Class 9 Sanskrit Chapter 5 UP Board Solutions क्षीयते खलसंसर्गात् Question Answer

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Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 5
Chapter Name क्षीयते खलसंसर्गात् (कथा – नाटक कौमुदी)
Number of Questions Solved 25
Category UP Board Solutions

UP Board Class 9 Sanskrit Chapter 5 Kshiyate Khalasansargat Question Answer (कथा – नाटक कौमुदी)

कक्षा 9 संस्कृत पाठ 5 हिंदी अनुवाद क्षीयते खलसंसर्गात् के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

परिचय–प्रस्तुत कॅथा ‘हितोपदेश’ नामक ग्रन्थ से संकलित की गयी है। इसके लेखक नारायण पण्डित हैं। बंगाल के राजा धवलचन्द्र ने इसका संकलन कराया था। इस कथा-संग्रह में रोचक कथाओं के माध्यम से नीति और धर्म की शिक्षा दी गयी है। कथाओं की रोचकता, सरलता और उपदेशात्मकता के कारण ही इसको संस्कृत वाङमय में आदरणीय स्थान प्राप्त है। इस ग्रन्थ में घशु-पक्षियों आदि से सम्बद्ध नीति-कथाएँ हैं, जो मानव-मात्र के लिए रोचक और उपादेय तो हैं ही, साथ ही इनमें जीवन का । व्यावहारिक पक्ष भी वर्णित है। ‘हितोपदेश’ (UPBoardSolutions.com) की कथा-शैली सरल, सुबोध होने के साथ-साथ । उपदेशात्मक भी है। इसकी कथाओं में प्रवाह और रोचकता दृष्टिगोचर होती है। इस ग्रन्थ का रचना-काल दसवीं शताब्दी (ईस्वी) के लगभग माना जाता है। इसमें चार परिच्छेद हैं-मित्रलाभ, सुहृद्भेद, विग्रह और सन्धि। इस ग्रन्थ को पंचतन्त्र से भी अधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई है।

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पाठ-सारांश

संजीवक का वन में छूटना- दक्षिणापथ में सुवर्ण नाम की नगरी में वर्धमाने नाम का एक व्यापारी रहता था। एक बार उसने अधिक धन कमाने के उद्देश्य से संजीवक और नन्दक नाम के दो बैलों की जोड़ी को जोड़कर गाड़ी में अनेक प्रकार के सामान भरकर कश्मीर की ओर प्रस्थान किया। मार्ग में ऊबड़-खाबड़ भूमि वाले एक महावन में टाँग टूट जाने से संजीवक चलते-चलते गिर पड़ा। अनेक उपाय करने पर भी जब वह स्वस्थ न हो सका तो उसका स्वामी वर्धमान उसे वहीं छोड़कर आगे चल दिया।

पिंगलक को भय- संजीवक स्वेच्छा से उस महावन में आहार-विहार करता हुआ कुछ ही दिनों में हष्ट-पुष्ट हो गया। उसी महावन का राजा पिंगलक नाम का सिंह एक दिन यमुना के तट पर पानी पीने के लिए आया। वहाँ संजीवक की महान् गर्जना को सुनकर और भयभीत होकर बिना जल पीये ही घबराया हुआ-सा अपने स्थान पर आकर चुपचाप बैठ गया। उसके मन्त्री के ‘करटक’ और ‘दमनक नाम के दो पुत्रों ने उसे (UPBoardSolutions.com) घबराया हुआ देखकर उसकी चिन्ता का कारण जानने का विचार किया। बहुत सोच-विचार कर दमनक ने साष्टांग प्रणाम करके पिंगलक से उसकी चिन्ता का कारण पूछा। पिंगलक ने किसी बलवान् पशु की भयंकर आवाज सुनने को अपने भय का कारण बताया।

करटक और दमनक को संजीवन के पास जाना— दमनक ने पिंगलक के भय का कारण सुनकर कहा कि हे स्वामी! जब तक मैं जीवित हूँ, तब तक आपको भय नहीं करना चाहिए, लेकिन आप ‘करटक’ को भी अपने विश्वास में लीजिए, जिससे इस विपत्ति के समय में वह भी हमारा सहायक हो सके। तब करटक और दमनक दोनों ही पिंगलक के पास से सम्मानसहित विदा होकर उसके भय का प्रतिकार करने के लिए चल दिये। दमनक ने मार्ग में करटेक को बताया कि स्वामी के भय का कारण बैल का भयानक शब्द है। तब वे दोनों संजीवक के पास गये। करंटक पहले ही कहीं वृक्ष के नीचे बैठ गया था। दमनक ने संजीवक से (UPBoardSolutions.com) कहा कि मैं इस महावन के रक्षक रूप में नियुक्त किया गया हूँ। आप शीघ्र मेरे सेनापति करटक के पास जाकर प्रणाम कीजिए या वन को छोड़कर चले. जाइए। संजीवक ने डरते-डरते करटक के पास पहुँचकर उसको साष्टांग प्रणाम किया।

संजीवक और पिंगलक की मैत्री– करटक ने संजीवक से कहा कि यदि तुम्हें इस वन में रहना हो तो हमारे स्वामी पिंगलक को जाकर प्रणाम करो। वे दोनों उसे स्वामी से अभयदान का आश्वासन देकर अपने साथ पिंगलक के पास ले गये। पहले उसे कुछ दूर बैठाकर उन्होंने पिंगलक से कहा कि हे स्वामिन्! वह बहुत बलवान् है किन्तु आपसे मिलना चाहता है। उसकी स्वीकृति लेकर उन दोनों ने संजीवक को लाकर राजा से मिलवाया। संजीवक ने पिंगलक के पास जाकर उसको प्रणाम किया और तत्पश्चात् वे दोनों बड़े प्रेम से वहीं रहने लगे।

दमनक की उपेक्षा – एक दिन पिंगलक का भाई स्तब्धकर्ण वहाँ आया। उसने देखा कि करटक और दमनक दोनों अत्यधिक मनमानी करते हैं, खूब खाते हैं, मनमाना खर्च करते हैं, फेंकते भी हैं। उसने पिंगलक को समझाया कि दमनक और करटक सन्धिविग्रह के अधिकारी हैं, इन्हें खजाने (UPBoardSolutions.com) की रक्षा का काम नहीं सौंपना चाहिए। इसलिए आप संजीवक को आय-व्यय के अधिकार में लगा दीजिए। ऐसा करने पर पिंगलक और संजीवक का समय बड़े प्रेम से सुखपूर्वक बीतने लगा।

दमनक की भेद- नीति-करटक और दमनक ने स्वयं को और भाई-बन्धुओं को भोजन मिलने में शिथिलता देख विचार किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि संज़ीर्वक और पिंगलक को मिलाना ही हमारी भूल थी। दमनक ने पिंगलक से कहा कि हे देव! यह संजीवक आपके प्रति दुर्भावना रखता है, वह आपका अनिष्ट करना चाहता है और आपका राज्य लेना चाहता है। सभी मन्त्रियों को त्यागकर इसे ही सब कार्यों का अधिकारी बनाना आपकी बड़ी भूल है। फिर वह संजीवक के पास जाकर बोला कि स्वामी आप पर दुष्ट भाव रखते हैं, वह आपको मारकर अपने परिवार को तृप्त करना चाहते हैं। ऐसा कहकर दमनक ने उसे अपना पराक्रम दिखाने के लिए उकसा दिया।

संजीवक का विनाश- संजीवक ने शेर का बिगड़ा रूप देखकर अपनी शक्ति के अनुसार बल प्रदर्शन किया। दोनों के युद्ध में संजीवक मारा गया। पिंगलक अपने सेवक (UPBoardSolutions.com) संजीवक को मारकर बड़ा दुःखी हुआ। उसे ‘:ख देखकर दमनक ने कहा-स्वामिन्! शत्रु को मारकर ‘सन्ताप करना उचित नहीं है। दमनक द्वारा : दये जाने पर पिंगलक धीरे-धीरे अपनी स्वाभाविक अवस्थी को प्राप्त हो गया।

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चरित्र-चित्रण

दमनक

परिचय– दमनक पिंगलक नामक सिंह के मन्त्री का पुत्र है। वह जाति से शृगाल और प्रकृति से अत्यन्त दुष्ट है। वह कुटिल, राजनीतिज्ञ, अवसरवादी एवं स्वार्थ-सिद्धि में अत्यन्त कुशल है। वह ही इस कथा का मुख्य पात्र है। उसके चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) अवसरवादी– दमनक को अवसरवादी व्यक्ति के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। वह अपने राजा का सान्निध्य प्राप्त करने के लिए कोई भी अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहता। अवसर का लाभ उठाकर वह पिंगलक एवं संजीवक की मित्रता कराकर दोनों को सान्निध्य प्राप्त कर मनमानी करता है। अपनी उपेक्षा को देखकर वह संजीवक का वध करा देता है और फिर से सम्मान प्राप्त करता है।

(2) कुशल कूटनीतिज्ञ- कूटनीति में दमनक करटक की तुलना में अत्यधिक कुशल है। वह कूटनीति का सहारा लेकर और पिंगलक के भय का निवारण कर सम्मानित स्थान प्राप्त करता है। राजा द्वारा अपनी उपेक्षा किये जाने पर कूटनीतिक चाल चलकर वह पिंगलक एवं संजीवक में फूट डालकर संजीवक को मरवा देता है और अपना खोया हुआ पद पुन: प्राप्त कर लेता है।

(3) वाक्पटु एवं स्वार्थी– स्वार्थी व्यक्ति के लिए वाक्पटु होना बहुत आवश्यक है। दमनक अपनी वाक्पटुता के बल पर करटक की सहायता से अपना स्वार्थ सिद्ध करता है। संजीवक और पिंगलक की मित्रता उसकी वाक्पटुता का ही परिणाम है। उसकी वाक्पटुता का ज्ञान संजीवक और पिंगलक से (UPBoardSolutions.com) की गयी अलग-अलग बातों से होता है। अपने स्वार्थ में वह इतना अन्धा है कि उसकी सिद्धि के लिए वह किसी की हत्या तक कराने में भी नहीं हिचकिचाता। वह संजीवक की अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए बलि चढ़ा देता है। उसका भाई करटक उसके स्वार्थ-पूर्ति के मार्ग में केवल उसकी बतायी गयी भूमिका में ही साधक सिद्ध होता है। |

(4) धृष्ट एवं चतुर- दमनक स्वभाव से धृष्ट एवं बुद्धि से चतुर है। बुद्धिचातुर्य के द्वारा वह संजीवक एवं पिंगलक दोनों पर अप्रत्यक्ष रूप से शासन करता है। उसकी स्वाभाविक धृष्टता की पूर्ति में उसका बुद्धिचातुर्य उसका सहायक होता है। उसकी बुद्धि की चतुरता का उदाहरण है कि वह एक ओर तो संजीवक को सिंह का भय दिखाता है तथा दूसरी ओर पिंगलक को बताता है कि वह सामान्य बैल न होकर (UPBoardSolutions.com) महादेव (शिव) का शक्तिशाली बैल है। इस प्रकार दोनों में सामंजस्य कराकर मेल करा देता है। अपने धृष्ट स्वभाव के कारण ही वह मनमानी करने लगता है और उस पर अंकुश लगाये जाने पर संजीवक एवं पिंगलक में एक-दूसरे के प्रति द्वेष की चिनगारी उत्पन्न कर देता है, यह उसकी धृष्टता का चरम-बिन्दु है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि दमनक को कुटिल राजनीतिज्ञ के रूप में चित्रित करके राजनीति की घिनौनी चालों को उजागर किया गया है।

लघु-उत्तरीय संस्कृत प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए

प्रश्‍न 1
सञ्जीवकः कः आसीत्?
उत्तर
सञ्जीवकः एकः वृषभः आसीत्।

प्रश्‍न 2
पिङ्गलकः किमर्थं पानीयमपीत्वा तूष्णीं स्थितः?
उत्तर
पिङ्गलक: सञ्जीवकस्य घोरशब्दात् भीत: सन् पानीयम् अपीत्वा तूष्णीं स्थितः।

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प्रश्‍न 3
दमनकः पिङ्गलकसमीपं गत्वा किमब्रवीत्?
उत्तर
दमनकः पिङ्गलकसमीपं गत्वा अब्रवीत् यद् उदकार्थी स्वामी पानीयम् अपीत्वा किमर्थं विस्मिता इव तिष्ठति।।

प्रश्‍न 4
स्तब्धकर्णः कः आसीतू?
उत्तर
स्तब्धकर्णः पिङ्गलकस्य भ्राता आसीत्।

प्रश्‍न 5
दमनकः सञ्जीवकसमीपं गत्वा किमब्रवीत्?
उत्तर
दमनकः सञ्जीवकसमीपं गत्वा अब्रवीत–अरे वृषभ! एषोऽहं राजा पिङ्गलकोऽ’रण्यरक्षार्थे नियुक्तः। सेनापतिः करटकः समाज्ञापयति, सत्वरमागच्छ न चेदस्मादरण्याद् दूरमपरसर अन्यथा ते विरुद्धं फलं भविष्यति।

प्रश्‍न 6
पिङ्गलक-सञ्जीवकयोयुद्धे कः केन व्यापादितः?
उत्तर
पिङ्गलक-सञ्जीवकयोयुद्धे सञ्जीवकः पिङ्गलकेन व्यापादितः। 

