UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 3 रश्मिरथी

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 3 रश्मिरथी part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 3 रश्मिरथी.

Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 3
Chapter Name रश्मिरथी
Number of Questions Solved 6
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 3 रश्मिरथी

कथावस्तु पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
“रश्मिरथी’ के कथानक में ऐतिहासिकता और धार्मिकता दोनों हैं।” इस कथन के आधार पर इस खंडकाव्य की विशेषताएँ लिखिए। (2018)
अथवा
“रश्मिरथी’ खण्डकाव्य में उदान्त मानव मूल्यों का उदघाटन हुआ है।” स्पष्ट कीजिए। (2018)
अथवा
रश्मिरथी खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए। (2018)
अथवा
रश्मिरथी काव्य की कथावस्तु/कथासार अपने शब्दों में लिखिए। (2016)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य की कथावस्तु /कथासार (विषय-वस्तु) संक्षेप में लिखिए। (2018, 16, 12, 11)
अथवा

‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख कीजिए। (2018, 17, 14)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के कथानक की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2014)
अथवा
‘रश्मिरथी’ के कथानक में ऐतिहासिकता और धार्मिकता दोनों हैं। तर्कसहित उत्तर दीजिए। (2014)
अथवा
रश्मिथी खण्डकाव्य की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए। (2016)
उत्तर:
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित है। सर्गानुसार संक्षिप्त कथावस्तु इस प्रकार है।

प्रथम सर्ग : कर्ण का शौर्य प्रदर्शन

कर्ण का जन्म कुन्ती के गर्भ से हुआ था और उसके पिता सूर्य थे। लोकलाज के भय से कुन्ती ने नवजात शिशु को नदी में बहा दिया, जिसे सूत (सारथि) ने बचाया और उसे पुत्र रूप में स्वीकार कर उसका पालन-पोषण किया। सूत के घर पलकर भी कर्ण महान् धनुर्धर, शूरवीर, शीलवान, पुरुषार्थी और दानवीर बना। एक बार द्रोणाचार्य ने कौरव व पाण्डव राजकुमारों के शस्त्र कौशल का सार्वजनिक प्रदर्शन किया।

सभी दर्शक अर्जुन की धनुर्विद्या के प्रदर्शन को देखकर आश्चर्यचकित रह गए, किन्तु तभी कर्ण ने सभा में उपस्थित होकर अर्जुन को द्वन्द्वयुद्ध के लिए ललकारा। कृपाचार्य ने कर्ण से उसकी जाति और गोत्र के विषय में पूछा। इस पर कर्ण ने स्वयं को सूत-पुत्र बताया, तब निम्न जाति का कहकर उसका अपमान किया गया। उसे अर्जुन से द्वन्द्वयुद्ध करने के अयोग्य समझा गया, परन्तु दुर्योधन कर्ण की वीरता एवं तेजस्विता से अत्यन्त प्रभावित हुआ और उसे अंगदेश का राजा घोषित कर दिया। साथ ही उसे अपना अभिन्न मित्र बना लिया। गुरु द्रोणाचार्य भी कर्ण की वीरता को देखकर चिन्तित हो उठे और कुन्ती भी कर्ण के प्रति किए गए बुरे व्यवहार के लिए उदास हुई।

द्वितीय सर्ग: आश्रमवास

रश्मिरथी खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग का कथानक अपने शब्दों में लिखिए।  (2018, 17, 16)

राजपुत्रों के विरोध से दु:खी होकर कर्ण ब्राह्मण रूप में परशुराम जी के पास धनुर्विद्या सीखने के लिए गया। परशुराम जी ने बड़े प्रेम के साथ कर्ण को धनुर्विद्या सिखाई। एक दिन परशुराम जी कर्ण की जंघा पर सिर रखकर सो रहे थे, तभी एक कीड़ा कर्ण की जंघा पर चढ़कर खून चूसता-चूसता उसकी जंघा में प्रविष्ट हो गया। रक्त बहने लगा, पर कर्ण इस असहनीय पीड़ा को चुपचाप सहन करता रहा, और शान्त रहा। क्योकि कहीं गुरुदेव को निद्रा में विघ्न न पड़ जाए। जंघा से निकले रक्त के स्पर्श से गुरुदेव को निद्रा भंग हो गई। अब परशुराम को कर्ण के ब्राह्मण होने पर सन्देह हुआ। अन्त में कर्ण ने अपनी वास्तविकता बताई। इस पर परशुराम ने कर्ण से ब्रह्मास्त्र के प्रयोग का अधिकार छीन लिया और उसे श्राप दे दिया। कर्ण गुरु के चरणों का स्पर्श कर वहाँ से चला आया।

तृतीय सर्ग : कृष्ण सन्देश (2017, 15)

बारह वर्ष का वनवास और अज्ञातवास की एक वर्ष की अवधि समाप्त हो जाने पर पाण्डव अपने नगर इन्द्रप्रस्थ लौट आते हैं और दुर्योधन से अपना राज्य वापस माँगते हैं, लेकिन दुर्योधन पाण्डवों को एक सूई की नोंक के बराबर भूमि देने से भी मना कर देता है। श्रीकृष्ण सन्धि प्रस्ताव लेकर कौरवों के पास आते हैं। दुर्योधन इस सन्धि प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता और श्रीकृष्ण को ही बन्दी बनाने का प्रयास करता है। श्रीकृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाकर उसे भयभीत कर दिया। दुर्योधन के न मानने पर श्रीकृष्ण ने कर्ण को समझाया। श्रीकृष्ण ने कर्ण को उसके जन्म का इतिहास बताते हुए उसे पाण्डवों का बड़ा भाई बताया और युद्ध के दुष्परिणाम भी समझाए, लेकिन कर्ण ने श्रीकृष्ण की बातों को नहीं माना और कहा कि वह युद्ध में पाण्डवों की ओर से सम्मिलित नहीं होगा। दुर्योधन ने उसे जो सम्मान और स्नेह दिया है, वह उसका आभारी है।

चतुर्थ सर्ग : कर्ण के महादान की कथा

‘रश्मिरथी’ खंडकाव्य के चतुर्थ सर्ग का कथानक अपने शब्दों में लिखिए। (2008, 12)
जय कर्ण ने पाण्डवों के पक्ष में जाने से मना कर दिया, तो इन्द्र ब्राह्मण का वेश धारण कर कर्ण के पास आए। वह कर्ण को दानवीरता की परीक्षा लेना चाहते थे। कर्ण इन्द्र के इस छल-प्रपंच को पहचान गया, परन्तु फिर भी उसने इन्द्र को सूर्य के द्वारा दिए गए कवच और कुण्डल दान में दे दिए। इन्द्र कर्ण की इस दानवीरता को देखकर अत्यन्त लज्जित हुए। उन्होंने स्वयं को प्रवंचक, कुटिल और पापी कहा तथा प्रसन्न होकर कर्ण को ‘एकनी’ नामक अमोघ शक्ति प्रदान की।

पंचम सर्ग : माता की विनती (2013 10)

अथवा
‘रश्मिरथी’ के आधार पर कुन्ती-कर्ण के संवाद की घटना का सारांश लिखिए। (2018)
अथवा
‘रश्मिरथी’ के पंचम सर्ग की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए। (2016)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के पंचम सर्ग में कुन्ती और कर्ण के संवाद का सारांश अपने शब्दों में लिखिए। (2010)

कुन्ती को चिन्ता है कि रणभूमि में मेरे ही दोनों पुत्र कर्ण और अर्जुन परस्पर युद्ध करेंगे। इससे चिन्तित हो वह कर्ण के पास जाती है और उसे उसके जन्म के विषय में सब बताती है। कर्ण कुन्ती की बातें सुनकर भी दुर्योधन का साथ छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता है, किन्तु अर्जुन को छोड़कर अन्य किसी पाण्डव को न मारने का वचन कुन्ती को दे देता है। कर्ण कहता है कि तुम प्रत्येक दशा में पाँच पाण्डवों की माता बनी रहोगी। कुन्ती निराश हो जाती है। कर्ण ने युद्ध समाप्त होने के पश्चात् कुन्ती की सेवा करने की बात कही। कुन्ती निराश मन से लौट आती है।

षष्ठ सर्ग : शक्ति परीक्षण

श्रीकृष्ण इस बात से भली-भाँति परिचित थे कि कर्ण के पास इन्द्र द्वारा दी गई ‘एकघ्नी शक्ति है। जब कर्ण को सेनापति बनाकर युद्ध में भेजा गया तो श्रीकृष्ण ने घटोत्कच को कर्ण से लड़ने के लिए भेज दिया।

दुर्योधन के कहने पर कर्ण ने घटोत्कच को एकनी शक्ति से मार दिया। इस, विजय से कर्ण अत्यन्त दुःखी हुए, पर पाण्डव अत्यन्त प्रसन्न हुए। श्रीकृष्ण ने अपनी नीति से अर्जुन को अमोघशक्ति से बचा लिया था, परन्तु कर्ण ने फिर भी छल से दूर रहकर अपने व्रत का पालन किया।

सप्तम सर्ग : कर्ण के बलिदान की कथा (2011)

रश्मिरथी खण्डकाव्य के सप्तम सर्ग की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए। (2016)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के अन्तिम सर्ग की विवेचना कीजिए। (2014, 13)
कर्ण को पाण्डवों से भयंकर युद्ध होता है। वह युद्ध में अन्य सभी पाण्डवों को पराजित कर देता है, पर माता कुन्ती को दिए गए वचन का स्मरण कर सबको छोड़ देता है। कर्ण और अर्जुन आमने-सामने हैं। दोनों ओर से घमासान युद्ध होता है। अर्जुन कर्ण के बाणों से विचलित हो उठते हैं। एक बार तो वह मूर्छित भी हो जाते हैं। तभी कर्ण के रथ का पहिया कीचड़ में फंस जाता है। कर्ण रथ से उतरकर पहिया निकालने लगता है, तभी श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्ण पर बाण चलाने की आज्ञा देते हैं।

श्रीकृष्ण के संकेत करने पर अर्जुन निहत्थे कर्ण पर प्रहार कर देते हैं। कर्ण की मृत्यु हो जाती है, पर वास्तव में नैतिकता की दृष्टि से तो कर्ण ही विजयी रहता है। श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं कि विजय तो अवश्य मिली, पर मर्यादा खोकर।

प्रश्न 2.
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य की सामान्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2018)
अथवा

‘रश्मिरथी’ में प्राचीन पृष्ठभूमि पर आधुनिक समस्याओं का निरूपण किया गया है। स्पष्ट कीजिए। (2016)
अथवा
‘रश्मिरथी’ की भाषा की स्वाभाविक सहजता पर अपने विचार प्रकट कीजिए। (2012)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य की विशेषताएँ लिखिए। (2017)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2014, 13)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए। (2013)
अथवा
किन विशेषताओं के आधार पर ‘रश्मिरथी’ को उच्च कोटि का काव्य माना जाता है? (2013)
अथवा
“रश्मिरथी’ काव्य खण्ड में व्यक्ति की उदात्त एवं आदर्श भावनाओं की अभिव्यक्ति हुई है। इस कथन की सार्थकता पर प्रकाश डालिए। (2011)
अथवा
‘रश्मिरथी में कवि का मन्तव्य कर्ण के चरित्र के शीलपक्ष, मैत्री भाव तथा शौर्य का चित्रण करना है।” सिद्ध कीजिए। (2014, 11)
उत्तर:
राष्ट्रकवि रामधारीसिंह ‘दिनकर’ सदैव देशप्रेम एवं मानवतावादी दृष्टिकोण के समर्थक रहे हैं। रश्मिरथी’ खण्डकाव्य इसका अपवाद नहीं है। इस खण्डकाव्य की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

कथानक

‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य का कथानक ‘महाभारत’ के प्रसिद्ध पात्र कर्ण के जीवन प्रसंग पर आधारित हैं। इन प्रसंगों ने कर्ण के व्यक्तित्व को एक नई छवि प्रदान की है। कथानक का संगठन सुनियोजित प्रकार से किया गया है।

प्रसंगों का समय भिन्न-भिन्न है, लेकिन उन्हें इस प्रकार श्रृंखलाबद्ध किया गया हैं। कि कथा के प्रवाह में बाधा नहीं पड़ती और उसका क्रमबद्ध विकास होता है। कथा का अन्त इस प्रकार किया गया है कि वह कर्ण की विशेषताओं को विभूषित करते हुए समाप्त हो जाती है।

पात्र एवं चरित्र-चित्रण

इस खण्डकाव्य में कर्ण के उपेक्षित जीवन और उसकी चारित्रिक विशेषताओं पर ही प्रकाश डालना कवि का उद्देश्य रहा है। अन्य पात्रों का चुनाव इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर किया गया है।

कथानक में एक भी अनावश्यक पात्र को स्थान नहीं दिया गया है। कर्ण के चरित्र में वर्तमान युग के सामाजिक स्तर पर उपेक्षित व्यक्तियों एवं कुन्ती के रूप में समाज के नियमों से प्रताड़ित नारियों की व्यथा को स्वर दिया गया है। इस प्रकार इस खण्डकाव्य में पात्रों का चरित्र-चित्रण अत्यन्त स्वाभाविक ढंग से हुआ है।

कर्ण जैसे महान् गुणों से सम्पन्न. नायक को कवि ने मुख्य पात्र बनाया है। अन्य पात्रों का चित्रण कर्ण की चारित्रिक विशेषताओं को प्रकाशित करने के लिए किया गया है। सम्पूर्ण काव्य में वीर रस को ही प्रधानता दी गई है। छन्दों में अवश्य विभिन्नता है। आदर्शोन्मुख उद्देश्य के लिए लिखी गई इस रचना को सफल खण्डकाव्ये कहा जा सकता हैं।

‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य का उद्देश्य (2013)

‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के माध्यम से कवि ने उपेक्षित, लेकिन प्रतिभावान मनुष्यों के स्वर को वाणी दी है। यदि कर्ण को बचपन से समुचित सम्मान प्राप्त हुआ होता, जन्म, जाति और कुल आदि के नाम पर उसे अपमानित न किया गया होता तो वह कौरवों का साथ कभी भी नहीं देता। शायद तब महाभारत का युद्ध भी नहीं हुआ होता। कवि ने यह स्पष्ट किया है कि प्रतिभाएँ कुण्ठित होकर समाज को पतन की ओर अग्रसर कर देती हैं।

इस खण्डकाव्य में प्राचीन पृष्ठभूमि पर आधुनिक समस्याओं का निरूपण किया गया है। इसमें समाज में नारियों की मनोदशा का भी यथार्थ वर्णन किया गया है, साथ ही समाज में उनकी स्थिति पर भी प्रकाश डाला गया है। इस प्रकारे उद्देश्य की दृष्टि से भी यह एक सफल खण्डकाव्य है।

इस खण्डकाव्य में प्राचीन पृष्ठभूमि पर आधुनिक समस्याओं का निरूपण किया गया है। इसमें समाज में नारियों की मनोदशा का भी यथार्थ वर्णन किया गया है, साथ ही समाज में उनकी स्थिति पर भी प्रकाश डाला गया है। इस प्रकारे उद्देश्य की दृष्टि से भी यह एक सफल खण्डकाव्य है।

काव्यगत विशेषताएँ

प्रस्तुत खण्डकाव्य ‘रश्मिरथी’ की काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
भावपक्षीय विशेषताएँ

1. वण्र्य विषय खण्डकाव्य की दृष्टि से यह एक सफल खण्डकाव्य है। इसके कथानक की रचना में कवि ने अपनी सूझबूझ का अच्छा परिचय दिया है। दिनकर जी की इस रचना का प्रमुख पात्र कर्ण है। वह समाज के उन व्यक्तियों का प्रतीक है, जो वर्ण-व्यवस्था पर आधारित अमानवीय क्रूरता एवं जड़ नैतिक मान्यताओं की विभीषिका के शिकार हैं।

वर्ण व्यवस्था, जाति-प्रथा, एवं ऊँच-नीच की भावना वर्तमान युग की ज्वलन्त समस्याएँ हैं। इन्हीं के कारण भारतीय समाज में योग्य एवं कर्मठ व्यक्तियों की उपेक्षा एक सामान्य बात है। कर्ण ऐसे ही पीड़ित एवं उपेक्षित जनों को आदर्श प्रतीक है।

2. प्रकृति चित्रण यद्यपि रश्मिरथी काव्य में प्रकृति चित्रण कवि का विषय नहीं है, तथापि पात्रों के चित्रण-वर्णन के दौरान यत्र-तत्र प्रकृति का चित्रण हुआ है, जो अत्यन्त सशक्त है; जैसे|

  • अम्बुधि में आकटक निमज्जित, कनक खचित पर्वत-सा।
  • हँसती थीं रश्मियाँ रजत से भरकर वारि विमले को।।
  • कदली के चिकने पातों पर पारद चमक रहा था।

3. रस निरूपण प्रस्तुत खण्डकाव्य में वीर रस की प्रधानता है। साथ ही करुण एवं वात्सल्य रस को भी स्थान दिया गया है। जहाँ कर्ण और कुन्ती का वार्तालाप हैं, वहाँ वात्सल्य रस देखने को मिलता है-

“मेरे ही सुत मेरे सुत को ही मारें,
हो क्रुद्ध परस्पर ही प्रतिशोध उतारें।’

कलापक्षीय विशेषताएँ। (2010)
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य की कलापक्षीय विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं।

  1. भाषा-शैली रश्मिरथी खण्डकाव्य में अधिकतर संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है। तद्भव शब्दों का भी प्रयोग दृष्टिगत होता है। वास्तव में, यह काव्य शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली में रचित काव्य है। कवि ने अपनी काव्यात्मक भाषा को कहीं भी बोझिल नहीं होने दिया है। सूक्तिपरकता का भी प्रयोग किया गया है। प्राचीन शब्दावली का प्रयोग किया है, जहाँ युद्ध, घटनाओं एवं परिस्थितियों को स्वाभाविक रूप देने का प्रयास किया गया है।
  2. छन्द एवं अलंकार कवि ने प्रत्येक सर्ग में अलग-अलग छन्द प्रयोग किए हैं। विषय, मानसिक परिस्थितियों तथा घटनाओं के संवेदनात्मक पक्ष को दृष्टि में रखते हुए इनका आयोजन किया गया है। अलंकारों में सहजता और संक्षिप्तता है, वे स्वाभाविक रूप से ही प्रयुक्त हुए हैं। वस्तुतः अलंकारों के प्रदर्शन के प्रति कवि की रुचि नहीं है। इस प्रकार भावात्मक एवं कलात्मक दृष्टि से रश्मिरथी’ खण्डकाव्य एक उत्कृष्ट रचना है। यह रचना वर्तमान युग के लिए अत्यन्त उपयोगी है, जो आधुनिक युग के
    समाज की बुराइयों को दूर करने का सन्देश देती है।
  3. उद्देश्य ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के माध्यम से कवि ने उपेक्षित, लेकिन प्रतिभावान मनुष्यों के स्वर को वाणी दी है। यदि कर्ण को बचपन से समुचित सम्मान प्राप्त हुआ होता तथा जन्म, जाति और कुल आदि के नाम पर उसे अपमानित न किया गया होता, तो वह कौरवों का साथ कभी भी नहीं देता। शायद तब महाभारत का युद्ध भी नहीं हुआ होता। कवि ने यह स्पष्ट किया है कि प्रतिभाएँ कुण्ठित होकर समाज को पतन की ओर अग्रसर कर देती हैं।

प्रश्न 3.
“रश्मिरथी’ के प्रत्येक सर्ग में संवादात्मक स्थल ही सबसे प्रमुख है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए। (2011)
अथवा
“रश्मिरथी खण्डकाव्य की संवाद योजना बड़ी सशक्त है।” इस कथन पर अपने विचार व्यक्त कीजिए। (2012)
उत्तर:
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के संवादों में नाटकीयता के गुण विद्यमान हैं। यह नाटकीयता सर्वत्र देखी जा सकती है। इसमें सरलता, सुबोधता, स्वाभाविकता के साथ-साथ प्रभावशीलता भी देखने को मिलती है|

“उड़ती वितर्क-धागे पर चंग-सरीखी,
सुधियों की सहती चोट प्राण पर तीखी।
आशा-अभिलाषा भरी, डरी, भरमाई,
कुन्ती ज्यों-ज्यों जाह्नवी तीर पर आई।

कवि ने प्रभावशाली संवाद शैली का अनुसरण करते हुए वर्णनात्मक शैली की कमियों का निराकरण कर दिया है-

“पाकर प्रसन्न आलोक नया, कौरवसेना का शोक गया।
आशा की नवल तरंग उठी, जन-जन में नई उमंग उठी।”

सर्गों का क्रम भी कवि की रचनात्मक विशेषताओं को व्यक्त करता है। छन्द एवं अलंकार कवि ने प्रत्येक सर्ग में अलग-अलग छन्द प्रयोग किए हैं। विषय, मानसिक परिस्थितियों तथा घटनाओं के संवेदनात्मक पक्ष को दृष्टि में रखते हुए इनका आयोजन किया गया हैं। अलंकारों में सहजता और संक्षिप्तता हैं, वे स्वाभाविक रूप से ही प्रयुक्त हुए हैं। वस्तुतः अलंकारों के प्रदर्शन के प्रति कवि की रुचि नहीं हैं। इस प्रकार भावात्मक एवं कलात्मक दृष्टि से ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य एक उत्कृष्ट रचना है। यह रचना वर्तमान युग के लिए अत्यन्त उपयोगी है, जो आधुनिक युग के समाज की बुराइयों को दूर करने का सन्देश देती है।

चरित्र-चित्रण पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 4.
“कर्ण महान् योद्धा के साथ-साथ दानवीर भी है।” इस कथन के आधार पर कर्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के नायक के चरित्र की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2018)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र की चरित्रिक विशेषताओं को अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए। (2018)
अथवा
रश्मिरथी के माध्यम से कवि दिनकर ने महारथी कर्ण के किन गुणों पर प्रकाश डाला है? अपने शब्दों में लिखिए। (2017)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर कर्ण के चरित्र की विशेषताएँ बताइट।
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर कर्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2017)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर कर्ण के चरित्र पर प्रकाश डालिए। (2018, 16)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2016)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
‘रश्मिरथी’ के कर्ण के व्यक्तित्व की उल्लेखनीय विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2016)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर प्रमुख पात्र कर्ण के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र (नायक कर्ण) का चरित्र-चित्रण (चरित्रांकन/चारित्रिक मूल्यांकन) कीजिए। (2018, 17, 15, 14, 13, 12, 11)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के कर्ण दानवीर थे, परन्तु वह मानसिक अन्तर्द्वन्द्व से भी ग्रस्त थे। ऐसा क्यों? स्पष्ट कीजिए। (2011)
अथवा
कर्ण के चरित्र में ऐसे कौन-से गुण हैं, जो उसे महामानव की कोटि तक उठा देते हैं? (2012, 11)
अथवा
“रश्मिरथी खण्डकाव्य में उदात्त मानवीय चरित्र का उद्घाटन किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए। (2013)
उत्तर:
प्रस्तुत खण्डकाव्य ‘रश्मिरथी’ के आधार पर कर्ण के चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

