UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 7 (Section 4)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 7 आर्थिक विकास में राज्य की भूमिका (अनुभाग – चार)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका को निर्धारित करने वाले तत्वों की विवेचना कीजिए।
या
किसी अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास में राज्य का महत्त्वपूर्ण योगदान है। स्पष्ट कीजिए।
या
आर्थिक विकास में राज्य की क्या भूमिका होती है?
उत्तर :

अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका को निर्धारित करने वाले तत्त्व

विकासशील देश में अनेक आर्थिक अवरोध आर्थिक विकास की गति को अवरुद्ध करते हैं। देश में पूँजी का अभाव, प्राकृतिक साधनों का अल्प दोहन, बचत एवं विनियोग की कमी, औद्योगीकरण का अभाव, पूँजी निर्माण की कमी, बढ़ती बेरोजगारी आदि अनेक समस्याएँ विकासशील देशों में आर्थिक विकास के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में अवरोध खड़े करती हैं; अत: इन विकासशील देशों में सरकार का दायित्व होता है कि वह देश के प्राकृतिक साधनों का उचित दोहन सुनिश्चित करने के लिए पूँजी, कुशल श्रमिक; उद्यमता, तकनीकी ज्ञान, परिवहन एवं संचार के साधन, शक्ति एवं ऊर्जा के साधन आदि (UPBoardSolutions.com) उपलब्ध कराये। सरकार इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अनेक नीतिगत उपयोग; जैसे—राजकोषीय नीति, मौद्रिक नीति, औद्योगिक नीति, श्रम नीति आदि से आर्थिक विकास  हेतु अनुकूल वातावरण बनाने में अपना योगदान देती है। देश में बचत-विनियोग को प्रोत्साहित करने व औद्योगीकरण को बढ़ावा देने, कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करने आदि सभी कार्यों में सरकार निर्णायक भूमिका निभाती है। इस प्रकार आर्थिक विकास के लिए एक योजनाबद्ध रणनीति बनाने और उसका क्रियान्वयन करके आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति करने में सरकार का महत्त्वपूर्ण योगदान है। राज्य के नियन्त्रण के अभाव में सुनियोजित आर्थिक विकास सम्भव ही नहीं है। हमारे संविधान में राज्य के नीति-निदेशक तत्त्वों में आर्थिक सुरक्षा सम्बन्धी तत्त्वों को प्रमुख स्थान दिया गया है। ये तत्त्व प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अर्थव्यवस्था के संचालन में सरकार की जिम्मेदारी की सीमा को निश्चित करते हैं। संविधान में वर्णित महत्त्वपूर्ण नीति-निदेशक सिद्धान्त जो हमारे आर्थिक जीवन को प्रभावित करते हैं, निम्नलिखित हैं –

  1. सभी नागरिकों के लिए जीविका के पर्याप्त साधन जुटाना।
  2. सामान्य हित के लिए समाज के भौतिक साधनों का उचित वितरण।
  3. एक उचित सीमा से अधिक धन के केन्द्रीकरण पर रोक।
  4. स्त्रियों और पुरुषों दोनों के समान काम के लिए समान वेतन।
  5. श्रमिकों की शक्ति व स्वास्थ्य की रक्षा तथा श्रमिकों को (UPBoardSolutions.com) उनकी अपनी आयु एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत अधिक खतरनाक कार्यों को स्वीकार करने के लिए बाध्य करने वाली परिस्थितियों को हटाना।
  6. बच्चों की शोषण से रक्षा करना।
  7. काम और शिक्षा का अधिकार तथा बेकारी, बीमारी और वृद्धावस्था में सार्वजनिक सहायता उपलब्ध कराना।
  8. काम के उचित वातावरण को सुरक्षित बनाना।
  9. रोजगार और जीवन को उचित स्तर दिलाना।
  10. कमजोर वर्गों, विशेषकर अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लोगों के आर्थिक हितों को प्रोत्साहन देना।
  11. वैज्ञानिक आधार पर कृषि एवं पशुपालन को संगठित करना।

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प्रश्न 2.
आर्थिक विकास प्रक्रिया में राजकीय हस्तक्षेप एवं विधियों की विस्तृत विवेचना कीजिए।
या
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के सफल क्रियान्वयन हेतु क्या कदम उठाने चाहिए? कोई दो सुझाव दीजिए। (2013)
या
औद्योगिक लाइसेन्सिग व्यवस्था को समझाइए तथा इसके उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए। मौद्रिक नीति का अर्थ एवं उद्देश्य लिखिए।
या
विकासशील देशों के आर्थिक विकास के लिए दो उपाय सुझाइए। [2010]
या
राजकोषीय नीति से आप क्या समझते हैं? अर्थव्यवस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए करारोपण के महत्त्व को लिखिए।
या
सार्वजनिक वितरण प्रणाली को प्रभावी बनाने में सरकार द्वारा किए गए प्रयास लिखिए। भारतीय रिजर्व बैंक के किन्हीं चार प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए। [2013]
या
उत्पादन और वितरण पर नियन्त्रण हेतु राज्य कौन-से उपाय करता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :

राज्य द्वारा हस्तक्षेप : हस्तक्षेप के प्रकार एवं विधियाँ

भारतीय अर्थव्यवस्था एक मिश्रित अर्थव्यवस्था है। यहाँ सार्वजनिक क्षेत्र एवं निजी क्षेत्र दोनों ही साथ-साथ कार्य करते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र को उद्देश्य ‘सामाजिक हित में वृद्धि करना है, किन्तु निजी क्षेत्र का उद्देश्य ‘अधिकतम लाभ अर्जित करना है। इस (UPBoardSolutions.com) उद्देश्य की पूर्ति हेतु निजी उत्पादक उपभोक्ताओं व श्रमिकों का अनेक प्रकार से शोषण करते हैं। राज्य का दायित्व समाज को उनके शोषण से बचाना है। इसके लिए सरकार आर्थिक क्रियाओं में हस्तक्षेप करती है। यह हस्तक्षेप निम्नलिखित तीन विधियों द्वारा किया जाता है

  • राजकोषीय नीति
  • मौद्रिक नीति एवं
  • उत्पादन एवं वितरण पर भौतिक नियन्त्रण।

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1. राजकोषीय नीति

सामान्यतः राजकोषीय नीति से अभिप्राय सार्वजनिक व्यय व सार्वजनिक ऋण से सम्बन्धित नीतियों से लगाया जाता है। प्रो० आर्थर स्मिथीज के शब्दों में, ‘राजकोषीय नीति वह नीति है, जिसमें सरकार अपने व्यय तथा आगम के कार्यक्रम को राष्ट्रीय (UPBoardSolutions.com) आय, उत्पादन अथवा रोजगार पर वांछित प्रभाव डालने और अवांछित प्रभावों को रोकने के लिए प्रयुक्त करती है।’ राजकोषीय नीति आर्थिक नीति का एक प्रभावशाली यन्त्र है और आर्थिक स्थायित्व का एक सशक्त साधन है।

इस प्रकार राजकोषीय नीति के अन्तर्गत सरकार सार्वजनिक आय (करारोपण), सार्वजनिक व्यय तथा सार्वजनिक ऋण के द्वारा अर्थव्यवस्था पर वांछित प्रभाव डालने का प्रयास करती है। राजकोषीय नीति के प्रमुख उपकरण निम्नलिखित हैं –

(i) करारोपण कर – एक अनिवार्य अंशदान है, जिसे प्रत्येक करदाता के अनिवार्य रूप से सरकार के कर विभाग को देना होता है। एक नीति के उपकरण के रूप में कर अर्थव्यवस्था को निम्न प्रकार प्रभावित करते हैं –

  1. अमीर व्यक्तियों की आय पर अपेक्षाकृत अधिक कर लगाकर आय एवं धन के वितरण की, विषमताएँ कम की जा सकती हैं।
  2. ऐसा कर-ढाँचा, जिसमें कर की दरें क्रमशः बढ़ती जाती हैं (प्रगतिशील कर-प्रणाली), एक न्यूनतम आय के स्तर को करमुक्त रखते हुए, आय की असमानता को कम रखने में सहायक है।
  3. विलासिता की वस्तुओं पर ऊँचे कर लगाकर आय की असमानता को कम किया जा सकता है।
  4. ऊँचे प्रत्यक्ष कर आयातों को हतोत्साहित करते हैं।
  5. अप्रत्यक्ष करों में कमी औद्योगिक विकास को गति प्रदान करती है।
  6. कर विकास के लिए आवश्यक पूँजी जुटाते हैं।
  7. करों द्वारा प्राप्त आय के परिणामस्वरूप सार्वजनिक (UPBoardSolutions.com) निवेश में वृद्धि आर्थिक एवं सामाजिक आधारिक संरचना के विकास में सहायक है।

(ii) सार्वजनिक व्यय – केन्द्र, राज्य व स्थानीय संस्थाओं द्वारा किए गए व्यय को सार्वजनिक व्यय कहते हैं। आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक व्यय का निम्नलिखित प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है

  1. सार्वजनिक व्यय द्वारा उपभोग स्तर, जीवन स्तर, कार्यक्षमता का स्तर और अन्तत: उत्पादकता के स्तर में वृद्धि की जा सकती है।
  2. सार्वजनिक व्यय आर्थिक साधनों के स्थानान्तरण को प्रभावित करता है।
  3. प्रगतिशील सार्वजनिक व्यय की पद्धति अपनाकर आर्थिक विषमताओं को कम किया जा सकता है।
  4. सार्वजनिक व्यय द्वारा सार्वजनिक निर्माण कार्य की योजनाओं को आरम्भ करके रोजगार में वृद्धि की जा सकती है।
  5. सार्वजनिक व्यय द्वारा आर्थिक विकास को प्रोत्साहित किया जा सकता है।

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(iii) सार्वजनिक ऋण – जब सरकार अपनी वित्तीय आवश्यकताओं को अपनी आय की सामान्य मदों से पूरा नहीं कर पाती, तो उसे सार्वजनिक ऋण का सहारा लेना पड़ता है। इस प्रकार सार्वजनिक ऋण सरकार के व्ययों की पूर्ति करने (UPBoardSolutions.com) का एक साधन है। अत: सरकार द्वारा लिया गया ऋण सार्वजनिक ऋण कहलाता है। यह ऋण अपने ही देश में अथवा विदेश से लिया जा सकता है। सार्वजनिक ऋण अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव डालते हैं –

  1. उत्पादक कार्यों पर व्यय किया गया सार्वजनिक ऋण उत्पादन शक्ति में वृद्धि करता है।
  2. सरकारी ऋण सुरक्षित व सुविधाजनक होते हैं। अतः ये बचत को प्रोत्साहित करते हैं।
  3. यदि ऋण निर्धन व्यक्तियों के लाभार्थ व्यय किया जा सकता है तो इससे आर्थिक असमानताएँ कम होती हैं।
  4. ऋण वर्तमान में उपभोग को घटाते हैं।
  5. ऋण द्वारा उद्योग और व्यापार में वांछनीय परिवर्तन लाए जा सकते हैं।

2. मौद्रिक नीति

सामान्यतया मौद्रिक नीति से आशय सरकार अथवा केन्द्रीय बैंक की उस नियन्त्रण नीति से लगाया जाता है, जिसके अन्तर्गत कुछ निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मुद्रा की मात्रा, उसकी लागत (ब्याज दर) तथा उसके उपयोग को नियन्त्रित करने के उपाय किए जाते हैं। प्रो० हैरी जी० जॉन्सन के शब्दों में, “मौद्रिक नीति का अर्थ केन्द्रीय बैंक की उस नियन्त्रण नीति से है, जिसके द्वारा केन्द्रीय बैंक सामान्य आर्थिक नीति के लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से मुद्रा की पूर्ति पर नियन्त्रण करता है।

मौद्रिक नीति साख की पूर्ति और उसके उपयोग को प्रभावित करके, स्फीति का मुकाबला करके तथा भुगतान सन्तुलन के साम्य को स्थापित करके आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने में सहायक होती है। इसके माध्यम से निजी उपयोग अथवा सरकारी व्यय के साधनों के प्रवाह को घटाया-बढ़ाया जा सकता है तथा विनियोग और पूँजी-निर्माण के लिए उपलब्ध साधनों की मात्रा में आवश्यकतानुसार परिवर्तन किया जा सकता है (UPBoardSolutions.com) और इस प्रकार कृषि व उद्योगों की मुद्रा एवं साख की आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है। किसी भी देश की एक उपयुक्त मौद्रिक नीति बचत व विनियोग के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करती है, साख की लागत को कम करके बचत व विनियोग को प्रोत्साहित करती है, मौद्रिक संस्थाओं की स्थापना करके निष्क्रिय साधनों को गतिशील बनाती है, स्फीति के दबाव को नियन्त्रित करके अतिरिक्त विनियोग के लिए उपयुक्त वातावरण पैदा करती है और हीनार्थ प्रबन्ध द्वारा विकासात्मक विनियोग के लिए अतिरिक्त । साधन उपलब्ध कर सकती है।

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भारत में मौद्रिक नीति का संचालक-भारतीय रिजर्व बैंक

भारतीय रिजर्व बैंक भारत का केन्द्रीय बैंक है। इसकी स्थापना 1 अप्रैल, 1935 ई० को की गई थी। 1 अप्रैल, 1949 ई० को इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। यह बैंक मुख्यतः निम्नलिखित कार्यों को सम्पन्न करता है –

  1. पत्र मुद्रा का निर्गमन करना।
  2. बैंकों के बैंक का कार्य करना।
  3. सरकार के बैंकर, एजेण्ट तथा सलाहकार के रूप में कार्य करना।
  4. विनियम दर को स्थिर बनाए रखना।
  5. कृषि व उद्योग की साख की व्यवस्था करना।
  6. आँकड़े संकलित करना तथा इन्हें प्रकाशित करना।
  7. मुद्रा व साख पर नियन्त्रण रखना।

3. उत्पादन एवं वितरण पर भौतिक नियन्त्रण

सरकार उत्पादन एवं वितरण के क्षेत्रों में भौतिक हस्तक्षेप के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था पर नियन्त्रण लगाती है।

(i) उत्पादन के क्षेत्र में नियन्त्रण – सरकार औद्योगिक नीति व लाइसेन्सिंग प्रक्रिया के माध्यम से अर्थव्यवस्था के औद्योगिक क्षेत्र को नियन्त्रित करती है।

औद्योगिक लाइसेन्सिंग – सरकार आर्थिक क्रियाओं पर आवश्यकतानुसार हस्तक्षेप करती है उत्पादन के क्षेत्र में सरकारी हस्तक्षेप का प्रथम स्वरूप औद्योगिक लाइसेन्स रहा है। भारतीय संसद ने ‘औद्योगिक नीति प्रस्ताव, 1948’ के बाद 1951 ई०  में औद्योगिक विकास एवं नियमन अधिनियम लागू किया था। इसके अन्तर्गत भारत में समस्त विनिर्माण इकाइयों को सरकार के पास पंजीकृत कराना अनिवार्य था। वर्तमान औद्योगिक नीति (1991 ई०) के प्रस्तावों के अनुसार, अब कुछ इकाइयों को छोड़कर जो सुरक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं, अन्यों को पंजीकृत कराना अनिवार्य नहीं है।

पुरानी व्यवस्था में लाइसेन्सिग नियमों को निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए अपनाया गया था –

  1. उद्योगों का सन्तुलित क्षेत्रीय विकास।
  2. बड़े व्यावसायिक घरानों की और अधिक वृद्धि पर रोक।
  3. नए उद्योगों को संरक्षण।
  4. लघु उद्योगों के लिए कुछ क्षेत्रों को रिजर्व करना।

कठोर नियमों एवं प्रशासनिक नियन्त्रणों में वृद्धि के कारण निजी क्षेत्र हतोत्साहित हो रहा था। अब इस नीति में उदारता औद्योगिक विकास की ओर एक सराहनीय कदम है।

1991 ई० में घोषित उदारवादी औद्योगिक नीति एवं बाद में किए गए संशोधनों (UPBoardSolutions.com) के अन्तर्गत, अब केवल 5 उद्योगों के लिए लाइसेन्स लेना अनिवार्य है, विदेशी पूँजी विनियोग को प्रोत्साहन दिया गया है, विदेशी तकनीक के अनेक समझौतों के स्वत: अनुमोदन की व्यवस्था की गई है और निजी क्षेत्र के विस्तार को प्रोत्साहित किया गया है।

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(ii) सार्वजनिक वितरण प्रणाली – अर्थव्यवस्था पर सरकार का भौतिक नियन्त्रण सार्वजनिक वितरण और राशनिंग प्रणाली के रूप में भी होता है। जैसा कि हम जानते हैं, माँग और पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा निर्धारित मूल्य सामाजिक दृष्टि से सदैव वांछनीय नहीं होते। वस्तुओं की पूर्ति के कम होते ही, उनके मूल्य तेजी से बढ़ने लगते हैं। हमारे देश में अनिवार्य वस्तुओं की प्रायः कमी रहती है। इसके तीन प्रमुख कारण हैं –

  1. हम खाद्यान्नों जैसी अनिवार्य एवं विपणन योग्य वस्तुओं का उत्पादन नहीं कर पाते।
  2. उत्पादित माल के भण्डारण एवं विपणन में पर्याप्त दोष हैं।
  3. बड़े व्यवसायी सट्टा बाजारी के लिए खाद्यान्नों का संग्रह कर लेते हैं।

माँग पक्ष की दृष्टि से भारतीय उपभोक्ताओं की क्रय-शक्ति में बहुत असमानताएँ हैं। निर्धन लोगों के पास क्रय-शक्ति का अभाव रहता है। अत: यदि खाद्यान्नों को माँग और पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों के सहारे छोड़ दिया जाए तो क्रय-शक्ति के अभाव के कारण हमारी जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग इन्हें खरीद नहीं पाएगा। फलस्वरूप एक ओर तो कुपोषण एवं भुखमरी होगी और दूसरी ओर अपव्यय एवं अति उपभोग की स्थिति होगी। अत: यह आवश्यक है कि सरकार खाद्यान्न, मिट्टी का तेल और इसी प्रकार की अन्य अनिवार्य वस्तुओं की वसूली, कीमत-निर्धारण और वितरण इस प्रकार करे कि उसकी माँग और पूर्ति के दबावों से रक्षा की जा सके। इसके लिए सरकार तीन कदम उठा सकती है –

1. प्राथमिक उत्पादक को उसकी उपज की पर्याप्त कीमत अवश्य दी जानी चाहिए, अन्यथा वह उत्पादन बढ़ाने में हिचकिचाएगा। अतः सरकार को एक ऐसी कीमत की घोषणा के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए, जिस पर वह सार्वजनिक वसूली के माध्यम से किसान के अतिरिक्त माल को खरीद सके। हमारे देश में केन्द्र सरकार कृषि मूल्य आयोग के सुझावों के आधार पर कृषि वस्तुओं के वसूली मूल्य की घोषणा करके कृषि को खरीदती है।

2. वसूल किए गए स्टॉक के लिए पर्याप्त भण्डारण सुविधाओं का निर्माण किया जाना चाहिए। इससे सरकार के पास बड़ा सुरक्षित भण्डार भौजूदं रहेगा, बाजार में कीमत-स्थिरता बनी रहेगी और सट्टे बाजारी की प्रवृत्ति हतोत्साहित होगी। सार्वजनिक वितरण-प्रणाली (UPBoardSolutions.com) के माध्यम से बनी वस्तुओं का विक्रय किया जाता है।

3. सम्पूर्ण देश में सरकरी नियन्त्रण वाले वितरण केन्द्रों अथवा ‘उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से अनिवार्य वस्तुओं की सार्वजनिक वितरण प्रणाली को प्रभावी बनाया जाता है।

भारत में खाद्यान्न, चीनी, मिट्टी का तेल आदि का वितरण ‘उचित मूल्य की दुकानों से होता है। नियन्त्रित वस्तुओं की बिक्री उपभोक्ता सहाकरी समितियों के माध्यम से की जाती है। खाद्यान्नों एवं चीनी की सार्वजनिक वितरण की व्यवस्था आंशिक राशनिंग की योजना के माध्यम से उचित मूल्य की दुकानों द्वारा की जाती है। उपभोक्ताओं के लिए प्रति व्यक्ति कोटा निर्धारित कर दिया जाता है। इस प्रकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से अल्प आय या निम्न वर्ग के उपभोक्ताओं को उपभोग संरक्षण देना है।

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प्रश्न 3.
‘वैट’ (मूल्यवर्द्धित कर) से आप क्या समझते हैं? भारत में वैट की आवश्यकता बताइए।
उत्तर :

मूल्यवर्द्धित कर

जिस कर की वसूली मूल्यवृद्धि के प्रत्येक चरण (उत्पादन या वितरण) द्वारा की जाती है, उसे मूल्यवर्द्धित कर (VAT) कहते हैं। जैसाकि इसके नाम से भी स्पष्ट होता है कि यह मूल्यवर्धन (value addition) पर लगाया गया कर है, जो भारत में राज्यों द्वारा लगाया जाता है।

कर लगाने की ‘वैट’ विधि एक बेहतर कर-व्यवस्था है; क्योंकि इसमें कर की वसूली मूल्यवर्धन के प्रत्येक स्तर पर की जाती है, इस कारण इसे ‘बहु-बिन्दु कर’ (multi-point tax) व्यवस्था भी कहते हैं। इसके विपरीत गैट-वैट विधि में ‘एकल-बिंदु कर’ (single-point tax) व्यवस्था होती है जिससे ‘कर पर कर (tax upon tax) लगने लगता है तथा मुद्रास्फीति पर इसका ‘क्रमपाती प्रभाव’ (Cascading Effect) पड़ता है और इस कारण महँगाई बढ़ती है। भारत जैसे देश में, जहाँ एक बहुत बड़ी जनसंख्या क्रयशक्ति निम्न होने के कारण बेहतर जीवन-स्तर से नीचे गुजर-बसर करती है, कर वसूलने (UPBoardSolutions.com) की व्यवस्था वैट पद्धति (VAT Method) पर होना अति तर्कसंगत है। यह कर प्रणाली बिना ‘धनी-विरोधी’ (anti-ich) होते हुए भी ‘गरीबी-मित्रवत् (prop-poor) है।

भारत में वैट’ की आवश्यकता

विश्व के 150 से अधिक देश अपने अप्रत्यक्ष करों का संग्रहण मूल्यवर्धित कर (वैट) पद्धति पर ही करते हैं। जिससे वैश्वीकरण की प्रक्रिया में हो रही अर्थव्यवस्थाओं की समेकन प्रक्रिया को पूरा करने के लिए भी भारत को इस प्रणाली को अपनाने की जरूरत प्रतीत हो रही थी। भारत में भी अप्रत्यक्ष करों की वसूली के लिए वैट’ विधि को अपनाना आवश्यक है। इसे हम निम्न प्रकार से स्पष्ट कर सकते हैं –

(i) चूंकि गैर-वैट पद्धति में कर की वसूली.एक ही बिन्दु पर की जाती है जिस कारण कर पर कर लगाने से मूल्य वृद्धि होती जाती है, जो गरीब-विरोधी (anti-poor) है। अतः वैट को अपनाने से यह मूल्य-वृद्धि नहीं होगी जिससे गरीबों की भी क्रयशक्ति बढ़ेगी तथा उनके जीवन-स्तर में सुधार होगा।

(ii) भारत एक संघीय राजव्यवस्था है, जहाँ केन्द्र सरकार के अलावा राज्य सरकारों द्वारा भी कई प्रकार के अप्रत्यक्ष करों की वसूली की जाती है। यद्यपि केन्द्र द्वारा आरोपित अप्रत्यक्ष कर पूरे देश में एकसमान हैं, लेकिन राज्यों के अप्रत्यक्ष करों (उत्पाद शुल्क, बिक्री कर, मनोरंजन कर इत्यादि) में हमेशा से ही भिन्नता रही है। इस प्रकार भारत के अलग-अलग राज्यों में अप्रत्यक्ष करों का भार भी अलग-अलग है। अर्थात् यह कह सकते हैं कि भारत का बाजार एकीकृत (unified) नहीं है जिससे भारत में उत्पादन और व्यापार करना काफी मुश्किल कार्य रहा है। यही कारण था कि ‘वैट’ के माध्यम से राज्यों के अप्रत्यक्ष कर में समानता लाने के लिए राज्य वैट’ (वैट) (UPBoardSolutions.com) की शुरुआत की गयी जिसने राज्यों के बिक्री करों का स्थान लिया तथा इसकी वसूली मूल्यवर्द्धित पद्धति पर प्रारंभ हुई। इस प्रक्रिया को ही ‘समरूप वैट’ (Uniform VAT) की शुरुआत भी कहते हैं।

