Class 10 Sanskrit Chapter 7 UP Board Solutions वयं भारतीयाः Question Answer

UP Board Class 10 Sanskrit Chapter 7 Vayam Bhartiya Question Answer (कथा – नाटक कौमुदी)

कक्षा 10 संस्कृत पाठ 7 हिंदी अनुवाद वयं भारतीयाः के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 7 वयं भारतीयाः (कथा – नाटक कौमुदी)

परिचय

सभी धर्म मानव की एकता में विश्वास रखते हैं और सभी धर्मों को प्राप्तव्य भी एक है। सत्य, दया, परोपकार, शुद्धता आदि बातों का उपदेश सभी धर्मों में दिया गया है। कोई भी धर्म सदाचार और नैतिकता का विरोध नहीं करता। धर्म के मूल-तत्त्व को न समझने वाले ही विरोध और द्वेष को जन्म देते हैं। भारत तो “वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना में विश्वास रखता है। हम सभी को यह समझना चाहिए कि हम हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई बाद में हैं, (UPBoardSolutions.com) सर्वप्रथम हम भारतीय हैं। प्रस्तुत नाटक बड़े रोचक ढंग से ‘राष्ट्रीय एकता’ के सन्देश का उद्घोष करते हुए वर्ण-सम्प्रदाय के भेदभाव को मिटाकर एक होकर रहने की प्रेरणा देता है। इसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्मों के पात्र हैं, जिनमें प्रारम्भ में साम्प्रदायिक भेदभाव की भावना व्याप्त है, किन्तु अन्त में सभी एक होकर भाईचारे एवं सद्भाव से रहने का संकल्प लेते हैं।

UP Board Solutions

पाठ-सारांश

अध्यापक का कक्षा में प्रवेश – नाटक का प्रारम्भ कक्षा में अध्यापक के प्रवेश से होता है। अध्यापक के कक्षा में पहुंचने पर सभी छात्र उनके सम्मान में उठ खड़े होते हैं। तत्पश्चात् अध्यापक़ महोदय सामान्य ज्ञान सम्बन्धी प्रश्न पूछने के लिए कहकर आफताब से गौतम बुद्ध के चरित्र के विषय में प्रश्न पूछते हैं।

आफताब द्वारा उत्तर देना – आफताब उत्तर देता है कि महात्मा बुद्ध बचपन से ही चिन्तनशील और परम दयालु थे। वे सदैव संसार को दु:खों से मुक्त कराने की सोचा करते थे। महात्मा बुद्ध ने सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह आदि का मनुष्यों को उपदेश दिया और समाज में व्याप्त धार्मिक पाखण्डों का खुलकर खण्डन किया।

अध्यापक का जसबिन्दर एवं दीपक से प्रश्न पूछना – इसके बाद अध्यापक जसबिन्दर से ईसा मसीह के उपदेशों के विषय में पूछते हैं। जसबिन्दर उत्तर देता है कि ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह ने। दु:खियों के दु:खों को दूर करने, निर्धनों का कल्याण करने और रोगियों की (UPBoardSolutions.com) पीड़ा हरने के लिए संसार को उपदेश दिया। मानव-सेवा के द्वारा ही ईश्वर का साक्षात्कार किया जा सकता है, यही उनके उपदेश का मूल सार है। तत्पश्चात् अध्यापक ने दीपक से गुरु गोविन्द सिंह के विषय में प्रश्न किया।

‘दीपक सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह के विषय में बताता हुआ कहता है कि गुरु गोविन्द सिंह ने जन्मभूमि की रक्षा के लिए, देशभक्ति की भावना से आत्मोत्सर्ग कर दिया।

UP Board Solutions

मध्यावकाश में सबका भोजन करना – इसके बाद मध्यावकाश हो जाता है और सभी छात्र एक स्थान पर बैठकर खाना खाते हैं। दीपक कहीं चला जाता है और जसबिन्दर कहता है कि उसके पास भोजन के लिए कुछ भी नहीं है। पीटर अपना भोजन जसबिन्दर को दे देता है। कुछ दिनों के बाद बातचीत के दौरान जसबिन्दर के यह कहने पर कि उसके पास परीक्षा-फीस जमा करने के लिए पैसे नहीं हैं, पीटर उसका परीक्षा शुल्क भी जमा करता है।

आफताब का दीपक को रक्त देना – कुछ दिनों के बाद दीपक पर बम फेंका जाता है। घायलावस्था में चिरंजीव चिकित्सालय में वह मृत्यु से संघर्ष कर रहा होता है। उसके जीवन की रक्षा के लिए रक्त की। आवश्यकता है। दीपक के वर्ग का रक्त न तो अस्पताल से मिल पाता है और न ही उसके घर के किसी सदस्य से। ऐसी विषम परिस्थिति में आफताब स्वेच्छया अपने रक्त का परीक्षण कराता है। उसका रक्त दीपक के रक्त से मिल जाता है और वह रक्तदान करके उसकी प्राणरक्षा करता है।

सद्भाव का उदय – दीपक जो कभी जातिगत भेदभाव में विश्वास करता था, इस दुर्घटना से उसकी आँखें खुल जाती हैं और वह सभी भेदभाव भुलाकर सबको भाई के समान मानने लगता है। सभी लोग ईद, होली इत्यादि त्योहार परस्पर मिलकर बड़े सौहार्द के साथ मनाते हैं। दीपक के पिता के इस सन्देश के साथ नाटक का पटाक्षेप हो जाता है कि विभिन्न धर्मों के मार्ग भिन्न-भिन्न हैं, किन्तु सभी का गन्तव्य एक ही है। सबकी शिराओं में एक समान रक्त (UPBoardSolutions.com) प्रवाहित है। ईश्वर सभी व्यक्तियों के हृदय में निवास करता है।

प्रमुख कथ्य – इस नाटक को प्रमुख कथ्य जात-पाँत के भेदभाव को समाप्त कर मानवीय धर्म की स्थापना करना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही नाटक में दीपक को आरम्भ में जात-पाँत का पोषक दिखाया गया है, किन्तु दुर्घटनाग्रस्त होने पर जब आफताब अपने रक्तदान द्वारा उसकी प्राणरक्षा करता है तो उसकी विचारधारा में परिवर्तन हो जाता है और वह सर्वधर्म समभाव में अपनी आस्था व्यक्त करती है।

UP Board Solutions

चरित्र-चित्रण

आफताब [2009, 10, 14]

परिचय आफताब मुस्लिम छात्र है, किन्तु उसमें धार्मिक कट्टरता नहीं है। उसका दृष्टिकोण बड़ा व्यापक है। वह सभी धर्मों को एकसमान मानने वाली है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. राष्ट्रीय एकता का पोषक – आफताब में जाति-पाँति की भावना लेशमात्र भी नहीं है, उसके हृदय में तो सर्वधर्म समभाव की पवित्र विचारधारा प्रवहमान है। अपने धर्म के अतिरिक्त उसे अन्य धर्मों का भी पर्याप्त ज्ञान है। अध्यापक के पूछने पर वह महात्मा बुद्ध के प्रमुख उपदेशों का उल्लेख करता है। अन्य धर्म का होते हुए भी वह दीपक को अपना रक्त देकर उसकी प्राणरक्षा करता है तथा होली के अवसर पर वह दीपक के घर जाता है।

2. श्रेष्ठ मित्र – आफताब सच्चा मित्र है। उसकी सच्ची मित्रता का उद्घाटन उस समय होता है, जब उसे ज्ञात होता है कि दीपक बम विस्फोट में घायल हो गया है। वह उसे देखने के लिए व्याकुल हो जाता है और चिकित्सालय जाकर रक्तदान करके अपने मित्र दीपक (UPBoardSolutions.com) की प्राणरक्षा करता है। इदानीं प्राणानां मोहः नैव कर्तव्यः।” उसके इस वाक्य से उसकी निश्छल मैत्री की पवित्र धारा निस्सृत हुई प्रतीत होती है।

3. उदारमना – सम्पूर्ण नाट्यांश में आफताब को उदारमना छात्र के रूप में चित्रित किया गया है। सर्वप्रथम वह भूखे जसबिन्दर को सान्त्वना देता हुआ दिखाई देता है, फिर चिकित्सालय में दीपक के माता-पिता को ढाढ़स बँधाता हुआ और दीपक के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हुआ दिखलाई पड़ता है। वह होली के अवसर पर दीपक के घर जाकर होली की बधाई भी देता है। यह सब क्रिया-कलाप उसकी उदारता का स्वयं व्याख्यान करते प्रतीत होते हैं।

UP Board Solutions

4. बुद्धिमान् – आफताब बुद्धिमान् छात्र है। महात्मा गौतम बुद्ध के विषय में अध्यापक द्वारा पूछने पर वह सन्तोषजनक उत्तर देता है। सच्ची मित्रता के विषय में दीपक के पिता से कहे गये उसके शब्द तथा होलिकोत्सव पर ईद तथा होली के महत्त्व पर उसके द्वारा डाला गया प्रकाश उसके बुद्धिमान् होने की पुष्टि करते हैं।

निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि आफताब सभी मानवीय गुणों से समन्वित, राष्ट्रीय एकता का पोषक, उदारवादी छात्र है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रोन्नति के लिए आफताब जैसे नवयुवकों की देश को महती आवश्यकता है।

दीपक [2008, 10, 11, 14, 15]

परिचय दीपक एक हिन्दू छात्र है। गुरु गोविन्द सिंह के गुणों से प्रभावित होते हुए भी उसमें जातिवाद की भावना विद्यमान है। उसकी प्रमुख चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. जातिवाद का पोषक – यद्यपि दीपक सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह से अत्यधिक प्रभावित है, तथापि उसके हृदय में गोविन्द सिंह के उपदेशों की मानवीय सेवा-भावना विद्यमान नहीं है। वह हिन्दू, मुसलमान को पृथक्-पृथक् रखकर देखता है। मध्यावकाश (UPBoardSolutions.com) में आफताब के साथ बैठकर भोजन न करके वह अपनी जातिगत भावना को सार्वजनिक कर देता है।

2. परिवर्तित विचारधारा वाला – दीपक प्रारम्भ में संकीर्ण जातिगत भावना का पोषक प्रतीत होता है, किन्तु आफताब द्वारा अपनी प्राणरक्षा किये जाने पर उसकी विचारधारा परिवर्तित हो जाती है और वह जातिवाद की संकीर्ण भावना से ऊपर उठकर सभी धर्मों को एक समान मानने लगता है। कभी वह आफताब के साथ बैठकर भोजन नहीं करना चाहता था, किन्तु कालान्तर में वह उसका आलिंगन करता है, ईद के त्योहार पर उसके घर जाकर उसे ईद की बधाई देता है और होली के त्योहार पर आफताब को अपने घर बुलाकर उसका पर्याप्त आदर-सत्कार करता है।

3. शिष्टाचारी – यद्यपि दीपक में जाति-पाँति की हीन भावना विद्यमान है, किन्तु वह अशिष्ट नहीं है। वह किसी के साथ अशिष्टता का व्यवहार नहीं करता। घायलावस्था में भी उठकर वह आफताब का स्वागत करता है। आफताब के रक्तदान द्वारा स्वस्थ होने पर आफताब को साधुवाद देता हुआ वह उसे सच्चा मित्र मान लेता है। होली के अवसर पर अपने घर पर वह आफताब का जोरदार स्वागत करता है।

UP Board Solutions

4. बुद्धिमान् – दीपक बुद्धिमान् छात्र है। उसे सभी धर्मों का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त है। कक्षा में अध्यापक जी द्वारा पूछने पर वह गुरु गोविन्द सिंह के आत्मोत्सर्ग पर प्रकाश डालता है तथा ईद के अवसर पर आफताब के यहाँ अपने मित्रों के मध्य वह ईद के महत्त्व को बताता हुआ भाईचारे का सन्देश देता है।

प्रस्तुत नाट्यांश में दीपक की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। उसके माध्यम से यह दर्शाने का प्रयत्न किया गया है कि जातिवाद जैसी संकीर्ण मान्यताओं के द्वारा न तो व्यक्ति का कोई उपकार हो सकता है और न ही राष्ट्र का। हमें जातिगत भेदभाव भुलाकर प्रेम से रहना चाहिए, यह सन्देश (UPBoardSolutions.com) भी उसी के माध्यम से सभी लोगों तक पहुँचता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रामः कस्य पुत्रः आसीत्? (2015)
उत्तर :
रामः दशरथस्य पुत्रः आसीत्।

प्रश्न 2.
जनाः दशरथपुत्रं रामं कस्य प्रतीकं मन्यन्ते? (2015)
उत्तर :
जनाः दशरथपुत्रं रामं धर्मस्य मर्यादायाः त्यागस्य च प्रतीकं मन्यन्ते।

प्रश्न 3.
विजयादशमी महोत्सवः किं शिक्षयति?
उत्तर :
विजयादशमी महोत्सव: शिक्षयति यत् सदा धर्मस्य विजय: अधर्मस्य च पराजयः भवति।

UP Board Solutions

प्रश्न 4.
गुरुगोविन्दसिंहः किमर्थं पूज्यः? [2009, 11, 14]
उत्तर :
गुरुगोविन्दसिंह: जन्मभूमेः रक्षार्थं देशभक्तिभावनया आत्मोत्सर्गम् अकरोत्, अत: पूज्यः।

प्रश्न 5.
ईसामसीहः मानवान् किमुपादिशत्?
उत्तर :
ईसीमसीह: आर्तजनानाम् आर्तिहरणाय, (UPBoardSolutions.com) निर्धनजनानां कल्याणाय, रोग-पीडितानां च परित्राणाय उपादिशत्।

प्रश्न 6.
ईदमहोत्सवे जनाः परस्परं किं कुर्वन्ति? [2006]
उत्तर :
ईदमहोत्सवे जनाः द्वेषभावं विहाय परस्परम् आलिङ्गन्ति।

प्रश्न 7.
सन्मित्रलक्षणं किमस्ति? [2008,09, 10, 15]
उत्तर :
सन्मित्रम् आपद्गतं न जहाति तथा काले साहाय्यं करोति।

प्रश्न 8.
आफताबः दीपकस्य जीवनरक्षार्थं किमकरोत्?
उत्तर :
आफताबः दीपकस्य जीवनरक्षार्थं रक्तदानम् अकरोत्।

UP Board Solutions

प्रश्न 9.
स्वस्थे सति दीपकः आफताब किम अकथयत्? (2015)
उत्तर :
स्वस्थे सति दीपक: आफताबस्य आचरणं श्लाघयित्वा (UPBoardSolutions.com) साधुवादम् अकथयत्, स्वकीयं सन्मित्रं च अमन्यत्।

प्रश्न 10.
गुरुः गोविन्दसिंहः कः आसीत्
उत्तर :
गुरुः गोविन्दसिंह: सिखानां दशमो गुरुः आसीत्।

प्रश्न 11.
जसविन्दरः किं कथयित्वा रोदिति?
उत्तर :
“मम पाश्वें भोजनाय किञ्चिद् अपि न अस्ति। अहं निर्धनः क्षुत्प्रतीडितः अस्ति।” इति कथयित्वा रोदिति।

प्रश्न 12.
दीपकाय स्वरक्तं कः दत्तवान्?
उत्तर :
दीपकाय स्वरक्तम् आफताब: दत्तवान्।

प्रश्न 13.
कस्य गृहे ईदमहोत्सवः आसीत्?
उत्तर :
आफताबस्य गृहे ईदमहोत्सवः आसीत्।

UP Board Solutions

प्रश्न 14.
आफताबः होलिकायाः साधुवादं दातुं कस्य गृहं गच्छति?
उत्तर :
आफताब: होलिकायाः साधुवादं दातुं (UPBoardSolutions.com) दीपकस्य गृहं गच्छति।

प्रश्न 15.
ईश्वरः कुत्र तिष्ठति?
उत्तर :
ईश्वरः सर्वभूतानां हृदये तिष्ठति।

प्रश्न 16.
ईदमहोत्सवं जनेषु किं वर्धयति? [2014]
उत्तर :
ईदमहोत्सवं जनेषु भ्रातृभावं वर्धयति।

प्रश्न 17.
होलिकोत्सवः जनेषु किं किं जनयति? [2014]
उत्तर :
होलिकोत्सवः जनेषु प्रेमभावं सद्भावं च जनयति।

बहुविकल्पीय प्रश्न

अधोलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर-रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए –
[संकेत – काले अक्षरों में छपे शब्द शुद्ध विकल्प हैं।]

UP Board Solutions

1. ‘वयं भारतीयः’ नामक पाठ की मूल भावना कौन-सी नहीं है?

(क) राष्ट्रीय एकता
(ख) सम्प्रदायवाद
(ग) धार्मिक एकता।
(घ) सर्वधर्म समन्वय

2. पंचशील सिद्धान्त का उपदेश किसने दिया?

(क) गौतम बुद्धने
(ख) श्रीराम ने
(ग) ईसा मसीह ने
(घ) गुरु गोविन्द सिंह ने

3. पंचशील सिद्धान्त में क्या सम्मिलित नहीं किया गया है?

(क) अपरिग्रह
(ख) ब्रह्मचर्य
(ग) अहिंसा
(घ) सर्वधर्म समभाव

4. “विरोधो विरोधं जनयति।”वाक्यस्य वक्ताः कः अस्ति?

(क) पीटरः
(ख) आफताबः
(ग) जसविन्दरः
(घ) दीपकः

5. देशभक्ति की भावना से किसने आत्मोत्सर्ग किया?

(क) मुहम्मद साहब ने
(ख) गुरु गोविन्दसिंह ने
(ग) बुद्ध ने
(घ) ईसा मसीह ने

UP Board Solutions

6. “अहं तव परीक्षाशुल्कं दास्यामि।” में ‘तव’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त है?

(क) पीटर’ के लिए।
(ख) “आफताब’ के लिए
(ग) ‘दीपक’ के लिए
(घ) ‘जसबिन्दर’ के लिए

7. “धैर्यं न त्याज्यं विधुरेऽपि काले।” वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?

(क) आफताबः
(ख) जसविन्दरः
(ग) पीटरः
(घ) अध्यापकः

8. “त्वं वस्तुतः मम सन्मित्रमसि।”कथन में ‘मम’ से संकेतित व्यक्ति कौन है?

(क) आफताब
(ख) दीपक
(ग) पीटर
(घ) जसविन्दर

9. “ईश्वर सभी प्राणियों के हृदय में रहता है।” यह उपदेश किस ग्रन्थ से उधृत है?

(क) ‘रामायण’ से
(ख) ऋग्वेद’ से
(ग) ‘गीता’ से
(घ) ‘महाभारत’

UP Board Solutions

10. सेईदमहोत्सवे जनाः …………….. ।”वाक्य में रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी [2005,08,09]

(क) न्यूनं खादन्ति’ से
(ख) ‘शोभनभावनया परस्परमालिङ्गन्ति’ से
(ग) “कोलाहलं कुर्वन्ति’ से
(घ) मौनं भवन्ति’ से

11. “परीक्षाशुल्कप्रदानाय मम पाश्र्वे …………….. नास्ति।” वाक्य में रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी –

(क) फलं’ से
(ख) ‘अनं’ से
(ग) “पुस्तकं’ से
(घ) “भोजनं’ से

12. ………………….. ब्राल्यादेवअतिचिन्तनशीलः, परमकारुणिकश्चासीद्?”कथन किससे सम्बन्धित है?

(क) महात्मा बुद्धः
(ख) महाराणा प्रतापः
(ग) गुरुगोविन्दसिंह:
(घ) ईसामसीहः

13. “सिखधर्मस्य दशमो गुरुः ………………. आसीत्।”वाक्य में रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी

(क) “गुरुनानकः’ से
(ख) “गुरुरामदासः’ से
(ग) “गुरुतेगबहादुरः’ से
(घ) “गुरुगोविन्दसिंहः’ से

14. “किमिदम्। हन्त दीपकोपरि बम्बप्रक्षेपः।” वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?

(क) अध्यापकः
(ख) पीटरः
(ग) जसबिन्दरः
(घ) आफताबः

15. “आफताबः होलिकायाः साधुवादं दातुं : गृहं गच्छति।” में रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए उचित पद है –

(क) जसबिन्दरस्य
(ख) अध्यापकस्य
(ग) दीपकस्य
(घ) पीटरस्य।

UP Board Solutions

16. “संसारस्य सर्वेऽपि मानवाः समानाः।” वाक्यस्य वक्ताः कस्य पिता अस्ति –

(क) आफताबस्य
(ख) दीपकस्य
(ग) जसबिन्दरस्य
(घ) पीटरस्य

17. दीपकस्य जीवनरक्षा ……………… अकरोत्। [2009,10]

(क) जसविन्दरः
(ख) दीपकस्य पिता
(ग) आफताबः
(घ) रमेन्द्रः

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 7 are helpful to complete your homework.
If you have any doubts, please comment below. UP Board Solutions try to provide online tutoring for you

Class 9 Sanskrit Chapter 11 UP Board Solutions परमवीरः अब्दुलहमीदः Question Answer

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 11 परमवीरः अब्दुलहमीदः (गद्य – भारती) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 11 परमवीरः अब्दुलहमीदः (गद्य – भारती).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 11
Chapter Name परमवीरः अब्दुलहमीदः (गद्य – भारती)
Number of Questions Solved 3
Category UP Board Solutions

UP Board Class 9 Sanskrit Chapter 11 Param Vir Abdul Hamid Question Answer (गद्य – भारती)

कक्षा 9 संस्कृत पाठ 11 हिंदी अनुवाद परमवीरः अब्दुलहमीदः के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

पाठ-सारांश

यह भारतभूमि विद्वानों, देशभक्तों और वीरों की जननी है। आधुनिक समय में भी ऐसे अनेक वीर हुए हैं, जिन्होंने स्वतन्त्रता के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी। चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ आदि ऐसे ही देशभक्त हैं। दूसरी ओर ऐसे भी अनेक देशभक्त वीर हैं, जिन्होंने देश की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए शत्रुओं का मुकाबला करते हुए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। ऐसे ही देशभक्त परमवीरों में (UPBoardSolutions.com) अब्दुल हमीद का नाम बड़ी श्रद्धा से याद किया जाता है, जिन्होंने सन् 1965 ई० में भारत-पाकिस्तान युद्ध में वीरतापूर्वक लड़ते हुए वीरगति पायी थी!

