UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium (साम्यावस्था)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 11 Chemistry. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium (साम्यावस्था).

पाठ के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
एक द्रव को सीलबन्द पात्र में निश्चित ताप पर इसके वाष्प के साथ साम्य में रखा जाता है। पात्र का आयतन अचानक बढ़ा दिया जाता है।
(क) वाष्प-दाब परिवर्तन का प्रारम्भिक परिणाम क्या होगा?
(ख) प्रारम्भ में वाष्पन एवं संघनन की दर कैसे बदलती है?
(ग) क्या होगा, जबकि साम्य पुनः अन्तिम रूप से स्थापित हो जाएगा, तब अन्तिम वाष्प दाब क्या होगा?
उत्तर
(क) प्रारम्भ में वाष्प दाब घटेगा क्योंकि वाष्प का समान द्रव्यमान बढ़े आयतन में वितरित होता है।
(ख) बन्द पात्र में नियत ताप पर वाष्पन की दर नियत रहती है संघनन की दर प्रारम्भ में निम्न होगी।
(ग) अन्तिम रूप से स्थापित साम्य में संघनन की दर वाष्पन की देर के समान होती है। अन्तिम वाष्प दाब पहले के समान रहता है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित साम्य के लिए K, क्या होगा, यदि साम्य पर प्रत्येक पदार्थ की सान्द्रताएँ हैं– [SO2]⇌ 0.60 M, [O2] ⇌ 0.82 M एवं [SO3]⇌ 1.90 M
2SO2(g) +O2(g) ⇌ 2SO3(g)
उत्तर
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प्रश्न 3.
एक निश्चित ताप एवं कुल दाब 105 Pa पर आयोडीन वाष्प में आयतनानुसार 40% आयोडीन परमाणु होते हैं।

I2(g) ⇌ 2(g)

साम्य के लिए Kp की गणना कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से प्रत्येक अभिक्रिया के लिए साम्य स्थिरांक Kcको व्यंजक लिखिए-
(i) 2NOCl(g) ⇌ 2NO(g) + Cl2(g)
(ii) 2Cu(NO3)2(s) ⇌ 2CuO(s) + 4NO2(g) + O2(g)
(iii) CH3COOC2H5(g) + H2O(l) ⇌ CH2COOH(aq) + C2H5OH(aq)
(iv) Fe3+ (aq) + 3OH (aq) ⇌ Fe(OH)3 (s)
(v) I2(s) + 5F2 ⇌ 2IF5
उत्तर
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प्रश्न 5.
Kp के मान से निम्नलिखित में से प्रत्येक साम्य के लिए Kc का मान ज्ञात कीजिए-
(i) 2NOCI(g) ⇌ 2NO(g) + Cl2(g); K, ⇌ 1.8×10-2 at 500 K
(ii) CaCO3(s) ⇌ CaO(s) + CO2(g); K, ⇌ 167 at 1073 K
उत्तर
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प्रश्न 6.
साम्य NO(g) +O3(g) ⇌NO2(g) +O2(g) के लिए 1000 K पर Kc ⇌ 6.3×1014 है। साम्य में अग्र एवं प्रतीप दोनों अभिक्रियाएँ प्राथमिक रूप से द्विअणुक हैं। प्रतीप अभिक्रिया के लिए Kc क्या है?
उत्तर
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प्रश्न 7.
साम्य स्थिरांक का व्यंजक लिखते समय समझाइए कि शुद्ध द्रवों एवं ठोसों को उपेक्षित क्यों किया जा सकता है? मोलों की संख्या
उत्तर
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शुद्ध ठोस या शुद्ध द्रव के आण्विक द्रव्यमान तथा घनत्व नियत ताप पर निश्चित होते हैं, अतः इनके मोलर सान्द्रण नियत होते हैं। यही कारण है कि इन्हें साम्य स्थिरांक के व्यंजक में उपेक्षित किया जा सकता है।

प्रश्न 8.
N2 एवं O2 के मध्य निम्नलिखित अभिक्रिया होती है
2N2(g) +O2(g) ⇌ 2N2O(g)
यदि एक 10L के पात्र में 0.482 मोल N, एवं 0.933 मोल O2, रखे जाएँ तथा एक ताप, जिस पर N20 बनने दिया जाए तो साम्य मिश्रण का संघटन ज्ञात कीजिए। Kc ⇌ 2.0×10-37|
उत्तर
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प्रश्न 9.
निम्नलिखित अभिक्रिया के अनुसार नाइट्रिक ऑक्साइड Br2 से अभिक्रिया कर नाइट्रोसिल ब्रोमाइड बनाती है-
2NO(g) + Br2(g) ⇌ 2NOBr(g)
जब स्थिर ताप पर एक बन्द पात्र में 0.087 मोल NO एवं 0.0437 मोल Br2 मिश्रित किए जाते हैं, तब 0.0518 मोल NOBr प्राप्त होती है। NO एवं Br2 की साम्य मात्रा ज्ञात कीजिए।
उत्तर
0.0518 मोल NOBr का निर्माण 0.0518 मोल NO तथा 0.0518/2 ⇌ 0.0259 मोल Br2 से होता है।
अतः साम्य पर,
NO की मात्रा ⇌ 0.087-0.0518 ⇌ 0.0352 mol
Br2 की मात्रा ⇌ 0.0437-0.0259 ⇌ 0.0178 mol

प्रश्न 10.
साम्य 2SO2(g) +O2(g) ⇌ 2SO3(g) के लिए 450K पर Kp ⇌ 2.0×1010/bar है। इस ताप पर Kc का मान ज्ञात कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 11.
HI(g) का एक नमूना 0.2 atm दाब पर एक फ्लास्क में रखा जाता है। साम्य पर HI(g) का आंशिक दाब 0.04 atm है। यहाँ दिए गए साम्य के लिए Kp का मान क्या होगा?
2HI(g) ⇌ H2(g) +I2(g)
उत्तर
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प्रश्न 12.
500 K ताप पर एक 20L पात्र में N2 के 1.57 मोल, H2 के 1.92 मोल एवं NH3 के 8.13 मोल
का मिश्रण लिया जाता है। अभिक्रिया N2(g) +3H2(g) ⇌ 2NH3(g) के लिए Kc का मान 1.7×102 है। क्या अभिक्रिया-मिश्रण साम्य में है? यदि नहीं तो नेट अभिक्रिया की दिशा क्या होगी?
उत्तर
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प्रश्न 13.
एक गैस अभिक्रिया के लिए
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इस व्यंजक के लिए सन्तुलित रासायनिक समीकरण लिखिए।
उत्तर
4NO(g) +6H2O(g) ⇌ 4NH3 (g) +5O2(g)

प्रश्न 14.
H2O का एक मोल एवं CO का एक मोल 725 K ताप पर 10L के पात्र में लिए जाते हैं। साम्य पर 40% जल (भारात्मक) CO के साथ निम्नलिखित समीकरण के अनुसार अभिक्रिया करता है-
H2O(g) + CO(g) ⇌ H2(g) + CO2(g)
अभिक्रिया के लिए साम्य स्थिरांक की गणना कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 15.
700 K ताप पर अभिक्रिया H2(g) +I2(g) ⇌ 2HI(g) के लिए साम्य स्थिरांक 54.8 है। यदि हमने शुरू में HI(g) लिया हो, 700 K ताप साम्य स्थापित हो तथा साम्य पर 0.5 mol L-1HI(g) उपस्थित हो तो साम्य पर H2(g) एवं I2(g) की सान्द्रताएँ क्या होंगी?
उत्तर
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प्रश्न 16.
CI, जिसकी सान्द्रता प्रारम्भ में 0.78M है, को यदि साम्य पर आने दिया जाए तो प्रत्येक की साम्य पर सान्द्रताएँ क्या होंगी?
2ICI(g)⇌ I2(g)+ Cl2(g); Kc = 0.14
उत्तर
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प्रश्न 17.
नीचे दर्शाए गए साम्य में 899K पर Kp का मान 0.04 atm है। C2H6 की साम्य पर सान्द्रता क्या होगी यदि 4.0 atm दाब पर C2H6 को एक फ्लास्क में रखा गया है एवं साम्यावस्था पर आने दिया जाता है?
C2H6(g) ⇌ C2H4(g) + H2(g)
उत्तर
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प्रश्न 18.
एथेनॉल एवं ऐसीटिक अम्ल की अभिक्रिया से एथिलं ऐसीटेट बनाया जाता है एवं साम्य को इस प्रकार दर्शाया जा सकता है
CH3COOH (l)+C2H5H(l) ⇌ CH3COOC2H5(l) + H2O (l)
(i) इस अभिक्रिया के लिए सान्द्रता अनुपात (अभिक्रिया-भागफल) Qc लिखिए (टिप्पणी : यहाँ पर जल आधिक्य में नहीं है एवं विलायक भी नहीं है)
(ii) यदि 293 K पर 1.00 मोल ऐसीटिक अम्ल एवं 0.18 मोल एथेनॉल प्रारम्भ में लिए जाएँ तो अन्तिम साम्य मिश्रण में 0.171मोल एथिल ऐसीटेट है। साम्य स्थिरांक की गणना कीजिए।
(iii) 0.5 मोल एथेनॉल एवं 10 मोल ऐसीटिक अम्ल से प्रारम्भ करते हुए 293 K ताप पर कुछ । समय पश्चात् एथिल ऐसीटेट के 0.214 मोल पाए गए तो क्या साम्य स्थापित हो गया?
उत्तर
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प्रश्न 19.
437K ताप पर निर्वात मैं PCI का एक नमूना एक फ्लास्क में लिया गया। साम्य स्थापित ‘ होने पर PCl5 की सान्द्रता 0.5×10-1molL-1 पाई गई, यदि Kc का मान 8.3×10-3 है तो साम्य पर PCl3 एवं Cl2 की सान्द्रताएँ क्या होंगी?
PCl5(g) ⇌ PCl3(g) + Cl2(g)
उत्तर
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प्रश्न 20.
लौह अयस्क से स्टील बनाते समय जो अभिक्रिया होती है, वह आयरन (II) ऑक्साइड का कार्बन मोनोक्साइड के द्वारा अपचयन है एवं इससे धात्विक लौह एवं CO2 मिलते हैं।
FeO(s) + CO(g) ⇌ Fe(s) + CO2(g); Kp = 0.265 atm at 1050K
1050K पर CO एवं CO2 के साम्य पर आंशिक दाब क्या होंगे, यदि उनके प्रारम्भिक आंशिक दाब हैं-
PCO = 1.4 atm एवं pCO2= 0.80 atm.
उत्तर
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प्रश्न 21.
अभिक्रिया N2(g)+3H2(g) ⇌ 2NH2(g) के लिए (500 K पर) साम्य स्थिरांक Kc= 0.061 है। एक विशेष समय पर मिश्रण का संघटन इस प्रकार है- 3.0 mol L-1N2, 2.0 mol L-1H2 एवं 0.5 mol L-1NH3 क्या अभिक्रिया साम्य में है? यदि नहीं तो साम्य स्थापित करने के लिए अभिक्रिया किस दिशा में अग्रसरित होगी?
उत्तर
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प्रश्न 22.
ब्रोमीन मोनोक्लोराइड BrCI विघटित होकर ब्रोमीन एवं क्लोरीन देता है तथा साम्य स्थापित होता है-
2BrCI(g) ⇌ Be2(g)+Cl2(g) इसके लिए 500K पर Kc = 32 है। यदि प्रारम्भ में BrCI की सान्द्रता 3.3×10-3molL-1 हो तो साम्य पर मिश्रण में इसकी सान्द्रता क्या होगी?
उत्तर
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प्रश्न 23.
1127 K एवं 1 atm दाब पर CO तथा CO2 के गैसीय मिश्रण में साम्यावस्था पर ठोस कार्बन में 90.55% (भारात्मक) CO है।
C(s)+CO2(g) ⇌ 42CO(g)
उपर्युक्त ताप पर अभिक्रिया के लिए Kc के मान की गणना कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 24.
298K पर NO एवं O2 से NO2 बनती है-
NO(g) +[latex]\frac { 1 }{ 2 } [/latex]O2(g) ⇌ NO2(g)
अभिक्रिया के लिए (क) ∆G एवं (ख) साम्य स्थिरांक की गणना कीजिए-
fG (NO2)= 52.0 kJ/mol
fG (NO) = 87.0 kJ/mol
fG (O2) = 0 kJ/mol
उत्तर
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प्रश्न 25.
निम्नलिखित में से प्रत्येक साम्य में जब आयतन बढ़ाकर दाब कम किया जाता है, तब बतलाइए कि अभिक्रिया के उत्पादों के मोलों की संख्या बढ़ती है या घटती है या समान रहती है?
(क) PCl2(g) ⇌ PCl3(g) + Cl2(g)
(ख) CaO(s) + CO2(g) ⇌ CaCO3(s)
(ग) 3Fe(s) + 4H2O(g) ⇌ Fe3O4(s) + 4H2(g)
उत्तर
लोशातेलिए सिद्धान्त के अनुसार दाब कम करने पर उत्पादों के मोलों की संख्या
(क) बढ़ेगी,
(ख) घटेगी,
(ग) समान रहेगी।

प्रश्न 26.
निम्नलिखित में से दाब बढ़ाने पर कौन-कौन सी अभिक्रियाएँ प्रभावित होंगी? यह भी बताएँ कि दाब परिवर्तन करने पर अभिक्रिया अग्र या प्रतीप दिशा में गतिमान होगी?
(i) COCl2(g) ⇌ CO(g);+ Cl2(g)
(ii) CH4(g) + 2S2(g) ⇌ CS2(g) + 2H2S(g)
(iii) CO2(g) + C(s) ⇌ 2C0(g)
(iv) 2H2(g) + CO(g) ⇌ CH3OH(g)
(v) CaCO3(s) ⇌ CaO(s) + CO2(g)
(vi) 4NH3(g) + 5O2(g) ⇌ 4NO(g) + 6H2O(g)
उत्तर
वे अभिक्रियाएँ प्रभावित होंगी जिनमें (n, #n,) हो। अत: अभिक्रियाएँ (i), (iii), (iv), (v) तथा (vi) प्रभावित होंगी। ला-शातेलिए सिद्धान्त के अनुसार हम अभिक्रियाओं की दिशा प्रागुप्त कर सकते हैं।

  1. np = 2, nr = 1 अर्थात् np > nr, अतः अभिक्रिया पश्चे दिशा में होगी।
  2. np = 3, nr = 3 अर्थात् np = nr, अतः अभिक्रिया दाब से प्रभावित नहीं होगी।
  3. np = 2, nr = 1 अर्थात् np >nr, अतः अभिक्रिया पश्च दिशा में होगी।
  4. np = 1, nr = 3 अर्थात् np <nr, अत: अभिक्रिया अग्र दिशा में होगी।
  5. np = 1, nr = 0 अर्थात् np > nr, अत: अभिक्रिया पश्च दिशा में होगी।
  6. np = 10, nr = 9 अर्थात् np >nr, अतः अभिक्रिया पश्च दिशा में होगी।

प्रश्न 27.
निम्नलिखित अभिक्रिया के लिए 1024 K पर साम्य स्थिरांक 1.6 x 105 है।
H2(g)+ Br2(g) ⇌ 2HBr(g)
यदि HBr के 10.0 bar सीलयुक्त पात्र में डाले जाएँ तो सभी गैसों के 1024 K पर साम्य दाब ज्ञात कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 28.
निम्नलिखित ऊष्माशोषी अभिक्रिया के अनुसार ऑक्सीकरण द्वारा डाइहाइड्रोजन गैस | प्राकृतिक गैस से प्राप्त की जाती है-
CH4(g) + H2O(g) ⇌ CO(g) + 3H2(g)
(क) उपर्युक्त अभिक्रिया के लिए Kp का व्यंजक लिखिए।
(ख) Kp एवं अभिक्रिया मिश्रण का साम्य पर संघटन किस प्रकार प्रभावित होगा, यदि?
(i) दाब बढ़ा दिया जाए।
(ii) ताप बढ़ा दिया जाए।
(iii) उत्प्रेरक प्रयुक्त किया जाए।
उत्तर
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(ख)

  1. ला-शातेलिए सिद्धान्त के अनुसार साम्य पश्च दिशा में विस्थापित होगा।
  2. चूँकि दी गयी अभिक्रिया ऊष्माशोषी है, अत: साम्य अग्र दिशा में विस्थापित होगा।
  3.  साम्यावस्था भंग नहीं होगी लेकिन साम्यावस्था शीघ्र प्राप्त होगी।

प्रश्न 29.
साम्य 2H2(g) + CO(g) ⇌ CH2OH(g) पर प्रभाव बताइए|
(क) H2 मिलाने पर
(ख) CH3OH मिलाने पर
(ग) CO हटाने पर
(घ) CH3OH हटाने पर।
उत्तर
ला-शातेलिए सिद्धान्त के अनुसार,
(क) साम्यावस्था अग्र दिशा में विस्थापित होगी।
(ख) साम्यावस्था पश्च दिशा में विस्थापित होगी।
(ग) साम्यावस्था पश्च दिशा में विस्थापित होगी।
(घ) साम्यावस्था अग्र दिशा में विस्थापित होगी।

प्रश्न 30.
473 K पर फॉस्फोरस पेंटाक्लोराइड PCls के विघटन के लिए K. का मान 8.3×10-3 है। यदि विघटन इस प्रकार दर्शाया जाए तो
PCl2(g) ⇌ PCl3(g) + Cl2(g); ∆rH = 124.0 kJ mol-1
(क) अभिक्रिया के लिए Kc क़ा व्यंजक लिखिए।
(ख) प्रतीप अभिक्रिया के लिए समान ताप पर Kc का मान क्या होगा?
(ग) यदि
(i) और अधिक PCl5 मिलाया जाए,
(ii) दाब बढ़ाया जाए तथा
(iii) ताप बढ़ाया जाए तो Kc पर क्या प्रभाव होगा?
उत्तर
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प्रश्न 31.
हेबर विधि में प्रयुक्त हाइड्रोजन को प्राकृतिक गैस से प्राप्त मेथेन को उच्च ताप की भाप से क्रिया कर बनाया जाता है। दो पदों वाली अभिक्रिया में प्रथम पद में CO एवं H2 बनती हैं। दूसरे पद में प्रथम पद में बनने वाली CO और अधिक भाप से अभिक्रिया करती है।
CO(g) + H2O(g) ⇌ CO2(g) + H2(g)
यदि 400°C पर अभिक्रिया पात्र में co एवं भाप का सममोलर मिश्रण इस प्रकार लिया जाए कि pCO = PH2O = 4.0 bar, H2 का साम्यावस्था पर आंशिक दाब क्या होगा? 400°C पर Kp = 10.1
उत्तर
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प्रश्न 32.
बताइए कि निम्नलिखित में से किस अभिक्रिया में अभिकारकों एवं उत्पादों की सान्द्रता सुप्रेक्ष्य होगी-
(क) Cl2(g) ⇌ 2Cl(g) Kc=5×10-39
(ख) Cl2(g) + 2NO(g) ⇌ 2NOCI(g) Kc = 3.7×108
(ग) Cl2(g) + 2NO2(g) ⇌ 2NO2Cl(g) Kc = 1.8
उत्तर
अभिक्रिया (ग) जिसके लिए Kन उच्च और न निम्न में अभिकारकों तथा उत्पादों की सान्द्रता सुप्रेक्ष्य होगी।

प्रश्न 33.
25°C पर अभिक्रिया 3O2(g)⇌ 2O3 (g) के लिए K. का मान 2.0 x 10-50है। यदि वायु में 25°C ताप पर O2 की साम्यावस्था सान्द्रता 1.6 x 10-2 है तो की सान्द्रता क्या होगी?
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-34

प्रश्न 34.
Co(g) +3H2(g)⇌CH4(g) + H2O(g) अभिक्रिया एक लीटर फ्लास्क में 1300 K पर साम्यावस्था में है। इसमें CO के 0.3 मोल, H2 के 0.01 मोल, H2O के 0.02 मोल एवं CH4 की अज्ञात मात्रा है। दिए गए ताप पर अभिक्रिया के लिए Kc का मान 3.90 है। मिश्रण CH4 की मात्रा ज्ञात कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-35

प्रश्न 35.
संयुग्मी अम्ल-क्षारक युग्म का क्या अर्थ है? निम्नलिखित स्पीशीज के लिए संयुग्मी अम्ल/क्षारक बताइए- HNO2, CN, HClO4, F, OH,CO2-3 एवं S2-
उत्तर
संयुग्मी अम्ल-क्षार युग्म (Conjugate acid-base pair)-अम्ल-क्षार युग्म जिसमें एक प्रोटॉन का अंतर होता है, संयुग्मी अम्ल-क्षार युग्म कहलाता है। अम्ल-HNO2,HClO4
क्षारक- CN, F, OH, CO2-3 एवं S2-
इनके संयुग्मी अम्ल/क्षारक निम्नलिखित हैं-
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-36

प्रश्न 36.
निम्नलिखित में से कौन-से लूइस अल ही
H2O, BF3, H+ एवं NH4+
उत्तर
BF3, H+ तथा NH4+.

प्रश्न 37.
निम्नलिखित ब्रान्स्टेड अम्लों के लिए संयुग्मकों कैमून लिखिए-
HF, H2SO4 एवं HCO3
उत्तर
F,HSO4 तथा CO2-3
(संयुग्मी क्षारक ⇌ संयुग्मी अम्ल H+)

प्रश्न 38.
ब्रान्स्टेड क्षारकों NH2, NH2 तथा HCOO के संयुग्मी अम्ल लिखिए
उत्तर
NH3, NH+4, HCOOH
(संयुग्मी अम्ल ⇌ संयुग्मी क्षारक +H+)

प्रश्न 39.
स्पीशीज H2O, HCO2, HSO4 ता NH2 ब्राम्स्टेड अम्ल तथा क्षारक-दोनों की भाँति व्यवहार करते हैं। प्रत्येक के संयुग्मी अम्ल लथा-क्षकबाइए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-37

प्रश्न 40.
निम्नलिखित स्पीशीज को लूइस अम्ल तथा क्षारक में वर्गीकृत कीजिए तथा बताइए कि ये किस प्रकार लूइस अम्ल-क्षारक के समान कार्य करते हैं—
(क) OH
(ख) F
(ग) H+
(घ) BCl3
उत्तर
(क) OH इलेक्ट्रॉन युग्म दान कर सकता है, अतः यह लुइस क्षारक है।
(ख) F इलेक्ट्रॉन युग्म दान कर सकता है, अतः यह लुइस क्षारक है।
(ग) H+ इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण कर सकता है, अतः यह लुइस अम्ले है।
(घ) BCl3 इलेक्ट्रॉन न्यून स्पीशीज है, अतः यह लुइस अम्ल है।

प्रश्न 41.
एक मृदु पेय के नमूने में हाइड्रोजन आयन की सान्द्रता 3.8 x 10-3 M है। उसकी pH परिकलित कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-38
pH=-log[H+]=-log(3.8×10-3)= 2.42

प्रश्न 42.
सिरके के नमूने की pH 3.76 है, इसमें हाइड्रोजन आयन की सान्द्रता ज्ञात कीजिए।
उत्तर
∴ log [H+]=-3.76
या [H+] = antilog (-3.76) = antilog 4.24 = 1.74×10-4 M

प्रश्न 43.
HF, HCOOH तथा HCN का 298K पर आयनन स्थिरांक क्रमशः 6.8 x 10-4, 1.8 x 10-4 तथा 4.8 x 10-9 है। इनके संगत संयुग्मी क्षारकों के आयनन स्थिरांक ज्ञात कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-39

प्रश्न 44.
फीनॉल का आयनन स्थिरांक 1.0 x 10-10 है। 0.05 M फीनॉल के विलयन में फीनॉलेट आयन की सान्द्रता तथा 0.01 M सोडियम फीनेट विलयन में उसके आयनन की मात्रा ज्ञात कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-40
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-41
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-42

प्रश्न 45.
H2S का प्रथम आयनन स्थिरांक 9.1×10-8 है। इसके 0:1 M विलयन में HS आयनों की सान्द्रता की गणना कीजिए तथा बताइए कि यदि इसमें 0.1 M HCl भी उपस्थित हो तो | सान्द्रता किस प्रकार प्रभावित होगी? यदि H2S का द्वितीय वियोजन स्थिरांक 1.2×10-13 हो तो सल्फाइड S2- आयनों की दोनों स्थितियों में सान्द्रता की गणना कीजिए।
उत्तर
प्रथम परिस्थिति के अनुसार,
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UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-44
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-45

प्रश्न 46.
ऐसीटिक अम्ल का आयनन स्थिरांक 1.74 x10-5 है। इसके 0.05 M विलयन में वियोजन की मात्रा, ऐसीटेट आयन सान्द्रता तथा pH का परिकलन कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-46

प्रश्न 47.
0.01 M कार्बनिक अम्ल [HA] के विलयन की pH, 4.15 है। इसके ऋणायन की सान्द्रता, अम्ल का आयनन स्थिरांक तथा pKa, मान परिकलित कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-47

प्रश्न 48.
पूर्ण वियोजन मानते हुए निम्नलिखित विलयनों के pH ज्ञात कीजिए
(क) 0.003 M HCI
(ख) 0.005 M NaOH
(ग) 0.002 M HBr
(घ) 0.002 M KOH
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-48

प्रश्न 49.
निम्नलिखित विलयनों के pH ज्ञात कीजिए–
(क) 2 ग्राम TIOH को जल में घोलकर 2 लीटर विलयन बनाया जाए।
(ख) 0.3 ग्राम Ca(OH)2 को ज़ल में घोलकर 500 mL विलयन बनाया जाए।
(ग) 0:3 ग्राम NaOH को जल में घोलकर 200 mL विलयन बनाया जाए।
(घ) 13.6 MHCI के 1 mL को जल से तनुकरण करके कुल आयतन 1 लीटर किया जाए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-49
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-50

प्रश्न 50.
ब्रोमोऐसीटिक अम्ल की आयनन की मात्रा 0.132 है। 0.1 M अम्ल की pH तथा pKa का मान ज्ञात कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-51

प्रश्न 51.
0.005 M कोडीन (C18H21NO3) विलयन की pH 9.95 है। इसका आयनन स्थिरांक ज्ञात कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-52
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-53

प्रश्न 52.
0.001 M ऐनिलीन विलयन का pH क्या है? ऐनिलीन का आयनन स्थिरांक 4.27×10-10 है। इसके संयुग्मी अम्ल का आयनन स्थिरांक ज्ञात कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 53.
यदि 0.05 M ऐसीटिक अम्ल के pKa का मान 4.74 है तो आयनने की मात्रा ज्ञात कीजिए। यदि इसे
(अ) 0.01 M
(ब) 0.1 M HCI विलयन में डाला जाए तो वियोजन की मात्रा किस प्रकार प्रभावित होती है?
उत्तर
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प्रश्न 54.
डाइमेथिल ऐमीन का आयनन स्थिरांक 5.4×10-4 है। इसके 0.02 M विलयन की आयनन की मात्रा की गणना कीजिए। यदि यह विलयन NaOH प्रति 0.1 M हो तो डाइमेथिल ऐमीन का प्रतिशत आयनन क्या होगा?
उत्तर
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प्रश्न 55.
निम्नलिखित जैविक द्रवों, जिनमें pH दी गई है, की हाइड्रोजन आयन सान्द्रता परिकलित कीजिए-
(क) मानव पेशीय द्रव, 6.83
(ख) मानव उदर द्रव, 1.2
(ग) मानव रुधिर, 7.38
(घ) मानव लार, 6.4
उत्तर
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प्रश्न 56.
दूध, कॉफी, टमाटर रस, नींबू रस तथा अण्डे की सफेदी के pH का मान क्रमशः 6.8, 5.0, 4.2, 2.2 तथा 7.8 हैं। प्रत्येक के संगत H+ आयन की सान्द्रता ज्ञात कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 57.
298 K पर 0.561 g, KOH जल में घोलने पर प्राप्त 200 mL विलयन की pH तथा पोटैशियम, हाइड्रोजन तथा हाइड्रॉक्सिल आयनों की सान्द्रताएँ ज्ञात कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 58.
298 K पर Sr(OH)2 विलयन की विलेयता 19.23 g/L है। स्ट्रांशियम तथा हाइड्रॉक्सिल आयन की सान्द्रता तथा विलयन की pH ज्ञात कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 59.
प्रोपेनोइक अम्ल का आयनन स्थिरांक 1.32 x 10-5 है। 0.05 M अम्ल विलयन के आयनन की मात्रा तथा pH ज्ञात कीजिए। यदि विलयन में 0.01 MHCI मिलाया जाए तो उसके आयनन की मात्रा ज्ञात कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 60.
यदि सायनिक अम्ल (HCNO) के 0.1 M विलयन की pH 2.34 हो तो अम्ल के आयनन स्थिरांक तथा आयनन की मात्रा ज्ञात कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 61.
यदि नाइट्रस अम्ल का आयनन स्थिरांक 4.5×10-4 है तो 0.04 M सोडियम नाइट्राइट विलयन की pH तथा जलयोजन की मात्रा ज्ञात कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 62.
यदि पिरीडिनीयम हाइड्रोजन क्लोराइड के 0.02 M विलयन का pH 3.44 है तो पिरीडीन का आयनन स्थिरांक ज्ञात कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 63.
निम्नलिखित लवणों के जलीय विलयनों के उदासीन, अम्लीय तथा क्षारीय होने की प्रागुक्ति कीजिए
NaCI, KBr, NaCN, NH4NO3, NaNO2 तथा KF
उत्तर
NaCN, NaNO2, KF विलयन क्षारीय प्रकृति के होते हैं क्योंकि ये प्रबल क्षारक तथा दुर्बल अम्ल के लवण होते हैं। NaCl, KBr विलयन उदासीन प्रकृति के होते हैं क्योंकि ये प्रबल अम्ल तथा प्रबल क्षारक के लवण होते हैं। NH4NO3 विलयन अम्लीय प्रकृति का होता है क्योंकि यह प्रबल अम्ल तथा दुर्बल क्षारक को लवण होता है।

प्रश्न 64.
क्लोरोऐसीटिक अम्ल का आयनन स्थिरांक 1.35×10-3 है। 0.1 M अम्ल तथा इसके 0.1 M सोडियम लवण की pH ज्ञात कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 65.
310 K पर जल का आयनिक गुणनफल 2.7×10-14 है। इसी तापक्रम पर उदासीन जल की pH ज्ञात कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-71

प्रश्न 66.
निम्नलिखित मिश्रणों की pH परिकलित कीजिए-
(क) 0.2 M Ca(OH)2 का 10 mL + 0.1 M HCI का 25 mL
(ख) 0.01 M H2SO4 का 10 mL+ 0.01 M Ca(OH)2 का 10 mL
(ग) 0.1 MH2SO4 का 10 mL + 0.1 M KOH का 10.mL
उत्तर
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प्रश्न 67.
सिल्वर क्रोमेट, बेरियम क्रोमेट, फेरिक हाइड्रॉक्साइड, लेड क्लोराइड तथा मयूरस आयोडाइड विलयन के 298 K पर निम्नलिखित दिए गए विलेयता गुणनफल स्थिरांक की सहायता से विलेयता ज्ञात कीजिए तथा प्रत्येक आयन की मोलरता भी ज्ञात कीजिए।
उत्तर
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UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-76

प्रश्न 68.
Ag2CrO4 तथा AgBr का विलेयता गुणनफल स्थिरांक क्रमशः 1.1 x 10-12तथा 5.0×10-13 हैं। उनके संतृप्त विलयन की मोलरता का अनुपात ज्ञात कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 69.
यदि 0-002 M सान्द्रता वाले सोडियम आयोडेट तथा क्यूप्रिंक क्लोरेट विलयन के समान आयतन को मिलाया जाए तो क्या कॉपर आयोडेट का अवक्षेपण होगा? (कॉपर आयोडेट के लिए Ksp = 7.4×10-8)
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-78

प्रश्न 70.
बेन्जोइक अम्ल का आयनन स्थिरांक 6.46 x 10-5 तथा सिल्वर बेन्जोएट का Ksp 2.5×10-13 है। 3.19 pH वाले बफर विलयन में सिल्वर बेन्जोएट जल की तुलना में कितना गुना विलेय होगा?
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-79
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-80

प्रश्न 71.
फेरस सल्फेट तथा सोडियम सल्फाइड के सममोलर विलयनों की अधिकतम सान्द्रता बताइए जब उनके समान आयतन मिलाने पर आयरन सल्फाइड अवक्षेपित न हो।
(आयरन सल्फाइड के लिए Ksp = 6.3×10-18)।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-81

प्रश्न 72.
1 ग्राम कैल्सियम सल्फेट को घोलने के लिए कम से कम कितने आयतन जल की आवश्यकता होगी? (कैल्सियम सल्फेट के लिए Ksp = 9.1×10-6)
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-82
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-83

प्रश्न 73.
0.1 MHCI में हाइड्रोजन सल्फाइड से संतृप्त विलयन की सान्द्रता 1.0×10-19 M है। यदि इस विलयन का 10 mL निम्नलिखित 0.04 M विलयन के 5 mL में डाला जाए तो किन विलयनों से अवक्षेप प्राप्त होगा? FeSO4, MnCl2, ZnCl2 एवं CaCl2
उत्तर
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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वह साम्यावस्था जिस पर दाब बदलने का कोई प्रभाव नहीं होता है, है
(i) N2(g)+O2(g) ⇌2NO(g)
(ii) 2SO2(g)+O2(g) ⇌ 2SO3(g)
(iii) 2O3(g)⇌ 3O2(g)
(iv) 2NO2(g)⇌ N2O4(g)
उत्तर
(i) N2(g)+O2(g) ⇌ 2NO(g)