1. महान् धनुर्धर कर्ण की माता कुन्ती और पिता सूर्य थे। लोकलाज के भय से कुन्ती अपने पुत्र को नदी में बहा देती है, तब एक सूत उसका लालन-पालन करता है। सूत के घर पलकर भी कर्ण महादानी एवं महान् धनुर्धर बनता है। एक दिन अर्जुन रंगभूमि में अपनी बाणविद्या का प्रदर्शन करता है, तभी वहाँ आकर कर्ण भी अपनी धनुर्विद्या का प्रभावपूर्ण प्रदर्शन करता है। कर्ण के इस प्रभावपूर्ण प्रदर्शन को देखकर द्रोणाचार्य एवं पाण्डव उदास हो जाते हैं।

2. सामाजिक विडम्बना का शिकार कर्ण क्षत्रिय कुल से सम्बन्धित था, लेकिन उसका पालन-पोषण एक सूत के द्वारा हुआ, जिस कारण वह सूतपुत्र कहलाया और इसी कारण उसे पग-पग पर अपमान का बूंट पीना पड़ा। शस्त्र विद्या प्रदर्शन के समय प्रदर्शन स्थल पर उपस्थित होकर वह अर्जुन को ललकारता है, तो सब स्तब्ध रह जाते हैं। यहाँ पर कर्ण को कृपाचार्य की कूटनीतियों का शिकार होना पड़ता है। द्रौपदी के स्वयंवर में भी उसे अपमानित होना पड़ा था।

3. सच्चा मित्र कर्ण दुर्योधन का सच्चा मित्र है। दुर्योधन कर्ण की वीरता से प्रसन्न होकर उसे अंगदेश का राजा बना देता है। इस उपकार के बदले भावविह्वल कर्ण सदैव के लिए दुर्योधन का मित्र बन जाता है। वह श्रीकृष्ण और कुन्ती के प्रलोभनों को ठुकरा देता है। वह श्रीकृष्ण से कहता है कि मुझे स्नेह और सम्मान दुर्योधन ने ही दिया। अतः मेरा तो रोम-रोम दुर्योधन का ऋणी है। वह तो सब कुछ दुर्योधन पर न्योछावर करने को तत्पर रहता है।

4. गुरुभक्त कर्ण सच्चा गुरुभक्त हैं। वह अपने गुरु के प्रति विनयी एवं श्रद्धालु है। एक दिन परशुराम कर्ण की जंघा पर सिर रखकर सोए हुए थे तभी एक कीट कर्ण की जंघा में घुस जाता है, रक्त की धारा बहने लगती है, वह चुपचाप पीड़ा को सहता है, क्योकि पैर हिलाने से गुरु की नींद खुल सकती थी, लेकिन आँखें खुलने पर वह गुरु को अपने बारे में सब कुछ बता देता है। गुरु क्रोधित होकर उसे आश्रम से निकाल देते हैं, लेकिन वह अपनी विनय नहीं छोड़ता और गुरु के चरण स्पर्श कर वहाँ से चल देता है।

5. महादानी कर्ण महादानी है। प्रतिदिन प्रात:काल सन्ध्या वन्दना करने के पश्चात् वह याचकों को दान देता है। उसके द्वार से कभी कोई याचक खाली नहीं लौटा। कर्ण की दानशीलता का वर्णन कवि ने इस प्रकार किया है।

“रवि पूजन के समय सामने, जो भी याचक आता था,
मुँह माँगा वह दान कर्ण से, अनायास ही पाता था।”

इन्द्र ब्राह्मण का वेश धारण कर कर्ण के पास आते हैं। यद्यपि कर्ण इन्द्र के छल को पहचान लेता है तथापि वह इन्द्र को सूर्य द्वारा दिए गए कवच और कुण्डल दान में दे देता है।

6. महान् सेनानी कौरवों की ओर से कर्ण सेनापति बनकर युद्धभूमि में प्रवेश करता है। युद्ध में अपने रण कौशल से वह पाण्डवों की सेना में हाहाकार मचा देता है। अर्जुन भी कर्ण के बाणों से विचलित हो उठते हैं। श्रीकृष्ण भी उसकी वीरता की प्रशंसा करते हैं। भीष्म उसके विषय में कहते हैं

“अर्जुन को मिले कृष्ण जैसे,
तुम मिले कौरवों को वैसे।”

इस प्रकार कहा जा सकता है कि कर्ण का चरित्र दिव्य एवं उच्च संस्कारों से युक्त है। वह शक्ति का स्रोत है, सच्चा मित्र है, महादानी और त्यागी है। वस्तुतः उसकी यही विशेषताएँ उसे खण्डकाव्य का महान् नायक बना देती हैं।

प्रश्न 5.
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्रांकन कीजिए। (2018, 17, 10)
अथवा
‘रश्मिरथी’ के आधार पर श्रीकृष्ण के विराट व्यक्तित्व को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
‘दिनकर’ जी द्वारा रचित ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर श्रीकृष्ण की चारित्रिक विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं।

1. युद्ध विरोधी एवं मानवता का पक्षधर ‘रश्मिरथी’ के श्रीकृष्ण युद्ध के प्रबल विरोधी हैं और मानवता के प्रति संवेदनशील हैं। उन्हें यह ज्ञात है कि युद्ध की विभीषिका मानवता के लिए कितनी दुखदायी होती है। पाण्डवों के वनवास से लौटने के पश्चात् श्रीकृष्ण कौरवों को समझाने के लिए हस्तिनापुर जाते हैं और युद्ध को टालने का भरसक प्रयत्न करते हैं, किन्तु हठी दुर्योधन नहीं मानता। कौरवों से पाण्डवों के लिए वे पाँच गाँव ही माँगते हैं। दुर्योधन के द्वारा अस्वीकार करने पर वे सोचते हैं कि वह कर्ण की शक्ति प्राप्त कर ही युद्ध में अपनी जीत की कल्पना कर रहा है। यदि कर्ण उसका साथ छोड़ दे तो यह युद्ध रोका जा सकता है। इस युद्ध को रोकने के लिए उन्होंने कर्ण से कहा-

यह मुकुट मान सिंहासन ले,
बस एक भीख मुझको दे दे।
कौरव को तेज रण रोक सखे,
भु का हर भावी शोक सखे।

2. निडर एवं स्फुटवक्ता श्रीकृष्ण निडर एवं स्फुटवक्ता अर्थात् बात को स्पष्ट कहने वाले हैं। वे युद्ध नहीं चाहते हैं। वे चाहते हैं कि कौरवों और पाण्डवों के मध्य सुलह हो जाए। इसके आधार पर उन्हें कायर नहीं कहा जा सकता। वे दुर्योधन को अनेक प्रकार से समझाने का प्रयास करते हैं, लेकिन वह मानने के लिए तैयार नहीं है, अपनी जिद पर अड़ा है, लेकिन जब वह उनके हित की दृष्टि से दी गई सलाह को नहीं मानती है तो वे कहते हैं कि-

तो ले अब मैं भी जाता है,
अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
याचना नहीं अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।

3. सदाचारी एवं व्यावहारिक श्रीकृष्ण सदाचारी एवं व्यावहारिक हैं। उनके सभी कार्य सदाचार एवं शील के परिचायक हैं। उनका उद्देश्य सदाचारपूर्ण समाज की स्थापना करना है और वे यही चाहते हैं कि सभी सदाचरण करें। वे सदाचार को ही जीवन का सार मानते हुए कहते हैं कि-

नहीं पुरुषार्थ केवल जाति में है,
विभा का सार शील पुनीत में है।

4. गुणवानों के पक्षधर ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के श्रीकृष्ण गुणवान व्यक्तियों के प्रबल समर्थक एवं प्रशंसक हैं। इस कारण वे अपने विरोधी के गुणों का भी सम्मान करते हैं। यद्यपि कर्ण कौरव पक्ष का योद्धा था फिर भी श्रीकण के मन में उसके गुणों के प्रति बहुत आदर है। वे उसका गुणगान करते नहीं थकते। उसकी मृत्यु के उपरान्त वे अर्जुन से उसके बारे में कहते हैं कि-

मगर, जो हो, मनुज सुवरिष्ठ था वह,
घनुर्धर ही नहीं, घमिष्ठ था वह।
वीर शत बार धन्य
तुझ-सा न मित्र कोई अनन्य।

5. कूटनीतिज्ञ ‘दिनकर’ द्वारा रचित ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के श्रीकृष्ण कूटनीतिज्ञ हैं। महाभारत के श्रीकृष्ण के चरित्र से उनके चरित्र की विशेषताएँ मिलती हैं, किन्तु इस खण्डकाव्य में उनके कूटनीतिज्ञ स्वरूप का ही चित्रण हुआ है। पाण्डवों की जीत का आधार उनकी कूटनीति ही थी। वे पाण्डवों की ओर से कूटनीति की चाल चलकर दुर्योधन की सबसे बड़ी शक्ति कर्ण को उससे अलग करने का प्रयास करते हैं। उनकी कूटनीतिज्ञता का पता इन पंक्तियों में उनके द्वारा कहा गया यह कथन स्पष्ट करता है–

कुन्ती का तू ही तनय श्रेष्ठ,
बलशील में परम श्रेष्ठ।
मस्तक पर मुकुट धरेंगे हम,
तेरा अभिषेक करेंगे हम,

6. अलौकिक गुणों से युक्त ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के श्रीकृष्ण महाभारत के श्रीकृष्ण की ही तरह अलौकिक गुणों से युक्त हैं। वे लीलामय पुरुष हैं, क्योंकि उनमें अलौकिक शक्ति विद्यमान है। जब वे दुर्योधन के दरबार में पाण्डवों के दूत बनकर जाते हैं, तो दुर्योधन उन्हें बाँधना चाहता है और कैद करना चाहता है, तो उस समय वे अपना लीलामय विराट स्वरूप दिखाते है-

हरि ने भीषण हुँकार किया,
अपना स्वरूप विस्तार किया,
डगमग-इगमग दिग्गज डोले,
भगवान, कुपित होकर बोले
जंजीर बढ़ाकर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।

इस प्रकार उपरोक्त बिन्दुओं को दृष्टिगत रखते हुए हम कह सकते हैं कि श्रीकृष्ण निडर एवं स्फुटवक्ता, अलौकिक गुणों से युक्त होते हुए महाभारत के श्रीकृष्ण के चरित्र के समस्त गुणों को अपने अन्दर समाहित किए हुए हैं। इसके साथ-ही-साथ उनका चरित्र लोकमंगल की भावना से युक्त है। श्रीकृष्ण का यह स्वरूप कवि ने इस खण्डकाव्य में युग के अनुसार ही प्रकट किया है। इसके कारण उनके महाभारतकालीन चरित्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है-

प्रश्न 6.
“रश्मिरथी खण्डकाव्य के नारी-पात्र कुन्ती के चरित्र में कवि ने मातृत्व के भीषण अन्तर्द्वन्द्व की पुष्टि की है।” इस कथन की सार्थकता कीजिए। (2018)
अथवा
‘रश्मिरथी’ के आधार पर कुन्ती के चरित्र की विशेषताएँ बताइए। (2016)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के प्रधान नारी (कुन्ती) पात्र का चरित्रांकन कीजिए। (2018, 16)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर कुन्ती के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2013, 12, 11)
अथवा
“कुन्ती के चरित्र में कवि ने मातृत्व के भीषण अन्तर्द्वन्द्व की सृष्टि की है।” इस कथन के आधार पर कुन्ती का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2010)
अथवा
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य में प्रस्तुत कुन्ती के मन की घुटन का विवेचन कीजिए। (2011)
उत्तर:
कुन्ती पाण्डवों की माता है। सूर्यपुत्र कर्ण का जन्म कुन्ती के गर्भ से ही हुआ था। इस प्रकार कुन्ती के पाँच नहीं वरन् छः पुत्र थे। कुन्ती की चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं।

  1. समाज भीरू कुन्ती लोकलाज के भय से अपने नवजात शिशु को गंगा में बहा देती है। वह कभी भी उसे स्वीकार नहीं कर पाती। उसे युवा और धीरत्व की मूर्ति बने देखकर भी अपना पुत्र कहने का साहस नहीं कर पाती। जब युद्ध की विभीषिका सामने आती है, तो वह कर्ण से एकान्त में मिलती है और अपनी दयनीय स्थिति को व्यक्त करती है।
  2. एक ममतामयी माँ कुन्ती ममता की साक्षात् मूर्ति है। कुन्ती को जब पता चलता है कि कर्ण का उनके अन्य पाँच पुत्रों से युद्ध होने वाला है, तो वह कर्ण को मनाने उसके पास जाती है और उसके प्रति अपना ममत्व एवं वात्सल्य प्रेम प्रकट करती है। वह नहीं चाहती कि उनके पुत्र युद्धभूमि में एक-दूसरे के साथ संघर्ष करें। यद्यपि कर्ण उनकी बातें स्वीकार नहीं करता, पर वह उसे आशीर्वाद देती है, उसे अंक में भरकर अपनी वात्सल्य भावना को सन्तुष्ट करती है।
  3. अन्तर्द्वन्द्व ग्रस्त कुन्ती के पुत्र परस्पर शत्रु बने हुए थे, तब कुन्ती के मन में भीषण अन्तर्द्वन्द्व मचा हुआ था, वह बड़ी उलझन में पड़ी हुई थी कि पाँचों पाण्डवों और कर्ण में से किसी की भी हानि हो, पर वह हानि तो मेरी ही होगी। वह इस स्थिति को रोकना चाहती थीं, परन्तु कर्ण के अस्वीकार कर देने पर वह इस नियति को सहने के लिए विवश हो जाती है। इस प्रकार कवि ने ‘रश्मिरथी’ में कुन्ती के चरित्र में अनेक उच्च गुणों का समावेश किया है। और इस विवश माँ की ममता को महान् बना दिया है।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 3 रश्मिरथी help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 3 रश्मिरथी, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 20 उपयोगिता व उपयोगिता ह्रास नियम

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 20 उपयोगिता व उपयोगिता ह्रास नियम are the part of UP Board Solutions for Class 10 Commerce. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 20 उपयोगिता व उपयोगिता ह्रास नियम.

Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 20
Chapter Name उपयोगिता व उपयोगिता ह्रास नियम
Number of Questions Solved 27
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 20 उपयोगिता व उपयोगिता ह्रास नियम

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
धनी व्यक्ति के लिए आय में वृद्धि से मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता
(a) बढ़ती है
(b) घटती है
(c) स्थिर रहती है
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) घटती है

प्रश्न 2.
जब सीमान्त उपयोगिता शून्य होती है, तब कुल उपयोगिता होती है
(a) ऋणात्मक
(b) धनात्मक
(c) सर्वाधिक
(d) शून्य
उत्तर:
(c) सर्वाधिक

प्रश्न 3.
सीमान्त उपयोगिता हास नियम के प्रतिपादक थे (2014)
(a) गौसेन
(b) फ्रेडरिक
(c) मार्शल
(d) फ्रेजर
उत्तर:
(a) गौसेन

UP Board Solutions

प्रश्न 4.
मधुर संगीत सुनने की दशा में सीमान्त उपयोगिता हास नियम
(a) लागू होता है
(b) लागू नहीं होता है
(c) कभी-कभी लागू होता है
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) लागू नहीं होता है

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
आवश्यकताएँ अनन्त/सीमित हैं। (2007)
उत्तर:
अनन्त

प्रश्न 2.
उपयोगिता का सृजन उपभोग है/उपभोग नहीं है। (2009)
उत्तर:
उपभोग है

प्रश्न 3.
उपयोगिता के सृजन/नाश को अर्थशास्त्र में उपयोग कहा जाता है। (2007)
उत्तर:
सृजन

प्रश्न 4.
उपयोगिता का सृजन ही उत्पादन/उपभोग है। (2010)
उत्तर:
उत्पादन

UP Board Solutions

प्रश्न 5.
उपयोगिता को मापा जा सकता है।नहीं मापा जा सकता है।
उत्तर:
नहीं मापा जा सकता है।

प्रश्न 6.
तुष्टिगुण वस्तुगत/मनुष्यगत होता है।
उत्तर:
मनुष्यगत

प्रश्न 7.
उपभोग से वस्तुओं की उपयोगिता में कमी/वृद्धि होती है। (2011)
उत्तर:
कमी होती है

प्रश्न 8.
किसी वस्तु की सीमान्त उपयोगिता शून्य हो सकती है।नहीं हो सकती है।
उत्तर:
शून्य हो सकती है

प्रश्न 9.
कुल उपयोगिता हमेशा बढ़ती है/नहीं बढ़ती है।
उत्तर:
नहीं बढ़ती है

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
उपयोगिता के प्रकार बताइए।
उत्तर:
उपयोगिता निम्नलिखित दो प्रकार की होती है

  1. सीमान्त उपयोगिता
  2. कुल उपयोगिता

प्रश्न 2.
सीमान्त उपयोगिता क्या है?
उत्तर:
किसी वस्तु की एक से अधिक इकाइयों का (UPBoardSolutions.com) जब कोई उपभोक्ता उपयोग करता है, तो उपभोग की गई अन्तिम इकाई को सीमान्त इकाई कहते हैं तथा उस वस्तु की सीमान्त इकाई से जो तुष्टिगुण प्राप्त होता है, वह सीमान्त तुष्टिगुण कहलाता है।

UP Board Solutions

प्रश्न 3.
उपयोगिता हास नियम को परिभाषित कीजिए एवं इसकी दो मान्यताएँ बताइए। (2016)
उत्तर:
बोल्डिग के अनुसार, “जब कोई उपयोगिता, अन्य वस्तुओं का उपभोग स्थिर रखकर किसी एक वस्तु के उपभोग को बढ़ाता है, तो परिवर्तनशील वस्तु की उपयोगिता अन्त में अवश्य घटती है।”

उपयोगिता ह्रास नियम की दो मान्यताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. किसी भी वस्तु का उपभोग निरन्तर किया जाना चाहिए।
  2. उपभोग वस्तु की प्रत्येक इकाई का परिमाण उचित होना चाहिए अन्यथा प्रारम्भिक अवस्था में ही आवश्यकता की तीव्रता घटने के स्थान पर अधिक हो जाएगी।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
उपयोगिता की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2007)
उत्तर:
उपयोगिता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. उपयोगिता का सम्बन्ध वस्तु या सेवाओं की उस शक्ति से होता है, जो आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करती है।
  2. किसी वस्तु या सेवा का उपभोग व्यक्ति को लाभ प्रदान कर रहा है। या हानि, इससे उपयोगिता का कोई लेना-देना नहीं होता है।
  3. उपयोगिता किसी वस्तु का उपभोग करने पर ही प्राप्त होती है। अत: उपयोगिता का सम्बन्ध उपभोगजन्य वस्तुओं से होता है, न कि पूँजीगत वस्तुओं से।
  4. एक ही वस्तु की उपयोगिता भिन्न व्यक्तियों के लिए समान या भिन्न परिस्थितियों में एक व्यक्ति के लिए ही अलग-अलग हो सकती है।
  5. उपयोगिता किसी वस्तु का वस्तुगत गुण नहीं है। वस्तु की उपयोगिता | (UPBoardSolutions.com) इसका उपभोग करने वाले पर निर्भर करती है।
  6. उपयोगिता व सन्तुष्टि दोनों एक नहीं हैं। उपयोगिता तो इच्छा की तीव्रता का द्योतक है, जोकि ‘सन्तुष्टि की शक्ति’ या ‘अनुमानित सन्तुष्टि’ से सम्बन्धित होती है।
  7. वस्तु के उपभोग में वृद्धि से अन्तत: उपयोगिता में ह्रास अवश्य होता है।

UP Board Solutions

प्रश्न 2.
कुल उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
किसी वस्तु या सेवा की उपभोग की गई विभिन्न इकाइयों से प्राप्त उपयोगिता के योग को ‘कुल उपयोगिता’ कहते हैं। प्रो. मेयर्स के अनुसार, “उत्तरोत्तर इकाइयों के उपभोग द्वारा प्राप्त सीमान्त तुष्टिगुण के योग को ‘कुल उपयोगिता’ कहा जाता है। कुल उपयोगिता में सदैव वृद्धि नहीं होती है। जैसे-जैसे वस्तु की मात्रा में वृद्धि होती है, वैसे-वैसे कुल उपयोगिता में भी वृद्धि होती है, लेकिन इसमें वृद्धि की मात्रा, सीमान्त उपयोगिता पर निर्भर करती है। जब सीमान्त उपयोगिता बढ़ती है, तो कुल उपयोगिता कम होती है तथा कुल उपयोगिता के बढ़ने की दर धीमी हो जाती है। जब सीमान्त उपयोगिता शून्य होती है, तो कुल उपयोगिता अधिकतम हो जाती है। (UPBoardSolutions.com) जब सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक होती है, तो कुल उपयोगिता कम होने लगती है। निम्नलिखित उदाहरण द्वारा उपरोक्त तथ्यों को स्पष्ट किया जा सकता है-

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 20 उपयोगिता व उपयोगिता ह्रास नियम

UP Board Solutions

उपरोक्त उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि कुल उपयोगिता प्रारम्भ में तेजी से बढ़ती हुई तथा बाद में धीमी गति से बढ़ती हुई हो सकती है। कुल उपयोगिता जब अधिकतम होती है, तो उपभोक्ता के लिए वह पूर्ण सन्तुष्टि का बिन्दु होता है। उपरोक्त उदाहरण के अनुसार, यदि उपभोक्ता 6 इकाई से अधिक का उपभोग करता है, तो उसको प्राप्त कुल उपयोगिता गिरने लगेगी।

प्रश्न 3.
सीमान्त उपयोगिता व कुल उपयोगिता में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सीमान्त उपयोगिता व कुल उपयोगिता में अन्तर