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(iii) इसके अलावा आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया के फलीभूत होने के लिए भारत के बाजार को एकरूप या समरूप करना आवश्यक था जिसकी शुरुआत ‘वैट’ से की गयी।

(iv) भारतीय संघीय व्यवस्था में आर्थिक रूप से मजबूत संघ एवं कमजोर राज्यों का उद्भव हुआ, इस | कारण राज्य जिस स्थानीय विकास कार्य के प्रति उत्तरदायी थे, उसमें निरंतर ह्रास हुआ। चूंकि वैट विधि में राज्यों की कर वसूली बढ़ती है; अत: भारत में इस प्रणाली को अपनाना आवश्यक है।

(v) हालाँकि भारत में अप्रत्यक्ष करों की भारी चोरी होती रही है, परन्तु वैट विधि के लागू होने से कर चोरी घटी है; क्योंकि इस विधि में किसी भी स्तर पर किए गए मूल्यवर्द्धन की पुष्टि के लिए पूर्व में की गयी खरीद की रसीद दिखलाना आवश्यक है। इस विधि द्वारा करों की दोहरी संवीक्षा’ (double check) संभव है और कर की चोरी रोकना स्वतः संभव हो जाता है।

(vi) ‘राज्य वैट में राज्यों के अन्य अप्रत्यक्ष करों एवं केन्द्र के कई अप्रत्यक्ष करों को शामिल कर दिया जाए तो कर की व्यवस्था काफी सरल’ (Simple) और ‘दक्ष’ (Efficient) भी हो जाएगी। ऐसे ही भविष्य के कर को ‘एकल वैट’ (Single VAT) कहा जाएगा जिसकी कोशिश ‘वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax-GST) द्वारा करने की कोशिश की गई है। इस प्रकार, इन सभी बातों को ध्यान में रखकर कर सुधार (चेलिया कमेटी एवं केलकर कमेटी) (UPBoardSolutions.com) शुरू किए गए जिनमें एक सीमा तक सफलता भी मिली है और इन्हें आगे जारी रखने का प्रोत्साहन मिला है। विदित हो कि वर्ष 1996 में केन्द्र सरकार ने वैट पद्धति से उत्पाद शुल्क वसूलना शुरू किया था और इस कर को एक नया नाम सेनवैट (CENVAT’) दिया गया था।

हालाँकि कमेटी का एक अन्य प्रस्ताव राज्यों के उत्पाद शुल्क एवं बिक्री कर को एक कर, राज्य वैट (State VAT) अथवा वैट को मिला देने का था, लेकिन राज्यों की इच्छाशक्ति के अभाव में यह संभव नहीं हो सका। अन्ततः राज्यों के केवल बिक्री कर का नाम बदलकर वैट कर दिया गया और इसकी वसूली वैट पद्धति पर की जाने लगी। कुछ राज्यों ने इसे लागू नहीं किया, जबकि कुछ ने बाद में लागू किया, यद्यपि इसका अनुभव उत्साहजनक रहा।

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प्रश्न 4.
सेवा कर क्या है? वस्तु एवं सेवाकर का वर्णन कीजिए।
उत्तर :

सेवा कर

पिछले दशक में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ती रही है। वर्ष 1994-95 में भारत सरकार ने सेवा कर लागू किया जिससे उसके कर राजस्व में वृद्धि होती रही है। सेवा कर एक प्रकार को अप्रत्यक्ष कर है; क्योंकि इसमें सेवा प्रदाता कर देता है और वह इसकी प्रतिपूर्ति करयोग्य वस्तुओं को खरीदने वालों या प्राप्तकर्ताओं से करता है।

वर्ष 1994 में केवल तीन सेवाओं से शुरू होकर आज सेवाकर 100 से अधिक सेवाओं पर लागू है। संघीय बजट 2015-16 में सेवा कर को बढ़ाकर 14 प्रतिशत कर दिया गया जिसमें शिक्षा उपकर भी शामिल है, जबकि पहले यह शिक्षा उपकर सहित 12.36 प्रतिशत था, (UPBoardSolutions.com) परन्तु 15 नवम्बर, 2015 को सेवा कर की दर को स्वच्छ भारत उपकर जोड़कर 14.5% कर दिया गया। इसके बाद 1 जून, 2016 से सभी करयोग्य सेवाओं पर 0.5 कृषि कल्याण उपकर लगाया गया है जिससे सेवा कर की दर बढ़कर 15% हो गयी है। यह परिवर्तन केन्द्र एवं राज्यों दोनों स्तरों पर सेवाओं पर करारोपण को सुगम बनाने के लिए किया गया।

वस्तु एवं सेवा कर

वस्तु एवं सेवाकर (जी०एस०टी०) एक ऐसा कर है, जो राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी वस्तु या सेवा के निर्माण, बिक्री और प्रयोग पर लगाया जाता है। इस कर व्यवस्था के लागू होने के बाद उत्पाद शुल्क, केन्द्रीय बिक्री कर, सेवा कर जैसे केन्द्रीय कर तथा राज्य स्तर के बिक्री कर या वैट, एण्ट्री टैक्स, लॉटरी टैक्स, स्टॉम्प ड्यूटी, टेलीकॉम लाइसेन्स फीस, टर्नओवर टैक्स इत्यादि समाप्त हो जाएँगे। इस कर व्यवस्था में वस्तु एवं सेवा की खरीद पर दिए गए कर को उनकी सप्लाई के (UPBoardSolutions.com) समय दिए जाने वाले कर के मुकाबले समायोजित कर दिया जाता है, हालाँकि यह कर भी अन्त में ग्राहक को ही देना होता है; क्योंकि वही सप्लाई चेन में खड़ा अन्तिम व्यक्ति होता है।

सर्वप्रथम अप्रत्यक्ष करों के क्षेत्र में सुधारों की शुरुआत वर्ष 2003 में केलकर समिति ने की थी, इसके बाद संप्रग सरकार ने वर्ष 2006 में जी०एस०टी० विधेयक प्रस्तावित किया था तथा पहली बार यह विधेयक वर्ष 2011 में लाया गया था। जी०एस०टी० व्यवस्था विश्व के 140 देशों में लागू है। वर्ष 1954 में जी०एस०टी० लागू करने वाला फ्रांस विश्व का पहला देश है। भारत की तरह की दोहरी जी०एस०टी० व्यवस्था ब्राजील और कनाडा में भी है। वर्ष 2000 में तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने जी०एस०टी० पर विचार के लिए विशेष अधिकारप्राप्त समिति का गठन किया था तथा समिति का अध्यक्ष पश्चिम बंगाल के तत्कालीन वित्त मंत्री असीम दासगुप्ता को बनाया तथा असीम दासगुप्ता समिति को जी०एस०टी० के लिए मॉडल तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी।

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वर्ष 2005 में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आम बजट में जी०एस०टी० के विचार को सार्वजनिक तौर पर सामने रखा था। इसके अलावा वर्ष 2009 में जी०एस०टी० के बारे में एक विमर्श-पत्र रखा गया तथा बाद में सरकार ने राज्यों के वित्त मंत्रियों की एक अधिकारसम्पन्न समिति बनाई थी। हालाँकि वर्ष 2014 में तत्कालीन संप्रग सरकार ने इससे सम्बन्धित विधेयक तैयार किया था, किन्तु लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के कारण यह विधेयक पारित नहीं हो सका। वर्तमान सरकार इसे लोकसभा में लेकर आई और इसे स्थायी समिति में भेजा गया।

वस्तु एवं सेवा कर (जी०एस०टी०) से सम्बन्धित संविधान संशोधन (122वाँ) विधेयक 8 अगस्त, 2016 को लोकसभा में पारित हो गया तथा सभी सदस्यों ने इस बिल के पक्ष में मतदान किया। हालाँकि राज्यसभा ने 3 अगस्त, 2016 को जी०एस०टी० विधेयक को सर्वसम्मति के साथ पारित कर दिया था। इस संविधान संशोधन विधेयक का राष्ट्रपति की स्वीकृति से पूर्व आधे से अधिक राज्यों के विधानमण्डलों द्वारा समर्थन किया जाना था, इसी क्रम में असम देश का पहला राज्य था जिसकी विधानसभा ने सर्वप्रथम इस विधेयक का समर्थन किया। तत्पश्चात् बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, दिल्ली, नागालैण्ड, महाराष्ट्र, हरियाणा, सिक्किम, मिजोरम, तेलंगाना, गोवा, ओडिशा, राजस्थान, अरुणाचल प्रदेश तथा आंध्र प्रदेश राज्यों की विधानसभाओं द्वारा इस विधेयक को पारित किए (UPBoardSolutions.com) जाने के बाद 8 सितम्बर, 2016 को राष्ट्रपति द्वारा इस विधेयक को स्वीकृति प्रदान कर दी गई। इसी के साथ संविधान संशोधन (101वाँ) अधिनियम, 2016 लागू हुआ। इस अधिनियम का क्रियान्वयन 1 जुलाई, 2017 से प्रारम्भ किया गया जिसमें वस्तु एवं सेवाकर की दरों को चार स्तरों में बाँटा गया है, जो क्रमश: 5%, 12%, 18% तथा 28% हैं।

इस कर व्यवस्था में केन्द्र और राज्यों, दोनों के कर केवल बिक्री के समय वसूले जाएँगे, साथ ही ये दोनों ही कर निर्माण लागत (मैन्यूफैक्चरिंग कॉस्ट) के आधार पर तय होंगे जिससे वस्तु और सेवाओं के दाम कम होंगे और आम उपभोक्ताओं को लाभ होगा।

गरीबों के लिए जरूरी चीजों को जी०एस०टी० के दायरे से बाहर रखा गया है, इससे गरीबी दूर करने में भी मदद मिलेगी, बैंकों में भी पारदर्शिता आएगी। छोटे उद्यमियों को भी उनके रिकॉर्ड के हिसाब से आसानी से कर्ज मिल सकेगा जिससे उनके व्यापार में भी आशातीत वृद्धि हो सकेगी। इसके अन्तर्गत भारत सरकार द्वारा कुछ केन्द्रीय एवं कुछ राज्य के अप्रत्यक्ष करों को समाहित किया गया है जिनका विवरण निम्नलिखित है –

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 7 (Section 4)

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था में राज्य का हस्तक्षेप क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
अर्थव्यवस्था के संचालन में राज्य की निर्णायक भूमिका होती है। राज्य के नियन्त्रण के बिना सुनियोजित आर्थिक विकास सम्भव नहीं है। भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था पायी जाती है, जिसमें निजी तथा सार्वजनिक दोनों ही क्षेत्र साथ-साथ विद्यमान हैं। भारतीय संविधान में राज्य का एक प्रमुख उद्देश्य ‘समाजवादी’ गणतन्त्र की स्थापना करना है, यह तभी सम्भव है जब अर्थव्यवस्था पर राज्य का सम्पूर्ण नियन्त्रण स्थापित हो।

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का बाजार तन्त्र सामाजिक उद्देश्यों की अवहेलना करता है और केवल स्व-लाभ की भावना से प्रेरित होकर उत्पादन क्रिया सम्पादित करता है। अर्थव्यवस्था में बढ़ते धन और आय के वितरण की असमानताओं को कम करने (UPBoardSolutions.com) और समाज़ में अधिकतम लोक-कल्याण की दृष्टि से सरकार अर्थव्यवस्था में अनेक प्रकार के नियन्त्रण लगाकर हस्तक्षेप करती है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था में आवश्यकतानुसार नियन्त्रण उपायों को अपनाना सरकारी हस्तक्षेप कहलाता है। कराधान, मौद्रिक नीति, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, राशनिंग आदि सरकारी हस्तक्षेप के उदाहरण हैं।

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अर्थव्यवस्था में राज्य के हस्तक्षेप की आवश्यकता एक अन्य कारण से भी है। देश के आर्थिक विकास हेतु आवश्यक निवेश के लिए राज्य को साधन जुटाने की आवश्यकता होती है। शिक्षा, आवास, स्वास्थ्य, परिवहन, संचार, ऊर्जा आदि सामाजिक तथा आर्थिक सेवाओं को प्रदान करने के लिए राज्य को धन की आवश्यकता होती है। इसलिए राज्य को अर्थव्यवस्था में हस्तक्षेप करना आवश्यक होता है। यह कार्य राजकोषीय नीति, मौद्रिक नीति तथा उत्पादन एवं वितरण पर भौतिक नियन्त्रण द्वारा सम्पादित किया जाता है। इस प्रकार राज्य के हस्तक्षेप का मुख्य उद्देश्य आर्थिक असमानता को समाप्त करना तथा आर्थिक न्याय की स्थापना करना है।

प्रश्न 2.
देश में मौद्रिक नियन्त्रण स्थापित करने वाली किन्हीं दो संस्थाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
मौद्रिक नीति का अभिप्राय ऐसी नीति से है जिसे मौद्रिक अधिकारी द्वारा देश में साख और मुद्रा की मात्रा को नियमित एवं नियन्त्रित करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। देश का केन्द्रीय बैंक मौद्रिक नीति लागू करने के लिए अधिकृत होता है। भारत में देश का केन्द्रीय बैंक ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ मौद्रिक नीति का नियमन करता है। भारतीय रिजर्व बैंक अनेक उपायों द्वारा देश में साख-मुद्रा की पूर्ति को नियन्त्रित करता है। इन उपायों में प्रमुख हैं –

1. बैंक दर नीति – वह ब्याज की दर, जिस पर केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैकों को ऋण प्रदान करता है, बैंक दर कहलाती है। यदि बैंक दर अधिक होती है, तो व्यापारिक बैंक भी ऊँची ब्याज की दर पर रुपया उधार देंगे। यदि बैंक दर नीची होगी, तो व्यापारिक बैंक व्यापारियों को कम ब्याज की दर पर रुपया उधार देंगे। इस प्रकार बैंक दर और ब्याज दरे में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। बैंक दर में वृद्धि से साख की मात्रा कम होती है और बैंक दर में कमी से साख की मात्रा बढ़ती है।

2. खुले बाजार की कार्यवाही – खुले बाजार की कार्यवाही से तात्पर्य, केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करना है। जब केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियों को खरीदता है, तो इससे व्यापारिक बैंकों के जमा कोष बढ़ते हैं और इससे अधिक साख का सृजन किया जा सकता है। जब साख की मात्रा में विस्तार करना होता है, तो केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियों को खरीदता है। साख की मात्रा को कम करने के लिए केन्द्रीय बैंक खुले बाजार में प्रतिभूतियों को बेचता है।

प्रश्न 3.
राजकोषीय नीति तथा मौद्रिक नीति में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
राजकोषीय नीति – राजकोषीय नीति से अभिप्राय सरकार द्वारा अपने बजट, कराधान, व्यय तथा ऋण नीति की ऐसी व्यवस्था से है, जिसका उद्देश्य सरकार द्वारा आर्थिक विकास प्राप्त करना है।
मौद्रिक नीति – मौद्रिक नीति से अभिप्राय ऐसी नीति से है, जिसे मौद्रिक अधिकारी द्वारा देश में मुद्रा तथा साख की मात्रा को नियमित एवं नियन्त्रित करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।

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प्रश्न 4.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली क्या है ? इसके दो महत्त्व/लाभ बताइए। [2009]
या
सार्वजनिक वितरण प्रणाली का क्या तात्पर्य है? इसके दो लाभों को-उल्लेख कीजिए। [2014]
या
भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के दो उद्देश्यों/लाभ का वर्णन कीजिए। [2017]
या
भारत में राशनिंग व्यवस्था के दो महत्त्व बताइए।
या
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के किन्हीं तीन महत्त्वों को बताइट। [2015]
उत्तर :
माँग और आपूर्ति की शक्तियाँ अर्थव्यवस्था में उत्पादन व वितरण के प्रश्नों का हमेशा ही सामाजिक दृष्टि से एक वांछनीय हल प्रस्तुत नहीं कर पातीं। हमारे देश में भोजन, ईंधन और कपड़े जैसी अनिवार्य वस्तुओं की माँग और पूर्ति के मामले में दोष व्याप्त हैं।

पूर्ति की ओर से समस्या वस्तु की दुर्लभता की है। इस दुर्लभता के कारण-अपर्याप्त उत्पादन, उत्पादन के भण्डारण व विपणन में कमियाँ तथा सट्टे एवं कालाबाजारी के लाभों के लिए जमाखोरी की प्रवृत्ति हो सकते हैं।

माँग की ओर से समस्या गरीबी और उपभोक्ताओं की क्रय-शक्ति में पर्याप्त असमानताओं की है। उदाहरण के लिए, यदि खाद्यान्नों को; माँग और पूर्ति की मुक्त शक्तियों द्वारा; निर्धारित कीमतों पर बेचने दिया जाए तो वे व्यावहारिक रूप में हमारी जनसंख्या के एक बहुत (UPBoardSolutions.com) बड़े भाग की पहुँच से बाहर हो जाएँगे। ऐसे में एक ओर तो कुपोषण एवं भुखमरी की स्थिति होगी तथा दूसरी ओर अपव्यय एवं अति उपभोग की।

इस समस्या से निबटने के तीन प्रभावी उपायों में से एक है—सार्वजनिक वितरण प्रणाली। इसके अन्तर्गत समूचे देश में सरकारी नियन्त्रण वाले वितरण केन्द्रों अथवा उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से अनिवार्य वस्तुओं का वितरण किया जाता है। भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली खाद्यान्न और चीनी की बिक्री करने वाली उचित मूल्य की दुकानों के तन्त्र के माध्यम से सफलतापूर्वक काम करती है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली का प्रथम उद्देश्य माँग और पूर्ति के मध्य की खाई को पाटना है। इसका दूसरी उद्देश्य यह है कि इसने अनिवार्य खाद्य और अनिवार्य वस्तुओं की जमाखोरी को दूर करने में अहम् भूमिका निभाई है।

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प्रश्न 5.
आर्थिक विकास हेतु सरकार को कर लगाने चाहिए। इसके पक्ष में कोई दो तर्क लिखिए।
उत्तर :
आर्थिक विकास हेतु सरकार को कर लगाने चाहिए, इसके पक्ष में दो तर्क हैं –

  1. विकास के लिए आवश्यक पूँजी जुटाने का कार्य सरकार करों द्वारा ही करती है।
  2. करों द्वारा प्राप्त आय के परिणामस्वरूप सार्वजनिक निवेश में वृद्धि आर्थिक एवं सामाजिक आधारिक संरचना के विकास में सहायक है।

प्रश्न 6.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ? इसके उद्देश्य लिखिए।
या
भारत की मौद्रिक नीति के किन्हीं दो उद्देश्यों का वर्णन कीजिए। [2009]
उत्तर :
मौद्रिक नीति का अभिप्राय ऐसी नीति से है, जिसे मौद्रिक अधिकारी द्वारा देश में साख और मुद्रा की मात्रा को नियमित एवं नियन्त्रित करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसके उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. बचत व विनियोग के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करना।
  2. साख की लागत को कम करके बचत व विनियोग को प्रोत्साहित करना।
  3. मौद्रिक संस्थाओं की स्थापना करके निष्क्रिय साधनों को गतिशील बनाना।
  4. स्फीति के दबाव को नियन्त्रित करके अतिरिक्त विनियोग के लिए उपयुक्त वातावरण पैदा करना।
  5. हीनार्थ प्रबन्धन द्वारा विकासात्मक विनियोग के लिए अतिरिक्त साधन उपलब्ध करना।

प्रश्न 7.
जी०एस०टी० के लाभ बताइए।
उत्तर :
जी०एस०टी० के लाभ (Benefits of GST)-जी०एस०टी० एक अधिक सटीक कर पद्धति है जिसका अनुपालन निष्पक्ष तथा वितरण अधिक आकर्षक है। जी०एस०टी० मौजूदा टैक्स ढाँचे की तरह कई स्थानों पर न लगकर केवल गन्तव्य स्थान (Destination Point) पर लगेगा। मौजूदा व्यवस्था के अनुसार किसी सामान पर फैक्टरी से निकलते समय टैक्स लगता है और फिर खुदरा स्थान पर भी, जब वह बिकता है तो वहाँ भी उस पर टैक्स जोड़ा जाता है। (UPBoardSolutions.com) जानकारों का मानना है कि इस नई व्यवस्था से जहाँ भ्रष्टाचार में कमी आएगी, वहीं लाल फीताशाही भी कम होगी और पारदर्शिता बढ़ेगी, पूरा देश एक साझा व्यापार बढ़ाने में सहायक होगा।

सरकार को लाभ-जी०एस०टी० के तहत कर संरचना आसान होगी और ‘कर-आधार’ बढ़ेगा। इसके दायरे से बहुत कम सामान और सेवाएँ बच पाएँगे। एक अनुमान के अनुसार, जी०एस०टी० व्यवस्था लागू होने के बाद निर्यात, रोजगार और आर्थिक विकास में बढ़ोतरी होगी, इससे देश को सालाना के ₹ 15 अरब की अतिरिक्त आमदनी होगी।

कम्पनियों को लाभ-वस्तुओं और सेवाओं के दाम कम होने से उनकी खपत बढ़ेगी, इससे कम्पनियों का लाभ बढ़ेगा। इसके अतिरिक्त उन पर टैक्स का औसत बोझ कम होगा। कर केवल बिक्री के स्थान पर लगने से उत्पादन लागत (प्रोडक्शन कॉस्ट) कम होगी जिससे निर्यात बाजार में कम्पनियों की प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ेगी।

जनता को लाभ-इस कर व्यवस्था में केन्द्र और राज्यों दोनों के कर केवल बिक्री के समय वसूले (UPBoardSolutions.com) जाएँगे। साथ ही ये दोनों ही कर निर्माण लागत (मैन्यूफैक्चरिंग कॉस्ट) के आधार पर तय होंगे, इससे वस्तु और सेवाओं के दाम कम होंगे और आम उपभोक्ताओं को लाभ होगा।

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गरीबों के लिए जरूरी चीजों को जी०एस०टी० के दायरे से बाहर रखा गया है। इससे गरीबी दूर करने में भी मदद मिलेगी। बैंकों में भी पारदर्शिता आएगी, वे गरीबों को कर्ज देने में आनाकानी नहीं करेंगे। छोटे उद्यमियों को भी उनके रिकॉर्ड के हिसाब से आसानी से कर्ज मिलेगा; क्योंकि अब सब कुछ ऑनलाईन होगा।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका किन बातों पर निर्भर करती है ?
उत्तर :
अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है

  1. राज्य द्वारा स्वीकृत सिद्धान्त तथा
  2. अर्थव्यवस्था में निर्णय लेने वाले व्यक्ति।

प्रश्न 2.
मिश्रित अर्थव्यवस्था को परिभाषित कीजिए। [2010]
उत्तर :
श्री दूधनाथ चतुर्वेदी के अनुसार, “मिश्रित अर्थव्यवस्था एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है जिसमें निजी क्षेत्र तथा सार्वजनिक क्षेत्र, दोनों का पर्याप्त मात्रा में सह-अस्तित्व होता है। दोनों के कार्यों का क्षेत्र निर्धारित कर दिया जाता है, परन्तु निजी क्षेत्र की प्रमुखता रहती है। दोनों अपने-अपने क्षेत्र में इस प्रकार कार्य करते हैं कि बिना शोषण के देश के सभी वर्गों के आर्थिक कल्याण में वृद्धि हो तथा तीव्र आर्थिक विकास प्राप्त हो सके।

प्रश्न 3.
एक पूर्णतया समाजवादी अर्थव्यवस्था में मुख्य निर्णयकर्ता कौन होता है ?
उत्तर :
एक पूर्णतया समाजवादी अर्थव्यवस्था में मुख्य निर्णयकर्ता राज्य होता है।

प्रश्न 4.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बिक्री की जाने वाली किन्हीं दो प्रमुख वस्तुओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत बिक्री की जाने वाली दो प्रमुख वस्तुओं के नाम हैं