प्रश्न 2.
एक उत्क्रमणीय अभिक्रिया का उदाहरण है।
(i) AgNO3 + HCl ⇌ AgCl + HNO3
(ii) HgCl2 + H2S ⇌ Hgs + 2HCl
(iii) KNO3 + NaCl ⇌ KCl + NaNO3
(iv) 2Na + 2H2O ⇌2NaOH + H2
उत्तर
(iii) KNO3 + NaCl ⇌ KCl + NaNO3

प्रश्न 3.
अभिक्रिया H2(g) + I2(g) ⇌2HI(g) में H2, I2 व HI के साम्यावस्था में मोलर सान्द्रण क्रमशः 0.2 मोल प्रति लीटर, 0.3 मोल प्रति लीटर तथा 0.6 मोल प्रति लीटर हैं। साम्य स्थिरांक Kc का मान है।
(i) 1
(ii) 6
(iii) 2
(iv) 3
उत्तर
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प्रश्न 4.
निकाय 2A (g) + B(g) ⇌ 3C(g) के लिए साम्य स्थिरांक Kc बराबर होगा
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-86
उत्तर
(iv) [latex]\frac { \left[ C \right] ^{ 3 } }{ \left[ A \right] ^{ 2 }\left[ B \right] } [/latex]

प्रश्न 5.
यदि अभिक्रिया H2(g) + I2(g) ⇌ 2HI(g) के लिए Kc का मान 50 है तो अभिक्रिया 2HI(g) ⇌ H2(g) + I2(g) के लिए Kc का मान होगा
(i) 20.0
(ii) [latex]\frac { 1 }{ 50 } [/latex]
(iii) 50
(iv) 5.0
उत्तर
(i) [latex]\frac { 1 }{ 50 } [/latex]

प्रश्न 6.
एक उत्क्रमणीय अभिक्रिया में दो पदार्थ साम्य में हैं। यदि प्रत्येक पदार्थ का सान्द्रण दोगुना कर दिया जाए, तो साम्य स्थिरांक होगा
(i) स्थिर
(ii) पहले के मान का आधा
(iii) पहले के मान का चौथाई
(iv) दोगुना
उत्तर
(i) स्थिर

प्रश्न 7.
समांगी अभिक्रिया 4NH3 + 5O2 ⇌ 4NO + 6H2O के लिए Kc की इकाई है।
(i) सान्द्रता
(ii) सान्द्रता+1
(iii) सान्द्रता-1
(iv) यह विमारहित है।
उत्तर
(ii) सान्द्रता+1

प्रश्न 8.
अभिक्रिया [latex]\frac { 1 }{ 2 } { N }_{ 2 }+\frac { 3 }{ 2 } { H }_{ 2 }\rightleftharpoons N{ H }[/latex] के लिए किसी ताप पर साम्य स्थिरांक का मान 0.2 मोल-1 लीटर है। उसी ताप पर अभिक्रिया [latex]2N{ H }_{ 3 }\rightleftharpoons { N }_{ 2 }+3{ H }_{ 2 }[/latex] के लिए साम्य स्थिरांक का मान है।
(i) 10
(ii) 5
(iii) 25
(iv) 50
उत्तर
(iii) 25

प्रश्न 9.
स्थिर दाब पर साम्य मिश्रण में अक्रिय गैस मिलानेपर [latex]{ K }_{ c }=\frac { { x }^{ 2 } }{ \left( a-x \right) V } [/latex] में x का मान हो जाएगा
(i) अपरिवर्तित
(ii) अधिक
(iii) कम
(iv) शून्य
उत्तर
(ii) अधिक

प्रश्न 10.
साम्य स्थिरांक Kc की यूनिट अभिक्रिया N2(g) + 3H2(g) ⇌2NH3(g) के लिए होगी
(i) लीटर2 मोल-2
(ii) लीटर मोल-2
(iii) लीटर मोल-1
(iv) मोल लीटर-1
उत्तर
(i) लीटर2 मोल-2

प्रश्न 11.
एक जलीय विलयन में निम्नलिखित साम्य है।
CH2COOH ⇌ CH2COO + H+ यदि इस विलयन में तनु HCI अम्ल मिलाया जाता है, तो
(i) साम्य स्थिरांक बढ़ जायेगा
(ii) साम्य स्थिरांक घट जायेगा
(iii) ऐसीटेट आयन की सान्द्रता घट जायेगी
(iv) ऐसीटेट आयन की सान्द्रता बढ़ जायेगी
उत्तर
(iii) ऐसीटेट आयन की सान्द्रता घट जायेगी।

प्रश्न 12.
अभिक्रिया 2NH3 ⇌ N2 + 3H2 के लिए किसी ताप पर साम्य स्थिरांक (Kc) का
मान K1 है। इसी ताप पर अभिक्रिया [latex]\frac { 1 }{ 2 } { N }_{ 2 }+\frac { 3 }{ 2 } { H }_{ 2 }\rightleftharpoons N{ H }_{ 3 }[/latex] के लिए साम्य स्थिरांक (Kc) का मान K2 है। साम्य स्थिरांक K1 तथा K2 के सम्बन्ध का सही समीकरण है।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-87
उत्तर
(iv) [latex]{ K }_{ 2 }=\frac { 1 }{ \sqrt { { K }_{ 1 } } } [/latex]

प्रश्न 13.
अभिक्रिया 2SO3 ⇌ 2SO2 + O2 के लिए साम्य स्थिरांक Kp तथा Kc के मात्रक क्रमशः हैं।
(i) कोई नहीं, मील2-लीटर-2
(ii) वायुमण्डल, मोल-लीटर-2
(iii) वायुमण्डल, कोई नहीं
(iv) वायुमण्डल, मोल-लीटर-1
उत्तर
(iv) वायुमण्डल, मोल-लीट-1

प्रश्न 14.
ला-शातेलिए का नियम निम्न में से किसके लिए लागू नहीं होता है ?
(i) H2(g)+I2(g) ⇌2HI(g)
(ii) 2SO2(g)+O2(g) ⇌ 2SO3(g)
(iii) N2(g)+3H2(g)⇌⇌ 2NH3(g)
(iv) Fe(s)+S(s) ⇌ FeS(s)
उत्तर
(iv) Fe(s)+S(s) ⇌ FeS(s)

प्रश्न 15.
0.001N H2SO4 विलयन का pH मान होगा
(i) 5
(ii) 2
(iii) 3
(iv) 11
उत्तर
(iii) 3

प्रश्न 16.
यदि किसी जलीय विलयन के pH का मान शून्य हो, तो वह विलयन होगा
(i) अम्लीय
(ii) क्षारीय
(iii) उदासीन
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(i) अम्लीय

प्रश्न 17.
लवण जिसके नॉर्मल जलीय विलयन के pH मान की सर्वाधिक होने की सम्भावना है, वह है।
(i) CH3COONH4
(ii) NH2Cl
(iii) NaCN
(iv) KCl
उत्तर
(iii) NaCN

प्रश्न 18.
निम्नलिखित में से किस जलीय विलयन का pH मान सबसे कम है?
(i) NaOH
(ii) NaCl
(iii) NH4Cl
(iv) NH4OH
उत्तर
(iii) NH4Cl

प्रश्न 19.
ऐसीटिक अम्ल 50% वियोजित होता है। 0.0002 N ऐसीटिक अम्ल का pH मान है।
(i) 3.6
(ii) 4
(iii) 3
(iv) 3.4
उत्तर
(i) 4

प्रश्न 20.
एक जलीय विलयन का pH4 है। विलयन में हाइड्रोजन आयनों की सान्द्रता होगी
(i) 10-2 मोल/लीटर
(ii) 10-4 मोल/लीटर
(iii) 10-6 मोल/लीटर
(iv) 10-8 मोल/लीटर
उत्तर
(ii) 10-4 मोल/लीटर

प्रश्न 21.
[latex]\frac { N }{ 1000 } [/latex] HCI विलयन का pH होगा
(i) 3
(ii) 6
(iii) 9
(iv) 12
उत्तर
(i) 3

प्रश्न 22.
AgCI की विलेयता NaCI विलयन में जल की अपेक्षा कम होने का कारण है।
(i) लवण प्रभाव
(ii) सम-आयन प्रभाव
(iii) विलेयता गुणनफुल का कम होना।
(iv) जटिल यौगिक का बनना
उत्तर
(ii) सम-आयन प्रभाव

प्रश्न 23.
निम्नलिखित में से किस प्रतिरोधक (बफर) विलयन का pH मान 7 से अधिक होगा?
(i) CH3COOH+CH2COONa
(ii) NH4OH+ NH4Cl
(iii) HCOOH + HCOOK
(iv) HCN+ KCN
उत्तर
(ii) NH4OH+NH4Cl

प्रश्न 24.
निम्नलिखित में से कौन-सा उभय प्रतिरोधी (बफर) विलयन है?
(i) KOH+ HCl ।
(ii) HNO3 +NaNO3
(iii) HCOOH + HCOONa
(iv) HCl + NaCl
उत्तर
(iii) HCOOH + HCOONa

प्रश्न 25.
निम्नलिखित में से कौन-सा प्रतिरोधक (बफर) विलयन है?
(i) KOH + KCl
(ii) HNO3 + KNO3
(iii) NH4Cl + NH4OH
(iv) HCl + NaCl
उत्तर
(iii) NH4Cl + NH4OH

प्रश्न 26.
Ag2CrO4, के संतृप्त विलयन में CrO42- की सान्द्रता 1.0×10-4 मोल/लीटर है। इसके विलेयता गुणनफल का मान होगा
(i) 10×10-8
(ii) 10×10-12
(iii) 4.0×10-8
(iv) 4.0×10-12
उत्तर
(iv) 4.0×10-12

प्रश्न 27.
लवण AB2के संतृप्त विलयन में [B] की सान्द्रता x मोल/लीटर है। लवण के विलेयता गुणनफल का मान है।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-88
उत्तर
(i) [latex]\frac { { x }^{ 3 } }{ 2 } [/latex]

प्रश्न 28.
20°C पर AgCI की विलेयता 1×10-5मोल/लीटर है। AgCI का विलेयता गुणनफल होगा
(i) 10-10
(ii) 1.435×10-3
(iii) 2×10-5
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(i) 10-10

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रासायनिक साम्यावस्था किसे कहते हैं? इसके मुख्य लक्षण क्या हैं?
उत्तर
किसी उत्क्रमणीय अभिक्रिया की वह अवस्था जिसमें अभिकारक तथा उत्पाद पदार्थों का सान्द्रण अपरिवर्तित रहता है, रासायनिक साम्यावस्था कहलाती है। अभिक्रिया की साम्यावस्था पर अभिकारकों से जिस मात्रा में उत्पाद बनते हैं, उसी मात्रा के समतुल्य उत्पाद से अभिकारक भी बनते
रासायनिक साम्य के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं।

  1. केवल उत्क्रमणीय अभिक्रियाएँ साम्यावस्था प्राप्त करती हैं।
  2. अग्र तथा विपरीत अभिक्रियाओं का वेग समान तथा विपरीत होता है।
  3. दोनों अभिक्रियाएँ पूर्णरूपं से होती हैं।
  4. अभिकारक तथा उत्पाद की मात्राएँ मिश्रण में स्थिर रहती हैं।
  5. दाब, ताप या सान्द्रण के परिवर्तन से साम्यावस्था में परिवर्तन हो जाता है।

प्रश्न 2.
पदार्थ के सक्रिय द्रव्यमान की परिभाषा दीजिए। यह किस प्रकारे व्यक्त किया जाता है ?
उत्तर
किसी पदार्थ का सक्रिय द्रव्यमान उस पदार्थ की आण्विक सान्द्रता को कहते हैं। दूसरे शब्दों में, किसी पदार्थ के मात्रक आयतन में उपस्थित ग्राम अणुक मात्रा को पदार्थ का सक्रिय द्रव्यमान कहते हैं। इसे कोष्ठक [ ] से व्यक्त किया जाता है। पदार्थ A के सक्रिय द्रव्यमान को निम्न प्रकार व्यक्त करते हैं।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-89

प्रश्न 3.
250 मिली विलयन में 4.6 ग्राम एथेनॉल घुला है। इसके सक्रिय द्रव्यमान की गणना कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-90

प्रश्न 4.
साम्य स्थिरांक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर
स्थिर ताप पर, किसी उत्क्रमणीय अभिक्रिया की अग्र और विपरीत अभिक्रियाओं के वेग स्थिरांकों के अनुपात को अभिक्रिया का साम्य स्थिरांक कहते हैं।

प्रश्न 5.
अभिक्रिया m1A+m2B ⇌ n1C + n2D के लिए साम्य स्थिरांक Kc का मान स्थापित कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-91

प्रश्न 6.
यदि अभिक्रिया A2 + B2⇌2AB के लिए साम्य स्थिरांक K1 हो तथा अभिक्रिया [latex]AB\rightleftharpoons \frac { 1 }{ 2 } { A }_{ 2 }+\frac { 1 }{ 2 } { B }_{ 2 }[/latex], के लिए साम्य स्थिरांक K2 हो, तो K1 तथा K2 में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-92

प्रश्न 7.
अभिक्रिया 2NH3 ⇌ N2+3H2 के साम्य स्थिरांक को मात्रक ज्ञात कीजिए।
उत्तर
इस अभिक्रिया का साम्य स्थिरांक व्यंजक है,
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-93

प्रश्न 8.
400° सेग्रे पर किसी दो लीटर वाले अभिक्रिया पात्र में 4.0 ग्राम हाइड्रोजन तथा 128.0 ग्राम हाइड्रोजन आयोडाइड (HI) लिए गये हैं। इनके सक्रिय द्रव्यमान की गणना कीजिए। (H = 1,I = 127)
उत्तर
HI का अणुभार = 1+127 = 128
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-94

प्रश्न 9.
अभिक्रिया aA +BB ⇌ cC + dD का साम्य स्थिरांक, K = 5.0×103 है। अभिक्रिया cC + aD ⇌ aA + bB के साम्य स्थिरांक, K’ की गणना कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 10.
अभिक्रिया 2NO2(g) ⇌ 2NO(g) +O2(g) के लिए K. का मान 1.8 x 10-6है। अभिक्रिया [latex]NO(g)+\frac { 1 }{ 2 } \left( { O }_{ 2 } \right) g\rightleftharpoons N{ O }_{ 2 }(g)[/latex] के लिए K’c का मान ज्ञात कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-96

प्रश्न 11.
निम्नलिखित अभिक्रिया में साम्यावस्था पर मिश्रण में 3.0 ग्राम हाइड्रोजन, 2.54 ग्राम आयोडीन तथा 128.0 ग्राम हाइड्रोजन आयोडाइड पाये गये। अभिक्रिया H2 + I2 ⇌ 2 HI के लिए साम्य स्थिरांक की गणना कीजिए। [H = 1,I = 127]
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-97
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-98

प्रश्न 12.
PCl5 के 2.0 ग्राम-अणु को 3 लीटर के एक पात्र में गर्म किया गया। साम्यावस्था पर 5% PCl5 का वियोजन हो जाता है। इस अभिक्रिया का साम्य स्थिरांक ज्ञात कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-99

प्रश्न 13.
1 मोल एथिल ऐल्कोहॉल की 1 मोल ऐसीटिक ऐसिड से अभिक्रिया कराने पर साम्य अवस्था में [latex]\frac { 2 }{ 3 } [/latex] मोल एथिल ऐसीटेट बनता है। निम्नलिखित अभिक्रिया के लिए साम्यं स्थिरांक की गणना कीजिए
CH3COOH + C2H5OH ⇌ CH3COOC2H55+ H2O
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-100

प्रश्न 14.
द्रव्य-अनुपाती क्रिया के नियम का उल्लेख कीजिए। अभिक्रिया [latex]\frac { 1 }{ 2 } { N }_{ 2 }+\frac { 3 }{ 2 } { H }_{ 2 }\rightleftharpoons N{ H }_{ 3 }[/latex] के लिए Kc का मान लिखिए।
उत्तर
द्रव्य-अनुपाती क्रिया का नियम–स्थिर ताप पर किसी पदार्थ की क्रिया करने की दर पदार्थ के सक्रिय द्रव्यमान के समानुपाती होती है तथा रासायनिक अभिक्रिया की दर पदार्थ के सक्रिय द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती होती है। अभिक्रिया [latex]\frac { 1 }{ 2 } { N }_{ 2 }+\frac { 3 }{ 2 } { H }_{ 2 }\rightleftharpoons N{ H }_{ 3 }[/latex] के लिए,
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-101

प्रश्न 15.
ला-शातेलिए नियम के आधार पर गैसों की विलेयता पर दाब के प्रभाव को समझाइए।
उत्तर
जब गैसें द्रव में विलेय होती हैं तो आयतन घटता है। आयतन घटने के कारण दाब वृद्धि उनकी विलेयता में सहायक होती है, क्योंकि ला-शातेलिए नियमानुसार दाब वृद्धि से साम्य उस दिशा में परिवर्तित होगा जिसमें आयतन घटता है।

प्रश्न 16.
निम्नलिखित अभिक्रिया की साम्यावस्था पर ताप, दाब तथा सान्द्रता का प्रभाव बताइए
N2(g) + O2(g) ⇌ 2NO(g)- 43,200 कैलोरी
या
उपर्युक्त अभिक्रिया में NO के अधिक उत्पादन की परिस्थितियाँ बताइए।
या
ला-शातेलिए के सिद्धान्त के आधार पर अभिक्रिया N2 + O2 ⇌ 2NO; ∆H – 43.2 किलोकैलोरी की साम्यावस्था पर दाब तथा ताप का क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-102

यह अभिक्रिया ऊष्मा के अवशोषण द्वारा होती है। अत: ताप बढ़ाने पर साम्य अग्रिम दिशा की ओर अग्रसर होगा, क्योंकि इस दिशा में ऊष्मा का अवशोषण होता है। अत: ताप बढ़ाने पर अधिक नाइट्रिक ऑक्साइड, बनेगी। इस साम्य पर दाब का कोई प्रभाव नहीं होगा, क्योंकि अभिक्रिया होने पर अभिकारक तथा उत्पाद के आयतनों में अन्तर नहीं आता है। N, तथा O, का सान्द्रण बढ़ाने पर भी नाइट्रिक ऑक्साइड अधिक बनेगी।
अतः नाइट्रिक ऑक्साइड के अधिक बनने में अधिक ताप व अभिकारकों के अधिक सान्द्रण सहायक होंगे।

प्रश्न 17.
अभिक्रिया 2SO2(g) + O2(g) ⇌ 2SO3(g) + x कैलोरी की साम्यावस्था पर
(i) ताप परिवर्तन तथा दाब परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ेगा?
या
निम्नलिखित साम्य पर दाब तथा ताप का क्या प्रभाव पड़ेगा?
2SO2(g) + O2(g) ⇌ 2SO3(g) + ऊष्मा
उत्तर

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-103

ताप का प्रभाव–यह एक ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया है। अतः ताप कम करने पर यह अग्रिम दिशा में होगी
और अधिक SO3 बनेगी।
दाब का प्रभाव–इस अभिक्रिया में दो आयतन SO2 तथा एक आयतन O2 संयोग कर, SO3 के दो। आयतन बनाते हैं, अर्थात् SO3 के बनने में उत्पाद पक्ष में आयतन में कमी होती है। चूंकि दाब बढ़ाने पर अभिक्रिया उस दिशा में होती है, जिस ओर आयतन कम होता है, इसलिए दाब बढ़ाने पर अधिक SO3 बनेगी।

प्रश्न 18.
निम्नलिखित अभिक्रिया में दाब घटाने पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
PCl5 ⇌ PCl2 + Cl2
उत्तर
चूँकि इस अभिक्रिया में उत्पाद पक्ष में आयतन में वृद्धि होती है। ला-शातेलिए के नियमानुसार, दाब घटाने पर अभिक्रिया उस ओर अग्रसर होगी जिस ओर दाब घटने का प्रभाव कम होगा। अतः अभिक्रिया अग्र दिशा में अग्रसर होगी।

प्रश्न 19.
अभिक्रिया PCl5 ⇌ PCl5 + Cl2 में क्लोरीन की उपस्थिति में PCls के वियोजन की मात्रा कम हो जाती है। कारण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
ला-शातेलिए नियम के अनुसार, Cl2 की उपस्थिति में साम्य उस दिशा में विस्थापित होगा जिस ओर Cl2 का प्रभाव कम हो सके, अतः PCl5 के वियोजन की मात्रा कम होगी।

प्रश्न 20.
अभिक्रिया N2 + 3H2 ⇌ 2NH3, ∆H = – 22.6 kcal के लिए उन परिस्थितियों का कारण देते हुए सुझाव दीजिए जिनसे NHS की साम्य सान्द्रता बढ़े।
उत्तर
चूँकि अभिक्रिया में उत्पाद पक्ष में आयतन में कमी होती है। अत: वाष्प दाब में वृद्धि अग्र अभिक्रिया में सहायक होगी। अभिक्रिया में ऊष्मा अवशोषित होती है। अत: ताप-वृद्धि अग्र अभिक्रिया में वृद्धि करेगी अर्थात् NH3 की सान्द्रता बढ़ेगी।

प्रश्न 21.
निम्नलिखित अभिक्रिया में अक्रिय गैस मिलाने पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
PCl5 ⇌ PCl5 + Cl2
उत्तर
स्थिर आयतन पर साम्य निकाय में अक्रिय गैस मिलाने पर साम्यावस्था प्रभावित नहीं होती, क्योंकि अभिकारकों और उत्पादों की सन्द्रिताएँ परिवर्तित नहीं होती हैं। स्थिर दाब पर साम्य निकाय में अक्रिय गैस मिलाने से निकाय का आयतन बढ़ता है, जिसके परिणामस्वरूप साम्य अग्र दिशा में विस्थापित हो जाता है, अर्थात् फॉस्फोरस पेन्टाक्लोराइड अधिक वियोजित होता है।

प्रश्न 22.
विद्युत अपघटनी वियोजन सिद्धान्त के आधार पर उदासीनीकरण अभिक्रिया को समझाइए।
उत्तर
वहे अभिक्रिया जिसमें अम्ल के हाइड्रोजन आयन H+, क्षारक के हाइड्रॉक्साइड आयनों, OH से संयोग करके जल के अणु, H2O बनाते हैं, उदासीनीकरण कहलाती है।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-104

प्रश्न 23.
निर्जल HCl विद्युत अचालक है, परन्तु जलीय HCl एक अच्छा विद्युत चालक है। समझाइए।
उत्तर
निर्जल HCl में मुक्त आयन नहीं होते, अत: निर्जल HCl विद्युत अचालक होता है, जबकि जलीय HCl में H+ तथा Cl आयन विलयन में आ जाते हैं, जिस कारण जलीय HCl विद्युत का अच्छा चालक है।

प्रश्न 24.
किसी मोनो बेसिक दुर्बल अम्ल के [latex]\frac { N }{ 100 } [/latex] विलयन का वियोजन स्थिरांक 4×10-10 है। विलयन में H’ की सान्द्रता ज्ञात कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-105

प्रश्न 25.
ऐसीटिक अम्ल का वियोजन स्थिरांक 1.6×10-5 है। इस अम्ल के [latex]\frac { N }{ 100 } [/latex] विलयन में H+ आयन की सान्द्रता की गणना कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-106

प्रश्न 26.
आयनन (वियोजन) की मात्रा किसे कहते हैं? कारकों का उल्लेख कीजिए, जो आयनन की मात्रा को प्रभावित करते हैं?
उत्तर
पूर्ण अपघट्य का वह भाग जो विलयन में आयनित होता है, आयनन की मात्रा या वियोजन की मात्रा कहलाता है।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-107
आयनन की मात्रा को प्रभावित करने वाले कारक

  1. ताप-विलयन का ताप बढ़ाने पर यिनन की मात्रा बढ़ जाती है, क्योंकि अधिक ताप अणुओं की गति को बढ़ा देता है तथा अणुओं के बीच आकर्षण बल को कम कर देता है।
  2. सम-आयन की उपस्थिति-सम-आयन की उपस्थिति में दुर्बल वैद्युत-अपघट्य की आयनन की मात्रा कम हो जाती है; जैसे-NH4OH विलयन में NH4Cl मिलाने पर NH4OH की आयनन की दर घट जाती है।
    3. सान्द्रण-वैद्युत-अपघट्यों का आयनन उनके सान्द्रण के व्युत्क्रमानुपाती होता है, अर्थात् सान्द्रता बढ़ने पर आयनन की मात्रा घट जाती है।

प्रश्न 27.
आयनन क्या है? इस पंर ताप तथा सान्द्रता का प्रभाव समझाइए।
उत्तर
जब कोई वैद्युत-अपघट्य जेल या किसी अन्य आयनीकारक विलायक में घोला जाता है, तो उसका अणु दो आवेशित कणों में वियोजित हो जाता है। इन आवेशित कणों को आयन तथा इस क्रिया को आयनन कहते हैं।
ताप का प्रभाव–विलयन का ताप बढ़ाने पर आयनन की मात्रा बढ़ जाती है।
सान्द्रता का प्रभाव-आयनन सान्द्रता के व्युत्क्रमानुपाती होता है; अतः जैसे-जैसे विलयन तनु होता है, आयनन की मात्रा बढ़ती है।

प्रश्न 28.
जल का आयनिक गुणनफल क्या है? इसका 25°C पर मान लिखिए।
उत्तर
स्थिर ताप पर जल में उपस्थित H+ तथा OH आयनों के सान्द्रण का गुणनफल स्थिर होता है और इसे जल का आयनिक गुणनफल कहते हैं। 25°C पर जल के आयनिक गुणनफल का मान 1×10-14 होता है।

प्रश्न 29.
कारण सहित समझाइए कि सोडियम ऐसीटेट का जलीय विलयन लाल लिटमस को नीला क्यों कर देता है?
या
पोटैशियम ऐसीटेट का pH मान 7 से अधिक क्यों है?
उत्तर
सोडियम या पोटैशियम ऐसीटेट एक प्रबल क्षार तथा दुर्बल अम्ल का लवण है। अतः इसका जलीय विलयन क्षारीय होता है, क्योंकि सोडियम ऐसीटेट को जल में घोलने पर ऐसीटेट आयन जल के अणुओं से अभिक्रिया करके अल्प-आयनित ऐसीटिक अम्ल (CH3COOH) और मुक्त हाइड्रॉक्साइड (OH) आयन बनाते हैं जिससे विलयन में OH आयनों की सान्द्रता H+ आयनों की सान्द्रता से अधिक हो जाती है और विलयन क्षारीय हो जाता है तथा यह लाल लिटमस को नीला कर देता है। अतः । इसका pH मान 7 से अधिक होता है।

प्रश्न 30.
रक्त का pH मान कितना होता है?
उत्तर
रक्त का pH मान 7.4 (लगभग) होता है।

प्रश्न 31.
pH मान किसे कहते हैं? इसका हाइड्रोजन सान्द्रण से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर
किसी विलयन के एक लीटर में उपस्थित हाइड्रोजन के ग्राम आयनों की मात्रा उस विलयन का – हाइड्रोजन आयन सान्द्रण कहलाती है।
“किसी विलयन का pH मान 10 की ऋणात्मक घात की वह संख्या है जो उस विलयन का H+ आयन सान्द्रण प्रकट करती है।”
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-108
इस प्रकार, किसी विलयन के हाइड्रोजन आयन सान्द्रण के व्युत्क्रम के लघुगणक को उस विलयन का pH मान कहते हैं।
शुद्ध जल के लिए pH 7 होती है।
दि pH = 7, तो विलयन उदासीन होगा; pH <7, तो विलयन अम्लीय होगा और pH> 7, तो विलयन क्षारीय होगी।

प्रश्न 32.
एक अम्ल का pH मान 6 है। हाइड्रोजन आयन की सान्द्रता ज्ञात कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-109

प्रश्न 33.
यदि एक अम्ल का pH मान 4.5 हो, तो pOH का मान क्या होगा?
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-110

प्रश्न 34.
यदि किसी जलीय विलयन का pH = 12 है, तो OH आयनों की सान्द्रता ज्ञात कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-111

प्रश्न 35.
पूर्ण आयनन मानते हुए 10-4 M NaOH के जलीय विलयन के pH मान की गणना कीजिए।
या
[latex]\frac { N }{ 1000 } [/latex] NaOH विलयन के pH मान की गणना कीजिए।
हुल
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UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-113

प्रश्न 36.
जल के 100 मिली में 0.4 ग्राम कास्टिक सोडा विलेय है। विलयन के pH की गणना कीजिए।
या
0.4% सोडियम हाइड्रॉक्साइड विलयन के pH मान की गणना कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-114

प्रश्न 37.
जल के 100 मिली में HCI के 3.65×10-3 ग्राम घुले हैं। विलयन का pH मान ज्ञात कीजिए तथा विलयन की प्रकृति भी बताइए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-115

प्रश्न 38.
निम्न क्षारकों को प्रबलता के घटते क्रम में लिखिए
NH4OH, NaOH, H2O, Ba(OH)2
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-116

प्रश्न 39.
प्रबल अम्ल तथा दुर्बल क्षार से बने लवण के जल-अपघटन से प्राप्त विलयन की प्रकृति क्या होती है और क्यों?
उत्तर
प्रबल अम्ल तथा दुर्बल क्षार से बने लवण के जल-अपघटन के फलस्वरूप प्रबल अम्ल तथा दुर्बल क्षार बनता है। प्रबल अम्ल बहुत अधिकता में आयनित होकर अधिक H+ आयन देता है तथा दुर्बल क्षार बहुत कम आयनित होने के कारण कम OH आयन देता है। इसलिए विलयन में H+ आयनों की सान्द्रता OH– आयनों की सान्द्रता से अधिक होती है। फलस्वरूप विलयन अम्लीय गुण प्रदर्शित करता है।

प्रश्न 40.
जल में हाइड्रोजन आयनों की सान्द्रता 10-7 ग्राम-आयन/लीटर है, फिर भी यह उदासीन क्यों होता है ? समझाइए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-117

प्रश्न 41.
प्रतिरोधक (बफर) विलयन को उदाहरण देकर परिभाषित कीजिए।
उत्तर
प्रतिरोधक विलयन-ऐसा विलयन जिसकी अम्लीयता या क्षारीयता आरक्षित होती है, प्रतिरोधक (बफर) विलयन कहलाता है अर्थात् वह विलयन जिसमें अल्प-मात्रा में अम्ल या क्षार मिलाने पर pH मान अपरिवर्तित रहता है, प्रतिरोधक (बफर) या उभय प्रतिरोधी विलयन कहलाता है। यह विलयन दो प्रकार का होता है-

  1. अम्लीय प्रतिरोधक—यह दुर्बल अम्ल तथा उसी अम्ल के किसी प्रबल क्षार के साथ बने हुए लवण के विलयनों का मिश्रण होता है; जैसे-CH3COOH तथा CH3COONa का मिश्रण।।
  2.  क्षारकीय प्रतिरोधक—यह दुर्बल क्षार तथा उसी क्षार के किसी प्रबल अम्ल के साथ बने हुए लवण के विलयनों का मिश्रण होता है; जैसे-NH4OH तथा NH4Cl का मिश्रण।

प्रश्न 42.
क्षारीय बफर विलयन की क्रिया-विधि एक उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर
माना कि एक क्षारीय प्रतिरोधक विलयन NH4OH तथा इसके लवण NH4CI के मिश्रण से बनाया जाता है। इस प्रतिरोधक विलयन में NH4OH कम आयनित होने के कारण कम OH आयन उत्पन्न करता है। इसके अतिरिक्त NH4Cl द्वारा उत्पन्न NH+4, आयनों के कारण NH4OH का आयनन और भी कम हो जाता हैं (सम-आयन प्रभाव)।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-118

अब यदि इस विलयन में N/10 NaOH विलयन मिलाते हैं तो NaOH द्वारा उत्पन्न OH आयन NH+4 आयन के साथ संयोग करके NH4OH बनाता है जो कि कम आयनित होता है। इस प्रकार, विलयन में OH आयनों की सान्द्रता नहीं बढ़ती है और विलयन का pH मान स्थिर रहता है।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-119

प्रश्न 43.
फेरिक क्लोराइड का जलीय विलयन अम्लीय क्यों होता है। समझाइए।
या
समझाइए क्यों फेरिक क्लोराइड के जलीय विलयन का pH मान 7 से कम होता है?
उत्तर
FeCl3 एक प्रबल अम्ल तथा दुर्बल क्षार का लवण है। इसके जलीय विलयन में Fe3+ तथा Cl आयन होते हैं जो क्रमश: जल में उपस्थित OH तथा H3O आयनों से संयोग करके दुर्बल क्षार Fe(OH)3 तथा प्रबल अम्ल HCl बनाते हैं।
FeCl3 ⇌ Fe3++ 3Cl
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-120
अम्ल के अधिक आयनित होने के कारण विलयन अम्लीय होता है तथा नीले लिटमस को लाल कर देता है, अर्थात् इसका pH मान 7 से कम होता है।

प्रश्न 44.
KCN का जलीय विलयन क्षारीय होता है। कारण सहित समझाइए।
उत्तर
KCN का जलीय विलयन क्षारीय होता है क्योंकि इसके जल-अपघटन से दुर्बल अम्ल (HCN) व प्रबल क्षार (KOH) बनता है।