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 20 उपयोगिता व उपयोगिता ह्रास नियम

प्रश्न 4.
सीमान्त उपयोगिता हास नियम पर टिप्पणी लिखिए।
अथवा
सीमान्त उपयोगिता हास नियम की व्याख्या कीजिए। (2016, 08, 06)
अथवा
क्रमागत उपयोगिता ह्रास नियम से आप क्या समझते हैं? (2015)
अथवा
उपयोगिता हास नियम की व्याख्या कीजिए। (2018)
उत्तर:
उपयोगिता ह्रास नियम से आशय एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से प्राप्त होने वाली उपयोगिता से है। इस नियम के प्रतिपादक एच.एच. गौसेन थे। सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम इस बात को स्पष्ट करता है कि किसी निर्धारित समय में एक व्यक्ति को (UPBoardSolutions.com) अतिरिक्त इकाई से मिलने वाली सन्तष्टि क्रमशः कम होती चली जाती है। इसका प्रमख कारण व्यक्ति की किसी आवश्यकता विशेष का क्रमशः सन्तुष्ट होते चले जाना है।

UP Board Solutions

एक व्यक्ति एक ही वस्तु को बहुत अधिक मात्रा में रखने की अपेक्षा अनेक प्रकार की वस्तुओं की थोड़ी-थोड़ी मात्रा रखना अधिक पसन्द करता है, क्योंकि जैसे-जैसे एक वस्तु की अधिक इकाइयाँ प्रयोग में ली जाती हैं, वैसे-वैसे उनकी सीमान्त उपयोगिता क्रमशः कम होती चली जाती है तथा अन्त में एक ऐसा बिन्दु आता है, जहाँ वस्तु के उपभोग से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता शून्य हो जाती है। इस बिन्दु को पूर्ण सन्तुष्टि का बिन्दु कहते हैं। यदि इस बिन्दु के बाद भी उपभोक्ता वस्तु का उपयोग जारी रखता है, तो उसे उपयोगिता के स्थान पर अनुपयोगिता प्राप्त होने लगती है। इसे ऋणात्मक उपयोगिता कहते हैं। उपयोगिता के गिरने की यही प्रवृत्ति सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम कहलाती है।

अर्थशास्त्र में इस प्रवृत्ति को ‘क्रमागत उपयोगिता ह्रास नियम’ या ‘ह्रासमान तुष्टिगुण नियम’ भी कहा जाता है। मार्शल के अनुसार, “मनुष्य के पास किसी वस्तु की मात्रा में वृद्धि होने से जो अतिरिक्त लाभ उसे प्राप्त होता है, अन्य बातें समान रहने पर वस्तु की मात्रा में होने वाली प्रत्येक वृद्धि के साथ-साथ वह लाभ क्रमशः घटता जाता है।” टॉमस के अनुसार, “किसी वस्तु की पूर्ति जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, उससे प्राप्त उपयोगिता उसकी मात्रा में प्रत्येक वृद्धि के (UPBoardSolutions.com) साथ-साथ घटती जाती है।’ बोल्डिग के अनुसार, “जब कोई उपभोक्ता, अन्य वस्तुओं का उपभोग स्थिर रखकर किसी एक वस्तु के उपभोग को बढ़ाता है, तो परिवर्तनशील वस्तु की सीमान्त उपयोगिता अन्त में अवश्य घटती है।”

प्रश्न 5.
‘सीमान्त उपयोगिता हास नियम’ की मान्यताओं का वर्णन कीजिए। (2009)
उत्तर:
सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम की प्रमुख मान्यताएँ निम्नलिखित हैं-

1. निरन्तर उपभोग किसी भी वस्तु का उपभोग निरन्तर होना चाहिए, अन्यथा यह नियम लागू नहीं होगा। यदि हम भोजन दो बार करते हैं, तो प्रत्येक बार भोजन करने पर सन्तोष मिलेगा, परन्तु यदि भोजन लगातार किया जाए, तो रोटी की प्रत्येक अगली इकाई से प्राप्त उपयोगिता कम होती जाएगी।

2. मात्रा व आकार उपभोग वस्तु की प्रत्येक इकाई का परिमाण उचित होना चाहिए, अन्यथा प्रारम्भिक अवस्था में ही आवश्यकता की तीव्रता घटने के स्थान पर अधिक हो जाएगी। उदाहरण-यदि एक प्यासे व्यक्ति को चम्मच से पानी पिलाया जाए, तो कुछ चम्मच पानी की इकाइयों तक उसकी उपयोगिता घटने के स्थान पर बढ़ती जाएगी।

3. अपरिवर्तित मूल्य यदि उपभोग की जाने वाली वस्तु का उपभोग करते समय किसी अगली इकाई का मूल्य बढ़ या घट जाता है, तो यह नियम लागू नहीं होगा; जैसे-दो आम एक ही कीमत के होने चाहिए।

4. स्थानापन्न वस्तुओं के मूल्य में परिवर्तन नहीं उपभोग की जाने वाली वस्तु की स्थानापन्न वस्तु का मूल्य भी पहले के समान रहना चाहिए अन्यथा यह नियम लागू नहीं होगा। चाय और कॉफी दो स्थानापन्न वस्तुएँ हैं। यदि चाय की कीमत बढ़ जाती है, तो कॉफी की उपयोगिता पहले की अपेक्षा बढ़ जाएगी।

5. मानसिक दशा में परिवर्तन न हो यह नियम उसी समय लागू होगा जब उपभोक्ता की मानसिक स्थिति में किसी प्रकार की परिवर्तन न हो उदाहरण यदि कोई उपभोक्ता किसी समय खाना खाने के दौरान दो रोटियाँ खाने के बाद भाँग या शराब का प्रयोग करता है, (UPBoardSolutions.com) तो उसकी मानसिक स्थिति में परिवर्तन हो जाएगा। इसके पश्चात् हो सकता है कि तीसरी रोटी से उसे पहले उपभोग की गई दो रोटियों से अधिक सन्तुष्टि मिले।

UP Board Solutions

6. आदत, रुचि, फैशन, आय, आदि में परिवर्तन न हो यह नियम उसी समय लागू होता है, जब उपभोक्ता की आदत, रुचि, फैशन तथा आय संमान रहती है। इनमें से किसी में परिवर्तन होने पर वस्तु की उपयोगिता , घटने के स्थान पर बढ़ सकती है।

प्रश्न 6.
सीमान्त उपयोगिता हास नियम के अपवादों को समझाइए। (2007)
उत्तर:
उपयोगिता ह्रास नियम के अपवादों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-

1. दिखावटी अपवाद दिखावटी अपवाद निम्नलिखित हैं

  • उपभोग की इकाई सूक्ष्म हो यदि उपभोग की इकाई एक आदर्श इकाई न होकर अत्यन्त सूक्ष्म इकाई हो, तो यह नियम लागू नहीं हो पाएगा। यह अपवाद दिखावटी अपवाद है।
  • दुर्लभ व विलक्षण वस्तुएँ ऐसा कहा जाता है कि दुर्लभ वस्तुओं के सन्दर्भ में यह नियम लागू नहीं होता है; जैसे–दुर्लभ डाक टिकट, पेंटिंग, दुर्लभ सिक्कों, आदि के सन्दर्भ में यह देखा जाता है कि इनको कितनी मात्रा में भी एकत्र किया जाए, इनकी (UPBoardSolutions.com) उपयोगिता में कमी नहीं आती है।
  • कंजूस व्यक्ति की धन-संग्रह प्रवृत्ति यह अपवाद बताता है कि कंजूस व्यक्ति के पास जितना अधिक धन बढ़ता जाता है, उसे एकत्र करने की उसकी इच्छा और अधिक बढ़ती चली जाती है।
  • मादक वस्तुओं का प्रयोग ऐसे व्यक्ति जो मादक व नशीली वस्तुओं का प्रयोग करते हैं, उनको उन नशीली वस्तुओं की अतिरिक्त इकाइयों से अधिक उपयोगिता मिलती है।
  • वस्तु व सेवा के प्रयोग में वृद्धि नियम के अपवाद के सन्दर्भ में यह कहा गया है कि कुछ वस्तु व सेवाओं के प्रयोग में वृद्धि से उपयोगिता क्रमशः गिरने की अपेक्षा बढ़ती है।

UP Board Solutions

2. वास्तविक अपवाद वास्तविक अपवाद निम्नलिखित हैं

  • अच्छी कविता या मधुर संगीत इस सन्दर्भ में यह तर्क दिया गया है। कि अच्छी कविता या मधुर संगीत को जितनी बार सुना जाए, उससे प्राप्त होने वाली उपयोगिता कम नहीं होती है, लेकिन व्यवहार में हमयह सिद्ध कर सकते हैं कि उपयोगिता घटती हुई प्रतीत होने लगती है।
  • उपभोग की आरम्भिक अवस्था वस्तु के प्रभावपूर्ण उपयोग के लिए उसकी पर्याप्त मात्रा का होना भी आवश्यक है। अत: यह सम्भव है कि उपभोग की प्रारम्भिक इकाइयों में उपयोगिता बढ़ती हुई मिले, लेकिन एक बिन्दु के पश्चात् इसमें भी गिरावट अवश्य हो जाएगी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
उपयुक्त रेखाचित्र की सहायता से ‘सीमान्त उपयोगिता हास नियम’ की व्याख्या कीजिए। ( 2014)
अथवा
एक उपयुक्त रेखाचित्र की सहायता से ‘क्रमागत सीमान्त उपयोगिता हास नियम’ की व्याख्या कीजिए। (2013)
अथवा
एक सारणी और रेखाचित्र की सहायता से हासमान सीमान्त उपयोगिता नियम की व्याख्या कीजिए। (2011)
अथवा
सीमान्त उपयोगिता हास नियम की रेखाचित्र की सहायता से व्याख्या कीजिए। (2010)
अथवा
उपयोगिता ह्रास नियम क्या है? उदाहरण एवं रेखाचित्र की सहायता से इसे समझाइए। इस नियम का क्या महत्त्व है? . (2007)
अथवा
उपयोगिता हास नियम की व्याख्या कीजिए। इसे उपयुक्त तालिका तथा रेखाचित्र द्वारा भी स्पष्ट कीजिए। (2007)
अथवा
उपयुक्त उदाहरण एवं रेखाचित्र की सहायता से उपयोगिता हास नियम की व्याख्या कीजिए। (2006)
उत्तर:
उपयोगिता ह्रास नियम से आशय किसी वस्तु की एक से अधिक इकाइयों का जब कोई उपभोक्ता उपयोग करता है, तो उपभोग की गई अन्तिम इकाई को सीमान्त इकाई कहते हैं तथा उस वस्तु की सीमान्त इकाई से जो तुष्टिगुण प्राप्त होता है, वह सीमान्त (UPBoardSolutions.com) तुष्टिगुण कहलाता है।

उपयोगिता ह्रास नियम या सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम का उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 20 उपयोगिता व उपयोगिता ह्रास नियम

उपरोक्त उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि पहली, दूसरी व तीसरी इकाइयों से क्रमशः बढ़ती हुई सीमान्त उपयोगिता प्राप्त हो रही है, किन्तु जैसा कि हमें ज्ञात है कि एक सीमा के पश्चात् यो अन्त में या एक बिन्दु के पश्चात् सीमान्त उपयोगिता में गिरावट अवश्य आती है। उदाहरण में चौथी इकाई का प्रयोग करने पर तीसरी इकाई की अपेक्षा कम सीमान्त उपयोगिता प्राप्त हुई है। छठी इकाई पर सीमान्त उपयोगिता शून्य है। इसका (UPBoardSolutions.com) आशय है कि पूर्ण सन्तुष्टि का बिन्दु आ गया है। इस बिन्दु के पश्चात् भी इकाइयों का उपभोग किया जाएगा, तो सीमान्त उपयोगिता  ऋणात्मक हो जाएगी।

UP Board Solutions

विवेचन/स्पष्टीकरण रेखाचित्र में सीमान्त उपयोगिता रेखा (MU) तीन इकाइयों (a, b, c) तक बढ़ती है अर्थात् सीमान्त उपयोगिता प्रारम्भ में तेजी से बढ़ती है। इसके पश्चात् चौथी इकाई का प्रयोग करने पर MU रेखा नीचे की ओर गिरने लगती है और यह छठी इकाई

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 20 उपयोगिता व उपयोगिता ह्रास नियम

तक लगातार गिरती जाती है और सीमान्त उपयोगिता शून्य हो जाती है। यह पूर्ण सन्तुष्टि का बिन्दु होता है। इस इकाई के पश्चात् सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक होने लगती है। उपयोगिता ह्रास नियम का महत्त्व उपयोगिता ह्रास नियम के महत्त्व को निम्न बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता है

  1. कीमत निर्धारण में महत्त्व यह नियम मूल्य निर्धारण में महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शक होता है। किसी वस्तु की पूर्ति अधिक होने पर उसकी सीमान्त उपयोगिता गिरती चली जाती है, अत: उसका विनिमय मूल्य भी गिरता जाता है। अतः यह नियम मूल्य सिद्धान्त का आधार है।
  2. समाजवाद को आधार समाजवादी व्यवस्था में धनी वर्ग पर कर लगाकर, उनसे प्राप्त धनराशि को गरीबों पर व्यय किया जाता है, क्योंकि अमीरों की तुलना में गरीबों के लिए धन की सीमान्त उपयोगिता अधिक होती है।
  3. उपभोक्ता के व्यवहार की व्याख्या में सहायक यह नियम उपभोक्ता (UPBoardSolutions.com) की बचत, सम-सीमान्त उपयोगिता नियम, माँग का नियम, आदि उपभोक्ता व्यवहार के नियमों का आधार है।
  4. माँग के नियम का आधार इस नियम द्वारा यह ज्ञात होता है कि किसी वस्तु की अधिक इकाइयों का उपभोग करने पर उसकी उपयोगिता के, क्रमशः घटने के कारण उसकी माँग कम हो जाती है।
  5. उत्पादन व उपभोग में भिन्नता का स्पष्टीकरण यह नियम उपभोग तथा उत्पादन की जटिलता के कारणों पर प्रकाश डालने में सहायक होता है।

UP Board Solutions

उपयोगिता ह्रास नियम के अपवाद

उपयोगिता ह्रास नियम के अपवादों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-

1. दिखावटी अपवाद दिखावटी अपवाद निम्नलिखित हैं

  • उपभोग की इकाई सूक्ष्म हो यदि उपभोग की इकाई एक आदर्श इकाई न होकर अत्यन्त सूक्ष्म इकाई हो, तो यह नियम लागू नहीं हो पाएगा। यह अपवाद दिखावटी अपवाद है।
  • दुर्लभ व विलक्षण वस्तुएँ ऐसा कहा जाता है कि दुर्लभ वस्तुओं के सन्दर्भ में यह नियम लागू नहीं होता है; जैसे–दुर्लभ डाक टिकट, पेंटिंग, दुर्लभ सिक्कों, आदि के सन्दर्भ में यह देखा जाता है कि इनको कितनी मात्रा में भी एकत्र किया जाए, इनकी उपयोगिता में कमी नहीं आती है।
  • कंजूस व्यक्ति की धन-संग्रह प्रवृत्ति यह अपवाद बताता है कि कंजूस व्यक्ति के पास जितना अधिक धन बढ़ता जाता है, उसे एकत्र करने की उसकी इच्छा और अधिक बढ़ती चली जाती है।
  • मादक वस्तुओं का प्रयोग ऐसे व्यक्ति जो मादक व नशीली वस्तुओं का प्रयोग करते हैं, उनको उन नशीली वस्तुओं की अतिरिक्त इकाइयों से अधिक उपयोगिता मिलती है।
  • वस्तु व सेवा के प्रयोग में वृद्धि नियम के अपवाद के सन्दर्भ में यह कहा गया (UPBoardSolutions.com) है कि कुछ वस्तु व सेवाओं के प्रयोग में वृद्धि से उपयोगिता क्रमशः गिरने की अपेक्षा बढ़ती है।

2. वास्तविक अपवाद वास्तविक अपवाद निम्नलिखित हैं

  • अच्छी कविता या मधुर संगीत इस सन्दर्भ में यह तर्क दिया गया है। कि अच्छी कविता या मधुर संगीत को जितनी बार सुना जाए, उससे प्राप्त होने वाली उपयोगिता कम नहीं होती है, लेकिन व्यवहार में हमयह सिद्ध कर सकते हैं कि उपयोगिता घटती हुई प्रतीत होने लगती है।
  • उपभोग की आरम्भिक अवस्था वस्तु के प्रभावपूर्ण उपयोग के लिए उसकी पर्याप्त मात्रा का होना भी आवश्यक है। अत: यह सम्भव है कि उपभोग की प्रारम्भिक इकाइयों में उपयोगिता बढ़ती हुई मिले, लेकिन एक बिन्दु के पश्चात् इसमें भी गिरावट अवश्य हो जाएगी।

UP Board Solutions

प्रश्न 2.
कुल उपयोगिता व सीमान्त उपयोगिता से आप क्या समझते हैं? उदाहरण व चित्र की सहायता से समझाइए। (2008)
उत्तर:
वे वस्तुएँ जो मानव की आवश्यकताओं को पूरा कर सकें, मानव के लिए उपयोगी होती हैं। वस्तु के उपभोग से जो सन्तुष्टि प्राप्त होती है, उसे उपयोगिता कहा जाता है। उपयोगिता निम्नलिखित दो प्रकार की होती है

1. सीमान्त उपयोगिता या तुष्टिगुण सीमान्त उपयोगिता किसी वस्तु या सेवा की एक अतिरिक्त इकाई का उभयोग करने पर कुल उपयोगिता में वह वृद्धि है, जो उपयोगिता की एक और इकाई की वृद्धि के परिणामस्वरूप प्राप्त होती है। प्रो. ऐली के अनुसार, “किसी व्यक्ति के पास किसी वस्तु के स्टॉक की अन्तिम अथवा सीमान्त इकाई के तुष्टिगुण को उस व्यक्ति के लिए वस्तु-विशेष की ‘सीमान्त उपयोगिता’ कहा जाएगा।” प्रो. सैम्युलसन के अनुसार, “सीमान्त तुष्टिगुण उस अतिरिक्त उपयोगिता को बताती है, जो वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई से मिलती है।” उदाहरण-यदि सुनील किसी टेबल को प्राप्त करने हेतु ₹ 100 तथा (UPBoardSolutions.com) कुर्सी को प्राप्त करने हेतु ₹ 50 व्यय करने को तैयार है, तो टेबल का तुष्टिगुण 100 इकाई तथा कुर्सी का तुष्टिगुण 50 इकाई हुआ। दूसरे शब्दों में, सुनील के लिए टेबल का तुष्टिगुण कुर्सी के तुष्टिगुण की अपेक्षा दोगुना अधिक है।

सीमान्त तुष्टिगुण (उपयोगिता) की अवस्थाएँ या रूप सीमान्त तुष्टिगुण (उपयोगिता) की निम्नलिखित तीन अवस्थाएँ होती हैं

  • धनात्मक जब तक किसी वस्तु के उपभोग से व्यक्ति को कुछ-न-कुछ सन्तुष्टि मिलती रहती है, तब व्यक्ति को मिलने वाली वह सन्तुष्टि सीमान्तं तुष्टिगुण का ‘धनात्मक तुष्टिगुण’ (उपयोगिता) कहलाता है।
  • शून्य जब वस्तु के उपभोग से व्यक्ति को न तो सन्तुष्टि मिलती है और न ही असन्तुष्टि मिलती है, तब इस स्थिति में सीमान्त तुष्टिगुण ‘शून्य हो जाता है। इस अवस्था को शून्य तुष्टिगुण या पूर्ण तृप्ति का बिन्दु (Point of saturation) कहा जाता है।
  • ऋणात्मक जब उपभोक्ता सीमान्त तुष्टिगुण के शून्य हो जाने के पश्चात् भी वस्तु का उपभोग करता है, तो इस स्थिति में सीमान्त तुष्टिगुण ऋणात्मक हो जाता है। इस अवस्था में उपभोक्ता को सन्तुष्टि मिलने के स्थान पर अनुपयोगिता प्राप्त होती है।

2. कुल उपयोगिता किसी वस्तु या सेवा की उपभोग की गई विभिन्न इकाइयों से प्राप्त उपयोगिता के योग को ‘कुल उपयोगिता’ कहते हैं। प्रो. मेयर्स के अनुसार, “उत्तरोत्तर इकाइयों के उपभोग द्वारा प्राप्त सीमान्त तुष्टिगुण के योग को ‘कुल उपयोगिता’ कहा जाता है। कुल उपयोगिता में सदैव वृद्धि नहीं होती है।”

तालिका द्वारा स्पष्टीकरण

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 20 उपयोगिता व उपयोगिता ह्रास नियम

व्याख्या उपरोक्त तालिका के अनुसार प्रथम केले से उपभोक्ता को 35 कुल तुष्टिगुण प्राप्त हुआ। दूसरे केले का उपभोग करने से कुल तुष्टिगुण बढ़कर 35 + 30 = 65 हो गया। तीसरे केले का उपभोग करने पर कुल तुष्टिगुण 89 तथा चौथे केले के उपभोग पर (UPBoardSolutions.com) कुल तुष्टिगुण बढ़कर 101 हो गया। इस अवस्था को धनात्मक कहेंगे। चूंकि पाँचवें केले का सीमान्त तुष्टिगुण शून्य रहा, इसलिए कुल तुष्टिगुण में कोई वृद्धि नहीं हो पाई अतः इस अवस्था को शन्य कहा जाएगा और वह 101 ही रहा, किन्तु छठे केले का उपभोग करने पर कुल तुष्टिगुण घटकर 95 रह गया। इस प्रकार इस अवस्था को ऋणात्मक कहा जाएगा।

UP Board Solutions

सीमान्त तुष्टिगुण तथा कुल तुष्टिगुण में परस्पर सम्बन्ध (Mutual Relationship between Marginal Utility and Total Utility) सीमान्त तुष्टिगुण तथा कुल तुष्टिगुण में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है, जैसा कि निम्न तथ्यों से स्पष्ट है-

