UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 6 श्रवणकुमार

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 6
Chapter Name श्रवणकुमार (डॉ० शिवबालक शुक्ल)
Number of Questions 6
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 6 श्रवणकुमार (डॉ० शिवबालक शुक्ल)

उत्तर प्रदेश के मेरठ, आजमगढ़, बस्ती, रायबरेली, बाँदा, हरदोई, बहराइच, हमीरपुर, गाजियाबाद, मऊ, सिद्धार्थनगर जनपदों के लिए। नवसृजित जनपदों के विद्यार्थी अपने जनपद में निर्धारित खण्डकाव्य के सम्बन्ध में अपने विषय्-अध्यापक से जानकारी प्राप्त कर लें।

प्रश्न 1.
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का क्रमबद्ध वर्णन कीजिए।
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के ‘अयोध्या’ सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के ‘दशरथ’ खण्ड की कथा का सार लिखिए।
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के छठे सर्ग ‘सन्देश’ की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
या
‘श्रवणकुमार’ के ‘आश्रम’ शीर्षक सर्ग की, कथा संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए।
या
‘श्रवणकुंमार’ खण्डकाव्य के कथानक का विवरण देते हुए उसके महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के पंचम सर्ग में चित्रित दशरथ के अन्तर्द्वन्द्व का सोदाहरण वर्णन कीजिए।
या
‘श्रवणकुमार’ काव्य के ‘श्रवण’ शीर्षक सर्ग का सारांश लिखिए। ‘श्रवणकुमार खण्डकाव्य के सातवें सर्ग ‘अभिशाप’ का सारांश लिखिए।
या
‘श्रवणकुमार’ के सर्गों का नामोल्लेख करते हुए ‘निर्वाण’ (अष्टम) सर्ग का सारांश लिखिए। ‘श्रवणकुमार’ के आखेट सर्ग की कथा संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए।
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के सर्यों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के किसी मार्मिक अंश (श्रवण सर्ग) की कथा का उल्लेख कीजिए।
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के जो कारुणिक प्रसंग जनमानस को बहुत प्रभावित करते हैं, उन पर प्रकाश डालिए।
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के कारुणिक प्रसंग का वर्णन कीजिए।
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के कथानक में महाराज दशरथ की भूमिका पर प्रकाश डालिए।

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श्रवण-पिता ने कहा, आज प्रिय क्योंकर तुमने किया विलम्ब ?
करती रही विविध आशंका अब तक वत्स तुम्हारी अम्ब।”

ऋषि-दम्पति, पर्याप्त समय तक अपने पुत्र के गुणों का वर्णन करते रहते हैं। तत्पश्चात् दशरथ उन्हें जल-ग्रहण करने के लिए कहते हैं तो वे शंकित होकर उनका परिचय पूछते हैं। अन्त में दशरथ उन्हें वह हृदयविदारक दुर्घटना का समाचार सुना देते हैं, जिसे सुनते ही वे करुण विलाप कर उठते हैं और हाहाकार करते अपने मृतक पुत्र के स्पर्श के लिए दशरथ के साथ चल देते हैं।

सप्तम सर्ग : अभिशाप

‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के सप्तमं सर्ग में ऋषि-दम्पति का करुण विलाप चित्रित हुआ है। सरयू-तट पर अपने मृतक पुत्र के शरीर को स्पर्शकर उनके धैर्य का बाँध टूट जाता है। वे विलाप करते-करते। अचेत हो जाते हैं। कुछ देर बाद वे सचेत होते हैं तो पुन: विलाप कर उठते हैं

कौन हमारे लिए विपिन से कन्द मूल फल लायेगा।
कौन अतिथि-सा हमें खिलाने में सच्चा सुख पायेगा ।

इस प्रकार श्रवणकुमार के माता-पिता उसके गुणों और सुकर्मों का स्मरण कर-करके हृदयविदारक विलाप करते हैं। अन्त में श्रवणकुमार के पिता दशरथ से कहते हैं कि यद्यपि आपने यह पाप अनजाने में किया है, परन्तु पाप तो पाप ही है। इसलिए–

पुत्र-शोक से कलप रहा हूँ जिस प्रकार मैं, अजनन्दन ।
सुत-वियोग में प्राण तजोगे इसी भाँति करके क्रन्दन ॥

अष्टम सर्ग : निर्वाण

इस सर्ग में शाप के कारण दशरथ बहुत अधिक दु:खी हैं। पर्याप्त विलाप करने के बाद श्रवणकुमार के पिता को यह आत्मबोध होता है कि मेरे उदार एवं शान्त हृदय में क्रोध कैसे आ गया ? मैंने तो व्यर्थ ही दशरथ को शाप दे दिया। मेरे पुत्र का वध तो नियति के विधान के अनुसार दशरथ के हाथों ही होना था। फिर इसमें किसी का क्या दोष ?

वे श्रवणकुमार को जलांजलि देने के लिए उठते हैं, तभी दिव्य रूपधारी श्रवणकुमार कहता है

मैं प्रतिकृत हो गया आपकी सेवा परिचर्या कर तात।।
मुझे श्रेष्ठ पद मिला आज है पा आशीष तुम्हारा मात ॥

पुत्र-शोक में व्याकुल ऋषि-दम्पति रुदन करते-करते प्राण-त्याग देते हैं और सारथी द्वारा तैयार की गयी चिता में श्रवणकुमार एवं उसके पिता-माता तीनों के नश्वर शरीर भस्म हो जाते हैं।

नवम सर्ग : उपसंहार

नवम सर्ग में दशरथ दु:खी हृदय से अयोध्या लौट आते हैं। अपयश फैलेने के भय से वे वन की दुर्घटना किसी को भी नहीं बताते, किन्तु राम के वन-गमन के समय वे भावविह्वल होकर कौशल्या से यह सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाते हैं तथा पुत्र-वियोग में तड़पते हुए प्राण त्याग देते हैं।

प्रश्न 2.
श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के नायक (प्रमुख पात्र) श्रवणकुमार का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर श्रवणकुमार की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
या
‘श्रवणकुमार’ में वर्णित मातृ एवं पितृभक्ति का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
या
‘श्रवणकुमार’ के किसी एक पात्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
या
“‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य का नायक वह आदर्श पात्र है जो युगों-युगों तक अनुकरणीय रहेगा।” इस कथन के आधार पर श्रवणकुमार का चरित्रांकन कीजिए।
या
वर्तमान सामाजिक एवं सांस्कृतिक संकट की बेला में श्रवणकुमार का चरित्र भावी युवा पीढ़ी का संवाहक बन सकता है। सतर्क उत्तर दीजिए।
या
“कुमार के चारु-चरित पर, संस्कार का प्रचुर प्रभाव।” कथन के आलोक में श्रवणकुमार के चरित्र पर प्रकाश डालिए।