प्रश्न 45.
किसी एक अम्लीय बफर विलयन का उदाहरण देते हुए इसकी क्रिया-विधि समझाइए।
उत्तर
CH3COOH तथा CH3COONa का मिश्रण एक अम्लीय प्रतिरोधक विलयन है। इस विलयन का आयनन निम्न प्रकार से होता है

CH3COOH ⇌ CHCOO + H+
CH3COONa ⇌ CH3COO + Na+

इस विलयन में एक बूंद HCI की मिलाने पर जो H+ आयन उत्पन्न होते हैं, वे ऐसीटेट आयन से संयुक्त होकर कम आयनित CH3COOH बनाते हैं। अत: HCl के समान प्रबल वैद्युत-अपघट्य मिलाने पर भी विलयन के [H+] पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-121

प्रश्न 46.
NaCI, FeCl3 तथा KNO3 में कौन-सा लवण जल अपघटित होगा? बने हुए विलयन की प्रकृति कैसी होगी? समझाइए।
उत्तर
NaCl, FeCl3 तथा KNO3 में से FeCl3 लवण का जल-अपघटन होगा तथा बना विलयन अम्लीय होगा।
NaCl और KNO3 के जलीय विलयनों में प्रबल अम्ल और प्रबल क्षार बनते हैं जिससे [H3O+] = [OH– ]; अत: इनके विलयन उदासीन होते हैं और इनका जल-अपघटन नहीं होता है।

प्रश्न 47.
सिल्वर आयोडाइड, का विलेयता गुणनफल 10-17 तथा सिल्वर क्लोराइड का विलेयता गुणनफल 10-10 है। यदि AgNO3 को बूंद-बूंद करके पोटैशियम क्लोराइड तथा पोटैशियम आयोडाइड के जलीय विलयन में मिलाया जाता है, तो कौन पहले अवक्षेपित होगा सिल्वर क्लोराइड या सिल्वर आयोडाइड व क्यों ?
उत्तर
सिल्वर आयोडाइड पहले अवक्षेपित होगा क्योकि इसका विलेयता गुणनफल कम है।

प्रश्न 48.
शुद्ध जल में तथा NaCI के जलीय विलयन में AgCI का विलेयता गुणनफल समान रहता है, जबकि AgCI की विलेयता NaCI के विलयन में घटती है। कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
सम-आयन प्रभाव के कारण AgCl की विलेयता NaCl विलयन में शुद्ध जल की अपेक्षा बहुत कम होती है। NaCl की उपस्थिति में विलयन में क्लोराइड आयनों (Cl) की सान्द्रता बढ़ जाने से आयनिक गुणनफल [Ag+]x[Cl]AgCl के विलेयता गुणनफल (Ksp) से अधिक हो जाता है, जिससे AgCI अवक्षेपित हो जाता है अर्थात् AgCI की विलेयता घट जाती है।

प्रश्न 49.
AgCI का विलेयता गुणनफल 1.56x 10-10 है। AgCI के एक जलीय विलयन में यदि Ag+ की सान्द्रता 1.0×10-5मोल/लीटर है, तो इस विलयन में CL आयनों की सान्द्रता क्या होगी?
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-122

प्रश्न 50.
25°Cपर सिल्वर क्लोराइड (AgCI) का विलेयता गुणनफल 1.5625×10-10 है। इस ताप पर सिल्वर क्लोराइड की विलेयता जल में ग्राम प्रति लीटर में ज्ञात कीजिए।
(Ag = 108, Cl = 35.5)
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-123

प्रश्न 51.
बेरियम सल्फेट की ग्राम प्रति लीटर में विलेयता ज्ञात कीजिए, यदि 25°C पर इसका विलेयता गुणनफल ix10-10 तथा अणुभार 233.3 हो।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-124

प्रश्न 52.
यदि PbCl2 की जल में विलेयता 278×10-5 ग्राम प्रति लीटर है, तो PbCl2, का विलेयता गुणनफल ज्ञात कीजिए। (PbCl2 का अणुभार 278 है)
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-125

प्रश्न 53.
विलेयता गुणनफल के दो अनुप्रयोग समझाइए।
उत्तर

  1. साबुन का लवणीकरण–तेल या वसा के साबुनीकरण पर विलयन में वसा अम्लों के सोडियम लवण प्राप्त होते हैं। इसमें NaCl का संतृप्त विलयन मिलाने पर NaCl के Na+ ओयन, साबुन के Na+ आयनों के सान्द्रण को बढ़ा देते हैं, फलस्वरूप [Na+][C17H35COO] का मान इसके विलेयता गुणनफल से अधिक हो जाता है, जिससे C17H35COONa लवण अवक्षेपित हो जाता है। इस अभिक्रिया को साबुन का लवणीकरण कहते हैं।
  2. नमक के शोधन में–अशुद्ध नमक के संतृप्त विलयन में HCl गैस प्रवाहित करने पर शुद्ध नमक अवक्षेपित हो जाता है। HCl गैस प्रवाहित करने पर NaCl के Cl आयनों का सीन्द्रण बढ़ जाता है, जिससे [Na+][Cl] का मान NaCl के विलेयता गुणनफल से अधिक हो जाता है, अतः NaCl का अवक्षेपण हो जाता है और अशुद्धियाँ विलयन में रह जाती हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
456°C पर 8.0 मिली हाइड्रोजन एवं 8.0 मिली आयोडीन की वाष्प की क्रिया होने पर 12 मिली HI बनती है। इस ताप पर अभिक्रिया H2 + I2 ⇌ 2HI के साम्य स्थिरांक की गणना कीजिए। [H = 1,I = 127]
उत्तर
प्रश्नानुसार, H2(g)+ I2(g) ⇌ 2HI(g)
इस अभिक्रिया का साम्य स्थिरांके
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-126
आवोगाद्रो नियम के अनुसार, स्थिर ताप और दाब पर
गैस का आयतनं ∝ गैस के अणुओं की संख्या
अतः किसी गैसीय अभिक्रिया में, यदि अणुओं की संख्या परिवर्तित नहीं होती है, तो अभिक्रिया के साम्य स्थिरांक व्यंजक में मोलर सान्द्रताओं के स्थान पर गैसों के आयतन प्रयुक्त किये जा सकते हैं। हाइड्रोजन आयोडाइड के बनने की अभिक्रिया में अणुओं की संख्या परिवर्तित नहीं होती है। अभिक्रिया की समीकरण के अनुसार, एक आयतन H2 और एक आयतन I2 से 2 आयतन HI बनती है। अतः 6 आयतन H2 और 6 आयतन I2 से 12 मिली आयतन HI बनेगा।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-127

प्रश्न 2.
एक निश्चित ताप पर अभिक्रिया N2 + 2O2⇌2NO2 का साम्य स्थिरांक 100 है। पृथक् रूप से निम्न अभिक्रियाओं के साम्य स्थिरांक के मान की गणना कीजिए
(a) 2NO2 ⇌ N2 + 2O2
(b) NO2 ⇌ [latex]\frac { 1 }{ 2 } [/latex]N2 + O2
उत्तर
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UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-129

प्रश्न 3.
अभिक्रिया N2 + 3H2 ⇌ 2NH3 + Qcal के लिए साम्य स्थिरांक व्यंजक की व्युत्पत्ति कीजिए। इस पर ताप के प्रभाव को समझाइए।
या
किसी उत्क्रमणीय अभिक्रिया का उदाहरण देते हुए साम्य स्थिरांक (Kc) का मान निकालिए।
उत्तर
माना कि निम्न अभिक्रिया V लीटर के बन्द पात्र में N2 के a मोल तथा H2 के 5 मोल लेकर प्रारम्भ की गई जिसमें कुछ समय बाद साम्य स्थापित हो जाता है। माना कि साम्य में NH2 के 2x मोल उत्पन्न होते हैं तो
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-130
अतः समीकरण (ii) उपर्युक्त अभिक्रिया के साम्य स्थिरांक़ के व्यंजक को व्यक्त करती है।
उपर्युक्त अभिक्रिया ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया है। अतः ला-शातेलिए के नियमानुसार इस अभिक्रिया द्वारा ताप वृद्धि पर अमोनिया के उत्पादन में कमी होगी, अर्थात् ताप वृद्धि अभिक्रिया के विपरीत दिशा में बढ़ने में सहायक होगी।

प्रश्न 4.
एक बंद बर्तन में HI के 1.2 मोलों को द्वियोजित किया जाता है। साम्यावस्था पर HI के वियोजन की मात्रा 44% है। HIके वियोजन की क्रियामाग्यस्थिरांक ज्ञात कीजिए।
उत्तर
HI के मोलों की संख्या 1.2 तथा वियोजन की मात्रा 44% है।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-131

प्रश्न 5.
ला-शातेलिए के सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
या
ला-शातेलिए नियम की परिभाषा लिखिए। इसका एक अनुप्रयोग दीजिए।
उत्तर
ला-शातेलिए का सिद्धान्त यह एक सार्वभौमिक सिद्धान्त है जो सभी भौतिक तथा रासायनिक तन्त्रों पर लागू होता है। इसके अनुसार,
यदि साम्यावस्था पर ताप, दाब या सान्द्रण का परिवर्तन किया जाए तो साम्यावस्था ऐसी दिशा में परिवर्तित होगी जिससे वह किये गये परिवर्तन (कारक) का प्रभाव दूर करने में सहायक हो।” अतः

  1. ताप वृद्धि से अभिक्रिया ऐसी दिशा में बढ़ती है जिसमें ऊष्मा का शोषण होता है।
  2. दाब वृद्धि से अभिक्रिया ऐसी दिशा में बढ़ती है जिसमें आयतन कम होता हो।
  3. कोई बाह्य पदार्थ मिलाने पर अभिक्रिया ऐसी दिशा में बढ़ती है जिसमें उसे पदार्थ की सान्द्रता कम | होती हो।

अनुप्रयोग-विलेयता पर ताप का प्रभाव–उन सभी पदार्थों की विलेयता ताप बढ़ाने पर बढ़ती है। जिनको घोलने पर ऊष्मा का शोषण होता है; जैसे-

KCI + जल ⇌ जलीय KC1- Q कैलोरी

यदि ताप बढ़ाया जाए तो साम्य ऐसी दिशा को अग्रसर होगा जिसमें ताप का शोषण हो सके, ताकि बढ़े ताप का प्रभाव नष्ट हो सके। अतः ताप बढ़ाने पर KCI की विलेयता बढ़ती है। परन्तु उन पदार्थों की विलेयता ताप बढ़ाने पर घटती है जिनको जल में घोलने पर ऊष्मा निकलती है; जैसे-

Ca(OH)2 + जल → जलीय Ca(OH)2 +O कैलोरी

अत: Ca(OH)2की विलेयता ताप बढ़ाने पर घटती है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित अभिक्रिया की साम्यावस्था पर ताप तथा दाब के प्रभाव की विवेचना ला-शातेलिए के सिद्धान्त के आधार पर कीजिए।
X2(g) + 2Y(g) ⇌ Z(g) +2 कैलोरी
उत्तर
यह अभिक्रिया ऊष्माक्षेपी है तथा इसमें मोलों की संख्या में कमी होती है।

X2(g) + 2Y (g) ⇌ 2(g) +2 कैलोरी

अतः ला-शातेलिए के नियमानुसार,

  1. ताप का प्रभाव–ताप बढ़ाने पर साम्यावस्था उस ओर विस्थापित होगी जिस ओर ऊष्मा अवशोषित होती है। यह अभिक्रिया ऊष्माक्षेपी है। अतः ताप बढ़ाने पर साम्यावस्था विपरीत अभिक्रिया की दिशा में विस्थापित होती है। अतः उच्च ताप पर Z का निर्माण कम होगा।
  2.  दाब का प्रभाव-दाब बढ़ाने पर साम्यावस्था उस ओर विस्थापित होती है जिस ओर मोलों की संख्या में कमी होती है। अत: दाब वृद्धि पर Z का निर्माण अधिक होगा।

प्रश्न 7.
विद्युत अपघटनी वियोजन सिद्धान्त के आधार पर किसी विद्युत अपघट्य के निम्न गुणों की व्याख्या कीजिए
(i) चालकता तथा
(ii) अपसामान्य अणुसंख्य गुण।
उत्तर
(i) चालकता–विद्युत अपघट्य के जलीय विलयन में विद्युत का प्रवाह ओम के नियम के अनुसार होता है। इससे स्पष्ट है कि विद्युत अपघट्य को वियोजित करने में विद्युत व्यय नहीं होती है। यह तभी सम्भव है जब विलयन में विद्युत प्रवाह करने से पहले ही आयन उपस्थित हों अर्थात् विद्युत अपघट्य जल में घोलने पर आयन देते हैं। आयन उपस्थित होने के कारण विद्युत अपघट्यों के जलीय विलयन विद्युत के चालक होते हैं। HCl गैस का जलीय विलयन विद्युत का चालक है।

HCl + H2O→ H3O++ Cl

परन्तु HCI गैस विद्युत का अचालक है क्योंकि इसमें आयन नहीं है। यह एक सहसंयोजक यौगिक है।
(ii) अपसामान्य अणुसंख्य गुण-अणुसंख्य गुण विलयन में उपस्थित विलीन पदार्थ के अणुओं व आयनों की संख्या पर निर्भर करते हैं। यदि हम यूरिया और NaCl के समान मोलर सान्द्रता के जलीय विलयन लें तो NaCl के जलीय विलयन का परासरण दाब यूरिया के विलयन से लगभग दो गुना हो जाता है। इसका कारण यह है कि NaCl जल में वियोजित होकर Na+ व Cl आयन देता है।

NaCl → Na+ + Cl

परासरण दाब उत्पन्न करने में आयन अणुओं की तरह व्यवहार करते हैं। यूरिया का वियोजन नहीं होता है क्योंकि यह विद्युत अनपघट्य है।

प्रश्न 8.
ओस्टवाल्ड के तनुता नियम का उल्लेख कीजिए एवं उसका सूत्र निकालिए।
या
किसी दुर्बल वैद्युत अपघट्य विलयन की वियोजन मात्रा, विलयन की तनुता बढ़ाने से बढ़ती है। इस कथन से सम्बन्धित नियम की उत्पत्ति कीजिए।
उत्तर
दुर्बल वैद्युत अपघट्यों के लिए द्रव्य-अनुपाती क्रिया का नियम ओस्टवाल्ड का तनुता नियम कहलाता है।
माना एक द्विअंगी (binary) दुर्बल वैद्युत अपघट्य AB का 1 ग्राम-अणु लीटर विलयन में उपस्थित है तथा साम्यावस्था पर वियोजन की मात्रा α है, तो AB के अनआयनित अणुओं एवं इसके आयनों A+ तथा B में निम्न प्रकारं साम्यावस्था प्रकट की जा सकती है।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-132
किसी दुर्बल अपघट्य के वियोजन की मात्रा-किसी दुर्बल वैद्युत-अपघट्य के विलयन में बहुत कम आयनन होता है। अतः दुर्बल वैद्युत-अपघट्य के विलयन में 0 का मान 1 की अपेक्षा नगण्य मान सकते हैं।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-133
समीकरण (ii) को सरल तनुता सूत्र कहते हैं।
अत: किसी दुर्बल वैद्युत-अपघट्य के वियोजन की मात्रा उसकी तनुता के वर्गमूल के अनुक्रमानुपाती होती है, अर्थात् तनुता बढ़ने से वियोजन की मात्रा बढ़ती है।

प्रश्न 9.
प्रबल क्षारक तथा दुर्बल अम्ल से बने किसी एक लवण को जल में विलेय करने पर प्राप्त विलयन की प्रकृति को समझाइए।
उत्तर
CH3COONa प्रबल क्षारक तथा दुर्बल अम्ल से बना एक प्रमुख लवण है। जल में विलेय करने पर इसमें निम्नलिखित अभिक्रियाएँ होती हैं।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-134

प्रश्न 10.
जल-अपघटने किसे कहते हैं? समझाइए। निम्नलिखित लवणों में किसका जल-अपघटन होगा?
NaCl, CuSO4 तथा KNO3
या
जल-अपघटन को आर्यनन सिद्धान्त के आधार पर परिभाषित कीजिए।
उत्तर
शुद्ध जल उदासीन होता है, क्योंकि यह OH तथा H3O+ आयनों का सन्तुलित मिश्रण होता है।

H2O+ H2O ⇌ H3O+ +OH

जब जल में कोई लवण मिला देते हैं तो H3O+ तथा OH आयनों का सन्तुलन बिगड़ जाता है। फलस्वरूप विलयन अम्लीय या क्षारीय हो जाता है। इस परिघटना को जल-अपघटन कहा जाता है। अतः वह अभिक्रिया जिसमें एक लवण जल से अभिकृत होकर अम्लीय या क्षारीय विलयन उत्पन्न करता है, जल-अपघटन कहलाती है।
NaCl, CuSO4,व KNO3 में CuSO4 का जल-अपघटन होगा, जो निम्न प्रकार होगा-
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यहाँ H2SO4 का अधिक आयनन होता है जिसके फलस्वरूप विलयन में H+ आयनों की सान्द्रता अधिक रहती है। अतः CuSO4 का जलीय विलयन अम्लीय होता है।

प्रश्न 11.
विलेयता तथा विलेयता गुणनफल में अन्तर लिखिए। किसी द्विअंगी विद्युत अपघट्य के लिए विलेयता तथा विलेयता गुणनफल में सम्बन्ध स्थापित कीजिए तथा इसका एक उपयोग लिखिए।
था
विलेयता गुणनफल से आप क्या समझते हैं? गुणात्मक विश्लेषण में इसका एक उपयोग लिखिए।
उत्तर
विलेयता तथा विलेयता गुणनफल में अन्तर–निश्चित ताप पर किसी पदार्थ की विलेयता उस पदार्थ की वह मात्रा है जो उस ताप पर 100 ग्राम विलायक को संतृप्त करने के लिए आवश्यक होती है। दूसरी ओर विलेयता गुणनफल स्थिर ताप पर किसी दुर्बल वैद्युत अपघट्य के संतृप्त विलयन में विद्यमान आयनों की सान्द्रताओं का गुणनफल होता है।
विलेयता तथा विलेयता गुणनफल में सम्बन्ध–यह सम्बन्ध केवल अल्प-विलेय वैद्युत-अपघट्यों के लिए ही सम्भव है। माना, किसी विलेय द्विअंगी वैद्युत-अपघट्य AB की विलेयता 5 ग्राम् अणु प्रति लीटर है। अल्प विलेय होने के कारण संतृप्त विलयन में अपघट्य का पूर्ण आयनन सम्भव है। इसीलिए AB पूर्ण आयनन के बाद A+ तथा B का उतना ही सान्द्रण प्रस्तुत करता है जितना कि AB का था। अतः A+ तथा B आयनों का सान्द्रण पृथक्-पृथक् क्रमश: s ग्राम आयन प्रति लीटर होगा।
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इसीलिए “किसी अल्प विलेय द्विअंगी वैद्युत-अपघट्य की विलेयता उसके विलेयता गुणनफल के वर्गमूल के बराबर होती है।”
विलेयता गुणनफल का उपयोग-विलेयता गुणनफल का प्रमुख उपयोग गुणात्मक विश्लेषण में किया जाता है।

प्रश्न 12.
हेनरी स्थिरांक और विलेयता में सम्बन्ध बताइए। सड़े हुए अण्डों वाली विषैली गैस H,S गुणात्मक विश्लेषण में प्रयुक्त होती है। यदि H,S | गैस की जल में STP पर विलेयता 0.195 हो, तो हेनरी स्थिरांक की गणना कीजिए।
उत्तर
हेनरी स्थिरांक और विलेयता में सम्बन्ध निम्नवत् है-

[latex]X(g)=\frac { P }{ { K }_{ H } } [/latex]

इस समीकरण से स्पष्ट है कि समान दाब पर विभिन्न गैसों की विलेयता हेनरी स्थिरांक के व्युत्क्रमानुपाती होती है अर्थात् जिन गैसों का हेनरी स्थिरांक उच्च होता है उनकी विलेयता कम होती है। और जिन गैसों का हेनरी स्थिरांक कम होता है, उनकी विलेयता अधिक होती है।
जल में H2S की STP पर विलेयता 0.195 विलयन का अर्थ है कि 1 किग्रा (1000 ग्राम) जल में 0.195 मोल गैस घुली है।।
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प्रश्न 13.
विलेयता गुणनफल की परिभाषा दीजिए। द्वितीय समूह तथा चतुर्थ समूह के गुणात्मक विश्लेषण में इसके उपयोग की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
[संकेत विलेयता गुणनफल की परिभाषा के लिए अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 11 का उत्तर देखें। द्वितीय समूह तथा चतुर्थ समूह के सल्फाइडों का अवक्षेपण-द्वितीय समूह के सल्फाइड HCI की उपस्थिति में तथा चतुर्थ समूह के सल्फाइड NH4OH की उपस्थिति में अवक्षेपित होते हैं। द्वितीय समूह के मूलकों के सल्फाइडों का विलेयता गुणनफल चतुर्थ समूह के मूलकों के सल्फाइडों की अपेक्षा बहुत कम होता है। इसलिए यदि H2S प्रवाहित करने से पहले HCI न मिलाया जाए तो द्वितीय समूह के मूलक तो अवक्षेपित हो ही जाएँगे, इसके साथ-साथ चतुर्थ समूह के मूलकों के सल्फाइड भी आंशिक रूप से अवक्षेपित हो जाते हैं। अत: इनका द्वितीय समूह के सल्फाइड के साथ अवक्षेपण रोकने के लिए HCI मिलाकर ही H2S प्रवाहित की जाती है।
HCI की उपस्थिति में H2S का आयनन सम-आयन प्रभाव के कारण कम हो जाता है।

HCl ⇌H+ + Cl
H2S ⇌ 2H+ + S2-

इससे विलयन में बहुत कम S2- आयन उत्पन्न होते हैं, परन्तु द्वितीय समूह के मूलकों के सल्फाइडों का विलेयता गुणनफल बहुत कम होता है, अत: S2- आयनों का यह सान्द्रण द्वितीय समूह के मूलकों के सल्फाइडों को अवक्षेपित करने के लिए पर्याप्त होता है, परन्तु चतुर्थ समूह के मूलकों के सल्फाइडों का अवक्षेपण S2- आयनों के कम सान्द्रण होने के कारण नहीं हो पाता। इसलिए वे विलयन में ही रहते हैं। परन्तु NH4OH की उपस्थिति में H2S प्रवाहित करने पर H2S का आयनन बढ़ जाता है, क्योंकि NH4OH से प्राप्त OH आयन, H2S से प्राप्त H+ आयनों से संयोग करके जल बनाते हैं।

2NH4OH ⇌ 2NH+4 +2OH
H2S ⇌ S2- +2H+
2H+ + 2OH ⇌ 2H2O

इससे H+आयन कम हो जाते हैं और H2S का आयनन बढ़ जाता है जिसके फलस्वरूप विलयन में S2-
आयन का सान्द्रण बढ़ता है। इस प्रकार बढ़े S2- आयन का सान्द्रण तथा विलयन में उपस्थित चतुर्थ समूहों के मूलकों के सान्द्रण का गुणनफल चतुर्थ समूह के मूलकों के सल्फाइडों के विलेयता गुणनफल से काफी अधिक हो जाता है। इसके कारण चतुर्थ समूह के मूलकों के सल्फाइड पूर्णतया अवक्षेपित हो जाते हैं।

प्रश्न 14.
“सम-आयन प्रभाव की आर्यनन सिद्धान्त पर व्याख्या कीजिए।
या
सम-आयन प्रभाव क्या है? गुणात्मक विश्लेषण में इसकी कोई एक उपयोगिता लिखिए।
उत्तर
यदि किसी दुर्बल वैद्युत अपघट्य के विलयन में सम-आयन वाला एक दूसरा प्रबल वैद्युत अपघट्य मिलाया जाता है तो दुर्बल वैद्युत अपघट्य के आयनन की मात्रा कम हो जाती है। इस प्रभाव को सम-आयन प्रभाव कहते हैं। निम्नांकित उदाहरण द्वारा इसे स्पष्ट किया जा सकता है। अमोनियम हाइड्रॉक्साइड (NHAOH) एक दुर्बल वैद्युत अपघट्य है जिसका आयनन निम्न प्रकार होता

NH4OH ⇌ NH+4 +OH

द्रव्य-अनुपाती क्रिया का नियम लगाने पर,

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-138

NH4OH के विलयन में NH4CI मिलाने पर NH4OH की आयनन की मात्रा कम हो जाती है, क्योंकि NH4Cl एक प्रबल वैद्युत अपघट्य होने के कारण विलयन में अधिक NH+4 आयन देता है। NH+4 आयनों का सान्द्रण बढ़ने से साम्यावस्था विक्षुब्ध (disturb) हो जाती है। अतः पूर्ण साम्यावस्था स्थापित करने के लिए अथवा समीकरण में Kb का मान स्थिर रखने के लिए OH आयन का सान्द्रण कम हो जाएगा। यह तभी सम्भव है जब अनआयनित NH4OH का सान्द्रण बढ़े। अत: उत्क्रम दिशा में क्रिया के होने से NH2OH की आयनन की मात्रा कम हो जाती है। इसी प्रकार, CH3COONa की उपस्थिति . में CH3COOH के आयनन की मात्रा घट जाती है।
गुणात्मक विश्लेषण में उपयोग-तृतीय समूह के समूह अभिकर्मक NH4Cl तथा NHAOH हैं। NH4OH एक दुर्बल वैद्युत-अपघट्य है। अत: यह विलयन में कम आयनित होता है।

NH4OH ⇌ NH+4 + OH

परन्तु कम आयनन के बावजूद भी OH आयन सान्द्रण इतना होता है कि तृतीय समूह के हाइड्रॉक्साइडों के साथ-साथ चतुर्थ एवं पंचम समूह के मूलक भी हाइड्रॉक्साइडों के रूप में अल्प मात्रा में अवक्षेपित हो जाते हैं। इसीलिए तृतीय समूह में चतुर्थ तथा आगे के समूहों के मूलकों का अवक्षेपण रोकने के लिए NH4OH से पहले NH4CI मिलाया जाता है। NH4CI एक प्रबल वैद्युत-अपघट्य होने के कारण काफी आयनित होता है।

NH4Cl ⇌ NH4 +Cl तथा
NH4OH ⇌ NH+4 + OH

अतः NH+4 आयन सान्द्रण अधिक होने के कारण NH4OH का आयनन सम-आयन प्रभाव के कारण कम हो जाता है जिसके फलस्वरूप OH आयन का सान्द्रण कम हो जाता है। चूंकि चतुर्थ एवं आगे के समूहों के मूलकों के हाइड्रॉक्साइडों को विलेयता गुणनफल तृतीय समूह के मूलकों के हाइड्रॉक्साइडों से काफी अधिक होता है, इसलिए [OH][M3+], (M3+ = Fe3+, Al3+,Cr3+) को मान तृतीय समूह के मूलकों के हाइड्रॉक्साइडों के विलेयता गुणनफल से अधिक हो जाता है। अतः तृतीय समूह के मूलक, हाइड्रॉक्साइडों के रूप में पूर्ण अवक्षेपित हो जाते हैं, परन्तु [OH][M2+], (M2+ = Mn2+, Zn2+, Ni2+,Co2+, Mg2+) का मान चतुर्थ एवं आगे के समूहों के मूलकों के हाइड्रॉक्साइडों के विलेयता गुणनफल से अधिक नहीं होता, इसलिए चतुर्थ एवं आगे के मूलकों का अवक्षेपण नहीं होता है।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
साम्य स्थिरांक से आप क्या समझते हैं? इसके लिए व्यंजक की व्युत्पत्ति कीजिए।
उत्तर
किसी सामान्य उत्क्रमणीय अभिक्रिया पर विचार करते हैं।
A + B ⇌ C +D
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-139
स्थिरांक Kc को साम्य स्थिरांक (equilibrium constant) कहते हैं।
अब, निम्न प्रकार की उत्क्रमणीय अभिक्रिया पर विचार करते हैं।

aA + bB ⇌ cC+ dD

इस प्रकार की अभिक्रिया के लिए द्रव्य-अनुपाती क्रिया के नियमानुसार,
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-140
जहाँ, Kc साम्य स्थिरांक है। पादांक c इंगित करता है कि Kc का मान सान्द्रण के मात्रक molL-1 में है। जहाँ यह स्पष्ट होता है कि K का मान सान्द्रता के मात्रक में है वहाँ Kc के स्थान पर सामान्यत: K लिख देते हैं। अत: उपरोक्त व्यंजक को इस प्रकार भी लिख सकते हैं,
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-141
K का मान स्थिर ताप पर स्थिर रहता है।
यह व्यंजक साम्य स्थिरांक व्यंजक है। इस व्यंजक को रासायनिक साम्य का नियम (law of chemical equilibrium) भी कहते हैं जिसके अनुसार, “स्थिर ताप पर उत्पादों की मोलर सान्द्रताओं के गुणनफल तथा अभिकारकों की मोलर सान्द्रताओं के गुणनफल का अनुपात, जबकि प्रत्येक सान्द्रता पद को सन्तुलित रासायनिक समीकरण में पदार्थ के स्टॉइकियोमिति गुणांक (stoichiometric coefficient) के बराबर घात दी गयी हो, एक स्थिरांक होता है जिसे साम्य स्थिरांक (equilibrium constant) कहते हैं।”

प्रश्न 2.
सिद्ध कीजिए कि
Kp = Kc[RT]∆n
या
Kp तथा Kc में सम्बन्धं स्थापित कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 3.
हेनरी का नियम समझाइए तथा उसके अनुप्रयोग व सीमाएँ भी लिखिए।
उत्तर
सर्वप्रथम विलियम हेनरी (William Henry, 1803) ने विभिन्न गैसों की द्रव में विलेयता पर दाब को मात्रात्मक अध्ययन किया और उस आधार पर एक मात्रात्मक सम्बन्ध प्रस्तुत किया जिसे हेनरी का नियम कहते हैं। इस नियम के अनुसार, “स्थिर ताप पर, किसी विलायक के इकाई आयतन में किसी गैस की घुली हुई मात्रा, उस द्रव की सतह पर साम्यावस्था में उस गैस द्वारा लगाए गए दाब के समानुपाती होती है।”
जब किसी द्रव में कोई गैस घुली हुई हो, तो वह सतह की गैस के साथ निम्नलिखित प्रकार के साम्य में रहती है-

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-144

यदि स्थिर ताप पर विलायक के दिए गए आयतन में घुली गैस की मात्रा w हो तथा साम्यावस्था पर गैस का दाब P हो, तो

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 7 Equilibrium img-145

यहाँ K, एक समानुपाती स्थिरांक है जिसका परिमाण गैस की प्रकृति, विलायक की प्रकृति व ताप पर निर्भर करता है। घुली हुई गैस की मात्रा विलयन में गैस की सान्द्रता के अनुरूप प्रयुक्त की जाती है।
यहाँ K, एक समानुपाती स्थिरांक है जिसका परिमाण गैस की प्रकृति, विलायक की प्रकृति व ताप पर निर्भर करता है। घुली हुई गैस की मात्रा विलयन में गैस की सान्द्रता के अनुरूप प्रयुक्त की जाती है। गैस की विलेयता (सान्द्रता) इसके मोल प्रभाज (X) के रूप में भी प्रयुक्त की जा सकती है। हेनरी नियम के अनुसार स्थिर ताप पर किसी गैस का वाष्प अवस्था में आंशिक दाब (P), उस विलयन में गैस के मोल प्रभाज (X) के समानुपाती होता है। अत: हेनरी के नियम को निम्न प्रकार भी दिया जा सकता है-

P ∝ X
या P = KH.X ……(ii)

जहाँ, KH हेनरी स्थिरांक है, इसका मान गैस की प्रकृति पर निर्भर करता है। यदि गैस के आंशिक दाब (P) तथा मोल प्रभाज (X) के मध्य एक ग्राफ खींचा जाता है तो एक सरल रेखा प्राप्त होती है, जिसका ढाल (slope) KH को व्यक्त करता है, जो दिए गए ग्राफ में दर्शाया गया है। हेनरी के नियम के अनुप्रयोग (Applications of Henry’s law)-इस नियम के प्रमुख अनुप्रयोग निम्न प्रकार हैं-
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  1. शीतल पेयों तथा सोडावाटर की बन्द बोतल में दाब अधिक होने पर CO2 की अधिक मात्रा घुली रहती है, परन्तु जब बोतल खोलते हैं तो दाब कम हो जाता है और ताप में वृद्धि हो जाती है फलस्वरूप CO2 बुदबुदाहट के रूप में बाहर निकलने लगती है की विलेयता दाब बढ़ाने पर बढ़ती है। बन्द बोतल में दाब अधिक होने पर CO2 की अधिक मात्रा घुली रहती है, परन्तु जब बोतल खोलते हैं तो दाब कम हो जाता है और ताप में वृद्धि हो जाती है। फलस्वरूप CO2 बुदबुदाहट के रूप में बाहर निकलने लगती है।
  2. गोताखोर, गहरे समुद्र में श्वास लेते हुए अधिक दाब महसस करते हैं। अधिक बाह्य दब के कारण वायुमण्डलीय गैसों की रक्त में विलेयता अधिक हो जाती है। जब गोताखोर सतह पर आते हैं तो बाह्य दाब धीरे-धीरे कम होता है इससे रक्त में घुलित गैसें धीरे-धीरे निकलती हैं। जिससे रक्त में नाइट्रोजन के बुलबुले बन जाते हैं जो कोशिकाओं में अवरोध उत्पन्न करते हैं। जिसे बेंड्स (bends) कहते है। इससे शरीर टेढ़ा हो जाता है। इस प्रभाव से बचने के लिए गोताखोर श्वास के लिए उपयोग में आने वाले टैंक में हीलियम मिश्रित वायु (56.2% N2, 32.1% 0, तथा 11.7% He) का प्रयोग करते हैं।
  3. फेफड़ों से रक्त में O2 व CO2 का आदान-प्रदान हेनरी नियम पर ही आधारित है।
  4. अधिक ऊँचाई वाले स्थानों पर ऑक्सीजन का आंशिक दाब, मैदानी स्थानों की तुलना में कम होता है। इससे अधिक ऊँचाई वाले स्थानों पर रहने वाले व्यक्तियों के रक्त एवं ऊतकों में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। ऐसे व्यक्तियों की सोच स्पष्ट नहीं होती है ऐसे लक्षणों को ऐनॉक्सियाँ कहते हैं।

हेनरी के नियम की सीमाएँ—इस नियम की सफलता की कुछ सीमाएँ हैं जो निम्न प्रकार हैं-

  1. दाब उच्च नहीं होना चाहिए।
  2. ताप बहुत कम नहीं होना चाहिए।
  3. गैस की विलायक में विलेयता कम होनी चाहिए।
  4. गैस की आण्विक अवस्था द्रव व गैसीय दोनों अवस्थाओं में समान होनी चाहिए अर्थात् गैस की आण्विक अवस्था अपरिवर्तित रहनी चाहिए।
  5. जल में NH3 गैस जल के साथ अभिक्रिया करके NH4OH बना लेती है जो NH+4 व OH आयन बनाता है और HCl गैस जल में H+ व Cl में आयनित हो जाती है, अत: जल में NH3 तथा HCl गैसों की विलेयता पर हेनरी को नियम लागू नहीं होता है, जबकि बेन्जीन में NH3 व HCI की विलेयता के लिए हेनरी नियम लागू होता है।

प्रश्न 4.
अम्लीय बफर विलयन के लिए हेन्डरसन समीकरण निष्पादित कीजिए।
उत्तर
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UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 7 Structural Organisation in Animals 

UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 7 Structural Organisation in Animals (प्राणियों में संरचनात्मक संगठन)

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अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
एक शब्द या एक पंक्ति में उत्तर दीजिए

  1.  पेरिप्लेनेटा अमेरिकाना का सामान्य नाम लिखिए।
  2.  केंचुए में कितनी शुक्राणुधानियाँ पाई जाती हैं?
  3.  तिलचट्टे में अण्डाशय की स्थिति क्या है?
  4.  तिलचट्टे के उदर में कितने खंड होते हैं?
  5.  मैल्पीघी नलिकाएँ कहाँ मिलती हैं?