  1. प्रारम्भिक अवस्था में वस्तु के उपभोग से सीमान्त तुष्टिगुण घटता है, परन्तु कुल तुष्टिगुण बढ़ता है।
  2. जब तक सीमान्त तुष्टिगुण धनात्मक रहता है, तब तक कुल तुष्टिगुण भी बढ़ती रहता है।
  3. जिस बिन्दु पर सीमान्त तुष्टिगुण शून्य हो जाता है, उस बिन्दु पर कुल तुष्टिगुण अधिकतम होता है। यह बिन्दु पूर्ण तृप्ति का बिन्दु कहलाता है।
  4. यदि पूर्ण तृप्ति के पश्चात् भी उपभोक्ता वस्तु का उपभोग करता है, तो सीमान्त तुष्टिगुण ऋणात्मक हो जाता है तथा कुल तुष्टिगुण घटने लगता है।

रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण कुल तुष्टिगुण में दी गई तालिका द्वारा सीमान्त व कुल तुष्टिगुण को रेखाचित्र द्वारा निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है-

व्याख्या उपरोक्त रेखाचित्र में रेखा OX पर उपभोग किए गए केलों की इकाइयाँ तथा रेखा oy पर प्राप्त उपयोगिता दिखाई। गई है। AC रेखा सीमान्त। तुष्टिगुण की है। जैसे-जैसे अगले केले का उपभोग करते हैं, वैसे-वैसे सीमान्त तुष्टिगुण रेखा गिरती जाती है और कुल तुष्टिगुण रेखा बढ़ती जाती है।
पूर्ण तृप्ति का बिन्दु ‘U’ पर सीमान्त तुष्टिगुण शून्य तथा कुल तुष्टिगुण रेखा अधिकतम है। जैसे ही अगले (छठे) केले का उपभोग किया जाता है, तो सीमान्त तुष्टिगुण रेखा ऋणात्मक हो जाती है और कुल तुष्टिगुण रेखा भी गिरने लगती है।

निष्कर्ष अतः स्पष्ट है कि रेखाचित्र में सीमान्त तुष्टिगुण रेखा जैसे-जैसे गिरती जाएगी, कुल तुष्टिगुण रेखा ऊपर की ओर उठती रहेगी। सीमान्त तुष्टिगुण रेखा जैसे ही शून्य बिन्दु पर होगी, कुल तुष्टिगुण रेखा स्थिर (अधिकतम) बिन्दु पर होगी। जैसे ही सीमान्त तुष्टिगुण रेखा ऋणात्मक होगी, कुल तुष्टिगुण रेखा भी नीचे की ओर गिर जाएगी।

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 20 उपयोगिता व उपयोगिता ह्रास नियम

प्रश्न 3.
उपयुक्त उदाहरण द्वारा कुल उपयोगिता तथा सीमान्त उपयोगिता में अन्तर कीजिए। (2018)
उत्तर:
सीमान्त उपयोगिता व कुल उपयोगिता में अन्तर

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 20 उपयोगिता व उपयोगिता ह्रास नियम

वे वस्तुएँ जो मानव की आवश्यकताओं को पूरा कर सकें, मानव के लिए उपयोगी होती हैं। वस्तु के उपभोग से जो सन्तुष्टि प्राप्त होती है, उसे उपयोगिता कहा जाता है। उपयोगिता निम्नलिखित दो प्रकार की होती है

UP Board Solutions

1. सीमान्त उपयोगिता या तुष्टिगुण सीमान्त उपयोगिता किसी वस्तु या सेवा की एक अतिरिक्त इकाई का उभयोग करने पर कुल उपयोगिता में वह वृद्धि है, जो उपयोगिता की एक और इकाई की वृद्धि के परिणामस्वरूप प्राप्त होती है। प्रो. ऐली के अनुसार, “किसी व्यक्ति के पास किसी वस्तु के स्टॉक की अन्तिम अथवा सीमान्त इकाई के तुष्टिगुण को उस व्यक्ति के लिए वस्तु-विशेष की ‘सीमान्त उपयोगिता’ कहा जाएगा।” प्रो. सैम्युलसन के (UPBoardSolutions.com) अनुसार, “सीमान्त तुष्टिगुण उस अतिरिक्त उपयोगिता को बताती है, जो वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई से मिलती है।” उदाहरण-यदि सुनील किसी टेबल को प्राप्त करने हेतु ₹ 100 तथा कुर्सी को प्राप्त करने हेतु ₹ 50 व्यय करने को तैयार है, तो टेबल का तुष्टिगुण 100 इकाई तथा कुर्सी का तुष्टिगुण 50 इकाई हुआ। दूसरे शब्दों में, सुनील के लिए टेबल का तुष्टिगुण कुर्सी के तुष्टिगुण की अपेक्षा दोगुना अधिक है।

सीमान्त तुष्टिगुण (उपयोगिता) की अवस्थाएँ या रूप सीमान्त तुष्टिगुण (उपयोगिता) की निम्नलिखित तीन अवस्थाएँ होती हैं

  • धनात्मक जब तक किसी वस्तु के उपभोग से व्यक्ति को कुछ-न-कुछ सन्तुष्टि मिलती रहती है, तब व्यक्ति को मिलने वाली वह सन्तुष्टि सीमान्तं तुष्टिगुण का ‘धनात्मक तुष्टिगुण’ (उपयोगिता) कहलाता है।
  • शून्य जब वस्तु के उपभोग से व्यक्ति को न तो सन्तुष्टि मिलती है और न ही असन्तुष्टि मिलती है, तब इस स्थिति में सीमान्त तुष्टिगुण ‘शून्य हो जाता है। इस अवस्था को शून्य तुष्टिगुण या पूर्ण तृप्ति का बिन्दु (Point of saturation) कहा जाता है।
  • ऋणात्मक जब उपभोक्ता सीमान्त तुष्टिगुण के शून्य हो जाने के पश्चात् भी वस्तु का उपभोग करता है, तो इस स्थिति में सीमान्त तुष्टिगुण ऋणात्मक हो जाता है। इस अवस्था में उपभोक्ता को सन्तुष्टि मिलने के स्थान पर अनुपयोगिता प्राप्त होती है।

2. कुल उपयोगिता किसी वस्तु या सेवा की उपभोग की गई विभिन्न इकाइयों से प्राप्त उपयोगिता के योग को ‘कुल उपयोगिता’ कहते हैं। प्रो. मेयर्स के अनुसार, “उत्तरोत्तर इकाइयों के उपभोग द्वारा प्राप्त सीमान्त तुष्टिगुण के योग को ‘कुल उपयोगिता’ कहा जाता है। कुल उपयोगिता में सदैव वृद्धि नहीं होती है।”

तालिका द्वारा स्पष्टीकरण

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 20 उपयोगिता व उपयोगिता ह्रास नियम

व्याख्या उपरोक्त तालिका के अनुसार प्रथम केले से उपभोक्ता को 35 कुल तुष्टिगुण प्राप्त हुआ। दूसरे केले का उपभोग करने से कुल तुष्टिगुण बढ़कर 35 + 30 = 65 हो गया। तीसरे केले का उपभोग करने पर कुल तुष्टिगुण 89 तथा चौथे केले के उपभोग पर कुल तुष्टिगुण बढ़कर 101 हो गया। इस अवस्था को धनात्मक कहेंगे। चूंकि पाँचवें केले का सीमान्त तुष्टिगुण शून्य रहा, इसलिए कुल तुष्टिगुण में कोई वृद्धि नहीं हो पाई अतः इस अवस्था को शन्य कहा जाएगा और वह 101 ही रहा, किन्तु छठे केले का उपभोग करने पर कुल तुष्टिगुण घटकर 95 रह गया। इस प्रकार इस अवस्था को ऋणात्मक कहा जाएगा।

UP Board Solutions

सीमान्त तुष्टिगुण तथा कुल तुष्टिगुण में परस्पर सम्बन्ध (Mutual Relationship between Marginal Utility and Total Utility) सीमान्त तुष्टिगुण तथा कुल तुष्टिगुण में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है, जैसा कि निम्न तथ्यों से स्पष्ट है-

  1. प्रारम्भिक अवस्था में वस्तु के उपभोग से सीमान्त तुष्टिगुण घटता है, परन्तु कुल तुष्टिगुण बढ़ता है।
  2. जब तक सीमान्त तुष्टिगुण धनात्मक रहता है, तब तक कुल तुष्टिगुण भी बढ़ती रहता है।
  3. जिस बिन्दु पर सीमान्त तुष्टिगुण शून्य हो जाता है, उस बिन्दु पर कुल (UPBoardSolutions.com) तुष्टिगुण अधिकतम होता है। यह बिन्दु पूर्ण तृप्ति का बिन्दु कहलाता है।
  4. यदि पूर्ण तृप्ति के पश्चात् भी उपभोक्ता वस्तु का उपभोग करता है, तो सीमान्त तुष्टिगुण ऋणात्मक हो जाता है तथा कुल तुष्टिगुण घटने लगता है।

रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण कुल तुष्टिगुण में दी गई तालिका द्वारा सीमान्त व कुल तुष्टिगुण को रेखाचित्र द्वारा निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है-

व्याख्या उपरोक्त रेखाचित्र में रेखा OX पर उपभोग किए गए केलों की इकाइयाँ तथा रेखा oy पर प्राप्त उपयोगिता दिखाई। गई है। AC रेखा सीमान्त। तुष्टिगुण की है। जैसे-जैसे अगले केले का उपभोग करते हैं, वैसे-वैसे सीमान्त तुष्टिगुण रेखा गिरती जाती है और कुल तुष्टिगुण रेखा बढ़ती जाती है।
पूर्ण तृप्ति का बिन्दु ‘U’ पर सीमान्त तुष्टिगुण शून्य तथा कुल तुष्टिगुण रेखा अधिकतम है। जैसे ही अगले (छठे) केले का उपभोग किया जाता है, तो सीमान्त तुष्टिगुण रेखा ऋणात्मक हो जाती है और कुल तुष्टिगुण रेखा भी गिरने लगती है।

UP Board Solutions

निष्कर्ष अतः स्पष्ट है कि रेखाचित्र में सीमान्त तुष्टिगुण रेखा जैसे-जैसे गिरती जाएगी, कुल तुष्टिगुण रेखा ऊपर की ओर उठती रहेगी। सीमान्त तुष्टिगुण रेखा जैसे ही शून्य बिन्दु पर होगी, कुल तुष्टिगुण रेखा स्थिर (अधिकतम) बिन्दु पर होगी। जैसे ही सीमान्त तुष्टिगुण रेखा ऋणात्मक होगी, (UPBoardSolutions.com) कुल तुष्टिगुण रेखा भी नीचे की ओर गिर जाएगी।

We hope the UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 20 उपयोगिता व उपयोगिता ह्रास नियम help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 20 उपयोगिता व उपयोगिता ह्रास नियम, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 एकाकी तथा संयुक्त परिवार के सम्बन्धों का मनोविज्ञान

UP Board Solutions for Class 12  Home Science Chapter 11 एकाकी तथा संयुक्त परिवार के सम्बन्धों का मनोविज्ञान are part of UP Board Solutions for Class 12  Home Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 12  Home Science Chapter 11 एकाकी तथा संयुक्त परिवार के सम्बन्धों का मनोविज्ञान.

Board UP Board
Class Class 12
Subject Home Science
Chapter Chapter 11
Chapter Name एकाकी तथा संयुक्त परिवार के
सम्बन्धों का मनोविज्ञान
Number of Questions Solved 31
Categorie UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 एकाकी तथा संयुक्त परिवार के सम्बन्धों का मनोविज्ञान

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
परिवार का लक्षण है 
(2018)
(a) सदस्यों का एक सम्बन्ध से जुड़े होना
(b) सदस्यों का एक ही गाँव का होना
(c) सदस्यों को आपस में मित्र होना
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(a) सदस्यों का एक सम्बन्ध से जुड़े होना

प्रश्न 2.
एकाकी परिवार में पाई जाती है 
(2013)
(a) दो पीदियों

(b) तीन पीदियों
(c) तीन से अधिक पवियाँ हैं।
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) दो पौड़यो। 

प्रश्न 3.
एकल (एकाकी) परिवार में (2008, 11, 17)
(a) केवल ए मत होता है।
(b) पति-नी के रिश्तेदार भी होते हैं।
(c) केवल प-िपत्नी होते हैं।
(d) पति-नी और उनके अविवाति मध्ये होते हैं।
उत्तर:
(d) पति-पत्नी और उनके अविवाहित बने होते हैं।

प्रश्न 4.
संयुक्त परिवार में
(a) यह एक व्यक्ति होता है।
(b) पति-पत्नी और उनके बचे होते हैं।
(c) कई पीढ़ियों के लोग एक साथ रहते हैं
(d) परोक्त सभी
उत्तर:
(c) कई पीढ़ियों के लोग एक साथ रहते हैं।

प्रश्न 5.
“संयुक्त परिवार की भावना बड़ी मज़बूत है।” यह कथन है (2010)
(a) टीबी, बॉटमोर
(b) के. एस. कपाडिया
(c) डॉ. आई.पी. देसाई
(d) श्यामाचरण दुवै 4.
अत्तर:
(c) डॉ. आई.पो. देसाई

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन-सी विशेषता संयुक्त परिवार की नहीं है? (2010)
(a) सामान्य निवास तथा सामान्य रसोईघर
(b) व्यक्तिगत स्वतन्त्रता अवा आरमनिर्भरता के प्रौसाहन के लिए। अवसर है।
(c) परिवार के सभी सदस्यों का अति धन एवसाय ए होता है।
(d) पारस्परिक अधिकार और कर्तव्य
उत्तर:
(b) व्यक्तिगत स्वतन्त्रता अथवा आत्मनिर्भरता के प्रोत्साहन के 
लिए अगर है।

प्रश्न 7.
पारिवारिक संरचना में होने वाले परिवर्तन हैं। (2018)
(a) संयुक्त परिवार का विघटन ।
(a) परिवार का आकार छोटा होना।
(c) परिवार के पारम्परिक कार्यों में कमी
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
एकाळी परिवार का क्या आशय है? (2007, 17)
उत्तर:
पति-पत्नी तथा उनके अविवाहित बच्चों के योग से बनने जाले परिणार को एकाको परिवार कहते हैं। लोवी के अनुसार, “एकाको परिवार में प्रत्येक पति-पानी और अपरिपक्व आयु के बच्चे समुदाय के शेष लोगों से अलग एक इकाई का निर्माण करते हैं।”

प्रश्न 2.
एकाकी परिवार की दो विशेषताएँ लिखिए। 
(2015)
उत्तर:
एकाको परिवार की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. परिवार का छोटा आकार
  2. निजी सम्पत्ति की अवधारणा

प्रश्न 3.
एकाकी परिवार के पाँच दोष लिखिए। 
(2014)
धनी एकाकी परिवार से होने वाली दो हानियाँ लिखिए। (2016)
उत्तर:
एकाको परिवार की हानि एवं दोष निम्नलिखित हैं।

  • कार्यक्षमता में कमी
  • नन्हें शिशुओं की समस्या
  • बच्चों में अनुशासनहीनता का विकास।
  • नौकरों पर निर्भरता का बढ़ना
  • स्वयं की भावना का विकास

प्रश्न 4.
संयुक्त परिवार प्रणाली से क्या अभिप्राय है? (2017)
अथवा
संयुक्त परिवार से क्या आशय है? (2006)
उत्तर:
संयुक्त परिवार प्रणाली से तात्पर्य, एक ऐसी पारिवारिक व्यवस्था से हैं, जिसमें निकट के रिश्तेदारों को शामिल किया जाता है (दादा-दादी, चाचा-चाची इत्यादि) तथा जिसमें सम्पत्ति, वास, अषकारों एवं कर्तव्यों का 
समिति रूप से समावेश होता है।

प्रश्न 5.
संयुक्त परिवार की चार प्रमुख विशेषताओं को बताइए। (2008)
उत्तर:
संयुक्त परिवार की प्रमुख चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  • परिवार का बड़ा आकार
  • सामान्य नियम
  • सम्मिलित सम्पत्ति में आय
  • कर्ता का सर्वोच्च स्थान

प्रश्न 6.
संयुक्त परिवार के क्या लाभ है? है (2004, 14)
उत्तर:
संयुक्त परिवार में सभी सदस्यों को सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त अनेक प्रकार की सुविधाएँ; जैसे–मनोरंजन का उत्तम साधन, श्रम विभाजन, सामान्य हितों की रक्षा इत्यादि प्राप्त होती हैं।

प्रश्न 7.
संयुक्त परिवार में स्त्रियों की स्थिति का उल्लेख कीजिए। (2009)
उत्तर:
संयुक्त परिवार में स्त्रियों को दशा बहुत दयनीय होती हैं। इस व्यवस्था में स्त्रियों को अपने व्यक्तित्व के विकास का कोई असर नहीं मिलता तथा उनके जोवन का प्रमुख लक्ष्य सन्तानोत्पति एवं पूरे दिन रसोई में व्यतीत करना हो जाता है, इसमें स्त्रियों को अपनी इच्छाओं का दमन करना पड़ता है। इस प्रकार इस व्यवस्था में उनका जीवन लगभग नौरस हो जाता है।

प्रश्न 8.
संयुक्त परिवार में वृद्धजनों (दादा-दादी के मनोवैज्ञानिक सम्बन्धों 
पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त परिवार में वृक्ष जन अपनी उपयोगिता को सुनिश्चित करते हुए अपनी सत्ता को सुरक्षित रखना चाहते हैं। दूसरी ओर ये परिवार के अन्य सदस्यों से स्नेह एवं समन प्राप्ति की आकांक्षा भी रखते हैं। परिवार के छोटे बच्चे दादा-दादी के संरक्षण में समाजीकरण की प्रक्रिया से गुजरते हैं यद्यपि दादा-दादी 
का अधिक लाड़-प्यार उनके विकास को प्रभावित भी करता है।

प्रश्न 9.
संयुक्त परिवार में प्राचीन एवं नवीन मूल्यों में संघर्ष की सम्भावना 
विद्यमान रहती है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त परिवार में सामान्यतः तीन अथवा तीन से अधिक पोटो के सदस्य एकसाथ वास करते हैं। ऐसी स्थिति में पीडी-अन्तराल के कारण प्राचीन एवं नवोन मूल्यों में संघर्ष विकसित होना स्वाभाविक परिणाम है। आवश्यक है कि पुरानी एवं नवीन दोनों पीढ़ी के सदस्य परस्पर बातचीत करें एवं आपस के पौड़ी अनाराल को समझने की कोशिश करे।

लघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
परिवार की चार विशेषताएँ लिखिए 
(2018)
उत्तर:
मैकाइवर एवं पेश ने परिवार की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख लिया है।

  1. सार्वभौमिकता परिवार की उपस्थिति सार्वभौमिक होती है, अत् शहर हों, म ग हो; यह सभी जगह उपस्थित होता है और प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी परिवार का सदस्य होता है।
  2. सीमित और बड़ा आकार परिवार सीमित आकार या बड़े आकार का भी हो सकता है अर्थात परिवार में दो पी मों के सदस्य भी हो सकते है और तौन-या-तीन से अधिक पीढ़ियों के सदस्य भी हो सकते हैं।
  3. भावात्मक आधार परिवार के सदस्य परस्पर भावात्मक बन्धनों से बँधे होते हैं। परिवार में प्रेम, त्याग, सहयोग, दया तथा बलिदान आदि की भावनाएँ विद्यमान रहती हैं।
  4. सदस्यों का उत्तरदायित्व प्रत्येक परिवार अपने-अपने सदस्यों से कुछ उत्तरदायित्व निभाने की अपेक्षा रखता है। संकट के समय प्रत्येक सदस्य परिवार के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने को तत्पर रहता है।

प्रश्न 2.
एकाकी परिवार के क्या लाभ हैं? 
(2005, 06, 13, 13, 18)
उत्तर:
सामान्य रूप से एकाको परिवार में केवल दो पीढ़ियों के सदस्य पाए जाते है अर्थात् पति-पत्नी एवं उनके अविवाहित बच्चे ही एकाकी परिवार का निर्माण करते हैं। 
एकाकी परिवार के लाभ एकाकी परिवार के साथ या विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. पति-पत्नी संयुक्त रूप से परिवार का संचालन करते हैं। इसमें पति-पत्नी को अपनी गृङ्गस्थी को संचालित करने की पूर्ण स्वतन्त्रता रहती हैं।
  2. सभी प्रकार के रिश्तेदारों व सम्बन्धियों में एकाको परिवार के प्रति सहानुभूति का व्यवहार रहता है। सम्बन्धियों के साथ प्रेमपूर्ण सम्बन्ध होता है।
  3. एकाको परिवार में पति-पत्नी अपनी सन्तान को समुचित शिक्षा का प्रबन्ध करते हैं तथा उनके उज्ज्वल भविष्य हेतु सदैव प्रयासरत् रहते हैं। अतः बच्चों के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास होता है।
  4. एकाको परिवार में स्त्रियों की स्थिति मजबूत होती है। एक ही स्त्री होने के | कारण कोई भी एकाही परिवार में इसकी अवहेलना नहीं कर सकता। पत्नी द्वारा पिक सहायता करना भी सम्भव होता है।
  5. एकाको परिवार में पारिवारिक गोपनीयता बनी रहती है।
  6. एकाकी परिसर में प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास सही प्रकार से होता है। परिवार का आकार छोटा होने के कारण शोषण व फतह का पूर्णतः अभाव होता है।
  7. एकाकी परिवार का प्रत्येक सदस्य अपने-अपने कार्य को पूर्ण उत्तरदायित्व के अनुसार का है, जिससे भालस्य और कामचोरी की भावना विकसित नहीं हो पाती।

प्रश्न 3.
एकाकी परिवार में कौन-कौन सी व्यावहारिक कठिनाइयाँ उपस्थित होती हैं? (2006, 17)
उत्तर:
एकाकी परिवार की कुछ नयाँ व कठिनाइयों निम्नलिखित हैं

