UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 2 प्रयाग:

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 2
Chapter Name प्रयाग:
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 2 प्रयाग:

अवतरणों का संसद अनुवाद

(1) भारतवर्षस्य …………… प्रत्यगच्छत् ।
अत्र ब्रह्मणा ……………………….. प्रत्यगच्छत् ।
गङ्गा-यमुनयः …………………….. आत्मानं पावयन्ति ।
भारतवर्षस्य ……………………… आत्मानं पावयन्ति ।
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(4) गङ्गायाः पूर्वं …………………. अक्षुण्णैव ।
इतिहासप्रसिद्धः …………………. अतिमहत्त्वपूर्णमस्ति ।
इतिहासप्रसिद्धः ………………………. स्थितोऽस्ति ।
इतिहासप्रसिद्धः …………………… “इत्यकरोत् ।

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(5) भारतस्य ………………. कर्मभूमिश्च ।
भारतस्य : ……………….. सञ्चालनम् अकुर्वन् ।

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UP Board Solutions for Class 12 Civics राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत

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Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter 22 a
Chapter Name राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत
Number of Questions Solved 15
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत

विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6अंक)

प्रश्न 1
राष्ट्रमण्डल क्या है? वर्तमान विश्व में इसके महत्व का मूल्यांकन कीजिए। [2013]
या
राष्ट्रमण्डल क्या है? इसके उद्देश्य क्या है? इसका सदस्य कौन हो सकता है? [2010, 14]
या
राष्ट्रमण्डल के गठन तथा कार्यों की विवेचना कीजिए। [2010]
या
राष्ट्रमण्डल क्या है? इसकी स्थापना कब हुई थी? इसमें कितने सदस्य हैं? इसका मुख्यालय कहाँ है? [2012]
या
राष्ट्रमण्डल क्या है? इसके उद्देश्य क्या हैं? राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत के कार्यों की चर्चा कीजिए। [2013]
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल उन देशों का संगठन है जो कभी अंग्रेजों के अधीन थे और जिन्होंने स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद ब्रिटेन के साथ लगभग बराबर के सम्बन्ध स्थापित कर लिये। वस्तुतः ‘ब्रिटिश साम्राज्य’, ‘ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल’ तथा ‘राष्ट्रमण्डल’ एक ही संस्था के नाम हैं, जो परिस्थितियों और आवश्यकता के अनुसार परिवर्तित होते रहे हैं। 1887 ई० में महारानी विक्टोरिया की हीरक जयन्ती के अवसर पर साम्राज्य के प्रतिनिधियों की औपचारिक बैठक से इसका प्रारम्भ हुआ था। 1907 ई० के सम्मेलन में इसका नाम ‘इम्पीरियल कॉन्फ्रेंस’ निश्चित किया गया और 1931 ई० के वेस्टमिन्स्टर विधान में इसका नाम बदलकर ‘ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल’ कर दिया गया। 1947 ई० में भारत की स्वतन्त्रता के बाद जब भारत के द्वारा गणतन्त्र के साथ-साथ राष्ट्रमण्डल की सदस्यता प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की गयी तो अप्रैल, 1949 ई० के सम्मेलन में इसका नाम बदलकर ‘राष्ट्रमण्डल’ (Commonwealth of Nations) रखा गया और गणतन्त्रों के लिए सम्राट् के प्रति भक्ति की शर्त हटा दी गयी। इसका मुख्यालय मार्लबेरो हाउस लंदन (ग्रेट ब्रिटेन) में है। इसमें वर्तमान सदस्य देशों की संख्या 53 है।

राष्ट्रमण्डल कोई निश्चित उत्तरदायित्व वाला कठोर वैधानिक या सैनिक संगठन नहीं है, वरन् मैत्री, विश्वास, स्वातन्त्र्य-इच्छा और शान्ति की भावना पर आधारित मानवीय संगठन है जिसका कोई संविधान, सन्धि, समझौता, लिखित नियम या कानून नहीं हैं और जो केवल सदस्यों की पारस्परिक सद्भावना पर टिका हुआ है। राष्ट्रमण्डल के सभी राष्ट्र स्वतन्त्र और समान हैं और इसमें ब्रिटिश सम्राट् के प्रति किसी प्रकार की वफादारी होना जरूरी नहीं है। राष्ट्रमण्डल के राज्यों की पहचान यह है कि इनके राजदूत एक-दूसरे के देश में उच्चायुक्त’ (High Commissioner) कहे जाते हैं।

राष्ट्रमण्डल के सदस्य राष्ट्र अपनी इच्छानुसार राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय नीति को मानते हैं और व्यवहार में भी अन्तर्राष्ट्रीय मसलों पर उनमें विचार-भेद की स्थिति देखी जाती है।

राष्ट्रमण्डल के उद्देश्य

यद्यपि राष्ट्रमण्डल का कोई सामान्य बन्धन, लक्ष्य या ध्येय नहीं है तथापि इसमें सदस्य कुछ बातों पर प्रायः सहमत हैं जिन्हें राष्ट्रमण्डल के उद्देश्य कहा जाता है।

ये इस प्रकार हैं –

  1. प्रजातन्त्र का आदर्श और मौलिक मानवीय अधिकारों की प्राप्ति।
  2. प्रजातन्त्रीय राजनीति में अधिकारिक पारस्परिक सहयोग।
  3. आर्थिक कल्याण अथवा सामान्य हित के लिए अग्रसर होना।

राष्ट्रमण्डल के कार्य (महत्त्व)

राष्ट्रमण्डल के प्रमुख कार्य (महत्त्व) निम्नलिखित हैं –

  1. राष्ट्रमण्डल ने अनेक विषयों पर अपने सदस्य देशों के मध्य मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। छोटे सदस्य राष्ट्रों; जैसे–माल्टा, फिजी, कैमरून, न्यूगिनी, युगाण्डा, कीनिया आदि की अर्थव्यवस्था सुधार में सहयोग प्रदान करके उनके विकास को गति प्रदान करने में सहायता प्रदान की है।
  2. राष्ट्रमण्डल ने विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों तथा खेलों के आयोजनों से देशों के बीच आपसी सहयोग विकसित करने तथा उनकी प्रतिभाओं को आगे लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत ने अपनी विदेश नीति के मूल्यों एवं सिद्धान्तों के आधार पर राष्ट्रमण्डल के पारस्परिक सहयोग, शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व, नि:शस्त्रीकरण तथा आर्थिक सहयोग के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए समय-समय पर उल्लेखनीय सहायता प्रदान की है।
  3. अक्टूबर, 2011 में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने ऑस्ट्रेलिया में आयोजित सदस्य देशों की बैठक में खाद्य सुरक्षा, वित्त, जलवायु परिवर्तन तथा व्यापार क्षेत्र की कई नई वैश्विक चुनौतियों से निपटने का आग्रह किया।
  4. राष्ट्रमण्डल में इक्कीसवीं सदी में चोगम को ही एक अन्तर्राष्ट्रीय नेटवर्क बनाने की अपील की गई।

