UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
स्पष्ट कीजिए कि घुमंतू समुदायों को बार-बार एक जगह से दूसरी जगह क्यों जाना पड़ता है? इस निरंतर आवागमन से पर्यावरण को क्या लाभ है?
उत्तर:
ऐसे लोगों को घुमंतू या खानाबदोश कहते हैं जो एक स्थान पर टिक कर नहीं रहते बल्कि अपनी जीविका के निमित्त एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं। इन घुमंतू लोगों का जीवन इनके पशुओं पर निर्भर होता है। वर्ष भर किसी एक स्थान पर पशुओं के लिए पेयजल और चारे की (UPBoardSolutions.com) व्यवस्था सुलभ नहीं हो पाती ऐसे में ये एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमणशील रहते हैं। जब तक एक स्थान पर चरागाह उपलब्ध रहता है तब तक ये वहाँ रहते हैं, परन्तु चरागाह समाप्त होने पर पुनः दूसरे नए स्थान की ओर चले जाते हैं।
घुमंतू लोगों के निरंतर आवागमन से पर्यावरण को निम्न लाभ होते हैं-

  1. यह खानाबदोश कबीलों को बहुत से काम जैसे कि खेती, व्यापार एवं पशुपालन करने का अवसर प्रदान करता है।
  2. उनके पशु मृदा को खाद उपलब्ध कराने में सहायता करते हैं।
  3. यह चरागाहों को पुनः हरा-भरा होने और उसके अति-चारण से बचाने में सहायता करता है क्योंकि चरागाहें अतिचारण एवं लम्बे प्रयोग के कारण बंजर नहीं बनतीं।
  4. यह विभिन्न क्षेत्रों की चरागाहों के प्रभावशाली प्रयोग में सहायता करता है।
  5. निरंतर स्थान परिवर्तन के कारण किसी एक स्थान की वनस्पति का अत्यधिक दोहन नहीं होता है।
  6. चरागाहों की गुणवत्ता बनी रहती है।
  7. लगातार स्थान परिवर्तन से भूमि की उर्वरता बनी रहती है।

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प्रश्न 2.
इस बारे में चर्चा कीजिए कि औपनिवेशिक सरकार ने निम्नलिखित कानून क्यों बनाए? यह भी बताइए कि इन कानूनों से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा?

  1. परती भूमि नियमावली
  2. वन अधिनियम
  3. अपराधी जनजाति अधिनियम
  4. चराई कर।

उत्तर:
1. परती भूमि नियमावली बनाने के कारण – अंग्रेज सरकार परती भूमि को व्यर्थ मानती थी, क्योंकि परती भूमि से उसे कोई लगान प्राप्त नहीं होती थी। साथ ही परती भूमि का उत्पादन में कोई योगदान नहीं होता था। यही कारण था कि अंग्रेज सरकार ने परती भूमि का विकास करने के लिए (UPBoardSolutions.com) अनेक नियम बनाए जिन्हें परती भूमि नियमावली के नाम से जाना जाता है।
परती भूमि नियमावली का चरवाहों के जीवन पर प्रभाव-

  1. चरवाहे अपने पशुओं को अब निश्चित चरागाहों में ही चराते थे जिससे चारा कम पड़ने लगा।
  2. चारे की कमी के कारण पशुओं की सेहत और संख्या घटने लगी।
  3. चरागाहों का आकार सिमटकर बहुत छोटा रह गया।
  4. बचे हुए चरागाहों पर पशुओं का दबाव बहुत अधिक बढ़ गया।

2. वन अधिनियम बनाने के कारण – अंग्रेज वन अधिकारी ऐसा मानते थे कि वनों में पशुओं को चराने के अनेक नुकसान हैं। पशुओं के चरने से छोटे जंगली पौधों और वृक्षों की नयी कोपलें नष्ट हो जाती हैं जिससे नए पेड़ों का विकास रुक जाता है। इसलिए औपनिवेशिक (UPBoardSolutions.com) सरकार ने अनेक वन अधिनियम पारित किए जिसके द्वारा वनों को आरक्षित तथा पशुचारण को नियमित किया जा सके।
वन अधिनियम का चरवाहों पर प्रभाव-

  1. वनों में उनके प्रवेश और वापसी का समय निश्चित कर दिया गया।
  2. वन नियमों का उल्लंघन करने पर भारी जुर्माने की व्यवस्था लागू की गई।
  3. घने वन जो बहुमूल्य चारे के स्रोत थे, उनमें पशुओं को चराने पर रोक लगा दी गई।
  4. कम घने वनों में पशुओं को चराने के लिए परमिट लेना अनिवार्य कर दिया गया।

3. “अपराधी जनजाति अधिनियम बनाने के कारण – अंग्रेज अधिकारी घुमंतू लोगों को शक की निगाह से देखते थे। अंग्रेजों का ऐसा मानना था कि इन लोगों के बार-बार स्थान परिवर्तन के कारण इन लोगों की पहचान करना तथा इनका विश्वास करना कठिन कार्य है। घुमंतू लोगों से कर संग्रह करना और कर निर्धारण दोनों कठिन कार्य हैं। उक्त कारणों से प्रेरित होकर अंग्रेज सरकार ने 1871 ई० में (UPBoardSolutions.com) अनेक घुमंतू समुदायों को अपराधी समुदायों की सूची में डाल दिया और उनकी बिना परमिट आवागमन को प्रतिबन्धित कर दिया।
अपराधी जनजाति अधिनियम को घुमंतू लोगों पर प्रभाव-

  1. अनेक समुदायों ने पशुपालन के स्थान पर वैकल्पिक व्यवसायों को अपनाना आरंभ कर दिया।
  2. अपराधी सूची में शामिल किए गए घुमंतू समुदाय एक स्थान पर स्थायी रूप से रहने के लिए विवश हो गए।
  3. स्थायी रूप से बसने के कारण अब वे स्थानीय चरागाहों पर ही निर्भर ही गए जिसके कारण उनके पशुओं की संख्या में तेजी से कमी आई।

4. चराई कर लागू किए जाने के कारण – अंग्रेज सरकार ने अपनी आय बढ़ाने के लिए यथासंभव प्रयास किया। इसी क्रम में चरवाहों पर चराई कर लगाया गया। चरवाहों से चरागाहों में चरने वाले एक-एक जानवर पर करे वसूल किया जाने लगा। देश के अधिकतर चरवाही इलाकों में 19वीं सदी के मध्य से ही चरवाही टैक्स लागू कर दिया गया था। प्रति मवेशी कर की देर तेजी से बढ़ती चली गयी और कर वसूली की व्यवस्था दिनोंदिन सुदृढ़ होती गयी। 1850 से 1880 ई० के दशकों के बीच टैक्स वसूली का काम बाकायदा बोली लगाकर ठेकेदारों को सौंप जाता था।

ठेकेदारी पाने के लिए ठेकेदार सरकार को जो पैसा देते थे उसे वसूल करने और साल भर में ज्यादा से ज्यादा मुनाफ़ा बनाने के लिए वे जितना चाहे उतना कर वसूल सकते थे। 1880 ई० के दशक तक आते-आते सरकार ने अपने कारिंदों के माध्यम से सीधे चरवाहों से ही कर वसूलना शुरू (UPBoardSolutions.com) कर दिया। हरेक चरवाहे को एक ‘पास’ जारी कर दिया गया। किसी भी चरागाह में दाखिल होने के लिए चरवाहों को पास दिखाकर पहले टैक्स अदा करना पड़ता था। चरवाहे के साथ कितने जानवर हैं और उसने कितना टैक्स चुकाया है, इस बात को उसके पास में दर्ज कर दिया जाता था।

चरवाहों पर चराई कर का प्रभाव–प्रति मवेशी कर लागू होने पर चरवाहों ने पशुओं की संख्या को सीमित कर दिया। अनेक चरवाहों ने अवर्गीकृत चरागाहों की खोज में स्थान परिवर्तन कर लिया। अनेक चरवाहा समुदायों ने पशुपालन के साथसाथ वैकल्पिक व्यवसायों को अपनाना आरंभ कर दिया। इससे पशुपालन करने वालों की कठिनाई को समझा जा सकता है।

प्रश्न 3.
मसाई समुदाय के चरागाह उनसे क्यों छिन गए? कारण बताएँ।।
उत्तर:
‘मासाई’, पूर्वी अफ्रीका का एक प्रमुख चरवाहा समुदाय है। औपनिवेशिक शासनकाल में मसाई समुदाय के चरागाहों को सीमित कर दिया गया। अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं तथा प्रतिबन्धों ने उनकी चरवाही एवं व्यापारिक दोनों ही गतिविधियों पर विपरीत प्रभाव डाला। मासाई समुदाय के (UPBoardSolutions.com) अधिकतर चरागाह उस समय छिन गए जब यूरोपीय साम्राज्यवादी शक्तियों ने अफ्रीका को 1885 ई० में विभिन्न उपनिवेशों में बाँट दिया।

श्वेतों के लिए बस्तियाँ बनाने के लिए मासाई लोगों की सर्वश्रेष्ठ चरागाहों को छीन लिया गया और मासाई लोगों को दक्षिण केन्या एवं उत्तर तंजानिया के छोटे से क्षेत्र में धकेल दिया गया। उन्होंने अपने चरागाहों का लगभग 60 प्रतिशत भाग खो दिया। औपनिवेशिक सरकार ने उनके आवागमन पर विभिन्न बंदिशें लगाना प्रारंभ कर दिया। चरवाहों को भी विशेष आरक्षित स्थानों में रहने के लिए बाध्य किया गया। विशेष परमिट के बिना उन्हें उन सीमाओं से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी। क्योंकि मासाई लोगों को एक निश्चित क्षेत्र में सीमित कर दिया गया था, इसलिए वे सर्वश्रेष्ठ चरागाहों से कट गए और एक ऐसी अर्द्ध-शुष्क पट्टी में रहने पर

मजबूर कर दिया गया जहाँ सूखे की आशंका हमेशा बनी रहती थी। उन्नीसवीं सदी के अंत में पूर्व अफ्रीका में औपनिवेशिक सरकार ने स्थानीय किसान समुदायों को अपनी खेती की भूमि बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया। जिसके परिणामस्वरूप मासाई लोगों के चरागाह खेती की जमीन में तब्दील हो गए।
मासाई लोगों के रेवड़ (भेड़-बकरियों वाले लोग) चराने के विशाल क्षेत्रों को शिकारगाह बना दिया गया (उदाहरणतः कीनिया में मासाई मारा व साम्बूरू नैशनल पार्क (UPBoardSolutions.com) और तंजानिया में सेरेनगेटी पार्क। इन आरक्षित जंगलों में चरवाहों को आना मना था। वे इन इलाकों में न तो शिकार कर सकते थे और न अपने जानवरों को ही चरा सकते थे। 14,760 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला सेरेनगेटी नैशनल पार्क भी मसाईयों के चरागाहों पर कब्जा करके बनाया गया था।

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प्रश्न 4.
आधुनिक विश्व ने भारत और पूर्वी अफ्रीकी चरवाहा समुदायों के जीवन में जिन परिवर्तनों को जन्म दिया उनमें कई समानताएँ थीं। ऐसे दो परिवर्तनों के बारे में लिखिए जो भारतीय चरवाहों और मासाई गड़रियों, दोनों के बीच समान रूप से मौजूद थे।
उत्तर:
भारत और पूर्वी अफ्रीका दोनों ही उस समय औपनिवेशिक शक्तियों के अधीन थे, इसलिए उन पर शासन करने वाली औपनिवेशिक शक्तियाँ उन्हें संदेह की दृष्टि से देखती थीं। इन दोनों देशों में औपनिवेशिक शोषण के तरीके में भी समानता थी।
मासाई गड़रियों और भारतीय चरवाहों को हम निम्न रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं-
(i) भारत और अफ्रीका दोनों में ही जंगल यूरोपीय शासकों द्वारा आरक्षित कर दिए गए और चरवाहों का इन जंगलों में प्रवेश निषेध कर दिया गया। ये आरक्षित जंगल इन दोनों देशों में अधिकतर उन क्षेत्रों में थे जो पारंपरिक रूप से खानाबदोश चरवाहों की चरगाह थे। इस प्रकार, (UPBoardSolutions.com) दोनों ही मामलों में औपनिवेशिक शासकों ने खेतीबाड़ी को प्रोत्साहन दिया जो अंततः चरवाहों की चरागाहों के पतन का कारण बनी।

(ii) भारत और पूर्वी अफ्रीका के चरवाहा समुदाय खानाबदोश थे और इसलिए उन पर शासन करने वाली औपनिवेशिक शक्तियाँ उन्हें अत्यधिक संदेह की दृष्टि से देखती थीं । यह उनके और अधिक पतन का कारण बना।

(iii) दोनों स्थानों के चरवाहा समुदाय अपनी-अपनी चरागाहें कृषि-भूमि को तरजीह दिए जाने के कारण खो बैठे। भारत में चरागाहों को खेती की जमीन में तब्दील करने के लिए उन्हें कुछ चुनिंदा लोगों को दिया गया। जो जमीन इस प्रकार छीनी गई थी वे अधिकतर चरवाहों की चरागाहें थीं। ऐसे बदलाव चरागाहों के पतन एवं चरवाहों के लिए बहुत-सी समस्याओं का कारण बन गए। इसी प्रकार (UPBoardSolutions.com) अफ्रीका में भी मासाई लोगों की चरागाहें श्वेत बस्ती बसाने वाले लोगों द्वारा उनसे छीन ली गईं और उन्हें खेती की जमीन बढ़ाने के लिए स्थानीय किसान समुदायों को हस्तांतरित कर दिया गया।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
औपनिवेशिक सरकार ने ‘अपराधी जनजाति अधिनियम’ कब पारित किया?
उत्तर:
सन् 1871 में।

प्रश्न 2.
गुज्जर बकरवाल समुदाय किस राज्य से सम्बन्धित है?
उत्तर:
गुज्जर बकरवाल समुदाय भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य से सम्बन्धित है।

प्रश्न 3.
कर्नाटक व आंध्र प्रदेश के प्रमुख चरवाहा समुदायों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कर्नाटक व आंध्र प्रदेश के प्रमुख चरवाहा समुदाय हैं-गोल्ला, कुरूमा, कुरूबा आदि।

प्रश्न 4.
राइका समुदाय भारत के किस राज्य से सम्बन्धित है?
उत्तर:
‘राइका’ समुदाय भारत के राजस्थान राज्य से सम्बन्धित है।

प्रश्न 5.
बंजारा समुदाय के लोग देश के किन राज्यों में पाए जाते हैं?
उत्तर:
बंजारा समुदाय के लोग भारत के उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र राज्यों में पाए जाते हैं।

प्रश्न 6.
गद्दी समुदाय किस राज्य से सम्बन्धित है?
उत्तर:
गद्दी समुदाय के लोग देश के हिमाचल प्रदेश राज्य से सम्बन्धित हैं।

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प्रश्न 7.
बुग्याल से क्या आशय है?
उत्तर:
ऊँचे पहाड़ों पर स्थित घास के हरे-भरे मैदानों को बुग्याल कहते हैं।

प्रश्न 8.
धंगर समुदाय बारिश शुरू होते ही सूखे पठारों की ओर क्यों लौट जाते हैं?
उत्तर:
धंगर समुदाय के लोग प्रमुख रूप से भेड़-बकरियाँ पालते हैं। भेड़ें मानसून के गीले मौसम को बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं इसलिए वे इस मौसम में सूखे पठारों की ओर चले जाते हैं।

प्रश्न 9.
अफ्रीका के प्रमुख चरवाहा समुदाय और उनके द्वारा पालित मवेशियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विश्व की आधी से अधिक चरवाही जनसंख्या अफ्रीका में निवास करती है। इनमें बेदुईन्स, बरबेर्स, मासाई, सोमाली, बोरान और तुर्काना जैसे समुदाय भी शामिल हैं। इनमें से अधिकतर अब अर्द्ध शुष्क घास के मैदानों या सूखे रेरिनों में रहते हैं जहाँ वर्षा आधारित खेती करना बहुत कठिन है। ये ऊँट, बकरी, भेड़ व गधे जैसे पशु पालते हैं और दूध, मांस, पशुओं की खाल व ऊन आदि बेचते हैं।

प्रश्न 10.
नोमड़ किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
नोमड़ वे लोग हैं जो एक स्थान पर नहीं रहते अपितु अपनी आजीविका कमाने के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाते रहते हैं। भारत के कई हिस्सों में हम प्रायः खानाबदोश चरवाहों को उनके बकरियों और भेड़ों या ऊँटों और अन्य पशुओं के साथ घूमते हुए देखते हैं।

प्रश्न 11.
अपराधी जनजाति अधिनियम 1871 के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
औपनिवेशिक सरकार खानाबदोश कबीलों को अपराधी की नजर से देखती थी। भारत की औपनिवेशिक सरकार द्वारा सन् 1871 में अपराधी जनजाति अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम ने दस्तकारों, व्यापारियों और चरवाहों के बहुत सारे समुदायों को अपराधी समुदायों की (UPBoardSolutions.com) सूची में रख दिया। बिना किसी वैध परिमट के इन समुदायों को उनकी विशिष्ट ग्रामीण बस्तियों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी।

प्रश्न 12.
भारत के विभिन्न भागों में पाए जाने वाले चरवाहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
गुज्जर बकरवाल जम्मू कश्मीर के घुमन्तू चरवाहे, गद्दी हिमाचल प्रदेश के घुमंतू चरवाहे, धंगर महाराष्ट्र के घुमंतू चरवाहे, कुरुमा, कुरुबा तथा गोल्ला कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के चरवाहे, बंजारे उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के घुमंतू चरवाहे, राइका राजस्थान के घुमंतू चरवाहे आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न 13.
औपनिवेशिक शासन का चरवाहों की जिन्दगी पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन के दौरान चरवाहों की जिंदगी में गहरे बदलाव आए। उनके चरागाह सिमट गए, इधर-उधर आने जाने पर बंदिशें लगने लगीं और उनसे जो लगान वसूल किया जाता था उसमें भी वृद्धि हुई। खेती में उनका हिस्सा घटने लगा और उनके पेशे और हुनरों पर भी बहुत बुरा असर पड़ा।

प्रश्न 14.
कुरुबा, कुरुमा और गोल्ला चरवाही के अलावा और कौन-सा व्यवसाय करते हैं?
उत्तर:
गोल्ला समुदाय के लोग गाय-भैंस पालते थे जबकि कुरुमा और कुरुबा समुदाय भेड़-बकरियाँ पालते थे और हाथ के बुने कम्बल बेचते थे। ये लोग जंगलों और छोटे-छोटे खेतों के आस-पास रहते थे। वे अपने जानवरों की देखभाल के साथ-साथ कई दूसरे काम-धंधे भी करते थे।

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प्रश्न 15.
किन्नौरी, शेरपा और भोटिया किस तरह के चरवाहे हैं?
उत्तर:
हिमालय के पर्वतीय भागों में रहने वाले भोटिया, शेरपा और किन्नौरी समुदाय के लोग अपने मवेशियों को चराने के काम हेतु मौसमी बदलावों के हिसाब से खुद को ढालते थे और अलग-अलग इलाकों में पड़ने वाले चरागाहों का बेहतरीन इस्तेमाल करते थे। जब एक चरागाह की हरियाली (UPBoardSolutions.com) खत्म हो जाती थी या इस्तेमाल के काबिल नहीं रह जाती थी तो वे किसी और चरागाह की तरफ चले जाते थे।

प्रश्न 16.
गद्दी चरवाहे किस तरह अपने मवेशियों को चराते थे? उत्तर- हिमाचल प्रदेश के गद्दी चरवाहे मौसमी
उतार:
चढ़ाव का सामना करने के लिए इसी तरह सर्दी-गर्मी के हिसाब से अपनी जगह बदलते रहते थे। वे भी शिवालिक की निचली पहाड़ियों में अपने मवेशियों को झाड़ियों में चराते हुए जाड़ा बिताते थे। अप्रैल आते-आते वे उत्तर की तरफ चल पड़ते और पूरी गर्मियाँ लाहौल और स्पीति में बिता देते। जब बर्फ पिघलती और ऊँचे दरें खुल जाते तो उनमें से बहुत सारे ऊपरी पहाड़ों में स्थित घास के मैदानों में जा पहुँचते थे।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अफ्रीका के निर्धन चरवाहों का जीवन उनके मुखिक से किस तरह अलग था?
उत्तर:
मुखियाओं के पास नियमित आमदनी थी जिससे वे जानवर, सामान और जमीन खरीद सकते थे। वे युद्ध एवं अकाल की विभीषिका को झेल कर बचे रह सकते थे। उन्हें अब चरवाही एवं गैर-चरवाही दोनों तरह की आमदनी होती थी और अगर उनके जानवर किसी वजह से घट (UPBoardSolutions.com) जाते तो वे और जानवर खरीद सकते थे। किन्तु ऐसे चरवाहों का जीवन इतिहास अलग था जो केवल अपने पशुओं पर ही निर्भर थे। प्रायः उनके पास बुरे सैमय में बचे रहने के लिए संसाधन नहीं होते थे। युद्ध एवं अकाल के दिनों में वे अपना लगभग सब कुँछ आँवा बैठते थे।

प्रश्न 2.
औपनिवेशिक सरकार ने अफ्रीकी चरवाहों पैर कौन-से प्रतिबन्ध लगाए थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक सरकार ने अफ्रीकी चरवाहों पर निम्न प्रतिबन्ध लगाए-

  1. मासीई लोगों के रेवेंड़ चराने के विशील क्षेत्रों को शिकारगाह बना दिया गया। इन आरक्षित जंगलों में चरवाहों को आना मना था।
  2. मूल निवासियों को भी पास जारी किए गए थे जिन्हें दिखाए बिना उन्हें प्रतिबंधित क्षेत्रों में प्रवेश करने नहीं दिया जाता था।
  3. औपनिवेशिक सरकार ने उनके आने-जाने पर विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध लगा दिए।
  4. चरवाहा समुदाय को विशेष रूप से निर्धारित स्थानों पर निवास करने के लिए बाध्य किया गया।
  5. बिना किसी वैधं परमिट के ईनं (UPBoardSolutions.com) समुदायों को उनकी विशिष्ट ग्रामीण बस्तियों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी।
  6. वे सर्वश्रेष्ठ चरागाहों से कैट गए और उन्हें एक ऐसी अर्द्ध-शुष्क पट्टी में रहने पर मजबूर कर दिये गये जहाँ सूखे की आशंका हमेशा बनी रहती थी।

प्रश्न 3.
औपनिवेशिक सरकार ने भीरत में परेती भूमि नियमावली क्यों लागू की तथा इसका क्या प्रभाव हुआ?
उत्तर:
औपनिवेशिक सरकार परती भूमि को बैंकार मानती थी, क्योंकि इससे उसे कोई राजस्व प्राप्त नहीं होता था। अतः वह सभी चरागाहों को कृषि भूमि में परिवर्तित कैरनी चाहती थी। उसका मानना था कि यदि ऐसा कर दिया जाए तो भू-राजस्व भी बढ़ेगा और जूट (पटसन), कपास, गेहूँ जैसी फसलों के उत्पादन में भी वृद्धि होगी। सभी चरागाहों को अंग्रेज सरकार परती भूमि मानती थी क्योंकि उससे उन्हें कोई लंगान नहीं मिलती था। उन्नीसवीं सदी के मध्य से देश के विभिन्न भागों में परती भूमि विकास के लिए नियम बनाए जाने लगे। इन (UPBoardSolutions.com) नियमों की सहायता से सरकार गैर-खेतिहर जमीन को अपने अधिकार में लेकर कुछ विशेष लोगों को सौंपने लगी। इन लोगों को विभिन्न प्रकार की छूट प्रदान की गई और ऐसी भूमि पर खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इनमें से कुछ लोगों को इस नई जमीन पर बसे गाँव का मुखिया बना दिया गया। इस तरह कब्जे में ली गई ज्यादातर जमीन वास्तव में चरागाहों की थी जिनका चरवाहे नियमित रूप से इस्तेमाल किया करते थे। इस तरह खेती के फैलाव से चरागाह सिमटने लगे जिसने चरवाहों के जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव डाली।

