UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 7 (Section 3)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 7 ऊर्जा संसाधन (अनुभाग – तीन)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 7 ऊर्जा संसाधन (अनुभाग – तीन).

विस्तृत उतरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में कोयले का वितरण एवं उपयोग का वर्णन कीजिए।
या
कोयले का महत्त्व स्पष्ट करते हुए भारत में इसके उत्पादन का वर्णन कीजिए। [2013]
या
भारत में कोयले का उत्पादन एवं वितरण का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
या
भारत में कोयला उत्पादन के किन्हीं दो प्रमुख राज्यों का वर्णन कीजिए। [2016]
या
भारत में कोयले के उत्पादन क्षेत्रों का वर्णन कीजिए। [2016]
या
कोयले का संरक्षण क्यों आवश्यक है? तीन कारक बताइए। [2018]
उतर :

कोयले का उपयोग या महत्त्व

कोयला शक्ति का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन तथा ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। इसका उत्पादन एवं उपयोग किसी देश की प्रगति का सूचक माना जाता है। यह अपनी तीन विशेषताओं; यथा—भाप बनाने, ताप प्रदान करने तथा कठोर धातुओं के पिघलाने के कारण वर्तमान औद्योगिक सभ्यता का आधार-स्तम्भ बन गया है। कोयले से प्राप्त शक्ति खनिज तेल से प्राप्त की गयी शक्ति से दोगुनी, प्राकृतिक गैस से पाँच गुनी तथा जल-विद्युत (UPBoardSolutions.com) शक्ति से आठ गुना अधिक होती है। इससे स्टीम कोक अर्थात् ताप ऊर्जा प्राप्त की जाती है। भारत के कोयला उत्पादन का लगभग तीन-चौथाई भाग उद्योग-धन्धों व विद्युत उत्पादन, एक-चौथाई रेलों के संचालन व अन्य कार्यों में प्रयुक्त किया जाता है। कोयले के इस महत्त्व को देखते हुए इसे ‘काला हीरा’ के नाम से पुकारा जाता है।

संचित मात्रा- कोयले के भण्डारों की दृष्टि से भारत का विश्व में छठा स्थान है। भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग ने कोयले की संचित राशि 250 अरब टन ऑकी है। लिग्नाइट का भण्डार 24 अरब टन अनुमानित किया गया है। सम्पूर्ण कोयला भण्डारों का 78.3% भाग दामोदर घाटी में स्थित है।

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उत्पादन एवं वितरण

भारत में निम्नलिखित दो क्षेत्र कोयले के उत्पादन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं
(1) गोण्डवाना कोयला क्षेत्र- भारत में कुल 113 कोयला क्षेत्र हैं, जिनमें से 80 कोयला क्षेत्र गोण्डवाना काल की शैलों से सम्बन्धित हैं। इन शैलों में 96% कोयला संचित है तथा 98% उत्पादन इन्हीं से प्राप्त होता है। इसका क्षेत्रफल 90,650 वर्ग किमी है। कोयला उत्पादन में निम्नलिखित क्षेत्र प्रमुख हैं

  • गोदावरी घाटी क्षेत्र- आन्ध्र प्रदेश का कोयला उत्पादन में चौथा स्थान है, जहाँ देश का 10% कोयला निकाला जाता है। यहाँ गोदावरी नदी की घाटी में सिंगरेनी, तन्दूर तथा सस्ती नामक खदानों से कोयला निकाला जाता है। अदिलाबाद, पश्चिमी गोदावरी, करीम नगर, खम्माम एवं वारंगल प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्र हैं।
  • महानदी घाटी क्षेत्र- इस कोयला क्षेत्र का विस्तार ओडिशा राज्य में है। वेंकानाल, सुन्दरगढ़ एवं सम्भलपुर प्रमुख कोयला उत्पादक जिले हैं।
  • उत्तरी दामोदर घाटी क्षेत्र- यह झारखण्ड एवं पश्चिम बंगाल राज्यों में विस्तृत है। यहाँ राजमहल की पहाड़ियों में सबसे अधिक कोयले के भण्डार पाये जाते हैं।
  • दामोदर घाटी क्षेत्र- यह देश का सबसे विशाल कोयला क्षेत्र है। इसका विस्तार झारखण्ड एवं पश्चिमी बंगाल राज्यों तक है।
  • झारखण्ड- भारत के लगभग 36% कोयले का उत्पादन करके यह राज्य देश में प्रथम स्थान प्राप्त किये हुए है। यहाँ झरिया, बोकारो, राजमहल, उत्तरी-दक्षिणी कर्णपुरा, डाल्टनगंज तथा गिरिडीह जैसी प्रमुख कोयले की खदानें हैं। झरिया यहाँ की सबसे बड़ी खान है, जो 436 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली हुई है।
  • पश्चिम बंगाल- पश्चिम बंगाल देश का 13% कोयला उत्पन्न कर तीसरे स्थान पर है। (UPBoardSolutions.com) यहाँ पर रानीगंज कोयले की प्रमुख खान है, जो 1,536 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली हुई है।
  • छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश – इस क्षेत्र का कोयला उत्पादन में दूसरा स्थान है। छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश राज्यों से संयुक्त रूप से 28% कोयला निकाला जाता है। यहाँ पेंच घाटी, सोहागपुर, उमरिया, सिंगरौली, रामगढ़, रामकोला, तातापानी, कोरबा तथा बिलासपुर में कोयले की खाने हैं।
  • सोन एवं उसकी सहायक नदी- घाटियों का क्षेत्र मध्य प्रदेश राज्य में इस कोयला क्षेत्र का विस्तार है। यह क्षेत्र उमरिया, सोहागपुर एवं सिंगरौली में विस्तृत है।
  • सतपुड़ा कोयला क्षेत्र- सतपुड़ा कोयला क्षेत्र का विस्तार मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र राज्यों में है। नरसिंहपुर जिले में मोहपानी, कान्हन घाटी, पेंच घाटी तथा बैतूल जिले में पाथरखेड़ा क्षेत्र उल्लेखनीय हैं।
  • गोदावरी-वर्धा घाटी क्षेत्र- इस क्षेत्र के अन्तर्गत महाराष्ट्र में चन्द्रपुर, बलारपुर, बरोरा, यवतमाल, नागपुर आदि जिले तथा आन्ध्र प्रदेश के सिंगरेनी, सस्ती एवं तन्दूर क्षेत्र सम्मिलित हैं। देश के 3% भण्डार यहाँ सुरक्षित हैं।

(2) टर्शियरी कोयला क्षेत्र
यह कोयला प्रायद्वीप के बाह्य भागों में पाया जाता है। सम्पूर्ण भारत का 2% कोयला टर्शियरी काल की चट्टानों से प्राप्त होता है। यह लिग्नाइट प्रकार का है, जिसमें कार्बन की मात्रा 30 से 50% तक पायी जाती है। इसका उपयोग ताप-विद्युत, कृत्रिम तेल तथा ब्रिकेट बनाने में किया जाता है। देश में इस कोयले के 23.1 करोड़ टन के सुरक्षित भण्डार अनुमानित किये गये हैं। इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्र निम्नलिखित हैं

  • राजस्थान- राजस्थान में कोयला बीकानेर के दक्षिण-पश्चिम में 20 किमी की दूरी पर पालना नामक स्थान और उसके आस-पास के क्षेत्र मढ़, चनेरी, गंगा-सरोवर एवं खारी क्षेत्रों में मिलता है।
  • असोम- यहाँ पर कोयला पूर्वी नागा पर्वत के उत्तर-पश्चिमी ढाल पर लखीमपुर तथा शिवसागर जिलों में पाया जाता है। यहाँ माकूम सबसे बड़ा कोयला उत्पादक क्षेत्र है।
  • मेघालय- मेघालय में मिकिर की पहाड़ियों में 1 से 2 मीटर मोटी परत वाला (UPBoardSolutions.com) हल्की श्रेणी का कोयला पाया जाता है। यहाँ पर गारो, खासी एवं जयन्तिया पहाड़ियों में कोयला मिलता है।
  • जम्मू-कश्मीर- दक्षिण-पश्चिमी कश्मीर में करेवा चट्टानों में कोयला मिलता है, जो घटिया किस्म का होता है।

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प्रश्न 2.
ऊर्जा या शक्ति के संसाधन से आप क्या समझते हैं? भारत में खनिज तेल के क्षेत्रीय वितरण को समझाइट। [2013]
या
खनिज तेल का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए
(क) क्षेत्र, (ख) भावी सम्भावनाएँ तथा (ग) तेलशोधक कारखाने
या
ऊर्जा संसाधन के रूप में खनिज तेल का महत्त्व बताइए। भारत में पाये जाने वाले खनिज तेल के दो क्षेत्रों पर प्रकाश डालिए। [2010, 11]
या
बॉम्बे-हाई क्यों प्रसिद्ध है ? इस पर प्रकाश डालिए।
या
भारत में खनिज तेल के उत्पादन क्षेत्रों का वर्णन कीजिए। [2016]
या
भारत में खनिज तेल के वितरण एवं उपयोग का वर्णन कीजिए। [2016]
उत्तर :

ऊर्जा या शक्ति के संसाधन

जिन पदार्थों से मनुष्य को अपने विभिन्न कार्यों एवं गतिविधियों को चलाने के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है, उन्हें ऊर्जा या शक्ति के संसाधन कहा जाता है।

खनिज तेल की उपयोगिता/महत्त्व

खनिज तेल ऊर्जा का दूसरा महत्त्वपूर्ण संसाधन है। इसे पेट्रोलियम भी कहा जाता है। प्राकृतिक वनस्पति एवं जीवों के बड़ी मात्रा में कीचड़, मिट्टी, बालू आदि में दबे रहने पर उन पर ताप, दबाव, रासायनिक, जीवाणु एवं रेडियो-सक्रियता आदि क्रियाओं के फलस्वरूप करोड़ों वर्षों की अवधि में खनिज तेल की उत्पत्ति होती है। भूगर्भ से प्राप्त खनिज तेल में कई अशुद्धियाँ मिली होती हैं। अत: प्रयोग से पहले इसे तेल-शोधनशालाओं में (UPBoardSolutions.com) साफ करने के लिए ले जाया जाता है। इसे साफ कर पेट्रोल, ईथर, बेंजीन, गैसोलीन, मिट्टी का तेल, मशीनों को चिकना करने का तेल, मोम, फिल्म, प्लास्टिक, वार्निश, पॉलिश, मोमबत्ती, वैसलीन आदि लगभग 5,000 पदार्थ प्राप्त होते हैं। इनका उपयोग यातायात साधनों-मोटर, वायुयान, जलयान, रेले एवं उद्योग-धन्धों आदि में ईंधन के रूप में किया जाता है।

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खनिज तेल उत्पादक-क्षेत्र

1. असोम–

  • डिगबोई तेल-क्षेत्र – इस तेल-क्षेत्र का विस्तार टीपम पहाड़ियों के पूर्वोत्तर में लखीमपुर जिले में है, जो 13 किमी लम्बे एवं 1 किमी चौड़े क्षेत्र में विस्तृत है। यहाँ 300 से 1,200 मीटर की गहराई के 800 तेल के कुएँ हैं। तेल निकालने का कार्य असम तेल कम्पनी द्वारा किया जाता है। प्रमुख तेल के कुएँ बप्पापाँग, हस्सापाँग, डिगबोई एवं पानीटोला हैं।
  • सुरमा नदी-घाटी तेल-क्षेत्र – इस नदी-घाटी में हल्की श्रेणी का तेल दक्षिण में बदरपुर एवं पथरिला में निकाला जाता है। दूसरा प्रमुख क्षेत्र मसीमपुर में स्थित है, जहाँ लगभग 18,000 मीटर की गहराई से तेल निकाला जा रहा है।
  • नाहरकटिया तेल-क्षेत्र – इस क्षेत्र में 1953 ई० से तेल का उत्पादन प्रारम्भ किया गया था। इस स्थान की स्थिति डिगबोई से 40 किमी दक्षिण-पश्चिम में दिहिंग नदी के किनारे है, यहाँ 4,000 से 5,000 मीटर की गहराई तक तेल के कुएँ खोदे गये हैं, जिनकी उत्पादन क्षमता 25 लाख टन तेल निकालने की है। इस क्षेत्र में अब तक 80 से अधिक कुएँ खोदे जा चुके हैं, जिनमें से 60 में तेल प्राप्त हुआ है तथा 4 में गैस मिली है।
  • हुगरीजन-मोरेन तेल-क्षेत्र – इसकी स्थिति नाहरकटिया से 40 किमी दक्षिण-पश्चिम में है। यहाँ 29 कुओं में से 22 में तेल के साथ प्राकृतिक गैस भी प्राप्त होती है।
  • रुद्रसागर एवं लकवा तेल-क्षेत्र – इस तेल-क्षेत्र का विस्तार मोरेन तेल (UPBoardSolutions.com)-क्षेत्र के दक्षिण में शिवसागर जिले में है। तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग और ऑयल इण्डिया ने ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी में 1961 ई० में रुद्रसागर और 1965 ई० में लकवा नामक स्थानों पर तेल की खोज का कार्य किया। रुद्रसागर का वार्षिक उत्पादन 4 लाख टन एवं लकवा का 6 लाख टन अनुमानित किया गया है।

2. गुजरात-

  • अंकलेश्वर तेल-क्षेत्र – इस तेल-क्षेत्र का पता 1958 ई० में चला। यह नर्मदा नदी पर बड़ौदा से 44 किमी दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। यहाँ तेल एवं प्राकृतिक गैस का उत्पादन लगभग 1,200 मीटर की गहराई से किया जाता है। इसका वार्षिक उत्पादन 20 लाख टन है। इसमें मिट्टी का तेल एवं गैसोलीन की अधिकता होती है।
  • खम्भात या लुनेज तेल-क्षेत्र – यह तेल-क्षेत्र खम्भात की खाड़ी के ऊपरी सिरे पर बड़ोदरा से 60 किमी पश्चिम में बाडसर में स्थित है। यहाँ 1969 ई० तक 62 कुओं की खुदाई की गयी, जिनमें से 43 में तेल तथा 19 से गैस प्राप्त हुई है। इस क्षेत्र से प्रतिदिन 6 लाख़ घन मीटर प्राकृतिक, गैस प्राप्त होती है।
  • अहमदाबाद-कलोल-तेल-क्षेत्र – इस तेल-क्षेत्र की स्थिति अहमदाबाद के पश्चिम में है। कलोल, नवगाँव, कोसम्बा, कोथना, मेहसाना, सानन्द, बेचराजी, बकरोल, कादी, वासना, धोलका, बावेल, ओल्पाद्, सोभासन आदि स्थानों पर तेल प्राप्त हुआ है।

3. अपतटीय क्षेत्र—

  • अलियाबेट तेल-क्षेत्र – सौराष्ट्र में भावनगर से 45 किमी दूर अरब सागर में स्थित अलियाबेट द्वीप में भी नये तेल-भण्डारों का पता चला है। खम्भात के निकट गैस प्राप्त हुई है।
  • बॉम्बे-हाई तेल-क्षेत्र – महाराष्ट्र राज्य में महाद्वीपीय समुद्रमग्न तटीय क्षेत्र पर मुम्बई महानगर से उत्तर-पश्चिम में 176 किमी की दूरी पर अरब सागर में यह तेल-क्षेत्र स्थित है। यहाँ 1976 ई० से तेल का व्यावसायिक उत्पादन किया जा रहा है। यहाँ ‘सागर सम्राट’ नामक जापानी जल मंच है (Platform) की सहायता से 1,415 मीटर की गहराई से तेल निकाला जाता है। यह देश का सबसे बड़ा तेल उत्पादन-क्षेत्र है, जो देश के 60% से अधिक तेल का उत्पादन करता है।
  • बेसीन तेल-क्षेत्र – इसकी स्थिति बॉम्बे-हाई के दक्षिण में है। इसका पता वर्तमान में ही चला है। यहाँ पर तेल की प्राप्ति 1,900 मीटर की गहराई से हुई है।

4. नवीन तेल-क्षेत्र- सन् 1980 ई० के दशक में तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग (ONGC) तथा ऑयल इण्डिया लि० (OIL) के सम्मिलित प्रयासों से तेल की खोज सर्वेक्षण द्वारा कावेरी तथा कृष्णागोदावरी बेसिनों तथा अपतटीय क्षेत्रों में तेल की प्राप्ति हुई। गुजरात के गान्धार (UPBoardSolutions.com) तेल-क्षेत्र तथा मुम्बई अपतटीय क्षेत्रों में हीरा, पन्ना, ताप्ती, दमन अपतटीय, दक्षिणी बेसिन तथा नीलम क्षेत्रों में भी तेल प्राप्त हुआ। 1987-89 ई० के दौरान असोम में बोरबिल, दिरोई तथा हपजन में तेल तथा अरुणाचल प्रदेश | में कुमचई में तेल तथा गैस प्राप्त हुए हैं।

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भावी सम्भावनाएँ

ऊर्जा के संसाधनों में खनिज तेल का व्यापक महत्त्व है, क्योंकि इसमें कोयले की अपेक्षा ताप-शक्ति कई गुना अधिक होती है। वर्तमान में कारखानों में इंजनों को चलाने में, भट्टियों को ताप-शक्ति देने, मोटरगाड़ियों, रेलगाड़ियों, जलयानों एवं वायुयानों को चलाने के लिए खनिज तेल की संसाधन के रूप में उपयोगिता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। यद्यपि ओ०एन०जी०सी० और ओ०आई०एल० की स्थापना के बाद इनके अलग-अलग और संयुक्त प्रयासों से असोम, अरुणाचल प्रदेश, गुजरात, बॉम्बे हाई, खम्भात की खाड़ी आदि के अतिरिक्त अनेक तेल के भण्डारों की खोज की गयी, तथापि देश की माँग को देखते हुए देश को एक बड़े रूप में तेल का आयात प्रति वर्ष करना पड़ रहा है। भारत के आयात व्यापार के कुल मूल्य का लगभग 40% खनिज तेल ही होता है। देश में तेल की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए नवीन तेल-क्षेत्रों की खोज चल रही है। अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूहों, राजस्थान तथा गांगेय घाटी में सुदूर संवेदी तकनीक का प्रयोग करते हुए तेल की खोज जारी है।

तेलशोधक कारखाने

पृथ्वी से जो खनिज तेल प्राप्त होता है, वह अशुद्ध होता है। इसे तेलशोधनशालाओं में साफ किया जाता है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति से पूर्व देश में एकमात्र तेलशोधनशाला डिगबोई में थी। वर्तमान समय में देश में 18 तेलशोधनशालाएँ हैं, जो देश में प्राप्त तथा विदेशों से आयातित अशुद्ध तेल का शोधन करती हैं। इनमें 17 तेलशोधनशालाएँ सार्वजनिक क्षेत्र में तथा 1 रिलायन्स इण्डस्ट्रीज लि० निजी क्षेत्र में है। ये डिगबोई (असोम), गुवाहाटी (गौहाटी), बोंगई गाँव (असोम), ट्रॉम्बे-I एवं II (महाराष्ट्र), विशाखापत्तनम् (आन्ध्र प्रदेश), चेन्नई (तमिलनाडु), बरौनी (बिहार), कोयली (गुजरात), कोच्चि (केरल), नूनामती (असोम), नुमालीगढ़ (असोम), (UPBoardSolutions.com) कावेरी (तमिलनाडु), हल्दिया (प० बंगाल), मथुरा (उत्तर प्रदेश), करनाल (हरियाणा) तथा मंगलौर (कर्नाटक) में स्थापित हैं। बरौनी, नूनामती, बोंगई गाँव, कोयली, डिगबोई एवं ट्रॉम्बे की तेलशोधनशालाएँ देश में उत्पादित तेल का शोधन करती हैं तथा शेष विदेशों से आयातित तेल का।

