UP Board Solutions for Class 10 Hindi सांस्कृतिक निबन्ध : धार्मिक

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सांस्कृतिक निबन्ध : धार्मिक

8. मेरी प्रिय पुस्तक (श्रीरामचरितमानस) [2011, 12, 15, 17, 18]

सम्बद्ध शीर्षक

  • तुलसी और उनकी अमर कृति
  • हिन्दी का लोकप्रिय ग्रन्थ

रूपरेखा

  1. प्रस्तावना,
  2. श्रीरामचरितमानस का परिचय,
  3. श्रीरामचरितमानस का महत्त्व,
  4. श्रीरामचरितमानस का वण्र्य-विषय,
  5. श्रीरामचरितमानस की विशेषताएँ,
  6. उपसंहार

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प्रस्तावना-पुस्तकें मनुष्य के एकाकी जीवन की उत्तम मित्र हैं, जो घनिष्ठ मित्र की तरह सदैव सान्त्वना प्रदान करती हैं। अच्छी पुस्तकें मानव के लिए सच्ची पथ-प्रदर्शिका होती हैं । मनुष्य को पुस्तकें पढ़ने में आनन्द की उपलब्धि होती है। वैसे तो (UPBoardSolutions.com) सभी पुस्तकें ज्ञान का अक्षय भण्डार होती हैं और उनसे

मस्तिष्क विकसित होता है, परन्तु अभी तक पढ़ी गयी अनेक पुस्तकों में मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया है। ‘श्रीरामचरितमानस’ ने। इसके अध्ययन से मुझे सर्वाधिक सन्तोष, शान्ति और आनन्द की प्राप्ति हुई है।

श्रीरामचरितमानस का परिचय-‘श्रीरामचरितमानस’ के प्रणेता, भारतीय जनता के सच्चे प्रतिनिधि गोस्वामी तुलसीदास जी हैं। उन्होंने इसकी रचना संवत् 1631 वि० से प्रारम्भ करके संवत् 1633 वि० में पूर्ण की थी। यह अवधी भाषा में लिखा गया उनका सर्वोत्तम ग्रन्थ है। इसमें महाकवि तुलसी ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र के जीवन-चरित को सात काण्डों में प्रस्तुत किया है। तुलसीदास जी ने इस महान् ग्रन्थ की रचना ‘स्वान्तः सुखाय’ की है।

श्रीरामचरितमानस का महत्त्व-‘श्रीरामचरितमानस’ हिन्दी-साहित्य को सर्वोत्कृष्ट और अनुपम ग्रन्थ है। यह हिन्दू जनता को परम पवित्र धार्मिक ग्रन्थ है। अनेक विद्वान् अपने वार्तालाप को इसकी सूक्तियों का उपयोग करके प्रभावशाली बनाते हैं। श्रीरामचरितमानस की लोकप्रियता का सबसे सबल प्रमाण यही है कि इसका अनेक विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। यह मानव-जीवन को सफल बनाने के लिए मैत्री, प्रेम, करुणा, शान्ति, तप, त्याग और कर्तव्य-परायणता का महान् सन्देश देता है। |

‘श्रीरामचरितमानस’ का वर्य-विषय-‘श्रीरामचरितमानस की कथा मर्यादा-पुरुषोत्तम राम के सम्पूर्ण जीवन पर आधारित है। इसकी कथावस्तु का मूल स्रोत वाल्मीकिकृत ‘रामायण’ है। तुलसीदास ने अपनी कला एवं प्रतिभा के द्वारा इसे नवीन एवं मौलिक रूप प्रदान किया है। इसमें राम की रावण पर विजय दिखाते हुए प्रतीकात्मक रूप से सत्य, न्याय और धर्म की असत्य, अन्याय और अधर्म पर विजय प्रदर्शित की है। इस महान् काव्य में राम के शील, शक्ति और सौन्दर्य का मर्यादापूर्ण चित्रण है।

श्रीरामचरितमानस की विशेषताएँ—
(क) आदर्श चरित्रों को भण्डार—‘श्रीरामचरितमानस आदर्श चरित्रों को पावन भण्डार है। कौशल्या मातृप्रेम की प्रतिमा हैं। भरत में भ्रातृभक्ति, निलभिता और तप-त्याग का उच्च आदर्श है। सीता पतिपरायणा आदर्श पत्नी हैं। लक्ष्मण सच्चे भ्रातृप्रेमी और अतुल बलशाली हैं। निषाद, सुग्रीव, विभीषण आदि आदर्श मित्र एवं हनुमान सच्चे उपासक हैं।।
(ख) लोकमंगल का आदर्श—तुलसी का ‘श्रीरामचरितमानस’ लोकमंगल की भावना का आदर्श है। तुलसी ने अपनी लोकमंगल-साधना के लिए जो भी आवश्यक समझा, उसे अपने इष्टदेव राम के चरित्र में निरूपित कर दिया।
(ग) भारतीय समाज का दर्पण—तुलसी के ‘श्रीरामचरितमानस में तत्कालीन भारतीय समाज मुखरित हो उठा है। यह ग्रन्थ उस काल की रचना है, जब हिन्दू जनता पतन के गर्त में जा रही थी। वह भयभीत और चारों ओर से निराश हो चुकी थी। उस समय तुलसीदास जी ने जनता को सन्मार्ग दिखाने के लिए नाना पुराण और आगमों (नानापुराणनिगमागम सम्मतं यद्) में बिखरी हुई भारतीय संस्कृति को जनता की भाषा में जनता के कल्याण के लिए प्रस्तुत किया।
(घ) नीति, सदाचार और समन्वय की भावना-‘श्रीरामचरितमानस’ में श्रेष्ठ नीति, (UPBoardSolutions.com) सदाचार के विभिन्न सूत्र और समन्वय की भावना मिलती है। शत्रु से किस प्रकार व्यवहार किया जाये, सच्चा मित्र कौन है, अच्छे-बुरे की पहचान आदि पर भी इसमें विचार हुआ है। तुलसीदास उसी वस्तु या व्यक्ति को श्रेष्ठ बतलाते हैं, जो सर्वजनहिताय हो। इसके अतिरिक्त धार्मिक, सामाजिक और साहित्यिक सभी क्षेत्रों में व्याप्त विरोधों को दूर कर कवि ने समन्वय स्थापित किया है।

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(ङ) रामराज्य के रूप में आदर्श राज्य की कल्पना-कवि ने ‘श्रीरामचरितमानस’ में आदर्श राज्य की कल्पना रामराज्य के रूप में लोगों के सामने रखी। इन्होंने व्यक्ति के स्तर से लेकर समाज और राज्य तक के समस्त अंगों का आदर्श रूप प्रस्तुत किया और निराश जन-समाज को नवीन प्रेरणा देकर । रामराज्य के चरम आदर्श तक पहुँचने का मार्ग दिखाया।
(च) कला का उत्कर्ष-‘श्रीरामचरितमानस’ में कला की चरम उत्कर्ष है। यह अवधी भाषा में दोहा-चौपाई शैली में लिखा महान् ग्रन्थ है। इसमें सभी रसों और काव्यगुणों का सुन्दर समावेश हुआ है। इस प्रकार काव्यकला की दृष्टि से यह एक अनुपम कृति है।

उपसंहार-मेरे विचार में कालिदास और शेक्सपियर के ग्रन्थों का जो साहित्यिक महत्त्व है; चाणक्य-नीति का राजनीतिक क्षेत्र में जो मान है, बाइबिल, कुरान, वेदादि का जो धार्मिक सत्य है, वह सब कुछ अकेले ‘श्रीरामचरितमानस में समाविष्ट है। यह हिन्दू धर्म की ही नहीं, भारतीय समाज की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक है। यही कारण है कि इसने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया है। मेरा विश्वास है कि मैं इस पुस्तक से जीवन-निर्माण के लिए सर्वाधिक प्रेरणा प्राप्त करता रहूंगा।

9. होली [2011, 12]

सम्बद्ध शीर्षक

  • किसी प्रिय त्योहार का वर्णन
  • मेरा प्रिय पर्व [2018]

रूपरेखा–

  1. प्रस्तावना,
  2. प्राकृतिक वातावरण,
  3. धार्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टिकोण,
  4. होली का राग-रंग,
  5. त्योहार के कुछ दोष,
  6. उपसंहार

प्रस्तावना-हमारे देश में अनेक धर्मों व सम्प्रदायों के (UPBoardSolutions.com) मानने वाले व्यक्ति निवास करते हैं। सभी की अपनी-अपनी परम्पराएँ, मान्यताएँ, रहन-सहन व वेशभूषा हैं। सभी के द्वारा मनाये जाने वाले त्योहार भी। भिन्न-भिन्न हैं। यही कारण है कि हर मास किसी-न-किसी धर्म से सम्बन्धित त्योहार आते ही रहते हैं। कभी हिन्दू दीपावली की खुशियाँ मनाते हैं तो ईसाई प्रभु यीशु के जन्म-दिवस पर चर्च में प्रार्थना करते हैं तो मुसलमान ईद के अवसर पर गले मिलते व नमाज अदा करते दिखाई देते हैं। रंगों में सिमटा, खुशियों का त्योहार होली भी इसी प्रकार देश-भर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह शुभ पर्व प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा के सुन्दर अवसर की शोभा बढ़ाने आता है।

प्राकृतिक वातावरण-रंगों का त्योहार होली वसन्त ऋतु का सन्देशवाहक है। इस ऋतु में मानव-मात्र के साथ-साथ प्रकृति भी इठला उठती है। चारों ओर प्रकृति के रूप और सौन्दर्य के दृश्य दृष्टिगत होते हैं। पुष्प-वाटिका में पपीहे की तान सुनने से मन-मयूर नृत्य कर उठता है। आम के झुरमुट से कोयल की कूक सुनकर तो हृदय भी झंकृत हो उठता है। ऋतुराज वसन्त का स्वागत अत्यधिक शान से सम्पन्न होता है। चारों ओर हर्ष और उल्लास छा जाता है।

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धार्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टिकोण-होलिकोत्सव धार्मिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। एकता, मिलन और हर्षोल्लास के प्रतीक इस त्योहार को मनाने के पीछे अनेक पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। प्रमुखतः इस उत्सव का आधार हिरण्यकशिपु नामक अभिमानी राजा और उसके ईश्वर-भक्त पुत्र प्रह्लाद की कथा है। कहते हैं कि हिरण्यकशिपु बड़ा अत्याचारी था, किन्तु उसी का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का अनन्य भक्त था। जब हिरण्यकशिपु ने यह बात सुनी तो वह बड़ा ही क्रोधित हुआ। उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश करे। होलिका को यह वरदान था कि अग्नि उसको जला नहीं सकती थी, (UPBoardSolutions.com) किन्तु ‘जाको राखे साइयाँ, मारन सकिहैं कोय’ के अनुसार होलिका तो आग में जल गयी और प्रह्लाद को बाल भी बॉका नहीं हुआ। उसी समय से परम्परागत रूप से होली के त्योहार के एक दिन पूर्व होलिका-दहन का आयोजन होता है। होली के शुभ अवसर पर जैन धर्मावलम्बी आठ दिन तक सिद्धचक्र की पूजा करते हैं। यह ‘अष्टाह्निका’ पर्व कहलाता है।

होली का राग-रंग-प्रथम दिन होलिका का दहन होता है। बच्चे घर-घर से लकड़ियाँ एकत्रित करके चौराहों पर होली तैयार करते हैं। सन्ध्या समय महिलाएँ इसकी पूजा करती हैं और रात्रि में यथा मुहूर्त होलिका दहन करते हैं। होलिका दहन के समय लोग जौ की बालों को भूनकर खाते भी हैं। होलिका का दहन इस बात का द्योतक है कि मानव अपने क्रोध, मान, माया और लोभ को भस्म कर अपने दिल को उज्ज्वल व निर्मल बनाये। यह बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय है।

होलिंका के अगले दिन दुल्हैंडी मनायी जाती है। इस दिन मनुष्य अपने आपसी बैर-विरोध को भुलाकर आपस में एक-दूसरे पर रंग डालते हैं, गुलाल लगाते हैं और गले मिलते हैं। चारों तरफ हँसीमजाक का वातावरण फैल जाता है। क्या अमीर और क्या गरीब, सभी होली के रंगों से सराबोर हो उठते हैं। सारा वातावरण ही रंगमय प्रतीत होता है। बच्चे, औरतें व युवक सभी आनन्द व उमंग से भर उठते हैं। ब्रज की होली बड़ी मशहूर है। देश-विदेश के असंख्य लोग इसे देखने आते हैं। नगरों में सायंकाल अनेक स्थानों पर होली मिलन समारोह का आयोजन होता है जिसमें हास्य-कविताएँ, लतीफे व अन्य रंगारंग कार्यक्रम भी होते हैं।

त्योहार के कुछ दोष-होली के इस पवित्र व प्रेमपूर्ण त्योहार को कुछ लोग अश्लील आचरण और गलत हरकतों द्वारा गन्दा बनाते हैं। कुछ लोग एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते हैं और गन्दगी फेंकते हैं। चेहरों पर कीचड़, पक्के रंग (UPBoardSolutions.com) या तारकोल पोतने तथा राहगीरों पर गुब्बारे फेंकते हैं। कुछ लोग भाँग, शराब आदि पीकर हुड़दंग करते हैं। ऐसी अनुचित व अनैतिक हरकतें इस पर्व की पवित्रता को दूषित करती हैं।

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उपसंहार-होली प्रेम का त्योहार है, गले मिलने का त्योहार है, बैर और विरोध को मिटाने का त्योहार है। इस दिन शत्रु भी अपनी शत्रुता भुलाकर मित्र बन जाते हैं। यह त्योहार अमीर और गरीब के भेद को कम करके वातावरण में प्रेम की ज्योति को प्रज्वलित करता है। इसे एकता के त्योहार के (UPBoardSolutions.com) रूप में मनाया जाना चाहिए। निस्सन्देह होली का पर्व हमारी सांस्कृतिक धरोहर है और इस परम्परा का पूर्ण निर्वाह करना। हमारा दायित्व है।

10. दीपावली

सम्बद्ध शीर्षक

  • किसी प्रिय त्योहार का वर्णन
  • मेरा प्रिय पर्व

रूपरेखा-

  1. प्रस्तावना,
  2. अन्य देशों में दीपावली,
  3. ऐतिहासिक व धार्मिक दृष्टिकोण
  4. दीपावली का आयोजन,
  5. उपसंहार

प्रस्तावना-भारत देश विभिन्न त्योहारों एवं पर्वो का देश है। यहाँ ऋतु परिवर्तन के साथ-साथ त्योहारों की निराली छटा भी देखने को मिल जाती है। ये त्योहार हमारे देश की संस्कृति एवं सभ्यता के प्रतीक हैं। इन त्योहारों को मनाने से मन स्वस्थ एवं मानव-समाज (UPBoardSolutions.com) प्रेम की भावना से युक्त हो जाता है। इन त्योहारों में दीपावली अत्यन्त हर्षोल्लास का त्योहार माना जाता है। यह दीपों का अथवा प्रकाश का त्योहार है। दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनायी जाती है। इसके स्वागत में लोग कहते हैं

पावन पर्व दीपमाला का, आओ साथी दीप जलाएँ।
सब आलोक मन्त्र उच्चारै, घर-घर ज्योति ध्वजा फहराएँ॥

अन्य देशों में दीपावली–दीपावली केवल भारत में ही नहीं अपितु संसार के विभिन्न देशों बर्मा (म्यांमार), मलाया, जावा, सुमात्रा, थाईलैण्ड, हिन्द-चीन, मॉरीशस आदि में भी मनायी जाती है। अमेरिका के एक राष्ट्र गुयाना में दीपावली को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है। इन देशों में कुछ स्थानों पर इस दिन भारत की ही तरह लक्ष्मी-पूजन भी किया जाता है।

ऐतिहासिक व धार्मिक दृष्टिकोण—दीपावली मनाने के पीछे अनेक पौराणिक कथाएँ भी प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार इस दिन भगवान् राम रावण का वध करने के पश्चात् अयोध्या लौटे थे और अयोध्यावासियों ने उनके आगमन की प्रसन्नता में दीप जला कर अपनी भावनाओं को व्यक्त किया था। एक अन्य कथा के अनुसार इस दिन भगवान् कृष्ण ने नरकासुर का वध करके उसके चंगुल से सोलह हजार युवतियों को मुक्त कराया था। इस कारण प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए लोगों ने दीप जलाये थे। एक अन्य मान्यता के अनुसार इस दिन समुद्र मन्थन से लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं तथा देवताओं ने उनकी अर्चना की थी। इसीलिए आज भी इस दिन लोग सुख, समृद्धि एवं ऐश्वर्य की कामना से लक्ष्मी-पूजन करते हैं। यह भी माना जाता है कि इस दिन भगवान् विष्णु ने नृसिंह अवतार धारण कर भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी।

