UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 30 खान अब्दुल गफ्फ्फार खाँ (महान व्यक्तित्व)

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पाठ का सारांश

अब्दुल गफ्फार खाँ को बादशाह खान के नाम से जाना जाता है। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा स्थानीय मदरसे (पेशावर) में हुई। इन्होंने थोड़े समय में ही पूरा कुरान याद कर लिया और हाफिजे कुरान बन गए। मदरसे की शिक्षा के बाद वे पेशावर में म्युनिसिपल बोर्ड हाईस्कूल में भर्ती हुए। फिर वे एडवर्ड्स मेमोरियल मिशन हाईस्कूल में गए। युवा होने पर ये बलिष्ठ और छह फीट तीन इंच लम्बे थे। प्रतिष्ठित परिवार के सदस्य होने के नाते इन्हें ब्रिटिश भारतीय सेना में चुन लिया गया लेकिन थोड़े दिन बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और अध्ययन के लिए अलीगढ़ चले गए। वहाँ उन्होंने अबुल कलाम आजाद का अखबार ‘अले हिलाल’ पढ़ा, इससे उनमें देशप्रेम की भावना और सुदृढ़ हो गई।

क्रान्तिकारी गातिविधियों में सन्देह होने पर इन्हें पेशावर में कैद कर लिया गया। माँ की मृत्यु होने पर ये जेल से छूटकर सीधे अपने गाँव आए, जहाँ लोगों की बड़ी जनसभा में इन्हें पाठकों का गौरव की उपाधि दी गई। मई 1928 ई० में इन्होंने पश्तो भाषा का अखबार निकाला। सन् 1928 ई० में वे लखनऊ आए और गांधी जी और नेहरू जी से मिले। इन्हें (UPBoardSolutions.com) विश्वास हो गया कि अहिंसा और एकता से विजय प्राप्त की जा सकती है। सन् 1929 ई० में इन्होंने एक संगठन ‘खुदाई खिदमतगार’ बनाया। इस आन्दोलन के सदस्य लाल कुर्ती वाले कहलाए। 13 मई, 1930 ई० को सेना की एक टुकड़ी ने लाल कपड़े उतारने को कहा जो उन्होंने नहीं माना। सन् 1931 ई० में उन्हें फिर कैद किया गया। तीन वर्ष बाद इन्हें छोड़ा गया लेकिन पंजाब और सीमा प्रान्त नहीं जाने दिया।

अगस्त 1942 ई० में भारत-छोड़ो आन्दोलन सीमा प्रान्त में अनुशासित ढंग से हुआ। देश के विभाजन से सीमा प्रान्त पाकिस्तान में चला गया, जिससे बादशाह खान बहुत दुखी हुए। पाकिस्तान सरकार ने इन्हें कैद कर लिया। सन् 1964 ई० में पाकिस्तान सरकार ने इलाज के लिए इन्हें लन्दन जाने की अनुमति दी। सन् 1969 ई० में महात्मा गांधी की जन्म शताब्दी पर ये भारत आए। अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिए इन्हें नेहरू पुरस्कार दिया गया। श्रीमती इन्दिरा गांधी के निमन्त्रण पर ये सन् 1980 तथा 1981 में भारत आए। सन् 1987 ई० में बादशाह खान को भारत सरकार ने सर्वोच्च नागरिक (UPBoardSolutions.com) सम्मान ‘भारत रत्न’ प्रदान किया। 20 जनवरी, 1988 ई० को 98 वर्ष की परिपक्व आयु में इनका निधन हो गया।

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अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए।
(क) बादशाह खान को सीमान्त गांधी क्यों कहा जाता है?
उत्तर :
बादशाह खान ने अपने जीवन में महात्मा गांधी के आदर्शों को माना और वे ‘सीमा प्रांत (पेशावर)’ के रहने वाले थे, इसलिए इन्हें सीमान्त गांधी कहा जाता है।

(ख)
“हाफिजे कुरान’ का क्या अर्थ है?
उत्तर :
हाफिजे कुरान का अर्थ है- कुराने का ज्ञाता। बादशाह खान को पूरा कुरान याद था।

(ग)
खुदाई खिदमतगार के सदस्य क्या प्रतिज्ञा करते थे?
उत्तर :
खुदाई खिदमतगार के सदस्य प्रतिज्ञा करते थे कि वे हर अत्याचार का विरोध अहिंसा और सत्याग्रह से करेंगे और हथियार नहीं उठाएँगे।

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(घ)
गफ्फार खाँ को सर्वोच्च भारतीय नागरिक सम्मान कब मिला?
उत्तर :
गफ्फार खाँ को सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारत रत्न’ सन् 1987 ई० में मिला।

प्रश्न 2.
सही कथन के सम्मुख सही (✓) तथा गलत कथन के सम्मुख गलत (✗) का चिन्ह लगाइए (सही-गलत का चिह्न लगाकर):
(क) खान अब्दुल गफ्फार खाँ के विचारों पर परिवार के लोगों का प्रभाव पड़ा। (✓)
(ख) गफ्फार खाँ अँग्रेजी सेना की नौकरी से निकाल दिए गए थे। (✗)
(ग) “पख्तून’ नामक समाचार पत्र (UPBoardSolutions.com) अँग्रेजी भाषा में प्रकाशित होता था। (✗)
(घ) ‘अल हिलाल’ समाचार पत्र स्वतन्त्रता, प्रजातन्त्र व न्याय के प्रचार के लिए विख्यात था। (✓)

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के चार सम्भावित उत्तर हैं, जिनमें से केवल एक उत्तर सही है। सही उत्तर छॉटिए
(क) गफ्फार खाँ ने मैट्रिक परीक्षा के लिए प्रवेश लिया –

  • म्युनिसिपल बोर्ड हाईस्कूल में (✓)
  • हडवर्ड्स मेमोरियल मिशन हाईस्कूल में।
  • सेंट स्टीफेंस कालेज में।
  • मदरसा नदवतुल उलेमा लखनऊ में।

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(ख) गफ्फार खाँ एक महान नेता की जन्मशताब्दी वर्ष पर भारत आए थे। वे नेता थे

  • लाला लाजपत राय
  • श्रीमती इन्दिरा गांधी
  • डा० राधाकृष्णन
  • महात्मा गांधी

प्रश्न 4.
नोट – विद्यार्थी अपने शिक्षक/शिक्षिका की सहायता से स्वयं करें।

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 (Section 4)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 कृषि तथा उद्योगों की पारस्परिक अनुपूरकता एवं औद्योगिक ढाँचा (अनुभाग – चार)

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विरत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बड़े पैमाने के उद्योगों से आप क्या समझते हैं ? बड़े पैमाने के उद्योगों के प्रोत्साहन के लिए भारत में कौन-से कदम उठाये जा रहे हैं ?
उत्तर :

बड़े पैमाने के उद्योग

‘बड़े पैमाने के उद्योग से आशय ऐसे उद्योगों से है, जिनमें बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। इन उद्योगों में बहुत अधिक पूँजी का निवेश होता है तथा बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है। भारतीय उद्योगों में निवेश की गयी स्थिर पूँजी का अधिकांश भाग बड़े पैमाने के उद्योगों में लगा हुआ है। ये उद्योग संकल औद्योगिक उत्पादन के सबसे बड़े भाग का उत्पादन करते हैं। ये उद्योग सामाजिक और आर्थिक न्याय के साथ विकास को सम्भव बनाते हैं। सूती वस्त्र उद्योग तथा लोहा-इस्पात उद्योग इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रोत्साहन के लिए उठाये गये कदम

छोटे पैमाने के उद्योग अधिकांशतः उपभोक्ता वस्तुओं को छोटे पैमाने पर उत्पादन करते हैं। वे पूँजीगत एवं उपभोक्ता वस्तुओं की बढ़ती हुई माँग को पूरा नहीं कर सकते। दूसरे, उनकी गुणवत्ता भी उतनी उच्चकोटि की नहीं हो पाती है। अत: बड़े पैमाने के उद्योगों की स्थापना की गयी। इन उद्योगों की स्थापना अधिकांशतः सार्वजनिक क्षेत्र में की गयी है, जिनमें बड़ी मात्रा में पूँजी का निवेश किया गया है तथा बड़ी संख्या में श्रमिकों को रोजगार दिया गया है। इन उद्योगों के विकास के लिए सरकार ने निम्नलिखित उपाय किये हैं –

1. आधारिक संरचना का विस्तार – सरकार ने देश में परिवहन व संचार सुविधाओं के विकास में बड़ी मात्रा में पूंजी निवेश किया है।

2. सार्वजनिक उद्योगों का विस्तार – नियोजन काल (UPBoardSolutions.com) में भारत सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र में बड़े उद्योगों की स्थापना की है; जैसे-दुर्गापुर, भिलाई, राउरकेला के स्टील प्लाण्ट, भारतीय तेल निगम आदि।

3. वित्तीय संस्थाओं की स्थापना – बड़े उद्योगों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सरकार ने अनेक वित्तीय संस्थाओं; जैसे-भारतीय औद्योगिक विकास बैंक आदि की स्थापना की है।

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4. विदेशी सहयोग – योजना काल में विदेशी पूँजी एवं विदेशी तकनीक की सहायता से अनेक उद्योगों की स्थापना की गयी है।

5. उत्पादन तकनीक में सुधार – बड़े उद्योगों की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए सरकार ने अनुसन्धान एवं शोध-कार्यों को प्रोत्साहित किया है तथा अनेक संस्थाओं की स्थापना की है।

6. कर एवं अन्य रियायतें – सरकार ने बड़े उद्योगों के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए करों में छूट, ऋण सुविधा आदि के अतिरिक्त अनेक प्रकार के राजकोषीय परामर्श तथा वित्तीय सुविधाएँ प्रदान की हैं।

7, औद्योगिक नीति का उदारीकरण – वर्ष 1991 की नयी नीति के अनुसार इन उद्योगों की स्थापना तथा विस्तार के लिए इन्हें लाइसेंसमुक्त किया गया है। इसके अतिरिक्त विदेशी प्रत्यक्ष विनियोग को उदार बनाया गया है।

8. सरकार ने प्रौद्योगिकी में सुधार तथा यन्त्रों – उपकरणों के आधुनिकीकरण के लिए दो वित्तीय सहायता कोषों-‘प्रौद्योगिकी सुधार कोष तथा पूँजी आधुनिकीकरण कोष’ की स्थापना की है।

प्रश्न 2.
सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के उद्योगों में अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के चार दोषों का उल्लेख कीजिए। [2009, 10]
उत्तर :
सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के उद्योगों में मूल अन्तर स्वामित्व का होता है। वे उपक्रम जिन पर सरकारी विभागों अथवा केन्द्र या राज्यों द्वारा स्थापित संस्थाओं का स्वामित्व होता है, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम कहलाते हैं; जैसे-भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लि०, (UPBoardSolutions.com) भिलाई इस्पात लि० आदि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम हैं। इसके विपरीत वे उद्योग जिनका स्वामित्व कुछ व्यक्तियों या कम्पनियों के पास होता है, निजी क्षेत्र के उद्यम कहलाते हैं; जैसे-टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी।

सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के दोष

यद्यपि सार्वजनिक क्षेत्र के अनेक उद्यमों की प्रगति एवं कार्य सन्तोषजनक है; जैसे – भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग, भारतीय जीवन बीमा निगम आदि; तथापि इस क्षेत्र के अधिकांश उद्यमों का कार्य सन्तोषजनक नहीं है। वे अनेक दोषों से ग्रस्त हैं, जिनमें से चार का विवरण निम्नलिखित हैं –

1. भ्रष्टाचार – सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के उच्च अधिकारी अपने कर्तव्य को सार्वजनिक हित में न लेकर, एक स्व-हितकारी व्यवसाय के रूप में लेते हैं। वे व्यक्तिगत आर्थिक लाभ को प्राथमिकता देते हैं तथा अपने सार्वजनिक या जन-सामान्य के हितों की अवहेलना करते हैं। इसका सीधा असर उस उद्यम की वित्त-व्यवस्था पर पड़ता है, जो निरन्तर घाटे की ओर बढ़ती चली जाती है।

2. दक्षता एवं कार्यकुशलता का अभाव – सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में शीर्ष स्थान पर बहुधा प्रशासनिक अधिकारी बैठे होते हैं, जिनको उस उद्यम का तकनीकी ज्ञान नहीं होता। परिणामस्वरूप, वे उद्यमकर्मियों का सही मार्गदर्शन करने में असमर्थ होते हैं। यह अभाव भी इन उद्यमों में गिरती कार्यकुशलता एवं दक्षता के लिए जिम्मेदार है।

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3. सुधार व अनुसन्धानिक दृष्टि का अभाव – सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में सुधार व अनुसन्धान कार्यों के लिए एक लम्बी व उबाऊ प्रक्रिया अपनायी जाती है। लालफीताशाही, जिम्मेदारी की कमी, व्यक्तिगत आर्थिक हितों के लिए प्राथमिकता तथा दकियानूसी सोच के कारण इन उद्यमों में सुधार कछुवा- गति से होते हैं।

4. प्रतिस्पर्धात्मक सोच का अभाव – आज का युग कड़ी प्रतिस्पर्धा का युग है। निजी क्षेत्र इस प्रतिस्पर्धा में जी-जान से लगते हैं। विभिन्न माध्यमों से वे विज्ञापनों का सहारा लेकर अपने उत्पादनों की खपत बढ़ाने तथा उसका बाजार हथियाने में लगे हैं। इसके विपरीत, (UPBoardSolutions.com) सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकांश उद्यम इसे प्रतिस्पर्धा में पिछड़ गये हैं। नियोजक के हितों की अपेक्षा निजी आर्थिक हितों को प्राथमिकता देना भी प्रतिस्पर्धात्मक सोच को आगे नहीं बढ़ने देता।

प्रश्न 3.
औद्योगिक उत्पादकता का वर्णन कीजिए। इसमें कार्यकुशलता का क्या महत्त्व है? या औद्योगिक उत्पादकता का क्या अर्थ है ? [2010]
उत्तर :

औद्योगिक उत्पादकता

उत्पादन-प्रक्रिया उत्पत्ति के विभिन्न साधनों के सामूहिक प्रयासों पर निर्भर करती है। उत्पादन में इन साधनों के आनुपातिक भाग को ‘साधन उत्पादकता’ कहते हैं। उद्योग की उत्पादकता के अर्थ को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है –

एक उद्योग की प्रदा (Output) और उसकी आदाओं (Inputs) के आनुपातिक भाग को उस उद्योग की उत्पादकता कहते हैं। सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से उत्पादकता का आशय देश के सम्भाव्य प्रसाधनों से समस्त उपलब्ध वस्तुओं और सेवाओं के अनुपात से है। एम० बनर्जी (UPBoardSolutions.com) के शब्दों में, “उत्पादकता से आशय प्राय: उस अनुपात से लिया जाता है, जो कि वस्तुओं और सेवाओं के रूप में धनोत्पादन और ऐसे उत्पादन में लगे हुए उत्पत्ति के साधनों के बीच विद्यमान हो।” औद्योगिक उत्पादकता को उद्योग में लगी पूँजी और उसके द्वारा उत्पादन में वृद्धि के रूप में मापा जा सकता है। इसे वर्द्धमान पूँजी उत्पाद’ अनुपात के नाम से भी जाना जाता है।

कार्यकुशलता का महत्त्व

किसी भी उद्योग की उत्पादकता, दक्षता एवं यापारिक लाभ उसकी कार्यकुशलता पर निर्भर करते हैं। कार्यकुशलता के मुख्य घटक हैं—मानव श्रम तथा वित्तीय एवं भौतिक संसाधनों का उपयुक्त एवं अधिकतम उपयोग। जिन उद्योगों में मानव-श्रम तथा वित्तीय (UPBoardSolutions.com) एवं भौतिक संसाधनों का उपयुक्त उपयोग किया जाता है, वहाँ कुशलता व्याप्त होती है तथा ऐसे उद्योग उद्यमी को लाभ कमा कर देते हैं। टाटा आयरन एण्ड स्टील कं० तथा मारुति कार उद्योग कार्यकुशलता युक्त उद्योगों के उदाहरण हैं। इसके विपरीत जिन उद्योगों में मानव श्रम तथा वित्तीय एवं भौतिक संसाधनों का उपयुक्त उपयोग नहीं हो पाता, वहाँ कार्यकुशलता में कमी व्याप्त रहती है तथा वे निरन्तर घाटे में रहते हैं।

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मानव श्रम – आर्थिक सुधारों की गति को देखते हुए योजना आयोग का मानना है कि दस वर्षों में भारत के प्रति व्यक्ति की औसत आय दुगुनी हो जाएगी। भारत में जनसंख्या की वृद्धि 1.5% वार्षिक है। भारत की आर्थिक संवृद्धि की दर त्वरित होने की आशा के पीछे एक बड़ा कारण यह है हमारा ‘निर्भरता-अनुपात अर्थात् काम करने की उम्र वालों की संख्या की तुलना में निर्भर जनसंख्या पश्चिमी देशों की तुलना में कम है। दूसरे शब्दों में, बच्चों और बूढ़ों की संख्या की तुलना में हमारे यहाँ काम करने वालों की संख्या पश्चिमी देशों की अपेक्षा बहुत ऊँची है। अत: उपलब्ध पर्याप्त मानव-श्रम हमारी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

वित्तीय संसाधन – विदेशी प्रत्यक्ष निवेश देश में लगातार बढ़ता ही जा रहा है। वर्ष 1990-91 में इसकी निवल राशि 9 करोड़ 60 लाख डॉलर थी, जो वर्ष 1998-99 में बढ़कर 2 अरब 38 करोड़ डॉलर हो गयी। वर्ष 2004-05 में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की कुल निवल राशि 3 अरब 24 करोड़ डॉलर थी। योजना आयोग की रिपोर्ट के अनुसार दिसम्बर, 2005 ई० तक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश लगभग 5 अरब डॉलर तक पहुँच गया था।

निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि आज भारत कार्यकुशलता की दृष्टि से अन्य विकासशील देशों की तुलना में बहुत आगे और विकसित देशों के समीप पहुँचने की स्थिति में है।

प्रश्न 4.
भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु और कुटीर उद्योगों का महत्त्व बताइए। [2010, 13]
या
भारतीय अर्थव्यवस्था में कुटीर उद्योग के तीन लाभ लिखिए। [2014]
या
कुटीर उद्योग का आर्थिक विकास में क्या महत्त्व है? [2015]
या
भारत के कुटीर उद्योगों के किन्हीं छः आर्थिक महत्त्वों पर प्रकाश डालिए।
या
कुटीर उद्योग को परिभाषित कीजिए। इसके दो महत्त्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। [2018]
उत्तर :