प्रश्न 3.
भारत में परमाणु शक्ति के उत्पादन का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए
(क) उत्पादन केन्द्र तथा (ख) महत्त्व।
या
भारत के किन्हीं पाँच परमाणु ऊर्जा केन्द्रों का वर्णन कीजिए। [2010, 11]
या
भारत में परमाणु ऊर्जा केन्द्र कहाँ-कहाँ स्थापित हैं ? [2011]
उत्तर :
(क) उत्पादन केन्द्र – भारत में प्रथम परमाणु रिएक्टर अप्सरा 4 अगस्त, 1956 ई० को कार्यान्वित कर लिया गया था। दूसरा रिएक्टर कनाडा-भारत रिएक्टर नाम से जून, 1959 ई० से कार्य करने लगा था। इसकी उत्पादन क्षमता 40 मेगावाट शक्ति की थी। ध्रुव नामक एक अन्य रिएक्टर 100 मेगावाट की उत्पादन क्षमता को अगस्त, 1985 ई० में पूर्ण कर लिया गया था। भारत में परमाणु शक्ति विद्युत उत्पादन में निम्नलिखित राज्यों का महत्त्वपूर्ण योगदान है

  1. महाराष्ट्र – सन् 1960 ई० में मुम्बई के निकट तारापुर नामक स्थान पर एक परमाणु शक्ति-गृह स्थापित किया गया। यहाँ 2 X 160 मेगावाट क्षमता के विद्युत शक्ति-गृह स्थापित हैं।

  2. राजस्थान – इस राज्य में कोटा में रावतभाटा स्थान पर एक रिएक्टर की दो इकाइयाँ 440 मेगावाट शक्ति की लगायी गयी हैं। इनमें यूरेनियम तथा हल्के जल का उपयोग किया जाता है।

  3. तमिलनाडु – तमिलनाडु राज्य में चेन्नई के निकट कलपक्कम नामक स्थान पर (UPBoardSolutions.com) एक परमाणु केन्द्र स्थापित किया गया है। इसमें दो इकाइयाँ हैं, जिनकी उत्पादन क्षमता 470 मेगावाट है।

  4. उत्तर प्रदेश – इस राज्य में बुलन्दशहर जिले के नरौरा नामक स्थान पर 470 मेगावाट क्षमता के दो रिएक्टर लगाये गये हैं।

  5. एक अन्य रिएक्टर के निर्माण का कार्य गुजरात में काकरापारा में किया गया। इसकी उत्पादन क्षमता 470 मेगावाट शक्ति की है, जिसमें दो रिएक्टरों ने कार्य प्रारम्भ कर दिया है। इसके अतिरिक्त कर्नाटक में कैगा स्थान पर 470 मेगावाट क्षमता का परमाणु शक्ति-गृह स्थापित किया गया है। वर्तमान समय में देश में कुल 14 परमाणु ऊर्जा रिएक्टर काम कर रहे हैं, जिनकी कुल उत्पादन-क्षमता 2,720 मेगावाट है।

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(ख) महत्त्व – भारत में उत्तमकोटि के कोयले और खनिज तेल की कमी है। अत: परमाणु शक्ति द्वारा इस कमी को पूरा किया जा सकता है। परमाणु शक्ति एक आदर्श विकल्प है, जिसका उत्पादन प्रदूषण की समस्या भी पैदा नहीं करता है। भारत कुछ परमाणु-खनिजों में धनी है। बिहार के सिंहभूम और राजस्थान के कुछ भागों में यूरेनियम की खाने हैं। केरल के तट पर पाया जाने वाला मोनोजाइट बालू, परमाणु ऊर्जा का साधन है। भारत में परमाणु विद्युत उत्पादन की प्रतिशत वृद्धि सन्तोषप्रद है। देश की कुल विद्युत उत्पादनक्षमता में अभी नाभिकीय ऊर्जा का अंश मात्र 3% है, परन्तु इसकी भावी सम्भावनाएँ बहुत अधिक हैं। कुल (UPBoardSolutions.com) विद्युत उत्पादन संयन्त्रों में नाभिकीय संयन्त्रों का हिस्सा 4% है। परमाणु ऊर्जा केन्द्र ऐसे स्थानों पर भी सरलता से स्थापित किये जा सकते हैं, जहाँ शक्ति के दूसरे संसाधन या तो हैं ही नहीं या उनकी अत्यधिक कमी है। भारत परमाणु ऊर्जा के शान्तिपूर्ण उपयोगों; जैसे—चिकित्सा और कृषि के लिए। प्रतिबद्ध है।

प्रश्न 4.
परम्परागत ऊर्जा संसाधन से आप क्या समझते हैं ? परम्परागत ऊर्जा संसाधनों के स्रोतों का वर्णन कीजिए।
या
परम्परागत ऊर्जा के संसाधन क्या हैं? इनके दो प्रमुख संसाधनों का वर्णन भी कीजिए।
उत्तर :

परम्परागत ऊर्जा संसाधन

परम्परागत स्रोत ऊर्जा के वे स्रोत हैं, जो प्रयोग के पश्चात् समाप्त हो जाते हैं। इसलिए इन्हें अनव्यकरणीय, समापनीय या क्षयशील स्रोत भी कहा जाता है।

परम्परागत ऊर्जा संसाधन के स्रोत

ऊर्जा के परम्परागत साधनों अथवा स्रोतों में से प्रमुख का विवरण निम्नलिखित है
1. कोयला – भारत विश्व के कोयला उत्पादक देशों में छठा स्थान रखता है। अनुमानतः भारत में 250 अरब टन कोयले के सुरक्षित भण्डार हैं। क्षेत्र–भारत का समस्त कोयला गोण्डवाना क्षेत्र (पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा और मध्य प्रदेश) तथा टर्शियरी क्षेत्र (कच्छ, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु और राजस्थान) में पाया जाता है।
2. खनिज तेल ( पेट्रोलियम) – आज के भौतिक युग की मुख्य संचालन-शक्ति पेट्रोलियम ही है। क्षेत्र–खनिज तेल के उत्पादन में भारत का विश्व में बारहवाँ स्थान है। यहाँ संसार का केवल 0.5% खनिज तेल ही उत्पन्न किया जाता है। भारत में मुख्य रूप से असोम, गुजरात तथा बॉम्बे-हाई में तेल-क्षेत्र स्थित हैं। वर्तमान समय में भारत में तेल की 18 तेलशोधक इकाइयाँ (रिफाइनरी) कार्यरत,
3. जल-विद्युत शक्ति – भारत में शक्ति के साधनों में जल-विद्युत का विशेष महत्त्व है। यहाँ जल-शक्ति का असीमित भण्डार उपलब्ध है। अनुमान है कि जल-शक्ति के द्वारा भारत में 4 करोड़ किलोवाट से भी अधिक विद्युत शक्ति उत्पन्न की जा सकती है।
क्षेत्र – भारत में जल-विद्युत शक्ति उत्पादक क्षेत्रों का विवरण निम्नलिखित है

  • महाराष्ट्र – यह जल-विद्युत उत्पादन में अग्रणी है। टाटा जलविद्युत (तीन शक्ति-गृह), भिवपुरी, खोपोली, मीरा, कोयना, पूर्णा, वैतरणा, भटनगर-बीड़ आदि मुख्य जल-विद्युत केन्द्र हैं।
  • कर्नाटक – विद्युत शक्ति का उत्पादन सर्वप्रथम इसी राज्य में हुआ था। कावेरी पर शिवसमुद्रम्, शिमला, जोग, तुंगभद्रा, शरावती आदि प्रमुख जल-विद्युत योजनाएँ हैं।
  • तमिलनाडु – पायकारा, कावेरी पर मैटूर, ताम्रपर्णी पर पापानासम्, मोयार, कुण्डा, पेरियार, परम्बिकुलम्, अलियार प्रमुख परियोजनाएँ हैं।
  • पंजाब व हिमाचल प्रदेश – मण्डी, गंगुछाल, कोटला, भाखड़ा तथा II, बैरासिडल, चमेरा आदि।
  • केरल – पल्लीवासल, सेंगुलम्, शोलयार, पोरिंगलकुथु, नेरियामंगलम्, पोन्नियार, शबरीगिरि, इडुक्की, कट्टियाडी आदि प्रमुख जलविद्युत परियोजनाएँ हैं।
  • उत्तर प्रदेश – ऊपरी गंग नहर पर ‘गंगा इलेक्ट्रिक ग्रिड’ महत्त्वपूर्ण है, जिसके अन्तर्गत पथरी, मुहम्मदपुर, निरगाजनी, चितौरा, सलावा, भोला, पल्हेड़, सुमेरा आदि स्थानों पर कृत्रिम बाँध बनाकर जल- विद्युत का विकास किया गया है। रिहन्द, माताटीला, (UPBoardSolutions.com) यमुना हाइडिल, रामगंगा जल विद्युत परियोजनाएँ भी उल्लेखनीय हैं।
  • जम्मू-कश्मीर – सिन्ध, झेलम, सलाल, चेनानी, दुलहस्री आदि मुख्य जल-विद्युत परियोजनाएँ हैं।

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4. अणु शक्ति या परमाणु बिजली – जिन खनिजों में रेडियोधर्मी तत्त्व पाये जाते हैं, उन्हें ‘परमाणु खनिज’ कहते हैं; जैसे-यूरेनियम, थोरियम, प्लूटोनियम, रेडियम आदि। इन खनिजों में परमाणुओं तथा अणुओं के विघटन से एक प्रकार का ताप या शक्ति उत्पन्न होती है, जिसे ‘परमाणु शक्ति’ कहा जाता है।
क्षेत्र – भारत में अणु शक्ति केन्द्र निम्नलिखित हैं—

  • ट्रॉम्बे अणु शक्ति केन्द्र,
  • तारापुर परमाणु शक्ति केन्द्र,
  • कोटा परमाणु शक्तिगृह,
  • इन्दिरा गांधी अणु शक्ति केन्द्र, कलपक्कम (चेन्नई),
  • नरौरा परमाणु शक्ति केन्द्र,
  • काकरापारा परमाणु शक्ति केन्द्र (गुजरात)।

प्रश्न 5.
गैर-परम्परागत ऊर्जा से आप क्या समझते हैं? भारत में गैर-परम्परागत ऊर्जा के संसाधनों का वर्णन कीजिए। [2014, 17]
उत्तर :

गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों का क्या अभिप्राय है? इन स्रोतों के दो महत्त्व लिखिए।
या
किन्हीं दो गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
या
ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधनों का महत्त्व लिखिए।
या
गैर-परम्परागत ऊर्जा के दो स्रोत बताइए। [2016, 17]
उत्तर :

गैरपरम्परागत ऊर्जा संसाधन

गैर-परम्परागत स्रोत ऊर्जा के वे स्रोत हैं जिनका प्रयोग बार-बार किया जा सकता है। इसलिए इन्हें नव्यकरणीय या असमापनीय स्रोत भी कहा जाता है।

गैर-परम्परागत ऊर्जा संसाधन के स्रोत

ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधनों अथवा स्रोतों में से प्रमुख का विवरण निम्नलिखित है

1. सौर ऊर्जा – यह प्रदूषण मुक्त है। इसमें सूर्य के प्रकाश को ऊर्जा में बदला जाता है। सौर ऊर्जा का प्रयोग खाना बनाने, पानी गर्म करने, फसल सुखाने व गाँवों में विद्युतीकरण करने में किया जाता है। 31 मार्च, 1998 ई० तक 3.80 लाख वर्ग मीटर क्षेत्र में सौर ऊर्जा उपलब्ध करायी जा चुकी थी। सौर ऊर्जा के उपयोग से प्रति वर्ष 15 करोड़ किलोवाट घण्टे ऊर्जा की बचत हो रही है।

2. पवन ऊर्जा – 
भारत में पवन ऊर्जा की अनुमानित क्षमता 2 हजार मेगावाट है। ऊर्जा मन्त्रालय की । रिपोर्ट के अनुसार 31 मार्च, 1999 ई० तक देश में पवन ऊर्जा की स्थापित क्षमता 1,025 मेगावाट थी। पवन ऊर्जा के उत्पादन में भारत का विश्व (UPBoardSolutions.com) में चौथा स्थान है। गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा एवं तमिलनाडु राज्य इस ऊर्जा उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं।

3. बायो गैस –
देश में मार्च, 1999 ई० तक 2,850 लाख बायो गैस संयन्त्र स्थापित किये जा चुके थे, जो प्रत्येक वर्ष 410 लाख टन जैविक खाद का निर्माण कर रहे हैं। बायो गैस उत्पादन की तकनीक का प्रशिक्षण देने के लिए कोयम्बटूर, पूसा आदि में प्रशिक्षण केन्द्र खोले गये हैं।

4. भूतापीय ऊर्जा – 
भूतापीय ऊर्जा प्राकृतिक गर्म पानी के झरने या तालाब से संयन्त्र लगाकर प्राप्त की जाती है। हिमाचल प्रदेश में कुल्लू जिले के मणिकर्ण नामक स्थान पर भूतापीय ऊर्जा की पायलट परियोजना सफल सिद्ध हुई है।

5. नगरीय तथा औद्योगिक कूड़े-कचरे से ऊर्जा – 
नगरीय तथा औद्योगिक कूड़ा-कचरा पर्यावरण को दूषित करता है। इससे दिल्ली तथा मुम्बई जैसे महानगरों में ऊर्जा तैयार की जाती है।

6. ज्वारीय ऊर्जा – 
अनुमान है कि देश में ज्वारीय शक्ति से 8,000 से 9,000 मेगावाट क्षमता की ऊर्जा प्राप्त हो सकती है। खम्भात की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी तथा सुन्दरवन इसके सम्भावित ऊर्जा क्षेत्र हैं।

7. लहर ऊर्जा –
समुद्री लहरों से देश में 40,000 मेगावाट क्षमता की ऊर्जा प्राप्त करने (UPBoardSolutions.com) की सम्भावना का आकलन किया गया है। केरल में तिरुवनन्तपुरम के निकट विजिंगम स्थान पर 150 मेगावाट क्षमता का संयन्त्र (प्लाण्ट) लगाया गया है।

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महत्त्व
ऊर्जा के गैर-परम्परागत संसाधनों का महत्त्व निम्नलिखित कारणों से है–

  • भारत एक उष्ण कटिबन्धीय देश है। यहाँ वर्ष के अधिकांश भाग में उच्च तापमान रहते हैं। अतः सौर ऊर्जा के विकास की अच्छी सम्भावनाएँ विद्यमान हैं। इसका प्रयोग घरों तथा सड़कों पर | प्रकाश-व्यवस्था, पानी गर्म करने, खाना पकाने, फसलें सुखाने आदि में किया जा सकता है।
  • भारत की तटरेखा विस्तृत है। यहाँ ज्वारीय तथा लहर ऊर्जा का (UPBoardSolutions.com) विकास सम्भव है। तटीय भागों में इस ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है।
  • कृषि उत्पादन अधिक होने से बायो गैस ऊर्जा का विकास सम्भव है। गन्ने की खोई तथा चावल के भूसे | को ऊर्जा-स्रोत के रूप में परिणत किया जा सकता है।
  • सघन एवं जनसंख्या होने के कारण देश में गोबर, मलमूत्र, कूड़े-कचरे आदि की अधिकता है। महानगरों में इसका व्यापक प्रयोग सम्भव है।

प्रश्न 6.
परमाणु ऊर्जा से आप क्या समझते हैं? इसकी किन्हीं पाँच विशेषताओं की विवेचना | कीजिए। [2013, 17]
उत्तर :

परमाणु ऊर्जा

भारत में कोयला और पेट्रोलियम के सीमित भण्डार हैं। इसलिए देश में इस बात की आवश्यकता हुई कि आणविक खनिजों की खोज करके ऊर्जा की प्राप्ति के नये साधने तलाशे जाएँ। जिन पदार्थों में रेडियोधर्मी तत्त्व पाये जाते हैं उन्हें परमाणु खनिज (Atomic Mineral) कहते हैं। जैसे-यूरेनियम, थोरियम, बेरीलियम, जिरकान, ग्रेफाइट, एण्टीमनी, प्लूटोनियम, चेरलाइट, जिरकोनियम, इल्मेनाइट आदि। इन खनिज पदार्थों में अणुओं और (UPBoardSolutions.com) परमाणुओं के विघटन से एक प्रकार की ऊर्जा निकलती है जिसे ‘परमाणु ऊर्जा (Atomic Energy) कहते हैं। एक पौंड यूरेनियम से जितनी ऊर्जा मिलती है उतनी 12 किग्रा कोयले से प्राप्त होती है। देश में ऊर्जा की बढ़ती हुई खपत के कारण परमाणु शक्ति बोर्ड ने विभिन्न स्थानों पर परमाणु ऊर्जा केन्द्रों की स्थापना की है।

परमाणु ऊर्जा का महत्त्व

परमाणु ऊर्जा की निम्न विशेषताओं के कारण इसका महत्त्व बढ़ गया है

  • परमाणु ऊर्जा में अपार क्षमता एवं शक्ति होती है।
  • परमाणु ऊर्जा के केन्द्र उन स्थानों पर बनाये जाते हैं जहाँ परमाणु ऊर्जा का ईंधन उपलब्ध नहीं है।
  • परमाणु ऊर्जा का सर्वव्यापी उपयोग सम्भव है।
  • ऊर्जा के अन्य साधनों की कमी को परमाणु ऊर्जा से पूरा किया जा सकता है।
  • चिकित्सा और कृषि के क्षेत्र में परमाणु ऊर्जा के शान्तिपूर्ण उपयोग में भारत का अग्रणी स्थान है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
शक्ति के संसाधन के रूप में खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस का संक्षिप्त विवरण लिखिए।
उत्तर :

खनिज तेल (पेट्रोलियम)

शक्ति के संसाधन के रूप में खनिज तेल का अत्यधिक महत्त्व है। कोयले द्वारा उत्पन्न ऊर्जा का प्रयोग केवल कारखानों तथा घरों में सम्भव है, किन्तु चालक शक्ति के रूप में परिवहन के साधनों में खनिज तेल ही अधिक उपयोगी है।

पेट्रोलियम का शाब्दिक अर्थ है-चट्टानी तेल। यह भूगर्भीय चट्टानों से निकाला जाता है। इसकी उत्पत्ति भूगर्भ में दबी हुई वनस्पति तथा जल-जीवों के रासायनिक परिवर्तन के फलस्वरूप हुई है। यह अवसादी शैलों में पाया जाता है। भूगर्भ से निकले कच्चे तेल में अनेक अशुद्धियाँ मिली होती हैं। इन अशुद्धियों का तेलशोधनशालाओं में रासायनिक क्रियाओं द्वारा शोधन किया जाता है। भारत में खनिज तेल के भण्डार सीमित ही हैं। भारत प्रति वर्ष लगभग (UPBoardSolutions.com) 30 मिलियन मी टन अशुद्ध खनिज तेल का उत्पादन करता है, जो उसकी कुल आवश्यकता को मात्र 60% पूरा कर पाता है। अतएव भारत को प्रति वर्ष खनिज तेल के आयात पर विदेशी मुद्रा का व्यय करना पड़ता है।