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जैन तीर्थंकर भगवान् महावीर ने इस दिन जैनत्व की प्राण प्रतिष्ठा करते हुए महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था तथा इसी दिन महर्षि दयानन्द ने भी निर्वाण प्राप्त किया था। सिक्ख सम्प्रदाय के छठे गुरु हरगोविन्द जी को भी इस दिन बन्दीगृह से मुक्ति मिली थी। ये सभी किंवदन्तियाँ यही सिद्ध करती हैं कि दीपावली के त्योहार का भारतवासियों के सामाजिक जीवन में बहुत महत्त्व है।

दीपावली का आयोजन–दीपावली स्वच्छता एवं साज-सज्जा का सुन्दर सन्देश लेकर आती है। दशहरे के बाद से ही लोग दीपावली मनाने की तैयारियाँ प्रारम्भ कर देते हैं। समाज के सभी वर्गों के लोग अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार अपने घरों की सफाई (UPBoardSolutions.com) करते हैं तथा रंग-रोगन से अपने घरों को चमका देते हैं। इस सफाई से घरों में वर्षा ऋतु में आयी सीलन आदि भी दूर हो जाती है।

दीपावली से पूर्व धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन लोग बर्तन आदि खरीदते हैं। दीपावली के दिन बाजार बहुत सजे हुए होते हैं। लोग मिठाई, खील-बताशे आदि खरीदते तथा एक-दूसरे को उपहार देते हैं। इस दिन सभी बच्चे नवीन वस्त्र धारण करते हैं। रात को लक्ष्मी-गणेश की पूजा के पश्चात् बच्चे और बूढ़े मिलकर पटाखे, आतिशबाजी आदि छोड़ते हैं। घरों को दीपकों, बिजली के बल्बों, मोमबत्तियों आदि से सजाया जाता है। समस्त दृश्य अत्यन्त मनोरम एवं हृदयग्राही प्रतीत होता है। सभी लोग पारस्परिक बैर-भाव को त्याग कर प्रेम से एक-दूसरे को दीपावली की शुभ-कामनाएँ देते हैं।

उपसंहार-दीपावली के शुभ अवसर पर कुछ लोग जुआ खेलते हैं तथा जुए में पराजित होने पर एक-दूसरे को भला-बुरा भी कहते हैं। इससे उल्लास एवं उमंग का यह त्योहार विषाद में बदल जाता है। मार-पीट होने से अनेक व्यक्ति घायल हो जाते हैं। पटाखे और आतिशबाजी छोड़ने के कारण हुई दुर्घटना में अनेक व्यक्ति अपने प्राणों से भी हाथ धो बैठते हैं। हमें दीपावली के इस त्योहार को उसके सम्पूर्ण वैभव के साथ उस ढंग से मनाना (UPBoardSolutions.com) चाहिए जिससे समाज में पारस्परिक सद्भाव उत्पन्न हो सके।

11. भारत के प्रमुख पर्व

रूपरेखा-

  1. भूमिका,
  2. राष्ट्रीय जातीय पर्व,
  3. प्रमुख राष्ट्रीय पर्व,
  4. प्रमुख जातीय पर्व,
  5. हिन्दुओं के प्रमुख पर्व,
  6. सिक्खों के प्रमुख पर्व,
  7. ईसाइयों के प्रमुख पर्व,
  8. मुसलमानों के प्रमुख ‘पर्व,
  9. उपसंहार।

भूमिका-मानव एक सामाजिक प्राणी है। वह अपने सुख-दुःख का विभाजन अपने समाज के साथ करता है। वह हमेशा अपने कार्य में लीन रहता है तथा अपने बँधे-बँधाये जीवन में परिवर्तन की अपेक्षा रखता है। यह इसीलिए कि वह चाहता है कि दैनिक कार्यों में स्फूर्ति, (UPBoardSolutions.com) आनन्द तथा उत्साह का संचार होता रहे। इस परिवर्तन को वह विविध पर्वो के रूप में मनाता है। इन पर्वो पर वह समाज के सभी लोगों के साथ मिलकर समाज के उत्थान के लिए प्रयासरत रहता है।

राष्ट्रीय-जातीय पर्व-भारत देश अनेकता में एकता लिये हुए है। विभिन्न जातियों, धर्मों और वर्गों के व्यक्तियों ने इस महान देश का निर्माण किया है। इसलिए यहाँ अनेक पर्व वर्ष भर मनाये जाते हैं। इन पर्वो में देश के सभी सहृदय निवासी सहर्ष भाग लेते हैं और आपस में मित्रता, सद्भाव, एकता आदि का परिचय देते हैं। हमारे पर्व–राष्ट्रीय तथा जातीय-दो तरह के हैं। राष्ट्रीय पर्वो के अन्तर्गत स्वतन्त्रता दिवस, गणतन्त्र दिवस और विभिन्न राष्ट्रीय नेताओं के जन्मदिन आते हैं और जातीय पर्यों में भारत में रहने वाले विभिन्न सम्प्रदायों द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर मनाये जाने वाले पर्वो की गणना होती है।

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प्रमुख राष्ट्रीय पर्व-राष्ट्रीय पर्वो में सबसे पहला पर्व है-स्वतन्त्रता दिवस। हमारा भारत अनेक वर्षों की परतन्त्रता से 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्र हुआ था। उसी की याद में प्रति वर्ष 15 अगस्त को सारे देश में स्वतन्त्रता दिवस बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। मुख्य समारोह का प्रारम्भ दिल्ली के लाल किले पर प्रधानमन्त्री द्वारा झण्डा फहराने से होता है। देश के प्रमुख नगरों और गाँवों में भी यह पर्व उत्साह के साथ मनाया जाता है।

गणतन्त्र दिवस हमारा दूसरा प्रमुख राष्ट्रीय पर्व है। 26 जनवरी, 1950 को हमारे देश में संविधान लागू किया गया था और इसी दिन भारत को सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न गणराज्य घोषित किया गया था। इसी कारण सम्पूर्ण देश में प्रति वर्ष 26 जनवरी को यह राष्ट्रीय पर्व अत्यन्त उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। इस पर्व का मुख्य समारोह दिल्ली में होता है, जहाँ विशाल झाँकियों से जुलूस निकाला जाता है और राष्ट्रपति सलामी लेते हैं।

हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने हमें स्वाधीनता दिलाने में अपना सर्वस्व न्योछावर कर (UPBoardSolutions.com) दिया था। उनकी याद में उनके जन्म दिवस 2 अक्टूबर को प्रति वर्ष यह राष्ट्रीय पर्व मनाया जाता है। इसके मुख्य समारोह दिल्ली स्थित राजघाट पर और उनके जन्म-स्थान पोरबन्दर पर होते हैं।

इसी प्रकार हमारे प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन 14 नवम्बर को बाल दिवस के रूप में; डॉ० राधाकृष्णन का जन्मदिवस 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इन पर्वो को छोटे-बड़े सभी भारतवासी मिल-जुलकर धूमधाम से मनाते हैं।

प्रमुख जातीय पर्व-भारत के प्रमुख जातीय पर्यों में सभी जातियों के विभिन्न पर्व देश में समयसमय पर मनाये जाते हैं। इन जातियों में हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख और ईसाई मुख्य हैं।

हिन्दुओं के प्रमुख पर्व-हिन्दुओं में प्रचलित प्रमुख पर्व हैं-होली, दीपावली, दशहरा, रक्षाबन्धन आदि। रक्षाबन्धन को श्रावणी भी पुकारते हैं। प्राचीन परम्परा के अनुसार इस दिन ब्राह्मण दूसरे वर्ग के लोगों को रक्षा-सूत्र बाँधते थे, जिससे रक्षा-सूत्र बँधवाने वाला, देश तथा जाति की रक्षा करना अपना कर्तव्य समझता था। कालान्तर में बहनें अपने भाइयों को रक्षा-सूत्र बाँधने लगीं। मध्यकाल में हिन्दू बहनों ने मुसलमान भाइयों को रक्षा-सूत्र बाँधकर सांस्कृतिक एकता का परिचय दिया था। यह पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।

दशहरा या विजयदशमी हिन्दुओं का राष्ट्रव्यापी पर्व है। इस पर्व से पूर्व रामलीलाओं तथा दुर्गापूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन रावण-वध के द्वारा बुरी प्रवृत्तियों पर सदगुणों की विजय प्रदर्शित की जाती है। यह पर्व वीरता, दया, सहानुभूति, आदर्श मैत्री, भक्ति-भावना आदि उच्च गुणों की प्रेरणा देता है।

दीपावली कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाने वाला दीपों का पर्व है। इस दिन लक्ष्मीगणेश जी की पूजा की जाती है और घर-आँगन में दीपों से प्रकाश किया जाता है।

होली हर्षोल्लास का पर्व है। फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होलिका-दहन होता है और चैत्र (UPBoardSolutions.com) कृष्ण प्रतिपदा को होली खेली जाती है। इस दिन लोग परस्पर रंग लगाकर मिलते हैं। होली के दिन अपने-पराये का भेद समाप्त हो जाता है।

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सिक्खों के प्रमुख पर्व-सिक्खों का प्रमुख पर्व है-गुरु-पर्व। इसमें गुरु नानक, गुरु गोविन्द सिंह
आदि विभिन्न गुरुओं के जन्मदिन धूमधाम से मनाये जाते हैं, गुरु ग्रन्थ-साहब की वाणी का पाठ किया जाता है, जुलूस निकाले जाते हैं और लंगर (सामूहिक भोज) होते हैं।

ईसाइयों के प्रमुख पर्व–प्रति वर्ष 25 दिसम्बर को क्रिसमस का पर्व अत्यन्त उत्साह से मनाया जाता है। यह महात्मा ईसा मसीह की पुण्य जयन्ती का पर्व है। ईसाइयों का दूसरा प्रमुख पर्व है-ईस्टर, जो 21 मार्च के बाद जब पहली बार पूरा चाँद दिखाई पड़ता है तो उसके पश्चात् आने वाले रविवार को मनाया जाता है। इनके अतिरिक्त दो प्रमुख पर्व हैं-गुड फ्राइडे तथा प्रथम जनवरी (नववर्ष)। ।

मुसलमानों के प्रमुख पर्व-मुसलमानों के पर्वो में रमजान, मुहर्रम, ईद, बकरीद आदि प्रमुख हैं।

उपसंहार–पर्व हमारी सभ्यता तथा संस्कृति के प्रतीक हैं। सैकड़ों वर्षों से ये (UPBoardSolutions.com) हमारे सामाजिक जीवन में नित नवीन प्रेरणा का संचार करते रहे हैं। अत: इन पर्वो का मनाना हमारे लिए उपादेय तथा आवश्यक है।

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi आधुनिक काल

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आधुनिक काल

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
आधुनिक काल के उन दो साहित्यकारों के नाम लिखिए, जिनके नाम के साथ ‘युग’ जुड़ गया। उन दोनों की एक-एक रचना का नाम भी लिखिए।
उत्तर

  1. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र–प्रेम माधुरी तथा
  2. महावीरप्रसाद द्विवेदी—अद्भुत आलाप।

प्रश्न 2
आधुनिक काल के तीन अन्य नाम लिखिए।
उत्तर
आधुनिक काल के तीन अन्य नाम हैं—

  1. गद्य-काल,
  2. नवीन विकास-काल तथा
  3. पुनर्जागरण-काल।

प्रश्न 3
आधुनिक काल कविता की प्रमुख विशेषताओं (प्रवृत्तियों) का उल्लेख कीजिए।
या
आधुनिक काल की दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2012, 16]
उत्तर
आधुनिक कविता की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं—

  1. जीवन के यथार्थ का चित्रण।
  2. देश-प्रेम की (UPBoardSolutions.com) भावना।
  3. खड़ी बोली में काव्य-रचना।
  4. बौद्धिकता की प्रधानता।
  5. गीति-काव्य की प्रधानता।
  6. नये उपमानों के प्रयोग एवं
  7. प्रतीकात्मकता।।

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प्रश्न 4
आधुनिक हिन्दी काव्य की दो मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए और इस काल के दो कवियों तथा उनकी एक-एक महाकाव्य रचनाओं का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर
आधुनिक हिन्दी काव्य की दो मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं—

  1. ब्रजभाषा के स्थान पर खड़ी बोली का प्रचलन।
  2. प्रबन्ध मुक्तक शैली के स्थान पर मधुर गीत और मुक्त छन्दों की रचना का प्रचलन। आधुनिक काल के दो कवि जयशंकर प्रसाद तथा मैथिलीशरण गुप्त हैं। इनमें से प्रसाद जी ने ‘कामायनी’ तथा गुप्त जी ने ‘साकेत’ महाकाव्य की रचना की।

प्रश्न 5
हिन्दी खड़ी बोली में काव्य-रचना करने वाले किन्हीं दो प्रमुख कवियों के नाम बताइए और उनकी रचनाओं का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर

  1. अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’-प्रियप्रवास तथा
  2. मैथिलीशरण गुप्त– साकेत; हिन्दी की खड़ी बोली में काव्य-रचना करने वाले दो प्रमुख कवि हैं।

प्रश्न 6
‘भारतेन्दु युग’ किस काल के अन्तर्गत आता है ? इस युग के ब्रजभाषा के दो प्रमुख कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर
‘भारतेन्दु युग’ आधुनिक काल के अन्तर्गत आता है। इस युग के ब्रजभाषा के दो कवि हैं

  1. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र तथा
  2. श्रीधर पाठक।

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प्रश्न 7
आधुनिक हिन्दी-साहित्य में राष्ट्रीय भावना के दर्शन सर्वप्रथम किस कवि की रचनाओं में होते हैं ?
उत्तर
आधुनिक हिन्दी-साहित्य में राष्ट्रीय भावना के दर्शन सर्वप्रथम भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की रचनाओं में होते हैं।

प्रश्न 8
द्विवेदी युग के दो प्रसिद्ध कवियों के नाम लिखिए। [2011, 12, 14]
या
द्विवेदी युग के दो प्रमुख महाकाव्यों तथा उनके रचयिताओं के नाम लिखिए। [2012, 13]
या
द्विवेदी युग के दो प्रमुख कवियों तथा उनकी एक-एक रचना के नाम लिखिए। [2012]
या
मैथिलीशरण गुप्त और अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की एक-एक प्रमुख रचना का नाम लिखिए।
या
‘प्रियप्रवास’ तथा ‘साकेत’ महाकाव्यों की रचना हिन्दी-साहित्य के किस युग में हुई ? इनके रचनाकारों का नामोल्लेख कीजिए।
या
द्विवेदी युग के किसी एक प्रतिनिधि कवि का नाम लिखकर उसके द्वारा रचित प्रसिद्ध प्रबन्धकाव्य का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर

  1. मैथिलीशरण गुप्त-साकेत, यशोधरा, भारत-भारती।
  2. अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’–(UPBoardSolutions.com) प्रियप्रवास, वैदेही वनवास, रस कलश।

प्रश्न 9
छायावाद के आधार-स्तम्भ कहे जाने वाले प्रकृति के सुकुमार कवि का नाम बताइट।
उत्तर
छायावाद के आधार-स्तम्भ कहे जाने वाले और प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त हैं।

प्रश्न 10
छायावादी युग के दो प्रमुख कवियों और उनकी दो-दो रचनाओं के नाम लिखिए। [2010, 12]
या
छायावादी युग के दो कवियों के नाम और उनकी एक-एक सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना का उल्लेख कीजिए। [2009, 16]
या
छायावाद की दो प्रमुख कृतियों का नाम लिखिए। [2011, 17]
या
जयशंकर प्रसाद के दो प्रमुख काव्य-ग्रन्थों के नाम लिखिए। [2012]
या
महादेवी वर्मा की किसी एक काव्य-कृति का नामोल्लेख कीजिए। [2014]
उत्तर

  1. जयशंकर प्रसाद–कामायनी और आँसू।
  2. महादेवी वर्मा—यामा और दीपशिखा।

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प्रश्न 11
छायावाद के दो महाकाव्य बताइए। [2011]
उत्तर
छायावाद के दो महाकाव्य हैं—

  1. जयशंकर प्रसाद रचित कामायनी तथा
  2. सुमित्रानन्दन पन्त रचित ‘तुलसीदास’।

प्रश्न 12
पन्त के काव्य-साहित्य को कितने सोपानों में बाँटा जा सकता है ? उनके नाम भी लिखिए।
उत्तर
सुमित्रानन्दन पन्त के काव्य-साहित्य को निम्नलिखित तीन सोपानों में बाँटा जा सकता है

  1. छायावादी काव्य,
  2. प्रगतिवादी काव्य तथा
  3. अरविन्द के दर्शन से (UPBoardSolutions.com) प्रभावित काव्य।।

