UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 30 खान अब्दुल गफ्फ्फार खाँ (महान व्यक्तित्व)

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पाठ का सारांश

अब्दुल गफ्फार खाँ को बादशाह खान के नाम से जाना जाता है। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा स्थानीय मदरसे (पेशावर) में हुई। इन्होंने थोड़े समय में ही पूरा कुरान याद कर लिया और हाफिजे कुरान बन गए। मदरसे की शिक्षा के बाद वे पेशावर में म्युनिसिपल बोर्ड हाईस्कूल में भर्ती हुए। फिर वे एडवर्ड्स मेमोरियल मिशन हाईस्कूल में गए। युवा होने पर ये बलिष्ठ और छह फीट तीन इंच लम्बे थे। प्रतिष्ठित परिवार के सदस्य होने के नाते इन्हें ब्रिटिश भारतीय सेना में चुन लिया गया लेकिन थोड़े दिन बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और अध्ययन के लिए अलीगढ़ चले गए। वहाँ उन्होंने अबुल कलाम आजाद का अखबार ‘अले हिलाल’ पढ़ा, इससे उनमें देशप्रेम की भावना और सुदृढ़ हो गई।

क्रान्तिकारी गातिविधियों में सन्देह होने पर इन्हें पेशावर में कैद कर लिया गया। माँ की मृत्यु होने पर ये जेल से छूटकर सीधे अपने गाँव आए, जहाँ लोगों की बड़ी जनसभा में इन्हें पाठकों का गौरव की उपाधि दी गई। मई 1928 ई० में इन्होंने पश्तो भाषा का अखबार निकाला। सन् 1928 ई० में वे लखनऊ आए और गांधी जी और नेहरू जी से मिले। इन्हें (UPBoardSolutions.com) विश्वास हो गया कि अहिंसा और एकता से विजय प्राप्त की जा सकती है। सन् 1929 ई० में इन्होंने एक संगठन ‘खुदाई खिदमतगार’ बनाया। इस आन्दोलन के सदस्य लाल कुर्ती वाले कहलाए। 13 मई, 1930 ई० को सेना की एक टुकड़ी ने लाल कपड़े उतारने को कहा जो उन्होंने नहीं माना। सन् 1931 ई० में उन्हें फिर कैद किया गया। तीन वर्ष बाद इन्हें छोड़ा गया लेकिन पंजाब और सीमा प्रान्त नहीं जाने दिया।

अगस्त 1942 ई० में भारत-छोड़ो आन्दोलन सीमा प्रान्त में अनुशासित ढंग से हुआ। देश के विभाजन से सीमा प्रान्त पाकिस्तान में चला गया, जिससे बादशाह खान बहुत दुखी हुए। पाकिस्तान सरकार ने इन्हें कैद कर लिया। सन् 1964 ई० में पाकिस्तान सरकार ने इलाज के लिए इन्हें लन्दन जाने की अनुमति दी। सन् 1969 ई० में महात्मा गांधी की जन्म शताब्दी पर ये भारत आए। अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिए इन्हें नेहरू पुरस्कार दिया गया। श्रीमती इन्दिरा गांधी के निमन्त्रण पर ये सन् 1980 तथा 1981 में भारत आए। सन् 1987 ई० में बादशाह खान को भारत सरकार ने सर्वोच्च नागरिक (UPBoardSolutions.com) सम्मान ‘भारत रत्न’ प्रदान किया। 20 जनवरी, 1988 ई० को 98 वर्ष की परिपक्व आयु में इनका निधन हो गया।

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अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए।
(क) बादशाह खान को सीमान्त गांधी क्यों कहा जाता है?
उत्तर :
बादशाह खान ने अपने जीवन में महात्मा गांधी के आदर्शों को माना और वे ‘सीमा प्रांत (पेशावर)’ के रहने वाले थे, इसलिए इन्हें सीमान्त गांधी कहा जाता है।

(ख)
“हाफिजे कुरान’ का क्या अर्थ है?
उत्तर :
हाफिजे कुरान का अर्थ है- कुराने का ज्ञाता। बादशाह खान को पूरा कुरान याद था।

(ग)
खुदाई खिदमतगार के सदस्य क्या प्रतिज्ञा करते थे?
उत्तर :
खुदाई खिदमतगार के सदस्य प्रतिज्ञा करते थे कि वे हर अत्याचार का विरोध अहिंसा और सत्याग्रह से करेंगे और हथियार नहीं उठाएँगे।

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(घ)
गफ्फार खाँ को सर्वोच्च भारतीय नागरिक सम्मान कब मिला?
उत्तर :
गफ्फार खाँ को सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारत रत्न’ सन् 1987 ई० में मिला।

प्रश्न 2.
सही कथन के सम्मुख सही (✓) तथा गलत कथन के सम्मुख गलत (✗) का चिन्ह लगाइए (सही-गलत का चिह्न लगाकर):
(क) खान अब्दुल गफ्फार खाँ के विचारों पर परिवार के लोगों का प्रभाव पड़ा। (✓)
(ख) गफ्फार खाँ अँग्रेजी सेना की नौकरी से निकाल दिए गए थे। (✗)
(ग) “पख्तून’ नामक समाचार पत्र (UPBoardSolutions.com) अँग्रेजी भाषा में प्रकाशित होता था। (✗)
(घ) ‘अल हिलाल’ समाचार पत्र स्वतन्त्रता, प्रजातन्त्र व न्याय के प्रचार के लिए विख्यात था। (✓)

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के चार सम्भावित उत्तर हैं, जिनमें से केवल एक उत्तर सही है। सही उत्तर छॉटिए
(क) गफ्फार खाँ ने मैट्रिक परीक्षा के लिए प्रवेश लिया –

  • म्युनिसिपल बोर्ड हाईस्कूल में (✓)
  • हडवर्ड्स मेमोरियल मिशन हाईस्कूल में।
  • सेंट स्टीफेंस कालेज में।
  • मदरसा नदवतुल उलेमा लखनऊ में।

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(ख) गफ्फार खाँ एक महान नेता की जन्मशताब्दी वर्ष पर भारत आए थे। वे नेता थे

  • लाला लाजपत राय
  • श्रीमती इन्दिरा गांधी
  • डा० राधाकृष्णन
  • महात्मा गांधी

प्रश्न 4.
नोट – विद्यार्थी अपने शिक्षक/शिक्षिका की सहायता से स्वयं करें।

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 (Section 4)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 कृषि तथा उद्योगों की पारस्परिक अनुपूरकता एवं औद्योगिक ढाँचा (अनुभाग – चार)

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विरत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बड़े पैमाने के उद्योगों से आप क्या समझते हैं ? बड़े पैमाने के उद्योगों के प्रोत्साहन के लिए भारत में कौन-से कदम उठाये जा रहे हैं ?
उत्तर :

बड़े पैमाने के उद्योग

‘बड़े पैमाने के उद्योग से आशय ऐसे उद्योगों से है, जिनमें बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। इन उद्योगों में बहुत अधिक पूँजी का निवेश होता है तथा बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है। भारतीय उद्योगों में निवेश की गयी स्थिर पूँजी का अधिकांश भाग बड़े पैमाने के उद्योगों में लगा हुआ है। ये उद्योग संकल औद्योगिक उत्पादन के सबसे बड़े भाग का उत्पादन करते हैं। ये उद्योग सामाजिक और आर्थिक न्याय के साथ विकास को सम्भव बनाते हैं। सूती वस्त्र उद्योग तथा लोहा-इस्पात उद्योग इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रोत्साहन के लिए उठाये गये कदम

छोटे पैमाने के उद्योग अधिकांशतः उपभोक्ता वस्तुओं को छोटे पैमाने पर उत्पादन करते हैं। वे पूँजीगत एवं उपभोक्ता वस्तुओं की बढ़ती हुई माँग को पूरा नहीं कर सकते। दूसरे, उनकी गुणवत्ता भी उतनी उच्चकोटि की नहीं हो पाती है। अत: बड़े पैमाने के उद्योगों की स्थापना की गयी। इन उद्योगों की स्थापना अधिकांशतः सार्वजनिक क्षेत्र में की गयी है, जिनमें बड़ी मात्रा में पूँजी का निवेश किया गया है तथा बड़ी संख्या में श्रमिकों को रोजगार दिया गया है। इन उद्योगों के विकास के लिए सरकार ने निम्नलिखित उपाय किये हैं –

1. आधारिक संरचना का विस्तार – सरकार ने देश में परिवहन व संचार सुविधाओं के विकास में बड़ी मात्रा में पूंजी निवेश किया है।

2. सार्वजनिक उद्योगों का विस्तार – नियोजन काल (UPBoardSolutions.com) में भारत सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र में बड़े उद्योगों की स्थापना की है; जैसे-दुर्गापुर, भिलाई, राउरकेला के स्टील प्लाण्ट, भारतीय तेल निगम आदि।

3. वित्तीय संस्थाओं की स्थापना – बड़े उद्योगों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सरकार ने अनेक वित्तीय संस्थाओं; जैसे-भारतीय औद्योगिक विकास बैंक आदि की स्थापना की है।

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4. विदेशी सहयोग – योजना काल में विदेशी पूँजी एवं विदेशी तकनीक की सहायता से अनेक उद्योगों की स्थापना की गयी है।

5. उत्पादन तकनीक में सुधार – बड़े उद्योगों की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए सरकार ने अनुसन्धान एवं शोध-कार्यों को प्रोत्साहित किया है तथा अनेक संस्थाओं की स्थापना की है।

6. कर एवं अन्य रियायतें – सरकार ने बड़े उद्योगों के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए करों में छूट, ऋण सुविधा आदि के अतिरिक्त अनेक प्रकार के राजकोषीय परामर्श तथा वित्तीय सुविधाएँ प्रदान की हैं।

7, औद्योगिक नीति का उदारीकरण – वर्ष 1991 की नयी नीति के अनुसार इन उद्योगों की स्थापना तथा विस्तार के लिए इन्हें लाइसेंसमुक्त किया गया है। इसके अतिरिक्त विदेशी प्रत्यक्ष विनियोग को उदार बनाया गया है।

8. सरकार ने प्रौद्योगिकी में सुधार तथा यन्त्रों – उपकरणों के आधुनिकीकरण के लिए दो वित्तीय सहायता कोषों-‘प्रौद्योगिकी सुधार कोष तथा पूँजी आधुनिकीकरण कोष’ की स्थापना की है।

प्रश्न 2.
सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के उद्योगों में अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के चार दोषों का उल्लेख कीजिए। [2009, 10]
उत्तर :
सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के उद्योगों में मूल अन्तर स्वामित्व का होता है। वे उपक्रम जिन पर सरकारी विभागों अथवा केन्द्र या राज्यों द्वारा स्थापित संस्थाओं का स्वामित्व होता है, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम कहलाते हैं; जैसे-भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लि०, (UPBoardSolutions.com) भिलाई इस्पात लि० आदि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम हैं। इसके विपरीत वे उद्योग जिनका स्वामित्व कुछ व्यक्तियों या कम्पनियों के पास होता है, निजी क्षेत्र के उद्यम कहलाते हैं; जैसे-टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी।

सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के दोष

यद्यपि सार्वजनिक क्षेत्र के अनेक उद्यमों की प्रगति एवं कार्य सन्तोषजनक है; जैसे – भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग, भारतीय जीवन बीमा निगम आदि; तथापि इस क्षेत्र के अधिकांश उद्यमों का कार्य सन्तोषजनक नहीं है। वे अनेक दोषों से ग्रस्त हैं, जिनमें से चार का विवरण निम्नलिखित हैं –

1. भ्रष्टाचार – सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के उच्च अधिकारी अपने कर्तव्य को सार्वजनिक हित में न लेकर, एक स्व-हितकारी व्यवसाय के रूप में लेते हैं। वे व्यक्तिगत आर्थिक लाभ को प्राथमिकता देते हैं तथा अपने सार्वजनिक या जन-सामान्य के हितों की अवहेलना करते हैं। इसका सीधा असर उस उद्यम की वित्त-व्यवस्था पर पड़ता है, जो निरन्तर घाटे की ओर बढ़ती चली जाती है।

2. दक्षता एवं कार्यकुशलता का अभाव – सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में शीर्ष स्थान पर बहुधा प्रशासनिक अधिकारी बैठे होते हैं, जिनको उस उद्यम का तकनीकी ज्ञान नहीं होता। परिणामस्वरूप, वे उद्यमकर्मियों का सही मार्गदर्शन करने में असमर्थ होते हैं। यह अभाव भी इन उद्यमों में गिरती कार्यकुशलता एवं दक्षता के लिए जिम्मेदार है।

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3. सुधार व अनुसन्धानिक दृष्टि का अभाव – सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में सुधार व अनुसन्धान कार्यों के लिए एक लम्बी व उबाऊ प्रक्रिया अपनायी जाती है। लालफीताशाही, जिम्मेदारी की कमी, व्यक्तिगत आर्थिक हितों के लिए प्राथमिकता तथा दकियानूसी सोच के कारण इन उद्यमों में सुधार कछुवा- गति से होते हैं।

4. प्रतिस्पर्धात्मक सोच का अभाव – आज का युग कड़ी प्रतिस्पर्धा का युग है। निजी क्षेत्र इस प्रतिस्पर्धा में जी-जान से लगते हैं। विभिन्न माध्यमों से वे विज्ञापनों का सहारा लेकर अपने उत्पादनों की खपत बढ़ाने तथा उसका बाजार हथियाने में लगे हैं। इसके विपरीत, (UPBoardSolutions.com) सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकांश उद्यम इसे प्रतिस्पर्धा में पिछड़ गये हैं। नियोजक के हितों की अपेक्षा निजी आर्थिक हितों को प्राथमिकता देना भी प्रतिस्पर्धात्मक सोच को आगे नहीं बढ़ने देता।

प्रश्न 3.
औद्योगिक उत्पादकता का वर्णन कीजिए। इसमें कार्यकुशलता का क्या महत्त्व है? या औद्योगिक उत्पादकता का क्या अर्थ है ? [2010]
उत्तर :

औद्योगिक उत्पादकता

उत्पादन-प्रक्रिया उत्पत्ति के विभिन्न साधनों के सामूहिक प्रयासों पर निर्भर करती है। उत्पादन में इन साधनों के आनुपातिक भाग को ‘साधन उत्पादकता’ कहते हैं। उद्योग की उत्पादकता के अर्थ को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है –

एक उद्योग की प्रदा (Output) और उसकी आदाओं (Inputs) के आनुपातिक भाग को उस उद्योग की उत्पादकता कहते हैं। सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से उत्पादकता का आशय देश के सम्भाव्य प्रसाधनों से समस्त उपलब्ध वस्तुओं और सेवाओं के अनुपात से है। एम० बनर्जी (UPBoardSolutions.com) के शब्दों में, “उत्पादकता से आशय प्राय: उस अनुपात से लिया जाता है, जो कि वस्तुओं और सेवाओं के रूप में धनोत्पादन और ऐसे उत्पादन में लगे हुए उत्पत्ति के साधनों के बीच विद्यमान हो।” औद्योगिक उत्पादकता को उद्योग में लगी पूँजी और उसके द्वारा उत्पादन में वृद्धि के रूप में मापा जा सकता है। इसे वर्द्धमान पूँजी उत्पाद’ अनुपात के नाम से भी जाना जाता है।

कार्यकुशलता का महत्त्व

किसी भी उद्योग की उत्पादकता, दक्षता एवं यापारिक लाभ उसकी कार्यकुशलता पर निर्भर करते हैं। कार्यकुशलता के मुख्य घटक हैं—मानव श्रम तथा वित्तीय एवं भौतिक संसाधनों का उपयुक्त एवं अधिकतम उपयोग। जिन उद्योगों में मानव-श्रम तथा वित्तीय (UPBoardSolutions.com) एवं भौतिक संसाधनों का उपयुक्त उपयोग किया जाता है, वहाँ कुशलता व्याप्त होती है तथा ऐसे उद्योग उद्यमी को लाभ कमा कर देते हैं। टाटा आयरन एण्ड स्टील कं० तथा मारुति कार उद्योग कार्यकुशलता युक्त उद्योगों के उदाहरण हैं। इसके विपरीत जिन उद्योगों में मानव श्रम तथा वित्तीय एवं भौतिक संसाधनों का उपयुक्त उपयोग नहीं हो पाता, वहाँ कार्यकुशलता में कमी व्याप्त रहती है तथा वे निरन्तर घाटे में रहते हैं।