जन्म एवं शिक्षा-वीर हमीद का जन्म सन् 1933 ई० में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धुमआपुर ग्राम में एक साधारण मुस्लिम परिवार में हुआ था। बचपन से ही पहलवानी करने और लाठी चलाने में इनकी रुचि थी। ये पढ़ने की अपेक्षा क्रीड़ा-अभ्यास को अधिक पसन्द करते थे। बार-बार अभ्यास करके इन्होंने अचूक निशाना लगाना सीख लिया था। एक बार इन्होंने रात्रि में उल्लू की आवाज सुनकर और उस पर निशाना लगाकर उसे मार गिराया था। उसी समय इन्होंने सैनिक बनकर मातृभूमि की रक्षा करने का (UPBoardSolutions.com) दृढ़-संकल्प कर लिया। 7 दिसम्बर, सन् 1954 ई० में इन्होंने सेना में प्रवेश लिया। ‘ग्रेवोडियर्स रेजीमेंटल प्रशिक्षण केन्द्र में प्रशिक्षण प्राप्त करके ये सैनिक हो गये और छ: वर्ष के भीतर ही लान्सनायक के पद पर नियुक्त होकर वर्षभर में हवलदार हो गये।

UP Board Solutions

युद्ध में सैनिक रूप में नियुक्ति-चीन के आक्रमण के समय इनकी नियुक्ति नेफा क्षेत्र में हुई थी। यहीं इन्हें प्रथम बार युद्ध का सामना करना पड़ा। अपनी कर्तव्यनिष्ठा, शौर्य और साहस के कारण इन्होंने सैनिक अधिकारियों के हृदय पर अपनी धाक जमा ली। सन् 1965 ई० में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। उस समय इन्हें लाहौर क्षेत्र में ‘कसूर’ स्थान पर तैनात किया गया था। उस युद्ध में पाकिस्तान के पास अमेरिका के दुभेद्य और दूरमारक आधुनिक पैटन टैंक थे। भारत अपने पुराने पैटन टैंकों को लेकर ही युद्ध कर रहा था, लेकिन उसके सैनिकों का मनोबल ऊँचा था।

अप्रतिम शौर्य-प्रदर्शन–अब्दुल हमीद अपने दिव्य उत्साह से युद्ध-क्षेत्र में गोले फेंक रहे थे। वे अपनी जीप में चढ़कर पाकिस्तानी टैंकों पर गोलों की बौछार करते हुए पाकिस्तानी सेना को रोक रहे थे। उनकी जीप को लक्ष्य बनाकर पाकिस्तानी टैंक उन पर गोला फेंकने ही वाला था कि अब्दुल हमीद ने विद्युत गति से उछलकर और हथगोला फेंककर उस टैंक को नष्ट कर दिया। यह देखकर दूसरे (UPBoardSolutions.com) पाकिस्तानी टैंक ने आक्रमण कर दिया। उसे भी अब्दुल हमद ने हथगोले से ध्वस्त कर दिया, लेकिन दुःख है कि तीसरे पैटन टैंक से फेंके गये एक गोले से उनका प्राणान्त हो गया। उस समय उनके मुख परे मातृभूमि की रक्षा करने से उत्पन्न सन्तोष झलक रहा था।

सम्मानित-अब्दुल हमीद जिस मातृभूमि की गोद में बड़ा हुआ, उसके प्रति अपने कर्तव्य के पूरा कर धन्य हो गया। भारत सरकार ने उस परमवीर को परमवीर चक्र की उपाधि से सम्मानित किया ‘उत्तर प्रदेश सरकार ने भी उसके परिवार की बड़ी सहायता की और उसकी स्मृति को चिरस्थायी रखने के लिए उसके ग्राम का नाम ‘हमीपुर’ रख दिया।

 निश्चय ही मातृभूमि के चरणों पर भक्तिपूर्वक सिर समर्पित करने वाले, यश शरीर वाले, स्वर देवता-स्वरूप वे श्रेष्ठ वीर मनुष्य धन्य हैं।

गद्यांशों का ससन्दर्भ अनुवाद

(1) एषा शस्यश्यामला भारतभूमिर्महतां मनीषिण, विलक्षणानां विपश्चित स्वप्राणेष्वप्यनासक्तानां देशभक्तानां परमधीराणां च युद्धवीराणां जननी। आस्तां तावदस्या प्राक्तनो लोकातिक्रान्तो गरिमा। आधुनिकेऽपि काले चन्द्रशेखरभक्तसिंहरामप्रसादादिभिः बहुभिर्युवाभिरस्याः स्वातन्त्र्यस्य हेतवे स्वजीवनमपि प्रदत्तम्, अपरैश्चानेकैस्तरुणैस्तथाधिगत स्वतन्त्रतां परिरक्षितुं शत्रूणामभिमुखं सुदृढं संस्थाय तेषां विनाशं कुर्वद्भिः स्वप्राणा एवं उत्सृष्टाः।यौवनं परिगणितं, ने कुटुम्बं चिन्तितं नाप्यायुष्यं (UPBoardSolutions.com) समीहितम्। स्मारं स्मारं तेषामभिधानमद्यापि . हृदयमगाधया श्रद्धया प्लावितं सदनुभवति यद्गुणाः पूजास्थानं गुणिषु न च स्विङ्गं न च वयः। तादृशं वीराणामेवान्यतमः श्रीअब्दुलहमीदो नाम यः पञ्चषष्ट्युत्तरैकोनविंशतिशततमे (1965) ईसवीये संवत्सरे कसूरयुद्धे पाकिस्तानिभिः सैनिकैरभियुध्यन् असूनपिविहाय तेषां भारताभिमुख गतिं सम्यगुपारौत्सीत्।।

शब्दार्थ
शस्यश्यामला = फसलों से हरी-भरी।
विलक्षणानां = अनोखे, आश्चर्यजनक।
विपश्चिताम् = विद्वानों की।
अनासक्तानाम् = प्रेम न करने वाले।
आस्ताम् = रहे।
प्राक्तनः = पुराना।
लोकातिक्रान्तः = लोक का अतिक्रमण करने वाली,
अलौकिक। हेतवे = के लिए।
तथाधिगताम् = उस प्रकार प्राप्त हुई।
परिरक्षितुं = रक्षा करने के लिए।
संस्थाय = खड़े होकर।
उत्सृष्टाः = त्याग दिये।
समीहितम् = इच्छा की।
तेषामभिधानमद्यापि = उनका नाम आज भी।
प्लावितम् = सराबोर, डूबे हुए।
वयः = आयु।
सैनिकैरभियुध्यन् (सैनिकैः + अभि + युध्यन्) = सैनिकों के साथ विरोध में युद्ध करता हुआ।
असूनपि = प्राणों को भी।
उपारौत्सीत् = रोक दिया। |

सन्दर्भ
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत गद्य-भारती’ में संकलित ‘परमवीरः अब्दुलहमीदः’ शीर्षक से अवतरित है।

[संकेत-इस पाठ के शेष गद्यांशों के लिए भी यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में देश की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए आत्म-बलिदान करने वाले वीरों में अब्दुल हमीद का स्मरण किया गया है। । अनुवाद—यह धान्य से परिपूर्ण हरी-भरी भारतभूमि महान् बुद्धिमानों, विलक्षण विद्वानों, अपने प्राणों का मोह न करने वाले देशभक्तों, अत्यन्त धैर्यशालियों और युद्धवीरों की माता है। इसकी उस प्राचीन अलौकिक महिमा को रहने दें (अर्थात् उसकी तो बात ही क्या) आधुनिक समय में भी चन्द्रशेखर, भगतसिंह, रामप्रसाद आदि बहुत-से युवकों ने इसकी स्वतन्त्रता के लिए अपना जीवन भी दे दिया। दूसरे अनेक तरुणों ने उस प्रकार (कठिनाई) से प्राप्त हुई स्वतन्त्रता की रक्षा करने के लिए शत्रुओं के सामने मजबूती से खड़े रहकर (UPBoardSolutions.com) उनका विनाश करते हुए अपने प्राण भी त्याग दिये। न युवावस्था की परवाह की, न कुटुम्ब की चिन्ता की, न अधिक आयु की इच्छा की। उनके नाम को याद कर-करके आज भी हृदय अगाध श्रद्धा से भरा हुआ अच्छा अनुभव करता है कि गुणियों में गुण ही पूजा के योग्य होते हैं, लिंग और उम्र नहीं।’ उस प्रकार के वीरों में एक श्री अब्दुल हमीद का नाम है, जिसने सन् 1965 ई० में कसूर युद्ध में पाकिस्तान के सैनिकों के साथ युद्ध करते हुए प्राणों को भी त्यागकर उनकी भारत की ओर बढ़ती गति को भली-भाँति रोक दिया।

UP Board Solutions

(2) अस्य वीरपुङ्गवस्य जन्म त्रयस्त्रिशदुत्तरैकोनविंशतिशततमे (1933) ख्रीष्टाब्दे अस्माकं प्रदेशस्य गाजीपुरमण्डलस्य धुमआपुराह्वये ग्रामे अतिसाधारणे मुहम्मदीयकुटुम्बे जातम्। बाल्यादेवास्य मल्लविद्यायष्टिचालनादिषु शारीरिकबलोपचयाधायिनीषु क्रीडासु सहजेवाभिरुचिरासीत्। सैनिकगुणानात्मसात्कर्तुं दृढनिश्चयोऽसौ पौनःपुन्येन तथा अभ्यस्यति स्म यथा लक्ष्यवेधादिक्रीडास्वपि प्रावीण्यमुपागमत्। अक्षराभ्यासादधिकमस्मै क्रीडाभ्यासोऽरोचत। तदयं चतुर्थकक्षां यावदेवाधीतवान्। श्रूयते यदेकस्यां निशि (UPBoardSolutions.com) कस्यचिदूलूकस्य विरोवमेवानुसृत्य लक्ष्ये प्रहरताऽनेनासौ न्यपाति। ततः क्षणादेव चासौ सैनिको भूत्वा मातृभूमे रक्षणाय समकल्पत। सौभाग्यात्तस्यायं मनोरथश्चतुःपञ्चाशदुत्तरैकोनविंशतिशततमे (1954) वर्षे दिसम्बरमासस्य सप्तमेऽहनि पर्यपूर्यत यदासौ सेनायां प्रवेशं प्राप्तवान्। चतुर्दशमासान् यावद् राजस्थानस्य नसीराबादसैनिकशिविरे ‘ग्रेवोडियर्स रेजीमेण्टल’ प्रशिक्षणकेन्द्रे सैनिकप्रशिक्षणं प्राप्य अब्दुलहमीदः पूर्णतया सैनिकोऽभवत् षड्वर्षाभ्यन्तरे च लान्सनायकपदे न्ययुज्यते वर्षमात्रेण च हवलदारपदमाप्तवान्।

शब्दार्थ
वीरपुङ्गवस्य = श्रेष्ठ वीर को।
धुमआपुराह्वये (धुमआपुर + आह्वये) = धुमआपुर नाम के।
मुहम्मदीय कुटुम्बे = मुस्लिम वंश में।
मल्लविद्यायष्टिचालनादिषु = कुश्ती लड़ने, लाठी चलाने आदि में।
बलोपचय = बलवर्द्धक।
आत्मसात्कर्तुम् = अपनाने के लिए।
पौनः पुन्येन = बार-बार।
लक्ष्यवेध = निशाना लगाना।
प्रावीण्यम् = कुशलता।
उपागमत् = प्राप्त की।
विरावम् = शोर।
न्यपाति = गिरा दिया।
पर्यपूर्यत = पूर्ण हो गया।
न्ययुज्यत = नियुक्त कर दिया गया।
आप्तवान् = प्राप्त कर लिया।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में अब्दुल हमीद के जन्म, शिक्षा, अभिरुचि एवं सेना में भर्ती होने का वर्णन है।

अनुवान
इस श्रेष्ठ वीर का जन्म सन् 1933 ई० में हमारे प्रदेश (उत्तर प्रदेश) के गाजीपुर जिले के धुमआपुर नरक ग्राम में अत्यन्त साधारण मुस्लिम परिवार में हुआ था। बचपन से ही इसकी पहलवानी, लाठी चलाने आदि शारीरिक शक्तिवर्द्धक क्रीड़ाओं में स्वाभाविक ही लगन थी। सैनिक के गुणों को अपनाने के लिए दृढ़-निश्चय वाले उसने बार-बार इतना अभ्यास किया कि निशान लगाने आदि खेलों में भी कुशलता प्राप्त कर ली। इसे अक्षरों के अभ्यास (विद्याभ्यास) की अपेक्षा क्रीड़ा का अभ्यास अच्छा लगता था, इसलिए इसने चौथी कक्षा तक ही पढ़ाई की। सुना जाता है कि एक रात में किसी उल्लू के शोर का ही अनुसरण करके लक्ष्य पर प्रहार करते हुए इसने उसे गिरा (UPBoardSolutions.com) दिया। उस क्षण से ही उसने सैनिक बनकर मातृभूमि की रक्षा का संकल्प लिया। सौभाग्य से उसके मन की यह इच्छा सन् 1954 ई० में दिसम्बर महीने के सातवें दिन (सात तारीख को) पूर्ण हो गयी, जब उसने सेना में प्रवेश कर लिया। चौदह महीने तक राजस्थान के नसीराबाद सैनिक शिविर में ग्रेवोडियर्स रेजीमेण्ट’ नामक प्रशिक्षण केन्द्र में सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त करके अब्दुल हमीद पूर्णरूप से सैनिक हो गया और छह वर्ष के अन्दर ही लान्सनायक के पद पर नियुक्त कर दिया गया और वर्षभर में हवलदार का पद प्राप्त कर लिया।

(3) भारतसीमान्ते चीनदेशस्याक्रमणकाले श्रीअब्दुलहमीदो नेफाक्षेत्रे नियुक्त आसीत्। तत्रैवासौ युद्धस्याद्यं साक्ष्यमकरोत्। कर्तव्यनिष्ठाद्वितीयेन स्वेनानन्यसाधारणेनौजसा सः सैनिकाधिकारिणामविलम्बं दृष्टिमाकृष्य तूर्णमेव हृदयेषु अपि पदमदधात्। मातृभूमेः कृते प्राणानपि मुञ्चतो मे चेतो न तनुकमपि व्यथिष्यते, प्रत्युत प्राप्यैव तादृशं सुयोगं परां मुदमेवापत्स्यति इति नैकधासौ स्वमित्राण्यचीकथयत्। मनोनीतस्तादृशोऽवसरोऽपि नातिविलम्बेनागतः। पञ्चषष्ट्युत्तरैकोनविंशतिशततमे (1965) वर्षे दैवदुर्विपाकात् पाकिस्तानेन भारतवर्षे आक्रमणं कृतम्। श्रीअब्दुलहमीदश्च लवपुरसमक्षेत्रे कसूरनाम्नि स्थले सैनिकनियोगमादिष्टों युद्धनिरतः संवृत्तः। पाकिस्तानं प्रति सदैव पक्षपातिना अमेरिकादेशेन पाकिस्तानायातिशक्तिशालिनो दूरमारका अभेद्यत्वेन प्रसिद्धाः (UPBoardSolutions.com) पैटनटैङ्काः प्राचुर्येण प्रदत्ता आसन्। तच्छक्तिदृप्ताः पाकिस्तानिनः सैनिकास्तानग्रे कृत्वा भारतसैन्ये गोलकानि वर्षन्तो दुर्दान्ता दानवा नाकमिव भारतधरामधिचिकीर्षतस्तस्यान सीमसु प्रविष्टाः। तेषां प्रतिरोधाय भारतसैनिका अपि गोलकानि वर्षन्ति स्म, किन्तु तेषां पुरातनाष्टैङ्का ने तथा दुर्भेद्या दूरमारका शक्तिशालिनश्च आसन् तथापि मातृभुवं रक्षितुं मनोबलं तु आकाशं स्पृशति स्म।क्रियासिद्धिः सत्वे भवति महतां नोपकरणे’ इति भृशं विश्वसन्तस्तेषामात्मा कार्यं वा साधयेयं देहं वा पातयेयम्’ इति मुहुर्मुहुः शूराभ्यस्ते समये वर्तमानो ‘हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्’ इति भगवतो वाक्यं स्मारयन् तेषां मनसि पैटनटैङ्कादपि गरीयसीं दृढतामुपाबध्नात्।।

शब्दार्थ
आद्यम् = पहली बार।
साक्ष्यम् = सामना।
अकरोत् = किया।
ओजसा = बल से
अविलम्बम् = जल्दी।
तूर्णम् = शीघ्र।
पदमधात् = स्थान बना लिया।
तनुकमपि = थोड़ा भी
व्यथयिष्यते = व्यथित करेगा।
मुदम् = प्रसन्नता को।
नैकधा = अनेक बार।
अचीकथयत् = कहा
नाति-विलम्बेन = अधिक देर से नहीं, शीघ्र ही।
लवपुरसमरक्षेत्रो = लाहौर युद्ध क्षेत्र में
दूरमारकाः = दूर तक मार करने वाले।
प्राचुर्येण = अधिक मात्रा में।
तच्छक्तिदृप्ताः = उनकी शकि से अहंकारयुक्त।
नाकम् = स्वर्ग।
क्रियासिद्धिः सत्वे भवति महतां नोपकरणे = वीरों या महापुरुष की कार्य-सफलता बल में रहती है, साधन में नहीं।
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्य महीम् = मारा गया तो स्वर्ग जाएगा, जीता रहा तो पृथ्वी का भोग करेगा।
कार्यं वा साधयेयम् देहं व पातयेयम् = कार्य सिद्ध करूंगा या शरीर नष्ट कर लूंगा।
स्मारयन् = याद दिलाते हुए। उपाबध्नात् : बाँध दी।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में चीन के आक्रमण के समय अब्दुल हमीद के उच्च मनोबल का वर्ण किया गया है।

अनुवाद
भारत के सीमान्त प्रदेश में चीन देश के आक्रमण के समय श्री अब्दुल हमीद नेप क्षेत्र में नियुका थे। वहीं उसने युद्ध का पहली बार सामना किया। कर्तव्यनिष्ठा के कारण अद्विती अपने अनन्य असाधारण बल से उसने सैनिक अधिकारियों की दृष्टि आकृष्ट कर शीघ्र ही हृदयों पर १

स्थान बना लिया। “मातृभूमि के लिए प्राणों को भी त्यागते हुए मेरा चित्त तनिक भी दु:खी नहीं होगा, प्रत्युत् उस प्रकार के सुअवसर को प्राप्त करके ही अत्यन्त प्रसन्नता को प्राप्त करेगा”, ऐसा वह अनेक . | बार अपने मित्रों को कहता था। मनचाहा वैसा अवसर भी शीघ्र ही आ गया। सन् 1965 ई० में दुर्भाग्य | से पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। श्री अब्दुल हमीद लवपुर (लाहौर) के युद्ध-क्षेत्र में | ‘कसूर’ नाम के स्थान पर सैनिक के कर्तव्य का आदेश पाकर युद्ध करने लगे थे। पाकिस्तान के प्रति

हमेशा ही पक्षपात करने वाले अमेरिका देश ने पाकिस्तान को अत्यन्त शक्तिशाली, दूर तक मार करने | वाले, अभेद्य होने में प्रसिद्ध पैटन टैंक अधिक मात्रा में दे रखे थे। उनकी शक्ति से गर्वीले पाकिस्तान के

सैनिक उनको आगे करके भारत की सेना पर गोले बरसाते हुए ऐसे लग रहे थे जैसे स्वर्ग पर दुर्दान्त दानव अधिकार करना चाहते हों और वे उसकी सीमाओं में घुस गये। उनको (UPBoardSolutions.com) रोकने के लिए भारत के सैनिक भी गोले बरसा रहे थे, किन्तु उनके पुराने टैंक वैसे दुभेद्य, दूर तक मार करने वाले और शक्तिशाली नहीं थे, तो भी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए उनका मनोबल आकाश को छू रहा था।

क्रिया की सिद्धि साध्य में होती है, साधन में नहीं” इसका अत्यधिक विश्वास करते हुए उनकी आत्मा | ने “कार्य को सिद्ध करू या शरीर को नष्ट कर दें इस प्रकार वीरों के द्वारा बार-बार अभ्यास किये गये। | समय में स्थित होते हुए “मारे जाकर स्वर्ग को प्राप्त करोगे अथवा जीतकर पृथ्वी को भोगोगे’-इस | प्रकार भगवान् के वाक्य का स्मरण करते हुए उनके मन में पैटन टैंक से भी बड़ी दृढ़ता बाँध दी।

UP Board Solutions

(4) तथाभूतेन दिव्योत्साहेन दीपितः श्रीहमीदस्तु नृत्यन्मृत्युना तद् भयावहं युद्धं कन्दुकक्रीडनमिव, युद्धक्षेत्रं क्रीडाक्षेत्रमिव, गोलकजातं च कुन्दुकमिव मन्यमानो जीपवाहनमारूढ़ः पैटनटैङ्कानां छायायामग्रेसरन् पाकिस्तानिसैन्यमुपरोद्धं तेषां टैङ्केषु गोलकानि प्रक्षिपन् अभिमुखमागतः। टैङ्करक्षितैर्रिपुसैनिकैर्हमीदस्य जीपयानै शतत्रयहस्तदूरं दृष्टं तदधिलक्ष्य च महाभीषणो गोलकक्षेपः कर्तुमारब्धः। तत्क्षणमेव हमीदेन विद्युद्गत्या हस्तगोलकं प्रक्षिप्य सः टैङ्को विनाशितः। तद् दृष्ट्वा अपरेण पाकिस्तानटैङ्केन हमीदस्योपरि आक्रमणं कृतम्, किन्तु (UPBoardSolutions.com) वीरोत्तमेनानेन सोऽपि हस्तगोलकेन तथैव ध्वंसं नीतः। अहो! वैचित्र्यम् , भारतवीरवरस्य तस्य शौर्यस्य येनोत्तमोपकरणा अपि शत्रवो निरुद्धाः। हस्तिशशकयोरिव झञ्झादीपयोरिव सङ्घर्षोऽसौ प्रतिभाति स्म। परन्तु हा! हन्त! हन्त! रणशिरसि वर्तमानस्यास्य भारतवीरधौरेयस्यानुपदमेव तृतीयस्मात् पाकिस्तानटैङ्कात् प्रक्षिप्तेनैकेन गोलकेन प्राणान्तो जातः। मृतस्याप्यस्य वदने | मातृभूमिरक्षार्थं प्राणोत्सर्गजनितः सन्तोषः सुतरामङ्कित आसीत्। क्षणभङ्गुरेऽस्मिन् संसारे

कलेवरं तु भङ्गुरम्। तस्य विनिमयेन विमलकीर्तेरर्जनं न खलु पुष्कलमूल्यम्। परमवीरेणानेन | निःसन्दिग्धं प्रमाणितं यत् स्वल्पोपकरणैरेव स्वौजसा महान्ति कार्याणि यैः सम्पाद्यन्ते त एव महान्तो न तु साधनसम्पन्नाः।।

शब्दार्थ
दिव्योत्साहेन = अलौकिक उत्साह से।
दीपितः = प्रकाशमान्।
नृत्यन्मृत्युना = मृत्यु |
का नृत्य। कन्दुकक्रीडनमिव = गेंद के खेल के समान।
छायायामग्रेसरन् = छाया में आगे बढ़ता हुआ।
उपरोदधुम् = रोकने के लिए।
प्रक्षिपन् = फेंकता हुआ।
शतत्रयहस्तदुरम् = तीन-सौ हाथ दूर।
तदभिलक्ष्य = उसे निशाना बनाकर।
विद्युद्गत्या = बिजली के समान तेज गति से।
हस्तगोलकं= हाथ का गोला (हैण्डग्रेनेड)।
ध्वंसं नीतः = नष्ट कर दिया।
निरुद्धाः = रोक दिये गये।
हस्तिशश- कयोरिव = हाथी और खरगोश के समान।
झञ्झादीपयोरिव = तूफान और दीपक के समान।
वीरधौरेयस्य= वीरों में अग्रणी।
अनुपदमेव = पीछे ही।
वदने= मुख पर।
भङ्गुरम्= नाशवान्।
कलेवरं = शरीर।
विनिमयेन = बदले से।
पुष्कृलमूल्यम् = अधिक मूल्य पर।
स्वौजसा = अपने बल से। |

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में पाकिस्तानी सेना के साथ जूझते हुए रणबाँकुरे अब्दुल हमीद के अप्रतिम शौर्य-प्रदर्शन एवं मृत्यु का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
उस प्रकार के अलौकिक उत्साह से प्रकाशमान् श्री हमीद मृत्यु से नाचते हुए, उस यावह युद्ध को गेंद के खेल के समान, युद्ध-क्षेत्र को खेल के मैदान के समान और गोलों के समूह को गेंद के समान मानते हुए जीप पर सवार होकर पैटन टैंकों की छाया में आगे चलते हुए, पाकिस्तान की सेना को रोकने के लिए उनके टैंकों पर गोले फेंकता हुआ सामने आ गया। टैंकों की रक्षा करने गले शत्रुओं के सैनिकों ने हमीद की जीप को तीन सौ हाथ दूर पर देखा और उसको निशाना बनाकर नत्यन्त भयानक गोले फेंकना आरम्भ कर दिया। उसी क्षण हमीद ने बिजली के समान तेजगति से थगोला फेंककर उस टैंक को ध्वस्त कर दिया। यह देखकर पाकिस्तान के दूसरे टैंक ने हमीद के

ऊपर आक्रमण कर दिया, किन्तु इस श्रेष्ठ वीर ने उसे भी हथगोले से उसी प्रकार नष्ट कर दिया। अहो! भारत के वीर और उसकी बहादुरी की विलक्षणता आश्चर्यकारी है, जिसने उत्तम उपकरणों वाले शत्रु को भी रोक दिया। वह संघर्ष हाथी और खरगोश के समान, तूफान और दीपक के समान प्रतीत हो रहा था, परन्तु बारम्बार खेद है! युद्ध-स्थल में स्थित भारत के वीरों में अग्रणी इस वीर का इसके पीछे ही पाकिस्तान के (UPBoardSolutions.com) तीसरे टैंक से फेंके गये एक गोले से प्राणान्त हो गया। मरे हुए भी इसके मुख पर मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण-त्याग से उत्पन्न हुआ अत्यधिक सन्तोष अंकित था। इस नशवान् संसार में शरीर तो अधिक नाशवान है। उसके बदले में देने से (शरीर-त्याग से) पवित्र यश की प्राप्ति का अधिक मूल्य है। इस परमवीर ने नि:सन्देह प्रमाणित कर दिया कि थोड़े-से साधनों के द्वारा अपने बल से, जिनके द्वारा महान् कार्य पूर्ण किये जाते हैं, वे ही महान् हैं, साधनसम्पन्न लोग नहीं। |

(5) एवमसौ परश्शतैर्महारथैरभिमन्युरिव बलवद्भिर्युध्यन् सखायामिवालिङ्ग्य मृत्युमितिहासपुरुषो जातः। यस्य देशस्य रजसि क्रीडित्वा तेन बाल्यं नीतम् , यस्यान्नजलाभ्यां तस्य देहः पुष्टिमगात् , यस्य वायौ तेन सततं श्वसितम् , तं प्रति स्वकर्तव्यं परिपूर्य सः कृतार्थोऽभवत्। भारतशासनेनासौ शूरशिरोमणिर्मरणानन्तरं परमवीरचक्रेण सम्मानितः। उत्तप्रदेशशासनेन च तस्य कुटुम्बस्य भूयसी सहायता कृता तस्य स्मृतेश्च चिरस्थायितायै तस्य ग्रामस्य नामापि हमीदपुरमिति कृतम्।

रक्षणाय जनुभूमेः प्राणानपि त्यजन्ति ये।
यशोदेहेन जीवन्तो-मार्गमन्यान् दिशन्ति ते॥
मातृपादयोर्भक्त्या शिरः पुष्पसमर्पकाः।।
यशःकायाः स्वयंदेवा धन्या वीरवरा नराः॥

शब्दार्थ
परश्शतैः = सैकड़ों से अधिक।
बलवद्भिः = बलवानों से।
आलिङ्ग्य = आलिंगन करके।
रजसि = मिट्टी में।
नीतम् = बिताया।
श्वसितम् = साँस ली।
परिपूर्य = पूर्ण करके।
मरणोपरान्तम् = मरने के बाद।
भूयसी = बहुत।
चिरस्थायितायै = बहुत समय तक स्थायी रखने के लिए।
जनुभूमेः = जन्मभूमि की।
यशोदेहेन = यश रूपी शरीर से।
दिशन्ति = बतलाते हैं।
शिरःपुष्पसमर्पकाः = शीश रूपी पुष्प समर्पित करने वाले।
वीरवराः = वीरों में श्रेष्ठ।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में अब्दुल हमीद के वीरगति को प्राप्त करने पर उसके सम्मान का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
इस प्रकार वह सैकड़ों से अधिक बलवान् महारथियों से युद्ध करते हुए अभिमन्यु के समान मृत्यु का मित्र के समान आलिंगन करके इतिहास-पुरुष हो गया। जिस देश की धूल में खेलकर उसने बचपन बिताया, जिसके अन्न और जल से उसका शरीर पुष्ट हुआ, जिसकी वायु में उसने निरन्तर श्वास (UPBoardSolutions.com) लिया, उसके प्रति अपने कर्तव्य को पूर्ण करके वह धन्य हो गया। भारत सरकार ने इस शूर शिरोमणि को मरने के बाद परमवीर चक्र से सम्मानित किया। उत्तर प्रदेश सरकार ने उसके परिवार की बहुत सहायता की तथा उसकी स्मृति को लम्बे समय तक स्थायी रखने के लिए उसके गाँव का नाम भी ‘हमीदपुर’ कर दिया।

जो लोग जन्मभूमि की रक्षा के लिए प्राणों को भी त्याग देते हैं, वे यशः शरीर से जीवित रहते हुए दूसरों को मार्ग बताते हैं। मातृभूमि के चरणों में सिररूपी पुष्प को समर्पित करने वाले, यशः शरीर वाले, स्वयं देवतास्वरूप वे श्रेष्ठ वीर मनुष्य धन्य हैं।

लघु उत्तरीय प्ररन

प्ररन 1
इस पाठ से आपको क्या शिक्षा मिलती है?