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प्रश्न 4.
राइको समुदाय के जीवन-विधि को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राइका देश के पश्चिमी राज्य राजस्थान का प्रमुख चरवाहा समुदाय है। यह क्षेत्र वर्ष में बहुत कम हैं #प्त करता है। इसीलिए खेती की उपज हर साल घटती-बढ़ती रहती थी। बहुत सारे इलाकों में तो दूर-दूर तक कोई फल होती ही नहीं थी। इसके चलते राइका खेती के साथ-साथ चरवाही का भी काम करते थे। बरसात में तो बाड़मेर, जैसलमेर, औध और बीकानेर के राइका अपने गाँवों में ही रहते थे क्योंकि इस दौरान (UPBoardSolutions.com) उन्हें वहीं चारा मिल जाता था। लेकिन अक्टूबर आते-अति ये चरागाह सूखने लगते थे। नतीजतन ये लोग नए चरागाहों की तलाश में दूसरे इलाकों की तरफ निकल जाते थे और अगंली बरसात में ही वापस लौटते थे। राइकाओं का एक वर्ग ऊँट पालता था जबकि कुछ भेड़-बकरियाँ पालते थे।

प्रश्न 5.
घरवाहा समुदाय की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चरवाहा समुदाय का जीवन निरंतर प्रकृति से संघर्ष में बीतता था। उन्हें निरंतर प्राकृतिक एवं मानवीय समस्याओं और बदलती परिस्थितियों का सामना करना पड़ता था, जैसे-
(क) स्थायी संबंधों की स्थापनी – उन्हें अपने प्रवास के प्रत्येक ठिकाने ,पर रहने वाले निवासियों तथा अधिकारियों से घनिष्ठ संपर्क बनाए रखने की आवश्यकता होती है अन्यथा वे उन क्षेत्रों में उनके पशुचारण पर प्रतिबंध लगी कते हैं।

(ख) दिशा का निर्धारण – प्रवास की दिशा निर्धारित करना चरवाहा समुदाय की एक प्रमुख समस्या होती है क्योंकि गलत दिशा का चयन उन्हें तथा उनके पशुओं के लिए भोजन तथा पानी की समस्या उपस्थित कर सकता है।

(ग) प्रवास की समय सीमा का निर्धारण – प्रवास काल में किस स्थान पर कितने समय तक रुकना है जिससे वे चरागाहों तक सही समय पर पहुँच सकें और मौसम बिगड़ने से पहले सही सलामत वापस आ सकें अर्थात् प्रवास की अवधि और रेवड़ के साथ कब और कहाँ ठहरना है (UPBoardSolutions.com) आदि, का निर्धारणजी एक कठिन समस्या होती है जिसे एक लंबे अनुभव द्वारा ही हल किया जा सकता है। चरवाहा समुदाय अपनी जीवन सम्बन्धी अनेक आवश्यकताओं के लिए गैर-चरवाहा समुदायों पर भी निर्भर होते हैं, ऐसे में समाज अन्य समूहों से भी उनके मानवीय सम्बन्ध स्थापित होते हैं।

प्रश्न 6.
चराई-कर ने चरवाहा समुदाय पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर:
चराई-कर का चरवाहा समुदाय पर प्रभाव-भारत में अंग्रेज सरकार ने 19वीं शताब्दी के मध्य अपनी आय बढ़ाने के लिए अनेक नए कर लगाए। इन्हीं में से एक चराई-कर था, जो पशुओं पर लगाया गया था। यह कर प्रति पशु पर लिया जाता था। कर वसूली के तरीकों में परिवर्तन के साथ-साथ यह कर निरंतर बढ़ता गया। पहले तो यह कर सरकार स्वयं वसूल करती थी परंतु बाद में यह काम ठेकेदारों को सौंप दिया गया। ठेकेदार बहुत अधिक कर वसूल करते थे और सरकार को एक निश्चित कर ही देते थे। फलस्वरूप खानाबदोशों का शोषण होने लगा। अतः बाध्य होकर उन्हें अपने पशुओं की संख्या कम करनी पड़ी। फलस्वरूप खानाबदोशों के लिए रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई।
इस प्रकार औपनिवेशिक सरकार द्वारा लागू किए गए इन विभिन्न नियमों ने चरवाहा समुदायों के जीवन को और अधिक कष्टपूर्ण बना दिया।

प्रश्न 7.
औपनिवेशिक प्रतिबन्धों ने चरवाहा समुदाय पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर:
औपनिवेशिक प्रतिबन्धों ने चरवाहा समुदाय को निम्न प्रकार से प्रभावित किया-

  1. चरागाहों की कमी होने के कारण बचे हुए चरागाहों पर दबाव बहुत अधिक बढ़ गया जिससे चरागाहों की गुणवत्ता में कमी आई।
  2. चारे की मात्रा और गुणवत्ता में कमी का प्रभाव पशुओं के स्वास्थ्य एवं संख्या पर भी पड़ा।
  3. इससे चरागाह क्षेत्रों के कमी की समस्या उत्पन्न हो गई जिसके कारण चरवाहा समुदायों के सामने रोजी-रोटी का संकट उपस्थित हो गया।
  4. वनों को आरक्षित कर दिया गया जिसके कारण अब वे वनों में पहले की तरह आजादी से अपने पशुओं को नहीं चरा सकते थे।

प्रश्न 8.
बार-बार पड़ने वाले अकाल का मासाई समुदाय के चरागाहों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अकाल किसी भी स्थान की फसलों, चरागाहों और जन-जीवन पर विनाशकारी प्रभाव डालता है। वर्षा न होने पर चरागाह सूख जाते हैं। ऐसी स्थिति में यदि चरवाहे स्थानान्तरण न करें तो भोजन के अभाव में जानवरों की मृत्यु निश्चित है। फिर भी औपनिवेशिक प्रशासन में मासाई (UPBoardSolutions.com) लोगों को प्रतिबंधित क्षेत्रों में रहने के लिए बाध्य किया गया। विशेष परमिट के बिना ये लोग इनकी सीमाओं के बाहर नहीं जा सकते थे।

1933 और 1934 ई0 में पड़े केवल दो साल के भयंकर सूखे में मासाई आरक्षित क्षेत्र के आधे से अधिक जानवर मर चुके थे। जैसे-जैसे चरने की जगह सिकुड़ती गई, सूखे के दुष्परिणाम भयानक रूप लेते चले गए। बार-बार आने वाले बुरे सालों की वजह से चरवाहों के जानवरों की संख्या में लगातार गिरावट आती गई।

प्रश्न 9.
औपनिवेशिक सरकार मासाई समुदाय में मुखिया की नियुक्ति क्यों करती थी?
उत्तर:
औपनिवेशिक सरकार ने विभिन्न मासाई समुदाय में मुखिया की नियुक्ति की। मुखिया कबीलों से सम्बन्धित मामलों को देखते थे। ये मुखिया धीरे-धीरे धन संचय करने लगे। उनके पास अपनी नियमित आमदनी थी जिससे वे जानवर, सामान और जमीन खरीद सकते थे। वे अपने गरीब पड़ोसियों को लगान चुकाने के लिए कर्ज देते थे। उनमें से अधिकतर मुखिया बाद में शहरों में जाकर बस गए और व्यापार करने लगे। अब वे युद्ध एवं अकाल की विभीषिका को झेल कर बचे रह सकते थे। उन्हें अब चरवाही एवं गैर-चरवाही दोनों तरह की आमदनी होती थी और अगर उनके जानवर किसी वजह से घट जाते तो वे
और जानवर खरीद सकते थे।

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प्रश्न 10.
कोंकण के स्थानीय किसान धंगर चरवाहों का स्वागत क्यों करते थे?
उत्तर:
कोंकण एक उपजाऊ क्षेत्र है और यहाँ पर्याप्त वर्षा होती है। यहाँ के किसान चावल की खेती करते हैं।
वे दो कारणों से धंगर चरवाहों का स्वागत करते हैं-

  1. धंगर के पशुओं का गोबर तथा मलमूत्र मिट्टी में मिल जाता है, जिससे भूमि पुनः उर्वरता प्राप्त कर लेती है। प्रसन्न होकर कोंकण के किसान धंगरों को चावल देते हैं जो वे वापस लौटते समय अपने साथ ले जाते हैं।
  2. जब धंगर कोंकण पहुँचते हैं तब तक खरीफ की फसल की कटाई हो चुकी होती है। तब किसानों को अपने खेत रबी की फसल के लिए तैयार करने होते हैं। (UPBoardSolutions.com) उनके खेतों में धान के इँठ अभी मिट्टी में फँसे होते हैं। धंगरों के पशु इन इँठों को खा जाते हैं और मिट्टी साफ हो जाती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अफ्रीका में चरवाही पर एक संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए।
उत्तर:
विश्व की आधे से अधिक चरवाही जनसंख्या अफ्रीका में निवास करती है। आज भी अफ्रीका के लगभग सवा दो करोड़ लोग रोजी-रोटी के लिए किसी-न-किसी तरह की चरवाही गतिविधियों पर ही आश्रित हैं। इनमें बेदुईन्स, बरबेर्स, मासाई, सोमाली, बोरान और तुर्काना जैसे जाने-माने समुदाय भी शामिल हैं। इनमें से अधिकतर अब अर्द्ध-शुष्क घास के मैदानों या सूखे रेगिस्तानों में रहते हैं जहाँ वर्षा आधारित खेती करना बहुत कठिन है। यहाँ के चरवाहे गाय, बैल, ऊँट, बकरी, भेड़ व गधे पालते हैं। ये लोग दूध, मांस, पशुओं की खाल व ऊन आदि बेचते हैं। कुछ चरवाहे व्यापार और यातायात संबंधी काम भी करते हैं। कुछ लोग आमदनी बढ़ाने के लिए (UPBoardSolutions.com) चरवाही के साथ-साथ खेती भी करते हैं। कुछ लोग चरवाही से होने वाली मामूली आय से गुजर नहीं हो पाने पर कोई भी धंधा कर लेते हैं। अफ्रीकी चरवाहों को जीवन औपनिवेशिक काल एवं उत्तर-औपनिवेशिक काल में बहुत अधिक बदल गया है। उन्नीसवीं सदी के अंतिम सालों से ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार पूर्वी अफ्रीका में भी स्थानीय किसानों को अपनी खेती के क्षेत्रफल को अधिक से अधिक फैलाने के लिए प्रोत्साहित करने लगी। जैसे-जैसे खेती का प्रसार हुआ वैसे-वैसे चरागाह खेतों में तब्दील होने लगे। ये चरवाहों के लिए ढेरों कठिनाइयाँ लेकर आए। उनका जीवन बहुत कठिन बन गया।

प्रश्न 2.
मासाई समुदाय के सामाजिक जीवन का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
मासाई लोगों की वास्तविक संपत्ति इनके पशु होते हैं। प्रत्येक मासाई परिवार में बड़ी संख्या में पशु-पालन किया जाता है। पशुओं से दूध निकालने का कार्य महिलाएँ करती हैं। यह कार्य दिन निकलने से पहले और सूर्य डूबने से पहले किया जाता है। ये लोग प्रायः कच्चे दूध का ही उपयोग करते हैं। केवल रोगग्रस्त मासाई ही उबालकर दूध का उपयोग करते हैं। दूध को हिलाकर मक्खन बनाया जाता है किन्तु ये लोग पनीर बनाना नहीं जानते। मासाई लोग भेड़ पालन भी करते हैं। इनसे दूध, ऊन तथा मांस प्राप्त होता है। परंतु भेड़ों का (UPBoardSolutions.com) स्थान इनके सामाजिक जीवन में अधिक महत्त्व का नहीं है, भेड़ों के साथ कुछ बकरियाँ भी पाली जाती हैं। बकरियों से दूध और मांस दोनों प्राप्त होते हैं। अधिकांश परिवारों में कुछ गधे भी पाले जाते हैं, जिन पर बोझा ढोने का काम लिया जाता है। कुछ लोग इस कार्य के लिए ऊँट भी रखते हैं। कुत्तों का प्रयोग पशुओं की देखभाल के लिए किया जाता है।

मासाई समुदाय के सभी सदस्य पशुपालन का कार्य नहीं करते हैं। प्रायः 16 से 30 वर्ष के लोगों को युद्ध के लिए रखा जाता है। इनका कर्त्तव्य अपने दल के लोगों तथा पशुओं की रक्षा करना है। ये सिपाही बड़े आनंद से जीवन बिताते हैं। ये लोग तेज धार वाले बचें, लोहे की तलवार और हड्डी की बनी ढाल का प्रयोग करते हैं।

मासाई समाज की एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि समय-समय पर युवकों को योद्धाओं के दल में भेजा जाता है। ये उन लोगों का स्थान ग्रहण करते हैं जो प्रौढ़ हो जाते हैं और उन्हें शादी करके परिवार बसाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। युवकों को योद्धावर्ग में सम्मिलित होने से पूर्व (UPBoardSolutions.com) योद्धाओं के सब गुण अपनाने पड़ते हैं और बाद में उनका मुंडन-संस्कार होता है। प्रत्येक वर्ग को कुछ नाम दिया जाता है, जैसे-‘लुटेरा’, ‘सफेद तलवार’ इत्यादि। योद्धाओं का आयु के अनुसार वर्गीकरण किया जाता है। मासाई लोग सदा अपनी संपत्ति को बढ़ाने का प्रयत्न करते हैं, जिसमें ये योद्धा बड़े सहायक होते हैं।
मासाई के जीवन की तीन मुख्य अवस्थाएँ होती हैं-

  1. बालपन,
  2. योद्धापन और
  3. वृद्ध।

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प्रश्न 3.
भारत के पठारी क्षेत्र में रहने वाले धंगर चरवाहा समुदाय का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
धंनगर (धंगर) महाराष्ट्र का प्रमुख चरवाहा समुदाय है। ये लोग महाराष्ट्र के मध्य पठारी क्षेत्रों में रहते हैं। 20वीं सदी की शुरुआत में इनकी जनसंख्या 4,67,000 थी। इस समुदाय के अधिकांश लोग पशुचारण पर आश्रित हैं परंतु कुछ लोग कंबल और चादरें भी बनाते हैं। महाराष्ट्र का यह भाग कम वर्षा वाला क्षेत्र होने के कारण अर्द्धशुष्क प्रदेश है। यहाँ प्राकृतिक वनस्पति के रूप में काँदेदार झाड़ियाँ मिलती हैं जो पशुओं को चारा जुटाती हैं। अक्टूबर में यहाँ बाजरा की फसल काटने के उपरांत ये लोग पश्चिम में कोंकण क्षेत्र में पहुँच जाते थे। इस यात्रा में लगभग एक महीना लग जाता था। कोंकण एक उपजाऊ प्रदेश है और यहाँ वर्षा भी पर्याप्त होती है।

अतः यहाँ के किसान चावल की खेती करते थे। ये धंगर चरवाहों का स्वागत करते थे जिसके मुख्य कारण निम्नलिखित थे जिसे समय धंगर किसान कोंकण पहुँचते थे उस समय तक खरीफ (चावल) की फसल कट चुकी होती थी। अब किसानों को अपने खेत रबी की फसल के लिए तैयार करने (UPBoardSolutions.com) होते थे। उनके खेतों में धान के नँठ अभी मिट्टी में फँसे होते थे। धांगरों के पशु इन ढूंठों को खा जाते थे और मिट्टी साफ हो जाती थी। धंगरों के पशुओं का गोबर तथा मलमूत्र मिट्टी में मिल जाता था। अतः मिट्टी फिर से उर्वरता प्राप्त कर लेती थी। प्रसन्न होकर कोंकणी किसान धांगरों को चावल देते थे जो वे वापसी पर अपने साथ ले जाते थे।

प्रश्न 4.
भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले चरवाहा समुदाय का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में अनेक चरवाहा समुदाय रहते हैं जिनमें से कुछ प्रमुख समुदायों का विवरण इस प्रकार है-
(1) गुज्जर समुदाय – मूलतः उत्तराखण्ड के निवासी गुज्जर लोग गाय और भैंस पालते हैं। ये हिमालय के गिरीपद क्षेत्रों (भाबर क्षेत्र) में रहते हैं। ये लोग जंगलों के किनारे झोंपड़ीनुमा आवास बना कर रहते हैं। पशुओं को चराने का कार्य पूरुष करते हैं। पहले दूध, मक्खन और घी इत्यादि को स्थानीय बाजार में बेचने का कार्य महिलाएँ करती थीं परंतु अब ये इन उत्पादों को परिवहन के साधनों (टैंपो, मोटरसाइकिल आदि) की सहायता से निकटवर्ती शहरों में बेचते हैं। इस समुदाय के लोगों ने इस क्षेत्र में स्थायी रूप से बसना (UPBoardSolutions.com) आरंभ कर दिया है परंतु अभी भी अनेक परिवार गर्मियों में अपने पशुओं को लेकर ऊँचे पर्वतीय घास के मैदानों (बुग्याल) की ओर चले जाते हैं। इस समुदाय को स्थानीय नाम ‘वन गुज्जर’ के नाम से भी जाना जाता है। अब इस समुदाय ने पशुचारण के साथ-साथ स्थायी रूप से कृषि करना भी आरंभ कर दिया है। हिमाचल के अन्य प्रमुख चरवाहा समुदाय भोटिया, शेरपा तथा किन्नौरी हैं।

(2) गुज्जर बकरवाल – इन लोगों ने 19वीं शताब्दी में जम्मू-कश्मीर में बसना आरंभ कर दिया। ये लोग भेड़-बकरियों के बड़े-बड़े झुण्ड पालते हैं जिन्हें रेवड़ कहा जाता है। बकरवाल लोग अपने पशुओं के साथ मौसमी स्थानान्तरण करते हैं। सर्दियों के मौसम में यह अपने पशुओं को लेकर शिवालिक पहाड़ियों में चले आते हैं क्योंकि ऊँचे पर्वतीय मैदान इस मौसम में बर्फ से ढक जाते हैं इसलिए उनके पशुओं के लिए चारे का अभाव होने लगता है जबकि हिमालय के दक्षिण में स्थित शिवालिक पहाड़ियों में बर्फ न होने के कारण उनके पशुओं को पर्याप्त मात्रा में चारा उपलब्ध हो जाता है। सर्दियों के समाप्त होने के साथ ही अप्रैल माह में यह समुदाय अपने काफिले को लेकर उत्तर की ओर चलना शुरू कर देते हैं।

पंजाब के दरों को पार करके जब ये समुदाय कश्मीर की घाटी में पहुँचते हैं तब तक गर्मी के कारण बर्फ पिघल चुकी होती है तथा चारों तरफ नई घास उगने लगती है। सितम्बर के महीने तक ये इस घाटी में ही डेरा डालते हैं और सितम्बर महीने के अंत में पुनः दक्षिण की ओर लौटने लगते हैं। (UPBoardSolutions.com) इस प्रकार यह समुदाय प्रति वर्ष दो बार स्थानांतरण करता है। हिमालय पर्वत में ये ग्रीष्मकालीन चरागाहें, 2,700 मीटर से लेकर 4,120 मीटर तक स्थित हैं।

(3) गद्दी समुदाय – हिमाचल प्रदेश के निवासी गद्दी समुदाय के लोग बकरवाल समुदाय की तरह अप्रैल और सितम्बर के महीने में ऋतु परिवर्तन के साथ अपना निवास स्थान परिवर्तित कर लेते हैं। सर्दियों में जब ऊँचे क्षेत्रों में बर्फ जम जाती है, तो ये अपने पशुओं के साथ शिवालिक की निचली पहाड़ियों में आ जाते हैं। मार्ग में वे लाहौल और स्पीति में रुककर अपनी गर्मियों की फसल को काटते हैं तथा सर्दियों की फसल की बुवाई करते हैं। अप्रैल के अंत में वे पुनः लाहौल और स्पीति पहुँच जाते हैं और अपनी फसल काटते हैं। (UPBoardSolutions.com) इसी बीच बर्फ पिघलने लगती है और दरें साफ हो जाते हैं इसलिए गर्मियों में अपने पशुओं के साथ ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में पहुँच जाते हैं। गद्दी समुदाय में भी पशुओं के रूप में भेड़ तथा बकरियों को ही पाला जाता है।

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प्रश्न 5.
मासाई समुदाय को औपनिवेशिक शासन ने किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:
मासाई समुदाय के जीवन को औपनिवेशिक शासन ने निम्न प्रकार से प्रभावित किया-
(1) सामाजिक हस्तक्षेप – औपनिवेशिक शासन ने मासाई की सामाजिक संरचना को भी प्रभावित किया। उन्होंने कई मासाई उपसमूहों के मुखिया तय कर दिए तथा उनके कबीलों की समस्त जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी। विभिन्न समुदायों के मध्य होने वाले युद्धों पर पाबंदी लगा दी गई जिसके कारण योद्धा वर्ग तथा वरिष्ठ जनों की परंपरागत सत्ता कमजोर हो गई। मासाई समाज धीरे-धीरे अमीर तथा गरीब में (UPBoardSolutions.com) बँटने लगा क्योंकि मुखिया की नियमित आमदनी के अनेक स्रोत थे परंतु साधारण चरवाहों की आय बहुत सीमित थी जिसके कारण उनके बीच का अंतर निरंतर बढ़ता गया।

(2) सीमाओं का निर्धारण – औपनिवेशिक शासन से पूर्व मासाई चरवाहों पर कोई क्षेत्रीय प्रतिबंध नहीं था। वे अपने रेवड़ के साथ भोजन तथा पानी की खोज में कहीं भी आ-जा सकते थे। परंतु अब सभी चरवाहा समुदायों को भी विशेष आरक्षित इलाकों की सीमाओं में कैद कर दिया गया। अब ये समुदाय इन आरक्षित इलाकों की सीमाओं के पार आ-जा नहीं सकते थे। वे विशेष पास लिए बिना अपने जानवरों को लेकर बाहर नहीं जा सकते थे। लेकिन परमिट (पास) हासिल करना भी कोई आसान काम नहीं था। इसके लिए उन्हें तरह-तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता था और उन्हें तंग किया जाता था। अगर कोई नियमों का पालन नहीं करता था तो उसे कड़ी सजा दी जाती थी।

(3) सूखा तथा अकाल की विषम स्थिति – औपनिवेशिक शासन से पूर्व कम वर्षा अथवा अकाल की स्थिति में चरवाहा समुदाय स्थान परिवर्तन के द्वारा इस प्राकृतिक आपदा का सामना सफलतापूर्वक कर लेते थे परंतु चरागाह समुदायों की सीमाओं का निर्धारण हो जाने के पश्चात् सूखे की आशंका सदा बनी रहती थी।

(4) शिकार के लिए चराई क्षेत्र को आरक्षण – मासाइयों के विशाल चराई क्षेत्र पर औपनिवेशिक शासकों ने पशुओं के शिकार के लिए पार्क बना दिए। इन पार्को में कीनिया के मासाई मारा तथा सांबू नेशनल पार्क तथा तंजानिया का सेरेंगेटी नेशनल पार्क के नाम लिए जा सकते हैं। सेरेंगेटी नेशनल पार्क 14,760 किमी से भी अधिक क्षेत्र पर बनाया गया था। मासाई लोग इन पार्को में न तो पशु चरा (UPBoardSolutions.com) सकते थे और न ही शिकार कर सकते थे।
अच्छे चराई क्षेत्रों के छिन जाने तथा जल संसाधनों के अभाव से शेष बचे चराई क्षेत्र की गुणवत्ता पर भी बुरा प्रभाव पड़ा। चारे की आपूर्ति में भारी कमी आई। फलस्वरूप पशुओं के लिए आहार जुटाने की समस्या गंभीर हो गई।

