुरुवंशीयस्य दुष्यन्तस्य सुतश्शाकुन्तलेयः द्वितीयः, अभिनयकुशलो नाट्यशास्त्रप्रणेता भरतमुनिश्च तृतीयः, श्रीमद्भागवते वर्णितो ब्रह्मस्वरूपो जडभरतश्चतुर्थः। भागवते तत्रैव प्रतिपादितमस्ति ”अजनाभं नामैतद्वर्ष भारतमिति यत् (UPBoardSolutions.com) आरभ्य व्यपदिशन्ति” तेनेदं प्रतीयते यद जडभरतस्य नामैव अस्माकं देशस्य संज्ञा अनुसरतीति। वयं तु एवं मन्यामहे यत् सर्वदा सर्वथा च “भायाम् तेजसि रतत्वादेव भारतमिति” अस्माकं प्राणप्रियस्य देशस्य प्राचीनं नाम। कालान्तरे सिन्धुनदीसंज्ञामनुसृत्य मुहम्मदीयैरत्रत्यवासिनो हिन्दुनाम्ना कथिता, देशश्च हिन्दुस्थानमिति। तथैव यूरोपीयैरितरैश्च‘‘इण्डिया” इति नाम कृतम्।

शब्दार्थ-
बभूवुः = हुए।
अनुजः = छोटा भाई।
दाशरथिः भरतः = दशरथ के पुत्र भरत।
सुतश्शाकुन्तलेयः = शकुन्तला का पुत्र।
प्रणेता = रचना करने वाले
प्रतिपादितमस्ति = सिद्ध किया है।
व्यपदिशन्ति = कहते हैं।
प्रतीयते = प्रतीत होता है।
अनुसरति = अनुसरण करता है।
मन्यामहे = मानते हैं।
अनुसृत्य = अनुसरण करके।
यूरोपीयैरितैश्च (यूरोपीयैः + इतरैः + च) = यूरोप के निवासियों ने तथा अन्यों ने। |

सन्दर्थ
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत गद्य-भारती’ में संकलित ‘भारतवर्षम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है।

[संकेत-इस पाठ के शेष गद्यांशों के लिए भी यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।] प्रसंग-इस गद्यांश में भारत के ‘भारत’ नामकरण होने का कारण बताया गया है।

अनुवाद
भारत हमारी जन्मभूमि है। अति प्राचीन समय में हमारे देश में ‘भरत’ नाम के चार महापुरुष हुए। एक तो मर्यादापुरुषोत्तम रामचन्द्र के छोटे भाई, दशरथ के पुत्र भरत; दूसरे हस्तिनापुर के राजा, पुरुवंशीय दुष्यन्त के शकुन्तला से उत्पन्न पुत्रं भरते; तीसरे अभिनयकला में कुशल, नाट्यशास्त्र के रचयिता भरतमुनि और चौथे श्रीमद्भागवत् में वर्णित ब्रह्मस्वरूप जड़भरत। भागवत् में वहीं पर बताया गया है-“अज की नाभि से उत्पन्न यह वर्ष भारत, जिसके आरम्भ करके कहते हैं। उससे यह प्रतीत होता है कि जड़भरत के नाम का ही अनुसरण हमारे (UPBoardSolutions.com) देश का नाम कर रहा है (अर्थात् हमारे देश का नाम ‘भारत’ जड़भरत के नाम का अनुसरण कर रहा है)। हम तो ऐसा मानते हैं कि सदा और सब प्रकार से तेज (भा) में संलग्न (रत) रहने के कारण ही भारत है, ऐसा प्राणों से प्यारे हमारे देश का प्राचीन नाम है। बाद में सिन्धु नदी के नाम का अनुसरण करके मुसलमानों ने यहाँ के निवासियों को ‘हिन्दू’ नाम से और देश को ‘हिन्दुस्थान’ कहा है। उसी प्रकार यूरोप के निवासियों ने और अन्यों ने ‘इण्डिया’ नाम,रख दिया।

(2) अस्योत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराजो विराजते। संसारस्य पर्वतेषु उत्तुङ्गतमस्यास्य गिरेरुच्छ्रिताः शिखरमालाः सर्वदैव हिमाच्छादितास्तिष्ठन्ति तस्मादेवायं हिमालयः कथ्यते। एतानि शिखराणि देशीयानां विदेशीयानां च पर्वतारोहिणामाकर्षणकेन्द्राण्यपि वर्तन्ते। एवं विश्वस्यते (UPBoardSolutions.com) यत् तुषाराच्छादितेष्वस्य प्रदेशेषु ‘येति’ इति जातीयाः केचन हिममानवा अपि प्राप्यन्ते। हिमावेष्टितोऽयमद्रिर्भारतस्य मूनि विधिना स्थापितं सितं किरीटमिव विभाति यस्योपत्यकासु प्रसृतानि गहनानि वनानि मरकतमणिपङ्क्तीनां शोभामनुहरन्ति। एषु वनेषु निः सीमा ओषधिसम्पत् पुष्पद्धिश्च भवतः। बहुप्रकाराणि फलानि उत्पद्यन्ते, नानाविधाः।

खगमृगाश्च वसन्ति। एवमनुश्रूयते यदन्तकाले सद्रौपदीकाः पाण्डवी हिमालयमारोहन्त एव स्वर्गमाप्ताः। दीर्घकालं यावदसौ पर्वतः प्रहरीव स्थितो भारतस्य रक्षामकरोत् अद्यत्वे तु अस्य रक्षा भारतेन करणीया आपतिता, यतो हि अस्माकं प्रतिवेशी चीनदेशः कञ्चिद् भूभागं स्वकीयं कृत्वा यदा कदा भारतीयसीम्न उल्लङ्घनं हिमालयस्य पारात् करोति। तदनेकत्रास्माकं शूराः सैन्ययुवानोऽत्युच्छितेषु हिमाच्छादितेषु स्थानेषु दिवानिशं दृढ़ तिष्ठन्तो रक्षन्ति। हिमालयस्यै वोत्सेऽस्माकं गणराज्यस्य जम्मूकश्मीर-हिमालचल-अरुणाचलप्रदेशाः सन्ति। भूताननामकं भारतरक्षितं स्वतन्त्रं राज्यं भारतमित्रं संसारस्यैकमात्रं हिन्दुराष्ट्रं नैपालराज्यं च वर्तते। (UPBoardSolutions.com) अमरनाथवैष्णवदेवी-गङ्गोत्री-यमुनोत्री-केदारनाथ-बद्रीनाथादीनि नैकानि सुप्रसिद्धानि तीर्थान्यपि हिमालयस्य क्रोडे विराजन्ते। यत्र देशस्य प्रत्येकं भूभागात् प्रतिवर्षं सहस्रशस्तीर्थयात्रिण आगच्छन्ति। श्रीनगर-पहलगाँव- शिमला-नैनीताल-मसूरी-दार्जिलिङ्गादीनि मनोरमनगराण्यपि अत्रैव वर्तन्ते यत्र बहवो जनाः ग्रीष्मर्तुतापात् अत्रागत्य त्राणं लभन्ते।।

शब्दार्थ-
अस्योत्तरस्यां (अस्य + उत्तरस्याम्) = इसकी उत्तर दिशा में।
नगाधिराजः = पर्वतों का राजा।
उत्तुंगतमस्यास्य = सबसे ऊँची इसकी।
उच्छूिताः = ऊँची।
हिमाच्छादितास्तिष्ठन्ति = बर्फ से ढंकी रहती हैं।
विश्वस्यते = विश्वास किया जाता है।
केचन = कोई।
प्राप्यन्ते = पाये जाते हैं।
अद्रिः = पर्वत।
मूनि = माथे पर।
विधिना = विधाता के द्वारा।
सितम् = श्वेत।
किरीटम् इव = मुकुट के समान।
उपत्यकासु = निचली घाटियों (तलहटियों) में।
प्रसृतानि = फैले हुए।
गहनानि = घने।
मरकतमणिपङ्क्तीनां = मरकत-मणियों की पंक्तियों की।
शोभामनुहरन्ति = शोभा धारण करते हैं।
एवमनुश्रूयते = ऐसा सुना जाता है।
सद्रौपदीकाः = द्रौपदीसहित।
प्रहरीव = पहरेदार के समान।
अद्यत्वे = आजकल।
आपतिता = आ पड़ी है।
प्रतिवेशी = पड़ोसी।
सीम्नः = सीमा का पारात् = पार से।
दिवानिशम् = रात-दिन।
उत्से = गोद में।
क्रोडे = गोद में।
सहस्रशः = हजारों।
ग्रीष्मर्तुतापात् (ग्रीष्मऋतु: + तापात्) = ग्रीष्म ऋतु के ताप से।
त्राणं लभन्ते = रक्षा पाते हैं।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में भारत की उत्तर दिशा में स्थित हिमालय पर्वत की महिमा और भारत के लिए उसके महत्त्व का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
इसकी उत्तर दिशा में देवताओं की आत्मास्वरूप हिमालय नाम का पर्वतों का राजा सुशोभित है। संसार के पर्वतों में सबसे ऊँची इस पर्वत की ऊँची शिखरमालाएँ सदा ही बर्फ से ढकी रहती हैं, इसी कारण से यह ‘हिमालय’ कहा जाता है। ये चोटियाँ देश-विदेश के पर्वतारोहियों के आकर्षण का केन्द्र भी हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि बर्फ से ढके हुए इसके प्रदेशों में ‘येति जाति के कुछ हिम-मानव भी पाये जाते हैं। बर्फ से ढका हुआ यह पर्वत भारत के मस्तक पर ब्रह्मा के द्वारा रखे गये श्वेत मुकुट के समान सुशोभित हो रहा है, जिसकी तलहटियों में फैले हुए घने वन मरकत मणि की पंक्तियों की शोभा को हरते हैं; अर्थात् वे मरकत मणियों से भी अधिक सुन्दर हैं। इन वनों में सीमारहित औषध-सम्पत्ति और पुष्प-समृद्धि होती है। बहुत प्रकार के फल उत्पन्न होते हैं और (UPBoardSolutions.com) अनेक प्रकार के पशु-पक्षी रहते हैं। ऐसा सुना जाता है कि अन्तिम समय में द्रौपदीसहित पाण्डव हिमालय पर चढ़ते हुए स्वर्ग पहुँच गये। लम्बे समय तक इस पर्वत ने पहरेदार के समान खड़े रहकर भारत की रक्षा की, किन्तु आज इसकी रक्षा भारत को करनी पड़ रही है; क्योंकि हमारा पड़ोसी चीन देश कुछ भू-भाग को दबाकर हिमालय के पार से कभी-कभी भारत की सीमा का उल्लंघन करता है। अनेक जगहों पर हमारे बहादुर सेना के जवान बुहत ऊँचे बर्फ से ढके स्थानों पर रात-दिन मजबूती से खड़े रहकर उसकी रक्षा करते हैं। हिमालय की ही गोद में हमारे गणराज्य के जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश हैं। भूटान नाम का भारतरक्षित स्वतन्त्र राज्य और भारत का मित्र, संसार का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र नेपाल राज्य है। अमरनाथ, वैष्णव देवी, गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बदरीनाथ आदि अनेक प्रसिद्ध तीर्थस्थान भी हिमालय की गोद में सुशोभित हैं, जहाँ देश के प्रत्येक भूभाग से प्रतिवर्ष हजारों तीर्थयात्री आते हैं। श्रीनगर, पहलगाँव, शिमला, नैनीताल, मसूरी, दार्जिलिंग आदि सुन्दर नगर भी यहीं हैं, जहाँ बहुत-से लोग भयंकर गर्मी से यहाँ आकर छुटकारा पाते हैं।

UP Board Solutions

(3) भारतस्य दक्षिणस्यां दिशि हिन्दमहासागरः, प्राच्यां बङ्गसमुद्रः, प्रतीच्यामरब- सागरश्च वर्तन्ते। पश्चिमोत्तरदिग्भागे सम्प्रति ‘पाकिस्तानः पूर्वोत्तरस्मिश्च ‘बाङ्लादेशः’ तिष्ठति। पूर्वमिमावण्यस्माकं भारतस्यैव भागावस्तां राजनीतिकारणाद् वैदेशिकानां षड्यन्त्राणामस्माकमेव एकस्य (UPBoardSolutions.com) वर्गस्य कतिपयनेतृणां हठधर्मितायाश्च कारणात् पार्थक्यं संञ्जातम्। दक्षिणस्यां दिशि भारतस्य दूरतमो भूभागः ‘कन्याकुमारी’ नाम्ना प्रसिद्धो यत्र त्रयाणां सागराणा सङ्गमो भारतस्य चरणप्रक्षालनं कुर्वन्नतिशयपावनतां भजते।।

शब्दार्थ
प्राच्याम् = पूर्व दिशा में।
प्रतीच्याम् = पश्चिम दिशा में।
सम्प्रति = इस समय।
भागावस्ताम् (भागौ + आस्ताम्) = दोनों भाग थे।
पार्थक्यम् = अलगाव।
सञ्जातम् = हो गयी।
सङ्गमः = मिलना।
पावनतां भजते = पवित्रता को प्राप्त करता है।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में भारत के पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में स्थित समुद्रों, स्थानों और देशों का वर्णन है।।

अनुवाद-
भारत की दक्षिण दिशा में हिन्द महासागर, पूर्व दिशा में बङ्ग-समुद्र (बंगाल की खाड़ी) और पश्चिम दिशा में अरब महासागर है। इसकी पश्चिमोत्तर दिशा में अब पाकिस्तान और पूर्वोत्तर दिशा में बांग्लादेश स्थित हैं। पहले ये दोनों (पाकिस्तान और बांग्लादेश) भी हमारे भारत के ही भाग थे, किन्तु राजनीतिक कारणों से, विदेशियों के षड्यन्त्रों से, हमारे ही एक वर्ग के कुछ नेताओं की हठधर्मिता के कारण अलगाव (विभाजन) हो गया। दक्षिण दिशा में भारत का सुन्दर प्रदेश ‘कन्याकुमारी’ नाम से प्रसिद्ध है, जहाँ तीन सागरों का संगम भारत के पद प्रक्षालन करता (पैरों को धोता) हुआ अत्यन्त पवित्र हो जाता है।

(4) पारेसागरं चतुर्योजनमात्रे श्रीलङ्का नामाऽस्माकं प्रतिवेशी देशो विद्यते। एतदपि न जातु विस्मरणीयं यद् हिन्दमहासागरे ‘लक्षद्वीप’ नामा बङ्गसमुद्रे ‘अण्डमान’ नामा द्वीपसमूहश्चापि अस्माकं भारतस्यैव अविच्छिन्नौ प्रदेशौ स्तः। गुर्जर-महाराष्ट्र-कर्णाटक-केरल-तमिल-आन्ध्रउत्कल-बङ्गाज्यानां भूमि सागरः स्पृशति तस्मादेते तटीयप्रदेशाः कथ्यन्ते। यत्र अनेकानि महान्ति पत्तनानि विद्यन्ते येषु असङ्ख्यजलपोतानां (UPBoardSolutions.com) साहाय्येन वैदेशिकैर्विनिमेयानां पण्यानां निर्यातमायातं च क्रियेते। प्राचीनकालेऽपि भारतवर्षस्य नौपरिवहनव्यवस्था अतीव समृद्धा आसीत्। अनेकैद्वीपैर्देशान्तरैश्च साकं सागरमार्गेण वाणिज्यं प्रचलति स्म। एवमेव सागरतटीयजलेषु मत्स्यग्रहणव्यापारोऽधुनातनो महानुद्योगः परिणतः।।

