UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 24 श्रम

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 24
Chapter Name श्रम
Number of Questions Solved 25
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 24 श्रम

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सी क्रिया अर्थशास्त्र की दृष्टि से श्रम है? (2016)
(a) तस्करी,
(b) भीख माँगना
(c) अध्यापक द्वारा अपने पुत्र को पढ़ाना
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सी क्रिया अर्थशास्त्र की दृष्टि से ‘श्रम’ है? (2017)
(a) डकैती
(b) तस्करी
(c) चैन खींचना
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

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प्रश्न 3.
श्रम के अन्तर्गत सम्मिलित हैं।
(a) मानवीय क्रियाएँ
(b) वैधानिक क्रियाएँ
(c) मानसिक व शारीरिक दोनों क्रियाएँ
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) मानसिक व शारीरिक दोनों क्रियाएँ

प्रश्न 4.
श्रम उत्पत्ति का ……….. साधन होता है।
(a) सक्रिय
(b) निष्क्रिय
(c) शारीरिक
(d) मानसिक
उत्तर:
(a) सक्रिय

प्रश्न 5.
श्रम उत्पादन का
(a) साधन है
(b) साध्य है
(c) साधन व साध्य दोनों है
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) साधन व साध्य दोनों है

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निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
माता द्वारा बच्चे का पालन-पोषण अर्थशास्त्र में श्रम है/नहीं है।
उत्तर:
नहीं है।

प्रश्न 2.
पूँजी की अपेक्षा श्रम अधिक गतिशील होता है।नहीं होता है।
उत्तर:
नहीं होता है।

प्रश्न 3.
श्रम उत्पादन का सक्रिय साधन है/सक्रिय साधन नहीं है।
उत्तर:
सक्रिय साधन है।

प्रश्न 4.
श्रम नाशवान है/नहीं है।
उत्तर:
नाशवान है।

प्रश्न 5.
श्रम में पूँजी का विनियोग किया जा सकता है/नहीं किया जा सकता है।
उत्तर:
किया जा सकता है।

प्रश्न 6.
श्रम उत्पादन का गौण/अनिवार्य उपादान है।
उत्तर:
अनिवार्य उपादान है।

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प्रश्न 7.
श्रम उत्पादक एवं अनुत्पादक दोनों होता है/दोनों नहीं होता है।
उत्तर:
दोनों होता है।

प्रश्न 8.
अध्यापक का श्रम अनुत्पादक है/नहीं है।
उत्तर:
नहीं है।

प्रश्न 9.
इंजीनियर का कार्य मानसिक/शारीरिक श्रम है।
उत्तर:
मानसिक श्रम है।

प्रश्न 10.
श्रम की माँग प्रत्यक्ष/परोक्ष होती है।
उत्तर:
परोक्ष होती है।

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प्रश्न 11.
श्रमिकों की कार्यक्षमता पर जलवायु व प्राकृतिक वातावरण का प्रभाव पड़ता है/नहीं पड़ता।
उत्तर:
पड़ता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
श्रम की दो मर्यादाएँ या मूल तत्त्वों को लिखिए।
उत्तर:
श्रम की दो प्रमुख मर्यादाएँ या मूल तत्त्व निम्नलिखित हैं

  1. धनोपार्जन के उद्देश्य से की जाने (UPBoardSolutions.com) वाली समस्त क्रियाओं को श्रम में सम्मिलित किया जाता है।
  2. श्रम में केवल मानवीय प्रयत्नों को ही सम्मिलित किया जाता है, मशीनी कार्य को नहीं।

प्रश्न 2.
उत्पादन के साधन के रूप में श्रम की दो विशेषताएँ लिखिए। (2016)
उत्तर:
उत्पादन के साधन के रूप में श्रम की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. श्रम उत्पत्ति को सक्रिय साधन है श्रम उत्पत्ति का सक्रिय साधन है, जबकि भूमि और पूँजी उत्पत्ति के निष्क्रिय साधन हैं। श्रम के अभाव में पूँजी और भूमि कोई उत्पत्ति नहीं कर सकती है।
  2. श्रम नाशवान है श्रम की सबसे बड़ी विशेषता श्रम का नाशवान होना है। यदि किसी दिन श्रमिक कार्य नहीं करता, तो उसका उस दिन का श्रम हमेशा के लिए नष्ट हो जाता है।

प्रश्न 3.
श्रम के प्रकार बताइए।
उत्तर:
श्रम का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया जा सकता है

  1. कुशल व अकुशल श्रम
  2. उत्पादक एवं अनुत्पादक श्रम
  3. शारीरिक व मानसिक श्रम

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प्रश्न 4.
भारतीय श्रमिकों की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले दो तत्त्व लिखिए।
उत्तर:
भारतीय श्रमिकों की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले दो तत्त्व निम्न प्रकार हैं

  1. पुरस्कार व उन्नति की आशा यदि श्रमिक को कार्य करने से उचित मजदूरी, पुरस्कार या पदोन्नति मिलती है, तो श्रमिक अधिक कुशलता से कार्य को सम्पन्न करते हैं। कम मजदूरी पाने वाले श्रमिकों में कुशलता की कमी होती है।

  2. शिक्षा तथा प्रशिक्षण एक शिक्षित व विशेष प्रशिक्षण प्राप्त श्रमिक, (UPBoardSolutions.com) अप्रशिक्षित श्रमिक की तुलना में अधिक कुशलता से कार्य करता है। प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति कार्य को शीघ्र समझकर सम्पन्न कर देता है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
अम क्या है? भूमि व श्रम में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
श्रम से आशय साधारण भाषा में ‘श्रम’ शब्द का अर्थ शारीरिक परिश्रम अथवा किसी कार्य को सम्पन्न करने के लिए किए गए प्रयत्न से होता है, किन्तु अर्थशास्त्र में श्रम का तात्पर्य उन मानसिक व शारीरिक प्रयत्नों से होता है, जो आर्थिक प्रतिफल के उद्देश्य से किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, डॉक्टर, वकील, मजदूर, प्रबन्धक, मन्त्री या सरकारी कर्मचारी (चाहे वे किसी भी स्तर के हों), इन सभी के प्रयत्न श्रम की श्रेणी में आते हैं।

भूमि व श्रम में अन्तर

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प्रश्न 2.
उत्पादन में श्रम का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
किसी भी कार्य को करने में श्रम का जो महत्त्व होता है, उसे निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

  1. उत्पादन को सम्भव बनाना श्रम के बिना किसी भी वस्तु या सेवा का उत्पादन असम्भव है। अत: श्रम के द्वारा ही उत्पादन के अन्य उपादानों को क्रियाशील बनाया जाता है।
  2. आर्थिक विकास में सहयोगी श्रम के अभाव में कोई देश आर्थिक प्रगति नहीं कर सकता। किसी भी देश में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का मानवीय संसाधनों (श्रम) द्वारा कुशलतम उपयोग करके देश का आर्थिक विकास किया जाता है।
  3. औद्योगिक विकास में महत्त्व औद्योगिक विकास हेतु नई-नई उत्पादन (UPBoardSolutions.com) विधियों तथा मशीनों के निर्माण में भी श्रम का अत्यधिक महत्त्व है। एक कुशल श्रमिक द्वारा ही उद्योगों के क्षेत्र में नए-नए आविष्कार किए जाते हैं।
  4. वस्तुओं के उपभोग में महत्त्व श्रमिक द्वारा उत्पादित की गई वस्तुओं के उपभोग करने में भी श्रमिक का महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि उत्पादित वस्तु का उपभोग भी मानवीय श्रम द्वारा ही किया जाता है।
  5. वितरण के अध्ययन में महत्त्व वितरण का अध्ययन करने में भी श्रम का अत्यधिक महत्त्व है, क्योंकि राष्ट्रीय आय के बढ़ने से भूमि के लगान तथा पूँजी के ब्याज में जो वृद्धि होती है, वह मानवीय श्रम के सहयोग द्वारा ही सम्भव है।
  6. वस्तुओं के विनिमय में महत्त्व वर्तमान युग में बाजारों में वस्तुओं तथा सेवाओं का विनिमय तभी सम्भव है, जब कृषक या श्रमिकों द्वारा उचित व अच्छी किस्म की फसल का उत्पादन किया जाए। अतः श्रम विनिमय के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
श्रम क्या है? उत्पादन के साधन के रूप में श्रम के प्रमुख लक्षणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2014)
अथवा
श्रम से आप क्या समझते हैं? श्रम की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
श्रम से आशय
श्रम से आशय साधारण भाषा में ‘श्रम’ शब्द का अर्थ शारीरिक परिश्रम अथवा किसी कार्य को सम्पन्न करने के लिए किए गए प्रयत्न से होता है, किन्तु अर्थशास्त्र में श्रम का तात्पर्य उन मानसिक व शारीरिक प्रयत्नों से होता है, जो आर्थिक प्रतिफल के उद्देश्य से किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, डॉक्टर, वकील, मजदूर, प्रबन्धक, मन्त्री या सरकारी कर्मचारी (चाहे वे किसी भी स्तर के हों), इन सभी के प्रयत्न श्रम की श्रेणी में आते हैं।

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भूमि व श्रम में अन्तर
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श्रम के लक्षण या विशेषताएँ श्रम के प्रमुख लक्षणे या विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. श्रम उत्पत्ति का सक्रिय साधन है श्रम उत्पत्ति का सक्रिय साधन है, जबकि भूमि और पूँजी उत्पत्ति के निष्क्रिय साधन हैं श्रम के अभाव में पूँजी और भूमि कोई उत्पत्ति नहीं कर सकती है। प्रबन्ध और संगठन भी श्रम के ही विशिष्ट रूप हैं।

2. श्रम नाशवान है श्रम की सबसे बड़ी विशेषता श्रम का नाशवान होना है। यदि किसी दिन श्रमिक कार्य नहीं करता, तो उसका उस दिन का श्रम हमेशा के लिए नष्ट हो जाता है।

3. श्रमिक अपने श्रम को बेचता है स्वयं को नहीं श्रमिक को वहाँ उपस्थित रहना पड़ता है, जहाँ श्रम करना है। अतः श्रमिकों को अपना श्रम बेचते समय कार्य करने की जगह, कार्य की प्रकृति, भौतिक वातावरण, मालिकों के स्वभाव, आदि पर ध्यान देना आवश्यक होता है।

4. श्रमिक की मोल-भाव करने की क्षमता कम होती है श्रम के नाशवान होने तथा श्रम को श्रमिक से अलग न किए जा सकने के कारण श्रमिकों की मोल-भाव (सौदा) करने की शक्ति कमजोर होती है। श्रमिकों की दरिद्रता, अकुशलता तथा वैकल्पिक रोजगार के अभाव में भी वे मालिकों की तुलना में कमजोर रह जाते हैं।

5. श्रम साधन और साध्य दोनों है श्रम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि श्रम न केवल उत्पत्ति का एक सक्रिय साधन है, वरन् उपभोक्ता के रूप में सम्पूर्ण आर्थिक क्रियाओं का साध्य भी है। समस्त आर्थिक कार्यों का अन्तिम लक्ष्य अधिकतम मानव कल्याण होता है।

6. श्रम अपनी बुद्धि, तर्क व निर्णय शक्ति का प्रयोग करता है श्रमिक (UPBoardSolutions.com) किसी कार्य को सम्पन्न करने में अपनी बुद्धि, तर्क व निर्णय शक्ति का प्रयोग करता है, जिससे आविष्कार, अनुसन्धान व नई तकनीकों का विकास होता है। विभिन्न यन्त्रों का संचालन करने हेतु श्रमिकों को अपनी बौद्धिक व शारीरिक क्षमता को उपयोग में लाना पड़ता है।

7. श्रम को श्रमिक से अलग नहीं किया जा सकता है श्रम को श्रमिक से अलग नहीं किया जा सकता है। श्रमिक श्रम का स्वामी है और जब वह उसे बेचता है, तो श्रम प्रदान करने के स्थान पर श्रमिक का उपस्थित रहना  अनिवार्य होता है।

8. श्रम की पूर्ति में परिवर्तन धीमी गति से होता है श्रम की पूर्ति को अल्पकाल में बढ़ाना कठिन है। दीर्घकाल में श्रम की पूर्ति धीमी गति से बढ़ाई जा सकती है। श्रम की पूर्ति दो बातों पर निर्भर रहती है|

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  • श्रम की कार्यकुशलता,
  • जनसंख्या

9. श्रम में पूँजी का विनियोग किया जा सकता है श्रम उत्पत्ति का एक सजीव व सक्रिय साधन है। प्रशिक्षण, शिक्षा, अच्छे पोषण, उच्च जीवन-स्तर, आदि से श्रम की शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों में वृद्धि की जा सकती है।

10. श्रम उत्पत्ति का गतिशील साधन है श्रम में भूमि की अपेक्षा अधिक गतिशीलता होती है। श्रम एक स्थान से दूसरे स्थान पर, एक व्यवसाय से दूसरे व्यवसाय में और एक उद्योग से दूसरे उद्योग में गतिशील रहता है।

11. श्रम उत्पत्ति का आवश्यक साधन है श्रम के बिना उत्पादन बिल्कुल असम्भव है, क्योंकि उत्पत्ति के अन्य साधन-भूमि एवं पूँजी उत्पत्ति के निष्क्रिय साधन हैं। उनमें उत्पादन करने के लिए श्रम जैसे सक्रिय साधन की अनिवार्यता होती है। इसी कारण श्रम की उत्पत्ति के अन्य साधनों की अपेक्षा अधिक महत्त्व है।

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प्रश्न 2.
श्रम की विशेषताएँ बताइटे। श्रम कितने प्रकार का होता है? (2017)
उत्तर:
श्रम की विशेषताएँ

1. श्रम उत्पत्ति का सक्रिय साधन है श्रम उत्पत्ति का सक्रिय साधन है, जबकि भूमि और पूँजी उत्पत्ति के निष्क्रिय साधन हैं श्रम के अभाव में पूँजी और भूमि कोई उत्पत्ति नहीं कर सकती है। प्रबन्ध और संगठन भी श्रम के ही विशिष्ट रूप हैं।

2. श्रम नाशवान है श्रम की सबसे बड़ी विशेषता श्रम का नाशवान होना है। यदि किसी दिन श्रमिक कार्य नहीं करता, तो उसका उस दिन का श्रम हमेशा के लिए नष्ट हो जाता है।

3. श्रमिक अपने श्रम को बेचता है स्वयं को नहीं श्रमिक को वहाँ उपस्थित रहना पड़ता है, जहाँ श्रम करना है। अतः श्रमिकों को अपना श्रम बेचते समय कार्य करने की जगह, कार्य की प्रकृति, भौतिक वातावरण, मालिकों के स्वभाव, आदि पर ध्यान देना आवश्यक होता है।

4. श्रमिक की मोल-भाव करने की क्षमता कम होती है श्रम के नाशवान होने तथा श्रम को श्रमिक से अलग न किए जा सकने के कारण श्रमिकों की मोल-भाव (सौदा) करने की शक्ति कमजोर होती है। श्रमिकों की दरिद्रता, अकुशलता तथा वैकल्पिक रोजगार के अभाव में भी वे मालिकों की तुलना में कमजोर रह जाते हैं।

5. श्रम साधन और साध्य दोनों है श्रम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि (UPBoardSolutions.com) श्रम न केवल उत्पत्ति का एक सक्रिय साधन है, वरन् उपभोक्ता के रूप में सम्पूर्ण आर्थिक क्रियाओं का साध्य भी है। समस्त आर्थिक कार्यों का अन्तिम लक्ष्य अधिकतम मानव कल्याण होता है।

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6. श्रम अपनी बुद्धि, तर्क व निर्णय शक्ति का प्रयोग करता है श्रमिक किसी कार्य को सम्पन्न करने में अपनी बुद्धि, तर्क व निर्णय शक्ति का प्रयोग करता है, जिससे आविष्कार, अनुसन्धान व नई तकनीकों का विकास होता है। विभिन्न यन्त्रों का संचालन करने हेतु श्रमिकों को अपनी बौद्धिक व शारीरिक क्षमता को उपयोग में लाना पड़ता है।

7. श्रम को श्रमिक से अलग नहीं किया जा सकता है श्रम को श्रमिक से अलग नहीं किया जा सकता है। श्रमिक श्रम का स्वामी है और जब वह उसे बेचता है, तो श्रम प्रदान करने के स्थान पर श्रमिक का उपस्थित रहना  अनिवार्य होता है।

8. श्रम की पूर्ति में परिवर्तन धीमी गति से होता है श्रम की पूर्ति को अल्पकाल में बढ़ाना कठिन है। दीर्घकाल में श्रम की पूर्ति धीमी गति से बढ़ाई जा सकती है। श्रम की पूर्ति दो बातों पर निर्भर रहती है|

  • श्रम की कार्यकुशलता,
  • जनसंख्या

9. श्रम में पूँजी का विनियोग किया जा सकता है श्रम उत्पत्ति का एक सजीव व सक्रिय साधन है। प्रशिक्षण, शिक्षा, अच्छे पोषण, उच्च जीवन-स्तर, आदि से श्रम की शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों में वृद्धि की जा सकती है।

10. श्रम उत्पत्ति का गतिशील साधन है श्रम में भूमि की अपेक्षा अधिक गतिशीलता होती है। श्रम एक स्थान से दूसरे स्थान पर, एक व्यवसाय से दूसरे व्यवसाय में और एक उद्योग से दूसरे उद्योग में गतिशील रहता है।