वस्तुनिष्ठ प्रश्‍नेवर

अधोलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए

1. ‘क्षीयते खलसंसर्गात् पाठ किस ग्रन्थ से उदधृत है?
(क) “बृहत्कथामञ्जरी’ से
(ख) “हितोपदेश’ से ।
(ग) “कथासरित्सागर’ से ।
(घ) ‘पञ्चतन्त्रम्’ से

2. ‘हितोपदेश’ नामक कथा-संग्रह के लेखक हैं
(क) बाणभट्ट
(ख) नारायण पण्डित
(ग) विष्णु शर्मा
(घ) शर्ववर्मा

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3. दक्षिणापथ में कौन-सी नगरी थी?
(क) सुवर्णा नगरी
(ख) उज्जयिनी नगरी
(ग) साकेत नगरी
(घ) कौशल नगरी

4. संजीवक’ और ‘स्तब्धकर्ण’ कौन थे?
(क) सिंह और वृषभ
(ख) शृगाल और वृषभ ।
(ग) वृषभ और सिंह
(घ) दोनों शृगाल

5. वर्धमान ने संजीवक को किस वन में छोड़ा था?
(क) दण्डक नामक अरण्य में
(ख) नन्दन नामक अरण्य में
(ग) दुर्ग नामक अरण्य में।
(घ) अभयारण्य में

6. पिंगलक कौन था? उसने भयंकर आवाज किसकी सुनी थी?
(क) सिंह था, संजीवक की
(ख) वृषभ था, करटक और दमनक क्री
(ग) सिंह था, स्तब्धकर्ण की
(घ) सिंह था, नन्दक की

7. संजीवक और पिंगलक में किसने मित्रता करायी?
(क) करटक नामक शृगाले ने ।
(ख) दमनक नामक शृगाल ने
(ग) स्तब्धकर्ण नामक सिंह ने
(घ) नन्दक नामक बैल ने।

8. वर्धमान वणिक् ने संजीवक को वन में क्यों छोड़ दिया?
(क) उसे संजीवक की आवश्यकता नहीं थी
(ख) संजीवक नन्दक को मारने लगा था
(ग) वह संजीवक से छुटकारा पाना चाहता था
(घ) संजीवक को.एक पैर टूट गया था

9. पिंगलक नदी के पास जाकर बिना पानी पिये क्यों लौट आया था?
(क) क्योंकि पिंगलक को प्यास नहीं थी।
(ख) क्योंकि नदी का पानी गन्दा था
(ग) क्योंकि नदी में पानी नहीं था।
(घ) क्योंकि संजीवक को गर्जन सुनकर वह डर गया था

10. पिंगलक सिंह ने संजीवक बैल को अपना मित्र क्यों बना लिया?
(क) संजीवक के समान पिंगलक भी शाकाहारी था ।
(ख) पिंगलक को मन्त्री के रूप में बैल की ही आवश्यकता थी
(ग) पिंगलक संजीवक के अच्छे स्वास्थ्य से भयभीत था। |
(घ) पिंगलक के मन्त्री-पुत्र करटक-दमनक ने उसे सलाह दी थी

11. पिंगलक सिंह ने संजीवक बैल को अपना अर्थमन्त्री क्यों बनाया?
(क) क्योंकि संजीवक मांस नहीं खाता था।
(ख) क्योंकि स्तब्धैकर्ण ने ऐसी ही सलाह दी थी
(ग) क्योंकि पिंगलक के सभी साथी ऐसा ही चाहते थे।
(घ) क्योंकि संजीवक ने इसके लिए अनुरोध किया था

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12. पिंगलक और संजीवक में किसने युद्ध करवाया
(क) करटक ने
(ख) स्तब्धकर्ण ने
(ग) नन्दक ने
(घ) दमनक ने

13. पिंगलक ने संजीवक को क्यों मार डाला?
(क) क्योंकि पिंगलक संजीवक का मांस खाना चाहता था
(ख) संजीवक ने पिंगलक पर आक्रमण किया था।
(ग) क्योंकि पिंगलक के भाई स्तब्धकर्ण ने ऐसा करने के लिए कहा था
(घ) क्योंकि पिंगलक को विश्वास दिलाया गया था कि संजीवक तुम्हें मारना चाहता है।

14. ‘अनुजीविना कुतः कुशलम्’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) पिङ्गलकः
(ख) दमनकः  
(ग) सञ्जीवकः
(घ) करटकः

15.’•••••••••••••••• सह मम महान् सनेहः’ में रिक्त पद की पूर्ति होगी
(क) ‘सञ्जीवकः’ से
(ख) “सञ्जीवकस्य’ से
(ग) ‘सञ्जीवकेन’ से
(घ) “सञ्जीवकम्’ से

16. ‘सिंहस्य भ्राता •••••••••••••••••नामा सिंहः समागतःवाक्य में रिक्त-पद की पूर्ति होगी— 
(क) ‘दमनक’ से
(ख) “स्तब्धकर्ण’ से
(ग) “करटक’ से
(घ) “संजीवक’ से

17. देव! सञ्जीवकस्तोपर्यसदृश व्यवहारः अवलक्ष्यते।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) स्तब्धकर्णः
(ख) नन्दकः,
(ग) दमनकः
(घ) वर्धमानः

18. ‘अयं स्वामी तवोपरि विकृतबुद्धी रहस्यमुक्तवान्।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) दमनकः
(ख) करटकः
(ग) सञ्जीवकः
(घ) पिङ्गलकः

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19. ‘ततस्तयोर्युद्धे सञ्जीवकः•••••••••••••••••• व्यापादितः।’ में रिक्त पद की पूर्ति होगी
(क) ‘सिंहात्’ से
(ख) “सिंहेन’ से
(ग) “सिंहै:’ से
(घ) ‘सिंहम्’ से

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Class 9 Sanskrit Chapter 13 UP Board Solutions महात्मा बुध्द Question Answer

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 13 महात्मा बुध्द (गद्य – भारती) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 13 महात्मा बुध्द (गद्य – भारती).

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Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 13
Chapter Name महात्मा बुध्द (गद्य – भारती)
Number of Questions Solved 3
Category UP Board Solutions

UP Board Class 9 Sanskrit Chapter 13 Mahatma Buddha Question Answer (गद्य – भारती)

कक्षा 9 संस्कृत पाठ 13 हिंदी अनुवाद महात्मा बुध्द के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

पाठ-सारांश

जन्म एवं विवाह–प्राचीनकाल में नेपाल में शाक्य क्षत्रियों के वंश में शुद्धोदन नाम के राजा थे। उन्हीं की मायादेवी नामक रानी ने 2544 वें कलिवर्ष में एक पुत्र को जन्म दिया। जन्म के सातवें दिन इनकी माता का स्वर्गवास हो गया। इनका लालन-पालन इनकी मौसी गौतमी ने किया। इनका (UPBoardSolutions.com) नामकरण सिद्धार्थ हुआ। युवावस्था को प्राप्त होने पर इनका विवाह ‘गोपा’ नाम की कन्या के साथ हुआ, जिससे इनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम राहुल रखा गया।

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गृहत्याग और बोध-प्राप्ति-मनुष्य और उसके भोगों की नश्वरता को देखकर सिद्धार्थ की राजभोग से विरक्ति हो गयी और एक रात्रि में ये पत्नी और पुत्र को सोता हुआ छोड़कर गृह-त्याग करके चले गये।

पहले ये हिमालय पर्वत की गुफाओं में बसने वाले परिव्राजकों के पास गये, जिन्होंने इनको आर्यमत के तत्त्वों को बताया। वहाँ समाधान प्राप्त न होने पर ये बोधगया आ गये और घोर तपस्या आरम्भ की। यहाँ छ: वर्ष की घोर तपस्या से शरीर दुर्बल हो जाने के कारण इन्हें मूच्छा आ गयी। चेतना-प्राप्त (UPBoardSolutions.com) होने पर इन्होंने पुनः तप आरम्भ कर दिया। इसके बाद फल्गुनी नदी के तट पर एक वट वृक्ष के नीचे बैठकर इन्होंने तप किया, जहाँ इन्हें तत्त्व-ज्ञान की प्राप्ति हुई। अब ये सिद्धार्थ से बुद्ध हो गये और जिस वट वृक्ष के नीचे इन्होंने तप किया था, वह वट वृक्ष बोधिवृक्ष कहलाया। 

शिष्यों को उपदेश-इसके बाद इन्होंने काशी में बहुत-से शिष्यों को उपदेश दिया। जातिगत भेदभाव को ठुकराकर इन्होंने कर्म के आधार पर लोगों को अपने मत में प्रवेश कराया। मगध के राजा बिम्बिसार, अपने पुत्र राहुल तथा पत्नी आदि को इन्होंने अपने मत में प्रवृत्त किया।

निर्वाण-प्राप्ति-कलियुग के 2624वें वर्ष में इन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। विष्णु पुराण में विष्णु का अवतार मानकर इनकी कीर्ति गायी गयी है।

ऐहिक सुखों के प्रति वैराग्य, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, शान्ति, समदृष्टि, प्राणियों के प्रति दया, परोपकार, शरणागत की रक्षा, इनके उपदेशों के ये गुण ब्राह्मण मत के समान ही थे, किन्तु प्राणी हिंसा के विषय में इन्होंने इस मत की अत्यधिक निन्दा की।

बौद्धधर्म का प्रसार- कलियुग के 2650वें वर्ष में यह धर्म सम्पूर्ण भारत में फैलता हुआ चीन, जापान एवं श्रीलंका तक जा पहुँचा। बौद्धधर्म मनुष्यमात्र का ही नहीं, वरन् प्राणिमात्र का कल्याण करने वाला धर्म है। उनके बाद अनेक विद्वान् , सन्त, महात्मा, विचारक व महापुरुष उनके धर्म से प्रभावित

पहले हिमालय पर्वत पर घूमते हुए वहाँ की गुफाओं में रहने वाले तपस्वियों के द्वारा आर्यमत के तत्त्वों को भली प्रकार ग्रहण किया। उससे अपनी इच्छित सुख-प्राप्ति को न देखते हुए उन्होंने बुद्धगया में घोर तपस्या औरम्भ की। छ: वर्ष तपस्या करते हुए बीतने पर किसी दिन श्रम की अधिकता से ये (UPBoardSolutions.com) मूर्च्छित हो गये। पलभर में पुनः चेतना को प्राप्त हुए फिर से तप करने में लग गये। इसके पश्चात् फल्गुनी नदी के तट पर पहुँचकर किसी बोधिवृक्ष के मूल में जब यह बैठे रहे, तब सभी पूर्व जन्म के वृतान्तों का ज्ञान हो गया और तत्त्व-ज्ञान को प्राप्त करके ये प्रबुद्ध हो गये।

(3) ततो बुद्धः काश्यामुरुबिल्वे च बहून् शिष्यानविन्दत। सशिष्य एष वीतरागो मुनिः परार्थपराण्यवदातानि कर्माण्याचरन्। गुणैकसारैरुपदेशैर्जनान् जातिभेदमनादृत्य तत इतः स्वमते प्रवेशयामास। |

स मगधेषु राज्ञा बिम्बसारेणातिवेलं पूज्यमानश्चिरमुवास। पुनरुत्सुकस्य पितुर्दर्शनाय कपिलवस्तुनगरं गत्वा स्वपुत्रं राहुलं स्वमते प्रावेशयत्। पितृनिर्वाणात् परतो मातृष्वसारं भार्या च काषायं ग्राहयामास।।

अथ मुनिरनपायिनीं कीर्ति जगति प्रतिष्ठाप्य चतुर्विंशत्युत्तरषट्शताधिकद्विसहस्र (2624) तमे कलिवर्षे निर्वाणं प्रपेदे। एनं मुनिं विष्णोरवतारं पुराणानि कीर्त्तयन्ति।।

शब्दार्थ
ततः = इसके बाद।
काश्यां = काशी में।
उरुबिल्व = महान् बेल का वृक्ष।
अविन्दत = प्राप्त किया।
वीतरागः = वैरागी।
परार्थ पराणि= परोपकार सम्बन्धी।
अवदातानि = शुभ, पवित्र।
अनादृत्य = तिरस्कार करके।
अतिवेलं = अधिक समय तक।
प्रवेशयत् = प्रविष्ट किया।
पितृनिर्वाणात् = पिता के मोक्ष (मुक्ति, मृत्यु) से।
परतः = बाद में।
मातृष्वासरम् = मौसी को।
काषायम् = गेरुआ वस्त्र।
मुनिः अनपायिनीं = मुनि ने नष्ट न होने वाली।
जगति = संसार में।
प्रतिष्ठाप्य = प्रतिष्ठित करके।
निर्वाणम्= मुक्ति को।
प्रपेदे = प्राप्त किया।
कीर्तयन्ति = कीर्ति का वर्णन करते हैं।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांशों में ज्ञान-प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध द्वारा अपने पुत्र, मौसी आदि को बौद्ध धर्म में प्रवृत्त करके अक्षय कीर्ति प्राप्त करने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
इसके पश्चात् बुद्ध ने काशी में एक विशाल बेल के वृक्ष के नीचे बहुत-से शिष्यों को प्राप्त किया (अर्थात् इन्होंने सर्वप्रथम काशी में उपदेश दिया, जिससे इनके अनेक शिष्य बन गये)। शिष्यों-सहित इस वीतरागी मुनि ने दूसरों के कल्याण के लिए पवित्र कर्मों का आचरण किया। गुणों से सभी मनुष्य एक हैं और उनको बनाने वाला सारतत्त्व भी एक ही है, इस प्रकार से एक गुण और सारतत्त्व के उपदेश द्वारा जाति-भेद का तिरस्कार करके इन्होंने लोगों को अपने मत में प्रवेश दिलाया। | वह बुद्ध मगध राज्य में राजा बिम्बिसार द्वारा अत्यधिक (UPBoardSolutions.com) पूजित हुए लम्बे समय तक रहे। फिर पिता के दर्शन के लिए उत्सुक कपिलवस्तु नगर में जाकर अपने पुत्र राहुल को अपने मत में प्रविष्ट किया। पिता के निर्वाण के बाद मौसी और पत्नी को काषाय (गेरुए वस्त्र) ग्रहण कराये; अर्थात् उनको भी बौद्धभिक्षु बना लिया।