  1. नन्हें शिशुओं की समस्या ज्यादातर एकाकी परिवार में पति-पत्नी दोनों नौकरी करते हैं, ऐसे में नन्हें शिशुओं को कहाँ छोड़ा जाए, यह एक बहुत बड़ी समस्या होती है।
  2. कार्यक्षमता में कमी एकाको परिवार में सदस्यों की सागा कम होती है। यदि पत्नी नौकरी करती है, जो थर का सारा कार्य भी जो करना पड़ता है। अतः उसकी कार्यक्षमता में कमी आ जाती है।
  3. नौकरों पर निर्भरता पति-पत्नी दोनों को नौकरी करने के कारण प्रायः उन्हें | नौकरों पर निर्भर रहना पड़ता हैं। नौकर पर विश्वास करना कभी-कभी पाकि भी हो जाता है। अत: पति-पत्नी दोनों मानसिक परेशानी में रहते है।
  4. बच्चों में अनुशासनहीनता पति फनी दोनों के नौकरी पर चले जाने के कारण बच्चों के क्रियाकलापों की देखभाल करने के लिए घर पर कोई नहीं होता, इसलिए कभी-कभी उनमें बुरी आदतें भी जम ले लेती हैं। अतः बच्चे अनुशासनहीन हो जाते हैं। बच्चे एकता की भावना से ग्रसित हो जाते हैं।
  5. स्वार्थ की भावना का विकास एकाकी परिवार में पति पत्नी केवल अपने बारे में सोचते हैं। अत: उनमें स्वार्थ की भावना बढ़ती जाती है। वृद्ध माता-पिता तथा भाई बहन के लिए कार्य करने का उन्हें अक्सर ही नहीं मिल पाता। अतः ये स्वार्थी व निष्ठुर हो जाते हैं।
  6. उचित निर्देशन एवं परामर्श का अभाव एकाकी परिवार के सदस्यों को दादा-दादी एवं अन्य बुजुर्ग सदस्यों का उचित निर्देशन एवं परामर्श उपलब्ध नहीं हो पाता है। इस प्रकार वे बुजुर्ग सदस्यों के जीवन के अनुभवों का लाभ नहीं उठा पाते हैं।
  7. व्यय साध्य एकाकी परिवार के आय के स्रोत सीमित होते हैं, जबकि उन्हें समस्त संसाधनों को व्यय प्रबन्धन बिना किसी सहायता के स्वयं करना

प्रश्न 4.
संयुक्त परिवार के विघटन के दो मुख्य कार्य लिखिए। (2018)
उत्तर:
संयुक्त परिवार के विघटन के दो कार्य निम्न प्रकार हैं
1. स्त्रियों में आन्तरिक कलह संयुक्त परिवार की स्त्रियों में आपस में कलह 
परिवार के लिए हानिकारक होता है। संयुक्त परिवार में झगड़े तथा मानसिक इह एवं संघर्ष छोटी-छोटी बातों पर चलते राहते हैं, जो आगे चलकर एक समस्या का रूप धारण कर लेते हैं। जिससे पूरे परिवार तथा बच्चों पर बुरा प्रभव पता है, इससे बचने के लिए अनेक दम्पति अपना एक अलग एकाकी परिवार बस्सा लेते हैं।

2. व्यावसायिक विजातीयता 20वीं शताब्दी में भारतीय समाज को परिवर्तित करने वाले अनेक सामाजिक आर्थिक क्रियाओं के फलस्वरूप नए-नए व्यवसाय व रोजगारों के वक्त आने से लोग इन गामाया अशा अवसरों को ओर आकर्षित हुए हैं। संयुक्त परिवार के सदस्य भी परम्परागत व्यवसाय को इछोड़कर नए साय अपनाने लगे हैं। इसके परिणामस्वरुप संयुका परिवारों के विघटन को प्रक्रिया तेज हुई हैं।

प्रश्न 5
“आधुनिक युग में संयुक्त परिवार लुप्त होता जा रहा है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए। 
(2016)
उत्तर:
औद्योगीकरण के इस युग में संयुक्त परिवार व्यक्ति या समाज की माँगों को पूर्णरूप से सना नहीं कर पा रहा है, इसलिए मशः संयुमा परिवार का या तो विघटन ही होता जा रहा है या फिर इसके स्वरूप में अत्यधिक पस्मि स्वीकार किए जा रहे हैं। संयुक्त परिवार के लुप्त होते जाने की पुष्टि के समर्थन में निम्नलिखित कारणों को प्रस्तुत किया जा सकता है। प्रथमत: औद्योगीकरण एवं नगरीकरण की प्रक्रियाओं में रोगों के कारण गाँव के लोगों में नगरों की ओर प्रवसन करने की प्रवृत्ति में वृद्धि हुई है। अतः क्षेत्रीय गतिशीलता में वृद्धि के परिणामस्वरूप संयुक्त परिवार का विघटन स्वाभाविक हो जाता है।

उल्लेखनीय है कि संयुक्त परिवार समष्टिवादिता की धारणा पर आधारित होते हैं, परन्तु आणुनिक भौतिकवादी युग में सामूहिकता के स्थान पर व्यक्तिवादिता का अधिक बोलबाला हो गया है। इसके अतिरिक्त पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति के प्रभाव से उन लोगों का झुकाव कर्तव्यों की ओर न होका अधिकारों की ओर है। इन नवीन मूल्यों के प्रभाव र संयुक्त परिवार का महत्त्व कम हो रहा है।

इसके अतिरिक्त कमान आधुनिक तकनीकी युग में नए-नए व्यवसायों व रोजगारों को सावनाओं का विस्तार भी है। संयुक्त परिवार के सदस्य भी परम्परागत व्यवसाय को छोड़कर नए व्यवसाय अपनाने लगे हैं। इसके परिणामस्वरूप संयुक्त परिवारों में घिरन की प्रक्रिया तेज हुई है। संयुक्त परिवार में अधिक सदस्यों के निर्वहन का बोझ भी छोटे या बड़े सदस्यों को जविकोपार्जन के लिए नए व्यवसाय खोजने हेतु प्रेरित करता है। फलत: परम्परागत व्यवसाय की भिन्तरता बाधित होती है।

इसके अतिरिक्त वर्तमान आधुनिक युग में नए कानूनों; जैसे हिन्दू स्त्रियों का सम्मति अधिकार अनियम आदि के प्रभाव के कारण भी संयुक्त परिवार के विघटन की प्रक्रिया भी हुई है। दूसरी ओर वर्तमान आधुनिक समाज में उद्भूत नवीन सामाजिक संस्थाओं के संयुक्त परिवार द्वारा सम्पादित काय के लिए नए विकल्प प्रस्तुत किए हैं। अतः संयुक्त परिवार का महत्व एवं आवश्यकता दिन प्रतिदिन घटती जा रही है।

प्रश्न 6.
संयुक्त परिवार के अस्तित्व को बचाने के लिए सुझाव दीजिए। 
(2013)
उत्तर:
वर्तमान परिवतियों में संयुक्त परिवार के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए व्यावहारिक सुझाव निम्नलिखित है।

  1. संयुक्त पीवार में सभी स्त्रियों को विशेष रूप से पुत्र-वधुओं को समुचित सम्मान प्रदान किया जाना चाहिए।
  2. परिवार के मुखिया को अधिक उदार तथा न्यायप्रिय होना चाहिए।
  3. संयुक्त परिवार में मारपती एवं योग्य व्यक्तियों को अधिक सम्मान एवं सुविधा प्रदान की जानी चाहिए।
  4. संयुक्त परिवार में सभी सदस्यों के लिए आवास की आवश्यक सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए।
  5. संयुक्त परिवार में प्रत्येक सदस्य को अपने कर्तव्यों तथा अन्य सदस्यों के अपकारों के प्रति आगरूक होना चाहिए।

प्रश्न 7.
एकावी परिवार के सम्बन्धों के मनोविज्ञान पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
एकाकी परिवार में सदस्यों के मनोवैज्ञानिक सम्बन्धों की दृष्टि से निम्नलिखित तथ्य महत्त्वपूर्ण हैं।

1. बच्चों- का मनोवैज्ञानिक सम्वन्य एकाकी परिवार में बच्चे अपनी मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं; जैसे-स्नेह, ममता, सुरक्षा आदि की पूर्ति हेतु पूर्णत: माता-पिता पर निर्भर रहते हैं। माता-पिता को व्यस्तता अथवा अन्य किसी कारण। इन आवश्यकताओं की पूर्ति न होने पर बच्चों के व्यक्तित्व का उचित विकास नहीं हो पाता है।

2. पति- पत्नी का मनोवैज्ञानिक सम्बन्ध एकाही परिवार में पति-पत्नी को भूमिका गाढ़ी के दो पहिए के समान होती है। अत: जीवन के सुचारु संचालन के लिए इनमें परस्पर सामंजस्य एवं सनसन स्थापित होना अति आवश्यक है। किसी एक में भी सवोच्चता का भाव, परिवार को विटित करने की क्षमता रखता है। आवश्यक है कि पति-पत्नी में परस्पर विश्वास हो, दोनों एक-दूसरे की सुरक्षा एवं प्रतिष्ठा के प्रति संवेदनशील हो और * दोनों एक-दूसरे को भूमिका के महत्व को समझें।

3. माता- पिता एवं पुत्र/पुत्री का मनोवैज्ञानिक सम्बन्ध बाल्यावस्था तक सन्तान माता के संरक्षण में अधिक रहती हैं, किन्तु इसके पश्चात् की। अवस्था में पुत्र, पिता के मार्गदर्शन में स्वयं को अधिक सुरक्षित महसूस करता है। पिता भी पुत्र को अपना सहयोगी मानते हैं एवं उसके भावी जीवन को निर्देशित करते हैं। दूसरी ओर पुत्रियां माता के ऑपक नगदक होती है। एवं माता के साथ प्रई, कोमल व ममतापूर्ण सम्बन्ध विकसित करती हैं। पुत्रियों के पराया धन होने की भावना भी माता में उनके प्रति विशेष लगाव उत्पन्न करती है। वस्तुतः माता एवं पुत्री के मध्य मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध एक आदर्श स्थिति को इंगित करते हैं। एकाकी परिवार का अस्तित्व उपरोक्त वर्णित मनोवैज्ञानिक बन्यों की गहन समझ पा निर्भर करता है। इनकी समझ के अभाव में पारिवारिक सम्बन्धों में तनाव ापन होने की सम्भावना चत तो है

प्रश्न 8.
सास-बहू के सम्बन्ध में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2008)
अशा बहू के सुखद वैवाहिक जीवन में सास की क्या भूमिका है? 
(2005, 09, 10, 16)
उत्तर:
बहू के सुखद वैवक जीवन में सास की भूमिका अत्यन्त निर्णायक होती है, चूंकि पी के घर में आने पर बहू का सर्वाधिक काम मास में ही पड़ता है, इसलिए इन दोनों के शवों में सौहार्द्रता होनी अतिभाश्यक है। चूक सास घर में बड़ी और ज्यादा अनुभव हो है, इसलिए उन्हें बड़ी सूझ बूझ व दायित्वपूर्ण वेग से व्यवहार करना चाहिए तथा बहू को की भी बात समझाते हुए मपुर एवं स्नेहपूर्ण ढंग से व्यवहार करना चाहिए। इससे बहू को नए परिवार में अनुकूलन करने या उलने में मदद मिलती है। दूसरी ओर बहू को सास के प्रति माता का भाव रखना चाहिए, उन्हें आदर-सम्मान तथा स्नेह देना चाहिए, इससे सास बहू के रिश्तों में मधुरता आएगी और बहू का वैवाहिक जीवन सुखद होने के साथ ही परिवार का वातावरण भी शान्तिपूर्ण व खुशहाल होगा, साथ ही सास-बहू के समय अड़े होने से बहू का अपने पति से भी रिता मजबुत होगा।

प्रश्न 9.
संयुक्त परिवार तथा एकाकी परिवार में अन्तर स्पष्ट कीजिए। 
(2005, 17, 18)
उत्तर:
संयुक्त परिवार एवं एकाकी परिवार में अन्तर निम्नलिखित हैं
UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 एकाकी तथा संयुक्त परिवार के सम्बन्धों का मनोविज्ञान 1
UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 11 एकाकी तथा संयुक्त परिवार के सम्बन्धों का मनोविज्ञान 2

प्रश्न 10.
समाज व परिवार को कोर्ट परिवार से क्या लाभ हैं? (2017)
उत्तर:
भारतीय विचारधारा के अनुसार प्राचीनकाल से पारिवारिक संस्था का अत्यधिक महत्त्व रहा है। यह समाज को एक महत्वपूर्ण इकाई मानी जाती है, जो समाज के स्थायित्व, वृद्धि और अत्रि का प्रमुख आधार है। मैकावर और पेज ने परिवार को समाज की सबसे महत्वपूर्ण संस्था माना। बड़ा परिवार होने पर इसमें कई प्रकार की कठिनाई आप्त रहती है। यहाँ आमदनी कम तथा खर्च अधिक होते हैं। इसके विपरीत छोटा परिवार सौमित आवश्यकताओं वाला होता है तथा इसके सदस्य भी सीमित होते हैं।

इनकी आवश्यकताएँ छोट एवं कम् खर्च वाली होती हैं, क्योंकि इस परिवार की आय भी कम होती हैं। संख्या के सीमित रहने पर एक एक आवश्यकताओं को ठीक से पूर्ण किया जाता है। इस लाह के परिवारों में एक रोती है, जिसका कारण पापा एक-दूसरे के सुख बाँटना, उसे समझना और उसमें हाथ बँटाना शामिल होता है। छोटे परिवारों में जीवन को मूल आवश्यकताएँ रोटी, कपड़ा और मकान की समस्याएँ इतनी ची नहीं होती हैं, जिनमें बड़े परिवारों को। अतः समाव व परिवार की दृष्टि से बड़े परिवार की तुलना में छोटे परिवार श्रेष्ठ है।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (5 अंक)

प्रश्न 1.
संयुक्त परिवार की विशेषताएँ लिखिए। (2014, 17)
उत्तर:

संयुक्त परिवार का तात्पर्य

भारतीय समाज में पारम्परिक रूप से पाए जाने वाले परिवारों को समाजशास्त्रीय भाषा में ‘संयुक्त परिवार’ कहा जाता है। संयुक्त परिवार प्रत्यक्ष वा परोक्ष रूप से परस्पर सम्बन्धित भिभिन्न गीवियों (सामान्य रूप से तीन या उससे अधिक) के सदस्यों का एक प्रामक समूह है, जिसके सदस्य समान्य आम व्यय में योगदान देते हैं। एक धर्म के अनुयायी बनकर सामान्यतः एकसाथ निवास संयुक्त परिवार की विशेषताएँ संयुक्त परिवार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है।

1. परिवार का बड़ा आकार संयुक्तपरिवार में सामान्यतः न या तीन से अधिक जोड़ो के सदस्य एकसाथ रहते फलस्वरूप संयुक्त परिवार का आकार वृहद् होना इसकी आधारभूत है। इस परिवार में सामान्यत: 20 से 25 सदस्य होते हैं।

2. सामान्य निवास स्थान संयुक्त 
परिवार में तीन या तीन से अधिक कि निरन्तरता पीढ़ी के लोगों का एक घर होता है। यदि कोई सदस्य या परिवार भ्रमण, नौकरी, शिक्षा या अन्य किसी काण से दूर में रहता है, भी उसे उसी सामान्य निवास का सदस्य माना जाता है। इस परिवार के सदस्य एक ही मकान में रहते हैं।

3. निश्चित संरचना भारतीय संयुक्त परिवारों में परिवार के सभी सदस्यों की एक प्रकार से निश्चित संरचना होती है। इस संरचना के अन्तर्गत परिवार के मुनगा या स्। का रान निश्चित होता है। कर्ता को उसकी स्थिति के अनुसार ही अधिकारों का प्रयोग एवं कर्तव्यों का पालन करना पड़ता हैं। दूसरे स्थान पर उसकी स्त्री होती है, तीसरे स्थान पर परिवार के सभी भाई एवं लड़के होते हैं, चौथे स्थान पर परिवार की सभी स्त्रिों आती हैं।

4.धार्मिक आधार संयुक्त परिवार में सभी कार्य पार्मिक विचारों को ध्यान में रखकर किए जाते हैं; जैसे-कर्मकाण्डों से सम्बन्ध रखने से कार्य, त्यौहारों को मनाना एवं प्रत इत्यादि रखना। सामूहिक पृ-पाठ करना भी संयुक्त परिवार की एक प्रमुख विशेषता है।

5. आर्थिक स्थिरता संयुक्त परिवार में सभी सदस्यों द्वारा अर्जित धन एक ही कोष में एकत्र होने और सभी सदस्यों के लिए सामान्य रूप से आवश्यकतानुसार व्यय होने के कारण परिवार की आर्थिक स्माित धक दयनीय नहीं होतो, क्योकि कर्ता या गृहपति सयो धक आयु वाला व्यक्ति होता है। अतः यह पैसा सोच-समझकर ही सर्व करता है।

6. सामान्य सम्पत्ति संयुक्त परिवार के अन्तर्गत परिका को सम्पति का व्यक्तिगत उपग या लाभ न होकर परिवार के सभी सदस्यों के लिए उपग एवं लाभ होता है। परिवार की सम्पूर्ण सापशि पर संयुक्त अधिकार होता है।

7. सदस्यों की सुरक्षा ऐसा देखा जाता है कि एकाकी परिवार में कम सदस्य होते हैं। यदि उनमें से कोई सदस्य बीमार हो जाता है अथवा कहीं चला आता है, तो परिवार के कार्यों में बाधा ही हो जाती है परन यदि परिवार संगत है, तो उसके अन्दर हम प्रकार की छोटी छोटी समस्याएं परिवार के कार्यों में कोई विशेष बाधक नहीं होती है।

8. सांस्कृतिक निरन्तरता संयुक्त परिवार में तीन या इससे अधिक पौड़ी के लोग रहते हैं। पुरानी पीढ़ी के लोगों द्वारा नई पीढ़ी के लोगों को सांस्कृतिक परम्पराओं को हस्ताक्षरित किया जाता है। भर के बुजुर्ग यति छोटे बच्चों को कहानियां सुनाकर, अपने धन के उदाहरण देकर, अपने साथियों के व्यवहारों एवं अनुभवों को बताकर इस कार्य को पूरा करते हैं। परिणामस्वरूप नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी के आचार-विचार, प्रथा, परम्पराएँ, धर्म और कर्म, हार इत्यादि को प्रहण काके अपने में आत्मसात् करती है, इससे सांस्कृतिक निरन्तरता बनी रहती हैं।

प्रश्न 2.
संयुक्त परिवार के मुख्य गुणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: 

संयुक्त परिवार के गुण

संयुक्त परिवार के गुण निम्नलिखित हैं।
1. बच्चों का उचित पालन-पोषण संयुक्त परिवार में छोटे-बड़े सभी प्रकार के सदस्य राहते हैं। वृद्ध व्यक्तियों को दोटे पत्थों के पालन पोषण का अधिक ध्यान राता है। यदि परिवार के अन्य सदस्य विभिन्न कार्यों में सलान राहते है, तो वृद्ध लोग बच्चों की देखभाल का कार्य संभाल लेते हैं।
2. सुरक्षा की भावना संयुक्त परिवार। 
के सदस्य आपस में प्रेम ए सहयोग के बयान में हैं, जिसके इति पालन पोषण कारण सभी सदस्य शारीरिक, सुरक्षा की भावना मन्तबज्ञानिक आर्थिक तथा सामाजिक सुरत का अनुभव करते हैं। मामूकता रै भवन विनाशमन में बधों, पण सामाजिक निम्। वृद्धों एवं विधाओं की भा के पारिकि वर्ष में बचाअम-विभाजन समस्या का इल स्वयं परिवार में ही भि अनुभव प्राप्त करने का हो जाता है।
3. मनोरंजन का साधन संयुक्त परिवार में छोटे-बड़े सभी तरह के सदस्य होते हैं। ये सभी सदस्य जब आपस में मैठकर विचार विनिमय तथा हँसी मजाक करते हैं, तो एक प्रकार से सभी लोगों का मनोरंजन होता है।
4. सामूहिकता की भावना संयुक्त परिवार में सभी सदस्यों के साथ में रहने, आपस में विचार-विमर्श करने, उठने-बैठने इत्यादि कार्यों से उनमें सामूहिक भावना का विकास होता है। इस भन्। से व्यक्ति में सुरक्षा की भाषा तथा धैर्य का विकास होता है। याही सामूहिकता को 
भावना परिवारवाद को बढ़ावा देती है।
5. सामाजिक नियन्त्रण संयुक्त परिवार में सामाजिक नियन्त्रण का कार्य 
परिवार के सदस्यों द्वारा ही किया जाता है। परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे से पारस्परिक कर्तव्य से बंधे रहते हैं, यही कारण है कि सभी सदस्य एक प्रकार से नियन्त्रित जोधा बताते हैं।
6. पारिवारिक मार्च में अस्रत संयुक्त परिवार में पारिवारिक खर्च भी संयुक्त होता है। पूरे परिवार के लिए आवश्यक वस्तुएँ एक साथ ही खरीदी जाती हैं। एकसाथ काफी मात्रा में पाएं खरीदने पर अपेक्षाकृत गरी मिलती है। इसके अतिरिक्त एकसाथ संयुक्त परिवार बसाकर रहने की स्थिति में बहुत-से खर्च एक ही जगह होते हैं, जबकि एकाकी परिवारों में उतने ही खर्च अलग-अलगजगह होते हैं।
7. म-विभाग संयुक्त परिका के सभी सदस्य कार्य को आपस में बाँटकर 
करते हैं। संयुक्त परिवार का मुखिया, की या गृहस्वामी परीजा के सभी सदस्यों को उनकी योग्यता एवं क्षमताओं के अनुसार अलग-अलग कार्य सौंपता हैं। विभिन्न अनुभव करने का स्थान संयुक्त परिवार में व्यक्ति विभिन्न ऑक्तचों के सदस्यों के मध्य रहता है। इसके अतिरिका उसे विभिन्न आयु के लोगों के अनुभवों एवं विचारों को जानने का अवसर मिलता है। इस रूप में संयुक्त परिवार व्यक्ति को उसके आगामी जीवन के लिए तैयार करता है।

प्रश्न 3.
संयुक्त परिवार के मुख्य दोषों का उल्लेख कीजिए। (2006, 14)
उत्तर:
संयुक्त परिवार के दोष संयुका परिवार के दोष या हानिन निम्नलिखित हैं।