11. श्रम उत्पत्ति का आवश्यक साधन है श्रम के बिना उत्पादन बिल्कुल असम्भव है, क्योंकि उत्पत्ति के अन्य साधन-भूमि एवं पूँजी उत्पत्ति के निष्क्रिय साधन हैं। उनमें उत्पादन करने के लिए श्रम जैसे सक्रिय साधन की अनिवार्यता होती है। इसी कारण श्रम की उत्पत्ति के अन्य साधनों की अपेक्षा अधिक महत्त्व है।

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श्रम के प्रकार श्रम को निम्नलिखित तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता

1. कुशल एवं अकुशल श्रम वह कार्य, जिसे करने से पूर्व किसी विशेष शिक्षा, ज्ञान अथवा प्रशिक्षण, आदि की आवश्यकता होती है, वह ‘कुशल श्रम’ कहलाता है; जैसे-वकील, इंजीनियर, डॉक्टर, अध्यापक, आदि के कार्य। इसके विपरीत ऐसा कार्य, जिसे करने से पूर्व किसी विशेष प्रकार की शिक्षा या प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती, वह ‘अकुशल श्रम’ कहलाता है; जैसे-कुली, चौकीदारे तथा चपरासी, आदि का श्रम्।

2. उत्पादक एवं अनुत्पादक श्रम मनुष्य के जिस प्रयत्न से उपयोगिता का सृजन होता है तथा उसे उसके उद्देश्य में सफलता प्राप्त होती है, उसे ‘उत्पादक श्रम’ कहते हैं; जैसे- यदि एक बढ़ई कुर्सी बनाने में लगा है। और कुर्सी बनकर तैयार हो जाती है, तो यह (UPBoardSolutions.com) श्रम उत्पादक श्रम है। इसके विपरीत, मनुष्य द्वारा किए गए ऐसे प्रयास जिनसे उपयोगिता का सृजन नहीं होता तथा उसके उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती, उसे ‘अनुत्पादक श्रम’ कहते हैं; जैसे-बढ़ई द्वारा कुर्सी बनाने के लिए काटी गई लकड़ी के गलत कट जाने से कुर्सी नहीं बन पाती, तो यह श्रम अनुत्पादक श्रम है।

3. मानसिक एवं शारीरिक श्रम जिस कार्य को करने में मानसिक शक्ति का उपयोग शारीरिक शक्ति की अपेक्षा अधिक होता है, उस कार्य में लगा श्रम ‘मानसिक श्रम’ कहलाता है; जैसे-डॉक्टर, वकील, अध्यापक, आदि का श्रम मानसिक श्रम है। इसके विपरीत, जब किसी कार्य को करने में मानसिक शक्ति की अपेक्षा शारीरिक शक्ति का अधिक उपयोग होता है, तो उस कार्य में लगा श्रम ‘शारीरिक श्रम’ कहलाता है; जैसे—कुली, मजदूर, लुहार, आदि का श्रम
शारीरिक श्रम है।

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प्रश्न 3.
श्रम की कार्यक्षमता से आप क्या समझते हैं? यह किन घटकों पर निर्भर होती है? (2016)
अथवा
‘श्रम की कार्यक्षमता से आप क्यों समझते हैं? श्रम की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिए। (2018)
उत्तर:
श्रम की कार्यक्षमता से आशय कार्यक्षमता का शाब्दिक अर्थ ‘कार्य करने की शक्ति से होता है। श्रम की कार्यक्षमता (Efficiency of Labour) से तात्पर्य किसी श्रमिक की कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक कार्य करने की योग्यती या क्षमता से होता है। श्रम की कार्यक्षमता सापेक्षित होती है। श्रम की माँग परोक्ष होती है। कार्यक्षमता का अनुमान दो व्यक्तियों की तुलना करके लगाया जा सकता है।

मौरलैण्ड के अनुसार, “श्रम की कार्यक्षमता से हमारा अभिप्राय किसी निश्चित मात्रा में लगाए गए श्रम की अपेक्षा उत्पादित सम्पत्ति के अधीन होने से है।” प्रो. निर्वान एवं शर्मा के अनुसार, “श्रम की कार्यक्षमता का अर्थ किसी श्रमिक की उस क्षमता से है जिसके द्वारा वह अधिक उत्तम वस्तु की, अधिक मात्रा में वस्तु का या दोनों का उत्पादन करता है।”

श्रम की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले तत्त्व/घटक श्रम की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले तत्त्व/घटक निम्नलिखित हैं-

 1. पुरस्कार व उन्नति की आशा यदि श्रमिक को कार्य करने से उचित मजदूरी, पुरस्कार या पदोन्नति मिलती है, तो श्रमिक अधिक कुशलता से कार्य को सम्पन्न करते हैं। कम मजदूरी पाने वाले श्रमिकों में कुशलता की कमी होती है।

2. शिक्षा तथा प्रशिक्षण एक शिक्षित व विशेष प्रशिक्षण प्राप्त श्रमिक, अप्रशिक्षित श्रमिक की तुलना में अधिक कुशलता से कार्य करता है। प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति कार्य को शीघ्र समझकर सम्पन्न कर देता है।

3. प्रबन्धकों की योग्यता व व्यवहार प्रबन्धकों की व्यवहार कुशलता व योग्यता का श्रमिकों की कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है। प्रबन्धकों के अच्छे व्यवहार से श्रमिक योग्यतानुसार नवीन तकनीकी कार्यों को उचित रूप से पूर्ण कर सकते हैं।

4. पैतृक व जातीय गुण श्रमिकों की कार्यकुशलता पर उसके पैतृक गुणों व जातीय गुणों का भी प्रभाव पड़ता है। इन गुणों का उनकी कार्यक्षमता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बच्चे पैतृक गुणों को शीघ्र ही सीख लेते हैं।

5. नैतिक गुण श्रमिकों में नैतिक गुणों से कर्तव्यनिष्ठा का भाव उत्पन्न होता है, इससे श्रमिक अपने कर्तव्य का समय से निर्वहन करता है। ऐसे श्रमिक ईमानदार, सच्चे व कर्त्तव्यपरायण होते हैं।

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6. सामान्य बुद्धिमत्ता श्रमिक की सामान्य बुद्धि का भी कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है। सामान्य बुद्धि वाले श्रमिक कम बुद्धि वाले श्रमिक की तुलना में अधिक कार्यकुशल होते हैं। सामान्य बुद्धि के व्यक्ति या श्रमिक कार्य को समय पर निष्पादित करते हैं।

7. काम करने की दशाएँ जिन कारखानों में श्रमिकों के लिए स्वस्थ वातावरण व उसके परिवार के लिए शिक्षा, मनोरंजन, खेलकद, रोशनी, स्वच्छ पानी, आदि अनिवार्यताओं की व्यवस्था होती है, वहाँ श्रमिकों की कार्यक्षमता अधिक होती है। ऐसी व्यवस्था उपलब्ध नहीं होने से श्रमिकों की कार्यक्षमता में कमी होती है।

8. जलवायु तथा प्राकृतिक दशाएँ श्रमिकों की कार्यकुशलता पर जलवायु व प्राकृतिक वातावरण का भी अधिक प्रभाव पड़ता है। अधिक सर्द व अधिक गर्म जलवायु में अधिक देर तक कार्य नहीं किया जा सकता है, जबकि शीतोष्ण जलवायु में श्रमिक अधिक देर तक कार्य कर सकते हैं।

प्रश्न 4.
श्रम की कार्यक्षमता से आप क्या समझते हैं? भारतीय श्रमिकों की कार्यक्षमता कम होने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
श्रम की कार्यक्षमता
श्रम की कार्यक्षमता से आशय कार्यक्षमता का शाब्दिक अर्थ ‘कार्य करने की शक्ति से होता है। श्रम की कार्यक्षमता (Efficiency of Labour) से तात्पर्य किसी श्रमिक की कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक कार्य करने की योग्यती या क्षमता से होता है। श्रम की कार्यक्षमता सापेक्षित होती है। श्रम की माँग परोक्ष होती है। कार्यक्षमता का अनुमान दो व्यक्तियों की तुलना करके लगाया जा सकता है।

मौरलैण्ड के अनुसार, “श्रम की कार्यक्षमता से हमारा अभिप्राय किसी निश्चित मात्रा (UPBoardSolutions.com) में लगाए गए श्रम की अपेक्षा उत्पादित सम्पत्ति के अधीन होने से है।” प्रो. निर्वान एवं शर्मा के अनुसार, “श्रम की कार्यक्षमता का अर्थ किसी श्रमिक की उस क्षमता से है जिसके द्वारा वह अधिक उत्तम वस्तु की, अधिक मात्रा में वस्तु का या दोनों का उत्पादन करता है।”

श्रम की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले तत्त्व/घटक श्रम की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले तत्त्व/घटक निम्नलिखित हैं-

1. पुरस्कार व उन्नति की आशा यदि श्रमिक को कार्य करने से उचित मजदूरी, पुरस्कार या पदोन्नति मिलती है, तो श्रमिक अधिक कुशलता से कार्य को सम्पन्न करते हैं। कम मजदूरी पाने वाले श्रमिकों में कुशलता की कमी होती है।

2. शिक्षा तथा प्रशिक्षण एक शिक्षित व विशेष प्रशिक्षण प्राप्त श्रमिक, अप्रशिक्षित श्रमिक की तुलना में अधिक कुशलता से कार्य करता है। प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति कार्य को शीघ्र समझकर सम्पन्न कर देता है।

3. प्रबन्धकों की योग्यता व व्यवहार प्रबन्धकों की व्यवहार कुशलता व योग्यता का श्रमिकों की कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है। प्रबन्धकों के अच्छे व्यवहार से श्रमिक योग्यतानुसार नवीन तकनीकी कार्यों को उचित रूप से पूर्ण कर सकते हैं।

4. पैतृक व जातीय गुण श्रमिकों की कार्यकुशलता पर उसके पैतृक गुणों व जातीय गुणों का भी प्रभाव पड़ता है। इन गुणों का उनकी कार्यक्षमता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बच्चे पैतृक गुणों को शीघ्र ही सीख लेते हैं।

5. नैतिक गुण श्रमिकों में नैतिक गुणों से कर्तव्यनिष्ठा का भाव उत्पन्न होता है, इससे श्रमिक अपने कर्तव्य का समय से निर्वहन करता है। ऐसे श्रमिक ईमानदार, सच्चे व कर्त्तव्यपरायण होते हैं।

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6. सामान्य बुद्धिमत्ता श्रमिक की सामान्य बुद्धि का भी कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है। सामान्य बुद्धि वाले श्रमिक कम बुद्धि वाले श्रमिक की तुलना में अधिक कार्यकुशल होते हैं। सामान्य बुद्धि के व्यक्ति या श्रमिक कार्य को समय पर निष्पादित करते हैं।

7. काम करने की दशाएँ जिन कारखानों में श्रमिकों के लिए स्वस्थ वातावरण व (UPBoardSolutions.com) उसके परिवार के लिए शिक्षा, मनोरंजन, खेलकद, रोशनी, स्वच्छ पानी, आदि अनिवार्यताओं की व्यवस्था होती है, वहाँ श्रमिकों की कार्यक्षमता अधिक होती है। ऐसी व्यवस्था उपलब्ध नहीं होने से श्रमिकों की कार्यक्षमता में कमी होती है।

8. जलवायु तथा प्राकृतिक दशाएँ श्रमिकों की कार्यकुशलता पर जलवायु व प्राकृतिक वातावरण का भी अधिक प्रभाव पड़ता है। अधिक सर्द व अधिक गर्म जलवायु में अधिक देर तक कार्य नहीं किया जा सकता है, जबकि शीतोष्ण जलवायु में श्रमिक अधिक देर तक कार्य कर सकते हैं।

भारतीय श्रमिकों की अकुशलता या कार्यक्षमता कम होने के कारण भारतीय श्रमिकों की अकुशलता या कार्यक्षमता कम होने के कारण निम्नलिखित

1. शारीरिक दुर्बलता भारतीय श्रमिकों का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य कमजोर होने से ये कठिन परिश्रम नहीं कर पाते हैं, इससे उनकी कार्यक्षमता में कमी आती है।

2. गर्म जलवायु भारत में गर्म जलवायु होने के कारण श्रमिकों की कार्यकुशलता |में कमी होती है, इसलिए भारतीय श्रमिक अकुशल होते हैं।

3. भर्ती की दोषपूर्ण प्रणाली भारत में श्रमिकों की अधिकांश भर्तियाँ ठेकेदारों के माध्यम से होती हैं। ठेकेदार इसके लिए कमीशन या दस्तूरी लेते हैं। ऐसा करने से ठेकेदार अपने स्वार्थ के लिए पुराने अनुभवी श्रमिकों को निकाल देते हैं एवं नए श्रमिकों को भर्ती करते रहते हैं, जिससे कार्यकुशलता में कमी आती है।

4. नैतिकता का अभाव भारतीय श्रमिकों में कर्तव्यनिष्ठा का अभाव होने के कारण इनकी कार्यक्षमता में कमी होती है।

5. निर्धनता व निम्न स्तर का रहन-सहन भारतीय श्रमिकों के गरीब होने के कारण उन्हें भरपेट भोजन व अन्य पर्याप्त सुविधाएँ नहीं मिल पाती हैं। इससे श्रमिकों की कार्यकुशलता में कमी आती है।

6. प्रवासी प्रवृत्ति भारतीय श्रमिक कारखानों में स्थायी रूप से कार्य नहीं करते हैं। इस प्रवृत्ति के कारण श्रमिक फसल के समय व विशेष उत्सवों व त्यौहार पर अपने गाँव चले जाते हैं। इससे श्रमिकों की कार्यकुशलता में कमी आती है।

7. श्रमिकों को संघर्ष भारत में आए दिन पूँजीपति व श्रमिकों में संघर्ष चलता रहता है, जिससे तालाबन्दी वे हड़ताल जैसी घटनाएँ जन्म ले लेती हैं। ऐसे में संघर्ष कर रहे श्रमिकों की कार्यक्षमता में कमी होना स्वाभाविक है।

8. प्रशिक्षण का अभाव भारत में तकनीकी शिक्षा का अभाव होने के कारण श्रमिकों की कार्यकुशलता में कमी होती है।

9. काम करने की दशाएँ भारत में अधिकांश कारखानों में दूषित वातावरण होता है, जिससे हवा, पानी व रोशनी की उचित व्यवस्था नहीं होती है। मजदूरों के लिए मशीन पर कार्य करने की सुरक्षा भी नहीं होती है। इससे श्रमिकों की कार्यकुशलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

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10. स्वतन्त्रता व.पदोन्नति का अभाव भारतीय श्रमिकों में स्वतन्त्रता का अभाव होता है वे इनकी समय पर पदोन्नति भी नहीं की जाती है। इससे श्रमिकों में निराशाजनक प्रवृत्ति उत्पन्न होती है और उनकी कार्यक्षमता में कमी आती है।

11. काम करने की समयावधि भारत में गर्म जलवायु होने पर भी कार्य करने (UPBoardSolutions.com) के घण्टे 8 या 9 हैं, जबकि अमेरिका व यूरोप में कार्य करने के घण्टे 6 या 7 हैं। भारत में ‘कारखाना अधिनियम द्वारा निर्धारित किए गए कार्य के घण्टे भी अधिक हैं। इसी कारण भारतीय श्रमिकों की कार्यक्षमता कम है।

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 23 भूमि

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Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 23
Chapter Name भूमि
Number of Questions Solved 19
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 23 भूमि

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
प्रकृति द्वारा प्रदत्त निःशुल्क उपहार है।
(a) श्रम
(b) धन
(c) भूमि
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) भूमि

प्रश्न 2.
भूमि उत्पादन का…….साधन है।
(a) सक्रिय
(b) निष्क्रिये
(c) ‘a’ और ‘b’ दोनों :
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) निष्क्रिय

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प्रश्न 3.
भूमि की विशेषता है। (2018)
(a) असीमित भूमि
(b) सक्रिय साधन
(c) अनाशवान
(d) गतिशील
उत्तर:
(c) अनाशवान

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
क्या भूमि को भू-स्वामी से पृथक् नहीं किया जा सकता है?
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 2.
क्या भूमि का आशय प्रकृति-प्रदत्त सभी निःशुल्क उपहारों से है। (2014)
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 3.
भूमि उत्पादन का साधन है/नहीं है। (2007)
उत्तर:
साधन है।

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प्रश्न 4.
भूमि उत्पादन का सक्रिय साधन है/नहीं है। (2008)
उत्तर:
नहीं है।

प्रश्न 5.
भूमि उत्पादन का अनिवार्य/गौण उपादान है।
उत्तर:
अनिवार्य उपादान है।

प्रश्न 6.
भूमि उत्पादन का असीमित/सीमित साधन है। (2012)
उत्तर:
सीमित

प्रश्न 7.
क्या भूमि साधन एवं साध्य दोनों है?
उत्तर:
नहीं

प्रश्न 8.
क्या भूमि का मूल्य उसकी स्थिति पर निर्भर करता है?
उत्तर:
हाँ।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
भूमि से आप क्या समझते हैं? (2012)
अथवा
अर्थशास्त्र में भूमि का क्या अर्थ है? (2012)
उत्तर:
भूमि (Land) उत्पादन का सबसे अनिवार्य, महत्त्वपूर्ण (UPBoardSolutions.com) तथा निष्क्रिय साधन है। सामान्य भाषा में भूमि का अभिप्राय केवल भूमि की ऊपरी सतह से होता है, परन्तु अर्थशास्त्र में भूमि का अभिप्राय उन समस्त प्राकृतिक उपहारों से है, जिसके अन्तर्गत भूमि की सतह, वायु, प्रकाश, खनिज, जल, आदि प्रकृति-प्रदत्त पदार्थ सम्मिलित होते हैं।