उत्तर :

  1.  तिलचट्टा अथवा कॉकरोच।
  2.  केंचुए में चार जोड़ी शुक्राणुधानियाँ पायी जाती हैं।
  3.  अण्डाशय 4, 5, 6, 7 खंड में आहारनाल के पाश्र्व में स्थित होते हैं।
  4.  दस
  5.  मध्यांत्र व पश्चांत्र के संधि स्थल पर।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
(i) वृक्कक को क्या कार्य है?
(ii) अपनी स्थिति के अनुसार केंचुए में कितने प्रकार के वृक्कक पाए जाते हैं?
उत्तर :
(i) वृक्कक (Nephridia) का कार्य :
संघ ऐनेलिडा के प्राणियों में उत्सर्जन हेतु विशेष प्रकार की कुण्डलित रचनाएँ वृक्कक पाई जाती हैं। ये जल सन्तुलन का कार्य भी करती हैं।

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(ii) वृक्कक के प्रकार (Types of Nephridia) :
स्थिति के अनुसार वृक्कक निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं

(a) पटीय वृक्कक (Septal nephridia)
(b) अध्यावरणी वृक्कक (integumentary nephridia)
(C) ग्रसनीय वृक्कक (pharyngeal nephridia)।

प्रश्न 3.
केंचुए के जननांगों का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर :
केंचुएँ के जननांग
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प्रश्न 4.
तिलचट्टे की आहारनाल का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर :
तिलचट्टे की आहारनाल
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प्रश्न 5.
निम्नलिखित में विभेद कीजिए

(अ)
पुरोमुख एवं परितुंड।
(ब)
पटीय (Septal) वृक्कक एवं ग्रसनीय वृक्कक।
उत्तर :

(अ)
पुरोमुख एवं परितुंड में अन्तर क्र० पुरोमुख

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(ब)
पटीय एवं ग्रसनीय वृक्कक में अन्तर
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प्रश्न 6.
रुधिर के कणीय अवयव क्या हैं?
उत्तर
रुधिर के कणीय अवयव रुधिर हल्के पीले रंग का, गाढ़ा, हल्का क्षारीय (pH7-3-7-4) द्रव होता है। स्वस्थ मनुष्य में रुधिर उसके कुल भार का 7% से 8% होता है। इसके दो मुख्य घटक होते हैं

  1. निर्जीव तरल मैट्रिक्स प्लाज्मा (plasma) तथा
  2. कणीय अवयव रुधिर कणिकाएँ (blood corpuscles)।

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रुधिर कणिकाएँ रुधिर का लगभग 45% भाग बनाती हैं। ये तीन प्रकार की होती हैं
(क) लाल रुधिर कणिकाएँ
(ख) श्वेत रुधिर कणिकाएँ तथा
(ग) रुधिर प्लेटलेट्स।

लाल रुधिर कणिकाएँ
लाल रुधिर कणिकाएँ कशेरुकी जन्तुओं (vertebrates) में ही पाई जाती हैं। मानव में लाल रुधिराणु 75-8μ व्यास तथा 1-2μ मोटाई के होते हैं। पुरुषों में इनकी संख्या लगभग 50 से 55 लाख किन्तु स्त्रियों में लगभग 45 से 50 लाख प्रति घन मिमी होती है। ये गोलाकार (UPBoardSolutions.com) एवं उभयावतल (biconcave) होती हैं। निर्माण के समय इनमें केन्द्रक (nucleus) सहित सभी प्रकार के कोशिकांग (cell organelle) होते हैं किन्तु बाद में केन्द्रक, गॉल्जीकाय, माइटोकॉन्ड्रिया, सेन्ट्रियोल आदि संरचनाएँ लुप्त हो जाती हैं, इसीलिए स्तनियों के लाल रुधिराणुओं को केन्द्रकविहीन (non-nucleated) कहा जाता है। ऊँट तथा लामा में लाल रुधिराणु केन्द्रकयुक्त (nucleated) होते हैं। लाल रुधिराणुओं में हीमोग्लोबिन (haemoglobin) प्रोटीन होती है। स्तनियों में इनका जीवनकाल लगभग 120 दिन होता है। वयस्क अवस्था में इनका निर्माण लाल अस्थिमज्जा में होता है। हीमोग्लोबिन, हीम (haem) नामक वर्णक तथा ग्लोबिन (globin) नामक प्रोटीन से बना होता है। हीम पादपों में उपस्थित क्लोरोफिल के समान होता है, जिसमें क्लोरोफिल के मैग्नीशियम के स्थान पर हीमोग्लोबिन में लौह (Fe) होता है।
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हीमोग्लोबिन के एक अणु का निर्माण हीम के 4 अणुओं के एक ग्लोबिन अणु के साथ संयुक्त होने से होता है। हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन परिवहन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

लाल रुधिराणुओं के कार्य ।
लाल रुधिराणुओं के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं

  1. यह एक श्वसन वर्णक है। यह ऑक्सीजन वाहक (oxygen carrier) के रूप में कार्य करता है। हीमोग्लोबिन का एक अणु ऑक्सीजन के चार अणुओं का संवहन करता है।
  2.  शरीर के अन्त:वातावरण में pH सन्तुलन को बनाए रखने में हीमोग्लोबिन सहायता करता है।
  3. कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन (transport) कार्बोनिक एनहाइड्रेज (carbonic anhydrase) नामक एन्जाइम की उपस्थिति में ऊतकों से फेफड़ों की ओर करता है।

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श्वेत रुधिर कणिकाएँ।
श्वेत रुधिर कणिकाएँ अनियमित आकार की, केन्द्रकयुक्त, रंगहीन तथा अमीबीय (amoeboid) कोशिकाएँ हैं। इनके कोशिकाद्रव्य की संरचना के आधार पर इन्हें दो समूहों में वर्गीकृत किया जाता है
(अ) ग्रैन्यूलोसाइट्स (granulocytes) तथा
(ब) एग्रैन्यूलोसाइट्स (agranulocytes)।

(अ)
ग्रेन्यूलोसाइट्स (Granulocytes) :

इनका कोशिकाद्रव्य कणिकामय तथा केन्द्रक पालियुक्त (lobed) होता है, ये तीन प्रकार की होती हैं
(i) बेसोफिल्स
(ii) इओसिनोफिल्स तथा
(iii) न्यूट्रोफिल्स।

(i) बेसोफिल्स (Basophils) :
ये संख्या में कम होती हैं। ये कुल श्वेत रुधिर कणिकाओं का लगभग 0-5 से 2% होती हैं। इनका केन्द्रक बड़ा तथा 2-3 पालियों में बँटा दिखाई देता है। इनका कोशिकाद्रव्य मेथिलीन ब्लू (methylene blue) जैसे— क्षारीय रजंकों से अभिरंजित होता है। इन कणिकाओं से हिपैरिन, हिस्टैमीन एवं सेरेटोनिन स्रावित होता है।

(ii) इओसिनोफिल्स या एसिडोफिल्स (Eosinophils or Acidophils) :
ये कुल श्वेत रुधिर कणिकाओं का 2-4% होते हैं। इनका केन्द्रक द्विपालिक (bilobed) होता है। दोनों पालियाँ परस्पर महीन तन्तु द्वारा जुड़ी रहती हैं। इनका कोशिकाद्रव्य अम्लीय रंजकों जैसे इओसीन से अभिरंजित होता है। ये शरीर की प्रतिरक्षण, एलर्जी तथा हाइपरसेन्सिटिवटी का कार्य करते हैं। परजीवी कृमियों की उपस्थिति के कारण इनकी संख्या बढ़ जाती है, इस रोग को इओसिनोफिलिया कहते हैं।

(iii) न्यूटोफिल्स या हेटेरोफिल्स (Neutrophils or Heterophils) :
ये कुल श्वेत रुधिर कणिकाओं का 60 – 70% होती हैं। इनका केन्द्रक बहुरूपी होता है। यह तीन से पाँच पिण्डों में बँटा होता है। ये सूत्र द्वारा परस्पर जुड़े रहते हैं। इनके कोशिकाद्रव्य को अम्लीय, क्षारीय व उदासीन तीनों प्रकार के रंजकों से अभिरंजित कर सकते हैं। ये जीवाणु तथा अन्य (UPBoardSolutions.com) हानिकारक पदार्थों का भक्षण करके शरीर की सुरक्षा करते हैं। इस कारण इन्हें मैक्रोफेज (macrophage) कहते हैं।

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(ब)
एग्रैन्यूलोसाइट्स (Agranulocytes) :

इनका कोशिकाद्रव्य कणिकारहित होता है। इनका केन्द्रक अपेक्षाकृत बड़ा व घोड़े की नाल के आकार का (horse-shoe shaped) होता है। ये दो प्रकार की होती हैं

(i) लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes) :
ये छोटे आकार के श्वेत रुधिराणु हैं। इनका कार्य प्रतिरक्षी (antibodies) का निर्माण करके शरीर की सुरक्षा करना है।

(ii) मोनोसाइट्स (Monocytes) :
ये बड़े आकार की कोशिकाएँ हैं, जो भक्षकाणु क्रिया (phagocytosis) द्वारा शरीर की सुरक्षा करती हैं।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित क्या हैं तथा प्राणियों के शरीर में कहाँ मिलते हैं?
(अ) उपास्थि अणु (कोन्ड्रोसाइट)
(ब) तन्त्रिकाक्ष (ऐक्सॉन)
(स) पक्ष्माभ उपकला।
उत्तर :

(अ)
उपास्थि अणु या कोन्ड्रोसाइट्स (Chondrocytes) :
उपास्थि (cartilage) के मैट्रिक्स में स्थित कोशिकाएँ कोन्ड्रोसाइट्स कहलाती है। ये गर्तिकाओं या लैकुनी (lacunae) में स्थित होती हैं। प्रत्येक गर्तिका में एक-दो या चार कोन्ड्रोसाइट्स होते हैं। कोन्ड्रोसाइट्स की संख्या वृद्धि के साथ-साथ उपास्थि में वृद्धि होती है। कोन्ड्रोसाइट्स द्वारा ही उपास्थि का मैट्रिक्स स्रावित होता है। यह कॉन्ड्रिन प्रोटीन (chondrin protein) होता है। उपास्थियाँ प्रायः अस्थियों के सन्धि स्थल पर पाई जाती हैं।

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(ब)
तन्त्रिकाक्ष य़ा ऐक्सॉन (Axon) :
तन्त्रिका कोशिका (neuron) तन्त्रिकातन्त्र का निर्माण करती है। प्रत्येक तन्त्रिका कोशिका के तीन भाग होते हैं

  1. साइटॉन (cyton)
  2.  डेन्ड्रॉन्स (dendrons) तथा
  3.  ऐक्सॉन (axon)।

साइटॉन से निकले प्रवर्षों में से एक प्रवर्ध अपेक्षाकृत लम्बा, मोटा एवं बेलनाकार होता है। इसे ऐक्सॉन (axon) कहते हैं। यह साइटॉन के फूले हुए भाग ऐक्सॉन हिलोक (axon hillock) से निकलता है। इसकी शाखाओं के अन्तिम छोर पर घुण्डी सदृश साइनेप्टिक घुण्डियाँ (synaptic buttons) होती हैं। ये अन्य तन्त्रिका कोशिका के डेन्ड्रॉन्स के साथ सन्धि बनाती हैं। ऐक्सॉन मेड्यूलेटेड (medullated) या नॉन-मेड्यूलेटेड (non-medullated) होते हैं। ऐक्सॉन श्वान कोशिकाओं (UPBoardSolutions.com) (Schwann cells) से बने न्यूरीलेमा (neurilemma) से घिरा होता है। मेड्यूलेटेड ऐक्सॉन में न्यूरीलेमा तथा ऐक्सॉन के मध्य वसीय पदार्थ माइलिन होता है।

(स)
पक्ष्माभ उपकला (Ciliated Epithelium) :

इसकी कोशिकाएँ स्तम्भकार या घनाकार होती : हैं। कोशिकाओं के बाहरी सिरों पर पक्ष्म या सीलिया होते हैं। प्रत्येक पक्ष्म के आधार पर एक आधारकण (basal granule) होता है। पक्ष्मों की गति द्वारा श्लेष्म व अन्य पदार्थ आगे की ओर धकेल दिए जाते हैं। यह श्वास नाल, ब्रौंकाई, अण्डवाहिनी, मूत्रवाहिनी आदि की भीतरी सतह पर पाई जाती हैं।

प्रश्न 8.
रेखांकित चित्र की सहायता से विभिन्न उपकला ऊतकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
उपकला ऊतक (Epithelial Tissue) :
संरचना तथा कार्यों के आधार पर उपकला ऊतक को दो समूहों में बाँटा जाता है-आवरण उपकला (covering epithelium) तथा ग्रन्थिल उपकला (glandular epithelium)।

(क)
आवरण उपकला
यह अंगों तथा शरीर सतह को ढके रखता है। यह सरल तथा संयुक्त दो प्रकार की होती है

1. सरल उपकला या सामान्य एपिथीलियम (Simple Epithelium) 
यह उपकला उन स्थानों पर पाई जाती है, जो स्रावण, अवशोषण, उत्सर्जन आदि का कार्य करते हैं। यह निम्नलिखित पाँच प्रकार की होती हैं

(i) सरल शल्की उपकला (Simple Squamous Epithelium) :
कोशिकाएँ चौड़ी, चपटी, बहुभुजीय तथा परस्पर सटी रहती है। शल्की उपकला वायु कूपिकाओं, रुधिर वाहिनियों के आन्तरिक स्तर, हृदय के भीतरी स्तर, देहगुहा के स्तरों आदि में पाई जाती हैं।

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(ii) सरल स्तम्भी उपकला (Simple Columnar Epithelium) :
इस उपकला की कोशिकाएँ लम्बी तथा परस्पर सटी होती हैं। आहारनाल की भित्ति का भीतरी स्तर इसी उपकला का बना होता है। ये पचे हुए खाद्य पदार्थों का अवशोषण भी करती हैं।

(iii) सरल घनाकार उपकला (Simple Cuboidal Epithelium) :
इस उपकला की कोशिकाएँ घनाकार होती हैं। यह ऊर्तक श्वसनिकाओं, मूत्रजनन नलिकाओं, जनन ग्रन्थियों आदि में पाया जाता है। जनन ग्रन्थियों (gonads) में यह ऊतक जनन उपकला (germinal epithelium) कहलाता है।
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(iv) पक्ष्माभी उपकला (Ciliated Epithelium) :
इसकी कोशिकाएँ स्तम्भाकार अथवा घनाकार होती हैं। इन कोशिकाओं के बाहरी सिरों पर पक्ष्म या सीलिया होते हैं। प्रत्येक पक्ष्म के आधार पर आधार कण (basal granule) होता है। पक्ष्मों की गति द्वारा श्लेष्म तथा अन्य पदार्थ आगे की ओर धकेले जाते हैं। यह उपकला श्वासनाल, अण्डवाहिनी (oviduct), गर्भाशय आदि में पाई जाती है।
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(v) कूटस्तरित उपकला (Pseudostratified Epithelium) :
यह सरल स्तम्भाकार उपकला को रूपान्तरित स्वरूप है। इसमें कोशिकाओं के मध्य गोब्लेट या म्यूकस कोशिकाएँ स्थित होती हैं। ये ट्रेकिया, श्वसनियों (bronchi), ग्रसनी, नासिका गुहा, नर मूत्रवाहिनी (urethra) आदि में पाई जाती हैं।

2. संयुक्त या स्तरित एपिथीलियम या उपकला (Compound or Stratified Epithelium) 
इसमें उपकला अनेक स्तरों से बनी होती है। कोशिकाएँ विभिन्न आकार की होती हैं। कोशिकाएँ आधारकला (basement membrane) पर स्थित होती हैं। सबसे निचली पर्त की कोशिकाएँ निरन्तर विभाजित होती रहती हैं। बाहरी स्तर की कोशिकाएँ मृत होती हैं। कोशिकाओं (UPBoardSolutions.com) की संरचना के आधार पर ये निम्नलिखित प्रकार की होती हैं

(i) स्तरित शल्की उपकला (Stratified Squamous Epithelium) :
इसमें सबसे बाहरी स्तर की कोशिकाएँ चपटी वे शल्की होती हैं तथा सबसे भीतरी स्तर की कोशिकाएँ स्तम्भी या घनाकार होती हैं। आधारीय जनन स्तर की कोशिकाओं में निरन्तर विभाजन होने से त्वचा के क्षतिग्रस्त होने पर इसका पुनरुदभवन होता रहता है। स्तरित शल्की उपकला किरेटिनयुक्त या किरेटिनविहीन होती है। स्तरित शल्की उपकला त्वचा की अधिचर्म, मुखगुहा, ग्रसनी, ग्रसिका, योनि, मूत्रनलिका, नेत्र की कॉर्निया, नेत्र श्लेष्मा आदि में पाई जाती हैं।

(ii) अन्तवर्ती या स्थानान्तरित उपकला (Transitional Epithelium) :
इसमें आधारकला तथा जनन स्तर नहीं होता है। इसकी कोशिकाएँ लचीले संयोजी ऊतक पर स्थित होती हैं। सजीव कोशिकाएँ परस्पर अंगुली सदृश प्रवर्धा (interdigitation) द्वारा जुड़ी रहती हैं। ये कोशिकाएँ फैलाव व प्रसार के लिए रूपान्तरित होती हैं। यह मूत्राशय, मूत्रवाहिनियों (ureters) की भित्ति का भीतरी स्तर बनाती हैं।

(iii) तन्त्रिका संवेदी उपकला (Neurosensory Epithelium) :
यह स्तम्भकार उपकला के रूपान्तरण से बनती है। कोशिकाओं के स्वतन्त्र सिरों पर संवेदी रोम होते हैं। कोशिका के आधार से तन्त्रिका तन्तु (nerve fibres) निकलते हैं। यह नेत्र के रेटिना (retina), घ्राण अंग की श्लेष्मिक कला,अन्त:कर्ण की उपकला आदि में पाई जाती है।
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(ख)
ग्रन्थिल उपकला।
ये घनाकार या स्तम्भाकार उपकला से विकसित होती हैं। ग्रन्थिल कोशिकाएँ एकाकी या सामूहिक होती हैं।

1. एककोशिकीय ग्रन्थियाँ (Unicellular Glands) :
ये स्तम्भकार उपकला में एकल रूप में पाई जाती हैं। इन्हें श्लेष्म या गॉब्लेट कोशिकाएँ (goblet cells) कहते हैं।

2. बहुकोशिकीय ग्रन्थियाँ (Multicellular Glands) :
ये उपकला के अन्तर्वलन से बनती हैं। इसका निचला भाग स्रावी (glandular) तथा ऊपरी भाग नलिकारूपी होता है; जैसे–स्वेद ग्रन्थियाँ, जठर ग्रन्थियाँ आदि। रचना के आधार पर बहुकोशिकीय ग्रन्थियाँ नलिकाकार, कूपिकाकार होती हैं। ये सरल, संयुक्त अथवा मिश्रित प्रकार की होती हैं। स्वभाव के आधार पर ग्रन्थियाँ मोरोक्राइन (merocrine), एपोक्राइन (apocrine) या होलोक्राइन (holocrine) प्रकार की होती हैं।
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प्रश्न 9.
निम्न में विभेद कीजिए
(अ) सरल उपकला तथा संयुक्त उपकला ऊतक
(ब) हृद पेशी तथा रेखित पेशी
(स) सघन नियमित तथा सघन अनियमित संयोजी ऊतक
(द) वसामय तथा रुधिर ऊतक
(य) सामान्य तथा संयुक्त ग्रन्थि
उत्तर :
(अ)
सरल उपकला तथा संयुक्त उपकला ऊतक में अन्तर

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(ब)
हृद पेशी तथा रेखित पेशी में अन्तर

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(स)
सघन नियमित तथा सघन अनियमित

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(द)
वसामय तथा रुधिर ऊतक में अन्तर

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(य)
सामान्य तथा संयुक्त ग्रन्थि में अन्तर सामान्य ग्रन्थि

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प्रश्न 10.
निम्न श्रृंखलाओं में सुमेलित न होने वाले अंशों को इंगित कीजिए

(अ) एरिओलर ऊतक, रुधिर, तन्त्रिका कोशिका न्यूरॉन, कंडरा (टेंडन)।
(ब) लाल रुधिर कणिकाएँ, सफेद रुधिर कणिकाएँ, प्लेटलेट, उपास्थि ।
(स) बाह्यस्रावी, अन्तःस्रावी, लार ग्रंथि, स्नायू (लिगामेंट)
(द) मैक्सिला, मैडिबल, लेब्रम, श्रृंगिका (एंटिना)
(य) प्रोटोनीमा, मध्यवेक्ष, पश्चवक्ष तथा कक्षांग (कॉक्स)

उत्तर :
(अ) तन्त्रिका कोशिका न्यूरॉन
(ब) उपास्थि
(स) स्नायु (लिगामेंट)
(द) श्रृंगिका (एंटिना)
(य) प्रोटोनीमा।

प्रश्न 11.
स्तम्भ I तथा स्तम्भ II को सुमेलित कीजिए
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उत्तर :
(क) (iii)
(ख) (iv)
(ग) (v)
(घ) (i)
(ङ) (i)
(च) (vii)
(छ) (vi)

प्रश्न 12.
केंचुए के परिसंचरण तन्त्र का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
केंचुए का रुधिर परिसंचरण तन्त्र केंचुए में रुधिर परिसंचरण ‘बन्द प्रकार का होता है। रुधिर लाल होता है। हीमोग्लोबिन प्लाज्मा में घुला होता है। रुधिराणु रंगहीन तथा केन्द्रकमय होते हैं। केंचुए के रुधिर परिसंचरण में निम्नलिखित । अनुदैर्घ्य रुधिर वाहिनियाँ होती हैं

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(i) पृष्ठ रुधिरवाहिनी (Dorsal Blood Vessel) :
यह आहारनाल के मध्य पृष्ठ तल पर स्थित होती है। यह पेशीय, कपाटयुक्त रुधिरवाहिनी होती है। यह अन्तिम खण्डों से रुधिर एकत्र करके प्रथम 13 खण्डों में वितरित कर देती है। रुधिर का अधिकांश भाग चार जोड़ी हृदय द्वारा अधर रुधिरवाहिनी में पहुँच जाता है।

(ii) अधर रुधिरवाहिनी (Ventral Blood vessel) :
यह आहारनाल के मध्य अधर तल पर स्थित होती है। यह अनुप्रस्थ रुधिर वाहिनियों द्वारा रुधिर का वितरण करती है। इसमें कपाट नहीं पाए। जाते।

(iii) पाश्र्व ग्रसनिका रुधिर वाहिनियाँ (Lateral Oesophageal Blood vessels) :
एक जोड़ी रुधिर वाहिनियाँ दूसरे खण्ड से 14वें खण्ड तक आहारनाल के पाश्र्यों में स्थित होती हैं। ये रुधिर एकत्र करके ग्रसिकोपरि वाहिनी (supra-oesophageal blood vessel) को पहुँचाती हैं।

(iv) ग्रसिकोपरि वाहिनी (Supra-oesophageal Blood Vessel) :
यह आहारनाल के पृष्ठ तल पर 9वें खण्ड से 14वें खण्ड तक फैली होती है। यह पाश्र्व ग्रसनिका से 2 जोड़ी अग्रलूपों (anterior loops) द्वारा रुधिर एकत्र करके अधर रुधिरवाहिनी को पहुँचा देती है।

(v) अधो तन्त्रिकीय रुधिरवाहिनी (Sub-neural Blood vessel) :
यह आहारनाल के आंत्रीय भाग में तन्त्रिका रज्जु के नीचे मध्य-अधर तल पर स्थित होती है। यह खण्डीय भागों से (UPBoardSolutions.com) रुधिर एकत्र करके योजि वाहिनियों द्वारा पृष्ठ रुधिरवाहिनी में पहुँचा देती है।’
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प्रश्न 13.
निम्नलिखित के कार्य बताइए
(अ) मेढक की मूत्रवाहिनी
(ब) मैल्पीघी नलिका
(स) केंचुए की देहभित्ति।
उत्तर :
(अ)
मेढक की मूत्रवाहिनी (Ureter of Frog) :

नर मेढक में वृक्क से मूत्रवाहिनी निकलकर क्लोएका में खुलती है। यह मूत्रजनन नलिका का कार्य करती है। मादा मेंढक में मूत्रवाहिनी तथा अण्डवाहिनी (oviduct) क्लोएको में पृथक्-पृथक् खुलती हैं। मूत्रवाहिनी वृक्क से मूत्र को क्लोएका तक पहुँचाती है।

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(ब)
मैल्पीघी नलिकाएँ (Malpighian tubules) :

ये कीटों में मध्यान्त्र तथा पश्चान्त्र के सन्धितल पर पाई जाने वाली पीले रंग की धागे सदृश (UPBoardSolutions.com) उत्सर्जी रचनाएँ होती हैं। ये उत्सर्जी पदार्थों को हीमोसील से ग्रहण करके आहारनाल में पहुँचाती हैं।

(स)
केंचए की देहभित्ति (Bodywall of Earthworm) :

केंचुए की देहभित्ति नम तथा चिकमी होती है। यह श्वसन हेतु गैस विनिमय में सहायक होती है। देहभित्ति का श्लेष्म केंचुए के बिलों (सुरंग) की सतह को चिकना एवं मजबूत बनाता है।

प्रश्न 14.
मेढक के पाचन तन्त्र का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर :
मेढक का पाचन तन्त्र
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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सा एक प्रकार का ऊतक है?
(क) आहारनाल
(ख) यकृत
(ग) रुधिर
(घ) अग्न्याशय
उत्तर :
(ग) रुधिर

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से किसका उद्भव भ्रूणीय मीसोडर्मल स्तर से हुआ है?
(क) मस्तिष्क
(ख) फेफड़ा
(ग) रक्त
(घ) यकृत
उत्तर :
(ग) रक्त

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से किस रुधिर वर्ग को सर्वग्राही माना जाता है?
(क) वर्ग A
(ख) वर्ग B
(ग) वर्ग AB
(घ) वर्ग 0
उत्तर :
(ग) वर्ग AB

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प्रश्न 4.
तिलचट्टे की देहगुहा होती है।
(क) सीलोम
(ख) हीमोसील
(ग) स्यूडोसील
(घ) सीलेन्ट्रॉन
उत्तर :
(ख) हीमोसील

प्रश्न 5.
तिलचट्टे का मुखांग होता है।
(क) बेधक एवं चूषक प्रकार का
(ख) कुंतक एवं चर्वणक प्रकार का
(ग) चर्वणक एवं लेहनकारी प्रकार का
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ख) कुंतक एवं चर्वणक प्रकार का

प्रश्न 6.
तिलचट्टे का श्वसन अंग है।
(क) फेफड़ा
(ख) जलक्लोम
(ग) ट्रेकिया
(घ) त्वचा
उत्तर :
(ग) ट्रेकिया

प्रश्न 7.
कॉकरोच का मुख्य उत्सर्जी उत्पाद है।
(क) यूरिया
(ख) अमोनिया
(ग) यूरिक ऐसिड
(घ) ऐमीनो ऐसिड
उत्तर :
(ग) यूरिक ऐसिड

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जन्तुओं में कौन-कौन से ऊतक निम्नलिखित कार्यों को सम्पन्न करते हैं?
(क) अस्थियों का अस्थियों से संयोजन।
(ख) उपांगों की गति।
(ग) संवेदना का संचालन।
(घ) पोषक पदार्थों एवं गैसों का परिवहन।
उत्तर :
(क) श्वेत कोलेजन तन्तुओं से बने स्नायु (ligaments) अस्थियों को परस्पर जोड़ने का कार्य करते हैं।
(ख) पेशी ऊतक (रेखित पेशियाँ) उपांगों को गति प्रदान करते हैं।
(ग) तन्त्रिका ऊतक (nerve tissue) संवेदना का संचालन करते हैं।
(घ) तरल संयोजी ऊतक (fluid connective tissue) शरीर में परिसंचरण के द्वारा पोषक पदार्थों एवं गैसों के परिवहन को बनाये रखते हैं।

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प्रश्न 2.
हिपैरिन कहाँ बनता है? इसके मुख्य कार्य लिखिए।
उत्तर :
हिपैरिन (heparin) संयोजी ऊतक (connective tissue) में उपस्थित मास्ट कोशिकाओं (mast cells) द्वारा स्रावित होता है तथा रुधिर वाहिनियों में रुधिर को जमने (clotting) से रोकता है।

प्रश्न 3.
किन्हीं दो संयोजी ऊतकों के नाम लिखिए।
उत्तर :

  1. अन्तराली संयोजी ऊतक (aereolar connective tissue)
  2. रुधिर (blood)।

प्रश्न 4.
कण्डरा का एक प्रमुख कार्य बताइए।
उत्तर :
यह पेशियों (muscles) को अस्थियों (bones) से जोड़ने का कार्य करता है।

प्रश्न 5.
मनुष्य के किन्हीं दो अंगों के नाम बताइए जिनमें लचीली उपास्थि पायी जाती है।
उत्तर :
बाह्य कर्ण, नाक का छोर, एपिग्लॉटिस।

प्रश्न 6.
उस रुधिर कणिका का नाम लिखिए जो रुधिर स्कन्दन में सहायता करती है।
उत्तर :
रुधिर प्लेटलेट्स।

प्रश्न 7.
संयोजी ऊतक किसे कहते हैं ? इसका विकास भ्रूण के किस स्तर से होता है ?
उत्तर :
भ्रूण में जब मीसोडर्मी कोशिकाओं का विभेदीकरण होने लगता है तो मीसोडर्म स्तर के कुछ भाग तो सघन होकर वयस्क के कंकालीय एवं पेशीय ऊतक बनाते हैं और शेष ढीले रहकर संवहनीय और संयोजी ऊतक बनाते हैं। पेशीय ऊतकों के अतिरिक्त वयस्क के अन्य (UPBoardSolutions.com) सभी विविध प्रकार के मीसोडर्मी ऊतक संयोजी ऊतक कहलाते हैं।

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प्रश्न 8.
रैनवियर के नोड पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
मज्जायुक्त तन्त्रिका कोशिका के अक्ष तन्तु की न्यूरीलेमा जिन स्थानों पर अक्ष तन्तु से चिपकी रहती है, उन्हें रैनवियर के नोड कहते हैं। इनके कारण अक्ष तन्तु तक 0, तथा पोषक तत्त्व पहुँचते रहते हैं।

प्रश्न 9.
कॉकरोच में श्वसन किस अंग द्वारा होता है?
उत्तर :
श्वास नाल (trachea)।

प्रश्न 10.
तिलचट्टे की पेषणी के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :

  1. इसके अन्दर ग्रहण किया गया भोजन पीसा जाता है तथा
  2.  पिसा हुआ भोजन आगे बढ़ने से पहले छनता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ऊतक को परिभाषित कीजिए। तरल संयोजी ऊतक की तीन विशेषताएँ लिखिए। या ऊतक की परिभाषा लिखिए। समझाइए कि रुधिर एक ऊतक है।
उत्तर :