या

अब्दुल हमीद का बलिदान हमें क्या प्रेरणा देता है?
उत्तर
इस पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य के गुण पूजनीय होते हैं। मनुष्य दृढ़, संकल्प और प्रयत्न से अपने मनोरथ को पूर्ण करने में समर्थ होता है। कार्य की सिद्धि साध्य में होती है, साधन में नहीं। पाकिस्तान के पास अभेद्य पैटन टैंक थे और भारत के पास पुराने टैंक, लेकिन भारत के सैनिकों का मनोबल ऊँचा था; अतः वे युद्ध में विजयी हुए। मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की चिन्ता भी नहीं करनी चाहिए।

UP Board Solutions

प्ररन 2
परमवीर अब्दुल हमीद की जीवनी अंश के आधार पर अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
[संकेत-‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक की सामग्री को अपने शब्दों में लिखिए। .

प्ररन 3
युद्ध में अब्दुल हमीद ने जो वीरता दिखाई उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर
[संकेत—‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत आये शीर्षकों-‘युद्ध में सैनिक रूप । में नियुक्ति’ और ‘अप्रतिम शौर्य-प्रदर्शन की सामग्री को संक्षेप में लिखें।]

We hope the UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 11 परमवीरः अब्दुलहमीदः (गद्य – भारती)help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 11 परमवीरः अब्दुलहमीदः (गद्य – भारती), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

Class 10 Sanskrit Chapter 10 UP Board Solutions उपनिषत – सुधा Question Answer

UP Board Class 10 Sanskrit Chapter 10 Upnishat – Sudha Question Answer (पद्य – पीयूषम्)

कक्षा 10 संस्कृत पाठ 10 हिंदी अनुवाद उपनिषत – सुधा के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 10 उपनिषत – सुधा (पद्य – पीयूषम्)

परिचय

भारतवर्ष के वेद निर्विवाद रूप से विश्व-वाङमय में सर्वाधिक प्राचीन हैं। इन्हें अपौरुषेय और नित्य माना जाता है। यही कारण है कि इनके रचना-काल-निर्धारण के सन्दर्भ में भारतीय विचारक मौन हैं। सम्पूर्ण वैदिक वाङ्मय चार भागों-संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक् और उपनिषद् में विभक्त हैं। इनमें संहिता भाग स्तुति-प्रधान, ब्राह्मण भाग यज्ञादि-कर्मकाण्ड-प्रधान, आरण्यक भाग उपासना-प्रधान और उपनिषद्-भाग ज्ञान-प्रधान हैं। इसीलिए (UPBoardSolutions.com) उपनिषदों को वेद का ज्ञानकाण्ड तथा वेद का अन्तिम भाग होने के कारण वेदान्त भी कहते हैं। उपनिषदों में जिस परम ज्ञानात्मक विद्या का प्रतिपादन किया गया है, उसे ब्रह्म विद्या या आत्म विद्या भी कहा जाता है। उपनिषदों की संख्या यद्यपि शताधिक है, किन्तु इन एकादश-ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, श्वेताश्वतर, छान्दोग्य और बृहदारण्यक-उपनिषदों को अत्यधिक प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है। इनमें से कुछ उपनिषद् गद्य में हैं, कुछ पद्य में और कुछ गद्य-पद्य दोनों में ही निबद्ध हैं।
प्रस्तुत पाठ में दिये गये मन्त्र कुछ प्रसिद्ध उपनिषदों से संगृहीत किये गये हैं।

UP Board Solutions

पाठ-सारांश

वैदिक ज्ञान की पात्रता जिस पुरुष के हृदय में परमात्मा और अपने गुरु के प्रति उच्चकोटि की भक्ति होती है, वही उपनिषदों के ज्ञानपरक सिद्धान्तों को समझ पाता है। मोक्ष-प्राप्ति का इच्छुक मैं; आदिपुरुष; उस परमात्मा की शरण को प्राप्त करता हूँ, जो सृष्टिकर्ता ब्रह्मा को रचकर उसे वेदों का ज्ञान प्रदान करते हैं।

सम्बन्ध और मोक्ष का कारण मन दो प्रकार का होता है-कामनाओं से पूर्ण अशुद्ध मन और कामनाओं से रहित शुद्ध मन। यह मन ही मनुष्यों के बन्धन-मोक्ष का कारण है। विषयों में लिप्त अशुद्ध मन सांसारिक दु:खों में फँसाता है और वासनाओं से रहित शुद्ध मन मुक्ति प्रदान कराता है।

शुद्ध स्वरूप सत्य रूप परमात्मा पर चमकदार एवं सुनहरे सूर्य के मण्डल का पर्दा पड़ा है, उसके हट जाने पर चैतन्यस्वरूप शुद्ध ब्रह्म का साक्षात्कार हो जाता है। जो ज्ञानी पुरुष उस शुद्ध ब्रह्म का अपनी आत्मा से ही साक्षात् दर्शन करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

जगन्नियन्ता सूर्य, चन्द्र, तारे और लौकिक अग्निसहित सम्पूर्ण संसार उसी परमात्मा के दिव्य प्रकाश (UPBoardSolutions.com) से प्रकाशमान हैं। वह परमात्मा अग्नि, जल, सम्पूर्ण जगत्, ओषधियों और वनस्पतियों में व्याप्त है। उसी सर्वशक्तिमान, परमात्मा के भय से ही अग्नि और सूर्य उष्णता धारण करते हैं और उसी परमात्मा के आदेश से इन्द्र, वायु, यम और सभी लोकपाल नियमित रूप से अपने-अपने काम पूरे करते हैं।

निराकार और अज्ञेय वह सर्वशक्तिमान् सर्वव्यापी ब्रह्म पैररहित होकर भी शीघ्र चलने वाला, हाथरहित होकर भी वस्तुओं को पकड़ने वाला, आँखरहित होकर भी देखने वाला और कर्णरहित होकर भी सब कुछ सुनने वाला है। वह जानने योग्य सभी कुछ जानता है, परन्तु उसे कोई नहीं जानता।

UP Board Solutions

सृष्टिकर्ता जलती हुई अग्नि से हजारों चिंगारियों के उत्पन्न होने के समान ही अविनाशी ब्रह्म से यह समस्त दृश्य जगत् उत्पन्न होता है।

परमपद की प्राप्ति ब्रह्मज्ञानी पुरुष अपने नाम और रूप के अस्तित्व रूपी अभिमान को छोड़कर उस दिव्य पुरुष में उसी प्रकार विलीन हो जाता है; जैसे-नदियाँ समुद्र में। ब्रह्मज्ञानी सबमें अपने को और अपने में सबको देखता है। अपने हृदय से कामनाओं के छूट जाने पर वह मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।

परम ज्ञानी की स्थिति उपनिषद् के ज्ञान को जानने वाला अर्थात् परम ज्ञानी (UPBoardSolutions.com) (ब्रह्मज्ञानी) अपनी स्थिति को व्यक्त करते हुए कहता है, “मैं अज्ञानरूपी अन्धकार से परे, सूर्य के समान वर्ण वाले, स्वयं प्रकाशस्वरूप इस महान् पुरुष को जानता हूँ।” ब्रह्म के इसी रूप का ज्ञान प्राप्त कर ज्ञानी पुरुष उस लोक में पहुँच जाता है, जहाँ पहुँचने पर मृत्यु का भय नहीं रह जाता। ज्ञान के अतिरिक्त उस परम पद की प्राप्ति के लिए अन्य कोई मार्ग नहीं है।

पद्यांशों की ससन्दर्भ हिन्दी व्याख्या

(1)
यस्य देवे पराभक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ
तस्यैते कथिता ह्यर्थाः प्रकाशन्ते महात्मनः ॥ (2008, 13, 14]

शब्दार्थ यस्य = जिस (मनुष्य) की। देवे = परमात्मा में। पराभक्तिः = उच्चकोटि की भक्ति। यथा = जैसी (भक्ति) तथा = वैसी। गुरौ = गुरु में। तस्य = उस (मनुष्य) की। एते = ये (उपनिषद्)। कथिताः = कहे गये। अर्थाः = अर्थ। प्रकाशन्ते = प्रकट हो जाते हैं। महात्मनः = महान् आत्मा वाले पुरुष के लिए।

सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के पद्य-खण्ड ‘पद्य-पीयूषम्’ (UPBoardSolutions.com) के ‘उपनिषत्सुधा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है।।

[ संकेत इस पाठ के शेष सभी श्लोकों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में भगवद्भक्ति और गुरुभक्ति की महिमा का वर्णन किया गया है अन्वये यस्य (पुरुषस्य) देवे परा भक्तिः (अस्ति), यथा देवे तथा गुरौ (अपि भक्तिः अस्ति), तस्य महात्मनः (हृदये) हि (उपनिषत्सु) कथिताः एते अर्थाः प्रकाशन्ते।

व्याख्या जिस पुरुष की परमात्मा में उच्चकोटि की भक्ति है, जैसी भक्ति परमात्मा में है, वैसी भक्ति अपने गुरुदेव में भी है, उस महान् अन्त:करण वाले पुरुष के हृदय में उ उषदों में वर्णित आत्मज्ञान सम्बन्धी ये सिद्धान्त (स्वत:) प्रकाशित हो जाते हैं। तात्पर्य यह (UPBoardSolutions.com) है कि आत्मज्ञान सम्बन्धी सिद्धान्तों को साक्षात् अनुभव
होने लगता है। =

UP Board Solutions

(2)
यो ब्रह्माणं विदधाति पूर्वं, यो वै वेदांश्च प्रहिणोति तस्मै ।
तं ह देवमात्मबुद्धिप्रकाशं, मुमुक्षुर्वे शरणमहं प्रपद्ये ॥

शब्दार्थ यः = जो (परमात्मा ब्रह्माणं = ब्रह्म को। विदधाति = उत्पन्न करता है। पूर्वम् = सबसे पहले, सृष्टि – के प्रारम्भ में। वेदान् =चारों वेदों को, वेदों के ज्ञान को। प्रहिणोति = भेजता है, प्रदान करता है। तस्मै = उसके लिए। देवं = उसी परमात्मा को। आत्मबुद्धिप्रकाशम् = आत्मज्ञान को प्रकाशित करने वाले मुमुक्षुः = मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले। शरणम् = आश्रय के रूप में। प्रपद्ये = प्राप्त करता हूँ।

प्रसंग प्रस्तुत मन्त्र में परमेश्वर को जानने और प्राप्त करने के लिए उन्हीं की शरण प्राप्त करने को कहा गया है।

अन्वय यः (परमात्मा) पूर्वं ब्रह्माणं विदधाति, यः च वै तस्मै (ब्रह्माणे) वेदान् प्रहिणोति, (UPBoardSolutions.com) तं ह आत्मबुद्धिप्रकाशं देवं मुमुक्षुः अहं वै शरणं प्रपद्ये।।

व्याख्या जो परमात्मा सर्वप्रथम, अर्थात् सृष्टि के प्रारम्भ में सृष्टिकर्ता ब्रह्मा को रचता है और जो निश्चय ही उस ब्रह्मा के लिए वेदों के ज्ञान को भेजता है, अर्थात् प्रदान करता है, उसी आत्मज्ञान को प्रकाशित करने वाले परमात्मा की मोक्ष की इच्छा करने वाला मैं निश्चय ही उसकी शरण को प्राप्त करता हूँ।

(3)
मनो हि द्विविधं प्रोक्तं शुद्धं चाशुद्धमेव च।
अशुद्धं कामसङ्कल्पं शुद्धं कामविवर्जितम् ॥ [2008, 10, 14]

शब्दार्थ मनः = अन्तःकरण चित्ता द्विविधम् =दो प्रकार का। प्रोक्तम् = कहा गया है। शुद्धम् = पवित्र, निर्मल। अशुद्धम्= अपवित्र, मलिन। कामसङ्कल्पम् = कामनाओं और संकल्पों वाला। काम-विवर्जितम् = कामनाओं से रहित।

प्रसंग प्रस्तुत मन्त्र में मन के भेद लक्षणों सहित बताये गये हैं।

UP Board Solutions

अन्वये मनः हि द्विविधं प्रोक्तम्। शुद्धं च अशुद्धम् एव च। अशुद्धं (मनः) कामसङ्कल्पं (अस्ति), कामविवर्जितं शुद्धम् (मनः अस्ति)।

व्याख्या मन दो प्रकार का कहा गया है-शुद्ध और अशुद्ध। अशुद्ध मन कामनाओं और (UPBoardSolutions.com) संकल्पों वाला है और शुद्ध मन कामनाओं से रहित है। तात्पर्य यह है कि कामनाओं और इच्छाओं से युक्त मन अशुद्ध होता है तथा कामनाओं से रहित मन शुद्ध।

(4)
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।।
बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् ॥ [2006,07,12]

शब्दार्थ मनुष्याणां = मनुष्यों में कारणं = कारण बन्धमोक्षयोः = बन्धन और मुक्ति का। बन्धाय =बन्धन के लिए। विषयासक्तम् = इन्द्रियों के विषय; अर्थात् शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध; में लगा हुआ। मुक्त्यै = मुक्ति के लिए, दुःख के बन्धन से छुटकारे के लिए। निर्विषयं = विषय-वासनाओं में न फंसा हुआ। स्मृतम् = बताया गया है।

प्रसंग प्रस्तुत मन्त्र में मन को ही बन्धन और मोक्ष का कारण बताया गया है।

अन्वय मनुष्याणां बन्ध-मोक्षयोः कारणं मन एव (अस्ति)। विषयासक्तं (मनः) बन्धाय (भवति), निर्विषयं (मनः) मुक्त्यै स्मृतम्।।

व्याख्या मनुष्यों के (इतर प्राणियों के नहीं) बन्धन (संसार के दुःखों का) और मोक्ष (दु:ख के बन्धन से छुटकारा) का कारण केवल मन ही है; अर्थात् मन के अतिरिक्त दूसरा कोई कारण नहीं है। इन्द्रियों के विषयों; अर्थात् शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध; में रमा हुआ मन (UPBoardSolutions.com) (सांसारिक दुःख के) बन्धन के लिए होता है और विषय-वासनाओं से रहित मन सांसारिक दुःखों के) मुक्ति के लिए बताया गया है।

(5)
हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्।।
तत्त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥

UP Board Solutions

शब्दार्थ हिरण्मयेन = सोने जैसे चमकीले। पात्रेण = पात्र से। सत्यस्य = सूर्यमण्डल में स्थित सत्य रूप परमात्मा का। अपिहितम् = ढका हुआ है, आच्छादित। मुखम् = मुख। पूषन् = हे सूर्यदेव! अपावृणु = हटा लीजिए। सत्यधर्माय(मह्यम्) = सत्य रूप धर्म वाले मेरे लिए। दृष्टये = आत्मा का दर्शन कराने के लिए।

प्रसंग प्रस्तुत मन्त्र में मोक्षार्थी परमात्मा से सत्य का दर्शन कराने की प्रार्थना करता है।

अन्वय पूषन्! हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्य मुखम् अपिहितम्। सत्यधर्माय (मह्यम्) (आत्मनः) दृष्टये त्वं तत् अपावृणु।।

व्याख्या हे पूषन् (सूर्यदेव)! तुम्हारे मण्डल में स्थित सत्य रूप परमात्मा का मुख सोने जैसे चमकीले (सूर्यमण्डल रूप) पात्र से ढका हुआ है; अर्थात् आच्छादित है। सत्यरूप धर्म वाले मेरे लिए आत्मा का दर्शन करने हेतु आप उस (मण्डल रूप पात्र) को हटा लीजिए।

(6)
एको वशी सर्वभूतान्तरात्मा एकं रूपं बहुधा यः करोति ।
तमात्मस्थं येऽनुपश्यन्ति धीरास्तेषां सुखं शाश्वतं नेतरेषाम् ॥

शब्दार्थ एकः = अकेला, अद्वितीय वशी = समस्त संसार को अपने वश में रखने वाला। सर्वभूतान्तरात्मा = सभी प्राणियों की भीतरी आत्मा एकं रूपं = एक रूप को। बहुधा = अनेक रूपों में करोति = करता है। आत्मस्थम् = अपनी आत्मा में स्थित। अनुपश्यन्ति = देखते हैं, साक्षात् (UPBoardSolutions.com) अनुभव करते हैं। धीराः = ज्ञानी, विद्वान्। तेषां है उनके लिए। सुखं = सुख। शाश्वतम् = नित्य, सदा रहने वाला। नेतरेषाम् = अन्यों के लिए नहीं।

प्रसंग प्रस्तुत मन्त्र में परमात्मा का स्वरूप और उसके दर्शन का फल बताया गया है।

अन्वय यः सर्वभूतान्तरात्मा एकः वशी एकं रूपं बहुधा करोति। ये धीराः तम् आत्मस्थम् अनुपश्यन्ति, तेषां शाश्वतं सुखम् (भवति) इतरेषां न (भवति)।

UP Board Solutions

व्याख्या जो परमात्मा समस्त प्राणियों की भीतरी आत्मा, अद्वितीय और समस्त संसार को अपने वश में रखने वाला है, जो अपने एक रूप को अनेक रूपों में व्यक्त करता है, जो धीर पुरुष उसे अपनी आत्मा में स्थित साक्षात् अनुभव करते हैं, उनको ही सदा रहने वाला मोक्षरूप नित्य सुख मिलता है, दूसरों को नहीं मिलता।।

(7)
न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः।
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति ॥ [2010, 12]

शब्दार्थ तत्र = उस परलोक में, जो परमात्मा का सर्वोच्च पद है। सूर्यः भाति = सूर्य प्रकाशित होता है। न चन्द्रतारकम् = न चन्द्रमा और तारे। नेमाः (न + इमाः) = न ही ये। विद्युतः भान्ति = बिजलियाँ चमकती हैं। कुतः = कहाँ से अयम् अग्निः = यह अग्नि तम् एव = वह हीं। भान्तम् = प्रकाशित होते हुए। अनुभाति = पीछे प्रकाशित होता है। सर्वं = सब कुछ। तस्य = उससे। भासा = प्रकाश से, दीप्ति से। सर्वम् इदम् = यह सब कुछ। विभाति = प्रकाशित होता है।

प्रसंग प्रस्तुत मन्त्र में परमात्मा को सूर्य, चन्द्रमा आदि सभी का प्रकाशक बताया गया है।

अन्वय तत्र सूर्यः न भाति, चन्द्रतारकं न (भाति), इमाः विद्युताः न भान्ति, अयम् अग्निः कुतः (UPBoardSolutions.com) (प्रकाशितः भविष्यति)। तम् एव भान्तं सर्वम् अनुभाति। तस्य भासी इदं सर्वं विभाति।।

UP Board Solutions

व्याख्या वहाँ (उस परमलोक में) सूर्य नहीं चमकता है, चन्द्रमा और तारे नहीं चमकते हैं, न ये बिजलियाँ ही चमकती हैं, यह अग्नि ही कहाँ स्वयं चमक सकती है? उसी प्रकाशित होते हुए (परमात्मा) के पीछे समस्त विश्व प्रकाशित होता है। उसकी चमक से यह सभी कुछ प्रकाशित होता है; अर्थात् ईश्वर स्वयं प्रकाशयुक्त है और उस प्रकाश के समक्ष अन्य सभी प्रकाश नगण्य हैं।

(8)
यो देवोऽग्नौ योऽप्सु यो विश्वं भुवनमाविवेश।।
य ओषधीषु य वनस्पतिषु तस्मै देवाय नमो नमः ॥

शब्दार्थ यः = जो। देवः = परमात्मा। अग्नौ = अग्नि में। अप्सु = जल में। विश्वम् भुवनम् = समस्त लोकों में। आविवेश = प्रवेश कर गया है, व्याप्त है। ओषधीषु = जड़ी-बूटियों में। वनस्पतिषु = वृक्षों-लताओं में। तस्मै देवाय = उस देवता के लिए नमः नमः = प्रणाम है, प्रणाम है।

प्रसग प्रस्तुत मन्त्र में ईश्वर की सर्वव्यापकता बतायी गयी है और उर पुनः-पुनः प्रणाम किया गया है।

अन्वय यः देवः अग्नौ (अस्ति), यः अप्सु (अस्ति), यः विश्वं भुवनम् आविवेश। यः ओषधीषु (अस्ति), यः वनस्पतिषु (अस्ति), तस्मै देवाय नमो नमः (अस्तु)।।

व्याख्या जो ईश्वर अग्नि में है, जो जलों में है, जो समस्त लोकों में व्याप्त है, जो जड़ी-बूटियों में है, (UPBoardSolutions.com) जो वनस्पतियों में है, उस परमात्मा (देवता) को बार-बार नमस्कार हो। तात्पर्य यह कि संसार की कोई वस्तु ऐसी नहीं है, जिसमें परमात्मा का वास न हो।

UP Board Solutions

(9)
भयादस्याग्निस्तपति भयात् तपति सूर्यः
भयादिन्द्रश्च वायुश्च मृत्युर्धावति पञ्चमः ॥

शब्दार्थ भयात् = भय से। अस्य = इस (सर्वव्यापक परमात्मा) के तपति = तपता है। तपति = चमकता है, प्रकाशित होता है। मृत्युः = मृत्यु के देवता अर्थात् यमराज| धावति = दौड़ता है। पञ्चमः = पाँचवाँ।

प्रसंग प्रस्तुत मन्त्र में बताया गया है कि परमात्मा के भय से सभी इन्द्रादिक लोकपाल अपना-अपना कार्य शीघ्रतापूर्वक नियमित रूप से करते हैं।

अन्वय अस्य (परमात्मनः) भयात् अग्नि: तपति, (अस्य) भयात् सूर्यः तपति, (अस्य) भयात् इन्द्रश्च वायुः च पञ्चमः मृत्युः धावति।