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प्रश्न 2.
भूमि की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
भूमि की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. भूमि प्रकृति का निःशुल्क उपहार है भूमि को प्रकृति का एक नि:शुल्क उपहार बताया गया है। भूमि के अन्तर्गत भूमि की सतह, जंगल, पहाड़, पठार, नदी-नाले, खनिज, समुद्र, आदि प्रकृति से प्राप्त पदार्थ सम्मिलित हैं, जो हमें निःशुल्क प्राप्त होते हैं।

2. भूमि निष्क्रिय होती है भूमि उत्पत्ति का एक अनिवार्य साधन है, परन्तु यह एक निर्जीव साधन है। भूमि उत्पत्ति की क्रिया में सक्रिय रूप से भाग नहीं लेती है। इसमें किसी व्यक्ति द्वारा श्रम लगाकर उत्पादन कार्य किया जा सकता है। मनुष्य द्वारा (UPBoardSolutions.com) भूमि पर श्रम करके उत्पादन सम्भव हो पाता है।

प्रश्न 3.
भूमि के मूल तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मार्शल के अनुसार, भूमि में निम्न तत्त्वों को सम्मिलित किया जाता है-

  1. भूमि की ऊपरी सतह जिस पर मनुष्य चलता-फिरता है, घूमता है तथा कार्य करता है, उसे पृथ्वी की ऊपरी सतह कहते हैं। इसमें पर्वत, नदियाँ, जंगल, मैदान, पठार, झील, प्राकृतिक बन्दरगाह, आदि तथा प्राकृतिक वनस्पतियाँ; जैसे-वन, पेड़-पौधे, घास, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, आदि आते हैं।
  2. भूमि की सतह के नीचे इसमें लौहा, कोयला, सोना, तेल, ताँबा, (UPBoardSolutions.com) अभ्रक, आदि खनिज पदार्थ आते हैं।
  3. भूमि की सतह के ऊपर इसमें जलवायु, धूप, वर्षा, पानी, सर्दी-गर्मी, आदि आते हैं।

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प्रश्न 4.
भूमि के दो महत्त्व लिखिए।
उत्तर:
भूमि के दो महत्त्व निम्नलिखित हैं

  1. यातायात के साधनों के विकास का आधार किसी देश के यातायात व संचार के साधनों का विकास उस देश की भूमि के स्वरूप पर आधारित होता है।
  2. कृषि का आधार भूमि कृषि का आधार है। कृषि कार्य भूमि के बिना नहीं किया जा सकता है। सभी प्रकार के भोज्य-पदार्थ भूमि से ही प्राप्त होते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
भूमि की कार्यक्षमता से क्या आशय है? इसको प्रभावित करने वाले तत्वों को लिखिए।
उत्तर:
भूमि की कार्यक्षमता भूमि का प्रयोग जिस कार्य के लिए होता है, उसके लिए भूमि की उपयुक्तता को भूमि की कार्यक्षमता’ (Efficiency of Land)
कहते हैं; जैसे- उपजाऊ मैदानों में बहने वाली नदियाँ बिजली उत्पादन के लिए उपयुक्त होती हैं। भूमि की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले तत्त्व भूमि की कार्यक्षमता निम्नलिखित तत्त्वों पर निर्भर करती है

1. भूमि सम्बन्धी कानून भूमि के सम्बन्ध में सरकार की नीति एवं भूमि सम्बन्धी कानून का भी भूमि की उत्पादकता पर प्रभाव पड़ता है। जहाँ किसानों का भूमि पर पूर्ण स्वामित्व सम्बन्धी कानून होता है, वहाँ किसान | भूमि पर अथक परिश्रम करके भूमि (UPBoardSolutions.com) की कार्यक्षमता को बढ़ाता है।

2. भूमि की स्थिति भूमि की स्थिति से भी भूमि की कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है। शहर से दूर या मुख्य मार्ग से हटकर स्थित भूमि शहर के निकट की भूमि से कम कार्यक्षमता वाली मानी जाती है। शहर के मुख्य मार्ग की भूमि मकान के लिए तथा अल्पविकसित या ग्रामीण क्षेत्रों की भूमि कृषि के लिए उत्तम होती है। ऐसी स्थिति में यातायात व्यय भी कम होते हैं।

3. प्राकृतिक तत्त्व भूमि के प्राकृतिक गुण; जैसे-उर्वरा शक्ति, जलवायु, सर्य का प्रकाश, मिटटी, वर्षा, भमि की सतह की बनावट आदि से भमि की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। जो भमि जिस कार्य के लिए उपयोगी होती है, उस भूमि पर वही कार्य किया जाए, तो उससे भूमि की कार्यक्षमता अधिक बनी रहती है; जैसे-काली मिट्टी में कपास और भुरभुरी मिट्टी में गेहूं बोने पर भूमि की उत्पादकता में वृद्धि होती है। भूमि की उत्पादन शक्ति प्राकृतिक तत्त्वों पर भी निर्भर करती है।

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4. आर्थिक तत्त्व भूमि की कार्यक्षमता पूँजी की मात्रा, भूमि को स्वामित्व, संगठन की योग्यता, कुशलता, आदि से भी प्रभावित होती है।

5. मानवीय प्रयास द्वारा किया गया भूमि सुधार भूमि पर कार्य करने वाले मनुष्यों के प्रयत्नों का भूमि की कार्यक्षमता पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। मनुष्य भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए उर्वरकों का प्रयोग करते हैं तथा सिंचाई के साधनों का विकास करके भूमि के प्रति (UPBoardSolutions.com) सुधारात्मक कार्य करते हैं, परन्तु ये कार्य भूमि की उपजाऊ शक्ति को कम करते हैं तथा भूमि का कटाव करते हैं।

6. भूमि को उपजाऊपन भूमि की कार्यक्षमता भूमि की उर्वरा शक्ति से भी प्रभावित होती है।

7. संगठनकर्ता की योग्यता भूमि की कार्यक्षमता एक कुशल संगठनकर्ता पर भी निर्भर करती है। किस भूमि के लिए किस अनुपात में बीज तथा खाद या उर्वरक का प्रयोग किया जाना चाहिए, यह संगठनकर्ता की योग्यता पर ही निर्भर करता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
भूमि क्या है? उत्पादन के साधन के रूप में भूमि के प्रमुख लक्षणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2013, 08)
उत्तर:
भूमि का अर्थ भूमि उत्पादन का सबसे अनिवार्य व महत्त्वपूर्ण साधन है। साधारण भाषा में, भूमि का अभिप्राय केवल भूमि की ऊपरी सतह से होता है, परन्तु अर्थशास्त्र में भूमि का अभिप्राय उन समस्त प्राकृतिक उपहारों से है जिसके अन्तर्गत भूमि की सतह, वायु, प्रकाश, खनिज, जल, आदि प्रकृति-प्रदत्त पदार्थ सम्मिलित होते हैं। मार्शल के अनुसार, “भूमि का अर्थ केवल भूमि की ऊपरी सतह से नहीं है, वरन् उन समस्त भौतिक पदार्थों एवं शक्तियों से है, जो प्रकृति ने मनुष्य की सहायतार्थ नि:शुल्क रूप से जल, वायु और प्रकाश के रूप में प्रदान की हैं।”

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स्मिथ एवं पैटरसन के अनुसार, “प्रकृति की कोई भी भेट, जिसे हम आवश्यकता की सन्तुष्टि के लिए प्रयोग में लाते हैं, प्राकृतिक साधन या भूमि एस. के. रुद्र के अनुसार, “भूमि में वे समस्त शक्तियाँ सम्मिलित हैं, जिन्हें प्रकृति निःशुल्क उपहारों के रूप में प्रदान करती है।” भूमि की विशेषताएँ या लक्षण भूमि की विशेषताएँ या लक्षण निम्नलिखित

  1. भूमि प्रकृति का निःशुल्क उपहार है भूमि को प्रकृति का एक नि:शुल्क उपहार बताया गया है। भूमि के अन्तर्गत भूमि की सतह, जंगल, पहाड़, पठार, नदी-नाले, खनिज, समुद्र, आदि प्रकृति से प्राप्त पदार्थ सम्मिलित हैं, जो हमें नि:शुल्क प्राप्त होते हैं।
  2. भूमि निष्क्रिय होती है भूमि उत्पत्ति का एक अनिवार्य साधन है। लेकिन यह एक निर्जीव साधन है। भूमि उत्पत्ति की क्रिया में सक्रिय रूप से भाग नहीं लेती है। इसमें किसी व्यक्ति द्वारा श्रम लगाकर उत्पादन कार्य किया जा सकता है। मनुष्य द्वारा भूमि पर श्रम करके उत्पादन सम्भव किया जाता है।
  3. भूमि में विविधता पाई जाती है प्रत्येक स्थान का भू-तले अपनी स्थिति व उर्वरा शक्ति के अनुसार भिन्न-भिन्न होता है; जैसे-कहीं पर उपजाऊ भूमि पाई जाती है, तो कही पर बंजर, कहीं पर लाल मिट्टी पाई जाती है, तो कहीं पर काली मिट्टी।
  4. भूमि सीमित है भूमि की पूर्ति सीमित होती है तथा इसे बढ़ाया या घटाया नहीं जा सकता है। केवल भूमि पर गहन कृषि कार्य करके प्रभावी पूर्ति को बढ़ाया जा सकता है।
  5. भूमि स्थिर है भूमि अपने स्थान पर स्थिर रहती है। यह अपने (UPBoardSolutions.com) स्थान को छोड़कर कहीं नहीं जा सकती है; जैसे-हिमालय पर्वत को उठाकर अमेरिका नहीं ले जाया जा सकता है।
  6. भूमि नाशवान नहीं है निरन्तर खेती करने से भूमि की उर्वरा शक्ति कम होती है, परन्तु भूमि नष्ट नहीं हो सकती है।
  7. भूमि के विभिन्न उपयोग भूमि के विभिन्न उपयोग; जैसे-खेती, मकान बनाना, कारखाने लगाना, सड़कें बनाना, आदि हो सकते हैं।
  8. भूमि उत्पादन का अनिवार्य साधन भूमि उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण व अनिवार्य साधन है। इसके बिना उत्पादन कार्य करना सम्भव नहीं होता है।
  9. भूमि का मूल्य उसकी स्थिति पर निर्भर करता है भूमि का मूल्य उसकी स्थिति अर्थात् शहर से दूरी, उपजाऊपन, दुर्गम या सुगम स्थान, आदि पर निर्भर करता है; जैसे-शहर के निकट वाली भूमि का मूल्य अधिक होगा, जबकि शहर से दूर स्थित भूमि का मूल्य कम होगा।
  10. भूमि जीवन का आधार भूमि मानव जीवन का आधार है। मानव इसका विभिन्न रूपों में प्रयोग करके अपने जीवन का निर्वाह करता है। जीवन-स्तर की विभिन्न क्रियाओं का आधार ही भूमि है।

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प्रश्न 2.
उत्पादन में भूमि का क्या महत्त्व है? भूमि की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2008)
उत्तर:
भूमि का महत्त्व उत्पत्ति के अनिवार्य साधन में भूमि का महत्त्व निम्नलिखित है-

  1. यातायात के साधनों के विकास का आधार किसी देश के यातायात व संचार के साधनों का विकास उस देश की भूमि के स्वरूप पर आधारित होता है। समतल भूमि पर परिवहन के साधनों का तेजी से विकास किया जा सकता है।
  2. कृषि का आधार भूमि कृषि का आधार है। कृषि कार्य भूमि के बिना नहीं किया जा सकता है। सभी प्रकार के भोज्य पदार्थ भूमि से ही प्राप्त होते हैं।
  3. जीवित रहने का आधार मनुष्य भूमि पर चलता-फिरता है, काम करता है, मकान बनाता है, खेती करता है, कारखानों की स्थापना करता है। इस प्रकार, मनुष्य भूमि के बिना एक पल भी जीवित नहीं रह सकता है।
  4. औद्योगिक विकास का आधार किसी देश का औद्योगिक विकास भूमि पर ही निर्भर करता है, क्योंकि कारखानों के लिए कच्चा माल, खनिज पदार्थ, जल शक्ति, वायु शक्ति, कोयला, आदि की पूर्ति भूमि के द्वारा ही पूर्ण की जाती है।
  5. प्राथमिक उद्योगों का विकास सभी प्रकार के प्राथमिक उद्योग; जैसे कृषि व खनिज व्यवसाय, मछली व्यवसाय, वन व्यवसाय, आदि भूमि पर ही निर्भर होते हैं। सभी प्रकार के खनिज पदार्थ भी भूमि से ही प्राप्त किए जाते हैं।
  6. आर्थिक सम्पन्नता का सूचक भूमि आर्थिक सम्पन्नता का सूचक होती है। (UPBoardSolutions.com) जिस देश के पास जितनी अधिक प्राकृतिक सम्पदा या भूमि होती है, उस देश को उतना ही अधिक सम्पन्न माना जाता है।
  7. रोजगार का आधार भूमि मनुष्य को रोजगार प्रदान करने का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। कृषि-प्रधान राष्ट्रों में भूमि का महत्त्व अधिक होता है।
  8. भूमि सम्पूर्ण उत्पादन कार्यों को आधार है भूमि के बिना किसी भी प्रकार का उत्पादन करना असम्भव है। अत: भूमि प्रत्येक प्रकार की उत्पादन गतिविधियों के लिए अनिवार्य है।
  9. विभिन्न वैज्ञानिक कार्यों का आधार मनुष्य भूमि से प्राप्त खनिजों, जल, वायु, आदि को विभिन्न अनुपातों में मिलाकर उससे उपयोगी वस्तुएँ; जैसे दवाइयाँ, मशीनरी, यन्त्र व अन्य वैज्ञानिक विकास की वस्तुएँ बनाता है।
  10. भूमि के द्वारा आय प्राप्ति भूमि के द्वारा आय प्राप्त की जा सकती है। भूमि | के प्रयोगों का विस्तार करके अधिक उत्पादन किया जा सकता है तथा भूमि के वैकल्पिक प्रयोगों द्वारा आय का क्षेत्र बढ़ाया जा सकता है।

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भूमि की विशेषताएँ
भूमि का अर्थ भूमि उत्पादन का सबसे अनिवार्य व महत्त्वपूर्ण साधन है। साधारण भाषा में, भूमि का अभिप्राय केवल भूमि की ऊपरी सतह से होता है, परन्तु अर्थशास्त्र में भूमि का अभिप्राय उन समस्त प्राकृतिक उपहारों से है जिसके अन्तर्गत भूमि की सतह, वायु, प्रकाश, खनिज, जल, आदि प्रकृति-प्रदत्त पदार्थ सम्मिलित होते हैं। मार्शल के अनुसार, “भूमि का अर्थ केवल भूमि की ऊपरी सतह से नहीं है, वरन् उन समस्त भौतिक पदार्थों एवं शक्तियों से है, जो प्रकृति ने मनुष्य की सहायतार्थ नि:शुल्क रूप से जल, वायु और प्रकाश के रूप में प्रदान की हैं।”

स्मिथ एवं पैटरसन के अनुसार, “प्रकृति की कोई भी भेट, जिसे हम आवश्यकता की सन्तुष्टि के लिए प्रयोग में लाते हैं, प्राकृतिक साधन या भूमि एस. के. रुद्र के अनुसार, “भूमि में वे समस्त शक्तियाँ सम्मिलित हैं, जिन्हें प्रकृति निःशुल्क उपहारों के रूप में प्रदान करती है।” (UPBoardSolutions.com) भूमि की विशेषताएँ या लक्षण भूमि की विशेषताएँ या लक्षण निम्नलिखित

  1. भूमि प्रकृति का निःशुल्क उपहार है भूमि को प्रकृति का एक नि:शुल्क उपहार बताया गया है। भूमि के अन्तर्गत भूमि की सतह, जंगल, पहाड़, पठार, नदी-नाले, खनिज, समुद्र, आदि प्रकृति से प्राप्त पदार्थ सम्मिलित हैं, जो हमें नि:शुल्क प्राप्त होते हैं।
  2. भूमि निष्क्रिय होती है भूमि उत्पत्ति का एक अनिवार्य साधन है। लेकिन यह एक निर्जीव साधन है। भूमि उत्पत्ति की क्रिया में सक्रिय रूप से भाग नहीं लेती है। इसमें किसी व्यक्ति द्वारा श्रम लगाकर उत्पादन कार्य किया जा सकता है। मनुष्य द्वारा भूमि पर श्रम करके उत्पादन सम्भव किया जाता है।
  3. भूमि में विविधता पाई जाती है प्रत्येक स्थान का भू-तले अपनी स्थिति व उर्वरा शक्ति के अनुसार भिन्न-भिन्न होता है; जैसे-कहीं पर उपजाऊ भूमि पाई जाती है, तो कही पर बंजर, कहीं पर लाल मिट्टी पाई जाती है, तो कहीं पर काली मिट्टी।
  4. भूमि सीमित है भूमि की पूर्ति सीमित होती है तथा इसे बढ़ाया या घटाया नहीं जा सकता है। केवल भूमि पर गहन कृषि कार्य करके प्रभावी पूर्ति को बढ़ाया जा सकता है।
  5. भूमि स्थिर है भूमि अपने स्थान पर स्थिर रहती है। यह अपने स्थान को छोड़कर कहीं नहीं जा सकती है; जैसे-हिमालय पर्वत को उठाकर अमेरिका नहीं ले जाया जा सकता है।
  6. भूमि नाशवान नहीं है निरन्तर खेती करने से भूमि की उर्वरा शक्ति कम होती है, परन्तु भूमि नष्ट नहीं हो सकती है।
  7. भूमि के विभिन्न उपयोग भूमि के विभिन्न उपयोग; जैसे-खेती, मकान बनाना, कारखाने लगाना, सड़कें बनाना, आदि हो सकते हैं।
  8. भूमि उत्पादन का अनिवार्य साधन भूमि उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण व अनिवार्य साधन है। इसके बिना उत्पादन कार्य करना सम्भव नहीं होता है।
  9. भूमि का मूल्य उसकी स्थिति पर निर्भर करता है भूमि का मूल्य उसकी स्थिति अर्थात् शहर से दूरी, उपजाऊपन, दुर्गम या सुगम स्थान, आदि पर निर्भर करता है; जैसे-शहर के निकट वाली भूमि का मूल्य अधिक होगा, जबकि शहर से दूर स्थित भूमि का मूल्य कम होगा।
  10. भूमि जीवन का आधार भूमि मानव जीवन का आधार है। मानव इसका विभिन्न रूपों में प्रयोग करके अपने जीवन का निर्वाह करता है। जीवन-स्तर की विभिन्न क्रियाओं का आधार ही भूमि है।