  1. चीनी तथा
  2. मिट्टी का तेल।

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प्रश्न 5.
उन तीन विधियों का नाम लिखिए जिनके द्वारा राज्य एक मिश्रित अर्थव्यवस्था में हस्तक्षेप करता है।
या
आर्थिक क्रियाओं में राज्य सरकार के हस्तक्षेप की किन्हीं दो विधियों के नाम लिखिए। [2011]
या
भारतीय अर्थव्यवस्था के किन्हीं तीन क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए जिनमें राज्य हस्तक्षेप करता है। [2015]
उत्तर :

  1. राजकोषीय नीति द्वारा
  2. मौद्रिक नीति द्वारा
  3. उत्पादन एवं वितरण पर भौतिक नियन्त्रण द्वारा।

प्रश्न 6.
भारत में आवश्यक वस्तुओं की कमी के क्या कारण हैं ?
उत्तर :
भारत में आवश्यक वस्तुओं की कमी के मुख्य दो कारण निम्नलिखित हैं –

  1. उत्पादन का अपर्याप्त होना तथा
  2. भण्डारण एवं विपणन सुविधाओं में कमी।

प्रश्न 7.
बाजार में माँग और पूर्ति की शक्तियाँ किसके पक्ष में होती हैं ?
उत्तर :
बाजार में माँग और पूर्ति की शक्तियाँ उन्हीं के पक्ष में (UPBoardSolutions.com) होती हैं जो अधिक खर्च करने की स्थिति में होते हैं।

प्रश्न 8.
व्यावसायिक बैंकों को दिशा देना एवं नियन्त्रित करना किसका काम है ?
उत्तर :
व्यावसायिक बैंकों को दिशा देने और नियन्त्रित करने का काम भारतीय रिजर्व बैंक का है।

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प्रश्न 9.
भारतीय रिजर्व बैंक के चार प्रमुख कार्य लिखिए। [2014, 15]
उत्तर :
भारतीय रिजर्व बैंक के तीन प्रमुख कार्य हैं—

  1. पत्र-मुद्रा का निर्गमन
  2. विनिमय दर को स्थिर बनाये रखना
  3. सरकार के बैंकर का कार्य तथा
  4. बैंकों का बैंक।

प्रश्न 10.
विदेशी विनिमय की खरीद व बिक्री को कौन-सी संस्था नियन्त्रित करती है ?
उत्तर :
भारतीय रिजर्व बैंक।

प्रश्न 11.
भारत के केन्द्रीय बैंक का नाम बताइए। इसकी स्थापना व राष्ट्रीयकरण कब-कब किया गया ?
उत्तर :
भारत के केन्द्रीय बैंक का नाम भारतीय रिजर्व बैंक (रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया) है। इसकी स्थापना 1 अप्रैल, 1935 ई० को हुई थी और 1 अप्रैल, 1949 ई० को इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।

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प्रश्न 12.
भारत में मौद्रिक नीति का नियन्त्रण कौन करता है ?
उत्तर :
रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया।

प्रश्न 13.
राशनिंग का एक महत्त्व लिखिए। [2009]
उत्तर :
इससे वस्तु की कीमतें स्थिर रहती हैं तथा सट्टे, कालाबाजारी व जमाखोरी की भी रोकथाम हो जाती है।

प्रश्न 14.
आर्थिक विकास से क्या आशय है?
उत्तर :
आर्थिक विकास एक निरन्तर चलती रहने वाली प्रक्रिया है, (UPBoardSolutions.com) जिससे वास्तविक राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में दीर्घकालीन वृद्धि होती है।

प्रश्न 15.
सरकारी हस्तक्षेप से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
अर्थव्यवस्था में बढ़ते धन और आय के वितरण की असमानताओं को कम करने, विकास की दृष्टि से आवश्यक निवेशों के लिए साधन जुटाने और समाज में अधिकतम लोक-कल्याण की दृष्टि से सरकार अर्थव्यवस्था में अनेक प्रकार के नियन्त्रण लगाकर हस्तक्षेप करती है। (UPBoardSolutions.com) इस प्रकार अर्थव्यवस्था में आवश्यकतानुसार नियन्त्रण उपायों को अपनाना सरकारी हस्तक्षेप कहलाता है।

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प्रश्न 16.
अर्थव्यवस्था में राज्य किन तरीकों से हस्तक्षेप करता है ?
उत्तर :
अर्थव्यवस्था में राज्य निम्नलिखित तरीकों से हस्तक्षेप कर सकता है –

  1. कराधान
  2. मौद्रिक नीति तथा
  3. सार्वजनिक वितरण एवं राशनिंग।

प्रश्न 17.
राशनिंग व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
राशनिंग से आशय है-सरकारी नियन्त्रण की दुकानों द्वारा उचित मूल्य पर खाद्यान्न व आवश्यक वस्तुओं का प्रति व्यक्ति निर्धारित कोटा उपलब्ध कराना।

प्रश्न 18.
औद्योगिक लाइसेन्सिग का क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
औद्योगिक लाइसेन्स प्रणाली के अन्तर्गत औद्योगिक विकास एवं नियमन (UPBoardSolutions.com) अधिनियम (1951) लागू किया गया, जिसके अधीन भारत की सभी विनिर्माण औद्योगिक इकाइयों को पंजीकृत करवाना अनिवार्य किया गया।

प्रश्न 19.
औद्योगिक लाइसेन्सिग के दो प्रमुख उद्देश्य लिखिए।
उतर :

  1. उद्योगों का क्षेत्रीय स्तर पर सन्तुलित विकास करना।
  2. नव-संचालित उद्योगों का संरक्षण करना।

प्रश्न 20.
पंजीकरण औद्योगिक लाइसेन्सिंग का क्या अभिप्राय है ? [2010]
उत्तर :
भारतीय संसद ने ‘औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1948’ के बाद 1951 ई० में औद्योगिक विकास एवं नियमन अधिनियम” लागू किया। इसी को पंजीकरण औद्योगिक लाइसेन्सिग प्रणाली का नाम दिया गया।

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बहुविकल्पीय प्रश्न

1. हमारी (भारतीय) अर्थव्यवस्था है [2009, 16]

(क) पूँजीवादी
(ख) समाजवादी
(ग) मिश्रित
(घ) साम्यवादी

2. औद्योगिक लाइसेन्स आवश्यक नहीं है

(क) लघु उद्योगों की स्थापना के लिए।
(ख) कुटीर उद्योगों की स्थापना के लिए।
(ग) उद्योगों के विस्तार के लिए
(घ) नयी इकाई लगाने के लिए।

3. मौद्रिक नियन्त्रण किया जाता है [2014]
या
भारत में मौद्रिक नीति कौन नियन्त्रित करता है? [2013, 16]

(क) रिजर्व बैंक द्वारा।
(ख) वित्तीय संस्थाओं द्वारा
(ग) राज्य सरकार द्वारा
(घ) केन्द्र सरकार द्वारा।

4. सार्वजनिक वितरण प्रणाली का क्या उद्देश्य है?

(क) उत्पादन संरक्षण
(ख) विदेशी विनिमय संरक्षण
(ग) मजदूरी संरक्षण
(घ) उपभोक्ता संरक्षण

5. सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सम्मिलित नहीं है

(क) खाद्यान्न
(ख) चीनी
(ग) मिट्टी का तेल
(घ) डीजल

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6. निम्नलिखित में से भारतीय रिजर्व बैंक का मुख्य कार्य कौन-सा है?

(क) केवल मुद्रा का लेन-देन करना
(ख) केवल ऋण सुविधा उपलब्ध कराना।
(ग) केवल विदेशी विनिमय एवं क्रय-विक्रय का नियन्त्रण
(घ) केवल आयात-निर्यात पर नियन्त्रण करना।

7. भारत में विदेशी विनिमय की खरीद एवं बिक्री पर नियन्त्रण कौन-सा बैंक करता है? [2009]
या
भारत में विदेशी विनिमय को नियन्त्रित करने वाला निम्नलिखित में से कौन है? [2013, 16]

(क) स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया
(ख) रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया
(ग) सेण्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया
(घ) यूनियन बैंक ऑफ इण्डिया

8. भारत में मौद्रिक नीति का संचालन व नियन्त्रण कौन-सा बैंक करता है? [2009,14]

(क) स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया
(ख) रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया
(ग) सेण्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया
(घ) बैंक ऑफ इण्डिया

9. निम्नलिखित में से भारत का केन्द्रीय बैंक कौन है? [2015, 18]

(क) पंजाब नेशनल बैंक
(ख) पंजाब एण्ड सिन्ध बैंक
(ग) भारतीय रिजर्व बैंक
(घ) सेण्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया

10. सरकारी हस्तक्षेप का उदाहरण है

(क) राजकोषीय नीति
(ख) मौद्रिक नीति
(ग) सरकारी नियन्त्रण
(घ) ये सभी

11. नई औद्योगिक नीति की घोषणा हुई थी

(क) 1950 में
(ख) 1982 में
(ग) 1986 में
(घ) 1991 में

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12. भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना हुई थी [2011, 15, 17]

(क) 1935 में
(ख) 1940 में
(ग) 1945 में
(घ) 1950 में

13. भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण कब हुआ? [2017]

(क) 1 अप्रैल, 1949
(ख) 26 जनवरी, 1950
(ग) 1 अप्रैल, 1951
(घ) 1 जनवरी, 1948

14. भारत में आर्थिक उदारीकरण की नीति कब आरम्भ हुई? [2017, 18]

(क) 1981 ई० में
(ख) 1998 ई० में
(ग) 1991 ई० में।
(घ) 1988 ई० में

उत्तरमाला

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 7 (Section 4)

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 7 are helpful to complete your homework.

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UP Board Solutions for Class 9 English Poetry Chapter 2 Sympathy (Charles Mackay)

UP Board Solutions for Class 9 English Poetry Chapter 2 Sympathy  (Charles Mackay)

Read the following stanzas given below and answer the questions that follow each:
निचे दिये हुए निम्नलिखित पद्यांशों को पढ़िये और उनके नीचे दिये हुए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(a) I lay in sorrow, deep distressed;
My grief a proud man heard;
His looks were cold, he gave me gold,
But not a kindly word.
My sorrow passed–I paid him back
The gold he gave to me;
Then stood erect and spoke my thanks
And blessed his charity.

Questions.
(i) Write name of the poem from which the above stanza has been selected. Who is the poet of the poem?
उस कविता का नाम लिखिए जिससे उपरोक्त पद्यांश लिया गया है। कविता के रचयिता कौन है?
(ii) Which words rhyme with each other in the above stanza?
उपरोक्त पद्यांश में कौन से शब्द एक दूसरे के तुकान्त है?
(iii) How did a proud man help the poet?
एक घमण्डी व्यक्ति ने किस प्रकार कवि की सहायता की?
(iv) What did the poet do when his sorrow passed?
जब कवि को दुःख समाप्त हो गया तब उसने क्या किया?
Answers.
(i) The name of the poem is Sympathy’. Charles Mackay is the poet of the poem.
कविता का नाम ‘Sympathy’ है। कविता के रचयिता Charles Mackay है।
(ii) Heard rhyme with word.
Heard, word का तुकान्त है।
(iii) The proud man helped the poet by giving him gold (money).
घमण्डी आदमी ने सोना (धन) देकर कवि की सहायता की।
(iv) When his sorrow passed, he paid him back his money.
जब उसका दुःख समाप्त हो गया तब उसने उसका धन वापस कर दिया।

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(b) I lay in want, and grief, and pain;
A poor man passed my way;
He bound my head, he gave me bread,
He watched me night and day.
How shall I pay him back again
For all he did to me?
Oh, gold is great, but greater far
Is heavenly sympathy.

Questions.
(i) Name the poem from which the above stanza has been taken. Who is the poet of the poem?
उस कविता का नाम लिखिए जिससे उपरोक्त पद्यांश लिया गया है। कविता के रचयिता कौन हैं?
(ii) Who passed by the poet?
कवि के पास से कौन गुजरा?
(iii) How did the poor man help the poet?
मंडी आदमी ने कवि की सहायता किस प्रकार की?
(iv) The poor man’s help is greater than gold. Why?
गरीब आदमी की सहायता सोना (धन) से महान है। क्यों?
Answers.
(i) The name of the poem is Sympathy’ and the poet is Charles Mackay.
कविता का नाम ‘Sympathy’ है और कवि Charles Mackay हैं।
(ii) A poor man passed by the poet.
एक गरीब आदमी कवि के पास से होकर गुजरा।
(iii) The poor man pressed his head. He gave him bread and looked after him day and night.
गरीब आदमी ने उसका सिर दबाया। उसने उसे रोटी दी और दिन रात उसकी देखभाल की।
(iv) The poor man’s help is greater than gold because gold can be repaid but words of sympathy
can not be paid back.
गरीब आदमी की सहायता सोना (धन) से महान है क्योंकि सोने (धन) को चुकाया जा सकता है किन्तु सहानुभूति
के शब्द चुकाये नहीं जा सकते।

(A) SOLVED QUESTIONS OF TEXT BOOK

Answer the following questions :
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।

Question 1.
Who lays in sorrow?
कष्ट में कौन था?
Answer:
The poet lay in sorrow.
कवि कष्ट में था।
Question 2.
Was the poet satisfied with his help? If not so, why?
क्या कवि उसकी सहायता से सन्तुष्ट था, यदि नहीं तो क्यों?
Answer:
The poet was not satisfied with his help because he did not express sympathy.
कवि उसकी सहायता से सन्तुष्ट नहीं था क्योंकि उसने सहानुभूति नहीं व्यक्त की थी।

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Question 3.
How did the poet repay the proud man when his sorrow had passed?
जब कवि का कष्ट समाप्त हो गया तो उसने घमण्डी आदमी को उसका ऋण किस प्रकार चुकाया?
Answer:
When the sorrow of the poet had passed, he went to the proud man and repaid his gold(money).
जब कवि का कष्ट समाप्त हो गया तो वह घमण्डी आदमी के पास गया और उसका धन वापस कर दिया।
Question 4.
How did a poor man help the poet when later on he lay in want and grief again?
जब कवि बाद में पुनः अभाव और पीड़ा में पड़ा हुआ (UPBoardSolutions.com) था तो एक गरीब आदमी ने उसकी सहायता किस प्रकार की?
Answer:
The poor man pressed the head of the poet. He gave him bread and looked after him day and
night.
गरीब आदमी ने कवि का सिर दबाया। उसने उसे रोटी दी और दिन-रात उसकी देखभाल की।
Question 5.
Why does the poet think that it is difficult to pay back the poor man?
कवि क्यों सोचता है कि उस गरीब आदमी को ऋण चुकाना कठिन है?
Answer:
They poet thinks that it is difficult to pay back the poor man because his service and words of
sympathy can not be paid back.
कवि सोचता है कि उस गरीब आदमी का ऋण चुकाना कठिन ह क्योंकि उसकी सेवा और सहानुभूति के शब्द वापस नहीं किये जा सकते।

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Question 6.
What difference do you find between the attitude of the proud man and the attitude
of the poor man?
आपको घमण्डी आदमी के दृष्टिकोण तथा गरीब आदमी के दृष्टिकोण में क्या अन्तर मिलता है?
Answer:
The attitude of the proud man was full of pride while the attitude of the poor man was full of
sympathy.
घमण्डी आदमी का दृष्टिकोण गर्व से भरा हुआ था तथा (UPBoardSolutions.com) गरीब आदमी का दृष्टिकोण सहानुभूति से पूर्ण था।
Question 7.
Why is sympathy described as heavenly’?
सहानुभूति को दिव्य क्यों कहा गया है?
Answer:
Sympathy is described as heavenly because it is not based on any selfish motive.
सहानुभूति को दिव्य कहा गया है क्योंकि यह स्वार्थपूर्ण उद्देश्य पर आधारित नहीं है।
Question 8.
Which of the following qualities would you describe as heavenly?
आप निम्नलिखित गुणों में से किन-किन को दिव्य कहेंगे?
pride (घमण्ड), selfishness (स्वार्थपरता), kindness (दयालुता), goodness (बहुत अच्छा), indifference
towards the poor (गरीबों के प्रति उदासीनता), loving care of the old and sick (बूढ़े तथा बीमार व्यक्तियों की
स्नेह युक्त देखभाल).
Answer:
The qualities of goodness, kindness and loving (UPBoardSolutions.com) care of the old and sick can be described as heavenly.
भलाई, दयालुता, बूढ़े तथा बीमार व्यक्तियों की स्नेह युक्त देखभाल को दिव्य गुण कहा जा सकता है।

(B) APPRECIATING THE POEM

Question 1.
Give the central idea of the poem.
कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए।
Answer:
Sympathy is a divine quality. It is greater than money. Money can be paid back while sympathy
cannot be paid back.
सहानुभूति एक दिव्य गुण है। यह धन से महान है। धन वापस किया जा सकता है जबकि सहानुभूति को वापस नहीं
किया जा सकता।

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Question 2.
Who is the poet of the poem?
कविता के रचयिता कौन हैं?
Answer:
The poet of the poem is Charles Mackay.
कविता के रचयिता चार्ल्स मैके हैं।
Question 3.
Bring out clearly the idea behind the words “His looks were cold.”
‘His looks were cold’ में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
Answer:
“His looks were cold” means that his sight was indifferent.
‘His looks were cold’ का तात्पर्य है कि उसकी अन्तर्दृष्टि में उदासीनता थी।
Question 4.
Mention, from the poem, any two words that rhyme together.
कविता में किन्हीं दो शब्दों को लिखिए जो आपस में तुकान्त हों।
Answer:
Way and day rhyme together.
Way और day आपस में तुकान्त है।

UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 36 डॉ० राम मनोहर लोहिया (महान व्यक्तिव)

UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 36 डॉ० राम मनोहर लोहिया (महान व्यक्तिव)

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पाठ का सारांश

डॉ० राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च, सन् 1910 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के अन्तर्गत अकबरपुर तहसील (वर्तमान में अम्बेडकर नगर) में हुआ था। इनके पिता श्री हीरा लाल लोहिया तथा (UPBoardSolutions.com) माता श्रीमती चन्द्री देवी थीं। जब ये लगभग ढाई वर्ष के थे, तभी इनकी । माताजी का स्वर्गवास हो गया। माताजी के न रहने पर इनका पालन-पोषण इनकी दादीजी ने किया।

इनकी प्रारम्भिक शिक्षा अकबरपुर के प्राइमरी स्कूल में हुई। अकबरपुर की पढ़ाई समाप्त करने के बाद ये अपने पिता के साथ मुम्बई चले गये। इन्होंने मुम्बई से मैट्रिक, बनारस से इण्टरमीडिएट और कोलकाता के विद्यासागर कॉलेज से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् डॉ० लोहिया ने बर्लिन (जर्मनी) से सन् 1932 में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।

डॉ० धि प्राप्त की। डॉ. हि सन् 1933 के प्रारम्भ में स्वदेश लौटे। स्वदेश लौटने के बाद ये समाज के उत्थान हेतु देश में संचालित समाजवादी आन्दोलन के साथ जुड़ गए। सन् 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भी इन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया। ये कई माह तक भूमिगत रहे और इसी समय इन्होंने गुप्त रेडियो स्टेशन की स्थापना की। (UPBoardSolutions.com) रेडियो के अनेक प्रसारणों के माध्यम से लोगों में नवीन चेतना जाग्रत की और आन्दोलन को जारी रखा। ब्रिटिश काल में ये कई बार जेल भी गए।

सन् 1963 में ये फर्रुखाबाद संसदीय क्षेत्र से उपचुनाव में लोकसभा के सदस्य चुने गए। समाजवाद के प्रेरक स्तम्भ डॉ. लोहिया का 12 अक्टूबर, सन् 1967 को देहावसान हो गया।

डॉ० राम मनोहर लोहिया एक प्रबुद्ध विचारक और लेखक भी थे। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- इतिहास चक्र, अंग्रेजी हटाओ, धर्म पर एक दृष्टि, मार्क्सवाद और समाजवाद, समाजवादी चिन्तन, संसदीय आचरण आदि। ‘जंगजू आगे बढो’ और ‘मैं आज़ाद हैं। इनकी प्रमुख पुस्तिकाएँ हैं। भूमि सेना और एक घण्टा देश को दो उनके मौलिक चिन्तन के प्रमुख उदाहरण हैं।

अहिंसा के प्रति डॉ० लोहिया की आस्था, सत्याग्रह के व्यापक प्रयोग में उनका विश्वास, रचनात्मक कार्यक्रमों में उनकी निष्ठा, विकेन्द्रीकरण के आधार पर देश की राजनीति और अर्थनीति में गुणात्मक सुधार (UPBoardSolutions.com) लाने का उनका संकल्प गांधीजी की वैचारिक विरासत का प्रमाण है।

वास्तव में उनकी दृष्टि सार्वभौमिक व सम्पूर्ण थी। उनकी प्रासंगिकता इसलिए भी है कि उनकी समाजवादी विचारधारा समस्याओं का केवल विश्लेषण ही नहीं करतीं अपितु उनका समाधान भी प्रस्तुत करती है।

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अभ्यास

प्रश्न 1.
डॉ० राम मनोहर लोहिया ने डॉक्टरेट की उपाधि कहाँ से प्राप्त की?
उत्तर :
डॉ० राम मनोहर लोहिया ने डॉक्टरेट की उपाधि बर्लिन (जर्मनी) से प्राप्त की।

प्रश्न 2.
डॉ० लोहिया की तीन प्रमुख रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
डॉ. लोहिया की तीन प्रमुख रचनाएँ हैं- इतिहास चक्र, अँग्रेजी हटाओ तथा धर्म पर एक दृष्टि।

प्रश्न 3.
डॉ० राम मनोहर लोहिया के व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
डॉ० राम मनोहर लोहिया एक निर्भीक व्यक्ति थे। उनके व्यक्तित्व में किसी भी स्तर पर कथनी और करनी में विरोधाभास नहीं था। उन्होंने अपने कर्म व चिंतन के द्वारा मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास को सदैव प्राथमिकता दी

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित कथनों में सही कथन पर (✓) तथा गलत कथन पर (✗) का चिह्न लगाइए।
उत्तर :

(क) डॉ० लोहिया का जन्म अकबरपुर तहसील में हुआ था। (✓)
(ख) इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा बनारस से उत्तीर्ण की। (✗)
(ग) डॉ० लोहिया ने ‘नमक सत्याग्रह’ पर अपना शोध प्रबन्ध पूरा किया। (✓)
(घ) डॉ० लोहिया सन् 1963 में फूलपुर से लोकसभा सदस्य चुने गए। (✗)

प्रश्न 5.
सही जोड़े बनाइए।
उत्तर :
UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 36 डॉ० राम मनोहर लोहिया (महान व्यक्तिव) 1

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 14 (Section 3)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 14 विकसित देश के रूप में उभरता भारत (अनुभाग – तीन)

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विस्तुत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विकास के क्षेत्र में भारत की बदलती स्थिति पर निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत व्याख्या कीजिए [2015]
(क) कृषि, (ख) उद्योग-धन्धे, (ग) जनसंख्या
या
भारत में औद्योगिक उत्पादन की वर्तमान स्थिति क्या है ?
या
कृषि में खाद्यान्न उत्पादन की बदलती स्थिति का वर्णन कीजिए।
या
भारत में शिक्षा के बदलते स्वरूप का वर्णन कीजिए।
या
भारत में प्रौढ़ शिक्षा की व्यापकता का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
या
भारत शिक्षा कोष के विषय में आप क्या जानते हैं ?
या
विकसित देश के रूप में उभरते हुए भारत की कृषि के क्षेत्र में किन्हीं तीन उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए। [2016]
उत्तर :

