UP Board Class 8 Sanskrit Chapter 14 Varanasi Nagari Question Answer

Class 8 Sanskrit Chapter 14 UP Board Solutions वाराणसी नगरी Question Answer

कक्षा 8 संस्कृत पाठ 14 हिंदी अनुवाद वाराणसी नगरी के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

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वाराणसी नगरी

शब्दार्थाः-विराजमाना = स्थित, पुरातनम् = प्राचीन, अत्रत्य = यहाँ के, अत्रैव = यहीं, विराजते। = सुशोभित होता है।, विस्तरेण = विस्तार से, इहैव = यहीं पर, मुमुक्षु = मोक्ष का इच्छुक।

अस्माकं देशे ……………………………… मन्दिरम् च ।।
हिन्दी अनुवाद-हमारे देश में बहुत से तीर्थस्थान हैं। उनमें वाराणसी भी एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। यह ‘काशी’ नाम से प्रसिद्ध है। यह पुण्यप्रद सबसे प्राचीन तीर्थस्थान है। अनेक प्राचीन ग्रन्थों में इसकी महिमा वर्णित है। स्कन्दपुराण के काशीखण्ड में इस वाराणसी का विस्तार से वर्णन है।।

यह नगरी गंगा के पवित्र तट पर विराजमान है। यहीं विश्वनाथ का प्रसिद्ध सुवर्णचूड़ मन्दिर है। अन्य भी बहुत से देवमन्दिर आदि हैं। संकटमोचन मन्दिर, नवीन विश्वनाथ मन्दिर, दुर्गामन्दिर, कालभैरव मन्दिर और तुलसी मानस मन्दिर।

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वाराणस्यां …………………………………… आगच्छन्ति ।
हिन्दी अनुवाद-गंगा वाराणसी के उत्तर में बहती है। इसके किनारे अनेक सुन्दर घाट हैं। इसके प्रसिद्ध घाटों में दशाश्वमेध, राजेन्द्र प्रसाद, तुलसी, पंचगंगा आदि अन्य घाट भी हैं, जहाँ प्रातः और शाम के समय विशाल जनसमूह आती है। वहाँ कुछ स्नान करते हैं, कुछ सन्ध्या वन्दना करते हैं, कुछ कथा सुनते हैं और कुछ नौका विहार करते हैं।

यहाँ पिशाचमोचन नामक एक तीर्थ है, जहाँ आकर यात्री पितरों (UPBoardSolutions.com) का श्राद्ध किया करते हैं। शिवरात्रि के दिन यहाँ विशेष रूप में मेला लगता है। ग्रहण के समय में भी यहाँ अत्यधिक जन समुदाय एकत्रित होता है। यहाँ गंगा में स्नान और श्री विश्वनाथ के दर्शन के लिए सदैव भिन्न-भिन्न प्रदेशों के लोग आते हैं।

वाराणसी ……………………………………….. अपि अस्ति ।
हिन्दी अनुवाद-वाराणसी भारत का सुप्रसिद्ध विद्याकेन्द्र भी है। यहाँ बहुत प्राचीन काल से पठन-पाठन की परम्परा शोभित है। यहाँ अनेक प्रसिद्ध पण्डित हुए। आज भी यहाँ के पण्डितों की देश-विदेश में सर्वत्र प्रतिष्ठा होती है। विश्वविख्यात हिन्दू विश्वविद्यालय यहाँ विराजमान है। संस्कृत शिक्षा का प्रसिद्ध केन्द्र, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय भी इसकी शोभा बढ़ाता है। यहाँ महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ है।।

यहाँ अनेक पर्यटन स्थल हैं। विश्व प्रसिद्ध सारनाथ स्थित बौद्ध मन्दिर यहाँ स्थित है। यहाँ भगवान बुद्ध ने प्रथम ज्ञान का उपदेश शिष्यों को दिया था। यहीं ‘भारतमाता’ नाम का मन्दिर भी है।

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वाराणसी …………………………………………. नगरी अस्ति ।
हिन्दी अनुवाद-वाराणसी हमारा पवित्र तीर्थस्थान, विद्या का (UPBoardSolutions.com) विश्वविख्यात केन्द्र, तुलसीदास, कबीरदास और रविदास की साधना भूमि और मोक्ष प्राप्त करने वालों की मुक्तिदायिनी नगरी है।

अभ्यासः

प्रश्न 1.
उच्चारण कुरुत पुस्तिकायां च लिखत
उत्तर
नोट-विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरत
(क) इयं नगरी कस्याः पवित्रतटे विराजमाना अस्ति?
उत्तर
गङ्गायाः।

(ख) पितृणां श्राद्धक्रिया कुत्र भवति?
उत्तर
पिशाचमोचने।

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(ग) भारतमाता-मन्दिरं कुत्र अस्ति?
उत्तर
सारनाथे।

(घ) भगवान् बुद्धः शिष्येभ्यः प्रथमज्ञानोपदेशं कुत्र अददात्?
उत्तर
सारनाथे।

प्रश्न 3.
मजूषातः पदानि चित्वा वाक्यानि पूरयत (पूरा करके)-
उत्तर
(क) स्कन्दपुराणस्य विश्वनाथस्य अस्याः वाराणस्याः विस्तरेण वर्णनं वर्तते।
(ख) अत्रैव काशीखण्डे प्रसिद्धं सुवर्णचूड मन्दिरम् अस्ति।
(ग) वाराणस्यां गङ्गायाः तीरे अनेके मनोहराः घट्टाः सन्ति।
(घ) ग्रहणसमये अपि (UPBoardSolutions.com) अत्र महान् जनसमुदायः एकत्र भवति।
(ङ) वाराणसी भारतस्य सुप्रसिद्धं पुरातनं विद्याकेन्द्रमपि अस्ति।

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प्रश्न 4.
अधोलिखितानि पदानि आधृत्य वाक्यानि रचयत (वाक्य रचकर)-
उत्तर
यथा   – फलानि |   –     ते फलानि खादन्ति।।
(क) तीर्थस्थानानि – भारते बहूनि तीर्थस्थानानि सन्ति।
(ख) बहूनि – तत्र बहूनि चित्राणि सन्ति।
(ग) अनेकानि – अनेकानि पत्राणि पतन्ति।
(घ) मन्दिराणि – बहूनि मन्दिराणि शोभन्ते।

प्रश्न 5.
भिन्नवर्गस्य पदं चिनुत (चुनकर    –    भिन्नवर्ग
उत्तर
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प्रश्न 6.
रेखाङकितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत (करके)-
यथा- वाराणस्यां गङ्गा उत्तरवाहिनी जाता।।
वाराणस्यां को उत्तरावाहिनी जाता?
(क) अत्रैव विश्वनाथस्य प्रसिद्धं सुवर्णचूडं मन्दिरम् अस्ति।
उत्तर
अत्रैव कस्य प्रसिद्धं सुवर्णचूडं मन्दिरम् अस्ति?

(ख) वाराणस्यां गङ्गा उत्तरवाहिनी जाता।
उत्तर
वाराणस्यां का उत्तरवाहिनी जाता?

(ग) शिक्षायाः विश्वविख्यातं केन्द्र हिन्दूविश्वविद्यालयः अस्ति।
उत्तर
कस्याः विश्वविख्यातः केन्द्रः हिन्दूविश्वविद्यालयः अस्ति?

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(घ) भगवान् बुद्धः प्रथमं ज्ञानोपदेशं शिष्येभ्यः अददात्।
उत्तर
भगवान बुद्धः प्रथमं ज्ञानोपदेशं केभ्यः अददात्?

(ङ) वाराणसी अस्माकं पवित्र तीर्थस्थानम् अस्ति।
उत्तर
वाराणसी केषाम् (UPBoardSolutions.com) पवित्र तीर्थस्थानम् अस्ति?

प्रश्न 7.
उदाहरणानुसारं रूपाणि लिखत (लिखकर)-
उत्तर
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• नोट – विद्यार्थी शिक्षण-सङ्केत’ स्वयं करें।

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UP Board Class 8 Sanskrit Chapter 6 Kim Tartum Janati Bhavan Question Answer

Class 8 Sanskrit Chapter 6 UP Board Solutions किं ततं जानाति भवान् Question Answer

कक्षा 8 संस्कृत पाठ 6 हिंदी अनुवाद किं ततं जानाति भवान् के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

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किं ततं जानाति भवान्
( तुमुन् क्त-प्रत्ययो विधिलिङलकाग्एच )

विश्वविद्यालयस्य ………………………………… …………….. विहरतु ।
शब्दार्थाः-विहर्तुम् = घूमने के लिए, नावम् = नावे पर, आरूढः = बैठ गया, जलविहारम् = जलविहार, वीचीनाम् = तरङ्गों का, अम्भसाम् = जल की, अरित्रम् = पतवार, डाँड़, चतुर्थांशः = चौथाई भाग, व्यर्थतां गतः = व्यर्थ चला गया, ईदृशम् = ऐसा, मे = मेरा, कुतः = कहाँ से, नूनम् = निश्चय ही, अर्धाशः = आधा हिस्सा, व्यर्थतां नीतः = व्यर्थ कर दिया, अनुभवन् = अनुभव करता हुआ, प्रेषितः = भेजा गया, त्रयो भागाः-तीन भाग। अपार्थाः=व्यर्थ, नदे=नदी में, जलावर्तनम् = भंवर, जलप्लावनम् = बाढ़, अकम्पत = डगमगाने लगा, पश्यतः = देखते-देखते, जलेन = जल से, पूरिता = भर गई, सम्मे ण = घबराहट के साथ, तर्तुम् = तैरने के लिए, भीतः = डरा हुआ, तीर्वा = तैरकर, प्रयामि = जाता हूँ, खलु = निश्चय ही, बिहरतु = विहार करें, स्वपृष्ठमारोप्य = अपनी पीठ की सहायता से।