  1. वेग तथा कलह का केन्द्र संयुक्त परिवार कलई एवं द्वेष का केन्द्र होता है। यदि संयुक्त परिवार में कता अपने हित पर ध्यान देना प्रारम्भ कर दे, तब स्थिति और भी बिगड़ जाती है।
  2. स्त्रियों की सराब स्थिति संयुक्त। परिवार का एक दोष यह भी है कि संयुक्त परिवार के दोष इन परिवारों में स्त्रियों की दशा बहुत निन एवं दयनीय होती है। सुनान पति विशेषकर बधुओं को बहुत अधिक वर्ग या परम करना पता है। अधिक जानोत्पति उनको । एवं मनद के कोप। अकर्मण माने पात्र बनना पड़ता है। संयुक्त परिवार के पापा का व में आ स्वावलम्बन के के भय का वातावरण प्राप्त । हो पाने के कारण स्त्रियाँ भिक रिता सदैव दूसरों पर निर्भर रहती हैं।
  3. बुद्धि का अनुपयोगः संयुक्त परिवार में सभी सदस्य एक कता की आज्ञानुसार कार्य करते हैं। इस स्थिति में उन्हें अपनी बुद्धि का प्रयोग करने का अवसर प्राप्त नहीं होता, जब कोई व्यक्ति अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं करता, तो उसकी बुद्धि का कुण्ठित हो जाना स्वाभाविक हैं।
  4. अधिक सन्तानोत्पनि संयुक्त परिवार में जहाँ बाल विवाह को प्रोत्साहन मिलता है एवं विवादी जियारों को वर्चस्व प्राप्त होता है। वहीं पुत्र सनान की कामना को विशेष मात्र प्राप्त होता है। संयुक्त परिवार में परिवार की स्त्रियों भी यह सोचने लगती हैं कि जितने अधिक बच्चे पैदा किए जाएंगे, उतना ही अधिक उनको परिवार की सामान्य सम्पत्ति का भाग पैटधार के समय मिलेगा।
  5. अकर्मण्य व्यमियों की वृद्धि संयुक्त परिवार में परिवार के सभी सदस्यों के भरण-पोषण का दायित्व पूरी परिवार पर ही होता हैं। इस सुविधा का साथ जताकर का सदस्य अकर्मण्य, आलसी या निकम्मे। आते हैं। ये सदस्य बिना कुछ कार्य किए हैं। खाते-पीते तथा मौज करते हैं, इससे पूरे परिवार का जीवन-स्तर निम हो जाता है। साथ ही इससे आम अर्गन करने वालों में असन्तोष उत्पन्न होता है।
  6. गोपनीयता का अभाव संयुक्त परिबार में अधिक सदस्य होने के कारण नव-विवाहिती अथवा पति-पत्नी को एकान्त यांनीय स्वतन्त्रता उपलब्ध नहीं हो पाती है। अनेक अवसरों पर यह वचन परिपत्नी के बन्यो में कुण्ठा को जन्म देती है एवं उनके वैवाहिक जीवन को प्रभावित करती हैं।
  7. भय का वातावरण संयुक्त परिवारों में पवार के वृद्धजनों के संयों को ही प्रमुखता प्राप्त होती है। उनकी सहमति के बिना किसी नए विचार का अनुपालन परिवार में सम्पन्न नहीं होता है। अत: नई पी के सदस्यों में अपने नए रचनात्मक विचारों को आगे रखने का संकोच सर्द। विद्यमान रहता हैं।
  8. आर्थिक निर्भरता उल्लेखनीय है कि संयुक्त परिवारों में प्रायः सभी वयस्के सदस्य जीविकोपार्जन में संलग्न राहते हैं, किन्तु परिवार के आय-व्यय का ले-जोखा के परिवार के मुखिया के हाथों में रहता है। फलतः सभी सदस्यों को अपने जरूरतों को पूरा करने के लिए एक व्यक्ति पर निर्भर रहना पड़ता हे।

प्रश्न 4.
संयुक्त परिवार टूटने के क्या कारण है? (2006, 10)
अथवा
भारतीय समाज में संयुक्त परिवार के निरन्तर विघटन के 
कारणों को स्पष्ट कीजिए। इन VImp (2003, 04, 06, 11, 12)
अथवा
“संयुक्त परिवार का भविष्य उज्ज्वल नहीं है।” क्यों? (2016)
उत्तर:
संयुक्त परिवार के विघटन के कारण औद्योगीकरणा के इस युग में संयुक्त परिवार व्यक्किा एवं समाज को माँगों को पूर्ण रूप से मनुष्ट नहीं कर पा रहा है, इसलिए क्रमशः संयुक्त परिवार का या तो विघटन ही होता जा रहा है या फिर इसके स्वरूप में अत्यधिक परिवर्तन स्वीकार किए जा रहे हैं। संयुक्त परिवार के विघटन के निम्नलिखित कारण हैं।
1. औद्योगीकरण एवं नगरीकरण 
संयुका परिवार के विपरन् का प्रभाव औद्योगीकरण एवं नगरीकरन की प्रक्रियाओं में छोरीकरण एवं नगरीकरण व के कारण गाय के लोगों का प्रभाव में नगरों की ओर प्रवसन की शरदत्य पति का प्रभाव प्रवृत्ति में है। अव आमसवम एवं आत्मत्याग की कमी गांव के लोग नए रोजगार एवं प्रभात व्यावसायिक अवसरों के लिए उनमा वृद्धि का प्रय नगरों की ओर आकर्षित हुए नए कानूनों का प्रव हैं।

इन लोगों ने गांव के संयुक्त परिवार से आकर नगरों में अपने लिए मकान बना लिए हैं। तथा व्यवसाय भी खोना लिए हैं, परिणामस्वरूप संयुक्त परिवारों में अब पहले जैसी बात नहीं ह गई है। अनेक व्यक्ति अपने पारिवारिक व्यवसाय को छोड़कर अन्य व्यवसायों को अपने लगे हैं। अत: क्षेत्रीय गतिशीलता में वृद्धि हुई है, इसमें संयुक्त परिवार का विघटन स्वाभाविक हो जाता है।

2. पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भारतीय संस्कृति के अनुसार, संयुक्त परिवारों में परिवार के सदस्यों के कर्तव्यों पर विशेष बल दिया जाता था, परन्तु वर्तमान स्थिति ठीक इसके विपरीत है। पश्चिमी सभ्यता एवं संस्कृति के प्रभाव से अब लोगों का झुकाव करियों की ओर न होकर अष्किारों की ओर है। पाश्चात्य दृष्टिकोण व्यक्तवादी है। अत: इस दृष्टिकोण के प्रबल होने की स्थिति में संयुक्त परिवार का महत्व घट रहा है।

3. आत्मसंयम एवं आत्मत्याग की कमी वर्तमान समय में लोगों में आत्मसंयम एवं आत्मत्याग । भाषा में कमी आई है या उनका एकदम से लोग ही होता चला जा रहा है। दूसरी ओर लोगों के निजी स्वार्थ एवं भौतिहाद तथा गतिवादिता की भावनाएं बड़ती जा रही है। इस कारण थोड़ी-सी परेशानी का संकट का अनुभव करते हैं। अब लोग संयुक्त परियार को छोड़कर एकाकी परिवार बसाने को तत्पर हो जाते हैं।

4. स्त्री-शिक्षा का प्रभाव आज की शिक्षित स्त्री अपने चारों और के ताबरण की जानकारी रखती है। वह संयुक्त परिसर के घुटन भरे जीवन को, जिसमें से कर्ता के निरंकुश शासन में रहना पड़ता है, अपने अधिकारों का हनन समझती हैं। ऐसी स्थिति में सभी आधुनिक वातावरण की चाह में संयुक्त परिशा की अपेक्षा एकाकी परिवार को अधिक पसन्द करती है।

5. जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव जनसङ्ख्या में वृद्धि न केवल संयुक्त परिवारों के लिए ही भयानक परिणाम पैदा करने वाली है, अपितु कभी-कभी सम्पूर्ण समाज के लिए भी ऐसी समस्या बन जाती है, जिसका समाधान खोजना कठिन हो जाता हैं। 

संयुक्त परिवार का भविष्य

उपरोक्त कारणों के विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि संयुका परिवार को अवधारणा वर्तमान आधुनिक युग में संक्रमण के दौर से गुजर रही है। संयुक्त परिवार की मूलभूत विशेषताओं; जैसे–सामूहिक, सांस्कृतिक निरन्तरता आदि को आधुनिक युग की संकल्पनाएँ प्रभावित कर रही हैं। 

अत: संयुक्त परिवारों में विपटन की सम्भावनाएँ दृष्टिगोचर हो रही हैं। समकालीन सामाजिक संरचना में संयुक्त परिवार छिन-भिन्न होकर एकाकी परिशों का रूप ले रहे हैं। यद्यपि संयुक्त परिवार के भविष्य के विषय में दो विचारधाराएँ सामने आती हैं ।

  1. प्रथम विचारधारा संयुक्त परिवार के उज्ज्वल भविष्य के प्रति आशान्वित हैं। इसके समर्थक के, एम, कपाडिया है। उनके अनुसार, संयुक्त परिवार ने अभी तक जिस कमय समय को पार किया है, उसका भविष्य पुरा नहीं है। इसके अतिरिक्त हिन्दू मनोवृत्तियाँ आज भी संयुक्त परिवार के पक्ष में हैं।
  2. दूसरी विचारधारा संयुक्त परिवार के भविष्य को अन्धकारमय मानती है। इस विचारधारा के समक्षक कोलण्ड़ा के अनुसार अधिकांश भारत में संयुक्त परिवारों की संख्या प्रतिदिन कम होती जा रही है अर्घात् उनका विघटन हो निष्कर्ष जो भी हो, इतना तो हम कह सकते हैं कि वर्तमान परिस्थितियों में संयुक्त परियार के स्वरूप में परिवर्तन हो रहा है।

प्रश्न 5.
“परिवार समाजीकरण की प्रथम पाठशाला है” इस कथन को स्पष्ट कीजिए। 
(2018)
उत्तर:
समाजीकरण की प्रक्रिया बहुत जटिल प्रक्रिया है, जो बालक के विकास को प्रभावित करती है जिसका वर्णन निम्न प्रकार से हैं। परिवार का योगदान समाजीकरण की सबसे महत्वपूर्ण संस्था है, वहीं से बालक सर्वप्रथम समाजीकरण आरम्भ करता है। इसी कारण से परिवार को बालक की सपशम पाठशाला’ कहा गया है। परिवार हो वो गह है जहाँ में शतक आदर्श नागरिकता का पाठ सीखा है। चालक के समाजीकरण को प्रभावित करने वाले तत्व निम्नलिखित है।
1. माँ की भूमिका चालक का परिवार में सबसे घनिष्ठ सम्बन्। माँ से होता हैं। माँ 
उसे दूध पिलाती है और उसकी देखभाल भी करती है और यदि म बालक को देखभाल अच्छे से न करती तो उसका प्रभाव यह होता है कि चालक का। समाजीकरण उचित प्रकार से नहीं होता।
2. अधिक लाड़-प्यार बालक को परिवार द्वारा आवश्यकता से अधिक प्रेम करने 
प्रकार का कार्य न करने देने पा, आम कारण से उनका समाजीकरण रुक जाता है या ठक ढंग से नहीं हो पाता है, जिसके परिणामस्वरुप बालक बिगड़ जाता है।
3. माता-पिता का आपसी सम्बन्धी बालक के साम्राज्ञीकरण में माता-पिता का विशेष महत्व होता है। जिन परिवार में मात-पिता के आपको सम्बन्धी अन् होते हैं उन परिवार का समाजीकरण उचित ढंग से होता है। इसके विपरीत विन परिवार में माता-पिता आपस में झगड़ते हैं उन परिवार के बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है और इससे उनका सामाजीकरण विकृत हो जाता है, क्योंकि आपसी लड़ाई-झगड़े के कारण माता-पिता बच्चों पर अधिक ध्यान नहीं दे
4. माता-पिता के बच्चे के साथ सम्बन्ध माता-पिता जय बन्यों को उचित स्नेह देते हैं तो उनमें अहें सामाजिक गुण पैदा हो जाते है और यदि बच्चों को माता-पिता का उचित प्यार और सुरक्षा नहीं मिलती है, तो उनका सामाजिक विकास अच्छे ढंग से नहीं होता। वे पूर्ण रूप से माता-पिता पर निर्भर हो जाते हैं। इसके विपरीत यदि बच्चों को कम स्नेह या प्यार मिलता है, तो उनमें बदला देने की भावना विकसित हो जाती है। इस कारण से बालक कई यर बात-अपराधी भी बन जाते हैं।
5. बच्चों का अन्य सम्बन्धियों के साथ सम्बन्ध बों के परिवार के सम्बन्धियों का भी बच्चे के अपर गहरा प्रभाव पड़ता है। जैसे—वर का दादा-दादी, चाचा-चाची, मौसा मी तथा अन्य परिवार सगे सम्बन्धियों के साथ सम्बन्ध कैसा है? ये भी बालक के समानीकरण में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
6. परिवार की आर्थिक स्थिति यह भी देखा गया है कि यदि पारिवारिक आर्थिक स्थिति ठीक न हो तो ये भी बालक के समाजीकरण में बाधा पहुंचाती है, क्योंकि बालक के पालन पोषण में बच्चों को वे सभी आर्थिक सुख-सुविधाएँ नहीं मिल पाती, जो एक अच्छे परिमार के बच्चों को मिलती हैं। अत: इनसे 
बालक में सहनशीलता, परिश्रम करने वाले गुण विकसि होते हैं।
7. परिवार की बनावट परिवार दो प्रकार के होते हैं।

  • एकाकी परिवार
  • संयुक्त परिवार

We hope the UP Board Solutions for Class 12  Home Science Chapter 1 पोषण एवं सन्तुलित आहार help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12  Home Science Chapter 1 पोषण एवं सन्तुलित आहार, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 19 देशी बैंकर्स

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 19 देशी बैंकर्स are the part of UP Board Solutions for Class 10 Commerce. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 19 देशी बैंकर्स.

Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 19
Chapter Name देशी बैंकर्स
Number of Questions Solved 18
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 19 देशी बैंकर्स

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
भारत में देशी बैंकर्स के कार्य हैं
(a) जमा स्वीकार करना
(b) ऋण देना
(c) हुण्डियों का व्यवसाय करना
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 2.
देशी बैंकर्स पर नियन्त्रण होता है
(a) केन्द्रीय सरकार का
(b) भारतीय रिज़र्व बैंक का
(c) भारतीय स्टेट बैंक का
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
देशी बैंकर्स का कार्यक्षेत्र केवल शहरों/गाँवों तक ही सीमित रहता है।
उत्तर:
गाँवों तक

प्रश्न 2.
क्या देशी बैंकर्स की ब्याज दर ऊँची होती है?
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 3.
सभी देशी बैंकर्स की कार्यप्रणाली समान होती है/भिन्न-भिन्न होती है।
उत्तर:
भिन्न-भिन्न होती है

UP Board Solutions

प्रश्न 4.
क्या देशी बैंकर्स के पास पूँजी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती है?
उत्तर:
नहीं

प्रश्न 5.
देशी बैंकर्स भारतीय रिज़र्व बैंक के नियन्त्रण में हैं,नहीं हैं।
उत्तर:
नहीं हैं

प्रश्न 6.
क्या भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का महत्त्वपूर्ण स्थान है?
उत्तर:
हाँ

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
देशी बैंकर्स से क्या आशय है?
उत्तर:
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का (UPBoardSolutions.com) महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण देते हैं। देशी बैंकरों को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

प्रश्न 2.
देशी बैंकर्स की चार विशेषताएँ लिखिए। (2018)
उत्तर:
देशी बैंकर्स की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. सरल कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स के कार्य करने का तरीका सरल होता है। इससे ऋण लेने की प्रक्रिया भी सरलता व शीघ्रता से पूर्ण हो जाती है।
  2. भारतीय बहीखाता प्रणाली देशी बैंकर्स अपने हिसाब-किताब का लेखा भारतीय बहीखाता प्रणाली के अनुसार करते हैं।
  3. गोपनीयता देशी बैंकर्स अपने ग्राहकों के लेन-देन के (UPBoardSolutions.com) विवरणों की गोपनीयता बनाए रखते हैं, जिससे इनकी प्रतिष्ठा बनी रहती है।
  4. सीमित क्षेत्र इनके कार्य करने का क्षेत्र प्रायः गाँवों तक ही सीमित होता है।

UP Board Solutions

प्रश्न 3.
देशी बैंकर्स के दो कार्य बताइए।
उत्तर:
देशी बैंकर्स के दो कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. देशी बैंकर्स आवश्यकतानुसार जमाएँ स्वीकार करते हैं।
  2. देशी बैंकर्स ऋण प्रदान करते हैं।

प्रश्न 4.
देशी बैंकरों के चार गुण लिखिए। (2017)
उत्तर:
देशी बैंकरों के गुण निम्नलिखित हैं-

  1. बिना जमानत के ऋण प्रदान करना।
  2. उचित बीज एवं यन्त्रों की आपूर्ति करना।
  3. अनुत्पादक कार्यों हेतु ऋण प्रदान करना।
  4. सरल विधि द्वारा लेन-देन।

प्रश्न 5.
देशी बैंकर्स के चार दोष लिखिए। उत्तर देशी बैंकर्स के चार दोष निम्नलिखित हैं

  1. इनके द्वारा ऋणियों का शोषण किया जाता है।
  2. ये धोखापूर्ण कार्य-प्रणाली से कार्य करते हैं।
  3. इनकी कार्यप्रणाली दोषपूर्ण होती है।
  4. इनके पास पूँजी का अभाव रहता है।

UP Board Solutions

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
देशी बैंकर्स क्या हैं? इनके दो दोषों का वर्णन कीजिए। (2012)
उत्तर:
देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स (UPBoardSolutions.com) को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए अल्पकालीन साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोष देशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

प्रश्न 2.
देशी बैंकर्स के कार्यों का वर्णन कीजिए। (2012, 08)
उत्तर:
देशी बैंकर्स के कार्य देशी बैंकर्स के कार्य निम्नलिखित हैं-

1. जमा स्वीकार करना देशी बैंकर्स आवश्यकता के अनुसार जनता से जमा के रूप में धन स्वीकार करते हैं। ये इन जमाओं पर 9% से 15% तक ब्याज भी देते हैं। इस जमा राशि का भुगतान ग्राहक को माँगने पर तुरन्त कर दिया जाता है।

2. ऋण प्रदान करना देशी बैंकर्स का मुख्य कार्य ऋण प्रदान करना (UPBoardSolutions.com) होता है। ये किसानों, कारीगरों, मजदूरों, व्यापारियों, आदि को प्रत्येक प्रकार की जमानत पर ऋण देते हैं। ये उत्पादन कार्यों के साथ उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं। ये प्रतिज्ञा-पत्रों के आधार पर भी ऋण उपलब्ध करवाते हैं। इनकी ब्याज की दर जमानत के आधार पर तय की जाती है। इनकी ब्याज की दर 14% से 50% तक हो सकती है।

UP Board Solutions

3. हुण्डियों का व्यवसाय करना देशी बैंकर्स हुण्डियों को खरीदने, बेचने व भुनाने की कार्य भी करते हैं। जिन देशी बैंकर्स की बाजार में अधिक प्रतिष्ठा होती है, उनकी हुण्डियाँ बाजार में अधिक बिकती हैं।

4. अन्य कार्य करना ये उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त अन्य कार्य भी करते हैं

  • आयात-निर्यात में सहायता ये आयात-निर्यात के माल को बन्दरगाहों से देश में लाने तथा ले जाने के व्यय वहन करते हैं।
  • धन हस्तान्तरण में सुविधा एक स्थान से दूसरे स्थान पर धन भेजने में देशी बैंकर्स सहायक होते हैं।
  • परिकल्पना व्यापार करना ये परिकल्पना व्यापार अर्थात् सट्टा व्यापार करना; जैसे-सोना, चाँदी एवं शेयर्स, आदि में भी अपना धन लगाते हैं।
  • अन्य वस्तुओं में व्यापार करना देशी बैंकर्स अनाज, घी, आदि कई वस्तुओं का व्यापार भी करते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
देशी बैंकर्स के कार्यों, गुण एवं दोषों का वर्णन कीजिए। (2008)
उत्तर:
देशी बैंकर्स के कार्य

देशी बैंकर्स के कार्य निम्नलिखित हैं-

1. जमा स्वीकार करना देशी बैंकर्स आवश्यकता के अनुसार जनता से जमा के रूप में धन स्वीकार करते हैं। ये इन जमाओं पर 9% से 15% तक ब्याज भी देते हैं। इस जमा राशि का भुगतान ग्राहक को माँगने पर तुरन्त कर दिया जाता है।

2. ऋण प्रदान करना देशी बैंकर्स का मुख्य कार्य ऋण प्रदान करना होता है। ये किसानों, कारीगरों, मजदूरों, व्यापारियों, आदि को प्रत्येक प्रकार की जमानत पर ऋण देते हैं। ये उत्पादन कार्यों के साथ उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं। ये प्रतिज्ञा-पत्रों (UPBoardSolutions.com) के आधार पर भी ऋण उपलब्ध करवाते हैं। इनकी ब्याज की दर जमानत के आधार पर तय की जाती है। इनकी ब्याज की दर 14% से 50% तक हो सकती है।

UP Board Solutions

3. हुण्डियों का व्यवसाय करना देशी बैंकर्स हुण्डियों को खरीदने, बेचने व भुनाने की कार्य भी करते हैं। जिन देशी बैंकर्स की बाजार में अधिक प्रतिष्ठा होती है, उनकी हुण्डियाँ बाजार में अधिक बिकती हैं।

4. अन्य कार्य करना ये उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त अन्य कार्य भी करते हैं

  • आयात-निर्यात में सहायता ये आयात-निर्यात के माल को बन्दरगाहों से देश में लाने तथा ले जाने के व्यय वहन करते हैं।
  • धन हस्तान्तरण में सुविधा एक स्थान से दूसरे स्थान पर धन भेजने में देशी बैंकर्स सहायक होते हैं।
  • परिकल्पना व्यापार करना ये परिकल्पना व्यापार अर्थात् सट्टा व्यापार करना; जैसे-सोना, चाँदी एवं शेयर्स, आदि में भी अपना धन लगाते हैं।
  • अन्य वस्तुओं में व्यापार करना देशी बैंकर्स अनाज, घी, आदि कई वस्तुओं का व्यापार भी करते हैं।