व्याख्या इस सर्वव्यापक जगन्नियन्ता परमात्मा के भय से अग्नि तपती है अर्थात् उष्णता को (UPBoardSolutions.com) धारण करती है। इसके भय से सूर्य तपता है अर्थात् चमकता है। इसके भय से ही इन्द्र-वायु तथा पाँचवें मृत्यु के देवता यमराज दौड़ते हैं; अर्थात् अपना-अपना कार्य शीघ्रतापूर्वक करते हैं। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार स्वामी के भय से सेवक अपना-अपना काम नियमित रूप से करते हैं, उसी प्रकार उस नियन्ता परमात्मा के भय से सभी लोकपाल अपने-अपने काम में नियमपूर्वक प्रवृत्त होते हैं।

(10)
अपाणिपादो जवनो ग्रहीतापश्यत्यचक्षुः स शृणोत्यकर्णः
स वेत्ति वेद्यं न च तस्यास्ति वेत्तातमाहुरग्रयं पुरुषं महान्तम् ॥

शब्दार्थ अपाणिपादः = बिना हाथ-पैर वाला। जवनः = वेगपूर्वक चलने वाला ग्रहीता = पकड़ने वाला। पश्यति = देखता है। अचक्षुः = नेत्ररहित। शृणोति =सुनता है। अकर्णः = बिना कान वाला। वेत्ति = जानता है। वेद्यम् = जानने योग्य को। वेत्ता = जानने वाला। तं = उस। आहुः = कहते हैं। अग्रयं पुरुषं = श्रेष्ठ पुरुष।

UP Board Solutions

प्रसंग प्रस्तुत मन्त्र में निर्विकार शुद्ध चैतन्यस्वरूप ब्रह्म का निरूपण किया गया है।

अन्वय सः अपाणिपादः (अपि) जवन: ग्रहीता च (अस्ति)। (सः) अचक्षुः (सन् अपि) पश्यति, (स:) अकर्णः (अपि) शृणोति। सः वेद्यं वेत्ति, तस्य च वेत्ता न अस्ति। तम् अग्यं महान्तं पुरुषम् आहुः।।

व्याख्या वह; अर्थात् सर्वव्यापी चैतन्यस्वरूप शुद्ध परमात्मा; पैररहित होता हुआ भी शीघ्रतापूर्वक चलने वाला है, वह हाथरहित होता हुआ भी वस्तुओं को पकड़ने वाला है, वह नेत्ररहित होता हुआ भी देखता है, वह कानों से रहित होकर भी सुनता है। वह जानने योग्य को जानता है, उसका जानने वाला कोई नहीं है। तात्पर्य यह है कि वह सभी इन्द्रियों से रहित होते हुए भी सभी कार्यों को करता है। उसे सर्वप्रथम उत्पन्न हुआ और महान् आदिपुरुष कहा जाता है।

(11)
तदेतत्सत्यं यथा सुदीप्तात् पावकाद्, विस्फुलिङ्गाः सहस्रशः प्रभवन्ते सरूपाः ।।
तथाक्षराद् विविधाः सौम्य भावाः, प्रजायन्ते तत्र चैवापियन्ति

शब्दार्थ तत् एतत् सत्यम् = यह सच्चाई है, यह वास्तविकता है। यथा = जैसे। सुदीप्तात् = अच्छी तरह प्रज्वलित। पावकात् = अग्नि से। विस्फुलिङ्गाः = अग्नि-कण, चिंगारियाँ। सहस्रशः = हजारों की संख्या में। प्रभवन्ते = निकलते हैं। सरूपाः = उसी के समान रूप वाली। तथा = वैसे ही। (UPBoardSolutions.com) अक्षरात् = अविनाशी ब्रह्म से। विविधाः = विभिन्न प्रकार के सौम्य = हे प्रियदर्शन!| भावाः = पदार्थ। प्रजायन्ते = उत्पन्न होते हैं। तत्र च एव = और उसमें ही। अपियन्ति = विलीन हो जाते हैं।

प्रसंग प्रस्तुत मन्त्र में अविनाशी ब्रह्म से संसार की उत्पत्ति का वर्णन दृष्टान्तसहित किया गया है।

UP Board Solutions

अन्वय सौम्य! तत् एतत् सत्यं यथा सुदीप्तात् पावकात् सरूपाः सहस्रशः विस्फुलिङ्गाः प्रभवन्ते, तथा अक्षरात् विविधाः भावाः प्रजायन्ते, तत्र च एव अपियन्ति।।

व्याख्या हे प्रियदर्शन! यह सत्य है कि जिस प्रकार अच्छी तरह ये जली हुई अग्नि से उसी के समान रूप वाली हजारों अग्नि की चिंगारियाँ निकलती हैं, उसी प्रकार अविनाश ब्रह्म से अनेक प्रकार के अस्तित्व वाले पदार्थ उत्पन्न होते हैं और उसी में विलीन हो जाते हैं।

(12)
यथा नद्यः स्यन्दमाना समुद्रेऽस्तं गच्छन्ति नामरूपे विहाय
तथा विद्वान् नामरूपाद् विमुक्तः परात्परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ॥ [2013]

शब्दार्थ यथा = जैसे। नद्यः = नदियाँ। स्यन्दमानः = बहती हुई। समुद्रे = समुद्र में। अस्तं गच्छन्ति = विलीन हो जाती हैं। नामरूपे = नाम और रूप को। विहाय = छोड़कर तथा = वैसे ही। विद्वान् = ब्रह्मज्ञानी, आत्मज्ञानी। नामरूपाद् विमुक्तः = नाम और रूप से छूटा हुआ। (UPBoardSolutions.com) परात्परम् = श्रेष्ठ से भी श्रेष्ठ। पुरुषं = पुरुष को। उपैति = प्राप्त कर लेता है। दिव्यं = दिव्य

प्रसंगे प्रस्तुत मन्त्र में ब्रह्मवेत्ता विद्वान् द्वारा अविनाशी ब्रह्म की प्राप्ति का दृष्टान्तसहित वर्णन किया गया है।

अन्वय यथा स्यन्दमाना: नद्यः नामरूपे विहाय समुद्रे अस्तं गच्छन्ति, तथा विद्वान् नामरूपाद् विमुक्तः परात्परं दिव्यं पुरुषम् उपैति।

UP Board Solutions

व्याख्या जिस प्रकार बहती हुई नदियाँ अपने नाम और रूप को छोड़कर समुद्र में विलीन हो जाती हैं, उसी प्रकार ब्रह्मज्ञानी विद्वान् अपने नाम और रूप से विमुक्त होकर श्रेष्ठ से भी श्रेष्ठ दिव्य पुरुष को प्राप्त करता है अर्थात् परमात्मा में विलीन हो जाता है।

(13)
यस्तु सर्वाणि भूतान्यात्मन्येवानुपश्यति।
सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते ॥

शब्दार्थ यस्तु (यः + तु) = और जो। सर्वाणि भूतानि = सभी प्राणियों को। आत्मनि एव = आत्मा में ही। अनुपश्यति = देखता है। सर्वभूतेषु = सभी प्राणियों में। च आत्मानं = और स्वयं को। ततः = उन सबसे। विजुगुप्सते = घृणा करता है।

प्रसंग प्रस्तुत मन्त्र में ब्रह्मज्ञानी महापुरुष की स्थिति का वर्णन किया गया है।

अन्वय य: तु सर्वाणि भूतानि आत्मनि एव अनुपश्यति, आत्मानं च सर्वभूतेषु (पश्यति), (स:) ततः न विजुगुप्सते।।

व्याख्या जो (ब्रह्मज्ञानी पुरुष) सभी प्राणियों को अपनी आत्मा में ही देखता है और अपनी आत्मा को सभी प्राणियों में देखता है, वह उससे घृणा नहीं करता है। तात्पर्य यह है कि जो आत्मा मुझमें है वही आत्मा दूसरे में भी है और जो आत्मा दूसरे में है वही मुझमें भी है; (UPBoardSolutions.com) अर्थात् मुझमें और अन्य में भेद नहीं है। यह रहस्य ब्रह्मज्ञानी जान लेता है, इसलिए वह किसी से घृणा नहीं करता।

(14)
यदा सर्वे प्रमुच्यन्ते कामा येऽस्य हृदि श्रिताः।
अथ मत्र्योऽमृतो भवत्यत्र ब्रह्म समश्नुते ॥ [2010]

शब्दार्थ यदा = जब। सर्वे = सभी (इच्छाएँ)। प्रमुच्यन्ते = छूट जाती हैं। कामाः = इच्छाएँ, कामनाएँ। ये = जो। अस्य = इसके अर्थात् मरणशील मनुष्य के। हृदि = हृदय में। श्रिताः = आश्रित। अथ = तबे, इसके बाद। मर्त्यः = मरणशील भी। अमृतेः भवति = अमर हो जाता है। अत्र = यहाँ, इस स्थिति में। समश्नुते = प्राप्त करता है, भली-भाँति अनुभव कर लेता है।

UP Board Solutions

प्रसंग प्रस्तुत मन्त्र में ब्रह्म की उपलब्धि के श्रेष्ठ साधन का वर्णन किया गया है।

अन्वय यदा सर्वे कामाः, ये अस्य हृदि श्रिताः (सन्ति), प्रमुच्यन्ते। अथ मर्त्यः अमृतः भवति। अत्र ब्रह्म समश्नुते।

व्याख्या जब सभी कामनाएँ, जो इसके अर्थात् ब्रह्मज्ञानी के हृदय में आश्रित हैं, छूट जाती हैं, अर्थात् ब्रह्मज्ञानी के हृदय की सभी इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं, तब मनुष्य अमृत (न मरने वाला) हो जाता है। इस स्थिति में वह ब्रह्म का भली-भाँति अनुभव कर लेता है।

(15)
वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमसः परस्तात्।
तमेव विदित्वाऽतिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय॥

शब्दार्थ वेद= जानता हूँ। अहं = मैं। एतं = इस पुरुषं महान्तं = महापुरुष को। आदित्यवर्णम् = सूर्य के समान वर्ण वाले, स्वयं प्रकाशस्वरूप। तमसः = अज्ञानरूपी अन्धकार से। परस्तात् = परे। तम् एव = उसको ही। विदित्वा = जानकर) अति मृत्युम् एति = मृत्यु का अतिक्रमण कर जाता है, पार कर जाता है। न = नहीं है। अन्यः = दूसरा| पन्थाः = मार्ग। विद्यते = विद्यमान अयनाय = जाने के लिए, परम पद पर पहुँचने के लिए।

UP Board Solutions

प्रसंग प्रस्तुत मन्त्र में ब्रह्मज्ञानी पुरुष के स्वानुभव का वर्णन किया गया है।

अन्वय अहम् तमसः परस्तात् आदित्यवर्णम् एतं महान्तं पुरुषं ६, तम् एव विदित्वा मृत्युम् अति एति। अयनाय अन्यः पन्थाः न विद्यते।

व्याख्या मैं (ब्रह्मज्ञानी) अज्ञानरूपी अन्धकार से परे सूर्य के समान वर्ण वाले अर्थात् स्वयं प्रकाशस्वरूप इस महान् पुरुष को जानता हूँ। उसी को जानकर ज्ञानी पुरुष मृत्यु को पार कर जाता है अर्थात् उस लोक में पहुँच जाता है, जहाँ मृत्यु नहीं है। (परमपद पर) (UPBoardSolutions.com) जाने के लिए अन्य कोई दूसरा मार्ग नहीं है। तात्पर्य यह है कि ज्ञानी लोग उस स्वयं प्रकाशस्वरूप ब्रह्म को जानकर ही मृत्यु को पारकर उस लोक में पहुँच जाते हैं, जहाँ मृत्यु होती ही नहीं। मुक्ति पाने का ब्रह्मज्ञान के अतिरिक्त दूसरा कोई मार्ग ही नहीं है।

सूक्तिपरक वाक्यांशों की व्याख्या

(1) यथा देवे तथा गुरौ। [2008, 10, 11, 12, 13, 15)

सन्दर्भ
यह सूक्तिपरक पंक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के पद्य-खण्ड ‘पद्य-पीयूषम्’ के ‘उपनिषत्-सुधा’ नामक पाठ से उद्धृत है।।

[ संकेत इस पाठ की शेष सभी सूक्तियों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा। ]

UP Board Solutions

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में भगवद्भक्ति और गुरुभक्ति की महिमा का वर्णन किया गया है।

अर्थ जैसी भक्ति परमात्मा में हो वैसी ही गुरु में भी होनी चाहिए।

व्याख्या भगवान् में उच्चकोटि की भक्ति रखने वाले ज्ञानी पुरुष की यदि भगवान् (UPBoardSolutions.com) के समान ही उच्चकोटि की भक्ति गुरु में भी हो तो वेदों और उपनिषदों का ज्ञान उसे स्वयं ही स्वाभाविक रूप से हो जाता है। तात्पर्य यह है कि देवता के तुल्य गुरु में भी श्रद्धा रखें बिना ज्ञान की प्राप्ति सम्भव नहीं है। इसीलिए सन्त कबीर गुरु को देवता से भी श्रेष्ठ मानते हुए कहते हैं

गुरु गोबिन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोबिन्द दियो बताय॥

(2), अशुद्धं कामसङ्कल्पम्।

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में मन के एक प्रकार का उल्लेख किया गया है।

अर्थ कामनाओं से युक्त मन अशुद्ध होता है।

व्याख्या शास्त्रकारों ने दो प्रकार के मन बताये हैं-शुद्ध और अशुद्ध। कामनाओं से रहित मन को शुद्ध और कामनाओं से युक्त मन को अशुद्ध बताया गया है। यहाँ पर मन से आशय मानसिक स्थिति के साथ-साथ हृदय से भी है। सामान्य अनुभव के आधार पर प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि जब कोई भी सामग्री किसी पात्र में भरकर रख दी जाती है तो उसके दूषित हो जाने की सम्भावना बन जाती है। दूषित होने की यह प्रक्रिया एक मास में हो सकती है, एक वर्ष में भी और दस वर्ष में भी। आशय यह है कि संगृहीत अर्थात् रखी हुई का एक-न-एक दिन दूषित होना अवश्यम्भावी है। इसीलिए कामनाओं और इच्छाओं से युक्त मन को अशुद्ध बताया (UPBoardSolutions.com) गया है। कामनाएँ चाहे अच्छी हों या बुरी, मन में इनकी दीर्घकालीन उपस्थिति निश्चित ही विकृति उत्पन्न करती है। यही कारण है कि कामनाओं से युक्त मन बन्धन को और कामनाओं से रहित मन मोक्ष का कारण होता है।

UP Board Solutions

(3) मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः। [2006,08,09, 10, 11, 12, 13, 15]

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में उपनिषद्कार ने मन को बन्धन और मोक्ष का कारण बताया है।

अर्थ मन ही मनुष्यों के बन्धन और मोक्ष का कारण है।

व्याख्या सांसारिक आवागमन तथा विषयों में आसक्ति को बन्धन कहा जाता है और इन सबसे छुटकारा पाने को मोक्ष। मनुष्य में इस बन्धन और मोक्ष का एकमात्र कारण मन ही है; क्योंकि मन ही इन्द्रियों को विषयों की ओर ले जाता है और वही उसे विषयों से पृथक् भी करता है। यदि व्यक्ति का मन सांसारिक विषयों में रमण करता है तो वह आवागमन के बन्धन में बँधा रहता है और यदि उसका मन विषयों में न रमकर भगवद्-भक्ति में रमता है तो उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता है। इसीलिए कहा गया है कि मन ही मोक्ष और बन्धन का कारण है।

(4) हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्। [2010, 12, 13]

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में बताया गया है कि सूर्य के रूप में चमकने गतेज वस्तुत: परमेश्वर का ही तेज है।

अर्थ (हे पूषन् अर्थात् सूर्यदेव! तुम्हारे) चमकीले आभामण्डल में स्थित सत्य (परमेश्वर) का मुख सोने जैसे चमकते हुए पात्र से आच्छादित है।

व्याख्या सूर्य की उपासना करता हुआ आराधक कहता है कि हे सूर्यदेव! आपका यह जो सुनहरा आभा-मण्डल है वह सत्य-स्वरूप परमेश्वर का ही तेज है। यह आपके अन्दर से इस प्रकार चमक रहा है, जैसे वह सोने के चमकीले मुंह वाले बर्तन के भीतर रखा हो और उस बर्तन के मुख से बाहर अपनी आभा चमक बिखेर रहा हो।

(5) न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं। [2011]

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में परमात्मा के स्वरूप का वर्णन किया गया है।

अर्थ न वहाँ सूर्य चमकता है, न चन्द्रमा-तारे।

व्याख्या परमपिता परमात्मा ही सर्वशक्तिमान है और प्रकाश के एकमात्र स्रोत भी। (UPBoardSolutions.com) उनके बिनाः न तो इस लोक में और न ही परलोक में; न तो सूर्य चमकता है न ही चन्द्रमा और न तारे ही चमकते हैं। उनके प्रकाश से ही संसार की सभी वस्तुएँ चमकती हैं अर्थात् प्रकाशित होती हैं। आशय यह है कि परमेश्वर की कृपा प्रसाद के बने रहने तक ही इस संसार का अस्तित्व है। उनकी कृपा के न रहने पर सब कुछ समाप्त हो जाता है।

UP Board Solutions

(6) तस्य भासा सर्वमिदं विभाति। [2008, 10, 11]

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में परमात्मा की महत्ता का प्रतिपादन किया गया है।

अर्थ “यह सब कुछ उसकी दीप्ति से प्रकाशित होता है।

व्याख्या प्रस्तुत सूक्ति का आशय है कि ईश्वर स्वयं प्रकाशयुक्त है और सब कुछ उसके प्रकाश से ही प्रकाशित होता है। इस पृथ्वी पर जो कुछ भी है वह सब कुछ उसी परमात्मा, परमब्रह्म, ईश्वर का ही लीला-विलास है। विश्व के सभी धर्मों में इसी बात को अपने-अपने ढंग से बताया गया है। किसी विद्वान् ने तो यहाँ तक कह दिया है कि यह सम्पूर्ण चराचर जगत् एक रंगमंच के समान है और हम सब उस रंगमंच की कठपुतलियाँ मात्र हैं। हम सभी की डोर परमात्मा के हाथ में है। वह जब तक चाहता है और जैसे चाहता है, हमें नचाता है; अर्थात् सभी कार्य उसी के पूर्ण नियन्त्रण में संचालित होते हैं। उसकी इच्छा के बिना कुछ भी सम्भव नहीं है। प्रस्तुत सूक्ति को यह कथन कि सब कुछ उसकी दीप्ति से ही दीपित है, पूर्णतया सत्य है।

(7) तस्मै देवाय नमो नमः। [2007]

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में परमात्मा को बार-बार प्रणाम किया गया है।

अर्थ उस देवता को बार-बार प्रणाम है।

व्याख्या संस्कृत वाङमय के अनुसार ‘देव’ शब्द के अनेक अर्थ है; उदाहरणार्थ-देवता अर्थात् स्वर्ग में रहने वाले, अमर, सुर, राजा, मेघ, पूज्य व्यक्ति, पारद या पारा, ब्राह्मणों की एक उपाधि, देवदार, तेजोमय व्यक्ति, ज्ञानेन्द्रिय आदि। प्रस्तुत सूक्ति जो कि श्लोक-“यो देवौग्नो योऽप्सु, (UPBoardSolutions.com) यो विश्वं भुवनमा विवेश। य ओषधीषु य वनस्पतिषु, तस्मै देवाय नमो नमः॥”-का अंश है, में ऐसे ईश्वर को बार-बार प्रणाम किया गया है जो अग्नि, जल, समस्त जीवलोक, ओषधियों और वनस्पतियों में समाया हुआ है। ऐसे सर्वव्यापी जगन्नियन्ती परमेश्वर के लिए कहा गया है कि वह एक है—एको देवः केशवो वा शिवो वा।

(8) नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय। [2006]

प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में बताया गया है कि मोक्ष-प्राप्ति के लिए ब्रह्म-ज्ञान के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है।

अर्थ परमपद पर पहुँचने के लिए ब्रह्मज्ञान के अतिरिक्त दूसरा मार्ग नहीं है।

व्याख्या मनुष्य का सबसे बड़ा पुरुषार्थ मोक्ष की प्राप्ति है। मोक्ष-प्राप्ति के लिए विभिन्न धर्मों में अनेक मार्ग बताये गये हैं। ऋषियों ने ब्रह्मज्ञान को मोक्ष-प्राप्ति का सुगम साधन बताया है। ब्रह्म को जानकर ही जीवात्मा मृत्यु को पार करके मुक्त हो जाती है। ब्रह्मज्ञान को छोड़कर मुक्ति-प्राप्ति का अन्य कोई मार्ग नहीं है। अत: उस प्रकाशस्वरूप परमात्मा को ही जानने का प्रयास करना चाहिए।

श्लोक का संस्कृत-अर्थ

(1) यस्य देवे …………………………………………………….. ” महात्मनः ॥ (श्लोक 1) (2009)
संस्कृतार्थः अस्मिन् श्लोके ऋषिः कथयति यत् यस्य पुरुषस्य दे पराभक्तिः तथा च देवे गुरौ अपि च भक्ति: विद्यते, तस्य महापुरुषस्य हृदये उपनिषत्सु वर्णितः विषयाः सर्वे अर्था: प्रकाशन्ते।

(2) मनो हि द्विविधं …………………………………………………….. कामविवर्जितम् ॥ (श्लोक 3) [2009, 10, 11]
संस्कृतार्थः अस्मिन् मन्त्रे ऋषिः कथयति यत् मनः द्विविधं प्रोक्तम्–शुद्धं च अशुद्धं च। अशुद्धं मनः सकामं सङ्कल्पं च भवति एवमेव शुद्धं मन: कामरहितं भवति।

(3) मन एव मनुष्याणां …………………………………………………….. निर्विषयं स्मृतम्॥ (श्लोक 4) [2006, 07]
संस्कृतार्थः अस्मिन् श्लोके कविः अकथयत् यत् मनुष्याणां दु:खबन्धयोः एकमात्रकारणं मन एवं अस्ति। (UPBoardSolutions.com) विषयवासनासुरमण: मनः दु:खबन्धाय भवति, विषयवासनारहितः मनः मुक्त्यै (मोक्षाय) स्मृतम् (कथितम्)।।

UP Board Solutions

(4) एको वशी …………………………………………………….. शाश्वतं नेतरेषाम् ॥ (श्लोक 6)
संस्कृतार्थः अस्मिन् मन्त्रे ऋषिः कथयति यः परमात्मा सर्वेषां भूतानाम् अन्तरात्मा, अद्वितीयः, अखिलं संसारं स्ववशी कर्तुं समर्थः, यः स्व एकं रूपं विविधरूपेण अभिव्यक्ति; ये धीराः तम् आत्मस्थं साक्षात् अनुभवन्ति, शाश्वतं सुखं भवति, इतरेषां न भवति।

(5) न तत्र सूर्यो …………………………………………………….. सर्वमिदं विभाति ॥ (श्लोक 7) [2009]
संस्कृतार्थः अस्मिन् श्लोके मुनिः कथयति यत् तत्र परलोके न सूर्यः भाति, न चन्द्रतारकं भाति, न इमाः विद्युताः भान्ति। तर्हि अयम् अग्नि कुतः प्रकाशितः भविष्यति। तं परमेश्वरम् एव भान्तम् अखिलं विश्वम् अनुभाति, तस्य परमेश्वरस्य भासा इदं सर्वं विभाति।

(6) यो देवोऽग्नौ …………………………………………………….. देवाय नमो नमः ॥ (श्लोक 8) [2014]
संस्कृतार्थः अस्मिन् मन्त्रे ऋषिः कथयति-य: ईश्वर: अग्नौ अस्ति, य: अप्सु अस्ति, य: विश्वं लोकम् आविवेश, यः ओषधीषु अस्ति, य: वनस्पतिषु अस्ति, तस्मै देवाय नमो नमः अस्तु।

(7) भयादस्याग्निस्तपति …………………………………………………….. मृत्युर्धावति पञ्चमः ॥ (श्लोक 9)
संस्कृतार्थः अस्मिन् श्लोके ऋषिः कथयति यत् अस्य सर्वव्यापकस्य परमात्मनः भयात् अग्निः, अस्य भयात् सूर्यः तपति, अस्य भयात् इन्द्रः च वायुः च पञ्चमः मृत्युः धावति। अस्मिन् संसारे गतिशीलता ईश्वरेण . एव अस्ति इति भावः।

(8) अपाणिपादो जवनो …………………………………………………….. पुरुषं महान्तम् ॥ (श्लोक 10) (2015)
संस्कृतार्थः अस्मिन् मन्त्रे ऋषिः कथयति यत् सः परमात्मा सर्वं वेत्ति। तस्य कोऽपि वेत्ता नास्ति। तं महान्तं (UPBoardSolutions.com) पुरुषं आहुः। सः आत्मा इन्द्रियैः रहित: अपि जनां गृह्णाति, चक्षुर्विना पश्यति, कर्ण विना श्रृंणोति। स एवं परमः पुरुषः। तस्य महत्तमं किञ्चिद् नास्ति। …

