UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 3 भरत (महान व्यक्तित्व)

UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 3 भरत (महान व्यक्तित्व)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 8 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 3 भरत (महान व्यक्तित्व).

पाठ का सारांश

राजा दशरथ के चार पुत्र थे- राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। इनमें भरत कैकई के पुत्र थे। राजा दशरथ कैकई से बहुत प्रेम करते थे तथा उसकी प्रत्येक बात मानते थे। कैकई के कहने से ही राजा दशरथ ने राम को वनवास दिया था। जिस समय रामचन्द्र जी को वनवासे हुआ, उस समय भरत अपने मामा के यहाँ थे। लौटने पर जब उन्हें सब बातों का पता चला तो वे बहुत दुःखी हुए। उन्होंने सोचा कि अब लोग यही कहेंगे कि भरत ने राजगद्दी के मोह में राम को वनवास दिलाया है।

राम के वन चले जाने के दु:ख में राजा दशरथ की मृत्यु हो चुकी थी। भरत ने अपने पिता के सब धार्मिक कार्यों को पूर्ण किया। प्रजा, ऋषियों, मुनियों और विद्वानों ने भरत से (UPBoardSolutions.com) राज्य करने का आग्रह किया। उन्होंने भरत से कहा- “राजा दशरथ ने मरते समय यही आज्ञा दी थी कि आप अयोध्या के राजा बनें। किन्तु भरत राजा बनना बिलकुल भी नहीं चाहते थे। उनका मन कहता था कि इस सिंहासन पर मेरा कोई अधिकार नहीं है। यह तो श्रीराम का ही है, वे ही इस पर बैठेंगे।

अन्त में भरत जी रामचन्द्र जी से मिलने वन की ओर चल दिए। उनके साथ अनेक ऋषि, विद्वान और प्रजा के लोग भी थे। अनेक वनों में घूमते, लोगो से पूछते, भरत जी श्रीराम के पास चित्रकूट आ पहुँचे। दोनों भाई बड़े प्रेम से मिले। भरत ने श्रीराम से अयोध्या लौट चलने का आग्रह किया। अन्य लोगों ने भी रामचन्द्र जी को बहुत समझाया (UPBoardSolutions.com) किन्तु उन्होंने कहा कि पिता की आज्ञा का मुझे पालन करना है। कई दिनों तक विवाद होता रहा। भरत और श्रीराम दोनों में से कोई भी अयोध्या का राजा बनने को तैयार न था।

अन्त में जब श्रीराम न माने तो भरत ने यह आज्ञा माँगी कि मैं आपके नाम पर राज्य करूंगा। सिंहासन पर आपकी खड़ाऊँ बैठेगी, राज्य आपका ही होगा। रामचन्द्र जी को अपनी खड़ाऊँ देनी पड़ी, भरत अयोध्या लौट आए। उन्होंने राज्य सिंहासन पर श्रीराम की खड़ाऊँ रखी और स्वयं तपस्वी के समान रहने लगे। राम के पीछे 14 वर्ष तक उन्होंने प्रजा की सेवा की। वास्तव में भरत हमारे ऐसे पूर्वज थे जिनके चरित्र में एक भी दोष नहीं है।

शिक्षा – भरत जी जैसा भ्रातृ प्रेम, त्याग और कर्तव्यनिष्ठा सभी में होनी चाहिए।

UP Board Solutions

अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1.
भरत कौन थे? पिता की मृत्यु के समय वे कहाँ थे?
उत्तर :
भरत राजा दशरथ के पुत्र थे। पिता की मृत्यु के समय वे ननिहाल में थे।

प्रश्न 2.
भरत ने अयोध्या के राज्य को क्यों ठुकरा दिया?
उत्तर :
इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि नैतिक दृष्टि से रामचन्द्र जी राजद्दी के हकदार थे।

प्रश्न 3.
भरत ने राज्य को किस शर्त पर स्वीकार किया?
उत्तर :
भरत ने राज्य को इस शर्त पर स्वीकार किया कि प्रतिनिधि के रूप में आप के नाम पर राज्य करूंगा तथा सिंहासन पर आपकी खडाऊँ बैठेगी। राज्य आपका ही रहेगा।

UP Board Solutions

प्रश्न 4.
भरत की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए?
उत्तर :
भरत के चारित्रिक विशेषताओं में उनका मातृ-प्रेम, कर्तव्य-निष्ठा, प्रजा-प्रेम तथा त्याग मुख्य हैं। भरत ने जिस प्रकार वन में जाकर राम से विनती की, सारा दोष अपने ऊपर ले लिया, जिस (UPBoardSolutions.com) ढंग से क्षमा याचना की वह ऐसा उदाहरण है जिसकी तुलना का दूसरा उदाहरण संसार के इतिहास में ‘ कहीं नहीं मिलता।

We hope the UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 3 भरत (महान व्यक्तित्व) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 3 भरत (महान व्यक्तित्व), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 7 पर्यावरण-प्रदूषण का जनजीवन पर प्रभाव

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 7 पर्यावरण-प्रदूषण का जनजीवन पर प्रभाव

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 7 पर्यावरण-प्रदूषण का जनजीवन पर प्रभाव.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
पर्यावरण का अर्थ एवं परिभाषा निर्धारित कीजिए तथा पर्यावरण के विभिन्न वर्गों का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण का अर्थ एवं परिभाषा

मनुष्य ही क्या प्रत्येक प्राणी एवं वनस्पति जगत् भी पर्यावरण से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है तथा ये सभी अपने पर्यावरण से प्रभावित भी होते हैं। पर्यावरण की अवधारणा को स्पष्ट करने से पूर्व पर्यावरण के शाब्दिक अर्थ को स्पष्ट करना आवश्यक है।
पर्यावरण शब्द दो शब्दों अर्थात् ‘परि’ तथा ‘आवरण’ के संयोग या मेल से बना है।‘परि’ का अर्थ है चारों ओर’ तथा ‘आवरण’ का अर्थ है ‘घेरा’। इस प्रकार पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ हुआ चारों ओर का घेरा’। इस प्रकारे व्यक्ति के सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि व्यक्ति केचारों ओर जो प्राकृतिक और अन्य सभी प्रकार की शक्तियाँ और परिस्थितियाँ विद्यमान हैं, इनके प्रभावी रूप को ही पर्यावरण कहा जाता है। पर्यावरण का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत है। पर्यावरण इन समस्त शक्तियों, वस्तुओं और दशाओं का योग है जो मानव को चारों (UPBoardSolutions.com) ओर से आवृत किए हुए हैं। मानव से लेकर वनस्पति तथा सूक्ष्म जीव तक सभी पर्यावरण के अभिन्न अंग हैं। पर्यावरण उन सभी बाह्य दशाओं एवं प्रभावों का योग है जो जीव के कार्य-कलापों एवं जीवन को प्रभावित करता है। मानव-जीवन पर्यावरण से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है। पर्यावरण के शाब्दिक अर्थ एवं सामान्य परिचय को जान लेने के उपरान्त इस अवधारणा की व्यवस्थित परिभाषा प्रस्तुत करनी भी आवश्यक है। कुछ मुख्य समाज वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

(i) जिस्बर्ट द्वारा परिभाषा:
जिस्बर्ट के अनुसार पर्यावरण से आशय उन समस्त कारकों से है। जो किसी व्यक्ति या जीव को चारों ओर से घेरे रहते हैं तथा प्रभावित करते हैं। उनके शब्दों में, “पर्यावरण वह कुछ भी है जो किसी वस्तु को चारों ओर से घेरे हुए है तथा उस पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है।” जिस्बर्ट की मान्यता है कि जीव अपने पर्यावरण के प्रभाव से बच नहीं सकता।

(ii) रॉस द्वारा परिभाषा:
रॉस ने पर्यावरण के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए एक संक्षिप्त परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की है, पर्यावरण हमें प्रभावित करने वाली कोई भी बाहरी शक्ति है।”
उपर्युक्त विवरण द्वारा पर्यावरण का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। निष्कर्ष स्वरूप कहा जा सकता है कि व्यक्ति के सन्दर्भ में स्वयं व्यक्ति को छोड़कर इस जगत् में जो कुछ भी है वह सब कुछ सम्मिलित रूप से व्यक्ति का पर्यावरण है।

पर्यावरण का वर्गीकरण

पर्यावरण के अर्थ एवं परिभाषा सम्बन्धी विवरण के आधार पर कहा जा सकता है कि पर्यावरण की धारणा अपने आप में एक विस्तृत अवधारणा है। इस स्थिति में पर्यावरण के व्यवस्थित अध्ययन के लिए पर्यावरण का समुचित वर्गीकरण प्रस्तुत करना आवश्यक है। सम्पूर्ण पर्यावरण को मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है

(1) प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण:
प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण के अन्तर्गत समस्त प्राकृतिक शक्तियों एवं कारकों को सम्मिलित किया जाता है। पृथ्वी, आकाश, वायु, जल, वनस्पति जगत् तथा जीव-जन्तु तो प्राकृतिक पर्यावरण के घटक ही हैं। इनके अतिरिक्त प्राकृतिक शक्तियों एवं घटनाओं को भी प्राकृतिक (UPBoardSolutions.com) पर्यावरण ही माना जाएगा। सामान्य रूप से कहा जा सकता है। कि प्राकृतिक पर्यावरण न तो मनुष्य द्वारा निर्मित है और न ही यह मनुष्य द्वारा नियन्त्रित ही है। प्राकृतिक . अथवा भौगोलिक पर्यावरण का प्रभाव मनुष्य के जीवन के सभी पक्षों पर पड़ता है।

(2) सामाजिक पर्यावरण:
सामाजिक पर्यावरण भी पर्यावरण का एक रूप या पक्ष है। सम्पूर्ण सामाजिक ढाँचा ही सामाजिक पर्यावरण कहलाता है। इसे सामाजिक सम्बन्धों का पर्यावरण भी कहा जा सकता है। परिवार, पड़ोस, खेल के साथी, समाज, समुदाय, विद्यालय आदि सभी सामाजिक पर्यावरण के ही घटक हैं। सामाजिक पर्यावरण भी व्यक्ति को गम्भीर रूप से प्रभावित करता है, परन्तु यह सत्य है। कि व्यक्ति सामाजिक पर्यावरण के निर्माण एवं विकास में अपना योगदान प्रदान करता है।

(3) सांस्कृतिक पर्यावरण:
पर्यावरण का एक रूप या पक्ष सांस्कृतिक पर्यावरण भी है। सांस्कृतिक पर्यावरण प्रकृति-प्रदत्त नहीं है, बल्कि इसका निर्माण स्वयं मनुष्य ने ही किया है। वास्तव में मनुष्य द्वारा निर्मित वस्तुओं का समग्र रूप तथा परिवेश सांस्कृतिक पर्यावरण कहलाता है। सांस्कृतिक पर्यावरण भौतिक तथा अभौतिक (UPBoardSolutions.com) दो प्रकार का होता है। सभी प्रकार के मानव-निर्मित उपकरण एवं साधन सांस्कृतिक पर्यावरण के भौतिक पक्ष में सम्मिलित हैं। इससे भिन्न मनुष्य द्वारा विकसित किए गए मूल्य, संस्कृति, धर्म, भाषा, रूढ़ियाँ, परम्पराएँ आदि सम्मिलित रूप से सांस्कृतिक पर्यावरण के अभौतिक पक्ष का निर्माण करते हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 2:
पर्यावरण-प्रदूषण से आप क्या समझती हैं? पर्यावरण-प्रदूषण के विभिन्न रूप कौन-कौन से हैं? पर्यावरण-प्रदूषण का जनजीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
पर्यावरण-प्रदूषण को अर्थ