शब्दार्थ
पारेसागरम् = सागर के पार। चतुर्योजनमाने = मात्र चार योजन पर। न जातु = कभी नहीं। अविच्छिन्नौ = अभिन्न। कर्णाट = कर्नाटक। उत्कल = उड़ीसा। पत्तनानि = बन्दरगाह (वह स्थान जहाँ जलयान आकर रुकते हैं और विविध सामग्री लेकर विदेशों को जाते हैं)। पण्यानाम् = विक्रेय वस्तुओं का। क्रियेते = किये जाते हैं। अतीव = बहुत अधिक। साकं = साथ। अधुनातनः = आधुनिक। परिणतः = हो गया है। प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में भारत के समुद्रतटीय प्रदेशों का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
समुद्र के पार केवल चार योजन पर श्रीलंका नाम का हमारा पड़ोसी देश है। यह भी कभी नहीं भूलना चाहिए कि हिन्द महासागर में लक्षद्वीप नाम का और बंगाल की खाड़ी में अण्डमान नाम का द्वीपसमूह भी हमारे भारत के ही अभिन्न प्रदेश हैं। गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिल, आन्ध्र, उड़ीसा और बंगाल राज्यों की भूमि को सागर स्पर्श करता है, इसलिए ये तटीय प्रदेश कहे जाते हैं। यहाँ अनेक बड़े बन्दरगाह हैं, जिनमें असंख्य जलयानों की सहायता से विदेशियों द्वारा विनिमय के योग्य व व्यापारिक वस्तुओं का निर्यात और (UPBoardSolutions.com) आयात किया जाता है। प्राचीनकाल में भी भारत की नौका-परिवहन की व्यवस्था अत्यन्त समृद्ध थी। अनेक द्वीपों और दूसरे देशों के साथ सागर के मार्ग से व्यापार चलता था। इसी प्रकार समुद्र के तट के जल में मछली पकड़ने का धन्धा आजकले का महान् उद्योग बन गया है।

UP Board Solutions

(5) प्रकृतिदेव्याः भारते महती कृपा वर्तते। षभिः ऋतुभिर्विरोज़मानम् ऋतुचक्रमत्रैव परिवर्तते। सूर्याचन्द्रमसोः प्रकाशो यथाऽत्र प्रसरति तथा संसारस्यात्यल्पेषु एव देशेषु स्यात्? सूर्यास्तस्य चन्द्रास्तस्य च सूर्यचन्द्रयोः अस्तमनवेलायाः मनोरमाणि दृश्यानि यथा अत्रं भवन्ति तथा नान्यत्र। सकलेऽपि भारते देशे नदीनां प्राकृतिकं जलं प्रसृतं येनात्रत्या भूमिरत्युर्वरा सञ्जाता। सिन्धु-वितस्ता-शतद्-सरस्वती-गङ्गा-यमुना-ब्रह्मपुत्रादयः सरित उत्तरभागे, चर्मण्वती नर्मदादयो मध्यभागे, गोदावरी-कावेरी-कृष्णा-पेरिषार-महा- नद्यादयश्च दक्षिणभागे प्रवहन्ति। एतासां तटेषु हरिद्वार-प्रयाग-काशी-गयादीनि बहूनि तीर्थस्थानानि विद्यन्ते। यत्र प्रतिदिनं सहस्रशो (UPBoardSolutions.com) यात्रिणः स्नानं कृत्वा धर्मं चिन्वन्ति। विशेषेष्वसरेषु, तु कुम्भसदृशानि मेलकानि भवन्ति। यत्र देशस्य प्रतिकोणतः सहस्त्रशो लक्षशो जना आगत्य सम्मिलन्ति। देशस्य वास्तविकीमेकतां च वाचं विनैव सुतरां मुखरयन्ति। भारतस्य वनानां शोभापि परमहृद्या। हिमालयेषु देवदारुवृक्षाणामुच्छायो गगनं चुम्बति तर्हि सागरतटीयप्रदेशेषु नारिकेलपूगादिवृक्षाणां घना वनराजयः समुद्रजलमात्मनो दर्पणमिवाकलयन्ति। प्राकृतिकसुषमा

कारणादेव कश्मीरस्तु पृथ्वीस्थः स्वर्ग एवं मन्यते। अस्माकं राष्ट्रगाने भारतस्य प्रमुखानां प्रदेशानां पर्वतानां नीदनाञ्च कीर्तनं वर्तते। अपरस्मिन् च वन्दे मातरमित्याख्ये गते च अस्याः भुवः सुजलत्वं सुफलत्वं शस्यश्यामलत्वञ्च वण्र्यन्ते। |

शब्दार्थ
प्रकृतिदेव्याः = प्रकृति रूपी देवी की।
परिवर्तते = बदलता है।
प्रसरति = फैलता है।
स्यात् = हो सकता है।
नान्यत्र = दूसरी जगह नहीं।
प्रसृतं = बहता है।
अत्युर्वरा = अधिक उपजाऊ।
सञ्जाताः = हो गयी हैं।
वितस्ता = व्यास।
शतद् = सतलज।
चर्मण्वती = चम्बल।
चिन्वन्ति = चुनते हैं, संचय करते हैं।
मेलकानि = मेले।
प्रतिकोणतः = प्रत्येक कोने से।
लक्षशः = लाखों
वाचं विनैव = बिना कहे ही।
सुतरां = भली प्रकार।
मुखरयन्ति = मुखर होते हैं, बोलते हैं।
हृद्या = सुन्दर।
चुम्बति = चूमती है।
पुगादि = सुपाड़ी आदि।
दर्पणामिवाकलयन्ति = दर्पण-सा प्रकट करते हैं।
पृथ्वीस्थः = पृथ्वी पर स्थित।
अपरस्मिन् = दूसरे में।
शस्य = फसल।
वण्र्यन्ते = वर्णित किये जाते

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में भारत के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
भारत पर प्रकृति देवी की महान् कृपा है। छह ऋतुओं से सुशोभित ऋतु-चक्र यहीं  पर बदलता है। सूर्य और चन्द्रमा का प्रकाश जैसा यहाँ फैलता है, वैसा संसार के बहुत थोड़े ही देशों में होता है। सूर्यास्त, चन्द्रास्त और सूर्य-चन्द्र के डूबने के समय के जैसे सुन्दर दृश्य यहाँ होते हैं, वैसे अन्यत्र नहीं। सारे ही भारत देश में नदियों का प्राकृतिक जाल फैला हुआ है, जिससे यहाँ की भूमि अत्यधिक उपजाऊ हो गयी है। उत्तर भाग में सिन्धु, बेतवा, सतलज, सरस्वती, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र आदि नदियाँ; मध्य भाग में चम्बल, नर्मदा आदि और दक्षिण भाग में गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, पेरिषार आदि महानदियाँ बहती हैं। इनके तटों पर हरिद्वार, प्रयाग, काशी, गया आदि बहुत-से तीर्थस्थान विद्यमान हैं, जहाँ प्रतिदिन हजारों यात्री स्नान करके धार्मिक कार्यक्रमों में लगते हैं (धर्मार्जन करते हैं)। (UPBoardSolutions.com) विशेष अवसरों पर तो कुम्भ जैसे (विशाल) मेले होते हैं, जहाँ देश के प्रत्येक कोने से हजारों, लाखों लोग आकर सम्मिलित होते हैं और देश की सच्ची एकता को बिना कहे ही अच्छी तरह प्रकट करते हैं। भारत के वनों की शोभा भी परम रमणीय है। हिमालय पर देवदारु के वृक्षों की ऊँचाई आकाश को चूमती है तो संसार के तटीय प्रदेशों में नारियल, सुपारी आदि वृक्षों की घनी वन पंक्तियाँ समुद्र के जल , को अपने दर्पण के समान समझती हैं। प्राकृतिक शोभा के कारणों से ही कश्मीर पृथ्वी का स्वर्ग ही माना जाता है। हमारे राष्ट्रगान में भारत के प्रमुख प्रदेशों, पर्वतों और नदियों की कीर्ति (को वर्णन) है। और दूसरे ‘वन्देमातरम्’ नाम के गीत में इस पृथ्वी की सुजलता, सुफलता और शस्य-श्यामलता वर्णित है।

UP Board Solutions

(6) अयमस्माकं भारतदेशः संसारस्य गुरूरप्युच्यते। न केवलमुपनिषदामुत्तरवेदान्तस्य चाध्यात्मिकता, श्रुतिस्मृत्यादिषु प्रतिपादितो नैतिक आचारस्तथा विविधसिद्धिप्रदाता योगाभ्यास एवाद्यत्वेऽपि विदेशीयानामाकर्षणकारणं येन तेऽधुनानेकेष्वाश्रमेष्वत्र शान्ति मृगयमाणाः साधनां कुर्वन्ति स्वदेशेष्वपि तथाविधान् आश्रमांश्च संस्थापयन्ति। हरे कृष्णाद्यनेकसम्प्रदायानुभाव्य भक्तिमार्गमवलम्बन्तेऽपि च कामार्थाविति पुरुषार्थद्वयेऽपि ‘भारतस्य प्राचीनामुपलब्धिं बहु मन्यन्ते। वात्स्यायनं चाणक्यं चानुद्धृत्य यौन-विज्ञानस्य ‘राजनीतिविज्ञानस्य चेतिहासमापि प्रारब्धं न पारयन्ति। अनुल्लिख्य च सुश्रुतं न | शल्यक्झिानस्याविर्भावं प्रस्तोतुं शक्यते। गणितविद्यायामूलम् अङ्कलेखनप्रणाली सर्वप्रथम भारते एव आविर्भूता, ततश्च भारतीयेभ्यो अरब-देशीयैरवगतात। (UPBoardSolutions.com) अधुनापि अङ्क ‘हिन्दसा’ (हिन्दात् = भारतात् आगतः) इति कथयन्ति। यूरोपीयैस्तु तत्पश्चादेवारबवासिभ्यः सङ्ख्यालेखनप्रकारः शिक्षितः। स्वास्थ्यकृते योगासनशिक्षा तु ब्रिटेनादिदेशेषु अनेकत्र माध्यमिकविद्यालयेषु प्रचलिता। भारतजन्मा बौद्धधर्मोऽद्यापि कोटिभिर्विदेशीयानामनुस्रियते। महात्मा गान्धिना पुनरुद्घोषितो “अहिंसा परमो धर्मः” अद्यापि विश्वशान्तेरद्वितीय उपायः स्वीक्रियते। किन्तु हन्त! मिथः अविश्वसद्भिः परस्परं विभ्यभिस्तथोच्चैराकक्षमाणैः संसारस्य नैकैर्हठिभिर्नेतृभिस्तुदनुपालने वैवश्यमनुभूयते। त्यक्तेन भुञ्जीथा इत्यार्षसिद्धान्तमनुसृत्य ‘वसुधैव कुटुम्बकमिति’ आदर्श प्राप्ता जना एव विश्वशान्ति स्थापयितुं समर्था न तु आयुधेभ्यो धावमानाः मृत्युपण्याः कुशासकाः विश्वराजनेतारः।

शब्दार्थ
गुरूरप्युच्यते (गुरुः + अपि + उच्यते) = गुरु भी कहा जाता है।
प्रतिपादितः = ‘सिद्ध किया गया।
मृगयमाणाः = खोजते हुए।
उद्भाव्य = उत्पन्न करके।
अनुधृत्य = बिना उद्धरण
दिये। प्रारब्धम् = प्रारम्भ करना।
अनुल्लिख्य च = उल्लेख किये बिना।
प्रस्तोतुम् शक्यते = प्रस्तुत किया जा सकता है।
अवगता = जानी।
अनुत्रियते = अनुसरण किया जाता है।
स्वीक्रियते = स्वीकार किया जाता है।
हन्त = दुःख है।
मिथः = आपस में
बिभ्यद्भिः = डरने वाले।
वैवश्यम् अनुभूयते = विवशता अनुभव की जाती है।
भुञ्जीथा = भोग करो।
अनुसृत्य = अनुसरण करके।
धावमानाः = दौड़ते हुए।
मृत्युपण्याः = मौत के सौदागर।
विश्वराजनेतारः = विश्व के राजनेता।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में भारत की आध्यात्मिकता, ज्ञान-विज्ञान एवं विश्व-शान्ति की स्थापना में भारतीय नीति की भूमिका का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
यह हमारा भारत देश संसार का गुरु भी कहा जाता है। केवल उपनिषदों और उत्तर वेदान्त की आध्यात्मिकता ही नहीं, वेदों, स्मृतियों आदि में बतलाया गया नैतिक आचार तथा अनेक प्रकार की सिद्धियों को देने वाला योगाभ्यास ही आजकल भी विदेशियों के आकर्षण का कारण है, जिससे वे लोग अब अनेक आश्रमों में यहाँ शान्ति को खोजते हुए साधना करते हैं और अपने देशों में भी उस प्रकार के आश्रमों की (UPBoardSolutions.com) स्थापना करते हैं। हरे कृष्ण’ आदि अनेक सम्प्रदायों को उत्पन्न करके भक्तिमार्ग का अवलम्बन करते हुए भी काम और अर्थ इन दो पुरुषार्थों को भी प्राचीन भारत की बड़ी (महान्) उपलब्धि समझते हैं। वात्स्यायन और चाणक्य का उद्धरण दिये बिना यौन-विज्ञान और राजनीति विज्ञान के इतिहास को भी प्रारम्भ करने में समर्थ नहीं हैं। सुश्रुत का उल्लेख किये बिना शल्य-विज्ञान की उत्पत्ति प्रस्तुत नहीं की जा सकती। गणित विद्या की मूलस्वरूप अंकों को लिखने की प्रणाली सबसे पहले भारत में भी उत्पन्न हुई और इसके बाद भारतीयों से अरब देश वालों ने जानी। आज भी अंकों को ‘हिन्दसा’ (हिन्द या भारत से आया हुआ) कहते हैं। यूरोप वालों ने तो उसके बाद ही अरब देश वालों से संख्या लिखने का तरीका सीखा। स्वास्थ्य के लिए योगासन की शिक्षा तो ब्रिटेन आदि देशों में अनेक जगह माध्यमिक स्कूलों में प्रचलित है। भारत में उत्पन्न बौद्ध धर्म को आज भी करोड़ों विदेशियों द्वारा अनुसरण किया जाता है। महात्मा गाँधी के द्वारा पुनः उद्घोषित ‘अहिंसा परमो धर्मः’ (के नारे) को आज भी विश्व-शान्ति का सर्वश्रेष्ठ उपाय स्वीकार किया गया है, किन्तु खेद है। आपस में विश्वास न करने वाले, आपस में डरने वाले तथा ऊँची आकांक्षा रखने वाले संसार के अनेक हठी नेता उनका पालन (UPBoardSolutions.com) विवश होकर नहीं करते हैं। ‘त्यक्तेन भुञ्जीथाः’ (त्यागपूर्वक भोग करो) ऋषियों के इस सिद्धान्त का अनुसरण करके ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ (पृथ्वी ही कुटुम्ब के समान है)-इस आदर्श को प्राप्त हुए लोग ही विश्व-शान्ति को स्थापित करने में समर्थ हैं, आयुधों के लिए दौड़ते हुए, मृत्यु का व्यापार करने वाले, बुरे शासक, संसार के राजनेता नहीं।

(7) अस्माकं प्राचीनां वास्तुकलां शिल्पकलां च दशैं दशैं विस्फारितनेत्राणां विकसित देशवास्तव्यानां विस्मयचकिती वागपि न स्फुरति। खुजराहो कोणार्कादिमन्दिराणां स्थापत्यं मूर्तिकलां चावलोकयितुं लक्षशो विदेशीयाः पर्यटका अत्रागच्छन्ति। मुहम्मदीयैरपि शासकैरस्मिन् क्षेत्रे यद्विहितं तदपि ‘ताजमहल-कुतुबमीनारादि’ रूपेण प्रतिष्ठितं भारतीयं गौरवं वर्धयति। तदपि वैदेशिकैः सविस्मयं मुहुर्मुहुः स्तूयते। ताजमहलं तु तैः संसारस्य सप्तसु आश्चर्येषु गण्यते। भारतीयमूर्तिकलायास्तु, वैदेशिकास्तथा प्रशंसकोस्तदर्थं तथोन्मत्ताश्चे जायन्ते यल्लक्षशो रुप्यकाणां व्ययं कृत्वापि अवैधैरप्युपायैस्तास्कर्यादिभिः प्राचीनाः मूर्तीः प्राप्तुं यतन्ते। अहो! प्रशंसनीया तेषां कलाप्रीतिः, निन्दनीयाः अवैधा उपायाः, दयनीया च कलाकृतिदरिद्रता।