लघु एवं कुटीर उद्योग

लघु उद्योगों को परिभाषित करने में मशीन व संयन्त्रों में किये गये विनियोगों को आधार माना गया है। वर्तमान में लघु उद्योगों में निवेश की सीमा ₹ 1 करोड़ है। ये उद्योग घर के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर स्थापित किये जाते हैं तथा यान्त्रिक व (UPBoardSolutions.com) शक्ति के साधनों का उपयोग करते हैं; जैसे-मिक्सी उद्योग।

कुटीर उद्योगों से अभिप्राय ऐसे उद्योगों से है, जिसमें किसी परम्परागत वस्तु का उत्पादन परिवार के सदस्यों तथा कुछ वैतनिक श्रमिकों (9 से कम) की सहायता से स्वयं इसके मालिक (प्रायः कारीगर) द्वारा किया। जाता है। सभी कुटीर उद्योगों में यान्त्रिक व शक्ति के साधनों का उपयोग नहीं होता; जैसे- लोहा-इस्पात उद्योग।

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भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु एवं कुटीर उद्योगों का महत्त्व (लाभ) निम्नलिखित है –

  1. कुटीर उद्योगों का विकास बेरोजगारी की समस्या का अच्छा समाधान है।
  2. कुटीर उद्योग खेतिहर श्रमिकों को अतिरिक्त आय का साधन प्रदान करते हैं।
  3. कुटीर उद्योग कृषि भूमि पर जनसंख्या के भार को कम करने में सहायक हैं।
  4. इन्हें सरलतापूर्वक स्थापित किया जा सकता है, क्योंकि इन उद्योगों को चलाने के लिए थोड़ी पूँजी, बहुत कम प्रशिक्षण तथा हल्के औजारों की आवश्यकता होती है।
  5. भारत में पूँजी का अभाव व श्रम-शक्ति की बहुतायत है। ऐसी अर्थव्यवस्था के लिए लघु उद्योग अत्यधिक उपयुक्त हैं।
  6. इन उद्योगों के विकास से राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। राष्ट्रीय आय-समिति के (UPBoardSolutions.com) अनुसार, “भारत की | राष्ट्रीय आय में कुटीर एवं लघु स्तरीय उद्योगों का योगदान विशाल स्तरीय उद्योगों के योगदान की तुलना में अधिक होता है।”
  7. कुटीर एवं लघु उद्योग देश को आत्मनिर्भर बनाने में सहायक हैं।
  8. ये उद्योग निर्धन वर्ग की अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
  9. कुटीर व लघु उद्योगों के विकास से आर्थिक विषमता का अन्त होता है।
  10. कुटीर व लघु उद्योगों का विकास देश के सन्तुलित एवं बहुमुखी विकास के लिए अति आवश्यक है।
  11. कुटीर व लघु उद्योगों के विकास से औद्योगीकरण के दोष उत्पन्न नहीं हो पाते हैं।
  12. कुटीर उद्योगों के विकास से अनेक मानवीय प्रवृत्तियों का जन्म होता है; जैसे—सहयोग, सहानुभूति, समानता, सहकारिता, पारस्परिक साहचर्य आदि।
  13. कुटीर व लघु उद्योगों में निर्मित अनेक पदार्थ; जैसे-रेशमी-कलापूर्ण वस्त्र, चन्दन व हाथीदाँत की वस्तुएँ, चमड़े के जूते, पत्थर व धातु की मूर्तियाँ, दरियाँ-कालीन, ताँबे-पीतल के बर्तन आदि विदेशों को निर्यात किये जाते हैं, जिससे प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।

एक सर्वेक्षण के अनुसार, देश की अर्थव्यवस्था में कुटीर व लघु उद्योगों का योगदान इस प्रकार है-राष्ट्रीय उत्पादन में 12%, देश के निर्यात में 20%, रोजगार में 27% तथा औद्योगिक उत्पाद में 41%

उत्तर प्रदेश कुटीर उद्योग उपसमिति 1947′ का मत था-“बेरोजगारी के दानव से लोहा लेने के लिए व कृषि क्षेत्र में पूर्ण एवं आंशिक रूप से बेकार पड़ी हुई जनशक्ति का उपयोग करने का एकमात्र उपाय कुटीर एवं लघु उद्योगों के विकास में निहित है।”

इस प्रकार कहा जा सकता है कि कुटीर व लघु उद्योगों का भविष्य सामान्यतः उज्ज्वल है, किन्तु अर्थव्यवस्था में उदारीकरण की नीति के कारण विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के बड़ी मात्रा में प्रवेश भारत के कुटीर व लघु उद्योगों के लिए खतरा बन चुके हैं, (UPBoardSolutions.com) क्योंकि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की विकसित तकनीक के कारण भारतीय लघु व कुटीर उद्योग प्रतियोगिता में टिक नहीं सकते। फलतः अब इनका भविष्य उज्ज्वल नहीं है।

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प्रश्न 5.
अकुशलता एवं अल्प-उत्पादकता के कारणों का वर्णन कीजिए।
या
भारतीय उद्योगों के पिछड़ेपन के प्रमुख कारण क्या हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। [2010]
या
उद्योगों की निम्न उत्पादकता के कोई दो कारण बताइट। [2010]
या
भारत में निम्न औद्योगिक उत्पादकता के तीन कारण बताइए तथा उसके उत्पादकता बढ़ाने के तीन उपाय समझाइए। [2015]
या
भारत में औद्योगिक उत्पादकता बढ़ाने के लिए छः सुझाव दीजिए। [2016]
या
भारत के उद्योगों के पिछड़ेपन के छः कारणों की विवेचना कीजिए। [2017]
उत्तर :

अकुशलता एवं अल्प-उत्पादकता के कारण

भारतीय उद्योग विकसित देशों के उद्योगों की तुलना में अत्यधिक अकुशल तथा पिछड़े हुए हैं। उनमें उत्पादकता स्तर भी निम्न है। इस अकुशलता एवं अल्प-उत्पादकता के निम्नलिखित कारण हैं –

1. पूँजी का अभाव – उद्योगों की स्थापना में पर्याप्त पूँजी की आवश्यकता होती है, जिसका भारत में सदा ही अभाव रहा है। यहाँ के लोगों का जीवन-स्तर व प्रति व्यक्ति आय निम्न होने के कारण बचत और निवेश की मात्रा बहुत ही कम है; अतः पूँजी के अभाव में (UPBoardSolutions.com) भारतीय उद्योग पिछड़े हुए हैं।

2. शक्ति के साधनों की कमी – भारतीय उद्योगों के पिछड़ेपन का एक प्रमुख कारण शक्ति के साधनों की अपर्याप्तता है। शक्ति के तीन प्रमुख साधन माने जाते हैं-कोयला, पेट्रोलियम तथा जल-विद्युत। भारत में उच्चकोटि के कोयले का अभाव है और यहाँ जल-संसाधनों का भी समुचित उपयोग नहीं हो पाया है। जल विद्युत की कमी तथा पेट्रोलियम पदार्थों का विदेशों से आयात भारतीय उद्योगों के पिछड़ेपन के लिए पर्याप्त सीमा तक उत्तरदायी हैं।

3. आधुनिक मशीनों का अभाव – भारत में आधुनिक मशीनों का अभाव है और पुरानी मशीनों से बड़े पैमाने पर उत्पादन नहीं हो पाता है। इससे भी उद्योगों में गिरावट आयी है।

4. तकनीकी कर्मचारियों की कमी – भारत में आज भी उच्चकोटि के तकनीकी प्रशिक्षण की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। अतः प्रशिक्षण के लिए तकनीकी विशेषज्ञों को विदेशों में भेजा जाता है, जिनमें से बहुत कम ही विशेषज्ञ तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर स्वदेश लौटते हैं। इस कारण तकनीकी विशेषज्ञों की कमी भी उद्योगों को विकसित नहीं होने देती।

5. समर्थ साहसियों का अभाव – भारत में औद्योगिक विकास तथा उद्योगों के पिछड़ेपन के लिए उत्तरदायी कारणों में प्रमुख कारण समर्थ साहसियों का अभाव भी रहा है। आज भी देश में कुछ गिने-चुने पूँजीपति ही ऐसे हैं, जो बड़े उद्योगों को चला रहे हैं।

6. परिवहन व संचार के साधनों का अविकसित होना – अन्य देशों की तुलना में अविकसित परिवहन व संचार के साधनों ने भी भारतीय उद्योगों के स्तर को निम्न बना रखा है।

7. औद्योगिक रुग्णता – भारत में औद्योगिक क्षेत्र की समस्याओं में एक प्रमुख समस्या औद्योगिक रुग्णता की समस्या है। रुग्ण इकाइयों में होने वाले निरन्तर वित्तीय प्रवाह से बैंकिंग संसाधनों के दुरुपयोग के साथ-साथ सरकार के व्यय में भी वृद्धि होती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मार्च, 2000 के अन्त में देश में तीन लाख से अधिक लघु औद्योगिक इकाइयाँ रुग्णता का शिकार थीं, जिनमें सर्वाधिक 27,000 बिहार में तथा लगभग (UPBoardSolutions.com) 21,000 उत्तर प्रदेश में थीं।

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8. विदेशी शासन – भारत के औद्योगिक दृष्टि में पिछड़े होने का मुख्य कारण विदेशी शासन का लम्बे समय तक बने रहना है। विदेशी शासन का मुख्य उद्देश्य भारत को कच्चे माल का निर्यात एवं निर्मित माल का आयात करने वाले देश के रूप में विकसित करना था। यही कारण था कि अंग्रेजों ने अपने देश के उद्योगों को संरक्षण देने के लिए विभेदात्मक संरक्षण की नीति अपनायी और भारत के औद्योगिक विकास को अवरुद्ध किया।

9. प्रतिकूल सामाजिक वातावरण – भारत में औद्योगिक पिछड़ेपन का एक कारण प्रतिकूल सामाजिक वातावरण भी है। यहाँ जाति-प्रथा, संयुक्त परिवार-प्रणाली तथा धार्मिक अन्धविश्वास, जो कि सामाजिक वातावरण के अंग हैं, औद्योगिक विकास में सदा ही बाधक रहे हैं। संयुक्त परिवार- प्रणाली ने व्यक्तिगत प्रेरणा को सदा ही हतोत्साहित किया है और आगे बढ़ने से रोका है। इसी प्रकार जाति-प्रथा एवं संयुक्त परिवार-प्रणाली ने श्रम की गतिशीलता में बाधाएँ डाली हैं। उत्तराधिकार नियमों के अन्तर्गत बँटवारे की प्रथा ने पूँजी–साधनों को छोटे-छोटे खण्डों में बाँटकर पूँजी को एकत्रित करने में कठिनाई पैदा की है।

10. उद्योगों को असन्तुलित विकास – भारत के सभी राज्यों में तथा ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों का विकास सन्तुलित और समानुपातिक रूप में नहीं हो पाया। इस कारण भी उद्योगों में कार्यक्षमता और उत्पादकता का स्तर कम हुआ है।
[उत्पादकता बढ़ाने के उपाय – इसके लिए विस्तृत उत्तरीय संख्या 7 के अन्तर्गत देखें।

प्रश्न 6.
भारत में औद्योगिक विकास की प्रमुख समस्याओं के बारे में विस्तार से लिखिए।
या
भारतीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों के विकास में आने वाली किन्हीं चार बाधाओं की विवेचना कीजिए। [2013]
उत्तर :
स्वतन्त्रता से पूर्व भारत में अपेक्षित औद्योगिक विकास नहीं हो सका था। इसका मुख्य कारण ब्रिटिश सरकार की भारत पर थोपी गई दोषपूर्ण आर्थिक नीति थी। स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सरकार ने इस ओर विशेष ध्यान दिया। सन् 1948 में संसद में भारत सरकार की प्रथम औद्योगिक नीति की घोषणा की गई,जिसमें समय-समय पर संशोधन किए जाते रहे। दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-61 ई०) में भारत में विशालस्तरीय एवं आधारभूत (UPBoardSolutions.com) उद्योगों की स्थापना पर विशेष बल दिया गया। 60 वर्षों से निरन्तर औद्योगिक विकास पर बल देते रहने के बावजूद भारत आज भी औद्योगिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं –

1. प्रौद्योगिकी सुधार के लिए प्रेरणाओं का अभाव – भारतीय उत्पादन तकनीक अभी भी पिछड़ी हुई है। भारतीय उद्यमी नवीनतम तकनीक को अपनाने के लिए पर्याप्त रूप से प्रेरित नहीं हो पाते। इसका कारण अभी भी पर्याप्त नियन्त्रणों का पाया जाना है।

2. स्थापित क्षमता का पूर्ण उपयोग न होना – अनेक उद्योग अपनी स्थापित क्षमता के 50 प्रतिशत भाग का भी उपयोग नहीं कर पाते हैं, इससे अपव्यय बढ़ जाते हैं।

3. पूँजीगत व्ययों में वृद्धि – भारतीय उद्योगों में पूँजीगत व्यये अत्यधिक ऊँचे हैं, जिसके कारण इन उद्योगों की लाभदायकता का स्तर नीचे गिर गया है।

4. अनुसन्धान एवं विकास कार्यक्रमों का अभाव – उद्योगों का आकार छोटा होने तथा वित्तीय सुविधाओं की कमी के कारण इन उद्योगों में अनुसन्धान एवं विकास कार्यक्रम नहीं हो पाते हैं।

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5. अनुत्पादक व्ययों की अधिकता – भारतीय उद्योगों में अनुत्पादक व्यय सामान्य से अधिक रहे हैं, जिसका प्रभाव लागत में वृद्धि व उत्पादकता की कमी के रूप में पड़ा है।

6. उपक्रमों के निर्माण में देरी – देश में उद्योगों की स्थापना में निर्धारित समय से अधिक समय लगता है। इससे इने उद्योगों की कार्यकुशलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और इनकी निर्माण लागत भी बढ़ जाती है।

7. वित्तीय सुविधाओं का अपर्याप्त होना – भारत में औद्योगिक बैंकों की पर्याप्त संख्या में स्थापना न हो पाने से भी उद्योगों को समय पर वित्तीय सहायता उपलब्ध नहीं हो पाती।

8. श्रम प्रबन्ध संघर्ष – भारत में औद्योगिक सम्बन्ध मधुर नहीं रहे हैं और आए दिन हड़ताल व तालाबन्दी होती रहती है। इसका औद्योगिक उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 7.
लघु उद्योग से आप क्या समझते हैं ? भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु उद्योगों की किन्हीं चार समस्याओं की विवेचना कीजिए। [2013, 17]
या
लघु उद्योग किसे कहते हैं? उनके विकास के लिए चार सुझाव दीजिए। [2013]
या
लघु उद्योग को परिभाषित कीजिए। [2016]
उत्तर :

लघु उद्योग

लघु उद्योग को परिभाषित करने में मशीन व संयंत्रों में किये गये विनियोगों को आधार माना गया है। ₹ 25 लाख तक की लागत (संयंत्र तथा मशीनरी) वाले उद्योग लघु पैमाने के उद्योग कहलाते थे। सन् 1991 में लघु उद्योग में विनियोग-सीमा ₹ 60 लाख, सहायक उद्योगों में ₹ 75 लाख और अतिलघु इकाइयों में ₹ 5 लाख रखी गयी थी। बाद में लघु उद्योगों व सहायक उद्योगों की विनियोग-सीमा बढ़ाकर ₹ 3 करोड़ तथा अतिलघु इकाइयों की विनियोग-सीमा को बढ़ाकर ₹ 25 लाख कर दिया गया। वर्तमान में लघु उद्योगों में निवेश की सीमा ₹ 1 करोड़ है।

ये उद्योगों में यान्त्रिक शक्ति का उपयोग करते हैं तथा बड़े उद्योगों के लिए पुर्जे भी बनाते हैं। ये घर पर नहीं, वरन् अन्य स्थानों पर स्थापित किये जाते हैं। ये पूर्णकालिक व्यवसाय के रूप में चलाये जाते हैं। इन उद्योगों में वैतनिक मजदूर लगाये जाते हैं। लघु उद्योग व्यापक क्षेत्रों की (UPBoardSolutions.com) माँग को पूरा करने के लिए उत्पादन करते हैं। उदाहरण के लिए-इनमें आधुनिक वस्तुएँ; जैसे-मिक्सी, ट्रांजिस्टर, खिलौने आदि तैयार किये जाते हैं।

लघु उद्योगों की चार समस्याएँ

लघु उद्योगों की चार समस्याएँ निम्नलिखित हैं –

1. कच्चे माल का अभाव – इन उद्योगों को पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल उपलब्ध नहीं हो पाता और जो माल इन्हें प्राप्त होता है, वह भी अच्छी किस्म का नहीं होता।

2. वित्त की समस्या – भारतीय शिल्पकार अत्यधिक निर्धन हैं और अपनी निर्धनता के कारण वे आवश्यक पूँजी नहीं जुटा पाते। साहूकार व महाजन इनका मनचाहा शोषण करते हैं।

3. परम्परागत उपकरण व उत्पादन विधियाँ – अधिकांश शिल्पी उत्पादन कार्य में परम्परागत उपकरणों एवं पुरानी उत्पादन पद्धतियों का ही प्रयोग करते हैं। इसके फलस्वरूप एक ओर तो उत्पादन कम होता है और दूसरी ओर उत्पादित क्स्तु घटिया किस्म की होती है।

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4. विक्रय सम्बन्धी समस्याएँ – इन उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ एक तो प्रायः समरूप नहीं होतीं। मध्यस्थों के कारण इन शिल्पकारों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता और तीसरे लागत अधिक आने के कारण इन वस्तुओं का विक्रय मूल्य अधिक होता है, जिसके कारण (UPBoardSolutions.com) ये प्रतियोगिता में नहीं ठहर पातीं।

समस्याओं के समाधान हेतु सुझाव

भारत में लघु एवं कुटीर उद्योगों की समस्याओं के समाधान के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं –

  1. शिल्पकारों को सहकारिता के आधार पर संगठित किया जाए, जिससे उनकी सामूहिक क्रय-शक्ति में वृद्धि हो सके।
  2. विभिन्न स्रोतों से कच्चे माल को खरीदने के लिए पर्याप्त मात्रा में साख-सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ।
  3. माल के क्रय-विक्रय में इन उद्योगों को प्राथमिकता दी जाए।
  4. सहकारी विपणन समितियों की स्थापना की जाए।
  5. उत्पादन लागत में कमी तथा उत्पादित वस्तु की किस्म में सुधार के लिए प्रयास किये जायें।
  6. शिक्षा, प्रशिक्षण एवं अनुसन्धान की सुविधाओं का विस्तार किया जाए।
  7. उत्पादकों को नवीन उपकरण प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
  8. इन उद्योगों पर से कर-भार घटाया जाए।
  9. कुटीर उद्योगों के विकास की सम्भावनाओं का पता लगाने के लिए व्यापक रूप से सर्वेक्षण कराये जाएँ।
  10. इन उद्योगों के लिए आरक्षित मदों की सूची का प्रति वर्ष निरीक्षण किया जाए।