प्राकृतिक गैस
प्राकृतिक गैस के भण्डार सामान्यत: तेल-क्षेत्रों के साथ ही पाये जाते हैं। इस प्रकार गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश तथा ओडिशा के तटों से दूर तेल-क्षेत्रों में भी प्राकृतिक गैस के भण्डार मिले हैं। लेकिन तेल-क्षेत्रों से अलग केवल प्राकृतिक गैस के भण्डार त्रिपुरा और राजस्थान में खोजे गये हैं। इसका प्रयोग कुकिंग गैस के रूप में, उर्वरक उद्योग तथा विद्युत उत्पादन में किया जाता है। 2006-07 में देश में 30792 मिलियन घन मीटर प्राकृतिक गैस का उत्पादन हुआ। ऊर्जा संसाधनों की कमी वाले देशों के लिए प्राकृतिक गैस की उपलब्धि एक अमूल्य उपहार है।

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प्रश्न 2.
पवन ऊर्जा से आप क्या समझते हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पवन ऊर्जा उन्हीं क्षेत्रों में प्राप्त की जा सकती है, जहाँ पवन की गति तीव्र हो तथा इसका प्रवाह सतत रूप से हो, अन्यथा पवन पंखों की गति में अवरोध आ सकता है। पवन-पंखों से विद्युत उत्पादन किया। जा सकता है, पवन-चक्कियाँ चलायी जा सकती हैं, जल खींचा जा सकता है तथा खेतों की सिंचाई भी की जा सकती है।

भारत में गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा एवं तमिलनाडु राज्य पवन-ऊर्जा उत्पादन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त एवं महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। भारत में लगभग 2,000 पवन-चक्कियाँ लगायी जा चुकी हैं और इस समय 3.63 मेगावाट विद्युत की संस्थापित क्षमता वाले 5 (UPBoardSolutions.com) पवन-क्षेत्र कार्य कर रहे हैं। इनसे अब तक 5 लाख यूनिट विद्युत का उत्पादन किया जा चुका है।

प्रश्न 3.
सौर ऊर्जा के विषय में आप क्या जानते हैं ? इसके किन्हीं दो लाभों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
या
सौर ऊर्जा क्या है ? इसके विकास पर अधिक बल क्यों दिया जा रहा है ?
उत्तर :
सौर ऊर्जा, ऊर्जा का व्यापक रूप से उपलब्ध एवं नवीकरण योग्य स्रोत है। यह एक विशाल सम्भावनाओं वाला साधन है। इस सन्दर्भ में सौर चूल्हों का विकास एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। इनसे लगभग बिना किसी खर्च के भोजन बनाया जा सकता है। लाखों सौर चूल्हे देश भर में प्रयोग में लाये जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए छोटे और मध्यम दर्जे के सौर बिजलीघरों की भी योजना बनायी जा रही है। यह भविष्य की ऊर्जा का स्रोत है, क्योंकि खनिज तेल जैसे जीवाश्म ईंधन समाप्त तो होने ही हैं। सौर ऊर्जा के दो लाभ निम्नलिखित हैं

  • सौर ऊर्जा का प्रयोग खाना पकाने, पानी गर्म करने, फसल सुखाने, घरों में प्रकाश करने आदि कार्यों में किया जाता है।
  • यह ऊर्जा का नवीकरण योग्य, अक्षय तथा प्रदूषण-मुक्त स्रोत है। (UPBoardSolutions.com) इन्हीं कारणों से सौर ऊर्जा के विकास पर अत्यधिक बल दिया जा रहा है।

प्रश्न 4.
शक्ति के संसाधनों का संरक्षण क्यों आवश्यक है ?
या
हमारे देश में खनिज संसाधनों के संरक्षण की क्या आवश्यकता है ? इनके संरक्षण के क्या-क्या उपाय हैं ?
या
ऊर्जा संसाधनों का संरक्षण भारत में क्यों आवश्यक है? कोई तीन कारण बताइट। [2017]
उत्तर :
देश के औद्योगीकरण के लिए खनिज तथा ऊर्जा के संसाधनों की आवश्यकता होती है।
औद्योगीकरण के प्रसार के कारण खनिज तथा ऊर्जा के संसाधनों को तेजी से दोहन किया जा रहा है। निस्सन्देह खनिज हमारी राष्ट्रीय सम्पदा हैं। देश के आर्थिक विकास के लिए उनका दोहन आवश्यक है, किन्तु ये सभी साधन क्षयशील होते हैं। यदि उनको दोहन और प्रयोग इसी प्रकार जारी रहा तो वे हमेशा के लिए समाप्त हो जाएँगे। ऐसी स्थिति में खनिज संसाधनों के अन्धाधुन्ध शोषण को रोकना चाहिए तथा इस प्रकार उनको प्रयोग करना चाहिए, जिससे वे अधिकाधिक समय तक उपलब्ध होते रहे। इसी प्रक्रिया को संरक्षण कहते हैं।

देश में शक्ति संसाधनों की उपलब्धता, संचित भण्डार एवं भविष्य की सम्भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उनका संरक्षण करना अति आवश्यक है। इस संरक्षण के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी रहे हैं|

  1. भारत में शक्ति संसाधनों के भण्डार अत्यन्त सीमित हैं। अत: इनका प्रयोग आवश्यक कार्यों में ही किया जाना चाहिए। कल-पुर्जा की नियमित ग्रीसिंग करते रहने से तेल की खपत कम होती है। यदि आवश्यक हो, तो पुरानी मशीनें बदलकर नई मशीनें लगाई जानी चाहिए।
  2. शक्ति संसाधनों; कोयला, खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस; की निरन्तर खोज करते रहना चाहिए।
  3. शक्ति संसाधन अत्यधिक ज्वलनशील पदार्थ होते हैं; इन्हें आग से बचाने के उपाय किए जाने चाहिए।
  4. ‘कोयले की खुदाई करते समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि चूरा कम-से-कम हो। चूरे की टिकलियाँ बनाकर उन्हें उपयोग में लाया जाना चाहिए।
  5. कृषि, उद्योग एवं परिवहन साधनों तथा घरेलू कार्यों में शक्ति संसाधनों की माँग निरन्तर तेजी से बढ़ती जा रही है। अत: वैज्ञानिकों को वैकल्पिक शक्ति संसाधनों की खोज करने के प्रयास निरन्तर करते रहना चाहिए।
  6. पेट्रोलियम पदार्थ ढोने वाले टैंकरों एवं पाइप लाइन की नियमित (UPBoardSolutions.com) जाँच कराते रहना चाहिए। अनुमान लगाया गया है कि एक-एक बूंद का रिसाव होते रहने से एक वर्ष में 500 लीटर तक तेल नष्ट हो जाता है।
  7. कोयला खदानों में स्तम्भों के रूप में पर्याप्त कोयला व्यर्थ ही छोड़ दिया जाता है; अतः खदानों से सम्पूर्ण कोयले की खुदाई की जानी चाहिए। यदि आवश्यक रूप में कोयला बचता भी है तो उसकी टिकली बना देनी चाहिए।
  8. खाना पकाने की गैस (L.PG.), मिट्टी के तेल तथा विद्युत का ही अधिकाधिक उपयोग किया जाना चाहिए क्योंकि पेट्रोलियम के भण्डार सीमित हैं। इससे 15% तक पेट्रोल की बचत की जा सकती है।
  9. कोयला एवं पेट्रोलियम के भण्डार के उन्नत तरीकों को अपनाकर 15% तक ऊर्जा की बचत की जा सकती है। ऊर्जा संसाधनों के प्रयोग की प्रौद्योगिकी में सुधार कर उपभोग को सीमित किया जा सकता है।
  10. यद्यपि ऊर्जा के वैकल्पिक एवं स्थानापन्न संसाधनों के खोजने के वैज्ञानिक प्रयास किए गए हैं; परन्तु अभी तक कोई कारगर उपाय नहीं खोजा जा सका है। अत: इस ओर खोज एवं अनुसन्धानों को निरन्तर जारी रखने की आवश्यकता है।

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प्रश्न 5.
खनिज तेल संरक्षण किस प्रकार किया जा सकता है ?
या
खनिज तेल के संसाधनों के संरक्षण पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :

खनिज तेल के संरक्षण के उपाय

खनिज तेल के संरक्षण के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं

  • दोहन के ऐसे उपाय तथा तकनीक अपनानी चाहिए, जिससे खनन तथा परिष्करण के दौरान खनिजों की न्यूनतम हानि हो।
  • जहाँ तक हो सके क्षयशील संसाधनों के विकल्पों का प्रयोग करना चाहिए।
  • खनिज तेल और कोयले के विकल्प के रूप में जल-विद्युत तथा परमाणु ऊर्जा का उपयोग करना चाहिए।
  • खनिज तेल के प्रयोग की प्रौद्योगिकी में सुधार कर तेल के प्रयोग करने की (UPBoardSolutions.com) ऐसी विधि विकसित की जानी चाहिए, जिससे इसकी प्रयोग-क्षमता बढ़ जाए; अर्थात् उतने ही खनिज तेल की ऊर्जा से वर्तमान की अपेक्षा अधिक कार्य सम्पन्न किये जाएँ।
  • पेट्रोलियम जैसे ऊर्जा के स्रोतों के भण्डारण के उन्नत तरीकों को अपनाकर 15% तक ऊर्जा बचायी जा सकती है। अमेरिका, इंग्लैण्ड, जापान आदि देशों ने इसमें सफलता प्राप्त की है।
  • भूगर्भ से तथा समुद्र तल से खनिज तेल को निकालने के समय होने वाली इसकी बर्बादी को रोका जा सकता है। तेल के शोधन में उन्नत तकनीकी को अपनाकर भी तेल की बरबादी को रोका जा सकता है।
  • तेल के टैंकों तथा तेल की पाइप लाइनों को नियमित रूप से चैक करना चाहिए कि कहीं से तेल रिसाव तो नहीं हो रहा है, क्योकि बूंद-बूंद तेल के रिसाव से भी एक वर्ष में 500 लिटर तेल बरबाद हो जाता है। तेल के विकल्पों की खोज करने के भी प्रयास होने चाहिए। यदि तेल का अभिपूरक प्राप्त हो जाए तो तेल का संरक्षण स्वतः हो जाएगा।

प्रश्न 6.
भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास का विवरण दीजिए।
उत्तर :
भारत में परमाणु ऊर्जा के प्रणेता डॉ० होमी जहाँगीर भाभा थे। सन् 1948 ई० में देश में परमाणु ऊर्जा आयोग का गठन किया गया। सन् 1954 ई० में ट्रॉम्बे (महाराष्ट्र) में भाभा परमाणु शोध संस्थान की स्थापना की गयी।

भारत में परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के विकास के तीन चरण हैं
प्रथम चरण (1948-56 ई०) में ‘अप्सरा’ नामक रियेक्टर की स्थापना की गयी।
द्वितीय चरण (1956-66 ई०) में अनेक तकनीकी सुविधाएँ विकसित की गयीं।
तृतीय चरण (1966 ई० के बाद) में देश में विविध स्थलों पर परमाणु शक्ति केन्द्र स्थापित किये गये। देश का प्रथम परमाणु शक्ति केन्द्र मुम्बई के निकट तारापुर (महाराष्ट्र) में 1969 ई० में स्थापित किया गया। द्वितीय परमाणु शक्ति केन्द्र कोटा के निकट रावतभाटा (राजस्थान) में स्थापित किया गया। तीसरा केन्द्र चेन्नई के निकट कलपक्कम (तमिलनाडु) में और चौथा केन्द्र बुलन्दशहर के निकट नरौरा (उत्तर प्रदेश) में स्थापित किया गया। काकरापारा (गुजरात) तथा कैगा (कर्नाटक) में भी परमाणु शक्ति केन्द्र कार्य कर रहे हैं। वर्तमान समय में देश में कुल चौदह परमाणु ऊर्जा रियेक्टर काम कर रहे हैं, जिनकी कुल उत्पादन-क्षमता (UPBoardSolutions.com) 2,720 मेगावाट है।

प्रश्न 7.
शक्ति के प्राचीन संसाधन’कोयले के संरक्षण के लिए क्या उपाय अपनाये जाने चाहिए?
उत्तर :
ऊर्जा के संसाधनों में कोयला अत्यन्त पुराना संसाधन है। सैकड़ों वर्षों से कोयले का उपयोग ऊर्जा के स्रोत के रूप में किया जा रहा है, जबकि विश्व में इसके भण्डार सीमित हैं। अत: इसके संरक्षण के . लिए निम्नलिखित उपाय अपनाये जाने चाहिए

  • कोयले की खानों में आग लगने, खान की छत गिरने अथवा खान में पानी भरने से कोयले के भण्डारों को भारी हानि पहुँचती है। अत: खनन-तकनीकी में सुधार कर इन हानियों को रोका जा सकता है।
  • कोयले से ताप व ऊर्जा प्राप्त करने की तकनीकी को भी अधिक विकसित करके इसका संरक्षण किया जा सकता है।
  • कभी-कभी कोयले की खानों में गैसें भरने के कारण विस्फोट हो जाते हैं। यदि इन विस्फोटों से खानों को बचाने के उपाय विकसित किये जाएँ तो कोयले के भण्डार सुरक्षित रहेंगे।
  • जल-विद्युत कभी न समाप्त होने वाला ऊर्जा संसाधन है। अतः इसका उपयोग बढ़ाकर कोयले का उपयोग सीमित किया जाए। उदाहरण के लिए पहले रेलें कोयले व डीजल से ही चलती थीं, किन्तु अब अनेक मार्गों पर जल-विद्युत से रेनें चलायी जाती हैं।
  • ईंधन के रूप में भी कोयले का प्रयोग घटाकर उसके स्थान पर सौर ऊर्जा, प्राकृतिक गैस तथा गोबर गैस का उपयोग बढ़ाया जाना चाहिए।
  • कोयले की खुदाई करते समय ऐसा प्रयास करना चाहिए कि (UPBoardSolutions.com) चूरा कम-से-कम हो। कोयले के चूरे को भी उपयोग में लाना चाहिए।
  • खदानों में कोयला स्तम्भों के रूप में पर्याप्त मात्रा में छोड़ दिया जाता है। खदानों से कोयले की अधिकाधिक मात्रा का खनन कर लेना चाहिए।
  • कोयले की दहन-भट्टियाँ खुली नहीं होनी चाहिए तथा उनकी चिमनियाँ ऊँची होनी चाहिए। कोयले से तापीय ऊर्जा प्राप्त करने की तकनीकी को भी अधिक उन्नत करके कोयले का संरक्षण किया जा सकता है।

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प्रश्न 8.
ऊर्जा के परम्परागत तथा गैर-परम्परागत साधनों की तुलना कीजिए।
उत्तर :
परम्परागत तथा गैर-परम्परागत साधनों की तुलना निम्नवत् है
UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 7 ऊर्जा संसाधन 1

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ऊर्जा संसाधन का क्या महत्त्व है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जिन पदार्थों से मनुष्य को अपने विभिन्न कार्यों एवं गतिविधियों को चलाने के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है, उन्हें ऊर्जा संसाधन कहते हैं। मनुष्य का कोई भी कार्य ऊर्जा संसाधनों के बिना पूरा नहीं हो सकता।

प्रश्न 2.
ऊर्जा या शक्ति के संसाधन से क्या अभिप्राय है ? [2009, 17]
उत्तर :
जिन पदार्थों से मनुष्य को ऊर्जा की प्राप्ति होती है; अर्थात् ऐसे पदार्थ जिनसे परिवहन व उद्योगों को चालक-शक्ति प्राप्त होती है; ऊर्जा या शक्ति के साधन कहलाते हैं।

प्रश्न 3 .
ऊर्जा के चार परम्परागत स्रोतों के नाम लिखिए।
या
ऊर्जा के किन्हीं दो संसाधनों पर प्रकाश झलिए। [2013]
उत्तर :
ऊर्जा के चार परम्परागत स्रोतों के नाम हैं

  • कोयला,
  • पेट्रोलियम,
  • परमाणु खनिज तथा
  • जल-शक्ति।

प्रश्न 4.
ऊर्जा के चार गैर-परम्परागत स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर :
ऊर्जा के चार गैर-परम्परागत स्रोतों के नाम हैं

  • सौर ऊर्जा,
  • भू-तापीय ऊर्जा,
  • पवन ऊर्जा तथा
  • ज्वारीय ऊर्जा।

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प्रश्न 5.
सौर ऊर्जा के दो गुण लिखिए। या सौर ऊर्जा के दो महत्त्व बताइट। [2015]
उत्तर :
सौर ऊर्जा के दो गुण निम्नलिखित हैं— 

  • यह ऊर्जा का अक्षय स्रोत तथा नवीकरण योग्य साधन है,
  • यह प्रदूषण-मुक्त है।

प्रश्न 6.
भारत के पूर्वी तट पर स्थित दो तेलशोधनशालाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
भारत के पूर्वी तट पर स्थित दो तेलशोधनशालाएँ हैं

  • डिगबोई (असोम) तथा
  • हल्दिया (पश्चिम बंगाल)।

प्रश्न 7.
भारत के चार परमाणु शक्ति केन्द्रों के नाम बताइए। वे किन राज्यों में स्थित हैं? [2011]
या

भारत में किन्हीं दो परमाणु ऊर्जा केन्द्रों के नाम लिखिए। [20:6, 18]
उत्तर :
भारत के चार परमाणु शक्ति केन्द्र निम्नलिखित हैं

  • तारापुर–महाराष्ट्र
  • रावतभाटा-राजस्थान
  • कलपक्कम (UPBoardSolutions.com) तमिलनाडु
  • नरौरा–उत्तर प्रदेश।

प्रश्न 8.
परमाणु ऊर्जा में प्रयोग होने वाले खनिजों के नाम लिखिए। भारत में वे कहाँ मिलते हैं?
उत्तर :
परमाणु ऊर्जा में प्रयुक्त होने वाले खनिज और जिन राज्यों में वे पाये जाते हैं, उनके नाम हैं

  • यूरेनियम–बिहार और राजस्थान में।
  • थोरियम, बेरिलियम, ग्रेफाइट, मोनोजाइट–केरल की समुद्रतटीय रेत में।
  • चेरोलाइट तथा जिरकोनियम- बिहार में।

प्रश्न 9.
डिगबोई किस खनिज से सम्बन्धित है ?
उत्तर :
डिगबोई खनिज तेल पेट्रोलियम के परिष्करण से सम्बन्धित है।

प्रश्न 10.
भारत की कोई चार तेलशोधनशालाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
भारत की चार तेलशोधनशालाओं के नाम हैं

  • ट्रॉम्बे-! (मुम्बई के समीप महाराष्ट्र),
  • विशाखापत्तनम् (UPBoardSolutions.com) (आन्ध्र प्रदेश),
  • बरौनी (बिहार) तथा
  • मथुरा (उत्तर प्रदेश)।

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प्रश्न 11.
भारत के खनिज तेल उत्पादन के दो क्षेत्रों का नाम व स्थिति सहित उल्लेख कीजिए।
या
भारत में पेट्रो-रसायन के किन्हीं दो केन्द्रों के नाम लिखिए।
उत्तर :
भारत के खनिज तेल उत्पादन के दो क्षेत्रों के नाम हैं

  • बॉम्बे हाई अपतटीय क्षेत्र-मुम्बई से 120 किमी दूर गहरे सागर में स्थित।
  • अंकलेश्वर (गुजरात, नर्मदा नदी पर बड़ौदा से 44 किमी दक्षिण-पश्चिम में स्थित)।

प्रश्न 12.
‘काला सोना’ और ‘तरल सोना’ किसे कहते हैं ?
उत्तर :
कोयले क़ो ‘काला सोना और खनिज तेल को ‘तरल सोना’ कहा जाता है।

प्रश्न 13.
परमाणु खनिज किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जिन खनिजों से परमाणु शक्ति की उत्पत्ति होती है, उन्हें परमाणु खनिज कहते हैं।

प्रश्न 14.
दो शक्ति के संसाधनों के नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :

  • कोयला,
  • पेट्रोलियम पदार्थ।

प्रश्न 15.
खनिज तेल को शोधनशालाओं में किन-किन साधनों से भेजा जाता है?
उत्तर :
खनिज तेल को शोधनशालाओं (UPBoardSolutions.com) में टैंकरों व पाइप लाइनों से भेजा जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. ऊर्जा का नवीकरण संसाधन है,
(क) परमाणु ऊर्जा
(ख) जल विद्युत
(ग) कोयला
(घ) पेट्रोलियम

2. रानीगंज कोयले की खान किस प्रदेश में है? [2011]
(क) बिहार में
(ख) प० बंगाल में
(ग) ओडिशा में
(घ) मध्य प्रदेश में

3. जीवाश्म ईंधन का उदाहरण है
(क) कोयला
(ख) परमाणु खनिज
(ग) जल ऊर्जा
(घ) भूतापीय ऊर्जा

4. पवन ऊर्जा का उत्पादन किस राज्य में होता है?
(क) गुजरात
(ख) हरियाणा
(ग) पंजाब
(घ) उत्तर प्रदेश

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5. कोटा परमाणु शक्ति केन्द्र किस प्रदेश में स्थित है?
(क) राजस्थान
(ख) तमिलनाडु
(ग) महाराष्ट्र
(घ) गुजरात

6. डिगबोई तेल क्षेत्र किस राज्य में है?
(क) त्रिपुरा
(ख) असोम
(ग) गुजरात
(घ) महाराष्ट्र

7. कलपक्कम में निम्नलिखित में से क्या स्थापित है? [2012]
(क) तेलशोधन केन्द्र
(ख) जल-विद्युत केन्द्र
(ग) परमाणु ऊर्जा केन्द्र
(घ) तापविद्युत केन्द्र

8. अंकलेश्वर प्रसिद्ध है [2012]
(क) कोयले के लिए।
(ख) खनिज तेल के लिए।
(ग) परमाणु ऊर्जा के लिए
(घ) जल-विद्युत के लिए

9. झरिया प्रसिद्ध है [2010, 16]
(क) कोयले के लिए
(ख) ताँबे के लिए।
(ग) बॉक्साइट के लिए,
(घ) लौह-अयस्क के लिए

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10. निम्नलिखित में से किससे मुम्बई हाई’ सम्बन्धित है? [2013]
(क) पर्वत शिखर
(ख) बन्दरगाह
(ग) खनिज तेल
(घ) पर्यटन

11. भारत में कोयला उत्पादन में प्रथम स्थान है [2017]
(क) झारखण्ड का
(ख) बिहार का
(ग) मध्य प्रदेश का
(घ) आन्ध्र प्रदेश का

12. निम्नलिखित में से कौन ऊर्जा संसाधन नहीं है? [2017]
(क) जल
(ख) पेट्रोलियम
(ग) कोयला
(घ) मैंगनीज

उत्तरमाला

1. (ख), 2. (ख), 3. (क), 4. (क), 5. (क), 6. (ख), 7. (ग), 8. (ख), 9. (क), 10. (ग), 11. (क), 12. (घ)

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 6 स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाएँ एवं सेवाएँ

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 6 स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाएँ एवं सेवाएँ

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 6 स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाएँ एवं सेवाएँ.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाओं से क्या तात्पर्य है? इनके मुख्य कार्यों का वर्णन कीजिए।
या
अपने राज्य की स्थानीय स्वास्थ्य सेवाओं के जिला स्तरीय कार्यों का वर्णन कीजिए।
या
जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी का क्या कार्य है? समझाइए।
उत्तर:
स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाओं का अर्थ

किसी स्थान विशेष (नगर, ग्राम, कस्बा तथा कॉलोनी आदि) की स्वास्थ्य सम्बन्धी देख-रेख; जैसे कि रोगियों के उपचार, निर्धनों को पौष्टिक आहार, पेय जल एवं स्वच्छता के लिए जिन संस्थाओं की व्यवस्था की जाती है, उन्हें स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाएँ कहते हैं। जैसे–राजकीय चिकित्सालय, (UPBoardSolutions.com) परिवार नियोजन केन्द्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, चलते-फिरते चिकित्सालय, बाल स्वास्थ्य रक्षा केन्द्र तथा स्वास्थ्य निरीक्षण केन्द्र इत्यादि।

जिला स्तरीय स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाओं के प्रमुख कार्य

सभी स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाएँ जनहित में कार्य करती हैं। जिला स्तर पर स्वास्थ्य सम्बन्धी किए जाने वाले समस्त कार्यों के लिए जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी जिम्मेदार होता है। जिला स्तर पर किए जाने वाले जन-स्वास्थ्य सम्बन्धी मुख्य कार्यों का विवरण निम्नवर्णित है

  1.  बच्चे का जन्म, भार एवं क्रमिक शारीरिक विकास का विवरण लिखना
  2. छोटे बच्चों को रोग-प्रतिरोधक टीके लगाना।
  3.  सम्बन्धित क्षेत्र में संक्रामक रोगों से बचाव की व्यवस्था करना
  4. आर्थिक रूप से दुर्बल एवं सामान्य नागरिकों के लिए नि:शुल्क अथवा कम मूल्य की औषधियों की व्यवस्था करना।
  5. विभिन्न ग्रामों एवं मौहल्लों में छोटे-छोटे औषधालय खोलने के यथासम्भव प्रयास करना।
  6. स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराने के लिए स्थान-स्थान पर पोस्टर, चित्र, चार्ट तथा चलचित्र आदि की व्यवस्था करना। .
  7. रक्त, मल-मूत्र तथा कफ इत्यादि के निरीक्षण हेतु परीक्षण प्रयोगशालाओं की व्यवस्था करना।
  8.  नागरिकों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए मनोरंजन केन्द्रों को खोलना।
  9. ग्रामवासियों को स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा देना, जिससे कि उनमें फैले परम्परागत अन्ध-विश्वास समाप्त हो सकें।
  10.  सामान्य रूप से उपयोग में आने वाले भोज्य पदार्थों की स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से गुणवत्ता के निरीक्षण की व्यवस्था करना तथा दोषी पाए जाने वाले विक्रेताओं को शासन द्वारा दण्ड दिलाना।
  11. सड़कों, गलियों, नालियों तथा सीवर पाइप लाइनों की सफाई एवं स्वच्छता का प्रबन्ध करना।।
  12. किसी रोग के संक्रामक रूप ग्रहण करने की आशंका होने पर सामान्य नागरिकों को आवश्यक सावधानियों एवं उपचार के विषय में विभिन्न माध्यमों द्वारा जानकारी देना।
  13. स्वास्थ्य विभाग नागरिकों के जन्म-मरण का ब्यौरा भी रखता है।

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प्रश्न 2:
प्रमुख जन-स्वास्थ्य संस्थाओं एवं उनके कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाएँ–देखें प्रश्न संख्या 1 का प्रारम्भिक भाग।

प्रमुख स्थानीय संस्थाएँ एवं उनके कार्य

(1) प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र:
हमारे देश में प्रायः सभी क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र स्थापित किए गए हैं। यह प्रायः एक निश्चित जनसंख्या (20,000 से 25,000 तक) के क्षेत्र में खोले जाते हैं। प्रत्येक केन्द्र का संचालक प्रभारी चिकित्सा-अधिकारी होता है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक केन्द्र में स्वास्थ्य निरीक्षक, कम्पाउण्डर, (UPBoardSolutions.com) वार्ड-ब्वाय तथा नर्स भी होते हैं। नवीन व्यवस्था के अनुसार छोटे-छोटे क्षेत्रों (ग्राम आदि) के लिए एक स्त्री अथवा पुरुष, जन-स्वास्थ्य निरीक्षक नियुक्त किया जाता है, – जिसका कार्य अपने क्षेत्र में स्वास्थ्य सम्बन्धी सभी सेवाएँ उपलब्ध कराना होता है। इन केन्द्रों के संचालन
के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1.  जन-स्वास्थ्य की देख-रेख करना,
  2.  स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा का प्रसार करना,
  3.  परिवार नियोजन कार्यक्रम का संचालन,
  4.  विभिन्न रोगों के आँकड़े एकत्रित करना तथा
  5.  घातक रोगों (टी० बी०, पोलियो, चेचक आदि) से बचाव के टीके लगाना।

(2) चिकित्सालय:
विभिन्न नगरों में स्थिति के अनुसार, ऐलोपैथिक, होम्योपैथिक एवं दक चिकित्सालय होते हैं, जिनमें नागरिकों को नि:शुल्क चिकित्सा-सुविधा उपलब्ध होती है। प्रत्येक जिले में प्रायः एक जिला राजकीय चिकित्सालय होता है, जिसमें रोगी की चिकित्सा तथा विभिन्न प्रकार के ऑपरेशनों की सुविधा भी उपलब्ध होती है। कुछ बड़े नगरों में मेडिकल कॉलेज होते हैं जो कि चिकित्सा क्षेत्र में विद्यार्थियों को स्नातक तथा स्नातकोत्तर (UPBoardSolutions.com) स्तर तक शिक्षा देते हैं। इनसे सम्बन्धित चिकित्सालय नागरिकों को विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण चिकित्सा सुविधा निःशुल्क उपलब्ध कराते हैं। राजकीय चिकित्सालयों में प्रायः चिकित्सा के साथ-साथ रोगियों के आवास (जनरल वार्ड) एवं भोजन की भी निःशुल्क व्यवस्था होती है।

(3) परिवार नियोजन केन्द्र:
इनकी स्थापना केन्द्रीय सरकार ने देश की जनसंख्या में वृद्धि को नियन्त्रित रखने तथा परिवार-कल्याण के उद्देश्य से की है। इन केन्द्रों में योग्य चिकित्सक एवं नसें होती हैं। इनके द्वारा परिवार नियोजन सम्बन्धी जानकारियों का जन-प्रसार किया जाता है तथा सम्बन्धित साधनों को निःशुल्क वितरण (UPBoardSolutions.com) किया जाता है। सरकार समय-समय पर परिवार नियोजन अपनाने वालों को आर्थिक व अन्य प्रकार के प्रोत्साहन दिया करती है।

(4) चलते-फिरते चिकित्सालय:
चिकित्सा विभाग द्वारा विशेष प्रकार की बसों से गाँवों में चिकित्सक भेजे जाते हैं जो कि रोगियों का उपचार करते हैं तथा औषधियों का वितरण करते हैं। चिकित्सक ग्रामवासियों को चेचक, टिटेनस इत्यादि संक्रामक रोगों के टीके भी लगाते हैं।

(5) नगरपालिका जन-स्वास्थ्य विभाग:
प्रत्येक नगर में नगरपालिका अथवा महानगरपालिका का स्वास्थ्य विभाग होता है। यह नगर की स्वच्छता एवं स्वास्थ्य की देख-रेख करती है। मलेरिया उन्मूलन तथा संक्रामक रोगों से नागरिकों की सुरक्षा आदि स्वास्थ्य विभाग के महत्त्वपूर्ण दायित्व होते हैं।

(6) प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र:
इनको कार्य ग्रामों की अशिक्षित जनता को आवश्यक शिक्षा प्रदान करना है। भाषणों, चित्रों, चलचित्रों, टी० वी० तथा विशेष कैम्पों द्वारा प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों के प्रायोजक ग्रामवासियों को शिक्षा देते हैं, उनके अन्धविश्वासों को दूर करने का प्रयास करते हैं तथा स्वास्थ्य के प्रति उनमें चेतना जाग्रत करते हैं।

(7) अन्धे, बधिर व मूक व्यक्तियों के स्कूल:
केन्द्र सरकार के अनेक सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा अनेक स्थानों पर इस प्रकार के स्कूल चल रहे हैं। इनमें अन्धे बच्चों व युवाओं को विशेष तकनीक (बेल विधि) द्वारा शिक्षा दी जाती है। इसी प्रकार अन्य तकनीकों द्वारा बधिर व गैंगों को शिक्षा दी जाती है। तथा अनेक प्रकार से इन्हें आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास किए जाते हैं।

(8) विकलांग केन्द्र:
इन केन्द्रों पर अपंग व्यक्तियों का उपचार किया जाता है तथा उनमें आवश्यक कृत्रिम अंग भी आरोपित किए जाते हैं। इन्हें शिक्षित किया जाता है तथा विभिन्न व्यावसायिक कार्यों की शिक्षा दी जाती है, जिससे कि ये आत्मनिर्भर हो सकें।

(9) बाल स्वास्थ्य रक्षा केन्द्र:
इन केन्द्रों का संचालन प्रायः नगरपालिका करती है। समय-समय पर इन केन्द्रों द्वारा बच्चों के स्वास्थ्य का परीक्षण किया जाता है, रोग-प्रतिरोधक औषधियाँ निःशुल्क वितरित की जाती हैं तथा गम्भीर रोगों से ग्रस्त बच्चों के उपचार की व्यवस्था की जाती है।

(10) निरीक्षण विभाग:
राज्य सरकार द्वारा इस प्रकार के विभागों की स्थापना की गई है। इनमें कार्यरत कर्मचारी विभिन्न खाद्य सामग्रियों व औषधियों के सेम्पल लेकर उनकी गुणवत्ता का विश्लेषण करते हैं। दोषी पाए जाने वाले विक्रेताओं को राज्य सरकार दण्डित किया करती है।

प्रश्न 3:
बहुउद्देशीय कार्यकर्ताओं के विषय में आप क्या जानती हैं? इनके कार्यों का वर्णन ‘, कीजिए।
उत्तर:
बहुउद्देशीय कार्यकर्ता सम्बन्धित ग्रामीण क्षेत्र में संक्रामक रोगों पर नियन्त्रण, पर्यावरण स्वच्छता, परिवार नियोजन, स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा तथा छोटे-छोटे रोगों के उपचार सम्बन्धी उपायों की यथासम्भव व्यवस्था करता है। महिला एवं पुरुष दोनों ही बहुउद्देशीय कार्यकर्ता के रूप में नियुक्त (UPBoardSolutions.com) किए जाते हैं। महिला कार्यकर्ता 2000 तक की जनसंख्या के लिए तथा पुरुष कार्यकर्ता 3000 तक की जनसंख्या वाले क्षेत्र के लिए पूर्णतः उत्तरदायी होते हैं। आवश्यकता पड़ने पर दोनों प्रकार के कार्यकर्ता एक-दूसरे की सहायता कर सकते हैं।

बहुउद्देशीय कार्यकर्ताओं के महत्त्वपूर्ण कार्य

महिला कार्यकर्ता द्वारा किए जाने वाले कार्य:
परिवार नियोजन व मातृ-शिशु कल्याण महिला कार्यकर्ता के दो महत्त्वपूर्ण दायित्व हैं। उसके अन्य कार्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

  1. महिलाओं को परिवार नियोजन के लाभ बताकर उन्हें इसके लिए प्रेरित करना।
  2. गर्भ निरोध की विधियों के विषय में महिलाओं को पर्याप्त जानकारियाँ देना।
  3. गर्भवती महिलाओं को सस्ते एवं पौष्टिक आहार के विषय में बताकर उन्हें इसके प्रयोग के लिए प्रेरित करना।
  4.  प्रसव के पूर्व व पश्चात् तथा प्रसव काल में महिलाओं की मदद करना।
  5.  बच्चों एवं नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य की देख-रेख करना।।
  6. कुपोषण से ग्रस्त माताओं व बच्चों को कैल्सियम, आयरन, विटामिन्स तथा प्रोटीन इत्यादि की आवश्यक मात्रा देना।

पुरुष कार्यकर्ताओं के कार्य:
पुरुष कार्यकर्ता अपेक्षाकृत बड़े क्षेत्र में कार्य करते हैं। इनके निम्नलिखित सामान्य कार्य हैं

  1.  ग्रामीणों को पर्यावरण प्रदूषण से उत्पन्न होने वाली विभिन्न कठिनाइयों से अवगत कराना।
  2. गाँव में कूड़ा-करकट दूर करने तथा मल-मूत्र के उचित निकास के विषय में वहाँ के निवासियों को प्रेरित करना।
  3.  ग्रामीणों को स्वास्थ्य के महत्त्व से परिचित कराना।
  4.  ग्रामीणों को शुद्ध पेय जल के महत्व को समझाना तथा जल शुद्ध करने की सामान्य विधियों से उन्हें परिचित कराना।
  5. गाँव में किसी सुविधाजनक स्थान पर स्वास्थ्य-क्लीनिक की स्थापना करना।
  6. संक्रामक रोगों से बचाव के सभी उपायों को प्रयोग में लाना।
  7. छोटे-मोटे रोगों के उपचार के उपाय करना।
  8. बड़े अथवा घातक रोग से ग्रसित रोगी को बड़े अस्पताल पहुँचाने की अविलम्ब व्यवस्था करना।
  9. पुरुषों को परिवार नियोजन के लाभ समझाकर उन्हें बन्ध्यीकरण के लिए प्रेरित करना।
  10.  आवश्यकता पड़ने पर महिला कार्यकर्ता की मदद करना।

प्रत्येक कार्यकर्ता को सप्ताह में कम-से-कम एक बार मुख्य केन्द्र में अपने कार्यों का लेखा-जोखा देना होता है। इसके आधार पर मुख्य केन्द्र से उन्हें आवश्यक एवं उपयोगी निर्देश प्राप्त होते हैं। बहुउद्देशीय कार्यकर्ताओं का ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अत्यधिक महत्त्व है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
प्रसार-शिक्षक के मुख्य कार्य क्या हैं?
उत्तर:
प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में चिकित्सा अधिकारी चिकित्सा सम्बन्धी दायित्वों का निर्वाह करते हैं तथा इसके साथ-साथ प्रसार-शिक्षक के कार्यों का भी निरीक्षण करते हैं। प्रसार-शिक्षक परिवार नियोजन, माताओं, शिशुओं तथा बच्चों के स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यों के लिए विशेष रूप से उत्तरदाई होता है। इन कार्यों में प्रसार-शिक्षक की सहायता के लिए 6 परिनिरीक्षक (4 पुरुष व 2 महिलाएँ) भी नियुक्त (UPBoardSolutions.com) किए जाते हैं। महिला परिनिरीक्षिकाएँ माताओं व शिशुओं की सीधे सहायता करती हैं, जबकि पुरुष परिनिरीक्षक महिला कार्यकर्ताओं की सहायता करते हैं। प्रसार-शिक्षक व उसके सहयोगियों को उनके . विशिष्ट कार्य के साथ-साथ स्वास्थ्य सम्बन्धी अन्य सभी कार्यों को भी अपनी क्षमता के अनुसार करना होता है। इस प्रकार प्रसार-शिक्षक एवं उसके सहयोगी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र से प्राप्त सुविधाओं को सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचाते हैं।

प्रश्न 2:
‘सामुदायिक विकास खण्ड के विषय में आप क्या जानती हैं?
उत्तर:
‘सामुदायिक विकास खण्ड’ योजना का प्रारम्भ केन्द्रीय सरकार ने ग्रामीण जनता के कल्याण को दृष्टिगत रखते हुए किया है। इस योजना में ग्रामीण क्षेत्रों को विभिन्न खण्डों में विभाजित किया गया है। इन खण्डों के कार्य-क्षेत्र में कृषि एवं अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के साथ-साथ निम्नलिखित कार्य भी सम्मिलित किए गए हैं

  1. जन-स्वास्थ्य की देख-रेख व स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यक शिक्षण।
  2. मातृ एवं शिशु कल्याण।
  3.  चेचक, मलेरिया आदि के उन्मूलन की योजनाओं को गति प्रदान करना।
  4.  संक्रामक रोगों से ग्रामीण जनता को सुरक्षित रखने के यथासम्भव प्रयास करना।
  5.  परिवार नियोजन के कार्यक्रम को गति प्रदान करना।

