UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 9 Indian Educationist: Ravindranath Tagore

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Pedagogy
Chapter Chapter 9
Chapter Name  Indian Educationist: Ravindranath Tagore (भारतीय शिक्षाशास्त्री-रवीन्द्रनाथ टैगोर)
Number of Questions Solved 34
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 9 Indian Educationist: Ravindranath Tagore (भारतीय शिक्षाशास्त्री-रवीन्द्रनाथ टैगोर)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
टैगोर के शिक्षा-दर्शन की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
या
टैगोर के अनुसार शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
टैगोर के शिक्षा-दर्शन की विशेषताएँ टैगोर के शिक्षा-दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. बालक के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना ही शिक्षा है।
  2. शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालक को अनुभव की पूर्णता द्वारा पूर्ण मनुष्य के रूप में विकसित करना
  3. बालकों को प्राकृतिक वातावरण में शिक्षा देनी चाहिए, जिससे उन्हें अधिक आनन्द का अनुभव हो।
  4. भारतीय विश्वविद्यालयों में भारतीय दर्शन के प्रमुख विचारों की शिक्षा दी जानी चाहिए।
  5. राष्ट्रीय शिक्षा का प्रचलन होना चाहिए और उसमें भारत के भूत एवं भविष्य का ध्यान रखना चाहिए।
  6. प्रत्येक विद्यार्थी में संगीत, चित्रकला व अभिनय की योग्यता का विकास होना चाहिए।
  7. शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही होना चाहिए।
  8. शिक्षा की प्रक्रिया में बालकों को पूर्ण स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए।
  9. शिक्षा का वास्तविक जीवन से सम्बन्ध होना चाहिए।
  10. शिक्षा के द्वारा बालकों में धार्मिक भावना का विकास करना चाहिए, जिससे उनमें मानवता का कल्याण करने की क्षमता का विकास हो।
  11. शिक्षा के द्वारा बालकों में सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् के शाश्वत मूल्यों का विकास करना चाहिए।
  12. शिक्षा को गतिशील एवं सजीव बनाने के लिए सामाजिक जीवन से उसका सम्बन्ध जोड़ना चाहिए।

शिक्षा का अर्थ

” टैगोर ने शिक्षा को विकास की एक प्रक्रिया माना है और शिक्षा के व्यापक अर्थ को स्वीकार किया है। टैगोर का विचार है कि शिक्षा विकास का ऐसा साधन है जिससे व्यक्ति की मानसिक, भावात्मक, राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। इस प्रकार शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है, जिससे व्यक्ति की आन्तरिक क्षमताएँ बाह्य रूप में अभिव्यक्त होती हैं। टैगोर के शब्दों में, “सर्वोत्तम शिक्षा वह है जो हमारे जीवन का समस्त सृष्टि से सामंजस्य स्थापित करती है।”

शिक्षा के उद्देश्य

टैगोर के अनुसार शिक्षा के निम्नांकित उद्देश्य होने चाहिए ।

  1. शारीरिक विकास-टैगोर शिक्षा के लिए स्वस्थ शरीर को अधिक महत्त्व देते थे। अत: उन्होंने शिक्षा का उद्देश्य शारीरिक विकास माना है। शारीरिक विकास हेतु उन्होंने खेलकूद, व्यायाम एवं पौष्टिक भोजन आदि को आवश्यक बताया है।
  2. मानसिक या बौद्धिक विकास शारीरिक विकास के साथ-साथ उन्होंने बौद्धिक विकास पर भी बल दिया और शिक्षा का उद्देश्य बौद्धिक विकास करना बताया, परन्तु बौद्धिक विकास के लिए उन्होंने पुस्तकीय शिक्षा का विरोध किया और प्रकृति, तथा जीवन से प्रत्यक्ष रूप से ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक बताया। उनका कथन था कि इस प्रकार की शिक्षा से स्वतन्त्र चिन्तन एवं ज्ञानार्जन करने की क्रिया को प्रोत्साहन मिलता है। उनका विश्वास था कि बौद्धिक विकास तभी सम्भव हो सकता है, जब कि वास्तविक जीवन की परिस्थितियों में प्रत्यक्ष रूप से ज्ञान प्राप्त किया जाए।
  3. संवेगात्मक विकास-टैगोर का मत था कि कविता, संगीत, चित्रकला, नृत्यकला इत्यादि के द्वारा बालकों को संवेगात्मक प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए, जिससे उनमें सौन्दर्य प्रेम, सहानुभूति आदि की स्वस्थ भावनाओं का विकास हो।
  4. सामाजिक विकास-टैगोर व्यक्तिवादी होने के साथ-साथ समाजवादी भी थे। वे शिक्षा द्वारा व्यक्ति को एक ऐसे सामाजिक बन्धन में बाँधना चाहते थे जिससे व्यक्ति में सामाजिक गुणों का विकास हो और वह सामाजिक विकास हेतु प्रयत्नशील रहे।
  5. सामंजस्य की क्षमता का विकास-टैगोर के अनुसार बालकों को जीवन की वास्तविक परिस्थितियों और सामाजिक वातावरण का ज्ञान कराना चाहिए, जिससे उसमें सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता का विकास हो सके।
  6. नैतिक तथा आध्यात्मिक विकास-टैगोर आदर्शवादी थे। इसलिए उन्होंने शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के अन्दर नैतिक तथा आध्यात्मिक गुणों का विकास करना माना है। अपने लेखों में उन्होंने अनेक नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की विवेचना की है और इसकी प्राप्ति हेतु आन्तरिक स्वतन्त्रता, आन्तरिक शक्ति, आत्मानुशासन एवं ज्ञान आवश्यक बताया है।
  7. व्यावसायिक उद्देश्य-शिक्षा व्यक्ति को इस योग्य भी बनाए कि वह अपनी जीविका स्वयं कमा सके और आत्मनिर्भर बनकर अपना जीवन व्यतीत कर सके।
  8. सांस्कृतिक उद्देश्य-शिक्षा का उद्देश्य देश की संस्कृति की सुरक्षा और विकास करना है।
  9. अन्तर्राष्ट्रीयता का उद्देश्य-टैगोर समस्त विश्व में शान्ति स्थापित करना चाहते थे। उन्होंने शिक्षा का एक उद्देश्य यह भी बताया कि वह व्यक्तियों में अन्तर्राष्ट्रीय बन्धुत्व की भावना का विकास करे। उनका नारा था-‘वसुधैव कुटुम्बकम्’।

प्रश्न 2
रवीन्द्रनाथ टैगोर के शैक्षिक प्रयोग का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपना विद्यालय 1901 में स्थापित किया था। इसमें बालक थे। उस समय उन्होंने शिक्षण सम्बन्धी विचारधाराओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। सुनील चन्द्र सरकार के अनुसार–“टैगोर रूसी तथा फ्रोबेल के विचारों से अवश्य प्रभावित थे, यह प्रभाव उन पर अपना विद्यालय चलाने से पूर्व था और उस समय तक जब तक कि उन्होंने अपने प्रयोग किये, वे डीवी के शिक्षाशास्त्र के प्रभाव क्षेत्र में आ चुके थे।” शिक्षा के बारे में टैगोर की धारणा इस प्रकार है-“शिक्षा जीवन का स्थायी साहस है। यह अस्पताल की पीड़ायुक्त चिकित्सा की नीति नहीं है, जिससे उनका (छात्रों का) इलाज हो सके, उनकी अज्ञानता का निरोध हो सके, अपितु यह तो स्वास्थ्य की एक क्रिया है जो स्वाभाविक रूप, में मस्तिष्क को उपयोगी बनाती है।”

टैगोर के शिक्षा-दर्शन में-

  1. स्वतन्त्रता
  2. रचनात्मक आत्माभिव्यक्ति
  3. प्रकृति तथा मनुष्य के रचनात्मक सम्बन्ध पाये जाते हैं।

स्वतन्त्रता के विषय में टैगोर ने कहा है-“शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्य स्वतन्त्रता में है। यह स्वतन्त्रता विश्व के नियमों की अज्ञानता के प्रति होनी चाहिए, यह स्वतन्त्रता पूर्वाग्रहों एवं हठधर्मी के प्रति हो जो कि हमारे मानव समाज में हैं।’ मनुष्य आमने-सामने अपनी एकान्त प्रकृति के कारण प्रकृति के साथ सहयोग करता है। प्रकृति के रहस्यों का शोषण करता है और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए सभी सुविधाओं का उपयोग करता है।

उन्होंने कहा भी है कि प्रकृति को जानना ही पर्याप्त नहीं है अपितु उसमें रहना भी आवश्यक है। उनके शिक्षा-दर्शन में मानवता यथा अन्तर्राष्ट्रीयता दोनों ही पाये जाते हैं। उनका विचार है कि विश्व में मानव ही ईश्वर की श्रेष्ठ कृति है। हर व्यक्ति रचनात्मक एवं विद्वान् होना चाहिये। टैगोर मानव मात्र की एकता में विश्वास करते थे। उन्होंने कहा भी है, “मानव मात्र के उदाहरण में एकता अनुभव करनी चाहिए। जो संवेदनाओं में गहन हो, सत्ता में पहले की अपेक्षा शक्तिशाली हो।”

शिक्षा के उद्देश्य

[संकेत-इस शीर्षक का अध्ययन विस्तृत उत्तरीय प्रश्न सं० 1 के अन्तर्गत कीजिए।]

पाठ्यक्रम

रवीन्द्र ने अपने शिक्षा-दर्शन में ऐसा पाठ्यक्रम लिया है जो जीवन के सभी पक्षों का विकास करे। उन्होंने इतिहास, विज्ञान, प्रकृति अध्ययन, भूगोल, साहित्य आदि को पाठ्य विषय बनाया और नाटक, भ्रमण, बागवानी, क्षेत्रीय अध्ययन, प्रयोगशाला कार्य, ड्राइंग, मौलिक रचनाएँ, संग्रहालय आदि क्रियाओं के साथ लिया। खेलकूद, समाज सेवा आदि पर पर्याप्त बल दिया है।

शिक्षण विधि

टैगोर ने शिक्षण विधि में दण्ड व्यवस्था समाप्त की और पठन विधि के दबा देने वाली प्रथा को अन्त करके सहज स्वाभाविक रूप से क्रिया द्वारा सीखना, भ्रमण द्वारा, वाद-विवाद, प्रयोग विधि आदि को शिक्षण का माध्यम बनाया। रवीन्द्र शिक्षा-दर्शन का मूल्यांकन इस प्रकार किया जा सकता है

  1. रवीन्द्र शिक्षा-दर्शन का आधार प्रकृतिवादी है और उद्देश्य आदर्शवादी।
  2. मानव एकता में विश्वास करता है।
  3. जीवन के लिए शिक्षा की व्यवस्था है और शिक्षा का उद्देश्य है जीवन को पूर्णता प्रदान करना।
  4. सभी पूर्वाग्रहों से विमुक्ति।
  5. सांस्कृतिक विकास पर बल।
  6. पूर्व तथा पश्चिम का समन्वय।
  7. आदर्श पाठ्यक्रम का निर्माण एवं संचालन।
  8. जीवन पद्धति से मिलती-जुलती शिक्षण विधि।

आज रवीन्द्रनाथ टैगोर की संस्थाएँ विश्व शिक्षण पद्धति में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं। उनका शिक्षा के क्षेत्र में यह योगदान उनके काव्य की भाँति ही अपूर्व है। उनकी मृत्यु के समय कलकत्ता विश्वविद्यालय की सीनेट ने कहा था-“उनके द्वारा भारत ने मानव मात्र को, उनके साहित्य दर्शन, शिक्षा तथा कला के अध्ययन से संदेश दिया है। उनके द्वारा अमर कीर्ति प्राप्त की है और भारत के स्तर को। विश्व में ऊँचा उठाया है।

प्रश्न 3
विद्यालय के आधार पर रबीन्द्रनाथ टैगोर के शैक्षिक विचारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
मेरा विद्यालय (My School) निबन्ध में उन्होंने शान्ति निकेतन में स्थापित अपने विद्यालय के कार्यक्रम और उसकी योजना का वर्णन किया है। आश्रम में रहकर आवासी शिक्षा, प्रकृति में और प्रकृति के द्वारा शिक्षा की व्यवस्था और आध्यात्मिक शिक्षा के सम्बन्ध में उनके विचार इस निबन्ध में दुहराए गए हैं। उन्होंने बताया है कि स्कूल में आदर्श वातावरण का श्रेय ‘‘मेरे किसी नए शिक्षा सिद्धान्त को नहीं अपितु मेरे स्कूली दिनों की स्मृति को ही है।” टैगोर ने महले किसी सिद्धान्त का प्रचार करके उसके आधार पर विद्यालय की स्थापना नहीं की थी। उन्होंने अनुभव किया कि कुछ किया जाना आवश्यक है। उन्हें सूझा और इसको रूप दे दिया। उनका कहना था कि बच्चों को वास्तविक सुख, स्वतन्त्रता, स्नेह और सहानुभूति से अब और अधिक देर तक वंचित नहीं रखना चाहिए, शैशवकाल में शिशु को जीवन की पूरी बँट पिलानी चाहिए इसके लिए इसकी प्यास अनन्त है। शिशु के मन को इस विचार से पूरा भर देना चाहिए।

टैगोर ने अपने विद्यालय में निम्नलिखित तत्त्वों पर बल दिया

  1. विद्यालय प्राकृतिक वातावरण में स्थापित किया जाए।
  2. विद्यालय का संचालन प्राचीन तपोवनों की व्यवस्था पर किया जाए।
  3. विद्यालय में छात्रों को आध्यात्मिक मूल्यों का प्रशिक्षण दिया जाए।
  4. विद्यालय में प्रकृति तथा प्राकृतिक तत्त्वों के प्रति संवेदना की भावना का विकास किया जाए।
  5. विद्यालय में छात्रों के लिए स्वतन्त्रता का वातावरण प्रदान किया जाए।
  6. विद्यालय छात्रों में वातावरण के लिए जागरूकता का विकास करें।
  7. विद्यालय छात्रों को इस प्रकार के वातावरण में शिक्षित करे जो जीता-जागता हो तथा अध्यापक वे छात्र के परस्पर प्रभावी सम्पर्क पर आधारित हो।
  8. विद्यालय छात्रों को उनकी मातृभाषा में शिक्षण दे।
  9. प्रभावी आत्मीय छात्र-अध्यापक सम्पर्क के लिए आवश्यक है कि कक्षा में छात्रों की संख्या कम हो।
  10. विद्यालय में शारीरिक श्रम के लिए प्रावधान किया जाए।
  11. विद्यालय में समृद्ध पुस्तकालय हो।
  12. विद्यालय में कई शिल्पों (Crafts); जैसे–सिलाई, जिल्दसाजी, बुनाई तथा बढ़ईगीरी के सिखाने की व्यवस्था की जाए।
  13. विद्यालय में ड्राइंग, कला तथा संगीत को पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग बनाया जाए।
  14. विद्यालय में छात्रों के चुनाव के लिए अनेक पाठान्तर क्रियाओं की व्यवस्था की जाए।
  15. विद्यालय में किसी भी प्रकार से जाति तथा धर्म के आधार पर भेद-भाव न किया जाए।
  16. विद्यालय स्वशासित संस्था के आधार पर चलाया जाए जिसमें डेरी फार्म, डाकघर, अस्पताल तथा कार्यशाला हो।
  17. विद्यालय में छात्र स्वयं न्यायालय का संचालन करें।
  18. अध्यापक अपने व्यक्तित्व से छात्रों को प्रभावित करें।

प्रश्न 4
शिक्षा में अन्तर्राष्ट्रीय तथा प्रकृतिवाद पर टैगोर के विचार दीजिए।
उत्तर
शिक्षा में अन्तर्राष्ट्रीयता पर विचार

शिक्षा में अन्तर्राष्ट्रीयता पर टैगोर ने अपने विचार इस प्रकार प्रस्तुत किए –
टैगोर ने बालक के सामाजिक विकास पर भी यथेष्ठ बल दिया है। इनका कहना है कि बालक में सामाजिक गुणों का विकास करना शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है। अपने अन्दर सामाजिक गुणों को विकसित करके ही बालक अपनी स्वयं की और समाज की प्रगति में सहयोग कर सकता है। वे समाज और समाज-सेवा को उतना ही महत्त्वपूर्ण मानते हैं जितना व्यक्ति और व्यक्तित्व को। वे संकीर्ण राष्ट्रवाद की भावना के विरुद्ध हैं और अन्तर्राष्ट्रीय समाज के समर्थक हैं और संसार में एकता स्थापित करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि शिक्षा के द्वारा बालक में अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण को विकसित किया जाए और उसे अन्तर्राष्ट्रीय समाज के बन्धन में बाँधा जाए।

टैगोर के प्रकृतिवाद पर विचार

टैगोर के प्रकृतिवाद पर निम्नलिखित विचार हैं-
टैगोर ने अपने बाल्यकाल में प्रकृति के वास्तविक स्वरूप का दर्शन किया था और उसका इनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा था। इन्होंने लिखा है-“मेरे अन्तस में छिपी हुई एक अतीतकालीन स्मृति हृदय में एक ऐसी वेदना उत्पन्न करती थी कि ऐसी इच्छा होती थी कि एक बार पुन: मैं अपने शैशव में पहुँच जाऊँ और पुनः खेल के मैदान, वायु और जल में विचरण करूं-वे वृक्ष, मनुष्य तथा वृक्षों के शाश्वत सम्बन्ध का परिचय मुझे प्रदान करते थे। वे सौन्दर्यपूर्ण बल का निमन्त्रण देकर मेरे हृदय में सिहरन उत्पन्न करते थे। टैगोर का मत है कि प्रकृति सृष्टिकर्ता के दर्शन कराती है और प्रकृति के द्वारा ही विश्व में एकता को भाव उत्पन्न होता है। उनके शब्दों में-“बालक अपनी इच्छा एवं ताजी इन्द्रियों से प्रकृति के सम्पर्क में आते हैं। यह प्रकृति की प्रथम देन है। इसे स्वीकार कर प्रकृति से तात्कालिक सम्पर्क स्थापित करना चाहिए।”

टैगोर ने प्रकृति को महान शिक्षक और जीवित शिक्षक माना है। सीखने का सबसे अच्छा वातावरण प्रकृति में ही पाया जाता है। प्रकृति की शिक्षा में सामाजिक हित भी छिपा हुआ है। जिस प्रकार प्रकृति के प्रत्येक वृक्ष एक-दूसरे को बिना क्षति पहुँचाए अपना विकास करते हैं उसी प्रकार मानव समाज की प्रमुख इकाई मनुष्य भी सामाजिक हित को ध्यान में रखकर बिनी दूसरे के हितों को हानि पहुँचाए, अपना विकास कर सकता है। टैगोर का कहना है कि सजीव प्रकृति का अध्ययन करके बालक, किशोर, वयस्क, प्रौढ़ और वृद्ध सभी अपनी इच्छाओं की पूर्ति करते हैं। बालकों की कल्पना की पूर्ण अभिव्यक्ति । और किशोरों की जिज्ञासा व कल्पना की पूर्ति के प्रांगण में होती है, वयस्क प्रकृति से स्फूर्ति और प्रेरणा प्राप्त करते हैं, प्रौढ़ को सांस्कृतिक और आर्थिक पृष्ठभूमि मिलती है तथा वृद्ध को स्वास्थ्य, शान्ति एवं सन्तोष प्राप्त होता है और अन्त में, आध्यात्म की ओर प्रकृति ही ले जाती है। डॉ० राधाकृष्णन ने लिखा है-“इसमें आश्चर्य नहीं है कि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने प्रतिपादित किया कि प्रकृति आध्यात्मिक विकास का सर्वश्रेष्ठ साधन है क्योंकि प्रकृति में रहते हुए धार्मिक चक्षु, फैले तथा मुस्कराते हुए शान्त वातावरण में ईश्वर के दर्शन करेंगे।”

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
रबीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन-परिचय संक्षेप में लिखिए।
उत्तर
रबीन्द्रनाथ टैगोर भारतीय मनीषा के आकाश के एक देदीप्यमान नक्षत्र थे। मूलत: एक कवि और संगीतज्ञ होते हुए भी वे एक नाटककार, उपन्यासकार, कहानी लेखक, चित्रकार, अभिनेता, एक शिक्षाशास्त्री तथा उच्चकोटि के विचारक थे। उनका जन्म 6 मई, 1861 ई० को हुआ था। 17 वर्ष की आयु में उन्होंने एक कविता लिखकर अपनी अलौकिक प्रतिभा का परिचय दिया। 1878 ई० में उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड को प्रस्थान किया और वहाँ से 1880 ई० में ये स्वदेश लौटे। 1901 ई० में इन्होंने शान्ति निकेतन में एक विद्यालय स्थापित किया, जिसने आज विश्वभारती विश्वविद्यालय का रूप धारण कर लिया है। सन् 1913 में इन्होंने अपनी उत्कृष्ट साहित्यिक कृति ‘गीतांजलि’ पर नोबल पुरस्कार प्राप्त किया। सन् 1927 में इन्होंने ‘संध्या गीत’ नामक पुस्तक की रचना की। 17 अगस्त, 1941 में इनका स्वर्गवास हो गया। साहित्यकार के रूप में अपनी बहुमुखी प्रतिभा के कारण इन्होंने संगीत, कहानी, उपन्यास, नाटक, कविता आदि में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। ये न केवल एक साहित्यकार वरन् एक कर्मठ शिक्षाशास्त्री भी थे।

प्रश्न 2
सामान्य शिक्षा के लिए टैगोर द्वारा प्रतिपादित शिक्षण पद्धतियों का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
टैगोर ने तत्कालीन शिक्षण पद्धतियों का विरोध करके नवीन शिक्षण पद्धतियों का प्रतिपादन किया। ये शिक्षण पद्धतियाँ अग्रलिखित हैं

  1. स्व-प्रयास व स्व-चिन्तन की विधि-टैगोर का विचार है कि जो ज्ञान स्व-प्रयास एवं स्व-चिन्तन द्वारा प्राप्त किया जाता है, वही ज्ञान स्थायी रूप से बालों के मस्तिष्क में रह सकता है।
  2. क्रिया द्वारा सीखना टैगोर के अनुसार शिक्षा की प्रक्रिया में बालक को अधिक-से-अधिक क्रियाशील रखने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए उन्होंने विद्यालय में किसी हस्तकार्य या दस्तकारी को आवश्यक बताया।
  3. भ्रमण द्वारा शिक्षा-टैगोर का मत था कि भ्रमण के समय पढ़ाना शिक्षण की सर्वोत्तम विधि है। भ्रमण के समय बालक की मानसिक शक्तियाँ जागरूक रहती हैं, जिसके परिणामस्वरूप बालक प्रत्यक्ष की जाने वाली बातों को सरलता से समझ लेते हैं।
  4. वाद-विवाद तथा प्रश्नोत्तर विधि-टैगोर ने पुस्तकीय शिक्षा का विरोध करके वाद-विवाद तथा प्रश्नोत्तर विधि को महत्त्वपूर्ण बताया है। इससे बालक दैनिक जीवन की समस्याओं पर विचार-विमर्श कर सकते हैं।
  5. प्रयोग विधि-टैगोर ने क्रियात्मक विषयों और विद्वानों के लिए इस विधि को आवश्यक बताया है, क्योंकि इन विषयों का ज्ञान प्रयोग के बिना सम्भव नहीं है।

प्रश्न 3
गुरुदेव टैगोर के शैक्षिक योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
टैगोर ने शिक्षा के क्षेत्र में निम्नलिखित योगदान दिया है

  1. जीवन को पूर्णता प्रदान करना-टैगोर ने शिक्षा के द्वारा जीवन को पूर्णता प्रदान करने का प्रयास किया। उन्होंने व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, भावात्मक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक विकास पर बल दिया, जिससे व्यक्ति का सम्पूर्ण रूप से विकास हो सके।
  2. शिक्षा को उपयोगी और व्यावहारिक बनाना-टैगोर ने अपनी शिक्षा-व्यवस्था में उपयोगिता, तार्किकता तथा व्यावहारिकता का समावेश किया। उन्होंने राजनीतिक, आर्थिक, शारीरिक, सौन्दर्यात्मक, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय आदि सभी प्रकार के सुन्दरतम उपयोगी सिद्धान्तों का प्रयोग किया और ‘विश्वभारती’, नामक संस्था स्थापित करके उन्हें क्रियात्मक रूप दिया।
  3. सौन्दर्य बोध की शिक्षा-टैगोर ने सौन्दर्य बोध कराने के लिए भारतीय कलाओं को पुनर्जीवित किया और पाश्चात्य कला तत्त्व को भी स्वीकार किया।
  4. राष्ट्रीय शिक्षा का समर्थन-टैगोर ने अपनी शिक्षा-व्यवस्था में राष्ट्रीय शिक्षा को भी स्वीकार किया है। उनका मत था कि अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना रखते हुए हम राष्ट्रीयता की भावना का पूर्ण विकास करें।
  5. भारतीय तथा पाश्चात्य शिक्षा-प्रणालियों का समन्वय–टैगोर ने विश्वभारती के रूप में भारतीय तथा पाश्चात्य शिक्षा-प्रणालियों का अपूर्व समन्वय प्रस्तुत किया है, जिसके स्वरूप से प्रभावित होकर उसी के आदर्श पर अनेक शिक्षा संस्थाओं का निर्माण हुआ।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
टैगोर के शिक्षा में अनुशासन सम्बन्धी विचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
टैगोर बाह्य अनुशासन तथा दमनात्मक अनुशासन का विरोध करते थे और आत्म-अनुशासन तथा आन्तरिक अनुशासन को स्वाभाविक मानते थे। उनका मत था कि जब बालकों की स्वतन्त्र क्रिया में बाधा पहुँचती है, तभी वे अनुशासनहीनता से कार्य करते हैं। टैगोर के अनुसार, “वास्तविक अनुशासन का अर्थ है, अपरिपक्व एवं स्वाभाविक आवेगों की अनुचित उत्तेजना और अनुचित दिशाओं में विकास से सुरक्षा। स्वाभाविक अनुशासन की इस स्थिति में रहना छोटे बालकों के लिए सुखदायक है। यह उनके पूर्ण विकास में सहायक होता है।”

प्रश्न 2
टैगोर के शिक्षा के पाठ्यक्रम सम्बन्धी विचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
टैगोर ने भारतीय विद्यालयों के तत्कालीन पाठ्यक्रम को दोषपूर्ण क्ताया और एक व्यापक पाठ्यक्रम बनाने का सुझाव दिया। उनका मत था कि पाठ्यक्रम इतना व्यापक होना चाहिए कि वह बालक के सभी पक्षों का विकास कर सके। इस दृष्टि से उन्होंने पाठ्यक्रम के अन्य विषयों के साथ-साथ क्रियाओं को भी स्थान दिया। उनका विश्वभौरती का पाठ्यक्रम क्रिया-प्रधान पाठ्यक्रम था। विश्वभारव्री के पाठ्यक्रम में आज भी इतिहास, भूगोल, विज्ञान, साहित्य, प्रकृति अध्ययन आदि विषयों के साथ विभिन्न क्रियाओं; जैसे-अभिनय, नृत्य, संगीत, भ्रमण, बागवानी, समाज-सेवा आदि विषय सम्मिलित

प्रश्न 3
स्त्री-शिक्षा के विषय में टैगोर के विचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
अन्य सभी आधुनिक शिक्षा-विचारकों के ही समान टैगोर भी स्त्री-शिक्षा के प्रबल समर्थक थे। उनके अनुसार स्त्री-पुरुष हर प्रकार से समान हैं। अत: स्त्रियाँ भी उन सभी विषयों की शिक्षा प्राप्त कर सकती हैं जिनकी शिक्षा पुरुष प्राप्त करते हैं। यही कारण है कि टैगोर बालिकाओं के लिए अलग से पाठ्यक्रम के निर्धारण के पक्ष में नहीं थे परन्तु उनके अनुसार बालिकाओं के लिए गृह-विज्ञान का अध्ययन अनिवार्य होना चाहिए। टैगोर सैद्धान्तिक रूप से सह-शिक्षा के समर्थक थे।

