UP Board Solutions for Class 7 Hindi Chapter 20 एक संसद नदी की (मंजरी)

UP Board Solutions for Class 7 Hindi Chapter 20 एक संसद नदी की (मंजरी)

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महत्त्वपूर्ण पद्यांश की व्याख्या

बहरहाल ……………………………. चल रहा है।

संदर्भ:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मंजरी’ के एक संसद नदी की’ नामक (UPBoardSolutions.com) कविता से ली गई है। यह हिन्दुस्तान’ समाचार पत्र से साभार लिया गया है।

प्रसंग:
राजस्थान में पानी की कमी को दूर करने के लिए जल-प्रबन्धन द्वारा जल संरक्षण किया गुया।

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व्याख्या:
राजस्थान की परम्पराओं को ध्यान में रखते हुए वहाँ के लोगों ने अपने सामूहिक श्रमदान से जोहडू, तालाब आदि को गहरा खोदकर जल संरक्षण किया जिससे जलस्तर ऊँचा उठा और हरियाली आ गई। लोगों को यह साहसिक कार्य नीति बनाने वालों के लिए सबक और समाज के लिए सीख था। जब पानी की कमी हो, तो उसका संरक्षण स्वाभाविक उपाय है। इस दृष्टि से लोगों को उत्साह दिलाकर जल-प्रबन्धन कराने के लिए राजेन्द्र सिंह को मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी आधार पर उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश में भी जलसंरक्षण कार्यक्रम प्रगति पर है।

पाठ का सर (सारांश)

राजस्थान की सूखी धरती पर पन्द्रह वर्ष के कड़े संघर्ष के बाद जल संरक्षण करने से जलक्रान्ति आ गई। इसमें केन्द्रीय भूमिका राजेन्द्र सिंह की थी। अलवर जिले की पाँच सूखी नदी अखरी, रूपारेल, सरसा, भगाणी और जहाज वाली नदी, ये पाँचों (UPBoardSolutions.com) सदानीरा हो गईं। अलवर में 75 गाँवों की साझेदारी से अखरी संसद ने सलाह दी कि वहाँ पढ़ाई से पहले जल की जरूरत थी। राजेन्द्र सिंह ने किशोरी और गोपालपुरा के लोगों के सहयोग से जल संरक्षण के लिए जल प्रबन्धन कार्यक्रम चलाया। जोहड, बावड़ी, बाँध, तालाब गहरे किए गए। इस प्रकार का अभिक्रम दोसा, जयपुर, दोब, उदयपुर, करौली और सवाई माधोपुर में भी चलाया गया। इस जल प्रबन्धन से तस्वीर बदल गई। जल-स्तर ऊपर उठने से कुएँ जी उठे। हरियाली वापस आ गई। अरावली पर्वत पर पेड़ उगने लगे। लोगों के पलायन पर विराम लग गया।
जल संरक्षण का यह अद्भुत काम निश्चय ही प्रेरक और अनुकरणीय है। जलसंरक्षण के व्यापक काम की बदौलत राजेन्द्र सिंह को मैगसेसे सम्मान मिला। ऐसी परम्परा के अनुकरण में मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में जल संरक्षण कार्यक्रम चल रहा है।
गुजरात में वैज्ञानिक तकनीक ‘रिमोट सेंसिंग’ द्वारा कार्य चल रहा है। यह रिमोट सेंसिंग तकनीक पहाड़ी और पठारी इलाकों में कारगर है। इससे पता चलता है कि कौन-सी जगह पानी जमा करने के लिए ठीक है। राजकोट जिले के राजसमटियाला गाँव में तीन चेक बनाए गए हैं।

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प्रश्न-अभ्यास

कुछ करने को

नोट:
विद्यार्थी स्वयं करें।

विचार और कल्पना

(क) ऐसी दस बातें/कारण लिखिए जिससे सिद्ध हो कि “जल ही जीवन है।”
उत्तर:

  1. जल हमारी प्यास बुझाता है।
  2.  जल के माध्यम से ही हम अपना भोजन पकाते हैं।
  3. जल वर्षा रूप में ग्रीष्मकालीन की गर्मी से हमें राहत देता है।
  4. जल पेड़-पौधों और फसलों-वनस्पतियों के लिए भी अति आवश्यक है।
  5. मछली, कछुआ, मगरमच्छ आदि सहित अनेक जलीय (UPBoardSolutions.com) जीव केवल जल में ही जीवित रह सकते हैं।
  6. जल से हम अपने वस्त्र धोते हैं।
  7. जल से बरतन धोते हैं।
  8.  जन से घर की साफ-सफाई करते हैं।
  9. जल से हम नहाते हैं।
  10.  जल से साग सब्जियों को भी धोते हैं।
    यदि इन सब कार्यों के लिए जल नहीं उपलब्ध हो पाएगा तो मानव-जीवन पशु-पक्षियों, जलीय जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों का जीवन भी खतरे में पड़ जाएगा। अतः जल ही जीवन है।

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(ख) (ग) एवं (घ) नोट- विद्यार्थी स्वयं करें।

रिपोर्ताज से

प्रश्न 1:
दो दशक पहले अलवर जिले में जो नदियाँ सूख गयीं थीं, उनके नाम क्या थे?
उत्तर:
दो दशक पहले अलवर की सूख जाने वाली नदियों के (UPBoardSolutions.com) नाम- अखरी, रुपारेल, सरसा, भगाणी और जहाज वाली नदी आदि थे।

प्रश्न 2:
अक्टूबर 1985 ई० में राजेन्द्र सिंह राजस्थान के अलवर जिले के किशोरी गाँव में किस उद्देश्य से गए थे?
उत्तर:
राजेन्द्र सिंह किशोरी गाँव के लोगों को शिक्षित करने के उद्देश्य से गए थे।

प्रश्न 3:
किशोरी और गोपालपुरा गाँव के लोगों ने राजेन्द्र सिंह को जल प्रबन्धन की कौन-सी पुरानी विधियाँ बतायी?
उत्तर:
छोटे-छोटे बाँध बनाए जाएँ, सूख चुके कुएँ और बावड़ियों को फिर से गहराकर जीवित किया जाए, इसके साथ जोहड़ बनाया जाए तथा नदियों को जिलाया जाए इत्यादि पुरानी विधियाँ बताई।

प्रश्न 4:
सूखी धरती में पानी लौटने के साथ और क्या-क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर:
सूखी धरती में पानी लौटने से राजस्थान की पूरी तस्वीर ही बदल गईं। भू-जल स्तर उठने से कुएँ जल से भर गए, हरियाली वापस आ गई, धरती की उर्वरा शक्ति बढ़ गई, फसल चक्र बदल गया, अरावली की पहाड़ियों पर पुनः पेड़-पौधे उगने (UPBoardSolutions.com) लगे तथा जो लोग रोजी-रोटी की तलाश में गाँव से पलायन कर गए थे, वे वापस आ गए और अपने खेतों में खेती करने लगे।

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प्रश्न 5:
राजेन्द्र सिंह को मैगसेसे सम्मान क्यों दिया गया?
उत्तर:
जल संरक्षण के व्यापक प्रबन्ध के लिए राजेन्द्र सिंह को मैगसेसे सम्मान दिया गया।

प्रश्न 6:
रिमोट सेंसिंग तकनीक क्या है, इससे किस क्षेत्र में मदद मिलती है?
उत्तर:
इस तकनीक की मदद से उस जगह की पहचान की (UPBoardSolutions.com) जाती है जहाँ पर पानी इकट्ठा किया जा सकता है, उस तकनीक को रिमोट सेंसिंग कहते हैं।

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भाषा की बात.

प्रश्न 1:
सूखी धरती, सुखद उम्मीद, नंगे पहाड़ में क्रमशः सूखी, सुखद, नंगे शब्द “विशेषण’ हैं। जबकि धरती, उम्मीद और पहाड़ ‘विशेष्य’ हैं। इस प्रकार के पाँच अन्य विशेषण-विशेष्य
को इस पाठ से छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
विशेषण                           विशेष्य
सूखी                                नदियाँ 
पाँच                                 नदियाँ
बाहरी                              व्यक्ति
स्थानीय                            प्रशासन
अनुभवी                             लोग

प्रश्न 2:
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए (प्रयोग करके)
उत्तर:
पानी लौट आया             – जलस्तर ऊपर उठना
वाक्य प्रयोग                   – तालाब, बाँध, बावड़ी और जोहड़ों (UPBoardSolutions.com) को गहरा खोदने तथा उनमें अधिक जल इकट्ठा करने से नदियों में पानी लौट आया।
चपेट में आना                – प्रभाव होना
वाक्य प्रयोग                  – राजस्थान के अनेक गाँव सूखे की चपेट में आ गए।
तस्वीर बदलना             – परिस्थिति बदल देना।
वाक्य प्रयोग                  – पानी आने से हरियाली छा गई और उजड़े गाँवों की तस्वीर बदल गई। नजरें टिकाना- गौर करना
वाक्य प्रयोग                  – लक्ष्य पर नजरें टिकाना अर्जुन से सीखा जा सकता है।
किला टूटना                 – हार होना।
वाक्य प्रयोग                  – सूखे के कारण गाँव वालों की उम्मीदों के किले टूट गए।
दिन फिरना                  – खुशी आना।
वाक्य प्रयोग                  – सूखी नदियों में पानी आ जाने से कृषकों के दिन फिर आए और भरपूर फसलें होने लगीं।