केन्द्रीय सरकार ने ग्रामीण अंचल में एक लाख की जनसंख्या वाले क्षेत्र के सभी खण्डों को मिलाकर एक बड़े खण्ड का रूप देने का प्रस्ताव किया तथा इसका नाम ‘सामुदायिक विकास खण्ड रखा गया। इस प्रकार यह केन्द्रीय सरकार के अनुदान पर चलने वाली ग्रामीण अंचल के लिए एक
उपयोगी योजना है।

प्रश्न 3:
जन-स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के मार्ग में कौन-कौन सी कठिनाइयाँ आती हैं?
उत्तर:
हमारे ग्रामीण अंचल में एक सीमा तक शिक्षा का अभाव है, जिसके फलस्वरूप ग्रामीणों में अन्धविश्वास का बोलबाला है तथा टोने-टोटके आज भी प्रचलित हैं। इस वातावरण में जन-स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का मार्ग अनेक कठिनाइयों से भरा होता है। अपने कल्याण से सम्बन्धित होने पर भी ग्रामीण इन कार्यकर्ताओं को पूर्ण सहयोग देने में हिचकिचाते हैं। अतः कार्यकर्ताओं को अनेक परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं। कुछ सामान्य कठिनाइयाँ निम्नलिखित हैं

(1) शिक्षा का अभाव:
भली प्रकार शिक्षित न होने के कारण अधिकांश ग्रामीण स्वास्थ्य सम्बन्धी नियम, रोगों से बचाव तथा भोजन एवं पोषण जैसी महत्त्वपूर्ण बातों से अनजान होते हैं। अतः इन्हें
जन-स्वास्थ्य सेवाओं का पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता।

(2) रूढ़िवादिता:
अधिकांश ग्रामीण जनता अयोग्य हकीम, वैद्य तथा चिकित्सकों की दवाइयों पर ही निर्भर करती है। कुछ लोग तो रोगों में टोने-टोटके का प्रयोग करना लाभकारी मानते हैं। इन्हें सही मार्ग पर लाना सरल कार्य नहीं है।

(3) सार्वजनिक स्वच्छता का अभाव:
अधिकांश ग्रामीण तथा आदिवासी जनता सार्वजनिक स्वच्छता के महत्त्व को नहीं समझती है। कहीं भी कूड़ा-करकट फेंक देना, मल-मूत्र का अनुचित निकास तथा नालियों में ठहरा हुआ गन्दा पानी ग्रामीण क्षेत्रों में सामान्य बातें हैं, जिनके फलस्वरूप विभिन्न रोगों के फैलने की सम्भावनाएँ सदैव ही बनी रहती हैं। इन्हें स्वच्छता का महत्त्व समझाना तथा इस पर चलने के लिए विवश करना एक कठिन कार्य है।

(4) स्वास्थ्य संगठनों की अकर्मण्यता:
केन्द्रीय एवं राज्य सरकार जनहित में सदैव नई-नई योजनाएँ प्रारम्भ करती हैं, परन्तु अत्यन्त दु:ख की बात है कि न तो इनके प्रति जनता ही पूर्णरूप से जागरूक रहती है और न ही इनके अन्तर्गत नियुक्त किए गए कर्मचारी अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। अतः परिणाम यह निकलता है कि योजनाएँ केवल आंशिक रूप से ही सफल हो पाती हैं। सरकार द्वारा गठित विभिन्न स्वास्थ्य संगठन भी इसके अपवाद नहीं हैं।

प्रश्न 4:
विश्व स्वास्थ्य संगठन क्या है?
उत्तर:
विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना वर्ष 1940 में हुई तथा यह 4 अप्रैल, 1948 ई० से पूर्ण रूप से कार्य कर रहा है। इसका गठन संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्त्वावधान में किया गया है। विश्व के अधिकांश देश इसके सदस्य हैं तथा इनके चिकित्सा विशेषज्ञ विश्व स्वास्थ्य संगठन का प्रतिनिधित्व करते हैं। कम विकसित एवं विकासशील देशों के लिए यह संगठन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। इसका प्रमुख उद्देश्य स्वास्थ्य, कुपोषण तथा विभिन्न रोगों के निवारण सम्बन्धी नए-नए अन्वेषण व नीतियों का सृजन करना है। किसी भी देश में कोई संक्रामक (UPBoardSolutions.com) रोग फैलने पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधि उस देश की पीड़ित जनता के लिए आवश्यक औषधियों एवं चिकित्सकों को अविलम्ब प्रबन्ध करते हैं। इसके अतिरिक्त पीड़ित देश को आवश्यक आर्थिक सहायता भी विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से प्राप्त होती दक्षिण-पूर्वी एशिया से सम्बन्धित विश्व स्वास्थ्य संगठन का मुख्य कार्यालय नई दिल्ली में है।

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प्रश्न 5:
रेडक्रॉस सोसायटी का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
यह एक ऐसा संगठन है जिसकी शाखाएँ विश्व भर में फैली हुई हैं। इस संगठन की हमारे देश में 400 से अधिक शाखाएँ हैं जो कि लगभग सभी मुख्य जिलों में स्थित हैं। इसे भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी कहते हैं। मानव-कल्याण एवं नि:स्वार्थ मानव-सेवां इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं। यह अनाथों, महिलाओं तथा बच्चों को औषधियाँ एवं पोषक आहार नि:शुल्क उपलब्ध कराती है। यह स्कूल तथा कॉलेजों में प्राथमिक (UPBoardSolutions.com) उपचार, गृह परिचर्या एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा का भी प्रबन्ध करती है। रेडक्रॉस सोसायटी एक गैर-राजनीतिक संगठन है। यह किसी भी देश में महामारी फैलने पर अविलम्ब पीड़ितों की सहायता करती है। युद्ध के समय यह घायलों की सेवा एवं चिकित्सा करती है तथा युद्ध के समय सैनिक रेडक्रॉस के कार्यकर्ताओं एवं गाड़ियों पर हमला नहीं करते हैं।

प्रश्न 6:
स्थानीय अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ मानव-कल्याण के कार्य में किस प्रकार योगदान देती हैं?
उत्तर:
विश्व स्वास्थ्य परिषद् के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अनेक क्लब एवं संस्थाएँ कार्यरत हैं। रोटरी क्लब, लायन्स क्लब, स्काउट गाइड संस्था, स्थानीय स्वास्थ्य संगठन इत्यादि संस्थाएँ मानवकल्याण हेतु अनेक कार्यक्रम आयोजित किया करती हैं। इस प्रकार के कार्यक्रम निम्नलिखित हैं

  1. नि:शुल्क नेत्रों का कैम्प।
  2. निःशुल्क रक्तदान पखवाड़ा।
  3.  नि:शुल्क बन्ध्यीकरण कैम्प।
  4. वृक्ष लगाओ कार्यक्रम।
  5.  स्वास्थ्य उपकेन्द्रों की स्थापना।
  6.  सार्वजनिक शौचालय एवं मूत्रालयों का निर्माण।

प्रश्न 7:
चलती-फिरती डिस्पेन्सरी का क्या कार्य है?
उत्तर:
चिकित्सा विभाग द्वारा विशेष प्रकार की बसों में ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सक भेजे जाते हैं। ये रोगियों का उपचार करते हैं तथा औषधियों का नि:शुल्क वितरण करते हैं। ये ग्रामवासियों को चेचक, टिटेनस व हैजा आदि संक्रामक रोगों से बचाव के टीके भी लगाते हैं। इसके अतिरिक्त इस डिस्पेन्सरी के कार्यकर्ता स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी भी प्रदान करते हैं।

प्रश्न 8:
राष्ट्रीय परिवार कल्याण कार्यक्रम के अन्तर्गत परिवार नियोजन की सामान्य विधियों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय परिवार कल्याण कार्यक्रम के अन्तर्गत परिवार नियोजन की विधियों को दो भागों में बाँटा जा सकता है

(1) अस्थायी विधियाँ:
पुरुषों के लिए ‘निरोध’ तथा महिलाओं के लिए ‘कॉपर टी’ अथवा ‘लूप’ आदि पूर्ण तथा सफल विधियाँ नि:शुल्क परिवार कल्याण केन्द्र से प्राप्त की जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त खाने के लिए गोलियाँ तथा प्रयोग करने के लिए क्रीम आदि अनेक साधन अपनाए जा सकते
(2) स्थायी विधियाँ:
इसके अन्तर्गत महिला नसबन्दी तथा पुरुष नसबन्दी प्रमुख हैं। इन विधियों के लिए जिला तथा अन्य स्तरों पर सुविधाएँ प्राप्त हैं। पुरुष नसबन्दी महिला के मुकाबले आसान तथा निरापद है। आजकल महिला नसबन्दी लैप्रोस्कोपिक विधि के द्वारा अधिक सुविधाजनक बनाई गई है।

प्रश्न 9:
जन-स्वास्थ्य के सामान्य नियमों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य तथा जन-स्वास्थ्य में घनिष्ठ सम्बन्ध है। जन-स्वास्थ्य के नियमों की अवहेलना करके कोई व्यक्ति अपने व्यक्तिगत स्वास्थ्य को भी ठीक नहीं रख सकता। सामान्य रूप से स्वस्थ वातावरण बनाए रखने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को जन-स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना चाहिए।
जन-स्वास्थ्य के मुख्य नियम हैं

  1. व्यक्ति को खाँसने एवं छींकने में सावधानी बरतनी चाहिए,
  2. व्यक्ति को जहाँ-तहाँ थूकना नहीं चाहिए,
  3.  मल-मूत्र त्यागने में सावधानी रखनी चाहिए,
  4.  जहाँ-तहाँ कूड़ा-करकट नहीं फेंकना चाहिए तथा
  5. कहीं भी संक्रामक रोग के फैलने की आशंका होते ही स्वास्थ्य-विभाग को सूचित करना चाहिए।

प्रश्न 10:
जहाँ-तहाँ थूकना क्यों हानिकारक माना जाता है?
उत्तर:
जन-स्वास्थ्य का एक मुख्य नियम है कि व्यक्ति को जहाँ-तहाँ नहीं थूकना चाहिए। वास्तव में जहाँ-तहाँ थूकने से वातावरण में गन्दगी व्याप्त होती है तथा रोगाणुओं के फैलने की आशंका बढ़ती है। थूक एवं बलगम पर मक्खियाँ भिनभिनाने लगती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ व्यक्तियों के थूक में किसी संक्रामक रोग के कीटाणु भी विद्यमान होते हैं। ऐसे व्यक्तियों द्वारा जहाँ-तहाँ थूकने से वातावरण में रोग के कीटाणु व्याप्त हो (UPBoardSolutions.com) जाते हैं तथा वायु के माध्यम से अन्य स्वस्थ व्यक्तियों के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं तथा उन्हें भी संक्रमित कर सकते हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कहा जाता है कि जहाँ-तहाँ थूकना हानिकारक होता है। प्रत्येक व्यक्ति को थूकने में विशेष सावधानी रखनी चाहिए। व्यक्ति को सदैव पीकदान में ही थूकना चाहिए। पीकदानों में कोई अच्छा नि:संक्रामक भी अवश्य डाला जाना चाहिए तथा उनकी नियमित सफाई की व्यवस्था होनी चाहिए।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
जन-स्वास्थ्य के हित में घर के कूड़े को कहाँ फेंकना चाहिए?
उत्तर:
जन-स्वास्थ्य के हित में घर के कूड़े को सार्वजनिक कूड़ेदान अथवा खत्ते में ही फेंकना चाहिए।

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प्रश्न 2:
स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाओं के किन्हीं दो कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाओं के दो मुख्य कार्य हैं

  1.  साधारण रोगों का उपचार तथा
  2.  विभिन्न संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के सभी सम्भव उपाय करना।

प्रश्न 3:
बाल रक्षा केन्द्रका संचालन कौन करता है?
उत्तर:
बाल रक्षा केन्द्र का संचालन नगरपालिका करती है।

प्रश्न 4:
भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी का मुख्यालय कहाँ स्थित है?
उत्तर:
भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

प्रश्न 5:
विश्व स्वास्थ्य संगठन का भारत में मुख्य कार्यालय कहाँ है?
उत्तर:
विश्व स्वास्थ्य संगठन का भारत में मुख्य कार्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

प्रश्न 6:
प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में कितने चिकित्सा अधिकारी होते हैं?
उत्तर:
प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय कुल तीन चिकित्सा अधिकारी होते हैं, जिनमें प्रथम चिकित्सा अधिकारी मुख्य प्रशासनिक अधिकारी होता है।

प्रश्न 7:
मलेरिया एवं कुष्ठ रोग सम्बन्धित राष्ट्रीय योजनाएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम,
  2.  राष्ट्रीय कुष्ठ रोग नियन्त्रण कार्यक्रम।

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प्रश्न 8:
बच्चों को ट्रिपल एण्टीजन टीका क्यों लगाया जाता है?
उत्तर:
यह डिफ्थीरिया, काली खाँसी तथा टिटेनस की बीमारियों से बचाव के लिए लगाया जाता

प्रश्न 9:
पोलियो उन्मूलन के लिए देश में कौन-सी व्यापक योजना चलाई जा रही है?
उत्तर:
पोलियो उन्मूलन के लिए देश में ‘पल्स पोलियो’ नामक व्यापक योजनां चलाई जा रही है।

प्रश्न 10:
बच्चों को बी० सी० जी० का टीका क्यों लगाया जाता है?
उत्तर:
यह टीका बच्चों में क्षय रोग (टी० बी०) से बचाव के लिए लगाया जाता है।

प्रश्न 11:
चलती-फिरती डिस्पेन्सरी का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
यह गाँव-गाँव में ग्रामीणों को दवाइयाँ वितरित करती है तथा संक्रामक रोगों से बचाव के उपाय करती है।

प्रश्न 12:
परिवार की कुशलता के लिए परिवार नियोजन क्यों आवश्यक है? दो कारण लिखिए।
उत्तर:
परिवार के सुख, समृद्धि तथा कल्याण के लिए एवं देश की जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए परिवार नियोजन आवश्यक है।

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प्रश्न 13:
गृहिणी के लिए स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाओं के विषय में जानकारी को क्यों आवश्यक माना जाता है?
उत्तर:
गृहिणी के लिए स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाओं की जानकारी को आवश्यक माना जाता है, क्योंकि किसी भी आकस्मिक घटना के घटित होने पर अथवा संक्रामक रोगों से बचाव के टीके लगवाने के लिए स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाओं से ही सहायता प्राप्त होती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) मातृ-कल्याण सेवा केन्द्रों का मुख्य कार्य है
(क) केवल प्रसूता की देखभाल करना,
(ख) केवल नवजात शिशुओं की देखभाल करना,
(ग) माता तथा शिशुओं की देखभाल करना,
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।

(2) दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं
(क) जिला अस्पताल द्वारा,
(ख) ग्राम पंचायत द्वारा,
(ग) चलती-फिरती डिस्पेन्सरी द्वारा,
(घ) नीम-हकीमों द्वारा।

(3) बच्चों को क्षय रोग से बचाने के लिए टीका लगाया जाता है
(क) ट्रिपल एण्टीजन का,
(ख) बी० सी० जी० का,
(ग) टिटेनस का,
(घ) इन सभी का।

(4) चिकित्सालय में रोगियों की देख-रेख की जाती है
(क) परिचारिकाओं द्वारा,
(ख) चिकित्सकों द्वारा,
(ग) सरकारी कर्मचारियों द्वारा,
(घ) जनसेवकों द्वारा।

(5) भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी की शाखा होती है प्रत्येक
(क) नगर में,
(ख) गाँव में,
(ग) कस्बे में,
(घ) जिले में।

(6) परिवार नियोजन केन्द्र कार्यरत हैं
(क) केवल नगरों में,
(ख) केवल गाँवों में,
(ग) प्रत्येक गाँव व नगर में,
(घ) सुविधा सम्पन्न स्थानों पर।

(7) ग्रामीण स्त्रियों को परिवार-नियोजन के लिए जागरूक करते हैं
(क) सरपंच,
(ख) महिला स्वास्थ्य कार्यकत्री,
(ग) प्रधान चिकित्सा अधिकारी,
(घ) विभिन्न शिक्षिकाएँ।

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(8) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित स्वास्थ्य संगठन है
(क) मातृ एवं शिशु कल्याण केन्द्र,
(ख) विश्व स्वास्थ्य संगठन,
(ग) राष्ट्रीय कुष्ठ रोग निवारण कार्यक्रम,
(घ) मलेरिया निवारण कार्यक्रम।

उत्तर:
(1) (ग) माती तथा शिशुओं की देखभाल करना,
(2) (ग) चलती-फिरती डिस्पेन्सरी द्वारा,
(3) (ख) बी० सी० जी० का,
(4) (क) परिचारिकाओं द्वारा,
(5) (घ) जिले में,
(6) (ग) प्रत्येक गाँव व नगर में,
(7) (ख) महिला स्वास्थ्य कार्यकत्री,
(8) (ख) विश्व स्वास्थ्य संगठन।

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Class 11 English Chapter 4 Question Answer UP Board The Selfish Giant

UP Board Class 11th English Short Stories Chapter 4 Questions and Answers

कक्षा 11 अंग्रेजी पाठ 4 के प्रश्न उत्तर

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 11 English. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 English Short Stories Chapter 4 The Selfish Giant.

STORY at a Glance
Once there was a beautiful garden of a Giant. There were beautiful flowers and twelve peach trees. In spring they bore beautiful pink flowers and in autumn they bore rich fruits. The birds sat on the trees and sang very sweetly. Every afternoon many children used to play in this garden when they came back from their schools. Seven years ago the Giant had gone to visit his friend.

Now one day the Giant came back. He saw the children playing in the garden. He cried, “What are you doing there ?” The children ran away out of fear. Now the children had no place to play. They were very sad. When the spring came, there were little blossoms and little birds all over the country. But the garden of the selfish Giant was desolated. So the Giant was very sad. Everywhere summer, spring and autumn came but in the Giant’s garden there was always winter.

One morning the Giant heard a very lovely and sweet music. It was a little linnet singing outside his window. A delicious perfume came to him through the open casement. He thought that the spring had come. He peeped out but saw a wonderful sight.

The children had come into the garden through a little hole in the wall. They were sitting in every branch of the trees. The trees were in full bloom. The birds were twittering and singing melodiously. In the farthest corner there was standing a very little boy who could not reach the branches.

Seeing this the Giant’s heart melted. He said to himself, “How selfish I have been ! Now I have understood why the spring did not come in my garden.” The Giant took the little boy in his arms and seated him into the tree. The Giant said to the children, “It is your garden now, little children !” He then knocked down the wall and allowed the children to come in the garden. Thus there was again spring throughout the year. Thus this story teaches us not to be selfish. But we should love and help others as much as we can, especially the children.