प्रश्न 4
धार्मिक शिक्षा के विषय में टैगोर के विचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
टैगोर किसी एक धर्म की शिक्षा देने के विरोधी थे, क्योंकि वह धर्म को साम्प्रदायिकता और अन्धविश्वास से दूर रखना चाहते थे। उनका विचार था कि प्रकृति और मानवीय भावना ही हमारे पूजा-स्थल हैं और स्वार्थरहित अच्छे कार्य ही हमारी वास्तविक पूजा है। इसलिए विश्व धर्म की स्थापना करके मानव कल्याण में विश्वास रखना चाहिए। स्पष्ट है कि टैगोर संकीर्ण धार्मिक शिक्षा के विरुद्धःथे परन्तु व्यापक दृष्टिकोण से उन्होंने इसका समर्थन किया है।

प्रश्न 5
टैगोर के ‘जन-शिक्षा सम्बन्धी विचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
भारतीयों की निरक्षरता से दु:खी होकर टैगोर ने जन-शिक्षा का विचार प्रस्तुत किया। वे चाहते थे कि सभी बालकों के लिए प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य और नि:शुल्क कर दी जाए। इसके साथ-ही-साथ प्रौढ़ों को भी जीवनोपयोगी ज्ञान की शिक्षा दी जानी चाहिए, जिससे वे प्राचीन रूढ़ियों व अन्धविश्वासों से मुक्त होकर अपना स्वतन्त्र विकास कर सकें।

प्रश्न 6
ग्रामीण शिक्षा के विषय में टैगोर के विचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
टैगोर ने ग्रामीण शिक्षा पर भी विशेष बल दिया, क्योंकि भारत की ग्रामीण जनता अशिक्षित है। ग्रामीण शिक्षा के अन्तर्गत उन्होंने कीर्तन, भजन, हरिसभा, धर्म-चर्चा, लोकगीत आदि व्यवस्था पर बल दिया। इसके साथ-ही-साथ इसमें ग्रामीण उद्योगों, सफाई, कृषि एवं उपयोगी व्यवसायों को भी सम्मिलित करने का सुझाव दिया। उनके अनुसार ग्रामीण जनता शिक्षित होकर ही जीवन में प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकती है।

प्रश्न 7
टैगोर के अनुसार राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
टैगोर ने राष्ट्रीय शिक्षा का समर्थन करते हुए कहा कि शिक्षा प्रक्रिया में प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं राष्ट्रीयता की परम्पराओं को सम्मिलित करना चाहिए। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे राष्ट्रीयता के तत्त्वों का विकास हो सके। इसके साथ ही टैगोर ने विश्वबन्धुत्व को सन्देश दिया है और विश्व-शान्ति के लिए सभी को सहयोग से रहना आवश्यक बताया है। इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को ऐसी शिक्षा देनी चाहिए, जिसके द्वारा अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न हो।

प्रश्न 8
एक शिक्षाशास्त्री के रूप में टैगोर का तटस्थ मूल्यांकन प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
वास्तव में टैगोर एक युग-प्रवर्तक शिक्षाशास्त्री थे। उनकी मौलिक दूरदर्शिता से भारतीय शिक्षा को एक नयी दिशा मिली। डॉ० एच०वी० मुकर्जी के अनुसार, “टैगोर के शिक्षा सम्बन्धी विचार एवं प्रयोग बिल्कुल नवीन एवं मौलिक जान पड़ते हैं। यद्यपि उनमें से अधिकांश को प्राचीन समय के शिक्षाशास्त्रियों ने किसी-न-किसी रूप में विकसित कर लिया था और तत्कालीन शिक्षाशास्त्री कम या अधिक मात्रा में उनका प्रयोग कर रहे थे, किन्तु महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बीसवीं शताब्दी के प्रथम भाग के भारतीय शिक्षाशास्त्रियों में टैगोर का स्थान सर्वश्रेष्ठ है। वे आधुनिक भारत में शैक्षिक पुनरुत्थान के सबसे बड़े पैगम्बर थे।”

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न1
आधुनिक शिक्षाशास्त्री रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म कब हुआ थोर उनके पिता का क्या नाम था?
उत्तर
आधुनिक शिक्षाशास्त्री रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 6 मई, 1861 में हुआ था। उनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर था।

प्रश्न 2
टैगोर मूल रूप से क्या थे?
उत्तर
टैगोर मूल रूप से कवि एवं साहित्यकार थे।

प्रश्न 3
टैगोर को किस अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया था?
उत्तर
टैगोर को नोबेल पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया था।

प्रश्न 4
टैगोर को नोबेल पुरस्कार उनकी किस पुस्तक पर प्रदान किया गया था?
उत्तर
टैगोर को ‘गीतांजलि’ नामक पुस्तक पर नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था।

प्रश्न 5
टैगोर किस प्रकार के अनुशासन के विरुद्ध थे तथा किस प्रकार के अनुशासन के समर्थक थे?
उत्तर
टैगोर दमनात्मक अनुशासन के विरुद्ध थे तथा आत्मानुशासन के समर्थक थे।

प्रश्न 6
टैगोर द्वारा स्थापित अति प्रसिद्ध शिक्षण संस्था का नाम क्या है?
उत्तर
टैगोर द्वारा स्थापित अति प्रसिद्ध शिक्षण संस्था का नाम है–विश्वभारती।

प्रश्न 7
विश्वभारती संस्था के जन्मदाता कौन थे ?
उत्तर
विश्वभारती नामक संस्था के जन्मदाता रबीन्द्रनाथ टैगोर थे।

प्रश्न 8
विश्वभारती में किस स्तर की शिक्षा दी जाती है?
उत्तर
विश्वभारती में विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा दी जाती है।

प्रश्न 9
टैगोर द्वारा दिया गया मानवतावादी नारा क्या है?
उत्तर
टैगोर द्वारा दिया गया मानवतावादी नारा है-वसुधैव कुटुम्बकम्।

प्रश्न 10
रबीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘सर’ की उपाधि ब्रिटिश सरकार को क्यों लौटा दी थी?
उत्तर
रबीन्द्रनाथ टैगोर ब्रिटिश सरकार द्वारा की गयी जलियाँवाला बाग की दुर्घटना से अत्यधिक दु:खी थे। अत: उन्होंने अपना रोष प्रकट करने के लिए ‘सर’ की उपाधि ब्रिटिश सरकार को लौटा दी थी।

प्रश्न 11
कौन-सा भारतीय विश्वविद्यालय पूरब और पश्चिम के बीच जीवित सम्बन्धों की खोज और पारस्परिक सांस्कृतिक सौहार्द तथा विवेक को प्रोत्साहन देता है?
उत्तर
विश्वभारती विश्वविद्यालय।

प्रश्न 12
शिक्षा के व्यावसायिक उद्देश्य का तात्पर्य बताइए।
उत्तर
टैगोर के अनुसार, शिक्षा का व्यावसायिक उद्देश्य शिक्षार्थी को आत्मनिर्भर बनाना है जिससे वह अपनी जीविका स्वयं अर्जित कर सके तथा अपने परिवार का जीवन-यापन भी कर सके।

प्रश्न 13
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य

  1. टैगोर शिक्षा के क्षेत्र में स्वतन्त्रता के समर्थक थे।
  2. टैगोर ने ढाका विश्वविद्यालय की स्थापना की थी।
  3. टैगोर शिक्षा में ललित कलाओं को सम्मिलित करने के विरुद्ध थे।
  4. टैगोर क्रिया और स्व-प्रयास द्वारा शिक्षा प्राप्त करने को प्राथमिकता देते थे।
  5. टैगोर स्त्री-शिक्षा को आवश्यक नहीं मानते थे।
  6. टैगोर शिक्षा के क्षेत्र में कठोर अनुशासन के पक्ष में थे।

उत्तर

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. असत्य
  4. असत्य
  5. असत्य

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए-

प्रश्न 1
रबीन्द्रनाथ का शिक्षा-दर्शन किस विचारधारा से प्रभावित है?
(क) आदर्शवाद
(ख) प्रकृतिवाद
(ग) प्रयोजनवाद
(घ) व्यवहारवाद
उत्तर
(ख) प्रकृतिवाद

प्रश्न 2
शिक्षण की किस विधि को टैगोर उचित मानते थे?
(क) क्रिया द्वारा शिक्षण
(ख) भ्रमण द्वारा शिक्षण
(ग) स्व-प्रयास द्वारा शिक्षण
(घ) ये सभी
उत्तर
(घ) ये सभी

प्रश्न 3
शान्ति निकेतन का वर्तमान नाम है
(क) विश्वभारती
(ख) शान्ति विद्यापीठ
(ग) टैगोर विश्वविद्यालय
(घ) केन्द्रीय विश्वविद्यालय
उत्तर
(क) विश्वभारती

प्रश्न 4
रबीन्द्रनाथ टैगोर ने किस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी?
(क) कलकत्ता विश्वविद्यालय
(ख) विश्वभारती विश्वविद्यालय
(ग) दिल्ली विश्वविद्यालय
(घ) बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय
उत्तर
(ख) विश्वभारती विश्वविद्यालय

प्रश्न 5
“सर्वोत्तम शिक्षा वह है, जो हमारे जीवन का समस्त सृष्टि से सामंजस्य स्थापित करती है।” यह शैक्षिक मान्यता किसकी है?
(क) महात्मा गाँधी,
(ख) श्री अरविन्द
(ग) डॉ० राधाकृष्णन्
(घ) रबीन्द्रनाथ टैगोर
उत्तर
(घ) रबीन्द्रनाथ टैगोर

प्रश्न 6
टैगोर द्वारा स्थापित संस्था का नाम है
(क) शान्ति निकेतन
(ख) बाल निकेतन
(ग) शिक्षा निकेतन
(घ) शिशु निकेतन
उत्तर
(क) शान्ति निकेतन

प्रश्न 7
शान्ति निकेतन की स्थापना किसने की ?
(क) मालवीय ने
(ख) टैगोर ने
(ग) गांधी जी ने
(घ) एनी बेसेण्ट ने
उत्तर
(ख) टैगोर ने

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UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 22 Economic Development and Telecommunication System

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 22 Economic Development and Telecommunication System (आर्थिक विकास एवं दूरसंचार व्यवस्था) are part of UP Board Solutions for Class 12 Economics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 22 Economic Development and Telecommunication System (आर्थिक विकास एवं दूरसंचार व्यवस्था).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 22
Chapter Name Economic Development and Telecommunication System (आर्थिक विकास एवं दूरसंचार व्यवस्था)
Number of Questions Solved 51
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 22 Economic Development and Telecommunication System (आर्थिक विकास एवं दूरसंचार व्यवस्था)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान कार्यक्रम पर एक लेख लिखिए। [2007, 08, 11]
उत्तर:
स्वतन्त्रता के समय भारत अन्तरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में बहुत ही पिछड़ी दशा में था। सत्तर के दशक के आरम्भ में भारत में अन्तरिक्ष कार्यक्रम को बढ़ावा दिया गया। आज भारत अन्तरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में विश्व के विकसित राष्ट्रों में एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना चुका है।

आर्थिक विकास एवं दूरसंचार व्यवस्था
अपने वास्तविक रूप में भारत का अन्तरिक्ष युग में प्रवेश 19 अप्रैल, 1975 ई० को हुआ जब बियर्स लेक के समीप स्थित सोवियत कॉस्मॉड्रोम से सोवियत रॉकेट इण्टर कॉस्मॉस के माध्यम से स्वदेशी तकनीकी से निर्मित प्रथम उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ सफलतापूर्वक अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया, लेकिन इसकी आधारभूमि तैयार करने में लगभग 27 वर्षों को समय लग गया। 1948 ई० में ही डॉ० विक्रम अम्बालाल साराभाई द्वारा अहमदाबाद में भौतिक अनुसन्धान प्रयोगशाला (PRIL) की स्थापना की गयी थी। यही प्रयोगशाला भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रमों की वास्तविक जननी है और आज भी इसका महत्त्व पूर्ववत् है। 1962 ई० में भारत सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा बाह्य अन्तरिक्ष के शान्तिपूर्ण उपयोग के लिए भारतीय राष्ट्रीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान समिति’ (INCOSPAR) का गठन किया गया और इसके एक वर्ष बाद ही केरल में तिरुवनन्तपुरम् के समीप थुम्बा में साउण्डिग रॉकेट प्रक्षेषण सुविधा केन्द्र की स्थापना की गयी। इसके साथ ही भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम का शुभारम्भ अपने वास्तविक स्वरूप में प्रारम्भ हुआ।

इसी वर्ष अक्टूबर में भारत सरकार द्वारा डॉ० साराभाई के निर्देशन में अन्तरिक्ष गतिविधियों का प्रशासनिक कार्यभार भौतिक अनुसन्धान प्रयोगशाला को सौंप दिया गया। इसके बाद 1969 ई० में इस दिशा में तब एक क्रान्ति का शुभारम्भ हुआ जब बंगलौर (बंगलुरु) में भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन’-इसरो (ISRO) का गठन किया गया। 1972 ई० में स्वतन्त्र रूप से ‘अन्तरिक्ष विभाग’ (DOS) एवं इसके सहयोग से भारत सरकार द्वारा अन्तरिक्ष आयोग की स्थापना की गयी। यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि अन्तरिक्ष कार्यक्रमों को संचालित करने की सम्पूर्ण उत्तरदायित्व अन्तरिक्ष विभाग का है, जबकि अन्तरिक्ष आयोग इसके अधीन इसके अनुसन्धान एवं विकास संगठन के रूप में कार्य करता है।

भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम की 1948 से 1972 ई० तक की यात्रा में गति प्रदान करने में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान डॉ० विक्रम साराभाई का है। यह इनकी दूरदृष्टि का ही परिणाम था कि 20 नवम्बर, 1967 ई० को ही भारत ने मात्र 75 मिमी व्यास वाले अपने प्रथम रॉकेट ‘रोहिणी-75′ का प्रक्षेपण करके अन्तरिक्ष सम्बन्धी प्रयोगों की दुनिया में प्रवेश कर लिया। 29 दिसम्बर, 1971 ई० को डॉ० साराभाई का देहान्त हो गया, किन्तु उनकी महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी सलाह पर अमल करते हुए भारत ने 10 मई, 1972 ई० को सोवियत संघ के साथ समझौता किया, जिसके अनुसार सोवियत संघ भारत में निर्मित उपग्रहों को अपने प्रक्षेपण यान से अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित करने पर सहमत हो गया।

भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम का मूल एवं सबसे प्रमुख उद्देश्य संचार, मौसम एवं संसाधनों के सर्वेक्षण एवं प्रबन्धन के क्षेत्र में अन्तरिक्ष कार्यक्रमों पर आधारित सेवाएँ उपलब्ध कराना, अन्तरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को भू-उपग्रहों के माध्यम से जनसंचार एवं शिक्षा में प्रयोग करना और अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है। इन मूलभूत उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपग्रहों, प्रक्षेपण यानों एवं इनसे सम्बन्धित आधारभूत प्रणालियाँ विकसित करने के साथ ही इस सम्पूर्ण कार्यक्रम के माध्यम से उद्योगों को प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित सलाह प्रदान करने का भी प्रावधान किया गया है।

भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रमों के अन्तर्गत खगोल विज्ञान, ग्रहीय वायुमण्डल, सम्बन्धित अन्तरिक्ष भौतिकी, सौरमण्डलीय प्रणालियों, पृथ्वी से सम्बन्धित वैज्ञानिक जानकारियों एवं सैद्धान्तिक भौतिकी में प्रमुखता से अनुसन्धान कार्य किये जा रहे हैं और इनकी सम्पन्नती की जिम्मेदारी का वहन (इसरो’ के माध्यम से अन्तरिक्ष विभाग द्वारा किया जाता है। इन दोनों के ही मुख्यालय बंगलुरु में स्थित हैं और ये दोनों ही 4 केन्द्रों – अन्तरिक्ष उपयोग केन्द्र (SAC) अहमदाबाद, ‘इसरो’ उपग्रह केन्द्र (ISAC) बंगलुरु, विक्रम साराभाई अन्तरिक्ष केन्द्र (VSSC) तिरुवनन्तपुरम् तथा शार केन्द्र (SHAR Centre) श्रीहरिकोटा-को तकनीकी, वैज्ञानिक एवं प्रशासनिक कार्यों का निर्देशन प्रदान करते हैं।

स्वदेशी तकनीक से निर्मित प्रथम रॉकेट ‘रोहिणी-75′ का थुम्बा से सफल प्रक्षेपण करके भारत ने अन्तरिक्ष युग में प्रवेश कर लिया था, किन्तु यह रॉकेट अमेरिकी कल-पुर्जा का एक संयोजन था। इसके बाद 1975 ई० में सोवियत संघ के सहयोग से देश का प्रथम उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया जो कि अल्प समय में ही निष्क्रिय हो गया। इसके बाद ‘भास्कर’ श्रृंखला, आई० आर०एस० श्रृंखला, रोहिणी श्रृंखला, इन्सेट-1 तथा इन्सेट-2 श्रृंखलाएँ, विस्तृत रोहिणी उपग्रह श्रृंखला ‘स्रोस तक पहुँचते हुए भारत ने अपने अन्तरिक्ष कार्यक्रमों के जरिये विश्व में एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया है। अब तो उपग्रह एवं उनको प्रक्षेपित करने वाले रॉकेटों के निर्माण में पूर्णतः स्वदेश में निर्मित कल-पुर्जा एवं तकनीकी का प्रयोग किया जाने लगा है। यह ध्यान देने योग्य है कि जहाँ भारतीय, राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इन्सेट) की पहली पीढ़ी के सभी उपग्रह विदेशी डिजाइन एवं तकनीकी पर आधारित थे, वहीं उसकी दूसरी पीढ़ी के उपग्रहों की डिजाइन एवं उनको निर्माण पूर्णतः स्वदेशी तकनीक से किया जा रहा है।

अपने अन्तरिक्ष कार्यक्रमों के अन्तर्गत भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो’ इस समय इस दिशा में भी प्रयत्नशील है कि संचार के साथ-साथ अपने उपग्रहों के माध्यम से दूरदराज के क्षेत्रों के विद्यार्थियों को दूरदर्शन द्वारा समुचित शिक्षा प्रदान करायी जाए और इसके लिए एक ‘ग्रामसेट उपग्रह विकास की प्रक्रिया में है। इस दिशा में देश के 6 जिलों में प्रयोग के तौर पर आई०आर०एस० 1-ए तथा 1-बी के माध्यम से इण्टीग्रेटेड मिशन फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेण्ट (IMSD) कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है।

उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि अन्तरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में भारत के कदम भारत के आर्थिक विकास तथा भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए बड़े कारगर सिद्ध होंगे।

प्रश्न 2
अन्तरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में भारत द्वारा प्राप्त की गयी उपलब्धियों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
अन्तरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्रों में भारत द्वारा प्राप्त की गयी उपलब्धियों का विवरण निम्नवत् है

  1. 1962 ई० में डॉ० विक्रम अम्बालाल साराभाई की अध्यक्षता में अन्तरिक्ष अनुसन्धान की भारतीय राष्ट्रीय समिति का गठन किया गया।
  2. 1964 ई० में डॉ० विक्रम साराभाई के नेतृत्व में भारत द्वारा फ्रांस से किये गये करार के अनुसार सेन्तोर नामक दो खण्डों वाले रॉकेटों के विकास का मार्ग प्रशस्त किया गया।
  3. 1965-66 ई० में अन्तरिक्ष अनुसन्धान की भारतीय राष्ट्रीय समिति के तत्त्वावधान में प्रयोगात्मक उपग्रह संचार भू-केन्द्र की स्थापना की गयी।
  4. 20 नवम्बर, 1967 ई० को 75 मिलीमीटर व्यास वाले अपने प्रथम रॉकेट ‘रोहिणी-75′ का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  5. 1969 ई० में अन्तरिक्ष अनुसन्धान की भारतीय राष्ट्रीय समिति का पुनर्गठन कर भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन का गठन किया गया।
  6. 1972 ई० में अन्तरिक्ष आयोग की स्थापना की गयी और भारत सरकार के अन्तरिक्ष विभाग का गठन किया गया।
  7. 19 अप्रैल, 1975 ई० को सोवियत कॉस्मॉड्रोम से इण्टरकॉस्मॉस रॉकेट द्वारा आर्यभट्ट नामक वैज्ञानिक प्रयोगात्मक उपग्रह का सफल प्रक्षेपण हुआ।
  8. 7 जून, 1979 ई० को सोवियत अन्तरिक्ष केन्द्र से भू-सर्वेक्षण उपग्रह ‘भास्कर-1′ का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  9. 18 जुलाई, 1980 ई० को श्रीहरिकोटा से भारतीय रॉकेट एस०एल०वी०-3 की सहायता से उपग्रह रोहिणी-1 का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  10. 31 मई, 1981 ई० एस०एल०वी०-3 की सहायता से उपग्रह रोहिणी आर०एस०डी० का प्रक्षेपण किया गया, किन्तु सप्ताह-भर बाद ही यह उपग्रह गिरकर नष्ट हो गया।
  11. 19 जून, 1981 ई० को यूरोपीय अन्तरिक्ष एजेन्सी के एरियान रॉकेट द्वारा कोरू से प्रायोगिक दूरसंचार उपग्रह ‘एपल’ को प्रक्षेपित कर अन्तरिक्ष में स्थापित किया गया।
  12. 20 नवम्बर, 1981 ई० को सोवियत अन्तरिक्ष केन्द्र से भास्कर-2 का सफल प्रक्षेपण हुआ।
  13. 10 अप्रैल, 1982 ई० को भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह श्रृंखला के प्रथम उपग्रह इन्सेट-1 ए की केप कैनवेरेल अन्तरिक्ष केन्द्र अमेरिका से डेल्टा रॉकेट द्वारा सफल प्रक्षेपण किया गया, किन्तु पाँच माह सक्रिय रहने के पश्चात् 8 सितम्बर, 1982 को नष्ट हो गया।
  14. 17 अप्रैल, 1983 ई० को भारतीय रॉकेट एस०एल०वी०-3 की चौथी एवं अन्तिम उड़ान हुई। इसके द्वारा रोहिणी-आर०एस०डी०-2 का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  15. 30 अगस्त, 1983 ई० को अमेरिकी शटल यान चैलेन्जर ने इन्सेट-1 बी को वांछित कक्षा में स्थापित किया। वर्ष 1990 तक कार्यकारी अवधि के डेढ़ वर्ष बाद भी यह कार्यशील रहा है।
  16. 3-11 अप्रैल, 1984 ई० की अवधि में सोवियत कॉस्मॉनोट मैलिशेव एवं गेन्नाडी स्त्रेकालेव के साथ भारत के प्रथम अन्तरिक्ष यात्री स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा सोयूज टी-11 द्वारा अन्तरिक्ष को रवाना हुए। 4 अप्रैल को सोयूज-टी-11 अन्तरिक्ष में पूर्व स्थापित सोवियत अन्तरिक्ष प्रयोगशाला सैत्यूत-7, से जुड़ा। सैत्यूत-7 में रहकर इन अन्तरिक्ष यात्रियों ने कई वैज्ञानिक परीक्षण किये। 11 अप्रैल को इन अन्तरिक्ष यात्रियों की पृथ्वी पर सकुशल वापसी हुई।
  17. 24 मार्च, 1987 ई० को श्रीहरिकोटा से देश के संवर्धित उपग्रह प्रमोचक यान ए०एस० एल०वी०डी०-1 की पहली उड़ान हुई। प्रक्षेपण के 163 सेकण्ड बाद ही ए०एस०एल०वी०डी०-1 बुरी तरह असफल हो गया।
  18. 17 मार्च, 1988 ई० को सोवियत अन्तरिक्ष केन्द्र से वोस्तोक रॉकेट द्वारा भारतीय दूर-संवेदन उपग्रह आई०आर०एस०-1 ए का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  19. 13 जुलाई, 1988 ई० को श्रीहरिकोटा से ए०एस०एल०वी०डी०-2 की दूसरी असफल उड़ान हुई। प्रक्षेपण के 140 सेकण्ड पश्चात् ए०एस०एल०वी०डी०-2 भी नष्ट हो गया।
  20. 22 जुलाई, 1988 ई० को कोरू (फ्रेंच गुयाना) से यूरोपीय अन्तरिक्ष एजेन्सी के एरियान रॉकेट द्वारा इन्सेट-1 सी का प्रक्षेपण किया गया। सौर पैनेल न खुलने के कारण उपग्रह की कार्यक्षमता केवल 50% रह गयी। 25 नवम्बर, 1988 ई० को इन्सेट-1 सी को पृथ्वी से सम्पर्क टूट गया।
  21. 21 अक्टूबर, 1989 ई० को पी०एस०एल०वी० के प्रथम चरण के बूस्टर मोटर की सफल जाँच की गयी।
  22. 21 मार्च, 1990 ई० को पी०एस०एल०वी० के दूसरे चरण के बैटिलशीप खण्ड की सफल जॉच पूरी हुई।
  23. 12 जून, 1990 ई० को केप कैनवेरेल अन्तरिक्ष केन्द्र से डेल्टा रॉकेट की मदद से इन्सेट-1 डी का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  24. 29 अगस्त, 1991 ई० को सोवियत रॉकेट की मदद से आई०आर०एस०-1 बी का सफल प्रक्षेपण हुआ।
  25. 20 मई, 1992 ई० को श्रीहरिकोटा से ए०एस०एल०वी० (रोहिणी) की तीसरी उड़ान हुई। यह मिशन ए०एस०एल०वी०डी०-2 पूर्णतया सफल रहा।
  26. 10 जुलाई, 1992 ई० को इन्सेट श्रृंखला की दूसरी पीढ़ी की शुरुआत की गयी। केप कैनवेरेल से डेल्टा रॉकेट की सहायता से इन्सेट-2 ए का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण हुआ।
  27. 23 जुलाई, 1993 ई० को कोरू (फ्रेंच गुयाना) से यूरोपीय अन्तरिक्ष एजेन्सी के रॉकेट एरियान-4 की मदद से इन्सेट-2 बी का सफल प्रक्षेपण हुआ।
  28. 20 सितम्बर, 1993 ई० को श्रीहरिकोटा से देश के ध्रुवीय रॉकेट ने पहली उड़ान भरी। पी० एस०एल०वी०डी०-1 उड़ान के कुछ सेकण्ड बाद ही नष्ट हो गया। यह मिशन असफल रहा।
  29. 4 मई, 1994 ई० को श्रीहरिकोटा से ए०एस०एल०वी० ने चौथी उड़ान भरी। इस मिशन (ए०एस०एल०वी०) को सफल माना गया।
  30. 15 अक्टूबर, 1994 ई० को श्रीहरिकोटा से पी०एस०एल०वी० ने सफल उड़ान भरी। यह मिशन पी०एस०एल०वी०डी०-2 पूर्णतः सफल रहा। इसके द्वारा सुदूर संवेदन उपग्रह आई०आर०एस०-1 बीको अन्तरिक्ष में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया।
  31. 7 दिसम्बर, 1995 ई० को कोरू (फ्रेंच गुयाना) से यूरोपीय अन्तरिक्ष एजेन्सी के रॉकेट एरियान की मदद से बहुउद्देश्यीय उपग्रह इन्सेट-2 सी का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  32. 28 दिसम्बर, 1995 ई० को कजाकिस्तान स्थित बैंकानूर प्रक्षेपण स्थल से मोलनिया रॉकेट की सहायता से सुदूर संवेदी उपग्रह आई०आर०एस०-1 सी का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  33. 21 मार्च, 1996 ई० को स्वदेशी तकनीक से निर्मित ध्रुवीय प्रक्षेपण यान पी०एस०एल० वी०डी०-3 की मदद से सुदूर संवेदी उपग्रह आई०आर०एस०पी०-3 का श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण स्थल से सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया।
  34. 4 जून, 1997 ई० को स्वेदशी तकनीक से निर्मित बहुउद्देशीय संचार उपग्रह इन्सेट-2 डी को फ्रेंच गुयाना स्थित कोरू प्रक्षेपण स्थल से एरियान प्रक्षेपण वाहन की 97वीं उड़ान से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया।
  35. 29 सितम्बर, 1997 ई० को श्रीहरिकोटा से पी०एस०एल०वी०-1 सी ने सफल उड़ान भरी। इसके द्वारा सुदूर संवेदी उपग्रह आई०आर०एस०डी०-1 डी को पृथ्वी की निचली ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया गया।
  36. 3 अप्रैल, 1999 ई० को फ्रेंच गुयाना के कोर अन्तरिक्ष केन्द्र से इन्सेट-2 श्रृंखला के अन्तिम तथा पहले व्यावसायिक दूरसंचार सेवाओं के विश्व बाजार में प्रवेश किया।
  37. 26 मई, 1999 ई० को श्रीहरिकोटा से पी०एस०एल०वी० सी०-2 द्वारा तीन उपग्रहों, भारत के आई०आर०एस०पी०-सी० 4 (ओशनसेट), दक्षिण कोरिया के ‘किटसेट’ और जर्मनी के ‘टबसेट’, को पोलर सन सिनक्रोनस कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित करने के साथ ही अन्तरिक्ष में व्यावसायिक प्रक्षेपण के क्षेत्र में भारत का प्रवेश।
  38. 22 मार्च, 2000 ई० को फ्रेंच गुयाना के कोरू प्रक्षेपण केन्द्र से नवीनतम रॉकेट एरियान-5 द्वारा इन्सेट-3 श्रृंखला के पहले उपग्रह इन्सेट-3 बी का सफल प्रक्षेपण किया गया।
  39. 5 नवम्बर, 2000 ई० को इन्सेट-2 श्रेणी के भारत के दूसरे बहु-उद्देशीय उपग्रह इन्सेट-2 बी की ‘अर्थ-लॉक’ भंग हो जाने के कारण वाणिज्यिक सेवाएँ समाप्त घोषित कर दी गयीं।
  40. 28 मार्च, 2001 ई० को भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) द्वारा भारत के प्रथम भू-स्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जी०एस०एल०वी०) को प्रक्षेपित करने का प्रयास असफल हुआ।
  41. 18 अप्रैल, 2001 ई० को भारत के प्रथम भू-स्थेतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जी०एस० एल०वी०डी०-1) का श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया।
  42. 28 सितम्बर, 2003 ई० रविवार प्रात: 4 बजकर 44 मिनट पर भारत द्वारा अत्याधुनिक संचार उपग्रह इन्सेट-3 ई का फ्रेंच गुयाना के कोरू से सफल प्रक्षेपण किया।
    इन्सेट-3 ई से देश में दूरसंचार और टेलीविजन सेवाओं को उत्तम बनाने में अधिक सहयोग प्राप्त होगा।
  43. 17 अक्टूबर, 2003 ई० को रिसोर्स सेट-1 उपग्रह को PSLVC5 नामक रॉकेट द्वारा अंतरिक्ष में स्थापित किया गया। यह पृथ्वी की निगरानी करता है।
  44. 20 अक्टूबर, 2004 ई० को एजूसरे नामक उपग्रह को जी०एस०एल०वी०-FO1 नामक रॉकेट द्वारा अंतरिक्ष में स्थापित किया गया। यह शिक्षा से सम्बन्धित भारत का पहला उपग्रह है।
  45. 5 मई, 2005 ई० को हेमसेट नामक उपग्रह को PSLVc6 नामक रॉकेट द्वारा अंतरिक्ष में स्थापित किया गया। यह राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय केन्द्रों पर रेडियो संकेत भेजता है।
  46. 5 मई, 2005 ई० को काटोंसेट नामक एक और उपग्रह को PSLV-C6 नामक रॉकेट द्वारा अंतरिक्ष में स्थापित किया गया। यह पृथ्वी की परिक्रमा करता है।
  47. 22 दिसम्बर, 2005 ई० इनसेट 4A को एरियन 545 नामक रॉकेट द्वारा अंतरिक्ष में स्थापित किया गया। यह Dth प्रसारण के लिए भेजा गया।
  48. 10 जुलाई, 2006 ई० को इनसेट 4C को GSLV-FO2 नामक रॉकेट में प्रक्षेपित किया गया। यह कामयाब नहीं रहा।
  49. 10 फरवरी, 2007 ई० को PSLVC7 नामक रॉकेट के कार्टोसेट-2 तथा SRE-1 (Space Capsule Recovery Experiment) को प्रक्षेपित किया गया।
  50. 12 मार्च, 2007 ई० को इनसेट 4-B को एरिएन 5ECA नामक रॉकेट में प्रक्षेपित किया गया। यह भी Dth प्रकरण से सम्बन्धित है।
  51. 2 सितम्बर, 2007 ई० को इनसेट 4CR को GSLV-FO5 नामक रॉकेट में प्रक्षेपित किया गया। यह भी Dth प्रसारण से सम्बन्धित है।
  52. 28 अप्रैल, 2008 ई० को कार्टोसेट 2-A तथा Ims-I को PSLV-C9 नामक रॉकेट में प्रक्षेपित किया गया। यह Cartoset-2 जैसा है।
  53. 22 अक्टूबर, 2008 ई० को चन्द्रयान-I को PSLV-C11 द्वारा प्रक्षेपित किया गया यह अंतरिक्ष में वैज्ञानिक उपकरण लेकर गया था।
  54. 20 अप्रैल, 2009 ई० को राइसेट-2 तथा अनुसेट नामक उपग्रह PSLV-C12 में प्रक्षेपित किया गया। यह राडार से सम्बन्धित है जो भारतीय सीमा पर नजर रखता है।
  55. 25 सितम्बर, 2009 ई० को ओरियन सेट-2 के PSLV-C14 में प्रक्षेपित किया गया। यह समुद्री तटों व ओशियन देशों की जानकारी रखता है।
  56. 15 अप्रैल, 2010 ई० को GSAt-4 को GSLVD3 नामक रॉकेट में प्रक्षेपित किया गया। यह संचार उपग्रह है।
  57. 12 जुलाई, 2010 ई० को काटसेट-2-B नामक उपग्रह को PSLV-C15 नामक रॉकेट द्वारा प्रक्षेपित किया गया।
  58. 25 दिसम्बर, 2010 ई० को GSAT5P/I, vSAT 4D उपग्रह को GSLV-FO6 से प्रक्षेपित किया गया। यह प्रयास असफल रहा।।
  59. 20 अप्रैल, 2011 ई० को रिसोर्ससेट-2 को PSLV-C16 में प्रक्षेपित किया गया।
  60. 21 मई, 2011 ई० को GSAT-8/INSAT-46 के Arione-5 से प्रक्षेपित किया गया यह एक संचार उपग्रह है।
  61. 15 जुलाई, 2011 ई० को GSAt-12 को PSLV-C17 में प्रक्षेपित किया गया। यह एक संचार उपग्रह है जो ISRO द्वारा निर्मित है।
  62. 12 अक्टूबर, 2011 ई० को मेगा-ट्रोपिक को PSLV-C18 से प्रक्षेपित किया गया। इसे इसरो व CNES संस्था (फ्रांस) द्वारा बनाया गया था।
  63. 26 अप्रैल, 2012 ई० को RISAT-1 को PSLV-C19 से प्रक्षेपित किया गया। यह विश्व का प्रथम राडार विश्लेषित उपग्रह है जो सभी प्रकार के मौसम में कार्य करता है।
  64. 29 सितम्बर, 2012 ई० को GSAT-2 को एरियन-5 द्वारा प्रक्षेपित किया गया। यह भारत का अतिआधुनिक संचार उपग्रह है।
  65. 25 फरवरी, 2013 ई० को सरल नामक उपग्रह PSLV-C20 को प्रक्षेपित किया गया। यह भारत व फ्रांस का संयुक्त उपग्रह है।
  66. 1 जुलाई, 2013 ई० को IRNSS-1A को PSLV-C22 में प्रक्षेपित किया गया। यह उपग्रह भारतीय परिवहन के लिए कार्य करता है।
  67. 4 अप्रैल, 2014 ई० को PSLV-C24 के द्वारा IRNSS-1B को प्रक्षेपित किया गया।
  68. 16 अक्टूबर, 2014 ई० को PSLV-C26 के द्वारा IRNSS-1C को प्रक्षेपित किया गया।
  69. 28 मार्च, 2015 ई० को PSLV-C27 के द्वारा IRNSS-1D को प्रक्षेपित किया गया।
  70. 20 जनवरी, 2016 ई० को PSLV-C31 को IRNSS-IE को प्रेक्षेपित किया गया।
  71. 10 मार्च, 2016 ई० को PSLV-C32 के द्वारा IRNSS-1F को प्रक्षेपित किया गया।
  72. 28 अप्रैल, 2016 ई० को PSLV-C33 के द्वारा IRNSS-1G को प्रक्षेपित किया गया।