वस्तुतः यदि हमें तीव्र गति से आर्थिक विकास करना है और अपनी निरन्तर बढ़ती हुई श्रम-शक्ति को लाभप्रद रोजगार प्रदान करना है तो हमें अपने भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री वी० वी० गिरीके ‘घर-घर में गृह उद्योग’ के नारे को सार्थक करना होगा।

प्रश्न 8.
लघु उद्योग एवं भारी उद्योग में अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा भारत में किसी एक भारी उद्योग के महत्त्व को लिखिए। [2010]
या
किसी एक बड़े पैमाने के उद्योग की उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :

लघु उद्योग एवं भारी उद्योग में अन्तर

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 (Section 4)

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भारी उद्योग का महत्त्व (उपयोगिता)-सीमेण्ट उद्योग

भारत में निर्माण कार्य प्रगति पर है। चारों ओर भवन-निर्माण, बाँध, पुल, उद्योग-धन्धे तथा सड़क बनाने के कार्य किए जा रहे हैं जिनमें सीमेण्ट की भारी आवश्यकता होती है। देश में तीव्र गति से विकास कार्य किए जा रहे हैं। अतः सीमेण्ट की मॉग भी उतनी ही तेजी से बढ़ती जा रही है। भवन निर्माण के लिए उपयोग किए जाने वाले पदार्थों में सीमेण्ट सबसे अधिक आवश्यक पदार्थ है। लोहे के साथ सीमेण्ट का प्रयोग करने से भवन टिकाऊ (UPBoardSolutions.com) एवं मजबूत बनते हैं। इसी कारण सीमेण्ट उद्योग आज भारत का एक विकसित तथा महत्त्वपूर्ण उद्योग बन गया है। सीमेण्ट का भारत के नव-निर्माण में महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह अनेक उद्योगों के विकास की कुंजी है। इसका उत्पादन एवं उपयोग देश के विकास का मापदण्ड है। वर्ष 2010-11 के दौरान सीमेण्ट उत्पादन (अप्रैल, 2011 से मार्च, 2012 तक) 224.49 मिलियन टन हुआ और 2010-11 की इसी अवधि तुलना में 6.55 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी। भारत में सीमेण्ट उद्योग के विकास के निम्नलिखित कारण उत्तरदायी रहे हैं –

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  1. देश में सीमेण्ट उद्योग के लिए पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल उपलब्ध है।
  2. सीमेण्ट उद्योग में उपयोग में आने वाली मशीनों का निर्माण देश में ही किया जाने लगा है।
  3. देश में बढ़ते हुए निर्माण कार्यों (सड़कों, बाँधों, भवनों व उद्योगों आदि) में इस्पात और सीमेण्ट की माँग में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है।
  4. विदेशी से सीमेण्ट आयात करने में खर्च होने वाली दुर्लभ विदेशी मुद्रा को बचाने के लिए घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया जाना अति आवश्यक है।
  5. देश में सीमेण्ट उद्योग की स्थापना के लिए पर्याप्त पूँजीगत संसाधन उपलब्ध हैं।
  6. सरकार की उदार औद्योगिक नीति के कारण सीमेण्ट उत्पादन में लघु संयन्त्रों की स्थापना कोप्रोत्साहन दिया गया है क्योंकि इन संयन्त्रों को मध्यम आर्थिक स्थिति वाले पूँजीपति भी संचालित कर सकते हैं।

इस प्रकार उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि भारत में सीमेण्ट उद्योग का भविष्य उज्ज्वल है, क्योंकि देश में नव-निर्माण का कार्य तेज गति से किया जा रहा है।

प्रश्न 9.
कृषि तथा उद्योगों की पारस्परिक निर्भरता का वर्णन कीजिए। [2013, 16]
उत्तर :

कृषि और उद्योग की पारस्परिक निर्भरता

कृषि और उद्योग किसी भी देश के आर्थिक विकास के दो अनिवार्य क्षेत्र हैं। देश की आर्थिक प्रगति तभी सम्भव है, जबकि कृषि और उद्योग दोनों ही क्षेत्र सापेक्षिक रूप से विकसित हों। इसका प्रमुख कारण यह है। कि कृषि और उद्योग परस्पर अनुपूरकं हैं, अर्थात् कृषि की उन्नति (UPBoardSolutions.com) उद्योगों के विकास में सहायक होती है और औद्योगिक प्रगति कृषि को विकास के चरम शिखर पर पहुँचाने में सहायता देती है। पं० जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, “बिना कृषि विकास के औद्योगिक प्रगति नहीं की जा सकती।……………वास्तव में दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं।”

कृषि एवं उद्योग दोनों ही व्यवसाय की श्रेणी में आते हैं। कृषि एक प्राथमिक व्यवसाय है, जिसमें प्राकृतिक साधनों से उपयोगी वस्तुएँ प्राप्त की जाती हैं। उद्योग द्वितीयक व्यवसाय है, जिसमें प्राकृतिक साधनों को विज्ञान एवं तकनीक के द्वारा आर्थिक साधनों में बदला जाता है। उद्योग और कृषि दोनों ही भारतीय अर्थव्यवस्था के आधार-स्तम्भ हैं। यही कारण है कि जहाँ प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि को प्राथमिकता दी गयी वहीं दूसरी पंचवर्षीय योजना में उद्योगों को प्राथमिकता दी गई। उद्योग और कृषि अर्थव्यवस्था रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं। जिस प्रकार एक पहिये पर गाड़ी नहीं चल सकती, उसी प्रकार केवल कृषि यो केवल उद्योग के आधार पर अर्थव्यवस्था की गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकती।

कृषि व उद्योग एक-दूसरे के प्रतिद्वन्द्वी नहीं वरन् एक-दूसरे के पूरक हैं। कृषि में प्राकृतिक साधनों से वस्तुएँ प्राप्त की जाती हैं और उद्योगों द्वारा उन्हें उपयोगी वस्तुओं में बदल दिया जाता है। उदाहरण के लिए-कृषि से कपास की प्राप्ति होती है और सूती वस्त्र उद्योग द्वारा (UPBoardSolutions.com) इस कपास से विभिन्न प्रकार के सूती वस्त्र बना दिये जाते हैं।

कृषि अनेक तरह से उद्योगों पर निर्भर करती है। कृषि के आधुनिकीकरण के लिए अनेक प्रकार के यन्त्रों, मशीनों व साधनों की आवश्यकता होती है। कृषि को ये यन्त्र ट्रैक्टर, मशीनें इंजीनियरिंग उद्योग से मिलते हैं। यदि इंजीनियरिंग उद्योग न होता तो सम्भवतः कृषि का आधुनिकीकरण ही न हो पाता। कृषि का उत्पादन बढ़ाने के लिए अनेक प्रकार के खादों की आवश्यकता होती है। यद्यपि प्राकृतिक खादें भी कृषि में प्रयोग की जाती हैं; किन्तु आधुनिक समय में उत्पादन को बढ़ाने के लिए रासायनिक खादों का प्रयोग बहुतायत से होता है। कृषि को ये खायें उर्वरक उद्योग से ही प्राप्त होती हैं।

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कृषि भी उद्योगों के लिए उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि कृषि के लिए उद्योग। कृषि उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करती है। उदाहरण के लिए कृषि से कपास मिलती है तो उद्योग द्वारा उसके सूती वस्त्र बनाये जाते हैं। कृषि से गन्ने की प्राप्ति होती है तो उद्योगों द्वारा उसकी चीनी बनायी जाती है। इसी प्रकार कृषि से जूट मिलता है तो उद्योग द्वारा उस जूट से अनेक प्रकार की वस्तुएँ बनायी जाती हैं। आज भारत का सूती वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग और जूट उद्योग पूरी तरह से कृषि पर निर्भर है। कृषि के बिना इन उद्योगों के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इतना ही नहीं, उद्योगों के स्थानीयकरण में भी कृषि की महत्त्वपूर्ण (UPBoardSolutions.com) भूमिका होती है। उदाहरण के लिए-कपास की अधिकता के कारण महाराष्ट्र और गुजरात में सूती वस्त्रे उद्योग का, गन्ने की अधिकता के कारण उत्तर प्रदेश में चीनी उद्योग का और जूट की अधिकता के कारण पश्चिम बंगाल में जूट उद्योग का स्थानीयकरण हो गया है।

आज कृषि की अनेक शाखाएँ उद्योगों का रूप लेती जा रही हैं। उदाहरण के लिए-दुग्ध उद्योग, मत्स्य पालन उद्योग, मुर्गी पालन उद्योग आदि। भारत में कृषि और उद्योग दोनों के महत्त्व को देखते हुए दोनों के विकास पर पर्याप्त ध्यान दिया गया है। कृषि में एक निश्चित सीमा तक भारत ने आत्मनिर्भरता पा ली है और उद्योगों में भी भारत आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में वर्तमान औद्योगिक ढाँचे के गठन का वर्णन कीजिए।
या
औद्योगिक ढाँचे से क्या आशय है ?
उत्तर :
औद्योगिक ढाँचे से आशय यह जानने से है कि देश में किस प्रकार के उद्योग स्थापित हैं। भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था प्रचलित है। यहाँ सार्वजनिक और निजी क्षेत्र साथ-साथ पाये जाते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों पर सरकार का पूर्ण नियन्त्रण होता है। इनका उद्देश्य लाभ कमाना न होकर अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाना व सामाजिक हित होता है। निजी क्षेत्र के उद्योगों पर निजी व्यक्तियों या समूहों का नियन्त्रण होता है और वे निजी हित के लिए काम करते हैं। इनका उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना होता है।

भारत में औद्योगिक ढाँचे का निर्माण 1956 ई० में नवीन औद्योगिक नीति के अनुसार किया गया था। इसके अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र में 17 आधारभूत और भारी उद्योग सम्मिलित थे; जैसे—हथियार और गोला-बारूद, अणुशक्ति, लोहा और इस्पात, भारी मशीनरी, भारी बिजली-संयन्त्र, कोयला, खनिज तेल, खनिज लोहा, वायुयान, वायु सेवा, रेलवे, जहाज-निर्माण, टेलीफोन और तार आदि। इन सभी पर सरकार का नियन्त्रण है। 26 मार्च, 1993 ई० से 13 उद्योगों को सरकारी नियन्त्रण से मुक्त कर दिया गया है। वर्तमान में केवल 4 उद्योगों पर ही सरकार का नियन्त्रण है।

दूसरी श्रेणी में 12 उद्योग आते हैं, जिन्हें संयुक्त क्षेत्र के उद्योग कहा जाता है। इन पर राज्य और निजी फर्मों का साझा नियन्त्रण रहता है। उपर्युक्त उद्योगों के अतिरिक्त शेष सभी उद्योग निजी क्षेत्र के लिए छोड़ दिये गये हैं। निजी क्षेत्र की यह जिम्मेदारी है कि वह सरकार के इस कार्य में सहायता करे। इस श्रेणी में मशीन-टूल, उर्वरक, सड़क यातायात, समुद्री यातायात, ऐलुमिनियम, कृत्रिम रबड़ आदि उद्योग सम्मिलित हैं। उद्योगों की उन्नति में तेजी लाने के लिए (UPBoardSolutions.com) सरकार निजी क्षेत्र को सहायता प्रदान करती है और दिशा-निर्देश भी जारी करती है। भारतीय उद्योगों को तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है–

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  1. बड़े पैमाने के उद्योग
  2. लघु पैमाने के उद्योग तथा
  3. कुटीर या घरेलू उद्योग।

प्रश्न 2.
बड़े पैमाने के उद्योगों का वर्गीकरण कीजिए। प्रत्येक के उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर :
बड़े पैमाने के उद्योगों को वस्तुओं की प्रकृति के अनुसार निम्नलिखित चार भागों में बाँटा जा सकता है –

1. आधारभूत उद्योग – आधारभूत उद्योग वे उद्योग हैं, जो अर्थव्यवस्था के सभी महत्त्वपूर्ण उद्योगों तथा कृषि को आवश्यक आगत (input) प्रदान करते हैं। ये अन्य उद्योगों और कृषि में काम आने वाली वस्तुओं का निर्माण करते हैं; जैसे-कोयला, कच्चा लोहा, इस्पात, उर्वरक, कास्टिक सोडा, सीमेण्ट, स्टील, ऐलुमिनियम, बिजली आदि।

2. पूँजीगत वस्तु उद्योग – इन उद्योगों के अधीन उन वस्तुओं का निर्माण किया जाता है, जो अन्य वस्तुओं के निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं; जैसे—मशीनें और अन्य संयन्त्र आदि। ये उद्योग निजी क्षेत्र में हैं। इन उद्योगों में मशीनी औजार, ट्रैक्टर, बिजली के ट्रान्सफॉर्मर, (UPBoardSolutions.com) मोटर-वाहन आदि सम्मिलित हैं।

3. मध्यवर्ती वस्तु उद्योग – ये उद्योग ऐसी वस्तुओं के निर्माण में सहायता देते हैं या उन वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, जो किन्हीं दूसरे उद्योगों की उत्पादन-प्रक्रिया में प्रयुक्त की जाती हैं अथवा उद्योगों में पूँजी वस्तुओं के सहायक उपकरणों में प्रयोग की जाती हैं-ऑटोमोबाइल टायर्स और पेट्रोलियम रिफाइनरी उद्योग।

4. उपभोक्ता वस्तु उद्योग – इन उद्योगों में उपभोक्ताओं द्वारा प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं का निर्माण किया जाता है; जैसे–कपड़ा, चीनी, कागज, रेडियो, टी० वी० आदि।

प्रश्न 3.
आधारभूत उद्योग किसे कहते हैं? स्पष्ट कीजिए। [2009]
उत्तर :
आधारभूत उद्योग बड़े पैमाने के वे उद्योग हैं, जो सभी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को आवश्यक निविष्टियाँ प्रदान करते हैं; जैसे—कोयला, लोहा, सीमेण्ट तथा स्टील।

कोयला उद्योग अन्य उद्योगों; जैसे—इस्पात उद्योग, विद्युत उत्पादन, रेल इंजन तथा शक्ति साधन के रूप में आधारभूत उद्योग की भूमिका निभाता है। इसी प्रकार मशीनरी उद्योग, रेल उद्योग, मोटरकार उद्योग आदि लोहा उद्योग पर आधारित हैं। सीमेण्ट उद्योग भी भवन-निर्माण उद्योग, सड़क निर्माण आदि को आधार प्रदान करता है।

प्रश्न 4.
भारत में लघु उद्योगों को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता किन कारणों से है ?
उत्तर :
एक करोड़ रुपये तक की लागत (संयन्त्र तथा मशीनरी) वाले उद्योग लघु पैमाने के उद्योग कहलाते हैं। भारत में इन उद्योगों को विकसित करने के लिए प्रोत्साहन देने की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है –

  1. छोटे पैमाने के उद्योग कम पूँजी से लग जाते हैं और इनमें बहुत-से लोगों को रोजी भी मिल जाती है।
  2. छोटे पैमाने के उद्योगों द्वारा धन का थोड़े-से आदमियों के हाथ में केन्द्रीकरण नहीं होता और साथ में औद्योगिक शक्ति अनेक हाथों में बँटी रहती है।
  3. छोटे पैमाने के उद्योगों को पिछड़े इलाकों के लिए विशेष महत्त्व होता है। (UPBoardSolutions.com) ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे उद्योगों को स्थापित करना आसान रहता है। इन उद्योगों द्वारा जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों का विकास होता है, वहाँ ग्रामीण लोगों को रोजगार पाने के लिए अपना स्थान छोड़कर शहरों की ओर भागना नहीं पड़ती।

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प्रश्न 5.
लघु उद्योगों के विकास हेतु कोई दो सुझाव दीजिए।
उत्तर :
योजनाकाल में कुटीर उद्योगों के विकास के लिए निम्नलिखित कदम उठाये गये –

1. मण्डलों तथा निगमों की स्थापना – कुटीर उद्योगों के विकास के लिए कई अखिल भारतीय मण्डलों की स्थापना की गयी; जैसे–केन्द्रीय रेशम मण्डल (1949), अखिल भारतीय कुटीर उद्योग मण्डल (1950), अखिल भारतीय दस्तकारी मण्डल (1952), अखिल भारतीय करघा मण्डल (1952), अखिल भारतीय खादी तथा ग्रामोद्योग मण्डल (1953) आदि। इसी प्रकार अनेक निगम भी स्थापित किये गये; जैसे-राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (1955), भारतीय दस्तकारी विकास निगम । (1958), दस्तकारी और हथकरघा निगम आदि।

2. वित्तीय सहायता – लघु उद्योगों को राजकीय सहायता अधिनियम के अन्तर्गत (UPBoardSolutions.com) ऋण दिया जाता है। इसके अतिरिक्त भारतीय स्टेट बैंक, राज्य वित्त निगम, राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम तथा राष्ट्रीयकृत बैंकों द्वारा कुटीर व लघु उद्योगों को ऋण दिया जाता है।

प्रश्न 6.
भारत में कुटीर उद्योगों को विकसित करने की आवश्यकता क्यों है ?
या
कुटीर उद्योग द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कैसे सुधारा जा सकता है? [2016, 17, 18]
या
कुटीर उद्योग के विकास के लिए सुझाव दीजिए। [2018]
उत्तर :
कुटीर उद्योगों द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को निम्नलिखित रूप में सुधारा जा सकता है। अतः उनका विकास किये जाने की आवश्यकता है –

  • कुटीर उद्योग ग्रामीण जनता के एक बड़े वर्ग को उन्हीं के अपने गाँव में ही उद्योग-धन्धे उपलब्ध करवाते हैं। ऐसे में ग्रामीण लोगों को अपना निजी स्थान छोड़कर नये क्षेत्रों में भटकना नहीं पड़ता।
  • इसके अलावा खेती में लगे बहुत-से मजदूरों को, जब उनके पास खेती को कोई कार्य नहीं होता, ये कुटीर उद्योग उनकी आय का मुख्य साधन बन सकते हैं।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में पैदा होने वाला बहुत-सा कच्चा माल कुटीर उद्योगों के प्रयोग में आ जाता है, जिनको बाहर भेजने पर कुछ भी मूल्य प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 7.
सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के उद्योग परस्पर किस प्रकार सहयोगी हैं ?
उत्तर :
भारत जैसे मिश्रित अर्थव्यवस्था वाले देश में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र का सह-अस्तित्व है। भारतीय अर्थव्यवस्था में यद्यपि सार्वजनिक एवं निजी उद्योगों के लिए अलग-अलग कार्य-क्षेत्र निर्धारित हैं, तथापि सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र आपस में एक-दूसरे के लिए पूरक एवं सहयोगी भी हैं। सरकार अपने अनेक कार्यक्रमों के माध्यम से निजी क्षेत्र के उद्योगों को विभिन्न सुविधाएँ प्रदान करती है, जिससे इस क्षेत्र का तेजी से विकास हो सके। रेल, सड़क परिवहन, बन्दरगाह, विद्युत व्यवस्था, सिंचाई व्यवस्था आदि अनेक सुविधाएँ देकर सरकार निजी क्षेत्र के उद्योगों के विकास में सहायता प्रदान करती है। इसी प्रकार निजी क्षेत्र अपनी (UPBoardSolutions.com) उत्पादकता द्वारा देश में पूँजी-निर्माण की गति को बढ़ाने में सहायता देते हैं, जिससे सरकार नये-नये सार्वजनिक उद्योगों की स्थापना एवं विकास करने में सफल होती है।