शब्दार्थ
वास्तुकला = भवन-निर्माण की कला।
शिल्पकला = शिल्प सम्बन्धी कला।
दशैं दर्श = देख-देखकर।
विस्फारितनेत्राणाम् = फटी हुई आँखों से देखते हुए।
वागपि = वाणी भी।
स्थापत्यम् मूर्तिकलां च = भवन-निर्माण कला और मूर्तिकला।
पर्यटकाः = घूमने वाले।
मुहम्मदीयैः अपि = मुसलमानों के द्वारा भी।
विहितम् = किया।
वर्धयति = बढ़ाती है।
मुहर्मुहुः = बार-बार।
स्तूयते = प्रशंसा की जाती है।
गण्यते = गिना जाता है।
अवैधैः उपायैः = गैरकानूनी तरीकों से।
तास्कर्यादिभिः = चोरी-तस्करी आदि से।
यतन्ते = यत्न करते हैं।
कलाकृतिदरिद्रता = कलाकृतियों की कमी या अभाव।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में भारत की प्राचीन कला के प्रति गौरवानुभूति व्यक्त की गयी है।

अनुवाद
हमारी प्राचीन भवन-निर्माण कला और शिल्पकला को देख-देखकर फटी हुई आँखों से देखते हुए विकसित देश के निवासियों की विस्मय से चकित होकर वाणी भी नहीं निकलती है। खजुराहो, कोणार्क आदि के मन्दिरों की स्थापत्यकला और मूर्तिकला को देखने के लिए लाखों 
विदेशी पर्यटक यहाँ आते हैं। मुसलमान शासकों ने भी इस क्षेत्र में जो किया, वह भी ताजमहल, . कुतुबमीनार आदि के रूप में प्रतिष्ठित होकर भारत के गौरव को बढ़ा रहा है। उसकी भी विदेशियों के द्वारा विस्मय से बार-बार प्रशंसा की जाती है। (UPBoardSolutions.com) ताजमहल को तो वे संसार के सात आश्चर्यों में गिनते हैं। भारत की मूर्तिकला के तो विदेश के लोग इतने प्रशंसक हैं और उनके लिए इतने पागल हो जाते हैं कि लाखों रुपये खर्च करके भी गैरकानूनी तरीकों, चोरी आदि से भी प्राचीन मूर्तियों को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। अहो! उनका कला-प्रेम प्रशंसा के योग्य है, गैरकानूनी तरीके निन्दा के योग्य हैं और कलाकृतियों का अभाव दया के योग्य है।

UP Board Solutions

(8) अदभुतोऽयं परमगरिमा देशो यत्र नचिकेता इव ज्ञानपिपासवः जाबालेयसत्यकाम इव सत्यवादिनः, ध्रुव इव तपस्विनश्च बालकाः, अभिमन्युरिव शूराः किशोराः, एकलव्योद्दालककौत्ससदृशा गुरुभक्ताः शिष्याः शिविमयूरध्वजकर्णप्रभृतयो दानिनः, हरिश्चन्द्रयुधिष्ठिरादयः सत्यवादिनः, भरतलक्ष्मणसदृशाः भ्रातरः, सीतासावित्री-गान्धारी-सदृश्यः पन्याः, दशरथसदृशाः पितरश्च बभूवुः। (UPBoardSolutions.com) मैत्रोयी-गार्गी-भारती-सदृश्यो विदुष्यो, रजियासुल्ताना-दुर्गावतीलक्ष्मीबाई सदृश्यो वीराङ्गनाः, भक्तसिंहसुखदेव-चन्द्रशेखर-सदृशाः देशभक्ताः, महावीरगौतमबुद्धगान्धितुल्या महात्मानः सन्ताश्चास्या एवं भारतभुवः सन्ततयः आसन्। देशान्तुरेषु धर्मस्य ग्लान्यां सत्यां क्वचिदीश्वरेण स्वकीयो दूतः प्रहितः क्वचिच्च सुतः अत्र तु स्वयं । भगवानेव मानवरूपमाधायावतीर्णः।।

शब्दार्थ
ज्ञानपिपासवः = ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक।
जाबालेय = जाबालि का पुत्र।
विदुष्यः = विदुषियाँ।
सन्ततयः = सन्ताने।
ग्लान्यां सत्यां = कमी होने पर
प्रहितः = भेजा।
मानवरूपमाधाय = मानव का रूप धारण करके।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में भारत के ज्ञान-पिपासुओं, सत्यवादियों, तपस्वी बालकों, वीर किशोरों, गुरुभक्त शिष्यों, दानियों, सत्यवादियों, आदर्श भाई, पत्नी, पिताओं, विदुषी और वीरांगनाओं, देशभक्तों और सन्तों के प्रति गौरवानुभूति की गयी है।

अनुवाद
अत्यन्त गरिमा वाला यह देश अद्भुत है, जहाँ नचिकेता के समान ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक; जाबालि के पुत्र सत्यकाम की तरह सत्यवादी; ध्रुव की तरह तपस्वी बालक; अभिमन्यु की तरह वीर किशोर; एकलव्य, उद्दालक और कौत्स के समान गुरुभक्त शिष्य; शिवि, मयूरध्वज, कर्ण जैसे दानी; हरिश्चन्द्र, युधिष्ठिर आदि सत्यवादी; भरत और लक्ष्मण के समान भाई; सीता, सावित्री और गान्धारी के समान पत्नियाँ और दशरथ के समान पिता हुए हैं। मैत्रेयी, गार्गी और भारती के समान विदुषी स्त्रियाँ; रजिया सुल्तान, दुर्गावती, लक्ष्मीबाई जैसी (UPBoardSolutions.com) वीरांगनाएँ; भगतसिंह, सुखदेव और चन्द्रशेखर के समान देशभक्त; महावीर, गौतम बुद्ध और गाँधी के समान महात्मा और सन्त इसी भारत-भूमि की सन्तान थे। दूसरे देशों में धर्म की हानि होने पर कहीं ईश्वर के द्वारा अपना दूत भेजा गया और कहीं पुत्रे, परन्तु यहाँ तो स्वयं भगवान् ने ही मनुष्य का रूप धारण करके अवतार लिया।

(9) अधुनातनेऽप्यनेहसि भारतस्य विश्वस्मिन् भूमण्डले महत्त्वपूर्ण स्थानं वर्तते। स्वकीयाः पारतन्त्र्यशृङ्खला विभज्यास्माभिः सर्वेषामपि पराधीनदेशानां कृते साहाय्यमुघोषितम्। कस्यापि देशस्य प्रभुत्वसत्ता तत्रत्यजनेषु एव निहितेति सडिण्डिमं सिद्धान्तितम्। साम्यवादिदेशानां पुञ्जिवादिदेशानाञ्च वर्गात् पृथक् स्थित्वा विकसतां नवस्वतन्त्राणां देशानां कृते ताटस्थ्यनीतिः प्रचारिता, तेषां च पृथक् सङ्गठनं कृतं यस्य प्रभावो विश्वराजनीत्यां स्पष्टमनुभूयते। विकसितदेशानामार्थिकषड्यन्त्राणामुदघाटनं क्रियते। श्वेताङ्गानां रङ्गभेदनीतेर्विरुद्ध जनमतं सुदृढीकृतम्। भारतीयैः प्रयत्नैरेशियाऽफ्रीकामहाद्वीपीयदेशेषु यद् जागरणं जातं तेनैतेषां देशानां मानोऽपि जगति वर्धितः। आधुनिकविज्ञानौद्योगिकीयान्त्रिक्यादीनां नवज्ञानानां क्षेत्रे (UPBoardSolutions.com) महान् विकासो विहितः। नैके आविष्काराश्च कृताः। कृष्युत्पादनं वर्धितम्। यत्र सूच्यपि नो निर्मीयते स्म तत्राधुना अत्याधुनिकानि यन्त्राणि निर्मीयन्ते। न केवलमविकसितेभ्यो देशेभ्योऽपि तु अमेरिकाब्रिटेन सदृशविकसितदेशेभ्योऽपि न केवलं हस्तशिल्पनिर्मितानि वस्तून्यपि तु उच्चाभियान्त्रिकीनिर्मयाणि सूक्ष्मयन्त्राणि अपि दीयन्ते। वैज्ञानिकानां यान्त्रिक्रीविशेषज्ञानां च यद् बाहुल्यं सम्प्रति । भारते वर्तते तत् संसारे द्वित्रिषु देशेषु भवेन्न वा। सहस्रशो विशेषज्ञा देशान्तराणि गत्वा तत्र तेषामुपचयं कुर्वन्ति। भारतीया यथा श्रमशीला न तथा अन्ये इति देशान्तरेषु प्रतिष्ठितम् तथ्यम्।।

शब्दार्थ
अधुनातनेऽप्यनेहसि = आधुनिक दिनों में भी, आधुनिककाल (आज) में भी।
विश्वस्मिन् भूमण्डले = सम्पूर्ण भूमण्डल पर।
विभज्य = भेदकर या काटकर।
निहितेति (निहिता +इति) = छिपी रहती है, ऐसा।
सडिण्डिमम् = ढिंढोरा पीटकर।
सिद्धान्तितम् = सिद्धान्त रूप में माना।
पुञ्जवादि = पूँजीवादी।
कृते = लिए।
ताटस्थ्यनीतिः = तटस्थता की नीति।
अनुभूयते = अनुभव की ।
जाती है।
सुदृढीकृतम् = मजबूत की।
मानोऽपि = मान भी।
विहितः = किया।
सूच्यपि = सुई भी।
दीयन्ते =दिये जाते हैं।
उपचयम् = वृद्धि।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में संसार के देशों में भारत की राजनीतिक क्षेत्र में सर्वाधिक प्रगपि तथा तकनीकी ज्ञान के विकास का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
आधुनिककाल में भी भारत का सम्पूर्ण भूमण्डल में महत्त्वपूर्ण स्थान है। अपनी पराधीनता की जंजीरों को काटकर हमने सभी पराधीन देशों के लिए सहायता की घोषणा की। किसी भी देश की प्रभुसत्ता वहाँ के लोगों में ही निहितं है, इसको ढिंढोरा पीटकर सिद्धान्ततः सिद्ध किया। साम्यवादी देशों और पूँजीवादी देशों के वर्ग से अलग रहकर विकसित नये स्वतन्त्र हुए देशों के लिए (हमने) तटस्थ नीति (निर्गुट नीति) का प्रचार किया और उसका अलग से संगठन बनाया, जिसका प्रभाव विश्व की राजनीति पर स्पष्ट रूप से अनुभव किया जाता है। विकसित देशों के आर्थिक षड्यन्त्रों का भण्डाफोड़ किया है। गौरांगों की रंगभेद नीति के विरुद्ध जनमत को दृढ़ किया। भारत के प्रयत्नों से एशिया, अफ्रीका महाद्वीप के देशों में जो जागरण हुआ, उससे इन देश का संसार में सम्मान भी बढ़ा। (UPBoardSolutions.com) आधुनिक विज्ञान, औद्योगिकी और अभियान्त्रिक आदि के नये ज्ञान के क्षेत्र में बहुत विकास किया और अनेक आविष्कार (खोज) किये। कृषि का उत्पादन बढ़ाया है। जहाँ सूई भी नहीं बनायी जाती थी, वहाँ अब अति आधुनिक यन्त्र बनाये जा रहे हैं। केवल अविकसित देशों को ही नहीं, वरन् अमेरिका, ब्रिटेन सरीखे विकसित देशों को भी न केवल हस्तशिल्प से बनायी गयी वस्तुएँ, अपितु बड़े अभियान्त्रिकी के लिए बनाये जाने वाले सूक्ष्म यन्त्र भी दिये जा रहे हैं। वैज्ञानिक और अभियान्त्रिकी विशेषज्ञों की जो अधिकता इस समय भारत में है, वह संसार में दो-तीन देशों में भी हो या न हो। हजारों विशेषज्ञ दूसरे देशों में ज़ाकर वहाँ उनकी वृद्धि करते हैं। भारत के लोग जैसे परिश्रमी हैं, वैसे दूसरे नहीं-यह तथ्य दूसरे देशों में स्थापित है।

UP Board Solutions

(10) उपर्युक्तविवरणेन विदितमेतद्भवति यत् भारतस्यातीतं तथा गौरवम् अद्याप्यस्मान् विश्वस्य सम्मुखं सम्मानस्योच्चैर्वेदिकायां प्रतिष्ठापयति। किन्तु केवलमतीतगौरवं तु भविष्यन्नेव निर्मातुं शक्नोति। वर्तमानकाले उपलब्धानां मानवसंसाधनानां सम्पदां च सर्वोत्तम उपयोगो विधेय येन विकासस्य गतिः प्रवर्धेत। सन्ति कश्चिदुर्दमाः समस्या याः कथमपि समाधेया एव। विदेशीया न वाञ्छन्ति यद् भारतं राजनीतिक्षेत्रे वित्तीयासु चोपलब्धिषु दृढ़ता गच्छेत्। अतस्ते भारतवासिषु मिथो भेदं प्रयुज्य कलहं कारयन्ति। धर्मं भाषां स्वनिवासक्षेत्र वा अग्रे कृत्वा समस्या उत्थाप्यन्ते। पञ्चाम्बुप्रदेशे केचन धर्मान्धा आतङ्कवादमनुसरन्ति विदेशीयैः प्रोत्साहिताः। प्रतिवर्षमनेके साम्प्रयदायिककलहो जायन्ते, निरपराधा जनाः प्रियन्ते, जनसम्पत्तिर्नश्यति देशस्य शक्तिक्षयो भवति। अतः सर्वैरपि अस्माभिः सौहार्देन मिथो वर्तितव्यम्। सर्वेषामपि धर्माणां सांस्कृतिकपरम्पराणां सामाजिकरीतिनामादरः कर्तव्यः। (UPBoardSolutions.com) धर्मसाहसिभिश्चापि अवगन्तव्यं यद् राजनीत्या धर्मस्य सङ्कटः सर्वथा अश्रेयस्करः। देशजीवनस्य प्रधानधारायां सम्यनिमज्जनमेव सर्वेषां मङ्गलम्। द्वितीया तु जनसङ्ख्यायाः समस्या। जनसङ्ख्यायो अत्यधिकवृद्धेः कारणाद् विकासस्य लाभो विलीयते। अतः परिवारकल्याणमप्यवधेयम्। एवमपि सर्वैरवधेयं यत्सार्वजनिकजीवने विशेषतो भ्रष्टचारो रोधनीयः। अनुचितो लाभः न जातु केनापि स्पृहणीयः। तदर्थं न कश्चिदप्यनुरोद्धव्यः प्रोत्साहनीयो वैवश्यं वोपनेयः। न कदापि तथा वर्तितव्यं यद् भारतमातुविरुद्धं भवेत्। स वै अस्माकं जन्मभूमिर्यस्याः रजसि व्यमाविर्भूतान। भवेन्नाम कस्यापि शवो वह्मिसात् परस्य च भूमिसात् को नाम भेदः? अन्ते तु सर्वोऽपि अस्या भारतमातुरेव रजसि विलीनो भवति। तत् कोऽर्थः परस्परं कलहेन जन्मनः मातरं प्रति विद्रोहेण वा। सा तु सर्वदैव माननीया। यतो हि–”

“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।”