इसके पश्चात् इन मुनि ने अपनी अनश्वर कीर्ति को संसार में प्रतिष्ठापित करके 2624 वें कलिवर्ष में निर्वाण प्राप्त किया। इस मुनि के विष्णु-अवतार की पुराणों में कीर्ति है (अर्थात् पुराणों में इनके विष्णु के अवतार के रूप में बड़ी कीर्ति गायी गयी है)।

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(4) ऐहिकसुखवैराग्यम् अहिंसा, सत्यम् , अस्तेयम्, शान्तिः , समदृष्टिता, भूतदया, परोपकारः, शरणागतपरित्राणाम् इत्येते गुणा आचाराश्च सारभूता बौद्धमते ब्राह्मणमतवदुपदिष्टाः। किन्तु जन्तुहिंसयेश्वरयजनं यद् ब्राह्मणमतेऽङ्गीकृतं तदस्मिन् मतेऽत्यन्तं निन्दितम्।

शब्दार्थ
ऐहिकसुख = इस लोक से सम्बन्धित सुख।
अस्तेयम् = चोरी न करना।
परित्राणाम् = रक्षा करना।
जन्तुहिंसयेश्वरयजनम् (जन्तुहिंसया + ईश्वरयजनम्) = जीवों की हत्या से ईश्वर का यज्ञ।
अङ्गीकृतं = स्वीकृत। |

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में बौद्धमत के उपदेशों और ब्राह्मणमत से उनके साम्य-वैषम्य को बताया गया है।

अनुवाद
इस संसार से सम्बन्धित सुखों के प्रति वैराग्य, अहिंसा, सत्य-भाषण, चोरी न करना, शान्ति, सबको एक समान दृष्टि से देखना, प्राणियों के प्रति दया, परोपकार, शरणागत की रक्षाये बौद्धमत के सारभूतगुण और आचार ब्राह्मणमत के समान उपदिष्ट हैं, किन्तु जन्तु-हिंसा से ईश्वर की पूजा के विषय में ब्राह्मणमत में स्वीकृत मत की इस मत ने अत्यधिक निन्दा की।

(5) इदं मतं कलिवर्षीयस्य षड्विंशतिशतकस्योत्तरार्धेङ्कुरितं भिक्षुसङ्घस्य महतां राज्ञां च . प्रयत्नाद् भारतमखिलमाक्रम्य चीनेषु जापानदेशे लङ्कायां च प्रचारमलभत। (UPBoardSolutions.com)
बौद्धधर्मः मनुष्यमात्रस्य किञ्च प्राणिमात्रस्य कल्याणकृद् धर्मोऽस्ति। अतएव तत्परवर्तिनो विद्वांसः सन्तो महात्मनो विचारकाः महापुरुषाः भगवतो बुद्धस्य सिद्धान्तेनानुप्राणिताः दृश्यन्ते। भिक्षुन् सम्बोध्य लोकमुपादिशत्। सर्वाणि वस्तूनि खल्वनित्यानि, प्रयत्नेनात्मानमुद्धर तस्येयं … भणितिः मनुष्यजातिं तमसः समुद्धरिष्यति।

शब्दार्थ
अखिलम् = सम्पूर्ण
कल्याणकृद् = कल्याण करने वाला।
परिवर्तिनः = बाद के।
दृश्यन्ते = दिखाई देते हैं।
खलु = निश्चित ही।
भणितिः = कथन।
तमसः = अन्धकार से।
समुद्धरिष्यति = उद्धार करेगा।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में बौद्धमत के प्रसार और महत्त्व के विषय में बताया गया है।

अनुवाद
यह मत (बौद्धमत) कलिवर्ष के 2650वें वर्ष में अंकुरित भिक्षुसंघ के और महान् राजाओं के प्रयत्नों से सम्पूर्ण भारत को अपने में व्याप्त करके चीन, जापान और लंका देशों में प्रचार को प्राप्त हुआ।

बौद्धधर्म मनुष्यमात्र का ही नहीं, अपितु प्राणिमात्र का कल्याण करने वाला धर्म है। इसीलिए उनके | बाद के विद्वान् , सन्त, महात्मा, महापुरुष भगवान् बुद्ध के सिद्धान्तों से अनुप्राणित दिखाई देते हैं। भिक्षुओं को सम्बोधित करके, उन्होंने संसार को उपदेश दिया। सारी वस्तुएँ निश्चय ही अनित्य हैं। प्रयत्न से आत्मा का उद्धार करो-उनका यह कथन मनुष्य जाति का अन्धकार से उद्धार करेगा।

लघु उत्तरीय प्ररन

प्ररन 1
‘महात्मा बुद्ध’ पाठ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए। या ‘महात्मा बुद्ध’ पाठ के आधार पर बुद्ध का जीवन-परिचय संक्षेप में लिखिए।
उत्तर
[संकेत-पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक की सामग्री को अपने शब्दों में लिखें।

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प्ररन 2
गौतम बुद्ध ने किस प्रकार ज्ञान प्राप्त किया?
उत्तर
गृह-त्याग के पश्चात् सर्वप्रथम बुद्ध हिमालय की गुफाओं में रहने वाले तपस्वियों के पास गये। उनसे इन्होंने आर्यमत का तत्त्व-ज्ञान ग्रहण किया लेकिन इस ज्ञान से उनकी सन्तुष्टि नहीं हुई। तत्पश्चात् इन्होंने बुद्धगया में छः वर्ष तक कठोर तपस्या की। कमजोरी के कारण ये मूच्छित हो गये। चेतना आने पर पुनः तप करने में लग गये। अन्ततः फल्गुनी नदी के तट पर स्थित बोधिवृक्ष के नीचे इन्हें तत्त्व-ज्ञान प्राप्त हुआ और ये बुद्ध हो गये।

प्ररन 3
गौतमी, मगध, राहुल और बोधिद्म का परिचय बताइए।
उत्तर
गौतमी-ये गौतम बुद्ध की मौसी (माता की बहन) थीं। इन्होंने ही गौतम बुद्ध का; उनकी माता की मृत्यु के बाद; लालन-पालन किया था। इन्हें गौतम बुद्ध ने गेरुआ वस्त्र धारण कराया 
था।

मगध
यह बौद्ध काल में स्थित एक राज्य था। यहाँ का राजा बिम्बिसार था। यहीं पर बुद्ध ने कई वर्षों तक निकास किया था

राहुल
यह गौतम बुद्ध का गोपा नाम की शाक्य कन्या से उत्पन्न पुत्र था। इसे छोड़कर इन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया था और बाद में इसे भी अपने मत में दीक्षित किया था।

बोधिद्म
गया में फल्गुनी नदी के तट पर स्थित एक वट वृक्ष। इसी के नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था।

प्ररन 3
बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त बताइए। इसकी बाह्मण मत से समानता और भिन्नता बताइए।
उत्तर
संसार के समस्त सुखों से वैराग्य, हिंसा न करना, सत्य बोलना, चोरी न करना, शान्त रहना, समदर्शी होना, प्राणियों परे दया, शरणागत की रक्षा करना आदि बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त (UPBoardSolutions.com) हैं। इन सिद्धान्तों की ब्राह्मण मत से समानता है। प्राणी-हिंसा के द्वारा ईश्वर की पूजा (बलि-विधान) को ब्राह्मण मत में तो स्वीकार किया गया है, लेकिन बौद्ध मते इसके पूर्णरूपेण विरुद्ध है।

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Class 9 Sanskrit Chapter 8 UP Board Solutions भीमसेनप्रतिज्ञा Question Answer

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 भीमसेनप्रतिज्ञा (कथा – नाटक कौमुदी) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 भीमसेनप्रतिज्ञा (कथा – नाटक कौमुदी).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 8
Chapter Name भीमसेनप्रतिज्ञा (कथा – नाटक कौमुदी)
Number of Questions Solved 23
Category UP Board Solutions

UP Board Class 9 Sanskrit Chapter 8 Bhimasena Prathigne Question Answer (कथा – नाटक कौमुदी)

कक्षा 9 संस्कृत पाठ 8 हिंदी अनुवाद भीमसेनप्रतिज्ञा के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

परिचय- भरतमुनि ने अपने नाट्य-शास्त्र में लिखा है कि ब्रह्माजी ने ऋग्वेद से ‘संवाद’, सामवेद से ‘संगीत’, यजुर्वेद से ‘अभिनय तथा अथर्ववेद से ‘रस’ के तत्त्वों को लेकर नाट्यवेद’ के नाम से पंचम वेद की रचना की। संस्कृत नाटकों की रचना के मुले-स्रोत रामायण, महाभारत तथा अन्य पौराणिक ग्रन्थ हैं। इनके आधार पर संस्कृत में अनेक नाटकों की रचनाएँ हुई हैं। । प्रस्तुत पाठ ‘भीमसेनप्रतिज्ञा’ का (UPBoardSolutions.com) संकलन श्री भट्टनारायण द्वारा रचित ‘वेणीसंहारम्’ नामक नाटक से किया गया है। वेणीसंहारम्’ की कथा मुख्य रूप से ‘महाभारत’ के ‘सभा-पर्व’ से ली गयी है। वैसे इस नाटक में उद्योग-पर्व’, ‘भीष्म-पर्व’, ‘द्रोण-पर्व’ तथा ‘शल्य-पर्व’ की भी कुछ घटनाओं का समावेश है। नाटककार के जीवन-काल के विषय में पुष्ट प्रमाणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि ये आठवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुए थे।

पाठलाग प्रस्तुत पाठ में भीमसेन के चरित्र में वीर रस का परिपाक और नारी के प्रति सम्मान का भाव व्यक्त हुआ है। पाठगत विषयवस्तु से प्राचीन भारतीय संस्कृति की स्पष्ट झलक प्राप्त होती है। पाठ का सारांश निम्नलिखित है

क्रुद्ध भीमसेन के साथ सहदेव दर्शकों के सम्मुख रंगमंच पर उपस्थित होते हैं। उपस्थित होते ही भीमसेन इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि दुर्योधन ने पाण्डवों के विनाश के लिए अनेकानेक ओछे हथकण्डों को अपनाया है, अतः मेरे जीवित रहते हुए कौरव किसी प्रकार भी सुखी नहीं रह सकते हैं। भीमसेन के इस रोषपूर्ण वचन को सुनकर सहदेव उनसे शान्त रहने का आग्रह करते हुए आसन-ग्रहण करने का निवेदन करते हैं। आसन पर बैठते ही भीमसेन सहदेव से पूछते हैं कि सन्धि का क्या हुआ? सहदेव उन्हें बताते हैं कि वासुदेव कृष्ण दुर्योधन के पास मात्र पाँच-इन्द्रप्रस्थ, वृकप्रस्थ, जयन्त, वारणावत और एक अज्ञात नाम–ग्रामों को दिये जाने के लिए सन्धि-प्रस्ताव लेकर गये थे। इस पर भीमसेन आश्चर्यचकित होकर कहते हैं कि क्या पाँच ग्रामों की सन्धि?’ तत्पश्चात् वे (UPBoardSolutions.com) कहते हैं कि “ठीक है, मेरे ज्येष्ठ भाई किसी भी शर्त पर सन्धि करने के लिए भले ही तैयार हो जाएँ, किन्तु मैं जब तक कौरवों का सर्वनाश नहीं कर लूंगा, मुझे तब तक कोई भी सन्धि स्वीकार्य नहीं होगी। भीमसेन की इस रोषपूर्ण वाणी को सुनकर सहदेव बड़े विनीत भाव से उनसे कहते हैं कि ऐसा करने से तो वंश का नाश हो जाएगा। इस पर क्रुद्ध होकर भीमसेन कहते हैं, कि “उन पर तुझे भी तरस आता है; किन्तु मेरे सम्मुख वह दृश्य आज भी मूर्त रूप से खड़ा है, जिसमें भरी सभा में भीष्म, द्रोण, शकुनि, कर्ण और अन्यान्य जनों के सम्मुख द्रौपदी को अपमानजनक रूप में केश खींचकर लाया गया था और उसे निर्वस्त्र करने का प्रयास किया गया था। क्या तुझे उस दृश्य पर लज्जा नहीं आती?”

