UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 18 शिशु की देखभाल

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Board UP Board
Class Class 12
Subject Home Science
Chapter Chapter 18
Chapter Name शिशु की देखभाल
Number of Questions Solved 21
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 18 शिशु की देखभाल

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
शिशु के शारीरिक क्रिया का प्रथम परीक्षण है।
(a) वमन
(b) दस्त
(c) रुदन
(d) हँसना
उत्तर:
(c) रुदन

प्रश्न 2.
शिशु के जन्म के समय भार होता है।
(a) लगभग 5-7 पौण्ड
(b) लगभग 7-8 पौण्ड
(c) लगभग 2-3 पौण्ड
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) लगभग 5-7 पौण्ड

प्रश्न 3.
माँ का दूध शिशु के लिए उपयोगी है, क्योंकि (2018)
(a) इसमें रोग से लड़ने की क्षमता होती है
(b) इसमें सभी पोषक तत्त्व पाए जाते हैं
(c) यह शीघ्र पचता है
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 4.
शिशु की किस अवस्था में स्तन त्याग करना चाहिए?
(a) 5 से 7 माह
(b) 6 से 9 माह
(c) 8 से 9 माह
(d) 4 से 5 माह
उत्तर:
(b) 6 से 9 माह

प्रश्न 5.
दूध के अतिरिक्त अन्य सम्पूरक आहार शिशु की किस आयु से शुरू होता है?
(a) 2 माह
(b) 6 माह
(c) 1 वर्ष
(d) 2 वर्ष
उत्तर:
(b) 6 माह

प्रश्न 6.
शिशु में अस्थायी दाँत (दूध के दाँत) की संख्या है।
(a) 20
(b) 22
(c) 24
(d) 30
उत्तर:
(a) 20

प्रश्न 7.
शिशु में लघु पाचक व्याधि है।
(a) अतिसार
(b) घेघा
(c) खसरा
(d) ज्वर
उत्तर:
(d) अतिसार

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक, 25 शब्द)

प्रश्न 1.
शिशु का भार क्यों ज्ञात करते रहना चाहिए?
उत्तर:
जन्म के तुरन्त बाद शिशु का भार लगभग 5-7 पौण्ड तक होता है, जो धीरे-धीरे कम होकर कुछ औंस में बदलता है। अत: एक महीने तक हर हफ्ते तथा 6 माह तक हर 15 दिन के पश्चात् भार ज्ञात करते रहने चाहिए, जिससे बच्चे की प्रगति ज्ञात होती रहती है।

प्रश्न 2.
स्तन त्याग से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
शिशु की आयु बढ़ने के साथ-साथ उसकी शारीरिक वृद्धि भी तीव्र गति से बढ़ती है। इस वृद्धि के कारण उसकी भूख भी बढ़ती है, जिससे उसे अधिक पोषण की आवश्यकता होती है। अतः अब उसे माँ के दूध के अतिरिक्त भी भोजन की आवश्यकता होगी। इस स्थिति में माँ को शिशु के लिए अतिरिक्त भोजन तथा ऊपरी दूध पिलाने की आवश्यकता होती है, जिसके लिए उसे बच्चे को स्वयं का स्तनपान छुड़ाना होता है, इसे ही स्तन त्याग कहते हैं।

प्रश्न 3.
दूध के दाँत से आप क्या समझती हैं? |
उत्तर:
शिशुओं में दाँत निकलने का समय 6-7 माह के बाद का होता है। दाँत निकलने की यह प्रक्रिया 2 से [latex]2 \frac { 1 } { 2 }[/latex] वर्ष तक होती है, जिसमें 20 दाँत निकलते हैं।इन्हें दूध के दाँत कहते हैं।

प्रश्न 4.
दाँत आसानी से निकल आए इसके लिए क्या उपाय करना चाहिए?
उत्तर:
सुहागा को तवे पर भूनकर शहद मिलाकर मसूड़ों पर लगाने से दाँत जल्दी व आसानी से निकलते हैं।

प्रश्न 5.
शिशुओं में लघु पाचक व्याधियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
कब्ज, पेट फूलना, दस्त आना, अतिसार, वमन (उल्टियाँ), पेट दर्द होना, चुनचुने लगना आदि।

लघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक, 50 शब्द)

प्रश्न 1.
स्तनपान छुड़ाने की विधि लिखिए। (2018)
उत्तर:
शिशु जैसे-जैसे बड़ा होता है उसका स्तनपान बन्द करके उसे पूरी तरह ठोस आहार पर निर्भर बनाना होता है, क्योंकि एक समय बाद शारीरिक और मानसिक विकास की जरूरत केवल स्तनपान से पूरी नहीं हो सकती है। अत: स्तनपान छोडना शिश के लिए जरूरी होता है। माँ शिशु को 6 महीने बाद स्तनपान कराना बन्द कर सकती है, क्योंकि इस उम्र के बाद बच्चे कुछ ठोस आहार लेना शुरू कर देते हैं। ऐसे में, आप धीरे-धीरे करके उसे अपना दूध पिलाना बन्द करें। हालाँकि जब आपका शिश ठोस आहार लेना शुरू कर देता है। तब वह आपकों ज्यादा दूध पीने की माँग नहीं करता है, क्योंकि इससे शिशु का पेट भरा रहता है, लेकिन बाहरी आहार देने के बाद इस बात की जाँच कर लें कि आपके बच्चे का पेट भर रहा है या नहीं।

धीरे-धीरे स्तनपान छुड़ाने का प्रयास करें, न की एक बार में अचानक से बच्चे को दूध पिलाना छोड़ दें। यदि आप अचानक से बच्चे को स्तनपान छुड़ाने की कोशिश करेंगी तो हो सकता है कि आपका बच्चा बीमार हो जाए। एक बार में स्तनपान छुड़ाना माँ और बच्चे दोनों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।

यदि आप शिशु को पहले पूरे दिन में 6 बार स्तनपान कराती थीं, तो अब उसे आप 2 से 3 बार दूध पिलाएँ, क्योंकि दिन के समय आप अपने बच्चे का दिमाग किसी और चीज़ों में लगा सकती हैं और ऐसे में शिशु धीरे-धीरे दूध स्तनपान करना बन्द कर देता है।