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प्रश्न 3:
स्थान शब्द में ‘ईय’ प्रत्यय लगा कर ‘स्थानीय’ शब्द बनता है। इसी प्रकार निम्नलिखित शब्दों में ईय प्रत्यय जोड़कर नया शब्द बनाइए (शब्द बनाकर )
उत्तर:
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प्रश्न 4:
‘प्रबन्धन’ में प्र’ उपसर्ग है। इसी प्रकार निम्नलिखित शब्दों में उपसर्ग (UPBoardSolutions.com) और मूल शब्द अलग-अलग कीजिए ( अलग-अलग करके)
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 7 Hindi Chapter 20 एक संसद नदी की (मंजरी) image - 2

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 4 गिल्लू (गद्य खंड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 4 गिल्लू (गद्य खंड)

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(विस्तृत उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये –
(1) सोनजुही में आज एक पीली कली लगी है। उसे देखकर अनायास ही उस छोटे जीव का स्मरण हो आया, जो इस लता की सघन हरीतिमा में छिपकर बैठता था और फिर मेरे निकट पहुँचते ही कन्धे पर कूदकर मुझे चौंका देता था। तब मुझे कली की खोज रहती थी, पर आज उस लघुप्राणी की खोज है।
परन्तु वह तो अब तक इन सोनजुही की जड़ में मिट्टी होकर मिल गया होगा कौन जाने स्वर्णिम कली के बहाने वही मुझे चौंकाने ऊपर आ गया हो अचानक एक दिन सवेरे कमेर से बरामदे में आकर मैंने देखा, दो कौए एक गमले के चारों ओर चोंचों से छुवाछुवौवल-जैसा खेल खेल रहे हैं। यह कागभुशुण्डि भी विचित्र पक्षी है-एक साथ समादरित, अनादरित, अति सम्मानित, अति अवमानित।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) गिल्लू को कहाँ समाधि दी गयी?
[शब्दार्थ-सोनजुही = पीले फूलोंवाली एक लता। अनायास = अचानक। सघन हरीतिमा = घनी हरियाली। लघुप्राणी = छोटे से जीव।]

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत अवतरण पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं महादेवी वर्मा द्वारा लिखित ‘गिल्लू’ नामक पाठ से अवतरित है। महादेवी जी को सोनजुही की लता में एक पीली कली को देखकर गिलहरी के बच्चे ‘गिल्लू’ की याद आ जाती है। लेखिका ने एक कोमल लघुप्राणी (गिलहरी) की प्रकृति का मानवीय संवेदना तथा समता के आधार पर चित्रण किया है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखिका कहती है कि सोनजुही की लता में मुझे जो एक पीली कली दिखायी दे रही है, उसको देखकर मुझे एक छोटे-से कोमल प्राणी गिलहरी के बच्चे ‘गिल्लू’ का संस्मरण हो रहा है। जिस प्रकार लताओं के बीच उसकी कली छिपी हुई है, ठीक उसी प्रकार गिल्लू भी उसी लता में छिपकर बैठता था। जब मैं लता के निकट कलियों एवं पुष्पों को लेने जाती थी, तो लता के बीच छिपा हुआ गिल्लू मेरे कंधे पर कूदकर मुझे अचानक चौंका देता था। वह इस जगत् से जीवन (UPBoardSolutions.com) समाप्त कर चुका है, किन्तु मेरी आँखें उसे आज भी खोज रही हैं। लेकिन अब वह इस सोनजुही की जड़ में मिट्टी होकर मिल गया होगा। शायद वह इसे स्वर्णिम कली के बहाने मुझे चौंकाने के लिए ऊपर आ गया हो। इसे कौन जान सकता है।
    एक दिन अचानक मैंने कमरे से बरामदे में आकर देखा कि दो कौए एक गमले में चोंचों से छुवा-छुवौवल का खेल खेल रहे हैं। धार्मिक ग्रन्थों में कौए का वर्णन ‘कागभुशुण्डि’ के नाम से किया गया है। बड़ा ही अद्भुत प्राणी है। लोक मानस में यह एक साथ विरोधी व्यवहार प्राप्त करता है। कभी यह अत्यधिक आदर प्राप्त करता है और कभी अनादर, कभी सम्मानित होता है और कभी अपमानित।
  3. गिल्लू की सोनजुही की लता के नीचे समाधि दी गयी।

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(2) मेरे पास बहुत-से पशु-पक्षी हैं और उनका मुझसे लगाव भी कम नहीं है, परन्तु उनमें से किसी को मेरे साथ मेरे थाली में खाने की हिम्मत हुई है, ऐसा मुझे स्मरण नहीं आता।
               गिल्लू इनमें अपवाद था। मैं जैसे ही खाने के कमरे में पहुँचती, वह खिड़की से निकलकर आँगन की दीवार, बरामदा पार करके मेज पर पहुँच जाता और मेरी थाली में बैठ जाना चाहता । बड़ी कठिनाई से मैंने उसे थाली के पास बैठना सिखाया, जहाँ बैठकर वह मेरी थाली में से एक-एक (UPBoardSolutions.com) चावल उठाकर बड़ी सफाई से खाता रहता । काजू उसका प्रिय खाद्य था और कई दिन काजू न मिलने पर वह अन्य खाने की चीजें या तो लेना बन्द कर देता था या झूले के नीचे फेंक देता था।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) गिल्लू को क्या बेहद पसंद था?

उत्तर- 

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं महादेवी वर्मा द्वारा लिखित ‘गिल्लू’ पाठ से उद्धृत है। प्रस्तुत अवतरण में गिल्लू के खान-पान का वर्णन है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या-लेखिका कहती है कि मेरे पास बहुत से पशु-पक्षी हैं। सभी के साथ मेरा असीम लगाव है, लेकिन किसी को मेरे साथ मेरी थाली में खाने की हिम्मत नहीं हुई। गिल्लू इसका अपवाद था। मैं खाना खाने के लिए जैसे ही मेज के पास जाती गिल्लू (UPBoardSolutions.com) कूद-फाँदकर खाने की मेज पर पहुँच जाता और मेरी थाली में बैठना चाहता। मैंने बड़ी मुश्किल से उसे थाली के पास बैठना सिखाया। उसके बाद गिल्लू मेरी थाली के पास बैठकर एक-एक चावल निकालकर खाता था। काजू उसे बेहद पसंद था। यदि कई दिन काजू न मिले तो अन्य चीजें भी खाना बन्द कर देता था। या झूले, के नीचे गिरा देता था।
  3. गिल्लू को काजू बेहद पसंद था।

(3) मेरी अस्वस्थता में वह तकिये पर सिरहाने बैठकर अपने नन्हें-नन्हें पंजों से ये मेरे सिर और बालों को इतने हौले-हौले सहलाता रहता कि उसका हटना एक परिचारिका के हटने के समान लगता।
          गर्मियों में जब मैं दोपहर में काम करती रहती तो गिल्लू ने बाहर जाता, न अपने झूले में बैठता। उसने मेरे निकट रहने के साथ गर्मी से बचने का एक सर्वथा नया उपाय खोज निकाला था। वह मेरे पास रखी सुराही पर लेट जाता और इस प्रकार समीप भी रहता और ठण्डक में भी रहता।
          गिलहरियों के जीवन की अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं होती, अत: गिल्लू की जीवन-यात्रा का अन्त आ ही गया। दिनभर उसने न कुछ खाया और न बाहर गया। रात में अन्त की यातना में भी वह अपने झूले से उतरकर मेरे बिस्तर पर आया और ठण्डे पंजों से मेरी वही उँगली पकड़कर हाथ से चिपक गया, जिसे उसने अपने बचपन की मरणासन्न स्थिति में पकड़ा था।
          पंजे इतने ठण्डे हो रहे थे कि मैंने जागकर हीटर जलाया और उसे उष्णता देने का प्रयत्न किया, परन्तु प्रभात की प्रथम किरण के स्पर्श के साथ ही वह किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया ।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) गिल्लू गर्मी से बचने के लिए किस पर लेट जाता था?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं महादेवी वर्मा द्वारा लिखित ‘गिल्लू’ नामक पाठ से अवतरित है। प्रस्तुत अवतरण में लेखिका ने बताया है कि यदि मैं घर पर रहती तो गिल्लू सदैव मेरे निकट ही रहना चाहता था।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखिका कहती है कि गर्मियों में जब मैं अपने लिखने-पढ़ने में व्यस्त रहती तो गिल्लू न बाहर जाता था और न ही अपने झूले पर जाता था। वह सदैव मेरे करीब ही रहता था। गिल्लू गर्मी से बचने के लिए मेरे पास रखी सुराही पर लेट जाता था। इस तरह वह एक पल भी मुझसे अलग नहीं होना चाहता था।
    गिलहरियों की जीवनावधि बहुत अल्प होती है, मुश्किल से दो वर्ष । इसलिए जब गिल्लू की जीवन-यात्रा का न्त करीब आया तो उसने दिनभर ने कुछ (UPBoardSolutions.com) खाया-पिया और न ही बाहर गया। रात में अपने झूले से उतरकर मेरे बिस्तर पर आ और मेरी उँगली पकड़कर मेरे हाथ से चिपक गया जिसे उसने अपने बचपन की मरणासन्न स्थिति में पकड़ा था। उसका शरीर अल ठण्डा पड़ गया था। मैंने हीटर जलाकर उसे गर्मी प्रदान करने का प्रयास किया लेकिन गिल्लू का अन्त तो करीब था। प्रात:कानते ही उसने इस संसार से विदा ले ली।
  3. गिल्लू गर्मी से बचने के लिए सुराही पर लेट जाता था।

प्रश्न 2. महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय एवं कृतियों का उल्लेख कीजिए।

प्रश्न 3. महादेवी वर्मा के जीवन एवं साहित्यिक परिचय को अपने शब्दों में लिखिए।

प्रश्न 4. महादेवी वर्मा के साहित्यिक परिचय एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।

प्रश्न 5. महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
अथवा महादेवी वर्मा को साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