देशी बैंकर्स के गुण एवं दोष

देशी बैंकर्स के गुण देशी बैंकर्स के प्रमुख गुण निम्नलिखित होते हैं-

  1. बिना जमानत के ऋण प्रदान करना ये किसानों, कारीगरों, व्यापारियों, आदि को व्यक्तिगत जमानत के आधार पर ऋण प्रदान करते हैं। ये उन्हें अपने पास किसी वस्तु को धरोहर के रूप में रखने के लिए बाध्य नहीं करते हैं।
  2. कार्य-प्रणाली सरल और लचीली इनकी कार्यप्रणाली सरल और (UPBoardSolutions.com) लचीली होती है, जिससे अशिक्षित व्यक्ति भी इससे सरलतापूर्वक लेन-देन कर सकता है।
  3. बीज, खाद व यन्त्र, आदि की सुविधा देना देशी बैंकर्स किसानों के लिए बीज, खाद व कृषि यन्त्रों, आदि को उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाते हैं व उन्हें आवश्यक ऋण भी प्रदान करते हैं।
  4. गोपनीयता इनके द्वारा किए गए लेन-देन को गोपनीय रखा जाता है।
  5. अनुत्पादक कार्यों के लिए ऋण देना देशी बैंकर्स निर्धन, गरीब किसानों व कारीगरों को उनके सामाजिक उत्सवों; जैसे-विवाह, मुण्डन, श्राद्ध, मृत्यु भोज, आदि अनुत्पादक कार्यों के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।
  6. कुटीर उद्योगों के लिए ऋण ये कुटीर उद्योगों; जैसे-मछलीपालन, मुर्गीपालन, आदि के लिए भी ऋण प्रदान करके इनके विकास में सहायक होते हैं।
  7. किस्तों में भुगतान स्वीकार करना देशी बैंकर्स ऋण का भुगतान ऋणी की सुविधानुसार सरल किस्तों में प्राप्त करते हैं।
  8. माल का क्रय करना ये किसानों की फसल उचित मूल्य पर क्रय करके उन्हें मण्डी या बाजार में जाने की परेशानी से बचाते हैं।
  9. घरेलू उद्योगों को पूँजी प्रदान करना ये घरेलू उद्योगों को चलाने हेतु ऋण प्रदान करते हैं।

UP Board Solutions

देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ निम्नलिखित हैं

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऊँची ब्याज दर इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक एवं चक्रवृद्धि ब्याज दर होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।
  3. धोखापूर्ण कार्य-प्रणाली इस कार्य-पद्धति में धोखेबाजी की सम्भावना अधिक रहती है, क्योंकि इसमें लेन-देन करने वाले सभी ग्राहक अशिक्षित होते हैं। देशी बैंकर्स ऋण देते समय अनुचित व्यवहार करते हैं।
  4. दोषपूर्ण कार्य-प्रणाली यह प्रणाली शोषण एवं धोखेबाजी के कार्यों से (UPBoardSolutions.com) भरपूर है। इसमें ऋण लेने वालों के साथ अनुचित व्यवहार किया जाता है।
  5. पूँजी का अभाव इनके पास पर्याप्त पूँजी का अभाव पाया जाता है, जिससे किसानों को उनकी आवश्यकता के समय पर्याप्त मात्रा में ऋण उपलब्ध नहीं हो पाता है।
  6. सामाजिक बुराइयों को बढ़ावा ये उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं, जिससे लोगों में अपव्ययिता व फिजूलखर्ची में वृद्धि होती है। अत: इससे सामाजिक बुराइयों को भी बढ़ावा मिलता है।
  7. मजदूरी लेना ये किसानों व अन्य ऋणियों से विवाह आदि के अवसर पर मजदूरी या बेगार भी लेते हैं।
  8. परिकल्पना अथवा सट्टे का कार्य करना इनके द्वारा सट्टे का कार्य करने से इनकी बैंकिंग कार्यक्षमता में कमी होती है।
  9. खातों का अप्रकाशन देशी बैंकर्स खातों का नियमित रूप से अंकेक्षण नहीं करते हैं व खातों की सूचनाओं का प्रकाशन भी नहीं करते हैं, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है।
  10. परम्परागत कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स द्वारा परम्परागत आधार पर कार्य किया जाता है, जिससे इनका निरीक्षण भी नहीं किया जा सकता है।
  11. जमाओं को प्रोत्साहन प्रदान न करना ये लोगों की बचत को जमा कराने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं।
  12. सरकारी अनियन्त्रण देशी बैंकर्स पर सरकारी नियन्त्रण नहीं होने के कारण ये मनमानी करते हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 2.
देशी बैंकर्स कौन होते हैं? भारत में देशी बैंकरों के गुण व दोषों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2011)
उत्तर:
देशी बैंकर्स से आशय
देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार (UPBoardSolutions.com) करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए अल्पकालीन साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोषदेशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

देशी बैंकर्स के गुण देशी बैंकर्स के प्रमुख गुण निम्नलिखित होते हैं-

  1. बिना जमानत के ऋण प्रदान करना ये किसानों, कारीगरों, व्यापारियों, आदि को व्यक्तिगत जमानत के आधार पर ऋण प्रदान करते हैं। ये उन्हें अपने पास किसी वस्तु को धरोहर के रूप में रखने के लिए बाध्य नहीं करते हैं।
  2. कार्य-प्रणाली सरल और लचीली इनकी कार्यप्रणाली सरल और लचीली होती है, जिससे अशिक्षित व्यक्ति भी इससे सरलतापूर्वक लेन-देन कर सकता है।
  3. बीज, खाद व यन्त्र, आदि की सुविधा देना देशी बैंकर्स किसानों के लिए बीज, खाद व कृषि यन्त्रों, आदि को उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाते हैं व उन्हें आवश्यक ऋण भी प्रदान करते हैं।
  4. गोपनीयता इनके द्वारा किए गए लेन-देन को गोपनीय रखा जाता है।
  5. अनुत्पादक कार्यों के लिए ऋण देना देशी बैंकर्स निर्धन, गरीब किसानों व कारीगरों को उनके सामाजिक उत्सवों; जैसे-विवाह, मुण्डन, श्राद्ध, मृत्यु भोज, आदि अनुत्पादक कार्यों के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।
  6. कुटीर उद्योगों के लिए ऋण ये कुटीर उद्योगों; जैसे-मछलीपालन, मुर्गीपालन, आदि के लिए भी ऋण प्रदान करके इनके विकास में सहायक होते हैं।
  7. किस्तों में भुगतान स्वीकार करना देशी बैंकर्स ऋण का भुगतान ऋणी की (UPBoardSolutions.com) सुविधानुसार सरल किस्तों में प्राप्त करते हैं।
  8. माल का क्रय करना ये किसानों की फसल उचित मूल्य पर क्रय करके उन्हें मण्डी या बाजार में जाने की परेशानी से बचाते हैं।
  9. घरेलू उद्योगों को पूँजी प्रदान करना ये घरेलू उद्योगों को चलाने हेतु ऋण प्रदान करते हैं।

UP Board Solutions

देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ निम्नलिखित हैं

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऊँची ब्याज दर इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक एवं चक्रवृद्धि ब्याज दर होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।
  3. धोखापूर्ण कार्य-प्रणाली इस कार्य-पद्धति में धोखेबाजी की सम्भावना अधिक रहती है, क्योंकि इसमें लेन-देन करने वाले सभी ग्राहक अशिक्षित होते हैं। देशी बैंकर्स ऋण देते समय अनुचित व्यवहार करते हैं।
  4. दोषपूर्ण कार्य-प्रणाली यह प्रणाली शोषण एवं धोखेबाजी के कार्यों से भरपूर है। इसमें ऋण लेने वालों के साथ अनुचित व्यवहार किया जाता है।
  5. पूँजी का अभाव इनके पास पर्याप्त पूँजी का अभाव पाया जाता है, जिससे किसानों (UPBoardSolutions.com) को उनकी आवश्यकता के समय पर्याप्त मात्रा में ऋण उपलब्ध नहीं हो पाता है।
  6. सामाजिक बुराइयों को बढ़ावा ये उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं, जिससे लोगों में अपव्ययिता व फिजूलखर्ची में वृद्धि होती है। अत: इससे सामाजिक बुराइयों को भी बढ़ावा मिलता है।
  7. मजदूरी लेना ये किसानों व अन्य ऋणियों से विवाह आदि के अवसर पर मजदूरी या बेगार भी लेते हैं।
  8. परिकल्पना अथवा सट्टे का कार्य करना इनके द्वारा सट्टे का कार्य करने से इनकी बैंकिंग कार्यक्षमता में कमी होती है।
  9. खातों का अप्रकाशन देशी बैंकर्स खातों का नियमित रूप से अंकेक्षण नहीं करते हैं व खातों की सूचनाओं का प्रकाशन भी नहीं करते हैं, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है।
  10. परम्परागत कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स द्वारा परम्परागत आधार पर कार्य किया जाता है, जिससे इनका निरीक्षण भी नहीं किया जा सकता है।
  11. जमाओं को प्रोत्साहन प्रदान न करना ये लोगों की बचत को जमा कराने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं।
  12. सरकारी अनियन्त्रण देशी बैंकर्स पर सरकारी नियन्त्रण नहीं होने के कारण ये मनमानी करते हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 3.
देशी बैंकर्स से क्या आशय है? देशी बैंकर्स व आधुनिक बैंकर्स में क्या अन्तर है? देशी बैंकर्स के महत्त्व का भी वर्णन कीजिए। (2012)
उत्तर:
देशी बैंकर्स से आशय
देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए अल्पकालीन साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोष देशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

UP Board Solutions

देशी बैंकर्स एवं आधुनिक बैंकर्स में अन्तर
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 19 देशी बैंकर्स

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का महत्त्व देशी बैंकर्स की भूमिका को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया गया है

  1. कृषि विकास में सहायक देशी बैंकर्स मुख्य रूप से किसानों को ऋण प्रदान करते हैं। इस ऋण के माध्यम से किसान अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं को सरलता से प्राप्त कर लेते हैं, जिससे कृषि विकास सुलभ हो जाता है।
  2. जमाएँ स्वीकार करना ये बैंकर्स जनता की जमाओं को भी स्वीकार करते हैं। ये किसानों की बचतों को जमा करके उन्हें सुरक्षित रखते हैं। साथ ही ये इन जमाओं पर ब्याज भी देते हैं।
  3. सरल कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स की कार्यप्रणाली को एक साधारण व्यक्ति भी समझ सकता है। इससे किसानों को ऋण लेने में शीघ्रता व सुलभता प्राप्त होती है।
  4. आपत्तिकाल में सहायक देशी बैंकर्स किसानों की आवश्यकता के समय हमेशा ऋण देने को तत्पर रहते हैं। इससे किसानों के आवश्यक कार्य समय पर पूर्ण हो जाते हैं।
  5. उपभोग हेतु ऋण की सुविधाएँ देशी बैंकर्स किसानों को दैनिक जीवन व सामाजिक कार्यों हेतु भी ऋण की सुविधा प्रदान करते हैं।
  6. उदार ऋण नीति देशी बैंकर्स किसानों को ऋण प्रदान करने में अनावश्यक (UPBoardSolutions.com) औपचारिकताएँ नहीं करते हैं। ये किसानों को बिना जमानत के ऋण प्रदान कर देते हैं।
  7. आधुनिक बैंकों की सुविधाएँ ये बैंकर्स अन्य व्यापारिक बैंकों से भी लेन-देन का कार्य करते हैं, जिससे इनके ग्राहकों को आधुनिक बैंकों की सुविधाएँ सरलता से प्राप्त हो जाती हैं।
  8. कुटीर उद्योगों को सहायता देशी बैंकर्स कुटीर उद्योगों को संचालित करने व उनका विकास करने के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 4.
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स की भूमिका का परीक्षण कीजिए। (2007)
अथवा
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत एक कृषिप्रधान देश है। भारत के अधिकतर किसान गरीब होते हैं। यहाँ के किसान वित्त व्यवस्था के लिए साहूकारों पर निर्भर रहते हैं। भारत में प्राचीनकाल से ही उधार लेन-देन की प्रथा प्रचलन में थी। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आधुनिक बैंकों का विकास नहीं होने के कारण (UPBoardSolutions.com) किसानों को देशी बैंकर्स पर ही निर्भर रहना पड़ता है। भारत में कृषि साख की 20% पूर्ति देशी बैंकरों द्वारा की जाती है। ये बैंकर्स किसानों को बीज, खाद, कृषि उपकरण, आदि को खरीदने के लिए ऋण प्रदान करते हैं। ये बैंकर्स या संस्था किसानों को उनकी आवश्यकतानुसार समय-समय पर ऋण उपलब्ध करवाते हैं।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स की भूमिका (महत्त्व)

देशी बैंकर्स से आशय

देशी बैंकर्स एवं आधुनिक बैंकर्स में अन्तर
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 19 देशी बैंकर्स

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का महत्त्व देशी बैंकर्स की भूमिका को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया गया है

  1. कृषि विकास में सहायक देशी बैंकर्स मुख्य रूप से किसानों को ऋण प्रदान करते हैं। इस ऋण के माध्यम से किसान अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं को सरलता से प्राप्त कर लेते हैं, जिससे कृषि विकास सुलभ हो जाता है।
  2. जमाएँ स्वीकार करना ये बैंकर्स जनता की जमाओं को भी स्वीकार करते हैं। ये किसानों की बचतों को जमा करके उन्हें सुरक्षित रखते हैं। साथ ही ये इन जमाओं पर ब्याज भी देते हैं।
  3. सरल कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स की कार्यप्रणाली को एक साधारण व्यक्ति भी समझ सकता है। इससे किसानों को ऋण लेने में शीघ्रता व सुलभता प्राप्त होती है।
  4. आपत्तिकाल में सहायक देशी बैंकर्स किसानों की आवश्यकता के समय हमेशा (UPBoardSolutions.com) ऋण देने को तत्पर रहते हैं। इससे किसानों के आवश्यक कार्य समय पर पूर्ण हो जाते हैं।
  5. उपभोग हेतु ऋण की सुविधाएँ देशी बैंकर्स किसानों को दैनिक जीवन व सामाजिक कार्यों हेतु भी ऋण की सुविधा प्रदान करते हैं।
  6. उदार ऋण नीति देशी बैंकर्स किसानों को ऋण प्रदान करने में अनावश्यक औपचारिकताएँ नहीं करते हैं। ये किसानों को बिना जमानत के ऋण प्रदान कर देते हैं।
  7. आधुनिक बैंकों की सुविधाएँ ये बैंकर्स अन्य व्यापारिक बैंकों से भी लेन-देन का कार्य करते हैं, जिससे इनके ग्राहकों को आधुनिक बैंकों की सुविधाएँ सरलता से प्राप्त हो जाती हैं।
  8. कुटीर उद्योगों को सहायता देशी बैंकर्स कुटीर उद्योगों को संचालित करने व उनका विकास करने के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 5.
‘देशी बैंकर’ पर एक लेख लिखिए। (2017)
उत्तर:
देशी बैंकर्स

देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए अल्पकालीन (UPBoardSolutions.com) साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोषदेशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

देशी बैंकर्स के कार्य

देशी बैंकर्स के कार्य देशी बैंकर्स के कार्य निम्नलिखित हैं-

1. जमा स्वीकार करना देशी बैंकर्स आवश्यकता के अनुसार जनता से जमा के रूप में धन स्वीकार करते हैं। ये इन जमाओं पर 9% से 15% तक ब्याज भी देते हैं। इस जमा राशि का भुगतान ग्राहक को माँगने पर तुरन्त कर दिया जाता है।

2. ऋण प्रदान करना देशी बैंकर्स का मुख्य कार्य ऋण प्रदान करना होता है। ये किसानों, कारीगरों, मजदूरों, व्यापारियों, आदि को प्रत्येक प्रकार की जमानत पर ऋण देते हैं। ये उत्पादन कार्यों के साथ उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं। ये प्रतिज्ञा-पत्रों के आधार पर भी ऋण उपलब्ध करवाते हैं। इनकी ब्याज की दर जमानत के आधार पर तय की जाती है। इनकी ब्याज की दर 14% से 50% तक हो सकती है।

3. हुण्डियों का व्यवसाय करना देशी बैंकर्स हुण्डियों को खरीदने, बेचने व भुनाने की कार्य भी करते हैं। जिन देशी बैंकर्स की बाजार में अधिक प्रतिष्ठा होती है, उनकी हुण्डियाँ बाजार में अधिक बिकती हैं।

4. अन्य कार्य करना ये उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त अन्य कार्य भी करते हैं

  • आयात-निर्यात में सहायता ये आयात-निर्यात के माल को बन्दरगाहों से देश में लाने तथा ले जाने के व्यय वहन करते हैं।
  • धन हस्तान्तरण में सुविधा एक स्थान से दूसरे स्थान पर धन भेजने में देशी बैंकर्स सहायक होते हैं।
  • परिकल्पना व्यापार करना ये परिकल्पना व्यापार अर्थात् सट्टा व्यापार करना; जैसे-सोना, चाँदी एवं शेयर्स, आदि में भी अपना धन लगाते हैं।
  • अन्य वस्तुओं में व्यापार करना देशी बैंकर्स अनाज, घी, आदि कई वस्तुओं का व्यापार भी करते हैं।

UP Board Solutions

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

देशी बैंकर्स के गुण व दोष

देशी बैंकर्स से आशय
देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के (UPBoardSolutions.com) लिए अल्पकालीन साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”

देशी बैंकर्स के दोषदेशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

देशी बैंकर्स के गुण देशी बैंकर्स के प्रमुख गुण निम्नलिखित होते हैं-

  1. बिना जमानत के ऋण प्रदान करना ये किसानों, कारीगरों, व्यापारियों, आदि को व्यक्तिगत जमानत के आधार पर ऋण प्रदान करते हैं। ये उन्हें अपने पास किसी वस्तु को धरोहर के रूप में रखने के लिए बाध्य नहीं करते हैं।
  2. कार्य-प्रणाली सरल और लचीली इनकी कार्यप्रणाली सरल और लचीली होती है, जिससे अशिक्षित व्यक्ति भी इससे सरलतापूर्वक लेन-देन कर सकता है।
  3. बीज, खाद व यन्त्र, आदि की सुविधा देना देशी बैंकर्स किसानों के लिए बीज, खाद व कृषि यन्त्रों, आदि को उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाते हैं व उन्हें आवश्यक ऋण भी प्रदान करते हैं।
  4. गोपनीयता इनके द्वारा किए गए लेन-देन को गोपनीय रखा जाता है।
  5. अनुत्पादक कार्यों के लिए ऋण देना देशी बैंकर्स निर्धन, गरीब किसानों व कारीगरों को उनके सामाजिक उत्सवों; जैसे-विवाह, मुण्डन, श्राद्ध, मृत्यु भोज, आदि अनुत्पादक कार्यों के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।
  6. कुटीर उद्योगों के लिए ऋण ये कुटीर उद्योगों; जैसे-मछलीपालन, मुर्गीपालन, आदि के लिए भी ऋण प्रदान करके इनके विकास में सहायक होते हैं।
  7. किस्तों में भुगतान स्वीकार करना देशी बैंकर्स ऋण का भुगतान ऋणी की सुविधानुसार सरल किस्तों में प्राप्त करते हैं।
  8. माल का क्रय करना ये किसानों की फसल उचित मूल्य पर क्रय करके उन्हें मण्डी या बाजार में जाने की परेशानी से बचाते हैं।
  9. घरेलू उद्योगों को पूँजी प्रदान करना ये घरेलू उद्योगों को चलाने हेतु ऋण प्रदान करते हैं।

देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ निम्नलिखित हैं-

UP Board Solutions

  1. बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।
  2. ऊँची ब्याज दर इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक एवं चक्रवृद्धि ब्याज दर होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।
  3. धोखापूर्ण कार्य-प्रणाली इस कार्य-पद्धति में धोखेबाजी की सम्भावना अधिक रहती है, क्योंकि इसमें लेन-देन करने वाले सभी ग्राहक अशिक्षित होते हैं। देशी बैंकर्स ऋण देते समय अनुचित व्यवहार करते हैं।
  4. दोषपूर्ण कार्य-प्रणाली यह प्रणाली शोषण एवं धोखेबाजी के कार्यों से भरपूर है। इसमें ऋण लेने वालों के साथ अनुचित व्यवहार किया जाता है।
  5. पूँजी का अभाव इनके पास पर्याप्त पूँजी का अभाव पाया जाता है, जिससे किसानों को उनकी आवश्यकता के समय पर्याप्त मात्रा में ऋण उपलब्ध नहीं हो पाता है।
  6. सामाजिक बुराइयों को बढ़ावा ये उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं, जिससे लोगों में अपव्ययिता व फिजूलखर्ची में वृद्धि होती है। अत: इससे सामाजिक बुराइयों को भी बढ़ावा मिलता है।
  7. मजदूरी लेना ये किसानों व अन्य ऋणियों से विवाह आदि के अवसर पर मजदूरी या बेगार भी लेते हैं।
  8. परिकल्पना अथवा सट्टे का कार्य करना इनके द्वारा सट्टे का कार्य करने से इनकी बैंकिंग कार्यक्षमता में कमी होती है।
  9. खातों का अप्रकाशन देशी बैंकर्स खातों का नियमित रूप से अंकेक्षण नहीं करते हैं व खातों की सूचनाओं का प्रकाशन भी नहीं करते हैं, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है।
  10. परम्परागत कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स द्वारा परम्परागत आधार पर कार्य किया (UPBoardSolutions.com) जाता है, जिससे इनका निरीक्षण भी नहीं किया जा सकता है।
  11. जमाओं को प्रोत्साहन प्रदान न करना ये लोगों की बचत को जमा कराने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं।
  12. सरकारी अनियन्त्रण देशी बैंकर्स पर सरकारी नियन्त्रण नहीं होने के कारण ये मनमानी करते हैं।

We hope the UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 19 देशी बैंकर्स, कार्य एवं महत्त्व help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 19 देशी बैंकर्स, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 14 बैंक ; जन्म, परिभाषा, कार्य एवं महत्त्व

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 14 बैंक ; जन्म, परिभाषा, कार्य एवं महत्त्व are the part of UP Board Solutions for Class 10 Commerce. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 14 बैंक ; जन्म, परिभाषा, कार्य एवं महत्त्व.