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हिन्दी अनुवाद-विश्वविद्यालय का कोई प्राध्यापक घूमने के लिए नाव में बैठ गया। नाव में जलविहार करने का यह उसका प्रथम अवसर था। बालसूर्य की किरणों में जलक्रीड़ा, तरंगों का नृत्य, जल की अपार (UPBoardSolutions.com) राशि, नाव के डाँड़ से नाव को आगे बढ़ना इत्यादि दृश्य देखकर उसने नाविक से इस प्रकार पूछा

प्राध्यापक-अरे नाविक! क्या तुमने कभी गणित पढ़ा है? ”
नाविक-नहीं पढ़ा।
प्राध्यापक-क्या गणित पढ्ने विद्यालय नहीं गए? निश्चय ही तुम्हारे जीवन का चौथाई भाग व्यर्थ गया। तुमने रसासन शास्त्र या भौतिक शास्त्र पढ़ा है।
नाविक-ये मेरे भाग्य में कहाँ कि मैं रसायन शास्त्र और भौतिक शास्त्र पढ़ता! ”
प्राध्यापक-अवश्य ही तुमने जीवन का आधा भाग व्यर्थ गुजार दिया। बताओ, तुपेने अंग्रेजी भाषा पढ़ी है?
नाविक-(ग्लानि अनुभव करके), महाशय! मेरे माता-पिता ने मुझे विद्यालय नहीं भेजा। कैसे पढ़ता?
प्राध्यापक-तब तुम्हारे जीवन के तीन हिस्से व्यर्थ हो गए। इसके बाद नदी में बाढ़ आ गई। लहरों। के वेग से नौका डगमगाई। देखते-देखते उनकी नौका जल से भर गई। नाविक ने घबराहट के साथ पूछा, (UPBoardSolutions.com) “महाशय क्या आप तैरना जानते हैं?” प्राध्यापक जल का वेग देख डर कर बोला, “मैं तैरना नहीं जानता!” नाविक बोला- “यदि तैरना नहीं जानते. तो आपका सारा जीवन बेकार गया। मैं तो तैरकर नदी पार कर जाता हूँ। किन्तु यदि आप बुरा न मानें तो मैं आपको अपनी पीठ पर चढ़ाकर पार जाना चाहता हूँ।”

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अभ्यासः

प्रश्न 1.
कुरुत पुस्तकाया चे लिखन
उत्तर
नोट-विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2.
एकपदेन उत्तरत–
(क) कः विहर्तुं नावम् आरुढः?
उत्तर
प्राध्यापक

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(ख) नौकायाः अग्नेसारणं केन माध्यमेन भवति?
उत्तर
अरित्रण।

(ग) कः ग्लानिम् अन्वभवत्?
उत्तर
नाविकः।

(घ) जलेन पूरिता का जाता?
उत्तर
नौका।

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प्रश्न 3.
कः कथयति इति लिखत (लिखकर) नाविकः / प्राध्यापकः
उत्तर
UP Board Solutions for Class 8 Sanskrit Chapter 6 किं ततं जानाति भवान् img-1

प्रश्न 4.
अधोलिखितधातुभिः तुमुन्-प्रत्ययं योजयित्वा पदरचनां कुरुत (करके)-
उत्तर
UP Board Solutions for Class 8 Sanskrit Chapter 6 किं ततं जानाति भवान् img-2

प्रश्न 5.
अधोलिखितधातुभिः ‘त्वा’ (क्त्वा) प्रत्ययं योजयित्वा पदरचनां कुरुत (करके)-
उत्तर
UP Board Solutions for Class 8 Sanskrit Chapter 6 किं ततं जानाति भवान् img-3

प्रश्न 6.
हिन्दीभाषायाम् अनुवादं कुरुत (अनुवाद करके)-
(क) किं त्वया संस्कृत-भाषा पठिता?
उत्तर
अनुवाद-क्या तुमने संस्कृत भाषा पढ़ी?

(ख) जीवनस्य त्रयो भागाः अपार्थाः
उत्तर
अनुवाद-जीवन के तीन (UPBoardSolutions.com) भाग व्यर्थ हो गए।

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(ग) प्राध्यापकः नावम् आरुढः।
उत्तर
अनुवाद-प्राध्यापक नाव में बैठ गया।।

(घ) भवान् खलु जलमध्ये विहरतु।
उत्तर
अनुवाद-आप जल में अवश्य तैरते रहें।

प्रश्न 7.
संस्कृतभाषायाम् अनुवादं कुरुत (अनुवाद करके)|
(क) वह पढ़ने के लिए आता है।
उत्तर
अनुवाद-सः पठितुं आगच्छति।

(ख) क्या तुम सब तैरना जानते हो?
उत्तर
अनुवाद-किं यूयं सर्वे तर्तुं जानीथ?

(ग) क्या तुम प्रतिदिन खेलते हो?
उत्तर
अनुवाद-किं त्वं प्रतिदिनं खेलसि?

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(घ) हम दोनों घूमने के लिए नदी के किनारे जाते हैं।
उत्तर
अनुवाद-आवां अमन्तुं नदीतीरे गच्छावः।

• नोट – विद्यार्थी शिक्षण-सङ्केतः स्वयं करें।

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Class 9 Sanskrit Chapter 6 UP Board Solutions श्रम एव विजयते Question Answer

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 6 श्रम एव विजयते (कथा – नाटक कौमुदी) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 6 श्रम एव विजयते (कथा – नाटक कौमुदी).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 6
Chapter Name श्रम एव विजयते (कथा – नाटक कौमुदी)
Number of Questions Solved 26
Category UP Board Solutions

UP Board Class 9 Sanskrit Chapter 6 Shram ev Vijayate Question Answer (कथा – नाटक कौमुदी)

कक्षा 9 संस्कृत पाठ 6 हिंदी अनुवाद श्रम एव विजयते के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

परिचय- संस्कृत वाङमय में पंचतन्त्र, हितोपदेश आदि की उपादेय कथाएँ विपुल संख्या में प्राप्त हैं। वेद, पुराणादि की कथाएँ जो भारतीय धर्म-परम्परा की परिचायक हैं, उनसे भी समाज अत्यधिक लाभान्वित हुआ है। आज के परिवर्तनशील परिप्रेक्ष्य में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जो परिवर्तन दृष्टिगोचर (UPBoardSolutions.com) हो रहे हैं, उनके सन्दर्भो में मात्र सिद्धान्तों से काम नहीं चल सकता। इसके लिए हमें देश और समाज की समस्याओं की ओर ध्यान देना ही होगा और उनके समाधान भी ढूढ़ने होंगे।

प्रस्तुत पाठ इसी भावना से लिखा हुआ नाटक है। भारत जैसे विशाल देश में स्थान-विशेष से सम्बद्ध अनेकानेक कठिनाइयाँ और समस्याएँ हैं, जिनका निराकरण श्रम, दृढ़ निश्चय और परोपकार भावना से संगठित होकर ही सरलता से किया जा सकता है। इस पाठ के देवसिंह का चरित्र इसी का ज्वलन्त उदाहरण है।

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पाठ-सारांश

‘श्रम एव विजयते’ पाठ में स्पष्ट किया गया है कि श्रम, पक्का इरादा और परोपकार की भावना से अनेकानेक कठिनाइयों और समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। पाठ का सारांश निम्नलिखित है

प्रथम दृश्य- प्रस्तुत नाटक में तीन दृश्य हैं। प्रथम दृश्य में शीला अपने ग्राम शिवपुर की समस्याओं की ओर देवसिंह का ध्यान आकृष्ट करती हुई धिक्कारती है कि इस गाँव में पेट भरने योग्य अन्न व पीने के लिए जल भी सुलभ नहीं है। ईंधन प्राप्त करने के लिए वन नहीं है और पशुओं के खाने के लिए घास नहीं है, फिर लोगों को दूध कैसे प्राप्त हो? इस गाँव की स्थिति तो नरक से भी बदतर हो रही है।

इसी समय देवसिंह को अपने उस प्रसिद्ध कुल को ध्यान आता है, जिसकी यशोगाथाएँ अन्य राज्यों में भी फैली हुई थीं और आज उसी के ग्राम की वधुएँ कष्टपूर्ण जीवन बिता रही हैं। यह सोचकर देवसिंह पहले जल की समस्या का समाधान करना चाहता है।

द्वितीय दृश्य- द्वितीय दृश्य में देवसिंह अपने गाँव के निकट स्थित एक पर्वत के शिखर पर चढ़कर चारों ओर देखता है। उसे एक छोटी नदी दिखाई देती है। नदी और गाँव के मध्य वही छोटा-सा पर्वत है, जिस पर देवसिंह चढ़ा हुआ है। वह उसी पर्वत में ग्रामीणों की सहायता से सुरंग बनाकर नदी के जल को अपने गाँव में लाने की सोचता है। उसकी एक सेवक सदानन्द नदी के जल को पर्वत में सुरंग बनाकर गाँव में लाने के प्रयास को आकाश से तारे तोड़कर लाने के समान असम्भव बताता है, परन्तु देवसिंह के मन में अपार उत्साह है। (UPBoardSolutions.com) वह कहता है कि जब एक छोटा-सा चूहा पर्वत को फोड़कर उसमें अपना बिल बना सकता है, तब शरीर से पुष्टं मानव ग्रामीणों की सहायता से पर्वत में सुरंग बनाकर जल को अपने गाँव तक लाने का प्रयत्न क्यों न करे? वह जानता है कि “लक्ष्मी उद्यमी पुरुष के पास स्वयं पहुँच जाती है।”