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प्रश्न 3.
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के चरित्रों में देवोपम गुणों के साथ-साथ मानव-सुलभ दुर्बलताएँ
 भी दिखाई देती हैं। इस कथन के सम्बन्ध में अपने विचार लिखिए।

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प्रश्न 4.
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर दशरथ का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर अयोध्या नरेश दशरथ की चारित्रिक विशेषताओं का सोदाहरण विवेचन कीजिए।

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अपने इस कुकृत्य पर उन्हें अपने नहीं, अपने कुल के अपयश का दु:ख सता रहा है

हाय चलेगी युग युगान्त तक अब मेरी यह पाप कथा।।
ज़ो मुझको ही नहीं वंशजों को भी देगी मर्म व्यथा ॥

अपने द्वारा किये गये कर्म पर दु:खी होकर वे अन्ततः धरती माता से ही कह उठते हैं|

फटो धरणि, मैं समा सकें तुम करो ग्रहण, मम भाग्य जगे।
पर वसुन्धरे! मुझे शरण दे-तुम्हें न कहीं कलंक लगे ॥

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निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि दशरथ का चरित्र महान् गुणों से विभूषित है जो कि प्रायश्चित्त और आत्म-ग्लानि की अग्नि में तपकर और भी शुद्ध हो गया है। कवि दशरथ का चरित्र-चित्रण करने में पूर्ण सफल रहा है।

प्रश्न 5.
पंचम एवं सप्तम सर्ग के आधार पर दशरथ के अन्तर्द्वन्द्व पर प्रकाश डालिए।
या
“‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के पंचम सर्ग में दशरथ के अन्तर्द्वन्द्वका व्यापक चित्रण है।” इस कथन को सोदाहरण प्रमाणित कीजिए।
या
‘श्रवणकुमार’ में चित्रित महाराज दशरथ का मानसिक अन्तर्द्वन्द्व स्पष्ट कीजिए।
या
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य में प्रस्तुत महाराज दशरथ के मानसिक असमंजस का वर्णन कीजिए।
या
“दशरथ का अन्तर्द्वन्द्व ‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य की अनुपम निधि है।” इस उक्ति के आलोक में दशरथ का चरित्र-चित्रण कीजिए।

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प्रश्न 6.
‘श्रवणकुमार’ खण्डकाव्य के मार्मिक स्थलों का सोदाहरण निदर्शन कीजिए।
या
“‘श्रवणकुमार’ काव्य के अभिशाप सर्ग में करुण रस का सांगोपांग वर्णन है।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।
या
‘श्रवणकुमार’ के कथानक के मार्मिक स्थल की समीक्षा कीजिए।

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यह सर्ग जहाँ काव्यगत विशेषताओं की दृष्टि से विशिष्ट है, वहीं यह अपने उदात्त विचारों एवं विश्लेषण के कारण भी विशिष्ट है। श्रवणकुमार के पिता पुत्रे-वध के कारण दशरथ के प्रति रोष में हैं, किन्तु उनके द्वारा अपराध की स्वीकृति कर लेने के कारण वे उनके प्रति सहानुभूति भी रखते हैं।
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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 27 साहस

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 26
Chapter Name साहस
Number of Questions Solved 15
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 27 साहस

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
उद्यमी होता है।
(a) वैतनिक कर्मचारी
(b) अवैतनिक कर्मचारी
(c) सरकारी कर्मचारी
(d) केवले उपभोक्ता
उत्तर:
(b) अवैतनिक कर्मचारी

प्रश्न 2.
जोखिम उठाने का कार्य है।
(a) पूँजीपति का
(b) उद्यमी का
(c) संगठनकर्ता का
(d) ये सभी
उत्तर:
(b) उद्यमी का

प्रश्न 3.
साहसी का कार्य मुख्यतः होता है।
(a) मानसिक
(b) शारीरिक
(c) ‘a’ और ‘b’ दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) मानसिक

प्रश्न 4.
उत्पादन के किस साधन का पुरस्कार ऋणात्मक हो सकता है? (2010, 09)
(a) पूँजी
(b) उद्यम
(c) श्रम
(d) संगठन
उत्तर:
(b) उद्यम

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निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
साहस उत्पत्ति का सक्रिय साधन है/नहीं है।
उत्तर:
सक्रिय साधन है।

प्रश्न 2.
उद्यमी व्यापार का जोखिम उठाता है/नहीं उठाता है।
उत्तर:
उठाता है।

प्रश्न 3.
उद्यमी व्यवसाय का वेतनभोगी कर्मचारी/स्वामी होता है।
उत्तर:
स्वामी होता है।

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प्रश्न 4.
उद्यमी के पुरस्कार को लाभ/ब्याज कहते हैं।
उत्तर:
लाभ कहते हैं।

प्रश्न 5.
लाभ ऋणात्मक हो सकता है/नहीं हो सकता है। (2010)
उत्तर:
हो सकता है।

प्रश्न 6.
साहसी का पारिश्रमिक ऋणात्मक हो सकता है।नहीं हो सकता है। (2009)
उत्तर:
हो सकता है।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
उद्यमी या साहसी से आप क्या समझते हैं? (2012)
उत्तर:
उद्यम से आशय हानि तथा लाभ को वहन करने की क्षमता से है (UPBoardSolutions.com) तथा जो व्यक्ति यह क्षमता रखता है, वह ‘साहसी’ या ‘उद्यमी’ कहलाता है। दूसरे शब्दों में, उद्यमी अपने उद्यम का एक अवैतनिक कर्मचारी होता है एवं वह व्यवसाय का स्वामी होता है।

प्रश्न 2.
प्रो. जे. के. मेहता के अनुसार उद्यमी या साहसी को परिभाषित कीजिए। (2012)
उत्तर:
प्रो. जे. के. मेहता के अनुसार, “उत्पादन में सदैव कुछ-न-कुछ जोखिम रहता है। इस जोखिम से उत्पन्न होने वाली हानियों को सहन करने के लिए किसी-न-किसी व्यक्ति की आवश्यकता होती है। जो व्यक्ति इन हानियों को सहन करता है, उसे साहसी या उद्यमी कहते हैं।”

