UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 1 शिक्षिका द्वारा प्रतिदर्श बजट का प्रदर्शन

UP Board Solutions for Class 10 Home Science  Chapter 1 शिक्षिका द्वारा प्रतिदर्श बजट का प्रदर्शन

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
पारिवारिक बजट से आप क्या समझती हैं? पारिवारिक बजट के मुख्य उद्देश्यों का भी उल्लेख कीजिए। [2007, 09, 11, 12, 14, 15]
या
पारिवारिक बजट बनाने का अर्थ स्पष्ट कीजिए। [2007, 08, 09, 12, 17]
या
बजट बनाने के उद्देश्य  लिखिए। [2016]
उत्तर:
पारिवारिक बजट का अर्थ एवं परिभाषाएँ । परिवार एक ऐसा केन्द्र है जहाँ व्यक्ति की सभी प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए यथा-सम्भव प्रयास किए जाते हैं। प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति के लिए कुछ-न-कुछ धन अवश्य व्यय (UPBoardSolutions.com) करना पड़ता है। प्रत्येक व्यय परिवार की आय में से ही किया जाता है।
परिवार में होने वाले इस आय-व्यय को सुनियोजित ढंग से लिखित रूप प्रदान करना ही पारिवारिक बजट बनाना कहलाता है।

पारिवारिक बजट में परिवार की आय को ध्यान में रखते हुए समस्त नियमित एवं सम्भावित व्ययों को नियोजित रूप से लिख लिया जाता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि परिवार में चलने वाली आय-व्यय की प्रक्रिया को व्यवस्थित रूप में अंकित कर देने वाला प्रपत्र ही पारिवारिक बजट कहलाता है।
यह आय-व्यय विवरण-प्रपत्र एक निश्चित अवधि के लिए होता है। यह अवधि सामान्य रूप से एक माह या एक वर्ष हुआ करती है।

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इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए पारिवारिक बजट का अर्थ इन शब्दों में स्पष्ट किया जा सकता है, “पारिवारिक बजट किसी निश्चित अवधि में परिवार के होने वाले आय-व्यय को दर्शाने वाला प्रपत्र होता है। पारिवारिक बजट में आगामी माह या आगामी वर्ष के लिए प्रस्तावित आय-व्यय का अनुमानित प्रारूप भी समाविष्ट होता है।

बजट के सामान्य अर्थ को जान लेने के उपरान्त इस अवधारणा की व्यवस्थित परिभाषा का उल्लेख करना भी आवश्यक हो जाता है। बजट की कुछ मुख्य परिभाषाएँ निम्नवर्णित हैं

(1) वेबर द्वारा प्रतिपादित परिभाषा-“पारिवारिक बजट पारिवारिक आय को व्यवस्थित रूप से ऐसी बातों के लिए व्यय करने का तरीका है, जिससे कि अधिक-से-अधिक सदस्यों के सुख व कल्याण में वृद्धि हो सके। पारिवारिक बजट असावधानीपूर्वक तथा अव्यवस्थित रूप से व्यय करने के तरीके के स्थान पर योजनाबद्ध तथा विवेकपूर्ण व्यय को प्रतिस्थापित करने का तरीका है।”

(2) क्रेग तथा रश द्वारा प्रतिपादित परिभाषा-“बजट भूत के व्यय, भविष्य के अनुमानित व्यय और वर्तमान समय की मदों पर निश्चित व्यय का लेखा-जोखा है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं द्वारा पारिवारिक बजट का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। बजट वास्तव में वह अनुमानित व्यय विवरण है, जो किसी परिवार द्वारा एक निश्चित आगामी अवधि के लिए पर्याप्त सूझबूझ एवं उपलब्ध आर्थिक आँकड़ों को ध्यान में रखकर तैयार (UPBoardSolutions.com) किया जाता है। पारिवारिक आवश्यकताओं की समुचित पूर्ति तथा गृह-अर्थव्यवस्था को सुचारु बनाने के लिए पारिवारिक बजट का बनाना तथा उसका पालन करना आवश्यक माना जाता है।

पारिवारिक बजट के मुख्य उद्देश्य
पारिवारिक बजट परिवार की अर्थव्यवस्था का सुनियोजित विवरण होता है। अत: प्रत्येक परिवार में इसका बुद्धिमत्तापूर्ण निर्माण अत्यन्त आवश्यक है। इसके निर्माण के मुख्य उद्देश्य अग्रलिखित हैं

  1. परिवार के सदस्यों की संख्या एवं उनकी कुल आय का सही विवरण रखना।
  2. सभी प्रकार के व्ययों का क्रमिक ज्ञान प्राप्त करना।
  3. पारिवारिक आवश्यकताओं एवं रहन-सहन के स्तर का ध्यान रखना।
  4. आकस्मिक कार्यों के लिए बचत का प्रावधान रखना।
  5. पारिवारिक आय में वृद्धि करने के लिए परिजनों को प्रेरित करना।
  6.  परिवार के सदस्यों द्वारा किए जाने वाले अनावश्यक व्यय को नियन्त्रित करना।
  7. उपर्युक्त विवरण से पारिवारिक बजट का अर्थ एवं मूल उद्देश्य सुस्पष्ट हैं। अतः प्रत्येक गृहिणी । को पारिवारिक आय-व्यय को बजट अवश्य ही बनाना चाहिए तथा उसी के अनुसार व्यय तथा बचत को नियमित करना चाहिए।

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प्रश्न 2.
पारिवारिक बजट के निर्माण एवं उसके क्रियान्वयन में मुख्य रूप से किन-किन सिद्धान्तों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है? स्पष्ट कीजिए। पारिवारिक बजट के निर्माणक सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए [2007] पारिवारिक बजट के मुख्य सिद्धान्त कौन-कौन से होते हैं? [2007] पारिवारिक बजट तैयार करते समय किन-किन सिद्धान्तों को ध्यान में रखना आवश्यक है? [2018]
उत्तर:
पारिवारिक बजट के मूल सिद्धान्त पारिवारिक बजट का निर्माण स्वयं में एक (UPBoardSolutions.com) महत्त्वपूर्ण एवं व्यवस्थित कार्य है। पारिवारिक बजट बनाने तथा उसकी सफलता के लिए मुख्य रूप से निम्नलिखित सिद्धान्तों को ध्यान में रखना आवश्यक है-

  1.  कुल आय का ज्ञान-पारिवारिक आय प्रायः वेतन, व्यवसाय, ब्याज, सम्पत्ति का किराया आदि के रूप में प्राप्त होती है। बजट बनाने का पहला कदम परिवार की कुल आय का ज्ञान होना है। सैद्धान्तिक रूप से परिवार की सम्पूर्ण आय को जान लेने के उपरान्त ही बजट बनाने की प्रक्रिया प्रारम्भ की जानी चाहिए। पारिवारिक बजेट की सफलता के लिए आवश्यक है कि परिवार के सभी सदस्यों द्वारा अपनी-अपनी आय का सही विवरण प्रस्तुत किया जाए।
  2.  मूल आवश्यकताओं की जानकारी गृहिणी को परिवार की सम्भावित मूल आवश्यकताओं की जानकारी होनी चाहिए और आय का अधिकतर भाग इन पर ही व्यय करना चाहिए। यदि आय कम हो, तो मूल आवश्यकताओं की पूर्ति उनकी प्राथमिकता के क्रम में की जानी चाहिए।
  3. बचत की व्यवस्था सम्बन्धी सिद्धान्त-सैद्धान्तिक रूप से पारिवारिक बजट बनाते समय बचत का प्रावधान अवश्य रखना चाहिए। पारिवारिक अर्थव्यवस्था को सुचारु बनाए रखने के लिए बचत महत्त्वपूर्ण तथा आवश्यक होती है। बचत की दर का निर्धारण (UPBoardSolutions.com) आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर सूझबूझपूर्वक होना चाहिए।
  4.  लचीला बजट-किसी भी परिवार में आय-व्यय का कठोरतापूर्वक संचालन, सदस्यों में असन्तोष एवं कलह का वातावरण उत्पन्न कर सकता है। अतः सैद्धान्तिक रूप से पारिवारिक बजट लचीला होना चाहिए, जिससे अनुमानों में यदि कुछ परिवर्तन भी करना पड़े, तो कोई विशेष कठिनाई न हो |
  5. आकस्मिक आवश्यकताओं के लिए व्यवस्था—पारिवारिक बजट बनाने की एक सैद्धान्तिक मान्यता यह है कि बजट में भी परिवार की कुछ आकस्मिक आवश्यकताओं तथा उनकी पूर्ति के लिए व्यय का प्रावधान रखा जाए। आकस्मिक आवश्यकताओं पर होने वाले व्यय का निर्धारण अनुमान द्वारा तथा विगत कुछ माह तक हुए आकस्मिक व्यय के विश्लेषण द्वारा किया जा सकता है।
  6. बजट का निरीक्षण एवं विश्लेषण–पारिवारिक आय प्रायः घटती-बढ़ती रहती है। इसी प्रकार विभिन्न वस्तुओं के मूल्यों में भी समय-समय पर गिरावट एवं वृद्धि होती रहती है। अत: बजट बनाते समय इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। गत बजट अथवा बजटों का निरीक्षण एवं विश्लेषण करने पर गृहिणी को विभिन्न आवश्यकताओं की सन्तुष्टि पर हुए उचित अथवा अनुचित, कम अथवा अधिक व्यय के विषय में प्रामाणिक जानकारी मिलती है। इसका उपयोग गृहिणी भविष्य में बनाए जाने वाले बजट में कर सकती है।
  7.  मासिक बजट का निर्माण वार्षिक बजट की पृष्ठभूमि में हो-पारिवारिक मासिक बजट को वार्षिक बजट की पृष्ठभूमि में ही तैयार करना चाहिए। इसका कारण यह है कि प्रत्येक परिवार में कुछ ऐसे व्यय होते हैं जो वर्ष के प्रत्येक माह में समान रूप से नहीं होते।
    किसी माह में कम होते हैं, तो किसी माह में अधिक। इसके अतिरिक्त यह भी सत्य है कि वर्ष के प्रत्येक माह में परिवार की आय भी समान नहीं होती। आय-व्यय सम्बन्धी इस अन्तर के ही कारण कहा जाता है कि पारिवारिक मासिक बजट वार्षिक बजट की पृष्ठभूमि में ही तैयार किया जाना चाहिए।
    उपर्युक्त विवरण द्वारा पारिवारिक बजट के निर्माण की प्रक्रिया के सैद्धान्तिक पक्ष का सामान्य परिचय प्राप्त हो जाता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि प्रत्येक परिवार की आर्थिक परिस्थितियों तथा आवश्यकताओं की प्राथमिकता भिन्न-भिन्न होती है। अतः पारिवारिक बजट को व्यावहारिक बनाने तथा उसको सफलतापूर्वक क्रियान्वित करने के लिए, विशेष सूझ-बूझ एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक होता है।

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प्रश्न 3.
पारिवारिक बजट का क्या महत्त्व है? इससे परिवार को होने वाले लाभों का भी वर्णन कीजिए। [2018]
या
स्पष्ट कीजिए कि “बजट से न केवल गृहिणियाँ ही लाभान्वित होती हैं, बल्कि इससे अर्थशास्त्रियों, समाज-सुधारकों तथा सरकार को भी लाभ होता है।”
या
पारिवारिक बजट से गृहिणियों को क्या लाभ होता है? [2009, 10, 12, 13, 15, 17]
या
बजट बनाने से परिवार को होने वाले लाभों का वर्णन कीजिए। (2017)
या
“पारिवारिक बजट गृहिणी के आय-व्यय को नियन्त्रित करने के लिए आवश्यक है।” स्पष्ट कीजिए।[2009, 12, 13, 14]
या
घर का बजट बनाने के क्या लाभ हैं? एन्जिल के बजट बनाने के सिद्धान्त को विस्तारपूर्वक लिखिए।[ 2008, 11 ]
या
बजट बनाने के लाभ लिखिए। [2007, 11, 13, 14, 16, 17]
उत्तर:
पारिवारिक बजट का महत्त्व या लाभ पारिवारिक बजट परिवार की आर्थिक दशा का वह विवरण है जिसकी सहायता से गृहिणी परिवार के आय-व्यय के सन्तुलन को बनाये रख सकती है। पारिवारिक बजट से न केवल गृहिणियाँ ही लाभान्वित होती हैं, (UPBoardSolutions.com) बल्कि इससे अर्थशास्त्रियों, समाज-सुधारकों तथा सरकार को भी लाभ होता है।
पारिवारिक बजट बनाने के अनेक लाभ हैं। कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं
(क) गृहिणियों तथा परिवार को लाभ
पारिवारिक बजट से सर्वाधिक लाभ गृहिणियों तथा परिवार को ही होता है। पारिवारिक बजट से गृहिणियों को प्राप्त होने वाले लाभ का विवरण अग्रलिखित है

  1. अनावश्यक व्यय के नियन्त्रण में सहायक-पारिवारिक समृद्धि के लिए अनिवार्य है कि अनावश्यक पारिवारिक व्यय को नियन्त्रित किया जाए। यदि सूझ-बूझपूर्वक पारिवारिक बजट तैयार करके उसके अनुसार ही व्यय किया जाता है तो अनावश्यक पारिवारिक व्यय स्वत: ही नियन्त्रित हो जाता है।
  2. आयव्यय में सन्तुलन बनाये रखने में सहायक-पारिवारिक बजट में पारिवारिक आय को ध्यान में रखकर ही व्यय का प्रावधान किया जाता है। इस व्यवस्था के कारण पारिवारिक आय तथा व्यय में परस्पर सन्तुलन बना रहता है तथा गृह अर्थव्यवस्था सुचारु ढंग से चलती रहती है।
  3.  मितव्ययिता की आदत के विकास में सहायक–यदि गृहिणियाँ पूर्व-निर्धारित बजट के अनुसार ही व्यय करती हैं तो व्यय की सीमाओं का ध्यान रखना पड़ता है। इससे मितव्ययिता की आदत विकसित हो जाती है। मितव्ययिता स्वयं ही एक आर्थिक सद्गुण है तथा इससे अनेक लाभ होते हैं।
  4.  पारिवारिक ऋण से बचाने में सहायक–पारिवारिक बजट के बनाने तथा उसके पालन की दशा में गृहिणियाँ अपने व्यय को निर्धारित सीमा में ही रखती हैं। इससे गृह-अर्थव्यवस्था के बिगड़ने तथा ऋणग्रस्तता के अवसर नहीं आते।
  5.  परिजनों की आवश्यकता-पूर्ति में सहायक–गृहिणी का कर्तव्य है कि वह परिवार के सभी सदस्यों की मुख्य आवश्यकताओं की समुचित पूर्ति का ध्यान रखे। पारिवारिक बजट गृहिणी के अपने इस कर्तव्य की पूर्ति में सहायक होता है। वास्तव में पारिवारिक बजट में परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं को प्राथमिकता के आधार पर स्वीकार किया जाता है तथा उनकी पूर्ति के लिए व्यय का प्रावधान रखा जाता है।
  6. पारिवारिक बचत में सहायक-कुशल गृहिणियाँ पारिवारिक बचत को आवश्यक मानती हैं। उत्तम पारिवारिक बजट में बचत का अनिवार्य रूप से प्रावधान होता है। इस प्रकार बजट का पालन करके गृहिणियाँ बचत करने में सफल हो जाती हैं।
  7.  रहन-सहन के स्तर को उन्नत बनाने में सहायक-पारिवारिक बजट बनाकर गृहिणियाँ अपने पारिवारिक व्यय को व्यवस्थित बना लेती हैं तथा उसके आधार पर सूझ-बूझपूर्वक आय को इस ढंग से व्यय करती हैं, जिससे परिवार के रहन-सहन का स्तर उन्नत बना रहता है।
  8.  पारिवारिक सुख-शान्ति एवं समृद्धि में सहायक-सभी गृहिणियाँ चाहती हैं कि (UPBoardSolutions.com) उनके परिवार में सुख-शान्ति एवं समृद्धि का वातावरण बना रहे। पारिवारिक बजट का निर्माण तथा उसका पालन इस उद्देश्य की पूर्ति में सहायक होता है। पारिवारिक बजट परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक होता है तथा नियमित बचत के अवसर भी प्रदान करता है। इससे परिवार की अर्थव्यवस्था सुचारु बनी रहती है तथा परिणामस्वरूप पारिवारिक सुख-शान्ति एवं समृद्धि में वृद्धि होती है।

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(ख) अर्थशास्त्रियों को लाभ देश के अर्थशास्त्री भी पारिवारिक बजट से लाभान्वित होते हैं। विभिन्न परिवारों द्वारा बनाये जाने वाले पारिवारिक बजटों का व्यवस्थित अध्ययन एवं विश्लेषण अर्थशास्त्रियों द्वारा किया जाता है। इस अध्ययन द्वारा उन्हें समाज में प्रचलित आय-व्यय के प्रतिमानों की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।
इस प्रकार की जानकारी विभिन्न प्रकार की नीतियों के निर्धारण में सहायक हो सकती है। अर्थशास्त्री इसी प्रकार की जानकारी के आधार पर आय-कर अथवा व्यय-कर सम्बन्धी नीतियों के विषय में सुझाव दे सकते हैं। पारिवारिक बजट के अध्ययन के आधार पर ही विभिन्न वर्गों के परिवारों को अपने रहन-सहन के स्तर को उन्नत बनाने के लिए उपयोगी सुझाव दिए जा सकते हैं।

(ग) समाज-सुधारकों को लाभ समाज-सुधारकों को मुख्य कार्य है समाज में व्याप्त समस्याओं के समाधान ढूँढ़ना। विभिन्न सामाजिक समस्याओं का सीधा सम्बन्ध समाज के परिवारों की आर्थिक-सामाजिक स्थिति से होता है।
उदाहरण के लिए-गरीबी, ऋणग्रस्तता, नशाखोरी, भिक्षावृत्ति आदि समस्याएँ परिवार की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती हैं। इन समस्याओं के कारणों को जानने के लिए सम्बन्धित वर्ग के परिवारों के पारिवारिक बजट का अध्ययन करना अति आवश्यक होता है। समाज-सुधारक व्यवस्थित अध्ययन द्वारा समस्याओं के कारण एवं उनके हल ढूंढ़ा करते हैं।

(घ) शासन को लाभ पारिवारिक बजट के अध्ययन से शासन को भी लाभ होता है। देश की आर्थिक दशा को समझने के लिए, नागरिकों की समस्याओं को जानने के लिए तथा कर एवं बचत योजनाओं को लागू करने के लिए पारिवारिक बजटों से पर्याप्त सहायता मिलती है।
उदाहरण के लिए यदि किसी देश में प्रसाधन, दिखावे आदि पर अनावश्यक व्यय बढ़ रहा हो तो वहाँ शासन द्वारा इस प्रकार के व्यय को नियन्त्रित करने के लिए सम्बन्धित वस्तुओं पर कर में वृद्धि की जा सकती है।
उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि पारिवारिक बजट से अन्य पक्षों की तुलना में सर्वाधिक लाभ गहिणियों को ही प्राप्त होता है।

विशेष-‘एन्जिल द्वारा प्रतिपादित पारिवारिक बजट के सिद्धान्त के लिए विस्तृत (UPBoardSolutions.com) उत्तरीय प्रश्न 4 के अन्तर्गत ‘एन्जिल का सिद्धान्त’ देखें।

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प्रश्न 4.
एन्जिल द्वारा प्रतिपादित पारिवारिक बजट के सिद्धान्त का आलोचनात्मक विवरण । प्रस्तुत कीजिए। [2008, 09]
या
बजट बनाने हेतु एन्जिल के सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए। [2014]
उत्तर:
एन्जिल का सिद्धान्त
जर्मनी के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ० अर्नेस्ट एन्जिल (Dr. Earnest Engel) ने सन् 1857 में व्यय के विभिन्न मदों को भोजन, वस्त्र, आवास, ईंधन, प्रकाश, शिक्षा एवं स्वास्थ्य आदि में बाँटकर अपना नियम बनाया, जो कि उपभोग का नियम’ कहलाता है। इसे ही ‘एन्जिल द्वारा प्रतिपादित पारिवारिक बजट का सिद्धान्त’ भी कहा जाता है। इसके अनुसार

  1. आय में वृद्धि के साथ भोजन पर व्यय होने वाला प्रतिशत कम होता जाता है।
  2. आय में परिवर्तन होने पर वस्त्रों पर होने वाला व्यय लगभग (UPBoardSolutions.com) समान रहता है।
  3. आय घटने या बढ़ने पर आवास, प्रकाश व ईंधन पर व्यय का प्रतिशत लगभग स्थिर रहता है।
  4. आय बढ़ने पर शिक्षा, मनोरंजन, स्वास्थ्य एवं व्यक्तिगत सेवाओं पर प्रतिशत व्यय में वृद्धि होती जाती है।

उपर्युक्त नियमों के अनुसार यह निष्कर्ष निकलता है कि आय की वृद्धि मौलिक आवश्यकताओं पर होने वाले व्यय के प्रतिशत को प्रभावित नहीं करती, परन्तु विलासितापूर्ण आवश्यकताओं पर आय की वृद्धि के साथ व्यय का प्रतिशत बढ़ जाता है।
डॉ० एन्जिल ने परिवारों को निम्न, मध्यम तथा धनी वर्गों में बाँटकर इस बात का अध्ययन किया कि प्रत्येक वर्ग का मुख्य आवश्यकताओं पर हुआ व्यय उनकी आय का कितना प्रतिशत होता है। उनकी खोज के परिणाम निम्नवत् हैं
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एन्जिल द्वारा प्रतिपादित पारिवारिक बजट के सिद्धान्त का स्पष्टीकरण निम्नांकित रेखाचित्र के माध्यम से भी हो सकता है
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सिद्धान्त की अव्यावहारिकता अथवा आलोचना

सामान्य रूप से एन्जिल द्वारा प्रतिपादित पारिवारिक बजट का सिद्धान्त पर्याप्त लोकप्रिय रहा है, परन्तु वर्तमान परिस्थितियों में इस सिद्धान्त को व्यावहारिक तथा सैद्धान्तिक दोनों ही रूपों में दोषपूर्ण माना जाने लगा है। इस सिद्धान्त की अव्यावहारिकता अथवा कमियों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत् है

  1. भोजन के सम्बन्ध में-मध्यम व धनी वर्ग को भोजन के लिए अधिक धन दिया गया है।
  2.  आवासीय व्यवस्था-धनी व मध्यम वर्ग का आवासीय किराया आधुनिक युग के अनुरूप नहीं है। यह अपेक्षाकृत कम है। आधुनिक नगरीय क्षेत्रों में आवासीय किराए बहुत अधिक हो गए हैं।
  3.  शिक्षा, स्वास्थ्य एवं मनोरंजन–प्रायः धनी व मध्यम वर्ग इन मदों (UPBoardSolutions.com) पर अधिक धन व्यय करते हैं।
  4. काश व्यवस्था-प्रकाश व्यवस्था पर होने वाले व्यय के प्रतिशत में वृद्धि, आय की वृद्धि के साथ-साथ ही होती है।
  5.  पारिवारिक बचत की अवहेलना-एन्जिल के बजट में बचत का कोई प्रावधान नहीं है। आधुनिक संघर्षमय युग में पारिवारिक बचत को अनिवार्य माना जाता है।