तृतीय दृश्य- तृतीय दृश्य में ग्रामवासी आपस में बातचीत करते हैं कि देवसिंह के प्रयास से शिवपुर ग्राम निश्चित ही सुखी हो जाएगा। पहले तो सभी ग्रामीण उसकी योजना को सुनकर हँसते थे, परन्तु दृढ़-निश्चयी देवसिंह को अपने परिवार के साथ पर्वत खोदने के काम में लगा देखकर गाँव में आबाल-वृद्ध सभी कुदाल लेकर पर्वत में सुरंग खोदकर नहर बनाने के काम में उसके साथ लग जाते हैं।

इसी बीच एक पुरुष दौड़ता हुआ आकर देवसिंह को सूचना देता है कि उसका इकलौता पुत्र पर्वत की लुढ़कती चट्टान के नीचे दबकर मर गया है। सब रोते हुए वहीं चले जाते हैं जहाँ देवसिंह के पुत्र का शव पड़ा है।

सभी ग्रामवासियों को शोक-सागर में डूबे हुए देखकर देवसिंह उन्हें शोक न करने के लिए समझाता है। वह इसे कर्तव्यनिष्ठा की परीक्षा का समय मानता है। वह कहता है कि जन्म और मृत्यु मनुष्य के अधीन नहीं हैं। उत्तम जन किसी कार्य को प्रारम्भ करके बीच में नहीं छोड़ते; अतः हमें भी दुःख-सुख की परवाह न करके ‘बहुजन हिताय’ शुरू किये गये कार्य में व्यक्तिगत चिन्ता छोड़ देनी चाहिए; अतः हे ग्रामवासियों! कुछ ही महीनों में नहर बनकर तैयार हो जाएगी। गाँव में अपूर्व सुख प्राप्त होगा, कृषि से अन्न उत्पन्न होगा। सभी ग्रामवासी (UPBoardSolutions.com) देवसिंह को ‘धन्य’ कह उठे, जो एकमात्र पुत्र की मृत्यु की परवाह न करके अपने गाँव के विकास के लिए लगा हुआ था। निश्चय ही वह धन्य है। परिश्रमी गाँववासियों के द्वारा सम्पन्न किये गये कार्य से गाँव को अवश्य ही कल्याण होगा।

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चरित्र – चित्रण

देवसिंह
परिचय-प्रस्तुत एकांकी का प्रमुख पात्रे देवसिंह शिवपुर ग्राम का रहने वाला, उत्साही, कर्तव्यनिष्ठ, परिश्रमी और कर्म पर विश्वास करने वाला प्रगतिशील युवक है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) साहसी– देवसिंह साहसी युवक है। वह अपनी भाभी से ग्राम की नारकीय दशा को सुनकर गाँव में पेयजल लाने का साधन ढूंढ़ निकालना चाहता है। वह पर्वत में सुरंग बनाकर नदी का जल गाँव में लाने का साहसिक निर्णय कर लेता है। ग्रामीणों के उपहास करने पर भी वह मात्र अपने परिवार को लेकर ही पर्वत को खोदने में लग जाता है। पुत्र की मृत्यु पर भी वह अपने साहसिक कदम को पीछे नहीं हटाता।

(2) आशावादी–वह आशावादी व्यक्ति है। वह गाँव और नदी के बीच पर्वत को देखकर भी उसे भेदकर गाँव तक जल लाने की आशा करता है। सदानन्द के द्वारा इस कार्य को आकाश के तारे तोड़ने के समान असम्भव कहने पर भी वह निराश नहीं होता है। गाँव वालों के उपहास करने पर भी उसे गाँव तक जल पहुँचने की आशा है।

(3) आत्मविश्वासी एवं दृढनिश्चयी- देवसिंह को अपनी शक्ति और अपने निश्चय के प्रति दृढ़ आस्था है। अपने आत्मविश्वास के आधार पर ही वह पर्वत काटकर नहर निकालने का दृढ़ निश्चय करता है और केवल अपने बल पर ही प्रारम्भ किये गये कार्य में अन्तत: सफलता प्राप्त करता है।

(4) प्रगतिशील विचारक और त्यागी- देवसिंह प्रगतिशील विचारों का व्यक्ति है। वह अपने गाँव को खुशहाल देखना चाहता है। वह ग्रामीणों के श्रम द्वारा नहर निकालने की योजना (UPBoardSolutions.com) बनाता है और उसे क्रियान्वित करने में अग्रणी रहता है। देश की प्रगति के लिए वह सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर है। पुत्र का बलिदान करके भी नहर के कार्य को पूर्ण करना उसके सर्वस्व त्याग का श्रेष्ठ उदाहरण है।

(5) सहनशील– देवसिंह सहनशील व्यक्ति है। वह ग्राम की उन्नति के लिए बड़े-से-बड़े कष्ट को भी सहन करने की क्षमता रखता है। पुत्र की मृत्यु को सहन करके भी वह प्रारम्भ किये गये कार्य को अधूरा नहीं छोड़ता। वह पुत्र की मृत्यु को कर्तव्यनिष्ठा की परीक्षा का समय मानता है।

(6) आदर्श नेता– देवसिंह में आदर्श नेतृत्व के समस्त गुण विद्यमान हैं। उसका सिद्धान्त है कि जो कार्य लोगों के सहयोग से पूर्ण हो सकता हो, उसे पहले स्वयं करने लगो। ऐसा करने से दूसरे लोग स्वयं नेता का अनुगमन करने लगेंगे। निश्चय ही आदर्श नेता परोपदेशक मात्र नहीं होते, वरन् वे दूसरों को भी स्वेच्छा से कार्य करने के लिए प्रेरित करने में सफल होते हैं।निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि देवसिंह एक उत्साही, कर्मठ, साहसी, धीर-वीर और प्रगतिशील युवक है।

लघु-उत्तरीय संस्कृत प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए

प्ररन 1
देवसिंहस्य भ्रातृजाया तं किम् उवाच?
उत्तर
देवसिंहस्य भ्रातृजाया स्वग्रामस्य नारकी दशाम् अकथयत्।

प्ररन 2
देवसिंहस्य जनकः केन नाम्ना प्रथते स्म?
उत्तर
देवसिंहस्य.जनक: ‘कालोभण्डारि’ इति नाम्ना प्रथते स्म।

प्ररन 3
शिखरमारुह्य देवसिंहः कम् अपश्यत्? :
उत्तर
पर्वतशिखरमारुह्य देवसिंह: एकां लघ्वी नदीम् अपश्यत्।

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प्ररन 4
शिखरोपरि मूषकः किम् अकरोत्?
उत्तर
शिखरोपरि मूषक: विलम् अखनत्।।

प्ररन 5
मूषकं विलं खनन्तं दृष्ट्वा सः किम् अकथयत्?
उत्तर
मूषकं विलं खनन्तं दृष्ट्वा देवसिंहः अकथयत् यत् एषः अल्पप्राणः गिरि भित्वा स्व विलं निर्मातुं प्रयतते, कथं न अयं वपुषा पुष्टः मानवः स्वग्रामीणानां साहाय्येन पर्वते वृहद् विलं निर्माय पानीयं स्वग्रामम् आनेतुम् प्रयतेत्?

प्ररन 6
सदानन्दः देवसिंहं किं प्रत्यवदत्?
उत्तर
सदानन्दः देवसिंहं प्रत्यवदत् यत् मूषकाः प्रकृतिदत्तया शक्त्या विलं खनन्ति, वयं न तादृशाः भवामः।।

प्ररन 7
गिरिखननकाले देवसिंहस्य किम् अनिष्टम् अभवत्।।
उत्तर
गिरिखननकाले देवसिंहस्य पुत्रः पर्वतखण्डस्य अधस्तात् आयातः पिष्टः मृतश्च अभवत्।

प्ररन 8
विषीदतः ग्रामवासिनः देवसिंहः किम् अवदत्?
उत्तर
विषीदतः ग्रामवासिनः देवसिंहः अवदत्-सुख-दुःखम् अविगणय्यैव बहुजनहिताय .. क्रियमाणे कर्माणी स्वार्थचिन्तां जहति।

 

वस्तुनिष्ठ  प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए

1.
‘श्रम एव विजयते’ पाठ किस विधा पर आधारित है?
(क) आख्यायिका
(ख) कथा
(ग) नाटक
घ) जीवनवृत्त

2. ‘श्रम एव विजयते’ पाठ का नायक कौन है?
(क) कालोभण्डारि
(ख) देवसिंह
(ग) वीरसिंह
(घ) सदानन्द

3. शीला और देवसिंह में क्या सम्बन्ध है?
(क) पत्नी-पति का
(ख) भाभी-देवर को
(ग) पुत्री-पिता का
(घ) पुत्रवधु श्वसुर का

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4. गाँव की दुर्दशा के विषय में देवसिंह किसके द्वारा धिक्कारा जाता है?
(क) शीला द्वारा।
(ख) ग्रामीण पुरुष द्वारा
(ग) सदानन्द द्वारा।
(घ) वीरसिंह द्वारा 