विसव में भारत की बदलती स्थिति

स्वतन्त्रता से पूर्व भारत की स्थिति एक पिछड़े हुए देश जैसी थी। आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सभी क्षेत्रों में यह बहुत पीछे था। अंग्रेजों की पक्षपातपूर्ण नीति के कारण भारत के प्राचीन लघु तथा कुटीर उद्योग नष्ट हो चुके थे और हमें छोटी-छोटी चीजों के लिए भी विदेशों का मुँह ताकना पड़ता था। स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत ने अपने प्राकृतिक संसाधनों को मानवीय साधनों द्वारा आर्थिक साधनों में बदलना प्रारम्भ किया और (UPBoardSolutions.com) तेजी से आर्थिक विकास की ओर बढ़ने लगा। निश्चय ही आज भारत वैसा नहीं है, जैसा वह स्वतन्त्रता-प्राप्ति के समय था। अन्य विकासशील देशों की तुलना में वह आज निरन्तर तीव्रगति से विकास की दिशा में बढ़ रहा है। जीवन के विविध क्षेत्रों में उसने अनेक विशिष्ट परिवर्तन किये हैं तथा परिवर्तन की यह प्रक्रिया निरन्तर आगे बढ़ रही है। इसके परिणामस्वरूप, आज भारत की गणना उन्नत देशों की श्रेणी में होने लगी है और वह दिन दूर नहीं जब भारत विकसित देशों की पंक्ति में आ जाएगा।

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कृषि
कृषि में खाद्यान्न उत्पादन की बदलती स्थिति – भारत जो कुछ दशक पूर्व विश्व के प्रमुख खाद्यान्न आयातक राष्ट्रों में सम्मिलित था, अब इनके प्रमुख निर्यातक देशों में आ गया है। यह उपलब्धि भारत को चावल व गेहूँ के निर्यात से प्राप्त हुई है। भारत से चावल का निर्यात नवम्बर, 2000 ई० में तथा गेहूं का निर्यात अप्रैल, 2001 ई० में शुरू किया गया था। तीन वर्षों में ही चावल निर्यात में भारत ने विश्व में दूसरा तथा गेहूँ, निर्यात में आठवाँ स्थान प्राप्त कर लिया है। इन तीन वर्षों में भारत ने 30 देशों को गेहूँ का व 54 देशों को चावल का निर्यात किया है। वाणिज्य मन्त्रालय के आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2002-03 की अवधि में भारत से ३ 1,700.18 करोड़ मूल्य का 35.70 लाख टन गेहूं का निर्यात किया गया, जबकि वर्ष 2001-02 में यह निर्यात मात्र १ 1,330.21 करोड़ का था। इस प्रकार गेहूं के निर्यात में एक वर्ष में लगभग ३ 370 करोड़ की वृद्धि हुई। इसी प्रकार वर्ष 2002-03 की अवधि में बासमती चावल का निर्यात १ 1,729.54 करोड़ तथा अन्य प्रकार के चावल का निर्यात १ 3,634.08 करोड़ था, जबकि वर्ष 2001-02 ई० में अन्य प्रकार के चावल का निर्यात मात्र १ 1,331.37 करोड़ था। इस प्रकार चावल के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि वर्ष 2002-03 में दृष्टिगोचर होती है। इस प्रकार दोनों ही प्रकार के चावल के निर्यात में एक वर्ष में लगभग * 4,000 करोड़ की वृद्धि हुई। सन् 1965 ई० में खाद्यान्नों का आयात 1.03 करोड़ टने था, जो वर्ष 1983-84 में मात्र (UPBoardSolutions.com) 24 लाख टन रह गया। वर्ष 2000-01 में खाद्यान्नों के आयात की कोई आवश्यकता ही न रही और देश निर्यात करने की स्थिति में पहुँच गया। यह स्थिति भारतीय कृषि के बदलते स्वरूप को दर्शाती

उद्योग – धन्धे
औद्योगिक उत्पादन की वर्तमान स्थिति – नियोजन-काल की अवधि में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में औद्योगिक क्षेत्र के हिस्से में पर्याप्त वृद्धि हुई है।औद्योगिक क्षेत्र का GDP में हिस्सा जो वर्ष 1950-51 में 1993-94 ई० की कीमतों पर 13.3% था, वह रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2002-03 में बढ़कर 21.8% हो गया है। विश्वव्यापी मन्दी के चलते वित्तीय वर्ष 2002-03 की अवधि में भारत में औद्योगिक उत्पादन वृद्धि की दर 5.8% रही, जब कि पूर्व वित्तीय वर्ष 2001-02 में यह दर 2.7% थी।

उद्योगों के उपयोग पर आधारित वर्गीकरण के अन्तर्गत वर्ष 2002-03 की अवधि में पूँजीगत उत्पादों में 10.4% की वृद्धि दर्ज की गयी थी। इसी प्रकार आधारभूत वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि की दर 4.8%, मध्यवर्ती उत्पादों के लिए 3.8% तथा उपभोक्ता वस्तुओं के मामले में भी उत्पादन में वृद्धि की दर 6.4% रही थी। छ: आधारभूत उद्योगों-बिजली, कोयला, इस्पात, कच्चा पेट्रोलियम, पेट्रोलियम रिफायनरी उत्पाद तथा सीमेण्ट के निष्पादन में वर्ष 2002-03 की अवधि में क्रमश: 3.1, 4.3, 8.7,3.3, 4.9 तथा 8.8% वृद्धि की दर रही थी। इन छ: उद्योगों की समग्र वृद्धि दर वर्ष 2002-03 की अवधि में 5.2% रही थी। यह स्थिति भारतीय उद्योग-धन्धों के बदलते स्वरूप को दर्शाती है।

जनसंख्या
भारत का भौगोलिक क्षेत्रफल विश्व का लगभग 2.4% है, किन्तु यहाँ विश्व की 17.5% जनसंख्या निवास करती है। जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है। भारत में जनसंख्या सम्बन्धी विभिन्न आँकड़ों की जानकारी नियमित रूप से होने वाली दस-वर्षीय जनगणना से प्राप्त होती है। भारत में पहली विश्वसनीय जनगणना 1881 ई० में हुई। उस समय भारत की जनसंख्या 23.7 करोड़ थी, जो 1991 ई० में बढ़कर 84.63 करोड़ हो गयी।, 11 मई, 2000 ई० को भारत की जनसंख्या 100 करोड़ और मई, 2011 ई० की जनगणना के अनुसार, 1,210,193,422 थी। (स्रोत: इण्टरनेट)। भारत में अब (UPBoardSolutions.com) जनसंख्या वृद्धि की समस्या भयावह हो उठी है, जिसे विद्वानों ने ‘जनंसख्या विस्फोट’ की संज्ञा दी है।

वर्ष 2011 ई० की आधिकारिक जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 121.02 करोड़, जिसमें ग्रामीण जनसंख्या लगभग 83.3 करोड़ (68.84%) तथा शहरी जनसंख्या 37.7 करोड़ (31.16%) है। पुरुषों की संख्या 62.37 करोड़ (51.54%) तथा महिलाओं की जनसंख्या 58.64 करोड़ (48.46%) रही है। भारत में स्त्री-पुरुष अनुपात 940 : 1000 है। सर्वाधिक स्त्री-पुरुष अनुपात केरल में 1034 : 1000 तथा सबसे कम बिहार राज्य में 877 : 1000 रहा है।

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पिछले दस वर्षों (2001-2011) की अवधि में जनसंख्या में कुल वृद्धि 17.64% अंकित की गयी है। वर्ष 2001-2011 की जनगणना में शहरी और ग्रामीण जनसंख्या वृद्धि दर क्रमशः 31.80% और 12.18% है। ग्रामीण जनसंख्या वद्धि दर बिहार में सबसे अधिक (23.90%) ऑकी गई है। हिमाचल प्रदेश में ग्रामीण जनसंख्या का अनुपात सर्वाधिक (89.6%) है, जबकि शहरी जनसंख्या का अनुपात दिल्ली में सर्वाधिक (97.50%) है। भारत में सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश है तथा सबसे कम जनसंख्या वाला राज्य सिक्किम है।

शिक्षा
लोकतन्त्र की सफलता तथा समाज-देश दोनों के विकास के लिए शिक्षा का विशेष महत्त्व है। यह केवल व्यक्ति की उत्पादक क्षमता में ही वृद्धि नहीं करती, वरन् देश में अर्जित सम्पदा के समान एवं निष्पक्ष वितरण को सुनिश्चित करने में निर्णायक भूमिका निभाती है।

शिक्षा पर बढ़ता व्यय – शिक्षा मानव-पूँजी में निवेश किया जाने वाला महत्त्वपूर्ण साधन है। पहली पंचवर्षीय योजना से ही शिक्षा पर किये जाने वाले योजनागत व्यय में तेजी से बढ़ोतरी की गयी है। दसवीं पंचवर्षीय योजना में इस क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता (UPBoardSolutions.com) प्रदान की गयी तथा इसके लिए ३ 43,825 करोड़ का प्रावधान रखा गया, जब कि नवीं योजना में यह प्रावधान है 24,908 करोड़ का ही था। इस प्रकार इसमें 76% की वृद्धि की गयी थी। भारत शिक्षा कोष-शिक्षा क्षेत्र के लिए सभी से समर्थन प्राप्त करने तथा अतिरिक्त बजटीय संसाधनों को जुटाने के लिए एक पंजीकृत संस्था

भारत शिक्षा कोष – की स्थापना की गयी है, जिसका कार्य व्यक्तियों, केन्द्र तथा राज्य सरकारों, अप्रवासी भारतीयों तथा भारतीय मूल के व्यक्तियों से शिक्षा की विभिन्न परियोजनाओं हेतु अंशदान, चन्दा अथवा दान प्राप्त करना है।

शिक्षा : एक मौलिक अधिकार – संसद के दोनों सदनों द्वारा 93वाँ संविधान संशोधन विधेयक पारित हो चुका है। इसके द्वारा 6 से 14 वर्ष के आयु समूह वाले सभी बच्चों के लिए नि:शुल्क तथा अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाकर सभी के लिए शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु किया गया यह एक महत्त्वपूर्ण उपाय है।

साक्षरता-दर में वृद्धि – पिछले कुछ दशकों के दौरान साक्षरता-दर में पर्याप्त सुधार आया है। कुल साक्षरता-दर जो कि सन् 1951 में मात्र 18.33% थी, 1991 ई० में बढ़कर 52.21%, 2001 ई० में 65.4% तथा 2011 ई० में 74.04% हो गयी। भारत की जनगणना 2001 ई० के अनुसार पुरुषों की साक्षरता-दर 75.85% तथा महिलाओं की 54.16% हो गयी है। पिछले दशक में महिला साक्षरता दर में कहीं अधिक वृद्धि हुई है, जो पुरुषों की 11.72% की तुलना में 14.87% बढ़ी तथा इस प्रकार पुरुष-महिला साक्षरता-दर का अन्तर वर्ष 1991 की 24.84% से घटकर वर्ष 2001 में 21.7% हो गया है। यह एक अनुकूल प्रवृत्ति (UPBoardSolutions.com) है, जो भारत के विकास की ओर इंगित करती है। वर्ष 2000-01 में 6 से 14 वर्ष के आयु-समूह की लगभग 193 मिलियन की जनसंख्या में से लगभग 81% बच्चे विद्यालय में उपस्थित रहे। भारत की जनगणना 2011 ई० के अनुसार पुरुषों की साक्षरता-दर 82.14% तथा महिलाओं की 65.46% हो गयी। पिछले दशक में महिला साक्षरता दर में कहीं अधिक वृद्धि हुई है।

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तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा – देश में तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा ने गुणवत्तापूर्ण मानव-शक्ति उत्पन्न कर आर्थिक एवं तकनीकी विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। वर्तमान में डिग्री स्तर के 1,200 से अधिक तथा डिप्लोमा स्तर के भी 1,200 मान्यता प्राप्त इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। इनमें भारतीय I.I.Tई. का विश्व में एक उच्च स्थान है। इसके अतिरिक्त 1,000 से अधिक संस्थान मास्टर ऑफ कम्प्यूटर एप्लीकेशन (MCA) पाठ्यक्रम की शिक्षा प्रदान करते हैं। एम०बी०ए० पाठ्यक्रम की शिक्षा प्रदान करने वाले 930 मान्यताप्राप्त प्रबन्धन संस्थान हैं।

शैक्षिक कार्यक्रम – भारत में साक्षरता-दर में वृद्धि के लिए अनेक शैक्षिक कार्यक्रम चलाये गये हैं, जिनमें अनौपचारिक शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, राष्ट्रीय साक्षरता मिशन, जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम, अल्पसंख्यकों को शिक्षा तथा सर्वशिक्षा अभियान आदि प्रमुख हैं। छ: से चौदह वर्ष की आयु के बच्चों के लिए प्रारम्भिक शिक्षा को एक मूलभूत अधिकार बनाने के लिए संसद ने संविधान अधिनियम, 2002 पारित किया है। इस अधिनियम को लागू करने के लिए ‘सर्व शिक्षा अभियान’ योजना विकसित की गयी है। इसे नवम्बर, 2002 ई० से आरम्भ किया गया है। इस अभियान के निम्नलिखित लक्ष्य हैं(1) छ: से चौदह वर्ष तक की आयु के सभी बच्चे स्कूल/शिक्षा गारण्टी योजना केन्द्र/ब्रिज कोर्स में जाएँ। (2) सन् 2007 तक सभी बच्चों की 5 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा तथा सन् 2010 तक 8 वर्ष की स्कूली शिक्षा पूर्ण हो जाए। (UPBoardSolutions.com) (3) जीवन के लिए शिक्षा पर बल देते हुए प्राथमिक शिक्षा पर बल दिया जाए। (4) सन् 2007 तक प्राथमिक स्तर पर सभी लड़के-लड़कियों और सामाजिक वर्ग के अन्तरों को तथा प्रारम्भिक शिक्षा-स्तर पर 2010 ई० तक समाप्त किया जाए और (5) सन् 2010 तक बीच में पढ़ाई छोड़ने वालों की संख्या को शून्य किया जाए।

प्रौढ़ शिक्षा – देश के 600 जिलों में से 587 जिलों को अब प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों में सम्मिलित कर लिया गया है। इस समय 174 जिलों में सम्पूर्ण साक्षरता अभियान, 212 जिलों में साक्षरता पश्चात् कार्यक्रम और 201 जिलों में अनवरत शिक्षा कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि यह स्थिति भारतीय शिक्षा के बदलते स्वरूप की परिचायक है।

प्रश्न 2.
भारत के कपड़ा उद्योग तथा लौह-इस्पात उद्योग का वर्णन कीजिए।
या
भारत में कपड़ा उद्योग की बदलती स्थिति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2009]
या
भारत में बढ़ते हुए उद्योगों की स्थिति पर निम्नलिखित शीर्षकों पर निबन्ध लिखिए
(क) वस्त्रोद्योग, (ख) लोहा एवं इस्पात उद्योग, (ग) पेट्रोलियम उद्योग, (घ) रसायन उद्योग।
उत्तर :
कपड़ा उद्योग/वस्त्रोद्योग – 
कपड़ा उद्योग भारत का सबसे बड़ा, संगठित एवं व्यापक उद्योग है। यह देश के औद्योगिक उत्पादन का 14%, सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.4%, कुल विनिर्मित औद्योगिक उत्पादन का 20% व कुल निर्यात के 23% की आपूर्ति करता है। भारत इस क्षेत्र में चीन, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ प्रतियोगिता रखता है।

पंचवर्षीय योजनाएँ इस उद्योग के लिए वरदान सिद्ध हुईं, जिनके फलस्वरूप न केवल इस उद्योग का पर्याप्त विकास हुआ, अपितु अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भी यह अपनी छाप छोड़ने में सफल रहा। सरकार ने ‘कपड़ा
आदेश’, 1993 ई० के माध्यम से इस उद्योग को लाइसेन्स मुक्त कर दिया। 31 मार्च, 1999 ई० को देश में 1,824 सूत/कृत्रिम धागों की मिलें थीं, जिनमें से अधिकतर मिलें महाराष्ट्र, तमिलनाडु तथा गुजरात में हैं। भारत का वस्त्रोद्योग मुख्यतः सूत पर आधारित रहा है तथा देश में कपड़े की खपत का 58% भाग सूत से ही सम्बद्ध है। भारत का वस्त्र उद्योग अब पटसन एवं सूती वस्त्रों के अतिरिक्त कृत्रिम रेशों से पर्याप्त मात्रा में वस्त्र तैयार (UPBoardSolutions.com) करता है तथा सिले-सिलाये वस्त्रों को विदेशों को निर्यात कर रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भारत के सिले वस्त्रों की बड़ी माँग है तथा उसे इससे १ 51 हजार करोड़ से भी अधिक मूल्य की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।

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लोहा एवं इस्पात उद्योग – आज भारत विश्व का नौवाँ सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश है। इस उद्योग में । 90,000 करोड़ की पूँजी लगी हुई है और पाँच लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला हुआ है। बड़े पैमाने पर इस्पात का उत्पादन 1907 ई० में जमशेदपुर में टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (TISCO) की स्थापना के साथ आरम्भ हुआ। सन् 1974 में सरकार ने स्टील अथॉरिटी ऑफ इण्डिया लि० (SAIL) की स्थापना की।

दूसरी पंचवर्षीय योजना में 10-10 लाख टन इस्पात पिण्डों की क्षमता की सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाएँ भिलाई (छत्तीसगढ़) में सोवियत संघ के सहयोग से, दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) में ग्रेट ब्रिटेन के सहयोग से
और राउरकेला (ओडिशा) में जर्मनी के सहयोग से स्थापित की गयी।

तीसरी पंचवर्षीय योजना में सोवियत संघ के सहयोग से बोकारो (बिहार) में एक और इस्पात कारखाने की स्थापना की गयी। विगत कुछ वर्षों में इस्पात उद्योग के उत्पादन का स्वरूप सन्तोषप्रद रहा है। वर्ष 2002-03 में इस्पात की खपत 29.01 मिलियन टन थी, जब कि वर्ष 2001-02 में यह 27.35 मिलियन टन थी। वर्ष 2001-02 में तैयार इस्पात का निर्यात 1.27 मिलियन टन था जो वर्ष 2002-03 में 1.5 मिलियन टन हो गया। लोहे और इस्पात से बनी सभी वस्तुओं के आयात और निर्यात की वर्तमान में पूरी छूट है। वर्ष 2001-02 में परिष्कृत इस्पात का निर्यात 2.98 मिलियन टन था, जो वर्ष 2002-03 में बढ़कर 4.2 मिलियन टन हो गया। यह स्थिति लोहे और इस्पात उद्योग में भारत की परिवर्तित होती स्थिति को प्रदर्शित करती है।

पेट्रोलियम उद्योग – पेट्रोलियम के सम्बन्ध में भारत की स्थिति अब पहले की अपेक्षा अच्छी हुई है। द्वितीय पंचवर्षीय योजना के आरम्भ तक देश में केवल डिगबोई (असोम) के आस-पास के क्षेत्र में तेल निकाला जाता था। अब देश के कई भागों से तेल निकाला जाने लगा है। भारत के तेल-क्षेत्र असोम, त्रिपुरा, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, मुम्बई, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, राजस्थान, केरल के (UPBoardSolutions.com) तटीय प्रदेशों तथा अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में स्थित हैं। देश में तेल का कुल भण्डार 13 करोड़ टन अनुमानित किया गया है।

वर्ष 1950-51 में देश में कच्चे तेल का उत्पादन केवल 2.5 लाख टन था, जब कि वर्ष 2002-03 की अवधि में उत्पादन 33.05 मिलियन टन रहा। खाद्यान्न व दूध के उत्पादन में आत्मनिर्भरता के पश्चात् अब खनिज तेल की दिशा में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने के लिए कृष्ण क्रान्ति (Black Revolution) की सरकार की योजना है। इसके लिए एथेनॉल का उत्पादन बढ़ाकर पेट्रोल में इसका मिश्रण 10% तक बढ़ाने तथा बायो-डीजल का उत्पादन करने की सरकार की योजना है। यह स्थिति पेट्रोलियम उद्योग में भारत की परिवर्तित होती स्थिति को प्रदर्शित करती है।

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उल्लेखनीय है कि फरवरी, 2003 ई० में देश में कच्चे तेल के दो विशाल भण्डारों की खोज अलग-अलग कम्पनियों ने की थी। ये भण्डार बाड़मेर (राजस्थान) जिले में व मुम्बई के तटवर्ती क्षेत्र में खोजे गये हैं। कृष्णा-गोदावरी बेसिन में प्राकृतिक गैस के बड़े भण्डार की खोज के पश्चात् रिलायन्स इण्डस्ट्रीज लि० ने।

प्रकृतिक गैस के एक और भण्डार की खोज करने में सफलता प्राप्त की है। यह खोज मध्य प्रदेश में शहडोल. * कोलबेड मीथेन के सुहागपुर पश्चिम व सुहागपुर पूर्व अन्वेषण खण्ड में की गयी है।

रसायन उद्योग-रसायन उद्योग में मुख्य रसायन तथा इसके उत्पादों, पेट्रोकेमिकल्स, फर्टिलाइजर्स, पेंट तथा वार्निश, गैस, साबुन, इत्र, प्रसाधन सामग्री और फार्मस्युटिकल्स को शामिल किया जाता है। रसायन 5 के उत्पादन विभिन्न उद्योगों में प्रयुक्त होते हैं। इस प्रकार इस उद्योग का व्यावसायिक महत्त्व बहुत अ िहै। भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में भी इसका काफी योगदान है। देश की जी०डी०पी० में इसका योगदान 3 प्रतिशत (UPBoardSolutions.com) है। 11वीं योजना में पेट्रोरसायन और रसायनों की वृद्धि 12.6 प्रतिशत और 8 प्रतिशत होने का अनुमान है। संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (यूनिडो) के अनुसार भारतीय रसायन उद्योग का विश्व में 6वाँ और एशिया में तीसरा स्थान है। 2010 में रसायन उद्योग 108.4 बिलियन डालर का रहा। रसायन उद्योग भारत के प्राचीनतम उद्योगों में से एक है जो देश के औद्योगिक एवं आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान करता है।

यह अत्यन्त विज्ञान आधारित है और विभिन्न लक्षित उत्पादों जैसे वस्त्र, कागज, पेंट एवं वार्निश, चमड़ा आदि के लिए मूल्यवान रसायन उपलब्ध कराता है, जिनकी जीवन के हर क्षेत्र में आवश्यकता होती है। भारतीय रसायन उद्योग भारत की औद्योगिक एवं कृषिगत विकास के रीढ़ का निर्माण करता है और अनुप्रवाही उद्योगों के लिए घटकों को प्रदान करता है। भारतीय रसायन उद्योग में लघु एवं वृहद् स्तर की इकाइयाँ दोनों ही शामिल हैं। अस्सी के दशक के मध्य में लघु क्षेत्र को प्रदान किए गए वित्तीय रियायतों ने लघु स्तरीय उद्योगों (एसएसआई) के क्षेत्र में वृहद संख्या में इकाइयों को स्थापित करने के लिए बाध्य किया। वर्तमान में, भारतीय रसायन उद्योग क्रमिक रूप से व्यापक ग्राहकोन्मुखीकरण की ओर बढ़ रहा है। भारत को आधारभूत कच्चे माल की प्रचुरता का लाभ है, इसे वैश्विक प्रतियोगिता का सामना करने और निर्यात में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए तकनीकी सेवाओं और व्यापारिक क्षमताओं का निर्माण करना होगा।

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भारतीय अर्थव्यवस्था नब्बे के दशक के प्रारंभ तक एक संरक्षित अर्थव्यवस्था थी। रसायन उद्योग द्वारा बौद्धिक संपदा के सृजन के लिए व्यापक स्तर के शोध एवं विकास के लिए बहुत कम कार्य किए गए थे। इसलिए उद्योग को अंतर्राष्ट्रीय रसायन उद्योग की प्रतियोगिता का सफलतापूर्वक मुकाबला करने के लिए शोध एवं विकास में व्यापक निवेश करना होगा। विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों के साथ, देश की शक्ति दूसरे उच्च स्तरीय प्रशिक्षित वैज्ञानिक जनशक्ति पर निर्भर रहती है। भारत वृहद् संख्या में उत्कृष्ट एवं विशेषीकृत रसायनों का भी उत्पादन करता है जिनके विशिष्ट प्रयोग हैं जिनका खाद्य संयोजक, चमड़ा रंगाई, (UPBoardSolutions.com) बहुलक संयोजक, रबड़ उद्योग में प्रति-उपयामक आदि में व्यापक प्रयोग होता है। रसायन क्षेत्र में, 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति है। रासायनिक उत्पादों, साथ-ही-साथ कार्बनिक/अकार्बनिक रंग-सामग्री और कीटनाशक के ज्यादातर निर्माता लाइसेंसमुक्त हैं। उद्यमियों को केवल आई ई एम को औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग के नियमों के अनुकूल काम करना होता है। बशर्ते कि स्थानीयता दृष्टिकोण लागू न हो। केवल निम्नलिखित वस्तुएँ ही अपनी खतरनाक प्रकृति के कारण आवश्यक लाइसेंसिंग सूची में शामिल हैं