राष्ट्रमण्डल की आलोचना (मूल्यांकन)

भारत में जनता का एक बड़ा वर्ग सदैव ही राष्ट्रमण्डल की सदस्यता का विरोधी रहा है तथा राष्ट्रमण्डल की सदस्यता त्यागने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन जुटाया जा रहा है। यह वर्ग निम्नलिखित आधारों पर राष्ट्रमण्डल की सदस्यता का विरोध करता है –

  1. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता अंग्रेजों के प्रति भारतीयों की गुलामी का द्योतक है, इसलिए दासता का प्रतीक है।
  2. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से भारत के आर्थिक हितों पर विपरीत प्रभाव पड़ने की आशंका है। क्योंकि ब्रिटेन ने ‘यूरोपीय साझा बाजार’ की पूर्ण सदस्यता स्वीकार कर ली है।
  3. भारत-पाक सम्बन्धों में ब्रिटेन का भारत-विरोधी दृष्टिकोण रहा है।
  4. ब्रिटेन की राष्ट्रमण्डल के आधारभूत सिद्धान्तों (प्रजातन्त्र तथा मानवीय अधिकारों) में एकनिष्ठ तथा सच्ची निष्ठा नहीं है।

राष्ट्रमण्डल, राष्ट्रों का एक ढीला-ढाला संगठन है। विश्व राजनीति में इस संगठन की स्थिति अधिक सन्तोषजनक नहीं है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में ब्रिटेन की स्थिति कमजोर हो जाने के कारण यह अब इस पर अपना पूर्ण नियन्त्रण स्थापित करने में सक्षम नहीं है। अतः इस संगठन में ब्रिटेन की नीतियों के विरुद्ध भी विरोध के स्वर सुनाई देने लगे हैं। इस संगठन के सदस्य राष्ट्रों में भी पारस्परिक सहयोग की भावना का अभाव देखा जा रहा है।

[संकेत – राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत की भूमिका (कार्य) हेतु लघु उत्तरीय प्रश्न 2 (150 शब्द) का अध्ययन करें।

लघू उत्तीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
राष्ट्रमण्डल का अर्थ व उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल

कभी अंग्रेजी शासन के अधीन रहे देशों, जिन्होंने स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ब्रिटेन के साथ लगभग समानता के सम्बन्ध स्थापित कर लिए हैं, ने मिलकर राष्ट्रमण्डल की स्थापना की। राष्ट्रमण्डल कोई निश्चित उत्तरदायित्वों वाला कठोर वैधानिक या सैनिक संगठन नहीं है। 1887 ई० में महारानी विक्टोरिया की हीरक जयन्ती के अवसर पर साम्राज्य के प्रतिनिधियों की औपचारिक बैठक में इसका प्रारम्भ हुआ। वर्ष 1949 में इस संगठन का नाम ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल से बदलकर राष्ट्रमण्डल कर दिया गया और गणतन्त्रों के लिए ब्रिटिश सम्राट के प्रति भक्ति की शर्त हटा दी गई। वर्ष 1949 में ही भारत इसका सदस्य देश बना। राष्ट्रमण्डल के राज्यों की पहचान यह है कि इनके राजदूत एक-दूसरे के देश में उच्चायुक्त कहलाते हैं। राष्ट्रमण्डल का मुख्यालय मार्लबोरो हाउस लन्दन (ग्रेट ब्रिटेन) में है। वर्तमान में राष्ट्रमण्डल की सदस्य संख्या 53 है।

राष्ट्रमण्डल के उद्देश्य

इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. प्रजातन्त्र का आदर्श और मौलिक मानवीय अधिकारों की प्राप्ति।
  2. प्रजातन्त्रीय राजनीति में पारस्परिक सहयोग।
  3. आर्थिक कल्याण अथवा सामान्य हित के लिए अग्रसर होना तथा अन्तर्राष्ट्रीय, आर्थिक, सामाजिक तथा मानव-कल्याण सम्बन्धी समस्याओं का निराकरण करना।
  4. सांस्कृतिक गतिविधियों का आदान-प्रदान करना तथा खेल-कूद आदि की प्रतियोगिताओं का आयोजन करना।
  5. सदस्य राष्ट्रों में मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध तथा अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग में वृद्धि करना।

प्रश्न 2.
राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत की भूमिका स्पष्ट कीजिए। [2014]
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत

स्वतन्त्रता आन्दोलन की कालावधि में कांग्रेस राष्ट्रमण्डल की सदस्यता को त्यागने की वकालत करती थी, परन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद इसे सम्बन्ध में व्यावहारिक दृष्टिकोण से विचार किया गया तथा यह निश्चित किया गया कि भारत को राष्ट्रमण्डल का सदस्य रहना चाहिए क्योंकि इससे राजनीतिक तथा आर्थिक दोनों ही लाभ हैं। निम्नलिखित तथ्यों से इस बात की पुष्टि होती है कि भारत ने सदैव ही स्वतन्त्र विदेश नीति का संचालन किया है। जब सन् 1956 ई० में ब्रिटेन और मिस्र के बीच स्वेज नहर को लेकर संघर्ष आरम्भ हुआ, तब राष्ट्रमण्डल के सदस्य होते हुए भी भारत ने मिस्र का पक्ष लिया और ब्रिटेन की साम्राज्यवादी नीति का घोर विरोध करते हुए अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति का प्रमाण दिया। इसी प्रकार मार्च 1962 ई० में आयोजित राष्ट्रमण्डलीय सम्मेलन में भारत ने दक्षिण अफ्रीका की रंग-भेद नीति की तीव्र आलोचना की। ब्रिटेन के यूरोपीय साझा बाजार में सम्मिलित होने के प्रश्न पर भी भारत ने अपने स्वतन्त्र विचार व्यक्त किए।

जब 1962 ई० में चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो पाकिस्तान को छोड़कर अन्य सदस्यों ने भारत का ही समर्थन किया और भारत की विभिन्न प्रकार से सहायता की। ब्रिटेन ने भी चीन की साम्राज्यवादी नीति का विरोध किया और अस्त्र-शस्त्र तथा अन्य प्रकार से हमारी सहायता की। यद्यपि ब्रिटेन की नीतियों के अन्तर्गत समय-समय पर भारत का विरोध हुआ है, जिसके कारण हमारे देश में राष्ट्रमण्डल की सदस्यता त्यागने के लिए प्रतिक्रिया भी हुई है, किन्तु इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि राष्ट्रमण्डल की सदस्यता भारत के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुई है। और उसे सदस्य राष्ट्रों से अनेक क्षेत्रों में सहयोग प्राप्त होता रहा है। अतः भारत के राष्ट्रमण्डल से पृथक् होने की बात सर्वथा अनुचित है। इस समय भारत के ब्रिटेन के साथ सम्बन्ध काफी मधुर हैं। भारत के द्वारा जो परमाणु-परीक्षण किए गए हैं उनके सम्बन्ध में ब्रिटेन ने भारत पर अमेरिका की भाँति कोई आर्थिक प्रतिबन्ध आरोपित नहीं किए हैं।