उपर्युक्त विवरण के आधार पर कहा जा सकता है कि वर्तमान परिस्थितियों में एन्जिल का बजट सम्बन्धी सिद्धान्त पूर्णतया प्रासंगिक नहीं है। वास्तव में भिन्न-भिन्न आय वर्गों के लिए आवश्यक मदों पर व्यय के प्रतिशत को निर्धारित करना कठिन है।
उदाहरण के लिए वर्तमान परिस्थितियों में एक मध्यमवर्गीय परिवार द्वारा अपनी आय के 12% में आवास सुविधा उपलब्ध करनी सम्भव नहीं है। इसी प्रकार धनी वर्ग द्वारा भोजन पर आय का 50% व्यय नहीं होता। इसी प्रकार शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन आदि के लिए निर्धारित प्रतिशत व्यय अपर्याप्त है। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए वर्तमान परिस्थितियों में एन्जिल के बजट सम्बन्धी सिद्धान्त में अभीष्ट परिवर्तन अनिवार्य है।

प्रश्न 5.
पारिवारिक आय और व्यय का लेखा रखना क्यों आवश्यक है? सामान्य रूपरेखा भी प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
परिवार का मासिक बजट बनाने के लिए वार्षिक आय-व्यय का लेखा अथवा चार्ट बनाना आवश्यक है। इसकी रूपरेखा निम्नलिखित है
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प्रायः कम आय अथवा धन के अपव्यय के कारण पूर्वानुमान वास्तविक व्यय से बहुत कम होता है। अत: मासिक बजट में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इनके निराकरण के निम्नलिखित उपाय सम्भव हो सकते हैं

  1. बजट की कुछ मदें; जैसे कि समाचार-पत्र, आवासीय किराया आदि; ऐसी हैं जिन पर होने वाले व्यय को कम नहीं किया जा सकता।
  2.  वस्त्र, उपहार, दान, मनोरंजन इत्यादि ऐसी मदें हैं जिन पर होने वाले व्यय को कम किया जा सकता है।
  3.  मितव्ययिता के आवश्यक तत्त्वों का पालन कर धने का कम-से-कम (UPBoardSolutions.com) व्यय कर अधिक आवश्यक मदों की पूर्ति की जा सकती है।
  4. परन्तु उपर्युक्त सभी उपाय तभी सम्भव हैं, जब कि पारिवारिक आय एवं व्यय का लेखा रखा जाए।

प्रश्न 6.
प्रतिदर्श बजट से आप क्या समझती हैं? 4800 मासिक आय वाले एक ऐसे परिवार का अनुमानित बजट बनाइए जो किराये के मकान में रहता है तथा उसमें पति-पत्नी के
अतिरिक्त दो बच्चे हैं।
या
एक मध्यम वर्ग के परिवार के बजट का नमूना बनाइए। , [2008, 11, 12, 14]
उत्तर:
प्रतिदर्श बजट मॉडल अथवा आदर्श बजट को प्रतिदर्श बजट कहते हैं। यह किसी विशिष्ट परिवार का बजट न होकर एक अनुमानित तथा सामान्य बजट होता है। प्रतिदर्श बजट के आधार पर किसी भी विशिष्ट परिवार का बजट बनाया जा सकता है। प्रतिदर्श बजट-निर्माण के निम्नलिखित चरण होते हैं

(1) प्रारम्भिक विभाग–यह सूचना-प्रधान चरण है। इसमें

  1. परिवार के सदस्यों की संख्या,
  2.  विभिन्न स्रोतों से होने वाली पारिवारिक आय,
  3.  बजट की अवधि (मासिक अथवा वार्षिक) इत्यादि सूचनाएँ प्राप्त की जाती हैं।

(2) अनुमान विभाग–इस चरण में उपभोग एवं व्यय के विषय में अनुमान लगाया जाता है; जैसे कि

  1. परिवार विशेष के व्यय की विभिन्न मदों का अनुमान,
  2.  उपभोग में आने वाली वस्तुओं की संख्या और मात्रा,
  3. वस्तुओं का मूल्य तथा उन पर व्यय किये जाने वाले कुल धन का पता लगाना।

(3) सारांश विभाग–बजट-निर्माण के तृतीय चरण में निम्नलिखित दो उप-चरण होते हैं|

  1. व्यय की विभिन्न मदों पर कुल आय का कितना प्रतिशत धन व्यय हुआ।
  2.  बजट के अन्त में कितनी बचत हो पाई अथवा धन की यदि (UPBoardSolutions.com) कमी हुई तो उसकी पूर्ति किस प्रकार की गई।

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संकेत-इसी आधार पर है 7200 अथवा १ 9600 मासिक आय वाले मध्यम वर्गीय परिवार के लिए बजट बनाया जा सकता है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“पारिवारिक बजट गृहिणी के व्यय को नियन्त्रित करने के लिए आवश्यक है।” स्पष्ट कीजिए। [2012, 13, 14, 15]
या ।
आय और व्यय में सन्तुलन बनाए रखने के लिए आप क्या उपाय करेंगी? सोदाहरण समझाइए। [2016 ]
उत्तर:
पारिवारिक बजट द्वारा गृहिणी के व्यय का नियन्त्रण घरेलू एवं पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व सामान्यतया गृहिणी का ही होता है। इसके लिए गृहिणी को व्यय करना होता है। आवश्यकताएँ असीमित जब कि आय सीमित होती है। इस स्थिति में परिवार के सदस्यों की अधिक-से-अधिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विशेष सूझ-बूझपूर्वक तथा व्यवस्थित ढंग से व्यय करना आवश्यक होता है।
पारिवारिक व्यय को आय की सीमाओं में रखने के लिए आवश्यक है कि सम्पूर्ण अनुमानित व्यय को लिख लिया जाए तथा उसका लेखा-जोखा पारिवारिक आय के अनुरूप तैयार किया जाए। इस प्रक्रिया को ही पारिवारिक बजट बनाना कहते हैं। पारिवारिक बजट (UPBoardSolutions.com) बनाते समय आय को ध्यान में रखकर कुछ कम महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति को छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार आय के अनुसार व्यय को निर्धारित करके बनाए गए बजट का पालन करके व्यय को नियन्त्रित किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
पारिवारिक बजट के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए। आप किस प्रकार के बजट को उत्तम मानती हैं और क्यों? [2008, 15]
या ।
पारिवारिक बजट के प्रकार बताइए। [2010, 13, 14, 17]
या
आय-व्यय में सन्तुलन रखने के लिए कौन-सा बजट उत्तम होगा? [2008]
उत्तर:
पारिवारिक बजट के प्रकार । पारिवारिक बजट में मुख्य रूप से तीन तत्त्व होते हैं-आय, व्यय तथा बचत। इन तीनों तत्त्वों का समुचित ध्यान रखते हुए निम्नलिखित तीन प्रकार के पारिवारिक बजटों का निर्धारण किया जा सकता है

  1.  सन्तुलित बजट-इस प्रकार के बजट में अनुमानित आय के बराबर ही प्रस्तावित व्यय होता है। इसमें न बचत दिखाई जाती है और न ही घाटा दिखाया जाता है। सन्तुलित बजट में ऋण लेने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस प्रकार के पारिवारिक बजट को उत्तम बजट नहीं माना जा सकता। यह एक प्रकार से कामचलाऊ बजट होता है।
  2.  घाटे का बजट-इस प्रकार के बजट में अनुमानित आय की अपेक्षा प्रस्तावित व्यय अधिक होता है, जिसके कारण संचित धन का उपयोग करना पड़ता है या फिर ऋण लेना पड़ता है अथवा पारिवारिक आय को अन्य साधनों द्वारा बढ़ाना पड़ता है या वस्तुओं को बेचना पड़ता है। इस प्रकार का पारिवारिक बजट केवल मजबूरी में ही अल्प अवधि के लिए बनाया जाना चाहिए तथा पुनः परिस्थितियाँ अनुकूल हो जाने पर इसे छोड़ दिया जाना चाहिए। इस प्रकार के बजट को अच्छा नहीं माना जाता।
  3. बचत का बजट-इस प्रकार के बजट में अनुमानित आय की अपेक्षा प्रस्तावित व्यय सदैव कम होती है, (UPBoardSolutions.com) जिससे कुछ धनराशि भविष्य की आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बची रहती है। इस प्रकार के बजट पारिवारिक आर्थिक सुरक्षा की दृष्टि से बहुत लाभप्रद होते हैं।
    उपर्युक्त विवरण द्वारा पारिवारिक बजट के तीनों प्रकारों के गुण-दोषों की जानकारी प्राप्त हो जाती है। इस विवरण के आधार पर हम कह सकते हैं कि ‘बचत का बजट’ सर्वोत्तम पारिवारिक बजट होता है।

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प्रश्न 3
पारिवारिक बजट के प्रमुख मद कौन-कौन से होते हैं? [2008, 10, 12, 13, 15, 17]
या
पारिवारिक बजट को प्रभावित करने वाले मद कौन-कौन से हैं? [2017]
या
घर के बजट की मुख्य मदों की सूची बनाइए। [2018, 18 ]
उत्तर:
पारिवारिक बजट में परिवार के सभी सदस्यों की अधिक-से-अधिक आवश्यकताओं की पूर्ति को ध्यान में रखा जाता है; अतः पारिवारिक बजट का निर्माण करते समय विभिन्न मदों को उसमें सम्मिलित किया जाता है। इस स्थिति में पारिवारिक बजट में मुख्य रूप से निम्नवर्णित मदों को प्राथमिकता दी जाती है

  1. आहार एवं सम्बन्धित सामग्री
  2.  वस्त्र एवं परिधान सम्बन्धी मद
  3.  आवास सम्बन्धी मद,
  4. बच्चों की शिक्षा सम्बन्धित मद
  5.  स्वास्थ्य तथा चिकित्सा सम्बन्धी मद
  6. यातायात एवं वाहन सम्बन्धी व्यय का मद
  7. अन्य घरेलू व्यय सम्बन्धी मद
  8.  व्यक्तिगत व्यय सम्बन्धी मद तथा
  9. पारिवारिक बचत सम्बन्धी मद।। पारिवारिक बजट में इन मदों की प्राथमिकता (UPBoardSolutions.com) का निर्धारण परिवार की पारिवारिक एवं आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किया जाता है। ये सभी मद पारिवारिक बजट को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 4.
बजट में बचत करना क्यों आवश्यक है? समझाइए। या बजट में बचत का क्या महत्त्व है? [2008]
उत्तर:
एक आदर्श बजट में बचत का प्रावधान सदैव ही रखा जाता है। परिवार के भविष्य की सुरक्षा एवं आकस्मिक कार्यों के लिए बचत ही एकमात्र विकल्प है। उदाहरण के लिए-आकस्मिक रोगों के उपचार के लिए आवश्यक धन बचत की मद से ही उपलब्ध होता है। इसी प्रकार (UPBoardSolutions.com) परिवार में विवाह आदि पर होने वाले व्यय, भवन-निर्माण एवं वृद्धावस्था में आत्मनिर्भरता इत्यादि महत्त्वपूर्ण कार्यों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए बचत द्वारा अर्जित किया धन उपयोग में आता है।

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प्रश्न 5
पारिवारिक बजट बनाने के मार्ग में आने वाली मुख्य बाधाओं का वर्णन कीजिए। या पारिवारिक बजट के निर्माण एवं सफलता के मार्ग में कौन-कौन सी बाधाएँ उत्पन्न हुआ करती हैं?[2014]
उत्तर:
पारिवारिक बजट के महत्त्व को हर कोई स्वीकार करता है, परन्तु व्यवहार में बहुत कम परिवार ही नियमित रूप से पारिवारिक बजट का निर्माण तथा उसका पालन करते हैं। पारिवारिक बजट के निर्माण एवं उसकी सफलता के मार्ग में मुख्य रूप से निम्नलिखित बाधाएँ उत्पन्न हुआ करती हैं

(1) अशिक्षा तथा अज्ञानता–हमारे समाज में सामान्य शिक्षा तथा ज्ञान की कमी है। अधिकांश गृहिणियाँ समुचित रूप से शिक्षित नहीं हैं। ऐसी स्थिति में व्यवस्थित पारिवारिक बजट बनाना तथा उसका पालन करना प्रायः सम्भव नहीं होता। अधिकांश गृहिणियाँ बजट के लाभ से भी परिचित नहीं हैं।

(2) बजट के प्रति उदासीनता-समाज में बहुत-सी गृहिणियाँ ऐसी भी हैं जो पारिवारिक बजट बना सकती हैं तथा यदा-कदा इसके लिए प्रयास भी करती हैं, परन्तु विभिन्न कारणों से वे पारिवारिक बजट के प्रति पूरी तरह से ईमानदार नहीं रह पातीं। वे शीघ्र ही पारिवारिक बजट को एक झंझट मानकर छोड़ देती हैं। गृहिणियों की बजट के प्रति यह उदासीनता भी पारिवारिक बजट की सफलता में बाधक होती है।

(3) समाज में प्रचलित कुप्रथाएँ-हमारे देश में पारिवारिक बजट-व्यवस्था की असफलता का एक कारण समाज में प्रचलित विभिन्न प्रकार की कुप्रथाएँ भी हैं। समाज में प्रचलित कुप्रथाएँ पारिवारिक बजट को दो प्रकार से प्रभावित करती हैं। अनेक परिवारों में गृहिणियों को अर्थव्यवस्था में अपना परामर्श एवं सक्रिय योगदान देने से वंचित रखने की प्रथा है। इस स्थिति में गृहिणियाँ पारिवारिक बजट का अनुपालन कैसे कर सकती हैं? इसके अतिरिक्त समाज में प्रचलित कुछ प्रथाएँ लोगों को अनावश्यक व्यय करने के लिए बाध्य कर देती हैं। नामकरण, कर्ण-छेदन, विवाह तथा अन्त्येष्टि आदि संस्कारों पर अनावश्यक व्यय के परिणामस्वरूप पारिवारिक बजट प्रायः असफल हो जाता है तथा सामाजिक प्रतिष्ठा आदि के लिए परिवार ऋणभार से दब जाते हैं।

प्रश्न 6
उच्च एवं निम्न वर्गों के बजट में क्या अन्तर है? समझाइए।
उत्तर:
उच्च एवं निम्न वर्गों के पारिवारिक बजटों में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। ये अन्तर निम्नलिखित हैं|

  1. भोजन व प्रतिशत व्यय-उच्च वर्ग के परिवार का भोजन पर प्रतिशत व्यय निम्न वर्ग के प्रतिशत व्यय से अपेक्षाकृत कम होता है।
  2.  शिक्षा, स्वास्थ्य एवं मनोरंजन पर प्रतिशत व्यय-उच्च वर्ग के परिवार को शिक्षा, स्वास्थ्य एवं मनोरंजन की मदों पर प्रतिशत व्यय निम्न वर्ग के प्रतिशत व्यय से अपेक्षाकृत अधिक होता है।
  3.  बचत की राशि-उच्च वर्ग को परिवार निम्न वर्ग के परिवार की अपेक्षा बचत करने की अधिक क्षमता रखता है। अतः उच्च वर्ग का परिवार अपेक्षाकृत अधिक बचत कर सकता है।
    उपर्युक्त अन्तर के अतिरिक्त उच्च वर्ग तथा निम्न वर्ग के बजटों में प्राय: वस्त्रों, आवास, (UPBoardSolutions.com) ईंधन एवं प्रकाश पर प्रतिशत व्यय में भी अन्तर हो सकता है।

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प्रश्न 7
पारिवारिक दैनिक व्यय लिखने की विधि उदाहरण सहित प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
पारिवारिक बजट को सफलतापवूक लागू करने के लिए आवश्यक है कि पारिवारिक दैनिक व्यय को हाथ के हाथ व्यवस्थित ढंग से लिख लिया जाए। इससे किसी प्रकार की भूल होने की आशंका नहीं रहती तथा पारिवारिक खर्चे का आसानी से विश्लेषण भी किया जा सकता है। पारिवारिक दैनिक व्यय को किसी कॉपी या डायरी में लिखना चाहिए। इस प्रकार के हिसाब-किताब को एक दैनिक उदाहरण निम्नवर्णित है
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 1 शिक्षिका द्वारा प्रतिदर्श बजट का प्रदर्शन

प्रश्न 8.
मितव्ययिता का क्या अर्थ है? गृहिणी मितव्ययिता में किस प्रकार सहायता कर सकती है?
मितव्ययिता से आप क्या समझती हैं? गृह-व्यय में मितव्ययिता के लिए उपयोगी सुझाव दीजिए। या ।
मितव्ययिता किसे कहते हैं? घर के खर्च में मितव्ययिता के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? 2017
उत्तर:
मितव्ययिता का अर्थ
सुचारु गृह-अर्थव्यवस्था तथा पारिवारिक बजट की सफलता के लिए सर्वाधिक आवश्यक उपाय है-गृह-व्यय में मितव्ययिता को अपनाना। यहाँ यह बता देना उपयुक्त होगा कि मितव्ययिता कंजूसी नहीं है। यह अपव्यय से बचने का साधन है। मितव्ययिता में परिवार (UPBoardSolutions.com) की आवश्यकताओं की या नितान्त अवहेलना नहीं की जाती, बल्कि उन्हें सूझ-बूझ द्वारा रूपान्तरित किया जाता है। इस प्रकार मितव्ययिता के अन्तर्गत कंजूसी तथा फिजूलखर्ची दोनों से ही बचा जा सकता है।
मितव्ययिता के लिए उपयोगी सुझाव गृह व्यय में मितव्ययिता के लिए निम्नलिखित बातों को अनिवार्य रूप से ध्यान में रखना चाहिए.

  1.  केवल आवश्यकता की वस्तुएँ ही खरीदें। अनावश्यक अथवा आवश्यकता से अधिक वस्तुएँ कदापि न खरीदें।
  2.  वस्तुओं का सदैव नकद भुगतान करें। उधार लेने पर सदैव हानि होती है।
  3. आवश्यकता की समस्त वस्तुएँ सदैव विश्वसनीय दुकान से ही खरीदें।
  4.  सदैव गुणवत्तापूर्ण खाद्य सामग्री ही खरीदें।
  5.  गेहूं, चावल आदि खाद्यान्न फसल के समय वर्ष भर की आवश्यकता के अनुरूप एक साथ खरीद लें।
  6. खाद्य-सामग्री के संरक्षण द्वारा भी मितव्ययिता के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
  7.  यदि कोई मजबूरी न हो तो गृह-कार्यों आदि के लिए कोई नौकर न रखें।
  8.  बच्चों को पढ़ाने का कार्य जहाँ तक सम्भव हो स्वयं ही करें।
  9.  घर की सभी वस्तुओं की देखभाल नियमित रूप से करें तथा आवश्यकता पड़ने पर उनकी मरम्मत भी करवा लें।
  10.  मितव्ययिता के लिए पानी, ईंधन व प्रकाश (विद्युत) का केवल आवश्यकतानुसार ही प्रयोग करें।

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प्रश्न 9.
पिछले माह के बजट का मूल्यांकन क्यों आवश्यक है? या माह के बजट का मूल्यांकन क्यों आवश्यक है? । 2017
उत्तर:
यह सत्य है कि पारिवारिक बजट पर्याप्त सूझ-बूझपूर्वक बनाया जाता है, परन्तु व्यवहार में इस बात की पर्याप्त सम्भावना होती है कि गृहिणी द्वारा तैयार किया गया बजट कुछ त्रुटियों से परिपूर्ण हो तथा यथार्थ में सफल बजट न हो। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए सैद्धान्तिक रूप से यह सुझाव दिया जाता है कि आगामी माह का बजट तैयार करते समय गत माह के बजट का समुचित मूल्यांकन कर लिया जाए।

इस मूल्यांकन का मुख्य उद्देश्य यह जानना होता है कि हमारे पारिवारिक बजट में किसी अनावश्यक या कम महत्त्वपूर्ण व्यय को तो सम्मिलित नहीं किया गया अथवा किसी आवश्यक मद की अवहेलना तो नहीं हुई। इसके अतिरिक्त इस प्रकार के मूल्यांकन से यह भी ज्ञात (UPBoardSolutions.com) हो जाता है कि गत माह के बजट में परिवार के सभी सदस्यों की किसी अनिवार्य आवश्यकता की पूर्ति को ध्यान में नहीं रखा गया अथवा किसी प्रकार की फिजूलखर्ची तो नहीं हुई।
इसके साथ-साथ यह भी ज्ञात हो जाता है कि गत माह में परिवार द्वारा कुछ बचत की गयी है या नहीं। यदि बचत की गयी है तो कितनी बचत की गयी है? गत माह के बजट के समुचित मूल्यांकन से प्राप्त जानकारी आगामी माह के बजट के निर्धारण में विशेष रूप से सहायक सिद्ध होती है। इस तथ्य को ध्यान में रखकर ही गत माह के बजट में मूल्यांकन के सिद्धान्त को महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पारिवारिक बजट की संक्षिप्त परिभाषा लिखिए। [2008, 18 ]
पारिवारिक बजट क्या है? [2008, 10, 17 ]
या
पारिवारिक बजट किसे कहते हैं ? [2009, 11]
उत्तर:
“पारिवारिक बजट किसी निश्चित अवधि में परिवार के होने वाले आय-व्यय को दर्शाने वाला प्रपत्र होता है।”

प्रश्न 2.
बजट बनाना क्यों आवश्यक है? दो लाभ लिखिए। [2007, 11, 13, 14, 17}
उत्तर:
आय-व्यय एवं बचत की ठीक जानकारी के लिए तथा गृह-अर्थव्यवस्था को सुचारु बनाने के लिए बजट बनाना आवश्यक है।

प्रश्न 3.
प्राथमिकता के आधार पर पारिवारिक बजट के तीन मदों का उल्लेख कीजिए। या बजट के प्रमुख मद कौन-कौन से हैं? [2009
उत्तर:
पारिवारिक बजट के प्रमुख मद हैं

  1.  भोजन,
  2. वस्त्र,
  3.  आवास,
  4. शिक्षा एवं स्वास्थ्य

प्रश्न 4.
एक अच्छे बजट की दो विशेषताएँ लिखिए।2018
उत्तर:

  1. यह अनावश्यक व्यय को नियन्त्रित करता है तथा
  2. प्राथमिकता के आधार पर अधिक से अधिक (UPBoardSolutions.com) आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।

प्रश्न 5.
आय-व्यय में सन्तुलन बनाये रखने का सरल उपाय क्या है?[2018]
उत्तर:
आय-व्यय में सन्तुलन बनाये रखने का सरल उपाय है उसका अनुमानित बजट बनाकर उसी के अनुसार व्यय करना तथा व्यय का विधिवत् लेखा रखना।

प्रश्न 6.
पारिवारिक बजट का क्या अर्थ है? बजट निर्माण के विभिन्न सोपान बताइए।
उत्तर:
पारिवारिक बजट किसी निश्चित अवधि में परिवार के होने वाले आय-व्यय को दर्शाने वाला प्रपत्र होता है। इसके विभिन्न सोपान हैं— भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा एवं स्वास्थ्य

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प्रश्न 7.
पारिवारिक बजट का सर्वोत्तम प्रकार कौन-सा माना जाता है?
उत्तर:
‘बचत का बजट’ सर्वोत्तम प्रकार का पारिवारिक बजट माना जाता है।

प्रश्न 8.
किस प्रकार के बजट से सदैव बचना चाहिए?
उत्तर:
‘घाटे के बजट’ से सदैव बचना चाहिए।

प्रश्न 9.
पारिवारिक बजट में आय से अधिक व्यय के प्रावधान वाले बजट को कैसा बजट कहते हैं?
उत्तर:
घाटे का बजट।