प्रश्न 2.
स्तन त्याग के पश्चात् शिशु को किस प्रकार का आहार देना चाहिए?
उत्तर:
स्तन त्याग के बाद शिशु का सर्वांगीण विकास हो सके, अत: उसके लिए भोजन में शरीर निर्माणक व रक्षक दोनों प्रकार के तत्त्व उचित मात्रा में मिले होने चाहिए। शिशु के भोजन में दूध, दही, पनीर, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, आलू, गेहूँ, दालें सम्मिलित होनी चाहिए। इससे शिशु को शारीरिक व मानसिक विकास उचित रूप से होगा। अतः शिशु के आहार में निम्नलिखित तत्त्व होने चाहिए

1. प्रोटीन यह शरीर निर्माणक तत्त्व है। यह कोशिका निर्माण का प्रमुख पदार्थ है। प्रोटीन की कमी के लिए बच्चे के आहार में दूध, गोभी, गाजर, पनीर, मटर, शलजम और हरी पत्तेदार सब्जियाँ, दालें, बादाम, लेकिन मांसाहारी हैं तो गोश्त, अण्डे इत्यादि भी दिए जा सकते हैं।

2. वसा शिशु को वसा की प्राप्ति के लिए मक्खन, कॉड लीवर ऑयल देना चाहिए। वैसे तो शिशु को वसा अपनी आवश्यकतानुसार दूध से ही प्राप्त हो जाती है।

3. कार्बोहाइड्रेट 6 महीने में शिशु काफी क्रियाशील हो जाती है। उसे ऊर्जा की प्राप्ति की भी आवश्यकता होती है। अतः उसके आहार में दलिया, चावल, डबलरोटी, साबुदाना, शकरकन्दी इत्यादि देनी चाहिए।

4. विटामिन दूध, दही, मछली, टमाटर, पनीर, गाजर, अण्डे, हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ इत्यादि शिशु के आहार में होनी चाहिए।

5. खनिज लवण शिशु को कैल्शियम, फास्फोरस, खनिज लवण की अधिक आवश्यकता होती है। खनिज लवण की प्राप्ति के लिए शिशु के आहार में अण्डा, पनीर, दही, फलों का रस, हरी सब्जियों का सूप, केला, सेब इत्यादि देने चाहिए।

प्रश्न 3.
शिशु के दाँत निकलते समय कौन-कौन सी सावधानियाँ बरतनी चाहिए?
उत्तर:
शिशु के दाँत निकलते समय माता को निम्नलिखित सावधानी बरतनी चाहिए

  1. दाँत निकलते समय बच्चे के मसूड़े फूले हुए होते हैं, अतः मसूड़ों में मिस-मिसी-सी आती है तथा बच्चा कठोर वस्तु चबाने का प्रयत्न करता है। ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा किसी अस्वच्छ कठोर वस्तु को न चबाए, अन्यथा कीटाणु शिशु के शरीर में प्रविष्ट होकर उसे रोगी बना देंगे। इस समय डबलरोटी सेंककर, गाजर, खीरा इत्यादि बच्चे को देना चाहिए।
  2. सुहागा तवे पर भूनकर पीसकर उसे शहद में मिलाकर मसूड़ों पर लगाना | चाहिए। यह दाँत निकलने में सहायता करता है।
  3. बच्चा 6-7 माह के पश्चात् अन्न खाने लगता है। अत: बच्चे के दाँत साफ करने चाहिए। टूथ-ब्रुश से बच्चे के दाँत नहीं साफ करने चाहिए, इससे बच्चे के मसूड़े छिलने का भय रहता है, इसलिए हाथ की अँगुली में मंजन लगाकर धीरे-धीरे दाँत साफ करने चाहिए।
  4. बच्चों को विटामिन डी, कैल्शियम, फास्फोरस दवा या टॉनिक के रूप में दे देने चाहिए। होम्योपैथिक की 20 नं. या B21 नं, दवाई की गोलियाँ भी दाँतों के लिए अच्छी रहती हैं, बच्चों को दे देनी चाहिए।
  5. चूने का पानी पिलाना चाहिए, इससे कैल्शियम मिलता है।

प्रश्न 4.
शिशुओं के वस्त्र तैयार करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
अथवा
टिप्पणी कीजिए- शिशु के वस्त्र का चुनाव (2018)
उत्तर:
छोटे शिशुओं के वस्त्रों का चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. सर्वप्रथम कपड़ा बच्चे के अनुकूल लेना चाहिए।
  2. ऐसे वस्त्र बनाए जाने या खरीदने चाहिए, जो आसानी से पहनाए जा सकें।
  3. शिशु के वस्त्र सामने या पीछे से खुले होने चाहिए।
  4. शिशु के वस्त्रों में अन्दर दबाव काफी रखना चाहिए। शिशु की लम्बाई तीव्र गति से बढ़ती है, इसलिए जरूरत पड़ने पर वस्त्र खोलकर बड़ा किया जा सकता है।
  5. घुटने चलने वाले बच्चों के वस्त्र ऐसे होने चाहिए, ताकि घुटने में न अटके।
  6. शिशु के वस्त्रों में बटन, डोरी कम होनी चाहिए।
  7. बच्चों के ऊनी वस्त्र बारीक व मुलायम ऊन के होने चाहिए, मोटी ऊन के वस्त्र बच्चों को चुभते हैं। वस्त्र रोएँदार भी नहीं होने चाहिए, अन्यथा रोया बच्चे के मुँह में चला जाता है।
  8. शीतऋतु में बच्चे को स्वेटर प पजामी के साथ टोपी-मौजे पहनाने चाहिए, किन्तु टोपी-मौजे रात को पहनाकर कदापि नहीं सुलाना चाहिए।
  9. शिशु की बिब अवश्य बनानी चाहिए, ताकि खाना खाते समय कपड़े गन्दे न करें।
  10. शिशु के वस्त्र में कभी बटन टूट जाए, तो पिन लगाकर नहीं पहनाने चाहिए

प्रश्न 5.
शिशुओं में नियमित उत्सर्जन की आदत का निर्माण किस प्रकार किया जा सकता है?
उत्तर:
शिशु में नियमित उत्सर्जन की आदत का निर्माण इस प्रकार किया जाता है