वर्ष 1983 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रमण्डल शिखर सम्मेलन की 7वीं बैठक का आयोजन नई दिल्ली में किया गया। 13-15 नवम्बर, 1999 ई० तक डरबन (दक्षिण अफ्रीका) में राष्ट्रमण्डल देशों के शासनाध्यक्षों के चार दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में प्रतिनिधिमण्डल ने इसमें भाग लिया। इस सम्मेलन में अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के सैनिक शासन की कटु आलोचना की। भारत ने पाकिस्तान की राष्ट्रमण्डल देशों की सदस्यता से निलम्बन की माँग की तथा बैठक के पहले ही दिन राष्ट्रमण्डल के छह सदस्य देशों ने इस संगठन से पाकिस्तान के निलम्बन की माँग की पुष्टि कर दी।

5-7 दिसम्बर, 2003 ई० तक अबुजा (नाइजीरिया) सम्मेलन में तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् प्रस्ताव 1373 पर अमल सुनिश्चित करने के लिए बहुपक्षीय सहयेाग पर बल दिया।

वाजपेयी के निवर्तमान प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह ने माल्टा (2005), यूगांडा (2007) तथा त्रिनिडाड एवं टोबैगो (2009) में आयोजित राष्ट्रमण्डलों के शिखर सम्मेलनों में भाग लिया। उपराष्ट्रपति मो० हामिद अंसारी ने वर्ष 2011 में पर्थ (ऑस्ट्रेलिया) में आयोजित शिखर सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 27-29 नवम्बर, 2015 के मध्य 24वें राष्ट्रमण्डल शिखर सम्मेलन का आयोजन भूमध्य सागरीय देश माल्टा में किया गया। विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने इसमें भारत का प्रतिनिधित्व किया। इस सम्मेलन का विषय था-‘वैश्विक मूल्यों को जोड़ना।। माल्टा सम्मेलन में भारत ने राष्ट्रमण्डल के गरीब देशों को स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग शुरू करने और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने में मदद हेतु 25 लाख डॉलर उपलब्ध करवाने की घोषणा की। भारत ने इसके लिए राष्ट्रमण्डल जलवायु संकट हल’ बनाने का प्रस्ताव भी दिया। इससे पहले 23-26 नवम्बर, 2015 के मध्ये राष्ट्रमण्डल पीपुल्स फोरम का आयोजन किया गया। इसमें भारत की जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता वंदना शिवा ने सम्बोधित किया।

भारत राष्ट्रमण्डल के बजट में चौथा सबसे अधिक योगदान करने वाला देश है परंतु राष्ट्रमण्डल की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में उल्लेखनीय भूमिका निभायी है, जैसे कि 1965 में इसके सचिवालय की स्थापना, 1971 की सिंगापुर घोषणा, 1991 की हरारे घोषणा तथा 1995 में मंत्री स्तरीय कार्य समूह की स्थापना। तथापि, भारत का सबसे उल्लेखनीय योगदान रंगभेद के विरुद्ध संघर्ष के लिए अफ्रीका के सदस्य देशों के साथ एकता स्थापित करना है।

UP Board Solutions for Class 12 Civics राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत

प्रश्न 3.
राष्ट्रमण्डल की सदस्यता के भारतीय विरोध के चार कारण बताइए।
उत्तर :
भारत के अनेक विद्वानों तथा बुद्धिजीवियों द्वारा राष्ट्रमण्डल की सदस्यता का विरोध किया जा रहा है। इसके पीछे विचारकों ने निम्नलिखित मत दिये हैं –

  1. चूँकि ब्रिटेन ने सदियों तक हमें पराधीन रखा है तथा हमारा शोषण किया है; अतः राष्ट्रमण्डल की सदस्यता हमारी दास मनोवृत्ति की प्रतीक है। अतः हमें इसकी सदस्यता का परित्याग कर देना चाहिए।
  2. कश्मीर को लेकर भारत तथा पाकिस्तान में सदैव मतभेद रहे हैं, लेकिन राष्ट्रमण्डल के सबसे पुराने देश ब्रिटेन द्वारा सदैव आक्रमणकारी राष्ट्र पाकिस्तान का ही समर्थन किया गया है। अतः भारत के जनमानस में असन्तोष का होना स्वाभाविक है और उसका विचार है कि भारत को राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से कोई लाभ नहीं है तथा यह भारत के लिए निरर्थक है।
  3. राष्ट्रमण्डल के ढाँचे की बुनियाद प्रजातन्त्र और मानवीय अधिकारों पर टिकी है। परन्तु वास्तविकता यह है कि उसने व्यवहार में कभी भी इन आदर्शों का अनुसरण नहीं किया है। राष्ट्रमण्डल ने रंगभेद की नीति का अनुसरण करने वाली दक्षिण अफ्रीकी सरकार पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया, उल्टे उसे परोक्ष रूप से समर्थन दिया। अत: राष्ट्रमण्डल की उपयोगिता पर ही प्रश्न-चिह्न लग जाता है।
  4. ब्रिटेन द्वारा यूरोपीय साझा बाजार की सदस्यता ग्रहण करने से पूर्व राष्ट्रमण्डल की सदस्यता आर्थिक दृष्टि से भारत के लिए महत्त्वपूर्ण थी, परन्तु सदस्यता ग्रहण करने के बाद भारत के आर्थिक हित प्रभावित होने की आशंका है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
राष्ट्रमण्डल के सदस्य राष्ट्रों के प्रमुख नामों को लिखिए।
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल के सदस्य राष्ट्र वर्तमान समय में राष्ट्रमण्डल के सदस्य राष्ट्रों की संख्या 53 है। ये राज्य हैं-ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, उत्तरी आयरलैण्ड, भारत, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, पाकिस्तान, घाना, बांग्लादेश, जाम्बिया, मलावी, कीनिया, नाइजीरिया, तंजानिया, सियरालियोन, युगाण्डा, जंजीबार, साइप्रस, माल्टा, जमैका, त्रिनिदाद तथा टोबागो, सिचेलिस स्वतन्त्र गणराज्य, फगनाओ, फिजी रोंगा, मॉरीशस, स्वाजीलैण्ड, लेसोथो, बोत्सवाना, गाम्बिया, बारबाडोस, गुयाना आदि। द० अफ्रीका सरकार की रंगभेद नीति के कारण दे० अफ्रीका को वर्ष 1961 में राष्ट्रमण्डल की सदस्यता का त्याग करना पड़ा था। 1994 के प्रारम्भिक महीनों में द० अफ्रीका में लोकतन्त्र और मानवीय समानता पर आधारित सरकार स्थापित हो गई। अतः 31 मई, 1994 को द० अफ्रीका को राष्ट्रमण्डल की सदस्यता पुनः प्रदान कर दी गई। 1997 में मोजाम्बिक और कैमरून (जो भूतकाल में पुर्तगाल और फ्रेंच उपनिवेश थे) को राष्ट्रमण्डल सदस्यता प्रदान की गई।