प्रश्न 10.
‘एन्जिल का सिद्धान्त’ क्या है? [2008, 10, 14]
उत्तर:
जर्मनी के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ० अर्नेस्ट एन्जिल ने सन् 1857 में व्यय की विभिन्न मदों को भोजन, वस्त्र, आवास, ईंधन, प्रकाश, शिक्षा एवं स्वास्थ्य आदि में बाँटकर अपना नियम बनाया, जो कि ‘उपभोग का नियम’ कहलाती है। यही एन्जिल द्वारा प्रतिपादित ‘पारिवारिक (UPBoardSolutions.com) बजट का सिद्धान्त’ भी कहलाता है।

प्रश्न 11.
एन्जिल ने बजट के अध्ययन के लिए परिवारों को कौन-कौन सी श्रेणियों में विभाजित किया था?
उत्तर:
एन्जिल ने परिवारों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभाजित किया था

  1.  निम्न वर्ग,
  2. मध्यम वर्ग तथा
  3.  उच्च वर्ग।

प्रश्न 12.
पारिवारिक बजट बनाने में उत्पन्न होने वाली कोई दो बाधाएँ लिखिए।
उत्तर:
पारिवारिक बजट बनाने में अक्सर उत्पन्न होने वाली दो बाधाएँ हैं

  1. अज्ञानता या शिक्षा की कमी तथा
  2. बजट के प्रति उदासीनता।

प्रश्न 13.
मितव्ययिता का क्या अर्थ है? [2009, 10]
या
बजट में मितव्ययिता क्या है? [2010, 13]
उत्तर:
मितव्ययिता के अन्तर्गत कंजूसी तथा फिजूलखर्ची दोनों से ही बचते हुए परिवार की अधिक से-अधिक आवश्यकताओं की पूर्ति का प्रयास किया जाता है।

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बहुविकल्पीय प्रश्न/ प्रश्न-निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए

प्रश्न 1.
एक निश्चित अवधि के लिए पारिवारिक आय-व्यय के पूर्वानुमान को कहते है
(क) आय का विवरण
(ख) व्यय का विवरण
(ग) पारिवारिक बजेट
(घ) घरेलू हिसाब-किताब

प्रश्न 2.
आय-व्यय का सन्तुलन बनाए रखने के लिए किसकी आवश्यकता पड़ती है? (2010]
(क) बचत
(ख) बजट
(ग) ब्याज
(घ) बैंक

प्रश्न 3.
पारिवारिक बजट का कौन-सा मुख्य मद नहीं है? (2009, 10, 11]
या
कौन-सा बजट का मुख्य मद नहीं है? । [2009, 10, 11, 13, 14]
(क) मकान
(ख) भोजन
(ग) वस्त्र/शिक्षा
(घ) दुकान/फैशन

प्रश्न 4.
पारिवारिक बजट का मुख्य मद है [2018]
(क) भोजन
(ख) दुकान
(ग) मनोरंजन
(घ) फर्नीचर

प्रश्न 5.
मासिक बजट बनाना आवश्यक है [2015, 18]
(क) आय-व्यय में सन्तुलन बनाए रखने के लिए
(ख) आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए
(ग) बच्चों की पढ़ाई के लिए
(घ) उपहार देने के लिए

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प्रश्न 6.
पारिवारिक बजट बनाने का उद्देश्य है [2011, 12, 14, 15, 16, 17, 18
(क) बचत करना
(ख) व्यय पर नियन्त्रण
(ग) आय का ज्ञान
(घ) ये सभी

प्रश्न 7.
पारिवारिक बजट बनाने के लिए सबसे आवश्यक है
(क) आय में वृद्धि
(ख) व्यय पर नियन्त्रण
(ग) ऋण की व्यवस्था
(घ) आय-व्यय का पूर्वानुमान

प्रश्न 8.
गृह-अर्थव्यवस्था को सुचारु बनाने के लिए आवश्यक हैया घर की आर्थिक व्यवस्था को ठीक रखने के लिए आवश्यक है [2013]
(क) पारिवारिक आय में वृद्धि
(ख) साधन सम्पन्न होना।
(ग) आय के अनुसार व्यय का बजट बनाना तथा उसका पालन करना
(घ) अधिक-से-अधिक कंजूसी करना

प्रश्न 9.
पारिवारिक बजट महत्त्वपूर्ण होता है
(क) गृहिणी एवं पूरे परिवार के लिए
(ख) अर्थशास्त्रियों के लिए
(ग) समाज-सुधारकों के लिए
(घ) इन सभी के लिए

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प्रश्न 10.
लोकप्रिय पारिवारिक बजट का सिद्धान्त प्रस्तुत किया- [2012, 16, 17] [2012, 16, 17] |
(क) माक्र्स ने
(ख) एन्जिल ने
(ग) टॉलस्टॉय ने
(घ) माइकेल एन्जिलो ने

प्रश्न 11.
पारिवारिक बजट द्वारा अनावश्यक व्यय को
(क) सहायता प्रदान की जाती है
(ख) प्रोत्साहन दिया जाता है।
(ग) नियन्त्रित किया जाता है।
(घ) स्वीकृति प्रदान की जाती है।

प्रश्न 12.
पारिवारिक बजट के मार्ग में मुख्य बाधाएँ हैं
(क) अज्ञानता तथा अशिक्षा
(ख) बजट के प्रति उदासीनता
(ग) समाज में प्रचलित कुप्रथाएँ।
(घ) ये सभी

प्रश्न 13.
आदर्श बजट माना जाता है [2008] या सर्वोत्तम (आदर्श) पारिवारिक बजट किसे माना जाता है? [2007, 08, 14]

(क) घाटे का बजट
(ख) सन्तुलित बजट
(ग) बचत का बजट
(घ) दैनिक बजट

प्रश्न 14.
एन्जिल के अनुसार कम आय वर्ग के परिवार की आय का अधिकांश प्रतिशत व्यय इस मद पर होता है
(क) वस्त्र
(ख) भोजन
(ग) आवास
(घ) ईंधन

प्रश्न 15.
बजट बनाने से पहले आवश्यक है 2014
(क) आय का पूर्वानुमान
(ख) आय पर नियन्त्रण
(ग) व्यय पर नियन्त्रण
(घ) ये सभी

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प्रश्न 16.
आय-व्यय में सन्तुलन हेतु कौन-सा साधन उपयुक्त होगा? 2015
(क) वार्षिक बजट
(ख) मासिक बजट
(ग) साप्ताहिक बजट
(घ) दैनिक बजट

उत्तर:

  1. (ग) पारिवारिक बजट
  2.  (ख) बजट
  3.  (घ) दुकान/फैशन
  4.  (क) भोजन
  5. (क) आय-व्यय में सन्तुलन बनाये रखने के लिए
  6.  (घ) ये सभी
  7. (घ) आय-व्यय का पूर्वानुमान
  8.  (ग) आय के अनुसार व्यय का बजट बनाना तथा उसका पालन करना
  9. (घ) इन सभी के लिए
  10. (ख) एन्जिल ने
  11.  (ग) नियन्त्रित किया जाता है
  12.  (घ) ये सभी
  13.  (ग) बचत को बजट
  14.  (ख) भोजन
  15. (क) आय का पूर्वानुमान
  16. (ख) मासिक बजट।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 7 इतिहास और खेल : क्रिकेट की कहानी

UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 7 इतिहास और खेल : क्रिकेट की कहानी

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 7 इतिहास और खेल : क्रिकेट की कहानी.

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
टेस्ट क्रिकेट कई मायनों में एक अनूठा खेल है। इस बारे में चर्चा कीजिए कि यह किन-किन अर्थों में बाकी खेलों से भिन्न है। ऐतिहासिक रूप से एक ग्रामीण खेल के रूप में पैदा होने से टेस्ट क्रिकेट में किस तरह की विलक्षणताएँ पैदा हुई हैं?
उत्तर:
टेस्ट क्रिकेट कई मायनों में एक विलक्षण खेल है। अन्य खेलों से यह निम्न रूप में भिन्न है-

  1. क्रिकेट को ‘सभ्य लोगों का खेल’ (जेंटिलमैन गेम) कहा जाता है जबकि अन्य किसी खेल को यह उपाधि प्राप्त नहीं है।
  2. क्रिकेट का खेल मात्र अंग्रेज और राष्ट्रमण्डल देशों द्वारा खेला जाता है जबकि दूसरे खेल सम्पूर्ण विश्व में खेले जाते हैं।
  3. क्रिकेट विश्व का एकमात्र ऐसा खेल है जो दो देशों की टीम द्वारा 5 दिन तक खेला जाता है जबकि दूसरे खेलों में ऐसा नहीं है।
  4. क्रिकेट के खेल मैदान की लंबाई-चौड़ाई निश्चित नहीं होती जबकि अन्य खेलों के मैदान की लंबाई-चौड़ाई निश्चित होती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में पैदा होने के कारण क्रिकेट की विलक्षणताएँ-

  1. क्रिकेट की ग्रामीण जड़ों की पुष्टि टेस्ट मैच की अवधि से हो जाती है। शुरुआत में क्रिकेट मैच की समय सीमा नहीं होती थी। खेल तब तक चलता था, जब तक कि एक टीम दूसरी टीम को दोबारा पूरा आउट न कर दे।
  2. क्रिकेट मूलतः गाँव में कॉमन्स (ऐसे सार्वजनिक और खुले मैदान जिन पर पूरे समुदाय का सामुदायिक अधिकार होता था) में खेला जाता था। कॉमन्स का आकार प्रत्येक गाँव में अलग-अलग होता था। इसलिए न तो सीमा रेखा निर्धारित थी और न ही चौके। जब सीमा-रेखा क्रिकेट की नियमावली का हिस्सा बनीं तब भी विकेट से उसकी दूरी निर्धारित नहीं की गयी। नियम के अंतर्गत केवल यह व्यवस्था की गयी थी कि अंपायर दोनों कप्तानों से परामर्श करके खेल के क्षेत्र की सीमा निर्धारित करेगा।
  3. क्रिकेट में प्रयुक्त वस्तुओं को देखने से पता चलता है कि समय में आए परिवर्तन के बावजूद वह ग्रामीण पृष्ठभूमि से ही जुड़ा रहा। बल्ला, स्टम्प व गिल्लियाँ लकड़ी (UPBoardSolutions.com) की बनी हुई हैं जबकि गेंद चमड़े, ट्वाइन और काग (कॉर्क) से बना हुआ है। आज भी क्रिकेट का बल्ला व गेंद हाथ से ही बनाए जाते हैं, मशीन से नहीं। बल्ले की निर्माण सामग्री में अवश्य कुछ परिवर्तन आया है।

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प्रश्न 2.
एक ऐसा उदाहरण दीजिए जिसके आधार पर आप कह सकें कि उन्नीसवीं सदी में तकनीक के कारण क्रिकेट के साजो-सामान में परिवर्तन आया। साथ ही ऐसे उपकरणों में से भी कोई एक उदाहरण दीजिए जिनमें कोई बदलाव नहीं आया।
उत्तर:
वल्केनाइज्ड रबड़ की खोज के बाद 1848 ई० से क्रिकेट में पैड पहनने का प्रचलन शुरू हुआ। इसके शीघ्र बाद ही हाथों में पहनने के लिए दस्ताने अस्तित्व में आए। सिंथेटिक व हल्की सामग्री के बने हेलमेट के बिना तो आधुनिक क्रिकेट की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
उदाहरण-वल्केनाइज्ड रबड़ की खोज, हाथों में पहनने के लिए दस्ताने और हल्के हेलमेट इससे क्रिकेट के साजो-सामान में परिवर्तन आया।
लेकिन समय की निरंतर बदलती प्रकृति के बावजूद क्रिकेट के महत्त्वपूर्ण उपकरण बल्ला, स्टम्प और वेल्स में कोई परिवर्तन नहीं आया ये पहले की भांति आज भी प्रकृति (UPBoardSolutions.com) पर ही आश्रित हैं। क्रिकेट की गेंद का निर्माण आज भी चमड़े, ट्वाइन और कॉर्क की सहायता से किया जाता है।
उदाहरण-बल्ला, स्टम्प, वेल्स, गेंद। इन उपकरणों में कोई बदलाव नहीं आया है।

प्रश्न-3.
भारत और वेस्टइंडीज में ही क्रिकेट क्यों इतना लोकप्रिय हुआ? क्या आप बता सकते हैं कि यह खेल दक्षिणी अमेरिका में इतना लोकप्रिय क्यों नहीं हुआ? उत्तर:
भारत और वेस्टइंडीज में क्रिकेट का खेल लोकप्रिय होने के कारण इस प्रकार हैं-

  1. औपनिवेशिक पृष्ठभूमि के कारण भारत और वेस्टइंडीज में क्रिकेट का खेल लोकप्रिय हुआ। ब्रिटिशवादी कर्मचारियों ने क्रिकेट को नस्ली एवं सामाजिक उत्कृष्टता प्रदर्शित करने के लिए प्रयोग किया।
  2. अंग्रेजों ने इस खेल को जनसामान्य के लिए लोकप्रिय नहीं बनाया बल्कि औपनिवेशिक लोगों के लिए क्रिकेट खेलना ब्रिटिश लोगों के साथ नस्ली समानता का परिचायक था। क्रिकेट में सफलता से नस्ली समानता एवं राजनीतिक प्रगति का अर्थ लिया जाने लगा।
  3. स्वाधीनता संघर्ष के काल में अनेक अभिजात्य वर्गीय नेताओं को क्रिकेट में आत्मसम्मान और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा की संभावनाएँ परिलक्षित होती थीं। दक्षिण अमेरिका में क्रिकेट के लोकप्रिय न होने के कारण-दक्षिण अमेरिका में ब्रिटिश शासन नहीं था बल्कि वहाँ पर स्पेन, (UPBoardSolutions.com) पुर्तगाल आदि यूरोपीय देशों का शासन था। स्पेन और पुर्तगाल आदि देशों में क्रिकेट लोकप्रिय खेल नहीं था जिसके परिणामस्वरूप दक्षिण अमेरिका में क्रिकेट उस लोकप्रियता को प्राप्त न कर सका जिसे भारत और वेस्टइंडीज ने प्राप्त किया।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए-

  1. भारत में पहला क्रिकेट क्लब पारसियों ने खोला।
  2. महात्मा गाँधी पेंटांग्युलर टूर्नामेंट के आलोचक थे।
  3. आईसीसी का नाम बदल कर इंपीरियल क्रिकेट कांफ्रेंस के स्थान पर इंटरनेशनल क्रिकेट कॉन्फ्रेंस कर दिया गया।
  4. आईसीसी का मुख्यालय लंदन की जगह दुबई में स्थानान्तरित कर दिया गया।

उत्तर:
(1) भारत में क्रिकेट का आरंभ करने का श्रेय बम्बई के छोटे से पारसी समुदाय को है। व्यापार के उद्देश्य से पारसी सबसे पहले अंग्रेजों के संपर्क में आए। इस तरह पश्चिम की संस्कृति से प्रभावित होने वाला भारत का पहला समुदाय पारसी था। पारसियों ने 1848 ई० में बम्बई (मुम्बई) में भारत का पहला क्रिकेट क्लब “ओरिएंटल क्रिकेट क्लब’ नाम से स्थापित किया। टाटा व वाडिया जैसे पारसी व्यवसायी (UPBoardSolutions.com) पारसी क्लबों के प्रायोजक व वित्त पोषक थे। अंग्रेजों ने उत्साही पारसियों की क्रिकेट के विकास में कोई सहायता नहीं की बल्कि बॉम्बे जिमखाना क्लब और पारसी क्रिकेटरों के बीच पार्क के इस्तेमाल को लेकर झगड़ा भी हुआ।

पारसियों ने इस बात की शिकायत की कि बॉम्बे जिमखाना के पोलो टीम के घोड़ों द्वारा रौंदे जाने के बाद मैदान क्रिकेट खेलने लायक नहीं रह गया है। जब यह स्पष्ट हो गया कि अंग्रेज औपनिवेशिक अधिकारी अपने देशवासियों का पक्ष ले रहे हैं, तो पारसियों ने क्रिकेट खेलने के लिए अपना खुद को जिमखाना ‘पारसी जिमखाना बनाया। पर पारसियों व नस्लवादी बॉम्बे जिमखाना के बीच की इस स्पर्धा का अंत अच्छा हुआ-पारसियों की एक टीम ने बॉम्बे जिमखाना को 1889 ई० में हरा दिया। यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के चार साल बाद हुआ और दिलचस्प बात यह है कि इस संस्था के मूल नेताओं में से एक दादाभाई नौरोजी, जो अपने वक्त के महान राजनेता व बुद्धिजीवी थे, पारसी ही थे।

(2) महात्मा गांधी ने पेंटाग्युलर टूर्नामेंट को सांप्रदायिक भेद-भाव के आधार पर बाँटनेवाला बताकर इसकी निंदा की। उनका विचार था कि यह मुकाबला सांप्रदायिक रूप (UPBoardSolutions.com) से अशांतिकारक था जो कि ऐसे समय में देश के लिए हानिकारक था जब वे विभिन्न धर्मों के लोगों एवं क्षेत्रों को धर्मनिरपेक्ष देश के लिए एकजुट करना चाह रहे थे।

(3) 1909 ई0 में इंग्लैण्ड में क्रिकेट को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करने के लिए “इंपीरियल क्रिकेट कॉन्फ्रेंस (आई.सी.सी.) की स्थापना की गयी थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत धीरे-धीरे इंग्लैण्ड का साम्राज्यवादी स्वरूप नष्ट हो गया और उसके सभी उपनिवेश स्वतंत्र राष्ट्र बन गए परंतु क्रिकेट के अंतर्राष्ट्रीय आयोजन पर साम्राज्यवादी क्रिकेट कॉन्फ्रेंस का नियंत्रण बरकरार रहा।
आईसीसी पर, जिसका 1965 ई० में नाम बदलकर ‘इंटरनेशनल क्रिकेट कॉन्फ्रेंस’ हो गया, इसके संस्थापक सदस्यों का वर्चस्व रहा, उन्हीं के हाथ में कार्यकलाप के वीटो अधिकार रहे। इंग्लैंड व ऑस्ट्रेलिया के विशेषाधिकार 1989 ई0 में जाकर खत्म हुए और वे अब सामान्य सदस्य रह गए।

(4) आईसीसी मुख्यालय लंदन से दुबई में इसलिए स्थानांतरित हुआ क्योंकि भारत दक्षिण एशिया में स्थित है। भारत में खेल के सबसे अधिक दर्शक थे और यह क्रिकेट खेलने वाले देशों में सबसे बड़ा बाजार था, इसलिए खेल का गुरुत्व औपनिवेशिक देशों से वि-औपनिवेशिक देशों (UPBoardSolutions.com) में स्थानांतरित हो गया। मुख्यालय का स्थानांतरण खेल में अंग्रेजी या साम्राज्यवादी प्रभुत्व के औपचारिक अंत का सूचक था।

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प्रश्न 5.
तकनीक के क्षेत्र में आए बदलावों, खासतौर से टेलीविजन तकनीक में आए परिवर्तनों से समकालीन क्रिकेट के विकास पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
समकालीन क्रिकेट के विकास एवं लोकप्रियता में वृद्धि करने में विकसित तकनीक विशेषकर उपग्रह टेलीविजन की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। रंग-बिरंगे परिधान, रक्षात्मक हेलमेट, क्षेत्र रक्षण सम्बन्धी प्रतिबन्ध, दूधिया प्रकाश की रोशनी में क्रिकेट, सीमित ओवर के क्रिकेट मैच आदि ने इस पूर्व औद्योगिक ग्रामीण खेल को आधुनिक परिवेश में रूपांतरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। सेटेलाइट टेलीविजन के प्रचलन ने क्रिकेट को विश्व के कोने-कोने तक पहुँचा दिया है।
टेलीविजन तकनीक ने क्रिकेट के विकास को निम्न रूप में प्रभावित किया है-

  1. टेलीविजन प्रसारण ने क्रिकेट को एक बड़ा बाजार उपलब्ध कराया है।
    टेलीविजन कंपनियों ने विज्ञापन-समय व्यावसायिक कंपनियों को बेचने आरंभ कर दिए। व्यावसायिक कंपनियों को भी इतना बड़ा दर्शक-समूह और कहाँ मिलता इसलिए विज्ञापनों से टी.वी. कंपनियों तथा क्रिकेट बोर्डो की आय बहुत बढ़ गई। निरंतर टी.वी. कवरेज के (UPBoardSolutions.com) बाद क्रिकेटर सेलेब्रिटी बन गए और उन्हें अपने क्रिकेट बोर्ड से तो ज्यादा वेतन मिलने ही लगा, लेकिन उससे भी बड़ी कमाई के साधन टायर से लेकर कोला तक के टी०वी० विज्ञापन हो गए।
  2. टी.वी. कैमरे के उपयोग ने क्रिकेट के स्वरूप को भी प्रभावित किया। अब टी.वी. में ‘स्लो-मोशन’ द्वारा खेल की बारीकियों पर नजर रखी जाने लगी है। तीसरे अंपायर का निर्णय पूरी तरह कैमरे के कुशलतापूर्वक उपयोग पर ही निर्भर होता है।
  3. टी.वी. द्वारा दिखाए जाने वाले ‘री-प्ले’ ने खेल की रोचकता को और भी बढ़ा दिया है।
  4. टी.वी. प्रसारण से क्रिकेट का स्वरूप बिल्कुल ही बदल गया। टेलीविजन तकनीक के द्वारा क्रिकेट की पहँच छोटे शहरों व गाँवों के दर्शकों तक हो गई। इससे क्रिकेट का सामाजिक आधार भी व्यापक हुआ है। महानगरों से दूर रहने वाले बच्चे जो कभी बड़े मैच नहीं देख पाते थे, अब अपने नायकों को देखकर क्रिकेट की तकनीकें सीख सकते हैं।
  5. उपग्रह (सैटेलाइट) टी.वी. की तकनीक और बहु-राष्ट्रीय कंपनियों की दुनिया भर की पहुँच के चलते क्रिकेट का वैश्विक बाजार बन गया है। सिडनी में चल रहे मैच को अब सीधे सूरत में देखा जा सकता है।
  6. टेलीविजन दर्शकों को लुभाने के लिए (UPBoardSolutions.com) क्रिकेट में किए गए अनेक प्रयोग जैसे-रंगीन वर्दी, सीमित ओवर, रात-दिन का खेल, क्षेत्ररक्षण की पाबंदियाँ आदि, स्थायी सिद्ध हुए हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के प्रथम टेस्ट क्रिकेट कप्तान कौन थे?
उत्तर:
भारत के प्रथम टेस्ट क्रिकेट कप्तान सी.के.नायडू थे।

प्रश्न 2.
ब्रिटिशकालीन भारत के तीन प्रमुख क्रिकेटर कौन थे?
उत्तर:

  1. सी. के. नायडू,
  2. पावलंकर बालू,
  3. पालवंकर बिट्ठल।

प्रश्न 3.
पेंटांग्युलर टूर्नामेंट में शामिल होने वाली क्रिकेट टीमें किन समुदायों का प्रतिनिधित्व करती थीं?
उत्तर:

  1. यूरोपीय समुदाय,
  2. हिन्दू समुदाय,
  3. पारसी समुदाय,
  4. मुस्लिम समुदाय,
  5. दरेस्ट (शेष भारतीय समुदाय)।

प्रश्न 4.
अंग्रेज बच्चों में क्रिकेट को किन गुणों को विकसित करने का माध्यम मानते थे?
उत्तर:

  1. अनुशासन,
  2. नेतृत्व क्षमता,
  3. ऊँच-नीच का बोध,
  4. स्वाभिमान।

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प्रश्न 5.
भारतीयों ने अंग्रेजों के बॉम्बे जिमखाना को पहली बार कब हराया था?
उत्तर:
अंग्रेजों के जिमखाना क्लब को भारतीयों ने पहली बार 1889 ई० में हराया था।

प्रश्न 6.
भारतीयों द्वारा स्थापित प्रथम क्रिकेट क्लब कौन-सा था?
उत्तर:
भारत में भारतीयों द्वारा स्थापित प्रथम क्रिकेट क्लब ‘ओरिएंटल क्रिकेट क्लब’ था।

प्रश्न 7.
वेस्टइंडीज में पहला गैर-गोरा क्लब कब बना?
उत्तर:
19वीं सदी के अंत में वेस्टइंडीज का पहला गैर-गोरा क्लब था ।

प्रश्न 8.
वेस्टइंडीज को प्रथम अश्वेत कप्तान कौन था?
उत्तर:
फ्रैंक वॉरेल वेस्टइंडीज के प्रथम अश्वेत कप्तान थे।

प्रश्न 9.
क्रिकेट पिच की लंबाई कितनी होती है?
उत्तर:
क्रिकेट पिच की लम्बाई 22 गज होती है।

प्रश्न 10.
एम.सी.सी. की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर:
एम.सी.सी. की स्थापना 1787 ई० में हुई थी?

