UP Board Solutions for Class 8 Agricultural Science Chapter 9 फल परिरक्षण

UP Board Solutions for Class 8 Agricultural Science Chapter 9 फल परिरक्षण

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इकाई – 9  फल परिरक्षण
अभ्यास

प्रश्न 1.
सही विकल्प के सामने सही (✔) का चिह्न लगाइये (निशान लगाकर)
उत्तर :

  1. जैम तैयार किया जाता है।
    (क) केली
    (ख) सेब से (✔)
    (ग) नींबू से
    (घ) अंगूर से
  2. जेली बनायी जाती है।
    (क) अमरूद
    (ख) केला
    (ग) पपीता (✔)
    (घ) गाजर
  3. सॉस तैयार किया जाता है।
    (क) नींबू ।
    (ख) आम
    (ग) सेब
    (घ) टमाटर (✔)
  4. अचार तैयार किया जाता है।
    (क) तेल में (✔)
    (ख) पानी में
    (ग) नींबू के शर्बत में
    (घ) इनमें से कोई नहीं

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प्रश्न 2.
नीचे लिखे कथन में सही के सामने(✔) तथा गलत के सामने (✘) का निशान लगाइए (निशान लगाकर)
उत्तर :

  1. जैम कच्चे फलों से बनाया जाता है।                                                 (✘)
  2. जैम पके फलों से बनाया जाता है।                                                 (✘)
  3. जैम अधपके फलों से बनाया जाता है।                                         (✔)
  4. जैम सूखे फलों से बनाया जाता है।                                               (✘)
  5. जेली बनाते समय उसमें चीनी की मात्रा रस की 3/4 होनी चाहिए। (✔)
  6. टमाटर से सॉस बनाते समय फल समूचे रूप में डालना चाहिए।    (✘)

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UP Board Solutions for Class 7 Hindi Chapter 5 निजभाषा उन्नति (मंजरी)

UP Board Solutions for Class 7 Hindi Chapter 5 निजभाषा उन्नति (मंजरी)

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समस्त पद्यांशों की व्याख्या

निज भाषा………………………. को शूल।

संदर्भ:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मंजरी’ के (UPBoardSolutions.com) ‘निजभाषा उन्नति’ नामक कविता से ली गई है। इसके रचयिता भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हैं।

प्रसंग:
कवि ने अपनी भाषा की उन्नति के लिए कहा है।

व्याख्या:
कवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र कहते हैं, कि सब प्रकार की उन्नति का आधार अपनी भाषा (हिन्दी) की उन्नति करना है। अपनी भाषा हिन्दी के ज्ञान के बिना हृदय का दुख (शूल) दूर नहीं हो सकता है।

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करहू विलम्ब न ……………..मुल

संदर्भ:
पूर्ववत्। प्रसंग- कवि ने अपनी भाषा हिन्दी की उन्नति के लिए प्रयत्न करने को कहा है। (UPBoardSolutions.com)

व्याख्या:
हे भाइयो! अब उठो और देर मत करो। अपना काँटा दूर करो। सबसे पहले अपनी भाषा की उन्नति करो। यह सब चीजों की उन्नति की जड़ है।

प्रचलित करहु ………………………… रत्न।

संदर्भ:
पूर्ववत्।

प्रसंग:
कवि ने सरकारी काम-काज में हिन्दी का प्रयोग करने के लिए कहा है।

व्याख्या:
यत्न करके सारे संसार में अपनी भाषा का प्रयोग (UPBoardSolutions.com) प्रचलित कर दो। यह रत्न (निज भाषा) सरकारी कामकाज, कोर्ट (अदालत) आदि में फैला दो।

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सुत सो ……………………………….. बहु बात।
संदर्भ:
पूर्ववत्।

प्रसंग:
कवि ने घरेलू व्यवहार में बातचीत हिन्दी में ही करने के लिए कहा है।

व्याख्या:
अपने मन की अनेक बातों को रात-दिन पुत्र, (UPBoardSolutions.com) पत्नी, मित्र और नौकर आदि के साथ अपनी भाषा के माध्यम से ही करो।

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निजभाषा …………………………………….. पुकार। संदर्भ- पूर्ववत्।
प्रसंग:
कवि ने अपनी भाषा, धर्म, मान-सम्मान और कार्य-व्यवहार को मिलाकर उन्नति करने । के लिए कहा है। |

व्याख्या:
अपनी भाषा, अपना धर्म, अपना मान-सम्मान, अपने कार्य और व्यवहार, इन सबसे मिलकर प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है।

पढ़ो लिखो कोउ ………………………. अनुसार। संदर्भ- पूर्ववत्।
प्रसंग:
अनेक भाषाएँ जान लेने पर भी, सोच-विचार (UPBoardSolutions.com) करने के लिए कवि ने हिन्दी का प्रयोग करने को कहा है।

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व्याख्या:
चाहे अनेक प्रकार से पढ़ाई-लिखाई की जाए, अनेक भाषाएँ सीखी जाएँ, परन्तु जब भी कोई सोच-विचार (UPBoardSolutions.com) किया जाए, वह अपनी भाषा में ही किया जाना चाहिए।

अंग्रेजी ……………………………..हीन।

संदर्भ:
पूर्ववत्।

प्रसंग:
अँग्रेजी पढ़कर सर्वगुण होकर, कवि ने हिन्दी (निज भाषा) के ज्ञान बिना मनुष्य को हीन बताया है।

व्याख्या:
यद्यपि अँग्रेजी भाषा के पढ़ने से मनुष्य सब गुणों में चतुर हो जाता है, फिर भी अँग्रेजी के साथ हिन्दी भाषा का ज्ञान जरूरी है।

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घर की फूट बुरी

जगत में ………………………………….जनि कोय।
संदर्भ:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मंजरी’ के निजभाषा उन्नति’ (UPBoardSolutions.com) नामक पाठ ‘घर की फूट बुरी’ नामक कविता से ली गई है। इसके रचयिता भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हैं।

प्रसंग:
कवि ने अनेक उदाहरण देते हुए घर की फूट को बुरा बताया है। धन, मान और शक्ति की चाह करने वालों को घर में फूट नहीं पड़ने देना चाहिए।

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व्याख्या:
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र कहते हैं कि संसार में घर की फूट बहुत बुरी है। सोने की लंका घर की फूट से ही नष्ट हो गई। फूट के कारण ही सौ कौरव मारे गए और महाभारत का युद्ध हुआ। उससे जो हानि हुई, उसकी पूर्ति भारत में अब तक नहीं हो पाई। फूट के कारण ही जयचन्द ने भारत में अफगानों को बुलाया। उसका फल आर्य लोग गुलाम होकर अब तक भोग रहे हैं। फूट के कारण ही महापद्मनन्द ने मगध के राज्य का नाश कर लिया। (UPBoardSolutions.com) उसने चन्द्रगुप्त मौर्य का विनाश करना चाहा था लेकिन वह राज्य सहित स्वयं ही नष्ट हो गया। अत: यदि संसार में अपने धन, मान और बल की रक्षा करनी है, तो अपने घर में भूल से भी फूट मत डालो।

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प्रश्न-अभ्यास

कुछ करने को

प्रश्न 1:
निम्नांकित स्थितियों पर छोटे समूहों में चर्चा कीजिए और निष्कर्ष को पाँच-सात (UPBoardSolutions.com) पंक्तियों में लिखिए

(क) ऐसा घर जिसमें सब मिलकर कार्य करते हैं।
उत्तर:
विद्यार्थी चर्चा स्वयं करें।
निस्कर्षत :
हमें घर के सभी कार्य मिलजुलकर करने चाहिए। इससे आपसी प्रेम बना रहेगा। काम भी जल्दी निपट जाएगा और सबके पास आराम के लिए बराबर-बराबर समय बचेगा। घर के बड़ों को लगेगा कि बच्चे उनकी फिक्र करते हैं। (UPBoardSolutions.com) बच्चों को भी यह महसूस होगा कि बड़े उनका ख्याल रखते हैं। फलतः घर में हँसी-खुशी का माहौल बना रहेगा।

(ख) ऐसा घर जिसमें फूट है।
उत्तर:
विद्यार्थी चर्चा स्वयं करें।

निस्कर्षत :
यह कहा जा सकता है कि जिस घर में आपस में फूट हो, वह घर कभी उन्नति नहीं कर सकता। ऐसे घर में शांति तो दूर की बात है, हँसी-खुशी का कोई पल भी नहीं ठहरेगा। घर के सभी सदस्य अनमने से रहेंगे। बच्चों का मानसिक विकास प्रभावित होगा। (UPBoardSolutions.com) बड़े-बुजुर्गों की सेवा नहीं होगी और बाहरवाले उनका मजाक उड़ाएँगे।

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प्रश्न 2:
कवि ने फूट के कारण होने वाले विनाश के अनेक उदाहरण दिए हैं, यथा
(क) रावण और विभीषण की फूट के (UPBoardSolutions.com) कारण लंका का नाश।
(ख) कौरव और पाण्डवों की फूट के फलस्वरूप महाभारत युद्ध।
(ग) पृथ्वीराज और जयचन्द की आपसी फूट के कारण यवनों को भारत आगमन।
इन विषयों पर शिक्षक/शिक्षिका के साथ चर्चा करके फूट के कारण और उनके दुष्परिणामों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
(क) रावण और विभीषण के बीच फूट का कारण था, उनके विचारों और संस्कारों में अंतर होना। रावण को अपनी शक्ति पर बहुत घमंड था। उसने सीता का धोखे से अपहरण कर लिया था, अतः रावण को व्यभिचारी भी कहा जा सकता है। परंतु इसके विपरीत विभीषण धार्मिक प्रवृत्ति का चरित्रवान व्यक्ति था। रावण द्वारा सीता के अपहरण करने पर उसने आपत्ति जताई क्योंकि उसके अनुसार यह कार्य नीति एवं मर्यादा के विरुद्ध था। (UPBoardSolutions.com) इसलिए उसने रावण से अनुरोध किया कि वह सीता को वापस राम के पास भेज दे, परंतु रावण ने उसे कायर कहकर दुत्कार दिया। रावण द्वारा दुत्कारे जाने और अपमानित. किए जाने से आहत विभीषण राम के पास पहुँच जाता है और उन्हें रावण और लंका से जुड़े सारे रहस्य बता देता है, जिसके फलस्वरूप रावण युद्ध में राम द्वारा मारा जाता है। रावण का सर्वनाश ही दोनों भाइयों के बीच के फूट का दुष्परिणाम था।

(ख) कौरव पाण्डवों से ईर्ष्या करते थे। उन्होंने उनके हिस्से का राज्य हड़प लिया, उन्हें तरह-तरह
की तकलीफें दीं। उनका बार-बार अपमान किया। कौरवों के अन्याय की हद तब हो गई जब उनके द्वारा परिश्रम से स्थापित किया गया राज्य भी उन्होंने जुए में धोखे से पांडवों हो हराकर प्राप्त कर लिया और भरे दरबार में द्रौपदी का अपमान किया। फलस्वरूप पांडवों-कौरवों के बीच कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध लड़ा गया, जिससे दोनों तरफ के अनेकों शूरवीर मारे गए। अंततः दुर्योधन भी मारा गया। उसके सारे सगे-संबंधी और भाई पहले ही मारे जा चके थे। धृतराष्ट्र और गांधारी के अलावा कुरू-वंश में कोई भी न बचा। कौरवों का सर्वनाश तो इस युद्ध का दुष्परिणाम था ही, पाण्डवों के पुत्रों का भी (UPBoardSolutions.com) कम उम्र में मारा जाना और विश्व के अनेक शूरवीरों को मारा जाना एक और भयावह परिणाम था।

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(ग) पृथ्वीराज और जयचंद के आपसी फूट का कारण था, जयचंद की पृथ्वीराज के बढ़ते शौर्य से ईष्र्या का होना। उनके बीच विद्वेष का मुख्य कारण जयचंद की पुत्री संयोगिता को भी माना जाता है। संयोगिता पृथ्वीराज से प्रेम करती थी। परंतु जयचंद ने उसके स्वयंवर में पृथ्वीराज को आमंत्रित नहीं किया था। पृथ्वीराज ने संयोगिता का अपहरण कर उससे विवाह कर लिया। फलस्वरूपं अब तक जयचंद की नफरत पृथ्वीराज के लिए और भी बढ़ गई। इसका प्रतिशोध उसने इस तरह लिया कि मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज पर आक्रमण किया तो जयचंद ने इस आक्रमण में मुहम्मद गौरी का साथ दिया। गौरी पहले भी (UPBoardSolutions.com) पृथ्वीराज से युद्ध करके दो बार पराजित हो चुका था, परंतु जयचंद की सहायता पाकर इस बार वह पृथ्वीराज को हराने में सफल रहा, जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि भारत के कई हिस्सों पर यवनों का साम्राज्य स्थापित हो गया। यहाँ तक कि गौरी ने जयचंद को भी नहीं छोड़ा और उसके राज्य पर भी आक्रमण किया।

प्रश्न 3.
इस कविता के आधार पर आप भी दो सवाल बनाइए।
उत्तर:
प्र०1. सब प्रकार की उन्नति का आधार क्या है?
प्र०2, कवि के अनुसार घर-परिवार के सदस्यों के साथ हमें किस भाषा में बात करनी चाहिए?

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प्रश्न 1:
यदि आपको अपनी बात हिन्दी, संस्कृत अथवा अंग्रेजी में से किसी एक भाषा में कहने के लिए कहा जाय, तो आप किस भाषा को चुनेंगे ?
उत्तर:
हिन्दी भाषा को, क्योंकि हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है और मुझे इसका ज्ञान है।

कविता से
प्रश्न 1:
निज भाषा की उन्नति से क्या-क्या लाभ होगा ?
उत्तर:
अपनी भाषा उन्नति करने से अपने धर्म, (UPBoardSolutions.com) मान-सम्मान और कार्य-व्यवहार की उन्नति होगी।

प्रश्न 2:
हमें अपनी भाषा का प्रसार कहाँ-कहाँ करना चाहिए ?।
उत्तर:
हमें अपनी भाषा का प्रसार सरकारी काम-काज, अदालत आदि में करना चाहिए। साथ ही यह प्रयास करना चाहिए कि हमारी हिंदी भाषा का विस्तार विदेशों में भी हो सके।

प्रश्न 3:
कवि ने अपनी भाषा के अतिरिक्त किसको-किसको बढ़ाने की बात की है ?
उत्तर:
कवि ने भाषा के अतिरिक्त धर्म, मान-सम्मान, एकता आदि को बढ़ाने की बात की है।

प्रश्न 4:
कवि ने महाभारत के युद्ध का क्या कारण बताया है ?
उत्तर:
कवि ने महाभारत युद्ध का कारण कौरवों और (UPBoardSolutions.com) पांडवों के बीच आपसी फूट को बताया है।

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प्रश्न 5:
निम्नांकित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए
(क) निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।
उत्तर:
कवि का आशय है कि निजभाषा के प्रचार-प्रसार (UPBoardSolutions.com) से अपने धर्म, मान-सम्मान, कार्य व्यवहार आदि में उन्नति होगी।

(ख) जो जग में धान मान और बल अपुनी राखन होय।
तो अपुने घर में भूले हू फूट करौ जनि कोय।
उत्तर:
कवि कहना चाहता है कि यदि संसार में अपने धन, मान और बल की रक्षा करनी है, तो अपने घर में भूल से भी फूट मत डालो।