इसी के साथ ग्लोबल पोजीशनिंग सेवाओं के अमेरिकी उपग्रहों पर भारत की निर्भरता के दिन समाप्त हो गए।

प्रश्न 3
इण्टरनेट क्या है? इस पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
इण्टरनेट अथवा नेट विश्व के कम्प्यूटरों का एक समूह है, जो कि सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। इसमें कम्प्यूटर एक-दूसरे से इस तरह से जुड़े होते हैं कि वे एक-दूसरे के सम्पर्क में रहते हैं। इस कम्प्यूटर नेटवर्क में पर्सनल कम्प्यूटर से लेकर विशाल कम्प्यूटर सिस्टम हो सकते हैं। कॉलेज, विश्वविद्यालय, पुस्तकालय, सरकारी संस्थान, वाणिज्य संस्थान और ऐसी ही अन्य व्यवस्थाएँ नेटवर्क का उदाहरण हैं जो कि इण्टरनेट का एक हिस्सा हैं। | इस प्रकार से इण्टरनेट विश्व भर में फैले हुए कम्प्यूटरों का एक विशाल जाल है जो कि आपस में संचार तकनीकी से जुड़ा हुआ है। इसकी सहायता से सम्बन्धित अधिकांश जानकारियाँ कुछ ही क्षणों में उस व्यक्ति को उपलब्ध हो सकती हैं, जिसके पास एक कम्प्यूटर, एक मॉडेम और एक टेलीफोन की सुविधा हो।

तकनीकी भाषा में सूचना राजपथ नामक व्यवस्था में कम्प्यूटर द्वारा सूचनाओं के आदान-प्रदान को इण्टरनेट या कम्प्यूटर का कम्प्यूटर से वार्तालाप भी कहते हैं। इलेक्ट्रॉनिक मेल इण्टरनेट का ही एक घटक होता है।
वर्तमानकाल में इण्टरनेट एक संचार क्रान्ति के समान आया है जो कि विश्व के ढाई अरब से ज्यादा लोगों तक अपनी पहुँच रखता है। इससे लगभग 6,000 से अधिक नेटवर्क जुड़े हुए हैं।
इण्टरनेट में कम्प्यूटरों के नेटवर्क को मेन कम्प्यूटर मॉडेम द्वारा टेलीफोन लाइन से जोड़ता है। मॉडेम पूरी व्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण अंग है जो कि कम्प्यूटर के सांख्यिकीय सन्देश को टेलीफोन के चुम्बकीय सन्देश तथा इसकी उल्टी प्रक्रिया में सक्रिय रखता है।

इण्टरनेट व्यवस्था का कोई मुख्य केन्द्र नहीं है। सारे कम्प्यूटर इसमें मुक्त रूप से संयोजित हैं। इण्टरनेट से जानकारी पाने के लिए पंजीकृत इण्टरनेट कनेक्शन आवश्यक हैं। पंजीकरण के उपरान्त संस्था-विशेष को एक आई०पी० ऐड्रेस या इण्टरनेट प्रोटोकॉल प्रदान कर दिया जाता है, जिसका एक पते की तरह प्रयोग किया जाता है। जब किसी कम्प्यूटर से सूचना लेनी होती है तो प्रयोगकर्ता अपने कम्प्यूटर पर अपना आई०पी० ऐड्रेस लिखकर दूसरे कम्प्यूटर का ऐड्रेस माँगेगा। इस प्रक्रिया में

पी०पी०पी० या प्वॉइण्ट टू प्वॉइण्ट प्रोटोकॉल सुविधा प्रयोग की जाती है। जैसे ही सम्बन्ध स्थापित होता है, सॉफ्टवेयर नेटस्केप नेवीगेटर की सहायता से आवश्यक सूचना प्रयोगकर्ता अपने कम्प्यूटर पर प्राप्त कर लेता है। ई-मेल, युजवेट न्यूजग्रुप टेलब्रेट, एफ०टी०पी०, आर्ची, गोफर, वेरोनिका, जगहेड, आई०आर०सी०वेस, वर्ल्ड वाइड वेब आदि इण्टरनेट से सम्बन्धित आवश्यक तकनीकी यन्त्र हैं, जिनकी आवश्यकता ज्ञान का स्रोत तलाशने और प्राप्ति में आवश्यक होती है।

इण्टरनेट का प्रयोग जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में किया जा सकता है। इण्टरनेट पर सूचनाएँ और इसकी उपयोगिता आश्चर्यजनक ढंग से दिनों-दिन बढ़ रही है। पिछले चार वर्षों में इण्टरनेट के क्षेत्र में क्रान्ति-सी हो गयी है। वर्ष 1994 के अन्त में लगभग 40 लाख कम्प्यूटर इससे जुड़े हुए थे। विश्व के एक कोने से दूसरे कोने तक तत्काल सन्देश भेजा जा सकता है। इसके द्वारा वीडियो कैसेट देखना, विश्व के पत्र-पत्रिकाओं की उपलब्धता, शेयर खबरों तक पहुँच, मनपसन्द संगीत का सुनना, यहाँ तक कि फिल्म के किसी अभिनेता को हटाकर स्वयं अभिनय कर सकते हैं।

चिकित्सा के क्षेत्र में इण्टरनेट के द्वारा विश्वप्रसिद्ध चिकित्सकों व वैज्ञानिकों के विचार जाने जा सकते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में इण्टरनेट महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है। एक शोध छात्र के सामने पूरा विश्व खुला हुआ है, वह पुस्तकालय की मनचाही पुस्तक पढ़ सकता है। उसके प्रमुख भाग के प्रिण्ट आउट निकाल सकता है। इण्टरनेट के द्वारा सरकारी दस्तावेजों को प्राप्त किया जा सकता है। वैज्ञानिक शोध हेतु आवश्यक सामग्री कुछ ही समय में एकत्र कर सकते हैं।
इण्टरनेट का व्यावसायिक गतिविधियों में अत्यधिक प्रयोग हो रहा है। व्यापारिक संस्थान विभिन्न क्षेत्रों में इसका प्रयोग कर रहे हैं। उत्पादों के लिए तकनीकी सहयोग, सॉफ्टवेयर वितरण, उपभोक्ता को उत्पाद के बारे में सूचना देना, तकनीकी और विपणन साहित्य का प्रकाशन, परियोजनाओं पर एक-दूसरे से सम्बन्ध स्थापित करना और सहयोग करना, उत्पादों का विपणन व बिक्री करना और कार्यालय से बाहर होने पर अपने व्यापारिक कार्यों तक पहुँचना इण्टरनेट से ही सम्भव है।

इण्टरनेट को प्रयोग केवल वाणिज्य, चिकित्सा अथवा शोध में ही सम्भव नहीं है, इसका प्रयोग बहुआयामी है। घर से इसका प्रयोग कई क्षेत्रों में हो सकता है। अपने मित्रों से ई-मेल का आदान-प्रदान करना, सामूहिक वाद-विवाद में भाग लेना, एक विषय से दूसरे में प्रवेश कर आनन्द उठाना, बाजार का भ्रमण करना ऑर्डर देना आदि के लिए व्यापारिक इलेक्ट्रॉनिक स्टोर खुले हुए हैं। इसके अन्तर्गत इन सबके अतिरिक्त रुचिकर खेल और ऐसी ही घटनाओं के बारे में अध्ययन करना भी सम्मिलित है।

प्रश्न 4
ई-मेल क्या है? ई-मेल तथा ई-कॉमर्स में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2007]
उत्तर:
ई-मेल द्वारा तीव्र गति से सन्देशों का आदान-प्रदान शीघ्र एवं कम व्यय में हो जाता है। यह सन्देश भेजने की वन वे पद्धति है। इसका सर्वाधिक महत्त्व व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्षेत्रों में है।
[संकेत-ई-मेल तथा ई-कॉमर्स में अन्तर के लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 4 व 5 का अध्ययन करें।]

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
भारत के प्रमुख अन्तरिक्ष केन्द्रों एवं इकाइयों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
या
भारत के किन्हीं चार अन्तरिक्ष अनुसन्धान केन्द्रों के नाम लिखिए। [2011]
उत्तर:
अन्तरिक्ष कार्यक्रम के अन्तर्गत बंगलुरु स्थित भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (ISRO) और अन्तरिक्ष विभाग के विभिन्न केन्द्रों और इकाइयों में अनुसन्धान और विकास-कार्य प्रगति पर हैं। इसरो के तत्त्वावधान में कार्यरत प्रमुख अन्तरिक्ष केन्द्र एवं इकाइयाँ निम्नलिखित हैं।

1. विक्रम साराभाई अन्तरिक्ष केन्द्र – यह केन्द्र तिरुवनन्तपुरम् (केरल) के निकट थुम्बा में स्थित है। मूलत: यह केन्द्र देश की रॉकेट अनुसन्धान तथा प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास । परियोजनाओं की योजनाएँ बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने वाला प्रमुख केन्द्र है। यहाँ ए०एस०एल० वी० पी०एस०एल०वी०, जी०एल०वी० एवं जी०एस०एल०वी० जैसी योजनाओं पर कार्य होता है। पी०एस०एल०वी० को सफल बनाने के लिए इसका एक केन्द्र वलीमाला में भी स्थापित किया गया है।

2. इसरो उपग्रह केन्द्र – यह केन्द्र बंगलुरु (कर्नाटक) में स्थित है और उपग्रह प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेषज्ञ है। यह इसरो की उपग्रह परियोजनाओं को संचालित करता है। यहाँ देश के लगभग सभी उपग्रहों का निर्माण किया जाता है।

3. अन्तरिक्ष उपयोग केन्द्र – अन्तरिक्ष उपयोग केन्द्र अहमदाबाद (गुजरात) में स्थित है। यहाँ अन्तरिक्ष उपयोग हेतु अनुसन्धान एवं विकास-कार्य होता है। इस केन्द्र का कार्य उपग्रह संचार क्षेत्र, दूर-संवेदन क्षेत्र एवं माइक्रोवेव दूर-संवेदन कार्यक्रमों का कार्यान्वयन भी है। इस केन्द्र से नई दिल्ली स्थित भू-केन्द्र का भी प्रवर्धन होता है।

4. शार केन्द्र – यह केन्द्र आन्ध्र प्रदेश के पूर्वी तट पर श्रीहरिकोटा द्वीप पर स्थित है। इस केन्द्र से प्रक्षेपण यान एवं साउण्डिग रॉकेटों का प्रक्षेपण किया जाता है। इसी केन्द्र में इसरो का प्रक्षेपण परिसर एवं ठोस ईंधन अन्तरिक्ष बूस्टर संयंत्र भी स्थित है।

5. प्रधान नियन्त्रण सुविधा – हासन (कर्नाटक) में प्रधान नियन्त्रण सुविधा स्थित है। यह केन्द्र इन्सेट उपग्रहों के प्रक्षेपण के बाद की सभी गतिविधियों के लिए उत्तरदायी है। इसके अन्तर्गत उपग्रह को कक्षा में स्थापित करना, केन्द्र से उसका सम्पर्क बनाये रखना आदि क्रियाएँ सम्मिलित हैं।

6. इसरो दूरमिति, अनुवर्तन एवं आदेश संचार नेटवर्क – बंगलुरु, लखनऊ, श्रीहरिकोटा, अण्डमान निकोबार, तिरुवनन्तपुरम् एवं मॉरीशस में इसके भू-केन्द्र हैं। इसरो का प्रक्षेपण यानों एवं उपग्रहों के मिशन को दूरमिति, अनुवर्तन एवं आदेश संचार मार्ग की सुविधाएँ प्रदान करता है। इसको मुख्यालय बंगलुरु में स्थित है।

7. द्रव नोदन प्रणाली केन्द्र – द्रव नोदन प्रणाली केन्द्र बंगलुरु, तिरुवनन्तपुरम् एवं महेन्द्रगिरि (तमिलनाडु) में स्थित है। इस केन्द्र द्वारा प्रक्षेपण यान एवं उपग्रह के प्रक्षेपण हेतु द्रव एवं क्रायोजनिक संचालन चरणों और ऑक्ज़िलरी नोदन प्रणाली का कार्यान्वयन किया जाता है।

8. इसरो जड़त्वीय प्रणाली इकाई – यह केन्द्र तिरुवनन्तपुरम् में स्थित है। इस केन्द्र में उपग्रहों एवं प्रक्षेपण यानों के लिए जड़त्वीय उपकरणों एवं प्रणालियों का क्रियान्वयन किया जाता है।

9. विकास एवं शैक्षिक संचार इकाई – अहमदाबाद स्थित इस केन्द्र का कार्य विकास एवं शिक्षा संचार के विभिन्न शोध-क्षेत्रों-दूरदर्शन कार्यक्रम-निर्माण, नीति-अध्ययन, सामाजिक प्रौद्योगिकी क्रिया, समाज विज्ञान, शोध सर्वेक्षण आदि में अनुसन्धान करना है।

10. राष्ट्रीय सुदूर संवदेन अभिकरण – हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय सुदूर संवेदन अभिकरण अन्तरिक्ष विभाग का एक स्वायत्त संस्थान है। यहाँ सुदूर संवेदन उपग्रह आंकड़ों के अभिग्रहण, संसाधन एवं प्रकीर्णन का कार्य होता है।

प्रश्न 2
भारत में इण्टरनेट सुविधा पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए। [2009, 10]
या
इण्टरनेट पर क्या सुविधाएँ उपलब्ध हैं? [2011]
उत्तर:
भारत में इण्टरनेट का आरम्भ आठवें दशक के अन्तिम वर्षों में अनेट (शिक्षा और अनुसन्धान नेटवर्क) के रूप में हुआ था। इसके लिए भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक विभाग और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने आर्थिक सहायता उपलब्ध करायी थी। इस परियोजना में पाँच प्रमुख संस्थान; जैसे-राष्ट्रीय सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी केन्द्र, मुम्बई; भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलुरु; छहों भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और इलेक्ट्रॉनिक निदेशालय सम्मिलित थे। अर्नेट का आज व्यापक प्रसार हो चुका है और वह शिक्षा और शोध समुदाय को देशव्यापी सेवा दे रहा है। निश्चित आचार-संहिता के परिणामस्वरूप आम जनता के लिए उसकी सेवाएँ प्रतिबन्धित हैं।

प्रश्न 3
भारत में पेजर-प्रणाली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
रेडियो पेजिंग-प्रणाली रेडियो तकनीक पर आधारित है, जिसका सीधा प्रसारण केवल एक ही दिशा में होता है। इस प्रणाली से ठोस कंक्रीट की मोटी दीवारों से भी प्रसारित तरंगें सरलता से पार हो जाती हैं। इस प्रकार मोटी दीवारों या बड़ी इमारतों में भी सन्देश प्रसारण आसानी से सम्भव हो जाता है। इसके अतिरिक्त रेडियो पेजिंग-प्रणाली की रेडियो क्षमता भी अपेक्षाकृत अधिक होती है और इसका उपयोग एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा भी आसानी से किया जा सकता है। रेडियो पेजिग-प्रणाली के आगमन से सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक नयी क्रान्ति आ गयी है।

रेडियो पेजिग दूरसंचार को एक आधुनिक तकनीक है जिसके द्वारा किसी पेजर धारक से किसी भी समय, चाहे वह पेजिंग सेवा में किसी भी स्थान पर क्यों न हो, सम्पर्क किया जा सकता है तथा उसे सन्देश दिया जा सकता है। इसके लिए पेजर कम्पनी को टेलीफोन पर सन्देश देना होता है, जो रेडियो तरंगों के माध्यम से सन्देश को प्रसारित करता है। जिस पेजर के लिए वह सन्देश होता है, उस पेजर में हल्की पी-पी की ध्वनि सुनाई देने लगती है जिससे पेजर धारक को पता चल जाता है और वह पेजर का बटन ऑन करके स्क्रीन पर सन्देश पढ़ लेता है। न्यूमेरिक पेजर में केवल संख्यात्मक सन्देश पढ़े जा सकते हैं, जबकि अल्फा न्यूमेरिक पेजर संख्याओं के साथ-साथ शब्दों में व्यक्त सन्देश भी ग्रहण करता है।

भारत में सर्वप्रथम यह सेवा कोलकाता में उपलब्ध करायी गयी थी। सरकार द्वारा इस प्रणाली को विकसित करने के उद्देश्य से निजी क्षेत्र की कम्पनियों को 27 शहरी क्षेत्रों में रेडियो पेजिंग सेवा प्रदान करने का लाइसेन्स दिया गया है। ये शहरी क्षेत्र हैं – दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलुरु, हैदराबाद, कानपुर, लखनऊ, नागपुर, सूरत, जयपुर, अहमदाबाद, पुणे, एर्नाकुलम, कोयम्बटूर, बड़ोदरा, पटना, इन्दौर, मदुरै, भोपाल, वाराणसी, लुधियाना, विशाखापत्तनम, चण्डीगढ़, राजकोट, त्रिवेन्द्रम और अमृतसर। रेडियो पेजिंग-प्रणाली सेवा के आरम्भ हो जाने से आकाशवाणी विशिष्ट प्रकार की लोकसूचना सेवा उपलब्ध कराने वाली प्रथम जनप्रसारण सेवा बन गयी है।

प्रश्न 4
इलेक्ट्रॉनिक मेल (ई-मेल) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
या
ई-मेल के कोई दो आर्थिक लाभ लिखिए। [2012]
या
भारत में ‘ई-मेल’ के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2014]
उत्तर:
इलेक्ट्रॉनिक मेल सेवा, कम्प्यूटर आधारित ‘स्टोर ऐण्ड फॉरवर्ड’ सन्देश प्रणाली है। इसमें प्रेषक और प्रेषित दोनों को एक साथ उपस्थित रहने की आवश्यकता नहीं होती। यह सेवा डेटा संचार नेटवर्क के माध्यम से विभिन्न प्रकार के पत्रों का संचारण करती है। इस सेवा के द्वारा कोई भी पत्र, स्मरण-पत्र, टेण्डर या विज्ञापन आदि टंकित कर उसे किसी भी व्यक्ति को उसके निर्धारित पते पर भेजा जा सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि पत्र भेजने तथा प्राप्त करने वाले दोनों नेटवर्क से जुड़े हों। इसके लिए उपयोगकर्ता को एक डाक (Mail) बॉक्स किराए पर लेना पड़ता है तभी वह डाक प्राप्त कर सकता है या भेज सकता है। स्थानीय क्षेत्र नेटवर्क (LAN) तथा विस्तृत क्षेत्र नेटवर्क (WAN) द्वारा भी डाक भेजी जा सकती है। डाक प्रेषण की इस तकनीकी की खोज अक्टूबर, 1971 ई० में अमेरिकी इंजीनियर रे टॉमलिंसन द्वारा की गयी थी।

ई-मेल वन-वे पद्धति है। यह टेलीफोन की तरह दोनों ओर से वार्तालापं नहीं करा सकती है, लेकिन उससे भी तीव्र गति से सूचना प्रदान करती है। ई-मेल की हार्ड व मुद्रित प्रति भी प्राप्त की जा सकती है। वास्तव में, यह सेवा बहुत व्यस्त व्यक्तियों के लिए उपयोगी है। यदि डाक प्राप्तकर्ता का कम्प्यूटर बन्द हो तब भी यह डाक बॉक्स में संगृहीत होती रहती है और सुविधानुसार कम्प्यूटर ऑन करने पर प्राप्त हो जाती है तथा भेजने वाले व्यक्ति को भी सूचना-प्राप्ति की जानकारी हो जाती है।

भारत में इलेक्ट्रॉनिक मेल सेवा विदेश संचार निगम लिमिटेड के द्वारा ‘HRMS-400′ नाम से 1990 के दशक के मध्य में शुरू की गयी थी, जिसका कार्य-क्षेत्र उस समय मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली, बंगलुरु, पुणे, तिरुवनन्तपुरम् और भुवनेश्वर तक ही सीमित था और इस सेवा को कनाडा, अमेरिका, इंग्लैण्ड, जापान और इटली से जोड़ा जा रहा है। ई-मेल पर आधारित अनेक मूल्य वर्द्धित सेवाएँ लगभग पूरे देश में आरम्भ की जा चुकी हैं।