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प्रश्न 8.
बड़े पैमाने के उद्योग, कुटीर उद्योगों से किस प्रकार भिन्न हैं ?
उत्तर :
बड़े पैमाने के उद्योग और कुटीर उद्योगों में निम्नलिखित भिन्नताएँ हैं –
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प्रश्न 9.
भारत सरकार औद्योगिक नियन्त्रण हेतु क्या उपाय करती है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भारत सरकार प्रमुख रूप से औद्योगिक नियन्त्रण के लिए निम्नलिखित उपाय करती है –

1. लाइसेंस प्रणाली – सन् 1948 ई० की औद्योगिक नीति के अन्तर्गत अधिकतर उद्योगों को लगाने के लिए सरकार से लाइसेंस लेना अनिवार्य था। इस नीति में 30 अप्रैल, 1956 ई० को परिवर्तन किये गये। 24 जुलाई, 1991 ई० को, सरकार ने औद्योगिक नीति में व्यापक परिवर्तन किया तथा 13 प्रमुख उद्योगों को छोड़कर अन्य सभी उद्योगों को लाइसेंस की आवश्यकता से मुक्त कर दिया गया। वर्तमान में इन उद्योगों की संख्या मात्र 5 रह गयी है, जिनमें ऐल्कोहल युक्त पेय, सिगरेट-सिगार, रक्षा उपकरण, डिटोनेटिंग फ्यूज व खतरनाक रसायन सम्मिलित हैं।

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2. MRTP अधिनियम, 1969 ई० – इस अधिनियम के द्वारा दो उद्देश्यों की पूर्ति की गयी –
(क) आर्थिक शक्ति के केन्द्रीकरण को रोकना तथा एकाधिकार पर नियन्त्रण रखना एवं
(ख) प्रतिबन्धात्मक एवं अनुचित व्यापार की रोकथाम करना।

3. लघु उद्योगों के लिए उत्पादों का आरक्षण – वर्ष 2006-07 के बजट के बाद, लघु उद्योग क्षेत्र के लिए 239 उत्पाद आरक्षित कर दिये गये। इन उत्पादों में बड़े पैमाने के उद्योग प्रवेश नहीं कर सकते।

प्रश्न 10.
भारतीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों के योगदान की विवेचना कीजिए| [2015]
या
भारतीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों के किन्हीं छः योगदानों का वर्णन कीजिए। [2016]
या
भारतीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों के किन्हीं तीन योगदानों का वर्णन कीजिए। [2016]
उत्तर :
भारतीय अर्थव्यवस्था एक विकासशील अर्थव्यवस्था है। भारत की दूसरी पंचवर्षीय योजना से देश में बड़े उद्योगों की स्थापना का सूत्रपात किया गया। भारतीय अर्थव्यवस्था में उत्तरोत्तर उद्योगों का विकास हुआ है। बढ़ते औद्योगीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था में (UPBoardSolutions.com) महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। भारतीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों के कुछ प्रमुख योगदान निम्नलिखित हैं –

  1. देश की राष्ट्रीय आय, बचत एवं पूँजी-निर्माण को बढ़ाने में सहायता की है।
  2. देश में प्रति व्यक्ति उत्पादन एवं प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाने में सहायता की है।
  3. देश में अतिरिक्त रोजगार के अवसरों का सृजन हुआ है।
  4. आयातों को कम करके आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में सहायता मिली है।
  5. भारत विश्व के लगभग सभी देशों तक निर्यात बढ़ाने में सफल हुआ है।
  6. कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण सम्भव हुआ, कृषि उत्पादकता बढ़ी और खाद्यान्नों के आयात लगभग समाप्त हो चुके हैं।
  7. अर्थव्यवस्था में आधुनिकीकरण को बढ़ावा मिला है।
  8. देश के उपलब्ध संसाधनों का पूर्ण उपयोग सम्भव हो सका है।
  9. यातायात तथा संचार के क्षेत्र में भी अद्भुत उन्नति हुई है। परिवहन तथा संचार के तीव्रगामी साधने विकसित हुए हैं।

उपर्युक्त बिन्दुओं के आधार पर कहा जा सकता है कि औद्योगीकरण के कारण भारत आज विश्व का एक अग्रणी विकासशील देश बन चुका है।

प्रश्न 11.
भारतीय उद्योगों की भावी सम्भावनाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :

औद्योगिक विकास की सम्भावनाएँ

यद्यपि स्वतन्त्रता के बाद औद्योगिक विकास हेतु गम्भीर प्रयास किये गये एवं अनेक उपलब्धियाँ अर्जित की गयी हैं, किन्तु अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। औद्योगिक विकास का लाभ अभी तक सभी लोगों के पास नहीं पहुँच पाया है। इसके लिए आवश्यक है कि औद्योगिक उत्पादन को और अधिक बढ़ाया जाय ताकि आम आदमी को औद्योगिक वस्तुएँ सस्ती कीमतों पर उपलब्ध हो सकें। आज भी देश के बहुत-से क्षेत्र औद्योगिक विकास से वंचित हैं, जिसके कारण इन क्षेत्रों में सामान्य जीवन-स्तर निम्न है। इन क्षेत्रों का समुचित औद्योगिक विकास कर इनके पिछड़ेपन को दूर किया जा सकता है। इसी प्रकार कृषि उत्पादों पर आधारित उद्योगों; जैसे-खाद्यान्न, फल एवं सब्जी प्रसंस्करण आदि के विकास की असीम सम्भावनाएँ हैं।

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प्रश्न 12.
सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र के उद्योगों में दो अन्तर बताइए। [2010]
उत्तर :
सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र के उद्योगों में दो अन्तर निम्नलिखित हैं –

  • सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के उद्योगों में मूल अन्तर स्वामित्व का होता है। वे उपक्रम जिन पर सरकारी विभागों अथवा केन्द्र या राज्यों द्वारा स्थापित संस्थाओं का स्वामित्व होता है, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम । कहलाते हैं; जैसे—भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लि०, भिलाई इस्पात लि० आदि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम हैं। इसके विपरीत वे उद्योग जिनका स्वामित्व कुछ व्यक्तियों या कम्पनियों के पास होता है, निजी क्षेत्र के उद्यम कहलाते हैं; जैसे-टाटा आयरन ऐण्ड स्टील कम्पनी।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों पर सरकार का पूर्ण नियन्त्रण होता है। इनका (UPBoardSolutions.com) उद्देश्य लाभ कमाना न होकर अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाना व सामाजिक हित होता है। निजी क्षेत्र के उद्योगों पर निजी व्यक्तियों या समूहों का नियन्त्रण होता है और वे निजी हित के लिए काम करते हैं। इनका उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना होता है।

प्रश्न 13.
भारतीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों की पाँच उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए। [2011]
उत्तर :
भारतीय अर्थव्यवस्था में हुई औद्योगिक उपलब्धियों को निम्नलिखित रूप में रखा जा सकता है –

  1. भारतीय अर्थव्यवस्था में आधुनिक एवं सुदृढ़ अवसंरचना का तेजी से निर्माण हुआ है।
  2. औद्योगिक क्षेत्र में सार्वजनिक उपक्रमों का विस्तार तेजी से हुआ है।
  3. पूँजीगत भारी उद्योगों में निवेश का विस्तार हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप इंजीनियरिंग वस्तुओं, खनन, लोहा, इस्पात, उर्वरक जैसे उत्पादन-क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता प्राप्त की जा सकी है।
  4. पूँजीगत क्षेत्र में आयातों पर निर्भरता घटी है।
  5. गैर-परम्परागत वस्तुओं के निर्यात में वृद्धि हुई है।
  6. औद्योगिक क्षेत्र में तकनीकी एवं प्रबन्धकीय सेवा का विस्तार हुआ है।
  7. औद्योगिक सरंचना में विविधता आयी है तथा आधुनिक उद्योगों का विस्तार सम्भव हुआ है।

प्रश्न 14.
कुटीर एवं लघु उद्योग में क्या अन्तर है? [2014, 15, 16, 17, 18]
उत्तर :

कुटीर व लघु उद्योगों में अन्तर

कुटीर व लघु उद्योगों में मुख्य रूप से निम्नलिखित अन्तर हैं –

  1. कुटीर उद्योग मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों से सम्बद्ध होते हैं, जबकि लघु उद्योग ग्रामीण व नगरीय दोनों क्षेत्रों में स्थापित किये जा सकते हैं।
  2. कुटीर उद्योगों में अधिकांश कार्य मानवीय श्रम द्वारा किया जाता है, जबकि लघु उद्योगों में मशीनों का प्रयोग भी किया जाता है।
  3. कुटीर उद्योगों में कार्य करने वाले अधिकांश व्यक्ति परिवार से ही सम्बद्ध होते हैं, जबकि लघु उद्योगों में मजदूरी पर श्रमिक रखे जाते हैं।
  4. कुटीर उद्योगों में बहुत कम विनियोग की आवश्यकता होती है, जबकि 1 करोड़ तक निवेशित उद्योग ‘लघु उद्योग’ कहलाते हैं।
  5. कुटीर उद्योग सामान्यत: कृषि व्यवसाय से सम्बद्ध होते हैं, जबकि लघु उद्योगों के साथ ऐसा नहीं है।
  6. कुटीर उद्योग सहायक उद्योग के रूप में चलते हैं, किन्तु लघु उद्योग मुख्य उद्योग के रूप में संचालित किये जाते हैं।
  7. कुटीर उद्योगों में कच्चा माल तथा तकनीकी कुशलता स्थानीय होती है, किन्तु लघु उद्योगों में ये सब बाहर से मँगाये जाते हैं।

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प्रश्न 15.
भारत में औद्योगिक विकास के लिए तीन सुझाव दीजिए। [2014]
उत्तर :
भारत में औद्योगिक विकास के लिए सुझाव अग्रवत् हैं –

1. प्राकृतिक संसाधनों का सर्वेक्षण एवं दहन – किसी भी देश के उद्योगों को आधार उस देश के प्राकृतिक संसाधन होते हैं; अत: उद्योगों के विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों का सर्वेक्षण तथा ज्ञात प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जाना चाहिए। इससे औद्योगिक विकास सम्भव हो सकेगा।

2. कुशल उद्यमियों को प्रोत्साहन – भारत जैसे विकासशील देश में आज भी योग्य उद्यमियों का अभाव है; क्योंकि भारत मे उद्यमी जोखिम वहन करने से बचते हैं। अतः भारतीय उद्यमियों को उद्योगों की स्थापना के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए तथा उनके लिए बीमे की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए, जिससे वे जोखिम वहन करने के लिए तैयार हो जाएँ।

3. वित्तीय सुविधाओं की व्यवस्था – उद्योगों की स्थापना और विकास में पूँजी की आवश्यकता पड़ती है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि उद्यमियों के लिए पर्याप्त एवं सस्ते ब्याज पर पूंजी की सुविधाजनक व्यवस्था हो।

प्रश्न 16.
औद्योगिक नीति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
उद्योग किसी देश की अर्थव्यवस्था के आधार होते हैं। अत: प्रत्येक सरकार का परम कर्तव्य है। कि उद्योगों को प्रोत्साहित करें। किसी भी देश में तीव्र सन्तुलित एवं व्यापक औद्योगिक विकास के लिए एक उचित एवं प्रगतिशील औद्योगिक नीति की आवश्यकता होती है। स्वतन्त्रता के पश्चात् समय-समय पर । औद्योगिक नीतियाँ घोषित की गयीं, जिनमें से 1948, 1956 व 1991 की औद्योगिक नीतियाँ विशेष महत्त्व की हैं।

1956 की औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र की प्रधानता दी गयी, जिसमें औद्योगिक (UPBoardSolutions.com) विकास हेतु सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमी को अग्रणी भूमिका निभानी थी। 1991 की नयी औद्योगिक नीति में उदारीकरण की प्रक्रिया चलायी गयी जिसके अन्तर्गत निजी क्षेत्र को अधिक स्वतन्त्र और महत्त्वपूर्ण भूमिका दी गयी हैं। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को सीमित किया गया है।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्योगों में हमारी प्राथप्छिता क्या है ?
उत्तर :
उद्योगों में हमारी प्राथमिकता त्यनिर्भरता प्राप्त करना तथा कम लागत पर उच्चकोटि का उत्पादन करना है।

प्रश्न 2.
संयुक्त क्षेत्र का क्या अर्थ है ? [2009, 10]
उत्तर :
संयुक्त क्षेत्र वह है जिस पर निजी तथा सार्वजनिक दोनों को स्वामित्व होता है।

प्रश्न 3.
भारत में कुटीर उद्योगों की दो समस्याएँ लिखिए।
उत्तर :
भारत में कुटीर उद्योगों की दो समस्याएँ हैं—

  1. कच्चे माल की कमी तथा
  2. तैयार माल के विपणन की कठिनाई।

प्रश्न 4.
कुटीर उद्योग से आप क्या समझते हैं ? [2010, 16]
उतर :
कुटीर उद्योग में किसी परम्परागत वस्तु का उत्पादन परिवार के सदस्यों तथा कुछ वैतनिक ” श्रमिकों की सहायता से स्वयं इसके मालिक-कारीगर द्वारा किया जाता है; किन्तु इन सबकी संख्या 9 से अधिक नहीं होती।

प्रश्न 5.
औद्योगिक कार्यकुशलता को परिभाषित कीजिए।
उत्तर :
औद्योगिक कार्यकुशलता से तात्पर्य उस स्थिति से है जब उद्योग में उपलब्ध साधनों से अधिकतम उत्पादन किया जा सकता है।

प्रश्न 6.
बड़े पैमाने के उद्योग की एक मुख्य विशेषता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
बड़े पैमाने के उद्योग में कार्य बड़ी-बड़ी मशीनों से किया (UPBoardSolutions.com) जाता है, जो यान्त्रिक व विद्युत शक्ति से चालित होते हैं।

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प्रश्न 7.
कुटीर उद्योगों की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
कुटीर उद्योगों की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. कुटीर उद्योग खेतिहर श्रमिकों को अतिरिक्त आय का साधन प्रदान करते हैं।
  2. कुटीर उद्योग कृषि भूमि पर जनसंख्या के भार को कम करने में सहायक हैं।

प्रश्न 8.
भारत में पशुओं पर आधारित किन्हीं दो उद्योगों के नाम लिखिए।
उत्तर :
भारत में पशुओं पर आधारित दो उद्योग हैं—

  1. दुग्ध उद्योग तथा
  2. चमड़ा उद्योग।

प्रश्न 9.
कुटीर उद्योग-धन्धों के विकास हेतु कोई दो उपाय लिखिए। [2014]
उत्तर :
कुटीर उद्योग-धन्धों के विकास हेतु दो उपाय निम्नलिखित हैं –

  1. सरकार द्वारा संवर्द्धनात्मक सहायता दी जानी चाहिए।
  2. संस्थागत व संरक्षणात्मक सहायता (UPBoardSolutions.com) प्रदान की जानी चाहिए।

प्रश्न 10.
स्वामित्व के आधार पर बड़े पैमाने के उद्योगों को किन दो भागों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर :
स्वामित्व के आधार पर बड़े पैमाने के उद्योगों को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है –

  1. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग; जैसे—भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड।
  2. निजी क्षेत्र के उद्योग; जैसे-टाटा आयरन ऐण्ड स्टील कं०॥

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प्रश्न 11.
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
वे उद्यम जिन पर सरकारी विभागों अथवा केन्द्र या राज्य द्वारा स्थापित (UPBoardSolutions.com) संस्थाओं का स्वामित्व होता है, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम कहलाते हैं।

प्रश्न 12.
उद्योगों की पारस्परिक निर्भरता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
आज के औद्योगिक जगत में विशेषीकरण का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। उदाहरण के लिएकार बनाने वाला कारखाना, टायर-ट्यूब, क्लच, ब्रेक इकाई आदि स्वयं उत्पादित नहीं करता। इनके लिए वह दूसरे उद्योगों पर निर्भर करता है। इसी को उद्योगों की पारस्परिक निर्भरता कहते हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. भारत में तीव्र औद्योगीकरण की आवश्यकता क्यों है?

(क) जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के कारण
(ख) आर्थिक विकास की दर के लिए
(ग) कृषि को विकसित करने के लिए
(घ) नगरीकरण में वृद्धि के लिए

2. औद्योगीकरण का प्रभाव नहीं है

(क) रोजगार के अवसरों में वृद्धि
(ख) नगरीकरण में वृद्धि
(ग) बेरोजगारी में वृद्धि
(घ) आर्थिक विकास में वृद्धि

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3. औद्योगिक असन्तुलन दूर करने के लिए

(क) पिछड़े क्षेत्रों में उद्योग स्थापित होने चाहिए
(ख) उपभोक्ता वस्तु उद्योग लगाने चाहिए।
(ग) पूँजी वस्तु उद्योग लगाने चाहिए
(घ) आधारभूत उद्योग लगाने चाहिए

4. निम्न में से कौन कुटीर उद्योग है? [2012, 16]

(क) हथकरघा उद्योग
(ख) सीमेण्ट उद्योग
(ग) कागज उद्योग
(घ) काँच उद्योग

5. निम्नलिखित में से कौन-सा उद्योग आधारभूत उद्योग है?

(क) सूती वस्त्र उद्योग
(ख) कागज उद्योग
(ग) लोहा-इस्पात उद्योग
(घ) चीनी उद्योग

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6. भारत में औद्योगीकरण की गति किस राज्य में सर्वाधिक है?

(क) बिहार में
(ख) उत्तर प्रदेश में
(ग) महाराष्ट्र में
(घ) मध्य प्रदेश में

7. टाटा आयरन व स्टील कम्पनी (इस्पात कारखाना) किस क्षेत्र में है?

(क) निजी
(ख) संयुक्त
(ग) सार्वजनिक
(घ) स्पष्ट नहीं

8. भारत को आर्थिक विकास निर्भर करता है [2013, 15]

(क) केवल कुटीर उद्योगों पर
(ख) केवल छोटे पैमाने के उद्योगों पर
(ग) केवल बड़े पैमाने के उद्योगों पर
(घ) सभी प्रकार के उद्योगों पर

9. हथकरघा उद्योग निम्नलिखित में से किस श्रेणी से सम्बन्धित है? [2011]

(क) लघु उद्योग
(ख) कुटीर उद्योग
(ग) भारी उद्योग
(घ) आधारभूत उद्योग

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10. निम्नलिखित में से भारत का सबसे बड़ा प्रतिष्ठान कौन-सा है?