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मानव श्रम – आर्थिक सुधारों की गति को देखते हुए योजना आयोग का मानना है कि दस वर्षों में भारत के प्रति व्यक्ति की औसत आय दुगुनी हो जाएगी। भारत में जनसंख्या की वृद्धि 1.5% वार्षिक है। भारत की आर्थिक संवृद्धि की दर त्वरित होने की आशा के पीछे एक बड़ा कारण यह है हमारा ‘निर्भरता-अनुपात अर्थात् काम करने की उम्र वालों की संख्या की तुलना में निर्भर जनसंख्या पश्चिमी देशों की तुलना में कम है। दूसरे शब्दों में, बच्चों और बूढ़ों की संख्या की तुलना में हमारे यहाँ काम करने वालों की संख्या पश्चिमी देशों की अपेक्षा बहुत ऊँची है। अत: उपलब्ध पर्याप्त मानव-श्रम हमारी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

वित्तीय संसाधन – विदेशी प्रत्यक्ष निवेश देश में लगातार बढ़ता ही जा रहा है। वर्ष 1990-91 में इसकी निवल राशि 9 करोड़ 60 लाख डॉलर थी, जो वर्ष 1998-99 में बढ़कर 2 अरब 38 करोड़ डॉलर हो गयी। वर्ष 2004-05 में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की कुल निवल राशि 3 अरब 24 करोड़ डॉलर थी। योजना आयोग की रिपोर्ट के अनुसार दिसम्बर, 2005 ई० तक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश लगभग 5 अरब डॉलर तक पहुँच गया था।

निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि आज भारत कार्यकुशलता की दृष्टि से अन्य विकासशील देशों की तुलना में बहुत आगे और विकसित देशों के समीप पहुँचने की स्थिति में है।

प्रश्न 4.
भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु और कुटीर उद्योगों का महत्त्व बताइए। [2010, 13]
या
भारतीय अर्थव्यवस्था में कुटीर उद्योग के तीन लाभ लिखिए। [2014]
या
कुटीर उद्योग का आर्थिक विकास में क्या महत्त्व है? [2015]
या
भारत के कुटीर उद्योगों के किन्हीं छः आर्थिक महत्त्वों पर प्रकाश डालिए।
या
कुटीर उद्योग को परिभाषित कीजिए। इसके दो महत्त्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। [2018]
उत्तर :

लघु एवं कुटीर उद्योग

लघु उद्योगों को परिभाषित करने में मशीन व संयन्त्रों में किये गये विनियोगों को आधार माना गया है। वर्तमान में लघु उद्योगों में निवेश की सीमा ₹ 1 करोड़ है। ये उद्योग घर के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर स्थापित किये जाते हैं तथा यान्त्रिक व (UPBoardSolutions.com) शक्ति के साधनों का उपयोग करते हैं; जैसे-मिक्सी उद्योग।

कुटीर उद्योगों से अभिप्राय ऐसे उद्योगों से है, जिसमें किसी परम्परागत वस्तु का उत्पादन परिवार के सदस्यों तथा कुछ वैतनिक श्रमिकों (9 से कम) की सहायता से स्वयं इसके मालिक (प्रायः कारीगर) द्वारा किया। जाता है। सभी कुटीर उद्योगों में यान्त्रिक व शक्ति के साधनों का उपयोग नहीं होता; जैसे- लोहा-इस्पात उद्योग।

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भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु एवं कुटीर उद्योगों का महत्त्व (लाभ) निम्नलिखित है –

  1. कुटीर उद्योगों का विकास बेरोजगारी की समस्या का अच्छा समाधान है।
  2. कुटीर उद्योग खेतिहर श्रमिकों को अतिरिक्त आय का साधन प्रदान करते हैं।
  3. कुटीर उद्योग कृषि भूमि पर जनसंख्या के भार को कम करने में सहायक हैं।
  4. इन्हें सरलतापूर्वक स्थापित किया जा सकता है, क्योंकि इन उद्योगों को चलाने के लिए थोड़ी पूँजी, बहुत कम प्रशिक्षण तथा हल्के औजारों की आवश्यकता होती है।
  5. भारत में पूँजी का अभाव व श्रम-शक्ति की बहुतायत है। ऐसी अर्थव्यवस्था के लिए लघु उद्योग अत्यधिक उपयुक्त हैं।
  6. इन उद्योगों के विकास से राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। राष्ट्रीय आय-समिति के (UPBoardSolutions.com) अनुसार, “भारत की | राष्ट्रीय आय में कुटीर एवं लघु स्तरीय उद्योगों का योगदान विशाल स्तरीय उद्योगों के योगदान की तुलना में अधिक होता है।”
  7. कुटीर एवं लघु उद्योग देश को आत्मनिर्भर बनाने में सहायक हैं।
  8. ये उद्योग निर्धन वर्ग की अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
  9. कुटीर व लघु उद्योगों के विकास से आर्थिक विषमता का अन्त होता है।
  10. कुटीर व लघु उद्योगों का विकास देश के सन्तुलित एवं बहुमुखी विकास के लिए अति आवश्यक है।
  11. कुटीर व लघु उद्योगों के विकास से औद्योगीकरण के दोष उत्पन्न नहीं हो पाते हैं।
  12. कुटीर उद्योगों के विकास से अनेक मानवीय प्रवृत्तियों का जन्म होता है; जैसे—सहयोग, सहानुभूति, समानता, सहकारिता, पारस्परिक साहचर्य आदि।
  13. कुटीर व लघु उद्योगों में निर्मित अनेक पदार्थ; जैसे-रेशमी-कलापूर्ण वस्त्र, चन्दन व हाथीदाँत की वस्तुएँ, चमड़े के जूते, पत्थर व धातु की मूर्तियाँ, दरियाँ-कालीन, ताँबे-पीतल के बर्तन आदि विदेशों को निर्यात किये जाते हैं, जिससे प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।

एक सर्वेक्षण के अनुसार, देश की अर्थव्यवस्था में कुटीर व लघु उद्योगों का योगदान इस प्रकार है-राष्ट्रीय उत्पादन में 12%, देश के निर्यात में 20%, रोजगार में 27% तथा औद्योगिक उत्पाद में 41%

उत्तर प्रदेश कुटीर उद्योग उपसमिति 1947′ का मत था-“बेरोजगारी के दानव से लोहा लेने के लिए व कृषि क्षेत्र में पूर्ण एवं आंशिक रूप से बेकार पड़ी हुई जनशक्ति का उपयोग करने का एकमात्र उपाय कुटीर एवं लघु उद्योगों के विकास में निहित है।”

इस प्रकार कहा जा सकता है कि कुटीर व लघु उद्योगों का भविष्य सामान्यतः उज्ज्वल है, किन्तु अर्थव्यवस्था में उदारीकरण की नीति के कारण विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के बड़ी मात्रा में प्रवेश भारत के कुटीर व लघु उद्योगों के लिए खतरा बन चुके हैं, (UPBoardSolutions.com) क्योंकि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की विकसित तकनीक के कारण भारतीय लघु व कुटीर उद्योग प्रतियोगिता में टिक नहीं सकते। फलतः अब इनका भविष्य उज्ज्वल नहीं है।

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प्रश्न 5.
अकुशलता एवं अल्प-उत्पादकता के कारणों का वर्णन कीजिए।
या
भारतीय उद्योगों के पिछड़ेपन के प्रमुख कारण क्या हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। [2010]
या
उद्योगों की निम्न उत्पादकता के कोई दो कारण बताइट। [2010]
या
भारत में निम्न औद्योगिक उत्पादकता के तीन कारण बताइए तथा उसके उत्पादकता बढ़ाने के तीन उपाय समझाइए। [2015]
या
भारत में औद्योगिक उत्पादकता बढ़ाने के लिए छः सुझाव दीजिए। [2016]
या
भारत के उद्योगों के पिछड़ेपन के छः कारणों की विवेचना कीजिए। [2017]
उत्तर :

अकुशलता एवं अल्प-उत्पादकता के कारण

भारतीय उद्योग विकसित देशों के उद्योगों की तुलना में अत्यधिक अकुशल तथा पिछड़े हुए हैं। उनमें उत्पादकता स्तर भी निम्न है। इस अकुशलता एवं अल्प-उत्पादकता के निम्नलिखित कारण हैं –

1. पूँजी का अभाव – उद्योगों की स्थापना में पर्याप्त पूँजी की आवश्यकता होती है, जिसका भारत में सदा ही अभाव रहा है। यहाँ के लोगों का जीवन-स्तर व प्रति व्यक्ति आय निम्न होने के कारण बचत और निवेश की मात्रा बहुत ही कम है; अतः पूँजी के अभाव में (UPBoardSolutions.com) भारतीय उद्योग पिछड़े हुए हैं।

2. शक्ति के साधनों की कमी – भारतीय उद्योगों के पिछड़ेपन का एक प्रमुख कारण शक्ति के साधनों की अपर्याप्तता है। शक्ति के तीन प्रमुख साधन माने जाते हैं-कोयला, पेट्रोलियम तथा जल-विद्युत। भारत में उच्चकोटि के कोयले का अभाव है और यहाँ जल-संसाधनों का भी समुचित उपयोग नहीं हो पाया है। जल विद्युत की कमी तथा पेट्रोलियम पदार्थों का विदेशों से आयात भारतीय उद्योगों के पिछड़ेपन के लिए पर्याप्त सीमा तक उत्तरदायी हैं।

3. आधुनिक मशीनों का अभाव – भारत में आधुनिक मशीनों का अभाव है और पुरानी मशीनों से बड़े पैमाने पर उत्पादन नहीं हो पाता है। इससे भी उद्योगों में गिरावट आयी है।

4. तकनीकी कर्मचारियों की कमी – भारत में आज भी उच्चकोटि के तकनीकी प्रशिक्षण की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। अतः प्रशिक्षण के लिए तकनीकी विशेषज्ञों को विदेशों में भेजा जाता है, जिनमें से बहुत कम ही विशेषज्ञ तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर स्वदेश लौटते हैं। इस कारण तकनीकी विशेषज्ञों की कमी भी उद्योगों को विकसित नहीं होने देती।

5. समर्थ साहसियों का अभाव – भारत में औद्योगिक विकास तथा उद्योगों के पिछड़ेपन के लिए उत्तरदायी कारणों में प्रमुख कारण समर्थ साहसियों का अभाव भी रहा है। आज भी देश में कुछ गिने-चुने पूँजीपति ही ऐसे हैं, जो बड़े उद्योगों को चला रहे हैं।

6. परिवहन व संचार के साधनों का अविकसित होना – अन्य देशों की तुलना में अविकसित परिवहन व संचार के साधनों ने भी भारतीय उद्योगों के स्तर को निम्न बना रखा है।

7. औद्योगिक रुग्णता – भारत में औद्योगिक क्षेत्र की समस्याओं में एक प्रमुख समस्या औद्योगिक रुग्णता की समस्या है। रुग्ण इकाइयों में होने वाले निरन्तर वित्तीय प्रवाह से बैंकिंग संसाधनों के दुरुपयोग के साथ-साथ सरकार के व्यय में भी वृद्धि होती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मार्च, 2000 के अन्त में देश में तीन लाख से अधिक लघु औद्योगिक इकाइयाँ रुग्णता का शिकार थीं, जिनमें सर्वाधिक 27,000 बिहार में तथा लगभग (UPBoardSolutions.com) 21,000 उत्तर प्रदेश में थीं।

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8. विदेशी शासन – भारत के औद्योगिक दृष्टि में पिछड़े होने का मुख्य कारण विदेशी शासन का लम्बे समय तक बने रहना है। विदेशी शासन का मुख्य उद्देश्य भारत को कच्चे माल का निर्यात एवं निर्मित माल का आयात करने वाले देश के रूप में विकसित करना था। यही कारण था कि अंग्रेजों ने अपने देश के उद्योगों को संरक्षण देने के लिए विभेदात्मक संरक्षण की नीति अपनायी और भारत के औद्योगिक विकास को अवरुद्ध किया।

9. प्रतिकूल सामाजिक वातावरण – भारत में औद्योगिक पिछड़ेपन का एक कारण प्रतिकूल सामाजिक वातावरण भी है। यहाँ जाति-प्रथा, संयुक्त परिवार-प्रणाली तथा धार्मिक अन्धविश्वास, जो कि सामाजिक वातावरण के अंग हैं, औद्योगिक विकास में सदा ही बाधक रहे हैं। संयुक्त परिवार- प्रणाली ने व्यक्तिगत प्रेरणा को सदा ही हतोत्साहित किया है और आगे बढ़ने से रोका है। इसी प्रकार जाति-प्रथा एवं संयुक्त परिवार-प्रणाली ने श्रम की गतिशीलता में बाधाएँ डाली हैं। उत्तराधिकार नियमों के अन्तर्गत बँटवारे की प्रथा ने पूँजी–साधनों को छोटे-छोटे खण्डों में बाँटकर पूँजी को एकत्रित करने में कठिनाई पैदा की है।

10. उद्योगों को असन्तुलित विकास – भारत के सभी राज्यों में तथा ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों का विकास सन्तुलित और समानुपातिक रूप में नहीं हो पाया। इस कारण भी उद्योगों में कार्यक्षमता और उत्पादकता का स्तर कम हुआ है।
[उत्पादकता बढ़ाने के उपाय – इसके लिए विस्तृत उत्तरीय संख्या 7 के अन्तर्गत देखें।

प्रश्न 6.
भारत में औद्योगिक विकास की प्रमुख समस्याओं के बारे में विस्तार से लिखिए।
या
भारतीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों के विकास में आने वाली किन्हीं चार बाधाओं की विवेचना कीजिए। [2013]
उत्तर :
स्वतन्त्रता से पूर्व भारत में अपेक्षित औद्योगिक विकास नहीं हो सका था। इसका मुख्य कारण ब्रिटिश सरकार की भारत पर थोपी गई दोषपूर्ण आर्थिक नीति थी। स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सरकार ने इस ओर विशेष ध्यान दिया। सन् 1948 में संसद में भारत सरकार की प्रथम औद्योगिक नीति की घोषणा की गई,जिसमें समय-समय पर संशोधन किए जाते रहे। दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-61 ई०) में भारत में विशालस्तरीय एवं आधारभूत (UPBoardSolutions.com) उद्योगों की स्थापना पर विशेष बल दिया गया। 60 वर्षों से निरन्तर औद्योगिक विकास पर बल देते रहने के बावजूद भारत आज भी औद्योगिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं –

1. प्रौद्योगिकी सुधार के लिए प्रेरणाओं का अभाव – भारतीय उत्पादन तकनीक अभी भी पिछड़ी हुई है। भारतीय उद्यमी नवीनतम तकनीक को अपनाने के लिए पर्याप्त रूप से प्रेरित नहीं हो पाते। इसका कारण अभी भी पर्याप्त नियन्त्रणों का पाया जाना है।

2. स्थापित क्षमता का पूर्ण उपयोग न होना – अनेक उद्योग अपनी स्थापित क्षमता के 50 प्रतिशत भाग का भी उपयोग नहीं कर पाते हैं, इससे अपव्यय बढ़ जाते हैं।

3. पूँजीगत व्ययों में वृद्धि – भारतीय उद्योगों में पूँजीगत व्यये अत्यधिक ऊँचे हैं, जिसके कारण इन उद्योगों की लाभदायकता का स्तर नीचे गिर गया है।

4. अनुसन्धान एवं विकास कार्यक्रमों का अभाव – उद्योगों का आकार छोटा होने तथा वित्तीय सुविधाओं की कमी के कारण इन उद्योगों में अनुसन्धान एवं विकास कार्यक्रम नहीं हो पाते हैं।