वर्तमान में ई-मेल सुविधा हिन्दी में भी उपलब्ध है। ‘वेब-दुनिया के नाम से हिन्दी का पोर्टल भी इण्टरनेट पर आ चुका है और ई-पत्र की सहायता से हिन्दी भाषा में डाक भेजी व प्राप्त की जा सकती है। ई-मेल के माध्यम से पत्र के अतिरिक्त चित्र व ग्राफिक्स आदि भी भेजे जा सकते हैं। अब कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी से हिन्दी में काम करने में कोई तकनीकी समस्या नहीं है। देश के चारों महानगरों में कुल मिलाकर 100 से भी अधिक ई-मेल’ सेवाएँ अब कार्यरत हैं। सरकारी नीतियों में उदारीकरण के कारण निजी कम्पनियों द्वारा विभिन्न प्रकार की ई-मेल सेवाएँ शुरू कर दी गयी हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ कम्पनियाँ भी इस सेवा-क्षेत्र से जुड़ रही हैं।

प्रश्न 5
ई-कॉमर्स सेवा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2008, 09, 10]
उत्तर:
ई-कॉमर्स-ई-कॉमर्स में ‘ई’ शब्द इलेक्ट्रॉनिक को संक्षिप्त रूप है तथा कॉमर्स से अभिप्राय व्यापारिक लेन-देनों से है, अत: ई-कॉमर्स से अभिप्राय ऐसे सौदे से है जिसके अन्तर्गत विक्रेता और क्रेता बिना कागजों की अदला-बदली किये अथवा बिना एक-दूसरे से मिले इण्टरनेट के माध्यम से लेन-देन करते हैं। यह व्यापार कम्प्यूटर द्वारा टेलीफोन लाइनों से किया जाता है।

इण्टरनेट की प्रगति की ही एक तार्किक परिणति है-ई-कॉमर्स। किसी भी प्रकार के व्यवसाय को संचालित करने के लिए इण्टरनेट पर की जाने वाली कार्यवाही को ई-कॉमर्स कहते हैं। वस्तुओं का क्रय-विक्रय विभिन्न व्यक्तियों अथवा कम्पनियों के मध्य सेवा या सूचना ई-कॉमर्स के अन्तर्गत आते हैं। आर्थिक गतिविधियों को संचालित करने में इण्टरनेट की बढ़ती लोकप्रियता का ही एक प्रमाण सैकड़ों की संख्या में डॉट कॉम कम्पनियों का उदय है।
ई-कॉमर्स को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है–बिजनेस टु बिजनेस (B2B), बिजनेस टु कंज्यूमर (B2C) और कंज्यूमर टु कंज्यूमर (C2C)। इनमें अभी बी टु सी श्रेणी ही अधिक सक्रिय है। यह सेवा विशाल एमेजन कॉम और भारत में दूसरी कई कम्पनियों द्वारा संचालित है, जिसका उद्देश्य थोक और खुदरा व्यापार के बीच की परम्परागत विभाजन रेखा को मिटाकर व्यक्तिगत ग्राहकों के मध्य सीधा सम्पर्क कराना है। लेकिन इस क्षेत्र की सबसे लम्बी अवधि तक टिकने और सबसे बड़े कारोबार वाली श्रेणी बी टु बी ही होगी। इस श्रेणी के अन्तर्गत कम्पनी नेट के जरिए अपने ग्राहकों ओर वितरको से कारोबार के लिए सम्पर्क करती है।

बी टु बी श्रेणी के विशेष क्षेत्रों में ग्राहक सम्बन्ध प्रबन्धन और आपूर्ति प्रबन्धन मुख्य हैं। किसी कम्पनी को अपने ग्राहकों और वितरकों से जोड़ने वाले नेटवर्क की सबसे प्रमुख सेवाएँ यहीं होती हैं।
सी टु सी नामक तीसरी श्रेणी का दायरा अत्यधिक सीमित है। इसमें ग्राहक का किसी अन्य ग्राहक से सीधा सम्पर्क होता है। इसमें या तो नीलामी वाली साइट आती हैं अथवा किसी उत्पादन या सेवा का उपभोक्ता अपनी सूचना या शिकायत को आपस में बाँटने के लिए इण्टरनेट का उपयोग करता है।

बी टू सी नाम बुनियादी व्यावसायिक चक्र में ऑन लाइन स्टोर ( भण्डार) होता है, जो उत्पाद की विशेषताओं, मूल्य और उसके चित्रों के साथ पूरी सूची उपलब्ध कराता है। ग्राहक उस साइट पर लॉग लॉन (इण्टरनेट की शब्दावली) करते हैं और एक या अधिक उत्पादों को चुनने के बाद उन्हें इलेक्ट्रॉनिक ‘गाड़ी में रख देते हैं और फिर सत्यापन (चेक आउट) के लिए तैयार हो जाते हैं। सत्यापन में ग्राहक को बीजक भेजने का पता, माल भेजने के तरीके आदि की सारी जानकारी हासिल कर ली जाती है। क्रेडिट कार्ड सम्बन्धी सूचना की जाँच के बाद सही पाये जाने पर लेन-देन स्वीकार कर लिया जाता है।

कुछ देशों में ऐसी कानुनी व्यवस्था भी है कि ऑर्डर देने के बजाय उत्पाद को भेज दिये जाने के उपरान्त ही ग्राहक के क्रेडिट कार्ड से भुगतान हासिल किया जा सकता है। इस व्यवस्था में ऑर्डर का माल एक अन्य केन्द्र को भेज दिया जाता है और माल वहाँ पहुँच जाने पर वह केन्द्र वेब सर्वर के जरिए यह सन्देश प्रेषित कर देता है। इसके बाद क्रेडिट कार्ड से भुगतान प्राप्त कर लिया जाता है।

इस सेवा में सूई से लेकर हेलीकॉप्टर तक के क्रय-विक्रय के लिए वेब साइट उपलब्ध है। ई-मेल की तर्ज पर ई-कॉमर्स की शुरुआत हुई है। यह सेवा चौबीसों घण्टे उपलब्ध रहती है तथा इसमें किसी भी प्रतिनिधि से सम्पर्क की जरूरत नहीं पड़ती। ई-कॉमर्स के माध्यम से किये जाने वाले थोक व्यापार को मैक्रो ई-कॉमर्स तथा खुदरा व्यापारी को माइक्रो ई-कॉमर्स कहा जाता है। वर्ष 2000 में ई-कॉमर्स द्वारा विश्व में लगभग ₹45 खरब का व्यापार हुआ था।

व्यावसायिक पक्ष का एक नया घटनाक्रम एम-कॉमर्स या मोबाइल कॉमर्स है। एम-कॉमर्स के उपभोक्ता इण्टरनेट पर लेन-देन के लिए सचल उपकरणों यथा-सेल्युलर फोन और पर्सनल डिजिटल असिस्टेंट का उपयोग करते हैं। हालाँकि इन उपकरणों के पर्दे के अत्यधिक छोटा होने, बैण्डविड्थ कम होने (वर्तमान में केवल 9.6 के०बी०पी०एस०) और वेब पृष्ठ पर सूचना पहुँचाने में असुविधा होती है। इसके बावजूद जी० पी० आर० एस०, श्री जी और ब्ल्यूटुथ जैसी अधिक बैण्डविड्थ और तत्काल जोड़ने वाली नई टेक्नोलॉजियों के प्रादुर्भाव के फलस्वरूप एम-कॉमर्स की प्रगति अवश्यम्भावी है।

प्रश्न 6
भारत में ई-कॉमर्स की प्रगति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। उपभोक्ताओं को ई-कॉमर्स से क्या लाभ प्राप्त होते हैं?
या
ई-कॉमर्स के कोई दो लाभ लिखिए। [2013]
उत्तर:
भारत में सॉफ्टवेयर सम्बन्धी आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की सर्वोच्च संस्था ‘नैसकाम’ ने ई-कॉमर्स के क्षेत्र में भारत की क्षमता का सही तरीके से प्रयोग करने के लिए भारत सरकार के साथ मिलकर कार्य किया है। इन दोनों के सहयोग से ऐसे प्रयास किये जा रहे हैं जिससे सॉफ्टवेयर क्षेत्र के अंग्रेजी के ‘ई’ अक्षर से शुरू होने वाले तीन क्षेत्रों – (i) एजुकेशन (शिक्षा), (ii) एण्टरप्रेन्योरशिप (उद्यमिता) तथा (iii) इम्प्लॉयमेण्ट (रोजगार) का अर्थव्यवस्था में उपलब्ध साधनों का अधिकतम प्रयोग कर भारतीय अर्थव्यवस्था की आर्थिक, सामाजिक, मौद्रिक तथा शैक्षिक नींव को मजबूत करना है। कुल मिलाकर ई-कॉमर्स विशेषज्ञों के अनुसार अगले कुछ वर्षों में विश्व में ई-कॉमर्स से भारी परिवर्तन आएगा।

भारत में ई-कॉमर्स यद्यपि अभी नया है, उद्यमियों को इसकी क्षमता व लाभों का ज्ञान हो गया है। भारत में कम्प्यूटरों की घटती कीमतें तथा इण्टरनेट के बढ़ते उपयोग से ई-कॉमर्स के माध्यम से व्यापार को बड़ा प्रोत्साहन मिला है।
उपभोक्ताओं को ई-कॉमर्स से निम्नलिखित लाभ प्राप्त हो रहे हैं

  1. बाजार की वस्तुओं की पूरी जानकारी कम्प्यूटर पर मिल जाती है।
  2. वस्तु का चुनाव करने की सुविधा है।
  3. वस्तुओं के गुण-दोषों का वर्णन पर्दे पर मिलता है।
  4. खरीदारी में किफायत रहती है तथा भाग-दौड़ की बचत होती है।
  5. मोल-भाव करने की सुविधा रहती है।
  6. उत्पादक कम्पनी की पूरी जानकारी कम्प्यूटर पर ही प्राप्त हो जाती है।
  7. उत्पादों की विशेषताओं व कीमतों की तुलना करके चयन से पहले उसकी समीक्षा की जाती है।
  8. उत्पादक कम्पनी द्वारा खरीद्रा गया माल उपभोक्ता के घर तक पहुँचाने की सुविधा है।
  9. भुगतान एकाउण्ट से एकाउण्ट में ट्रान्सफर हो जाता है।

विशेष बात यह भी है कि ई-कॉमर्स व्यापार में भारी लागत वाले, महँगे फुटकर शो-रूमों की आवश्यकता नहीं होती है। एक छोटे से कक्ष में बैठकर सारा व्यापार होता है। इण्टरनेट के द्वारा क्रेता के बैंक खाते से माल का मूल्य विक्रेता के खाते में ट्रान्सफर हो जाता है। भुगतान के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता।

भारत में ई-कॉमर्स का भविष्य अत्यधिक उज्ज्वल है। भारत में ई-कॉमर्स से होने वाला व्यापार 2010 ई० में ₹10,000 करोड़ को पार कर चुका था।

प्रश्न 7
दूरसंचार व कम्प्यूटर क्रान्ति के लाभों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
या
सूचना क्रान्ति का महत्त्व बताइए। या आर्थिक विकास में दूरसंचार व्यवस्था के महत्त्व को समझाइए। [2013]
या
कम्प्यूटर के कोई दो लाभ लिखिए। [2012]
उत्तर:
दूरसंचार व कम्प्यूटर क्रान्ति के क्षेत्र में भारत की प्रगति आश्चर्यजनक मानी जाती है। इसके प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं.

  1. इसका उपयोग उपग्रहों की कक्षा का निर्धारण तथा रॉकेट प्रक्षेपण में किया जाता है।
  2. प्रतिरक्षा विज्ञान में कम्प्यूटर की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। प्रक्षेपास्त्रों के प्रक्षेपण की प्रणाली कम्प्यूटर पर ही आधारित हैं।
  3. इंजीनियरिंग का प्रत्येक क्षेत्र कम्प्यूटर पर ही आश्रित है।
  4. प्रकाशन व छपाई के क्षेत्र की तो इसने काया ही पलट दी है।
  5. बैंकों, वित्तीय संस्थाओं तथा परिवहन सेवाओं में इसकी बड़ी उपयोगिता है।
  6. इसमें मौसम सम्बन्धी पूर्व-जानकारियाँ प्राप्त होती हैं।
  7. चिकित्सा विज्ञान में शल्य चिकित्सा के क्षेत्रों में इसके उपयोग ने मनुष्य के जीवन को सुरक्षित बनाया है।
  8. शिक्षा के क्षेत्र में अध्यापक व परीक्षाफल विश्लेषण आदि में इसका उपयोग लाभ कर रहा है।
  9. उद्योग व व्यापार के क्षेत्र में इसने गजब की सफलता पायी है।

28 मार्च, 1998 ई० को भारत ने एशिया के सबसे बड़े सुपर कम्प्यूटर का सफल निर्माण करके इस क्षेत्र में अमेरिका तथा अन्य विकसित देशों के वर्चस्व को कड़ी चुनौती दी है। कम्प्यूटर वास्तव में मानव के विकास का पर्यायवाची बन गया है।

एक अन्य प्रमुख नेटवर्क नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स सेन्टर (एन०आई०सी०) के रूप में सामने आया जिसने प्रायः सभी जनपद मुख्यालयों को राष्ट्रीय नेटवर्क से जोड़ दिया। एन०आई०सी० आज देश के विभिन्न भागों में 1,400 स्थलों को अपने नेटवर्क के जरिए जोड़े हुए है। एक नेटवर्क बहुत सूक्ष्म अपरचर टर्मिनल्स (बी०एम०ए०टी०) पर आधारित है। एन०आई०सी० का मुख्य उद्देश्य राजकीय कार्यक्रमों के लिए सूचना जारी करना है। लेकिन बहुत अधिक समय से एन०आई०सी० अर्द्धसरकारी संगठनों के लिए भी बैण्डविड्थ उपलब्ध करा रहा है।

आम आदमी के लिए इण्टरनेट का आगमन 15 अगस्त, 1995 ई० को हुआ, जब विदेश संचार निगम लिमिटेड ने देश में अपनी सेवाओं का आरम्भ किया। शुरू के कुछ वर्षों में इण्टरनेट की पहुँच अत्यधिक धीमी रही, लेकिन हाल के वर्षों में बी० एस०एन०एल० के उपभोक्ताओं की संख्या में जबर्दस्त वृद्धि हुई है। 1999 ई० में टेलीकॉम क्षेत्र को निजी कम्पनियों के लिए खोल दिये जाने के परिणामस्वरूप अनेक नये सेवा प्रदाता बेहद प्रतिस्पर्धा विकल्पों के साथ सामने आये। भारत में इण्टरनेट के अनुमानतः 5 लाख कनेक्शन हैं और उसके उपभोक्ताओं की संख्या नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर ऐण्ड सर्विसेज कम्पनीज (नास्कोम) के अनुसार वर्ष 2011 तक 65 लाख के आँकड़े को पार कर चुकी थी और इसमें लगातार बढ़ोतरी जारी थी।

अनेक राज्य सरकारों ने सूचना प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन देने वाली नीतियाँ अपनायी हैं। इनमें ग्राम स्तर तक सम्पर्क और पहुँच बनाने के उद्देश्य पर मुख्य बल दिया गया है। यदि इन नीतियों का सही रूप में परिपालन हुआ तो सचमुच ये सभी मानव समुदाय से जुड़ जाएँगे। सरकारी एजेन्सियाँ आई०टी० के लाभ को सामान्य जन तक पहुँचाने के लिए प्रयत्नशील हैं। भारतीय रेल द्वारा कम्प्यूटरीकृत आरक्षण, आन्ध्र प्रदेश सरकार द्वारा शहरों के मध्य सूचना-प्रणाली की स्थापना तथा केरल सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा फास्ट रिलायबेल इन्सटेण्ट एफीशिएण्ट नेटवर्क फॉर डिस्बर्समेण्ट ऑफ सर्विसेज़ (फ्रेंड्स) जैसी पेशकशों ने इस दिशा में देश के आम नागरिकों की अपेक्षाओं को अत्यधिक बढ़ा दिया है।

प्रश्न 8
भारत की नयी दूरसंचार नीति पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2012]
उत्तर:
नयी राष्ट्रीय दूरसंचार नीति–दूरसंचार शब्द का प्रयोग किसी विद्युत संकेत का किसी दूरार्ध क्षेत्र तक संचारित या प्रेषित करने के अर्थ में होता है। 26 मार्च, 1999 ई० को केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल द्वारा नयी संचार नीति की घोषणा की गयी, जो 1 अप्रैल, 1999 ई० से लागू हो गयी। इसकी मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  1. दूरसंचार क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ायी जायेगी। शर्तों का विस्तृत ब्योरा TRAS द्वारा किया जायेगा।
  2. सन् 2002 तक सभी को माँग पर फोन उपलब्ध करा दिया जायेगा। देश में टेलीफोन उपलब्धि को 7 प्रति हजार जनसंख्या तथा 2010 ई० तक 15 प्रति हजार जनसंख्या तक लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। सभी गाँवों को 2000 ई० तक दूरसंचार के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा गया।
  3. घरेलू लम्बी दूरी की कालों (STD) को 1 मार्च, 2002 ई० तक तथा अन्तर्राष्ट्रीय कालों को 1 मार्च, 2004 ई० तक निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया।
  4. विदेश संचार निगम लि० (VSNL) के एकाधिकार को 21 वर्ष पूर्व ही समाप्त कर दिया। गया हैं।
  5. बुनियादी फोन सेवा के सन्दर्भ में प्राधिकार (दूरसंचार विभाग/महानगर टेलीफोन निगम लि० तथा एक निजी ऑपरेटर) की नीति के स्थान पर अधिक कम्पनियों के प्रवेश की बात स्वीकार कर ली गयी। इनको संख्या ड्रायर द्वारा निर्धारित किया जायेगा।
  6. नीति में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि ट्राय के क्षेत्र सेवा प्रदान करने वालों तक सीमित रहेंगे।
  7. दूरसंचार ऑपरेशन विभाग द्वारा धीरे-धीरे मोबाइल सेवा का विस्तार किया जायेगा, जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो जाये। उसी क्रिया के स्वरूप सरकारी तथा निजी संस्थाएँ कार्य कर रही हैं।

प्रश्न 9
भारत में दूरसंचार प्रणाली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2014]
या
भारत में सूचना प्रौद्योगिकी के प्रयोगों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2015]
उत्तर:
भारत में दूरसंचार का प्रारम्भ टेलीग्राफी तथा टेलीफोन की खोज के तुरन्त पश्चात् हुआ। प्रथम टेलीग्राफ सेवा का प्रारम्भ कलकत्ता (कोलकाता) और डायमण्ड हार्बर के बीच 1851 ई० में हुआ था। मार्च, 1884 ई० तक आगरा से कोलकाता तक टेलीग्राफ सन्देश भेजे जाने लगे थे। वर्ष 1990 ई० तक भारतीय रेलवे में टेलीग्राफ सेवाएँ शुरू हुईं। टेलीफोन सेवा को प्रारम्भ कोलकाता में वर्ष 1981-82 में हुआ। 700 लाइनों वाले प्रथम स्वचालित एक्सचेंज की स्थापना वर्ष 1913-14 में शिमला में हुई।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से दूरसंचार विभाग के स्तर और सेवाओं में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ है। एक्सचेंजों की संख्या बढ़कर मार्च, 2014 तक 36,023 हो गई। प्रारम्भ में अधिकांश एक्सचेंज मैनुअल प्रकार के थे, जिन्हें बाद में स्वचालित इलेक्ट्रो-मैकेनिकल एक्सचेंजों में बदल दिया गया। गत 15 वर्षों में बड़ी संख्या में डिजिटल टेलीफोन एक्सचेंज स्थापित हो जाने के बाद दूरसंचार प्रणाली में व्यापक सुधार हुआ है। आज के शत-प्रतिशत टेलीफोन एक्सचेंज इलेक्ट्रॉनिक प्रकार के हैं।

31 मार्च, 2014 ई० तक के आँकड़ों के अनुसार भारत का दूरसंचार नेटवर्क एशिया के विशालतम दूरसंचार नेटवर्कों में गिना जाता है। देश में 36,023 टेलीफोन एक्सचेंज हैं, जिनकी क्षमता 4 करोड़ 66 लाख 60 हजार लाइनें और 9.15 करोड़ टेलीफोन कनेक्शन हैं। लम्बी दूरी के ट्रांसमिशन नेटवर्क में लगभग 2,04,551 रूट किमी रेडियो प्रणाली तथा 3,26,271 रूट किमी ऑप्टिकल फाइबर प्रणाली है। लगभग सभी देशों के लिए आई०एस०डी० (International Subscriber Dialling) सेवा उपलब्ध है। एन०एस०डी० सेवा के साथ 29,362 स्टेशन जुड़े हैं। अन्तर्राष्ट्रीय संचार क्षेत्र में उपग्रह संचार और जल के नीचे से स्थापित संचार सम्बन्धों द्वारा अपार प्रगति हुई है।

ध्वनि वाली और ध्वनिरहित दूरसंचार सेवाएँ, जिनमें आँकड़ा, प्रेषण फैसीमाइल, मोबाइल रेडियो, रेडियो पेजिंग तथा लीज्ड लाइन सेवाएँ शामिल हैं, जो आवासीय और व्यावसायिक उपभोक्ताओं की विभिन्न जरूरतों की पूर्ति करती हैं। आई०एस०डी०एन० सेवा कुछ शहरों में आरम्भ हो चुकी हैं। कम्प्यूटर संचार सेवाओं के विश्वव्यापी उपयोग के लिए डेडिकेटेड पैकेट स्विच्ड पब्लिक डेटा नेटवर्क भी उपलब्ध है। देश के लगभग 67 प्रतिशत से अधिक गाँवों में टेलीफोन सुविधा उपलब्ध है। वर्तमान में भारत के सभी महानगरों और शहरों, यहाँ तक की ग्रामीण क्षेत्रों में भी सेल्यूलर टेलीफोन सेवा कार्य कर रही है। वर्ष 2014 के आँकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 56 करोड़ मोबाइल कनेक्शन हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
ई-कॉमर्स के प्रमुखता कितने क्षेत्र हैं?
उत्तर:
ई-कॉमर्स के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं

  • व्यापारिक संगठनों के बीच आपसी व्यवहार – इसमें आपूर्तिदाता कम हो जाते हैं और क्रय-विकय में समय तथा श्रम की बचत होती है।
  • अन्तर्सगठनात्मक व्यापारिक गतिविधियाँ – इसका उद्देश्य एक व्यापारिक संगठन के विभिन्न घटकों के बीच सर्वश्रेष्ठ तालमेल कर सूचनाओं का आदान-प्रदान करना है।
  • फुटकर व्यापार – इसका सम्बन्ध व्यक्तिगत उपभोक्ताओं से है।

प्रश्न 2
इण्टरनेट सेवाओं से आप क्या समझते हैं? [2011]
उत्तर:
इण्टरनेट इण्टरनेशनल नेटवर्क का संक्षिप्त रूप है। यह विश्वव्यापी कम्प्यूटर नेटवर्क है। इसमें सम्पूर्ण विश्व की सूचना एकत्र की जाती है। इण्टरनेट का कनेक्शन रखने वाला व्यक्ति किसी भी समय, किसी भी विषय पर तत्काल जानकारी प्राप्त कर सकता है। इस पर आप इलेक्ट्रॉनिक समाचार-पत्र पढ़ सकते हैं, विभिन्न मण्डियों व शेयर बाजार पर नजर रख सकते हैं, अपने उत्पादन एवं सेवाओं का विज्ञापन कर सकते हैं, पुस्तकालयों से आवश्यक सूचना प्राप्त की जा सकती है। वर्तमान में इण्टरनेट पर कई समाचार-पत्र व पत्रिकाएँ भी उपलब्ध हैं।

प्रश्न 3
सेल्यूलर फोन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
सूचना वे दूरसंचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सेल्यूलर प्रणाली का विशेष योगदान है। इस प्रणाली द्वारा सन्देश भेजने के लिए रेडियो तरंगों का प्रयोग किया जाता है। वर्तमान में इस प्रणाली में वैप (Wireless Application Protocal-WAP) नामक तकनीक का समायोजन कर इसे और भी सक्षम तथा प्रभावी बना दिया गया है। इस तकनीक से सेल्यूलर फोन के द्वारा इण्टरनेट से सम्बन्ध जुड़ जाता है तथा इससे फैक्स तथा ई-मेल की सुविधा प्राप्त की जा सकती है। भारत में भी कई कम्पनियाँ इस तकनीक से जुड़ चुकी हैं।

भारत में वर्तमान में जी०एस०एम० तकनीक का प्रयोग मुख्य रूप से हो रहा है। मई, 2000 ई० से जी०पी०आर०एस० नामक नयी तकनीक का प्रयोग शुरू हुआ है।

प्रश्न 4
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान कार्यक्रम के किन्हीं दो लाभों का उल्लेख कीजिए। [2010]
उत्तर:
(1) संचार, मौसम एवं संसाधनों के सर्वेक्षण एवं प्रबन्धन के क्षेत्र में कार्यक्रमों पर आधारित सेवाएँ उपलब्ध कराई गई हैं।
(2) अन्तरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को भू-उपग्रहों के माध्यम से जनसंचार एवं शिक्षा में प्रयोग किया गया है तथा अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता प्राप्त की गई है।

प्रश्न 5
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान कार्यक्रम के कोई दो मुख्य उद्देश्य लिखिए। [2013]
उत्तर:
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान कार्यक्रम के दो मुख्य उद्देश्य निम्नवत् हैं

  1. संचार मौसम एवं संसाधनों के सर्वेक्षण एवं प्रबन्धन के क्षेत्र में अन्तरिक्ष कार्यक्रमों पर आधारित सेवाएँ उपलब्ध कराना।
  2. अन्तरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को भू-उपग्रह के माध्यम से जनसंचार एवं शिक्षा में प्रयोग करना।

प्रश्न 6
ई-कॉमर्स क्या है? [2008, 12, 14, 15, 16]
उत्तर:
ई-कॉमर्स में ‘ई’ शब्द इलेक्ट्रॉनिक का संक्षिप्त रूप है तथा कॉमर्स से अभिप्राय व्यापारिक लेन-देन से है। अत: ई-कॉमर्स से अभिप्राय ऐसे सौदे से है जिसके अन्तर्गत विक्रेता और क्रेता कागज की अदला-बदली किये अथवा बिना एक-दूसरे से मिले इण्टरनेट के माध्यम से लेन-देन करते हैं।

प्रश्न 7
भारत से पूर्व अन्तरिक्ष में उपग्रह प्रक्षेपित करने वाले राष्ट्र कौन-कौन-से हैं?
उत्तर:
भारत से पूर्व अन्तरिक्ष में उपग्रह प्रक्षेपित करने वाले राष्ट्र हैं – संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ, जर्मनी, चीन, फ्रांस, इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान तथा इटली। इस प्रकार भारत अन्तरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में विश्व का 11वाँ तथा विकासशील देशों में चीन के बाद दूसरा राष्ट्र है।

प्रश्न 8
शिक्षा-क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी के महत्त्व को समझाइए। [2009, 14]
उत्तर:
रेडियो, ट्रांजिस्टर, टेलीफोन, टेलीविजन, इण्टरनेट आदि ने शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन कर दिया है। आज हम घर बैठे विश्व के किसी भी कोने में प्रकाशित सूचना देख सकते हैं, पढ़ सकते हैं व उसकी प्रगति प्राप्त कर सकते हैं। विश्व के किसी भी विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में रखी कोई भी पुस्तक, पत्रिका या समाचार-पत्र को देखा जा सकता है। यह सब आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी से ही सम्भव हुआ है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
दूरसंचार क्या है? [2011]
उत्तर:
दूरसंचार शब्द का प्रयोग किसी विद्युत संकेत का किसी दूरार्ध क्षेत्र तक संचरित या प्रेषित करने के अर्थ में होता है।

प्रश्न 2
ई-कॉमर्स के माध्यम से किये जाने वाले व्यापार को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
ई-कॉमर्स के माध्यम से किये जाने वाले व्यापार को दो भागों में विभक्त किया गया है
(1) थोक व्यापार तथा
(2) खुदरा व्यापार।

  1. थोक व्यापार – इसे को-मैक्रो ई-कॉमर्स तथा
  2. खुदरा व्यापार – इसे माइक्रो ई-कॉमर्स कहा जाता है।

प्रश्न 3
डाक विभाग की नई ‘ई-पोस्ट’ क्या है?
उत्तर:
डाक विभाग ने ई-पोस्ट नाम से एक नई व अत्याधुनिक डाक सेवा 2 अगस्त, 2001 ई० से प्रारम्भ की है। इस सेवा के द्वारा प्रेषित सन्देशों को कुछ घण्टों में ही डाक विभाग द्वारा सम्बन्धित व्यक्ति तक पहुँचाया जा सकता है। इस सेवा में सन्देश किसी भी भाषा में प्रेषित किये जा सकते हैं।