(क) वायु परिवहन
(ख) सड़क परिवहन
(ग) रेल परिवहन
(घ) जल परिवहन

11. निम्नलिखित में से कौन-सा इस्पात कारखाना सार्वजनिक क्षेत्र से सम्बन्धित है?

(क) जमशेदपुर
(ख) बर्नपुर
(ग) दुर्गापुर
(घ) भद्रावती

12. ऐसे सभी उपक्रम जिन पर सार्वजनिक क्षेत्र की संस्था और निजी उद्यम का संयुक्त स्वामित्व होता है, कहलाते हैं

(क) सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम
(ख) निजी क्षेत्र के उपक्रम
(ग) संयुक्त क्षेत्र के उपक्रम
(घ) इनमें से कोई नहीं

13. कृषि और उद्योग एक-दूसरे के

(क) परस्पर पूरक हैं।
(ख) परस्पर प्रतियोगी हैं।
(ग) परस्पर सम्बद्ध नहीं हैं।
(घ) इनमें से कोई नहीं

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14. 1991 की औद्योगिक नीति में निम्न में से किसे अधिक महत्त्व दिया गया? [2014]

(क) उदारीकरण को
(ख) कुटीर उद्योगों को
(ग) सार्वजनिक क्षेत्र को
(घ) इनमें से कोई नहीं

15. निम्नलिखित में से कौन-सा उद्योग कृषि आधारित नहीं है? (2015)

(क) चीनी उद्योग
(ख) जूट उद्योग
(ग) सीमेण्ट उद्योग
(घ) सूती उद्योग

उत्तरमाला

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 (Section 4)

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 are helpful to complete your homework.

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UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 29 स्वामी प्रणवानंद (महान व्यक्तित्व)

UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 29 स्वामी प्रणवानंद (महान व्यक्तित्व)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 8 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 8 Hindi Chapter 29 स्वामी प्रणवानंद (महान व्यक्तित्व).

पाठ का सारांश

भारत सेवाश्रम संघ के संस्थापक स्वामी प्रणवानंद जी का जन्म 29 जनवरी, सन् 1886 को माघी पूर्णिमा के दिन वर्तमाने बांग्ला देश के फरीदपुर जिले के बाजितपुर नामक गाँव में हुआ था। इनके बचपन का नाम विनोर था। इनके पिता का नाम विष्णुचरण दास तथा माता का नाम शारदा देवी था। वे बचपन से ही शांत स्वभाव (UPBoardSolutions.com) के तथा बुद्धिमान थे। वे प्रायः किसी वृक्ष के नीचे ध्यानमग्न रहते थे। गाँव की पाठशाला से प्राथमिक शिक्षा के बाद उन्होंने अंग्रेजी हाई-स्कूल में प्रवेश लिया। इस समय पढ़ाई की अपेक्षा वे साधना एवं चिंतन में अधिक सक्रिय रहते थे। वे शुद्ध शकाहारी थे तथा ब्रह्मचर्य साधना पर उनका विशेष बल था। गाँव वाले उन्हें विनोद ब्रहमचारी के रूप में जानते थे।

जब वे दश्वीं कक्षा के विद्यार्थी थे तभी उनके सन्यास की प्रबल इच्छा को जानकर उनके शिक्षक ने गोरखपुर के नाथ संप्रदाय के प्रमुख योगीराज गंभीरनाथ की शरण में जाने की सलाह दी। गोरखपुर आने के बाद इन्होंने बाबा गंभीर नाथ से दीक्षा ग्रहण की तथा वहाँ कुछ दिन साधना करने के बाद अपने गुरू की सलाह पर ये काशी चले गए और वहाँ गंगा किनारे अस्सी घाट पर साधना करने लगे। कुछ दिनो बाद गुरु के आदेश पर वे , अपने पैतृक गाँव बाजितपुर लौट आए। वर्ष 1924 में प्रयाग में इन्होंने (UPBoardSolutions.com) सन्नयास की विधि वत दीक्षा ग्रहण की तथा उनका प्रणवानंद स्वामी हो गया। अब उनका अधिकांश समय आध्यात्मिक उन्नति की साधना में बीतने लगा। वर्ष 1917 में उन्होंने भारत सेवाश्रम संघ’ की स्थापना की। इस संस्थ ने अकाल, बाढ़ तथा अन्य प्राकृति आपदा पीड़ितो की खूब सहायता की।

उन्होंने शक्ति साधना एवं शक्तिशाली राष्ट्र गठन के प्रचार-प्रसार के लिए सन् 1929 में भारत सेवाश्रम संघ की मुख्य पत्रिका प्रलव का प्रकाशन आरंभ किया। स्वामी प्रणवानंद ने पश्चिम बंगाल को भारत के साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके लिए उन्होंने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को आगे बढ़ाया और बंगाल के पश्चिमी हिस्से को भारत में सम्मिलित करने के लिए ब्रिटिश शासन को विवश कर दिया जो आज पश्चिम बंगाल के नाम से जाना जाता है। आजीवन समाज व राष्ट्र सेवा हेतु कठोर परिश्रम करते हुए इस विलक्षण महापुरुष ने 8 जनवरी, 1941 को अपना स्थूल शरीर त्याग दिया। उनके द्वारा स्थापित ‘भारत सेवाश्रम संघ निरंतर मानवजाति की सच्ची सेवा और कल्याण भावना की ओर अग्रसर हैं।

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अभ्यास-प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए
प्रश्न 1.
विनोद ब्रह्मचारी ने प्रथम दीक्षा कब और किससे ग्रहण की?
उत्तर :
विनोद ब्रह्मचारी ने 1913 में गोरखपुर में नाथ संप्रदाय के प्रमुख योगीराज बाबा गंभीरनाथ से प्रथम दीक्षा ग्रहण की।

प्रश्न 2.
विनोद ब्रह्मचारी के चारों महावाक्य लिखिए।
उत्तर :
विनोद ब्रह्मचारी के चार महाकाव्य हैं।

  • यह युग महाजागरण का युग है,
  • महामिलन का युग है, (UPBoardSolutions.com)
  • महासमन्वय का युग है और
  • यह युग महामुक्ति का युग है।

प्रश्न 3.
वे ‘विनोद ब्रह्मचारी’ से ‘स्वामी प्रणवानंद’ कब और कैसे हुए?
उत्तर :
वर्ष 1924 के प्रयाग के अर्धकुम्भ मेले में विनोद ब्रह्मचारी ने स्वामी गोविंदा नंद गिरि से संन्यास की विधिवत दीक्षा ग्रहण की। इसके बाद वे विनोद ब्रह्मचारी से स्वामी प्रणवानंद हो गए।

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प्रश्न 4.
स्वामी प्रणवानंद ने भारत सेवाश्रम संघ की स्थापना क्यों की?
उत्तर :
स्वामी प्रणवानंद ने अकाल, बाढ़, प्राकृतिक (UPBoardSolutions.com) प्रकोप आदि से पीड़ित लोगों के सहायतार्थ भारत सेवाश्रम संघ’ की स्थापना की। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि, मानव जाति की सेवा के लिए उन्होंने भारत सेवाश्रम संघ’ की स्थापना की।

प्रश्न 5.
स्वामी प्रणवानंद का क्या उद्घोष था?
उत्तर :
स्वामी प्रणवानंद का उद्घोष था कि धर्म है- त्याग, सत्य और ब्रह्मचर्य में। धर्म है- आचार, अनुष्ठान और अनुभूति में।” स्वामी जी की यह अनमोल वाणी चिरकाल तक हमारा. मार्गदर्शक करती रहेगी।

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Project Work (प्रोजेक्ट कार्य)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Project Work (प्रोजेक्ट कार्य)

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प्रोजेक्ट कार्य-1

समस्या कथन
किसी राष्ट्रीयकृत अथवा प्राइवेट बैंक की शाखा में जाकर बचत खाते में लगने वाले साधारण ब्याज के आगणन की जानकारी प्राप्त करना।

प्रस्तावना

जब हम अपने बचत खाते में धनराशि जमा करते हैं तो उस राशि को बैंक या तो जनसाधारण को लोन के रूप में देता है या सरकार उस राशि का प्रयोग सार्वजनिक कार्यों के लिए करती है। बैंक खाताधारकों के धन का प्रयोग करने के प्रतिफल में खाताधारक को एक निर्धारित दर से ब्याज प्रदान करते हैं। यह प्रक्रिया ठीक उसी प्रकार है, जब कोई व्यक्ति किसी महाजन या बैंकर से कुछ धन उधार लेता है। तो वह उधार लिया (UPBoardSolutions.com) मूलधन निश्चित समय एवं ब्याज की अतिरिक्त राशि के साथ देता है। इस प्रकार, यह अतिरिक्त धन ही ब्याज है। मूलधन और ब्याज के योग को मिश्रधन कहते हैं। बैंक बचत खाते में जितने वर्ष, माह, दिन के लिए खाताधारकों की धनराशि को जमा रखता है, उसके अनुसार ब्याज की राशि खाताधारक के खाते में निश्चित समय-अन्तराल पर जमा करता है। बैंकों में यह एक साधारण प्रक्रिया है, जो सभी खाताधारकों को सामान्य रूप से प्रदान की जाती है।
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पहले बैंक बचत खाते में जमा धनराशि के लिए ब्याज माह के हिसाब से प्रदान करते थे जिसकी गणना के लिए उसे वर्ष में बदलने के लिए 12 से भाग देना पड़ता था, लेकिन वर्तमान में बैंक प्रतिदिन के हिसाब से बचत खाते की शेष धनराशि पर ब्याज की गणना करते हैं जिसकी गणना के लिए दिनों को वर्ष में बदलने हेतु 365 से भाग देना पड़ता है। इस क्रिया में जिस दिन धन दिया जाता है, उसे छोड़ दिया जाता है और जिस दिन धन जमा किया जाता है, उसे सम्मिलित कर लिया जाता है। इस प्रकार बचत खाते में जमा धनराशि पर ब्याज की गणना निम्नलिखित सूत्र के माध्यम से की जाती है
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वर्तमान में ब्याज की गणना बैंक कम्प्यूटर के माध्यम से करते हैं और त्रैमासिक रूप से ब्याज की धनराशि खाताधारक के खाते में क्रेडिट कर दी जाती है।

लक्ष्य, उद्देश्य एवं कार्य-प्रणाली
प्रस्तुत परियोजना कार्य का मुख्य उद्देश्य बैंकों द्वारा की जाने वाली ब्याज की गणना का मूल्यांकन कर उस विधि का अध्ययन करना है। इसका मुख्य लक्ष्य विद्यार्थियों को बैंक द्वारा दिए जाने वाले ब्याज आगणन की प्रक्रिया से अवगत कराना है। इस परियोजना कार्य के लक्ष्य एवं उद्देश्य की पूर्ति हेतु आनुभाविक शोध प्रणाली (Empirical Research Method) का प्रयोग किया जाता है।

बैंक की ब्याज नीति का निर्धारण
1 अप्रैल, 2010 से देश के करीब 62 करोड़ बचत खाताधारकों के लिए बैंक द्वारा एक नई शुरुआत की गयी। इस दिन से सभी खाताधारकों को बचत खाते में जमा राशि पर प्रतिदिन के हिसाब से ब्याज प्रदान किया जा रहा है। ब्याज की दर तो 4% ही रखी गयी, लेकिन (UPBoardSolutions.com) नई गणना से ब्याज से प्राप्त होने वाली आय पर काफी फर्क पड़ा है।

इस नियम की घोषणा 21 अप्रैल, 2009 को वित्त वर्ष 2009-10 की वार्षिक मौद्रिक नीति पेश करते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ० डी० सुब्बाराव ने की थी, लेकिन बैंकों के शीर्ष संगठन इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (आईबीए) का कहना था कि रोजाना के आधार पर ब्याज की गणना तभी संभव है जब वाणिज्यिक बैंकों की सभी शाखाओं का कम्प्यूटरीकरण पूरा हो जाए। इसलिए सभी वाणिज्यिक बैंकों के बचत खातों पर ब्याज की गणना 1 अप्रैल, 2010 से प्रतिदिन के आधार पर करने का प्रस्ताव पारित किया गया।

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यह भी ध्यान देने योग्य है कि बैंक चालू खाते में ओवरड्राफ्ट पर अपने ब्याज की गणना प्रतिदिन के आधार पर करते हैं, इसलिए बचत खाते में प्रतिदिन की गणना से ही खाताधारक को ब्याज दिया जाना चाहिए। वास्तव में चालू और बचत खाते बैंकों के लिए फंड जुटाने का सबसे सरल एवं सुलभ माध्यम हैं।

बैंक द्वारा बचत खाते में की जाने वाली साधारण ब्याज की गणना
बैंक की पास बुक में से ली गयी प्रविष्टियों में ब्याज आगणन की प्रक्रिया का वर्णन निम्नलिखित है
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प्रतिदिन के आधार पर ब्याज की गणना
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उपर्युक्त प्रविष्टियों में बचत खाते में जमा राशि की प्रतिदिन की शेष राशि पर ब्याज की गणना की गयी है। बैंक द्वारा त्रैमासिक रूप से ब्याज की धनराशि खाते में समायोजित की जाती है। उपरोक्त गणना में 4 प्रतिशत की दर से प्रतिदिन के शेष पर ब्याज (UPBoardSolutions.com) अभिकलित किया गया है। अभीष्ट ब्याज की गणना हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया गया है

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अतः 1 जनवरी से 31 जनवरी तक कुल ब्याज = 14.465 +37260 = ₹ 51.725
इसी प्रकार फरवरी और मार्च माह के ब्याज की गणना कर तीनों माह के योग 162.96 अर्थात् 163 को खाते में समायोजित किया गया है।
ब्याज की गणना इस प्रकार संयुक्त रूप से भी की जा सकती है
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निष्कर्ष
प्रस्तुत परियोजना के माध्यम से हमने बैंक की शाखा में जाकर बचत खाते पर मिलने वाले ब्याज की दर ज्ञात की तथा उसकी गणना के बारे में बैंक अधिकारियों से विस्तारपूर्वक चर्चा की। इसके अलावा उनके द्वारा बताई गई आगणन विधि से तीन माह की प्रविष्टियों पर दिए गए ब्याज की गणना की। बैंक की पासबुक में मुद्रित प्रविष्टियों के अनुसार सत्यापन कर हमने बचत खाते पर प्रतिदिन के आधार पर मिलने वाले ब्याज की धनराशि का (UPBoardSolutions.com) आगणन करना सीखा और पासबुक में की गयी प्रविष्टियों का गहन अध्ययन किया। प्रस्तुत परियोजना कार्य से हमारे ज्ञान में वृद्धि होने के साथ-साथ हमें नवीन जानकारियाँ प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ।

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प्रोजेक्ट कार्य-2

समस्या कथन
स्थायी खाता संख्या (PAN) कार्ड बनवाने हेतु आवेदन की प्रक्रिया की जानकारी प्राप्त करना।

प्रस्तावना
पैन कार्ड एक विशिष्ट पहचान कार्ड है जिसे स्थायी खाता संख्या (Permanent Account Number) कहा जाता है, जो किसी भी तरह के आर्थिक लेन-देन के लिए आवश्यक है। पैन कार्ड में एक अल्फान्यूमेरिक 10 अंकों की संख्या होती है, जो आयकर (UPBoardSolutions.com) विभाग द्वारा निर्धारित की जाती है। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) के अन्तर्गत आती है। इसके अलावा यह भी उल्लेखनीय है कि पैन कार्ड आयकर अधिनियम 139A के तहत जारी किए जाते हैं। पैन कार्ड के अल्फान्यूमेरिक अंकों के प्रत्येक शब्द का अर्थ निम्नलिखित होता है
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पैन का उपयोग
पैन का उपयोग इन कार्यों के लिए अनिवार्य रूप से किया जाता है

  • आयकर (आईटी) रिटर्न दाखिल करने के लिए।
  • शेयरों की खरीद-बिक्री हेतु डीमैट खाता खुलवाने के लिए।
  • एक बैंक खाते से दूसरे बैंक खाते में है 50,000 या उससे अधिक की राशि निकालने अथवा जमा करने अथवा हस्तांतरित करने पर।
  • टीडीएस (टैक्स डिडक्शन एट सोर्स) जमा करने एवं वापस पाने के लिए।

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प्राप्त करने की पात्रता
कोई भी व्यक्ति, फर्म या संयुक्त उपक्रम पैन कार्ड के लिए आवेदन कर सकता है। इसके लिए कोई न्यूनतम अथवा अधिकतम उम्र सीमा नहीं है।

पैन हेतु आवेदन करने के लिए जरूरी दस्तावेज

  • अच्छी गुणवत्ता वाली पासपोर्ट आकार की दो रंगीन फोटो।
  • शुल्क के रूप में है 107 का डिमांड ड्राफ्ट या चेक एवं विदेश (UPBoardSolutions.com) के दिये गये पते पर बनवाने के लिए ₹ 994 का ड्राफ्ट बनवाना जरूरी है।
  • व्यक्तिगत पहचान के प्रमाण की छायाप्रति।
  • आवासीय पते के प्रमाण की छायाप्रति।
  • व्यक्तिगत पहचान व आवासीय पता पहचान दोनों सूची में से अलग-अलग दो दस्तावेज जमा करें।

व्यक्तिगत पहचान के लिए प्रमाण – (निम्न में से कोई भी एक प्रमाण-पत्र)

  1. विद्यालय परित्याग प्रमाण-पत्र
  2. मैट्रिक का प्रमाण-पत्र
  3. मान्यताप्राप्त शिक्षण संस्थान की डिग्री
  4. डिपोजिटरी खाता विवरण
  5. क्रेडिट कार्ड का विवरण
  6. बैंक खाते का विवरण/बैंक पासबुक
  7. पानी का बिल
  8. राशन कार्ड
  9. सम्पत्ति का मूल्यांकन आदेश
  10. पासपोर्ट
  11. मतदाता पहचान-पत्र
  12. ड्राइविंग लाइसेंस
  13. सांसद/विधायक/नगरपालिका पार्षद अथवा किसी (UPBoardSolutions.com) राजपत्रित अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित पहचान प्रमाण-पत्र।

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आवासीय पते के प्रमाण के लिए – (निम्न में से कोई भी एक प्रमाण-पत्र)