प्रश्न 13
कवि पन्त के काव्य की दो मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर

  1. पन्त जी के काव्य में मानवता, विश्व-बन्धुत्व और भ्रातृत्व के प्रति सहज आस्था है।
  2. पन्त जी की भाषा चित्रमयी एवं अलंकृत है तथा स्पष्ट और सशक्त बिम्ब-योजना ने उसे अधिक प्रभावशाली बना दिया है।

प्रश्न 14
तीन कवियों के नाम लिखिए, जिनको छायावाद का आधार-स्तम्भ कहा जाता है।
या
छायावाद के चार स्तम्भ किन्हें कहा जाता है ?
उतर
छायावाद का आधार-स्तम्भ माने जाने वाले तीन कवि हैं-जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानन्दन पन्त और सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ और एक कवयित्री हैं–श्रीमती महादेवी वर्मा।

प्रश्न 15
महादेवी वर्मा ने अपने गीतों में किस भावना को अभिव्यक्ति दी है ?
उत्तर
महादेवी वर्मा ने अपने गीतों में विरह की वेदना को मार्मिक अभिव्यक्ति दी है।

प्रश्न 16
‘एकलव्य’ तथा ‘उत्तरायण’ कैसे काव्य-ग्रन्थ हैं और इनके रचयिता कौन हैं ?
या
डॉ० रामकुमार वर्मा की एक रचना का नाम लिखिए। [2012, 18]
उत्तर
‘एकलव्य’ तथा ‘उत्तरायण’ दोनों ही काव्य-ग्रन्थ प्रबन्धकाव्य हैं। इनके रचयिता रामकुमार वर्मा हैं।

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प्रश्न 17
लोकगीतों का सर्वप्रथम संकलनकर्ता किसे माना जाता है ?
उत्तर
रामनरेश त्रिपाठी को लोकगीतों (UPBoardSolutions.com) का प्रथम संकलनकर्ता माना जाता है।

प्रश्न 18
रामनरेश त्रिपाठी किस युग के साहित्यकार थे ?
उत्तर
रामनरेश त्रिपाठी ‘द्विवेदी युग’ के साहित्यकार थे।

प्रश्न 19
कवि माखनलाल चतुर्वेदी के काव्य का मूल स्वर क्या है ?
उत्तर
कवि माखनलाल चतुर्वेदी के काव्य का मूल स्वर राष्ट्रीयतावादी है।

प्रश्न 20
माखनलाल चतुर्वेदी के भाषणों के दो संग्रहों के नाम बताइए।
उत्तर

  1. चिन्तन की लाचारी तथा
  2. आत्मदीक्षा; माखनलाल चतुर्वेदी के भाषणों के दो संग्रह हैं।

प्रश्न 21
‘कुंकुम’ बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ की किस विधा की रचना है और इसका प्रकाशन-वर्ष क्या है ?
उत्तर
कुंकुम’ नवीन जी की प्रथम कविता-संग्रह है। यह 1936 ई० में प्रकाशित हुआ।

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प्रश्न 22
हिन्दी काव्य में प्रगतिवादी युग का आरम्भ किन परिस्थितियों में हुआ ?
उत्तर
प्रगतिवादी कवियों ने मार्क्स को साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित होकर किसान तथा मजदूरों की दयनीय दशा और रोटी-कपड़ा-मकान की समस्या को अपनी कविता का विषय बनाया। इन कवियों ने सरल और व्यावहारिक भाषा को अपनाया तथा सामाजिक अन्याय, ऊँच-नीच, शोषण और अत्याचार के प्रति कठोर प्रतिक्रिया का स्वर मुखरित किया।

प्रश्न 23
प्रगतिवादी युग के किन्हीं दो कवियों के नाम लिखकर उनकी एक-एक साहित्यिक रचना का उल्लेख कीजिए। [2015]
या
‘निराला’ अथवा रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की किसी एक रचना का नाम लिखिए। [2013]
या
प्रगतिवाद से सम्बन्धित किसी एक प्रसिद्ध कवि और उसकी एक रचना का नाम लिखिए। [2015]
उत्तर

  1. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’-अपरा तथा
  2. रामधारी सिंह ‘दिनकर’-रेणुका।।

प्रश्न 24
प्रगतिवाद के किसी ऐसे कवि का नाम और उसकी दो रचनाएँ बताइए जो दो युगों से सम्बन्धित हों।
उत्तर
कविवर सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ दो युगों-छायावाद (UPBoardSolutions.com) और प्रगतिवाद-से सम्बन्धित कवि हैं। इनकी दो रचनाएँ हैं—

  1. अनामिका एवं
  2. अणिमा।

प्रश्न 25
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की पहली प्रसिद्ध कविता कौन-सी थी ?
उत्तर
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की पहली प्रसिद्ध कविता ‘हिमालय’ थी।

प्रश्न 26
‘दिनकर’ के काव्य की दो. भावगत विशेषताएँ कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के काव्य की दो भावगत विशेषताएँ हैं—

  1. वर्तमान युग की दयनीय दशा के प्रति असन्तोष, अतीत का गौरव-गान तथा प्रगति-निर्माण के पथ पर अग्रसर होने का सन्देश।
  2. राष्ट्रीयता की भावना तथा विश्व-प्रेम की झलक भी पर्याप्त मात्रा में इनके काव्य में दृष्टिगत होती है।

प्रश्न 27
‘दिनकर’ जी की कविताओं में किस रस की प्रधानता है ?
उत्तर
‘दिनकर’ जी की अधिकांश कविताओं में वीर रस की प्रधानता है।

प्रश्न 28
ओज की कविता लिखने वाली हिन्दी की एकमात्र कवयित्री का नाम बताइए।
उत्तर
सुभद्राकुमारी चौहान ओज की कविता लिखने वाली हिन्दी की एकमात्र कवयित्री हैं।

प्रश्न 29
‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ कविता सुभद्राकुमारी चौहान के किस काव्य-संग्रह से ली गयी है ?
उत्तर
‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ कविता ‘मुकुल’ (UPBoardSolutions.com) नामक काव्य-संग्रह से ली गयी है।

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प्रश्न 30
सुभद्रा जी की कविताएँ किन मुख्य रसों से आप्लावित हैं ?
उत्तर
सुभद्रा जी की कविताएँ मुख्य रूप से वीर और वात्सल्य रसों से आप्लावित हैं।

प्रश्न 31
‘बिखरे मोती’ तथा ‘उन्मादिनी’ किस विधा की रचनाएँ हैं ?
उत्तर
ये दोनों ही रचनाएँ सुभद्रा जी के कहानी-संकलन हैं।

प्रश्न 32
उस कवि का नाम लिखिए, जिसे छायावाद को आस्थावादी कवि कहा जाता है।
उत्तर
हरिवंशराय बच्चन को छायावाद का आस्थावादी कवि कहा जाता है।

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प्रश्न 33
कवि नागार्जुन की कविता का मुख्य स्वर क्या है ?
उत्तर
दलित वर्ग के प्रति संवेदना, अत्याचार-पीड़ित, त्रस्त व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति, अनीति और अन्याय का विरोध करने की प्रेरणा देना, सम-सामयिक, राजनीतिक तथा सामाजिक समस्याओं पर चोट करना कवि नागार्जुन की कविता के मुख्य स्वर रहे हैं।

प्रश्न 34
प्रयोगवाद का आरम्भ किस कविता-संकलन से माना जाता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘अज्ञेय’ द्वारा सम्पादित तथा सन् 1943 ई० में प्रकाशित प्रथम ‘तार सप्तक’ के संकलन से प्रयोगवाद का प्रारम्भ माना जाता है।

प्रश्न 35
प्रयोगवादी धारा के किन्हीं दो कवियों और उनकी एक-एक रचना का उल्लेख कीजिए। [2014, 18]
या
‘आँगन के पार द्वार’ के रचयिता का नाम लिखिए। [2011, 16]
या
‘प्रयोगवाद’ के किन्हीं दो कवियों का नामोल्लेख कीजिए। [2013]
उत्तर

  1. सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’–आँगन के पार द्वार तथा
  2. धर्मवीर भारती–कनुप्रिया।।

प्रश्न 36
प्रथम ‘तार सप्तक’ किस सन में प्रकाशित हुआ ? उसके सम्पादक का नामोल्लेख करते हुए उसमें संकलित किसी एक कवि का नाम लिखिए। [2009, 10]
या
प्रथम ‘तार सप्तक’ के चार कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर
प्रथम ‘तार सप्तक’ का प्रकाशन सन् (UPBoardSolutions.com) 1943 ई० में हुआ। इसके सम्पादक सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ थे। इसमें जिन सात कवियों की रचनाएँ संकलित थीं, उनके नाम हैं-

  1. सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’,
  2. गजानन माधव मुक्तिबोध’,
  3. नेमिचन्द्र जैन,
  4. भारत भूषण,
  5. प्रभाकर माचवे,
  6. गिरिजाकुमार माथुर तथा
  7. रामविलास शर्मा।

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प्रश्न 37
‘दूसरा सप्तक’ के कवियों के नाम तथा प्रकाशन-वर्ष लिखिए।
या
‘दूसरा सप्तक’ कब प्रकाशित हुआ था ? [2011]
उत्तर
‘दूसरा सप्तक’ के कवियों के नाम हैं—

  1. भवानीप्रसाद मिश्र,
  2. शकुन्त माथुर,
  3. हरिनारायण व्यास,
  4. शमशेर बहादुर सिंह,
  5. नरेश मेहता,
  6. रघुवीर सहाय तथा
  7. धर्मवीर भारती। इस सप्तक का (UPBoardSolutions.com) प्रकाशन सन् 1951 ई० में हुआ। इसके सम्पादक भी सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हैं।

प्रश्न 38
‘तीसरा सप्तक’ कब प्रकाशित हुआ ? इसके सात कवियों का नामोल्लेख कीजिए।
या
‘तीसरा सप्तक’ के सम्पादक का नाम लिखकर उसके प्रकाशन-वर्ष का उल्लेख कीजिए। [2009]
उत्तर
‘तीसरा सप्तक’ सन् 1959 ई० में प्रकाशित हुआ। इसमें सात कवियों–

  1. प्रयाग नारायण त्रिपाठी,
  2. कीर्ति चौधरी,
  3. मदन वात्स्यायन,
  4. केदारनाथ सिंह,
  5. कुँवर नारायण,
  6. विजयदेव नारायण साही तथा
  7. सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविताएँ संकलित हुई हैं। इसके सम्पादक भी सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हैं।

प्रश्न 39
‘चौथा सप्तक’ कब प्रकाशित हुआ ? इसके सात कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर
चौथा ‘सप्तक’ का प्रकाशन सन् 1979 ई० में हुआ। इसमें जिन सात कवियों की रचनाएँ संकलित हैं, उनके नाम हैं–

  1. अवधेश कुमार,
  2. राजकुमार कुम्भज,
  3. स्वदेश भारती,
  4. नन्द- किशोर आचार्य,
  5. सुमन राजे,
  6. श्रीराम वर्मा तथा
  7. राजेन्द्र किशोर।

प्रश्न 40
रामनरेश त्रिपाठी और धर्मवीर भारती की एक-एक काव्य-कृति का नाम लिखिए। [2012]
या
“कनुप्रिया’ किसकी रचना है ? [2013]
उत्तर
रामनरेश त्रिपाठी-मिलन तथा (UPBoardSolutions.com) धर्मवीर भारती-कनुप्रिया।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
आधुनिक हिन्दी कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
या
हिन्दी-साहित्य के आधुनिक काल के नामकरण पर विचार कीजिए।
उत्तर
आधुनिक हिन्दी कविता का प्रारम्भ संवत् 1900 वि० से माना जाता है। आधुनिक युग में देश में राष्ट्रीय आन्दोलनों के प्रारम्भ होने से लोगों के आत्म-गौरव का प्रभाव हिन्दी कविता पर पड़ना स्वाभाविक था। अत: देश-हित, देश-प्रेम, (UPBoardSolutions.com) समाज-सुधार, धर्म-सुधार आदि नवीन विषयों पर कविताएँ लिखी जाने लगीं, जिससे पद्य में नवीन वादों और नवीन शैलियों का प्रचलन हुआ और इनमें कविताएँ रची जाने लगीं।

प्रश्न 2
आधुनिक पद्य की विकासधारा को कितने भागों (युगों) में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर
आधुनिक पद्य की विकासधारी को निम्नलिखित आठ युगों में विभाजित किया जा सकता है-
UP Board Solutions for Class 10 Hindi आधुनिक काल img-6

प्रश्न 3
आधुनिक हिन्दी कविता के अन्तर्गत भारतेन्दु युग का परिचय दीजिए।
उत्तर
आधुनिक हिन्दी कविता का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। इस युग में समाज-सुधार के आन्दोलनों के प्रारम्भ होने के साथ-साथ धार्मिक और राजनीतिक चेतना का भी आरम्भ हुआ। इस युग के कवियों ने देश-प्रेम, समाज-सुधार, अतीत के गौरव की कविता के माध्यम से प्रसार किया। काव्य के क्षेत्र में ब्रजभाषा की जगह खड़ीबोली को भी स्थान दिया जाने लगा।

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प्रश्न 4
भारतेन्दु युग के काव्य-साहित्य की विशेषताएँ लिखिए।
या
भारतेन्दु युग की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
भारतेन्दु युग के काव्य की विशेषताएँ इस प्रकार हैं–

  1. कविता में स्वदेश-प्रेम का स्वर।
  2. देश-प्रेम, भाषा-प्रेम, समाज-सुधार आदि विषयों पर काव्य-रचना।
  3. जनवादी प्रवृत्तियों को अपनाकर काव्य और जीवन की धारा का समन्वय।
  4. ब्रजभाषा और खड़ी बोली में काव्य-रचना।
  5. प्रबन्ध काव्य की अपेक्षा मुक्तक काव्य की अधिक रचना
  6. कविता में हास्य और व्यंग्य के पुट का समावेश।
  7. विषय, भाव, छन्द और शैली की दृष्टि से नवीन और प्राचीन दोनों रूपों के प्रयोग।
  8. मुक्त प्रकृति-चित्रण।

प्रश्न 5
द्विवेदी युग के काव्य-साहित्य का सामान्य परिचय दीजिए।
या
हिन्दी-काव्य को द्विवेदी युग की क्या देन है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
द्विवेदी युग के प्रवर्तक आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी माने जाते हैं। इस युग के कवियों की कविता पर समाज सुधार की भावना और उपदेशात्मकता का भाव परिलक्षित होता है। राष्ट्रीय भावना, समाज-सुधार, अतीत-गौरव, नारी की (UPBoardSolutions.com) महत्ता आदि इस युग की कविता के मुख्य विषय हैं।

खड़ीबोली को काव्य में स्थान दिलाने और उसको समृद्ध एवं परिष्कृत करने का सर्वाधिक श्रेय द्विवेदी जी को जाता है। द्विवेदी जी के लेखन से अनेकानेक युवा कवियों को प्रेरणा मिली, जिसके परिणामस्वरूप हिन्दी-साहित्य को अनेक कवि मिले।।

प्रमुख कवि-मैथिलीशरण गुप्त, द्विवेदी युग के प्रतिनिधि कवि हैं। श्रीधर पाठक, अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, मुकुटधर पाण्डेय, लोचनप्रसाद पाण्डेय, रामनरेश त्रिपाठी, रामचरित्र उपाध्याय आदि द्विवेदी युग के अन्य प्रमुख कवि हैं।

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प्रश्न 6
द्विवेदीयुगीन कविता की सामान्य विशेषताएँ बताइए।
या
द्विवेदी युग की कविता की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2011, 18]
उत्तर
द्विवेदीयुगीन कविता की सामान्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. खड़ीबोली का गद्य एवं पद्य दोनों क्षेत्रों में प्रयोग,
  2. देशभक्ति और राष्ट्रीय भावना की प्रधानता,
  3. इतिवृत्तात्मकता,
  4. नारी-स्वातन्त्र्य पर बल,
  5. अतीत के गौरव और भारतीय संस्कृति का निरूपण तथा
  6.  मानवतावादी विचारधाराएँ।।

प्रश्न 7
हिन्दी कविता के छायावादी युग का परिचय दीजिए। छायावाद के प्रमुख कवियों के नाम बताइए। [2009]
या
छायावादी किन्हीं दो कवियों के नाम लिखिए। [2012, 15, 17]
या
‘छायावाद’ के किसी एक प्रमुख कवि का नाम लिखिए। [2016, 17]
या
‘छायावादी युग’ की किसी एक कवयित्री का नाम लिखिए। (2017)
उत्तर
द्विवेदी युग की इतिवृत्तात्मकता एवं कोरी उपदेशात्मकता की प्रतिक्रिया में छायावादी काव्यधारा’ का प्रारम्भ हुआ। इस युग की कविता में प्रेम, सौन्दर्य, कल्पना और प्रकृति-चित्रण की प्रधानता है।