इसी बीच रंगमंच पर द्रौपदी आती है और वह उन दोनों से उनकी उद्विग्नता का कारण पूछती है। द्रौपदी के प्रश्न का उत्तर देते हुए भीमसेन कहते हैं कि “पाण्डवों के सान्निध्य में रहते हुए भी पांचालराजतनया की ऐसी दीन अवस्था? क्या इससे बढ़कर उद्वेग का अन्य कोई कारण हो सकता है?’ भीमसेन के पीड़ा से भरे वचन सुनकर द्रौपदी उनके पास जाकर निवेदन करती है-“क्या उद्वेग का कोई अन्य कारण (UPBoardSolutions.com) भी है?’ भीमसेन उत्तर देते हैं कि “कौरव वंशरूपी दावानल में कौन कीट-पतंग के समान आचरण कर रहा है? मुक्तकेशिनी इस द्रौपदी को उस दावानल की धूमशिखा समझो।” बस, यहीं कथानक समाप्त हो जाता है।

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चरित्र चित्रण 

भीमसेन

परिचय- भीमसेन पाण्डु और कुन्ती का पुत्र तथा युधिष्ठिर का छोटा भाई था। वह पाण्डवों में सर्वाधिक बलशाली और सुगठित शरीर वाला था। उसने अज्ञातवास के समय युद्ध में सौ कौरवों को

मारने की प्रतिज्ञा की थी। वह युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण को सन्धि करने के लिए दूत बनाकर भेजने से क्रुद्ध हो जाता है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं

(1) प्रतिशोधक उग्र स्वभाव- भीमसेन उग्र स्वभाव वाला बलशाली योद्धा है। वह परिस्थितिवश द्रौपदी के अपमान को किसी तरह सहन तो कर लेता है, परन्तु उसे अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार है; यहाँ तक कि वह अपने अग्रज युधिष्ठिरसहित सभी भाइयों को (UPBoardSolutions.com) भी अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए त्यागने को तैयार है। उसे प्रतिशोध लिये बिना किसी कीमत पर कौरवों से सन्धि स्वीकार्य नहीं है। इसीलिए वह कौरवों के नाश की बात को बड़ी उग्रवाणी में कहता है। उसका वचन, “भीमसेन के जीवित रहते हुए वे स्वस्थ नहीं रह सकते।’, उसके उग्र स्वभाव का ही उदाहरण है।।

(2) परम वीर- उग्र स्वभाव का होने के साथ-साथ वह परम वीर थे। उसे अपनी वीरता का पूर्ण विश्वास है, तभी तो वह चारों भाइयों को छोड़कर अकेले ही कौरवों से द्रौपदी के अपमान का बदला लेने की बात कहता है। उसके द्वारा युद्ध में सौ कौरवों को मारकर दु:शासन के लहू से द्रौपदी के केशों को सँवारने की प्रतिज्ञा भी उसकी वीरता का साक्ष्य प्रस्तुत करती है।

(3) अत्याचार- विरोधी व स्पष्ट वक्ता-अत्याचार करने वाले से अत्याचार को सहन करने वाला अधिक दोषी माना जाता है। इसलिए भीमसेन किसी अत्याचारे को सहन नहीं करना चाहता। वह द्रौपदी पर कौरवों द्वारा अत्याचार करने का भी विरोध करता है। उस अत्याचार के विरोध में परिस्थितिवश (UPBoardSolutions.com) वह अन्य कुछ तो नहीं कर पाता, किन्तु दुर्योधन की जंघा को तोड़कर वे दुःशासन की छाती को लहू पीकर द्रौपदी के वेणी-बन्धन की प्रतिज्ञा अवश्य करता है। वह सहदेव से स्पष्ट कह देता है कि चाहे सभी भाई सन्धि कर लें, किन्तु मैं सन्धि नहीं करूंगा। उसकी ये स्पष्ट और तर्कपूर्ण टिप्पणियाँ उसके स्पष्ट वक्ता होने का समर्थन करती हैं।

(4) बुद्धिमान्– भीमसेन पूर्ण क्रोधान्ध भी नहीं है, वरन् बुद्धिमान् भी है। वह प्रत्येक बात और उसके अन्तिम परिणाम को भली-भाँति सोचकर ही अपने भाव व्यक्त करता है। वह व्यक्ति के मुख-मण्डल को देखकर उसके अन्त:करण की बात को जान लेने में अति-निपुण है। मुक्तकेशिनी द्रौपदी को देखकर उसकी उदासी के कारण को वह जान लेता है, तभी तो वह कहता है–“इसमें पूछना ही क्या? तुम्हारे खुले केश ही कह रहे हैं कि तुम्हारी उदासी का क्या कारण है?” “

(5) नारी- सम्मान का पक्षधर-भीमसेन का चरित्र ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः सूक्ति से प्रेरित दिखाई पड़ती है। स्त्री का अपमान करने वाले को वह अक्षम्य मानता है, तभी तो वह प्रत्येक कीमत पर द्रौपदी को अपनी जंघा पर बिठाने की इच्छा करने वाले दुर्योधन की जंघा को तोड़ना तथा (UPBoardSolutions.com) द्रौपदी का केश-कर्षण करने वाले दुःशासन की छाती को विदीर्ण कर उसका लहू पीकर नारी-अपमान का बदला लेना चाहता है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भीमसेन एक वीर, क्रोधी, बुद्धिमान, स्पष्ट वक्ता और नारी का सम्मान करने वाला क्षत्रिय है। इसके साथ ही उसमें स्वाभिमान, अदम्य साहस, दृढ़-प्रतिज्ञता और निर्भीकता जैसे अन्य गुण भी विद्यमान हैं।

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द्रौपदी

परिचय-‘भीमसेनप्रतिज्ञा’ के रूप में संकलित नाट्यांश में भीमसेन और सहदेव ही मुख्य पात्र हैं, किन्तु इन दोनों के वार्तालाप का केन्द्रबिन्दु द्रौपदी ही है। वह नाट्यांश के उत्तरार्द्ध में मंच पर प्रवेश करती है और गिनती के संवाद ही बोलती है। उसको देखकर भीमसेन का क्रोध और अधिक भड़क उठता है। उद्दीपन के रूप में इस नाट्यांश में आयी द्रौपदी की कतिपय चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं

(1) मानिनी- द्रौपदी भरी सभा में कौरवों द्वारा किये गये अपने अपमान को भूल नहीं पाती। उसे अपने अपमान का उतना दु:ख नहीं है, जितना उसे इस अपमान को देखकर शान्त रहने वाले अपने पतियों की निर्लज्जता पर है। वह कुछ करने में समर्थ नहीं है; इसीलिए वह अपने पतियों को अपने (UPBoardSolutions.com) अपमान की निरन्तर याद दिलाते रहने के लिए अपने केशों को तब तक खुला रखने की प्रतिज्ञा करती है, जब तक कि वे उसके अपमान का बदला नहीं ले लेते।

(2) क्रोधिनी– मानिनी के साथ-साथ द्रौपदी क्रोधी स्वभाव की भी है। यही क्रोध तो उससे कौरवों का विनाश न होने पर अपने केशों को न सँवारने की प्रतिज्ञा कराता है।

(3) पतियों की अन्धसमर्थक नहीं- द्रौपदी अपने पतियों द्वारा लिये गये निर्णयों की अन्ध्रसमर्थक नहीं है। अपने अपमान पर शान्त रहने वाले पतियों की शान्त-प्रवृत्ति का वह अनुकरण । नहीं करती, वरन् इसके विपरीत आचरण करती है; तभी तो वह भीमसेन को अपने अपमान की बदला लेने के लिए उकसाती है।

(4) पतियों को फटकारने वाली- वह पतियों की उचित-अनुचित बातों को चुपचाप सहन नहीं करती, वरन् समय पर उनका प्रतिकार भी करती है। भीमसेन की बात सुनकर वह अपने शेष चार पतियों के विषय में मन-ही-मन कहती है–‘नाथ, न लज्जन्त एते।’ (नाथ! इनको लज्जा नहीं आती।) वह प्रत्यक्ष रूप में भी मीठी फटकार लगाती हुई कहती है-‘कोऽन्यो मम परिभवेण खिद्यते।’

(5) तीखी, किन्तु मधुरा– द्रौपदी का स्वभाव यद्यपि तीखा है, किन्तु अवसरानुरूप वह मधुर व्यवहार भी करती है। इसमें ये दोनों विपरीत गुण उसी प्रकार समाहित हैं, जिस प्रकार से कटु दवा के ऊपर शक्कर की मीठी परत चढ़ी हो। यद्यपि भीमसेन के क्रोध का कारण वही है और वही (UPBoardSolutions.com) उसे भड़काती भी है, तथापि वह भीमसेन से अधिक क्रोध न करने के लिए कहकर अपने उपर्युक्त दोनों गुणों का परिचय सहज ही दे देती है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि द्रौपदी पौराणिक पात्र अवश्य है, किन्तु यहाँ पर वह अपने _ अधिकारों के प्रति सचेत रहने वाली आधुनिक नवयुवती का प्रतिनिधित्व भी करती है।

लघु-उत्तरीय संस्कृत  प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए

प्रश्‍न 1
क्रुद्धो भीमसेनः केन अनुगम्यमानः प्रविशति?
उत्तर
क्रुद्धो भीमसेनः सहदेवेन अनुगम्यमानः प्रविशति।

प्रश्‍न 2
कृष्णः केन पणेन सन्धि कर्तुं सुयोधनं प्रति प्रहितः?
उत्तर
कृष्णः पञ्चभिः ग्रामैः सन्धि कर्तुं सुयोधनं प्रति प्रहितः।

प्रश्‍न 3
प्रतिज्ञा केन कूता?
उत्तर
प्रतिज्ञा भीमसेनेन कृता।

प्रश्‍न 4
भीमसेनेन का प्रतिज्ञा कृता?
उत्तर
भीमसेनेन कौरवशतं हन्तुं, दुःशासनस्य उरस्य रक्तं पातुं, दुर्योधनस्य ऊरूद्वयं गदया चूरयित्वा द्रौपद्या: केशान् सज्जीकर्तुं प्रतिज्ञामकरोत्।

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प्रश्‍न 5
सन्धिप्रस्तावे के पञ्चग्रामाः आसन्?
उत्तर
सन्धिप्रस्तावे इन्द्रप्रस्थः, वृकप्रस्थः, जयन्तः, वारणावतः कश्चिद् एकः ग्रामः च इति पञ्चग्रामीः आसन्।

प्रश्‍न 6
द्रौपद्याः क्रोधः केन प्रशमितः?
उत्तर
द्रौपद्याः क्रोधः भीमसेनेन प्रशमितः।

प्रश्‍न 7
द्रौपद्याः क्रोधः भीमसेनेन कथं प्रशमितः?
उत्तर
दु:शासनस्य उरस्य रक्तेन अनुरञ्जिताभ्यां हस्ताभ्यां केशानां संयमनस्य प्रतिज्ञां कृत्वा भीमसेनेने द्रौपद्या: क्रोधः प्रशमितः।

वस्तुनिष्ठ प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक | विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए

1. भीमसेनप्रतिज्ञा’ नाट्यांश किस ग्रन्थ से संकलित है?
(क) “विक्रमोर्वशीयम्’ से ।
(ख) ऊरुभंगम्’ से ।
(ग) “वेणीसंहारम्’ से
(घ) “किरातार्जुनीयम्’ से

2. ‘वेणीसंहारम्’ नाटक के रचयिता कौन हैं?
(क) भट्टनारायण
(ख) भास
(ग) महाकवि कालिदास
(घ) भवभूति

3. ‘वेणीसंहारम्’ रचना का मूल-स्रोत कहाँ से लिया गया है?
(क) ‘किरातार्जुनीयम्’ के प्रथम सर्ग से :
(ख) ‘शिशुपालवधम् के तृतीय सर्ग से :
(ग) ‘महाभारत’ के विंदुर पर्व से
(घ) महाभारत के सभापर्व से ।

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4. ‘भीमसेनप्रतिज्ञा’ नामक नाटक का नायक कौन है?
(क) भीम
(ख) दुर्योधन
(ग) सहदेव
(घ) युधिष्ठिर

5. भीमसेन किस बात की प्रतिज्ञा करते हैं?
(क) दुर्योधन की जंघा तोड़ने की
(ख) सन्धि न मानने की
(ग) युधिष्ठिर से अलग होने की
(घ) द्रौपदी के वेणीसंहार की

6. ‘हज्जे बुद्धिमतिके, कथय नाथस्य। कोऽन्यो मम परिभवेण खिद्यते।’ में ‘बुद्धिमतिका’ कहा गया है
(क) चेटी को
(ख) कुन्ती को
(ग) द्रौपदी को
(घ) सुभद्रा को ।

7. भीमसेन क्यों क्रोधित था? |
(क) क्योंकि वह जन्मजात क्रोधी स्वभाव का था।
(ख) क्योंकि उसे धृतराष्ट्र-पुत्रों के नाम से चिढ़ थी।
(ग) क्योंकि दुर्योधन एवं दु:शासन ने पाण्डवों का अपमान किया था
(घ) क्योंकि धर्मराज युधिष्ठिर की ऐसी ही आज्ञा थी।

8. ‘स्वस्था भवन्ति मयि जीवति धार्तराष्टाः।’ में ‘मयि’ पद को प्रयोग करने वाला कौन है?
(क) सहदेव
(ख) दुर्योधन ।
(ग) भीम
(घ) अर्जुन

9. ‘आकृष्य पाण्डववधूपरिधानकेशान्’ में ‘पाण्डववधू’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
(क) उत्तरा
(ख) सुभद्रा
(ग) द्रौपदी
(घ) कुन्ती

10. ‘एवं कृते लोके तावत् स्वगोत्रक्षयाशंकि हृदयमाविष्कृतं भवति।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति ?
(क) श्रीकृष्ण
(ख) द्रौपदी
(ग) सहदेव
(घ) भीमसेन

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11. ‘उदासीनेषु युष्मासु मम मन्युः न पुनः कुपितेषु” में मम’ शब्द का प्रयोग हुआ है
(क) द्रौपदी के लिए
(ख) भीमसेन के लिए
(ग) सहदेव के लिए
(घ) दुर्योधन के लिए।

12. ‘न खल्वमङ्गलानि चिन्तयितुमर्हन्ति भवन्तः कौरवाणाम्।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) सुयोधनः
(ख) भीमसेनः
(ग) सहदेवः
(घ) युधिष्ठिरः

13. ‘भगवान् कृष्णः केन………………” सन्धि कर्तुं सुयोधनं प्रतिहितः।’ वाक्य में रिक्त-पद की पूर्ति होगी
(क)‘पणेन’ से
(ख) “पृथिव्या’ से
(ग) “धनेन’ से
(घ) “मूल्येन’ से

14. ‘प्रयच्छ•••••••यामान्कञ्चिदेकं च पञ्चमम्।’ श्लोक की चरण-पूर्ति होगी
(क) ‘पण्डितो’ से
(ख) ‘मूख’ से
(ग) “चतुरो’ से
(घ) ‘त्रयोः ‘ से

15. ‘न लज्जयति………………”सभायां केशकर्षणम्।’ श्लोक की चरण-पूर्ति होगी– | “
(क) ‘तनयानाम् से
(ख) ‘पुत्राणाम् से
(ग) ‘दाराणाम् से
(घ) “मातृणाम्’ से

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16. ‘मुक्तवेणीं स्पृशन्नेनां कृष्णां धूमशिखामिव।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) भीमसेनः
(ख) सहदेवः
(ग) द्रौपदी
(घ) कृष्णा

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Class 9 Sanskrit Chapter 1 UP Board Solutions गार्गी-याज्ञवल्क्यसंवादः Question Answer

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 1 गार्गी-याज्ञवल्क्यसंवादः (कथा – नाटक कौमुदी) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 1 गार्गी-याज्ञवल्क्यसंवादः (कथा – नाटक कौमुदी).