शब्दार्थ
अतीतम् = बीता समय।
वेदिकायाम् = चबूतरे पर।
उपलब्धानां = प्राप्त हुई।
विधेयः = करना चाहिए।
प्रवर्धेत = बढ़ती रहे।
दुर्दमाः = दबाने में कठिना
समाधेया = समाधान की जाने योग्य।
वित्तीयासु = धन सम्बन्धों में
प्रयुज्य = प्रयोग करके।
उत्थाप्यन्ते = उभारी जा रही है।
पञ्चाम्बुप्रदेशे = पंजाब में।
अवगन्तव्यम् = जानना चाहिए।
अश्रेयस्करः = अहितकर।
मङ्गलम् = कल्याणकारी।
विलीयते = नष्ट हो रहा है।
अवधेयम् = ध्यान देना चाहिए।
रोधनीयः = रोकना 
चाहिए।
स्पृहणीयः = चाहा जाने योग्य।
जातु = कभी भी।
वैवश्यं = विवशता को।
वोपनेयः (वा + : उपनेयः) = अथवा ले जाना चाहिए।
वर्तितव्यम् = व्यवहार करना चाहिए।
रजसि = धूल में।
वह्निसात् = जलाया जाये।
भूमिसात् भवेत् = दफनाया जाना चाहिए।
स्वर्गादपि (स्वर्गात् + अपि) = स्वर्ग से भी।
गरीयसी = महान्।।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में भारत की ज्वलन्त समस्याओं की ओर ध्यानाकृष्ट करके सबको प्रेम से रहने का सन्देश दिया गया है।

अनुवाद
ऊपर बताये गये विवरण से यह मालूम होता है कि भारत का अतीत और गौरव आज भी . हमें संसारे के सामने सम्मान के उच्च सिंहासन पर स्थापित करता है, किन्तु अतीत का गौरव भविष्य का निर्माण नहीं कर सकता है। वर्तमान समय में प्राप्त हुई मानव की सुविधाओं और सम्पत्तियों का सबसे उत्तम उपयोग करना चाहिए, जिससे विकास की गति बढ़े। कुछ दबाने में कठिन दुर्दमनीय समस्याएँ हैं, जिनको किसी तरह समाधान करना ही है। विदेश के लोग नहीं चाहते हैं कि भारत राजनीति के क्षेत्र में और आर्थिक उपलब्धियों में मजबूत बने; अतः वे भारतवासियों में आपस में फूट डालकर झगड़ा कराते रहते हैं। धर्म, भाषा या प्रदेश को आगे रखकर समस्याएँ पैदा की जाती हैं। पंजाब प्रदेश में कुछ धर्मान्ध विदेशियों के द्वारा उकसाये जाकर आतंकवाद का सहारा ले रहे हैं। प्रतिवर्ष अनेक साम्प्रदायिक झगड़े पैदा होते हैं, निर्दोष लोग मारे जाते हैं, जन-सम्पत्ति नष्ट होती है और देश की शक्ति का ह्रास (UPBoardSolutions.com) होता है; अत: हम सबको आपस में भाईचारे से रहना चाहिए। सभी धर्मों, सांस्कृतिक परम्पराओं और सामाजिक रीति-रिवाजों का आदर करना चाहिए; अत: धर्म के अगुवाओं को भी समझ लेना चाहिए कि राजनीति के द्वारा धर्म का संकट पैदा करना सब तरह से अहितकर है। देश के जीवन की मूलधारा में अच्छी तरह मिल जाने में ही सबका कल्याण है। दूसरी जनसंख्या की समस्या है। जनसंख्या बहुत अधिक बढ़ने से विकास का लाभ नष्ट हो जाता है; अतः परिवार कल्याण की ओर भी ध्यान देना चाहिए। यह भी सबको ध्यान देना चाहिए कि सार्वजनिक जीवन में विशेष रूप से भ्रष्टाचार को रोका जाए। किसी को (कभी) भी अनुचित लाभ की इच्छा नहीं करनी चाहिए। उसके लिए न किसी से अनुरोध किया जाए अथवा विवश होकर न प्रोत्साहन दिया जाए। कभी भी ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए, जो भारतमाता के प्रतिकूल हो। (निश्चय ही) यह । हमारी जन्मभूमि है, जिसकी धूल में (UPBoardSolutions.com) हम उत्पन्न हुए हैं। किसी को मृत शरीर जलाया जाए या दफनाया जाए-दोनों में क्या अन्तर है? अन्त में तो सभी इस भारतमाता की धूल में मिल जाते हैं। आपस में झगड़ने से अथवा जन्म की माता के प्रति विद्रोह करने से क्या लाभ? वह. तो सदा ही सम्मान के योग्य है; क्योंकि माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं।”

लघु उत्तरीय प्ररन

प्ररन
भारतवर्ष पर एक छोटा-सा निबन्ध लिखिए। या ‘भारतवर्षम्’ पाठ का सारांश लिखिए।
उत्तर
[संकेत-‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत दी गयी सामग्री को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए।]

प्ररन
भारत की भौगोलिक परिस्थिति का वर्णन ‘भारतवर्षम्’ पाठ के आधार पर कीजिए।
उत्तर
[संकेत-‘पाठ-सारांश’ शीर्षक के अन्तर्गत आये तीन शीर्षकों-‘प्रहरी हिमालय’, ‘तीन दिशाओं में समुद्र’, ‘तटीय प्रदेश’–की सामग्री को संक्षिप्त रूप में अपने शब्दों में लिखें।

UP Board Solutions

प्ररन
भारत की प्रमुख समस्याएँ बताइए और उनके समाधान पर प्रकाश डालिए। |
उत्तर
[संकेत—‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत आए शीर्षक ‘समस्याएँ’ की सामग्री को अपने शब्दों में लिखें।]

प्ररन
भारत के प्राचीन गौरव पर ‘भारतवर्षम्’ पाठ के आधार पर प्रकाश डालिए। |
उत्तर
[संकेत-पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत आये तीन शीर्षकों-संसार का गुरु’, ‘कला की प्रगति’, ‘महापुरुषों की पवित्र भूमि’–की सामग्री को संक्षिप्त रूप में अपने शब्दों में लिखें।]

प्ररन
भारतवर्ष का यह नाम किस आधार पर पड़ा है?
उत्तर
[संकेत-पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत आये शीर्षक ‘नामकरण’ की सामग्री को अपने शब्दों में लिखें।]

We hope the UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 10 भारतवर्षम् (गद्य – भारती)help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 10 भारतवर्षम् (गद्य – भारती), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

 

UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 1 श्री रामचन्द्र (महान व्यक्तिव)

UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 1 श्री रामचन्द्र (महान व्यक्तिव)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 6 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 1 श्री रामचंद्र (महान व्यक्तिव)

पाठ का सारांश

श्री रामचन्द्र जी के कार्य श्रेष्ठ और लोक कल्याणकारी थे। इनका व्यक्तित्व उच्च मानवीय गुणों से सम्पन्न था। राम अयोध्या नरेश दशरथ के सबसे बड़े पुत्र थे। राम गुरुजनों की आज्ञा का पालन निष्ठापूर्वक करते थे। पिता की आज्ञा से राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ ऋषि विश्वामित्र के आश्रम में जाकर उनके यज्ञ को हानि पहुँचाने वाले राक्षसों का वध किया। यहीं से ये सीता जी के स्वयंवर में गए। वहाँ शिव जी का धनुष तोड़ने के पश्चात् सीता जी के साथ श्री राम का विवाह हुआ।

जब राजा दशरथ वृद्ध हो चले, तब उन्होंने राम को शासन का भार सौंपना चाहा। परन्तु मंथरा दासी के बहकावे में आकर कैकेयी ने राजा दशरथ से दो वरदान माँगे। ये वर दशरथ ने देवासुर संग्राम में कैकेयी के असीम शौर्य और सहायता से प्रसन्न होकर उसे माँगने को कहा था। कैकेयी ने भविष्य में कभी माँगने की बात कही थी। उसने (UPBoardSolutions.com) पहले वर में अपने पुत्र भरत के लिए राजगद्दी तथा दूसरे में राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास माँगा। श्री राम सीता और लक्ष्मण के साथ वन चले गए।

उनके वियोग में दशरथ जी स्वर्ग सिधार गए। वन में श्री राम की पत्नी सीता का रावण ने छलपूर्वक अपहरण कर लिया। श्री राम अपने भाई के साथ सीता की खोज में निकले। फिर इन्होंने सुग्रीव, अंगद, हनुमान आदि की सहायता से सेना तैयार कर रावण को परास्त किया। चौदह वर्ष का वनवास पूरा कर सीता और लक्ष्मण के साथ श्री राम वापस अयोध्या आए। श्री राम ने शासन की उत्तम व्यवस्था की। इनके राज्य में जनता सुख और आनन्द से जीवन व्यतीत करती थी। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में राम-राज्य का विशद वर्णन किया है।

UP Board Solutions

अभ्यास

प्रश्न 1.
रामचन्द्र जी के जीवन के कौन-कौन से गुण आपको प्रिय लगते हैं? उन गुणों को आप क्यों अच्छा समाते हैं?
उत्तर :
श्री रामचन्द्र जी माता-पिता और गुरु के परमभक्त, आज्ञाकारी, आदर्शवादी, परोपकारी, सहनशील, धैर्यवान, वीर, साहसी, प्रजापालक तथा मर्यादापुरुषोत्तम थे। इन गुणों से ही जीवनमूल्य तथा मानवता सार्थक होती है।

प्रश्न 2.
श्री राम के राज्याभिषेक के समय कौन-सी घटना घटी?
उत्तर :
श्री राम के राज्यभिषेक के समय दासी मंथरा ने कैकेयी के कान भरे। मंथरा के बहकावे में आकर कैकेयी ने राजा से दो वर माँगे जिनके लिए राजा वचन दे चुके थे। एक बर में उसने अपने पुत्र भरत के (UPBoardSolutions.com) लिए अयोध्या का राज्य माँगा और दूसरे में राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास।।

प्रश्न 3.
रामराज्य को आदर्श राज्य क्यों कहा गया है?
उत्तर :
रामचंद्र जी ने शासन की उत्तम व्यवस्था की। उन्होंने जनता की सुख-सविधा का इतना प्रबन्ध किया कि किसी व्यक्ति को कोई कष्ट नहीं था। सब स्वस्थ तथा सुखी थे और आनंदपूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। इसीलिए रामराज्य को आदर्श राज्य कहा गया है।

UP Board Solutions

प्रश्न 4.
इस पाठ में श्री राम के अतिरिक्त और कौन-कौन से पात्र हैं जो आपको पसंद हैं और क्यों?
उत्तर :
इस पाठ में श्री राम के अतिरिक्त भ्राता लक्ष्मण, सुग्रीव और हनुमान मुझे पसंद हैं। क्योंकि उन्होंने मुश्किल समय में श्रीराम का साथ दिया।

प्रश्न 5.
अपने गुरु जी से रामचंद्र जी के पुत्रों के बारे में कहानी सुनिए।
नोट – विद्यार्थी अपने शिक्षक से कहानी सुनें।

We hope the UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 1 श्री रामचन्द्र (महान व्यक्तिव) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 1 श्री रामचन्द्र (महान व्यक्तिव), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 6 Hindi हिन्दी व्याकरण

UP Board Solutions for Class 6 Hindi हिन्दी व्याकरण

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 6 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 6 Hindi हिन्दी व्याकरण

व्याकरण – व्याकरण उन नियमों का समूह है जो हमें किसी भाषा को शुद्ध बोलना, लिखना और पढ़ना सिखाता है।
भाषा – जिस साधन के द्वारा हम अपने मन के भावों को प्रकट करते हैं, उसे भाषा कहते हैं।
लिपि – मुखे से निकली ध्वनियों को लिखने के ढंग को लिपि कहते हैं। जिस लिपि में हिन्दी भाषा लिखी जाती है, उसे देवनागरी लिपि कहते हैं।

व्याकरण के तीन प्रमुख भाग हैं –

  1. वर्ण विभाग- इसमें वर्षों के उच्चारण, उनके एक-दूसरे से मिलने (संधि) के, नियम, उनकी बनावट तथा लिखने आदि पर विचार किया जाता है। (UPBoardSolutions.com)
  2. शब्द विभाग- इसमें शब्दों के भेद, अवस्था, प्रयोग, बनावट आदि पर विचार किया जाता है।
  3. वाक्य विभाग- इसमें वाक्यों के भेद तथा उनके पारस्परिक सम्बन्धों पर विचार किया जाता है।

UP Board Solutions

1. वर्ण विभाग

वर्ण – भाषा की सबसे छोटी ध्वनि को (जिसके टुकड़े न हो सकें) वर्ण या अक्षर कहते हैं। भाषा में अलग-अलग ध्वनियों के लिए अलग-अलग चिह्न होते हैं, जैसे – अ, इ, उ, लु, ट् आदि।

भाषा के वर्षों से ही शब्द बनते हैं। हिन्दी भाषा की वर्णमाला में मूल वर्ण 44 हैं। वर्ण दो प्रकार के होते हैं – 1. स्वर, 2. व्यंजन

UP Board Solutions for Class 6 Hindi व्याकरण 1
UP Board Solutions for Class 6 Hindi व्याकरण 2

संधि

UP Board Solutions for Class 6 Hindi व्याकरण 3
UP Board Solutions for Class 6 Hindi व्याकरण 4
UP Board Solutions for Class 6 Hindi व्याकरण 5
UP Board Solutions for Class 6 Hindi व्याकरण 6

2. शब्द विभाग

शब्द – एक या अधिक वर्षों के सार्थक योग से शब्द बनता है; जैसे- कमल, पानी, रोटी, मोहन, गणेश, मेरठ आदि।
शब्दों के प्रकार – हिन्दी भाषा में साधारणतया चार प्रकार के शब्द प्रयोग में आते हैं

(क) तत्सम शब्द – संस्कृत भाषा के वे शब्द जो ज्यों के त्यों हिन्दी भाषा में प्रयोग में आते हैं, उन्हें तत्सम शब्द कहते हैं, जैसे- भ्राता, मित्र, सूर्य, पुत्र, अद्भुत, शैल, सरिता, शिखर आदि।
(ख) तद्भव शब्द – संस्कृत भाषा के वे शब्द जो बोल-चाल में प्रयुक्त होने के कारण बिगड़े हुए रूप में प्रयोग में आते हैं, उन्हें तद्भव शब्द कहते हैं; जैसे – भाई, मीत, सूरज, पूत आदि
(ग) विदेशी शब्द – संस्कृत भाषा के अतिरिक्त अन्य विदेशी भाषाओं के वे शब्द जिनका प्रयोग हिन्दी में होता हो, विदेशी शब्द कहलाते हैं; जैसे- बटन, कोट, लालटेन, स्कूल, स्टेशन, इम्तहान, नोटिस, कैंची, सीमेंट, कारीगर, फाइल, बुखार आदि।
(घ) देशज शब्द – ऐसे शब्द जिनको निर्माण भावों को (UPBoardSolutions.com) प्रकट करने के लिए किया जाता है, वे देशज शब्द कहलाते हैं, जैसे- खटपट, आटा, घोंसला, बिल्ली, खर्राटा, मिर्च, कड़क, कूटना आदि।

UP Board Solutions

रूपान्तर के अनुसार शब्दों के भेद – रूपान्तर के अनुसार शब्द दो प्रकार के होते हैं –

  1. विकारी शब्द – जिन शब्दों का रूप अर्थ के अनुसार बदलता रहता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं; जैसे – बालक से बालकों, पढ़ा से पढ़ी, आया से आएँगे आदि।
  2. अविकारी शब्द – जिन शब्दों का रूप कभी नहीं बदलता वे अविकारी या अव्यय कहलाते हैं, जैसे- ने, अरे, पर आदि।

अर्थ के आधार पर शब्दों के भेद –

  1. एकार्थी शब्द – जिस शब्द का प्रयोग केवल एक ही अर्थ के लिए होता है, वे एकार्थी शब्द कहलाते हैं, जैसे- घर, पीला, मनुष्य, ताँबा आदि।।
  2. अनेकार्थी शब्द – जिस शब्द के एक से अधिक अर्थ होते हैं, उसे अनेकार्थी शब्द कहते हैं; जैसे- पत्र- पत्ता, चिट्ठी; द्विज- ब्राह्यण, पक्षी, वृक्ष; अंक- गिनती, भाग्य, गोद आदि।