(5) चरागाहों का कम होना – औपनिवेशिक शासन से पहले मासाई लैंड का इलाका उत्तरी कीनिया से लेकर तंजानिया के घास के मैदानों (स्टेपीज) तक फैला हुआ था। उन्नीसवीं सदी के आखिर में यूरोप की साम्राज्यवादी ताकतों ने अफ्रीका में कब्जे के लिए मारकाट शुरू कर दी और बहुत सारे इलाकों को छोटे-छोटे उपनिवेशों में तब्दील करके अपने-अपने कब्जे में ले लिया।

1885 ई० में ब्रिटिश, कीनिया और जर्मन के बीच एक अंतर्राष्ट्रीय टंगानयिका सीमा खींचकर मासाई लैंड के दो बराबरबराबर टुकड़े कर दिए गए। बाद के सालों में सरकार ने गोरों को बसाने के लिए बेहतरीन चरागाहों को अपने कब्जे में ले लिया। मासाईयों को दक्षिणी कीनिया और उत्तरी तंजानिया के छोटे से इलाके में समेट दिया गया। औपनिवेशिक शासन से पहले मासाईयों के पास जितनी (UPBoardSolutions.com) जमीन थी उसका लगभग 60 फीसदी हिस्सा उनसे छीन लिया गया। उन्हें ऐसे सूखे इलाकों में कैद कर दिया गया जहाँ न तो अच्छी बारिश होती थी और न ही हरे-भरे चरागाह थे।

(6) कृषि क्षेत्रों का विस्तार – ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने पूर्वी अफ्रीका में स्थानीय किसानों को कृषि क्षेत्र का विस्तार करने के लिए प्रेरित किया। कृषि क्षेत्र बढ़ाने के लिए चरागाहों को कृषि-खेतों में बदला गया जिसके कारण चरागाह क्षेत्र बहुत तेजी से कम होने लगे।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भारत में जनगणना के दौरान दस वर्ष में एक बार प्रत्येक गाँव का सर्वेक्षण किया जाता है। पालमपुर से संबंधित सूचनाओं के आधार पर निम्न तालिका को भरिए
(क) अवस्थिति क्षेत्र,
(ख) गाँव का कुल क्षेत्र,
(ग) भूमि का उपयोग ( हेक्टेयर में)

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी 1
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी

प्रश्न 2.
खेती की आधुनिक विधियों के लिए ऐसे अधिक आगतों की आवश्यकता होती है, जिन्हें उद्योगों में विनिर्मित किया जाता है, क्या आप सहमत हैं?
उत्तर:
हाँ, हम सहमत हैं। क्योंकि आधुनिक कृषि तकनीकों को अधिक साधनों की जरूरत है जो उद्योगों में बनाए जाते हैं। एचवाईवी बीजों को अधिक पानी चाहिए और इसके साथ ही बेहतर नतीजों के लिए रासायनिक खाद, कीटनाशक भी चाहिए। किसान सिंचाई के लिए नलकूप लगाते हैं। ट्रैक्टर एवं प्रैसर जैसी मशीनें भी प्रयोग की जाती हैं। एचवाईवी बीजों की सहायता से गेहूं की पैदावार 1300 किलोग्राम प्रति (UPBoardSolutions.com) हेक्टेयर से बढ़कर 3200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक हो गई और अब किसानों के पास बाजार में बेचने के लिए अधिक मात्रा में फालतू गेहूं है।

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प्रश्न 3.
पालमपुर में बिजली के प्रसार ने किसानों की किस तरह मदद की?
उत्तर:
पालमपुर में बिजली के प्रसार ने किसानों की भिन्न रूप से सहायता की –

  1. कृषि उपकरण, जैसे हार्वेस्टर, श्रेशर आदि ने किसानों की सहायता की है।
  2. बिजली का उपयोग गाँव में प्रकाश के लिए भी किया गया।
  3. विद्युत प्रकाश, पंखे, प्रेस एवं मशीनों ने किसानों के घरेलू कार्यों में सहायता दी है।
  4. सिंचाई की उपयुक्त विधि, नलकूपों एवं पंपिंग सेटों को बिजली द्वारा चलाया जाता है।
  5. बिजली से सिंचाई प्रणाली में सुधार के कारण किसान पूरे वर्ष के दौरान विभिन्न फसलें उगा सकते थे।
  6. उन्हें मानसून की बरसात पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है जो कि अनिश्चित एवं भ्रमणशील है।

प्रश्न 4.
क्या सिंचित क्षेत्र को बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है? क्यों?
उत्तर:
सिंचित क्षेत्र में वृद्धि करना निम्न दृष्टि से महत्वपूर्ण है

  1.  सिंचाई की सुविधा प्राप्त भूम के टुकड़े में कृषि उत्पादन असिंचित भूमि के टुकड़े के उत्पादन से अधिक होता है।
  2. कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए सिंचित क्षेत्र महत्त्वपूर्ण ही नहीं बल्कि आवश्यक भी है।
  3. पौधों का जन्म, उनका विकास, फलना और फूलना; मिट्टी, जल और हवा के कुशल संयोग पर निर्भर करता है।
  4. यदि सिंचाई की असुविधा के कारण जल प्राप्त नहीं होता तो फसल सूख जाएगी, यदि लगातार जल की कमी होतो अकाल का भय हो जाता है।
  5.  सिंचित क्षेत्र की वृद्धि से भारत में (UPBoardSolutions.com) व्याप्त मानसून की अनिश्चित बरसात से मुक्ति मिलेगी।

प्रश्न 5.
पालमपुर के 450 परिवारों में भूमि के वितरण की एक सारणी बनाइए।
उत्तर:
पालमपुर गाँव के 450 परिवारों में भूमि के वितरण की सारणी
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प्रश्न 6.
पालमपुर में खेतिहर श्रमिकों की मज़दूरी न्यूनतम मज़दूरी से कम क्यों है?
उत्तर:
पालमपुर में खेतिहर मज़दूरों में काम के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा है। इसलिए लोग कम दरों पर मज़दूरी करने को तैयार हो जाते हैं। न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम का ग्रामीण क्षेत्रों में लागू न किया जाना भी एक प्रमुख कारण है। इसलिए गरीब मज़दूरों को जो कुछ भी मज़दूरी दी जाती है उसे वे अपना भाग्य समझकर स्वीकार कर लेते हैं।

प्रश्न 7.
अपने क्षेत्र में दो श्रमिकों से बात कीजिए। खेतों में काम करने वाले या विनिर्माण कार्य में लगे मज़दूरों में से किसी को चुनें। उन्हें कितनी मज़दूरी मिलती है? क्या उन्हें नकद पैसा मिलता है या वस्तु-रूप में? | क्या उन्हें नियमित रूप से काम मिलता है? क्या वे कर्ज़ में हैं?
उत्तर:
हमारे क्षेत्र में रामबचन और जनार्दन दो खेतिहर मजदूर हैं जो एक मकान के निर्माण कार्य में काम करते हैं। इन दोनों को प्रति 90 से 100 रुपये मिलते हैं। यह सत्य है कि उन्हें नकद मजदूरी मिलती है। लेकिन इन्हें नियमित रूप से काम नहीं मिलता क्योंकि बहुत से लोग कम दरों पर काम करने (UPBoardSolutions.com) के लिए राजी हो जाते हैं। क्योंकि उन्हें कम मजदूरी मिलती है इसलिए वे कर्ज में डूबे हुए हैं। कम मजदूरी के कारण वे बड़ी कठिनाई से परिवार का भरण-पोषण कर पाते हैं।

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प्रश्न 8.
एक ही भूमि पर उत्पादन बढ़ाने के अलग-अलग कौन से तरीके हैं? समझाने के लिए उदाहरणों का प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
भूमि के एक ही टुकड़े पर उत्पादन में वृद्धि हेतु निम्नलिखित तरीकों को अपनाया जाता है

  1. बहुविधि फसल उगाना-भूमि के एक ही टुकड़े पर एक वर्ष में कई फसलों को उगाना बहुविध फसल प्रणाली कहलाता है। पालमपुर के सभी किसान वर्ष में कम-से-कम दो फसलें उगाते हैं। पिछले 15-20 वर्ष से अनेक किसान तीसरी फसल के रूप में आलू की खेती कर रहे हैं।
  2. आधुनिक कृषि उपकरणों एवं तकनीक का उपयोग-पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान आधुनिक कृषि तरीकों को अपनाने वाले भारत के पहले किसान थे। इन क्षेत्रों के किसानों ने सिंचाई के लिए नलकूपों, एच.वाई.वी. बीज, रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों का प्रयोग किया। ट्रैक्टर एवं प्रैशर का भी प्रयोग किया गया। जिससे जुताई एवं फसल की (UPBoardSolutions.com) कटाई आसान हो गई। उन्हें अपने प्रयासों में सफलता मिली और उन्हें गेहूं की अधिक पैदावार के रूप में इसका प्रतिफल मिला। एचवाईवी बीजों की सहायता से पैदावार 1300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 3200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक हो गई और अब किसानों के पास बहुत सा अधिशेष गेहूँ बाजार में बेचने के लिए होता है।

प्रश्न 9.
एक हेक्टेयर भूमि के मालिक किसान के कार्य का ब्यौरा दीजिए।
उत्तर:
भूमि को मापने की मानक इकाई हेक्टेयर है। एक हेक्टेयर 100 मीटर की भुजा वाले वर्गाकार भूमि के टुकड़े
के क्षेत्रफल के बराबर होता है। एक हेक्टेयर भूमि की मात्रा एक परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बहुत कम है। इसलिए उसके द्वारा अपने जीवन यापन के लिए किए गए कार्य का ब्यौरा निम्नलिखित हो सकता है

  1. गाँव के धनी लोगों के पास नौकरी कर सकता है।
  2. गैर-कृषि कार्यों जैसे-पशुपालन, मछलीपालन और मुर्गीपालन आदि का कार्य कर सकता है।
  3.  खेतिहर मजदूर के रूप में बड़े किसानों और जमींदारों के पास कार्य कर सकता है।
  4. अपने परिवार के सदस्यों को रोजगार के लिए शहरों में भेज सकता है।

प्रश्न 10.
मझोले और बड़े किसान कृषि से कैसे पूँजी प्राप्त करते हैं? वे छोटे किसानों से कैसे भिन्न हैं?
उत्तर:

  1.  मझोले और बड़े किसानों के पास अधिक भूमि होती है अर्थात् उनकी जोतों का आकार बड़ा होता है जिससे वे अधिक उत्पादन करते हैं।
  2. अधिक उत्पादन होने से वे इसे बाजार में बेचकर धनलाभ प्राप्त करते हैं। इस धन का प्रयोग वे उत्पादन की आधुनिक विधियों को अपनाने में करते हैं।
  3.  इनकी पूँजी छोटे किसानों से भिन्न होती है क्योंकि छोटे किसानों के पास भूमि कम होने के कारण उत्पादन उनके पालन-पोषण के लिए भी कम बैठता है।
  4. उन्हें आधिक्य प्राप्त न होने के कारण बचते नहीं होती हैं इसलिए खेती के लिए उन्हें पूँजी बड़े किसानों या साहूकारों से उधार लेकर पूरी करनी पड़ती है जिस पर उन्हें काफी ब्याज चुकाना पड़ता है जो उन्हें ऋणग्रस्तता के चंगुल में फँसा देता है।

प्रश्न 11.
सविता को किन शर्तों पर तेजपाल सिंह से ऋण मिला है? क्या ब्याज की कम दर पर बैंक से कर्ज मिलने पर सविता की स्थिति अलग होती?
उत्तर:
सविता ने तेजपाल सिंह से १ 3000, 24 प्रतिशत की दर पर चार महीने के लिए उधार लिया, जो कि ऊँची ब्याज दर है। सविता एक कृषि मजदूर के रूप में कटाई के समय 35 रुपए प्रतिदिन की दर पर उसके खेतों में काम करने को भी सहमत होती है। तेजपाल सिंह द्वारा सविता से लिया (UPBoardSolutions.com) जाने वाला ब्याज बैंक की अपेक्षा बहुत अधिक था। यदि सविता इसकी अपेक्षा बैंक से उचित ब्याज दर पर ऋण ले पाती तो उसकी हालत निश्चय ही इससे अच्छी होती।

प्रश्न 12.
अपने क्षेत्र के कुछ पुराने निवासियों से बात कीजिए और पिछले 80 वर्षों में सिंचाई और उत्पादन के तरीकों में हुए परिवर्तनों पर एक संक्षिप्त रिपोर्ट लिखिए (वैकल्पिक)।
उत्तर:
अपने क्षेत्र के कुछ वयोवृद्ध व्यक्तियों से बात करने के बाद पिछले 30 वर्षों में सिंचाई और उत्पादन के तरीकों में हुए परिवर्तनों से मुझे इस बात का पता चला कि 30 वर्ष पहले कृषि करने के पुराने तरीके कैसे थे। यह जानकारी इस प्रकार है।

  1.  प्राचीनकाल में सिंचाई के लिए कुओं का उपयोग किया जाता था। कुएँ से बैल के माध्यम से रहट का उपयोग करके पानी को ऊपर खींचकर सिंचाई जाती थी।
  2. सिंचाई के लिए पानी की प्राप्ति रहट द्वारा की जाती थी।
  3. तालाब और नदी-नाले के पानी का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता था।
  4. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् सिंचाई की पद्धति में क्रान्तिकारी परिवर्तन किए गए और पम्पिंग सैट तथा नलकूपों का उपयोग पर्याप्त मात्रा में सिंचाई के लिए किया जाने लगा।
  5. विशेष रूप से नदियों से नहरें निकालकर सिंचाई की व्यवस्था का जाल बुना गया।

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प्रश्न 13.
आपके क्षेत्र में कौन-से गैर-कृषि उत्पादन कार्य हो रहे हैं? इनकी एक संक्षिप्त सूची बनाइए।
उत्तर:
हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में किए जाने वाले गैर कृषि उत्पादन कार्य इस प्रकार हैं

  1. खेतों में उत्पादित सब्जी, फलों को शहरी बाजारों में बेचा जाना।
  2. दूर गाँवों से एकत्र करके शहरों में आपूर्ति करना।
  3. सिलाई, कढ़ाई, प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना करना।
  4.  शिक्षित लोगों को कम्प्यूटर का प्रशिक्षण देना।
  5. पशुपालन (Dairy), मुर्गीपालन (Poultry) और मछली पालन आदि।
  6. परिवहन संबंधित कार्य अर्थात् यातायात के लिए रिक्शा, टाँगा, टैम्पो, जीप, बस और ट्रक का उपयोग किया जाना।।
  7.  कुछ शिक्षित लोगों द्वारा नर्सरी पाठशाला और प्राथमिक शिक्षा के लिए पाठशाला की स्थापना करना।
  8.  गन्ने से गुड़ और चीनी का तैयार किया जाना।

प्रश्न 14.
गाँवों में और अधिक गैर-कृषि कार्य प्रारंभ करने के लिए क्या किया जा सकता है?
उत्तर:
गाँव में और अधिके गैर-कृषि कार्य प्रारंभ करने के लिए निम्न उपाय अपनाये जा सकते हैं|

  1.  गाँव में अच्छे पब्लिक स्कूल खोलकर गाँव वालों की शिक्षा के स्तर को ऊँचा किया जा सकता है।
  2. सरकार द्वारा गाँव में उद्योग-धन्धे स्थापित किए जा सकते हैं।
  3.  परिवहन का विकास करके गाँव और शहरों के बीच संकल्प और उत्तम सड़क बनवाकर गाँव से कृषि का अतिरिक्त उत्पादन शहरों में भेजा जा सकता है।
  4.  इसी प्रकार शहरों से गाँव के लिए आवश्यक वस्तुएँ मँगाई जा सकती हैं।
  5.  संचार के विकास द्वारा गाँव को देश और विदेश से जोड़ा जा सकता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पालमपुर में किन-किन चीजों की दुकानें थी?
उत्तर:
पालमपुर में छोटे-छोटे जनरल स्टोरों में चावल, गेहूँ, चाय, तेल, बिस्कुट, साबुन, टूथपेस्ट, बैट्री, मोमबत्तियाँ, कॉपियाँ, पेन, पेंसिल आदि बेचते थे। यहाँ के दुकानदार शहरों के थोक बाजारों से वस्तुएँ खरीदकर लाते थे और उसे गाँव में बेचते थे।

प्रश्न 2.
पालमपुर गाँव के लोग बाजार करने कहाँ जाते थे?
उत्तर:
पालमपुर गाँव के लोग वस्तुओं को खरीदने के लिए तथा अपना अनाज बेचने के लिए शाहपुर कस्बे की ओर जाते थे।

प्रश्न 3.
पालमपुर की मुख्य क्रिया क्या थी?
उत्तर:
पालमपुर के लोग प्रमुखतः कृषि कार्य करते थे।

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प्रश्न 4.
पालमपुर में कम्प्यूटर कक्षा का परिचालक कौन है?
उत्तर:
पालमपुर में करीम कम्प्यूटर कक्षा का परिचालन करता था।

प्रश्न 5.
पालमपुर के निकटतम बड़े गाँव एवं छोटे कस्बे का नाम बताइए।
उत्तर:
पालमपुर से 3 किमी. दूरी पर स्थित रायगंज एक बड़ा गाँव है जबकि शाहपुर इसका निकटतम कस्बा है।

प्रश्न 6.
पालमपुर में उपलब्ध परिवहन के साधन कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
यहाँ उपलब्ध प्रमुख परिवहन के साधन हैं-बैलगाड़ी, ताँगा, बुग्गी, जीप, ट्रैक्टर, ट्रक और मोटर साइकल।

प्रश्न 7.
पालमपुर में कितने स्कूल एवं स्वास्थ्य केन्द्र हैं?
उत्तर:
पालमपुर में दो प्राथमिक एवं एक उच्च प्राथमिक स्कूल है जबकि यहाँ एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र तथा एक निजी डिस्पेंसरी है।

प्रश्न 8.
पालमपुर गाँव में जनसंख्या की संरचना क्या है?
उत्तर:
इस गाँव में 450 परिवार हैं, जो विभिन्न वर्गों एवं जातियों से सम्बन्धित हैं। 80 परिवार उच्च जातियों से सम्बन्धित हैं। अनुसूचित जनजाति एवं दलित का कुल जनसंख्या में हिस्सा 1/3 है। जबकि शेष हिस्सा अन्य जातियों का है।

प्रश्न 9.
भारत के किस राज्य में उर्वरक का सर्वाधिक उपयोग होता है?
उत्तर:
भारत के पंजाब राज्य में कृषि के अंतर्गत् उर्वरक का सर्वाधिक प्रयोग होता है।

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प्रश्न 10.
वह क्या उद्देश्य है? जिनके लिए किसानों को रुपयों की आवश्यकता पड़ती है?
उत्तर:
कुछ किसानों को रुपयों की आवश्यकता अपनी आधारभूत आवश्यकताओं जैसे—खाना, कपड़ा और मकान के लिए होती है। अन्य आवश्यकता कृषि आगतों जैसे—बीज, पानी, पशुओं और कृषि उपकरणों जैसे-ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, थ्रेशर आदि के लिए होती है। बहुत कम उद्यमी (UPBoardSolutions.com) किसानों को रुपये की आवश्यकता निवेश जैसे-व्यवसाय का प्रारंभ, परिवहन का क्रय, उपकरण-जीप, टैम्पो, ट्रक और नलकूपों की स्थापना आदि के लिए होती है।

प्रश्न 11.
क्या आप सहमत हैं कि पालमपुर गाँव में कृषि भूमि का वितरण असमान है?
उत्तर:
हाँ. हम सहमत हैं कि पालमपुर गाँव में भूमि का वितरण असमान है, क्योंकि अधिक संख्या में छोटे किसानों के पास 2 एकड़ से भी कम भृमे है। बड़े एवं मझोले किसानों के पास 2 एकड़ से अधिक भूमि है। कुछ किसान तो अब भी भूमिहीन हैं।

प्रश्न 12.
किसानों को श्रम कौन प्रदान करता है?
उत्तर:
गाँव के भूमिहीन लोग और अपर्याप्त भूमि वाले किसान बड़े और मध्यम किसानों से श्रम प्रदान करते हैं। छोटे किसानों
की उनके परिवार द्वारा सहायता मिलती है।

प्रश्न 13.
कार्यशील पूँजी किसे कहते हैं?
उत्तर:
उत्पादन के दौरान भुगतान करने तथा जरूरी माल खरीदने के लिए कुछ पैसों की भी आवश्यकता होती है। कच्चा
माल तथा नकद पैसों को कार्यशील पूँजी कहते हैं।

प्रश्न 14.
स्थायी पूंजी किसे कहते हैं?
उत्तर:
ओजारों तथा मशीनों में अत्यंत साधारण औजार जैसे किसान का हल से लेकर परिष्कृत मशीनें जैसे-जेनरेटर, टग्बाइन, कंप्यूटर आदि आते हैं। आजारों, मशीनों और भवनों का उत्पादन में कई वर्षों तक प्रयोग होता है और इन्हें स्थायी पूँजो कहा जात है।

प्रश्न 15.
हरित क्रांति से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
1960 के दशक के उपरान्त कुछ क्षेत्रों के किसानों ने आधुनिक ढंग से कृषि करना शुरू कर दिया जिससे फसलों के उत्पादन में कई गुना वृद्धि हो गई। जिसे हरित क्रांति का दर्जा दिया गया।

प्रश्न 16.
कृषि मजदूर किसे कहते हैं?
उत्तर:
गाँव के वे लोग जो या तो भूमिहीन परिवारों से संबंध रखते हैं या छोटे भूखंडों पर खेती करने वाले परिवारों से संबंध रखते हैं। उन्हें नकदी या किसी अन्य रूप में केवल मजदूरी ही मिलती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पालमपुर के किसानों में भूमि किस प्रकार वितरित है?
उत्तर:
कृषि कार्य में लगे हुए सभी लोगों के पास खेती के लिए पर्याप्त भूमि नहीं है। पालमपुर में लगभग 150 परिवार हैं जो भूमिहीन हैं और दलित वर्ग से संबंधित हैं। 240 परिवार 2 हेक्टेयर से कम भूमि पर खेती करते हैं। यहाँ 60 परिवार हैं। जिनके पास कृषि के लिए 2 एकड़ से अधिक भूमि है। बहुत कम किसानों के पास 10 हेक्टेयर भूमि है। यह प्रदर्शित करता है कि पालमपुर में भूमि का वितरण असमान है। इस प्रकार की स्थिति संपूर्ण भारत में पाई जाती है।

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प्रश्न 2.
खेतिहर श्रमिक गरीब क्यों हैं?
उत्तर:
खेतिहर श्रमिक गरीब हैं क्योंकि|

  1.  ये श्रमिक भूमिहीन हैं या इनके पास भूमि का बहुत छोटा भाग है।
  2. वर्ष के दौरान उनके पास कोई कार्य नहीं है।
  3. इन मजदूरों को सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी प्राप्त नहीं होती है।
  4.  इनके परिवार बड़े होते हैं।
  5.  ये अशिक्षित, अस्वस्थ एवं अकुशल होते हैं।
  6. ये गरीब होते हैं, गरीबी ही गरीबी को जन्म देती है।