  1. शिशु में मल-मूत्र त्यागने की आदत का निर्माण शुरू से ही डालनी चाहिए। शिशु के जन्म से 6 माह तक मल त्याग का समय निश्चित नहीं होता। कुछ शिशु दिन में 5-6 बार तथा कुछ 2-3 बार मल त्याग करते हैं।
  2. जब शिशु भोजन ग्रहण करने लगता है, तो उसके मल त्याग का समय भी निश्चित हो जाता है। यह आदत भी शिशुओं में डाली जाती है, अन्यथा उनके पेट में कब्ज सहित अनेक बीमारियाँ होने लगती हैं।
  3. मल-मूत्र त्यागने के पश्चात् शिशु स्वयं तो सफाई नहीं कर सर्कता। अतः माता को चाहिए कि उसके अंगों को भली-भाँति साफ करें और पुनः सूखे पोतड़े या नए डायपर पहनाएँ।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (5 अंक, 100 शब्द)

प्रश्न 1.
दाँत निकलते समय शिशु को कौन-कौन सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है? दाँत निकलने के सन्दर्भ में संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:

दाँत निकलना
जन्म के समय शिशु के दाँत नहीं होते। दाँत निकलने का सही समय 6-7 महीने के बाद का होता है। कुछ शिशुओं को आठवें माह में दाँत निकलते हैं। दाँत निकलने की यह प्रक्रिया 2 से [latex]2 \frac { 1 } { 2 }[/latex] वर्ष तक चलती है, जिसमें लगभग शिशु को 20 दाँत निकलते हैं। इस अवस्था तक प्राय: प्रत्येक शिशु का आहार दूध ही होता है, अतः इन्हें दूध के दाँत कहते हैं।

दाँत निकलने के लक्षण
दाँत निकलते समय शिशु को कई परेशानियाँ होती हैं, जो निम्नलिखित हैं।

  1. मसूड़े सूजने लगते हैं तथा शिशु प्रत्येक वस्तु को अपने मसूड़ों से बल लगाकर दबाने की कोशिश करता है।
  2. दस्त आना, ज्वर आना, मुँह से लार बहना तथा सिर हमेशा गर्म रहता है।
  3. दाँत निकलते समय शिशुओं में चिड़चिड़ापन आता है तथा बार-बार दस्त आने की वजह से वह काफी कमजोर हो जाता है।

दाँत निकलते समय सावधानियाँ इसके लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 देखें।

दाँत निकलने का क्रम व स्वच्छता
सबसे पहले शिशु के नीचले दो दाँत निकलते हैं। किसी-किसी शिशु के कुछ ऊपरी दाँत पहले निकलते हैं। दाँतों के निकलने का क्रम इस प्रकार है।

  • कुतरने वाले दाँत (कृन्तक) 6 से 8 माह के अन्दर निकलते हैं, जिनकी संख्या 2 होती है।
  • पार्श्व कृन्तक 8 से 10 माह के अन्दर निकलते हैं, जिनकी संख्या 4 होती है।
  • पीसने वाले दाँत 12 से 16 माह के अन्दर निकलते हैं, जिनकी संख्या 6 होती है।
  • कीले 18-22 माह के अन्दर निकलते हैं, जिनकी संख्या 4 होती है।
  • दाढ़ 22-24 माह के अन्दर निकलती हैं, जिनकी संख्या 4 होती है।

दाँत निकलने के पश्चात् इनकी स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें। सुबह-शाम पेस्ट कराएँ। मीठी वस्तु कम खिलाएँ। समय-समय पर चिकित्सक से परामर्श लेते रहें।

प्रश्न 2.
शिशुओं में होने वाली तीन लघु पाचक बीमारियों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
शिशुओं में होने वाली तीन लघु पाचक बीमारियाँ निम्नलिखित हैं।

कब्ज
लक्षण

  1. शिशु शौच नियमित समय पर नहीं करता है।
  2. मेल बहुत कड़ा होता है व कठिनाई से होता है।
  3. मल 2-3 दिन में एक बार होता है।

कारण

  1. शिशु को दूध की सही मात्रा न मिलने पर (दूध की मात्रा अधिक हो या कम)
  2. भोजन सही न हो या पेट में कोई खराबी हो।
  3. माँ के भोजन में कुछ कमी होने पर।

उपचार

  1. शिशु को उबला हुआ पानी पिलाना चाहिए।
  2. शिशु के दूध में देशी लाल रंग की चीनी ज्यादा डालनी चाहिए।
  3. मुनक्का या अंजीर दूध में पकाकर देना चाहिए।
  4. एक-दो बूंद जैतून का तेल देने से भी कब्ज दूर होता है।
  5. शिशु को हरी साग-सब्जी का सूप पिलाना चाहिए।

दस्त
शिशु को जहाँ कब्ज होता है, वहीं दस्त भी जल्दी हो जाते हैं। दस्त के लक्षण निम्नलिखित हैं।

लक्षण

  1. शिशु को शौच कई बार आती है।
  2. शौच झागदार, पतले होते हैं।
  3. इनका रंग अलग-अलग हो सकता है।

कारण

  1. दूध में चिकनाई ज्यादा होने पर।
  2. दूध के हजम न होने पर।
  3. निपिल व बोतल की स्वच्छता न होने पर।
  4. माता के दूध में कुछ कमी होने पर।
  5. दूध के बदल जाने पर अर्थात् माँ का दूध छुड़ाकर डिब्बे का दूध देते हैं।

उपचार

  1. यदि दस्त के समय गाय या भैंस का या डिब्बे का दूध दिया जा रहा है, तो उसे बन्द करके माँ का दूध ही पिलाना चाहिए। फिर धीरे-धीरे दूसरा दूध देना आरम्भ करना चाहिए।
  2. बाल जीवन घुट्टी ठण्डे पानी में घोलकर बच्चे को पिलानी चाहिए।
  3. पान व बादाम भी घिसकर देना चाहिए।
  4. अनार का छिलको घिसकर देने से भी दस्तों में आराम मिलता है।
  5. यदि कोई भी दूध हजम नहीं हो रहा हो तो दूध फाड़कर फटे दूध का पानी | पिलाना चाहिए।