रचना के आधार पर शब्दों के भेद – रचना के आधार पर शब्द दो प्रकार के होते हैं –

  1. रूढ़ शब्द – जो शब्द स्वयं में पूर्ण होते हैं और अन्य शब्दों या शब्दांशों के मेल से नहीं बनते, उन्हें रूढ़ शब्द कहते हैं, जैसे- पुस्तक, सेना, गाड़ी आदि।
  2. यौगिक शब्द – जो शब्द अन्य शब्दों या शब्दांशों के मेल से (UPBoardSolutions.com) बनते हैं, उन्हें यौगिक शब्द कहते हैं; जैसे- पुस्तकालय, सेनापति, गाड़ीवान आदि।

व्याकरण की दृष्टि से शब्दों के भेद – व्याकरण की दृष्टि से शब्द आठ प्रकार के होते हैं –

  1. संज्ञा
  2. सर्वनाम
  3. विशेषण
  4. क्रिया
  5. क्रियाविशेषण
  6. सम्बन्धबोधक
  7. समुच्चयबोधक
  8. विस्मयादिबोधक।

इनमें से प्रथम चार प्रकार के शब्द, विकारी शब्द माने जाते हैं तथा शेष चार प्रकार के शब्द, अविकारी शब्द माने जाते हैं।

संज्ञा संज्ञा की परिभाषा – किसी प्राणी, स्थान, वस्तु, अवस्था, भाव तथा गुण के नाम बताने वाले शब्दों को संज्ञा कहते हैं, जैसे- ‘राम’, ‘कृष्ण’, लखनऊ’, ‘पुस्तक’ आदि। यहाँ ‘राम’ और ‘कृष्ण’ प्राणी के नाम हैं। लखनऊ’ एक नगर का नाम है तथा ‘पुस्तक’ एक वस्तु का नाम है। अतः ये सब शब्द संज्ञाएँ हैं।

UP Board Solutions

संज्ञा के भेद – संज्ञा शब्द तीन प्रकार के होते हैं

1. व्यक्तिवाचक संज्ञा – वे संज्ञा शब्द जिनमें किसी व्यक्ति, स्थान या वस्तु का बोध हो, व्यक्तिवाचक संज्ञा कहलाते हैं; जैसे- राम, गांधी, दिल्ली। ‘राम’ या ‘गांधी’ शब्द किसी विशेष व्यक्ति के ही नाम हैं। सब व्यक्तियों को हम ‘राम’ या ‘गांधी’ नहीं कह सकते। इसी प्रकार ‘दिल्ली एक नगर विशेष का नाम है। प्रत्येक नगर को हम ‘दिल्ली’ नहीं (UPBoardSolutions.com) कह सकते। अतः ये शब्द व्यक्तिवाचक संज्ञा हैं।
2. जातिवाचक संज्ञा – वे संज्ञा जिनसे एक ही प्रकार या जाति की सभी वस्तुओं का बोध हो, जातिवाचक संज्ञा कहलाते हैं, जैसे- हाथी, मनुष्य, कुत्ता, बालक, घोड़ा आदि।

जातिवाचक तथा व्यक्तिवाचक संज्ञा में अन्तर – व्यक्तिवाचक संज्ञा के शब्द किसी एक ही विशेष व्यक्ति या वस्तु के लिए प्रयोग में आते हैं, किंतु जातिवाचक संज्ञा के शब्द उस प्रकार की सभी वस्तुओं के लिए प्रयोग में आते हैं, जैसे- ‘बालक’ शब्द प्रत्येक बालक के लिए आता है। अतः बालक शब्द जातिवाचक संज्ञा है, किंतु ‘राम’ शब्द विशेष बालक के लिए प्रयोग में आता है। अतः ‘राम’ शब्द व्यक्तिवाचक संज्ञा है।

3. भाववाचक संज्ञा – जिस संज्ञा शब्द से किसी व्यक्ति या वस्तु के गुण-दोष, अवस्था, स्वभाव आदि का बोध हो, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं; जैसे- साहस, बचपन, मिठास आदि।

भाववाचक संज्ञा निम्नलिखित प्रकार के शब्दों से बनती है –
UP Board Solutions for Class 6 Hindi व्याकरण 7

सर्वनाम

सर्वनाम की परिभाषा – जो शब्द संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किए जाते हैं, वे सर्वनाम कहलाते हैं; जैसे- मैं, हम, तुम, आप, वे, वह आदि।

सर्वनाम के भेद – सर्वनाम के छह भेद होते हैं –

1. पुरुषवाचक सर्वनाम – जिससे किसी व्यक्ति का बोध हो, वे शब्द ‘पुरुषवाचक सर्वनाम कहलाते हैं; जैसे- मैं, तुम, वह आदि। पुरुषवाचक सर्वनाम के तीन भेद होते हैं

(क) उत्तम पुरुष – जिससे बात के कहने वाले का बोध हो, उसे उत्तम पुरुष कहते हैं; जैसे- मैं, हम आदि।
(ख) मध्यम पुरुष – जिससे बात कही जाए, उसे मध्यम पुरुष कहते हैं; जैसे- तुम, आप आदि।
(ग) अन्य पुरुष – जिसके बारे में बातें की जाएँ, वह अन्य पुरुष कहलाता है; जैसे- वे, वह आदि।

2. निश्चयवाचक सर्वनाम – वे शब्द जिनसे किसी वस्तु का निश्चयात्मक ज्ञान हो, निश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते हैं; जैसे- वह पुरुष था। इस वाक्य में ‘वह’ से पुरुष का निश्चित बोध होता है। अतः यहाँ ‘वह’ शब्द निश्चयवाचक सर्वनाम है।
3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम – वे शब्द जिनसे किसी (UPBoardSolutions.com) वस्तु का निश्चित ज्ञान न हो, अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते हैं; जैसे- ‘कोई पढ़ रहा है।’ इस वाक्य में कोई’ शब्द से पढ़ने वाले का निश्चित ज्ञान नहीं होता। अतः यहाँ ‘कोई’ शब्द अनिश्चयवाचक सर्वनाम है।
4. सम्बन्धवाचक सर्वनाम – जो शब्द एक वाक्य या शब्द का सम्बन्ध दूसरे वाक्य या शब्द से प्रकट करते हैं, वे सम्बन्धवाचक सर्वनाम कहलाते हैं; जैसे – यह वही लड़का है, जो कल मिला था। इस वाक्य में ‘जो’ शब्द प्रस्तुत लड़के और कल वाले लड़के में सम्बन्ध स्थापित करता है। अतः यहाँ ‘जो’ शब्द सम्बन्धवाचक सर्वनाम है।
5. प्रश्नवाचक सर्वनाम – जिस सर्वनाम से प्रश्न का बोध होता है, उसे प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं; जैसे- कौन रो रहा है? इस वाक्य में ‘कौन’ शब्द से प्रश्न का बोध होता है। अतः यहाँ ‘कौन’ शब्द प्रश्नवाचक सर्वनाम है।
6. निजवाचक सर्वनाम – जो सर्वनाम अपने लिए प्रयोग (UPBoardSolutions.com) में आते हैं, वे निजवाचक सर्वनाम कहलाते हैं; जैसे- ‘मैं स्वयं ही आ जाऊँगा।’ इस वाक्य में स्वयं’ शब्द अपने ही लिए आया है। अतः यहाँ ‘स्वयं’ शब्द निजवाचक सर्वनाम है।

UP Board Solutions

संज्ञा तथा सर्वनाम के रूपान्तर

संज्ञा तथा सर्वनाम शब्दों में लिंग, वचन तथा कारकों के कारण उनके रूप में अन्तर हो जाता है। अतः उनका ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है। छात्र निम्नलिखित को ध्यान से पढ़ें –

लिंग की परिभाषा – लिंग के जिस रूप से किसी वस्तु की जाति (पुरुष या स्त्री) का बोध होता है, उसे लिंग कहते हैं।
लिंग के भेद – लिंग के दो प्रमुख भेद माने गए हैं

  1. पुल्लिगे – जिस शब्द से पुरुष जाति का बोध होता है, उसे पुल्लिग कहते हैं; जैसे- राम जाता है। सिंह दौड़ता है। यहाँ ‘राम’ और ‘सिंह’ शब्दों से पुरुष जाति का बोध होता है। अतः ये पुल्लिगे हैं।
  2. स्त्रीलिंग – जिस शब्द से स्त्री जाति का बोध होता है, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं; जैसे- शीला जाती है। गाड़ी दौड़ती है। इन वाक्यों में ‘शीला’ और ‘गाड़ी’ शब्दों से स्त्री जाति का बोध होता है। अतः ये शब्द स्त्रीलिंग हैं।

वचन

वचन की परिभाषा – शब्द के जिस रूप से यह ज्ञात होता है कि वह किसी एक के लिए प्रयोग में आया है या एक से अधिक के लिए, उस रूप को वचन कहते हैं।
वचन के भेद – हिन्दी में वचन दो प्रकार के माने गए हैं

  1. एकवचन – इससे केवल एक वस्तु, स्थान या प्राणी का बोध होता है; जैसे- राम जाता है। लड़की जाती है। इन वाक्यों में ‘राम’ और ‘लड़की’ एकवचन है क्योंकि ये (UPBoardSolutions.com) एक के लिए आए हैं।
  2. बहुवचन – इससे एक से अधिक वस्तुओं, स्थानों या प्राणियों का बोध होता है; जैसेलड़के जाते हैं। नदियाँ बहती हैं। इन वाक्यों में लड़के’ और ‘नदियाँ’ बहुवचन हैं क्योंकि ये एक से अधिक हैं।

नोट – सम्मान सूचित करने के लिए एकवचन संज्ञा को बहुवचन में प्रयोग किया जाता है; जैसे- मेरे पिता जी बैठे हैं।

UP Board Solutions

कारक

कारक की परिभाषा – किसी वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जिससे उसका सम्बन्ध उस वाक्य की क्रिया से जाना जाए, कारक कहलाता है; जैसे – मोहन गुरु से पाठ पढ़ता है इस वाक्य में ‘मोहन’ क्रिया का कर्ता है।
कारक के भेद – कारक आठ प्रकार के होते हैं। उनके भेद, चिह्न और उदाहरण दिए जा रहे हैं। छात्र इन्हें ध्यान से पढ़ें –
UP Board Solutions for Class 6 Hindi व्याकरण 8

  1. कर्ता कारक – काम के करने वाले को ‘कर्ता’ कहते हैं; जैसे- राम ने पढ़ा। इस वाक्य में काम करने वाला ‘राम’ है। अतः इस वाक्य में ‘राम’ शब्द का कारक, कर्ता कारक है।
  2. कर्म कारक – जिस पर क्रिया के व्यापार का फल पड़े, उसे ‘कर्म’ कहते हैं; जैसे- राम ने पाठ पढ़ा। इसे वाक्य में पढ़ना’ क्रिया है और उसका फल ‘पाठ’ पर पड़ रहा है। अतः इस वाक्य में ‘पाठ’ शब्द का कारक, कर्म कारक है।
  3. करण कारक – जिसकी सहायता से काम किया जाए, उसे ‘करण’ कारक कहते हैं; जैसे- ‘वह लेखनी से लिखता है। यहाँ लिखने का कार्य लेखनी की सहायता से हो रहा है। अतः इस वाक्य में ‘लेखनी’ शब्द का कारक, करण कारक है।
  4. संप्रदान कारक – जिसके लिए कर्ता काम करता है, उसे संप्रदान कारक कहते हैं; जैसेराम बच्चों के लिए मिठाई लाता है। इस वाक्य में बच्चों’ शब्द का कारक संप्रदान कारक है।
  5. अपादान कारक – जहाँ अलग होने का भाव पाया जाए, वहाँ ‘अपादान’ कारक होता है; जैसे- वृक्ष से फल गिरता है। इस वाक्य में फल का वृक्ष से अलग होना पाया गया है (UPBoardSolutions.com) इसलिए इस वाक्य में ‘वृक्ष’ शब्द का कारक अपादान कारक है।
  6. सम्बन्ध कारक – जहाँ शब्द का सम्बन्ध किसी संज्ञा से दिखाया जाता है, वहाँ सम्बन्ध कारक . होता है; जैसे- यह आम का पेड़ है। इसे वाक्य में ‘आम’ शब्द का सम्बन्ध पेड़’ से दर्शाया गया है।
  7. अधिकारण कारक – इससे किसी संज्ञा का आधार प्रकट होता है; जैसे- वृक्ष पर पक्षी हैं। इस वाक्य में पक्षी का आधार वृक्ष है। अतः इस वाक्य में ‘वृक्ष’ शब्द अधिकरण कारक में है।
  8. संबोधन कारक – किसी को पुकारने के लिए संबोधन कारक का प्रयोग किया जाता है; जैसे- हे राम! यहाँ आओ। अतः इस वाक्य में ‘हे राम’ शब्द संबोधन कारक में है।

UP Board Solutions

विशेषण

विशेषण की परिभाषा – जो शब्द संज्ञा शब्दों की विशेषता प्रकट करते हैं, वे ‘विशेषण कहलाते हैं; जैसे- काली गाय ने सूखी घास नहीं खाई। इस वाक्य में ‘काली’ शब्द से गाय की विशेषता प्रकट होती है। अतः ‘काली’ शब्द विशेषण है। इसी प्रकार ‘सूखी’ शब्द भी विशेषण है। विशेषण के चार भेद होते हैं

1. गुणवाचक विशेषण – इससे किसी संज्ञा के गुण, अवस्था आदि का बोध होता है; जैसेअच्छा, बुरा, पुराना, नीचा आदि। उदाहरण- काली गाय ने दूध दिया। इस वाक्य में ‘काली’ शब्द गाय के रंग को प्रकट करता है। अतः ‘काली’ शब्द गुणवाचक विशेषण है। इसी प्रकार लाल कपड़ा, काला आदमी, छोटा बन्दर, स्वादिष्ट आम में क्रमशः ‘लाल’, ‘काला’, ‘छोटा’, ‘स्वादिष्ट गुणवाचक विशेषण हैं।
2. संख्यावाचक विशेषण – जो शब्द किसी शब्द की संख्या बताते हैं, वे संख्यावाचक विशेषण कहलाते हैं; जैसे- मेरा तीसरा पत्र आपको मिला होगा। इस वाक्य में तीसरा’ शब्द पत्र की (UPBoardSolutions.com) संख्या बता रहा है। अतः ‘तीसर शब्द संख्यावाचक विशेषण है।
3. परिमाणवाचक विशेषण – जिससे किसी वस्तु का परिमाण (नाप-तोल आदि) जाना जाए, वह परिमाणवाचक विशेषण होता है; जैसे- थोड़ा दूध लाओ। यहाँ ‘थोड़ा’ शब्द से दूध की नाप का ज्ञान होता है। अतः ‘थोड़ा’ शब्द परिमाणवाचक विशेषण है।
4. संकेतवाचक विशेषण – जो सर्वनाम शब्द किसी संज्ञा शब्द की तरफ संकेत करते हैं, वे संकेतवाचक या सार्वनामिक विशेषण कहलाते हैं; जैसे- यह बालक सुन्दर है। इस वाक्य में यह शब्द बालक की ओर संकेत करता है। अतः ‘यह’ शब्द संकेतवाचक विशेषण है। इसी प्रकार ये, वे, वह आदि शब्द संकेतवाचक विशेषण हैं।

क्रिया

क्रिया की परिभाषा – जिन शब्दों से किसी काम को करना या होना पाया जाए, उसे क्रिया कहते हैं; जैसे राम पढ़ता है। इस वाक्य में पढ़ता है’ शब्द से काम का होना पाया जा रहा है। अतः ‘पढ़ता है’ शब्द क्रिया है।