UP Board Solutions

(9) यथा नद्यः स्यन्दमानाः …………………………………………………….. पुरुषमुपैति दिव्यम् ॥ (श्लोक 12)
संस्कृतार्थः अस्मिन् श्लोके महर्षिः कथयति-यथा पर्वतात् निर्गताः नद्यः स्वकीय नामरूपे त्यक्त्वा समुद्रं गत्वा विलीयन्ते तथा एव विद्वान् पुरुष: नामरूपात् विमुक्ताः सन् परात्परं दिव्यं पुरुषं परमेश्वरं प्राप्नोति।

(10) यस्तु सर्वाणि …………………………………………………….. न विजुगुप्सते ॥ (श्लोक 13)
संस्कृतार्थः अस्मिन् मन्त्रे महर्षिः कथयति-य: पुरुष: सर्वाणि भूतानि आत्मनि एव अनुपश्यति तथा च सर्वभूतेषु आत्मानम् एव मन्यते, सः पुरुषः तान् प्रति घृणां न करोति।

(11) यदा सर्वे …………………………………………………….. ब्रह्म समश्नुते ॥ (श्लोक 14)
संस्कृतार्थः अस्मिन् श्लोके महर्षिः कथयति—अस्य पुरुषस्य हृदये ये कामभावाः सन्ति, ते सर्वे भावाः यदा हृदयात् बहिः निर्गच्छन्ति तदा सः मर्त्यः पुरुषः अमरः भवति। अनन्तरं ब्रह्मानन्दं प्राप्नोति।

(12) वेदाहमेतं …………………………………………………….. विद्यतेऽयनाय ॥ (श्लोक 15)
संस्कृतार्थः अस्मिन् श्लोके महर्षिः कथयति—यः पुरुषः अज्ञानान्धकारात् बहिः वर्तते, यस्य स्वरूपं प्रकाशस्वरूपं (UPBoardSolutions.com) भवति तथाविधं महान्तं पुरुषं अहं जानामि। तं प्रकाशस्वरूपं ज्ञात्वा एवं जनाः मृत्युपाशात् मुक्तो भवति। मोक्ष प्राप्तये न अन्यः कश्चित् पन्थाः विद्यते।

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 10 are helpful to complete your homework.
If you have any doubts, please comment below. UP Board Solutions try to provide online tutoring for you

Class 10 Sanskrit Chapter 4 UP Board Solutions यौतुकः पापसञ्चयः Question Answer

UP Board Class 10 Sanskrit Chapter 4 Yautuk Pap Sanchay Question Answer (कथा – नाटक कौमुदी)

कक्षा 10 संस्कृत पाठ 4 हिंदी अनुवाद यौतुकः पापसञ्चयः के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 4 यौतुकः पापसञ्चयः (कथा – नाटक कौमुदी)

परिचय

यौतुक शब्द का हिन्दी पर्याय दहेज है। आज यह भारतीय समाज का कोढ़ बना हुआ है। आज वधू को उसके गुणों के आधार पर नहीं, अपितु उसके द्वारा लाये गये दहेज के आधार पर सम्मान दिया जाता है।

प्रस्तुत नाटक में दहेज पर कुठाराघात किया गया है तथा यह प्रतिष्ठित (UPBoardSolutions.com) किया गया है कि विपत्ति के समय संस्कारवान् बहू ही परिवार के लिए सहायक होती है, अधिक दहेज लाने वाली बहू नहीं।

UP Board Solutions

पाठ-सारांश

रमानाथ और विनय बचपन के मित्र हैं। विनय की पुत्री सुमेधा का रमानाथ के बड़े पुत्र से विवाह हुआ था। विनय निर्धन था; अत: वह पर्याप्त दहेज नहीं दे सका था। रमानाथ के कनिष्ठ पुत्र का विवाह सेठ दुर्गादास की पुत्री चपला से हुआ था, जिसने विवाह में बहुत दहेज दिया था और घरेलू कार्य के लिए दो सेविकाएँ भी दी थीं। रमानाथ अधिक दहेज मिलने से सेठ दुर्गादास व उसकी पुत्री चपला से प्रसन्न थे और दहेज न मिलने के कारण विनय और उसकी गुणवती पुत्री सुमेधा से अप्रसन्न।

प्रथम दृश्य – रमानाथ विनय को बुलाकर कहते हैं कि सेठ दुर्गादास के द्वारा चपला के साथ भेजी गयी दो नौकरानियाँ घर का सब कामकाज करती हैं; अतः अब हमें तुम्हारी पुत्री सुमेधा की आवश्यकता नहीं है, इसे तुम ले जाओ। विनय ने रमानाथ से कहा–मित्र! ऐसा मत कहो। (UPBoardSolutions.com) मैं निर्धन हूँ और घर पर रखकर उसके पालने का भार वहन करने में भी असमर्थ हूँ। मेरी पुत्री विदुषी, सुशिक्षित, सुसंस्कृत एवं सहनशील है; क्योंकि मैंने उसे बहुत कष्टों से पाला है।

इसी बीच सुमेधा पात्र में जल लेकर आती है। विनय ने उससे कहा कि मुझे जल नहीं चाहिए, तुम्हारे ससुर ने मुझे पर्याप्त जल पहले ही पिला दिया है। सुमेधा ने उससे कहा कि वह अपने श्रद्धेय ससुर के विषय में कोई निन्दा नहीं सुनना चाहती है। विनय ने सुमेधा से कहा कि जाओ, सबका अभिवादन करके आओ। मैं तुम्हें लेने आया हूँ।

रमानाथ सुमेधा से अपने व अपने मित्र हेतु भोजन की व्यवस्था करने के लिए कहकर बाहर चला जाता है। विनय वहीं चिन्तित बैठा हुआ है। इसी समय टेलीफोन की घण्टी बजती है। रमानाथ की पत्नी रम्भा टेलीफोन उठाकर सुनती है। उसे फोन से ज्ञात होता है कि उसके पति रमानाथ दुर्घटना में घायल हो गये हैं और मिशन अस्पताल में भर्ती हैं।

UP Board Solutions

इसी समय रमानाथ की छोटी पुत्रवधू सजधज कर आती है। वह पिता के घर किसी उत्सव में जाने को तैयार है। रम्भा कहती है कि तुम्हारे ससुर दुर्घटना में घायल होकर अस्पताल में भर्ती हैं, उन्हें सेवा-शुश्रूषा की आवश्यकता हो सकती है, परन्तु चपला यह कहती हुई–“रुग्ण की चिकित्सा के लिए अस्पताल और सेवा के लिए वहाँ अनेक परिचारिकाएँ हैं तथा सुमेधा सेवा में दक्ष है उसे ले जाइए।’-उत्सव में चली जाती है।

द्वितीय दृश्य – रमानाथ को विनय का पत्र मिलता है। उसमें उसने लिखा है कि वह अपनी पुत्री सुमेधा को लेने आ रहा है। तब रम्भा कहती है कि सुमेधा नहीं जाएगी। मेरी ही बुद्धि भ्रमित हो गयी थी। उसके ही रक्त-दान से मेरे सौभाग्य की लालिमा; अर्थात् पति के प्राण बचे हैं। (UPBoardSolutions.com) रमानाथ को अधिक रक्तस्राव हो जाने के कारण रक्त की आवश्यकता थी। सुमेधा के रक्त का वर्ग ही उनके रक्त से मिलता था। उसने ही सहर्ष रक्त दिया था। रम्भा ने कहा कि सुमेधा निर्धन है तो क्या हुआ, वह सुसभ्य, सुशिक्षित है और चपला भले ही धनवान् हो, किन्तु वह स्वार्थिनी, असंस्कृत और अशिक्षित है।

उसी समय विनय आ जाता है। रमानाथ अपने पुनर्जीवन लाभ के लिए उसे मिठाई खाने के लिए कहता है। रम्भा कहती है कि यह मिठाई मुझे सद्बुद्धि मिलने के लिए भी है तथा विनय से कहती है कि हम सुमेधा को पाकर धन्य हैं। उसके ही रक्तदान से ये (रमानाथ) जीवित बचे हैं। रमानाथ विनय को बताता है कि उसे समय सुमेधा का जीवन दु:खमय था। मैं उसके दु:ख को सहन करने में असमर्थ था; अत: पुत्र के लौटने तक मैंने उसे तुम्हारे पास धरोहर के रूप में रखने का निश्चय किया था। अब मैं उसे कदापि नहीं भेजूंगा। विनय भी क्रोध में अपने द्वारा कही गयी बातों के लिए रमानाथ से क्षमा माँगता है।

UP Board Solutions

प्रस्तुत नाटक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि विवाह-सम्बन्ध सदैव समान स्तर के परिवार में ही स्थापित करने चाहिए तथा व्यक्ति को अनेक प्रलोभनों में फंसकर मानवीय गुणों का अनादर नहीं करना चाहिए। मनुष्य को दहेज की अपेक्षा करने के स्थान पर सुसभ्य, सुसंस्कृत, लज्जाशील एवं मर्यादाशील वधू की अपेक्षा करनी चाहिए। वही सर्वश्रेष्ठ दहेज है।

चरित्र-चित्रण

रमानाथ [2006, 08, 09, 10, 13, 14]

परिचय प्रस्तुत नाट्यांश के पुरुष पात्रों में रमानाथ का प्रमुख स्थान है। विनय उसका मित्र है, जिसकी पुत्री का विवाह रमानाथ के ज्येष्ठ पुत्र के साथ हुआ है। दूसरे पुत्र के विवाह में अत्यधिक दहेज प्राप्त हो जाने पर रमानाथ की धनलोलुपता बढ़ जाती है और वह अपने मित्र विनय का दहेज न देने के कारण अपमान भी करता है। उसकी प्रमुख चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. धनलोलुप  रमानाथ अपने कनिष्ठ पुत्र के विवाह में वधू पक्ष के द्वारा अत्यधिक दहेज तथा घर पर कार्य करने के लिए दो नौकरानियाँ दिये जाने पर स्वार्थी एवं लोभी बन जाता है तथा सुमेधा की ओर से उसका मने परिवर्तित होने लगता है।

2. त्रुटियों को सुधारने वाला – रमानाथ स्वार्थवश (UPBoardSolutions.com) अपने समधी तथा मित्र विनय का अपमान भी करता है, किन्तु दुर्घटनाग्रस्त होने के पश्चात् वह बहुत पश्चात्ताप करता है। अन्ततः अपने मित्र विनय से अपनत्वपूर्ण मृदु व्यवहार करता है।

UP Board Solutions

3. निर्दयी – धन के लोभ में रमानाथ अपने मित्र विनय के यह प्रार्थना करने पर भी कि वह निर्धन होने के कारण अपनी पुत्री का पालन नहीं कर पाएगा, उससे अपनी पुत्री को अपने घर ले जाने के लिए कहता है।

4. गुणग्राही तथा शान्ति का इच्छुक – रमानाथ गुणग्राही है। वह सुमेधा के गुणों को पहचानकर उसका आदर भी करता है। घर की शान्ति बनाये रखने के लिए ही सुमेधा का अपमान करने वाली अपनी पत्नी रम्भा को वह कुछ नहीं कहता। वह सुमेधा को अपमान-अत्याचार से सुरक्षित रखने के लिए ही; अपने पुत्र के लौट आने तक; सुमेधा को उसके पिता के घर पहुँचवाना चाहता है।

5. परिवर्तित विचारधारा वाला – किसी समय रमानाथ धन को ही सब कुछ समझता है और उसके सामने मानवीय गुणों-शील, सुसंस्कारिता, सुसभ्यता–को तुच्छ। किन्तु कालान्तर में उसकी विचारधारा में परिवर्तन हो जाता है और तब वह मानवीय गुणों को ही श्रेष्ठ मानने लगता है। उसकी परिवर्तित विचारधारा का ही यह परिणाम है कि वह किसी समय अनादृत पुत्रवधू एवं समधी को अपने सिर-आँखों पर बैठा लेता है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि रमानाथ जहाँ निर्दयी, (UPBoardSolutions.com) धनलोलुप इत्यादि दुर्गुणों का वाहक है, वहीं वह गुणग्राही और अपनी त्रुटियों में सुधार करने वाला भी है। विचारशीलता से वह इन दुर्गुणों से मुक्त हो जाता है। तथा पश्चात्ताप भी करता है। अन्तत: वह समझ लेता है कि दहेजरूपी धन पापों का संग्रह ही है।

UP Board Solutions

रम्भा [2006, 08,11]

परिचय रम्भा रमानाथ की पत्नी तथा सुमेधा एवं चपला की सास है। प्रस्तुत नाट्यांश में उसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है। वह धनलोलुप, अत्याचारी, स्वार्थी और हृदयहीन सासों का प्रतिनिधित्व करती हुई-सी प्रतीत होती है। उसकी प्रमुख चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. स्वार्थी और धनलोलुप – रम्भा स्वार्थी और धनलोलुप स्वभाव की स्त्री है। वह अपनी पुत्रवधू सुमेधा पर दहेज न लाने के लिए अत्याचार करती है। वह धन को ही सर्वस्व समझती है अपनी बड़ी बहू सुमेधा का अपमान वह केवल इसलिए करती है कि वह छोटी बहू चपला के समान अधिक दहेज लेकर नहीं आयी थी। ‘ममैव बुद्धिः भ्रमिता’ कथन उसकी इसी स्वार्थी और धनलोलुप प्रवृत्ति की स्वीकारोक्ति का सूचक है।

2. पति को चाहने वाली – रम्भा अपने पति को चाहने वाली एक पतिव्रता स्त्री है। जब वह दूरभाष पर अपने पति के दुर्घटनाग्रस्त होने का समाचार सुनती है तो रोने लगती है। पति को ही वह अपना सौभाग्य मानती है, यह उसके इस वाक्य-“तस्या एव रक्तेन (UPBoardSolutions.com) मम सौभाग्यलालिमा सुरक्षीकृता।”-से स्पष्ट होता है। वह चपला को भी इसीलिए रोकना चाहती है कि घायलावस्था में पति की सेवा-शुश्रूषा के लिए उसे उसकी आबश्यकता पड़ सकती है।

3. कृतज्ञा – रम्भा स्वार्थी और धनलोलुप तो अवश्य है, किन्तु कृतघ्न नहीं है। वह अपने ऊपर किये गये उपकार को मानने वाली है। सुमेधा द्वारा रक्तदान और सेवा करके उसके पति की प्राणरक्षा करने पर उसकी आँखें खुल जाती हैं और वह उसके उपकार का गुणगान अपने पति तथा अपने समधी से करती है। अपनी गलती को मानती हुई वह सुमेधा को घर में उचित सम्मान देती है।

4. दुष्कर्म पर लज्जित होने वाली – लोभ के वशीभूत होकर रम्भा अपनी ज्येष्ठ पुत्रवधू पर अत्याचार करती अवश्य है, किन्तु उसकी शीलता, सुसभ्यता, सुसंस्कारिता तथा कनिष्ठा पुत्रवधू की निर्लज्जता, अहंकारवादिता से जब उसके ज्ञानचक्षु खुलते हैं तो वह अपने द्वारा किये गये दुष्कर्मों पर लज्जित होती है। वह स्वयं कहती है कि “ममैव बुद्धिः भ्रमिता अहं लज्जितास्मि।”

UP Board Solutions

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि रम्भा में जहाँ स्त्री स्वभावोचित धनलोलुपता, स्वार्थीपन जैसे दुर्गुण मिलते हैं, वहीं उसमें पतिव्रता, लज्जाशीलता इत्यादि सद्गुणों का समावेश भी है। निश्चित ही विषम परिस्थितियाँ मनुष्य को वास्तविकता की ओर मोड़ देती हैं। रम्भा जो (UPBoardSolutions.com) दहेज की चकाचौंध से भ्रमित थी वह विषम परिस्थितियों में वास्तविकता को समझकर दहेज को पाप का संचय कहने लगती है।

सुमेधा [2006, 08, 09, 10, 11, 12, 13, 15]

परिचय प्रस्तुत नाट्यांश का ताना-बाना सुमेधा को लेकर ही बुना गया है। वह ही नाटक की मुख्य पात्र भी है। सम्पूर्ण कथा उसके चारों ओर ही घूमती है। वह विनय की पुत्री एवं रमानाथ की ज्येष्ठ पुत्रवधू है। वह भारतीय नारी के सद्गुणों की वाहक आदर्श नारी है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. सेवापरायणा – भारतीय नारी को सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठापित करने वाला गुण उसकी सेवा-परायणता ही है। वह अपनी ससुराल को ही स्वर्ग मानती है तथा सास-ससुर को देवता मानकर उनकी पूजा करती है। सुमेधा अनेक कष्टों के होते हुए भी अपने पति का गृह त्यागकर अपने पिता के घर नहीं जाना चाहती। साथ-ही अपने पिता के मुख से अपने निर्दयी ससुर की निन्दा भी नहीं सुनना चाहती। अपने ससुर की प्राणरक्षा वह अपना रक्त देकर करती है। यह उसके सेवापरायण होने का प्रबल प्रमाण है।

UP Board Solutions

2. सुसंस्कृत एवं विनम्र – सुमेधा का सम्पूर्ण व्यक्तित्व उसकी नम्रता के पावन जल से स्नानकर कान्तिमान हो उठा है। वह प्रताड़ित किये जाने पर भी अपनी विनम्रता को नहीं त्यागती। उसकी विनम्रता का उत्कृष्ट उदाहरण देखने को तब मिलता है, जब वह अपने पिता को अपने ससुर की निन्दा करने से यह कहकर रोकती है-“कृपया मम श्रद्धेयश्वसुरमाधिक्षिपतु भवान्।” उसके सुसंस्कृत होने का प्रमाण तो कदम-कदम पर मिलता है। किसी समय उससे दुर्व्यवहार करने वाली सास रम्भा उसकी सुसंस्कारिता, सुसभ्यता इत्यादि से प्रभावित होकर स्वयं कह उठती है-“स्पष्टीकरोमि सुमेधां प्राप्य वयं धन्याः।”

3. विचारशीला – सुमेधा प्रगतिशील विचारधारा वाली भारतीय नवयुवती है। उसका मानना है कि सम्मान के इच्छुक माता-पिता को अपने समान स्तर के परिवार में ही पुत्र-पुत्री का विवाह करना चाहिए। अपने पिता से कहा गया उसका यह वाक्य इस बात की पुष्टि करता है-“सम्मानेच्छुकैः समानस्तरपरिवार एव कन्या प्रदेया।”

4. धैर्यधृता एवं उदारमना – धैर्य ही व्यक्ति को विपत्तियों से उबारने में सक्षम होता है, यह उक्ति सुमेधा पर अक्षरश: सत्य बैठती है। वह धैर्यपूर्वक प्रत्येक कष्ट को सहन करती है और अपनी उदारता का परित्याग नहीं करती। अन्ततः अपनी उदारता से वह अपने सास-ससुर का (UPBoardSolutions.com) मन जीत लेती है और उनकी आँखों का तारा बन जाती है। अपना रक्त देकर अपने ससुर की प्राणरक्षा करना उसके उदार हृदय होने का प्रमाण है।

5. विदुषी एवं गुणवती – सुमेधा निर्धन परिवार की कन्या तो अवश्य है किन्तु वह विदुषी और गुणवती है। उसके इन्हीं गुणों से प्रभावित होकर ही रमानाथ के ज्येष्ठ पुत्र ने उससे प्रेम-विवाह किया था। नाटक के अन्त में रमानाथ ने विनय से वास्तविक स्थिति को स्वीकार करते हुए ठीक ही कहा था-“उस समय सुमेधा का जीवन दुःखमय हो गया था। उसके त्याग, विनम्रता आदि गुण उसके लिए शत्रुवत् हो गये थे। उसका दुःख मेरे लिए असहनीय था, इसलिए मैंने अपने पुत्र के प्रवास से आगमनं तक अपनी पुत्रवधू को धरोहर के रूप में तुम्हें समर्पित करने का निश्चय किया था।

इस प्रकार हम देखते हैं कि सुमेधा पूर्णतया आदर्श भारतीय नारी है। प्रस्तुत नाट्यांश में वह सर्वगुणसम्पन्न एवं सर्वप्रिया वधू के रूप में चित्रित की गयी है। समाजोत्थान के लिए सुमेधा जैसी ही सुयोग्य वधुओं एवं माताओं की वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आवश्यकता है।

UP Board Solutions

विनय [2010]

परिचय विनय नाटक की नायिका सुमेधा के पिता, रमानाथ के मित्र एवं सम्बन्धी हैं। ये सामान्य आर्थिक स्थिति के व्यक्ति हैं। पाठ के अन्तर्गत इनके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं –

1. योग्य पिता  विनय एक योग्य पिता हैं। (UPBoardSolutions.com) इन्होंने अपनी पुत्री सुमेधा को अच्छी शिक्षा व संस्कार दिए हैं। यही कारण है कि वधू बन जाने पर वह अपनी ससुराल में प्रतिष्ठा प्राप्त करती है। कन्या को योग्य बनाना एक योग्य पिता का ही कार्य है।

2. मित्र-मित्रता के प्रति विश्वासी – विनय का मित्र-मित्रता के प्रति अत्यधिक विश्वास है। वे यह मानते हैं कि मित्र कितनी भी सम्पन्न क्यों न हो, वह अपने धनहीन मित्र का कभी अपमान नहीं करेगा। इसी कारण ये सामान्य आर्थिक स्थिति के होते हुए भी अपनी पुत्री सुमेधा का विवाह अपने सम्पन्न मित्र रमानाथ के पुत्र के साथ कर देते हैं। रमानाथ जब सुमेधा को वापस इनके घर भेजना चाहते हैं तो ये कहते हैं कि ‘‘बालमित्रस्य असम्मानं त्वत्तः नापेक्ष्यते।”

3. कुलीनता में विश्वास रखने वाले – विनय का पारिवारिक कुलीनता में पूर्ण विश्वास है। इसीलिए जब रमानाथ सुमेधा को इनके साथ भेजना चाहते हैं तब ये मित्र को कुलीनता की याद दिलाते हुए कहते हैं। कि “त्वं कुलीनोऽसि। स्वपरिवारस्य मर्यादां विचिन्त्य। किं कथयिष्यन्ति जनाः?”

4. स्पष्टवक्ता – विनय को स्पष्ट बात कहने में तनिक भी संकोच नहीं है। जब रमानाथ सुमेधा को इनके साथ भेजना चाहते हैं, तब ये अपनी धनहीनता की अवस्था को स्पष्ट रूप से व्यक्त करते हुए कहते हैं कि ‘विचारय मित्र! सम्प्रदत्तायाः भारं वोढुं कथं समक्षोऽस्ति एकोऽकिञ्चनः?