प्रश्न 2.
चौदहवें राष्ट्रमण्डल शिखर सम्मेलन (डरबन 12 नवम्बर, 1999) में पाकिस्तान से सम्बन्धित कौन-सा निर्णय लिया गया था?
उत्तर :
12 नवम्बर, 1999 में राष्ट्रमण्डल का चौदहवाँ शिखर सम्मेलन दक्षिण अफ्रीका के डरबन शहर में आयोजित किया गया। यह सम्मेलन 12 नवम्बर से 15 नवम्बर, 1999 तक चला। इस सम्मेलन की समाप्ति पर जारी किये गये घोषणा-पत्र में पाकिस्तान में स्थापित सैनिक शासन को अवैध बताते हुए उसकी कटु आलोचना की गयी। सम्मेलन में लिये गये एक निर्णय के अनुसार पाकिस्तान को राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से अनिश्चित काल के लिए निलम्बित कर दिया गया। घोषणा-पत्र में यह भी माँग की गयी कि पाकिस्तान में शीघ्र-से-शीघ्र लोकतन्त्र की स्थापना की जाए। पाकिस्तान को इस आशय की चेतावनी भी दी गयी है कि यदि पाकिस्तान के सैनिक शासकों ने पाकिस्तान में लोकतन्त्र की स्थापना के लिए त्वरित प्रयास नहीं किये तो उसके विरुद्ध प्रत्येक प्रकार के प्रतिबन्ध लगाये जाएँगे। घोषणा-पत्र में सदस्य राष्ट्रों से यह भी अनुरोध किया गया कि विश्व में फैल रहे आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट होकर लड़े।

प्रश्न 3.
राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से भारत को हुए चार लाभ बताइए।
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से भारत को हुए चार लाभों को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा व्यक्त किया जा सकता है –

  1. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से भारत को विभिन्न सदस्य राष्ट्रों से विविध प्रकार का सहयोग मिला है।
  2. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से भारत के विदेशी व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आज भी भारत का 70-80% व्यापार राष्ट्रमण्डल के देशों के साथ हो रहा है।
  3. राष्ट्रमण्डल के विभिन्न सदस्य राष्ट्रों से भारत को तकनीकी और आर्थिक क्षेत्र में सहायता प्राप्त करने में सफलता मिली है।
  4. राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत ने सैनिक ज्ञान प्राप्त किया है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
राष्ट्रमण्डल का मुख्य उद्देश्य लिखिए। [2010]
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल का मुख्य उद्देश्य है – प्रजातन्त्र का आदर्श और मौलिक मानवीय अधिकारों की प्राप्ति करते हुए प्रजातन्त्रीय राजनीति में अधिकारिक पारस्परिक सहयोग।

प्रश्न 2
राष्ट्रमण्डल के दो सदस्य-राज्यों के नाम लिखिए। [2007, 08, 11, 14]
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल के दो सदस्य-राज्यों के नाम हैं-भारत व कनाडा।

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प्रश्न 3.
डरबन सम्मेलन में राष्ट्रमण्डल में किस राज्य की वापसी हुई है?
उत्तर :
डरबन सम्मेलन में नाइजीरिया में लोकतन्त्र की बहाली के बाद, उसकी राष्ट्रमण्डल में वापसी हुई है।

प्रश्न 4.
डरबन में सम्पन्न हुए राष्ट्रमण्डल सम्मेलन में किस देश की सदस्यता निलम्बित की गयी थी और क्यों ?
उत्तर :
डरबन में सम्पन्न राष्ट्रमण्डल सम्मेलन में सैनिक शासन की स्थापना के कारण पाकिस्तान को सदस्यता से निलम्बित किया गया था।

प्रश्न 5.
राष्ट्रमण्डल की सदस्यता का विरोध होने के दो कारण बताइए।
उत्तर :

  1. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता को दासता का प्रतीक माना जाता है।
  2. यह देश की आर्थिक प्रगति में बाधक माना जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
वर्तमान में राष्ट्रमण्डल के देशों की संख्या है –
(क) 50
(ख) 52
(ग) 53
(घ) 59

प्रश्न 2.
2005 ई० में राष्ट्रमण्डल देशों का सम्मेलन हुआ था –
(क) ओटावा (कनाडा) में
(ख) वैल्टा (माल्टा) में
(ग) नयी दिल्ली (भारत) में
(घ) इस्लामाबाद (पाकिस्तान) में

प्रश्न 3.
24वें राष्ट्रमण्डल शिखर सम्मेलन 2015 का आयोजन किस देश में किया गया?
(क) भारत
(ख) पाकिस्तान
(ग) कनाडा
(घ) माल्टा

उत्तर :

  1. (ग) 53
  2. (ख) वैल्टा (माल्टा) में
  3. (घ) माल्टा।

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 5 त्यागपथी

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 5 त्यागपथी (रामेश्वर शुक्ल अञ्चल) are part of UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 5 त्यागपथी (रामेश्वर शुक्ल अञ्चल).

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Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 5
Chapter Name त्यागपथी (रामेश्वर शुक्ल अञ्चल)
Number of Questions 4
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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi खण्डकाव्य Chapter 5 त्यागपथी (रामेश्वर शुक्ल अञ्चल)

उत्तर प्रदेश के आगरा, गोरखपुर, गाजीपुर, बरेली, सुल्तानपुर, जालौन, लखीमपुर, गोंडा, शाहजहाँपुर, फिरोजाबाद, महाराजगंज, बाराबंकी जनपदों के लिए। नवसृजित जनपदों के विद्यार्थी अपने जनपद में निर्धारित खण्डकाव्य के सम्बन्ध में अपने विषय-अध्यापक से जानकारी प्राप्त कर लें।