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5. अनुत्पादक व्ययों की अधिकता – भारतीय उद्योगों में अनुत्पादक व्यय सामान्य से अधिक रहे हैं, जिसका प्रभाव लागत में वृद्धि व उत्पादकता की कमी के रूप में पड़ा है।

6. उपक्रमों के निर्माण में देरी – देश में उद्योगों की स्थापना में निर्धारित समय से अधिक समय लगता है। इससे इने उद्योगों की कार्यकुशलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और इनकी निर्माण लागत भी बढ़ जाती है।

7. वित्तीय सुविधाओं का अपर्याप्त होना – भारत में औद्योगिक बैंकों की पर्याप्त संख्या में स्थापना न हो पाने से भी उद्योगों को समय पर वित्तीय सहायता उपलब्ध नहीं हो पाती।

8. श्रम प्रबन्ध संघर्ष – भारत में औद्योगिक सम्बन्ध मधुर नहीं रहे हैं और आए दिन हड़ताल व तालाबन्दी होती रहती है। इसका औद्योगिक उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 7.
लघु उद्योग से आप क्या समझते हैं ? भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु उद्योगों की किन्हीं चार समस्याओं की विवेचना कीजिए। [2013, 17]
या
लघु उद्योग किसे कहते हैं? उनके विकास के लिए चार सुझाव दीजिए। [2013]
या
लघु उद्योग को परिभाषित कीजिए। [2016]
उत्तर :

लघु उद्योग

लघु उद्योग को परिभाषित करने में मशीन व संयंत्रों में किये गये विनियोगों को आधार माना गया है। ₹ 25 लाख तक की लागत (संयंत्र तथा मशीनरी) वाले उद्योग लघु पैमाने के उद्योग कहलाते थे। सन् 1991 में लघु उद्योग में विनियोग-सीमा ₹ 60 लाख, सहायक उद्योगों में ₹ 75 लाख और अतिलघु इकाइयों में ₹ 5 लाख रखी गयी थी। बाद में लघु उद्योगों व सहायक उद्योगों की विनियोग-सीमा बढ़ाकर ₹ 3 करोड़ तथा अतिलघु इकाइयों की विनियोग-सीमा को बढ़ाकर ₹ 25 लाख कर दिया गया। वर्तमान में लघु उद्योगों में निवेश की सीमा ₹ 1 करोड़ है।

ये उद्योगों में यान्त्रिक शक्ति का उपयोग करते हैं तथा बड़े उद्योगों के लिए पुर्जे भी बनाते हैं। ये घर पर नहीं, वरन् अन्य स्थानों पर स्थापित किये जाते हैं। ये पूर्णकालिक व्यवसाय के रूप में चलाये जाते हैं। इन उद्योगों में वैतनिक मजदूर लगाये जाते हैं। लघु उद्योग व्यापक क्षेत्रों की (UPBoardSolutions.com) माँग को पूरा करने के लिए उत्पादन करते हैं। उदाहरण के लिए-इनमें आधुनिक वस्तुएँ; जैसे-मिक्सी, ट्रांजिस्टर, खिलौने आदि तैयार किये जाते हैं।

लघु उद्योगों की चार समस्याएँ

लघु उद्योगों की चार समस्याएँ निम्नलिखित हैं –

1. कच्चे माल का अभाव – इन उद्योगों को पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल उपलब्ध नहीं हो पाता और जो माल इन्हें प्राप्त होता है, वह भी अच्छी किस्म का नहीं होता।

2. वित्त की समस्या – भारतीय शिल्पकार अत्यधिक निर्धन हैं और अपनी निर्धनता के कारण वे आवश्यक पूँजी नहीं जुटा पाते। साहूकार व महाजन इनका मनचाहा शोषण करते हैं।

3. परम्परागत उपकरण व उत्पादन विधियाँ – अधिकांश शिल्पी उत्पादन कार्य में परम्परागत उपकरणों एवं पुरानी उत्पादन पद्धतियों का ही प्रयोग करते हैं। इसके फलस्वरूप एक ओर तो उत्पादन कम होता है और दूसरी ओर उत्पादित क्स्तु घटिया किस्म की होती है।

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4. विक्रय सम्बन्धी समस्याएँ – इन उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ एक तो प्रायः समरूप नहीं होतीं। मध्यस्थों के कारण इन शिल्पकारों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता और तीसरे लागत अधिक आने के कारण इन वस्तुओं का विक्रय मूल्य अधिक होता है, जिसके कारण (UPBoardSolutions.com) ये प्रतियोगिता में नहीं ठहर पातीं।

समस्याओं के समाधान हेतु सुझाव

भारत में लघु एवं कुटीर उद्योगों की समस्याओं के समाधान के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं –

  1. शिल्पकारों को सहकारिता के आधार पर संगठित किया जाए, जिससे उनकी सामूहिक क्रय-शक्ति में वृद्धि हो सके।
  2. विभिन्न स्रोतों से कच्चे माल को खरीदने के लिए पर्याप्त मात्रा में साख-सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ।
  3. माल के क्रय-विक्रय में इन उद्योगों को प्राथमिकता दी जाए।
  4. सहकारी विपणन समितियों की स्थापना की जाए।
  5. उत्पादन लागत में कमी तथा उत्पादित वस्तु की किस्म में सुधार के लिए प्रयास किये जायें।
  6. शिक्षा, प्रशिक्षण एवं अनुसन्धान की सुविधाओं का विस्तार किया जाए।
  7. उत्पादकों को नवीन उपकरण प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
  8. इन उद्योगों पर से कर-भार घटाया जाए।
  9. कुटीर उद्योगों के विकास की सम्भावनाओं का पता लगाने के लिए व्यापक रूप से सर्वेक्षण कराये जाएँ।
  10. इन उद्योगों के लिए आरक्षित मदों की सूची का प्रति वर्ष निरीक्षण किया जाए।

वस्तुतः यदि हमें तीव्र गति से आर्थिक विकास करना है और अपनी निरन्तर बढ़ती हुई श्रम-शक्ति को लाभप्रद रोजगार प्रदान करना है तो हमें अपने भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री वी० वी० गिरीके ‘घर-घर में गृह उद्योग’ के नारे को सार्थक करना होगा।

प्रश्न 8.
लघु उद्योग एवं भारी उद्योग में अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा भारत में किसी एक भारी उद्योग के महत्त्व को लिखिए। [2010]
या
किसी एक बड़े पैमाने के उद्योग की उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :

लघु उद्योग एवं भारी उद्योग में अन्तर

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 (Section 4)

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भारी उद्योग का महत्त्व (उपयोगिता)-सीमेण्ट उद्योग

भारत में निर्माण कार्य प्रगति पर है। चारों ओर भवन-निर्माण, बाँध, पुल, उद्योग-धन्धे तथा सड़क बनाने के कार्य किए जा रहे हैं जिनमें सीमेण्ट की भारी आवश्यकता होती है। देश में तीव्र गति से विकास कार्य किए जा रहे हैं। अतः सीमेण्ट की मॉग भी उतनी ही तेजी से बढ़ती जा रही है। भवन निर्माण के लिए उपयोग किए जाने वाले पदार्थों में सीमेण्ट सबसे अधिक आवश्यक पदार्थ है। लोहे के साथ सीमेण्ट का प्रयोग करने से भवन टिकाऊ (UPBoardSolutions.com) एवं मजबूत बनते हैं। इसी कारण सीमेण्ट उद्योग आज भारत का एक विकसित तथा महत्त्वपूर्ण उद्योग बन गया है। सीमेण्ट का भारत के नव-निर्माण में महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह अनेक उद्योगों के विकास की कुंजी है। इसका उत्पादन एवं उपयोग देश के विकास का मापदण्ड है। वर्ष 2010-11 के दौरान सीमेण्ट उत्पादन (अप्रैल, 2011 से मार्च, 2012 तक) 224.49 मिलियन टन हुआ और 2010-11 की इसी अवधि तुलना में 6.55 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी। भारत में सीमेण्ट उद्योग के विकास के निम्नलिखित कारण उत्तरदायी रहे हैं –

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  1. देश में सीमेण्ट उद्योग के लिए पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल उपलब्ध है।
  2. सीमेण्ट उद्योग में उपयोग में आने वाली मशीनों का निर्माण देश में ही किया जाने लगा है।
  3. देश में बढ़ते हुए निर्माण कार्यों (सड़कों, बाँधों, भवनों व उद्योगों आदि) में इस्पात और सीमेण्ट की माँग में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है।
  4. विदेशी से सीमेण्ट आयात करने में खर्च होने वाली दुर्लभ विदेशी मुद्रा को बचाने के लिए घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया जाना अति आवश्यक है।
  5. देश में सीमेण्ट उद्योग की स्थापना के लिए पर्याप्त पूँजीगत संसाधन उपलब्ध हैं।
  6. सरकार की उदार औद्योगिक नीति के कारण सीमेण्ट उत्पादन में लघु संयन्त्रों की स्थापना कोप्रोत्साहन दिया गया है क्योंकि इन संयन्त्रों को मध्यम आर्थिक स्थिति वाले पूँजीपति भी संचालित कर सकते हैं।

इस प्रकार उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि भारत में सीमेण्ट उद्योग का भविष्य उज्ज्वल है, क्योंकि देश में नव-निर्माण का कार्य तेज गति से किया जा रहा है।

प्रश्न 9.
कृषि तथा उद्योगों की पारस्परिक निर्भरता का वर्णन कीजिए। [2013, 16]
उत्तर :

कृषि और उद्योग की पारस्परिक निर्भरता

कृषि और उद्योग किसी भी देश के आर्थिक विकास के दो अनिवार्य क्षेत्र हैं। देश की आर्थिक प्रगति तभी सम्भव है, जबकि कृषि और उद्योग दोनों ही क्षेत्र सापेक्षिक रूप से विकसित हों। इसका प्रमुख कारण यह है। कि कृषि और उद्योग परस्पर अनुपूरकं हैं, अर्थात् कृषि की उन्नति (UPBoardSolutions.com) उद्योगों के विकास में सहायक होती है और औद्योगिक प्रगति कृषि को विकास के चरम शिखर पर पहुँचाने में सहायता देती है। पं० जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, “बिना कृषि विकास के औद्योगिक प्रगति नहीं की जा सकती।……………वास्तव में दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं।”

कृषि एवं उद्योग दोनों ही व्यवसाय की श्रेणी में आते हैं। कृषि एक प्राथमिक व्यवसाय है, जिसमें प्राकृतिक साधनों से उपयोगी वस्तुएँ प्राप्त की जाती हैं। उद्योग द्वितीयक व्यवसाय है, जिसमें प्राकृतिक साधनों को विज्ञान एवं तकनीक के द्वारा आर्थिक साधनों में बदला जाता है। उद्योग और कृषि दोनों ही भारतीय अर्थव्यवस्था के आधार-स्तम्भ हैं। यही कारण है कि जहाँ प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि को प्राथमिकता दी गयी वहीं दूसरी पंचवर्षीय योजना में उद्योगों को प्राथमिकता दी गई। उद्योग और कृषि अर्थव्यवस्था रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं। जिस प्रकार एक पहिये पर गाड़ी नहीं चल सकती, उसी प्रकार केवल कृषि यो केवल उद्योग के आधार पर अर्थव्यवस्था की गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकती।

कृषि व उद्योग एक-दूसरे के प्रतिद्वन्द्वी नहीं वरन् एक-दूसरे के पूरक हैं। कृषि में प्राकृतिक साधनों से वस्तुएँ प्राप्त की जाती हैं और उद्योगों द्वारा उन्हें उपयोगी वस्तुओं में बदल दिया जाता है। उदाहरण के लिए-कृषि से कपास की प्राप्ति होती है और सूती वस्त्र उद्योग द्वारा (UPBoardSolutions.com) इस कपास से विभिन्न प्रकार के सूती वस्त्र बना दिये जाते हैं।

कृषि अनेक तरह से उद्योगों पर निर्भर करती है। कृषि के आधुनिकीकरण के लिए अनेक प्रकार के यन्त्रों, मशीनों व साधनों की आवश्यकता होती है। कृषि को ये यन्त्र ट्रैक्टर, मशीनें इंजीनियरिंग उद्योग से मिलते हैं। यदि इंजीनियरिंग उद्योग न होता तो सम्भवतः कृषि का आधुनिकीकरण ही न हो पाता। कृषि का उत्पादन बढ़ाने के लिए अनेक प्रकार के खादों की आवश्यकता होती है। यद्यपि प्राकृतिक खादें भी कृषि में प्रयोग की जाती हैं; किन्तु आधुनिक समय में उत्पादन को बढ़ाने के लिए रासायनिक खादों का प्रयोग बहुतायत से होता है। कृषि को ये खायें उर्वरक उद्योग से ही प्राप्त होती हैं।

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कृषि भी उद्योगों के लिए उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि कृषि के लिए उद्योग। कृषि उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करती है। उदाहरण के लिए कृषि से कपास मिलती है तो उद्योग द्वारा उसके सूती वस्त्र बनाये जाते हैं। कृषि से गन्ने की प्राप्ति होती है तो उद्योगों द्वारा उसकी चीनी बनायी जाती है। इसी प्रकार कृषि से जूट मिलता है तो उद्योग द्वारा उस जूट से अनेक प्रकार की वस्तुएँ बनायी जाती हैं। आज भारत का सूती वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग और जूट उद्योग पूरी तरह से कृषि पर निर्भर है। कृषि के बिना इन उद्योगों के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इतना ही नहीं, उद्योगों के स्थानीयकरण में भी कृषि की महत्त्वपूर्ण (UPBoardSolutions.com) भूमिका होती है। उदाहरण के लिए-कपास की अधिकता के कारण महाराष्ट्र और गुजरात में सूती वस्त्रे उद्योग का, गन्ने की अधिकता के कारण उत्तर प्रदेश में चीनी उद्योग का और जूट की अधिकता के कारण पश्चिम बंगाल में जूट उद्योग का स्थानीयकरण हो गया है।

आज कृषि की अनेक शाखाएँ उद्योगों का रूप लेती जा रही हैं। उदाहरण के लिए-दुग्ध उद्योग, मत्स्य पालन उद्योग, मुर्गी पालन उद्योग आदि। भारत में कृषि और उद्योग दोनों के महत्त्व को देखते हुए दोनों के विकास पर पर्याप्त ध्यान दिया गया है। कृषि में एक निश्चित सीमा तक भारत ने आत्मनिर्भरता पा ली है और उद्योगों में भी भारत आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में वर्तमान औद्योगिक ढाँचे के गठन का वर्णन कीजिए।
या
औद्योगिक ढाँचे से क्या आशय है ?
उत्तर :
औद्योगिक ढाँचे से आशय यह जानने से है कि देश में किस प्रकार के उद्योग स्थापित हैं। भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था प्रचलित है। यहाँ सार्वजनिक और निजी क्षेत्र साथ-साथ पाये जाते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों पर सरकार का पूर्ण नियन्त्रण होता है। इनका उद्देश्य लाभ कमाना न होकर अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाना व सामाजिक हित होता है। निजी क्षेत्र के उद्योगों पर निजी व्यक्तियों या समूहों का नियन्त्रण होता है और वे निजी हित के लिए काम करते हैं। इनका उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना होता है।

भारत में औद्योगिक ढाँचे का निर्माण 1956 ई० में नवीन औद्योगिक नीति के अनुसार किया गया था। इसके अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र में 17 आधारभूत और भारी उद्योग सम्मिलित थे; जैसे—हथियार और गोला-बारूद, अणुशक्ति, लोहा और इस्पात, भारी मशीनरी, भारी बिजली-संयन्त्र, कोयला, खनिज तेल, खनिज लोहा, वायुयान, वायु सेवा, रेलवे, जहाज-निर्माण, टेलीफोन और तार आदि। इन सभी पर सरकार का नियन्त्रण है। 26 मार्च, 1993 ई० से 13 उद्योगों को सरकारी नियन्त्रण से मुक्त कर दिया गया है। वर्तमान में केवल 4 उद्योगों पर ही सरकार का नियन्त्रण है।