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लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
संगठनकर्ता व साहसी में अन्तर बताइए।
उत्तर:
संगठनकर्ता (प्रबन्धक) तथा साहसी में अन्तर

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 27 साहस

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प्रश्न 2.
कुशल साहसी के गुणों का वर्णन कीजिए। उत्तर कुशल साहसी के गुण निम्नलिखित हैं-

  1. नेतृत्व का गुण एक कुशल साहसी में नीति-निर्धारण करने व निर्णय लेने का गुण होना चाहिए। साहसी में प्रोत्साहित व प्रेरित करने की योग्यता भी होनी चाहिए।
  2. अच्छी साख साहसी की बाजार में अच्छी साख होनी चाहिए, जिससे कि उसे सरलता से पूँजी उपलब्ध हो सके।
  3. व्यावसायिक ज्ञान साहसी को व्यवसाय के प्रत्येक पहलू के बारे में पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए।
  4. नैतिक शिक्षा एक साहसी में आत्मविश्वास, ईमानदारी, सहचरित्रता, (UPBoardSolutions.com) आदि नैतिक गुणों का होना आवश्यक है।
  5. दूरदर्शिता साहसी को पूर्वानुमान लगाकर भावी परिवर्तनों के लिए होने वाले जोखिमों के लिए तैयार रहना चाहिए।
  6. निर्णय लेने की योग्यता साहसी में व्यवसाय से सम्बन्धित विवेकपूर्ण निर्णय लेने की योग्यता होनी चाहिए।
  7. साहस, धैर्य व दृढ़ता एक साहसी में जोखिम व अनिश्चितता का सामना करने के लिए साहस, धैर्य व दृढ़ता का गुण होना आवश्यक है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
उद्यमी किसे कहते हैं? एक उद्यमी के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए। (2016)
उत्तर:
द्यमी से आशय साहस या उद्यम उत्पादन का पाँचवाँ उपादान है। अमेरिकन अर्थशास्त्रियों ने सर्वप्रथम उत्पादन के ‘उद्यम’ (पाँचवाँ उपादान) को महत्त्व दिया है। प्रत्येक व्यवसाय में किसी-न-किसी प्रकार का छोटा या बड़ा जोखिम होता है। ‘साहस’ उत्पत्ति का सक्रिय साधन है। उद्यम से आशय हानि तथा लाभ को वहन करने की क्षमता से है तथा जो व्यक्ति यह क्षमता रखता है, वह साहसी या उद्यमी कहलाता है। डॉ. मार्शल के अनुसार, “साहसी साहस का कार्य करता है और जोखिम उठाता है।”

प्रो. जे. के. मेहता के अनुसार, “उत्पादन में सदैव कुछ-न-कुछ जोखिम रहता है। इस जोखिम से उत्पन्न होने वाली हानियों को सहन करने के लिए किसी-न-किसी व्यक्ति की आवश्यकता होती है। जो व्यक्ति इन हानियों को सहन करता है, उसे साहसी या उद्यमी कहते हैं।” प्रो. नाइट के अनुसार, “उद्यमी वह व्यक्ति है, जो दो कार्य करता है-व्यापार के जोखिम उठाना और उस पर नियन्त्रण रखना।” उद्यमी/साहसी के कार्य एक साहसी (UPBoardSolutions.com) या उद्यमी द्वारा किए जाने वाले कार्यों को निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा जा सकता है

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1. निर्णय सम्बन्धी कार्य साहसी के निर्णय सम्बन्धी कार्य निम्न हैं-

  • व्यवसाय का चुनाव साहसी को यह निर्णय लेना पड़ता है कि कौन-सा व्यवसाय प्रारम्भ किया जाए तथा किस व्यवसाय में अधिक लाभ कमाया जा सकता है। इस प्रकार इन बातों को ध्यान में रखकर उचित व्यवसाय का चुनाव किया जा सकता है।
  • उत्पादन के स्थान का चुनाव उद्योग की स्थापना किस स्थान पर की जाए, यह निर्णय भी साहसी को ही लेना पड़ता है। साहसी यह निर्णय लेते समय कच्चे माल व शक्ति के साधनों की उपलब्धता, यातायात के साधनों की व्यवस्था, बाजार, बैंक, आदि सुविधाओं को ध्यान में रखता है।
  • वस्तु का चुनाव साहसी को उत्पादन कार्य प्रारम्भ करने से पहले वस्तु (UPBoardSolutions.com) के चुनाव सम्बन्धी निर्णय भी लेने पड़ते हैं।
  • उत्पादन की इकाई के आकार का निर्णय व्यवसाय, स्थान व वस्तु का चुनाव करने के पश्चात् उत्पादित वस्तु के आकार सम्बन्धी निर्णय भी साहसी द्वारा लिए जाते हैं। यह घटक उत्पादित वस्तु की माँग पर निर्भर करता है।

2. वितरण सम्बन्धी कार्य वर्तमान युग में संयुक्त साधनों के द्वारा ही उत्पादन किया जा सकता है। प्रत्येक साधन को उसके द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं के बदले उचित प्रतिफल दिया जाता है अर्थात् व्यवसाय में प्राप्त आय में से भूमिपति को लगान, पूँजीपति को ब्याज, श्रमिकों को मजदूरी व प्रबन्धक को वेतन दिया जाता है। शेष बचे लाभ को साहसी अपने पास रखता है।

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3. जोखिम सहन करने सम्बन्धी कार्य प्रत्येक प्रकार के व्यवसाय में जोखिम पाए जाते हैं। बिना (UPBoardSolutions.com) जोखिम के उत्पादन कार्य नहीं किया जा सकता है। साहसी द्वारा ही व्यवसाय के जोखिम व अनिश्चितता को वहन किया जाता है।

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UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 22 उत्पादन (उत्पत्ति) के साधन : आशय, विशेषताएँ एवं महत्त्व

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Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 22
Chapter Name उत्पादन (उत्पत्ति) के साधन : आशय, विशेषताएँ एवं महत्त्व
Number of Questions Solved 17
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 22 उत्पादन (उत्पत्ति) के साधन : आशय, विशेषताएँ एवं महत्त्व

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
उत्पादन का/के साधन है/हैं। (2013)
(a) भूमि
(b) श्रम
(c) पूँजी
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 2.
उत्पादन का सक्रिय साधन है।
(a) पूँजी
(b) श्रम
(c) भूमि
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) श्रम