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महादेवी वर्मा
( स्मरणीय तथ्य )

 जन्म-सन् 1907 ई०। मृत्यु-सन् 1987 ई०। जन्म-स्थान-फर्रुखाबाद। पिता- गोविन्दप्रसाद वर्मा। माता- श्रीमती हेमरानी।। शिक्षा- एम० ए०। पति-रूपनारायण किन्तु परित्यक्ता।
अन्य बातें – ‘चाँद’ पत्र का सम्पादन, ‘साहित्य संसद्’ की स्थापना ।
काव्यगत विशेषताएँ- छायावादी, रहस्यवादी रचनाएँ, वेदना की प्रधानता। 

  • जीवन-परिचय- श्रीमती महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद जिले के एक सम्पन्न कायस्थ परिवार में अन् 1907 ई० में हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में हुई । प्रयोग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम० ए० करने ३, वात् ये प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाचार्या हो गयीं। तब से अन्त तक इसी पद पर कार्य किया। बीच में कुछ वषों 1: आपने चाँद” नामक मासिक पत्रिका का भी सम्पादन किया था। इन्हें ‘सेकसरिया’ एवं ‘मंगलाप्रसाद पुरस्कार’ भी प्राप्त हो चुके हैं। इनकी विद्वता पर भारत (UPBoardSolutions.com) सरकार ने इन्हें ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया है। ये उत्तर प्रदेश विज्ञान परिषद् की सम्मानित सदम्या भी रह चुकी हैं। सन् 1987 में इनका देहावसान हो गया था।
  • कृतियाँ- महादेवी जी का कृतित्व गुणात्मक दृष्टि से तो अति समृद्ध है ही, परिमाण की दृष्टि से भी कम नहीं है। इनकी प्रम् । रचनाएँ निम्नलिखित हैं ‘क्षणदा’, ‘ श्रृंखला की कड़ियाँ’, ‘साहित्यकार की आस्था तथा निबन्ध’ उनके प्रसिद्ध निबन्ध-संग्रह हैं। ‘अतीत के चलचित्र’, ‘पथ के साथी’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘मेरा परिवार’ उनके संस्मरणों और रेखाचित्रों के संग्रह हैं। ‘हिन्दी का विवेचनात्मक गद्य’ और काव्य-ग्रन्थों की भूमिकाओं तथा फुटकर आलोचनात्मक निबन्धों में उनका सजग आलोचक-रूप व्यक्त हुआ है। | ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्यगीत’, ‘यामा’, ‘दीपशिखा’ आदि उनके कविता-संग्रह हैं। ‘चाँद’ और ‘ आधुनिक कवि’ का उन्होंने सम्पादन किया। |
  • साहित्यिक परिचय- महादेवी जी का मुख्य साहित्यिक क्षेत्र काव्य है तथापि ये उच्चकोटि की गद्य रचनाकार भी हैं। एक ओर जहाँ वे विशिष्ट गम्भीर शैली में आलोचनाएँ लिख सकती हैं, दूसरी ओर ‘ श्रृंखला की कड़ियाँ’ में विवेचनात्मक गद्य भी प्रस्तुत कर सकती हैं। इन्होंने नारी-जगत् की समस्याओं को प्राय: अपने निबन्धों का वर्ण्य-विषय बनाया है। पथ के साथी’ में कुछ प्रमुख (UPBoardSolutions.com) साहित्यकारों के ‘अतीत के चलचित्र’ एवं ‘स्मृति की रेखाओं में मार्मिक रेखाचित्र प्रस्तुत किया है। मेरा परिवार में कुछ पालतू पशु-पक्षियों के शब्द-चित्र बड़ी ही मार्मिक शैली में चित्रित किये गये हैं। महादेवी जी के काव्य में आध्यात्मिक वेदना का पुट है। इनका काव्य वर्णनात्मक और इतिवृत्तात्मक न होकर गीतिकाव्य है जिसमें लाक्षणिकता और व्यंजकता का बाहुल्य है।
  • भाषा शैली– महादेवी की भाषा शुद्ध खड़ीबोली है, जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है। भाषा में का मक चित्रमयता सर्वत्र देखने योग्य है। इनकी गद्य रचनाओं में भी काल की चित्रमयता, मधुरता एवं कल्पनाशीलता विद्यमान रहती है जिसमें पाठकों को एक अनोखी आत्मीयता के दर्शन होते हैं। शब्दों का चयन एवं वाक्य-विन्यास अत्यन्त ही कलात्मक है। गद्य में लाक्षणिकता के पुट से एक मधुर व्यंग्य की सृष्टि होती है। भाषा संस्कृतनिष्ठ होने पर भी उसमें शुष्कता और दुर्बोधता का अभाव है। भावों की अभिव्यक्ति में आपको अद्वितीय सफलता मिली है।

उदाहरण

  1. विवरणात्मक शैली- “हिमालय के प्रति मेरी आसक्ति जन्मजात है। इसके पर्वतीय अंचलों में मौन हिमानी और मुखर निर्झरी, निर्जन वन और कलेवर भरे आकाश वाला रामगढ़ मुझे विशेष रूप से आकर्षित करता रहा है।” – प्रणाम
  2. विवेचनात्मक शैली- ”महान् साहित्यकार अपनी कृति में इस प्रकार व्याप्त रहता है कि उसे कृति से पृथक् रखकर देखना उसके व्यक्तिगत जीवन की सब रेखाएँ जोड़ लेना ही कष्टसाध्य होता है। एक के तौलने में दूसरा तुल जाता और दूसरे को नापने में पहला नप जाता है।” – प्रणाम
  3. आत्मव्यंजक शैली- “मेरे काक पुराण के विवेचन में अचानक बाधा आ पड़ी क्योंकि गमले और दीवार की सन्धि में छिपे एकें छोटे-से जीव पर मेरी दृष्टि गयी। निकट आकर देखा, गिलहरी का छोटा बच्चा है।”   -गिल्लू

( लघु उत्तरीय प्रश्न )

प्रश्न 1. इस पाठ से लेखिका के स्वभाव आदि के बारे में आपको क्या-क्या ज्ञात होता है?
उत्तर- इस पाठ से लेखिका के स्वभाव के बारे में जानकारी मिलती है कि लेखिका का स्वभाव दयालु है। वह जीवजन्तुओं पर दया करती है। गिल्लू का उन्होंने घायलावस्था में (UPBoardSolutions.com) उपचार किया। उसको वह अपने साथ भोजन कराती थी। गिल्लू परिवार का सदस्य जैसा था।

प्रश्न 2. लेखिका ने अपनी रचनाओं में किन-किन शैलियों का प्रयोग किया है?
उत्तर- लेखिका में अपनी रचनाओं में चित्रोपमे वर्णनात्मक शैली, विवेचनात्मक शैली, मात्रात्मक शैली, व्यंग्यात्मक शैली, आलेकारिक शैली; ‘सूक्ति शैली, ‘उद्धरण शैलियों का प्रयोग किया है।

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प्रश्न 3. गिल्लू कौन था? उसकी विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- गिल्लू एक जीव था। वह बहुत ही जानकार था। वह लेखिका की थाली में बैठकर खाना खाता था। जब गिल्लू को भूख लगती थी तो वह चिक-चिक की आवाज करता था। काजू उसे बेहद पसन्द था। यदि उसे काजू नहीं मिलता था तो पिंजड़े में रखी दूसरी चीजें वह गिरा देता था।

प्रश्न 4. महादेवी वर्मा को ‘विरह की गायिका’ के रूप में आधुनिक मीरा’ किस आधार पर कहा जाता है? स्पष्ट | कीजिए।
उत्तर- रहस्यवाद एवं प्रकृतिवाद पर आधारित इनको छायावादी साहित्य हिन्दी साहित्य की अमूल्य विरासत के रूप में स्वीकार किया जाता है। विरह की गायिका के रूप में महादेवी जी को आधुनिक मीरा कहा जाता है। महादेवी जी के कुशल सम्पादन के परिणामस्वरूप ही ‘चाँद’ पत्रिका नारी जगत् की सर्वश्रेष्ठ पत्रिका बन सकी।

प्रश्न 5. लेखिका ने कौए को समादरित, अनादरित, अतिसम्मानित तथा अतिअवमानित क्यों कहा है?
उत्तर- पितृपक्ष में कौए का महत्त्व बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त किसी प्रियजन के आने की सूचना अपने कर्कश स्वर में देता है। इसलिए यह समादरित और अति (UPBoardSolutions.com) सम्मानित है। हम कौए के काँव-काँव करने को अवमानना के अर्थ में ही प्रयुक्त करते हैं इसलिए अनादरित और अतिअवमानित है।

प्रश्न 6. गिल्लू को लेखिका ने किन परिस्थितियों में प्राप्त किया?
उत्तर- लेखिका की गमले और दीवार की सन्धि में छिपे एक छोटे-से जीव पर दृष्टि गयी। निकट जाकर देखा, उसमें गिलहरी का एक छोटा-सा बच्चा था, जो सम्भवतः घोंसले से गिर पड़ा था। कौए उस पर चोंच से प्रहार कर रहे थे। ऐसी स्थिति में लेखिका ने उसे आश्रय दिया।

प्रश्न 7. गिल्लू के किन-किन व्यवहारों से पता चलता है कि वह समझदार प्राणी था?
उत्तर- भूख लगने पर गिल्लू चिक-चिक करके सूचना देता था। काजू और बिस्कुट मिल जाने पर पंजे से पकड़कर कुतरकुतर कर खाता । लेखिका कहती है कि जब मैं खाने की मेज पर बैठती तो गिल्लू थाली के पास आकर बैठ जाता और एक-एक चावल मेरी थाली से निकालकर खाता। गर्मी के मौसम में गर्मी से बचने के लिए कमरे में रखी मेरी सुराही पर लेट जाता। इससे यह मालूम होता है कि गिल्लू एक समझदार प्राणी था।