दूसरी श्रेणी में 12 उद्योग आते हैं, जिन्हें संयुक्त क्षेत्र के उद्योग कहा जाता है। इन पर राज्य और निजी फर्मों का साझा नियन्त्रण रहता है। उपर्युक्त उद्योगों के अतिरिक्त शेष सभी उद्योग निजी क्षेत्र के लिए छोड़ दिये गये हैं। निजी क्षेत्र की यह जिम्मेदारी है कि वह सरकार के इस कार्य में सहायता करे। इस श्रेणी में मशीन-टूल, उर्वरक, सड़क यातायात, समुद्री यातायात, ऐलुमिनियम, कृत्रिम रबड़ आदि उद्योग सम्मिलित हैं। उद्योगों की उन्नति में तेजी लाने के लिए (UPBoardSolutions.com) सरकार निजी क्षेत्र को सहायता प्रदान करती है और दिशा-निर्देश भी जारी करती है। भारतीय उद्योगों को तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है–

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  1. बड़े पैमाने के उद्योग
  2. लघु पैमाने के उद्योग तथा
  3. कुटीर या घरेलू उद्योग।

प्रश्न 2.
बड़े पैमाने के उद्योगों का वर्गीकरण कीजिए। प्रत्येक के उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर :
बड़े पैमाने के उद्योगों को वस्तुओं की प्रकृति के अनुसार निम्नलिखित चार भागों में बाँटा जा सकता है –

1. आधारभूत उद्योग – आधारभूत उद्योग वे उद्योग हैं, जो अर्थव्यवस्था के सभी महत्त्वपूर्ण उद्योगों तथा कृषि को आवश्यक आगत (input) प्रदान करते हैं। ये अन्य उद्योगों और कृषि में काम आने वाली वस्तुओं का निर्माण करते हैं; जैसे-कोयला, कच्चा लोहा, इस्पात, उर्वरक, कास्टिक सोडा, सीमेण्ट, स्टील, ऐलुमिनियम, बिजली आदि।

2. पूँजीगत वस्तु उद्योग – इन उद्योगों के अधीन उन वस्तुओं का निर्माण किया जाता है, जो अन्य वस्तुओं के निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं; जैसे—मशीनें और अन्य संयन्त्र आदि। ये उद्योग निजी क्षेत्र में हैं। इन उद्योगों में मशीनी औजार, ट्रैक्टर, बिजली के ट्रान्सफॉर्मर, (UPBoardSolutions.com) मोटर-वाहन आदि सम्मिलित हैं।

3. मध्यवर्ती वस्तु उद्योग – ये उद्योग ऐसी वस्तुओं के निर्माण में सहायता देते हैं या उन वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, जो किन्हीं दूसरे उद्योगों की उत्पादन-प्रक्रिया में प्रयुक्त की जाती हैं अथवा उद्योगों में पूँजी वस्तुओं के सहायक उपकरणों में प्रयोग की जाती हैं-ऑटोमोबाइल टायर्स और पेट्रोलियम रिफाइनरी उद्योग।

4. उपभोक्ता वस्तु उद्योग – इन उद्योगों में उपभोक्ताओं द्वारा प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं का निर्माण किया जाता है; जैसे–कपड़ा, चीनी, कागज, रेडियो, टी० वी० आदि।

प्रश्न 3.
आधारभूत उद्योग किसे कहते हैं? स्पष्ट कीजिए। [2009]
उत्तर :
आधारभूत उद्योग बड़े पैमाने के वे उद्योग हैं, जो सभी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को आवश्यक निविष्टियाँ प्रदान करते हैं; जैसे—कोयला, लोहा, सीमेण्ट तथा स्टील।

कोयला उद्योग अन्य उद्योगों; जैसे—इस्पात उद्योग, विद्युत उत्पादन, रेल इंजन तथा शक्ति साधन के रूप में आधारभूत उद्योग की भूमिका निभाता है। इसी प्रकार मशीनरी उद्योग, रेल उद्योग, मोटरकार उद्योग आदि लोहा उद्योग पर आधारित हैं। सीमेण्ट उद्योग भी भवन-निर्माण उद्योग, सड़क निर्माण आदि को आधार प्रदान करता है।

प्रश्न 4.
भारत में लघु उद्योगों को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता किन कारणों से है ?
उत्तर :
एक करोड़ रुपये तक की लागत (संयन्त्र तथा मशीनरी) वाले उद्योग लघु पैमाने के उद्योग कहलाते हैं। भारत में इन उद्योगों को विकसित करने के लिए प्रोत्साहन देने की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है –

  1. छोटे पैमाने के उद्योग कम पूँजी से लग जाते हैं और इनमें बहुत-से लोगों को रोजी भी मिल जाती है।
  2. छोटे पैमाने के उद्योगों द्वारा धन का थोड़े-से आदमियों के हाथ में केन्द्रीकरण नहीं होता और साथ में औद्योगिक शक्ति अनेक हाथों में बँटी रहती है।
  3. छोटे पैमाने के उद्योगों को पिछड़े इलाकों के लिए विशेष महत्त्व होता है। (UPBoardSolutions.com) ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे उद्योगों को स्थापित करना आसान रहता है। इन उद्योगों द्वारा जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों का विकास होता है, वहाँ ग्रामीण लोगों को रोजगार पाने के लिए अपना स्थान छोड़कर शहरों की ओर भागना नहीं पड़ती।

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प्रश्न 5.
लघु उद्योगों के विकास हेतु कोई दो सुझाव दीजिए।
उत्तर :
योजनाकाल में कुटीर उद्योगों के विकास के लिए निम्नलिखित कदम उठाये गये –

1. मण्डलों तथा निगमों की स्थापना – कुटीर उद्योगों के विकास के लिए कई अखिल भारतीय मण्डलों की स्थापना की गयी; जैसे–केन्द्रीय रेशम मण्डल (1949), अखिल भारतीय कुटीर उद्योग मण्डल (1950), अखिल भारतीय दस्तकारी मण्डल (1952), अखिल भारतीय करघा मण्डल (1952), अखिल भारतीय खादी तथा ग्रामोद्योग मण्डल (1953) आदि। इसी प्रकार अनेक निगम भी स्थापित किये गये; जैसे-राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (1955), भारतीय दस्तकारी विकास निगम । (1958), दस्तकारी और हथकरघा निगम आदि।

2. वित्तीय सहायता – लघु उद्योगों को राजकीय सहायता अधिनियम के अन्तर्गत (UPBoardSolutions.com) ऋण दिया जाता है। इसके अतिरिक्त भारतीय स्टेट बैंक, राज्य वित्त निगम, राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम तथा राष्ट्रीयकृत बैंकों द्वारा कुटीर व लघु उद्योगों को ऋण दिया जाता है।

प्रश्न 6.
भारत में कुटीर उद्योगों को विकसित करने की आवश्यकता क्यों है ?
या
कुटीर उद्योग द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कैसे सुधारा जा सकता है? [2016, 17, 18]
या
कुटीर उद्योग के विकास के लिए सुझाव दीजिए। [2018]
उत्तर :
कुटीर उद्योगों द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को निम्नलिखित रूप में सुधारा जा सकता है। अतः उनका विकास किये जाने की आवश्यकता है –

  • कुटीर उद्योग ग्रामीण जनता के एक बड़े वर्ग को उन्हीं के अपने गाँव में ही उद्योग-धन्धे उपलब्ध करवाते हैं। ऐसे में ग्रामीण लोगों को अपना निजी स्थान छोड़कर नये क्षेत्रों में भटकना नहीं पड़ता।
  • इसके अलावा खेती में लगे बहुत-से मजदूरों को, जब उनके पास खेती को कोई कार्य नहीं होता, ये कुटीर उद्योग उनकी आय का मुख्य साधन बन सकते हैं।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में पैदा होने वाला बहुत-सा कच्चा माल कुटीर उद्योगों के प्रयोग में आ जाता है, जिनको बाहर भेजने पर कुछ भी मूल्य प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 7.
सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के उद्योग परस्पर किस प्रकार सहयोगी हैं ?
उत्तर :
भारत जैसे मिश्रित अर्थव्यवस्था वाले देश में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र का सह-अस्तित्व है। भारतीय अर्थव्यवस्था में यद्यपि सार्वजनिक एवं निजी उद्योगों के लिए अलग-अलग कार्य-क्षेत्र निर्धारित हैं, तथापि सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र आपस में एक-दूसरे के लिए पूरक एवं सहयोगी भी हैं। सरकार अपने अनेक कार्यक्रमों के माध्यम से निजी क्षेत्र के उद्योगों को विभिन्न सुविधाएँ प्रदान करती है, जिससे इस क्षेत्र का तेजी से विकास हो सके। रेल, सड़क परिवहन, बन्दरगाह, विद्युत व्यवस्था, सिंचाई व्यवस्था आदि अनेक सुविधाएँ देकर सरकार निजी क्षेत्र के उद्योगों के विकास में सहायता प्रदान करती है। इसी प्रकार निजी क्षेत्र अपनी (UPBoardSolutions.com) उत्पादकता द्वारा देश में पूँजी-निर्माण की गति को बढ़ाने में सहायता देते हैं, जिससे सरकार नये-नये सार्वजनिक उद्योगों की स्थापना एवं विकास करने में सफल होती है।

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प्रश्न 8.
बड़े पैमाने के उद्योग, कुटीर उद्योगों से किस प्रकार भिन्न हैं ?
उत्तर :
बड़े पैमाने के उद्योग और कुटीर उद्योगों में निम्नलिखित भिन्नताएँ हैं –
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प्रश्न 9.
भारत सरकार औद्योगिक नियन्त्रण हेतु क्या उपाय करती है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भारत सरकार प्रमुख रूप से औद्योगिक नियन्त्रण के लिए निम्नलिखित उपाय करती है –

1. लाइसेंस प्रणाली – सन् 1948 ई० की औद्योगिक नीति के अन्तर्गत अधिकतर उद्योगों को लगाने के लिए सरकार से लाइसेंस लेना अनिवार्य था। इस नीति में 30 अप्रैल, 1956 ई० को परिवर्तन किये गये। 24 जुलाई, 1991 ई० को, सरकार ने औद्योगिक नीति में व्यापक परिवर्तन किया तथा 13 प्रमुख उद्योगों को छोड़कर अन्य सभी उद्योगों को लाइसेंस की आवश्यकता से मुक्त कर दिया गया। वर्तमान में इन उद्योगों की संख्या मात्र 5 रह गयी है, जिनमें ऐल्कोहल युक्त पेय, सिगरेट-सिगार, रक्षा उपकरण, डिटोनेटिंग फ्यूज व खतरनाक रसायन सम्मिलित हैं।

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2. MRTP अधिनियम, 1969 ई० – इस अधिनियम के द्वारा दो उद्देश्यों की पूर्ति की गयी –
(क) आर्थिक शक्ति के केन्द्रीकरण को रोकना तथा एकाधिकार पर नियन्त्रण रखना एवं
(ख) प्रतिबन्धात्मक एवं अनुचित व्यापार की रोकथाम करना।

3. लघु उद्योगों के लिए उत्पादों का आरक्षण – वर्ष 2006-07 के बजट के बाद, लघु उद्योग क्षेत्र के लिए 239 उत्पाद आरक्षित कर दिये गये। इन उत्पादों में बड़े पैमाने के उद्योग प्रवेश नहीं कर सकते।

प्रश्न 10.
भारतीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों के योगदान की विवेचना कीजिए| [2015]
या
भारतीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों के किन्हीं छः योगदानों का वर्णन कीजिए। [2016]
या
भारतीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों के किन्हीं तीन योगदानों का वर्णन कीजिए। [2016]
उत्तर :
भारतीय अर्थव्यवस्था एक विकासशील अर्थव्यवस्था है। भारत की दूसरी पंचवर्षीय योजना से देश में बड़े उद्योगों की स्थापना का सूत्रपात किया गया। भारतीय अर्थव्यवस्था में उत्तरोत्तर उद्योगों का विकास हुआ है। बढ़ते औद्योगीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था में (UPBoardSolutions.com) महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। भारतीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों के कुछ प्रमुख योगदान निम्नलिखित हैं –

  1. देश की राष्ट्रीय आय, बचत एवं पूँजी-निर्माण को बढ़ाने में सहायता की है।
  2. देश में प्रति व्यक्ति उत्पादन एवं प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाने में सहायता की है।
  3. देश में अतिरिक्त रोजगार के अवसरों का सृजन हुआ है।
  4. आयातों को कम करके आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में सहायता मिली है।
  5. भारत विश्व के लगभग सभी देशों तक निर्यात बढ़ाने में सफल हुआ है।
  6. कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण सम्भव हुआ, कृषि उत्पादकता बढ़ी और खाद्यान्नों के आयात लगभग समाप्त हो चुके हैं।
  7. अर्थव्यवस्था में आधुनिकीकरण को बढ़ावा मिला है।
  8. देश के उपलब्ध संसाधनों का पूर्ण उपयोग सम्भव हो सका है।
  9. यातायात तथा संचार के क्षेत्र में भी अद्भुत उन्नति हुई है। परिवहन तथा संचार के तीव्रगामी साधने विकसित हुए हैं।

उपर्युक्त बिन्दुओं के आधार पर कहा जा सकता है कि औद्योगीकरण के कारण भारत आज विश्व का एक अग्रणी विकासशील देश बन चुका है।

प्रश्न 11.
भारतीय उद्योगों की भावी सम्भावनाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :

औद्योगिक विकास की सम्भावनाएँ

यद्यपि स्वतन्त्रता के बाद औद्योगिक विकास हेतु गम्भीर प्रयास किये गये एवं अनेक उपलब्धियाँ अर्जित की गयी हैं, किन्तु अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। औद्योगिक विकास का लाभ अभी तक सभी लोगों के पास नहीं पहुँच पाया है। इसके लिए आवश्यक है कि औद्योगिक उत्पादन को और अधिक बढ़ाया जाय ताकि आम आदमी को औद्योगिक वस्तुएँ सस्ती कीमतों पर उपलब्ध हो सकें। आज भी देश के बहुत-से क्षेत्र औद्योगिक विकास से वंचित हैं, जिसके कारण इन क्षेत्रों में सामान्य जीवन-स्तर निम्न है। इन क्षेत्रों का समुचित औद्योगिक विकास कर इनके पिछड़ेपन को दूर किया जा सकता है। इसी प्रकार कृषि उत्पादों पर आधारित उद्योगों; जैसे-खाद्यान्न, फल एवं सब्जी प्रसंस्करण आदि के विकास की असीम सम्भावनाएँ हैं।

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प्रश्न 12.
सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र के उद्योगों में दो अन्तर बताइए। [2010]
उत्तर :
सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र के उद्योगों में दो अन्तर निम्नलिखित हैं –

  • सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के उद्योगों में मूल अन्तर स्वामित्व का होता है। वे उपक्रम जिन पर सरकारी विभागों अथवा केन्द्र या राज्यों द्वारा स्थापित संस्थाओं का स्वामित्व होता है, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम । कहलाते हैं; जैसे—भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लि०, भिलाई इस्पात लि० आदि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम हैं। इसके विपरीत वे उद्योग जिनका स्वामित्व कुछ व्यक्तियों या कम्पनियों के पास होता है, निजी क्षेत्र के उद्यम कहलाते हैं; जैसे-टाटा आयरन ऐण्ड स्टील कम्पनी।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों पर सरकार का पूर्ण नियन्त्रण होता है। इनका (UPBoardSolutions.com) उद्देश्य लाभ कमाना न होकर अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाना व सामाजिक हित होता है। निजी क्षेत्र के उद्योगों पर निजी व्यक्तियों या समूहों का नियन्त्रण होता है और वे निजी हित के लिए काम करते हैं। इनका उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना होता है।

प्रश्न 13.
भारतीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों की पाँच उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए। [2011]
उत्तर :
भारतीय अर्थव्यवस्था में हुई औद्योगिक उपलब्धियों को निम्नलिखित रूप में रखा जा सकता है –