ऊतक

एक विशिष्ट कार्य करने वाले कोशिकाओं के समूह को ऊतक कहा जाता है। ऊतक (tissue) शब्द के सर्वप्रथम प्रयोग का श्रेय बाइकाट (Bichat, 1771-1802) को है। मारसेलो मैल्पीघी (Marcello Malpighi, 1694) ने ऊतकों का विस्तृत अध्ययन किया। मेयर (Meyer, 1819) ने ऊतकों के अध्ययन के विज्ञान को ‘हिस्टोलोजी’ (histology) नाम दिया। उपर्युक्त एवं अन्य वैज्ञानिकों के अनुसार ऊतक की परिभाषा इस प्रकार दी गयी है—कोशिकाओं का ऐसा समूह जो उत्पत्ति (origin), रचना (structure) तथा कार्य (function) में समान हो, ऊतक (tissue) कहलाता है। ऊतकों की कोशिकाएँ एक आन्तरकोशीय (intercellular) पदार्थ के द्वारा परस्पर चिपकी रहती हैं। ऊतक का यह आधार द्रव्य (ground substance) मैट्रिक्स (matrix) कहलाता है। ऊतक की कोशिकाएँ ही इस मैट्रिक्स का स्रावण करती हैं।

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तरल संयोजी ऊतक की विशेषताएँ

ये विशेष प्रकार के संयोजी ऊतक हैं, जिनका शरीर के लगभग सभी भागों में संचारण होता है; उदाहरणार्थ-रुधिर। इनमें निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं

  1. इनमें मैट्रिक्स तरल अवस्था में होता है। इसे प्लाज्मा (plasma) कहते हैं तथा प्लाज्मों में तन्तु (fibres) नहीं होते हैं।
  2. इनकी कोशिकाएँ, कणिकाएँ (corpuscles) कहलाती हैं तथा ये प्लाज्मा का स्रावण नहीं करती हैं।
  3. ये अन्य ऊतकों की भाँति शरीर को दृढ़ता, निश्चित स्वरूप अथवा गति देने का कार्य नहीं करते हैं। (UPBoardSolutions.com) उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि रुधिर एक ऊतक है।

प्रश्न 2.
संवहनीय ऊतक से आप क्या समझते हैं? सामान्य संयोजी ऊतक से यह किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर :

संवहनीय ऊतक

उविकास के साथ-साथ जब हमारे शरीर का माप बढ़ा और इसके रचनात्मक संगठन में जटिलता आई, तो इसके विभिन्न भागों के मध्य पदार्थों का परिवहन एक महत्त्वपूर्ण कार्य हो गया। अतः स्पंजों, निडेरिया एवं असीलोमेट तथा स्यूडोसीलोमेट जन्तुओं को छोड़कर शेष जन्तुओं में एक संवहनीय तन्त्र का विकास हुआ। इस तन्त्र के अन्तर्गत अधिकांश उच्च जन्तुओं में परिवहन के माध्यम के रूप में रुधिर एवं लसीका का विकास हुआ। ये विशेष प्रकार के तरल संयोजी ऊतक होते हैं, जिनका कि सम्पूर्ण शरीर में परिसंचरण होता है। इस प्रकार के ऊतकों को ही संवहनीय ऊतक कहा जाता है।

प्रश्न 3.
लाल रुधिराणु अपघटन तथा लाल रुधिराणु निर्माण क्रिया को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर :
लाल रुधिराणु अपघटन मैक्रोफेज तथा फेगोसाइट्स कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त लाल रुधिराणुओं का भक्षण करके हीमोग्लोबिन को हीम तथा ग्लोबिन में तोड़ देती हैं। इस प्रक्रिया को लाल रुधिराणु अपघटन कहते हैं। हीम का उपयोग पुनः हीमोग्लोबिन निर्माण में हो जाता है। लाल रुधिराणु निर्माण यकृत, अस्थिमज्जा, लसीका गाँठों, थाइमस ग्रन्थि आदि में लाल रुधिराणुओं का निर्माण होता है। इनका निर्माण एरिथ्रोब्लास्ट कोशिकाओं से होता है।

प्रश्न 4.
हैवर्सिअन नलिका पर टिप्पणी कीजिए। या स्तनी की अस्थि की अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाइए। या स्तनधारी की अस्थि में पाए जाने वाले हैवर्सिअन संस्थान का स्वच्छ एवं नामांकित चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर :
हैवर्सिअन  नलिका :
स्तनी प्राणियों की अस्थियाँ अधिक मोटी होती हैं। इसके मैट्रिक्स में हैवर्सिअन तन्त्र होता है। हैवर्सिअन नलिका के चारों ओर अस्थि कोशिकाओं के संकेन्द्रित घेरे होते हैं। हैवर्सिअन नलिकाएँ परस्पर अनुप्रस्थ या तिरछी वॉल्कमैन नलिकाओं से जुड़ी रहती हैं। हैवर्सिअन तन्त्र के कारण (UPBoardSolutions.com) अस्थियों में पोषक पदार्थों तथा 0, आदि का संचरण सुगमता से होता है।
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प्रश्न 5.
तिलचट्टे के लार ग्रन्थि-पुंज का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर :
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प्रश्न 6.
तिलचट्टे के श्वसन नली तंत्र में गैसीय विनिमय की यांत्रिकी का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
तिलचट्टे की विश्रामावस्था में ट्रैकिओल्स में केशिका खिंचाव (capillary force) के कारण ऊतक द्रव्य (tissue fluid) इनमें कुछ दूर तक भरा रहता है। यह भीतर आयी हवा से CO2 के बदले O2 लेता है। इसके विपरीत तिलचट्टे की सक्रिय अवस्था में, उपापचयी दर (metabolic rate) के बढ़ जाने से, ऊतक द्रव्य में परासरणी दाब (Osmotic pressure) बढ़ जाता है। इससे ट्रैकिओल्स में से ऊतक द्रव्य निकल जाता है। अतः अब हवा सीधी कोशिकाओं तक पहुँच जाती है, इससे गैसीय विनिमय बढ़ जाता है। CO2 उपचर्म में से भी O2 की अपेक्षा कहीं अधिक प्रसरित (diffuse) होती है। अतः यह हवा के साथ ही नहीं, वरन् हीमोलिम्फ में घुलकर देहभित्ति की उपचर्म में से भी प्रसरण द्वारा बाहर निकलती है।

प्रश्न 7.
कायान्तरण की परिभाषा लिखिए। त्वक पतन से कॉकरोच को क्या लाभ मिलता है ?
उत्तर :
वह प्रक्रिया जिसके अन्तर्गत शिशु अनेक अवस्थाओं से होते हुए वयस्क बनता है, कायान्तरण कहलाती है। उदाहरणार्थ-कॉकरोच के शिशु को निम्फ कहते हैं। ये रचना में वयस्क कॉकरोच के ही समान परन्तु छोटे, हल्के रंग के और पंखहीन होते हैं। इनके जननांग भी अर्द्धविकसित होते हैं। (UPBoardSolutions.com) इनकी शिशु अवस्था लगभग 6 माह से 2 वर्ष तक होती है। इस बीच शिशु में सक्रिय पोषण के कारण वृद्धि होती है। वृद्धि अवस्था में10 से 12 बार निम्फ के बाह्य कंकाल का त्वक् पतन होता है, परिणामस्वरूप इसकी वृद्धि होती है। अन्तिम त्वक् पतन के पश्चात् वृद्धि प्रावस्था समाप्त हो जाती है तथा निम्फ वयस्क बन जाता है। इसके पंख भी बन जाते हैं तथा जननांग क्रियाशील हो जाते हैं।

प्रश्न 8.
उत्सर्जन के बारे में आप क्या जानते हैं? तिलचट्टे की मैलपीघियन नलिकाओं का कार्य बताइए।
उत्तर :
उत्सर्जन :
प्रत्येक जीव में कोशिकीय उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप कई प्रकार के अपशिष्ट उत्पाद बनते हैं, जो उनके शरीर के लिए निरर्थक एवं हानिकारक होते हैं। इन अपशिष्ट उत्पादों को शरीर से निष्कासित करने की जैव-क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं। मैलपीषियन नलिकाओं के कार्य-ये पीले रंग की धागेनुमा नलिकाएँ हैं, जो मध्य आंत्र तथा पश्च आंत्र के जोड़ पर स्थित होती हैं। ये नलिकाएँ नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थों का अवशोषण करके उन्हें जैव रासायनिक क्रिया द्वारा यूरिक अम्ल में परिवर्तित कर देती हैं। यूरिक अम्ल पश्च आंत्र द्वारा उत्सर्जित कर दिया। जाता है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पेशी ऊतक कितने प्रकार के होते हैं? अरेखित पेशियों की सचित्र संरचना तथा कार्यविधि ६ का वर्णन कीजिए। प्रत्येक का उदाहरण दीजिए। या अरेखित तथा रेखित पेशियों में मुख्य अन्तर लिखिए।
उत्तर :

पेशी ऊतक

पेशी ऊतक अनेक लम्बे एवं बेलनाकार तन्तुओं (रेशों) से बना होता है जो समानांतर पंक्तियों में सजे रहते हैं। यह तन्तु कई सूक्ष्म तन्तुओं से बना होता है जिसे पेशी तन्तुक (myofibril) कहते हैं। समस्त पेशी तन्तुक समन्वित रूप से उद्दीपन के कारण संकुचित हो जाते हैं तथा पुनः लम्बा होकर अपनी असंकुचित अवस्था में आ जाते हैं। पेशी ऊतक की क्रिया से शरीर वातावरण में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार गति करता है तथा शरीर के विभिन्न अंगों की स्थिति को सँभाले रखता है। (UPBoardSolutions.com) सामान्यतया शरीर की सभी गतियों में पेशियाँ प्रमुख भूमिका निभाती हैं। पेशी ऊतक अग्र तीन प्रकार के होते हैं

1. अरेखित पेशी ऊतक
यह अनैच्छिक पेशी ऊतक है। ये पेशियाँ कार्यिकी व वातावरणों के अनुसार संकुचित होती हैं। ये पेशियाँ कंकाल से सम्बन्धित नहीं होती हैं। इन्हें विसरल पेशियाँ भी कहते हैं। ये पेशियाँ आहारनाल, श्वासनली, गर्भाशय, पित्ताशय, रुधिरवाहिनी, शिश्न आदि में मिलती हैं। अरेखित पेशियों के तन्तु 100-200μ लम्बे तथा 10μ चौड़े होते हैं। ये पतले तथा तरूपी होते हैं। तन्तु के ऊपर कोशिका कला मिलती है। इसको सारकोलेमा कहते हैं। तन्तु का द्रव सारकोप्लाज्म कहलाता है। इसमें एक्टिन व मायोसिन प्रोटीन के समानांतर. पेशी तन्तु मिलते हैं।
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2. रेखित पेशी ऊतक
ये पेशियाँ अंगों में इच्छानुसार गति को नियन्त्रित करती हैं। इन्हें ऐच्छिक पेशियाँ कहते हैं। ये पेशियाँ कंकाल से जुड़ी होती हैं। हाथ, पैर व शरीर की गति को संचालित करने के कारण इन्हें कंकालीय पेशी अथवा दैहिक पेशी भी कहते हैं। ये पेशियाँ गर्दन, हाथ, पैर, उदर आदि सभी अंगों में मिलती हैं। ये तन्तु संयोज़ी ऊतक तथा कोलेजन तन्तुओं के आवरण से आच्छादित होती हैं। इसे एन्डोमायोसियम कहते हैं। प्रत्येक तन्तु बेलनाकार तथा 1-30 μ लम्बा तथा 10-100 μ व्यास का होता है। इसके आवरण को सारकोलेमा कहते हैं। सारकोलेमा त्रिस्तरीय होता है। सारकोप्लाज्म में मायोफाइब्रिल मिलती है। रेखित पेशियों में एक्टिन तथा मायोसिन प्रोटीन मिलती है।

3. हृद पेशी ऊतक
यह एक संकुचनशील ऊतक है जो केवल हृदय में ही पाया जाता है। हृद पेशी ऊतक की कोशिकाएँ कोशिका संधियों द्वारा द्रव्य कला से एकरूप होकर चिपकी रहती हैं। संचार संधियों अथवा अन्तर्विष्ट डिस्क (intercalated disc) के कुछ संगलन बिंदुओं पर कोशिका एक इकाई रूप में संकुचित होती है। जैसे कि जब एक कोशिका संकुचन के लिए संकेत ग्रहण करती है, तब दूसरी पास की कोशिका भी संकुचन के लिए उद्दीपित होती है।

प्रश्न 2.
तिलचट्टे के मुखांगों का सचित्र वर्णन कीजिए। या कॉकरोच के मुखांगों को, उनके प्राकृतिक क्रम में, सरल, स्वच्छ आरेखी चित्र खींचकर उचित नामांकन द्वारा स्पष्ट कीजिए (वर्णन अनापेक्षित)
उत्तर :

तिलचट्टे/कॉकरोच के मुखांग

कॉकरोच के सिर पर उपस्थित चार जोड़ी उपांगों में से तीन जोड़ी उपांग छोटे और मुखद्वार के चारों ओर स्थित होते हैं। सिर कोष की लैब्रम (labrum) तथा हाइपोफैरिंक्स (hypopharynx) नाम की एक अन्य काइटिनयुक्त रचना भी मुखद्वार से सम्बन्धित होती है। इन सब उपांगों का सम्बन्ध (UPBoardSolutions.com) भोजन-ग्रहण से होता है। अत: इन्हें मुख उपांग या मुखांग कहते हैं। ये भोजन को कुतर-कुतरकर खाने के लिए उपयोजित अर्थात् मैन्डीबुलेट होते हैं। मुखद्वार के चारों ओर ये चित्र में दिखाए गए क्रम में स्थित रहते हैं।

1. लैब्रम :
यह मुखद्वार पर, सामने ढकी, सिर कोष की सबसे निचली, चपटी एवं गतिशील, प्लेटनुमा स्कलीराइट होती है। अतः इसे ऊपरी होंठ भी कहते हैं। यह लचीली पेशियों द्वारा क्लाइपियस से जुड़ी होती है। इसका स्वतन्त्र किनारा बीच से कटा होता है। कटाव के दोनों ओर स्वाद-ज्ञान की संवेदी सीटी होती हैं।

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2. मैन्डीबल्स :
ये लैब्रम के नीचे, मुखद्वार के पार्यों में एक-एक होते हैं। मजबूत पेशियाँ इन्हें सिर-कोष से जोड़ती हैं। प्रत्येक मैन्डीबल कठोर काइटिन की त्रिकोणाकार-सी रचना होती है। इससे मुख की ओर वाले किनारे पर तीन बड़े और कई छोटे-छोटे मजबूत दाँतों जैसे नुकीले उभार (denticles) होते हैं। इसी किनारे के आधार कोण पर प्रोस्थीका नामक छोटा-सा कोमल भाग होता है जिस पर संवेदी सीटी होती हैं। पेशियों की सहायता से मैन्डीबल्स अनुप्रस्थ दिशा में गतिशील होकर दाँतों के बीच आए भोजन को चबाते हैं।
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3. प्रथम मैक्सिली :
ये मुखद्वार के पाश्र्वो में, मैन्डीबल्स के आगे एक-एक होती हैं। प्रत्येक मैक्सिला कई पोडोमीयर्स की बनी होती है। इसके आधार भाग अर्थात् प्रोटोपोडाइट में काडों एवं स्टाइप्स नामक दो पोडोमीयर्स होते हैं। काड पेशियों द्वारा सिर-कोष से तथा स्टाइप्स 99° के कोण पर कारों से जुड़ा होता है। स्टाइप्स के दूरस्थ छोर के बाहरी भाग से एक पतला पंचखण्डीय (five-jointed) बाह्य पादांग (exopodite) जुड़ा होता है। इसे मैक्सिलरी स्पर्शक (maxillary palp) कहते हैं। इसके छोटे आधार पोडोमीयर को पैल्पीफर कहते हैं। स्टाइप्स के छोर से ही जुड़ा अन्त:पादांग (endopodite) होता है। इसमें परस्पर सटी दो पोडोमीयर्स होती हैं-बाहरी गैलिया तथा भीतरी (UPBoardSolutions.com) लैसीनिया (lacinia)। गैलिया कोमल तथा आगे से चौड़ी, छत्ररूपी (hood-like) होती है। लैसीनिया कठोर तथा आगे से नुकीली, पंजेनुमा होती है। इसके सिरे पर दो कण्टिकाएँ तथा भीतरी किनारों पर अनेक नन्हे शूक (bristles) होते हैं। इनके द्वारा प्रथम मैक्सिली भोजन को उस समय पकड़े रहती हैं जब मैन्डीबल्स भोजन को चबाते हैं। लैसीनिया के शूकों द्वारा मैक्सिली, ब्रुश की भाँति, अन्य मुख उपांगों की सफाई भी करती रहती हैं।

4. द्वितीय मैक्सिली :
ये समेकित होकर एक सहरचना बनाती हैं जिसे लेबियम या निचला होंठ (lower lip) कहते हैं; क्योंकि यह मुखद्वार के अधरतल पर ढका होता है। इसका आधार भाग बड़ा-सा चपटा सबमेन्टम होता है जो इसे सिर-कोष से जोड़ता है। सबमेन्टम के आगे छोटा मेन्टम इससे जुड़ा होता है। लेबियम का शेष, शिखर भाग, प्रथम मैक्सिली की ही भाँति पोडोमीयर्स एक जोड़ी रचनाओं का बना होता है जिनके आधार भाग मिलकर प्रीमेन्टम बनाते हैं। सबमेन्टम, मेन्टम और प्रीमेन्टम मिलकर लेबियम का प्रोटोपोडाइट बनाते हैं। प्रीमेन्टम के प्रत्येक पार्श्व में एक पैल्पीजर नामक स्कलीराइट होती है। इससे एक त्रिखण्डीय (three jointed) बाह्यपादांग (exopodite) जुड़ा होता है जिसे लेबियल स्पर्शक (labial palp) कहते हैं। प्रीमेन्टम के छोर पर, मध्य भाग से लगे, दो छोटे ग्लोसी तथा बाहरी भागों से लगे एक-एक बड़े पैराग्लोसी नामक पोडोमीयर्स होते हैं।

ये मिलकर इन मैक्सिली के अन्त:पादांग (endopodites) बनाते हैं। इन्हें मिलाकर लिगूला भी कहते हैं। पैल्प्स के अन्तिम खण्डों तथा पैराग्लोसी पर स्पर्श एवं स्वाद-ज्ञान की संवेदी सीटी होती हैं। यदि मैन्डीबल्स, प्रथम मैक्सिली या द्वितीय मैक्सिली में से किसी भी एक मुख उपांग को काटकर हटा दें तो कॉकरोच की भोजन-ग्रहण की व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी। यह न तो भोजन को ठीक से कुतर-कुतरकर खा पाएगा और न ही भोजन के स्पर्श, गन्ध आदि उद्दीपनों को ग्रहण कर पाएगा। इस प्रकार, उपयुक्त पोषण के अभाव में इसकी मृत्यु हो सकती है।

5. हाइपोफैरिंक्स या लिंग्वा :
यह लेबियम के पृष्ठतल पर, लैब्रम से ढका, प्रथम मैक्सिली के बीच में, मुखद्वार के छोर से लगा हुआ बेलनाकार-सा मुख उपांग होता है। इसके स्वतन्त्र छोर पर अनेक संवेदी सीटी होती हैं। आधार भाग पर सहलार नलिका (common salivary duct) का छिद्र होता है।

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प्रश्न 3.
संयुक्त नेत्र से आप क्या समझते हैं? कॉकरोच के एक नेत्रांशक का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए। या संयुक्त नेत्र क्या है? तिलचट्टे के एक नेत्रांशक की खड़ी काट का नामांकित चित्र बनाइए तथा मोजैक दृष्टि की क्रियाविधि को विस्तारपूर्वक समझाइए।
उत्तर :
संयुक्त नेत्र कॉकरोच में सिर के अग्र भाग के पार्श्व में दोनों ओर दो काले संयुक्त नेत्र होते हैं। ये अवृन्त तथा वृक्काकार होते हैं। संयुक्त नेत्र अनेक दृष्टि एककों (visual elements) से निर्मित होते हैं जिन्हें नेत्रांशक (ommatidia) कहा जाता है। प्रत्येक नेत्रांशक एक स्वतन्त्र एकक है अर्थात् जो वस्तु उसके सामने होती है उसका उतना प्रतिबिम्ब वह बना लेता है। कॉकरोच के संयुक्त नेत्र में लगभग 2,000 नेत्रांशक मिलते हैं। नेत्र के ऊपरी क्यूटिकल का आवरण कॉर्निया (cornea) बनाता है जो अनेक कोष्ठों में बँटा होता है, जिन्हें फलक (facets) कहते हैं। ये फलक षट्कोणीय होते हैं। प्रत्येक फलक के नीचे एक नेत्रांशक (ommatidium) स्थित होता है।

नेत्रांशक (Ommatidium) :
नेत्रांशक को दो भागों डायोप्ट्रिकल (dioptrical) तथा ग्राही भाग (receptor region) में बाँटा जाता है

(i) डायोप्टिकल भाग (Dioptrical Region) :
कॉर्निया का फलक मध्य से मोटा होकर एक द्विउत्तल लेंस (biconvex lens) बनाता है जिसके नीचे दो कॉरनिएजन कोशिकाएँ (corneagen cells) मिलती हैं। ये कोशिकाएँ उपत्वचीय कोशिकाओं को रूपान्तरण हैं। निर्मोचन (moulting) के पश्चात् ये नया कॉर्निया बनाती हैं। इसके पीछे चार शंकु कोशिकाएँ (cone cells) मिलती हैं जो पारदर्शी क्रिस्टलीय शंकु (crystalline cone) के चारों ओर स्थित होती हैं। इस भाग का मुख्य कार्य वस्तु से आने वाली प्रकाश की किरणों को फोकस करना है।
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(ii) ग्राही भाग (Receptor Region) :
इसके मध्य में एक लम्बी तरूपी (spindle shaped) छड़ (rod) मिलती है जिस पर अनुप्रस्थ दरारें रेब्डॉम (rhabdome) मिलती हैं। रेब्डॉम को घेरते हुए सात दृष्टि पटल कोशिकाएँ (retinal cells) मिलती हैं जो इसकी रक्षा करती हैं तथा उस तक पोषक पदार्थ पहुँचाती हैं। रेब्डॉम का (UPBoardSolutions.com) निर्माण रेटाइनल कोशिकाओं के स्राव से होता है। रेटाइनल कोशिकाएँ तथा रेब्डॉम दूरस्थ सिरे पर आधार कला (basement membrane) पर आधारित व तन्त्रिका तन्तुओं से सम्बन्धित होते हैं। इस भाग पर प्रतिबिम्ब बनता है।
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नेत्रांशक एक-दूसरे से वर्णक परतों द्वारा पृथक् होते हैं। वर्णक परतें वर्णक अमीबा समान कोशिकाओं (pigmented amoeboid cells) द्वारा निर्मित होती हैं। दो नेत्रांशकों के मध्य की वर्णक परत दो वर्णक समूहों से बनती है। डायोप्ट्रिकल भाग में मिलने वाला वर्णक समूह आइरिस वर्णक समूह (iris pigment group) तथा रेटाइनल भाग में मिलने वाला वर्णक समूह रेटाइनल वर्णक समूह (retinal pigment group) कहलाता है।

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प्रत्येक नेत्रांशक स्वतन्त्र प्रतिबिम्ब बनाता है। संयुक्त नेत्र में किसी भी वस्तु का प्रतिबिम्ब छोटे-छोटे प्रतिबिम्बों के समेकन से बनता है। इस प्रकार की दृष्टि को संकलित दृष्टि (mosaic vision) कहते हैं। प्रतिबिम्ब की प्रकृति प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर करती है। तीव्र प्रकाश में एपोजीशन प्रतिबिम्ब (UPBoardSolutions.com) (apposition image) बनता है तथा मन्द प्रकाश में सुपरपोजीशन प्रतिबिम्ब (super-position image) बनता है। यह प्रतिबिम्ब अंशछादित (overlapping) होता है; अतः स्पष्ट नहीं होता है।

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UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 2 Map Scale

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 2 Map Scale (मानचित्र मापनी)

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनें
(1) निम्नलिखित में से कौन-सी विधि मापनी की सार्वत्रिक विधि है? |
(क) साधारण प्रकथन
(ख) निरूपक भिन्न
(ग) आलेखी विधि।
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(ख) निरूपक भिन्न। |

(ii) मानचित्र की दूरी को मापनी में किस रूप में जाना जाता है?
(क) अंश ।
(ख) हर
(ग) मापनी का प्रकथन ।
(घ) निरूपक भिन्न
उत्तर-(क) अंश।

(iii) मापनी में अंश व्यक्त करता है
(क) धरातल की दूरी
(ख) मानचित्र पर दूरी
(ग) दोनों दूरियाँ ।
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(ख) मानचित्र पर दूरी।।

प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें,
(i) मापक की दो विभिन्न प्रणालियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर-मापक की दो विभिन्न प्रणालियाँ निम्नलिखित हैं–
1. मेट्रिक प्रणाली तथा 2. अंग्रेजी प्रणाली।

(ii) मेट्रिक एवं अंग्रेजी प्रणाली में मापनी के एक-एक उदाहरण दें।
उत्तर-उदाहरण-1 किमी = 1,000 मीटर, 1 मीटर = 100 सेमी आदि मापक की मेट्रिक प्रणाली कहलाती है; जबकि 1 मील = 8 फर्लोग, 1 फर्लाग = 220 यार्ड (गज) आदि मापक की अंग्रेजी प्रणाली है।

(iii) निरूपक भिन्न विधि को सार्वत्रिक विधि क्यों कहा जाता है?
उत्तर-निरूपक भिन्न विधि को सार्वत्रिक विधि इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस भिन्न के लिए किसी भी प्रकार की इकाई नहीं लिखी होती है। इस भिन्न का अंश सदैव 1 इकाई होता है, जिसे किसी भी देश में वहाँ प्रचलित मापक प्रणाली के आधार पर पढ़ा जाता है। जैसे-1 सेमी = 1 इंच आदि। |

(iv) आलेखी विधि के मुख्य उपयोग क्या हैं?
उत्तर-आलेखी विधि में मानचित्र की दूरी के लिए धरातल की दूरी दी गई होती है। इसके माध्यम से दो स्थानों की दूरी आसानी से ज्ञात की जा सकती है। इस विधि को मुख्य उपयोग यह भी है कि यह मानचित्र के छोटा या बड़ा करने पर भी उसी अनुपात में छोटी या बड़ी हो जाती है। अतः मानचित्र छोटा या बड़ा किए जाने पर मापक को सरलता से जाना जा सकता है।

प्रश्न 3. निम्नलिखित मापनी के प्रकथन को निरूपक भिन्न में बदलें
(i) 5 सेण्टीमीटर, 10 किलोमीटर को व्यक्त करता है।
उत्तर-5 सेण्टीमीटर व्यक्त करता है = 10 किलोमीटर
1 सेण्टीमीटर व्यक्त करेगा = [latex]\frac { 10 }{ 5 } [/latex] = 2 किलोमीटर
UP Board Solutions for Class 11Geography Practical Work in Geography Chapter 2 Map Scale (मानचित्र मापनी) img 1

(ii) 2 इंच के द्वारा 4 मील व्यक्त होता है।
उत्तर-प्रश्न संख्या (i) के उत्तर में अपनाई गई विधि के आधार पर
2 इंच व्यक्त करता है = 4 मील
1 इंच व्यक्त करेगा = [latex]\frac { 4 }{ 2 } [/latex] = 2 मील
अतः 1 इंच = 2 मील
नि० भि० = [latex]\frac { 1 }{ 2\times 63,360 } =\frac { 1 }{ 1,26,720 } [/latex]

(iii) 1 इंच के द्वारा 1 गज व्यक्त होता है।
उत्तर-1 इंच व्यक्त करता है = 1 गज
अतः नि० भि० = [latex]\frac { 1 }{ 1\times 36 } =\frac { 1 }{ 36 } [/latex]

(iv) 1 सेण्टीमीटर 100 मीटर को व्यक्त करता है।
उत्तर-1 सेण्टीमीटर व्यक्त करता है = 100 मीटर
अतः नि० भि० = [latex]\frac { 1 }{ 1\times 100 } =\frac { 1 }{ 10,000 } [/latex]

प्रश्न 4. निरूपक भिन्न को कोष्ठक में दी गई माप-प्रणाली के अनुसार मापनी के प्रकथन में परिवर्तित करें :
(i) 1:1,00,000 (किलोमीटर में)
उत्तर-1 सेमी व्यक्त करता है 1 किलोमीटर को।

(ii) 1: 31,680 (फर्लाग में)
उत्तर-1 इंच व्यक्त करता है 4 फर्लाग को।
(क्योंकि 1 मील = 8 फर्लंग या 1 मील = 63,360 इंच तथा 1 फर्लाग =7,920 इंच; अत: यदि 31,680 को 7,920 से भाग दिया जाता है तो =4 फर्लाग आता है।)

(iii) 1:1,26,720 (मील में)
उत्तर-1 इंच व्यक्त करता है =2 मील को।
(1,26,720 ÷ 63,360 = 2 मील)। |

(iv) 1:50,000 (मीटर में)
उत्तर-1 सेमी व्यक्त करता है = 500 मीटर को।
(50,000 ÷ 100 सेमी = 500 मीटर)।

प्रश्न 5. 1 : 50,000 मापक पर एक आलेखी मापनी की रचना कीजिए जिसमें किलोमीटर एवं मीटर पढ़े जा सकें।
उत्तर-नि० भि० (R. F.) = 1/50,000
1 सेमी व्यक्त करता है = 50,000 किमी।
15 सेमी व्यक्त करेगा = [latex]\frac { 50,000\times 15 }{ 1,00,000 } =\frac { 15 }{ 2 } [/latex] = 7.5 किमी
7.5 किमी अपूर्ण संख्या है; अत: इसे पूर्णांक संख्या 8 मान लेना चाहिए।
7.5 किमी व्यक्त होता है = 15 सेमी के द्वारा
8 किमी व्यक्त होगा = [latex]\frac { 8\times 15 }{ 7.5 } [/latex] = 16 सेमी
अतः 16 सेमी लम्बी रेखा द्वारा 8 किमी की दूरी पढ़ी जाएगी, जिसे निम्नांकित रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है
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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. मापक का महत्त्व एवं प्रकार बताइए तथा मानचित्र पर मापक प्रकट करने की विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-मापक का महत्त्व

  1. मापक के माध्यम से छोटे क्षेत्रों को बड़े आकार में तथा बड़े क्षेत्रों को छोटे आकार में मानचित्रों के | द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है।
  2. मापक द्वारा किसी भी मानचित्र में दो स्थानों (बिन्दुओं) के मध्य धरातल की वास्तविक दूरी ज्ञात | की जा सकती है।
  3. मापक के माध्यम से एक मानचित्रकार अपने उद्देश्य के अनुसार किसी भी क्षेत्र का छोटा या बड़ा मानचित्र तैयार कर सकता है।

मापक के प्रकार ।

साधारण रूप से मानचित्रों में दो प्रकार के मापक प्रयोग में लाए जाते हैं-
1. दीर्घ मापक मानचित्र-इन मापकों में धरातल की छोटी दूरियों को मानचित्र पर बड़ी माप से प्रदर्शित किया जाता है; जैसे-5 सेमी = 1 किमी या 10″ = 1 मील।।

2. लघु मापक मानचित्र-इन मापकों में धरातल की विशालतम दूरियों को मानचित्र में लघुतम दूरी | से प्रकट किया जाता है; जैसे-1 सेमी = 1,000 किमी या 1″ = 100 मील। लघु मापकों का चुनाव विशाल क्षेत्रों के मानचित्र बनाने के लिए किया जाता है।

मानचित्र पर मापक प्रकट करने की विधियाँ

मापक अभिव्यक्त करने की निम्नलिखित तीन विधियाँ हैं

(I) कथनात्मक विधि
मापक प्रकट करने की यह सरलतम विधि है। इस विधि में मापक को शब्दों द्वारा संक्षेप में व्यक्त किया जा सकता है। यह विधि विभिन्न देशों में प्रचलित माप की इकाई के अनुरूप व्यक्त की जाती है।

उदाहरण के लिए-1 सेमी = 5 किमी, 1″ = 10 मील आदि। इस विधि में दोनों दूरियाँ अलग-अलग । इकाइयों में प्रदर्शित की जाती हैं।

(II) प्रदर्शक भिन्न विधि
इस विधि में मापक का प्रदर्शन एक भिन्न द्वारा किया जाता है। भिन्न का अंश सदैव एक रहता है जो मानचित्र की दूरी प्रकट करता है तथा हर उसी इकाई में क्षेत्र की वास्तविक दूरी को प्रकट करता है। इसे अनुपात को माप की विभिन्न इकाइयों में सरलता से परिवर्तित किया जा सकता है। यद्यपि इस विधि में एक इकाई के द्वारा अनेक इकाइयों का प्रतिनिधित्व किया जाता है; अत: इसे प्रतिनिधि भिन्न या निरूपक भिन्न (R. F.) कहते हैं; जैसे
प्र० भि० = [latex s=2]\\ \frac { 1 }{ 2,000 } [/latex] में मानचित्र की 1 इकाई धारातल की 2,000 इकाइयों का प्रतिनिधित्व कर रही है।