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भाषा की बात

प्रश्न 1:
शब्दों के तत्सम रूप लिखिए (UPBoardSolutions.com)
करम, जदपि, सुबरन, हिय, जल, मीत, धरम।
उत्तर:
करम            –         कर्म
जदपि           –          यद्यपि
सुबरन          –          सुवर्ण
आरज          –          आर्य
हिये              –          हृदय
जल              –           नीर
मीत              –          मित्र
धरम             –           धर्म

प्रश्न 2.
निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटै नै हिय को शूल॥

उपर्युक्त पंक्तियों में आये हुए ‘मूल’ और ‘शूल’ शब्द तुकान्त शब्द हैं। (UPBoardSolutions.com) कविता से ऐसे ही तुकान्त शब्द छाँटकर उन शब्दों के आधार पर कुछ पंक्तियाँ रचिए।
उत्तर:
आ गए वे परदेश से अजब अनोखी बात।
मेरे लिए तो आ गई आज दीवाली रात।।

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प्रश्न 3:
इस कविता से मैंने सीखा…………..। – विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 4.
अब मैं करूंगा/करूंगी………………………..। – विद्यार्थी स्वयं करें।

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 बन्धुत्वस्य सन्देष्टा रविदासः (गद्य – भारती)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 बन्धुत्वस्य सन्देष्टा रविदासः (गद्य – भारती) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 बन्धुत्वस्य सन्देष्टा रविदासः (गद्य – भारती).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 8
Chapter Name बन्धुत्वस्य सन्देष्टा रविदासः (गद्य – भारती)
Number of Questions Solved 3
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 बन्धुत्वस्य सन्देष्टा रविदासः  (गद्य – भारती)

पाठ-सारांश

परिचय एवं जन्म-रविदास को स्वामी रामानन्द के बारह शिष्यों में से एक माना जाता है। उनका नाम रैदास लोक-प्रचलित है। उनका जन्म काशी के मण्डुवाडीह ग्राम में विक्रमी संवत् 1471 में माघ मास की पूर्णिमा तिथि को रविवार के दिन हुआ था। रविवार को जन्म होने के कारण ही उनका नाम रविदास’ पड़ा।

तत्कालीन परिस्थितियाँ-रविदास के समय में भारतवासी यवनों के शासन से पीड़ित थे और भारतीय राजा आपस में लड़ रहे थे। भारतवासी सभी तरह से उपेक्षित थे और विद्यमान सम्प्रदायों में। धार्मिक द्वेष बढ़ रहा था। ऐसी दशा में दु:खी होकर महात्माओं ने ईश्वर को ही शरण मानते हुए लोगों को ईश्वर की व्यापकता और सर्वशक्तिमत्ता समझायी। भारतवासी उन्हीं लोगों का सन्त कहकर आदर करते थे, जो दीन-दुःखियों की सेवा में तत्पर तथा दलितों और शोषितों के प्रति दयावान थे।

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जीवन-प्रणाली एवं सिद्धान्त-रविदास अपने कर्म में लगे रहकर दु:खी लोगों के प्रति दयावान बने रहे। वे धर्म के बाह्य आचरणों को परस्पर द्वेष का कारण मानते थे। ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा यह उनका विचार था। रविदास किसी पाठशाला में नहीं पढ़े। उन्होंने गुरु की कृपा से संसार की क्षणभंगुरता एवं ईश्वर की नित्यता और व्यापकता का जो ज्ञान प्राप्त किया, उसी का लोगों को उपदेश . दिया। | रविदास ने न किसी जंगल में जाकर तपस्या की ओर न ही किसी पर्वत की गुफा में बैठकर साधना की। वे जल में रहते हुए भी जल (UPBoardSolutions.com) से भिन्न रहने वाले कमल-पत्र की तरह संसार के बन्धन से मुक्त थे। उनका विश्वास था कि अपना कर्म करते हुए घर पर रहकर भी ईश्वर का साक्षात्कार किया जा सकता है। वे ईश्वर को मन्दिरों, वनों और एकान्त में ढूंढ़ने की अपेक्षा अपने हृदय के भीतर ढूंढ़ना अधिक उचित समझते थे। वे ईश्वर की प्राप्ति में अहंकार को सबसे बड़ा बाधक मानते थे। यह मैं करता हूँ, यह मेरा है-इस भ्रम को छोड़कर ही ईश्वर का साक्षात्कार किया जा सकता है; ऐसा उनका मानना था।

निर्गुणोपासक-रविदास, कबीरदास, नानक आदि महात्माओं ने यद्यपि निर्गुण ब्रह्म की उपासना की, फिर भी उन्होंने सगुणोपासकों से कभी द्वेष नहीं किया। वे निराकार ब्रह्म के साक्षात्कार के साथ-साथ दु:खियों, दीनों, दरिद्रों और दलितों के प्रति भी अपने मन में अगाध प्रेम रखते थे।

रविदास दीनों, दरिद्रों और दलितों में ईश्वर के दर्शन करते थे। उनके विचार में ईश्वर ने सबको समान बनाया है; अतः सभी आपस में भाई-भाई हैं। मनुष्य जाति में जाति, वर्ण और सम्प्रदाय के भेद : मनुष्य ने बनाये हैं। वे कहते थे-‘हरि को भजे, सो हरि का होई।’ हरि के भजन में जाति या वर्ण नहीं पूछा जाता है। उन्होंने राष्ट्र की अखण्डता और एकता को बनाये रखने का सदैव प्रयत्न किया।

स्वर्गारोहण-रविदास 126 वर्ष की आयु में संवत् 1597 वि० राजस्थान के चित्तौड़गढ़ नामक स्थान पर परमात्मा में विलीन हो गये थे। वे अपने यशः शरीर से आज भी जीवित हैं।

गधाशों का सन्दर्भ अनुवाद 

(1) परमोपासकस्य रामानन्दस्य द्वादशशिष्या आसन्निति भण्यते। तेषु शिष्येषु रविदासो लोके रैदास इति संज्ञया ख्यात एकः शिष्यः आसीदित्युच्यते। रविदासस्य जन्म काश्यां माण्डूरनाम्नि (मण्डुवाडीह) ग्रामे एकसप्तत्युत्तरचतुर्दशशततमे (1471 वि०) विक्रमाब्दे माघमासस्य पूर्णिमायान्तिथौ रविवासरेऽभवत्। रविवासरे तस्य जन्म इति हेतोः रविदास इति नाम जातमित्यनुमीयते। |

शब्दार्थ-
भण्यते = कहा जाता है। संज्ञया = नाम से।
ख्यात = प्रसिद्ध।
आसीत् इति उच्यते = थे, ऐसा कहा जाता है।
हेतोः = कारण से।
जातमित्यनुमीयते (जातम् + इति + अनुमीयते) = हुआ, ऐसा अनुमान किया जाता है।

सन्दर्भ
प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तके ‘संस्कृत गद्य-भारती’ में संकलित ‘बन्धुत्वस्य सन्देष्टा रविदासः’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।

संकेत
इस पाठ के शेष गद्यांशों के लिए भी यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।] प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में रविदास के शिष्यत्व एवं जन्म की बात कही गयी है।

अनुवाद
महान् उपासक रामानन्द के बारह शिष्य थे, ऐसा कहा जाता है। उन शिष्यों में रविदास संसार में रैदास नाम के प्रसिद्ध एक शिष्य थे, ऐसा कहा जाता है। रविदास का जन्म काशी में | मांडूर (मण्डुवाडीह) नामक ग्राम में विक्रम संवत् 1471 में माघ मास की पूर्णिमा तिथि को रविवार के दिन हुआ था। रविवार के दिन उनका जन्म हुआ, इस कारण ‘रविदास’ यह नाम हुआ, ऐसा अनुमान किया जाता है।

(2) पञ्चदश्यां शताब्दी भारतीयजनजीवनमतीवक्लेशक्लिष्टमासीत्। यवनशासकैराक्रान्तो देशो, मिथः कलहायमाना भारतीयाः राजानः दुःखदैन्यग्रस्ताः, सर्वथोपेक्षिताः भारतीयजनाः विविधधमानुयायिषु प्रवृत्तो विद्वेषो जातिवर्णेषु विभक्तो भारतीयसमाज इति देशदशां दर्श दर्श दूयमानहृदयाः (UPBoardSolutions.com) तदानीन्तनाः महात्मानः सन्तश्चेश्वर एव शरणमिति मन्यमाना ईश्वरम्प्रति समर्पिताः सन्त परमात्मनो व्यापकत्वं तस्य सर्वशक्तिमत्त्वञ्च बोधयति स्म। |

शब्दार्थ-
अतीव = अत्यधिक।
क्लेशक्लिष्टम् = दुःखों से दु:खी।
मिथः = आपस में।
कलहायमाना = कलह करते हुए।
सर्वथोपेक्षिताः = सब प्रकार से उपेक्षित।
दर्श दर्शम् = देख-देखकर।
दूयमान हृदयाः = दुःखी हृदय वाले।
तदानीन्तनाः = उस समय के।
व्यापकत्वं = व्यापक होना।
बोधयन्ति स्म = समझते थे।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में पन्द्रहवीं शताब्दी में भारतीयों की दीन दशा तथा उस दशा से उन्हें उबारने के लिए भारतीय सन्तों द्वारा किये जा रहे जन-जागरण आन्दोलन का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
पन्द्रहवीं शताब्दी में भारतीय लोगों का जीवन कष्टों से अत्यधिक दुःखी था। मुसलमान शासकों से देश आक्रान्त (पीड़ित) था, आपस में झगड़ते हुए भारतीय राजा दुःख और दीनता से ग्रसित थे, भारतीय लोग सभी तरह से उपेक्षित थे, विविध धर्म के अनुयायियों में शत्रुता बढ़ी हुई थी, भारतीय समाज जातियों और वर्गों में बँटा हुआ था इस प्रकार देश की दशा को देख-देखकर दुःखित हृदय वाले तत्कालीन महात्मा और सन्त (UPBoardSolutions.com) ईश्वर ही शरण है ऐसा मानते हुए ईश्वर के प्रति समर्पित सन्त परमात्मा की व्यापकता और उसकी सर्वशक्तिमत्ता को समझाते थे।

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(3) वस्तुतस्तु, तादृशा एव महापुरुषाः ‘सन्त’ शब्देन भारतीयजनमानसे समादृता अभवन्, ये परदुःखकातराः परहितरताः दुःखिजनसेवापरायणाः दलितान् शोषितान्प्रति सदयाः स्वसुखमविगणयन्तः यदृच्छालाभसन्तुष्टा आसन्।

शब्दार्थ-
वस्तुतस्तु = वास्तव में।
तादृशा एव = उस प्रकार के ही।
समादृताः = सम्मान प्राप्त।
परहितरताः = दूसरों की भलाई में लगे हुए।
सदयाः = दयालु।
अविगणयन्तः = न गिनते हुए, उपेक्षा करते हुए।
यदृच्छालाभः = इच्छानुसार जो प्राप्त हो जाए।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में तत्कालीन भारतीय समाज में सन्तों की स्थिति का वर्णन किया गया है। | अनुवाद–वास्तव में भारतीय लोगों के मन में उसे प्रकार के महापुरुषों ने ही ‘सन्त’ शब्द से आदर प्राप्त किया, जो दूसरों के दु:खों, दूसरों की भलाई में लगे हुए, दुःखी लोगों की सेवा करने वाले, दलितों और शोषितों के प्रति दयावान्, अपने सुखों की परवाह न करके जैसा मिल गया, उस लाभ से सन्तुष्ट थे।’

(4) सत्पुरुषो महात्मा रविदासः स्वकर्मणि निरतः सन् परमात्मनो माहात्म्यमुपवर्णयन् दुःखितान् जनान्प्रति सदयहृदयः कर्मणः प्रतिष्ठां लोकेऽस्थापयत्। धर्मस्य बाह्याचारः एवं परस्परवैरस्य हेतुरिति स विश्वसिति स्म। अतो बाह्याचारान् परिहाय धर्माचरणं विधेयम्। गङ्गास्नानाच्छरीरशुद्धेरपेक्षया मनसा शुद्धिरावश्यकीति तेनोक्तम्। पूते तु मनसि काष्ठस्थाल्यामेव गङ्गेति तस्योक्ति प्रसिद्धैवास्ति।

शब्दार्थ-
निरतः सन् = लगे हुए।
माहात्म्यम् उपवर्णयन् = महत्त्व का वर्णन करते हुए।
लोकेऽस्थापयत् = लोक में स्थापित की।
विश्वसिति स्म = विश्वास करते थे।
परिहाय = छोड़कर।
विधेयम् = करना चाहिए।
गङ्गस्नानाच्छरीरशुद्धेरपेक्षया (गङ्गा + स्नानात् + शरीर + शुद्धेः + अपेक्षया) = गंगा में स्नान से शरीर की शुद्धि की अपेक्षा।
पूते तु मनसि = मन पवित्र होने पर।
काष्ठस्थाल्यामेव (काष्ठः + स्थाल्याम् + एव) = काठ की थाली (कठौती) में ही।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में रविदास के धर्म के बाह्यचारों के सम्बन्ध में व्यक्त विचारों का वर्णन • किया गया है।

अनुवाद
सत् पुरुष महात्मा रविदास ने अपने कर्म में लगे हुए रहकर परमात्मा की महिमा का वर्णन करते हुए, दु:खी लोगों के प्रति दयालु हृदय होकर संसार में कर्म की प्रतिष्ठा स्थापित की। वे ‘धर्म के बाहरी आचरण ही आपसी वैर के कारण ऐसा विश्वास करते थे। इसलिए बाहरी आचारे को छोड़कर धर्म का (UPBoardSolutions.com) आचरण करना चाहिए। गंगा स्नान से शरीर की शुद्धि की अपेक्षा मन की शुद्धि आवश्यक है, ऐसा उन्होंने बतलाया। मन के पवित्र रहने पर कठौती में ही गंगा है, ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’, उनकी यह उक्ति ही प्रसिद्ध है।

(5) रविदासः कस्याञ्चिदपि पाठशालायां पठितुं न गतोऽतस्तस्य ज्ञानं पुस्तकीयं नासीत्। जगतो नश्वरत्वं परमात्मनोऽनश्वरत्वं व्यापकत्वमित्यादिदार्शनिकं ज्ञानं गुरोरनुकम्पया तेन लब्धं प्रेरणयैव तथाभूतस्य ज्ञानस्योपदेशो जनेभ्यस्तेन दत्तः।।

शब्दार्थ-
कस्याञ्चिदपि = किसी भी।
पुस्तकीयम् = पुस्तक सम्बन्धी।
नश्वरत्वम् = नाशवान् होने का भाव।
गुरोरनुकम्पया = गुरु की कृपा से।
तथाभूतस्य = उस प्रकार का।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में रविदास द्वारा गुरु की कृपा से दार्शनिक ज्ञान अर्जित करने का वर्णन

अनुवाद
रविदास किसी भी पाठशाला में पढ़ने के लिए नहीं गये, इसलिए उनका ज्ञान पुस्तकीय नहीं था। उन्होंने संसार की नश्वरता, ईश्वर की नित्यता और व्यापकता आदि का दार्शनिक ज्ञान गुरु की कृपा से प्राप्त किया था। गुरु की प्रेरणा से ही उन्होंने लोगों को उस प्रकार के ज्ञान का उपदेश दिया।