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा उत्पादन का साधन नहीं है?
(a) भूमि
(b) श्रम
(c) वितरण
(d) पूँजी
उत्तर:
(c) वितरण

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निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
उपयोगिता का सृजन ही उत्पादन/उपभोग है। (2010)
उत्तर:
उत्पादन है

प्रश्न 2.
अर्थशास्त्र में चिकित्सकों को उत्पादक माना/नहीं माना जाता है। (2011)
उत्तर:
माना जाता है

प्रश्न 3.
धन सदैव उत्पादक होता है/नहीं होता है। (2009)
उत्तर:
नहीं होता है

प्रश्न 4.
उत्पादन के पाँच/चार साधन होते हैं। (2008)
उत्तर:
पाँच साधन होते हैं।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
उत्पादन के साधनों से आप क्या समझते हैं? (2013)
उत्तर:
उत्पादन के साधनों (Factors of Production) (UPBoardSolutions.com) का तात्पर्य उन वस्तुओं व साधनों से है, जो उपयोगिता अथवा मूल्य के सृजन में सहायक होते हैं। बेन्हम के अनुसार, “कोई भी वस्तु या सेवा, जो किसी भी स्तर पर उत्पादन कार्य में सहयोग प्रदान करती है, उत्पादन का साधन कहलाती है।”

प्रश्न 2.
उत्पादन की दो रीतियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
उत्पादन की दो रीतियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. रूप-परिवर्तन द्वारा उत्पादन जब किसी वस्तु के रंग, रूप अथवा आकार में परिवर्तन करके उसे पहले की तुलना में अधिक उपयोगी व लाभदायक बना दिया जाता है, तो इसे रूप-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कहा जाता है।
  2. स्थान-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कई बार वस्तु का स्थान परिवर्तित करने से भी उपयोगिता का सृजन होता है या उपयोगिता में वृद्धि होती है, उसे स्थान-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कहा जाता है।

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प्रश्न 3.
उत्पत्ति के साधनों के नाम लिखिए। (2017)
उत्तर:
उत्पत्ति के निम्नलिखित पाँच साधन हैं-

  1. भूमि
  2. श्रम
  3. पूँजी
  4. संगठन
  5. उद्यम या साहस

प्रश्न 4.
उत्पादन के साधन के रूप में संगठन की भूमिका बताइए। (2018)
उत्तर:
संगठन उत्पादन का चौथा महत्त्वपूर्ण साधन संगठन है। संगठन का अभिप्राय उत्पादन के विभिन्न साधनों में अनुकूलतम संयोग स्थापित कर इन्हें उत्पादन कार्य में संलग्न करने की कला व विज्ञान से है। दूसरे शब्दों में, संगठन वह विशिष्ट श्रम है, जो उत्पादन (UPBoardSolutions.com) के साधनों श्रम, पूँजी व भूमि को एकत्रित करके उनमें आदर्शतम् समन्वय स्थापित करता है। उनके कार्यों का निरीक्षण करता है अथवा आवश्यक परिवर्तन करता है। इसके अभाव में कुशलता का अभाव रहता है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
उत्पादन के कौन-कौन से साधन हैं?
अथवा
उत्पादन के किन्हीं पाँच साधनों का उल्लेख कीजिए। (2006)
उत्तर:
उत्पादन के साधनों से आशय उत्पादन के साधनों से हमारा तात्पर्य उन वस्तुओं व साधनों से है, जो उपयोगिता अथवा मूल्य के सृजन में सहायक होते हैं। बेन्हम के अनुसार, “कोई भी वस्तु या सेवा, जो किसी भी स्तर पर उत्पादन कार्य में सहयोग प्रदान करती है, उत्पादन का साधन कहलाती है।” उत्पादन के साधन आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने उत्पादन के साधनों को निम्नलिखित पाँच भागों में बाँटा है

1. भूमि यह उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण, किन्तु निष्क्रिय साधन है। साधारण बोलचाल में, भूमि (Land) का अर्थ केवल भूमि की ऊपरी सतह से लगाया जाता है, परन्तु अर्थशास्त्र में भूमि का बहुत ही व्यापक अर्थ होता है। प्रो. मार्शल के अनुसार, “भूमि का अर्थ (UPBoardSolutions.com) केवल पृथ्वी की ऊपरी सतह से नहीं वरन् उन सभी वस्तुओं एवं शक्तियों से है, जिन्हें प्रकृति ने भूमि, वायु, प्रकाश, आदि के रूप में मानव की सहायता के लिए नि:शुल्क प्रदान किया है।” अर्थशास्त्र में भूमि का अभिप्राय उन समस्त प्राकृतिक उपहारों से है, जिसके अन्तर्गत भूमि की सतह, वायु, नदी, पहाड़, प्रकाश, खनिज, जल, आदि प्रकृतिदत्त पदार्थ सम्मिलित हैं।

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2. श्रम श्रम (Labour) उत्पादन का दूसरा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं सक्रिय साधन है। इसका महत्त्व इसलिए अधिक है, क्योंकि यह समस्त आर्थिक क्रियाओं को आदि और अन्त (साधन और साध्य) दोनों हैं। अर्थशास्त्र में श्रम से मनुष्य के उन सभी शारीरिक और मानसिक प्रयत्नों का बोध होता है, जो धनोपार्जन के उद्देश्य से किए जाते हैं। धनोत्पादन के उद्दश्य से किए गए मानव के सभी शारीरिक एवं मानसिक प्रयत्नों का भी श्रम में समावेश होता है, परन्तु मनोरंजन, देश प्रेम, पारिवारिक स्नेह, आदि के लिए किए गए कार्यों को श्रम में सम्मिलित नहीं किया जाता है।

3. पूँजी उत्पादन का तीसरा महत्त्वपूर्ण साधन पूँजी (Capital) है। आज की आधुनिक जटिल उत्पादन अवस्था में पूँजी का महत्त्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है। पूँजी उत्पादन का एक निष्क्रिय साधन होते हुए भी इसकी बढ़ती हुई स्वयं संचालिता, इसे और भी महत्त्वपूर्ण (UPBoardSolutions.com) बनाती जा रही है। प्रो. मार्शल के अनुसार, “पूँजी मनुष्य द्वारा उत्पादित धन का वह भाग है, जिसे अधिक सम्पत्ति के उत्पादन में प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रकार पूँजी के अन्तर्गत केवल नकदी ही नहीं आती वरन् मशीनें, कच्चा माल, बीज, आदि भी आते हैं।’