5. देवसिंह बहुत जल वाले भूभागों को खोजने के लिए किसके साथ निकला?
(क) अपने बड़े भाई के साथ
(ख) अपने छोटे भाई के साथ
(ग) अपने पुत्र के साथ
(घ) अपने सेवक के साथ।

6. देवसिंह पहाड़ी पर ऐसा क्या देखता है, जिससे वह नदी से गाँव तक नहर खोदने का निर्णय लेता है?
(क) छोटी-सी पहाड़ी को
(ख) बिल खोदते हुए चूहे को
(ग) उत्साही गाँववालों को
(घ) ग्राम की दु:खी वधुओं को

7. सदानन्द देवसिंह को क्या कहकर हतोत्साहित करता है?
(क) धिङ मे पौरुषम् 
(ख) इदं कार्यं केवलं बालचापलमिव
(ग) उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः
(घ) अयं ग्राम: नरकायते

8. देवसिंह ने दृढ़ निश्चय किया|
(क) गाँव छोड़ देने का
(ख) पानी के लिए उपाय करने का
(ग) कुएँ खोदने का
(घ) शीला से बदला लेने का

9. नहर खुदाई के मंगल-कार्य में अमंगल किस प्रकार उत्पन्न हुआ?
(क) नहर के कार्य के बन्द होने से ।
(ख) शीला के पत्थर के नीचे आ जाने से
(ग) पहाड़ी के ढहने से।
(घ) देवसिंह के पुत्र की मृत्यु से।

10. देवसिंह के पुत्र की मृत्यु किस कारण से हुई?
(क) वह नदी में डूब गया था ।
(ख) उसे सदानन्द ने मार दिया था।
(ग) वह पत्थर के नीचे दब गया था
(घ) उसे साँप ने काट लिया था

11. देवसिंह ने अपने पुत्र की मृत्यु के बारे में सुनकर गाँव वालों से क्या कहा?
(क) जब तक काम पूरा न हो, तब तक मत रुको
(ख) यह सूचना मेरे घर मत देना
(ग) दुर्भाग्य प्रबल है ।
(घ) काम बन्द कर दो

12. ‘त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) देवसिंहः
(ख) वीरसिंहः
(ग) सदानन्दः
(घ) शीला

13. ‘दैवेन देयमिति •••••••••••••••• वदन्ति।’ में रिक्त पद की पूर्ति होगी
(क) ‘सुपुरुषा:’ से
(ख) ‘महापुरुषा:’ से।
(ग) “कापुरुषाः’ से
(घ) “उत्साही पुरुषा:’ से

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14. ‘दृढसङ्कल्पेन श्रमेच किं न भवितुं शक्यते।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) नन्दः
(ख) देवसिंहः
(ग) वीरसिंहः
(घ) देवसिंहस्य पुत्रः

15.’देवसिंहस्य जनकः ‘कालोभण्डारि’ : अवदानगाथाः अतिलछ्य ………..सीमानं, ” प्रसिद्ध्यन्ति स्म।’ वाक्य में रिक्त-पद की पूर्ति होगी
(क) ‘गढवाल’ से
(ख) “कश्मीर से ,
(ग) उत्तरांचल’ से
(घ) उत्तराखण्ड से

16. ‘उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति ………………… श्लोकस्य चरणपूर्तिः पदः अस्ति
(क) शक्तिः
(ख) सरस्वती
(ग) लक्ष्मी :
(घ) दुर्गा :

17. ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे ::•••••••••••निरामयाः।’ श्लोकस्य चरणपूर्ति पदः अस्ति
(क) सन्तु
(ख) स्त
(ग) स्तः
(घ) सन्ति 

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18. ‘चोत्तमजनाः प्रारब्धं कार्यमाफलोदयं न त्यजन्ति।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) सदानन्दः
(ख) देवसिंहः
(ग) ग्रामवासी
(घ) कालोभण्डारि

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Class 9 Sanskrit Chapter 7 UP Board Solutions भारतदेशः Question Answer

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7 भारतदेशः (पद्य-पीयूषम्) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7 भारतदेशः (पद्य-पीयूषम्).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 7
Chapter Name भारतदेशः (पद्य-पीयूषम्)
Category UP Board Solutions

UP Board Class 9 Sanskrit Chapter 7 Bharatadesham Question Answer (पद्य-पीयूषम्)

कक्षा 9 संस्कृत पाठ 7 हिंदी अनुवाद भारतदेशः के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

परिचय–विश्व में ऐसा कोई भी देश नहीं है, जो भारत के ज्ञान और विज्ञान से स्पर्धा कर सके। भारत का प्राकृतिक सौन्दर्य तो अनुपम ही है। यह वह देश है, जहाँ शरीरधारी सुकर्म करते हुए मोक्ष प्राप्त करते हैं। मनुष्य ही नहीं अपितु देवता भी मोक्ष की कामना से भारतभूमि पर अवतरित होते हैं। प्रस्तुत पाठ के श्लोक विष्णु पुराण से संगृहीत किये गये हैं। इनमें देवताओं द्वारा भारतवर्ष की महिमा का वर्णन किया गया है।

पाठ-सारांश

हमारा देश भारतवर्ष महान् है। इसकी महिमा देवताओं ने पुराणों में गायी है। भारतवर्ष स्वर्ग और मोक्ष का साधनस्वरूप है। यहाँ पर देवता भी देवत्व के सुखों को भोगकर पुरुष रूप में जन्म लेना चाहते हैं। भारत में मनुष्य कर्मफल की इच्छा न करता हुआ अपने कर्मों को विष्णु के प्रति समर्पित करके प्रभु में लीन हो जाता है। यह भारतवर्ष सात समुद्रों वाली पृथ्वी पर सबसे पुण्यशाली है। यहाँ के लोग विष्णु के कल्याणकारी चरितों का गान करते हैं। भारत-भूमि पर जन्म प्राप्त करना बड़े पुण्य से या ईश्वर की कृपा से ही सम्भव है। कल्पों की आयु (UPBoardSolutions.com) प्राप्त करके दूसरे स्थानों पर जन्म लेने की अपेक्षा कम आयु पाकर भारत में जन्म लेना अच्छा है। यहाँ पर अपने क्षणिक जीवन में ही मनुष्य अपने कर्मों को ईश्वर को समर्पित करके विष्णु का अभयपद प्राप्त करता है। देवता लोग कामना करते हैं कि हम अवशिष्ट पुण्य के प्रभाव से भारत में ही जन्म प्राप्त करें। जो पुरुष भारत में जन्म लेकर सत्कर्म नहीं करते, वे अमृत घट को छोड़कर विषपात्र पाने की इच्छा करते हैं। | देवों द्वारा गायी गयी भारतभूमि की महिमा हमारे देश की महत्ता को प्रकट करती है।

पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या

(1)
गायन्ति देवाः किल गीतकानि धन्यास्तु ये भारतभूमिभागे।
स्वर्गापवर्गास्पदहेतुभूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ॥

शब्दार्थ-
गायन्ति = गाते हैं।
देवाः = देवतागण।
किले = निश्चित ही।
गीतकानि = गीतों को।
भारतभूमिभागे = भारत के भू-भाग पर।
स्वर्गापवर्गास्पदहेतुभूते = स्वर्ग और मोक्ष को प्राप्त कराने में साधनस्वरूप।
भवन्ति = होते हैं।
भूयः = फिर से।
पुरुषाः = रूप में।
सुरत्वात् = देवत्व का उपभोग करने के पश्चात्।।

सन्दर्य
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के ‘भारतदेशः’ शीर्षक पाठ से उधृत है। |

[संकेत-इस पाठ के शेष सभी श्लोकों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में देवतागण भारत देश के उत्कर्ष का गान करते हुए यहाँ पर स्वयं जन्म धारण करने की इच्छा प्रकट करते हैं।

अन्वय
देवाः किल गीतकानि गायन्ति। स्वर्गापवर्गास्पद हेतु-भूते भारतभूमि भागे ये सुरत्वात्। भूयः पुरुषाः भवन्ति (ते) तु धन्याः (सन्ति)। | व्याख्या-देवगण भी निश्चय ही (भारतभूमि की प्रशंसा के) गीत गाते हैं। स्वर्ग और मोक्ष को प्राप्त कराने में साधनस्वरूप भारतभूमि के भाग में जो देवता लोग देवत्व को छोड़कर फिर से मनुष्य रूप में जन्म लेते हैं, वे निश्चय ही धन्य हैं।

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(2)
कर्माण्यसङ्कल्पित तत्फलानि संन्यस्य विष्णौ परमात्मभूते ।।
अवाप्य तां कर्ममहीमनन्ते तस्मिल्लयं ते त्वमलाः प्रयान्ति ॥

शब्दार्थ-
कर्माणि = कर्मों को।
असङ्कल्पित तत्फलानि = उनके फलों की प्राप्ति की इच्छा से ने किये गये, अनासक्त भाव से किये गये।
संन्यस्य = समर्पित करके।
विष्णौ = विष्णु को।
परमात्मभूते = परमात्मस्वरूप।
अवाप्य = प्राप्त करके।
कर्ममहीम् = कर्मभूमि (भारत)।
अनन्ते = अन्तहीन ईश्वर में।
लयं = लीन।
प्रयान्ति = हो जाते हैं।
अमलाः = पाप-मल से रहित होते हुए। |

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में कर्मफल की इच्छा ने रखकर किये गये कर्म को भगवान् को समर्पित करके मुक्त हो जाने का वर्णन है।