प्रमुख कवि–जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानन्दन पन्त, सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’, महादेवी वर्मा-ये चार छायावाद के सुदृढ़ स्तम्भ हैं। इनके अतिरिक्त डॉ० रामकुमार वर्मा, नरेन्द्र शर्मा, हरिवंशराय बच्चन, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ आदि इस (UPBoardSolutions.com) युग के प्रमुख कवि हैं।

प्रश्न 8
छायावादी काव्य की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए। या छायावाद की दो विशेषताएँ (प्रवृत्तियाँ) संक्षेप में लिखिए। [2009, 11, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
या
छायावाद की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए तथा दो प्रमुख कवियों का नामोल्लेख कीजिए।
या
छायावादी काव्य की उन दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए, जो महादेवी वर्मा के काव्य में पर्याप्त रूप से मिलती हैं।
उत्तर
छायावादी युग के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं—

  1. प्रेम-सौन्दर्य का चित्रण।
  2. प्रकृति का मानवीकरण।
  3. अंग्रेजी के रोमैण्टिसिज़्म (स्वच्छन्दतावाद) से प्रभावित।
  4. वैयक्तिक अनुभूति की तीव्रता।
  5. रहस्यवादी भावना।
  6. करुणा एवं नैराश्य की प्रधानता।
  7. नये अलंकारोंविशेषण विपर्यय, ध्वन्यर्थ व्यंजना आदि का प्रयोग।
  8. लाक्षणिक, प्रतीकात्मक शैली तथा चित्रमयी कल्पना। ये सभी विशेषताएँ महादेवी वर्मा के काव्य में पर्याप्त रूप से मिलती हैं।

प्रमुख कवि–जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा, सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’।

प्रश्न 9
प्रगतिवादी कविता का जन्म क्यों हुआ ? किन्हीं चार प्रगतिवादी कवियों के नाम लिखिए।
या
प्रगतिवादी युग के किन्हीं दो कवियों के नाम लिखकर उनकी एक-एक साहित्यिक रचना का उल्लेख कीजिए। [2008]
या
प्रगतिवादी काव्य के दो कवियों तथा उनकी दो-दो रचनाओं के नाम लिखिए। [2010]
या
प्रगतिवादी युग के दो प्रमुख कवियों के नाम लिखिए। [2010, 12, 13, 16]
उत्तर
प्रगतिवाद से पहले छायावादी कविता का युग था। छायावादी कवियों ने वास्तविकता के धरातल से हटकर सूक्ष्म वायवीय कल्पना का सहारा लेकर काव्य-रचना की थी। उनकी इसी सूक्ष्मता और अति काल्पनिकता के प्रति विद्रोह के (UPBoardSolutions.com) रूप में प्रगतिवादी कविता का जन्म हुआ।
प्रगतिवादी कवि–

  1. सुमित्रानन्दन पन्त,
  2. सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’,
  3. रामधारी सिंह ‘दिनकर’,
  4. भगवतीचरण वर्मा,
  5. नरेन्द्र शर्मा,
  6. रामविलास शर्मा,
  7.  शिवमंगल सिंह ‘सुमन’,
  8. नागार्जुन तथा
  9. केदारनाथ अग्रवाल।।

[संकेत-रचनाओं के लिए प्रमुख काव्य ग्रन्थ और उनके रचयिता’ शीर्षक की सामग्री देखें।]

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प्रश्न 10
प्रगतिवादी युग की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए। [2009]
या
प्रगतिवादी युग की दो प्रमुख विशेषताओं (प्रवृत्तियों) का उल्लेख कीजिए। [2010, 11, 12, 13, 15, 16]
या
प्रगतिवादी साहित्य की किन्हीं दो प्रवृत्तियों का नाम लिखिए। [2018]
या
प्रगतिवादी कविता की दो प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख करते हुए दो प्रमुख कवियों का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर
प्रगतिवाद काव्य की वह धारा है, जिसमें पूँजीवादी व्यवस्था का विरोध करते हुए साम्यवाद का काव्यात्मक रूपान्तरण हुआ है। प्रगतिवादी युग के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. साम्यवादी विचारधारा (विशेष रूप से कार्ल मार्क्स) से प्रभावित।
  2. मानवमात्र के कल्याण के लिए मानवतावादी दृष्टिकोण।
  3. सामाजिक असमानता और पूँजीपतियों के अत्याचारों के प्रति विद्रोह की भावना और शोषितों के प्रति सहानुभूति।
  4. जनसाधारण के समझने योग्य सरल और व्यावहारिक भाषा का प्रयोग।
  5. छन्दों के बन्धन की उपेक्षा।
  6. कला को कला के लिए न मानकर ‘कला जीवन के लिए’ का सिद्धान्त अपनाया गया।

[संकेत–कवियों के नाम प्रश्न सं० 9 में देखें।

प्रश्न 11
प्रगतिवादी कवियों ने किसके दर्शन को आधार बनाया ? स्पष्ट कीजिए। [2011]
उत्तर
प्रगतिवादी कवियों ने मुख्य रूप से कार्ल मार्क्स के दर्शन को आधार बनाया।

प्रश्न 12
प्रयोगवादी धारा अथवा नयी कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
या
आधुनिक काल की प्रयोगवादी धारा पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
या
नयी कविता के चार प्रमुख कवियों के नाम लिखिए।
या
नयी कविता के किसी एक कवि का नामोल्लेख कीजिए। [2014]
या
किसी एक प्रयोगवादी कवि का नाम लिखिए। [2018]
या
प्रयोगवादी कविता की चार रचनाओं के नाम लिखिए।
या
प्रयोगवादी काव्यधारा के दो प्रसिद्ध कवियों के नाम लिखिए। [2009, 10, 14, 15]
उत्तर
प्रयोगवाद हिन्दी-साहित्य की आधुनिकतम विचारधारा है, जिसका उद्देश्य प्रगतिवाद के जनवादी दृष्टिकोण का विरोध करना है। प्रयोगवादी रचनाकार अपने मानसिक विकास की तुष्टि के लिए ही काव्य-सृजन करते हैं। इनके काव्य (UPBoardSolutions.com) में कला–पक्ष और भाव-पक्ष दोनों में नवीन प्रयोगों को महत्त्व दिया गया है। इस युग की कविता का आरम्भ 1943 ई० के ‘तार सप्तक’ के प्रकाशन से होता है। बाद में 1954 ई० में प्रयोगवादी कविता का नाम ही नयी कविता’ पड़ गया।

प्रमुख कवि–सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ (प्रवर्तक), गिरिजाकुमार माथुर, प्रभाकर माचवे, भारतभूषण, गजानन माधव मुक्तिबोध’, नेमिचन्द्र जैन, रामविलास शर्मा, भवानीप्रसाद मिश्र, शकुन्त माथुर, धर्मवीर भारती, जगदीश गुप्त आदि। | | संकेत–रचनाओं के लिए प्रमुख काव्य-ग्रन्थ और उनके रचयिता’ शीर्षक की सामग्री देखें।

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प्रश्न 13
प्रयोगवादी कविता की प्रमुख विशेषताएँ (प्रवृत्तियाँ) लिखिए।
या
प्रयोगवादी कविता की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2009, 11, 14, 16]
या
प्रयोगवाद की किसी एक प्रवृत्ति का उल्लेख कीजिए। [2018]
या
प्रयोगवादी काव्यधारा की दो प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए। [2018]
या
भाषा और शिल्प की दृष्टि से प्रयोगवादी कविता की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
प्रयोगवादी कविता की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. नवीन बिम्ब एवं नवीन प्रतीकों का मोह।
  2. कुण्ठा और निराशा का स्वर।
  3. अति यथार्थवादी दृष्टिकोण।
  4. सामाजिक असमानता और असंगतियों के प्रति तीक्ष्ण व्यंग्य और कटूक्तियाँ।
  5. नितान्त वैयक्तिक अनुभूतियों की काव्य में अभिव्यक्ति।
  6. मुक्तक शैली का प्रयोग।
  7. छन्द-योजना में नवीनता।
  8. अंग्रेजी, उर्दू, बांग्ला तथा आंचलिक शब्दों के प्रयोग।
  9. नवीन उपमानों की योजना।
  10.  विरूप का चित्रण।

प्रश्न 14
नयी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
सन् 1953 ई० के बाद प्रयोगवादी कविता के नये रूप का शुभारम्भ हुआ। प्रयोगवादी धारा ही विकसित होकर नयी कविता के रूप में आयी। इन वर्षों में ऐसी वादमुक्त कविता रची गयी, जो किसी विशेष प्रवृत्ति ‘स्कूल’ या ‘वाद’ से बँधकर नहीं चली। यह नया काव्य परम्परागत स्वरूप से इतना अलग हो गया कि इसे कविता न कहकर अकविता कहा जाने लगा। नयी कविता की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं—

  1. अति यथार्थता,
  2. नये बिम्ब तथा प्रतीकों के प्रयोग,
  3. बौद्धिकता की प्रधानता,
  4. वैयक्तिकता,
  5. निराशावादे,
  6. पलायन की प्रवृत्ति आदि।

प्रश्न 15
मैथिलीशरण गुप्त किस युग के कवि हैं ? उनकी एक रचना का नाम लिखिए। [2015]
उत्तर
मैथिलीशरण गुप्त द्विवेदी युग के कवि हैं। उनकी (UPBoardSolutions.com) रचना का नाम है–साकेत।

प्रश्न 16
अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ किस युग के कवि हैं? उनकी किसी एक रचना का नाम लिखिए। [2015]
उत्तर
अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्विवेदी युग के कवि हैं। प्रियप्रवास उनकी एक रचना का नाम हैं।

प्रश्न 17
‘पलाश वन’ के रचनाकार का नाम लिखिए। [2015, 17]
उत्तर
नरेन्द्र शर्मा।

प्रश्न 18
त्रिलोचन के दो प्रसिद्ध काव्यों के नाम लिखिए। [2016]
उत्तर

  1. धरती तथा
  2. गुलाब और बुलबुल।

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प्रश्न 19
हिन्दी काव्य की प्रमुख धाराओं से सम्बद्ध दो प्रमुख रचनाकारों और उनकी एक-एक कृतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
हिन्दी काव्य की प्रमुख धाराओं से सम्बद्ध दो प्रमुख रचनाकार और उनकी एक-एक कृतियाँ निम्नलिखित है-
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प्रश्न 20
निम्नलिखित कवियों और उनकी रचनाओं का सुमेल कीजिए-
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उत्तर
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प्रश्न 21
निम्नलिखित रचनाओं के कवियों के नाम लिखिए
(i) बादल को घिरते देखा है
(ii) हिन्दुस्तान हमारा है।
(iii) वर्षा सुन्दरी के प्रति
(iv) चन्द्रलोक में प्रथम बार
उत्तर
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प्रश्न 22
निम्नलिखित रचनाओं में से किन्हीं दो रचनाओं के कवियों के नाम लिखिए-
(i) चींटी
(ii) सत्कर्त्तव्य
(iii) आग की भीख
(iv) पथ की पहचान
उत्तर
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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 2 गृह-व्यवस्था : परिवार के सन्दर्भ में

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 2 गृह-व्यवस्था : परिवार के सन्दर्भ में

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
गृह-व्यवस्था से आप क्या समझती हैं?
या
इसका अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए।
उत्तर:
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में किसी भी कार्य को सफलतापूर्वक करने के लिए कार्य का व्यवस्थित होना अनिवार्य होता है। व्यवस्था के अभाव में कोई भी कार्य उचित रूप से नहीं हो सकता। इसके विपरीत, यदि कार्य को व्यवस्थित रूप में किया जाता है, तो कार्य शीघ्रता तथा सरलता से पूरा हो (UPBoardSolutions.com) जाता है। व्यवस्था के अनुसार किया गया कार्य उत्तम होता है। घर तथा परिवार के क्षेत्र में भी अनेक कार्य किए जाते हैं। इन कार्यों को सरलतापूर्वक तथा अधिक सुचारु रूप में पूरा करने के लिए गृह-व्यवस्था को लागू किया जाता है। गृह-व्यवस्था का अध्ययन गृह विज्ञान का एक मुख्य विषय है। गृह-व्यवस्था का अर्थ एवं परिभाषा का विवरण निम्नवर्णित है

व्यवस्था तथा गृह-व्यवस्था का अर्थ एवं परिभाषा

गृह-व्यवस्था का शाब्दिक अर्थ है ‘घर की व्यवस्था’ या ‘घर का प्रबन्ध’। इस स्थिति में ‘गृह-व्यवस्था के प्रत्यय को स्पष्ट करने के लिए व्यवस्था के वास्तविक अर्थ का ज्ञान प्रासंगिक है। व्यवस्था या प्रबन्ध की अवधारणा पर्याप्त विस्तृत है। जीवन के समस्त क्षेत्रों में व्यवस्था को अपनाया जाता है। व्यवस्था अपने आप में वह कला है जिसके द्वारा किसी भी संस्था (उद्योग, संस्थान या परिवार आदि) के सदस्यों, वस्तुओं तथा क्रियाओं (UPBoardSolutions.com) को नियन्त्रित किया जाता है तथा इसके लिए विभिन्न पूर्वनिर्धारित सिद्धान्तों को व्यवहार में लाया जाता है। व्यवस्था के विषय में ओलिवर शेल्डन का यह कथन उल्लेखनीय है, “सामान्य रूप से नीति-निर्धारण, उसको कार्यान्वित करना, संगठन निर्माण तथा उसका उपयोग व्यवस्था या प्रबन्ध के अन्तर्गत आ जाते हैं।” स्पष्ट है कि किसी भी क्षेत्र में कार्य करने के लिए पहले उससे सम्बन्धित नीति को निर्धारित किया जाता है। फिर निर्धारित नीति को कार्य रूप में लागू किया जाता है। इसी प्रकार डेविस महोदय ने व्यवस्था के अर्थ को इन शब्दों में स्पष्ट किया है, ”व्यवस्था कार्यकारी नेतृत्व का कार्य है। यह मुख्यतः एक मानसिक क्रिया है। यह कार्य के नियोजन, संगठन तथा सामूहिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए अन्य व्यक्तियों के कार्यों के नियन्त्रण से सम्बन्धित है।”

व्यवस्था के अर्थ को समझ लेने के उपरान्त ‘गृह-व्यवस्था के अर्थ को भी स्पष्ट किया जा सकती है। हम कह सकते हैं कि घर से समस्त कार्यों को उत्तम ढंग से करने तथा निश्चित (उपलब्ध) साधनों से अधिक-से-अधिक सफलता प्राप्त करने की कला ही “गृह-व्यवस्था” है। गृह-व्यवस्था के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रतिपादित कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

(1) ग्रोस तथा क्रेण्डल के विचार:
आधुनिक परिवारों के संगठन को ध्यान में रखते हुए ग्रोस तथा क्रेण्डल ने गृह-व्यवस्था को इन शब्दों में परिभाषित किया है, “गृह-व्यवस्था निर्णयों की ऐसी श्रृंखला है जो पारिवारिक साधनों को पारिवारिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयोग करने की प्रक्रिया प्रस्तुत करती है। इस प्रक्रिया में न्यूनाधिक तीन सतत् पग हैं
(i) नियोजन,
(ii) नियोजन को क्रियान्वित करते समय इसके विभिन्न तत्त्वों का नियन्त्रण चाहे कार्य स्वयं किए गए हों अथवा दूसरों के द्वारा और
(iii) परिणामों का मूल्यांकन जो भावी नियोजन के लिए प्रारम्भिक कदम होगा।” इस प्रकार परिवार के लिए जो भी साधन उपलब्ध हों उनका सदुपयोग करने के लिए निर्णय लेना तथा वास्तव में इनका सदुपयोग करना गृह-प्रबन्ध के ही अन्तर्गत आता है। वैसे भी कहा जा सकता है कि गृह-प्रबन्ध वह (UPBoardSolutions.com) योजना है, जिसे परिवार के उपलब्ध साधनों को ध्यान में रखकर अधिकतम लाभ के लिए सूक्ष्मता एवं कुशलता से बनाया एवं लागू किया जाता है। गृह-व्यवस्था के अन्तर्गत व्यवस्थित ज्ञान द्वारा परिवार की समस्याओं के समाधान तथा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपलब्ध साधनों द्वारा प्रयास किया जाता है।