  1. भारतीय अर्थव्यवस्था में आधुनिक एवं सुदृढ़ अवसंरचना का तेजी से निर्माण हुआ है।
  2. औद्योगिक क्षेत्र में सार्वजनिक उपक्रमों का विस्तार तेजी से हुआ है।
  3. पूँजीगत भारी उद्योगों में निवेश का विस्तार हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप इंजीनियरिंग वस्तुओं, खनन, लोहा, इस्पात, उर्वरक जैसे उत्पादन-क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता प्राप्त की जा सकी है।
  4. पूँजीगत क्षेत्र में आयातों पर निर्भरता घटी है।
  5. गैर-परम्परागत वस्तुओं के निर्यात में वृद्धि हुई है।
  6. औद्योगिक क्षेत्र में तकनीकी एवं प्रबन्धकीय सेवा का विस्तार हुआ है।
  7. औद्योगिक सरंचना में विविधता आयी है तथा आधुनिक उद्योगों का विस्तार सम्भव हुआ है।

प्रश्न 14.
कुटीर एवं लघु उद्योग में क्या अन्तर है? [2014, 15, 16, 17, 18]
उत्तर :

कुटीर व लघु उद्योगों में अन्तर

कुटीर व लघु उद्योगों में मुख्य रूप से निम्नलिखित अन्तर हैं –

  1. कुटीर उद्योग मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों से सम्बद्ध होते हैं, जबकि लघु उद्योग ग्रामीण व नगरीय दोनों क्षेत्रों में स्थापित किये जा सकते हैं।
  2. कुटीर उद्योगों में अधिकांश कार्य मानवीय श्रम द्वारा किया जाता है, जबकि लघु उद्योगों में मशीनों का प्रयोग भी किया जाता है।
  3. कुटीर उद्योगों में कार्य करने वाले अधिकांश व्यक्ति परिवार से ही सम्बद्ध होते हैं, जबकि लघु उद्योगों में मजदूरी पर श्रमिक रखे जाते हैं।
  4. कुटीर उद्योगों में बहुत कम विनियोग की आवश्यकता होती है, जबकि 1 करोड़ तक निवेशित उद्योग ‘लघु उद्योग’ कहलाते हैं।
  5. कुटीर उद्योग सामान्यत: कृषि व्यवसाय से सम्बद्ध होते हैं, जबकि लघु उद्योगों के साथ ऐसा नहीं है।
  6. कुटीर उद्योग सहायक उद्योग के रूप में चलते हैं, किन्तु लघु उद्योग मुख्य उद्योग के रूप में संचालित किये जाते हैं।
  7. कुटीर उद्योगों में कच्चा माल तथा तकनीकी कुशलता स्थानीय होती है, किन्तु लघु उद्योगों में ये सब बाहर से मँगाये जाते हैं।

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प्रश्न 15.
भारत में औद्योगिक विकास के लिए तीन सुझाव दीजिए। [2014]
उत्तर :
भारत में औद्योगिक विकास के लिए सुझाव अग्रवत् हैं –

1. प्राकृतिक संसाधनों का सर्वेक्षण एवं दहन – किसी भी देश के उद्योगों को आधार उस देश के प्राकृतिक संसाधन होते हैं; अत: उद्योगों के विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों का सर्वेक्षण तथा ज्ञात प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जाना चाहिए। इससे औद्योगिक विकास सम्भव हो सकेगा।

2. कुशल उद्यमियों को प्रोत्साहन – भारत जैसे विकासशील देश में आज भी योग्य उद्यमियों का अभाव है; क्योंकि भारत मे उद्यमी जोखिम वहन करने से बचते हैं। अतः भारतीय उद्यमियों को उद्योगों की स्थापना के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए तथा उनके लिए बीमे की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए, जिससे वे जोखिम वहन करने के लिए तैयार हो जाएँ।

3. वित्तीय सुविधाओं की व्यवस्था – उद्योगों की स्थापना और विकास में पूँजी की आवश्यकता पड़ती है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि उद्यमियों के लिए पर्याप्त एवं सस्ते ब्याज पर पूंजी की सुविधाजनक व्यवस्था हो।

प्रश्न 16.
औद्योगिक नीति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
उद्योग किसी देश की अर्थव्यवस्था के आधार होते हैं। अत: प्रत्येक सरकार का परम कर्तव्य है। कि उद्योगों को प्रोत्साहित करें। किसी भी देश में तीव्र सन्तुलित एवं व्यापक औद्योगिक विकास के लिए एक उचित एवं प्रगतिशील औद्योगिक नीति की आवश्यकता होती है। स्वतन्त्रता के पश्चात् समय-समय पर । औद्योगिक नीतियाँ घोषित की गयीं, जिनमें से 1948, 1956 व 1991 की औद्योगिक नीतियाँ विशेष महत्त्व की हैं।

1956 की औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र की प्रधानता दी गयी, जिसमें औद्योगिक (UPBoardSolutions.com) विकास हेतु सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमी को अग्रणी भूमिका निभानी थी। 1991 की नयी औद्योगिक नीति में उदारीकरण की प्रक्रिया चलायी गयी जिसके अन्तर्गत निजी क्षेत्र को अधिक स्वतन्त्र और महत्त्वपूर्ण भूमिका दी गयी हैं। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को सीमित किया गया है।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्योगों में हमारी प्राथप्छिता क्या है ?
उत्तर :
उद्योगों में हमारी प्राथमिकता त्यनिर्भरता प्राप्त करना तथा कम लागत पर उच्चकोटि का उत्पादन करना है।

प्रश्न 2.
संयुक्त क्षेत्र का क्या अर्थ है ? [2009, 10]
उत्तर :
संयुक्त क्षेत्र वह है जिस पर निजी तथा सार्वजनिक दोनों को स्वामित्व होता है।

प्रश्न 3.
भारत में कुटीर उद्योगों की दो समस्याएँ लिखिए।
उत्तर :
भारत में कुटीर उद्योगों की दो समस्याएँ हैं—

  1. कच्चे माल की कमी तथा
  2. तैयार माल के विपणन की कठिनाई।

प्रश्न 4.
कुटीर उद्योग से आप क्या समझते हैं ? [2010, 16]
उतर :
कुटीर उद्योग में किसी परम्परागत वस्तु का उत्पादन परिवार के सदस्यों तथा कुछ वैतनिक ” श्रमिकों की सहायता से स्वयं इसके मालिक-कारीगर द्वारा किया जाता है; किन्तु इन सबकी संख्या 9 से अधिक नहीं होती।

प्रश्न 5.
औद्योगिक कार्यकुशलता को परिभाषित कीजिए।
उत्तर :
औद्योगिक कार्यकुशलता से तात्पर्य उस स्थिति से है जब उद्योग में उपलब्ध साधनों से अधिकतम उत्पादन किया जा सकता है।

प्रश्न 6.
बड़े पैमाने के उद्योग की एक मुख्य विशेषता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
बड़े पैमाने के उद्योग में कार्य बड़ी-बड़ी मशीनों से किया (UPBoardSolutions.com) जाता है, जो यान्त्रिक व विद्युत शक्ति से चालित होते हैं।

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प्रश्न 7.
कुटीर उद्योगों की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
कुटीर उद्योगों की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. कुटीर उद्योग खेतिहर श्रमिकों को अतिरिक्त आय का साधन प्रदान करते हैं।
  2. कुटीर उद्योग कृषि भूमि पर जनसंख्या के भार को कम करने में सहायक हैं।

प्रश्न 8.
भारत में पशुओं पर आधारित किन्हीं दो उद्योगों के नाम लिखिए।
उत्तर :
भारत में पशुओं पर आधारित दो उद्योग हैं—

  1. दुग्ध उद्योग तथा
  2. चमड़ा उद्योग।

प्रश्न 9.
कुटीर उद्योग-धन्धों के विकास हेतु कोई दो उपाय लिखिए। [2014]
उत्तर :
कुटीर उद्योग-धन्धों के विकास हेतु दो उपाय निम्नलिखित हैं –

  1. सरकार द्वारा संवर्द्धनात्मक सहायता दी जानी चाहिए।
  2. संस्थागत व संरक्षणात्मक सहायता (UPBoardSolutions.com) प्रदान की जानी चाहिए।

प्रश्न 10.
स्वामित्व के आधार पर बड़े पैमाने के उद्योगों को किन दो भागों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर :
स्वामित्व के आधार पर बड़े पैमाने के उद्योगों को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है –

  1. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग; जैसे—भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड।
  2. निजी क्षेत्र के उद्योग; जैसे-टाटा आयरन ऐण्ड स्टील कं०॥

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प्रश्न 11.
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
वे उद्यम जिन पर सरकारी विभागों अथवा केन्द्र या राज्य द्वारा स्थापित (UPBoardSolutions.com) संस्थाओं का स्वामित्व होता है, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम कहलाते हैं।

प्रश्न 12.
उद्योगों की पारस्परिक निर्भरता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
आज के औद्योगिक जगत में विशेषीकरण का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। उदाहरण के लिएकार बनाने वाला कारखाना, टायर-ट्यूब, क्लच, ब्रेक इकाई आदि स्वयं उत्पादित नहीं करता। इनके लिए वह दूसरे उद्योगों पर निर्भर करता है। इसी को उद्योगों की पारस्परिक निर्भरता कहते हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. भारत में तीव्र औद्योगीकरण की आवश्यकता क्यों है?

(क) जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के कारण
(ख) आर्थिक विकास की दर के लिए
(ग) कृषि को विकसित करने के लिए
(घ) नगरीकरण में वृद्धि के लिए

2. औद्योगीकरण का प्रभाव नहीं है

(क) रोजगार के अवसरों में वृद्धि
(ख) नगरीकरण में वृद्धि
(ग) बेरोजगारी में वृद्धि
(घ) आर्थिक विकास में वृद्धि

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3. औद्योगिक असन्तुलन दूर करने के लिए

(क) पिछड़े क्षेत्रों में उद्योग स्थापित होने चाहिए
(ख) उपभोक्ता वस्तु उद्योग लगाने चाहिए।
(ग) पूँजी वस्तु उद्योग लगाने चाहिए
(घ) आधारभूत उद्योग लगाने चाहिए

4. निम्न में से कौन कुटीर उद्योग है? [2012, 16]

(क) हथकरघा उद्योग
(ख) सीमेण्ट उद्योग
(ग) कागज उद्योग
(घ) काँच उद्योग

5. निम्नलिखित में से कौन-सा उद्योग आधारभूत उद्योग है?

(क) सूती वस्त्र उद्योग
(ख) कागज उद्योग
(ग) लोहा-इस्पात उद्योग
(घ) चीनी उद्योग

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6. भारत में औद्योगीकरण की गति किस राज्य में सर्वाधिक है?

(क) बिहार में
(ख) उत्तर प्रदेश में
(ग) महाराष्ट्र में
(घ) मध्य प्रदेश में

7. टाटा आयरन व स्टील कम्पनी (इस्पात कारखाना) किस क्षेत्र में है?

(क) निजी
(ख) संयुक्त
(ग) सार्वजनिक
(घ) स्पष्ट नहीं

8. भारत को आर्थिक विकास निर्भर करता है [2013, 15]

(क) केवल कुटीर उद्योगों पर
(ख) केवल छोटे पैमाने के उद्योगों पर
(ग) केवल बड़े पैमाने के उद्योगों पर
(घ) सभी प्रकार के उद्योगों पर

9. हथकरघा उद्योग निम्नलिखित में से किस श्रेणी से सम्बन्धित है? [2011]

(क) लघु उद्योग
(ख) कुटीर उद्योग
(ग) भारी उद्योग
(घ) आधारभूत उद्योग

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10. निम्नलिखित में से भारत का सबसे बड़ा प्रतिष्ठान कौन-सा है?

(क) वायु परिवहन
(ख) सड़क परिवहन
(ग) रेल परिवहन
(घ) जल परिवहन

11. निम्नलिखित में से कौन-सा इस्पात कारखाना सार्वजनिक क्षेत्र से सम्बन्धित है?

(क) जमशेदपुर
(ख) बर्नपुर
(ग) दुर्गापुर
(घ) भद्रावती

12. ऐसे सभी उपक्रम जिन पर सार्वजनिक क्षेत्र की संस्था और निजी उद्यम का संयुक्त स्वामित्व होता है, कहलाते हैं

(क) सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम
(ख) निजी क्षेत्र के उपक्रम
(ग) संयुक्त क्षेत्र के उपक्रम
(घ) इनमें से कोई नहीं

13. कृषि और उद्योग एक-दूसरे के

(क) परस्पर पूरक हैं।
(ख) परस्पर प्रतियोगी हैं।
(ग) परस्पर सम्बद्ध नहीं हैं।
(घ) इनमें से कोई नहीं

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14. 1991 की औद्योगिक नीति में निम्न में से किसे अधिक महत्त्व दिया गया? [2014]

(क) उदारीकरण को
(ख) कुटीर उद्योगों को
(ग) सार्वजनिक क्षेत्र को
(घ) इनमें से कोई नहीं

15. निम्नलिखित में से कौन-सा उद्योग कृषि आधारित नहीं है? (2015)

(क) चीनी उद्योग
(ख) जूट उद्योग
(ग) सीमेण्ट उद्योग
(घ) सूती उद्योग

उत्तरमाला

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 (Section 4)

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 are helpful to complete your homework.

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UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 29 स्वामी प्रणवानंद (महान व्यक्तित्व)

UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 29 स्वामी प्रणवानंद (महान व्यक्तित्व)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 8 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 29 स्वामी प्रणवानंद (महान व्यक्तित्व).

पाठ का सारांश

भारत सेवाश्रम संघ के संस्थापक स्वामी प्रणवानंद जी का जन्म 29 जनवरी, सन् 1886 को माघी पूर्णिमा के दिन वर्तमाने बांग्ला देश के फरीदपुर जिले के बाजितपुर नामक गाँव में हुआ था। इनके बचपन का नाम विनोर था। इनके पिता का नाम विष्णुचरण दास तथा माता का नाम शारदा देवी था। वे बचपन से ही शांत स्वभाव (UPBoardSolutions.com) के तथा बुद्धिमान थे। वे प्रायः किसी वृक्ष के नीचे ध्यानमग्न रहते थे। गाँव की पाठशाला से प्राथमिक शिक्षा के बाद उन्होंने अंग्रेजी हाई-स्कूल में प्रवेश लिया। इस समय पढ़ाई की अपेक्षा वे साधना एवं चिंतन में अधिक सक्रिय रहते थे। वे शुद्ध शकाहारी थे तथा ब्रह्मचर्य साधना पर उनका विशेष बल था। गाँव वाले उन्हें विनोद ब्रहमचारी के रूप में जानते थे।

जब वे दश्वीं कक्षा के विद्यार्थी थे तभी उनके सन्यास की प्रबल इच्छा को जानकर उनके शिक्षक ने गोरखपुर के नाथ संप्रदाय के प्रमुख योगीराज गंभीरनाथ की शरण में जाने की सलाह दी। गोरखपुर आने के बाद इन्होंने बाबा गंभीर नाथ से दीक्षा ग्रहण की तथा वहाँ कुछ दिन साधना करने के बाद अपने गुरू की सलाह पर ये काशी चले गए और वहाँ गंगा किनारे अस्सी घाट पर साधना करने लगे। कुछ दिनो बाद गुरु के आदेश पर वे , अपने पैतृक गाँव बाजितपुर लौट आए। वर्ष 1924 में प्रयाग में इन्होंने (UPBoardSolutions.com) सन्नयास की विधि वत दीक्षा ग्रहण की तथा उनका प्रणवानंद स्वामी हो गया। अब उनका अधिकांश समय आध्यात्मिक उन्नति की साधना में बीतने लगा। वर्ष 1917 में उन्होंने भारत सेवाश्रम संघ’ की स्थापना की। इस संस्थ ने अकाल, बाढ़ तथा अन्य प्राकृति आपदा पीड़ितो की खूब सहायता की।