प्रश्न 1.
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की कथावस्तु (कथानक) को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के प्रथम एवं द्वितीय सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में लिखिए।
या
‘त्यागपथी’ काव्यग्रन्थ की प्रमुख घटनाओं का क्रमबद्ध उल्लेख कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग का सारांश लिखिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के चौथे सर्ग के आधार पर राज्यश्री, हर्षवर्द्धन और दिवाकर मित्र के वार्तालाप का सारांश लिखिए।
या
‘त्यागपथी’ के प्रथम तीन सर्यों के आधार पर सम्राट हर्षवर्द्धन के जीवन की कहानी लिखिए।
या
‘त्यागपथी’ के पंचम (अन्तिम) सर्ग की कथा अपनी भाषा में लिखिए। ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में पंचग सर्ग में वर्णित घटनाओं को अपने शब्दों में लिखिए।
या
आपको ‘त्यागपथी’ का कौन-सा सर्ग रुचिकर प्रतीत होता है और क्यों ? उस सर्ग का कथानक अपनी भाषा में लिखिए।
या
‘त्योगपथी’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग का सारांश लिखिए।
या
‘त्यागेपथी’ खण्डकाव्य के पंचम संर्ग’ की कथावस्तु का उल्लेख कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के द्वितीय संर्ग’ की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
या
‘त्यागपथी’ में वर्णित भारत की राजनीतिक उथल-पुथल का वर्णन कीजिए।
[ संकेत : प्रथम, द्वितीय व तृतीय सर्ग का सारांश संक्षेप में लिखें। ]

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प्रश्न 2.
‘त्यागपथी’ के प्रमुख पात्रों का परिचय देते हुए बताइए कि आपकी कौन-सा पात्र सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों ?
उत्तर
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में प्रभाकरवर्द्धन तथा उनकी पत्नी यशोमती, उनके दो पुत्र (राज्यवर्द्धन और हर्षवर्द्धन), एक पुत्री (राज्यश्री), कन्नौज, मालव, गौड़ प्रदेश के राजाओं के अतिरिक्त आचार्य दिवाकर, सेनापति भण्ड आदि अनेक पात्र हैं। खण्डकाव्य का नायक हर्षवर्द्धन है तथा काव्य की नायिका होने का गौरव उसकी बहन राज्यश्री को प्राप्त हुआ है। इन सभी पात्रों में मुझे हर्षवर्द्धन का चरित्र सबसे अधिक प्रभावित करता है; क्योंकि वह एक आदर्श भाई एवं पुत्र; देश-प्रेमी, अजेय-योद्धा, श्रेष्ठ शासक, महान् त्यागी, धर्मपरायण और महादानी है।

प्रश्न 3.
‘त्यागपथी’ के नायक अथवा प्रमुख पात्र (हर्षवर्द्धन) का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ काव्य के आधार पर हर्षवर्द्धन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइट। ”
या
‘त्यागपथी के हर्षवर्द्धन का चरित्र देशप्रेम. का प्रखरतम (आदर्श) उदाहरण है।”
या
उपयुक्त उदाहरण देते हुए इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
या
“‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में सम्राट् हर्षवर्द्धन का चरित्र ही केन्द्र है और उसी के चारों ओर कथानक का चक्र घूमता है।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के नाम को ध्यान में रखकर हर्षवर्द्धन का चरित्रांकन कीजिए। हर्षवर्द्धन का चरित्र, आचरण का संवाहक है। सिद्ध कीजिए।
या
“‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में हर्ष एक इतिहास पुरुष के रूप में चित्रित है।” इस उक्ति के आलोक में हर्ष का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘त्यागेपथी के हर्षवर्द्धन का चरित्र आज के युवकों पर कितना प्रभावकारी है ?
या
“हर्ष ऐक सच्चा त्यागपथी था।” उक्ति के आधार पर हर्ष का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
“शौर्य था साकार नृप में अवतरित था ज्ञाना” कथन के आधार पर ‘त्यागपथी’ के हर्षवर्द्धन के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।

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बड़े भाई राज्यवर्द्धन के प्रति भी उनका अपार प्रेम है-

बाहर चले जब राज्यवर्द्धन हर्ष पीछे चल पड़े।
ज्यों वन-गमन में राम के पीछे चले लक्ष्मण अड़े ॥

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शान्ति शुभता का व्रती था हर्ष का शासन ।
था लिया जिसने प्रजा-हित राजसिंहासन ॥
थी सकल साम्राज्य में सुख श्री उमड़ आयी।
थी चतुर्दिक न्याय समता की विभा छायी ॥

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दिये सम्राट् ने निज वस्त्रे आभूषण वहाँ पर ।
बहिन से भीख में माँग वसन पहिना वहाँ पर ॥

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मैं स्वयं जाऊँगा बहिन को ढूंढने वन प्रान्त में,
पाए बिना उसको न क्षण भर हो सकेंगा शान्त मैं।

भाई की छल से की गयी हत्या का समाचार सुनकर उन्होंने जो प्रतिज्ञा की थी, उससे उनके दृढ़निश्चय का पता चलता है-

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प्रश्न 4.
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर राज्यश्री का,चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ के प्रमुख नारी-पात्र राज्यश्री की चारित्रिक विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ में निरूपित राज्यश्री की चारित्रिक छवि पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
या
“‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में राज्यश्री एक श्रेष्ठ नारी पात्र है।” स्पष्ट कीजिए।

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काँगी साथ उनके मैं हमेशा राष्ट्र-साधन ।
अहिंसा नीति का होगा सभी विधिपूर्ण पालन ॥
X                          X                                 X

प्रजा के हित समर्पित है व्रती जीवन तुम्हारा ।
सभी का हित सभी का सुख, तुम्हें दिन-रात प्यारा ॥

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लुटाती थी बेहन भी पास का सबै तीर्थस्थल में,
पहिन दो वस्त्र केवल दीपती थी छवि विमल में ।।

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi नाटक Chapter 1 कुहासा और किरण

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi नाटक Chapter 1 कुहासा और किरण (विष्णु प्रभाकर) are part of UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi नाटक Chapter 1 कुहासा और किरण (विष्णु प्रभाकर).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name कुहासा और किरण (विष्णु प्रभाकर)
Number of Questions 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi नाटक Chapter 1 कुहासा और किरण (विष्णु प्रभाकर)

प्रश्न 1.
‘कुहासा और किरण’ नाटक की कथावस्तु (कथानक, सारांश) पर प्रकाश डालिए।
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक के सर्वाधिक आकर्षक स्थल का वर्णन कीजिए।
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक के प्रथम अंक की कथावस्तु लिखिए।
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक के द्वितीय अंक की कथा का सारांश लिखिए।
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक के तृतीय अंक की कथा पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक का कथानक समस्यामूलक है, जो स्वाधीन भारत के सामाजिक और राजनीतिक जीवन से सम्बन्धित है। कथावस्तु के आधार पर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक का सारांश लिखिए।

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प्रश्न 2.
‘कुहासा और किरण’ नाटक के उस पुरुष-पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए, जिसने आपको 
सबसे अधिक प्रभावित किया हो।
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक के प्रमुख पुरुष पात्र (नायक) अमूल्य का चरित्र-चित्रण कीजिए।

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प्रश्न 3.
‘कुहासा और किरण’ के आधार पर कृष्ण चैतन्य का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक के आधार पर कृष्ण चैतन्य की चारित्रिक विशेषताओं पर 
प्रकाश डालिए।