प्रदर्शक भिन्न ज्ञात करने का सूत्र ।
UP Board Solutions for Class 11Geography Practical Work in Geography Chapter 2 Map Scale (मानचित्र मापनी) img 3

मापक प्रकट करने की इस विधि को भिन्नात्मक या R. F. विधि भी कहते हैं।

मापक परिवर्तन
उदाहरण 1-5 सेमी = 12.5 मीटर को प्र० भि० में बदलो।
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उदाहरण 2-2″ प्रति मील को प्र० भि० में बदलो।
UP Board Solutions for Class 11Geography Practical Work in Geography Chapter 2 Map Scale (मानचित्र मापनी) img 5

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कथुनात्मक मापक 1 सेमी =2.5 किमी।

प्रदर्शक भिन्न विधि का महत्त्व-यह विधि मापक प्रदर्शित करने की अन्तर्राष्ट्रीय विधि है, क्योंकि इस विधि का अन्तर्राष्ट्रीय जगत में उपयोग किया जाता है। इस विधि को विश्व के प्रत्येक राष्ट्र में समझा जा सकता है, क्योंकि इनमें माप की कोई भी इकाई अंकित नहीं होती वरन् यह केवल भिन्नात्मक अनुपात होता है। इस अनुपात को प्रत्येक राष्ट्र अपनी माप की इकाई में बदलकर पढ़ सकती है। इससे मापक की सभी देशों में सार्थकता बनी रहती है।

(III) रेखात्मक विधि
इस विधि में मापक की दूरियाँ एक निश्चित रेखा द्वारा प्रदर्शित की जाती हैं। इस रेखा को समान भागों एवं उपविभागों में बाँट लिया जाता है तथा उस पर विभिन्न माप की दूरियाँ अंकित कर दी जाती हैं। इस मापक विधि के द्वारा बिना किसी गणना किए हुए ही वास्तविक दूरी ज्ञात की जा सकती है। मानचित्र को फोटो द्वारा घटाने या बढ़ाने पर भी रेखात्मक मापनी शुद्ध रहती है, क्योंकि मापनी भी मानचित्र के साथ उसी अनुपात में घट या बढ़ जाती है।

रैखिक मापक बनाने में ध्यान रखने योग्य सावधानियाँ ।

  • रेखा की लम्बाई मापन के अनुसार प्राय: 6″ या 15 सेमी अधिक सुविधाजनक रहती है।
  • रेखा को सावधानी से सुविधानुसार समान भागों एवं उपविभागों में विधिवत् विभक्त करना चाहिए।
  • रेखा का विभाजन पूर्णांक संख्या में ही किया जाना चाहिए।
  • रेखा की मोटाई प्रत्येक स्थान पर एकसमान होनी चाहिए।
  • बाईं ओर के उपांश को लघु इकाई में दिखाने के लिए प्रयुक्त करना चाहिए तथा एकान्तर भाग को छाया से रँग देना चाहिए। इसी प्रकार दाईं ओर के समान भागों पर मापे की इकाई अंकित कर देनी चाहिए तथा एकान्तर भाग को छाया से रँग देना चाहिए।
  • रेखा को समान भागों में विभाजित करने के लिए ज्यामितीय विधियों का प्रयोग करना चाहिए।
  • रेखा के मुख्य भागों एवं बाईं ओर के उपांशों पर माप की इकाई अंकित कर देनी चाहिए।
  • मापक के ऊपर लगभग मध्य में प्र० भि० अंकित कर देनी चाहिए।

रेखा विभाजन की विधि-दी हुई रेखा के एक सिरे पर न्यूनकोण बनाइए। न्यूनकोण वाली रेखा को परकार में ली गई किसी भी उचित दूरी से उतने ही सम भागों में विभक्त कीजिए जितने भागों में रेखा को बाँटना है। कोण वाली रेखा के अन्तिम भाग को सरल रेखा के अन्तिम भाग से मिला दीजिए। शेष भागों पर समकोण गुनिया की सहायता से, इसी रेखा के सामान्तर रेखाएँ खींचिए। समानान्तर रेखाएँ सरल रेखा को अपेक्षित समान भागों में बाँट देंगी। (देखिए चित्र 2.1)।

रैखिक मापक के प्रकार
रैखिक मापक के निम्नलिखित प्रकार होते हैं-
1. साधारण मापक-यह सबसे सरल मापक है। इस मापक में दो इकाइयाँ एक साथ प्रदर्शित की जाती हैं; जैसे–मील एवं फर्लाग, गज एवं फुट, किमी एवं हेक्टोमीटर तथा डेकामीटर एवं मीटर आदि। इस मापक में इकाई के दसवें भाग तक को सरलता से पढ़ा जा सकता है। सभी मानचित्रों पर यह मापक बनाया जा सकता है।

2. तुलनात्मक मापक-तुलनात्मक मापक में एक साथ दो या दो से अधिक इकाइयों के साधारण मापक एक ही प्रदर्शक भिन्न पर प्रकट किए जाते हैं तथा इनकी पारस्परिक तुलना की जाती है। प्रत्येक इकाई को प्रदर्शित करने के लिए अलग-अलग मापकों की रचना की जाती है तथा उन्हें एक साथ इस प्रकार रखा जाता है कि सभी मापकों का शून्य एक सीध में रहे। इस मापक में प्रायः मील एवं किमी, गज एवं मीटर, जरीब एवं कदम आदि इकाइयों की तुलना के लिए एक साथ मापक बनाए जा सकते हैं। दो इकाइयों की तुलना के लिए मापक प्रदर्शन की सर्वोत्तम विधि है।

3. कर्णवत मापक-कर्णवत मापक में उपांश को समान भागों में विभक्त करने के लिए आयत के विकर्ण खींचे जाते हैं तथा कर्ण के सहारे-सहारे दूरियाँ प्रकट की जाती हैं; अत: इसे विकर्ण . मापक या कर्णवत मापक कहते हैं। एक साथ तीन इकाइयों अथवा इकाई के सौवें भाग तक के प्रदर्शन के लिए कर्णवत मापक का प्रयोग किया जाता है।

साधारण मापक की रचना

उदाहरण 1-किसी मानचित्र पर दो नगरों के बीच की दूरी को 12 सेमी से प्रकट किया गया है, जबकि उनकी वास्तविक दूरी 420 किमी है। मापक की प्र० भि० ज्ञात कीजिए तथा किमी का साधारण मापक बनाइए।
हल-प्र० भि० = [latex s=2]\frac { 12 }{ 420\times 100000 } =\frac { 1 }{ 3500000 } [/latex] या 1: 35,00,000

मापक की रचना के लिए गणना-
∵1 सेमी प्रकट करता है = 35,00,000 सेमी
∵15 सेमी प्रकट करेंगे = [latex s=2]\\ \frac { 35,00,000\times 15 }{ 1,00,000 } [/latex] किमी = 525 किमी
चूँकि 525 किमी की निकटतम पूर्णांक संख्या 500 है; अत: 500 किमी की दूरी प्रदर्शित करने के लिए रेखा की लम्बाई की गणना निम्नलिखित प्रकार से होगी
∵525 किमी प्रदर्शित होते हैं = 15 सेमी की रेखा द्वारा ।
∵1 किमी प्रदर्शित होगा = [latex s=2]\\ \frac { 15 }{ 525 } [/latex] सेमी की रेखा द्वारा
500 किमी प्रदर्शित होंगे = [latex s=2]\\ \frac { 15 }{ 525 } [/latex] x 500 सेमी की रेखा द्वारा
= [latex s=2]\\ \frac { 100 }{ 7 } [/latex] = 14.28 सेमी की रेखा द्वारा

रचना-14.28 या 14.3 सेमी की रेखा खींचकर उसे 5 समान भागों में विभाजित कीजिए। प्रत्येक भाग 100 किमी की दूरी प्रकट करेगा, पुनः बाएँ उपांश को 10 बराबर भागों में बाँटिए। प्रत्येक उपांश 10 किमी की दूरी प्रकट करेगा (देखें चित्र 2.2)।
UP Board Solutions for Class 11Geography Practical Work in Geography Chapter 2 Map Scale (मानचित्र मापनी) img 7
चित्र 2.2-सरल रेखा का ज्यामितीय विभाजन एवं साधारण मापक का प्रदर्शन।

उदाहरण 2-[latex s=2]\\ \frac { 1 }{ 200 } [/latex] की प्र० भि० पर मीटर तथा डेसीमीटर प्रदर्शित करने के लिए एक साधारण मापक बनाइए।
हल-1 सेमी प्रकट करता है =200 सेमी
15 सेमी प्रकट करेंगे = [latex s=2]\\ \frac { 200\times 15 }{ 100 } [/latex] = 30 मीटर
अतः 15 सेमी की रेखा 30 मीटर प्रकट करेगी।

रचना-15 सेमी एक रेखा खींचकर उसे 6 समान भागों में विभाजित कीजिए। प्रत्येक भाग 5 मीटर की दूरी प्रकट करेगा। पुनः बाएँ उपांश को 5 बराबर भागों में बाँटिए। प्रत्येक भाग 10 डेसीमीटर की दूरी प्रकट करेगा (देखें चित्र 2.3)।
UP Board Solutions for Class 11Geography Practical Work in Geography Chapter 2 Map Scale (मानचित्र मापनी) img 8
चित्र 2.3: साधारण मापक।

उदाहरण 3-एक आलेखी मापनी की रचना कीजिए जिसकी मापनी का प्रकथन 1 मील = 1 इंच है और जिसे मील एवं फर्लाग में पढ़ा जा सके। (पा० पु० पृ० सं० 20; प्र० 2)
हल-नोट: मील या फर्लाग में आलेखी मापक बनाने के लिए प्रायः 6 इंच की लम्बाई ली जाती है।

गणना : नि० भि० (R.F.) 1 इंच = 1 मील या 1/63,360 |
1 इंच व्यक्त करता हैं = 1 मील को ।
6 इंच व्यक्त करेगा = 6 मील को।
अत: 6 इंच लम्बी एक सीधी रेखा खीचें और उसे 6 बराबर भागों में विभाजित करें। प्रत्येक भाग 1 मील को दर्शाएगा। अब बाएँ भाग को चार बराबर भागों में विभाजित करें (1 मील = 8 फर्लाग)। प्रत्येक भाग 2 फर्लंग को प्रदर्शित करेगा (देखिए चित्र 2.4)।
UP Board Solutions for Class 11Geography Practical Work in Geography Chapter 2 Map Scale (मानचित्र मापनी) img 9
चित्र 2.4

उदाहरण 4-एक आलेखी मापनी बनाएँ जिसमें दिया गया निरूपक भिन्न 1: 50,000 है तथा दूरियों को मील एवं फर्लाग में व्यक्त करें। (पा० पु० पृ० सं० 21; प्र० 3)
हल-गणना–नि० भि० (R.F.) 1 : 50,000
1 इंच व्यक्त करता है = 50,000 इंच
6 इंच व्यक्त करेगा = [latex s=2]\\ \frac { 6\times 50000 }{ 63360 } [/latex] = 4.73 मील
4.73 मील अपूर्ण संख्या को 5 पूर्ण संख्या अर्थात् 5 मील मान लिया जाना चाहिए; अतः रेखा की लम्बाई ज्ञात करें
6 इंच की रेखा द्वारा 4.75 मील व्यक्त किया जाता है।
इसलिए 6 x 5 + 4.73 की रेखा के द्वारा 5 मील व्यक्त किया जाएगा।
अत: 6.34 इंच लम्बाई की रेखा पर 5 मील की दूरी प्रदर्शित की जाएगी।
UP Board Solutions for Class 11Geography Practical Work in Geography Chapter 2 Map Scale (मानचित्र मापनी) img 10
चित्र 2.5

मौखिक परीक्षा के लिए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. मापक से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-“मापक, मानचित्र पर दो स्थानों के बीच की दूरी एवं धरातल पर उन्हीं दोनों स्थानों के बीच की वास्तविक दूरी के मध्य का अनुपात है, जिसे मानचित्र पर प्रदर्शित किया जाता है।”

प्रश्न 2. मापकं प्रकट करने की कौन-कौन सी विधियाँ हैं?
उत्तर-मापक प्रकट करने की निम्नलिखित तीन विधियाँ हैं

  1. कथनात्मक विधि,
  2. प्रदर्शक भिन्न विधि तथा
  3. रेखात्मक विधि।

प्रश्न 3. प्रदर्शक भिन्न क्या है?
उत्तर-“मापक को भिन्न द्वारा प्रकट करने वाली इकाई को प्रदर्शक भिन्न कहते हैं; जैसे – [latex s=2]\\ \frac { 1 }{ 500 } [/latex] या [latex s=2]\\ \frac { 1 }{ 100000 } [/latex] – आदि।” इसमें अंश से मानचित्र की दूरी तथा हर से धरातल की वास्तविक दूरी प्रकट की जाती 1,00,000 है। इस भिन्न का अंश सदैव 1 रहता है। इसे प्र० भि० या नि० भि० (R.F.) भी कहते हैं।

प्रश्न 4. प्रदर्शक भिन्न ज्ञात करने का सूत्र क्या है?
उत्तर-प्रदर्शक भिन्न ज्ञात करने का सूत्र निम्नलिखित है
UP Board Solutions for Class 11Geography Practical Work in Geography Chapter 2 Map Scale (मानचित्र मापनी) img 11

प्रश्न 5. रेखात्मक मापक में रेखा की लम्बाई कितनी होनी चाहिए?
उत्तर-रेखात्मक मापक में रेखा की लम्बाई 6 इंच अथवा 15 सेमी उपयुक्त रहती है।

प्रश्न 6. रैखिक मापक कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-रैखिक मापक चार प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 7. कर्णवत मापक क्या है?
उतर-लघुतम दूरियाँ प्रकट करने के लिए कर्णवत मापक बनाया जाता है। इसमें एक साथ माप की तीन इकाइयाँ प्रकट की जाती हैं अर्थात् माप इकाई के सौवें भाग तक पढ़ा जा सकता है। कर्णवत मापक में कोई भी दूरी दशमलव के दो अंकों तक मापी जा सकती है। इस मापक में उपांश पर बनाए गए आयतों के विकर्ण बनाए जाते हैं जिसके सहारे तीसरी दूरी प्रकट की जाती है।

प्रश्न 8. साधारण मापक तथा विकर्ण मापक में क्या अन्तर है?
उत्तर–प्रथम, साधारण मापक में एक साथ माप की केवल दो इकाइयाँ ही प्रकट की जा सकती हैं, जबकि विकर्ण मापक में नाप की तीन इकाइयाँ एक साथ प्रदर्शित की जा सकती हैं। द्वितीय, साधारण मापक में इकाई के दसवें भाग तक ही प्रकट किया जा सकता है, जबकि विकर्ण मापक में इकाई के सौवें भाग तक की सूक्ष्म दूरी पढ़ी जा सकती है।

प्रश्न 9. मापक से क्या लाभ हैं?
उत्तर–मापक से निम्नलिखित लाभ हैं—

  1. मापक द्वारा छोटे क्षेत्रों को बड़े तथा बड़े क्षेत्रों को छोटे आकार में दर्शाया जा सकता है।
  2. मापक द्वारा मानचित्र पर किन्हीं भी दो स्थानों के मध्य की वास्तविक धरातलीय दूरी ज्ञात की जा सकती है।

प्रश्न 10. मापनी बनाने की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर-मापनी द्वारा बहुत बड़े क्षेत्रों को छोटा या छोटे क्षेत्रों को बड़े आकार में प्रदर्शित किया जा सकता है, जो अन्यथा सम्भव नहीं है। इसके द्वारा मानचित्र पर प्रदर्शित क्षेत्र से वास्तविक क्षेत्रफल ज्ञात किया जा सकता

प्रश्न 11. भारतवर्ष में कथनात्मक विधि का प्रयोग प्रायः किस प्रकार के मानचित्र में किया जाता है?
उत्तर-भूसम्पत्ति मानचित्रों एवं भवनों के प्लानों में प्रायः इस विधि का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 12. रेखात्मक मापनी की क्या विशेषता है?
उत्तर-रेखात्मक मापनी वाले मानचित्र को किसी भी आकार में मुद्रित करने पर मुद्रित मानचित्र की मापनी शुद्ध बनी रहती है, क्योंकि जिस अनुपात में मानचित्र का आकार बदलता है, उसी अनुपात में मापनी की लम्बाई भी बदल जाती है।

प्रश्न 13. प्र० भि० विधि की क्या उपयोगिता है?
उत्तर-इस विधि के मापक का अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व है, क्योंकि इस पर किसी भी देश में प्रचलित इकाई को पढ़ा जा सकता है।

प्रश्न 14. मापक के दो प्रकार बताइए।
उत्तर-1. लघु मापक तथा 2. व्यापक या दीर्घ मापक।

प्रश्न 15. रेखात्मक मापक के मुख्य प्रकार कौन-से हैं?
उत्तर-रेखात्मक मापक के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं—

  1. साधारण मापक,
  2. तुलनात्मक मापक,
  3. कर्णवत मापक तथा
  4. वर्नियर मापक।।

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UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 1 Introduction to Maps

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 1 Introduction to Maps (मानचित्र का परिचय)

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनें
(i) रेखाओं एवं आकृतियों के मानचित्र कहे जाने के लिए निम्नलिखित में से क्या अनिवार्य है?
(क) मानचित्र रूढ़ि
(ख) प्रतीक
(ग) उत्तर दिशा
(घ) मानचित्र मापनी
उत्तर-(ख) प्रतीक।।

(ii) एक मानचित्र जिसकी मापनी 1:4,000 एवं उससे बड़ी है, उसे कहा जाता है
(क) भूसम्पत्ति मानचित्र
(ख) स्थलाकृतिक मानचित्र
(ग) भित्ति मानचित्र ।
(घ) एटलस मानचित्र
उत्तर-(क) भूसम्पत्ति मानचित्र।।

(iii) निम्नलिखित में से कौन-सा मानचित्र के लिए अनिवार्य नहीं है?
(क) मानचित्र प्रक्षेप
(ख) मानचित्र व्यापकीकरण |
(ग) मानचित्र अभिकल्पना
(घ) मानचित्रों का इतिहास
उत्तर-(घ) मानचित्रों का इतिहास।

प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें
(क) मानचित्र व्यापकीकरण क्या है?
उत्तर—मानचित्र के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए उसकी विषय-वस्तु को नियोजित किया जाना मानचित्र व्यापकीकरण कहलाता है। चूंकि मानचित्रों को एक निश्चित उद्देश्य के लिए लघुकृत मापनी पर तैयार किया जाता है। ऐसा करते समय मानचित्रकार को चुनी गई विषय-वस्तु से सम्बन्धित सूचनाओं (आँकड़ों) को एकत्रित करके आवश्यकतानुसार सरल रूप में प्रदर्शित करना ही वास्तव में व्यापकीकरण है।

(ख) मानचित्र अभिकल्पना क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर-मानचित्र अभिकल्पना किसी मानचित्र का ऐसा पक्ष है जो उसकी पृष्ठभूमि का समकलित प्रदर्शन करता है। इसके अन्तर्गत मानचित्र निर्माण में प्रयुक्त संकेतों का चयन, उनके आकार एवं प्रकार, लिखने का ढंग, रेखाओं की चौड़ाई का निर्धारण, रंगों का चयन आदि को सम्मिलित किया जाता है। अतः मानचित्र अभिकल्पना मानचित्र निर्माण की एक जटिल अभिमुखता है जिसमें उन सिद्धान्तों की व्यापक जानकारी आवश्यक होती है जो आलेखी संचार द्वारा मानचित्र को प्रभावी व उद्देश्यपरक बना सकें।

(ग) लघुमान वाले मानचित्रों के विभिन्न प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर-लघुमान वाले मानचित्रों को निम्नलिखित दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है-
1. भित्ति मानचित्र-यह मानचित्र बड़े आकार के कागज या प्लास्टिक पर बनाया जाता है। इसकी | मापनी स्थलाकृतिक मानचित्र से लघु किन्तु एटलस मानचित्र से बृहत् होती है।
2. एटलस मानचित्र-ये मानचित्र बड़े आकार वाले क्षेत्रों को प्रदर्शित करते हैं तथा भौतिक एवं सांस्कृतिक विशिष्टताओं को सामान्य ढंग से दर्शाते हैं। |

(घ) बृहत मापनी मानचित्रों के दो प्रमुख प्रकारों को लिखें।
उत्तर-बृहत् मापनी मानचित्रों को अग्रलिखित दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है

1. भूसम्पत्ति मानचित्र-इन मानचित्रों को क्षेत्रीय सम्पत्ति की पंजिका कहा जाता है। ये मानचित्र सरकार द्वारा विशेष रूप से भूमिकर, लगान की वसूली एवं स्वामित्व का रिकॉर्ड रखने के लिए बनाए जाते हैं। इन मानचित्रों का मापक बृहत् होता है। जैसे—गाँवों के भू-सम्पत्ति मानचित्र 1:4,000 की मापनी पर तथा नगरों के मानचित्र 1 : 2,000 और इससे अधिक मापनी पर बनाए जाते हैं।

2. स्थलाकृतिक मानचित्र-ये मानचित्र भी सामान्यतः बृहत् मापनी पर बनते हैं, जो परिशुद्ध सर्वेक्षण पर आधारित होते हैं। इन मानचित्रों को श्रृंखला के रूप में विश्व के लगभग सभी देशों की राष्ट्रीय मानचित्र एजेंसी के द्वारा तैयार किया जाता है। भारत में इनका निर्माण व प्रकाशन सर्वेक्षण विभाग, देहरादून द्वारा किया जाता है। इनका मापक 1 : 2,50,000, 1 : 50,000 तथा 1 : 25,000 होता है। इन मानचित्रों में उच्चावच, अपवाह, वनस्पति, अधिवास, सड़कें आदि भौतिक व सांस्कृतिक तत्त्वों को दर्शाया जाता है।

(ङ) मानचित्र रेखाचित्र से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर-मानचित्र सम्पूर्ण पृथ्वी या उसके किसी भाग का समतल पृष्ठ पर समानीत मापनी द्वारा वर्णात्मक, प्रतीकात्मक तथा व्यापकीकृत निरूपण करता है; जबकि रेखाचित्र बिना मापनी के खींचा गया खाका है, जिसमें विषय-वस्तु को सामान्य जानकारी के लिए प्रदर्शित किया जाता है।

प्रश्न 3. मानचित्रों के प्रकारों की विस्तृत व्याख्या करें।
उत्तर-भूगोल के विद्यार्थी अनेक प्रकार के मानचित्रों का प्रयोग करते हैं। मानचित्रों का वर्गीकरण उनके मापक, रचना एवं उद्देश्य के आधार पर निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है

(क) मापक के अनुसार मानचित्र के भेद ।
मापक के आधार पर मानचित्रों को निम्नलिखित चार भागों में बाँटकर दो समूहों में रखा जा सकता है

  1. भू-कर, मानचित्र (Cadastral Map);
  2. भूपत्रक मानचित्र (Topographical Map);
  3. दीवार मानचित्र (Wall Map) तथा
  4. एटलस मानचित्र (Atlas or Chorographical Map)।

1. दीर्घ मापक मानचित्र-ये मानचित्र बड़े मापक पर निर्मित किए जाते हैं। इनका निर्माण मानचित्रों | में विस्तृत विवरण प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। इनमें 1 सेमी = 1 किमी तक की दूरी प्रकट की जाती है। भू-कर मानचित्र (Cadastral Map) तथा स्थलाकृतिक मानचित्र (Topographical Map) इसी श्रेणी में सम्मिलित हैं।

2. लघु मापक मानचित्र-ये मानचित्र छोटे मापक पर निर्मित किए जाते हैं। इनका निर्माण विशाल क्षेत्र में सीमित विवरण प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। इनका मापक 1 सेमी = 1,000 किमी या इससे भी अधिक हो सकता है। मानचित्रावली मानचित्र (Atlas Map) तथा दीवार मानचित्र (Wall Map) इसी प्रकार के मानचित्र होते हैं।

(ख) उद्देश्य के अनुसार मानचित्र के भेद
उद्देश्य के आधार पर मानचित्रों को निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है

  1. प्राकृतिक या उच्चावच मानचित्र,
  2. भू-तात्त्विक मानचित्र,
  3. जलवायु मानचित्र,
  4. वनस्पति मानचित्र,
  5. यातायात मानचित्र,
  6. सांस्कृतिक मानचित्र,
  7. जनसंख्या मानचित्र,
  8. आर्थिक मानचित्र,
  9. भाषा मानचित्र,
  10. जाति मानचित्र,
  11. अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्र,
  12. वितरण मानचित्र,
  13. राजनीतिक मानचित्र,
  14. खगोल मानचित्र,
  15. भूगर्भिक मानचित्र।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. मानचित्र की परिभाषा दीजिए तथा उसके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर-मानचित्र का अर्थ मानचित्र भूगोल के अध्ययन की समस्याओं का समाधान खोजने के उपकरण तथा विभिन्न रहस्यों को पता लगाने वाली कुंजियाँ हैं। मानचित्र ऐसी सांकेतिक लिपि है, जिसमें भूगोल का अपरिमित ज्ञानरूपी खजाना छिपा है। वस्तुतः मानचित्र गागर में सागर की उक्ति को चरितार्थ करते हैं। ‘मानचित्र’ लैटिन भाषा के मैपा (Mappa) शब्द से उत्पन्न मैप (Map) शब्द का पर्यायवाची है, जिसका शाब्दिक अर्थ कपड़े का रूमाल या टुकड़ा होता है। मानचित्र द्वारा विश्व के किसी भाग अथवा विशाल क्षेत्र का प्रदर्शन तथा चित्रण समतल कागज पर सरलता से किया जा सकता है।

मानचित्र की परिभाषाएँ

विभिन्न भूगोलविदों ने मानचित्र को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है

ए०ए० मिलर के अनुसार, “मैं मानचित्र को औजार के रूप में मानता हूँ। वास्तव में यह स्काउट के चाकू की अपेक्षा अधिक कल्पना प्रवीण चिह्नों से युक्त औजारों का पूर्ण थैला होता है। यदि इसका उचित प्रयोग किया जाए तो यह किसी भी भौगोलिक समस्या को अधिकांशतः सुलझा देता है।”

सिंह एवं कन्नौजिया के अनुसार, “मानचित्र समस्त पृथ्वी अथवा उसके किसी भाग का, जैसा कि वह ऊपर से दृष्टिगत होती है, परम्परागत लघु मापक चित्रण है।” इस प्रकार, मानचित्र पृथ्वी या उसके किसी भाग की धरातलीय अथवा मानवीय आकृतियों एवं कृतियों के सांकेतिक चिह्नों द्वारा समतल कागज पर बने आनुपातिक चित्रण को कहते हैं।

मानचित्र का महत्त्व

मानव अपने उपयोग के लिए मानचित्रों का निर्माण प्राचीनकाल से ही करता चला आ रहा है। मानचित्रों का उपयोग कृषकों, विद्यार्थियों, व्यापारियों, अर्थशास्त्रियों, योजना आयोग, राजनीतिज्ञों, यात्रियों, अन्वेषकों, विमानचालकों, त्योतिषियों, इतिहासकारों, अध्यापकों आदि के द्वारा पर्याप्त रूप में किया जाता है। भूगोल के अध्ययन में तो मानचित्रों का विशेष महत्त्व होता है। देश के योजनाकार मानचित्रों के आधार पर ही देश की भावी विकास योजनाओं का निर्माण करते हैं तथा भावी कार्यक्रम निर्धारित करते हैं। सैनिक मानचित्रों की सहायता से सैनिक अधिकारी सेना के संचालन का मार्ग तथा आक्रमण करने के स्थल सुनिश्चित करते हैं। वायुयान तथा जलयान चालक मानचित्रों के द्वारा अपनी आकाशीय एवं जलमार्ग सुनिश्चित करते हैं। भूगोल के जिज्ञासु भी इन्हीं मानचित्रों के सहयोग से पृथ्वी का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं तथा भूगोल के अध्यापक मानचित्रों की सहायता से ही विद्यार्थियों को विश्व का भौगोलिक ज्ञान प्रदान करते हैं। इस प्रकार मानचित्र एक पथ-प्रदर्शक तथा सहयोगी के रूप में भूगोल के अध्ययन और अध्यापन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वस्तुत: मानचित्र, भूगोल के यन्त्र एवं उपकरण हैं। मानचित्रों का उपयोग भूगोल के अध्ययन को सरसे, सरल, रोचक एवं बोधगम्य बना देता है। कोई भी दुरुह विषय मानचित्रों के माध्यम से छात्रों के लिए हृदयगामी बन जाता है। भौगोलिक यात्राओं की आधारशिला मानचित्र ही होते हैं।

प्रश्न 2. मानचित्र के क्रमिक विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर-मानचित्रण का इतिहास मानव इतिहास के समानान्तर प्राचीन है। विश्व का सबसे पुराना मानचित्र मेसोपोटामिया में पाया गया था जो चिकनी मिट्टी की टिकिया से बना था और 2,500 ईसा पूर्व का माना जाता है।

आधुनिक मानचित्र कला की नींव अरब एवं यूनान के भूगोलविदों द्वारा रखी गई। भारत में मानचित्र बनाने का कार्य वैदिककाल में शुरू हो गया था। प्राचीन भारतीय विद्वानों ने पूरे विश्व को सात द्वीपों में बाँटा था। महाभारत में माना गया था कि यह गोलाकार विश्व चारों ओर से जल से घिरा है। टोडरमल तथा शेरशाह सूरी के लगान मानचित्र भारत में मध्यकाल में मानचित्र विकास का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
ना ।

आधुनिक काल के प्रारम्भिक दौर में मानचित्र बनाने की कला एवं विज्ञान को पुनजीर्चित किया गया है। सही दिशा, दूरी व क्षेत्रफल के परिशुद्ध माप के लिए ही इस युग में विभिन्न प्रक्षेपों पर मानचित्र बनाए गए हैं। 19वीं शताब्दी में वायव्य (फोटोग्राफी) के सहयोग से मानचित्र बनाने में विशेष प्रगति हुई है। वर्तमान में उपग्रह प्रणाली, सुदूर संवेदन तकनीकी और कम्प्यूटर के सहयोग से कम समय में अधिक उपादेय और सटीक मानचित्र बनाए जाते हैं।

प्रश्न 3. दिशा मापन क्या है?
उत्तर-दिशा मानचित्र पर एक काल्पनिक सीधी रेखा है, जो एकसमान आधार से दिशा की कोणीय स्थिति को प्रदर्शित करती है। मानचित्र पर प्रदर्शित दिशा रेखा उत्तर व दक्षिण दिशा को प्रकट करती है, किन्तु यह शून्य दिशा या आधार दिशा रेखा कहलाती है। अतः एक मानचित्र सदैव उत्तर दिशा को दर्शाता है, अन्य सभी दिशाएँ इसके सम्बन्ध में निर्धारित होती हैं।

प्रश्न 4. क्षेत्र मापन क्या है?
उत्तर-मानचित्र के आकार का मापन क्षेत्र मापन कहलाता है। सामान्यत: इसके लिए वर्गविधि अधिक प्रचलित है। इस विधि द्वारा क्षेत्र को मापने के लिए एक प्रदीप्त ट्रेसिंग टेबल के ऊपर मानचित्र के नीचे एक ग्राफ पेपर रखकर मानचित्र को वर्गों से ढक लेते हैं तथा सम्पूर्ण वर्गों की संख्या एवं आंशिक वर्गों की संख्या सम्मिलित कर एक साधारण समीकरण से क्षेत्रफल ज्ञात कर लिया जाता है। यह समीकरण इस प्रकार है
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 1 Introduction to Maps (मानचित्र का परिचय) img 1
इस विधि के अतिरिक्त ध्रुवीय प्लेनीमीटर के द्वारा भी किसी मानचित्र के क्षेत्रफल की गणना की जा सकती है।

प्रश्न 5. दिशाएँ कितनी होती हैं?
उत्तर-सामान्यतः दिखाएँ चार होती हैं (उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम)। इन्हें प्रधान दिशाएँ माना जाता है, जबकि इनके प्रधान दिग्बिन्दुओं के बीच कई अन्य मध्यवर्ती दिशाएँ भी होती हैं।
UP Board Solutions for Class 11 Geography Practical Work in Geography Chapter 1 Introduction to Maps (मानचित्र का परिचय) img 2

प्रश्न 6. मानचित्र के आवश्यक लक्षण कौन-से हैं?
उत्तर-शीर्षक, मापक, निर्देश, प्रक्षेप, दिशा तथा परम्परागत या रूढ़ चिह्न मानचित्र के आवश्यक लक्षण हैं।

प्रश्न 7. मानचित्र पर दूरी मापन कैसे सम्भव है?
उत्तर-मानचित्र पर सीधी रेखाओं को पट्टी के द्वारा तथा टेड़ी-मेढ़ी रेखाओं को धागे के द्वारा मापा जाता है और उसे मानचित्र के मापक के द्वारा व्यक्त किया जाता है।

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UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 6 Anatomy of Flowering Plants 

UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 6 Anatomy of Flowering Plants (पुष्पी पादपों का शारीर)

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अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
विभिन्न प्रकार के मेरिस्टेम की स्थिति तथा कार्य बताइए।
उत्तर :
1. शीर्षस्थ विभज्योतक :
ये मुख्य रूप से जड़ व तने के शीर्षों पर तथा पत्तियों के अग्रों पर मिलते हैं जहाँ ये नई-नई कोशिकाएँ बनाते रहते हैं।