प्रश्न 4
व्यवसाय एवं औद्योगिक क्षेत्रों में ई-मेल का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
ई-मेल का सर्वाधिक महत्त्व व्यवसाय एवं औद्योगिक क्षेत्रों में है। ई-मेल से तीव्र गति से सन्देश पहुँचाने वाली सेवा वर्तमान में कोई नहीं है। इसके प्रयोग से सन्देशों का आदान-प्रदान शीघ्र एवं कम व्यय में हो जाता है। एक पृष्ठ के ई-मेल का व्यय ₹5 (लिफाफे के मूल्य) से भी कम आता है।

प्रश्न 5
भारत में इण्टरनेट की सुविधा कब प्रारम्भ हुई? [2007 ,12, 13, 14]
उत्तर:
भारत में इण्टरनेट की सुविधा 15 अगस्त, 1995 ई० को प्रारम्भ हुई।

प्रश्न 6
इलेक्ट्रॉनिक मेल (ई-मेल) क्या है? [2008, 14, 15, 16]
उत्तर:
ई-मेल द्वारा तीव्रगति से सन्देशों का आदान-प्रदान शीघ्र एवं कम व्यय में हो जाता है। ई-मेल का सर्वाधिक महत्त्व व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्षेत्रों में है।

प्रश्न 7
भारत में सॉफ्टवेयर सम्बन्धी आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की सर्वोच्च संस्था का क्या नाम है?
उत्तर:
भारत में सॉफ्टवेयर सम्बन्धी आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की सर्वोच्च संस्था ‘नेस काम’ है।

प्रश्न 8
सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में अंग्रेजी के ‘ई’ अक्षर से प्रारम्भ होने वाले कौन-से तीन क्षेत्र हैं?
उत्तर:
ई अक्षर से प्रारम्भ होने वाले तीन क्षेत्र क्रमशः

  1. एजुकेशन (शिक्षक),
  2. एण्टरप्रेन्योरशिप (उद्यमिता),
  3. एम्प्लॉयमेण्ट (रोजगार) है।

प्रश्न 9
ई-क्षेत्रों का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
ई से प्रारम्भ होने वाले तीन क्षेत्रों का अर्थव्यवस्था में उपलब्ध साधनों का अधिकतम प्रयोग कर भारतीय अर्थव्यवस्था की आर्थिक, सामाजिक, मौद्रिक व शैक्षिक नींव को मजबूत करना है।

प्रश्न 10
इण्टरनेट क्या है? [2007, 09, 10]
उत्तर:
विश्व के विभिन्न स्थानों पर स्थापित टेलीफोन लाइनों अथवा उपग्रहों की सहायता से एक-दूसरे के साथ जुड़े कम्प्यूटरों का नेटवर्क ही इण्टरनेट कहलाता है। वास्तव में देखा जाए तो इण्टरनेट विभिन्न नेटवर्को का एकीकरण रूप ही है।

प्रश्न 11
इण्टरनेट के जन्मदाता कौन हैं? [2011]
उत्तर:
इण्टरनेट के जन्मदाता डॉ० विण्टन जी० सर्फ हैं।

प्रश्न 12
नयी राष्ट्रीय दूरसंचार नीति की घोषणा कब की गयी? [2008]
उत्तर:
केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल द्वारा 26 मार्च, 1999 ई० को अनुमोदित नयी दूरसंचार नीति (N.T.P, 1999) की घोषणा की गयी।

प्रश्न 13
ई-मेल सन्देश भेजने की कैसी पद्धति है?
उत्तर:
वन-वे पद्धति।

प्रश्न 14
प्रथम भारतीय उपग्रह आर्यभट्ट का प्रक्षेपण किस देश द्वारा किया गया था?
उत्तर:
रूस द्वारा।

प्रश्न 15
ई-मेल इण्टरनेट की कैसी सेवा है?
उत्तर:
डाक सेवा।

प्रश्न 16
ISRO का गठन कब किया गया था? [2008]
उत्तर:
1969 ई० में।

प्रश्न 17
भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम के जनक कौन माने जाते हैं? [2008]
उत्तर:
डॉ० विक्रम साराभाई।

प्रश्न 18
भारत में ‘पेजर सेवा’ सर्वप्रथम कहाँ प्रारम्भ की गई? [2010]
उत्तर:
भारत में ‘पेजर सेवा’ सर्वप्रथम कोलकाता में प्रारम्भ की गई।

प्रश्न 19
‘www’ क्या है? [2011]
उत्तर:
www’ का पूरा नाम world wide Web है। यह एक इण्टरनेट से सूचना प्राप्त करने का सबसे बड़ा व प्रसिद्ध भाग है।

प्रश्न 20
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन का मुख्यालय कहाँ स्थित है? [2011, 12, 13]
उत्तर:
बंगलुरु में।

प्रश्न 21
TRAI को विस्तृत कीजिए।
उत्तर:
Telecom Regulatory Authority of India.

प्रश्न 22
सर्वप्रथम मनुष्य ने चन्द्रमा की धरती पर कब कदम रखा? [2013, 16]
उत्तर:
सर्वप्रथम मनुष्य ने चन्द्रमा की धरती पर कदम 20 जुलाई, 1969 को रखा।

प्रश्न 23
भारतीय दूरसंचार व्यवस्था के किन्हीं दो प्रमुख साधनों को लिखिए। [2016]
उत्तर:
(1) सेल्यूलर फोन तथा
(2) इण्टरनेट।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
किस सेवा से सामान एवं सेवाओं की ऑन लाइन खरीद-फरोख्त की जाती है? [2009]
(क) ई-मेल
(ख) ई-कॉमर्स
(ग) यूज़नेट
(घ) सेल्यूलर
उत्तर:
(ख) ई-कॉमर्स।

प्रश्न 2
विक्रम साराभाई अन्तरिक्ष केन्द्र की स्थापना की गई [2008, 11]
(क) तिरुवनन्तपुरम् में
(ख) बंगलुरु में
(ग) मुम्बई में
(घ) अहमदाबाद में
उत्तर:
(क) तिरुवनन्तपुरम् में।

प्रश्न 3
ई-कॉमर्स की सुरक्षा का सम्बन्ध है [2007]
(क) हैकिंग से।
(ख) ब्राण्ड अपहरण से
(ग) वायरस से
(घ) इनमें से सभी से
उत्तर:
(घ) इनमें से सभी से।

प्रश्न 4
भारत में नवीन दूरसंचार नीति की घोषणा की गई थी [2009, 13, 15]
(क) 26 मार्च, 2006 को
(ख) 20 जुलाई, 2007 को
(ग) 26 जनवरी, 2001 को
(घ) 26 मार्च, 1999 को
उत्तर:
(घ) 26 मार्च, 1999 को।

प्रश्न 5
निम्नलिखित में से किसके द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं का ऑन लाइन क्रय-विक्रय किया जाता है? [2009]
(क) मोबाइल फोन
(ख) ई-कॉमर्स
(ग) फैक्स
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) ई-कॉमर्स।

प्रश्न 6
अन्तरिक्ष अनुप्रयोग केन्द्र स्थित है [2009]
(क) केरल में
(ख) आन्ध्र प्रदेश में
(ग) कर्नाटक में
(घ) गुजरात में
उत्तर:
(घ) गुजरात में।

प्रश्न 7
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य नहीं है?
(क) वर्ष 1995 में भारत में इण्टरनेट की सुविधा प्रारम्भ हुई।
(ख) भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन की स्थापना 1969 में हुई।
(ग) वर्ष 1997 में भारत में वैप (WAP) तकनीक का प्रारम्भ हुआ।
(घ) मल्टीमीडिया आधुनिक कम्प्यूटर का आवश्यक अंग है।
उत्तर:
(ग) वर्ष 1997 में भारत में वैप (WAP) तकनीक का प्रारम्भ हुआ।

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UP Board Class 12 English Model Papers Paper 1

UP Board Class 12 English Model Papers Paper 1 are part of UP Board Class 12 English Model Papers. Here we have given UP Board Class 12 English Model Papers Paper 1.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject English
Model Paper Paper 1
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 12 English Model Papers Paper 1

Time : 3 hrs 15 min
Maximum Marks: 100

Instruction:
First 15 Minutes are allotted to the candidates for reading the question paper.
Note:

  • This paper is divided in Section-A and Section-B. Both the sections are compulsory.
  • Question No. 11 has three parts: I, II, and III. Attempt only one part of Question No. 11.
  • All other questions are compulsory

Section A

Question 1.
Explain, with reference to the context, any one of the following passages. (8)
(a) As soon as I alighted, a group of young children gathered around me. They were selling baskets— hand-woven, reed baskets with simple designs and patterns. They held the baskets high, shouting words, I did not know but conveying unmistakably their desire. These were refugee children.

(b) The extravagant and barbarous hecatombs of the vedic age have long since been forgotten, though animal sacrifice continues in some sects. Widows have long ceased to be burnt on their husband’s pyres. Girls may not by law be married in childhood. In buses and trains all over India Brahmans rub shoulders with the lowest castes without consciousness of grave pollution and the temples are open to all by law. Caste is vanishing.

(c) No one could say I am a beauty. I weigh 340 grams, am red-brown in colour and have an unimpressive shape. I am John’s dedicated slave-his heart. I hang by ligaments in the centre of his chest.

Question 2.
Explain with reference to the context, any one of the following extracts. (8)
(a) When I consider how my light is spent
Ere half my days, in this dark world and wide,
And that one talent, which is death to hide,
Loged with me useless, though my soul more bent
To serve therewith my Maker, and present
My true account, least He, returning chide.

(b) Out of the.day and night A joy has taken flight:
Fresh spring, and summer, and winter hoar,
Move my faint heart with grief, but with delight No more—Oh, never more!

(c) Whose woods these are I think I know,
His house is in the village though;
He will not see me stopping here To watch his woods fill up with snow.

Question 3.
Answer any one of the following questions in not more than 30 words each. (4)
(a) What are the two false notions about the heart?
(b) What did the author do while travelling alone in the compartment?
(c) What causes the decline of womanhood, according to S Radhakrishnan?

Question 4.
Fill in the blanks in the following sentences, selecting the brackets
(a) Mahatma Gandhi was looked upon by many, both Indian and European as the epitome of ……. tradition. (Muslim, Christian, Hindu, Persian).
(b) Vivekananda repeated it with a more nationalist ……. (duty, timbre, tone, thought)
(c) These two are the things which mould ………. minds and hearts. (women’s, men’s, nation’s, country’s)
(d) The children selling basket were sons and daughters of these ……… (refugees, labourers, peasants, prisoners)

Question 5.
Give the central idea of any one of the following poems(6)
(a) An Elegy Written in a Country Churchyard
(b) The Song of the Free
(c) La Belle Dame Sans Merci

Question 6.
Answer any one of the following questions in not more than 75 words. (8)
(a) Describe the character of Antonio as depicted in the play ‘The Merchant of Venice’.
(b Bring out the dramatic significance of the trial scene of ‘The Merchant of Venice’.

Question 7.
Answer any two of the following questions in not more than 30 words. (4+4=8)
(a) What did the child see the juggler doing? Why didn’t he stay there?
(b) What part did Gyan Babu play in the story?
(c) What made the astrologer feel uncomfortable?

Question 8.
(a) Point out the figures of speech in any two of the following: (1 + 1 = 2)
(i) Whose passions not his masters are.
(ii) Exult O shores and ring O bells!
(iii) And beauty born of murmuring sound Shall pass into her face.
(b) Define Personification and give an example of it. (1 + 1 =2)

Section B

Question 9.
(a) Change any one of the following sentences into indirect form of speech. (2)
(i) She said to her mother,, “What have you cooked in the dinner today for the family?”
(ii) The old man said, “The Earth moves round the Sun.”

(b) Combine the following sentences as directed within the brackets, (any one) (2)
(i) Premchand wrote “Godan.” He was a great story writer. (Into Simple Sentence)
(ii) He went to Agra. She went to Agra. (Into Simple Sentence)

(c) Transform the following sentences as directed within the brackets, (any two) (2)
(i)She has finished her assignment. (Into Passive Voice)
(ii) The farmer was tired due to work. (Into Negative Sentence)

(d) Correct any two of the following sentences. (1 + 1 = 2)
(i) I, you and he have completed it.
(ii) Maya knows to operate mobile.
(iii) I saw a man which was planting a tree.
(iv) Braje sh had written a letter yesterday.

Question 10.
(a) Give the synonyms of the following words. (1 +1 +1=3)
(i) Farmer
(ii) Peak
(iii) Hardship

(b) Give the antonyms of the following words. (1 +1+1=3)
(i) Zenith
(ii) Quick
(iii) Economical

(c) Use the following words in sentences of your own so as to bring out the difference in their meanings clearly. (1 + 1=2)
(i) Heart
(ii) Hurt

(d) Substitute one word for the following expressions.
(i) One that lives in water. (1 +1 +1 =3)
(ii) One who is new to a profession.
(iii) One who has infinite power.

(e) Use three of the following idioms/phrases in your own sentences so as to make their meanings clear. (1+1 +1=3)
(i) Through thick and thin
(ii) Kith and kin
(iii) Hand in gloves
(iv) Crying in wilderness
(v) Wet behind the ears
(vi) Do away with

Question 11.
(a). Translate the following into English. (10)
समय परिवर्तनशील है। वह कभी एक-सा नहीं रहता। परिवर्तन अपने साथ कुछ अच्छाईयाँ, तो साथ ही कुछ बुराईयाँ लेकर आता है। शिक्षा, उद्योग, चिकित्सा, संस्कृति आदि में कई परिवर्तन आने सेमनुष्य का जीवन सुख-सुविधाओं से भर उठा। यह सकारात्मक नकारात्मक दोनों रूपों में हुआ। सुख-समृद्धि के कारण समाज में हिंसा, चोरी, बलात्कार जैसी सामाजिक बुराईयाँ चुनौती के रूप में
आई। आज मनुष्यों की जीवन-शैली में बहुत अन्तर आ गया है, जिससे उनके जीवन-मूल्य भी बदल गए हैं। जीवन-मूल्यों में आई गिरावट के कारण मनुष्य का जीवन दिन-पर-दिन अशान्त होता जा रहा है। उसके जीवन में तनाव, अनिद्रा, हृदय से सम्बन्धित रोग और भय घर कर गया है।

Question 12.
Write an essay on any one of the following topics in about 250 words. (12)
(a) All that Glitters is not Gold
(b) Environmental Pollution
(c) Honour Balling
(d) Agriculture in India
(e) Narendra Modi: The Icon of India

Question 13.
Read the following passage carefully and answer the questions that follow.
Punctually, at midday, he opened his bag and spread out his professional equipment, which consisted of a dozen cowrie shells, a square piece of cloth with obscure mystic charts on it, a note book, and a bundle of Palmyra writing.
His forehead was resplendent with sacred ash and vermilion, and his eyes sparkled with a sharp abnormal gleam, which was really an outcome of a continual searching look for customers, but which his simple clients took to be a prophetic light and felt comforted.

The power of his eyes was considerably enhanced by their position as they were between the painted forehead and the dark whiskers, which streamed down his cheeks: even a half-wit’s eyes would sparkle in such a setting. To crown the effect, he wound a saffron-coloured turban around his head. This colour scheme never failed. People were attracted to him as bees are attracted to cosmos or dahlia stalks.
(a) Give a suitable title to the above passage. (1)
(b) From the description of the passage what one can make out about the person? (1)
(c) Give a summary of the above passage in your own words. (2)
(d) Why are the eyes of the person described as sparkled? (1)
(e) Why did the person open his bag? (1)

Answers

Answer 1.
(a) Reference: These lines have been taken from the lesson ‘A Girl With a Basket’ written by William C Douglas.

Context:
The writer was going to Ranikhet, an old British army hill station. At every station, he used to get
down on the platform to talk to people.

Explanation: The train was slow and stopped at every station. The writer used to get down from the train at every station and talk with people who were standing on the platform. On one such station, when he descended
from the train, his routine of talking to the people on the platform was interrupted. He was surrounded by a group of children, who were selling baskets. These were hand-woven, reed baskets with simple designs and patterns. Each of these children, held their baskets high so that the writer might buy from them. Though the writer could not understand their language, he could feel their desire to earn money by selling their baskets. These children were the sons and daughters of the refugees.

(b) Reference: These lines have been taken from the lesson ‘The Heritage of India’ written by AL Basham. Context: The writer says that with the passage of time, the whole face of India has altered. There has been a tremendous change in the Indian society. Many social evils have been eradicated.

Explanation: The writer says that many social evils that were prevalent in the ancient Indian culture have now been discarded and are no longer practised. The extravagant and uncivilised public and animal sacrifices have long been forgotten. Widows are no longer burnt on their husbands’ pyres. Child marriage is abolished by law. The caste system is also gradually disappearing. Brahmans in India can now be seen travelling and mixing with the people of lower castes. They are no longer conscious of the loss of their purity. Untouchability is no longer practised. The temples, by law, are now open to all irrespective of their caste and creed.

(c) Reference: These lines have been taken from the lesson ‘I am John’s Heart’ written by JD Ratcliff.

Context: The author describes the human heart in these lines.

Explanation: The author says that no one can say that a human heart is a beauty. It weighs around 340 grams and is reddish brown in colour. Moreover, the shape of the heart is unimpressive. The heart is a dedicated slave of John and works 24 hours a day. It is located in the centre of the chest and is supported by ligaments.

Answer 3.
(a) The two false notions associated with the heart are that it is romantic and it is delicate. But the heart is neither romantic nor delicate.
(b) While travelling alone in a railway compartment, we can talk to ourselves as loud as we please. We can stand on our head, sing, dance, practise golf or play marbles, open or shut the windows and do anything that we like without any objection.
(c) The natural quality of women is compassion. A decline in compassion causes the decline of womanhood.

Answer 4.
(a) Hindu
(b) timbre
(c) men’s
(d) refugees

Answer 7.
(a) The child saw the jugger playing the flute to the snake. He did not stay there as his parents had asked him not to listen to the coarse music played by the juggler.
(b) Sanku calculated the amount of money he had and the amount he needed to clear his debts. Hence, he came to the conclusion that without stealing the gold watch, he would be unable to clear his debts.
(c) The astrologer became very nervous after seeing the customer as he recognised that he was his enemy Guru Nayak, whom he had attempted to kill and throw into a well.

Answer 8.
(a) (i) Personification
(ii) Apostrophe
(iii) Onomatopoeia
(b) Personification is a literary device by which an inanimate object is made to appear as a living creature.
Example  Death lays its icy hands on kings, ‘Death’ has been personified in the above line.

Answer 9.
(a) (i) She asked her mother what she had cooked in the dinner that day for the family.
(ii) The old man said that the Earth moves round the Sun.
(b) (i) The great story writer Premchand wrote “Godan”.
(ii) Both, he and she, went to Agra.
(c) (i) Her assignment has been finished by her.
(ii) The farmer was not relaxed due to work.
(d) (i) You, he and I have completed it.
(ii) Maya knows how to operate mobile.
(iii) I saw a man, who was planting a tree.
(iv) Brajesh wrote a letter yesterday.

Answer 10.
(a) (i) Peasant
(ii) Top
(iii) Difficulty

(b) (i) Nadir
(ii) Slow
(iii) Extravagant

(c) (i) The heart pumps the blood.
(ii) I was hurt by her words.

(d) (i) Aquatic
(ii) Novice
(iii) Almighty

(e) (i) Best friends help you through thick and thin.
(ii) I am planning to go on a holiday with my kith and kin.
(iii) Politicians and bureaucrats work  hand in gloves.
(iv) It’s no use crying in wilderness for the lost ball.
(v)The young man, who joined the company is wet behind the ears.
(vi) Mahatma Gandhi did his best to do away with many social evils.

Answer 11.
(a) Time is ever changing. It never remains the same. Change brings good as well as evil things with it. With the change in education, industry, medical facilities and culture; the lives of human beings have been filled with happiness and prosperity. It has been in positive and negative ways both. Due to the prosperity, the society witnessed violence, theft, rape as a social challenge. Today, there has been a great shift in the lifestyle of the human beings and thus, there is a change in the values of life. Due to the fall in the moral values of life, the lives of human beings have been disturbed. Stress, insomnia, fear and heart disorders have entered the lives of human beings.

Answer 12.
(a) All that Glitters is not Gold
Introduction Appearance is often deceptive. Many things may superficially appear very attractive. When they are examined from close quarters, they prove to be disappointing. One cannot judge the quality of a thing by seeing its exterior portion only. Every shining metal is not gold. Very often, things are not what they seem to be. We often form our opinion about objects on the basis of superficial impression.

Superficiality: A beautifully packaged product launched in the market after massive advertising campaign may attract the consumers. He may buy that product once but if the product is of poor quality, he would not buy it again. A wise discerning person does not accept things at face value. He gets suspicious of a person or thing, which appears too good to be true. His trained eyes can see beyond the superficial appearance of an object.

Judgement of Quality  The quality of anything can be judged only if we come to know the reality of a thing. Gold is gold if the inner metal is also gold. Many things are made of inferior metal and to hide their defect, they are given a shine. They look beautiful and attract many persons who love beautiful objects. An object with a glittering shine of gold cannot be gold unless the whole object itself is gold. All that glitters is not gold. All people wearing saffron clothes cannot be saints. A foolish man can never be wise by pretending to be wise.

Conclusion: Education and knowledge can improve awareness among the masses. A layman can be misled. But, if he has knowledge about a particular thing, he cannot be cheated. One should use one’s discretion to judge persons and things. One should not be influenced by external appearance alone.

(b) Environmental Pollution
Introduction: Environment is the surrounding of an organism. This environment in which an organism lives is made up of various elements like air, water, land etc. Any kind of undesirable and unwanted change in the proportions of these elements can be termed as pollution.

Causes of Pollution: The poisonous water and waste products of the factories mingle with the water bodies and poison them. Resultantly, the aquatic life gets affected. Fish die, disturbing the ecological balance. The water, too, is rendered useless which can neither be used for drinking nor for washing. This also results in the reduction of the area of water bodies. Such a situation arises when non-degradable products are dumped on fallow land or on the banks of rivers and seashores.

Harmful Effects:
Waste materials such as plastics, polythene, bottles etc cause land pollution and render the soil infertile. Moreover, dumping of dead bodies of men and animals, washing of clothes and utensils add to the problem. Another major problem of pollution is the air, that we breathe in, is being polluted by the smoke pouring out of chimneys and automobiles. No doubt, air pollution takes place even by volcanoes, cyclones, forest fires etc but human activities are more responsible for causing air pollution. Gases like CO2, CO, SO2 are emitted, which mix with air and cause great harm to the human body, flora and fauna.

Prevention:
Use of organic manures should be encouraged instead of chemical fertilisers to prevent soil pollution. Planting of trees should be encouraged and cutting down of green trees should be strictly checked. Unleaded petrol should be used in vehicles. The directions of the Supreme Court to manufacture cars as per Euro I and Euro II norms should be strictly enforced. Industries should have proper emission systems and should conform to the laws in order to ensure safety of the people living in residential areas around. Strict laws should be legislated and enforced regarding the keeping of our seashores and river banks clean.

Conclusion:
The government should also try to educate people about various kinds of pollution and create public awareness. People should be involved in helping to reduce and control pollution. Moreover, punishments should be strictly given in case of violation of any environmental law so that such people learn a lesson. Until, we all get serious and resolve to make our planet a better place to live in, humanity stands amidst grave danger of perishing and being destroyed due to the severe and increasing problem of pollution.

(c) Honour Killing
Introduction: Cultural crimes are basically the crimes that seek to take place within the context of culture or under the head of it. As, we all know recently; there has been a spate of honour killings which has shocked the country. Honour killing is one of the types of cultural crime present in the country. An honour killing (also called a customary killing) is the murder of a (typically female) family or clan member by one or more fellow (mostly male) family members, in which the perpetrators (and potentially the wider community) believe the victim to have brought dishonour upon the family, clan or community.

Reason for Honour Killing:
The main reason for commitment of an ‘honour killing’ is belief that any member of family had brought dishonour to the family. The dishonour can be of different types for different families. The perceived dishonour is normally the result of the following behaviours, or the suspicion of such behaviours, as are dress codes unacceptable to the family/community; or wanting to terminate or prevent an arranged marriage or desiring to marry by own choice; or engaging in certain sexual acts, including those with the opposite or same sex etc.

Laws Regarding Honour Killing:
The presence of laws that treat ‘honour killings’ leniently is also a brazen disregard of the International Convention of Civil and Political Rights (1966), protecting individuals against the use of the death penalty except for the most serious crimes. ‘Honour killings’ also violate the Convention on the elimination of All Forms of Discrimination Against Women (1979).

Conclusion:
Honour killing is done for saving the honour of the family. But, there is no such honour in killing any person. ‘Religion’ and ‘culture’ cannot and must not be invoked as excuse for the killing of women, because religion and the laws, which derive from it are always subjective interpretations. No ‘culture’ has the right to kill and harm women based on their perceptions of morality or honour. The freedom of belief does not mean freedom to kill. Everyone has right to live life with full dignity and equality. Hence, active laws are the only antidote to such dishonourable practices.

(d) Agriculture in India
Introduction: India is an agricultural country. About seventy per cent of our population depends on agriculture. One-third of our National income comes from agriculture. Our economy is based on agriculture. The development of agriculture has much to do with the economic welfare of our country.

Our Agricultural Condition: 
Our agriculture remained underdeveloped for a long time. We did not produce enough food for our people. Our country had to buy foodgrains from other countries, but the things are changing now. India is producing more foodgrains than its needs. Some foodgrains are being sent to other countries. Great improvements have been made in agriculture through our five year plans. Green Revolution has been brought about in the agricultural field. Now, our country is self-sufficient in foodgrains. It is now in a position to export surplus foodgrains and some other agricultural products to other countries.

Means of Improvement:
Dams are constructed across many of the main rivers and canals are dug out to provide water for the irrigation of the land. Tubewells and pump-sets are provided to the farmers to irrigate the fields, where canal water could not reach. The use of better seeds, fertilisers and new techniques in agriculture, has brought about a revolution called the Green Revolution in agriculture. Our agricultural produce has increased manifolds, but the progress is still not sufficient. Our population is growing at a fast rate. Every year, we have millions of new mouths to be fed. We must check this fast growing population.

Conclusion:
We see that every effort is being made to develop our agriculture and boost the production. We should not rest here. We should continue our efforts to develop our agriculture still further.

(e) Narendra Modi: The Icon of India
Introduction: Narendra Modi was born in the small town of Vadnagar, in Northern Gujarat, India. His father was a street merchant, who struggled to support the family. Young Narendra and his brother sold tea near a bus terminal to help out. Though an average student in school, Modi spent hours in the library and was known as a strong debater. In his early teens, he joined Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad, the student wing of Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS), a Hindu nationalist political group.

Political Career: Modi married at 18 but spent little time with his wife and eventually ended the marriage. He dedicated his life to politics in Gujarat, joining the RSS m. 1971. In 1987, Narendra Modi joined the Bharatiya Janata Party (BJP), which stood for Hindu nationalism. His rise through the ranks was rapid, as he wisely chose mentors to further his career. He promoted privatisation of business, less governance and Hindu values. In 1995, Modi was elected BJP national secretary, a position from which he successfully helped settle internal leadership disputes, paving the way for BJP election victories in 1998. In June 2013, Modi was chosen by BJP to Head 2014 election campaign to the Lok Sabha (the Lower House of India’s Parliament), while a grassroot campaign was already in place to elect him Prime Minister.

Conclusion:
No matter, how much we try to bring out the negativities in him, we cannot ignore the charisma he radiates. He is the finest manager of Indian media amongst all leaders. He has excellent organisational capabilities, dynamic personality and can motivate even a corpse to move with his powerful words.

Answer 13.
(a) Title: A Professional at Work
(b) From the description given in this passage, we could make out that the person could be a future-teller or an astrologer.
(c) Summary: Every professional has his own ways and his own paraphrenlia. A person, who deals in future telling of others, needs to be dressed in the same way. He should wear a saffron clad and his forehead needs to be gleaming with vermilion so that his potential clients may turn up.
(d) Eyes of the person has been described sparkled because it was gleaming with confidence and he was really able to read one’s fortune.
(e) The person opened his bag to put all his paraphernalia out and started his daily chores of seeing the fortunes of others.