प्रश्न 11.
एम.सी.सी. का पूरा नाम क्या हैं?
उत्तर:
एम.सी.सी. का पूरा नाम है- ‘मेरिलिबॉन क्रिकेट क्लब

प्रश्न 12.
क्रिकेट के नियमों को पहली बार कब लिखा गया?
उत्तर:
सन् 1774 ई० में क्रिकेट के नियमों को पहली बार लिपिबद्ध किया गया।

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प्रश्न 13.
क्रिकेट में गेंद को हवा में लहराकर फेंकने की शुरुआत कब हुई?
उत्तर:
1760-1770 ई0 के दशक में क्रिकेट में गेंद को हवा में लहराकर फेंकने की शुरुआत हुई।

प्रश्न 14.
क्रिकेट के गेंद को हवा में लहराकर फेंकने के दो लाभ बताइए।
उत्तर:

  1. गेंद की गति बढ़ गई थी।
  2. गेंद को स्पिन एवं स्विंग कराना संभव हो गया था।

प्रश्न 15.
क्रिकेट का प्रसार किन देशों में हुआ?
उत्तर:
क्रिकेट का प्रसार प्रायः उन देशों में हुआ जिनमें इंग्लैण्ड का औपनिवेशिक शासन था। इन देशों में भारत, दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, वेस्टइंडीज, केन्या आदि शामिल हैं। इन देशों में क्रिकेट का प्रसार अंग्रेजों द्वारा किया गया।

प्रश्न 16.
19वीं सदी में क्रिकेट में आए परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. क्रिकेट की गेंदे का व्यास निश्चित किया गया।
  2. चोट लगने से बचाव के लिए पैड व दस्ताने पहनने का प्रचलन शुरू हुआ।
  3. वाइड बॉल का नियम प्रभावी हुआ।

प्रश्न 17.
1760 व 1770 ई0 के क्रिकेट में आए बदलाव को उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
इस अवधि में क्रिकेट की गेंद को जमीन पर लुढ़काने की जगह हवा में लहराकर बल्लेबाज के आगे पटकने का चलने शुरू हुआ। क्रिकेट की गेंद का वजन अब साढ़े पाँच से पौने छः औंस तक हो गया और बल्ले की चौड़ाई चार इंच कर दी गयी है। यह तब हुआ जब एक बल्लेबाज ने अपनी पूरी पारी विकेट जितने चौड़े बल्ले से खेल डाली।

प्रश्न 18.
भारत में क्रिकेट की शुरुआत कब हुई थी?
उत्तर:
भारत में क्रिकेट की शुरुआत बम्बई (मुंबई) से मिलती है। भारत में क्रिकेट खेलने वाला प्रथम समुदाय पारसी था। पारसी समुदाय के ज्यादातर लोग व्यापारी या पूंजीपति थे। (UPBoardSolutions.com) ये लोग व्यापार हेतु जब अंग्रेजों के संपर्क में आए तो इनमें क्रिकेट के प्रति रुचि बढ़ी।

प्रश्न 19.
भारत में पहला क्रिकेट क्लब कब खुला? अठाहरवीं सदी में क्रिकेट किन लोगों के बीच खेला जाता था?
उत्तर:
भारत में पहला क्रिकेट क्लब 1792 ई० में कलकत्ता क्रिकेट क्लब स्थापित किया गया। अठारहवीं सदी में भारत में क्रिकेट ब्रिटिश सैनिक व सिविल सर्वेट्स द्वारा केवल गोरे क्लबों व जिम्मखानों में खेले जानेवाला खेल बना रहा।

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प्रश्न 20.
पालवंकर बालू कौन थे?
उत्तर:
पालवंकर बालू का जन्म 1875 ई0 में पूना में हुआ था। वे धीमी गति की गेंदबाजी में अपने समय के सर्वश्रेष्ठ भारतीय गेंदबाज थे। बालू औपनिवेशिक काल के सबसे बड़े भारतीय क्रिकेट मुकाबले क्वाईंग्यूलर में हिन्दू टीम की ओर से खेलते थे। उन्हें कभी हिंदू टीम का कप्तान नहीं बनाया गया क्योंकि वह दलित समुदाय से थे। प्रश्न 21. विश्व का सबसे पहला क्रिकेट क्लब कौन था? इस क्लब की क्या उपलब्धियाँ थीं? उत्तर- दुनिया का पहला क्रिकेट क्लब हैम्बलडन में 1760 ई0 के दशक में बना और मेरिलिबॉन क्रिकेट (UPBoardSolutions.com) क्लब (एम. सी. सी.) की स्थापना 1787 ई० में हुई। इसके अगले साल ही एम. सी. सी. ने क्रिकेट के नियमों में सुधार किए और उनका अभिभावक बन बैठा। एम. सी. सी. के सुधारों से खेल के रंग-ढंग में ढेर सारे परिवर्तन हुए, जिन्हें 18वीं
सदी के दूसरे हिस्से में लागू किया गया।

प्रश्न 22.
सेटेलाइट टेलीविजन ने क्रिकेट के दर्शकों में किस प्रकार वृद्धि की?
उत्तर:
सेटेलाइट (उपग्रह) टेलीविजन ने दर्शकों में क्रिकेट के प्रति रुचि उत्पन्न की। लोगों को टेलीविजन पर मैच देखने से इस खेल के नियमों और बारीकियों की जानकारी हुई। यह संचार माध्यम लोगों को उसी प्रकार खेल का आनन्द देता था जैसे कि खेल के मैदान में दर्शकों को। टेलीविजन (UPBoardSolutions.com) के कम्प्युटराइज्ड सिस्टम ने इस खेल को और भी आकर्षक, बना दिया।

प्रश्न 23.
हॉकी खेल का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
अनेक परंपरागत खेलों के सम्मिलित रूप से आधुनिक हॉकी खेल का विकास हुआ। स्कॉट के शिंटी, इंग्लैण्ड व वेल्स के वेंडी व आयरिश हॉर्लिग को हॉकी का पूर्व रूप माना जा सकता है। भारत में हॉकी का आरंभ औपनिवेशिर्क काल में अंग्रेज सैनिकों द्वारा किया गया। भारत में पहले परंपरागत हॉकी क्लब की स्थापना 1885-86 में कलकत्ता (कोलकाता) में हुई। ओलंपिक खेलों की हॉकी प्रतिस्पर्धा में हॉकी को वर्ष 1928 ई० में पहली बार शामिल किया गया

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
क्रिकेट के शुरुआती दौर में बल्लेबाज को ही कप्तान क्यों बनाया जाता था?
उत्तर:
क्रिकेट के खेल आरंम्भिक दौर में इंग्लैण्ड में अभिजात्य वर्ग द्वारा खेला जाता था। अभिजात्य वर्ग इस खेल पर अपनी श्रेष्ठता बनाए रखना चाहता था। अतः ये लोग बल्लेबाज बनना पसन्द करते थे। उनका ऐसा मानना था कि गेंद फेंकने, से शक्ति (ऊर्जा) का क्षय होता है। इसलिए वे गेंद फेंकने का कार्य अन्य लोगों को देते थे और इस कार्य के बदले में उन्हें धन का भुगतान किया जाता था। धन लेकर गेंदबाजी करने वालों (UPBoardSolutions.com) को प्रोफेशनल (व्यवसायी) कहा जाता था। इन प्रोफेशनल लोगों पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए बल्लेबाज को ही कप्तान बनाया जाता था। इसीलिए आरंम्भिक काल में क्रिकेट को बल्लेबाजों का खेल कहा जाता था।

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प्रश्न 2.
ब्रिटिश समाज में क्रिकेट के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटिश समाज में क्रिकेट के महत्त्व को हम निम्न रूपों में स्पष्ट कर सकते हैं-

  1. अंग्रेज क्रिकेट के खेल को एक मैदानी खेल के अलावा खिलाड़ियों में अनुशासन, ऊँच-नीच की समझ, गुण, स्वाभिमान की रणनीति और नेतृत्व कौशल विकसित करने का एक माध्यम मानते थे।
  2. अंग्रेजों का मानना था कि क्रिकेट का खेल केवल विजय-पराजय की भावना से प्रेरित होकर नहीं खेला जाना चाहिए बल्कि इसे न्यायोचित खेल भावना से खेला जाना चाहिए।
  3. अंग्रेजों की मान्यता थी कि सभ्य लोगों का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट से ही विद्यार्थियों में नैतिक चरित्र का विकास संभव है।

प्रश्न 3.
वेस्टइंडीज में क्रिकेट के प्रसार की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
वेस्टइंडीज में क्रिकेट के प्रसार की रूपरेखा को हम इस तरह प्रस्तुत कर सकते हैं-

  1. वेस्टइंडीज भारत की ही तरह इंग्लैण्ड का उपनिवेश था।
  2. 19वीं शताब्दी के अंत में वेस्टइंडीज में पहले स्थानीय क्रिकेट क्लब की स्थापना हुई। इस क्लब के सभी सदस्य मुलेट्टो समुदाय के थे। मुलेटों समुदाय में मिश्रित यूरोपीय और अफ्रीकी मूल के लोग शामिल थे।
  3. वेस्टइंडीज के स्थानीय लोगों ने क्रिकेट के खेल को गोरी और काली प्रजाति, मध्य नस्ली समानता व राजनीतिक प्रगति के रूप में स्वीकार किया।
  4. वेस्टइंडीज के लोगों ने इस खेल को अपने आत्मसम्मान और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का प्रश्न माना। इसी भावना की परिणति थी कि जब इन लोगों ने 1950 ई0 के दशक में इंग्लैण्ड के विरुद्ध पहली टेस्ट श्रृंखला जीती तो इस जीत को वहाँ राष्ट्रीय उत्सव के रूप में मनाया गया। फ्रैंक वारेलु 1960 ई0 में वेस्टइंडीज टीम के प्रथम अश्वेत कप्तान बने।

प्रश्न 4.
क्रिकेट के पहले लिखित नियमों के बारे में बताइए।
उत्तर:
क्रिकेट के पहले लिखित नियम 1744 ई० में बनाए गए। इन नियमों का विवरण इस प्रकार है-

  1. बल्ले के रूप व आकार पर कोई पाबंदी नहीं थी। ऐसा लगता है कि 40 नॉच या रन का स्कोर काफी बड़ा होता था, शायद इसलिए कि गेंदबाज तेजी से बल्लेबाज के नंगी, पैडरहित पिंडलियों पर गेंद फेंकते थे।
  2. हाजिर शरीफों में से दोनों प्रिंसिपल (कप्तान) दो अंपायर चुनेंगे, जिन्हें किसी भी विवाद को निपटाने की अंतिम अधिकार होगा।
  3. स्टंप 22 इंच ऊँचे होंगे, उनके बीच की गिल्लियाँ 6 इंच लंबी होंगी।
  4. गेंद का वजन 5 से 6 औंस के बीच होगा और स्टंप के बीच की दूरी 22 गज होगी।

प्रश्न 5.
पेशेवर व शौकिया क्रिकेटरों के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पेशेवर व शौकिया क्रिकेटरों के बीच निम्नलिखित अन्तर हैं-

पेशेवर क्रिकेटर

शौकिया क्रिकेटर

1. पेशेवरों को तेज गेंदबाजी का मेहनतकश काम दिया जाता था। 1. शौकिया बल्लेबाज टीम में रहने का प्रयास करते थे।
2. उन्हें हीन समझा जाता था। 2. उन्हें सामाजिक श्रेष्ठता हासिल थी।
3. पेशेवर गरीब थे जो पैसे के लिए खेलते थे। पेशेवर  खिलाड़ियों का मेहनताना संरक्षकों द्वारा, चंदे, या गेट पर इकट्ठा किए गए पैसे से दिया जाता था। 3. शौकिया वे अमीर लोग थे जो खाली समय बिताने। के लिए क्रिकेट खेलते थे न कि पैसे के लिए।
4. वे आजीविका कमाने के लिए खेलते थे। 4. वे मजे के लिए खेलते थे।
5. उन्हें खिलाड़ी कहा जाता था। 5. उन्हें भद्र पुरुष कहा जाता था।

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प्रश्न 6.
19वीं शताब्दी के दौरान क्रिकेट के खेल में क्या महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए गए?
उत्तर:
19वीं सदी के दौरान क्रिकेट के खेल में निम्नलिखित परिवर्तन घटित हुए.-

  1. चोट से बचाने के लिए पैड व दस्ताने जैसे सुरक्षात्मक उपकरण प्रयोग किए जाने लगे।
  2. बाउंड्री की शुरुआत हुई, जबकि पहले हरेक रन दौड़ कर लेना पड़ता था।
  3. ओवरआर्म बॉलिंग कानूनी ठहरायी गई।
  4. वाइड बॉल के लिए नियम लागू किया गया।
  5. गेंद का सटीक व्यास तय किया गया।

प्रश्न 7.
‘शौकिया खिलाड़ी’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
इंग्लैण्ड के समाज के ऐसे उच्चवर्गीय लोग जो अपना शौक पूरा करने के लिए क्रिकेट खेलते थे, उन्हें ‘शौकिया खिलाड़ी’ कहते थे।
शौकीनों की समाजिक श्रेष्ठता क्रिकेट की परंपरा का हिस्सा बन गई। शौकीनों को जहाँ ‘जेंटिलमैन’ की उपाधि दी गई तो वहीं पेशेवरों को ‘खिलाड़ी’ (प्लेयर्स) का अदना-सा नाम मिला। मैदान में घुसने के उनके प्रवेश-द्वार भी अलग-अलग थे। शौकीन जहाँ बल्लेबाज हुआ करते वहीं खेल में असली (UPBoardSolutions.com) मशक्कत और ऊर्जा वाले काम, जैसे तेज गेंदबाजी, पेशेवर खिलाड़ियों के हिस्से आते थे।

क्रिकेट में संदेह का लाभ (बेनेफिट ऑफ डाउट) हमेशा बल्लेबाज को ही मिलने की एक वजह यह भी है। क्रिकेट बल्लेबाजों का ही खेल इसीलिए बना क्योंकि नियम बनाते समय बल्लेबाजी करने वाले ‘जेंटिलमैन’ को तरजीह दी गई। शौकिया खिलाड़ियों की सामाजिक श्रेष्ठता का ही नतीजा था कि टीम की कप्तान पारंपरिक तौर पर बल्लेबाज ही होता था, इसलिए नहीं कि बल्लेबाज कुदरती तौर पर बेहतर कप्तान होते थे, बल्कि इसलिए कि बल्लेबाज तो आम तौर पर ‘जेंटिलमैन’ ही होते थे। चाहे क्लब की टीम हो या राष्ट्रीय टीम, कप्तान तो शौकिया खिलाड़ी ही होता था।

प्रश्न 8.
पेशेवर खिलाड़ी से क्या आशय है?
उत्तर:
ऐसे खिलाड़ी जो अपने जीवन-यापन के लिए क्रिकेट का खेल खेलते थे, पेशेवर खिलाड़ी कहलाते थे। पेशेवर खिलाड़ियों को वजीफा, चंदा अथवा मैदान के गेट पर इकट्ठा किए गए धन में से कुछ पैसा दिया जाता था। इंग्लैण्ड में क्रिकेट एक मौसमी खेल के रूप में खेला जाता है क्योंकि सर्दियों में तापमान बहुत कम होने के कारण क्रिकेट नहीं खेला जाता है। सर्दियों को क्रिकेट का ऑफ सीजन भी कहा जाता है। (UPBoardSolutions.com) ऑफ सीजन में पेशेवर खिलाड़ी प्रायः खदानों में अथवा अन्य स्थानों पर मजदूरी करते थे। पेशेवर खिलाड़ियों को कभी भी कप्तान नहीं बनाया जाता था। पहली बार 1930 ई0 के दशक में यार्कशायर के एक पेशेवर खिलाड़ी लेन हटन ने अंग्रेजी टीम की कप्तानी की थी।

प्रश्न 9.
क्रिकेट को एक औपनिवेशिक खेल क्यों माना जाता है?
उत्तर:
क्रिकेट को एक औपनिवेशिक खेल इसलिए माना जाता है क्योंकि इंग्लैण्ड के अलावा इस खेल का विस्तार उन्हीं देशों में हुआ जो कभी ब्रिटिश साम्राज्य के उपनिवेश थे। क्रिकेट की पूर्व-औद्योगिक विषमताओं ने इसके अन्य देशों में गमन को कठिन बना दिया। इसलिए इसने उन्हीं देशों में अपनी जड़े जमाई जहाँ अंग्रेजों ने विजय प्राप्त की और शासन किया। इन ब्रिटिश उपनिवेशों (जैसे कि दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, वेस्टइंडीज और कीनिया) में क्रिकेट इसलिए लोकप्रिय खेल बन पाया क्योंकि गोरे (UPBoardSolutions.com) बाशिंदों ने इसे अपनाया या फिर जहाँ स्थानीय अभिजात वर्ग ने अपने औपनिवेशिक मालिकों की आदतों की नकल करने की कोशिश की, जैसे कि भारत में।

प्रश्न 10.
इंग्लैण्ड में क्रिकेट के विकास को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इंग्लैण्ड में क्रिकेट के विकास को हम निम्न रूप में स्पष्ट कर सकते हैं। इंग्लैंड के ग्रामीण इलाकों में ग्वालों व चरवाहों द्वारा खेले जाने वाले गेंद व डण्डे के खेल से क्रिकेट की उत्पत्ति हुई। ‘बैट’ अंग्रेजी का पुराना शब्द है, जिसका अर्थ है ‘डंडा’ या ‘कुंदा। 17वीं शताब्दी तक यह एक प्रचलित खेल के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका था। सन् 1706 में विलियम गोल्ड ने अपनी कविता में एक क्रिकेट मैच का वर्णन किया था। सन् 1709 में लंदन और कैंट की टीमों के बीच पहला क्रिकेट मैच खेला गया था।

सन् 1710 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय तथा सन् 1729 में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी क्रिकेट खेला जाने लगा।
सन् 1760 में इंग्लैंड में प्रथम क्रिकेट क्लब की स्थापना हुई। इस क्लब का नाम ‘हैम्बलडन क्लब’ रखा गया। सन् 1787 में इंग्लैण्ड में ‘मेरिलीबोन क्रिकेट क्लब’ (एम.सी.सी) की स्थापना की गई। लार्ड्स के प्रसिद्ध मैदान पर प्रथम मैच 27 जून, 1788 में खेला गया था। इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट की स्थापना सन् 1873 में हुई।

प्रश्न 11.
‘हॉकी’ का राष्ट्रीय खेल के रूप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक हॉकी खेल का विकास पूर्व काल में ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर खेले जाने वाले परंपरागत खेलों से हुआ। स्कॉटलैण्ड में खेले जाने वाले खेल शिंटी, इंग्लिश व वेल्श के खेल बेंडी व आयरिश हालिंग को आधुनिक हॉकी का आदिम रूप माना जाता है।
दूसरे अन्य खेलों की भाँति हमारे यहाँ भी हॉकी की शुरुआत औपनिवेशिक काल में ब्रिटिश सेना द्वारा ही की गई थी। पहले हॉकी क्लब की स्थापना 1885-1886 ई0 में कलकत्ता में हुई। ओलंपिक खेलों की हॉकी प्रतिस्पर्धा में भारत को पहली बार 1928 ई० में शामिल किया गया था। इस प्रतिस्पर्धा में ऑस्ट्रिया, जर्मनी, डेनमार्क और स्विट्जरलैण्ड को हराते हुए भारत फाइनल तक जा पहुँचा। फाइनल में भारत ने इंग्लैण्ड को भी शून्य के मुकाबले तीन गोल से मात दे दी।

भारतीय हॉकी के जादूगर ध्यानचंद जैसे खिलाड़ियों के खेल-कौशल और तीक्ष्णता ने हमारे देश को ओलंपिक के कई स्वर्ण पदक द्वादिलाए। 1928 से 1956 ई0 के बीच भारतीय टीम ने लगातार छः ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। हॉकी की दुनिया में भारतीय वर्चस्व के इस (UPBoardSolutions.com) स्वर्ण युग में भारत ने ओलंपिक में कुल 24 मैच खेले और सभी में सफलता प्राप्त की। इन मैचों में भारतीय खिलाड़ियों ने 178 गोल (प्रति मैच औसतन 7.43 गोल) दागे और विपक्षी टीमें उनके खिलाफ केवल 7 ही गोल कर पाईं। हॉकी में भारत को दो स्वर्ण पदक 1964 ई० के टोकियो ओलंपिक और 1980 ई० के मास्को ओलंपिक में प्राप्त हुए थे।

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प्रश्न 12.
दक्षिण अफ्रीका को लंबे समय तक टेस्ट क्रिकेट से बाहर क्यों रखा गया?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका की क्रिकेट टीम बहुत समय तक टेस्ट क्रिकेट से बाहर रही क्योंकि वहाँ पर सत्तारूढ़ सरकार ने रंगभेद की नीति अपनायी हुई थी। वहाँ के बहुसंख्यक मूल निवासी काले लोगों को उनके मूलभूत नागरिक अधिकारों से वंचित किया गया था। इन दक्षिण अफ्रीकी मूल निवासियों को क्रिकेट टीम में कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता था। लेकिन इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैण्ड ने दक्षिण अफ्रीका की टीम के साथ क्रिकेट खेलना जारी रखा। रंगभेद की नीति के कारण भारत, पाकिस्तान और वेस्टइंडीज के क्रिकेट (UPBoardSolutions.com) टीमों ने दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट टीम का बहिष्कार किया। उस समय भारत-पाकिस्तान के पास आई.सी.सी. में इतनी शक्ति नहीं थी कि वे दूसरे देशों को दक्षिण अफ्रीका के साथ खेलने से रोक सकें। यह तभी संभव हुआ जब आई.सी.सी. में एशियाई और अन्य अफ्रीकी देशों का प्रभावबढ़ा। किन्तु वर्तमान में वहाँ नेल्सन मण्डेला के दीर्घकालिक लोकतांत्रिक संघर्ष के फलस्वरूप लोकतांत्रिक सरकार है और वहाँ रंगभेद की नीति समाप्त हो चुकी है। रंगभेद की नीति के समाप्ति के साथ अब आई.सी.सी. के सभी देशों के दक्षिण अफ्रीका के साथ क्रिकेट सम्बन्ध स्थापित हो चुके हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘औपनिवेशिक भारत में क्रिकेट नस्ल व धर्म के आधार पर संगठन था।’ इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
1721 ई० में कैम्बे में अंग्रेज जहाजियों द्वारा पहली बार भारत में क्रिकेट खेला गया। 1792 ई० में कलकत्ता (कोलकाता) में पहला क्रिकेट क्लब स्थापित किया गया। भारत में क्रिकेट की शुरुआत बम्बई (मुंबई) से मानी जाती है। पारसी भारत का पहला समुदाय था जिसने भारत में क्रिकेट खेलना शुरू किया। पारसियों ने 1848 ई० में बम्बई में पहले भारतीय ओरिएंटल क्रिकेट क्लब की स्थापना की। पारसियों ने क्रिकेट खेलने के लिए खुद का जिमखाना बनाया। टाटा व वाडिया जैसे पारसी व्यवसायी भारतीय (UPBoardSolutions.com) ओरिएंटल क्रिकेट क्लब के वित्त पोषक थे। पारसी जिमखाना क्लब के स्थापित होने के उपरांत यह अन्य भारतीयों के लिए एक उदाहरण बन गया और उन्होंने भी धर्म के आधार पर क्लब बनाने प्रारंभ कर दिए। 1890 के दशक में हिंदू व मुस्लिम जिमखाना के लिए पैसे इकट्टे करने में व्यस्त दिखाई दिए ताकि वे अपने-अपने जिमखाना क्लब स्थापित कर सकें। ब्रिटिश औपनिवेशवादी भारत को एक राष्ट्र नहीं मानते थे।