कहानी पर एक दृष्टि

एक समय एक दानव का एक सुन्दर बाग था। इसमें सुन्दर-सुन्दर फूल और बारह आडू के पेड़ थे। वसन्त ऋतु में उस पर सुन्दर गुलाबी रंग के फूल आते थे और पतझड़ में उन पर बहुत-से फल लगते थे। पक्षी पेड़ों पर बैठा करते थे और बहुत मधुर गीत गाते थे। प्रत्येक दिन शाम को बहुत-से बच्चे जब वे स्कूल से वापस आते थे उस बाग में खेला करते थे। सात वर्ष पूर्व वह राक्षस अपने मित्र से मिलने गया था।

अब एक दिन दानव वापस आया। उसने बाग में बच्चों को खेलते हुए देखा। वह चिल्लाया, “तुम वहाँ क्या कर रहे हो?” बच्चे डर के कारण भाग गए। अब बच्चों के पास खेलने के लिए कोई स्थान नहीं था। वे बहुत दुःखी थे। अब वसन्त ऋतु आयी। पूरे नगर में चारों ओर छोटे-छोटे फूल और पक्षी दिखाई दिए। किन्तु स्वार्थी दानव का बाग उजाड़ था। इस प्रकार दानव बहुत दुःखी था। प्रत्येक स्थान पर गर्मी का मौसम, वसन्त ऋतु आ गयी है।

एक दिन सवेरे दानव ने बहुत सुन्दर और मधुर संगीत सुना। यह खिड़की के बाहर एक छोटा गाने वाला पक्षी था। एक मधुर सुगन्ध खुली खिड़की में से आई। उसने सोचा कि वसन्त ऋतु आ गई है। उसने बाहर झाँका। किन्तु उसे एक अद्भुत दृश्य दिखाई दिया।

दीवार में एक छोटे से सुराख में से बच्चे बाग में गये थे। वे पेड़ों की प्रत्येक शाखा पर बैठे हुए थे। वृक्ष खुब फल-फूल रहे थे। पक्षी चहचहा रहे थे और मधुर ध्वनि में गा रहे थे। दूर एक कोने में एक बहुत छोटा बच्चा खड़ा हुआ था। वह पेड़ की शाखाओं तक नहीं पहुंच पा रहा है।

यह देखकर दानव का हृदय पिघल गया। उसने अपने मन में कहा, “मैं कितना मूर्ख था। अब मैं समझा हूँ कि वसन्त मेरे बाग में क्यों नहीं आया।” दानव ने बच्चे को गोद में उठाया और पेड़ पर बैठा दिया। राक्षस ने बच्चों से कहा, “ऐ बच्चों, अब यह बाग तुम्हारा है। फिर उसने दीवार गिरा दी और बच्चों को बाग में आने दिया। इस प्रकार वहाँ दोबारा पूरे वर्ष वसन्त था।

इस प्रकार यह कहानी हमें सिखाती है कि हम स्वार्थी न बनें, बल्कि जितना अधिक-से-अधिक हो सके दूसरों से प्रेम करें, एवं उनकी सहायता करें, विशेष रूप से बच्चों से।

Short Answer Type Questions

Answer one of the following questions in not more than 30 words:

Question 1.
Give a brief description of the Giant’s garden.
(दानव के बाग का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।)
Answer:
The garden was very beautiful. There were beautiful flowers which looked like stars. There were twelve peach trees which blossomed in spring and bore fruits in autumn. The birds sat on the trees and sang very melodiously.
(बाग बहुत सुन्दर था। वहाँ सुन्दर फूल थे जो सितारों जैसे लगते थे। वहाँ बारह आडू के पेड़ थे जिन पर वसन्त में फूल आते थे और पतझड़ में फल लगते थे। पक्षी पेड़ों पर बैठते थे और बड़ी मधुरता से गाते थे।)

Question 2.
Did the children know whose garden it was ? When did they come to know it?
(क्या बच्चे जानते थे कि यह बाग किसका है? उन्हें यह कब पता लगा ?)
Answer:
In the beginning the children did not know whose garden it was. But after some days one day when the Giant came and stopped the children from playing there, they came to know that it was his.
(आरम्भ में बच्चों को यह मालूम नहीं था कि बाग किसका है। किन्तु कुछ दिनों बाद एक दिन जब दानव आया और उसने बच्चों को वहाँ खेलने से रोका तब उन्हें पता लगा कि यह उसका बाग है।)

Question 3.
why did the Giant grow angry to see the little boy?
(छोटे लड़के को देखकर दानव क्यों नाराज हो गया ?)
Answer:
Seeing the little boy the Giant became angry because he had put a notice board to check the entry of the boys.
(लड़के को देखकर दानव इसलिए नाराज हो गया क्योंकि उसने बच्चों के प्रवेश को रोकने के लिए एक नोटिस लगा दिया था।)

Question 4.
Why did the Giant build a high wall round his garden and put a notice board?   [M. Imp.]
(दानव ने अपने बाग में चारों ओर दीवार क्यों बनवाई तथा एक नोटिस बोर्ड क्यों रखा ?)
Or
What did the Giant do to check the entry of the children in the garden ?
(दानव ने बाग में बच्चों के प्रवेश को रोकने के लिए क्या किया ?)
Answer:
To check the entry of the children in the garden, the Giant built a high wall all around the garden and put up a notice board : “Tresspassers will be prosecuted.”
(बाग में बच्चों के प्रवेश को रोकने के लिए राक्षस ने बाग के चारों ओर एक ऊँची दीवार बनवा दी और एक नोटिस बोर्ड लगा दिया-“बिना अधिकार प्रवेश करने वालों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा।”)

Question 5.
why was not the Giant happy even after this ?
(इसके पश्चात् भी दानव खुश क्यों नहीं हुआ ?)
Answer:
Its result was that the children did not enter the garden. But the spring also went away. There was only snow, frost, North wind and hail. The garden became desolated. So the Giant was not happy even after this.
(इसका परिणाम यह हुआ कि बच्चों ने बाग में प्रवेश नहीं किया। किन्तु वसन्त भी चला गया। वहाँ केवल बर्फ, कोहरा, ठण्डी उत्तरी हवा और ओले रह गए। बाग सुनसान और उजाड़ हो गया। इस कारण इसके पश्चात् भी दानवे खुश नहीं हुआ।)

Question 6.
How did the children feel now ?
(अब बच्चों ने कैसा अनुभव किया ?)
Answer:
The children felt very sad. They had no place for playing. They remembered the happy days when they played in the beautiful garden and enjoyed it.
(बच्चों को बहुत दु:ख हुआ। उन्हें खेलने के लिए कोई स्थान नहीं मिला। उन्हें उन आनन्द के दिनों की याद आई जब वे सुन्दर बाग में खेलते थे और आनन्द प्राप्त करते थे।)

Question 7.
why did the spring go away from the garden ?
(वसन्त बाग से क्यों चला गया ?)
Or
Why did the spring not come to the giant’s garden ?   [Imp.]
(दानव के बाग में वसन्त ऋतु क्यों नहीं आई ?)
Answer:
The spring went away from the garden because the Giant was selfish and did not let the children play there.
(वसन्त, बाग से चला गया क्योंकि दानव स्वार्थी था और उसने वहाँ बच्चों को नहीं खेलने दिया।)

Question 8.
How was the.Giant punished?
(दानव को दण्ड कैसे मिला ?)
Answer:
The Giant was punished by making his garden a desolated place.
(बाग को सुनसान और उजाड़ करके दानव को दण्ड मिला।)

Question 9.
what was his offence?
(उसका अपराध क्या था ?)
Answer:
His offence was that he was selfish. He made a wall around the garden and checked the entry of the children.
(उसका अपराध यह था कि वह स्वार्थी था। उसने बाग के चारों ओर दीवार बनवा दी थी और बच्चों का प्रवेश रोक दिया।)

Question 10.
How did the garden of the Giant look throughout the year now ? .
(अब पूरे वर्ष दानव का बाग कैसा दिखाई देता था ?)
Answer:
Throughout the year the garden now looked desolated. Snow and frost covered. it. The North wind roared all the day and blew the chimney pots down. Hail also came there and brought destruction. Thus, the beautiful garden changed into a heap of ruin.
(अब पूरे वर्ष बाग उजाड़ दिखाई देता था। बर्फ और कोहरे ने इसे ढक लिया था। उत्तरी हवा दिनभर चलती थी और चिमनी को गिरा देती थी। ओले भी आते थे और विनाश करते थे। इस प्रकार सुन्दर बाग खण्डहर के ढेर में बदल गया।)

Question 11.
when did the spring come again into the garden?    [Imp.]
(वसन्त बाग में पुन: कब आया ?)
Answer:
The spring came again into the garden when one day the children entered there through a small hole in the wall.
(वसन्त, बाग में पुन: उस समय आ गया जब दीवार के एक छोटे से छिद्र से होकर बच्चे बाग में आ गये।)

Question 12.
what was the Giant’s reaction now ?   [Imp.]
(अब दानव की क्या प्रतिक्रिया थी ?)
Answer:
Now the Giant’s reaction was positive. He had realised his mistake. So he did not stop the children from playing there this time.
(अब दानव की प्रतिक्रिया सकारात्मक थी। उसने अपनी भूल का अनुभव कर लिया था। इस बार उसने. बच्चों को वहाँ खेलने से नहीं रोका।)

Question 13.
How and when did the Giant come to know about the children’s entry into the garden?
(दानव को बाग में बच्चों के प्रवेश के विषय में कब और कैसे पता लगा ?)
Answer:
One morning the Giant was lying awake in the bed. He heard some sweet music and smelt delicious perfume coming through the open casement. He thought spring had come. When he peeped out, he saw the children also playing there.
(एक दिन सवेरे दानव अपने बिस्तर में जागा पड़ा था। उसने कुछ मधुर संगीत सुना और खुली हुई खिड़की से आती हुई मधुर महक को सँघा। उसने सोचा कि वसन्त आ गया है। जब उसने बाहर को झाँका, तब देखा कि वहाँ बच्चे भी खेल रहे हैं।)

Question 14.
what happened when Giant came into the garden ?
(जब दानव बाग में आया तब क्या घटित हुआ ?)
Answer:
When the Giant came into the garden, all the children ran away with fear and the spring also went away.
(जब दानव बाग में आया तब डर के मारे बच्चे भाग गये और वसन्त भी चला गया।)

Question 15.
what did the Giant do then ?
(तब दानव ने क्या किया ?)
Answer:
Then the Giant knocked down the wall and removed the notice. He took up the child, standing alone under a tree, in his arms and seated him on the tree. The tree at once blossomed and birds began to sing.
(तब दानव ने दीवार को गिरा दिया और नोटिस हटा दिया। उसने उस बच्चे को, जो पेड़ के नीचे अकेला खड़ा था, गोद में उठा लिया और पेड़ पर बिठा दिया। पेड़ एकदम फल-फूल गया और पक्षियों ने गाना आरम्भ कर दिया।)

Question 16.
when did the children come again into the garden and why?   [Imp.]
(बच्चे बाग में पुन: कब आए और क्यों ?)
Answer:
The children came again into the garden when they saw the Giant with the little boy in his arms because they thought that the Giant was not wicked but kind.
(बच्चे, बाग में पुनः आ गये जब उन्होंने उस दानव को एक छोटे बच्चे को गोद में लिए हुए देखा, क्योंकि वे समझ गए कि दानव दुष्ट नहीं है, बल्कि दयालु है।)

Question 17.
what did the Giant say to the children ?
(दानव ने बच्चों से क्या कहा?)
Answer:
The Giant said to the children, “It is your garden now. Come and play here daily.”
(दानवे ने बच्चों से कहा, “यह बाग तुम्हारा है। प्रतिदिन यहाँ आओ और खेलो।”)

Question 18.
How do you know that the Giant was a changed person ?
(आप कैसे जानते हो कि दानव एक बदला हुआ व्यक्ति है।)
Answer:
I come to know that the Giant was a changed person because now he said to the children,
“It is your garden now. Come and play here daily.”
(मैं जानता हूँ कि दानव एक बदला हुआ व्यक्ति है क्योंकि अब उसने बच्चों से कहा, “अब यह तुम्हारा बाग है। आओ और यहाँ प्रतिदिन खेलो।)

Question 19.
why was the Giant rewarded?
(दानव को पुरस्कृत क्यों किया गया ?)
Answer:
The Giant was rewarded because he had realised his mistake. Now he was no more selfish.
He had become kind and had allowed the children to play in the garden.
(दानव को पुरस्कृत किया गया क्योंकि उसने अपनी भूल का अनुभव कर लिया था। अब वह स्वार्थी नहीं था। वह दयालु हो गया था और उसने बच्चों को बाग में खेलने की स्वीकृति दे दी थी।)

Question 20.
What was his reward ?   [Imp.]
(उसका पुरस्कार क्या था ?)
Answer:
His reward was that the spring came in his garden again and made it beautiful.
(उसका पुरस्कार यही था कि बाग में वसन्त पुनः आ गया और इसे सुन्दर बना दिया।)

Question 21.
who was the little child whom the Giant had helped ?
(वह छोटा बच्चा कौन था जिसकी दानव ने सहायता की थी ?)
Answer:
The little child was an unknown child. The Giant saw him standing under a tree all alone when the other children had run away. He was too little to sit on the branch of a tree. The Giant seated him on the tree.
(वह छोटा बच्चा एक अज्ञात बच्चा था। दानव ने उसे एक पेड़ के नीचे अकेले खड़े हुए देखा जबकि अन्य सभी बच्चे भाग गए। वह इतना छोटा था कि पेड़ की शाख पर नहीं बैठ सकता था। दानव ने उसे पेड़ पर बिठाया।)

Question 22.
How did he repay the Giant?
(उसने दानव के एहसान का बदला कैसे चुकाया ?)
Answer:
The little child was in fact a divine child. He repaid the Giant by taking him to his garden Paradise.
(वास्तव में, यह एक दैवी बच्चा था। उसने दानव के एहसान का बदला उसे अपने साथ स्वर्ग बाग में ले जाकर चुकाया।)

Question 23.
Where was the Giant taken after his death? Who took him there and why ?
(मृत्यु के बाद दानवे को कहाँ ले जाया गया ? उसे वहाँ कौन तथा क्यों ले गया ?)
Answer:
After his death, the Giant was taken to Paradise, the garden of God. God took him there.
(मृत्यु के बाद दानव को स्वर्ग, जो कि भगवान् का बाग है, ले जाया गया। उसे भगवान् वहाँ ले गए।)

Question 24.
what moral does the story The Selfish Giant’ teach?   [M. Imp.]
(‘स्वार्थी दानव’ नामक कहानी हमें क्या नैतिकता सिखाती है ?)
Answer:
The story ‘Selfish Giant teaches us not to be selfish. But we should love and help others as much as we can.
(‘स्वार्थी दानव’ नामक कहानी हमें सिखाती है कि हमें स्वार्थी नहीं होना चाहिए, बल्कि जितना हम से हो सके उतना हमें दूसरों से प्रेम करना चाहिए और उनकी सहायता करनी चाहिए।)

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi लघु उत्तरीय प्रश्न

UP Board Solutions for Class 10 Hindi लघु उत्तरीय प्रश्न

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi लघु उत्तरीय प्रश्न.

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
हिन्दी गद्य के प्राचीन रूप पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
विद्वानों के अनुसार हिन्दी गद्य के प्राचीन प्रयोग ब्रजभाषा एवं राजस्थानी में मिलते हैं। इसी से हिन्दी गद्य का विकास हुआ है। राजस्थानी गद्य का आविर्भाव 13वीं शताब्दी से तथा ब्रजभाषा गद्य का आविर्भाव 16वीं शताब्दी से माना जाता है।

प्रश्न 2
‘नाटक’ किसे कहते हैं ? नाटक का अर्थ बताइए और यह भी स्पष्ट कीजिए कि नाटक को रूपक क्यों कहा जाता है ?
उत्तर
नाटक के पात्रों एवं घटनाओं का चित्रण किसी प्रसिद्ध पात्र की अनुकृति के (UPBoardSolutions.com) रूप में किया जाता है अर्थात् नाटक के पात्रों एवं घटनाओं पर किन्हीं अन्य व्यक्तियों एवं घटनाओं को आरोपित किया जाता है। ‘रूप’ के इस आरोप के कारण ही इसे ‘रूपक’ कहा जाता है।

प्रश्न 3
हिन्दी गद्य के इतिहास में भारतेन्दु युग के योगदान का वर्णन कीजिए।
या
हिन्दी गद्य के विकास में भारतेन्दु युग का महत्त्व बताइए।
उत्तर
भारतेन्दु से पूर्व हिन्दी गद्य का कोई निश्चित स्वरूप नहीं था। लेखकों की रचनाओं में या तो उर्दू-फारसी के शब्दों की प्रचुरता थी या फिर संस्कृत के तत्सम शब्दों की। यह भाषा जनता की भाषा नहीं थी। भारतेन्दु ने अपने गद्य में न तो अधिक संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग किया और न ही अधिक अरबीफारसी के शब्दों का, वरन् उन्होंने अपनी रचनाओं में सामान्य बोलचाल के शब्दों, मुहावरों, लोकोक्तियों को स्थान देकर हिन्दी गद्य को जीवन्त बनाया। इसी कारण जन-सामान्य ने इनकी रचनाओं को सहज भाव से स्वीकार कर लिया। इन्होंने हिन्दी में नाटक, उपन्यास, निबन्ध इत्यादि गद्य की विधाओं का सूत्रपात किया तथा तत्कालीन लेखकों को (UPBoardSolutions.com) विविध विषयों की रचना करने को प्रेरित किया।

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प्रश्न 4
हिन्दी गद्य के विकास में आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी जी का क्या योगदान है ?
उत्तर
हिन्दी गद्य के विकास में आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी जी की प्रमुख देन निम्नलिखित हैं

  1. द्विवेदी जी ने भाषा में व्याकरण सम्बन्धी अशुद्धियों, पद-विन्यास एवं वाक्य-विन्यास की अनियमितता को दूर किया।
  2. उन्होंने नये-नये लेखकों और कवियों को व्याकरणनिष्ठ और संयमित खड़ी बोली में लिखने के लिए प्रोत्साहित किया।
  3. उन्होंने अन्य भाषाओं के साहित्य का हिन्दी में अनुवाद कराया।
  4. भाषा के शब्द-भण्डार में वृद्धि की जिससे विविध प्रकार की भाषा-शैलियों (UPBoardSolutions.com) का जन्म हुआ, जिसके परिणामस्वरूप गद्य के विविध रूपों का विकास हुआ।

प्रश्न 5
हिन्दी गद्य-साहित्य के विकास में द्विवेदी युग का निर्धारण कीजिए। इस युग की भाषा-शैली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी भी लिखिए।
उत्तर
हिन्दी गद्य-साहित्य के विकास में सन् 1900 से 1920 ई० तक के समय को ‘द्विवेदी युग कहते हैं। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के प्रयासों के फलस्वरूप इस युग में हिन्दी गद्य का रूप परिमार्जित, साहित्यिक एवं परिनिष्ठित हो गया। द्विवेदी युग के हिन्दी गद्य की (UPBoardSolutions.com) भाषा शुद्ध, व्याकरणनिष्ठ एवं परिष्कृत है। इस युग की रचनाओं में संस्कृत के तत्सम एवं तद्भव शब्दों के साथ-साथ उर्दू एवं अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। विचारात्मक, पाण्डित्यपूर्ण, व्यंग्यात्मक, विश्लेषणात्मक, आवेगशील, चित्रात्मक आदि शैलियों के प्रयोग इस युग की प्रमुख विशेषताएँ हैं।

प्रश्न 6
‘जीवनी’ किसे कहते हैं ? जीवनी-साहित्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए इसके आरम्भ का समय बताइए।
उत्तर
जब कोई लेखक किसी व्यक्ति के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक की प्रमुख घटनाओं को क्रमबद्ध रूप में इस प्रकार चित्रित करता है कि उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व स्पष्ट हो उठे तो ऐसी रचना को ‘जीवनी’ कहते हैं। जीवनी-साहित्य की विशेषताओं में लेखक की तटस्थता, यथार्थ चित्रण, घटनाक्रम की क्रमबद्धता तथा उसके नायक के जीवन की प्रमुख घटनाओं का प्रस्तुतीकरण निहित होता है। हिन्दी में जीवनी-साहित्य का प्रादुर्भाव भारतेन्दु युग से माना जाता है।