क्रिया के भेद – क्रिया के दो भेद होते हैं –

1, सकर्मक क्रिया – जिस क्रिया के साथ उनका कर्म भी हो वह ‘सकर्मक क्रिया’ होती। है; जैसे – श्याम पुस्तक पढ़ता है। इस वाक्य में पढ़ता है’ क्रिया सकर्मक है क्योंकि इसका कर्म ‘पुस्तक’ इस वाक्य में दिया हुआ है।
2. अकर्मक क्रिया – जिस क्रिया के साथ उनका कर्म नहीं दिया होता, उसे ‘अकर्मक क्रिया’ कहते हैं; जैसे -श्याम पढ़ता है। इस वाक्य में पढ़ता है’ क्रिया का कर्म नहीं दिया हुआ है। अतः ‘पढ़ता है’ क्रिया वाक्य में अकर्मक क्रिया है।

काल

काल की परिभाषा – जिससे क्रिया के होने के समय का ज्ञान हो, उसे ‘कोल’ कहते हैं।
काले के भेद – काल तीन प्रकार के होते हैं

  1. भूतकाल – यह बीते हुए समय का बोध कराता है; जैसे- वह खाना खा चुका था। यहाँ खाना खाने की क्रिया समाप्त हो चुकी है। अतः ‘खो चुका’ शब्द भूतकाल है।
  2. वर्तमानकाल – यह वर्तमान समय का बोध करता है; जैसे- वह खाना खा रहा है। इस वाक्य में खाना खाने की क्रिया वर्तमानकाल में हो रही हैं।
  3. भविष्यत्काल – यह आगे आने वाले समय में होने वाली क्रिया का बोध कराती है; जैसेवह खाना खाएगा। इस वाक्य में खाना खाने की क्रिया भविष्यकाल में है।

क्रियाविशेषण

क्रियाविशेषण की परिभाषा- वे शब्द जो क्रिया की विशेषता प्रकट करते हैं, ‘क्रियाविशेषण कहलाते हैं; जैसे – वह तेजी से दौड़ा। इस वाक्य में ‘दौड़ा’ क्रिया की विशेषण ‘तेजी शब्द से प्रकट हो रही है। अतः ‘तेजी शब्द क्रियाविशेषण है।

UP Board Solutions

समुच्चयबोधक

परिभाषा – समुच्चयबोधक शब्द वाक्यों को यो शब्दों को एक-दूसरे से जोड़ते या अलग करते हैं; जैसे – राम और श्याम गए। इस वाक्य में ‘और’ शब्द ‘राम’ और ‘श्याम’ शब्दों को जोड़ता है। अतः ‘और’ शब्द समुच्चयबोधक है।

सम्बन्धबोधक

परिभाषा – जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के साथ आकर उनका सम्बन्ध वाक्य के अन्य शब्दों के साथ बताते हैं, वे सम्बन्धबोधक कहलाते हैं; जैसे- दवात मेज पर है। इस वाक्य में ‘पर’ शब्द ‘दवात’ (UPBoardSolutions.com) का ‘मेज’ से सम्बन्ध बता रहा है। अतः ‘पर’ शब्द सम्बन्धबोधक है।

विस्मयादिबोधक

परिभाषा – जो शब्द हर्ष, विस्मय आदि का भाव प्रकट करते हैं, वे ‘विस्मयादिबोधक’ कहलाते हैं; जैसे- हे। अरे! आह! छि! आदि।

3. वाक्य विभाग

वाक्य की परिभाषा – शब्दों के उस समूह को वाक्य कहते हैं, जिससे पूरी बात समझ में आती है; जैसे- महाराणा प्रताप के घोड़े को नाम चेतक था।
वाक्य के अवयव – किसी भी वाक्य के दो भाग किए जा सकते हैं

  1. उद्देश्य – जिसके विषय में कुछ कहा जाए, उसे उद्देश्य कहते हैं; जैसे – ‘हरिश्चन्द्र सत्यवादी राजा थे।’ इस वाक्य में ‘हरिश्चन्द्र’ उद्देश्य है क्योंकि उन्हीं के सम्बन्ध में यहाँ कुछ कहा गया है।
  2. विधेय – उद्देश्य के बारे में जो कुछ कहा जाए, वह विधेय कहलाता है; जैसे – ऊपर के वाक्य में हरिश्चन्द्र के विषय में कहा गया है- सत्यवादी राजा थे। अतः ‘सत्यवादी राजा थे’ विधेय है।

रचना के आधार पर वाक्य तीन प्रकार के होते हैं –

1. साधारण वाक्य – जिस वाक्य में एक उद्देश्य तथा एक विधेय होता है, उसे साधारण वाक्य कहते हैं; जैसे- राम विद्यालय जाता है।
2. संयुक्त वाक्य – जिस वाक्य में दो या दो से अधिक साधारण तथा स्वतंत्र वाक्य समुच्चयबोधक शब्द से जुड़े हों, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं; जैसे उसने राम को मारा और वह भाग गया। इसमें दो (UPBoardSolutions.com) साधारण उपवाक्यों को ‘और’ समुच्चयबोधक शब्द द्वारा जोड़ा गया है।
3. मिश्रित वाक्य – इसमें एक प्रधान वाक्य होता है तथा शेष अधीन उपवाक्य होते हैं; जैसेउसने राम से कहा कि आप ही मेरठ चले जाइए। इस वाक्य में उसने राम से कहा’ प्रधान वाक्य है तथा कि ‘आप ही मेरठ चले जाइए’ अधीन उपवाक्य है।

अर्थ के आधार पर वाक्य – भेद – अर्थ के आधार पर वाक्य आठ प्रकार के होते हैं –

  1. विधिवाचक वाक्य – जिन वाक्यों में काम का होना या करना सामान्य रूप से प्रकट हो, उन्हें विधिवाचक वाक्य कहते हैं; जैसे – रवि घर गया। घूमना लाभप्रद है। इन वाक्यों में कार्य सामान्य रूप से हुआ है। अतः ये विधिवाचक वाक्य हैं।
  2. निषेधवाचक वाक्य – जिस वाक्य से कार्य का न होना प्रकट हो, उसे ‘निषेधवाचक वाक्य’ कहते हैं; जैसे- रवि घर नहीं गया।
  3. आज्ञावाचक वाक्ये – जिन वाक्यों से आज्ञा या परामर्श का बोध हो, वे आज्ञावाचक वाक्य होते हैं; जैसे- छात्रो! बैठ जाओ।
  4. प्रश्नवाचक वाक्य – जिस वाक्य से प्रश्न पूछने का बोध हो, वह ‘प्रश्नवाचक वाक्य’ होता है; जैसे- आपकी घड़ी में क्या बजा है? प्रश्नवाचक वाक्य है।
  5. विस्मयादिवाचक वाक्य – जिन वाक्यों में हर्ष, शोक या विस्मय आदि का बोध हो, उन्हें विस्मयादिवाचक वाक्य कहते हैं; जैसे हाय! बुरा हुआ।, अहा! आम मीठे हैं।
  6. संदेहवाचक वाक्य – जिस वाक्य से कार्य के होने में संदेह प्रकट होता है, वह संदेवाचक वाक्य कहलाता है; जैसे- शायद वह उत्तीर्ण हो जाए।
  7. इच्छावाचक वाक्य – जिस वाक्य से शुभकामना या अन्य इच्छा प्रकट होती है, उसे इच्छावाचक वाक्य कहते हैं; जैसे- भगवान आपका भला करे।
  8. संकेतवाचक वाक्य – जिस वाक्य में किसी कार्य का होना किसी अन्य कारण पर निर्भर हो, उसे ‘संकेतवाचक वाक्य’ कहते हैं; जैसे- यदि आप पढ़े तो मैं चुप रहूँ।

UP Board Solutions

विराम निर्धारण तथा अनुच्छेदीकरण

विराम की परिभाषा – वाक्य के अन्त में या बड़े-बड़े वाक्यों के बीच में हम थोड़ी देर के लिए रुकते हैं। इन रुकने के स्थानों पर जो चिह्न लगाए जाते हैं, उन्हें विराम चिह्न कहते हैं।
विराम चिह्नों का महत्त्व – भाषा में विराम चिहनों का बड़ा महत्व होता है। ये लेखक के भावों को पाठक तक सही रूप में पहुँचाते हैं। कहीं-कहीं तो विराम चिहनों के अभाव में पूरी बात समझ में ही नहीं (UPBoardSolutions.com) आती, जैसे- रोको मंत जाने दो। इस वाक्य से कहने वाले की बात स्पष्ट नहीं होती।

इसके दो अर्थ लगाए जा सकते हैं।

  • रोको, मत जाने दो।
  • रोको मत, जाने दो।

इस प्रकार विराम चिह्नों के हेर-फेर से वाक्य को अर्थ बदल जाता है। अतः भाषा में इनका उचित प्रयोग अत्यन्त आवश्यक है।

विराम चिह्नों के भेद – हिन्दी भाषा में प्रयोग में आने वाले प्रमुख विराम चिह्न निम्नलिखित हैं –

1. पूर्ण विराम – इसका प्रयोग वाक्य के पूर्णतः समाप्त होने पर होता है, इसका चिह्न खड़ी पाई (।) है।
2. अद्र्ध विराम – इसमें बोलने वाले को पूर्ण विराम से कुछ कम देर ठहरना पड़ता है। इसका चिहन (;) है। अर्ध विराम का एक उदाहरण देखिए- मैं स्टेशन पर गया; मुझे ट्रेन दिखाई दी किंतु मैं सवार न हो सका। इस प्रकार अर्ध विराम के द्वारा एक वाक्य का दूसरे वाक्य से सम्बन्ध दिखाया जाता है।
3. अल्प विराम – इसे (,) इस प्रकार लिखा जाता है। इस स्थान पर अर्द्ध विराम से भी कम देर ठहरना पड़ता है। इसका प्रयोग एक ही शब्द-भेद के दो शब्दों के बीच में होता है; जैसे- मैं अँग्रेजी, हिन्दी, गणित, इतिहास तथा भूगोल पढ़ता हूँ।
कहीं-कहीं वाक्य के खण्ड करने के लिए भी अल्प विराम का (UPBoardSolutions.com) प्रयोग किया जाता है; जैसेपरिश्रम करने से मन प्रसन्न रहता है, शरीर पुष्ट होता है और जीवन में सफलता मिलती है।
4. प्रश्नबोधक चिह्न – इसका प्रयोग प्रश्नबोधक वाक्य के अन्त में किया जाता है। इसका चिह्न (?) है। एक उदाहरण देखिए- आज आपने क्या-क्या किया है?
5. विस्मयादिबोधक चिह्न – विस्मय, आश्चर्य, हर्ष, भय, करुणा तथा किसी को पुकारने आदि के लिए विस्मयादिबोधक चिह्न (!) लगाया जाता है; जैसे- हे राम! तुमने यह क्या कर डाला।
6. अवतरण चिह्न – इसका प्रयोग किसी अन्य व्यक्ति की कही हुई अथवा लिखी हुई बात को बताने के लिए किया जाता है। इसका चिह्न (” “) है। एक उदाहरण देखिए- मेरे गुरु जी ने कहा था, “पृथ्वी गोल है।”
7. विवरण चिह्न – जिस वाक्य के बाद कोई सूचना देनी हो या किसी बात का वर्णन करना हो तो उसके पहले विवरण चिह्न (:-) का प्रयोग होता है; जैसे- हमारे नगर के निम्नलिखित स्थल दर्शनीय हैं :- चौक बाजार, गांधी उद्यान, देवी मन्दिर आदि।

अनुच्छेदीकरण

अनुच्छेदीकरण की परिभाषा – जब लेखक को एक विषय पर बहुत कुछ कहना होता है तो वह अपने विषय को अनेक खण्डों में बाँट लेता है और प्रत्येक बात को एक खंड या अनुच्छेद में लिखता है तथा दूसरा खण्ड नई पंक्ति से प्रारम्भ करता है। खण्डों में विभाजित करने की इस रीति को अनुच्छेदीकरण कहते हैं।
अनुच्छेदीकरण करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए –

  1. एक अनुच्छेदीकरण (परिच्छेद) में एक ही बात कहनी चाहिए।
  2. नई बात के लिए दूसरी पंक्ति से नया अनुच्छेद प्रारम्भ करना चाहिए किंतु उनका आपस में सम्बन्ध बना रहना चाहिए।
  3. अनुच्छेद करने से विषय के तारतम्य में बाधा नहीं पड़नी चाहिए अपितु विषय का स्पष्टीकरण होना चाहिए।
  4. एक ही बात के लिए अनेक अनुच्छेद नहीं बनाने चाहिए।

UP Board Solutions

अलंकार

कक्षा 6 के लिए केवल अनुप्रास अलंकार का ज्ञान होना आवश्यक है। अतः यहाँ उसी का वर्णन किया जा रहा है –
अलंकार क्या है? – काव्य की शोभा बढ़ाने वाले शब्दों को अलंकार कहते हैं। जिस प्रकार
आभूषणों से शरीर की शोभा बढ़ जाती है, उसी प्रकार अलंकारों के प्रयोग से काव्य का सौंदर्य बढ़ जाता है। इस प्रकार वे स्वर, व्यंजन अथवा शब्द जिनसे काव्य की शोभा बढ़ जाए, अलंकार माने। जाते हैं। (UPBoardSolutions.com) एक उदाहरण देखिए-तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाये। इस वाक्य में ‘त’ वर्ण अनेक बार आया है। इसलिए यह पंक्ति पढ़ने में अच्छी लग रही है। इसी को यदि इस प्रकार कर दें- यमुना के किनारे पर तमाल के बहुत वृक्ष छाये हुए हैं तो इस वाक्य में पहले जैसी सुन्दरता नहीं रही। इस प्रकार काव्य में सुन्दरता बढ़ाने वाले शब्द ही अलंकार कहलाते हैं।

‘अलंकार के भेद – अलंकारों द्वारा काव्य की शोभा दो प्रकार से बढ़ाई जाती है –

  1. शब्दों में चमत्कार उत्पन्न करके।
  2. अर्थ में चमत्कार उत्पन्न करके।

इसी आधार पर अलंकारों के भी दो प्रमुख भेद माने गए हैं –

  • शब्दालंकार
  • अर्थालंकार

अनुप्रास अलंकार की परिभाषा – जहाँ वाक्य के शब्दों में व्यंजनों की समता होती है, वहाँ, अनुप्रास अलंकार होता है; जैसे-तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाए। इस वाक्य में ‘त’ व्यंजन बार-बार आया है। इसलिए यहाँ अनुप्रास अलंकार हुआ।

अनुप्रास अलंकारे के कुछ अन्य उदाहरण देखिए –

(क) “काम कितना ही कठिन हो किंतु उकताते नहीं।”
(ख) “कूलन में, केलिन में, कछारन में, कुंजन में,
क्यारिन में, कलिन में, कलीन किलकंत हैं।”
इन पंक्तियों में ‘क’ वर्ण बार-बार आया है। इसीलिए यहाँ भी अनुप्रास अलंकार हुआ। इसी प्रकार नीचे के उदाहरण को देखिए –
(ग) “बीथिन में, ब्रज में, नवेलिनं में, बेलिन में,
बनन में, बागन में, बगरो बसन्त है।”
इन पंक्तियों में ‘ब’ वर्ण अनेक बार आया है। इसीलिए यहाँ भी अनुप्रास अलंकार हुआ।
(घ) जियत जग में जस लीजै। इस वाक्य में ‘ज’ वर्ण अनेक बार आया है। इसलिए यहाँ भी अनुप्रास अलंकार है।
(ङ) “गरज गगन के घोर गान गम्भीर स्वरों में।” इस वाक्य में ‘ग’ वर्ण बार-बार आयो है, अतः यहाँ भी अनुप्रास अलंकार है।

विलोम शब्द

विलोम का अर्थ – किसी शब्द का विलोम उसके विपरीत भाव को प्रकट करता है। छात्रों के ज्ञान के लिए कुछ उपयोगी विलोम शब्द नीचे दिए जा रहे हैं। छात्र समझें और कंठस्थ करें।
UP Board Solutions for Class 6 Hindi व्याकरण 9