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प्रश्न 3.
भूमि की उत्पादकता से क्या आशय है? भूमि की उत्पादकता को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर:
भूमि की उत्पादकता/कार्यक्षमता

भूमि की कार्यक्षमता भूमि का प्रयोग जिस कार्य के लिए होता है, उसके लिए भूमि की उपयुक्तता को भूमि की कार्यक्षमता’ (Efficiency of Land)
कहते हैं; जैसे- उपजाऊ मैदानों में बहने वाली नदियाँ बिजली उत्पादन के लिए उपयुक्त होती हैं। भूमि की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले तत्त्व भूमि की कार्यक्षमता निम्नलिखित तत्त्वों पर निर्भर करती है

1. भूमि सम्बन्धी कानून भूमि के सम्बन्ध में सरकार की नीति एवं भूमि सम्बन्धी कानून का भी भूमि की उत्पादकता पर प्रभाव पड़ता है। जहाँ किसानों का भूमि पर पूर्ण स्वामित्व सम्बन्धी कानून होता है, वहाँ किसान | भूमि पर अथक परिश्रम करके भूमि की कार्यक्षमता को बढ़ाता है।

2. भूमि की स्थिति भूमि की स्थिति से भी भूमि की कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ता है। शहर से दूर या मुख्य मार्ग से हटकर स्थित भूमि शहर के निकट की भूमि से कम कार्यक्षमता वाली मानी जाती है। शहर के मुख्य मार्ग की भूमि मकान के लिए तथा अल्पविकसित या ग्रामीण (UPBoardSolutions.com) क्षेत्रों की भूमि कृषि के लिए उत्तम होती है। ऐसी स्थिति में यातायात व्यय भी कम होते हैं।

3. प्राकृतिक तत्त्व भूमि के प्राकृतिक गुण; जैसे-उर्वरा शक्ति, जलवायु, सर्य का प्रकाश, मिटटी, वर्षा, भमि की सतह की बनावट आदि से भमि की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। जो भमि जिस कार्य के लिए उपयोगी होती है, उस भूमि पर वही कार्य किया जाए, तो उससे भूमि की कार्यक्षमता अधिक बनी रहती है; जैसे-काली मिट्टी में कपास और भुरभुरी मिट्टी में गेहूं बोने पर भूमि की उत्पादकता में वृद्धि होती है। भूमि की उत्पादन शक्ति प्राकृतिक तत्त्वों पर भी निर्भर करती है।

4. आर्थिक तत्त्व भूमि की कार्यक्षमता पूँजी की मात्रा, भूमि को स्वामित्व, संगठन की योग्यता, कुशलता, आदि से भी प्रभावित होती है।

5. मानवीय प्रयास द्वारा किया गया भूमि सुधार भूमि पर कार्य करने वाले मनुष्यों के प्रयत्नों का भूमि की कार्यक्षमता पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। मनुष्य भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए उर्वरकों का प्रयोग करते हैं तथा सिंचाई के साधनों का विकास करके भूमि के प्रति सुधारात्मक कार्य करते हैं, परन्तु ये कार्य भूमि की उपजाऊ शक्ति को कम करते हैं तथा भूमि का कटाव करते हैं।

6. भूमि को उपजाऊपन भूमि की कार्यक्षमता भूमि की उर्वरा शक्ति से भी प्रभावित होती है।

7. संगठनकर्ता की योग्यता भूमि की कार्यक्षमता एक कुशल संगठनकर्ता पर भी निर्भर करती है। किस भूमि के लिए किस अनुपात में बीज तथा खाद या उर्वरक का प्रयोग किया जाना चाहिए, यह संगठनकर्ता की योग्यता पर ही निर्भर करता है।

भूमि की उत्पादकता को प्रभावित करने वाले तत्त्वं भूमि की उत्पादकता को निम्नलिखित तत्त्व प्रभावित करते हैं-

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1. सरकारी नीति सरकार द्वारा उचित नीतियाँ अपनाकर भी भूमि की कार्यक्षमता को बढ़ाया जा सकता है। सरकार द्वारा किसानों को साख-सुविधाएँ, सिंचाई सुविधाएँ, आदि प्रदान की जाती हैं, जिससे किसान उन्नत खाद-बीज खरीदकर भूमि की उत्पादकता को बढ़ाता है।

2. सामाजिक तथा राजनीतिक तत्त्व देश की सामाजिक तथा राजनीतिक परिस्थितियाँ भी भूमि की उत्पादकता पर अपना प्रभाव डालती हैं। भारत में भूमि का उपविभाजन, उपखण्डन की समस्याएँ उत्तराधिकार के नियमों के चलते पनप रही हैं, जिससे भूमि की उत्पादकता घट रही है। साथ ही राजनीतिक अस्थिरता भी भूमि की उत्पादन क्षमता पर अपना प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

3. उन्नत तकनीक उत्पादन में वैज्ञानिक तथा आधुनिक तकनीकों (UPBoardSolutions.com) का प्रयोग कर उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। अत: भूमि की उत्पादन-क्षमता पर उन्नत तकनीकों का प्रयोग अपना प्रभाव डालता है।

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi गद्य-साहित्य का विकास अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi गद्य-साहित्य का विकास अतिलघु उत्तरीय प्रश्न are part of UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi गद्य-साहित्य का विकास अतिलघु उत्तरीय प्रश्न.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name 173द्य-साहित्य का विकास अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
Number of Questions 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi गद्य-साहित्य का विकास अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

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प्रश्न 8.
‘अष्टयाम’ की कौन-सी भाषा है ?
उत्तर:
‘अष्टयाम’ शीर्षक से चार लोगों-खुमान, हितहरिवंश, देव, नाभादास–ने रचनाएँ की हैं। इन चारों ही ‘अष्टयाम’ की भाषा ब्रजभाषा है।।

प्रश्न 9.
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प्रश्न 10.
भारतेन्दु युग के किन्हीं दो लेखकों की दो-दो कृतियों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
(1) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र–

  • वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति तथा
  • अकबर और औरंगजेब।

(2) प्रतापनारायण मिश्र–

  • हठी हम्मीर तथा
  • देशी कपड़ा।

प्रश्न 11.
भारतेन्दु युग से पूर्व किन दो राजाओं ने हिन्दी गद्य के निर्माण में योग दिया ?
या
हिन्दी गद्य की उर्दूप्रधान तथा संस्कृतप्रधान शैलियों के पक्षधर दो राजाओं के नाम लिखिए।
या
भारतेन्दु के उदय से पूर्व की खड़ी बोली के दो भिन्न शैलीकार गद्य-लेखकों के नाम लिखिए।

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प्रश्न 12.
हिन्दी गद्य के विकास में ईसाई धर्म-प्रचारकों के योगदान का उल्लेख कीजिए।
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प्रश्न 13.
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प्रश्न 14.
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प्रश्न 15.
खड़ी बोली गद्य का व्यवस्थित विकास कब हुआ ?
उत्तर:
खड़ी बोली गद्य को व्यवस्थित विकास भारतेन्दु युग में हुआ।

प्रश्न 16.
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प्रश्न 17.
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उत्तर:
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प्रश्न 18.
भारतेन्दु युग में किन गद्य-विधाओं का विकास हुआ ?
उत्तर:
भारतेन्दु युग में नाटक, कहानी, उपन्यास एवं निबन्ध गद्य-विधाओं का विकास हुआ।

प्रश्न 19.
निम्नलिखित में से किन्हीं दो पत्रिकाओं के सम्पादकों के नाम लिखिए-
(1) आनन्द कादम्बिनी
(2) हरिश्चन्द्र चन्द्रिका
(3) नया जीवन
उत्तर:

  1. आनन्द कादम्बिनी – सम्पादक : बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’
  2. हरिश्चन्द्र चन्द्रिका – सम्पादक : भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
  3. नया जीवन – सम्पादक : कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’

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प्रश्न 32.
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प्रश्न 33.
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प्रश्न 34.
मुंशी सदासुखलाल की भाषा की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. भाषा में अस्पष्टता अधिक है तथा
  2. वाक्य-रचना पर फारसी शैली का प्रभाव है।

प्रश्न 35.
हिन्दी खड़ी बोली गद्य-साहित्य के विकास में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का योगदान बताइए।
या
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के गद्य की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने लोक-प्रचलित शब्दावली, कहावतों, लोकोक्तियों और मुहावरों के प्रभावपूर्ण प्रयोग से अपनी भाषा को अधिकाधिक सशक्त एवं सजीव बनाया तथा नाटक, कहानी, निबन्ध 
आदि अनेक गद्य-विधाओं में रचनाएँ कीं। इसलिए इन्हें हिन्दी खड़ी बोली गद्य का जनक’ भी कहा जाता है।

प्रश्न 36.
छायावादी युग के गद्य की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  1. छायावादी युग का गद्य कलात्मक है तथा
  2. उसमें विशिष्ट अभिव्यंजना शक्ति, कल्पना की प्रधानता, स्वच्छन्द चेतना, अनुभूति की सघनता और भावुकता विद्यमान है।

प्रश्न 37.
किन्हीं दो छायावादी पद्य-लेखकों की एक-एक गद्य रचना का नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. जयशंकर प्रसाद — चन्द्रगुप्त (नाटक)
  2. महादेवी वर्मा – स्मृति की रेखाएँ (संस्मरण)

प्रश्न 38.
छायावादोत्तर हिन्दी गद्य (प्रगतिवादी गद्य) की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
छायावादोत्तर काल का हिन्दी गद्य सहज, व्यावहारिक और अलंकारविहीन था। उसमें भावुकतापूर्ण अभिव्यक्ति का स्थान चुटीली उक्तियों ने ले लिया था।

प्रश्न 39.
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प्रश्न 40.
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प्रश्न 41.
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प्रश्न 42.
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प्रन 43.
निम्नलिखित गद्य-लेखकों की एक-एक प्रसिद्ध गद्य-रचना का नाम लिखिए

  1. राजेन्द्र यादव तथा
  2. धीरेन्द्र वर्मा

उत्तर:

  1. लेखक-राजेन्द्र यादव, रचना-चेखव : ‘एक इण्टरव्यू, विधा–भेटवार्ता (काल्पनिक)
  2. लेखक–धीरेन्द्र वर्मा, रचना–मेरी कॉलेज डायरी, विधा-डायरी।

प्रश्न 44.
निम्नलिखित लेखकों की एक-एक प्रसिद्ध गद्य-रचना का नाम लिखिए

  1. महादेवी वर्मा तथा
  2. लक्ष्मीचन्द्र जैन

उत्तर:

  1. लेखिका-महादेवी वर्मा, रचना–पथ के साथी; अतीत के चलचित्र; स्मृति की रेखाएँ, विधा-संस्मरण; संस्मरण/रेखाचित्र।
  2. लेखक-लक्ष्मीचन्द्र जैन, रचना–भगवान् महावीर : एक इण्टरव्यू, विधा–भेटवार्ता । (काल्पनिक)।

प्रश्न 45.
निम्नलिखित लेखकों की एक-एक रचना का नाम लिखिए

  1. विद्यानिवास मिश्र,
  2. डॉ० नगेन्द्र,
  3. हजारीप्रसाद द्विवेदी,
  4. रघुवीर सिंह।

उत्तर:

  1. लेखक-विद्यानिवास मिश्र, रचना-मेरे राम का मुकुट भीग रहा है, विधा-निबन्ध।
  2. लेखक-डॉ० नगेन्द्र, रचना-हिन्दी साहित्य का बृहद् इतिहास, विधा-आलोचना।
  3. लेखक-हजारीप्रसाद द्विवेदी, रचना-कल्पलता (निबन्ध-संग्रह), विधा-निबन्ध।
  4. लेखक–रघुवीर सिंह, रचना–शेष स्मृतियाँ, विधा-संस्मरण।।

प्रश्न 46.
निम्नलिखित कृतियों में से किन्हीं दो कृतियों के रचनाकार और उनकी विधाओं के नाम लिखिए-

  1. अतीत के चलचित्र,
  2. लहरों के राजहंस,
  3. श्रद्धा-भक्ति।

उत्तर:

  1. कृति–अतीत के चलचित्र, रचनाकार-महादेवी वर्मा, विधा–रेखाचित्र।
  2. कृति-लहरों के राजहंस, रचनाकार-मोहन राकेश, विधा–नाटक।

प्रश्न 47.
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प्रश्न 48.
छायावादोत्तर युग में प्रारम्भ एवं समृद्ध होने वाली प्रकीर्ण गद्य-विधाओं में से किन्हीं दो 
विधाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
जीवनी, आत्मकथा, यात्रावृत्त, गद्यकाव्य, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, डायरी, भेटवार्ता, पत्र-साहित्य आदि हिन्दी की गौण या प्रकीर्ण गद्य-विधाएँ हैं।

प्रश्न 49.
प्रकीर्ण गद्य-विधाओं का अभूतपूर्व विकास किस युग में हुआ ?
उत्तर:
प्रकीर्ण गद्य-विधाओं का अभूतपूर्व विकास छायावादोत्तर युग में हुआ।

प्रश्न 50.
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प्रश्न 51.
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प्रश्न 52.
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प्रश्न 53.
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प्रश्न 54.
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प्रश्न 55.
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प्रश्न 56.
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प्रश्न 57.
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प्रश्न 58.
कहानी अथवा आधुनिक कहानी किस उद्देश्य से लिखी जाती है ?
उत्तर:
कहानी का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ व्यक्ति या समाज के महत्त्वपूर्ण अनुभवों, अनुभूतियों एवं यथार्थ की कलात्मक अभिव्यक्ति करना है, जब कि मानव-जीवन की कुण्ठाओं, भटकाव, संत्रास, दिशाहीनता और यान्त्रिक जड़ता का यथार्थ और मार्मिक चित्रण करना आधुनिक कहानी के अन्यतम उद्देश्य हैं।

प्रश्न 59.
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प्रश्न 60.
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प्रश्न 61.
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प्रश्न 62.
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प्रश्न 63.
आधुनिक युग की किन्हीं दो महिला कथाकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. मन्नू भण्डारी तथा
  2. उषा प्रियंवदा

प्रश्न 64.
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प्रश्न 65.
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प्रश्न 66.
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प्रश्न 67.
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प्रश्न 68.
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प्रश्न 69.
हिन्दी के दो कहानी-संग्रहों और उनके लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
हिन्दी कहानियों के दो संग्रहों के नाम हैं-‘आकाशदीप’ तथा ‘ज्ञानदान’। इनके लेखकों के नाम क्रमश: हैं-जयशंकर प्रसाद तथा यशपाल।

प्रश्न 70.
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प्रश्न 71.
आधुनिक युग के किन्हीं दो कहानीकारों के नाम लिखिए।
या
प्रेमचन्द के बाद के किन्हीं दो प्रमुख कहानीकारों के नाम लिखिए।
या
छायावादोत्तर युग के किन्हीं दो कहानी-लेखकों के नाम लिखिए।

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प्रश्न 72.
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प्रश्न 73.
स्वतन्त्रता के पश्चात् के प्रमुख कंहानीकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् के प्रमुख कहानीकारों में विष्णु प्रभाकर, कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव, मोहन राकेश, निर्मल वर्मा आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

प्रश्न 74.
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प्रश्न 75.
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प्रश्न 76.
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प्रश्न 77.
द्विवेदी युग के दो प्रमुख उपन्यासकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
द्विवेदी युग के दो प्रमुख उपन्यासकार हैं-

  1. किशोरीलाल गोस्वामी तथा
  2. अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

प्रश्न 78.
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प्रश्न 79.
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प्रश्न 80.
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प्रश्न 81.
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प्रश्न 82.
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प्रश्न 83.
प्रेमचन्द के बाद होने वाले आधुनिक युग के प्रमुख उपन्यासकारों के नाम लिखिए।
या
आधुनिक युग के किन्हीं दो उपन्यासकारों के नाम लिखिए।

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प्रश्न 84.
‘उपन्यास’ और ‘कहानी’ का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कहानी का रचना-फलक आकार में छोटा होता है, जब कि उपन्यास का पर्याप्त विस्तृत। कहानी में प्रायः किसी एक घटना अथवा मनोदशा का वर्णन होती है, जब कि उपन्यास में समग्र मानव-जीवन से सम्बन्धित विविध घटनाओं का समावेश किया जाता है।

प्रश्न 85.
उपन्यास का शाब्दिक अर्थ बताइट।
उत्तर:
उपन्यास का शाब्दिक अर्थ है-सामने रखना। इसमें प्रसादन’ अर्थात् प्रसन्न करने का भाव भी निहित है। अत: किसी घटना को इस प्रकार सामने रखना कि दूसरों को प्रसन्नता हो, उपन्यस्त करना कहा जाएगा।

प्रश्न 86.
उपन्यास की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
हिन्दी में उपन्यास को अंग्रेजी के नॉवेल ऍब्द का पर्याय माना जाता है। उपन्यास गद्य की वह विधा है, जिसमें जीवन का व्यापक चित्रण रोचक एवं संजीव शैली में किया गया हो।

प्रश्न 87.
उपन्यास को कितने भागों में विभाजित किया जा सकता है ?
उत्तर:
विषय’ के आधार पर हिन्दी उपन्यासों को निम्नलिखित आठ भागों में विभाजित किया जा सकता है—

  1. सामाजिक
  2. राजनीतिक
  3. ऐतिहासिक
  4. पौराणिक
  5. मनोवैज्ञानिक
  6. आंचलिक
  7. तिलिस्मी/जासूसी
  8. क्रान्तिकारी आदि।

प्रश्न 88.
हिन्दी के दो प्रसिद्ध उपन्यासकारों एवं उनके उपन्यासों के नाम लिखिए।
उत्तर:
हिन्दी के दो उपन्यासकारों एवं उनके उपन्यासों के नाम निम्नलिखित हैं

  1. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी–बाणभट्ट की आत्मकथा, चारुचन्द्रलेख, पुनर्नवा, अनामदास का पोथा।
  2. श्री भगवतीचरण वर्मा-चित्रलेखा, भूले-बिसरे चित्र, तीन वर्ष, टेढ़े-मेढ़े रास्ते।

प्रश्न 89.
हिन्दी के प्रमुख मनोवैज्ञानिक उपन्यासकारों एवं उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
हिन्दी के प्रमुख मनोवैज्ञानिक उपन्यासकार एवं उनके उपन्यासों के नाम निम्नलिखित हैं

  1. जैनेन्द्र कुमार-परख, सुनीता, त्यागपत्र आदि।
  2. इलाचन्द्र जोशी-जहाज का पंछी, घृणापथ आदि।
  3. सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’–शेखर : एक जीवनी (दो भाग), नदी के द्वीप आदि।

प्रश्न 90.
भारतीय और पाश्चात्य दृष्टि से नाटक के तत्त्व बताइट।
उत्तर:
भारतीय आचार्यों ने नाटकों के पाँच तत्त्व माने हैं—

  1. वस्तु
  2. नेता
  3. रस
  4. अभिनय एवं
  5. वृत्ति

पाश्चात्य विद्वानों ने नाटक के छः तत्त्व स्वीकार किये हैं–

  1. कथावस्तु
  2. पात्र एवं चरित्र-चित्रण
  3. कथोपकथन
  4. देशकाल
  5. भाषा-शैली एवं
  6. उद्देश्य

प्रश्न 91.
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प्रश्न 92.