पेट में दर्द होना
लक्षण

  1. पेट कड़ा होने लगता है।
  2. पेट फूल जाता है।.
  3. दर्द होने के कारण बच्चा बहुत रोता है।
  4. बच्चा दध नहीं पीता है।
  5. अपनी टाँगें पेट की ओर सिकोड़ने लगता है।

कारण

  1. दूध में प्रोटीन व शक्कर की मात्रा ज्यादा होने पर।
  2. पेट में वायु इकट्ठी होने पर।
  3. गाढ़ा दूध पिलाने पर।
  4. दस्त ज्यादा होने पर
  5. माता का ठण्डी वस्तुएँ खाने पर।

उपचार

  1. शिशु का पोतड़ा लेकर उसे प्रेस से गर्म करके सिकाई करनी चाहिए।
  2. नाभि के चारों ओर हींग-नमक को पानी में घोलकर रुई से लगा देनी चाहिए।
  3. हींग व काला नमक का घोल बनाकर एक-दो चम्मच पिला देना चाहिए।
  4. सरसों के तेल में लहसुन व अजवाइन पकाकर पेट, पर मल देना चाहिए।
  5. शिशु के दूध में चूने का पानी मिलाकर देना चाहिए।

प्रश्न 3.
टिप्पणी लिखिए-
(i) दूध हजम न होना
(ii) चुनचुने होना
(iii) अतिसार
(iv) वमन
उत्तर:

दूध हजम न होना
लक्षण

  1. दूध पीने के तुरन्त बाद बच्चा दूध निकालने लगता है।
  2. दूध फटा-फटा-सा होता है।

कारण

  1. कुछ बच्चों को ऊपर का दूध हजम नहीं होता है।
  2. दूध ज्यादा पीने पर भी हजम नहीं होता है।
  3. दूध में कुछ कमी हो जाने पर भी ऐसा होता है।
  4. बच्चे की तबीयत सही न होने पर।

उपचार

  1. ऊपर का दूध हजम नहीं हो रहा हो तो माँ का दूध पिलाना चाहिए। यदि | माँ का दूध नहीं मिल पा रहा है तो फटे दूध का पानी देना चाहिए।
  2. दूध पिलाने के बाद डकार दिलानी चाहिए।
  3. सुहागा दूध में मिलाकर देना चाहिए।
  4. बाल जीवन घुट्टी देनी चाहिए।
  5. बच्चे को बिस्तर पर खुला छोड़ दीजिए, जिससे वह हाथ-पैर चला | सके, इससे उसका व्यायाम होता है।

चुनचुने होनी
लक्षण

  1. बच्चा रात में रोता है।
  2. मलद्वार लाल हो जाता है।
  3. सोते समय दाँत किट-किटाते हैं।
  4. बच्चे का रंग पीला पड़ने लगता है व कमजोर हो जाता है।
  5.  शिशु बार-बार मलद्वार को खुजाता है।

कारण

  1. पेट में बारीक-बारीक कीड़े हो जाते हैं।
  2. ये कीड़े मलद्वार में भी हो जाते हैं।
  3. दूध की अस्वच्छता के कारण।
  4. दूध में अधिक शक्करे होने पर।
  5. मलद्वार की सफाई ठीक से न होने पर।

उपचार

  1. मलद्वार की सफाई ढंग से करनी चाहिए।
  2. रात्रि के समय मलद्वार में सरसों का तेल लगा देना चाहिए।
  3. पोतड़े साफ पहनाने चाहिए।
  4. स्वच्छ बोतल में स्वच्छ दूध देना चाहिए।

अतिसार
लक्षण

  1. दस्तों की संख्या बहुत ज्यादा हो जाती है।
  2. मल पतला, पीला या राख के रंग का फेनदार होता है।
  3. मल दुर्गन्धयुक्त होता है।
  4. बच्चे को ज्वर हो जाता है।

कारण

  1. दाँत निकलने के समय भी यह रोग हो जाता है।
  2. जीवाणुओं के संक्रमण के कारण।
  3. यकृत की खराबी के कारण।
  4. शक्कर की मात्रा अधिक हो जाने पर।
  5. सब्जी की ज्यादा मात्रा देने पर।

उपचार

  1. शिशु को दूध कम देना चाहिए।
  2. पानी उबालकर पिलाना चाहिए।
  3. दूध पिलाने वाली माँ को भी पानी अधिक पीना चाहिए।
  4. अंगूर का रस, सन्तरे का रस देना चाहिए।
  5. बच्चे के आहार में पूर्णरूपेण सफाई रखनी चाहिए।

वमन
लक्षण

  1. कई बार बच्चा उल्टी करता है।
  2. बच्चे को कब्ज, तेज बुखार हो जाता है।
  3. बच्चा जो कुछ खाता है, तुरन्त उल्टी कर देता है।

कारण

  1. जब बच्चा अधिक दूध पी लेता है।
  2. बीमार होने पर।
  3. बच्चे को दूध पिलाने के बाद उछाला जाए या डकार न दिलाई जाए।

उपचार

  1. दूध पिलाने के बाद डकार दिलानी चाहिए।
  2. सुपाच्य वस्तु खाने को देनी चाहिए।
  3. सुहागा शहद में मिलाकर चटाना चाहिए।
  4. दूध कुछ समय तक नहीं पिलाना चाहिए।

प्रश्न 4.
एक नवजात शिशु की देखभाल करते समय किन-किन बातों पर बल दिया जाना चाहिए? (2018)
उत्तर:
नवजात शिशु की देखभाल Care of New Born शिशु के जन्म के साथ ही शुरू हो जाती है। बच्चे के जन्म के बाद बच्चे को माँ का दूध सही तरीके से और पर्याप्त मात्रा में कैसे मिले, उसके पहनने के कपड़े कैसे हों, उसका बार-बार रोना, बार-बार नेपी गन्दा करना आदि बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है। नवजात शिशु की देखभाल का सबसे पहला और जरूरी हिस्सा है कि उसे जन्म के तुरन्त बाद बच्चों के डॉक्टर (Pediatrician) को दिखाकर निश्चित कर लेना चाहिए कि बच्चा बिल्ल ठीक है।