4. संगठन उत्पादन का चौथा महत्त्वपूर्ण साधन (Organisation) संगठन है। संगठन का अभिप्राय उत्पादन के विभिन्न साधनों में अनुकूलतम संयोग स्थापित कर इन्हें उत्पादन कार्य में संलग्न करने की कला व विज्ञान से है। दूसरे शब्दों में, संगठन वह विशिष्ट श्रम है, जो उत्पादन के साधनों श्रम, पूँजी व भूमि को एकत्रित करके उनमें आदर्शतम् समन्वय स्थापित करता है। उनके कार्यों का निरीक्षण करता है अथवा आवश्यक परिवर्तन करता है। इसके अभाव में कुशलता का अभाव रहता है।

5. उद्यम या साहस आधुनिक उत्पादन प्रक्रिया में अनेक जटिलताओं के कारण जोखिम में वृद्धि हुई है। जो व्यक्ति इन जोखिमों को वहन करता है, उसे साहसी या उद्यमी (Enteprise) कहते हैं। पहले साहसी को उत्पादन का महत्त्वपूर्ण साधन नहीं माना जाता था, किन्तु आधुनिक उत्पादन अवस्था में विभिन्न प्रकार के जोखिमों की प्रधानता के कारण साहसी को महत्त्वपर्ण साधन माना जाने लगा है। संयुक्त पूँजी कम्पनियों की स्थापना में साहसी ही आगे आते हैं।

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प्रश्न 2.
उत्पादन तथा उपभोग में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2016, 09, 08)
उत्तर:
उपभोग से आशय उपभोग का अर्थ साधारण रूप से वस्तुओं के खाने-पीने से लगाया जाता है, जबकि अर्थशास्त्र में इस शब्द का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है। अर्थशास्त्र में उपभोग को अर्थ मानव द्वारा की जाने वाली उन समस्त क्रियाओं से है, (UPBoardSolutions.com) जिनसे उसकी आवश्यकता की पूर्ति होती है। उपभोग द्वारा किसी वस्तु के तुष्टिगुण को कम या समाप्त किया जा सकता है अर्थात् वस्तुओं द्वारा आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष सन्तुष्टि की क्रिया को उपभोग कहते हैं।

उत्पादन तथा उपभोग में अन्तर

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 22 उत्पादन (उत्पत्ति) के साधन : आशय, विशेषताएँ एवं महत्त्व
उत्पादन का महत्त्व उत्पादन का महत्त्व निम्नलिखित है-

  1. आवश्यकताओं की पूर्ति उत्पादन के परिणामस्वरूप ही मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। उत्पादन के साधन उत्पादन प्रक्रिया से अपनी आय प्राप्त करते हैं तथा उस आय से अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ एवं सेवाएँ क्रय करते हैं।
  2. राष्ट्रीय आय में वृद्धि राष्ट्रीय आय पर उत्पादन का गहरा प्रभाव पड़ता है। जब अर्थशास्त्र के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन से वृद्धि होती है, तो इससे देश की राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि होती है।
  3. जीवन-स्तर में सुधार किसी देश के लोगों का जीवन-स्तर उत्पादन की मात्रा व प्रकृति पर निर्भर करता है।
  4. रोजगार में वृद्धि देश में उत्पादन में वृद्धि से रोजगार पर अनुकूलतम प्रभाव पड़ता है। उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होती है।
  5. व्यापार में वृद्धि उत्पादन वृद्धि का व्यापार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ आन्तरिक व्यापार एवं विदेशी व्यापार का विकास होता है।
  6. आर्थिक विकास का आधार किसी राष्ट्र का आर्थिक विकास उसके (UPBoardSolutions.com) उत्पादन की मात्रा, स्वरूप, वृद्धि स्वरूप एवं वृद्धि की दर पर निर्भर होता है।
  7. परिवहन के साधनों का विकास उत्पादन वृद्धि से परिवहन के साधनों का भी विकास होता है। उत्पादन वृद्धि के लिए कच्चा माल व मशीनों, आदि को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाना व ले जाना पड़ता है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
उत्पादन की परिभाषा दीजिए। विभिन्न प्रकार के उत्पादन का उल्लेख कीजिए। (2014)
अथवा
अर्थशास्त्र में उत्पादन से क्या आशय होता है? उत्पादन के प्रकारों की विवेचना कीजिए। (2006)
उत्तर:
उत्पादन से आशय उत्पादन (Production). से आशय वस्तुओं व सेवाओं में उपयोगिता सृजन के साथ-साथ उनके मूल्य या विनिमय शक्ति में वृद्धि करना होता है। अत: वस्तुओं व सेवाओं द्वारा आर्थिक उपयोगिता के सृजन को उत्पादन कहा जाता है। फेयरचाइल्ड के अनुसार, “सम्पत्ति को अधिक उपयोगी बनाना ही उत्पादन है।” टॉमस के अनुसार, “वस्तु के मूल्य में वृद्धि करना अथवा आर्थिक उपयोगिता में वृद्धि करना ही उत्पादन है।” डॉ. बसु के अनुसार, “उत्पादन का अर्थ तुष्टिगुण सृजन करना है।” ए. एच. स्मिथ के अनुसार, “उत्पादन वह प्रक्रिया है, जिससे वस्तुओं में उपयोगिता का सृजन होती है।” प्रो. एली के अनुसार, “आर्थिक उपयोगिताओं का निर्माण ही उत्पादन है।”

उत्पादन के प्रकार या उपयोगिता वृद्धि की रीतियाँ उत्पादन के प्रकार या उपयोगिता वृद्धि की रीतियाँ निम्नलिखित हैं

1. रूप-परिवर्तन द्वारा उत्पादन किसी वस्तु के रूप को परिवर्तित करके उपयोगिता का सृजन किया जा सकता है। जब किसी वस्तु के रंग, रूप अथवा आकार में परिवर्तन किया जाता है, तो वह पहले से अधिक उपयोगी एवं लाभदायक बन जाती है। इसे रूप-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कहा जाता है; जैसे-लकड़ी का रूप बदलकर मेज व कुर्सी बनाना।

2. स्थान-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कई बार वस्तु का स्थान परिवर्तित करने से भी उपयोगिता का सृजन होता है या उपयोगिता में वृद्धि होती है, उसे स्थान परिवर्तन द्वारा उत्पादन कहा जाता है। जब कोई वस्तु किसी विशेष स्थान पर अधिक उत्पादित होती है, तो उस विशेष स्थान पर उस वस्तु की उपयोगिता कम होती है।