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प्रश्न 93.
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प्रश्न 94.
भारतेन्दु युग के प्रमुख नाटककारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारतेन्दु युग के प्रमुख नाटककारों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के अतिरिक्त बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र, बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, लाला श्रीनिवास दास आदि के नाम प्रमुख हैं।

प्रश्न 95.
जयशंकर प्रसाद के समकालीन प्रमुख नाटककारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
जयशंकर प्रसाद के समकालीन नाटककारों में प्रमुख हैं—

  1. हरिकृष्ण ‘प्रेमी’
  2. लक्ष्मीनारायण मिश्र
  3. गोविन्दवल्लभ पन्त
  4. सेठ गोविन्ददास आदि

प्रश्न 96.
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प्रश्न 97.
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प्रश्न 98.
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प्रश्न 99.
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प्रश्न 100.
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प्रश्न 101.
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प्रश्न 102.
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प्रश्न 103.
हिन्दी गद्य की विविध विधाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. नाटक
  2. उपन्यास
  3. एकांकी
  4. कहानी
  5. निबन्ध
  6. आलोचना
  7. आत्मकथा
  8. जीवनी
  9. यात्रावृत्त
  10. रेखाचित्र
  11. संस्मरण
  12. गद्यकाव्य
  13.  रिपोर्ताज
  14. डायरी
  15.  रेडियो-रूपक
  16.  भेटवार्ता आदि

प्रश्न 104.
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प्रश्न 105.
छायावादी युग के सबसे प्रसिद्ध आलोचना-लेखक (आलोचक) कौन थे ?
उत्तर:
छायावादी युग के सबसे प्रसिद्ध आलोचना-लेखक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल थे।

प्रश्न 106.
हिन्दी के दो प्रसिद्ध आलोचकों के नाम बताइए।
उत्तर:
हिन्दी के दो प्रसिद्ध आलोचक है—

  1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और
  2. बाबू श्यामसुन्दर दास।

प्रश्न 107.
आधुनिक युग के किसी प्रसिद्ध गद्य-आलोचक का नाम लिखिए।
उत्तर:
आधुनिक युग में डॉ० नगेन्द्र हिन्दी के एक प्रसिद्ध गद्य-आलोचक हैं।

प्रश्न 108.
शुक्लोत्तर युग के आलोचना-लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
डॉ० रामकुमार वर्मा, डॉ० नगेन्द्र, डॉ० रामविलास शर्मा आदि शुक्लोत्तर युग के प्रसिद्ध आलोचना-लेखक हैं।

प्रश्न 109.
‘समालोचक पत्र किस युग में प्रकाशित हुआ था ?
उत्तर:
‘समालोचक’ पत्र, द्विवेदी युग में प्रकाशित हुआ था।

प्रश्न 110.
व्यावहारिक समीक्षा के क्षेत्र में ख्यात आलोचकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
व्यावहारिक समीक्षा के क्षेत्र में ख्यात प्रमुख आलोचक हैं-आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी, आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, डॉ० विनय मोहन शर्मा, डॉ० गोविन्द त्रिगुणायत आदि।।

प्रश्न 111.
मार्क्सवादी समीक्षा के क्षेत्र में ख्यातं आलोचकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मार्क्सवादी समीक्षा के क्षेत्र में ख्यात प्रमुख आलोचक हैं-डॉ० रामविलास शर्मा, शिवदान सिंह चौहान, डॉ० विश्वम्भरनाथ उपाध्याय आदि।।

प्रश्न 112.
जीवनी किसे कहते हैं ? हिन्दी में जीवनी-लेखन का कार्य किस युग में प्रारम्भ हुआ?
उत्तर:
किसी व्यक्ति विशेष के जीवन की जन्म से लेकर मृत्यु तक की घटनाओं के क्रमबद्ध विवरण को ‘जीवनी’ कहा जाता है। हिन्दी में जीवनी-लेखन का कार्य भारतेन्दु युग में प्रारम्भ हो चुका था।

प्रश्न 113.
जीवनी लिखने वाले किसी एक लेखक तथा उसकी रचना का नाम लिखिए।
उत्तर:
लेखक–अमृतराय। रचना-‘कलम का सिपाही’

प्रश्न 114.
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प्रश्न 115.
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प्रश्न 116.
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प्रश्न 117.
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प्रश्न 118.
निम्नलिखित जीवनियाँ के लेखक कौन हैं-,
(1) सुमित्रानन्दन पन्त : जीवन और साहित्य,
(2) निराला की साहित्य-साधना।
उत्तर:
(1) शान्ति जोशी एवं
(2) डॉ० रामविलास शर्मा।

प्रश्न 119.
छायावादोत्तर युग के दो प्रसिद्ध जीवनी-लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. जैनेन्द्र कुमार तथा
  2. काका कालेलकर।

प्रश्न 120.
आत्मकथा का अर्थ बताइए और इसकी परिभाषा दीजिए। हिन्दी में प्रथम आत्मकथा का नाम बताइट।
उत्तर:
आत्मकथा का शाब्दिक अर्थ होता है-अपनी कहानी। यह लेखक को अपने जीवन से सम्बद्ध वर्णन है। अत: आत्मकथा किसी विशिष्ट व्यक्ति द्वारा लिखा गया वह आख्यान या वृत्तान्त है जो वह बड़ी बेबाकी से अपने जीवन के बारे में प्रस्तुत करता है। जैन कवि बनारसीदास की ‘अर्द्धकथा’ को हिन्दी के आत्मकथा साहित्य की प्रथम आत्मकथा कहा जाता है।

प्रश्न 121.
हिन्दी के प्रमुख आत्मकथा-लेखकों के नाम लिखिए।’
उत्तर:
बाबू श्यामसुन्दर दास (मेरी आत्मकहानी), वियोगी हरि (मेरा जीवन प्रवाह), डॉ० राजेन्द्र प्रसाद (मेरी आत्मकथा) आदि प्रमुख आत्मकथा लेखकों के अतिरिक्त डॉ० हरिवंशराय बच्चन, पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ तथा गुलाबराय आदि श्रेष्ठ आत्मकथाकार हैं।

प्रश्न 122.
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प्रश्न 123.
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प्रश्न 124.
रेखाचित्र अथवा आत्मकथा की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रेखाचित्र-

  1. रेखाचित्र में कम-से-कम शब्दों के प्रयोग द्वारा किसी व्यक्ति या वस्तु की विशेषता को उभारा जाता है।
  2. रेखाचित्र में लेखक पूर्णत: तटस्थ होकर, किसी वस्तु या व्यक्ति का चित्रात्मक शैली में सजीव तथा भाबपूर्ण चित्र प्रस्तुत करता है।

आत्मकथा-

  1. महापुरुषों द्वारा लिखी गयी आत्मकथाएँ पाठकों को उनके जीवन के आत्मीय पहलुओं से परिचय कराती हुई मार्गदर्शन करती हैं और प्रेरणा देती हैं।
  2. लेखक स्वयं अपने जीवन के प्रसंगों को पूर्ण निजता के साथ भावात्मक एवं रोचक शैली में प्रस्तुत करता है।

प्रश्न 125.
रेखाचित्र किसे कहते हैं ? इसको परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
रेखाचित्र साहित्य की वह गद्यात्मक विधा है, जिसमें किसी विषय-विशेष का, उसकी बाह्य विशेषताओं को उभारते और तत्सम्बन्धित विभिन्न संक्षिप्त घटनाओं को समेटते हुए शब्द-रेखाओं के माध्यम से सजीव, सरस, मर्मस्पर्शी एवं प्रभावशाली चित्रे उभारा जाता है।

प्रश्न 126.
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प्रश्न 127.
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प्रश्न 128.
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प्रश्न 129.
संस्मरण की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
संस्मरण का शाब्दिक अर्थ होता है सम्यक् स्मरण, जिसके मूल में गम्भीर चिन्तन का भाव निहित होता है। मानव-जीवन की कटु, तिक्त एवं मधुर स्मृतियाँ अनुभूति और संवेदना का संसर्ग प्राप्त करके जब हृदय से निकलती हैं तब वे संस्मरण का रूप धारण कर लेती हैं।

प्रश्न 130.
संस्मरण और रेखाचित्र का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संस्मरण में साहित्यकार अपने जीवन में आये किसी व्यक्ति विशेष पर आधारित घटना को रोचक शैली में, यथार्थ रूप में और अपने व्यक्तित्व में रँगकर प्रस्तुत करता है; जैसे-महादेवी वर्मा कृत ‘प्रणाम। रेखाचित्र में लेखक कम-से-कम शब्दों का प्रयोग करके किसी वस्तु या व्यक्ति का चित्रात्मक शैली में सजीव भावपूर्ण चित्र प्रस्तुत करता है; जैसे–महादेवी वर्मा कृत ‘गिल्लू’।

प्रश्न 131.
‘संस्मरण’ की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. संस्मरण में व्यक्तियों, घटनाओं अथवा दृश्यों को स्मृति के सहारे पुन: कल्पना में मूर्त किया जाता है।
  2. संस्मरण में लेखक तटस्थ रहने के बाद भी स्वयं को चित्रित कर देता है।
  3. संस्मरण व्यक्ति, वस्तु अथवा घटना के वैशिष्ट्य को लक्षित करने वाला होता है।

प्रश्न 132.
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प्रश्न 133.
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प्रश्न 134.
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प्रश्न 135.
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प्रश्न 136.
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प्रश्न 139.
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प्रश्न 140.
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प्रश्न 141.
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प्रश्न 142.
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प्रश्न 143.
‘रिपोर्ताज’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘रिपोर्ताज’ का सम्बन्ध अंग्रेजी के ‘रिपोर्ट’ शब्द से है। रिपोर्ट सामान्य रूप में समाचार-पत्रों में प्रकाशित करने तथा रेडियो-दूरदर्शन पर प्रसारित करने के लिए पत्रकार द्वारा तैयार की जाती है। यही कार्य जब सौन्दर्यचेता साहित्यकार द्वारा किया जाता है तो उसमें उसके व्यक्तित्व की विशिष्टताएँ, प्रतिक्रियाएँ और व्याख्याएँ भी समाहित हो जाती हैं। इस प्रकार साहित्यकार द्वारा विरचित घटना-विवरण ‘रिपोर्ताज’ कहलाता है।

प्रश्न 144.
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प्रश्न 145.
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प्रश्न 146.
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प्रश्न 147.
हिन्दी में डायरी विधा का आरम्भ किस युग से हुआ ? किसी डायरी लेखक की डायरी का नाम लिखिए।
उत्तर:
हिन्दी में डायरी विधा का आरम्भ छायावाद युग से हुआ। डायरी लेखक-धीरेन्द्र वर्मा, रचना-मेरी कॉलेज डायरी।

प्रश्न 148.
हिन्दी की दो नवीन गद्य विधाओं व उन विधाओं के एक-एक प्रमुख लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. रिपोर्ताज’ हिन्दी गद्य की एक नयी विधा है। इस विधा के प्रमुख लेखक– कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ हैं।
  2. ‘डायरी’ हिन्दी की दूसरी नवीन गद्य विधा है। इस विधा के प्रमुख लेखक-धीरेन्द्र वर्मा हैं।

प्रश्न 149.
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प्रश्न 150.
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प्रश्न 151.
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प्रश्न 152.
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प्रश्न 153.
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प्रश्न 154.
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प्रश्न 155.
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प्रश्न 156.
हिन्दी में गद्यकाव्य की रचना करने वाले किन्हीं दो लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. राय कृष्णदास तथा
  2. वियोगी हरि

प्रश्न 157.
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प्रश्न 158.
‘भेटवार्ता’ अथवा ‘साक्षात्कार’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जब रचनाकार किसी विशिष्ट व्यक्ति से मुलाकात करके उसके व्यक्तित्व, भावों, क्रिया-कलापों आदि से सम्बन्धित साहित्य की रचना प्रश्न-उत्तर रूप में करता है, तो यह रचना ‘भेटवार्ता या साक्षात्कार कहलाती है। यह विधा वस्तुतः पत्रकारिता की देन है। यह वास्तविक भी हो सकती है और काल्पनिक भी।

प्रश्न 159.
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प्रश्न 161.
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प्रश्न 162.
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प्रश्न 163.
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प्रश्न 164.
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प्रश्न 165.
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प्रश्न 166.
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प्रश्न 167.
हिन्दी के नयी पीढ़ी के चार साहित्यिक रचनाकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कमलेश्वर, हृदयेश, मनोहरश्याम जोशी तथा सुदीप नयी पीढ़ी के रचनाकार हैं।

प्रश्न 168.
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प्रश्न 169.
हिन्दी की दो प्राचीन साहित्यिक पत्रिकाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
हिन्दी की दो प्राचीन साहित्यिक पत्रिकाओं के नाम हैं—

  1. चरित्र एवं
  2. वचनका।

प्रश्न 170.
हिन्दी गद्य के विकास में ‘सरस्वती’ पत्रिका के योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से हिन्दी गद्य में व्याप्त व्याकरण सम्बन्धी भूलों को दूर किया गया, वाक्य-विन्यास को सुव्यवस्थित किया गया तथा लेखकों और कवियों को प्रेरणा देकर लेखन-कार्य के लिए प्रोत्साहित किया गया।

प्रश्न 171.
द्विवेदी युग के दो प्रसिद्ध सम्पादकों के नाम लिखिए।
उतर:
द्विवेदी युग के दो प्रसिद्ध सम्पादकों के नाम हैं—

  1. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी तथा
  2. श्री गणेश शंकर विद्यार्थी।

प्रश्न 172.
स्वतन्त्रता के बाद प्रकाशित किन्हीं दो साहित्यिक पत्रिकाओं और उनके सम्पादकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के बाद प्रकाशित होने वाली हिन्दी की दो साहित्यिक पत्रिकाएँ हैं-‘कादम्बिनी तथा ‘धर्मयुग’। इनके सम्पादकों के नाम हैं-राजेन्द्र अवस्थी तथा धर्मवीर भारती। वर्तमान में केवल ‘कादम्बिनी’ को प्रकाशन ही हो रहा है।

प्रश्न 173.
निस्नलिखित में से किन्हीं दो सम्पादकों की पत्रिकाओं के नाम लिखिए
(1) महावीरप्रसाद द्विवेदी,
(2) श्यामसुन्दर दास,
(3) महादेवी वर्मा,
(4) धर्मवीर भारती।
उत्तर:
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विशेष—इस सूची में दिये गये पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादक उनकी प्रकाशनावधि के दौरान बहुधा परिवर्तित होते रहते थे। प्रस्तुत सूची में रचना-धर्मिता के कारण बहुचर्चित सम्पादकों के नामों को ही उल्लेख किया जा रहा है। प्रस्तुत सूची की अधिकांश पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन वर्तमान में बाधित है। आजकल मात्र ‘कादम्बिनी’ तथा ‘हंस’ ही नियमित प्रकाशित हो रही हैं।

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 22 उत्पादन (उत्पत्ति) के साधन : आशय, विशेषताएँ एवं महत्त्व

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 22 उत्पादन (उत्पत्ति) के साधन : आशय, विशेषताएँ एवं महत्त्व are the part of UP Board Solutions for Class 10 Commerce. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 22 उत्पादन (उत्पत्ति) के साधन : आशय, विशेषताएँ एवं महत्त्व.

Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 22
Chapter Name उत्पादन (उत्पत्ति) के साधन : आशय, विशेषताएँ एवं महत्त्व
Number of Questions Solved 17
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 22 उत्पादन (उत्पत्ति) के साधन : आशय, विशेषताएँ एवं महत्त्व

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
उत्पादन का/के साधन है/हैं। (2013)
(a) भूमि
(b) श्रम
(c) पूँजी
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 2.
उत्पादन का सक्रिय साधन है।
(a) पूँजी
(b) श्रम
(c) भूमि
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) श्रम

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा उत्पादन का साधन नहीं है?
(a) भूमि
(b) श्रम
(c) वितरण
(d) पूँजी
उत्तर:
(c) वितरण

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निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
उपयोगिता का सृजन ही उत्पादन/उपभोग है। (2010)
उत्तर:
उत्पादन है

प्रश्न 2.
अर्थशास्त्र में चिकित्सकों को उत्पादक माना/नहीं माना जाता है। (2011)
उत्तर:
माना जाता है

प्रश्न 3.
धन सदैव उत्पादक होता है/नहीं होता है। (2009)
उत्तर:
नहीं होता है

प्रश्न 4.
उत्पादन के पाँच/चार साधन होते हैं। (2008)
उत्तर:
पाँच साधन होते हैं।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
उत्पादन के साधनों से आप क्या समझते हैं? (2013)
उत्तर:
उत्पादन के साधनों (Factors of Production) (UPBoardSolutions.com) का तात्पर्य उन वस्तुओं व साधनों से है, जो उपयोगिता अथवा मूल्य के सृजन में सहायक होते हैं। बेन्हम के अनुसार, “कोई भी वस्तु या सेवा, जो किसी भी स्तर पर उत्पादन कार्य में सहयोग प्रदान करती है, उत्पादन का साधन कहलाती है।”

प्रश्न 2.
उत्पादन की दो रीतियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
उत्पादन की दो रीतियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. रूप-परिवर्तन द्वारा उत्पादन जब किसी वस्तु के रंग, रूप अथवा आकार में परिवर्तन करके उसे पहले की तुलना में अधिक उपयोगी व लाभदायक बना दिया जाता है, तो इसे रूप-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कहा जाता है।
  2. स्थान-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कई बार वस्तु का स्थान परिवर्तित करने से भी उपयोगिता का सृजन होता है या उपयोगिता में वृद्धि होती है, उसे स्थान-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कहा जाता है।

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प्रश्न 3.
उत्पत्ति के साधनों के नाम लिखिए। (2017)
उत्तर:
उत्पत्ति के निम्नलिखित पाँच साधन हैं-

  1. भूमि
  2. श्रम
  3. पूँजी
  4. संगठन
  5. उद्यम या साहस

प्रश्न 4.
उत्पादन के साधन के रूप में संगठन की भूमिका बताइए। (2018)
उत्तर:
संगठन उत्पादन का चौथा महत्त्वपूर्ण साधन संगठन है। संगठन का अभिप्राय उत्पादन के विभिन्न साधनों में अनुकूलतम संयोग स्थापित कर इन्हें उत्पादन कार्य में संलग्न करने की कला व विज्ञान से है। दूसरे शब्दों में, संगठन वह विशिष्ट श्रम है, जो उत्पादन (UPBoardSolutions.com) के साधनों श्रम, पूँजी व भूमि को एकत्रित करके उनमें आदर्शतम् समन्वय स्थापित करता है। उनके कार्यों का निरीक्षण करता है अथवा आवश्यक परिवर्तन करता है। इसके अभाव में कुशलता का अभाव रहता है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
उत्पादन के कौन-कौन से साधन हैं?
अथवा
उत्पादन के किन्हीं पाँच साधनों का उल्लेख कीजिए। (2006)
उत्तर:
उत्पादन के साधनों से आशय उत्पादन के साधनों से हमारा तात्पर्य उन वस्तुओं व साधनों से है, जो उपयोगिता अथवा मूल्य के सृजन में सहायक होते हैं। बेन्हम के अनुसार, “कोई भी वस्तु या सेवा, जो किसी भी स्तर पर उत्पादन कार्य में सहयोग प्रदान करती है, उत्पादन का साधन कहलाती है।” उत्पादन के साधन आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने उत्पादन के साधनों को निम्नलिखित पाँच भागों में बाँटा है

1. भूमि यह उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण, किन्तु निष्क्रिय साधन है। साधारण बोलचाल में, भूमि (Land) का अर्थ केवल भूमि की ऊपरी सतह से लगाया जाता है, परन्तु अर्थशास्त्र में भूमि का बहुत ही व्यापक अर्थ होता है। प्रो. मार्शल के अनुसार, “भूमि का अर्थ (UPBoardSolutions.com) केवल पृथ्वी की ऊपरी सतह से नहीं वरन् उन सभी वस्तुओं एवं शक्तियों से है, जिन्हें प्रकृति ने भूमि, वायु, प्रकाश, आदि के रूप में मानव की सहायता के लिए नि:शुल्क प्रदान किया है।” अर्थशास्त्र में भूमि का अभिप्राय उन समस्त प्राकृतिक उपहारों से है, जिसके अन्तर्गत भूमि की सतह, वायु, नदी, पहाड़, प्रकाश, खनिज, जल, आदि प्रकृतिदत्त पदार्थ सम्मिलित हैं।

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2. श्रम श्रम (Labour) उत्पादन का दूसरा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं सक्रिय साधन है। इसका महत्त्व इसलिए अधिक है, क्योंकि यह समस्त आर्थिक क्रियाओं को आदि और अन्त (साधन और साध्य) दोनों हैं। अर्थशास्त्र में श्रम से मनुष्य के उन सभी शारीरिक और मानसिक प्रयत्नों का बोध होता है, जो धनोपार्जन के उद्देश्य से किए जाते हैं। धनोत्पादन के उद्दश्य से किए गए मानव के सभी शारीरिक एवं मानसिक प्रयत्नों का भी श्रम में समावेश होता है, परन्तु मनोरंजन, देश प्रेम, पारिवारिक स्नेह, आदि के लिए किए गए कार्यों को श्रम में सम्मिलित नहीं किया जाता है।

3. पूँजी उत्पादन का तीसरा महत्त्वपूर्ण साधन पूँजी (Capital) है। आज की आधुनिक जटिल उत्पादन अवस्था में पूँजी का महत्त्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है। पूँजी उत्पादन का एक निष्क्रिय साधन होते हुए भी इसकी बढ़ती हुई स्वयं संचालिता, इसे और भी महत्त्वपूर्ण (UPBoardSolutions.com) बनाती जा रही है। प्रो. मार्शल के अनुसार, “पूँजी मनुष्य द्वारा उत्पादित धन का वह भाग है, जिसे अधिक सम्पत्ति के उत्पादन में प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रकार पूँजी के अन्तर्गत केवल नकदी ही नहीं आती वरन् मशीनें, कच्चा माल, बीज, आदि भी आते हैं।’

4. संगठन उत्पादन का चौथा महत्त्वपूर्ण साधन (Organisation) संगठन है। संगठन का अभिप्राय उत्पादन के विभिन्न साधनों में अनुकूलतम संयोग स्थापित कर इन्हें उत्पादन कार्य में संलग्न करने की कला व विज्ञान से है। दूसरे शब्दों में, संगठन वह विशिष्ट श्रम है, जो उत्पादन के साधनों श्रम, पूँजी व भूमि को एकत्रित करके उनमें आदर्शतम् समन्वय स्थापित करता है। उनके कार्यों का निरीक्षण करता है अथवा आवश्यक परिवर्तन करता है। इसके अभाव में कुशलता का अभाव रहता है।

5. उद्यम या साहस आधुनिक उत्पादन प्रक्रिया में अनेक जटिलताओं के कारण जोखिम में वृद्धि हुई है। जो व्यक्ति इन जोखिमों को वहन करता है, उसे साहसी या उद्यमी (Enteprise) कहते हैं। पहले साहसी को उत्पादन का महत्त्वपूर्ण साधन नहीं माना जाता था, किन्तु आधुनिक उत्पादन अवस्था में विभिन्न प्रकार के जोखिमों की प्रधानता के कारण साहसी को महत्त्वपर्ण साधन माना जाने लगा है। संयुक्त पूँजी कम्पनियों की स्थापना में साहसी ही आगे आते हैं।

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प्रश्न 2.
उत्पादन तथा उपभोग में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2016, 09, 08)
उत्तर:
उपभोग से आशय उपभोग का अर्थ साधारण रूप से वस्तुओं के खाने-पीने से लगाया जाता है, जबकि अर्थशास्त्र में इस शब्द का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है। अर्थशास्त्र में उपभोग को अर्थ मानव द्वारा की जाने वाली उन समस्त क्रियाओं से है, (UPBoardSolutions.com) जिनसे उसकी आवश्यकता की पूर्ति होती है। उपभोग द्वारा किसी वस्तु के तुष्टिगुण को कम या समाप्त किया जा सकता है अर्थात् वस्तुओं द्वारा आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष सन्तुष्टि की क्रिया को उपभोग कहते हैं।

उत्पादन तथा उपभोग में अन्तर

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 22 उत्पादन (उत्पत्ति) के साधन : आशय, विशेषताएँ एवं महत्त्व
उत्पादन का महत्त्व उत्पादन का महत्त्व निम्नलिखित है-

  1. आवश्यकताओं की पूर्ति उत्पादन के परिणामस्वरूप ही मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। उत्पादन के साधन उत्पादन प्रक्रिया से अपनी आय प्राप्त करते हैं तथा उस आय से अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ एवं सेवाएँ क्रय करते हैं।
  2. राष्ट्रीय आय में वृद्धि राष्ट्रीय आय पर उत्पादन का गहरा प्रभाव पड़ता है। जब अर्थशास्त्र के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन से वृद्धि होती है, तो इससे देश की राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि होती है।
  3. जीवन-स्तर में सुधार किसी देश के लोगों का जीवन-स्तर उत्पादन की मात्रा व प्रकृति पर निर्भर करता है।
  4. रोजगार में वृद्धि देश में उत्पादन में वृद्धि से रोजगार पर अनुकूलतम प्रभाव पड़ता है। उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होती है।
  5. व्यापार में वृद्धि उत्पादन वृद्धि का व्यापार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ आन्तरिक व्यापार एवं विदेशी व्यापार का विकास होता है।
  6. आर्थिक विकास का आधार किसी राष्ट्र का आर्थिक विकास उसके (UPBoardSolutions.com) उत्पादन की मात्रा, स्वरूप, वृद्धि स्वरूप एवं वृद्धि की दर पर निर्भर होता है।
  7. परिवहन के साधनों का विकास उत्पादन वृद्धि से परिवहन के साधनों का भी विकास होता है। उत्पादन वृद्धि के लिए कच्चा माल व मशीनों, आदि को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाना व ले जाना पड़ता है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
उत्पादन की परिभाषा दीजिए। विभिन्न प्रकार के उत्पादन का उल्लेख कीजिए। (2014)
अथवा
अर्थशास्त्र में उत्पादन से क्या आशय होता है? उत्पादन के प्रकारों की विवेचना कीजिए। (2006)
उत्तर:
उत्पादन से आशय उत्पादन (Production). से आशय वस्तुओं व सेवाओं में उपयोगिता सृजन के साथ-साथ उनके मूल्य या विनिमय शक्ति में वृद्धि करना होता है। अत: वस्तुओं व सेवाओं द्वारा आर्थिक उपयोगिता के सृजन को उत्पादन कहा जाता है। फेयरचाइल्ड के अनुसार, “सम्पत्ति को अधिक उपयोगी बनाना ही उत्पादन है।” टॉमस के अनुसार, “वस्तु के मूल्य में वृद्धि करना अथवा आर्थिक उपयोगिता में वृद्धि करना ही उत्पादन है।” डॉ. बसु के अनुसार, “उत्पादन का अर्थ तुष्टिगुण सृजन करना है।” ए. एच. स्मिथ के अनुसार, “उत्पादन वह प्रक्रिया है, जिससे वस्तुओं में उपयोगिता का सृजन होती है।” प्रो. एली के अनुसार, “आर्थिक उपयोगिताओं का निर्माण ही उत्पादन है।”

उत्पादन के प्रकार या उपयोगिता वृद्धि की रीतियाँ उत्पादन के प्रकार या उपयोगिता वृद्धि की रीतियाँ निम्नलिखित हैं

1. रूप-परिवर्तन द्वारा उत्पादन किसी वस्तु के रूप को परिवर्तित करके उपयोगिता का सृजन किया जा सकता है। जब किसी वस्तु के रंग, रूप अथवा आकार में परिवर्तन किया जाता है, तो वह पहले से अधिक उपयोगी एवं लाभदायक बन जाती है। इसे रूप-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कहा जाता है; जैसे-लकड़ी का रूप बदलकर मेज व कुर्सी बनाना।

2. स्थान-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कई बार वस्तु का स्थान परिवर्तित करने से भी उपयोगिता का सृजन होता है या उपयोगिता में वृद्धि होती है, उसे स्थान परिवर्तन द्वारा उत्पादन कहा जाता है। जब कोई वस्तु किसी विशेष स्थान पर अधिक उत्पादित होती है, तो उस विशेष स्थान पर उस वस्तु की उपयोगिता कम होती है।

3. समय-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कुछ वस्तुएँ ऐसी भी होती हैं, जिनकी उपयोगिता समय-परिवर्तन के साथ बढ़ती है। कुछ वस्तुएँ ऐसी भी होती हैं, जिनकी समय बीतने के साथ उपयोगिता में वृद्धि होती है। उदाहरणस्वरूप, संग्रह करने से भी कुछ वस्तुओं की उपयोगिता व मूल्य में वृद्धि होती है; जैसे-शराब तथा चावल जितने पुराने होते जाते हैं, उनकी उपयोगिता भी बढ़ने लगती है।

4. अधिकार-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कभी-कभी वस्तु का अधिकार परिवर्तित करने पर अर्थात् एक व्यक्ति द्वारा वस्तु के स्वामित्व को दूसरे व्यक्ति को प्रदान करने पर भी उपयोगिता का सृजन होता है। इसे अधिकार-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कहा (UPBoardSolutions.com) जाता है। उदाहरण के लिए, एक पुस्तक, पुस्तक विक्रेता हेतु अधिक उपयोगी नहीं होती है। वह उसके लिए लाभ कमाने की एक वस्तु मात्र होती है, जिसे वह बेचकर अपनी आय प्राप्त करता है, परन्तु जब यह पुस्तक एक विद्यार्थी द्वारा खरीद ली जाती है, तो वस्तु की उपयोगिता बढ़ जाती है।

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5. सेवा द्वारा उत्पादन किसी सेवा या किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत गुणों के कारण भी उपयोगिता का सृजन होता है, उसे सेवा द्वारा उत्पादन कहा जाता है; जैसे-डॉक्टर, वकील, अध्यापक, न्यायाधीश, नौकर, गायक, इत्यादि अपनी सेवाओं के द्वारा उपयोगिता का सृजन करते हैं।

6. ज्ञान वृद्धि द्वारा उत्पादन विज्ञापन द्वारा किसी वस्तु-विशेष से सम्बन्धित ज्ञान का प्रसार करने से उपयोगिता का सृजन होता है; जैसे-जब तक किसी उपभोक्ता को किसी वस्तु-विशेष से सम्बन्धित पूरा ज्ञान नहीं होता। वह वस्तु उसके लिए ज्यादा उपयोगी नहीं होती है, परन्तु यदि विज्ञापन के माध्यम से उपभोक्ता को उस वस्तु की जानकारी प्रदान की जाए, तो उसे उपभोक्ता की उस वस्तु के सन्दर्भ में उपयोगिता बढ़ जाएगी।

प्रश्न 2.
उत्पादन क्या है? उत्पादन के साधनों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2016)
अथवा
उत्पादन के साधनों से आप क्या समझते हैं? उत्पादन के विभिन्न साधनों की व्याख्या कीजिए। (2015)
अथवा
अर्थशास्त्र में उत्पादन का क्या अर्थ है? उत्पादन के विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उत्पादन से आशय
उत्पादन से आशय उत्पादन (Production). से आशय वस्तुओं व सेवाओं में उपयोगिता सृजन के साथ-साथ उनके मूल्य या विनिमय शक्ति में वृद्धि करना होता है। अत: वस्तुओं व सेवाओं द्वारा आर्थिक उपयोगिता के सृजन को उत्पादन कहा जाता है। फेयरचाइल्ड के अनुसार, “सम्पत्ति को अधिक उपयोगी बनाना ही उत्पादन है।” टॉमस के अनुसार, “वस्तु के मूल्य में वृद्धि करना अथवा आर्थिक उपयोगिता में वृद्धि करना ही उत्पादन है।” डॉ. बसु के अनुसार, “उत्पादन का अर्थ तुष्टिगुण सृजन करना है।” ए. एच. स्मिथ के अनुसार, “उत्पादन वह प्रक्रिया है, जिससे वस्तुओं में उपयोगिता का सृजन होती है।” प्रो. एली के अनुसार, “आर्थिक उपयोगिताओं का निर्माण ही उत्पादन है।”

उत्पादन के साधनों से आशय उत्पादन के साधनों से हमारा तात्पर्य उन वस्तुओं व साधनों से है, जो उपयोगिता अथवा मूल्य के सृजन में सहायक होते हैं। बेन्हम के अनुसार, “कोई भी वस्तु या सेवा, जो किसी भी स्तर पर उत्पादन कार्य में सहयोग प्रदान करती है, उत्पादन का साधन कहलाती है।” उत्पादन के साधन आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने उत्पादन के साधनों को निम्नलिखित पाँच भागों में बाँटा है