‘पर्यावरण’ शब्द दो शब्दों अर्थात् ‘परि’ तथा ‘आवरण’ के संयोग से बना है। ‘परि’ शब्द का अर्थ है। ‘चारों ओर’ तथा ‘आवरण’ का अर्थ है ‘ढके हुए या घेरे हुए। इस प्रकार पर्यावरण का अर्थ हुआ चारों ओर से घेरे हुए या ढके हुए। इस स्थिति में व्यक्ति का पर्यावरण वह सब कुछ कहलाएगा जो व्यक्ति को घेरे रहता है अर्थात् विश्व में व्यक्ति के अतिरिक्त जो कुछ भी है वह उसका पर्यावरण है।
पर्यावरण को अर्थ जान लेने के उपरान्त पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ स्पष्ट किया जा सकता है। पर्यावरण के प्रदूषण का सामान्य अर्थ है हमारे पर्यावरण का दूषित हो जाना। पर्यावरण का निर्माण प्रकृति द्वारा हुआ है। प्रकृति द्वारा निर्मित पर्यावरण में जब किन्हीं तत्त्वों का अनुपात इस रूप में (UPBoardSolutions.com) बदलने लगता है जिसका जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका होती है तब कहा जाता है कि पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। उदाहरण के लिए–यदि पर्यावरण के मुख्य भाग वायु में ऑक्सीजन के स्थान पर अन्य विषैली गैसों का अनुपात बढ़ जाए तो कहा जाएगा कि वायु-प्रदूषण हो गया है। इसी प्रकार पर्यावरण के किसी भी भाग के दूषित हो जाने को पर्यावरण-प्रदूषण कहा जाएगा।

पर्यावरण-प्रदूषण के मुख्य रूप

पर्यावरण के मुख्य भाग हैं-जल, वायु तथा पृथ्वी। इन्हीं भागों से सम्बन्धित प्रदूषण के विभिन्न रूप हैं-वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण तथा मिट्टी-प्रदूषण। प्रदूषण के इन मुख्य रूपों के साथ-साथ एक अन्य रूप भी उल्लेखनीय है तथा वह है ध्वनि-प्रदूषण।

पर्यावरण-प्रदूषण का जनजीवन पर प्रभाव

पर्यावरण-प्रदूषण वर्तमान युग की एक गम्भीर समस्या है, जिसका प्रतिकूल प्रभाव जनजीवन के प्रत्येक पक्ष पर पड़ता है। पर्यावरण-प्रदूषण के जनजीवन पर पड़ने वाले प्रमुख प्रतिकूल प्रभावों का संक्षिप्त विवरण निम्नवर्णित है
(1) जन-स्वास्थ्य पर प्रभाव पर्यावरण:
प्रदूषण का जनजीवन पर गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पर्यावरण-प्रदूषण का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव जन-स्वास्थ्य पर पड़ता है। पर्यावरण-प्रदूषण से अनेक साधारण तथा गम्भीर रोग फैलते हैं। इन रोगों के शिकार होकर असंख्य व्यक्ति अपना स्वास्थ्य आँवा बैठते हैं तथा अनेक व्यक्तियों की तो मृत्यु हो जाती है।

(2) व्यक्तिगत कार्यक्षमता पर प्रभाव:
पर्यावरण प्रदूषण का प्रतिकूल प्रभाव जन-सामान्य की कार्यक्षमता पर भी पड़ता है। वास्तव में, प्रदूषित पर्यावरण में निरन्तर रहने से व्यक्ति की शारीरिक चुस्ती घट जाती है तथा वह आलस्य का शिकार रहता है। इन परिस्थितियों में व्यक्ति की कार्यक्षमता निश्चित रूप से घट जाती है। प्रदूषित पर्यावरण में रहने पर व्यक्ति की कार्य-कुशलता भी घट जाती है। वह कार्यों में अधिक त्रुटियाँ करता है तथा उसकी उत्पादन-दर भी घट जाती है।

(3) आर्थिक जीवन पर प्रभाव:
पर्यावरण-प्रदूषण का प्रतिकूल प्रभाव जन-सामान्य की आर्थिक, स्थिति तथा आर्थिक जीवन पर भी पड़ता है। वास्तव में, निरन्तर अस्वस्थ रहने से व्यक्ति सुस्त हो जाता है। तथा उसकी कार्यक्षमता घट जाती है। इस स्थिति में व्यक्ति न तो पर्याप्त परिश्रम कर पाता है और न ही समुचित उत्पादन ही कर (UPBoardSolutions.com) पाता है। इन परिस्थितियों में व्यक्ति की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगती है तथा वह निर्धनता का शिकार हो जाता है। निर्धनता अपने आप में अभिशाप है। निर्धन व्यक्ति न तो पोषक आहार ग्रहण कर सकता है और न ही अस्वस्थ होने पर उपचार ही करवा पाता है। इस प्रकार वह क्रमशः परेशानियों से घिरता जाता है।

प्रश्न 3:
वायु किस प्रकार दूषित होती है? उसे शुद्ध करने के प्राकृतिक साधन कौन-कौन से हैं?
या
वायु-प्रदूषण के कारण तथा प्रदूषण को रोकने के उपाय बताइए।
उत्तर:
वायु-प्रदूषण अथवा वायु के दूषित होने के कारण

शुद्ध वायु लगभग सभी जीवधारियों की मूल आवश्यकता है। सभी जीवधारी श्वसन में वायु के प्राणदायी भाग (ऑक्सीजन) का उपभोग कर कार्बन डाइऑक्साइड गैस छोड़ते हैं, जिसकी मात्रा वायुमण्डल में निरन्तर बढ़ती जा रही है। हरे पौधे इसको एकमात्र अपवाद हैं, क्योंकि ये प्रकाश-संश्लेषण (UPBoardSolutions.com) की क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड का उपभोग कर ऑक्सीजन गैस स्वतन्त्र करते हैं। तथा इस प्रकार वायुमण्डल में ऑक्सीजन की मात्रा का लगभग सन्तुलन बना रहता है। शुद्ध वायु में आवश्यक तत्त्वों के सन्तुलन को बिगाड़ने का श्रेय मानव जाति को जाता है। इस तथ्य की पुष्टि वायु के अशुद्ध होने के निम्नलिखित कारणों के अध्ययन से हो जाती है|

(1) श्वसन क्रिया द्वारा:
प्रायः सभी जीवधारी श्वसन के लिए वायुमण्डल की ऑक्सीजन पर निर्भर करते हैं। श्वसन क्रिया के फलस्वरूप वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की प्रतिशत मात्रा
बढ़ती रहती है तथा ऑक्सीजन गैस की प्रतिशत मात्रा घटती रहती है।

(2) विभिन्न पदार्थों के जलने से:
ऊर्जा-प्राप्ति के लिए मनुष्य द्वारा जलाए जाने वाले ये पदार्थ हैं-लकड़ी, कोयला, पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल एवं गैस आदि। इन पदार्थों के जलने से वायुमण्डल में ऑक्सीजन गैस की मात्रा दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है तथा अनेक विषैली गैसों की मात्रा बढ़ रही है। ये विषैली गैस एवं पदार्थ हैं-कार्बन डाइऑक्साईड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, फ्लोराइड्स, (UPBoardSolutions.com) हाइड्रोकार्बन्स इत्यादि। इनके अतिरिक्त इथाइलीन, एसीटिलीन तथा प्रोपाइलीन इत्यादि भी अल्प मात्रा में स्वतन्त्र होकर वायुमण्डल में अपनी प्रतिशतता में निरन्तर वृद्धि कर रही हैं। ये सभी आने वाले समय में मानव जाति के अस्तित्व पर प्रश्न-चिह्न लगाने वाले विषैले पदार्थ हैं।

(3) वनों की अन्धाधुन्ध कटाई:
वायु के प्रदूषण को नियन्त्रित रखने में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका पेड़ों द्वारा निभाई जाती है। पेड़ पर्यावरण की कार्बन डाइऑक्साइड को घटाते हैं तथा ऑक्सीजन में वृद्धि करते हैं। मनुष्य द्वारा वनों की अन्धाधुन्ध कटाई के परिणामस्वरूप यह प्राकृतिक नियम प्रभावित होने लगा है तथा परिणामस्वरूप वायु-प्रदूषण की दर में वृद्धि होने लगी है।

(4) औद्योगिक अशुद्धियों द्वारा:
औद्योगिक क्रान्ति ने जहाँ मनुष्य के जीवन में अनेक सुविधाएँ प्रदान की हैं, वहीं औद्योगिक अशुद्धियों ने वायुमण्डल को प्रदूषित किया है। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं—

(i) पोलीक्लोरीनेटेड बाइफिनाइल्स (पी० सी० बी०):
इनका उपयोग औद्योगिक विलेयकों के रूप में तथा प्लास्टिक उद्योग में होता है। जब कृत्रिम रबर से बने टायर सड़कों पर रगड़ खाते हैं, तो ये पदार्थ वायुमण्डल में मिल जाते हैं।

(ii) स्मॉग:
शोधन-कार्यशालाओं के धधकने (रिफायनरी फ्लेयर्स) से बने धुएँ एवं कोहरे के मिश्रण से स्मॉग की उत्पत्ति होती है। औद्योगिक नगरों में प्रायः इस प्रकार का वायु-प्रदूषण पाया जाता है।

(iii) क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन:
अनेक उद्योगों में इस प्रकार के कार्बन का प्रयोग हो रहा है। असावधानियों के कारण यह वायुमण्डल में मुक्त होकर ओजोन की परत में छिद्र कर चुका है तथा इस प्रकार वायुमण्डल को हानिकारक बनाने की ओर अग्रसर है।।

(iv) परमाणु ऊर्जा:
परमाणु विस्फोटों से अनेक प्रदूषक वायुमण्डल में आते हैं।

वायु-प्रदूषण की रोकथाम के उपाय

  1. आवासीय बस्तियों का निर्माण सरकार द्वारा स्वीकृत मानकों के आधार पर होना चाहिए।
  2. घरों में ईंधन के जलने से उत्पन्न धुएँ के निष्कासन की व्यवस्था चिमनी के द्वारा होनी चाहिए, जिससे कि वह घरों में एकत्रित न हो।
  3.  सरकार द्वारा संचालित वृक्षारोपण कार्यक्रम में हम सभी अपना योगदान दें। इसके लिए बस्ती व इसके आस-पास वृक्ष लगाने चाहिए।
  4. बस्ती के आस-पास रिक्त भूमि न छोड़े तथा गन्दगी न डालें। धूल व गन्दगी उड़कर वायु को दूषित कर सकती हैं।
  5. वाहनों के लिए पक्की सड़कें होनी चाहिए ताकि उनके चलने से धूल न उड़े।
  6.  वाहनों के इंजन सही अवस्था में होने चाहिए, अन्यथा पेट्रोल व डीजल के अपूर्ण ज्वलन से अधिक धुआँ बनने के कारण प्रदूषण अधिक होता है। इस विषय में सरकार ने आवश्यक कदम उठाए हैं। तथा इस प्रकार के वाहन स्वामियों के लिए आर्थिक दण्ड का प्रावधान निश्चित किया है।
  7.  विभिन्न औद्योगिक संस्थानों को नागरिक सीमा से दूर स्थित होना चाहिए। इनसे निकलने वाले धुएँ के लिए ऊँची-ऊँची चिमनियाँ हों। विभिन्न प्रदूषकों को वायुमण्डल में आने से रोकने के लिए चिमनियों में आवश्यक निस्यन्दक अथवा फिल्टर लगे होने चाहिए।
  8.  पी० सी० बी० व क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन जैसे पदार्थों के उपयोग को नियन्त्रित किया जाए।

वायु शुद्धिकरण के प्राकृतिक साधन

हम जानते हैं कि वायु का आदर्श संगठन पृथ्वी के सभी जीवधारियों के लिए अति आवश्यक है। अनेक (पूर्व वर्णित) कारणों से यह संगठन प्रभावित होता रहता है। संगठन के इस परिवर्तन को हम वायु-प्रदूषण कहते हैं। प्रकृति ने अनेक ऐसे साधन उत्पन्न किए हैं जो कि वायु का शुद्धिकरण कर वायु-प्रदूषण को एक सीमा तक नियन्त्रित रखते हैं। ये साधन निम्नलिखित हैं