प्रश्न 3.
पालमपुर में उगाई जाने वाली विभिन्न फसलों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पालमपुर में सारी भूमि जुताई के अंतर्गत है। भूमि का कोई भी टुकड़ा बंजर नहीं छोड़ा गया है। पालमपुर के किसान सुविकसित सिंचाई प्रणाली एवं बिजली की सुविधा के कारण वर्ष में 3 अलग-अलग फसलें उगा पाने में सफल हो पाते हैं। बरसात के मौसम (खरीफ) के दौरान किसान ज्वार एवं बाजरा उगाते हैं। इन फसलों को पशुओं के चारे में प्रयोग किया जाता है। इसके बाद अक्टूबर से दिसंबर के बीच आलू की खेती की जाती है।
सर्दी के मौसम (रबी) में खेतों में गेहूं बोया (UPBoardSolutions.com) जाता है। पैदा किया गया गेहूँ किसान के परिवार के लिए प्रयोग किया जाता है और जो बच जाता है उसे रायगंज के बाजार में बेच दिया जाता है।
गन्ने की फसल की कटाई वर्ष में एक बार की जाती है। गन्ने को इसके मूल रूप या फिर गुड़ बना कर इसे शाहपुर के व्यापारियों को बेच दिया जाता है।

प्रश्न 4.
पालमपुर में कृषि-कार्य हेतु श्रमिक कौन उपलब्ध कराता है?
उत्तर:
कृषि में बहुत अधिक मेहनत की आवश्यकता होती है। छोटे किसान अपने परिवार सहित अपने खेतों में काम करते हैं। किन्तु मध्यम या बड़े किसानों को अपने खेतों में काम करने के लिए श्रमिकों को मजदूरी देनी पड़ती है। इन श्रमिकों को कृषि मजदूर कहा जाता है। ये कृषि मजदूर या तो भूमिहीन परिवारों से होते हैं या छोटे खेतों पर काम करने वाले परिवारों में से।
किसानों के विपरीत इन लोगों को खेत में उगाई गई फसल पर कोई अधिकार नहीं होता। इन्हें किसान द्वारा काम के बदले में पैसे या किसी अन्य प्रकार से मजदूरी मिलती है जैसे कि फसल। एक कृषि मजदूर दैनिक आधार पर कार्यरत हो सकता है या खेत में किसी विशेष काम के लिए जैसे कि कटाई, या फिर पूरे वर्ष के लिए भी।

प्रश्न 5.
डाला और रामकली जैसे खेतिहर श्रमिक गरीब क्यों हैं?
उत्तर:
पालमपुर निवासी डाला और रामकली भूमिहीन खेतीहर श्रमिक हैं। वे पालमपुर में दैनिक मजदूरी करते हैं। उन्हें निरंतर काम की खोज में रहना पड़ता है। सरकार द्वारा खेतीहर श्रमिक के लिए निर्धारित न्यूनतम मजदूरी 60 रुपए प्रतिदिन है।
किन्तु डाला और रामकली को केवल 35-40 रुपए ही मिलते हैं। पालमपुर के खेतीहर श्रमिकों में बहुत अधिक स्पर्धा है इसलिए लोग कम दरों पर मजदूरी के लिए तैयार हो जाते हैं। डाला और रामकली दोनों ही गाँव के सबसे गरीब लोगों में से एक हैं।

प्रश्न 6.
कृषि में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से क्या हानि होती है?
उत्तर:
रासायनिक खाद के अधिक प्रयोग के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति घट जाती है। रासायनिक खाद के कारण भूमिगत जल, नदियों व झीलों का पानी प्रदूषित हो जाता है। रासायनिक खाद के निरंतर प्रयोग ने मिट्टी की गुणवत्ता को कम कर दिया है। भू-उर्वरता एवं भूमिगत जल जैसे (UPBoardSolutions.com) पर्यावरणीय संसाधन बनने में वर्षों लग जाते हैं। एक बार नष्ट होने के बाद इनकी पुनस्र्थापना कर पाना बहुत कठिन होता है। कृषि के भावी विकास को सुनिश्चित करने के लिए हमें पर्यावरण का ध्यान रखना चाहिए।

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प्रश्न 7.
पालमपुर गाँव की आर्थिक क्रियाओं के नाम बताइए।
उत्तर:
पालमपुर गाँव में निम्नलिखित आर्थिक क्रियाएँ संपादित की जाती हैं

  1. गन्ने काटने की मशीन लगाना।
  2.  दुकानदार का कार्य करना।
  3. परिवहन संचालक का कार्य करना।
  4. लघु स्तरीय निर्माण कार्य।
  5. कृषि एक मुख्य आर्थिक क्रिया है।
  6. कृषि मजदूर के रूप में कार्य करना।
  7. दर्जी, धोबी, मोची, सुनार आदि का कार्य करना।
  8. मुर्गीपालन एवं डेयरी का कार्य अपनाना।

प्रश्न 8.
पालमपुर की गैर-कृषि क्रियाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पालमपुर की गैर-कृषि क्रियाएँ इस प्रकार हैं

  1. डेयरी स्वामी के रूप में कार्य करना ।
  2. छोटी निर्माण फर्म को चलाना।
  3. दुकानदार के रूप में कार्य करना
  4.  परिवहन संचालक के रूप में कार्य करना।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पालमपुर में आधारभूत विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पालमपुर गाँव में बिजली, पानी, सड़क, स्कूल, स्वास्थ्य सेवा, सिंचाई की सुविधाओं से संपन्न एक विकसित गाँव है। बिजली से खेतों में स्थित सभी नलकूपों एवं विभिन्न प्रकार के छोटे उद्योगों को विद्युत ऊर्जा मिलती है। बच्चों को शिक्षा देने के लिए सरकार द्वारा प्राथमिक व उच्च विद्यालय दोनों खोले गए हैं। लोगों का इलाज करने के लिए एक सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और एक निजी दवाखाना है। गाँव के लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार की उत्पादन क्रियाएँ की जाती हैं जैसे कि खेती, लघु स्तरीय विनिर्माण, परिवहन, (UPBoardSolutions.com) दुकानदारी आदि। पालमपुर का प्रमुख क्रियाकलाप कृषि है। 75 प्रतिशत लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं।
बरसात के मौसम (खरीफ) के दौरान किसान ज्वार एवं बाजरा उगाते हैं। इन फसलों को पशुओं के चारे में प्रयोग किया जाती है। इसके बाद अक्टूबर से दिसंबर के बीच आलू की खेती का जाती है। सरदी के मौसम (रबी) में खेतों में गेहूं बोया जाता है। पैदा किया गया गेहूँ किसान के परिवार के लिए प्रयोग किया जाता है और जो बच जाता है उसे रायगंज के बाजर में बेच दिया जाता है।

गन्ने की फसल की कटाई वर्ष में एक बार की जाती है। गन्ने को इसके मूल रूप या फिर गुड़ बनाकर इसे शाहपुर के व्यापारियों को बेच दिया जाता है। पालमपुर के किसान सुविकसित सिंचाई प्रणाली एवं बिजली की सुविधा के कारण वर्ष में तीन अलग-अलग फसलें उगा पाने में सफल हो पाते हैं।
बहुत से लोग गैर-कृषि क्रियायों से जुड़े हुए हैं। जैसे कि डेयरी, विनिर्माण, दुकानदारी, परिवहन, मुर्गी पालन, सिलाई, शैक्षिक गतिविधियाँ आदि। किसान इन कार्यों को उस समय कर सकते हैं जब इन लोगों के पास खेतों में करने के लिए कोई काम न हो या वे बेरोजगार हों। यह उनकी आर्थिक दशा सुधारने में सहायता करेगा।

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प्रश्न 2.
क्या रासायनिक उर्वरकों को प्रयोग हानिकारक है? क्या रसायन एवं उर्वरकों के निरंतर प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखा जा सकता है?
उत्तर:
निःसंदेह, रासायनिक उर्वरकों का उपयोग वर्ष के दौरान अनाजों की उत्पादकता में वृद्धि करता है, लेकिन यह मिट्टी की प्राकृतिक उत्पादकता को कम करता है। अगले वर्ष उत्पादन को बनाए रखने के लिए अधिक रासायनिक उर्वरक की
आवश्यकता होती है जो दोबारा मिट्टी की उपजाऊपन को कम करती है। रासायनिक उर्वरक उत्पादन की लागत में भी वृद्धि करते हैं, क्योंकि इसका उपयोग अच्छी सिंचाई सुविधा, कीटनाशक आदि के साथ किया जाता है।

नलकूपों का अधिक उपयोग धरती के प्राकृतिक जल स्तर को कम कर देता है, जिसे वापस प्राप्त करना अत्यंत कठिन है। रसायन एवं उर्वरक के अधिक उपयोग से भूमि अपनी उर्वरता नहीं बनाए रख सकती। पंजाब में निरंतर रासायनिक उर्वरक के प्रयोग से पैदावार में कमी हुई है। अब किसानों को समान उत्पादन प्राप्त करने के लिए अधिक से अधिक रासायनिक उर्वरक एवं अन्य साधनों के उपयोग के (UPBoardSolutions.com) लिए बाध्य किया जा रहा है। यह उत्पादन लागत में भी वृद्धि करता है।

रासायनिक उर्वरक खनिज प्रदान करते हैं जो पानी में घुल जाता है और शीघ्र ही पेड़-पौधों को उपलब्ध होता है किंतु यह भूमि में अधिक समय तक नहीं रहता। यह भूमि, जल, नदियों एवं झीलों को दूषित करता है। रासायनिक उर्वरक मिट्टी में पाए जाने वाले कीड़े-मकोड़े एवं सूक्ष्म बैक्टिरिया को भी मार सकता है। इसका अर्थ है कि मिट्टी की उर्वरता पहले से कम हो गई है।

प्रश्न 3.
पालमपुर में होने वाली गैर-कृषि क्रियाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उन क्रियाओं को गैर कृषि क्रियाएँ कहते हैं जो कृषि के अतिरिक्त होती हैं जैसे-दुकानदारी, विनिर्माण, डेयरी, परिवहन, मुर्गीपालन, शैक्षिक गतिविधि आदि। पालमपुर में प्रचलित गैर कृषि गतिविधियों का विवरण इस प्रकार है

  1. परिवहन : तेजी से विकसित हो रहा क्षेत्र–पालमपुर और रायगंज के बीच की सड़क पर बहुत से वाहन चलते हैं जिनमें रिक्शा वाले, तांगे वाले, जीप, ट्रैक्टर, ट्रक चालक, पारंपरिक बैल गाड़ी एवं बुग्गी (भैंसागाड़ी) शामिल हैं। इस काम में लगे हुए कई लोग अन्य लोगों को उनके गन्तव्य स्थानों तक पहुँचाने और वहाँ से उन्हें वापस लाने का काम करते हैं जिसके लिए उन्हें पैसे मिलते हैं। वे लोगों और वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाते हैं।
  2.  पालमपुर में लघुस्तरीय विनिर्माण का एक उदाहरण-इस समय पालमपुर में 50 से कम लोग विनिर्माण कार्य में लगे हुए हैं। इसमें बहुत साधारण उत्पादन क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है और यह छोटे स्तर पर किया जाता है। ये कार्य पारिवारिक श्रम की सहायता से घर में या खेतों (UPBoardSolutions.com) में किया जाता है। मजदूरों को कभी-कभार ही किराए पर लिया जाता है।
  3.  दुकानदार–पालमपुर में बहुत कम लोग व्यापार (वस्तु विनिमय) करते हैं। पालमपुर के व्यापारी दुकानदार हैं जो शहरों के थोक बाजार से कई प्रकार की वस्तुएँ खरीदते हैं और उन्हें गाँव में बेच देते हैं। उदाहरणतः गाँव के छोटे जनरल स्टोर चावल, गेहूँ, चीनी, चाय, तेल, बिस्कुट, साबुन, टूथ पेस्ट, बैट्री, मोमबत्ती, कॉपी, पेन, पेन्सिल और यहाँ तक कि कपड़े भी बेचते हैं।
  4. डेयरी–पालमपुर के कई परिवारों में डेयरी एक प्रचलित क्रिया है। लोग अपनी भैसों को कई तरह की घास, बरसात के मौसम में उगने वाली ज्वार और बाजरा आदि खिलाते हैं। दूध को पास के बड़े गाँव रायगंज में बेच दिया जाता है।

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 1 बात (गद्य खंड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 1 बात (गद्य खंड)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये
(1) यदि हम वैद्य होते तो कफ और पित्त के सहवर्ती बात की व्याख्या करते तथा भूगोलवेत्ता होते तो किसी देश के जलबात का वर्णन करते, किन्तु दोनों विषयों में से हमें (UPBoardSolutions.com) एक बात कहने का भी प्रयोजन नहीं है। हम तो केवल उसी बात के ऊपर दो-चार बातें लिखते हैं, जो हमारे-तुम्हारे सम्भाषण के समय मुख से निकल-निकल के परस्पर हृदयस्थ भाव को प्रकाशित करती रहती हैं।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए। |
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) हम अपने हृदयस्थ भावों की अभिव्यक्ति किसके माध्यम से करते हैं?
(4) भूगोलवेत्ता किसका अध्ययन करता है?
(5) वैद्य किस बात का वर्णन करते हैं? |
[शब्दार्थ-सहवर्ती = साथ रहनेवाला, सहचर। वेत्ता = ज्ञाता, जाननेवाला। बात = वचन, शरीरस्थ वायु, वायु । जल-बात = जलवायु । प्रयोजन = मतलब। संभाषण = वार्तालाप । हृदयस्थ = हृदय में स्थित ।]

उत्तर –

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। यहाँ लेखक बात की महत्ता बताते हुए कहता है कि जिस प्रकार का व्यक्ति होता है वह उसी प्रकार की बात करता है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या – लेखक इस तथ्य से अवगत कराते हुए कहता है कि एक व्यक्ति का जो स्वभाव होगा अथवा जो जिस प्रकार का कार्य करेगा वह स्वाभाविक रूप से उसी प्रकार के वातावरण में उसी कार्य के अनुसार बुद्धिवाला हो जायेगा, फिर वह उसी से सम्बन्धित बात करेगी। उदाहरणस्वरूप यदि हम वैद्यराज को लें तो अपने स्वभावानुसार एवं कार्य के अनुरूप किसी रोग जैसे पित्त और उससे सम्बन्धित विषयों पर बात करेगा। यदि कोई भूगोल का ज्ञाता होगा तो वह अपने स्वभावानुसार (UPBoardSolutions.com) किसी देश की जलवायु अथवा प्राकृतिक विषयों पर बात करेगा। परन्तु लेखक कहता है कि दोनों विषयों में बात कहने का हमारा कोई प्रयोजन नहीं है। हम लोग उसी विषय पर बात लिखते अथवा करते हैं जो हृदय की भावनाओं को वाणी के माध्यम से प्रकाशित करती है। हमारे मन की जो स्थिति है, जो भावनाएँ हमारे हृदय में प्रतिपल उठती हैं उसे यदि हम मुख से, वाणी के माध्यम से दूसरे को अवगत करायें तो वह ‘बात’ कहलाती है।
  3. हम अपने हृदयस्थ भावों की अभिव्यक्ति बात के माध्यम से करते हैं।
  4. भूगोलवेत्ता किसी देश के जल-बात का वर्णन करते हैं। |
  5. वैद्य कफ और पित्त के सहवर्ती बात की व्याख्या करते हैं।

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(2) जब परमेश्वर तक बात का प्रभाव पहुँचा हुआ है तो हमारी कौन बात रही? हम लोगों के तो ‘गात माँहि बात करामात है।’ नाना शास्त्र, पुराण, इतिहास, काव्य, कोश इत्यादि सब बात ही के फैलाव हैं जिनके मध्य एक-एक बात ऐसी पायी जाती है जो मन, बुद्धि, चित्त को अपूर्व दशा में ले जानेवाली (UPBoardSolutions.com) अथच लोक-परलोक में सब बात बनानेवाली है। यद्यपि बात का कोई रूप नहीं बतला सकता कि कैसी है पर बुद्धि दौड़ाइये तो ईश्वर की भाँति इसके भी अगणित ही रूप पाइयेगा। बड़ी बात, छोटी बात, सीधी बात, खोटी बात, टेढ़ी बात, मीठी बात, कड़वी बात, भली बात, बुरी बात, सुहाती बात, लगती बात इत्यादि सब बाते ही तो हैं।
प्रश्न
(1)  गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) “गात माँहि बात करामात है।” का क्या तात्पर्य है?
(4) कौन-सी बात चित्त, मन और बुद्धि को अपूर्व दिशा की ओर अग्रसर करती है?
(5) ‘बड़ी बात’, ‘छोटी बात’ एवं ‘सीधी बात’ मुहावरे का क्या अभिप्राय है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ शीर्षक पाठ से उद्धत किया गया है। इसमें लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि बात का प्रभाव मनुष्य तक नहीं, बल्कि ईश्वर तक भी है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या – इन पंक्तियों में लेखक बात की महत्ता दिखाते हुए कहता है कि बात का प्रभाव मनुष्य तक ही सीमित नहीं, परमेश्वर तक इसके प्रभाव से बच नहीं पाये। यद्यपि परमेश्वर के विषय में कहा गया है कि उसकी न वाणी है, न हाथ हैं, न पैर हैं, बल्कि वह तो निराकार निरंजन है तथापि उसे बिना वाणी का वक्ता कहा गया है। जब निराकार ब्रह्म पर भी बात को प्रभाव होता है तो फिर हम शरीरधारी मनुष्यों का तो कहना ही क्या है? हमारे शरीर में तो बात (भाषण शक्ति अथवा वायु) का (UPBoardSolutions.com) ही चमत्कार है। अनेक शास्त्र, पुराण, इतिहास, काव्य, कोष आदि जितना भी साहित्य है, वह सब बात का ही विस्तार है। इन विविध प्रकार के ग्रन्थों में एक से बढ़कर एक बातें पायी जाती हैं। एक-एक बात ऐसी अमूल्य है कि जो हमारे मन, बुद्धि और चित्त को अपूर्व आनन्दमयी दशा में पहुँचा देती है। इन ग्रन्थों की बातें ही लोक तथा परलोक की सब बातों का ज्ञान कराती हैं। लेखक कहता है कि बात का रूप-रंग नहीं होता। कोई कह नहीं सकता कि अमुक बात ऐसी है परन्तु यदि बुद्धि से विचार कर देखा जाय तो हम पायेंगे कि जैसे भगवान् के अनेक रूप होते हैं, उसी प्रकार बात के भी अनेक रूप होते हैं, जैसे बड़ी बात, छोटी बात, सीधी बात, टेढ़ी बात, मीठी, कड़वी, भली, बुरी, सुहाती और लगती बात आदि कैसी भी हों ये सब बात के ही रूप हैं।
  3. “गात माँहि बात करामात है।” का तात्पर्य है कि हमारे शरीर में तो बात का ही चमत्कार है।
  4. नानाशास्त्र, पुराण, इतिहास काल आदि की बातें चित्त, मन और बुद्धि को अपूर्व दिशा की ओर अग्रसर करती है।
  5. ‘बड़ी बात’, ‘छोटी बात’ एवं ‘सीधी बात’ मुहावरे का अभिप्राय बात का स्वरूपगत वैभिन्नता को दर्शाना है।

(3)  सच पूछिये तो इस बात की भी क्या ही बात है जिसके प्रभाव से मानव जाति समस्त जीवधारियों की शिरोमणि (अशरफ-उल मखलूकात) कहलाती है। शुकसारिकादि पक्षी केवल थोड़ी-सी समझने योग्य बातें उच्चरित कर सकते हैं, इसी से अन्य नभचारियों की अपेक्षा आदृत समझे जाते हैं। फिर क़ौन न मानेगा कि बात की बड़ी बात है। हाँ, बात की बात इतनी बड़ी है कि परमात्मा को लोग निराकार (UPBoardSolutions.com) कहते हैं, तो भी इसका सम्बन्ध उसके साथ लगाये रहते हैं। वेद, ईश्वर का वचन है, कुरआनशरीफ कलामुल्लाह है, होली बाइबिल वर्ड ऑफ गोड है। यह वचन, कलाम और वर्ड बात ही के पर्याय हैं जो प्रत्यक्ष मुख के बिना स्थिति नहीं कर सकती। पर बात की महिमा के अनुरोध से सभी धर्मावलम्बियों ने ‘बिन बानी वक्ता बड़ जोगी’ वाली बात मान रखी है।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) निराकार परमात्मा का सम्बन्ध बात से कैसे है?
(4) मानव जाति समस्त जीवधारियों में क्यों शिरोमणि है?
(5) ‘बिन बानी वक्ता बड़ जोगी’ का क्या अभिप्राय है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ नामक हास्य-व्यंग्य प्रधान निबन्ध से उद्धृत किया गया है। इसके अन्तर्गत लेखक ने बात की महत्ता का वर्णन किया है और कहा है कि बात के कारण ही जन मानस में व्यक्ति की प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या – वस्तुत: बात का महत्त्व इतना अधिक है कि उसका वर्णन करना कठिन हो जाता है। यदि बात के महत्त्व को लेखनीबद्ध किया जाये तो एक ग्रन्थ बन सकता है। संसार में मानव को समस्त प्राणियों से श्रेष्ठ माना जाता है। उसका मुख्य कारण भी यह बात ही है। मानव ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो बात करने में चतुर है। इसी कारण वह सभी प्राणियों का सिरमौर बना है। मानव की भाषा में तोता-मैना आदि पक्षी थोड़ा समझने योग्य बातों का उच्चारण कर लेते हैं, जिसके कारण वे आकाश में विचरण करनेवाले अन्य पक्षियों की तुलना में श्रेष्ठ समझे जाते हैं और इसीलिए उनका जनसामान्य में आदर किया जाता है। इतना सब कुछ होते हुए भी भला कौन ऐसा व्यक्ति होगा, जो बात (भाषा) की महत्ता को स्वीकार नहीं (UPBoardSolutions.com) करेगी। बात (भाषा) की महत्ता के कारण ही लोग भगवान् का सम्बन्ध उससे जोड़ते हैं। यद्यपि लोग भगवान् को बिना आकार वाला (अशरीर) मानते हैं किन्तु लोग उसे फिर भी श्रेष्ठ उपदेशवक्ता कहकर उसकी सर्वोच्च सत्ता को स्वीकार करते हैं। लेखक बात की महत्ता का वर्णन करते हुए यह कहता है कि यदि यह कहा जाय कि भगवान् तो निराकार होने के कारण सम्भाषण (उपदेश) कर ही नहीं सकते तो वह मनुष्य से भी निम्न श्रेणी में आ जाते हैं क्योंकि मनुष्य तो सम्भाषण करने में समर्थ है। अत: बात (सदुपदेश) ही भगवान् को मनुष्य से श्रेष्ठ बनाती है। इसीलिए शायद सभी धर्मावलम्बी भगवान् का सम्बन्ध भाषण-शक्ति से अवश्य जोड़ते हैं, चाहे वे उसके निराकार रूप के समर्थक हों अथवा साकार रूप के।
  3. हिन्दू समाज में वेदों को ईश्वर का वचन कहा जाता है साथ ही ईश्वर को निराकार कहा जाता है।
  4. बात का प्रभाव के कारण मानव जाति जीवधारियों में शिरोमणि है।
  5. ‘बिन बानी वक्ता बड़ जोगी’ का अभिप्राय प्रत्यक्ष मुख के बिना बात से स्थित स्पष्ट हो जाना है।

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(4) बात के काम भी इसी भाँति अनेक देखने में आते हैं। प्रीति-वैर, सुख-दु:ख, श्रद्धा-घृणा, उत्साह-अनुत्साह आदि जितनी उत्तमता और सहजता बात के द्वारा विदित हो सकते हैं, दूसरी रीति से वैसी सुविधा ही नहीं । घर बैठे लाखों कोस का समाचार मुख और लेखनी से निर्गत बात ही बतला सकती है। डाकखाने अथवा तारघर के सहारे से बात की बात में चाहे जहाँ की जो बात हो, जान सकते हैं। इसके अतिरिक्त बात बनती है, बात बिगड़ती है, बात आ पड़ती है, बात जाती रहती है, बात उखड़ती है। हमारे तुम्हारे भी सभी काम (UPBoardSolutions.com) बात पर ही निर्भर करते हैं। ‘बातहि हाथी पाइये बातहि हाथी पाँव’ बात ही से पराये अपने और अपने पराये हो जाते हैं। मक्खीचूस उदार तथा उदार स्वल्पव्ययी, कापुरुष युद्धोत्साही एवं युद्धप्रिय शान्तिशील, कुमार्गी, सुपथगामी अथच सुपन्थी, कुराही इत्यादि बन जाते हैं।
प्रश्न
(1)
उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए। |
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) लाखों कोस का समाचार कौन बतला सकता है?
(4) पाँच वाक्यों में बात का महत्त्व लिखिए।
(5) ‘बातहि हाथी पाइये बातहि हाथी पाँव’ का आशय स्पष्ट कीजिए। |