  • हाइड्रोरासायनिक अम्ल एवं इसके संजात,
  • फॉस्जीन एवं इसके संजात तथा
  • हाइड्रोकार्बन के आइसोसाइनेट्स एवं डीआइसोसाइनेट्स।

प्रश्न 3.
भारत में परिवहन एवं दूरसंचार के बदलते स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
या
राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम के घटकों का उल्लेख कीजिए।
या
इलेक्ट्रॉनिक मेल पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :

परिवहन

देश के निरन्तर विकास में सुचारु व समन्वित परिवहन-प्रणाली की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। वर्तमान प्रणाली में यातायात के अनेक साधन; जैसे–रेल, सड़क, तटवर्ती नौ-संचालन, वायु-परिवहन इत्यादि पम्मिलित हैं। विगत वर्षों में इस क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास के साथ विस्तार भी हुआ है और क्षमता भी बढ़ी है, जिसका विवरण निम्नवत् है–

रेल–देश में माल ढोने और यात्री परिवहन का मुख्य साधन रेले हैं। आज देश भर में रेलों का एक व्यापक जाल बिछा हुआ है। रेलमार्ग की कुल लम्बाई 63,140 किमी है। 31 मार्च, 2002 ई० तक प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, भारतीय रेलवे के पास (UPBoardSolutions.com) 7,739 इंजन, 39,236 यात्री डिब्बे व 2,16,717 माल डिब्बे थे तथा 31 मार्च, 2011 ई० तक प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, भारतीय रेलवे के पास 9,213 इंजन, 53,220 यात्री गाड़ियाँ व 6,493 अन्य सवारी गाड़ियों और 2,19,381 रेल के डिब्बे हैं।

वर्तमान में लगभग 25% रेलमार्ग व 36% कुल रेल पटरी का विद्युतीकरण हो चुका है। भारतीय रेलवे एशिया की सबसे बड़ी और संसार की चौथे नम्बर की रेलवे व्यवस्था है। वर्ष 1950-51 में रेल-यात्रियों की संख्या लगगे 13 करोड़ थी, जो वर्ष 2005-06 में बढ़कर 512 करोड़ हो गयी थी।

सड़क-भारत का सड़क नेटवर्क विश्व का तीसरा सबसे बड़ा नेटवर्क है। भारत के सड़क यातायात में प्रति वर्ष 10% की वृद्धि हो रही है। भारत में लगभग 33 लाख किलोमीटर लम्बा सड़क नेटवर्क है। वर्ष 1950-51 में यह नेटवर्क मात्र 4 लाख किलोमीटर था, जो अब 8 गुना से भी अधिक बढ़ गया है।

नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002) के अन्तर्गत देश में सड़के नेटवर्क के समन्वित और सन्तुलित विकास पर बल दिया गया था। इस अवधि में सरकार ने व्यापक राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम (NHDP) भी आरम्भ किया, जिसमें पर्याप्त प्रगति हुई। दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-07) के दौरान सड़कों के विकास को देश की समग्र परिवहन-प्रणाली का अभिन्न अंग समझा गया, जिसमें तीन कार्यात्मक समूहों को सुदृढ़ बनाने पर बल दिया गया। ये थे—प्राथमिक प्रणाली (राष्ट्रीय राजमार्ग और एक्सप्रेस मार्ग), अनुषंगी प्रणाली (राजमार्ग और प्रमुख जिला सड़कें) और ग्रामीण सड़कें।

दसवीं पंचवर्षीय योजना में केन्द्र क्षेत्र के सड़क कार्यक्रम के लिए है 59,490 करोड़ का परिव्यय निर्धारित किया गया था। राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम के निम्नलिखित दो घटक हैं—

  1. चार महानगरों को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों से सम्बद्ध स्वर्ण चतुर्भुज योजना। इस घटक के अन्तर्गत कुल 5,846 किलोमीटर लम्बे राष्ट्रीय राजमार्ग सम्मिलित हैं।
  2. उत्तर-दक्षिण मार्ग (कॉरिडोर), जिसमें कोच्चि-सलेम स्पर मार्ग (UPBoardSolutions.com) सहित श्रीनगर को कन्याकुमारी से जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग और सिलचर को पोरबन्दर से जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग सम्मिलित है। इन राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लम्बाई 7,300 किलोमीटर है। राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत 4/6 लेन का निर्माण करके राजमार्गों की वहन क्षमता बढ़ाने के अलावा सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्गों पर वाहन चलाने की दृष्टि से उनकी गुणवत्ता में सुधार के लिए कार्यक्रम शुरू किया है। इनके बन जाने से भारत के विशाल महानगरों के बीच समय एवं दूरी बहुत घट जाएगी।

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दूरसंचार

दूरसंचार क्षेत्र में भारत की बदलती स्थिति सर्वविदित सराहनीय एवं सन्तोषप्रद है। दूरसंचार नेटवर्क के मामले में भारत का विश्व शीर्षस्थ देशों में स्थान हो गया है। नये दूरभाष कनेक्शनों में पर्याप्त वृद्धि हुई तथा राष्ट्रीय लम्बी दूरी और अन्तर्राष्ट्रीय लम्बी दूरी के दूरभाष टैरिफों में तथा सेल्युलर-से-सेल्युलर कालों पर राष्ट्रीय लम्बी दूरी के टैरिफ में अत्यधिक गिरावट आयी।

दूरसंचार क्षेत्र में निजी कम्पनियों के प्रवेश तथा इन कम्पनियों की गहन विपणन नीतियों के चलते देश में दूरभाष सेवा का तेजी से विकास हुआ है। उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार बीते वर्ष 2006 के अन्त में देश में दूरभाष उपभोक्ताओं की कुल संख्या लगभग 20 करोड़ थी। ऐसा माना जाता है कि अब भारत में हर छठे व्यक्ति के पास एक फोन है। देश के 20 करोड़ दूरभाष उपभोक्ताओं में 15 करोड़ उपभोक्ता मोबाइल दूरभाष के हैं। रिलायन्स इन्फो, टाटा इण्डिकॉम, एयरटेल, बी०एस०एन०एल०, आइडिया, वोडाफोन आदि कम्पनियाँ देश को मोबाइल फोन सेवाएँ उपलब्ध कराने में एक-दूसरे से बढ़-चढ़कर कार्य कर रही हैं। भारत सदृश विकासशील देश में दूरदर्शन प्रसारण का विशेष महत्त्व है। भारत की राष्ट्रीय प्रसारण सेवा विश्व के सबसे बड़े स्थानीय प्रसारण संगठमों में से एक है। देश में आज स्थलीय एवं उपग्रह, दोनों ही प्रसारण . सेवाएँ विद्यमान हैं।

दूरदर्शन का पहला प्रसारण 15 सितम्बर, 1959 ई० को किया गया था। सन् 1975 तक दूरदर्शन केवल कुछ नगरों तक ही सीमित था। आज देश के लगभग 8.2 करोड़ परिवारों में टेलीविजन उपलब्ध है। इसके 51% परिवार उपग्रहों से प्रसारित कार्यक्रमों को देखते हैं। संख्या की दृष्टि से राष्ट्रीय चैनल के दर्शकों की संख्या केबल दर्शकों से कहीं अधिक है।

भारत में अब दूरसंचार क्षेत्र के दो महत्त्वपूर्ण लक्ष्य हैं-यथासम्भव अधिकाधिक लोगों को निम्न लागत दर पर दूरभाष सेवा प्रदान करना तथा अधिकाधिक फर्मों को निम्न लागत वाली हाई स्पीड कम्प्यूटर नेटवर्क सेवा प्रदान करना। कम्प्यूटरों (UPBoardSolutions.com) का उपयोग आज अनेक प्रकार से किया जा रहा है तथा समाज में इसकी भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।

इलेक्ट्रॉनिक मेल – इलेक्ट्रॉनिक मेल सेवा, कम्प्यूटर आधारित ‘स्टोर एण्ड फॉरवर्ड’ सन्देश प्रणाली है। इसमें प्रेषक और प्रेषित दोनों को एक साथ उपस्थित रहने की आवश्यकता नहीं होती। यह सेवा डाटा संचार नेटवर्क के माध्यम से विभिन्न प्रकार के पत्रों का संचारण करती है। इस सेवा में कोई भी पत्र, स्मरण-पत्र, टेण्डर या विज्ञापन आदि टंकित कर उसे किसी भी व्यक्ति को उसके निर्धारित पते पर भेजा जा सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि पत्र भेजने तथा प्राप्त करने वाले दोनों नेटवर्क से जुड़े हों। ई-मेल वन-वे पद्धति है। यह दूरभाष की तरह दोनों ओर से वार्तालाप नहीं करा सकती, लेकिन उससे भी तीव्र गति से सूचना प्रदान करती है। अब यह सुविधा हिन्दी में भी उपलब्ध है। ‘वेब दुनिया के नाम से हिन्दी का पोर्टल भी इण्टरनेट पर आ चुका है और ई-पत्र की सहायता से हिन्दी भाषा में डाक भेजी व प्राप्त की जा सकती है।

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प्रश्न 4.
भारत में शिक्षा के बदलते स्वरूप का वर्णन निम्न शीर्षकों में कीजिए
(क) प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा, (ख) उच्च शिक्षा, (ग) तकनीकी शिक्षा।
या
भारत में शिक्षा के प्रसार पर स्वातन्त्र्योत्तर काल शिक्षा के वर्तमान स्वरूप पर एक लेख लिखिए।
उत्तर :

(क) प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा

प्राथमिक शिक्षा
प्राथमिक शिक्षा ऐसा आधार है जिस पर देश तथा इसके प्रत्येक नागरिक का विकास निर्भर करता है। हाल के वर्षों में भारत ने प्राथमिक शिक्षा में नामांकन, छात्रों की संख्या बरकरार रखने, उनकी नियमित उपस्थिति दर. और साक्षरता के प्रसार के (UPBoardSolutions.com) संदर्भ में काफी प्रगति की है। जहाँ भारत की उन्नत शिक्षा पद्धति को भारत के आर्थिक विकास का मुख्य योगदानकर्ता तत्त्व माना जाता है, वहीं भारत में आधारभूत शिक्षा की गुणवत्ता, काफी चिन्ता का विषय है।

भारत में 14 साल की उम्र तक के सभी बच्चों को नि:शुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना सांवैधानिक प्रतिबद्धता है। देश की संसद ने वर्ष 2009 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम’ पारित किया है जिसके द्वारा 6 से 14 साल के सभी बच्चों के लिए शिक्षा एक मौलिक अधिकार हो गई है। हालांकि देश में अभी भी आधारभूत शिक्षा को सार्वभौम नहीं बनाया जा सका है। इसका अर्थ है–बच्चों का स्कूलों में सौ फीसदी नामांकन और स्कूलिंग सुविधाओं से लैस हर अधिवास में उनकी संख्या को बरकरार रखना। इसी कमी को पूरा करने हेतु सरकार ने वर्ष 2001 में सर्व शिक्षा अभियान योजना की शुरुआत की, जो अपनी तरह की दुनिया में सबसे बड़ी योजना है।

सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में सूचना व संचार प्रौद्योगिकी शिक्षा क्षेत्र में वंचित और सम्पन्न समुदायों, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, के बीच की दूरी पाटने का कार्य कर रहा है। भारत विकास प्रवेशद्वार ने प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में भारत में मौलिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण हेतु प्रचुर सामग्रियों को उपलब्ध कराकर छात्रों तथा शिक्षकों की क्षमता बढ़ाने की पहल की है।

माध्यमिक शिक्षा
प्रारम्भिक शिक्षा को सर्वव्यापी करना एक संवैधानिक अधिदेश बन गया है इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है। कि इस अभिकल्पना को माध्यमिक शिक्षा के सर्वव्यापी बनाने की ओर बढ़ाने की आवश्यकता है, जिसे कि बड़ी संख्या में विकसित देशों तथा कई विकासशील देशों में पहले ही हासिल कर लिया गया है। सभी युवा व्यक्तियों को अच्छी गुणवत्तायुक्त माध्यमिक शिक्षा सुलभ कराने तथा कम मूल्य पर उपलब्ध कराने की । केन्द्र सरकार की वचनबद्धता के भाग के रूप में भारत सरकार ने 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान माध्यमिक स्तर पर शिक्षा को सर्वव्यापी बनाने तथा गुणवत्ता-सुधार हेतु राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आर०एम०एस०ए०) नामक एक केन्द्रीय प्रायोजित स्कीम शुरू की गई। इस स्कीम का उद्देश्य प्रत्येक आवास से उचित दूरी के भीतर माध्यमिक स्कूल उपलब्ध (UPBoardSolutions.com) कराकर 5 वर्ष के भीतर कक्षा में नामांकन हेतु नामांकन अनुपात को 75 प्रतिशत करने, सभी माध्यमिक स्कूलों द्वारा निर्धारित मानदण्डों के अनुपालन को | सुनिश्चित करके माध्यमिक स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, महिला-पुरुष सामाजिक-आर्थिक तथा विकलांगता-आधारित बाधाओं को दूर करना वर्ष 2017 अर्थात् 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक माध्यमिक स्तर की शिक्षा को सर्वव्यापी बनाने और वर्ष 2020 तक सभी बच्चों को विद्यालयों में बनाए रखना है। मुख्य रूप से भौतिक लक्ष्यों में 5 वर्षों के भीतर कक्षा IX.X हेतु नामांकन अनुपात को वर्ष 2005-06 के 52.26 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत करना, वर्ष 2011-12 तक अनुमानित 32.20 लाख : छात्रों के अतिरिक्त नामांकन हेतु सुविधाएँ उपलब्ध कराना, 44,000 मौजूदा माध्यमिक स्कूलों का सुदृढ़ीकरण, 11000 नए माध्यमिक स्कूल खोलना, 1.79 लाख अतिरिक्त शिक्षकों की नियुक्ति तथा 80,500 अतिरिक्त कक्षा-कक्षों का निर्माण शामिल था। 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान परियोजना लागत का 75 प्रतिशत केन्द्र सरकार द्वारा वहन करने तथा शेष 25 प्रतिशत का वहन राज्य सरकारों द्वारा किये जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए हिस्सेदारी पैटर्न 50 : 50 होगा। 11वीं तथा 12वीं योजनाओं दोनों के लिए पूर्वोत्तर राज्य हेतु निधियम पैटर्न (UPBoardSolutions.com) 90 : 10 रखा गया। 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान इस स्कीम हेतु 20,120 करोड़ आबंटित किए गए थे। वर्ष 2010-11, जो इस कार्यक्रम का दूसरा वर्ष था, में 34 राज्यों/संघराज्य क्षेत्रों से वार्षिक योजना प्रस्ताव प्राप्त हुए।

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(ख) उच्च शिक्षा
आजादी के बाद के वर्षों में उच्च शिक्षा क्षेत्र की संस्थागत क्षमता में अत्यधिक वृद्धि हुई है। वर्ष 1950 में विश्वविद्यालयों/विश्वविद्यालय स्तरीय संस्थाओं की संख्या 27 थी जो 18 गुणा बढ़कर वर्ष 2009 में 504 हो गई है। इस क्षेत्र में 42 केन्द्रीय विश्वविद्यालय, 243 राज्य विश्वविद्यालय, 53 राज्य निजी विश्वविद्यालय, 130 समविश्वविद्यालय, 33 राष्ट्रीय महत्त्व की संस्थाएँ (संसद के अधिनियमों के तहत स्थापित) और पाँच संस्थाएँ (विभिन्न राज्य विधानों के अंतर्गत स्थापित) शामिल हैं। कॉलेजों की संख्या में भी कई गुणा वृद्धि दर्ज की गई है जो 1950 में केवल 578 थे, 2011 में 30,000 से भी अधिक हो गए हैं।

उच्चतर शिक्षा क्षेत्र में हुई वृद्धि में विश्वविद्यालय बहुत तेजी से बढ़े हैं जो अध्ययन का सर्वोच्च स्तर है। यूनिवर्सिटी शब्द लैटिन के “युनिवर्सिटाज’ से लिया गया है, जिसका आशय है, “छात्रों और शिक्षकों के बीच विशेष समझौते।’ इस लैटिन शब्द का अभिप्राय अध्ययन की संस्थाओं से है जो अपने छात्रों को डिग्रियाँ प्रदान करते हैं। वर्तमान में विश्वविद्यालय प्राचीन संस्थाओं से ज्यादा अलग नहीं हैं, इस बात को छोड़कर कि आजकल विश्वविद्यालये पढ़ाए गए विषयों और छात्रों दोनों के मामले में अपेक्षाकृत बड़े हैं। भारत में विश्वविद्यालय का आशय किसी केन्द्रीय अधिनियम, किसी प्रांतीय अधिनियम अथवा किसी राज्य अधिनियम के द्वारा स्थापित अथवा निगमित विश्वविद्यालय से है जिसमें इस अधिनियम के तहत इस संबंध में बनाए गए विनियमों के अनुसार उस सम्बद्ध विश्वविद्यालय के (UPBoardSolutions.com) परामर्श से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थाएँ शामिल हैं। प्रतिवर्ष देश-विदेश के लाखों छात्र मुख्यतः अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिए इनमें दाखिला लेते हैं जबकि लाखों छात्र बाहरी दुनिया में कार्य करने के लिए इन संस्थाओं को छोड़ते हैं। उच्च शिक्षा केन्द्र और राज्य दोनों की साझा जिम्मेदारी है। संस्थाओं में मानकों का समन्वय और निर्धारण केन्द्र सरकार का संवैधानिक दायित्व है। केन्द्र सरकार यूजीसी को अनुदान देती है और देश में केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना करती है। केन्द्र सरकार ही यूजीसी की सिफारिश पर शैक्षिक संस्थाओं को समविश्वविद्यालय घोषित करती है। वर्तमान में, विश्वविद्यालयों/विश्वविद्यालय स्तरीय संस्थाओं के मुख्य घटक हैं—केन्द्रीय विश्वविद्यालय, राज्य विश्वविद्यालय, समविश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय स्तरीय संस्थाएँ।

इनका वर्णन नीचे दिया गया है
केन्द्रीय विश्वविद्यालय :

  • केन्द्रीय अधिनियम द्वारा अथवा निगमित विश्वविद्यालय।

राज्य विश्वविद्यालय :

  • प्रांतीय अधिनियम द्वारा अथवा राज्य अधिनियम द्वारा स्थापित अथवा निगमित विश्वविद्यालय।

निजी विश्वविद्यालय :

  • ऐसा विश्वविद्यालय जो किसी राज्य/केन्द्रीय अधिनियम के माध्यम से किसी प्रायोजक निकाय, अर्थात् सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 अथवा राज्य में उस समय लागू किसी अन्य संबंधित कानून के तहत पंजीकृत सोसायटी अथवा सार्वजनिक न्यास अथवा कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 के अंतर्गत पंजीकृत कंपनी द्वारा स्थापित किया गया है।

समविश्वविद्यालय :

  • विश्वविद्यालयवते संस्था, जिसे सामान्यतः समविश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है, का आशय एक ऐसी उच्च-निष्पादने करने वाली संस्था से है जिसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) अधिनियम, 1956 की धारा 3 के अंतर्गत केन्द्र (UPBoardSolutions.com) सरकार द्वारा उस रूप में घोषित किया है।

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राष्ट्रीय महत्त्व की संस्था :

  • संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित और राष्ट्रीय महत्त्व की संस्था के रूप में घोषित संस्था।

राज्य विधानमंडल अधिनियम :

  • किसी राज्य विधानमंडल अधिनियम द्वारा स्थापित अथवा के अंतर्गत संस्था निगमित कोई संस्था।

(ग) तकनीकी शिक्षा

भारत में तकनीकी शिक्षा का संचालन अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् (All India Council for Technical Education/AICTE) द्वारा किया जाता है। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् भारत में नई तकनीकी संस्थाएँ शुरू करने, नए पाठ्यक्रम शुरू करने और तकनीकी संस्थाओं में प्रवेश-क्षमता में फेरबदल करने हेतु अनुमोदन देती है। यह ऐसी संस्थाओं के लिए मानदंड भी निर्धारित करती है। इसकी स्थापना 1945 में सलाहकार निकाय के रूप में की गई थी और बाद में संसद के अधिनियम द्वारा 1987 में इसे सांविधिक दर्जा प्रदान किया गया।

इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है, जहाँ इसके अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं सचिव के कार्यालय हैं। कोलकाता, चेन्नई, कानपुर, मुम्बई, चण्डीगढ़, भोपाल और बंगलुरु में इसके 7 क्षेत्रीय कार्यालय स्थित हैं। हैदराबाद में एक नया क्षेत्रीय कार्यालय स्थापित किया गया है। यह तकनीकी संस्थाओं के प्रत्यायन या कार्यक्रमों के माध्यम से तकनीकी शिक्षा के गुणवत्ता विकास को भी सुनिश्चित करती है। अपनी विनियामक भूमिका के अलावा अखिल भारतीय तकनीकी (UPBoardSolutions.com) शिक्षा परिषद् की एक बढ़ावा देने की भी भूमिका है जिसे यह तकनीकी संस्थाओं को अनुदान देकर महिलाओं, विकलांगों और समाज के कमजोर वर्गों के लिए तकनीकी शिक्षा का विकास, नवाचारी, संकाय, अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने संबंधी योजनाओं के माध्यम से कार्यान्वित करती है। परिषद् 21 सदस्यों वाली कार्यकारी समिति के माध्यम से अपना कार्य करती है। 10 सांविधिक अध्ययन बोर्ड द्वारा सहायता प्राप्त है जो नामतः इंजीनियरी और प्रौद्योगिकी में अवर स्नातक अध्ययन, इंजीनियरी और प्रौद्योगिकी में स्नातकोत्तर और अनुसंधान, प्रबंध अध्ययन, व्यावसायिक शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, फार्मास्युटिकल शिक्षा, वास्तुशास्त्र, होटल प्रबंधन और कैटरिंग प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, टाउन एवं कंट्री पलैनिंग परिषद् की सहायता करते हैं।

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प्रश्न 5.
स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद भारतीय कृषि में कौन-कौन-से बदलाव आये हैं? उक्ट स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् भारतीय कृषि में तकनीकी परिवर्तन 1960 के दशक में प्रारम्भ हुए, जब भारतीय कृषकों ने बीजों की अधिक उपज देने वाली किस्मों, रासायनिक खादों, मशीनीकरण, ऋण एवं विपणन सुविधाओं का उपयोग करना आरम्भ किया। केन्द्र सरकार ने सन् 1960 ई० में गहन क्षेत्र विकास कार्यक्रम आरम्भ किया। मैक्सिको में विकसित (UPBoardSolutions.com) अधिक पैदावार देने वाले गेहूं के बीज तथा फिलीपीन्स में विकसित पान के बीज भारत लाए गए थे। अधिक उपज देने वाले बीजों के अतिरिक्त रासायनिक खादों और कीटनाशकों का उपयोग भी आरम्भ किया गया तथा सिंचाई की सुविधाओं में सुधार एवं विस्तार किया गया। इस प्रकार स्वतन्त्रता के बाद भारतीय कृषि में परिवर्तनों को निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है

1. भूमि उपयोग में सुधार – देश के कुल 32.87 करोड़ हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्रफल में से 92.6% भूमि उपयोग के आँकड़े उपलब्ध हैं। राज्यों से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2000-01 में कुल 7.52% करोड़ हेक्टेयर (कुल क्षेत्रफल का 22.9%) में वन क्षेत्र था जबकि वर्ष 1950-51 में यह क्षेत्र 4.05 करोड़ हेक्टेयर था। इसी अवधि में बोई गई शुद्ध भूमि का क्षेत्र 11.9 करोड़ हेक्टेयर से बढ़कर 14.6 करोड़ हेक्टेयर हो गया था। फसलों के मोटे प्रारूप (UPBoardSolutions.com) से संकेत मिलता है कि कुल फसल क्षेत्र में खाद्यान्न अन्य फसलों की तुलना में सबसे अधिक बोया जाता है, फिर भी वर्ष 1950-51 की अपेक्षा वर्ष 2000-01 में इसका तुलनात्मक भाग 76.7% से गिरकर 67.2% रह गया था। इसके साथ ही भूमि-सुधार हेतु खेतों की चकबन्दी की गई है जिससे कृषकों की भूमि को एक ही स्थान पर इकट्ठा करने के प्रयास किए गए हैं।