We hope the UP Board Class 12 English Model Papers Paper 1,  will help you. If you have any query regarding UP Board Class 12 English Model Papers Paper 1, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 21 World Scenario after Second World War

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 21 World Scenario after Second World War (द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वैश्विक परिदृश्य) are part of UP Board Solutions for Class 12 Civics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 21 World Scenario after Second World War (द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वैश्विक परिदृश्य).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter Chapter 21
Chapter Name World Scenario after Second World War
(द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वैश्विक परिदृश्य)
Number of Questions Solved 44
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 21 World Scenario after Second World War (द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वैश्विक परिदृश्य)

विस्तृत उत्तीय प्रश्न

प्रश्न 1.
शीतयुद्ध का अर्थ, परिभाषा व लक्षण लिखिए।
उत्तर :
शीतयुद्ध का अर्थ एवं परिभाषा
शीतयुद्ध एक ऐसी स्थिति है जिसे ‘उष्ण शान्ति’ कहा जा सकता है। ऐसी स्थिति में न तो ‘पूर्ण रूप से शान्ति रहती है और न ही वास्तविक युद्ध होता है, बल्कि शान्ति और युद्ध के बीच ” अस्थिरता बनी रहती है। यह स्थिति युद्ध की प्रथम सीढ़ी है जिसमें युद्ध के वातावरण का निर्माण किया जाता है। इस दौरान महाशक्तियाँ एक-दूसरे से भयभीत रहती हैं। दूसरे शब्दों में, शीतयुद्ध की ऐसी स्थिति होती है जिसमें युद्ध तो किसी भी क्षेत्र में नहीं होता, किन्तु हर समय युद्ध की-सी स्थिति बनी रहती है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शीतयुद्ध सोवियत संघ तथा अमेरिका के पारस्परिक सम्बन्धों की एक ऐसी शोचनीय दशा थी जिसमें दोनों एक-दूसरे के विरुद्ध शत्रुता का विचार रखते थे। वे शत्रु-युद्ध न लड़कर मनोवैज्ञानिक युद्ध से एक-दूसरे को निरन्तर नीचा दिखाने का प्रयत्न करते थे। इस युद्ध के लिए रणक्षेत्र के स्थान पर मानव मस्तिष्क का प्रयोग किया गया था। यह वैचारिक युद्ध था। इसमें दोनों पक्ष एक-दूसरे को राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक आदि दृष्टि से नीचा दिखाने के लिए प्रयत्न करते थे।

फ्लेमिंग के अनुसार, “शीतयुद्ध का उद्देश्य शत्रुओं को अलग-थलग रखना (Isolate Policy) और मित्रों को जीतना होता है।”

ग्रीब्स के अनुसार, “शीतयुद्ध परमाणु युग में एक ऐसी तनावपूर्ण स्थिति है। जो शस्त्र-युद्ध से कुछ हटकर है।”

एम० एस० राजन के अनुसार, “शीतयुद्ध शक्ति संघर्ष की मिली-जुली राजनीति का परिणाम है। दो विरोधी विचारधाराओं के संघर्ष का परिणाम है, दो परस्पर विरोधी पद्धतियों का परिणाम है, विरोधी चिन्तन-पद्धतियों तथा संघर्षपूर्ण राष्ट्रीय हितों की अभिव्यक्ति है जो कि समय और परिस्थितियों के अनुसार एक-दूसरे के पूरक के रूप में बदलती रही है।” | पं० जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, “शीतयुद्ध पुरातन शक्ति सन्तुलन की अवधारणा का नया रूप है। यह दो विचारधाराओं का संघर्ष न होकर दो नाभिकीय शक्तियों का पारस्परिक संघर्ष है।”

के० पी० एस० मेनन के अनुसार, “शीतयुद्ध जैसा कि विश्व ने अनुभव किया, दो विचारधाराओं, दो पद्धतियों, दो गुटों, दो राज्यों और जब वह अपनी पराकाष्ठा पर था तो दो व्यक्तियों के मध्य उग्र संघर्ष था; दो विचारधाराएँ थीं—पूँजीवाद तथा साम्यवाद, दो पद्धतियाँ थीं—संसदीय लोकतन्त्र तथा जनवादी जनतन्त्र, बुर्जुआ जनतन्त्र तथा सर्वहारा वर्ग की तानाशाही। दो गुट थे-नाटो तथा वारसा पैक्ट। दो राज्य थे-संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ। दो व्यक्ति थे-जोसेफ स्टालिन तथा जॉन फॉस्टर डलेस।”

करेन मिंग्स्ट के अनुसार –“शीतयुद्ध का आशय दो महाशक्तियों के बीच उच्चस्तरीय तनावों व प्रतियोगिता से था जिसमें दोनों ने प्रत्यक्ष सैनिक भिड़न्त को दूर रखा। परमाणु यन्त्रों की होड़ ने द्विध्रुवीयता को जन्म दिया जिसमें हर पक्ष ने बड़ी सावधानी से काम किया कि कहीं वे तीसरे विश्व युद्ध के कगार के समीप न आ जाएँ।

इस प्रकार शीतयुद्ध ‘शस्त्र-युद्ध की श्रेणी में न रखकर युद्ध का वातावरण कहा जा सकता है क्योंकि शीतयुद्ध के काल में युद्ध के समान वातावरण बना रहता था। अत: यह एक कुटनीतिक दाँव-पेचों से लड़ा जाने वाला युद्ध है जो कभी भी ‘वास्तविक युद्ध’ के विनाशकारी मार्ग का रूप धारण करने की सम्भावना बनाए रखता है।

शीतयुद्ध के लक्षण
शीतयुद्ध के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. शीतयुद्ध ऐसा संघर्ष था जो सोवियत संघ तथा अमेरिका जैसी बड़ी शक्तियों के मध्य था।
  2. शीतयुद्ध प्रचार के माध्यम से तथा वाक् युद्ध के रूप में विश्व राजनीति में व्याप्त हो गया था।
  3. शीतयुद्ध का प्रभावशाली लक्षण यह था कि इसमें दोनों महाशक्तियों प्रचार, गुप्तचरी, सैनिक हस्तक्षेप, सैनिक सन्धियाँ तथा विभिन्न प्रकार के संगठनों का निर्माण करती रहती थीं। ऐसा करके वे अपनी शक्तियों को सुदृढ़ कर रही थीं।
  4. दोनों शक्तियों ने विश्व में तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर दी थी जिसके कारण युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी, जिसे शीतयुद्ध का नाम दिया गया।
  5. यह युद्ध भयानक था क्योंकि इसके भड़क उठने का कोई निश्चित समय नहीं था।
  6. यह युद्ध मस्तिष्क से लड़ा जाने वाला विचारों का युद्ध था। अत: इससे सभी देश भयभीत रहते थे।
  7. यह वास्तविक युद्ध से भी अधिक भयानक था।

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प्रश्न 2.
शीतयुद्ध के प्रमुख कारण क्या थे? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
विभिन्न विद्वानों ने शीतयुद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित बताए हैं।

1. परमाणु बम के आविष्कार का प्रचार – कुछ विद्वानों का मत है कि शीतयुद्ध के प्रारम्भ होने का एक महत्त्वपूर्ण कारण परमाणु बम के आविष्कार का प्रचार है। ऐसा कहा जाता है। कि परमाणु बम ने हिरोशिमा तथा नागासाकी का ही सर्वनाश नहीं किया, वरन् युद्धकालीन मित्र राष्ट्रों के हृदय में भी शंका तथा भय की स्थिति उत्पन्न कर दी। संयुक्त राज्य अमेरिका में परमाणु बम बनाने के सम्बन्ध में भी अनुसन्धान का कार्य तो बहुत पहले से चल रहा था। वैसे इस अनुसन्धान में अमेरिका ने ब्रिटेन को सम्मिलित किया था तथा परमाणु बम से सम्बन्धित कुछ तकनीकी बिन्दु उसे भी बता दिए थे, परन्तु सोवियत संघ ने अपने अनुसन्धान को गुप्त रखा। अमेरिका तथा ब्रिटेन द्वारा परमाणु बम बनाए जाने को गुप्त रखने के कारण सोवियत संघ ने क्षोभ व्यक्त किया। अमेरिका के पास परमाणु बम होने की जानकारी ब्रिटेन तथा कनाडा को तो थी परन्तु यह रहस्य सोवियत संघ से छिपाया गया था। इस कारण सोवियत संघ को अपार दुःख हुआ। उसने कहा कि यह विश्वासघात का कार्य है। दूसरी ओर परमाणु बम पर खोज के कारण अमेरिका तथा ब्रिटेन प्रसन्नता व्यक्त कर रहे थे। वे यह बात प्रकट कर रहे थे कि हमें अब सोवियत संघ की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है। इस कारण दोनों शक्तियों के बीच वैमनस्य बढ़ गया।

2. सोवियत संघ द्वारा अमेरिका की आलोचना – द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्त होने से कुछ समय पूर्व से ही सोवियत संघ ने अमेरिका की आलोचना करना प्रारम्भ कर दिया था। वहाँ की पत्रिकाओं में ऐसे लेख छपते थे जिनमें अमेरिकी नीतियों की आलोचना तीव्र शब्दों में की गई थी। इस प्रकार के कार्यों से अमेरिकी प्रशासन तथा जनता दोनों ही सोवियत संघ के विरोधी हो गए। अब अमेरिका ने सोवियत संघ की अमेरिका विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएँ बनानी प्रारम्भ की जिससे साम्यवाद के प्रचार-प्रसार के कार्यों पर अंकुश लगाया जा सके। सोवियत संघ ने अमेरिका में भी अपने प्रजातन्त्र को फैलाना प्रारम्भ किया। सन् 1945 में ‘स्ट्रैटेजिक सर्विस के कार्यकर्ताओं को विदित हुआ कि उनकी संस्था के कुछ प्रपत्र साम्यवादियों को पहुँचाए गए हैं। सन् 1946 में ‘कैनेडियन रॉयल कमीशन’ की रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें कहा गया है कि कनाडा की साम्यवादी पार्टी सोवियत संघ की एक भुजा है। यह सब देखकर अमेरिकी सरकार सोवियत संघ से सावधान हो गई। उसने सम्पूर्ण विश्व में साम्यवाद की आलोचना प्रारम्भ कर दी। इसका परिणाम यह हुआ कि शीतयुद्ध में तीव्रता उत्पन्न हो गई।

3. सोवियत संघ द्वारा पश्चिम की नीति का विरोध करना – द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् एक ओर सोवियत संघ पश्चिम की नीति का विरोध कर रहा था तो दूसरी ओर पश्चिमी यूरोप के राष्ट्र सोवियत संघ के विरुद्ध प्रचार करने में संलग्न थे। 18 अगस्त, 1946 को बर्नेज | (अमेरिका के सचिव) तथा बेविन (ब्रिटेन के विदेश मन्त्री) ने कहा, “हमें तानाशाही के एक रूप के स्थान पर उसके दूसरे रूप के संस्थान को रोकना चाहिए। इसके पश्चात् 5 मार्च, 1947 को ब्रिटिश प्रधानमन्त्री चर्चिल ने कहा, “बाल्टिक में स्टेटिन से लेकर एड्रियाटिक में ट्रीटस्के तक महाद्वीप में एक लौह आवरण क्षेत्र में निवास करने वाली जनता न केवल सोवियत प्रभाव में है वरन् सोवियत नियन्त्रण में भी है। ………. स्वतन्त्रता की दीपशिखा प्रज्वलित रखने तथा ईसाई सभ्यता की सुरक्षा के लिए अब कुछ करना है।” इस प्रकार ब्रिटेन तथा अमेरिका ने आंग्ल-अमेरिकी गठबन्धन की आवश्यकता पर बल दिया। चर्चिल ने जो भाषण दिया उसके परिणाम दूरगामी हुए। अब दोनों महाशक्तियाँ एक-दूसरे के विरुद्ध विष वमन करने लगीं। दोनों का दृष्टिकोण शत्रुतापूर्ण हो गया।

4. बर्लिन की घेराबन्दी की नीति – सोवियत संघ ने जून, 1948 ई० के प्रोटोकॉल को ताक पर रखकर बर्लिन की घेराबन्दी प्रारम्भ कर दी। इससे पश्चिमी देशों ने सुरक्षा परिषद् में सोवियत संघ की शिकायत की। विश्व में इस बात पर प्रचार किया गया कि यह कार्यवाही शान्ति की। पूर्ण स्थापना को शीघ्र ही समाप्त कर देगी।

5. सोवियत संघ द्वारा ‘वीटों’ का प्रयोग – सोवियत संघ ने बात-बात में ‘वीटो का प्रयोग करना प्रारम्भ किया जिसके कारण संयुक्त राष्ट्र के कार्यों में बाधा पड़ने लगी। सोवियत संघ की दृष्टि में संयुक्त राष्ट्र विश्व-शान्ति तथा सुरक्षा की स्थापना करने वाली एक विश्व संस्था न होकर अमेरिका का एक प्रचार-तन्त्र था। अतः सोवियत संघ ने वीटो की शक्ति का प्रयोग करके पश्चिमी राष्ट्रों के प्रस्तावों को निरस्त करना प्रारम्भ कर दिया। ऐसी स्थिति में यूरोप के पश्चिमी राष्ट्र तथा अमेरिका यह सोचने लगे कि सोवियत संघ संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था को समाप्त करना चाहता है। अब पश्चिमी राष्ट्र सोवियत संघ की कटु आलोचना करने लगे। इससे विश्व में तनाव का वातावरण व्याप्त हुआ।

6. शक्ति-संघर्ष की राजनीति – मार्गेन्थो ने लिखा है, “अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति शक्ति-संघर्ष की राजनीति है।’ विश्व में जितने भी शक्तिशाली राष्ट्र होते हैं उनमें प्रायः संघर्ष होता रहता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् सोवियत संघ तथा अमेरिका दो शक्तिशाली राष्ट्र विश्व राजनीति में उभरकर आए। इनमें विश्व को अपने प्रभुत्व में लेने का पारस्परिक संघर्ष सभी के समक्ष प्रारम्भ हुआ। कुछ विचारकों की दृष्टि में शीतयुद्ध एक प्रकार से शक्ति सन्तुलन का ही पुराना रूप है। इसका प्रमुख कारण यह है कि इसमें दोनों शक्तियाँ अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए दिन-रात संलग्न थीं। धीरे-धीरे इसने सैद्धान्तिक रूप धारण कर लिया। शीतयुद्ध प्रमुख रूप से राष्ट्रीय हितों का स्वार्थ था। द्वितीय महायुद्ध के उपरान्त अनेक मुद्दों पर सोवियत संघ तथा अमेरिका के स्वार्थ आपस में टकराते थे। ये विवादास्पद मुद्दे थे–जर्मनी का प्रश्न, बर्लिन का प्रश्न, पूर्वी यूरोप में साम्यवादी शासन की स्थापना करना आदि।

7. यू-2 की घटना एवं शीतयुद्ध का नवीनीकरण – यू-2 अमेरिका का एक जासूसी विमान था जिसे सोवियत संघ ने मार गिराया था। इस जासूसी कार्यवाही से सोवियत संघ अमेरिका से अप्रसन्न हो गया तथा उसने माँग की कि अमेरिका इस असम्मानजनक कार्य के लिए क्षमा माँगे तथा भविष्य में सोवियत संघ में जासूसी न करने का आश्वासन दे। अमेरिका सोवियत संघ की इस माँग के पक्ष में नहीं था। अतः यू-2 की घटना ने एक बार पुन: अमेरिका-सोवियत सम्बन्धों को तनावपूर्ण तथा क्षुब्ध बना दिया।

8. पेरिस शिखर सम्मेलन की असफलता तथा शीतयुद्ध – 16 मई, 1960 में इसी घटना की छाया के नीचे पेरिस शिखर सम्मेलन प्रारम्भ हुआ। इस आश्वासन की अवहेलना करते हुए कि यू-2 की घटना का मामला शिखर सम्मेलन में नहीं उठाया जाएगा, खुश्चेव ने अमेरिका से पुनः माफी माँगने की माँग की तथा विरोध को प्रकट करने के लिए उन्होंने राष्ट्रपति आइजनहावर से हाथ तक नहीं मिलाया। अत: पेरिस शिखर सम्मेलन विफल हो गया तथा शीतयुद्ध का वातावरण पुनः तीव्र हो गया।

9. 1961 को बर्लिन दीवार का संकट – 1961 ई० के बर्लिन दीवार संकट तथा क्यूबा मिसाइल संकट ने सोवियत संघ तथा अमेरिका को लगभग युद्ध के किनारे लाकर खड़ा कर दिया। अगस्त, 1961 को बर्लिन शहर से पश्चिमी क्षेत्रों को सोवियत अधिकार वाले क्षेत्रों से पृथक् करने के लिए सोवियत संघ द्वारा निर्मित दीवार का अमेरिका ने कड़ा विरोध किया। अमेरिका तथा सोवियत संघ दोनों ने अपने-अपने मोर्चे पर टैंक लाकर खड़े कर दिए थे तथा दोनों के मध्य युद्ध की आशंका प्रबल हो गई थी। परन्तु युद्ध तो नहीं हुआ लेकिन इस क्षेत्र में तनाव व्याप्त रहा।

10. भारत-पाक युद्ध तथा शीतयुद्ध – 1964 ई० में वियतनाम में सैनिक कार्यवाही की स्थिति में वृद्धि करने के विषय में अमेरिकी राष्ट्रपति जानसन के निर्णय का सोवियत संघ ने कड़ा विरोध किया। 1965 ई० में भारत-पाक युद्ध प्रारम्भ हो गया तथा दोनों अमेरिका व सोवियते संघ ने विरोधी पक्ष लिए। भारत तथा पाकिस्तान के बीच सोवियत संघ की मध्यस्थता की भूमिका अमेरिका को अप्रिय लगी। इससे दोनों महाशक्तियों में तनाव और तीव्र हो गया।

11. सन 1969 का बर्लिन दीवार संकट – मार्च, 1969 में बर्लिन एक बार पुनः अमेरिका तथा सोवियत संघ के सम्बन्धों में शीतयुद्ध के तनावों का कारण बन गया। पश्चिमी जर्मनी की सरकार के इस निर्णय को फैडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी (प० जर्मनी) के चांसलर का निर्वाचन पश्चिमी बर्लिन में ही किया जाए, सोवियत संघ तथा जर्मनी डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (पू०जर्मनी) ने इसका कड़ा विरोध किया। इस कारण अमेरिका सोवियत संघ से पुनः अप्रसन्न हो गया।

इस प्रकार शीतयुद्ध को हम राष्ट्रीय हितों का युद्ध कह सकते हैं; क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व में अनेक घटनाएँ घटीं तथा नए-नए मुद्दे उत्पन्न हुए। इन मुद्दों को लेकर सोवियत संघ तथा अमेरिका वाक्युद्ध करते रहते थे। यही वाक्युद्ध आगे चलकर ‘शीतयुद्ध’ के नाम से विख्यात हुआ।

प्रश्न 3.
“शीतयुद्ध के कारण विश्व की राजनीति का स्वरूप द्वि-ध्रुवीय बन गया था।” विवचेना कीजिए।
या
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीतयुद्ध के प्रभावों की विवेचना कीजिए।
उत्तर :
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीतयुद्ध का प्रभाव
विश्व की राजनीति को जितना शीतयुद्ध ने प्रभावित किया उतना और किसी तत्त्व ने प्रभावित नहीं किया। इस दृष्टि से शीतयुद्ध के प्रभाव का अध्ययन हम निम्नांकित रूपों में करेंगे

1. विश्व राजनीति का द्वि-ध्रुवीकरण – शीतयुद्ध के कारण विश्व की राजनीति का विभाजन दो शक्ति गुटों अर्थात् सोवियत संघ तथा अमेरिका में हो गया। उसे द्वि-ध्रुवीकरण (Bipolar) का नाम दिया गया। अब विश्व के दो शक्ति सम्पन्न राष्ट्र पृथक्-पृथक् दो गुटों के रूप में विभक्त हो गए और उसी के अनुरूप विश्व के अन्य राष्ट्रों का नेतृत्व करने लगे।

2. आणविक युद्ध की आशंका – अमेरिका ने जापान के विरुद्ध 1945 ई० में आणविक शस्त्र का प्रयोग किया था। शीतयुद्ध के दौरान विश्व के राष्ट्रों ने यह सोचना प्रारम्भ किया कि अगला युद्ध आणविक युद्ध होगा तथा उस युद्ध की भयंकरता के समक्ष किसी भी राष्ट्र की राजनीति निरक्षक सिद्ध होगी। क्यूबा संकट के समय यह सोचा जाने लगा था कि आणविक युद्ध प्रारम्भ हो जाएगा। इस प्रकार आणविक आतंक के कारण सभी राष्ट्र मानसिक रूप से अशान्त रहने लगे। कुछ राष्ट्रों ने आणविक शस्त्रों का निर्माण भी प्रारम्भ कर दिया। इस प्रकार विश्व की परम्परागत अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था का स्वरूप परिवर्तित होने लगा।

3. शस्त्रीकरण की होड़ में वृद्धि – शीतयुद्ध के कारण शस्त्रीकरण की होड़ को बढ़ावा मिला। अतः विश्व-शान्ति तथा नि:शस्त्रीकरण की सभी योजनाएँ विफलता के गर्त में समा गईं।

4. आतंक तथा अविश्वास की सीमा में वृद्धि – शीतयुद्ध के कारण भी अधिकांश राष्ट्र आशंका की तथा अविश्वास की स्थिति में आ गए। सोवियत संघ तथा अमेरिका की पारस्परिक मतवैभिन्नयता के कारण अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में तनाव, मनोमालिन्य, कटुता, प्रतिस्पर्धा तथा अविश्वास बढ़ गया। सभी राष्ट्र विचार करने लगे कि किसी भी समय छोटी-सी चिंगारी सम्पूर्ण विश्व में तीसरे महायुद्ध की आग को भड़का सकती हैं। सभी राष्ट्रों की विदेश नीति ठहर-सी गई अर्थात् शीतयुद्ध के कारण युद्ध का वातावरण बना रहा।

5. सैनिक सन्धियों तथा गठबन्धनों को जन्म देना – शीतयुद्ध के कारण विश्व में अनेक प्रकार के सैनिक गठबन्धनों तथा सैनिक सन्धियों का जन्म हुआ। नाटो, सिएटो, सेण्टो तथा वारसा पैक्ट जैसे गठबन्धनों ने तो शीतयुद्ध की ढीली गाँठ को अधिक सुदृढ़ कर दिया। इससे नि:शस्त्रीकरण की समस्या और अधिक जटिल हो गई। वास्तव में सैनिक संगठनों की राजनीति इतनी शंकालु थी कि द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व में आए दिन कहीं-न-कहीं युद्ध होते रहे।

6. मानव कल्याण का स्वरूप गौण – शीतयुद्ध के कारण विश्व की राजनीति का केन्द्रबिन्दु सुरक्षा की समस्या तक सीमित हो गया। मानव-कल्याण से सम्बन्धित कार्यक्रम उपेक्षित हो गए। विश्व के निर्धन तथा विकासशील राष्ट्रों में भुखमरी, बीमारी, बेरोजगारी, अशिक्षा, आर्थिक पिछड़ापन, राजनीतिक अस्थिरता आदि अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गईं तथा उनका समाधान खोजने के लिए किसी भी बड़े राष्ट्र ने कोई कदम नहीं उठाया। महाशक्तियाँ अपने-अपने गुटों को मजबूत करने की राजनीति में उलझी रही।

7. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का सैनिक दृष्टिकोण – शीतयुद्ध के कारण अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सैनिक दृष्टिकोण में वृद्धि हुई। सभी राष्ट्र अपनी सामर्थ्य से अधिक सैनिक शक्ति को बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहने लगे। सम्पूर्ण विश्व दो गुटों (शिविरों) में विभाजित हो गया। इससे चारों ओर विरोध तथा असमंजस का वातावरण उत्पन्न हो गया।

8. सैनिक-संख्या में वृद्धि – शीतयुद्ध के कारण सभी राष्ट्रों की राजनीति में सैनिकों की वृद्धि करने की अवधारणा शान्ति तथा युद्ध के बीच झूलने लगी। ऐसी स्थिति में शान्तिपूर्ण कार्यक्रमों को जैसे जंग-सा लग गया। सभी राष्ट्र सैनिकों की संख्या में वृद्धि करने लगे।

9. संयुक्त राष्ट्र-संघ के कार्यों में अवरोध – शीतयुद्ध के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे संगठन के कार्यों में अवरोध उत्पन्न हो गया। परन्तु महाशक्तियों के पारस्परिक विरोधी दृष्टिकोण के कारण संघ की ओर से किसी भी आक्रमक राष्ट्र के विरुद्ध कठोर कार्यवाही नहीं हो सकी। अनेक बार तो संयुक्त राष्ट्र-संघ चुपचाप घटनाक्रमों को देखता रहा परन्तु कुछ नहीं कर सका।

10. सकारात्मक परिणाम – उपर्युक्त सभी परिणाम नकारात्मक माने जाते हैं। परन्तु कुछ सकारात्मक परिणाम भी परिलक्षित हुए; जैसे –

  1. शीतयुद्ध के कारण गुटनिरपेक्षता को बल मिला।
  2. तीसरी दुनिया के राष्ट्रों को उपनिवेशवाद से छुटकारा मिला।
  3. विश्व में शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व को बल मिला।
  4. इसके अतिरिक्त शीतयुद्ध के कारण तकनीकी तथा प्राविधिक विकास तीव्र गति से हुआ।
  5. राष्ट्रों ने अपनी विदेशी नीति में यथार्थवाद को भी स्थान दिया।

प्रश्न 4.
शीतयुद्ध के विकास के विभिन्न चरणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
शीतयुद्ध के विकास के विभिन्न चरण

शीतयुद्ध का प्रथम चरण (1946 से 1953)

  • 19 फरवरी, 1947 को अमेरिकी सीनेट के सम्मुख राज्य सचिव डीन एचिसन ने कहा, “सोवियत संघ की विदेश नीति आक्रामक और विस्तारवादी है।”
  • ‘ट्रमैन सिद्धान्त–साम्यवाद विरोध के नाम पर अमेरिका ने 12 मार्च, 1947 को विश्व के अन्य देशों के लिए टूमैन सिद्धान्त’ का प्रतिपादन किया।
  • ‘मार्शल योजना’–विश्व को साम्यवादी क्रान्ति के खतरे से बचने के लिए 8 जून, 1947 को अमेरिका ने मार्शल योजना की घोषणा की।
  • ‘कोमेकोन’ की स्थापना-सोवियत गुट के नौ यूरोपीय देशों ने मार्शल योजना का करारा जवाब देने के लिए 25 अक्टूबर, 1947 को ‘कोमकोन’ का गठन किया।
  • ‘नाटो’ का गठन-4 अप्रैल, 1919 को अमेरिका के नेतृत्व में कनाडा और पश्चिम यूरोप के दस देशों-बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, आयरलैण्ड, इटली, लक्जेमबर्ग, हॉलैण्ड, पुर्तगाल, ब्रिटेन और नॉवें–ने ‘नाटो’ नामक सैनिक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
  • 1 अक्टूबर, 1949 को बीजिंग में राष्ट्रवादी सरकार को हटाकर ‘माओत्से तुंग’ के नेतृत्व में साम्यवादी सरकार की स्थापना की गई।
  • जून, 1950 में चीनी एवं रूसी सैनिक मदद से उत्तरी कोरिया ने दक्षिणी कोरिया पर फौजी हमला किया।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा उत्तरी कोरिया को आक्रमणकारी घोषित किया। अन्त में 8 जून, 1953 को युद्ध विराम हुआ।

शीतयुद्ध का दूसरा चरण (1953 से 1958)

  • 1953 में सोवियत संघ ने पहली बार परमाणु परीक्षण किया।
  • 1954 में अमेरिका ने तीसरी दुनिया के देशों में साम्यवाद का प्रसार रोकने के लिए ‘सिएटो (SEATO) के साथ सैनिक समझौता किया।
  • 1955 में सैनिक समझौते सेण्टो’ (CENTO) की स्थापना।
  • अमेरिका द्वारा साम्यवाद का प्रसार रोकने के लिए ‘सिएटो’, ‘सेण्टो’ एवं ‘नाटो’ को जवाब देने के लिए सोवियत रूस द्वारा 14 मई, 1955 को पूर्वी-यूरोपीय देशों को ‘वारसा पैक्ट में शामिल कर सैनिक सुरक्षा की गारन्टी प्रदान की गई।
  • 1956 में स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण के जवाब में फ्रांस और ब्रिटेन द्वारा मिस्र पर सैनिक हमला किया गया।
  • जून, 1957 में अमेरिका द्वारा ‘आइजनहावर सिद्धान्त’ की घोषणा की गई।