उनके लिए तो यह जातियों, नस्लों व धर्मों के लोगों का एक समुच्चय था और वे स्वयं को इस उपमहाद्वीप के स्तर पर एकीकृत करने का श्रेय देते थे। उन्नीसवीं सदी के अंत में कई हिन्दुस्तानी संस्थाएँ व आंदोलन जाति व धर्म के आधार पर ही बने क्योंकि औपनिवेशिक सरकार भी इन बँटवारों (UPBoardSolutions.com) को बढ़ावा देती थी और समुदाय आधारित संस्थाओं को तत्काल ही मान्यता दे देती थी। इस प्रकार ऐसी सामुदायिक श्रेणियों के द्वारा दिए गए आवेदन जिनकी औपनिवेशिक सरकार पक्षधर थी, उन्हें मान्यता मिलने के अवसर कहीं अधिक होते थे।

औपनिवेशिक भारत में सबसे मशहूर क्रिकेट टूर्नामेंट खेलनेवाली टीमें क्षेत्र के आधार पर नहीं बनती थीं, जैसा कि आजकल रणजी ट्रॉफी में होता है, बल्कि धार्मिक समुदायों से बनती थीं। इस टूर्नामेंट को शुरू-शुरू में क्वाईंग्युलर या चतुष्कोणीय कहा गया, क्योंकि इसमें चार टीमें-यूरोपीय, पारसी, हिन्दू व मुसलमान खेलती थीं। बाद में यह पेंटांग्युलर या पाँचकोणीय हो गया और द रेस्ट नाम की नई टीम में भारतीय ईसाई जैसे अवशिष्ट समुदायों को सहभागिता दी गई।

प्रश्न 2.
क्रिकेट के नियमों में समयानुसार परिवर्तन की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
क्रिकेट के खेल का महत्त्व आज इसलिए बढ़ गया है क्योंकि इस खेल को रोचक बनाने के लिए इसमें निरन्तर परिवर्तन किए जाते रहे।
क्रिकेट के खेल में किए गए परिवर्तनों को हम निम्न रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं-
(1) क्रिकेट का मैदान – क्रिकेट के खेल के मैदान का आकार निश्चित नहीं होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि क्रिकेट के खेल को नियंत्रित एवं संचालित करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था आई.सी.सी. ने इस सम्बन्ध में कोई निश्चित नियम नहीं बनाया है। इंग्लैण्ड में क्रिकेट कॉमन्स (गाँव की सामूहिक भूमि) पर खेला जाता था और प्रत्येक गाँव में इस मैदान का आकार पृथक्पृथक् होता था। इसलिए वर्तमान में भी क्रिकेट के (UPBoardSolutions.com) मैदान का आकार अलग-अलग होता है, जोकि स्टेडियम के आकार पर निर्भर करता है। इसमें विकेट से विकेट के बीच की दूरी (पिच) 22 गज (17.68 मी.) होती है।

(2) क्रिकेट की गेंद – क्रिकेट की गेंद का निर्माण चमड़े, ट्वाइन और कॉर्क की सहायता से किया जाता है। पहले गेंद का वजन साढ़े पाँच औंस होता था जो बाद में बढ़ाकर पौने छः औंस हो गया। वर्तमान में इसका वजन 156 ग्राम तथा गेंद की परिधि 8 से 9 इंच होती है। गेंद का रंग दिन के मैच में लाल तथा रात के मैच में सफेद होता है।

(3) बल्ले का आकार – क्रिकेट के बल्ले की आकृति 18वीं सदी के मध्य तक हॉकी-स्टिक की तरह नीचे से मुड़ी हुई होती थी। बल्ले को बाद में लकड़ी के एक साबुत टुकड़े से बनाया जाने लगा। वर्तमान में बल्ले के दो हिस्से होते हैं—ब्लेड या फट्टा जो विलों (बैद) नामके पेड़ की लकड़ी से बनता है और हत्था (हैंडल) बेंत से बनता है। नए नियमों के अनुसार बल्ले की चौड़ाई 44 इंच (10.8 सेमी) तथा इसकी लम्बाई 38 इंच (96.5 सेमी) निर्धारित की गई हैं।

(4) गेंद फेंकने का तरीका – शुरुआती दिनों में क्रिकेट की गेंद को पिच पर लुढ़काकर (अण्डर आर्म) फेंका जाता था। 1761-70 के दशक में गेंद को हवा में लहरा कर फेंकने का प्रज्वलन आरंभ हुआ। इससे गेंदबाजों को विभिन्न लंबाइयों की गेंद फेंकने के साथ-साथ गेंद को घुमाने में भी सहायता मिली। इसके कारण गेंदबाजी में गति, स्पिन तथा स्विंग जैसी तकनीकों का समावेश हुआ। भारतीय उपमहाद्वीप के गेंदबाजों ने ‘रिवर्स स्विंग’ और ‘दूसरा’ के रूप में गेंदबाजी की नवीन तकनीकों का विकास किया है।

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प्रश्न 3.
‘वाटरलू का युद्ध ईटन के खेल के मैदान में जीता गया।’ इस कथन का क्या निहितार्थ है?
उत्तर:
इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि ब्रिटेन की सैन्य सफलता का रहस्य उसके उत्कृष्ट पब्लिक स्कूलों में बच्चों को शिक्षण के दौरान सिखाए गए नैतिक मूल्यों में निहित था। इन पब्लिक स्कूलों में ईटन सर्वाधिक प्रसिद्ध था। अंग्रेजी आवासीय विद्यालय में अंग्रेज लड़कों को शाही इंग्लैण्ड के तीन अहम् संस्थानों-सेना, प्रशासनिक सेवा व चर्च में कैरियर के लिए प्रशिक्षित किया जाता था। उन्नीसवीं सदी के शुरुआत (UPBoardSolutions.com) तक टॉमस आर्नल्ड-जो मशहूर रग्बी स्कूल के हेडमास्टर होने के साथ-साथ आधुनिक पब्लिक स्कूल प्रणाली के प्रणेता थे-रग्बी व क्रिकेट जैसे टीम खेलों को पढ़ाई का एक सुनियोजित तरीका मानते थे।

अंग्रेज लड़के अनुशासन, अनुक्रम का महत्त्व, कौशल, स्वाभिमान की रीति-नीति और नेतृत्व क्षमता सीखते थे जो उनकी ब्रिटिश साम्राज्य चलाने में सहायता करते थे। विक्टोरियाई साम्राज्य-निर्माता दुसरे देशों की जीत को यह कह कर सही ठहराते थे कि उन्हें जीतना निःस्वार्थ समाज सेवा थी जिससे पिछड़े समाज ब्रितानी कानून व पश्चिम ज्ञान के संपर्क में आकर सभ्यता का सबक सीख सकते थे।
क्रिकेट ने अभिजात अंग्रेजों की इस शौकिया आत्मछवि को पुष्ट करने में मदद की-जहाँ पर क्रिकेट फायदे या जीत के लिए न होकर केवल सीखने के लिए  और ‘स्पिरिट ऑफ फेयरप्ले’ (न्यायोचित खेल भावना) के लिए खेला जाता था।

प्रश्न 4.
क्रिकेट के खेल को ग्रामीण पृष्ठभूमि से किस प्रकार जोड़ा जा सकता है?
उत्तर:
क्रिकेट के खेल की प्रारंभिक पृष्ठभूमि ग्रामीण ही थी। शुरुआत में इसमें समय की कोई सीमा नहीं थी। ग्रामीण इंग्लैण्ड में यह खेल तब तक चलता था जब तक कि एक टीम दूसरी टीम को दोबारा पूरा आउट न कर दे। उल्लेखनीय है। कि ग्रामीण जीवन की गति मंद होती है और क्रिकेट के नियम औद्योगिक क्रान्ति से पहले बनाए गए थे। क्रिकेट के मैदान का आकार अनिश्चित होना भी उसकी ग्रामीण पृष्ठभूमि को इंगित करता है। क्रिकेट मूलतः गाँव की शामिलात जमीन अर्थात् कॉमन्स में खेला जाता था। कॉमन्स का आकार हरेक गाँव में अलग-अलग होता था, इसलिए न तो बाउंड्री तय थी और न ही चौके। जब गेंद भीड़ में घुस जाती तो लोग क्षेत्ररक्षक या फील्डर के लिए रास्ता बना देते थे, ताकि वह आकर गेंद वापस ले जाए। जब सीमा रेखा क्रिकेट की नियमावली का

हिस्सा बनी तब भी, विकेट से उसकी दूरी तय नहीं की गई। क्रिकेट के ग्रामीण पृष्ठभूमि व पूर्व औद्योगिक होने का संकेत इसमें प्रयोग होने वाले सामान से भी मिलता है। (UPBoardSolutions.com) आज भी बल्ला, स्टंप व गिल्लियाँ लकड़ी से बनी होती हैं जबकि गेंद चमड़े, सुतली (ट्वाइन) और कॉर्क से।
‘क्रिकेट के कानून’ बहत वर्षों पहले 1744 ई0 में औद्योगिक क्रांति से पहले लिखे गए थे। उस समय केवल टेस्ट क्रिकेट ही खेला जाता था और इस विशेष खेल की गति उस समय के गाँव के लोगों की सुस्त रफ्तार जिंदगी का सूचक है।

प्रश्न 5.
भारत में क्रिकेट के प्रसार का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
भारत में क्रिकेट की शुरुआत औपनिवेशिक शासन काल में हुई। 1721 ई० में अंग्रेज जहाजियों ने कैम्बे में अपना प्रथम मैच भारत में खेला। भारत में पहला क्रिकेट क्लब कलकत्ता में 1792 ई० में स्थापित किया गया। शुरुआत में भारत में क्रिकेट अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित था। यह खेल भारत में 18वीं शताब्दी में अंग्रेज सैनिकों और सिविल सर्वेट्स द्वारा उनके (गोरे लोगों के लिए अधिकृत) क्लबों और जिमखानों में खेला जाता था। भारतीयों द्वारा इस खेल की शुरुआत का श्रेय पारसी समुदाय को जाता है।

अंग्रेजों के संपर्क में आकर सबसे पहले पारसियों ने 1848 ई0 में प्रथम भारतीय क्रिकेट क्लब ‘ओरिएंटेल क्रिकेट क्लब’ की स्थापना बंबई में की। इस क्लब के प्रायोजक टाटा और वाडिया जैसे पारसी व्यवसायी थे। अंग्रेज प्रायः इनके पार्क को घोड़ों द्वारा रौंदकर खराब कर देते थे परंतु (UPBoardSolutions.com) प्रशासन ने इनकी कोई सहायता नहीं की। पारसियों ने क्रिकेट खेलने के लिए ‘पारसी जिमखाना क्लब’ की स्थापना की। 1889 में पारसियों की एक टीम ने अंग्रेजों के बोम्बे जिमखाना को एक मैच में हरा कर भारतीय श्रेष्ठता सिद्ध की।

पारसी जिमखाना क्लब की स्थापना के पश्चात् अन्य भारतीय समुदायों ने भी धर्म के आधार पर क्लब बनाने की शुरुआत की। इससे भारत में सांप्रदायिक एवं नस्ली आधार पर क्लबों का प्रचलन आरंभ हुआ। शीघ्र ही भारत में एक क्वाड्रेग्युलर (चतुष्कोणीय) टूर्नामेंट आरंभ हुआ जिसमें धर्म के आधार पर चार टीमें (यूरोपीय, पारसी, हिंदू तथा मुस्लिम) खेलती थीं। कुछ समय पश्चात् इस टूर्नामेंट में ‘द रेस्ट’ के नाम से पाँचवीं टीम को शामिल किया गया जिसमें भारतीय ईसाई जैसे बचे-खुचे समुदायों को प्रतिनिधित्व दिया गया। धर्म के (UPBoardSolutions.com) आधार पर होने वाले इस टूर्नामेंट के विरुद्ध महात्मा गाँधी सहित अनेक भारतीय नेताओं ने आवाज उठाई परंतु यह टूर्नामेंट 1947 ई० तक चलता रहा। 1947 ई0 में स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत इस टूर्नामेंट के स्थान पर नेशनल क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन शुरू हुआ जिसे वर्तमान में रणजी ट्राफी के नाम से जाना जाता है।

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प्रश्न 6.
क्रिकेट के अतंर्राष्ट्रीय विस्तार का संक्षेप में विवरण दीजिए।
उत्तर:
क्रिकेट का अंतर्राष्ट्रीय विस्तार इस प्रकार है-
(क) इंग्लैण्ड और ऑस्ट्रेलिया के बीच सन् 1871 में खेले गए क्रिकेट मैच में ऑस्ट्रेलिया की जीत हुई। इस पराजय के विरोध में कुछ अंग्रेज महिलाओं ने ‘वेल्स को जलाकर इंग्लिश क्रिकेट का दाह संस्कार सा कर दिया। वेल्स की उस राशि को ऑस्ट्रेलिया की टीम को सौंप दिया गया। तभी से ये दोनों टीमें एक-दूसरे के विरुद्ध एसेज के लिए खेलती हैं।

(ख) इंग्लैण्ड में 1909 ई0 में ‘इंपीरियल क्रिकेट कान्फ्रेंस’ (आई.सी.सी.) की स्थापना हुई तथा इसी के साथ क्रिकेट को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता भी मिली। इंग्लैण्ड के अलावा आस्ट्रेलिया व दक्षिण अफ्रीका भी इसके सदस्य बने। सन् 1926 में भारत, वेस्टइंडीज एवं न्यूजीलैंड भी इसके सदस्य बन गए। सन् 1952 में पाकिस्तान भी इसका सदस्य बन गया। सन् 1971 में रंगभेद नीति के कारण दक्षिण अफ्रीका की (UPBoardSolutions.com) सदस्यता समाप्त कर दी गई। सन् 1965 में इस कांफ्रेंस का नाम बदलकर इंटरनेशनल क्रिकेट कांफ्रेंस’ (आई.सी.सी.) रख दिया गया। समय के साथ-साथ अन्य देश भी (राष्ट्रमंडल देशों के अतिरिक्त) इसके सदस्य बनते गए।

वर्तमान समय में इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, भारत, श्रीलंका, वेस्टइंडीज, न्यूजीलैण्ड, पाकिस्तान, अमेरिका, अर्जेंटीना, कनाडा, डेनमार्क, कीनिया, जिम्बाब्वे, बांग्लादेश, हॉलैंड, बरमूडा, फिजी, सिंगापुर, हांगकांग, इजराइल व मलेशिया आदि देश इसके सदस्य या सहसदस्य हैं। क्रिकेट के इतिहास का प्रथम एकदिवसीय मैच 5 जनवरी, 1971 ई० को इंग्लैण्ड और आस्ट्रेलिया के बीच खेला गया था। इसमें 40 ओवर प्रति पारी रखे गए। एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैचों के आयोजन व विकास का श्रेय भी इंग्लैण्ड को जाता है। इंग्लैण्ड के प्रयासों के फलस्वरूप ही इंग्लैण्ड में प्रथम विश्वकप का आयोजन हुआ। इस विश्व कप क्रिकेट में आठ देशों की टीमों ने भाग लिया था। इस विश्व कप में क्रिकेट के फाइनल में वेस्टइंडीज ने आस्ट्रेलिया को 17 रनों से हराया था।

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UP Board Solutions for Class 9 English Suplementary Reader Chapter 4 On A Winter’s Night (Based on Munshi PremChand’s Story) (Poos Ki Raat)

UP Board Solutions for Class 9 English Suplementary Reader Chapter 4 On A Winter’s Night (Based on Munshi PremChand’s Story) (Poos Ki Raat)

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(A) SHORT ANSWER TYPE QUESTIONS AND THEIR ANSWERS
Answer the following questions in not more than 25 words each :

Question 1.
Why did Halku not buy a blanket?
हल्कू ने कम्बल क्यों नहीं खरीदा?
Answer:
Halku did not buy a blanket because he wanted to pay his debt first.
हल्कू ने कम्बल इसलिए नहीं खरीदा क्योंकि वह पहले अपना कर्ज चुकाना चाहता था।

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Question 2.
Why did Halku want to give the money to Sohana?
हल्कू सोहन के रुपये क्यों देना चाहता था?
Answer:
Halku wanted to give the money to Sohana because he did not like that Sohana should abusehim for debt.
हल्कू सोहन के रुपये इसलिए देना चाहता था क्योंकि (UPBoardSolutions.com) वह नहीं चाहता था कि सोहन उसे कर्ज के लिए गाली दे।

Question 3.
What did Halku’s wife want him to do after giving up farming?
हल्कू की पत्नी उससे खेती छोड़ने के बाद क्या करने को कह रही थी?
Answer:
Halku’s wife wanted him to work as labourer after giving up farming.
हल्कू की पत्नी चाहती थी कि वह खेती का काम छोड़कर मजदूर के रूप में काम करें।

Question 4.
Who enjoyed the fruits of labour of the farmers?
किसानों के परिश्रम के फल का आनन्द कौन उठाता था?
Answer:
The rich land-owners enjoyed the fruits of labour of the farmers.
धनी जमींदार किसानों के परिश्रम के फल का आनन्द उठात थे।

Question 5.
Name three things that Halku did to keep himself warm that night.
वे तीन कार्य बताइये जो हल्कू ने उस रात अपने को पं रखने के लिए किये थे।
Answer:
Halku did the following things to keep himself warın :
हल्कू ने अपने को गर्म रखने के लिए निम्नलिखित कार्य किये–
(i) He smoked his clay-pipe ten times.
उसने अपनी चिलम को दस बार पिया।
(ii) He kept Jhabra sleep next to him.
उसने झबरा को अपने बगल में सुलाया।
(iii) He lit fire in the orchard.
उसने बगीचे में आग जलायी।

Question 6.
Give one example to show that Jhabra loved Halku.
एक उदाहरण देकर बताइये कि झबरा हल्कू से प्यार करता था।
Answer:
Jhabra slept beside Halku and it barked at cattle when they entered his field. This shows that Jhabra loved Halku.
झबरा हल्कू के बगल में सोया और जब जानवर उसके खेत में घुसे थे तब वह उन पर भौंक रहा था। यह प्रदर्शित करता है कि झबरा हल्कू से प्रेम करता था।

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Question 7.
“I had severe stomach ache!” Why did Halku say this to his wife?
मेरे पेट में जोर का दर्द था।” हल्कू ने अपनी पत्नी से क्यों कहा?
Answer:
Halku said these words to his wife so that she might not be angry for not driving the cattle away.
हल्कू ने अपनी पत्नी से इसलिये कहे ताकि वह (UPBoardSolutions.com) जानवरों को न भगाने के लिए उससे नाराज न हो।

(B) MULTIPLE CHOICE QUESTIONS
1.Select the most suitable alternative to complete each of the following statements :
निम्नलिखित कथनों में से प्रत्येक को पूरा करने के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प चुनिए :
(i) Halku’s wife gave three rupees to Halku because :
(a) she wanted to invest them in the land
(b) she wanted to eat her bread in peace
(c) Halku wanted to buy some bread with them
(d) Halku was ill-treated by the money-lender
(ii) Halku’s wife wanted him to :
(a) pay all his debts
(b) give up farming
(c) invest money in the land
(d) work hard
(iii) Halku went out unwillingly because :
(a) he had no money to buy a blanket
(b) his wife had not treated him well
(c) he did not want to part with his savings
(d) he wanted to pay his debts
(iv) Halku could not sleep because :
(a) Jhabra lay under his cot
(b) he had only an old cotton sheet to wrap himself with
(c) the dog was barking
(d) the cattle were eating his crop
Answers:
(i) (d) Halku was ill-treated by the money-lender.
(ii) (b) give up farming
(iii) (d) he wanted to pay bis debts.
(iv) (b) he had only an old cotton sheet to wrap himself with.
(C) Say whether each of the following statements is ‘true’ or ‘false’ :
बताइये कि निम्नलिखित कथनों में से प्रत्येक ‘सत्य’ है अथवा ‘असत्य’ :
(i) Sohana, the money-lender, owed money to Halku.
(ii) Sohana demanded some money from his wife to buy a blanket.
(iii) Halku and his wife were very poor and were under heavy debt.
(iv) Halku’s wife did not want anyone to abuse her husband.
(v) Jhabra and Halku kept on sleeping while the cattle kept on eating his crop.
(vi) Halku could not sleep in the night because he had a stomachache.
(vii) Halku lit a fire in the orchard to frighten away the cattle.
(viii) Jhabra loved his master very much.
(ix) Halku was poor but not dishonest.
Answers:
(i) F, (ii) F, (iii) T,(iv) T, (v) F,(vi) F, (vii) F,(viii) T,(ix) T.