(2) निकिल तथा डारसी का मत:
निकिल तथा डारसी ने गृह-व्यवस्था का अर्थ इन शब्दों में प्रस्तुत किया है, “गृह-व्यवस्था के अन्तर्गत परिवार के साधनों का नियोजन, नियन्त्रण तथा मूल्यांकन आता है जिनके द्वारा पारिवारिक उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है।” गृह-प्रबन्ध समिति ने अपनी एक विज्ञप्ति में गृह-व्यवस्था का अर्थ इन शब्दों में प्रस्तुत किया है, गृह-व्यवस्था निर्णय करने की क्रियाओं की एक ऐसी श्रृंखला है, जिसमें पारिवारिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए साधनों के प्रयोग की प्रक्रिया आती हैं। यह एक मुख्य साधन है जिसके द्वारा परिवार अपने सम्पूर्ण पारिवारिक जीवन-चक्र में जो कुछ चाहते हैं, पारिवारिक साधनों का प्रयोग करके प्राप्त करते हैं। गृह-व्यवस्था पारिवारिक जीवन के सूत्र का एक (UPBoardSolutions.com) अंग है। इसके सूत्र अन्त:सम्बन्धित होते हैं, क्योंकि साधनों के प्रयोग का निर्णय लिया जाता है, चाहे परिवार कार्य में संलग्न हो अथवा खेल में।” प्रस्तुत कथन द्वारा स्पष्ट है कि परिवार के विभिन्न लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए समय-समय पर उचित निर्णय लेना तथा उनके अनुसार कार्य करना गृह-व्यवस्था के अन्तर्गत आता है। एक अच्छे गृह-प्रबन्धक या गृह-व्यवस्थापक में यह योग्यता होती है कि वह घर-परिवार से सम्बन्धित कोई भी समस्या आ जाने पर उसका कुशलतापूर्वक समाधान कर लेता है।

उपर्युक्त विवरण के आधार पर कहा जा सकता है कि गृह-व्यवस्था के तीन मुख्य अंग हैं। ये अंग या मूल तत्त्वे हैं

  1. (i) नियोजन (Planning),
  2. (ii) नियन्त्रण (Controlling) तथा
  3. (iii) मूल्यांकन (Evaluating)

इन तीनों तत्त्वों के सुन्दर समन्वय से गृह-व्यवस्था की प्रक्रिया सुचारु रूप से चलती है। ये तीनों तत्त्व आपस में सम्बद्ध होते हैं। इन तीनों तत्त्वों द्वारा ही परिवार के मुख्य उद्देश्यों को प्राप्त करना होता है। अब प्रश्न उठता है कि गृह-व्यवस्था के मूल उद्देश्य क्या हैं? साधारण रूप से चले आ रहे पारम्परिक जीवन में अनुकूल परिवर्तन लाना ही गृह-व्यवस्था या गृह-प्रबन्ध का मूल उद्देश्य है। इसके लिए वर्तमान परिस्थितियों पर नियन्त्रण रखना अनिवार्य है; परन्तु वास्तविकता यह है कि परिस्थितियाँ निरन्तर बदलती रहती हैं तथा व्यक्ति की (UPBoardSolutions.com) आवश्यकताओं में वृद्धि होती रहती है। ऐसी गतिशील परिस्थितियों में सामंजस्य स्थापित करना एवं उद्देश्यों को पूरा करना ही गृह-व्यवस्था है। गृह-व्यवस्था के लिए स्पष्ट योजना बनानी होती है तथा इस योजना को नियन्त्रित रूप से लागू करना भी अनिवार्य है। नियन्त्रित रूप से योजना को परिचालित करने के साथ-साथ मूल्यांकन अर्थात् योजना के परिणामों का ज्ञान भी अनिवार्य है। इस प्रकार इन तीनों प्रक्रियाओं अर्थात् नियोजन, नियन्त्रण तथा मूल्यांकन द्वारा गृह-व्यवस्था को सफल बनाया जा सकता है।

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प्रश्न 2:
गृह-व्यवस्था के अनिवार्य तत्त्व कौन-कौन से हैं ? उनको समुचित परिचय दीजिए।
या
गृह-व्यवस्था के अनिवार्य तत्त्वों के रूप में नियोजन, नियन्त्रण तथा मूल्यांकन का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा इनके आपसी सम्बन्ध को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गृह-व्यवस्था के तत्त्व

गृह-व्यवस्था के मुख्य रूप से तीन तत्त्व हैं। ये तत्त्व हैं–क्रमशः नियोजन, नियन्त्रण तथा मूल्यांकन। ये तीनों तत्त्व परस्पर सम्बद्ध रूप में रहते हैं तथा इन तीनों तत्त्वों के सही रहने पर गृह-व्यवस्था उत्तम रहती है। गृह-व्यवस्था के इन तीनों अनिवार्य तत्त्वों का संक्षिप्त परिचय निम्नवर्णित है

(1) नियोजन:
गृह-व्यवस्था का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं प्रथम चरण नियोजन (Planning) है। नियोजन का महत्त्व जीवन के सभी क्षेत्रों में है। वास्तव में किसी भी कार्य को करने से पूर्व की जाने वाली तैयारी नियोजन ही है। नियोजन के अर्थ को निकिल तथा डारसी ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है, ”इच्छित लक्ष्य तक पहुँचने के विभिन्न सम्भावित मार्गों के सम्बन्ध में सोचना, कल्पना में प्रत्येक योजना के पूर्ण होने तक इसका अनुगमन (UPBoardSolutions.com) करना और सर्वाधिक आशावादी योजना का चुनाव करना ही नियोजन है। इस प्रकार स्पष्ट है कि नियोजन के अन्तर्गत यह पूर्व-निश्चित कर लिया जाता है कि भविष्य में क्या करना है। इस प्रकार से भविष्य के कार्यक्रम को निश्चित कर लेने से कार्य सरल हो जाता है तथा निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करना सम्भव हो जाता है। नियोजन की प्रक्रिया के अन्तर्गत चिन्तन-शक्ति, स्मरण-शक्ति, अवलोकन, तर्क-शक्ति तथा कल्पना-शक्ति का उपयोग किया जाता है।

(2) नियन्त्रण:
गृह-व्यवस्था की प्रक्रिया का द्वितीय तत्त्व नियन्त्रण (Control) है। केवल उचित नियोजन द्वारा गृह-व्यवस्था की प्रक्रिया हमें लक्ष्य तक नहीं पहुंचा सकती। नियन्त्रण के द्वारा अपनाई गई योजना को पूर्व-निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार अथवा सम्बन्धित परिस्थितियों के अनुकूल परिवर्तित करके कार्य-रूप में लागू किया जाता है। गृह-व्यवस्था के तत्त्व के रूप में नियन्त्रण के अर्थ को डगलस एस० शेरविन ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है, ”नियन्त्रण का मूल तत्त्व क्रियान्वयनं है, जिसके द्वारा पूर्व-निर्धारित स्तरों के अनुसार क्रियाओं को (UPBoardSolutions.com) समायोजित किया जाता है तथा इसके नियन्त्रण का आधार व्यवस्थापक के पास की सूचनाएँ होती हैं।” यह कहा जा सकता है कि नियन्त्रण के अन्तर्गत चालू योजना की कार्यप्रणाली का अध्ययन किया जाता है। इसके अतिरिक्त पूर्व-निर्धारित कार्य-प्रणाली से वर्तमान कार्य-प्रणाली के विचलनों का सूक्ष्म निरीक्षण किया जाता है। नियन्त्रण के ही अन्तर्गत समय एवं परिस्थितियों के अनुसार पूर्व-निर्धारित योजना में किये जाने वाले परिवर्तनों का निर्णय किया जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यवस्था की प्रक्रिया में नियन्त्रण के तत्त्व का भी विशेष महत्त्व है। यदि किसी व्यवस्थित कार्य में नियोजनकर्ता तथा योजना को कार्यरूप देने वाले व्यक्ति अलग-अलग होते हैं, तो उस स्थिति में नियन्त्रण का महत्त्व और भी अधिक हो जाता है।

(3) मूल्यांकन:
गृह-व्यवस्था का तीसरा तत्त्व मूल्यांकन (Evaluation) है। पूर्व-नियोजन के अनुसार किए गए कार्यों की सफलता-असफलता तथा उचित-अनुचित प्रकृति का निर्णय करने के कार्य को मूल्यांकन कहा जाता है। मूल्यांकन द्वारा पहले हो चुकी त्रुटियों की जानकारी प्राप्त हो जाती है तथा भविष्य में उसी प्रकार की त्रुटियों को पुनः दोहराने की चेतावनी मिल जाती है। इस प्रकार मूल्यांकन को भावी योजनाओं के लिए भी विशेष महत्त्व होता है। गृह-व्यवस्था के दौरान किसी-न-किसी स्तर पर अवश्य ही मूल्यांकन किया जाता है। (UPBoardSolutions.com) मूल्यांकन दो प्रकार का होता है–सापेक्ष मूल्यांकन तथा निरपेक्ष मूल्यांकन। मूल्यांकन से विभिन्न लाभ होते हैं। इससे अनेक उद्देश्यों की पूर्ति हो जाती है। मूल्यांकन से ही हमें ज्ञात होता है कि हमने क्या प्राप्त किया है। इसके द्वारा ही आगामी योजना के लिए तथा सम्पूर्ण योजना को संशोधित करने के लिए आधार प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त कार्यों के उचित मूल्यांकन द्वारा हमारी अन्तर्दृष्टि (insight) में भी वृद्धि होती है।

नियोजन, नियन्त्रण तथा मूल्यांकन का सम्बन्ध:
यह कहा गया है कि व्यवस्था या प्रबन्ध के तीन तत्त्व हैं–नियोजन, नियन्त्रण तथा मूल्यांकन। इन तीनों तत्त्वों का हमने अलग-अलग परिचय प्रस्तुत किया है, परन्तु यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि व्यवस्था के सन्दर्भ में ये तीनों तत्त्व अलग-अलग नहीं हैं, बल्कि घनिष्ठ रूप से परस्पर सम्बद्ध हैं। व्यवस्था की प्रक्रिया में इन तीनों तत्त्वों का एक निश्चित क्रम होता है। व्यवस्था में प्रथम स्थान नियोजन को होता है। नियोजन के उपरान्त नियन्त्रण तथा उसके बाद मूल्यांकन का स्थान होती है। एक निश्चित क्रम के अतिरिक्त, एक-दूसरे पर निर्भरता के रूप में भी तीनों तत्त्व आपस में सम्बद्ध हैं। नियोजन के अभाव में नियन्त्रण का कोई अर्थ ही नहीं। इसी प्रकार (UPBoardSolutions.com) समुचित नियन्त्रण के अभाव में नियोजन से लाभ प्राप्त नहीं किया जा सकता। मूल्यांकन का भी विशेष लाभ एवं महत्त्व है। मूल्यांकन के द्वारा नियोजन की उपयुक्तता की जाँच होती है। कोई योजना कितनी सफल रही, यह मूल्यांकन द्वारा ही ज्ञात होता है। इसके अतिरिक्त नियोजन के कार्यान्वयन के बीच-बीच में होने वाले मूल्यांकन के नियन्त्रण को उचित रूप से लागू करने में भी सहायता मिलती है। मूल्यांकन द्वारा आगामी योजनाओं के स्वरूप को निर्धारित करने में भी सहायता मिलती है।

प्रश्न 3:
गृह-व्यवस्था को लागू करने अथवा उसका पालन करने के मुख्य उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
गृह-व्यवस्था का अध्ययन करते समय यह जानना भी आवश्यक है कि गृह-व्यवस्था को क्यों लागू किया जाना चाहिए? प्रत्येक परिवार के कुछ लक्ष्य होते हैं, जिन्हें सूझ-बूझकर तथा अपने साधनों को ध्यान में रखकर निर्धारित किया जाता है। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए गृह-व्यवस्था अनिवार्य है। गृह-व्यवस्था द्वारा परिवार के निम्नलिखित लक्ष्यों को प्राप्त किया जाता है तथा इन्हें ही गृह-व्यवस्था का उद्देश्य कहा जा सकता है

गृह-व्यवस्था के प्रमुख उद्देश्य

(1) परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति:
प्रत्येक परिवार के सभी सदस्यों की अपनी-अपनी कुछ महत्त्वपूर्ण आवश्यकताएँ होती हैं। ये आवश्यकताएँ सामान्य भी हो सकती हैं तथा विशिष्ट भी। उदाहरण के लिए–रोटी, कपड़ा तथा मकान की आवश्यकता प्रत्येक सदस्य की सामान् आवश्यकताएँ हैं। इसके अतिरिक्त शिक्षा, चिकित्सा (UPBoardSolutions.com) तथा विशेष प्रकार का आहार आदि भिन्न-भिन्न रूप में भिन्न-भिन्न सदस्यों की विशिष्ट आवश्यकताएँ हैं। व्यवस्थित गृह में इन सभी सामान्य तथा विशिष्ट आवश्यकताओं की समुचित रूप में पूर्ति होती रहनी चाहिए। गृह-व्यवस्था का यह एक मुख्य तथा महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।

(2) पारिवारिक आय को उचित प्रकार से खर्च करना:
सभी भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। प्रत्येक परिवार की आय सीमित होती है; अतः ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे सीमित आय में ही सभी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। इसके लिए पारिवारिक बजट बनाना तथा उसके अनुसार आय-व्यय में सन्तुलन बनाए रखना अनिवार्य है। आय-व्यय के सन्तुलित बजट को बनाकर, कुछ बचत भी की जा सकती है। परिवार (UPBoardSolutions.com) के कल्याण एवं समृद्धि के लिए कुछ-न-कुछ बचत का होना अनिवार्य होता है। पारिवारिक आय-व्यय का नियोजन भी गृह-व्यवस्था के ही अन्तर्गत आता है। इस स्थिति में कहा जा सकता है कि गृह-व्यवस्था का एक उद्देश्य पारिवारिक आय को उचित प्रकार से एवं नियोजित रूप से उपभोग में लाना भी है।

(3) पारिवारिक वातावरण को अच्छा बनाना:
गृह-व्यवस्था का उद्देश्य न केवल भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना ही है, बल्कि पारिवारिक वातावरण को भी सौहार्दपूर्ण बनाना है। इसके लिए परिवार के सदस्यों (UPBoardSolutions.com) के आपसी सम्बन्धों, अनुशासन एवं पारिवारिक मूल्यों को स्थापित करना भी गृह-व्यवस्था का ही उद्देश्य है। भारतीय समाज में पारिवारिक वातावरण को उत्तम बनाने में गृहिणी की विशेष महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। गृहिणी के विभिन्न कर्तव्य होते हैं, जिनके पालन से परिवार का वातावरण अच्छा बना रहता है तथा सभी सदस्य सन्तुष्ट रहते हैं।

(4) परिवार के सदस्यों का नैतिक विकास:
गृह-व्यवस्था का एक उल्लेखनीय उद्देश्य परिवार के सदस्यों, विशेष रूप से बच्चों एवं किशोरों का समुचित नैतिक विकास करना भी है। वास्तव में, नैतिक विकास के अभाव में गृह-व्यवस्था को सुचारु एवं उत्तम नहीं माना जा सकता। नैतिक विकास के लिए माता-पिता को नियोजित ढंग से प्रयास करने चाहिए तथा स्वयं आदर्श प्रस्तुत करने चाहिए। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को नैतिक मूल्यों की नियोजित रूप से शिक्षा प्रदान करें।

(5) पारिवारिक स्तर को उन्नत बनाए रखना:
प्रत्येक परिवार के रहन-सहन का एक स्तर होता है, जिसका निर्धारण परिवार के साधनों के आधार पर होता है। गृह-व्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है-सब प्रकार से परिवार का एक समुचित स्तर बनाए रखना। इसके लिए रहन-सहन के एवं धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा दार्शनिक मूल्यों को ध्यान में रखना अत्यन्त आवश्यक है। | गृह-व्यवस्था के उपर्युक्त वर्णित उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए कहा जा (UPBoardSolutions.com) सकता है कि गृहस्थ जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए तथा परिवार के समस्त सदस्यों के सुख एवं समृद्धि में वृद्धि के लिए गृह-व्यवस्था का विशेष योगदान तथा महत्त्व होता है।

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प्रश्न 4:
गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले गृह-सम्बन्धी कारकों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।.
या
‘गृह-सम्बन्धी विभिन्न कारक निश्चित रूप में गृह-व्यवस्था को प्रभावित करते हैं।” इस कथन को ध्यान में रखते हुए गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले गृह-सम्बन्धी कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गृह-व्यवस्था अपने आप में एक विस्तृत एवं बहु-पक्षीय व्यवस्था है, जिसे अनेक कारक प्रभावित करते हैं। गृह-व्यवस्था में जहाँ एक ओर घर के रख-रखाव आदि का ध्यान रखा जाता है, वहीं दूसरी ओर पारिवारिक सम्बन्धों एवं स्तर आदि को भी उत्तम बनाने के उपाय किए जाते हैं। इस स्थिति में गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारकों को भी दो वर्गों में बाँटा जाता है अर्थात् गृह-सम्बन्धी कारक तथा परिवार सम्बन्धी कारक। गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले गृह-सम्बन्धी मुख्य कारकों का विवरण निम्नलिखित है

गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले गृह-सम्बन्धी कारक

(1) घर की सुविधाजनक होना:
घर का निर्माण करते समय अथवा किराए पर लेते समय यह ध्यान में रखना चाहिए कि विभिन्न कक्षों की नियोजन सुविधाजनक हो। उदाहरण के लिए-डाइनिंग रूम और रसोई निकट होने से शक्ति एवं समय की बचत होती है। स्टोर और रसोई भी निकट होनी चाहिए। अध्ययन-कक्ष एवं शयन-कक्ष का ड्राइंग रूम से अन्तर होना चाहिए जिससे विश्राम एवं अध्ययन में बाधा न पड़े। शौचालय और गुसलखाने (UPBoardSolutions.com) निकट होने चाहिए। इसी प्रकार ड्राइंग रूम की व्यवस्था इस प्रकार की होनी चाहिए कि मेहमान घर के आन्तरिक हिस्सों में, कम-से-कम प्रवेश करते हुए ड्राइंग रूम तक पहुँच जाएँ। गृह-सम्बन्धी इस विशेषता या तत्त्व को परस्परानुकूलता कंहा जाता है। आवासीय भवन में इस विशेषता के होने पर, गृह-व्यवस्था सरलता से लागू की जा सकती है।

(2) जल, वायु और प्रकाश की उचित व्यवस्था:
शुद्ध वायु, शुद्ध जल एवं प्रकाश की घर में उचित व्यवस्था होनी चाहिए। सभी कमरों में पर्याप्त खिड़कियाँ, दरवाजे और रोशनदान होने चाहिए जिससे स्वच्छ वायु और प्रकाश का प्रवेश हो सके। घर में धूप का आना भी आवश्यक होता है। जिन घरों में सूर्य का प्रकाश नहीं आता, वहाँ सीलन और अनेक कीटाणुओं का साम्राज्य हो जाता है, जो परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। अध्ययन-कक्ष में प्रकाश की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। शौचालय, स्नानघर और रसोई में जल की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। यदि घर में ये समस्त कारक ठीक हैं, तो निश्चित रूप से उत्तम गृह-व्यवस्था के अनुपालन में सरलता होती है।

(3) सफाई की समुचित व्यवस्था:
परिवार का लक्ष्य परिवार के सदस्यों को स्वस्थ रखना है और यह तब तक सम्भव नहीं है, जब तक कि घर की सफाई की व्यवस्था न की जाए। व्यवस्थित और आकर्षक घर के लिए भी सफाई अनिवार्य है। यदि घर में सफाई नहीं है, तो मक्खी , मच्छर, मकड़ियाँ आदि जन्म लेंगे और बीमारियाँ फैलेगी। रसोईघर की सफाई स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। ड्राइंग रूम की सफाई से गृहिणी की सुरुचि का आभास होता है। (UPBoardSolutions.com) बच्चों को काफी समय अध्ययन-कक्ष में बीतता है। यदि अध्ययन-कक्ष साफ-सुथरा है; किताबें करीने से सजी हैं, मेज-कुर्सियों पर धूल नहीं है, तो बच्चे पढ़ने में अधिक रुचि लेंगे। इस प्रकार स्पष्ट है कि गृह-व्यवस्था के लिए घर की हर प्रकार की सफाई भी एक महत्त्वपूर्ण तथा अति आवश्यक तत्त्व एवं कारक है।

(4) भोज्य-सामग्री की व्यवस्था:
समय पर उचित और सन्तुलित भोजन परिवार के सदस्यों को उपलब्ध होना चाहिए। भोजन, अल्पाहार व अतिथि-सत्कार के लिए भोज्य-सामग्री की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। अतिथियों के आने पर चाय या कॉफी से उनका सत्कार होना चाहिए। यदि समय पर घर में दूध या चाय की पत्ती आदि उपलब्ध नहीं हैं, तो उससे गृहिणी की अकुशलता और अव्यवस्था का पता चलता है। भोज्य-सामग्री की व्यवस्था के (UPBoardSolutions.com) अन्तर्गत घर में शुद्ध और पर्याप्त मात्रा में खाद्य सामग्री रहनी चाहिए। समय-समय पर खाद्य पदार्थों की सफाई की जानी चाहिए। खाद्य पदार्थों का संरक्षण भी इसी में सम्मिलित है। खाद्य पदार्थों का अपव्यय नहीं होना चाहिए।

(5) घर की सामग्री की व्यवस्था:
घर की सामग्री अथवा वस्तुओं से तात्पर्य है दैनिक प्रयोग की वस्तुएँ; जैसे – बर्तन, वस्त्र, पुस्तकें, बिस्तर, फर्नीचर आदि। आधुनिक परिवारों में रेडियो, टू-इन-वन, टेलीविजन, फ्रिज, पंखे, कूलर, सिलाई की मशीन, कपड़े धोने की मशीन, रसोई में प्रेशर कुकर, टोस्टर, ओवन, मिक्सर तथा ग्राइण्डर आदि का प्रयोग किया जाता है। इन सबको सुविधाजनक और उचित स्थान पर रखना आवश्यक है। इनके प्रयोग की सही विधि ज्ञात होनी चाहिए जिससे इन उपकरणों की टूट-फूट कम-से-कम हो। आवश्यकतानुसार सफाई की व्यवस्था होनी चाहिए। यदि कोई उपकरण या वस्तु टूट जाती है या खराब हो जाती है, तो उसको ठीक कराने का प्रबन्ध होना चाहिए।

प्रश्न 5:
गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले परिवार सम्बन्धी कारकों का वर्णन कीजिए। या परिवार के सदस्यों से सम्बन्धित वैयक्तिक कारक भी गृह-व्यवस्था को प्रभावित करते हैं।” इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले परिवार सम्बन्धी कारकों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
परिवार के सन्दर्भ में व्यवस्था का लक्ष्य आदर्श परिवार का निर्माण करना है। आदर्श परिवार का अर्थ है-परिवार के सब सदस्यों में परस्पर प्रेम, सहयोग और सन्तोष की भावना का व्याप्त होना। परिवार का वातावरण ऐसा होना चाहिए जिसमें परिवार का प्रत्येक सदस्य अर्थात् माता-पिता, पति-पत्नी, (UPBoardSolutions.com) भाई-बहन, सन्तान, सास-ससुर अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति समान रूप से सजग रहें। प्रत्येक सदस्य सन्तोष का अनुभव कर सके और प्रत्येक सदस्य को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक सुविधाएँ मिल सकें। गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले परिवार सम्बन्धी कारकों के विवरण निम्नलिखित हैं

(1) परिवार के सदस्यों में सौहार्द एवं समन्वय:
पारिवारिक व्यवस्था में परिवार के सदस्यों की शारीरिक व मानसिक आवश्यकताओं, संवेगों, भावनाओं, विश्वासों, विचारों और मूल्यों का समन्वय होना चाहिए। परिवार में विभिन्न आयु, व्यवसाय, लिंग और रुचियों के सदस्य होते हैं। उनकी मनोविज्ञान, विचारधारा एवं आवश्यकताएँ भी काफी भिन्न होती हैं। उदाहरण के लिए-परिवार के वृद्ध व्यक्तियों की विचारधारा और युवा वर्ग की विचारधारा में स्पष्ट अन्तर होता है। युवकों को अपने विचारों के अनुरूप कार्य करने के लिए वृद्धों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए वरन् समन्वयात्मक प्रवृत्ति का परिचय देना चाहिए। धैर्य और सूझ-बूझ से समयानुसार उनके विचारों में परिवर्तन लाने का प्रयत्न करना चाहिए और (UPBoardSolutions.com) जहाँ आवश्यकता हो स्वयं को भी उदार बना लेना चाहिए। पारिवारिक सम्बन्धों में त्याग, उदारता और सहिष्णुता की आवश्यकता होती है। परिवार में भी संघर्ष होता है जो बहुत स्वाभाविक है, लेकिन यह संघर्ष इतना उग्र नहीं होना चाहिए जो पारिवारिक सम्बन्धों में दरार पैदा कर दे। माता-पिता और सन्तान में भी एक पीढ़ी का अन्तर होता है; इसलिए उनके विचारों व कार्य-पद्धति में अन्तर होगा ही। इसी अन्तर को कम करना समन्वय और सौहार्द्र व्यवस्था है।

(2) अच्छा आचरण, व्यवहार तथा आदतें:
बच्चे का मन और मस्तिष्क एक कोरी स्लेट के समान होता है। उसको अच्छी-बुरी आदतें, आचरण और व्यवहार के नियम परिवार में ही सिखाए जाते हैं। बच्चों के आचरण और व्यवहार से उसके परिवार के वातावरण और परिवेश की जानकारी सरलती से ज्ञात की जा सकती है। अच्छा परिवार ही अच्छा व्यवहार और अच्छी आदतें सिखाता है। व्यवस्थित परिवार की पहचान, सदस्यों की व्यवस्थित और अच्छी आदतें हैं। बड़ों का (UPBoardSolutions.com) आदर करना चाहिए, बातचीत के समय मधुर वाणी और कोमल शब्दों का प्रयोग होना चाहिए जिससे किसी की भावनाओं को ठेस न पहुँचे। परिवार में सीखी आदतें ही स्कूल और समाज में काम आती हैं। अपनी बात कहना लेकिन धैर्यपूवर्क दूसरे की बात भी सुनना आपस में अच्छे सम्बन्ध बनाता है।

(3) आवश्यकतानुसार अनुकूलन:
विवाह से पूर्व लड़की माता-पिता के लाड़-प्यार में बहुत स्वतन्त्र जीवन व्यतीत करती है तथा प्राय: अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों से भी अनभिज्ञ होती है, किन्तु विवाह के पश्चात् उसे आवश्यकतानुसार और ससुराल के सम्बन्धों के अनुसार त्याग करना होता है, धैर्य और सहनशीलता से काम करना होता है। पति-पत्नी के स्वभाव और रुचियों में अन्तर या विरोध भी हो सकता है, लेकिन आदर्श परिवार के लिए दोनों ही अपने स्वभाव में परिवर्तन करते हैं, एक-दूसरे के अनुकूल बनने का प्रयत्न करते हैं। माता-पिता बच्चों के हितों के अनुरूप (UPBoardSolutions.com) अपने स्वतन्त्र और स्वच्छन्द जीवन को नियन्त्रित कर लेते हैं। यह अनुकूलन स्वाभाविक, स्वतन्त्र, स्वेच्छापूर्ण और सन्तोषजनक होता है। इस असन्तुलन के लिए बाहरी प्रयासों की आवश्यकता नहीं होती, यह स्वतः ही होता है। इस प्रकार आवश्यकतानुसार अनुकूलन भी गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारक है।

(4) सुरक्षा की भावना:
परिवार में प्रत्येक व्यक्ति अपने को सुरक्षित अनुभव करता है। यदि परिवार के सदस्य अपने को असुरक्षित और असहाय अनुभव करते हैं, तो उनमें कुण्ठा और हीन भावना पैदा हो जाती है तथा उनका आत्मविश्वास धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि परिवार में उत्तम व्यवस्था बनाए रखने के लिए परिवार के सभी सदस्यों में सुरक्षा की समुचित भावना अवश्य होनी चाहिए।

(5) सामर्थ्य का ज्ञान:
व्यवस्थित परिवार में प्रत्येक सदस्य को उसकी सामर्थ्य और शक्ति का ज्ञान कराया जाता है। छोटा या असहाय समझने से व्यक्ति के आत्म-सम्मान को चोट पहुँचती है, उसका समुचित विकास नहीं हो पाता। धनी परिवारों में या अधिक लाड़-प्यार वश कुछ माता-पिता बच्चों को कोई भी काम नहीं करने देते हैं। अतः न तो बच्चे किसी कार्य के लिए परिश्रम करते हैं, न प्रयत्न। माँगने पर उन्हें हर चीज मिल जाती है। उनके (UPBoardSolutions.com) लिए जीवन बड़ा सरल होता है। दूसरी ओर, जिन बच्चों को प्रारम्भ से ही उनकी सामर्थ्य और शक्ति के अनुरूप काम करना सिखाया जाता है, वे अधिक उत्तरदायी होते हैं। संघर्षों का मुकाबला वे अधिक साहस और हिम्मत के साथ करते हैं।

(6) उन्नति:
यदि परिवार में व्यवस्था है, विचारों का समन्वय है, एक-दूसरे के अनुसार अनुकूलन है, सुरक्षा और सामर्थ्य का ज्ञान है, तो उसके परिणामस्वरूप परिवार प्रगति करता है। व्यवस्थित परिवार में पति-पत्नी एक-दूसरे के दुःख-सुख में सहभागी होते हैं, बच्चे माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हैं, उनके कार्य में हाथ बंटाते हैं, परीक्षा में अच्छे अंक लेकर उत्तीर्ण होते हैं। घर में सुख, शान्ति और सन्तोष होने से पुरुष पदोन्नति करता है और आय के नए विकल्प खोजता है, जिससे परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य ठीक रहता है तथा परस्पर स्नेह बन्धन मजबूत होते हैं। ऐसे परिवारों को समाज में भी आदर और उचित सम्मान मिलता है तथा अन्य परिवार भी उनकी (UPBoardSolutions.com) उन्नति से प्रेरणा लेकर उनका अनुसरण करते हैं। अतः शीघ्रता से बदलते हुए परिवेश से समायोजन के लिए गृह-व्यवस्था बहुत आवश्यक है। जैसे-जैसे वातावरण जटिल बन रहा है, आवश्यकताएँ बढ़ रही हैं और साधनों में वृद्धि हो रही वैसे-वैसे गृह-व्यवस्था का महत्त्व भी बढ़ रहा है।

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प्रश्न 6:
गृह-व्यवस्था से सम्बन्धित उपयोगी साधनों का उल्लेख कीजिए।
या
गृह-व्यवस्था के लिए आवश्यक साधनों का उचित वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
प्रत्येक गृह में अनेक कार्य (जैसे–भोजन बनाना, घर की सफाई करना, बच्चों की देखभाल करना, वस्त्रों की सिलाई-धुलाई करना, आर्थिक लेन-देन आदि) होते हैं। इन कार्यों के लिए अनेक साधनों एवं उपकरणों की आवश्यकता होती है। गृह-व्यवस्था के साधनों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 2 गृह-व्यवस्था परिवार के सन्दर्भ में image -1

(1) भौतिक साधन:
भौतिक साधनों के अन्तर्गत धन, विभिन्न पदार्थ एवं यन्त्र अथवा मशीनें आती हैं। धन सबसे अधिक प्रभावकारी साधन है, क्योंकि धन के द्वारा ही अधिकतर पदार्थ एवं उपकरण उपलब्ध होते हैं। उदाहरण के लिए, भोजन बनाने में खाद्य सामग्री, बर्तन एवं ईंधन आदि साधनों की तथा कपड़ा तैयार करने के लिए वस्त्र, बटन, धागा, सुई व सिलाई की मशीन आदि की आवश्यकता होती है। ये सभी साधन धन द्वारा ही (UPBoardSolutions.com) प्राप्त किए जाते हैं। भौतिक साधनों के उपयोग से अधिकांश कार्य श्रम एवं समय की बचत के साथ-साथ अधिक कुशलतापूर्वक किए जा सकते हैं। अतः कहने का तात्पर्य यह है। कि भौतिक साधन वे सभी पदार्थ हैं, जो किसी कार्य को सम्पन्न करने के लिए आवश्यक होते हैं।

(2) मानवीय साधन:
गृह-व्यवस्था के लिए मानवीय साधन भी अति आवश्यक होते हैं। मानवीय साधनों से आशय है-परिवार के सदस्यों से सम्बन्धित साधन। वास्तव में प्रत्येक कार्य को करने के लिए व्यक्तियों (पारिवारिक कार्यों में परिवार के सदस्यों) की आवश्यकता होती है। यदि परिवार के सदस्य योग्य (UPBoardSolutions.com) एवं कार्य-कुशल हों, तो निश्चित रूप से गृह-व्यवस्था उत्तम हो सकती है। इसके अतिरिक्त परिवार के सदस्यों की अभिवृत्ति यदि गृह-व्यवस्था के अनुकूल हो तथा उन्हें गृह-व्यवस्था सम्बन्धी समुचित ज्ञान भी हो, तो भी गृह-व्यवस्था सुचारु रूप से चल सकती है।