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1. भूमि यह उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण, किन्तु निष्क्रिय साधन है। साधारण बोलचाल में, भूमि (Land) का अर्थ केवल भूमि की ऊपरी सतह से लगाया जाता है, परन्तु अर्थशास्त्र में भूमि का बहुत ही व्यापक अर्थ होता है। प्रो. मार्शल के अनुसार, “भूमि का अर्थ केवल पृथ्वी की ऊपरी सतह से नहीं वरन् उन सभी वस्तुओं एवं शक्तियों से है, जिन्हें प्रकृति ने भूमि, वायु, प्रकाश, आदि के रूप में मानव की सहायता के लिए नि:शुल्क प्रदान किया है।” अर्थशास्त्र में भूमि का अभिप्राय उन समस्त प्राकृतिक उपहारों से है, जिसके अन्तर्गत भूमि की सतह, वायु, नदी, पहाड़, प्रकाश, खनिज, जल, आदि प्रकृतिदत्त पदार्थ सम्मिलित हैं।

2. श्रम श्रम (Labour) उत्पादन का दूसरा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं सक्रिय साधन है। इसका महत्त्व इसलिए अधिक है, क्योंकि यह समस्त आर्थिक क्रियाओं को आदि और अन्त (साधन और साध्य) दोनों हैं। अर्थशास्त्र में श्रम से मनुष्य के उन सभी शारीरिक (UPBoardSolutions.com) और मानसिक प्रयत्नों का बोध होता है, जो धनोपार्जन के उद्देश्य से किए जाते हैं। धनोत्पादन के उद्दश्य से किए गए मानव के सभी शारीरिक एवं मानसिक प्रयत्नों का भी श्रम में समावेश होता है, परन्तु मनोरंजन, देश प्रेम, पारिवारिक स्नेह, आदि के लिए किए गए कार्यों को श्रम में सम्मिलित नहीं किया जाता है।

3. पूँजी उत्पादन का तीसरा महत्त्वपूर्ण साधन पूँजी (Capital) है। आज की आधुनिक जटिल उत्पादन अवस्था में पूँजी का महत्त्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है। पूँजी उत्पादन का एक निष्क्रिय साधन होते हुए भी इसकी बढ़ती हुई स्वयं संचालिता, इसे और भी महत्त्वपूर्ण बनाती जा रही है। प्रो. मार्शल के अनुसार, “पूँजी मनुष्य द्वारा उत्पादित धन का वह भाग है, जिसे अधिक सम्पत्ति के उत्पादन में प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रकार पूँजी के अन्तर्गत केवल नकदी ही नहीं आती वरन् मशीनें, कच्चा माल, बीज, आदि भी आते हैं।’

4. संगठन उत्पादन का चौथा महत्त्वपूर्ण साधन (Organisation) संगठन है। संगठन का अभिप्राय उत्पादन के विभिन्न साधनों में अनुकूलतम संयोग स्थापित कर इन्हें उत्पादन कार्य में संलग्न करने की कला व विज्ञान से है। दूसरे शब्दों में, संगठन वह विशिष्ट श्रम है, जो उत्पादन के साधनों श्रम, पूँजी व भूमि को एकत्रित करके उनमें आदर्शतम् समन्वय स्थापित करता है। उनके कार्यों का निरीक्षण करता है अथवा आवश्यक परिवर्तन करता है। इसके अभाव में कुशलता का अभाव रहता है।

5. उद्यम या साहस आधुनिक उत्पादन प्रक्रिया में अनेक जटिलताओं के कारण जोखिम में वृद्धि हुई है। जो व्यक्ति इन जोखिमों को वहन करता है, उसे साहसी या उद्यमी (Enteprise) कहते हैं। पहले साहसी को उत्पादन का महत्त्वपूर्ण साधन नहीं माना जाता था, किन्तु आधुनिक उत्पादन अवस्था में विभिन्न प्रकार के जोखिमों की प्रधानता के कारण साहसी को महत्त्वपर्ण साधन माना जाने लगा है। संयुक्त पूँजी कम्पनियों की स्थापना में साहसी ही आगे आते हैं।

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प्रश्न 3.
उत्पादन क्या है? यह उपभोग से कैसे भिन्न है? इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए। (2008)
अथवा
उपभोग क्या है? उत्पादन व उपभोग में क्या अन्तर है?
उत्तर:
उत्पादन से आशय
उत्पादन से आशय उत्पादन (Production). से आशय वस्तुओं व सेवाओं में उपयोगिता सृजन के साथ-साथ उनके मूल्य या विनिमय शक्ति में वृद्धि करना होता है। अत: वस्तुओं व सेवाओं द्वारा आर्थिक उपयोगिता के सृजन को उत्पादन कहा जाता है। फेयरचाइल्ड (UPBoardSolutions.com) के अनुसार, “सम्पत्ति को अधिक उपयोगी बनाना ही उत्पादन है।” टॉमस के अनुसार, “वस्तु के मूल्य में वृद्धि करना अथवा आर्थिक उपयोगिता में वृद्धि करना ही उत्पादन है।” डॉ. बसु के अनुसार, “उत्पादन का अर्थ तुष्टिगुण सृजन करना है।” ए. एच. स्मिथ के अनुसार, “उत्पादन वह प्रक्रिया है, जिससे वस्तुओं में उपयोगिता का सृजन होती है।” प्रो. एली के अनुसार, “आर्थिक उपयोगिताओं का निर्माण ही उत्पादन है।”

उपभोग से आशय उपभोग का अर्थ साधारण रूप से वस्तुओं के खाने-पीने से लगाया जाता है, जबकि अर्थशास्त्र में इस शब्द का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है। अर्थशास्त्र में उपभोग को अर्थ मानव द्वारा की जाने वाली उन समस्त क्रियाओं से है, जिनसे उसकी आवश्यकता की पूर्ति होती है। उपभोग द्वारा किसी वस्तु के तुष्टिगुण को कम या समाप्त किया जा सकता है अर्थात् वस्तुओं द्वारा आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष सन्तुष्टि की क्रिया को उपभोग कहते हैं।

उत्पादन तथा उपभोग में अन्तर

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 22 उत्पादन (उत्पत्ति) के साधन : आशय, विशेषताएँ एवं महत्त्व

उत्पादन का महत्त्व उत्पादन का महत्त्व निम्नलिखित है-

  1. आवश्यकताओं की पूर्ति उत्पादन के परिणामस्वरूप ही मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। उत्पादन के साधन उत्पादन प्रक्रिया से अपनी आय प्राप्त करते हैं तथा उस आय से अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ एवं सेवाएँ क्रय करते हैं।
  2. राष्ट्रीय आय में वृद्धि राष्ट्रीय आय पर उत्पादन का गहरा प्रभाव पड़ता है। जब अर्थशास्त्र के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन से वृद्धि होती है, तो इससे देश की राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि होती है।
  3. जीवन-स्तर में सुधार किसी देश के लोगों का जीवन-स्तर उत्पादन की मात्रा व प्रकृति पर निर्भर करता है।
  4. रोजगार में वृद्धि देश में उत्पादन में वृद्धि से रोजगार पर अनुकूलतम प्रभाव (UPBoardSolutions.com) पड़ता है। उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होती है।
  5. व्यापार में वृद्धि उत्पादन वृद्धि का व्यापार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ आन्तरिक व्यापार एवं विदेशी व्यापार का विकास होता है।
  6. आर्थिक विकास का आधार किसी राष्ट्र का आर्थिक विकास उसके उत्पादन की मात्रा, स्वरूप, वृद्धि स्वरूप एवं वृद्धि की दर पर निर्भर होता है।
  7. परिवहन के साधनों का विकास उत्पादन वृद्धि से परिवहन के साधनों का भी विकास होता है। उत्पादन वृद्धि के लिए कच्चा माल व मशीनों, आदि को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाना व ले जाना पड़ता है।

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प्रश्न 4.
अर्थशास्त्र में उत्पादन का क्या अर्थ है? उत्पादन को प्रभावित करने वाले छः कारकों का उल्लेख कीजिए। (2007)
अथवा
उत्पादन क्षमता से क्या आशय है? उत्पादन क्षमता को प्रभावित करने वाली बातों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
उत्पादन से आशय
उत्पादन से आशय उत्पादन (Production). से आशय वस्तुओं व सेवाओं में उपयोगिता सृजन के साथ-साथ उनके मूल्य या विनिमय शक्ति में वृद्धि करना होता है। अत: वस्तुओं व सेवाओं द्वारा आर्थिक उपयोगिता के सृजन को उत्पादन कहा जाता है। फेयरचाइल्ड के अनुसार, “सम्पत्ति को अधिक उपयोगी बनाना ही उत्पादन है।” टॉमस के अनुसार, “वस्तु के मूल्य में वृद्धि करना अथवा आर्थिक उपयोगिता में वृद्धि करना ही उत्पादन है।” डॉ. बसु (UPBoardSolutions.com) के अनुसार, “उत्पादन का अर्थ तुष्टिगुण सृजन करना है।” ए. एच. स्मिथ के अनुसार, “उत्पादन वह प्रक्रिया है, जिससे वस्तुओं में उपयोगिता का सृजन होती है।” प्रो. एली के अनुसार, “आर्थिक उपयोगिताओं का निर्माण ही उत्पादन है।”

उत्पादन क्षमता उत्पादन की कुशलता (Efficiency of Production) से तात्पर्य किसी उत्पादन संस्था की उस योग्यता से है, जिसके द्वारा वह एक निश्चित समय में अन्य उत्पादक संस्थाओं से कम लागत पर अधिक मात्रा में व उच्च स्तर का माल उत्पादित करती है। उत्पादन की कुशलता को प्रभावित करने वाले तत्त्व उत्पादन की कुशलता को प्रभावित करने वाले तत्त्व निम्नलिखित हैं

1. आन्तरिक तत्त्व आन्तरिक तत्त्वों का सम्बन्ध उत्पादन संस्था के आन्तरिक प्रबन्ध और कार्य संचालन से होता है। ये दशाएँ निम्नलिखित हैं

  • साधनों का उचित अनुपात में नियोजन उत्पादन के विभिन्न साधनों को अनुकूलतम अनुपात में लगाने पर उत्पादन की कुशलता में वृद्धि होर? है।
  • उत्पादन साधनों की कुशलता उत्पादन के साधन अधिक कुशल होने से उत्पादन अधिक मात्रा में व श्रेष्ठ होता है। यदि उत्पादन-कार्य में उच्च कोटि का कच्चा माल, नवीनतम मशीनें व योग्य श्रमिकों का प्रयोग किया जाता है, तो उत्पादन उच्च-स्तर का होता है।

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2. बाह्य तत्त्व बाह्य तत्त्वों का सम्बन्ध किसी एक उत्पादन संस्था से न होकर एक उद्योग या एक स्थान पर स्थापित सभी प्रकार की संस्थाओं से होता है। ये दशाएँ निम्नलिखित हैं

  • प्राकृतिक घटक किसी देश की उत्पादन कुशलता उसके प्राकृतिक तत्त्वों; जैसे-जलवायु, खनिज सम्पदा, भूमि का उपजाऊपन, आदि पर – निर्भर करती है।
  • तकनीकी ज्ञान व वैज्ञानिक शोध किसी राष्ट्र की उत्पादन कुशलता उस देश (UPBoardSolutions.com) के तकनीकी ज्ञान व वैज्ञानिक शोध पर निर्भर करती है।
  • यातायात की सुविधाएँ उत्पादन कुशलता यातायात के साधनों पर भी निर्भर करती है।
  • सरकारी नीति उत्पादन कुशलता पर सरकारी नीतियों का प्रभाव भी पड़ता है।

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 21 व्यय एवं बचत

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 21 व्यय एवं बचत are the part of UP Board Solutions for Class 10 Commerce. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 21 व्यय एवं बचत.

Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 21
Chapter Name व्यय एवं बचत
Number of Questions Solved 23
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 21 व्यय एवं बचत

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
“आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से सन्तुष्ट करने के लिए आये का उपयोग करना ही व्यय कहलाता है।” यह कथन है।
(a) प्रो. बसु का
(b) प्रो. केन्ज का
(c) प्रो. पेन्सन का
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) प्रो. बसु का

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से व्यक्तिगत व्यय कौन-कौन से है?
(a) भोजन पर व्यय
(b) स्वास्थ्य पर व्यय
(c) बच्चों की शिक्षा पर व्यय
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 3.
सम्पत्ति का जो भाग उत्पादन में लगाया जाता है, उसे कहते हैं (2012)
(a) बचत
(b) संचय
(c) पूँजी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) बचत

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प्रश्न 4.
पूँजी का निर्माण निर्भर करता है
(a) व्यय पर
(b) आय पर
(c) बचत पर
(d) ये सभी
उत्तर:
(c) बेचत पर

प्रश्न 5.
अधिक बचत करने से आय
(a) बढ़ती है
(b) घटती है
(c) सामान्य रहती है
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) बढ़ती है

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
व्यय से वर्तमान/भावी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि होती है।
उत्तर:
वर्तमान

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प्रश्न 2.
क्या व्यय आवश्यकता की सन्तुष्टि प्रत्यक्ष रूप से करता है।
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 3.
क्या व्यय तथा बचत दोनों आय के भाग होते हैं।
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 4.
क्या बैंक में धन को जमा करना बचत कहलाता है।
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 5.
क्या बचत समाज के लिए लाभदायक होती है।
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 6.
बचत करने से पूँजी में कमी/वृद्धि होती है।
उत्तर:
वृद्धि होती है

प्रश्न 7.
बचत से रहन-सहन का स्तर घटता/बढ़ता है।
उत्तर:
बढ़ती है

प्रश्न 8.
क्या निःसंचय का पूँजी के निर्माण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
उत्तर:
हाँ

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प्रश्न 9.
व्यय तथा बचत दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं,नहीं होते हैं।
उत्तर:
होते हैं।

प्रश्न 10.
अधिक बचत से देश में पूँजी का निर्माण होता है/नहीं होता है।
उत्तर:
होता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
व्यय कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
व्यय निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-

  1. व्यक्तिगत व्यय
  2. सामाजिक व्यय

प्रश्न 2.
बचत का सामाजिक महत्त्व बताइए। (2017)
अथवा
समाज में बचत के महत्व का वर्णन कीजिए। (2015, 11, 09, 08)
उत्तर:
बचत (संचय) करने वाले व्यक्ति समाज में प्रतिष्ठित (UPBoardSolutions.com) व्यक्ति माने जाते हैं। निरन्तर बचत (संचय) करने से व्यक्ति को संकट के समय समाज में किसी दूसरे व्यक्ति के सामने अपनी व्यथा रखने की आवश्यकता नहीं होती, जिससे  उसको एक सकारात्मक परिणाम मिलता है तथा उसकी प्रतिष्ठा समाज में बनी रहती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि समाज में बचत का अत्यधिक महत्त्व है।

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प्रश्न 3.
बचत से होने वाली दो हानियाँ बताइए।
उत्तर:
बचत से होने वाली दो हानियाँ निम्नलिखित हैं

  1. पैतृक रूप में मिली सम्पत्ति भावी पीढ़ी को निकम्मा बना देती है।
  2. भविष्य के लिए अधिक धन बचाने के स्वार्थ में वर्तमान की आवश्यकता सन्तुष्ट नहीं हो पाती है, जिससे व्यक्ति के जीवन-स्तर में विकास नहीं हो पाता है।

प्रश्न 4.
बचत एवं निःसंचय में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2016)

बचत एवं नि:संचय में अन्तर

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 21 व्यय एवं बचत

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लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
व्यय किसे कहते हैं? व्यय कितने प्रकार के होते हैं? (2007)
उत्तर:
व्यय से आशय व्यय, आय का वह भाग होता है, जिसे मनुष्य अपनी वर्तमान आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु उपयोग में लेता है। सरल शब्दों में, आय का वह भाग, जो तात्कालिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु उपभोग में लिया जाता है, व्यय (Expenditure) (UPBoardSolutions.com) कहलाता है। प्रो. बसु के अनुसार, “आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से सन्तुष्ट करने के लिए आय का उपभोग करना ही ‘व्यय’ कहलाता है।”
व्यय के प्रकार व्यय के निम्नलिखित प्रकार होते हैं

1. व्यक्तिगत या निजी व्यय आय का वह हिस्सा, जिसे मनुष्य द्वारा अपनी वर्तमान आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए प्रयोग में लिया जाता है, ‘व्यक्तिगत व्यय’ या ‘निजी व्यय’ (Personal Expenses) कहलाता है, जैसे-बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, मकान का किराया, आदि पर किया जाने वाला व्यय।

2. सामाजिक व्यय मनुष्य एक सामाजिक प्राणी होने के कारण समाज में रहकर कुछ सुविधाएँ व संम्मान प्राप्त करता है। मनुष्य की आय का वह भाग, जो सामाजिक आवश्यकताओं या समाज के ऊपर खर्च किया जाता है, ‘सामाजिक व्यय’ (Social Expenses) कहलाता है।
सामाजिक व्यय निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-

  • अनिवार्य सामाजिक व्यय मनुष्य की आय का वह भाग, जिसे समाज के लिए अनिवार्य रूप से खर्च करना पड़ता है, ‘अनिवार्य सामाजिक व्यंय’ कहलाते हैं। इन व्ययों से समाज का हित होता है; जैसे-केन्द्रीय या प्रादेशिक कर।
  • ऐच्छिक सामाजिक व्यय मनुष्य की आय का वह भाग, जिसे मनुष्य अपनी इच्छा से समाज के लिए खर्च करता है, ‘ऐच्छिक सामाजिक व्यय कहलाते हैं; जैसे–मन्दिर, अस्पताल या धार्मिक संस्थाओं को चन्दा देना।