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प्रश्न 4.
सुनन्दा के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक के प्रमुख नारी-पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘कुहासा और किरण’ की नायिका के चरित्र की विशेषताएँ उद्घाटित कीजिए।
या
‘कुहासा और किरण’ नाटक के आधार पर ‘सुनन्दा’ का चरित्रांकन कीजिए।

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प्रश्न 5.
‘कुहासा और किरण’ नाटक के आधार पर अमूल्य और कृष्ण चैतन्य के चरित्रों की तुलना 
कीजिए।
उत्तर

अमूल्य और कृष्ण चैतन्य के चरित्रों की तुलना अमूल्य

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[ संकेत–उपर्युक्त शीर्षकों के अन्तर्गत इस प्रश्न का विस्तार कीजिए। विस्तार के लिए प्रश्न संख्या 2 और 3 देखिए। ]

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 5 समास-प्रकरण (व्याकरण)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 5 समास-प्रकरण (व्याकरण) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 5 समास-प्रकरण (व्याकरण).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 5
Chapter Name समास-प्रकरण (व्याकरण)
Number of Questions Solved 36
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 5 समास-प्रकरण (व्याकरण)

समास का अर्थ है-संक्षेप। दो या दो से अधिक पदों को इंसे प्रकार मिलाना कि उनके आकार में कमी आ जाये और अर्थ भी पूरा-पूरा निकल आये, को समास कहते हैं; जैसे-नराणां पतिः = नरपतिः। यहाँ पर ‘नराणां पति:’ का वही अर्थ है, जो ‘नरपति:’ का है, किन्तु ‘नरपतिः’ आकार में छोटा हो गया है। समास किये गये पदों को ‘सामासिक पद’ या ‘समस्त पद’ कहते हैं। सामासिक पदों को अलग-अलग करने की विधि को ‘समास-विग्रह’ कहते हैं। उपर्युल्लिखित नरपतिः’ समस्त पद या सामासिक पद है तथा नराणां पति:’ उसका विग्रह है।

यह ध्यान रखना चाहिए कि समस्त पद दो या अधिक पदों से मिलकर बनते हैं, उपसर्ग या प्रत्ययों के योग से नहीं। समास में कम-से-कम दो पदों का होना आवश्यक है। समास के निम्नलिखित छः भेद होते हैं

(1) अव्ययीभाव समास,
(2) तत्पुरुष समास,
(3) कर्मधारय समास,
(4) द्विगु समास,
(5) बहुब्रीहि समास तथा
(6) द्वन्द्व समास।

समास के उपर्युक्त छ: प्रकारों को स्मरण रखने के लिए निम्नलिखित श्लोक को कण्ठस्थ करें

द्वन्द्वो द्विगुरपि चाहूं मद्गेहे नित्यमव्ययीभावः।
तत्पुरुष कर्मधारय येनाहं स्यां बहुब्रीहिः॥

विशेष- नवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में केवल तत्पुरुष, द्वन्द्व और कर्मधारय समास ही निर्धारित हैं, किन्तु भाषा-बोध व एक-दूसरे से सम्बद्धता की दृष्टि से सभी समासों को यहाँ दिया जा रहा है। समासों का यह सम्पूर्ण अध्ययन छात्रों को अगली कक्षाओं में अध्ययन करते समय भी सहायक होगा।

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अव्ययीभाव समास

सूत्र-‘पूर्वपदप्रधानः अव्ययीभावः
जिस समास में पहला पद प्रधान होता है और सम्पूर्ण शब्द क्रिया-विशेषण होकर अव्यय की भाँति प्रयुक्त होता है, वह अव्ययीभाव समास होता है; येथा—उपकूलम् = कुलस्य समीपम् (किनारे के समीप)। इसमें प्रथम पद प्रायः अव्यय और द्वितीय पद कोई संज्ञा शब्द होता है। समस्त पद अव्यय होता है और नपुंसकलिंग एकवचन के तुल्य प्रयुक्त होता है। इस समास में समस्त पद का विग्रह करते समय समस्त पद में प्रयुक्त व्यय के अर्थ का ही प्रयोग किया जाता है; यथा-उपर्युक्त उदाहरण में विग्रह में ‘उप’ का अर्थ ‘समीप ही प्रयुक्त हुआ है। उदाहरण–
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अव्ययं विभक्तिसमीपसमृद्धिव्यूद्ध्यर्थाभावात्ययासम्प्रतिशब्दप्रादुर्भावपश्चात् यथाऽनुपूर्व्ययौगपद्यसादृश्यसम्पत्तिसाकल्याऽन्तवचनेषु।” के अनुसार अव्ययीभाव समास निम्नलिखित अर्थों में होता है
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तत्पुरुष समास

सूत्र- ‘उत्तरपदार्थप्रधानः तत्पुरुषः जिस समास में उत्तर पद के अर्थ की प्रधानता हो, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। वाक्य-प्रयोग में लिंग, विभक्ति तथा वचन का प्रयोग भी उत्तर पद के अनुसार ही होता है। तत्पुरुष समास का विग्रह करने पर पूर्व पद में द्वितीया आदि विभक्तियाँ होती हैं-समास करने पर पूर्व पद की विभक्तियों को लोप हो जाता है; जैसे—देवानां मन्दिरम् = ‘देवमन्दिरम्’, इसमें ‘मन्दिरम्’ (उत्तर पद) प्रधान है। समास करने पर देवानां की षष्ठी विभक्ति का लोप हो जाता है।

तत्पुरुष समास के भेद-पूर्व पद की विभक्ति के लोप के आधार पर तत्पुरुष के छः भेद होते।

(1) द्वितीया तत्पुरुष- इसमें पूर्व पद द्वितीया विभक्ति का होता है और समास करने पर द्वितीया विभक्ति का लोप हो जाता है। उदाहरण–
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(2) तृतीया तत्पुरुष- 
इस समास में पूर्व पद तृतीया विभक्ति का होता है और समास करने पर तृतीया विभक्ति का लोप हो जाता है। उदाहरण
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(3) चतुर्थी तत्पुरुष- जहाँ पूर्व पद चतुर्थी विभक्ति का होता है और समास करने पर चतुर्थी विभक्ति का लोप हो जाता है। उदाहरण
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(4) पञ्चमी तत्पुरुष- जहाँ पूर्व पद पञ्चमी विभक्ति का होता है और समास करने पर पञ्चमी विभक्ति का लोप हो जाता है। उदाहरण
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(5) षष्ठी तत्पुरुष- इसमें पूर्व पद षष्ठी विभक्ति का होता है और समास करने पर षष्ठी विभक्ति | का लोप हो जाता है। उदाहरण
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(6) सप्तमी तत्पुरुष- इसमें पूर्वपद सप्तमी विभक्ति का होता है और समास करने पर सप्तमी विभक्ति का लोप हो जाता है। उदाहरण
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कर्मधारय समास