(3) सार्वजनिक साधन:
प्रत्येक स्थान पर प्रायः सामाजिक एवं सार्वजनिक संस्थाएँ होती हैं। राजकीय अस्पताल, राशन केन्द्र, डाकखाना, बैंक, जीवन बीमा निगम एवं शिक्षण संस्थाएँ इत्यादि इनके उदाहरण हैं। प्रत्येक परिवार को इन संस्थाओं के विषय में पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए। राजकीय अस्पताल एवं अन्य स्वास्थ्य संगठन हमारी रोग एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। डाकखाना एवं बैंक हमें न (UPBoardSolutions.com) केवल आर्थिक सुरक्षा प्रदान करते हैं, वरन् भविष्य के लिए की गई बचत पर उचित ब्याज भी देते हैं। जीवन बीमा निगम परिवार को आकस्मिक दुर्घटनाओं से होने वाली आर्थिक क्षति से सुरक्षित रखता है तो शैक्षिक संस्थाएँ शिक्षित समाज का आधार हैं। अतः उत्तम गृह-व्यवस्था के लिए सार्वजनिक साधनों का अधिकतम उपलब्ध होना भी आवश्यक है।

प्रश्न 7:
घर की अव्यवस्था या व्यवस्था के अभाव से होने वाली हानियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गृह-व्यवस्था हर प्रकार से लाभदायक एवं महत्त्वपूर्ण होती है। इसके विपरीत यदि घर में अव्यवस्था या व्यवस्था का अभाव हो, तो विभिन्न प्रकार की हानियाँ हो सकती हैं। घर की अव्यवस्था से होने वाली मुख्य हानियाँ निम्नलिखित हैं
(1) कुशलता की कमी हो जाती है:
यदि घर में समुचित व्यवस्था का अभाव हो, तो परिवार का कोई भी सदस्य अपने कार्य को कुशलतापूर्वक नहीं कर पाता। इस स्थिति में पारिवारिक कार्य सुचारु रूप से नहीं हो पाते तथा परिवार की सुख-समृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है।

(2) सामाजिक प्रतिष्ठा की हानि:
कार्यकुशलता का अभाव अथवा फूहड़पने समाज में परिवार की प्रतिष्ठा को गिराता है। फूहड़ स्त्री न तो समाज में सम्मान प्राप्त कर पाती है और न ही स्वयं अपने घर में। फूहड़पन से परिवार में कलह का वातावरण उत्पन्न होता है।

(3) धन एवं अन्य साधनों की बर्बादी:
अव्यवस्थित गृहिणियाँ पारिवारिक साधनों का अनुचित व अनावश्यक उपयोग करती हैं। ये आवश्यकता से अधिक भोजन बनाती हैं, जिससे इसकी बर्बादी होती है। इसी प्रकार अव्यवस्थित घर में अन्य खाद्य पदार्थों, वस्त्रों, सौन्दर्य प्रसाधन की सामग्रियों आदि की बर्बादी होती है। (UPBoardSolutions.com) अव्यवस्थित गृहिणियाँ पारिवारिक बजट नहीं बनातीं, जिसके फलस्वरूप धन का अपव्यय होता है तथा परिवार कभी भी आर्थिक सुदृढ़ता नहीं प्राप्त कर पाता है।

(4) स्वास्थ्य की हानि:
गृह-व्यवस्था के अभाव में कुछ गृहिणियाँ भोजन एवं पोषण का आवश्यक ध्यान नहीं रखतीं, जिसके फलस्वरूप परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है। स्वच्छता के अभाव में अव्यवस्थित घर में विभिन्न प्रकार के रोगाणु पनपते रहते हैं जो कि विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं।

(5) दुर्घटनाएँ:
आजकल घरों में विद्युत-चलित विभिन्न उपकरण, कुकिंग गैस व विभिन्न प्रकार की जटिल मशीनों एवं यन्त्रों का उपयोग किया जाता है। सुचारु गृह-व्यवस्था के अभाव में गृहिणी की थोड़ी-सी असावधानी किसी भी छोटी अथवा बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती है। एक अव्यवस्थित घर में इस प्रकार की घटनाएँ प्रायः होती रहती हैं।

(6) पारिवारिक समन्वय व अनुशासन का अभाव:
एक अव्यवस्थित परिवार के सदस्यों में पारस्परिक समन्वय का सदैव अभाव रहता है। सभी सदस्य नियोजन व नियन्त्रण के सिद्धान्तों को महत्त्व न देकर अपनी इच्छानुसार कार्य करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कार्यकुशलता का अभाव रहता है तथा पारिवारिक कलह का वातावरण बना रहता है।

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प्रश्न 8:
गृह-व्यवस्था के कुशल संचालन में किन-किन बाधाओं का सामना करना पड़ता है? समझाइए।
उत्तर:
गृह-व्यवस्था के कुशल संचालन में बाधाएँ

निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि घर-परिवार की सुख-समृद्धि तथा उत्तम जीवन के लिए गृह-व्यवस्था आवश्यक है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक परिवार चाहता है कि सुचारू गृह-व्यवस्था को लागू किया जाए, परन्तु चाहते हुए भी अनेक बार व्यवहार में उत्तम गृह-व्यवस्था को लागू कर (UPBoardSolutions.com) पाना सम्भव नहीं हो पाता। इसका मुख्य कारण है-गृह-व्यवस्था को लागू करने के मार्ग में उत्पन्न होने वाली विभिन्न बाधाएँ। इस प्रकार की मुख्य बाधाओं का संक्षिप्त विवरण निम्नवर्णित है|

(1) साधनों के ज्ञान का अभाव:
परिवार के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार के साधनों की आवश्यकता होती है। अतः गृहिणी को विभिन्न साधनों तथा उनकी उपयोगिता का ज्ञान होना चाहिए। इस ज्ञान के अभाव में गृहिणी गृह-व्यवस्था का कुशल संचालन नहीं कर सकती।

(2) लक्ष्यों के ज्ञान का अभाव:
गृह-व्यवस्था का कुशल संचालन करने के लिए गृहिणी को परिवार के लक्ष्यों की पूरी जानकारी नहीं होती है। फलतः ऐसे परिवार गृह-व्यवस्था लागू करने में असमर्थ होते हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि गृहिणी को गृह-व्यवस्था का कुशल संचालन करने के लिए लक्ष्यों का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए।

(3) कार्य-कुशलता का निम्न स्तर:
उत्तम गृह-व्यवस्था के लिए एक निश्चित स्तर की कार्य-कुशलता भी आवश्यक होती है। वास्तव में, पर्याप्त मात्रा में साधन उपलब्ध होने पर भी समुचित कार्य-कुशलता के अभाव में, गृह-व्यवस्था को बनाए रखना सम्भव नहीं होता। उदाहरण के लिए पर्याप्त मात्रा में खाद्य-सामग्री उपलब्ध होने पर (UPBoardSolutions.com) भी यदि गृहिणी पाक-क्रिया में कुशल नहीं है, तो वह अपने परिवार को स्वादिष्ट एवं स्वास्थ्यवर्द्धक भोजन प्रदान नहीं कर सकती। स्पष्ट है कि कार्य-कुशलता का निम्न स्तर भी गृह-व्यवस्था के मार्ग में एक मुख्य बाधक सिद्ध होता है।

(4) विभिन्न घरेलू समस्याएँ:
विभिन्न घरेलू समस्याएँ भी गृह-व्यवस्था के मार्ग में बाधक सिद्ध होती हैं। यदि परिवार की समस्याएँ विकराल एवं गम्भीर रूप धारण कर लें, तो स्थिति बिगड़ जाती है। ऐसे में समस्याओं का समाधान भी मुश्किल हो जाता है तथा गृह-व्यवस्था बनाए रखना भी कठिन हो जाता है। उदाहरण के लिए-निरन्तर रहने वाली पारिवारिक कलह, पति-पत्नी का गम्भीर मन-मुटाव या संयुक्त परिवार के सदस्यों में संघर्ष आदि कुछ ऐसे कारक होते हैं, जो उत्तम गृह-व्यवस्था के मार्ग में बाधक सिद्ध होते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
गृह-व्यवस्था का मनुष्य के जीवन में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
व्यक्ति एवं परिवार के जीवन में सर्वाधिक महत्त्व व्यवस्था का है। व्यवस्थित जीवन ही प्रगति एवं सफलता की कुंजी है। पारिवारिक जीवन में व्यवस्था अति आवश्यक है। व्यवस्था द्वारा ही उपलब्ध साधनों का सदुपयोग किया जाता है तथा निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकती है। यदि गृह-व्यवस्था का अभाव हो, तो सभी साधन उपलब्ध होते हुए भी लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं हो पाती। परिवार के सदस्यों की विविध आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यवस्था अति आवश्यक होती है अन्यथा आवश्यकताओं में आन्तरिक विरोध एवं असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। गृह-व्यवस्था की स्थिति में परिवार के सभी सदस्य परस्पर सहयोग से कार्य करते हैं (UPBoardSolutions.com) तथा परिवार में अनुशासन का वातावरण बना रहता है। इसके विपरीत गृह-व्यवस्था के अभाव में परिवार के सदस्यों में न तो आपसी सहयोग रह पाता है और न ही अनुशासन ही बना रहता है। गृह-व्यवस्था का अच्छा प्रभाव परिवार के बच्चों के विकास पर भी पड़ता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि गृह-व्यवस्था परिवार के सभी पक्षों के लिए महत्त्वपूर्ण है। गृह-व्यवस्था के परिणामस्वरूप घर अथवा परिवार प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होता है तथा किसी भी प्रकार के आकस्मिक संकट का सामना भी सरलता से कर लेता है।

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प्रश्न 2:
गृह-व्यवस्था में पति-पत्नी की भूमिका भी स्पष्ट कीजिए।
या
स्पष्ट कीजिए कि गृह-व्यवस्था का दायित्व केवल गृहिणी का नहीं बल्कि पति-पत्नी दोनों का होता है।
उत्तर:
सामान्य रूप से माना जाता है कि गृह-व्यवस्था का दायित्व गृहिणी या पत्नी का है, परन्तु यह धारणा भ्रामक एवं त्रुटिपूर्ण है। वास्तव में, उत्तम गृह-व्यवस्था के लिए पति तथा पत्नी दोनों को पूर्ण सहयोगपूर्वक कार्य करना चाहिए। इस सन्दर्भ में पति-पत्नी प्रायः पूरक की भूमिका निभाते हैं।
आधुनिक एकाकी परिवारों में गृह-व्यवस्था को उत्तम बनाने के लिए पुरुष अर्थात् पति को भी घरेलू कार्यों में यथासम्भव सहयोग प्रदान करना चाहिए। उदाहरण के लिए-पति को अनिवार्य रूप से बच्चों की देख-रेख में पत्नी को सहयोग प्रदान करना चाहिए। बाजार से आवश्यक वस्तुएँ खरीदने तथा घर के विभिन्न बिल आदि जमा करने के कार्य पुरुषों को ही करने चाहिए। इसी प्रकार परिवार की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए पत्नी को भी आर्थिक गतिविधियों में यथासम्भव योगदान देना चाहिए। अब बहुत-सी महिलाएँ नौकरी करती हैं अथवा किसी अन्य व्यवसाय में संलग्न होती हैं। ऐसे परिवारों में पति-पत्नी दोनों ही गृह-व्यवस्था में समान रूप से योगदान (UPBoardSolutions.com) देते हैं। ऐसे परिवारों में पति को भी गृह-व्यवस्था में समान रूप से योगदान प्रदान करना चाहिए। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि गृह-व्यवस्था में स्त्री-पुरुष दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। वास्तव में, गृह-व्यवस्था की नीति को निर्धारित करते समय पति-पत्नी को परस्पर विचार-विमर्श अवश्य करना चाहिए। एक-दूसरे के सुझावों को समुचित महत्त्व प्रदान करना चाहिए तथा कोई भी अन्तिम निर्णय लेते समय उनमें मतैक्य होना चाहिए।

प्रश्न 3:
टिप्पणी लिखिए-परिवार में नैतिक मूल्यों की शिक्षा।
उत्तर:
गृह-व्यवस्था का एक उल्लेखनीय उद्देश्य परिवार के सदस्यों, विशेष रूप से बच्चों एवं किशोरों का नैतिक विकास करना भी है। वास्तव में, नैतिक-विकास के अभाव में गृह-व्यवस्था को सुचारु एवं उत्तम नहीं माना जा सकता। नैतिक विकास के लिए माता-पिता को नियोजित ढंग से प्रयास करने चाहिए तथा स्वयं नैतिक आदर्श प्रस्तुत करने चाहिए। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को नैतिक मूल्यों की शिक्षा नियोजित रूप से प्रदान करें।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
गृह-व्यवस्था को अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गृह-व्यवस्था को अर्थ–घर-परिवार में उपलब्ध साधनों के सदुपयोग के लिए उचित निर्णय लेना तथा लिए गए निर्णय के आधार पर परिवार के स्वीकृत लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उपलब्ध साधनों का सदुपयोग करना।

प्रश्न 2:
गृह-व्यवस्था की एक स्पष्ट परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
गृह-व्यवस्था के अन्तर्गत परिवार के साधनों का नियोजन, नियन्त्रण तथा मूल्यांकन’ आता है। -निकिल तथा डारसी

प्रश्न 3:
गृह-व्यवस्था के दो मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(i) परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति तथा
(ii) पारिवारिक आय को उचित प्रकार से खर्च करना।

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प्रश्न 4:
गृह-व्यवस्था के मूल तत्त्व क्या हैं?
उत्तर:
गृह-व्यवस्था के मूल तत्त्व हैं-नियोजन, नियन्त्रण तथा मूल्यांकन।

प्रश्न 5:
सुचारू गृह-व्यवस्था से प्राप्त होने वाले तीन मुख्य लाभ बताइए।
उत्तर:

  1. परिवार के सदस्यों की आवश्यकताएँ पूरी हो जाती हैं,
  2. परिवार के आय-व्यय का नियोजन हो जाता है तथा
  3. रहन-सहन का स्तर उन्नत हो सकता है।

प्रश्न 6:
गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले गृह-सम्बन्धी कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. घर का सुविधाजनक होना,
  2.  सफाई,
  3.  जल, वायु तथा प्रकाश की उचित व्यवस्था,
  4. भोज्य सामग्री की व्यवस्था तथा
  5. घर की सामग्री की व्यवस्था।

प्रश्न 7:
गृह-व्यवस्था को प्रभावित करने वाले परिवार सम्बन्धी कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1.  पारिवारिक सौहार्द और समन्वय,
  2. आवश्यकतानुसार अनुकूलन,
  3.  अच्छा आचरण, व्यवहार तथा आदतें,
  4. सुरक्षा की भावना,
  5.  सामर्थ्य को ज्ञान तथा
  6. उन्नति

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प्रश्न 8:
किसी गृहिणी को कुशल गृह-संचालन के लिए सर्वप्रथम क्या करना चाहिए?
उत्तर:
गृहिणी को परिवार में किए जाने वाले कार्यों की उपयुक्त योजना बनानी चाहिए।

प्रश्न 9:
पारस्परिक सहयोग से क्या लाभ होता है?
उत्तर:
श्रम का विभाजन होता है, कार्य सुगमतापूर्वक हो जाता है तथा घर का वातावरण सुखमय व शान्तिमय रहती है।

प्रश्न 10:
गृह-व्यवस्था के साधनों को कितने वर्गों में बाँटा जाता है?
उत्तर:
गृह-व्यवस्था के साधनों को तीन वर्गों में बाँटा जाता है

  1.  भौतिक साधन,
  2.  मानवीय साधन तथा
  3.  सार्वजनिक साधन।

प्रश्न 11:
योजनानुसार कार्य करने से क्या लाभ हैं?
उत्तर:
योजनानुसार कार्य करने से धन, श्रम एवं समय की बचत होती है।

प्रश्न 12:
किसी गृहिणी को गृह-व्यवस्था के संचालन में कौन-कौन सी कठिनाइयाँ हो सकती
उत्तर:

  1.  लक्ष्य एवं साधनों का ज्ञान न होना,
  2.  पारिवारिक समन्वय का अभाव तथा
  3. समस्याओं के निराकरण की अयोग्यता।

प्रश्न 13:
किस गृहिणी को कुशल गृहिणी कहेंगे?
उत्तर:
वहे गृहिणी कुशल गृहिणी कहलाएगी जो पारिवारिक आवश्यकताओं को व्यवस्थित ढंग से पूरा कर सके तथा परिवार के सभी सदस्यों का उचित सहयोग भी प्राप्त कर सके।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) गृह-व्यवस्था का वास्तविक उद्देश्य है
(क) कार्यों को कुशलतापूर्वक करना,
(ख) भविष्य के लिए बचत करना,
(ग) भोजन एवं पोषण का ध्यान रखना,
(घ) परिवार के सदस्यों को सुखी एवं सन्तुष्ट रखना।

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(2) गृह-व्यवस्था का अर्थ है
(क) घर के सभी कार्यों को योजना बनाकर करना,
(ख) घर की आय-व्यय का लेखा-जोखा रखना,
(ग) पारिवारिक साधनों का उपयोग करना,
(घ) पारिवारिक जीवन को व्यवस्थित ढंग से चलाना।

(3) एक कुशल गृहिणी के लिए आवश्यक है
(क) पाक विज्ञान का उचित ज्ञान,
(ख) बच्चों के पालन-पोषण का ज्ञान,
(ग) समस्त गृह-कार्यों का ज्ञान,
(घ) प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान।

(4) गृह-व्यवस्था से सम्बन्धित साधन हैं
(क) भौतिक साधन,
(ख) मानवीय साधन,
(ग) सार्वजनिक साधन,
(घ) ये सभी साधन

(5) निम्नलिखित में से कौन-सा साधन भौतिक साधनों से सम्बन्धित नहीं है?
(क) धन,
(ख) कुकिंग गैस,
(ग) कूलर,
(घ) नौकर

(6) उत्तम गृह-व्यवस्था के लिए आवश्यक है
(क) पारिवारिक आय का अधिक होना,
(ख) परिवार के सदस्यों का अधिक होना,
(ग) विलासिता के साधन उपलब्ध होना ,
(घ) गृह-व्यवस्था का व्यावहारिक ज्ञान होना

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(7) गृह-व्यवस्था के मार्ग में बाधा है
(क) उत्तम नियोजन,
(ख) समुचित ज्ञान का अभाव,
(ग) उपकरणों का अधिक उपयोग,
(घ) मकान का अधिक बड़ा होना।

उत्तर:
(1). (घ) परिवार के सदस्यों को सुखी एवं सन्तुष्ट रखना,
(2). (घ) पारिवारिक जीवन को व्यवस्थित ढंग से चलाना,
(3). (ग) समस्त गृह-कार्यों का ज्ञान,
(4). (घ) ये सभी साधन,
(5). (घ) नौकर,
(6). (घ) गृहव्यवस्था का व्यावहारिक ज्ञान होना,
(7). (ख) समुचित ज्ञान का अभाव।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science History मानचित्र-कार्य

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These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Social Science History मानचित्र-कार्य.