अन्वय
ते तु तां कर्ममहीम् अवाप्य असङ्कल्पित तत् फलानि कर्माणि परमात्मभूते विष्णौ संन्यस्य अमलाः (सन्तः) तस्मिन् अनन्ते लयं प्रयान्ति। | व्याख्या-भारतभूमि में उत्पन्न होने वाले वे लोग उस कर्मभूमि भारत को प्राप्त करके (जन्म : लेकर) कर्मफल की इच्छा न रखते हुए किये (UPBoardSolutions.com) गये (अनासक्त भाव से) कर्मों को परमात्मस्वरूप विष्णु में समर्पित करके पाप-मल से रहित होकर उस अनन्त परमात्मा में विलीन हो जाते हैं। तात्पर्य यह है कि चारों पुरुषार्थों में जो सर्वोपरि पुरुषार्थ मोक्ष है, उसे प्राप्त कर लेते हैं और संसार के आवागमन से मुक्त हो जाते हैं।

(3)
अहो भुवः सप्तसमुद्रवत्याः द्वीपेषु वर्षेष्वधिपुण्यमेतत्
गायन्ति यत्रत्यजनाः मुरारेर्भद्राणि कर्माण्यवतारवन्ति ।

शब्दार्थ
अहो = हर्षसूचक शब्द।
भुवः = पृथ्वी के।
सप्तसमुद्रवत्याः = सात समुद्रों वाली।
द्वीपेषु = समस्त द्वीपों में।
वर्षेषु= द्वीपों के खण्डों में, देशों में।
अधिपुण्यम् = अधिक पुण्य वाला।
एतद् = यह भारतवर्ष।
गायन्ति = गाते हैं।
यत्रत्य जनाः = जहाँ के रहने वाले लोग।
मुरारेः = विष्णु के।
भद्राणि = कल्याणकारी।
अवतारवन्ति = अवतारों वाले।।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में देवताओं ने समस्त विश्व में भारतवर्ष को सर्वोत्कृष्ट बताया है।

अन्वय
अहो! सप्तसमुद्रवत्याः भुवः द्वीपेषु वर्षेषु एतत् (भारतवर्षम्) अधिपुण्यम् (अस्ति), यत्रत्यजनाः मुरारे: अवतारवन्ति भद्राणि कर्माणि गायन्ति।

व्याख्या
अहो! सात समुद्रों से घिरी हुई पृथ्वी के सभी द्वीपों और खण्डों में यह भारतवर्ष अधिक पुण्यशाली है, जहाँ के रहने वाले लोग भगवान् विष्णु के द्वारा लिये गये अवतारों के कल्याणकारी शुभ कर्मों का गान करते हैं। |

(4)
अहो अमीषां किमकारि शोभनं प्रसन्न एषां स्विदुत स्वयं हरिः।
यैर्जन्म लब्धं नृषु भारताजिरे मुकुन्दसेवौपायिकं स्पृहा हि नः ॥

शब्दार्थ
अमीषाम् = इन्होंने।
किम् = कौन, क्या।
अकारि = किया है।
शोभनम् = अच्छा कर्म, पुण्य।
एषां = इन (भारतवासियों) पर।
स्विदुत = अथवा।
स्वयं हरिः = स्वयं विष्णु ने।
यैः = जिनके द्वारा।
लब्धं = प्राप्त किया है।
नृषु = मानव योनि में, मनुष्य रूप में।
भारताजिरे = भारत के प्रांगण में।
मुकुन्दसेवौपायिकम् = विष्णु की सेवा का साधनस्वरूप।
स्पृहा = इच्छा। नः = हमारी।।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में भारत में जन्म लेने वाले लोगों के पुण्य पर देवताओं को भी आश्चर्य , है। |

अन्वय
अहो! अमीषां किं शोभनम् अकारि, स्विदुत हरिः स्वयम् एषां प्रसन्नः (अस्ति)। यैः भारताजिरे नृषु मुकुन्दसेवौपायिकं जन्म लब्धम्। नः हि स्पृही (अस्ति)।

व्याख्या
अहो! इन भारत के रहने वालों ने ऐसा कौन-सा शुभ कर्म किया है अथवा विष्णु स्वयं इन लोगों पर प्रसन्न हैं, जिन लोगों ने भारत के प्रांगण में मनुष्यों में भगवान् विष्णु की सेवा का साधनस्वरूप जन्म प्राप्त किया है। हमारी इच्छा है कि हम भी वहीं जन्म प्राप्त करें।

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(5)
कल्पायुषां स्थानजयात् पुनर्भवात् क्षणायुषां भारतभूजयो वरम्।
क्षणेन मर्येन कृतं मनस्विनः संन्यस्य संयन्त्यभयं पदं हरेः॥

शब्दार्थ
कल्पायुषाम् = एक कल्प की आयु वाले ब्रह्मादिकों का, कल्प समय का एक बहुत बड़ा विभाग है जो एक हजार महायुग अर्थात् 4 अरब 32 करोड़ मानव वर्षों का माना जाता है।
स्थानजयात् = लोकों की प्राप्ति की अपेक्षा
पुनर्भवात् = जहाँ से पुनः जन्म लेना पड़ता है।
क्षणायुषाम् = क्षणभर की आयु वालों का।
भारतभूजयः = भारतभूमि में जन्म।
वरम् = श्रेष्ठ।
क्षणेन = क्षणिक।
मन = मरणशील शरीर से।
कृतम् = अपने कर्म को।
मनस्विनः = धीर, मनस्वी पुरुष।
संन्यस्य = भगवान् को समर्पित करके।
संयान्ति = प्राप्त करते हैं।
अभयं = (जन्म-जरा-मरण आदि के) भय से मुक्ति।
पदं = स्थान को।
हरेः = हरि के।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में एक कल्प की आयु वालों की अपेक्षा क्षणभर की .आयु वाले “भारतवासियों को श्रेष्ठ बताया गया है।

अन्वय
पुनर्भवात् कल्पायुषां स्थानजयात् क्षणायुषां भारतभूजयः वरम् (अस्ति)। मनस्विनः क्षणेन मत्येंन कृतं संन्यस्य हरेः अभयं पदं संयान्ति।

व्याख्या
कल्प की आयु वाले ब्रह्मादिकों से पुनर्जन्म वाले लोकों को प्राप्त करने की अपेक्षा क्षणभर की आयु वालों को भारतभूमि पर जन्म लेना अच्छा है। धीर पुरुष क्षणिक मरणशील शरीर से किये गये कर्म को भगवान् को समर्पित करके विष्णु के जरा-मरणादि भय से रहित स्थान मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

(6)
यद्यस्ति नः स्वर्गसुखावशेषितं स्विष्टस्य सूक्तस्य कृतस्य शोभनम्
तेनाजनाभे स्मृतिमज्जन्म नः स्यात् वर्षे हरिय॑द् भजतां शं तनोति ॥

शब्दार्थ
यद्यस्ति (यदि + अस्ति) = यदि है।
नः = हमारे।
स्वर्गसुखावशेषितम् = स्वर्ग के सुखों से बचा हुआ।
स्विष्टस्य = सुन्दर यज्ञ का।
सूक्तस्य = सुन्दर वचन को।
कृतस्य = पुण्य कर्म का।
अजनाभे = भारतवर्ष में।
स्मृतिमत् = ईश्वर के स्मरण से युक्त।
जन्म स्यात् = जन्म हो।
भजताम् = जिसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों का।
शम् = कल्याण को।
तनोति = वृद्धि करते हैं।

प्रसंग
स्वर्गलोक निवासी जीव स्वर्ग के सुख से बचे हुए पुण्य कर्म से भारत में जन्म लेने की इच्छा करते हैं।

अन्वय
यदि नः स्विष्टस्य, सूक्तस्य कृतस्य (तु) स्वर्गसुखावशेषितम् (अस्ति), (तर्हि) तेन नः अजनाभे स्मृतिमत् जन्म स्यात्। यत् भजतां हरिः शं तनोति।। | व्याख्या–यदि हमारे भली-भाँति किये गये यज्ञ का, सत्य आदि सुन्दर वचन का, किये गये पुण्य कर्म का स्वर्ग-सुख से बचाया हुआ पुण्य कर्म है, तो उससे (UPBoardSolutions.com) भारतवर्ष में भगवान् की स्मृति से युक्त जन्म हो। जिस जन्म को प्राप्त करने वाले पुरुषों के स्वयं भगवान् विष्णु कल्याण की वृद्धि करते हैं। तात्पर्य यह है कि देवतागण भी भारत-भूमि पर जन्म पाने की उत्कट इच्छा रखते हैं और इसके लिए व्याकुलता का अनुभव करते हैं।

(7)
सञ्चितं सुमहत् पुण्यमअक्षय्यममलं शुभम्।
कदा वयं नु लप्स्यामो जन्म भारतभूतले ॥

शब्दार्थ
सञ्चितम् = एकत्र किया हुआ।
सुमहत् = बहुत अधिक।
अक्षय्यम् = नष्ट न होने वाला।
अमलम् = पापरहित।
शुभम् = कल्याणकारी।
लप्स्यामः = प्राप्त करेंगे।
भारत-भूतले = भारतभूमि पर।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में बताया गया है कि देवगण अपने संचित पुण्य से भारतभूमि पर जन्म लेने की उत्कट इच्छा रखते हैं।

अन्वय
(अस्माभिः) अक्षय्यम् अमलं शुभं सुमहत् (यत्) पुण्यं सञ्चितम् (तेनैव पुण्येन) वयं भारतभूतले कदा नु जन्म लप्स्यामः।। 

व्याख्या
हमने (देवताओं ने) कभी नष्ट न होने वाला, पापरहित, शुभ जो बहुत बड़ा पुण्य संचित किया है, उसी पुण्य से हम देवतागण भारतभूमि पर कब जन्म प्राप्त करेंगे?