उत्तर-

  1. सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ के पाठ ‘बात’ से उद्धृत है। इसके लेखक पं० प्रतापनारायण मिश्र हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने वाणी के महत्त्व को स्पष्ट किया है।
  2. रेखांकित पद्यांशों की व्याख्या – लेखक बात के विभिन्न रूपों पर प्रकाश डालते हुए कहता है कि बात का प्रभाव बहुत व्यापक होता है। बात कहने के ढंग से ही उसका प्रभाव घटता अथवा बढ़ता है।‘निश्चय ही हमारे बात करने के ढंग से हमारा प्रत्येक कार्य प्रभावित होता है। बात (UPBoardSolutions.com) के प्रभावशाली होने पर कवि अथवा चारण, राजाओं से पुरस्कार में हाथी तक प्राप्त कर लेते थे किन्तु कटु बात कहने से राजाओं द्वारा लोग हाथी के पाँव के नीचे कुचल भी दिये जाते थे। यह बात भी सिद्ध है कि बात अर्थात् वायु-प्रकोप से ‘हाथीपाँव’ नामक रोग भी हो जाता है।” किसी की वाणी से प्रभावित होकर बड़े-बड़े कंजूस भी उदार हृदयवाले बन जाते हैं और परिश्रम से अर्जित अपनी सम्पत्ति परोपकार के लिए अर्पित कर देते हैं। इसके विपरीत कटु वाणी के प्रभाव से उदार-हृदय व्यक्ति भी अपने साधनों को समेट लेता है। युद्ध-क्षेत्र में चारणों की ओजपूर्ण वाणी सुनकर कायरों में भी वीरता का संचार हो जाता है और यदि बात लग जाय तो युद्ध चाहनेवाला व्यक्ति भी शान्तिप्रिय बन जाता है। बात के प्रभाव से बुरे रास्ते पर चलनेवाला व्यक्ति सन्मार्ग पर चलने लगता है (UPBoardSolutions.com) और बात की शक्ति-द्वारा सन्मार्ग पर चलनेवाला व्यक्ति भी दुष्टों-जैसा व्यवहार करने लगता है। तात्पर्य यह है कि बात कहने का ढंग और शब्दों का प्रयोग मनुष्य पर आश्चर्यजनक प्रभाव डालता है।
  3. लाखों कोस को समाचार बात बतला सकता है।
  4. बात का महत्त्व –
    • बात के अनेक काम देखने में मिलते हैं?
    • बात के द्वारा कोई भी भाव सहजता एवं सरलता से विदित हो सकता है।
    • लाखों कोस का समाचार मुख या लेखनी से निर्गत बात बतला सकती है।
    • हम डाकघर अथवा तारघर के सहारे दूर की बात जान सकते हैं।
    • सभी काम बात पर ही निर्भर करते हैं।
  5. ‘बातहि हाथी पाइये बातहि हाथी पाँव’ का आशय है अच्छी बात से पुरस्कार स्वरूप हाथी की प्राप्ति होती है और बुरी बात पर हाथी के पाँव के नीचे कुचला जा सकता है।

(5)  बात का तत्त्व समझना हर एक का काम नहीं है और दूसरों की समझ पर आधिपत्य जमाने योग्य बात गढ़ सकना भी ऐसों वैसों का साध्य नहीं है। बड़े-बड़े विज्ञवरों तथा महा-महा कवीश्वरों के जीवन बात ही के समझने-समझाने में व्यतीत हो जाते हैं। सहृदयगण की बात के आनन्द के आगे सारा संसार तुच्छ हुँचता है। बालकों की तोतली बातें, सुन्दरियों की मीठीमीठी प्यारी-प्यारी बातें, सत्कवियों की रसीली बातें, (UPBoardSolutions.com) सुवक्ताओं की प्रभावशालिनी बातें जिनके जी को और का और न कर दें, उसे पशु नहीं पाषाणखण्ड कहना चाहिए, क्योंकि कुत्ते, बिल्ली आदि को विशेष समझ नहीं होती तो भी पुचकार के’तूतू’, ‘पूसी-पूसी’ इत्यादि बातें कह दो तो भावार्थ समझ के यथासामर्थ्य स्नेह प्रदर्शन करने लगते हैं। फिर वह मनुष्य कैसा जिसके चित्त पर दूसरे हृदयवान् की बात का असर न हो।
प्रश्न
(1)
उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए। |
(3) बालकों की बातें कैसी होती हैं?
(4) इस अवतरण में पाषाण खण्ड से क्या आशय है?
(5) विद्वानों एवं कवियों का जीवन कैसे बीतता है?

उत्तर – 

  1. सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ शीर्षक निबन्ध से उधृत है। इस गद्यावतरण में लेखक ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि बात कहने की क्षमता यद्यपि सब में होती है किन्तु ‘बात’ को सही ढंग से व्यक्त कर पाना या दूसरों की बातों को समझ पाना सभी के वश की बात नहीं होती।
  2. रेखांकित अंश की व्याख्या – विद्वानों की बात का तात्पर्य समझ पाना प्रत्येक व्यक्ति के लिए सरल काम नहीं है। साथ ही साथ दूसरों को प्रभावित कर सकनेवाली बात भी गढ़कर कह देना साधारण मनुष्यों का काम नहीं है। संसार में बड़े-बड़े ज्ञानियों एवं कवियों का जीवन बात के तात्पर्य को समझने और समझाने में ही बीत जाता है। सुहृदगणों की बात में जो आनन्द मिलता है उसके (UPBoardSolutions.com) आगे सारा संसार फीका पड़ जाता है। बालकों की तोतली बोलियों में, सुन्दर रमणियों की मीठी, प्यारी-प्यारी बातों में, कवियों की रसीली उक्तियों में और सुन्दर वक्ताओं की प्रभावशाली सशक्त बातों में जो आकर्षण होता है वह सभी के चित्त को मुग्ध कर देता है। जो इससे प्रभावित नहीं होते वे पशु ही क्यों पत्थर की शिला की भाँति शुष्क और कठोर होते हैं। |
  3. बालकों की बातें सुन्दर रमणियों की मीठी, प्यारी-प्यारी होती हैं।
  4. बालकों की तोतली बातें, सुन्दरियों की प्यारी मीठी बातें, कवियों की रसीली बातें जिनके हृदय को प्रभावित न करे उन्हें पाषाण खण्ड कहते हैं।
  5. विद्वानों एवं कवियों का जीवन बात ही को समझने-समझाने में व्यतीत हो जाते हैं।

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(6) ‘मर्द की जबान’ (बात का उदय स्थान) और गाड़ी का पहिया चलता-फिरता ही रहता है। आज जो बात है कल ही स्वार्थान्धता के वश हुजूरों की मरजी के मुवाफिक दूसरी बातें हो जाने में तनिक भी विलम्ब की सम्भावना नहीं है। यद्यपि कभी-कभी अवसर पड़ने पर बात के अंश का कुछ रंग-ढंग परिवर्तित कर लेना नीति-विरुद्ध नहीं है। पर कब? जात्युपकार, देशोद्धार, प्रेम-प्रचार आदि के समय न कि पापी पेट के लिए।
प्रश्न
(1)
उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) लेखक ने किसे नियमों का उल्लंघन नहीं माना है?
(4) ‘मर्द की जबान’ के चलते-फिरते रहने से क्या तात्पर्य है?
(5) बात के ढंग का कुछ रंग-ढंग परिवर्तित कर लेना किस प्रकार नीति विरुद्ध नहीं है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ के ‘बात’ पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक पं० प्रतापनारायण मिश्र हैं। पं० प्रतापनारायण मिश्र ने प्रस्तुत गद्यांश में यह बताया है कि प्राचीन काल में हमारे यहाँ के लोग बात के पक्के होते थे, किन्तु आजकल स्वार्थ में अन्धे लोग तुरन्त बात बदल देते हैं। |
  2. रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक का कथन है कि आजकल के भारत के अनेक कुपुत्रों ने यह तरीका अपना रखा है कि आदमी की जवान और गाड़ी का पहिया तो चलते ही रहते हैं अर्थात् गाड़ी का पहिया जिस प्रकार स्थिर नहीं रहता उसी प्रकार जबाने की स्थिर रहना या बात का पक्का होना आवश्यक नहीं है। यह कथन उन्हीं स्वार्थी लोगों का है जिनके लिए जाति, देश और सम्बन्धों का कोई महत्त्व नहीं होती। ऐसे लोगों की आज की जो बात है कल ही वह स्वार्थवश मालिक के मन के अनुसार बदलने (UPBoardSolutions.com) में थोड़ी भी देर नहीं लगाते हैं।
    लेखक आगे कहता है कि किसी महान् उद्देश्य की साधना या समय आने पर बात के रंग-ढंग या कहने का तरीका बदल लेने में किसी नियम का उल्लंघन नहीं है। ऐसा मानव जाति की भलाई के समय, देशोद्धार के समय और प्रेम-प्रसंग में ही करना चाहिए अर्थात् यदि बात बदलने से मानव जाति की भलाई होती है, देश का कल्याण होता है या प्रेम-प्रसंग में प्रेमी-प्रेमिका का हित छिपा है तो कोई नियम विरुद्ध कार्य नहीं है। स्वार्थ या पापी पेट को भरने के लिए कभी भी बात नहीं बदलनी चाहिए।
  3. यदि बात बदलने से मानव जाति की भलाई होती है, देश का कल्याण होता है या प्रेम-प्रसंग में प्रेमी-प्रेमिका को हितं छिपा है तो कोई नियम विरुद्ध कार्य नहीं है।
  4. ‘मर्द की जबान’ के चलते-फिरते रहना का तात्पर्य है स्वार्थवश बात बदलने में विलम्ब न लगना है।
  5. जाति उपकार और देशोद्धार के लिए अवसर पड़ने पर बात के कुछ रंग-ढंग को परिवर्तित कर लेना नीति विरुद्ध नहीं है।

प्रश्न 2. पं० प्रतापनारायण मिश्र का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी साहित्यिक सेवाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा पं० प्रतापनारायण मिश्र का जीवन एवं साहित्यिक परिचय स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 3. पं० प्रतापनारायण मिश्र को साहित्यिक परिचय एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।

प्रश्न 4. पं० प्रतापनारायण मिश्र का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए।

प्रश्न 5. पं० प्रतापनारायण मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए। अथवा पं० प्रतापनारायण मिश्र को संक्षिप्त साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

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पं० प्रतापनारायण मिश्र
( स्मरणीय तथ्य )

जन्म-सन् 1856 ई० । मृत्यु-सन् 1894 ई०। पिता-पं० संकटाप्रसाद मिश्र (ज्योतिषी)। जन्म-स्थान-बैजेगाँव (उन्नाव), उ० प्र०। शिक्षा-संस्कृत, बंगला, उर्दू आदि का ज्ञान।
साहित्यिक विशेषताएँ – प्रारम्भिक लेखक होते हुए भी श्रेष्ठ निबन्धों की रचना की । आँख, कान जैसे साधारण विषयों पर | भी सुन्दर निबन्ध रचना।
भाषा-शैली- प्रवाहपूर्ण, हास्य-विनोद का पुट, मुहावरों की चहल-पहल, भाषा में चमत्कार ।
रचनाएँ- 50 से भी अधिक पुस्तकों की रचना। ‘प्रतापनारायण मिश्र ग्रन्थावली’ (सभी रचनाओं का संग्रह) प्रकाशित हो चुका है।

  • जीवन-परिचय- पं० प्रतापनारायण मिश्र का जन्म उन्नाव जिला के बैजेगाँव में सन् 1856 ई० में हुआ था। इनके पिता पं० संकटाप्रसाद मिश्र एक ज्योतिषी थे। वे पिता के साथ बचपन से ही कानपुर आ गये थे। अंग्रेजी स्कूलों की अनुशासनपूर्ण पढ़ाई इन्हें रुचिकर नहीं लगी । फलत: घर पर ही आपने बंगला, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू, फारसी का अध्ययन किया। लावनीबाजों के सम्पर्क में आकर (UPBoardSolutions.com) मिश्र जी ने लावनियाँ लिख़नी शुरू कीं और यहीं से इनकी कविता का श्रीगणेश हुआ। बाद में आजीवन इन्होंने हिन्दी की सेवा की।
  • कानपुर के सामाजिक-राजनीतिक जीवन से भी इनका गहरा सम्बन्ध था। वे यहाँ की अनेक सामाजिक संस्थाओं से सम्बद्ध थे। इन्होंने कानपुर में एक नाटक-सभा की भी स्थापना की थी। ये भारतेन्दु के व्यक्तित्व से अत्यन्त प्रभावित थे तथा इन्हें अपना गुरु और आदर्श मानते थे। अपनी हाजिरजवाबी और हास्यप्रियता के कारण वे कानपुर में काफी लोकप्रिय थे। इनकी मृत्यु कानपुर में ही सन् 1894 ई० में हुई।
  • कृतियाँ-मिश्र जी द्वारा लिखित पुस्तकों की संख्या 50 हैं, जिनमें प्रेम-पुष्पावली, मन की लहर, मानस विनोद आदि काव्य-संग्रह; कलि कौतुक, हठी हम्मीर, गो-संकट, भारत-दुर्दशा (नाटक), जुआरी-खुआरी (प्रहसन) आदि प्रमुख हैं। नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा ‘प्रतापनारायण मिश्र ग्रन्थावली’ नाम से इनकी समस्त रचनाओं का संकलन प्रकाशित हुआ है।
  • साहित्यिक परिचय-प्रतिभा एवं परिश्रम के बल पर अपने 38 वर्ष के अल्प जीवन-काल में ही पं० प्रतापनारायण मिश्र ने हिन्दी-निर्माताओं की वृहन्नयी (भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, बालकृष्ण भट्ट और प्रतापनारायण मिश्र) में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया। कविता के क्षेत्र में ये पुरानी धारा के अनुयायी थे। ब्रजभाषा की समस्या की पूर्तियाँ ये खूब किया करते थे। हिन्दी-हिन्दुस्तान का नारा भी इन्होंने ही दिया (UPBoardSolutions.com) था। मिश्र जी का उग्र और प्रखर स्वभाव उनकी कविताओं की अपेक्षा उनके निबन्धों में विशेष मुखर हुआ। मिश्र जी के निबन्धों में आत्मीयता और फक्कड़पन की सरसता है। इन्होंने कुछ गम्भीर विषयों पर कलम चलायी है जिसकी भाषा अत्यन्त ही संधी और परिमार्जित है। हिन्दी निबन्ध के क्षेत्र में आज भी उनके जैसे लालित्यपूर्ण निबन्धकार की अभी बहुत कुछ कमी है। इनके निबन्धों में पर्याप्त विविधता है।
  • भाषा-शैली- मिश्र जी की भाषा मुहावरों और कहावतों से सजी हुई अत्यन्त ही लच्छेदार है जिसमें उर्दू, फारसी, संस्कृत शब्दों के साथ-साथ वैसवाड़ी के देशज शब्दों के भी प्रयोग हुए हैं। इनके निबन्धों की शैली में एक अद्भुत प्रवाह एवं आकर्षण है। इनकी शैली मुख्यत: दो प्रकार की हैं–(1) विनोदपूर्ण तथा (2) गम्भीर शैली । विनोदपूर्ण शैली को उत्कृष्ट कहना ‘समझदार की मौत’ है। गम्भीर शैली में इन्होंने बहुत ही कम लिखा है। यह उनके स्वभाव के बिल्कुल ही विरुद्ध था। ‘मनोयोग’ नामक निबन्ध इनकी गम्भीर शैली का उत्कृष्ट नमूना है।

उदाहरण 

  1. विनोदपूर्ण शैली – (i) “इसके अतिरिक्त बात बनती है, बात बिगड़ती है, बात जाती है, बात खुलती है, बात छिपती है, बात अड़ती है, बात जमती है, बात उखड़ती है, हमारे-तुम्हारे भी सभी काम बात पर ही निर्भर हैं।”- बात
  2. गम्भीर शैली – ‘संसार में संसारी जीव निस्संदेह एक-दूसरे की परीक्षा न करें तो काम न चले पर उनके काम चलने में कठिनाई यह है कि मनुष्य की बुद्धि अल्प है। अतः प्रत्येक विषय पर पूर्ण निश्चय सम्भव नहीं है।”

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. पं० प्रतापनारायण मिश्र की भाषा एवं शैली की दो-दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- भाषा की विशेषताएँ-

  1. मिश्र जी ने सर्वसाधारण की बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है।
  2. भाषा प्रवाहयुक्त, सरल एवं मुहावरेदार है। शैली की विशेषताएँ–
    • लेखों की शैली संयत एवं गम्भीर है।
    • लेखों में विनोदपूर्ण व्यंग्य तथा वक्रता के दर्शन होते हैं।

प्रश्न 2. ‘‘बात के कारण ही मनुष्य सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।” इस तथ्य को लेखक ने किस प्रकार सिद्ध किया|
उत्तर –  राजा दशरथ ने वचन के कारण ही अपने प्राण त्याग दिये लेकिन वचन का त्याग नहीं किया। वचन का पक्का व्यक्ति समाज में समादृर होता है।

प्रश्न 3. बातहि हाथी पाइये बातहि हाथीपाँव’ से लेखक का क्या तात्पर्य है?
उत्तर- बात के द्वारा ही व्यक्ति हाथी तक प्राप्त कर सकता है और बात से ही व्यक्ति अपयश का भागी भी हो सकता है। अर्थात् उसे हाथी के पैर के नीचे कुचला भी जा सकता है।

प्रश्न 4. पं० प्रतापनारायण मिश्र ने किन पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया?
उत्तर- पं० प्रतापनारायण मिश्र ने ब्राह्मण’ एवं ‘हिन्दुस्तान’ पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया।

प्रश्न 5. ‘अपाणिपादो जवनो ग्रहीता’ सूक्ति का अर्थ बताइए।
उत्तर- ‘अपाणिपादो जवनो ग्रहीता’ पर हठ करनेवाले को यह कहके बातों में उड़ायेंगे कि हम लूले-लँगड़े ईश्वर को नहीं मान सकते। हमारा तो प्यारा कोटि काम सुन्दर (UPBoardSolutions.com) श्याम वर्ण विशिष्ट है। ‘अपाणिपादो जवनो ग्रहीता’ का तात्पर्य हाथ-पैर से हीन युवावस्था को प्राप्त है।

प्रश्न 6. आर्यगण अपनी बात का ध्यान रखते थे, इस बात को क्या प्रमाण है?
उत्तर- राजा दशरथ ने अपने प्राण त्याग दिये लेकिन उन्होंने वचन नहीं छोड़ा।

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प्रश्न 7. ‘बात’ पाठ से मुहावरों की सूची बनाइए।
उत्तर-
गात माँहि बात करामात है।
बातहिं हाथी पाइये बातहिं हाथी पाँव।
मर्द की जबान।
बात-बात में बात।

प्रश्न 8. ‘बात’ पाठ में बात और ईश्वर में क्या साम्य बताया गया है?
उत्तर- बात और ईश्वर में परस्पर साम्य है। वेद ईश्वर का वचन है। कुरानशरीफ कलामुल्लाह है, होली बाइबिल वर्ड ऑफ गॉड है। यह वचन, कलाम और वर्ड बात ही के पर्याय हैं।

प्रश्न 9. प्रथम अनुच्छेद में ‘बात’ शब्द का प्रयोग किन-किन अर्थों में किया गया है?
उत्तर – प्रथम अनुच्छेद में ‘बात’ शब्द का प्रयोग वचन, कलाम और वर्ड के रूप में किया गया है।

प्रश्न 10. किस प्रकार के व्यक्ति को हमें पाषाणखण्ड समझना चाहिए और क्यों?
उत्तर- बालकों की तोतली बातें, सुन्दरियों की मीठी-मीठी और प्यारी-प्यारी बातें, सत्कवियों की रसीली बातें, सुवक्ताओं की प्रभावशालिनी बातों का जिनके हृदय पर प्रभाव (UPBoardSolutions.com) नहीं पड़ता, उन्हें पशु नहीं पाषाणखण्ड कहना चाहिए क्योंकि कुत्ते, बिल्ली आदि को विशेष समझ नहीं होती तो भी पुचकार के तू-तू, पूसी-पूसी इत्यादि बातें कह दो तो वे भावार्थ समझ के यथासामर्थ्य स्नेह प्रदर्शन करने लगते हैं।

प्रश्न 11. ‘बात’ शब्द की गूढ़ता पर तीस शब्द लिखिए।
उत्तर- नाना शास्त्र, पुराण, इतिहास, काव्य, कोश इत्यादि सब बात ही के फैलाव हैं जिनके मध्य एक बात ऐसी पायी जाती है जो मन, बुद्धि, चित्त को अपूर्व दशा में ले जानेवाली अथवा लोक-परलोक में सब बात बनानेवाली है। यद्यपि बात का कोई रूप नहीं बतला सकता कि कैसी है, पर बुद्धि दौड़ाइये तो पता चलेगा कि ईश्वर की भाँति इसके अनेक रूप हैं।

प्रश्न 12. ‘बात’ पाठ से 10 सुन्दर वाक्य लिखिए।
उत्तर- वेद ईश्वर का वचन है। निराकार शब्द का अर्थ शालिग्राम शिला है। बात के अनेक रूप हैं। बात का तत्त्व समझना आसान काम नहीं है। मर्द की जबान और गाड़ी (UPBoardSolutions.com) का पहिया चलता-फिरता ही रहता है। बात से ही अपने-पराये और पराये अपने हो जाते हैं। कुरान शरीफ कलामुल्लाह है। होली बाइबिल वर्ड ऑफ गॉड है। निराकार शब्द का अर्थ शालिग्राम शिला है। मर्द की जबान और गाड़ी का पहिया चलता-फिरता रहता है।

प्रश्न 13. ‘बात’ पाठ का मुख्य उद्देश्य बताइए।
उत्तर- ‘बात’ पाठ का मुख्य उद्देश्य यह है कि हम दूसरों से बहुत नपी-तुली बात करें।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. लेखक ने भारत के कुपुत्रों द्वारा ‘मर्द की जबान’ का क्या अर्थ बताया है?
उत्तर- लेखक ने भारत के कुपुत्रों द्वारा ‘मर्द की जबान’ को अर्थ बताया है कि आजकल के बहुतेरे भारत के कुपुत्र अपने वचन की तनिक भी परवाह नहीं करते। स्वार्थ के कारण वे अपनी बात तुरन्त बदल देते हैं। इनका मानना है कि ‘मर्द की जबान’ और ‘गाड़ी को पहिया’ सदैव चलता रहता (UPBoardSolutions.com) है अर्थात् गाड़ी के पहिये की तरह मर्द की जबान भी चलायमान है अत: इस जबान से जो कुछ भी कहा जाय, उसे पूरा करना आवश्यक नहीं । हुजूरों की मरजी के अनुसार, इसे चाहे जब बदला जा सकता है।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (√) का चिह्न लगाओ
(अ) पं० प्रतापनारायण मिश्र भारतेन्दु युग के लेखक हैं।                         (√)
(ब) निराकार शब्द का अर्थ शालिग्राम शिला है।                                    (√)
(स) पं० प्रतापनारायण मिश्र ने ब्राह्मण’ पत्रिका को सम्पादन नहीं किया।  (×)
(द) ‘बात’ के कई रूप हैं।                                                                      (√)             