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(6) सः तपस्तप्तुं गहनं वनं न जगाम न वा गिरिगुहायमुपविश्य साधनरतः ज्ञानमधिगन्तुं चेष्टते स्म। वीतरागभयक्रोधोऽसौ जगति निवसन्नपि जगतः बन्धनात् पद्मपत्रमिव मुक्तः व्यवहरति स्म। स्वकर्मणि निरतः फलम्प्रति निराकाङ्क्षः स्वगृहेऽपि परमात्मा साक्षात्कर्तुं शक्यते इति रविदासः प्रत्येति। (UPBoardSolutions.com) अतो विभिन्नोपासनास्थलेषु वनेषु रहसि वा ईश्वरानुसन्धानादपेक्षया स्वहृदये एवानुसन्धातुमुचितम्। ईश्वरप्राप्तावहङ्कार एवं बाधकोऽस्ति।’अहमिदं करोमि’ ममेदमिति बोधः भ्रमात्मकः। भ्रममपहायैव ईश्वरप्राप्तिः सम्भवा। रविदासः स्वरचिते पद्ये गायति—यदा अहमस्मि तदा त्वं नासि, यदा त्वमसि तदा अहं नास्मि।

शब्दार्थ-
गिरिगुहायामुपविश्य = पर्वत की गुफा में बैठकर।
अधिगन्तुम् = प्राप्त करने के लिए।
चेष्टते स्म = प्रयत्न किया।
निविसन्नपि = निवास करते हुए भी।
पद्मपत्रमिव = कमल के पत्ते के समान।
व्यवहरति स्म = व्यवहार करते थे।
निरतः = लगे हुए।
निराकाङ्क्षः = इच्छारहित। प्रत्येति = विश्वास करते थे।
रहसि = एकान्त में।
ईश्वरानुसन्धानादपेक्षया = ईश्वर को खोजने की अपेक्षा।
अनुसन्धातुम् = खोजने के लिए।
ईश्वर-प्राप्तावहङ्कारः (ईश्वर + प्राप्तौ + अहङ्कारः) = ईश्वर की प्राप्ति में घमण्ड।
बोधः = ज्ञान। भ्रममपहायैव = भ्रम को छोड़कर ही। नासि (न + असि) = नहीं हो।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में रविदास द्वारा ईश्वर-प्राप्ति के साधन रूप में ईश्वर को हृदय में खोजने और अहंकार को त्यागने पर बल दिया गया है।

अनुवाद
वे तपस्या करने के लिए घने जंगल में नहीं गये, न ही पर्वतों की गुफा में बैठकर साधना में लीन होकर ज्ञान को प्राप्त करने की चेष्टा की। राग, भय, क्रोध से रहित वे संसार में रहते हुए भी संसार के बन्धन से उसी प्रकार व्यवहार करते थे, जैसे कमल का पत्ता; अर्थात् जो जल में रहकर भी गीला नहीं होता है। अपने कर्म में लगे हुए फल के प्रति इच्छारहित होकर अपने घर में भी परमात्मा का साक्षात्कार किया जा (UPBoardSolutions.com) सकता है, रविदास ऐसा विश्वास करते थे। इसलिए विभिन्न पूजा-स्थलों में, वन में या एकान्त में ईश्वर को खोजने की अपेक्षा अपने हृदय में ही खोजना उचित है। ईश्वर की प्राप्ति में अहंकार ही बाधक है। मैं यह करता हूँ, यह मेरा है, यह ज्ञान भ्रमपूर्ण है। भ्रम को छोड़कर ही ईश्वर की प्राप्ति सम्भव है। रविदास अपने रचित पद्य में गाते हैं-“जब मैं हूँ, तब तुम नहीं हो, जब तुम हो, तब मैं नहीं हूं।”

(7) रविदासः कबीरदासो नानकदेवप्रभृतयः सन्तो महात्मानः निर्गुणमेवेश्वरं गायन्ति स्म। परन्ते सगुणसम्प्रदायावलम्बिनः प्रति विद्वेषिणो नासन्। तैः रचितेषु पदेषु यत्र-तत्र भक्तिभावस्य तत्त्वमवलोक्यते। निराकारब्रह्मणः गहनभूते सुविस्तृते साक्षात्कारविचारनभसि विचरन्नपि रविदासः ।। पृथिवीतले विद्यमानतेषु दुःखितेषु, दरिद्रेषु दलितेषु च सुतरां रमते स्म।।

शब्दार्थ-
प्रभृतयः = आदि।
परं ते = किन्तु वे।
विद्वेषिणः = द्वेष रखने वाले। नासन् (न +आसन्) = नहीं थे।
तत्त्वमवलोक्यते = तत्त्व देखा जाता है।
गहनभूते = गम्भीर बने हुए में।
साक्षात्कार विचारनभसि = साक्षात्कार के विचार रूपी आकाश में
विचरन्नपि = विचरण करते हुए। भी।
रमते स्म = रमता था।

प्रसंग
रविदास निर्गुण ब्रह्म की उपासना के साथ-साथ दु:खी-दलितों के प्रति भी दयावान थे। इसी का वर्णन प्रस्तुत गद्यांश में किया गया है।

अनुवाद
रविदास, कबीरदास, नानक देव आदि सन्त-महात्मा निर्गुण ईश्वर का ही गान करते थे, परन्तु वे सगुण मत को मानने वालों के प्रति द्वेष नहीं रखते थे। उनके द्वारा बनाये गये पदों में यहाँ-वहाँ (स्थान-स्थान) पर भक्तिभावना का तत्त्व देखा जाता है।

निराकार ब्रह्म के घने, अत्यन्त विस्तृत साक्षात्कार के विचाररूपी आकाश में विचरण करते हुए भी रविदास पृथ्वी तल पर विद्यमान दु:खी, दरिद्र और दलितों में अत्यधिक रमण (घूमते अर्थात् प्रेम) करते थे; अर्थात् निर्गुण ब्रह्म के साधक होते हुए भी दीन-दुःखियों से उतना ही प्रेम करते थे, जितना परमात्मा से।।

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(8) सः दलितेषु, दीनेषु, दरिद्रेष्वेवेश्वरमपश्यत्। तेषां सेवा, तान्प्रति सहानुभूतिः प्रेमप्रदर्शनं चेश्वरार्चनमिति तस्य विचारः। सामाजिकवैषम्यं न वास्तविकं प्रत्युत परमात्मना सर्वे समाना एव रचिताः, सर्वे च तस्येश्वरस्य सन्ततयोऽतः परस्परं बान्धवाः। मनुष्येषु तर्हि मिथः कथं वैरभावः? इत्थं समत्वस्य बन्धुतायाश्चोपदेशं जनेभ्योऽददात्। जातिवर्णसम्प्रदायादिभेदा अपि मनुष्यरचिताः परमात्मन इच्छाप्रतिकूलम्। इत्थं रविदासेन (UPBoardSolutions.com) मनुष्यजातौ स्पृश्यास्पृश्यादिदोषाणामुच्चावचभेदानां चातीवतीव्रस्वरेण विरोधः कृतः। हरि भजति स हरेर्भवति। हरिभजने ने कश्चित्पृच्छति जातिं वर्णं वेति सत्यं प्रतिपादयन् देशस्याखण्डतायाः राष्ट्रस्यैक्यस्य च रक्षणे स प्रायतते। महात्मा रविदासोऽध्यात्म, भक्ति, सामाजिकाभ्युन्नतिं च युगपदेव संसाधयन् सप्तनवत्युत्तरपञ्चदशशततमे वैक्रमे राजस्थानप्रान्ते चित्तौडगढनाम्नि स्थाने षड्विंशत्युत्तरशतिमते वयसि परमात्मनि विलीनः यशःशरीरेणाद्यापि जीवतितराम्।। |

शब्दार्थ
दरिद्रेष्वेवेश्वरमपश्यत् (दरिद्रेषु + एव + ईश्वरम् + अपश्यत्) = दरिद्रों में ही ईश्वर को देखते थे।
चेश्वरार्चनमिति (च + ईश्वर + अर्चनम् + इति) = और ईश्वर की पूजा है, ऐसा।
वैषम्यम् = असमानता को।
इच्छा-प्रतिकूलम् = इच्छा के विपरीत।
इत्थं = इस प्रकार।
स्पृश्यास्पृश्यादिदोषाणां = छुआछूत इत्यादि दोषों का।
उच्चावच = ऊँचे-नीचे।
चातीवतीव्रस्वरेण (च + अतीव + तीव्र + स्वरेण) = और अधिक तीखे स्वर से।
कश्चित् पृच्छति = कोई पूछता है।
प्रतिपादयन् = प्रतिपादन करते हुए।
प्रायतत = प्रयत्न किया। युगपदेव = एक साथ ही।
संसाधयन् = सिद्ध करते हुए।
वयसि = अवस्था में।
शरीरेणाद्यापि = (शरीरेण + अद्य + अपि) शरीर से आज भी।
जीवतितराम् = जीवित हैं।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में रविदास ने दोनों, दुःखियों, दरिद्रों और दलितों में ईश्वर के रूप को दर्शाया है।

अनुवाद
उन्होंने दलितों, दीनों और दरिद्रों में ईश्वर के दर्शन किये। उनकी सेवा, उनके प्रति सहानुभूति और प्रेम-प्रदर्शन ईश्वर की पूजा है, ऐसा उनका विचार था। सामाजिक असमानता वास्तविक नहीं है, अपितु ईश्वर ने सबको समान बनाया है और सब उस ईश्वर की सन्तान हैं; अतः आपस में भाई हैं। फिरे मनुष्यों में आपस में कैसी शत्रुता? इस प्रकार उन्होंने लोगों को समानता और बन्धुता का उपदेश दिया। जाति, वर्ण, सम्प्रदाय आदि के भेद भी मनुष्य के बनाये हैं, परमात्मा की इच्छा के विपरीत हैं। इस प्रकार रविदास ने मनुष्य जाति में छुआछूत आदि दोषों का, ऊँच-नीच के भेदों का अत्यन्त जोरदार शब्दों में खण्डन किया। जो हरि को भजता है, वह हरि का (UPBoardSolutions.com) होता है। हरि के भजने में कोई जाति या वर्ण को नहीं पूछता है-इस सत्य को बतलाते हुए देश की अखण्डता और राष्ट्र की एकता की रक्षा करने के लिए उन्होंने प्रयत्न किया। महात्मा रविदास अध्यात्म (आत्मा, परमात्मा का ज्ञान), भक्ति सामाजिक उन्नति को एक साथ ही सिद्ध करते हुए 1597 विक्रम संवत् में राजस्थान प्रान्त में चित्तौड़गढ़ नाम के स्थान पर 126 वर्ष की आयु में परमात्मा में विलीन हो गये, वे अपने यशः शरीर से आज भी जीवित हैं।

लघु उत्तरीय प्ररन

प्ररन 1
रविदास का जीवन-परिचय लिखिए।
उत्तर
[संकेत-‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत दी गयी सामग्री को अपने शब्दों में संक्षेप में लिखें।] ।

प्ररन 2
रविदास की ईश्वर सम्बन्धी विचारधारा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
रविदास का ऐसा विश्वास था कि फल के प्रति इच्छारहित होकर अपने कर्म मे लगा हुआ व्यक्ति अपने घर में भी परमात्मा को साक्षात्कार कर सकता है। उनका कहना था कि ईश्वर को अपने हृदय में खोजना ही उचित है। ईश्वर की प्राप्ति में यह मैं हूँ, यह मेरा है’ यह ज्ञान भ्रमपूर्ण है। इस भ्रम का त्याग किये बिना ईश्वर की प्राप्ति असम्भव है।

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प्ररन 3
रविदास के जीवन-परिचय एवं जीवन-दर्शन का वर्णन करते हुए तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए
उत्तर
[संकेत-“पाठ-सारांश” मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत दिये गये शीर्षकों ‘परिचय एवं जन्म’, ‘जीवन-प्रणाली एवं सिद्धान्त’ तथा ‘तत्कालीन परिस्थितियाँ’ की सामग्री को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखें।]।

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UP Board Solutions for Class 8 Agricultural Science Chapter 7 सिंचाई की विधियाँ तथा जल निकास

UP Board Solutions for Class 8 Agricultural Science Chapter 7 सिंचाई की विधियाँ तथा जल निकास

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इकाई-7    सिंचाई की विधियाँ तथा जल निकास
अभ्यास

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के सही उत्तर पर सही (✔) का निशान लगाइए (निशान लगाकर)
उत्तर :

  1. सरसों की सिंचाई किस विधि से की जाती है
    (क) नाली विधि
    (ख) थाला विधि  (✔)
    (ग) क्यरी विधि
    (घ) जल-वन विधि
  2. आलू की फसल की सिंचाई किस विधि से की जाती है
    (क) क्यारी विधि
    (ख) छिड़काव विधि
    (ग) थाला विधि
    (घ) कँड़ विधि (✔)
  3. ऊँची-नीची भूमि की सिंचाई किस विधि से करते हैं
    (क) क्यारी विधि
    (ख) थाला विधि
    (ग) छिड़काव विधि (✔)
    (घ) कँड़ विधि
  4. खेत में जल भराव से मृदा ताप
    (क) घटता है (✔)
    (ख) बढ़ता है
    (ग) स्थिर रहता है
    (घ) उपरोक्त में कोई नहीं

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प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए (पूर्ति करके)
उत्तर :

  1. क्यारी विधि सिंचाई की उत्तम विधि है। (क्यारी/थाला)
  2. नमी की कमी के कारण अंकुरण अच्छा नहीं होता। (नमी/सूखा)
  3. कैंड़ विधि से आलू के खेत की सिंचाई की जाती है। (कूड़/थाला)
  4.  ड्रिप विधि में अधिक धन तथा कुशल श्रम की आवश्यकता होती है। (ड्रिप/प्रवाह)

प्रश्न 3.
निम्नलिखित कथनों में सही के सामने (✔)  तथा गलत के सामने (✘) का निशान लगाए (निशान लगाकर)

उत्तर :

  1. प्रवाह विधि से आलू की सिंचाई की जाती है।                          (✘)
  2. प्रवाह विधि में कम श्रम की आवश्यकता होती है।               (✔)
  3. क्यारी विधि से गेहूं की सिंचाई नहीं की जाती।                     (✘)
  4. कॅड़ विधि से गन्ने की सिंचाई की जाती है।                            (✘)
  5. थाला विधि से पपीते के बाग की सिंचाई की जाती है।          (✔)

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में स्तम्भ ‘क’ का स्तम्भ ‘ख’ से सुमेल कीजिए (सुमेल करके)

उत्तर :
UP Board Solutions for Class 8 Agricultural Science Chapter 7 सिंचाई की विधियाँ तथा जल निकास image 1

प्रश्न 5.
सिंचाई देर से करने पर फसलों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर :
सिंचाई देर से करने पर फसलों पर कुप्रभाव पड़ता है और पौधों का समुचित विकास नहीं हो पाता, जिससे उत्पादन पूरा नहीं मिल पाता।

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प्रश्न 6.
जल भराव से पौधों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर :
जड़ों की वृद्धि पर बुरा प्रभाव पड़ता है, पौधे मुरझाने लगते हैं। जड़ों द्वारा भूमि से पोषक तत्वों के अवशोषण की क्रिया रुक जाती है। रासायनिक पदार्थ विषैले पदार्थों में बदल जाते हैं। जिससे (UPBoardSolutions.com) फसलों की वृद्धि तथा विकास प्रभावित होता है।

प्रश्न 7.
छिड़काव विधि क्या है? भारत में यह विधि अभी तक अधिक लोकप्रिय क्यों नहीं हुई?