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(8)
सम्प्राप्य भारते जन्म सत्कर्मसु पराङ्मुखः।।
पीयूषकलशं हित्वा विषभाण्डं स इच्छति ॥

शब्दार्थ
सम्प्राप्य = प्राप्त करके।
सत्कर्मसु = अच्छे कर्मों से
पराङ्मुखः = विमुख।
पीयूषकलशम् = अमृत से भरे घड़े को।
हित्वा = छोड़कर।
विषभाण्डम् = विष से भरे पात्र को।
इच्छति = इच्छा करता है।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में भारत में जन्म लेकर सत्कर्म करने पर बल दिया गया है।

अन्वय
भारते जन्म सम्प्राप्य (यः) सत्कर्मसु पराङ्मुखः भवति, (यः) सः पीयूषकलशं हित्वा विषभाण्डम् इच्छति।।

व्याख्या
भारत में जन्म प्राप्त करके जो व्यक्ति सत्कर्मों से विमुख होता है, वह अमृत से पूर्ण घड़े को छोड़कर विष से पूर्ण पात्रं को पाने की इच्छा करता है। तात्पर्य यह है कि भारत में जन्म लेकर सत्कर्म ही करना चाहिए।

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Class 10 Sanskrit Chapter 6 UP Board Solutions कार्यं वा साधयेयं देहं वा पातयेयम् Question Answer

UP Board Class 10 Sanskrit Chapter 6 Karyam va Sadhyeyam deham va Patyeyam Question Answer (गद्य – भारती)

कक्षा 10 संस्कृत पाठ 6 हिंदी अनुवाद कार्यं वा साधयेयं देहं वा पातयेयम् के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

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परिचय

औरंगजेब के अत्याचारी और साम्प्रदायिक शासन के विरोध में शिवाजी ने दक्षिण में विद्रोह किया था। शिवाजी एक कुशल संगठनकर्ता थे। इन्होंने बलिदानी वीरों की सेना एकत्र करके बीजापुर के नवाब के राज्य का अधिकांश भाग अपने अधिकार में कर लिया था, जो मुगल (UPBoardSolutions.com) साम्राज्य का अंग था।
औरंगजेब ने जिसे भी शिवाजी के विरुद्ध सेना लेकर भेजा, उसे असफलता ही हाथ लगी। प्रस्तुत पाठ पं० अम्बिकादत्त व्यास द्वारा रचित ‘शिवराज-विजय’ के चतुर्थ नि:श्वास से लिया गया है। छत्रपति शिवाजी ही व्यास जी के शिवराज हैं। इस पाठ में शिवाजी के गुप्तचर रघुवीर सिंह के साहस, धैर्य और निर्भीकता का वर्णन है।

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पाठ-सारांश (2006, 07, 09, 14]

रघुवीर सिंह का परिचय रघुवीर सिंह शिवाजी का एक विश्वासपात्रे सेवक है। उसकी आयु मात्र सोलहवर्ष की है। वह शिवाजी का एक आवश्यक और गोपनीय पत्र लेकर सिंह दुर्ग से तोरण दुर्ग की ओर जा रहा है।

गमन-समय एवं वेशभूषा आषाढ़ मास में सायं समय सूर्य अस्त होने ही वाला था। पक्षी अपने घोंसलों में लौट रहे थे। अचानक आकाश में बादल छा गये। उस समय गौर वर्ण के शरीर वाला युवक, शिवाजी का विश्वासपात्र अनुचर रघुवीर सिंह उनका आवश्यक पत्र लेकर सिंह दुर्ग से घोड़े पर तोरण दुर्ग जा रहा था। उसका सुगठित शरीर गौर वर्ण का था और बाल बुंघराले काले थे। वह प्रसन्नमुख, हरा कुर्ता और हरी पगड़ी पहने हुए चला जा रहा था।

मौसम का प्रतिकूल होना उसी समय,अचानक तेज वर्षा और आँधी आयी। काले बादलों से शाम के समय में अन्धकार दुगुना हो गया। धूल और पत्ते उड़ रहे थे जिससे रघुवीर सिंह को पर्वतों, वनों, ऊँचे शिखरों, झरनों का मार्ग सूझ नहीं रहा था। वर्षा के कारण हुई चिकनी चट्टानों पर उसका घोड़ा क्षण-प्रतिक्षण फिसल जाता था। वृक्षों की शाखाओं से बार-बार ताड़ित होता हुआ भी दृढ़ संकल्पी वह घुड़सवार अपने काम से विमुख नहीं हो रहा था।

कर्तव्य-परायणता कभी रघुवीर सिंह का घोड़ा डरकर दोनों पैरों पर खड़ा हो जाता था, कभी पीछे लौट पड़ता था और कभी कूद-कूदकर दौड़ने लगता था, परन्तु यह वीर लगाम हाथ में पकड़े, घोड़े के कन्धों और गर्दन को हाथ से थपथपाता हुआ आगे बढ़ता ही चला जा रहा था। एक ओर आँखों में चकाचौंध पैदा करने वाली दर्शकों के मनों को कम्पित करती हुई, आकाश को चीरती हुई बिजली चमक रही थी तो दूसरी ओर सैकड़ों तोपों की गर्जना (UPBoardSolutions.com) के समान घोर शब्द जंगल में पूँज रहा था, परन्तु “या तो कार्य पूरा करके रहूँगा या मर मिटूगा यह दृढ़-संकल्प मन में लिये हुए वह अपने कार्य से लौट नहीं रहा था।

अपने स्वामी से प्रेरित जिसका स्वामी परिश्रमी, अद्भुत साहसी, विपत्तियों में धैर्यशाली और दृढ़-संकल्पी हो, उसका विश्वासपात्र सेवक फिर वैसा परिश्रमी, साहसी, वीर और दृढ़-संकल्पी क्यों न हो? वह आँधी-तूफान, तेज वर्षा और भयानक वातावरण से डरकर अपने स्वामी के कार्य की कैसे उपेक्षा कर सकता है? यह सोचता हुआ तथा घोड़े को तेज दौड़ाता हुआ वह आगे बढ़ता ही चला जा रहा था।

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गद्यांशों का ससन्दर्भ अनुवाद

(1)
शिववीरस्य कोऽपि सेवकः श्रीरघुवीरसिंहः तस्यावश्यकं पत्रञ्चादाय महताक्लेशेन सिंहदुर्गात् तोरणदुर्गं प्रयाति। मासोऽयमाषाढस्यास्ति समयश्च सायम्। अस्तं जिगमिषुर्भगवान् भास्करः, सिन्दूर-द्रव-स्नातानामिव वरुणदिगवलम्बिनामरुण-वारिवाहानामभ्यन्तरं प्रविष्टः। कलविङ्काः नीडेषु प्रतिनिवर्तन्ते। वनानि प्रतिक्षणमधिकाधिक श्यामतां कलयन्ति। अथाकस्मात् परितो मेघमाला पर्वतश्रेणिरिव प्रादुर्भूय समस्तं गगनतलं प्रावृणोत्।।

शब्दार्थ शिववीरस्य = वीर शिवाजी का! कोऽपि = कोई। महताक्लेशेन = अत्यधिक कष्ट से। प्रयाति = जा रहा है। जिगमिषुः = जाने की इच्छा करने वाला। वरुणदिक् = पश्चिम दिशा। अवलम्बिनाम् = अवलम्ब लेने वालों के समान वारिवाहानाम् = बादलों के अभ्यन्तरम् = (UPBoardSolutions.com) भीतर। कलविङ्काः = गौरैया नाम के पक्षी। नीडेषु = घोंसलों में। प्रतिनिवर्तन्ते = लौटते हैं। कलयन्ति = धारण करते हैं। अथाकस्मात् = इसके बाद सहसा। परितः = चारों ओर से प्रादुर्भूय = उत्पन्न होकर प्रावृणोत् = ढक लिया।

सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के गद्य-खण्ड ‘गद्य-भारती’ में संकलित ‘कार्यं वा साधयेयं देहं वा पातयेयम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है।

[ संकेत इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में उस समय का रोचक वर्णन किया गया है, जब शिवाजी का विश्वासपात्र अनुचर उनका गोपनीय पत्र लेकर सन्ध्या के समय सिंह दुर्ग से तोरण दुर्ग की ओर जा रहा है।

अनुवाद वीर शिवाजी का कोई सेवक श्री रघुवीर सिंह उनका आवश्यक पत्र लेकर अत्यन्त कष्ट से सिंह दुर्ग से तोरण दुर्ग को जा रहा है। यह आषाढ़ का महीना और सायं का समय है। अस्ताचल की ओर जाने को इच्छुक भगवान् सूर्य सिन्दूर के घोल में स्नान किये हुए के समान, पश्चिम दिशा में छाये हुए लाल बादलों के अन्दर प्रविष्ट हो गये। गौरैया नामक पक्षी घोंसलों में लौट रहे हैं। वन प्रत्येक क्षण अधिकाधिक कालिमा को धारण कर रहे हैं। इसके बाद सामने अचानक मेघमालाओं ने पर्वतमाला की भाँति उमड़कर सारे आकाश को चारों ओर से घेर लिया।