 2. अन्तर्वेशी विभज्योतक :
यह शीर्षस्थ विभज्योतक का अलग होकर छूटा हुआ भाग होता है। जो स्थाई ऊतकों में परिवर्तित न होकर उनके मध्य में छूट जाता है। घासों के पर्यों के आधारों में, पोदीने के तने की पर्व सन्धियों के नीचे यह ऊतक पाया जाता है। इनकी कोशिकाओं में (UPBoardSolutions.com) विभाजन के फलस्वरूप पौधों की लम्बाई में वृद्धि होती है।

3. पाश्र्व विभज्योतक :
पौधों में इस ऊतक की स्थिति पार्श्व में होती है इसीलिए इसे पार्श्व विभज्योतक कहते हैं। इनकी कोशिकाओं में विभाजन अरीय दिशा में होता है। इनके

उदाहरण :
पूलीय कैम्बियम व कॉर्क कैम्बियम हैं।

प्रश्न 2.
कॉर्क कैम्बियम ऊतकों से बनता है जो कॉर्क बनाते हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? वर्णन करो।
उत्तर :
हाँ। हम इस कथन से सहमत हैं कि कॉर्क कैम्बियम ऊतकों से बनता है जो कॉर्क बनाते हैं। ये पार्श्व विभज्योतकों की कोशिकाओं के अरीय दिशा में विभाजन के फलस्वरूप बनता है।

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प्रश्न 3.
चित्रों की सहायता से काष्ठीय एन्जियोस्पर्म के तने में द्वितीयक वृद्धि के प्रक्रम का वर्णन कीजिए इसकी क्या सार्थकता है?
उत्तर :

द्वितीयक वृद्धि

शीर्षस्थ विभज्योतक की कोशिकाओं के विभाजन, विभेदन और परिवर्द्धन के फलस्वरूप प्राथमिक ऊतकों का निर्माण होता है। अत: शीर्षस्थ विभज्योतक के कारण पौधे की लम्बाई में वृद्धि होती है। इसे प्राथमिक वृद्धि कहते हैं। द्विबीजपत्री तथा जिम्नोस्पर्स आदि काष्ठीय पौधों में पार्श्व विभज्योतक के कारण तने तथा जड़ की मोटाई में वृद्धि होती है। इस प्रकार मोटाई में होने वाली वृद्धि को द्वितीयक वृद्धि (secondary growth) कहते हैं। जाइलम और फ्लोएम के मध्य विभज्योतक को संवहन एधा (vascular cambium) तथा वल्कुट या परिरम्भ  में विभज्योतक को कॉर्क एधा (cork cambium) कहते हैं।

द्वितीयक वृद्धि-द्विबीजपत्री तना

द्वितीयक वृद्धि संवहन एधा (vascular cambium) तथा कॉर्क एधा (cork cambium) की क्रियाशीलता के कारण होती है।

संवहन एधा की क्रियाशीलता 
द्विबीजपत्री तने में संवहन बण्डल वर्षी (open) होते हैं।  संवहन बण्डलों के जाईलम तथा फ्लोएम के मध्य अन्तःपूलीय एधा (intrafascicular cambium) होती है। मज्जा रश्मियों की मृदूतकीय कोशिकाएँ जो अन्त:पूलीय एधा के मध्य स्थित होती हैं, विभज्योतकी होकर आन्तरपूलीय (UPBoardSolutions.com) एधा (interfascicular cambium) बनाती हैं। पूलीय तथा आन्तरपूलीय एधा मिलकर संवहन एधा का घेरा बनाती हैं।
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संवहन एधा वलय (vascular cambium ring)
की कोशिकाएँ तने की परिधि के समानान्तर तल अर्थात् स्पर्शरेखीय तल (tangential plane) में ही विभाजित होती हैं। इस प्रकार प्रत्येक कोशिका के विभाजन से जो नई कोशिकाएँ बनती हैं उनमें से केवल एक जाइलम या फ्लोएम की कोशिका में रूपान्तरित हो जाती है, जबकि दूसरी कोशिका विभाजनशील (meristematic) बनी रहती है। परिधि की ओर बनने वाली कोशिकाएँ फ्लोएम के तत्त्वों में तथा केन्द्र की ओर बनने वाली कोशिकाएँ जाइलम के तत्त्वों में परिवद्धित हो जाती हैं। बाद में बनने वाला संवहन ऊतक क्रमशः द्वितीयक जाइलम (secondary xylem) तथा द्वितीयक फ्लोएम (secondary phloem) कहलाता है। ये संरचना तथा कार्य में प्राथमिक जाइलम तथा फ्लोएम के समान होते हैं।

कॉर्क एधा की क्रियाशीलता
संवहन एधा की क्रियाशीलता से बने द्वितीयक ऊतक पुराने ऊतकों पर दबाव डालते हैं जिसके कारण भीतरी (केन्द्र की ओर उपस्थित) प्राथमिक जाइलम अन्दर की ओर दब जाता है। इसके साथ ही परिधि की ओर स्थित प्राथमिक फ्लोएम नष्ट हो जाता है। इससे पहले कि बाह्य त्वचा (epidermis) की कोशिकाएँ एक निश्चित सीमा तक खिंचने के बाद टूट-फूट जाएँ, अधस्त्वचा (hypodermis) के अन्दर की कुछ मृदूतकीय कोशिकाएँ विभज्योतक (meristem) होकर कॉर्क एधा (cork cambium) बनाती हैं। कॉर्क एधा कभी-कभी वल्कुट, अन्तस्त्वचा, परिरम्भ (pericycle) आदि से बनती है। कॉर्क एधा तने की परिधि के समानान्तर विभाजित होकर बाहर की ओर सुबेरिनयुक्त (suberized) कॉर्क या फेलम (cork or phellem) का निर्माण करती है। यह तने के अन्दर के भीतरी ऊतकों की सुरक्षा करती है। कॉर्क एधा से केन्द्र की ओर बनने वाली मृदूतकीय (parenchymatous), स्थूलकोणीय अथवा दृढ़ोतकी कोशिकाएँ द्वितीयक वल्कुट (phelloderm) का निर्माण करती हैं। कॉर्क एधा से बने (UPBoardSolutions.com) फेलम तथा फेलोडर्म को पेरीडर्म (periderm) कहते हैं। पेरीडर्म में स्थान-स्थान पर गैस विनिमय के लिए वातरन्ध्र (lenticels) बन जाते हैं। द्वितीयक जाइलम वसन्त काष्ठ तथा शरद् काष्ठ में भिन्नत होता है। इसके फलस्वरूप कुछ पौधों में स्पष्ट वार्षिक वलय बनते हैं।
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प्रश्न 4.
निम्नलिखित में विभेद कीजिए

(अ) टैकीड तथा वाहिका
(ब) पैरेन्काइमा तथा कॉलेन्काइमा
(स) रसदारु तथा अन्तःकाष्ठ
(द) खुला तथा बन्द संवहन बण्डल।
उत्तर :
(अ) टैकीड तथा वाहिका में अन्तर
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(ब)
पैरेन्काइमा (मृदूतक) तथा कॉलेन्काइमा (स्थूलकोण ऊतक) में अन्तर
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(स)
रसदारु तथा अन्तःकाष्ठ में अन्तर

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(द)
खुले तथा बन्द संवहन बण्डल में अन्तर

UP Board Solutions for Class 11 Biology Chapter 6 Anatomy of Flowering Plants image 7प्रश्न 5.
निम्नलिखित में शारीर के आधर पर अन्तर कीजिए
(अ) एकबीजपत्री मूल तथा द्विबीजपत्री मूल
(ब) एकबीजपत्री तना तथा द्विबीजपत्री तना।
उत्तर :
(अ)
एकबीजपत्री मूल तथा द्विबीजपत्री मूल में अन्तर

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(ब)
एकबीजपत्री तने तथा द्विबीजपत्री तने में अन्तर ऊतक एकबीजपत्री तना

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प्रश्न 6.
आप एक शैशव तने की अनुप्रस्थं काट का सूक्ष्मदर्शी से अवलोकन कीजिए। आप कैसे पता करेंगे कि यह एकबीजपत्री तना है अथवा द्विबीजपत्री तना है? इसके कारण बताइए।
उत्तर :
शैशव तने की अनुप्रस्थ काट का सूक्ष्मदर्शीय अवलोकन करके निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर एकबीजपत्री या द्विबीजपत्री तने की पहचान करते हैं

(क)
तने के आन्तरिक आकारिकी लक्षण

  1. बाह्य त्वचा पर उपचर्म (cuticle), रन्ध्र (stomata) तथा बहुकोशीय रोम पाए जाते हैं।
  2.  अधस्त्वचा (hypodermis) उपस्थित होती है।
  3. अन्तस्त्वचा प्रायः अनुपस्थित या अल्पविकसित होती है।
  4. परिरम्भ (pericycle) प्रायः बहुस्तरीय होता है।
  5. संवहन बण्डल संयुक्त (conjoint), बहि:फ्लोएमी (collateral) या उभयफ्लोएमी (bicollateral) होते हैं।
  6. प्रोटोजाइलम एण्डार्क (endarch) होता है।

(ख)
एकबीजपत्री तने के आन्तरिक आकारिकी लक्षण

  1. बाह्यत्वचा पर बहुकोशिकीय रोम अनुपस्थित होते हैं।
  2. अधस्त्वचा दृढ़ोतक (sclerenchymatous) होती है।
  3. भरण ऊतक (ground tissue) वल्कुट, अन्तस्त्वचा, परिरम्भ तथा मज्जा में अविभेदित होता है।
  4. संवहन बण्डल भरण ऊतक में बिखरे रहते हैं।
  5. संवहन बण्डल संयुक्त, बहि:फ्लोएमी तथा अवर्थी (UPBoardSolutions.com) (closed) होते हैं।
  6. संवहन बण्डल चारों ओर से दृढ़ोतक से बनी बण्डल अच्छद से घिरे होते हैं।
  7. जाइलम वाहिकाएँ (vessels) ‘V’ या ‘Y’ क्रम में व्यवस्थित रहती हैं।

(ग)
द्विबीजपत्री तने के आन्तरिक आकारिकी लक्षण

  1. बाह्य त्वचा पर बहुकोशिकीय रोम पाए जाते हैं।
  2. अधस्त्वचा (hypodermis) स्थूलकोण ऊतक से बनी होती है।
  3.  संवहन बण्डल एक या दो घेरों में व्यवस्थित होते हैं।
  4.  भरण ऊतक वल्कुट, अन्तस्त्वचा, परिरम्भ, मज्जा तथा मज्जा रश्मियों में विभेदित होता है।
  5.  संवहन बण्डल संयुक्त, बहि:फ्लोएमी या उभयफ्लोएमी और वर्धा (open) होते हैं।
  6. जाइलम वाहिकाएँ रेखीय (linear) क्रम में व्यवस्थित होती हैं।

प्रश्न 7.
सूक्ष्मदर्शी, किसी पौधे के भाग की अनुप्रस्थ काट में निम्नलिखित शारीर रचनाएँ दिखाती है
(अ) संवहन बण्डल संयुक्त, फैले हुए तथा उसके चारों ओर स्क्लेरेन्काइमी आच्छद हैं।
(ब) फ्लोएम पैरेन्काइमा नहीं है।
आप कैसे पहचानोगे कि यह किसका है?
उत्तर :
एकबीजपत्री तने की आन्तरिक आकारिकी या शारीर में संवहन बण्डल भरण ऊतक में बिखरे रहते हैं। संवहन बण्डल संयुक्त तथा अवर्थी होते हैं। संवहन बण्डल के चारों ओर स्क्लेरेन्काइमी बण्डल आच्छद (bundle sheath) होती है। फ्लोएम में फ्लोएम मृदूतक का अभाव होता है। अत: सूक्ष्मदर्शी में प्रदर्शित पौधे का भाग एकबीजपत्री तना है।

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प्रश्न 8.
जाइलम तथा फ्लोएम को जटिल ऊतक क्यों कहते हैं?
उत्तर :
जाइलम तथा फ्लोएम को जटिल ऊतक इसलिए कहते हैं क्योंकि ये एक से अधिक प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बनते हैं। सभी कोशिकाएँ मिलकर एक इकाई के रूप में विभाजित होकर कार्य करती हैं।

प्रश्न 9.
रन्ध्रीतन्त्र क्या है? रन्ध्र की रचना का वर्णन करो और इसका नामांकित चित्र भी बनाओ।
उत्तर :
रन्ध्र (Stomata) ऐसी रचनाएँ हैं, जो पत्तियों की बाह्यत्वचा पर पाये जाते हैं। रन्ध्र वाष्पोत्सर्जन तथा गैसों के विनिमय को नियमित करते हैं। प्रत्येक रन्ध्र (stoma= एकवचन) में सेम के आकार की दो कोशिकाएँ होती हैं जिन्हें द्वार कोशिकाएँ (guard cells) कहते हैं। एकबीजपत्री पौधों में द्वार कोशिकाएँ डम्बलाकार होती हैं। द्वार कोशिका की बाहरी भित्ति पतली तथा आन्तरिक भित्ति मोटी होती है। द्वार कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट होता है और यह रन्ध्र के खुलने (UPBoardSolutions.com) तथा बंद होने के क्रम को नियमित करता है। कभी-कभी कुछ बाह्यत्वचीय कोशिकाएँ भी रन्ध्र के साथ लगी रहती हैं, इन्हें उप कोशिकाएँ (accessory cells) कहते हैं। रन्ध्रीय छिद्र, द्वारकोशिका तथा सहायक कोशिकाएँ मिलकर रन्ध्री तन्त्र (stomatal system) का निर्माण करती हैं।
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प्रश्न 10.
पुष्पी पादपों में तीन मूलभूत ऊतक तंत्र बताओ। प्रत्येक तंत्र के ऊतक बताओ।

उत्तर :
पुष्पी पादपों में तीन मूलभूत ऊतक तंत्र निम्नवत् हैं

  1. बाह्यत्वचीय ऊतक तंत्र-मृदूतक।
  2. भरण ऊतक तंत्र-पेरेनकाइमा, कोलेनकाइमा तथा स्क्लेरेनकाइमा।
  3. संवहन ऊतक तंत्र-जाइलम तथा फ्लोएम।

प्रश्न 11.
पादप शारीर का अध्ययन हमारे लिए कैसे उपयोगी है?
उत्तर :
फार्माकोचोसी (Pharmaconosy) विज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत औषधीय महत्त्व के पदार्थों के स्रोत, विशेषताओं और उनके उपयोग का अध्ययन प्राकृतिक अवस्था में किया जाता है। यह अध्ययन मुख्य रूप से पौधों के शारीर (anatomy) पर निर्भर करता है। इमारती लकड़ी (timber) की दिन-प्रतिदिन कमी होती जा रही है, इसीलिए अच्छी इमारती लकड़ीके स्थान पर खराब इमारती लकड़ी का उपयोग किया जा रहा है। शारीर अध्ययन द्वारा लकड़ी की किस्म (quality) का पता लगाया जा सकता है। शारीर अध्ययन द्वारा एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री तने और जड़ की पहचान की जा सकती है। जीवाश्म शारीर (fossil anatomy) अध्ययन द्वारा प्राचीनकालीन पौधों का ज्ञान होता है। इससे जैवविकास का ज्ञान होता है कि आधुनिक पौधों की उत्पत्ति किस प्रकार हुई है। सूक्ष्मदर्शीय अध्ययन द्वारा चाय, कॉफी, तम्बाकू, केसर, हींग, वनस्पति रंगों, पादप औषधियों में मिलावट (adulteration) का अध्ययन किया जा सकता है। मिलावट के कारण इनकी आन्तरिक संरचना में भिन्नता आ जाती है।

प्रश्न 12.
परिचर्म क्या है? द्विबीजपत्री तने में परिचर्म कैसे बनता है?
उत्तर :
परिचर्म (Periderm) :
कॉर्क एधा की जीवित मृदूतक कोशिका से परिचर्म का निर्माण होता है। कॉर्क एधा या कागजन (cork cambium or phellogen) की कोशिकाएँ विभाजित होकर परिधि की ओर जो कोशिकाएँ बनाती हैं, वे सुबेरिनयुक्त (suberinized) कोशिकाएँ होती हैं। सुबेरिनयुक्त कोशिकाओं से बना यह स्तर कॉर्क या फेलम (cork or phellem) कहलाता है। कॉर्क एधा (cork cambium) से भीतर की ओर बनने वाली मृदूतकीय कोशिकाएँ द्वितीयक वल्कुट या फेलोडर्म (phelloderm) (UPBoardSolutions.com) बनाती हैं। फेलम (कॉर्क), कॉर्क एधा तथा द्वितीयक वल्कुट मिलकर परिचर्म (periderm) बनाती हैं।

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प्रश्न 13.
पृष्ठाधर पत्ती की भीतरी रचना का वर्णन चिह्नित चित्रों की सहायता से कीजिए।
उत्तर :

पृष्ठाधर या द्विबीजपत्री पत्ती की संरचना

द्विबीजपत्री पौधों की पत्ती की अनुप्रस्थ काट में निम्नलिखित संरचनाएँ दिखाई देती हैं

(क)
बाह्यत्वचा (Epidermis) :
बाह्यत्वचा सामान्यत: दोनों सतहों पर एककोशिकीय मोटे स्तर के रूप में होती है।

(i) ऊपरी बाह्यत्वचा :
यह एक कोशिका मोटा स्तर है। इसकी कोशिकाएँ ढोलकनुमा परस्पर एक-दूसरे से सटी हुई होती हैं। इन कोशिकाओं की बाहरी भित्ति उपचर्म-युक्त होती है। कोशिकाओं में साधारणत: हरितलवक नहीं होते हैं। कुछ पौधों (प्रायः शुष्क स्थानों में उगने वाले पौधों में) में बहुस्तरीय बाह्यत्वचा (multiple epidermis) पाई जाती हैं।

(ii) निचली बाह्यत्वचा :
निचली बाह्यत्वचा एक कोशिका मोटे स्तर रूप में पाई जाती है। इस पर पतला उपचर्म होता है। रन्ध्र बहुतायत में पाए जाते हैं। रन्ध्रों की रक्षक कोशिकाओं में हरितलवक पाए जाते हैं। कुछ पत्तियों की ऊपरी बाह्यत्वचा पर भी रन्ध्र होते हैं, किन्तु इनकी संख्या सदैव कम होती है।

(ख)
पर्णमध्योतक (Mesophyll) :
दोनों बाह्यत्वचाओं के मध्य स्थित सम्पूर्ण ऊतक (संवहन बण्डलों को छोड़कर) पर्णमध्योतक कहलाता है। पृष्ठाधर पत्तियों में पर्णमध्योतक दो प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बनता है

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(i) खम्भ ऊतक (Palisade tissue) :
ऊपरी बाह्यत्वचा के नीचे लम्बी, खम्भाकार कोशिकाएँ दो-तीन पर्यों में लगी होती हैं। इन कोशिकाओं के मध्य अन्तराकोशिकीय स्थान बहुत कम या नहीं होते हैं। ये रूपान्तरित मृदूतकीय कोशिकाएँ होती हैं। यह प्रकाश संश्लेषी (photosynthetic) ऊतक है।
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(ii) स्पंजी ऊतक (Spongy tissue) :
खम्भ मृदूतक से लेकर निचली बाह्यत्वचा तक स्पंजी मृदूतक ही होता है। ये कोशिकाएँ सामान्यतः गोल और ढीली व्यवस्था में अर्थात् काफी और स्पष्ट अन्तराकोशिकीय स्थान वाली होती हैं। इन कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट्स कम संख्या में होते हैं। मध्य शिरा में संवहन पूल के ऊपर तथा नीचे दृढ़ोतक या स्थूलकोण ऊतक पाया जाता है।

(ग)
संवहन पूल (Vascular bundles) :
पत्ती की अनुप्रस्थ काट में अनेक छोटी-छोटी शिराएँ संवहन पूलों के रूप में दिखाई पड़ती हैं। संवहन पूल जाइलम और फ्लोएम के मिलने से बनता है। आदिदारु (protoxylem) सदैव ऊपरी बाह्यत्वचा की ओर होती है, जबकि अनुदारु (metaxylem) निचली बाह्यत्वचा की ओर होता है। फ्लोएम निचली बाह्यत्वचा की ओर होता है। जाइलम और फ्लोएम के मध्य एधा (cambium) होती है। इस प्रकार संवहन पूल संयुक्त (conjoint), समपार्श्व (collateral) तथा वध (open) होते हैं। प्रत्येक संवहन पूल दृढ़ोतक रेशों से घिरा होता है तथा इसके बाहर मृदूतकीय कोशिकाओं का पूलीय आच्छद होता है। यह बण्डल आच्छद सामान्यत: छोटी-से-छोटी शिरा के चारों ओर भी होता है।

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प्रश्न 14.
त्वक् कोशिकाओं की रचना तथा स्थिति उन्हें किस प्रकार विशिष्ट कार्य करने में सहायता करती है?
उत्तर :

त्वक कोशिकाएँ

ये पादप शरीर के सभी भागों पर सबसे बाहरी रक्षात्मक आवरण बनाती हैं। यह प्रायः एक कोशिका मोटा स्तर होता है। कोशिकाएँ अनुप्रस्थ काट में ढोलकनुमा (barrel shaped) दिखाई देती हैं। बाहर से देखने पर ये अनियमित आकार की फर्श के टाइल्स की तरह अथवा बहुभुजीय दिखाई देती हैं। ये परस्पर एक-दूसरे से मिलकर अखण्ड सतह बनाती हैं। ये कोशिकाएँ मृदूतकीय कोशिकाओं का रूपान्तरण होती हैं। इन कोशिकाओं में कोशिकाद्रव्य की मात्रा बहुत (UPBoardSolutions.com) कम होती है तथा प्रत्येककोशिका में एक बड़ी रिक्तिका होती है। पौधे के वायवीय भागों की त्वक् कोशिकाएँ उपचर्म (cuticle) से ढकी होती हैं, परन्तु मूलीय त्वचा की कोशिकाओं पर उपचर्म की रक्षात्मक आवरण नहीं होता। तने, पत्ती आदि की त्वक् कोशिकाओं के मध्य रन्ध्र (stomata) पाए जाते हैं। रन्ध्र द्वार कोशिकाओं (guard cells) से घिरे होते हैं। द्वार कोशिकाएँ वृक्काकार होती हैं। द्वार कोशिकाओं के चारों ओर पाई जाने वाली कोशिकाओं को सहायक कोशिकाएँ कहते हैं। रन्ध्रों का खुलना तथा बन्द होना रक्षक कोशिकाओं की आशूनता पर निर्भर करता है। रन्ध्र वाष्पोत्सर्जन तथा गैसों के आदान प्रदान का कार्य करते हैं। रन्ध्रों की स्थिति, संख्या, संरचना, उपचर्म की मोटाई आदि वाष्पोत्सर्जन की दर को प्रभावित करती है।

जड़ों की त्वक कोशिकाओं से एककोशिकीय मूलरोम बनते हैं। ये मृदा से जल एवं खनिज लवणों का अवशोषण करते हैं। तने और पत्तियों की त्वक्को शिकाओं से बहुकोशिकीय रोम बनते हैं। पत्ती एवं तने की रोमयुक्त सतह वाष्पोत्सर्जन की दर को नियन्त्रित करने में सहायक होती है। रन्ध्रों के रोमों से ढके रहने के कारण मरुभिद् पौधों में वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है। त्वक् कोशिकाएँ वातावरणीय दुष्प्रभावों से पौधों की सुरक्षा करती हैं।

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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से किस पादप के फ्लोएम में सह कोशिकाएँ नहीं होती हैं?
(क) साइकस
(ख) नीम
(ग) आम
(घ) सागौन
उत्तर :
(क) साइकस

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से किसकी दारू में वाहिकाएँ नहीं होती हैं?
(क) साइकस
(ख) आम
(ग) नीम
(घ) सागौन
उत्तर :
(क) साइकस

प्रश्न 3.
उस पादप का नाम क्या है जिसमें सिस्टोलिथ पायी जाती है?
(क) फाइकस
(ख) मेज
(ग) आम
(घ) सागौन
उत्तर :
(क) फाइकस

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प्रश्न 4.
वाहिकाएँ तथा सखी कोशिकाएँ किसमें अनुपस्थित रहती हैं?
(क) इफेड्रा
(ख) साइकस
(ग) सूरजमुखी
(घ) आम
उत्तर :
(ख) साइकस।

प्रश्न 5.
मध्यादिदारूक आदिदारू पाया जाता है।
(क) सरसों की जड़ में
(ख) सरसों के तने में
(ग) टेरिस के राइजोम में
(घ) साइकस की कोरेलायड जड़ों में
उत्तर :
(ख) सरसों के तने में

प्रश्न 6.
कैस्पेरियन पट्टी पायी जाती हैं।
(क) बाह्य त्वचा में
(ख) अधत्वचा में
(ग) अन्तस्त्वचा में
(घ) फ्लोयम में
उत्तर :
(ग) अन्तस्त्वचा में।

प्रश्न 7.
रबर की पत्ती में पाये जाने वाले कैल्सियम कार्बोनेट के क्रिस्टल को कहते हैं।
(क) रैफाइड्स
(ख) सिस्टोलिथ
(ग) स्फीरैफाइड्स
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(क) रैफाइड्स

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प्रश्न 8.
संयुक्त, उभयफ्लोएमी और खुले संवहन बण्डले पाये जाते हैं।
(क) मक्का के तने में
(ख) सभी द्विबीजपत्री तनों में
(ग) कुकुरबिटा में
(घ) जड़ों में
उत्तर :
(ग) कुकुरबिटा में

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पाश्र्व विभज्योतक का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
एधा (cambium)।

प्रश्न 2.
“वल्कुट की सबसे भीतरी परत का नाम लिखिए।
उत्तर :
अन्तस्त्वचा (endodermis)।

प्रश्न 3.
उस जीवित ऊतक का नाम बताइए जो प्रमुखतः शाकीय पौधों में यान्त्रिक शक्ति प्रदान करता है।
उत्तर :
शाकीय पौधों में यान्त्रिक शक्ति प्रदान करने वाला प्रमुख जीवित ऊतक अधः स्तरीय भाग में (in hypodermal part) स्थूल कोण ऊतक (collenchyma) होता है।

प्रश्न 4.
जड़ों में पाये जाने वाले संवहन बण्डलों के लक्षण लिखिए।
उत्तर :
जड़ों में अरीय संवहन बण्डल पाये जाते हैं। इस प्रकार के संवहन बण्डलों में जाइलम और फ्लोएम अलग-अलग त्रिज्याओं पर होते हैं। इनमें जाइलम सदैव बाह्यआदिदारुक मिलता है अर्थात् आदिदारु परिधि की ओर तथा अनुदारु केन्द्र की ओर होता है। इन संवहन बण्डलों में प्राथमिक एधा नहीं पायी जाती। द्विबीजपत्री जड़ों में माइलम तथा फ्लोएम के मध्य बाद में, द्वितीयक एधा बन जाती है।

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प्रश्न 5.
उस पौधे का नाम लिखिए जिसमें उभय फ्लोएमी संवहन बण्डल (पूल) पाये जाते हैं।
उत्तर :
आवृतबीजी पौधों के कुल कुकुरबिटेसी के पौधों जैसे काशीफल (Cucurbita maxima) आदि में उभय फ्लोएमी (bicollateral) संवहन पूल पाये जाते हैं।

प्रश्न 6.
विरल दारुक तथा सघन दारुक काष्ठ में अन्तर बताइए।
उत्तर :
विरल दारुक (manoxylic) काष्ठ :
साइकस में द्वितीयक जाइलम वलयों के मध्य मृदुतक कोशिकाओं के समूह पाये जाते हैं क्योंकि इसमें द्वितीयक वृद्धि के लिए हर वर्ष नयी एधा वलय बनती है। सघन दारुक (pycnoxylic) काष्ठ-आवृतबीजी तथा अधिकांश अनावृतबीजी पौधों में एधा वलय जीवनपर्यन्त क्रियाशील (UPBoardSolutions.com) रहती है। इससे केन्द्र की ओर द्वितीयक जाइलम तथा परिधि की ओर द्वितीयक फ्लोएम बनता रहता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ट्यूनिका कॉर्पस थ्योरी पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
सन् 1924 में शिमिट (Schmidt) ने अग्रस्थ वर्षी प्रदेशों (apical growing regions) के लिए ट्यूनिका कॉर्पस (tunica corpus) की विचारधारा प्रस्तुत की। इस विचारधारा के अनुसार, अग्रस्थ भाग में ऊतियों के दो क्षेत्र ट्यूनिका (tunica) तथा कॉर्पस (corpus) पाए जाते हैं। ट्यूनिका कोशिकाओं का एक या अधिक स्तरों का बाह्य क्षेत्र तथा कॉर्पस मध्य वाला क्षेत्र है जो कोशिकाओं का एक समूह है तथा ट्यूनिकों द्वारा घिरा रहता है। इस विचारधारा के अनुसार, बाह्यत्वचा, ट्यूनिका की बाहरी स्तर से विकसित होती है तथा शेष ऊतक पूर्ण कॉर्पस एवं ट्यूनिका के कुछ भागों से विकसित होते हैं। जब ट्यूनिका केवल एकस्तरीय होती है। तो यह हेन्सटीन द्वारा वर्णित त्वचाजन (dermatogen) की भाँति कार्य करती है, लेकिन जब यह बहुस्तरीय होती है तो यह वल्कुट के ऊतक (cortical tissue) के कुछ भाग के विकास में सहायक हो सकती है। ट्यूनिका की कोशिकाएँ केवल अपनतिक (anticlinal) विभाजन द्वारा विभाजित होती है। जबकि कॉर्पस भाग की कोशिकाएँ अपनतिक तथा परिनतिक (periclinal) विभाजनों से विभाजित होती हैं।

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प्रश्न 2.
बाह्य त्वचा ऊतक तन्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
बाह्यत्वचा पौधों के अधिकांश भागों की बाहरी त्वचा है। इसकी कोशिकाएँ लम्बी तथा एक-दूसरे से सटी हुई होती हैं और एक अखण्ड सतह बनाती हैं। बाह्यत्वचा प्राय: एकल परत वाली होती है। बाह्यत्वचीय कोशिकाएँ मृदूतकी प्रकार की होती हैं जिनमें बहुत कम मात्रा में साइटोप्लाज्म होता है। इसमें एक बड़ी (UPBoardSolutions.com) रसधानी होती है। बाह्यत्वचा की बाहरी सतह पर क्यूटिकल (cuticle) नामक रक्षात्मक परत का आवरण पाया जाता है। क्यूटिकल जल की हानि को रोकती है। जड़ों में क्यूटिकल अनुपस्थित होती है।

प्रश्न 3.
वार्षिक वलय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। या कश्मीर में पाये जाने वाले वृक्षों में वार्षिक वलय प्रायः स्पष्ट होते हैं परन्तु उन पौधों में नहीं जो चेन्नई के समीप पाये जाते हैं। क्यों ?
उत्तर :

वार्षिक वलय

संवहन एधा की क्रियाशीलता मौसम में परिवर्तन के साथ अलग-अलग होने के कारण अधिक ठण्डे शरद ऋतु और बसन्त ऋतु में बनने वाले द्वितीयक जाइलम (secondary xylem) में काफी (कभी-कभी अत्यधिक भी) अन्तर उत्पन्न कर देती है। बसन्त ऋतु (spring season) में तापमान उचित होने आदि के कारण बनने वाले द्वितीयक जाइलम अर्थात् बसन्त काष्ठ (spring wood) में
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वाहिकाएँ इत्यादि अधिक स्पष्ट तथा चौड़ी गुहा वाली होती हैं। शरद ऋतु में पौधे के सभी भागों के साथ पूलीय एधा (fascicular cambium) भी कम क्रियाशील हो जाती है। इस प्रकार, इस काष्ठ में वाहिकाएँ बहुत कम तथा बहुत छोटी गुहा वाली होती हैं, साथ ही इस काष्ठ में वाहिनिकाओं और काष्ठ रेशों (tracheids and wood fibres) की अधिकता होती है। इसका रंग भी गहरा होता है। इस प्रकार बने काष्ठ को शरद काष्ठ (autumn wood) कहते हैं दोनों प्रकार के काष्ठ अर्थात् बसन्त काष्ठ तथा शरद काष्ठ तने की अनुप्रस्थ काट (transverse section) संकेन्द्री वलयों (concentric rings) के रूप में दिखायी देते हैं।इस प्रकार एक शरद काष्ठ और एक बसन्त काष्ठ के वलय को मिलाकर वार्षिक वलय (annual ring) अथवा वृद्धि वलय (growth ring) कहते हैं। इस प्रकार एक वलय के बनने में एक वर्ष का समय लगता है अत: वार्षिक वलयों की संख्या देखकर किसी वृक्ष की आयु का पता लगाया जा सकता है।