3. समय-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कुछ वस्तुएँ ऐसी भी होती हैं, जिनकी उपयोगिता समय-परिवर्तन के साथ बढ़ती है। कुछ वस्तुएँ ऐसी भी होती हैं, जिनकी समय बीतने के साथ उपयोगिता में वृद्धि होती है। उदाहरणस्वरूप, संग्रह करने से भी कुछ वस्तुओं की उपयोगिता व मूल्य में वृद्धि होती है; जैसे-शराब तथा चावल जितने पुराने होते जाते हैं, उनकी उपयोगिता भी बढ़ने लगती है।

4. अधिकार-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कभी-कभी वस्तु का अधिकार परिवर्तित करने पर अर्थात् एक व्यक्ति द्वारा वस्तु के स्वामित्व को दूसरे व्यक्ति को प्रदान करने पर भी उपयोगिता का सृजन होता है। इसे अधिकार-परिवर्तन द्वारा उत्पादन कहा (UPBoardSolutions.com) जाता है। उदाहरण के लिए, एक पुस्तक, पुस्तक विक्रेता हेतु अधिक उपयोगी नहीं होती है। वह उसके लिए लाभ कमाने की एक वस्तु मात्र होती है, जिसे वह बेचकर अपनी आय प्राप्त करता है, परन्तु जब यह पुस्तक एक विद्यार्थी द्वारा खरीद ली जाती है, तो वस्तु की उपयोगिता बढ़ जाती है।

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5. सेवा द्वारा उत्पादन किसी सेवा या किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत गुणों के कारण भी उपयोगिता का सृजन होता है, उसे सेवा द्वारा उत्पादन कहा जाता है; जैसे-डॉक्टर, वकील, अध्यापक, न्यायाधीश, नौकर, गायक, इत्यादि अपनी सेवाओं के द्वारा उपयोगिता का सृजन करते हैं।

6. ज्ञान वृद्धि द्वारा उत्पादन विज्ञापन द्वारा किसी वस्तु-विशेष से सम्बन्धित ज्ञान का प्रसार करने से उपयोगिता का सृजन होता है; जैसे-जब तक किसी उपभोक्ता को किसी वस्तु-विशेष से सम्बन्धित पूरा ज्ञान नहीं होता। वह वस्तु उसके लिए ज्यादा उपयोगी नहीं होती है, परन्तु यदि विज्ञापन के माध्यम से उपभोक्ता को उस वस्तु की जानकारी प्रदान की जाए, तो उसे उपभोक्ता की उस वस्तु के सन्दर्भ में उपयोगिता बढ़ जाएगी।

प्रश्न 2.
उत्पादन क्या है? उत्पादन के साधनों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2016)
अथवा
उत्पादन के साधनों से आप क्या समझते हैं? उत्पादन के विभिन्न साधनों की व्याख्या कीजिए। (2015)
अथवा
अर्थशास्त्र में उत्पादन का क्या अर्थ है? उत्पादन के विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उत्पादन से आशय
उत्पादन से आशय उत्पादन (Production). से आशय वस्तुओं व सेवाओं में उपयोगिता सृजन के साथ-साथ उनके मूल्य या विनिमय शक्ति में वृद्धि करना होता है। अत: वस्तुओं व सेवाओं द्वारा आर्थिक उपयोगिता के सृजन को उत्पादन कहा जाता है। फेयरचाइल्ड के अनुसार, “सम्पत्ति को अधिक उपयोगी बनाना ही उत्पादन है।” टॉमस के अनुसार, “वस्तु के मूल्य में वृद्धि करना अथवा आर्थिक उपयोगिता में वृद्धि करना ही उत्पादन है।” डॉ. बसु के अनुसार, “उत्पादन का अर्थ तुष्टिगुण सृजन करना है।” ए. एच. स्मिथ के अनुसार, “उत्पादन वह प्रक्रिया है, जिससे वस्तुओं में उपयोगिता का सृजन होती है।” प्रो. एली के अनुसार, “आर्थिक उपयोगिताओं का निर्माण ही उत्पादन है।”

उत्पादन के साधनों से आशय उत्पादन के साधनों से हमारा तात्पर्य उन वस्तुओं व साधनों से है, जो उपयोगिता अथवा मूल्य के सृजन में सहायक होते हैं। बेन्हम के अनुसार, “कोई भी वस्तु या सेवा, जो किसी भी स्तर पर उत्पादन कार्य में सहयोग प्रदान करती है, उत्पादन का साधन कहलाती है।” उत्पादन के साधन आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने उत्पादन के साधनों को निम्नलिखित पाँच भागों में बाँटा है

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1. भूमि यह उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण, किन्तु निष्क्रिय साधन है। साधारण बोलचाल में, भूमि (Land) का अर्थ केवल भूमि की ऊपरी सतह से लगाया जाता है, परन्तु अर्थशास्त्र में भूमि का बहुत ही व्यापक अर्थ होता है। प्रो. मार्शल के अनुसार, “भूमि का अर्थ केवल पृथ्वी की ऊपरी सतह से नहीं वरन् उन सभी वस्तुओं एवं शक्तियों से है, जिन्हें प्रकृति ने भूमि, वायु, प्रकाश, आदि के रूप में मानव की सहायता के लिए नि:शुल्क प्रदान किया है।” अर्थशास्त्र में भूमि का अभिप्राय उन समस्त प्राकृतिक उपहारों से है, जिसके अन्तर्गत भूमि की सतह, वायु, नदी, पहाड़, प्रकाश, खनिज, जल, आदि प्रकृतिदत्त पदार्थ सम्मिलित हैं।

2. श्रम श्रम (Labour) उत्पादन का दूसरा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं सक्रिय साधन है। इसका महत्त्व इसलिए अधिक है, क्योंकि यह समस्त आर्थिक क्रियाओं को आदि और अन्त (साधन और साध्य) दोनों हैं। अर्थशास्त्र में श्रम से मनुष्य के उन सभी शारीरिक (UPBoardSolutions.com) और मानसिक प्रयत्नों का बोध होता है, जो धनोपार्जन के उद्देश्य से किए जाते हैं। धनोत्पादन के उद्दश्य से किए गए मानव के सभी शारीरिक एवं मानसिक प्रयत्नों का भी श्रम में समावेश होता है, परन्तु मनोरंजन, देश प्रेम, पारिवारिक स्नेह, आदि के लिए किए गए कार्यों को श्रम में सम्मिलित नहीं किया जाता है।