  1. बिजली बिल
  2. टेलीफोन बिल
  3. डिपोजिटरी खाता विवरण
  4. क्रेडिट कार्ड का विवरण
  5. बैंक खाता विवरण/बैंक पासबुक
  6. घर किराये की रसीद
  7. नियोक्ता का प्रमाण-पत्र
  8. पासपोर्ट
  9. मतदाता पहचान-पत्र
  10. सम्पत्ति का मूल्यांकन आदेश
  11. ड्राइविंग लाइसेंस
  12. राशन कार्ड
  13. सांसद/विधायक/नगरपालिका पार्षद अथवा (UPBoardSolutions.com) किसी राजपत्रित अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित पहचान प्रमाण-पत्र।

ध्यान दें – यदि आवासीय पते के प्रमाण के लिए क्रम संख्या 1 से 7 तक में उल्लिखित दस्तावेज का उपयोग किया जा रहा हो तो वह जमा करने की तिथि से एक माह से अधिक पुराना नहीं होना चाहिए।

पैन कार्ड के लिए शुल्क भुगतान की प्रक्रिया

  • पैन आवेदन के लिए शुल्क ₹ 107 है (93.00 + 15% सेवा शुल्क)
  • शुल्क का भुगतान डिमांड ड्राफ्ट, चेक अथवा क्रेडिट कार्ड द्वारा किया जा सकता है।
  • डिमांड ड्राफ्ट या चेक NSDL-PAN के नाम से बना होना चाहिए।  डिमांड ड्राफ्ट मुम्बई में भुगतेय होना चाहिए और डिमांड ड्राफ्ट के पीछे आवेदक को नाम तथा पावती संख्या लिखी होनी चाहिए।
  • चेक द्वारा शुल्क का भुगतान करने वाले आवेदक देशभर में एचडीएफसी बैंक की किसी भी शाखा पर भुगतान कर सकते हैं। आवेदक को जमा पर्ची पर NSDLPAN का उल्लेख करना चाहिए।

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पैन कार्ड के लिए आवेदन प्रपत्र 49A भरने की प्रक्रिया
पैन कार्ड हेतु आवेदन करने के लिए फॉर्म 49A भरकर निर्धारित शुल्क व आवश्यक दस्तावेजों के साथ प्रेषित किया जाता है। आवेदन-पत्र की प्रविष्टियाँ निम्नलिखित क्रम में स्पष्ट रूप से भरनी चाहिए तथा फॉर्म के दोनों ओर फोटो लगाकर हस्ताक्षर (UPBoardSolutions.com) करने के स्थान पर हस्ताक्षर करने चाहिए।

कॉलम-1 :

  • इस कॉलम में आवेदक का पूरा नाम अंग्रेजी के कैपिटल अक्षरों में भरा जाता है।

कॉलम-2 :

  • इस कॉलम में आवेदक अपने नाम के पदबंध (Abbreviation) का संक्षिप्त रूप दर्ज कर सकता है।

कॉलम-3 :

  • इस कॉलम में यदि आवेदक को किसी अन्य नाम से भी जाना जाता है तो उसकी सूचना दर्ज करनी चाहिए। नाम को पहला, मध्य व अन्तिम अक्षर स्पष्ट रूप से लिखना चाहिए।

कॉलम-4 :

  • इस कॉलम में आवेदक अपना लैंगिक विभेद पुरुष/महिला पर निशान लगाकर स्पष्ट करता है।

कॉलम-5 :

  • इस कॉलम में अर्विदक को अपनी जन्मतिथि तथा कम्पनी, ट्रस्ट फर्म आदि की स्थापना तिथि दर्ज करनी चाहिए।

कॉलम-6 :

  • इस कॉलम में आवेदक के पिता का नाम लिखने के लिए स्थान दिया जाता है।

कॉलम-7 :

  • इस कॉलम में आवेदक का पूरा पता तथा उसके कार्यालय का पूरा पता दर्ज करने के लिए मकान नं०, भवन का नाम, पोस्ट ऑफिस, मोहल्ले का नाम, शहर व प्रदेश का नाम, पिन नम्बर तथा राष्ट्र के नाम के लिए पृथक्-पृथक् स्थान दिया होता हे।

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कॉलम-8 :

  • इस कॉलम में संचार के लिए प्रयुक्त होने वाला पता; यथा-निवास अथवा कार्यालयी दोनों में से किसी एक पर सही () का निशान लगाकर सहमति प्रकट करनी होती है।

कॉलम-9 :

  • इस कॉलम में आवेदक का फोन नम्बर, मोबाइल नम्बर व ईमेल एड्रेस लिखने का स्थान होता है।

कॉलम-10 :

  • इस कॉलम में आवेदक के स्तर; यथा-व्यक्तिगत, (UPBoardSolutions.com) कम्पनी, सरकारी, ट्रस्ट आदि में उपयुक्त कॉलम पर सही (V) का निशान लगाना होता है।

कॉलम-11 :

  • इस कॉलम में यदि आवेदन किसी कम्पनी या फर्म की ओर से किया जा रहा हो तो उसकी पंजीकरण संख्या दर्ज करनी चाहिए।

कॉलम-12 :

  • इस कॉलम में यदि आवेदक भारत का नागरिक है तो उसका आधार नम्बर निर्धारित स्थान पर लिखना चाहिए।

कॉलम-13 :

  • इस कॉलम में आवेदक की आय के स्रोत; जैसे-वेतन, व्यवसाय, किराया, कैपिटल गेन या अन्य स्रोतों से होने वाली आय का विवरण दर्ज किया जाता

कॉलम-14 :

  • इस कॉलम में ऐसे प्रतिनिधि का नाम वे पूरा पता दर्ज किया जाता है, जो आवेदक की अनुपस्थिति में आयकर निर्धारण हेतु आवेदक के प्रतिनिधि के रूप में भूमिका निभायेगा।

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कॉलम-15 :

  • इस कॉलम में पहचान-पत्र एवं निवास प्रमाण-पत्र के सन्दर्भ में सूचना दर्ज की जाती है जो कि इस आवेदन-पत्र के साथ संलग्न किए जा रहे हों।

कॉलम-16 :

  • इस कॉलम में आवेदक द्वारा घोषणा कथन पर हस्ताक्षर कर स्पष्ट किया जाता है कि उसके द्वारा दर्ज की गयी सभी जानकारियाँ पूर्ण सत्य हैं।

अन्त में स्थान, दिनांक व हस्ताक्षर करने हेतु बने कॉलमों में प्रविष्टियाँ करके फॉर्म को पूर्ण किया जाता है तथा पैन आवेदन संग्रह केन्द्र के कार्यालय में प्रेषित किया जाता है।

निष्कर्ष
प्रस्तुत परियोजना के माध्यम से हमने पैन कार्ड आदि के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त की। इसके अतिरिक्त पैन कार्ड के आवेदन हेतु प्रयुक्त किए जाने वाले फॉर्म सं० 49 A के प्रत्येक कॉलम को भरने एवं उसके सम्बन्ध में पूरी जानकारी का अध्ययन किया। (UPBoardSolutions.com) परियोजना कार्य हेतु संगृहीत की गयी जानकारी वास्तव में अत्यन्त बोधगम्य एवं रोचक सिद्ध हुई।

प्रोजेक्ट कार्य-3

समस्या कथन
आधार कार्ड बनवाने हेतु आवेदन की प्रक्रिया की जानकारी प्राप्त करना।

प्रस्तावना
आधार कार्ड भारत सरकार द्वारा भारत के नागरिकों को जारी किया जाने वाला एक पहचान-पत्र है। इसमें 12 अंकों की एक विशिष्ट संख्या मुद्रित होती है जिसे भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (भा०वि०प०प्रा०) जारी करती है। यह संख्या भारत में कहीं भी व्यक्ति की पहचान और पते का प्रमाण होता है। भारतीय डाक द्वारा प्राप्त और यू०आई०डी०ए०आई० की वेबसाइट से डाउनलोड किया गया ई-आधार दोनों ही समान रूप से मान्य हैं। (UPBoardSolutions.com) कोई भी व्यक्ति आधार के लिए नामांकन करा सकता है बशर्ते वह भारत का निवासी हो और यू०आई०डी०ए०आई० द्वारा निर्धारित सत्यापन प्रक्रिया को पूरा करती हो, चाहे उसकी उम्र और लिंग (जेण्डर) कुछ भी हो। प्रत्येक व्यक्ति केवल एक बार नामांकन करा सकता है। इसका नामांकन निशुल्क है तथा यह नागरिकता का प्रमाण-पत्र न होकर एक पहचान-पत्र मात्र है। UIDAI की प्रथम अध्यक्षा नंदन नीलेकणि हैं। UIDAI का लक्ष्य आगामी वर्षों में सम्पूर्ण भारतवर्ष के लोगों को आधार नम्बर जारी करने का है।

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लक्ष्य, उद्देश्य एवं कार्य-प्रणाली
प्रस्तुत परियोजना कार्य का मुख्य उद्देश्य आधार कार्ड की आवेदन प्रक्रिया का अध्ययन करना है। इसका मुख्य लक्ष्य आधार कार्ड की आवश्यकता, लाभ व उपयोगिता की जानकारी प्राप्त करना है। इसके उद्देश्य एवं लक्ष्य की प्राप्ति हेतु आनुभाविक शोध विधि का प्रयोग किया गया है और जनसेवा केन्द्र पर जाकर आधार कार्ड का आवेदन-पत्र प्राप्त करके, उसे भरने एवं संलग्न होने वाले दस्तावेजों, डेमोग्राफिक
और बायोमैट्रिक सूचनाओं के संकलन की जानकारी प्राप्त कर इस परियोजना कार्य को पूर्ण करने का प्रयास किया गया है।

आधार कार्ड के लाभ
आधार कार्ड के लाभों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है

  1. आधार एक 12 अंकों की प्रत्येक भारतीय की एक विशिष्ट पहचान है।
  2. आधार कार्ड भारत के प्रत्येक निवासी के पहचान-पत्र के रूप में प्रमाण है।
  3. आधार कार्ड डेमोग्राफिक और बायोमैट्रिक आधार पर प्रत्येक व्यक्ति की विशिष्ट पहचान सिद्ध करता है।
  4. यह एक स्वैच्छिक सेवा है जिसका प्रत्येक निवासी लाभ उठा सकता है, चाहे वर्तमान में उसके पास कोई भी दस्तावेज हो।
  5. आधार कार्ड के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को केवल एक ही विशिष्ट (UPBoardSolutions.com) पहचान आधार नम्बर दिया जाता है।
  6. आधार वैश्विक इन्फ्रास्ट्रक्चर पहचान प्रदान करता है, जो कि राशन कार्ड, पासपोर्ट आदि जैसी पहचान आधारित ऐप्लिकेशन द्वारा भी प्रयोग में लाया जा सकता है।
  7. यू०आई०डी०ए०आई० किसी भी तरह के पहचान प्रमाणीकरण से सम्बन्धित प्रश्नों के हाँ/नहीं में उत्तर प्रदान करेगा।
  8. आधार संख्या को बैंकिंग, मोबाइल फोन कनेक्शन और सरकारी व गैर-सरकारी सेवाओं की सुविधाएँ प्राप्त करने में प्रयोग किया जा सकता है।

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आधार कार्ड की आवश्यकता और उपयोग
आधार कार्ड पहचान-पत्र तथा निवास प्रमाण-पत्र के रूप में सभी सरकारी एवं गैर-सरकारी विभागों में जरूरी हो गया है; क्योंकि पहचान के लिए हर जगह आधार कार्ड माँगा जाता है। आधार कार्ड के महत्त्व को बढ़ाते हुए भारत सरकार ने भी बड़े फैसले लिए हैं जिसमें निम्नलिखित कार्यों के लिए आधार संख्या दर्ज कराना अनिवार्य कर दिया गया है

  1. पासपोर्ट जारी करने के लिए आधार को अनिवार्य कर दिया गया है।
  2. बैंक में जनधन खाता खोलने के लिए
  3. एलपीजी की सब्सिडी पाने के लिए।
  4. ट्रेन टिकट में छूट पाने के लिए।
  5. परीक्षाओं में बैठने के लिए (जैसे—आईआईटी जेईई के लिए)
  6. बच्चों को नर्सरी कक्षा में प्रवेश दिलाने के लिए।
  7. डिजिटल जीवन प्रमाण-पत्र (UPBoardSolutions.com) (लाइफ सर्टिफिकेट) के लिए
  8. प्रॉविडेंट फंड के भुगतान के आवेदन हेतु
  9. डिजिटल लॉकर के लिए।
  10. सम्पत्ति के रजिस्ट्रेशन के लिए
  11. छात्रों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति को बैंक में जमा कराने हेतु
  12. सिम कार्ड खरीदने के लिए।
  13. आयकर रिटर्न हेतु। आयकर विभाग करदाताओं को आधार कार्ड के जरिए आयकर रिटर्न की ई-जाँच करने की सुविधा प्रदान करता है।

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आधार कार्ड के आवेदन की प्रक्रिया
आधार कार्ड के आवेदन प्रपत्र में निम्नलिखित सूचनाएँ संदर्भित विषय-वस्तु के अनुसार भरी जाती हैं

कॉलम-1 :

  • इस कॉलम में नामांकन संख्या उपलब्ध हो तो अवश्य भरनी चाहिए।

कॉलम-2 :

  • इस कॉलम में राष्ट्रीय रजिस्टर का रसीद (UPBoardSolutions.com) नम्बरे अथवा टिन नम्बर भरना चाहिए।

कॉलम-3 :

  • इस कॉलम में दिए गए स्थान पर आवेदक को पूरा पता लिखना चाहिए।

कॉलम-4 :

  • इस कॉलम में लैंगिक विभेद अर्थात् पुरुष/स्त्री व अन्य में से उपयुक्त स्थान पर सही (V) का निशान लगाना चाहिए।

कॉलम-5 :

  • इस कॉलम में जन्मतिथि का विवरण भरना चाहिए।

कॉलम-6 :

  • इस कॉलम में पते से सम्बन्धित विवरण दर्ज करना चाहिए।

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कॉलम-7 :

  • इस कॉलम में माता, पिता, पति, पत्नी आदि से सम्बन्धित जानकारी; यथा–नाम व आधार नम्बर, जन्मतिथि आदि का विवरण दर्ज करना चाहिए।

कॉलम-8 :

  • इस कॉलम में अनापत्ति कथन पर सही (V) अथवा गलत (४) का निशान ” लगाकर सहमति/असहमति प्रकट करनी चाहिए।

कॉलम-9 :

  • इस कॉलम में आधार संख्या को अन्य सरकारी विभागों; जैसे—बैंक, (UPBoardSolutions.com) आदि से जोड़ने के लिए अनापत्ति कथन हेतु सहमति प्रकट करना और बैंक का नाम, खाता संख्या आदि दर्ज करना चाहिए।

कॉलम-10 :

  • इस कॉलम में संलग्न किए जाने वाले दस्तावेजों; जैसे-पहचान पत्र, निवास प्रमाण-पत्र, सम्बन्ध प्रमाण-पत्र तथा जन्म प्रमाण-पत्र आदि पर सही (V) का निशान लगाकर उस आवेदन-पत्र के साथ संलग्न करना चाहिए।

कॉलम-11 :

  • इस कॉलम में पहचान आधारित विवरण भरना चाहिए जिसमें माता, पिता, पति, पत्नी, अभिभावक आदि की जानकारी दर्ज की जाती है जिसमें मुख्य रूप से उनकी आधार संख्या दर्ज करनी चाहिए।

अन्त में, आवेदन पत्र में भरी गयी जानकारियों के सत्यापन के लिए मुद्रित कथन के नीचे हस्ताक्षर करके तथा पहचानकर्ता को नाम लिखकर एवं हस्ताक्षर कराकर जनसेवा केन्द्र या डाक घर में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर आधार कार्ड के लिए आवेदन कर सकते हैं। सक्षम अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत होकर बायामैट्रिक माध्यम से अपने हाथों की अँगुलियों की छाप, आँखों के इम्प्रेशन तथा फोटो खिंचवाने की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद सक्षम अधिकारी अगली कार्यवाही के लिए फॉर्म को अग्रसारित करते हैं तथा एक से दो सप्ताह के भीतर डाक के माध्यम से आधार कार्ड दिए गए पते पर पहुँच जाता है।

निष्कर्ष
प्रस्तुत परियोजना कार्य के माध्यम से हमने जनसेवा केन्द्र पर जाकर आधार कार्ड के आवेदन से सम्बन्धित पूर्ण जानकारी का अध्ययन किया और आवेदन प्रपत्र भरने, आधार कार्ड के लाभों, आवश्यकता और उपयोग के बारे में विस्तृत जानकारी अर्जित की। इस परियोजना कार्य से यह भी ज्ञात हुआ कि आधार कार्ड प्रत्येक भारतीय को पहचान प्रदान करने वाला महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है तथा इसे 12 अंकों की विशिष्ट संख्या द्वारा अनुमोदित (UPBoardSolutions.com) किया जाता है। आधार कार्ड को भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण द्वारा जारी किया जाता है; अतः हमें इस परियोजना कार्य के माध्मय से ही आधार कार्ड सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण जानकारियों को प्राप्त करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।

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प्रोजेक्ट कार्य-4

समस्या कथन
व्यक्तिगत आयकर किस प्रपत्र पर और कैसे भरा जाता है? इसकी जानकारी प्राप्त करना।

प्रस्तावना
सरकार को अपने कर्तव्य निभाने के लिए बहुत-से कार्य; जैसे देश की सुरक्षा करना, कानून व्यवस्था बनाये रखना, स्वास्थ्य एवं शिक्षा की सुविधा देना, न्याय-पद्धति को चलाना, बेरोजगारी एवं गरीबी का उन्मूलन करना, आदि करने होते हैं। इन सभी पर सरकार को बहुत अधिक धन व्यय करना पड़ता है।

देश के विकास के लिए और इन सभी कार्यों को करने के लिए इतनी मात्रा में धन सरकार अनेक साधनों से जुटाती है, इनमें से एक महत्त्वपूर्ण साधने को कर प्रणाली (Taxation) कहा जाता है। आयकर, सेवाकर, बिक्री कर, सम्पत्ति कर, मनोरंजन कर, चुंगी शुल्क, सीमा शुल्क आदि सरकार की आय के विभिन्न स्रोत हैं। केन्द्रीय सरकार प्रदेश सरकार अथवा स्थानीय संस्थाएँ किस क्षेत्र में कर लगा सकती है, इसका निर्धारण पहले से ही रहता है। केन्द्र सरकार इन करों का अधिक भाग प्राप्त करती है, इसलिए उसे इन साधनों का कुछ अंश प्रदेश सरकारों या संघीय क्षेत्रों को देना होता है, ताकि वे भी विकास के लिए और दूसरे खर्च करने के लिए इसका उपयोग कर सकें; अतः आयकर सरकार की आय का सबसे बड़ा स्रोत है।