उत्तर :
छिड़काव विधि में पानी को पाइपों के द्वारा खेत तक लाया जाता है और स्वचालित यन्त्रों द्वारा छिड़काव करके सिंचाई की जाती है। कृषि कार्य में छिड़काव विधि सिंचाई की उत्तम विधि मानी जाती है। इस विधि में महँगे यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है। भारतीय किसान इन महँगे यन्त्रों को खरीद पाने में समर्थ नहीं है, इसलिए यह विधि भारत में लोकप्रिय नहीं हो सकी।

प्रश्न 8.
थाला विधि से सिंचाई के दो लाभ बताइए।

उत्तर :
थाला विधि के दो लाभ

  1. इस विधि से सिंचाई करने पर जल की बचत होती है क्योंकि पानी पूरे क्षेत्र में देने के बजाय प्रत्येक पौधे की जड़ के पास बने थालों में दिया जाता है।
  2. पौधे की जड़-तना सीधे जल सम्पर्क में नहीं आते, जिससे पौधे को कोई हानि नहीं होती।

प्रश्न 9.
जल जमाव से होने वाली दो हानियाँ बताइए।
उत्तर :
जल जमाव से होने वाली दो हानियाँ निम्नलिखित हैं

  1. मृदा वायु संचार और मृदा ताप में कमी होना।
  2. भूमि का दलदली होना और हानिकारक लवण इकट्ठे होना।

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प्रश्न 10.
उचित जल-निकास का मिट्टी पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :

  1. भूमि का ताप सन्तुलित हो जाता है, जिससे बीजों का अंकुरण अच्छा होता है।
  2. हानिकारक लवण बह जाते हैं। मृदा संरचना में सुधार हो जाता है।
  3. मृदा में जीवाणु क्रियाशीलता बढ़ जाती है, जिससे भूमि की उर्वरता बढ़ जाती है।

प्रश्न 11.
थाला विधि की सिंचाई का चित्र बनाइए।
उत्तर :
UP Board Solutions for Class 8 Agricultural Science Chapter 7 सिंचाई की विधियाँ तथा जल निकास image 2

प्रश्न 12.
आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने से फसल पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने से फसल पीली पड़ कर नष्ट होने लगती है। जड़ों द्वारा जल का अवशोषण कम हो जाता है और पौधे मुरझाने लगते हैं।

प्रश्न 13.
सिंचाई का अर्थ समझाइए। सिंचाई की कितनी विधियाँ हैं? किन्हीं दो विधियों सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर :
फसलों और बागों में पानी देने की प्रक्रिया को (UPBoardSolutions.com) सिंचाई करना कहा जाता है। सिंचाई की निम्नलिखित विधियाँ हैं

  1. जल-प्लवन या प्रवाह विधि
  2. क्यरी विधि
  3. कॅड़ विधि
  4. थाला विधि
  5. छिड़काव विधि
  6. ड्रिप (टपक) विधि

प्रवाह विधि : खेत में पलेवा करने व धान में सिंचाई हेतु काम में लाई जाती है। इस विधि में सिंचाई आसानी से होती है। समय की बचत होती है। गन्ना, धान जैसी फसलों को पर्याप्त पानी मिल जाता है।
हानि : इसमें पानी बहुत बेकार में खर्च होता है। जल का असमान वितरण होता है, ढालू खेतों के लिए अनुपयुक्त है।
ड्रिप (टपक) विधि : इसमें जल को पौधों की जड़ में बूंद-बूंद करके दिया जाता है। यह विधि ऊसर, बलुई तथा बाग के लिए उपयुक्त है। पी0वी0सी0 पाइप लाइन खेत में बिछाकर जगह-जगह नोजिल लगाए जाते हैं। इन पाइपों में 2.5 किग्रा वर्ग सेमी दबाव से जल छोड़ा जाता है जो धीरे-धीरे भूमि को नम करता है। (UPBoardSolutions.com)
लाभ : कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कम पानी से ज्यादा क्षेत्रफल में सिंचाई हो जाती है। जलहानि न्यूनतम होती है। भूमि समतलीकरण जरूरी नहीं।
हानि : शुरू में अधिक लागत आती है। स्वच्छ जल व तकनीकी ज्ञान की जरूरत होती है।

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प्रश्न 14.
प्रवाह तथा ड्रिप विधि के गुण और दोष लिखिए।

उत्तर :
प्रश्न 13 का उत्तर देखिए।

प्रश्न 15.
फलदार वृक्षों के लिए आप सिंचाई की किस विधि को अपनाएँगे और क्यों? वर्णन कीजिए।

उत्तर :
फलदार वृक्षों की सिंचाई के लिए थाला विधि अपनाई जाती है। इस विधि से सिंचाई करने पर जल की बचत होती है और पौधे पानी का समुचित उपयोग करते हैं, क्योंकि पानी जड़ों के पास थाला में दिया जाता है।

प्रश्न 16.
जल निकास का अर्थ समझाइए। जल जमाव से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर :
जल निकास का अर्थ :
खेतों से अतिरिक्त पानी निकालकर बहा देना जल निकास कहा जाता है। कृषि विज्ञान में इसका विशेष अर्थ है। जल निकास की निम्न विशेषताएँ हैं

  1. खेत में आवश्यकता से अधिक पानी भरने से रोकना ।
  2. खेत के अतिरिक्त पानी को बाहर निकालना।

जल जमाव से हानियाँ :
जल की अधिकता से निम्न हानियाँ होती हैं

  1. मृदा वायु संचार में नमी।
  2. मृदा ताप में कमी।
  3. मिट्टी में हानिकारक लवणों का इकट्ठा होना।
  4. भूमि का दलदली होना।
  5. लाभदायक मृदा जीवाणुओं के कार्यों में बाधा।

प्रश्न 17.
मृदा से जल निकास कितने प्रकार से किया जाता है? जल निकास की एक विधि का सचित्र वर्णन कीजिए।

उत्तर :
जल निकास की दो विधियाँ हैं

  1. सतही खुली नालियों द्वारा।
  2. भूमिगत बन्द नालियों द्वारा

खुली निकास नालियों में खेत सतह से 30 सेमी गहरी तथा लगभग 75 सेमी ऊँची और सीधी नालियाँ बनाई जाती । हैं। इन्हें आगे बड़ी नाली में मिलाया जाता है। बड़ी नानी को (UPBoardSolutions.com) प्राकृतिक नाले या नदी में डाला जाता है।

भूमिगत बन्द नालियाँ : ये वहाँ बनाई जाती हैं,जहाँ भूजल स्तर ऊँचा होता है। ये नालियाँ तीन प्रकार की होती हैं

  1. पोल जल निकास नालियाँ : लकड़ी के टुकड़ों को तिकोने आकार में रखकर ये जल निकास नालियाँ 80 से 90 सेमी गहरी, 30 सेमी चौड़ी बनाई जाती हैं।
  2. स्टोन जल निकास नाली : इनमें पत्थरों का प्रयोग किया जाता है।
  3. टाइल डेन्स : टाइल्स से बनी नालियाँ सर्वोत्तम होती हैं।

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प्रोजेक्ट कार्य :
नोट : विद्यार्थी स्वयं करें।

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 2 (Section 3)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 2 जलवायु (अनुभाग – तीन)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 2 जलवायु (अनुभाग – तीन).

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जलवायु से आप क्या समझते हैं ? जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों (परिघटनाओं) का वर्णन कीजिए। [2006, 11, 13]
या

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले किन्हीं दो तत्त्वों का वर्णन कीजिए। [2007, 08, 10]
या

भारत की जलवायु पर हिमालय की स्थिति (उच्चावच) के दो प्रभावों का उल्लेख कीजिए। [2010]
या

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले तीन कारकों को स्पष्ट कीजिए। [2013]
या
भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले किन्हीं पाँच कारकों का उल्लेख कीजिए। [2011, 13]
या

भारत की स्थिति का उसकी जलवायु पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
या
भारत की जलवायु पर हिमालय पर्वत का क्या प्रभाव पड़ता है ?
या
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले तीन कारकों को बताइए। [2015, 16]
उत्तर :

जलवायु

लम्बी अवधि (30 से 50 वर्षों) के दौरान मौसम सम्बन्धी दशाओं के साधारणीकरण को जलवायु कहते हैं, अर्थात् भू-पृष्ठ के विस्तृत क्षेत्र में मौसम की दशाओं की समग्र जटिलता, उसके औसत लक्षण और परिवर्तन का परिसर जलवायु कहलाता है। सामान्यतः (UPBoardSolutions.com) ये दशाएँ अनेक वर्षों की दशाओं का परिणाम होती हैं और ताप, वायुमण्डलीय दाब, वायु आर्द्रता, मेघ, वर्षण तथा अन्य मौसम तत्त्वों के कारण उत्पन्न होती हैं।

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

विभिन्न स्थानों पर भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं
1. अवस्थिति- भारत भूमध्य रेखा के उत्तर में 8°4′ तथा 37°6′ उत्तर अक्षांश तथा 68°7′ से 97°25 पूर्वी देशान्तर के बीच स्थित है। कर्क वृत्त रेखा देश के लगभग मध्य से होकर गुजरती है। इसीलिए देश का उत्तरी भाग उपोष्ण कटिबन्ध में तथा दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में पड़ता है। इस कटिबन्धीय स्थिति के कारण दक्षिणी भाग में ऊँचे तापमान तथा उत्तरी भाग में विषम तापमान पाये जाते हैं। भारत हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी से घिरा एक प्रायद्वीपीय देश है। इस प्रायद्वीपीय स्थिति का प्रभाव तापमानों तथा वर्षा पर पड़ता है। समुद्रतटीय भागों की जलवायु सम रहती है, जब कि आन्तरिक भागों में विषम जलवायु पायी जाती है। वर्षा की मात्रा भी तटीय भगों से आन्तरिक भागों की ओर घटती है।

2. पृष्ठीय पवनें- उपोष्ण कटिबन्धीय स्थिति के कारण भारत शुष्क व्यापारिक पवनों के क्षेत्र में पड़ता है, किन्तु भारत की विशिष्ट प्रायद्वीपीय स्थिति, तापमानों-वायुदाब की भिन्नता आदि कारणों से भारत में मानसूनी पवनें सक्रिय रहती हैं। ये पवनें ऋतु-क्रम से अपनी दिशा बदलती रहती हैं। तदनुसार भारत में ग्रीष्मकालीन (दक्षिण-पश्चिमी) मानसून तथा शीतकालीन (उत्तर-पूर्वी) मानसून सक्रिय होते हैं। इन्हीं मानसूनों से भारत को अधिकांश वर्षा प्राप्त होती है। अत: भारतीय मानसून के अध्ययन के बिना उसकी जलवायु के विषय में नहीं जाना जा सकता।

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3. उच्चावच (हिमाचल)– भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत-श्रेणी एक प्रभावशाली जलवायु विभाजक का कार्य करती है। यह उत्तरी बर्फीली पवनों को भारत में प्रवेश करने से रोकती है तथा दक्षिण की ओर से आने वाली मानसूनी पवनों को रोककर देश में व्यापक वर्षा कराती है। इसी प्रकार पश्चिमी घाट की पहाड़ियाँ भी अरबसागरीय मानसूनों को रोककर पश्चिमी ढालों पर भारी वर्षा कराती हैं। हिमालय रूपी पर्वत-श्रृंखला के कारण ही उत्तरी भारत में उष्ण-कटिबन्धीय जलवायु पायी जाती है। इस जलवायु की दो विशेषताएँ हैं—(i) पूरे वर्ष में अपेक्षाकृत उच्च तापमान तथा (ii) शुष्क शीत ऋतु। कुछ क्षेत्रों को छोड़कर पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में ये दोनों ही विशेषताएँ पायी जाती हैं।

4. उपरितन वायु- उपरितन वायु से अभिप्राय ऊपरी वायुमण्डल में चलने वाली वायुधाराओं से है। ये भूपृष्ठ से बहुत ऊँचाई पर (9 किमी से 12 किमी तक) तीव्र गति से चलती हैं। इन्हें जेट वायुधाराएँ भी कहते हैं। ये बहुत सँकरी पट्टी में चलती हैं। (UPBoardSolutions.com) शीत ऋतु में हिमालय के दक्षिणी भाग के ऊपर स्थित समताप मण्डल में पश्चिमी जेट वायुधारा चलती है। जून में यह उत्तर की ओर खिसक जाती है तथा 15° उत्तरी अक्षांश के ऊपर चलने लगती है। उत्तरी भारत में मानसून के अचानक विस्फोट के लिए यही वायुधारा उत्तरदायी मानी जाती है। इसके शीतल प्रभाव से बादल उमड़ने लगते हैं, फिर बरसते हैं। आठ-दस दिनों में ही पूरे देश में मानसून का प्रसार हो जाता है। ग्रीष्म ऋतु की अपेक्षा शीत ऋतु में इनका वेग दोगुना हो जाता है। साधारणत: इनको वेग लगभग 500 किमी प्रति घण्टा होता है तथा ध्रुवों की ओर बढ़ने पर इनके वेग में कमी आ जाती है।

5. अलनिनो- यह एक ऐसी मौसमी परिघटना है, जिसका प्रभाव समूचे विश्व पर पड़ता है। भारत की मानसूनी जलवायु भी इस परिघटना से प्रभावित होती है। इस तन्त्र में पूर्वी प्रशान्त महासागर के पीरू तट पर गर्म धारा प्रकट होने पर हिन्द महासागर में स्थित भारत में अकाल या वर्षा की कमी की स्थिति हो जाती है। अलनिनो के समाप्त होने पर प्रशान्त महासागर की सतह पर तापमान तथा वायुदाब की स्थिति पहले जैसी हो जाती है। इन उतार-चढ़ावों को दक्षिणी दोलन’ (Southern Oscillation) कहा जाता है। मानसूनों के प्रबल या दुर्बल होने में ‘दक्षिणी दोलन’ का बहुत प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 2.
भारत की ग्रीष्मकालीन एवं शीतकालीन जलवायु का वर्णन कीजिए।
या
भारतीय जलवायु का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए
(क) शीत ऋतु तथा (ख) ग्रीष्म ऋतु।
या
शीत ऋतु में दक्षिण भारत में वर्षा क्यों होती है ?
उत्तर :
भारत की ग्रीष्मकालीन जलवायु भारत में ग्रीष्मकालीन जलवायु मार्च से मध्य जून तक रहती है। इस ऋतु में देश में मौसम की सामान्य दशाएँ निम्नलिखित होती हैं

1. तापमान– 
सूर्य के उत्तरायण होने के कारण ऊष्मा की पेटी दक्षिण से उत्तर की ओर खिसकने लगती है। सम्पूर्ण देश में तापमान बढ़ने लगता है। अप्रैल में, गुजरात तथा मध्य प्रदेश में तापमान 42° से 43° सेल्सियस तक पहुँच जाता है। मई में, तापमान की वृद्धि 48° सेल्सियस तक हो जाती है तथा मरुस्थलीय क्षेत्र में 50° सेल्सियस तक तापमान पहुँच जाता है।

2. वायुदाब तथा पवनें– 
उत्तरी भारत में तापमानों की वृद्धि होने से वायुदाब घट जाता है। मई के अन्त तक एक लम्बा सँकरा निम्न वायुदाब गर्त थार मरुस्थल से लेकर बिहार में छोटा नागपुर के पठार तक विस्तृत हो जाता है। इस निम्न वायुदाब (UPBoardSolutions.com) गर्त के चारों ओर वायु का संचरण होने लगता है। दोपहर के बाद शुष्क और गर्म ‘लू (पवने) चलने लगती हैं। पंजाब, हरियाणा, पूर्वी राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में सायंकाल को धूलभरी आँधियाँ आती हैं। यदा-कदा आँधियों के बाद हल्की वर्षा हो जाती है तथा मौसम सुहाना हो जाता

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3. वर्षण– 
यदा-कदा आर्द्रता से लदी पवनें मानसून के निम्न दाब गर्त की ओर खिंच आती हैं। तब शुष्क और आर्द्र वायु-राशियों के मिलने से स्थानीय तूफान आते हैं। तेज पवनें, मूसलाधार वर्षा और कभी-कभी ओले भी पड़ते हैं।

केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में ग्रीष्म ऋतु के अन्त में तथा मानसून से पूर्व कुछ वर्षा होती है, जिसे स्थानीय रूप से ‘आम्रवर्षा’ कहते हैं। यह वर्षा आम के फल को शीघ्र पकाने में सहायक होती है, इसीलिए इसे ‘आम्रवृष्टि’ नाम दिया गया है। अप्रैल में, बंगाल और असोम में उत्तर-पश्चिमी तथा उत्तरी पवनों द्वारा मेघ गर्जन, तड़ित-झंझा के साथ तेज बौछारें पड़ती हैं। इन्हें ‘काल-बैसाखी’ कहते हैं। कभी-कभी इन पवनों के द्वारा इन क्षेत्रों को भारी हानि भी उठानी पड़ जाती है।

भारत की शीतकालीन जलवायु

भारत में शीतकालीन जलवायु दिसम्बर से फरवरी तक रहती है। इस जलवायु की सामान्य दशाएँ निम्नलिखित हैं

1. तापमान– सामान्यतः देश में तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर तथा समुद्र तट से आन्तरिक भागों की ओर घटते हैं। तिरुवनन्तपुरम् तथा चेन्नई में दिसम्बर में औसत तापमान 25°से 27°C के लगभग रहते हैं। दिल्ली और जोधपुर में तापमान 15° से 16°C तक रहते हैं। लेह में औसत तापमान -6°C तक गिर जाते हैं। उत्तरी मैदान में व्यापक रूप से पाला पड़ता है। इस ऋतु में दिन सामान्यतः कोष्ण (कम उष्ण) एवं रातें ठण्डी होती हैं।

2. वायुदाब- देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में उच्च वायुदाब क्षेत्र स्थापित होता है। यहाँ से पवनें बाहर की ओर 3 किमी से 5 किमी प्रति घण्टा के वेग से चलने लगती हैं। इस क्षेत्र की स्थलाकृति का प्रभाव भी इन पवनों पर पड़ता है। समुद्रवर्ती भागों में कम वायुदाब रहता है; अतः पवनें स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं। गंगा घाटी में इन पवनों की दिशा पश्चिमी या उत्तर-पश्चिमी होती है। गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा में इनकी दिशा उत्तरी हो जाती है। स्थलाकृति के प्रभाव से मुक्त होकर बंगाल की खाड़ी के ऊपर इनकी दिशा उत्तर- पूर्वी हो जाती है।

3. वर्षा- स्थलीय पवनें शुष्क होती हैं; अतः प्राय: सम्पूर्ण देश में मौसम शुष्क रहता है। भूमध्य सागर की ओर से आने वाले पश्चिमी विक्षोभों से कुछ वर्षा देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में होती है। हिमालय श्रेणी में हिमपात होता है। तमिलनाडु तट पर भी शीतकाल में वर्षा होती है। उत्तर-पूरब की ओर से चलने वाली स्थलीय मानसूनी पवनें जब बंगाल की खाड़ी को पार कर तमिलनाडु तट पर पहुँचती हैं, तो ये कुछ आर्द्रता ग्रहण (UPBoardSolutions.com) कर लेती हैं तथा तटों पर वर्षा करती हैं।

प्रश्न 3.
भारत में वर्षा के वार्षिक वितरण को स्पष्ट कीजिए तथा अपने उत्तर की पुष्टि रेखाचित्र से कीजिए।
या
भारतीय वर्षा के वितरण पर एक लेख लिखिए।
उत्तर :

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भारत में वर्षा का वार्षिक वितरण

भारत में वर्षा का वितरण बहुत विषम है। देश में कुल वर्षा का औसत लगभग 110 सेमी (40 इंच) है किन्तु इस सामान्य से वर्षा का विचलन 10% से 40% तक हो जाता है। सामान्यतः 85% वर्षा दक्षिण-पश्चिमी मानसूनों (जुलाई-सितम्बर) से प्राप्त होती है, लगभग 10% ग्रीष्मकालीन मानसूनों से, 5% लौटते हुए मानसूनों से (अक्टूबर-दिसम्बर) तथा 5% शीतकाल में होती है। देश में वर्षा का प्रादेशिक वितरण भी बहुत असमान रहता है। सामान्य रूप से भारत में वर्षा की निश्चितता तथा अनिश्चितता के आधार पर उसे दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
1. निश्चित वर्षा के प्रदेश- इस प्रदेश के अन्तर्गत हिमालय को तराई प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, असोम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नागालैण्ड, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल, ऊपरी नर्मदा घाटी तथा मालाबार तट सम्मिलित किये जाते हैं।
2. अनिश्चित वर्षा के प्रदेश- अनिश्चित वर्षा के प्रदेश में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात के मध्यवर्ती भाग, पूर्वी घाट, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश के दक्षिणी और पश्चिमी भाग, कर्नाटक, बिहार तथा ओडिशा सम्मिलित हैं। अनिश्चित वर्षा वाले प्रदेशों को निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है

  • अधिक वर्षा वाले क्षेत्र– इसके अन्तर्गत पश्चिमी तट के कोंकण, मालाबार, दक्षिणी कनारा तथा उत्तर में हिमालय के दक्षिणी क्षेत्र में उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मेघालय, असोम, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर तथा (UPBoardSolutions.com) त्रिपुरा राज्य सम्मिलित हैं। इन क्षेत्रों में वर्षा का औसत 200 सेमी से अधिक रहता है।
  • साधारण वर्षा वाले क्षेत्र– इन क्षेत्रों में बिहार, ओडिशा, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी घाट के पूर्वोत्तर ढाल, पश्चिम बंगाल, दक्षिणी उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश सम्मिलित हैं। यहाँ वर्षा का औसत 100 से 200 सेमी के मध्य रहता है। इन क्षेत्रों में वर्षा की विषमता 15 से 20% तक पायी जाती है। कभी-कभी इन क्षेत्रों में अधिक वर्षा होने से बाढ़ आ जाती है, जबकि कभी वर्षा
    UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 2 जलवायु 1
    की कमी से अकाल पड़ जाते हैं। इस प्रकार इन क्षेत्रों में वर्षा की अधिकता एवं कमी में मानसूनों का प्रमुख योगदान होता है। इसी कारण यहाँ बड़ी-बड़ी बहुउद्देशीय नदी-घाटी परियोजनाएँ क्रियान्वित की गयी हैं।
  • न्यून वर्षा वाले क्षेत्र– इन क्षेत्रों में वर्षा की कमी अनुभव की जाती है। यहाँ पर वर्षा का वार्षिक औसत 50 से 100 सेमी तक रहता है। इस प्रदेश के अन्तर्गत दक्षिण का प्रायद्वीप, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी मध्य प्रदेश, उत्तरी एवं दक्षिणी आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, पूर्वी राजस्थान, दक्षिणी पंजाब तथा दक्षिणी उत्तर प्रदेश राज्यों के भाग सम्मिलित हैं। वर्षा की विषमता 20 से 25 सेमी तक तथा अपर्याप्त व अनिश्चित रहती है। इन प्रदेशों में अकाल की सम्भावना बनी रहती है। अतः यहाँ सिंचाई के सहारे गेहूँ, कपास, ज्वार, बाजरा, तिलहन आदि फसलें उत्पन्न की जाती हैं।
  • अपर्याप्त वर्षा के क्षेत्र अथवा मरुस्थलीय क्षेत्र- ये भारत के शुष्क क्षेत्र हैं, जहाँ पर 50 सेमी से भी कम वर्षा होती है। वर्षा की कमी के कारण यहाँ सदैव सूखे की समस्या बनी रहती है। बिना सिंचाई के कृषि कार्य इन क्षेत्रों में बिल्कुल असम्भव है। (UPBoardSolutions.com) पश्चिमी राजस्थान के सम्पूर्ण क्षेत्र इसके अन्तर्गत आते हैं। तमिलनाडु का रायलसीमा क्षेत्र भी इसके अन्तर्गत आता है।

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प्रश्न 4.
भारत की अधिकांश वर्षा गर्मियों में होती है-कारणों का उल्लेख करते हुए भारत में वर्षा का वितरण लिखिए।
या
भारत की मानसून ऋतु का वर्णन कीजिए।
या
दक्षिण-पश्चिमी मानसून की वर्षा से प्रभावित किन्हीं दो क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए। [2010]
या
भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून द्वारा होने वाली वर्षा का वर्णन कीजिए।
या
आगे बढ़ता हुआ मानसून’-भारत की इस ऋतु का वर्णन कीजिए।
उत्तर :

भारत की वर्षा ऋतु (मानसून ऋतु)

वर्षा ऋतु ( आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु )–जून से सितम्बर के मध्य सम्पूर्ण देश में व्यापक रूप से वर्षा होती है। वर्षा का 75% से 90% भाग इसी अवधि में प्राप्त हो जाता है।
दक्षिण-पश्चिमी मानसून की उत्पत्ति- ग्रीष्म ऋतु में देश के उत्तर-पश्चिमी मैदानी भागों में निम्न वायुदाब का क्षेत्र विकसित हो जाता है। जून के प्रारम्भ तक निम्न वायुदाब का यह क्षेत्र इतना प्रबल हो जाता है कि दक्षिण गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनें भी इस ओर खिंच आती हैं। इन दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनों की उत्पत्ति समुद्र से होती है। हिन्द महासागर में विषुवत् वृत्त को पार करके ये पवनें बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर में पहुँच जाती हैं। इसके बाद ये भारत के वायु-संचरण का अंग बन जाती हैं। विषुवतीय गर्म धाराओं के ऊपर से गुजरने के कारण ये भारी मात्रा में आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं। विषुवत् वृत्त पार करते ही इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम हो जाती है। इसीलिए इन्हें दक्षिण-पश्चिमी मानसून’ कहा जाता है।

मानसून का फटना- वर्षावाहिनी पवनें बड़ी तेज चलती हैं। इनकी औसत गति 30 किमी प्रति घण्टा होती है। उत्तर-पश्चिम के दूरस्थ भागों को छोड़कर ये पर्वनें एक महीने के अन्दर-अन्दर सारे भारत में फैल जाती हैं। आर्द्रता से लदी इन पवनों के साथ ही (UPBoardSolutions.com) बादलों का प्रचण्ड गर्जन तथा बिजली का चमकना शुरू हो जाता है। इसे मानसून का ‘फटना’ अथवा ‘टूटना’ कहते हैं।

दक्षिण-पश्चिमी मानसून की शाखाएँ- भारत की प्रायद्वीपीय स्थिति के कारण मानसून की दो शाखाएँ। हो जाती हैं
(1) अरब सागर की शाखा- अरब सागर की शाखा सबसे पहले पश्चिमी घाट के पर्वतों से टकराकर सह्याद्रि के पवनाभिमुख ढालों पर भारी वर्षा करती है। पश्चिमी घाट को पार करके यह शाखा दकन के पंठार और मध्य प्रदेश में पहुँच जाती है। वहाँ भी इससे पर्याप्त मात्रा में वर्षा होती है। तत्पश्चात् इसका प्रवेश गंगा के मैदानों में होता है, जहाँ बंगाल की खाड़ी की शाखा भी आकर इसमें मिल जाती है। अरब सागर के मानसून की शाखा का दूसरा भाग सौराष्ट्र के प्रायद्वीप तथा कच्छ में पहुँच जाता है। इसके बाद यह पश्चिमी राजस्थान और अरावली पर्वत-श्रेणियों के ऊपर से गुजरता है। वहाँ इसके द्वारा बहुत हल्की वर्षा होती है। पंजाब और हरियाणा में पहुँचकर यह शाखा भी बंगाल की खाड़ी की शाखा में मिलकर हिमालय के पश्चिमी भाग में भारी वर्षा करती है।
(2) बंगाल की खाड़ी की शाखा- बंगाल की खाड़ी की मानसून शाखा म्यांमार (बर्मा) तट की ओर तथा बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्वी भागों की ओर बढ़ती है। परन्तु म्यांमार के तट के साथ-साथ फैली अराकान पहाड़ियाँ इस शाखा के बहुत बड़े भाग को भारतीय उपमहाद्वीप की दिशा में मोड़ देती हैं। इस प्रकार यह पश्चिमी दिशा से न आकर दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्वी दिशाओं से आती है। विशाल हिमालय तथा उत्तर-पश्चिमी भारत के निम्न वायुदाब के प्रभाव से यह शाखा दो भागों में बँट जाती है। एक शाखा पश्चिम की ओर बढ़ती है तथा गंगा के मैदानों को पार करती हुई पंजाब के मैदानों तक पहुँचती है। इसकी दूसरी शाखा ब्रह्मपुत्र की घाटी की ओर बढ़ती है। यह उत्तर-पूर्वी भारत में भारी वर्षा करती है। इसकी एक उपशाखा मेघालय में गारो और खासी की पहाड़ियों से टकराती है और वहाँ खूब वर्षा करती है। सबसे अधिक वर्षा मॉसिनराम (Mausinram) (मेघालय) में होती है। यहाँ वार्षिक वर्षा को औसत 11,405 मिलीमीटर है।

वर्षा का वितरण– दक्षिण-पश्चिमी मानसून से होने वाली वर्षा के वितरण पर उच्चावच का बहुत प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए-पश्चिमी घाट के पवनविमुख ढालों पर 250 सेमी से अधिक वर्षा होती है। इसके विपरीत पश्चिमी घाट के पवनाभिमुख ढालों पर 50 सेमी से भी कम वर्षा होती है। इसी प्रकार उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी भारी वर्षा होती है, परन्तु उत्तरी मैदानों में वर्षा की मात्रा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है। इस विशिष्ट ऋतु में (UPBoardSolutions.com) कोलकाता में लगभग 120 सेमी, पटना में 102 सेमी, इलाहाबाद में 91 सेमी तथा दिल्ली में 56 सेमी वर्षा होती है।

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प्रश्न 5.
भारतीय जलवायु के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
या
भारतीय जलवायु में पायी जाने वाली विषमताओं तथा कृषि पर उनके प्रभाव का वर्णन कीजिए।
या
भारत में मानसून के किन्हीं दो प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भारतीय जलवायु के मुख्य तत्त्व-तापमान तथा वर्षा हैं। समस्त देश में तापमानों तथा वर्षा का वितरण असमान पाया जाता है। इन विषमताओं का प्रभाव भारतीय कृषि पर स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। भारत की जलवायु में बहुत अधिक विषमताएँ पायी जाती हैं। इन विषमताओं को उत्पन्न करने में निम्नलिखित कारक सहायक होते हैं

1. तापमानों की विषमताएँ- देश के विभिन्न भागों में तापमानों की भिन्नता पायी जाती है। दक्षिणी | भारत उष्ण कटिबन्ध में पड़ता है; अत: वहाँ वर्षपर्यन्त ऊँचे तापमान रिकॉर्ड किये जाते हैं। इसके विपरीत, कर्क रेखा के उत्तर के क्षेत्र उपोष्ण कटिबन्धीय स्थिति के कारण ग्रीष्म तथा शीत ऋतु में तापमानों की अतिशयताओं का अनुभव करते हैं। हिमालय के पर्वतीय भागों में तो शीत काल में तापमान शून्य के ऊपर रहते हैं। मरुस्थलीय भागों में शीत काल में बहुत कम तापमान तथा ग्रीष्म काल में बहुत ऊँचे तापमान पाये जाते हैं।