(1) पेड़-पौधे:
विशेष रूप से हरे पेड़-पौधे वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साईड लेकर सूर्य के | प्रकाश में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन निर्मित करते हैं। इस क्रिया में ऑक्सीजन गैस
वातावरण में मुक्त होती है। इस प्रकार हरे पेड़-पौधे वायु में कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीजन की प्रतिशत मात्रा में यथासम्भव सन्तुलन बनाए रखते हैं।

(2) सूर्य:
सूर्य पृथ्वी के लिए ऊर्जा का अमूल्य व अमर स्रोत है। सूर्य का प्रकाश पेड़-पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया को सम्भव बनाता है जो कि वायुमण्डल में ऑक्सीजन मुक्त करती है। सूर्य के प्रकाश में पाई जाने वाली अल्ट्रावायलेट किरणें वायु के कीटाणुओं को नष्ट करती हैं। सूर्य का ताप वायुमण्डल में जल-वाष्प की मात्रा को नियन्त्रित रखता है।

(3) वर्षा:
वर्षा को जल वायुमण्डल की अनेक अशुद्धियों (जैसे-धूल के कण, अनेक गैसें वे कीटाणु आदि) को अपने साथ बहाकर ले जाता है तथा इस प्रकार वायुमण्डल की शुद्धता में वृद्धि करता
क्रिया द्वारा पधि वायुमण्ड निम्नलिखित वायु का शुद्धि
है।

(4) ऑक्सीजन:
ऑक्सीजन वायु की अनेक अशुद्धियों को ऑक्सीकृत कर नष्ट कर देती है।

(5) ओजोन:
इसके दो महत्त्वपूर्ण कार्य हैं। यह वायु के कीटाणुओं को नष्ट करती है तथा साथ-साथ सूर्य के प्रकाश को फिल्टर कर अनावश्यक परा-बैंगनी अथवा अल्ट्रावायलेट किरणों को पृथ्वी तक नहीं आने देती।

(6) विसरण:
विसरण प्रायः सभी पदार्थों का प्राकृतिक गुण है। गैसों में विसरण सर्वाधिक पाया जाता है, जिससे गैसें अधिक सान्द्रता वाले क्षेत्र से कम सान्द्रता वाले क्षेत्रों की ओर सदैव बहती रहती हैं। विसरण के फलस्वरूप विषैली गैसों की वायुमण्डल में सान्द्रता अधिक समय तक नहीं रह पाती है। इसी प्रकार (UPBoardSolutions.com) वायु का अधिक वेग भी अशुद्धियों को दूर तक बहा ले जाती है। इससे यह लाभ होता है कि वायु की अशुद्धियाँ दूर-दूर तक विसरित हो जाती हैं और किसी स्थान विशेष पर अधिक समय तक केन्द्रित नहीं हो पातीं।

UP Board Solutions

प्रश्न 4:
वायु-प्रदूषण का जनजीवन पर क्या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
वायु-प्रदूषण का जनजीवन पर प्रभाव

वायु को अशुद्ध करने वाले प्रदूषक जनस्वास्थ्य को अनेक प्रकार से कुप्रभावित करते हैं। यह जनसाधारण में अनेक रोग उत्पन्न करते हैं, जिनमें से कुछ तो आज के वैज्ञानिक युग में भी असाध्य हैं। विभिन्न वायु प्रदूषकों एवं उनके प्रभावों को अग्रांकित सारणी द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है ।
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 7 पर्यावरण-प्रदूषण का जनजीवन पर प्रभाव

प्रश्न 5:
जल-प्रदूषण से आप क्या समझती हैं? जल-प्रदूषण के मुख्य कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जल-प्रदूषण का अर्थ

जल प्राणीमात्र के लिए अति आवश्यक है, परन्तु केवल शुद्ध जल ही जीवित प्राणियों के लिए : स्वास्थ्यकर सिद्ध होता है। जल अपने आप में एक यौगिक है, जिसका सूत्र है H,0। जल एक उत्तम विलायक है, अत: जल में विभिन्न अशुद्धियाँ शीघ्र ही घुल जाती हैं। विभिन्न अशुद्धियों का समावेश हो जाने पर जल प्रदूषित हो जाता है। इस प्रकार जल के मुख्य स्रोतों में दूषित एवं विषैले तत्त्वों का समावेश होना ही जल-प्रदूषण कहलाता है।

जल-प्रदूषण के स्रोत अथवा कारण

जल-प्रदूषण का मूल कारण मानवीय गतिविधियाँ हैं। जल-प्रदूषण के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं

(1) घरेलू वाहित मल (सीवेज):
इसमें मल-मूत्र, घरेलू गन्दगी तथा कपड़ों को धोने के बाद का जंल आदि सम्मिलित होते हैं। इन्हें प्रायः उन नदियों में डाल दिया जाता है जिनके किनारों पर गाँव, कस्बे तथा (UPBoardSolutions.com) नगर आदि बसे होते हैं। इसके परिणामस्वरूप नदियों के किनारे, झील आदि के जल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। वाहित मल से अनेक प्रकार के कीटाणु जल में आ जाते हैं, जिसके कारण जल का अत्यधिक क्लोरीनीकरण करना आवश्यक हो जाता है।

(2) वर्षा का जल:
वर्षा का जल खेतों की मिट्टी की ऊपरी परत को बहाकर नदियों, झीलों तथा समुद्र तक पहुँचा देता है। इसके साथ अनेक प्रकार के खाद (नाइट्रोजन एवं फॉस्फेट के यौगिक) एवं कीटनाशक पदार्थ भी जल में पहुँच जाते हैं।

(3) औद्योगिक संस्थानों द्वारा विसर्जित पदार्थ:
इनमें अनेक विषैले पदार्थ (अम्ल, क्षार, सायनाइड आदि), रंग-रोगन, कागज उद्योग द्वारा विसर्जित पारे (मरकरी) के यौगिक, रसायन एवं पेस्टीसाइड उद्योग द्वारा विसर्जित सीसे (लैड) के यौगिक तथा कॉपर व जिंक के यौगिक प्रमुख हैं।

(4) तैलीय (ऑयल) प्रदूषण:
इस प्रकार का प्रदूषण समुद्र के जल में होता है। समुद्र में यह प्रदूषण या तो जहाजों द्वारा तेल विसर्जित करने से होता है अथवा समुद्र के किनारे स्थित तेल-शोधक संस्थानों के कारण होता है।

(5) रेडियोधर्मी पदार्थ:
नाभिकीय विखण्डन के फलस्वरूप अनेक रेडियोधर्मी पदार्थ जल को दूषित कर देते हैं। इस प्रकार का प्रदूषण प्रायः समुद्र के जल में होता है।

(6) शव-विसर्जन:
हमारे समाज में विभिन्न धार्मिक मान्यताओं के कारण मृत व्यक्तियों के शव को, अस्थियों को तथा चिता की राख आदि को नदियों में विसर्जित कर दिया जाता है। इसी प्रकार अनेक
स्थानों पर मृत पशुओं को भी जल में बहा दिया जाता है। इन सबके मिलने से भी जल-प्रदूषण में वृद्धि होती है।
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 7 पर्यावरण-प्रदूषण का जनजीवन पर प्रभाव

प्रश्न 6:
जल-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के मुख्य उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जल अनेक प्रकार के खनिज लवण, कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थों तथा गैसों के एक निश्चित अनुपात से अधिक अथवा अन्य अनावश्यक तथा हानिकारक पदार्थ घुले होने से (UPBoardSolutions.com) प्रदूषित हो जाता है। अनेक कीटाणुनाशक पदार्थ, अपतृणनाशक पदार्थ, रासायनिक खाद, औद्योगिक अपशिष्ट, वाहित मल आदि जल-प्रदूषक पदार्थ हैं। ये पदार्थ जल को विभिन्न प्रकार से प्रदूषित कर देते हैं।

जल-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय

  1. कूड़े-करकट, गन्दगी व मल-मूत्र आदि का जल-विसर्जन प्रतिबन्धित होना चाहिए।
  2.  सीवर-प्रणाली का विस्तार होना चाहिए। सीवर के जल को नगर के बाहर किसी उपयुक्त स्थान परे यथासम्भव दोषरहित करने के बाद नदी आदि में प्रवाहित करना चाहिए।
  3.  मृत प्राणियों अथवा उनकी राख का जल विसर्जन यथासम्भव प्रतिबन्धित होना चाहिए।
  4.  उद्योगों एवं कारखानों के संचालकों को स्पष्ट व कठोर आदेश होने चाहिए जिससे कि वे अपने अपशिष्ट पदार्थों का उचित प्रबन्ध करें तथा किसी भी परिस्थिति में इन्हें जल-स्रोतों तक न जाने दें।
  5. जल के शुद्धिकरण के लिए जल स्रोतों में मछलियाँ, शैवाल तथा अन्य जलीय पौधे उगाने चाहिए।
  6.  डी० डी० टी० वे एल्डीन जैसे विषैले पदार्थों का उपयोग यदि प्रतिबन्धित किया जाना सम्भव न हो तो इसे सीमित अवश्य किया जाना चाहिए।
  7.  नदियों, झीलों एवं तालाबों के किनारों पर वस्त्रादि नहीं धोने चाहिए। साबुन व डिटर्जेण्ट्स के उपयोग के कारण लगभग 40% जल प्रदूषित होता है।
  8. विषैले प्रदूषकों; जैसे-लैड, मरकरी व कीटनाशकों को नदियों द्वारा समुद्र तक पहुँचने से रोकने के उपाय किए जाने चाहिए।
  9. परमाणु भट्टियों एवं नाभिकीय विखण्डन के प्रयोगों को प्रतिबन्धित किया जाना चाहिए तथा किसी भी परिस्थिति में समुद्र के जल को रेडियोधर्मी पदार्थों से मुक्त रखना चाहिए।
  10.  प्रदूषण सम्बन्धी आवश्यक शिक्षा का प्रसार होना चाहिए, जिससे कि प्रत्येक नागरिक प्रदूषण की रोकथाम के कार्यक्रम में निजी योगदान दे सके।

UP Board Solutions

प्रश्न 7:
ध्वनि-प्रदूषण के विषय में आप क्या जानती हैं? ध्वनि-प्रदूषण से हानि एवं इसे रोकने के उपाय लिखिए।
उत्तर:
ध्वनि-प्रदूषण का अर्थ पर्यावरण-प्रदूषण का एक रूप ध्वनि-प्रदूषण भी है। ध्वनि-प्रदूषण का आशय है—-अनावश्यक तथा अधिक शोर। प्रत्येक प्रकार की तीव्र ध्वनि को शोर की श्रेणी में रखा जा सकता है, भले ही यह शोर कल-कारखानों का हो, रेलगाड़ियों या अन्य वाहनों का हो, लाउडस्पीकरों का हो, टाइप मशीनों का हो, रसोईघर में बर्तनों का हो या गली-मुहल्ले में महिलाओं की आपसी लड़ाई-झगड़े का ही क्यों (UPBoardSolutions.com) न हो। स्पष्ट है कि हर क्षेत्र में शोर ही शोर है। शोर भले ही साधारण-सी घटना है, परन्तु इसका गम्भीर एवं प्रतिकूल प्रभाव हमारे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर निरन्तर पड़ता रहता है। वास्तव में ध्वनि या शोर की तीव्रता ही ध्वनि-प्रदूषण है। ध्वनि की तीव्रता का मापन करने की इकाई डेसीबेल है। सामान्य रूप से 80-85 डेसीबेल से अधिक तीव्रता वाली प्रत्येक ध्वनि को ध्वनि-प्रदूषण कारक ही माना जाता है।