लक्ष्य एवं उद्देश्य
प्रस्तुत परियोजना कार्य का मुख्य उद्देश्य आयकर की जानकारी प्राप्त करना है तथा इसका लक्ष्य आयकर जमा करने की प्रक्रिया से अवगत कराना है जिसके कि विद्यार्थी आयकर के महत्त्व, प्रक्रिया एवं दरों का विधिवत अध्ययन कर सकें।

भारत में आयकर का स्वरूप
आयकर विभाग ने देयकर्ता के लिए टैक्स स्लैब में अनेक परिवर्तन किए हैं, जो वित्तीय वर्ष (2017-18) तथा आकलन वर्ष 2018-19 के लिए हैं। भारत में जहाँ पहले ₹ 2.5 लाख से लेकर ₹ 5 लाख तक की सालाना आय पर 10 फीसदी टैक्स लगता था, अब यह टैक्स (UPBoardSolutions.com) 5 फीसदी लगेगा, वहीं ₹ 2.5 लाख तक आय पूरी तरह से टैक्स मुक्त है। इसके अलावा सरकार ने 50 लाख से लेकर 1 करोड़ तक की आय वालों पर 10 फीसदी की सरचार्ज लगाया है, जो अब तक नहीं था। आयकर के नए नियमों के अनुसार इसका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है

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सामान्य वर्ग के लोगों हेतु आयकर के प्रावधान – 60 वर्ष तक आयु वाले किसी भी व्यक्ति की वार्षिक आय यदि ₹ 2.5 लाख से अधिक है, तब वह टैक्स छूट के दायरे से बाहर माना जाएगा, यानी केवल ₹ 2.5 लाख तक की आय ही करमुक्त है। इसके बाद ₹ 5 लाख तक की सालाना आय वाले व्यक्ति को 5 फीसदी टैक्स का होगा, साथ ही र 5 लाख तक की करयोग्य आय पर पहले ₹ 5 हजार की छूट मिलती थी जोकि अब घटाकर ₹ 2500 कर दी गयी है और यह ₹ 3.5 लाख तक की करयोग्य आय पर मिलेगी। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि किसी व्यक्ति की वार्षिक आय ₹ 3 लाख थी तो उसकी टैक्स भुगतान की जिम्मेदारी नहीं थी। आयकर के नए नियमों के अनुसार आयकर का वर्णन निम्नलिखित हैं

₹ 2.5 लाख  तक                                     शून्य
₹ 2.5 लाख 1 से ₹ 5 लाख तक     ……… 5%
₹ 5 लाख 1 से 10 लाख तक          ……… 20%
₹ 10 लाख से अधिव                     ……… 30%

₹ 5 लाख से है 10 लाख की आय पर 20 प्रतिशत आयकर होगा और ₹ 10 लाख से अधिक की आय पर 30 प्रतिशत आयकर लागू होगा, लेकिन यदि आय ₹ 50 लाख से ज्यादा है (सालाना) तथा ₹ 1 करोड़ है, तब सरचार्ज बढ़कर 15 प्रतिशत हो जाएगा। यह बढ़ा हुआ 5 फीसदी सरचार्ज एजुकेशन सेस और हायर एजुकेशन सेस है।

वरिष्ठ नागरिक (60 से 80 आयु वर्ष के लोगों के लिए ) – वरिष्ठ नागरिक जो कि 0 से ₹ 3 लाख सालाना आय के दायरे में आते हैं, उन पर कोई आयकर देनदारी नहीं आती। ₹ 3 से 5 लाख तक की आय पर 5 प्रतिशत की दर से कर लागू होगा। ₹ 5 लाख से ₹ 10 लाख तक की आय और के 10 लाख से अधिक की आय पर सामान्य श्रेणी के लिए लागू कर की दर और सरचार्ज वरिष्ठ नागरिकों पर भी लागू होंगे।

₹ 3 लाख तक                                     …… शून्य
₹ 3 लाख 1 से ₹ 5 लाख तक               …… 5%
₹ 5 लाख 1 से ₹ 10 लाख तक             …… 20%
₹ 10 लाख से अधिक                          …… 30%

अति वरिष्ठ नागरिक ( 80 वर्ष की आयु से अधिक के लोगों के लिए)-वे वरिष्ठ नागरिक जिनकी आयु 80 वर्ष से अधिक है, वे इस श्रेणी में आते हैं। उनके लिए ₹ 5 लाख तक की आय पूरी तरह से कर-मुक्त होगी, परन्तु शेष सभी कर स्लैब वही लागू होंगे जो कि (UPBoardSolutions.com) सामान्य श्रेणी पर लागू हैं।

₹ 5 लाख तक                                        ……. शून्य
₹ 5 लाख 1 से ₹ 10 लाख तक                ……. 20
₹ 10 लाख से अधिक                              ……. 30%

आयकर की दरों का सिंहावलोकन
UP Board Solutions for Class 10 Social Science Project Work (प्रोजेक्ट कार्य)

प्रत्येक वर्ष वित्तीय वर्ष समाप्त होने के बाद वे सभी व्यक्ति आयकर देने के लिए बाध्य हैं, जो आयकर द्वारा निर्धारित कर सीमा के अन्तर्गत आते हैं। आयकर के भुगतान के लिए आयकर विभाग द्वारा पृथक्-पृथक् फॉर्मों के माध्यम से आयकर जमा करने हेतु आवेदन पत्र बनाए गए हैं। इन फॉर्मों के माध्यम से व्यक्ति यह घोषित करता है कि विगत वर्ष में उसे कितनी आय हुई तथा उस आय के लिए कितने कर का भुगतान किया। यही प्रक्रिया इनकम (UPBoardSolutions.com) टैक्स रिटर्न कहलाती है। वित्तीय वर्ष समाप्त होने के पश्चात आयकर विभाग, आयकर जमा करने के लिए एक अन्तिम तिथि का निर्धारण करता है। वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए आयकर जमा करने की अन्तिम तिथि 31 जुलाई निर्धारित की गयी है।

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व्यक्तिगत आयकर जमा करने के फॉर्म
व्यक्तिगत रूप से आयकर जमा करने के लिए निम्नलिखित फॉर्मों को उनकी श्रेणी के आधार पर भरा जाता है, जिनका वर्णन निम्नलिखित है

ITR-1 :

  • इस फॉर्म को सहज फॉर्म भी कहा जाता है जिनकी आय के साधन उनका वेतन, पेंशन या ब्याज है तथा जिस व्यक्ति के पास अपना घरे हो और उसने हाउसिंग लोन लिया हो, उसे भी यह फॉर्म भरना होता है।

IRT-2 :

  • यह फॉर्म हिन्दू अविभाजित परिवार (HUF) के लिए आयकर जमा करने हेतु भरा जाता है। इसके अतिरिक्त यदि किसी व्यक्ति के आय के साधन वेतन, पेंशन तथा ब्याज के अतिरिक्त एक से ज्यादा घर से आने वाली किराये की धनराशि, कैपिटल गेन या (UPBoardSolutions.com) डिविडेंड से प्राप्त होने वाली आमदनी है तो ऐसे लोगों को भी इसी फॉर्म के माध्यम से आयकर जमा करने का प्रावधान है।

TTR-3 :

  • यह फॉर्म उन लोगों के लिए होता है, जो किसी व्यवसाय में साझेदार (Partner) हैं तथा उनकी आय का स्रोत केवल यही है।

ITR-4 :

  • इस फॉर्म को सुगम फॉर्म कहा जाता है। यह फॉर्म सभी प्रकार के प्रोफेशनल्स; जैसे-डॉक्टर, वकील, सी०ए० आदि के लिए होता है। इसके अतिरिक्त वह व्यक्ति जो किसी व्यवसाय में साझेदार होने के साथ-साथ प्रोफेशनल इनकम भी अर्जित करता है, उसके लिए भी यही फॉर्म भरने का प्रावधान है। सुगम फॉर्म के माध्यम से आयकर अधिनियम के सेक्शन 44AD, 44ADA तथा 44AE के अन्तर्गत आयकर जमा कराया जाता है।

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ITR-4s :

  • यह फॉर्म उन छोटे व्यापारियों के लिए है जिनकी वार्षिक आय ₹ 60 लाख से कम है तथा ऐसे प्रोफेशनल व्यक्ति जिनकी आय ₹ 60 लाख से कम है, उन्हें भी यही फॉर्म भरना होता है। इन लोगों को अपने खातों को अंकेक्षण (Audit) कराने की आवश्यकता नहीं होती है।

वित्तीय वर्ष समाप्त होने पर प्रत्येक व्यक्ति को उपरोक्त वर्णित फॉर्मों में से उस फॉर्म को भरना होता है जिसके लिए वह पात्र होता है। इस फॉर्म के द्वारा व्यक्ति अपनी वार्षिक आय पर उचित कर का भुगतान करता है। यह कर प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होता है; जैसे-वेतन से प्राप्त आय तथा व्यक्तिगत व्यापार करने वालों के लिए अलग। जो व्यक्ति वेतनभोगी हैं, उनके लिए फॉर्म-16 प्रस्तुत करना अनिवार्य होता है। इसमें उस व्यक्ति (UPBoardSolutions.com) की सालाना आय बताई जाती है तथा उसके द्वारा किये गये पूँजी सम्बन्धी निवेश पर छूट दी जाती है। यही सब जोड़-घटाकर जो भी शेष राशि होती है, उस पर आयकर का भुगतान किया जाता है। इसी प्रकार, प्रोफेशनले व्यक्ति तथा व्यापारी भी अपने आय-व्यय का ब्यौरा प्रस्तुत करते हैं तथा आर्थिक चिट्ठा बनाकर अपने लाभ-हानि की घोषणा करते हैं। इसी आधार पर वह आयकर का भुगतान करते हैं।

आयकर जमा करने हेतु ITR-1 (सहज) फॉर्म भरने की प्रक्रिया
आयकर का सहज फॉर्म (ITR-1) क्रमशः पाँच खण्डों एवं दो प्रकार की अनुसूचियों से मिलकर बना है। प्रत्येक खण्ड एवं अनुसूची को भरने का वर्णन अग्रलिखित है

1. खण्ड-A : सामान्य जानकारी-सहज फॉर्म के इस भाग में आयकरदाता का पैन, आधार कार्ड नम्बर, मोबाइल नम्बर, ई-मेल, पूरा पता, निवास की स्थिति, सम्बद्धता; यथा–सरकारी कर्मचारी, पी०एस०यू० या अन्य, आयकर भरने की मूल तिथि, यदि फॉर्म में संशोधन हो तो उसकी फॉर्म संख्या, या किसी प्रकार के नोटिस का सन्दर्भ हो तो नोटिस संख्या भरने के लिए नियत स्थान एवं कॉलमों में जानकारी भरनी चाहिए।

2. खण्ड-B:
सकल कुल आय-इस खण्ड में कुल आय के स्रोतों की जानकारी भरनी होती है; जैसे-वेतन, पेंशन, एक गृह सम्पत्ति से आय, अन्य स्रोतों से आय यदि हो तो इनमें से जिस भी स्रोत से आय हो उसके वर्षभर का योग निर्धारित कॉलम में लिखना चाहिए तथा अन्त में कुल योग करना चाहिए।

3. खण्ड-c :
करयोग्य कुल आय में से कटौतियाँ—इस खण्ड में करयोग्य कुल आय में से वित्तीय वर्ष में किए गए ऐसे निवेशों को घटाया जा सकता है, जो आयकर की धारा 80C, 80D, 80G या 80 TTA में करमुक्त हैं। ऐसे निवेशों की जानकारी अथवा धनराशि निर्धारित कॉलम में लिखनी चाहिए जिससे आयकर में छूट प्राप्त की जा सके।

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4. खण्ड-D :
देयकर की गणना-इस खण्ड में देय योग्य कर की गणना की जाती है। इसके कॉलम D1 में कुल आय पर देय कर की संख्या लिखी जाती है। कॉलम D2 में सेक्शन 87A में कर से छूट, यदि कोई हो तो उसकी संख्या लिखी जाती है। D3 कॉलम में छूट प्राप्ति के बाद कुल कर योग्य धनराशि लिखी जाती है। कॉलम D4 में उपकर या सेस की धनराशि का वर्णन किया जाता है तथा Ds कॉलम में कर एवं सेस का कुल योग लिखा जाता है। कॉलम D6 में सेक्शन 89(1) के अन्तर्गत प्रदान की जाने वाली कर राहत का ब्यौरा होता है। कॉलम D7, Da एवं Dj में कर पर ब्याज की गणना लिखी जाती है। D10 कॉलम में कुल कर एवं ब्याज को जोड़कर लिखा जाता है। कॉलम D11 में कुल देय कर धनराशि वर्णित की जाती है। D12 कॉलम में D13 कॉलम में यदि किसी प्रकार का कोई प्रतिदेय (Refund) हो तो उसका वर्णन होता है। इस खण्ड के अन्त में करमुक्त आय की सूचना देने के लिए निर्दिष्ट कॉलम होते हैं; जैसे-सेक्शन 10(38), 10 (34), कृषि आय या अन्य आदि।

5. खण्ड-E :
अन्य जानकारी-इस खण्ड में बैंक से सम्बन्धित जानकारियों का वर्णन होता है; जैसे—बैंक का नाम, खाता संख्या, IFSC कोड, खाते में नकद जमा का कुल योग आदि का ब्यौरा दिया जाता है।

6. अग्रिम कर अनुसूची – 
इस अनुसूची में यदि करदाता ने कोई अग्रिम आयकर जमा कराया हो तो उसका विवरण भरना होता है। इसमें बी०एस०आर० कोड, अग्रिम कर जमा करने की तिथि, चालान नम्बर तथा जमा किए गए कर की धनराशि आदि दर्ज करने के (UPBoardSolutions.com) पृथक्-पृथक् कॉलमों में सभी विवरण भरा जाता है।

7. टी०डी०एस०/टी०सी०एस० विवरण अनुसूची – 
इस अनुसूची में करदाता यदि वित्तीय वर्ष में किसी से भी भुगतान प्राप्त करते समय टी०डी०एस० कटवा चुका है तो उसका प्रमाण-पत्र प्राप्त करे उसका विवरण यहाँ प्रस्तुत करना चाहिए। इसमें प्रथम कॉलम में टी०डी०एस० काटने वाले का TAN नम्बर भरा जाता है, दूसरे कॉलम में उसका नाम तथा तीसरे कॉलम में जिस राशि पर कर काटा गया है, उसका ब्यौरा लिखा जाता है। चौथे कॉलम में वर्ष तथा पाँचवें कॉलम में उस धनराशि को लिखा जाता है। कि जिसके लिए हमें उस वित्तीय वर्ष क्लेम करना चाहते हैं। सातवें कॉलम में वह राशि लिखी जाती है। जिसका क्लेम आयकरदाता अपने स्वयं के लिए न करके अपनी पत्नी/पति (spouse) के लिए करता है। यह सेक्शन 5A के अन्तर्गत आता है।

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8. सत्यापन – 
इसे फॉर्म के अन्त में आयकरदाता द्वारा उपरोक्त जानकारी का सत्यापन किया जाता है जिसके अन्तर्गत आयकरदाता अपना नाम, पिता का नाम लिखकर यह घोषणा करता है कि उपरोक्त सभी जानकारियाँ उसके ज्ञान और विश्वास के अनुरूप सत्य एवं सही हैं तथा आयकर अधिनियम, 1961 के सभी प्रावधानों के अनुरूप हैं। इस प्रकार सत्यापन कथन के नीचे आयकरदाता अपने हस्ताक्षर कर इसे प्रमाणित एवं सत्यापित करता है।

9. फॉर्म प्राप्ति की रसीद – 
इस.फॉर्म के बाएँ ओर कार्यालय प्रयोग हेतु एक बॉक्स होता है जिसमें प्राप्ति संख्या, दिनांक, प्राप्त करने वाले अधिकारी के हस्ताक्षर तथा मोहर लगाने हेतु स्थान होता है। इस फॉर्म को आयकर कार्यालय में जमा करने के उपरान्त आयकरदाता को इसकी प्राप्ति की रसीद प्रदान की। जाती है।

निष्कर्ष
प्रस्तुत परियोजना के माध्यम से हमने आयकर के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की तथा व्यक्तिगत रूप से व्यक्ति को कितनी आय पर कितने कर का भुगतान करना पड़ता है, उन सभी नियमों का अवलोकन किया। इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत आयकर प्रपत्र (ITR-1) सहज फॉर्म किस प्रकार भरा जाता है तथा उसमें क्या-क्या विवरण होता है, इसकी भी जानकारी प्राप्ति की। इस परियोजना कार्य से हम भारत की प्रगतिशील कर नीति, कुशल एवं दक्ष प्रशासन (UPBoardSolutions.com) तथा बेहतर स्वैच्छिक अनुपालन के द्वारा आने वाले राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकते हैं।

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 6 निष्ठामूर्ति कस्तूरबा (गद्य खंड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 6 निष्ठामूर्ति कस्तूरबा (गद्य खंड)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 6 निष्ठामूर्ति कस्तूरबा (गद्य खंड).