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(2)
अस्मिन् समये एकः षोडशवर्षदेशीयो गौरो युवा हयेन पर्वतश्रेणीरुपर्युपरि गच्छति स्म। एष सुघटित-दृढ-शरीरः, श्यामश्यामैर्गुच्छगुच्छैः कुञ्चित-कुञ्चितैः कचकलापैः कमनीयकपोलपालिः, दूरागमनायास-वशेन-स्वेदबिन्दु-व्रजेन समाच्छादित-ललाट-कपोल-नासाग्रोत्तरोष्ठः, प्रसन्नवदनाम्भोजः, हरितोष्णीषशोभितः, हरितेनैव च कञ्चुकेन प्रकटीकृत-व्यूढ-गूढचरता-कार्यः, कोऽपि शिववीरस्य विश्वासपात्रं, सिंहदुर्गात् तस्यैव पत्रमादाय, तोरणदुर्गं प्रयाति स्म। [2009]

शब्दार्थ षोडशवर्षदेशीयः = सोलह वर्ष का हयेन = घोड़े के द्वारा कुञ्चित-कुञ्चितैः कचकलापैः = धुंघराले बालों के समूह से। कमनीयकपोलपालिः = सुन्दर गालों वाला। दूरागमनायास-वशेन = दूर से परिश्रम के साथ आने के कारण। स्वेदबिन्दुव्रजेन = पसीने की बूंदों के समूह से। समाच्छादित (UPBoardSolutions.com) = ढक गया है। ललाटकपोलनासाग्रोत्तरोष्ठः = मस्तक, गाल, नाक का अग्रभाग और ऊपर का होंठ। प्रसन्नवदनाम्भोजः = प्रसन्न है मुखरूपी कमल जिसका। हरितोष्णीष = हरी पगड़ी। कञ्चुकेन = लम्बा कुर्ता प्रकटीकृतव्यूढ-गूढचरता-कार्यः = प्रकट हो रहा है गुप्तचर का विशेष कार्य जिसका। तस्यैव = उसका ही। प्रयाति स्म = जा रहा था।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में शिवाजी के विश्वासपात्र अनुचर रघुवीर सिंह के बाह्य व्यक्तित्व का वर्णन किया गया है।

अनुवाद इस समय एक सोलह वर्ष की उम्र को गौरवर्ण युवक घोड़े से पर्वतश्रेणियों के ऊपर-ऊपर जा रहा था। यह सुगठित और पुष्ट शरीर वाला, अत्यन्त काले गुच्छेदार घंघराल बालों के समूह से शोभित कपोलों वाला, दूर चलने की थकावट के कारण पसीन की बूंदों के समूह से आच्छादित मस्तक, कपोल, नाक और होंठ वाला, प्रसन्न मुख-कमल वाला, हरी पगड़ी से शोभित और हरे कुर्ते से गुप्तचर के कठिन कार्य को प्रकट करने वाला, वीर शिवाजी का कोई विश्वासपात्र सेवक सिंह दुर्ग से उन्हीं (शिवाजी) का पत्र लेकर तोरण दुर्ग की ओर जा रहा था।

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(3)
तावदकस्मादुत्थितो महान् झञ्झावातः एकः सायं समयप्रयुक्तः स्वभाववृत्तोऽन्धकारः स च द्विगुणितो मेघमालाभिः। झञ्झावातोदधूतैः रेणुभिः शीर्षपत्रैः कुसुमपरागैः शुष्कपुष्पैश्च पुनरेष द्वैगुण्यं प्राप्तः। इह पर्वतश्रेणीतः पर्वतश्रेणीः, वनाद वनानि, शिखराच्छिखराणि प्रपातात् प्रपातान्, अधित्यकातोऽधित्यकाः, उपत्यकातः उपत्यकाः, न कोऽपि सरलो मार्गः, पन्था अपि नावलोक्यते, क्षणे क्षणे हयस्य खुराश्चिक्कणपाषाणखण्डेषु प्रस्खलन्ति, पदे पदे दोधूयमानाः वृक्षशाखाः सम्मुखमाघ्नन्ति, परं दृढ़-सङ्कल्पोऽयं सादी न स्वकार्याद विरमति।

शब्दार्थ तावदकस्मादुत्थितः = तब तक सहसा उठा। झञ्झावातः = वर्षासहित तूफान। स्वभाववृत्तोऽन्धकारः = अपने आप फैला हुआ अन्धकार। द्विगुणितः = दो गुना। झञ्झावातोधूतैः = आँधी से उठी हुई। शीर्णपत्रैः = टूटे पत्तों से। द्वैगुण्यं प्राप्तः = दोगुनेपन को प्राप्त हो गया। शिखराच्छिखराणि = पर्वत की चोटी से चोटियों तक प्रपातात् = झरने से। अधित्यकाः = पर्वत का ऊपरी भाग। उपत्यका = पर्वत का निचला भाग, तलहटी। नावलोक्यते = नहीं दिखाई देता है। हयस्य = घोड़े के। चिक्कणपाषाणखण्डेषु = चिकने पत्थर के टुकड़ों पर प्रस्खलन्ति = फिसलते हैं। दोधूयमानाः = हिलते हुए। आघ्नन्ति = चोट करती हैं। सादी = घुड़सवार। न विरमति = नहीं रुकता है।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में तोरण दुर्ग की ओर जाते हुए शिवाजी के अनुचर के मार्ग की कठिनाइयों का वर्णन रोचकता के साथ किया गया है।

अनुवाद उसी समय अचानक बड़ी तेज वर्षासहित आँधी उठी। एक तो शाम का समय होने से स्वाभाविक रूप से अन्धकार घिरा हुआ था और वह मेघमालाओं से दुगुना हो गया था। वर्षासहित तेज तूफान से उड़ी हुई धूल से, टूटे हुए पत्तों से, फूलों के पराग से और सूखे फूलों (UPBoardSolutions.com) से पुन: यह दुगुना हो गया था। यहाँ एक पर्वतश्रेणी से पर्वतमालाओं तक, वन से वनों तक, चोटी से चोटियों तक, झरने से झरनों तक, पहाड़ के ऊपर की समतल भूमि से दूसरे पहाड़ के ऊपर की समतल भूमि तक, तलहटी से तलहटियों तक जाने का कोई भी सीधा रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है। क्षण-क्षण पर घोड़े के खुर चिकने पत्थर के टुकड़ों पर फिसल रहे हैं। कदम-कदम पर तेज हिलते हुए वृक्षों की शाखाएँ सामने से लगकर चोट कर रही हैं, परन्तु दृढ़ संकल्प वाला यह घुड़सवार अपने कार्य से नहीं रुक रहा है।

(4)
कदाचित् किञ्चिद् भीत इव घोटकः पादाभ्यामुत्तिष्ठति, कदाचिच्चलन्नकस्मात् परिवर्तते, कदाचिदुत्प्लुत्य च गच्छति। परमेष वीरो वल्गां सम्भालयन्, मध्ये-मध्ये सैन्धवस्य स्कन्धौ कन्धराञ्च करतलेनऽऽस्फोटयन्, चुचुत्कारेण सान्त्वयंश्च न स्वकार्याद विरमति। यावदेकस्यां दिशि नयने विक्षिपन्ती, कर्णो स्फोटयन्ती, अवलोचकान् कम्पयन्ती, वन्यस्त्रासयन्ती, गगनं कर्त्तयन्ती, मेघान् सौवर्णकषयेवघ्नन्ती, अन्धकारमग्निना दहन्ती इव चपला चमत्करोति, तावदन्यस्यामपि दिशि ज्वालाजालेन बलाहकानावृणोति, स्फुरणोत्तरं स्फुरणं गज्र्जनोत्तरं गज्र्जनमिति परः शतः-शतघ्नी-प्रचारजन्येनेव, महाशब्देन पर्यपूर्यत साऽरण्यानी। परमधुनाऽपि “कार्यं वा साधयेयं देहं वा पातयेयम्” इति कृतप्रतिज्ञोऽसौ शिववीर-चरो न निजकार्यान्निवर्तते।

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शब्दार्थ कदाचित् = कभी। किञ्चित् = कुछ। घोटकः = घोड़ा। पादाभ्यामुत्तिष्ठति = दो पैरों पर उठ जाता है। कदाचिच्चलन्नकस्मात् = कभी चलता हुआ सहसा परिवर्त्तते = लौट जाता है। उत्प्लुत्य = कूदकर। वल्गाम् = लगाम को। सम्भालयन् = सँभालता हुआ। सैन्धवस्य = घोड़े के। स्कन्ध = दोनों कन्धों को। कन्धराम् = गर्दन को। आस्फोटयन् = थपथपाता हुआ। चुचुत्कारेण = पुचकार से। यावदेकस्याम् = जब तक एक में विक्षिपन्ती = चौंधियाती हुई। अवलोचकान् = दर्शकों को त्रासयन्ती = भयभीत करती हुई। कर्त्तयन्ती = चीरती हुई। सौवर्णकषया = सोने की चाबुक से। घ्नन्ती = मारती हुई। बलाहकान् = बादलों को। आवृणोति = ढक लेती है। (UPBoardSolutions.com) स्फुरणोत्तरम् = चमकने के बाद। परः शतः = सैकड़ों से भी अधिक शतघ्नी = तोपें। पर्यपूरत = भर गयीं, पूर्ण हो गयीं। अरण्यानी = वन। साधयेयम् = सिद्ध करूँगा। पातयेयम् = गिरा दूंगा। कृतप्रतिज्ञोऽसौ = प्रतिज्ञा करने वाला यह। चरः = गुप्तचर।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में शिवाजी के अनुचर के मार्ग में आयी हुई कठिनाइयों का वर्णन मनोरम शैली में किया गया है।