2. वर्षा के वितरण की विषमताएँ- देश में वर्षा का प्रादेशिक वितरण बहुत विषम है। मेघालय, असम, बंगाल आदि में 200 सेमी से अधिक वार्षिक वर्षा होती है, जब कि गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में वार्षिक वर्षा का वितरण औसत 25 सेमी से 100 सेमी तक रहता है। आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा दकन के पठार के आन्तरिक भागों में 50 से 100 सेमी तक वार्षिक वर्षा होती है। इसी प्रकार पूर्वी हिमालय में 200 सेमी से अधिक तथा पश्चिमी हिमालय में 100 से 150 सेमी तक वार्षिक वर्षा होती है। हम जानते हैं कि वायुराशियों द्वारा अवरोधं के सम्मुख वाले भाग में अत्यधिक (UPBoardSolutions.com) वर्षा होती है, जब कि विमुख भागों तक पहुँचते-पहुंचते वायुराशियाँ अपनी आर्द्रता खो देने के कारण शुष्क और उष्ण हो जाती हैं और वहाँ बहुत कम वर्षा ही हो पाती है। इन प्रदेशों को वृष्टिछाया प्रदेश कहते हैं; उदाहरणार्थ-भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों की अरब सागरीय शाखा द्वारा पश्चिमी घाट के वायु अभिमुख ढाल पर 640 सेमी (महाबलेश्वर) वर्षा होती है, जब कि इसके विमुख ढाल पर पुणे में 50 सेमी वर्षा भी कठिनाई से हो पाती है; अत: दक्षिणी भारत का यह क्षेत्र-वृष्टिछाया प्रदेश कहलाता है।

3. वर्षा की ऋत्विक विषमताएँ- देश के अधिकांश भागों में जुलाई से सितम्बर के मध्य अधिकांश वर्षा (85% तक) होती है, किन्तु तमिलनाडु में शीतकालीन तथा लौटते हुए मानसूनों से अधिक वर्षा होती है। उत्तरी भारत में चक्रवातों से शीत ऋतु में वर्षा प्राप्त होती है। पर्वतीय क्षेत्रों में हिमपात होता है।

4. वर्षा का सामान्य से विचलन– प्रत्येक वर्ष मानसून एक जैसे सक्रिय नहीं होते। किसी वर्ष सामान्य से अधिक वर्षा होती है तथा किसी वर्ष सामान्य से कम। वर्षा की यह अनियमित तथा अनिश्चित प्रकृति प्रादेशिक रूप से भी दृष्टिगोचर होती है। इसीलिए देश के कुछ भागों में जब बाढ़े आती हैं, तब कुछ भागों में सूखे की स्थिति भी होती है।

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जलवायु की विषमता का कृषि-उपजों या मानव-जीवन पर प्रभाव

भारत की जलवायु मानसूनी है। मानसून की विलक्षणता के कारण इसे ‘भारत के आर्थिक जीवन की धुरी’ कहा गया है। पर्यावरण के सभी अंगों में जलवायु मानव-जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करती है। मनुष्य की वेशभूषा, खान-पान, गृह-प्रकार, जन-स्वास्थ्य आदि सभी पर जलवायु का गहरा प्रभाव पड़ता है। इसके निम्नलिखित प्रभाव उल्लेखनीय हैं

  1. भारत में खरीफ फसलों की बुवाई वर्षा के आरम्भ होने के साथ शुरू हो जाती है। यदि वर्षा समय से प्रारम्भ हो जाती है और नियमित अन्तराल पर होती रहती है तो कृषि उत्पादन पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होता है।
  2. जिन भागों में कम वर्षा होती है अथवा सूखा पड़ता है वहाँ कृषि फसलें सिंचाई के बिना पैदा नहीं की जा सकती हैं।
  3. अत्यधिक उष्णता एवं आर्द्रता बीमारियों को जन्म देती हैं। इनसे मनुष्य पुरुषार्थहीन हो जाता है तथा उसकी कार्यक्षमता में कमी आती है।
  4. ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी भारत में तापमान बहुत ऊँचे हो जाते हैं और (UPBoardSolutions.com) ‘लू’ चलने लगती है, जिससे खेतों में काम करना भी कठिन हो जाता है।
  5. मूसलाधार वर्षा से बाढ़ आ जाती हैं और बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में कृषि-फसलें नष्ट हो जाती हैं।
  6. भीषण गर्मी के बाद वर्षा का मौसम आरम्भ हो जाता है, जो मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है। इससे अनेक संक्रामक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। देश के कुछ भागों में मलेरिया व हैजा जैसे रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
  7. मानव की वेशभूषा भी जलवायु से प्रभावित होती है। उत्तर भारत में लोग शीत ऋतु में ऊनी कपड़े पहनते हैं तथा दक्षिण भारत में सफेद हल्के व सूती वस्त्र पहने जाते हैं।
  8. समय से पूर्व वर्षा आरम्भ होने तथा समय से पहले वर्षा समाप्त होने से भी आर्थिक क्रिया- कलाप प्रभावित होते हैं।
  9. जलवायु का प्रभाव घरों के निर्माण पर भी पड़ता है। भारत में मकान हवादार बनाये जाते हैं। उनमें आँगन व बरामदों की अधिक आवश्यकता होती है, क्योंकि भारत में ग्रीष्म काल की अवधि लम्बी होती है, जब कि शीत ऋतु थोड़े समय के लिए ही होती है।
  10. भारत में ग्रीष्म ऋतु में हरे चारे की कमी हो जाती है, जिससे पशुओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  11. भारत के कुछ प्रदेशों; विशेषकर पंजाब में गेहूं व गन्ना की फसलों को लाभ मिलता है।
  12. भारत के वित्तीय बजट को ‘मानसून का जुआ’ कहा गया है, क्योंकि भारत में किसी वर्ष वर्षा बहुत | कम होती है, जिससे फसलें नष्ट हो जाती हैं और देश में अकाल पड़ जाता है तथा कभी-कभी वर्षा अधिक हो जाती है, जिसके (UPBoardSolutions.com) कारण नदियों में बाढ़ आ जाती है। इससे भी फसलें नष्ट हो जाती हैं।
  13. भारत की जलवायु ने कृषकों को भाग्यवादी एवं निराशावादी बना दिया है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि मानसूनी वर्षा के रूप में भारतीय जलवायु कृषि-उपजों को सर्वाधिक प्रभावित करती है।

प्रश्न 6.
भारत की जलवायु की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। [2013]
या

भारतीय जलवायु की किन्हीं पाँच विशेषताओं की विवेचना कीजिए। [2013]
या
सम और विषम जलवायु में अन्तर लिखिए।
या
विषम जलवायु से क्या अभिप्राय है ? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
या
मानसूनी जलवायु की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2016]
उत्तर :
भारत की स्थिति भूमध्य रेखा के उत्तर में है और कर्क रेखा देश के मध्य से गुजरती है। कर्क रेखा देश को दो भागों में विभाजित कर देती है। इस प्रकार भारत का उत्तरी भाग उपोष्ण कटिबन्ध तथा दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। भारत में उत्तर की ओर हिमालय पर्वत-श्रेणी तथा दक्षिण-पूर्वी एवं दक्षिण-पश्चिमी दिशाओं में हिन्द महासागर की स्थिति है, जिन्होंने इसकी जलवायु को बहुत प्रभावित किया है। इसी कारण (UPBoardSolutions.com) भारत में विविध प्रकार की जलवायु दशाएँ पाई जाती हैं। वस्तुतः भारत की जलवायु पूर्णतः मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है। जिन भागों में मानसूनों के मार्ग में कोई अवरोध उपस्थित होता है, उन क्षेत्रों में वर्षा अधिक होती है; जैसे–पश्चिमी घाट तथा हिमालय पर्वत के दक्षिणी ढालों पर।

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एक स्थान से दूसरे स्थान और एक ऋतु से दूसरी ऋतु में तापमान एवं वर्षण में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। ग्रीष्म ऋतु में भारत के पश्चिम में स्थित थार मरुस्थल में इतनी प्रचण्ड गर्मी पड़ती है कि तापमान प्रायः 55° सेल्सियस तक पहुँच जाता है, जब कि शीत ऋतु में कश्मीर राज्य के लद्दाख क्षेत्र के लेह नगर में इतनी कड़ाके की ठण्ड पड़ती है कि तापमान जमाव बिन्दु से 45° सेल्सियस तक नीचे चला जाता है; अर्थात् -45° सेल्सियस तक चला जाता है। केरल और अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में दिन और रात के तापमान में 7° या 8° सेल्सियस का अन्तर पाया जाता है। इसके विपरीत थार मरुस्थल में यदि दिन का तापमान 50° सेल्सियस रहता है तो रात में यह जमाव बिन्दु 0° तक पहुँच सकता है। जब हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में हिमपात होता है, तब शेष भारत में वर्षा की बौछारें पड़ती हैं। कुछ विदेशी विद्वानों ने भारत को अनेक जलवायु वाला देश बताया है। ब्लैनफोर्ड (Blanford) का कथन है कि “हम भारत की जलवायुओं के विषय में कह सकते हैं, जलवायु के विषय में (UPBoardSolutions.com) नहीं, क्योंकि सम्पूर्ण विश्व में जलवायु की इतनी विषमताएँ नहीं मिलतीं जितनी अकेले भारत में प्रसिद्ध जलवायु विज्ञानवेत्ता मार्सडेन ने भी कहा है कि “विश्व की समस्त जलवायु की किस्में भारत में पाई जाती हैं।” स्पष्ट है कि भारत में विभिन्न प्रकार की जलवायु दशाएँ पाई जाती हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान और एक ऋतु से दूसरी ऋतु में तापमान, वायुदाब तथा पवनें एवं वर्षण में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। भारत में प्रमुख रूप से दो प्रकार की जलवायु पाई जाती हैं—(1) सम और (2) विषम।

1. समजलवायु- सम जलवायु उस जलवायु को कहा जाता है जहाँ गर्मियों में न अधिक गर्मी पड़ती है। और ने सर्दियों में अधिक सर्दी। जहाँ तापमान वर्षभर लगभग समान रहता है। ऐसी जलवायु प्रायः . समुद्र के तटीय प्रदेशों में पाई जाती है। समुद्र के प्रभाव के कारण तटीय क्षेत्रों में सम जलवायु पाई जाती है। ऐसी जलवायु में दैनिक तथा वार्षिक तापान्तर बहुत ही कम पाया जाता है। केरल के तिरुवनन्तपुरम् में इसी प्रकार की जलवायु पाई जाती है।

2. विषम जलवायु- विषम जलवायु उस जलवायु को कहा जाता है जहाँ गर्मियों में अत्यधिक गर्मी तथा सर्दियों में अधिक सर्दी पड़ती है। जहाँ तापमान वर्षभर असमान रहता है। ऐसी जलवायु महाद्वीपों के आन्तरिक भागों अथवा समुद्र से दूर के भागों में पाई जाती है। सूर्य की किरणों से जल की अपेक्षा धरती दिन में जल्दी गर्म और रात में जल्दी ठण्डी हो जाती है। अत: धरती के प्रभाव के कारण विषम जलवायु का जन्म होता है। ऐसी जलवायु में दैनिक तापान्तर और वार्षिक तापान्तर अपेक्षाकृत अधिक पाया जाता है। जोधपुर (राजस्थान) तथा अमृतसर (पंजाब) में इसी प्रकार की जलवायु पाई जाती है।

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प्रश्न 7.
भारत में मानसून की उत्पत्ति तथा वर्षा का वितरण बताइट। [2013, 14]
या
भारत में मानसून की उत्पत्ति पर प्रकाश डालिए। [2015]
या
निम्नलिखित शीर्षकों में भारत में मानसूनी वर्षा का वर्णन कीजिए [2015]
(क) वायु की दिशा, (ख) वर्षा का वितरण।
उत्तर :
मानसून का अर्थ , मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से हुई है जिसका तात्पर्य मौसम या ऋतु है। मौसम का आवर्तन मानसूनी जलवायु की प्रमुख विशेषता है। भारत में इस प्रकार की हवाएँ वर्ष में दो बार उच्च वायु भार से (UPBoardSolutions.com) निम्न वायु भार की ओर चलती हैं। ग्रीष्म ऋतु में ये हवाएँ समुद्र से स्थल की ओर चलती हैं, जबकि शीत ऋतु में ये हवाएँ स्थल से समुद्र की ओर बहती हैं। ग्रीष्म ऋतु तथा शीत ऋतु के मौसम के मध्य पवनों की दिशा में 120° का अन्तर पाया जाता है। इन पवनों की न्यूनतम गति तीन मीटर प्रति सेकण्ड होती है, इसलिए इन्हें मानसूनी पवनें कहते हैं।

मानसून की रचना

मानसून की रचना के सम्बन्ध में अनेक मत प्रचलित हैं। इसके लिए सबसे मुख्य और प्राचीन मत है स्थलीय और जलीय हवाएँ जो शीत ऋतु में स्थल की ओर और ग्रीष्म ऋतु में जल की ओर बहती हैं। ग्रीष्म ऋतु में अधिक तापमान के कारण स्थर पर निम्न वायुदाब का केन्द्र बन जाता है जिससे हवाएँ समुद्र से स्थल की ओर चलने लगती हैं, जबकि शीत ऋतु में इसके बिल्कुल विपरीत होता है। समुद्री भाग पर निम्न वायुदाब के केन्द्र के कारण हवाएँ स्थल से समुद्र की ओर बहती हैं। आधुनिक शोधों के कारण अब यह मत मान्य नहीं है। अब वैज्ञानिक मानसून की उत्पत्ति के लिए जेट पवनों को महत्त्वपूर्ण मानते हैं। इस मत के अनुसार । मानसून की उत्पत्ति वायुमण्डलीय पवन के संचार से होती है जिसमें तिब्बत का पठार मुख्य है। ऊँचाई पर स्थित होने के कारण ये पठार गर्म होकर भट्ठी की तरह (UPBoardSolutions.com) काम करता है। इस कारण इन अक्षांशों (20° उत्तरी अक्षांश से 20° दक्षिणी अक्षांश) में धरातल एवं क्षोभमण्डल के बीच वायु का एक आवृत्त बन जाता है।

क्षोभमण्डल में उष्णकटिबन्धीय पुरवा जेट तथा उपोष्ण कटिबन्धीय पछुआ जेट धाराओं के चलने से वायुमण्डल की आर्द्रतायुक्त हवाएँ ऊपर क्षोभमण्डल में पहुँचकर विभिन्न दिशाओं में फैल जाती हैं और निम्न क्षोभमण्डल में बहने लगती हैं। अधिक ऊँचाई पर पहुँचकर यही हवाएँ घनीभूत होकर भारतीय महाद्वीप में मानसूनी पवनों को उत्पन्न करती हैं, जिनसे समस्त भारत में वर्षा होती है।

वर्षा का वितरण- इसके लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 का उत्तर देखें।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वर्षा और वर्षण में अन्तर लिखिए।
उत्तर :
वर्षा- 
यह वर्षण का एक विशिष्ट रूप है, जिसमें बादलों के जल-वाष्प कण संघनित होकर जल की बूंदों या हिमकणों के रूप में भू-पृष्ठ पर गिरते हैं। जलवर्षा तथा हिमवर्षा इसके दो रूप हैं। वर्षण–यह एक व्यापक प्रक्रिया है, जिसमें वायुमण्डल की आर्द्रता संघनित होकर वर्षा, हिम, ओला, पाला
आदि रूपों में धरातल पर गिरती है। जल-वर्षा, वर्षण का एक साधारण रूप है। हिमवृष्टि, ओलावृष्टि, हिमपात आदि इसके अनेक रूप हैं।