2. रासायनिक खादों की खपत तथा सिंचाई से वृद्धि – सिंचित क्षेत्र में वृद्धि और अधिक उपज देने वाले बीजों का प्रयोग बढ़ने के साथ-साथ रासायनिक खादों का उपयोग भी बढ़ रहा है। इनका उपयोग वर्ष 1950-51 के 69 हजार टन से बढ़कर वर्ष 2005-06 में 20.34 मीट्रिक टन हो गया है। इसी अवधि में रासायनिक खादों का प्रति हेक्टेयर उपभोग 2 किग्रा से बढ़कर 82 किग्रा हो गया है। कृषि विकास की नई नीति में सिंचाई सुविधाओं को प्राथमिकता दी गई है।

3. प्रमाणीकृत बीजों के वितरण में वृद्धि – सरकार ने बहुत पहले ही उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध कराने के महत्त्व को पहचान लिया था। सन् 1963 में उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध कराने की आवश्यकता को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय बीज निगम’ की स्थापना की गई है। पिछले कुछ वर्षों में देश भर में बीज प्रमाणीकरण संस्थाओं और बीज परीक्षण प्रयोगशालाओं का जाल-सा बिछ गया है। प्रमाणीकृत बीजों के वितरण में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय बीज निगम के अतिरिक्त विश्व बैंक की सहायता से सन् 1969 ई० में स्थापित तराई विकास निगम ने भी इस दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रयास कर अपना योगदान दिया है।

4. जल प्रबन्धन – एक नई पहल के अन्तर्गत मार्च, 2002 से पूर्वी भारत में फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए खेत में जल का प्रबन्ध करने और उस पर केन्द्र द्वारा एक योजना आरम्भ की गई है। इस योजना का उद्देश्य भूमि के नीचे या भूमि की सतह पर मिलने वाले (UPBoardSolutions.com) जल का दोहन और उस जल का समुचित उपयोग पूर्वी भारत में फसल की पैदावार बढ़ाने में करना है। यह योजना असोम, अरुणाचल प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मणिपुर, मिजोरम, ओडिशा व पश्चिम बंगाल के 9 जिलों और पूर्वी उत्तर प्रदेश के 35 जिलों में लागू की गई है।

5. कृषि अनुसन्धानों का विस्तार – भारत के कृषि मन्त्रालय के अन्तर्गत कृषि अनुसन्धान और शिक्षा विभाग कृषि, पशुपालन एवं मछली पालन के क्षेत्र में अनुसन्धान और शैक्षिक गतिविधियाँ संचालित करने के लिए उत्तरदायी है। इसके अतिरिक्त इनसे सम्बन्धित क्षेत्रों में कार्यरत राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्सियों के विभिन्न विभागों एवं संस्थानों के बीच सहयोग बढ़ाने में भी सहायता करता है। भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् कृषि प्रौद्योगिकी के विकास, निवेश सामग्री तथा खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता लाने के लिए प्रमुख वैज्ञानिक जानकारियों को सामान्य जनता तक पहुँचाने में प्रमुख भूमिका निभायी है। यह परिषद् राष्ट्रीय स्तर की एक स्वायत्तशासी संस्था है। यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों के क्षेत्र में कृषि अनुसन्धान, शिक्षा एवं विस्तार शिक्षा को प्रोत्साहन देती है। भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् संसाधनों के संरक्षण एवं प्रबन्धन, फसलों, पशुओं, मछली उत्पादन आदि में आ रही समस्याओं का समाधान करने के लिए पारम्परिक एवं अग्रणी क्षेत्रों में बुनियादी एवं व्यावहारिक खोजों व अनुसन्धानों में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेती है।

6. कृषि-साख और विभिन्न निगमों की स्थापना – कृषि क्षेत्र के लिए सरकार (UPBoardSolutions.com) ने पर्याप्त मात्रा में कृषि ऋणों को उपलब्ध कराने के लिए प्रयास किए हैं। इस दिशा में सहकारी समितियों, कृषि पुनर्वित्त निगम तथा कृषि वित्त निगम प्रयास कर रहे हैं। अब इस दिशा में सभी कार्य नाबार्ड (NABARD)–राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक को सौंप दिए गए हैं। सरकार ने सीमान्त एवं छोटे कृषकों के 10 हजार तक के ऋण माफ कर दिए हैं। कृषि विकास की नई नीति के अन्तर्गत विभिन्न क्षेत्रों में निगमों की स्थापना को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
औद्योगिक विकास में कृषि का क्या महत्त्व है ?
उत्तर :

औद्योगिक विकास में कृषि का योगदान

राष्ट्रीय आय में अंश – भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान पहले बहुत अधिक था, किन्तु वह धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। यह प्रवृत्ति इस बात की सूचक है कि भारत विकास की ओर अग्रसर है। वर्ष 1950-51 में यह योगदान (UPBoardSolutions.com) 55.40% था, जो 2001-02 ई० में घटकर 26.1% रह गया।

रोजगार की दृष्टि से कृषि – देश की कुल श्रम-शक्ति का लगभग दो-तिहाई (64%) भाग कृषि एवं इससे सम्बन्धित उद्योग-धन्धों से अपनी आजीविका कमाता था। सी०डी०एस० आधार पर कृषि उद्योग में 1983 ई० में 5.135 करोड़ श्रमिक लगे हुए थे, जब कि वर्ष 1999-2000 में इन श्रमिकों की संख्या बढ़कर 19.072 करोड़ हो गयी।

औद्योगिक विकास में कृषि – भारत के प्रमुख उद्योगों को कच्चा माल कृषि से ही प्राप्त होता है। सूती और पटसन वस्त्र उद्योग, चीनी, वनस्पति, बागान आदि उद्योग प्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर हैं। हथकरघा, बुनाई, तेल निकालना, चावल कूटना आदि बहुत-से लघु और कुटीर उद्योगों को भी कच्चा माल. कृषि से ही उपलब्ध होता है। अत: देश के औद्योगिक विकास में कृषि महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में कृषि – भारत के विदेशी व्यापार का अधिकांश भाग कृषि से जुड़ा हुआ है। वर्ष 2002-03 में देश के निर्यात में कृषि वस्तुओं का अनुपात 11.9% था और कृषि से बनी हुई वस्तुओं; जैसे—निर्मित पटसन एवं कपड़ा; का अनुपात लगभग 25%। इस प्रकार भारत के कुल निर्यात में कृषि और उससे सम्बन्धित वस्तुओं का अनुपात लगभग 37% था। भारत के कृषि निर्यात में चावल और समुद्री उत्पाद का महत्त्व बढ़ रहा है। वर्ष 2002-03 में कृषि निर्यात में अकेले समुद्री उत्पाद का अंश 23.4% रहा है, जब कि चावल का अंश 13.6%। काजू का निर्यात-अंश 9.2% भी सराहनीय है।

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प्रश्न 2.
भारत में चीनी उद्योग का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
चीनी उद्योग देश के प्रमुख कृषि पर आधारित उद्योगों में से एक है। कृषि उत्पादों पर आधारित उद्योगों में सूती वस्त्र उद्योग के बाद चीनी उद्योग द्वितीय वृहत्तम उद्योग है। वर्ष 1950-51 में देश में चीनी मिलों की संख्या 138 थी, जो वर्ष 2000-01 में 493 तक पहुँच चुकी थी।

भारत विश्व में चीनी उत्पादन एवं उसकी खपत करने वाला सबसे बड़ा देश है। चीनी उत्पादन में अकेले महाराष्ट्र राज्य का योगदान एक-तिहाई से अधिक है। चीनी मिल की स्थापना के लिए पहले सरकार से लाइसेन्स प्राप्त करना अनिवार्य था, किन्तु 20 अगस्त, 1998 ई० को सरकार ने इस उद्योग को लाइसेन्स मुक्त करने की घोषणा कर दी। वर्तमान में भारत के पास लाखों टन चीनी का बफर स्टॉक उपलब्ध है। सरकार ने हाल ही में चीनी के निर्यात को डिकैनेलाइज़ (Decanalise) करने का निर्णय लिया है। इसके परिणामस्वरूप चीनी मिलें सीधे ही चीनी का निर्यात कर सकेंगी। पहले इसका निर्यात केवल इण्डियन शुगर ऐण्ड जनरल इण्डस्ट्री एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट कॉपरिशन (ISGIEIC) के माध्यम से ही होता था। यह स्थिति चीनी उद्योग में भारत की वैश्विक सन्दर्भ में परिवर्तित होती स्थिति को प्रदर्शित करती है।

प्रश्न 3.
मोबाइल दूरभाष पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
देश के 20 करोड़ दूरभाष उपभोक्ताओं में 15 करोड़ उपभोक्ता मोबाइल दूरभाष के हैं। उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2006 के अन्त में देश में मोबाइल फोन उपभोक्ताओं की संख्या 15 करोड़ थी, जो अब दिन दोगुनी तथा रात चौगुनी बढ़ रही है। रिलायन्स इन्फो, (UPBoardSolutions.com) टाटा इण्डिकॉम, एयरटेल, बी०एस० एन०एल०, भारती, बी०पी०एल०, आइडिया, वोडाफोन, एस्सार आदि कम्पनियाँ देश को मोबाइल फोन सेवाएँ उपलब्ध कराने में एक-दूसरे से बढ़-चढ़कर कार्य कर रही हैं।

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प्रश्न 4.
भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख लक्षण क्या हैं ?
उत्तर :
भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ (लक्षण) निम्नलिखित है

  • भारतीय अर्थव्यवस्था मिश्रित प्रकृति वाली अर्थव्यवस्था है, जिसमें सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र को एक-दूसरे से अलग रखा गया है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि-प्रधान अर्थव्यवस्था है, जिसमें कुल श्रम शक्ति का लगभग 70% भाग लगी हुआ है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था असन्तुलित अर्थव्यवस्था है। यह वर्ष 2004 की ‘विश्व विकास रिपोर्ट में कहा गया है। क्योंकि 70% कृषि पर आधारित कार्यशील जनसंख्या की तुलना में केवल 16% व्यक्ति ही उद्योग-धन्धों में तथा शेष 14% व्यक्ति व्यापार, परिवहन, संचार तथा अन्य कार्यों में लगे हुए हैं।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था निर्धनता वाली अर्थव्यवस्था है (UPBoardSolutions.com) जिसकी कुल जनसंख्या का 26.1% भाग (2003-04) अभी भी निर्धनता रेखा के नीचे है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था में पूंजी का अभाव पाया जाता है। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आय कम होने के . कारण वास्तविक आय भी कम हो जाती है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था में औद्योगीकरण का अभाव अर्थव्यवस्था के तीव्र विकास में एक बड़ी बाधा है।
  • भारत में प्रति व्यक्ति आय अत्यधिक निम्न (अमेरिका के प्रति व्यक्ति आय का 1/75वाँ भाग) है।
  • भारत में धन एवं आय के वितरण में उल्लेखनीय असमानता पायी जाती है। धनवानों और निर्धनों में अन्तराल बढ़ता ही जा रहा है।
  • भारत में जनाधिक्य की समस्या आर्थिक विकास में एक बहुत बड़ी बाधा है, क्योंकि संसाधन उस अनुपात में नहीं बढ़ पा रहे हैं।
  • भारत में बाजार की अपूर्णताएँ भी स्पष्ट रूप में देखी जाती हैं। यहाँ व्यावसायिक गतिशीलता का अभाव है तथा आर्थिक क्रियाओं में आशातीत विशिष्टीकरण भी नहीं हो पा रहा है।
  • भारत में बहुत-से व्यक्ति अपनी आय को सामाजिक कुरीतियों पर ही व्यय कर देते हैं जिससे अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • भारत में आवागमन तथा संचार के साधनों का यथोचित विकास नहीं हो पाने के कारण आर्थिक असन्तुलन यथावत् बना हुआ है।

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प्रश्न 5.
नयी औद्योगिक नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
सन् 1991 ई० की नवीन औद्योगिक नीति से उदारीकरण के अनेक उपायों की घोषणा की गई। इस नीति के अनुसार आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) के काल में औद्योगिक क्रियाकलापों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बहुत प्रोत्साहन दिया गया। उदारीकरण की नीति के प्रमुख उपाय थे—निवेश सम्बन्धी बाधाएँ हटा दी गईं, व्यापार को बन्धनमुक्त कर दिया गया, कुछ क्षेत्रों में विदेशी प्रौद्योगिकी आयात करने की छूट दी गई, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (विनियोग) की अनुमति दी गई, पूँजी बाजार में पहुँच की बाधाओं को हटा दिया गया, औद्योगिक लाइसेंस पद्धति को सरल एवं नियन्त्रण मुक्त कर दिया गया, (UPBoardSolutions.com) सार्वजनिक क्षेत्र के सुरक्षित क्षेत्र को घटा दिया गया तथा सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ चुने हुए उपक्रमों का विनिवेशीकरण किया गया अर्थात् इन्हें निजी कम्पनियों को बेच दिया गया। दसवीं योजना (2002-07) में औद्योगिक उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। ग्यारहवीं योजना (2007-12) में औद्योगिक विकास का लक्ष्य 9% रखा गया। यह योजना मार्च, 2012 को समाप्त हो गई। वर्ष 2012-17 के लिए 1 अप्रैल, 2012 से 12वीं पंचवर्षीय योजना प्रारम्भ हुई। इसमें औद्योगिक विकास का लक्ष्य 9.6 प्रतिशत रखा गया है।

प्रश्न 6.
भारत में ‘बौद्धिक सम्पदा के क्षेत्र में की गयी प्रगति का वर्णन कीजिए।
या
‘बौद्धिक सम्पदा’ से आप क्या समझते हैं ? इस पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर :
क्ति का सर्वांगीण विकास अर्थात् शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक विकास पर्याप्त सीमा तक तकनीकी शिक्षा पर आधारित है। व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास तब ही पूर्ण माना जाता है जब उसमें जीवन के सभी क्षेत्रों में विकास करने की क्षमता उत्पन्न हो जाए। वैज्ञानिक एवं तकनीकी शिक्षा व्यक्ति को प्रत्येक क्षेत्र में विकसित होने का अवसर प्रदान करती है। यह शारीरिक श्रम के माध्यम से मानसिक शक्तियों का विकास करते हुए व्यक्ति को चिन्तन, मनन, सत्यापन आदि के अवसर प्रदान करती है, जिससे उसका बौद्धिक विकास होता है। उदाहरण के लिए किसी विद्यार्थी में योग्यता एवं तकनीकी कौशल का विकास होने पर उसमें आत्मनिर्भरता की शक्ति भी पैदा होती है।

आज भारत ने ज्ञान-विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में प्रगति कर देश में उपलब्ध संसाधनों का भरपूर उपयोग किया है। जैव प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं यन्त्रीकरण, परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य देखभाल, दूर संवेदी उपग्रह प्रणाली, सूचना प्रौद्योगिकी, सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों के विकास में भारत अपनी बौद्धिक सम्पदा के बल पर ही आगे कदम बढ़ा रहा है। इण्टरनेट अत्यन्त उच्च तकनीक वाला उद्योग है, जिसमें नयी उपलब्धियों का प्रयोग और पुरानी का लोप दोनों ही बड़ी तेज रफ्तार से होता है। इससे कुछ नयी परिस्थितियाँ भी जन्मी हैं। इनमें पहली पेटेण्ट और बौद्धिक सम्पदा के अधिकारों से सम्बन्धित है। सॉफ्टवेयर चुम्बकीय माध्यम में अंकित रहता है और इसीलिए इसका हस्तान्तरण तथा नकल बड़ी आसानी से हो जाता है। इस कारण पेटेण्ट और बौद्धिक सम्पदा अधिकारों की रक्षा का काम बेहद कठिन हो गया है। नवीं पंचवर्षीय योजना अवधि में दो नयी योजनाएँ अर्थात्

  • बौद्धिक सम्पदा अधिकार अध्ययन के बारे में वित्तीय सहायता योजना और
  • कॉपीराइट मामलों पर संगोष्ठी तथा कार्यशाला आयोजन आरम्भ की गयी। बौद्धिक सम्पदा अधिकार अध्ययन की वित्तीय सहायता योजना का उद्देश्य बौद्धिक सम्पदा अधिकार

सम्बन्धी मामले के बारे में शिक्षाविद् समुदाय में सामान्य जागरूकता उत्पन्न करना और विश्व विद्यालय तथा अन्य मान्यता प्राप्त संस्थानों में बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के बारे में अध्ययनों को प्रोत्साहित करना है। भारत विश्व बौद्धिक सम्पदा संगठन का सदस्य है, जो (UPBoardSolutions.com) कॉपीराइट तथा अन्य बौद्धिक सम्पदा अधिकारों से सम्बन्धित संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशिष्ट एजेन्सी है। भारत इनकी सभी चर्चाओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय अर्थव्यवस्था किस पर आधारित है ?
उत्तर :
वर्तमान में भारत की अर्थव्यवस्था ‘वैश्वीकरण’ या उदारीकरण’ की प्रक्रिया पर आधारित है।

प्रश्न 2.
भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि के घटते योगदान से क्या निष्कर्ष निकाला जा सकता हैं ?
उत्तर :
भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि के (UPBoardSolutions.com) घटते योगदान से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भारत विकास की ओर अग्रसर है।

प्रश्न 3.
भारत में कृषि की महत्त्वपूर्ण क्रान्तियों के नाम लिखिए।
उत्तर :
हरित क्रान्ति तथा पीली क्रान्ति।

प्रश्न 4.
छः आधारभूत उद्योगों के नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
छ: आधारभूत उद्योग इस प्रकार हैं-बिजली, कोयला, इस्पात, कच्चा पेट्रोलियम, पेट्रोलियम रिफाइनरी तथा सीमेण्ट।

प्रश्न 5.
सरकार ने कपड़ा उद्योग को कब लाइसेन्स मुक्त किया था ?
उत्तर :
सरकार ने कपड़ा उद्योग को वर्ष 1993 ई० में लाइसेन्स मुक्त किया था।

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प्रश्न 6.
लोहा व इस्पात उद्योग में कितनी पूँजी लगी हुई है तथा कितने लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला हुआ है ?
उत्तर :
लोहा व इस्पात उद्योग में है 90,000 करोड़ की पूँजी (UPBoardSolutions.com) लगी हुई है तथा 5 लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला हुआ है।

प्रश्न 7.
भारतीय कोयला उद्योग का संचालन एवं नियन्त्रण करने वाले संस्थानों के नाम का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
भारतीय कोयला उद्योग को संचालन एवं नियन्त्रण सार्वजनिक क्षेत्र के दो प्रमुख संस्थानों-कोल इण्डिया लि० (CIL) तथा सिंगरैनी कोइलरीज द्वारा किया जा रहा है।

प्रश्न 8.
वैश्वीकरण का क्या अर्थ है ? [2010]
उत्तर :
किसी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था का विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ समन्वय ही वैश्वीकरण कहलाता है। इसे भूमण्डलीकरण या विश्वव्यापीकरण भी कहा जाता है। यह द्विपक्षीय या बहुपक्षीय व्यापार एवं वित्तीय समझौते से भिन्न ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के द्वारा विश्व स्तर पर उपलब्ध आर्थिक अवसरों से लाभान्वित होने का विचार अन्तर्निहित है।

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प्रश्न 9.
भारत में वैश्वीकरण की प्रक्रिया कब आरम्भ हुई ?
उत्तर :
भारत में वैश्वीकरण की प्रक्रिया सन् 1991 ई० में आरम्भ हुई। इस प्रक्रिया को तत्कालीन प्रधानमन्त्री पी०वी० नरसिंहराव तथा वित्तमन्त्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में क्रियान्वित किया गया।

प्रश्न 10.
वैश्वीकरण से होने वाले दो लाभ लिखिए।
उत्तर :
वैश्वीकरण से होने वाले दो लाभ निम्नलिखित हैं

  • वैश्वीकरण या उदारीकरण से उठाए गए कदमों के कारण संचार के क्षेत्र में कम दामों में उत्तम सेवाएँ प्राप्त हुईं।
  • इसमें औद्योगिक क्षेत्र में, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में, (UPBoardSolutions.com) कम्प्यूटर एवं खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में भारी सफलता देश को प्राप्त हुई।

बहुविकल्पीय प्रश्

1. भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्व अर्थव्यवस्था में स्थान है
(क) पहला
(ख) चौथा।
(ग) सातवाँ
(घ) तीसरा

2. ‘कृष्ण क्रान्ति सम्बन्धित है
(क) तेल उत्पादन से
(ख) केरोसिन उत्पादन से
(ग) पेट्रोल उत्पादन से
(घ) खनिज तेल उत्पादन से

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3. ‘शिक्षा-एक मौलिक अधिकार को किस संशोधन द्वारा पारित किया गया?
(क) 93वाँ संशोधन
(ख) 92वाँ संशोधन
(ग) 85वाँ संशोधन
(घ) 91वाँ संशोधन

4. देश के सकल घरेलू उत्पादन में कृषि का योगदान कितना प्रतिशत है?
(क) 24%
(ख) 25%
(ग) 26%
(घ) 27%

5. भारत का कितना प्रतिशत कृषि क्षेत्रफल वर्षा पर निर्भर करता है?
(क) 50%
(ख) 55%
(ग) 60%
(घ) 65%

6. भारत की राष्ट्रीय आय का कितना प्रतिशत कृषि से प्राप्त होता है?
(क) 25%
(ख) 28%
(ग) 30%
(घ) 33%

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7. भारत में रॉकेट प्रक्षेपण का केन्द्र है
(क) पोखरन
(ख) ट्रॉम्बे
(ग) मुम्बई
(घ) श्रीहरिकोटा

उत्तरमाला

1. (ख), 2. (घ), 3. (क), 4. (ग), 5. (ग), 6. (क), 7. (क)

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UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles

UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles (समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Maths. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles (समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल).