अनुवाद कभी कुछ डरे हुए के समान घोड़ा (अगले) दोनों पैरों को उठा लेता है, कभी चलता हुआ अचानक लौट पड़ता है और कभी कूद-कूदकर चलता है, परन्तु वह वीर लगाम को पकड़े हुए बीच-बीच में घोड़े के दोनों कन्धों और गर्दन को हाथ से थपथपाता हुआ, पुचकार से सान्त्वना देता हुआ अपने कार्य से नहीं रुकता है। जब तक एक दिशा में नेत्रों को चौंधियाती हुई, कानों को फाड़ती हुई, देखने वालों को कॅपाती हुई, जंगली जीवों को भयभीत करती हुई, आकाश को चीरती हुई, बादलों को सोने की चाबुक से मानो पीटती हुई, अन्धकार को अग्नि से जलाती हुई-सी बिजली चमकती है, तब तक दूसरी दिशा में भी बादलों को ज्वाला के समूह से ढक लेती है। चमक के बाद चमक, गर्जना के बाद गर्जना, इस प्रकार सैकड़ों से भी अधिक तोपों के चलने से उत्पन्न हुए के समान घोर शब्द से वह वन भर गया, परन्तु इस समय भी ‘या तो कार्य को पूरा करूगा या शरीर को नष्ट कर दूंगा’ इस प्रकार की प्रतिज्ञा करने वाला वह वीर शिवाजी का दूत अपने कार्य (कर्तव्य) से नहीं रुकता है।

(5)
यस्याध्यक्षः स्वयं परिश्रमी, कथं स न स्यात् स्वयं परिश्रमी? यस्य प्रभुः स्वयं अदभुतसाहसः, कथं स न भवेत् स्वयं तथा? यस्य स्वामी स्वयमापदो न गणयति, कथं स गणयेदापदः? यस्य च महाराजः स्वयंसङ्कल्पितं निश्चयेन साधयति, कथं स न साधयेत् स्व-सङ्कल्पितम्? अस्त्येष महाराज-शिववीरस्य दयापात्रं चरः, तत्कथमेष झञ्झाविभीषिकाभिर्विभीषितः प्रभु-कार्यं विगणयेत्? तदितोऽप्येष तथैव त्वरितमश्वं चालयंश्चलति। [2013]

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शब्दार्थ कथं = कैसे। प्रभुः = स्वामी। स्वयमापदः = अपने आप आपत्तियों को। गणयेदापदः = गिने, आपत्तियों को। साधयति = पूरा करता है। साधयेत् = सिद्ध करे। अस्त्येषः (अस्ति + एषः) = है यह। विभीषिकाभिर्विभीषितः = भयों से डरा हुआ। विगणयेत् = उपेक्षा करे, त्याग दे। त्वरितमश्वं = तेज गति से घोड़े को। चालयन् = चलाता हुआ।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में शिवाजी के अनुचर के दृढ़-संकल्प, वीरता और स्वामिभक्ति का वर्णन किया गया है।

अनुवाद जिसका (सेना) अध्यक्ष स्वयं परिश्रमी है, वह स्वयं परिश्रमी क्यों न हो? जिसका स्वामी स्वयं अद्भुत साहसी है, वह स्वयं साहसी क्यों न हो? जिसका स्वामी स्वयं आपत्तियों की गणना (परवाह) नहीं करता है, वह क्यों आपत्तियों की गणना (परवाह) करे? जिसका राजा (UPBoardSolutions.com) स्वयं संकल्प किये गिये कार्य को निश्चय से पूरा करता है, वह क्यों न अपने संकल्पित कार्य को पूरा करे? यह महाराज और वीर शिवाजी को दयापात्र अनुचर है तो कैसे यह वर्षा और आँधी के भय से डरकर स्वामी के कार्य की उपेक्षा करे? तो यह यहाँ से भी उसी प्रकार घोड़े को तेज चलाता हुआ चला जा रहा है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
श्री रघुवीर सिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर :
रघुवीर सिंह शिवाजी का एक विश्वासपात्र सेवक है। वह उनका एक आवश्यक और गोपनीय पत्र लेकर सिंह दुर्ग से तोरण दुर्ग की ओर जा रहा है। तेज वर्षा और आँधी जैसे प्रतिकूल मौसम में जब रास्ता भी

स्पष्ट नहीं दिखाई पड़ रहा था, घोड़ा क्षण-प्रतिक्षण चिकनी चट्टानों पर बार-बार फिसल जाता था, वृक्षों की शाखाओं से लगातार प्रताड़ित होता हुआ भी यह दृढ़-संकल्पी वीर आगे बढ़ता ही चला जा रहा था। लगाम हाथ में पकड़े, घोड़े के कन्धों और गर्दन को हाथ से थपथपाता हुआ और प्रतिज्ञा करता हुआ कि “या तो कार्य पूरा करके रहूँगा या मर मिटूगा’ अपने कार्य से लौट नहीं रहा था। निश्चय ही रघुवीर सिंह एक परिश्रमी, अद्भुत साहसी, दृढ़-संकल्पी, विपत्तियों में धैर्यशाली और विश्वासपात्र सेवक था।

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प्रश्न 2.
तोरण दुर्ग जाते समय रघुवीर सिंह के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
तोरण दुर्ग जाते समय अचानक बड़ी तेज वर्षासहित आँधी उठी। शाम का समय होने के कारण स्वाभाविक रूप से अन्धकार घिरा था और वह अन्धकार मेघमालाओं से दुगुना हो गया था। एक पर्वतश्रेणी से पर्वतमालाओं तक, वन से वनों तक, चोटी से चोटियों तक, झरने से झरनों तक, पर्वत की घाटी से पर्वत की घाटियों तक, तलहटी से तलहटियों तक जाने का कोई सीधा रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था। क्षणक्षण पर घोड़े के खुर चिकने पत्थर के टुकड़ों पर फिसल (UPBoardSolutions.com) रहे थे तथा कदम-कदम पर तेज हिलते हुए वृक्षों की शाखाएँ सामने से लगकर चोट कर रही थीं, परन्तु दृढ़-संकल्प वाला यह घुड़सवार चलता ही जा रहा था।

प्रश्न 3.
रघुवीर सिंह के शारीरिक गठन का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
रघुवीर सिंह एक सोलह वर्ष का गौरवर्ण युवक है। इसका शरीर सुगठित और दृढ़ है, बाल काले, गुच्छेदार और धुंघराले हैं, कपोल सुन्दर हैं तथा मुख कमल के समान है। थकान के कारण इसका मस्तक, कपोल, नाक एवं होंठ पसीने की बूंदों से आच्छादित हैं। यह हरे रंग का कुर्ता पहने हुए है और इसी रंग की पगड़ी धारण किये हुए है।

प्रश्न 4.
रघुवीर सिंह का स्वामी कौन है और वह कैसा है?
या
शिववीर के पत्रवाहक सेवक का क्या नाम था? [2007,09, 15]
या
रघुवीर सिंह किसका विश्वासपात्र सेवक था? [2007]
उत्तर :
रघुवीर सिंह के स्वामी महाराज शिवाजी हैं। महाराज शिवाजी परिश्रमी और अद्भुत साहसी हैं। वे आपत्तियों की परवाह नहीं करते और संकल्पित कार्य को निश्चित ही पूरा करते हैं। उनका विश्वासपात्र, पत्रवाहक और सेवक रघुवीर सिंह भी उनके जैसा ही है।

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प्रश्न 5.
“कार्यं वा साधयेयं, देहं वा पातयेयम्’ का मूल उद्देश्य क्या है?
उत्तर :
“कार्यं वा साधयेयं, देहं वा पातयेयम्” सूक्ति का मूल उद्देश्य हमें यह समझाना है कि किसी भी कार्य को करते समय हमें उसमें दत्त-चित्त होकर लग जाना चाहिए। उस कार्य को सम्पन्न करने में हमारे सामने चाहे कितनी भी और कैसी भी परेशानियाँ क्यों न आये, हमें (UPBoardSolutions.com) अपने कार्य से विरत नहीं होनी चाहिए।
या तो कार्य पूरा करूगा या मर मिटूगा’ के संकल्प से उस कार्य में लगे रहना चाहिए।

प्रश्न 6.
‘कार्यं वा साधयेयं, देहं वा पातयेयम्’ प्रतिज्ञा किसने की थी? [2010, 12]
उत्तर :
“कार्यं वा साधयेयं, देहं वा पातयेयम्’ प्रतिज्ञा महाराज शिवाजी के सेवक रघुवीर सिंह ने की थी, जब वह उनका एक गोपनीय पत्र लेकर सिंह दुर्ग से तोरण दुर्ग की ओर जा रहा था।

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प्रश्न 7.
शिवाजी के अनुचर रघुवीर सिंह की प्रतिज्ञा संस्कृत में लिखिए। [2010, 12]
या
शिवाजी के वीर अनुचर रघुवीर सिंह का प्रतिज्ञा वाक्य क्या था? [2013]
या
शिवाजी के वीर अनुचर का नाम और उसकी प्रतिज्ञा का उल्लेख कीजिए। [2014]
उत्तर :
शिवाजी के अनुचर रघुवीर सिंह की संस्कृत में प्रतिज्ञा है-कार्यं (UPBoardSolutions.com) वा साधयेयं, देहं वा पातयेयम्।

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