प्रश्न 2.
भारत में कितनी ऋतुएँ होती हैं ? कौन-सी ऋतु कृषि के लिए महत्त्वपूर्ण है और क्यों ?
उत्तर :
भारत की जलवायु मानसूनी है। मानसूनों की प्रगति के आधार पर देश में चार ऋतुएँ होती हैं

  • आगे बढ़ते हुए मानसून (दक्षिण-पश्चिमी मानसून) की ऋतु अर्थात् वर्षा ऋतु,
  • लौटते हुए मानसून की ऋतु अर्थात् शरद् ऋतु,
  • शीत ऋतु (उत्तर-पूर्वी मानसून) तथा
  • ग्रीष्म ऋतु।। देश की कृषि पर ऋतुओं का प्रभाव महत्त्वपूर्ण होता है। कृषि का आधार वर्षा है तथा देश की अधिकांश वर्षा आगे बढ़ते हुए मानसून (जुलाई से सितम्बर के मध्य) द्वारा होती है। इसलिए यह ऋतु, जिसे वर्षा ऋतु भी कहते हैं, कृषि के लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि
  1. इसी ऋतु में देश की 75 से 90% तक वर्षा होती है।
  2. वर्षा की अवधि तथा मात्रा का वितरण देशभर में (UPBoardSolutions.com) असमान है। इसका कृषि पर बहुत प्रभाव पड़ता है। उत्तरी मैदान में वर्षा की मात्रा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती है, जबकि प्रायद्वीपीय भारत में पश्चिम से | पूरब की ओर वर्षा की मात्रा घटती है।
  3. वर्षा के वितरण का कृषि के प्रकार तथा फसलों के उत्पादन से गहरा सम्बन्ध है।
  4. आगे बढ़ते हुए मानसून ही देश की कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था की आधारशिला है। इसीलिए भारतीय कृषि को ‘मानसून का जुआ’ कहा जाता है।

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प्रश्न 3.
आम्रवृष्टि’ और ‘काल-बैसाखी’ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
आम्रवृष्टि-ग्रीष्म ऋतु के अन्त में केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में मानसून से पूर्व की वर्षा का यह स्थानीय नाम इसलिए पड़ा है; क्योकि यह वर्षा आम के फलों को शीघ्र पकाने में सहायता करती है। काल-बैसाखी-ग्रीष्म ऋतु में बंगाल तथा असोम में भी उत्तर-पश्चिमी तथा उत्तरी पवनों द्वारा वर्षा की तेज बौछारें पड़ती हैं। यह वर्षा प्रायः सायंकाल में होती है। इसी वर्षा को काल-बैसाखी’ कहते हैं। इसका अर्थ है-बैसाख मास की काल।

प्रश्न 4.
भारत में आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु की तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
भारत में आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • भारत में आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु जून से सितम्बर तक रहती है। इस ऋतु में समस्त भारत में वर्षा होती है।
  • वर्षा ऋतु की अवधि दक्षिण से उत्तर की ओर (UPBoardSolutions.com) तथा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है। देश के सबसे उत्तर-पश्चिमी भागों में यह अवधि केवल दो महीने की होती है।
  • देश की 75 से 90% वर्षा इसी ऋतु में होती है।

प्रश्न 5.
भारत में कम वर्षा वाले तीन क्षेत्र कौन-कौन-से हैं ?
उत्तर:
कम वर्षा वाले क्षेत्रों से अभिप्राय ऐसे क्षेत्रों से है, जहाँ 50 सेमी से भी कम वार्षिक वर्षा होती है। ये क्षेत्र हैं

  • पश्चिमी राजस्थान तथा इसके निकटवर्ती पंजाब, हरियाणा तथा गुजरात के क्षेत्र।
  • सह्याद्रि के पूर्व में फैले दकन के पठार के आन्तरिक भाग।
  • कश्मीर में लेह के आस-पास का प्रदेश।

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प्रश्न 6.
जाड़ों में वर्षा वाले भारत के दो क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए। [2018]
उत्तर:
शीत ऋतु में स्थलीय पवनें शुष्क होती हैं; अतः प्रायः सम्पूर्ण देश में मौसम शुष्क रहता है। परन्तु निम्नलिखित दो क्षेत्रों में जाड़ों में भी वर्षा होती है

  • देश के उत्तर-पश्चिमी भाग-भूमध्य सागर की ओर से आने वाले पश्चिमी विक्षोभों से कुछ वर्षा देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में होती है।
  • तमिलनाडु तट-तमिलनाडु तट पर भी शीतकाल में वर्षा (UPBoardSolutions.com) होती है। उत्तर-पूरब की ओर से चलने वाली स्थलीय मानसून पवनें जब बंगाल की खाड़ी को पार कर तमिलनाडु तट पर पहुँचती हैं, तो ये कुछ आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं तथा तटों पर वर्षा करती हैं।

प्रश्न 7.
जलवायु का प्राकृतिक वनस्पति व जीव-जन्तुओं पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
पर्यावरण के सभी अंगों में जलवायु मानव-जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करती है। भारत में कृषि राष्ट्र के अर्थतन्त्र की धुरी है, जो वर्षा की विषमता से सबसे अधिक प्रभावित होती है। मानसूनी वर्षा बड़ी ही अनियमित एवं अनिश्चित है। जिस वर्ष वर्षा अधिक एवं मूसलाधार रूप में होती है तो अतिवृष्टि के परिणामस्वरूप बाढ़ आ जाती हैं तथा भारी संख्या में धन-जन का विनाश करती हैं। इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में वर्षा कम होती है या अनिश्चितता की स्थिति होती है तो अनावृष्टि के कारण सूखा पड़ जाता है, जिससे फसलें सूख जाती हैं तथा पशुधन को भी पर्याप्त हानि उठानी पड़ती है। जलवायु का प्राकृतिक वनस्पति व जीव-जन्तुओं पर प्रभाव निम्नलिखित है-

1. प्राकृतिक वनस्पति पर प्रभाव- किसी देश की प्राकृतिक वनस्पति न केवल धरातल और मिट्टी के गुणों पर निर्भर करती है, वरन् वहाँ के तापमान और वर्षा का भी उस पर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि पौधे के विकास के लिए वर्षा, तापमान, प्रकाश और वायु की आवश्यकता पड़ती है; उदाहरणार्थभूमध्यरेखीय प्रदेशों में निरन्तर तेज धूप, कड़ी गर्मी और अधिक वर्षा के कारण ऐसे वृक्ष उगते हैं; जिनकी पत्तियाँ घनी, ऊँचाई बहुत और लकड़ी अत्यन्त कठोर होती है। इसके विपरीत मरुस्थलों में काँटेदार झाड़ियाँ भी बड़ी कठिनाई से उग पाती हैं; क्योंकि यहाँ वर्षा का अभाव होता है। वास्तव में जलवायु वनस्पति का प्राणाधार है।

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2. जीव-जन्तुओं पर प्रभाव– जलवायु की विविधता ने प्राणियों में भी विविधता स्थापित की है। जिस प्रकार विभिन्न जलवायु में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ पायी जाती हैं, वैसे ही विभिन्न जलवायु प्रदेशों में अनेक प्रकार के जीव-जन्तु पाये जाते हैं; उदाहरणार्थ-कुछ जीव-जन्तु वृक्षों की शाखाओं पर रहकर सूर्य की गर्मी और प्रकाश प्राप्त करते हैं; जैसे-नाना प्रकार के बन्दर, चमगादड़ आदि। इसके विपरीत कुछ जीव-जन्तु जल में निवास (UPBoardSolutions.com) करते हैं; जैसेमगरमच्छ, दरियाई घोड़े आदि। ठीक इससे भिन्न प्रकार के प्राणी टुण्ड्री प्रदेश में पाये जाते हैं जिनके शरीर पर लम्बे और मुलायम बाल होते हैं, जिनके कारण वे कठोर शीत से अपनी रक्षा करते हैं।

प्रश्न 8.
अल्पवृष्टि तथा अतिवृष्टि का वर्णन कीजिए।
उत्तर :

1. अल्पवृष्टि

अल्पवृष्टि का तात्पर्य वर्षा न होने से है जिसके कारण अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जलाभाव के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं। नदी, तालाब, कुएँ सूखने लगते हैं। पानी का घोर संकट उत्पन्न हो जाता है। जिससे सभी प्रकार के जीवों का जीवन संकटग्रस्त हो जाता है। पशुओं के लिए पानी तथा चारे की समस्या , पैदा हो जाती है।

2. अतिवृष्टि

अतिवृष्टि का तात्पर्य ऐसी अत्यधिक वर्षा से है जो लाभ की अपेक्षा हानि पहुँचाती है। अतिवृष्टि से नदी, जलाशय, तालाब सभी जल से भर जाते हैं। नदियों में बाढ़ आ जाती है जिससे उनके किनारे बसे गाँव, नगर तथा फसलें प्रभावित हो जाती हैं। अतिवृष्टि से बहुत-से लोग घर-विहीन हो जाते हैं। बाढ़ के बाद अनेक प्रकार के संक्रामक रोग फैलने लगते हैं। अतिवृष्टि का सर्वाधिक प्रभाव फसलों पर पड़ता है। इससे सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।

प्रश्न 9.
पीछे हटते हुए मानसून की ऋतु में मौसम की विभिन्न दशाओं तथा वर्षा के वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अक्टूबर और नवम्बर के महीने में भारत में पीछे हटते हुए मानसून की ऋतु पायी जाती है। इस ऋतु में मानसून का निम्न वायुदाब का गर्त कमजोर पड़ जाता है और इसका स्थान उच्च वायुदाब ले लेता है। परिणामस्वरूप मानसून पीछे हटने लगता है। इस (UPBoardSolutions.com) समय तक इन पवनों में आर्द्रता की मात्रा पर्याप्त कम हो चुकी होती है। अत: इसके द्वारा बहुत कम वर्षा होती है। भारतीय भू-भागों पर इसका प्रभाव-क्षेत्र सिकुड़ने लगता है। और पृष्ठीय पवनों की दिशा उलटनी शुरू हो जाती है। अक्टूबर तक मानसून उत्तरी मैदानों से पीछे हट जाता है।

अक्टूबर-नवम्बर के दो महीने, एक संक्रान्ति काल है। इस काल में वर्षा ऋतु के स्थान पर शुष्क ऋतु का आगमन प्रारम्भ हो जाता है। मानसून के हटने से आकाश साफ हो जाता है और तापमान फिर से बदलने लगता है। परन्तु भूमि अभी भी आर्द्र बनी रहती है। उच्च तापमान तथा आर्द्रता के कारण मौसम कष्टदायक हो जाता है। इस कष्टदायक मौसम को ‘क्वार की उमस’ कहते हैं। अक्टूबर के उत्तरार्द्ध में मौसम बदलने लगता है और विशेषकर उत्तरी मैदानों में तापमान तेजी से गिरने लगता है।

नवम्बर के प्रारम्भ में उत्तर-पश्चिमी भारत के निम्न वायुदाब का क्षेत्र बंगाल की खाड़ी की ओर खिसक जाता है। इस अवधि में अण्डमान सागर में चक्रवात बनने लगते हैं। इनमें से कुछ चक्रवात दक्षिणी प्रायद्वीप के पूर्वी तटों को पार कर जाते हैं और इन क्षेत्रों में भारी तथा व्यापक वर्षा करते हैं। ये उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात अधिकतर गोदावरी, कृष्णा और कावेरी के डेल्टाई प्रदेशों में ही आते हैं। ये बहुत ही विनाशकारी होते हैं। कोई भी वर्ष इनकी विनाशलीला से खाली नहीं जाता। कभी-कभी ये चक्रवात सुन्दरवन और बांग्लादेश में भी पहुँच जाते हैं। कोरोमण्डल तट पर अधिकतर वर्षा इन्हीं चक्रवातों और अवदाबों के कारण होती है।

प्रश्न 10.
भारत की चार प्रमुख ऋतुओं के नाम लिखकर उनका संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत की चार ऋतुओं के नाम तथा उनका संक्षिप्त विवेचन निम्नवत् है

1. शीत ऋतु- लगभग पूरे भारत में दिसम्बर, जनवरी तथा फरवरी के महीनों में शीत ऋतु होती है। इस ऋतु में उत्तर-पश्चिमी मैदानी भागों में उच्च वायुदाब रहता है तथा देश के ऊपरी भागों में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवने स्थल से सागरों की ओर चलती हैं। पवनों के स्थल भागों से चलने के कारण यह ऋतु शुष्क होती है। इस ऋतु में दक्षिण से उत्तर की ओर जाने में तापमान घटता जाता है। यहाँ दिन ‘ सामान्यत: अल्प उष्ण एवं रातें ठण्डी होती हैं। ऊँचे स्थानों पर पाला भी पड़ जाता है।

2. ग्रीष्म ऋतु- 
21 मार्च के बाद सूर्य की स्थिति उत्तरायण हो जाती है। अब मार्च, अप्रैल और मई के बीच अधिक तापमान की पेटी दक्षिण से उत्तर की ओर खिसक जाती है। इस समय देश के उत्तर-पश्चिमी भांगों में तापमान 48° सेल्सियस तक पहुँच जाता है। फलस्वरूप अत्यधिक गर्मी पड़ने के कारण इस भाग में निम्न वायुदाब के क्षेत्र बन जाते हैं। इसे मानसून का निम्न वायुदाब गर्त’ कहते हैं। इस ऋतु में शुष्क एवं गर्म पवनें चलने लगती हैं, (UPBoardSolutions.com) जिन्हें ‘लू’ कहा जाता है। इन दिनों पंजाब, हरियाणा, पूर्वी राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में धूलभरी आँधियाँ भी चलती हैं।

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3. आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु– 
सम्पूर्ण देश में जून, जुलाई, अगस्त और सितम्बर के महीनों में ही अधिकांश वर्षा होती है। वर्षा की अवधि एवं मात्रा उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है। भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में यह अवधि केवल दो महीनों की होती है तथा वर्षा का 75% से 90% भाग इसी अवधि में प्राप्त हो जाता है।

4. पीछे लौटते हुए मानसून की ऋतु- 
अक्टूबर और नवम्बर के महीनों में मानसून पीछे लौटने लगता है। अक्टूबर माह के अन्त तक मानसून मैदान से पूर्णतः पीछे हट जाता है। इस समय शुष्क ऋतु का आगमन होता है तथा आकाश स्वच्छ हो जाता है। तापमान (UPBoardSolutions.com) में कुछ वृद्धि होती है। उच्च तापमान और आर्द्रता के कारण मौसम कष्टदायी हो जाता है। निम्न वायुदाब के क्षेत्र बंगाल की खाड़ी में स्थानान्तरित हो जाते हैं। इस अवधि में पूर्वी तट पर व्यापक वर्षा होती है। सम्पूर्ण कोरोमण्डल तट पर अधिकांश वर्षा इन्हीं चक्रवातों और अवदाबों के कारण होती है।