प्रश्न 8. गिल्लू पाठ से दस सुन्दर वाक्य लिखिए।
उत्तर- सोनजुही में आज एक पीली कली लगी है। हमारे बेचारे पुरखे न गरुड़ के रूप में आ सकते हैं, न मयूर के, न हंस । के। मैं उसे गिल्लू कहकर बुलाने लगी। भूख लगने पर वह चिक-चिक की आवाज करती। काजू या बिस्कुट मिल जाने पर पंजे से पकड़कर उसे कुतरता रहता था। फिर (UPBoardSolutions.com) गिल्लू के जीवन का प्रथम बसन्त आया। नीम-चमेली की गन्ध मेरे कमरे में हौले-हौले आने लगी। मेरे पास बहुत से पशु-पक्षी थे। गिल्लू इनमें अपवाद था। जब मैं खाने की मेज पर बैठती तो गिल्लू मेरी थाली के पास बैठ जाता और थाली में से एक-एक चावल निकालकर कुतरता रहता। मेरे साथ खाने की हिम्मत अन्य पशु-पक्षियों की कभी नहीं हुई। काजू गिल्लू का प्रिय खाद्य था। कई दिन तक काजू न मिलने पर वह अन्य खाने की चीजें या तो लेना बन्द कर देता था या झूले के नीचे फेंक देता था।

प्रश्न 9. लेखिका के किन व्यवहारों से ज्ञात होता है कि गिल्लू को वह अपने परिवार के एक सदस्य की तरह मानती थी?
उत्तर- लेखिका गिल्लू को अपने परिवार के सदस्य की तरह थाली में खाना खिलाती थी। उसे बिस्कुट और काजू खिलाती थी।

प्रश्न 10. अपने किसी पालतू जन्तु के विषय में वर्णन कीजिए।
उत्तर- मेरे पास एक नेवला है। यह बहुत ही जानकार जन्तु है। यह पूरे घर में टहलता रहता है। जब मैं घर से बाहर निकलता हूँ तो यह भी मेरे साथ निकल पड़ता है। यह घर के आस-पास कीड़े-मकोड़ों को खाता रहता है। नेवले के कारण घर के आस-पास सर्प का भय नहीं होता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. महादेवी वर्मा की दो रेखाचित्र कृतियों का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर- ‘स्मृति की रेखाएँ’ और ‘अतीत के चलचित्र’ महादेवी वर्मा के दो रेखाचित्र हैं।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (√) का चिह्न लगाइए –
(अ) गिल्लू तीन वर्ष तक महादेवी जी के घर में रहा।                  (×)
(ब) गिल्लू महादेवी जी के साथ उनकी थाली में भी खाता था।     (√)
(स) गिल्लू को कौए ने मार डाला था।                                         (×)
(द) सोनजुही की लता के नीचे गिल्लू को समाधि दी गयी।           (√)

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प्रश्न 3. महादेवी वर्मा किस युग की लेखिका थीं?
उत्तर- महादेवी वर्मा शुक्लोत्तर युग की लेखिका थीं। 

प्रश्न 4. गिलहरियों के जीवन की अवधि कितने वर्ष की होती है?
उत्तर- गिलहरियों के जीवन की अवधि दो वर्ष की होती है।

प्रश्न 5. ‘गिल्लू’ नामक पाठ महादेवी जी की किस कृति से लिया गया है?
उत्तर- ‘गिल्लू’ नामक पाठ महादेवी जी द्वारा लिखित ‘मेरा परिवार’ नामक पुस्तक से लिया गया है।

व्याकरण-बोध

प्रश्न 1.‘समादरित’ शब्द का सन्धि-विच्छेद करते हुए सन्धि का नाम बताइए –
उत्तर- समादरित – सम + आदरित – दीर्घ सन्धि

प्रश्न 2. वाक्य-विश्लेषण कीजिए –
यह कागभुशुण्डि भी विचित्र पक्षी है-एक साथ समादरित, अनादरित, अति सम्मानित, अति अवमानित।
उत्तर- कागभुशुण्डि एक ऐसा विचित्र पक्षी है जिसका आदर भी होता है, अनादर भी होता है, जो सम्मानित भी होता है और अपमानित भी।

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प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों का वाक्य-प्रयोग कीजिए –
गिल्लू, सोनजुही, बसंत, जाली, काजू, गिलहरी।
उत्तर-

  • गिल्लू – महादेवी वर्मा ने जिस गिलहरी को पाला था उसका नाम गिल्लू रखा।
  • सोनजुही- सोनजुही में एक पीली कली लगी है।
  • बसंत- बसंत का मौसम अत्यन्त प्यारा होता है।
  • जाली- गिल्लू काजू न पाने पर अन्य चीजें काट-काटकर जाली से गिरा देता था।
  • काजू- गिल्लू को काजू बहुत पसन्द था।
  • गिलहरी- गिलहरी की अवधि दो वर्ष होती है।

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल)

UP Board Solutions for Class 10 Hindi पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल)

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पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल)

अतिलघु उत्तरीय प्रज

प्रश्न 1
भक्तिकाल का यह नाम क्यों पड़ा ?
उत्तर
इस काल की रचनाओं में भक्ति-भावना की अधिकता होने के कारण इसका नाम ‘भक्तिकाल रखा गया, जो सर्वथा उपयुक्त है। भक्तिकाल में कबीर, जायसी, सूर, तुलसी जैसे भक्त कवियों ने भक्ति काव्यों की (UPBoardSolutions.com) रचना की।

प्रश्न 2
भक्तिकाल के चार प्रमुख कवियों और उनकी मुख्य रचनाओं के नाम लिखिए।
या
भक्तिकाल के दो प्रमुख कवियों और उनकी प्रसिद्ध कृति का नाम लिखिए। [2009]
या
भक्तिकाल के किसी एक कवि का नाम लिखिए। [2017]
उत्तर
भक्तिकाल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ हैं—

  1. कबीरदास-बीजक,
  2. जायसी–पद्मावत,
  3. सूरदास—सूरसागर तथा
  4. तुलसीदास–श्रीरामचरितमानसः ।

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प्रश्न 3.
भक्तिकाल की दो शाखाओं का नामोल्लेख कीजिए तथा बताइए कि ‘श्रीरामचरितमानस की रचना में रचनाकार का क्या उद्देश्य निहित, था ?
उत्तर
भक्तिकाल की दो शाखाएँ थीं—

  1.  निर्गुण-भक्ति शाखा तथा
  2.  सगुण-भक्ति शाखा।
    ‘श्रीरामचरितमानस’ की रचना में तुलसीदास जी का (UPBoardSolutions.com) उद्देश्य था-मर्यादापुरुषोत्तम राम के शील, शक्ति और सौन्दर्य समन्वित स्वरूप के प्रस्तुतीकरण द्वारा लोक-मंगल की साधना।

प्रश्न 4
भक्तिकाल की चारों काव्यधाराओं के नाम लिखिए।
उत्तर
भक्तिकाल की काव्यधारा चार रूपों में प्रवाहित हुई—

  1. ज्ञानमार्गी या सन्त-काव्यधारा,
  2. प्रेममार्गी या सूफी-काव्यधारा,
  3.  रामभक्ति-काव्यधारा तथा
  4.  कृष्णभक्ति-काव्यधारा।।

प्रश्न 5
भक्तिकाल की प्रमुख शाखाओं का नामोल्लेख कर किसी एक शाखा की दो प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
भक्तिकाल की प्रमुख शाखाएँ हैं–

  1. सगुण-भक्ति शाखा तथा
  2. निर्गुण-भक्ति शाखा

सगुण-भक्ति शाखा की विशेषताएँ–

  1. राम तथा कृष्ण की पूर्ण ब्रह्म के रूप में प्रतिष्ठा तथा
  2. लोकमंगल की भावना।

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प्रश्न 6
निर्गुण-भक्ति शाखा की दो विशेषताएँ लिखते हुए इसी शाखा के दो कवियों के नाम उनकी एक-एक रचना सहित लिखिए।
उत्तर
निर्गुण-भक्ति शाखा की विशेषताएँ–

  1. इसमें ईश्वर के निराकार स्वरूप की उपासना हुई तथा
  2. आन्तरिक साधना (UPBoardSolutions.com) पर बल दिया गया।

कवि तथा उनकी रचना

  1. कबीरदास-बीजक तथा
  2. मलिक मुहम्मद जायसी-पद्मावत।

प्रश्न 7
पूर्व मध्यकाल की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए और इस काल के दो कवियों के नाम बताइए।
उत्तर
विशेषताएँ–

  1. ईश्वर में सहज विश्वास तथा
  2. गुरु-महिमा का वर्णन।

दो कवि–

  1. कबीरदास तथा
  2. तुलसीदास।।

प्रश्न 8
निर्गुण-भक्ति काव्यधारा की कौन-सी दो उपशाखाएँ हैं ?
उत्तर
निर्गुण-भक्ति काव्यधारा की दो उपशाखाएँ हैं—

  1. ज्ञानाश्रयी या सन्त-काव्यधारा तथा
  2. प्रेमाश्रयी या सूफी-काव्यधारा।

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प्रश्न 9
सन्त-काव्यधारा (ज्ञानाश्रयी शाखा) के प्रतिनिधि कवि कौन थे ?
उत्तर
सन्त-काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि सन्त कबीरदास थे।

प्रश्न 10
कबीर के अतिरिक्त किन्हीं दो प्रमुख सन्त कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर
सन्त-काव्यधारा में कबीर के अतिरिक्त (UPBoardSolutions.com) रैदास, मलूकदास, नानक तथा दादूदयाल प्रमुख कवि ।।