Board UP Board
Class Class 10
Subject Commerce
Chapter Chapter 14
Chapter Name बैंक ; जन्म, परिभाषा, कार्य एवं महत्त्व
Number of Questions Solved 19
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 14 बैंक ; जन्म, परिभाषा, कार्य एवं महत्त्व

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
बैंक एक संस्था है, जो
(a) मुद्रा में लेन-देन करती है
(b) धन का निवेश करती है।
(c) ऋण प्रदान करती है
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 2.
औद्योगिक बैंक निम्नलिखित में से किसके विकास के लिए ऋण प्रदान करते हैं? (2014)
(a) उद्योग
(b) भूमि
(c) ‘a’ और ‘b’ दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) उद्योग

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा बैंक को दायित्व है?
(a) ऋण
(b) निवेश
(c) जमाराशि
(d) भुने तथा खरीदे बिल
उत्तर:
(c) जमाराशि

प्रश्न 4.
बैंक का सामान्य कार्य कौन-सा है?
(a) साधारण ऋण
(b) पत्र-मुद्रा का निर्गमन करना
(c) नकद साख
(d) ऋण के रूप में उधार देना
उत्तर:
(b) पत्र-मुद्रा का निर्गमन करना

UP Board Solutions

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
आधुनिक ढंग का बैंक सबसे पहले कहाँ स्थापित हुआ? (2014)
उत्तर:
1401 ई. में स्पेन के बारसिलोना (UPBoardSolutions.com) नगर में

प्रश्न 2.
बैंकिंग कम्पनी अधिनियम सन् 1949/1956 में लागू किया गया।
उत्तर:
सन् 1949 में

प्रश्न 3.
आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंक का एक उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
बचत की आदत को प्रोत्साहित करना।

UP Board Solutions

प्रश्न 4.
बैंक से चैक/पे-इन-स्लिप द्वारा रोकड़ निकाली जा सकती है। (2007)
उत्तर:
चैक

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1.
बैंक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 की धारा 5(b) के अनुसार, “बैंक उस कम्पनी को कहते हैं, जो बैंकिंग कार्य करती है। बैंकिंग का अर्थ जनता को ऋण देने अथवा विनियोग करने के लिए उन निक्षेपों (जमाओं) को प्राप्त करना है, जो (UPBoardSolutions.com) माँगने पर इसका भुगतान चैक, ड्राफ्ट, ऑर्डर अथवा किसी अन्य रूप से करती है।”

प्रश्न 2.
एक बैंक के चार कार्य बताइए। (2017)
उत्तर:
बैंक के कार्य निम्नलिखित हैं

  1. जमाएँ प्राप्त करना।
  2. ऋण देना।
  3. प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करना।
  4. साख-पत्रों का निर्गमन करना।

UP Board Solutions

प्रश्न 3.
समाशोधन-गृह को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
प्रो. टॉजिंग के अनुसार, “समाशोधन-गृह (Clearing House) किसी एक स्थान के बैंकों का ऐसा सामान्य संगठन है, जिसका मुख्य उद्देश्य बैंकों द्वारा निर्मित परस्पर दायित्व का चैकों द्वारा निपटारा या भुगतान करना होता है।”

प्रश्न 4.
“बैंकों में जमा धन पूँजी है।” टिप्पणी कीजिए। (2018)
उत्तर:
जब व्यवसायी व्यवसाय आरम्भ करता है, तो वह कुछ धन (UPBoardSolutions.com) व्यवसाय के चालू खाते में जमा करता है। इस धन की प्रयोग व्यवसायी आवश्यकता पड़ने पर करता है। अतः हम यह कह सकते हैं कि बैंक में व्यवसायी का जमा धन पूँजी है।

प्रश्न 5.
किन्हीं चार निजी बैंकों के नाम बताइए। (2018)
उत्तर:
चार निजी बैंकों के नाम निम्नलिखित हैं

  1. आई सी आई सी आई बैंक
  2. येस बैंक
  3. एक्सिस बैंक
  4. एच डी एफ सी बैंक

UP Board Solutions

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1.
नकद साख पर टिप्पणी लिखिए। (2008)
उत्तर:
भारत में बैंकों द्वारा ऋण देने की यह एक महत्त्वपूर्ण विधि है। इसमें बैंक ग्राहक को एक निश्चित मात्रा तक ऋण प्राप्त करने का अधिकार देता है। ग्राहक अपनी सीमा तक बैंक से कभी भी ऋण ले सकता है। बैंक इस प्रकार का ऋण देने के लिए ग्राहक (UPBoardSolutions.com) का माल, चल सम्पत्ति या प्रतिभूतियों को जमानत के रूप में अपने पास रखता है तथा बैंक ग्राहक को एक खाता अपने यहाँ खोल देता है। और ऋणी उसमें से अपनी आवश्यकतानुसार लेन-देन करता रहता है। बैंक ग्राहक से उतनी ही राशि पर ब्याज वसूलता है, जितनी राशि ग्राहक बैंक से ऋण के रूप में निकालता है। इस प्रकार यह सुविधा पर्याप्त जमानत के आधार पर दी जाती है। वर्तमान समय में भारत में यह पद्धति लोकप्रिय है।

प्रश्न 2.
बैंक द्वारा साख का सृजन किस प्रकार किया जाता है? (2008)
उत्तर:
बैंक द्वारा साख का सृजन निम्न प्रकार से किया जाता है-

1. नोटों के निर्गमन द्वारा साख का निर्माण बैंक नोटों का निर्गमन करके साख का निर्माण करते हैं। प्रारम्भ में अनेक बैंकों द्वारा नोट निर्गमन की व्यवस्था प्रचलित थी, इसलिए सभी बैंक नोट निर्गमन द्वारा साख सृजन करते थे। किन्तु आधुनिक समय में देश का केन्द्रीय बैंक नोट निर्गमन का कार्य करता है। व्यापारिक बैंकों को नोट निर्गमन का अधिकार नहीं होता है। केन्द्रीय बैंक निश्चित मात्रा में धातुकोष रखकर नोट निर्गमन करता है।

2. विनिमय बिलों की कटौती द्वारा साख सृजन व्यापारिक बैंक विनिमय बिलों, प्रतिज्ञा-पत्रों, हुण्डियों, प्रतिभूतियों, आदि की कटौती एवं क्रय-विक्रय द्वारा भी साख का निर्माण करते हैं।

3. नकद जमा तथा साख जमा द्वारा साख निर्माण व्यापारिक बैंक नकद जमाओं एवं साख जमाओं के द्वारा भी साख का निर्माण करते हैं। बैंक अपने पास जमा राशि से ऋण देते हैं और जमाएँ उत्पन्न करते हैं।

UP Board Solutions

4. अधिविकर्ष सुविधा द्वारा बैंक द्वारा अच्छी साख वाले एवं विश्वसनीय ग्राहकों को अधिविकर्ष की सुविधा दी जाती है। इस सुविधा के अन्तर्गत अधिविकर्ष की राशि पर निकाली गई अवधि तक का ब्याज लिया जाता है। इस आधार पर भी बैंक साख का सृजन करते हैं।

प्रश्न 3.
आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंकों का महत्त्व बताइए। (2008)
उत्तर:
आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंकों का महत्त्व बैंक आधुनिक अर्थव्यवस्था का आधार है। किसी भी देश की व्यापारिक अथवा औद्योगिक समृद्धि सुदृढ़ बैंकिंग व्यवस्था पर ही निर्भर करती है। आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंक के महत्त्व अथवा लाभ को निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है

  1. आधुनिक अर्थव्यवस्था में बैंक का मुख्य उद्देश्य बचत की आदत को प्रोत्साहित करना होता है।
  2. बैंक लोगों की छोटी-छोटी बचतों को जमा करके (UPBoardSolutions.com) देश में पूँजी का निर्माण करते हैं।
  3. बैंक द्वारा चैक व ड्राफ्ट के माध्यम से भुगतान शीघ्रता व सरलता से किया जा सकता है।
  4. बैंक किसानों को कृषि यन्त्र, खाद, बीज, आदि खरीदने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करके देश के विकास में योगदान देते हैं।
  5. बैंक साख की मात्रा में कमी या वृद्धि करके मुद्रा की पूर्ति को सन्तुलित बनाए रखते हैं।

UP Board Solutions

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (8 अंक)

प्रश्न 1.
बैंक की परिभाषा दीजिए। बैंक के प्रमुख कार्यों का भी वर्णन कीजिए। (2007,06)
अथवी
बैंक के कार्यों को संक्षेप में समझाइए। (2012, 07)
उत्तर:
बैंक का अर्थ बैंक से तात्पर्य उस संस्था से है, जो जनता से जमा के रूप में धन प्राप्त करती है और ऋण के रूप में अथवा जमाकर्ताओं की माँग पर धन उधार देती है। इस प्रकार बैंक वे संस्थाएँ हैं, जो धन का लेन-देन करती हैं। आधुनिक युग में बैंकिंग विकास के साथ-साथ बैंकों के कार्यों में भी वृद्धि हुई है। बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 की धारा 5(b) के अनुसार, “बैंक उस कम्पनी को कहते हैं, जो बैंकिंग कार्य करती है। बैंकिंग का (UPBoardSolutions.com) अर्थ जनता को ऋण देने अथवा विनियोग करने के लिए उन निक्षेपों (जमाओं) को प्राप्त करना है, जो माँगने पर इसका भुगतान चैक, ड्राफ्ट, ऑर्डर अथवा किसी अन्य रूप से करती है।” वेब्सटर शब्दकोश के अनुसार, “बैंक वह संस्था है, जो मुद्रा में व्यवसाय करती है। यह एक संस्थान है, जहाँ धन का संग्रहण, संरक्षण एवं निर्गमन होता है, ऋण की तथा बिलों की कटौती की सुविधाएँ दी जाती हैं और मुद्रा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने की व्यवस्था की जाती है।”

बैंक की सेवाएँ या कार्य मुख्य रूप से बैंक के कार्यों को निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

I. मुख्य कार्य बैंक द्वारा किए जाने वाले मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

1. जमा के रूप में धन प्राप्त करना बैंक जनता से विभिन्न प्रकार के खातों के माध्यम से धन प्राप्त करने का महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। बैंक मुख्य रूप से चालू खाता, बचत  खाता, सावधि निक्षेप खाता, आवर्ती जमा खाता, आदि खातों के माध्यम से धन प्राप्त करता है।

2. ऋण के रूप में धन उधार देना बैंक का दूसरा प्रमुख कार्य जनता को धन उधार देना है। बैंक अपने पास जमा कुल धनराशि का एक निश्चित भाग नकद कोष में रखकर शेष धनराशि को उधार देता है। ऋण देते समय बैंक व्यक्ति की आवश्यकता, साख वे जमानत का भी ध्यान रखता है। यह निम्नलिखित प्रकार से ऋण प्रदान करता है

  1. साधारण ऋण इस प्रकार का ऋण जमानत मिलने पर एक निश्चित समयावधि के लिए दिया जाता है। साधारण ऋण (Simple Loan) पर ब्याज उसी दिन से प्रारम्भ हो जाती है, जिस दिन से ग्राहक के खाते में ऋण राशि जमा की जाती है।
  2. अधिविकर्ष बैंक अपने विश्वसनीय ग्राहकों को उनके खाते में जमा धनराशि से भी अधिक धनराशि निकालने की सुविधा देता है, जिसे अधिविकर्ष (Overdraft) कहते हैं।
  3. नकद साख बैंक चल अथवा अचल सम्पत्ति की जमानत पर एक निश्चित मात्रा में ग्राहक को ऋण लेने का अधिकार प्रदान करता है। बैंक इस धनराशि पर ब्याज भी वसूल करता है।
  4. विनिमय-विपत्रों को भुनाना बैंक विनिमय-विपत्रों, हुण्डियों और व्यापारिक विपत्रों को बट्टे पर भुनाकर भी अल्पकाल के लिए ऋण देता है विनिमय-विपत्रों को भुनाने में (Discounting of Bills of Exchange) बैंक मितीकाटा ब्याज लेता है।

UP Board Solutions

II. सामान्य बैंकिंग कार्य बैंक के सामान्य कार्य निम्नलिखित हैं

  1. साख-पत्रों का निर्गमन बैंक ग्राहकों के लिए बैंक ड्राफ्ट, (UPBoardSolutions.com) यात्री चैक, हुण्डी व साख-पत्र, आदि के निर्गमन की सुविधा देता है, जिससे वर्तमान समय में धनराशि एक स्थान से दूसरे स्थान पर सरलतापूर्वक भेजी जा सकती है।
  2. पत्र-मुद्रा का निर्गमन बैंक द्वारा पत्र-मुद्रा का निर्गमन भी किया जाता है। यह कार्य वर्तमान में रिज़र्व बैंक ही करता है।
  3. विदेशी विनिमय का क्रय-विक्रय बैंक ग्राहकों की सुविधा के लिए विदेशी मुद्रा भी उपलब्ध करवाता है।

III. एजेन्सी सम्बन्धी कार्य बैंक के एजेन्सी सम्बन्धी कार्य निम्नलिखित हैं

  1. ग्राहक की ओर से भुगतान करना ब्याज, बीमा किस्त व ऋण, आदि का भुगतान भी बैंक द्वारा ग्राहक की ओर से किया जाता है।
  2. अभिगोपन का कार्य करना बैंक औद्योगिक एवं व्यापारिक इकाइयों के अंश एवं ऋणपत्रों के अभिगोपन का कार्य भी करते हैं।
  3. ग्राहकों की ओर से भुगतान संग्रह करना बैंक अपने ग्राहक के लिए किराया, ब्याज, ऋण की किस्त, आदि की वसूली का कार्य भी करते हैं।
  4. प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करना बैंक अपने ग्राहक की ओर से उसके आदेशानुसार प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय का कार्य भी करते हैं। बैंक अपने ग्राहक के लिए चैक, बिल व हुण्डी, आदि की वसूली का कार्य भी करते हैं।
  5. धन का स्थानान्तरण बैंक अपने ग्राहकों के लिए धन के स्थानान्तरण की सुविधा एक स्थान से दूसरे स्थान पर उचित माध्यम से शीघ्र व सस्ते माध्यम से प्रदान करता है।

IV. अन्य कार्य बैंक द्वारा किए जाने वाले अन्य कार्य निम्नलिखित हैं

  1. समाशोधन-गृह का कार्य करना बैंक अपने ग्राहकों की सुविधा के लिए समाशोधन-गृह का कार्य भी करता है।
  2. सरकार को आर्थिक सहायता देना बैंक सरकार को आवश्यकता होने पर ऋण प्रदान करते हैं।
  3. व्यापारिक आँकड़ों का प्रकाशन बैंक व्यापार एवं उद्योगों (UPBoardSolutions.com) से सम्बन्धित आँकड़ों का प्रकाशन करते हैं।
  4. बहुमूल्य वस्तुओं की सुरक्षा बैंक ग्राहकों को लॉकर्स की सुविधा प्रदान करके उनकी बहुमूल्य वस्तुओं की सुरक्षा करते हैं।
  5. व्यापारिक सूचना प्रदान करना बैंक अनेक आवश्यक सूचनाएँ अपने ग्राहकों तक पहुँचाकर उनकी व्यापार वृद्धि में सहायता करते हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 2.
समाशोधन-गृह से आप क्या समझते हैं? समाशोधन-गृह के गुण व दोषों को बताइए। (2015)
उत्तर:
समाशोधन-गृह से आशय समाशोधन-गृह का तात्पर्य उस संस्था से है, जो बैंकों को पारस्परिक लेन-देन की सुविधा प्रदान करती है। यह एक बड़ा बैंक होता है, जो अनेक बैंकों के पारस्परिक लेन-देन को लेखा करता है, जिससे लेन-देन में कम-से-कम नकद मुद्रा का प्रयोग होता है, इन्हें ‘निकासी-गृह’ (Clearing House) भी कहा जाता है। प्रो. टॉजिंग के अनुसार, “समाशोधन-गृह किसी एक स्थान के बैंकों का एक ऐसा सामान्य संगठन है, जिसका मुख्य उद्देश्य बैंकों द्वारा निर्मित परस्पर दायित्व का चैकों द्वारा निपटारा या भुगतान करना होता है।”

समाशोधन-गृह के गुण या लाभ समाशोधन-गृह के लाभ/गुण निम्नलिखिते हैं-

  1. बैंकों की कार्यक्षमता में वृद्धि समाशोधन-गृह के कारण बैंकों के समय व व्यय में कमी आती है, जिससे बैंकों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
  2. जोखिम से मुक्ति इनके उपलब्ध होने के कारण धन को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने व ले जाने का जोखिम समाप्त हो जाता है।
  3. भुगतान में सुविधा इनकी सहायता से बैंकों के पारस्परिक भुगतान शीघ्र व सरलता से किए जा सकते हैं।
  4. नकद कोष में कमी इनके कारण बैंकों को अधिक मात्रा में नकद (UPBoardSolutions.com) कोष रखने की आवश्यकता नहीं होती है।
  5. बैंकों के पारस्परिक सहयोग में वृद्धि समाशोधन-गृहों से बैंकों के पारस्परिक सहयोग की भावना में वृद्धि होती है।
  6. मुद्रा के उपयोग में मितव्ययिता समाशोधन-गृह के कारण बैंकों के आपसी लेन-देन नकद में न होकर सीधे खाते में नाम या जमा होते हैं। इससे मुद्रा के प्रयोग में मितव्ययिता आती है।

समाशोधन-गृह के दोष समाशोधन-गृह के दोष निम्नलिखित हैं-

  1. समाशोधन-गृहों की संख्या कम होना समाशोधन-गृहों की संख्या कम होने के कारण लेन-देन करने में परेशानी होती है।
  2. सदस्यता नियमों में कठोरता होना समाशोधन-गृह में सदस्य बनने के नियमों का कठोरता से पालन किया जाता है।
  3. सभी समाशोधन-गृहों के नियमों में भिन्नता होना सभी समाशोधन-गृहों के नियम अलग-अलग होते हैं, जिससे इनके द्वारा लेन-देन करने में कठिनाई होती है।

UP Board Solutions

प्रश्न 3.
बैंकिंग क्षेत्र में आधुनिक प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए। (2018)
उत्तर:
पिछले एक दशक में बैंकिंग क्षेत्र में बहुत तेजी से आधुनिकीकरण हुआ है, जिससे बैंकिंग प्रणाली में सरलता व विश्वसनीयता की वृद्धि हुई है। इसके लिए बैंकों द्वारा कुछ आधुनिक विधियाँ अपनाई गई हैं, जिन्हें निम्न शीर्षकों द्वारा समझा जा सकता है

1. साख-पत्र साख-पत्र वह पत्र है, जिसके आधार पर साख-पत्र धारी देश-विदेश में विभागीय भण्डारों, होटलों तथा अन्य प्रमुख संस्थानों से बिना रकम दिए माल अथवा सेवा प्राप्त कर सकता है। इस पत्र का स्पष्ट अर्थ है कि ग्राहक या साख-पत्र धारी को कहीं भी किसी भी परिस्थिति में कोई भी अधिकृत विभागीय भण्डार, होटल या अन्य संस्था उधार माल या सेवा प्रदान कर सकती है और इसका भुगतान बैंक द्वारा ग्राहक के खाते से कर दिया जाता है। इसके लिए बैंक ग्राहक से उस धनराशि पर कुछ दर से ब्याज वसूलता है।

2. यन्त्रीकरण एवं आधुनिकीकरण बैंक अपनी वर्तमान कार्य प्रणाली में सुधार करने, बेहतर व शीघ्र सेवा प्रदान करने के दृष्टिकोण से यन्त्रीकरण व कम्प्यूटरीकरण पर अधिक ध्यान दे रहे हैं, जिससे ग्राहक तथा बैंक कर्मचारियों के समय व श्रम की बचत होती है।

3. यन्त्रीकृत चैक एवं समाशोधन-गृह 1 जुलाई, 2013 से सभी बैंक CTS-2010 मापदण्ड के चैक जारी कर रहे हैं। इन चैकों का महत्त्व यह है कि यह चैक सम्बन्धित बैंक की किसी भी शाखा से भुनाए जा सकते हैं। इसके लिए बैंकों के प्रतिनिधि दो दिन में एक (UPBoardSolutions.com) बार एक अधिकृत व सुरक्षित स्थान पर इन चैकों का बैंकों के अनुसार आपस में आदान-प्रदान करते हैं। जिस स्थान पर इन चैकों का आदान-प्रदान किया जाता है, उसे समाशोधन-गृह कहते हैं।

4. सभी भाषाओं को प्रोत्साहन वर्तमान में बैंक के कर्मचारी व बैंक के उपकरण या यन्त्र सभी भाषाओं (हिन्दी, अंग्रेजी एवं उर्दू) का प्रयोग करते हैं, जिससे ग्राहक की उसकी स्वयं की भाषा में कर्मचारी व उपकरण कार्य कर सकें। इसका महत्त्व अधिक इसलिए है, क्योंकि जिन लोगों को हिन्दी या अंग्रेजी नहीं आती थी तो वे बैंक में रुचि नहीं रखते थे, परन्तु अब ग्राहक की भाषा के अनुसार बैंक कार्य करता है।

UP Board Solutions

5. दूरसंचार नेटवर्क वर्तमान में सभी बैंकों ने अपने दूरसंचार नेटवर्क को मजबूती व तीव्र गति प्रदान की है, जिससे जो कार्य पहले दो या तीन दिन में हुआ करता था, वर्तमान में वह कार्य कुछ ही मिनटों में हो जाता है। जैसे-रकम का खाते से खाते में हस्तान्तरण, डिमाण्ड ड्राफ्ट का भुनाना, इत्यादि।

6. बैंकिंग एप्लीकेशन्स वर्तमान में प्रत्येक बैंक द्वारा अपनी एक एप्लीकेशन लॉन्च की गयी है, जिसके माध्यम से ग्राहक कहीं भी कभी भी अपने खाते से राशि/रकम दूसरे व्यक्ति के खाते में हस्तान्तरित कर सकता है और अपने खाते की स्थिति विवरण प्राप्त कर सकता है। इस (UPBoardSolutions.com) एप्लीकेशन के माध्यम से ग्राहक/खाताधारक मोबाईल रिचार्ज व बिलों का भुगतान कर सकता है, खरीदारी के साथ-साथ अन्य कार्य भी कर सकता है।
बैंकिंग एप्लीकेशन ऑनलाइन बैंकिंग का आधुनिक स्वरूप है।

7. ऑटोमेटिड टेलर मशीन (ए. टी. एम.) ए. टी. एम. को एनी टाइम मनी के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इस मशीन से 24 घण्टे जब चाहे पैसा निकाला जा सकता है। ए. टी. एम. से ग्राहक पैसा निकाल सकते हैं, जमा कर सकते हैं, एक खाते से दूसरे खाते में हस्तान्तरण करा सकते हैं, नई चैक बुक जारी करा सकते हैं और बैंक खाते का विवरण ले सकते हैं।

We hope the UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 14 बैंक ; जन्म, परिभाषा, कार्य एवं महत्त्व help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 14 बैंक ; जन्म, परिभाषा, कार्य एवं महत्त्व, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.