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Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 1
Chapter Name गार्गी-याज्ञवल्क्यसंवादः (कथा – नाटक कौमुदी)
Number of Questions Solved 26
Category UP Board Solutions

UP Board Class 9 Sanskrit Chapter 1 Gargi-Yagyavalkya Samvad Question Answer (कथा – नाटक कौमुदी)

कक्षा 9 संस्कृत पाठ 1 हिंदी अनुवाद गार्गी-याज्ञवल्क्यसंवादः के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

परिचय-उपनिषद् ग्रन्थ भारतीय मनीषा की आध्यात्मिक चेतना के प्रतीक हैं। वैदिक साहित्य का अन्तिम भाग होने के कारण इन्हें वेदान्त’ भी कहा जाता है। यद्यपि उपनिषदों की संख्या शताधिक है; किन्तु इनमें प्राचीन एवं प्रामाणिक उपनिषदों की संख्या एकादश ही मानी जाती है। बृहदारण्यक् उपनिषद् इन्हीं में से एक है। प्रस्तुत पाठ इसी उपनिषद् में आये हुए एक आख्याने पर आधारित है, जिसमें मिथिलाधिपति (UPBoardSolutions.com) जनक की सभा में महर्षि याज्ञवल्क्य से परमविदुषी गार्गी वैदुष्यपूर्ण शास्त्रार्थ करती है। याज्ञवल्क्य और गार्गी की इस शास्त्र-चर्चा द्वारा हमें इस बात की भी जानकारी होती है कि प्राचीन भारत में स्त्रियाँ उच्च शिक्षित हुआ करती थीं।।

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पाठ-सारांश

सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी की खोज- प्राचीनकाल में मिथिला के राजा जनक ने एक यज्ञ किया, जिसमें कुरु और पांचाल देशों से विद्वान् ब्राह्मणों को आमन्त्रित किया गया। राजा जनक ने ब्रह्मविद्या में सर्वाधिक पारंगत विद्वान् का पता लगाने की इच्छा से स्वर्ण-जटित शृंगों वाली एक हजार गायें मँगवाकर सर्वश्रेष्ठं ब्रह्मज्ञानी को सभी गायें ले जाने के लिए कहा। राजा जनक की इस घोषणा को सुनकर सभी ब्राह्मण मौन बैठे रहे, कोई भी उन गायों को ले जाने के लिए तैयार नहीं हुआ। इसी बीच याज्ञवल्क्य ने अपने एक शिष्य को सब गायें अपने आश्रम (UPBoardSolutions.com) ले चलने के लिए कहा। याज्ञवल्क्य की इस बात को सुनकर सभा में उपस्थित सभी ब्राह्मण इसे अपना अपमान मानते हुए याज्ञवल्क्य पर क्रोधित हो गये। |

अश्‍वल की पराजय-राजा जनक के होता (यज्ञ कराने वालों पुरोहित) अश्‍वल के पूछने पर कि क्या आप सर्वोच्च ब्रह्मज्ञ हैं, याज्ञवल्क्य ने कहा कि मैं इन गायों को अपनी आवश्यकता की पूर्ति हेतु ले जा रहा हूँ, ब्रह्मज्ञानी होने के कारण नहीं।’ यह सुनकर अश्वल आदि ब्राह्मणों ने याज्ञवल्क्य को शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दी, उनसे शास्त्रार्थ किया और पराजित हो गये।

गार्गी द्वारा प्रश्न और याज्ञवल्क्य द्वारा उत्तर-अश्‍वल आदि अनेक ब्राह्मण विद्वानों के पराजित हो जाने पर वचक्रु ऋषि की पुत्री गार्गी ने याज्ञवल्क्य से ब्रह्मविद्या से सम्बन्धित अत्यधिक गूढ़ प्रश्न पूछे। याज्ञवल्क्य ने बड़ी धीरता से सभी प्रश्नों के क्रम से युक्तिसंगत उत्तर दिये। दोनों के मध्य हुए वार्तालाप का संक्षिप्त-सार इस प्रकार है-जल कहाँ है? अन्तरिक्ष लोक में। अन्तरिक्ष लोक कहाँ है? गन्धर्व लोकों पर पूर्ण रूप से आश्रित है। गन्धर्वलोक किसमें व्याप्त है? अदित्यलोकों में। आदित्यलोक

किसमें व्याप्त है? चन्द्रलोकों में। चन्द्रलोक कहाँ है? नक्षत्रलोकों में। विस्तृत नक्षत्रलोक किसमें व्याप्त है? देवलोक में। देवलोक कहाँ है? इन्द्रलोक में समाहित है। इन्द्रलोक किसमें व्याप्त है? प्रजापति : लोकों में। समस्त प्रजापति लोक किसमें व्याप्त हैं? ब्रह्मलोकों में। ब्रह्मलोक कहाँ है? इस प्रश्न के (UPBoardSolutions.com) उत्तर में याज्ञवल्क्य ने कहा-गार्गी! ब्रह्मलोक को अतिक्रान्तकर प्रश्न मत करो अन्यथा तुम्हारा सिर धड़ से पृथक् होकर गिर जाएगा। याज्ञवल्क्य के ऐसा कहते ही गार्गी शान्त हो गयी।

उद्दालक की पराजय- गार्गी के पश्चात् उद्दालक ने याज्ञवल्क्य से कुछ और प्रश्न पूछे। उन । प्रश्नों का समुचित उत्तर प्राप्त कर वे भी पराजित हुए।

गार्गी के अन्य दो प्रश्न–उद्दालक के पराजित हो जाने पर गार्गी ने उपस्थित ब्राह्मणों से अनुमति पाकर याज्ञवल्क्य से पुन: दो प्रश्न और किये—प्रथम, द्युलोक से ऊपर और पृथ्वीलोक से नीचे क्या है? याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया कि यह सब, आकाश में व्याप्त है।’ गार्गी ने द्वितीय प्रश्न पूछा कि वह आकाश किस पर आश्रित है?’ याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया कि ‘आकाश तो अविनाशी ब्रह्म में ही ओत-प्रोत है।’

गार्गी की सन्तुष्टि-याज्ञवल्क्य के युक्तिसंगत उत्तरों से सन्तुष्ट होकर गार्गी ने उपस्थित सभी ब्राह्मणों के समक्ष घोषणा की कि आप में से कोई भी याज्ञवल्क्य को ब्रह्मविद्या में नहीं जीत सकता; अतः आप सभी विद्वान् उन्हें ससम्मान प्रणाम करके अपने-अपने स्थान को वापस चले जाएँ। । प्रस्तुत पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि व्यक्ति को पूर्ण ज्ञान-सम्पन्न होने पर भी कभी ज्ञानाभिमान नहीं करना चाहिए, क्रोध को सदैव नम्रता से जीतना चाहिए, सत्य बात को बिना किसी आपत्ति के स्वीकार कर लेना चाहिए तथा ब्रह्मज्ञान निस्सीम है, यह मानना चाहिए।

चरित्र – चित्रण

गार्गी

परिचय-गार्गी महर्षि वचक्रु की पुत्री थी। गर्ग गोत्र में उत्पन्न होने के कारण उसका नाम गार्गी रख दिया गया था। लोगों की इस दिग्भ्रमित अवधारणा को; कि प्राचीनकाल में स्त्रियों को शिक्षा नहीं दी जाती थी; इस प्रकरण के माध्यम से दिशा दी गयी है कि उस समय स्त्रियाँ पुरुषों के समान उच्च शिक्षा (UPBoardSolutions.com) प्राप्त हुआ करती थीं। गार्गी की विद्वत्ता से इसकी पुष्टि भी हो जाती है। गार्गी की मुख्य चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं|

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(1) परम-विदुषी– गार्गी अपने समय की एक असाधारण विदुषी महिला थी। विद्वानों में उनकी गणना की जाती थी। आज भी विदुषी महिलाओं में गार्गी का नाम सर्वप्रथम लिया जाता है। राजा जनक की सभा में उसने याज्ञवल्क्य से ब्रह्मविद्या पर शास्त्रार्थ किया था और अपने प्रश्नों से विद्वत्समाज को चकित कर दिया था। उसकी शास्त्रार्थ-पद्धति भी बड़ी सुलझी हुई और रोचक थी। उसे ब्रह्मविद्या, वेदशास्त्रों का उच्च ज्ञान था। उसके सामने सभी विद्वान् नतशिर रहते थे।

(2) निरभिमानिनी-परम-विदुषी होते हुए भी गार्गी सरल हृदय थी। उसे अपने ज्ञान का लेशमात्र भी गर्व नहीं था। याज्ञवल्क्य द्वारा ब्रह्मलोक से ऊपर के प्रश्न करने से मना करने पर वह चुप हो जाती है। वह याज्ञवल्क्य से पुनः प्रश्न करने के लिए ब्राह्मणों से अनुमति माँगती है (UPBoardSolutions.com) और प्रश्न के उत्तर से प्रभावित होकर, उनकी विद्वत्ता को स्वीकार कर वह याज्ञवल्क्य को नमन करती है। वह हठधर्मिणी और कुतर्की नहीं है।

(3) निर्भीक एवं स्पष्टवक्ता- गार्गी विदुषी होने के साथ-साथ अत्यधिक निर्भीक थी। वह राजा जनक की विद्वभूयिष्ठ सभा में अकेली याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ करने का साहस रखती थी। उसके प्रत्येक प्रश्न के पीछे उसका आत्मविश्वास और निर्भीकता छिपी हुई थी। शास्त्रार्थ के अन्त में, वह निर्भीकतापूर्वक सभी विद्वानों से स्पष्ट कह देती है कि कोई भी याज्ञवल्क्य को पराजित नहीं कर सकता।

(4) सुसंस्कृत एवं शीलसम्पन्ना– गार्गी विदुषी होने के साथ-साथ सुसंस्कृत भी है। वह सभी ब्राह्मणों के क्रोधित होने पर भी क्रोधित नहीं होती और शास्त्रार्थ में याज्ञवल्क्य के लिए विद्वज्जनोचित सम्बोधन प्रयुक्त करती है; यथा-”भगवन्! गन्धर्व लोकाः कस्मिन्?” ब्रह्मर्षे कुत्र खलु ब्रह्मलोकाः?” वह याज्ञवल्क्य के “हे गार्गि! ब्रह्मलोकमप्यतिक्रम्य ततः ऊर्ध्वस्य तदाधारस्य प्रश्न मा कुरु, अन्यथा चेत्ते मूर्नः पतनं भविष्यति।” वाक्य को सुनकर भी उत्तेजित नहीं होती। यह उसकी शीलसम्पन्नता का उत्कृष्ट उदाहरण है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि गार्गी परम-विदुषी, निर्भीक और निरभिमानिनी होने के .. साथ-साथ उच्चकुलोत्पन्न एवं विनीत आदर्श भारतीय महिला है। उसकी बुद्धि तार्किक और तीक्ष्ण है। हमें गार्गी जैसी विदुषी भारतीय महिलाओं पर गर्व होना चाहिए।

लघु-उत्तरीय संस्कृत प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए-

प्रश्‍न 1
जनकः कः आसीत्?
उत्तर
जनक: मिथिलायाः नृपः आसीत्।।

प्रश्‍न 2
जनकस्य यज्ञे कुतः ब्राह्मणाः समागताः? उत्तर-जनकस्य यज्ञे कुरु-पाञ्चालदेशेभ्यः ब्राह्मणाः समागताः।

प्रश्‍न 3
याज्ञवल्क्यः स्वशिष्यं किमकथयत्?
उत्तर
याज्ञवल्क्यः स्वशिष्यम् अकथयत्-हे सोमाई! एता: गाः अस्मद्गृहान् नयतु।’

प्रश्‍न 4
जनकस्य होता कः आसीत्?
उत्तर
जन उत्तर–जनकस्य होता अश्वलनामा ब्राह्मणः आसीत्।

प्रश्‍न 5
ब्राह्मणाः सकोपं कं किमूचुः?
उत्तर
ब्राह्मणाः सकोपं याज्ञवल्क्यम् ऊचुः यत् कथं नः अनादृत्य त्वमात्मानं ब्रह्मिष्ठं मन्यसे?