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प्रश्न 7
‘कहानी’ किसे कहते हैं ? हिन्दी कहानी के विकास की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
या
‘ग्यारह वर्ष का समय’ के लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर
‘कहानी’ गद्य-साहित्य की वह विधा है, जिसमें जीवन के किसी एक मार्मिक तथ्य या घटना को पात्रों, संवाद एवं घटनाक्रम के माध्यम से नाटकीय रूप में अभिव्यक्ति दी जाती है। ‘कहानी हमारे देश में प्राचीन काल से ही कही-सुनी जाती रही है। सर्वप्रथम पुराणों में कहानी के दर्शन होते हैं। मूलत: आख्यात्मक शैली में रचित होने के कारण इन्हें ‘आख्यायिका’ भी कहा जाता था। वृहत् कथा, बैताल पचीसी, सिंहासन बत्तीसी, कादम्बरी आदि इसी कोटि की रचनाएँ हैं। आधुनिक साहित्यिक कहानियों का उद्देश्य एवं शिल्प इस आख्यायिका से भिन्न है। इनमें कहानी को कथ्य, पात्रों एवं घटनाओं के चित्रण द्वारा कलात्मक (UPBoardSolutions.com) रूप से प्रस्तुत किया जाता है। इसका आरम्भ विधिवत् रूप से ‘सरस्वती’ पत्रिका के । प्रकाशन से अर्थात् सन् 1900 ई० से माना जाता है। किशोरीलाल गोस्वामी की कहानी ‘इन्दुमती’ हिन्दी की पहली मौलिक कहानी मानी जाती है। इसके बाद ‘ग्यारह वर्ष का समय’ (रामचन्द्र शुक्ल) और ‘दुलाई वाली’ आती हैं। प्रेमचन्द के समय में कहानियों का पूर्ण विकास हुआ।

प्रश्न 8
‘संस्मरण’ किसे कहते हैं ? संस्मरण एवं आत्मकथा के दो अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
जब लेखक अपने निकट सम्पर्क में आने वाली विशिष्ट, विचित्र, प्रिय और आकर्षक घटनाओं, दृश्यों या व्यक्तियों को स्मृति के सहारे पुनः अपनी कल्पना में मूर्ति करके उनका शाब्दिक चित्रण करता है, तो उसे ‘संस्मरण’ कहते हैं। कल्पनाशीलता, यथार्थ चित्रण, संवेदनशीलता, अभिव्यक्ति की कुशलता आदि संस्मरण की विशेषताएँ हैं।

अन्तर–‘आत्मकथा’ में लेखक स्वयं के जीवन को चित्रित करता है, जबकि संस्मरण’ में वह किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु, घटना, दृश्य आदि का चित्रण करता है। आत्मकथा में आपबीती होती है, जबकि संस्मरण में अन्य व्यक्ति के व्यक्तित्व की विशेषताओं का वर्णन किया जाता है।

प्रश्न 9
‘आत्मकथा’ किसे कहते हैं ? इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जब लेखक किसी कृति में अपने जीवन की प्रमुख घटनाओं को स्वयं लिपिबद्ध करता है तो उसे ‘आत्मकथा’ कहते हैं।

विशेषताएँ–घटनाओं की क्रमबद्धता, लेखक का आत्मनिरीक्षण से युक्त दृष्टिकोण, उसकी तटस्थता, घटना के समय उत्पन्न भावों एवं तत्कालीन प्रभावों की कुशल अभिव्यक्ति आदि आत्मकथासाहित्य की विशेषताएँ हैं।

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प्रश्न 10
आलोचना किसे कहते हैं ? इसका अर्थ बताते हुए इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर
‘आलोचना’ का शाब्दिक अर्थ है ‘किसी वस्तु को भली प्रकार देखना। इससे किसी वस्तु के । गुण-दोष प्रकट हो जाते हैं। इसलिए किसी कृति का अध्ययन करके जब उसके गुण-दोषों को प्रकट किया जाता है तो उसे ‘आलोचना’ कहते हैं। इसके लिए ‘समीक्षा’ शब्द का प्रयोग (UPBoardSolutions.com) भी किया जाता है। हिन्दी में आधुनिक आलोचना का प्रारम्भ ‘भारतेन्दु युग’ से माना जाता है।

प्रश्न 11
रेखाचित्र किसे कहते हैं ? इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए संस्मरण से इसका अन्तर बताइए।
या
संस्मरण और रेखाचित्र के मौलिक अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
जब लेखक अपने सम्पर्क में आने वाले किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना आदि को कम शब्दों के द्वारा सांकेतिक रूप से चित्रित करता है तो उसकी उस कृति को रेखाचित्र’ कहते हैं। रेखाचित्र सांकेतिक, व्यंजक और यथार्थपरक होता है। रेखाचित्र का विकास छायावादोत्तर युग में हुआ है।

संस्मरण एवं रेखाचित्र में अन्तर है। संस्मरण में विषय-वस्तु का सर्वांगीण चित्रण होता है, जबकि रेखाचित्र में कुछ शाब्दिक रेखाओं के द्वारा ही विषय-वस्तु की विशेषताओं को उभारकर प्रस्तुत किया जाता है। संस्मरण के शब्दचित्र सदा पूर्ण होते हैं, जबकि रेखाचित्र के अपूर्ण या खण्डित भी हो सकते हैं। संस्मरण अभिधामूलक होता है, जबकि रेखाचित्र सांकेतिक और व्यंजक।।

प्रश्न 12
रिपोर्ताज से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
‘रिपोर्ट’ के कलात्मक एवं साहित्यिक रूप को ‘रिपोर्ताज’ कहते हैं। इसमें सम-सामयिक घटनाओं को उनके यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

रिपोर्ताज लेखक के लिए स्वयं घटना का प्रत्यक्ष निरीक्षण करना आवश्यक होता है, इसमें कल्पना का कोई स्थान नहीं होता। इसका उपयोग पत्रकारिता के क्षेत्र में अधिक होता है। घटना का यथार्थ चित्रण, कुशल अभिव्यक्ति, प्रभावोत्पादकता आदि रिपोर्ताज की विशेषताएँ हैं । इस विधा का विकास छायावादोत्तर युग में हुआ है।

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प्रश्न 13
भेटवार्ता से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
किसी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति से मिलकर, किसी विशेष विषय पर उसके विचारों को प्रश्नोत्तर के माध्यम से प्राप्त करके लेखक जब उन्हें यथावत लिपिबद्ध करता है तो उसे ‘भेटवार्ता’ कहते हैं। ‘भेटवार्ता शब्द अंग्रेजी भाषा के इण्टरव्यू का समानार्थी है। भेटवार्ता वास्तविक भी (UPBoardSolutions.com) होती है और काल्पनिक भी। हिन्दी-साहित्य में इसके दोनों रूप प्राप्त होते हैं। इस विधा का प्रारम्भ छायावादी युग से माना जाता है।

प्रश्न 14
डायरी साहित्य किसे कहते हैं ? इसकी मुख्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। आत्मकथा एवं डायरी में क्या अन्तर है?
उत्तर
जब लेखक तिथि-विशेष में घटित घटनाओं को यथातथ्य तथा तिथिवार लिपिबद्ध करता है, तो उसकी वह रचना ‘डायरी’ कहलाती है। डायरी महत्त्वपूर्ण तिथियों की क्रमबद्ध घटनाक्रमों से सम्बन्धित भी हो सकती है और दैनिक-पुस्तिका के रूप में भी हो सकती है।

यथार्थ चित्रण, तिथिवार क्रमबद्धता, लेखक के निजी दृष्टिकोणों की घटना से सम्बन्धित अभिव्यक्ति आदि डायरी साहित्य की विशेषताएँ हैं। इस विधा का आविर्भाव छायावादोत्तर युग से माना जाता है।

‘आत्मकथा’ एवं ‘डायरी’ में पर्याप्त अन्तर हैं। ‘आत्मकथा’ में लेखक अतीत में घटी घटनाओं को कल्पना में पुनः मूर्त करके लिखता है, जबकि डायरी’ तिथियों के अनुसार लिखी जाती है। ‘आत्मकथा’ में लेखक अपने जीवन की घटनाओं में स्वयं को रखकर अपना आत्मविश्लेषण करता है, जबकि ‘डायरी’ में घटनाओं के प्रति उसका दृष्टिकोण लिपिबद्ध होता है। ‘आत्मकथा’ में तिथि का उल्लेख नहीं होता, जबकि ‘डायरी’ में यह अनिवार्य रूप से आवश्यक होता है।

प्रश्न 15
पत्र-साहित्य किसे कहते हैं ?
उत्तर
पत्रों के द्वारा किसी व्यक्ति से सम्बन्ध बनाकर किसी विषय पर जो लिपिबद्ध वार्तालाप प्रारम्भ किया जाता है, उसका सम्पूर्ण संकलित रूप ‘पत्र-साहित्य’ कहलाता है। इसमें लेखक किसी व्यक्ति को पत्र लिखकर किसी विषय पर उसके विचारों को जानना चाहता है। उसका उत्तर प्राप्त होने पर वह उस उत्तर का विश्लेषण करता है और उत्पन्न शंकाओं के समाधान हेतु पुनः पत्र लिखता है। इस प्रकार एक प्रक्रिया चल पड़ती है जो पत्रों के रूप में लिपिबद्ध होती जाती है। जब यह प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है तो दोनों ओर के पत्रों के उस संकलन को पत्र-साहित्य कहा जाता है।

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प्रश्न 16
शुक्ल युग को हिन्दी निबन्ध का उत्कर्ष काल क्यों माना जाता है ?
उत्तर
यद्यपि द्विवेदी युग में हिन्दी निबन्ध-विधा भाषा एवं शैली दोनों ही दृष्टियों से प्रौढ़ हो गयी थी, किन्तु आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने निबन्ध को वैचारिक क्षेत्र में वैज्ञानिक विश्लेषण की प्रवृत्ति एवं गम्भीरता प्रदान की। अतः भाषा-शैली, गम्भीरता, चिन्तन, मौलिकता आदि प्रत्येक क्षेत्र (UPBoardSolutions.com) में निबन्ध-विधा परिष्कार को प्राप्त हुई। इसीलिए शुक्ल युग को हिन्दी निबन्ध का उत्कर्ष काल कहा जाता है। प

प्रश्न 17
हिन्दी नाटक के विकास में जयशंकर प्रसाद के योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर
प्रसाद जी ने भारतीय और पाश्चात्य नाट्य-कला के तत्वों को मिलाकर एक नवीन शैली का विकास किया। इनके सामाजिक एवं ऐतिहासिक नाटकों में संघर्ष की प्रधानता है तथा मनोवैज्ञानिक चरित्र-चित्रण के साथ नवीन शैली का प्रयोग किया गया है। साहित्यिकता एवं मंचीयता इनके नाटकों की विशेषता है।

प्रश्न 18
प्रसादोत्तर युग के हिन्दी नाटकों की प्रमुख विशेषता बताइट।
उत्तर
प्रसादोत्तर नाटकों में भारतीय एवं पाश्चात्य शैली के तत्त्वों का एक साथ समावेश पाया जाता है। इन नाटकों में राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक समस्याओं का चित्रण हुआ है। इनकी विषय-वस्तु यथार्थवादी धरातल पर संरचित है।

प्रश्न 19
शुक्ल जी के पश्चात् हिन्दी की निबन्ध विधा के विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर
शुक्लोत्तर युग में साहित्यिक एवं समीक्षात्मक निबन्धों की रचना की गयी। इन निबन्धों में जहाँ भाषा-शैली की प्रौढ़ता मिलती है, वहीं चिन्तन की गम्भीरता भी। इनमें आत्मपरक (वैयक्तिक) भाषा का प्रयोग हुआ है।

|| शुक्ल जी के पश्चात् हिन्दी में आलोचनात्मक निबन्ध साहित्य की भी पर्याप्त श्रीवृद्धि हुई। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ० रामविलास शर्मा, नन्ददुलारे वाजपेयी, शान्तिप्रिय द्विवेदी, शिवदान सिंह चौहान आदि लेखकों ने आलोचनात्मक निबन्ध-साहित्य को नयी दिशा प्रदान कर विकास के पथ पर अग्रसर किया।

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प्रश्न 20
हिन्दी कहानी के विकास में प्रेमचन्द अथवा प्रसाद के योगदान का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
हिन्दी कहानी के क्षेत्र में प्रेमचन्द एवं प्रसाद ने युगान्तरकारी कार्य किया। मुंशी प्रेमचन्द ने सरस, सरल एवं व्यावहारिक भाषा-शैली में जीवन का मार्मिक एवं यथार्थ चित्रण करने वाली आदर्शोन्मुख कहानियाँ लिखीं । ‘कफन’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘पूस की रात’, ‘पंच परमेश्वर’, ‘मन्त्र’ आदि कहानियाँ उल्लेखनीय हैं।

प्रसाद जी ने उत्तम भाषा, भाव एवं कल्पनापूर्ण कौतूहल से युक्त उत्कृष्ट कहानियाँ लिखीं। (UPBoardSolutions.com) अधिकतर कहानियों में मानव मन के अन्तर्द्वन्द्व का चित्रण किया गया है। ‘पुरस्कार’, ‘आकाशदीप’, ‘मधुआ’, ‘गुण्डा’, ‘ममता’ आदि इनकी श्रेष्ठ कहानियाँ हैं।

प्रश्न 21
हिन्दी की नयी कहानी की विशेषताएँ और उद्देश्य बताइए।
उत्तर
हिन्दी की नयी कहानियों में आज के युग की दिशाहीनता, उत्कण्ठा, उलझन, मानसिक भटकाव और अन्तर्द्वन्द्वों का सजीव चित्रण नये शैली-विधान में किया गया है। नयी कहानियों का मुख्य उद्देश्य जीवन के भोगे हुए यथार्थ को आधुनिक भाव-बोध के धरातल पर प्रस्तुत करना है।

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प्रश्न 22
छायावादी युग के गद्य की किन्हीं दो विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर
छायावादी युग के गद्य की अनेक विशेषताएँ हैं। प्रेमचन्द, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल एवं जयशंकर प्रसाद ने जो गद्य रचनाएँ कीं, उनका रूप अत्यन्त प्रौढ़, परिष्कृत एवं विकसित है। विषयों, शैलियों, विधाओं की विविधता इस काल के गद्य की एक प्रमुख विशेषता है। (UPBoardSolutions.com) इस युग में नाटक, उपन्यास, निबन्ध, कहानी, आलोचना आदि विविध क्षेत्रों में उत्कृष्ट कोटि की गद्य-रचना हुई।

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Class 11 English Chapter 5 Question Answer UP Board The Variety and Unity of India

UP Board Class 11th English Prose Chapter 5 Questions and Answers

कक्षा 11 अंग्रेजी पाठ 5 के प्रश्न उत्तर

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 11 English. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 English Prose Chapter 5 The Variety and Unity of India.

LESSON at a Glance
This essay is an extract from the famous book “The Discovery of India’ written by Jawaharlal Nehru. According to him the diversity of India is remarkable and it is so obvious that anybody can see it. He cites the example of the Pathan of the North-West and the Tamil in the Far South. They differ in face and figure, food and clothing and of course language. Yet with all these differences there is no mistaking the impress of India on the Pathan, as this is obvious in the Tamil.

The Pathan and the Tamil are two extreme examples; the others lie somewhere in between. All of them have their distinctive features, all of them have still more the distinguishing mark of India. The Bengalies, the Marathas, the Sindhis, the Kashmiris and so the others, have retained their peculiar characteristics for hundred of years, have still more or less the same virtues and failings of which old traditions or records tell us.

Today, when the conception of nationalism has developed, much more Indians in foreign countries inevitably form a national group and hang together for various purposes, in spite of their internal differences. An Indian Christian is looked upon as an Indian wherever he may go. An Indian Muslim is considered an Indian in Turkey or Arabia or Iran. It testifies the unity of India in its diversity.

पाठ का हिन्दी अनुवाद

1. The diversity of India …….. had developed.

भारत में विविधता बहुत अधिक है, यह स्पष्ट है, इसे कोई भी व्यक्ति ऊपर से देख सकता है। इसका सम्बन्ध शारीरिक रूप से और कुछ मानसिक आदतों तथा गुणों से भी है। बाहरी रूप से देखने में उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रान्त के पठान में तथा सुदूर दक्षिण तमिल निवासी में बहुत कम समानता है। उनकी नस्ल एक-सी नहीं है यद्यपि उनमें कुछ समानताएँ हो सकती हैं। फिर भी वे शक्ल में, काठी में, भोजन में, वस्त्रों में और वास्तव में भाषा में भिन्न होते हैं। उत्तरी-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त में पहले से ही मध्य एशिया का प्रभाव है और कश्मीर के समान वहाँ के भी बहुत से रीति-रिवाज हिमालय के दूसरी ओर के देशों की याद दिलाते हैं। पठानों के लोकप्रिय नृत्य विशेष रूप से रूस के कोसेक नृत्य के समान हैं। फिर भी इन अन्तरों के होते हुए भी नि:सन्देह, रूप से पठानों पर भी भारत का उतना ही प्रभाव है जितना तमिलों पर है। यह आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि यह सीमा पार के देश और वास्तव में अफगानिस्तान भी हजारों वर्षों तक भारत से जुड़े रहे। पुरानी तुर्की जाति तथा अन्य जातियाँ जो अफगानिस्तान में तथा मध्य एशिया के भाग में रहती थीं, इस्लाम धर्म के आने से पूर्व अधिकांश रूप से बौद्ध धर्म की अनुयायी थीं और इससे भी पहले महाकाव्य के समय में हिन्दू थे।

सीमान्त क्षेत्र पुरानी भारतीय संस्कृति का प्रमुख केन्द्र था और अब भी पुरानी ऐतिहासिक इमारतों, मठों और विशेष रूप से तक्षशिला के महान् विश्वविद्यालय के खण्डहरों से भरा पड़ा है जो (तक्षशिला का विश्वविद्यालय) दो हजार वर्षों पूर्व प्रसिद्धि की चरम सीमा पर था और पूरे भारत से भी तथा एशिया के भिन्न-भिन्न भागों से भी विद्यार्थियों को आकर्षित करता था। धर्म परिवर्तन से अन्तर तो पड़ा किन्तु यह परिवर्तन उस मानसिक पृष्ठभूमि को नहीं बदल सका जो उन क्षेत्रों के लोगों में पनप गई थी।

2. The Pathan and……. even encouraged.

पठानों और तमिलों के दो बड़े उदाहरण हैं और अन्य सभी उदाहरण इनके बीच में हैं। इनमें से सभी के अपने-अपने विशेष लक्षण हैं और इससे भी अधिक उन सभी पर भारत की स्पष्ट छाप है। यह बात बड़ी आकर्षक है कि बंगालियों, मराठों, गुजरातियों, तमिलों, आन्ध्रावासियों, ओडिशावासियों, असमियों, कन्नड़ों, मलयालियों, सिन्धियों, पंजाबियों, पठानों, कश्मीरियों, राजपूतों और भारत के मध्यवर्ती प्रान्तों में रहने वाले हिन्दुस्तानी भाषा बोलने वाले लोगों ने अपने विशेष लक्षणों को सैकड़ों वर्षों तक कैसे बनाए रखा और उन्हीं विशिष्ट गुणों तथा अवगुणों (कमियों) को, जो हमें पुरानी परम्पराएँ तथा दस्तावेज बताती हैं, बनाए रखा और वे परम्पराएँ तथा दस्तावेज इतने समय तक भारतीय रहे और उनमें समान राष्ट्रीय विरासत तथा समान मानसिक एवं नैतिक गुण रहे। इस विरासत में कुछ जीती-जागती तथा प्रगतिशील बात थी जो रहन-सहन के ढंग में, जीवन के दार्शनिक दृष्टिकोण में तथा इसकी समस्याओं में विद्यमान रही। प्राचीन चीन के समय प्राचीन भारत स्वयं एक विश्व था।