नवजात शिशु अपना अधिकतर समय सोने में व्यतीत करते हैं, परन्तु बच्चे को प्रत्येक कुछ घण्टों के बाद जगा देना चाहिए। और जागने पर उसे अच्छी तरह से आहार देना, चाहिए। आपको उसकी नियमित दिनचर्या में आने वाले परिवर्तन के बारे में विशेष रूप से सजग रहना चाहिए, क्योंकि यह किसी गम्भीर बिमारी के लक्षण हो सकते हैं। यदि वह बहुत अधिक थका हुआ अथवा उनींदा नज़र आए, बहुत कम सजग दिखाई दे और आहार लेने के लिए न जागे, तो आपको अपने बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।

नवजात शिशु को साँस लेने के सामान्य तरीके पर स्थिर होने के लिए अर्थात् प्रति मिनट 20-40 साँस लेना शुरू करने के लिए सामान्य रूप से कुछ घण्टे का समय लगता है। अक्सर जब वह सो रहा होता है, तो वह सबसे अधिक नियमित रूप से साँस लेता है। कभी-कभी जब वह जागता है, तो बहुत थोड़ी देर के लिए तेजी से साँस ले सकता है और उसके बाद सामान्य तरीके पर लौट सकता है।

यदि आपको निम्नलिखित में से कुछ नजर आए, तो आपको अपने बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए

  1. लगातार तेज साँस लेना अर्थात् यदि उसकी आयु दो माह से कम है, तो प्रति मिनट साठ से अधिक साँस लेना अथवा यदि उसकी आयु 2-3 माह है, तो प्रति मिनट पचास से अधिक साँस लेना।
  2. साँस लेने के लिए प्रयास करना पड़ रहा हो और निगलने में कठिनाई हो रही हो।.
  3. साँस लेते समय नथुने चौड़े दिखाई देते हों।
  4. त्वचा और होंठों का रंग साँवला अथवा नीला दिखाई देता हो।

कई बार बच्चे को पेट निरन्तर फूला हुआ और कठोर महसूस हो रहा है और साथ ही उसने एक दिन अथवा अधिक समय से मल त्याग नहीं किया हो या पेट की गैस नहीं निकली है अथवा वह बार-बार उल्टी कर रहा हो, तो आपको उसे तत्काल डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए, क्योंकि यह आँतों से सम्बन्धित गम्भीर समस्या हो सकती है। जब कभी भी आपको बच्चा असामान्य तौर पर चिड़चिड़ा अथवा गर्म महसूस हो, तो उसका तापमान मापें। कान का तापमान मापना ज्यादा सुरक्षित विकल्प है और 3 माह से कम आयु के बच्चों के लिए ऐसा करने की विशेष सलाह दी जाती हैं।

यदि कान का तापमान 37.3°C/99.1°F से अधिक है अथवा कान का तापमान 100.4°F से अधिक है, तो आपको उसे डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए, क्योंकि यह संक्रमण का लक्षण हो सकता है। जल्दी चिकित्सीय सहायता मुहैया करना आवश्यक है, क्योंकि छोटे बच्चों की स्थिति बहुत जल्दी खराब हो सकती है।

शिशुओं में आसानी से और जल्दी ही पानी की कमी हो जाती है। सुनिश्चित करें कि आपका बच्चा पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन कर रहा है, विशेषकर जब वह उल्टी कर रहा हो अथवा उसे दस्त लग गए हों। पिछले 24 घण्टों में उसके द्वारा पीए गए दूध की मात्रा की गणना करें और इसकी उसके सामान्य आहार से तुलना करें, जोकि पहले महीने के दौरान प्रतिदिन 10-20 आउंस (300-600 मिली) होती है।

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi पत्रों के प्रकार या भेद

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Name पत्रों के प्रकार या भेद
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi पत्रों के प्रकार या भेद

कौन, किसको, किस विषय पर, किन परिस्थितियों में पत्र लिख रहा है, इस आधार पर पत्रों के अनेक भेद होते हैं, जिनमें से मुख्य इस प्रकार हैं—

(1) निजी/व्यक्तिगत/घरेलू या पारिवारिक पत्र—परिवार के विभिन्न सदस्यों, निकट सम्बन्धियों या घनिष्ठ मित्रों को भिन्न-भिन्न उद्देश्यों से विभिन्न अवसरों पर लिखे जाने वाले पत्र इस वर्ग में आते हैं।
(2) सामाजिक पत्र—निमन्त्रण-पत्र, बधाई-पत्र, शोक-पत्र, सान्त्वना-पत्र, परिचय-पत्र, संस्तुति-पत्र, आभार या धन्यवाद-पत्र आदि प्रायः सामाजिक सम्बन्धों के कारण लिखे जाते हैं; अतः ये सामाजिक पत्रों की श्रेणी में आते हैं।
(3) व्यापारिक या व्यावसायिक पत्र—विभिन्न व्यापारिक या औद्योगिक संस्थानों के पारस्परिक पत्र, व्यापारिक संस्थाओं की ओर से समाज के किसी व्यक्ति को और समाज के किसी व्यक्ति की ओर से व्यावसायिक संस्थाओं को लिखे गये उद्योग-व्यापार सम्बन्धी पत्र इसी श्रेणी में आते हैं।
(4) सरकारी शासकीय/प्रशासकीय या आधिकारिक पत्र–इस वर्ग में विभिन्न सरकारी कार्यालयों के पत्र आते हैं, जिनके दशाधिक उपभेद हैं।
(5) आवेदन-पत्र—किसी विशेष उद्देश्य से लिखे गये प्रार्थना-पत्र आवेदन-पत्र (Application) कहलाते हैं। प्रवेश लेने, शुल्क मुक्ति कराने, विद्यालय छोड़ने के कारण अपनी धरोहर-राशि वापस माँगने, चरित्र प्रमाणपत्र आदि लेने के लिए विद्यार्थियों द्वारा प्राचार्य को आवेदन-पत्र लिखे जाते हैं। कहीं भी नौकरी/पदोन्नति पाने, अवकाश माँगने या बैंक/बीमा निगम आदि से ऋण लेने के लिए भी आवेदन करना पड़ता है। इस प्रकार आवेदन की आवश्यकता के अनुसार इसके अनेक उपभेद भी होते हैं।
(6) शिकायती-पत्र—किसी व्यक्तिगत या सामाजिक समस्या के लिए हमें अनेक बार सम्बन्धित अधिकारियों को शिकायती पत्र लिखने पड़ते हैं।
(7) सम्पादक के नाम पत्र—वर्तमान युग में समाचार-पत्रों की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है। समस्याओं के उचित समाधान के लिए समाचार-पत्र के माध्यम से आवाज उठाना विशेष प्रभावकारी होता है; अत: समाज की विभिन्न समस्याओं के लिए सम्पादक के नाम पत्र लिखना एक विशेष कला है। सभी दैनिक समाचार-पत्रों में विभिन्न शीर्षकों से सम्पादक के नाम पत्र छपते हैं, जिससे उच्चाधिकारियों तक बात पहुँचती है और समाधान शीघ्र हो जाता है।
(8) विविध पत्र—उपर्युक्त श्रेणियों के अतिरिक्त जो पत्रे बचते हैं, उन्हें इसी वर्ग में रखा जाता है।