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प्रश्‍न 6
अश्वलेन पृष्टः याज्ञवल्क्यः किमुदतरत्?
उत्तर
अश्वलेन परिपृष्टः याज्ञवल्क्यः उदरत् यत् अस्माभिः गोकामनया एवं गाः नीता, न तु ब्रह्मिष्ठत्वाभिमानात्।।

प्रश्‍न 7
प्रथमं गार्गी याज्ञवल्क्यम् किमपृच्छत्?
उत्तर
प्रथमं गार्गी याज्ञवल्क्यम् अपृच्छत् यत् इदं दृश्यमानं पार्थिवं सर्वमप्सु ओतञ्च प्रोतञ्च, ता: आपः कस्मिन् खलु ओताः प्रोताश्च।

प्रश्‍न 8
याज्ञवल्क्यः गार्गी किं प्रत्युवाच प्रथमम्?
उत्तर
याज्ञवल्क्यः गार्गी प्रथमं प्रत्युवाच यत् ताः आपः वायो ओताश्च प्रोताश्च सन्ति।

प्रश्‍न 9
गाग्र्याः द्वितीयप्रश्नस्य याज्ञवल्क्यः किमुत्तरं दत्तवान्?
उत्तर
गाग्र्याः द्वितीयप्रश्नस्य याज्ञवल्क्यं उत्तरं दत्तवान् यत् ‘आकाशस्त्वक्षरे परब्रह्मण्येव ओतश्च प्रोतश्च।

प्रश्‍न 10
याज्ञवल्क्येन प्रयुक्ता गार्गी किमकथयत्?
उत्तर
याज्ञवल्क्येन प्रयुक्ता गार्गी ‘ब्रह्मवादं प्रति याज्ञवल्क्यस्य जेता नास्ति’ इति अकथयत्।

वस्तुनिष्ठ  प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए

1. ‘गार्गी-याज्ञवल्क्यसंवादः’ नामक पाठ किस उपनिषद् से संगृहीत है?
(क) श्वेताश्वतर से
(ख) माण्डूक्य से।
(ग) बृहदारण्यक से
(घ) छान्दोग्य से

2. ‘गार्गी-याज्ञवल्क्यसंवाद’ में यज्ञ करने वाले व्यक्ति थे
(क) जनक 
(ख) याज्ञवल्क्य
(ग) उद्दालक
(घ) अश्वल

3. राजा जनक के यज्ञ में किन देशों से विद्वान् आये थे? 
(क) पांचाल देश से
(ख) मिथिला देश से।
(ग) पांचाल और कुरु देशों से 
(घ) कुरु देश से

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4. जनक के होता (यज्ञ कराने वाला पुरोहित ) का नाम था
(क) उद्दालक
(ख) अश्वल
(ग) याज्ञवल्क्य
(घ) गार्गी

5. राजा जनक ने किसको सुवर्णजटित सींगों वाली हजार गायें ले जाने के लिए कहा?
(क) सर्वश्रेष्ठ मुनि को
(ख) सर्वश्रेष्ठ होता को
(ग) सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मविद् को 
(घ) सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण को

6. गार्गी के पश्चात् याज्ञवल्क्य से किसने शास्त्रार्थ किया?
(क) अश्वल ने
(ख) सोमार्स ने
(ग) उद्दालक ने
(घ) जनक ने

7. शास्त्रार्थ में कौन विजयी घोषित किया गया?
(क) अश्वल
(ख) उद्दालक
(ग) याज्ञवल्क्य
(घ) गार्गी

8. याज्ञवल्क्य ने गार्गी के मूर्धापतन की बात क्यों कही?
(क) याज्ञवल्क्य गार्गी के प्रश्न का उत्तर नहीं जानते थे
(ख) याज्ञवल्क्य गार्गी को भयभीत करना चाहते थे।
(ग) याज्ञवल्क्य शास्त्रार्थ समाप्त करना चाहते थे।
(घ) याज्ञवल्क्य ब्रह्मज्ञान की निर्धारित सीमा का अतिक्रमण नहीं चाहते थे

9. गार्गी ने याज्ञवल्क्य के मूर्धापतन की बात क्यों कही?
(क) गार्गी याज्ञवल्क्य से बदला लेना चाहती थी ।
(ख) गार्गी याज्ञवल्क्य के ब्रह्मज्ञान की परीक्षा लेना चाहती थी ।
(ग) गार्गी याज्ञवल्क्य को पराजित करना चाहती थी।
(घ) गार्गी राजा जनक की गायें ले जाना चाहती थी। .

10.’राजा ……….. स्वजिज्ञासाप्रशमनार्थं स्वगोष्ठे स्वर्णशृङ्गयुताम् गवां सहस्रमवरुरोध।’ में रिक्त स्थान में आएगा
(क) जनकः
(ख) दशरथः
(ग) हरिश्चन्द्रः
(घ) हर्षवर्द्धनः

11. ‘हे सोमाई! एताः गाः अस्मद् गृहान् नयतु।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) याज्ञवल्क्यः
(ख) अश्वलः
(ग) गार्गी.
(घ) उद्दालकः

12. गार्गी कस्याः पुत्री आसीत्?
(क) उद्दालकस्य
(ख) विश्वामित्रस्य
(ग) वचक्रुः
(घ) वशिष्ठस्य।

13.’युष्माकं मध्ये इमं याज्ञवल्क्यं ब्रह्मवादं प्रति नैवास्ति कश्चिदपि •••••••••।’ में रिक्त स्थान में आएगा
(क) जयति ।
(ख) जयावे
(ग) जयेव
(घ) जेता।

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14.’हे ब्राह्मणाः! इमं याज्ञवल्क्य महं प्रश्नद्वयं•••••••• में वाक्य-पूर्ति होगी
(क) प्रक्ष्यामि’ से
(ख) वदिष्यामि’ से।
(ग) “कथयामि’ से
(घ) “भविष्यामि’ से

15. इन्द्रलोकेषु कस्मिन् लोके समाहिताः?
(क) आदित्यलोकाः
(ख) गन्धर्वलोकाः
(ग) नक्षत्रलोकाः
(घ) देवलोकाः 

16.’अन्तरिक्षलोकाः••••••••••• लोकेष कात्स्येन आश्रिताः।’ में वाक्य-पूर्ति होगी–
(क) ‘आदित्य’ से
(ख) ‘चन्द्र’ से
(ग) ‘नक्षत्र से
(घ) “गन्धर्व’ से

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Class 10 Sanskrit Chapter 14 UP Board Solutions योजना – महत्वम् Question Answer

UP Board Class 10 Sanskrit Chapter 14 Yojana – Mahatvam Question Answer (गद्य – भारती)

कक्षा 10 संस्कृत पाठ 14 हिंदी अनुवाद योजना – महत्वम् के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

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परिचय

भारत में शताधिक वर्षों तक चले अंग्रेजी शासन ने देश के कल्याण और उन्नति की बात नहीं सोची, वरन् मात्र अपनी स्वार्थ-पूर्ति पर ध्यान दिया। इसी कारण भारत के स्वतन्त्र होने पर भारतीय नेतृत्व के सामने अनेक समस्याएँ खड़ी हो गयीं। स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू रूस की समाजवादी व्यवस्था से बहुत प्रभावित थे। कम्युनिस्टों का शासन प्रारम्भ होने के बाद रूस में पंचवर्षीय योजना-महत्त्वम् योजनाएँ बनायी गयी थीं और (UPBoardSolutions.com) यह निश्चित किया गया था कि पाँच वर्षों में उन्हें कौन-कौन से काम करने हैं। रूस के ढंग पर ही नेहरू जी ने भी भारत में पंचवर्षीय योजनाएँ प्रारम्भ कीं और उसके लिए एक समिति बना दी। समिति यह निश्चय करती थी कि किस पंचवर्षीय योजना में कौन-से कार्य किये जाएँगे और किन पर कितना व्यय किया जाएगा। इन्हीं पंचवर्षीय योजनाओं ने भारत का कायाकल्प कर दिया। यहाँ हवाई जहाजों तक का निर्माण होने लगा और कृषि के क्षेत्र में भी हरित क्रान्ति आयी। प्रस्तुत पाठ पंचवर्षीय योजना के महत्त्व और उनसे होने वाले लाभों का परिचय देता है।

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पाठ-सारांश (2006,07,08, 9, 10, 11, 12, 14]

उन्नति का अवसर संसार के इतिहास में कितने ही राष्ट्रों ने उन्नति की है और कितने ही अवनति के गर्त में गिर गये हैं। हमारा देश भारत भी दीर्घकाल तक परतन्त्रता की बेड़ियों में जकड़ा रहा। लोकमान्य तिलक, महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल, सुभाषचन्द्र बोस और जनता के सहयोग तथा बलिदान के परिणामस्वरूप यह 15 अगस्त, 1947 ई० को स्वतन्त्र हुआ। इसके स्वतन्त्र होने तथा संविधान बन जाने पर यहाँ के नेतृत्व ने इसकी उन्नति के लिए योजनाएँ बनायीं। इन योजनाओं के लागू होने पर भारत को सामाजिक और आर्थिक उन्नति का अवसर प्राप्त हुआ।

पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा प्रगति हमारे नेताओं ने देश की प्रगति के लिए एक योजना-समिति बनायी, जिसने पाँच वर्षों में हो सकने योग्य कार्यों का विवरण तैयार किया। प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया तथा कृषि के आश्रित साधनों के विकास के लिए रूपरेखा बनायी गयी। दूसरी पंचवर्षीय योजना में बड़े-बड़े उद्योगों को महत्त्व दिया गया। इन योजनाओं के अन्तर्गत अनेक छोटी-बड़ी योजनाएँ थीं, जिनमें भाखड़ा, हीराकुड, दामोदर, तुंगभद्रा, मयूराक्षी और रिहन्द बाँधों की योजनाएँ प्रमुख थीं। इन योजनाओं से कृषि की सिंचाई, जल-प्रवाह के नियन्त्रण से बाढ़ की रोकथाम तथा विद्युत-शक्ति का उत्पादन (UPBoardSolutions.com) आदि लाभ थे। विद्युत् से बड़ी-बड़ी मशीनें चलती हैं और प्रकाश प्राप्त होता है। चौथी, पाँचवीं, छठी योजनाएँ भी यथासमय चलती रहीं और आज भी प्रचलित हैं।

योजनाओं से लाभ इन योजनाओं से हमारे देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि, महँगाई की रोकथाम, दैनिक उपयोग की वस्तुओं की प्राप्ति में सुगमता, छोटे-बड़े उद्योगों की ओर ध्यानाकर्षण, खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता, परिवार नियोज़न, नहरों का निर्माण और नलकूप लगाना, गाँवों में बिजली का प्रबन्ध, वृक्षारोपण आदि अनेक लाभ हुए। चिकित्सा के क्षेत्र में यक्ष्मा, चेचक, मलेरिया आदि संक्रामक और भयानक रोगों से पूर्णतया छुटकारा मिला। एक्स-रे से भीतरी रोगों का पता लगाना सम्भव हुआ। नहरों के निर्माण से भूमि उर्वरा, धान्यसम्पन्न हुई और मानवों व पशु-पक्षियों को पेयजल प्राप्त हुआ। रेलमार्गों के विस्तार, उनकी गति में वृद्धि तथा डीजल इंजनों के प्रयोग से यात्रा तथा माल के लाने और भेजने में समय की ११ बचत हुई।

जनसंख्या की समस्या इन योजनाओं के क्रियान्वयन से प्रति व्यक्ति जितना लाभ अपेक्षित समझा गया था, जनसंख्या की वृद्धि के कारण उतना लाभ नहीं मिला। चिकित्सा-साधनों में वृद्धि होने पर भी मृत्यु का प्रतिशत जितना कम हुआ, जन्म का प्रतिशत उससे कहीं अधिक बढ़ गया। जनसंख्या में वृद्धि को शिक्षा के प्रसार से ही रोका जा सकता है। सरकार जनसंख्या पर नियन्त्रण करने हेतु शिक्षा के प्रसार के लिए सतत प्रयासरत है।

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शिक्षा से लाभ शिक्षा से केवल व्यक्ति का ही विकास नहीं होता, वरन् सामाजिक चेतना भी जाग्रत होती है। बालकों और वृद्धों के आचार-विचार और व्यवहार में परिवर्तन आता है। निरक्षर और गरीब लोग बच्चे उत्पन्न करना ही अपना लक्ष्य समझते हैं, उनके भरण-पोषण पर ध्यान नहीं देते। सामान्य जनता में शिक्षा के प्रसार से ही हमारी योजनाएँ सफल हो सकती हैं।