स्रोत-ध्वनि-प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं

  1.  वाहनों द्वारा उत्पन्न शोर,
  2.  कारखानों में मशीनों द्वारा उत्पन्न शोर,
  3.  मनोरंजन के साधनों (रेडियो, टी० वी०, सिनेमा, लाउडस्पीकर व पटाखे आदि) से उत्पन्न शोर तथा
  4. भीड़ के नारों से उत्पन्न शोर।

जनजीवन पर प्रभाव( हानि):
ध्वनि-प्रदूषण का व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ध्वनि प्रदूषण से व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाती है, उसकी कार्यक्षमता घटती है तथा निरन्तर झुंझलाहट बनी रहती है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति के कानों एवं श्रवण-क्षमता पर ध्वनि प्रदूषण का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। निरन्तर ध्वनि-प्रदूषण से कानों की सुनने की शक्ति घट सकती है या समाप्त भी (UPBoardSolutions.com) हो सकती है। अत्यधिक शोर के कारण उच्च रक्त-चाप, श्वसन गति तथा नाड़ी गति में उतार-चढ़ाव, जठरांत्र गतिशीलता में कमी, रक्त-संचरण में
परिवर्तन तथा स्नायु-तन्त्र की असामान्यता जैसे प्रभाव देखे जा सकते हैं।

नियन्त्रण:

  1.  ऐसे उपाय करने चाहिए, जिनसे शोर उत्पन्न होने के स्थान पर ही कम किया जा सके।
  2.  शोर संचरण के मार्ग में इसे कम करने के लिए व्यवधान लगाए जाएँ।
  3. शोर ग्रहण करने वाले का भी बचाव किया जाए।
  4. आवासीय क्षेत्रों में उच्च ध्वनि वाले लाउडस्पीकरों पर कड़ा प्रतिबन्ध होना चाहिए।
  5.  औद्योगिक शोर को प्रतिबन्धित करने के लिए यथा-स्थान अधिक-से-अधिक साइलेंसर लगाए जाने चाहिए।
  6. वाहनों की ध्वनि को नियन्त्रित करने के समस्त तकनीकी उपाय करने चाहिए। ऊँची ध्वनि वाले हॉर्न नहीं लगाए जाने चाहिए।
  7.  जहाँ तक सम्भव हो मकानों को अधिक-से-अधिक साउण्ड पूफ बनाया जाना चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
रेडियोधर्मी प्रदूषण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:

स्रोत:
(1) नाभिकीय विखण्डन,
(2) परमाणु भट्टियों से उत्पन्न रेडियोधर्मी उत्पाद।

वातावरण पर प्रभाव:
रेडियोधर्मी पदार्थ वायु एवं जल-प्रदूषण करते हैं।

रेडियोधर्मी प्रदूषक:
कार्बन-14, स्ट्रांशियम-90, केसियम, आयोडीन आदि।

जनजीवन पर प्रभाव:

  1.  ल्यूकीमिया व कैन्सर जैसे असाध्य रोग।
  2. अंगों में विकास के समय उत्पन्न विकृतियाँ।
  3.  गुणसूत्रों पर कुप्रभाव जो कि आनुवंशिक हो जाता है।

UP Board Solutions

प्रश्न 2:
मृदा-प्रदूषण अर्थात् मिट्टी के प्रदूषण के सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण प्रदूषण का एक स्वरूप मृदा-प्रदूषण’ भी है। मृदा-प्रदूषण का अर्थ है किसी क्षेत्र की मिट्टी का प्रदूषित हो जाना। मिट्टी या भूमि का सीधा सम्बन्ध वनस्पतियों अर्थात् पेड़-पौधों से होता है। मृदा-प्रदूषण की दशा में मिट्टी में विजातीय तथा हानिकारक तत्त्वों का समावेश हो जाता है। मिट्टी का निरन्तर सम्पर्क वायु तथा जल से होता है। अत: यदि जल एवं वायु में प्रदूषण की दर में वृद्धि होती है। तो निश्चित रूप से मृदा-प्रदूषण में भी वृद्धि होती है। फसलों की सिंचाई के लिए निरन्तर जल की आवश्यकता होती है। अत: यदि प्रदूषित जल द्वारा सिंचाई का कार्य किया जाए तो मिट्टी भी प्रदूषित हो जाती है। इसी प्रकार वायु-प्रदूषण की दशा में वर्षा होने पर वायु की (UPBoardSolutions.com) अशुद्धियाँ मिट्टी में मिल जाती हैं। मृदा-प्रदूषण का सीधा प्रभाव हमारी फसलों पर पड़ता है। फसलों एवं उनसे प्राप्त खाद्य-पदार्थों के विजातीय तत्त्वों का समावेश हो जाता है। इस प्रकार के खाद्य-पदार्थों के सेवन से मनुष्यों एवं पशुओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका रहती है। मृदा-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए अलग से कोई विशेष उपाय करने आवश्यक नहीं होते। इसके लिए जल एवं वायु के प्रदूषण को नियन्त्रित कर लेना ही पर्याप्त माना जाता है। यदि वायु एवं जल-प्रदूषण को नियन्त्रित कर लिया जाए, तो मृदा-प्रदूषण की समस्या ही उत्पन्न नहीं होगी।

प्रश्न 3:
जंगलों को जनजीवन में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
मानव जाति ने प्राचीनकाल से ही जंगलों कों निज स्वार्थ में ईंधन, फर्नीचर एवं भवन-निर्माण सामग्री की लकड़ी के स्रोतों की तरह प्रयोग किया है। इसके अनेक दुष्परिणाम धीरे-धीरे मानव जाति को ही भुगतने पड़े हैं। वनों का जनजीवन में महत्त्व निम्नलिखित है

  1. प्रत्येक परिस्थिति में मानव जीवन प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से वनस्पतियों पर निर्भर होता है। गैसों, खनिज लवणों, पोषक पदार्थों आदि के आदान-प्रदान से मनुष्य तथा वनस्पतियाँ, एक-दूसरे का जीवन सम्भव बनाते हैं। जंगलों के विनाश के दुष्परिणाम हैं प्राकृतिक विपदाएँ; जैसे–सूखा व बाढ़
    आदि।
  2. वनों के हरे पेड़-पौधे प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड व ऑक्सीजन गैसों का वायुमण्डल में सन्तुलन बनाए रखते हैं। वनों के विनाश के कारण वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ रही है जो कि एक हानिकारक स्थिति है।

प्रश्न 4:
वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की निरन्तर बढ़ रही प्रतिशत मात्रा से क्या दुष्परिणाम सम्भव हैं?
उत्तर:
वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की प्रतिशत मात्रा में वृद्धि के कारण हैं
(1) कोयला, पेट्रोल व डीजल आदि को दहन तथा
(2) वनों का विनाश। वातावरण में कार्बन डाइ-ऑक्साइड के बढ़ने की यदि यह गति बनी रही तो आगामी 40 वर्षों में पृथ्वी के तापमान में लगभग तीन डिग्री सेण्टीग्रेड (UPBoardSolutions.com) तक वृद्धि होने की सम्भावना है। इसका परिणाम होगा विभिन्न देशों की जलवायु में परिवर्तन; उत्तरी अमेरिका व रूस में वर्षा में कुछ कमी तथा पश्चिमी यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, सहारा का क्षेत्र व भारतीय उपमहाद्वीप में वर्षा में कुछ वृद्धि होगी। इससे हमारे देश में बाढ़, प्रदूषण व मृदा अपरदन आदि की समस्याओं में वृद्धि होगी।

पृथ्वी का तापमान बढ़ जाने के कारण दोनों ध्रुवों पर बर्फ के पिघलने के कारण समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि हो जाएगी, जिसके कारण समुद्र के किनारे पर स्थित कई नगर व द्वीप जलमग्न हो जाएँगे।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
पर्यावरण से क्या आशय है?
उत्तर:
व्यक्ति के सन्दर्भ में व्यक्ति के अतिरिक्त इस सृष्टि में जो कुछ भी विद्यमान है, वह सब कुछ सम्मिलित रूप से पर्यावरण है।

प्रश्न 2:
पर्यावरण के प्रमुख स्वरूप बताइए।
उत्तर:
पर्यावरण के प्रमुख स्वरूप हैं प्राकृतिक पर्यावरण, सामाजिक पर्यावरण तथा सांस्कृतिक पर्यावरण।

UP Board Solutions

प्रश्न 3:
पर्यावरण के किस स्वरूप का निर्माण मनुष्य के द्वारा नहीं हुआ है?
उत्तर:
प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण का निर्माण मनुष्य के द्वारा नहीं हुआ है।

प्रश्न 4:
पर्यावरण-प्रदूषण से क्या आशय है?
उत्तर:
पर्यावरण के किसी एक या एक से अधिक भागों का दूषित हो जाना ही पर्यावरण-प्रदूषण कहलाता है। पर्यावरण-प्रदूषण अपने आप में पर्यावरण की एक हानिकारक दशा है।

प्रश्न 5:
पर्यावरण-प्रदूषण के मुख्य प्रकार या स्वरूपों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पर्यावरण-प्रदूषण के मुख्य प्रकार या स्वरूप हैं

  1. वायु-प्रदूषण,
  2.  जल-प्रदूषण,
  3. ध्वनि-प्रदूषण तथा
  4. मृदा-प्रदूषण।

प्रश्न 6:
पर्यावरण-प्रदूषण की दर में उल्लेखनीय वृद्धि किस युग में हुई है? उत्तर–आधुनिक औद्योगिक युग में पर्यावरण-प्रदूषण की दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। प्रश्न 7-पर्यावरण-प्रदूषण के चार मुख्य कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1.  औद्योगीकरण एवं नगरीकरण,
  2.  वृक्षों की अत्यधिक कटाई,
  3.  तू अवशिष्ट पदार्थों में वृद्धि,
  4. स्वचालित वाहनों की वृद्धि।

प्रश्न 8:
क्या आपके विचार से आधुनिक औद्योगिक युग में पर्यावरण-प्रदूषण को समाप्त किया जा सकता है?
उत्तर:
हमारे विचार से आधुनिक औद्योगिक युग में पर्यावरण प्रदूषण को समाप्त नहीं केवल नियन्त्रित किया जा सकता है।

प्रश्न 9:
पर्यावरण-प्रदूषण का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव व्यक्ति के किस पक्ष पर पड़ता है?
उत्तर:
पर्यावरण-प्रदूषण का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव व्यक्ति के स्वास्थ्य पर पड़ता है।

UP Board Solutions

प्रश्न 10:
जल कैसे दूषित होता है?
उत्तर:
मनुष्यों द्वारा वाहित मल, औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों, कीटनाशकों, साबुन व डिटर्जेण्ट्स आदि के नदी, झील अथवा तालाब आदि के जल में मिल जाने से जल दूषित हो जाता है।

प्रश्न 11:
वायु-प्रदूषण का क्या कारण है?
उत्तर:
वायु-प्रदूषण का कारण है-वायु में अशुद्धियों की मात्रा बढ़ जाना।

प्रश्न 12:
सल्फर डाइऑक्साइड से मनुष्य को क्या रोग हो जाता है?
उत्तर:
फेफड़ों के ऊतक कुप्रभावित होते हैं तथा पुरानी खाँसी का रोग हो जाता है।

प्रश्न 13:
फेफड़ों का केंसर सर किस गैस के प्रदूषण से होता है?
उत्तर:
नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NO, तथा NO) फेफड़ों के कैंसर की सम्भावनाओं में वृद्धि करते हैं।

प्रश्न 14:
वाहित मल के प्रदूषण से फैलने वाले दो रोगों के नाम बताइए।
उत्तर:
वाहित मल के प्रदूषण से फैलने वाले दो रोग हैं
(1) टायफाइड तथा
(2) पीलिया।