5. स्वाभिमानी – विनय स्वाभिमानी भी हैं। जब रमानाथ इनकी विनम्रता से प्रभावित नहीं होते और न ही इनकी प्रार्थना सुनते हैं, बल्कि अपनी पुत्रवधू का पालन करने में अपनी असमर्थता प्रकट करते हैं तो विनय का स्वाभिमान जाग उठता है। वे रोषपूर्वक कहते हैं कि “यदि तुम्हारे जैसे कुबेर सदृश (UPBoardSolutions.com) धनवान् अपनी पुत्रवधू के जीवन-निर्वाह में असमर्थ हैं तो मुझ जैसे श्रमजीवी के घर में भोजन का अभाव नहीं है। मैं अपनी पुत्री का पालन करने में समर्थ हूँ।”

UP Board Solutions

6. आधुनिक और ईश्वर-विश्वासी – विनय विचारों से आधुनिक होने के साथ-साथ ईश्वर की सत्ता पर विश्वास रखने वाले भी हैं। उनके कथन ‘अस्मिन् युगे दुहिता भाररूपा नास्ति।” तथा ”बलीयसी ईश्वरेच्छा।” इसकी पुष्टि करते हैं।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि विनय अनेक सद्गुणों से युक्त है जो अपने मित्र रमानाथ से श्रेष्ठ सिद्ध होता है।

लघु उत्तटीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सुमेधा कस्य तनया ( पुत्री ) आसीत् ? [2006,07,08, 10, 12, 13, 15]
उत्तर :
सुमेधा विनयस्य तनया आसीत्।

प्रश्न 2.
सुमेधायां के गुणाः आसन् ? [2007,11]
उत्तर :
सुमेधा विदुषी, सुसंस्कृता, सहनशीला, सेवाभाविनी च इत्यादयः गुणयुक्ताः आसन्।

प्रश्न 3.
रमानाथस्य गृहे कलहमूलं किम् आसीत् ?
उत्तर :
रमानाथस्य गृहे यौतुकम् एव कलहमूलम् आसीत्।

प्रश्न 4.
रम्भायाः सुमेधया सह दुर्व्यवहारस्य किं कारणम् ?
उत्तर :
रम्भायाः सुमेधया सह दुर्व्यवहारस्य कारणम् एकमेव (UPBoardSolutions.com) आसीत् यत् सा आत्मना सह यौतुकं प्रभूतं नानीतवती।

UP Board Solutions

प्रश्न 5.
रमानाथस्य गृहे सर्वगृहकार्यं कः अकरोत् ?
या
रमानाथस्य गृहे सर्वाणि गृहकार्याणि कः अकरोत् ? [2015]
उत्तर :
रमानाथस्य गृहे सर्वगृहकार्यं सुमेधा अकरोत्।

प्रश्न 6.
चपलायाः स्वभावे का विशेषता आसीत् ? [2007]
उत्तर :
चपला चञ्चला, कटुभाषिणी, स्वेच्छाचारिणी, गर्वशीला च आसीत्।

प्रश्न 7.
रमानाथाय रक्तं का अदात् ? [2006,07,08, 10]
उत्तर :
रमानाथाय रक्तं सुमेधा अदात्।

प्रश्न 8.
रम्भा कथं स्वार्थिनी अभूत् ? [2010]
उत्तर :
चपलायाः धनाढ्यतया प्रभावेण रम्भा धनलोलुपा स्वार्थिनी च अभूत्।

UP Board Solutions

प्रश्न 9.
सुमेधा चपला च के आस्ताम् ? [2013]
उत्तर :
सुमेधा चपला च द्वे एवं रमानाथस्य पुत्रवध्वौ आस्ताम्।

प्रश्न 10.
सुमेधा का आसीत् ?
उत्तर :
सुमेधा रमानाथस्य ज्येष्ठपुत्रवधूः (UPBoardSolutions.com) आसीत्।

प्रश्न 11.
चपला का आसीत् ?[2009]
उत्तर :
चपला रमानाथस्य कनिष्ठा पुत्रवधूः आसीत्।

प्रश्न 12.
रमानाथः कः ? सुमेधायाः व्यवहारेण तस्य हृदयपरिवर्तनं कथं जातम् ?
उत्तर :
रमानाथः सुमेधायाः लुब्धकः श्वशुरः अस्ति। सुमेधायाः मृदुव्यवहारेण विपत्तिसमये रक्तदानेन च तस्य हृदयपरिवर्तनं जातम्।

UP Board Solutions

प्रश्न 13.
रम्भा कस्य भार्या? [2007,08, 09, 10, 11, 12, 13, 14]
उत्तर :
रम्भा रमानाथस्य भार्या।

प्रश्न 14.
चपलायाः पितुः किं नाम आसीत्? [2011, 15]
उत्तर :
चपलायाः पितुः नाम श्रेष्ठ दुर्गादासः आसीत्?

बहुविकल्पीय प्रश्न

अधोलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर-रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। (UPBoardSolutions.com) इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए –
[संकेत – काले अक्षरों में छपे शब्द शुद्ध विकल्प हैं।]

1. ‘यौतुकः पापसञ्चयः’ नामक पाठ में वर्तमान समय में भी प्रचलित किस समस्या को उठाया गया है ?

(क) सांस्कृतिक पतन की समस्या को
(ख) दहेज की समस्या को
(ग) निर्धनता की समस्या को
(घ) अशिक्षा की समस्या को

2. रमानाथ की धनी पुत्रवधू कौन है?

(क) सुमेधा
(ख) चपला
(ग) रम्भा
(घ) तीनों में कोई नहीं

UP Board Solutions

3. सुमेधा और रम्भा आपस में क्या थीं ?

(क) बहू-सास
(ख) देवरानी-जिठानी
(ग) पुत्री-माता
(घ) पड़ोसिने

4. सुमेधा में कौन-सा गुण नहीं है ?

(क) उदारहृदयता
(ख) सेवापरायणता
(ग) सुसंस्कृतता
(घ) स्वार्थान्धता

5. सुमेधा के रक्तदान और सेवा-शुश्रूषा से किनका हृदय-परिवर्तन होता है ?

(क) विनय और रमानाथ को
(ख) रम्भा और रमानाथ को
(ग) चपला और रम्भा का
(घ) रम्भा और विनय का

UP Board Solutions

6. “साविदुषी सुसंस्कृता सहनशीलापि।”इस कथन में ‘सा’ शब्द से किसकी ओर संकेत किया गया है?

(क) ‘चपला’ की ओर
(ख) ‘सुमेधा’ की ओर
(ग) रम्भा की ओर
(घ) “चपला’ और ‘सुमेधा’ की ओर

7. “नहि सुमेधे! तव धनिश्वशुरेण पूर्वमेव पर्याप्त जलं पायितम्।” इस संवाद में निहित भाव है

(क) व्यंग्य का
(ख) विद्वेष का
(ग) करुणा का
(घ) तृप्ति का

8. रमानाथ अपने मित्र विनय को मिष्टान्न क्यों खिलाता है ?

(क) सुमेधा की सेवापरायणता का
(ख) अपने पुनर्जीवन-प्राप्ति का
(ग) रम्भा के हृदय-परिवर्तन का
(घ) अपने हृदय-परिवर्तन का

9. “मम कनिष्ठपुत्रवधूचपलायाः पित्रा श्रेष्ठ …………………… प्रेषिते सेविके सर्वगृहकार्यं कुरुतः।” वाक्य के रिक्त-स्थान में आएगा –

(क) शम्भूदासेन
(ख) दुर्गादासेन
(ग) चन्दनदासेन
(घ) रत्नदासेन

UP Board Solutions

10. ‘अस्मिन् युगे दुहिता …………………. नास्ति।” वाक्य की पूर्ति होगी । [2005,08]

(क) लक्ष्मीरूपा’ से
(ख) ‘सेविकारूपा’ से
(ग) ‘भाररूपा’ से
(घ) “धनरूपा से

11. “हितैषिणः आपत्काल एव परीक्ष्यन्ते।” वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति ?

(क) रमानाथः
(ख) रम्भा
(ग) चपला
(घ) विनयः

12. “दुर्घटनया मम नेत्राभ्यां काञ्चनकान्तिसमुत्पन्नम् …………………. अपनीतम्।” वाक्य में रिक्त| स्थान की पूर्ति होगी

(क) ‘अज्ञानम्’ से
(ख) मोहत्वम्’ से
(ग) लोभम्’ से
(घ) ‘अन्धत्वम्’ से

13. “तस्याः त्यागः श्लाघ्यः सुमेधायाः रक्तदानेनैव एष:।”वाक्य में रिक्त-स्थान में आएगा

(क) उपकृतः
(ख) प्रसन्नः
(ग) जीवितः
(घ) मरणः

14. “रक्तदानं जीवनं ददाति, रक्तपातम् अपहरत्येव।” वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति ?

(क) रम्भा
(ख) विनयः
(ग) रमानाथः
(घ) सुमेधा

15. “अहं स्वपुत्रवधू तुभ्यं …………………. समर्पयितुं निश्चितवान्।” के रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी –

(क) आभूषणरूपेण
(ख) न्यासरूपेण
(ग) धनरूपेण
(घ) कोषरूपेण

UP Board Solutions

16. “क्रोधानलः यथार्थचित्तदाहकः परमधुनान्तं सुखदं तु सर्वं सुखदम्।” वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?

(क) विनयः
(ख) दुर्गादासः
(ग) रमानाथः
(घ) रम्भा

17. सुमेधा …………………. पुत्री आसीत्। [2007,08,09, 11, 12, 15]

(क) रमानाथस्य
(ख) विनयस्य
(ग) रम्भायाः
(घ) चपलायाः

18. चपला …………………. “पुत्री आसीत्।

(क) विनयस्य
(ख) रम्भायाः
(ग) दुर्गादासस्य
(घ) रमानाथस्य

19. यौतुक शब्दस्य अर्थ …………………. अस्ति।

(क) खेलः
(ख) दहेजः
(ग) नृत्यः
(घ) मेला

20. ‘यौतुकः पापसञ्चयः’ नाटकस्य नायिका …………………. अस्ति। [2007]

(क) चपला
(ख) सुमेधा
(ग) रम्भा
(घ) कमला

UP Board Solutions

21. समाजे …………………. निन्दनीयः [2006]

(क) यौतुकः
(ख) परोपकारः
(ग) अध्ययन:
(घ) सदाचारः

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 4 are helpful to complete your homework.
If you have any doubts, please comment below. UP Board Solutions try to provide online tutoring for you

Class 9 Sanskrit Chapter 10 UP Board Solutions भारतवर्षम् Question Answer

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 10 भारतवर्षम् (गद्य – भारती) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 10 भारतवर्षम् (गद्य – भारती).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 10
Chapter Name भारतवर्षम् (गद्य – भारती)
Number of Questions Solved 5
Category UP Board Solutions

UP Board Class 9 Sanskrit Chapter 10 Bharatvarsham Question Answer (गद्य – भारती)

कक्षा 9 संस्कृत पाठ 10 हिंदी अनुवाद भारतवर्षम् के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

पाठ-सारांश

नामकरण-हमारे देश का नाम भारत है। ‘भरत’ शब्द से ‘भारत’ नाम पड़ा। हमारे देश में ‘भरत’ नाम से चार महापुरुष हुए—
(1) दशरथ के पुत्र राम के छोटे भाई भरत,
(2) हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त और शकुन्तला से उत्पन्न भरत,
(3) नाट्शास्त्र के प्रणेता ‘भरत’ मुनि,
(4) भागवत् पुराण में वर्णित जड़ भरत’। भागवत् के अनुसार जड़ भरत’ के नाम से ही हमारे देश का नाम ‘भारत’ पड़ा। भायाम् (तेजसि) रतत्वादेव भारतम्-इस विग्रह से भी ‘भारत’ नाम सार्थक होता है। मुसलमान शासकों ने ‘सिन्धु नदी के नाम से यहाँ के निवासियों को ‘हिन्दू’ और देश को हिन्दुस्थान’ कहा। यूरोपीय लोग हमारे देश को ‘इण्डिया’ कहते हैं। ।

UP Board Solutions

प्रहरी हिमालय-भारत के उत्तर में पर्वतराज हिमालय स्थित है। संसार के सबसे ऊँचे पर्वत हिमालय की चोटियाँ सदैव बर्फ से ढकी रहती हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इसके प्रदेशों में ‘येति’ नाम के हिम मानवे रहते हैं। इसकी उपत्यकाओं में घने वन, असीम ओषधियाँ, फल और फूल तथा अनेक प्रकार के पशु-पक्षी रहते हैं। यह चिरकाल से प्रहरी के समान भारत की रक्षा करता चला आ रही है। चीन के द्वारा हमारे भू-भाग पर कब्जा कर लेने के बाद, हमारे सैनिक रात-दिन इसके हिमाच्छादित शिखरों पर रहकर देश की रक्षा (UPBoardSolutions.com) करते हैं। इसकी गोद में जम्मू-कश्मीर, हिमाचले, सिक्किम, अरुणाचल आदि प्रदेश स्थित हैं। भूटान और नेपाल स्वतन्त्र राज्य भी इसी पर्वत पर स्थित हैं। इसके प्रदेशों पर स्थित अमरनाथ, बदरीनाथ, केदारनाथ, वैष्णव देवी आदि तीर्थों पर प्रतिवर्ष हजारों यात्री जाते हैं। श्रीनगर, पहलगाँव, शिमला, नैनीताल, मसूरी दार्जिलिंग आदि इसी पर्वत पर बसे नगर हैं, जहाँ गर्मियों में लोग पर्यटन के लिए जाते हैं।

तीन दिशाओं में समुद्र-
भारत के दक्षिण में हिन्द महासागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब महासागर है। इसके पश्चिमोत्तर भाग में पाकिस्तान और पूर्वोत्तर भाग में ‘बाँग्लादेश है।पहले ये दोनों देश भारत के ही प्रदेश थे। दक्षिण में कन्याकुमारी है, जहाँ तीन समुद्रों का संगम होता है।

तटीय-प्रदेश-कन्याकुमारी के दक्षिण भाग में समुद्र पार हमारी पड़ोसी देश श्रीलंका है। हिन्द महासागर में लक्षद्वीप’ और बंगाल की खाड़ी में ‘अण्डमान भारत के अभिन्न प्रदेश हैं। समुद्र-तट पर गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आन्ध्र, उड़ीसा, बंगाल आदि भारत के ही प्रदेश हैं। इन नगरों में बड़े बन्दरगाह हैं, जहाँ से असंख्य जलपोतों द्वारा व्यापारिक माल का आयात-निर्यात होता है। सागर के तटों पर मत्स्य-ग्रहण के भी अनेक केन्द्र स्थित हैं।

प्राकृतिक सुषमा–भारत पर प्रकृति देवी की विशेष कृपा है। यहाँ छह ऋतुएँ होती हैं। सूर्य और चन्द्रमा का सर्वाधिक प्रकाश इसी देश में फैलता है। सूर्यास्त और चन्द्रास्त के मनोरम दृश्य भारत में ही देखे जा सकते हैं। इसके उत्तरी भाग में सिन्धु, बेतवा, सतलज, सरस्वती, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र आदि; इसके मध्य में नर्मदा और चम्बल तथा इसके दक्षिण भाग में गोदावरी, कावेरी, कृष्णा, पेरिषार, महानदी आदि नदियाँ भारतभूमि की उपज बढ़ाती हैं। इन नदियों के तटों पर हरिद्वार, प्रयाग, काशी,गया आदि तीर्थस्थान हैं, जहाँ हजारों यात्री स्नान (UPBoardSolutions.com) करके धर्म-लाभ करते हैं। विशेष अवसरों पर कुम्भ । जैसे महामेले लगते हैं। भारत के वन परम मनोहारी हैं, हिमालय पर देवदार के तथा सागर के तटीय : प्रदेशों में नारियल और सुपारी के सुन्दर वन हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण ही कश्मीर को ‘पृथ्वी का स्वर्ग’ कहा जाता है। हमारे राष्ट्रगीत में भी भारत के प्रमुख प्रदेशों, पर्वतों और नदियों का उल्लेख है।

संसार का गुरु-भारत को संसार का गुरु कहा जाता है। यहाँ केवल उपनिषदों और उत्तरवेदान्त की आध्यात्मिकता ही नहीं है, वरन् वेद और स्मृतियों में प्रतिपादित नैतिक आचार तथा योगाभ्यास विदेशियों के आकर्षण के केन्द्र बने हुए हैं। वे भारत के आश्रमों में रहकर शान्ति प्राप्त करते हैं। अपने देशों में भी उन्होंने भारत जैसे आश्रम स्थापित किये हैं। वे काम और अर्थ पुरुषार्थों को भारत की प्राचीन उपलब्धि मानते हैं। वात्स्यायन के यौन-विज्ञान तथा चाणक्य के राजनीति-विज्ञान का उल्लेख किये बिना इतिहास प्रारम्भ नहीं करते। (UPBoardSolutions.com) शल्यविज्ञान का आविर्भाव सुश्रुत से ही माना जाता है। गणित के अंकों का लेखन सर्वप्रथम भारत में ही हुआ। बाद में अरब और यूरोपीय देशों ने इसे जाना। आज भी अंकों को ‘हिन्दसा’ (हिन्द से आया हुआ) कहते हैं। ब्रिटेन आदि देशों में आज भी माध्यमिक स्कूलों में योगासनों की शिक्षा दी जाती है। गाँधी जी द्वारा उद्घोषित ‘अहिंसा परमो धर्मः’ व ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना विश्व भर में विश्वशान्ति के अद्वितीय उपाय माने जाते हैं।

कला की प्रगति-भारत की वास्तुकला और शिल्पकला को देखकर विदेशी चकित रह जाते हैं। खजुराहो और कोणार्क के मन्दिरों की शिल्पकला को देखने के लिए सम्पूर्ण विश्व से लाखों पर्यटक यहाँ आते हैं। ताजमहल और कुतुबमीनार आज भी भारत का गौरव बढ़ा रहे हैं। ‘ताजमहल’ को संसार के आश्चर्यों में गिना जाता है। भारतीय मूर्तिकला पर विदेशी इतने मुग्ध हैं कि लाखों रुपये खर्च करके भी वैध-अवैध उपायों से इसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते रहते हैं।

महापुरुषों की पवित्र भूमि-इस गरिमाशाली देश भारत में नचिकेता के समान ज्ञानपिपासु, सत्यकाम के समान सत्यवादी, बालक ध्रुव के समान तपस्वी, अभिमन्यु के समान वीर किशोर, एकलव्य-उद्दालक-कौत्स सरीखे गुरुभक्त-शिष्य, शिवि-मयूरध्वज-कर्ण के सदृश परमदानी, हरिश्चन्द्र-युधिष्ठिर के समान सत्यपालक, भरत-लक्ष्मण के समान आदर्श भाई, दशरथ जैसे पिता, मैत्रेयी-गार्गी-भारती के समान विदुषी महिलाएँ, (UPBoardSolutions.com) रजिया-दुर्गाबाई-लक्ष्मीबाई के समान वीरांगनाएँ, सीता-सवित्री-गान्धारी के समान सती-स्त्रियाँ, भगत सिंह, चन्द्रशेखर और सुखदेव जैसे देशभक्त, महावीर, बुद्ध और गाँधी जैसे सन्त-महात्मा इस पावनभूमि पर उत्पन्न हुए हैं। दूसरे देशों में तो ईश्वर ने कहीं अपना दूत भेजा तो कहीं पुत्र, परन्तु भारत में तो वे मानव रूप धारण करके स्वयम् अवतीर्ण होते रहे हैं।

राजनीतिक और आर्थिक प्रगति-आज समस्त संसार में भारत का अपना विशिष्ट स्थान है। भारत ने अपनी स्वतन्त्रता प्राप्त करके पराधीन देशों की सहायता करने की घोषणा की। सभी देशों की प्रभुसत्ता का भारत ने सदा समादर किया है। साम्यवादी और पूँजीवादी देशों से अपने को अलग रखकर निर्गुट स्वतन्त्र राष्ट्रों का संगठन किया और गौरांगों की रंगभेद-नीति के विरुद्ध दृढ़ जनमत तैयार किया। आधुनिक विज्ञान, उद्योग और यान्त्रिकी के क्षेत्र में विकास करते हुए इसने अनेक नये आविष्कार किये और कृषि का पर्याप्त उत्पादन बढ़ाया। जिस देश में पहले सूई भी नहीं बनती थी, वहाँ अब आधुनिक यन्त्रों के निर्माण हो रहे हैं। इंग्लैण्ड-अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्रों को भी हस्तशिल्प की वस्तुएँ एवं अभियान्त्रिकीय सूक्ष्म यन्त्र प्रदान किये जा रहे हैं। वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की जितनी अधिकता भारत में है, उतनी अन्य देशों में नहीं। भारत की परिश्रमशीलता से अन्य देश भी भली-भाँति परिचित

समस्याएँ—यद्यपि भारत का अतीत एवं गौरव सम्मान के उच्च आसन पर प्रतिष्ठित है, किन्तु इससे भारत के भविष्य का निर्माण नहीं हो सकता। वर्तमान में उपलब्ध सुविधाओं और सम्पत्ति का सदुपयोग परमावश्यक है। भारत में कुछ समस्याएँ मुँह फैलाये खड़ी हैं। विदेशी नहीं चाहते कि भारत राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में प्रगति करे; अतः वे आपस में फूट डालकर झगड़े कराते रहते हैं। विदेशियों द्वारा भड़काने (UPBoardSolutions.com) पर कुछ धर्मान्ध पंजाब में आतंकवाद फैला रहे हैं। प्रतिवर्ष अनेक साम्प्रदायिक झगड़े होते हैं, जिनमें निर्दोष व्यक्ति मारे जाते हैं और जन-धन की भारी क्षति और देश की शक्ति का ह्रास होता है। हमको आपस में मित्रतापूर्वक रहना चाहिए, क्योंकि देश की मुख्यधारा से मिलने में ही देश का कल्याण है। राजनीति द्वारा धर्म का संकट उपस्थित करना देश के लिए अहितकर

हमारे देश में दूसरी बड़ी समस्या जनसंख्या की वृद्धि की है। जनसंख्या की वृद्धि से देश के . विकास की गति रुक जाती है और विकास के अवसर, नष्ट हो जाते हैं; अतः हमें परिवार कल्याण की योजनाओं पर अमल करना चाहिए। हमारे सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार को बोलबाला है। अनुचित लाभ के लिए किसी को प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए।

यह हमारी जन्मभूमि है, जिस पर हमने जन्म लिया है। किसी का शव जलाया जाये या दफनाया जाये—दोनों में क्या अन्तर है? सबको भारतमाता की मिट्टी में विलीन होना है। आपस में झगड़ने और जन्मभूमि के प्रति विद्रोह से क्या लाभ? उसका हमें हमेशा सम्मान करना चाहिए। कहा भी गया है-”जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।”

UP Board Solutions

गद्यांशों का सस अनुवाद

(1) भारतं नामास्माकं जन्मभूमिः। भरतनामानश्चत्वारो महापुरुषा अस्मिन् देशे अति प्राचीनकाले.बभूवुः। एको मर्यादापुरुषोत्तमरामचन्द्रस्यानुजो दाशरथिर्भरतः, हस्तिनापुराधीशस्य पुरुवंशीयस्य दुष्यन्तस्य सुतश्शाकुन्तलेयः द्वितीयः, अभिनयकुशलो नाट्यशास्त्रप्रणेता भरतमुनिश्च तृतीयः, श्रीमद्भागवते वर्णितो ब्रह्मस्वरूपो जडभरतश्चतुर्थः। भागवते तत्रैव प्रतिपादितमस्ति ”अजनाभं नामैतद्वर्ष भारतमिति यत् (UPBoardSolutions.com) आरभ्य व्यपदिशन्ति” तेनेदं प्रतीयते यद जडभरतस्य नामैव अस्माकं देशस्य संज्ञा अनुसरतीति। वयं तु एवं मन्यामहे यत् सर्वदा सर्वथा च “भायाम् तेजसि रतत्वादेव भारतमिति” अस्माकं प्राणप्रियस्य देशस्य प्राचीनं नाम। कालान्तरे सिन्धुनदीसंज्ञामनुसृत्य मुहम्मदीयैरत्रत्यवासिनो हिन्दुनाम्ना कथिता, देशश्च हिन्दुस्थानमिति। तथैव यूरोपीयैरितरैश्च‘‘इण्डिया” इति नाम कृतम्।

शब्दार्थ-
बभूवुः = हुए।
अनुजः = छोटा भाई।
दाशरथिः भरतः = दशरथ के पुत्र भरत।
सुतश्शाकुन्तलेयः = शकुन्तला का पुत्र।
प्रणेता = रचना करने वाले
प्रतिपादितमस्ति = सिद्ध किया है।
व्यपदिशन्ति = कहते हैं।
प्रतीयते = प्रतीत होता है।
अनुसरति = अनुसरण करता है।
मन्यामहे = मानते हैं।
अनुसृत्य = अनुसरण करके।
यूरोपीयैरितैश्च (यूरोपीयैः + इतरैः + च) = यूरोप के निवासियों ने तथा अन्यों ने। |

सन्दर्थ
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत गद्य-भारती’ में संकलित ‘भारतवर्षम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है।

[संकेत-इस पाठ के शेष गद्यांशों के लिए भी यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।] प्रसंग-इस गद्यांश में भारत के ‘भारत’ नामकरण होने का कारण बताया गया है।

अनुवाद
भारत हमारी जन्मभूमि है। अति प्राचीन समय में हमारे देश में ‘भरत’ नाम के चार महापुरुष हुए। एक तो मर्यादापुरुषोत्तम रामचन्द्र के छोटे भाई, दशरथ के पुत्र भरत; दूसरे हस्तिनापुर के राजा, पुरुवंशीय दुष्यन्त के शकुन्तला से उत्पन्न पुत्रं भरते; तीसरे अभिनयकला में कुशल, नाट्यशास्त्र के रचयिता भरतमुनि और चौथे श्रीमद्भागवत् में वर्णित ब्रह्मस्वरूप जड़भरत। भागवत् में वहीं पर बताया गया है-“अज की नाभि से उत्पन्न यह वर्ष भारत, जिसके आरम्भ करके कहते हैं। उससे यह प्रतीत होता है कि जड़भरत के नाम का ही अनुसरण हमारे (UPBoardSolutions.com) देश का नाम कर रहा है (अर्थात् हमारे देश का नाम ‘भारत’ जड़भरत के नाम का अनुसरण कर रहा है)। हम तो ऐसा मानते हैं कि सदा और सब प्रकार से तेज (भा) में संलग्न (रत) रहने के कारण ही भारत है, ऐसा प्राणों से प्यारे हमारे देश का प्राचीन नाम है। बाद में सिन्धु नदी के नाम का अनुसरण करके मुसलमानों ने यहाँ के निवासियों को ‘हिन्दू’ नाम से और देश को ‘हिन्दुस्थान’ कहा है। उसी प्रकार यूरोप के निवासियों ने और अन्यों ने ‘इण्डिया’ नाम,रख दिया।