अच्छे पत्र के गुण

(1) सरलता—पत्र की भाषा सरल व सुबोध होनी चाहिए। जिस प्रकार सरल और निष्कपट व्यक्ति के व्यवहार का बहुत असर होता है, उसी प्रकार सरल, सुबोध पत्र भी पाठक के मन पर अत्यधिक प्रभाव डालते हैं।
(2) स्पष्टता—पत्र में अपनी बात स्पष्ट तथा विनम्रता से कहनी चाहिए, जिससे पाने वाला उसका आशय सही-सही समझ सके।
(3) संक्षिप्तता—जहाँ तक हो पत्र संक्षेप में लिखना चाहिए, पत्र में कोई ऐसी बात नहीं लिखनी चाहिए, जिससे पत्र पढ़ने में रुचि ही न रहे।
(4) शिष्टाचार—पत्रलेखक और पाने वाले के बीच में कोई-न-कोई सम्बन्ध तो होता ही है। आय और पद में बड़े व्यक्तियों को आदरपूर्वक, मित्रों को सौहार्दपूर्वक और छोटों को स्नेहपूर्वक लिखना चाहिए।
(5) केन्द्र में मुख्य विषय—औपचारिक अभिवादन के बाद सीधे मुख्य विषय पर आ जाना चाहिए।

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UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 13 एक्सेप्शन हैण्डलिंग, स्ट्रक्चर एवं पॉइण्टर

UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 13 एक्सेप्शन हैण्डलिंग, स्ट्रक्चर एवं पॉइण्टर are part of UP Board Solutions for Class 12 Computer. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 13 एक्सेप्शन हैण्डलिंग, स्ट्रक्चर एवं पॉइण्टर.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Computer
Chapter Chapter 13
Chapter Name एक्सेप्शन हैण्डलिंग, स्ट्रक्चर एवं पॉइण्टर
Number of Questions Solved 18
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 13 एक्सेप्शन हैण्डलिंग, स्ट्रक्चर एवं पॉइण्टर

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
किसी प्रोग्राम से गलतियों को दूर करने के लिए किस तकनीक का प्रयोग किया जाता है?
(a) डाटा हैण्डलिंग
(b) वैल्यू हैण्डलिंग
(C) एरर हैण्डलिंग
(d) एक्सेप्शन हैण्डलिंग
उत्तर:
(d) एक्सेप्शन हैण्डलिंग का प्रयोग प्रोग्राम की गलतियों को ठीक करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 2
एक्सेप्शन कितने प्रकार के होते हैं?
(a) तीन
(b) चार
(C) दो
(d) पाँच
उत्तर:
(c) एक्सेप्शन दो प्रकार के होते हैं–सिन्क्रोनस तथा असिन्क्रोनस।

प्रश्न 3
एक्सेप्शन हैण्डलिंग क्रियाविधि के किस ब्लॉक में एक्सेप्शन होती
(a) try
(b) catch
(c) throw
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) try

प्रश्न 4
विभिन्न प्रकार के परस्पर सम्बन्धित डाटा आइटमों का समूह क्या कहलाता है?
(a) पॉइण्टर
(b) एक्सेप्शन
(c) फंक्शन
(d) स्ट्रक्चर
उत्तर:
(d) स्ट्रक्चर

प्रश्न 5
स्ट्रक्चर से डाटा लेने के लिए कौन-सा उदाहरण सही है?
(a) stu.name
(b) a = stu.name
(c) a = name;
(d) a= stu.name;
उत्तर:
(d) a = stu.name;

प्रश्न 6
निम्न पॉइण्टर पर दिए गए कमेण्ट में से कौन-सा सही है?
int *ptr, p;
(a) ptr एक इण्टीजर टाइप का पॉइण्टर है, जबकि 2 नहीं
(b) ptr तथा p दोनों इण्टीजर टाइप के पॉइण्टर हैं।
(c) ptr एक इण्टीजर वैल्यू है तथा p पॉइण्टर है।
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(a) ptr एक इण्टीजर टाइप के पॉइण्टर को प्रदर्शित कर रहा है, जबकि p एक वैरिएबल को प्रदर्शित कर रहा है।

अतिलघु उत्तरी प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
सिन्क्रोनस एक्सेप्शन के अन्तर्गत किस प्रकार की एरर आती है?
उत्तर:
सिन्क्रोनस एक्सेप्शन के अन्तर्गत ओवरफ्लो व आउट ऑफ रेंज प्रकार की एरर आती हैं।

प्रश्न 2
एक्सेप्शन हैण्डलिंग में catch ब्लॉक का प्रयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर:
catch ब्लॉक का प्रयोग try ब्लॉक में उपस्थित एक्सेप्शन को कैच करने के लिए किया जाती है।

प्रश्न 3
स्ट्रक्चर क्या होता है?
उत्तर:
विभिन्न प्रकार के परस्पर सम्बन्धित डाटा आइटमों का समूह स्ट्रक्चर कहलाता है।