प्रश्न 15:
पारे व सीसे के यौगिक मनुष्य को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
ये मछलियों के शरीर में पहुँच जाते हैं। इन मछलियों को खाने से मनुष्य के नेत्रों व मस्तिष्क पर कुप्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 16:
ध्वनि-प्रदूषण से क्या आशय है?
उत्तर:
शोर तथा उसकी तीव्रता का बढ़ जाना ही ध्वनि-प्रदूषण है।

UP Board Solutions

प्रश्न 17:
ध्वनि या शोर की इकाई क्या है?
उत्तर:
ध्वनि या शोर की इकाई डेसीबेल है।

प्रश्न 18:
पर्यावरण से सम्बन्धित किन्हीं दो दण्डनीय अपराधों के नाम बताइए।
उत्तर:
(1) वनों एवं सार्वजनिक स्थलों के वृक्षों को काटना तथा
(2) वन्य प्राणियों; जैसे–चीता, शेर, हिरन आदि का शिकार करना।

प्रश्न 19:
भूमि-प्रदूषण को मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
भू-प्रदूषण के जनजीवन पर होने वाले कुप्रभाव निम्नलिखित हैं

  1. फसल की पैदावार कम होने से किसानों को आर्थिक क्षति होती है तथा
  2.  भूमि में रोगाणुओं के पनपने से अनेक रोग फैल जाते हैं।

प्रश्न 20:
वस्तुओं के जलने से कौन-सी गैस बनती है?
उत्तर:
वस्तुओं के जलने से मुख्यत: कार्बन डाइऑक्साइड व कार्बन मोनोऑक्साइड गैसें बनती

प्रश्न 21:
मोटरगाड़ियों को सबसे प्रदूषणकारी क्यों माना गया है?
उत्तर:
मोटरगाड़ियों को सबसे प्रदूषणकारी माना गया है; क्योंकि इनसे निकली अनेक हानिकारक गैसें; प्रमुखतः गैसीय हाइड्रोकार्बन्स, नाइट्रोजन ऑक्साइड के साथ सूर्य के प्रकाश में विषैला प्रकाश संश्लेषी स्मॉग बना लेती हैं, जो प्राणियों के लिए हानिकारक हैं।

प्रश्न 22:
औद्योगिक संस्थानों की चिमनियों से विसर्जित होने वाले अवशेषों से किस प्रकार के प्रदूषण में वृद्धि होती है?
उत्तर:
औद्योगिक संस्थानों की चिमनियों से विसर्जित होने वाले अवशेषों से वायु-प्रदूषण में वृद्धि होती है।

UP Board Solutions

प्रश्न 23:
कारखानों से निकलने वाली गैसें स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं। क्यों?
उत्तर:
कारखानों से निकलने वाली गैसें विषैली होती हैं। ये विषैली गैसें सल्फर व कार्बन की ऑक्साइड आदि होती हैं जो अनेक रोगों को उत्पन्न करती हैं या शरीर की प्रतिरोधक शक्ति को कम करती हैं, जिससे रोगाणु क्रिया करने में सफल हो जाते हैं।

प्रश्न 24:
क्या कार्बन आदि के कण भयंकर रोग उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी होते हैं?
उत्तर:
हाँ, कार्बन आदि के कण भयंकर रोग उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी होते हैं क्योंकि इनसे तपेदिक, कैंसर, दमा, श्वास आदि रोग हो जाते हैं।

प्रश्न 25:
रसोईघर में किस प्रकार के ईंधन को इस्तेमाल करके वायु-प्रदूषण को नियन्त्रित किया जा सकता है?
उत्तर:
रसोईघर में रसोई गैस, बायो गैस तथा धुआँ-रहित मिट्टी के तेल के स्टोव तथा आधुनिक धुआँ-रहित चूल्हों को इस्तेमाल करके वायु-प्रदूषण को नियन्त्रित किया जा सकता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) पर्यावरण-प्रदूषण में वृद्धि करने वाले कारक हैं
(क) औद्योगीकरण,
(ख) नगरीकरण,
(ग) यातायात के शक्ति-चालित साधन,
(घ) ये सभी।

(2) कीटनाशक दवाओं ने किस समस्या को बढ़ावा दिया है?
(क) हरित क्रान्ति को,
(ख) औद्योगीकरण को,
(ग) पर्यावरण-प्रदूषण को,
(घ) आर्थिक समृद्धि को।

(3) ध्वनि-प्रदूषण के कारण हैं
(क) लाउडस्पीकर,
(ख) वाहनों के हॉर्न,
(ग) सायरन,
(घ) ये सभी।

UP Board Solutions

(4) शोर या ध्वनि को मापने की इकाई है
(क) कैलोरी,
(ख) किलोग्राम,
(ग) सेण्टीमीटर,
(घ) डेसीबेल।

(5) सूर्य के प्रकाश की अनावश्यक पराबैंगनी किरणों का अवशोषण करती है वायुमण्डल में उपस्थित
(क) ऑक्सीजन,
(ख) कार्बन डाई-ऑक्साइड,
(ग) ओजोन,
(घ) नाइट्रोजन।

(6) रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण होने वाला असाध्य रोग है
(क) टायफाइड,
(ख) चेचक,
(ग) कैन्सर,
(घ) डिफ्थीरिया।

(7) वायुमण्डल की ओजोन की परत में छिद्र करने वाला प्रदूषक है
(क) क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन,
(ख) पी०सी० बी०,
(ग) डी० डी० टी०,
(घ) एल्ड्रीन।

(8) जल में डी० डी० टी० की मात्रा में वृद्धि से सम्भावना बढ़ जाती है
(क) फेफड़ों के कैन्सर की,
(ख) ल्यूकीमिया की,
(ग) पेट में अल्सर की,
(घ) लिवर के कैन्सर की।

(9) मछलियों एवं अन्य समुद्री प्राणियों के विनाश का प्रायः कारण बना करता है
(क) तैलीय-प्रदूषण,
(ख) वायु-प्रदूषण,
(ग) रेडियोधर्मी-प्रदूषण,
(घ) इनमें से कोई नहीं।

(10) निम्नलिखित में कौन-सा रोग वाहित मल द्वारा दूषित जल से होता है?
(क) चेचक,
(ख) काली खाँसी,
(ग) टायफाइड,
(घ) विषैला भोजन।

(11) पौधे वायुमण्डल का शुद्धिकरण करते हैं
(क) नाइट्रोजन द्वारा,
(ख) ऑक्सीजन द्वारा,
(ग) कार्बन डाइऑक्साइड द्वारा,
(घ) पानी द्वारा।

UP Board Solutions

(12) कारखानों की चिमनियों के धुंए से प्रदूषण होता है
(क) जलीय-प्रदूषण,
(ख) ध्वनि-प्रदूषण,
(ग) मृदीय-प्रदूषण,
(घ) वायु-प्रदूषण।

(13) औद्योगीकरण तथा नगरीकरण ने बढ़ावा दिया है
(क) पर्यावरण की स्वच्छता को,
(ख) पर्यावरण-प्रदूषण को,
(ग) पर्यावरण के रख-रखाव को,
(घ) इनमें से कोई नहीं।

(14) वर्तमान औद्योगिक जगत् की गम्भीर समस्या है ।
(क) बेरोजगारी,
(ख) महँगाई,
(ग) भिक्षावृत्ति,
(घ) पर्यावरण-प्रदूषण।

उत्तर:
(1) (घ) ये सभी,
(2) (ग) पर्यावरण-प्रदूषण को,
(3) (घ) ये सभी,
(4) (घ) डेसीबेल,
(5) (ग) ओजोन,
(6) (ग) कैन्सर,
(7) (क) क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन,
(8) (घ) लिवर के कैन्सर की,
(9) (क) तैलीय-प्रदूषण,
(10) (ग) टायफाइड,
(11) (ख) ऑक्सीजन द्वारा,
(12) (घ) वायु प्रदूषण,
(13) (ख) पर्यावरण-प्रदूषण को,
(14) (घ) पर्यावरण-प्रदूषण।

We hope the UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 7 पर्यावरण-प्रदूषण का जनजीवन पर प्रभाव help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 7 पर्यावरण-प्रदूषण का जनजीवन पर प्रभाव, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 20 स्वामी विवेकानन्द (महान व्यक्तित्व)

UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 20 स्वामी विवेकानन्द (महान व्यक्तित्व)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 8 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 20 स्वामी विवेकानन्द (महान व्यक्तित्व).

पाठ का सारांश

स्वामी विवेकानन्द का बचपन का नाम नरेन्द्र (नरेन) था। इनका जन्म 12 जनवरी 1863 ई० को कोलकाता में हुआ। इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। अधिक प्यार के कारण नरेन्द्र, हठी बन गया था। जब वह शरारत करता तो माँ शिव, शिव कहकर उसके सिर पर पानी के छींटें देती। इससे ये शान्त हो जाता क्योंकि इनकी शिव में अगाध श्रद्धा थी।

नरेन्द्र की आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। कुश्ती, बॉक्सिंग, दौड़, घुड़दौड़ और व्यायाम उनके शौक थे। उनके आकर्षक व्यक्तित्व को लोग देखते ही रह जाते। उन्होंने बी०ए० तक शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने पाश्चात्य और भारतीय संस्कृति का विस्तृत अध्ययन किया। दार्शनिक विचारों के अध्ययन से उनके मन में सत्य को जानने की इच्छा जाग्रत् हुई। सन् 1881 ई० में उन्होंने रामकृष्ण परमहंस से प्रश्न किया, “क्या आपने ईश्वर को देखा है?” उत्तर मिला, “हाँ देखा है, जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूँ।” नरेन्द्र मौन हो गए।

उनका संशय दूर हुआ और उनकी आध्यात्मिक शिक्षा शुरू हो गई। स्वामी रामकृष्ण ने भावी युग प्रवर्तक और संदेश वाहक को पहचान कर टिप्पणी की, “नरेन एक दिन संसार को आमूले झकझोर डालेगा।” (UPBoardSolutions.com) रामकृष्ण की मृत्यु के पश्चात् नरेन्द्र ने भारत में घूमकर उनके विचारों का प्रचार करना शुरू कर दिया। उन्होंने तीन वर्ष तक पैदल घूमकर सारे भारत का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने अपने जीवन को पहला उद्देश्य धर्म की पुनस्र्थापना निर्धारित किया।

उनका दूसरा कार्य था- हिन्दू धर्म और संस्कृति पर हिन्दुओं की श्रद्धा जमाना और तीसरा कार्य था- भारतीयों को संस्कृति, इतिहास और आध्यात्मिक परम्पराओं का योग्य उत्तराधिकारी बनाना। उन्होंने अपना नाम विवेकानन्द रखा और 1893 ई० के शिकागो धर्म सम्मेलन में भाग लिया। इनकी बोलने की बारी सबसे बाद में आई क्योंकि वहाँ इन्हें कोई नहीं जानता था। इनके सम्बोधन से सभा-भवन तालियों से गूंज उठा और इन्हें सर्वश्रेष्ठ व्याख्याता माना गया। इनके विदेशी मित्रों में मार्गरेट नोब्ल (सिस्टर निवेदिता) और जे जे गुडविन सेवियर दम्पत्ति जैसे प्रसिद्ध विद्वान विशेष प्रभावित हुए।

स्वामी जी तीन वर्ष तक इंग्लैण्ड और अमेरिका में रहे। इन्होंने वहाँ पर संयम और त्याग का महत्त्व समझाया। मानव मात्र के प्रति प्रेम और सहानुभूति उनका स्वभाव था। सेवा के उद्देश्य से उन्होंने 1897 ई० में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। मिशन का लक्ष्य सर्वधर्म समभाव था। कोलकाता में प्लेग फैलने पर इन्होंने प्लेग ग्रस्त लोगों की सेवा की।

स्वामी जी के हृदय में नारियों के प्रति असीम उदारता का भाव था। वे उन्हें महाकाली की साकार प्रतिमाएँ कहकर सम्मान देते थे। 4 जुलाई 1902 ई० को उनतालीस वर्ष की अल्पायु में उनका देहावसान हो गया। संघर्ष, त्याग और तपस्या का प्रतीक यह महापुरुष भारतीयों के हृदयों में चिरस्मरणीय रहेगा।