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ASSIGNMENT ( कार्य) :
(D) Fill in the blanks with missing letters to complete the spelling of the following words :
निम्नलिखित शब्दों की वर्तनी को पूरा करने के लिए लुप्त अक्षरों की सहायता से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
sh-v-r; ab-s–; 1-mb; inst–d; rel–f
Answers:
shiver; abuses; numb; instead; relief

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 5 स्मृति (गद्य खंड)

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( विस्तृत उत्तरीय प्रश्न )

प्रश्न 1. निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये –
(1) 
जाड़े के दिन थे ही, तिस पर हवा के प्रकोप से कँपकँपी लग रही थी। हवा मज्जा तक ठिठुरा रही थी, इसलिए हमने कानों को धोती से बाँधा। माँ ने भेंजाने के लिए थोड़े-से चने एक धोती में बाँध दिये। हम दोनों भाई अपना-अपना डण्डा लेकर घर से निकल पड़े। उस समय उस बबूल के डण्डे से जितना मोह था, उतना इस उम्र में रायफल से नहीं। मेरा डण्डा अनेक साँपों के लिए नारायण-वाहन हो चुका था। मक्खनपुर (UPBoardSolutions.com) के स्कूल और गाँव के बीच पड़नेवाले आम के पेड़ों से प्रतिवर्ष उससे आम झूरे जाते थे। इस कारण वह मूक डण्डा सजीव-सा प्रतीत होता था। प्रसन्नवदन हम दोनों मक्खनपुर की ओर तेजी से बढ़ने लगे। चिट्ठियों को मैंने टोपी में रख लिया, क्योंकि कुर्ते में जेबें न थीं।
प्रश्न
(1) प्रस्तुत गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) लेखक ने चिट्ठियों को कहाँ रख लिया था?
(4) लेखक ने चिट्ठियों को टोपी में क्यों रख लिया?
(5) लेखक ने डण्डे की तुलना किससे की है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘स्मृति’ नामक निबन्ध से उधृत है। प्रस्तुत अवतरण में लेखक ने अपनी बाल्यावस्था का सजीव चित्रण करते हुए बचपन की छोटी-छोटी बारीकियों को स्पष्ट किया है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक शीतऋतु का वर्णन करते हुए कहता है कि “जाड़े का दिन था। हाड़ कॅपा देने वाली ठण्ड थी। इसलिए हमने कानों को धोती से बाँध लिया। माँ ने चना भैजाने के लिए उसे एक धोती में बाँध कर मुझे दिया। मैं और छोटा भाई डण्डा लेकर घर से चल पड़े। उस समय उस बबूल के डण्डे से जितना लगाव था उतना आज एक रायफल से नहीं है। मैं उस (UPBoardSolutions.com) डण्डे से अनेक साँपों को मार चुका था। प्रतिवर्ष इसी डण्डे से आम के टिकोरे तोड़े जाते थे। इसीलिए वह डण्डी मुझे अत्यन्त प्रिय था। हम दोनों भाई मक्खनपुरे की ओर आगे बढ़े। कुर्ते में जेब न होने के कारण चिट्ठियों को मैंने टोपी में रख लिया था।”
  3. लेखक ने चिट्ठियों को अपनी टोपी में रख लिया था। “
  4. लेखक के कुर्ते में जेबें न थीं, इसलिए उसने चिट्ठियों को टोपी में रख लिया।
  5. लेखक ने डण्डे की तुलना गरुण से की है।

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(2) साँप से फुसकार करवा लेना मैं उस समय बड़ा काम समझता था। इसलिए जैसे ही हम दोनों उस कुएँ की ओर से निकले, कुएँ में ढेला फेंककर फुसकार सुनने की प्रवृत्ति जागृत हो गयी। मैं कुएँ की ओर बढ़ा। छोटा भाई मेरे पीछे हो लिया, जैसे बड़े मृगशावक के पीछे छोटा मृगशावक हो लेता है। कुएँ के किनारे से एक ढेला उठाया और उझककर एक हाथ से टोपी उतारते हुए साँप पर ढेलो गिरा दिया, पर मुझ पर तो बिजली-सी गिर पड़ी।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) लेखक को कब लगा कि उस पर बिजली सी गिर पड़ी?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘स्मृति’ नामक निबन्ध से उद्धृत है। इन पंक्तियों में लेखक ने अपने बचपन की एक घटना का वर्णन किया है। स्कूल जाते समय एक कुआँ पड़ता, जो सूख गया है। पता नहीं एक काला साँप उसमें कैसे गिर पड़ा था। स्कूल जाते समय बच्चे उसकी फुसकार सुनने के लिए पत्थर मारते थे।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक कहता है कि ”मैं बचपन में साँप से फुसकार करवा लेना महान् कार्य समझता था। मैं और छोटा भाई जब कुएँ की तरफ से गुजरे तो फुसकार सुनने की इच्छा बलवती हुई । मैं कुएँ की तरफ बढ़ा और छोटा भाई मेरे पीछे हो गया। कुएँ के किनारे से मैंने एक ढेला उठाया और एक हाथ से टोपी उतारते हुए साँप पर प्रहार किया, लेकिन मैं एक अजीब संकट (UPBoardSolutions.com) में फँस गया। टोपी उतारते हुए मेरी तीनों चिट्ठियाँ कुएँ में गिर पड़ीं। साँप ने फुसकारा था या नहीं मुझे आज भी ठीक से याद नहीं है। मेरी स्थिति उस समय वही हो गयी थी जैसे घास चरते हुए हिरन की आत्मा गोली लगने पर निकल जाती है और वह तड़पता रहता है। चिट्ठियों के कुएँ में गिरने से मेरी भी स्थिति हिरन जैसी हो गयी थी।”
  3. लेखक को टोपी उतारते हुए तीन चिट्ठियाँ कुएँ में गिर पड़ीं। उस समय लेखक पर बिजली-सी गिर पड़ी।

(3) साँप को चक्षुःश्रवा कहते हैं। मैं स्वयं चक्षुःश्रवा हो रहा था। अन्य इन्द्रियों ने मानो सहानुभूति से अपनी शक्ति आँखों को दे दी हो। साँप के फन की ओर मेरी आँखें लगी हुई थीं कि वह कब किस ओर को आक्रमण करता है, साँप ने मोहनीसी डाल दी थी । शायद वह मेरे आक्रमण की प्रतीक्षा में था, पर जिस विचार और आशा को लेकर मैंने कुएँ में घुसने की ठानी थी, वह तो आकाश-कुसुम था । मनुष्य का अनुमान और भावी योजनाएँ कभी-कभी कितनी मिथ्या और उल्टी निकलती हैं। मुझे साँप का साक्षात् होते ही (UPBoardSolutions.com) अपनी योजना और आशा की असम्भवता प्रतीत हो गयी। डण्डा चलाने के लिए स्थान ही न था। लाठी या डण्डा चलाने के लिए काफी स्थान चाहिए, जिसमें वे घुमाये जा सकें। साँप को डण्डे से दबाया जा सकता था, पर ऐसा करना मानो तोप के मुहरे पर खड़ा होना था।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए। |
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) चक्षुःश्रवा के नाम से कौन-सा जीव जाना जाता है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यावतरण पं० श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘स्मृति’ नामक संस्मरणात्मक निबन्ध से अवतरित है। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने कुएँ से पत्र निकालने की योजना का वर्णन किया है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक का कहना है कि “साँप एक ऐसा जीव है जिसे चक्षुःश्रवा के नाम से जाना जाता है। वहाँ मैं स्वयं चक्षुःश्रवा हो रहा था। मुझे कुएँ में ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अन्य इन्द्रियों ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति नेत्रों को दे दी है। मेरी आँखें साँप के फन पर थीं कि साँप किस तरफ से आक्रमण कर सकता है। इसलिए मैं बिल्कुल चौकन्ना था। उधुर साँप भी मेरे आक्रमण की प्रतीक्षा में था। मैंने जिस संकल्प के साथ कुएँ में प्रवेश किया था, लगता था संकल्प अधूरा ही रह जायेगा। (UPBoardSolutions.com) साँप से सामना होते ही मेरी योजना एवं आशा असम्भव-सी प्रतीत होने लगी। लाठी-डण्डा चलाने के लिए पर्याप्त स्थान चाहिए। कुएँ में डण्डा चलाने के लिए स्थान बहुत कम था, वहाँ केवल साँप को डण्डे से दबाया जा सकता था, लेकिन ऐसा करना तोप के आगे खड़ा होना था।”
  3. चक्षुःश्रवा के नाम से साँप को जाना जाता है। माना जाता है कि सर्प कर्णविहीन होने के कारण आँख से सुनता भी है।

प्रश्न 2. श्रीराम शर्मा का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।

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प्रश्न 3. श्रीराम शर्मा की साहित्यिक विशेषताओं को बताते हुए उनकी भाषा-शैली भी स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 4. श्रीराम शर्मा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।
अथवा श्रीराम शर्मा को साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

श्रीराम शर्मा
( स्मरणीय तथ्य )

जन्म-सन् 1892 ई० (1949 वि०)। मृत्यु-सन् 1967 ई० । जन्म-स्थान-किरथरा (मैनपुरी) उ० प्र० । शिक्षा-बी० ए० ।
साहित्य सेवा – सम्पादक (विशाल भारत), आत्मकथा लेखक, संस्मरण तथा शिकार साहित्य के लेखक।
भाषा – सरल, प्रवाहपूर्ण, सशक्त, उर्दू एवं ग्रामीण शब्दों का प्रयोग विषयानुकूल।
शैली – वर्णनात्मक रोचक शैली।
रचनाएँ – सन् बयालीस के संस्मरण, सेवाग्राम की डायरी, शिकार साहित्य, प्राणों का सौदा, बोलती प्रतिमा, जंगल के जीव। |

  • जीवन-परिचय- हिन्दी में शिकार साहित्य के प्रणेता पं० श्रीराम शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में 23 मार्च, सन् 1892 ई० को हुआ था। प्रयाग विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् ये पत्रकारिता के क्षेत्र में उतर आये। आपने ‘विशाल भारत’ नामक पत्र का (UPBoardSolutions.com) सम्पादन बहुत दिनों तक किया। इनका जीवन के प्रति दृष्टिकोण मुख्यतः राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत है। आपने राष्ट्रीय आन्दोलनों में बराबर भाग लिया है जिसकी सजीव झाँकियाँ आपकी रचनाओं में परिलक्षित होती हैं। आपकी मृत्यु एक लम्बी बीमारी के पश्चात् सन् 1967 ई० में हो गयी।
  • कृतियाँ –
    • संस्मरण-साहित्य- सेवाग्राम की डायरी’ और ‘सन् बयालीस के संस्मरण’ में इन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन और उस समय के समाज की झाँकी प्रस्तुत की है।
    • शिकार साहित्य- ‘जंगल के जीव’, ‘प्राणों का सौदा’, ‘बोलती प्रतिमा’, ‘शिकार’ में आपका शिकार-साहित्य संगृहीत है। इन सभी रचनाओं में रोमांचकारी घटनाओं का सजीव वर्णन हुआ है । इन कृतियों में घटना-विस्तार के साथसाथ पशुओं के मनोविज्ञान का भी सम्यक् परिचय दिया गया है।
    • जीवनी-‘नेताजी’ और ‘गंगा मैया ।’ । इन कृतियों के अतिरिक्त शर्मा जी के फुटकर लेख अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे।
    • साहित्यिक परिचय– शर्मा जी हिन्दी में शिकार साहित्य प्रस्तुत करने में अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। इनके शिकार साहित्य में घटना विस्तार के साथ-साथ पशु-मनोविज्ञान को सम्यक् परिचय भी मिलता है। शिकार साहित्य के अतिरिक्त शर्मा जी ने ज्ञानवर्द्धक एवं विचारोत्तेजक लेख भी लिखे हैं जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित हुए हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में तथा संस्मरणात्मक निबन्धों और शिकार सम्बन्धी कहानियों को लिखने (UPBoardSolutions.com) में शर्मा जी का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। शिकार साहित्य को हिन्दी में प्रस्तुत करनेवाले शर्मा जी पहले साहित्यकार हैं।
    • भाषा-शैली- शर्मा जी की भाषा स्पष्ट और प्रवाहपूर्ण है। भाषा की दृष्टि से ये प्रेमचन्द के अत्यन्त निकट माने जा सकते हैं, यद्यपि ये छायावादी युग के विशिष्ट साहित्यकार रहे हैं। आपकी भाषा में संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी के शब्दों के साथ-साथ लोकभाषा के शब्दों के प्रयोग से भाषा अत्यन्त सजीव एवं सम्प्रेषणीयता के गुण से सम्पन्न हो गयी है।
      इनकी शैली स्पष्ट एवं वर्णनात्मक है जिसमें स्थान-स्थान पर स्थितियों का विवेचन मार्मिक और संवेदनशील होता है। शर्मा जी की शिकार सम्बन्धी, संस्मरणात्मक कहानियों और निबन्धों में शैलीगत विशेषता है जो रोमांच और कौतूहल आद्योपान्त बनाये रखती है।

( लघु उत्तरीय प्रश्न )

प्रश्न 1. ‘स्मृति’ निबन्ध के आधार पर बाल-सुलभ वृत्तियों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- बालमन अत्यन्त चंचल होता है। बाल्यावस्था में अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं होता है। बाल्यावस्था में कभी-कभी बड़े साहसिक कार्य सम्पन्न हो जाते हैं।

प्रश्न 2. लेखक ने अपने डण्डे के विषय में क्या कहा है? |
उत्तर- लेखक ने अपने डण्डे के विषय में कहा है कि उस उम्र में बबूल के डण्डे से जितना मोह था, उतना इस उम्र में रायफल से नहीं।

प्रश्न 3. लेखक के कुएँ में साँप से संघर्ष के समय उसके छोटे भाई की मनोदशा कैसी थी? |
उत्तर- लेखक ने कहा है कि ”जब मैं कुएँ के नीचे जा रहा था तो छोटा भाई रो रहा था। मैंने उसे ढाँढस दिलाया कि मैं कुएँ में पहुँचते ही साँप को मार दूंगा।”

प्रश्न 4. लेखक की तीन साहित्यिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- लेखक की भाषा सहज, प्रवाहपूर्ण एवं प्रभावशाली है। भाषा की दृष्टि से इन्होंने प्रेमचन्द जी के समान ही प्रयोग किये हैं। इन्होंने अपनी भाषा को सरल एवं सुबोध बनाने के लिए संस्कृत, उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों के साथ-साथ लोकभाषा के शब्दों का प्रयोग किया है।

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प्रश्न 5. ‘स्मृति ‘ पाठ से आपने क्या समझा? अपने शब्दों में लिखिए। |
उत्तर- ‘स्मृति’ पाठ से यह बात उभरकर सामने आती है कि बच्चे अत्यन्त साहसी होते हैं। उन्हें मृत्यु का भय नहीं होता है। इस उम्र में वे बड़े-बड़े साहसिक कार्य कर बैठते हैं।

प्रश्न 6. ‘स्मृति’ पाठ से दस सुन्दर वाक्य लिखिए।
उत्तर- सन् 1908 ई० की बात है। जाड़े के दिन थे। हवा के प्रकोप से कँपकँपी लग रही थी। हवा मज्जा तक ठिठुरा रही थी। हम दोनों उछलते-कूदते एक ही साँस में गाँव से चार फर्लाग दूर उस कुएँ के पास आ गये । कुआँ कच्चा था और चौबीस हाथ गहरा था। कुएँ की पाट पर बैठे (UPBoardSolutions.com) हम रो रहे थे। दृढ़ संकल्प से दुविधा की बेड़ियाँ कट जाती हैं। छोटा भाई रोता था और उसके रोने का तात्पर्य था कि मेरी मौत मुझे नीचे बुला रही है। छोटे भाई की आशंका बेजा थी, पर उस फैं और धमाके से मेरा साहस कुछ और बढ़ गया।

प्रश्न 7. चिट्ठियों को कुएँ में गिरता देख लेखक की क्या मनोदशा हुई? |
उत्तर- चिट्ठियों को कुएँ में गिरता देख लेखक की मनोदशा उसी प्रकार हुई जैसे घास चरते हुए हिरन की आत्मा गोली से हत होने पर निकल जाती है और वह तड़पता रह जाता है।

प्रश्न 8. ‘वह कुएँ वाली घटना किसी से न कहे।’ लेखक ने अपने साथी लड़के से क्यों कहा?
उत्तर- ‘वह कुएँ वाली घटना किसी से न कहे।’ ऐसा लेखक ने अपने साथी लड़के से घरवालों के भय से कहा था।

प्रश्न 9. कुएँ में साहसपूर्वक उतरकर चिट्ठियों को निकाल लाने के कार्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर- लेखक पाँच धोतियाँ जोड़कर कुएँ के नीचे उतरा। नीचे कच्चे कुएँ का व्यास बहुत कम था, अत: साँप को डण्डे से मारना आसान नहीं थी। लेखक का कहना है कि डण्डे के मेरी ओर खिंच आने से मेरे और साँप के आसन बदल गये। मैंने तुरन्त ही लिफाफे और पोस्टकार्ड चुन लिये।

प्रश्न 10. लेखक और साँप के बीच संघर्ष के विषय में लिखिए।
उत्तर- जब लेखक चिट्ठियाँ लेने कुएँ में उतरा तो साँप ने वार किया और डण्डे से चिपट गया। डण्डा हाथ से छूटा तो नहीं, पर झिझक, सहम अथवा आतंक से अपनी ओर खिंच गया और गुंजल्क मारता हुआ साँप का पिछला भाग मेरे हाथों से छू गया। डण्डे को मैंने एक ओर पटक दिया । यदि (UPBoardSolutions.com) कहीं उसका दूसरा वार पहले होता, तो उछलकर मैं साँप पर गिरता और न बचता। डण्डे के मेरी ओर खिंच आने से मेरे और साँप के आसन बदल गये। मैंने तुरन्त ही लिफाफे और पोस्टकार्ड चुन लिये।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. श्रीराम शर्मा किस युग के लेखक थे?
उत्तर- श्रीराम शर्मा शुक्ल एवं शुक्लोत्तर युग के लेखक थे।

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प्रश्न 2. श्रीराम शर्मा ने किस पत्रिका का सम्पादन किया था?
उत्तर- श्रीराम शर्मा ने ‘विशाल भारत’ का सम्पादन किया था।

प्रश्न 3. ‘स्मृति’ लेख किस शैली में लिखा गया है?
उत्तर- ‘स्मृति’ लेख वर्णनात्मक शैली में लिखा गया है।

प्रश्न 4. चिट्ठी किसने लिखी थी?
उत्तर- चिट्ठी श्रीराम शर्मा के बड़े भाई ने लिखी थी।

प्रश्न 5. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (√) का चिह्न लगाओ
(अ) साँप को चक्षुःश्रवा कहते हैं।                             (√)
(ब) ‘स्मृति’ लेख ‘शिकार’ पुस्तक से लिया गया है।    (√)
(स) कुआँ पक्का और दस हाथ गहरा था।                (×)
(द) ‘स्मृति’ में सन् 1928 की बात है।                        (×)

व्याकरण-बोध

प्रश्न 1. निम्नलिखित समस्त पदों का समास-विग्रह कीजिए तथा समास का नाम बताइए –
विषधर, चक्षुःश्रवा, प्रसन्नवदन, मृग-समूह, वानर-टोली।
उत्तर-
विषधर        –   विष को धारण करनेवाला (सर्प) – बहुब्रीहि समास
चक्षुःश्रवा     –   आँखों से सुननेवाला                    –   बहुब्रीहि समास
प्रसन्नवदन   –   प्रसन्न वदन वाला                       –    कर्मधारय समास
मृग-समूह    –   मृगों का समूह                          –    सम्बन्ध तत्पुरुष
वानर-टोली  –   वानरों की टोली                         –   सम्बन्ध तत्पुरुष

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प्रश्न 2. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ बताते हुए वाक्य-प्रयोग कीजिए –
बेड़ियाँ कट जाना, बेहाल होना, आँखें चार होना, तोप के मुहरे पर खड़ा होना, टूट पड़ना, मोरचे पड़ना।
उत्तर-

  • बेड़ियाँ कट जाना- (मुक्त हो जाना)
    दासता की बेड़ियाँ कट जाने से देश आजाद हो गया।
  • बेहाल होना- (व्याकुल होना)
    राम के वन चले जाने पर दशरथ जी बेहाल हो गये।
  • आँखें चार होना- (प्रेम होना)
    आँखें चार होने पर प्रेम होता है।
  • तोप के मुहरे पर खड़ा होना- (मुकाबले पर डटना)
    हमारे देश के नौजवान तोप के मुहरे पर खड़े होने के लिए तैयार रहते हैं।
  • टूट पड़ना- (धावा बोल देना)
    हमारे देश के नौजवान जब पाकिस्तानी सेना पर टूट पड़े तो उसके छक्के छूट गये।
  • मोरचे पड़ना- (मुकाबला होना)
    कारगिल युद्ध में भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना से मोरचे पड़ गये।

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 8 (Section 4)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 8 भारत का विदेशी व्यापार (अनुभाग – चार)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 8 भारत का विदेशी व्यापार (अनुभाग – चार)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के विदेशी व्यापार की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
या
भारत में निर्यात व्यापार की तीन विशेषताएँ बताइट। [2012]
उत्तर :
भारत के विदेशी व्यापार की मुख्य विशेषताएँ भारत के विदेशी व्यापार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. अधिकांश भारतीय विदेशी व्यापार (लगभग 90%) समुद्री मार्गों द्वारा किया जाता है। हिमालय पर्वतीय अवरोध के कारण समीपवर्ती देशों एवं भारत के मध्य धरातलीय आवागमन की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसी कारण देश का अधिकांश व्यापारे पत्तनों द्वारा अर्थात् समुद्री मार्गों द्वारा ही किया जाता है।

2. भारत का निर्यात व्यापार 27% पश्चिमी यूरोपीय देशों, 20% उत्तरी अमेरिकी देशों, 51% एशियाई एवं ऑस्ट्रेलियाई देशों तथा 20% अफ्रीकी एवं दक्षिणी अमेरिकी देशों से किया जाता है। कुल निर्यात व्यापार का 61.1% भाग विकसित देशों (UPBoardSolutions.com) (सं० रा० अमेरिका 17.4%, जापान 7.2%, जर्मनी 6.8% एवं ब्रिटेन 5.8%) को किया जाता है। इसी प्रकार आयात व्यापार 26% पश्चिमी यूरोपीय देशों, 39% एशियाई एवं ऑस्ट्रेलियाई देशों, 13% उत्तरी अमेरिकी देशों तथा 7% अफ्रीकी देशों से किया जाता है।

3. यद्यपि भारत में विश्व की लगभग 17% जनसंख्या निवास करती है, परन्तु विश्व व्यापार में भारत का भाग 0.5% से भी कम है, जबकि अन्य विकसित एवं विकासशील देशों का भाग इससे कहीं अधिक है। इस प्रकार देश के प्रति व्यक्ति विदेशी व्यापार का औसत अन्य देशों से बहुत कम है।

4. भारत के विदेशी व्यापार का भुगतान सन्तुलन स्वतन्त्रता के बाद से ही हमारे पक्ष में नहीं रहा है। सन् 1960-61 ई० का तथा 1970-71 ई० में भुगतान सन्तुलन हमारे पक्ष में रहा है। सन् 1980-81 ई० में घाटा ₹ 5,838 करोड़ था, 1990-91 ई० में यह घाटा ₹ 10,635 करोड़ तक पहुँच गया। वर्ष 1999-2000 में व्यापार घाटा १ 55,675 करोड़ हो गया। परन्तु 2000-2001 ई० में इस घाटे में कुछ गिरावट आई और यह घटकर ₹ 27,302 करोड़ हो गया है। तत्पश्चात् पुन: इस घाटे में वृद्धि होनी शुरू हो गयी। वर्ष 2005-06 के आँकड़ों के मुताबिक इस घाटे के ₹ 1,75,727 करोड़ होने का ” अनुमान है। वर्ष 2006-07 में विदेशी व्यापार में घाटा 56 अरब डॉलर से अधिक का रहा। 2011-12 में व्यापार घाटा बढ़कर 8,85,492 करोड़ हो गया। अमेरिकी डॉलर के हिसाब से 184.5 बिलियन डॉलर का हो गया। घाटे में वृद्धि का प्रमुख कारण आयात में भारी वृद्धि का होना है। आयात में भारी वृद्धि पेट्रोलियम पदार्थों के आयात के कारण हुई है।

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5. देश का अधिकांश विदेशी व्यापार लगभग 35 देशों के मध्य होता है, जो विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों के आधार पर किया जाता है।

6. विगत दो दशकों में भारत के आयातों की प्रकृति में भारी परिवर्तन हुए हैं। पहले भारत निर्मित माल का अधिक आयात करता था, किन्तु अब खाद्य तेल, पेट्रोलियम तथा उसके उत्पाद, स्नेहक पदार्थ, उर्वरक, कच्चे माल तथा पूँजीगत वस्तुओं का भी आयात करने लगा है।

7. निर्यातों की प्रकृति में भी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। पहले भारत के निर्यात पदार्थों में कृषि तथा खनन-आधारित कच्चे मालों की प्रधानता थी, अब भारत सूती वस्त्र, सिले-सिलाये वस्त्र, जूट का ग़मान, चमड़ा निर्मित सामान, अभ्रक, मैंगनीज, लौह-अयस्क, मशीनरी, साइकिल, पंखे, फर्नीचर, रेल के इंजन तथा उपकरण, सीमेण्ट, हौजरी, हस्त निर्मित वस्तुएँ, रत्न-जवाहरात, आभूषण आदि का निर्यात करता है।