3. पूँजी उत्पादन का तीसरा महत्त्वपूर्ण साधन पूँजी (Capital) है। आज की आधुनिक जटिल उत्पादन अवस्था में पूँजी का महत्त्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है। पूँजी उत्पादन का एक निष्क्रिय साधन होते हुए भी इसकी बढ़ती हुई स्वयं संचालिता, इसे और भी महत्त्वपूर्ण बनाती जा रही है। प्रो. मार्शल के अनुसार, “पूँजी मनुष्य द्वारा उत्पादित धन का वह भाग है, जिसे अधिक सम्पत्ति के उत्पादन में प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रकार पूँजी के अन्तर्गत केवल नकदी ही नहीं आती वरन् मशीनें, कच्चा माल, बीज, आदि भी आते हैं।’

4. संगठन उत्पादन का चौथा महत्त्वपूर्ण साधन (Organisation) संगठन है। संगठन का अभिप्राय उत्पादन के विभिन्न साधनों में अनुकूलतम संयोग स्थापित कर इन्हें उत्पादन कार्य में संलग्न करने की कला व विज्ञान से है। दूसरे शब्दों में, संगठन वह विशिष्ट श्रम है, जो उत्पादन के साधनों श्रम, पूँजी व भूमि को एकत्रित करके उनमें आदर्शतम् समन्वय स्थापित करता है। उनके कार्यों का निरीक्षण करता है अथवा आवश्यक परिवर्तन करता है। इसके अभाव में कुशलता का अभाव रहता है।

5. उद्यम या साहस आधुनिक उत्पादन प्रक्रिया में अनेक जटिलताओं के कारण जोखिम में वृद्धि हुई है। जो व्यक्ति इन जोखिमों को वहन करता है, उसे साहसी या उद्यमी (Enteprise) कहते हैं। पहले साहसी को उत्पादन का महत्त्वपूर्ण साधन नहीं माना जाता था, किन्तु आधुनिक उत्पादन अवस्था में विभिन्न प्रकार के जोखिमों की प्रधानता के कारण साहसी को महत्त्वपर्ण साधन माना जाने लगा है। संयुक्त पूँजी कम्पनियों की स्थापना में साहसी ही आगे आते हैं।

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प्रश्न 3.
उत्पादन क्या है? यह उपभोग से कैसे भिन्न है? इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए। (2008)
अथवा
उपभोग क्या है? उत्पादन व उपभोग में क्या अन्तर है?
उत्तर:
उत्पादन से आशय
उत्पादन से आशय उत्पादन (Production). से आशय वस्तुओं व सेवाओं में उपयोगिता सृजन के साथ-साथ उनके मूल्य या विनिमय शक्ति में वृद्धि करना होता है। अत: वस्तुओं व सेवाओं द्वारा आर्थिक उपयोगिता के सृजन को उत्पादन कहा जाता है। फेयरचाइल्ड (UPBoardSolutions.com) के अनुसार, “सम्पत्ति को अधिक उपयोगी बनाना ही उत्पादन है।” टॉमस के अनुसार, “वस्तु के मूल्य में वृद्धि करना अथवा आर्थिक उपयोगिता में वृद्धि करना ही उत्पादन है।” डॉ. बसु के अनुसार, “उत्पादन का अर्थ तुष्टिगुण सृजन करना है।” ए. एच. स्मिथ के अनुसार, “उत्पादन वह प्रक्रिया है, जिससे वस्तुओं में उपयोगिता का सृजन होती है।” प्रो. एली के अनुसार, “आर्थिक उपयोगिताओं का निर्माण ही उत्पादन है।”

उपभोग से आशय उपभोग का अर्थ साधारण रूप से वस्तुओं के खाने-पीने से लगाया जाता है, जबकि अर्थशास्त्र में इस शब्द का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है। अर्थशास्त्र में उपभोग को अर्थ मानव द्वारा की जाने वाली उन समस्त क्रियाओं से है, जिनसे उसकी आवश्यकता की पूर्ति होती है। उपभोग द्वारा किसी वस्तु के तुष्टिगुण को कम या समाप्त किया जा सकता है अर्थात् वस्तुओं द्वारा आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष सन्तुष्टि की क्रिया को उपभोग कहते हैं।

उत्पादन तथा उपभोग में अन्तर

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 22 उत्पादन (उत्पत्ति) के साधन : आशय, विशेषताएँ एवं महत्त्व

उत्पादन का महत्त्व उत्पादन का महत्त्व निम्नलिखित है-

  1. आवश्यकताओं की पूर्ति उत्पादन के परिणामस्वरूप ही मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। उत्पादन के साधन उत्पादन प्रक्रिया से अपनी आय प्राप्त करते हैं तथा उस आय से अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ एवं सेवाएँ क्रय करते हैं।
  2. राष्ट्रीय आय में वृद्धि राष्ट्रीय आय पर उत्पादन का गहरा प्रभाव पड़ता है। जब अर्थशास्त्र के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन से वृद्धि होती है, तो इससे देश की राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि होती है।
  3. जीवन-स्तर में सुधार किसी देश के लोगों का जीवन-स्तर उत्पादन की मात्रा व प्रकृति पर निर्भर करता है।
  4. रोजगार में वृद्धि देश में उत्पादन में वृद्धि से रोजगार पर अनुकूलतम प्रभाव (UPBoardSolutions.com) पड़ता है। उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होती है।
  5. व्यापार में वृद्धि उत्पादन वृद्धि का व्यापार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ आन्तरिक व्यापार एवं विदेशी व्यापार का विकास होता है।
  6. आर्थिक विकास का आधार किसी राष्ट्र का आर्थिक विकास उसके उत्पादन की मात्रा, स्वरूप, वृद्धि स्वरूप एवं वृद्धि की दर पर निर्भर होता है।
  7. परिवहन के साधनों का विकास उत्पादन वृद्धि से परिवहन के साधनों का भी विकास होता है। उत्पादन वृद्धि के लिए कच्चा माल व मशीनों, आदि को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाना व ले जाना पड़ता है।