सूत्र- ‘विशेषणं विशेष्येण बहुलम्।यह तत्पुरुष समास का उपभेद है। इसका पूर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य होता है। विग्रह करते समय विशेष्य के लिंग, विभक्ति और वचन ही विशेषण में भी प्रयुक्त होते हैं। विशेष्य के लिंग, विभक्ति और वचन के अनुसार ही तत्, एतत् तथा इदम् के रूपों का प्रयोग होता है। उदाहरण
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द्विगु समास

जब कर्मधारय समास का पूर्व पद संख्यावाचक होता है तो वह द्विगु समास कहलाता है; जैसे–त्रिभुवनम्। यहाँ पर ‘त्रि’ शब्द संख्यावाचक है। इस समास का विग्रह करते समय अन्त में ‘समाहारः’ शब्द जोड़ते हैं और प्रायः षष्ठी विभक्ति का प्रयोग करते हैं। उदाहरण
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बहुव्रीहि समास

सूत्र-‘अनेकमन्य पदार्थे।’
जहाँ पर अनेक पद होते हैं, परन्तु वे किसी अन्य पद के विशेषण होते हैं। इसमें अन्य पद के अर्थ की प्रधानता होती है। जिस समास में न तो पूर्व पद प्रधान होता है और न उत्तर पद, अपितु ये पद अपना स्वतन्त्र अर्थ न देकर अन्य पद के लिए विशेषण का कार्य करते हैं, वहाँ बहुव्रीहि समास होता है। इसमें विग्रह करते समय यत्’ शब्द के रूपों (यस्य, येन, यस्मै आदि) का प्रयोग किया जाता है; जैसे-पीताम्बर:-पीतम् अम्बरं यस्य सः (कृष्ण:)। यहाँ पर पीत और अम्बर पदों की प्रधानता न होकर ‘कृष्णः’ पद की प्रधानता है और समस्त पद ‘कृष्ण:’ का विशेषण है। | बहुव्रीहि समास के चार भेद होते हैं–
(क) समानाधिकरण बहुव्रीहि,
(ख) व्यधिकरण बहुव्रीहि,
(ग) तुल्ययोग बहुव्रीहि,
(घ) व्यतिहार बहुव्रीहि।

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(क) समानाधिकरण बहुव्रीहि- जिस समास के दोनों या अधिक पदों में समान विभक्ति हो, उसे समानाधिकरण बहुव्रीहि कहते हैं। इसका विग्रह करते समय ‘यत्’ शब्द के द्वितीय, तृतीया आदि विभक्ति के रूपों का प्रयोग होता है और समस्त पद विशेषण का कार्य करता है। उदाहरण
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द्वन्द्व समास

सूत्र- ‘चार्थे द्वन्द्वः।उभयपदप्रधानो द्वन्द्वः।’ जिस समास में दो या अधिक पद जुड़े हुए हों और सभी पद प्रधान हों, वह द्वन्द्व समास कहलाता है। इसमें ‘च’ का अर्थ छिपा रहता है। विग्रह करते समय प्रत्येक पद के बाद ‘च’ लगाया जाता है। यह समासु तीन प्रकार का होता है-
(क) इतरेतर,
(ख) समाहार,
(ग) एकशेष।

(क) इतरेतर द्वन्द्व- इस समास में दो या अधिक पदों का योग होता है। दो पदों के लिए द्विवचन और अधिक पदों के लिए बहुवचन का प्रयोग होता है। लिंग अन्तिम पद के समान प्रयोग किया जाता है। उदाहरण
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(ख) समाहार द्वन्द्व- जिस समास में अनेक पदों के समूह (समाहार) का बोध होता है, उसे समाहार द्वन्द्व कहते हैं। इसमें समास करते समय नपुंसकलिंग एकवचन का प्रयोग होता है। प्राणी, वाद्य, सेना और शरीर के अंगों, स्वाभाविक वैर रखने वाले प्राणियों में यह समास होता है। उदाहरण
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(ग) एकशेष द्वन्द्व- जिस सामासिक पद में समान रूप से प्रयुक्त होने वाले शब्दों (पदों) में से केवल एक पद शेष रह जाता है और अपने भाव को विभक्ति व वचन के अनुसार प्रकट करता है, वहाँ एकशेष द्वन्द्व समास होता है। उदाहरण
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लघु उतरिय प्रश्ननोतर संस्कृत व्याकरण से

तत्पुरुष समास

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों में समास-विग्रह करते हुए समास का नाम बताइए
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों का हिन्दी में अनुवाद कीजिए—
उपगृहं भवतो मम मन्दिरम्। संसारे सर्वे सङ्कटापन्नाः। ज्ञाने पापं न भवति। योगी निर्जनं वनमगात्। कोलाहलं नगरे न तु कानने।
उत्तर:
आपके घर के निकट मेरा घर है। संसार में सभी संकटों से घिरे हुए हैं। ज्ञान होने पर पाप नहीं होता है। योगी निर्जन वन को गया। कोलाहल (शोर) नगर में होता है न कि वन में।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों में समास कीजिए
उत्तर:
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कर्मधारय समास

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों में विग्रह करते हुए समास बताइए
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित पदों में समास कीजिए
उत्तर:
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द्विगु समास

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में विग्रह निर्देश करते हुए समास बताइए
उत्तर:
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नञ् तत्पुरुष

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों में विग्रह करते हुए समास का नाम बताइए
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित पदों में समास कीजिए
उत्तर:
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द्वन्द्व समास

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों में विग्रह बतलाते हुए समास बताइए
उत्तर:
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इतरेतर द्वन्द्व

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पदों में समास कीजिए
उत्तर:
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बहुव्रीहि समास

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों में विग्रहसहित समास बताइए
उत्तर:
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वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए
प्रश्न 1.
समास से क्या भाव व्यक्त होता है?
(क) पदों के मेल का
(ख) पदों के संक्षिप्तीकरण का
(ग) पदों का विस्तारीकरण का
(घ) पदों के दीर्धीकरण का

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प्रश्न 2.
समास के कुल कितने भेद होते हैं?
(क) छः
(ख) पाँच
(ग) तीन
(घ) चार

प्रश्न 3.
उत्तरपद की प्रधानता और पूर्वपद की विभक्ति के लोप वाला समास कहलाता है
(क) तत्पुरुष
(ख) कर्मधारय
(ग) बहुव्रीहि
(घ) द्विगु

प्रश्न 4.
विभक्ति लोप के अनुसार तत्पुरुष समास के कितने भेद होते हैं?
(क) आठ
(ख) सात
(ग) पाँच
(ग) पाँच
(घ) छः

प्रश्न 5.
‘शरणागतः’ का समास-विग्रह क्या होगा?
(क) शरणाय आगतः
(ख) शरणे आगतः
(ग) शरणम् आगतः।
(घ) शरणेषु आगतः