निर्देश – निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए। मानचित्र का प्रयोग न करें।

प्रश्न 1.

  1. लुई सोलहवाँ कहाँ का शासक था? फ्रांस
  2. गुज्जर-बकरवाल चरवाहे भारत के किस राज्य में पाए जाते हैं? जम्मू-कश्मीर
  3. नेपोलियन की पराजय कहाँ हुई थी? वाटरलू
  4. इंग्लैण्ड की राजधानी बताइए। लंदन
  5. हिटलर किस देश का शासक था? जर्मनी

प्रश्न 2.

  1. बोर्नियों द्वीप कहाँ स्थित है? इंडोनेशिया
  2. बास्तील का किला कहाँ स्थित था? पेरिस
  3. रूस की राजधानी बताइए। मास्को
  4. रूसी क्रान्ति से पहले रूस का सबसे बड़ा औद्योगिक केन्द्र था। सेंटपीटर्सबर्ग
  5. रूसी क्रान्ति से पहले रूस की शीतकालीन राजधानी कहाँ थी? पेत्रोग्राद

प्रश्न 3.

  1. 1929 की विश्वव्यापी मंदी किस देश में आयी? अमेरिका
  2. द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के किस शहर पर परमाणु बम गिराया गया? हिरोशिमा, नागासाकी
  3. इंपीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट’ कहाँ स्थापित किया गया? देहरादून
  4. बस्तर भारत के किस राज्य में स्थित है? छत्तीसगढ़
  5. राजस्थान की राजधानी बताइए? जयपुर

प्रश्न 4.

  1. मिसीसिपी नदी कहाँ स्थित है? अमेरिका
  2. ईस्ट इंडिया कंपनी किस देश की थी? इंग्लैण्ड
  3. फिरोजशाह कोटला मैदान कहाँ स्थित है? दिल्ली
  4. चेपॉक का क्रिकेट मैदान कहाँ स्थित है? चेन्नई
  5. भारतीय समुदाय के रूप में पारसियों ने 1848 में पहला क्रिकेट क्लब कहाँ स्थापित किया? बम्बई

प्रश्न 5.

  1. फ्रांस में एस्टेट्स जनरल (प्रतिनिधि सभा) बैठक कहाँ हुई थी? वर्साय
  2. लुई चौदहवें ने किस फ्रांसीसी नगर को राजधानी बनाया? वर्साय
  3. फ्रांस में जैकोबिनों को किस नाम से जाना जाता था? सौं कुलॉत
  4. ट्यूलेरिस का महल फ्रांस के किस शहर में था? पेरिस
  5. 1914 में फिनलैण्ड, लातविया, लिथुआनिया, एस्टोनिया, पोलैण्ड, यूक्रेन व बेलारूस किस देश के हिस्से थे? रूस

प्रश्न 6.

  1. जार्जिया, अजरबैजान व आर्मेनिया 1914 में किस देश के हिस्से थे? रूस
  2. 19वीं सदी के आरंभ में रूस के दो प्रमुख औद्योगिक शहर कौन-से थे? सेंटपीटर्सबर्ग और मास्को
  3. खूनी रविवार की घटना 9 जनवरी, 1905 ई. को कहाँ हुई थी? सेंट पीटर्सबर्ग
  4. रूसी मजदूरों ने 1904 ई. में रूस के किस शहर में हड़ताल की थी? सेंटपीटर्सबर्ग
  5. विंटर पैलेस रूस के किस शहर में स्थित था? सेंटपीटर्सबर्ग

प्रश्न 7.

  1. 1917 की क्रान्ति के समय रूस की राजधानी कहाँ थी? पेत्रोग्राद
  2. द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद जर्मनी के किस शहर में अंतर्राष्ट्रीय सैनिक अदालत स्थापित की गयी? न्यूरेनबर्ग
  3. वॉलस्ट्रीट एक्सचेंज कहाँ स्थित है? न्यूयार्क
  4. 1889 ई. में हिटलर का जन्म किस देश में हुआ था? ऑस्ट्रिया
  5. राइखस्टाग कहाँ की संसद है? जर्मनी

प्रश्न 8.

  1. 1938 ई. में किस देश को जर्मनी में मिला लिया गया? ऑस्ट्रिया
  2. मई, 1995 में जर्मनी के किस शहर पर परमाणु बम गिराने के साथ यह युद्ध समाप्त हुआ? हिरोशिमा
  3. महात्मा गाँधी ने दिसम्बर, 1940 में हिटलर को भारत में किस स्थान से पत्र लिखा था? वर्धा
  4. दन्तेवाड़ा कहाँ स्थित है? छत्तीसगढ़
  5. मरिया जनजाति छत्तीसगढ़ के किस संभाग (मण्डल) में पायी जाती है? बस्तर

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi रीतिकाल (उत्तर मध्यकाल)

UP Board Solutions for Class 10 Hindi रीतिकाल (उत्तर मध्यकाल)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi रीतिकाल (उत्तर मध्यकाल).

रीतिकाल (उत्तर मध्यकाल)

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
रीतिकाल के लिए कौन-कौन से नाम सुझाये गये हैं ? नामकरण करने वाले लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
रीतिकाल के विभिन्न नाम और उसका नामकरण करने वालों के नाम निम्नलिखित हैं-
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प्रश्न 2
रीतिकाल का समय किस सन् से किस सन तक माना जाता है ?
उत्तर
अपनी पाठ्य-पुस्तक के आधार पर रीतिकाल (UPBoardSolutions.com) का समय सन् 1643 ई० से 1843 ई० तक माना जाता है।

प्रश्न 3
रीति ग्रन्थ कितने रूपों में मिलते हैं ?
उत्तर
रीति ग्रन्थ दो रूपों में मिलते हैं–

  1. अलंकारों पर आधारित तथा
  2. रसों पर आधारित।

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प्रश्न 4
रीति-ग्रन्थकारों में से किन्हीं दो का नामोल्लेख कीजिए। [2010]
या
केशव की एक रचना का नाम लिखिए! [2011]
उत्तर
रीति-ग्रन्थकारों में से दो कवियों के नाम हैं-

  1. ‘बिहारी सतसई’ के रचयिता बिहारी तथा
  2. ‘रामचन्द्रिका’ के रचयिता केशवदास।

प्रश्न 5
रीतिकाल के सर्वाधिक ख्यातिप्राप्त कवि तथा उनकी एक रचना का नाम लिखिए।
उत्तर
रीतिकाल के सर्वाधिक ख्यातिप्राप्त कवि (UPBoardSolutions.com) बिहारी हैं तथा उनकी रचना है—बिहारी सतसई।

प्रश्न 6
रीतिकाल के ऐसे दो कवियों के नाम लिखिए, जिन्होंने इस युग में रीति-परम्परा से हटकर ‘वीर-काव्य’ लिखे हों। इनकी एक-एक कृतियों के नाम भी लिखिए।
या
रीतिमुक्त काव्य-धारा के किन्हीं दो कवियों का नामोल्लेख कीजिए। [2009, 10, 11, 14, 16, 18]
उत्तर

  1. भूषण तथा
  2. गोरेलाल ऐसे दो कवि हैं जिन्होंने रीति-परम्परा से हटकर वीर-काव्य की रचना की। भूषण की रचना ‘शिवा बावनी’ तथा गोरेलाल की रचना ‘छत्र प्रकाश’ है।

प्रश्न 7
रीतिकाल के दो प्रमुख कवियों के नाम लिखिए। [2011, 13, 14, 15, 16]
या
रीतिकाल के किन्हीं दो प्रमुख कवियों का नामोल्लेख करते हुए उनकी एक-एक सर्वाधिक प्रसिद्ध कृति का नाम बताइए। [2011, 16]
या
बिहारी की एकमात्र रचना का क्या नाम है और उसमें कितने दोहे हैं ?
या
रीतिकाल के किसी एक कवि का नाम लिखिए। [2016]
उत्तर

  1.  बिहारी-बिहारी सतसई, (UPBoardSolutions.com) इसमें सात सौ दोहे हैं।
  2. केशवदास–रामचन्द्रिका, कविप्रिया, रसिकप्रिया।

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प्रश्न 8
रीतिकाल के दो प्रमुख अलंकारवादी आचार्य कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. केशवदास तथा
  2. राजा यशवन्त सिंह; रीतिकाल के दो प्रमुख अलंकारवादी आचार्य कवि हैं।।

प्रश्न 9
रीतिकाल के दो रसवादी कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. मतिराम तथा
  2. देव; रीतिकाल के दो प्रमुख रसवादी कवि हैं।

प्रश्न 10
रीतिकाल में कुछ ऐसे उत्कृष्ट कवि हुए, जिनकी रचनाएँ रीतिबद्ध नहीं हैं। ऐसे दो कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. बिहारी तथा
  2. घनानन्द; रीतिकाल के ऐसे दो कवि हैं, जिनकी रचनाएँ रीतिबद्ध नहीं हैं।

प्रश्न 11
रीतिबद्ध तथा रीतिमुक्त काव्य में अन्तर बताइए।
उत्तर
रीतिबद्ध काव्य में रीतिकालीन काव्य के समस्त बन्धनों एवं रूढ़ियों का दृढ़ता से पालन किया जाता था, जबकि रीतिमुक्त कविता में  तिकालीन परम्परा के साहित्यिक बन्धनों एवं रूढ़ियों से मुक्त स्वच्छन्द रूप से काव्य-रचना की जाती थी।

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प्रश्न 12
सतसई में बिहारी ने किस छन्द का प्रयोग किया है ?
उत्तर
सतसई में बिहारी ने दोहा छन्द का प्रयोग किया है।

प्रश्न 13
बिहारी के काव्य के विषय कौन-कौन-से हैं और उनमें प्रधानता किनकी रही है ?
उत्तर
काव्यांग, भक्ति, नीति तथा ऋतु-वर्णन बिहारी के (UPBoardSolutions.com) काव्य के विषय रहे हैं, परन्तु इनमें प्रधानता प्रेम और श्रृंगार की ही रही है।

प्रश्न 14
रीतिकाल में नीतिपरक तथा प्रकृति-चित्रण करने वाले एक-एक कवि का नाम लिखिए।
उत्तर

  1. दीनदयाल (नीतिपरक) तथा
  2. सेनापति (प्रकृति-चित्रण)।

प्रश्न 15
रसखान कवि का मूल नाम क्या था और इन्होंने किस भाषा में रचनाएँ की हैं ?[2013]
उत्तर
रसखान का मूल नाम सैयद इब्राहीम था। इन्होंने मुख्य रूप से ब्रजभाषा में अपनी रचनाएँ की हैं।

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प्रश्न 16
रसखान किस काल की किस शाखा के कवि हैं ?
उत्तर
रसखान; रीतिकाल की कृष्णभक्ति शाखा के कवि हैं।

प्रश्न 17
किन मुख्य छन्दों को कवि रसखान ने अपनी कविता के लिए अपनाया है ?
उत्तर
कवि रसखान ने अपनी कविता के लिए कवित्त, (UPBoardSolutions.com) सवैया और दोहा छन्दों को मुख्य रूप से अपनाया है।

प्रश्न 18
रीतिकाल के दो आचार्य कवियों तथा उनकी दो-दो रचनाओं के नाम लिखिए।
या
केशवदास किस काल के कवि हैं? उनकी किसी एक रचना का नाम लिखिए। [2014]
उत्तर
रीतिकाल के दो आचार्य कवियों तथा उनकी दो-दो रचनाओं के नाम निम्नवत् हैं

(1) आचार्य केशवदास–

  1. रामचन्द्रिका तथा
  2.  रसिकप्रिया।

(2) आचार्य देव-

  1. देवशतक तथा
  2. भावविलास।

प्रश्न 19
घनानन्द और भिखारीदास रीतिकाल की किस धारा के कवि हैं ?
उत्तर
घनानन्द रीतिकाल की रीतिमुक्त काव्यधारा के और (UPBoardSolutions.com) भिखारीदास रीतिकाल की रीतिसिद्ध (रीतिबद्ध) काव्यधारा के कवि हैं।

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प्रश्न 20
मुक्तक काव्य के दो कवियों तथा उनकी एक-एक रचना का नाम लिखिए।
उत्तर
मुक्तक काव्य के दो कवियों के नाम हैं-सूरदास और बिहारी। इनकी एक-एक रचनाएँ हैं—सूरसागर और बिहारी-सतसई।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
रीतिकाल के प्रमुख कवियों एवं उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
या
रीतिकाल के दो प्रमुख कवियों एवं उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए। [2012,15,16]
या
रीतिकाल की दो रचनाओं तथा इस काल के दो रचनाकारों के नाम लिखिए।
या
रीतिबद्ध कवियों में से किन्हीं दो का नामोल्लेख कीजिए। | [2011]
या
‘रामचन्द्रिका’ तथा ‘ललित ललाम’ के रचयिताओं के नाम लिखिए। [2012]
या
रीतिबद्ध काव्यधारा के किसी एक कवि का नाम लिखते हुए उसकी एक रचना का नाम लिखिए। [2013]
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi रीतिकाल (उत्तर मध्यकाल)

प्रश्न 2
रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए। [2017]
या
रीतिकाल की किन्हीं दो प्रमुख प्रवृत्तियों (विशेषताओं) का उल्लेख कीजिए और उस काल के दो कवियों के नाम लिखिए। [2009, 10, 12, 13, 14, 17]
या
रीतिकाल की दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2015, 16]
या
रीतिकाल की प्रमुख दो प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए। [2018]
उत्तर
रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ (UPBoardSolutions.com) इस प्रकार हैं—

  1. रीति या लक्षण-ग्रन्थों की रचना।
  2. श्रृंगार रस की प्रधानता।
  3. काव्य में कलापक्ष की प्रधानता।
  4. मुक्तक काव्य की प्रमुखता।
  5. आश्रयदाताओं की प्रशंसा।
  6. ब्रजभाषा का चरमोत्कर्ष।
  7. प्रकृति का उद्दीपन रूप में चित्रण।
  8. नीतिपरक सूक्तियों की रचना।
  9. दोहा, सवैया, कवित्त छन्दों की प्रचुरता।

भूषण और बिहारी इस युग के दो प्रमुख कवि हैं।

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प्रश्न 3
हिन्दी काव्य-साहित्य को रीतिकाल की मुख्य देन क्या हैं ?
उत्तर
हिन्दी काव्य-साहित्य को रीतिकाल की प्रमुख देन इस प्रकार हैं–ब्रजभाषा काव्य-भाषा के रूप में व्यापक रूप से प्रतिष्ठित हुई। अर्थ-गौरव, चमत्कार, लाक्षणिकता, सूक्ष्म भावाभिव्यंजना आदि की दृष्टि से वह पूर्ण समर्थ भाषा बन गयी। कवित्त, सवैया और दोहा मुक्तक काव्य-रचना के लिए सिद्ध छन्द बन गये।

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