प्रश्न 11
सूफी-काव्यधारा (प्रेमाश्रयी शाखा) के प्रतिनिधि कवि का नाम बताइट।
उत्तर
सूफी-काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि मलिक मुहम्मद जायसी हैं।

प्रश्न 12
सूफी-काव्यधारा के प्रमुख कवियों और उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर
सूफी-काव्यधारा के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ निम्नवत् हैं–

  1. मलिक मुहम्मद जायसी-पद्मावत, अखरावट, आखिरी कलाम।
  2. कुतुबन-मृगावती।
  3. मंझन–मधुमालती।
  4. उसमान—चित्राक्ली।।

प्रश्न 13
सूफी कवियों ने अपनी काव्य-रचनाओं में किस शैली को अपनाया ?
उत्तर
सूफी कवियों ने अपनी काव्य-रचनाओं में फारसी की मसनवी शैली को अपनाया।

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प्रश्न 14
प्रेमाश्रयी या सूफी-काव्यधारा की पाँच विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
सूफी-काव्यधारा की प्रमुख पाँच विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. प्रेमतत्त्व का निरूपण,
  2. मसनवी शैली,
  3. श्रृंगार रस की प्रधानता,
  4.  हिन्दू संस्कृति व लोकजीवन का चित्रण तथा
  5. लौकिक प्रेम के द्वारा अलौकिक प्रेम (परमात्म-प्रेम) की व्यंजना।।

प्रश्न 15
सगुणमार्गी कृष्णभक्ति शाखा का सर्वश्रेष्ठ कवि कहलाने का गौरव किसे प्राप्त है ?
उत्तर
सगुणमार्गी कृष्णभक्ति शाखा का सर्वश्रेष्ठ (UPBoardSolutions.com) कवि कहलाने का गौरव सूरदास को प्राप्त है।

प्रश्न 16
कृष्णभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि का नाम लिखिए।
उत्तर
कृष्णभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि सूरदास हैं।

प्रश्न 17
कृष्णभक्ति काव्यधारा की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
या
सूरदास के काव्य के आधार पर भक्तिकाल की दो प्रमुख विशेषताएँ बताइट।
उत्तर
कृष्णभक्ति काव्यधारा की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं–

  1. कृष्ण की लीलाओं का गान,
  2. सखाभाव की भक्ति,
  3. श्रृंगार और वात्सल्य रस की प्रधानता,
  4. सगुण रूप की प्रधानता,
  5. प्रकृति का उद्दीपन रूप में वर्णन तथा
  6. ब्रजभाषा में मुक्तक-गेय पदों की रचना।

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प्रश्न 18
सूरसागर में कितने पद थे ?
उत्तर
सूरसागर में लगभग सवा लाख पद थे।

प्रश्न 19
सूरदास की भक्ति किस प्रकार की है ?
उत्तर
सूरदास की भक्ति सख्य भाव की है।

प्रश्न 20
सगुणोपासक रामभक्ति शाखा का सर्वश्रेष्ठ कवि किसे माना जाता है ?
उत्तर
सगुणोपासक रामभक्ति शाखा का (UPBoardSolutions.com) सर्वश्रेष्ठ कवि तुलसीदास को माना जाता है।

प्रश्न 21
रामभक्ति काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि कौन हैं ?
उत्तर
रामभक्ति काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि गोस्वामी तुलसीदास हैं, जिन्होंने ‘श्रीरामचरितमानस की रचना करके समाज का पथ-प्रदर्शन किया।

प्रश्न 22
राम को मर्यादा-पुरुषोत्तम के रूप में प्रतिष्ठित करने वाले प्रसिद्ध ग्रन्थ का नाम लिखिए।
उत्तर
राम को मर्यादा-पुरुषोत्तम के रूप में प्रतिष्ठित करने वाले ग्रन्थ का नाम श्रीरामचरितमानस है।

प्रश्न 23
तुलसीकृत अवधी और ब्रजभाषा की एक-एक रचना का नाम बताइट।
उत्तर
अवधी भाषा-‘श्रीरामचरितमानस’ तथा ब्रजभाषा-‘विनयपत्रिका’।

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प्रश्न 24
तुलसी ने अपने ‘श्रीरामचरितमानस’ की रचना किस मुख्य छन्द में की है ?
उत्तर
तुलसी ने ‘श्रीरामचरितमानस की रचना मुख्य रूप से दोहा-चौपाई छन्द में की है।

प्रश्न 25
रामभक्ति काव्यधारा की दो प्रमुख रचनाओं और उनके रचयिताओं के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. श्रीरामचरितमानस तथा
  2. रामचन्द्रिका। इनके लेखक क्रमश: तुलसीदास और केशवदास

प्रश्न 26
रामभक्ति काव्य की रचना किन भाषाओं में हुई ?
उत्तर
रामभक्ति काव्य की रचना अवधी और ब्रजभाषा में हुई।

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लघु उत्तरीय प्रण।

प्रश्न 1
भक्तिकाल की विविध काव्यधाराओं का संक्षेप में परिचय दीजिए।
भक्तिकाल की दो प्रमुख धाराओं का नामोल्लेख कीजिए तथा उनके एक-एक प्रतिनिधि कवि का नाम भी बताइट।
उत्तर
भक्तिकाल के साहित्य में चार प्रकार की काव्यधाराएँ मिलती हैं, जिनका विभाजन निम्नवत् है|

(1) निर्गुण-भक्ति काव्यधारा–ईश्वर के निर्गुण रूप की उपासना करने वाले भक्त कवियों ने ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग ज्ञान और प्रेम बताया। इस आधार पर निर्गुण-भक्ति काव्यधारा दो शाखाओं में प्रस्फुटित हुई

  1.  ज्ञान को ईश्वर की प्राप्ति का साधन मानने के आधार पर ज्ञानमार्गी या सन्त-काव्यधारा प्रस्फुटित हुई। इसके प्रतिनिधि कवि कबीरदास हैं।
  2. प्रेम को ईश्वर की प्राप्ति का साधन मानने के आधार (UPBoardSolutions.com) पर प्रेममार्गी या सूफी-काव्यधारा प्रस्फुटित हुई। इसके प्रतिनिधि कवि मलिक मुहम्मद जायसी हैं।

(2) सगुण-भक्ति काव्यधारा–ईश्वर के साकार रूप को आधार मानकर उपासना करने वाले कवियों ने राम और कृष्ण को इष्टदेव मानकर भक्ति-काव्यों की रचना की। इस आधार पर सगुण-भक्ति काव्यधारा भी दो शाखाओं में प्रस्फुटित हुई|

  1. कृष्ण के साकार रूप का आधार लेकर कृष्णभक्ति काव्यधारा विकसित हुई। इसके प्रतिनिधि कवि सूरदास हैं।
  2. राम के साकार रूप का आधार लेकर रामभक्ति काव्यधारा विकसित हुई। इसके प्रतिनिधि कवि तुलसीदास हैं।

प्रश्न 2
भक्तिकाल का समय कब से कब तक माना जाता है ? इस काल के साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ (प्रवृत्तियाँ) बताइए।
या
भक्तिकाल की दो सामान्य प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
सन् 1343 से 1643 ई० तक का समय हिन्दी-साहित्य में भक्तिकाल के नाम से जाना जाता है। भक्तिकाल के साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं

  1. भक्ति-भावना,
  2.  गुरु की महिमा,
  3. सुधारवादी दृष्टिकोण एवं समन्वय की भावना,
  4. रहस्य की भावना,
  5. अहंकार का त्याग और लोकमंगल की भावना,
  6. काव्य का उत्कर्ष एवं
  7. जीवन की नश्वरता और ईश्वर के नाम-स्मरण की महत्ता।

प्रश्न 3
भक्तिकाल को हिन्दी-साहित्य का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है ? स्पष्ट कीजिए।
या
हिन्दी पद्य-साहित्य को भक्तिकाल की क्या देन है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
भक्तिकाल में भाव, भाषा एवं शिल्प की दृष्टि से हिन्दी-साहित्य का उत्कर्ष हुआ। भावपक्ष तथा कलापक्ष के उत्कृष्ट रूप के कारण ही भक्तिकाल को हिन्दी-साहित्य का स्वर्ण युग कहते हैं। इसी समय कबीर, जायसी, सूर तथा तुलसी जैसे रससिद्ध (UPBoardSolutions.com) कवियों की दिव्य वाणी उनके अन्त:करण से निकलकर देश के कोने-कोने में फैली थी। यही सार्वभौम और सार्वकालिक साहित्य भक्तिकाल की अनुपम देन है।

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प्रश्न 4
सन्त-काव्यधारा (ज्ञानाश्रयी शाखा) की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
सन्त-काव्यधारा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ इस प्रकार हैं–

  1. गुरु की महिमा का गान,
  2. निर्गुण ब्रह्म की उपासना,
  3. बाह्य आडम्बरों का विरोध और समाज-सुधार,
  4. हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल,
  5. एकेश्वरवाद में विश्वास,
  6. रहस्यवादी भावना,
  7. नाम के स्मरण को महत्त्व,
  8. मायारूपी महाठगिनी की निन्दा,
  9. मिश्रित या सधुक्कड़ी भाषा।।