पर्यायवाची शब्द

परिभाषा – समान अर्थ वाले शब्द पर्यायवाची या समानार्थी शब्द कहलाते हैं। कुछ उदाहरण देखिए –

अग्नि – पावक, अनल, आग, दहन, दव, हुताशन, जातवेदा
अमृत – सुधा, अमिय, सोम, मधु, अमी, पीयूष
असुर – राक्षस, दानव, दैत्य, दनुज, निशाचर, तमचर, रजनीचर
आकाश – नभ, अम्बर, व्योम, गगन, शून्य, अन्तरिक्ष
आँख – नेत्र, लोचन, नयन, दृग, चख, चक्षु, अक्षि
इन्द्र – देवराज, सुरेश, सुरपति, देवेंद्र, मधवा, देवेश, शक्र
कमल – सरोज, जलज, पंकज, राजीव, अरविंद, वारिज
कपड़ा – वस्त्र, वसन, चीर, पट, दुकूल, अंबर
गंगा – देवनदी, सुरसरी, भागीरथी, देवापगा, त्रिपथगा, विष्णुपदी
गणेश – गजानन, लम्बोदर, विनायक, गजबदन, गौरीसुत, गणपति
घर – गृह, गेह, निकेतन, आवास, सदन, धाम, भवन
चन्द्रमा – शशि, चन्द्र, राकेश, इंदु, राकापति, हिमांशु, विधु, मयंक
जल – पानी, नीर, जीवन, तोय, वारि, अंबु, सलिल, उदक
जग – जगत, संसार, विश्व, लोक, भव
तालाब – सरोवर, सर, तड़ाग, जलाशय, पुष्कर, ताल, सरसी
देवता – सुर, अमर, देव, आदित्य, विबुध
नदी – सरिता, तटनी, सरि, सलिला, अपगा, तरंगिणी
नारी – स्त्री, अबला, महिला, कामिनी, ललना, कांता
पवन – वायु, समीर, मारुत, वात, अनिल, बयार, पवमान
पक्षी – खंग, विहंगम, विहम, पतंग, नभचर, अंडज, द्विज
पिता – जनक, जन्य, तात, बाप
पुत्र – पूत, नन्द, बेटा, सुत, तनय, आत्मज, लड़का
पृथ्वी – भू, भूमि, धरा, मही, वसुधा, धरती, वसुंधरा, अवनी
पुष्प – फूल, कुसुम, सुमन, प्रसून, पुहुप
बिजली – विद्युत, चपला, तड़ित, दामिनी, चंचला, धनबल्ली
माता – माँ, मातु, माय, जननी, माई :
मित्र – साथी, स्वजन, सखा, व्यस्य, स्नेही, सुहृद
मेघ – बादल, घन, जलधर, नीरद, जलद, पयोद, वारिद, पयोधरे
राजा – नृप, रजनी, भूप, भूपाल, महीप, सम्राट, नरपति, भूपति
रात – रात्रि, रजनी, निशा, तमसा, तमी, यामिनी, विभावरी
वन – जंगल, कानन, विपिन, गहन
विष्णु – चतुर्भुज, जनार्दन, अच्युत, केशव, गोविंद, मुकुंद, चक्रपाणि
समुद्र – सागर, सिंधु, पयोधि, जलधि, उदधि, रत्नाकर, नदीश
सर्प – अहि, साँप, नाग, उरग, विषधर, भुजंग, व्याल, पन्नग
सिंह – शेर, केहरी, नाहर, मृगराज, केशरी, वनराज, शार्दूल
सूर्य – सूरज, रवि, अर्क, भानु, आदित्य, दिनकर, भास्कर, सविता
सोना – स्वर्ण, कंचन, हेम, हाटक, सुवर्ण, कनक

UP Board Solutions

शब्दों के तत्सम रूप

परिभाषा- किसी शब्द के शुद्ध रूप को तत्सम रूप कहते है। कुछ शब्दों के शुद्ध रूप दिए जा रहे हैं। विद्यार्थी इन्हें भली प्रकार पढ़े –

UP Board Solutions for Class 6 Hindi व्याकरण 10
UP Board Solutions for Class 6 Hindi व्याकरण 11

मुहावरे और उनका प्रयोग

मुहावरे शब्द का अर्थ – कोई भी ऐसा वाक्यांश जिसका शब्दार्थ ग्रहण न करके कोई अन्य अर्थ ग्रहण किया जाए, वह मुहावरा कहलाता है, जैसे- ऊँट-पटाँग का शब्दार्थ होता है- ऊँट पर टाँग रखना, जो कि असम्भव है। इस प्रकार ऊँट-पटाँग का तात्पर्य बेकार या व्यर्थ की बात से लिया जाता है। नीचे कुछ मुहावरों के अर्थ तथा उन्हें वाक्यों में प्रयोग करके दिखाया जा रहा है। छात्र इन्हें भली प्रकार पढे और समझें

  1. आँखें गड़ाना – (एक टंक देखते रहना) तुम तो इस हिरन पर ऐसे आँखें गड़ाए हो जैसे कभी हिरन देखा ही न हो।
  2. आँखों का तारा – (अत्यन्त प्रिय) मोहन अपनी बूढी माँ की आँखों का तारा है।
  3. आँखों में धूल झोंकना – (धोखा देना) आँखों में धूल झोंककर धन ले जाना केवल ठग का ही काम है।
  4. ईद का चाँद होना – (दर्शन दुर्लभ होना) मैं तो आपकी बहुत दिनों से प्रतीक्षा कर रहा था किंतु आप तो ईद के चाँद हो गए।
  5. काया पलट होना – (बदल जाना) लाटरी का धन मिलने से रमेश की काया पलट हो गई।
  6. कलेजा धक-धक करना – (भयभीत होना) कमरे में सर्प को देखकर मेरा कलेजा धक-धक करने लगा।
  7. घी के दिए जलाना – (प्रसन्न होना) लाटरी का धन मिलने पर राकेश घी के दिए जला रहा है।
  8. चक्कर में पड़ना – (धोखे में आना) भूल-भूलैया में पहुँचकर मैं तो चक्कर में ही पड़ गया।
  9. छक्के छुड़ाना – (हराना) युद्ध के मैदान में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानियों के छक्के छुड़ा दिए।
  10. जी-जान से जुट जाना – (मन लगाकर कोई काम करना) तुम केवल परीक्षा के दिनों में ही पढ़ाई में जी-जान से जुट जाने से वास्तविक ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते।
  11. जम जाना – (उत्साह से कार्य में लग जाना) उत्तीर्ण होने के लिए पढ़ाई में जम जाओ अन्यथा अनुत्तीर्ण हो जाओगे।
  12. जहर उगलना – (झूठा प्रचार करना) जो देश भारत के विरुद्ध जहर उगलते हैं, उन्हें एक-न-एक दिन पछताना ही पड़ता है।
  13. टका-सा जवाब देना – (बिल्कुल मना कर देना) जब मैंने राम से दस रुपये उधार माँगे तो उसने टका-सा जवाब दे दिया।
  14. धाक जमाना – (प्रभाव डालना) हाईस्कूल में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होकर राम ने सारे विद्यालय में अपनी धाक जमा ली है।
  15. पत्थर पिघलना – (कठोर हृदय में दया उत्पन्न होना) उत्तरा के हृदय विदारक विलाप को सुनकर पत्थर भी पिघल उठे।
  16. प्राणों की बाजी लगाना – (घोर संकट में कार्य करना) अब्दुल हमीद ने प्राणों की बाजी लगाकर शत्रु को नष्ट कर दिया।
  17. फूले न समाना – (बहुत प्रसन्न होना) अपने उत्तीर्ण होने का समाचार सुनकर मुकेश फूला न समाया।
  18. मौत से लड़कर आना – (बहुत दिनों तक जीवित रहना) सबको एक न एक दिन भगवान के पास जाना पड़ता है, कोई भी मौत से लड़कर नहीं आता है।
  19. लट्टू होना – (ललचा जाना) सेठ जी की सुन्दर कोठी को देखकर नेता जी लट्टू हो गए।
  20. सिर नीचा होना – (लज्जित होना) चोरी की पुस्तक पकड़े जाने पर मोहन का सिर नीचा हो गया।
  21. हृदय में हलचल होना – (मन में अनेक प्रकार के विचार आना) कमरे में चोर को देखकर मेरे हृदय में हलचल होने लगी।

UP Board Solutions

लोकोक्तियाँ (कहावतें)

लोकोक्ति का अर्थ – संसार में प्रचलित उक्ति। लोगों के अनुभव से पूर्ण लोकोक्तियों का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया जाता है। अपने कथनों को प्रभावशाली बनाने के लिए इनका स्वतंत्र वाक्य के रूप में प्रयोग करना चाहिए।
नीचे कुछ कहावतों के अर्थ तथा प्रयोग उदाहरण स्वरूप दिए जा रहे हैं।

  1. अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग – (सबकी अलग-अलग बात) आज की सभा में अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग’ के कारण कोई निर्णय न हो सका।
  2. ऊँट के मुँह में जीरा – (अधिक आवश्यकता में थोड़ी-सी वस्तु प्राप्त होना) बीस कचौड़ी खाने वाले को चार कचौड़ी देते हो। वाह! ‘ऊँट के मुँह में जीरा’ जैसी बातें करते हो।
  3. खोदा पहाड़ निकली चुहिया – (बहुत परिश्रम करने पर भी लाभ थोड़ा) एम०ए० उत्तीर्ण करने पर भी 2000/- रुपये माहवार की नौकरी मिली है। ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’।
  4. जो गरजते हैं बरसते नहीं – (कथनी और करनी में अन्तर) राजेश वैसे तो बड़ी डींग मारता है परन्तु काम पड़ने पर मुँह छिपाता है। सच है जो गरजते हैं वे बरसते नहीं।
  5. घर खीर तो बाहर भी खीर – (धनी का सब जगह आदर) पिता जी ने सेठ जी के आदर-सत्कार में पाँच सौ रुपए खर्च किए। सच है “घर खीर तो बाहर भी खीर’।
  6. अकेला चना क्या भाड़ फोड़ेगा – बिना दूसरे की सहायता के अकेला मनुष्य कुछ भी काम नहीं कर सकता है।
  7. अक्ल बड़ी या भैंस – बली की अपेक्षा बुद्धिमान उत्तम काम कर सकता है।
  8. आम के आम गुठलियों के दाम – दूना लाभ होना।
  9. एक पंथ दो काज – दोहरा लाभ होना।
  10. ऊँची दुकान फीके पकवान – गुण थोड़ा अभिमान अधिक।
  11. एक अनार सौ बीमार – एक वस्तु के कई ग्राहक।
  12. काला अक्षर भैंस बराबर – अनपढ़ होना।
  13. दूध का दूध, पानी का पानी – पूरा न्याय करना।
  14. घर की मुर्गी दाल बराबर – घर की वस्तु मुफ्त समझना
  15. घर का भेदी लंका ढाए – आपसी फूट का परिणाम।
  16. जिसकी लाठी उसकी भैंस – शक्तिशाली का किसी वस्तु पर अधिकार होना, शक्ति की विजय होना।

We hope the UP Board Solutions for Class 6 Hindi हिन्दी व्याकरण help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 6 Hindi हिन्दी व्याकरण, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 11 अबुल फजल (महान व्यक्तित्व)

UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 11 अबुल फजल (महान व्यक्तित्व)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 8 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 11 अबुल फजल (महान व्यक्तित्व).

पाठ का सारांश

अबुल फजल के पिता मुबारक आगरे के पास रहते थे। इनका जन्म सन् 1551 ई० में हुआ था। ये फारसी और संस्कृत के अच्छे विद्वान थे। इन्होंने फारसी में लिखी हुई उस पुस्तक को पूरा किया जो आधी जल गई थी। पूरा करने की विशेषता यह थी कि विचारों में परिवर्तन नहीं हुआ। चौबीस वर्ष की अवस्था में इनकी भेंट अकबर से हुई। वह इनकी विद्वता (UPBoardSolutions.com) से इतना प्रभावित हुआ कि इनको अपने दरबार में रख लिया। एक बार जहाँगीर ने अकबर के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। अकबर ने इनको दक्षिण से बुलवाया। दक्षिण से आते समय जहाँगीर ने शत्रुतावश इनको मरवा दिया।

अबुल फजल का चरित्र बहुत ऊँचा था। ये कभी किसी के साथ शत्रुता का व्यवहार नहीं करते थे।
शिक्षा – हमें जाति-पाँति और धर्म के भेद-भाव को भुलाकर सबके साथ प्रेम का व्यवहार करना चाहिए।

UP Board Solutions

अभ्यास-प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
अबुल फजल का जन्म कब और कहाँ हुआ?
उत्तर :
अबुल फजल का जन्म 14 जनवरी, 1551 ई० को आगरा के पास हुआ था।

प्रश्न 2.
अबुल फजल की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
अबुल फजल विद्वान के साथ-साथ एक कुशल सैनिक थे और कई युद्धों में सम्राट अकबर की ओर से गए और युद्ध का संचालन भी किया था। अबुल फजल शत्रु से भी कठोर वचन नहीं बोलते थे। सत्य को वे सबसे बड़ा धर्म (UPBoardSolutions.com) मानते थे। इनका किसी धर्म से विरोध नहीं रहा। अबुल फजल एक सज्जन व्यक्ति थे।

UP Board Solutions

प्रश्न 3.
अबुल फजल की हत्या की योजना किसने और कैसे बनायी?
उत्तर :
अबुल फजल की हत्या की योजना जहाँगीर ने, उनके दक्षिण से लौटने की खबर सुनकर बनाई।

प्रश्न 4.
अबुल फजल ने कौन-कौन से ग्रन्थ लिखे?
उत्तर :
अबुल फजल ने ‘आईने अकबरी’ तथा ‘अकबरनामा’ ग्रन्थ लिखे।

UP Board Solutions

We hope the UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 11 अबुल फजल (महान व्यक्तित्व) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 11 अबुल फजल (महान व्यक्तित्व), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 10 मैथिलीशरण गुप्त (काव्य-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 10 मैथिलीशरण गुप्त (काव्य-खण्ड)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 10 मैथिलीशरण गुप्त (काव्य-खण्ड).