(2) अस्योत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराजो विराजते। संसारस्य पर्वतेषु उत्तुङ्गतमस्यास्य गिरेरुच्छ्रिताः शिखरमालाः सर्वदैव हिमाच्छादितास्तिष्ठन्ति तस्मादेवायं हिमालयः कथ्यते। एतानि शिखराणि देशीयानां विदेशीयानां च पर्वतारोहिणामाकर्षणकेन्द्राण्यपि वर्तन्ते। एवं विश्वस्यते (UPBoardSolutions.com) यत् तुषाराच्छादितेष्वस्य प्रदेशेषु ‘येति’ इति जातीयाः केचन हिममानवा अपि प्राप्यन्ते। हिमावेष्टितोऽयमद्रिर्भारतस्य मूनि विधिना स्थापितं सितं किरीटमिव विभाति यस्योपत्यकासु प्रसृतानि गहनानि वनानि मरकतमणिपङ्क्तीनां शोभामनुहरन्ति। एषु वनेषु निः सीमा ओषधिसम्पत् पुष्पद्धिश्च भवतः। बहुप्रकाराणि फलानि उत्पद्यन्ते, नानाविधाः।

खगमृगाश्च वसन्ति। एवमनुश्रूयते यदन्तकाले सद्रौपदीकाः पाण्डवी हिमालयमारोहन्त एव स्वर्गमाप्ताः। दीर्घकालं यावदसौ पर्वतः प्रहरीव स्थितो भारतस्य रक्षामकरोत् अद्यत्वे तु अस्य रक्षा भारतेन करणीया आपतिता, यतो हि अस्माकं प्रतिवेशी चीनदेशः कञ्चिद् भूभागं स्वकीयं कृत्वा यदा कदा भारतीयसीम्न उल्लङ्घनं हिमालयस्य पारात् करोति। तदनेकत्रास्माकं शूराः सैन्ययुवानोऽत्युच्छितेषु हिमाच्छादितेषु स्थानेषु दिवानिशं दृढ़ तिष्ठन्तो रक्षन्ति। हिमालयस्यै वोत्सेऽस्माकं गणराज्यस्य जम्मूकश्मीर-हिमालचल-अरुणाचलप्रदेशाः सन्ति। भूताननामकं भारतरक्षितं स्वतन्त्रं राज्यं भारतमित्रं संसारस्यैकमात्रं हिन्दुराष्ट्रं नैपालराज्यं च वर्तते। (UPBoardSolutions.com) अमरनाथवैष्णवदेवी-गङ्गोत्री-यमुनोत्री-केदारनाथ-बद्रीनाथादीनि नैकानि सुप्रसिद्धानि तीर्थान्यपि हिमालयस्य क्रोडे विराजन्ते। यत्र देशस्य प्रत्येकं भूभागात् प्रतिवर्षं सहस्रशस्तीर्थयात्रिण आगच्छन्ति। श्रीनगर-पहलगाँव- शिमला-नैनीताल-मसूरी-दार्जिलिङ्गादीनि मनोरमनगराण्यपि अत्रैव वर्तन्ते यत्र बहवो जनाः ग्रीष्मर्तुतापात् अत्रागत्य त्राणं लभन्ते।।

शब्दार्थ-
अस्योत्तरस्यां (अस्य + उत्तरस्याम्) = इसकी उत्तर दिशा में।
नगाधिराजः = पर्वतों का राजा।
उत्तुंगतमस्यास्य = सबसे ऊँची इसकी।
उच्छूिताः = ऊँची।
हिमाच्छादितास्तिष्ठन्ति = बर्फ से ढंकी रहती हैं।
विश्वस्यते = विश्वास किया जाता है।
केचन = कोई।
प्राप्यन्ते = पाये जाते हैं।
अद्रिः = पर्वत।
मूनि = माथे पर।
विधिना = विधाता के द्वारा।
सितम् = श्वेत।
किरीटम् इव = मुकुट के समान।
उपत्यकासु = निचली घाटियों (तलहटियों) में।
प्रसृतानि = फैले हुए।
गहनानि = घने।
मरकतमणिपङ्क्तीनां = मरकत-मणियों की पंक्तियों की।
शोभामनुहरन्ति = शोभा धारण करते हैं।
एवमनुश्रूयते = ऐसा सुना जाता है।
सद्रौपदीकाः = द्रौपदीसहित।
प्रहरीव = पहरेदार के समान।
अद्यत्वे = आजकल।
आपतिता = आ पड़ी है।
प्रतिवेशी = पड़ोसी।
सीम्नः = सीमा का पारात् = पार से।
दिवानिशम् = रात-दिन।
उत्से = गोद में।
क्रोडे = गोद में।
सहस्रशः = हजारों।
ग्रीष्मर्तुतापात् (ग्रीष्मऋतु: + तापात्) = ग्रीष्म ऋतु के ताप से।
त्राणं लभन्ते = रक्षा पाते हैं।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में भारत की उत्तर दिशा में स्थित हिमालय पर्वत की महिमा और भारत के लिए उसके महत्त्व का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
इसकी उत्तर दिशा में देवताओं की आत्मास्वरूप हिमालय नाम का पर्वतों का राजा सुशोभित है। संसार के पर्वतों में सबसे ऊँची इस पर्वत की ऊँची शिखरमालाएँ सदा ही बर्फ से ढकी रहती हैं, इसी कारण से यह ‘हिमालय’ कहा जाता है। ये चोटियाँ देश-विदेश के पर्वतारोहियों के आकर्षण का केन्द्र भी हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि बर्फ से ढके हुए इसके प्रदेशों में ‘येति जाति के कुछ हिम-मानव भी पाये जाते हैं। बर्फ से ढका हुआ यह पर्वत भारत के मस्तक पर ब्रह्मा के द्वारा रखे गये श्वेत मुकुट के समान सुशोभित हो रहा है, जिसकी तलहटियों में फैले हुए घने वन मरकत मणि की पंक्तियों की शोभा को हरते हैं; अर्थात् वे मरकत मणियों से भी अधिक सुन्दर हैं। इन वनों में सीमारहित औषध-सम्पत्ति और पुष्प-समृद्धि होती है। बहुत प्रकार के फल उत्पन्न होते हैं और (UPBoardSolutions.com) अनेक प्रकार के पशु-पक्षी रहते हैं। ऐसा सुना जाता है कि अन्तिम समय में द्रौपदीसहित पाण्डव हिमालय पर चढ़ते हुए स्वर्ग पहुँच गये। लम्बे समय तक इस पर्वत ने पहरेदार के समान खड़े रहकर भारत की रक्षा की, किन्तु आज इसकी रक्षा भारत को करनी पड़ रही है; क्योंकि हमारा पड़ोसी चीन देश कुछ भू-भाग को दबाकर हिमालय के पार से कभी-कभी भारत की सीमा का उल्लंघन करता है। अनेक जगहों पर हमारे बहादुर सेना के जवान बुहत ऊँचे बर्फ से ढके स्थानों पर रात-दिन मजबूती से खड़े रहकर उसकी रक्षा करते हैं। हिमालय की ही गोद में हमारे गणराज्य के जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश हैं। भूटान नाम का भारतरक्षित स्वतन्त्र राज्य और भारत का मित्र, संसार का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र नेपाल राज्य है। अमरनाथ, वैष्णव देवी, गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बदरीनाथ आदि अनेक प्रसिद्ध तीर्थस्थान भी हिमालय की गोद में सुशोभित हैं, जहाँ देश के प्रत्येक भूभाग से प्रतिवर्ष हजारों तीर्थयात्री आते हैं। श्रीनगर, पहलगाँव, शिमला, नैनीताल, मसूरी, दार्जिलिंग आदि सुन्दर नगर भी यहीं हैं, जहाँ बहुत-से लोग भयंकर गर्मी से यहाँ आकर छुटकारा पाते हैं।

UP Board Solutions

(3) भारतस्य दक्षिणस्यां दिशि हिन्दमहासागरः, प्राच्यां बङ्गसमुद्रः, प्रतीच्यामरब- सागरश्च वर्तन्ते। पश्चिमोत्तरदिग्भागे सम्प्रति ‘पाकिस्तानः पूर्वोत्तरस्मिश्च ‘बाङ्लादेशः’ तिष्ठति। पूर्वमिमावण्यस्माकं भारतस्यैव भागावस्तां राजनीतिकारणाद् वैदेशिकानां षड्यन्त्राणामस्माकमेव एकस्य (UPBoardSolutions.com) वर्गस्य कतिपयनेतृणां हठधर्मितायाश्च कारणात् पार्थक्यं संञ्जातम्। दक्षिणस्यां दिशि भारतस्य दूरतमो भूभागः ‘कन्याकुमारी’ नाम्ना प्रसिद्धो यत्र त्रयाणां सागराणा सङ्गमो भारतस्य चरणप्रक्षालनं कुर्वन्नतिशयपावनतां भजते।।

शब्दार्थ
प्राच्याम् = पूर्व दिशा में।
प्रतीच्याम् = पश्चिम दिशा में।
सम्प्रति = इस समय।
भागावस्ताम् (भागौ + आस्ताम्) = दोनों भाग थे।
पार्थक्यम् = अलगाव।
सञ्जातम् = हो गयी।
सङ्गमः = मिलना।
पावनतां भजते = पवित्रता को प्राप्त करता है।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में भारत के पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में स्थित समुद्रों, स्थानों और देशों का वर्णन है।।

अनुवाद-
भारत की दक्षिण दिशा में हिन्द महासागर, पूर्व दिशा में बङ्ग-समुद्र (बंगाल की खाड़ी) और पश्चिम दिशा में अरब महासागर है। इसकी पश्चिमोत्तर दिशा में अब पाकिस्तान और पूर्वोत्तर दिशा में बांग्लादेश स्थित हैं। पहले ये दोनों (पाकिस्तान और बांग्लादेश) भी हमारे भारत के ही भाग थे, किन्तु राजनीतिक कारणों से, विदेशियों के षड्यन्त्रों से, हमारे ही एक वर्ग के कुछ नेताओं की हठधर्मिता के कारण अलगाव (विभाजन) हो गया। दक्षिण दिशा में भारत का सुन्दर प्रदेश ‘कन्याकुमारी’ नाम से प्रसिद्ध है, जहाँ तीन सागरों का संगम भारत के पद प्रक्षालन करता (पैरों को धोता) हुआ अत्यन्त पवित्र हो जाता है।

(4) पारेसागरं चतुर्योजनमात्रे श्रीलङ्का नामाऽस्माकं प्रतिवेशी देशो विद्यते। एतदपि न जातु विस्मरणीयं यद् हिन्दमहासागरे ‘लक्षद्वीप’ नामा बङ्गसमुद्रे ‘अण्डमान’ नामा द्वीपसमूहश्चापि अस्माकं भारतस्यैव अविच्छिन्नौ प्रदेशौ स्तः। गुर्जर-महाराष्ट्र-कर्णाटक-केरल-तमिल-आन्ध्रउत्कल-बङ्गाज्यानां भूमि सागरः स्पृशति तस्मादेते तटीयप्रदेशाः कथ्यन्ते। यत्र अनेकानि महान्ति पत्तनानि विद्यन्ते येषु असङ्ख्यजलपोतानां (UPBoardSolutions.com) साहाय्येन वैदेशिकैर्विनिमेयानां पण्यानां निर्यातमायातं च क्रियेते। प्राचीनकालेऽपि भारतवर्षस्य नौपरिवहनव्यवस्था अतीव समृद्धा आसीत्। अनेकैद्वीपैर्देशान्तरैश्च साकं सागरमार्गेण वाणिज्यं प्रचलति स्म। एवमेव सागरतटीयजलेषु मत्स्यग्रहणव्यापारोऽधुनातनो महानुद्योगः परिणतः।।

शब्दार्थ
पारेसागरम् = सागर के पार। चतुर्योजनमाने = मात्र चार योजन पर। न जातु = कभी नहीं। अविच्छिन्नौ = अभिन्न। कर्णाट = कर्नाटक। उत्कल = उड़ीसा। पत्तनानि = बन्दरगाह (वह स्थान जहाँ जलयान आकर रुकते हैं और विविध सामग्री लेकर विदेशों को जाते हैं)। पण्यानाम् = विक्रेय वस्तुओं का। क्रियेते = किये जाते हैं। अतीव = बहुत अधिक। साकं = साथ। अधुनातनः = आधुनिक। परिणतः = हो गया है। प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में भारत के समुद्रतटीय प्रदेशों का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
समुद्र के पार केवल चार योजन पर श्रीलंका नाम का हमारा पड़ोसी देश है। यह भी कभी नहीं भूलना चाहिए कि हिन्द महासागर में लक्षद्वीप नाम का और बंगाल की खाड़ी में अण्डमान नाम का द्वीपसमूह भी हमारे भारत के ही अभिन्न प्रदेश हैं। गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिल, आन्ध्र, उड़ीसा और बंगाल राज्यों की भूमि को सागर स्पर्श करता है, इसलिए ये तटीय प्रदेश कहे जाते हैं। यहाँ अनेक बड़े बन्दरगाह हैं, जिनमें असंख्य जलयानों की सहायता से विदेशियों द्वारा विनिमय के योग्य व व्यापारिक वस्तुओं का निर्यात और (UPBoardSolutions.com) आयात किया जाता है। प्राचीनकाल में भी भारत की नौका-परिवहन की व्यवस्था अत्यन्त समृद्ध थी। अनेक द्वीपों और दूसरे देशों के साथ सागर के मार्ग से व्यापार चलता था। इसी प्रकार समुद्र के तट के जल में मछली पकड़ने का धन्धा आजकले का महान् उद्योग बन गया है।

UP Board Solutions

(5) प्रकृतिदेव्याः भारते महती कृपा वर्तते। षभिः ऋतुभिर्विरोज़मानम् ऋतुचक्रमत्रैव परिवर्तते। सूर्याचन्द्रमसोः प्रकाशो यथाऽत्र प्रसरति तथा संसारस्यात्यल्पेषु एव देशेषु स्यात्? सूर्यास्तस्य चन्द्रास्तस्य च सूर्यचन्द्रयोः अस्तमनवेलायाः मनोरमाणि दृश्यानि यथा अत्रं भवन्ति तथा नान्यत्र। सकलेऽपि भारते देशे नदीनां प्राकृतिकं जलं प्रसृतं येनात्रत्या भूमिरत्युर्वरा सञ्जाता। सिन्धु-वितस्ता-शतद्-सरस्वती-गङ्गा-यमुना-ब्रह्मपुत्रादयः सरित उत्तरभागे, चर्मण्वती नर्मदादयो मध्यभागे, गोदावरी-कावेरी-कृष्णा-पेरिषार-महा- नद्यादयश्च दक्षिणभागे प्रवहन्ति। एतासां तटेषु हरिद्वार-प्रयाग-काशी-गयादीनि बहूनि तीर्थस्थानानि विद्यन्ते। यत्र प्रतिदिनं सहस्रशो (UPBoardSolutions.com) यात्रिणः स्नानं कृत्वा धर्मं चिन्वन्ति। विशेषेष्वसरेषु, तु कुम्भसदृशानि मेलकानि भवन्ति। यत्र देशस्य प्रतिकोणतः सहस्त्रशो लक्षशो जना आगत्य सम्मिलन्ति। देशस्य वास्तविकीमेकतां च वाचं विनैव सुतरां मुखरयन्ति। भारतस्य वनानां शोभापि परमहृद्या। हिमालयेषु देवदारुवृक्षाणामुच्छायो गगनं चुम्बति तर्हि सागरतटीयप्रदेशेषु नारिकेलपूगादिवृक्षाणां घना वनराजयः समुद्रजलमात्मनो दर्पणमिवाकलयन्ति। प्राकृतिकसुषमा

कारणादेव कश्मीरस्तु पृथ्वीस्थः स्वर्ग एवं मन्यते। अस्माकं राष्ट्रगाने भारतस्य प्रमुखानां प्रदेशानां पर्वतानां नीदनाञ्च कीर्तनं वर्तते। अपरस्मिन् च वन्दे मातरमित्याख्ये गते च अस्याः भुवः सुजलत्वं सुफलत्वं शस्यश्यामलत्वञ्च वण्र्यन्ते। |

शब्दार्थ
प्रकृतिदेव्याः = प्रकृति रूपी देवी की।
परिवर्तते = बदलता है।
प्रसरति = फैलता है।
स्यात् = हो सकता है।
नान्यत्र = दूसरी जगह नहीं।
प्रसृतं = बहता है।
अत्युर्वरा = अधिक उपजाऊ।
सञ्जाताः = हो गयी हैं।
वितस्ता = व्यास।
शतद् = सतलज।
चर्मण्वती = चम्बल।
चिन्वन्ति = चुनते हैं, संचय करते हैं।
मेलकानि = मेले।
प्रतिकोणतः = प्रत्येक कोने से।
लक्षशः = लाखों
वाचं विनैव = बिना कहे ही।
सुतरां = भली प्रकार।
मुखरयन्ति = मुखर होते हैं, बोलते हैं।
हृद्या = सुन्दर।
चुम्बति = चूमती है।
पुगादि = सुपाड़ी आदि।
दर्पणामिवाकलयन्ति = दर्पण-सा प्रकट करते हैं।
पृथ्वीस्थः = पृथ्वी पर स्थित।
अपरस्मिन् = दूसरे में।
शस्य = फसल।
वण्र्यन्ते = वर्णित किये जाते

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में भारत के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
भारत पर प्रकृति देवी की महान् कृपा है। छह ऋतुओं से सुशोभित ऋतु-चक्र यहीं  पर बदलता है। सूर्य और चन्द्रमा का प्रकाश जैसा यहाँ फैलता है, वैसा संसार के बहुत थोड़े ही देशों में होता है। सूर्यास्त, चन्द्रास्त और सूर्य-चन्द्र के डूबने के समय के जैसे सुन्दर दृश्य यहाँ होते हैं, वैसे अन्यत्र नहीं। सारे ही भारत देश में नदियों का प्राकृतिक जाल फैला हुआ है, जिससे यहाँ की भूमि अत्यधिक उपजाऊ हो गयी है। उत्तर भाग में सिन्धु, बेतवा, सतलज, सरस्वती, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र आदि नदियाँ; मध्य भाग में चम्बल, नर्मदा आदि और दक्षिण भाग में गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, पेरिषार आदि महानदियाँ बहती हैं। इनके तटों पर हरिद्वार, प्रयाग, काशी, गया आदि बहुत-से तीर्थस्थान विद्यमान हैं, जहाँ प्रतिदिन हजारों यात्री स्नान करके धार्मिक कार्यक्रमों में लगते हैं (धर्मार्जन करते हैं)। (UPBoardSolutions.com) विशेष अवसरों पर तो कुम्भ जैसे (विशाल) मेले होते हैं, जहाँ देश के प्रत्येक कोने से हजारों, लाखों लोग आकर सम्मिलित होते हैं और देश की सच्ची एकता को बिना कहे ही अच्छी तरह प्रकट करते हैं। भारत के वनों की शोभा भी परम रमणीय है। हिमालय पर देवदारु के वृक्षों की ऊँचाई आकाश को चूमती है तो संसार के तटीय प्रदेशों में नारियल, सुपारी आदि वृक्षों की घनी वन पंक्तियाँ समुद्र के जल , को अपने दर्पण के समान समझती हैं। प्राकृतिक शोभा के कारणों से ही कश्मीर पृथ्वी का स्वर्ग ही माना जाता है। हमारे राष्ट्रगान में भारत के प्रमुख प्रदेशों, पर्वतों और नदियों की कीर्ति (को वर्णन) है। और दूसरे ‘वन्देमातरम्’ नाम के गीत में इस पृथ्वी की सुजलता, सुफलता और शस्य-श्यामलता वर्णित है।

UP Board Solutions

(6) अयमस्माकं भारतदेशः संसारस्य गुरूरप्युच्यते। न केवलमुपनिषदामुत्तरवेदान्तस्य चाध्यात्मिकता, श्रुतिस्मृत्यादिषु प्रतिपादितो नैतिक आचारस्तथा विविधसिद्धिप्रदाता योगाभ्यास एवाद्यत्वेऽपि विदेशीयानामाकर्षणकारणं येन तेऽधुनानेकेष्वाश्रमेष्वत्र शान्ति मृगयमाणाः साधनां कुर्वन्ति स्वदेशेष्वपि तथाविधान् आश्रमांश्च संस्थापयन्ति। हरे कृष्णाद्यनेकसम्प्रदायानुभाव्य भक्तिमार्गमवलम्बन्तेऽपि च कामार्थाविति पुरुषार्थद्वयेऽपि ‘भारतस्य प्राचीनामुपलब्धिं बहु मन्यन्ते। वात्स्यायनं चाणक्यं चानुद्धृत्य यौन-विज्ञानस्य ‘राजनीतिविज्ञानस्य चेतिहासमापि प्रारब्धं न पारयन्ति। अनुल्लिख्य च सुश्रुतं न | शल्यक्झिानस्याविर्भावं प्रस्तोतुं शक्यते। गणितविद्यायामूलम् अङ्कलेखनप्रणाली सर्वप्रथम भारते एव आविर्भूता, ततश्च भारतीयेभ्यो अरब-देशीयैरवगतात। (UPBoardSolutions.com) अधुनापि अङ्क ‘हिन्दसा’ (हिन्दात् = भारतात् आगतः) इति कथयन्ति। यूरोपीयैस्तु तत्पश्चादेवारबवासिभ्यः सङ्ख्यालेखनप्रकारः शिक्षितः। स्वास्थ्यकृते योगासनशिक्षा तु ब्रिटेनादिदेशेषु अनेकत्र माध्यमिकविद्यालयेषु प्रचलिता। भारतजन्मा बौद्धधर्मोऽद्यापि कोटिभिर्विदेशीयानामनुस्रियते। महात्मा गान्धिना पुनरुद्घोषितो “अहिंसा परमो धर्मः” अद्यापि विश्वशान्तेरद्वितीय उपायः स्वीक्रियते। किन्तु हन्त! मिथः अविश्वसद्भिः परस्परं विभ्यभिस्तथोच्चैराकक्षमाणैः संसारस्य नैकैर्हठिभिर्नेतृभिस्तुदनुपालने वैवश्यमनुभूयते। त्यक्तेन भुञ्जीथा इत्यार्षसिद्धान्तमनुसृत्य ‘वसुधैव कुटुम्बकमिति’ आदर्श प्राप्ता जना एव विश्वशान्ति स्थापयितुं समर्था न तु आयुधेभ्यो धावमानाः मृत्युपण्याः कुशासकाः विश्वराजनेतारः।

शब्दार्थ
गुरूरप्युच्यते (गुरुः + अपि + उच्यते) = गुरु भी कहा जाता है।
प्रतिपादितः = ‘सिद्ध किया गया।
मृगयमाणाः = खोजते हुए।
उद्भाव्य = उत्पन्न करके।
अनुधृत्य = बिना उद्धरण
दिये। प्रारब्धम् = प्रारम्भ करना।
अनुल्लिख्य च = उल्लेख किये बिना।
प्रस्तोतुम् शक्यते = प्रस्तुत किया जा सकता है।
अवगता = जानी।
अनुत्रियते = अनुसरण किया जाता है।
स्वीक्रियते = स्वीकार किया जाता है।
हन्त = दुःख है।
मिथः = आपस में
बिभ्यद्भिः = डरने वाले।
वैवश्यम् अनुभूयते = विवशता अनुभव की जाती है।
भुञ्जीथा = भोग करो।
अनुसृत्य = अनुसरण करके।
धावमानाः = दौड़ते हुए।
मृत्युपण्याः = मौत के सौदागर।
विश्वराजनेतारः = विश्व के राजनेता।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में भारत की आध्यात्मिकता, ज्ञान-विज्ञान एवं विश्व-शान्ति की स्थापना में भारतीय नीति की भूमिका का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
यह हमारा भारत देश संसार का गुरु भी कहा जाता है। केवल उपनिषदों और उत्तर वेदान्त की आध्यात्मिकता ही नहीं, वेदों, स्मृतियों आदि में बतलाया गया नैतिक आचार तथा अनेक प्रकार की सिद्धियों को देने वाला योगाभ्यास ही आजकल भी विदेशियों के आकर्षण का कारण है, जिससे वे लोग अब अनेक आश्रमों में यहाँ शान्ति को खोजते हुए साधना करते हैं और अपने देशों में भी उस प्रकार के आश्रमों की (UPBoardSolutions.com) स्थापना करते हैं। हरे कृष्ण’ आदि अनेक सम्प्रदायों को उत्पन्न करके भक्तिमार्ग का अवलम्बन करते हुए भी काम और अर्थ इन दो पुरुषार्थों को भी प्राचीन भारत की बड़ी (महान्) उपलब्धि समझते हैं। वात्स्यायन और चाणक्य का उद्धरण दिये बिना यौन-विज्ञान और राजनीति विज्ञान के इतिहास को भी प्रारम्भ करने में समर्थ नहीं हैं। सुश्रुत का उल्लेख किये बिना शल्य-विज्ञान की उत्पत्ति प्रस्तुत नहीं की जा सकती। गणित विद्या की मूलस्वरूप अंकों को लिखने की प्रणाली सबसे पहले भारत में भी उत्पन्न हुई और इसके बाद भारतीयों से अरब देश वालों ने जानी। आज भी अंकों को ‘हिन्दसा’ (हिन्द या भारत से आया हुआ) कहते हैं। यूरोप वालों ने तो उसके बाद ही अरब देश वालों से संख्या लिखने का तरीका सीखा। स्वास्थ्य के लिए योगासन की शिक्षा तो ब्रिटेन आदि देशों में अनेक जगह माध्यमिक स्कूलों में प्रचलित है। भारत में उत्पन्न बौद्ध धर्म को आज भी करोड़ों विदेशियों द्वारा अनुसरण किया जाता है। महात्मा गाँधी के द्वारा पुनः उद्घोषित ‘अहिंसा परमो धर्मः’ (के नारे) को आज भी विश्व-शान्ति का सर्वश्रेष्ठ उपाय स्वीकार किया गया है, किन्तु खेद है। आपस में विश्वास न करने वाले, आपस में डरने वाले तथा ऊँची आकांक्षा रखने वाले संसार के अनेक हठी नेता उनका पालन (UPBoardSolutions.com) विवश होकर नहीं करते हैं। ‘त्यक्तेन भुञ्जीथाः’ (त्यागपूर्वक भोग करो) ऋषियों के इस सिद्धान्त का अनुसरण करके ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ (पृथ्वी ही कुटुम्ब के समान है)-इस आदर्श को प्राप्त हुए लोग ही विश्व-शान्ति को स्थापित करने में समर्थ हैं, आयुधों के लिए दौड़ते हुए, मृत्यु का व्यापार करने वाले, बुरे शासक, संसार के राजनेता नहीं।