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प्रश्न 3. पं० प्रतापनारायण मिश्र किस युग के लेखक हैं?
उत्तर – पं० प्रतापनारायण मिश्र भारतेन्दु युग के लेखक हैं।

प्रश्न 4. पं० प्रतापनारायण मिश्र किस महान् साहित्यकार को अपना गुरु मानते थे?
उत्तर – पं० प्रतापनारायण मिश्र भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को अपना गुरु मानते थे।

प्रश्न 5. पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित दो नाटकों के नाम लिखिए।
उत्तर – पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित दो नाटक-‘कलि-कौतुक’ और ‘हठी हम्मीर’ है।

प्रश्न 6. कलामुल्लाह का क्या अर्थ है?
उत्तर – कलामुल्लाह का अर्थ वचन है।

व्याकरण-बोध

प्रश्न 1. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ स्पष्ट करते हुए उनका वाक्य प्रयोग कीजिए –
बात जाती रहना, बात जमना, बात बिगड़ना, बात का बतंगड़ बनाना, बात उखड़ना, बात की बात।

उत्तर – 

  • बात जाती रहना- (बात का महत्त्व न होना)
    राम ने दिनेश को इतना अधिक प्रलोभन दिया फिर भी उसकी बात जाती रही। 
  • बात जमना – (ठीक तरह से बात समझ में आना)
    मैंने उसे बहुत अच्छी तरह से समझाया, जिससे बात जम गयी लगती है।
  • बात बिगड़ना – (बात न बनना)
    मोहन को मैंने बार-बार समझाया था फिर भी बात बिगड़ गयी।
  • बात का बतंगड़ बनाना – (बातों में उलझाना)
    उसने बात का ऐसा बतंगड़ बनाया कि उसके समझ में नहीं आया।
  • बात उखड़ना – (बात न बनना)
    उसके लाख समझाने पर भी बात उखड़ गयी।
  • बात की बात – (प्रसंगवश किसी बात का जिक्र होना)
    मैं उसके साथ किये गये कार्यों का वर्णन नहीं कर रहा हूँ, यह तो बात की बात है।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में सनियम सन्धि-विच्छेद कीजिए तथा सन्धि का नाम बताइएनिराकार, निरवयव, परमेश्वर, धर्मावलम्बी, विदग्धालाप, युद्धोत्साही, स्वार्थान्धता, कवीश्वर, योगाभ्यास।

उत्तर-
निराकार = निर + आकार = अ + आ = आ (दीर्घ सन्धि)
निरवयव = निरः + अवयव = : + अ = र (विसर्ग सन्धि)
परमेश्वर = परम + ईश्वर = अ + ई = ए (गुण सन्धि)
धर्मावलम्बी = धर्म + अवलम्बी = अ + अ = आ (दीर्घ सन्धि)
विदग्धालाप = विदग्ध + आलाप = अ + आ = आ (दीर्घ सन्धि)
युद्धोत्साही = युद्ध + उत्साही = अ + उ = ओ (गुण सन्धि)
स्वार्थान्धता = । स्वार्थ + अन्धता = अ + अ = आ (दीर्घ सन्धि)
कवीश्वर = कवि + ईश्वर = इ + ई = ई (दीर्घ सन्धि)
योगाभ्यास = योग + अभ्यास = अ + अ = आ (दीर्घ सन्धि)

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प्रश्न 3. निम्नलिखित में समास-विग्रह करके समास का नाम भी लिखिएकापुरुष, पाषाणखण्ड, सुपथ, यथासामर्थ्य, अपाणिपादो, कुमार्गी ।

उत्तर  –
कापुरुष कायर पुरुष = कर्मधारय
पाषाणखण्ड = पाषाण का खण्ड = सम्बन्ध तत्पुरुष
सुपथ = सुन्दर रास्ता 
= प्रादि तत्पुरुष
यथासामर्थ्य = सामर्थ्य के अनुसार = अव्यययीभाव
अपाणिपादो = नपाणिपादो = 
क् तत्पुरुष
कुमार्गी = कुत्सित मार्गी = कर्मधारय

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Project Work (प्रोजेक्ट कार्य)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Project Work (प्रोजेक्ट कार्य)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Project Work (प्रोजेक्ट कार्य).

प्रोजेक्ट कार्य-1

समस्या कथन
किसी राष्ट्रीयकृत अथवा प्राइवेट बैंक की शाखा में जाकर बचत खाते में लगने वाले साधारण ब्याज के आगणन की जानकारी प्राप्त करना।

प्रस्तावना

जब हम अपने बचत खाते में धनराशि जमा करते हैं तो उस राशि को बैंक या तो जनसाधारण को लोन के रूप में देता है या सरकार उस राशि का प्रयोग सार्वजनिक कार्यों के लिए करती है। बैंक खाताधारकों के धन का प्रयोग करने के प्रतिफल में खाताधारक को एक निर्धारित दर से ब्याज प्रदान करते हैं। यह प्रक्रिया ठीक उसी प्रकार है, जब कोई व्यक्ति किसी महाजन या बैंकर से कुछ धन उधार लेता है। तो वह उधार लिया (UPBoardSolutions.com) मूलधन निश्चित समय एवं ब्याज की अतिरिक्त राशि के साथ देता है। इस प्रकार, यह अतिरिक्त धन ही ब्याज है। मूलधन और ब्याज के योग को मिश्रधन कहते हैं। बैंक बचत खाते में जितने वर्ष, माह, दिन के लिए खाताधारकों की धनराशि को जमा रखता है, उसके अनुसार ब्याज की राशि खाताधारक के खाते में निश्चित समय-अन्तराल पर जमा करता है। बैंकों में यह एक साधारण प्रक्रिया है, जो सभी खाताधारकों को सामान्य रूप से प्रदान की जाती है।
UP Board Solutions for Class 10 Social Science Project Work (प्रोजेक्ट कार्य)
पहले बैंक बचत खाते में जमा धनराशि के लिए ब्याज माह के हिसाब से प्रदान करते थे जिसकी गणना के लिए उसे वर्ष में बदलने के लिए 12 से भाग देना पड़ता था, लेकिन वर्तमान में बैंक प्रतिदिन के हिसाब से बचत खाते की शेष धनराशि पर ब्याज की गणना करते हैं जिसकी गणना के लिए दिनों को वर्ष में बदलने हेतु 365 से भाग देना पड़ता है। इस क्रिया में जिस दिन धन दिया जाता है, उसे छोड़ दिया जाता है और जिस दिन धन जमा किया जाता है, उसे सम्मिलित कर लिया जाता है। इस प्रकार बचत खाते में जमा धनराशि पर ब्याज की गणना निम्नलिखित सूत्र के माध्यम से की जाती है
UP Board Solutions for Class 10 Social Science Project Work (प्रोजेक्ट कार्य)
वर्तमान में ब्याज की गणना बैंक कम्प्यूटर के माध्यम से करते हैं और त्रैमासिक रूप से ब्याज की धनराशि खाताधारक के खाते में क्रेडिट कर दी जाती है।

लक्ष्य, उद्देश्य एवं कार्य-प्रणाली
प्रस्तुत परियोजना कार्य का मुख्य उद्देश्य बैंकों द्वारा की जाने वाली ब्याज की गणना का मूल्यांकन कर उस विधि का अध्ययन करना है। इसका मुख्य लक्ष्य विद्यार्थियों को बैंक द्वारा दिए जाने वाले ब्याज आगणन की प्रक्रिया से अवगत कराना है। इस परियोजना कार्य के लक्ष्य एवं उद्देश्य की पूर्ति हेतु आनुभाविक शोध प्रणाली (Empirical Research Method) का प्रयोग किया जाता है।

बैंक की ब्याज नीति का निर्धारण
1 अप्रैल, 2010 से देश के करीब 62 करोड़ बचत खाताधारकों के लिए बैंक द्वारा एक नई शुरुआत की गयी। इस दिन से सभी खाताधारकों को बचत खाते में जमा राशि पर प्रतिदिन के हिसाब से ब्याज प्रदान किया जा रहा है। ब्याज की दर तो 4% ही रखी गयी, लेकिन (UPBoardSolutions.com) नई गणना से ब्याज से प्राप्त होने वाली आय पर काफी फर्क पड़ा है।

इस नियम की घोषणा 21 अप्रैल, 2009 को वित्त वर्ष 2009-10 की वार्षिक मौद्रिक नीति पेश करते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ० डी० सुब्बाराव ने की थी, लेकिन बैंकों के शीर्ष संगठन इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (आईबीए) का कहना था कि रोजाना के आधार पर ब्याज की गणना तभी संभव है जब वाणिज्यिक बैंकों की सभी शाखाओं का कम्प्यूटरीकरण पूरा हो जाए। इसलिए सभी वाणिज्यिक बैंकों के बचत खातों पर ब्याज की गणना 1 अप्रैल, 2010 से प्रतिदिन के आधार पर करने का प्रस्ताव पारित किया गया।

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यह भी ध्यान देने योग्य है कि बैंक चालू खाते में ओवरड्राफ्ट पर अपने ब्याज की गणना प्रतिदिन के आधार पर करते हैं, इसलिए बचत खाते में प्रतिदिन की गणना से ही खाताधारक को ब्याज दिया जाना चाहिए। वास्तव में चालू और बचत खाते बैंकों के लिए फंड जुटाने का सबसे सरल एवं सुलभ माध्यम हैं।

बैंक द्वारा बचत खाते में की जाने वाली साधारण ब्याज की गणना
बैंक की पास बुक में से ली गयी प्रविष्टियों में ब्याज आगणन की प्रक्रिया का वर्णन निम्नलिखित है
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प्रतिदिन के आधार पर ब्याज की गणना
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उपर्युक्त प्रविष्टियों में बचत खाते में जमा राशि की प्रतिदिन की शेष राशि पर ब्याज की गणना की गयी है। बैंक द्वारा त्रैमासिक रूप से ब्याज की धनराशि खाते में समायोजित की जाती है। उपरोक्त गणना में 4 प्रतिशत की दर से प्रतिदिन के शेष पर ब्याज (UPBoardSolutions.com) अभिकलित किया गया है। अभीष्ट ब्याज की गणना हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया गया है

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अतः 1 जनवरी से 31 जनवरी तक कुल ब्याज = 14.465 +37260 = ₹ 51.725
इसी प्रकार फरवरी और मार्च माह के ब्याज की गणना कर तीनों माह के योग 162.96 अर्थात् 163 को खाते में समायोजित किया गया है।
ब्याज की गणना इस प्रकार संयुक्त रूप से भी की जा सकती है
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निष्कर्ष
प्रस्तुत परियोजना के माध्यम से हमने बैंक की शाखा में जाकर बचत खाते पर मिलने वाले ब्याज की दर ज्ञात की तथा उसकी गणना के बारे में बैंक अधिकारियों से विस्तारपूर्वक चर्चा की। इसके अलावा उनके द्वारा बताई गई आगणन विधि से तीन माह की प्रविष्टियों पर दिए गए ब्याज की गणना की। बैंक की पासबुक में मुद्रित प्रविष्टियों के अनुसार सत्यापन कर हमने बचत खाते पर प्रतिदिन के आधार पर मिलने वाले ब्याज की धनराशि का (UPBoardSolutions.com) आगणन करना सीखा और पासबुक में की गयी प्रविष्टियों का गहन अध्ययन किया। प्रस्तुत परियोजना कार्य से हमारे ज्ञान में वृद्धि होने के साथ-साथ हमें नवीन जानकारियाँ प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ।

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प्रोजेक्ट कार्य-2

समस्या कथन
स्थायी खाता संख्या (PAN) कार्ड बनवाने हेतु आवेदन की प्रक्रिया की जानकारी प्राप्त करना।

प्रस्तावना
पैन कार्ड एक विशिष्ट पहचान कार्ड है जिसे स्थायी खाता संख्या (Permanent Account Number) कहा जाता है, जो किसी भी तरह के आर्थिक लेन-देन के लिए आवश्यक है। पैन कार्ड में एक अल्फान्यूमेरिक 10 अंकों की संख्या होती है, जो आयकर (UPBoardSolutions.com) विभाग द्वारा निर्धारित की जाती है। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) के अन्तर्गत आती है। इसके अलावा यह भी उल्लेखनीय है कि पैन कार्ड आयकर अधिनियम 139A के तहत जारी किए जाते हैं। पैन कार्ड के अल्फान्यूमेरिक अंकों के प्रत्येक शब्द का अर्थ निम्नलिखित होता है
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पैन का उपयोग
पैन का उपयोग इन कार्यों के लिए अनिवार्य रूप से किया जाता है

  • आयकर (आईटी) रिटर्न दाखिल करने के लिए।
  • शेयरों की खरीद-बिक्री हेतु डीमैट खाता खुलवाने के लिए।
  • एक बैंक खाते से दूसरे बैंक खाते में है 50,000 या उससे अधिक की राशि निकालने अथवा जमा करने अथवा हस्तांतरित करने पर।
  • टीडीएस (टैक्स डिडक्शन एट सोर्स) जमा करने एवं वापस पाने के लिए।

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प्राप्त करने की पात्रता
कोई भी व्यक्ति, फर्म या संयुक्त उपक्रम पैन कार्ड के लिए आवेदन कर सकता है। इसके लिए कोई न्यूनतम अथवा अधिकतम उम्र सीमा नहीं है।

पैन हेतु आवेदन करने के लिए जरूरी दस्तावेज

  • अच्छी गुणवत्ता वाली पासपोर्ट आकार की दो रंगीन फोटो।
  • शुल्क के रूप में है 107 का डिमांड ड्राफ्ट या चेक एवं विदेश (UPBoardSolutions.com) के दिये गये पते पर बनवाने के लिए ₹ 994 का ड्राफ्ट बनवाना जरूरी है।
  • व्यक्तिगत पहचान के प्रमाण की छायाप्रति।
  • आवासीय पते के प्रमाण की छायाप्रति।
  • व्यक्तिगत पहचान व आवासीय पता पहचान दोनों सूची में से अलग-अलग दो दस्तावेज जमा करें।

व्यक्तिगत पहचान के लिए प्रमाण – (निम्न में से कोई भी एक प्रमाण-पत्र)

  1. विद्यालय परित्याग प्रमाण-पत्र
  2. मैट्रिक का प्रमाण-पत्र
  3. मान्यताप्राप्त शिक्षण संस्थान की डिग्री
  4. डिपोजिटरी खाता विवरण
  5. क्रेडिट कार्ड का विवरण
  6. बैंक खाते का विवरण/बैंक पासबुक
  7. पानी का बिल
  8. राशन कार्ड
  9. सम्पत्ति का मूल्यांकन आदेश
  10. पासपोर्ट
  11. मतदाता पहचान-पत्र
  12. ड्राइविंग लाइसेंस
  13. सांसद/विधायक/नगरपालिका पार्षद अथवा किसी (UPBoardSolutions.com) राजपत्रित अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित पहचान प्रमाण-पत्र।

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आवासीय पते के प्रमाण के लिए – (निम्न में से कोई भी एक प्रमाण-पत्र)

  1. बिजली बिल
  2. टेलीफोन बिल
  3. डिपोजिटरी खाता विवरण
  4. क्रेडिट कार्ड का विवरण
  5. बैंक खाता विवरण/बैंक पासबुक
  6. घर किराये की रसीद
  7. नियोक्ता का प्रमाण-पत्र
  8. पासपोर्ट
  9. मतदाता पहचान-पत्र
  10. सम्पत्ति का मूल्यांकन आदेश
  11. ड्राइविंग लाइसेंस
  12. राशन कार्ड
  13. सांसद/विधायक/नगरपालिका पार्षद अथवा (UPBoardSolutions.com) किसी राजपत्रित अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित पहचान प्रमाण-पत्र।

ध्यान दें – यदि आवासीय पते के प्रमाण के लिए क्रम संख्या 1 से 7 तक में उल्लिखित दस्तावेज का उपयोग किया जा रहा हो तो वह जमा करने की तिथि से एक माह से अधिक पुराना नहीं होना चाहिए।

पैन कार्ड के लिए शुल्क भुगतान की प्रक्रिया

  • पैन आवेदन के लिए शुल्क ₹ 107 है (93.00 + 15% सेवा शुल्क)
  • शुल्क का भुगतान डिमांड ड्राफ्ट, चेक अथवा क्रेडिट कार्ड द्वारा किया जा सकता है।
  • डिमांड ड्राफ्ट या चेक NSDL-PAN के नाम से बना होना चाहिए।  डिमांड ड्राफ्ट मुम्बई में भुगतेय होना चाहिए और डिमांड ड्राफ्ट के पीछे आवेदक को नाम तथा पावती संख्या लिखी होनी चाहिए।
  • चेक द्वारा शुल्क का भुगतान करने वाले आवेदक देशभर में एचडीएफसी बैंक की किसी भी शाखा पर भुगतान कर सकते हैं। आवेदक को जमा पर्ची पर NSDLPAN का उल्लेख करना चाहिए।

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पैन कार्ड के लिए आवेदन प्रपत्र 49A भरने की प्रक्रिया
पैन कार्ड हेतु आवेदन करने के लिए फॉर्म 49A भरकर निर्धारित शुल्क व आवश्यक दस्तावेजों के साथ प्रेषित किया जाता है। आवेदन-पत्र की प्रविष्टियाँ निम्नलिखित क्रम में स्पष्ट रूप से भरनी चाहिए तथा फॉर्म के दोनों ओर फोटो लगाकर हस्ताक्षर (UPBoardSolutions.com) करने के स्थान पर हस्ताक्षर करने चाहिए।

कॉलम-1 :

  • इस कॉलम में आवेदक का पूरा नाम अंग्रेजी के कैपिटल अक्षरों में भरा जाता है।

कॉलम-2 :

  • इस कॉलम में आवेदक अपने नाम के पदबंध (Abbreviation) का संक्षिप्त रूप दर्ज कर सकता है।

कॉलम-3 :

  • इस कॉलम में यदि आवेदक को किसी अन्य नाम से भी जाना जाता है तो उसकी सूचना दर्ज करनी चाहिए। नाम को पहला, मध्य व अन्तिम अक्षर स्पष्ट रूप से लिखना चाहिए।

कॉलम-4 :

  • इस कॉलम में आवेदक अपना लैंगिक विभेद पुरुष/महिला पर निशान लगाकर स्पष्ट करता है।

कॉलम-5 :

  • इस कॉलम में अर्विदक को अपनी जन्मतिथि तथा कम्पनी, ट्रस्ट फर्म आदि की स्थापना तिथि दर्ज करनी चाहिए।

कॉलम-6 :

  • इस कॉलम में आवेदक के पिता का नाम लिखने के लिए स्थान दिया जाता है।

कॉलम-7 :

  • इस कॉलम में आवेदक का पूरा पता तथा उसके कार्यालय का पूरा पता दर्ज करने के लिए मकान नं०, भवन का नाम, पोस्ट ऑफिस, मोहल्ले का नाम, शहर व प्रदेश का नाम, पिन नम्बर तथा राष्ट्र के नाम के लिए पृथक्-पृथक् स्थान दिया होता हे।

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कॉलम-8 :

  • इस कॉलम में संचार के लिए प्रयुक्त होने वाला पता; यथा-निवास अथवा कार्यालयी दोनों में से किसी एक पर सही () का निशान लगाकर सहमति प्रकट करनी होती है।

कॉलम-9 :

  • इस कॉलम में आवेदक का फोन नम्बर, मोबाइल नम्बर व ईमेल एड्रेस लिखने का स्थान होता है।

कॉलम-10 :

  • इस कॉलम में आवेदक के स्तर; यथा-व्यक्तिगत, (UPBoardSolutions.com) कम्पनी, सरकारी, ट्रस्ट आदि में उपयुक्त कॉलम पर सही (V) का निशान लगाना होता है।

कॉलम-11 :

  • इस कॉलम में यदि आवेदन किसी कम्पनी या फर्म की ओर से किया जा रहा हो तो उसकी पंजीकरण संख्या दर्ज करनी चाहिए।

कॉलम-12 :

  • इस कॉलम में यदि आवेदक भारत का नागरिक है तो उसका आधार नम्बर निर्धारित स्थान पर लिखना चाहिए।

कॉलम-13 :

  • इस कॉलम में आवेदक की आय के स्रोत; जैसे-वेतन, व्यवसाय, किराया, कैपिटल गेन या अन्य स्रोतों से होने वाली आय का विवरण दर्ज किया जाता

कॉलम-14 :

  • इस कॉलम में ऐसे प्रतिनिधि का नाम वे पूरा पता दर्ज किया जाता है, जो आवेदक की अनुपस्थिति में आयकर निर्धारण हेतु आवेदक के प्रतिनिधि के रूप में भूमिका निभायेगा।

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कॉलम-15 :

  • इस कॉलम में पहचान-पत्र एवं निवास प्रमाण-पत्र के सन्दर्भ में सूचना दर्ज की जाती है जो कि इस आवेदन-पत्र के साथ संलग्न किए जा रहे हों।

कॉलम-16 :

  • इस कॉलम में आवेदक द्वारा घोषणा कथन पर हस्ताक्षर कर स्पष्ट किया जाता है कि उसके द्वारा दर्ज की गयी सभी जानकारियाँ पूर्ण सत्य हैं।

अन्त में स्थान, दिनांक व हस्ताक्षर करने हेतु बने कॉलमों में प्रविष्टियाँ करके फॉर्म को पूर्ण किया जाता है तथा पैन आवेदन संग्रह केन्द्र के कार्यालय में प्रेषित किया जाता है।

निष्कर्ष
प्रस्तुत परियोजना के माध्यम से हमने पैन कार्ड आदि के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त की। इसके अतिरिक्त पैन कार्ड के आवेदन हेतु प्रयुक्त किए जाने वाले फॉर्म सं० 49 A के प्रत्येक कॉलम को भरने एवं उसके सम्बन्ध में पूरी जानकारी का अध्ययन किया। (UPBoardSolutions.com) परियोजना कार्य हेतु संगृहीत की गयी जानकारी वास्तव में अत्यन्त बोधगम्य एवं रोचक सिद्ध हुई।

प्रोजेक्ट कार्य-3

समस्या कथन
आधार कार्ड बनवाने हेतु आवेदन की प्रक्रिया की जानकारी प्राप्त करना।

प्रस्तावना
आधार कार्ड भारत सरकार द्वारा भारत के नागरिकों को जारी किया जाने वाला एक पहचान-पत्र है। इसमें 12 अंकों की एक विशिष्ट संख्या मुद्रित होती है जिसे भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (भा०वि०प०प्रा०) जारी करती है। यह संख्या भारत में कहीं भी व्यक्ति की पहचान और पते का प्रमाण होता है। भारतीय डाक द्वारा प्राप्त और यू०आई०डी०ए०आई० की वेबसाइट से डाउनलोड किया गया ई-आधार दोनों ही समान रूप से मान्य हैं। (UPBoardSolutions.com) कोई भी व्यक्ति आधार के लिए नामांकन करा सकता है बशर्ते वह भारत का निवासी हो और यू०आई०डी०ए०आई० द्वारा निर्धारित सत्यापन प्रक्रिया को पूरा करती हो, चाहे उसकी उम्र और लिंग (जेण्डर) कुछ भी हो। प्रत्येक व्यक्ति केवल एक बार नामांकन करा सकता है। इसका नामांकन निशुल्क है तथा यह नागरिकता का प्रमाण-पत्र न होकर एक पहचान-पत्र मात्र है। UIDAI की प्रथम अध्यक्षा नंदन नीलेकणि हैं। UIDAI का लक्ष्य आगामी वर्षों में सम्पूर्ण भारतवर्ष के लोगों को आधार नम्बर जारी करने का है।