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प्रश्न 4.
अर्थशास्त्र में उत्पादन का क्या अर्थ है? उत्पादन को प्रभावित करने वाले छः कारकों का उल्लेख कीजिए। (2007)
अथवा
उत्पादन क्षमता से क्या आशय है? उत्पादन क्षमता को प्रभावित करने वाली बातों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
उत्पादन से आशय
उत्पादन से आशय उत्पादन (Production). से आशय वस्तुओं व सेवाओं में उपयोगिता सृजन के साथ-साथ उनके मूल्य या विनिमय शक्ति में वृद्धि करना होता है। अत: वस्तुओं व सेवाओं द्वारा आर्थिक उपयोगिता के सृजन को उत्पादन कहा जाता है। फेयरचाइल्ड के अनुसार, “सम्पत्ति को अधिक उपयोगी बनाना ही उत्पादन है।” टॉमस के अनुसार, “वस्तु के मूल्य में वृद्धि करना अथवा आर्थिक उपयोगिता में वृद्धि करना ही उत्पादन है।” डॉ. बसु (UPBoardSolutions.com) के अनुसार, “उत्पादन का अर्थ तुष्टिगुण सृजन करना है।” ए. एच. स्मिथ के अनुसार, “उत्पादन वह प्रक्रिया है, जिससे वस्तुओं में उपयोगिता का सृजन होती है।” प्रो. एली के अनुसार, “आर्थिक उपयोगिताओं का निर्माण ही उत्पादन है।”

उत्पादन क्षमता उत्पादन की कुशलता (Efficiency of Production) से तात्पर्य किसी उत्पादन संस्था की उस योग्यता से है, जिसके द्वारा वह एक निश्चित समय में अन्य उत्पादक संस्थाओं से कम लागत पर अधिक मात्रा में व उच्च स्तर का माल उत्पादित करती है। उत्पादन की कुशलता को प्रभावित करने वाले तत्त्व उत्पादन की कुशलता को प्रभावित करने वाले तत्त्व निम्नलिखित हैं

1. आन्तरिक तत्त्व आन्तरिक तत्त्वों का सम्बन्ध उत्पादन संस्था के आन्तरिक प्रबन्ध और कार्य संचालन से होता है। ये दशाएँ निम्नलिखित हैं

  • साधनों का उचित अनुपात में नियोजन उत्पादन के विभिन्न साधनों को अनुकूलतम अनुपात में लगाने पर उत्पादन की कुशलता में वृद्धि होर? है।
  • उत्पादन साधनों की कुशलता उत्पादन के साधन अधिक कुशल होने से उत्पादन अधिक मात्रा में व श्रेष्ठ होता है। यदि उत्पादन-कार्य में उच्च कोटि का कच्चा माल, नवीनतम मशीनें व योग्य श्रमिकों का प्रयोग किया जाता है, तो उत्पादन उच्च-स्तर का होता है।

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2. बाह्य तत्त्व बाह्य तत्त्वों का सम्बन्ध किसी एक उत्पादन संस्था से न होकर एक उद्योग या एक स्थान पर स्थापित सभी प्रकार की संस्थाओं से होता है। ये दशाएँ निम्नलिखित हैं

  • प्राकृतिक घटक किसी देश की उत्पादन कुशलता उसके प्राकृतिक तत्त्वों; जैसे-जलवायु, खनिज सम्पदा, भूमि का उपजाऊपन, आदि पर – निर्भर करती है।
  • तकनीकी ज्ञान व वैज्ञानिक शोध किसी राष्ट्र की उत्पादन कुशलता उस देश (UPBoardSolutions.com) के तकनीकी ज्ञान व वैज्ञानिक शोध पर निर्भर करती है।
  • यातायात की सुविधाएँ उत्पादन कुशलता यातायात के साधनों पर भी निर्भर करती है।
  • सरकारी नीति उत्पादन कुशलता पर सरकारी नीतियों का प्रभाव भी पड़ता है।

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UP Board Solutions for Class 5 EVS Hamara Parivesh Chapter 20 संघीय शासन

UP Board Solutions for Class 5 EVS Hamara Parivesh Chapter 20 संघीय शासन

संघीय शासन अभ्यास

प्रश्न १.
निम्नलिखित से संबंधित संस्थाओं के नाम बताओ –
उत्तर:
(क) व्यवस्थापिका – संसद
(ख) कार्यपालिका – मंत्रिपरिषद
(ग) न्यायपालिका – न्यायालय

प्रश्न २.
राष्ट्रपति के प्रमुख कार्य क्या-क्या हैं?
उत्तर:
राष्ट्रपति के प्रमुख कार्य संसद की बैठक बुलाना, अध्यादेश जारी करना, राज्यों में राज्यपाल, मंत्रियों व न्यायाधीशों की नियुक्ति करना आदि है।

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प्रश्न ३.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करो (पर्ति करके) –
(क) लोक सभा के सदस्यों का चुनाव ५ वर्ष के लिए होता है।
(ख) राज्य सभा के सदस्यों का कार्यकाल ६ वर्ष के लिए होता है।
(ग) राष्ट्रपति लोक सभा और राज्य सभा को मिलाकर संसद बनती है।
(घ) हमारे देश के प्रधानमंत्री का नाम ……………. है। (छात्र स्वयं लिखें।)

प्रश्न ४.
राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, उच्चतम न्यायालय के चित्र एकत्र करके अपनी पुस्तिका में चिपकाओ। चित्र के नीचे उनके कार्य लिखो।
उत्तर:
नोट – विद्यार्थी स्वयं चित्र एकत्र करें एवं चित्र के नीचे कार्य लिखें।

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प्रश्न ५.
बालसभा में अध्यापक की सहायता से संसद की कार्यवाही के विषय में चर्चा करें।
उत्तर:
नोट – विद्यार्थी स्वयं चर्चा करें।

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UP Board Solutions for Class 5 EVS Hamara Parivesh Chapter 19 हमारा संविधान

UP Board Solutions for Class 5 EVS Hamara Parivesh Chapter 19 हमारा संविधान

हमारा संविधान अभ्यास

प्रश्न १.
उत्तर दें –
(क) हमारा संविधान क्यों बनाया गया?
उत्तर:
देश की शासन व्यवस्था को सुव्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए हमारा संविधान बनाया गया।

(ख) संविधान सभा के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
संविधान सभा के अध्यक्ष डा० राजेन्द्र प्रसाद थे।

(ग) संविधान बनाने के लिए गठित उपसमिति के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
संविधान बनाने के लिए गठित उपसमिति के अध्यक्ष डा० भीमराव अम्बेडकर थे।

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प्रश्न २.
निम्नलिखित वाक्यों की पूर्ति करो (पूर्ति करके) –
(क) हमारा भारतीय संविधान २६ जनवरी, १६५० को लागू किया गया।
(ख) प्रतिवर्ष २६ जनवरी को हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं।

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