उन्होंने शक्ति साधना एवं शक्तिशाली राष्ट्र गठन के प्रचार-प्रसार के लिए सन् 1929 में भारत सेवाश्रम संघ की मुख्य पत्रिका प्रलव का प्रकाशन आरंभ किया। स्वामी प्रणवानंद ने पश्चिम बंगाल को भारत के साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके लिए उन्होंने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को आगे बढ़ाया और बंगाल के पश्चिमी हिस्से को भारत में सम्मिलित करने के लिए ब्रिटिश शासन को विवश कर दिया जो आज पश्चिम बंगाल के नाम से जाना जाता है। आजीवन समाज व राष्ट्र सेवा हेतु कठोर परिश्रम करते हुए इस विलक्षण महापुरुष ने 8 जनवरी, 1941 को अपना स्थूल शरीर त्याग दिया। उनके द्वारा स्थापित ‘भारत सेवाश्रम संघ निरंतर मानवजाति की सच्ची सेवा और कल्याण भावना की ओर अग्रसर हैं।

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अभ्यास-प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए
प्रश्न 1.
विनोद ब्रह्मचारी ने प्रथम दीक्षा कब और किससे ग्रहण की?
उत्तर :
विनोद ब्रह्मचारी ने 1913 में गोरखपुर में नाथ संप्रदाय के प्रमुख योगीराज बाबा गंभीरनाथ से प्रथम दीक्षा ग्रहण की।

प्रश्न 2.
विनोद ब्रह्मचारी के चारों महावाक्य लिखिए।
उत्तर :
विनोद ब्रह्मचारी के चार महाकाव्य हैं।

  • यह युग महाजागरण का युग है,
  • महामिलन का युग है, (UPBoardSolutions.com)
  • महासमन्वय का युग है और
  • यह युग महामुक्ति का युग है।

प्रश्न 3.
वे ‘विनोद ब्रह्मचारी’ से ‘स्वामी प्रणवानंद’ कब और कैसे हुए?
उत्तर :
वर्ष 1924 के प्रयाग के अर्धकुम्भ मेले में विनोद ब्रह्मचारी ने स्वामी गोविंदा नंद गिरि से संन्यास की विधिवत दीक्षा ग्रहण की। इसके बाद वे विनोद ब्रह्मचारी से स्वामी प्रणवानंद हो गए।

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प्रश्न 4.
स्वामी प्रणवानंद ने भारत सेवाश्रम संघ की स्थापना क्यों की?
उत्तर :
स्वामी प्रणवानंद ने अकाल, बाढ़, प्राकृतिक (UPBoardSolutions.com) प्रकोप आदि से पीड़ित लोगों के सहायतार्थ भारत सेवाश्रम संघ’ की स्थापना की। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि, मानव जाति की सेवा के लिए उन्होंने भारत सेवाश्रम संघ’ की स्थापना की।

प्रश्न 5.
स्वामी प्रणवानंद का क्या उद्घोष था?
उत्तर :
स्वामी प्रणवानंद का उद्घोष था कि धर्म है- त्याग, सत्य और ब्रह्मचर्य में। धर्म है- आचार, अनुष्ठान और अनुभूति में।” स्वामी जी की यह अनमोल वाणी चिरकाल तक हमारा. मार्गदर्शक करती रहेगी।

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UP Board Solutions for Class 8 Maths Chapter 12 बैंकिंग

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बैंकिंग

अभ्यास – 12 (a)

प्रश्न 1.
विभिन्न प्रकार के खातों के नाम लिखिए।
उत्तर
बैंक में हम कई तरह के खाते खोल सकते हैं, जिनमें से कुछ, प्रमुख खाते निम्नवत् हैं:

  1. बचत खाता (Savings Bank Account)
  2. चालू खाता (Current Account)
  3. सावधि जमा खाता (Fixed Deposit Account)
  4. आवर्ती (संचयी) जमा खाता (Recurring Deposit Account)
  5. अल्पवयस्क का खाता (Minor Account)

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प्रश्न 2.
चेक क्या है? चेक के प्रकार लिखिए?
उत्तर
चेक एक शर्त रहित आज्ञापत्र है जो सम्बंधित खाते से रुपये निकालने के लिए काम आता है।

प्रश्न 3.
एक बचत बैंक की पासबुक में दर्ज की गई प्रविष्टियाँ निम्नांकित हैं। यदि बयाज दर 4% वार्षिक हो, तो नवम्बर माह के अन्त में मिलने वाले ब्याज का परिकलन कीजिए।
UP Board Solutions for Class 8 Maths Chapter 12 बैंकिंग img-1
उत्तर
UP Board Solutions for Class 8 Maths Chapter 12 बैंकिंग img-2

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प्रश्न 4.
मिस्ट x की बैंक पास बुक में दर्ज की गई प्रविष्टियों के आधार पर, जून 2017 के अन्त में कितना ब्याज मिलेगा, यदि ब्याज दर 3.5% वार्षिक है।
UP Board Solutions for Class 8 Maths Chapter 12 बैंकिंग img-3
उत्तर
UP Board Solutions for Class 8 Maths Chapter 12 बैंकिंग img-4

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UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 5 The Fundamental Unit of Life

UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 5 The Fundamental Unit of Life (जीवन की मौलिक इकाई)

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पाठ्य – पुस्तक के प्रश्नोत्तर

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 66)

प्रश्न 1.
कोशिका की खोज किसने और कैसे की?
उत्तर-
कोशिका की खोज रॉबर्ट हुक ने 1665 में की। उसने कॉर्क की पतली काट को स्वनिर्मित सूक्ष्मदर्शी से अवलोकन करने पर पाया कि इसमें अनेक छोट-छोटे प्रकोष्ठ हैं, (UPBoardSolutions.com) जिसकी संरचना मधुमक्खी के छत्ते जैसी प्रतीत हुई। इन प्रकोष्ठों को रॉबर्ट हुक ने कोशिका का नाम दिया।

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प्रश्न 2.
कोशिका को जीवन की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई क्यों कहते हैं ?
उत्तर-
सभी जीव-जन्तु जो हम अपने आस-पास देखते हैं, कोशिकाओं से मिलकर बनते हैं। कुछ जीव एक- कोशी होते हैं तथा अन्य बहुकोशी होते हैं। प्रत्येक बहुकोशी जीव एक कोशिका से ही विकसित हुआ है। कुछ जीवों में विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ भी होती हैं।
प्रत्येक कोशिका में कुछ मूलभूत कार्य करने की क्षमता होती है जो सभी जीवों का गुण है। प्रत्येक कोशिका में कुछ विशिष्ट अंग होते हैं जो विशिष्ट कार्य करते हैं इन्हें कोशिकांग कहते हैं। इन कोशिकांगों के कारण ही एक कोशिका जीवित रहती है। ये कोशिकांग मिलकर कोशिका बनाते हैं। प्रत्येक (UPBoardSolutions.com) कोशिकांग विभिन्न कार्य करता है। जैसे-नये पदार्थ का निर्माण, अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन आदि। अतः कोशिका जीवन की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई है।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 68)

प्रश्न 1.
CO2 तथा पानी जैसे पदार्थ कोशिका से कैसे अन्दर तथा बाहर जाते हैं ? इस पर चर्चा करें।
उत्तर-
CO2 की सांद्रता जब कोशिका में उच्च हो जाती है तो विसरण द्वारा ये कोशिका से बाहर निकल जाती है और जब CO2 की सांद्रता निम्न होती है तो बाहर से यह कोशिका में आ जाती है।
जल के अणु परासरण के कारण कोशिका की वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली द्वारा उच्च जल की सांद्रता से निम्न जल की सांद्रता की ओर जाता है।

प्रश्न 2.
प्लाज्मा झिल्ली को वर्गात्मक पारगम्य झिल्ली क्यों कहते हैं?
उत्तर-
प्लाज्मा झिल्ली को अर्धपारगम्य झिल्ली इसलिए कहते हैं क्योंकि ये कोशिका में आने-जाने वाले पदार्थों पर नियन्त्रण रखती है। यह कुछ पदार्थों को अन्दर आने व बाहर जाने देती है जबकि कुछ पदार्थों को अन्दर आने व बाहर जाने से रोकती है अतः इसे अर्धपारगम्य झिल्ली कहते हैं।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 70)

प्रश्न 1.
क्या अब आप निम्नलिखित तालिका में दिए गए रिक्त स्थानों को भर सकते हैं, जिससे कि प्रोकैरियोटी तथा यूकैरियोटी कोशिकाओं में अंतर स्पष्ट हो सके?
UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 5 The Fundamental Unit of Life image -1

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 73)

प्रश्न 1.
क्या आप दो ऐसे अंगकों का नाम बता सकते हैं जिनमें अपना आनुवंशिक पदार्थ होता है ?
उत्तर-
हाँ-दो ऐसे अंगक केन्द्रक व माइटोकोण्डिया हैं जिनमें अपना आनुवंशिक पदार्थ पाया जाता है।

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प्रश्न 2.
यदि किसी कोशिका का संगठन किसी भौतिक या रासायनिक प्रभाव के कारण नष्ट हो जाता है, तो क्या होगा ?
उत्तर-
यदि किसी भौतिक या रासायनिक प्रभाव के कारण कोशिका का जैविक संगठन नष्ट हो जाएगी तो कोशिका मृत हो जाएगी।

प्रश्न 3.
लाइसोसोम को आत्मघाती थैली क्यों कहते हैं ? .
उत्तर-
लाइसोसोम में शक्तिशाली जल अपघटनीय, एंजाइम होते हैं जो सभी कार्बनिक पदार्थों को पचाने में सहायक होते हैं। यदि पूर्ण क्षतिग्रस्त यी मृत कोशिकाओं को नष्ट करने की आवश्यकता हो तो वे अपनी झिल्ली, तोड़कर एक ही बार में अपना सारा द्रव्य मुक्त कर देते। हैं और क्योंकि इस क्रिया में ये स्वयं भी नष्ट हो जाते हैं। इसलिए इन्हें आत्मघाती थैली भी कहा जाता है।

प्रश्न 4.
कोशिका के अन्दर प्रोटीन का संश्लेषण कहाँ होता है ?
उत्तर-
केन्द्रिका (Nucleolus) में ही राइबोसोम्स का (UPBoardSolutions.com) संश्लेषण होता है। ये राइबोसोम्स ही प्रोटीन का संश्लेषण करते हैं।

अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 75)

प्रश्न 1.
पादप कोशिकाओं तथा जन्तु कोशिकाओं में तुलना करो।
उत्तर-
जन्तु कोशिका व पादप कोशिका में निम्नलिखित अन्तर हैं-
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प्रश्न 2.
प्रोकैरियोटी कोशिकाएँ, युकेरियोटी कोशिकाओं से किस प्रकार भिन्न होती हैं ?
उत्तर-
प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं और यूकैरियोटिक कोशिकाओं के बीच भिन्नताएँ
UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 5 The Fundamental Unit of Life image -3
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प्रश्न 3.
यदि प्लाज्मा झिल्ली फट जाए या टूट जाए तो क्या होगा ?
उत्तर-
यदि प्लाज्मा झिल्ली फट जाए या टूट जाए। तो कोशिका के भीतर होने वाली क्रियाएँ संभव नहीं होंगी। अतः कुछ समय में कोशिका नष्ट हो जाएगी।

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प्रश्न 4.
यदि गॉल्जी उपकरण न हो तो कोशिका के जीवन में क्या होगा ?
उत्तर-
गॉल्जी उपकरण चिकने, चपटे व नलिकाकार उपक्रम समूह के रूप में केन्द्रक के पास उपस्थित होता है। ये प्रायः समान्तर पंक्तियों में एक ढेर के रूप में होते हैं और स्रवण का कार्य करते हैं। इनका मुख्य कार्य कोशिका में संश्लेषित पदार्थों के पैकेज बनाकर कोशिका के अन्दर (प्लाज्मा झिल्ली व लाइसोसोम) व बाहर के लक्ष्यों को भेजना है। यह लाइसोसोम को बनाने में भी सहायक है। यदि गॉल्जी (UPBoardSolutions.com) उपकरण कोशिका में नहीं होगा तो स्रवण का कार्य, संश्लेषित पदार्थों के पैकेज बनाकर अन्दर व बाहर स्थानान्तरण तथा लाइसोसोम्स बनाने का कार्य नहीं होंगे।

प्रश्न 5.
कोशिका का कौन-सा अंगक बिजलीघर है?
उत्तर-
माइटोकॉण्डिया कोशिका को बिजलीघर (Power house) है। ये दोहरे आवरण से घिरा होता है। और इसमें कोशिका के भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण होता है तथा ऊर्जा उत्पन्न होती है। मुक्त हुई ऊर्जा (A.T.P.) ऐडिनोसीन ट्राईफॉस्फेट के रूप में संगृहीत हो जाती है। जो शरीर के विभिन्न कार्यों में प्रयोग की जाती है। इनके पास अपना DNA और राइबोसोम्स होता है जिससे अपने लिए प्रोटीन का संश्लेषण भी कर सकते हैं।

प्रश्न 6.
कोशिका झिल्ली को बनाने वाले लिपिड तथा प्रोटीन का संश्लेषण कहाँ होता है ?
उत्तर-
कोशिका झिल्ली का निर्माण करने वाले प्रोटीन, कोशिका द्रव्य में पाई जाने वाली खुरदरी अंतर्द्रव्यी जालिका द्वारा संश्लेषित होती है। लिपिड का निर्माण चिकनी अन्तर्द्रव्यी जालिका द्वारा कार्बनिक कणों के स्रवण से होता है। ये प्रोटीन व लिपिड़ ही कोशिका झिल्ली का निर्माण करते हैं।

प्रश्न 7.
अमीबा अपना भोजन कैसे प्राप्त करता है?
उत्तर-
अमीबा अन्त:ग्रहण विधि द्वारा अपना भोजन प्राप्त करता है। इसकी कोशिका झिल्ली अत्यधिक लचीली होती है जिसके कारण यह बाहर के वातावरण में से भोजन के कण और अन्य पदार्थ ग्रहण कर लेता है। इस कार्य के लिए इसके कूटपाद आगे की ओर बढ़कर भोजन के (UPBoardSolutions.com) कण को पूरा घेर लेते हैं और इस प्रकार भोजन जीवद्रव्य में पहुँच जाता है।

प्रश्न 8.
परासण क्या है?
उत्तर-
वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली द्वारा पानी के अणुओं की उच्च सान्द्रण क्षेत्र से निम्न सान्द्रण क्षेत्र की तरफ गति को परासरण कहते हैं। पानी की गति उसमें घुले हुए पदार्थों पर निर्भर करती है।

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प्रश्न 9.
निम्नलिखित परासरण प्रयोग करें| छिले हुए आधे-आधे आलू के चार टुकड़े लो, इन चारों को खोखला करो जिससे कि आलू के कप बन जाएँ। इनमें से एक कप को उबले आलू में बनाना है। आलू के प्रत्येक कप को जल वाले बर्तन में रखो। अब
(a) कप ‘A’ को खाली रखो,
(b) कप ‘B’ में एक चम्मच चीनी डालो,
(c) कप ‘C’ में एक चम्मच (UPBoardSolutions.com) नमक डालो तथा
(d) उबले आलू से बनाए गए कप ‘D’ में एक चम्मच चीनी डालो।
आलू के इन चारों कपों को दो घंटे तक रखने के पश्चात् उनका अवलोकन करो तथा निम्न प्रश्नों का उत्तर दो
(i) ‘B’ तथा ‘C’ के खाली भाग में जल क्यों एकत्र हो गया ? इसका वर्णन करो।
(ii) ‘A’ आलू इस प्रयोग के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?
(iii) ‘A’ तथा ‘D’ आलू के खाली भाग में जल एकत्र क्यों नहीं हुआ ? इसका वर्णन करो।
उत्तर-
(i) आलू बहुत-सी कोशिकाओं से बना हुआ होता है। कोशिकाओं की कोशिका झिल्ली अर्द्धपारगम्य होती है। आलू A व C के खाली भाग में क्रमशः चीनी तथा नमक भरा है जबकि इनके बाहरी भाग पानी के सम्पर्क में हैं। अत: पानी का सान्द्रण आलू के अन्दर की तुलना में बाहर के बर्तन में अधिक होता है। अतः पानी की गति परासरण के कारण बाहर के बर्तन से आलू के अन्दर की तरफ होता है। अत: आलू का B व C में पानी भर जाता है।
(ii) इस प्रयोग में खाली कप A इसलिए आवश्यक है क्योंकि यह दर्शाता है कि यदि दो विलयनं लिए जाएँ जिनका सान्द्रण बराबर होता है तो पानी के अणुओं में कोई गति नहीं होती।
(iii) आलू कप A व D में पानी इसलिए नहीं भरता क्योंकि आलू कप D उबले हुए आलू से बना है। अतः उसकी कोशिकाएँ मृत हो जाती हैं तथा कोशिका झिल्ली अर्द्धपारगम्यता खो देती है। अतः परासरणे नहीं होता जिससे पानी बाहरी बर्तन से आलू में प्रवेश नहीं करता। आलू कप A (UPBoardSolutions.com) को खाली रखा गया है। अत: अर्द्धपारगम्य कोशिका झिल्ली के दोनों तरफ का सान्द्रण बराबर होता है। अतः पानी के अणु बाहर से अन्दर की तरफ गति नहीं करते। अतः आलू कप A व D में पानी नहीं भरता है।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एक कोशिकीय जीवों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
एक कोशिकीय जीवों के उदाहरण
(1) अमीबा,
(2) पैरामीशियम।