UP Board Solutions

अभ्यास-प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
नरेन्द्र का नाम विवेकानन्द कैसे हुआ?
उत्तर :
अपने शिष्य खेतरी नरेश के प्रस्ताव पर उन्होंने अपना नाम विवेकानन्द धारण किया।

प्रश्न 2.
नरेन्द्र के बारे में रामकृष्ण परमहंस ने क्या टिप्पणी की थी?
उत्तर :
नरेन्द्र के बारे में रामकृष्ण परमहंस ने टिप्पणी की थी, “नरेन (नरेन्द्र) एक दिन संसार को आमूल झकझोर डालेगा।”

प्रश्न 3.
स्वामी विवेकानन्द ने जीवन के क्या लक्ष्य निर्धारित किए?
उत्तर :
स्वामी विवेकानन्द के जीवन का पहला लक्ष्य- धर्म की पुनस्र्थापना का लक्ष्य- हिन्दू धर्म और संस्कृति पर हिन्दुओं की श्रद्धा जमाना और तीसरा लक्ष्य था- भारतीयों को उनकी संस्कृति, इतिहास और आध्यात्मिक (UPBoardSolutions.com) परम्पराओं का योग्य उत्तराधिकारी बनाना निर्धारित किया।

UP Board Solutions

प्रश्न 4.
स्वामी विवेकानन्द विदेश यात्रा के समय किन-किन लोगों से मिले?
उत्तर :
स्वामी विवेकानन्द विदेश यात्रा के समय मित्र के रूप में जे०जे० गुडविन, सेवियर दम्पति और मर्णरेट नोबल से मिले। सहयोगी के रूप में भगिनी निवेदिता मिली तथा विदेश यात्रा के दौरान ही उनकी भेंट प्रसिद्ध विद्वान मैक्समलर से हुई।

प्रश्न 5.
शिकागो धर्म सभा में स्वामी जी को सबसे बाद में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया क्योंकि
(क) वे देर से पहुँचे थे।
(ख) वे पहले बोलने में झिझक रहे थे।
(ग) उन्होंने ही ऐसी इच्छा जताई थी।
(घ) वहाँ न तो कोई उन्हें पहचानता था, न समर्थक था। (✓)

प्रश्न 6.
शिकागो धर्म सम्मेलन में किस बात पर श्रोता देर तक तालियाँ बजाते रहे?
उत्तर :
शिकागो धर्म सम्मेलन में सम्बोधन, “अमेरिकावासी भाइयों और बहिनो” पर श्रोता देर तक तालियाँ बजाते रहे।

प्रश्न 7.
स्वामी विवेकानन्द के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं ने आपको सबसे ज्यादा प्रभावित किया और क्यों? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
स्वामी विवेकानन्द के व्यक्तित्व की विशेषताएँ- संघर्ष, त्याग, तपस्या, साधना, दलितों के लिए सेवा और उनका उद्धार, उनकी व्याख्यान क्षमता आदि ने हमें विशेष प्रभावित किया है। हम उनसे (UPBoardSolutions.com) इसलिए प्रभावित हैं कि उन्होंने अल्पायु में अनेक कार्य करके यह सिद्ध कर दिया कि जंग लगकर मरने की अपेक्षा कुछ करके मरना अच्छा है।

UP Board Solutions

प्रश्न 8.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए

  • विग्रह नहीं समन्वय और शान्ति के पथ पर बढ़ो।
    आशय स्पष्ट – अलगाव ओर टकराव के स्थान पर मेल-जोल और सद्भावना का पथ श्रेष्ठ है।
  • मैं भारत में लोहे की माँसपेशियाँ और फौलाद की नाड़ियाँ देखना चाहता हूँ।
    आशय स्पष्ट – अच्छा स्वास्थ्य और साहस व दृढ़ निश्चय वाले कर्मठ व्यक्ति।
  • वास्तविक पूजा निर्धन और दरिद्र की पूजा है, रोगी और कमजोर की पूजा है।
    आशय स्पष्ट – गरीब लोगों की सेवा और सहायता करना।
  • जो जाति नारी का सम्मान करना नहीं जानती, वह न तो अतीत में उन्नति कर सकी, न आगे कर सकेगी।
    आशय स्पष्ट – नारियों की अवहेलना करने वाले कभी तरक्की नहीं कर पाए और न कर सकेंगे।
  • भारत यदि समाज संघर्ष में पड़ा तो नष्ट हो जाएगा।
    आशय स्पष्ट – समाज में विखण्डन और भेद-भाव नीति भारत के लिए हानिकारक है।
  • जंग लगकर मरने की अपेक्षा कुछ करके मरना अच्छा है। उठो, जागो और अपने अन्तिम लक्ष्य की पूर्ति हेतु कर्म में लग जाओ।
    आशय स्पष्ट – आलस्य छोड़कर, साहस से पुरुषार्थ करके जीवन में सफलता प्राप्त करना।

We hope the UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 20 स्वामी विवेकानन्द (महान व्यक्तित्व) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 20 स्वामी विवेकानन्द (महान व्यक्तित्व), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 4 वैदिक काल

UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 4 वैदिक काल (1500 ई०पू० से 600 ई०पू०)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 6 History. Here we have given UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 4 वैदिक काल (1500 ई०पू० से 600 ई०पू०)

अभ्यास

प्रश्न 1.
आर्यों के बारे में आप क्या जानते हैं ? लिखिए।
उत्तर :
आर्य का अर्थ होता है- श्रेष्ठ। प्रारंभ में आर्य इधर-उधर घूमते रहते थे। वे कबीलों में रहते थे। वे गाय, घोड़ा, बैल आदि पालते थे। चारा, पानी तथा उपजाऊ भूमि की तलाश में वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे। जहाँ चारा तथा उपजाऊ भूमि मिलती थी, वहीं बस जाते थे। इस प्रकार (UPBoardSolutions.com) आर्य समूह में आए और नए-नए स्थानों पर बसते गए। लगभग 1200 ई०पू० से. 1000 ई०पू० तक आर्य: सिंधु, सतलज, व्यास और सरस्वती नदी के किनारे बस गए।

UP Board Solutions 

प्रश्न 2.
वैदिक सभ्यता को आर्य सभ्यता क्यों कहते हैं ?
उत्तर :
वैदिक सभ्यता के निर्माता, आर्य ही थे, इसलिए वैदिक सभ्यता को आर्य सभ्यता कहा जाता है।

प्रश्न 3.
खेती का विकास हो जाने के बाद आयों के जीवन में क्या परिवर्तन हुआ ?
उत्तर :
खेती का विकास हो जाने के बाद आर्यों के जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। अब आर्य जौ के साथ गेहूँ, धान, दाल आदि उगाने लगे और कृषि उनका मुख्य व्यवसाय बन गया।

प्रश्न 4.
आयों की सामाजिक व्यवस्था कैसी थी ?
उत्तर :
आर्यों की सामाजिक व्यवस्था में समाज का आधार परिवार था। परिवार का वरिष्ठ सदस्य इसका मुखिया होता था, जिसको कुलप या गृहपति कह जाता था। आरंभ में आर्य तीन वर्षों में विभाजित थे। राजा, पुरोहित तथा अन्य जन। यह विभाजन उनके व्यवसाय पर आधारित था। धीरे-धीरे यज्ञ करवाने वाला ब्राह्मण, युद्ध करनेवाला क्षत्रिय, व्यापार करनेवाला वैश्य कहलाने लगा। साथ ही चौथा वर्ण शूद्र भी आया जो युद्ध (UPBoardSolutions.com) में हारे हुए लोग थे। यह व्यवस्था धीरे-धीरे कठोर होती गई। कार्य का स्वरूप वंशानुगत होता गया। महिलाओं को समाज में उच्च स्थान प्राप्त था, वे पुरूषों के समान ही शिक्षा प्राप्त करती थीं। आर्यों का घर घास-फूस तथा मिट्टी के बने होते थे। आर्य दूध एवं उससे बने पदार्थ का प्रयोग करते थे। अनाज में वे जौ, गेहूँ, चावल का प्रयोग करते थे।

UP Board Solutions

प्रश्न 5.
वैदिक कालीन शिक्षा व्यवस्था का वर्णन कीजिए ?
उत्तर :
विद्यार्थी गुरूकुल में रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे। वेदों के साथ गणित, ज्यामिती, ज्योतिष, भूगोल, सैन्य विज्ञान तथा शिल्प आदि की शिक्षा दी जाती थी।

प्रश्न 6.
संक्षिप्त उत्तर लिखिए –

(क) आश्रम व्यवस्था
(ख) सभा एवं समिति
(ग) आर्यावर्त
(घ) राजा के कर्तव्य

उत्तर :

(क) आश्रम व्यवस्था – प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को व्यवस्थित करने के लिए आर्यों ने जीवन को चार अवस्थाओं में बाँट दिया था – ब्रह्मचर्य,गृहस्थ,वानप्रस्थ,संन्यास
(ख) सभा एवं समिति – राजा पर नियंत्रण रखने के लिए सभा और समिति नामक संस्थाएं थीं। जिसमें 70-80 लोग मिलकर समस्याओं को सुलझाते थे।
(ग) आर्यावर्त – हिमालय से विन्ध्याचल पर्वत तक का क्षेत्र आर्यावर्त कहलाता है।
(घ) राजा के कर्तव्य – राजा का प्रमुख कार्य लोगों की रक्षा करना तथा युद्ध में सेना का नेतृत्व करना था।

प्रश्न 7.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें –

(क) प्रसिद्ध गायत्री मंत्र ऋग्वेद में है।
(ख) सप्तस्वर स, रे, ग, म का उल्लेख सामवेद में मिलता है।
(ग) आर्यों की भाषा संस्कृत थी।
(घ) महाभारत की रचना महर्षि वेदव्यास ने की है।

UP Board Solutions

प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों में सही (✓) और गलत (✗) का निशान लगाइए।

(क) ब्रह्मचर्य आश्रम में बालक शिक्षा ग्रहण करता था। (✓)
(ख) लोहे की खोज उत्तर वैदिक काल में हुई। (✓)
(ग) अथर्ववेद सबसे प्राचीन वेद है। (✗)
(घ) आर्यों की भाषा वैदिक संस्कृत थी। (✓)

प्रोजेक्ट वर्क –

  • आधुनिक समय के विद्यालय तथा वैदिक कालीन विद्यालय (गुरूकुल) में क्या समानताएँ तथा असमानताएँ हैं? शिक्षक की सहायता से सूची बनाइए।
  • निम्नलिखित वस्तुओं से दैनिक उपयोग की क्या-क्या समान बनाए जाते हैं।

UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 4 वैदिक काल 1

We hope the UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 4 वैदिक काल (1500 ई०पू० से 600 ई०पू०) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 6 History Chapter 4 वैदिक काल (1500 ई०पू० से 600 ई०पू०), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 8  सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” (काव्य-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 8  सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” (काव्य-खण्ड)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 8  सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” (काव्य-खण्ड).

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :

(दान)

1. निकला पहिला ……………………………………………………………………. आवेश-चपल। (Imp.)