शीतयुद्ध का तीसरा चरण (1959 से 1962)

  • ‘कैम्प डेविड’ नामक स्थान पर रूसी नेता खुश्चेव और अमेरिकी नेता आइजनहॉवर के बीच 16 मई, 1960 को पेरिस में नि:शस्त्रीकरण की समस्या सुलझाने के लिए एक शिखर सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय किया गया जिसे ‘कैम्प डेविड की भावना’ के नाम से जाना गया।
  • मई, 1960 को यू-2 काण्ड के कारण ‘कैम्प डेविड की भावना’ पर पानी फिर गया।

शीतयुद्ध का चौथा चरण (1963 से 1979)

  • नि:शस्त्रीकरण के क्षेत्र में 23 जुलाई, 1963 को मास्को में रूस, अमेरिका और ब्रिटेन ने वायुमण्डल, बाह्य अन्तरिक्ष और समुद्र में परमाणु परीक्षण पर प्रतिबन्ध सन्धि पर हस्ताक्षर किए।

शीतयुद्ध का अन्त

1980 के दशक के उत्तरार्द्ध में सामान्य रूप से यह मत व्यक्त किया कि शीत युद्ध का अन्त हो गया है, परन्तु पश्चिमी लेखक ‘Water Lequer’ अपने एक अंक American Journal of Foreign Affairs, 1988 में शीतयुद्ध के अन्त की सम्भावना से इन्कार किया।

जून, 1990 में NATO के सदस्य देशों ने यह औपचारिक रूप से घोषणा की कि शीत युद्ध का अन्त हो गया।

1990 के शुरू के दशक में औपचारिक रूप से ‘वारसा पैक्ट’ का अन्त हो गया।

द्वितीय विश्वयुद्ध के उत्तरार्द्ध से अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में जिस शीतयुद्ध का प्रारम्भ हुआ वह 1962 के क्यूबा संकट के समय तक उग्र रहा, परन्तु 1962 के बाद अमेरिकी गुट तथा सोवियत गुट के बीच की तनाव की स्थिति में शिथिलता आयी, परन्तु शीतयुद्ध के इतिहास में 1980 वाले दर्शक के उत्तरार्द्ध तक ऐसा समय कभी नहीं आया जब यह कहा जा सके कि शीतयुद्ध का अन्त हो गया है। 1985 में सोवियत संघ के सर्वोच्च नेता के रूप में ‘गोर्वाचोव’ के उदय के बाद शीतयुद्ध के अवशेषों का क्रमिक रूप से लोप होने लगा और 1980 के दशक के अन्त तक स्वत: शीतयुद्ध का अन्त हो गया। ‘वारसा पैक्ट’ के दशक में तो पहले ही शीतयुद्ध की समाप्ति की घोषणा कर दी थी।

शीत युद्ध के अन्त में उन्हीं तथ्यों ने सहायता पहुँचाई जिन्होंने 1962 के बाद ‘तनाव शैथिल्य’ (Detente) की प्रक्रिया के प्रारम्भ में सहायता पहुँचाई थी। ऐसे तथ्य हैं-सैनिक तैयारी की निरर्थकता, आणविक युद्ध में विजयी एवं विजित के अवधारणा की अप्रसांगिकता दोनों ही महाशक्तियों के हितों के लिए शीतयुद्ध की निरर्थकता तथा गुटीय राष्ट्रों की मित्रता की अवांछनीयता एवं अविश्वसनीयता आदि। परन्तु इन तथ्यों के अतिरिक्त सोवियत संघ में गोर्वाचोव जैसे नेता के रूप में उदय ने, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में एक ऐसा वातावरण तैयार करने में सहायक हुआ जिसमें तनाव की गुंजाइश नहीं थी। सोवियत संघ में आन्तरिक राजनीति में ‘Glasnost and Prestroika’ (खुलेपन एवं पूँजी निर्माण) ने जिस नवीन विचार का समावेश किया उसी के चलते ऐसा वातावरण तैयार हुआ।

सैनिक तैयारी की निरर्थकता एवं वास्तविक अर्थों में नि:शस्त्रीकरण के लिए किये जाने वाले प्रयासों ने शीतयुद्ध के दोनों पक्षों के बीच पारस्परिक विश्वास एवं सद्भावना को आगे बढ़ाने में सहायता पहुँचायी। ऐसी स्थिति में यह स्वाभाविक ही था कि शीतयुद्ध के काल के नाटो तथा वर्साय सन्धि जैसे सैनिक गठबन्धनों की महत्ता कम हो। 1990 के शुरू के दशक में तो औपचारिक रूप से वर्साय सन्धि’ का अन्त हो गया।

शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद भी ‘नाटो’ का अस्तित्व बना हुआ है एवं इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इसके सैनिक संगठन के स्वरूप में भारी परिवर्तन आ गया।

मई एवं जून, 1997 में नाटो के इस सम्मेलन में सोवियत संघ के शामिल हो जाने पर इसे अन्त समझा जाने लगा है।

प्रश्न 5.
दितान्त’ की विवेचना कीजिए।
उत्तर :
दितान्त : अर्थ एवं परिभाषाएँ।
‘दितान्त’ फ्रेंच भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है – ‘तनाव में शिथिलता’ या तनाव में कमी’ (Relaxation of Tensions)। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के परिप्रेक्ष्य में ‘दितान्त’ से अभिप्राय सोवियत-अमेरिकी तनाव में कमी और उनमें दिन-प्रतिदिन बढ़ती हुई मित्रता, सहयोग और शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की भावना से है

ऑक्सफोर्ड इंगलिश शब्दकोश के अनुसार, दितान्त दो राज्यों के तनावपूर्ण सम्बन्धों की समाप्ति (Cessation of strained relations between two states) है।

डॉ० राणा के अभिमत में इस सहयोगी-प्रतिद्वन्द्वी व्यवहार को चार प्रकार की परिस्थितियों में अभिव्यक्त किया जा सकता है किसी संकट की घड़ी में (Crisis Management), विश्व में यथास्थिति बनाए रखने की आवश्यकता (Management of the overall international status quo); आर्थिक सहयोग (Economic management) और परमाणु अस्त्रों के परिसीमन की आवश्यकता के समय (Management of arms control)।

अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अधुनातन परिप्रेक्ष्य में दितान्त का अर्थ इस प्रकार से किया जा सकता है –

  1. अमेरिका तथा पूर्व सोवियत संघ के मध्य शीतयुद्ध के बजाय सामंजस्यपूर्ण (Reapproachment) सम्बन्धों को दितान्त कहते हैं।
  2. अमेरिका तथा पूर्व सोवियत संघ के मध्य मतभेद के बजाय शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व (Peace co-existence) के सम्बन्धों को दितान्त कहते हैं।
  3. दितान्त का यह अर्थ कदापि नहीं कि दोनों महाशक्तियों के मतभेद, पूर्णत: समाप्त हो गए या उनमें वैचारिक मतभेद नहीं पाए जाते थे या उनमें कोई राजनीतिक, आर्थिक व सैनिक प्रतियोगिता नहीं थी दितान्त की विशेषता यह थी कि सैद्धान्तिक मतभेदों एवं प्रतियोगिता के बावजूद इसने महाशक्तियों में आर्थिक, वैज्ञानिक एवं तकनीकी सहयोग में बाधा प्रस्तुत नहीं होने दी।

वस्तुत: दितान्त का अर्थ शीतयुद्ध की समाप्ति नहीं है। इसका यह अर्थ भी नहीं कि महाशक्तियाँ अपना वर्चस्व अथवा सर्वोपरिता बनाए रखने में अभिरूचि नहीं रखतीं। दितान्त का सीधा-सादा अर्थ यह है कि महाशक्तियों (अमेरिका और पूर्व सोवियत संघ) ने न्यूनाधिक रूप से आपसी प्रतिस्पर्धा के मानदण्डों को आंशिक रूप से संहिताबद्ध करने का प्रयत्न किया था। वस्तुतः दितान्त का सदैव यह मन्तव्य रहा कि सहयोग के साथ भिड़न्त को सन्तुलन बना रहे। “दितान्त (तनाव-शैथिल्य) मित्रता नहीं है, यह सर्वश्रेष्ठ भाव में विरोधाभासी सम्बन्धों का नियन्त्रण है।”

दितान्त की प्रकृति

दितान्त का स्वरूप क्या है? दितान्त सम्बन्ध शीतयुद्ध से भिन्न है किन्तु इसका मतलब पक्की मित्रता भी नहीं है। यह भी नहीं कह सकते कि अमेरिका और सोवियत संघ में उसी प्रकार की मित्रता हो गयी जिस प्रकार अमेरिका और ब्रिटेन में साँठगाँठ और मित्रता है। दितान्त का यह अर्थ कदापि नहीं कि दोनों महाशक्तियों के मतभेद पूर्णत: समाप्त हो गए या उनमें वैचारिक मतभेद नहीं पाए जाते या उनके राष्ट्रीय हितों में कोई विरोध नहीं या उनमें कोई राजनीतिक, आर्थिक और सैनिक प्रतियोगिता नहीं। वस्तुत: अमेरिका और सोवियत संघ ने वैचारिक मतभेद तब भी बने हुए थे, किन्तु वे अब राजनीतिक और आर्थिक विचार-विनिमय में बाधक नहीं रहे। यद्यपि शस्त्रीकरण की । दौड़ पूर्णतया समाप्त नहीं हुई थी तथापि शस्त्रों का खेल मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों की छाया में खेला जाने लगा। सैनिक गुटबन्दियों का अन्त नहीं हुआ तथापि उनका महत्त्व एवं सुदृढ़ता घट-सी गयी। अब अणु-शस्त्रों की भीषणता दुनिया को उतनी नहीं सताती जितनी कि यह पहले आतंकित करती थी।

डॉ० हेनरी कीसिंजर के शब्दों में, “मॉस्को के साथ अब हमारे सम्बन्ध बड़े जटिल (Ambiguous) हैं। वैचारिक धरातल पर अनवरत मतभेद बना रहेगा, किन्तु आणविक शस्त्रास्त्र सह-अस्तित्व के लिए विवश करते हैं।….. भूगोलमूलक राजनीति आवश्यक रूप से तनाव पैदा करेगी किन्तु सैनिक प्रविधि का विकास आवश्यक रूप से विवादास्पद मुद्दों का समाधान खोजने को बाध्य करेगा राष्ट्रपति निक्सन ने अमेरिकी विदेश नीति की व्याख्या करते हुए 9 फरवरी, 1972 को कहा था-“अनेक गहरी बातें हमें (वाशिंगटन और मॉस्को) विभाजित करती रहेंगी। हम विचारधारा के मामले में विरोधी हैं और बने रहेंगे। हम राजनीतिक और सैनिक प्रतियोगी हैं और इनमें से किसी भी क्षेत्र में किसी की प्रगति के प्रति दूसरा पक्ष उदासीन नहीं रह सकता।” दितान्त किसी सुनिश्चित अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था या विश्व-शान्ति का भी द्योतक नहीं है। दितान्त से इतनी उपलब्धि जरूर हुई है कि तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत का भय लोगों के मस्तिष्क से निकल गया क्योंकि शीतयुद्ध के काल में महाशक्तियों में जो शक्ति-संघर्ष और उग्र मतभेद थे, वे दितान्त काल में सहज एवं सतर्कता का रूप धारण कर चुके थे। दोनों महाशक्तियाँ अब सभ्य राष्ट्रों जैसा आचरण एक-दूसरे के प्रति करने लगीं और एक-दूसरे के प्रति उनका रुख सौहार्दपूर्ण तथा सम्मानजनक भी दिखाई देने लगा। संक्षेप में, दितान्त का स्वरूप निम्नांकित रूप से व्यक्त किया जा सकता है –

  1. दितान्त सम्बन्धों के युग में दोनों महाशक्तियाँ एक-दूसरे से सम्पर्क बनाए रखती थीं।
  2. दितान्त एक प्रकार से महाशक्तियों में शक्ति-सन्तुलन की स्थापना एवं उसकी स्वीकृति थी।
  3. दितान्त युग में महाशक्तियाँ अपने विवादों को लेन-देन के आधार पर गरिमापूर्ण आचरण करते हुए हल करने लगीं।
  4. दितान्त की विशेषता रही कि सैद्धान्तिक मतभेदों के बावजूद महाशक्तियाँ आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी, व्यापारिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में सहयोग करती रहीं।

संक्षेप में, दितान्त से महाशक्तियों के आचरण के नियमों (Rules of Conduct) का विकास हुआ, हितों में जोड़ने वाली कड़ी (Interconnection of Interests) बनी, नीति-निर्माताओं में संचार-व्यवस्था (Communication) स्थापित हुई जिससे संकट की घड़ी में दुर्घटनाओं के खतरे अथवा असन्तुलित निर्णय (Miscalculation) को टाला जा सके।

सन् 1970 ई० के दशक का दितान्त (तनाव शैथिल्य) सन् 1979 ई० तक पहुँचते-पहुँचते काफी कमजोर हो गया था। दोनों महाशक्तियों ने ऐसे कार्य किए तथा ऐसी नीतियों का निर्माण किया जिन्होंने दितान्त को गम्भीर रूप से प्रभावित किया तथा इसके उद्देश्य को संकट में डाल दिया। दोनों महाशक्तियों के कार्यों से फिर से शीतयुद्ध–एक नया शीतयुद्ध, पहले से कहीं व्यापक तथा पहले से कहीं अधिक भयानक विशेषताओं वाला प्रारम्भ हो गया।

प्रश्न 6.
एकध्रुवीय और बहुध्रुवीय विश्व की परिकल्पना पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
एकध्रुवीय विश्व की परिकल्पना

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व में दो महाशक्तियों का उदय हुआ। ये दो महाशक्ति थीं– अमेरिका व सोवियत संघ। 1945-90 के बीच विश्व द्वि-ध्रुवीय विश्व कहलाता था। शीतयुद्ध के दौरान का यह विश्व दो खेमों में बँटा हुआ था। शक्ति के दो ध्रुव (केन्द्र) थे। अमेरिका ने यूरोपीय देशों को साथ लेकर नाटो का गठन किया तथा बाद में सिएटो, सेण्टो जैसी सैनिक सन्धियाँ की। इस तरह एक सैनिक संगठन तैयार किया गया जो साम्यवाद का विरोधी था। दूसरी ओर तत्कालीन सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप के देश-पोलैण्ड, हंगरी, चेकोस्लाविया, जर्मनी आदि ने वारसा सन्धि की थी। शुरू में चीन उसके साथ था। इस तरह सोवियत संघ ने अपना अलग सैनिक संगठन तैयार किया। दोनों महाशक्तियों के बीच कोई प्रत्यक्ष युद्ध नहीं हुआ। दोनों के बीच दावे-प्रतिदावे, धमकियाँ और छिटपुट कार्यवाहियाँ होती रहीं जिस कारण से यह शीतयुद्ध कहलाया। शीतयुद्ध की समाप्ति । तथा सोवियत संघ के विघटन (1991) के बाद का विश्व ‘एकध्रुवीय बन गया। आज विश्व की राजनीति एक महाशक्ति (अमेरिका) की इच्छा पर केन्द्रित हो गई।

उदाहरणार्थ – जब मई, 1998 के बाद अमेरिका ने भारत के खिलाफ तमाम प्रतिबन्ध लगाए थे तो विश्व के अधिकांश देशों ने भी भारत पर प्रतिबन्ध लगा दिए। वहीं, अमेरिका द्वारा नरमी दिखाने के बाद सभी देशों ने भी नरमी दिखाना शुरू कर दिया। एक ध्रुवीय विश्व की सबसे बड़ी कमी यह है कि इस अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में महाशक्ति अपनी हितों की रक्षा के लिए एकतरफा फैसला करती है। उसकी शक्ति को सन्तुलित करने वाला कोई नहीं होता है तथा संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ नाममात्र के लिए कार्य करती हैं। इन संस्थानों में सर्वाधिक शक्तिशाली देश का वर्चस्व बना रहता है। ‘एक ध्रुवीय विश्व कई अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक समस्याओं के लिए की जा रही शान्ति पहल को नुकसान पहुंचाता है तथा यह विश्व-स्थायित्व के लिए उपयुक्त नहीं है।

बहुध्रुवीय विश्व की परिकल्पना

विगत कुछ वर्षों में अन्तर्राष्ट्रीय जगत एकध्रुवीयता विश्व की ओर अग्रसर हो रहा है। सोवियत संघ के अवसान के बाद, साम्यवादी चीन, रूस और अमेरिका का प्रतिद्वन्द्वी बन गया है। वर्तमान में चीन, रूस और अमेरिका तीनों देशों के सम्बन्ध अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में एक विशाल त्रिकोण का रूप धारण करते जा रहे हैं जो 21वीं सदी में शक्ति सन्तुलन की व्यवस्था पर आधारित बहुध्रुवीय विश्व की परिकल्पना साकार करेगा।

अनेक विद्वानों का मत है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति अब एकध्रुवीय नहीं रह गई है, वरन् विश्व में शक्ति के अनेक केन्द्र स्पष्ट रूप से प्रकट हो चुके हैं। एशिया में भारत, चीन और जापान नवीन शक्ति केन्द्र हैं जो विश्व के सन्तुलन को किसी भी ओर मोड़ देने में सक्षम हैं। मध्य पूर्व में तेल उत्पादक देश, यूरोप में फ्रांस और जर्मनी शक्ति के केन्द्र हैं जिनकी उपेक्षा करनी एक बड़ी भूल होगी।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
शीतयुद्ध से क्या आशय है? शीतयुद्ध की प्रकृति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
शीतयुद्ध से आशय

1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्त होने के पश्चात् विश्व में दो महाशक्तियों (संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ) का उदय हुआ। इन दोनों शक्तियों में कुछ मतभेद बने रहे। इन मतभेदों के पीछे तनाव, वैमनस्य, कटुता, मनोमालिन्य आदि परिलक्षित होती थीं। धीरे-धीरे दोनों महाशक्तियों के मध्य राजनीतिक प्रचार का युद्ध छिड़ गया। दोनों एक-दूसरे का विरोध, आलोचना तथा अपनी विचारधारा का प्रचार करने में संलग्न हो गए। सोवियत संघ तथा अमेरिका की इसी कटुतापूर्ण नीति के परिणामस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में दो शक्ति गुटों का उदय हुआ। ये गुट एक-दूसरे के विरुद्ध अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने लगे। दोनों एक-दूसरे को राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा सैनिक मोर्चा पराजित करने की क्रियाएँ करने लगे। अतः सम्पूर्ण विश्व में भय, तनाव तथा अविश्वास का वातावरण व्याप्त हो गया। विद्वानों ने इसी को ‘शीतयुद्ध’ का नाम दिया। सर्वप्रथम अमेरिकी कूटनीतिज्ञ बर्नार्ड बारूक (Bernard Baruch) ने ‘शीतयुद्ध’ नाम दिया। एक प्रसिद्ध पत्रकार वाल्टर लिपमैन (Walter Lippmann) ने अपने लेखों में इसे प्रचारित किया। वाल्टर ने ‘दि कोल्ड वार’ नामक पुस्तक भी लिखी।

शीतयुद्ध की प्रकृति

शीतयुद्ध की प्रकृति को निम्नलिखित तथ्यों द्वारा समझा जा सकता है –

  1. शीतयुद्ध की प्रकृति कूटनीतिक युद्ध के सदृश थी क्योंकि इससे किसी भी समय युद्ध होने की सम्भावना थी।
  2. शीतयुद्ध के काल में सोवियत संघ तथा अमेरिका दोनों बड़े राष्ट्र परस्पर शान्तिकालीन कूटनीतिक सम्बन्धों को प्रमुखता दिए हुए थे। उनमें शत्रुता के भाव बार-बार प्रकट हो जाते थे।
  3. दोनों राष्ट्र सशस्त्र युद्ध के लिए तैयार नहीं थे परन्तु अन्य प्रकार के कूटनीतिक उपायों द्वारा एक-दूसरे को निर्बल बनाने का हर सम्भव प्रयास कर रहे थे।
  4. दोनों राष्ट्र अपने-अपने सहयोगी देशों के साथ अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए सैद्धान्तिक विचारधाराओं तथा मान्यताओं पर जोर देते रहे।
  5. दोनों देश विश्व के निर्बल राष्ट्रों को अपने पक्ष में करने के लिए आर्थिक सहायता देते थे, जासूसी करते थे, सैन्य हस्तक्षेप के लिए तत्पर रहते थे, शस्त्रों की बिक्री भी करते थे, सैन्य गुटबन्दी के लिए कूटनीतिक उपायों का प्रयोग करते थे, प्रादेशिक संगठनों की स्थापना के लिए विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देते थे तथा शस्त्रीकरण की नीति की वृद्धि में संलग्न रहते थे।
  6. यह एक वाक् युद्ध था जिसके कारण अधिकांश राष्ट्र आशंकित रहते थे।
  7. शीतयुद्ध के सम्पूर्ण काल में तीसरे विश्व में व्यापक घातक मुठभेड़ें होती रहीं। इनमें परोक्ष रूप से महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा स्पष्ट रूप से दिखाई देती थी।

इस प्रकार ‘शीतयुद्ध’ को युद्ध का अन्त न कहकर दो महाशक्तियों के सीधे वाक् युद्ध का एक जाल कहा जा सकता था। इस काल में तीसरे विश्व में विभिन्न प्रकार की छोटी-मोटी मुठभेड़े होती रहीं, जिनका विश्लेषण करने पर विदित होता है, यह गुप्त रूप से दो महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा थी।

हालाँकि वास्तविक युद्ध का कोई भय नहीं था परन्तु इस स्थिति को युद्ध की प्रथम पीढ़ी कहा जा सकता है। इसमें युद्ध का भविष्य छिपा हुआ रहता था। इसाक डोयशर ने लिखा है, “शीतयुद्ध की प्रकृति ट्राटस्की की ब्रेस्तलिस्टोक में की गई प्रसिद्ध घोषणा का स्मरण दिलाने वाली स्थिति थी, जहाँ उन्होंने कहा था – न युद्ध और न शान्ति।”

प्रश्न 2.
क्यूबा मिसाइल संकट पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
क्यूबा मिसाइल संकट

अप्रैल, 1961 में सोवियत संघ के नेताओं को यह चिन्ता सता रही थी कि अमेरिका साम्यवादियों द्वारा शासित क्यूबा पर आक्रमण कर देगा और इस देश के राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो का तख्तापलट हो जाएगा। क्यूबा अमेरिका के तट से लगा हुआ एक छोटा-सा द्वीपीय देश है। क्यूबा का जुड़ाव सोवियत संघ से था और सोवियत संघ उसे कूटनयिक तथा वित्तीय सहायता देता था। सोवियत संघ के नेता निकिता खुश्चेव ने क्यूबा को रूस के ‘सैनिक अड्डे के रूप में बदलने का फैसला किया। सन् 1962 में ख़ुश्चेव ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दीं। इन हथियारों की तैनाती से पहली बार अमेरिका नजदीकी निशाने की सीमा में आ गया। हथियारों की इस तैनाती के बाद सोवियत संघ पहले की तुलना में अब अमेरिका के मुख्य भू-भाग के लगभग दोगुने ठिकानों या शहरों पर हमला बोल सकता था।

क्यूबा में सोवियत संघ द्वारा परमाणु हथियार तैनात करने की भनक अमेरिकियों को तीन हफ्ते बाद लगी। अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ० कैनेडी और उनके सलाहकार ऐसा कुछ भी करने से हिचकिचा रहे थे जिससे दोनों देशों के बीच परमाणु युद्ध शुरू हो जाए। लेकिन वे इस बात को लेकर दृढ़ थे कि खुश्चेव क्यूबा से मिसाइलों और परमाणु हथियारों को हटा लें। कैनेडी ने आदेश दिया कि अमेरिकी जंगी बेड़ों को आगे करके क्यूबा की तरफ जाने वाली सोवियत जहाजों को रोका जाए। इस तरह अमेरिका सोवियत संघ को मामले के प्रति अपनी गम्भीरता से चेतावनी देना। चाहता था। ऐसी स्थिति में यह लगा कि युद्ध होकर रहेगा। इसी को ‘क्यूबा मिसाइल संकट’ के रूप में जाना गया। इस संघर्ष की आशंका ने पूरी दुनिया को बेचैन कर दिया। यह टकराव कोई आम युद्ध नहीं होता। अन्ततः दोनों पक्षों ने युद्ध टालने का फैसला किया और दुनिया ने चैन की साँस ली। सोवियत संघ के जहाजों ने या तो अपनी गति धीमी कर ली या वापसी का रुख कर लिया। ‘क्यूबा मिसाइल संकट’ शीतयुद्ध का चरम बिन्दु था।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
शीतयुद्ध शुरू होने का मूल कारण क्या था?
उत्तर :
परस्पर विरोधी गुटों में शामिल देशों ने समझ लिया था कि आपसी युद्ध में बड़ा खतरा है; क्योंकि युद्ध की स्थिति में दोनों पक्षों को इतना नुकसान उठाना पड़ेगा कि उनमें से विजेता कौन है-यह निश्चय करना भी असम्भव होगा। अगर अपने शत्रु पर आक्रमण करके उसके परमाणु हथियारों को नष्ट करने की कोशिश करता है तब भी दूसरे के पास उसे नष्ट करने लायक हथियार बच जाएँगे। इसलिए तीसरा विश्वयुद्ध न होकर विश्व में शीतयुद्ध की स्थिति बनी रही।

प्रश्न 2.
द्वि-ध्रुवीय विश्व के अर्थ की व्याख्या कीजिए। उत्तर द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् एक महत्त्वपूर्ण घटना यह घटी कि अधिकांश महाशक्तियाँ कमजोर हो गईं और केवल अमेरिका और रूस ही ऐसे देश बचे जो अब भी शक्तिशाली कहला सकते थे। इस प्रकार युद्ध के दौरान शक्ति का एक नया ढाँचा विश्व स्तर पर उभरा जिसमें केवल दो ही महाशक्तियाँ थीं जो अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में प्रभावशाली थीं। ये शक्तियाँ थीं सोवियत रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका।

दो गुटों, ब्लॉक या कैम्प में विभाजित विश्व को द्वि-ध्रुवी विश्व का नाम एक अंग्रेजी इतिहासकार टायनबील ने दिया था।

मॉर्गन्थो के अनुसार, “द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत रूस की अन्य देशों की तुलना में शक्ति इतनी अधिक बढ़ गई थी कि वे स्वयं ही एक-दूसरे को सन्तुलित कर सकते थे। इस प्रकार शक्ति सन्तुलन बहु-ध्रुवीय से द्वि-ध्रुवीय में बदल गया था।”

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प्रश्न 3.
पुराने व नए शीतयुद्ध में अन्तर बताइए।
उत्तर :
पुराने व नए शीतयुद्ध में अन्तर

पुराने शीतयुद्ध ने पहले यूरोप और बाद में उत्तरी-पूर्वी व दक्षिणी-पूर्वी एशिया को अपनी चपेट में लिया, लेकिन नए शीतयुद्ध ने पश्चिमी एशिया और अफ्रीका को अपनी चपेट में लिया।

पुराने शीतयुद्ध के दौर में दोनों महाशक्तियों (सोवियत राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ) ने अपने सैनिक गुट बनाए और अपने शिविर के देशों को भारी मात्रा में सैनिक व आर्थिक सहायता दी, लेकिन नए शीतयुद्ध के दौर में सैनिक गठबन्धनों की रणनीति का त्याग कर दिया गया

पुराने शीतयुद्ध ने शस्त्रीकरण की प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया, लेकिन नए शीतयुद्ध ने नि:शस्त्रीकरण व शस्त्र नियन्त्रण को अपना लक्ष्य बनाया।

प्रश्न 4.
उत्तर शीतयुद्ध काल से उभर रही अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को समझाइए।
उत्तर :
उत्तर शीतयुद्ध काल से उभर रही अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की विशेषताओं को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है