प्रश्न 2.
जटिल बहुकोशिकीय जीवों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
जटिल बहुकोशिकीय जीवों के उदाहरण-
(i) मनुष्य,
(ii) विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षी तथा
(iii) वृक्ष

प्रश्न 3.
‘कोशा’ किसे कहते हैं?
अथवा
कोशिको क्या है ?
उत्तर-
कोशा (Cell)- जीवन की संरचनात्मक इकाई कोशा कहलाती है। कोशा जैव संगठन का प्रथम जैविक स्तर है।

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प्रश्न 4.
कोशिका की खोज किस वैज्ञानिक ने की थी ?
उत्तर-
कोशिका की खोज रॉबर्ट हुक ने की थी।

प्रश्न 5.
कोशिका में केन्द्रक की खोज किस वैज्ञानिक ने की ?
उत्तर-
कोशिका में केन्द्रक की खोज रॉबर्ट ब्राउन ने की।

प्रश्न 6.
कोशिकाद्रव्य को जीवद्रव्य नाम किस वैज्ञानिक ने दिया?
उत्तर-
कोशिकाद्रव्य को जीवद्रव्य नाम जे. ई. पुरकिन्जे ने दिया।

प्रश्न 7.
कोशिका सिद्धान्त क्या है ?
उत्तर-
कोशिका सिद्धान्त-कोशिका जीवन की मूलभूत इकाई है।”

प्रश्न 8.
कोशिका सिद्धान्त किन-किन वैज्ञानिकों ने प्रतिपादित किया ?
उत्तर-
कोशिका सिद्धान्त को एम. जे. श्लीडन एवं टी. श्वान ने प्रतिपादित किया।

प्रश्न 9.
‘कोशिका भित्ति’ से क्या समझते हो ?
उत्तर-
कोशिका भित्ति (Cell wall)- पादप, कोशिका प्लाज्मा झिल्ली के बाहर सेल्यूलोज से बनी एक परत द्वारा घिरी होती है जिसे कोशिका भित्ति कहते हैं।

प्रश्न 10.
‘कोशिकाद्रव्य’ (साइटोप्लाज्म) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm)-कोशिका के अन्दर पाया जाने वाला तरल द्रव्य कोशिकाद्रव्य (साइटोप्लाज्म) कहलाता है। यह एक चिपचिपा, रंगहीन, समांगी, तरल, कोलाइडी अर्द्ध-पारदर्शक पदार्थ है।

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प्रश्न 11.
‘कोशिकांग’ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
कोशिकांग (Cell Organelles) कोशिकाद्रव्य में कई अन्य जीवित संरचनाएँ पायी जाती हैं जो कोशिकांग कहलाती हैं।

प्रश्न 12.
‘केन्द्रक’ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
केन्द्रक (Nucleus)- कोशिका के अन्दर पायी जाने वाली संरचना केन्द्रक’ कहलाती है।

प्रश्न 13.
‘अन्त:प्रद्रव्यी जालिका’ किसे कहते हैं?
उत्तर-
अन्त:प्रद्रव्यी जालिको (Endoplasmic Reticulum)- केन्द्रक से जुड़ी हुई लम्बी धागेनुमा असंख्य शाखाओं वाली झिल्लियों का जाल, अन्त:प्रद्रव्यी जालिका कहलाती है।

प्रश्न 14.
राइबोसोम किसे कहते हैं?
उत्तर-
राइबोसोम (Ribosomes)- अन्त:प्रद्रव्य जालिका की सतह पर पायी जाने वाली संरचना राइबोसोम कहलाती है।

प्रश्न 15.
‘हरित लवक’ किसे कहते हैं?
उत्तर-
हरित लवक (Chloroplast)- कोशिका के अन्दर पाये जाने वाला हरे रंग का कोशिकांग हरित लवक कहलाता है।

प्रश्न 16.
‘माइटोकॉण्डिया’ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
माइटोकॉण्डुिया (Mitochondria)कोशिका में पाया जाने वाला वह कोशिकांग जो ऊर्जा उत्पन्न करने में सहायक होता है, माइटोकॉण्ड्रिया कहलाता है।

प्रश्न 17.
कोशिका का ऊर्जा घर किसे कहते हैं?
उत्तर-
माइटोकॉण्ड्रिया को कोशिका का ऊर्जा घर या पावर हाउस कहते हैं।

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प्रश्न 18.
‘पक्ष्माभिका’ (सीलिया) किन्हें कहते हैं?
उत्तर-
पक्ष्माभिका (सीलिया) (Cilia)- जन्तु कोशिका की सतह पर पायी जाने वाली सूक्ष्म उभरी हुई। संरचना, पक्ष्माभिका (सीलिया) कहलाती है।

प्रश्न 19.
‘कशाभिका (फ्लेजिला)’ किन्हें कहते हैं?
उत्तर-
कशोभिका (Flagella)- “कोशिका की सतह पर पायी जाने वाली लम्बी, पतली तथा चाबुक के समान संरचना कशाभिका (फ्लेजिला) कहलाती है।”

प्रश्न 20.
कोशिका झिल्ली को बनाने वाले प्रोटीन का नाम बताइये।
उत्तर-
कोशिका झिल्ली को बनाने वाले प्रोटीन का नाम लिपोप्रोटीन है।

प्रश्न 21.
अवर्णी लवक क्या होते हैं ? .
उत्तर-
अवर्णी लवक (Leucoplasts)- भोज्य पदार्थों का संग्रह करने वाले रंगहीन लवक अवर्णी लवक कहलाते हैं।

प्रश्न 22.
अवर्णी लवक कहाँ पाये जाते हैं ?
उत्तर-
अवर्णी लवक पौधों के उस भाग में पाये जाते हैं जहाँ सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँचता।

प्रश्न 23.
अवर्णी लवक का क्या काम है ?
उत्तर-
अवर्णी लवक का कार्य-अवण लवक को कार्य मांड, तेल, वसा तथा प्रोटीन आदि भोज्य पदार्थों का संचय करना है।

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प्रश्न 24.
हरित लवक कहाँ पाया जाता है ?
उत्तर-
हरित लवक पौधों के हरे भाग में पाया जाता है।

प्रश्न 25.
हरित लवक का रंग हरा क्यों होता है ?
उत्तर-
हरित लवक में हरे रंग का वर्णक पर्णहरिम या क्लोरोफिल होता है इस कारण इसका रंग हरा होता है।

प्रश्न 26.
क्लोरोप्लास्ट (हरित लवक) का प्रमुख कार्य बताइये।
उत्तर-
क्लोरोप्लास्ट का कार्य-क्लोरोप्लास्ट का प्रमुख कार्य प्रकाश संश्लेषण है।

प्रश्न 27.
वर्णी लवक किसे कहते हैं ?
उत्तर-
वर्णी लवक-पौधों में पाये जाने वाले रंग-बिरंगे (हरे रंग को छोड़कर) लवक वर्णी लवक कहलाते हैं।

प्रश्न 28.
वर्णी लवक पौधों के किन भागों में पाये जाते हैं ?
उत्तर-
वर्णी लवक पुष्पों, दलों एवं फलों में पाये जाते हैं।

प्रश्न 29.
वर्णी लवक का कार्य क्या है ?
उत्तर-
वर्णी लवक का कार्य पुष्पों, पत्रों एवं फलों को आकर्षक बनाना है।

प्रश्न 30.
गॉल्जी बॉडी, गॉल्जीकार्य या गॉल्जी उपकरण की खोज किसने की थी ?
उत्तर-
गॉल्जी बॉडी, गॉल्जीकाय या गॉल्जी उपकरण की खोज केमिलियो गॉल्जी ने की।

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प्रश्न 31.
आत्महत्या करने वाली थैली या सुसाइड बैग्स किन्हें कहते हैं ?
उत्तर-
आत्महत्या करने वाली थैली या सुसाइड बैग्स लाइसोसोम्स को कहते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अन्तःप्रद्रव्यी जालिका के कार्य लिखिए।
उत्तर-
अन्त:प्रद्रव्यी जालिका के कार्य

  1. यह प्रोटीन संश्लेषण में सहायक होते हैं।
  2. यह कोशिका विभाजन के समय केन्द्रकीय झिल्ली के निर्माण में भाग लेता है।
  3. यह ग्लाइकोजन के उपापचय में सहायता करता है।
  4. यह केन्द्रक से विभिन्न आनुवंशिक पदार्थों को कोशिकाद्रव्य के विभिन्न अंगों तक पहुँचाता है।

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प्रश्न 2.
गॉल्जीकाय या गॉल्जी उपकरण के कार्य लिखिए।
अथवा
गॉल्जी उपकरण के कोशिका में क्या कार्य हैं ?
उत्तर-
गॉल्जीकाय या गॉल्जी उपकरण के कार्य

  1. ये लाइसोसोम्स का निर्माण करते हैं।
  2. ये अनेक प्रकार के स्रावी पदार्थों का निर्माण करते हैं।
  3. ये स्रावण द्वारा कोशिका भित्ति का निर्माण करते हैं।
  4. ये अनेक कार्बोहाइड्रेट्स के दीर्घ अणुओं का संश्लेषण करते हैं।
  5. ये शुक्राणुजनन के समय शुक्राणु के ऊपरी भाग (एक्रोसोम) का निर्माण करते हैं।

प्रश्न 3.
प्याज के शल्क-पत्र की झिल्ली की कोशिकाओं का चित्र बनाइये।
उत्तर-
प्याज के शल्क-पत्र की झिल्ली की कोशिकाओं का चित्र-
UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 5 The Fundamental Unit of Life image -5

प्रश्न 4.
निम्नलिखित घटकों के कार्य लिखिए
(i) राइबोसोम
(ii) गॉल्जीकाय
(iii) माइटोकॉण्ड्यिा
(iv) रसधानी
(v) पादप कोशाभित्ति
(vi) क्रोमोसोम्स
(vii) क्लोरोप्लास्ट
(viii) केन्द्रिका
(ix) प्लाज्मा मेम्ब्रेन।
उत्तर-
UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 5 The Fundamental Unit of Life image -6

प्रश्न 5.
एक प्राणी (जन्तु) कोशिका की आन्तरिक संरचना को स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइये।
अथवा
जन्तु कोशिका का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर-
इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा प्रदर्शित प्राणी (जन्तु) कोशिका की संरचना का नामांकित चित्र
UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 5 The Fundamental Unit of Life image -7

प्रश्न 6.
एक पादप कोशिका की आन्तरिक संरचना का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइये। अथवा एक पादप कोशिका का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर-
इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा प्रदर्शित पादप कोशिका की आन्तरिक संरचना का नामांकित चित्र-
UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 5 The Fundamental Unit of Life image -8

प्रश्न 7.
जन्तु एवं पादप कोशिका में अन्तर लिखिए।
उत्तर-
जन्तु एवं पादप कोशिका में अन्तर-
UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 5 The Fundamental Unit of Life image -9

प्रश्न 8.
माइटोकॉण्ड्यिा के कार्य लिखिए।
उत्तर-
माइटोकॉण्डिया के कार्य
(1) ये भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण करके ऊर्जा मुक्त करते हैं तथा इस ऊर्जा को ATP के रूप में संचित करते हैं जो जैविक कार्यों में प्रयुक्त होती है।
(2) ये प्रोटीन का संश्लेषण भी करते हैं।
(3) ये अण्डों का योक तथा शुक्राणुओं के मध्यमान का निर्माण करते हैं।

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प्रश्न 9.
लाइसोसोम के कार्य लिखिए।
उत्तर-
लाइसोसोम के कार्य

  1. ये कोशिका में पाये जाने वाले प्रकीर्णो (Enzyme) का स्रावण एवं संग्रहण करते हैं।
  2. ये मृत या पुरानी कोशिकाओं (UPBoardSolutions.com) का भक्षण करते हैं।
  3. ये कोशिका में प्रवेश करने वाले सूक्ष्म जीवों व कणों का पाचन करते हैं।
  4. ये भोजन की कमी के समय कोशिकाओं तथा कोशिकाद्रव्य में उपस्थित अवयवों का पाचन करते हैं।
  5. ये उपवास या रोग की स्थिति में शरीर को पोषण देते हैं।
  6. शुक्राणु इन्हीं के कारण अण्डाणु में प्रवेश करते हैं।
  7. इन्हें आत्महत्या करने वाली थैली (Suicide bags) कहते हैं।

प्रश्न 10.
तारककाय (सेण्ट्रोसोम) के कार्य लिखिए।
उत्तर-
तारककाय (सेण्ट्रोसोम) के कार्य

  1. ये जन्तु कोशिकाओं में कोशिका विभाजन के समय त रूप रेशों का निर्माण करते हैं।
  2. ये शुक्राणु में स्थित दो सेण्ट्रिओल में से कशाभ का अक्षीय तन्तु बनाते हैं।
  3. ये सेण्ट्रिओल पक्ष्मों व कशाभों के काइनेटोसोम या आधारकाय बनाते हैं।

प्रश्न 11.
सूक्ष्मकाओं के कार्य लिखिए।
उत्तर-
सूक्ष्मकाओं के कार्य

  1. ये कोशिकाओं के कंकाल का निर्माण करती हैं।
  2. ये कोशिका के आकार, विस्तार को नियमित करती हैं।
  3. ये कोशिकाओं की गति एवं गुणसूत्रों का नियन्त्रण करती हैं।
  4. ये कोशिकाद्रव्य चक्रण में सहायता करती हैं।

प्रश्न 12.
रिक्तिकाओं के कार्य लिखिए।
उत्तर-
रिक्तिकाओं के कार्य

  1. ये भोजन के पाचन, उत्सर्जन आदि क्रियाओं में सहायता करती हैं।
  2. ये कोशाओं में परासरण नियन्त्रण का कार्य करती हैं।
  3. ये भोज्य पदार्थों का संग्रहण करती हैं।
  4. टोनोप्लास्ट के अर्द्ध-पारगम्य होने के कारण, ये कोशा के अन्दर विभिन्न पदार्थों के संवहन का कार्य करती हैं।

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प्रश्न 13.
माइटोकॉण्ड्रिया को सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-
माइटोकॉण्ड्रिया का वर्णन-माइटोकॉण्डिया सभी यूकैरियोटिक कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में पाया जाता है। यह दोहरो झिल्ली का बना होता है जिसमें एक तरल पदार्थ भरा रहता है। इसे बाह्य कक्ष कहते हैं। माइटोकॉण्डूिया की आन्तरिक झिल्ली के बीच की गुहा को आन्तरिक (UPBoardSolutions.com) कक्ष कहते हैं। इसमें मैट्रिक्स (आधानी) भरा होता है। आन्तरिक झिल्ली अन्दर की ओर अंगुलियों जैसी संरचनाएँ बनाती है जिन्हें क्रिस्टी कहते हैं। क्रिस्टी की सतह पर ऑक्सीसोम (F कण) नामक संरचनाएँ पाई जाती हैं।
UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 5 The Fundamental Unit of Life image -10
मैट्रिक्स में लिपिड्स, प्रोटीन, प्रकीण्व, कुण्डलित दोहरे स्टेण्ड वाले DNA एवं RNA तथा राइबोसोम पाये जाते हैं।