प्रश्नावली 9.1

प्रश्न 1.
निम्नांकित आकृतियों में से कौन-सी आकृतियाँ एक ही आधार और एक ही समान्तर रेखाओं के बीच स्थित हैं? ऐसी स्थिति में, उभयनिष्ठ आधार और दोनों समान्तर रेखाएँ लिखिए।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-1
हल :
(i) इस आकृति में त्रिभुज PDC और चतुर्भुज ABCD का उभयनिष्ठ आधार DC है और DC की समान्तर रेखा पर त्रिभुज का शीर्ष P और चतुर्भुज के शीर्ष A व B स्थित हैं।
अत: ये आकृतियाँ (त्रिभुज और चतुर्भुज) एक ही आधार DC और एक ही समान्तर रेखाओं DC और AB के बीच स्थित हैं।
(ii) इस आकृति में दोनों चतुर्भुजों का आधार SR तो उभयनिष्ठ है परन्तु उनके शीर्ष P, Q व M, N आधार के समान्तर एक ही रेखा में नहीं हैं। अत: ये एक ही आधार और एक समान्तर रेखाओं के बीच स्थित नहीं हैं।
(iii) दी गई आकृति में ΔQRT और चतुर्भुज PQRS का आधार QR उभंयनिष्ठ है जबकि आधार QR के समान्तर एक ही रेखा पर ΔQRT का शीर्ष T और चतुर्भुज PQRS के शीर्ष P व S स्थित हैं। तब ΔQRT और चतुर्भुज PQRS एक ही आधार और एक ही समान्तर रेखाओं के बीच स्थित हैं। उभयनिष्ठ आधार QR तथा समान्तर रेखाएँ QR व PS हैं।
(iv) दी गई आकृति में एक समान्तर चतुर्भुज व एक त्रिभुज है जिनका कोई उभयनिष्ठ आधार नहीं है। अत: ये एक ही आधार व एक ही समान्तर रेखाओं के बीच स्थित नहीं हैं।
(v) इस आकृति में दो चतुर्भुज ABCD तथा APQD हैं जो एक ही आधार AD व एक ही समान्तर रेखाओं AD और PQ के बीच स्थित हैं।
(vi) दी गई आकृति में PQRS एक समान्तर चतुर्भुज है जिसके अन्तर्गत चतुर्भुज PADS, चतुर्भुज ABCD व चतुर्भुज BQRC तीन समान्तर चतुर्भुज समाहित हैं परन्तु इनका कोई उभयनिष्ठ आधार नहीं है।
अत: ये आकृतियाँ एक ही आधार और एक ही समान्तर रेखाओं के बीच स्थित नहीं हैं।

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प्रश्नावली 9.2

प्रश्न 1.
दी गई आकृति में ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है और AE ⊥ DC तथा CF ⊥ AD है। यदि AB = 16 सेमी, AE = 8 सेमी और CF = 10 सेमी है तो AD ज्ञात कीजिए।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-2
हल :
ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है जिसमें AB = CD और इन समान्तर भुजाओं के बीच की लाम्बिक दूरी = AE
समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल = CD x AE [CD = AB = 16 सेमी] = 16 x 8 = 128 वर्ग सेमी
पुनः समान्तर चतुर्भुज ABCD में, AD = BC और AD || BC के बीच की लाम्बिक दूरी = CF
समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल = AD x CF
AD x CF = 128 वर्ग सेमी
AD x 10 = 128
AD = 128 = 12.8 सेमी [CF = 10 सेमी]
अत: AD= 12.8 सेमी।

प्रश्न 2.
यदि E, F, G और H क्रमशः समान्तर चतुर्भुज ABCD की भुजाओं के मध्य-बिन्दु हैं तो दर्शाइए कि ar (EFGH) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABCD) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-3
हल :
दिया है : ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है जिसमें बिन्दु E, F, G और H क्रमशः समान्तर चतुर्भुज की भुजाओं AB, BC, CD व DA के मध्य-बिन्दु हैं।
सिद्ध करना है : ar (EFFG) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABCD)
रचना : EG को मिलाइए।
उपपत्ति : ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है।
AB = CD और AB || CD
E, AB को मध्य-बिन्दु है और G, CD कां मध्य-बिन्दु है।
AE = EB = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] AB
DG = GC = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] CD
तब, AE = DG और AE || DG [AB = CD]
AEGD एक समान्तर चतुर्भुज है।
AEGD और ∆EGH उभयनिष्ठ आधार EG पर स्थित हैं। इनके शीर्ष A, D व में एक ही रेखा पर हैं जो EG के समान्तर है।
∆EGH का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x समान्तर चतुर्भुज AEGD का क्षेत्रफल …(1)
इसी प्रकार,
∆EGF का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x समान्तर चतुर्भुज EBCG का क्षेत्रफल …(2)
समीकरण (1) व (2) को जोड़ने पर,
∆EGH का क्षेत्रफल + ∆EGF का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x समान्तर चतुर्भुज AEGD का क्षेत्रफल [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x समान्तर चतुर्भुज EBCG का क्षेत्रफल
EFGH का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] [समान्तर चतुर्भुज AEGD का क्षेत्रफल + समान्तर चतुर्भुज EBCG का क्षेत्रफल]
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल
अतः ar (EFGH = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABCD)
Proved.

प्रश्न 3.
P और Q क्रमशः समान्तर चतुर्भुज ABCD की भुजाओं DC और AD पर स्थित बिन्दु हैं दर्शाइए कि ar (APB)= ar (BQC) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-4
हल :
दिया है : ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है, जिसमें भुजाओं DC और AD पर स्थित बिन्दु क्रमश: P और Q हैं।
रेखाखण्ड AP व BP और BQ व CQ खींचकर दो त्रिभुज APB और BQC प्राप्त किए गए हैं।
सिद्ध करना है : ar (∆APB) = ar (∆BQC)
अर्थात ∆APB का क्षेत्रफल = ∆BQC का क्षेत्रफल।
रचना : P से AB पर लम्ब PR और Q से BC पर लम्ब QS खींचे।
उपपत्ति : समान्तर चतुर्भुज ABCD में,
AB || DC और इनके बीच की लम्ब दूरी PR है।
समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल = एक भुजा x उस भुजा की सम्मुख भुजा से लम्ब दूरी
समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल = AB x PR …(1)
और ∆APB का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x आधार x ऊँचाई = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x AB x PR ….(2)
तब, समीकरण (1) व (2) से,
∆APB का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल
पुनः समान्तर चतुर्भुज ABCD में, BC || AD और इनके बीच की दूरी QS है।
समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल = एक भुजा x उस भुजा की सम्मुख भुजा से लम्ब दूरी = BC x QS
समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल = BC x QS
परन्तु ∆BQC का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x आधार x ऊँचाई = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x BC x QS …(5)
तब, समीकरण (4) व (5) से,
∆BRC का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल …(6)
अब, समीकरण (3) व (6) से,
∆APB का क्षेत्रफल = ∆BQC का क्षेत्रफल
या ar(APB) = ar(BQC)
Proved.

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प्रश्न 4.
संलग्न आकृति में, P समान्तर चतुर्भुज ABCD के अभ्यन्तर में स्थित कोई बिन्दु है। दर्शाइए कि
(i) ar (APB) + ar (PCD) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABCD)
(ii) ar (APD) + ar (PBC) = ar(APB) + ar(PCD)
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-5
हल :
दिया है : ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है जिसके अभ्यन्तर में स्थित एक बिन्दु P है।
रेखाखण्ड PA, PB, PC और PD खींचे गए हैं।
जिससे चार त्रिभुज ∆APB, ∆PBC, ∆PCD और ∆APD प्राप्त होते हैं।
सिद्ध करना है :
(i) ar (APB) + ar (PCD) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABCD)
(ii) ar (APD) + ar (PBC) = ar (∆APB) + ar (∆PCD)
रचना : P से AB पर लम्ब PQ तथा CD पर लम्ब PR खींचिए।
उपपत्ति :
(i) समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल = भुजा x सम्मुख भुजा की लाम्बिक दूरी
समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल = AB x (PQ + PR) ……(1)
∆APB का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x आधार x ऊँचाई = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x AB x PA
∆PCD का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x आधार x ऊँचाई = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x DC x PR
जोड़ने पर,
∆APB का क्षेत्रफल + ∆PCD का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] (AB x PQ + DC x PR) का क्षेत्रफल
= (AB x PQ + AB x PR) (समान्तर चतुर्भुज ABCD में DC = AB)
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] AB (PQ + PR)
समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफले (समीकरण (1) से)
अत: ∆APB का क्षेत्रफल + ∆PCD का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x समान्तर चतुर्भुज ABCD का क्षेत्रफल
ar (APB) + ar (PCD) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABCD)
Proved.
(ii) ar (APB) + ar (PCD) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABCD)
2 [ar(APB) + ar (PCD)] = ar (ABCD)
2 ar (APB) + 2 ar (PCD) = ar (APB) + ar (PBC)+ ar (PCD) + ar (APD)
2ar (APB) + 2 ar (PCD) – ar (APB) – ar (PCD) = ar (PBC) + ar (APD)
ar (APB) + ar (PCD) = ar (APD) + ar (PBC)
अत: ar (APD) + ar (PBC) = ar (APB) + ar (PCD)
Proved.

प्रश्न 5.
दी गई आकृति में, PQRS और ABRS दो समान्तर चतुर्भुज हैं तथा X भुजा BR पर स्थित कोई बिन्दु है। दर्शाइए कि
(i) ar (PQRS) = ar(ABRS)
(ii) ar (AXS) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (PQRS)
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-6
हल :
दिया है : PQRS तथा ABRS दो समान्तर चतुर्भुज है जिनका PA उभयनिष्ठ आधार RS है।
भुजा BR पर कोई बिन्दु X है। रेखाखण्ड AX तथा SX खींचे गए हैं जिससे ∆AXS प्राप्त होता है।
सिद्ध करना है :
(i) ar(PQRS) = ar (ABRS)
(ii) ar (AXS) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (PQRS)
रचना : बिन्दु A से आधार SR पर लम्ब AE खींचिए और बिन्दु X से AS पर लम्ब XF खींचिए।
उपपत्ति :
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-7
(i) समान्तर चतुर्भुज PQRS में, PQ || RS और इनके बीच की लम्ब दूरी = AE है।
समान्तर चतुर्भुज PQRS का क्षेत्रफल = एक भुजा x उस भुजा की सम्मुख भुजा से लम्ब दूरी = SR x AE …..(1)
ar (PQRS) = SR x AE
समान्तर चतुर्भुज ABRS में,
AB || RS और इसके बीच की दूरी = AE है।
समान्तर चतुर्भुज ABRS का क्षेत्रफल = एक भुजा x उस भुजा की सम्मुख भुजा से लम्ब-दूरी = SR x AE ……(2)
ar (ABRS) = SR x AE
तब समीकरण (1) व (2) से,
ar (PQRS) = ar (ABRS)
Proved.
(ii) ABRS एक समान्तर चतुर्भुज है।
BR || AS और इनके बीच की लम्ब दूरी = XF
समान्तर चतुर्भुज ABRS का क्षेत्रफल = एक भुजा x उस भुजा से सम्मुख भुजा की लम्ब-दूरी = AS x FX …..(3)
ar (ABRS) = AS x (FX)
∆ AXS का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x आधार x ऊँचाई = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x AS x FX
तब, समीकरण (3) से,
∆AXS का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x समान्तर चतुर्भुज ABRS का क्षेत्रफल
ar (AXS) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABRS)
परन्तु हम सिद्ध कर चुके हैं कि ar (ABRS) = ar (PQRS)
अत: ar (AXS) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (PQRS)
Proved.

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प्रश्न 6.
एक किसान के पास समान्तर चतुर्भुज PQRS के रूप का एक खेत था। उसने RS पर स्थित कोई बिन्दु A लिया और उसे Pऔर से मिला दिया। खेत कितने भागों में विभाजित हो गया है? इन भागों के आकार क्या हैं? वह किसान खेत में गेहूँ। और दालें बराबर-बराबर भागों में अलग-अलग बोना चाहता है। वह ऐसा कैसे करे?
हल :
माना किसान के पास चित्रानुसार PQRS समान्तर चतुर्भुज के आकार का एक खेत है। किसान ने भुजा RS पर एक बिन्दु A चुनकर उसे P तथा Q से मिला दिया।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-8
खेत तीन त्रिभुजाकार भागों में विभाजित हो गया है। ये भाग ∆PSA, ∆PAQ तथा ∆QAR हैं।
किसान को गेहूँ और दालें बराबर क्षेत्रफलों में बोनी हैं इसलिए P से सम्मुख भुजा SR पर PN लम्ब डाला गया है।
∆PAQ का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x आधार x क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x PQ x PN
PQRS एक समान्तर चतुर्भुज है। PQ = RS
तब, ∆PAQ का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x RS x PN (PQ = RS)
∆PAQ का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] (SA + AR) x PN (RS = SA + AR)
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x SA x PN + [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x AR x PN
= ∆PSA का क्षेत्रफल + ∆QAR का क्षेत्रफल
अत: किसान को ∆PAQ क्षेत्रफल में गेहूँ और ∆PSA तथा ∆QAR के क्षेत्रफल में दालें बोना चाहिए।

प्रश्नावली 9.3

प्रश्न 1.
दी गई आकृति में, ∆ABC की एक माध्यिका AD पर स्थित E कोई बिन्दु है। दर्शाइए कि ar (ABE) = ar (ACE) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-9
हल :
दिया है : ∆ABC में BC का मध्य-बिन्दु D है जिससे AD त्रिभुज की एक माध्यिका है। माध्यिका AD पर एक बिन्दु E है।
सिद्ध करना है : ∆ABE का क्षेत्रफल = ∆ACE का क्षेत्रफल
अथवा  ar (ABE) = ar (ACE)
∆ABC में,
D, BC का मध्य-बिन्दु है अर्थात AD माध्यिका है।
हम जानते हैं कि त्रिभुज की एक माध्यिका उसे बराबर क्षेत्रफल के दो त्रिभुजों में विभाजित करती है।
∆ABD का क्षेत्रफल = ∆ACD का क्षेत्रफल …..(1)
पुनः ∆BEC की माध्यिका ED है।
∆BED का क्षेत्रफल = ∆CDE का क्षेत्रफल …(2)
समीकरण (1) से (2) को घटाने पर,
∆ABD का क्षेत्रफल – ∆BED का क्षेत्रफल = ∆ACD का क्षेत्रफल – ∆CDE का क्षेत्रफल
∆ABE का क्षेत्रफल = ∆ACE का क्षेत्रफल
ar (ABE) = ar (ACE)
Proved.

प्रश्न 2.
∆ABC में, E माध्यिका AD का मध्य-बिन्दु है। दर्शाइए कि ar (BED) = ar (ABC) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-10
हल :
दिया है : ∆ABC में AD त्रिभुज की माध्यिका है और AD का मध्य-बिन्दु E है।
∆ABD में, AD माध्यिका है।
∆ABD का क्षेत्रफल = ∆ACD का क्षेत्रफल
∆ABD का क्षेत्रफल + ∆ABD का क्षेत्रफल = ∆ABD का क्षेत्रफल + ∆ACD का क्षेत्रफल
2 ∆ABD का क्षेत्रफल = ∆ABC का क्षेत्रफल
∆ABD का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x ∆ABC का क्षेत्रफल …(1)
पुनः ∆ABD में, E, AD का मध्य-बिन्दु है।
BE, ∆ABD की माध्यिका है।
∆BED का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x ∆ABD का क्षेत्रफल [समीकरण (1) से]
= [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] x ∆ABC का क्षेत्रफल
ar (BED) = [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] ar (ABC)
Proved.

प्रश्न 3.
दर्शाइए कि समान्तर चतुर्भुज के दोनों विकर्ण उसे बराबर क्षेत्रफलों वाले चार त्रिभुजों में बाँटते हैं।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-11
हल :
दिया है: ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है। जिसके विकर्ण AC और BD एक-दूसरे को बिन्दु 0 पर काटते हैं।
सिद्ध करना है : ∆ADO का क्षेत्रफल = ∆ABO का क्षेत्रफल = ∆BCO का क्षेत्रफल = ∆CDO का क्षेत्रफल
रचना : शीर्ष A से BD पर लम्ब AN खींचा।
उपपत्ति : ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है और इसके विकर्ण AC व BD परस्पर बिन्दु O पर काटते हैं।
AB = CD तथा BC = AD
AO = CO तथा BO = DO
अब ∆BCO तथा ∆DAO में,
BC = DA (ऊपर सिद्ध किया है)
CO = AO (ऊपर सिद्ध किया है)
BO = DO (ऊपर सिद्ध किया है)
∆BCO = ∆ADO (S.S.S. से)
∆BCO का क्षेत्रफल = ∆ADO का क्षेत्रफल …(1)
इसी प्रकार, ∆ABO तथा ∆CDO भी सर्वांगसम होंगे।
∆ABO का क्षेत्रफल = ∆CDO का क्षेत्रफल …(2)
AN, BD पर लम्ब है।
∆ADO का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x आधार x ऊँचाई
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x DO x AN = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x ([latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex]BD) x AN
= [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] x BD x AN
और ∆ABO का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x आधार x ऊँचाई
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x BO x AN = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x ([latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex]BD) x AN [∴ BO = DO – [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] BD]
= [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] x BD x AN …(3)
∆ABO का क्षेत्रफल = ∆ADO का क्षेत्रफल
तब समीकरण (1), (2) व (3) से,
∆ABO का क्षेत्रफल = ∆BCO का क्षेत्रफल = ∆CDO का क्षेत्रफल = ∆ADO का क्षेत्रफल
अतः स्पष्ट है कि समान्तर चतुर्भुज के विकर्ण उसे समान क्षेत्रफल वाले चार त्रिभुजों में बाँटते हैं।
Proved.

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प्रश्न 4.
दी गई आकृति में, ABC और ABD एक ही आधार AB पर बने दो त्रिभुज हैं। यदि रेखाखण्ड CD रेखाखण्ड AB से बिन्दु O पर समद्विभाजित होता है तो दर्शाइए कि ar (ABC) = ar (ABD) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-12
हल :
दिया है। दो ∆ABC व ∆ABD एक ही आधार AB पर स्थित हैं।
AB रेखाखण्ड CD को O पर समद्विभाजित करता है।
सिद्ध करना है : त्रिभुज ABC का क्षेत्रफल = त्रिभुज ABD का क्षेत्रफल
अथवा
ar (ABC) = ar (ABD)
रचना : शीर्षों C तथा D से AB पर क्रमशः CE तथा DF लम्ब खींचे।
उपपत्ति : CE ⊥ AB और DF ⊥ AB (रचना से)
CE || DF; और CD एक तिर्यक रेखा है।
∠ECD = ∠FDC (एकान्तर कोण)
∠ECO = ∠FDO …(1)
अब ∆ECO और ∆FDO में,
∠ECO = ∠FDO [समीकरण (1) से]
CO = DO (O पर CD समद्विभाजित होता है)
∠COE = ∠DOF (शीर्षाभिमुख कोण हैं)
∆ECO = ∆FDO (A.S.A. से)
CE = DF (C.P.C.T.) …(2)
तब, ∆ABC का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x आधार x ऊँचाई
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x AB x CE
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x AB x DF [समीकरण (2) से]
= ∆ABD का क्षेत्रफल
अतः ∆ABC का क्षेत्रफल = ∆ABD का क्षेत्रफल
या
ar (ABC) = ar (ABC)
Proved.

प्रश्न 5.
D, E और F क्रमशः त्रिभुज ABC की भुजाओं BC, CA और AB के मध्य-बिन्दु हैं। दर्शाइए कि
(i) BDEF एक समान्तर चतुर्भुज है।
(ii) ar (DEF) = [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] ar (ABC)
(iii) ar (BDEF) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABC)
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-12
हल :
दिया है: ∆ABC में भुजाओं BC, CA और AB के मध्य-बिन्दु क्रमशः D, E और F हैं।
सिद्ध करना है:
(i) BDEF एक समान्तर चतुर्भुज है।
(ii) ar (DEF) = [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] ar (ABC)
(iii) ar (BDEF) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ABC)
उपपत्ति :
(i) ∆ABC में E, AC का मध्य-बिन्दु है और F, AB का मध्य-बिन्दु है।
EF = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] BC और EF || BC (मध्य-बिन्दु प्रमेय से)
D, BC का मध्य-बिन्दु है।
BD = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] BC
EF = BD और EF || BD
अत: BDEF एक समान्तर चतुर्भुज है।
Proved.
(ii) E और F क्रमश: AC और AB के मध्य-बिन्दु हैं।
EF = BC और EF || BC (मध्य-बिन्दु प्रमेय से)
परन्तु D, BC को मध्य-बिन्दु है।
CD = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] BC
EF = CD और EF || DC
DCEF एक समान्तर चतुर्भुज है।
FD = CE और FD || EC या FD || AC या FD || AE
BDEF एक समान्तर चतुर्भुज है।
DE = BF और DE || BF और DE || AB DE || AF
DE || AF और FD || AE
AEDF एक समान्तर चतुर्भुज है।
BDEF समान्तर चतुर्भुज है और FD उसका एक विकर्ण है।
∆DEF का क्षेत्रफल = ∆BDF का क्षेत्रफल ……(1)
DCEF समान्तर चतुर्भुज है और DE उसका एक विकर्ण है।
∆DEF का क्षेत्रफल = ∆DCE का क्षेत्रफल ……(2)
AEDF समान्तर चतुर्भुज है और EF उसका एक विकर्ण है।
∆DEF का क्षेत्रफल = ∆AEF का क्षेत्रफल ………(3)
समीकरण (1), (2) व (3) को जोड़ने पर,
3 ∆DEF’ का क्षेत्रफल = ∆BDF का क्षेत्रफल + ∆DCE का क्षेत्रफल + ∆AEF का क्षेत्रफल दोनों पक्षों में ∆DEF जोड़ने पर,
4 ∆DEF का क्षेत्रफल = (∆BDF + ∆DEC + ∆AEF + ∆DEF) का क्षेत्रफल
4 ∆DEF का क्षेत्रफल = ∆ABC का क्षेत्रफल
अतः ∆DEF का क्षेत्रफल = ∆ABC का क्षेत्रफल
अथवा ar (DEF) = ar (ABC)
Proved.
(iii) चतुर्भुज BDEF का क्षेत्रफल = ∆BDF का क्षेत्रफल + ∆DEF का क्षेत्रफल = ∆DEF का क्षेत्रफल + ∆DEF का क्षेत्रफल [समीकरण (1) से
= 2 ∆DEF का क्षेत्रफल = 2 x [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] ∆ABC का क्षेत्रफल
= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x ∆ABC का क्षेत्रफल
अत: चतुर्भुज BDEF’ का क्षेत्रफल = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] x ∆ABC का क्षेत्रफल
अथवा
ar (BDEF) = ar (ABC)
Proved.

प्रश्न 6.
दी गई आकृति में, चतुर्भुज ABCD के विकर्ण AC और BD परस्पर बिन्दु O पर इस प्रकार प्रतिच्छेद करते हैं कि OB = OD है। यदि AB = CD है तो दर्शाइए कि
(i) ar(DOC) = ar (AOB)
(ii) ar(DCB) = ar(ACB)
(iii) DA || CB या ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-13
हल :
दिया है : ABCD एक चतुर्भुज है जिसमें विकर्ण AC, दूसरे विकर्ण BD को बिन्दु O पर इस प्रकार काटता है कि OB = OD भुजा AB, भुजा CD के बराबर है। सिद्ध करना है :
(i) ar (DOC) = ar (AOB)
(ii) ar (DCB) = ar (ACB)
(iii) DA || CB या ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है।
रचना : शीर्ष B से AC पर लम्ब BF तथा शीर्ष D से AC पर लम्ब DG खींचे।
उपपत्ति:
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-14
(i) BF ⊥ AC और DG ⊥ AC
∠DGF = ∠BFG = 90° ये एकान्तर कोण हैं।
BF || DG
BF || DG और BD तिर्यक रेखा है।
∠BDG = ∠DBF (एकान्तर कोण)
∠ODG = ∠OBF
अब ∆DOG और ∆BOF’ में,
∠ODG = ∠OBF (ऊपर सिद्ध किया है)
OD = OB (दिया है)
∠DOG = ∠ BOF (शीर्षाभिमुख कोण युग्म)
∆DOG = ∆BOF (A.S.A. से)
ar (DOG) = ar (BOF) …(1)
∆CDG और ∆ABF में,
∠G = ∠F (DG ⊥ AC, BF ⊥ AC)
CD = AB (दिया है)
DG = BF (∆DOG = ∆BOF)
∆CDG = ∆ABF (R.H.S. से)
ar (CDG) = ar (ABF) …(2)
समीकरण (1) व (2) को जोड़ने पर,
ar (DOG) + ar (CDG) = ar (BOF) + ar (ABF)
अतः ar (DOC) = ar (AOB)
Proved.
(ii) ar (DOC) = ar (AOB) दोनों ओर ar (BOC) जोड़ने पर,
ar (DOC) + ar (BOC) = ar (AOB) + ar (BOC)
अतः ar (DCB) = ar (ACB)
Proved.
(iii) ∆DCB और ∆ACB के क्षेत्रफल समान हैं जैसा कि अभी सिद्ध किया है और दोनों त्रिभुज उभयनिष्ठ आधार BC पर स्थित हैं।
दोनों त्रिभुज एक ही समान्तर रेखाओं के बीच स्थित हैं।
तब, DA || CB
समीकरण (2) से,
∆CDG = ∆ABF
CG = AF …(3)
और समीकरण (1) से,
∆DOG = ∆BOF
GO = OF ……(4)
समीकरण (3) व (4) को जोड़ने पर,
CG + GO = OF + AF
OC = OA
O, विकर्ण CA का भी मध्य-बिन्दु है अर्थात विकर्ण परस्पर समद्विभाजित करते हैं।
अत: ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है।
Proved.