इसकी अपनी एक संस्कृति एवं प्राचीन सभ्यता थी जिसने अन्य सभी बातों को रूप प्रदान किया। उस पर विदेशी प्रभाव पड़े, बहुधा उस संस्कृति को प्रभावित भी किया और फिर उसी में विलीन हो गये। विघटनकारी प्रवृत्तियों ने भी जन्म लिया और इनसे एकता मिली। सभ्यता के प्रारम्भ से ही भारतीयों के मन में किसी-न-किसी प्रकार का एकता का स्वप्ने रहा है। वह एकता बाहर से थोपी गयी वस्तु नहीं मानी गई थी तथा आदतों की बाहरी समानता एवं धार्मिक विश्वासों का परिणाम नहीं थी। यह कोई गम्भीर बात थी और इसकी सीमा में धार्मिक विश्वासों की व्यापक सहनशीलता और रीति-रिवाजों को व्यवहार में लाया गया था और इस विविधता को स्वीकार किया गया एवं प्रोत्साहित किया गया।

3. Differences ……….the dominant religion.

मतभेद छोटे हों या बड़े, राष्ट्रीय समूह में भी सदा देखे जा सकते हैं चाहे वे एक-दूसरे के कितने ही निकट हों। उस समूह की आवश्यक एकता उस समय स्पष्ट हो जाती है जब इसकी तुलना किसी अन्य राष्ट्रीय समूह से की जाती है, यद्यपि सीमावर्ती प्रान्तों के पास इन निकट के समूहों में मतभेद बहुधा गायब हो जाते हैं या एक-दूसरे में मिल जाते हैं और आधुनिक विकास से प्रत्येक स्थान पर कुछ एकता पैदा होने लगती है। प्राचीन एवं मध्य काल में आधुनिक राष्ट्र का विचार विद्यमान नहीं था और सामन्ती, धार्मिक, प्रजातीय तथा सांस्कृतिक सम्बन्धों का अधिक महत्त्व था। फिर भी मैं सोचता हूँ कि लिखित इतिहास में किसी भी समय कोई व्यक्ति भारत के किसी भाग में घर जैसा अनुभव करता होगा और किसी अन्य देश में अनजान या विदेशी अनुभव करता होगा। उन देशों में जिन्होंने उसकी संस्कृति एवं धर्म को आंशिक रूप से भी स्वीकार कर लिया है वहाँ भी वह व्यक्ति अपने आपको कम अनजान अनुभव करता होगा। वे व्यक्ति जो ऐसे धर्म को मानते थे जो भारतीय उत्पत्ति का नहीं था और भारत में आकर बस गए थे वे कुछ पीढ़ियों के बाद निश्चित रूप से भारतीय हो गए; जैसे-ईसाई, यहूदी, पारसी, मुसलमान। इन धर्मों के वे भारतीय जिन्होंने अपना धर्म-परिवर्तन कर लिया, वे भी धर्म-परिवर्तन के बावजूद भारतीय बने रहे। ये सभी लोग अन्य देशों में भारतीय और विदेशी समझे जाते थे चाहे उनमें धार्मिक विचारों की समानता हो।

आज जबकि राष्ट्रवाद की विचारधारा खूब पनप गई है, विदेशों में रहने वाले स्पष्ट रूप से अपना एक राष्ट्रीय समुदाय बनाते हैं। आन्तरिक मतभेदों के होते हुए भी वे भिन्न-भिन्न कार्यों में एक-दूसरे के साथ मिलकर कार्य करते हैं। भारतीय ईसाई कहीं भी चला जाए उसे भारतीय ही समझा जाता है। तुर्की, अरब, ईरान या । अन्य कोई ऐसे देश में जहाँ इस्लाम धर्म का प्रभुत्व है यदि कोई भारत का मुसलमान चला जाए, तो उसे भी भारतीय ही समझा जाता है।

4. All of us ……heart of Asia.

मैं मानता हूँ कि हममें से सभी के मस्तिष्क में मातृभूमि के भिन्न-भिन्न चित्र हैं और कोई दो व्यक्ति उसके विषय में समान रूप से नहीं सोचेंगे। जब मैं भारत के विषय में सोचता हूँ; जैसे-बड़े-बड़े खेतों के विषय में जिनमें असंख्य छोटे-छोटे गाँव बिन्दु के समान हैं, उन कस्बों तथा गाँवों के विषय में जहाँ मैं गया हूँ, बरसात के मौसम के उस जादू के विषय में जो खुश्क झुलसी हुई धरती में जीवन डालता है और अचानक इसे विस्तृत सुन्दर चमकती हुई हरियाली धरती में बदल देता है, नदियों तथा बहने वाले जल के विषय में, खैबर दरें की बंजर धरती के विषय में, भारत के दक्षिणी छोर के विषय में, अलग-अलग व्यक्तियों के विषय में तथा उनके समूह के विषय में और सबसे अधिक बर्फ से ढके हुए हिमालय के विषय में या कश्मीर की उन पहाड़ी घाटियों के विषय में जो वसन्त ऋतु में नए फूलों से ढक जाती हैं और उन झरनों के विषय में जिनमें बुलबुले उठते हैं और कल-कल ध्वनि होती है, हम अपनी पसन्द के चित्र बनाते हैं और सुरक्षित रखते हैं। यही कारण है कि मैंने पहाड़ी पृष्ठभूमि वाला यह चित्र छाँटा है, गर्म तथा सम-शीतोष्ण प्रदेश का नहीं। दोनों ही चित्र ठीक हैं, क्योंकि भारत गर्म प्रदेश से सम-शीतोष्ण प्रदेश तक तथा विषुवत् रेखा से एशिया के ठण्डे मध्य प्रदेश तक फैला हुआ है।

Understanding the Text

Explanations
Explain the following passages with reference to the context :
1. The diversity of India…. in the far South.
Reference : These lines have been taken from the lesson ‘The Variety and Unity of. India’ written by
Pt. Jawaharlal Nehru.
[ N.B.: The above reference will be used for all explanations of this lesson. ]

Context: This essay has been taken from Nehru’s famous book “The Discovery of India’. In this essay he explains how despite of cultural diversities, there is unity in India. Irrespective of caste, creed and religion, all people living in India call themselves Indian.

Explanation: In this passage the writer says that in India there is a lot of diversity from one corner of India to another. It is so clear that every body can see it outwardly. It can be seen in the physical appearance, physical traits and mental habits of the people of India. The author also mentions the examples of Pathans of North West Frontier and the Tamils of South to show India’s tremendous unity.

2. The frontier area was …….. areas had developed.

Context: In this essay Pt. Nehru explains how despite of cultural diversities there is unity in India. It can be seen in the physical appearance, physical traits and mental habits of the people of India. The writer gives some living examples to prove his statement.

Explanation : In this passage the writer tells the readers that in those times the frontier area was one of the centres of old Indian culture. The ruins of monuments and monasteries which are lying there even today are the proof of old Indian culture. In those days the university of Taxila was so famous that it attracted students from all over India as well as different parts of Asia. According to Nehru the changes of religion could not change entirely the mental backgrounds which the people of those areas had developed.

3. There was something….. synthesis.

Context : This lesson is taken from the well-known work of Nehru “The Discovery of India’. In this lesson Pt. Nehru says that India is a country of great diversity in physical appearance, fo clothing, social customs, rms, religion and language. Yet the Indian. culture has a great impress upon different people and it unites them.

Explanation : People of different religions and languages living in India remained Indians throughout the centuries. Foreign races came here but they also could not disrupt the national feelings of the Indians. Every person living in India was first Indian and then something else. Many years ago India was also a vast country like China. She had her own culture and assimilated much of the other cultures also. It has always been changing outwardly. Therefore, the Indian culture is called dynamic.

4. Disruptive tendencies…. ………… encouraged          [M. Imp.)

Context : Pt. Nehru says that India is a country of great diversity in physical appearance, food, clothing, social customs, religion and language. But it has a unique culture. It has a characteristic of synthesis. So many times foreign cultures influenced our culture but they were soon absorbed in it.

Explanation : In these lines the author explains how Indian culture became richer by the impact of other cultures. He says that the idea of unity has been very old in the minds of Indian people. This idea was not forcibly imposed upon Indians. It was also not based on certain set rules of religion. But it was based on a broad outlook. Indian culture learnt a lot from others and it also taught a lot to the others. Thus it was very flexible and went on going richer and richer.

5. Differences, big or small ……….. everywhere.

Context: Pt. Nehru says that the idea of unity has been very old in the minds of Indian people. This idea was not imposed upon them but it was based on a broad outlook. That is why all the Indians irrespective of their caste and religion have been united.

Explanation : In these lines Pt. Nehru says the difference in various groups are but natural. Each group is closely related with itself. But in a nation there are so many groups and each group has its own interests. But when these different groups come closer and have a common national feeling, these differences begin to fade away. They come closer with one another and become united. This process is called synthesis and it makes the unity and nation strong.

6. Indian converts………… between them.

Context: The author says that India is a nation and in every nation there may be groups. So in India also there are many groups of different religions. But all the people of non-Indian origin who settled in India became particularly Indian. The Christians, Jews, Parsis, Moslems, etc., who have settled in India are first Indian and then anyone else.

Explanation : In these lines the author says that Indian culture has been secular. It is not related to any caste or religion. Many people changed their religion yet they called themselves Indians. They had always the feelings of nationalism. If they went to any other country of their own religion, there also they were looked as Indians. Thus, we see that Indian culture is something peculiar and different from the culture of other countries.

7. Today, when…..internal differences.

Context: Here the author says that in every nation there are many groups of differentian culture has been secular. It is not related with any caste or religion. Indian culture is something peculiar and different from the culture of other countries.

Explanation: In these lines the author says that the feelings of nationalism are deeply rooted in the hearts of all Indians. There are so many Indians who are living in foreign countries. They may have their own internal differences based on caste, creed or Tour. Yet inspite of these differences they form a national group there, i.e. a group of Indians and they have the feelings of indianism in them. Thus, this feeling of nationalism binds them together.

Short Answer Type Questions

Answer the following questions in not more than 30 words :

Question 1.
What things make the diversity of India obvious ?         [Imp.)
(कौन-सी बातें भारत की विविधता को स्पष्ट करती हैं ?)
Or
What is the essential unity in diversity of Indian culture ?
(वास्तविक एकता में भारतीय संस्कृति की विविधता क्या है ?)
Answer:
Physical appearance, physical traits and mental habits of the people of India make the diversity of India obvious. Yet the people call them Indians.
(भारत के लोगों की शारीरिक बनावट, उनके शारीरिक लक्षण तथा उनकी मानसिक प्रवृत्तियाँ भारत की विविधता को स्पष्ट करती हैं। फिर भी लोग स्वयं को भारतीय कहते हैं।)

Question 2.
what is the speciality of Indian culture ?
(भारतीय संस्कृति की क्या विशेषता है ?)
Answer:
Unity in diversity is the speciality of Indian culture.
(विभिन्नता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता है।)

Question 3.
What things does the author mention as examples of India’s tremendous unity ?
( भारत की विशाल एकता के उदाहरण के रूप में लेखक किन बातों का उल्लेख करता है ?)
Answer:
The author mentions the examples of Pathans of North-West Frontiers and the Tamils of South to show India’s tremendous unity.
(भारत की विशाल एकता को प्रदर्शित करने के लिए लेखक उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रान्त के पठानों तथा दक्षिण के तमिलों का उदाहरण देता है।)

Question 4.
What kept India united in the past ?
( भूतकाल में कौन-सी बात ने भारत को संगठित रखा ?)
Answer:
Common national heritage and common moral and mental qualities kept India united before the coming of the modern idea of nationalism.
(समान राष्ट्रीय धरोहर और समान नैतिक एवं मानसिक गुणों ने आधुनिक राष्ट्रवादी विचारधारा के आने से पूर्व भारत को संगठित रखा।)

Question 5.
How and where do we see the impress of India on the people belonging to different parts of the country?
(देश के भिन्न-भिन्न भागों में रहने वाले लोगों पर हम भारत की छाप कैसे और कहाँ देखते हैं ?)
Answer:
We see the impress of India on the people belonging to different parts of the country in their manners, customs and traditions. They look peculiarly Indian when we compare them with the people of same faith living in other countries.
(हमें देश के भिन्न-भिन्न भागों में रहने वाले लोगों पर भारत की छाप उनके तौर-तरीके, रीति-रिवाज और परम्पराओं में देखते हैं। वे विशेष रूप से भारतीय दिखाई देते हैं जब हम उनकी तुलना उसी धर्म के उन लोगों से करते हैं जो अन्य देशों में रहते हैं।)

Question 6.
How do we know that the North-West Frontier Area was one of the strongholds of Indian culture ?
(हम यह बात कैसे जानते हैं कि उत्तरी-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त भारतीय संस्कृति का प्रमुख केन्द्र था ?)
Answer:
Ruins of old monuments, great University of Taxila, epics and Buddhist literature tell us that the North-West Frontier Area was strong holds of Indian culture.
(प्राचीन मठों के खण्डहर, तक्षशिला विश्वविद्यालय, महाकाव्य तथा बौद्ध साहित्य हमें बताते हैं कि उत्तरी-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त भारतीय संस्कृति का प्रमुख केन्द्र था।)

Question 7.
Why did the changes in religion fail to undermine the basic unity of India ?
( धार्मिक परिवर्तन भारत की मूलभूत एकता को नष्ट करने में क्यों असफल रहे ?)
Answer:
The changes in religion failed to undermine the basic unity of India because in India, widest tolerance of belief and custom was practised. The people acknowledged and accepted every variety and encouraged it.
( धार्मिक परिवर्तन भारत की मूलभूत एकता को नष्ट करने में असफल रहे, क्योंकि भारत में धर्म और रीति-रिवाजों के प्रति अत्यधिक सहिष्णुता थी। लोग हर प्रकार की विविधता को स्वीकार करते थे और इसे प्रोत्साहित करते थे।)

Question 8.
What kind of unity has the Indian mind been dreaming of since the dawn of history ?
(इतिहास के आरम्भ से भारतीय किस प्रकार की एकता का स्वप्न देख रहे हैं ?)
Answer:
The Indian mind has been dreaming of a deeper inner firm uniformity since the dawn of history.
(इतिहास के आरम्भ से भारतीय लोग गम्भीर दृढ़ समानता का स्वप्न देख रहे हैं।)

Question 9.
How are modern developments tending to produce a certain uniformity between the various communities of India ?
(आधुनिक विकास के कार्य किस प्रकार भारत की भिन्न-भिन्न जातियों के बीच समानता पैदा करने की ओर लगे हुए हैं ?)
Answer:
In modern development the people of various communities of India are not giving much importance to their religious or racial bonds but they give more importance to their national feelings, i.e. they are Indians.
(आधुनिक विकास के कार्यों में भारत के भिन्न-भिन्न समुदायों के लोग अपने धार्मिक या जातीय बन्धनों को महत्त्व नहीं देते, बल्कि वे राष्ट्रीय भावना को अधिक महत्त्व देते हैं अर्थात् वे भारतीय हैं।)

Question 10.
What things does the author recall to memory when he thinks of India ?
(भारत के विषय में जब लेखक सोचता है तब उसके मस्तिष्क में क्या-क्या बातें आती हैं ?)
Answer:
When the author thinks of India, he recalls to memory the broad fields, villages, towns and cities and rivers, the Himalayas and the valleys of Kashmir.
(जब लेखक भारत के विषय में सोचता है तब उसके मस्तिष्क में लम्बे-चौड़े खेतों की, गाँवों, कस्बों तथा नगरों की, नदियों, हिमालय पर्वत तथा कश्मीर की घाटियों की याद आ जाती है।)

Question 11.
which two pictures does Nehru mention here ? How would they be correct ?
(नेहरू जी कौन-से दो चित्रों का वर्णन करते हैं ? वे कैसे ठीक होंगे ?)
Answer:
One is the picture of mountain background and another is of a hot subtropical country. Both pictures would be correct because India spreads from the tropics to the temperate regions.
(एक चित्र पहाड़ों की पृष्ठभूमि का है और दूसरा समशीतोष्ण प्रदेश का। दोनों चित्र ठीक होंगे, क्योंकि भारत गर्म प्रदेश से समशीतोष्ण प्रदेश तक फैला हुआ है।)

Question 12.
What was Taxila famous for in ancient India according to Jawaharlal Nehru ?       [M. Imp.]
(जवाहरलाल नेहरू के अनुसार प्राचीन भारत में तक्षशिला किसलिए प्रसिद्ध था ?)
Answer:
In ancient India the great university of Taxila was famous for education. About two thousand years ago this university was at the height of its fame. Students from all over India as well as different parts of Asia came to study here.
(प्राचीन भारत में महान् यूनिवर्सिटी तक्षशिला अपनी शिक्षा के लिए प्रसिद्ध थी। लगभग दो हजार वर्ष पहले यह यूनिवर्सिटी अपनी प्रसिद्धि की ऊँचाई पर थी। भारत के सभी भागों से वे एशिया के विभिन्न भागों से विद्यार्थी यहाँ पढ़ने आते थे।)

Question 13.
what is meant by the expression The Variety and Unity of India’ ?
(“The variety and unity of India’ अभिव्यक्ति का क्या अर्थ है ?)
Answer:
The expression means that although the people of India have different cultures, languages, religions and beliefs, yet they are emotionally one.
(इस अभिव्यक्ति का अर्थ है कि यद्यपि भारतीयों में सांस्कृतिक, भाषाई, धार्मिक विभिन्नताएँ हैं, फिर भी उनमें भावात्मक एकता है।)

Vocabulary

Choose the most appropriate word or phrase that best completes the sentence :

1. Disruptive tendencies gave rise immediately to an attempt to find a …
(a) synthesis
(b) unity
(c) analysis
(d) uniformity
Answers:
(a) synthesis

2. Some kind of a dream of unity has occupied the mind of India since the ….. of civilization.
(a) dawn
(b) beginning
(c) daybreak
(d) birth
Answers:
(a) dawn

3. Differences big or small, can always be noticed even with in a ……. group, however closely bound together it
may be.
(a) national
(b) international
(c) religious
(d) social
Answers:
(a) national

4. An Indian Christian is looked upon as ……… wherever he may go.
(a) a foreigner
(b) a Christian
(c) an Indian
(d) an American
Answers:
(c) an Indian

5. All of us,I suppose, have ……. pictures of our native land and no two persons will think exactly alike.
(a) developing
(b) slipping
(c) fading
(d) varying
Answers:
(d) varying

6. The Pathans and the Tamils are two extreme examples; the others lie …….. in between.
(a) nowhere
(b) anywhere
(c) somewhere
(d) out there
Answers:
(c) somewhere

7. That …… was not conceived as something imposed from outside, a standardization of externals or even of beliefs.
(a) unity
(b) single
(c) benefit
(d) unanimously
Answers:
(a) unity

8. The …….. of India is tremendous; it is obvious; it lies on the surface and anybody can see it. (a) unity
(b) relation
(c) diversity
(d) position
Answers:
(c) diversity

9. Today when the conception of realism has developed, much more Indians in foreign countries …….. form a national group.
(a) definitely
(b) naturally
(c) obviously
(d) inevitably
Answers:
(d) inevitably

10. Ancient India, like ancient China, was a world in itself, a culture and a civilization which gave …… to all things.
(a) sense
(b) sensitivity
(c) sign
(d) shape
Answers:
(d) shape

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