प्रश्न 14.
कोशिका झिल्ली के प्रमुख कार्य लिखिए।
उत्तर-
कोशिका झिल्ली के प्रमुख कार्य

  1. यह कोशिका को एक आकार प्रदान करती है।
  2. यह कोशिका के जीवित अंगों की सुरक्षा के लिए एक आवरण प्रदान करने का कार्य भी करती है।
  3. इसका मुख्य कार्य कोशिका के अन्दर और उसके बाहरी माध्यमों के बीच आणविक आदान-प्रदान को नियन्त्रित करना है।

प्रश्न 15.
गॉल्जीकाय या गॉल्जी बॉडी या गॉल्जी उपकरण का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गॉल्जीकार्य या शल्जी उपकरण का वर्णन-गॉल्जीकाय दोहरी झिल्ली की बनी संरचनाएँ हैं। जो एक खाली स्थान के द्वारा एक-दूसरे से अलग-अलग स्थित होती हैं। इनमें तीन घटक होते हैं|
(1) चपटे कोष,
(2) आशय,
(3) रिक्तिकाएँ।
एक जन्तु कोशिका में 3 से 7 एवं पादप कोशिका में 10 से 20 गॉल्जीकाय पाये जाते हैं।
UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 5 The Fundamental Unit of Life image -11
ये लाल रुधिर कणिकाओं को छोड़कर सभी यूकैरियोटिक कोशिकाओं में समतल इकाई झिल्लियों के गुच्छे के रूप में पायी जाती हैं। कुछ अकशेरुकी जन्तुओं तथा पौधों की कोशिकाओं में अनेक असम्बद्ध इकाइयों के रूप में बिखरी होती हैं जिन्हें डिक्टियोसोम कहते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एक जन्तु कोशिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जन्तु कोशिका का वर्णन – जन्तु कोशिका में अग्रलिखित भाग होते हैं

  1. कोशिका कला (झिल्ली) – यह तीन परतों की बनी होती है– बीच की परत लिपिड की तथा शेष दो प्रोटीन की। यह अर्द्ध-पारगम्य झिल्ली होती है।
  2. अन्तःप्रद्रव्यी जालिका – झिल्लियों से बना नलिकाकार तन्त्र जो बाहर कोशिका कला से तथा अन्दर केन्द्रक कला से जुड़ा हुआ है। इस तन्त्र की सतह पर राइबोसोम पाये जाते हैं।
  3. राइबोसोम – प्रोटीन एवं राइबोन्यूक्लिक अम्ल से बनी कणिकामय संरचनाएँ।
  4. लाइसोसोम – एकल झिल्ली से घिरी गोल संरचनाएँ जिनमें हाइड्रोजन एन्जाइम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
  5. सेण्ट्रोसोम – केन्द्रक के निकट पाई जाने वाली संरचना जिसके खोखले भाग में तीन-तीन सूक्ष्म नलिकाओं के 9 समूह होते हैं।
  6. माइटोकॉण्डूिया – दो झिल्लियों से घिरी गोल अथवा चपटी संरचना जिसकी बाहरी झिल्ली चिकनी तथा भीतरी झिल्ली माइटोकॉण्डूिया की गुहिका में फँसी होती है जिसमें क्रिस्टी नामक अंग्रलासर प्रवर्ध निकले रहते हैं। यह कोशिका का ऊर्जा घर (Power house) होती है।
  7. गॉल्जी बॉडी – सिस्टर्नी नलिकाओं तथा गुहिकाओं से मिलकर बनी अर्द्धचन्द्राकार रचनाएँ हैं। यह सिस्टर्नी जाल के रूप में होती है।
  8. केन्द्रक – यह दोहरी केन्द्रक कला से घिरा हुआ गोल अथवा चपटे आकार का सबसे बड़ा कोशिकांग है। केन्द्रक में उपस्थित कणिकामय द्रव्य केन्द्रकद्रव्य कहलाता है। इसमें क्रोमेटिन तन्तुओं का जाल-सा बिछा रहता है।

प्रश्न 2.
वनस्पति कोशिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
वनस्पति कोशिका का वर्णन-वनस्पति कोशिका की संरचना भी जन्तु कोशिका की तरह होती। है। लेकिन इसमें तारक काय (सेण्ट्रोसोम) नहीं पाया जाता है। इसके अतिरिक्त इसमें जन्तु कोशा के अतिरिक्त निम्नलिखित भाग और पाये जाते हैं

  1. कोशिका भित्ति – सेल्यूलोज का बना कोशिका का आवरण होता है।
  2. लवक – वनस्पति कोशा में तीन प्रकार के लवक पाये जाते हैं-(1) अवर्णी लवक, (2) हरित लवक तथा (3) वर्णी लवक। हरित लवक के कारण ही पौधों के विभिन्न भाग हरे दिखाई देते हैं।
  3. रसधानी – कोशिका के मध्य में विस्तृत रसधानी उपस्थित होती है।

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प्रश्न 3.
समसूत्री विभाजन की कितनी प्रावस्थाएँ होती हैं ? उनके नाम लिखिए।
उत्तर-
समरूपी विभाजन की प्रावस्थाएँ – समसूत्री विजन की निम्नलिखित पाँच प्रावस्थाएँ होती हैं।

  1.  विश्रामावस्था (Resting Period) अथवा अन्तरालावस्था या इण्टरफेज (Interphase)
  2. पूर्वावस्था या प्रोफेज (Prophase)
  3. मध्यावस्था या मेटाफेज (Metaphase)
  4. आश्वावस्था या एनाफेज (Anaphase)
  5. अत्यावस्था या टीलोफेज (Telophase)

प्रश्न 4.
अत:प्रद्रव्यी जालिका का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-
अन्त: प्रद्रव्यी जालिका का वर्णन अन्त:प्रद्रव्यी जालिका में सूक्ष्म आशय (थैलियाँ) एवं नलिकाओं का जालक तन्त्र होता है। यह केन्द्रक झिल्ली से कोशिका झिल्ली तक कोशिकाद्रव्य में फैली रहती हैं।
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अन्तप्रद्रव्यी जालिका, जीवाणु, विषाणु, स्तनधारियों की लाल रक कणिकाओं तथा हरे-नीले शैवालों को छोड़कर सभी कोशिकाओं में पाई जाती है।

प्रश्न 5.
तारककाय का संचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-
तारककाय (Centrosome) का वर्णन-तारककाय जन्तु कोशिकाओं में केन्द्रक के पास पाया जाता है। इसके अतिरिक्त यह शैवाल तथा कवक की कोशिकाओं में भी पाया (UPBoardSolutions.com) जाता है। प्रत्येक तारककाय में तारक केन्द्र होते हैं।
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प्रश्न 6.
लाइसोसोम का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-
लाइसोसोम का वर्णन-लाइसोसोम 0.2 से 0.8 तक व्यास वाली इकाई झिल्ली की बनी गोलाकार या अण्डाकार संरचनाएँ होती हैं। इनमें पाचक प्रकोण्व (Digestive enzyme) पाये जाते हैं। इनमें 24 प्रकार के एन्जाइम पाये जाते हैं।
UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 5 The Fundamental Unit of Life image -14
लाइसोसोम यकृत, प्लीहा, श्वेत रक्त कणिकाएँ, अग्न्याशय, वृक्क, थॉयराइड ग्रन्थि आदि ऊतकों की कोशिकाओं में तथा पादप की विभाजी कोशिकाओं में पाये जाते हैं।

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प्रश्न 7.
राइबोसोम का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-
राइबोसोम का वर्णन-राइबोसोम्स सघन, गोलाकार, कणिकामय संरचनाएँ हैं तथा कोशिका में उपस्थित सबसे छोटे कोशिकांग हैं। इनका व्यास लगभग 250A होता है। ये केवल RNA एवं प्रोटीन से निर्मित होते हैं तथा कलाविहीन कणों के रूप में क्लोरोप्लास्ट, माइटोकॉण्ड्रिया, केन्द्रक के अन्दर या अन्त:प्रद्रव्यी जालिका के ऊपर या कोशिकाद्रव्य में स्वतन्त्र रूप से पाये जाते हैं। ये अपारदर्शी होते हैं।
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प्रश्न 8.
लवक का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-
लवक का वर्णन-लवक अधिकांश पादप तथा कुछ प्रकाश-संश्लेषी एक कोशिकीय जन्तुओं (Protoz0a) की कोशिकाओं में पाई जाने वाली छोटी-छोटी बिम्ब के समान, गोल अथवा अण्डाकार दोहरी दीवार युक्त संरचना होती है। ये तीन प्रकार के होते हैं

  1. अवर्णी लवक,
  2. हरित लवक तथा
  3. वर्णी लवक।
    UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 5 The Fundamental Unit of Life image -16

प्रश्न 9.
प्रोकैरियोटिक एवं यूकैरियोटिक कोशिकाओं में अन्तर बताइये।
उत्तर-
प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक कोशिकाओं में अन्तर
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अभ्यास प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. लाल रक्त कणिकाओं का निर्माण होता है
(a) फेफड़ों में
(b) हृदय में
(c) अस्थिमज्जा में
(d) गुर्दो में।

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2. कोशिका का ऊर्जागृह कहलाता है-
(a) लाइसोसोम
(b) माइटाकण्डूया
(c) गाजीबॉडी नीलॉटी
(d) केन्द्रक।

3. राइबोसोम संश्लेषण करता है
(a) प्रोटीन का
(b) RNA का
(c) DNA का
(d) इन सभी का

4. पौधों में हरा रंग निम्न के कारण होता है
(a) वर्णी लवक
(b) अवर्णी लवक
(c) हरित लवक
(d) ये सभी।

5. मानव शरीर में सबसे बड़ी कोशिका है
(a) नर्व सेल
(b) मसल सेल
(c) लिवर सेल
(d) किडनी सेल

6. जन्तु कोशिका में प्रोटोप्लाज्म तथा अन्य वातावरण के बीच रोधिका है
(a) सेल वाल
(b) न्यूक्लियर मेम्ब्रेन
(c) टोनोप्लास्ट
(d) प्लाज्मा मेम्ब्रेन

7. शब्द सेल’ देने वाले थे
(a) ल्यूवेन हुक
(b) रॉबर्ट हुक
(c) फ्लेमिंग।
(d) रॉबर्ट ब्राउन

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8. कोशिका सिद्धान्त प्रस्तावित करने वाले थे
(a) श्लीडेन तथा श्वान
(b) वाट्सन तथा क्रिक
(c) डार्विन तथा वैलेस
(d) मेण्डेल तथा मॉर्गन

9. निम्नलिखित की अनुपस्थिति के कारण पादप कोशिका जंतु कोशिका से भिन्न होती है
(a) एण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम
(b) माइटोकॉण्ड्रिया
(c) राइबोसोम
(d) सेण्ट्रियोल

10. सेन्ट्रोसोम निम्नलिखित में पाया जाता है
(a) साइटोप्लाज्मा
(b) न्यूक्लियस
(c) कोमोसोम
(d) न्यूक्लियोलस

11. कोशिका का बिजलीघर है
(a) क्लोरोप्लास्ट
(b) माइटोकॉण्डिॉन
(c) गॉल्जी अपरेटस
(d) न्यूक्लियोलस

12. कोशिका के भीतर श्वसन (ऑक्सीकरण) का स्थान है
(a) राइबोसोम
(b) गॉल्जी अपरेटस
(c) माइटोकॉण्डुिऑन
(d) एण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम

13. पाचक थैला कहलाता है
(a) सेण्ट्रोसोम
(b) लाइसोसोम
(c) मेसोसोम
(d) क्रोमोसोम

14. राइबोसोम निम्नलिखित के केन्द्र हैं
(a) रेस्पिरेशन
(b) फोटोसिथेसिस
(c) प्रोटीन सिन्थेसिस
(d) फैट सिन्थेसिप

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15. द्विक झिल्ली निम्नलिखित में अनुपस्थित होती है
(a) माइटोकॉण्डुिऑन
(b) क्लोरोप्लास्ट
(c) न्यूक्लियस
(d) लाइसोसोम

16. केवल पादपों में पाये जाने वाला कोशिकांगक है
(a) गॉल्जी अपरेटस
(b) माइटोकॉण्डिया
(c) प्लास्टिड
(d) राइबोसोम

17. केन्द्रक तथा कला परिबद्ध कोशिकांगक रहित जीव हैं
(a) डिप्लॉयड्स
(b) प्रोकैरियोट्स
(c) हैप्लॉयड्स
(d) यूकैरियोट

18. जंतु कोशिका निम्नलिखित के द्वारा सीमित होती है
(a) प्लाज्मा मेम्ब्रेन
(b) सेल मेम्ब्रेन
(c) सेल वाल।
(d) बेसमेन्ट मेम्ब्रेन

19. एण्डोप्लाज्पिक रेटिकुलम का जाल निम्नलिखित में उपस्थित होता है
(a) न्यूक्लियस
(b) न्यूक्लिमेलस
(c) साइटोप्लाज्म
(d) क्रोमोसोम्स

20. लाइसोसोम निम्नलिखित के आशय (reservoirs) हैं
(a) फैट
(b) RNA
(c) सिक्रीटरी ग्लाइकोप्रोटीन्स
(d) हाइड्रोलिटिक एन्जाइम्स

21. पादप कोशिका की रसधानी को घेरनेवाली झिल्ली कहलाते हैं
(a) टोनोप्लास्ट
(b) प्लाज्मा मेम्ब्रेन
(c) न्यूक्लियर मेम्ब्रेन
(d) सेले वाल

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22. कोशिका स्रवण निम्नलिखित के द्वारा किया जात है
(a) प्लास्टिड्स
(b) एण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम
(c) गॉल्नो अपरेटस
(d) न्यूक्लियोलस

23. सेण्ट्रियोल निम्नलिखित से सम्बद्ध है
(a) DNA सिन्थेसिस
(b) शिरोडक्शन
(c) स्पिण्डिल निर्माण
(d) रेस्पिरेशन

24. जंतु कोशिका और पादप कोशिका के बीच प्रमुख अंतर है
(a) न्यूट्रिशन
(b) ग्रोथ
(c) पूवमेन्ट
(d) रेस्पिरेशन

25. केन्द्रक रहित जंतु कोशिका में निम्नलिखित का भी अभाव होता है
(a) क्रोणेम
(b) राइबोसोम
(c) लाइसोसोम
(d) एन्डोप्लामिक रेटिकुलम

26. प्लाज्मोलिसिस निम्नलिखित के कारण होती है
(a) ऐब्जॉर्पशन
(b) एण्डॉस्मोसिस
(c) ऑस्मोसिस
(d) एक्सॉस्मोसिस

27. पादप कोशिका निम्नलिखित के कारण फूल जाती है
(a) प्लाज्मोलिसिस
(b) एक्सॉस्मोसिस
(c) एण्डॉस्मोरिस
(d) इलेक्ट्रोलिसिस

28. बाह्य विलयन में, निलेय सान्द्रण उच्चतर होने पर कहलाता है।
(a) हाइपोटॉनिल
(b) आइसटॉनिक
(c) हाइपरटॉनिक
(d) इनमें से कोई नहीं

29. हाइपोटॉनिक विलयन में रखी कोशिका
(a) सिकुड़ जाये।
(b) प्लाज्मोलिसिस प्रदर्शित कोगी।
(c) फूल जायेगी
(d) आकृति अथवा कार अपरिवर्तित रहे।

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30. सूर्यप्रकाश की विकिरण ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित होकर निम्नलिखित के रूप में संगृहीत होती है
(a) AMP
(b) ADP
(c) ATP
(d) APP

उत्तरमाला

  1. (d)
  2. (d)
  3. (a)
  4. (b)
  5. (a)
  6. (d)
  7. (b)
  8. (a)
  9. (d)
  10. (a)
  11. (b)
  12. (c)
  13. (b)
  14. (c)
  15. (d)
  16. (c)
  17. (b)
  18. (a)
  19. (c)
  20. (d)
  21. (a)
  22. (c)
  23. (c)
  24. (a)
  25. (a)
  26. (d)
  27. (c)
  28. (c)
  29. (c)
  30. (c)

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