  1. अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में विश्व समुदाय के सहयोग, सामंजस्य, शान्ति तथा शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व की भावना में वृद्धि हुई है।
  2. शक्ति राजनीति की लोकप्रियता में ह्रास आया है।
  3. वारसा पैक्ट की समाप्ति के उपरान्त अमेरिका नाटो का विस्तार करने का प्रयास कर रहा है।’ परन्तु ध्रुवीकरण की राजनीति शिथिल पड़ गई है।
  4. विश्व शान्ति तथा सुरक्षा के सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका सुदृढ़ हो रही है। 5. परमाणु नि:शस्त्रीकरण के प्रयास तीव्र हो रहे हैं। CTBT पर अभी तक सभी राष्ट्रों के हस्ताक्षर नहीं हुए हैं।

प्रश्न 5.
9/11 की घटना के बाद भारत ने किस प्रकार की प्रक्रिया व्यक्त की?
उत्तर :
11 सितम्बर, 2001 की अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर पर तालिबान प्रायोजित आतंकवादी हमला किया गया। भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान संयुक्त राष्ट्र महासभा को सम्बोधित करते हुए इस हमले की कठोर शब्दों में निन्दा की और बुश प्रशासन को आश्वासन दिया कि भारत हर प्रकार से अमेरिका का साथ देगी। अक्टूबर माह में अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में आतंकवाद के सरगना ओसामा बिन लादेन को गिरफ्तार करने के उद्देश्य से सैनिक कार्यवाही की गई। भारत ने अमेरिका के इस कदम का समर्थन किया तथा अमेरिका को पुन: यह आश्वासन दिया कि आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में भारत अमेरिका की हर सम्भव सहायता को तैयार है। भारत के इन प्रयासों से दोनों देशों के सम्बन्धों में मधुरता उत्पन्न हुई।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
शीतयुद्ध का प्रारम्भ कब हुआ ?
उत्तर :
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात्।।

प्रश्न 2.
शीतयुद्ध की प्रकृति कैसी थी?
उत्तर :
कूटनीतिक युद्ध के समान।

प्रश्न 3.
शीतयुद्ध किन दो महाशक्तियों के मध्य था?
उत्तर :
अमेरिका तथा सोवियत संघ।

प्रश्न 4.
शीतयुद्ध के दौर में सोवियत संघ ने किस विचारधारा की दुहाई की?
उत्तर :
शीतयुद्ध के दौर में सोवियत संघ ने समाजवाद विचारधारा की दुहाई की।

प्रश्न 5.
दि कोल्ड वार’ नामक पुस्तक किसने लिखी?
उत्तर :
‘दि कोल्ड वार’ नामक पुस्तक वाल्टर लिपमैन ने लिखी।

प्रश्न 6.
1948 में सोवियत संघ ने किस नगर की घेराबन्दी की?
उत्तर :
1948 में सोवियत संघ ने बर्लिन नगर की घेराबन्दी की।

प्रश्न 7.
किस क्षेत्र में तनाव-शैथिल्य की प्रक्रिया विशेषतया उजागर हुई?
उत्तर :
तनाव-शैथिल्य की प्रक्रिया विशेषतया नि:शस्त्रीकरण के क्षेत्र में उजागर हुई।

प्रश्न 8
‘वीटों का सर्वाधिक प्रयोग किसने किया?
उत्तर :
सोवियत संघ ने।

प्रश्न 9
यू-2 क्या था?
उत्तर :
यू-2 अमेरिका का जासूसी विमान था।

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प्रश्न 10.
शीतयुद्ध के कारण विश्व राजनीति कितने गुटों में बँट गई?
उत्तर :
दो गुटों में अमेरिका एवं सोवियत संघ।

प्रश्न 11.
‘दितान्त’ क्या है?
उत्तर :
‘दितान्त’ का शाब्दिक अर्थ है-‘तनाव में शिथिलता’।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
शीतयुद्ध का तात्पर्य है
(क) ऐसी स्थिति जिसमें न तो पूर्ण रूप से शान्ति रहती है और न ही वास्तविक युद्ध
(ख) ऐसी स्थिति में शान्ति एवं युद्ध के बीच अस्थिरता बनी रहती है।
(ग) ऐसी स्थिति में युद्ध के वातावरण का निर्माण किया जाता है।
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 2.
शीत युद्ध का आरम्भ कब माना जाता है?
(क) चर्चिल के भाषण से।
(ख) मुनरो के भाषण से
(ग) शुमाँ के भाषण से
(घ) हेनरी किसिंजर के भाषण से

प्रश्न 3.
शीत युद्ध का उद्भव हुआ था
(क) 1945 में
(ख) 1946 में
(ग) 1947 में
(घ) 1940 के दशक में

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से किस विद्वान् ने ‘शीतयुद्ध’ का नामकरण किया था?
(क) मॉर्गेन्याऊ ने
(ख) शुमाँ ने।
(ग) वाल्टर लिपमैन ने
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 5.
शीतयुद्ध निम्नलिखित में से किसके बीच कायम था?
(क) महाशक्तियों के गुटों के बीच
(ख) गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों के बीच
(ग) पी०एल०ओ० इजराइल के बीच
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 6.
शीतयुद्ध में निम्नलिखित में से किन साधनों का प्रयोग किया जाता है?
(क) समाचार-पत्रों को
(ख) रेडियो का
(ग) टेलीविजन का
(घ) ये सभी

प्रश्न 7.
कैम्प डेविड समझौता कब हुआ?
(क) 15 मई, 1960 को
(ख) 16 मई, 1960 को
(ग) 15 मई, 1962 को
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 8.
शीतयुद्ध निम्नलिखित में से किन दो विचारधाराओं के मध्य दृढ़ संघर्ष था?
(क) पूँजीवाद और साम्यवाद के बीच
(ख) नाजीवाद और फासीवाद के बीच
(ग) उदारवाद और माक्र्सवाद के बीच
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 9.
“शीतयुद्ध की प्रकृति त्रोत्सकी की बेस्त लितोस्क में की गयी प्रसिद्ध घोषणा की याद दिलाने वाली थी जहाँ उन्होंने कहा था-न युद्ध और न शान्ति।” यह कथन निम्नलिखित कथनों में किस विद्वान का है?
(क) कैप्लान का
(ख) मॉर्गेन्थाऊ का
(ग) रिचर्ड स्नाइडर का
(घ) डोयशर का

प्रश्न 10.
“शीतयुद्ध का उद्देश्य शत्रुओं को अलग-थलग रखना (Isolate Policy) और मित्रों को जीतना होता है।” यह कथन निम्नलिखित में से किसका है?
(क) फ्लेमिंग का
(ख) महेन्द्र कुमार का
(ग) राबर्ड शुमन का
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 11.
शीतयुद्ध के विकास के प्रथम चरण का काल माना जाता है –
(क) 1935-1944
(ख) 1946-1953
(ग) 1955-1964
(घ) 1970-1979

प्रश्न 12.
टूमैन सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया था –
(क) 12 मार्च, 1947 को
(ख) 12 मार्च, 1948 को
(ग) 12 मार्च, 1949 को
(घ) 12 मार्च, 1950 को

प्रश्न 13.
ट्रमैन सिद्धान्त का प्रतिपादन निम्नलिखित में से किसके विरुद्ध किया गया था?
(क) साम्यवाद के विरुद्ध
(ख) पूँजीवाद के विरुद्ध
(ग) लोकतंत्र के विरुद्ध
(घ) फासीवाद के विरुद्ध

प्रश्न 14.
शीतयुद्ध के दूसरे चरण का काल माना जाता है –
(क) 1953-1958
(ख) 1955-1959
(ग) 1960-1968
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 15.
शीतयुद्ध के तीसरे चरण का काल माना जाता है
(क) 1950-1954
(ख) 1956-1960
(ग) 1959-1962
(घ) 1965-1969

प्रश्न 16.
शीतयुद्ध के चौथे चरण का काल माना जाता है
(क) 1960-1965
(ख) 1963-1979
(ग) 1965-1970
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 17.
कैम्प डेविड समझौता निम्नलिखित में से किन देशों के बीच हुआ था?
(क) रूस और अमेरिका के बीच
(ख) अमेरिका और फ्रांस के बीच
(ग) भारत और रूस के बीच
(घ) रूस और फ्रांस के बीच

प्रश्न 18.
एकध्रुवीय शक्ति के रूप में अमेरिकी वर्चस्व की शुरुआत हुई
(क) 1991 में
(ख) 1995 में
(ग) 2000 में
(घ) 2005 में

प्रश्न 19.
निम्नलिखित में से कौन-सा देश महाशक्ति के रूप में स्थापित है?
(क) अमेरिका
(ख) रूस
(ग) फ्रांस
(घ) ब्रिटेन

प्रश्न 20.
समकालीन विश्व-व्यवस्था के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है?
(क) ऐसी कोई विश्व सरकार मौजूद नहीं जो देशों के व्यवहार पर अंकुश रख सके।
(ख) अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में अमेरिका की चलती है।
(ग) विभिन्न देश एक-दूसरे पर बल प्रयोग कर रहे हैं।
(घ) जो देश अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हैं उन्हें संयुक्त राष्ट्र कठोर दण्ड देता है।

उत्तर :

  1. (घ) उपर्युक्त सभी
  2. (क) चर्चिल के भाषण से
  3. (घ) 1940 के दशक में
  4. (ग) वाल्टर लिपमैन ने
  5. (क) महाशक्तियों के गुटों के बीच
  6. (घ) ये सभी
  7. (ख) 16 मई, 1960 को
  8. (क) पूँजीवाद और साम्यवाद के बीच
  9. (घ) डोयशर का
  10. (क) फ्लेमिंग का
  11. (ख) 1946-1953
  12. (क) 12 मार्च, 1947 को
  13. (क) साम्यवाद के विरुद्ध
  14. (क) 1953-1958
  15. (ग) 1959-1962
  16. (ख) 1963-1979
  17. (क) रूस और अमेरिका के बीच
  18. (क) 1991 में
  19. (क) अमेरिका
  20. (क) ऐसी कोई विश्व सरकार मौजूद नहीं जो देशों के व्यवहार पर अंकुश रख सके।

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UP Board Class 12 Hindi Model Papers Paper 2

UP Board Class 12 Hindi Model Papers Paper 2 are part of UP Board Class 12 Hindi Model Papers. Here we have given UP Board Class 12 Hindi Model Papers Paper 2.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Hindi
Model Paper Paper 2
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 12 Hindi Model Papers Paper 2

समय 3 घण्टे 15 मिनट
पूर्णांक 100

नोट

  • प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।
  • सभी प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
  • सभी प्रश्नों हेतु निर्धारित अंक उनके सम्मुख अंकित हैं।

खण्ड ‘क’

प्रश्न 1.
(क) समय-सारथी’ के लेखक हैं  [1]
(i) मोहन राकेश ।
(ii) राहुल सांकृत्यायन
(iii) डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी
(iv) कशिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

(ख) ‘आवारा मसीहा’ नामक रचना किस विधा से सम्बन्धित है? ) इ-पास  [1]
(i) उपन्यास
(ii) जीवनी
(iii) आत्मकथा
(iv) कहनि

(ग) भक्तमाल’ के रचनाकार है।  [1]
(i) विट्ठलनाथ
(ii) अग्रदा
(iii) नाभादास
(iv) गोकुलनाथ

(घ) निम्न में से कौन भारतेन्दु युग का नाटक है। [1]
(i) लहरों के राजहंस
(ii) अम्पाती
(iii) धुवस्वामिनी
(iv) नल-दमयन्ती

(इ) निम्नलिखित में से कौन-सी रचना रीतिकालीन कवि भूषण की। नहीं है?  [1]
(i) सुजान सागर ।
(ii) शिवा बागनी ।
(iii) छत्रसाल दशक
(iv) शिवराज सुवर्ण

प्रश्न 2.
(क) ‘दिनकर’ को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है। [1]
(i) कुस्त्र पर
(ii) रश्मिरथी
(iii) धर्वशी
(iv) इंकार

(ख) प्रियप्रवास महाकाव्य के रचयिता हैं। [1]
(i) रामधारी हि दिनकर
(ii) या प्रसाद
(iii) जगन्नाथदास रत्नाकर
(iv) परोक्त में से कोई नहीं

(ग) अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ युग के कवि है [1]
(i) भारतेन्दु-युग
(ii)  प्रगतिवाद-युग
(iii) द्विवेदी-युग
(iv) छायावाद-युग

(घ) द्वापर’ रचना है [1]
(i) सूरदास की
(ii) सुमित्रानन्दनपन्त
(iii) महादेवी वर्मा की
(iv) मैथिलीशरण गुप्त की

(ङ) रीतिबद्ध काव्यधारा के कवि हैं  [1]
(i) केशदास
(ii) बिहारीलाल
(iii) घनानन्द
(iv) बीघा

प्रश्न 3.
निम्नलिखित अवतरणों को पढ़कर उनपर आधारित प्रश्नों उत्तर दीजिए। [5 x 2 = 10]
आदमियों को ममती बनाने वाला कामरूप का जादू नहीं, मखियो को आदमी बनाने वाला जीवन का जादू-होम की सबसे बुड़िया मदर मार्गरेट का कद इतना नाटा कि उन्हें गुड़िया कहा जा सके, पर उनकी चाल में गजब की चुस्ती, कदम में फु और ब्यवहार में मस्ती, हँसी उनकी यों कि मोतियो की बोरी एल पी और काम यो कि मशीन त भने। भारत में चालीस वर्षों से सेवा में रसलीन, जैसे और कु उन्हें जीवन में अब आना भी तो नहीं। उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दौजिए।
(i) मदर मार्गरिट कौन पी? लेखक ने उनके व्यक्तित्व का वर्णन 
किस रूप में किया?
(ii) लेखक ने नसिंग होम की मदर मार्गरेट को जादूगरनी क्यों कहा
(iii) “जैसे और कुछ उन्हें जीवन में सब जानना भी तो नहीं।” से | लेखक को क्या आशय है? ।
(iv) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक ने क्या अभिव्यक्त किया
(v) ‘वन’, ‘फुर्ती’ शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
अयाव
कहते हैं, दुनिया बड़ी मुलक्कड़ है। केवल इतना ही याद रखती है, बिजने से उसका स्वार्थ सघता है। बाकी को फेंककर आगे बढ़ जाती है। शायद अशोक से उसका स्वार्थ नहीं सघा। क्यों उसे वह याद रखती? सारा संसार स्वार्थ का अखाड़ा ही तो है। उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) प्रस्तुत गद्यांश में किस प्रसंग की च की गई है?
(ii) लेखक ने गद्यांश में किस प्रकार के लोगों को स्वार्थी कहा है?
(iii) “सारा संसार स्वार्थ का अखाड़ा ही तो है।” में लेखक का क्या | तात्पर्य है?
(iv) ‘फूल’ शब्द के पर्यायवाची लिखिए।
(v) स्वार्थ शब्द का विलोम लिखिए।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर उनपर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। [15 x 2 = 10]
‘कौन तुम! अमृत-जलनिधि तौर तरंगों से की मणि एक; कर रहे निर्मन का चुपचाप प्रभा को पारा से अभिषेक मधुर विश्रान्त और एकान्त जगत को सुलझा हुआ रहस्य; एक करुणामय मदर मौन और चंचल मन का आलस्य! उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) पद्यांश के कवि वे शीर्षक का नामोल्लेख कीजिए।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश में संसृति-प्ल धि’ किसे व क्यों कहा गया है?
(iii) प्रस्तुत पद्यांशा में किसके मन की व्याकुलता को उजागर किया 
गया है।
(iv) मनु को देने के पश्चात् श्रद्धा को कैसी अनुभूति होती है?
(v) पद्यांश का केन्द्रीय भाव लिखिए। मक्क पग को १ मलिन करता आना पदचिह्न न दें आना जाना, मेरे आगम की जग में सुख की सिरहून हो अन्त विली! विस्तृत नम का कोई कोना, मेरा न कभी अपना होना, परिचय इतना इतिहास यही उमड़ी कल थी मिट आज चली! मैं नीर भरी दु:ख को बदली!

उपरोक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) कवयित्री अपने जीवन की तुलना किससे वे क्यों करती है?
(ii) कवयित्री का स्मरण लोगों में खुशियाँ क्यों बिखेर देता है?
(iii) “विस्तृत नम का कोई कोना, मेरा न कभी अपना होना” पंक्ति 
का भाशय स्पष्ट कीजिए।
(iv) प्रस्तुत पह्मांश का केन्द्रीय भाव लिखिए।।
(v) प्रस्तुत पशि में अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।

प्रश्न 5.
(क)
निम्नलिखित लेखकों में से किसी एक लेखक का जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए। [4]
(i) जैनेन्द्र
(ii) श्री. सुन्दर रेड्डी
(iii) मोहन राकेश

(ख)
निम्नलिखित कवियों में से किसी एक का जीवन परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए। [4] 
(i) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(ii) जयशंकर प्रसाद
(iii) मैथिलीशरण गुप्त

प्रश्न 6.
पंचलाइट’ अथवा ‘खून का रिश्ता’ कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश 
हालिए। [4] 
अथवा
‘लाटी’ कहानी की नायिका लाटो (बानो) ‘कर्मनाशा की हार’ कहानी के मुख्य पात्र मैरो पाण्डे का चरित्र-चित्रण कीजिए।

प्रश्न 7.
स्वतत नाटक के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों में से किसी एक प्रश्न का उत्तर दीजिए। [4] 
(i) कुहासा और किरण नाटक के द्वितीय अंक की कथा का सार 
अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
(i) ‘कुहासा और किरण’ नाटक में भ्रष्टाचार रूपी कुहासे का 
यथार्थ चित्रण देखने को मिलता है। सप्रमाण उत्तर दीजिए।

(ii) ‘आन का मान’ नाटक के मार्मिक स्थलों का वर्णन कीजिए।
अथवा

(iii) नाटक के तत्वों के आधार पर ‘गरुड़प्पन’ नाटक की समीक्षा 
अषया
अथवा
‘गरुड़ध्वज’ नाटक के कथानक में निहित उद्देश्य को स्पष्ट | कीजिए।

(iv) सूतपुत्र’ नाटक के प्रमुख पात्र या नायक का चरित्र भित्रण कीजिए।
अथवा
सूत पुत्र’ नाटक के कथानक पर प्रकाश डालिए।

(v) ‘राम’ नाटक में निहित राष्ट्रीय एकता एवं संस्कृति के सन्देश को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
अथवा
राजकट’ नाटक को भाषा एवं संवाद-योजना की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित खण्डकाव्यों में से स्वपठित खण्डकाव्य के आधार पर किसी एक प्रश्न का उत्तर दीजिए। [4] 
(क) ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य को प्रमुख घटना को अपने शब्दों में
वर्णन कीजिए।
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के शीर्षक की आर्मकता को स्पष्टकीजिए।

(ख) “मुक्तियज्ञ की राष्ट्रीयता एवं देशभक्ति संकुचित नहीं 
है।”-इस उक्ति के परिप्रेक्ष्य में मुतिया’ की कमावस्तु को विवेचना कीजिए। अथवा ‘मुक्तियज़’ की भाषा शैली पर उदाहरण सहित प्रकाश डालिए।
(ग) “हर्षवर्द्धन के चरित्र में लोकमंगल की कामना निहित 
है।”-इस कथन के आलोक में ‘त्यागपयों’ के नायक हर्षवर्द्धन का चरित्रांकन कीजिए। अयवा ‘त्यागपथी खण्डकाव्य के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।

(घ) “श्मिरथी खण्डकाव्य में कवि का मुख्य मन्तव्य कर्ण के चरित्र के शील पक्ष, मैत्री भाव तथा शौर्य का चित्रण करना है।” सिद्ध कौजिए।
अथवा
रश्मिरथी’ खण्डकाव्य की कथावस्तु का संक्षेप में विवेचन

(ङ) “सत्य की जीत काव्य में द्रौपदी के चरित्र में वर्तमान युग, 
के नारी जागरण का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।”-इस कथन को सिद्ध कीजिए।
अथवा
खण्डकाव्य की विशेषताओं के आधार पर सत्य की जीत खण्डकाव्य की समीक्षा कीजिए।
(च) ‘आलोक-वृत्त’ खण्डकाव्य के शीर्षक को सार्थकता को स्पष्ट 
कीजिए। अथवा “आलोक-वृत्त एक सफल खुशहूकाव्य है।”-इस कथन के औचित्य पर अपने विचार प्रकट कीजिए।

खण्ड ‘ख’

प्रश्न 9.
निम्नलिखित अवतरणों का सन्दर्भ-सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए। [2 + 5 = 7]
(क)
अतीते प्रथमकल्ये चतुरादाः सिहं राजानमन्। मत्स्या 
आनन्दमत्स्य, शकुनयः सुवर्णहसम्। तस्य पुनः सुवर्णराजहंसस्य दुहिता ऐसपोतिका अतीव रूपवती आसीत्। स तस्यै वरमदात् । यत् सा आत्मनश्चित्तरुचितं स्वामिनं वृणुयात् इति। हंसराजः तस्यै वर दत्तया हिमविश शकुनिसक्ने संन्यपतत्। नानाप्रकाराः हँसमयूरादः शकुनिगणाः समागत्य एकस्मिन महति पाषाणतले संन्यपतन्। हंसराजः आत्मनः चित्तरुचितं स्वामिकम् आगत्य वृष्यात् इति दुहितरमादिदेश। सा शकुनिसते अवलोकयन्ती मणिवर्णीव चित्रप्रेक्षणं मयूर दृष्ट्वा ‘अयं में स्वामिकों भवतु’ यभाषत। मयूरः “आद्यापि तावन्में बलं न पश्यसि’ इति अतिगण लग्णाञ्च त्यक्त्वा तान्महतः शकुनिसङ्गस्य मध्ये पक्षौ प्रसार्य नर्तितुमारब्धवान्। नृत्यन् चाप्रतिच्छन्नोऽभूत्। सुवर्णराजहंसः लज्जितः अस्य नैव हीः अस्ति व बणां समुत्थाने लज्जा। नास्मै गतत्रपाय स्वदुहितरं दास्यामि इयकथयत्।।
अथवा
सौराष्ट्रप्रान्ते टङ्कारानाम्नि झामे औकर्षणतिवारीनाम्नो घनाद्यस्य 
औदीच्यविप्रवंशीयस्य धर्मपानी शिवस्य पार्वतीय भाद्रमासे नवम्यां तिथौ गुरुवासरे मूलनक्षत्रे एकाशीत्युत्तराष्टादशशततमे (1881) वैक़माब्दे पुत्ररत्नमजनयत्। जन्मतः दशमे दिने ‘शिवं भजेदयम्’ इति बुद्धया पिता स्वसुतस्य मूलशङ्कर इति नाम अकरोत् अष्टमे वर्षे चास्योपनयनमकरोत्।

योदशवर्ष प्राप्तेऽस्मै मूलङ्कराय पिता शिवरात्रिवतमाचरितुम् अकयत्। पितुराजानुसार मूलशङ्करः सर्यमपि व्रतविधानमकरोत्। रात्री शिवालये स्वपित्रा समं सर्वान् निद्रितान् विलोक्य स्वयं जागरितोऽतिष्ठत् शिवलिङ्गस्य चोपरि मूर्षिकमेकमतस्ततः विचरन्तं दृष्ट्वा शङ्कितमानसः सत्यं शिवं सुन्दरं लोकशङ्करं शङ्करं साक्षात्क इदि निश्चितवान्। ततः प्रभृत्येव शिवरात्रेः उत्सवः ऋषियोपोत्सवः’ इति नाम्ना श्रीमद्दपानन्दानुयायिनाम् आर्यसमाजिनां मध्ये प्रसिद्धोऽभूत।

(ख)
रेखामात्रमपि क्षुष्णादामनों वस्त्रनः परम् । [2+ 5 =7]
न व्यतीयुः प्रजास्तस्य नियन्तुम्वृित्तयः ।।
अथवा
प्रस्तरेषु च रम्येषु विविधा कानन द्रुमाः ।
वायुवेगप्रचलिताः पुष्पैरवकिरन्ति माम् ॥

प्रश्न 10.
निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में दौजिए। [2+2=4]
(क) धीराः कुतः पदं न प्रविचलन्ति?
(ख) कः कालः प्रचुरमन्मथ भवति ।
(ग) राजा भोजः सौता किं प्राह?
(घ) दिलीप: किमर्स बलिममहीन्?

प्रश्न 11.
(क) ‘करुण’ अथवा ‘शान्त’ रस की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए। [2]
(ख) ‘अनन्वय’ अथवा ‘इलेष’ अलंकार की परिभाषा उदाहरण 
सहित लिखिए। [2]
(ग) ‘सुन्दरी’ अथवा ‘कुण्डलियाँ’ छन्द का लक्षण एवं उदाहरण 
लिखिए।  [2]

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर अपनी भाषा शैली में निबन्ध तिलिए। [2+7 =9]
(i) मेरी प्रिय पुस्तक
(ii) राष्ट्र निर्माण में युवाशक्ति का योगदान
(iii) कम्प्यूटर की उपयोगिता
(iv) राष्ट्रीय एकता में हिन्दी का योगदान
(v) विद्यार्थी और राजनीति

प्रश्न 13.
(क)
(i) ग्रामेऽपि’ का सन्धि-विच्छेद है। [1] 
(a) द्राम + अपि
(b) शान + एपि ।
(c) ग्राम + अपि ।
(d) ग्रामम् + एपि

(ii) दौन्षा’ का सन्धि-विच्छेद है ।  [1] 
(a) दग् + धा
(b) दौक । धा
(c) दो + मा
(d) दोघ् + धा

(iii) उड्डयनम्’ को सुनि-विच्छेद है ।   [1] 
(a) म् + गम्
(b) उद् । इरानम्
(c) उड्ड + यनम्
(d) उत् + इयनम्

(ख)
(i) ‘दामोदरः” मैं समास है।  [1] 
(a) कर्मधारय समास
(b) तत्पुरु” मास
(c) बहुवीहि समास
(d) अव्ययीभाव समास

(ii) प्रतिगृहम्’ में समाप्त है ।  [1] 
(a) कर्मधारय समास
(b) अव्ययीभाव समास
(c) द्विगु समास
(d) तत्पुरुष समास

प्रश्न 14.
(क)
‘तिष्ठेव रूप किस पातु का, किस लकार, किस पुरुष राया 
किस वचन का है। [1/2 +1/2 + 1/2 + 1/2 = 2]

(ख)

(i) “अनयाम्’ रूप है।
(a) ललकार, इतम पुरुष, बहुवचन
(b) अङ्लकार, उत्तम पुरुष, विवचन
(c) ललकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
(d) लोट्लकार, प्रसम पुराण, द्विवचन

(ii) ‘इदाम्’ स्प है
(a) लोट्लकार, उत्तम पुरुष, बहुदचेन
(b) लुट्लकार, मध्यन पुरुष, एकवर्धन
(c) झझकर, प्रथम पुरुष, बहुवचन्
(d) विधिलिङ्गलवार, प्रथम पुरुष, एवचन

(ग)
(i) बुझिमान्’ में प्रत्यय है।
(a) तयत् ।
(b) बतुप
(c) मनुन् ।
(d) क्त्व

(ii) गन्तव्यम्’ में प्रत्यय है।
(a) मापन
(b) तयत
(c) क्त्व
(d) अनीयर

(घ) रेखांकित पदों में से किन्हीं दो में प्रयुक्त विभक्ति तथा उससे 
सम्बन्धित नियम का उल्लेख कीजिए। [1+1=2]
(i) भिक्षुक; कर्णेन बधिरः अस्ति।
(ii) गङ्गायाः उइकम्।
(iii) तस्मै स्वधा।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं दो वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए। [4]
(क) संसार में सभी लोग सुख चाहते हैं।
(ख) अपने माता-पिता को सदा सम्मान करो।
(ग) गाँव के चारों और बाग है।
(घ) दुर्योधन, धृतराष्ट्र का पुत्र था।

Answer

उत्तर 1.
(क) (i) मोहन राकेश ।
(ख) (ii) जीवनी
(ग)  (iii) नाभादास
(घ) (iv) नल-दमयन्ती
(ङ) (i) सुजान सागर ।

उत्तर 2.
(क) (iii) धर्वशी
(ख) (iv) परोक्त में से कोई नहीं
(ग) (iii) द्विवेदी-युग
(घ) (iv) मैथिलीशरण गुप्त की
(ङ) (i) केशदास

उत्तर 13.
(क)
(i). (c) ग्राम + अपि ।
(ii). (b) दौक । धा
(iii). (b) उद् । इरानम्

उत्तर 14.
(ख)

(i) (c) ललकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
(ii) (a) लोट्लकार, उत्तम पुरुष, बहुदचेन

(ग)
(i) (c) मनुन् ।
(ii) (b) तयत

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