कवि-परिचय

प्रश्न 1.
कवि मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी काव्य-कृतियों (रचनाओं) के नाम लिखिए।
उत्तर
जीवन-परिचय-राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हिन्दी काव्य-जगत् के अनुपम रत्न हैं। इनका जन्म सन् 1886 ई० में चिरगाँव (झाँसी) में हुआ था। इनके पिता सेठ रामचरण गुप्त बड़े ही धार्मिक, काव्यप्रेमी और निष्ठावान् व्यक्ति थे। पिता के संस्कार पुत्र को पूरी तरह प्राप्त थे। बाल्यावस्था में ही एक छप्पय की रचना कर इन्होंने अपने पिता से सुकवि होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था। इनकी शिक्षा का विधिवत् प्रबन्ध घर पर ही किया गया, जहाँ इन्होंने अंग्रेजी, संस्कृत और हिन्दी का अध्ययन किया। इनकी आरम्भिक रचनाएँ कलकत्ता (वर्तमान में कोलकाता) से प्रकाशित होने वाले ‘वैश्योपकारक’ पत्र में छपती थीं। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के सम्पर्क में आने के बाद इनकी प्रतिभा प्रस्फुटित हुई और इनकी रचनाएँ। ‘सरस्वती’ में छपने लगीं। ‘साकेत’ महाकाव्य के सृजन पर इनको (UPBoardSolutions.com) ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ द्वारा ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ से सम्मानित किया गया। इनकी साहित्यिक उपलब्धियों के कारण ही आगरा तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा इनको डी० लिट्० की मानद उपाधि से विभूषित किया गया था। इनकी साहित्य-सेवा के कारण ही भारत सरकार ने इन्हें ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया था। ये राज्यसभा के लिए दो बार मनोनीत किये गये। जीवन के अन्तिम समय तक ये साहित्य-सृजन करते रहे। सरस्वती का यह महान् साधक 12 दिसम्बर, 1964 ई० को पंचतत्त्व में विलीन हो गया।

UP Board Solutions

रचनाएँ-गुप्त जी की चालीस मौलिक तथा छः अनूदित पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। उनमें से प्रमुख हैं-‘भारत भारती’, ‘रंग में भंग’, ‘जयद्रथ वध’, ‘पंचवटी’, ‘अनघ’, ‘हिन्दू’, ‘गुरुकुल’, ‘अलंकार’, ‘साकेत’, ‘यशोधरा’, ‘मंगल घट’, ‘नहुष’, ‘कुणाल गीत’, ‘द्वापर’, ‘विष्णुप्रिया’, दिवोदास’, ‘मेघनाद वध’, ‘विरहिणी ब्रजांगना’,’जय भारत’, ‘सिद्धराज’, ‘झंकार’,’पृथिवीपुत्र’, ‘प्लासी का युद्ध’ आदि।।

साहित्य में स्थान--मैथिलीशरण गुप्त भारतीय संस्कृति के अमर गायक, उद्भट प्रस्तोता और सामाजिक चेतना के प्रतिनिधि कवि थे। इन्हें राष्ट्रकवि होने का गौरव प्राप्त है। गुप्त जी खड़ीबोली के उन्नायकों में प्रधान हैं। इन्होंने खड़ीबोली को काव्य के अनुकूल भी बनाया और जनरुचि को भी उसकी ओर प्रवृत्त किया। अपनी रचनाओं में गुप्त जी ने खड़ीबोली के शुद्ध, परिष्कृत और तत्सम-बहुल रूप को ही अपनाया है। इनकी भाषा भावों के अनुकूल है तथा काव्य में अलंकारों के सहज-स्वाभाविक प्रयोग हुए हैं। सादृश्यमूलक अलंकार इनके सर्वाधिक प्रिय अलंकार हैं। हिन्दी की आधुनिक युग की समस्त काव्य-धाराओं को गुप्त जी ने अपने साहित्य में अपनाया है। इनके द्वारा प्रयुक्त की गयी प्रमुख शैलियाँ । हैं—विवरणात्मक, प्रबन्धात्मक, उपदेशात्मक, गीति तथा नाट्य। मुक्तक एवं प्रबन्ध दोनों (UPBoardSolutions.com) काव्य-शैलियों का इन्होंने सफल प्रयोग किया है। इनकी रचनाओं में छन्दों की विविधता दर्शनीय है। सभी प्रकार के प्रचलित छन्दों; जैसे-हरिगीतिका, वसन्ततिलका, मालिनी, घनाक्षरी, द्रुतविलम्बित आदि में इनकी रचनाएँ उपलब्ध

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में आप “निस्सन्देह हिन्दी-भाषी जनता के प्रतिनिधि कवि कहे जा सकते हैं।’

पद्यांशों की सुन्दर्भ व्याख्या

भारत माता का मंदिर यह
प्रश्न 1.
भारत माता का मंदिर यह
समता का संवाद जहाँ,
सबका शिव कल्याण यहाँ है।
पावें सभी प्रसाद यहाँ।
जाति-धर्म या संप्रदाय का,
नहीं भेद-व्यवधान यहाँ,
सबका स्वागत, सबका आदर
सबका सम सम्मान यहाँ।
राम, रहीम, बुद्ध, ईसा की,
सुलभ एक सा ध्यान यहाँ,
भिन्न-भिन्न भव संस्कृतियों के
गुण गौरव का ज्ञान यहाँ।
उत्तर
[ शिव = मंगलकारी। संप्रदाय = धार्मिक मत या सिद्धान्त। स्वागत = किसी के आगमन पर कुशल-प्रश्न आदि के द्वारा हर्ष प्रकार, अगवानी। भव = संसार।]

सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड’ में संकलित एवं मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘भारत माता का मंदिर यह’ शीर्षक से उधृत है।

[विशेष—इस शीर्षक के अन्तर्गत आने वाले सभी पद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।

UP Board Solutions

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने समस्त भारतभूमि को भारत माता का मंदिर (पवित्र स्थल) बताते हुए उसकी विशेषताओं का वर्णन किया है।

व्याख्या-इन पंक्तियों में कवि अपने देश (भारतभूमि) को भारत माता का मंदिर बताते हुए कहता है कि भारत माता का यह ऐसा मंदिर है जिसमें समानता की ही चर्चा होती है। यहाँ पर सभी के कल्याण की वास्तविक कामना की जाती है और यहीं पर सभी को (UPBoardSolutions.com) परम सुख रूपी प्रसाद की प्राप्ति होती है।

इस मंदिर की यह विशेषता है कि यहाँ पर जाति-धर्म या संप्रदाय वाद का कोई भेदभाव नहीं है यानि इस मंदिर में ऐसा कोई व्यवधान या समस्या नहीं है कि कौन किस वर्ग का है। सभी समान हैं। सभी का स्वागत है और सभी को बराबर सम्मान है। कोई किसी भी सम्प्रदाय को मानने वाला हो; चाहे वह हिन्दुओं के इष्टदेव राम हों, मुस्लिमों के इष्ट रहीम हों, चाहे बौद्धों के इष्ट बुद्ध हों या चाहे ईसाइयों के इष्ट ईसामसीह हों यानि इस मंदिर में सभी को बराबर सम्मान है, सभी के स्वरूप का बराबर-बराबर चिन्तन किया जाता है। सभी की ही बराबर पूजा की जाती है। ।

अलग-अलग संस्कृतियों के जो गुण हैं, जिनके द्वारा सम्पूर्ण संसार के मर्म को अलग-अलग रूपों में संचित किया गया है वे सभी इस भारत माता के मंदिर में एकत्र हैं अर्थात् भारत माता के इस पावन मंदिर में सम्पूर्ण संस्कृतियों का समावेश है।

कहने का तात्पर्य यह है कि चाहे कोई भी देश हो सभी के अपने-अपने अलग-अलग धर्म, अलगअलग सम्प्रदाय, अलग-अलग सिद्धान्त तथा अलग-अलग पवित्र स्थल होते हैं किन्तु हमारा भारत देश एक ऐसी पवित्र तीर्थ स्थल है जहाँ निवास करने वाला (UPBoardSolutions.com) प्रत्येक प्राणी सभी धर्मों को मानने वाला तथा सबको सम. भाव से समझने वाला है। हमारा देश अनेकता में एकता का देश है। ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ इसकी भावना है। |

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. अनेकता में एकता का अद्वितीय चित्रण किया गया है।
  2. राष्ट्रप्रेम और स्वदेशाभिमान की भावना को प्रेरित किया गया है।
  3. भाषा–खड़ी बोली।
  4. गुण–प्रसाद।
  5. अलंकार-रूपक, अनुप्रास।
  6. छन्द-गेय।
  7. शैली-मुक्तक।
  8. भावसाम्य-वियोगी हरि द्वारा रचित ‘विश्व मंदिर’।

प्रश्न 2.
नहीं चाहिए बुद्ध बैर की ।
भला प्रेम का उन्माद यहाँ
सबका शिव कल्याण यहाँ है,
पावें । सभी प्रसाद यहाँ।
सब तीर्थों का एक तीर्थ यह.
हृदय पवित्र बना : लें हम
आओ यहाँ अजातशत्रु बन,
सबको मित्र बना लें हम।।
उत्तर
[ उन्माद = अत्यधिक अनुराग। अजातशत्रु = जिसका कोई शत्रु न हो।]

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि ने लोगों से भारत माता मंदिर के गुणों को अपने जीवन-चरित्र में उतारने की बात कही है।

व्याख्या-उक्त पंक्तियों में कवि कह रहा है कि हमें ऐसी उन्नति कदापि प्रिय नहीं है जो ईष्र्या से युक्त हो। इस भारत माता के मंदिर में सबके कल्याण और प्रेम का अत्यधिक अनुराग भरा पड़ा है। यहाँ पर सभी का मंगल कल्याण है और (UPBoardSolutions.com) यहीं पर सभी को परम सुखरूपी प्रसाद की प्राप्ति होती है।

UP Board Solutions

यह भारत माता का मंदिर सभी तीर्थों में उत्तम तीर्थ है क्योंकि यह किसी एक संप्रदाय या किसी धर्म से जुड़ा तीर्थ नहीं है। यद्यपि इसमें सभी तीर्थों का समावेश है, इसलिए इस तीर्थ का तीर्थाटन करके अपने हृदय को हम पवित्र बना लें। यह ऐसा पवित्र व उत्तम स्थान है जहाँ पर कोई किसी का शत्रु नहीं है इसलिए यहाँ बसकर हम सबको अपना मित्र बना लें। यहाँ पर रेखाओं के रूप में कल्याणकारी व मंगलकारी कामनाओं (UPBoardSolutions.com) (इच्छाओं) के चित्रों को उकेरकर उनको साकार रूप देकर हम अपने मनोभावों को पूर्ण कर लें। अर्थात् यह भारत माता का मंदिर ऐसा पवित्र स्थल है जहाँ ईष्र्या-द्वेष लेश मात्र भी नहीं है। ऐसे पावन मंदिर में बसकर हम अपने जीवन को धन्य बना सकने में और अपनी मानवता को साकार रूप दे पाने में सफल हो पाएँगे।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. भारत माता के मंदिर के रूप में मानवता की साकार मूर्ति का चित्रांकन।
  2. कवि की शब्द-शक्ति के द्वारा प्रेम से परिपूर्ण दुनिया का निर्माण करना।
  3. भाषा-खड़ी बोली।
  4. गुण–प्रसाद।
  5. छन्द-गेय।
  6. शैली मुक्तक
  7. अलंकार-रूपक।
  8. भाव-साम्यवियोगी हरि द्वारा रचित ‘विश्व मंदिर।। |

प्रश्न 3.
बैठो माता के आँगन में
नाता भाई-बहन का।
समझे उसकी प्रसव वेदना
वही लाल है माई का
एक साथ मिल बाँट लो।
अपनी हर्ष विषाद यह है ।
सबका शिव कल्याण यह है,
पावें सभी प्रसाद यहाँ।
उत्तर
[आँगन = घर। लाल = पुत्र। विषाद = कष्ट।]

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि ने भारत माता के इस पवित्र सदन में निवास करने वाले सभी लोगों के बीच वास्तविक रिश्ते को उजागर किया है।

UP Board Solutions

व्याख्या-प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि यहाँ (भारत में) निवास करने वाले लोगों से कहता है। कि आइए माँ के इस पवित्र सदन में बैठिए। हम सबका यहाँ पर भाई-बहन का रिश्ता है अर्थात् एक घर (भारत) में निवास करने वाले हम सभी आपस में भाई-बहन के समान हैं और हमारा कर्तव्य है कि हम सब अपनी माँ (भारत माता) के कष्टों को महसूस करें; क्योंकि सच्चा पुत्र वही होता है जो अपनी माता के कष्टों को समझता (UPBoardSolutions.com) है तथा उसके लिए हर क्षण समर्पण की भावना अपने मन में रखता है। हम सभी भाई-बहनों का यह उद्देश्य होना चाहिए कि किसी-को-किसी प्रकार का कष्ट न हो। सभी एक-दूसरे के सहयोग के लिए तैयार रहें। क्योंकि यह भारत माता का मंदिर है इसलिए यहीं पर हम सबका मंगल कल्याण है और यहीं पर सभी को परम सुख रूपी प्रसाद भी प्राप्त है। कहने का तात्पर्य यह है कि हम सब भारतवासी एक माँ (भारत माता) की सन्तानें हैं और आपस में सभी भाई-बहन के समान हैं। हमें आपस में मिल-जुलकर रहना चाहिए। और एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. समस्त भारतवासियों का भाई-बहन के रूप में वास्तविक चित्रण किया गया है।
  2. सम्पूर्ण भारत देश का एक सदन के सदृश सुन्दर चित्रण हुआ है।
  3. भाषा-खड़ी बोली।
  4. शैली-मुक्तक।
  5. अलंकार-रूपक
  6. भावसाम्य-महान संत तिरुवल्लुवर ने भी अपने एक कुरले. (दोहे) के माध्यम से ऐसे ही भाव प्रकट किए हैं—

कपट, क्रोध, छल, लोभ से रहित प्रेम-व्यवहार।
सबसे मिल-जुलकर रहो, सकल विश्व परिवार॥

प्रश्न 4.
मिला सेव्य का हमें पुजारी
सकल काम उस न्यायी का
मुक्ति लाभ कर्त्तव्य यहाँ है।
एक-एक अनुयायी का
कोटि-कोटि कंठों से मिलकर
उठे एक जयनाद यहाँ
सबका शिव कल्याण यहाँ है
पावें सभी प्रसाद यहाँ।
उत्तर
[सेव्य = सेवा करने वाला। अनुयायी = किसी मत का अनुसरण करने वाला। जयनाद = जयघोष।]

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने भारतवासियों को भारतभूमि में जन्म लेने पर धन्य होने की बात । कही है।

UP Board Solutions

व्याख्या—इन पंक्तियों के माध्यम से कवि मैथिलीशरण गुप्त जी कह रहे हैं कि हमारा परम सौभाग्य है जो हमें इस पावन भूमि (भारत) में जन्म मिला और भारत माता की सेवा करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। यह ईश्वर की हमारे ऊपर बहुत बड़ी (UPBoardSolutions.com) कृपा है। यहाँ के प्रत्येक अनुयायी का यह कर्तव्य बनता है कि वह इस मौके का सम्पूर्ण लाभ उठाकर मुक्ति प्राप्त करें। भारत माता के इस पावन मंदिर में करोड़ों स्वर एक साथ मिलकर जयघोष करते हैं अर्थात् यहाँ निवास करने वाले सभी लोग एक स्वर में जय-जयकार करते हैं। भारत माता के इस पावन मंदिर में सबके मंगलकारी कल्याण की कामना की जाती है और सभी को यहाँ परमसुख रूपी प्रसाद की प्राप्ति होती है। कहने का तात्पर्य है कि जिसने भारत में जन्म लिया है उसका यह सौभाग्य है कि उसने मोक्ष के मार्ग को खोज लिया है।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. प्रस्तुत पंक्तियों में देशभक्ति का सच्चा अनुराग दर्शाया गया है।
  2. भाषा-सरल, सहज एवं प्रवाहयुक्त खड़ी बोली।
  3. शैली-मुक्तक।
  4. अलंकार–रूपक।
  5. भाव-साम्य-ऐसी ही भाव-व्यंजना सुभद्राकुमारी चौहान ने अपनी इन पंक्तियों के द्वारा व्यक्त की है

सुनूंगी माता की आवाज,
रहूंगी मरने को तैयार,
कभी भी उस वेदी पर देव,
न होने देंगी अत्याचार।
न होने देंगी अत्याचार,
चलो मैं हो जाऊं बलिदान,
मातृ-मन्दिर में हुई पुकार,
चढ़ा दो मुझको हे भगवान!

काव्य-सौदर्य एवं व्याकरण-बोध

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है
(क) सबका स्वागत, सबको आदर
सबको सर्म सम्मान यहाँ।
(ख) बैठो माता के आँगने में
नाता भाई-बहन का
समझे उसकी प्रसव वेदना
वही लाल है. माई का।
उत्तर
(क) अनुप्रास अलंकार।
(ख) रूपक अलंकार।

UP Board Solutions

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पदों में प्रत्ययों को मूल शब्द से अलग करके लिखिए-
समता, संस्कृति, पुजारी
उत्तर
समता = सम् + ता।
संस्कृति = संस्कृत + इ।
पुजारी = पूजा + आरी।।

UP Board Solutions

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पदों का सनाम सन्धि-विच्छेद कीजिए-
संवाद, सम्मान, पवित्र
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 10 मैथिलीशरण गुप्त (काव्य-खण्ड) img-1

We hope the UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 10 मैथिलीशरण गुप्त (काव्य-खण्ड) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 10 मैथिलीशरण गुप्त (काव्य-खण्ड), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.