8. 31 अगस्त, 2004 ई० में भारत ने नई निर्यात नीति लागू कर दी है। इस नीति के तहत निर्यात क्षेत्र को सेवा कर से मुक्त कर दिया गया है तथा लघुत्तर व कुटीर उद्योगों हेतु निर्यात संवर्द्धन पूँजीगत सामान योजना के तहत निर्यात दायित्व पूरा करने की (UPBoardSolutions.com) समय सीमा को आठ वर्षों की बजाय 12 वर्ष किया गया है।

प्रश्न 2.
भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार के महत्त्व तथा भारतीय निर्यातों और आयातों की दिशा पर प्रकाश डालिए। [2017]
या
भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार के महत्त्व पर एक नोट लिखिए।
या
भारत के विदेशी व्यापार की दिशा लिखिए। किसी देश के लिए विदेशी व्यापार का महत्त्व समझाइए। [2010]
या
भारतीय अर्थव्यवस्था में निर्यात व्यापार के तीन महत्त्व लिखिए। [2013]
उत्तर :

भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार का महत्त्व

किसी भी देश का विदेशी व्यापार उसके आर्थिक विकास का दर्पण होता है। विदेशी व्यापार के दो घटक होते हैं –

  1. आयात तथा
  2. निर्यात। विदेशी व्यापार से प्रत्येक देश लाभान्वित होता है।

निम्नलिखित तथ्यों से भारत के विदेशी व्यापार का महत्त्व स्पष्ट होता है –

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1. प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण उपयोग – एक देश ऐसे उद्योगों की स्थापना एवं संचालन करता है, जिनसे उसे अधिकतम तुलनात्मक लाभ प्राप्त होता है और वह उस बाजार (देश) में अपनी उत्पादित वस्तुओं को बेचता है, जहाँ उसे वस्तुओं का सर्वाधिक मूल्य मिलता है। फलत: वह उपलब्ध प्राकृतिक ‘ संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करता है।

2. औद्योगीकरण को प्रोत्साहन – विदेशी व्यापार के माध्यम से देश में (UPBoardSolutions.com) उद्योग-धन्धों को विकसित करने के लिए आवश्यक उपकरण, कच्चा माल व तकनीकी ज्ञान सरलता से उपलब्ध हो जाते हैं। फलतः देश में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है।

3. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एवं सद्भावना में वृद्धि – विदेशी व्यापार के फलस्वरूप विभिन्न देशों के नागरिक एक-दूसरे के निकट सम्पर्क में आते हैं और एक-दूसरे के विचारों एवं दृष्टिकोणों से परिचित होते हैं। फलस्वरूप सांस्कृतिक सहयोग एवं परस्पर विश्वास में वृद्धि होती है।

4. सस्ती वस्तुओं की उपलब्धि – विदेशी व्यापार के फलस्वरूप विदेशों से सस्ती एवं उत्तम वस्तुएँ उपलब्ध होने लगती हैं। इन वस्तुओं के उपभोग से लोगों के जीवन-स्तर एवं आर्थिक कल्याण में वृद्धि होती है।

5. भौगोलिक श्रम-विभाजन – विदेशी व्यापार के स्वतन्त्र होने पर प्रत्येक देश उन वस्तुओं का उत्पादन करता है, जिनसे उसे सर्वाधिक प्राकृतिक लाभ प्राप्त होता है अथवा जिनकी उत्पादन-लागत न्यूनतम होती है। इस प्रकार विदेशी व्यापार की क्रियाएँ भौगोलिक श्रम-विभाजन को सम्भव बनाती हैं।

6. उपभोक्ताओं को लाभ – उत्पादन अनुकूलतम परिस्थितियों में होने के कारण वस्तु की उत्पादन लागत कम हो जाती है, जिससे उपभोक्ताओं को उत्तम वस्तुएँ कम कीमत पर देश में ही उपलब्ध हो जाती हैं। इससे उनके जीवन-स्तर में वृद्धि होती है।

7. उत्पादन व तकनीकी क्षमता में सुधार – विदेशी व्यापार के कारण देश के उद्योगपतियों को सदैव विदेशी प्रतियोगिता का भय बना रहता है। वे जानते हैं कि यदि वे उच्चकोटि का उत्पादन कम लागत पर न कर सके तो उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं की माँग कम हो जाएगी। अतः वे अपनी कार्यकुशलता एवं उत्पादन तकनीकी में सुधार करते रहते हैं।

8. एकाधिकारी प्रवृत्ति पर अंकुश – विदेशी प्रतियोगिता के कारण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में एकाधिकारी प्रवृत्ति पर अंकुश लगा रहता है, जिससे उपभोक्ता की एकाधिकारात्मक शोषण से रक्षा होती है।

9. कच्चे माल की उपलब्धि – विदेशी व्यापार के कारण विभिन्न देशों को आवश्यक कच्चा माल सरलता से उपलब्ध हो जाता है, जिससे देश के औद्योगीकरण को प्रोत्साहन मिलता है।

10. मूल्य-स्तर में समानता की प्रवृत्ति – विदेशी व्यापार के कारण विश्व के प्राय: सभी देशों में वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में समानता की प्रवृत्ति पायी जाती है।

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11. विदेशी विनिमय की उपलब्धि – विदेशी व्यापार विदेशी विनिमय को अर्जित करने का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण साधन है।

12. आय की प्राप्ति – विदेशी व्यापार के कारण सरकार को भारी मात्रा में आयात व निर्यात कर लगाकर आय की प्राप्ति होती है।

भारत के विदेशी व्यापार (आयात-निर्यात) की दिशा

स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत के विदेशी व्यापार के स्वरूप में निम्नलिखित परिवर्तन हुए हैं –

  1. भारत का विदेशी व्यापार कॉमनवेल्थ देशों तक सीमित न रहकर विश्वव्यापी हो गया है।
  2. स्वतन्त्रता के पूर्व भारत कच्चे पदार्थों (कृषि तथा खनिजों) का (UPBoardSolutions.com) निर्यातक देश था, किन्तु स्वतन्त्रता के बाद उसके निर्यातों में तैयार माल सम्मिलित हुए तथा उनमें विविधता आ गयी।
  3. स्वतन्त्रता के पूर्व भारत में पर्याप्त अन्नोत्पादन होता था, किन्तु देश के विभाजन के बाद गेहूँ तथा चावल के बड़े उत्पादक क्षेत्र पाकिस्तान में चले जाने से भारत को अन्न का आयात करना पड़ा।
  4. खाद्य एवं कृषिगत पदार्थ भारत के परम्परागत निर्यात पदार्थ रहे हैं, किन्तु अब भारत मशीनरी, सूती वस्त्र, सिले-सिलाये वस्त्र, हस्तनिर्मित वस्तुओं आदि का भी निर्यात करने लगा है।

भारतीय निर्यातों का आधे से अधिक भाग पश्चिमी यूरोप के विकसित देशों, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और जापान को, लगभग एक-तिहाई भाग पूर्वी यूरोप तथा अन्य विकासशील देशों को और केवल एक छोटा-सा भाग मध्य-पूर्व के तेल उत्पादक देशों को जाता है। भारत के निर्यातों में रूस और जापान का महत्त्व बढ़ा है तथा ब्रिटेन का एकाधिकार समाप्त हो गया है। भारत का अपने पड़ोसी देशों से व्यापार कम होता जा रहा है तथा पूर्व साम्यवादी देशों-पोलैण्ड, चेकोस्लोवाकिया व रूस से बढ़ा है। भारत जिन देशों को निर्यात करता है, क्रमानुसार उनके नाम हैं—सं० रा० अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, इटली, सऊदी अरब, इराक, कुवैत, हॉलैण्ड, ईरान, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया आदि।

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भारतीय आयातों का आधे से अधिक भाग विकसित देशों से होता है। एक-चौथाई भाग पूर्वी यूरोपीय देशों एवं अन्य विकसित देशों से और एक बहुत बड़ा भाग (20%) मध्य-पूर्व के तेल उत्पादक देशों से होता है। भारत के आयात में संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, पश्चिमी जर्मनी, कनाडा तथा जापान से होने वाले आयातों में विशेष वृद्धि हुई है। भारत के आयातों में ब्रिटेन का एकाधिकार समाप्त हो गया है और कुछ नये देशों; जैसे-ईरान और अन्य पूर्व (UPBoardSolutions.com) साम्यवादी देशों के साथ व्यापार बढ़ा है। भारत जिन देशों से आयात करता है, क्रमानुसार उनके नाम हैं—सं० रा० अमेरिका, जापान, सऊदी अरब, इराक, रूस, जर्मनी, ईरान, फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा, कुवैत आदि।

प्रश्न 3.
भारत के प्रमुख आयातों का उल्लेख कीजिए। [2018]
या
भारत के आयात की चार प्रमुख मदें लिखिए।
उत्तर :

भारत के प्रमुख आयात

भारत विश्व के 140 देशों से 6,000 से अधिक वस्तुओं का आयात करता है। देश की विकासशील अर्थव्यवस्था की आवश्यकता के अनुरूप आयातों में भी भारी वृद्धि दर्ज हुई है। देश में आयात किये जाने वाले प्रमुख पदार्थ निम्नलिखित हैं –

1. पेट्रोल एवं पेट्रोलियम उत्पाद – भारत के आयात में पेट्रोल एवं पेट्रोलियम उत्पादों का विशिष्ट स्थान है। यह आयात बहरीन, फ्रांस, इटली, अरब, सिंगापुर, संयुक्त राज्य अमेरिका, ईरान, इण्डोनेशिया, संयुक्त अरब अमीरात, मैक्सिको, अल्जीरिया, म्यांमार, इराक, रूस आदि देशों से किया जाता है।

2. मशीनें – देश के आर्थिक एवं औद्योगिक विकास के लिए भारी मात्रा में मशीनों का आयात किया जा रहा है। इनमें विद्युत मशीनों का आयात सबसे अधिक किया जाता है। इसके अतिरिक्त सूती वस्त्र उद्योग, कृषि, बुल्डोजर, शीत भण्डारण, चमड़ा, चाय एवं चीनी उद्योग, वायु-सम्पीडक, खनिज आदि अनेक प्रकार के उद्योगों से सम्बन्धित मशीनों का आयात ब्रिटेन, जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका, बेल्जियम, फ्रांस, जापान, कनाडा, चेक तथा स्लोवाक गणतन्त्र देशों से किया जाता है।

3. कपास एवं रद्दी रुई – भारत में उत्तम सूती वस्त्र तैयार करने के लिए लम्बे रेशे वाली कपास तथा विभिन्न प्रकार के कपड़ों के लिए रद्दी रुई विदेशों से आयात की जाती है। यह कपास एवं रुई मित्र, संयुक्त राज्य अमेरिका, तंजानिया, कीनिया, सूडान, पीरू, (UPBoardSolutions.com) पाकिस्तान आदि देशों से मँगवायी जाती है।

4. अलौह धातुएँ, लोहे तथा इस्पात का सामान – इन वस्तुओं का कुल आयातित माल में दूसरा स्थान है। ऐलुमिनियम, पीतल, ताँबा, काँसा, सीसा, जस्ता, टिन आदि धातुएँ विदेशों से अधिक मात्रा में मँगवायी जाती हैं। इन वस्तुओं का आयात प्रायः ब्रिटेन, कनाडा, स्विट्जरलैण्ड, स्वीडन, संयुक्त राज्य अमेरिका, बेल्जियम, कांगो गणतन्त्र, मोजाम्बिक, ऑस्ट्रेलिया, म्यांमार, सिंगापुर, मलेशिया, रोडेशिया, जापान आदि देशों से किया जाता है।

5. उर्वरक एवं रसायन – अनेक रासायनिक उद्योगों के लिए रासायनिक कच्चे माल तथा उर्वरक आयात, किये जाते हैं। भारत में कृषि के विकास के लिए उर्वरकों की बहुत आवश्यकता है; क्योंकि देश में इनका उत्पादन यथेष्ट मात्रा में नहीं होता है। भारत इनको आयात संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, कनाडा आदि देशों से करता है।

6. खाद्यान्न एवं अन्य उत्पाद – अतिशय जनसंख्या तथा कुछ वर्षों में प्रतिकूल मौसम के कारण देश में खाद्यान्नों की कमी हो गयी है, जिससे देश को भारी मात्रा में इनका आयात करना पड़ा है। अमेरिका, कनाडा तथा ऑस्ट्रेलिया खाद्यान्नों (मुख्यतः गेहूँ) के आयात के प्रमुख स्रोत हैं। खाद्यान्नों के अतिरिक्त भारत के द्वारा विदेशों से मोती तथा मूल्यवान व विकल्प रत्न भी मँगवाये जाते हैं एवं खाद्य तेल, कागज व गत्ता या लुगदी, कृत्रिम रेशे तथा औषधियों का आयात किया जाता है।

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प्रश्न 4.
भारत के प्रमुख निर्यातों का उल्लेख कीजिए। [2017, 18]
या
भारत से निर्यात की जाने वाली किन्हीं तीन प्रमुख वस्तुओं का उल्लेख कीजिए। [2013]
उत्तर :

भारत के प्रमुख निर्यात

भारत एक विकासशील देश है। इसके निर्यातों में निरन्तर वृद्धि हो रही है। यह 190 देशों को 7,500 वस्तुओं का निर्यात करता है, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं –

1. जूट का सामान – भारत के निर्यात व्यापार में जूट का महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि इसके निर्यात से विदेशी मुद्रा का 35% भाग प्राप्त होता है। इससे निर्मित बोरे, टाट, मोटे कालीन, फर्श, गलीचे, रस्से, तिरपाल आदि निर्यात किये जाते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, (UPBoardSolutions.com) ब्रिटेन, अर्जेण्टाइना, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, रूस, अरब गणराज्य इसके मुख्य ग्राहक हैं। पच्चीस वर्ष पूर्व तक इसी के निर्यात को प्रथम स्थान प्राप्त था, किन्तु अब दूसरी वस्तुओं का निर्यात अधिक होने लगा है।

2. चाय – भारत द्वारा अपनी कुल चाय का 59% भाग ब्रिटेन को निर्यात किया जाता हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका (4%), रूस (12%), कनाडा (3%), ईरान (1%), अरब गणराज्य (6%), नीदरलैण्ड (2%) तथा सूडान एवं जर्मनी इसके अन्य प्रमुख ग्राहक हैं।

3. खालें, चमड़ा व चमड़े की वस्तुएँ – भारतीय चमड़े की माँग मुख्यत: ब्रिटेन (45%), जर्मनी (10%), फ्रांस (7%) एवं संयुक्त राज्य अमेरिका (9%) देशों में रहती है। अन्य ग्राहकों. में इटली, जापान, बेल्जियम और यूगोस्लाविया आदि देश हैं। भारत के निर्यात व्यापार की यह भी एक महत्त्वपूर्ण मंद है।

4. तम्बाकू – भारत द्वारा ब्रिटेन, जापान, पाकिस्तान, अदन, चीन, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों को तम्बाकू को निर्यात किया जाता है। भारत तम्बाकू के निर्यात से लगभग ₹ 1,000 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त करता है।

5. रसायन, मछली एवं समुद्री उत्पाद – भारत अमेरिका आदि देशों को प्रॉन, श्रिम्प आदि लोकप्रिय मछली किस्मों तथा अन्य समुद्री उत्पादों का निर्यात करता है। इनके अतिरिक्त भारत द्वारा रसायन, उससे सम्बद्ध उत्पाद, भेषज व प्रसाधन सामग्री का भी निर्यात किया जाता है।

6. खनिज पदार्थ – भारत अभ्रक, मैंगनीज तथा लौह-अयस्क का निर्यात करता है। अमेरिका तथा जर्मनी भारतीय अभ्रक के प्रमुख ग्राहक हैं। लौह धातु का निर्यात मुख्यतः जापान को किया जाता है।

7. सूती वस्त्र – भारत अपने सूती वस्त्रों का निर्यात इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, मलाया, म्यांमार, अदन, इथोपिया, सूडान, अफगानिस्तान, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों को करता है। इस क्षेत्र में जापान एवं चीन भारत से प्रतिस्पर्धा करने वाले देश हैं। अत: इसके निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार ने निर्यात प्रोत्साहन परिषद् की स्थापना की है।

8. इंजीनियरिंग का सामान – भारत ने इंजीनियरिंग के सामान का निर्यात करना भी प्रारम्भ कर दिया है। इसके अन्तर्गत मोटरें, रेल के डिब्बे, बिजली के पंखे, सिलाई की मशीनें, टेलीफोन, विद्युत उपकरण आदि प्रमुख हैं। भारत इन वस्तुओं का निर्यात-रूस, (UPBoardSolutions.com) अमेरिका, हंगरी, श्रीलंका, इराक आदि देशों को करता है।

9. मसाले – भारत अमेरिका तथा यूरोपीय देशों को मसाले का निर्यात करता है।

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10. आभूषण, रत्न एवं जवाहरात – भारत से स्वर्ण आभूषण, रत्नों तथा जवाहरातों के निर्यात भी किये जाते हैं।

प्रश्न 5.
व्यापार से क्या आशय है? ये कितने प्रकार के होते हैं? भारत के विदेशी व्यापार की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
या
भारत के विदेशी व्यापार की किन्हीं दो अभिवन प्रवृत्तियों की व्याख्या कीजिए। [2018]
उत्तर :
दो पक्षों के मध्य वस्तुओं के ऐच्छिक, पारस्परिक एवं वैधानिक लेन-देन को व्यापार कहते हैं। एक देश के व्यापार को दो भागों में बाँटा जा सकता है-घरेलू व विदेशी। जब किसी देश के विभिन्न स्थानों, प्रदेशों अथवा क्षेत्रों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है, तो इसे आन्तरिक, घरेलू अथवा अन्तक्षेत्रीय व्यापार कहते हैं और जब विभिन्न राष्ट्रों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है, तो इसे विदेशी, बाह्य अथवा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं। इस प्रकार विदेशी व्यापार से हमारा अभिप्राय विभिन्न राष्ट्रों के मध्य होने वाले व्यापार से है।

विदेशी व्यापार की विशेषताएँ – [संकेत-इसके लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 का उत्तर देखें।

प्रश्न 6.
भारत की आयात-निर्यात नीति पर एक लेख लिखिए।
या
भारत की नवीन आयात-निर्यात नीति की चार विशेषताएँ लिखिए।
या
भारत के निर्यात में वृद्धि कैसे की जा सकती है? कोई दो सुझाव दीजिए। [2013]
या
भारत के विदेशी व्यापार की किन्हीं दो अभिनव प्रवृत्तियों की व्याख्यान कीजिए। [2018]
उत्तर :
भारत का आयात दो वित्तीय वर्षों को छोड़कर सदैव निर्यात से अधिक रहा है। इसलिए भारत का विदेशी व्यापार सन्तुलन भी प्रतिकूल ही रहा है। इस प्रतिकूलता को कम करने के लिए ही सरकार आयात-निर्यात नीति की घोषणा करती है, जिसका उद्देश्य आयातों को नियन्त्रित करना और निर्यातों को प्रोत्साहित करना होता है। आयात-निर्यात नीति, 1997-2002 ई० का उद्देश्य गत नीतियों की उपलब्धियों को सुदृढ़ करना और उदारीकरण की प्रक्रिया को आगे ले जाना था। कार्य-प्रणाली को सुचारु और सरल बनाने, परिमाणात्मक प्रतिबन्धों को चरणबद्ध तरीके से हटाने और निर्यातक समुदाय के लिए अनुकूल (UPBoardSolutions.com) वातावरण तैयार करने हेतु ठोस उपाय अपनाये गये तथा सभी मामलों में निर्यात सम्बन्धी अनिवार्यता को पूरा करने की अवधि बढ़ाकर 8 वर्ष कर दी गयी।

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शुल्क में छूट दिये जाने की योजना का विस्तार किया गया है जिससे इसमें निर्यात पश्चात् निःशुल्क पुन:पूर्ति लाइसेन्स-योजना को सम्मिलित किया जा सके। निर्यात पूर्व डी०ई०पी०बी० योजना समाप्त कर दी गयी है। निर्यात पश्चात् डी०ई०पी०बी० योजना अभी चल रही है, किन्तु इसकी दरों को युक्तिसंगत बनाया गया है। इसी प्रकार विश्वसनीय निर्यात लाभों को भी युक्तिसंगत बनाया गया है। निर्यातों को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक प्रतिबन्धों में ढील दी गयी है, बुनियादी सुविधाओं में सुधार लाने की घोषणा की गयी है तथा सभी निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्रों को मुक्त व्यापार क्षेत्र में बदल दिया गया है। इस प्रकार भारत की आयात-निर्यात नीति में निरन्तर संशोधन किये जा रहे हैं। इसी प्रकार अब पूँजीगत सामान, कच्चा माल, मध्यवर्ती माले, घटक सामान, उपभोज्य वस्तुएँ, कलपुर्जे, सहायक पुजें, औजार और अन्य सामान बिना किसी प्रतिबन्ध के आयात किये जा सकते हैं, बशर्ते कि ऐसा सामान आयात निषेध सूची में सम्मिलित न हो।

भारत ने 1 अप्रैल, 2001 ई० को अपनी नयी विदेशी व्यापार नीति की घोषणा की। नयी व्यापार नीति का उद्देश्य है कि निर्यातक लोग लालफीताशाही, जटिल प्रक्रियाओं और मनमाने निर्णयों से मुक्त होकर उत्पादन, निर्यात वृद्धि, बाजार और व्यापार पर ध्यान दें।

नयी विदेशी व्यापार नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं –

सरकार ने निर्यात की मात्रा में 20% वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य निर्धारित किया है। सात सौ चौदह वस्तुओं के आयात को अप्रैल, 2000 से तथा 715 वस्तुओं के आयात को अप्रैल, 2001 से कोटा पाबन्दी से मुक्त कर दिया है। निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 5 हजार से अधिक वस्तुओं को निर्यात-शुल्क से मुक्त करने और उनके लिए निर्यात लाइसेन्स खत्म करने का निश्चय किया है। सरकार का कहना है कि चीन की तरह उदार निवेश की व्यवस्था वाले विशेष आर्थिक क्षेत्र देश में स्थापित किये जाएँगे तथा रत्न, आभूषण, कृषि रसायनों, जैव औषधियों, चमड़ा, सिले हुए वस्त्रों, रेशम और ग्रेनाइट क्षेत्र में निर्यात को बढ़ावा देने के विशेष प्रयास किये जाएँगे। तटकर आयोग को मजबूत बनाया जाएगा।

नयी विदेश व्यापार-नीति देश को उदारीकरण और बाजार-व्यवस्था के लिए (UPBoardSolutions.com) तैयार कर देश को आर्थिक मजबूती प्रदान करेगी।

प्रश्न 7.
भारत के विदेशी व्यापार की संरचना लिखिए।
उत्तर :

विदेशी व्यापार की संरचना

(i) आयात संरचना – भारत की आयात संरचना में तीन प्रकार की वस्तुएँ सम्मिलित हैं –

  1. पूँजी वस्तुएँ; जैसे—मशीन, धातुएँ, अलौह धातुएँ, परिवहन साधन।
  2. कच्चा माल; जैसे-खनिज तेल, कपास, जूट तथा रासायनिक पदार्थ।
  3. उपभोक्ता वस्तुएँ; जैसे-खाद्यान्न, विद्युत उपकरण, औषधियाँ, वस्त्र, कागज आदि।