प्रश्न 4
पॉइण्टर पर संक्षेप में व्याख्या कीजिए। [2016]
अथवा
पॉइण्टर की व्याख्या केवल एक वाक्य में कीजिए। [2018, 17]
उत्तर:
पॉइण्टर C++ प्रोग्रामिंग की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता है। पॉइण्टर टाइप के वैरिएबल में किसी वैल्यू का मैमोरी एड्रेस रखा जाता है।

प्रश्न 5
पॉइण्टर द्वारा अर्थमैटिक कार्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
पॉइण्टर द्वारा अर्थमैटिक कार्य निम्न हैं।

  • पॉइण्टर वैरिएबल में जोड़ करना
  • पॉइण्टर वैरिएबल में घटाना

लघु उत्तर प्रश्न I (2 अंक)

प्रश्न 1
निम्न पर टिप्पणी लिखिए।
(i) try
(ii) catch
उत्तर:
(i) try इस की-वर्ड का प्रयोग try ब्लॉक में किया जाता है, जो स्टेटमेण्ट्स का समूह होता है, जिसमें एक्सेप्शन हो सकते हैं।
(ii) catch इस की-वर्ड का प्रयोग catch ब्लॉक में किया जाता है, जो try ब्लॉक में उपस्थित एक्सेप्शन को कैच करता है।

प्रश्न 2
स्ट्रक्चर को घोषित करने का प्रारूप लिखिए।
उत्तर:
स्ट्रक्चर को घोषित करने का प्रारूप निम्न हैं।
struct structure_name
{
Data_type Variable1;
Data_type Variable2;
:
Data_type VariableN;
};

प्रश्न 3
एड्स ऑपरेटर व पॉइण्टर ऑपरेटर से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एड्रेस ऑपरेटर को & चिह्न से प्रदर्शित करते हैं, जिसका प्रयोग वैरिएबल के एड्रेस को ज्ञात करने के लिए किया जाता है। पॉइण्टर ऑपरेटर को चिह्न से प्रदर्शित करते हैं, जिसका प्रयोग वैरिएबल के एड्रेस में स्टोर वैल्यू को ज्ञात करने के लिए किया जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न II (3 अंक)

प्रश्न 1
एक्सेप्शन हैण्डलिंग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2012, 11]
उत्तर:
किसी भी प्रोग्रामिंग भाषा में एक्सेप्शन हैण्डलिंग एक महत्त्वपूर्ण भाग होता है। यह एक ऐसी तकनीक है, जिसके द्वारा एक्सेप्शन नियन्त्रित की जाती है। इस तकनीक के द्वारा हम अवांछित घटनाओं या एरर्स को भी दूर कर सकते हैं। एक्सेप्शन हैण्डलिंग में निम्न कार्य होते हैं।

  1. एक्सेप्शन को हैण्डल करना या उस एरर का हल निकालना।
  2. एक्सेप्शन को थ्रो करना या बताना की प्रोग्राम में त्रुटि है।
  3. एक्सेप्शन को कैच करना या एरर सूचना को एकत्र करना।
  4. एक्सेप्शन को हिट करना या आकस्मिक (Undesirable) अवस्था को पहचानना।

प्रश्न 2
स्ट्रक्चर क्या होता है? स्ट्रक्चर में वैरिएबल को कैसे घोषित किया जाता है?
उत्तर
स्ट्रक्चर डाटा टाइप भिन्न-भिन्न प्रकार के वैरिएबलों के समूह को एक ही नाम से व्यक्त और उपयोग करने की सरल सुविधा है। विभिन्न प्रकार के परस्पर सम्बन्धित डाटा आइटमों का समूह स्ट्रक्चर कहलाता है।

स्ट्रक्चर में वैरिएबल को घोषित करना
प्रारूप struct structure_narte variable_name;

स्ट्रक्चर के वैरिएबल को स्ट्रक्चर के साथ भी घोषित किया जा सकता है।
प्रारूप
struct structure_name
{
Data_type variable1;
Date_type variable2;
……
……
Date_type variableN;
}
variable_name;

प्रश्न 3
पॉइण्टर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2013, 08, 07, 06]
अथवा
एक पॉइण्टर से आप क्या समझते हैं? इसके लाभ बताइए। [2009]
उत्तर:
पॉइण्टर C++ प्रोग्रामिंग भाषा की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषताओं में से एक है। पॉइण्टर टाइप के वैरिएबल में किसी वैल्यू का मैमोरी एड्स रखा जाता है। यह मैमोरी एड्स कम्प्यूटर की मैमोरी में किसी डाटा या निर्देश को रखने वाली लोकेशन होती है। अतः हम पॉइण्टरों के द्वारा मैमोरी में स्टोर किए गए डाटा का उपयोग कर सकते हैं।

पॉइण्टर के लाभ निम्नलिखित हैं

  1. विभिन्न फंक्शन्स के मध्य पॉइण्टर का आदान-प्रदान करना।
  2. पॉइण्टर की सहायता से ऐरे को फंक्शन में पास करना।
  3. पॉइण्टर की सहायता से स्ट्रिग को फंक्शन में पास करना।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (5 अंक)

प्रश्न 1
एक्सेप्शन क्या होती है? यह कितने प्रकार की होती है? उदाहरण सहित समझाइए।
अथवा
उदाहरण देकर C++ में Exception Handling को समझाइए। [2018]
उत्तर:
लॉजिकल अथवा सिण्टैक्स एरर के अतिरिक्त प्रोग्राम में जो एरर आती है, उसे एक्सेप्शन कहते हैं; जैसे-array को सीमा (Scope) से बाहर एक्सेस करना आदि। वह तकनीक जिसके द्वारा ये एक्सेप्शन नियन्त्रित की जाती है, एक्सेप्शन हैण्डुलिंग कहलाती है। इस तकनीक के द्वारा हम अवांछित घटनाओं या एरर्स को दूर भी कर सकते हैं। एक्सेप्शन दो प्रकार की होती है, जो निम्न हैं।

  • सिन्क्रोनस एक्सेप्शन इसके अन्तर्गत ओवरफ्लो व आउट ऑफ रेज प्रकार की एरर आती हैं।
  • असिन्क्रोनस एक्सेप्शन इसके अन्तर्गत प्रोग्राम के नियन्त्रण से बाहर की घटनाओं के प्रकार की एरर आती हैं।

उदाहरण
#include<iostream.h>
#include<conio.h>
void main( )
clrscr( );
int num1, num2;
float d;
cout<<“Enter first number:”;
cin>>num1;
cout<<“Enter second number:”;
cin>>num2;
try
{
if (num2!=0)
{
d=numi/num2;
cout<<“Divison=”<<d<<end1;
}
else
{
throw (num2);
}
catch(int x)
{
cout<<“There is an exception divide by zero. “<<end1;
}
getch( );
}

आउटपुट
Enter first number: 25
Enter second number: 0
There is an exception divide by zero.