प्रश्न 11.
मानसून से क्या अभिप्राय है ? भष्मकालीन मानसूनी वर्षा की चार विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
मानसून’ शब्द की व्युत्पत्ति अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से हुई है। इनका शाब्दिक अर्थ ऋतु है। इस प्रकार मानसून का अर्थ एक ऐसी ऋतु से है, जिसमें पवनों की दिशा पूरी तरह से उलट जाती है। मानसूनी पवनें हिन्द महासागर में विषुवतं वृत्त पार करने के बाद दक्षिण-पश्चिमी व्यापारिक पवनों के रूप में बहने लगती हैं। इस प्रकार शुष्क तथा गर्म स्थलीय व्यापारिक पवनों का स्थान आर्द्रता से परिपूर्ण समुद्री पवनें ले लेती हैं। मानसूनी पवनों के अध्ययन से पता चला है कि इन पवनों का प्रसार 20° उत्तर तथा 20° दक्षिण अक्षांशों के बीच उष्ण कटिबन्धीय भू-भागों पर होता है। लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून हिमालय की पर्वत-श्रेणी से बहुत अधिक प्रभावित होता है। इन पर्वत-श्रेणियों के कारण पूरा भारतीय उपमहाद्वीप दो से पाँच महीनों तक आई विषुवतीय पवनों के प्रभाव में आ जाता है। अतः जून से लेकर सितम्बर तक ही 75-90% के बीच वार्षिक वर्षा होती है।

ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा की चार विशेषताएँ

  • ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा की अवधि दक्षिण से उत्तर तथा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है। देश के सबसे उत्तर-पश्चिमी भाग में यह अवधि केवल दो महीने की होती है। इस अवधि में 75% से 90% तक वर्षा हो जाती है।
  • ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षावाहिनी पवनें बड़ी तेजी से चलती हैं। इनकी औसत गति 30 किलोमीटर प्रति घण्टा होती है। उत्तर-पश्चिमी भागों को छोड़कर ये एक महीने में सारे भारत में फैल जाती हैं। आर्द्रता से भरी इन पवनों के आने के साथ ही (UPBoardSolutions.com) बादलों का प्रचण्ड गर्जन तथा बिजली चमकनी शुरू हो. जाती है। इसे मानसून का ‘फटना’ या टूटना’ कहते हैं।
  • ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा लगातार नहीं होती। कुछ दिनों तक वर्षा होने के बाद मौसम सूखा रहता है। मानसून के इस घटते-बढ़ते स्वरूप का कारण चक्रवातीय अवदाब है, जो मुख्य रूप से बंगाल की खाड़ी के शीर्ष भाग में उत्पन्न होते हैं और भारत-भूमि के ऊपर से गुजरते हैं।’
  • ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा अपनी स्वेच्छाचारिता के लिए विख्यात है। इससे एक ओर तो कहीं भारी, । वर्षा से भयंकर बाढ़ आ सकती है तो दूसरे स्थान पर सूखा पड़ सकता है। इससे करोड़ों किसानों के खेती के काम प्रभावित होते हैं।

प्रश्न 12.
रतीय मानसूनी वर्षा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2009]
या
भारत में मानसूनी वर्षा की दो विशेषताएँ बताइए। [2009]
या
मानसूनी वर्षा की किन्हीं छः विशेषताओं का वर्णन कीजिए। [2015, 16, 17]
उत्तर:
भारतीय वर्षा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. मानसूनी वर्षा- भारतीय वर्षा का लगभग 75% भाग दक्षिण-पश्चिमी मानसूनों द्वारा प्राप्त होता है, अर्थात् कुल वार्षिक वर्षा का 75% वर्षा ऋतु में, 13% शीत ऋतु में, 10% वसन्त ऋतु में तथा 2% ग्रीष्म ऋतु में प्राप्त होता है।

2. वर्षा की अनिश्चितता- 
भारतीय मानसूनी वर्षा का प्रारम्भ अनिश्चित है। मानसून कभी शीघ्र आते हैं। तो कभी देर से। कभी-कभी वर्षा ऋतु में सूखा पड़ जाता है तथा कभी अत्यधिक वर्षा से बाढ़े तक आ जाती हैं। किसी वर्ष वर्षा नियत समय से पूर्व ही आरम्भ हो जाती है एवं निश्चित समय से पूर्व ही समाप्त हो जाती है।

3. वितरण की असमानतो- 
भारतीय वर्षा का वितरण बड़ा ही असमान है। (UPBoardSolutions.com) कुछ भागों में वर्षा 400 सेमी या उससे अधिक हो जाती है, जबकि कुछ भाग ऐसे हैं जहाँ वर्षा का औसत 12 सेमी से भी कम रहता है।

4. मूसलाधार वर्षा– 
भारत में वर्षा अनवरत गति से नहीं होती, वरन् कुछ दिनों के अन्तराल से होती है। कभी-कभी वर्षा मूसलाधार रूप में होती है और एक ही दिन में 50 सेमी तक हो जाती है। यह मिट्टी का अपरदन करती है, जिससे मिट्टी के उत्पादक तत्त्व बह जाते हैं।

5. असमान वर्षा- 
कुछ भागों में वर्षा बड़ी तीव्र गति से होती है तथा कुछ भागों में केवल बौछारों के रूप में। एक ओर मॉसिनराम गाँव (चेरापूंजी) में 1,354 सेमी से भी अधिक वर्षा होती है, तो वहीं राजस्थान में केवल 10 सेमी से भी कम। कुछ स्थामों पर वर्षा की प्राप्ति असन्दिग्ध रहती है। वर्षा हो भी सकती है और नहीं भी। भारत के उत्तरी मैदान में तथा दक्षिणी भागों में ऐसी ही स्थिति पायी जाती है।

6. वर्षा की अल्पावधि- 
भारत में वर्षा के दिन बहुत ही कम होते हैं। उदाहरण के लिए चेन्नई में 50 दिन, मुम्बई में 75 दिन, कोलकाता में 118 दिन तथा अजमेर में केवल 30 दिन।

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7. वर्षा की निश्चित अवधि- 
कुंल वर्षा का लगभग 80% जून से सितम्बर तक प्राप्त हो जाता है, फलत: वर्ष का दो-तिहाई भाग सूखा ही रह जाता है, जिससे फसलों की सिंचाई करनी पड़ती है।

8. पर्वतीय वर्षा- 
भारत की लगभग 95% वर्षा पर्वतीय है, जबकि मात्र 5% वर्षा ही चक्रवातों द्वारा होती है।

9. वर्षा की निरन्तरता- 
भारत में प्रत्येक मास में किसी-न-किसी क्षेत्र में वर्षा होती रहती है। शीतकालीन चक्रवातों द्वारा जनवरी एवं फरवरी महीनों में उत्तरी भारत में वर्षा होती है। मार्च में चक्रवात असोम एवं पश्चिम बंगाल राज्यों में सक्रिय रहते हैं। इनसे तब तक वर्षा होती है जब तक दक्षिण-पश्चिमी मानसून पुनः चलना न आरम्भ कर दें।

प्रश्न 13.
भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में अधिक वर्षा के दो कारणों का उल्लेख कीजिए। [2015]
उत्तर :
भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में अधिक वर्षा के दो कारण निम्नलिखित हैं।

  • बंगाल की खाड़ी की मानसून शाखा का विभाजन, भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश के बाद, उच्च हिमालय तथा उत्तर-पश्चिमी भारत के निम्न वायुभार के प्रभाव से दो भागों में हो जाता है। इस मानसून की दूसरी शाखा उत्तर एवं उत्तर-पूर्व दिशा (UPBoardSolutions.com) से ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी में प्रवेश करती है, जिससे भारत के उत्तर-पूर्वी भागों में भारी वर्षा होती है।
  • भारत की 75-90% वर्षा ग्रीष्मकालीन मानसूनों द्वारा प्राप्त होती है। यही कारण है कि वर्षा के वितरण में पर्याप्त असमानताएँ पायी जाती हैं। भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में उच्चावचीय लक्षणों के कारण 300 सेमी से भी अधिक वार्षिक वर्षा होती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मानसून से क्या अभिप्राय है ? [2016]
उत्तर :
मानसून उन पवनों को कहते हैं जो वर्ष में छ: महीने (ग्रीष्म ऋतु) सागरों से स्थल की ओर तथा शेष छः महीने (शीत ऋतु) स्थल से सागरों की ओर चलती हैं।

प्रश्न 2.
भारत में अधिकांश वर्षा किस ऋतु में होती है ?
उत्तर :
भारत में अधिकांश अर्थात् 75% से 90% तक वर्षा आगे बढ़ते हुए मानसूनों द्वारा (जून से सितम्बर माह में) वर्षा ऋतु में होती है।

प्रश्न 3.
थार मरुस्थल में अल्प वर्षा क्यों होती है ? दो कारण लिखिए।
उत्तर :
थार मरुस्थल में अल्प वर्षा होने के दो कारण निम्नलिखित हैं|

  • थार मरुस्थल अरबसागरीय मानसूनों के मार्ग में पड़ता है, किन्तु यहाँ मानसून पवनों को रोकने के लिए कोई ऊँची पर्वत-श्रेणी स्थित नहीं है।
  • अरावली की पहाड़ियाँ नीची हैं तथा पवनों की दिशा के समानान्तर हैं।

प्रश्न 4.
दक्षिण-पश्चिमी मानसून की उत्पत्ति का प्रमुख क्या कारण है ?
उत्तर :
दक्षिण-पश्चिम मानसून की उत्पत्ति के दो प्रमुख कारण हैं|

  • ग्रीष्म काल में देश के उत्तर-पश्चिमी (स्थलीय) भू-भागों में निम्न (UPBoardSolutions.com) वायुदाब तथा समीपवर्ती समुद्री भागों (हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी) में उच्च वायुदाब का होना।
  • क्षोभमण्डल की ऊपरी परतों में तीव्रगामी पुरवा जेट पवनों का चलना।

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प्रश्न 5.
जेट वायुधाराएँ किन्हें कहते हैं ?
उत्तर :
वायुमण्डल की क्षोभमण्डल नामक परत के ऊपरी भाग में तेज गति से चलने वाली पवनों को जेट वायुधाराएँ कहते हैं। ये बहुत सँकरी पट्टी में चलती हैं।

प्रश्न 6.
भारत में पायी जाने वाली ऋतुओं के नाम लिखिए।
उत्तर :

  • शीत ऋतु,
  • ग्रीष्म ऋतु,
  • वर्षा ऋतु (आगे बढ़ते मानसून की ऋतु) तथा
  • शरद ऋतु (पीछे हटते हुए मानसून की ऋतु।)

प्रश्न 7.
भारत में सर्वाधिक वर्षा किस राज्य में होती है ? [2011]
उत्तर:
भारत में सर्वाधिक वर्षा मेघालय (मॉसिनराम) राज्य में होती है।

प्रश्न 8.
मानसून के ‘फटने’ या ‘टूटने से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
आर्द्रता से भरी दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी पवनें बड़ी तेज चलती हैं। इनकी औसत गति 30 किलोमीटर प्रति घण्टा है। उत्तर-पश्चिमी भागों को छोड़कर ये एक महीने की अवधि में सारे भारत में फैल जाती हैं। आर्द्रता से भरी इन पवनों के आने (UPBoardSolutions.com) के साथ ही बादलों का प्रचण्ड गर्जन तथा बिजली का चमकना शुरू हो जाता है। इसे ही मानसून का फटना’ या टूटना’ कहा जाता है।

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प्रश्न 9.
ग्रीष्मकालीन मानसूनी पवनों की दिशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
ग्रीष्मकालीन मानसूनी पवनों की दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम होती है।

प्रश्न 10.
भारत में अधिकांश वर्षा किस प्रकार की होती है ?
उत्तर :
भारत की लगभग 95% अधिकांश वर्षा पर्वतीय है।

प्रश्न 11.
लौटते हुए मानसून से भारत के किन दो राज्यों में वर्षा होती है ?
उत्तर :
लौटते हुए मानसून से भारत में तमिलनाडु एवं पॉण्डिचेरी (अब पुदुचेरी) राज्यों में वर्षा होती है।

प्रश्न 12.
मौसम किसे कहते हैं? मौसम और जलवायु में क्या अन्तर है? [2014]
उत्तर:
मौसम-किसी स्थान के वातावरण की सूचना जैसे कि वह गर्म है, ठण्डा है, शुष्क है, आई है। की जानकारी हमें मौसम के द्वारा प्राप्त होती है। यह दिन प्रतिदिन बदल सकता है। जलवायु-किसी स्थान पर लम्बे समय तक पाये जाने (UPBoardSolutions.com) वाले तापमान, वर्षा, आर्द्रता, शुष्कता आदि का औसत उस स्थान की जलवायु कहलाती है।

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1. भारत में न्यूनतम तापमान कहाँ पाया जाता है?

क) लेह में ।
(ख) शिमला में
(ग) चेरापूंजी में
(घ) श्रीनगर में

2. भारत में अधिकतम तापमान कहाँ पाया जाता है?

(क) तिरुवनन्तपुरम् में।
(ख) भोपाल में
(ग) जैसलमेर में
(घ) अहमदाबाद में

3. भारत में अधिकतम वर्षा वाला स्थान है [2011]

(क) शिलांग ।
(ख) मॉसिनराम
(ग) गुवाहाटी
(घ) पंजाब

4. भारत का नगर जो वृष्टिछाया प्रदेश में पड़ता है|

(क) मुम्बई
(ख) जोधपुर
(ग) पुणे
(घ) चेन्नई

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5. आम्रवृष्टि कहाँ होती है?

(क) केरल में
(ख) आन्ध्र प्रदेश में
(ग) तमिलनाडु में
(घ) असोम में

6. काल-बैसाखी’ कहाँ प्रचलित है?

(क) केरल में
(ख) असोम में
(ग) उत्तर प्रदेश में
(घ) पंजाब में

7. जेट धाराएँ हैं|

(क) हिन्द महासागरों में चलने वाली
(ख) बंगाल की खाड़ी के चक्रवात
(ग) उपरितन वायु
(घ) मानसूनी पवनें

8. उत्तर भारत में शीतकालीन वर्षा का कारण है

(क) लौटते हुए मानसून
(ख) आगे बढ़ते हुए मानसून
(ग) शीतकालीन मानसून ,
(घ) पश्चिमी विक्षोभ

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9. सम्पूर्ण भारत में सर्वाधिक वर्षा वाला महीना है

(क) जून
(ख) जुलाई
(ग) अगस्त
(घ) ये सभी

10. चेरापूंजी किस राज्य में स्थित है?

(क) असोम में
(ख) मेघालय में
(ग) मिजोरम में
(घ) मणिपुर में

11. भारत में सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र कौन-सा है?

(क) उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र
(ख) उत्तर-पूर्वी क्षेत्र
(ग) दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र
(घ) दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र

12. दैनिक तापान्तर निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में सर्वाधिक पाया जाता है? [2011]

(क) दक्षिणी पठारी क्षेत्र
(ख) पूर्वी तटवर्ती क्षेत्र
(ग) थार मरुस्थल
(घ) पश्चिमी तटवर्ती क्षेत्र

13. निम्नलिखित में से कौन राज्य भारत के सर्वाधिक वर्षा वाले क्षेत्र में सम्मिलित है? [2012]
या
निम्नलिखित में से किस राज्य में सर्वाधिक वर्षा होती है? [2016]

(क) मेघालय
(ख) मध्य प्रदेश
(ग) ओडिशा
(घ) गुजरात

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14. भारत के किस राज्य में शीत ऋतु में वर्षा होती है? [2014]
या
भारत का कौन-सा राज्य शीत ऋतु में वर्षा प्राप्त करता है? [2016]

(क) गुजरात
(ख) पश्चिम बंगाल
(ग) कर्नाटक
(घ) तमिलनाडु

15. भारत में सबसे कम वर्षा होती है [2017]

(क) तमिलनाडु में
(ख) राजस्थान में
(ग) आन्ध्र प्रदेश में
(घ) कर्नाटक में

उत्तरमाला

1. (क), 2. (ग), 3. (ख), 4. (ग), 5. (क), 6. (ख), 7. (ग), 8. (घ), 9. (ख), 10. (ख), 11. (ख), 12. (ग), 13. (क), 14. (घ), 15. (ख)

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