गद्यांशों का ससन्दर्भ अनुवाद

(1)
कस्यात्यन्तं सुखमुपनतं दुःखमेकान्ततो वा’ इतीयं सुशोभना सूक्तिः, यावच्चे प्रतिजनं चरितार्था भवति, तथैव तावदेव राष्ट्रजीवनेष्वपि सङ्घटते। संसारस्येतिहासे पुराकालादारभ्य अद्यावधि कियन्ति राष्ट्राणि, प्रोन्नतिशृङ्गमारूढानि, कालान्तरेऽवनतिगर्ते पतितानि। कियन्ति’ चान्यानि अवनति गर्तान्निष्क्रम्य, उन्नतिशिखरमारूढानि, इति गदितुं निरवद्यमशक्यम्। प्रायेण सर्वेषां राष्ट्राणां विषये तथ्यमिदम्। भारतवर्षमपि, अस्य तथ्यस्यापवादो भवितुं नाशकत्। बहोः कालात् अस्माकं (UPBoardSolutions.com) देशः पारतन्त्रिकशृङ्खलया निगडितः आसीत्। तिलक-गान्धी-नेहरू-पटेल-सुभाषमहोदयानां जनतायाश्च सहयोगेन, बलिदानेन सप्तचत्वारिंशदधिकैकोनविंशतिशततमे (1947) खीष्टाब्दे स्वतन्त्रो जातः।

शब्दार्थ कस्यात्यन्तं = किसका अत्यधिक उपनतम् = प्राप्त। एकान्ततः = पूर्णरूप से। तावदेव = उतना ही। सङ्कटते = घटित होती है। पुराकालादारभ्य = प्राचीनकाल से प्रारम्भ करके। अद्यावधि =आज तक कियन्ति = कितने ही। प्रोन्नतिशृङ्गमारूढानि = उन्नति के शिखर पर पहुँचे। गर्ते = गड्डे में। निष्क्रम्य = निकलकर। गदितुम् = कहना। निरवद्यम् = निश्चय ही। अशक्यम् = नहीं कहा जा सकता, असम्भव। पारतन्त्रिकशृङ्खलया = परतन्त्रतारूपी श्रृंखला से। निगडितः = जकड़ा हुआ, बँधा हुआ। सप्तचत्वारिंशदधिकैकोनविंशतिशततमे = उन्नीस सौ सैंतालीस में।

सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के गद्य-खण्ड ‘गद्य-भारती’ में संकलित ‘योजना-महत्त्वम्’ शीर्षक पाठ से लिया गया है।

[ संकेत, इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा। ]

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प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में बहुत समय तक परतन्त्र रहने के बाद भारत के स्वतन्त्र होने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद “किसको अत्यन्त सुख प्राप्त है अथवा किसको पूर्णरूप से दुःख प्राप्त है। यह सुन्दर उक्ति जितनी प्रत्येक मनुष्य के विषय में चरितार्थ होती है, उसी प्रकार उतनी ही राष्ट्र के जीवन में भी घटित होती है। संसार के इतिहास में प्राचीन काल से लेकर आज तक कितने राष्ट्र उन्नति के शिखर पर पहुँच गये, कुछ समय बाद अवनति के गड्ढे में गिर गये और कितने ही अवनति के गड्डे से निकलकर उन्नति के शिखर पर चढ़ (पहुँच) गये, यह कहना निश्चित ही असम्भव है। प्रायः सभी राष्ट्रों के विषय में यह वास्तविक बात है। भारतवर्ष भी इस वास्तविकता का अपवाद नहीं हो सका। बहुत समय से हमारा देश परतन्त्रता की बेड़ी में जकड़ा हुआ था। तिलक, गाँधी, नेहरू, पटेल, सुभाष आदि नेताओं और जनता के सहयोग और बलिदान से सन् 1947 ईस्वी में स्वतन्त्र हो गया।

(2)
वैदेशिकाः समस्तानि कार्याणि स्वहितदृष्ट्यैव कृतवन्तः, नास्य देशस्य उन्नतेः समृद्धेर्वा दृष्टया। जाते स्वतन्त्रे देशे, सम्पन्ने सार्वभौमिके सत्तासम्पन्ने राष्ट्र, विरचिते च विधाने, आर्थिक-सामाजिकप्रोन्नत्योः मिलिते सुवर्णावसरे, अस्माकं नेतृभिः नेहरूमहाभागैः एतदर्थं समितिरेका निर्मिता या (UPBoardSolutions.com) योजनासमितिरभ्यधीयत। इयमेव समितिः सर्वं विचार्य प्रथमं पञ्चभिः वर्षेः सम्पादयितुं योग्यानां कार्याणां यद् विवरणं प्रकाशितवती सैव प्रथमा पाञ्चवर्षिकी योजनेति नाम्ना प्रसिद्धा। स्वदेशे जीविकासाधनेषु कृषेरेव सर्वमुख्यत्वाद् अस्यां योजनायां तस्या एव सर्वाधिक महत्त्वं स्वीकृतम्। कृष्याश्रितानां ग्रामोद्योगानामपि विकासोऽपेक्षितः, एतदपेक्षितानि साधनान्यपि यथासम्भवं साधितानि। द्वितीयपाञ्चवर्षियां योजनायां महोद्योगेभ्यः प्राधान्यमदीयत। अतः औद्योगिक विकासः प्रसारश्च द्वितीययोजनायाः प्रधानलक्ष्यमासीत्।।

शब्दार्थ वैदेशिकाः = विदेशियों ने। स्वहितदृष्ट्यैव = अपने हित की दृष्टि से ही। सार्वभौमिके सत्तासम्पन्ने = सार्वभौमिक सत्तासम्पन्न होने पर आर्थिक-सामाजिक प्रोन्नत्योः = आर्थिक और सामाजिक उन्नतियों के। एतदर्थं = इसके लिए। समितिरेको = एक समिति। अभ्यधीयत = कही गयी, कहलायी। सम्पादयितुम् = पूरा करने के लिए। कृष्याश्रितानाम् = खेती पर आधारित। अदीयत = दिया गया।

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प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में स्वतन्त्र भारत की पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्य के विषय में बताया गया है।

अनुवाद विदेशी लोग समस्त कार्य अपने हित की दृष्टि से ही करते थे, इस देश की उन्नति या समृद्धि की दृष्टि से नहीं। देश के स्वतन्त्र होने पर, राष्ट्र के सार्वभौमिक सत्ता से सम्पन्न होने पर और संविधान के बनने पर, आर्थिक और सामाजिक उन्नति का स्वर्णावसर मिलने पर, हमारे नेहरू जी आदि नेताओं ने इसके लिए समिति बनायी, जो ‘योजना-समिति’ कहलायी। इसी समिति ने सब कुछ विचारकर प्रथम पाँच वर्षों में हो सकने योग्य कार्यों को जो विवरण प्रकाशित किया, वही ‘प्रथम पंचवर्षीय योजना’ इस नाम से प्रसिद्ध हुई। अपने देश में जीविका के साधनों में खेती के ही सबसे प्रमुख होने के कारण इस योजना में उसी का सबसे अधिक महत्त्व स्वीकार किया गया। खेती पर आधारित ग्रामोद्योग का विकास भी आवश्यक है; अतः इसके लिए आवश्यक साधनों को भी यथासम्भव पूरा (प्राप्त) किया गया। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में बड़े उद्योगों को (UPBoardSolutions.com) प्रधानता दी गयी; अत: उद्योगों का विकास और प्रसार द्वितीय योजना का प्रधान लक्ष्य था।

(3)
प्रथमपाञ्चवर्षिकयोजनान्तर्गतपञ्चत्रिंशदधिकं शतं (135) योजनाः आसन्। आसु एकादश बहुप्रयोजनाः तासु मुख्याः भाखरा-हीराकुड-दामोदर-तुङ्गभद्रा-मयूराक्षी-रिहन्दबन्धयोजनाः। एभ्यो बहुप्रयोजनेभ्यो बन्धेभ्योऽनेके लाभाः। कृषिसेचनं तावत् प्रथमो लाभः। द्वितीयश्च पुनः जलप्रवाहनियन्त्रणेन प्लावनभयान्निवृत्तिः। तृतीयो लाभः विद्युच्छक्त्युत्पादनं येनोद्योगशालासु सुमहन्ति यन्त्राणि परिचालितानि। विद्युत्प्रकाशस्तु अलभतैव। एवं चतुर्थ-पञ्चम-षष्ठ-इत्यादयः योजनाः यथासमयमद्यावधि प्रचलिताः सन्ति।

शब्दार्थ पञ्चत्रिंशदधिकं शतं = एक सौ पैंतीस। बहुप्रयोजनाः = बहुउद्देशीय। कृषिसेचनम् = खेती की सिंचाई। प्लावनभयात् = बाढ़ के डर से निवृत्तिः = छुटकारा। विद्युच्छक्त्युत्पादनम् (विद्युत् + शक्ति + उत्पादनम्) = बिजली की शक्ति का उत्पन्न होना। सुमहान्ति = बड़ी-बड़ी। यन्त्राणि = मशीनें। अलभतैव = प्राप्त किया ही जाता है।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में प्रथम पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत हुए लाभों का वर्णन किया गया है।

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अनुवाद प्रथम पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत 135 योजनाएँ थीं। इनमें ग्यारह बहुउद्देशीय थीं। उनमें मुख्य भाखड़ा, हीराकुड, दामोदर, तुंगभद्रा, मयूराक्षी, रिहन्द बाँध योजनाएँ थीं। इन बहुउद्देशीय बाँधों से अनेक लाभ हैं। खेती की सिंचाई तो पहला लाभ है और दूसरा लाभ जल के प्रवाह को रोकने से बाढ़ के भय से मुक्ति है। तीसरा लाभ विद्युत शक्ति का उत्पादन है, जिससे उद्योगशालाओं में बड़े-बड़े यन्त्र चलाये जाते हैं। बिजली का प्रकाश तो प्राप्त हुआ ही है। इस प्रकार चतुर्थ, पञ्चम, षष्ठ इत्यादि योजनाएँ समय-समय पर
आज तक प्रचलित हैं।

(4)
आसु योजनासु अनेकाः अन्तर्गर्भिताः योजनाः सन्ति। आसां योजनानां फलानि-राष्ट्रियायेषु वृद्धिः महर्घतायाः नियन्त्रणम्, उपयोगिनां नैत्यिकानां वस्तूनां न्यूनतायाः दूरीकरणं, लघुषु विशालेषु, चोद्योगेषु अवधानं खाद्यान्नेषु स्वावलम्बनानयनं, परिवारनियोजनं, सर्वत्र कुल्यानां प्रवाहणं, नलकूपानां स्थापनं, प्रतिग्रामं विद्युत्प्रकाशः, वृक्षारोपणम्। आभिः योजनाभिः फलन्त्विदमवश्यं जातं यत् अस्माकं देशः खाद्यान्नेषु स्वावलम्बी सुसम्पन्नः।।

आसु योजनासु ………………………………………. विद्युत्प्रकाशः वृक्षारोपणम् । [2011]

शब्दार्थ अन्तर्गर्भिताः = भीतर छिपी हुई। राष्ट्रियायेषु = राष्ट्र की आयों में। महर्घतायाः = महँगाई का। नैत्यिकानाम् = प्रतिदिन की। अवधानम् = ध्यान देना। स्वावलम्बनानयनम् = स्वावलम्बन ले आना। कुल्यानाम् = नहरों का। नलकूपानाम् = ट्यूबवेलों का। आभिः (UPBoardSolutions.com) योजनाभिः = इन योजनाओं के द्वारा। फलन्त्विदमवश्यं (फलं + तु + इदम् + अवश्यं) = फल तो यह अवश्य है।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा देश का जो विकास हुआ है, उसके बारे में प्रकाश डाला गया है।

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अनुवाद इन योजनाओं में अनेक योजनाएँ अन्तर्निहित हैं। इन योजनाओं के परिणाम हैं-राष्ट्रीय आय में वृद्धि, महँगाई की रोकथाम, उपयोग में आने वाली दिन-प्रतिदिन की वस्तुओं की कमी को दूर करना, छोटे और बड़े उद्योगों पर ध्यान देना, खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता लाना, परिवार नियोजन, सभी जगह नहरें प्रवाहित करना, ट्यूबवेल (नलकूप) लगाना, प्रत्येक गाँव में बिजली का प्रकाश, वृक्ष लगाना। इन योजनाओं से यह फल तो अवश्य हुआ कि हमारा देश खाद्यान्नों में आत्मनिर्भर और भली-भाँति सम्पन्न हो गया है।

(5)
इत्थं चिकित्साक्षेत्रेष्वपि महती प्रगतिः सम्पन्ना। यक्ष्माशीतलामलेरियादिरोगाणां प्रायः देशात् निष्क्रमणमेव जातम्। क्ष-किरणात् (एक्स-रे) आन्तरिकाणां रोगाणां स्थानां चित्रं समक्षमायातं, येन चिकित्सासु महत्सौकर्यं सम्पन्नम्। सर्वत्र बन्धानां निर्माणेन, कुल्यानां प्रवाहणेन भूमिः उर्वरा जाता, ऊषरभूमिरपि सस्यसम्पन्ना भवति। जलसाधनेन प्रतिग्रामं, प्रत्युद्यानं प्रतिक्षेत्रं जलमेव दृश्यते। सर्वत्र जलपक्षिणः अन्ये च विहङ्गाः कलरवं कुर्वन्तः उड्डीयन्ते। वन्याः प्राणिनः ये ग्रीष्मकालेषु जिह्वां प्रसार्य तोयार्थमितस्ततः धावन्ति स्म तेऽद्योदकं पायं पायं नदन्तः कूर्दमानाः परिभ्रमन्ति।।