प्रश्न 5
कृष्णभक्ति काव्यधारा (कृष्णाश्रयी शाखा) का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
या
अष्टछाप का संगठन किसने किया ? इसमें कितने कवियों को सम्मिलित किया गया ?
उत्तर
सगुण-भक्ति काव्य में कृष्णभक्ति के प्रवर्तन का श्रेय स्वामी वल्लभाचार्य को है। गोस्वामी बिट्ठलनाथ ने कृष्णभक्ति की धारा को आगे बढ़ाया। इन्होंने आठ कृष्णभक्त कवियों को चुनकर ‘अष्टछाप’ की स्थापना की, जिसमें सूरदास प्रमुख थे। इस शाखा के सभी (UPBoardSolutions.com) कवियों ने कृष्ण के लोकरंजक स्वरूप को अपनाया। इन्होंने कृष्ण के बाल और किशोर रूप का ही अधिक चित्रण किया तथा गोपियों के साथ की गयी क्रीड़ाओं को भी अपने काव्य का विषय बनाया। इसी कारण कृष्णभक्ति काव्य में वात्सल्य, माधुर्य एवं श्रृंगार भाव के दर्शन होते हैं।

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प्रश्न 6
कृष्णभक्ति शाखा के प्रमुख कवियों और उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर
कृष्णभक्ति शाखा के प्रमुख कवियों के नाम एवं रचनाएँ निम्नलिखित हैं
(क) अष्टछाप के कवि-

  1. सूरदास—सूरसागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी;
  2. नन्ददास-रास पंचाध्यायी, भ्रमरगीत;
  3. कृष्णदास-भ्रमरगीत, प्रेम-तत्त्व निरूपण;
  4. परमानन्ददास-परमानन्द सागर;
  5. कुम्भनदास-फुटकर पद;
  6. चतुर्भुजदास,
  7. छीतस्वामी एवं
  8. गोविन्द स्वामी।।

(ख) अन्य प्रमुख कवि–

  1.  हित हरिवंश-हित चौरासी;
  2. मीराबाई—मीराबाई पदावली;
  3. रसखान-सुजान-रसखान, प्रेमवाटिका तथा
  4. नरोत्तमदास-सुदामाचरित।

प्रश्न 7
भ्रमरगीत का परिचय दीजिए।
उत्तर
सूरसागर का एक प्रसंग भ्रमरगीत कहलाता है। इस प्रसंग में गोपियों के प्रेमावेश ने ज्ञानी उद्धव को भी प्रेमी एवं भक्त बना दिया था।

प्रश्न 8
रामभक्ति काव्यधारा (रामाश्रयी शाखा) का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर
राम को आराध्य मानकर जिस लोक-मंगलकारी काव्य की रचना की गयी, वह रामभक्ति काव्य के नाम से जाना जाता है। रामभक्ति काव्यधारा के भक्त कवियों के प्रेरक स्वामी रामानन्द रहे हैं। स्वामी रामानन्द ने जनता के बीच रामभक्ति का प्रचार (UPBoardSolutions.com) किया। उन्हीं की शिष्य-परम्परा में गोस्वामी तुलसीदास ने ‘श्रीरामचरितमानस’ की रचना करके भारतीय जनता में रामभक्ति की पावन गंगा को प्रवाहित किया।

प्रश्न 9
रामभक्ति शाखा के प्रमुख कवियों एवं उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
या
राम काव्यधारा (रामाश्रयी शाखा) के प्रमुख कवि और उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
रामभक्ति शाखा के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नवत् हैं

  1. तुलसीदास-श्रीरामचरितमानस, विनयपत्रिका, कवितावली, गीतावली, दोहावली, बरवै रामायण आदि।
  2. प्राणचन्द-रामायण महानाटक।
  3. हृदयराम-हिन्दी हनुमन्नाटक।
  4. केशवदास–रामचन्द्रिका, कविप्रिया, रसिकप्रिया।
  5. नाभादास-भक्तमाल।।

प्रश्न 10
रामभक्ति शाखा की प्रमुख प्रवृत्तियों (विशेषताओं) पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
या
तुलसी के पद्यों के आधार पर भक्तिकाल की दो प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
रामभक्ति काव्यधारा की प्रमुख विशेषताएँ (प्रवृत्तियाँ) इस प्रकार हैं—

  1. राम को अपना इष्टदेव मानकर उनके लोकरक्षक एवं लोकरंजक रूप में रामचरित का गायन,
  2. दास्य-भाव की भक्ति,
  3. चातक-प्रेम के आदर्श पर आधारित अनन्य भक्ति-भावना,
  4. वर्णाश्रम धर्म से समर्थित सामाजिक व्यवस्था को श्रेष्ठ मानते हुए लोक-मर्यादा की प्रतिष्ठा,
    लोक-मंगल की भावना,
  5. विभिन्न मत-मतान्तरों, सम्प्रदायों तथा काव्य-शैलियों में समन्वय की चेष्टा,
  6. अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं में (UPBoardSolutions.com) अधिकारपूर्वक काव्य-रचना एवं
  7. प्रबन्ध व मुक्तक दोनों काव्य रूपों में रचना।

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प्रश्न 11
तुलसी और सूर की भक्ति में मूलभूत अन्तर क्या है ?
उत्तर
तुलसी और सूर की भक्ति में मूलभूत अन्तर यह है कि तुलसी की (UPBoardSolutions.com) भक्ति दास्य-भाव की है। और सूर की सख्य-भाव की; अर्थात् तुलसीदास स्वयं को भगवान् का दास मानकर उनकी उपासना करते हैं, जब कि सूरदास स्वयं को भगवान् का सखा मानकर उनसे याचना करते हैं।

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 8 भारतीय संस्कृतिः (संस्कृत-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 8 भारतीय संस्कृतिः (संस्कृत-खण्ड)

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अवतरणों का ससन्दर्भ हिन्दी अनुवाद

प्रश्न 1.
मानव-जीवनस्य संस्करणं संस्कृतिः।अस्माकं पूर्वजाः मानवजीवनं संस्कर्तुं महान्तं प्रयत्नम् अकुर्वन्। ते अस्माकं जीवनस्य संस्करणाय यान् आचारान् विचारान् च अदर्शयन् तत् सर्वम् अस्माकं संस्कृतिः। [2011, 15]
उत्तर
[संस्करणं = दोषों को दूर करना। संस्कर्तुं = शुद्ध करने के लिए। संस्करणाय = सँवारने के लिए। अदर्शयन् = दिखाया।]

सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ (UPBoardSolutions.com) के ‘संस्कृत-खण्ड’ के ‘भारतीया संस्कृतिः पाठ से उद्धृत है।

[ विशेष—इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।] प्रसंग-इसमें भारतीय संस्कृति के स्वरूप और महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।

अनुवाद-मानव-जीवन को सँवारना (दोषादि को दूर करना) संस्कृति है। हमारे पूर्वजों ने मानव-जीवन को शुद्ध करने के लिए महान् प्रयत्न किये। उन्होंने हमारे जीवन के संस्कारों के लिए जिन आचारों और विचारों को दिखाया, वह सब हमारी संस्कृति है।

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प्रश्न 2.
“विश्वस्य स्रष्टा ईश्वरः एक एव” इति भारतीय-संस्कृतेः मूलम्। विभिन्नमतावलम्बिनः विविधैः नामभिः एकम् एव ईश्वरं भजन्ते।अग्निः, इन्द्रः, कृष्णः,करीमः, रामः, रहीमः,जिनः, बुद्धः, ख्रिस्तः, अल्लाहः इत्यादीनि नामानि एकस्य एव परमात्मनः सन्ति। तम् एव ईश्वरं जनाः गुरुः इत्यपि मन्यन्ते। अतः सर्वेषां मतानां समभावः सम्मानश्च अस्माकं संस्कृतेः सन्देशः। [2011, 14]
उत्तर
[ स्रष्टा = रचने वाला। विभिन्नमतावलम्बिनः (विभिन्नमत + अवलम्बिन:) = विभिन्न मतों को मानने वाले। समभावः = समान भाव।।

प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण में भारतीय संस्कृति के मूल तत्त्व को बताया गया है।

अनुवाद--“विश्व को रचने वाला ईश्वर एक ही है, यह भारतीय संस्कृति का मूल है। अनेक मतों को मानने वाले अनेक नामों से एक ही ईश्वर का भजन करते हैं। अग्नि, इन्द्र, कृष्ण, करीम, राम, रहीम, जिन, बुद्ध, ख्रिस्त, अल्लाह इत्यादि नाम एक ही परमात्मा के हैं। उसी (UPBoardSolutions.com) ईश्वर को लोग ‘गुरु’ भी मानते हैं। अत: सब मतों के प्रति समान भाव और सम्मान हमारी संस्कृति का सन्देश है।

प्रश्न 3.
भारतीय संस्कृतिः तु सर्वेषां मतावलम्बिन सङ्गमस्थली। काले-काले विविधाः विचाराः भारतीय-संस्कृतौ समाहिताः। एषा संस्कृतिः सामासिकी संस्कृतिः यस्याः विकासे विविधानां जातीनां, सम्प्रदायानां, विश्वासानाञ्च योगदानं दृश्यते।अतएव अस्माकं भारतीयानाम्एका संस्कृतिः एका च राष्ट्रियता। सर्वेऽपि वयं एकस्याः संस्कृतेः समुपासकाः, एकस्य राष्ट्रस्य च राष्ट्रियाः। यथा भ्रातरः परस्परं मिलित्वा सहयोगेन सौहार्देन च परिवारस्य उन्नतिं कुर्वन्ति, तथैव अस्माभिः अपि सहयोगेन सौहार्देन च राष्ट्रस्य उन्नतिः कर्त्तव्या। [2012]
उत्तर
[सङ्गमस्थली = मिलने का स्थान। काले-काले = समय-समय पर। समाहिताः = मिल गये हैं। सामासिकी = मिली-जुली। समुपासकाः = उपासक। सौहार्देन = मित्रभाव से।]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में यह बताया गया है कि भारत की संस्कृति समन्वयात्मक है।