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लक्ष्य, उद्देश्य एवं कार्य-प्रणाली
प्रस्तुत परियोजना कार्य का मुख्य उद्देश्य आधार कार्ड की आवेदन प्रक्रिया का अध्ययन करना है। इसका मुख्य लक्ष्य आधार कार्ड की आवश्यकता, लाभ व उपयोगिता की जानकारी प्राप्त करना है। इसके उद्देश्य एवं लक्ष्य की प्राप्ति हेतु आनुभाविक शोध विधि का प्रयोग किया गया है और जनसेवा केन्द्र पर जाकर आधार कार्ड का आवेदन-पत्र प्राप्त करके, उसे भरने एवं संलग्न होने वाले दस्तावेजों, डेमोग्राफिक
और बायोमैट्रिक सूचनाओं के संकलन की जानकारी प्राप्त कर इस परियोजना कार्य को पूर्ण करने का प्रयास किया गया है।

आधार कार्ड के लाभ
आधार कार्ड के लाभों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है

  1. आधार एक 12 अंकों की प्रत्येक भारतीय की एक विशिष्ट पहचान है।
  2. आधार कार्ड भारत के प्रत्येक निवासी के पहचान-पत्र के रूप में प्रमाण है।
  3. आधार कार्ड डेमोग्राफिक और बायोमैट्रिक आधार पर प्रत्येक व्यक्ति की विशिष्ट पहचान सिद्ध करता है।
  4. यह एक स्वैच्छिक सेवा है जिसका प्रत्येक निवासी लाभ उठा सकता है, चाहे वर्तमान में उसके पास कोई भी दस्तावेज हो।
  5. आधार कार्ड के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को केवल एक ही विशिष्ट (UPBoardSolutions.com) पहचान आधार नम्बर दिया जाता है।
  6. आधार वैश्विक इन्फ्रास्ट्रक्चर पहचान प्रदान करता है, जो कि राशन कार्ड, पासपोर्ट आदि जैसी पहचान आधारित ऐप्लिकेशन द्वारा भी प्रयोग में लाया जा सकता है।
  7. यू०आई०डी०ए०आई० किसी भी तरह के पहचान प्रमाणीकरण से सम्बन्धित प्रश्नों के हाँ/नहीं में उत्तर प्रदान करेगा।
  8. आधार संख्या को बैंकिंग, मोबाइल फोन कनेक्शन और सरकारी व गैर-सरकारी सेवाओं की सुविधाएँ प्राप्त करने में प्रयोग किया जा सकता है।

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आधार कार्ड की आवश्यकता और उपयोग
आधार कार्ड पहचान-पत्र तथा निवास प्रमाण-पत्र के रूप में सभी सरकारी एवं गैर-सरकारी विभागों में जरूरी हो गया है; क्योंकि पहचान के लिए हर जगह आधार कार्ड माँगा जाता है। आधार कार्ड के महत्त्व को बढ़ाते हुए भारत सरकार ने भी बड़े फैसले लिए हैं जिसमें निम्नलिखित कार्यों के लिए आधार संख्या दर्ज कराना अनिवार्य कर दिया गया है

  1. पासपोर्ट जारी करने के लिए आधार को अनिवार्य कर दिया गया है।
  2. बैंक में जनधन खाता खोलने के लिए
  3. एलपीजी की सब्सिडी पाने के लिए।
  4. ट्रेन टिकट में छूट पाने के लिए।
  5. परीक्षाओं में बैठने के लिए (जैसे—आईआईटी जेईई के लिए)
  6. बच्चों को नर्सरी कक्षा में प्रवेश दिलाने के लिए।
  7. डिजिटल जीवन प्रमाण-पत्र (UPBoardSolutions.com) (लाइफ सर्टिफिकेट) के लिए
  8. प्रॉविडेंट फंड के भुगतान के आवेदन हेतु
  9. डिजिटल लॉकर के लिए।
  10. सम्पत्ति के रजिस्ट्रेशन के लिए
  11. छात्रों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति को बैंक में जमा कराने हेतु
  12. सिम कार्ड खरीदने के लिए।
  13. आयकर रिटर्न हेतु। आयकर विभाग करदाताओं को आधार कार्ड के जरिए आयकर रिटर्न की ई-जाँच करने की सुविधा प्रदान करता है।

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आधार कार्ड के आवेदन की प्रक्रिया
आधार कार्ड के आवेदन प्रपत्र में निम्नलिखित सूचनाएँ संदर्भित विषय-वस्तु के अनुसार भरी जाती हैं

कॉलम-1 :

  • इस कॉलम में नामांकन संख्या उपलब्ध हो तो अवश्य भरनी चाहिए।

कॉलम-2 :

  • इस कॉलम में राष्ट्रीय रजिस्टर का रसीद (UPBoardSolutions.com) नम्बरे अथवा टिन नम्बर भरना चाहिए।

कॉलम-3 :

  • इस कॉलम में दिए गए स्थान पर आवेदक को पूरा पता लिखना चाहिए।

कॉलम-4 :

  • इस कॉलम में लैंगिक विभेद अर्थात् पुरुष/स्त्री व अन्य में से उपयुक्त स्थान पर सही (V) का निशान लगाना चाहिए।

कॉलम-5 :

  • इस कॉलम में जन्मतिथि का विवरण भरना चाहिए।

कॉलम-6 :

  • इस कॉलम में पते से सम्बन्धित विवरण दर्ज करना चाहिए।

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कॉलम-7 :

  • इस कॉलम में माता, पिता, पति, पत्नी आदि से सम्बन्धित जानकारी; यथा–नाम व आधार नम्बर, जन्मतिथि आदि का विवरण दर्ज करना चाहिए।

कॉलम-8 :

  • इस कॉलम में अनापत्ति कथन पर सही (V) अथवा गलत (४) का निशान ” लगाकर सहमति/असहमति प्रकट करनी चाहिए।

कॉलम-9 :

  • इस कॉलम में आधार संख्या को अन्य सरकारी विभागों; जैसे—बैंक, (UPBoardSolutions.com) आदि से जोड़ने के लिए अनापत्ति कथन हेतु सहमति प्रकट करना और बैंक का नाम, खाता संख्या आदि दर्ज करना चाहिए।

कॉलम-10 :

  • इस कॉलम में संलग्न किए जाने वाले दस्तावेजों; जैसे-पहचान पत्र, निवास प्रमाण-पत्र, सम्बन्ध प्रमाण-पत्र तथा जन्म प्रमाण-पत्र आदि पर सही (V) का निशान लगाकर उस आवेदन-पत्र के साथ संलग्न करना चाहिए।

कॉलम-11 :

  • इस कॉलम में पहचान आधारित विवरण भरना चाहिए जिसमें माता, पिता, पति, पत्नी, अभिभावक आदि की जानकारी दर्ज की जाती है जिसमें मुख्य रूप से उनकी आधार संख्या दर्ज करनी चाहिए।

अन्त में, आवेदन पत्र में भरी गयी जानकारियों के सत्यापन के लिए मुद्रित कथन के नीचे हस्ताक्षर करके तथा पहचानकर्ता को नाम लिखकर एवं हस्ताक्षर कराकर जनसेवा केन्द्र या डाक घर में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर आधार कार्ड के लिए आवेदन कर सकते हैं। सक्षम अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत होकर बायामैट्रिक माध्यम से अपने हाथों की अँगुलियों की छाप, आँखों के इम्प्रेशन तथा फोटो खिंचवाने की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद सक्षम अधिकारी अगली कार्यवाही के लिए फॉर्म को अग्रसारित करते हैं तथा एक से दो सप्ताह के भीतर डाक के माध्यम से आधार कार्ड दिए गए पते पर पहुँच जाता है।

निष्कर्ष
प्रस्तुत परियोजना कार्य के माध्यम से हमने जनसेवा केन्द्र पर जाकर आधार कार्ड के आवेदन से सम्बन्धित पूर्ण जानकारी का अध्ययन किया और आवेदन प्रपत्र भरने, आधार कार्ड के लाभों, आवश्यकता और उपयोग के बारे में विस्तृत जानकारी अर्जित की। इस परियोजना कार्य से यह भी ज्ञात हुआ कि आधार कार्ड प्रत्येक भारतीय को पहचान प्रदान करने वाला महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है तथा इसे 12 अंकों की विशिष्ट संख्या द्वारा अनुमोदित (UPBoardSolutions.com) किया जाता है। आधार कार्ड को भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण द्वारा जारी किया जाता है; अतः हमें इस परियोजना कार्य के माध्मय से ही आधार कार्ड सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण जानकारियों को प्राप्त करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।

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प्रोजेक्ट कार्य-4

समस्या कथन
व्यक्तिगत आयकर किस प्रपत्र पर और कैसे भरा जाता है? इसकी जानकारी प्राप्त करना।

प्रस्तावना
सरकार को अपने कर्तव्य निभाने के लिए बहुत-से कार्य; जैसे देश की सुरक्षा करना, कानून व्यवस्था बनाये रखना, स्वास्थ्य एवं शिक्षा की सुविधा देना, न्याय-पद्धति को चलाना, बेरोजगारी एवं गरीबी का उन्मूलन करना, आदि करने होते हैं। इन सभी पर सरकार को बहुत अधिक धन व्यय करना पड़ता है।

देश के विकास के लिए और इन सभी कार्यों को करने के लिए इतनी मात्रा में धन सरकार अनेक साधनों से जुटाती है, इनमें से एक महत्त्वपूर्ण साधने को कर प्रणाली (Taxation) कहा जाता है। आयकर, सेवाकर, बिक्री कर, सम्पत्ति कर, मनोरंजन कर, चुंगी शुल्क, सीमा शुल्क आदि सरकार की आय के विभिन्न स्रोत हैं। केन्द्रीय सरकार प्रदेश सरकार अथवा स्थानीय संस्थाएँ किस क्षेत्र में कर लगा सकती है, इसका निर्धारण पहले से ही रहता है। केन्द्र सरकार इन करों का अधिक भाग प्राप्त करती है, इसलिए उसे इन साधनों का कुछ अंश प्रदेश सरकारों या संघीय क्षेत्रों को देना होता है, ताकि वे भी विकास के लिए और दूसरे खर्च करने के लिए इसका उपयोग कर सकें; अतः आयकर सरकार की आय का सबसे बड़ा स्रोत है।

लक्ष्य एवं उद्देश्य
प्रस्तुत परियोजना कार्य का मुख्य उद्देश्य आयकर की जानकारी प्राप्त करना है तथा इसका लक्ष्य आयकर जमा करने की प्रक्रिया से अवगत कराना है जिसके कि विद्यार्थी आयकर के महत्त्व, प्रक्रिया एवं दरों का विधिवत अध्ययन कर सकें।

भारत में आयकर का स्वरूप
आयकर विभाग ने देयकर्ता के लिए टैक्स स्लैब में अनेक परिवर्तन किए हैं, जो वित्तीय वर्ष (2017-18) तथा आकलन वर्ष 2018-19 के लिए हैं। भारत में जहाँ पहले ₹ 2.5 लाख से लेकर ₹ 5 लाख तक की सालाना आय पर 10 फीसदी टैक्स लगता था, अब यह टैक्स (UPBoardSolutions.com) 5 फीसदी लगेगा, वहीं ₹ 2.5 लाख तक आय पूरी तरह से टैक्स मुक्त है। इसके अलावा सरकार ने 50 लाख से लेकर 1 करोड़ तक की आय वालों पर 10 फीसदी की सरचार्ज लगाया है, जो अब तक नहीं था। आयकर के नए नियमों के अनुसार इसका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है

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सामान्य वर्ग के लोगों हेतु आयकर के प्रावधान – 60 वर्ष तक आयु वाले किसी भी व्यक्ति की वार्षिक आय यदि ₹ 2.5 लाख से अधिक है, तब वह टैक्स छूट के दायरे से बाहर माना जाएगा, यानी केवल ₹ 2.5 लाख तक की आय ही करमुक्त है। इसके बाद ₹ 5 लाख तक की सालाना आय वाले व्यक्ति को 5 फीसदी टैक्स का होगा, साथ ही र 5 लाख तक की करयोग्य आय पर पहले ₹ 5 हजार की छूट मिलती थी जोकि अब घटाकर ₹ 2500 कर दी गयी है और यह ₹ 3.5 लाख तक की करयोग्य आय पर मिलेगी। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि किसी व्यक्ति की वार्षिक आय ₹ 3 लाख थी तो उसकी टैक्स भुगतान की जिम्मेदारी नहीं थी। आयकर के नए नियमों के अनुसार आयकर का वर्णन निम्नलिखित हैं

₹ 2.5 लाख  तक                                     शून्य
₹ 2.5 लाख 1 से ₹ 5 लाख तक     ……… 5%
₹ 5 लाख 1 से 10 लाख तक          ……… 20%
₹ 10 लाख से अधिव                     ……… 30%

₹ 5 लाख से है 10 लाख की आय पर 20 प्रतिशत आयकर होगा और ₹ 10 लाख से अधिक की आय पर 30 प्रतिशत आयकर लागू होगा, लेकिन यदि आय ₹ 50 लाख से ज्यादा है (सालाना) तथा ₹ 1 करोड़ है, तब सरचार्ज बढ़कर 15 प्रतिशत हो जाएगा। यह बढ़ा हुआ 5 फीसदी सरचार्ज एजुकेशन सेस और हायर एजुकेशन सेस है।

वरिष्ठ नागरिक (60 से 80 आयु वर्ष के लोगों के लिए ) – वरिष्ठ नागरिक जो कि 0 से ₹ 3 लाख सालाना आय के दायरे में आते हैं, उन पर कोई आयकर देनदारी नहीं आती। ₹ 3 से 5 लाख तक की आय पर 5 प्रतिशत की दर से कर लागू होगा। ₹ 5 लाख से ₹ 10 लाख तक की आय और के 10 लाख से अधिक की आय पर सामान्य श्रेणी के लिए लागू कर की दर और सरचार्ज वरिष्ठ नागरिकों पर भी लागू होंगे।

₹ 3 लाख तक                                     …… शून्य
₹ 3 लाख 1 से ₹ 5 लाख तक               …… 5%
₹ 5 लाख 1 से ₹ 10 लाख तक             …… 20%
₹ 10 लाख से अधिक                          …… 30%

अति वरिष्ठ नागरिक ( 80 वर्ष की आयु से अधिक के लोगों के लिए)-वे वरिष्ठ नागरिक जिनकी आयु 80 वर्ष से अधिक है, वे इस श्रेणी में आते हैं। उनके लिए ₹ 5 लाख तक की आय पूरी तरह से कर-मुक्त होगी, परन्तु शेष सभी कर स्लैब वही लागू होंगे जो कि (UPBoardSolutions.com) सामान्य श्रेणी पर लागू हैं।

₹ 5 लाख तक                                        ……. शून्य
₹ 5 लाख 1 से ₹ 10 लाख तक                ……. 20
₹ 10 लाख से अधिक                              ……. 30%

आयकर की दरों का सिंहावलोकन
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प्रत्येक वर्ष वित्तीय वर्ष समाप्त होने के बाद वे सभी व्यक्ति आयकर देने के लिए बाध्य हैं, जो आयकर द्वारा निर्धारित कर सीमा के अन्तर्गत आते हैं। आयकर के भुगतान के लिए आयकर विभाग द्वारा पृथक्-पृथक् फॉर्मों के माध्यम से आयकर जमा करने हेतु आवेदन पत्र बनाए गए हैं। इन फॉर्मों के माध्यम से व्यक्ति यह घोषित करता है कि विगत वर्ष में उसे कितनी आय हुई तथा उस आय के लिए कितने कर का भुगतान किया। यही प्रक्रिया इनकम (UPBoardSolutions.com) टैक्स रिटर्न कहलाती है। वित्तीय वर्ष समाप्त होने के पश्चात आयकर विभाग, आयकर जमा करने के लिए एक अन्तिम तिथि का निर्धारण करता है। वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए आयकर जमा करने की अन्तिम तिथि 31 जुलाई निर्धारित की गयी है।

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व्यक्तिगत आयकर जमा करने के फॉर्म
व्यक्तिगत रूप से आयकर जमा करने के लिए निम्नलिखित फॉर्मों को उनकी श्रेणी के आधार पर भरा जाता है, जिनका वर्णन निम्नलिखित है

ITR-1 :

  • इस फॉर्म को सहज फॉर्म भी कहा जाता है जिनकी आय के साधन उनका वेतन, पेंशन या ब्याज है तथा जिस व्यक्ति के पास अपना घरे हो और उसने हाउसिंग लोन लिया हो, उसे भी यह फॉर्म भरना होता है।

IRT-2 :

  • यह फॉर्म हिन्दू अविभाजित परिवार (HUF) के लिए आयकर जमा करने हेतु भरा जाता है। इसके अतिरिक्त यदि किसी व्यक्ति के आय के साधन वेतन, पेंशन तथा ब्याज के अतिरिक्त एक से ज्यादा घर से आने वाली किराये की धनराशि, कैपिटल गेन या (UPBoardSolutions.com) डिविडेंड से प्राप्त होने वाली आमदनी है तो ऐसे लोगों को भी इसी फॉर्म के माध्यम से आयकर जमा करने का प्रावधान है।

TTR-3 :

  • यह फॉर्म उन लोगों के लिए होता है, जो किसी व्यवसाय में साझेदार (Partner) हैं तथा उनकी आय का स्रोत केवल यही है।

ITR-4 :

  • इस फॉर्म को सुगम फॉर्म कहा जाता है। यह फॉर्म सभी प्रकार के प्रोफेशनल्स; जैसे-डॉक्टर, वकील, सी०ए० आदि के लिए होता है। इसके अतिरिक्त वह व्यक्ति जो किसी व्यवसाय में साझेदार होने के साथ-साथ प्रोफेशनल इनकम भी अर्जित करता है, उसके लिए भी यही फॉर्म भरने का प्रावधान है। सुगम फॉर्म के माध्यम से आयकर अधिनियम के सेक्शन 44AD, 44ADA तथा 44AE के अन्तर्गत आयकर जमा कराया जाता है।

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ITR-4s :

  • यह फॉर्म उन छोटे व्यापारियों के लिए है जिनकी वार्षिक आय ₹ 60 लाख से कम है तथा ऐसे प्रोफेशनल व्यक्ति जिनकी आय ₹ 60 लाख से कम है, उन्हें भी यही फॉर्म भरना होता है। इन लोगों को अपने खातों को अंकेक्षण (Audit) कराने की आवश्यकता नहीं होती है।

वित्तीय वर्ष समाप्त होने पर प्रत्येक व्यक्ति को उपरोक्त वर्णित फॉर्मों में से उस फॉर्म को भरना होता है जिसके लिए वह पात्र होता है। इस फॉर्म के द्वारा व्यक्ति अपनी वार्षिक आय पर उचित कर का भुगतान करता है। यह कर प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होता है; जैसे-वेतन से प्राप्त आय तथा व्यक्तिगत व्यापार करने वालों के लिए अलग। जो व्यक्ति वेतनभोगी हैं, उनके लिए फॉर्म-16 प्रस्तुत करना अनिवार्य होता है। इसमें उस व्यक्ति (UPBoardSolutions.com) की सालाना आय बताई जाती है तथा उसके द्वारा किये गये पूँजी सम्बन्धी निवेश पर छूट दी जाती है। यही सब जोड़-घटाकर जो भी शेष राशि होती है, उस पर आयकर का भुगतान किया जाता है। इसी प्रकार, प्रोफेशनले व्यक्ति तथा व्यापारी भी अपने आय-व्यय का ब्यौरा प्रस्तुत करते हैं तथा आर्थिक चिट्ठा बनाकर अपने लाभ-हानि की घोषणा करते हैं। इसी आधार पर वह आयकर का भुगतान करते हैं।

आयकर जमा करने हेतु ITR-1 (सहज) फॉर्म भरने की प्रक्रिया
आयकर का सहज फॉर्म (ITR-1) क्रमशः पाँच खण्डों एवं दो प्रकार की अनुसूचियों से मिलकर बना है। प्रत्येक खण्ड एवं अनुसूची को भरने का वर्णन अग्रलिखित है

1. खण्ड-A : सामान्य जानकारी-सहज फॉर्म के इस भाग में आयकरदाता का पैन, आधार कार्ड नम्बर, मोबाइल नम्बर, ई-मेल, पूरा पता, निवास की स्थिति, सम्बद्धता; यथा–सरकारी कर्मचारी, पी०एस०यू० या अन्य, आयकर भरने की मूल तिथि, यदि फॉर्म में संशोधन हो तो उसकी फॉर्म संख्या, या किसी प्रकार के नोटिस का सन्दर्भ हो तो नोटिस संख्या भरने के लिए नियत स्थान एवं कॉलमों में जानकारी भरनी चाहिए।

2. खण्ड-B:
सकल कुल आय-इस खण्ड में कुल आय के स्रोतों की जानकारी भरनी होती है; जैसे-वेतन, पेंशन, एक गृह सम्पत्ति से आय, अन्य स्रोतों से आय यदि हो तो इनमें से जिस भी स्रोत से आय हो उसके वर्षभर का योग निर्धारित कॉलम में लिखना चाहिए तथा अन्त में कुल योग करना चाहिए।

3. खण्ड-c :
करयोग्य कुल आय में से कटौतियाँ—इस खण्ड में करयोग्य कुल आय में से वित्तीय वर्ष में किए गए ऐसे निवेशों को घटाया जा सकता है, जो आयकर की धारा 80C, 80D, 80G या 80 TTA में करमुक्त हैं। ऐसे निवेशों की जानकारी अथवा धनराशि निर्धारित कॉलम में लिखनी चाहिए जिससे आयकर में छूट प्राप्त की जा सके।

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4. खण्ड-D :
देयकर की गणना-इस खण्ड में देय योग्य कर की गणना की जाती है। इसके कॉलम D1 में कुल आय पर देय कर की संख्या लिखी जाती है। कॉलम D2 में सेक्शन 87A में कर से छूट, यदि कोई हो तो उसकी संख्या लिखी जाती है। D3 कॉलम में छूट प्राप्ति के बाद कुल कर योग्य धनराशि लिखी जाती है। कॉलम D4 में उपकर या सेस की धनराशि का वर्णन किया जाता है तथा Ds कॉलम में कर एवं सेस का कुल योग लिखा जाता है। कॉलम D6 में सेक्शन 89(1) के अन्तर्गत प्रदान की जाने वाली कर राहत का ब्यौरा होता है। कॉलम D7, Da एवं Dj में कर पर ब्याज की गणना लिखी जाती है। D10 कॉलम में कुल कर एवं ब्याज को जोड़कर लिखा जाता है। कॉलम D11 में कुल देय कर धनराशि वर्णित की जाती है। D12 कॉलम में D13 कॉलम में यदि किसी प्रकार का कोई प्रतिदेय (Refund) हो तो उसका वर्णन होता है। इस खण्ड के अन्त में करमुक्त आय की सूचना देने के लिए निर्दिष्ट कॉलम होते हैं; जैसे-सेक्शन 10(38), 10 (34), कृषि आय या अन्य आदि।

5. खण्ड-E :
अन्य जानकारी-इस खण्ड में बैंक से सम्बन्धित जानकारियों का वर्णन होता है; जैसे—बैंक का नाम, खाता संख्या, IFSC कोड, खाते में नकद जमा का कुल योग आदि का ब्यौरा दिया जाता है।

6. अग्रिम कर अनुसूची – 
इस अनुसूची में यदि करदाता ने कोई अग्रिम आयकर जमा कराया हो तो उसका विवरण भरना होता है। इसमें बी०एस०आर० कोड, अग्रिम कर जमा करने की तिथि, चालान नम्बर तथा जमा किए गए कर की धनराशि आदि दर्ज करने के (UPBoardSolutions.com) पृथक्-पृथक् कॉलमों में सभी विवरण भरा जाता है।