शब्दार्थ-पहिला अरविन्द = यहाँ इसके दो अर्थ हैं-

  • सरोवर में खिला हुआ पहला कमल,
  • प्रात:काल का सूर्य (ज्ञान)

अनिन्द्य = सुन्दर, निर्दोष सौरभ-वसना = सुगन्धि के वस्त्र धारण किये हुए। क्षीण कटि = पतली कमर (धारा) वाली। नटी-नवल = नव-यौवना, नर्तकी।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित तथा सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘अपरा’ नामक काव्य ग्रन्थ से ‘दान’ शीर्षक कविता से ली गयी हैं।

प्रसंग – इस कविता में उन ढोंगी दानियों पर व्यंग्य किया गया है, जिनके हृदय में दया लेशमात्र भी नहीं है तथा जो धर्म के नाम पर केवल दान का ढोंग करते हैं। इन पंक्तियों में कवि ने प्रात:कालीन प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन किया है।

व्याख्या – प्रकृति के रहस्यमय सुन्दर श्रृंगार को देखने के लिए पौ फटते ही पहला कमल खिल गया अथवा प्रकृति के रहस्यों को निर्दोष भाव से देखने के लिए आज ज्ञान का प्रतीक सूर्य निकल आया है। आज ही पहली बार कवि को धर्म के बाह्य आडम्बर का स्वरूप देखकर वास्तविक ज्ञान प्राप्त हुआ है। सुगन्धिरूपी वस्त्र धारण कर वायु मन्द-मन्द बह रही है। वह जब कानों के निकट से गुजरती है तो ऐसा मालूम पड़ता है (UPBoardSolutions.com) कि वह प्राणों को पुलकित करनेवाला गतिशीलता का सन्देश दे रही हो। गोमती नदी में कहीं-कहीं पानी कम होने से वह एक पतली कमरवाली नवेली नायिका-सी जान पड़ती है। उसमें उठती-गिरती लहरों के कारण वह धारा मधुर उमंग से भरकर नृत्य करती हुई-सी जान पड़ती है।

काव्यगत सौन्दर्य – कवि ने गोमती तट पर प्रात:कालीन प्राकृतिक सौन्दर्य का सजीव वर्णन किया है।

  • गोमती नदी को नवयौवना नर्तकी कहकर नदी का मानवीकरण किया गया है।
  • भाषा-संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली।
  • शैली-प्रतीकात्मक, वर्णन
  • रस-शान्त, श्रृंगार।
  • शब्द-शक्ति-‘निकला पहिला अरविन्द आज’ में लक्षणा।
  • गुण-माधुर्य।
  • अलंकार-रूपक, मानवीकरण और अनुप्रास

UP Board Solutions

2. मैं प्रातः पर्यटनार्थ चला ……………………………………………………………………. वह पैसा एक, उपायकरण।
अथवा ढोता जो वह ……………………………………………………………………. उपाय करण।

शब्दार्थ-पर्यटनार्थ = भ्रमण के लिए। निश्चल = स्थिर। सदया = दया भाव से युक्त। कृष्णकाय = काले शरीरवाला।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘दान’ शीर्षक कविता से अवतरित है।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्य-पंक्तियों में दान का ढोंग करनेवालों पर व्यंग्य किया गया है। कवि ने ऐसी ही एक घटना का चित्रात्मक वर्णन किया है।

व्याख्या – कवि कहता है कि मैं एक दिन सवेरे गोमती नदी के तट पर घूमने के लिए गया और लौटकर पुल के समीप आकर खड़ा हो गया। वहाँ मैं सोचने लगा कि इस संसार के सभी नियम अटल हैं। प्रकृति दया-भाव से सब मनुष्यों को उनके कर्मों का फल प्रदान करती है अर्थात् मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार ही फल पाते हैं। इस प्रकार उनके सोचने के लिए कुछ भी नवीन नहीं होता। सौन्दर्य, गीत, विविध रंग, गन्ध, भाषा, मनोभावों को छन्दों में बाँधना और मनुष्य को प्राप्त होनेवाले ऊँचे-ऊँचे भोग तथा और भी कई प्रकार के दान, जो मनुष्य को प्रकृति ने प्रदान किये हैं या उसने अपने परिश्रम से प्राप्त किये हैं, इन सबमें मनुष्य श्रेष्ठ और सौभाग्यशाली है। (UPBoardSolutions.com) फिर निराला जी ने देखा कि गोमती के पुल पर बहुत बड़ी संख्या में बन्दर बैठे हुए हैं तथा सड़क के एक ओर दुबला-पतला काले रंग का मृतप्राय, जो हड़ियों का ढाँचामात्र था, ऐसा एक भिखारी बैठा हुआ है। वह भिक्षा पाने के लिए अपलक नेत्रों से ऊपर की ओर देख रहा है। उसका कण्ठ भूख के कारण बहुत कमजोर पड़ गया था और उसकी श्वास भी तीव्र गति से चल रही थी। ऐसा लग रहा था, मानो वह जीवन से बिल्कुल उदास होकर शेष घड़ियाँ व्यतीत कर रहा हो। न जाने इस जीवन के रूप में वह कौन-सा शाप ढो रहा था और किन पापों का फल भोग रहा था? मार्ग से गुजरनेवाले सभी लोग यही सोचते थे, किन्तु कोई भी इसका उत्तर नहीं दे पाता था। कोई अधिक दया दिखाता तो एक पैसा उसकी ओर फेंक देता।

काव्यगत सौन्दर्य

  • कवि ने मानव को प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ रचना बताया है।
  • कवि का विचार है कि मनुष्य अपने पूर्वजन्म के कर्मों के कारण दु:ख भोगता है।
  • भाषा-संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली
  • शैली- वर्णनात्मक।
  • रस-शान्त
  • अलंकार-जीता ज्यों जीवन से उदास’ में अनुप्रास तथा उत्प्रेक्षा है।

3. मैंने झुक नीचे ……………………………………………………………………. श्रेष्ठ मानव!
अथवा मैंने झुक ……………………………………………………………………. तत्पर वानर।

शब्दार्थ-पारायण = अध्ययन। कपियों = बन्दरों सरिता-मजन = नदी में स्नान । इतर = दूसरा। दूर्वादल = दूब। तण्डुल = चावल।।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तके ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘दान’ शीर्षक कविता से अवतरित है।

प्रसंग – सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ ने अपनी ‘दान’ शीर्षक कविता में ढोंग करनेवाले दिखावटी धार्मिक लोगों पर तीखा व्यंग्य किया है।

व्याख्या – कवि कहता है कि मैंने झुककर पुल के नीचे देखा तो मेरे मन में कुछ आशा जगी । वहाँ एक ब्राह्मण स्नान करके शिव जी पर जल चढ़ाकर और दूब, चावल, तिल आदि भेंट करके अपनी झोली लिये हुए ऊपर आया। उसको देखकर बन्दर शीघ्रता से दौड़े। यह ब्राह्मण भगवान् राम का भक्त था। उसे भक्ति करने से कुछ मनोकामना पूरी होने की आशा थी। वह बारहों महीने भगवान् शिव की आराधना करता था। वे ब्राह्मण महाशय प्रतिदिन प्रात:काल रामायण का पाठ करने के बाद ‘ श्रीमन्नारायण’ मन्त्र का जाप करते हैं। वह (UPBoardSolutions.com) अन्धविश्वासी ब्राह्मण जब कभी दुःखी होता या असहाय दशा का अनुभव करता, तब हाथ जोड़कर बन्दरों से कहता कि वे उसका दु:ख दूर कर दें। कवि उस ब्राह्मण का परिचय देते हुए कहता है कि वे सज्जन मेरे पड़ोस में रहते हैं और प्रतिदिन गोमती नदी में स्नान करते हैं । उसने पुल के ऊपर पहुँचकर अपनी झोली से पुए निकाल लिये और हाथ बढ़ाते हुए बन्दरों के हाथ में रख दिये।

कवि को यह देखकर दुःख हुआ कि उसने बन्दरों को तो बड़े चाव से पुए खिलाये, परन्तु उधर घूमकर भी नहीं देखा, जिधर वह भिखारी कातर दृष्टि से देखता हुआ बैठा था। मानवीय करुणा की उपेक्षा और बन्दरों को पुए खिलाने के बाद वह अन्धविश्वासी ब्राह्मण बोला कि अब मैंने उन राक्षसी वृत्तियों से छुटकारा पा लिया है, जिनके कारण मैं दु:खी था, परन्तु निराला जी के मुख से निकला ‘ धन्य हो श्रेष्ठ मानव’। (UPBoardSolutions.com) भाव यह है कि जो मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है, उसकी इतनी दुर्गति कि उसे बन्दरों से भी तुच्छ समझा गया। मरणासन्न दशा में देखकर भी उसे भिक्षा के योग्य भी न समझा गया। मानवता का इससे बढ़कर क्रूर उपहास और क्या हो सकता है?

काव्यगत सौन्दर्य

  • कवि ने अन्धविश्वासी मानव के धार्मिक ढोंग पर तीव्र व्यंग्य किया है।
  • भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली।
  • शैली-व्यंग्यात्मक।
  • रस-शान्त।
  • अलंकार-अनुप्रास।

UP Board Solutions

प्रश्न 2.
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए। अथवा निराला जी की साहित्यिक सेवाओं एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए। अथवा निराला जी की साहित्यिक सेवाओं एवं काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालिए।

(सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ )
(स्मरणीय तथ्य )

जन्म – सन् 1897 ई०, मेदनीपुर (बंगाल)।
मृत्यु – सन् 1961 ई०।
पिता – पं० रामसहाय त्रिपाठी।
रचना – ‘राम की शक्ति-पूजा’, ‘तुलसीदास’, ‘अपरा’, ‘अनामिका’, ‘अणिमा’, ‘गीतिका’, ‘अर्चना’, ‘परिमल’, ‘अप्सरा’, ‘अलका’।
काव्यगत विशेषताएँ
वर्य-विषय – छायावाद, रहस्यवाद, प्रगतिवाद, प्रकृति के प्रति तादात्म्य का भाव।
भाषा – खड़ीबोली जिसमें संस्कृत शब्दों की बहुलता है। उर्दू व अंग्रेजी के शब्दों तथा मुहावरों का प्रयोग।
शैली – 1. दुरूह शैली, 2. सरल शैली।। छन्द-तुकान्त, अतुकान्त, रबर छन्द।। अलंकार-उपमा, रूपक, अतिशयोक्ति, मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय आदि।

जीवन-परिचय – हिन्दी के प्रमुख छायावादी कवि पं० सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म महिषा-दल, स्टेट मेदनीपुर (बंगाल) में सन् 1897 ई० की बसन्त पंचमी को हुआ था। वैसे ये उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ कोला गाँव के निवासी थे। इनके पिता पं० रामसहाय त्रिपाठी थे। ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। इनकी शिक्षा-दीक्षा बंगाल में हुई थी। 13 वर्ष की अल्पायु में इनका विवाह हो गया था। इनकी पत्नी बड़ी विदुषी और संगीतज्ञ थीं। उन्हीं के संसर्ग में रहकर इनकी रुचि हिन्दी साहित्य और संगीत की ओर हुई । निराला जी ने (UPBoardSolutions.com) हिन्दी, बंगला और संस्कृत का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। 22 वर्ष की अवस्था में ही पत्नी का देहान्त हो जाने पर अत्यन्त ही खिन्न होकर इन्होंने महिषादल स्टेट की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और स्वच्छन्द रूप से काव्य-साधना में लग गये। इन्होंने ‘समन्वय’ और ‘मतवाला’ नामक पत्रों का सम्पादन किया। इनका सम्पूर्ण जीवन संघर्षों में ही बीता और जीवन के अन्तिम दिनों तक ये आर्थिक संकट में घिरे रहे। सन् 1961 ई० में इनका देहान्त हो गया।

रचनाएँ – निराला जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। कविता के अतिरिक्त इन्होंने उपन्यास, कहानी, निबन्ध, आलोचना और संस्मरण आदि विभिन्न विधाओं में भी अपनी लेखनी चलायी। परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, अपरा, बेला, नये पत्ते, आराधना, अर्चना आदि इनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं। इनकी अत्यन्त प्रसिद्ध काव्य-रचना ‘जुही की कली’ है। लिली, चतुरी चमार, (UPBoardSolutions.com) सुकुल की बीबी (कहानी संग्रह) एवं अप्सरा, अलका, प्रभावती इनके महत्त्वपूर्ण उपन्यास हैं। काव्यगत विशेषताएँ