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अनुवाद-भारतीय संस्कृति तो सभी मतों के मानने वालों का मिलन-स्थल है। समय-समय पर अनेक प्रकार के विचार भारतीय संस्कृति में मिल गये। यह संस्कृति मिली-जुली संस्कृति है, जिसके विकास में अनेक जातियों, सम्प्रदायों और विश्वासों का योगदान (UPBoardSolutions.com) दिखाई पड़ता है। इसलिए हम भारतवासियों की एक संस्कृति और एक राष्ट्रीयता है। हम सभी एक संस्कृति की उपासना करने वाले और एक राष्ट्र के नागरिक हैं। जैसे सब भाई आपस में मिलकर सहयोग और प्रेमभाव से परिवार की उन्नति करते हैं, उसी प्रकार हमें भी सहयोग और मित्रभाव से राष्ट्र की उन्नति करनी चाहिए।

प्रश्न 4.
अस्माकं संस्कृतिः सदा गतिशीला वर्तते। मानवजीवनं संस्कर्तुम् एषा यथासमयं नवां नवां विचारधारा स्वीकरोति, नवां शक्ति च प्राप्नोति। अत्र दुराग्रहः नास्ति, यत् युक्तियुक्तं कल्याणकारि च तदत्र सहर्ष गृहीतं भवति। एतस्याः गतिशीलतायाः रहस्यं मानवजीवनस्य शाश्वतमूल्येषु निहितम्, तद् यथा सत्यस्य प्रतिष्ठा, सर्वभूतेषु समभावः विचारेषु औदार्यम्, आचारे दृढता चेति। [2010, 11, 14, 17]
उत्तर
[ गतिशीला = वेगवती। संस्कर्तुम् = शुद्ध करने के लिए। नवां = नयी। (UPBoardSolutions.com) दुराग्रहः = हठ। युक्तियुक्तं = ठीक-ठीक, उचित। एतस्याः = इसकी। शाश्वतमूल्येषु = सदा रहने वाले मूल्यों में निहितम् = स्थित है। औदार्यम् = उदारता।]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में भारतीय संस्कृति की गतिशीलता और उसके लचीलेपन के बारे में बताया गया है।

अनुवाद-हमारी संस्कृति सदा गतिशील रही है। मानव-जीवन को शुद्ध करने के लिए यह समयानुसार नयी-नयी विचारधारा को स्वीकार कर लेती है और नयी शक्ति को प्राप्त करती है। इसमें दुराग्रह (हठधर्मिता) नहीं है, जो युक्तिसंगत और कल्याण करने वाला है, वह इसमें हर्षसहित ग्रहण किया जाता है। इसकी गतिशीलता का रहस्य मानव-जीवन में सदा रहने वाले मूल्यों में स्थित है; जैसे कि सत्य का सम्मान, सभी प्राणियों के प्रति समान भाव, विचारों में उदारता और आचरण में दृढ़ता।

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प्रश्न 5.
एषा कर्मवीराणां संस्कृतिः “कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः’ इति अस्याः उद्घोषः।पूर्वं कर्म, तदनन्तरं फलम् इति अस्माकं संस्कृते नियमः।इदानीं यदा वयं राष्ट्रस्य नवनिर्माणे संलग्नाः स्मः निरन्तरं कर्मकरणम् अस्माकं मुख्यं कर्त्तव्यम्। निजस्य श्रमस्य फलं भोग्यं, अन्यस्य श्रमस्य शोषणं सर्वथा वर्जनीयम् यदि वयं विपरीतम् आचरामः तदा न वयं सत्यं भारतीय-संस्कृतेः उपासकाः। वयं तदैव यथार्थं भारतीया यदास्माकम् आचारे विचारे चे अस्माकं संस्कृतिः लक्षिता भवेत्। अभिलषामः वयं यत् विश्वस्य अभ्युदयाय भारतीयसंस्कृतेः एषः दिव्यः सन्देशः लोके सर्वत्र प्रसरेत्- [2009, 16]
पूर्व कर्म, तदनन्तरं …………………. फलं भोग्यम्। [2013]
एषा कर्मवीराणां ……………………… संस्कृतेः नियमः। [2014]
उत्तर
[कर्मवीराणां = कर्म में संलग्न रहने वालों की। कुर्वन्नेवेह (UPBoardSolutions.com) (कुर्वन् + एव + इह) = यहाँ करते हुए ही। जिजीविषेच्छतं (जिजीविषेत् + शतम्) समाः = सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करनी चाहिए। उद्घोषः = घोषणा। कर्मकरणम् = कर्म करना। वर्जनीयम् = त्यागने योग्य। विपरीतम् = विरुद्ध आचरामः = आचरण करते हैं। लक्षिता भवेत् = दिखाई दे। अभिलषामः = चाहते हैं। अभ्युदयाय = उन्नति के लिए।प्रसरेत् = प्रसारित हो।]

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में हमारी संस्कृति को कर्मवीरों की संस्कृति बताया गया है।

अनुवाद—यह कर्म में संलग्न रहने वालों (कर्मवीरों) की संस्कृति है। “यहाँ कर्म करते हुए ही सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करनी चाहिए। यह इसकी घोषणा है। पहले कर्म, बाद में फल–यह हमारी संस्कृति का नियम है। इस समय जब हम लोग राष्ट्र के (UPBoardSolutions.com) नव-निर्माण में लगे हुए हैं, निरन्तर काम करना ही हमारा प्रधान कर्तव्य है। अपने परिश्रम का फल भोगने योग्य है, दूसरे के श्रम का शोषण त्यागने योग्य है। यदि हम विपरीत आचरण करते हैं तो हम भारतीय संस्कृति के सच्चे उपासक नहीं हैं। हम तभी वास्तविक रूप में भारतीय हैं, जब हमारे आचार और विचार में हमारी संस्कृति दिखाई दे। हम सब चाहते हैं कि संसार की उन्नति के लिए भारतीय संस्कृति का यह दिव्य सन्देश संसार में सब जगह फैले।

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प्रश्न 6.
सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मी कश्चिद् दुःखभाग् भवेत् ॥ [2010, 11, 14, 16, 18]
उत्तर
[ निरामयाः = रोगरहित। भद्राणि = कल्याण। दुःखभाग् = दु:खी। भवेत् = होवे।]

सन्दर्भ-प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के संस्कृत खण्ड’ के ‘भारतीय संस्कृतिः’ नामक पाठ से लिया गया है।

प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक में भारतीयों की मूल भावना (UPBoardSolutions.com) पर प्रकाश डाला गया है।

अनुवाद-“सब सुखी हों। सब रोगरहित हों। सब कल्याण को देखें, अर्थात् सभी का कल्याण हो। कोई भी दुःखी न हो, अर्थात् कोई भी दु:ख का भागी न बने।”

अतिलघु-उत्तरीय संस्कृत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1
संस्कृतिः शब्दस्य किं तात्पर्यम् अस्ति ? [2012]
या
संस्कृतेः अर्थः कः ?
या
संस्कृतिः का ?
या
संस्कृतेः की परिभाषा अस्ति ?
उत्तर
मानवजीवनस्य संस्करणम् संस्कृतिः (UPBoardSolutions.com) इति संस्कृति शब्दस्य तात्पर्यम्।

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प्रश्न 2
भारतीयः संस्कृतेः मूलं किम् अस्ति ? [2009, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
या
भारतीय-संस्कृतेः किं मूलम् ?
उत्तर
विश्वस्य स्रष्टा ईश्वरः एक एव इति भारतीय-संस्कृते: मूलम् अस्ति।

प्रश्न 3
अस्माकं संस्कृतेः कः सन्देशः ?
या
अस्माकं संस्कृतेः कः दिव्यः सन्देशः अस्ति ? [2010]
या
भारतीय संस्कृतेः कः दिव्यः (प्रमुखः) सन्देश अस्ति ? [2010, 18]
उत्तर
सर्वेषां मतानां समभावः सम्मानश्च (UPBoardSolutions.com) अस्माकं संस्कृते: दिव्यः सन्देशः अस्ति।

प्रश्न 4
भारतीय संस्कृतिः कां सङ्गमस्थली ?
उत्तर
भारतीया संस्कृतिः सर्वेषां मतावलम्बिन सङ्गमस्थली।

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प्रश्न 5
अस्माकं संस्कृतिः कीदृशी वर्तते (अस्ति) ? [2009, 12, 15, 17]
या
भारतीया संस्कृतिः कीदृशी अस्ति ?
उत्तर
अस्माकं भारतीया संस्कृतिः सदा (UPBoardSolutions.com) गतिशीला वर्तते (अस्ति)।

प्रश्न 6
भारतीयसंस्कृत कः विशेषः गुणः अस्ति ?
उत्तर
भारतीयसंस्कृतौ सर्वेषां मतानां समभावः इति विशेष: गुणः अस्ति।

प्रश्न 7
अस्माकं संस्कृतेः कः नियमः ? [2014]
उत्तर
अस्माकं संस्कृते: नियमः ‘पूर्व कर्म, तदनन्तरं फलम्’ इति अस्ति।

प्रश्न 8
अस्माकं मुख्यकर्त्तव्यं किम् अस्ति ?
उत्तर
निरन्तरं कर्मकरणम् अस्माकं (UPBoardSolutions.com) मुख्यकर्त्तव्यम् अस्ति।

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प्रश्न 9
“मा कश्चित् दुःखभाग्भवेत्”, कस्याः अस्ति एषः दिव्यः सन्देशः ?
उत्तर
‘मा कश्चित् दु:खभाग्भवेत्,’ एष: भारतीय संस्कृतिः दिव्यः सन्देशः अस्ति।

प्रश्न 10
भारतीयसंस्कृतिः कस्य अभ्युदयाय इति ?
उत्तर
भारतीयसंस्कृतिः विश्वस्ये अभ्युदयाय इति।