योजनाकाल में आयात संरचना में निम्नलिखित परिवर्तन हुए हैं –

  1. इस्पात, खनिज तेल वे रासायनिक पदार्थों के आयात में तेजी से वृद्धि हुई है।
  2. मशीनों के आयात में वृद्धि-दर बढ़ी है।
  3. खाद्यान्नों के आयात में कमी हुई है।

(ii) निर्यात संरचना – भारत की निर्यात संरचना में चार प्रकार की वस्तुएँ सम्मिलित हैं –

  1. खाद्यान्न; जैसे—अनाज, चाय, तम्बाकू, कॉफी, मसाले, काजू आदि।
  2. कच्चा माल जैसे—खालें, चमड़ा, ऊन, रुई, कच्चा लोहा, मैंगनीज, खनिज पदार्थ, हीरे-जवाहरात आदि।
  3. निर्मित वस्तुएँ; जैसे-जूट का सामान, कपड़ा, चमड़े का सामान, रेशम के वस्त्र, तैयार कपड़े, सीमेण्ट, रसायन, खेल का सामान, जूते आदि।
  4. पूँजीगत वस्तुएँ; जैसे-मशीनें, परिवहन उपकरण, लोहा-इस्पात, इन्जीनियरिंग वस्तुएँ, सिलाई मशीन आदि।

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योजनाकाल में निर्यात संरचना में निम्नलिखित परिवर्तन हुए हैं

  1. पटसन, वस्त्र, चाय, कच्ची धातु, काजू तथा तम्बाकू आदि परम्परागत वस्तुओं के निर्यात में निरन्तर वृद्धि हुई है।
  2. तम्बाकू, मसाले, अभ्रक, आदि के निर्यात में कमी हुई है।
  3. वनस्पति तेल, गोंद तथा रुई आदि के निर्यात में कमी हुई है।
  4. चमड़ा और चमड़े से बनी वस्तुएँ, खेल का सामान और परियोजनागत सामान के निर्यात की प्रगति में कमी आई है।
  5. गत कुछ वर्षों में निर्मित वस्तुओं के निर्यात में आशातीत वृद्धि हुई है। (UPBoardSolutions.com) इनमें चमड़ा तथा उससे बने माल लोहा और इस्पात, रसायन और इन्जीनियरिंग का समान, शक्कर और हस्तशिल्प का सामान मुख्य हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विदेशी व्यापार से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
या
विदेशी व्यापार से होने वाले चार लाभ बताइए।
या
भारत के आर्थिक विकास में विदेशी व्यापार के कोई दो योगदान बताइए।
उत्तर :

विदेशी व्यापार

व्यापार मुख्यत: दो प्रकार का होता है—(1) देशी व्यापार तथा (2) विदेशी व्यापार। विदेशी व्यापार का अर्थ उस व्यापार से है, जिसके अन्तर्गत दो या दो से अधिक राष्ट्रों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय किया जाता है; उदाहरणार्थ, यदि हम इंग्लैण्ड से मशीनें आयात करें या ऑस्ट्रेलिया को खेल का सामान निर्यात करें, तो इन दोनों को ही विदेशी व्यापार कहा जाएगा।
[संकेत – विदेशी व्यापार के महत्त्व के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न सं० 2 देखें।]

प्रश्न 2.
आयात-निर्यात को स्पष्ट कीजिए तथा उनके एक-एक उदाहरण भारतीय सन्दर्भ में लिखिए।
उत्तर :
देश की आर्थिक समृद्धि एवं विकास आयात-निर्यात पर निर्भर करता है। जब दों या अधिक देश पारस्परिक रूप से वस्तुओं का आयात-निर्यात करते हैं तो इसे विदेशी व्यापार कहते हैं। आयात एवं निर्यात को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है –

आयात – जब कोई देश अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ अन्य देश से मँगाता है, तो इसे आयात कहा जाता है। इस प्रकार कोई भी देश किसी वस्तु का आयात इसलिए करता है कि या तो अमुक वस्तु का उत्पादन उस देश में नहीं किया जाता अथवा उसकी उत्पादन (UPBoardSolutions.com) लागत उसके आयात मूल्य से अधिक पड़ती है। उदाहरण के लिए–भारत विदेशों से पेट्रोलियम का आयात करता है।

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निर्यात – ज़ब कोई देश अपने अधिकतम उत्पादन को अन्य देश को भेजता है, तो उसे निर्यात कहा जाता है। इस प्रकार किसी वस्तु का निर्यात इसलिए किया जाता है कि उस देश में उत्पन्न की गयी उस अतिरिक्त उत्पादित वस्तु की माँग विदेशों में है तथा उसे निर्यात करके विदेशी मुद्रा प्राप्त की जा सकती है। उदाहरण के लिए-भारत द्वारा चाय विदेशों को भेजना निर्यात है।

स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व भारत का विदेशी व्यापार परम्परागत तथा कृषि प्रधान देश की भाँति था। परन्तु स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् हुए औद्योगिक विकास ने भारत के विदेशी व्यापार के स्वरूप को काफी हद तक प्रभावित किया है। वर्तमान में भारत की निर्यात-सूची में 500 से अधिक वस्तुएँ हैं।

देश की औद्योगिक विकास की गति तीव्र होने से आयातों में भारी वृद्धि हुई है। साथ ही आयातों की प्रकृति भी बदलती है। अब मुख्य रूप से मशीनों, दुर्लभ कच्चे माल, तेल, रासायनिक पदार्थ आदि वस्तुओं का आयात होता है। निर्यात की तुलना में आयात अधिक होने के कारण भारत का व्यापार-सन्तुलन प्रतिकूल रहता है।

प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता के बाद भारत में निर्यात की प्रवृत्ति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत के निर्यातों में वृद्धि हुई है, किन्तु आयातों की तुलना में वृद्धि की दर धीमी रही है। निर्यात की मुख्य प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं –

  1. योजना काल में निर्यातों में भारी वृद्धि हुई है और विविधता आयी है।
  2. हमारे निर्यातों में परम्परागत वस्तुओं व कच्चे माल के स्थान पर निर्मित वस्तुओं का निर्यात बढ़ा है।
  3. निर्यात की जाने वाली मुख्य वस्तुएँ हैं-जूट का सामान, सूती वस्त्र, चाय, (UPBoardSolutions.com) खनिज पदार्थ, तम्बाकू, खाल और चमड़ा, तिलहन, चीनी, मसाले व इंजीनियरिंग का सामान।
  4. सर्वाधिक निर्यात एशिया व ओसोनिया देशों को किये जाते हैं।

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प्रश्न 4
अन्तर्राष्ट्रीय एवं देशीय व्यापार के दो अन्तरों को स्पष्ट कीजिए। [2011]
या
विदेशी व्यापार और आन्तरिक व्यापार में अन्तर बताइए। [2010, 11]
या
राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अन्तर बताइट। [2016]
उत्तर :
अन्तर्राष्ट्रीय और देशीय व्यापार के दो अन्तर निम्नलिखित हैं –

  • जब किसी देश के विभिन्न स्थानों, प्रदेशों अथवा क्षेत्रों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है तो उसे देशीय व्यापार कहते हैं और जब विभिन्न राष्ट्रों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है तो उसे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं।
  • अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दो अंग हैं—आयात और निर्यात। आयात के लिए विदेशी मुद्रा प्रदान करनी होती है और निर्यात करने पर विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है; जब कि देशीय व्यापार में अपने देश की मुद्रा ही प्रयुक्त होती है। इसमें विदेशी मुद्रा का कोई लेन-देन नहीं होता।

प्रश्न 5.
भारत के विदेशी व्यापार की दिशा में क्या मुख्य परिवर्तन हुए हैं?
या
स्वाधीनता के बाद भारत के विदेशी व्यापार के स्वरूप में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए। [2013]
उत्तर :
स्वतन्त्रता के बाद भारत के विदेशी व्यापार के स्वरूप में निम्नलिखित परिवर्तन हुए हैं –

  1. भारत का विदेशी व्यापार कॉमनवेल्थ देशों तक सीमित न रहकर विश्वव्यापी हो गया है।
  2. स्वतन्त्रता के पूर्व भारत कच्चे पदार्थों (कृषि तथा खनिजों) का निर्यातक देश था, किन्तु स्वतन्त्रता के बाद उसके निर्यातों में तैयार माल सम्मिलित हुए तथा उनमें विविधता आ गई।
  3. स्वतन्त्रता के पूर्व भारत में पर्याप्त अन्नोत्पादन होता था, किन्तु (UPBoardSolutions.com) देश के विभाजन के बाद गेहूँ तथा चावल के बड़े उत्पादक क्षेत्र पाकिस्तान में चले जाने से भारत को अन्न का आयात करना पड़ा।
  4. खाद्य एवं कृषिगत पदार्थ भारत के परम्परागत निर्यात पदार्थ रहे हैं, किन्तु अब भारत मशीनरी, सूती – वस्त्र, सिले-सिलाये वस्त्र, हस्तनिर्मित वस्तुओं आदि का भी निर्यात करने लगा है।

भारतीय निर्यातों का आधे से अधिक भाग पश्चिमी यूरोप के विकसित देशों संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और जापान को, लगभग एक-तिहाई भाग पूर्वी यूरोप तथा अन्य विकासशील देशों को और केवल एक छोटा-सा भाग मध्य-पूर्व के तेल उत्पादक देशों को जाता है। भारत के निर्यातों में रूस और जापान का महत्त्व बढ़ा है तथा ब्रिटेन का एकाधिकार समाप्त हो गया है। भारत का अपने पड़ोसी देशों से व्यापार कम होता जा रहा है तथा पूर्व साम्यवादी देशों-पोलैण्ड, चेकोस्लोवाकिया व रूस से बढ़ा है। भारत जिन देशों को निर्यात करता है, क्रमानुसार उनके नाम हैं—सं० रा० अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, इटली, सऊदी अरब, इराक, कुवैत, हॉलैण्ड, ईरान, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया आदि।

प्रश्न 6.
विदेशी व्यापार के अनुकूल प्रभाव क्या होते हैं ?
उत्तर :
विदेशी व्यापार के प्रमुख अनुकूल प्रभाव निम्नवत् हैं –

  1. विदेशी व्यापार भारत के लिए विदेशी मुद्रा अर्जित करता है, जो विदेशों से लिये हुए ऋणों तथा ब्याजों की अदायगी में काम आती है।
  2. विदेशी व्यापार से भारतीयों के जीवन-स्तर में वृद्धि होती है।
  3. भारत शेष संसार से लाभदायक ढंग से उन वस्तुओं को खरीद सकता है जिनका अपने ही देश में उत्पादन करने पर लागत अधिक आती है, उसकी तुलना में वे विश्व व्यापार में सस्ती उपलब्ध रहती हैं। इन वस्तुओं के उपभोग से लोगों के जीवन-स्तर एवं आर्थिक कल्याण में वृद्धि होती है।
  4. भारत शेष संसार को उन वस्तुओं की बिक्री कर सकता है, जिनका वह (UPBoardSolutions.com) अधिक सफलता से अर्थात् दूसरे देशों की तुलना में सस्ता उत्पादन कर सकता है। इस प्रकार विदेशी व्यापार की क्रियाएँ भौगोलिक श्रम-विभाजन को सम्भव बनाती हैं।
  5. आयातों के द्वारा भारत अनिवार्य वस्तुओं की किसी भी कमी को पूरा कर सकता है।
  6. भारत दूसरे देशों से उन पूँजीगत वस्तुओं को मँगवा सकता है जिन वस्तुओं का वह बिल्कुल उत्पादन नहीं कर सकता अथवा बहुत कुशलता से उत्पादन नहीं कर सकता।

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प्रश्न 7.
भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार का क्या महत्त्व या लाभ है?
उत्तर :
भारत के लिए विदेशी व्यापार के महत्त्व या लाभ निम्नलिखित हैं –

1. प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण उपयोग – एक देश ऐसे उद्योगों की स्थापना एवं संचालन करता है, जिनसे उसे अधिकतम तुलनात्मक लाभ प्राप्त होता है और उस बाजार (देश) में वह अपनी उत्पादित वस्तुओं को बेचता है, जहाँ उसे वस्तुओं का सबसे अधिक मूल्य मिलता है। फलस्वरूप वह उपलब्ध प्राकृतिक संसाधानों को सर्वोत्तम उपयोग करता है।

2. औद्योगीकरण को प्रोत्साहन – विदेशी व्यापार के माध्यम से देश में उद्योग-धन्धों को विकसित करने के लिए आवश्यक उपकरण, कच्चा माल व तकनीकी ज्ञान सरलता से उपलब्ध हो जाते हैं। फलतः देश में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है।

3. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एवं सदभावना में वृद्धि – विदेश व्यापार के (UPBoardSolutions.com) फलस्वरूप विभिन्न देशों के नागरिक एक-दूसरे के निकट सम्पर्क में आते हैं और एक-दूसरे के विचारों एवं दृष्टिकोणों से परिचित होते हैं। फलस्वरूप सांस्कृतिक सहयोग एवं परस्पर विश्वास में वृद्धि होती है।

प्रश्न 8.
निर्यात व्यापार से आप क्या समझते हैं? भारत की चार प्रमुख निर्यात की वस्तुओं का उल्लेख कीजिए। [2014, 18]
उत्तर :
निर्यात व्यापार–किसी देश द्वारा अपने देश से दूसरे देशों को वस्तुएँ बेचने का व्यापार निर्यात व्यापार कहलाता है।

भारत देश की चार प्रमुख निर्यात की वस्तुएँ निम्नवत् हैं –

  1. चाय
  2. तम्बाकू
  3. सूती वस्त्र
  4. चमड़ा व चमड़े से बनी वस्तुएँ।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विदेशी व्यापार का क्या अर्थ है ? [2014]
या
विदेशी व्यापार से आप क्या समझते हैं ? [2010, 11, 18]
या
विदेशी व्यापार को स्पष्ट कीजिए। [2015]
उत्तर :
जब दो या दो से अधिक देश परस्पर एक-दूसरे की वस्तुओं या सेवाओं का क्रय-विक्रय करते हैं तब इसे विदेशी व्यापार कहते हैं।

प्रश्न 2.
व्यापार सन्तुलन का क्या अर्थ है?
उत्तर :
यदि निर्यात आयातों से अधिक होते हैं तो देश का व्यापार-शेष ‘अनुकूल’ होता है। यदि आयात निर्यातों से अधिक होते हैं तो व्यापार-शेष प्रतिकूल’ होता है। यदि निर्यात और आयात बराबर होते हैं तो व्यापार-शेष सन्तुलित होता है। इसी को (UPBoardSolutions.com) व्यापार सन्तुलन भी कहते हैं।

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प्रश्न 3.
भारत के आयात की किन्हीं चार वस्तुओं के नामों का उल्लेख कीजिए। [2010, 11, 14, 16, 18]
उत्तर :
भारत के आयात की चार वस्तुओं के नाम हैं –

  1. खनिज तेल
  2. उर्वरक एवं रसायन
  3. मशीनें तथा
  4. धातुएँ; जैसे-टिन, पीतल, ताँबा।

प्रश्न 4.
भारत के विदेशी व्यापार को अनुकूल बनाने हेतु दो सुझाव दीजिए।
उत्तर :
भारत के विदेशी व्यापार को अनुकूल बनाने हेतु दो सुझाव इस प्रकार हैं-

  1. अधिकतम निर्यात किया जाना चाहिए तथा
  2. न्यूनतम आयात किया जाना चाहिए।

प्रश्न 5.
भारत में निर्यात-वृद्धि के लिए दो सुझाव दीजिए। [2013]
उत्तर :
भारत में निर्यात वृद्धि के लिए दो सुझाव निम्नवत् हैं –

  1. प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति बढ़ाने के लिए (UPBoardSolutions.com) उत्पादन लागत घटायी जानी चाहिए।
  2. निर्यात वस्तुओं की किस्म में सुधार किया जाना चाहिए।

प्रश्न 6.
आन्तरिक व्यापार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
जंब किसी देश के विभिन्न स्थानों, प्रदेशों अथवा क्षेत्रों के बीच वस्तुओं व सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है, तो उसे आन्तरिक व्यापार करते हैं।

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प्रश्न 7.
विदेशी व्यापार के दो उद्देश्य लिखिए।
या
विदेशी व्यापार की आवश्यकताओं पर प्रकाश डालिए। [2015]
उत्तर :
विदेशी व्यापार के दो उद्देश्य निम्नवत् हैं –

  1. औद्योगीकरण को प्रोत्साहन देना।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग व सद्भावना में वृद्धि करना।

प्रश्न 8.
आयात एतं निर्यात का अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2015, 16]
उत्तर :
“आयात’ का अर्थ है-विदेशों से माल अपने देश (UPBoardSolutions.com) में मँगाना तथा “निर्यात का अर्थ है–विदेशों में अपने देश का माल भेजना।

प्रश्न 9.
भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार के दो लाभ लिखिए।
उत्तर :
भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार के दो लाभ इस प्रकार हैं –

  1. भारत की राष्ट्रीय आय और पूँजी–निर्माण में वृद्धि होती है तथा
  2. देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती हैं।

प्रश्न 10.
भारत से निर्यात की जाने वाली दो वस्तुओं के नाम लिखिए। [2010, 11, 16, 17]
उत्तर :
भारत से निर्यात की जाने वाली दो वस्तुएँ हैं –

  1. चाय तथा
  2. जूट का सामान।

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प्रश्न 11.
भारत के निर्यात व्यापार की दो समस्याएँ लिखिए।
उत्तर :

  1. कच्चे माल की अनुपलब्धता।
  2. हिमालय पर्वतीय अवरोध के समीपवर्ती (UPBoardSolutions.com) देशों एवं भारत के मध्य धरातलीय आवागमन की सुविधा उपलब्ध नहीं है।

प्रश्न 12.
भारत की दो निर्यात की जाने वाली परम्परागत तथा दो गैर-परम्परागत वस्तुओं के नाम लिखिए।
या
भारतीय निर्यात की किन्हीं दो प्रमुख वस्तुओं का उल्लेख कीजिए। [2010, 11, 16]
या
भारत के किन्हीं दो आयात तथा दो निर्यात वस्तुओं का उल्लेख कीजिए। [2015, 16]
उत्तर :
परम्परागत निर्यातक वस्तुएँ – चाय और जूट।
गैर-परम्परागत निर्यातक वस्तुएँ (UPBoardSolutions.com) – सिले वस्त्र, इंजीनियरिंग का सामान।

प्रश्न 13.
भारत से निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के नाम लिखिये।
उत्तर :
भारत से जूट का सामान, चाय, तम्बाकू, सूती वस्त्र, चमड़ा व चमड़े से बनी वस्तुएँ आदि निर्यात की जाती हैं।

प्रश्न 14.
भारत में आयात की जाने वाली मुख्य वस्तुएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर :
भारत में पेट्रोल एवं पेट्रोलियम उत्पाद, मशीनें, कपास एवं रद्दी रुई, अलौह धातुएँ, लोहे तथा इस्पात का सामान आयात किया जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. कौन-सा ग्रुप भारत के आयात व्यापार को दर्शाता है?

(क) चाय, खाद्य तेल, तम्बाकू, पेट्रोलियम
(ख) पेट्रोलियम, जूट की वस्तुएँ, कपास, खाद्य तेल
(ग) रसायन, मशीनें, खाद्य तेल, पेट्रोलियम
(घ) रसायन, कपड़े की वस्तुएँ, जूट की वस्तुएँ, कपास

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2. भारत की प्रमुख आयातित वस्तु है।

(क) ऊनी मशीनें
(ख) सूती वस्त्र
(ग) खनिज तेल
(घ) जूट उत्पाद

3. वर्तमान में भारत के निर्यातों का अकेला सबसे बड़ा खरीदार है –

(क) सं० रा० अमेरिका
(ख) इंग्लैण्ड
(ग) अफ्रीकी देश
(घ) तेल उत्पादक देश

4. व्यापार सन्तुलन किसे कहते हैं?

(क) आयात अधिक हो
(ख) निर्यात अधिक हो
(ग) आयात व निर्यात बराबर हों
(घ) आयात व निर्यात न हों।

5. निम्नलिखित में से कौन-से देश-समूह भारत के आयात में प्रमुख हिस्सा रखते हैं?

(क) अफ्रीकी देश
(ख) विकसित देश
(ग) दक्षिणी अमेरिका के देश
(घ) दक्षिण-पश्चिमी एशिया के देश

6. भारत के निर्यात व्यापार में कितने प्रतिशत हिस्सा विकसित देशों का है?

(क) 4%
(ख) 6%
(ग) 61%
(घ) 59%

7. विश्व व्यापार में भारत का कितना अंश है?

(क) 3.6%
(ख) 2.6%
(ग) 1.6%
(घ) 0.6%

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8. निम्नलिखित में से भारत की प्रमुख निर्यात वस्तु कौन-सी है? [2012]

(क) कागज
(ख) खनिज तेल
(ग) खाद्य तेल
(घ) जवाहरात व आभूषण

9. भारत का सर्वाधिक विदेशी व्यापार निम्नलिखित में से किस देश के साथ होता है?

(क) जापान
(ख) रूस
(ग) ब्रिटेन
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका

10. कौन-सा समूह भारत के निर्यात व्यापार को दर्शाता है? [2017]

(क) खनिज तेल, चाय, अभ्रक, खाद्य तेल
(ख) चाय, मशीनरी, खाद्य तेल, लौह-अयस्क
(ग) चाय, लौह-अयस्क, चमड़े की वस्तुएँ, अभ्रक
(घ) लौह-अयस्क, चाय, खनिज-तेल, मशीनरी

11. कौन-सा समूह भारत के आयात व्यापार को दर्शाता है?

(क) खनिज तेल, कच्चा जूट, चाय, लौह-अयस्क
(ख) अभ्रक, चाय, कच्चा जूट, खनिज तेल
(ग) चाय, लौह-अयस्क, खनिज तेल, खाद्य तेल
(घ) खनिज तेल, खाद्य तेल, कच्चा जूट, मशीनरी

12. निम्नलिखित में से भारत के आयातों में सर्वाधिक मूल्य किस वस्तु का है? [2017]

(क) कृषि पदार्थ
(ख) धातु एवं खनिज
(ग) विनिर्मित सामान
(घ) अशुद्ध तेल एवं उत्पाद

13. निम्नलिखित में से कौन-सी वस्तु भारत के निर्यात की वस्तु है? [2009, 13, 18]

(क) खनिज तेल
(ख) जूट निर्मित वस्तुएँ।
(ग) मशीनें
(घ) मशीनों के पुर्जे

14. अपने देश की सीमा के अन्दर व्यापार कहलाता है

(क) आन्तरिक व्यापार
(ख) विदेशी व्यापार
(ग) उपर्युक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं

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15. व्यापार घाटे को कम करने का उपाय है

(क) निर्यातों को बढ़ाना
(ख) आयातों को कम करना
(ग) उपर्युक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं

16. विदेशी व्यापार नीति लागू की गयी

(क) 1 अप्रैल, 2001 से
(ख) 1 अप्रैल, 2003 से
(ग) 1 अप्रैल, 1951 से
(घ) 1 अप्रैल, 2002 से

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17. भारत में निम्नलिखित वस्तुओं में से सबसे अधिक किस वस्तु का निर्यात किया जाता है? [2014, 17]

(क) मशीनरी
(ख) चाय
(ग) उर्वरक
(घ) खनिज तेल

18. निम्नलिखित में से किसका आयात भारत में किया जाता है? [2016]

(क) चाय
(ख) कॉफी
(ग) पेट्रोलियम
(घ) लौह-अयस्क

उत्तरमाला

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 8 (Section 4)

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