(क) भाव-पक्ष-

  • हिन्दी साहित्य में निराला मुक्त वृत्त परम्परा के प्रवर्तक माने जाते हैं।
  • इनके काव्य में भाषा, भाव और छन्द तीनों समन्वित हैं।
  • ये स्वामी विवेकानन्द और स्वामी रामकृष्ण परमहंस की दार्शनिक विचारधारा से बहुत प्रभावित थे।
  • निराला के काव्य में बुद्धिवाद और हृदय का सुन्दर समन्वय है।
  • छायावाद, रहस्यवाद और प्रगतिवाद तीनों क्षेत्रों में निराला का अपना विशिष्ट महत्त्वपूर्ण स्थान है।
  • इनकी रचनाओं में राष्ट्रीय प्रेरणा का स्वर भी मुखर हुआ है।
  • छायावादी कवि होने के कारण निराला का प्रकृति से अटूट प्रेम है। इन्होंने प्रकृति-चित्रण में प्रसाद जी की भाँति ही मानवीय भावों का आरोप करते। हुए एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।

(ख) कला-पक्ष-
(1) भाषा-शैली-निराला जी की भाषा संस्कृतगर्भित खड़ीबोली है। यत्र-तत्र बंगला भाषा के शब्दों का भी प्रयोग मिल जाता है। इनकी रचनाओं में उर्दू और फारसी के शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं। इनके काव्य में जहाँ हृदयगत भावों की प्रधानता है वहाँ भाषा सरल, मुहावरेदार और प्रवाहपूर्ण है। निराला के काव्य में प्राय: तीन प्रकार की शैलियों के दर्शन होते हैं

  • सरल और सुबोध शैली – (प्रगतिवादी रचनाओं में)
  • क्लिष्ट और दुरूह शैली – (रहस्यवादी एवं छायावादी रचनाओं में)
  • हास्य-व्यंग्यपूर्ण शैली – (हास्य-व्यंग्यपूर्ण रचनाओं में)

(2) रस-छन्द-अलंकारे-निराला के काव्य में श्रृंगार, वीर, रौद्र और हास्य रस का सुन्दर और स्वाभाविक ढंग से परिपाक हुआ है। निराला जी परम्परागत काव्य छन्दों से (UPBoardSolutions.com) सर्वथा भिन्न छन्दों के प्रवर्तक माने जाते हैं। इनके मुक्तछन्द दो प्रकार के हैं। (1) तुकान्त (2) अतुकान्त। दोनों प्रकार के छन्दों में लय और ध्वनि का विशेष ध्यान रखा गया है।

अलंकारों के प्रति निराला जी की विशेष रुचि दिखलाई नहीं पड़ती। इन्होंने प्राचीन और नवीन दोनों प्रकार के उपमान की प्रयोग किया है। मानवीकरण और विशेषण जैसे अंग्रेजी के अलंकारों का भी इनके काव्य में प्रयोग मिलता है।

साहित्य में स्थान-निराला जी हिन्दी साहित्य के बहुप्रतिभा सम्पन्न कलाकार एवं साहित्यकार हैं। इन्होंने अपने परम्परागत क्रान्तिकारी स्वच्छन्द मुक्त काव्य-योजना का निर्माण किया। समय के परिवर्तन के साथ-साथ इनके काव्य में भी छायावाद, रहस्यवाद और प्रगतिवाद के दर्शन (UPBoardSolutions.com) हुए हैं। सब कुछ मिलाकर निराला भारतीय संस्कृति के युगद्रष्टा कवि हैं। छायावादी चार कवियों (प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी वर्मा) में इनका प्रमुख स्थान है।

UP Board Solutions

प्रश्न 3.
निराला जी द्वारा रचित ‘दान’ कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा लिखित ‘दान’ कविता में दु:खी मानवों की उपेक्षा करके वानरों, कौओं आदि को भोजन खिलाने वाले मनुष्यों पर व्यंग्य किया गया है। ‘दान’ कविता का सारांश निम्न प्रकार है

सारांश – एक दिन प्रात:काल कवि घूमते-घूमते नदी के पुल पर जा पहुँचा और सोचने लगा कि यह प्रकृति-जो जैसा करता है, उसे वैसा ही फल देती है। संसार का सौन्दर्य, गीत, भाषा आदि सभी किसी-न-किसी रूप में प्रकृति का दान पाते हैं और सभी यही कहते हैं कि मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है।

कवि ने देखा कि पुल के ऊपर बहुत से बन्दर बैठे हैं और मार्ग में एक ओर काले रंग का मरा हुआ-सा अत्यन्त दुर्बल भिखारी बैठा हुआ है। जैसे ही कवि ने झुककर नीचे की ओर देखा तो उन्हें वहाँ पर शिवजी के ऊपर चावल, तिल और जल चढ़ाते हुए एक ब्राह्मण दिखलायी दिया तत्पश्चात् वह ब्राह्मण एक झोली लेकर ऊपर आया। बन्दर उसे देखकर वहाँ आ गये। उसने बन्दरों को झोली से निकालकर पुए दे दिये और उसे भिखारी की ओर मुड़कर भी नहीं देखा। यह देखकर कवि को दुःख हुआ। वह व्यंग्य के साथ बोला–हे मानव, तू धन्य है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘दान’ शीर्षक कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर :
शीर्षक ‘दान’ निराला की चर्चित कविता है। प्रस्तुत पंक्तियों में दीनों, असहायों एवं शोषितों के प्रति संवेदना व्यक्त की गयी है। एक दिन निराला घूमते-फिरते नदी के पुल पर जा पहुँचे। पुल पर बहुत से बन्दर बैठे हुए थे। रास्ते में एक दुर्बल भिखारी भी बैठा हुआ है। नीचे शिवजी का मन्दिर (UPBoardSolutions.com) है। शिवजी के ऊपर चावल-तिल आदि चढ़ाने का ताँता लगा हुआ था। एक ब्राह्मण पूजा-पाठ करने के पश्चात् झोली लेकर पुल पर आया। झोली से पुए निकालकर बन्दरों को खिलाने लगा लेकिन भिखारी की ओर देखा तक नहीं। कवि को यह देखकर बहुत कष्ट होता है।

प्रश्न 2.
पुल पर खड़े होकर ‘निराला’ जी क्या सोचते हैं?
उत्तर :
पुल पर खड़े होकर सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ सोचते हैं कि इस सृष्टि का निर्माण करने वाले के नियम अटल हैं। यहाँ जो जैसा करता है उसे वैसे ही फल की प्राप्ति होती है।

प्रश्न 3.
निराला ने ‘दान’ कविता के माध्यम से किस पर प्रहार किया है?
उत्तर :
निराला ने ‘दान’ कविता के माध्यम से धनाढ्य लोगों पर प्रहार किया है, जो बन्दरों को मालपुए खिलाते हैं और निर्धन मनुष्य उन्हें बेबसी से देखते रह जाते हैं।

प्रश्न 4.
मानव के विषय में सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की धारणा पहले क्या थी?
उत्तर :
मानव को सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानते थे।

UP Board Solutions

प्रश्न 5.
‘कानों में प्राणों की कहती’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
जब सौरभ वसना समीर कानों के निकट से गुजरती है, वह मानो कानों में प्राणों को पुलकित करनेवाला प्रेम मन्त्र चुपचाप कह जाती है।

प्रश्न 6.
‘दान’ शीर्षक कविता में कवि द्वारा किये गये व्यंग्य की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
कविवर निराला ने ‘दान’ शीर्षक कविता में समाज की इस अमानवीय प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है कि भक्त लोग एक भूखे मनुष्य को भोजन कराने के स्थान पर बन्दरों को पुए खिलाते हैं और यह समझते हैं कि इससे उन्हें परम पुण्य की प्राप्ति होगी।

प्रश्न 7.
‘दान’ शीर्षक कविता पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :
एक दिन प्रात:काल कवि घूमते-घूमते नदी के पुल पर जा पहुँचा और सोचने लगा कि यह प्रकृति-जो जैसा करता है, उसे वैसा ही फल देती है। संसार का सौन्दर्य, गीत, भाषा आदि सभी किसी-न-किसी रूप में प्रकृति का दान पाते हैं और सभी यही कहते हैं कि मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है।
कवि ने देखा कि पुल के ऊपर बहुत से बन्दर बैठे हैं और मार्ग में एक ओर काले रंग का मरा हुआ-सा अत्यन्त दुर्बल भिखारी बैठा हुआ है। जैसे ही कवि ने झुककर नीचे की ओर देखा तो उन्हें वहाँ पर शिवजी के ऊपर चावल, तिल और जल चढ़ाते हुए एक ब्राह्मण दिखलायी दिया। तत्पश्चात् (UPBoardSolutions.com) वह ब्राह्मण एक झोली लेकर ऊपर आया। बन्दर उसे देखकर वहाँ आ गये। उसने बन्दरों को झोली से निकालकर पुए दे दिये और उस भिखारी की ओर मुड़कर भी नहीं देखा। यह देखकर कवि को दु:ख हुआ। वह व्यंग्य के साथ बोला-हे मानव, तू धन्य है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निराला किस युग के कवि माने जाते हैं?
उत्तर :
निराला छायावाद युग के कवि माने जाते हैं।

प्रश्न 2.
निराला की दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
परिमल और अनामिका।

प्रश्न 3.
निराला की पुत्री का क्या नाम था?
उत्तर :
निराला की पुत्री का नाम सरोज था।

प्रश्न 4.
छायावाद के स्तम्भ कहे जाने वाले कवि का नाम लिखिए।
उत्तर :
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’।

प्रश्न 5.
निराला के काव्य की भाषा क्या है?
उत्तर :
खड़ीबोली।

UP Board Solutions

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से सही उत्तर के सम्मुख सही (NV) का चिह्न लगाइए
(अ) भिखारी का रंग काला था।
(ब) शिवभक्त बन्दरों को पुए खिला रहा था।
(स) निराला भारतेन्दु युग के कवि माने जाते हैं। काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध

1.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए–
(अ) सोचा ‘विश्व का नियम निश्चल’, जो जैसा उसको वैसा फल।
(ब) विप्रवर स्नान कर चढ़ा सलिल, शिव पर दूर्वा दल तण्डुल, तिल।

(अ) काव्यगत विशेषताएँ-

  • यह धरती का शाश्वत सत्य है कि जो जैसा करता है उसी के अनुसार फल मिलता है।
  • छन्द-नवीन प्रकार की अतुकान्त छन्द।
  • भाषा-संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली।
  • शैली-आलंकारिक, भावात्मक।
  • अलंकार-रूपक और अनुप्रास।
  • गुण-माधुर्य।
  • रस-शान्त ।

(ब) काव्यगत विशेषताएँ–

  • कवि ने मानव समाज की दयनीय दशा एवं थोथे आडम्बरों का सजीव चित्रण किया है।
  • भाषा-संस्कृतनिष्ठ एवं साहित्यिक खड़ीबोली।
  • अलंकार-अनुप्रास।
  • छन्द-तुकान्त।
  • रस-शान्त
  • गुण–प्रसाद।

2.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार का नाम बताइए
(अ) जीता ज्यों जीवन से उदास।
(ब) भाषा भावों के छन्द बद्ध।
(स) कहते कपियों के जोड़ हाथ।
उत्तर :
(अ) अनुप्रास,
(ब) अनुप्रास,
(स) अनुप्रास।

UP Board Solutions

3.
निम्नलिखित में समास-विग्रह करते हुए समास का नाम बताइए
कृष्णकाय           =      कृष्ण काय                 =     कर्मधारय
दूर्वादल              =      दूर्वादल (हरीघास)      =     कर्मधारय
सरिता-मज्जन     =      सरिता में मज्जन          =     अधिकरण तत्पुरुष
रामभक्त             =      राम का भक्त              =     सम्बन्ध तत्पुरुष

We hope the UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 8  सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” (काव्य-खण्ड) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 8  सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” (काव्य-खण्ड), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.