(7) अस्माकं प्राचीनां वास्तुकलां शिल्पकलां च दशैं दशैं विस्फारितनेत्राणां विकसित देशवास्तव्यानां विस्मयचकिती वागपि न स्फुरति। खुजराहो कोणार्कादिमन्दिराणां स्थापत्यं मूर्तिकलां चावलोकयितुं लक्षशो विदेशीयाः पर्यटका अत्रागच्छन्ति। मुहम्मदीयैरपि शासकैरस्मिन् क्षेत्रे यद्विहितं तदपि ‘ताजमहल-कुतुबमीनारादि’ रूपेण प्रतिष्ठितं भारतीयं गौरवं वर्धयति। तदपि वैदेशिकैः सविस्मयं मुहुर्मुहुः स्तूयते। ताजमहलं तु तैः संसारस्य सप्तसु आश्चर्येषु गण्यते। भारतीयमूर्तिकलायास्तु, वैदेशिकास्तथा प्रशंसकोस्तदर्थं तथोन्मत्ताश्चे जायन्ते यल्लक्षशो रुप्यकाणां व्ययं कृत्वापि अवैधैरप्युपायैस्तास्कर्यादिभिः प्राचीनाः मूर्तीः प्राप्तुं यतन्ते। अहो! प्रशंसनीया तेषां कलाप्रीतिः, निन्दनीयाः अवैधा उपायाः, दयनीया च कलाकृतिदरिद्रता।

शब्दार्थ
वास्तुकला = भवन-निर्माण की कला।
शिल्पकला = शिल्प सम्बन्धी कला।
दशैं दर्श = देख-देखकर।
विस्फारितनेत्राणाम् = फटी हुई आँखों से देखते हुए।
वागपि = वाणी भी।
स्थापत्यम् मूर्तिकलां च = भवन-निर्माण कला और मूर्तिकला।
पर्यटकाः = घूमने वाले।
मुहम्मदीयैः अपि = मुसलमानों के द्वारा भी।
विहितम् = किया।
वर्धयति = बढ़ाती है।
मुहर्मुहुः = बार-बार।
स्तूयते = प्रशंसा की जाती है।
गण्यते = गिना जाता है।
अवैधैः उपायैः = गैरकानूनी तरीकों से।
तास्कर्यादिभिः = चोरी-तस्करी आदि से।
यतन्ते = यत्न करते हैं।
कलाकृतिदरिद्रता = कलाकृतियों की कमी या अभाव।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में भारत की प्राचीन कला के प्रति गौरवानुभूति व्यक्त की गयी है।

अनुवाद
हमारी प्राचीन भवन-निर्माण कला और शिल्पकला को देख-देखकर फटी हुई आँखों से देखते हुए विकसित देश के निवासियों की विस्मय से चकित होकर वाणी भी नहीं निकलती है। खजुराहो, कोणार्क आदि के मन्दिरों की स्थापत्यकला और मूर्तिकला को देखने के लिए लाखों 
विदेशी पर्यटक यहाँ आते हैं। मुसलमान शासकों ने भी इस क्षेत्र में जो किया, वह भी ताजमहल, . कुतुबमीनार आदि के रूप में प्रतिष्ठित होकर भारत के गौरव को बढ़ा रहा है। उसकी भी विदेशियों के द्वारा विस्मय से बार-बार प्रशंसा की जाती है। (UPBoardSolutions.com) ताजमहल को तो वे संसार के सात आश्चर्यों में गिनते हैं। भारत की मूर्तिकला के तो विदेश के लोग इतने प्रशंसक हैं और उनके लिए इतने पागल हो जाते हैं कि लाखों रुपये खर्च करके भी गैरकानूनी तरीकों, चोरी आदि से भी प्राचीन मूर्तियों को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। अहो! उनका कला-प्रेम प्रशंसा के योग्य है, गैरकानूनी तरीके निन्दा के योग्य हैं और कलाकृतियों का अभाव दया के योग्य है।

UP Board Solutions

(8) अदभुतोऽयं परमगरिमा देशो यत्र नचिकेता इव ज्ञानपिपासवः जाबालेयसत्यकाम इव सत्यवादिनः, ध्रुव इव तपस्विनश्च बालकाः, अभिमन्युरिव शूराः किशोराः, एकलव्योद्दालककौत्ससदृशा गुरुभक्ताः शिष्याः शिविमयूरध्वजकर्णप्रभृतयो दानिनः, हरिश्चन्द्रयुधिष्ठिरादयः सत्यवादिनः, भरतलक्ष्मणसदृशाः भ्रातरः, सीतासावित्री-गान्धारी-सदृश्यः पन्याः, दशरथसदृशाः पितरश्च बभूवुः। (UPBoardSolutions.com) मैत्रोयी-गार्गी-भारती-सदृश्यो विदुष्यो, रजियासुल्ताना-दुर्गावतीलक्ष्मीबाई सदृश्यो वीराङ्गनाः, भक्तसिंहसुखदेव-चन्द्रशेखर-सदृशाः देशभक्ताः, महावीरगौतमबुद्धगान्धितुल्या महात्मानः सन्ताश्चास्या एवं भारतभुवः सन्ततयः आसन्। देशान्तुरेषु धर्मस्य ग्लान्यां सत्यां क्वचिदीश्वरेण स्वकीयो दूतः प्रहितः क्वचिच्च सुतः अत्र तु स्वयं । भगवानेव मानवरूपमाधायावतीर्णः।।

शब्दार्थ
ज्ञानपिपासवः = ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक।
जाबालेय = जाबालि का पुत्र।
विदुष्यः = विदुषियाँ।
सन्ततयः = सन्ताने।
ग्लान्यां सत्यां = कमी होने पर
प्रहितः = भेजा।
मानवरूपमाधाय = मानव का रूप धारण करके।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में भारत के ज्ञान-पिपासुओं, सत्यवादियों, तपस्वी बालकों, वीर किशोरों, गुरुभक्त शिष्यों, दानियों, सत्यवादियों, आदर्श भाई, पत्नी, पिताओं, विदुषी और वीरांगनाओं, देशभक्तों और सन्तों के प्रति गौरवानुभूति की गयी है।

अनुवाद
अत्यन्त गरिमा वाला यह देश अद्भुत है, जहाँ नचिकेता के समान ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक; जाबालि के पुत्र सत्यकाम की तरह सत्यवादी; ध्रुव की तरह तपस्वी बालक; अभिमन्यु की तरह वीर किशोर; एकलव्य, उद्दालक और कौत्स के समान गुरुभक्त शिष्य; शिवि, मयूरध्वज, कर्ण जैसे दानी; हरिश्चन्द्र, युधिष्ठिर आदि सत्यवादी; भरत और लक्ष्मण के समान भाई; सीता, सावित्री और गान्धारी के समान पत्नियाँ और दशरथ के समान पिता हुए हैं। मैत्रेयी, गार्गी और भारती के समान विदुषी स्त्रियाँ; रजिया सुल्तान, दुर्गावती, लक्ष्मीबाई जैसी (UPBoardSolutions.com) वीरांगनाएँ; भगतसिंह, सुखदेव और चन्द्रशेखर के समान देशभक्त; महावीर, गौतम बुद्ध और गाँधी के समान महात्मा और सन्त इसी भारत-भूमि की सन्तान थे। दूसरे देशों में धर्म की हानि होने पर कहीं ईश्वर के द्वारा अपना दूत भेजा गया और कहीं पुत्रे, परन्तु यहाँ तो स्वयं भगवान् ने ही मनुष्य का रूप धारण करके अवतार लिया।

(9) अधुनातनेऽप्यनेहसि भारतस्य विश्वस्मिन् भूमण्डले महत्त्वपूर्ण स्थानं वर्तते। स्वकीयाः पारतन्त्र्यशृङ्खला विभज्यास्माभिः सर्वेषामपि पराधीनदेशानां कृते साहाय्यमुघोषितम्। कस्यापि देशस्य प्रभुत्वसत्ता तत्रत्यजनेषु एव निहितेति सडिण्डिमं सिद्धान्तितम्। साम्यवादिदेशानां पुञ्जिवादिदेशानाञ्च वर्गात् पृथक् स्थित्वा विकसतां नवस्वतन्त्राणां देशानां कृते ताटस्थ्यनीतिः प्रचारिता, तेषां च पृथक् सङ्गठनं कृतं यस्य प्रभावो विश्वराजनीत्यां स्पष्टमनुभूयते। विकसितदेशानामार्थिकषड्यन्त्राणामुदघाटनं क्रियते। श्वेताङ्गानां रङ्गभेदनीतेर्विरुद्ध जनमतं सुदृढीकृतम्। भारतीयैः प्रयत्नैरेशियाऽफ्रीकामहाद्वीपीयदेशेषु यद् जागरणं जातं तेनैतेषां देशानां मानोऽपि जगति वर्धितः। आधुनिकविज्ञानौद्योगिकीयान्त्रिक्यादीनां नवज्ञानानां क्षेत्रे (UPBoardSolutions.com) महान् विकासो विहितः। नैके आविष्काराश्च कृताः। कृष्युत्पादनं वर्धितम्। यत्र सूच्यपि नो निर्मीयते स्म तत्राधुना अत्याधुनिकानि यन्त्राणि निर्मीयन्ते। न केवलमविकसितेभ्यो देशेभ्योऽपि तु अमेरिकाब्रिटेन सदृशविकसितदेशेभ्योऽपि न केवलं हस्तशिल्पनिर्मितानि वस्तून्यपि तु उच्चाभियान्त्रिकीनिर्मयाणि सूक्ष्मयन्त्राणि अपि दीयन्ते। वैज्ञानिकानां यान्त्रिक्रीविशेषज्ञानां च यद् बाहुल्यं सम्प्रति । भारते वर्तते तत् संसारे द्वित्रिषु देशेषु भवेन्न वा। सहस्रशो विशेषज्ञा देशान्तराणि गत्वा तत्र तेषामुपचयं कुर्वन्ति। भारतीया यथा श्रमशीला न तथा अन्ये इति देशान्तरेषु प्रतिष्ठितम् तथ्यम्।।

शब्दार्थ
अधुनातनेऽप्यनेहसि = आधुनिक दिनों में भी, आधुनिककाल (आज) में भी।
विश्वस्मिन् भूमण्डले = सम्पूर्ण भूमण्डल पर।
विभज्य = भेदकर या काटकर।
निहितेति (निहिता +इति) = छिपी रहती है, ऐसा।
सडिण्डिमम् = ढिंढोरा पीटकर।
सिद्धान्तितम् = सिद्धान्त रूप में माना।
पुञ्जवादि = पूँजीवादी।
कृते = लिए।
ताटस्थ्यनीतिः = तटस्थता की नीति।
अनुभूयते = अनुभव की ।
जाती है।
सुदृढीकृतम् = मजबूत की।
मानोऽपि = मान भी।
विहितः = किया।
सूच्यपि = सुई भी।
दीयन्ते =दिये जाते हैं।
उपचयम् = वृद्धि।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में संसार के देशों में भारत की राजनीतिक क्षेत्र में सर्वाधिक प्रगपि तथा तकनीकी ज्ञान के विकास का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
आधुनिककाल में भी भारत का सम्पूर्ण भूमण्डल में महत्त्वपूर्ण स्थान है। अपनी पराधीनता की जंजीरों को काटकर हमने सभी पराधीन देशों के लिए सहायता की घोषणा की। किसी भी देश की प्रभुसत्ता वहाँ के लोगों में ही निहितं है, इसको ढिंढोरा पीटकर सिद्धान्ततः सिद्ध किया। साम्यवादी देशों और पूँजीवादी देशों के वर्ग से अलग रहकर विकसित नये स्वतन्त्र हुए देशों के लिए (हमने) तटस्थ नीति (निर्गुट नीति) का प्रचार किया और उसका अलग से संगठन बनाया, जिसका प्रभाव विश्व की राजनीति पर स्पष्ट रूप से अनुभव किया जाता है। विकसित देशों के आर्थिक षड्यन्त्रों का भण्डाफोड़ किया है। गौरांगों की रंगभेद नीति के विरुद्ध जनमत को दृढ़ किया। भारत के प्रयत्नों से एशिया, अफ्रीका महाद्वीप के देशों में जो जागरण हुआ, उससे इन देश का संसार में सम्मान भी बढ़ा। (UPBoardSolutions.com) आधुनिक विज्ञान, औद्योगिकी और अभियान्त्रिक आदि के नये ज्ञान के क्षेत्र में बहुत विकास किया और अनेक आविष्कार (खोज) किये। कृषि का उत्पादन बढ़ाया है। जहाँ सूई भी नहीं बनायी जाती थी, वहाँ अब अति आधुनिक यन्त्र बनाये जा रहे हैं। केवल अविकसित देशों को ही नहीं, वरन् अमेरिका, ब्रिटेन सरीखे विकसित देशों को भी न केवल हस्तशिल्प से बनायी गयी वस्तुएँ, अपितु बड़े अभियान्त्रिकी के लिए बनाये जाने वाले सूक्ष्म यन्त्र भी दिये जा रहे हैं। वैज्ञानिक और अभियान्त्रिकी विशेषज्ञों की जो अधिकता इस समय भारत में है, वह संसार में दो-तीन देशों में भी हो या न हो। हजारों विशेषज्ञ दूसरे देशों में ज़ाकर वहाँ उनकी वृद्धि करते हैं। भारत के लोग जैसे परिश्रमी हैं, वैसे दूसरे नहीं-यह तथ्य दूसरे देशों में स्थापित है।

UP Board Solutions

(10) उपर्युक्तविवरणेन विदितमेतद्भवति यत् भारतस्यातीतं तथा गौरवम् अद्याप्यस्मान् विश्वस्य सम्मुखं सम्मानस्योच्चैर्वेदिकायां प्रतिष्ठापयति। किन्तु केवलमतीतगौरवं तु भविष्यन्नेव निर्मातुं शक्नोति। वर्तमानकाले उपलब्धानां मानवसंसाधनानां सम्पदां च सर्वोत्तम उपयोगो विधेय येन विकासस्य गतिः प्रवर्धेत। सन्ति कश्चिदुर्दमाः समस्या याः कथमपि समाधेया एव। विदेशीया न वाञ्छन्ति यद् भारतं राजनीतिक्षेत्रे वित्तीयासु चोपलब्धिषु दृढ़ता गच्छेत्। अतस्ते भारतवासिषु मिथो भेदं प्रयुज्य कलहं कारयन्ति। धर्मं भाषां स्वनिवासक्षेत्र वा अग्रे कृत्वा समस्या उत्थाप्यन्ते। पञ्चाम्बुप्रदेशे केचन धर्मान्धा आतङ्कवादमनुसरन्ति विदेशीयैः प्रोत्साहिताः। प्रतिवर्षमनेके साम्प्रयदायिककलहो जायन्ते, निरपराधा जनाः प्रियन्ते, जनसम्पत्तिर्नश्यति देशस्य शक्तिक्षयो भवति। अतः सर्वैरपि अस्माभिः सौहार्देन मिथो वर्तितव्यम्। सर्वेषामपि धर्माणां सांस्कृतिकपरम्पराणां सामाजिकरीतिनामादरः कर्तव्यः। (UPBoardSolutions.com) धर्मसाहसिभिश्चापि अवगन्तव्यं यद् राजनीत्या धर्मस्य सङ्कटः सर्वथा अश्रेयस्करः। देशजीवनस्य प्रधानधारायां सम्यनिमज्जनमेव सर्वेषां मङ्गलम्। द्वितीया तु जनसङ्ख्यायाः समस्या। जनसङ्ख्यायो अत्यधिकवृद्धेः कारणाद् विकासस्य लाभो विलीयते। अतः परिवारकल्याणमप्यवधेयम्। एवमपि सर्वैरवधेयं यत्सार्वजनिकजीवने विशेषतो भ्रष्टचारो रोधनीयः। अनुचितो लाभः न जातु केनापि स्पृहणीयः। तदर्थं न कश्चिदप्यनुरोद्धव्यः प्रोत्साहनीयो वैवश्यं वोपनेयः। न कदापि तथा वर्तितव्यं यद् भारतमातुविरुद्धं भवेत्। स वै अस्माकं जन्मभूमिर्यस्याः रजसि व्यमाविर्भूतान। भवेन्नाम कस्यापि शवो वह्मिसात् परस्य च भूमिसात् को नाम भेदः? अन्ते तु सर्वोऽपि अस्या भारतमातुरेव रजसि विलीनो भवति। तत् कोऽर्थः परस्परं कलहेन जन्मनः मातरं प्रति विद्रोहेण वा। सा तु सर्वदैव माननीया। यतो हि–”

“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।”

शब्दार्थ
अतीतम् = बीता समय।
वेदिकायाम् = चबूतरे पर।
उपलब्धानां = प्राप्त हुई।
विधेयः = करना चाहिए।
प्रवर्धेत = बढ़ती रहे।
दुर्दमाः = दबाने में कठिना
समाधेया = समाधान की जाने योग्य।
वित्तीयासु = धन सम्बन्धों में
प्रयुज्य = प्रयोग करके।
उत्थाप्यन्ते = उभारी जा रही है।
पञ्चाम्बुप्रदेशे = पंजाब में।
अवगन्तव्यम् = जानना चाहिए।
अश्रेयस्करः = अहितकर।
मङ्गलम् = कल्याणकारी।
विलीयते = नष्ट हो रहा है।
अवधेयम् = ध्यान देना चाहिए।
रोधनीयः = रोकना 
चाहिए।
स्पृहणीयः = चाहा जाने योग्य।
जातु = कभी भी।
वैवश्यं = विवशता को।
वोपनेयः (वा + : उपनेयः) = अथवा ले जाना चाहिए।
वर्तितव्यम् = व्यवहार करना चाहिए।
रजसि = धूल में।
वह्निसात् = जलाया जाये।
भूमिसात् भवेत् = दफनाया जाना चाहिए।
स्वर्गादपि (स्वर्गात् + अपि) = स्वर्ग से भी।
गरीयसी = महान्।।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में भारत की ज्वलन्त समस्याओं की ओर ध्यानाकृष्ट करके सबको प्रेम से रहने का सन्देश दिया गया है।

अनुवाद
ऊपर बताये गये विवरण से यह मालूम होता है कि भारत का अतीत और गौरव आज भी . हमें संसारे के सामने सम्मान के उच्च सिंहासन पर स्थापित करता है, किन्तु अतीत का गौरव भविष्य का निर्माण नहीं कर सकता है। वर्तमान समय में प्राप्त हुई मानव की सुविधाओं और सम्पत्तियों का सबसे उत्तम उपयोग करना चाहिए, जिससे विकास की गति बढ़े। कुछ दबाने में कठिन दुर्दमनीय समस्याएँ हैं, जिनको किसी तरह समाधान करना ही है। विदेश के लोग नहीं चाहते हैं कि भारत राजनीति के क्षेत्र में और आर्थिक उपलब्धियों में मजबूत बने; अतः वे भारतवासियों में आपस में फूट डालकर झगड़ा कराते रहते हैं। धर्म, भाषा या प्रदेश को आगे रखकर समस्याएँ पैदा की जाती हैं। पंजाब प्रदेश में कुछ धर्मान्ध विदेशियों के द्वारा उकसाये जाकर आतंकवाद का सहारा ले रहे हैं। प्रतिवर्ष अनेक साम्प्रदायिक झगड़े पैदा होते हैं, निर्दोष लोग मारे जाते हैं, जन-सम्पत्ति नष्ट होती है और देश की शक्ति का ह्रास (UPBoardSolutions.com) होता है; अत: हम सबको आपस में भाईचारे से रहना चाहिए। सभी धर्मों, सांस्कृतिक परम्पराओं और सामाजिक रीति-रिवाजों का आदर करना चाहिए; अत: धर्म के अगुवाओं को भी समझ लेना चाहिए कि राजनीति के द्वारा धर्म का संकट पैदा करना सब तरह से अहितकर है। देश के जीवन की मूलधारा में अच्छी तरह मिल जाने में ही सबका कल्याण है। दूसरी जनसंख्या की समस्या है। जनसंख्या बहुत अधिक बढ़ने से विकास का लाभ नष्ट हो जाता है; अतः परिवार कल्याण की ओर भी ध्यान देना चाहिए। यह भी सबको ध्यान देना चाहिए कि सार्वजनिक जीवन में विशेष रूप से भ्रष्टाचार को रोका जाए। किसी को (कभी) भी अनुचित लाभ की इच्छा नहीं करनी चाहिए। उसके लिए न किसी से अनुरोध किया जाए अथवा विवश होकर न प्रोत्साहन दिया जाए। कभी भी ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए, जो भारतमाता के प्रतिकूल हो। (निश्चय ही) यह । हमारी जन्मभूमि है, जिसकी धूल में (UPBoardSolutions.com) हम उत्पन्न हुए हैं। किसी को मृत शरीर जलाया जाए या दफनाया जाए-दोनों में क्या अन्तर है? अन्त में तो सभी इस भारतमाता की धूल में मिल जाते हैं। आपस में झगड़ने से अथवा जन्म की माता के प्रति विद्रोह करने से क्या लाभ? वह. तो सदा ही सम्मान के योग्य है; क्योंकि माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं।”

लघु उत्तरीय प्ररन

प्ररन
भारतवर्ष पर एक छोटा-सा निबन्ध लिखिए। या ‘भारतवर्षम्’ पाठ का सारांश लिखिए।
उत्तर
[संकेत-‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत दी गयी सामग्री को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए।]

प्ररन
भारत की भौगोलिक परिस्थिति का वर्णन ‘भारतवर्षम्’ पाठ के आधार पर कीजिए।
उत्तर
[संकेत-‘पाठ-सारांश’ शीर्षक के अन्तर्गत आये तीन शीर्षकों-‘प्रहरी हिमालय’, ‘तीन दिशाओं में समुद्र’, ‘तटीय प्रदेश’–की सामग्री को संक्षिप्त रूप में अपने शब्दों में लिखें।

UP Board Solutions

प्ररन
भारत की प्रमुख समस्याएँ बताइए और उनके समाधान पर प्रकाश डालिए। |
उत्तर
[संकेत—‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत आए शीर्षक ‘समस्याएँ’ की सामग्री को अपने शब्दों में लिखें।]

प्ररन
भारत के प्राचीन गौरव पर ‘भारतवर्षम्’ पाठ के आधार पर प्रकाश डालिए। |
उत्तर
[संकेत-पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत आये तीन शीर्षकों-संसार का गुरु’, ‘कला की प्रगति’, ‘महापुरुषों की पवित्र भूमि’–की सामग्री को संक्षिप्त रूप में अपने शब्दों में लिखें।]

प्ररन
भारतवर्ष का यह नाम किस आधार पर पड़ा है?
उत्तर
[संकेत-पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत आये शीर्षक ‘नामकरण’ की सामग्री को अपने शब्दों में लिखें।]

We hope the UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 10 भारतवर्षम् (गद्य – भारती)help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 10 भारतवर्षम् (गद्य – भारती), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.