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi छन्द

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 3
Chapter Name छन्द
Number of Questions 3
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi छन्द

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4. कुण्डलिया
लक्षण (परिभाषा)-कुण्डलिया एक विषम मात्रिक छन्द है जो छ: चरणों का होता है। दोहे और रोले को क्रम से मिलाने पर कुण्डलिया बन जाता है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। प्रथम चरण के प्रथम शब्द की अन्तिम चरण के अन्तिम शब्द के रूप में तथा द्वितीय चरण के अन्तिम अर्द्ध-चरण की तृतीय चरण के प्रारम्भिक अर्द्ध-चरण के रूप में आवृत्ति होती है; यथा—

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नीचे लिखे पद्यों में निहित छन्द का नाम और परिभाषा (लक्षण) लिखिए
(क) बरबस लिये उठाइ उर, लायहु कृपानिधान ।
भरत राम को मिलनि लखि, बिसरे सबहि अपान ||
(ख) अब मया दिस्टि करि, नाह निठुर! घर आउ ।
मंदिर, ऊजर होत है, नव कै आड़ बसाउ ।।
(ग) नील सरोरुह स्याम, तरुन अरुन बारिज नयन |
करउ सो मम उर धाम, सदा छीर सागर सयन ।।
(घ) राम नाम मनि दीप धरि, जीह देहरी द्वार।।
तुलसी भीतर बाहिरौ, जो चाहसि उजियार ।।
(ङ) मंगल सगुन होहिं सब काहू। फरकहिं सुखद बिलोचन बाहू ।।
भरतहिं सहित समाज उछाहू। मिलिहहिं रामु मिटहि दुख दाह ।।
(च) निरखि सिद्ध साधक अनुरागे। सहज सनेह सराहन लागे ।।
होत न भूतल भाउ भरत को। अचर सचर चर अचर करत को ।।
(छ) राम सैल सोभा निरखि, भरत हुदन अति प्रेम् ।।
तापस तप फलु पाह जिमि, सुखी सिख नेम् ।।
(ज) सकल मलिन मन दीन दुखारी ।।
देखीं सानु आन अनुसारी ।।
(झ) समुझि मातु करजब सकुचाही। करत कुतरक कोटि मन माही।
रामु लखनु सिय सुनि मन जाऊँ। उठि जनि अनत जाहिं ताजिठाऊँ।।
(ञ) मंगल भवन अमंगलहारी। उमा सहित जेहिं जपत पुरारी ।।
उत्तर:
(क) दोहा
(ख) दोहा
(ग) सोरठा
(घ) दोहा
(ङ) चौपाई
(च) चौपाई
(छ) दोहा
(ज) चौपाई
(झ) चौपाई
(ज) चौपाई।
[संकेत–छन्दों की परिभाषा (लक्षण) के लिए ‘छन्द’ प्रकरण के अन्तर्गत सम्बन्धित छन्द का अध्ययन करें।]

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन-सा छन्द है ? मात्राओं की गणना करके अपने कथन की पुष्टि कीजिए- :
(i) नील सरोरुह स्याम, तरुन अरुन वारिज नयन |
करहु सो मम उर धाम, सदाछीर सागर सयन ||
(ii) जून होत जग जनम भरत को। सकल धरम धुर धरनि धरत को।
(iii) मो सम दीन न दीन हित, तुम समान रघुवीर ।
अस बिचारि रघुबंस मनि, हरहु बिषम भवभीर ।।
(iv) यह वर माँगउ कृपा निकेता
बसहुँ हृदय श्री अनुज समेता ।।
(v) मंत्री गुरु अरु बैद जो, प्रिय बोलहिं भय आस ।।
राज, धरम, तन तीनि कर, होई बेगिही नास ।।
(vi) करौ कुबत जग कुटिलता, तर्जी न दीन दयाल ।
दुःखी होहुगे सरल हिय, बसत त्रिभंगीलाल ।।
(vii) श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि ।
बरनउ रघुवर, विमल जस, जो दायक फल चारि ।।
(vii) सुनि केवट के बैन, प्रेम लपेटे अटपटे ।
बिहँसे करुणा ऐन, चितै जानकी लखन तन ।।
(ix) रकत दुरा आँसू गरा, हाड़ भएउ सब संख।
धनि सारस होइ गरि मुई, पीउ समेटहि पंख
(x) बतरस-लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय ।
सिह करै भौहनि हँसै, दैन कहें नटि जाय ।।
उत्तर:
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(क) सोरठा, दोहा और चौपाई छन्दों में से किसी एक का उदाहरण लिखकर उसका लक्षण बताई।
(ख) दोहा और सोरठा का अन्तर स्पष्ट करते हुए सोरठा का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi परिचयात्मक निबन्ध

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Name परिचयात्मक निबन्ध
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi परिचयात्मक निबन्ध

एक महापुरुष की जीवनी (राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी)

सम्बद्ध शीर्षक

  • मेरा प्रिय राजनेता
  • मेरा आदर्श पुरुष
  • वर्तमान युग में गाँधीवाद की प्रासंगिकता
  • हमारे आदर्श महापुरुष

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मेरे प्रिय कवि : तुलसीदास

सम्बद्ध शीर्षक

  • तुलसी का समन्वयवाद
  • हमारे आदर्श कवि : तुलसीदास
  • रामकाव्यधारा के प्रमुख कवि : तुलसीदास
  • लोकनायक तुलसीदास
  • कविता लसी पा तुलसी की कला

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मेरे प्रिय साहित्यकार  (जयशंकर प्रसाद)

सम्बद्ध शीर्षक

  • अपना (मेरा) प्रिय कवि
  • मेरा प्रिय लेखक
  • मेरे प्रिय कहानीकार

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