प्रश्न 11
विश्वस्य स्रष्टा कः? [2012, 14, 15, 17, 18]
उत्तर
विश्वस्य स्रष्टा ईश्वरः एक  एव अस्ति।

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अनुवादात्मक

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर
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व्याकरणात्मक

प्रश्न 1
निम्नलिखित शब्दों के विभक्ति और वचन बताइए-
संस्कृतेः, विविधैः, संस्कृती, अस्माभिः, कर्माणि, नवनिर्माणे, उपासकाः।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 8 भारतीय संस्कृतिः (संस्कृत-खण्ड) img-2

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प्रश्न 2
निम्नलिखित में सन्धि कीजिए-
इति + आदि, मतं + अवलम्बी, यथा + अर्थम्, ‘अभि + उदयः, जिजीविषेत् + शतम्।
उत्तर
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प्रश्न 3
निम्नलिखित शब्दों में नियम निर्देशित करते हुए सन्धि-विच्छेद कीजिए-
दुराग्रहः, कुर्वन्नेवेह, नास्ति, मतावलम्बिनः, इत्यपि, अभ्युदयः।
उत्तर
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UP Board Solutions for Class 10 Hindi आदिकाल (वीरगाथाकाल)

UP Board Solutions for Class 10 Hindi आदिकाल (वीरगाथाकाल)

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हिन्दी पद्य-साहित्य का संक्षिप्त इतिहास

विशेष—पाठ्यक्रम के नवीनतम प्रारूप के अनुसार हिन्दी पद्य-साहित्य के संक्षिप्त इतिहास के अन्तर्गत रीतिकाल से आधुनिककाल तक का इतिहास सम्मिलित है, किन्तु अध्ययन की दृष्टि से यहाँ सभी कालों के विकास से सम्बन्धित प्रश्न दिये जा रहे हैं; क्योंकि एक-दूसरे से घनिष्ठता के कारण कभी-कभी निर्धारित काल से अलग काल के प्रश्न भी पूछ लिये जाते हैं। इसके अन्तर्गत कवियों और उनकी रचनाओं से सम्बन्धित प्रश्न भी पूछे जाते हैं। इसके लिए कुल 5 अंक निर्धारित हैं।

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प्रश्न 1
हिन्दी पद्य-साहित्य के इतिहास को किन-किन कालों में बाँटा गया है ? प्रत्येक काल की अवधि एवं विभाजन के आधार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
हिन्दी-साहित्य का आविर्भाव सर्वप्रथम पद्य से हुआ था। विद्वानों ने हिन्दी पद्य-साहित्य के इतिहास को प्रत्येक युग की विशेष प्रवृत्तियों के आधार पर निम्नलिखित चार कालों में विभाजित किया है–

  1. आदिकाल (वीरगाथाकाल) – । सन् 743 से 1343 ई० तक।
  2. पूर्व मध्यकाल ( भक्तिकाल) – सन् 1343 से 1643 ई० तक।
  3. उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल) (UPBoardSolutions.com) – सन् 1643 से 1843 ई० तक।
  4.  आधुनिककाल सन् 1843 ई० से आज तक।

प्रश्न 2
काव्य के दो भेद कौन-कौन से हैं ? इनके अन्तर को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
ऐसी पद्य रचना जिसमें छन्दों का विधान होता है, उसे काव्य कहते हैं। काव्य के दो भेद होते हैं—

  1. प्रबन्ध काव्य और
  2. मुक्तक काव्य। जिस काव्य में किसी कथा का आश्रय लेकर कविता रची जाती है, वह प्रबन्ध काव्य कहलाता है। लेकिन मुक्तक काव्यों में किसी कथा का आश्रय न लेकर स्वतन्त्र पदों में अपनी भावाभिव्यक्ति की जाती है।

प्रश्न 3
प्रबन्ध काव्य के प्रमुख भेद कौन-कौन से हैं ? इनका अन्तर स्पष्ट करते हुए एक-एक उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर
प्रबन्ध काव्य के मुख्य रूप से दो भेद होते हैं–

  1. महाकाव्य और
  2. खण्डकाव्य। जिस काव्य में किसी विशिष्ट व्यक्ति के जीवन का विस्तारपूर्वक वर्णन किया जाता है, उसे महाकाव्य कहते हैं; जैसे-गोस्वामी तुलसीदास कृत ‘श्रीरामचरितमानस’। इसके विपरीत जिस काव्य में सम्पूर्ण जीवन का वर्णन (UPBoardSolutions.com) ने होकर उसके किसी अंश या खण्ड का वर्णन हो, उसे खण्डकाव्य कहते हैं; जैसे-रामधारी सिंह ‘दिनकर’ कृत ‘रश्मिरथी’

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आदिकाल (वीरगाथाकाल)

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
आदिकाल का समय कब-से-कब तक माना जाता है ? इस काल के अन्य और कौन-से नाम दिये गये हैं ?
उत्तर
आदिकाल का समय सन् 743 से 1343 ई० तक माना जाता है। इस काल के उत्थानकाल, वीरगाथाकाल तथा चारणकाल अन्य नाम हैं।

प्रश्न 2
वीरगाथाकाल के नामकरण की सार्थकता बताइट। या हिन्दी-साहित्य के आदिकाल को वीरगाथाकाल क्यों कहते हैं ? इस काल की किसी एक प्रमुख रचना का नाम लिखिए।
उत्तर
वीर रस से परिपूर्ण रचनाओं की अधिकता के कारण हिन्दी-साहित्य के आदिकाल को ‘वीरगाथाकाल’ नाम दिया गया है, जो सर्वथा उपयुक्त है। इस काल की प्रमुख रचना है—पृथ्वीराज रासो, जिसके रचयिता (UPBoardSolutions.com) चन्दबरदाई हैं।

प्रश्न 3
आदिकाल की भाषा का क्या नाम है ?
या
रासो ग्रन्थों में किस भाषा का प्रयोग किया गया है ?
उत्तर
आदिकाल की भाषा का नाम डिंगल है। रासो ग्रन्थ इसी भाषा में लिखे गये हैं।

प्रश्न 4
आदिकाल की रचनाएँ किन-किन रूपों में मिलती हैं ?
उतर
आदिकाल की रचनाएँ दो रूपों में मिलती हैं-

  1. प्रबन्धकाव्यों के रूप में तथा
  2. वीर गीतों के रूप में। चन्दबरदाई का ‘पृथ्वीराज रासो’ प्रबन्धकाव्य है और जगनिक का ‘परमाल रासो’ वीर गीत काव्य है।।

प्रश्न 5
वीरगाथाकाल के प्रमुख कवियों तथा उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर
वीरगाथाकाल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ हैं-

  1.  दलपति विजय-खुमान रासो,
  2. चन्दबरदाई-पृथ्वीराज रासो,
  3. शारंगधर-हमीर रासो,
  4. नल्ल सिंह-विजयपाल रासो,
  5. जगनिक–परमाल रासो या आल्हा खण्ड,
  6.  नरपति नाल्ह-बीसलदेव रासो,
  7. केदार भट्टजयचन्द्र (UPBoardSolutions.com) प्रकाश,
  8. मधुकर-जयमयंक जसचन्द्रिका।।

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प्रश्न 6
वीरगाथाकाल की रचनाओं में प्रयुक्त छन्दों के नाम बताइए।
उत्तर
वीरगाथाकाल में

  1. छप्पय,
  2. दूहा (दोहा),
  3. सोरठा,
  4. त्रोटक,
  5. तोमर,
  6. चौपाई,
  7. गाथा,
  8. आर्या,
  9. सट्टक,
  10.  रोला,
  11.  कुण्डलिया आदि छन्दों का प्रयोग किया गया।

प्रश्न 7
वीरगाथाकाल के चार प्रमुख कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर
वीरगाथाकोल के चार प्रमुख कवि हैं—

  1. दलपति विजय,
  2. चन्दबरदाई,
  3. जगनिक तथा
  4. नरपति नाल्ह।

प्रश्न 8
वीरगाथाकाल की चार प्रमुख रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर
वीरगाथाकाल की चार प्रमुख रचनाएँ हैं—

  1. पृथ्वीराज रासो,
  2. खुमान रासो,
  3. बीसलदेव रासो तथा
  4. परमाल रासो या (UPBoardSolutions.com) आल्हा खण्ड।

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प्रश्न 9
वीर गीत काव्यों में सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रन्थ कौन-सा है ? संक्षेप में उसका परिचय दीजिए।
उत्तर
वीर गीत काव्य-ग्रन्थों में सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रन्थ कवि जगनिक का ‘परमाल रासो’ या ‘आल्हा खण्ड’ है। इसमें महोबे के दो प्रसिद्ध वीरों आल्हा तथा ऊदल (उदयसिंह) के वीरोचित चरित्र का सुन्दर वर्णन हुआ है।

प्रश्न 10
आदिकाल (वीरगाथाकाल) के साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
या
आदिकाल की किन्हीं दो प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
आदिकाल में प्रमुख रूप से चारण या भाट कवियों द्वारा काव्य-रचनाएँ की गयीं। प्राय: सभी कवि राजाओं के दरबार में रहकर काव्य-रचना करते थे। आदिकाल या वीरगाथाकाल की कविता की सामान्य विशेषताएँ या प्रमुख (UPBoardSolutions.com) प्रवृत्तियाँ इस प्रकार हैं—

  1. आश्रयदाताओं की प्रशंसा,
  2. युद्धों का सुन्दर और सजीव वर्णन,
  3. सामूहिक राष्ट्रीयता की भावना का अभाव,
  4. वीर रस के साथ-साथ श्रृंगार का पुट,
  5. ऐतिहासिक तथ्यों के प्रस्तुतीकरण में कल्पना की अधिकता तथा
  6. जनसम्पर्क का अभाव।

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