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प्रश्न 7.
बिन्दु D और E क्रमशः AABC की भुजाओं AB और AC पर इस प्रकार स्थित हैं कि ar (DBC) = ar (EBC) है। दर्शाइए कि DE || BC है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-15
हल :
दिया है: ∆ABC की दो भुजाओं AB तथा AC पर दो बिन्दु D और E इस प्रकार हैं। कि
∆DBC का क्षेत्रफल = ∆EBC का क्षेत्रफल।
सिद्ध करना है।
DE || BC
उपपत्ति :
ar (DBC) = ar (EBC)
∆DBC का क्षेत्रफल = ∆EBC का क्षेत्रफल
और दोनों उभयनिष्ठ आधार BC पर एक ही ओर स्थित हैं।
दोनों त्रिभुजों के शीर्ष BC के समान्तर एक ही रेखा पर स्थित होंगे।
अतः DE || BC
Proved.

प्रश्न 8.
XY त्रिभुज ABC की भुजा BC के समान्तर एक रेखा है। यदि BE || AC और CF || AB रेखा XY से क्रमशः E और F पर मिलती हैं तो दर्शाइए कि ar (ABE) = ar (ACF)
हल:
दिया है: ∆ABC की भुजा BC के समान्तर एक रेखा XY खींची गई है। बिन्दु B से AC के समान्तर रेखा BE खींची गई है जो XY से E पर मिलती है और इसी प्रकार बिन्दु C से AB के समान्तर एक रेखा CF खींची गई है जो XY से बिन्दु F पर मिलती है।
सिद्ध करना है : ar (ABE) = ar (ACF)
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-16
उपपत्ति : XY || BC और BE || AC
यहाँ समान्तर रेखा युग्म (XY, BC)को अन्य समान्तर रेखा युग्म (EB, AC) द्वारा काटने पर समान्तर चतुर्भुज AEBC प्राप्त होता है।
AB, समान्तर चतुर्भुज AEBC का विकर्ण है।
∆ABE का क्षेत्रफल = ∆ABC का क्षेत्रफल …(1)
XY || BC और CF || AB
अर्थात एक समान्तर रेखा युग्म (XY, BC) को दूसरे समान्तर रेखा युग्म (CF, AB) द्वारा काटने पर समान्तर चतुर्भुज ABCF प्राप्त होता है।
AC, समान्तर चतुर्भुज ABCF’ का विकर्ण है।
∆ABC का क्षेत्रफल = ∆ACF का क्षेत्रफल …(2)
समीकरण (1) व (2) से,
∆ABE का क्षेत्रफल = ∆ACF का क्षेत्रफल
या ar (ABE) = ar (ACF)
Proved.

प्रश्न 9.
समान्तर चतुर्भुज ABCD की एक भुजा AB को एक बिन्दु P तक बढ़ाया गया है। A से होकर CP के समान्तर खींची गई रेखा बढ़ाई गई CB को Qपर मिलती है और फिर समान्तर चतुर्भुज PBQR को पूरा किया गया है। दर्शाइए कि ar (ABCD) = ar (PBQR) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-17
हल :
दिया है : समान्तर चतुर्भुज ABCD की भुजा AB को किसी बिन्दु P तक बढ़ाया गया है। बिन्दु A से CP के समान्तर रेखा AQ है जो बढ़ी हुई CB से Q पर मिलती है। समान्तर चतुर्भुज PBQR को पूरा किया गया है।
सिद्ध करना है :
क्षेत्रफल (समान्तर चतुर्भुज ABCD) = क्षेत्रफल (समान्तर चतुर्भुज PBQR)
ar (ABCD) = ar (PBQR)
रचना : चतुर्भुज ABCD का विकर्ण AC तथा चतुर्भुज PBQR का विकर्ण PR खींचिए।
उपपत्ति : AQ || CP और ∆ACQ तथा ∆APQ का आधार AQ है और ये इन्हीं समान्तर रेखाओं के बीच स्थित हैं।
क्षेत्रफल (∆ACQ) = क्षेत्रफल (∆APQ)
क्षेत्रफल (∆ACB) + क्षेत्रफल (∆ABQ) = क्षेत्रफल (∆ABQ) + क्षेत्रफल (∆BPQ)
क्षेत्रफल (∆ACB) = क्षेत्रफल(∆BPQ) …(1)
∆ACB की भुजा AC, समान्तर चतुर्भुज ABCD का विकर्ण है और ∆BPQ की भुजा PQ, समान्तर चतुर्भुज PBQR का विकर्ण है।
क्षेत्रफल (∆ACB) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] क्षेत्रफल (समान्तर चतुर्भुज ABCD) ….(2)
क्षेत्रफल (∆BPQ) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] क्षेत्रफल (समान्तर चतुर्भुज PBQR) …(3)
समीकरण (1), (2) तथा (3) से,
[latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] क्षेत्रफल (समान्तर चतुर्भुज ABCD) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] क्षेत्रफल (समान्तर चतुर्भुज PBQR)
क्षेत्रफल (समान्तर चतुर्भुज ABCD) = क्षेत्रफल ( समान्तर चतुर्भुज PBQR)
अथवा ar (ABCD) = ar (PBQR)
Proved.

प्रश्न 10.
एक समलम्ब ABCD, जिसमें AB || DC है, के विकर्ण AC और BD परस्पर O पर प्रतिच्छेद करते हैं। दर्शाइए कि ar (AOD) = ar (BOC) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-18
हल :
दिया है : ABCD एक समलम्ब है जिसमें AB || DC है और समलम्ब के विकर्ण : AC और BD परस्पर O पर प्रतिच्छेद करते हैं।
सिद्ध करना है : ∆AOD का क्षेत्रफल = ∆BOC का क्षेत्रफल
ar (∆AOD) = ar (A BOC)
उपपत्ति : समलम्ब ABCD में AB || DC है और ∆ADC तथा ∆BDC दोनों का उभयनिष्ठ आधार DC है।
और दोनों के शीर्ष A तथा B, DC के समान्तर भुजा AB पर स्थित हैं।
∆ADC और ∆BDC एक ही आधार और एक ही समान्तर रेखाओं के बीच स्थित हैं।
∆ADC का क्षेत्रफल = ∆BDC को क्षेत्रफल
दोनों पक्षों से ∆DOC का क्षेत्रफल घटाने पर,
∆ADC का क्षेत्रफल – ∆DOC का क्षेत्रफल = ∆BDC का क्षेत्रफल – ∆DOC का क्षेत्रफल
∆AOD का क्षेत्रफल = ∆BOC का क्षेत्रफल
अथवा ar (AOD) = ar (BOC)
Proved.

प्रश्न 11.
दी गई आकृति में, ABCDE एक पंचभुज है। B से होकर AC के A समान्तर खींची गई रेखा बढ़ाई गई DC को F पर मिलती है। दर्शाइए कि
(i) ar (ACB) = ar (ACF)
(ii) ar(AEDF) = ar (ABCDE)
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-19
हल :
दिया है : दी गई आकृति में ABCDE एक पंचभुज है। रेखाखण्ड AC खींचा गया है और बिन्दु B से इसके समान्तर एक रेखा खींची गई है जो DC को बढ़ाने पर उससे बिन्दु F पर मिलती है।
सिद्ध करना है :
(i) ar (ACB) = ar (ACF)
(ii) ar (AEDF) = ar (ABCDE)
उपपत्ति :
(i) दिया है BF || AC
∆ACB और ∆ACF समान्तर रेखाओं BF और AC के बीच स्थित हैं और दोनों त्रिभुजों का उभयनिष्ठ आधार AC है।
त्रिभुज ACB का क्षेत्रफल = त्रिभुज ACF का क्षेत्रफल
ar (ACB) = ar (ACF)
Proved.
(ii) ar (ACB) = ar (ACF)
दोनों पक्षों में ar (ACDE) जोड़ने पर,
ar (ACDE) + ar (ACB) = ar (ACDE) + ar (ACF)
ar (ABCDE) = ar (AEDF)
अतः ar (ABCDE) = ar (AEDF)
Proved.

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प्रश्न 12.
गाँव के एक निवासी इतवारी के पास एक चतुर्भुजाकार भूखण्ड था। उस गाँव की ग्राम पंचायत ने उसके भूखण्ड के एक कोने से उसका कुछ भाग लेने का निर्णय लिया ताकि वहाँ एक स्वास्थ्य केन्द्र का निर्माण कराया जा सके। इतवारी इस प्रस्ताव को इस प्रतिबन्ध के साथ स्वीकार कर लेता है कि उसे इस भाग के बदले उसी भूखण्ड के संलग्न एक भाग ऐसा दे दिया जाए कि उसका भूखण्ड त्रिभुजाकार हो जाए। स्पष्ट कीजिए कि इस प्रस्ताव को किस प्रकार कार्यान्वित किया जा सकता है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-20
हल :
माना ABCD एक चतुर्भुजाकार भूखण्ड है जिसके एक कोने से कुछ भाग लेकर समान क्षेत्रफल का दूसरा भाग देना है जो खेत से संलग्न भी हो और बचे खेत के साथ मिलकर पूर्ण भूखण्ड का अधिगृहीत भूखण्ड त्रिभुजाकार बना सके।
चतुर्भुजाकार खेत का विकर्ण AC खींचिए।
बिन्दु D से DE || AC खींचिए जो बढ़ी हुई BC को E पर काटे। रेखाखण्ड AE खींचिए जो CD रेखा O पर काटे।
देखिए ∆ACD और ∆ACE एक ही आधार AC पर एक ही समान्तर रेखाओं AC व DE के बीच स्थित हैं।
ar (ACD) = ar (ACE)
ar (∆AOD) + ar (∆AOC) = ar (∆AOC) + ar (∆COE)
ar (AOD) = ar (COE)
अत: ∆AOD क्षेत्र लेकर उसके बचे भूखण्ड के क्षेत्र में क्षेत्र (∆COE) जोड़कर दे देना चाहिए।

प्रश्न 13.
ABCD एक समलम्ब है, जिसमें AB || DC है। AC के समान्तर एक रेखा AB को X पर और BC को Y पर प्रतिच्छेद करती है। सिद्ध कीजिए कि ar (ADX) = ar (ACY) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-21
हल :
दिया है : ABCD एक समलम्ब है जिसमें AB || DC है। विकर्ण AC खींचा गया है। AC के समान्तर एक रेखा खींची गई जो AB को X पर और BC को Y पर प्रतिच्छेद करती है। रेखाखण्ड DX और AY खींचे गए हैं जिनसे ∆ADX और ∆ACY बने हैं।
सिद्ध करना है : ar (ADX) = ar (ACY)
रचना : रेखाखण्ड CX खींचा।
उपपत्ति : AB पर एक बिन्दु X है और AB || DC है।
AX || DC तब ∆ADX और ∆ACX एक ही आधार AX पर एक ही समान्तर रेखाओं AX व DC के मध्य स्थित हैं।
ar (ADX) = ar (ACX) …(1)
पुनः XY || AC
तब ∆ACX और ∆ACY समान (उभयनिष्ठ) आधार AC पर समान्तर रेखाओं XY और AC के बीच स्थित है।
ar (ACX) = ar (ACY) …(2)
तब, समीकरण (1) व (2) से,
ar (ADX) = ar (ACY)
Proved.

प्रश्न 14.
दी गई आकृति में AP || BQ || CR है। सिद्ध कीजिए कि ar (AQC) = ar (PBR) है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-22
हल :
दिया है : दी गई आकृति में AP || BQ है और BQ || CR है। रेखाखण्ड AQ, CQ, BP और BR खींचे गए हैं।
सिद्ध करना है : ar (AQC) = ar (PBR)
उपपत्ति : AP || BQ;
∆ABQ और ∆PBQ का आधार BQ उभयनिष्ठ है और ये दोनों समान्तर रेखाओं AP व B के बीच स्थित हैं।
ar (ABQ) = ar (PBQ) …(1)
इसी प्रकार,
∆BCQ और ∆BQR का उभयनिष्ठ आधार BQ है तथा ये दोनों समान्तर रेखाओं BQ व CR के बीच स्थित हैं।
ar (BCQ) = ar (BQR) …..(2)
समीकरण (1) व (2) को जोड़ने पर,
ar (ABQ) + ar (BCQ) = ar (PBQ) + ar (BQR)
या ar (AQC)= ar (PBR)
Proved.

प्रश्न 15.
चतुर्भुज ABCD के विकर्ण AC और BD परस्पर बिन्दु O पर इस प्रकार प्रतिच्छेद करते हैं कि ar (AOD) = ar (BOC) है। सिद्ध कीजिए कि ABCD एक समलम्ब है।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-23
हल :
दिया है : ABCD में विकर्ण AC और BD परस्पर बिन्दु 0 पर एक-दूसरे को प्रतिच्छेद करते हैं और ∆AOD का क्षेत्रफल = ∆BOC का क्षेत्रफल।
सिद्ध करना है : ABCD एक समलम्ब है।
उत्पत्ति: ∆AOD का क्षेत्रफल = ∆BOC का क्षेत्रफल (दिया है)
दोनों ओर समान क्षेत्रफल ∆DOC जोड़ने पर,
∆AOD का क्षेत्रफल + ∆DOC को क्षेत्रफल = ∆DOC का क्षेत्रफल + ∆BOC का क्षेत्रफल
(∆AOD + ∆DOC) का क्षेत्रफल = (∆DOC + ∆BOC) का क्षेत्रफल
∆ADC का क्षेत्रफल = ∆BDC का क्षेत्रफल
उक्त दोनों त्रिभुजों का उभयनिष्ठ आधार DC है और दोनों का क्षेत्रफल समान है।
तबे, दोनों एक ही समान्तर रेखाओं के बीच स्थित होंगे।
AB || DC
अतः ABCD एक समलम्ब है।
Proved.

प्रश्न 16.
दी गई आकृति में, ar (DRC) = ar (DPC) है और ar (BDP) = ar (ARC) है। दर्शाइए कि दोनों चतुर्भुज ABCD और DCPR समलम्ब हैं।
UP Board Solutions for Class 9 Maths Chapter 9 Area of ​​Parallelograms and Triangles img-24
हल :
दिया है : दी गई आकृति में ∆DRC, ∆DPC, ∆BPD और ∆ARC इस प्रकार हैं कि
ar (DRC) = ar (DPC) और ar (BDP) = ar (ARC)
सिद्ध करना है : चतुर्भुज ABCD और चतुर्भुज DCPR समलम्ब हैं।
उपपत्ति : ∆DRC और ∆DPC में ज्ञात है कि ar (DRC) = ar (DPC) और दोनों त्रिभुजों का उभयनिष्ठ आधार DC है।
∆DRC और ∆DPC एक ही समान्तर रेखाओं के बीच स्थित हैं।
DC || RP …(1)
अतः चतुर्भुज DCPR एक समलम्ब है।
ar (BDP) = ar (ARC)
ar (BDC) + ar (DPC) = ar (DRC) + ar (ADC)
परन्तु ar (DPC) = ar (DRC) (दिया है)
घटाने पर, ar (BDC) = ar (ADC)
∆BDC और ∆ADC के क्षेत्रफल बराबर हैं और उनका उभयनिष्ठ आधार DC है।
तब ∆BDC और ∆ADC एक ही समान्तर रेखाओं के बीच स्थित हैं।
AB || DC …(2)
अतः चतुर्भुज ABCD का एक समलम्ब है। तब चतुर्भुज ABCD और चतुर्भुज DCPR दोनों ही समलम्ब हैं।
Proved.

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प्रश्नावली 9.4 (ऐच्दिक)

प्रश्न 1.
समान्तर चतुर्भुज ABCD और आयत ABEF एक ही आधार पर स्थित हैं और उनके क्षेत्रफल बराबर हैं। दर्शाइए कि समान्तर चतुर्भुज का परिमाप आयत के परिमाप से अधिक है।
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हल :
दिया है : समान्तर चतुर्भुज ABCD का आधार AB तथा इसी आधार AB पर ही समान क्षेत्रफल का आयत ABEF स्थित है।
सिद्ध करना है : समान्तर चतुर्भुज ABCD का परिमाप > आयत ABEF’ का परिमाप
उपपत्ति: ∆ADF में,
∠F = 90° (आयत का अन्त:कोण)
AF ⊥ EF
AF < AD (AD कर्ण है) …(1)
इसी प्रकार A BCE में,
∠E = 90° (आयत का बहिष्कोण = 90°)
BE ⊥ CD
BE < BC ( BC कर्ण है) …(2)
(AF + BE) < (AD + BC).
समीकरण (1) व (2) से
AB = EF (ABEF आयत है।)
AB = DC (ABCD समान्तर चतुर्भुज है।)
AB = EF = DC
दोनों ओर क्रमश: (AB + EF) और (AB + CD) जोड़ने पर,
AB + BE + EF + AF < AB + BC + CD + DA अतः समान्तर चतुर्भुज का परिमाप > आयत का परिमाप
Proved.

प्रश्न 2.
दी गई आकृति में, भुजा BC पर दो बिन्दु D और E इस प्रकार स्थित हैं। कि BD = DE = EC है। दर्शाइए कि ar (ABD) = ar (ADE) = ar (AEC) है।
क्या आप अब उस प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं, जो आपने इस अध्याय की ‘भूमिका’ में छोड़ दिया था कि क्या बुधिया का खेत वास्तव में बराबर क्षेत्रफलों वाले तीन भागों में विभाजित हो गया है?
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हल :
दिया है : भुजा BC पर D और E दो बिन्दु इस प्रकार स्थित हैं कि BD = DE = EC है।
सिद्ध करना है : ar (ABD) = ar (ADE) = ar (AEC)
रचना : शीर्ष से BC पर शीर्षलम्ब AP खींचा।
उपपत्ति : BD = DE = EC
तीनों त्रिभुजों के आधार समान हैं। यह भी स्पष्ट है कि तीनों त्रिभुजों की एक ही ऊँचाई AP है। तब तीनों त्रिभुजों के क्षेत्रफल भी समान होंगे।
अतः ar (ABD) = ar (ADE) = ar (AEC)
किसी त्रिभुज के आधार को n समान भागों में विभक्त कर सम्मुख शीर्ष से मिलाने पर त्रिभुज समान n भागों में विभक्त हो जाता है।
अत: किसान बुधिया द्वारा विभाजित किया गया क्षेत्र (खेत) वास्तव में बराबर क्षेत्रफलों वाले तीन भागों में विभाजित हो गया था।
Proved.

प्रश्न 3.
दी गई आकृति में, ABCD, DCFE और ABFE समान्तर चतुर्भुज हैं। दर्शाइए कि ar (ADE) = ar (BCF) है।
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हल :
दिया है : दी गई आकृति में चतुर्भुज ABCD, चतुर्भुज DCFE और चतुर्भुज ABFE समान्तर चतुर्भुज हैं।
सिद्ध करना है : ar (ADE) = ar (BCF)
उपपत्ति: ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है।
AD = BC
DCFE एक समान्तर चतुर्भुज है। DE = CF
ABFE एक समान्तर चतुर्भुज है। AE = BF
अब ∆ADE तथा ∆BCF में,
AD = BC (ऊपर सिद्ध किया है)
DE = CF (ऊपर सिद्ध किया है)
AE = BF (ऊपर सिद्ध किया है)
तब त्रिभुजों की सर्वांगसमता के परीक्षण (S.S.S.) से,
∆ADE = ∆BCF
ar (∆ADE) = ar (∆BCF)
Proved.

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प्रश्न 4.
दी गई आकृति में, ABCD, एक समान्तर चतुर्भुज है। BC को बिन्दु २ तक इस प्रकार बढ़ाया गया है कि AD = CQ है। यदि AQ भुजा DC को P पर प्रतिच्छेद करती है। तो दर्शाइए कि
ar (BPC) = ar (DPQ) है।
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हल :
दिया है: ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है। BC को बिन्दु 9 तक इस प्रकार बढ़ाया D८ गया है कि AD = CQ। रेखाखण्ड AQ को मिलाया गया है जो DC को बिन्दु P पर प्रतिच्छेद करता है।
सिद्ध करना है : ar (BPC) = ar (DPQ)
उपपत्ति : ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है।
AD = BC और दिया है कि AD = CQ
BC = CQ अर्थात C, BQ का मध्य-बिन्दु है।
PC, ∆PBQ की माध्यिका है।
ar (∆BPC) = ar (∆PCQ)
AD = CQ और AD || CQ (AD || BC)
ADQC एक समान्तर चतुर्भुज है जिसके विकर्ण AQ तथा CD हैं।
P, CD का मध्य-बिन्दु है या PQ, ∆DQC की माध्यिका है।
ar (DPR) = ar (PCQ)
तब समीकरण (1) व (2) से,
ar (BPC) = ar (DPQ)
Proved.

प्रश्न 5.
दी गई आकृति में, ABC और BDE दो समबाहु त्रिभुज इस प्रकार हैं कि D भुजा BC का मध्य-बिन्दु है। यदि AE भुजा BC को F पर प्रतिच्छेद करती है तो दर्शाइए कि
(i) ar (BDE) = [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] ar (ABC)
(ii) ar (BDE) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (BAE)
(iii) ar (ABC) = 2 ar (BEC)
(iv) ar (BFE) = ar (AFD)
(v) ar (BFE) = 2 ar (FED)
(vi) ar (FED) = [latex]\frac { 1 }{ 8 }[/latex] ar (AFC)
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हल :
दिया है : दी गई आकृति ∆ABC और ∆BDE दो समबाहु त्रिभुज इस प्रकार हैं कि D भुजा BC का मध्य-बिन्दु है। रेखाखण्ड AE, खींचा गया है जो BC को F पर प्रतिच्छेद करता है। सिद्ध करना है :
(i) ar (BDE) = [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] ar (ABC)
(ii) ar (BDE) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (BAE)
(iii) ar (ABC) = 2 ar (BEC)
(iv) ar (BFE) = ar (AFD)
(v) ar (BFE) = 2 ar (FED)
(vi) ar (FED) = [latex]\frac { 1 }{ 8 }[/latex] ar (AFC)
रचना : रेखाखण्ड EC और AD खींचे।
उपपत्ति (i) D, BC का मध्य-बिन्दु है।
BD = DC
BD = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] BC
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प्रश्न 6.
चतुर्भुज ABCD के विकर्ण AC और BD परस्पर बिन्दु P पर प्रतिच्छेद करते हैं। दर्शाइए कि ar (APB) x ar (CPD) = ar (APD) x ar (BPC) है।
हल :
दिया है : ABCD के विकर्ण AC और BD हैं जो परस्पर बिन्दु P पर प्रतिच्छेद करते हैं।
सिद्ध करना है: ar (APB) x ar (CPD) = ar (APD) x ar (BPC)
रचना : A तथा C से BD पर क्रमशः AM व CN लम्ब खींचे।
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प्रश्न 7.
P और Q क्रमशः त्रिभुज ABC की भुजाओं AB और BC के मध्य-बिन्दु हैं तथा रेखाखण्ड AP का मध्य-बिन्दु है। दर्शाइए कि :
(i) ar (PRQ) = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] ar (ARC)
(ii) ar (RQC) = [latex]\frac { 3 }{ 8 }[/latex] ar (ABC)
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प्रश्न 8.
दी गई आकृति में, ABC एक समकोण त्रिभुज है जिसका कोण A समकोण है। BCED, ACFG और ABMN क्रमशः भुजाओं BC, CA और AB पर बने वर्ग हैं। रेखाखण्ड AX ⊥ DE भुजा BC को बिन्दु Y पर मिलता है। दर्शाइए कि :
(i) ∆MBC = ∆ABD
(ii) ar (BYXD) = 2 ar (MBC)
(iii) ar (BYXD) = ar (ABMN)
(iv) ∆FCB = ∆ACE
(v) ar (CYXE) = 2 ar (FCB)
(vi) ar (CYXE) = ar (ACFG)
(vii) ar (BCED) = ar (ABMN) + ar (ACFG)
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हल :
दिया है : ∆ABC में ∠A समकोण है। त्रिभुज की भुजाओं AB, AC तथा BC पर क्रमश: ABMN, ACFG और BCED वर्ग बने हैं। रेखाखण्ड AX वर्ग BCED की भुजा DE पर लम्ब है, जो BC से Y पर मिलता है।
सिद्ध करना है :
(i) ∆MBC = ∆ABD
(ii) ar (BYXD) = 2 ar (MBC)
(iii) ar (BYXD) = ar (ABMN)
(iv) ∆FCB = ∆ACE
(v) ar (CYXE) = 2 ar (FCB)
(vi) ar (CYXE) = ar (ACFG)
(vii) ar (BCED) = ar (ABMN) + ar (ACFG)
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