प्रश्न 2.
व्यय क्या है? व्यय और बचत के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए। (2014)
अथवा
व्यय से क्या आशय है? व्यय का बचत से क्या सम्बन्ध है? (2006)
अथवा
व्यय और बचत में क्या सम्बन्ध है? (2018)
उत्तर:
व्यय से आशय व्यय, आय का वह भाग होता है, जिसे मनुष्य अपनी वर्तमान आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु उपयोग में लेता है। सरल शब्दों में, आय का वह भाग, जो तात्कालिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु उपभोग में लिया जाता है, व्यय (Expenditure) (UPBoardSolutions.com) कहलाता है। प्रो. बसु के अनुसार, “आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से सन्तुष्ट करने के लिए आय का उपभोग करना ही ‘व्यय’ कहलाता है।”
व्यय के प्रकार व्यय के निम्नलिखित प्रकार होते हैं

UP Board Solutions

1. व्यक्तिगत या निजी व्यय आय का वह हिस्सा, जिसे मनुष्य द्वारा अपनी वर्तमान आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए प्रयोग में लिया जाता है, ‘व्यक्तिगत व्यय’ या ‘निजी व्यय’ (Personal Expenses) कहलाता है, जैसे-बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, मकान का किराया, आदि पर किया जाने वाला व्यय।

2. सामाजिक व्यय मनुष्य एक सामाजिक प्राणी होने के कारण समाज में रहकर कुछ सुविधाएँ व संम्मान प्राप्त करता है। मनुष्य की आय का वह भाग, जो सामाजिक आवश्यकताओं या समाज के ऊपर खर्च किया जाता है, ‘सामाजिक व्यय’ (Social Expenses) कहलाता है।
सामाजिक व्यय निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-

  • अनिवार्य सामाजिक व्यय मनुष्य की आय का वह भाग, जिसे समाज के लिए अनिवार्य रूप से खर्च करना पड़ता है, ‘अनिवार्य सामाजिक व्यंय’ कहलाते हैं। इन व्ययों से समाज का हित होता है; जैसे-केन्द्रीय या प्रादेशिक कर।
  • ऐच्छिक सामाजिक व्यय मनुष्य की आय का वह भाग, जिसे मनुष्य अपनी इच्छा (UPBoardSolutions.com) से समाज के लिए खर्च करता है, ‘ऐच्छिक सामाजिक व्यय कहलाते हैं; जैसे–मन्दिर, अस्पताल या धार्मिक संस्थाओं को चन्दा देना।

व्यय और बचत को पारस्परिक सम्बन्ध व्यय और बचत दोनों हमारे जीवन के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग होते हैं। इन दोनों में परस्पर गहरा सम्बन्ध होता है। व्यय के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से आवश्यकताओं की सन्तुष्टि होती है, जबकि बचत में परोक्ष रूप से धन का प्रयोग किया जाता है। व्यय में धन के द्वारा वस्तुएँ एवं सेवाएँ प्राप्त करके आवश्यकताओं की सन्तुष्टि प्रत्यक्ष रूप से की जाती है, जबकि बचत में धन के द्वारा वस्तुओं व सेवाओं की प्राप्ति धन उत्पादन के लिए की जाती है। मार्शल ने व्यय और बचत की कैंची के दो फलकों से तुलना की है। जिस प्रकार कपड़े काटने के लिए कैंची के दो फलकों की आवश्यकता पड़ती है, उसी प्रकार समाज की उन्नति के लिए व्यय और बचत दोनों ही आवश्यक होते हैं। ये एक-दूसरे के विरोधी न होकर पूरक होते हैं। प्रो. मेन्सन के अनुसार, “व्यय तथा बचत दोनों ही मनुष्य की (UPBoardSolutions.com) आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।”

प्रश्न 3.
व्यय और बचत में अन्तर बताइए। (2016)
उत्तर:
व्यय और बचत में अन्तर

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 21 व्यय एवं बचत

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
व्यय तथा बचत से आप क्या समझते हैं? व्यय व बचत के महत्त्व का वर्णन कीजिए। (2015)
अथवा
व्यय से क्या आशय है? आर्थिक विकास में व्यय के महत्व का वर्णन कीजिए। (2007)
उत्तर:
व्यय से आशय व्यय, आय का वह भाग होता है, जिसे मनुष्य अपनी वर्तमान आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु उपयोग में लेता है। सरल शब्दों में, आ का वह भाग, जो तत्कालिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु उपभोग में लिया जाता है, व्यय (Expenditure) कहलाता है। प्रो. बसु के अनुसार, “आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से सन्तुष्ट करने के लिए आय का उपभोग करना ही ‘व्यय’ कहलाता है।”

व्यय का महत्त्व मनुष्य को आय कमाने की अपेक्षा व्यय करना कठिन होता है। मनुष्य को अपनी आय सोच-समझकर खर्च करनी चाहिए। व्यय के महत्त्व निम्नलिखित हैं

1. जीवन-स्तर में वृद्धि व्यय करने से मनुष्य के उपभोग स्तर में वृद्धि होती है, जिससे लोगों का जीवन-स्तर उच्च होता है। उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। इससे देश का आर्थिक विकास होता है।
2. रोजगार के अवसरों में वृद्धि अधिक उत्पादन किए जाने से रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जा सकती है, इससे बेरोजगारी की समस्या का अन्त किया जा सकता है।
3. वस्तुओं की माँग में वृद्धि अधिक व्यय किए जाने से उपभोग स्तर में वृद्धि होती है, फलस्वरूप वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है, जिनके लिए अधिक धनोत्पादन किया जाता है।
4. आय में वृद्धि व्यय से देश के प्रत्येक क्षेत्र की आर्थिक प्रगति होती है व साथ ही (UPBoardSolutions.com) समाज के सभी वर्गों की आय में भी वृद्धि होती है।
5. आर्थिक विकास में सहायक व्यय के कारण व्यक्ति का उपभोग स्तर ऊँचा होता है, जिससे माँग में वृद्धि के फलस्वरूप उद्योगों की स्थापना होती है, जो देश के सर्वांगीण आर्थिक विकास में सहायक है।

बचत से आशय प्रत्येक व्यक्ति अपनी सम्पूर्ण आय को वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति करने में व्यय नहीं करता है। वह अपनी आय का कुछ भाग भविष्य की आवश्यकताओं के आकस्मिक व्ययों के लिए बचाकर रखता है, जिसे बचत (Savings) कहते हैं अर्थात् मनुष्य की आय का वह भाग जो भावी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए रखा जाता है, बचत कहलाता है। इसे बैंक या डाकघर में जमा करा सकते हैं या इससे किसी कम्पनी के अंश या ऋणपत्र क्रय कर सकते हैं। केन्ज के अनुसार, “बचत एक निश्चित समय की आय में से उसी समय होने वाले व्यय का अन्तर होता है।” डॉ. बसु के अनुसार, “उत्पादन कार्यों के लिए धन का पूँजी में परिवर्तन करना बचत कहलाता है।

बचत का महत्त्व बचत के महत्त्व को दो दृष्टिकोणों में विभक्त किया जा सकता है

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1. व्यक्तिगत दृष्टिकोण व्यक्तिगत दृष्टिकोण से बचत निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की जाती है

  • आय वृद्धि के लिए बचत करने से व्यक्ति की आय बढ़ती है। बचत के पुरस्कार के रूप में ब्याज, लाभांश, आदि की प्राप्ति होती है।
  • पारिवारिक दायित्वों को निभाने के लिए बचत के द्वारा ही पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन किया जा सकता है; जैसे-बच्चों की शिक्षा, सामाजिक कार्य, आदि।
  • मितव्ययिता के लिए बचत करने से व्यक्ति में मितव्ययिता की भावना उत्पन्न होती है। बचत करने से अनावश्यक व्ययों पर नियन्त्रण किया जा सकता है। इससे अपव्ययिता पर रोक लगती है।
  • सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए बचत करने से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, जिससे व्यक्ति समाज के विकास के लिए योगदान दे सकता है। इससे व्यक्ति का समाज में सम्मान प्रतिष्ठा बनी रहती है।
  • वृद्धावस्था के लिए वृद्धावस्था के समय व्यक्ति के लिए बचत ही सबसे (UPBoardSolutions.com) महत्त्वपूर्ण सहारा होती है। पर्याप्त बचत होने पर व्यक्ति वृद्धावस्था में सरलता से जीवन-निर्वाह कर सकता है।
  • आकस्मिक अवसर के लिए मनुष्य के जीवन में अनेक ऐसे आकस्मिक अवसर आते हैं, जब सामान्य व्यय से अतिरिक्त आवश्यक व्यय की आवश्यकता होती है; जैसे-बीमारी, बेरोजगारी, मृत्यु, विवाह, आदि।

2. सामाजिक दृष्टिकोण सामाजिक दृष्टिकोण से बचत निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की जाती है

  • बैंकिंग व बीमा व्यवसाय का विकास बचत की राशि को लोग बैंकों में जमा कराते हैं या बीमा व्यवसाय में इसका निवेश करते हैं। इससे देश में बैंकिंग व बीमा व्यवसाय का विकास एवं विस्तार होता है।
  • देश की आर्थिक विकास बचत से पूँजी का संचय होता है, जिससे औद्योगिक विकास, जन-जीवन का विकास, रोजगार के अवसरों में वृद्धि, सामाजिक क्षेत्र का विकास (रेल, तार, सड़कें, स्कूल, अस्पताल, आदि का निर्माण) होता है। इससे देश के आर्थिक विकास में वृद्धि होती है।
  • पूँजी में वृद्धि पूँजी, बचत का ही परिणाम है। जितनी अधिक बचत होगी, उतनी ही पूँजी में वृद्धि होती है। अधिक पूँजी होने पर बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है।
  • जीवन-स्तर में वृद्धि बचत करने से पूँजी का निर्माण होता है। पूँजी निर्माण से उत्पादन कार्यों में वृद्धि होती है। इससे लोगों को रोजगार मिलता है व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है। प्रति व्यक्ति आय बढ़ने से राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि होती है और लोगों के रहन-सहने का स्तर भी ऊँचा होता है।
  • राष्ट्र का शक्तिशाली होना बचत के द्वारा देश के आर्थिक विकास को गति मिलती है। इससे देश की राजनीतिक व सैनिक शक्ति में वृद्धि होती है। वर्तमान में आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न देश को शक्तिशाली राष्ट्र माना जाता है। आर्थिक दृष्टिकोण से देश की रक्षा-शक्ति भी बढ़ती है।

प्रश्न 2.
व्यय क्या है? बचत के सामाजिक महत्त्व का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2013)
अथवा
समाज में बचत के महत्त्व का वर्णन कीजिए। (2011)
अथवा
बचत से क्या आशय है? बचत के सामाजिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए। (2010)
अथवा
बचत क्या है? बचत के सामाजिक महत्त्व का वर्णन कीजिए। (2009)
अथवा
बचत का क्या अर्थ है? बचत के सामाजिक महत्त्व का वर्णन कीजिए। (2008)
अथवा
व्यय और बचत से आप क्या समझते हैं? बचत के सामाजिक महत्त्व का वर्णन कीजिए। (2006)
उत्तर:
व्यय से आशय व्यय, आय का वह भाग होता है, जिसे मनुष्य अपनी वर्तमान आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु उपयोग में लेता है। सरल शब्दों में, आ का वह भाग, जो तत्कालिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु उपभोग में लिया जाता है, व्यय (Expenditure) (UPBoardSolutions.com) कहलाता है। प्रो. बसु के अनुसार, “आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से सन्तुष्ट करने के लिए आय का उपभोग करना ही ‘व्यय’ कहलाता है।”

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व्यय का महत्त्व मनुष्य को आय कमाने की अपेक्षा व्यय करना कठिन होता है। मनुष्य को अपनी आय सोच-समझकर खर्च करनी चाहिए। व्यय के महत्त्व निम्नलिखित हैं

1. जीवन-स्तर में वृद्धि व्यय करने से मनुष्य के उपभोग स्तर में वृद्धि होती है, जिससे लोगों का जीवन-स्तर उच्च होता है। उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। इससे देश का आर्थिक विकास होता है।
2. रोजगार के अवसरों में वृद्धि अधिक उत्पादन किए जाने से रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जा सकती है, इससे बेरोजगारी की समस्या का अन्त किया जा सकता है।
3. वस्तुओं की माँग में वृद्धि अधिक व्यय किए जाने से उपभोग स्तर में वृद्धि होती है, फलस्वरूप वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है, जिनके लिए अधिक धनोत्पादन किया जाता है।
4. आय में वृद्धि व्यय से देश के प्रत्येक क्षेत्र की आर्थिक प्रगति होती है व साथ ही समाज के सभी वर्गों की आय में भी वृद्धि होती है।
5. आर्थिक विकास में सहायक व्यय के कारण व्यक्ति का उपभोग स्तर ऊँचा होता है, जिससे माँग में वृद्धि के फलस्वरूप उद्योगों की स्थापना होती है, जो देश के सर्वांगीण आर्थिक विकास में सहायक है।

बचत से आशय प्रत्येक व्यक्ति अपनी सम्पूर्ण आय को वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति करने में व्यय नहीं करता है। वह अपनी आय का कुछ भाग भविष्य की आवश्यकताओं के आकस्मिक व्ययों के लिए बचाकर रखता है, जिसे बचत (Savings) कहते हैं (UPBoardSolutions.com) अर्थात् मनुष्य की आय का वह भाग जो भावी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए रखा जाता है, बचत कहलाता है। इसे बैंक या डाकघर में जमा करा सकते हैं या इससे किसी कम्पनी के अंश या ऋणपत्र क्रय कर सकते हैं। केन्ज के अनुसार, “बचत एक निश्चित समय की आय में से उसी समय होने वाले व्यय का अन्तर होता है।” डॉ. बसु के अनुसार, “उत्पादन कार्यों के लिए धन का पूँजी में परिवर्तन करना बचत कहलाता है।

बचत का सामाजिक महत्त्व

बचत का महत्त्व बचत के महत्त्व को दो दृष्टिकोणों में विभक्त किया जा सकता है

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1. व्यक्तिगत दृष्टिकोण व्यक्तिगत दृष्टिकोण से बचत निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की जाती है

  • आय वृद्धि के लिए बचत करने से व्यक्ति की आय बढ़ती है। बचत के पुरस्कार के रूप में ब्याज, लाभांश, आदि की प्राप्ति होती है।
  • पारिवारिक दायित्वों को निभाने के लिए बचत के द्वारा ही पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन किया जा सकता है; जैसे-बच्चों की शिक्षा, सामाजिक कार्य, आदि।
  • मितव्ययिता के लिए बचत करने से व्यक्ति में मितव्ययिता की भावना उत्पन्न होती है। बचत करने से अनावश्यक व्ययों पर नियन्त्रण किया जा सकता है। इससे अपव्ययिता पर रोक लगती है।
  • सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए बचत करने से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, जिससे व्यक्ति समाज के विकास के लिए योगदान दे सकता है। इससे व्यक्ति का समाज में सम्मान प्रतिष्ठा बनी रहती है।
  • वृद्धावस्था के लिए वृद्धावस्था के समय व्यक्ति के लिए बचत ही सबसे महत्त्वपूर्ण सहारा होती है। पर्याप्त बचत होने पर व्यक्ति वृद्धावस्था में सरलता से जीवन-निर्वाह कर सकता है।
  • आकस्मिक अवसर के लिए मनुष्य के जीवन में अनेक ऐसे आकस्मिक (UPBoardSolutions.com) अवसर आते हैं, जब सामान्य व्यय से अतिरिक्त आवश्यक व्यय की आवश्यकता होती है; जैसे-बीमारी, बेरोजगारी, मृत्यु, विवाह, आदि।

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2. सामाजिक दृष्टिकोण सामाजिक दृष्टिकोण से बचत निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की जाती है

  • बैंकिंग व बीमा व्यवसाय का विकास बचत की राशि को लोग बैंकों में जमा कराते हैं या बीमा व्यवसाय में इसका निवेश करते हैं। इससे देश में बैंकिंग व बीमा व्यवसाय का विकास एवं विस्तार होता है।
  • देश की आर्थिक विकास बचत से पूँजी का संचय होता है, जिससे औद्योगिक विकास, जन-जीवन का विकास, रोजगार के अवसरों में वृद्धि, सामाजिक क्षेत्र का विकास (रेल, तार, सड़कें, स्कूल, अस्पताल, आदि का निर्माण) होता है। इससे देश के आर्थिक विकास में वृद्धि होती है।
  • पूँजी में वृद्धि पूँजी, बचत का ही परिणाम है। जितनी अधिक बचत होगी, उतनी ही पूँजी में वृद्धि होती है। अधिक पूँजी होने पर बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है।
  • जीवन-स्तर में वृद्धि बचत करने से पूँजी का निर्माण होता है। पूँजी निर्माण से उत्पादन कार्यों में वृद्धि होती है। इससे लोगों को रोजगार मिलता है व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है। प्रति व्यक्ति आय बढ़ने से राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि होती है और लोगों के रहन-सहने का स्तर भी ऊँचा होता है।
  • राष्ट्र का शक्तिशाली होना बचत के द्वारा देश के आर्थिक विकास को (UPBoardSolutions.com) गति मिलती है। इससे देश की राजनीतिक व सैनिक शक्ति में वृद्धि होती है। वर्तमान में आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न देश को शक्तिशाली राष्ट्र माना जाता है। आर्थिक दृष्टिकोण से देश की रक्षा-शक्ति भी बढ़ती है।

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