शब्दार्थ इत्थम् = इस प्रकार। यक्ष्माशीतलामलेरियादिरोगाणाम् = टी० बी०, चेचक, मलेरिया आदि रोगों का। निष्क्रमणमेव = निकलना ही। आन्तरिकाणाम् = भीतरी। समक्षमायातम् = सामने आया। सौकर्यम् = सुविधा, सरलता। बन्धानां = बाँधों के। उर्वरा = उपजाऊ। ऊषर = बंजर। सस्य = फसला उड्डीयन्ते = उड़ते हैं। प्रसार्य = फैलाकर। तोयार्थम् = पानी के लिए। इतस्ततः = इधर-उधर उदकं = जल के पायं-पायं = पी-पीकर। नदन्तः = शब्द करते हुए। कूर्दमानाः = कूदते हुए, दौड़ते हुए। परिभ्रमन्ति = चारों ओर घूमते हैं।

प्रसग प्रस्तुत गद्यांश में पंचवर्षीय योजनाओं से हुए कुल लाभों का वर्णन किया गया है।

अनुवाद इस प्रकार चिकित्सा के क्षेत्र में भी बड़ी प्रगति हुई है। तपेदिक, चेचक, मलेरिया आदि रोगों का देश से प्रायः बहिष्कार हो गया है। एक्स-रे (शरीर के) से भीतरी रोगों के स्थानों का चित्र सामने आ जाता है, जिससे चिकित्सा में अत्यधिक सुविधा हो गयी है। सब जगह (UPBoardSolutions.com) बाँधों के बनाने से, नहरों के प्रवाहित करने से भूमि उपजाऊ हो गयी है। बंजर भूमि भी धान्य-सम्पन्न हो गयी है। जल के साधनों से प्रत्येक गाँव में, प्रत्येक उद्यान में, प्रत्येक खेत में जल ही दिखाई देता है। सब जगह जल-पक्षी और दूसरे पक्षी कलरव करते हुए उड़ते हैं। जंगली जीव, जो गर्मी के दिनों में जीभ फैलाकर जल के लिए इधर-उधर दौड़ते-फिरते थे, वे
आज जल पी-पीकर शोर करते कूदते हुए चारों ओर घूमते हैं।

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(6)
प्रतिग्रामं विद्युत प्रकाशेन, तारकितं नभः निशि भूतलोपरि आयातमिव प्रतीयते। अद्य रेलगन्त्रीणां गतिषु कियती वृद्धिः जाता। रेलमार्गाणां विस्तारः, रेलगन्त्रीणां सङ्ख्यासु वृद्धिः, धूम्रजनानां स्थानेषु डीजलतैलेजनानां विस्तारः, विद्युतच्चालितानां रेलगन्त्रीणां सञ्चारेण समयस्य दुरुपयोगात् संरक्षणं दृष्ट्वा मनः अतीव प्रसन्नं भवति। अस्तु आसु योजनासु विद्यमानासु सत्स्वपि प्रतिजनं यावान् लाभः अपेक्षितः आसीत् तावांल्लाभो न जातः। कारणं जनसङ्ख्यायाः तीव्रगत्या वृद्धिरेव। चिकित्सासुविधासु वृद्धि गतीसु यत्र मरणप्रतिशते हासः तावान् जन्मप्रतिशते हासो न जातः। जननप्रतिरोधज्ञानं विना जनसङ्ख्यासु न्यूनता नायास्यति। एतत् तदैव सम्भाव्यते यदा शिक्षायाः प्रसारो भवेत्, साक्षरता वर्धेत एतदर्थं सर्वकारः जनसङ्ख्याशिक्षायाः प्रसाराय शिक्षणं चालयति। इयं शिक्षा परिवारनियोजनात् भिन्नैव।

प्रतिग्रामं विद्युतां ………………………………………. तीव्रगत्या वृद्धिरेव। [2011, 14]

शब्दार्थ तारकितम् =तारों से भरा। भूतलोपरि =धरती पर कियती = कितनी। धूमेजनानां = धुएँ के इंजनों का। रेलगन्त्रीणां = रेलगाड़ियों की। सत्स्वपि = होने पर भी। तावांल्लाभः = उतना लाभ। ह्रासः = कमी। जननप्रतिरोधज्ञानम् = जन्म की रोकथाम का ज्ञान नायास्यति = नहीं आएगी। सर्वकारः = सरकार

प्रसंग. प्रस्तुत गद्यांश में बताया गया है कि योजनाओं से अनेक लाभों के होते हुए भी जनसंख्या की वृद्धि के कारण उतना लाभ नहीं हो पाया है।

अनुवाद प्रत्येक ग्राम में बिजलियों के प्रकाश से तारों से भरा आकाश रात्रि में पृथ्वी के ऊपर आया-सा प्रतीत होता है। आज रेलगाड़ियों की गति में कितनी वृद्धि हो गयी है। रेलमार्गों के विस्तार, रेलगाड़ियों की । संख्या में वृद्धि, धुएँ के इंजनों के स्थान पर डीजल-तेल से चलने (UPBoardSolutions.com) वाले इंजनों के विस्तार, बिजली से चलने वाली रेलगाड़ियों के चलने से समय के दुरुपयोग से बचत को देखकर मन अत्यन्त प्रसन्न होता है। फिर भी, इन योजनाओं के होने पर भी प्रत्येक व्यक्ति को जितने लाभ की अपेक्षा थी, उतना लाभ नहीं हुआ। (इसमें)। जनसंख्या की तीव्रगति से वृद्धि ही कारण है। चिकित्सा की सुविधाओं के बढ़ जाने पर जहाँ मृत्यु के प्रतिशत में कमी हुई है, उतनी जन्म के प्रतिशत में कमी नहीं हुई। जन्म की रोकथाम के ज्ञान के बिना जनसंख्या में कमी नहीं आएगी। यह तभी हो सकता है, जब शिक्षा का प्रसार हो, साक्षरता बढ़े। इसके लिए सरकार जनसंख्या की शिक्षा के प्रसार के लिए शिक्षण चला रही है। यह शिक्षा परिवार-नियोजन से भिन्न ही है।

(7)
शिक्षया न केवलं व्यक्तेः विकासः, वरं सामाजिकी चेतनापि जागर्ति। परिस्थितिवशात् आचारविचारव्यवहारेषु अपि बालकेषु, प्रौढेषु परिवर्तनमायाति। शिक्षितसमुदाये जनसङ्ख्यावर्धनावरोधेषु जागर्तिः दृश्यते। दीनेषु, निरक्षरेषु शिशूत्पादनमेव लक्ष्यं प्रतीयते। तेषां भरणे पोषणे च ध्यानं नास्ति। प्रतिविद्यालयमस्याः जनशिक्षायोजनायाः प्रसारेण सर्वासां योजनानां साफल्यमवश्यं भविष्यति नात्र सन्देहः।

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शब्दार्थ जागर्ति = जागती है। जनसङ्ख्यावर्धनावरोधेषु = जनसंख्या की वृद्धि को रोकने में। शिशूत्पादनम् एव = बच्चे पैदा करना ही। प्रतीयते = प्रतीत होता है। नात्र = नहीं, इसमें।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में जनसंख्या की शिक्षा देने के लाभ को बताया गया है।

अनुवाद शिक्षा से केवल व्यक्ति का विकास ही नहीं होता है, वरन् सामाजिक चेतना भी जागती है। परिस्थितियों के कारण बालकों और प्रौढ़ों में आचार, विचार और व्यवहार में परिवर्तन आता है। शिक्षित वर्ग में जनसंख्या को बढ़ने से रोकने में जागरूकता दिखाई पड़ती है। दोनों और अनपढ़ों में बच्चे उत्पन्न करना ही लक्ष्य प्रतीत होता है। उनके भरण-पोषण पर ध्यान नहीं है। प्रत्येक विद्यालय में इस जनशिक्षा की योजना के प्रसार से सभी योजनाओं की सफलता अवश्य होगी, इसमें सन्देह नहीं है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य बताइए। [2006,08, 12]
उत्तर :
सन् 1947 ई० में देश के स्वतन्त्र होने और सार्वभौमिक सत्ता से सम्पन्न होने के बाद देश के आर्थिक और सामाजिक रूप से उत्थान के लिए एक योजना-समिति बनायी गयी। इस योजना-समिति द्वारा देश के सर्वाधिक उन्नयन हेतु पाँच वर्षों में हो सकने योग्य कार्यों को जो (UPBoardSolutions.com)  विवरण प्रकाशित किया गया, वही पंचवर्षीय योजना के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

प्रश्न 2.
पंचवर्षीय योजनाओं से होने वाले लाभों (महत्त्व) को संक्षेप में लिखिए। [2006,07,09]
उत्तर :
चवर्षीय योजनाओं से हमारे देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि, महँगाई की रोकथाम, दैनिक उपयोग की वस्तुओं की प्राप्ति में सुगमता, छोटे-बड़े उद्योगों की ओर ध्यानाकर्षण, खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता, परिवार नियोजन, नहरों का निर्माण और नलकूप लगाना, गाँवों में बिजली का प्रबन्ध, वृक्षारोपण आदि अनेक लाभ हुए। चिकित्सा के क्षेत्र में यक्ष्मा, चेचक, मलेरिया आदि संक्रामक और भयानक रोगों से पूर्णतया छुटकारा मिला। एक्स-रे से भीतरी रोगों का पता लगाना सम्भव हुआ। नहरों के निर्माण से भूमि उर्वरा व धान्यसम्पन्न हुई और मानवों व पशु-पक्षियों को पेयजल प्राप्त हुआ। रेलमार्गों के विस्तार, उनकी गति में वृद्धि तथा डीजल इंजनों के प्रयोग से आवागमन में लगने वाले समय की बचत हुई।

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प्रश्न 3.
प्रथम पंचवर्षीय योजना में किसका सर्वाधिक महत्त्व स्वीकार किया गया? [2008]
उत्तर :
प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि की उन्नति को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया। इसके अन्तर्गत 135 योजनाएँ निहित थीं, जिनमें भाखड़ा-नांगल, हीराकुड, दामोदर, तुंगभद्रा, मयूराक्षी और रिहन्द बाँधों की योजनाएँ बनाई गयीं। इन योजनाओं में कृषि-सिंचन, जल-प्रवाह नियन्त्रण (UPBoardSolutions.com) तथा विद्युत-शक्ति के उत्पादन के क्षेत्र में पर्याप्त लाभ हुए।

प्रश्न 4.
बाँधों के निर्माण से देश को क्या लाभ हुए? [2008, 10]
उत्तरं :
बाँधों के निर्माण से देश को खेतों की सिंचाई के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध हुआ, जल के प्रवाह पर नियन्त्रण स्थापित किया गया तथा विद्युत-शक्ति के उत्पादन के क्षेत्र में अत्यधिक वृद्धि हुई। इन सभी से देश को अनेक लाभ हुए।

प्रश्न 5.
प्रथम पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल लिखिए। [2007,15]
उत्तर :
प्रथम पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल है-1951-56

प्रश्न 6.
परतन्त्रता काल में विदेशियों द्वारा भारत में किस प्रयोजन के लिए कार्य किये गये? [2009]
उत्तर :
परतन्त्रता काल में विदेशियों द्वारा भारत में समस्त कार्य अपने हित की दृष्टि से किये गये। भारत के हित की दृष्टि से कोई कार्य नहीं किया गया।

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प्रश्न 7.
क्या पंचवर्षीय योजनाओं से देश को अपेक्षित लाभ हुआ?
या
योजनाओं के क्रियान्वयन से जितना लाभ अपेक्षित था, उतना क्यों नहीं प्राप्त हो सका?
उत्तर :
पंचवर्षीय योजनाओं से देश और प्रत्येक व्यक्ति को जितने लाभ की अपेक्षा थी, उतना लाभ नहीं हुआ। इसका कारण जनसंख्या में हुई तीव्रगति से वृद्धि है। जब तक जनसंख्या में अपेक्षित कमी नहीं आएगी तब तक पंचवर्षीय योजनाओं से उल्लेखनीय सफलता नहीं मिल सकती। सरकार इसके लिए सतत प्रयत्नशील है।

प्रश्न 8.
भारत में पंचवर्षीय योजनाएँ किस प्रकार आरम्भ हुईं? या भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की आवश्यकता क्यों पड़ीं?
उत्तर :
भारत में शताधिक वर्षों तक चले अंग्रेजी शासन ने भारत के कल्याण और उन्नति की बात नहीं सोची। उन्होंने भारत में जितने भी कार्य किये, वे अपनी ही भलाई के लिए किये न कि भारतीयों की भलाई के लिए। इसी कारण 15 अगस्त, 1947 को भारत के स्वतन्त्र होने पर तत्कालीन भारतीय नेतृत्व के सामने अनेक समस्याएँ खड़ी हो गयीं। स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू रूस की साम्यवादी व्यवस्था से बहुत प्रभावित थे। वे यह जानते (UPBoardSolutions.com) थे कि रूस में कम्युनिस्टों को शासन प्रारम्भ होने के बाद पंचवर्षीय योजनाएँ बनायी गयी थीं और यह निश्चित किया गया था कि पाँच वर्षों में उन्हें कौन-कौन से काम करने हैं। रूस के ढंग पर ही नेहरू जी ने भी भारत में पंचवर्षीय योजनाएँ प्रारम्भ कीं और इन योजनाओं के लिए एक समिति बना दी गयी। समिति यह निश्चय करती थी कि किस पंचवर्षीय योजना में कौन-से कार्य किये जाएँ और किन पर कितना व्यय किया जाए। इन्हीं पंचवर्षीय योजनाओं ने भारत की कायाकल्प करे। दिया।

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प्रश्न 9.
शिक्षा के क्या लाभ हैं?
उत्तर :
[ संकेत ‘पाठ-सारांश’ के उपशीर्षक “शिक्षा से लाभ” को अपने शब्दों में लिखें।]

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