यह भी स्पष्ट है कि केवल मुख्य स्तम्भ के आधारीय भाग में ही वार्षिक वलयों की संख्या गिनकर वृक्ष की आयु बतायी जा सकती है, क्योकि आधार से सिरे की ओर वलयों की संख्या कम होती जाती है। वर्षभर के मौसम में अधिक परिवर्तन नहीं होने से वार्षिक वलय नहीं बनते हैं अथवा स्पष्ट नहीं होते हैं; इसलिए ‘वार्षिक वलय’ में बसन्त वे शरद् ऋतुओं में अत्यधिक अन्तर होने से कश्मीर में बसन्त काष्ठ व शरद काष्ठ स्पष्ट रूप से घेरों या वलयों (rings) में बनते हैं। चेन्नई मेंदोनों ऋतुओं के तापमान में न तो इतना अन्तर होता है और न ही काष्ठ में बसन्त व शरद काष्ठ के वलय बन पाते हैं।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए
(i) अन्तःकाष्ठ तथा रस काष्ठ
(ii) वातरन्ध्र
उत्तर :
(i) अन्त:काष्ठ तथा रस काष्ठ (Heart wood and Sap wood) :
तने के पुराने भाग अथवा केन्द्रीय भाग में टैनिन (tannin), रेजिन (resin), गोंद (gum) आदि पदार्थों के जमाव के कारण यह भाग कठोर हो जाता है। इस भाग को अन्त:काष्ठ (heart wood) अथवा ड्यूरामेन (duramen) कहते हैं। द्वितीयक वृद्धि के साथ-साथ प्रतिवर्ष अन्त:काष्ठ की मात्रा बढ़ती जाती है।अनुप्रस्थ कोट में यह भाग गहरे बादामी रंग को दिखलाई देता है। इसका मुख्य कार्य दृढ़ता प्रदान करना है। द्वितीयक काष्ठ की परिधि वाला भाग हल्के रंग का होता है। इस भाग। को रस काष्ठ (sap wood) अथवा एलबर्नम (alburnum) कहते हैं। यह काष्ठ का सक्रिय भाग है। यह जल तथा खनिज लवणों को पत्तियों तक पहुँचाने का कार्य करता है।

(ii) वातरन्ध्र (Lenticel) :
ये पुराने वृक्ष के तनों पर पाये जाने वाले लेंस की तरह के छिद्र होते हैं जिनके द्वारा तना वातावरण से गैसों का आदान-प्रदान करता है। वातरन्ध्र (lenticel), रन्ध्र (stomata) के नीचे स्थित होते हैं। प्रत्येक वातरन्ध्र में अनियमित आकार की छोटी, पतली भित्ति वाली कोशिकाओं का समूह पाया जाता है जिन्हें पूरक या कम्पलीमेण्टरी (complementary) कोशिकाएँ कहते हैं। इस प्रकार ये कोशिकाएँ कॉर्क कैम्बियम द्वारा बाहर की ओर कॉर्क कोशिकाओं के स्थान पर बनती हैं। इन (UPBoardSolutions.com) कोशिकाओं की कोशिका-भित्ति में सुबेरिन नहीं होती। इन कोशिकाओं की संख्या बढ़ते रहने से बाह्यत्वचा फट जाती है और पूरक कोशिकाएँ ऊपर की ओर उठकर छोटे-छोटे उभार बना लेती हैं। इस प्रकार वातरन्ध्र (lenticel) बन जाते हैं। शीत ऋतु में कॉर्क कोशिकाओं के बनने के कारण वातरन्ध्र बन्द हो जाते हैं, परन्तु नववर्ष के आगमन पर ये पुनः खुल जाते है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विभज्योतक क्या है ? स्थिति के आधार पर ये कितने प्रकार के होते हैं ? या शीर्षस्थ विभज्योतक तथा अन्तर्वेशी (अन्तर्विष्ट) विभज्योतक में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :

विभज्योतक ऊतक

विभज्योतक या मेरिस्टेमी ऊतक (meristems) वे हैं जिनकी कोशिकाओं में विभाजन की क्षमता होती है अथवा इनमें विभाजन हो रहा होता है। इनका भिन्नन (differentiation) भी नहीं हुआ होता है। इनकी कोशिकाएँ सेलुलोस की पतली भित्ति वाली, कोशिकाद्रव्य से भरी हुई अर्थात् रिक्तिकाएँ बहुत कम और छोटी, किन्तु बड़े व स्पष्ट केन्द्रक वाली होती हैं। इनमें कोशिकाएँ अत्यन्त पास-पास लगी होती हैं जिनके मध्य अन्तराकोशिकीय स्थान (intercellular spaces) प्रायः नहीं होते। ये आकार में समव्यासी (isodiametric) होती हैं तथा उपापचयी (metabolic) रूप से अधिक सक्रिय होती हैं।

विभज्योतक पौधों के वृद्धि भागों में मिलते हैं। निम्न श्रेणी के बहुकोशिकीय पौधों में ये पूरे पौधे के शरीर में रहते हैं, किन्तु उच्च श्रेणी के पौधों में तो ये निश्चित और विशेष स्थितियों में ही पाये जाते हैं। इन कोशिकाओं के विभाजन, परिवर्द्धन, वृद्धि और भिन्नन के बाद ही स्थायी ऊतक (permanent tissues) बनते हैं।

स्थिति के आधार पर विभज्योतक
स्थिति के अनुसार विभज्योतक निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं

1. शीर्षस्थ विभज्योतक (Apical meristem) :
यह ऊतक किसी अंग (मूल या तने) के शीर्ष में होता है और नई-नई कोशिकाएँ बनाते रहने के कारण, वहाँ पर वर्धन प्रदेश (growing zone) बनाता है। इसी के कारण उस भाग में पौधों की लम्बाई में वृद्धि होती है। तने तथा जड़ कें शीर्षों के अनुदैर्ध्य काटों में इनको तथा इनसे बनने वाले स्थायी ऊतकों (permanent tissues) को देखा जा सकता है। शीर्षस्थ विभज्योतक प्रायः सदैव ही प्राथमिक (primary) प्रकार का विभज्योतक होता है। शीर्षस्थ विभज्योतक से तनों तथा जड़ों के शीर्षों में जिस प्रकार से क्रमशः नये तथा स्थायी ऊतकों का निर्माण होता है, इसको समय-समय पर कई प्रकार के सिद्धान्तों के द्वारा समझाया जाता रहा है। इनमें सबसे पुराना तथा मान्यवाद हिस्टोजन वाद (histogen theory) है। इस वाद के अनुसार, किसी शीर्षस्थ विभज्योतक से बनने वाले स्तर तीन प्रकार के ऊतकजन क्षेत्रों (histogen zones) में बँटे होते हैं (चित्र देखिए)। ये क्षेत्र प्राविभज्योतक (promeristem) के रूप में अपना परिवर्द्धन प्रारम्भ करते हैं तथा अग्रलिखित प्रकार से स्थायी ऊतकों का निर्माण करते हैं जड़ के (UPBoardSolutions.com) शीर्ष पर चूँकि मूलगोप (root cap) होता है अतः इसको निर्मित करने वाला एक अलग विभज्योतक होता है, इसे कैलिप्ट्रोजन (calyptrogen) कहते हैं। यह मूलगोप की होते रहने वाली क्षति की पूर्ति करता है।
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2. पाश्र्व विभज्योतक (Lateral meristem) :
यह ऊतक तने या मूल के पाश्र्यों में अक्ष के समान्तर अर्थात् स्पर्श रेखीय तल (tangential plane) में स्थित होता है। इसकी कोशिकाएँ केवल इसी तल में विभाजित होती हैं। अत: इससे द्वितीयक ऊतकों (secondary tissues) का निर्माण होता है, जिससे जड़ या तने (प्ररोह) की मोटाई बढ़ती है। द्विबीजपत्री पौधों के तने में उपस्थित संवहन एधा (fascicular cambium)इस प्रकार का ऊतक होता है। अन्य उदाहरण में तने या जड़ में स्थायी ऊतकों से उत्पन्न होने वाला द्वितीयक विभज्योतक (secondary meristem) काग एधा (cork cambium) अथवा द्विबीजपत्री जड़ों में उत्पन्न होने वाली द्वितीयक संवहन एधा (secondary fascicular cambium) होती है। उपर्युक्त सभी उदाहरणों में तने अथवा जड़ की मोटाई में द्वितीयक वृद्धि (secondary growth in thickness) ही होती है।

3. अन्तर्वेशी विभज्योतक (Intercalary meristem) :
यह ऊतक शीर्षस्थ विभज्योतक का अलग होकर छूटा हुआ भाग होता है, जो स्थायी ऊतकों में परिवर्तित न होकर, उनके मध्य में रह जाता है। इस ऊतक के कारण भी पौधे के भागों की लम्बाई में वृद्धि होती है। घासों के पर्वो (internodes) के आधारों में तथा पोदीना (mint) के तने की पर्वसन्धियों (UPBoardSolutions.com) (nodes) के नीचे यह ऊतक पाया जाता है। यह पर्णाधार (leaf base) पर भी पाया जाता है; जैसे-चीड़ (Pinus) में। अन्तर्वेशी विभज्योतक प्राथमिक स्थायी ऊतकों को जन्म देते हैं तथा पौधों की लम्बाई बढ़ाते हैं। इस प्रकार की वृद्धि अल्पकालिक होती है।

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प्रश्न 2.
ऊतक से आप क्या समझते हैं? पौधों के स्थायी ऊतकों की संरचना और उनके कार्यों का सचित्र वर्णन कीजिए। या स्थूलकोण ऊतक तथा दृढ़ोतक में अन्तर बताइए।
उत्तर :
ऊतक कोशिकाओं का वह समूह जिसकी उत्पत्ति, संरचना तथा कार्य समान होते हैं, ऊतक कहलाता है। पादप ऊतक मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं

  1.  स्थायी ऊतक तथा
  2. विभज्योतकी ऊतक।

स्थायी ऊतक
इसकी कोशिकाओं में कोशा विभाजन की क्षमता नहीं होती है।

1. सरल ऊतक  :
ये जीवित या मृत पतली या मोटी भित्ति वाली एक जैसी कोशिकाओं का समूह होता है। सरल ऊतक निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं

(i) मृदूतक (Parenchyma) :
यह समव्यासी, गोलाकार, अण्डाकार या बहुभुजी, पतली भित्ति वाली जीवित कोशाओं से बना होता है। कोशिकाओं के मध्य प्रायः अन्तराकोशीय स्थान (inercellular space) पाया जाता है। यह ऊतक प्रायः पौधों के कोमल भागों में पाया जाता है।

कार्य :
(अ) जल एवं खाद्य पदार्थों (स्टार्च, प्रोटीन, वसा) को संचय करता है।
(ब) हरितलवक (chloroplast) की उपस्थिति के कारण प्रकाश-संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करता है।
(स) वायु गुहिकाओं युक्त मृदूतक को वायुतक (aerenchyma) कहते हैं। यह जलीय पौधों के प्लवने (floating) में सहायक होता है।
(द) इसे स्पंजी मृदूतक भी कहते है। यह गैस विनिमय में सहायता करता है।
(य) कोशिकाओं में विभाजन की क्षमता स्थापित हो जाने के कारण द्वितीयक वृद्धि एवं घाव भरने में सहायता करता है।
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(ii) स्थू लकोण ऊतक Collenchyma) :
ये कोणीय कोशिकायें मृदूतक की अपेक्षा लम्बी होती हैं। इनमें अन्तराकोशीय अवकाश (intercellular space) का अभाव होता है। कोशिकाओं के कोनों पर । पेक्टिन तथा सेलुलोस एकत्र हो जाता है। जिससे ये कोशिकायें अनुप्रस्थ काट में गोलाकार या अण्डाकार दिखाई देती हैं। कभी-कभी कोशिकाओं में हरितलवक भी उत्पन्न हो जाता है।
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कार्य :
(अ)
पौधों के कोमल अंगों को तनन दृढ़ता (tensile strength) प्रदान करता है।
(ब) भोजन का संचय करता है।
(स) हरितलवक की उपस्थिति के कारण भोजन का निर्माण करता है।

(iii) दृढ़ ऊतक (Sclerenchyma) :
कोशिका भित्ति के लिग्निनकरण के कारण परिपक्व कोशिकाएँ मृत (dead) हो जाती हैं। दृढ़ ऊतक दो प्रकार की कोशिकाओं से बना होता है।
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(a)
दृढ़ोतक रेशे (Sclerenchymatous fibres) :

ये लम्बी, सँकरी तथा दोनों सिरों पर नुकीली, मृत कोशिकाएँ होती हैं कोशिकायें लिग्निनकरण के कारण मृत (dead) हो जाती हैं। तन्तुओं की लम्बाई प्राय: 1 से 3 मिमी होती है। जूट (jute) के रेशे 20 मिमी तथा बोहमेरिया (Boehmeria) के रेशे 550 मिमी तक लम्बे होते हैं।

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(b)
दृढ़ कोशाएँ (Stone cells or sclereids) :

ये कोशिकाएँ लगभग समेव्यासी, गोलाकार, अण्डाकार या अनियमित होती हैं। कोशिका भित्ति लिग्निनयुक्त हो जाने से कोशिकाएँ मृत हो जाती हैं। दृढ़ कोशाएँ फलभित्ति, बीजकवच आदि में पायी जाती हैं।

कार्य :
(अ) दृढ़ ऊतके पौधे के विभिन्न अंगों को यान्त्रिक शक्ति (mechanical strength) प्रदान करता है।
(ब) यह बीज तथा फलों का रक्षात्मक आवरण बनाता है।

2. जटिल ऊतक (Complex tissue) :
दो या अधिक प्रकार की कोशिकाएँ परस्पर मिलकर एक ही कार्य सम्पन्न करती हैं। जटिल ऊतक दो प्रकार के होते हैं

(i) जाइलम तथा
(ii) फ्लोएम।

(i) जाइलम :
इसके अध्ययन के लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 देखें।

(ii) फ्लोएम :
इस ऊतक का प्रमुख कार्य पौधे के प्रकाश संश्लेषी भागों (जैसे–पत्तियों) में निर्मित भोज्य-पदार्थों को पौधे के अन्य भागों में स्थानान्तरित करना होता है। इस ऊतक को बास्ट (bast) भी कहते हैं।

संरचना  :
जाइलम की तरह ही फ्लोएम के निर्माण में भी चार प्रकार की कोशिकाएँ भाग लेती हैं। ये कोशिकाएँ निम्नवत् हैं

  1. चालनी नलिकाएँ (sieve tubes)
  2. सहचर कोशिका (companion cell)
  3.  फ्लोएम पेरेनकाइमा (phloem parenchyma)
  4. फ्लोएम तन्तु (phloem fibres)।

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(a)
चालनी नलिकाएँ
एन्जियोस्पर्म में चालनी नलिका (sieve tube) :
मिलती है तथा टेरिडोफाइटा में चालनी कोशिका (sieve cell) मिलती है। ये पतली नली के समान होती हैं जिसमें कोशिकाएँ एक के ऊपर एक कतार में
लगी रहती हैं। इनकी अन्त:भित्ति (end wall) पर चालनी प्लेट (sieve plate) पाई जाती है। कोशिका भित्ति सेलुलोस की बनी होती है। इसमें अनेकों छिद्र मिलते हैं जिससे आस-पास की कोशिकाओं में सम्पर्क बना रहता है। कभी-कभी चालनी प्लेट अनुदैर्ध्य भित्ति (longitudinal wall) में भी पाई जाती है। वर्षी ऋतु (growing season) के अन्त में चालनी पट्टिका एक प्रकार के रंगहीन चमकदार कैलोस (callose) नामक कार्बोहाइड्रेट की तह से ढक जाती है, जिसे कैन्नस (callus) कहते हैं। बहुत पुरानी चालनी-पट्टिका में कैलस स्थाई रूप से जम जाता है जिससे भोजन का संवहन रूक जाता है। परिपक्व चालनी नलिका में केन्द्रक नहीं मिलता है। प्रत्येक चालनी नलिका के साथ छिद्रों द्वारा जुड़ी हुई एक लम्बी सहचर कोशिका (companion cell) पाई जाती है।

(b)
सहचर कोशिका 

जिम्नोस्पर्म व टेरिडोफाइटा में सहचर-कोशिका नहीं पाई जाती है। जिम्नोस्पर्म व टेरीडोफाइटा में चालनी कोशिका (sieve cell) मिलती है जिस पर चालनी प्लेट (sieve plate) स्पष्ट नहीं होती है। आमतौर पर चालनी क्षेत्र (sieve areas) पाश्र्व दीवार (lateral wall) पर पाए जाते हैं। एन्जियोस्पर्म में चालनी नलिका से पाश्र्व दिशा से लगी एक लम्बी-पतली कोशिका होती है जिसे सहचर कोशिका कहते हैं। यह पतली कोशिका भित्ति वाली कोशिका होती है जो भोजन के संवहन में (UPBoardSolutions.com) सहायता करती है। सामान्यत: एक चालनी नलिका से एक सहचर कोशिका लगी रहती है। सहचर कोशिका में एक बड़ा केन्द्रक व प्रचुर मात्रा में जीवद्रव्य मिलता है। इनमें स्टार्च कण (starch grain) नहीं मिलते हैं, परन्तु माइटोकॉन्ड्रिया (mitochondria), एन्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम (endoplasmic reticulum), राइबोसोम (ribosome) आदि कोशिकांग मिलते हैं।

(c)
फ्लोएम पेरेनकाइमा
आकृति में ये कोशिकाएँ लम्बी, चौड़ी, पतली व गोल हो सकती हैं। ये कोशिकाएँ चालनी नलिका के बीच-बीच में मिलती हैं व जीवित होती हैं। इनको मुख्य कार्य भोजन का संचय करना व संवहन में सहायता करना है। इन कोशिकाओं के अन्य गुण पेरेनकाइमा की कोशिकाओं की तरह होते हैं। एकबीजपत्री पौधों के तनों में फ्लोएम पेरेनकाइमा का प्रायः अभाव होता है।

(d)
फ्लोएम तन्तु
ये दृढ़ऊतक के बने होते हैं। इनकी कोशिकाभित्ति मोटी, कोशिका-गुहा सँकरी व इनमें गर्त मिलते हैं। इन तन्तुओं का बहुत आर्थिक महत्त्व है। इनसे रस्सी, सुतली, गद्दे, बैग आदि बनाए जाते हैं। तन्तुओं की लम्बाई निश्चित नहीं होती है। ये द्वितीयक फ्लोएम में अधिक मिलते हैं। प्राथमिक फ्लोएम में तन्तुओं की कोशिकाभित्ति अधिकतर सेलुलोस की बनी होती है।

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प्रश्न 3.
दारु के विभिन्न घटकों का विवरण दीजिए एवं उनके कार्यों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए। या जाइलम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। या दारु (जाइलम) ऊतक के विभिन्न अवयवों के नामांकित चित्र बनाइए। या टिप्पणी लिखिए-जाइलम द्वारा खनिज लवणों का परिवहन।
उत्तर :

दारु या जाइलम

दारु या जाइलम (xylem) ऐसा संवहन ऊतक (vascular tissue) है जिसके द्वारा भूमि से अवशोषित जल तथा उसमें घुले हुए खनिज पदार्थों का संवहन होता है। इन कार्यों को करने के लिए जाइलम में निम्नलिखित चार प्रकार की विशेष संरचनाएँ या दारु अवयव (xylem elements) पाए। जाते हैं।

1. दारु वाहिनिकाएँ (Xylem tracheids) :
ये लम्बी व नलिकाकार कोशिकाएँ होती हैं जिनके भीतर जीवद्रव्य नहीं होता तथा ये मृत हो जाती हैं। इनकी भित्तियाँ, जो प्राथमिक रूप में सेलुलोस की बनी होती हैं, किन्तु बाद में लिग्निन (lignin) से स्थूलितं होने से, अधिक मोटी हो जाती हैं। लिग्निनयुक्त (lignified) होने के कारण ये कठोर तथा काष्ठीय हो जाती हैं। कोशिका भित्तियों को लिग्निन द्वारा स्थूलन (thickening) होने से भित्तियों पर कई प्रकार की संरचनाएँ बन जाती हैं। इन्हीं के आधार पर ये कई प्रकार की मानी जाती हैं; जैसे-वलयाकार (annular), सर्पिल (spiral) प्रकार के स्थूलन प्रोटोजाइलम (protoxylem) में होते हैं। सीढ़ीनुमा (scalariform) प्रकार का स्थूलन प्रोटोजाइलम तथा मेटाजाइलम (metaxylem) दोनों में होता है। जालिकारूपी (reticulate) प्रकार का स्थूलन मेटाजाइलम में मिलता है।

जब कोशिका भित्ति पर जालिकावत् स्थूलन और भी अधिक घना हो जाता है तो कुछ स्थानों पर ही लिग्निन न जमा होने के कारण छोटे-छोटे स्थान शेष रह जाते हैं।इन स्थानों पर केवल सेलुलोस की भित्ति ही होती है, इन स्थानों को गर्त (pits) कहते हैं। गर्त पड़ोसी कोशिका की भित्ति पर भी इसी स्थान पर बनता है, अतः इन्हें गर्त युग्म (pit pair) कहना अधिक उचित है। गर्त साधारण (simple) अर्थात् पूरी गहराई तक बराबर स्थूलन वाले अथवा परिवेशित  (bordered) हो सकते हैं। परिवेशित गर्त में स्थूलन बाहर से अन्दर की ओर क्रमशः कम होता जाता है। गर्तमय (pitted) स्थूलन मेटाजाइलम में पाया जाता है।

2. दारु वाहिकाएँ या टैकी (Xylem vessels or tracheae) :
ये बहुत लम्बी और चौड़ी नलिकाओं के समान संरचनाएँ होती हैं जो एक पंक्ति में, एक के सिरे से दूसरी (end to end) लगी रहती हैं। वाहिकाओं (vessels) में वाहिनिकाओं की अपेक्षा अनुप्रस्थ भित्तियों का पूर्ण या अपूर्ण रूप से अभाव होता है। यदि अनुप्रस्थ भित्तियाँ होती हैं तो अत्यधिक छिद्रिल होती हैं। (UPBoardSolutions.com) वाहिकाओं (vessels) में भी मृत, मोटी कोशिका भित्ति होती है तथा वाहिनिकाओं की तरह कोशिका भित्तियाँ समान मोटाई की होती हैं। वाहिकाओं की भित्ति पर लिग्नीभवन (lignification) भी वाहिनिकाओं के समान कई प्रकार का होता है।

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अनुप्रस्थ काट में जाइलम वाहिकाएँ वाहिनिकाओं के समान ही बहुभुजी दिखायी देती हैं। अनावृतबीजी पौधों (gymnosperms) में जाइलम केवल वाहिनिकाओं (tracheids) का बना रहता है, इनमें वाहिकाओं (vessels) का प्रायः अभाव होता है जबकि आवृतबीजी पौधों (angiosperms) में वाहिकाएँ ही प्रमुख जाइलम अवयव (xylem elements) हैं।

3. दारु मृदूतक (Xylem parenchyma) :
ये मृदूतकीय कोशिकाएँ (parenchymatous cells) जाइलम के अन्दर पायी जाती हैं। इनकी भित्तियाँ बाद में कुछ मोटी हो जाती हैं, किन्तु ये सजीव होती हैं। स्थूलित होने पर इन कोशिकाओं की भित्तियों में सरल गर्त (pits) होते हैं। इनका मुख्य कार्य जल व खाद्य पदार्थ संचित रखना है, किन्तु ये जल संवहन में भी दारु | वाहिकाओं आदि को सहयोग देती हैं।

4. दारु रेशे (Xylem fibres) :
ये रेशे दृढ़ोतकी (sclerenchymatous) होते हैं अर्थात् इनकी भित्तियाँ लिग्निनयुक्त (lignified) होती हैं और इन भित्तियों में विभिन्न प्रकार के गर्त पाये जाते हैं। इन रेशों का मुख्य कार्य मजबूती तथा सहारा देना होता है।

(i) आदिदारु (Protoxylem) :
वाहिनिकाएँ और वाहिकाएँ पहले संकरी बनती हैं तथा उनकी भित्तियों पर वलयाकार अथवा सर्पिल स्थूलन (annular or spiral thickening) होती है। इनको आदिदारु (protoxylem) कहते हैं।

(ii) अनुदारु (Metaxylem) :
बाद में वाहिकाएँ (vessels) तथा वाहिनिकाएँ (tracheids) चौड़ी तथा अधिक लम्बी हो जाती हैं। इनकी भित्तियों पर जालिकारूपी या सीढ़ीनुमा स्थूलन (thickenings) अथवा गर्त पाये जाते हैं, इसको अनुदारु (metaxylem) कहते हैं।

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(iii) जाइलम के कार्य (Functions of xylem) :

  1.  जाइलम द्वारा, मूलों द्वारा अवशोषित जल तथा लवणों के घोल को पौधों के वायव भागों तक (पत्तियों तक) पहुँचाया जाता है। इस कारण इस जटिल ऊतक को जल संवाहक ऊतक (water conducting tissue) कहते हैं।
  2.  इसमें उपस्थित कोशिकाओं की भित्तियाँ मोटी व दृढ़ होने के कारण यह ऊतक पौधे के भागों को यान्त्रिक शक्ति (mechanical strength) प्रदान करता है।

प्रश्न 4.
भरण ऊतक तन्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
बाह्यत्वचा तथा संवहन बण्डल के अतिरिक्त सभी ऊतक भरण ऊतक की श्रेणी में आते हैं। ये पेरेनकाइमा, कोलेनकाइमा तथा स्क्लेरेनकाइमा कोशिकाओं से बने होते हैं। पत्तियों में भरण ऊतक पतली भित्ति वाले तथा क्लोरोप्लास्ट युक्त होते हैं और इसे पर्णमध्योतक (leaf mesophyll) कहते हैं। भरण ऊतक में निम्नलिखित भाग आते हैं

(i) वल्कुट (Cortex) :
यह बाह्यत्वचा के नीचे पाया जाने वाला भरण ऊतक (ground tissue) है जो प्रायः अन्तस्त्वचा (endodermis) तक फैला रहता है। इसमें निम्नलिखित भाग होते हैं

(a)
अधस्त्वचा (Hypodermis) :

द्विबीजपत्री पौधों में बाह्यत्वचा के नीचे स्थूलकोण ऊतक (collenchyma tissue) तथा एकबीजपत्री पौधों में बाह्यत्वचा के नीचे दृढ़ोतके (sclerenchyma tissue) की एक या कुछ परतें पूरी पट्टी के रूप में अथवा छोटे-छोटे टुकड़ों में पाई जाती हैं। इन्हें अधस्त्वचा (hypodermis) कहते हैं। यह ऊतक पतली कोशिकाभित्ति वाली मृदूतक कोशिकाओं से बना होता है तथा अधस्त्वचा के ठीक नीचे पाया जाता है। ये परतें रक्षा का कार्य करती हैं।

(b)
सामान्य वल्कुट (General Cortex) :

इनमें सुविकसित अन्तराकोशिकीय स्थान (intercellular spaces) पाए जाते हैं। प्रायः तरुण तने की वल्कुट की कोशिकाओं में हरितलवक पाए जाते हैं। इस प्रकार के मृदूतक को क्लोरेनकाइमा (chlorenchyma) कहते हैं। वल्कुट की कोशिकाओं में मण्ड, टेनिन तथा अन्य उत्सर्जी पदार्थ भी पाए जाते हैं। जलीय पौधों में वल्कुट में एक विशेष प्रकार का मृदूतक पाया जाता है जिसे वायूतक (aerenchyma) कहते हैं। इसमें बीच-बीच में काफी बड़े वायु-स्थान (air-spaces) मिलते हैं। वल्कुट (cortex) पौधों को यान्त्रिक शक्ति प्रदान करता है; ‘भोज्य-पदार्थ का संग्रह करता है तथा पौधों के आन्तरिक ऊतकों की रक्षा करता है।

(c)
अन्तस्त्वचा (Endodermis) :

इसे मण्डआच्छद (starch sheath) भी कहते हैं। यह कोशिकाओं की एक अकेली परत के रूप में पायी जाती है। यह वल्कुट को रम्भ (stele) से पृथक् करती है। यह परत ढोल-सदृश (barrel-shaped) कोशिकाओं की बनी होती है और इनके बीच अन्तराकोशिकीय स्थान नहीं होते। यह (UPBoardSolutions.com) कोशिकाएँ जीवित होती हैं और इनमें मण्ड, टेनिन, म्यूसिलेज की अधिकता होती है। मण्डे की उपस्थिति के कारण ही इसे मण्ड आच्छद (starch sheath) भी कहते हैं। अन्तस्त्वचा की कुछ कोशिकाओं की अरीय (radial) और आन्तरिक (inner) भित्तियाँ, सुबेरिन (suberin), क्यूटिन (cutin) या कभी-कभी लिग्निन (lignin) पदार्थों के संग्रह के कारण स्थूलित (thickened) हो जाती हैं। इस स्थूलित पट्टी को केस्पेरियन पट्टी (casparian strip) कहते हैं। इन मोटी भित्ति वाली अन्तस्त्वचा कोशिकाओं के बीच अनेक जड़ों में कुछ पतली भित्ति वाली कोशिकाएँ आदिदारु (protoxylem) के अभिमुख (opposite) होती हैं। इन कोशिकाओं को मार्ग कोशिकाएँ (passage cells) अथवा संचरण कोशिकाएँ (transfusion cells) कहते हैं। इन्हीं कोशिकाओं द्वारा मूलरोमों द्वारा अवशोषित जल व खनिज पदार्थ जाइलम में जाते हैं।

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प्रश्न 5.
संवहन बण्डल क्या हैं ? चित्रों की सहायता से आवृतबीजी पौधों में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के संवहन बण्डलों की संरचना का वर्णन कीजिए। या उपयुक्त चित्रों की सहायता से आवृतबीजियों में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के संवहन बण्डलों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :

संवहन पूल

जाइलम व फ्लोएम (Xylem and phloem) पौधों में पाये जाने वाले संवहन ऊतक हैं। ये पौधों में अलग-अलग प्रकार से विन्यसित होते हैं। प्रायः यह भी देखा गया है कि दोनों प्रकार के संवहन ऊतक सदैव ही एक-दूसरे के आस-पास रहते हैं। इस प्रकार जाइलम और फ्लोएम के पास-पास होने तथा इनसे बनने वाले विशेष तन्तुओं (strands) को संवहन पूल (vascular bundle) कहते हैं। द्विबीजपत्री पौधों (dicot plants) में जाइलम तथा फ्लोएम के अतिरिक्त एधा (cambiun) भी संवहन पूल बनाने में मदद करती है। समस्त पौधों में संवहन पूल अपनी संवहन ऊतकों की व्यवस्था के अनुसार प्रमुखत: निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं

1. संयुक्त संवहन पूल
इस प्रकार के संवहन पूल में जाइलम और फ्लोएम एक ही त्रिज्या (radius) पर होते हैं। इस प्रकार के संवहन पूल सामान्यत: आवृतबीजी (angiospermic) पौधों के स्तम्भों (stems) में पाये जाते हैं। ये संवहन पूल भी निम्नलिखित दो प्रकार के मिलते हैं

(i) कोलेटरल संवहन (Collateral vascular bundles) :
ये प्रायः अधिकतर तनों में मिलते हैं। इन संवहन पूलों में जाइलम केन्द्र की ओर तथा फ्लोएम परिरम्भ (pericycle) की ओर होता है। द्विबीजपत्री तनों में जाइलम और फ्लोएम के मध्य प्राथमिक एधा (primary cambium) होती है जिससे ये पूल वर्धा (open) कहलाते हैं। एकबीजपत्री तनों के संवहन पूलों में एधा नहीं होती और वे अवर्थी (closed) कहलाते हैं। इन संवहन पूलों में जाइलम सदैव ही अन्तःआदिदारुक (endarch) होता है अर्थात् आदिदारु केन्द्र की ओर तथा अनुदारु परिधि की ओर होता है।

(ii) बाइकोलेटरल संवहन पूल (Bicollateral vascular bundles) :
इस प्रकार के संवहन पूलों में जाइलम के दोनों ओर अर्थात् केन्द्र की ओर भी और परिधि की ओर भी फ्लोएम होता है। इस प्रकार के संवहन पूलों में भी जाइलम अन्त:आदिदारुक ही होता है और ये मदेव बर्थी होते हैं। इनमें जाइलम तथा फ्लोएम के मध्य दोनों ओर एधा होती है।

उदाहरण :
कद्दू के पौधों के तनों में संवहन पूल प्राय: बाइकोलेटरल ही होते हैं।
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2. अरीय संवहन पूल
इस प्रकार के पूलों में जाइलम और फ्लोरम अलग-अलग त्रिज्याओं पर होते हैं। इस प्रकार के संवहन पूल जड़ों में पाये जाते हैं। इनमें जाइलम सदैव बाह्यआदिदारुक (exarch) मिलता है अर्थात् आदिदारु परिधि की ओर तथा अनुदारु केन्द्र की ओर होता है। इन संवहन पूलों में प्राथमिक एधा (primary cambium) नहीं पायी जाती है। द्विबीजपत्री जड़ों में जाइलम तथा फ्लोएम के मध्य, बाद में द्वितीयक एधा (secondary cambitum) बन जाती है। 3. संकेन्द्री संवहन पूल इन पूलों (UPBoardSolutions.com) में एक संवहन ऊतक (vascular tissue) केन्द्र में तथा दूसरा इसे चारों ओर से घेरता है। सभी सुकेन्द्री संवहन पूल अवर्थी closed) होते हैं अर्थात् इनमें एधा कभी नहीं होती है। जाइलम तथा फ्लोएम की स्थिति के अनुसार ये संवहन पूल प्रायः निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं।

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(i) दारु केन्द्री (Amphicribral) :
इस प्रकार के संवहन पूलों में जाइलम केन्द्र में तथा फ्लोएम इसे चारों ओर से घेरता है। दारु केन्द्री संवहन पूल फर्क्स (ferns) के राइजोम में मिलते हैं।

(ii) फ्लोएम केन्द्री (Amphivasal) :
इस प्रकार के संवहन पूलों में फ्लोएम मध्य में तथा दारु इसे चारों ओर से घेरता है। फ्लोएम केन्द्री संवहन पूल कुछ एकबीजपत्री पौधों; जैसे—यक्का (Yucca), डैसीना (Dracaena) आदि के तने में मिलते हैं।

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