7. टी०डी०एस०/टी०सी०एस० विवरण अनुसूची – 
इस अनुसूची में करदाता यदि वित्तीय वर्ष में किसी से भी भुगतान प्राप्त करते समय टी०डी०एस० कटवा चुका है तो उसका प्रमाण-पत्र प्राप्त करे उसका विवरण यहाँ प्रस्तुत करना चाहिए। इसमें प्रथम कॉलम में टी०डी०एस० काटने वाले का TAN नम्बर भरा जाता है, दूसरे कॉलम में उसका नाम तथा तीसरे कॉलम में जिस राशि पर कर काटा गया है, उसका ब्यौरा लिखा जाता है। चौथे कॉलम में वर्ष तथा पाँचवें कॉलम में उस धनराशि को लिखा जाता है। कि जिसके लिए हमें उस वित्तीय वर्ष क्लेम करना चाहते हैं। सातवें कॉलम में वह राशि लिखी जाती है। जिसका क्लेम आयकरदाता अपने स्वयं के लिए न करके अपनी पत्नी/पति (spouse) के लिए करता है। यह सेक्शन 5A के अन्तर्गत आता है।

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8. सत्यापन – 
इसे फॉर्म के अन्त में आयकरदाता द्वारा उपरोक्त जानकारी का सत्यापन किया जाता है जिसके अन्तर्गत आयकरदाता अपना नाम, पिता का नाम लिखकर यह घोषणा करता है कि उपरोक्त सभी जानकारियाँ उसके ज्ञान और विश्वास के अनुरूप सत्य एवं सही हैं तथा आयकर अधिनियम, 1961 के सभी प्रावधानों के अनुरूप हैं। इस प्रकार सत्यापन कथन के नीचे आयकरदाता अपने हस्ताक्षर कर इसे प्रमाणित एवं सत्यापित करता है।

9. फॉर्म प्राप्ति की रसीद – 
इस.फॉर्म के बाएँ ओर कार्यालय प्रयोग हेतु एक बॉक्स होता है जिसमें प्राप्ति संख्या, दिनांक, प्राप्त करने वाले अधिकारी के हस्ताक्षर तथा मोहर लगाने हेतु स्थान होता है। इस फॉर्म को आयकर कार्यालय में जमा करने के उपरान्त आयकरदाता को इसकी प्राप्ति की रसीद प्रदान की। जाती है।

निष्कर्ष
प्रस्तुत परियोजना के माध्यम से हमने आयकर के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की तथा व्यक्तिगत रूप से व्यक्ति को कितनी आय पर कितने कर का भुगतान करना पड़ता है, उन सभी नियमों का अवलोकन किया। इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत आयकर प्रपत्र (ITR-1) सहज फॉर्म किस प्रकार भरा जाता है तथा उसमें क्या-क्या विवरण होता है, इसकी भी जानकारी प्राप्ति की। इस परियोजना कार्य से हम भारत की प्रगतिशील कर नीति, कुशल एवं दक्ष प्रशासन (UPBoardSolutions.com) तथा बेहतर स्वैच्छिक अनुपालन के द्वारा आने वाले राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकते हैं।

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 6 निष्ठामूर्ति कस्तूरबा (गद्य खंड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 6 निष्ठामूर्ति कस्तूरबा (गद्य खंड)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1. निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यात्मक प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(1) चाहे दक्षिण अफ्रीका में हों या हिन्दुस्तान में, सरकार के खिलाफ लड़ाई के समय जब-जब चारित्र्य का तेज प्रकट करने का 
मौका आया कस्तूरबा हमेशा इस दिव्य कसौटी से सफलतापूर्वक पार हुई हैं।
             इससे भी विशेष बात यह है कि बड़ी तेजी से बदलते हुए आज के युग में भी आर्य सती स्त्री का जो आदर्श हिन्दुस्तान ने अपने हृदय में कायम रखा है, उस आदर्श की जीवित प्रतिमा के रूप में राष्ट्र पूज्य कस्तूरबा को पहचानता। है। इस तरह की विविध लोकोत्तर योग्यता के कारण आज सारा राष्ट्र कस्तूरबा की पूजा करता है।
प्रश्न
(1) गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) किस योग्यता के कारण सारा राष्ट्र कस्तूरबा की पूजा करता है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ के ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ नामक पाठ से अवतरित है। इसके लेखक उच्चकोटि के विचारक काका कालेलकर हैं। प्रस्तुत अवतरण में कस्तूरबा के गुणों का वर्णन किया गया है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- कस्तूरबा का वर्णन करते हुए लेखक कहता है कि चाहे भारत में हो या दक्षिण अफ्रीका में सरकार के खिलाफ संघर्ष के अवसर पर कस्तूरबा पीछे नहीं रहीं और उसका सफलतापूर्वक संचालन किया। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि कस्तूरबा ने आदर्श भारतीय नारी के स्वरूप का विधिवत् पालन किया है। भारत ने स्त्री का जो आदर्श अपने (UPBoardSolutions.com) हृदय में धारण किया है, कस्तूरबा उसकी प्रतिमूर्ति थीं। इन्हीं गुणों के कारण कस्तूरबा भारतीय समाज में समादृत हैं।
  3. विविध लोकोत्तर योग्यता के कारण आज सारा राष्ट्र कस्तूरबा की पूजा करता है।

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(2) दुनिया में दो अमोघ शक्तियाँ हैं-शब्द और कृति । इसमें कोई शक नहीं कि ‘शब्दों’ ने सारी पृथ्वी को हिला दिया है। किन्तु अन्तिम शक्ति तो ‘कृति’ की है। महात्मा जी ने इन दोनों शक्तियों की असाधारण उपासना की है। कस्तूरबा ने इन दोनों शक्तियों में से अधिक श्रेष्ठ शक्ति कृति की नम्रता के साथ उपासना करके सन्तोष माना और जीवनसिद्धि प्राप्त की।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) कस्तूरबा कैसी महिला थीं?
(4) शब्द और कृति क्या है?
(5) गाँधी जी ने किसकी उपासना की?
[शब्दार्थ-अमोघ = अचूक। कृति = रचना। सिद्धि = जीवन की श्रेष्ठता।]

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं काका कालेलकर द्वारा लिखित । ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ नामक निबन्ध से लिया गया है जो गाँधी युग के जलते चिराग’ नामक पुस्तक से उद्धृत है। लेखक कस्तूरबा के जीवन की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए विश्व की महानतम् शक्तियों (शब्द और कृति) में ‘बा’ को ‘कृति’ की उपासिका बतलाता है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- शब्द अर्थात् ‘कहना’ तथा कृति अर्थात् ‘करना’ वास्तव में इस संसार की ये ही दो अचूक शक्तियाँ हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि शब्दों की शक्ति ऐसी है जिसने सारे विश्व को प्रभावित कर रखा है, किन्तु शब्दों की अपेक्षा ‘कृति’ वाली शक्ति और भी महत्त्व रखती है। महात्मा गाँधी ने उक्त दोनों शक्तियों की असाधारण साधना की थी अर्थात् उन्होंने कथनी (UPBoardSolutions.com) और करनी में सामंजस्य स्थापित किया था, किन्तु कस्तूरबा ने सबसे पहले महत्त्वपूर्ण शक्ति ‘कृति’ की नम्रतापूर्वक साधना की और अपने जीवन को सफल सिद्ध किया। ‘बा’ ने केवल काम करने को ही महत्त्व दिया और इसी के बल पर वे सर्वपूज्य हो गयीं। दक्षिणी अफ्रीका की सरकार ने गाँधी जी को जब जेल भेज दिया तो कस्तूरबा ने अपना बचाव तक नहीं किया और न कहीं निवेदन किया। वे एक दृढ़ संकल्प वाली महिला थीं।
  3. कस्तूरबा एक दृढ़ संकल्प वाली महिला थीं।
  4. शब्द और कृति दो अमोघ शक्तियाँ हैं।
  5. गाँधी जी ने शब्द और कृति दोनों शक्तियों की असाधारण उपासना की है।

(3) यह सब श्रेष्ठता या महत्ता कस्तूरबा में कहाँ से आयी? उनकी जीवन-साधना किस प्रकार की थी? शिक्षण के द्वारा उन्होंने बाहर से कुछ नहीं लिया था। सचमुच, (UPBoardSolutions.com) उनमें तो आर्य आदर्श को शोभा देनेवाले कौटुम्बिक सद्गुण ही थे। असाधारण मौका मिलते ही और उतनी ही असाधारण कसौटी आ पड़ते ही उन्होंने स्वभावसिद्ध कौटुम्बिक सद्गुण व्यापक किये और उनके जोरों पर हर समय जीवन-सिद्धि हासिल की। सूक्ष्म प्रमाण में या छोटे पैमाने पर जो शुद्ध साधना की जाती है उसका तेज इतना लोकोत्तरी होता है कि चाहे कितना ही बड़ा प्रसंग आ पड़े, व्यापक प्रमाण में कसौटी हो, चारित्र्यवान् मनुष्य को अपनी शक्ति का सिर्फ गुणाकार ही करने का होता है।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) चारित्र्यवान् मनुष्य को अपनी शक्ति का क्या करना होता है?
(4) चारित्र्यवान व्यक्ति की क्या विशेषता होती है? |
(5) किस साधना का तेज लोकोत्तरी होता है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं काका कालेलकर द्वारा लिखित ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ पाठ से अवतरित है। प्रस्तुत अवतरण में कस्तूरबा के कौटुम्बिक सद्गुणों का वर्णन है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- कस्तूरबा ने शिक्षण द्वारा कुछ नहीं ग्रहण किया था, बल्कि उन्होंने जो कुछ सीखा-समझा वह व्यवहारतः था । वास्तव में उनमें आदर्श कौटुम्बिक सद्गुण थे, बल्कि अवसर मिलने पर उन्होंने स्वभाव सिद्ध पारिवारिक सद्गुणों का विस्तार किया और (UPBoardSolutions.com) उसी के बल पर जीवन में सफलता प्राप्त की। छोटे पैमाने पर जो साधना की जाती है उसमें असीम शक्ति होती है। चरित्रवान व्यक्ति सदैव कसौटी पर खरा उतरता है। कस्तूरबा एक चरित्रवान् महिला थीं। अपने चारित्रिक गुणों और कौटुम्बिक सदगुणों के कारण उन्होंने भारतीय समाज में ख्याति प्राप्त की।
  3. चारित्र्यवान् मनुष्य को अपनी शक्ति का सिर्फ गुणाकर ही करना होता है।
  4. चारित्र्यवान् व्यक्ति की विशेषता है कि उसमें कौटुम्बिक सद्गुण होते हैं।
  5. शुद्ध साधना का तेज लोकोत्तरी होता है।

प्रश्न 2. काका कालेलकर का जीवन-परिचय देते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।

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प्रश्न 3. भाषा-शैली को स्पष्ट करते हुए कालेलकर जी की साहित्यिक विशेषताएँ लिखिए।

प्रश्न 4, काका कालेलकर का जीवन एवं साहित्यिक परिचय दीजिए।
अथवा काका कालेलकर का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

काका कालेलकर
( स्मरणीय तथ्य )

जन्म-सन् 1885 ई० । मृत्यु-सन् 1981 ई०। जन्म-स्थान- महाराष्ट्र में सतारा जिला।
अन्य बातें -हिन्दी, गुजराती, बंगला, अंग्रेजी, मराठी भाषाओं पर पूरा अधिकार, राष्ट्रभाषा का प्रचार ।
भाषा- सरल, ओजस्वी, प्रवाहपूर्ण ।
शैली- सजीव, प्रभावपूर्ण, कल्पना की उड़ान।
साहित्य- संस्मरण, यात्रा वर्णन, सर्वोदय, हिमालय प्रवास, लोकमाता, उस पार के पड़ोसी, जीवन लीला, बापू की 
झाँकियों, जीवन का काव्य आदि।

  • जीवन-परिचय- काका कालेलकर का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में 1 दिसम्बर, सन् 1885 ई० को हुआ था। कालेलकर हिन्दी के उन उन्नायक साहित्यकारों में से हैं जिन्होंने अहिन्दी भाषा क्षेत्र का होकर भी हिन्दी सीखकर उसमें लिखना प्रारम्भ किया। उन्होंने राष्ट्रभाषा के प्रचार-कार्य को राष्ट्रीय कार्यक्रम के अन्तर्गत माना है। काका कालेलकर ने सबसे पहले हिन्दी लिखी और फिर (UPBoardSolutions.com) दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार को कार्य प्रारम्भ किया। अपनी सूझबूझ, विलक्षणता और व्यापक अध्ययन के कारण उनकी गणना देश के प्रमुख अध्यापकों एवं व्यवस्थापकों में होती है। काका साहब उच्चकोटि के विचारक एवं विद्वान् थे। भाषा प्रचार के साथ-साथ इन्होंने हिन्दी और गुजराती में मौलिक रचनाएँ भी की हैं। सन् 1981 ई० में आपकी मृत्यु हो गयी।
  • कृतियाँ- काको साहब की कृतियाँ निम्नलिखित हैं –
    1. निबन्ध-संग्रह- जीवन-साहित्य, जीवन का काव्य-इन विचारात्मक निबन्धों में इनके संत व्यक्तित्व और प्राचीन भारतीय संस्कृति की सुन्दर झलक मिलती है।
    2. आत्म-चरित्र- ‘धर्मोदय’ तथा ‘जीवन लीला’–इनमें काका साहब के यथार्थ व्यक्तित्व की सजीव झाँकी है।
    3. यात्रा-वृत्त- ‘हिमालय-प्रवास’, ‘लोकमाता’, ‘यात्रा’, ‘उस पार के पड़ोसी’ आदि प्रसिद्ध यात्रावृत्त हैं।
    4. संस्मरण- ‘संस्मरण’ तथा ‘बापू की झाँकी’-इन रचनाओं में महात्मा गाँधी के जीवन का चित्रण है।
    5. सर्वोदय-साहित्य- आपकी ‘सर्वोदय’ रचना में सर्वोदय से सम्बन्धित विचार हैं।
    6. साहित्यिक परिचय- काका साहब एक सिद्धहस्त मॅझे हुए लेखक थे। किसी भी सुन्दर दृश्य का वर्णन अथवा पेचीदी समस्या का सुगम विश्लेषण उनके लिए आनन्द का विषय है। उनके यात्रा-वर्णन में पाठकों को देश-विदेश के भौगोलिक विवरणों के साथ-साथ वहाँ की विभिन्न समस्याओं तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक विशेषताओं की जानकारी भी (UPBoardSolutions.com) हो जाती है। काका साहब देश की विभिन्न भाषाओं के अच्छे जानकार हैं। उन्होंने प्रायः अपने ग्रन्थों का अनुवाद विभिन्न भारतीय भाषाओं में स्वयं प्रस्तुत किया है। इनके विचारों में संस्कृति और परम्पराओं में एक नवीन क्रान्तिकारी दृष्टिकोणों का समावेश रहता है।
    7. भाषा-शैली- काका साहब की भाषा अत्यन्त ही सरल और ओजस्वी है। उसमें एक आकर्षक धारा है जिसमें सूक्ष्म दृष्टि एवं विवेचनात्मक तर्कपूर्ण विचार की अभिव्यक्ति होती है। उनकी भाषा में एक नयी चित्रमयता के साथ-साथ विचारों की मौलिकता के स्पष्ट दर्शन होते हैं। भाषा के साथ-साथ उनकी शैली अत्यन्त ही ओजस्वी है। इन्होंने अपने निबन्धों में प्राय: व्याख्यात्मक शैली का प्रयोग किया है। कुछ रचनाओं में प्रबुद्ध विचारक के उपदेशात्मक शैली के दर्शन होते हैं ।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. कस्तूरबा में एक आदर्श भारतीय नारी के कौन-कौन से गुण विद्यमान थे?
उत्तर- कस्तूरबा गाँधी एक पतिव्रता महिला थीं। वे अत्यन्त धार्मिक महिला थीं। गीता और तुलसी कृत रामायण में उनकी अगाध श्रद्धा थी। आलस्य नाम की चीज उनके अन्दर थी ही नहीं। आश्रम में कस्तूरबा लोगों के लिए माँ के समान थीं।

प्रश्न 2. स्वयं में शिक्षा के अभाव की पूर्ति ‘बा’ ने किस प्रकार की?
उत्तर- कस्तूरबा अनपढ़ थीं। उनका भाषा-ज्ञान सामान्य देहाती से अधिक नहीं था। बापू के साथ वे दक्षिण अफ्रीका में रहीं इसलिए वह कुछ अंग्रेजी समझने लगी थीं।

प्रश्न 3. ‘शब्द’ और ‘कृति’ से लेखक का क्या तात्पर्य है? कस्तूरबा के सम्बन्ध में सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- दुनिया में दो अमोघ शक्तियाँ हैं-शब्द और कृति। इसमें कोई शक नहीं है कि शब्दों ने सारी पृथ्वी को हिला दिया है, किन्तु अन्तिम शक्ति तो कृति ही है। महात्मा जी (UPBoardSolutions.com) ने इन दोनों शक्तियों की असाधारण उपासना की है। कस्तूरबा ने इन दोनों शक्तियों में से अधिक श्रेष्ठ शक्ति कृति की नम्रता के साथ उपासना करके सन्तोष माना और जीवनसिद्धि प्राप्त की।

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प्रश्न 4. ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ पाठ से दस महत्त्वपूर्ण वाक्य लिखिए।
उत्तर- कस्तूरबा अनपढ़ थीं। उनका भाषा-ज्ञान सामान्य देहाती से अधिक नहीं था। कस्तूरबा को गीता पर असाधारण श्रद्धा थी। उनकी निष्ठा का पात्र दूसरा ग्रन्थ था तुलसीकृत रामायण। कस्तूरबा रामायण भी ठीक ढंग से कभी पढ़ न सकीं। आश्रम में कस्तूरबा हम लोगों के लिए माँ के समान थीं। आज के जमाने में स्त्री-जीवन-सम्बन्ध के हमारे आदर्श हमने काफी बदल लिये हैं।

प्रश्न 5. कस्तूरबा से सम्बन्धित संक्षिप्त गद्यांश लिखिए।
उत्तर- वह भले ही अशिक्षित रही हों, संस्था चलाने की जिम्मेदारी लेने की महत्त्वाकांक्षा भले ही उनमें कभी जागी न हो, लेकिन देश में क्या चल रहा है उसकी सूक्ष्म जानकारी वह प्रश्न पूछकर या अखबारों के ऊपर नजर डालकर प्राप्त कर ही लेती थीं।

प्रश्न 6. कस्तूरबा के ‘मूक किन्तु तेजस्वी बलिदान’ की कहानी लिखिए।
उत्तर- सती कस्तूरबा सिर्फ अपने संस्कारों के कारण पातिव्रत्य धर्म को, कुटुम्ब वत्सलता को और तेजस्विता को चिपकाये रहीं और उसी के बल पर महात्मा जी के महात्म्य की (UPBoardSolutions.com) बराबरी में आ सकीं। आज हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध आदि अनेक धर्मों के लोगों का यह विशाल देश अत्यन्त निष्ठा के साथ कस्तूरबा की पूजा करता है।

प्रश्न 7. कस्तूरबा की मितभाषिता एवं कर्तव्यनिष्ठा के गुणों को प्रकट करनेवाले प्रसंगों एवं घटनाओं का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर- आश्रम में चाहे बड़े-बड़े नेता आयें या मामूली कार्यकर्ता, उनके खाने-पीने का प्रबन्ध कस्तूरबा ही करती थीं। प्राणघातक बीमारी से मुक्त होने के बाद रसोई के कार्यों में हाथ बँटाती थीं । कस्तूरबा में आर्य आदर्श को शोभा देनेवाले कौटुम्बिक सद्गुण थे।

प्रश्न 8. ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ पाठ की भाषा-शैली की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ पाठ की भाषा-शैली विवेचनात्मक है। भाषा अपेक्षाकृत संस्कृतनिष्ठ एवं परिष्कृत है।

प्रश्न 9. कस्तूरबा के गुणों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- कस्तूरबा आदर्श भारतीय महिला थीं। वे पतिव्रता स्त्री थीं। वे आश्रम में बच्चों की देखभाल करती थीं। आश्रम में कस्तूरबा लोगों के लिए माँ समान थीं। गीता और रामायण में उनकी अगाध श्रद्धा थी।

प्रश्न 10. काका कालेलकर की भाषा-शैली की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- काका कालेलकर की भाषा परिष्कृत खड़ीबोली है। उसमें प्रवाह, ओज तथा अकृत्रिमता है। इन्होंने विवेचनात्मक, विवरणात्मक तथा व्यंग्यात्मक शैलियों का प्रयोग किया है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. काका कालेलकर की दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर-
काका कालेलकर की दो रचनाएँ जीवन काव्य तथा हिमालय प्रवास हैं।

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प्रश्न 2. काका कालेलकर किस युग के लेखक माने जाते हैं?
उत्तर- काका कालेलकर शुक्ल एवं शुक्लोत्तर युग के लेखक माने जाते हैं।

प्रश्न 3. राष्ट्रभाषा प्रचार को राष्ट्रीय कार्यक्रम मानने वाले हिन्दी लेखक का नाम बताइए।
उत्तर- राष्ट्रभाषा प्रचार को राष्ट्रीय कार्यक्रम मानने वाले हिन्दी लेखक का नाम है काका कालेलकर ।

प्रश्न 4. कस्तूरबा कौन थीं?
उत्तर- कस्तूरबा महात्मा गाँधी की पत्नी थीं।

प्रश्न 5. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (√) का चिह्न लगाइए-
(अ) कस्तूरबा अनपढ़ थीं।                                                                  (√)
(ब) ‘निष्ठामूर्ति कस्तूरबा’ पाठ विवेचनात्मक शैली में लिखा गया है।       (√)
(स) कालेलकर जी का सम्पर्क टैगोर से नहीं था।                                  (×)
(द) दुनिया में ‘शब्द’ और ‘कृति’ दो अमोघ शक्तियाँ हैं।                         (√)

व्याकरण-बोध

प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेद करते हुए सन्धि का नाम भी लिखिए-
लोकोत्तर, सत्याग्रह, गुणाकर, महत्त्वाकांक्षा, एकाक्षरी, प्रत्युत्पन्न।
उत्तर-
लोकोत्तर        –    
लोक + उतर           – गुण सन्धि
सत्याग्रह         –    
सत्य + आग्रह          – दीर्घ सन्धि
गुणाकर          –     गुण + आकर         – 
दीर्घ सन्धि
महत्त्वाकांक्षा   –    महत्त्व + आकांक्षा   – दीर्घ सन्धि
एकाक्षरी         –    एक + अक्षरी          –  
दीर्घ सन्धि
प्रत्युत्पन्न          –   
प्रति + उत्पन्न           – यण सन्धि

प्रश्न 2.निम्नलिखित में समास-विग्रह करते हुए समास का नाम लिखिए-
माँ-बाप, देश-सेवा, राष्ट्रमाता, प्राणघातक, बन्धनमुक्ते, धर्मनिष्ठा।
उत्तर-
माँ-बाप      =  माँ और बाप           =    द्वन्द्व समास
देश-सेवा    =  देश के लिए सेवा    =    
सम्प्रदान तत्पुरुष
राष्ट्रमाता     =  राष्ट्र की माता           =   
सम्बन्ध तत्पुरुष
प्राणघातक =  प्राण के लिए घातक   =   सम्प्रदान तत्पुरुष
बन्धनमुक्त  =  बंधन से मुक्त           =   करण तत्पुरुष
धर्मनिष्ठा     =  धर्म में निष्ठा              =    अधिकरण तत्पुरुष

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प्रश्न 3. निम्नलिखित विदेशज शब्दों के लिए हिन्दी शब्द लिखिए –
अमलदार, कायम, जिद्द, हासिल, कतई, खुद।
उत्तर-
अमलदार –   ग्राह्य
जिद्द         –    हठ
कतई       –   बिल्कुल
कायम      –   स्थिर
हासिल     –    प्राप्त
खुद          –   स्वयं

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