प्रश्न 6.
‘चौरभयम्’ में तत्पुरुष समास का कौन-सा भेद है?
(क) द्वितीया तत्पुरुष
(ख) चतुर्थी तत्पुरुष’
(ग) पञ्चमी तत्पुरुष
(घ) सप्तमी तत्पुरुष

प्रश्न 7.
‘न्यायनिपुणः’ में तत्पुरुष समास का कौन-सा भेद है?
(क) द्वितीया तत्पुरुष
(ख) चतुर्थी तत्पुरुष
(ग) पञ्चमी तत्पुरुष,
(घ) सप्तमी तत्पुरुष

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प्रश्न 8.
जब समस्त पद में पूर्व पद नकारात्मक भाव व्यक्त करता है, तब कौन-सा समास होता है?
(क) कर्मधारय
(ख) अलुक् तत्पुरुष
(ग) नञ् तत्पुरुष
(घ) उपपद तत्पुरुष

प्रश्न 9.
‘दिवंगतः’ का समास-विग्रह क्या होगा?
(क) दिवाय गतः
(ख) दिवसात् गतः
(ग) दिव: गतः
(घ) दिवं गतः

प्रश्न 10.
जब समस्त पद के प्रथम पद की विभक्ति का लोप नहीं होता, तब कौन-सा समास होता है?
(क) नञ् तत्पुरुष
(ख) अलुक् तत्पुरुष
(ग) तृतीया तत्पुरुष
(घ) उपपद तत्पुरुष

प्रश्न 11.
उपपद तत्पुरुष समास में होता है
(क) सम्बोधन का लोप
(ख) समस्त पदों में उपपद क्रिया का प्रयोग
(ग) पूर्वपद की विभक्ति का लोप नहीं
(घ) प्रथम पद नकारात्मक

प्रश्न 12.
‘धनहीनः’ में तत्पुरुष समास का कौन-सा भेद है?
(क) तृतीया तत्पुरुष
(ख) चतुर्थी तत्पुरुष
(ग) पञ्चमी तत्पुरुष,
(घ) षष्ठी तत्पुरुष

प्रश्न 13.
‘भूतबलिः’ का समास-विग्रह होगा
(क) भूतेभ्यः बलिः
(ख) भूतात् बलिः
(ग) भूतं बलिः
(घ) भूतेन बलिः

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से कौन पञ्चमी तत्पुरुष का उदाहरण नहीं है?
(क) धर्मभ्रष्टः
(ख) सर्पभीतः
(ग) रक्षापुरुषः
(घ) दूरादागत:

प्रश्न 15.
निम्नलिखित में से कौन षष्ठी तत्पुरुष का उदाहरण है?
(क) दु:खमुक्तः
(ख) स्वर्गस्य फलम्
(ग) पुत्रहितम्
(घ) धनहीनः

प्रश्न 16.
‘विद्यायाम् कुशलः’ में समास करने पर समस्त पद बनेगा? ।
(क) विद्यकुशलः
(ख) विद्याकुशलः
(ग) विद्यां कुशलः
(घ) विद्याकुशलः

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प्रश्न 17.
जब समस्त पद के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का सम्बन्ध पाया जाता है, तब कौन-सा ‘ समास होता है?
(क) तत्पुरुष
(ख) अव्ययीभाव
(ग) बहुव्रीहि
(घ) कर्मधारय

प्रश्न 18.
‘कमलकोमलम्’ का समास-विग्रह होगा–
(क) कमलं कोमलम्
(ख) कमलस्य कोमलम्
(ग) कमलम् इव कोमलम्
(घ) कमलाय कोमलम्

प्रश्न 19.
‘नर इव सिंहः’ में समास करने पर समस्त पद क्या बनेगा?
(क) नरसिंहः,
(ख) नरिवसिंह
(ग) नरेवसिंह
(घ) नरैवसिंहः

प्रश्न 20.
जिस समास में दोनों पद प्रधान होते हैं और विग्रह करने पर दोनों के मध्य ‘च’ जुड़ जाता है, वह कौन-सा समास है?
(क) द्वन्द्व
(ख) अव्ययीभाव।
(ग) द्विगु
(घ) बहुव्रीहि

प्रश्न 21.
द्वन्द्व समास के कुल कितने भेद हैं?
(क) पाँच
(ख) चार
(ग) तीन
(घ) दो

प्रश्न 22.
‘पितरौ’ किस समास का उदाहरण है?
(क) इतरेतर द्वन्द्व का
(ख) एकशेष द्वन्द्व का
(ग) समाहारे द्वन्द्व का
(घ) द्विगु का

प्रश्न 23.
‘शास्त्रप्रवीणः का विग्रह और समास का नाम होगा–
(क) शास्त्रेषु प्रवीणः, सप्तमी तत्पुरुष
(ख) शास्त्राणाम् प्रवीणः, षष्ठी तत्पुरुष
(ग) शास्त्राय प्रवीणः, चतुर्थी तत्पुरुष
(घ) शास्त्रे प्रवीणः, सप्तमी तत्पुरुष

प्रश्न 24.
सुन्दर और कुत्सित अर्थों में ‘सु’ और ‘कु’ का प्रयोग किस समास में होता है?
(क) षष्ठी तत्पुरुष,
(ख) कर्मधारय
(ग) अव्ययीभाव
(घ) बहुव्रीहि

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प्रश्न 25.
जिसे समास में अनेक पदों के समूह का बोध होता है, उसे कहते हैं
(क) समाहार द्वन्द्व
(ख) इतरेतर द्वन्द्व
(ग) द्विगु
(घ) एकशेष द्वन्द्व

उत्तर:
1. (ख) पदों के संक्षिप्तीकरण का, 2. (क) छः, 3. (क) तत्पुरुष, 4. (घ) छः, 5. (ग) शरणम् आगतः, 6. (ग) पञ्चमी तत्पुरुष, 7. (घ) सप्तमी तत्पुरुष, 8. (ग) नञ् तत्पुरुष, 9. (घ) दिवं गतः, 10. (ख) अलुक् तत्पुरुष, 11. (ख) समस्त पद में उपपद क्रिया का प्रयोग, 12. (क) तृतीया तत्पुरुष, 13. (क) भूतेभ्यः बलिः, 14. (ग) रक्षापुरुषः, 15. (ख) स्वर्गस्य फलम्, 16. (ख) विद्याकुशलः, 17. (घ) कर्मधारय, 18. (ग) कमलम् इव कोमलम्, 19. (क) नरसिंहः, 20. (क) द्वन्द्व, 21. (ग) तीन, 22. (ख) एकशेष द्वन्द्व का, 23. (क) शास्त्रेषु प्रवीणः, सप्तमी तत्पुरुष, 24. (ख) कर्मधारय, 25. (क) समाहार द्वन्द्व।

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