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1. निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यात्मक प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(1) चाहे दक्षिण अफ्रीका में हों या हिन्दुस्तान में, सरकार के खिलाफ लड़ाई के समय जब-जब चारित्र्य का तेज प्रकट करने का 
मौका आया कस्तूरबा हमेशा इस दिव्य कसौटी से सफलतापूर्वक पार हुई हैं।
             इससे भी विशेष बात यह है कि बड़ी तेजी से बदलते हुए आज के युग में भी आर्य सती स्त्री का जो आदर्श हिन्दुस्तान ने अपने हृदय में कायम रखा है, उस आदर्श की जीवित प्रतिमा के रूप में राष्ट्र पूज्य कस्तूरबा को पहचानता। है। इस तरह की विविध लोकोत्तर योग्यता के कारण आज सारा राष्ट्र कस्तूरबा की पूजा करता है।
प्रश्न
(1) गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) किस योग्यता के कारण सारा राष्ट्र कस्तूरबा की पूजा करता है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ के ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ नामक पाठ से अवतरित है। इसके लेखक उच्चकोटि के विचारक काका कालेलकर हैं। प्रस्तुत अवतरण में कस्तूरबा के गुणों का वर्णन किया गया है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- कस्तूरबा का वर्णन करते हुए लेखक कहता है कि चाहे भारत में हो या दक्षिण अफ्रीका में सरकार के खिलाफ संघर्ष के अवसर पर कस्तूरबा पीछे नहीं रहीं और उसका सफलतापूर्वक संचालन किया। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि कस्तूरबा ने आदर्श भारतीय नारी के स्वरूप का विधिवत् पालन किया है। भारत ने स्त्री का जो आदर्श अपने (UPBoardSolutions.com) हृदय में धारण किया है, कस्तूरबा उसकी प्रतिमूर्ति थीं। इन्हीं गुणों के कारण कस्तूरबा भारतीय समाज में समादृत हैं।
  3. विविध लोकोत्तर योग्यता के कारण आज सारा राष्ट्र कस्तूरबा की पूजा करता है।

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(2) दुनिया में दो अमोघ शक्तियाँ हैं-शब्द और कृति । इसमें कोई शक नहीं कि ‘शब्दों’ ने सारी पृथ्वी को हिला दिया है। किन्तु अन्तिम शक्ति तो ‘कृति’ की है। महात्मा जी ने इन दोनों शक्तियों की असाधारण उपासना की है। कस्तूरबा ने इन दोनों शक्तियों में से अधिक श्रेष्ठ शक्ति कृति की नम्रता के साथ उपासना करके सन्तोष माना और जीवनसिद्धि प्राप्त की।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) कस्तूरबा कैसी महिला थीं?
(4) शब्द और कृति क्या है?
(5) गाँधी जी ने किसकी उपासना की?
[शब्दार्थ-अमोघ = अचूक। कृति = रचना। सिद्धि = जीवन की श्रेष्ठता।]

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं काका कालेलकर द्वारा लिखित । ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ नामक निबन्ध से लिया गया है जो गाँधी युग के जलते चिराग’ नामक पुस्तक से उद्धृत है। लेखक कस्तूरबा के जीवन की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए विश्व की महानतम् शक्तियों (शब्द और कृति) में ‘बा’ को ‘कृति’ की उपासिका बतलाता है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- शब्द अर्थात् ‘कहना’ तथा कृति अर्थात् ‘करना’ वास्तव में इस संसार की ये ही दो अचूक शक्तियाँ हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि शब्दों की शक्ति ऐसी है जिसने सारे विश्व को प्रभावित कर रखा है, किन्तु शब्दों की अपेक्षा ‘कृति’ वाली शक्ति और भी महत्त्व रखती है। महात्मा गाँधी ने उक्त दोनों शक्तियों की असाधारण साधना की थी अर्थात् उन्होंने कथनी (UPBoardSolutions.com) और करनी में सामंजस्य स्थापित किया था, किन्तु कस्तूरबा ने सबसे पहले महत्त्वपूर्ण शक्ति ‘कृति’ की नम्रतापूर्वक साधना की और अपने जीवन को सफल सिद्ध किया। ‘बा’ ने केवल काम करने को ही महत्त्व दिया और इसी के बल पर वे सर्वपूज्य हो गयीं। दक्षिणी अफ्रीका की सरकार ने गाँधी जी को जब जेल भेज दिया तो कस्तूरबा ने अपना बचाव तक नहीं किया और न कहीं निवेदन किया। वे एक दृढ़ संकल्प वाली महिला थीं।
  3. कस्तूरबा एक दृढ़ संकल्प वाली महिला थीं।
  4. शब्द और कृति दो अमोघ शक्तियाँ हैं।
  5. गाँधी जी ने शब्द और कृति दोनों शक्तियों की असाधारण उपासना की है।

(3) यह सब श्रेष्ठता या महत्ता कस्तूरबा में कहाँ से आयी? उनकी जीवन-साधना किस प्रकार की थी? शिक्षण के द्वारा उन्होंने बाहर से कुछ नहीं लिया था। सचमुच, (UPBoardSolutions.com) उनमें तो आर्य आदर्श को शोभा देनेवाले कौटुम्बिक सद्गुण ही थे। असाधारण मौका मिलते ही और उतनी ही असाधारण कसौटी आ पड़ते ही उन्होंने स्वभावसिद्ध कौटुम्बिक सद्गुण व्यापक किये और उनके जोरों पर हर समय जीवन-सिद्धि हासिल की। सूक्ष्म प्रमाण में या छोटे पैमाने पर जो शुद्ध साधना की जाती है उसका तेज इतना लोकोत्तरी होता है कि चाहे कितना ही बड़ा प्रसंग आ पड़े, व्यापक प्रमाण में कसौटी हो, चारित्र्यवान् मनुष्य को अपनी शक्ति का सिर्फ गुणाकार ही करने का होता है।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) चारित्र्यवान् मनुष्य को अपनी शक्ति का क्या करना होता है?
(4) चारित्र्यवान व्यक्ति की क्या विशेषता होती है? |
(5) किस साधना का तेज लोकोत्तरी होता है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं काका कालेलकर द्वारा लिखित ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ पाठ से अवतरित है। प्रस्तुत अवतरण में कस्तूरबा के कौटुम्बिक सद्गुणों का वर्णन है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- कस्तूरबा ने शिक्षण द्वारा कुछ नहीं ग्रहण किया था, बल्कि उन्होंने जो कुछ सीखा-समझा वह व्यवहारतः था । वास्तव में उनमें आदर्श कौटुम्बिक सद्गुण थे, बल्कि अवसर मिलने पर उन्होंने स्वभाव सिद्ध पारिवारिक सद्गुणों का विस्तार किया और (UPBoardSolutions.com) उसी के बल पर जीवन में सफलता प्राप्त की। छोटे पैमाने पर जो साधना की जाती है उसमें असीम शक्ति होती है। चरित्रवान व्यक्ति सदैव कसौटी पर खरा उतरता है। कस्तूरबा एक चरित्रवान् महिला थीं। अपने चारित्रिक गुणों और कौटुम्बिक सदगुणों के कारण उन्होंने भारतीय समाज में ख्याति प्राप्त की।
  3. चारित्र्यवान् मनुष्य को अपनी शक्ति का सिर्फ गुणाकर ही करना होता है।
  4. चारित्र्यवान् व्यक्ति की विशेषता है कि उसमें कौटुम्बिक सद्गुण होते हैं।
  5. शुद्ध साधना का तेज लोकोत्तरी होता है।

प्रश्न 2. काका कालेलकर का जीवन-परिचय देते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।

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प्रश्न 3. भाषा-शैली को स्पष्ट करते हुए कालेलकर जी की साहित्यिक विशेषताएँ लिखिए।

प्रश्न 4, काका कालेलकर का जीवन एवं साहित्यिक परिचय दीजिए।
अथवा काका कालेलकर का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

काका कालेलकर
( स्मरणीय तथ्य )

जन्म-सन् 1885 ई० । मृत्यु-सन् 1981 ई०। जन्म-स्थान- महाराष्ट्र में सतारा जिला।
अन्य बातें -हिन्दी, गुजराती, बंगला, अंग्रेजी, मराठी भाषाओं पर पूरा अधिकार, राष्ट्रभाषा का प्रचार ।
भाषा- सरल, ओजस्वी, प्रवाहपूर्ण ।
शैली- सजीव, प्रभावपूर्ण, कल्पना की उड़ान।
साहित्य- संस्मरण, यात्रा वर्णन, सर्वोदय, हिमालय प्रवास, लोकमाता, उस पार के पड़ोसी, जीवन लीला, बापू की 
झाँकियों, जीवन का काव्य आदि।

  • जीवन-परिचय- काका कालेलकर का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में 1 दिसम्बर, सन् 1885 ई० को हुआ था। कालेलकर हिन्दी के उन उन्नायक साहित्यकारों में से हैं जिन्होंने अहिन्दी भाषा क्षेत्र का होकर भी हिन्दी सीखकर उसमें लिखना प्रारम्भ किया। उन्होंने राष्ट्रभाषा के प्रचार-कार्य को राष्ट्रीय कार्यक्रम के अन्तर्गत माना है। काका कालेलकर ने सबसे पहले हिन्दी लिखी और फिर (UPBoardSolutions.com) दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार को कार्य प्रारम्भ किया। अपनी सूझबूझ, विलक्षणता और व्यापक अध्ययन के कारण उनकी गणना देश के प्रमुख अध्यापकों एवं व्यवस्थापकों में होती है। काका साहब उच्चकोटि के विचारक एवं विद्वान् थे। भाषा प्रचार के साथ-साथ इन्होंने हिन्दी और गुजराती में मौलिक रचनाएँ भी की हैं। सन् 1981 ई० में आपकी मृत्यु हो गयी।
  • कृतियाँ- काको साहब की कृतियाँ निम्नलिखित हैं –
    1. निबन्ध-संग्रह- जीवन-साहित्य, जीवन का काव्य-इन विचारात्मक निबन्धों में इनके संत व्यक्तित्व और प्राचीन भारतीय संस्कृति की सुन्दर झलक मिलती है।
    2. आत्म-चरित्र- ‘धर्मोदय’ तथा ‘जीवन लीला’–इनमें काका साहब के यथार्थ व्यक्तित्व की सजीव झाँकी है।
    3. यात्रा-वृत्त- ‘हिमालय-प्रवास’, ‘लोकमाता’, ‘यात्रा’, ‘उस पार के पड़ोसी’ आदि प्रसिद्ध यात्रावृत्त हैं।
    4. संस्मरण- ‘संस्मरण’ तथा ‘बापू की झाँकी’-इन रचनाओं में महात्मा गाँधी के जीवन का चित्रण है।
    5. सर्वोदय-साहित्य- आपकी ‘सर्वोदय’ रचना में सर्वोदय से सम्बन्धित विचार हैं।
    6. साहित्यिक परिचय- काका साहब एक सिद्धहस्त मॅझे हुए लेखक थे। किसी भी सुन्दर दृश्य का वर्णन अथवा पेचीदी समस्या का सुगम विश्लेषण उनके लिए आनन्द का विषय है। उनके यात्रा-वर्णन में पाठकों को देश-विदेश के भौगोलिक विवरणों के साथ-साथ वहाँ की विभिन्न समस्याओं तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक विशेषताओं की जानकारी भी (UPBoardSolutions.com) हो जाती है। काका साहब देश की विभिन्न भाषाओं के अच्छे जानकार हैं। उन्होंने प्रायः अपने ग्रन्थों का अनुवाद विभिन्न भारतीय भाषाओं में स्वयं प्रस्तुत किया है। इनके विचारों में संस्कृति और परम्पराओं में एक नवीन क्रान्तिकारी दृष्टिकोणों का समावेश रहता है।
    7. भाषा-शैली- काका साहब की भाषा अत्यन्त ही सरल और ओजस्वी है। उसमें एक आकर्षक धारा है जिसमें सूक्ष्म दृष्टि एवं विवेचनात्मक तर्कपूर्ण विचार की अभिव्यक्ति होती है। उनकी भाषा में एक नयी चित्रमयता के साथ-साथ विचारों की मौलिकता के स्पष्ट दर्शन होते हैं। भाषा के साथ-साथ उनकी शैली अत्यन्त ही ओजस्वी है। इन्होंने अपने निबन्धों में प्राय: व्याख्यात्मक शैली का प्रयोग किया है। कुछ रचनाओं में प्रबुद्ध विचारक के उपदेशात्मक शैली के दर्शन होते हैं ।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. कस्तूरबा में एक आदर्श भारतीय नारी के कौन-कौन से गुण विद्यमान थे?
उत्तर- कस्तूरबा गाँधी एक पतिव्रता महिला थीं। वे अत्यन्त धार्मिक महिला थीं। गीता और तुलसी कृत रामायण में उनकी अगाध श्रद्धा थी। आलस्य नाम की चीज उनके अन्दर थी ही नहीं। आश्रम में कस्तूरबा लोगों के लिए माँ के समान थीं।

प्रश्न 2. स्वयं में शिक्षा के अभाव की पूर्ति ‘बा’ ने किस प्रकार की?
उत्तर- कस्तूरबा अनपढ़ थीं। उनका भाषा-ज्ञान सामान्य देहाती से अधिक नहीं था। बापू के साथ वे दक्षिण अफ्रीका में रहीं इसलिए वह कुछ अंग्रेजी समझने लगी थीं।

प्रश्न 3. ‘शब्द’ और ‘कृति’ से लेखक का क्या तात्पर्य है? कस्तूरबा के सम्बन्ध में सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- दुनिया में दो अमोघ शक्तियाँ हैं-शब्द और कृति। इसमें कोई शक नहीं है कि शब्दों ने सारी पृथ्वी को हिला दिया है, किन्तु अन्तिम शक्ति तो कृति ही है। महात्मा जी (UPBoardSolutions.com) ने इन दोनों शक्तियों की असाधारण उपासना की है। कस्तूरबा ने इन दोनों शक्तियों में से अधिक श्रेष्ठ शक्ति कृति की नम्रता के साथ उपासना करके सन्तोष माना और जीवनसिद्धि प्राप्त की।

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प्रश्न 4. ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ पाठ से दस महत्त्वपूर्ण वाक्य लिखिए।
उत्तर- कस्तूरबा अनपढ़ थीं। उनका भाषा-ज्ञान सामान्य देहाती से अधिक नहीं था। कस्तूरबा को गीता पर असाधारण श्रद्धा थी। उनकी निष्ठा का पात्र दूसरा ग्रन्थ था तुलसीकृत रामायण। कस्तूरबा रामायण भी ठीक ढंग से कभी पढ़ न सकीं। आश्रम में कस्तूरबा हम लोगों के लिए माँ के समान थीं। आज के जमाने में स्त्री-जीवन-सम्बन्ध के हमारे आदर्श हमने काफी बदल लिये हैं।

प्रश्न 5. कस्तूरबा से सम्बन्धित संक्षिप्त गद्यांश लिखिए।
उत्तर- वह भले ही अशिक्षित रही हों, संस्था चलाने की जिम्मेदारी लेने की महत्त्वाकांक्षा भले ही उनमें कभी जागी न हो, लेकिन देश में क्या चल रहा है उसकी सूक्ष्म जानकारी वह प्रश्न पूछकर या अखबारों के ऊपर नजर डालकर प्राप्त कर ही लेती थीं।

प्रश्न 6. कस्तूरबा के ‘मूक किन्तु तेजस्वी बलिदान’ की कहानी लिखिए।
उत्तर- सती कस्तूरबा सिर्फ अपने संस्कारों के कारण पातिव्रत्य धर्म को, कुटुम्ब वत्सलता को और तेजस्विता को चिपकाये रहीं और उसी के बल पर महात्मा जी के महात्म्य की (UPBoardSolutions.com) बराबरी में आ सकीं। आज हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध आदि अनेक धर्मों के लोगों का यह विशाल देश अत्यन्त निष्ठा के साथ कस्तूरबा की पूजा करता है।

प्रश्न 7. कस्तूरबा की मितभाषिता एवं कर्तव्यनिष्ठा के गुणों को प्रकट करनेवाले प्रसंगों एवं घटनाओं का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर- आश्रम में चाहे बड़े-बड़े नेता आयें या मामूली कार्यकर्ता, उनके खाने-पीने का प्रबन्ध कस्तूरबा ही करती थीं। प्राणघातक बीमारी से मुक्त होने के बाद रसोई के कार्यों में हाथ बँटाती थीं । कस्तूरबा में आर्य आदर्श को शोभा देनेवाले कौटुम्बिक सद्गुण थे।

प्रश्न 8. ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ पाठ की भाषा-शैली की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ पाठ की भाषा-शैली विवेचनात्मक है। भाषा अपेक्षाकृत संस्कृतनिष्ठ एवं परिष्कृत है।

प्रश्न 9. कस्तूरबा के गुणों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- कस्तूरबा आदर्श भारतीय महिला थीं। वे पतिव्रता स्त्री थीं। वे आश्रम में बच्चों की देखभाल करती थीं। आश्रम में कस्तूरबा लोगों के लिए माँ समान थीं। गीता और रामायण में उनकी अगाध श्रद्धा थी।

प्रश्न 10. काका कालेलकर की भाषा-शैली की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- काका कालेलकर की भाषा परिष्कृत खड़ीबोली है। उसमें प्रवाह, ओज तथा अकृत्रिमता है। इन्होंने विवेचनात्मक, विवरणात्मक तथा व्यंग्यात्मक शैलियों का प्रयोग किया है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. काका कालेलकर की दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर-
काका कालेलकर की दो रचनाएँ जीवन काव्य तथा हिमालय प्रवास हैं।

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प्रश्न 2. काका कालेलकर किस युग के लेखक माने जाते हैं?
उत्तर- काका कालेलकर शुक्ल एवं शुक्लोत्तर युग के लेखक माने जाते हैं।

प्रश्न 3. राष्ट्रभाषा प्रचार को राष्ट्रीय कार्यक्रम मानने वाले हिन्दी लेखक का नाम बताइए।
उत्तर- राष्ट्रभाषा प्रचार को राष्ट्रीय कार्यक्रम मानने वाले हिन्दी लेखक का नाम है काका कालेलकर ।

प्रश्न 4. कस्तूरबा कौन थीं?
उत्तर- कस्तूरबा महात्मा गाँधी की पत्नी थीं।

प्रश्न 5. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (√) का चिह्न लगाइए-
(अ) कस्तूरबा अनपढ़ थीं।                                                                  (√)
(ब) ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ पाठ विवेचनात्मक शैली में लिखा गया है।       (√)
(स) कालेलकर जी का सम्पर्क टैगोर से नहीं था।                                  (×)
(द) दुनिया में ‘शब्द’ और ‘कृति’ दो अमोघ शक्तियाँ हैं।                         (√)

व्याकरण-बोध

प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेद करते हुए सन्धि का नाम भी लिखिए-
लोकोत्तर, सत्याग्रह, गुणाकर, महत्त्वाकांक्षा, एकाक्षरी, प्रत्युत्पन्न।
उत्तर-
लोकोत्तर        –    
लोक + उतर           – गुण सन्धि
सत्याग्रह         –    
सत्य + आग्रह          – दीर्घ सन्धि
गुणाकर          –     गुण + आकर         – 
दीर्घ सन्धि
महत्त्वाकांक्षा   –    महत्त्व + आकांक्षा   – दीर्घ सन्धि
एकाक्षरी         –    एक + अक्षरी          –  
दीर्घ सन्धि
प्रत्युत्पन्न          –   
प्रति + उत्पन्न           – यण सन्धि

प्रश्न 2.निम्नलिखित में समास-विग्रह करते हुए समास का नाम लिखिए-
माँ-बाप, देश-सेवा, राष्ट्रमाता, प्राणघातक, बन्धनमुक्ते, धर्मनिष्ठा।
उत्तर-
माँ-बाप      =  माँ और बाप           =    द्वन्द्व समास
देश-सेवा    =  देश के लिए सेवा    =    
सम्प्रदान तत्पुरुष
राष्ट्रमाता     =  राष्ट्र की माता           =   
सम्बन्ध तत्पुरुष
प्राणघातक =  प्राण के लिए घातक   =   सम्प्रदान तत्पुरुष
बन्धनमुक्त  =  बंधन से मुक्त           =   करण तत्पुरुष
धर्मनिष्ठा     =  धर्म में निष्ठा              =    अधिकरण तत्पुरुष

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प्रश्न 3. निम्नलिखित विदेशज शब्दों के लिए हिन्दी शब्द लिखिए –
अमलदार, कायम, जिद्द, हासिल, कतई, खुद।
उत्तर-
अमलदार –   ग्राह्य
जिद्द         –    हठ
कतई       –   बिल्कुल
कायम      –   स्थिर
हासिल     –    प्राप्त
खुद          –   स्वयं

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